कलयुगी बेटे ने पीट पीट कर की पिता की हत्या

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर है तहसील मोहनलालगंज, इसी तहसील के कोराना गांव में 70 साल के बाबूलाल रावत अपने इकलौते बेटे रामकिशुन उर्फ कालिया, उस की पत्नी रेखा और बच्चों के साथ रहते थे. बाबूलाल खेतीकिसानी  कर के परिवार का गुजारा करते थे. इस गांव के तमाम लोग नशा करने के आदी हो गए थे.

गांव के लोगों की संगत का असर रामकिशुन पर भी हुआ. वह भी शराब के अलावा दूसरी तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगा. लंबे समय तक नशे में रहने का प्रभाव रामकिशुन के शरीर और सोच पर भी पड़ रहा था. वह पहले से अधिक गुस्से में रहने लगा था.

चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से वह बातबात पर मारपीट करने लगता. केवल बाहर के लोगों के साथ ही नहीं बल्कि घर में भी वह पत्नी और बच्चों से झगड़ कर मारपीट करता था. उस की नशे की लत से घर के ही नहीं, मोहल्ले के लोग भी परेशान रहते थे.

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रात में जब वह ठेके से शराब पी कर चलता तो गांव में घुसते ही गाली देनी शुरू कर देता था. चीखचीख कर गाली देने से गांव वालों को उस के घर लौटने का पता चल जाता था. घर पहुंचते ही वह घर में मारपीट करने लगता था, कभी पिता से कभी पत्नी से तो कभी बेटे के साथ.

जून, 2019 के पहले सप्ताह की बात है. रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. पत्नी रेखा ने उसे समझाना शुरू किया, ‘‘इतनी रात गए शराब पी कर घर आते हो, ऊपर से लड़ाई झगड़ा करते हो, यह कोई अच्छी बात है क्या. जानते हो, तुम्हारी वजह से गांव वाले कितना परेशान होते हैं.’’

रामकिशुन भी लड़खड़ाई आवाज में बोला, ‘‘मैं शराब अपने पैसे से पीता हूं. इस से गांव वालों का क्या लेना देना. किसी के कहने का मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. तुम भी कान खोल कर सुन लो, मुझे ज्यादा समझाने की कोशिश मत करो. बस अपना काम करो.’’

रेखा भी मानने वाली नहीं थी. उसे पता था कि वह अभी नशे में है. ऐसी हालत में समझाने का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सुबह नशा उतरने पर वह सब भूल जाएगा. इस से बेहतर तो यह है कि इस से कल दिन में बात की जाए.

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अगले दिन रेखा ने घर वालों के सामने पति रामकिशुन को समझाना शुरू किया. शुरुआत में तो वह इधर उधर की बातें कर के खुद को बचने की कोशिश करता रहा, इस के बाद भी जब रेखा ने रात के नशे की बात को ले कर बवाल जारी रखा तो रामकिशुन झगड़ा करने लगा. रेखा भी चुप रहने वालों में नहीं थी. उस ने झगड़े के बीच ही अपना फैसला सुना दिया, ‘‘अगर तुम नहीं सुधर सकते तो अपना घर संभालो, मैं अपने मायके चली जाऊंगी.’’

रेखा की धमकी ने 1-2 दिन तो असर दिखाया, इस के बाद रामकिशुन फिर से नशा कर के आने लगा. अब पानी सिर से ऊपर जा रह था, रेखा ने सोचा कि समझौता करने से कोई लाभ नहीं. उसे घर छोड़ कर चले जाना चाहिए. इस के बाद रेखा पति और बेटे को छोड़ कर अपने मायके चली गई.

रामकिशुन नशे का आदी था. पत्नी के घर छोड़ कर जाने का उस के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि पत्नी के जाने के बाद तो वह और भी अधिक आजाद हो गया. वह देर रात तो वापस आता ही, अब वह दिन में भी नशा करने लगा था.

नशे में वह घर में सभी से मार पिटाई करता था. उस की पत्नी रेखा 15 दिन बीत जाने के बाद भी घर वापस नहीं आई थी. ऐसे में घर की जिम्मेदारी भी रामकिशुन के ऊपर आ गई थी. जिस से वह और भी अधिक चिड़चिड़ा हो गया था. 18 जून, 2019 की शाम 5 बजे रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. सुबह वह अपने बेटे रामकरन को घर के कुछ काम करने के लिए कह कर गया था, वह काम पूरे नहीं हुए तो गुस्से में आ कर रामकिशुन ने बेटे रामकरन की पिटाई शुरू कर दी.

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                         रामकिशुन

अपने पोते की पिटाई होते देख रामकिशुन के पिता बाबूलाल गुस्से में आ गए. उन्हें नशा करने की वजह से बेटे पर गुस्सा तो पहले से था. अब यह गुस्सा और भी अधिक बढ़ गया था.

वह बोले, ‘‘पत्नी घर छोड़ कर चली गई, इस के बाद भी तुम्हें समझ नहीं आया कि शराब छोड़ दो. ध्यान रखो, यदि नशा करना बंद नहीं किया तो एकएक कर के सारा परिवार तुम्हें छोड़ देगा. बेटे को पीटते हुए तुम्हें शर्म नहीं आ रही.’’

रामकिशुन ने पिता की बात को दरकिनार कर के बेटे की पिटाई जारी रखी. वह बोला, ‘‘जब मैं इसे समझा कर गया था तो इस ने काम क्यों नहीं किया? इस की मां घर छोड़ कर चली गई है तो बदले में इसे ही काम करना होगा.’’

बाबूलाल अपने पोते को बचाने के लिए आए तो वह बोला, ‘‘देखो, यह मामला हमारे बापबेटे के बीच का है. तुम बीच में मत बोलो.’’ यह कह कर उस ने पिता को झगड़े से दूर रहने को कहा.

बाबूलाल के हाथ में कुल्हाड़ी थी. वह जंगल से लकड़ी काट कर वापस आ रहे थे. पोते की पिटाई का विरोध करते और उसे बचाने के प्रयास में कुल्हाड़ी रामकिशुन को लग गई. इस से उस की आंखों के पास से खून निकलने लगा. रामकिशुन को इस बात की गलतफहमी हो गई कि पिता ने उस पर कुल्हाड़ी से हमला किया है. आंख के पास से खून बहता देख कर वह पिता पर आगबबूला हो गया.

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                              मृतक बाबूलाल

रामकिशुन बेटे को पीटना छोड़ कर पिता बाबूलाल की तरफ बढ़ गया. उस ने पिता के हाथ से कुल्हाड़ी ले कर फेंक दी और डंडे से पिता की पिटाई शुरू कर दी. पिटाई में बाबूलाल का सिर फूट गया पर इस बात का खयाल रामकिशुन को नहीं आया. बेतहाशा पिटाई से बाबूलाल की हालत खराब हो गई. रामकिशुन उन्हें मरणासन्न अवस्था में छोड़ कर भाग निकला.

बाबूलाल की खराब हालत देख कर पोता रामकरन बाबा को इलाज के लिए सिसेंडी कस्बे के एक निजी अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने बाबूलाल की खराब हालत और पुलिस केस देख कर जवाब दे दिया. वहां से निराश हो कर रामकरन बाबा को ले कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, मोहनलालगंज ले गया.

वहां डाक्टरों ने बाबूलाल की गंभीर हालत देखते हुए उन्हें लखनऊ के ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया. ट्रामा सेंटर के डाक्टरों ने बाबूलाल को एडमिट कर इलाज शुरू कर दिया. बाबा के इलाज में पैसा खर्च होने लगा. रामकरन के पास जो पैसे थे वह जल्दी ही खत्म हो गए.

रामकरन ने पैसों के इंतजाम के लिए प्रयास किए, पर कोई मदद करने वाला नहीं था. लोगों ने समझाया कि पैसे नहीं हैं तो अब बाबूलाल को यहां रखना ठीक नहीं है. अच्छा होगा कि घर पर ही रखा जाए. वहीं इन की सेवा की जाए.

इलाज का कोई रास्ता न देख कर रामकरन ने डाक्टरों से कहा कि उस के पास पैसे खत्म हो चुके हैं ऐसे में हम बाबा को अपने गांव वापस ले जाना चाहते हैं. डाक्टरों से मिन्नतें कर के रामकरन अपने बाबा को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर घर ले आया. उसी दिन देर रात बाबूलाल ने अपने घर पर दम तोड़ दिया.

बाबूलाल की मौत के बाद सुबह को रामकरन ने पूरे मामले की सूचना मोहनलालगंज पुलिस को दे दी तो इंसपेक्टर जी.डी. शुक्ला बाबूलाल के घर पहुंच गए.

जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस ने रामकरन की सूचना पर उस के पिता रामकिशुन के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की पड़ताल शुरू कर दी. इंसपेक्टर जी.डी. शुक्ला ने एक पुलिस टीम का गठन कर के रामकिशुन की तलाश शुरू कर दी.

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इसी बीच पुलिस को पता चला कि रामकिशुन गांव के बाहर छिपा हुआ है, पुलिस ने पिता बाबूलाल की हत्या के आरोप में रामकिशुन को गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया. अगर रामकिशुन नशे का आदी नहीं होता तो वह पिता की हत्या नहीं करता और न ही उसे जेल जाना पड़ता. नशे की आदत ने पूरे परिवार को तबाह कर दिया.

पति एक खिलौना : नई दुल्हन का दुखदायी खेल

थाणे जिले का एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है कल्याण. उत्तर और दक्षिण को जाने वाली सभी रेलगाडि़यां यहां हो कर आतीजाती  हैं. कल्याण का एक उपनगर है विट्ठलवाड़ी, जिस के परिसर में दुर्गा का मंदिर है. मंदिर के ठीक सामने यशवंत अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 9 में जगदीश सालुंखे अपने बड़े भाई कांचन सांलुखे के परिवार के साथ रहता था.

जगदीश अंबरनाथ की एक फार्मास्युटिकल कंपनी में नौकरी करता था. उस की शादी एक चंचल शोख हसीना और महत्त्वाकांक्षी युवती वृशाली ठाकरे से हुई थी. शादी के बाद जगदीश सालुंखे ने अपने भाई का घर छोड़ दिया और उसी सोसायटी में किराए का एक फ्लैट ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

जगदीश सालुंखे और वृशाली की शादी को अभी 3 महीने भी नहीं हुए थे कि जगदीश की मौत हो गई. 6 मार्च, 2019 को रात के लगभग 11 बजे वृशाली ने वहीं पास में रहने वाले जगदीश सालुंखे के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन किया. वह घबराई हुई लग रही थी.

फोन नई बहू वृशाली ने किया था, फोन सुन कर नंदलाल के होश उड़ गए. वृशाली उन से मदद मांगते हुए कह रही थी कि मामाजी यहां घर में बहुत बड़ी चोरी हुई है. चोरों ने जगदीश को मार दिया है. प्लीज मामाजी, आप जल्दी घर पर आ जाएं.

यह सारी बातें वृशाली ने रोते हुए एक ही सांस में नंदलाल को बता दी थीं. नंदलाल ने वृशाली को धीरज बंधाते हुए कहा कि वह तुरंत उस के घर पहुंच रहे हैं. जगदीश के घर के पास ही उस का बड़ा भांजा यानी जगदीश का बड़ा भाई कांचन सालुंखे रहता था. नंदलाल ने यह जानकारी कांचन को भी दे दी. वह भी अपने मामा के साथ तत्काल घटनास्थल पहुंच गया.

थोड़ी सी देर में यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. आसपड़ोस के लोगों के साथसाथ जगदीश सालुंखे के जान पहचान वालों और नाते रिश्तेदारों की भीड़ एकत्र हो गई.

उन की नजर घर के अंदर गई तो उन्होंने देखा कि जगदीश सालुंखे बैड पर पड़ा था. घर का सारा सामान इधर उधर बिखरा हुआ था. जगदीश सालुंखे की पत्नी वृशाली पति के शरीर से लिपट कर रो रही थी.

जगदीश सालुंखे के घर पहुंच कर उस के भाई कांचन सालुंखे और मामा नंदलाल सौदाणे ने पड़ोसियों की मदद से वृशाली को जगदीश से अलग किया और एक आटो की मदद से पास ही गुलाबराव पाटिल के दवाखाने ले कर गए, जहां से उन्हें किसी दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा गया.

इस पर वे जगदीश सालुंखे को डा. भुजबल के अस्पताल ले कर गए. लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी. वहां डाक्टरों ने जगदीश सालुंखे की स्थिति देख कर उसे रुक्मिणी बाई अस्पताल रैफर कर दिया. वहां के डाक्टरों ने जगदीश को देखते ही मृत घोषित कर दिया. इस के साथ ही साथ अस्पताल की ओर से इस मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी गई.

जिला अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना कोलसेवाड़ी में रात्रि ड्यूटी पर मौजूद एसआई एस.एस. तड़वी 2 कांस्टेबलों के साथ जिला अस्पताल पहुंच गए. इस की जानकारी उन्होंने सीनियर पीआई शाहूराजे सालवे को दे दी थी.

अस्पताल पहुंच कर वह अभी मृतक के परिवार से पूछताछ कर ही रहे थे कि उसी समय थाणे के डीसीपी संजय शिंदे, एसीपी पवार, सीनियर पीआई शाहूराजे सालवे, पीआई मधुकर भोंगे, एपीआई सुनीता राजपूत, एसआई नलावड़े, हेडकांस्टेबल हनुमंत शिर्के, अभिनाश काले, प्रकाश मुंडे के साथ अस्पताल पहुंच गए.

मामला चोरी का नहीं था

डाक्टरों से बात करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरसरी निगाह से मृतक जगदीश सालुंखे के शव का निरीक्षण किया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के चले जाने के बाद सीनियर पीआई शाहूराजे सावले ने अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर जगदीश सालुंखे का शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. इस के बाद वह सीधे घटनास्थल पर गए. घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वह थाने लौट गए.

थाने लौट कर जब उन्होंने अपने सहायकों  के साथ इस मामले पर गंभीरता से विचार किया तो उन्हें चोरी और जगदीश सालुंखे की हत्या की कडि़यों में कई पेंच नजर आए. मामला वैसा नहीं था जैसा कि बताया जा रहा था. मामले की तह में जाने के लिए जगदीश सालुंखे की पत्नी वृशाली का बयान जरूरी था.

लेकिन उस समय वृशाली बयान देने की स्थिति में नहीं थी. इसलिए सीनियर पीआई शाहूराजे ने पूछताछ करने के लिए वृशाली को दूसरे दिन थाने बुलाया और मामले की तफ्तीश पीआई मधुकर भोंगे और एपीआई सुनीता राजपूत को सौंप दी.

वृशाली ने अपने बयान में बताया कि घर में सागसब्जी नहीं थी. उस ने पति जगदीश सालुंखे को फोन पर इस बात की जानकारी दी. लेकिन वह काम से लौटते समय खाली हाथ आ गए. इस पर वह सीधे बाजार चली गई. बाजार से लौट कर जब वह घर आई तो घर की स्थित देख कर उस के होश उड़ गए. भाग कर जब वह पति जगदीश के पास पहुंची तो वह बेहोश पड़े थे.

यह देख कर वह बुरी तरह डर गई. उस की शादी के सारे जेवर चोर ले गए थे. उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने पति के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन पर सारी जानकारी दे दी.

हालांकि पुलिस ने वृशाली सालुंखे के बयान पर भादंवि की धारा 174 के तहत अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी. लेकिन जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पुलिस का शक वृशाली पर गया. वह सीधेसीधे पुलिस के राडार पर आ गई. जगदीश सालुंखे के परिवार वालों ने उस की मौत को गहरी साजिश बताया था.

परिवार वालों के बयान के अनुसार वृशाली जगदीश के साथ हुई अपनी शादी से खुश नहीं थी. शादी के पहले वह 2 बार जगदीश सालुंखे से शादी करने के लिए मना कर चुकी थी. यह शादी उसे उस के घर वालों के भारी दबाव के कारण करनी पड़ी थी.

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पुलिस टीम ने जब इन सब बातों की सच्चाई जानने के लिए वृशाली से पूछताछ की तो पहले तो उस ने पुलिस को घुमाने की कोशिश की. लेकिन पुलिस के सवालों के चक्रव्यूह में वह कुछ इस तरह फंसी कि उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

23 वर्षीय जगदीश सालुंखे सुंदर स्वस्थ युवक था. वह मूलरूप से जनपद जलगांव के तालुका रावेर का रहने वाला था. उस के पिता गोकुल सालुंखे सीधेसादे व्यक्ति थे. गांव में उन की थोड़ी बहुत काश्तकारी थी. इस के अलावा रावेर में उन की हेयरकटिंग की दुकान भी थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा सिर्फ 2 बेटे थे. बडे बेटे कांचन सालुंखे की शादी हो चुकी थी. वह अपनी पत्नी के साथ कल्याण के उपनगर कोलसेवाड़ी में रहता था.

जबकि छोटा बेटा जगदीश सालुंखे पढ़ाई कर रहा था. गोकुल सालुंखे अपनी काश्तकारी और दुकान से परिवार की गाड़ी पूरी जिम्मेदारी से चला रहे थे. जगदीश को ले कर माता पिता का सपना था कि उन का छोटा बेटा उन के साथ रह कर घर की पूरी जिम्मेदारियां संभाले. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जगदीश का मन गांव में नहीं लगा तो उस ने शहर की राह पकड़ ली. शहर आ कर वह अपने बड़े भाई कांचन सालुंखे और भाभी के साथ रहने लगा. जल्दी ही उसे अंबरनाथ स्थित एक फार्मास्युटिकल कंपनी में नौकरी मिल गई. जगदीश सालुंखे जब नौकरी करने लगा तो परिवार वाले उस की शादी की सोचने लगे.

गोकुल सालुंखे ने जब बेटे की शादी की बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों के बीच चलाई तो जगदीश के लिए मलाड के रहने वाले ठाकरे परिवार की वृशाली ठाकरे का रिश्ता आया.

22 वर्षीय वृशाली ठाकरे अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. घर में एक भाई सतीश ठाकरे और मां थी. घर की पूरी जिम्मेदारी सतीश ठाकरे के कंधों पर थी. इसलिए उस ने अभी तक शादी नहीं की थी. वृशाली जितनी सुंदर थी उतनी ही वह चंचल और हंसमुख भी थी. जगदीश सालुंखे को वह पहली नजर में भा गई.

वृशाली ने घर वालों को यह रिश्ता बहुत पसंद आया. ऊपर से उन का पुराना पारिवारिक रिश्ता भी निकल आया. इसलिए ठाकरे परिवार वृशाली की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहता था. जगदीश सालुंखे और वृशाली के देखा देखी के बाद दोनों परिवार और उन के नाते रिश्तेदारों ने मिल कर वृशाली और जगदीश सालुंखे की सगाई कर दी और साथ ही शादी की तारीख भी तय हो गई.

आज के जमाने में लोग सगाई को आधी शादी मानते हैं. और अपने बच्चों को खुली छूट दे देते हैं. लड़का और लड़की दोनों बातचीत के साथसाथ मिलने जुलने और घूमने फिरने लगते हैं. ऐसा ही कुछ वृशाली और जगदीश सालुंखे के साथ भी हुआ था.

वृशाली और जगदीश सालुंखे भी एकदूसरे से मिलनेजुलने और बातचीत करने लगे थे. उन का यह सिलसिला लगभग 6 महीने तक चलता रहा. जगदीश सालुंखे वृशाली से शादी तय होने से खुश था. दूसरी तरफ आधुनिक विचारों वाली वृशाली 6 महीने में ही जगदीश सालुंखे से बोर हो गई थी.

सीधे सादे नहीं, हीरो या मौडल जैसे पति की दरकार

वृशाली को एक सीधासादा नहीं हीरो, मौडल जैसा स्मार्ट पति चाहिए था, जो उस के इशारों पर चले और उस की सारी इच्छाएं पूरी करे. शादी के 20 दिन पहले वृशाली ने जगदीश सालुंखे को फोन कर मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन पर बुलाया और बुझे मन से कहा कि वह उस के साथ शादी जैसे पवित्र बंधन में नहीं बंधना चाहती. क्योंकि दोनों के आचार विचार एकदूसरे से नहीं मिलते. अगर दोनों की शादी हो गई तो वह खुश नहीं रह पाएगी. इस से अच्छा है कि वह शादी से इनकार कर दे.

वृशाली ठाकरे की इस बात से जगदीश सालुंखे के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वजह यह कि उस के घर वालों ने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. सारे नाते रिश्तेदारों को शादी के कार्ड भी भेज दिए गए थे. जगदीश ने जब यह बात वृशाली को समझाने की कोशिश की. लेकिन उस ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अगर उस की शादी जबरन की गई तो वह जहर खा कर आत्महत्या कर लेगी. तब उस का क्या अंजाम होगा, वह सोच ले. वृशाली की इस धमकी से जगदीश सालुंखे बुरी तरह डर गया. उस ने वृशाली की सारी बातें अपने परिवार वालों को बता दीं.

इस बात की खबर जब वृशाली के घर वालों को लगी तो वे भी सकते में आ गए. उन्होंने वृशाली को आड़े हाथों लिया. अपने परिवार के दबाव में वृशाली ने अपनी गलती मानी और जगदीश से शादी करने के लिए तैयार हो गई. लेकिन जगदीश सालुंखे के परिवार वालों को वृशाली की बातों पर यकीन नहीं था.

वह वृशाली के परिवार वालों की विनती पर शादी के लिए तैयार हो गए. लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि अगर भविष्य में वृशाली ने कोई गलत कदम उठाया तो जिम्मेदारी उन की नहीं होगी, इस के लिए उन्होंने अलग से गारंटी और माफी पत्र लिखवा कर अपने पास रख लिया. इस के बाद वह शादी की तैयारी में जुट गए.

घर परिवार वालों के दबाव में आ कर आखिर वृशाली जगदीश सालुंखे से शादी के लिए तैयार हो गई. लेकिन उस के मन में जगदीश सालुंखे को ले कर असमंजस की स्थिति थी. जगदीश सालुंखे को वह पति के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी. यही कारण था कि वह अपनी शादी के लिए टालमटोल कर रही थी.

शादी के सप्ताह भर पहले वृशाली ने जगदीश सालुंखे को एक होटल में बुलाया और वही पुरानी बातें दोहराते हुए कहा कि वह इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती. उसे ब्यूटीशियन का कोर्स करना है. कोर्स कर के पहले अपना कैरियर बनाएगी. फिर शादी विवाह के बारे में सोचेगी. तब तक के लिए वह शादी की तारीखों को आगे बढ़वा दे. जब कैरियर बन जाएगा तो शादी विवाह तो कभी भी कर सकते हैं.

इस बार जगदीश सालुंखे ने वृशाली को समझाने की कोशिश नहीं की. बल्कि उस ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘यह बात तुम अपने परिवार वालों से क्यों नहीं कहती हो. मुझ से यह सब नहीं होगा.’’ इतना कह कर जगदीश सालुंखे गुस्से में वहां से उठ कर चला गया.

जगदीश सालुंखे के इस रवैये से वृशाली जलभुन गई थी. इस समस्या से निपटने के लिए अब उसे ही कुछ करना था. वह सोचने लगी कि ऐसा क्या करे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

घर जाने के बाद वह सारी रात अपनी समस्या को ले कर सोचती रही, करवटें बदलती रही. और सुबह तक उस ने समस्या का जो हल निकला, वह काफी खतरनाक था. दूसरी ओर दोनों परिवार वृशाली और जगदीश सालुंखे की शादी को ले कर उत्साहित थे.

वृशाली का पहला अटैक

वृशाली की शादी हो रही थी. इस बात को ले कर उस की सहेलियों और दोस्तों में खुशी की लहर थी. वह सब वृशाली से शादी की बैचलर पार्टी की मांग कर रहे थे. जिसे वृशाली आजकल कह कर टाल रही थी. वृशाली ने शादी के 2-4 दिन पहले अपने घर में छोटी सी पार्टी रखी और इस से खासतौर पर जगदीश को भी बुलाया था.

वृशाली के बुलाने पर जगदीश पार्टी में आया तो जरूर था पर उस ने पार्टी में एंजौय नहीं किया. घर लौटते समय वृशाली ने बड़े प्यार से जगदीश के लिए खाने का टिफिन तैयार किया और उसे घर पहुंच कर खाने के लिए कह दिया.

लेकिन जगदीश ने टीफिन का खाना नहीं खाया. घर जाने के बाद उस ने टिफिन खोला तो उस में से एक अजीब सी गंध आई, जिस की वजह से जगदीश ने खाना फेंक दिया. उस खाने में वृशाली ने बड़ी चालाकी से जहर डाला था.

अंतत: 29 दिसंबर, 2018 को बड़ी धूमधाम से वृशाली ठाकरे और जगदीश सालुंखे की शादी हो गई. शादी के बाद वे दोनों घूमने के लिए हिल स्टेशन चले गए. इस शादी से जगदीश सालुंखे तो बहुत खुश था और वृशाली के सारे गिले शिकवे भूल गया था. लेकिन वृशाली शादी से खुश नहीं थी.

शादी के नाम पर उस ने सिर्फ एक समझौता किया था. जैसेजैसे समय बीत रहा था वैसे वैसे वृशाली के व्यवहार में परिवर्तन आता जा रहा था. वह बातबात पर जगदीश और उस के परिवार वालों से लड़ाई करने लगी थी. इस से तंग आ कर जगदीश सालुंखे के परिवार वालों ने उसे कहीं अलग रहने की सलाह दी. अंतत: जगदीश उसी परिसर में किराए का एक फ्लैट ले कर वृशाली के साथ रहने लगा.

वृशाली को घरगृहस्थी नहीं चाहिए थी

वृशाली यही चाहती भी थी कि कोई उसे रोकने टोकने वाला न हो. नए घर में आने के बाद वह पूरी तरह से आजाद हो गई. वह सारा सारा दिन मोबाइल फोन से चिपकी रहती थी. जगदीश जब इस पर ऐतराज करता, तो वह उस से उलझ जाती थी. बात आगे न बढ़े इस के लिए जगदीश सालुंखे खुद ही चुप हो जाता था.

लोग शादी के बाद अपने दांपत्य जीवन की गाड़ी हंसीखुशी के साथ चलाते हैं. लेकिन जिस दांपत्य जीवन की नींव रेत पर खड़ी हो वह भला कितने दिनों तक चल सकता है. और यही जगदीश सालुंखे के साथ भी हुआ. उस की शादी को अभी 3 महीने भी पूरे नहीं हुए थे कि अपनी आजादी के लिए वृशाली सालुंखे ने जो रास्ता चुना, वह सीधा जेल में जा कर खुलता था.

घटना के दिन वृशाली काफी खुश थी. उस ने काम से लौट कर आए जगदीश सालुंखे से प्यार भरी बातें कीं और अपनी योजना के अनुसार उस के खाने में चूहे मारने की दवा मिला दी.

खाना खाने के बाद जगदीश जब सोने के लिए अपने बैड पर गया तो उस का मन व्याकुल होने लगा. इस के पहले कि वह उठ कर बाथरूम में जाता, वृशाली ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर पूरी ताकत से उस का गला घोंट दिया. वृशाली को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि पति मर गया है. तब उस ने ड्रामा करते हुए जगदीश के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन कर दिया.

वृशाली ने परिवार वालों और पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की. लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. शादी से आजादी पाने के चक्कर में वह एक ऐसी खाई में जा गिरी, जहां से उस का निकलना संभव नहीं था.

पीआई मधुकर भोंगे और उन की टीम ने वृशाली सालुंखे से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया गया.

कथा लिखे जाने तक वृशाली सालुंखे जेल में थी. पीआई मधुकर भोंगे और उन की टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि मामला सिर्फ पति के न पसंद होने का था या फिर हकीकत कुछ और थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

खुद का पाला सांप : मौसी के प्यार में भाई की हत्या

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

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पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबह सुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरते डरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

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उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी के शौक ने ली पति की जान

रामप्रवेश अपने बेटे महेश्वर की ससुराल पहुंचा, उस समय महेश्वर के शरीर में कोई हरकत नहीं थी. ससुराल वाले उस के शव को ठिकाने लगाने की नीयत से ले जाने की तैयारी में जुटे हुए थे, लेकिन इसी दौरान मृतक के पिता रामप्रवेश और अन्य के पहुंच जाने से वे लोग सकपका गए.

बेटे की ससुराल वालों ने रामप्रवेश को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन बेटे की मौत पर गमजदा महेश्वर के पिता ने हठ पकड़ ली कि जब तक पुलिस नहीं आ जाती, तब तक लाश किसी भी सूरत में नहीं उठने दूंगा.

बिहार के बेगूसराय जिले का एक थाना है खोदाबंदपुर. इसी थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले फफौत गांव में पति द्वारा अपनी पत्नी को इंस्टाग्राम पर उत्तेजक गानों पर वीडियो बनाने से क्या टोका, वह तो इस कदर तिलमिला गई कि उस ने अपने आशिक और बहनों के साथ मिल कर पति को ही मौत के घाट उतार दिया. यह घटना 7 जनवरी, 2024 की है.

दरअसल, बिहार के जिला समस्तीपुर स्थित नरहन गांव के रहने वाले महेश्वर राय की एक दिन समस्तीपुर के एक कैफे में रानी से मुलाकात हुई थी. वह बेगूसराय के गांव फफौत की रहने वाली थी.

रानी बेहद खूबसूरत तो थी ही, साथ में बातूनी भी कुछ ज्यादा ही थी. इसलिए पहली ही मुलाकात में वह बिना किसी हिचकिचाहट के हंसहंस कर बातें कर रही थी. इस से महेश्वर काफी प्रभावित हुआ.

कैफे में नाश्ता करने के दौरान उस ने रानी का मोबाइल नंबर ले लिया. रानी से पहली मुलाकात में ही महेश्वर उस का दीवाना हो गया. उस का मोबाइल नंबर तो उस के पास था ही, इसलिए जब उस का मन करता, उस से फोन पर बातें कर लेता था.

रानी को भी महेश्वर से बातचीत करना अच्छा लगता था, धीरेधीरे उन दोनों में दोस्ती हो गई. यही दोस्ती कुछ समय बाद प्यार में बदल गई, दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे, इसलिए उन्होंने लव- मैरिज कर ली. यह सन 2018 की बात है.

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         आरोपी पत्नी रानी

रानी से लवमैरिज करने के बाद महेश्वर अपने घर वालों के साथ नरहन गांव में रहने लगा और गांव में ही छोटा मोटा काम करके जैसेतैसे अपनी गृहस्थी चलाने लगा. इसी दौरान वह एक बच्चे का बाप बन गया. बच्चे के पैदा होने के बाद खर्चा बढ़ गया तो अच्छी आमदनी के लिए पत्नी को अपने मातापिता के पास छोड़ कोलकाता चला गया.

पति के कोलकाता जाने के बाद रानी का अपनी ससुराल में कतई मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने शर्म और हिचकिचाहट का परदा हटा कर इंस्टाग्राम पर मादक अदाओं वाले वीडियो बना कर पोस्ट करने शुरू कर दिए. देखते ही देखते थोड़े समय में ही उस के फालोअर्स की तादाद बढऩे लगी.

इंस्टाग्राम का वीडियो ले गया जुर्म तक

इतना ही नहीं, फालोअर्स की संख्या बढऩे की होड़ में मादक अदाओं वाले गरमागरम वीडियो बनाने के लिए रानी ने घर से बाहर अंजान युवकों के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू कर दिया. लेकिन इंस्टाग्राम पर वीडियो बनाने का चस्का एक दिन उसे रियल लाइफ में जुर्म के दलदल में धकेल देगा, ये किसी ने भी नहीं सोचा था.

इंस्टाग्राम पर वीडियो डालने का चस्का इस कदर हावी हुआ कि जब रानी के पति महेश्वर ने रानी को इंस्टाग्राम पर वीडियो बना कर डालने से मना किया तो रानी अपने बेटे को साथ ले कर बेगूसराय जिले के गांव फफौत में स्थित अपने मायके में आ कर रहने लगी, लेकिन पति के मना करने के बावजूद रानी ने अपनी मादक अदाओं वाले वीडियो इंस्टाग्राम पर बनाने और डालने का सिलसिला जारी रखा. यह जान कर महेश्वर को गुस्सा आ गया.

7 जनवरी, 2024 को कोलकाता से महेश्वर अपने गांव नरहन आया और कुछ समय अपने मातापिता के पास गुजारने के बाद उन से अनुमति ले कर वह अपनी पत्नी और बेटे से मिलने के बहाने अपनी ससुराल फफौत के लिए निकल पड़ा. शाम के वक्त वह फफौत पहुंच गया.

महेश्वर पत्नी द्वारा अपना कहा न मानने से गुस्से में तो था ही, उस ने अपनी ससुराल पहुंच कर रानी को जम कर खरीखोटी सुनाई और कहा कि अभी भी वक्त है, संभल जा और ये बेशर्मी के वीडियो इंस्टाग्राम पर डालना और अंजान युवकों के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. तेरा ये कृत्य अब मुझे कतई पसंद नहीं है.

महेश्वर के मुंह से यह सुनते ही रानी बिफर पड़ी. रानी को बिफरता देख महेश्वर को और अधिक गुस्सा आ गया. उस ने उसी समय रानी के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया.

अपनी बहनों के सामने पति द्वारा थप्पड़ जड़े जाने से तिलमिलाई रानी भी अपना आपा खो बैठी और पति से भिड़ गई. इसी दौरान अचानक रानी का आशिक शहजाद भी वहां आ गया. रानी ने बिना देरी किए अपनी बहन रोजी के गले में पड़ी चुन्नी ले कर पति के गले में डाल दी. इस के बाद प्रेमी शहजाद और दोनों बहनों रोजी व सुनीता के सहयोग से पति का गला चुन्नी से कस दिया.

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सिर चढ़ कर कैसे बोला जुर्म

थोड़ी ही देर में उस की मौत हो गई. तभी इत्तफाक से महेश्वर के भाई रुदल का फोन महेश्वर के मोबाइल पर बारबार आना शुरू हो गया. जब यह सिलसिला नहीं थमा तो महेश्वर की नाबालिग साली रोजी ने मोबाइल काल रिसीव कर ली.

महेश्वर के बड़े भाई ने कहा, ”मैं इतनी देर से तुझे फोन कर रहा हूं, रिसीव क्यों नहीं कर रहा तू? अब मेरी बात का जवाब क्यों नहीं देता?’’

रोजी कुछ नहीं बोली. इसी दौरान महेश्वर के मोबाइल पर शोरगुल सुन कर उस के भाई को संदेह हुआ. उस ने तुरंत अपने पिता रामप्रवेश राय को सारा घटनाक्रम बताते हुए कहा, ”मुझे लगता है, महेश्वर के साथ ससुराल में कोई अनहोनी घट गई है. आप बिना देरी किए गांव के कुछ दबंग लोगों को ले कर महेश्वर की ससुराल फफौत पहुंच कर पता करो आखिर माजरा क्या है.’’

बेटे के कहने पर गांव के 5-7 लोगों को ले कर रामप्रवेश बेटे की ससुराल पहुंच गया. वहां बेटे की लाश देखते ही रामप्रवेश को शक हो गया कि उस के बेटे ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है.

इसी बीच रामप्रवेश के साथ आए लोगों में से किसी ने खोदाबंदपुर थाने को फोन कर इस घटनाक्रम की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में एसएचओ मिथलेश कुमार मौके पर पहुंच गए.

घटनास्थल की स्थिति और मृतक के पिता रामप्रवेश राय के बयान के आधार पर महेश्वर की पत्नी रानी, उस की दोनों बहनों समेत रानी के आशिक शहजाद को पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर एसएचओ ने महेश्वर की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उधर जब रानी को थाने ला कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि मेरे पति को किसी ने नहीं मारा बल्कि उन्होंने मेरी बहन की चुन्नी से फांसी लगा कर खुदकुशी की है.

यह कह कर उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि महेश्वर की हत्या उसी ने अपने आशिक शहजाद और बहनों के साथ मिल कर की है.

रानी ने पुलिस को हत्या की ऐसी वजह बताई, जिसे सुन कर पुलिस वाले भी हैरान रह गए. उस ने बताया, ”मुझे इंस्टाग्राम पर वीडियो डालने का शौक है, लेकिन मेरे पति को यह कतई पसंद नहीं था. इस से आए दिन हम दोनों में झगड़ा होने लगा तो मैं बेटे को ले कर मायके में आ गई. मेरा मायके में रहना ससुराल वालों को रास नहीं आया. उसी बीच मैं शहजाद नाम के युवक के संपर्क में आ गई और मैं ने महेश्वर से किनारा कर लिया.

”इस के बावजूद भी शहजाद से मेरी निकटता उसे खटकती थी, अत: महेश्वर से पीछा छुड़ाने के लिए मैं ने शहजाद की मदद से चुन्नी से गला कस कर पति को मार डाला.’’

रानी और शहजाद को उम्मीद थी कि महेश्वर की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे दोनों हत्या के जुर्म में कभी नहीं पकड़े जाएंगे.

विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने रानी और उस की बहनों रोजी और सुनीता तथा आशिक शहजाद को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अपने ही परिवार के खून से रंगे हाथ

रोहित शेखर का पितृ दोष

अपने ही परिवार के खून से रंगे हाथ – भाग 4

सुमित ने अपने कनफेशन वीडियो में भी इस सच को स्वीकार किया था कि उसे ड्रग्स की लत है. दरअसल, सुमित बीटेक की पढ़ाई के दौरान ही ड्रग्स की लत का शिकार हो गया था. लेकिन उस के परिवार को ये बात कभी पता नहीं चली.

बीटेक की पढ़ाई के दौरान जब सुमित हौस्टल में रहता था तब उसे दोस्तों की संगत में ड्रग्स लेने, चरस की सिगरेट पीने और शराब पीने की आदत पड़ गई थी. इसी दौरान जब उस की शादी हो गई तो उस की नशे की लत कुछ कम जरूर हो गई, मगर उस के बाद भी चोरी छिपे वह ड्रग्स लेता रहता था.

1-2 बार उस की पत्नी अंशुबाला को उस पर शक हुआ तो उस ने इधर उधर की बात बना कर पत्नी को बहका दिया. डेढ़ साल पहले सुमित की नशे की लत उस वक्त फिर बढ़ गई जब वह गुरुग्राम की आईटी कंपनी में नौकरी करता था. वहां उस के 1-2 साथी भी नशा करते थे.

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एक साल पहले अंशु ने सुमित के कपड़ों की जेब से नशे की गोलियां पकड़ीं तो दोनों के बीच पहली बार इस बात को ले कर झगड़ा हुआ था. अंशुबाला ने तब ये बात सुमित की बड़ी बहन गुड्डी को बताई थी. गुड्डी ने भी सुमित को डांटते हुए नशा न करने की हिदायत दी थी.

चूंकि सुमित अच्छा कमाता था और पैसे की कोई कमी नहीं थी इसलिए उस ने सोचा ही नहीं कि जब नशा करने के लिए उस के पास पैसा नहीं होगा तो वह क्या करेगा. जनवरी में जब सुमित की नौकरी चली गई तो एक महीना तो सब ठीक रहा. लेकिन जैसे जैसे वक्त बीतने लगा, उस का डिप्रेशन और नशे की लत दोनों बढ़ते गए. जाहिर है नशे की लत के साथ खर्चा भी बढ़ने लगा. जबकि आमदनी कुछ थी नहीं.

सुमित को खुद भी और परिवार को भी ठाठ की जिंदगी जीने की आदत थी. धीरेधीरे उसे लगने लगा कि आने वाले दिनों में पैसे के अभाव में उस की जिंदगी बेहद मुश्किल भरी हो जाएगी. इस बात को ले कर वह चिड़चिड़ा रहने लगा. अब पत्नी से भी उस की बातबात पर झड़प हो जाती थी.

अंशु भी बारबार उसे नशा करने को ले कर ताने देती थी कि नशे में अपना वक्त खराब करने से अच्छा है कि वह नौकरी तलाश करने में वक्त लगाए. दूसरी ओर भरी हुई सिगरेट पीने और नशे की गोलियां लेने की सुमित की क्षमता भी बढ़ चुकी थी. वह हुकुम मैडिकल स्टोर से ही लाखों रुपए की नशे की दवाएं ले कर खा चुका था. अब धीरेधीरे वहां भी उस का उधार खाता शुरू हो गया था.

इस दौरान 8 अप्रैल, 2019 को आरव व आकृति का जन्मदिन मनाने के अगले दिन जब सुमित के सासससुर किसी शादी के लिए बिहार गए तो एक दिन अंशु ने सुमित पर ऐसा तंज कसा कि बात उस के दिल पर लगी. अंशु ने सुमित से कह दिया कि अगर ऐसा नशेड़ी पति ही किस्मत में लिखा था तो भगवान उसे कुंवारी ही रहने देता.

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सुमित को उस दिन लगा कि उस के इतना करने के बावजूद घर में अगर उस की यही कदर है तो ऐसे परिवार से परिवार का न होना बेहतर है. उस दिन की बात सुमित के दिल में ऐसी बैठ गई कि वह दिनरात नशा करता और एक ही बात सोचता कि ऐसे परिवार की फिक्र करने से क्या फायदा जहां इंसान की कदर न हो, इस से तो अच्छा है कि बिना परिवार अकेले रहो और मस्ती से जियो.

एक बार दिमाग में इस विचार ने घर कर लिया तो बस वह इसी बात पर सोचने लगा. उस ने इरादा कर लिया कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा और अकेला ऐश की जिंदगी जीएगा.

अंशु सुमित को नशे की हालत में देख कर उसे ताने मारती थी. इस से सुमित का इरादा और भी ज्यादा मजबूत होता चला गया. सुमित के पास जमापूंजी भी खत्म होने लगी थी, इसलिए वह और ज्यादा तनाव में रहने लगा था. उस ने परिवार को खत्म करने का पूरा मन बना लिया था.

18 अप्रैल, 2019 को वह अपनी नशे की दवा और पोटैशियम साइनाइड लेने के लिए मुकेश के मैडिकल स्टोर पर गया. दवा लेने के बाद उस ने पेमेंट की. वहां मुकेश के कहने पर उस ने किसी दवा व्यापारी को औनलाइन पेमेंट करने में उस की मदद की. उसी दौरान उस ने मुकेश के खाते से एक लाख रुपए अपने खाते में भी ट्रांसफर कर लिए.

वह जानता था कि 1-2 दिन में मुकेश को यह बात पता चल जाएगी कि चोरीछिपे उस ने उस के खाते से एक लाख रुपए ट्रांसफर कर लिए हैं. लिहाजा उसी दिन सुमित ने चाकुओं का एक सेट भी खरीद लिया. घर आ कर उस ने जब अंशु को चाकुओं का वह सेट दिया तो उस ने इस बात पर भी सुमित को फटकारा कि जिस चीज की जरूरत नहीं थी उसे वह क्यों लाया.

फिर 20 अप्रैल की वो रात आ गई जब उस ने परिवार को खत्म करने की ठानी. रात को उस ने पहले परिवार के सभी लोगों को खाने के बाद पीने के लिए कोल्डड्रिंक दी जिसमें उस ने नींद की दवा मिला रखी थी. बच्चों पर दवा का असर जल्दी हो गया और वे कोल्डड्रिंक पी कर बेसुध हो गए. लेकिन अंशु पर नशे का असर धीरेधीरे हो रहा था.

सुमित ने सब से पहले अपने बड़े बेटे प्रथमेश का गला काटा. क्योंकि वह प्रथमेश को सब से ज्यादा प्यार करता था. उसे मालूम था कि अगर उस ने प्रथमेश की हत्या पहले कर दी तो वह परिवार के दूसरे सदस्यों को आसानी से मार देगा. क्योंकि सब से ज्यादा प्यारी चीज को खत्म करने के बाद इंसान के लिए कम महत्व की चीजों को मिटाना ज्यादा आसान होता है.

प्रथमेश की हत्या के बाद सुमित अंशुबाला की हत्या करने के लिए उस के पास पहुंचा तो संयोग से तब तक अंशुबाला के ऊपर कोल्डड्रिंक में मिली दवा का असर कम हो चुका था. इसलिए उस ने सुमित का प्रतिरोध शुरू कर दिया.

यही कारण था कि सुमित ने उस का गला काटने से पहले चाकू के कई वार गले के अलावा शरीर के दूसरे अंगों पर भी किए. इस से अंशुबाला के शरीर पर कई जगह खरोचों के निशान आ गए थे. आखिर वह पत्नी की हत्या करने में सफल हो गया. इस के बाद उस ने बारीबारी से जुड़वां बेटा बेटी आरव और आकृति का भी गला काट कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया.

हत्या करने के बाद उस ने हत्या में इस्तेमाल चाकुओं को बाथरूम में जा कर धो दिया. उस ने अपने खून से लथपथ कपड़ों को बाथरूम में जा कर बदला और रात भर घर में बैठ कर अपने किए पर सोचता विचारता रहा.

उस के मन में विचार आया कि वह खुद भी आत्महत्या कर ले. लेकिन कई घंटे सोचविचार के बाद सुमित ने सुबह करीब 3 बजे एक बैग में कपड़े और घर में रखे गहने व नकदी रखे और घर का ताला लगा कर घर से निकल गया.

रास्ते में उसे गार्ड मिला तो सुमित ने उस से कह दिया कि वह थोड़ी देर में वापस लौट आएगा. घर के बाहर आ कर उस ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए ओला कैब बुक की और वहां से स्टेशन पर पहुंच कर तत्काल टिकट ले कर त्रिवेंद्रम जाने के लिए तैयार खड़ी राजधानी एक्सप्रेस में चढ़ गया.

घर से चलते वक्त सुमित अपने घर के दोनों फोन भी साथ ले गया था. उस ने उन दोनों फोनों को ट्रेन में चढ़ते ही बंद कर दिया था. ट्रेन में ही सुमित ने अपना कनफेशन वीडियो बनाया और उसे अपने परिवार के वाट्सगु्रप में डाल दिया. 6 बजे ये वीडियो भेजने के बाद उस ने अपना फोन भी बंद कर दिया था.

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सुमित ने बताया कि पहले तो वह आत्महत्या करना चाहता था, लेकिन जब ट्रेन में बैठ गया तो उस का इरादा बदल गया. उस ने तय किया कि वह कहीं दूर जा कर अपनी पहचान छिपा कर साधु संत बन कर जिंदगी गुजार लेगा ताकि उस की नशे की लत भी पूरी होती रहे. पुलिस ने पूछताछ के बाद सुमित को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया.

— कथा पुलिस की जांच और आरोपी से पूछताछ पर आधारित

अपने ही परिवार के खून से रंगे हाथ – भाग 3

अंतिम संस्कार के बाद अंशुबाला के मातापिता व परिवार के अन्य लोग इंदिरापुरम थाने पहुंचे और वहां उन्होंने थानाप्रभारी संदीप कुमार को बताया कि घर में कोई आर्थिक तंगी नहीं थी. सुमित ने सामूहिक हत्या कर घर में लूटपाट की है. वह गहने और नकदी ले कर फरार हुआ है.

परिजनों का तर्क था कि यदि उसे आत्महत्या करनी होती तो वह पत्नी और बच्चों के साथ ही जान दे देता. परिजनों ने हत्यारोपी सुमित के भाई और बहन को गिरफ्तार करने की मांग की.

परिजनों ने यह भी बताया कि 8 अप्रैल को ही आकृति व आरव का जन्मदिन हंसीखुशी मनाया गया था. अंशुबाला के पिता बी.एन. सिंह ने पुलिस को बताया कि वह चूंकि अपनी पत्नी मीरा सिंह के साथ बेटी अंशुबाला के साथ ही रहते थे, इसलिए उन्होंने देखा कि सुमित अकसर अंशु से लड़ाई करता था. वह उस से बार बार रुपए मांगता था. रुपए न देने पर पिटाई करता था.

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बी.एन. सिंह का यह भी कहना था कि सुमित हर महीने एक लाख रुपए से अधिक कमाता था. उस ने नौकरी जरूर छोड़ दी थी लेकिन घर परिवार चलाने के लिए उसे कोई परेशानी नहीं थी. जबकि सुमित ने वीडियो में आर्थिक तंगी के चलते पत्नी और बच्चों की हत्या करने का दावा किया था.

लेकिन पुलिस ने पूरी कालोनी के लोगों के अलावा किराना, कौस्मेटिक की दुकान और प्रैस वाले से पूछताछ की तो उन्होंने परिवार पर किसी प्रकार का उधार होने से साफ इनकार कर दिया. सभी का कहना था कि सामान खरीदने के बाद तुरंत भुगतान कर दिया जाता था.

सोसायटी में कपड़े प्रेस करने वाले रामलाल ने पुलिस को बताया कि सुमित के घर से उस के पास प्रतिदिन छह जोड़ी कपड़े प्रैस होने आते थे. शुक्रवार सुबह भी कपड़े प्रैस होने आए थे.

कपड़े प्रैस करने के एवज में प्रतिमाह सुमित के घर से 1500 रुपए मिलते थे. परिवार ने कभी रुपए उधार नहीं किए. सोसायटी के पास स्थित किराना दुकान संचालक ने बताया कि अंशुबाला प्रतिमाह 8 हजार रुपए का घरेलू सामान नकद ले कर जाती थी.

कपड़े प्रैस करने वाले धोबी रामलाल ने यह भी बताया कि सुमित जब भी यहां रहता था, घर के नीचे या सोसाइटी में घूम कर सिगरेट पीता था. वह सिगरेट पीने का इतना आदी था कि एक दिन में 3 से 4 डिब्बी सिगरेट पी जाता था. पूछने पर सुमित कहता था कि सिगरेट पर उस का महीने का खर्च 10 हजार रुपए से ज्यादा आता है.

इस पूरी पूछताछ से यह बात तो साफ हो गई कि आर्थिक तंगी की जो बात सामने आ रही थी, उस में बहुत ज्यादा दम नहीं था. इसलिए पुलिस ने अंशुबाला के परिजनों द्वारा हत्याकांड में सुमित के भाई और बहन के शामिल होने और उन्हें गिरफ्तार करने की मांग को दरकिनार कर दिया.

क्योंकि यह बात साफ हो चुकी थी कि परिवार न तो किसी आर्थिक मुसीबत में था न ही परिवार के दूसरे लोगों का सुमित के घर बहुत आनाजाना था. इसलिए पुलिस ने अब अपना सारा ध्यान सुमित की तलाश पर केंद्रित कर दिया.

पुलिस ने सुमित के मोबाइल नंबर की सीडीआर निकाल ली थी. उस में पुलिस को करीब आधा दरजन ऐसे नंबर मिले, जिन पर सुमित की बात होती थी. ये नंबर बिहार, बेंगलुरु, मध्य प्रदेश, दिल्ली समेत अन्य कई स्थानों के थे. पुलिस ने संदिग्ध नंबरों की एकएक कर जांच पड़ताल शुरू कर दी.

सर्विलांस टीम को अचानक उस वक्त सुमित की लोकेशन मिल गई, जब उस ने कुछ देर के लिए अपना मोबाइल औन किया. उस वक्त उस की लोकेशन मध्य प्रदेश के रतलाम में थी. सुमित ने अपनी पत्नी के दोनों मोबाइल तो औन नहीं किए थे. हां, इस दौरान 1-2 बार उस ने अपने भाई अमित से बात करने के लिए अपना फोन खोला तो उस की लोकेशन ट्रेस हो गई.

उस की लोकेशन रतलाम की आ रही थी. सुमित ने जब भी अपने भाई से बात की तो उस ने यह तो नहीं बताया कि वह कहां है लेकिन उस ने बारबार यहीं कहा कि वह बहुत परेशान था, इसलिए उस ने इतना बड़ा कदम उठा लिया.

एसएसपी उपेंद्र अग्रवाल ने इस दौरान मोबाइल की लोकेशन मिलने वाले स्थानों पर वहां की जीआरपी को सुमित के फोटो के साथ जानकारी भेजी ताकि वह किसी को दिखे तो उसे पुलिस हिरासत में लिया जा सके.

आननफानन में एसआई प्रह्लाद व इजहार अली और कांस्टेबल रवि कुमार की टीम को रतलाम रवाना कर दिया गया. साथ ही उन्होंने सर्विलांस टीम को उन के साथ बराबर संपर्क बना कर सुमित की लोकेशन का अपडेट देने के भी आदेश दिया.

चूंकि सुमित के कई रिश्तेदार व जानने वाले मध्य प्रदेश में रहते थे, इसलिए आशंका थी कि वह वहां पर अपनी पहचान छिपा कर कहीं छिपा होगा. भले ही उस ने वीडियो में कहा था कि वह 5 मिनट में आत्महत्या कर लेगा, लेकिन रतलाम में उस की लाकेशन मिलने और अभी तक की जांच से ऐसा नहीं लग रहा था कि वह मौत को गले लगा चुका होगा.

इस दौरान 22 अप्रैल, 2019 की शाम को अचानक इंदिरापुरम पुलिस ने औषधि विभाग के निरीक्षक वैभव बब्बर के साथ न्याय खंड 3 में स्थित हुकुम मैडिकल स्टोर पर छापा मारा. सुमित ने भेजे गए वीडियो में इसी मैडिकल स्टोर का जिक्र किया था.

पुलिस ने मैडिकल स्टोर के संचालक मुकेश जो मकनपुर का रहने वाला था, को गिरफ्तार कर लिया. छापा मार कर जब पड़ताल की गई तो पता चला कि उस ने 2 सालों से मैडिकल स्टोर के लाइसैंस का नवीनीकरण नहीं कराया था. उस से पूछताछ में पता चला कि सुमित 2 साल में एक लाख रुपए की नशीली दवाइयां खरीद कर खा चुका था.

सुमित कुमार ने वीडियो में बताया था कि वह पोटैशियम साइनाइड खा कर 5 मिनट में अपनी जिंदगी भी खत्म कर लेगा. मगर हुकुम मैडिकल स्टोर के संचालक मुकेश से जब पूछताछ हुई तो उस ने बताया कि उस के पास पौटैशियम साइनाइड नहीं था. सुमित काफी जिद कर रहा था, जिस की वजह से उस ने पोटैशियम साइनाइड बता कर उसे दूसरी दवा दे दी थी.

विश्वास दिलाने के लिए उस ने नशीली दवाओं के एवज में उस से 22,500 रुपए वसूले थे. पुलिस को भी तलाशी में उस की दुकान से पोटैशियम साइनाइड नहीं मिला, अलबत्ता उस की दुकान की तलाशी में कई नशीली व प्रतिबंधित दवाइयां जरूर बरामद हुईं. पुलिस ने मैडिकल स्टोर से ऐसी 2 पेटी दवाइयां कब्जे में लीं.

पुलिस ने औषधि निरीक्षक की शिकायत पर मुकेश के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया और दुकान सील कर दी. लेकिन सुमित की गिरफ्तारी व उस के परिवार के चारों सदस्यों की मौत की गुत्थी अभी तक उलझी थी.

इस दौरान पुलिस को मिली फोरैंसिक रिपोर्ट से पता चला कि सुमित ने पत्नी व बच्चों की हत्या के लिए 2 चाकुओं का प्रयोग किया था. बाथरूम से जो चाकू बरामद हुए थे, उन्हें पानी से साफ किया गया था.

जांच पड़ताल में ये भी पता चला कि सुमित वारदात वाली रात 2 बजे तक वाट्सऐप पर औनलाइन था. यह बात पुलिस को उस ग्रुप से जुडे़ लोगों की मदद से पता चली. सुमित की लोकेशन ट्रेस करने के लिए पुलिस ने उस का फेसबुक अकाउंट खंगाला तो पता चला कि सुमित फेसबुक पर ज्यादा एक्टिव नहीं था.

इस दौरान पुलिस को अचानक एक सफलता  मिली. कर्नाटक के उडुपी शहर में रेलवे पुलिस के एक कांस्टेबल ने टीवी चैनलों पर गाजियाबाद में हुए चौहरे हत्याकांड से जुड़ी खबर देखी थी. इस खबर में हत्या के बाद लापता सुमित की तसवीर भी दिखाई गई थी.

उसी तसवीर के हुलिए से मिलतेजुलते एक शख्स को जब जीआरपी के जवान ने स्टेशन पर देखा तो संदिग्ध मान कर वह उसे थाने ले आया. उस की आईडी चैक करने पर जब उस का संबंध गाजियाबाद से जुड़ा पाया गया तो उडुपी जीआरपी ने इस की सूचना गाजियाबाद पुलिस को दी.

उडुपी पुलिस ने वाट्सऐप के जरिए उस की वीडियो गाजियाबाद पुलिस को भेजी. उस वीडियो को जब गाजियाबाद पुलिस ने पीडि़त परिजनों को दिखाया गया तो उन्होंने तसदीक कर दी कि वह सुमित ही है. इस के बाद तो पुलिस के लिए सब कुछ आसान हो गया. एसएसपी ने रतलाम में सुमित को खोज रही पुलिस टीम को फ्लाइट पकड़ कर उडुपी पहुंचने के आदेश दिए.

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वहां पहुंच कर इंदिरापुरम पुलिस ने सुमित को अपनी कस्टडी में ले लिया. सुमित कुमार को उसी दिन उडुपी की कोर्ट में पेश कर पुलिस ने उस का ट्रांजिट रिमांड लिया और उसे ले कर अगले दिन यानी 24 अप्रैल को गाजियाबाद लौट आई. सुमित को अदालत में पेश करने के बाद पुलिस ने 2 दिन के रिमांड पर लिया जिस के बाद खुलासा हुआ कि सुमित ने किस वजह से और क्यों इस वारदात को अंजाम दिया था.

अपने ही परिवार के खून से रंगे हाथ – भाग 2

घर में 4 हत्याएं होने की खबर जल्द ही पूरी कालोनी में फैल गई. सुमित के घर के बाहर लोगों की भीड़ उमड़ने लगी. इस बीच किसी के कहने पर पंकज ने पुलिस को सूचना दे दी थी. उस समय शाम के 7 बजे थे. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना अभयखंड चौकी को दी गई. सुमित का घर इसी चौकी के क्षेत्र में आता था.

अभय खंड चौकीप्रभारी एसआई प्रह्लाद सिंह 2-3 सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घर में एक साथ 4 लाशें देखीं तो इंदिरापुरम थानाप्रभारी संदीप कुमार को फोन कर के जानकारी दी. वैसे तो हत्या की वारदात ही पुलिस के लिए बड़ी बात होती है लेकिन यहां तो एक साथ 4 हत्याओं की बात थी.

इंसपेक्टर संदीप कुमार ने इंदिरापुरम क्षेत्र की एएसपी अपर्णा गौतम, एसपी (सिटी) श्लोक कुमार व गाजियाबाद के एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल को इस घटना से अवगत करा दिया.

8 बजते बजते इंदिरापुरम का ज्ञान खंड 4 पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. जिले का हर छोटा बड़ा अधिकारी और फोरैंसिक टीम वहां पहुंच कर जांचपड़ताल में जुट गई.

पंकज ने अपने मातापिता के साथ दिल्ली में रहने वाले अपने भाई व अन्य रिश्तेदारों को इस घटना से अवगत करा दिया था. पंकज के मोबाइल फोन पर सुमित की बहनों व भाई अमित के भी लगातार फोन आ रहे थे, उन्होंने उन्हें भी वास्तविकता से अवगत करा दिया.

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इंदिरापुरम पुलिस के साथ दूसरे तमाम अधिकारी जब घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि 2 कमरों के फ्लैट में अंदर ड्राइंगरूम में खून से लथपथ प्रथमेश का शव पड़ा था. अंशुबाला का शव बेडरूम में जमीन पर पड़ा मिला. जबकि दोनों जुड़वां बच्चों के शव बेड पर पड़े थे. ऐसा लगता था जैसे उन्हें सोते समय बेहोशी की अवस्था में मारा गया था.

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                                                                 अंशुबाला

फर्श व बैड पर तथा 1-2 जगह दीवारों पर खून के निशान थे. बिस्तर पर पड़ा खून सूख कर काला पड़ने लगा था. तीनों बच्चों और अंशु के गले पर धारदार हथियार के निशान थे. अंशुबाला के पेट और छाती के अलावा हाथ पर भी कई जगह धारदार हथियारों के निशान थे. शरीर पर कई जगह खरोंचे भी थीं और कपड़े भी अस्तव्यस्त थे.

इस से पहली नजर में प्रतीत होता था कि मरने से पहले कातिल से उस की झड़प हुई थी और उस ने अपने बचाव में काफी संघर्ष किया था. शव को सब से पहले देखने वाले पंकज ने पुलिस को बताया कि तीनों बच्चों के मुंह के ऊपर तकिए  रखे हुए थे.

सुमित ने शायद परिवार के सभी लोगों को खाने की किसी चीज में कोई नशा दे कर बेहोश कर दिया था. इसीलिए जब उन की हत्या की गई तो आसपड़ोस के किसी भी व्यक्ति ने कोई चीखपुकार नहीं सुनी.

थानाप्रभारी संदीप कुमार ने फोरेंसिक टीम के साथ जब घर की छानबीन शुरू की तो उन्हें रसोई घर में सहजन की सब्जी के टुकड़े मिले. कोल्ड ड्रिंक की 2 खाली बोतलें व नशे की गोलियों के कुछ खाली पैकेट भी मिले. सभी चीजों को पुलिस ने जांच के लिए अपने कब्जे में ले लिया. क्योंकि पुलिस को शक था कि सब्जी में नशीली गोली या पदार्थ मिलाया गया था.

घर की तलाशी में पुलिस को अलगअलग साइज के 5 चाकू भी मिले, जिन में 3 एकदम नए थे. जबकि 2 चाकुओं का इस्तेमाल हत्या में किया गया था, क्योंकि धोने या कपड़े से साफ करने के बावजूद उन पर कहीं कहीं खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. फोरैंसिक टीम ने जांच के बाद ये सभी सामान कब्जे में ले लिए.

कई घंटे की मशक्कत और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने तीनों बच्चों व अंशुबाला के शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए. रात में पंकज के भाई मनीष व दूसरे रिश्तेदार भी गाजियाबाद पहुंच गए.

अंशुबाला के भाई पंकज की शिकायत के आधार पर इंदिरापुरम पुलिस ने 21 अप्रैल, 2019 को ही भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज कर लिया था. जांच का काम खुद थानाप्रभारी संदीप कुमार कर रहे थे.

सुबह होते ही पुलिस ने सुमित की खोजखबर लेने के लिए चौतरफा कोशिशें शुरू कर दीं. चूंकि सुमित का मोबाइल नंबर बंद था. इसलिए उस तक पहुंचने का जरिया सिर्फ उस का मोबाइल नंबर ही था.

हैरानी की बात यह थी कि घर में सुमित के अलावा 2 मोबाइल फोन और थे. इन में एक फोन अंशुबाला का था और दूसरा घर में रहता था. वे दोनों फोन भी घर की तलाशी में पुलिस को नहीं मिले थे. यह भी नहीं पता था कि सुमित जिंदा है या मर चुका है.

इसलिए एसएसपी उपेंद्र अग्रवाल से साइबर शाखा की टीम से सुमित व अंशुबाला के दोनों मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए. इन मोबाइल नंबरों की लोकेशन के बारे में मिलने वाली पलपल की जानकारी इंदिरापुरम पुलिस को देने का काम सौंप दिया.

एसपी (सिटी) श्लोक कुमार व एएसपी अपर्णा गौतम ने थानाप्रभारी संदीप कुमार, एसआई प्रह्लाद सिंह और रामप्रस्थ चौकीप्रभारी इजहार अली के नेतृत्व में 3 टीमें बनाईं. पुलिस की टीमों ने सुबह होते ही सब से पहले घटनास्थल पर पहुंच कर आसपड़ोस के लोगों और सुमित कुमार के सभी रिश्तेदारों से बातचीत और पूछताछ करने का काम शुरू किया.

पड़ोसियों से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि मृतक परिवार काफी मिलनसार था. पड़ोसियों से अंशुबाला और सुमित का बहुत अच्छा व्यवहार था.

कालोनी के गार्ड इंद्रजीत ने बताया कि सुबह 3 बजे सुमित यह कह कर बाहर गया था कि वह थोड़ी देर में आ रहा है. वह किस काम से और कहां गया, इस के बारे में उसे पता नहीं था. गार्ड का कहना था कि सुमित के चेहरे से यह आभास नहीं हुआ कि उस ने 4 हत्याएं की हैं.

पड़ोसियों ने 21 अप्रैल की सुबह से सुमित के परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं देखा था. अलबत्ता 20 अप्रैल की शाम को अंशुबाला का बड़ा बेटा प्रथमेश अपनी मां के साथ बाहर जरूर देखा गया था. दोनों एकदम नार्मल थे. पता चला कि सुमित भी अकसर बच्चों के साथ बाहर खेला करता था.

22 अप्रैल की दोपहर तक पुलिस ने अंशुबाला व उस के तीनों बच्चों का पोस्टमार्टम करवा कर चारों के शव उन के परिजनों को सौंप दिए. 21 अप्रैल की रात में ही पंकज ने अपने पिता को फोन कर के इस हादसे की सूचना दे दी थी.

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बेटी और नाती नातिन की हत्या की खबर सुनते ही अंशुबाला के मातापिता अगली सुबह बिहार के सारण से फ्लाइट पकड़ कर दोपहर तक दिल्ली और फिर दिल्ली से गाजियाबाद पहुंच गए. सुमित के भाई अमित व 2 बहनें भी दोपहर तक गाजियाबाद आ गए. दोनों परिवारों ने मिल कर चारों शवों का अंतिम संस्कार किया.

पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल चुकी थी, जिस में अंशु के गले के साथ शरीर के अन्य हिस्सों पर चाकू के 6 निशान पाए गए थे. वहीं, बच्चों की मौत गला रेतने से बताई गई थी. हत्या का समय 20 व 21 अप्रैल की रात 12 बजे के बाद का बताया गया. नशीले पदार्थ या नींद की गोली दिए जाने की पुष्टि नहीं होने के कारण चारों के बिसरा को सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया.

अपने ही परिवार के खून से रंगे हाथ – भाग 1

नशे की लत इंसान के सोचने समझने की शक्ति ही नहीं छीनती, बल्कि उसे अपना गुलाम भी बना लेती है. नशे की लत में डूबा इंसान कभी कभी ऐसे खतरनाक कदम उठा लेता है, जिस के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. ऐसा ही कुछ सुमित के साथ भी हुआ.

सुमित गाजियाबाद के इंदिरापुरम ज्ञानखंड-4 में अपने परिवार के साथ टू बैडरूम फ्लैट में रहता था. परिवार में उस की पत्नी अंशुबाला के अलावा 3 बच्चे थे. बच्चों में बड़े बेटे प्रथमेश के बाद 4 साल के 2 जुड़वां बच्चे आकृति और आरव थे.

प्रथमेश रिवेरा पब्लिक स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ रहा था. जबकि उस की पत्नी अंशुबाला इंदिरापुरम के मदर्स प्राइड स्कूल में टीचर थी. दोनों जुड़वां बच्चे इसी स्कूल में मां अंशु के साथ पढ़ने जाते थे. स्कूल से लौटने के बाद अंशुबाला घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी.

बिहार के सारण जिले के गांव अंजनी मकेर के रहने वाले बी.एन. सिंह सेना से रिटायर हो चुके थे. उन्होंने सन 2011 में बेटी अंशुबाला उर्फ पूजा की शादी झारखंड के सिंहभूम के गांव आदित्यपुर के रहने वाले सुमित के साथ की थी. सुमित ने बीटेक कर रखा था.

सुमित के पिता सर्वानंद सिंह व मां की सन 2012 में मृत्यु हो गई थी. परिवार में कुल 4 बहनभाई थे. बड़ा भाई अमित बेंगलुरु में एक आईटी कंपनी में इंजीनियर था और अपने परिवार के साथ वहीं रहता था. 4 बहनें थीं. बड़ी किरन व गुड्डी और 2 छोटी बेबी व रिंकी. 3 बहनों की शादी हो चुकी थी. सब से छोटी बहन रिंकी बड़े भाई अमित के साथ रह कर पढ़ रही थी.

अंशुबाला के परिवार में उस के मातापिता के अलावा 2 भाई थे पंकज और मनीष, दोनों ही शादीशुदा थे. पंकज गाजियाबाद वसुंधरा के सैक्टर 15 में अपने परिवार के साथ रहता था. जबकि छोटा भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहता था.

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अंशुबाला के पिता बी.एन. सिंह और मां मीरा देवी पिछले 4 सालों से बेटी अंशुबाला के साथ रह रहे थे. इस की वजह यह थी कि सुमित का औफिस के काम से बाहर आनाजाना लगा रहता था.

सेना से रिटायर बी.एन. सिंह इंदिरापुरम की एक सिक्योरिटी कंपनी में सिक्योरिटी औफिसर की नौकरी कर रहे थे. हालांकि वह बेटी के पास रहते थे, लेकिन अपना व पत्नी का खर्च खुद उठाते थे. बेटी के पास रहने की वजह बस यही थी कि दामाद सुमित अकसर घर से बाहर रहता था.

बच्चे छोटे होने के कारण बेटी को किसी की मदद की जरूरत थी. बेटी के पास रहते हुए बी.एन. सिंह व उन की पत्नी मीरा देवी दोनों बेटों के पास आते जाते रहते थे. दोनों बेटे भी जब तब उन से व बहन अंशु से मिलने के लिए आते रहते थे.

अक्तूबर 2018 तक सुमित गुरुग्राम की आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी पर था. इस के तुरंत बाद उस ने बेंगलुरु की अमेरिकन बेस आईटी कंपनी यूएसटी ग्लोबल में नौकरी शुरू कर दी थी. 14 लाख रुपए के पैकेज पर उस ने बतौर एप्लीकेशन मैनेजर जौइन किया था.

यूएसटी ग्लोबल कंपनी ने 2 महीने बाद अपना सिस्टम अपग्रेड किया तो सुमित काम नहीं कर पाया. नतीजतन बीती जनवरी में उस ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन घर वालों को इस बारे में पता नहीं था. परिवार को इस सब की जानकारी तब लगी जब वह मार्च में बेंगलुरु छोड़ कर हमेशा के लिए दिल्ली आ गया. बेंगलुरु में वह अपने भाई अमित के पास रहता था.

जनवरी में नौकरी छोड़ने के बाद से ही सुमित लगातार दूसरी नौकरी के लिए प्रयास कर रहा था. लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी. अंशुबाला का वेतन बहुत ज्यादा तो नहीं था, लेकिन वह अपने व बच्चों के छोटेमोटे खर्च पूरा करने लायक कमा ही लेती थी.

अब तक सुमित भी अच्छी कमाई कर रहा था. सासससुर भी घर के खर्चों में सुमित व अंशु की मदद करते थे, इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं था कि 3 महीने की नौकरी के कारण सुमित या परिवार के लोग परेशान होते. कुल मिला कर सब कुछ ठीक चल रहा था. इन दिनों बेरोजगारी के कारण सुमित भी पूरे दिन परिवार के साथ ही रहता था.

बिहार के सारण जिले में एक करीबी रिश्तेदार की बेटी की शादी थी, लिहाजा 7 अप्रैल, 2019 को बी.एन. सिंह अपनी पत्नी के साथ शादी में शामिल होने के लिए सारण चले गए थे.

सुमित के सभी भाईबहन दूरदूर व अलग रहते थे. सभी की खैरखबर मिलती रहे इस के लिए उन्होंने माई फैमिली नाम से एक वाट्सएप ग्रुप बना रखा था. 21 अप्रैल की शाम करीब 6 बजे इस वाट्सऐप ग्रुप पर सुमित ने एक ऐसा वीडियो डाला जिसे देख कर पूरे परिवार में हाहाकार मच गया.

ये वीडियो सब से पहले सुमित की बिहार में रहने वाली बहन गुड्डी ने देखा था. वीडियो में सुमित जो कुछ बोल रहा था उसे सुन कर गुड्डी के पांव तले से जमीन खिसक गई.

दरअसल इस वीडियो में सुमित बता रहा था, ‘मैं ने पत्नी और बच्चों की हत्या कर दी है. मैं खुद भी आत्महत्या करने जा रहा हूं. ये मेरा आखिरी वीडियो है. मैं दुकान से पोटैशियम साइनाइड ले कर आया हूं. अब मैं परिवार पालने लायक नहीं रहा, इसलिए मैं ने सब को जान से मार दिया है. जाओ जा कर शव ले लो. 5 मिनट में मैं पोटैशियम साइनाइड खा लूंगा.’

वीडियो में ही उस ने बताया कि उस ने न्याय खंड के हुकुम मैडिकल स्टोर से 22 हजार रुपए में पोटैशियम साइनाइड खरीदा है, जिसे खा कर वह मरने जा रहा है. सुमित ने वीडियो में यह भी बताया कि वह नशे के लिए ड्रग्स भी हुकुम मैडिकल स्टोर से लेता था.

मैडिकल स्टोर के मालिक मकनपुर निवासी मुकेश ने ड्रग्स के नाम पर उसे काफी लूटा था, जिस के चलते उस पर लाखों का कर्ज हो गया था. उस ने भी मुकेश के खाते से मोबाइल बैंकिंग के जरिए एक लाख रुपए अपने खाते में ट्रांसफर कर लिए हैं.

2.40 मिनट के वीडियो में सुमित ने बताया कि वह इस समय काफी डिप्रेस है और उस ने अपने परिवार की हत्या कर दी है. ये पूरी वीडियो जैसे ही गुड्डी ने देखी तो उस ने बेंगलुरु में रह रहे अपने बडे़ भाई अमित को फोन पर सारी बात बताई तो वह भी बेचैन हो गया. अमित ने गुड्डी से बात करने के बाद खुद भी फैमिली ग्रुप पर डाली गई वह वीडियो देखी और गुड्डी से बात की.

अमित ने गुड्डी से कहा कि वह तुरंत अंशुबाला के भाई पंकज को बता दे. क्योंकि वही एक ऐसा शख्स था, जो सुमित के घर के सब से नजदीक रहता था. भाई की सलाह के बाद गुड्डी ने सुमित द्वारा ग्रुप में डाला गया वीडियो पंकज को भेज दिया और उस से फोन पर बात की. गुड्डी ने पंकज को सारी बात बताई तो पंकज का भी सिर घूम गया.

तब तक हकीकत किसी को मालूम नहीं  थी, इसलिए गुड्डी ने पंकज को सलाह दी कि वह तत्काल सुमित के घर जा कर देखे कि माजरा क्या है. तब तक किसी को यकीन नहीं हो रहा था, वे लोग सोच रहे थे कि सुमित ने कहीं मजाक तो नहीं किया.

हालांकि अमित, गुड्डी और पंकज सभी लोगों को जैसे ही इस वीडियो मैसेज के बारे में पता चला उन्होंने सुमित के मोबाइल फोन पर संपर्क करना चाहा ताकि उस से बात कर असलियत जान सकें. लेकिन सभी को उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. इस से सभी को शंका होने लगी.

लिहाजा उन्होंने अंशु बाला व घर के दूसरे मोबाइल फोन पर भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन दोनों फोन स्विच्ड औफ मिले तो पंकज का मन शंका से भर उठा.

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पंकज ने यह सब सुनने के बाद अपने आसपड़ोस के एक दो लोगों को साथ लिया और ज्ञान खंड-4 में सुमित के मकान पर पहुंच गए. लेकिन वहां ताला लटका देख उन का दिल आशंका से भर गया. उन्होंने सुमित के पड़ोस में रहने वाले और कालोनी के कुछ लोगों को एकत्र कर उन्हें अपने बहनोई द्वारा भेजे गए वीडियो के बारे में बताया तो सभी ने सलाह दी कि घर का ताला तोड़ कर चैक किया जाए.

फलस्वरूप सुमित के घर का ताला तोड़ दिया गया. दरवाजा खोल कर अंदर का नजारा देखा तो सभी दंग रह गए. अंदर ड्राइंगरूम से ले कर बेडरूम तक तीनों बच्चों और अंशुबाला के खून से लथपथ शव पड़े थे. जबकि सुमित का कहीं अता पता नहीं था.