मां ने दिलाई बेटे को मौत

उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के थाना बहादराबाद क्षेत्र के क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य को जब किसी ने फोन कर के बताया कि थाना बहादराबाद की धनौरी रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के पास स्थित शिवदासपुर तेलीवाला गांव के 17 वर्षीय तनवीर का अपहरण हो गया है तो उन्होंने फोन करने वाले पूछा, ‘‘अपहर्त्ताओं का फिरौती के लिए कोई फोन आया या नहीं?’’

‘‘नहीं सर, तनवीर के घर वाले फिरौती देने लायक ही नहीं हैं. उस का अपहरण फिरौती के लिए नहीं, रंजिश की वजह से किया गया है. गांव के ही कुरबान, जमशेद और शमशेर की तनवीर के घर वालों की पुरानी दुश्मनी है. लोगों का कहना है कि उन्हीं लोगों ने तनवीर का अपहरण किया है.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘तनवीर के घर वालों ने उस के अपहरण की सूचना थाना पुलिस को दी है या नहीं?’’ क्षेत्राधिकारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, तनवीर के घर वालों ने अभी तो पुलिस को उस के अपहरण की सूचना नहीं दी है. तनवीर की मां इमराना अपने एक रिश्तेदार इश्तिखार उर्फ तारी के साथ उस की सैंट्रो कार से तनवीर की तलाश कर रही है. लेकिन अभी तक उस का कुछ पता नहीं चला है. सर आप ही तनवीर को सकुशल बरामद कराने के लिए कुछ करें.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘आप को कैसे पता चला कि तनवीर का अपहरण हुआ है? जब तक अपहर्त्ताओं का फोन न आए, तब तक हम कैसे कह सकते हैं कि उस का अपहरण हुआ है? अच्छा यह बताओ, तुम कौन बोल रहे हो?’’ क्षेत्राधिकारी ने पूछा.

‘‘सर, एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं ने आप को यह सूचना दे दी, बाकी आप को क्या करना है, यह आप जानें. मेरे बारे में जान कर आप क्या करेंगे?’’ कह कर फोन करने वाले ने फोन काट दिया. यह 22 फरवरी, 2014 की दोपहर के 2 बजे के आसपास की बात है.

युवक के अपहरण का मामला संगीन था, इसलिए क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य ने तुरंत इस मामले की सूचना थाना बहादराबाद के थानाप्रभारी सुंदरम शर्मा को देते हुए कहा कि वह धनौरी पुलिस चौकी के चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी को साथ ले कर तुरंत गांव शिवदासपुर तेलीवाला जा कर तनवीर के अपहरण के बारे में पता करें. इस के बाद उन्होंने इस अपहरण की जानकारी अपने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. सदानंद दाते को दे कर खुद भी शिवदासपुर के लिए निकल पड़े.

क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य के शिवदासपुर तेलीवाला पहुंचने से पहले थानाप्रभारी सुंदरम शर्मा और चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी पहुंच चुके थे. अपहृत तनवीर के घर के सामने गांव के काफी लोग इकट्ठा थे. थानाप्रभारी और चौकीप्रभारी तनवीर के घर वालों तथा गांव वालों से पूछताछ कर रहे थे.

इस पूछताछ में पता चला कि तनवीर का अपहरण इसी गांव के कुरबान, शमशेर और जमशेद ने सैंट्रो कार से किया था. पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो वे गांव में ही मिल गए. पुलिस उन्हें ले कर धनौरी पुलिस चौकी आ गई.

चौकी ला कर पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताते हुए कहा कि तनवीर के परिजनों से उन की पुरानी दुश्मनी थी, इसीलिए वे उन्हें फंसा रहे हैं. जिस समय तनवीर का अपहरण हुआ था, उस समय वे अपने खेतों में गन्ने छील रहे थे.

चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने जब इस बारे में गांव वालों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि ये सच बोल रहे हैं. जमशेद और शमशेर सचमुच उस समय अपने खेतों में गन्ने छील रहे थे. इस के बाद पुलिस ने तीनों को छोड़ दिया.

तनवीर का अपहरण हुआ था, यह सच था. लेकिन न तो अपहर्त्ताओं का कोई फोन आया  था और न उस का कोई सुराग मिला था, इसलिए पुलिस के पास जांच को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं था. पुलिस ने तनवीर के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया था. पुलिस को जांच आगे बढ़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो तनवीर के बारे में पता लगाने के लिए अपने मुखबिरों को लगा दिया.

अगले दिन चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने जानकारी जुटाने के लिए तनवीर की मां इमराना और बाप इसलाम को थाने बुलवाया. पूछताछ करते समय इमराना बुरी तरह रो रही थी, इसलिए रघुवीर चौधरी की नजर उसी पर जमी थी. वह उस से कुछ भी पूछते, जवाब देने के बजाए वह रोने लगती. उसी दौरान इसलाम का एक रिश्तेदार इश्तिखार उर्फ तारी वहां आया तो उसे देख कर इमराना का रोना एकदम से बंद हो गया. यही नहीं, उस ने आंखों से उसे वहां से चले जाने का इशारा भी किया.

चूंकि चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी की नजरें इमराना पर ही जमी थीं, इसलिए उन्होंने उसे यह सब करते देख लिया था. उन्हें उस की यह हरकत बड़ी अजीब लगी. पूछताछ के बाद उन्होंने इमराना को घर भेज दिया, लेकिन उस पर उन्हें संदेह हो गया. इसलिए उन्होंने अपने मुखबिरों से इमराना और उस के रिश्तेदार तारी के बारे में जानकारी जुटाने को कहा.

10 दिन बीत गए. लेकिन तनवीर के बारे में कुछ पता नहीं चला. 2 मार्च, 2014 को कोतवाली रुड़की के अंतर्गत गंगनहर की आसफनगर झाल में एक युवक के शव मिलने की सूचना मिली. कोतवाली पुलिस ने शव बरामद किया. मृतक धारीदार सुरमई कमीज, काला स्वेटर, काली पैंट और सफेद रंग के काली पट्टी के जूते पहने था. इस शव के मिलने की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा प्रसारित की तो चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी तनवीर के घर वालों को साथ ले कर आसफनगर झाल पर जा पहुंचे.

उस शव की शिनाख्त इसलाम ने अपने बेटे तनवीर के रूप में कर दी. जवान बेटे की लाश से वह लिपट कर रोने लगा था. सूचना पा कर क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य भी आ गए थे.  लाश के निरीक्षण में पुलिस ने देखा था कि उस के चेहरे पर चोट के गहरे निशान थे. इस से लगा कि हत्यारों ने पहले उसे बड़ी बेरहमी से पीटा था. शायद उसे पीटपीट कर ही मार डाला गया था. उस के बाद उसे गंगनहर में फेंक दिया गया था.

चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जे.एन. सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल, रुड़की भिजवा दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तनवीर की मौत चेहरे पर लगी चोटों और फेफड़ों में पानी भरने से हुई थी. उस के जबड़े की हड्डी टूटने के साथ उस का गुप्तांग भी सूजा था. इस रिपोर्ट से साफ हो गया था कि हत्यारों ने उसे गंगनहर में फेंकने से पहले बड़ी बेरहमी से पीटा था.

लाश बरामद होने के बाद पुलिस हत्यारों की खोज में बड़ी तत्परता से जुट गई थी. उसी बीच रघुबीर चौधरी को मुखबिरों से पता चला कि कई सालों से दूध व्यवसाई इश्तिखार उर्फ तारी का इसलाम के घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. वह इसलाम के घर तभी जाता था, जब वह घर पर नहीं होता था.

गांव वालों का कहना था कि इसलाम के रिश्तेदार तारी के उस की बीवी इमराना से अवैध संबंध थे. कभीकभी इमराना तारी की सैंट्रो कार से घूमने भी जाती थी. इसलाम मजदूरी करता था. लेकिन इमराना महंगे कपड़े और गहनों से लदी रहती थी. उस के यहां मोटरसाइकिल भी थी. यह सब तारी की ही बदौलत था.

यह जानकारी चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने थानाप्रभारी सुंदरम शर्मा और क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य को दी तो उन्होंने उसे गिरफ्तार कर थाने लाने का आदेश दिया. इस के बाद इश्तिखार उर्फ तारी को उस के गांव शिवदासपुर से गिरफ्तार कर के थाने लाया गया, जहां तनवीर की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई. पहले तो तारी स्वयं को निर्दोष बताता रहा, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि तनवीर की हत्या उसी ने अपने 2 साथियों, कुरबान और शहजाद के साथ मिल कर की थी. उस ने यह भी स्वीकार किया कि तनवीर की हत्या की योजना उस की मां इमराना ने ही बनाई थी.

मां ने ही योजना बना कर बेटे की हत्या कराई थी, यह हैरान करने वाली बात थी. एक मां ने हवस की आग में अपने बेटे को ही स्वाहा कर दिया था. तारी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार तनवीर के अपहरण और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

आज से 28 साल पहले इसलाम का विवाह इमराना से हुआ था. इसलाम की आर्थिक स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी, जबकि इमराना काफी महत्त्वाकांक्षी औरत थी. इमराना इसलाम के 5 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 बेटियां आसमां, नगमा तथा 3 बेटे तनवीर, हसीन और गुलाम अली थे.

5 बच्चों की मां बनने के बाद भी इमराना का शरीर कुछ ऐसा था कि कहीं से नहीं लगता था कि वह 5 बच्चों की मां है. भले ही उस की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन वह रहती थी खूब बनसंवर कर. इसलाम के पास कोई बहुत ज्यादा जमीन नहीं थी. जो थी, उसी से किसी तरह गुजरबसर कर रहा था. कभी जरूरत पड़ने पर वह अपने दूध व्यवसाई रिश्तेदार इश्तिखार उर्फ तारी से पैसे उधार ले लेता था. जब उस के पास पैसे हो जाते थे तो वह वापस कर आता था.

अगर कभी इसलाम समय से रुपए नहीं पहुंचा पाता तो तारी खुद रुपए मांगने आ जाता था. इसलाम घर पर नहीं होता तो इमराना उस का स्वागत करती थी. इस बीच इसलाम का इंतजार करते हुए वह इमराना से बातचीत करता रहता. इसी आनेजाने और बातचीत करने में तारी का दिल इमराना पर आ गया. इस के बाद उस के मन में इमराना को पाने की इच्छा जाग उठी तो वह दूसरे तीसरे दिन बहाने से इसलाम के घर आने लगा.

बातचीत, हावभाव से इमराना ने तारी के मन की बात भांप ली तो उस ने भी उस की इच्छा पूरी करने का मन बना लिया. क्योंकि इस में उसे काफी फायदा दिखाई दिया. इसी का नतीजा था कि मौका मिला तो तारी जो चाहता था, वह उस ने पूरा कर दिया. इस के बाद तो यह रोज का खेल बन गया.

तारी इमराना के साथ मुफ्त में मजा नहीं ले रहा था. संबंध बनाने के बाद वह इमराना की हर तरह से मदद करने लगा था. यही नहीं, उस ने इसलाम से उधार दिए पैसे भी मांगने बंद कर दिए थे.

इस तरह के संबंध छिपे तो रहते नहीं, जल्दी ही सब को इमराना और तारी के संबंधों का पता चल गया. इसलाम के कानों तक भी यह बात पहुंची. लेकिन तारी के अहसानों तले दबा इसलाम विरोध नहीं कर सका. वह भले ही इस बात का विरोध नहीं कर सका, लेकिन पड़ोसियों ने जरूर विरोध किया. तब इमराना उन से लड़ पड़ी.

किसी रोज बड़ी बेटी आसमां और तनवीर ने इमराना और तारी को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उन्होंने तारी को अपने घर आने से मना किया. तब इमराना ने दोनों को डांट कर चुप करा दिया. तारी के घर आने की वजह से इसलाम के बच्चे पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सामने काफी शर्मिंदगी महसूस करते थे, इसलिए अब वे भरपूर विरोध करने लगे थे.

21 फरवरी, 2014 की सुबह स्कूल जाने के लिए तनवीर अपना बैग लेने छत पर बने कमरे पर पहुंचा तो कमरा अंदर से बंद था. खिड़की की झिरी से उस ने झांका तो अंदर इमराना तारी के साथ रंगरलियां मनाती दिख गई. तनवीर शोर मचाते हुए कमरे का दरवाजा खटखटाने लगा. इमराना ने दरवाजा खोला तो तनवीर ने दोनों को काफी जलील किया. इस के बाद उस ने तारी से साफसाफ कह दिया कि अगर अब कभी वह यहां आया तो वह उसे ही नहीं, इमराना को भी जान से मार देगा.

इस के बाद वह बैग ले कर स्कूल चला गया. बेटे की इस धमकी को इमराना ने बड़ी गंभीरता से लिया. इस धमकी से तनवीर उसे रास्ते का कांटा लगा, इसलिए उस ने उसे हटाने का निर्णय ले लिया. इस के बाद शाम को उस ने तारी को फोन कर के जल्द से जल्द तनवीर को खत्म कर देने के लिए कह दिया.

अगले दिन यानी 22 फरवरी, 2014 को तनवीर सुबह 7 बजे घर से स्कूल के लिए निकला तो इमराना ने इस बात की जानकारी मोबाइल फोन द्वारा तारी को दे दी. तारी ने पहले ही अपने दोस्तों कुरबान और शहजाद से बात कर ली थी. इसलिए सूचना मिलते ही वह अपनी सैंट्रो कार से दोनों को साथ ले कर तनवीर की तलाश में तेलीवाला की ओर चल पड़ा. उन्हें कलियर रोड पर रतमऊ नदी के किनारे तनवीर जाता दिखाई दिया तो कुरबान और शहजाद ने उसे पकड़ लिया. तारी ने उस के गुप्तांग पर जोर से लात मारी तो वह बेहोश हो गया.

इस के बाद तीनों बेहोश तनवीर को कार में डाल कर रुड़की शहर के निकट वाटर स्पोर्ट्स कैंप ले गए. वहां कुरबान ने कार का पहिया खोलने वाले पाने से बेहोश तनवीर के चेहरे और सिर पर वार किए. इस के बाद बेहोशी की हालत में तारी और शहजाद ने तनवीर को उठा कर गंगनहर में फेंक दिया. उन्होंने यह भी नहीं देखा कि तनवीर मरा है या जिंदा. इस के बाद तीनों शिवदासपुर आ गए. घर लौट कर तारी ने इमराना को तनवीर की हत्या की सूचना दे दी थी.

इश्तिखार उर्फ तारी के बयान के बाद पुलिस ने छापा मार कर कुरबान और शहजाद को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. तनवीर की हत्या में प्रयुक्त सैंट्रो कार भी बरामद कर ली गई.

पुलिस इमराना को गिरफ्तार करने पहुंची तो वह अपने घर से फरार मिली. पुलिस ने थाने ला कर कुरबान और शहजाद से पूछताछ की गई तो उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद प्रेसवार्ता में तनवीर हत्याकांड के तीनों अभियुक्तों को पत्रकारों के सामने पेश किया गया. इस प्रेसवार्ता में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सदानंद दाते ने इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को ढाई हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की. इस के अगले दिन तारी, कुरबान और शहजाद को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस के बाद चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी को इमराना की तलाश थी. उन्होंने अपने मुखबिरों को उस के पीछे लगा दिया. 10 मार्च को अपने किसी मुखबिर की सूचना पर उन्होंने इमराना को धनौरी तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में इमराना ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. सुबूत के लिए रघुबीर चौधरी ने तारी और इमराना के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवा ली थी.

काल डिटेल्स से पता चला था कि दोनों में लंबीलंबी बातें होती थीं. तारी के मोबाइल फोन की लोकेशन भी घटनास्थल की मिली थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने इमराना को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इमराना और तारी ने सोचा था कि तनवीर की हत्या कर के इस का आरोप अपने दुश्मनों पर लगा देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि दुश्मनों के पास निर्दोष होने के पर्याप्त सुबूत थे. इसी का नतीजा था कि पुलिस असली हत्यारों तक पहुंच सकी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल?

लूट फार एडवेंचर – भाग 5

तीनों कमा चुके थे 50-50 करोड़

“मेरे हिस्से लगभग 22 लाख रुपए आए थे. मैं उन पैसों को ले कर महानगर में आ गया. यहां आ कर यहां के एक पिछड़े इलाके में एक जिम खोल लिया. यह इस पिछड़े इलाके का एकमात्र जिम था, अत: जल्दी ही प्रसिद्ध हो गया और काफी चलने लगा. धीरेधीरे मैं ने शहर के और इलाकों में भी अपने जिम की ब्रांचेें खोल दीं. प्रसिद्धि के साथसाथ बिजनैस भी अच्छा बढ़ गया. आज लगभग हर बड़े शहर में हमारे जिम की ब्रांच है.

“आज 7 सालों के बाद मेरी चलअचल संपत्ति की कीमत 50 करोड़ से अधिक है. मैं ने अपने सभी वेंचर्स का नाम गेलार्ड रखा है. आज तुम जहां बैठे हो, उस का मालिक भी मैं ही हूं.” जगन ने बताया.

“मैं उस घटना के बाद एक इंडस्ट्रियल एरिया में चला गया. जहां मैं ने देखा कि ज्यादातर इंडस्ट्री में खेती के बाद निकले हुए हस्क यानी भूसे को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते है. लेकिन किसानों को पेमेंट 15-20 दिन बाद ही मिल पाता था. इस से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी. मैं ने किसानों से सस्ता भूसा तत्काल पेमेंट का खरीदा. फिर उसे इंडस्ट्री में सप्लाई करना शुरू कर दिया. इस में निश्चित प्रौफिट तो था ही, साथ ही पैसा भी सुरक्षित रिसाइकल हो रहा था. आज मैं उस इलाके में भूसा किंग के नाम से जाना जाता हूं.

पिछले दिनों मैं ने भूसे को कंप्रेस्ड कर कोयले जैसा ईंधन बनाने की फैक्ट्री भी डाल ली है, जिस से काफी मटेरियल एक्सपोर्ट भी होता है. मुझे बैंक में की गई एडवेंचर से लगभग 22 लाख रुपए मिले थे. आज मैं भी लगभग 50 करोड़ की संपत्ति का मालिक हूं.” छगन ने अपने बारे में बताया.

“मैं भी बचने के लिए एक छोटे से गांव में आ गया. वहां पर सब्जियों की पैदावार भरपूर होती थी, लेकिन सडक़ से काफी अंदर होने के कारण सब्जियों की ढुलाई का साधन पर्याप्त समय पर न मिल पाने के कारण काफी सब्जियां नष्ट करनी पड़ती थी. जिस से उन्हें काफी नुकसान होता था. मैं ने अपने पैसों से एक सेकेंडहैंड ट्रक खरीद कर सब्जियों की शहरों में ढुलाई शुरू कर दी.

आज मैं आसपास के लगभग 20 गांवों से फल व सब्जियां अलगअलग माल्स, स्टार रेटेड होटल्स और मार्किट में सप्लाई करता हूं. मेरे पास आज लगभग 40 बड़े लोडिंग व्हीकल्स हैं और अब मैं अर्थ मूविंग मतलब खुदाई की बड़ी मशीनें भी खरीद कर बड़ेबड़े कौन्ट्रैक्ट लेता हूं. मैं भी कुल जमा 50 करोड़ की हैसियत रखता हूं.” मगन ने बताया.

“मतलब हम अपने इस मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहे?” जगन ने सब के बीच प्रश्न रखा.

“हां ऐसा कह सकते हैं. हालांकि हम ने यह काम सिर्फ एडवेंचर के लिए किया था, मगर इस ने हमारी जिंदगी ही बदल दी.” छगन बोला.

“बिलकुल ठीक. लोग आज भी उन एडवेंचरस लूट को याद करते हैं. क्या जोश था यार.” मगन भी सहमत होते हुए बोला,

“आज यकीन नहीं होता अपने आप पर.”

उन के एडवेंर की मीडिया में हुई खूब प्रशंसा

“हम ने जो एडवेंचर किया था, वह अधूरा था. उस समय कुछ मजबूरियां थीं इस कारण उसे पूरा नहीं कर सकते थे. मगर अब कर सकते हैं.” जगन चाय की चुस्कियों के साथ बोला.

“मतलब एक और अडवेंचरस लूट? नहीं भाई, अब मुझ से नहीं होगा. अब उतनी तेजी और चुस्तीफुरती नहीं रही.” मगन बोला.

“मुझे तो वैसे ही शुगर की प्राब्लम हो गई है. सांसें तो जल्दी ही उखड़ जाती हैं आजकल.” छगन भी मगन से सहमत होते हुए बोला

“नहींनहीं, तुम लोग गलत समझ रहे हो. इस बार लूटना नहीं है. लूट का पैसा वापस बैंकों को लौटाना है. मैं इस बोझ के साथ मरना नहीं चाहता कि हम ने अपने स्वार्थ के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को लूटा. आज हम तीनों स्थापित हैं और इस कंडीशन में हैं कि उन पैसों को बिना किसी आपत्ति के वापस लौटा सकते हैं.” जगन बोला.

“सच कहते हो जगन. कभीकभी जब मैं यह सब सोचता हूं तो लगता है हम ने गलत ही किया. और यह ख्याल मुझे अंदर तक कचोटता है.” मगन बोला.

“मगर दोस्तो, यह सब इतना आसान भी नहीं है. लूटते समय जितना साहस दिखाया थी, उस से ज्यादा दिलेरी की जरूरत अभी पड़ेगी. दूसरा लोगों को हमारा नाम भी पता चल जाएगा. उस समय लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भी सोचना आवश्यक है. इस का असर हमारे जमे जमाए बिजनैस पर भी पड़ सकता है.” छगन ने अपने विचार रखें.

“मैं ने यह सब सोच रखा है दोस्तों. जिस तरह हम ने लूट के समय अपना चेहरा ढंका था, उसी तरह पैसे लौटाते समय हम अपना नाम व पहचान गुप्त ही रखेंगे. सब से बड़ी बात पैसा लौटाने की सूचना अकेले बैंक मैनेजर्स को न दे कर पुलिस, कलेक्टर और यथासंभव न्यूजपेपर्स व चैनल्स वालों को भी देंगे.” जगन बोला .

“अच्छा विचार है. अगर हमारी पहचान गुप्त रहती है तो हम यह एडवेंचर भी करना चाहेंगे.” मगन बोला.

“बिलकुल,” छगन भी सहमति दिखाते हुए बोला.

“योजना यह है कि हम ने बैंकों से लूट का जितना पैसा अपने पास रखा है, उतना ही पैसा हम अलगअलग लौक किए हुए सूटकेस में रख कर रेलवे के क्लौकरूम में रख देंगे.

“क्लौकरूम वाले बिना रिजर्वेशन टिकट के सामान नहीं रखते हैं. अत: हमें किसी फरजी नाम से रिजर्वेशन करवाना होगा. यह रिजर्वेशन हम टिकट विंडो से ही करवाएंगे. इस से मिले पीएनआर नंबर के बेस पर हम क्लौकरूम में सामान आसानी से रख पाएंगे.

“सामान रखते समय क्लौकरूम का क्लर्क पहचान पत्र मांग सकता है. इस के लिए 3 आधार कार्ड को ग्राफ्टिंग मेथड से एक बना कर नया आधार कार्ड तैयार कर लेंगे.” जगन बता रहा था.

“मतलब नंबर किसी और का, नाम किसी और का और पता किसी तीसरे का?” मगन ने पूछा.

“बिलकुल सही. मैं जिम में एंट्री लेते समय कस्टमर का आधार कार्ड लेता हूं. मैं उन में से ही किसी पुराने ग्राहक के आधार कार्ड की फोटोकौपी निकलवा लूंगा. बाकी 2 आधार कार्ड का इंतजाम तुम्हारे डाटाबेस में से करना ताकि इन्क्वायरी के समय किसी एक प्रतिष्ठान पर शक ना जाए.

क्लौकरूम में सामान जमा करते समय हम अपने चेहरे कवर रखेंगे ताकि स्टेशन के कैमरों में हमारा चेहरा दिखाई न पड़े. सामान्यत: क्लौकरूम में कोई भी व्यक्ति 7 दिनों तक हमारे सामान को लावारिस नहीं मानता है.

क्लौकरूम में सामान जमा करने के बाद इस की सूचना स्पीड पोस्ट के माध्यम से कलेक्टर, एसपी, बैंक मैनेजर और न्यूजपेपर व चैनल्स को दे देंगे. यहां इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि यह सूचना कंप्यूटर के प्रिंटर से न निकाल कर हाथों से लिखी होगी. ताकि कंप्यूटर प्रिंटर की आईपी के द्वारा हम लोग सुरक्षित रहें.” जगन बोला.

20 दिनों के बाद तीनों दोस्त एक बार फिर गेलार्ड कैफे में पार्टी कर रहे थे. सभी न्यूजपेपर्स और चैनल्स पर उन के एडवेंचर की कहानियां सुनाई जा रही थीं.

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी

लूट फार एडवेंचर – भाग 4

तीनों बैंकों का कर लिया चुनाव

“चलो, अभी हमारे पास एक महीने का समय है. इस बीच हम उन बैंकों की पहचान कर लेते हैं, जो हमारी उम्मीद के मुताबिक कैश रखते हैं.” जगन बोला.

“मैं ऐसी बैंकों की पहचान कर चुका हूं जो कम से कम 20 लाख का मिनिमम बैलेंस तो मेंटेन करते ही हैं.” लगभग 15 दिनों के बाद जब तीनों मिले तो छगन बोला.

“कहां पर है ये बैंक?” जगन ने पूछा.

“एक ब्रांच कृषि उपज मंडी समिति की है. दूसरी ब्रांच इंडस्ट्रियल एरिया की है और तीसरी बैंक वह है जहां पर ज्यादातर सरकारी पैसा जमा होता है.” छगन ने बताया.

“वैरी गुड छगन, मैं भी इन तीनों बैंकों के बारे में ही सोच रहा था.” जगन भी सहमत होते हुए बोला.

“सब से बड़ी बात यह कि तीनों ही बैंकों के बंद होने के समय में आधे आधे घंटे का अंतर है. इंडस्ट्रियल एरिया वाली ब्रांच सुबह 9 बजे खुलती है और ग्राहकों के लिए 3 बजे बंद होती है. सरकारी लेनदेन वाली ब्रांच साढ़े 3 बजे और कृषि उपज मंडी समिति वाली ब्रांच 4 बजे बंद होती है,” छगन ने बताया.

“मतलब हमें अपना ऐक्शन ढाई बजे चालू करना होगा और ज्यादा से ज्यादा साढ़े 4 बजे तक खत्म करना ही होगा.” जगन बोला

“मगर रहमत तो गाड़ी खराब होने की सूचना तो तुरंत दे देगा. ऐसे में अगर समय रहते मैकेनिक आ गया तो क्या होगा? बिना गाड़ी के तो एडवेंचर पूरा नहीं होगा न.” मगन बोला.

“रहमत को गाड़ी खराबी की सूचना और बाकी की औपचारिकताएं पूरी करते करते 4-5 पांच घंटे तो लग ही जाएंगे. तब तक हम वैन को उड़ा चुके होंगे. सरकारी तंत्र में कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर निर्णय नहीं ले सकता है. हमें इसी लूप होल का फायदा उठाना है.” जगन ने समझाया.

“वाह जगन, तुम्हारी स्टडी सौलिड और स्ट्रांग है.” मगन तारीफ करते हुए बोला.

“मैं ने अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए 15 जून की तारीख सोची है.” जगन बोला.

“मगर आज तो 20 मई ही है. 15 जून की तारीख क्यों सोची? इस के पीछे कोई कारण है क्या?” मगन ने पूछा.

“हां, कई कारण हैं. एक तो हम इस बीच के समय में बैंक के स्टाफ की ऐक्टिविटीज अच्छी तरह से नोट कर सकेंगे. और जो ज्यादा ऐक्टिव दिखाई पड़ेंगे उन्हें कंट्रोल करने की तरकीबें भी निकाल सकेंगे.

“दूसरा गरमी अभी ही इतनी बढ़ गई है उस समय तो अपने चरम पर होगी. इसी कारण एसी को सुचारु रूप से चलाने के लिए फ्रंट के शीशे के दरवाजे पहले से बंद होंगे. ऐसे में हमें स्टाफ और ग्राहकों को अंदर ही कंट्रोल करने में आसानी होगी. आने वाले ग्राहक भी बाहर ही रोके जा सकेंगे. तीसरा उस दिन सोमवार भी है. जैसा हम ने प्लान किया था. और चौथा, यह याद रखने के लिए सब से आसान दिन है. क्योंकि यह साल के बीचोबीच का दिन है. याद रहे 7 साल बाद हमें इसी दिन गेलार्ड कैफे में मिलना है.” जगन उत्साहित होते हुए बोला.

“15 जून साल के बीचोबीच का दिन कैसे हो सकता है?” छगन ने हैरानी से पूछा.

“साल का छठा महीना और उस के बीच का दिन. सीधा सा गणित.” जगन ने मुसकराते हुए समझाया.

“बहुत सही और आसान कैलकुलेशन.” मगन बोला, “अच्छा, अब हम 14 जून की शाम को ही मिलेंगे. अपनी चुनी हुई बैंकों के स्टाफ की ऐक्टिविटीज पर नजर रखते हैं तब तक.”

हिम्मत करने वालों की जीत होती है. अभी यही बात उन तीनों पर लागू हो रही थी. उन के सभी पांसे सही पड़ रहे थे. सभी कुछ उन की योजना के मुताबिक ही चल रहा था. 10 जून को ही रहमत कि बीवी डिलीवरी के लिए अपने सासससुर के पास चली गई.

14 जून की रात को ही जगन ने बाजार में मिलने वाली साड़ी की सस्ती फाल ले कर कैश वैन के साइलैंसर में घुसा कर उसे जाम कर दिया. इस से पहले वह अपनी डुप्लीकेट चाबी से वैन का इग्नीशियन चैक कर चुका था. मतलब साफ था चाबी अपना काम बराबर कर रही थी.

और 15 जून को वह सब हो गया, जो इन तीनों के अलावा किसी ने कल्पना में भी नहीं की होगी. हालांकि थोड़ाबहुत विरोध अवश्य हुआ, मगर इन तीनों ने अपनी तुरत बुद्धि और साहस के बल पर विपरीत परिस्थियों का सामना करते हुए उस दुष्कर कार्य को कर ही दिया.

तीनों बैंकों से कुल मिला कर लगभग 65 लाख की लूट हुई थी. किसी भी बैंक में 21 लाख से कम की रकम नहीं थी, जो इन तीनों की कल्पना के अनुरूप ही थी. तीनों लूट के बाद एकदूसरे से अनजान अलगअलग शहर में चले गए.

पहली प्लानिंग में मिले 65 लाख रुपए

दूसरे दिन देश के सभी अखबारों और न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ इस दुस्साहसी घटनाओं का ही जिक्र था. पुलिस और प्रशासन अपनी नाकामी से हाथ मल रही थी. लंबे समय तक लोगों के होंठों पर इस घटना का बखान था. तीनों का मिशन सफल रहा. एक स्वनिर्धारित एडवेंचरस टास्क उन्होंने पूरा कर सब को चौंका दिया.

7 साल बाद. वही तारीख 15 जून समय शाम के 7 बजे. गेलार्ड कैफे के सामने एक मर्सिडीज गाड़ी आ कर खड़ी हुई. उस में से शानदार सूट और सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए छगन उतरा. कुछ ही मिनट बाद फोर्ड की एक बड़ी सी गाड़ी आई. उतरने वाला शख्स मगन था, जो अपने चिरपरिचित महंगी जींस और शर्ट पहने था. लगभग 15 मिनट इंतजार करने के बाद भी जब जगन नहीं आया तो दोनों निराश भाव से कैफे के अंदर चले गए.

“हमें टाइम मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाने वाला जगन खुद ही लेट हो गया.” छगन बोला.

“कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया हो. क्योंकि कैश वैन का ड्राइवर उसे ही पहचानता था. यह संभव है कि वैन की बरामदगी के बाद उस ने जगन का हुलिया पुलिस को बता दिया हो.” मगन ने शंका जाहिर की.

“यदि ऐसा है तो हमें भी तुरंत ही यहां से निकलना चाहिए. बहुत संभव है कि जगन ने पुलिस को हमारे यहां आने की सूचना भी दे दी हो.” छगन चिंतित स्वर में बोला.

7 साल बाद मिले तीनों दोस्त

अभी छगन और मगन बातें कर ही रहे थे कि वेटर ने आ कर उन दोनों को एक परची दी. परची में लिखा था, “सामने वाला केबिन हम लोगों के लिए बुक है उसी में आ जाओ.”

“अरे जगन तो हम से पहले ही यहां पहुंच चुका है. चलो, उसी केबिन में चलते हैं.” छगन खुश होते हुए बोला.

“आओ दोस्तों.” दोनों को देखते ही जगन गर्मजोशी से बोल पड़ा. तीनों एकदूसरे को देख कर बहुत खुश थे.

“सुनाओ अपने 7 साल की प्रोग्रेस.” छगन मुसकराते हुए बोला.

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 4

पुलिस के गले नहीं उतरा नौकरानी का बयान

अम्माजी के कमरे में शोर सुन कर वह वहां पहुंची तो देखा कि उन के बिस्तर पर खून फैला हुआ था और वह मरी पड़ी थीं. वाश बेसिन का कांच टूटा पड़ा था. उस ने शोर मचाने की कोशिश की तो उसे भी कांच के टुकड़े से घायल कर दिया और शोर मचाने पर हत्या की धमकी दी. बदमाश अलमारी से जेवर व नकदी लूट कर भाग गए. उन के जाने के बाद उस ने शोर मचाया, तब पड़ोसी आए.

नौकरानी रेनू शर्मा की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. वृद्धा की हत्या व लूट की गुत्थी नौकरानी रेनू के बयानों से उलझ गई थी. जिस तरह से कमला देवी की हत्या की गई, उस से यह बात समझ नहीं आ रही थी कि हत्यारों ने वाश बेसिन पर लगा शीशा तोड़ कर उस से हत्या क्यों की? यदि हत्यारे हत्या व लूट करने ही आए थे तो अपने साथ कोई हथियार क्यों नहीं लाए?

कमला देवी ने रेनू से चाय बनाने को कहा तो जरूर परिचित ही होंगे. फिर बदमाश कमला देवी की हत्या और लूट करने के बाद प्रत्यक्षदर्शी गवाह रेनू को जिंदा क्यों छोड़ गए? रेनू की बातों से पुलिस का शक उसी पर बढ़ता गया.

पुलिस को लगा कि घटना को अंजाम देने वाले जरूर उस के परिचित हैं और उस ने ही उन्हें बुलाया होगा. ये बात पुलिस ने रेनू से कही तो वह घबरा गई और अपने को निर्दोष बताने लगी. कई घंटों की पूछताछ व पुलिस द्वारा आश्वासन देने पर कि तुम्हें कुछ नहीं होगा, रेनू टूट गई और उस ने अंत में पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी पुलिस को दे दी.

रेनू ने बताया कि अम्माजी के धेवता दामाद तरुण गोयल, जिसे वह पहले से जानती है, ने इस घटना को अंजाम दिया था. उस ने ही डरा दिया था कि वह सभी को 2 बदमाशों के आने की बात कहे. ऐसा न करने पर उस की भी हत्या कर दी जाएगी. इसी डर के चलते वह सही बात बताने से बच रही थी और पुलिस को घुमा रही थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने 2 अप्रैल, 2022 को लोहिया नगर स्थित घर से हत्यारोपी तरुण गोयल को गिरफ्तार करने के साथ ही उस के बिस्तर के नीचे से लूटे गए 77,620 रुपए तथा ज्वैलरी जिस में सोने की 4 चूडिय़ां, कानों के टौप्स, 2 अंगूठियां, चांदी के नोट के साथ आलाकत्ल पेचकस भी बरामद कर लिया.

तरुण ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. कमला देवी की हत्या लूट के उद्देश्य से की गई थी. पुलिस को वारदात के दूसरे दिन ही आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई थी.

सट्टे में हार गया था 50-60 लाख रुपए

हत्या व लूट के आरोपी तरुण गोयल की गिरफ्तारी के बाद 2 अपै्रल को ही एसएसपी आशीष तिवारी ने प्रेस कौन्फ्रैंस बुला कर इस सनसनीखेज हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करते हुए जानकारी दी कि कर्ज में डूबे रिश्तेदार तरुण गोयल ने ही हत्या व लूट की घटना को अंजाम दिया था.

बदमाश 2 नहीं एक ही था. वह भी कोई बाहरी व्यक्ति न हो कर मृतका की बेटी रंजना उर्फ पिंकी का दामाद तरुण गोयल था. दामाद होने के कारण उस का उस घर में आनाजाना था उसे सभी सम्मान देते थे. नौकरानी रेनू शर्मा उसे पहले से ही जानती थी. हत्या व लूट की वारदात को तरुण गोयल ने अंजाम दिया था. वह मूलरूप से मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के बंगला एरिया के मकान नंबर 195 का निवासी है.

तरुण मेरठ में सेनेटरी का काम करता था. उस का अच्छा कारोबार था. औनलाइन सट्टा खेलने के कारण उस पर 50-60 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. लौकडाउन के समय वह मेरठ से भाग कर फिरोजाबाद आ गया था. जहां वह फिरोजाबाद के थाना उत्तर के लोहिया नगर की गली नंबर 2 में घरजमाई बन कर रहने लगा था. यहां रह कर वह सेनेटरी का काम करता था. ससुरालीजन उस की आर्थिक रूप से भी मदद करते थे.

तरुण को पता था कि उस के और नानी सास के परिजन शुक्रवार को एक साथ फिल्म देखने गए हैं और नानी सास घर पर अकेली हैं. उस की नजर नानी सास कमला देवी के रुपयों व आभूषणों पर थी. उसे पता था कि लोकेश का कोयले का बड़ा व्यवसाय है. उस ने सुनियोजित षडयंत्र रचा और पहली अप्रैल, 2022 की अपराह्नï सवा 2 बजे आर्यनगर में उन के घर पर पहुंच गया.

फैसले से परिजन दिखे संतुष्ट

डोरबैल बजाने पर रेनू ने दरवाजा खोल दिया. घर पर नौकरानी रेनू को देख कर उसे अपनी योजना पर पानी फिरते दिखा. लेकिन लालच में वशीभूत हो कर वह अपने को रोक नहीं सका. वह रेनू को पहले से ही जानता था, रेनू भी तरुण को जानती थी कि घर के दामाद हैं. तरुण रेनू से बिना कुछ कहे कमला देवी के कमरे में चला गया.

तरुण ने घटना को अंजाम दिया. रेनू द्वारा टोकने पर उस ने उसे भी घायल कर दिया. गर्भवती रेनू ने जब अपनी जान बख्शने की गुहार लगाई तो उसे धमकी दी कि घर में 2 बदमाशों द्वारा घटना करने की बात सभी को बताए और उस का नाम अपनी जुबान पर भूल से भी न लाए वरना उस का भी यही अंजाम कर देगा. इस के बाद अलमारी से नकदी व जेवर लूट कर वह भाग गया था.

तत्कालीन थाना उत्तर फिरोजाबाद के एसएचओ संजीव कुमार दुबे ने विवेचना कर आरोपी तरुण गोयल के खिलाफ कोर्ट में भादंवि की धारा 394, 302, 307, 506, 411 के अंतर्गत आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल की थी. लगभग एक साल तक चले इस मुकदमे में अभियोजन पक्ष से 7 गवाहों को पेश किया गया. चश्मदीद गवाह रेनू शर्मा जो स्वयं भी पीडि़त थी, ने कोर्ट में अहम गवाही दी. फैसले में आरोपी तरुण गोयल को फांसी की सजा के बाद जेल भेज दिया गया.

अपर जिला एवं सत्र न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) आजाद सिंह ने अपने जजमेंट में लिखा है कि इस संबंध में मुजरिम तरुण गोयल से जब पूछा गया कि उस ने ये अपराध क्यों किया तो उस ने कहा, ‘मैं कर्ज के बोझ में दबा हुआ था और उस वक्त मेरे ऊपर शैतान हावी था.’

बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता लियाकतत अली (विधि सहायक) ने जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से डीजीसी (क्राइम) राजीव प्रियदर्शी तथा विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने पैरवी की. हत्यारे को फांसी की सजा दिलाने के लिए कमला देवी के परिवार के सदस्यों ने संघर्ष किया था.

फिलहाल तरुण गोयल जिला जेल में अपने किए की सजा भुगत रहा है. तरुण द्वारा घटना को अंजाम दिए जाने के बाद से उस के किसी भी परिजन ने अब तक उस की ओर से मुकदमे में पैरवी नहीं की और न जमानत कराई, साथ ही कोई भी परिजन उस से मिलने कोर्ट तक नहीं आया. घटना के बाद एक साल से वह जेल में ही था.

कथा न्यायालय के जजमेंट और जिला लोक अभियोजक (क्राइम) राजीव प्रियदर्शी व विशेष लोक अभियोजक (क्राइम) अजय कुमार शर्मा से बातचीत पर आधारित.

लक्ष्मण रेखा लांघने का परिणाम

हत्यारी लाश : खुला कत्ल का राज

फुरकान अपने दादा इरफान के सामने आ कर खड़ा हुआ तो उस की आंखें चमक रही थीं, सांसों से शराब की बदबू आ  रही थी और चेहरे पर कुटिल मुसकराहट तैर रही थी. फालिज के शिकार बूढ़े इरफान को फुरकान की आदतें अच्छी नहीं लगती थीं. उन्होंने उसे न जाने कितनी बार समझाया था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

बूढ़े अपाहिज इरफान का फुरकान के अलावा अपना कोई नहीं था. इसलिए वह फुरकान की हर बात मानने को मजबूर थे. इरफान काफी दौलतमंद आदमी थे. उन्होंने जो कमाया था अक्लमंदी से काम लेते हुए उसे रियल एस्टेट में लगाया था. उन्हें हर महीने कई मकानों और दुकानों का मोटा किराया मिल रहा था. करोड़ों रुपए की प्रौपर्टी लाखों रुपए महीना दे रही थी. रहने के लिए शानदार बंगला, कई गाडि़यां और नौकर थे.

इरफान के बेटे इमरान और बहू की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. संयोग से उस दिन फुरकान अपने दादा के पास घर में रुक गया था. तब उस की उम्र 10-11 साल थी. इरफान ने किसी तरह बेटे बहू की मौत के गम को बरदाश्त किया. इमरान उन की एकलौती संतान थी. फुरकान चूंकि उन का एकलौता बेटा था. इसलिए लेदे कर फुरकान का ही उन का एकमात्र सहारा रह गया था. वह पोते की परवरिश करने लगे. उन्होंने उसे कभी मांबाप की कमी महसूस नहीं होने दी.

लेकिन इतना सब करने और अच्छी शिक्षा दिलाने के बावजूद फुरकान ने जवानी में गलत राह पकड़ ली. एक दिन इरफान के मैनेजर सलीम ने जब उन्हें बताया कि फुरकान साहब अय्याशी कर रहे हैं तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. उन्होंने पूछा, ‘‘कैसी अय्याशी?’’

‘‘वह शराब पी कर लड़कियों के साथ घूमते हैं.’’ सलीम ने झिझकते हुए कहा.

यह ऐसी खबर थी जिस ने इरफान को तोड़ कर रख दिया था और जब उन्होंने खुद फुरकान को नशे में देखा तो यह सदमा बरदाश्त नहीं कर पाए और फालिज का शिकार हो गए. उन के शरीर का ऊपरी हिस्सा तो ठीक था, लेकिन निचला बिलकुल बेकार हो गया था.

इरफान खूबसूरती से सजे अपने कमरे में साफसुथरे बिस्तर पर लेटे रहते थे. एक नौकर हर वक्त उन की सेवा में लगा रहता था. उन्हीं के कमरे की दीवार में एक तिजोरी लगी थी, जिस में हमेशा लाखों रुपए नकद रखे रहते थे. इस के अलावा घर के सोनेचांदी के सारे गहने तथा लाखों रुपए के बांड भी उसी तिजोरी में रहते थे.

इरफान फुरकान को समझा ही रहे थे कि उन की बात अनसुनी करते हुए उस ने उन के हाथ से चाबी छीन ली और तिजोरी की ओर बढ़ा. बस उस के बाद फुरकान की ही नहीं, इरफान की भी हत्या हो गई थी.

दोपहर होतेहोते फुरकान और इरफान की हत्या को ले कर तरहतरह के अनुमान लगाए जा रहे थे. हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि उन दादा पोते की हत्या किस ने की.

मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार इरफान की मौत 11 बजे हुई थी. तो फुरकान की हत्या उस के 15 मिनट बाद. घर की नौकरानी का कहना था कि 11 बजे के करीब फुरकान अपने दादा के कमरे में गया था और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था.

15 मिनट बाद उस ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो बुरी तरह से घबरा गई. उस ने जोरजोर से दरवाजे पर दस्तक दी, जब अंदर से दरवाजा नहीं खुला तो उस ने निकट की पुलिस चौकी पर जा कर इस बात की सूचना दी. कुछ पुलिस वाले उसी समय उस के साथ आ गए.  दरवाजा तोड़ा गया तो कमरे में दादापोते की लाशें पड़ी थीं.

इरफान की लाश बिस्तर पर थी, फुरकान की लाश तिजोरी के पास पड़ी थी जबकि उस की पीठ पर गोलियां लगी थीं. तिजोरी खुली थी, जो पूरी तरह से खाली थी.  इरफान के हाथ में एक पिस्तौल फंसा था. उस का चैंबर खाली था. उसी पिस्तौल की गोलियां फुरकान के शरीर में धंसी थीं.

मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार इरफान की मौत हार्ट अटैक से हुई थी. कमरे की खिड़की खुली थी. अनुमान लगाया गया कि कातिल उसी खिड़की से दाखिल हुआ था. फुरकान को गोलियां मार कर उस ने पिस्तौल पहले ही मर चुके इरफान के हाथ में फंसा दी थी. उस के बाद वह तिजोरी साफ कर के भाग गया था. अब पुलिस को पता लगाना था कि यह सब किस ने किया था?

उस घर में दादापोते के अलावा 2 अन्य लोग रहते थे. उन में एक घर की नौकरानी नसरीन थी तो दूसरा इरफान का मैनेजर सलीम. दोनों को ही कोठी में एकएक कमरा मिला हुआ था. पुलिस को शक था, कातिल उन्हीं दोनों में से एक हो सकता था.

मैनेजर सलीम के अनुसार एक दिन पहले फुरकान ने किसी बात को ले कर नसरीन को थप्पड़ मारा था. 2 दिन पहले उस ने नसरीन को कोठी के गेट पर किसी बाहरी आदमी से बातें करते देखा था. सलीम ने बताया कि उस समय उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था. लेकिन घटना के बाद उसे उस पर शक हो रहा है. शायद उसी ने हत्यारे को रास्ता दिखाया होगा.

पुलिस की पूछताछ में नसरीन ने कहा, ‘‘जिस से मैं बात कर रही थी. वह मेरा शौहर था. वह कोई कामधाम नहीं करता. इधरउधर से जुगाड़ कर के किसी तरह जिंदगी गुजार रहा है.’’

‘‘तुम्हीं ने इरफान के कमरे की खिड़की खोली थी, जिस से वह अंदर आया था.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं किया. मैं उस के लिए खिड़की क्यों खोलूंगी?’’

‘‘बकवास मत करो. सचसच बताओ.’’ थानाप्रभारी ने डांटा, ‘‘वरना हम दूसरे ढंग से सच्चाई उगलवाएंगे. सचसच बता, क्या हुआ था?’’

नसरीन रोते हुए बोली, ‘‘साहब, हम गरीबी से तंग आ चुके हैं. मेरे पति ने मुझ से कहा कि मैं उसे साहब के कमरे के बारे में बताऊं.’’

‘‘तुम्हें पता था कि इरफान साहब की तिजोरी में क्याक्या रखा है?’’

‘‘जी साहब, मुझे पता था.’’ नसरीन बोली, ‘‘साहब के कहने पर मैं ने कई बार तिजोरी खोली थी.’’

‘‘क्यों?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब को जब किसी चीज की जरूरत होती थी तो वह मुझ से कह देते थे.’’

‘‘और तुम ने साहब के भरोसे का यह बदला दिया कि फुरकान को जान से मरवा दिया.’’

‘‘मैं नहीं जानती थी कि वह खून भी कर देगा.’’ नसरीन ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा था कि तिजोरी की चाबियां साहब के तकिए के नीचे होती हैं. तुम उन चाबियों से तिजोरी खोल कर जरूरत भर के पैसे निकाल कर खिड़की के रास्ते भाग जाना.’’

‘‘और उस ने भागने से पहले फुरकान को गोलियां मार दीं. शायद फुरकान ने उसे चोरी करते हुए देख लिया था. तू ने अपने शौहर को यह भी बताया था कि फुरकान अपने पास पिस्तौल रखता है?’’

‘‘मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था,’’ नसरीन ने कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि वह पैसे ले कर भाग जाएगा. लेकिन उस ने एक खून कर दिया.’’

‘‘अब यह बता, इस समय वह कहां होगा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘घर में ही होगा और कहां जाएगा?’’ नसरीन ने बताया.

‘‘चल हमारे साथ, बता कहां है तेरा घर?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

नसरीन थानाप्रभारी को ले कर उस के घर पहुंची तो उस का शौहर कहीं भागने के लिए अपना सामान समेट रहा था. पुलिस ने उसे तुरंत पकड़ लिया. इरफान की तिजोरी से चोरी गए रुपए और बांड उस के  पास से बरामद हो गए.’’

नसरीन के शौहर सफदर को थाने लाया गया. थाने में उस ने हंगामा मचा दिया. रोरो कर कहने लगा कि उस ने कोई खून नहीं किया है.

‘‘तो फिर खून किस ने किया है. किस ने फुरकान को गोलियां मारी हैं?’’ थानाप्रभारी ने उसे जोर से डांटा.

‘‘मैं नहीं जानता साहब. मैं जब कमरे में पहुंचा था तो फुरकान साहब तिजोरी के पास पड़े थे. उन की पीठ से खून बह रहा था. तिजोरी खुली पड़ी थी.’’ सफदर ने रोते हुए कहा.

‘‘और तुम तिजोरी का सारा माल ले कर भाग निकले?’’

‘‘जी साहब, मैं ने सिर्फ यही गुनाह किया है. मैं ने चोरी की है, इस कत्ल से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘तो फिर उसे किस ने मारा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मैं क्या बताऊं साहब,’’ सफदर ने जोरजोर से रोते हुए कहा. ‘‘मैं ने सिर्फ चोरी की है. हत्या से मेरा कोई मतलब नहीं है.’’

पुलिस को सफदर की बात पर यकीन नहीं हो रहा था. खूनी वही हो सकता था क्योंकि उस कमरे में उस के अलावा और कोई गया ही नहीं था. नकद और बांड भी उसी के पास से बरामद हुए थे. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अदालत के लिए भी यह सीधासादा मामला था. सब कुछ बिलकुल स्पष्ट था. सफदर की बीवी नसरीन ने उस के कमरे में आने के लिए खिड़की खोल दी थी. वह कमरे में आया और बूढ़े अपाहिज इरफान से जबरदस्ती तिजोरी की चाबी ली और पिस्तौल कब्जे में ले लिया. उस ने तिजोरी खोली, तभी फुरकान कमरे में पहुंच गया.

सफदर ने बौखलाहट में उसे गोलियां मार दीं और पिस्तौल इरफान के हाथ में फंसा कर सारा माल ले कर भाग गया. उसे अंदाजा नहीं था कि इरफान की भी मौत हो चुकी है.

लेकिन यह मुकदमा उस वक्त दिलचस्प बन गया, जब मैडिकल बोर्ड के डाक्टर ने अपना बयान दिया. उस ने अदालत को बताया, ‘‘जनाबे आली, सफदर नाम का आदमी चोरी का तो मुजरिम है, लेकिन कत्ल का नहीं है.’’

‘‘बहुत खूब. तो फिर यह कत्ल किस ने किया?’’ सरकारी वकील ने पूछा.

‘‘खुद मरने वाले इरफान साहब यानी फुरकान के दादा ने.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सरकारी वकील चौंका, ‘‘यह कैसे हो सकता है? आप को मालूम है इरफान साहब की मौत कब हुई थी?’’

‘‘जी जनाब, ठीक 11 बजे उन्हें दिल का तेज दौरा पड़ा था, जिस में वह बच नहीं सके.’’

‘‘और फुरकान को गोलियां किस वक्त मारी गईं?’’

‘‘11 बज कर 15 मिनट पर.’’

‘‘यानी आप कहना चाहते हैं कि इरफान साहब ने अपनी मौत के 15 मिनट बाद अपने पोते का खून कर दिया?’’

‘‘जी जनाब, बिलकुल ऐसा ही हुआ है.’’

जज ने कहा, ‘‘क्या आप को अंदाजा है कि आप अदालत में अपना बयान दर्ज करा रहे हैं?’’

‘‘जी जनाब.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं यह जानता हूं और अपनी इस बात को सिद्ध करना चाहता हूं.’’

अदालत ने डाक्टर को आगे बोलने की इजाजत दे दी तो डाक्टर ने कहा, ‘‘जनाबे आली, पूरी कहानी इस तरह बनती है कि फुरकान अपने बूढ़े और अपाहिज दादा के कमरे में दाखिल होता है और उन से पैसों की मांग करता है. इरफान साहब उस की हरकतों से वैसे ही परेशान थे, इसलिए वह पैसे देने से मना कर देते हैं.’’

डाक्टर ने आगे कहा, ‘‘तब फुरकान उन से तिजोरी की चाबी छीन लेता है और तिजोरी के पास जा कर तिजोरी खोलने लगता है. इरफान साहब को उस की इस हरकत पर इतना गुस्सा आता है कि वह अपने पास रखी पिस्तौल उठा लेते हैं. तभी उन्हें दिमागी दबाव और सदमे की वजह से दिल का खतरनाक दौरा पड़ता है और उन की मौत हो जाती है.’’

‘‘और अपनी मौत के बाद वह फुरकान का खून कर देते हैं.’’ सरकारी वकील ने व्यंग्य से कहा.

‘‘जी जनाब, यह खून 15 मिनट बाद हुआ है.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘उस बीच फुरकान तिजोरी में रखी चीजों का निरीक्षण करता रहा होगा, क्योंकि वह जानता था कि उस कमरे में कोई और नहीं आ सकता. 15 मिनट बाद मृत इरफान साहब ने गोलियां चला कर अपने पोते फुरकान का खून कर दिया. इत्तेफाक से उसी समय बदकिस्मती से सफदर खुली हुई खिड़की से अंदर आया. उस के लिए मैदान साफ था. वह तिजोरी से नकद और बांड ले कर भाग गया.’’

‘‘सवाल फिर वही है कि मौत के बाद खून किस तरह किया गया?’’ सरकारी वकील ने कहा.

‘‘एक कीमियाई अमल जनाबेआली.’’ डाक्टर ने कहा. ‘‘जो मौत के बाद होने लगता है. जिस दिन घटना हुई थी, उस दिन तेज गरमी थी. 11 बजे से पहले लाइट भी चली गई थी. इसलिए जब इरफान साहब की मौत हुई तो तापमान अधिक होने के कारण यह अमल बहुत तेजी से हो गया.’’

‘‘इस अमल में मरने वाले की हड्डियां सिकुड़ने लगती हैं. चूंकि पिस्तौल पहले से ही इरफान साहब के हाथ में दबी थी, इसलिए सिकुड़ती हुई उंगलियों ने पिस्तौल का ट्रिगर दबा दिया. निशाना चूंकि लगा हुआ था, इसलिए गोलियां सीधी फुरकान की पीठ में घुस गईं और वह मर गया. इस घटना की पूरी कहानी यही है.’’

मामला एकदम उलट गया था. डाक्टर की रिपोर्ट और बयान ने पूरा मामला उलट दिया था. नसरीन के शौहर सफदर को सिर्फ चोरी के जुर्म में एक साल की सजा सुनाई गई क्योंकि कत्ल के इल्जाम में उस की बेगुनाही साबित हो चुकी थी.

अदालत में बयान देने वाला डाक्टर अपने फ्लैट में इरफान के मैनेजर सलीम के सामने बैठा कह रहा था, ‘‘देखा, मेरा कमाल.’’

‘‘सच डाक्टर, इसे कहते हैं किस्मत की मेहरबानी.’’ सलीम ने बगल में रखे ब्रीफकेस की ओर इशारा कर के कहा. ‘‘इस में इरफान साहब के करोड़ों रुपए व गहने मौजूद हैं. आप की जानकारी सचमुच मेरे बड़े काम आई.’’

‘‘अब तुम मुझे पूरी बात बताओ.’’ डाक्टर ने कहा.

सलीम मुसकरा कर बोला, ‘‘कोई खास बात नहीं है. मुझे नसरीन ने बता दिया था कि तिजोरी में क्याक्या रखा है. उस ने जानबूझ कर खिड़की खुली छोड़ दी थी. खिड़की उस ने अपने शौहर सफदर के लिए खोली थी, लेकिन उस का फायदा उठाया मैं ने.

‘‘बहरहाल उस दिन मैं खिड़की के रास्ते कमरे में दाखिल होने वाला था कि मुझे फुरकान आता दिखाई दे गया. मैं रुक गया. तभी फुरकान ने इरफान से जबरदस्ती चाबी छीनी और तिजोरी की ओर बढ़ा. इधर फुरकान ने तिजोरी खोली और उधर इरफान साहब ने पिस्तौल निकाल कर उसे निशाने पर ले लिया. यह सारा घटनाक्रम मेरी आंखों के सामने हो रहा था. मैं ने इरफान साहब को दिल का तेज दौरा पड़ते और मरते अपनी आंखों से देखा. लेकिन मेरा खयाल था कि वह सिर्फ बेहोश हुए थे.

‘‘बहरहाल, यह मेरे लिए बहुत बढि़या मौका था. मैं तुरंत कमरे में दाखिल हुआ. उस वक्त फुरकान तिजोरी खोले उस में रखी दौलत को देख रहा था. मैं ने धीरे से इरफान साहब की अंगुलियों से पिस्तौल निकाली और फुरकान को गोलियां मार कर पिस्तौल फिर इरफान साहब की अंगुलियों में फंसा दी. आप की बताई जानकारी मेरे काम आ गई. इस के बाद मैं ने बांड और कुछ रुपए छोड़ कर बाकी सब अपने ब्रीफकेस में रखा और खामोशी से खिड़की से बाहर आ गया. अब यह सब कुछ हमारा है. ईमानदारी से हम इसे आधाआधा बांट लेंगे, लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई.’’

‘‘वो क्या?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘जब यह साबित हो चुका था कि फुरकान का खून नसरीन के शौहर सफदर ने किया है, तो फिर आप ने इस कीमियाई अमल की कहानी द्वारा उसे बचा क्यों लिया?’’

‘‘इसलिए कि मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर मसीहा होता है, जल्लाद नहीं. शुरूशुरू में तो मैं भी तुम्हारे साथ था लेकिन जब मैं ने नसरीन और सफदर की आंखों में आंसू देखे तो मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ और उसे मैडिकल ग्राउंड पर बचा लिया. उस के बाद मैं असली कहानी की तलाश में था कि आखिर हुआ क्या था. खुदा का शुक्र है कि तुम ने अपनी जुबान से अपना जुर्म कबूल कर लिया.’’

सलीम ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तो अब आप मुझ से खेल खेल रहे हैं. लेकिन आप के पास क्या सुबूत है कि मैं ने आप से यह सब बातें कहीं थीं?’’

‘‘सुबूत यह है कि तुम्हारी कही हर बात मैं ने रिकौर्ड कर ली है. यही नहीं, दूसरे कमरे में बैठे इंसपेक्टर ने भी तुम्हारी एकएक बात सुन ली है.’’ डाक्टर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘याद रखो, बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है, अच्छा नहीं.’’

लूट फार एडवेंचर – भाग 3

आगे की योजना भी चौंकाने वाली

“बैंक में घुसते ही सब से पहले मैं ऐक्शन में आऊंगा. रेसलिंग में सीखे हुए दांव का प्रयोग करते हुए मैं पहले से अलसाए हुए ड्यूटी गार्ड को जमीन पर गिरा दूंगा. जमीन पर गिरते ही मैं गार्ड की राइफल अपने कब्जे में ले लूंगा और उस का लौक खोल कर उसी पर तान दूंगा. इस दौरान मैं अपने ताकतवर पैरों के पंजे से उस का गला दबा दूंगा ताकि वह चिल्ला न सके.

“इतना काम सफल होते ही मगन ऐक्शन में आ जाएगा और बैंक मैनेजर के केबिन में घुस कर उसे 2-4 चांटे मार कर अपने नियंत्रण में कर लेगा. 2 अहम व्यक्तियों को निस्तेज होते देख बचे हुए लोग डर जाएंगे और हमारी कठपुतली की तरह काम करने लगेंगे.

“जैसे ही मगन मैनेजर को अपने कंट्रोल में ले लेगा, तभी छगन का ऐक्शन शुरू होगा. उस के पास एयरगन होगी. इस एयरगन को लहराते हुए वह सभी कर्मचारियों को अपनी अपनी सीट छोडऩे का आदेश इस निर्देश के साथ देगा कि कर्मचारी अपने मोबाइल अपने सामने वाली टेबल पर ही रख दें.

“छगन यह धमकी भी देगा कि यदि उस के आदेश को नहीं माना गया तो गार्ड को उसी की रायफल से शूट कर दिया जाएगा. बैंक में मौजूद सभी ग्राहकों तथा स्टाफ को बैंक मैनेजर के केबिन में बंद कर दिया जाएगा. मैं गार्ड के गले पर लगातार दबाव बढ़ाता रहूंगा. गार्ड की छटपटाहट सभी को भयभीत रखेगी. पब्लिक का यह डर ही हमारी जीत का आधार होगा.

“चूंकि बैंक बंद होने का समय हो रहा होगा, अत: हम उस के चैनल को बंद कर देंगे तो भी कोई शक नहीं करेगा.

“इसी समय मगन बैंक मैनेजर को स्ट्रांगरूम ले जाया जाएगा और उसे एक ही बार में खोलने की धमकी देगा. दूसरा प्रयास मतलब गार्ड की मौत. इन स्पष्ट शब्दों का प्रयोग मैनेजर से स्ट्रांगरूम खुलवाते समय करना होगा. अगर उस ने पासवर्ड डालने में चालाकी की तो सीधे हैड औफिस में अलार्म बजेगा जो हमारी मौत का अलार्म होगा. मतलब हर चीज पूरी सावधानी और ऐहतियात के साथ होनी चाहिए.” जगन ने प्लान विस्तार के साथ समझाया.

“सही है,” छगन बोला.

“स्ट्रांगरूम में घुसते ही हम अपने साथ जो बैग ले कर जाएंगे, उन में से एक बैग उपलब्ध नोटों से भर लेंगे. यहां पर यह ध्यान रखना कि हमें ज्यादा से ज्यादा बड़े नोट ही लेने हैं. साथ ही इस बात पर भी कंसन्ट्रेट करना है कि ये सारी प्रक्रिया जल्दी से जल्दी समाप्त हो. क्योंकि हो सकता है कि स्ट्रांगरूम का दरवाजा किसी टाइमर से औपरेटेड हो और एक निश्चित समय के बाद सेफ्टी अलार्म बजता हो.” जगन ने सब को समझाया.

“बिलकुल ठीक. जो सावधानियां हमें रखनी हैं उन के बारे में पहले से ही सचेत रहें तो बेहतर है.” मगन जगन का समर्थन करते हुए बोला.

“हमारा काम जैसे ही पूरा होगा, गार्ड समेत सभी लोगों को मैनेजर के केबिन में बंद करना है. उस केबिन की चाबी हमें बैंक में ही मिलेगी. सभी को बंद करने के बाद बैंक में लगे चैनल गेट को बंद करना है और उस में वह ताला लगाना है, जो हम लोग साथ ले कर जाएंगे.” जगन ने ताला साथ ले जाने का कारण स्पष्ट किया.

“जब हम सब कर्मचारियों को मैनेजर के केबिन में बंद कर ही रहे हैं तो दूसरा ताला लगाने का क्या औचित्य?” छगन ने पूछा.

वारदात के बाद की भी कर ली प्लानिंग

“हमारा यह काम पुलिस व अन्य लोगों को भ्रमित करेगा. इतना तो निश्चित है कि हमारे निकलने बाद कोई न कोई सेफ्टी अलार्म का बटन अवश्य दबाएगा. चूंकि सभी लोग मैनेजर के केबिन में बंद होंगे, अत: बाहर चैनल से देखने पर ताला दिखाई देगा. और इस कारण से सब यही समझेंगे कि लूज कांटेक्ट के कारण अलार्म बज गया है.

“संभव है कि कुछ लोग मैनेजर के केबिन में से सहायता के लिए चिल्लाएं और लोग उन की आवाज को सुन भी लें, मगर चैनल पर ताला लगा होने के कारण वह आगे ही नहीं आ पाएंगे. बाहरी लोगों की भीड़ कभी भी पुलिस के आए बिना ताला तोडऩे का साहस नहीं करेगी, क्योंकि ऐसा करने पर ताले की सतह पर मौजूद हमारे फिंगरप्रिंट मिट जाने का डर होगा.

“पुलिस के आने के बाद भी ताला तोडऩे और मौके का मुआयना, बयान कैमरे की रिकौर्डिंग चैक करने में कम से कम एक घंटा तो लग ही जाएगा. इतने समय में हम बाकी 2 बैंकों की घटनाओं को भी अंजाम तक पहुंचा चुके होंगे.” जगन ने पूरी योजना का खुलासा किया.

“बहुत बढिय़ा जगन. परफेक्ट प्लानिंग एकदम परफेक्ट. सारा कारनामा टाइम मैनेजमेंट पर ही निर्भर करेगा.” मगन बोला.

“दूसरी सावधानी यह रखनी है कि हमें लूट के लिए ऐसे बैंकों का चयन करना है, जहां पर कम से कम 20 लाख का मिनिमम बैलेंस तो रहता ही हो. रहमत की बीवी को मायके जाने में अभी 25-30 दिनों का समय तो है ही. तब तक हमें ऐसी ब्रांच खोज कर रखनी ही है. मेरे विचार से 20 लाख रुपया कोई सा भी बिजनैस शुरू करने के लिए पर्याप्त है.” जगन बोला.

“हां, बिजनैस कि शुरुआत के लिए इतना पैसा काफी होगा,” छगन बोला.

“लेकिन हम पैसों का बंटवारा करेंगे कैसे?” मगन ने पूछा.

“देखो, इन पैसों का बंटवारा ऐसे नहीं होगा. हम 3 लोग 3 बैंक लूटेंगे और 3 ही बैग होंगे. हम 3 पर्चियों पर नाम लिख कर किसी बच्चे से परची उठवा कर क्रम निर्धारित कर लेंगे. जिस की किस्मत में जितना होगा, उसे उतना मिल जाएगा.” जगन बोला.

“हां, यह भी ठीक रहेगा. वैसे भी लूट की राशि का पता तो हमें न्यूजपेपर और चैनल से चल ही जायगा,” मगन बोला.

“इन तीनों घटनाओं का अंत बड़ा ही दिलचस्प और चौंकाने वाला होगा और लोग जब तक इस घटनाक्रम को भुलाने वाले होंगे, तब तक हम कोई और धमाका अवश्य करेंगे. मगर यह धमाका क्या होगा, यह अभी से निर्धारित नहीं किया जा सकता.

“जैसा कि मैं ने पहले भी कहा है घटना करने से कुछ समय पहले हम अपनी मौजूदा मोबाइल को सिम समेत बंद कर के किसी गहरे पानी में फेंक देंगे.

“घटना के बाद हम तीनों अलग अलग शहर में अपनीअपनी सुविधा के अनुसार चलें जाएंगे. चूंकि हमें एकदूसरे के पते, ठिकाने व मोबाइल नंबर्स के बारे में कुछ भी पता नहीं होगा, अत: यदि किसी कारण से कोई एक पकड़ में आ भी जाता है तो बचे हुए 2 तो सुरक्षित रहेंगे ही न. वैसे प्लान इतना सेफ है कि हम में से कोई भी तब तक नहीं पकड़ा जाएगा, जब तक कि हम खुद आगे हो कर गलती न करें.

हमें इस लूट का हिसाब किताब अवश्य ही करना है. अत: घटना वाली तारीख से ही ठीक 7 साल बाद उसी तारीख को हमें शहर के प्रसिद्ध गेलार्ड कैफे में शाम को 7 बजे मिलना है. यदि किसी को कुछ कमीबेशी रह गई होगी तो उस की क्षतिपूर्ति हम लोग आपस में मिल कर कर लेंगे और इस सफलता का एक ग्रैंड सेलिब्रेशन तो उस समय होगा ही.” जगन ने घटना के बाद का पूरा प्लान कारणों के साथ समझा दिया.

“तो क्या इन 7 सालों तक हम एकदूसरे के संपर्क में बिलकुल भी नहीं रहेंगे?” छगन ने आश्चर्य से पूछा.

“हां, बिलकुल भी नहीं.” जगन शब्दों पर जोर देता हुआ बोला, “मुझे विश्वास है 7 सालों के बाद जब हम मिलेंगे तो हमारा व्यक्तित्व आज के व्यक्तित्व से एक दम जुदा होगा.”

“मैं भी ऐसा विश्वास करता हूं. नया व्यक्तित्व, नया परिचय बस नाम वही पुराना.” मगन भी उत्साहित हो कर बोला.

एक लाश ने लिया प्रतिशोध – भाग 3

स्लेड जानता था कि स्पेल्डिंग उस की बात पर ध्यान नहीं देगा, इसलिए उस ने जेब से वह रस्सी निकाल कर अपने हाथ स्पेल्डिंग की सीट के पीछे की ओर बढ़ा दिए.

‘‘नहीं, मैं यह नहीं कर सकता. मेरा फर्ज अपने मुवक्किल का हित देखना है. मैं मजबूर हूं. तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक वकील की हैसियत से मेरा फर्ज क्या है?’’ स्पेल्डिंग ने कहा.

‘‘हां, जानता हूं. मगर मैं सिर्फ 3 महीने की मोहलत चाहता हूं.’’ स्लेड ने कहा.

‘‘नहीं, मैं यह नहीं कर सकता. मेरे खयाल से इस मसले पर बात करने से कोई फायदा नहीं है. बेहतर होगा कि मैं आप की कार से उतर कर पैदल ही चला जाऊं.’’

कह कर स्पेल्डिंग ने कार के दरवाजे के हैंडिल पर जैसे ही हाथ रखा, तभी स्लेड ने रस्सी का फंदा स्पेल्डिंग की गरदन में डाल दिया. स्पेल्डिंग कुछ समझ पाता, उस के पहले ही गले में फंदा कस गया. उस का दम घुटने लगा.

भारतीय ठगों की उस किताब में जो गला घोंटने का तरीका बताया गया था, वह कितना अचूक था. स्लेड की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस की योजना का पहला चरण कितनी आसानी से पूरा हो गया था.  अब स्पेल्डिंग की लाश को ठिकाने लगाना था. इस के लिए उस ने पहले से ही योजना बना रखी थी.

उस ने स्पेल्डिंग की लाश को सीट पर लिटा कर कार स्टार्ट की और तेज रफ्तार से समुद्र की ओर चल पड़ा. ज्वार आने में अब पौन घंटे बाकी थे. जबकि स्लेड को समुद्र तक पहुंचने के लिए उस बर्फ और तेज हवा में 10 मील की दूरी तय करनी थी.

उस खौफनाक रात में कार भागी जा रही थी. सड़क पर कहीं भी कोई नजर नहीं आ रहा था. रास्ता बिलकुल साफ था. स्लेड को रास्ते का पता था. उस सड़क पर वह न जाने कितनी बार आयागया था.

आखिर स्लेड समुद्र के किनारे पहुंच गया. अब उस के आगे कार नहीं जा सकती थी. चारों ओर गहरा अंधकार छाया हुआ था. तीखी हवा चल रही थी. बर्फ के गाले उड़ रहे थे. सड़क से 2 मील दूर काला सागर लहरा रहा था. उस की लहरों की गूंज यहां तक रही थी.

स्लेड कार से नीचे उतरा और लाश को खींच कर एकदम गेट के पास कर लिया. लाश की जेबों में लोहे के टुकड़े भर कर उस की कमर से जंजीर लपेट दी. यह काम उस ने इसलिए किया था, जिस से उस के वजन से लाश समुद्र की तलहटी में बैठ जाए और उसे मछलियां खा जाएं.

अब स्लेड को लाश उठा कर समुद्र के किनारे तक ले जाना था. निश्चय ही यह एक मुश्किल काम था. वह कोई हट्टाकट्टा आदमी नहीं था. दुबलापतला साधारण शरीर वाला था. उस की जवानी भी उतार पर थी. एक क्षण के लिए उसे लगा कि शायद वह लाश को समुद्र तक नहीं ले जा पाएगा.

लेकिन वह हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस ने लाश को उठा कर कंधे पर लाद लिया. लाश काफी भारी थी. फिर भी स्लेड तेजी से चल पड़ा. उस ने सुविधा के लिए लाश की बांहें गले में तो पांवों को कमर में लपेट लिया. अभी लाश की लचक कायम थी. एक तरह से वह स्पेल्डिंग की लाश को पीठ पर लादे था. लाश की बांहें स्लेड की गरदन में लिपटी थीं तो पैर कमर को कसे हुए थे.

लाश के वजन से स्लेड के कदम लड़खड़ा रहे थे. फिर भी वह हिम्मत कर के बढ़ता रहा. अब ज्वार आने में ज्यादा देर नहीं थी. वह हांफ रहा था, लेकिन रुक कर वक्त बिलकुल बरबाद नहीं करना चाहता था. उसे ज्वार आने के पहले ही पानी तक पहुंच कर लाश को फेंक देना था.

उस की आंखों में चमक आ गई. आखिर वह अपनी मंजिल पाने वाला था. अंधकार में उसे एक उजली सी लकीर नजर आई. वह लहरों के झाग की थी.

स्लेड के पांव समुद्र के पानी में पड़े तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह थोड़ा और आगे बढ़ा. पानी उस के घुटनों तक आ गया तो वह रुक गया और उस ने राहत की सांस ली. अब उसे लाश को कंधे से उतार कर पानी में लुढ़का देना था. वह लाश को पानी में लुढ़काने के लिए झुका. लेकिन यह क्या? लाश उस के कंधे से गिरी ही नहीं. उस ने लाश की बाहों को खींचा. लेकिन वे टस से मस न हुईं.

वे अकड़ चुकी थीं. उन का लचीलापन खत्म हो चुका था. उस ने जोर लगा कर कमर को कसे टांगों को खींचा. लेकिन टांगें भी टस से मस न हुईं. वे भी अकड़ गई थीं. यह देख कर वह डर के मारे पागल हो गया. पूरी ताकत लगा कर लाश की गिरफ्त से छूटने की कोशिश की. लेकिन लाश की गिरफ्त जरा भी ढीली नहीं पड़ी.

ऐसा लग रहा था, जैसे लाश ने एक जिंदा शक्तिशाली युवक की तरह उसे पकड़ लिया है. वह लाश की पकड़ को सारी कोशिशों के बावजूद नहीं छुड़ा सका. अब वह क्या करे?

तभी ज्वार आ गया. बड़ी बड़ी लहरें चिंघाड़ती हुई आने लगीं. अब वहां से भागने के अलावा स्लेड के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था. उस ने बौखला कर एक बार फिर लाश से पिंड छुड़ाने की कोशिश की. पर कोई फायदा नहीं हुआ. लाश के हाथपांव उसे संड़सी की तरह जकड़े हुए थे.

निढाल और निराश हो कर स्लेड ने पानी से निकलने की कोशिश की. लेकिन अब देर हो चुकी थी. लहरों का ऐसा रेला आया कि वह संभल नहीं सका और उस के धक्के से गिर पड़ा. स्लेड ने उठने की कोशिश की, लेकिन उठ नहीं सका. उस का दम घुटने लगा, फिर बेहोश हो गया. लाश उसे उसी तरह दबोचे रही.

ज्वार उतर गया तो समुद्र तट पर 2 लाशें एकदूसरे से लिपटी हुई मिलीं. उन की शिनाख्त होते देर नहीं लगी. उन में एक लाश स्लेड की थी और दूसरी स्पेल्डिंग की. दोनों लाशों को उसी स्थिति में पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. डा. मैथ्यू शव परीक्षण गृह में आए तो लाशों को इस तरह लिपटी देख कर हैरान रह गए.

उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखा, ‘स्लेड ने स्पेल्डिंग को गरदन दबा कर मार दिया था. स्पेल्डिंग की लाश को ठिकाने लगाने की गरज से कंधे पर उठा कर उस के हाथ गरदन में तो पैर कमर में लपेट लिए थे. स्लेड लाश समुद्र में फेंकने गया था. लेकिन लाश की पकड़ से न छूट पाने की वजह से वह पानी में गिर गया. सांस की नली में पानी भर जाने से वह भी मर गया.’