पुत्रवती होने का नुस्खा : छोटा भाई बना हत्यारा

35 वर्षीय शिवकुमार सिंह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव लखनेपुर का निवासी था. उस के पिता उदयभान सिंह खेतीबाड़ी का काम करते थे. शिवकुमार के 3 भाई थे. एक बड़ा राजकुमार और 2 छोटे नरेश और देवकुमार. राजकुमार का विवाह हो चुका था, वह पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाता था. शिवकुमार का विवाह करीब 12 साल पहले उमा से हुआ था. बाद में वह 2 बेटियों की मां बनी.

उमा जब पहली बार गर्भवती हुई, तब उस की चाह बेटे की थी. यह चाहत दूसरी बार भी बनी रही. दोनों बार उमा को निराश होना पड़ा.

शिवकुमार को पता था कि बेटा न होने से उमा दुखी है. वह उसे समझाता भी था, लेकिन वह बेटा न होने के गम में घुलती रहती है. यह अलग बात है कि कई मायनों में बेटियां बेटों से लाख गुना बेहतर होती हैं.

उमा के जी में तो आग लगी रहती कि सब के बेटे हुए, पर उसे नहीं हुआ. उस में ऐसी कौन सी कमी है, जो बेटी पर बेटी हो गई.

बच्चों के बड़े होने पर खर्च तो बढ़ा, लेकिन आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ी. शिवकुमार बाहर जा कर काम करने की सोचने लगा. उस के गांव के कुछ लोग फरीदाबाद में काम करते थे. शिवकुमार ने उन से बात की तो दोस्तों ने काम पर लगवाने का वादा कर उसे फरीदाबाद बुला लिया. शिवकुमार पत्नी और बच्चों को छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

फरीदाबाद में एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. वहां काम पर लगने के कुछ दिन बाद ही उस ने किराए पर कमरा ले लिया. रहने का सही ठिकाना हुआ तो वह गांव आ कर पत्नी उमा और दोनों बेटियों को अपने साथ फरीदाबाद ले गया. इस तरह उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीकठाक चलने लगी.

शिवकुमार का छोटा भाई देवकुमार गांव में बेरोजगार घूमता था. उस ने कुछ दिनों बाद देवकुमार को भी फरीदाबाद बुला लिया. उस ने उसे भी काम पर लगवा दिया. दोनों भाई अच्छा कमाने लगे.

उमा के लिए फरीदाबाद अजनबी शहर था. वह दिन भर कमरे में ही रहती थी और कमरे में 2 ही इंसान थे, जिन से वह बात कर सकती थी, एक पति और दूसरा देवर.

पति से तो उमा सीमित बात करती लेकिन देवर देवकुमार से खूब गपशप करती थी. देवकुमार उमा से आयु में छोटा था और अविवाहित भी. वैसे भी देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन में खूब पटती थी.

पहले तो उमा के प्रति देवकुमार की नीयत में खोट नहीं थी. लेकिन जब से उमा ने उस के सामने बेटा न होने का राग अलापना शुरू किया, तब से देवकुमार की नीयत डोलने लगी. भाभी की इसी कमजोरी का लाभ उठा कर देवर देवकुमार अपना उल्लू सीधा करने की सोचने लगा.

एक दिन काम से वापस आ कर देवकुमार जब उमा के पास बैठा तो उमा ने फिर अपने दुखड़े का पुलिंदा खोल दिया, ‘‘पता नहीं, मैं ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस का दंड बेटियों के तौर पर मुझे मिल रहा है.’’

देवकुमार को अपना उल्लू सीधा करने की दिशा मिल गई, ‘‘भाभी, बेटा और बेटी तो समान होते हैं, फिर तुम्हें बेटियों से चिढ़ क्यों है.’’

‘‘मुझे बेटियों से चिढ़ नहीं, अपने नसीब से शिकायत है.’’ उमा बोली, ‘‘2 बेटियों में से एक भी बेटा हो गया होता तो आज मेरे कलेजे में आग न लगी होती. कम से कम बुढ़ापे का सहारा और चिता में आग देने वाला भी तो कोई होना चाहिए. बेटा न होने से हमारे बाद तुम्हारे भैया का वंश ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘भाभी, विश्वास रखो,’’ देवकुमार ने आकाश की ओर उंगली उठाई, ‘‘नीली छतरी वाले के घर देर है, अंधेर नहीं. भाभी, लगातार 2 बेटियां होने से तुम खुद को दोषी क्यों मानती हो,’’ देवकुमार ने स्वार्थ की बिसात पर शातिर चाल चली, ‘‘तुम्हारी यह इच्छा जरूरी पूरी होगी.’’

उमा ने उस की आंखों में देखा, ‘‘यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’

‘‘इसलिए कि शायद तुम्हें पता नहीं कि बेटा हो या बेटी, उस के लिए जिम्मेदार मां नहीं पिता होता है.’’

उमा ने चौंक कर उस की ओर देखा,‘‘मैं समझी नहीं, खुल कर बोलो.’’

‘‘भाभी जमीन को जोत कर उस में जिस पौधे का बीज डाला जाए, वही पौधा उगता है.’’ देवकुमार ने कायदे से समझाया, ‘‘अगर बीज खराब हो तो वह अंकुरित नहीं होता, मिट्टी में ही पड़ा रह कर सड़ जाता है.’’

‘‘हां, सड़ जाता है.’’

‘‘और बीज कमजोर होता है, तो उस से निकला पौधा भी कमजोर होता है न.’’

‘‘हां, होता है.’’

‘‘बस बेटियां होने की भी यही वजह है.’’ देवकुमार ने उमा को अपने शब्दों में समझा कर उस की दुखती रग पर उंगली रखी, ‘‘शिवकुमार भैया अंदर से कमजोर हैं. दरजन भर बच्चे पैदा कर लो, लड़की ही होगी. और तुम लड़के के लिए तरसती रहोगी.’’

उमा गहरी सोच में डूब गई. देवकुमार ने उस की भावनाओं पर एक और चोट की, ‘‘मेरी बात का विश्वास न हो तो किसी पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति से पूछ लो.’’

उमा की सोच और गहरी हो गई. उमा को इसी भंवर में फंसा छोड़ कर देवकुमार सोने चला गया. मन ही मन खुश होते हुए वह सोच रहा था कि तीर सही निशाने पर लगा है, असर जरूर देखने को मिलेगा. देवकुमार का सोचना सही था. उस की बात ने उमा के दिल पर गहरा असर किया था.

उमा कुछ देर बाद सोच के भंवर से निकली और उस ने तय किया कि वह पता करेगी कि क्या वास्तव में संतान के लिंग धारण का जिम्मेदार पिता होता है.

अगले ही दिन बीमारी का बहाना बना कर उमा एक लेडी डाक्टर के यहां गई. उस ने डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा कि संतान के लिंग निर्धारण का उत्तरदायी पिता होता है. डाक्टर ने उमा को एक्सवाई की थ्योरी भी समझा दी.

लेडी डाक्टर के जवाब से उमा के मन पर छाया अपराधबोध छंट गया. अब पति से उसे चिढ़ हो गई. वह सोचने लगी कि जरूर उसे पता होगा कि वह बेटा पैदा करने लायक नहीं. इसीलिए लड़कियों की हिमायत करता है.

उस दिन जब देवकुमार वापस आया तो उमा बोली, ‘‘तुम ने बता कर बहुत अच्छा किया, हकीकत बता कर मेरी आंखें खोल दीं.’’

‘‘भाभी, यह तो अच्छी बात है.’’

‘‘और अच्छी बात तब होगी, जब तुम यह बताओ कि तुम्हारे भैया का इलाज कहां कराऊं, जिस से हमारे आंगन में भी बेटा खेलेकूदे.’’

देवकुमार समझ रहा था कि भाभी बेटा पैदा करने के लिए उतावली है और उस के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है. अत: उस ने जाल फैलाया, ‘‘भाभी, भैया का इलाज तो संभव नहीं है, लेकिन तुम जरूर पुत्रवती हो सकती हो.’’

‘‘वो कैसे?’’ उमा की आंखों में उम्मीद की किरण दिखने लगी.

‘‘तुम्हें किसी दूसरे से नियोग करना होगा.’’ वह बोला.

‘‘नियोग में क्या करना होगा?’’ उमा ने पूछा.

‘‘तुम्हें पराए मर्द के साथ मिलन करना होगा.’’ देवकुमार ने बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो’’ उमा आंखें दिखाने लगी, ‘‘ऐसी बात कहते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम्हारे भैया ने सुना तो न जाने क्या कर डालेंगे.’’

‘‘तो फिर बेटियों से ही संतोष करो.’’

उमा कई दिन तक सोचती रही. उस ने अपनी इच्छा दबाने का भी प्रयास किया, परंतु नाकाम रही. किसी भी दशा में वह बेटे को जन्म देना चाहती थी. बहुत सोचने के बाद वह पतित होने को तैयार हो गई.

दूसरे दिन उस ने देवकुमार को अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘ मैं तुम्हारी सलाह पर अमल करने को तैयार हूं. सवाल यह है कि यह काम होगा कैसे?’’

‘‘भाभी, काम भी हो जाएगा और किसी को भनक तक नहीं लगेगी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘मैं हूं न, मेरी नसों में भी वही खून है, जो भैया के शरीर में है. खून वही रहेगा, पर शरीर बदल जाएगा. इस तरह भैया की नस्ल भी खराब नहीं होगी.’’

‘‘सोच कर बताऊंगी.’’

उमा ने काफी सोचा. फिर फैसला किया कि उसे हर हाल में बेटा चाहिए, इस के लिए वह देवकुमार से नियोग करेगी. अगले दिन उमा ने देवकुमार को नियोग करने की सहमति दे दी.

देवकुमार बेताब था तो उमा शर्म से गड़ी जा रही थी. देवकुमार ने उसे बांहों में ले कर प्यार करना शुरू किया तो उस की शर्म जाती रही. फिर वे वासना के सागर में गोते लगाने लगे. देवकुमार के नए जोश और उमा के अनुभव ने ऐसा कमाल दिखाया कि इस पहले मिलन से वे एकदूसरे के दीवाने हो गए.

कई महीने बीतने के बाद उमा को देवकुमार से गर्भ नहीं ठहरा, पर अवैध संबंध का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. उमा तन से देवकुमार की हुई तो उसे मन से भी उस की होते देर नहीं लगी.

कोरोना महामारी के चलते देश में लौकडाउन हुआ तो 24 मई, 2020 को शिवकुमार पत्नी, बच्चों और देवकुमार के साथ फरीदाबाद से गांव वापस आ गया. फरीदाबाद में तो शिवकुमार के न रहने पर दोनों खूब मस्ती करते थे. लेकिन गांव आने पर शिवकुमार के साथसाथ घर के और लोग भी थे. उन सब की नजरों  से बच कर मिलना आसान नहीं था लेकिन दोनों किसी तरह मिल कर मिलन का आनंद ले लेते थे.

14 जुलाई, 2020 की सुबह शिवकुमार की लाश घर से 200 मीटर दूर भीटे में पड़ी मिली. सुबह गांव की महिलाएं उधर गईं तो देखा, तब उन्होंने इस की जानकारी घरवालों को दी. घरवाले वहां पहुंच कर रोनेबिलखने लगे. गांव के ही शुभम सिंह नाम के व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दी.

सूचना पा कर एसओ मनबोध तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक शिवकुमार की लाश का उन्होंने निरीक्षण किया. उस के सिर पर किसी तेज धारदार हथियार के गहरे निशान थे. आसपास का निरीक्षण करने पर घटना से संबंधित कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

पूछताछ के दौरान परिजन कुछ भी बताने से हिचक रहे थे. घटना की सूचना देना तो दूर वह लाश का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे. इस पर एसओ को शक हो गया कि मृतक के घर वाले जानते हैं कि किस ने उन के बेटे की हत्या की है.

लेकिन हत्यारा भी कोई अपना करीबी होने के कारण मुंह नहीं खोल रहे हैं. फिलहाल एसओ मनबोध तिवारी ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

पुलिस ने शिवकुमार के पिता उदयभान सिंह की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ मनबोध तिवारी ने घटना के संबंध में गांव वालों से पूछताछ की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को शिवकुमार का अपने भाई देवकुमार से झगड़ा हुआ था. इस से पहले भी दोनों भाइयों का एकदो बार झगड़ा हो चुका था. देवकुमार घर से फरार भी था. इसलिए एसओ तिवारी का शक देवकुमार पर पुख्ता हो गया.

17 जुलाई, 2020 को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर धनपतगंज से देवकुमार को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म  स्वीकार कर लिया.

घटना से 3 दिन पहले शिवकुमार ने उमा और देवकुमार को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. जिस के बाद शिवकुमार ने दोनों को मारापीटा. इस के बाद शिवकुमार का देवकुमार से कई बार झगड़ा हुआ.

13 जुलाई को घटना वाली रात भी दोनों में उमा को ले कर झगड़ा हुआ. उसी रात शिवकुमार का अचानक पेट खराब हो गया. उसे दस्त हो गए. वह भीटे (गांव के बाहर स्थित टीले) की तरफ गया. पहले से जाग रहे देवकुमार ने उसे जाते देखा तो उसे भाई को सबक सिखाने का अच्छा मौका मिल गया. उस ने घर में रखी कुल्हाड़ी उठा ली और उस के पीछेपीछे हो लिया.

भीटे में पहुंचते ही देवकुमार ने पीछे से शिवकुमार के सिर पर कुल्हाड़ी से कई वार किए. शिवकुमार जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. चंद पलों में ही उस की मौत हो गई. भाई को मारने के बाद देवकुमार घर से फरार हो गया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और वह पकड़ा गया. देवकुमार की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद देवकुमार को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

इंसानी ज्वालामुखी : आक्रोश में आकर की पत्नी की हत्या

6 फरवरी, 2020 की बात है. दिन के करीब 11 बजे थे. महाराष्ट्र की उप राजधानी नागपुर शहर के सक्करदारा पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले ने फोन पर उन्हें बताया कि सुपर बाजार के दत्तात्रेय नगर स्थित देशमुख अपार्टमेंट की पहली मंजिल के फ्लैट नंबर 40 में कोई हादसा हो गया है. फ्लैट के अंदर से दुर्गंध आ रही है.

सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद ने इस सूचना को गंभीरता से लिया और अपने सहायक सबइंसपेक्टर प्रवीण बड़े, विनोद म्हात्रे और विजय मसराम को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल सक्करदारा थाने से करीब एक किलोमीटर दूर था. पुलिस टीम को वहां पहुंचने में 10 मिनट का समय लगा. इस बीच यह खबर उस इलाके में आग की तरह फैल गई थी, भीड़ देख कर पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि उसे किस अपार्टमेंट में जाना है.

पुलिस टीम भीड़ को हटा कर फ्लैट नंबर 40 के सामने जा पहुंची. फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. पड़ोसियों ने बताया कि फ्लैट भारतीय ज्ञानपीठ प्राइमरी स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मंजूषा नाटेकर का है, जिस में वह अपने छोटे मामा अशोक काटे के साथ रहती थीं.

मंजूषा और जयवंत नाटेकर का एक बेटा है सुजय नाटेकर, जो अपनी पत्नी के साथ चंद्रपुर में रहता है. मंजूषा नाटेकर का एक भाई राजेश खड़खड़े पास ही के मानवेड़ा परिसर के एक अपार्टमेंट में किराए पर रहता है और नौकरी करता है.

फ्लैट की एक चाबी उस के पास रहती है. सूचना दे दी गई है, वह आता ही होगा. दुर्गंध चूंकि काफी तेजी थी, इसलिए पुलिस टीम ने नाक पर रूमाल बांध कर दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था.

फ्लैट के अंदर एक नहीं 2 शव पड़े थे. एक शव मंजूषा के मामा अशोक काटे का था, जो हौल में था, जबकि दूसरा शव फ्लैट की किचन में रक्त में डूबा मंजूषा नाटेकर का था. उस का बड़ी बेरहमी से कत्ल किया गया था. कत्ल संभवत: 2 दिन पहले हुए थे. शवों में सड़न पैदा हो गई थी और दुर्गंध फैल रही थी.

सीद ने घटना की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही फोरैंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया. सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर डा. भूषण कुमार उपाध्याय, एडिशनल सीपी शशिकांत महावरकर, डीसीपी चिन्मय पंडित और डीसीपी (क्राइम) गजानन राजमने भी वहां आ गए.

फौरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल की. पड़ोसियों के बयान दर्ज किए. घटनास्थल की सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के शवों को पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. मंजूषा नाटेकर के भाई राजेश खड़खडे़ को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पूछताछ में राजेश खडखड़े ने दोनों हत्याओं का आरोप सीधेसीधे अपने बहनोई जयवंत नाटेकर पर लगाया. उस का कहना था कि उस के बहनोई और बहन में अकसर लड़ाईझगड़े होते थे. मंजूषा नाटेकर के पड़ोसियों ने भी पूछताछ के दौरान यही बात पुलिस को बताई थी.

पड़ोसियों के अनुसार उस दिन पहले फ्लैट से तेजतेज आवाजें आती सुनाई दीं. हालांकि टीवी की तेज आवाज में बातें स्पष्ट नहीं सुनी जा सकीं. कुछ देर बाद जब टीवी की आवाज बंद हुई तो उन्होंने जयवंत नाटेकर को फ्लैट में ताला लगा कर बाहर जाते हुए देखा. शुरूआती जांचपड़ताल के बाद मंजूषा नाटेकर के पति जयवंत नाटेकर की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आ सकती थीं.

जयवंत नाटेकर कहां होगा, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. एक तरफ जहां इंसपेक्टर अजीत सीद अपने सहायकों के साथ मामले पर विचारविमर्श कर तफ्तीश की रूपरेखा तैयार कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ मामले की गंभीरता को देखते हुए सीपी डा. भूषण कुमार उपाध्याय ने तफ्तीश की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के सबइंसपेक्टर राठौर, हेडकांस्टेबल आनंद जांमुले, गोविंद देशमुख्र कांस्टेबल राशिद, रोहन और संजय सोनपणे की टीम बना कर जांच शुरू कर दी.

क्राइम ब्रांच की टीम ने तफ्तीश का केंद्रबिंदु उन लोगों को बनाया, जिन से जयवंत के करीबी संबंध थे. इस का नतीजा भी जल्द सामने आ गया. उस के एक दोस्त ने बताया कि जयवंत नाटेकर के पास एक मोबाइल और 2 सिम थे. इन में से एक सिम का इस्तेमाल वह अपनी पत्नी मंजूषा से छिपा कर करता था.

वह अपने बेटे और बहू के साथ अपना दुखदर्द साझा करता था. जबकि दूसरे सिम से अपना दिल बहलाने के लिए खास दोस्तों से बात कर लिया करता था. क्राइम ब्रांच को दूसरे सिम कार्ड से कामयाबी मिली, क्योंकि पहला सिम कार्ड बंद था.

दूसरे सिम से जब जयवंत नाटेकर से संपर्क हुआ तो क्राइम ब्रांच की टीम ने अपना परिचय छिपा कर उस से इधरउधर की बात की. इस से उस की लोकेशन मिल गई. मोबाइल लोकेशन के आधार पर क्राइम ब्रांच ने जयवंत नाटेकर को रात 8 बजे उस समय दबोच लिया, जब वह नागपुर रेलवे स्टेशन पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने के लिए अजमेर शरीफ की टिकट ले रहा था.

क्राइम ब्रांच की टीम ने जयवंत नाटेकर को गिरफ्तार कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खड़ा कर दिया. उस से विस्तार से पूछताछ की गई तो पता चला वह एक ऐसा पीडि़त पति था, जिस के अंदर का मर्द अचानक जाग गया था और वह उसी मर्दानगी में 2 कत्ल कर बैठा. जयवंत ने बिना किसी दबाव के अपना अपराध स्वीकार कर के पुलिस को अपने उत्पीड़न की पूरी कहानी बता दी, जो कुछ इस तरह थी—

चंद्रपुर निवासी 50 वर्षीय जयवंत नाटेकर सरल स्वभाव का व्यक्ति था. गांव के स्कूल से 10वीं जमात पास करने के बाद उसे चंद्रपुर की रेफ्रीजरेटर बनाने वाली एक कंपनी में वाहन चालक की नौकरी मिल गई. अच्छी नौकरी और वेतन होने के बाद परिवार वालों ने 1980 में उस की शादी नागपुर के भंडारा जवाहर नगर की मंजूषा खड़खड़े से कर दी.

45 वर्षीय मंजूषा खड़खड़े संपन्न परिवार की एकलौती बेटी थी. उस के 2 भाई थे संजय खड़खड़े और राजेश खड़खड़े. मंजूषा सब से छोटी थी. उस का बड़ा भाई संजय खड़खड़े अपने गांव में रह कर काश्तकारी करता था.

जबकि छोटा भाई राजेश खड़खड़े नागपुर की एक प्राइवेट कंपनी में सर्विस कर रहा था और दत्तात्रेय नगर, मानवेड़ा के एक अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहता था. मंजूषा खड़खड़े जितनी स्वस्थ और सुंदर थी, उतनी ही स्मार्ट और महत्त्वाकांक्षी भी थी.

जयवंत नाटेकर से शादी होने के बाद उसे अपने सारे सपने बिखरते नजर आए. यह बात जब जयवंत नाटेकर को पता चली तो उस ने मंजूषा के सपनों को मरने नहीं दिया. उस ने मंजूषा की इच्छाओं को पूरा किया और उसे वह मुकाम दिलवाया जो वह चाहती थी. लेकिन उस के मन में पति के इस सहयोग की कोई कीमत नहीं थी.

वह वैसे भी अपनी पसंद और कल्पना के अनुसार पति न पा कर दुखी थी. प्रतिष्ठित स्कूल की नौकरी पाने के बाद वह गांव छोड़ कर नागपुर के दत्तात्रेय नगर जैसे पौश इलाके में आ कर रहने लगी.

मंजूषा नाटेकर और जयवंत का एक बेटा था सुजय. सरल स्वभाव का जयवंत मंजूषा की ज्यादतियों पर भी कुछ नहीं कहता था. नतीजा यह हुआ कि मंजूषा का हौसला बढ़ता गया और वह अपनी नारी मर्यादा को ही भूल गई.

इस का एहसास नाटेकर को तब हुआ जब एक हादसे के चलते दिसंबर, 2000 में उस की नौकरी चली गई. पेंशन के रूप में उसे सिर्फ 2000 रुपए मिलते थे, जिस की मंजूषा की नजर में कोई अहमियत नहीं थी. मंजूषा स्कूल की हेडमास्टर थी. मानसम्मान, अच्छा वेतन और समाज में उस की काफी इज्जत थी.

लेकिन घर में वह अपने पति नाटेकर के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती थी. घर के सारे काम झाड़ू, बर्तन, कपड़े धोने वगैरह के काम तो जयवंत को करने ही पड़ते थे, कभीकभी वह पति से अपनी मालिश तक करवाती थी. जयवंत के न करने पर वह उसे थप्पड़ तक जड़ देती थी.

इस के बावजूद भी मंजूषा का मन नहीं भरता तो वह अपने मायके वालों को बुला कर उन के सामने पति को अपमानित करती थी. मायके वाले उसी का पक्ष लेते और जयवंत को डांटतेफटकारते थे.

पिता के प्रति अपनी मां और उस के मायके वालों का बर्ताव देख बेटा सुजय नाटेकर दुखी हो जाता था. वह पिता के साथ हमदर्दी रखते हुए मां को समझाने की कोशिश करता, लेकिन मां पर इस का कोई असर नहीं होता था. इस की जगह मंजूषा कभीकभी उसे भी आडे़ हाथों लेती थी.

सुजय नाटेकर जवान हो गया था. पिता के प्रति मां का व्यवहार उस से देखा नहीं जाता था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज की एक लड़की से लवमैरिज कर के अपने पुश्तैनी घर चंद्रपुर चला गया.

जब कभी पिता की याद आती तो वह आ कर मिल लेता था. जब इस पर भी मां मंजूषा ने ऐतराज किया तो उस ने मां से छिपा कर पिता जयवंत को एक मोबाइल और 2 सिम ला कर दे दिए थे. जिस से चोरीछिपे पितापुत्र की बातें हो जाया करती थीं.

समय अपनी गति से दौड़ रहा था. 2019 में जब मंजूषा की मां का देहांत हुआ तो वह अपने मायके गई और लौटते समय अपने मामा अशोक काटे को साथ ले आई. पहले तो जयवंत पत्नी मंजूषा से ही परेशान था, अब उसे मंजूषा के मामा अशोक काटे से भी कोई राहत नहीं मिली. वह भी बहन के सुर से सुर मिलाने लगा. मामाभांजी के रोज के बर्ताव से जयवंत की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस के अंदर इतना गुबार भर गया था, जो कभी भी ज्वालामुखी की तरह फट सकता था.

घटना के 2 दिन पहले 3 फरवरी, 2020 को सुबहसुबह स्कूल जाते समय मंजूषा ने अपनी 4 साडि़यां अलमारी से निकाल कर जयवंत के सामने डाल दीं और धो कर प्रेस करने को कहा. जयवंत पहले से ही त्रस्त था, उस ने इस काम के लिए इनकार कर दिया.

इस पर मंजूषा ने पति के गाल पर इतने जोर से थप्पड़ मारा कि उस का पूरा शरीर झन्ना कर रह गया. थप्पड़ जड़ कर मंजूषा बड़बड़ाती हुई किचन में चली गई. जयवंत कुछ देर गाल पर हाथ रखे खड़ा रहा. जयवंत को बरदाश्त नहीं हुआ. अचानक उस का पुरुषत्व जाग उठा.

टीवी की आवाज तेज कर के वह मंजूषा के पीछेपीछे किचन में गया और बदले में उस ने मंजूषा के गाल पर वैसा ही थप्पड़ जड़ दिया, जिस से मंजूषा तिलमिला कर रह गई. वह जयवंत का कालर पकड़ कर उस से उलझ गई.

इसी बीच जयवंत नाटेकर ने किचन में रखा सब्जी काटने वाला चाकू उठाया और मंजूषा पर कई वार कर दिए. मंजूषा की चीख सुन कर अशोक काटे उसे बचाने के लिए जब बैडरूम से बाहर आया तो जयवंत ने उस का भी वही हाल कर दिया जो मंजूषा का किया. दोनों बचाव के लिए चीखेचिल्लाए लेकिन उन दोनों की चीखें टीवी की तेज आवाज में दब कर रह गई थी.

मंजूषा और अशोक काटे को मौत की नींद सुलाने के बाद जयवंत ने राहत की सांस ली. कपड़े बदले और फ्लैट में ताला लगा कर 2 दिनों तक अपने एक पुराने दोस्त के पास रहा. उस के बाद उस ने अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अजमेर जाने का फैसला किया. लेकिन जाने से पहले वह पकड़ा गया.

क्राइम ब्रांच की टीम ने अपनी तफ्तीश पूरी कर अभियुक्त जयवंत नाटेकर को थाना सक्करदारा को सौंप दिया. जहां की पुलिस ने उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. औरत अगर अपने ही घर में कांटे बिखेर दे तो उस के पांव कब तक सुरक्षित रह सकते हैं.

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

वो नहीं मानी : गलतियों ने दी शीला को सजा

छत्तीसगढ़ का औद्योगिक नगर कोरबा एशिया के नक्शे में अपनी कोयला खदानों, सार्वजनिक क्षेत्र के एल्युमिनियम कारखाने, एनटीपीसी के विद्युत प्लांट के कारण अहम स्थान रखता है. 30 वर्षीय खूबसूरत शीला अपने दूसरे पति दिनेश कंवर और बच्चे के साथ कोरबा के उपनगर कटघोरा में किराए के मकान में रहती थी.

15 नवंबर, 2019 की शाम शीला के मोबाइल पर पति दिनेश कंवर की काल आई. दिनेश ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘शीला, तुम कहां हो? बहुत बुरी खबर है.’’

पति की बात सुन कर शीला घबरा गई. वह बोली, ‘‘मैं कटघोरा बसस्टैंड पर हूं. क्या हो गया, जो इतना घबराए हुए हो?’’

‘‘शीला, तुम कहीं मत जाना, मैं आ रहा हूं. नरेश चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है. हमें उन के यहां जाना है.’’ दिनेश ने कहा.

पति की बातें सुन कर शीला कंवर चिंतित हो उठी. वह घर से कोरबा जाने के लिए निकली थी, मगर पति की बातें सुन उस ने अपना इरादा बदल दिया. उस समय शीला के साथ उस की फ्रैंड धनश्री और मीना भी थीं. उस ने दोनों को बताया कि अचानक घर में जरूरी काम आ गया है, इसलिए वह कोरबा नहीं जा पाएगी. वे दोनों चली जाएं.

इस पर धनश्री ने तुनक कर कहा, ‘‘ये क्या बात हुई, छोटी सी बात पर तुम कोरबा जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर रही हो. इस से तो पूरा खेल बिगड़ जाएगा.’’

‘‘अरे यार, तुम जानती नहीं हो. दिनेश आजकल छोटीछोटी बातों पर उखड़ जाता है. बातबात में मुझ पर शक करता है. अगर मैं घर नहीं गई तो वह फिर झगड़ा करेगा.’’ शीला ने दोनों फ्रैंड्स को समझाते हुए कहा. इस पर धनश्री बोली, ‘‘अरे यार,  ज्यादा भाव खा रहा है तो छोड़ दे इसे भी.’’

‘‘नहीं यार, वह जैसा भी है मुझे बहुत चाहता है. कमाता कम है मगर दिल से प्यार करता है. ऐसा पति मिलना मुश्किल है. पहले वाला तो मेरी सुनता भी नहीं था, मगर यह सुनता तो है.’’ शीला ने कहा.

‘‘क्या सुनता है?’’

‘‘मेरी हर बात सुनता है. मैं ही उस की नहीं सुनती. तुझे पता है, अपने हाथ और सीने पर उस ने मेरे नाम का टैटू भी बनवाया है. अब तू ही सोच, क्या ऐसा प्यार करने वाला पति फिर मिलेगा? हां, थोड़ा कड़क है, वो चाहता है कि मैं उस के हिसाब से चलूं, घर पर रहूं, कहीं आऊंजाऊं नहीं, मगर…’’

‘‘तू तो पूरी पागल हो गई है.’’ धनश्री ने हंस कर ठिठोली की.

‘‘औरत को हर कदम पर पति की जरूरत होती है. बाप न हो तो बच्चों पर भी गलत असर पड़ता है. हर बात माननी जरूरी नहीं, मगर कुछ तो मानना ही पड़ता है. इसलिए आज तुम लोग जाओ, हम कल मिलते हैं.’’ कह कर शीला ने मीना और धनश्री को कटघोरा बसस्टैंड पर छोड़ कर घर की ओर रुख किया.

शीला कटघोरा के स्टेट बैंक के पास किराए के मकान में रहती थी. उस का दूसरे पति दिनेश कंवर से 3 साल का बेटा अमन था. जब शीला घर पहुंची तो शाम के 5 बज रहे थे. थोड़ी देर बाद घबराया हुआ दिनेश वहां पहुंचा.

दिनेश और शीला ने 4 साल पहले विवाह किया था. शीला अपने पूर्व पति महेश महंत को छोड़ चुकी थी. महेश से उस का 10 साल पहले विवाह हुआ था. वह कटघोरा में कपड़े की दुकान में काम करता था.

लगभग 7 साल तक दोनों की गृहस्थी जैसेतैसे चली और अंतत: शीला ने सामाजिक रूप से महेश महंत से तलाक ले लिया और उस से अलग रहने लगी.

इसी बीच उस की मुलाकात 30 साल के दिनेश कंवर से हुई. दिनेश कटघोरा से बिलासपुर, रायपुर ट्रक चलाता था. वह कोयला खदान में ड्राइवर था. जो भी कमाता, वह सब शीला पर लुटा देता था. दिनेश के दिलफेंक अंदाज के कारण शीला ने उस के साथ मंदिर में शादी कर ली और उस के साथ रहने लगी.

दिनेश घर पहुंचा तो उस ने बाहर से ही आवाज दी, ‘‘शीला कहां हो?’’

पति का तेज स्वर सुन कर शीला घर से बाहर आई तो देखा सामने पति दिनेश और उस का हमउम्र चाचा नरेश खड़े थे.

दिनेश ने कहा, ‘‘चलो, चलते हैं. देखो, चाचा भी आए हैं. बांगो के आगे राजू का एक्सीडेंट हो गया है. जाने के लिए मैं ने बोलेरो मंगाई है.’’

शीला पति की बात सुन गंभीर हो गई. बच्चे को पड़ोसी की देखरेख में छोड़ वह दिनेश के भाई सोनू और चाचा नरेश के साथ बोलेरो में बैठ गई.

बोलेरो संतोष यादव चला रहा था. गाड़ी आगे बढ़ी तो बांगो का घना जंगल शुरू हो गया. करीब 30 किलोमीटर आगे बालागांव के निकट एक जगह दिनेश ने संतोष से कह कर बोलेरो रुकवाई. तभी दिनेश ने बहाने से शीला को भी बोलेरो से उतार लिया.

शीला बाहर आई तो दिनेश कंवर का बोलने का लहजा बदल गया. वह शीला पर चीखा, ‘‘तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरी गैरमौजूदगी में तुम अय्याशी करती हो. मुझे तुम्हारी पलपल की खबर मिल जाती है.’’ वह शीला को गालियां देने लगा.

अचानक माहौल बदला देख शीला घबराई. दिनेश कह रहा था, ‘‘कल दोपहर तुम प्रकाश के साथ थी. बोलो, सच है कि नहीं. मैं…मैं तुम से कितना प्यार करता हूं और तुम बेवफा निकली…’’

यह सुन शीला के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, क्योंकि उस की चोरी पकड़ी गई थी.

‘‘मैं आज तुझे बेवफाई की सजा दूंगा.’’ कहते हुए वह बोलेरो में रखी लोहे की रौड उठा लाया और उस के सिर पर 2-3 वार कर दिए. शीला वहीं गिर गई. थोड़ी देर तड़प कर उस की मृत्यु हो गई. पास खड़े चाचा नरेश कोरची और सोनू ने मृत पड़ी शीला को उठाया और बोलेरो में डाला और खुद भी बैठ गए. बोलेरो चालक संतोष यादव यह सब देख रहा था. दिनेश ने उसे पैसों का लालच दे कर साथ मिला लिया था.

गाड़ी में शीला की लाश रख कर ये लोग आगे बढ़े. शीला की लाश को ठिकाने लगाना जरूरी थी. चाचा नरेश ने दिनेश से कहा, ‘‘इस को कहीं दफन कर देते हैं. ऐसे लाश फेंक देंगे तो जरूर पकड़े जाएंगे. मैं ने कहीं सुना है कि लाश दफन करने से चंद दिनों में मिट्टी में मिल जाती है. हम ने इसे दफन कर दिया तो किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

दिनेश को चाचा की राय अच्छी लगी. उस ने कहा, ‘‘चाचा, एक काम और करते हैं. इस के कपड़े वगैरह भी उतार देते हैं क्योंकि कपड़ों से लाश की शिनाख्त हो सकती है.’’

‘‘ठीक है.’’ चाचा नरेश ने स्वीकृति दी.

कुछ दूर गाड़ी चलने के बाद सलिहाभाटा गांव का बुड़बुड़ नाला आया. वहां पहुंच कर संतोष ने गाड़ी रोक दी तो दिनेश, चाचा नरेश और नाबालिग सोनू ने लाश ठिकाने लगाने की जुगत लगानी शुरू की. उन्होंने नाले में उतर कर एक गड्ढा खोदा ताकि लाश को उस में दफन किया जा सके.

थोड़ी मशक्कत के बाद गड्ढा खुद गया तो शीला की लाश उस गड्ढे में डाल, ऊपर से मिट्टी भर दी. फिर चारों कटघोरा के लिए निकल गए.

19 नवंबर, 2019 को सलिहाभाटा का एक किसान बैजू बुड़बुड़ नाले के पास अपने मवेशी चरा रहा था.

उस की नजर नाले की तरफ गई तो उसे एक इंसान का हाथ दिखाई दिया. बैजू चौंका, उस ने पास जा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. वह सचमुच किसी इंसान का ही हाथ था. आसपास दुर्गंध फैली हुई थी.

बैजू भागता हुआ गांव के कोटवार (चौकीदार) लालू के पास पहुंचा और यह जानकारी उसे दी. लालू गांव के कुछ लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां बुरी तरह बदबू फैली हुई थी, लाश आधी बाहर थी, आधी मिट्टी में दबी हुई थी. कोटवार घटना की जानकारी देने के लिए बांगो थाने के लिए रवाना हो गया.

बांगो थाना कटघोरा से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है. थाना कोरबा-अंबिकापुर फोरलेन पर सड़क के एक किनारे है. यहां छत्तीसगढ़ का बहुउद्देशीय हसदेव बांगो बांध है, जो पर्यटन के लिहाज से जाना जाता है.

बांगो थाने के टीआई एस.एस. पटेल थाने में ही थे. चौकीदार लालू ने उन्हें नाले के किनारे लाश दबी होने की सूचना दी.

चौकीदार लालू की बात सुन टीआई एस.एस. पटेल पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जब वह सलिहाभाटा स्थित बुड़बुड़ नाले के पास पहुंचे तो वहां लोगों का हुजूम लगा हुआ था. टीआई पटेल ने मामले की गंभीरता को समझते हुए एसडीपीओ संदीप मित्तल को पूरी जानकारी दी. वह भी वहां पहुंच गए.

जब मिट्टी हटवाई गई तो गड्ढे में एक महिला की नग्न लाश निकली. वहां से कुछ दूरी पर झाडि़यों में महिला के कपड़े और चप्पल पड़ी थीं. अंदाजा लगाया गया कि कपड़े और चप्पल मृतका के होंगे. सबूत एकत्र करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मौके पर ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से महिला की लाश की शिनाख्त हो पाती. केवल उस के एक हाथ पर ‘ॐ’ गुदा हुआ था. एसडीपीओ संदीप मित्तल ने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने की जिम्मेदारी टीआई एस.एस. पटेल को दी.

पटेल के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थीं. पुलिस ने आसपास के गांवों के लोगों को बुला कर शिनाख्त कराने की कोशिश की. पुलिस ने शव के चेहरे का फोटो ले कर पोस्टर और पैंफ्लेट छपवाए और आसपास के ग्रामीण बाजारों में बंटवाए. पुलिस जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि जिस तरह से हत्या कर के शव दफन किया गया था, उस से जाहिर था मृतका की हत्या कहीं और की गई थी और शव वहां दफनाया गया था.

21 नवंबर को दोपहर में एक महिला बांगो थाने पहुंची. टीआई एस.एस. पटेल से मिल कर उस ने उन्हें पैंफ्लेट देते हुए कहा कि इस में जिस महिला की हत्या की बात कही गई है, वह उस की फ्रैंड शीला कंवर हो सकती है. एस.एस. पटेल ने महिला का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम धनश्री बताते हुए कहा कि वह शीला की फ्रैंड है. कुछ दिनों से शीला दिखाई नहीं दे रही है.

पुलिस ने धनश्री को शीला के अन्य फोटोग्राफ्स और कपड़े दिखाए तो उस की आंखों में आंसू छलक आए. क्योंकि वह शीला के ही थे. एक जगह हाथ में ॐ भी लिखा था, जिसे उस ने पहचाना और कपड़ों की भी शिनाख्त कर दी. उस ने बताया, ‘‘सर, 15 नवंबर को हम साथ थे. तब शीला यही कपड़े पहने थी.’’

धनश्री ने टीआई को अपने मोबाइल में वही कपड़े पहने शीला का फोटो दिखाया.

टीआई को लगा कि अब उन के हाथ जो सिरा आ गया है, उस के सहारे वह आसानी से शीला कंवर के हत्यारों तक पहुंच जाएंगे. धनश्री से बातचीत कर के टीआई ने शीला के घर वालों की जानकारी ले ली और पता ले कर जांच प्रारंभ कर दी. पटेल ने धनश्री से शीला के पति का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

उन्होंने शीला के पति दिनेश कंवर का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ था. पुलिस को सब से पहले उसी से पूछताछ करनी थी. दिनेश का फोन नहीं मिला तो शीला के मातापिता को फोन कर के कोरबा जिले के दीपका टाउन बुलाया. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस जब शीला की लाश उन के सुपुर्द करने लगे तो उस के पिता मोहन महंत ने हाथ खड़े कर के कहा, ‘‘साहब, शीला तो हमारे लिए बहुत पहले ही मर चुकी थी.’’

उस ने बताया कि 5 साल पहले शीला ने दिनेश कंवर से प्रेम विवाह कर लिया था. उस के बाद से उन का उस से संबंध विच्छेद हो गया था और सामाजिक परंपरा के कारण वह शीला का अंतिम संस्कार नहीं कर सकते.

पुलिस ने शीला का अंतिम संस्कार अपने खर्चे पर कराया. अंतिम संस्कार के बाद पुलिस दिनेश कंवर की तलाश में जुट गई. पुलिस की क्राइम टीम ने जांच में पाया कि उसका मोबाइल बीचबीच में औन हो रहा था और लगातार उस की लोकेशन बदल रही थी.

ऐसी स्थिति में पुलिस की यह शंका बलवती होती गई कि शीला की हत्या में उस के पति का हाथ हो सकता है. जांच में यह तथ्य भी सामने आ चुका था कि दिनेश कंवर और शीला में अकसर विवाद होता था. शीला तीखे नाकनक्श की सुंदर महिला थी, जिसे कोई भी एक नजर देख फिदा हो जाता.

इसी के चलते उस के कदम बहक गए थे. वह महंगे शौक पाले हुए थी. पुलिस की जांच में यह तथ्य भी सामने आ गया कि उस की दोस्ती कई पुरुषों से थी.

दरअसल, कोरबा का इंडस्ट्रियल एरिया होने की वजह से वहां तमाम ऐसे लोग रहते थे, जिन्हें महिलाओं की जरूरत होती थी. शीला और उस की फ्रैंड्स उन्हीं लोगों के पास जाती थीं.

क्राइम टीम ने आखिरकार 23 नवंबर, 2019 को कोरबा जिले के चोटिया के पास से दिनेश को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर टीआई एस.एस. पटेल व एसडीपीओ संदीप मित्तल ने शीला की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को पूरा घटनाक्रम बता दिया.

उस के इकबालिया बयान के अनुसार शीला और दिनेश की मुलाकात लगभग 5 साल पहले हुई थी और वह उसे देखते ही पसंद करने लगा था. धीरेधीरे दोनों के संबंध बने और उन्होंने विवाह कर लिया.

कुछ समय सुखमय बीता, मगर धीरेधीरे शीला का सच उस के सामने आने लगा. उसे उस के कई परिचित बताने लगे कि शीला को तो आज एक पुरुष के साथ देखा था. यह बारबार जानसुन कर वह गुस्से से भर उठता और प्रयास करता कि शीला सिर्फ उस की हो कर रहे. मगर उस की सारी कोशिश बेकार साबित हुईं.

एक साल बाद शीला ने एक बेटे अमन को जन्म दिया. मगर इस के बाद भी शीला नहीं सुधरी. उस का अन्य पुरुषों से मेलजोल बना रहा. घटना के एक दिन पहले दिनेश के एक मित्र ने उसे बताया कि शीला को एक पुरुष के साथ कोरबा में देखा था. उस ने व्यंगपूर्ण शब्दों में कहा, ‘‘यार, तू अपनी बीवी को संभाल नहीं पाता, कैसा मर्द है तू?’’

यह बात दिनेश को चुभ गई. उस ने उसी समय से शीला की हत्या करने की योजना बनानी शुरू कर दी. दिनेश ने अपने हमउम्र चाचा नरेश से मदद मांगी तो वह तैयार हो गया. जब दोनों शीला की हत्या की योजना बना रहे थे, उन की बातें सुन दिनेश का छोटा भाई सोनू भी उस में शामिल हो गया. वह भी अपनी भाभी शीला के चरित्रहीन होने से खुद को अपमानित महसूस किया करता था.

अंतत: योजना बनी कि 15 नवंबर को शीला को जंगल में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए. उसी योजना के अनुसार दिनेश ने बोलेरो किराए पर ले ली. चालक संतोष यादव, जो दिनेश का दोस्त भी था, का सहयोग ले कर उन्होंने शीला की हत्या कर के सलिहाभाटा के बुड़बुड़ नाले में दफन कर दिया.

पुलिस ने दिनेश कंवर के बयान के आधार पर उस के चाचा नरेश, भाई आकाश उर्फ सोनू और बोलेरो चालक संतोष यादव को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें कटघोरा जेल भेज दिया गया. जबकि आकाश उर्फ सोनू को बाल सुधार गृह भेजा गया.

—कथा में आकाश नाम परिवर्तित है

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

 

रिश्तों में सेंध : अपनी ही बहन की बनी हत्यारी

नहने सिंह मंडी से सब्जी ला कर गांव में बेचने का काम करता था. उस का बेटा रवि भी इस काम में उस की मदद करता था. लौकडाउन के चलते रोजाना की तरह नहने उस दिन भी सुबह सब्जी खरीदने के लिए टूंडला मंडी गया था. सुबह 7 बजे सब्जी ले कर वह वापस घर लौट आया.

तब तक घर के सभी सदस्य जाग गए थे, लेकिन घर में उसे अपनी बेटी कंचन दिखाई नहीं दी. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘कंचन कहां है?’’

पत्नी ने बताया कि छत पर सो रही है, अभी तक नीचे नहीं आई है.

उसे उठाने के लिए रवि ने आवाज दी, लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. इस पर घरवाले छत पर गए. देखा चारपाई पर कंचन मुंह ढंके सो रही थी. पास जा कर उसे हिलाया. लेकिन वह नहीं उठी. गौर से देखा तो कंचन मरी पड़ी थी. यह घटना 15 मई, 2020 की है.

कंचन की मौत की बात सुनते ही घर में कोहराम मच गया. चीखपुकार का शोर सुन कर आसपास के लोग आ गए. नहने की बेटी की अचानक मौत होने से गांव में सनसनी फैल गई.

इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पचोखरा थानाप्रभारी संजय सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

कंचन के घरवालों ने पड़ोसियों पर कंचन की हत्या करने का आरोप लगाया. कारण आपसी रंजिश थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह और सीओ अजय सिंह चौहान फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए.

कंचन की लाश देख उस की मां और बहनें बिलखबिलख कर रो रही थीं. उन्हें मोहल्ले  की महिलाएं संभाल रही थीं. पुलिस अधिकारियों ने मकान की छत पर जा कर चारपाई पर पड़े कंचन के शव का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

जांच के दौरान फोरैंसिक टीम प्रभारी कुलदीप चौहान ने देखा, मृतका की गरदन पर चोट का निशान था. मतलब कंचन की हत्या की गई थी. उस की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. लेकिन मृतका के पिता नहने चिल्लाचिल्ला कर अपनी बेटी की हत्या का आरोप पड़ोसियों पर लगा रहा था.

पूछताछ में मृतका के भाई रवि ने बताया कि वह रात में पड़ोस में गया हुआ था. वहां एक लड़की को सांप ने काट लिया था. वहां से वह रात 12 बज कर 5 मिनट पर घर आया.

सवा 12 बजे छत पर गया, वहां बहन कंचन चारपाई पर सो रही थी. उस समय वह जिंदा थी या मर चुकी थी, उसे पता नहीं. वह छत से नीचे आ कर सो गया. सुबह 7 बजे पता चला कि बहन की मौत हो गई है.

पुलिस ने इस संबंध में घर वालों से पूछताछ की. पिता नहने ने बताया कि सभी लोग मकान के चबूतरे पर सो रहे थे. गरमी की वजह से रात में कंचन घर की छत पर चली गई थी. सुबह वह मृत मिली. रात में सोते समय  पड़ोसियों ने छत पर जा कर कंचन की हत्या कर दी.

पुलिस ने शव कब्जे में ले लिया. फिर मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भिजवा दी.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि कंचन की हत्या गला घोंटने से हुई थी. पुलिस ने मृतका के पिता नहने सिंह की तहरीर पर गांव के प्रणवीर यादव, उस की पत्नी गीता, प्रबल कुमार यादव व पीपी यादव के खिलाफ हत्या की आशंका का केस दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि पड़ोसी उस से व उस के परिवार से  रंजिश रखते थे. इस के चलते बेटी कंचन की सोते समय गला दबा कर हत्या कर दी गई.

नहने सिंह अपने परिवार के साथ जिला फिरोजाबाद के गांव जारखी में रहता था. उस के 5 बच्चों में बेटी गीता सब से बड़ी थी, दूसरे नंबर का बेटा रवि था. इस से छोटी कंचन और शिवानी थीं. दोनों छोटी बहनें जवान थीं. नहने ने दोनों बहनों का रिश्ता तय कर दिया था.

29 जून को कंचन व शिवानी की बारात आनी थी. घर में खुशी का माहौल था और शादी की तैयारियां चल रही थीं.

सीओ अजय चौहान ने एसओजी टीम को भी इस घटना के खुलासे के लिए लगा दिया. एसओजी प्रभारी कुलदीप चौहान अपनी टीम सहित इस कार्य में जुट गए.

जांच के दौरान पुलिस ने पड़ोसियों से भी पूछताछ की. पूछताछ के दौरान पता चला कि दोनों बहनों कंचन व शिवानी की जून में शादी होने वाली थी. पुलिस ने प्रेम प्रसंग को ले कर भी जांच की. लेकिन उसे पता चला कि कंचन का किसी से कोई प्रेमप्रसंग नहीं चल रहा था.

जांच के दौरान पता चला कि मृतका कंचन के मोबाइल की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर कंचन की अकसर बात होती थी. उस नंबर पर बात भी काफी देर तक होती थी. पूछताछ पर पता चला कि यह नंबर कंचन के जीजा भूरा का था.

इस पर पुलिस ने मृतका के घरवालों से गहनता से पूछताछ की. पुलिस को पता चला कि नहने के 5 बच्चों में सब से बड़ी बेटी गीता शादीशुदा है. उस की शादी आगरा के थाना क्षेत्र गांव लड़ामदा में भूरा के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे भी हैं. वह पिछले 2 माह से अपने मायके जारखी में रह रही थी.

इस के बाद पुलिस ने गीता और उस के पति भूरा के संबंधों के बारे में जानकारी जुटाई. पुलिस को पता चला कि पतिपत्नी के बीच रिश्ते मधुर नहीं थे. छोटी बहन कंचन अपने जीजा से अकसर मोबाइल पर बात करती थी. पुलिस ने इस पहलू पर भी जानकारी जुटाई कि कहीं जीजासाली के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही थी. कहीं कंचन पत्नी के बीच रोड़ा तो नहीं बन रही थी.

मृतका के पिता ने पड़ोस के 4 लोगों पर शक जताते हुए हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस और एसओजी टीम ने जब मामले की गहनता से जांच की तो बात कुछ और निकली.

बड़ी बहन गीता ने खून के रिश्तों को कलंकित होते देख अपनी छोटी बहन कंचन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 20 मई, 2020 को बड़ी बहन गीता को छोटी बहन कंचन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. गीता ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.  गीता ने बहन की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

गीता की शादी 7-8 साल पहले हुई थी. छोटी बहन कंचन से पति भूरा के संबंध होने का गीता को शक था. शक की बुनियाद यह थी कि दोनों मोबाइल पर घंटों बात करते थे. इस के चलते उसे दोनों के बीच प्रेम संबंध होने का शक हो गया था. गीता ने पति से कई बार कंचन से बात करने को मना किया.  लेकिन उस का पति कंचन को ले कर उस के साथ आए दिन मारपीट करता था.

पिछले 2 महीने से गीता अपने मायके में रह रही थी. उस ने देखा कि यहां भी उस के पति और बहन कंचन के बीच काफी देर तक बातें होती थीं. दोनों मोबाइल पर चिपके रहते थे. यह बात गीता को नागवार गुजरती थी.

घटना से एक दिन पहले भी गीता का कंचन से विवाद हुआ था. गीता को यह बात बुरी लगती थी कि शादी तय हो जाने के बाद भी कंचन उस के पति से बात करती रहती है.

गीता को शक था कि जीजा से बात करने के लिए कंचन गरमी का बहाना कर छत पर चली गई है. वह रात में उस के पति से बात करेगी. उस दिन रात के समय उस का भाई रवि भी मोहल्ले में चला गया था. अच्छा मौका देख कर गीता छत पर गई. उस समय कंचन चारपाई पर गहरी नींद में सोई हुई थी. इसलिए उस ने छत पर अकेली सो रही कंचन का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस ने गला इतनी जोर से दबाया कि कंचन की चीख भी नहीं निकल सकी.

हत्या के बाद वह दबे पांव नीचे आ कर सो गई. सुबह कंचन की मौत की खबर पर दुख जताते हुए वह भी रोने का नाटक करती रही.

पुलिस ने गीता को बहन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जीजा और साली का रिश्ता हंसीमजाक का होता है. जीजा से मोबाइल पर हंसहंस कर बात करना ही कंचन की मौत का कारण बन गया. गीता को अपनी बहन के चरित्र पर शक हो गया था, लेकिन शक दिनोंदिन इतना गहराता गया कि अंतत: उस ने उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने युवती की हत्या की गुत्थी का घटना के 5 दिन बाद ही खुलासा कर दिया. गीता ने शक के चलते अपना परिवार उजाड़ लिया. नहने के घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गईं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

2 सिपाही, 2 गोली : पत्नी के अवैध सम्बन्ध ने बनाया हत्यारा

रंजिश उस विषबेल की तरह होती है, जो बड़े पेड़ों से भी लिपट जाए तो धीरेधीरे उस के वजूद को लीलने लगती है. दिल्ली पुलिस के 4 मई, 2020 की बात है. मनोज की आंखें खुलीं तो उस ने पास रखे मोबाइल फोन पर नजर डाली. उस समय सुबह के साढ़े 6 बज चुके थे. वह फटाफट उठा और फ्रैश होने चला गया. दरअसल, मनोज दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था और घर पर रहने के दौरान टहलने जरूर जाता था. उस दिन वह देर से सो कर उठा, इसलिए जल्दबाजी में मौर्निंग वाक पर जाने के लिए तैयारहो गया.

मनोज परिवार सहित हरियाणा के जिला झज्जर के कस्बा बहादुरगढ़ स्थित लाइनपार की वत्स कालोनी में रहता था. मनोज की गली में ही रमेश कुमार भी रहता था. वह रिश्ते में मनोज का चाचा था, लेकिन दोनों हमउम्र थे इसलिए उन की आपस में खूब पटती थी. मनोज चाचा रमेश को साथ ले कर टहलने जाता था.

मनोज तैयार हो कर चाचा रमेश कुमार के यहां पहुंचा, फिर दोनों नजदीक ही स्थित मुंगेशपुर ड्रेन पर पहुंच कर नहर के किनारे टहलने लगे. दोनों अकसर वहीं पर मौर्निंग वाक करते थे. उन्हें वहां पहुंचे कुछ ही देर हुई थी कि उन के पास एक बाइक आ कर रुकी, बाइक पर अंगौछे से अपना चेहरा ढंके 2 युवक बैठे थे.

इस से पहले कि मनोज और रमेश कुछ समझ पाते, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने पिस्टल निकाल कर मनोज पर निशाना साधते हुए गोली चला दी. लेकिन रमेश ने फुरती दिखाते हुए मनोज को धक्का दे दिया, जिस से मनोज नीचे गिर गया. लेकिन पिस्टल से चली गोली रमेश के सिर में जा लगी. गोली लगते ही रमेश जमीन पर गिर पड़ा.

एक गोली चलाने के बाद भी बदमाश रुका नहीं, उस ने मनोज पर दूसरी गोली चलाई जो उस के पेट में जा लगी. मनोज को गोली मारने के बाद बाइक सवार फरार हो गए. उधर गोली लगते ही मनोज अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागा.

मनोज ने घायलावस्था में ही अपने भाई संदीप को फोन कर के अपने साथ घटी घटना की जानकारी देते हुए तुरंत मौके पर पहुंचने को कहा. संदीप अपने एक दोस्त को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. सिर में गोली लगने से रमेश की मौत हो चुकी थी और मनोज पेट में उस जगह को हाथ से दबाए हुए था, जिस जगह गोली लगी थी.

संदीप ने दोस्त की मदद से मनोज को स्कूटी पर बैठाया और इलाज के लिए सिविल अस्पताल ले गया, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने मनोज को मृत घोषित कर दिया. इस गोली कांड की सूचना जब पुलिस को मिली तो थाना लाइनपार के थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. डीएसपी राहुल देव भी वहां आ गए.

लौकडाउन के समय में एक पुलिसकर्मी और एक अन्य व्यक्ति की दिनदहाड़े हुई हत्या पर जिला पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के अलावा बहादुरगढ़ क्षेत्र में भी सनसनी फैल गई. लोगों में कोरोना को ले कर पहले से ही भय व्याप्त था, इस दोहरे हत्याकांड पर वे और ज्यादा असुरक्षित महसूस करने लगे.

रमेश कुमार और कांस्टेबल मनोज की हत्या के बाद उन के घरों में कोहराम मच गया. दोनों ही शादीशुदा थे. उन के बीवीबच्चों का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस अधिकारी घर वालों को समझाने की कोशिश कर रहे थे. सूचना पा कर झज्जर से पुलिस कप्तान भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, इस संबंध में मृतकों के घर वालों से पूछताछ की.

मनोज के भाई संदीप कुमार ने आरोप लगाया कि इस हत्याकांड को इसी कालोनी के रहने वाले फौजी रणबीर सिंह और उस के घर वालों ने अंजाम दिया है. पुलिस कप्तान ने थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार को आदेश दिए कि वह केस को खोलने के लिए जरूरी काररवाई करें.

कप्तान साहब ने सीआईए की 2 टीमों को भी हत्यारों का पता लगाने के लिए लगा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने सिविल अस्पताल जा कर दिल्ली पुलिस के जवान मनोज कुमार की लाश का भी मुआयना किया.

थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद रमेश कुमार की लाश भी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस टीमें तत्परता से इस काम में जुट गईं. चूंकि मृतक सिपाही मनोज कुमार के भाई संदीप ने हत्या का आरोप कालोनी में रहने वाले बीएसएफ के जवान रणबीर सिंह और उस के घर वालों पर लगाया था, इसलिए पुलिस को सब से पहले फौजी रणबीर से पूछताछ करनी थी.

पुलिस टीम जब फौजी रणबीर के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. उस के घर वाले भी पुलिस को सही बात नहीं बता सके. पुलिस को यह पहले ही पता लग चुका था कि रणबीर कुछ दिनों पहले ही छुट्टी ले कर घर आया था.

इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर के बाहर पुलिस की चौकसी बढ़ा दी. इतना ही नहीं, मुखबिरों को भी लगा दिया. फौजी रणबीर की तलाश के साथसाथ पुलिस ने शक के आधार पर आपराधिक प्रवृत्ति के कई लोगों को भी पूछताछ के लिए उठा लिया.उन सभी से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की गई. कई तरह से की गई पूछताछ के बाद भी उन बदमाशों से काम की कोई जानकारी नहीं मिल सकी तो उन्हें हिदायतें दे कर घर भेज दिया गया.

घटना के 3 दिन बाद मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने फौजी रणबीर को हिरासत में ले लिया. उस से कांस्टेबल मनोज और उस के चाचा रमेश कुमार की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई. उस ने पुलिस से कहा कि मनोज और उस के घर वाले उस से दुश्मनी रखते हैं. वह भला उन दोनों को क्यों मारेगा.

‘‘जब तुम ने उन्हें नहीं मारा तो घर से लापता क्यों हुए?’’ थानाप्रभारी ने पूछा. ‘‘नहीं सर, मैं लापता नहीं हुआ था बल्कि बहादुरगढ़ में किसी से मिलने गया था.’’ फौजी ने सफाई दी.

पुलिस को लगा कि शायद अब यह आसानी से सच्चाई नहीं बताएगा, लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल मनोज कुमार और रमेश की हत्या उस ने खुद तो नहीं की, लेकिन 20 लाख रुपए की सुपारी दे कर उस ने यह काम दूसरे लोगों से कराया था.

इस की वजह यह थी कि मनोज ने रणवीर जीना दुश्वार कर रखा था. कई बार समझाने के बाद भी, उस ने समाज में न तो अपनी इज्जत का ध्यान रखा और न ही रणवीर की. पूरे समाज में उस ने खूब बेइज्जती कराई थी.

फौजी ने इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

हरियाणा के जिला झज्जर के कस्बा बहादुरगढ़ के लाइनपार क्षेत्र में स्थित वत्स कालोनी का रहने वाला रणबीर सीमा सुरक्षा बल में कांस्टेबल था. उस की शादी रूबी (परिवर्तित नाम) से हुई थी. बीएसएफ में होने की वजह से वह काफीकाफी दिनों बाद ही घर आ पाता था. इसी वत्स कालोनी में मनोज कुमार भी रहता था, जो दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. वह भी शादीशुदा था.

बताया जाता है कि मनोज और रूबी के बीच अवैध संबंध हो गए थे. किसी तरह यह जानकारी रणबीर को हुई तो उस ने न सिर्फ अपनी पत्नी रूबी को बल्कि मनोज को भी बहुत समझाया, लेकिन दोनों ने ही उस की बातों पर अमल नहीं किया.

इस के बाद रणबीर ने पत्नी के साथ सख्ती की, लेकिन वह तो एक तरह से ढीठ हो गई थी. रणबीर भले ही अपनी ड्यूटी पर रहता था, लेकिन उस का ध्यान पत्नी की ओर ही लगा रहता था.

उस के शुभचिंतक फोन पर ही उस की पत्नी की करतूतें उसे बताते रहते थे. रणबीर पत्नी के बारे में सुनसुन कर परेशान हो गया था. लिहाजा उस ने कुछ दिनों पहले पत्नी को तलाक दे दिया था.

फौजी रणबीर से तलाक लेने के बाद रूबी वत्स कालोनी में ही किराए का मकान ले कर रहने लगी. तलाक के बाद वह एक तरह से आजाद हो गई थी. उस ने मनोज से भी संबंध खत्म नहीं किए थे. यह जानकारी फौजी रणबीर को भी मिल चुकी थी.

रणबीर के मन में बस एक बात ही घूम रही थी कि मनोज की वजह से उस के जीवन में अशांति आई थी, तो क्यों न उस को ही ठिकाने लगा दिया जाए. इसी काम के मकसद से कुछ दिन पहले वह छुट्टी ले कर घर आया.

मनोज को ठिकाने लगवाने के लिए उस ने बहादुरगढ़ की लाइनपार स्थित फ्रैंड्स कालोनी में रहने वाले पवन से बात की. पवन मूलरूप से सोनीपत के जौली गांव का रहने वाला था. 2 लाख रुपए में पवन से मनोज की हत्या की बात तय हो गई. फौजी ने उसी समय 5 हजार रुपए उसे एडवांस के तौर पर भी दे दिए.

पवन की दोस्ती पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर निवासी तेजपाल उर्फ घूणी से थी. पवन और तेजपाल वैसे तो पेंटर थे, लेकिन पैसों के लालच में मनोज की हत्या करने को राजी हो गए. बातचीत तय हो जाने के बाद पवन और तेजपाल कांस्टेबल मनोज की रेकी करने लगे. उन्होंने उस की हत्या हरियाणा में ही करनी तय की.

रेकी के बाद उन्हें पता चला कि मनोज रोजाना मौर्निंग वाक के लिए मुंगेशपुर ड्रेन पर जाता है. सुबह के समय नहर के किनारे सुनसान रहते हैं, इसलिए दोनों को यही समय ठीक लगा.

4 मई, 2020 को मनोज कुमार अपने दूर के रिश्ते के चाचा रमेश कुमार के साथ सुबह 7 बजे के करीब मुंगेशपुर में नहर किनारे घूमने गया, तभी पवन और तेजपाल मोटरसाइकिल से वहां पहुंचे और उन्होंने मनोज के चक्कर में रमेश को भी मौत के घाट उतार दिया.

फौजी रणबीर से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन अन्य आरोपियों पवन और तेजपाल उर्फ धूणी को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने उन के पास से .32 एमएम की पिस्टल व 7 जीवित कारतूस और वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक भी बरामद कर ली.

तीनों आरोपियों के खिलाफ हत्या और हत्या की साजिश रचने का मुकदमा दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार ने उन्हें कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. घटना में रूबी की कोई भूमिका सामने नहीं आई थी. मामले की जांच थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

घातक त्रिकोण प्रेम का

हरियाणा के जिला मेवात के गांव सुधराना का रहने वाला 35 वर्षीय सुरेंद्र कुमार नूंह कोर्ट में टाइपिस्ट के पद पर कार्यरत था. उस के परिवार में पत्नी सीमा के अलावा 11 साल का एक बेटा आलोक था. गांव में उस का अपना पैतृक मकान और सरकारी नौकरी होने के कारण उस के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में सब कुछ ठीक था.

22 दिसंबर, 2019 को शनिवार का दिन था. शाम वह कोर्ट की ड्यूटी समाप्त करने के बाद अपने गांव लौटा तो सीमा उसे देख कर बहुत खुश हुई. क्योंकि सुरेंद्र जब कोर्ट खुला होता तो नूंह में ही रुक जाता था और सप्ताहांत में बीवीबच्चों से मिलने गांव आ जाता था. सीमा एक खूबसूरत मिलनसार स्वभाव की औरत थी. उस दिन उस ने पति की पसंद का खाना बनाया था. रात को खाना खाने के बाद तीनों अपने कमरे में सोने चले गए.

रात थोड़ी गहरी हुई तो अचानक सुरेंद्र के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. ये आवाजें सीमा की थीं. सीमा चीखचीख कर शोर मचा रही थी कि कुछ बदमाश रात के अंधेरे में उस के घर के पिछवाड़े की दीवार फांद कर घर में घुस आए और उस के पति सुरेंद्र के ऊपर घातक हथियारों से हमला कर दिया. शोर सुन कर कुछ लोग उस के घर आ गए थे. वहां वास्तव में सुरेंद्र घायल अवस्था में था. सुरेंद्र को गांव के लोग आननफानन में नजदीक के अस्पताल में ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

सीमा ने रात घटना के फौरन बाद अपने मोबाइल फोन से स्थानीय पुलिस को सूचित कर दिया था. लेकिन जब काफी देर के बाद भी पुलिस वहां नहीं पहुंची तो उस ने नूंह कोर्ट के रीडर को अपने पति पर हुए हमले की बात बता कर पुलिस को जल्दी घर पर भेजने के लिए उन से सहायता मांगी.

नूंह कोर्ट के रीडर के द्वारा कोसली थाने में घटना की सूचना दी तो इस के 2 घंटे बाद कोसली के थानाप्रभारी जगबीर सिंह अपने मातहतों के साथ घटनास्थल सुधराना गांव पहुंचे.

थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने मृतक सुरेंद्र की पत्नी सीमा से घटना के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात को 10 बजे घर का दरवाजा बंद कर के वह पति और बेटे के साथ सो रही थी. कुछ देर बाद 3 बदमाश उस के घर की पिछली दीवार फांद कर कमरे में घुस गए और उस के पति को लाठीडंडों से बुरी तरह पीटने लगे. वह रोरो कर बदमाशों से अपने पति को छोड़ देने की गुहार लगाती रही लेकिन जब तक वह निढाल नहीं हो गए, तब तक वे उन्हें मारते रहे.

सुरेंद्र के साथ जी भर कर मारपीट करने के बाद तीनों बदमाश फरार हो गए. तीनों के चेहरे कपड़े से बंधे थे. इस कारण वह किसी का मुंह नहीं देख पाई. सीमा का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी जगबीर सिंह अस्पताल पहुंचे और सुरेंद्र की लाश का मुआयना किया.

सुरेंद्र के सिर पर किसी तेजधार हथियार से वार किया गया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने सुरेंद्र की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद वह थाने लौट गए.

अगले दिन मृतक की पत्नी सीमा के बयान पर थाने में 3 अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया. इस केस की विवेचना थानाप्रभारी ने स्वयं संभाली. सीमा ने अपने बयान के दौरान पति की हत्या का शक एक पड़ोसी पर लगाया था, जिस से कुछ दिन पहले नाली को ले कर आपस में मारपीट हुई थी.

सुरेंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस की मौत सिर पर हुए घातक वार के कारण अधिक खून बह जाने की वजह से हुई थी.

थानाप्रभारी ने अब तक घटना के बारे में डीएसपी जमाल खान को जानकारी दी तो उन्होंने जल्द से जल्द तहकीकात कर अपराधियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. चूंकि मामला नूंह कोर्ट के कर्मचारी की हत्या से जुड़ा था, इसलिए पुलिस इस केस को जल्द से जल्द हल करना चाहती थी.

थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने मृतक सुरेंद्र के पड़ोसियों को थाने बुलवा कर उन से पूछताछ की तो पता चला कि नाली के झगड़े का फैसला तो नाहड़ पुलिस चौकी में पहले ही निपट चुका था और सुरेंद्र की हत्या में उन का कोई हाथ नहीं है. फिर भी पुलिस ने उन्हें थाने बुला कर हिदायत दी कि जब तक इस केस का खुलासा न हो जाए, वे शहर छोड़ कर कहीं बाहर नहीं जाएंगे.

थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने हत्याकांड में शामिल अपराधियों तक पहुंचने के लिए गंभीरता से विचार करना शुरू किया और उन संभावित कारणों को तलाशने की कोशिश में जुट गए, जिस के कारण सुरेंद्र की हत्या की जा सकती थी.

सुरेंद्र हत्याकांड के बारे में उन्हें एक बात बड़ी अजीब लग रही थी कि हत्यारों ने सुरेंद्र की हत्या को अंजाम दिए जाने के दौरान सीमा को कोई क्षति नहीं पहुंचाई थी और न ही उस के घर में किसी प्रकार की लूटपाट ही की थी. इस का मतलब साफ था कि हत्यारे केवल सुरेंद्र की हत्या करने के लिए ही उस के घर में दाखिल हुए थे.

उन्होंने कुछ सोच कर सीमा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर गहराई से छानबीन की तो यह देख कर चौंक गए कि सीमा एक खास मोबाइल नंबर पर बारबार फोन करती थी.

जब उक्त मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि यह नंबर अनिल नाम के एक युवक का था और घटना वाली रात उस की लोकेशन सुरेंद्र के गांव में थी. वह जींद के पांडू पिंडारा का था.

जब अनिल को थाने बुला कर उस से सुरेंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि सुरेंद्र तो उस के दूर के रिश्ते में दामाद लगता था. उस की हत्या का उसे भी बहुत दुख है. लेकिन जब उस से सीमा के साथ लगातार फोन करने और फोन पर लंबीलंबी बातें करने का कारण पूछा गया तो उस ने चुप्पी साध ली. यह देख थानाप्रभारी जगबीर सिंह समझ गए कि सुरेंद्र की हत्या में इस का हाथ हो सकता है.

जब थानाप्रभारी ने अनिल को थोड़ी पुलिसिया झलक दिखलाई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सीमा के साथ अवैध संबंध थे. उस से शादी करने की नीयत से ही उस ने सीमा और अपने ही गांव के 2 युवकों के साथ मिल कर सुरेंद्र को मौत के घाट उतारा था.

अनिल के द्वारा सुरेंद्र की हत्या स्वीकार किए जाने के बाद उसे हिरासत में ले लिया गया और उसी दिन अनिल की निशानदेही पर उस के गांव पांडू पिंडारा में दबिश दे कर हत्या में शामिल विकास और मनीष को गिरफ्तार कर लिया. सब से अंत में थानाप्रभारी जगबीर सिंह सीमा के गांव सुधराना पहुंचे और उसे भी गिरफ्तार कर थाने ले आए. जहां तीनों ने अपने जुर्म स्वीकार कर लिए.

सीमा, अनिल, मनीष और विकास के बयानों और पुलिस की तहकीकात के बाद सुरेंद्र हत्याकांड के पीछे जो प्रेम कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

सुधीर कुमार हरियाणा के जिला हिसार में रहते हैं, जहां उन का अपना पुश्तैनी मकान है. उन की बेटी सीमा का विवाह सन 2007 में मेवात जिले के सुधराना गांव के निवासी सुरेंद्र यादव से हुआ था. सुरेंद्र सरकारी नौकरी करता था. शादी के बाद सीमा बेहद खुश थी, क्योंकि सुरेंद्र बिलकुल वैसा ही था जैसे भावी पति की कल्पना उस ने की थी.

सुरेंद्र गोरा, सुंदर तथा स्मार्ट था जो उसे बेइंतहा प्यार करता था. वह भी सुरेंद्र को दिलोजान से प्यार करती थी. शादी के एक साल बाद सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से सुरेंद्र बहुत खुश था.

अब उसे जीवन में वह सब सुख प्राप्त था, जिस की कल्पना एक आदमी अपने लिए करता है. एक सुंदर प्यार करने वाली पत्नी, चांद सा प्यारा बेटा और जीवनयापन करने के लिए हरियाणा सरकार की नौकरी. उस की जिंदगी बड़े खुशनुमा माहौल में आगे बढ़ रही थी. इस तरह देखते ही देखते कई साल गुजर गए.

सन 2015 में सीमा पांडू पिंडारा जिला जींद में स्थित अपनी ननिहाल गई तो वहां उस की मुलाकात शादी के पहले के प्रेमी अनिल से हुई. अनिल को देखते ही उस के जहन में उस का अतीत उभर कर सामने आ गया, जिसे अब लगभग भूलने के कगार पर थी.

दरअसल, अनिल दूर के रिश्ते में उस का मामा लगता था. शादी के पहले जब वह ननिहाल में रह कर आईटीआई कर रही थी, तब अनिल भी उस के साथ पढ़ाई कर रहा था. एक उम्र का होने के कारण दोनों मामाभांजी के रिश्ते को दरकिनार कर कब एकदूसरे को दिल दे बैठे, इस का उन्हें पता ही नहीं चला.

जल्द ही उन के बीच आंतरिक संबंध बन गए. दोनों अब शादी कर के एक होने के तानेबाने बुनने में मशगूल हो गए, तभी उन के अमर्यादित रिश्ते की जानकारी ननिहाल के लोगों को हो गई. उन लोगों ने सीमा और अनिल को उन के रिश्ते को याद दिलाते हुए एकदूसरे से दूर रहने के लिए कहा.

लेकिन सीमा ननिहाल में रह कर अपनी नानी और सगे मामा की आंखों में धूल झोंक कर अनिल के साथ प्रेम की पींग बढ़ाती रही. जैसे ही सीमा का आईटीआई डिप्लोमा पूरा हुआ, उसे ननिहाल पांडू पंडारा से वापस उस के पैतृक घर हिसार भेज दिया गया. इस के बाद 2007 में सीमा की शादी सुरेंद्र से हो गई.

आज जब अचानक सीमा की अनिल से मुलाकात हुई तो अनिल ने उसे अकेले में ले जा कर बताया कि वह अब भी उसे प्यार करता है, इसलिए उस ने अब तक शादी नहीं की. यह सुन कर सीमा का दिल पसीज गया और वह अनिल को अपना मोबाइल नंबर दे कर बोली कि जब उस का पति घर में नहीं रहेगा, तब वह उसे अपने यहां बुला लेगी फिर अपनी हसरतों की प्यास बुझा लेना.

सीमा की बात सुन कर अनिल की आंखों में एक अनोखी चमक उभर आई. उस का 12 साल पहले का खोया प्यार आज वापस मिल गया था. सीमा कुछ दिनों ननिहाल में रह कर वापस अपनी ससुराल सुधराना लौट आई.

जब उस का पति सुरेंद्र कोर्ट में रहता तो वह अनिल के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने घर बुला लेती. इस तरह पति की गैरमौजूदगी में वह अपने पूर्वप्रेमी अनिल के साथ पिछले 4 सालों से गुलछर्रे उड़ा रही थी.

अनिल इन दिनों एक कुरियर कंपनी में काम कर रहा था. अब घर वाले उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगे थे. जबकि वह सीमा के अलावा किसी भी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था. सीमा ने अपनी ओर से लाचारगी जताते हुए कहा कि वह तो शादीशुदा और एक बच्चे की मां है. इस पर अनिल ने उसे सुरेंद्र से तलाक लेने की सलाह दी.

सीमा ने अनिल से कहा कि सुरेंद्र उसे किसी भी कीमत पर तलाक नहीं देगा. यह सुनने के बाद अनिल ने सीमा की सहमति से सुरेंद्र की हत्या की योजना तैयार की और अपने ही गांव के 2 युवकों मनीष और विकास को रुपयों का लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया.

22 दिसंबर की रात सीमा ने फोन कर अपने प्रेमी अनिल और उस के दोस्तों को बुला लिया. उस समय उस के घर में जब वे तीनों आए तब तक सुरेंद्र गहरी नींद में था. योजना के अनुसार सीमा ने घर के सारे दरवाजे खुले छोड़ दिए थे. अनिल ने मनीष और विकास की मदद से सुरेंद्र को नींद में ही मौत की आगोश में सुला दिया तथा सीमा और उस की बगल में सो रहे उस के बेटे को कुछ नहीं किया.

अगले दिन सीमा ने अपने पति की हत्या का शक झूठमूठ पड़ोसी पर लगा दिया, जबकि पड़ोसी का इस हत्याकांड से कोई मतलब नहीं था.

लेकिन हत्यारों की फ्रैंडली एंट्री और सीमा को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाए जाने के कारण सीमा पहले दिन से पुलिस के रडार पर थी.

6 जनवरी, 2020 को सुरेंद्र कुमार के चारों हत्यारों सीमा, उस का प्रेमी अनिल, मनीष और विकास को कोर्ट में पेश कर उन्हें 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. इस अवधि में हत्या में प्रयुक्त मोबाइल फोन, कुल्हाड़ी, लोहे की रौड, रक्तरंजित कपड़े आदि बरामद करने के बाद 10 जनवरी को उन्हें फिर से कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

देवर की दीवानी

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वाले गांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी.

अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया.

संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था.

सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था. उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं.

संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है.

कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी.

इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं.

लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती.

ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था.

संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती.

एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी.

गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी.

उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया.

लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी.

दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया.

किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई.

संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया.

इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई.

इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

रूह का स्पंदन : दक्षा को मिल ही गई खुशी

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,
हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.
सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.
सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.
अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तोसुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.
चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.
ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.
उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.
सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.
दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’
सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.
फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’
‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.
‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.
दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.
दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.
दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.
दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.
दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.
उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.
सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.
पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.
सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.
घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.
काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.
सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.
सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.
घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.
निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.
तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’
तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.
अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.
खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’
इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.
‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’
दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.
‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’
अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.
‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’
सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’
सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.
यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.
सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.
दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.
जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’
सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019