इज्जत के कबाड़ की गोली : क्यों पड़ी कामिनी के परिवार पर भारी

11सितंबर, 2020 की बात है. प्रशांत के घर उस के ससुर विनोद गौतम, उन का छोटा भाई महावीर सिंह और

बेटा रविकांत गौतम आए हुए थे. प्रशांत और उस के घर वालों ने उन की खूब खातिरदारी की. दरअसल, प्रशांत कुमार ने हाल ही में विनोद गौतम की बेटी कामिनी के साथ शादी की थी.

रात का खाना खाने के बाद प्रशांत के पिता रामऔतार अपने इन नए रिश्तेदारों के साथ बातचीत कर रहे थे. तभी विनोद गौतम के कहने पर रामऔतार ने बेटे प्रशांत और बहू कामिनी को बुलाया. उन दोनों को देख विनोद गौतम आपे से बाहर हो गया और उस ने दोनों को गोली मार दी. कामिनी लहूलुहान हो कर फर्श पर गिर गए. गोलियां चलते ही घर में अफरातफरी का माहौल हो गया. घर के लोगों ने रोनापीटना शुरू कर दिया.

रात 10 बजे गोलियों की आवाज गूंजी तो आसपास के लोगों ने सुनी. गांव वाले रामऔतार सिंह के घर की तरफ दौड़े. कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया, जो गोली चल गई.  लोग जब घर में पहुंचे तो वहां की स्थिति दिमाग को सुन्न कर देने वाली थी.

लोगों के आने से पहले ही विनोद गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग चुके थे. घर में खून ही खून फैला था. रामऔतार के बेटे प्रशांत और बहू कामिनी फर्श पर पड़े तड़प रहे थे. उन दोनों को देख यह बात सहज ही समझ आ रही थी कि उन दोनों को गोलियां लगी हैं.

इस की सूचना थाना टांडा को दे दी गई. थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने घायल कामिनी और प्रशांत को अपनी गाड़ी में डाला और इलाज के लिए रामपुर के जिला अस्पताल ले गए.

इस दौरान रामऔतार ने थानाप्रभारी को बता दिया था कि दोनों को गोली कामिनी के पिता विनोद गौतम ने मारी थी. वजह यह कि कुछ दिन पहले कामिनी ने अपने घर वालों को बिना बताए उन के बेटे प्रशांत से कोर्टमैरिज की थी.

थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट विनोद गौतम को अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि वह बहुजन समाज पार्टी का ऊधमसिंह नगर जिले का जिला अध्यक्ष था. नेता होने की वजह से आए दिन अखबारों में उस का नाम आता रहता था. विनोद कुमार गौतम मामूली इंसान नहीं था. राजनीति में उस की ऊंची पहुंच थी.

थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही रामपुर के एसपी शगुन गौतम जिला अस्पताल पहुंच गए. एसपी साहब ने दोनों घायलों का इलाज करने वाले डाक्टरों से बातचीत की. डाक्टरों ने बताया कि दोनों की हालत गंभीर है.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए एसपी गौतम ने इस की सूचना आईजी रमित शर्मा को दे दी. उन्होंने एसपी गौतम को स्पष्ट निर्देश दिए कि हमलावर चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, उस के खिलाफ तुरंत कड़ी काररवाई की जाए.

उधर प्रशांत कुमार और कामिनी की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने दोनों को मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल रेफर कर दिया. कौसमौस अस्पताल के डा. अनुराग अग्रवाल के नेतृत्व में डाक्टरों की एक टीम ने दोनों घायलों का इलाज शुरू कर दिया. प्रशांत को 2 गोलियां लगी थीं, जो उस के शरीर में फंसी हुई थीं. डाक्टरों की टीम ने उस के शरीर से दोनों गोलियां सफलतापूर्वक निकाल दीं.

एसपी शगुन कुमार गौतम ने आईजी साहब के निर्देश पर इस मामले को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट और अजीमनगर के थानाप्रभारी सुभाष मावी को शामिल किया.

पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. सभी आरोपी काशीपुर के निकटवर्ती गांव पैगा के रहने वाले थे. पुलिस टीम ने 13 सितंबर, 2020 को उन के घर दबिश दे कर तीनों अभियुक्तों विनोद गौतम, उस के छोटे भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत गौतम को गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने विनोद गौतम की निशानदेही पर उस की लाइसैंसी पिस्टल भी बरामद कर ली, जिस से जानलेवा हमला किया था.

तीनों से व्यापक पूछताछ की गई. पुलिस पूछताछ के बाद इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर टिकी थी.

रामपुर जिले का एक गांव है सैदनगर. रामऔतार सिंह अपने 5 बच्चों के साथ इसी गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे और 3 बेटियां थीं. प्रशांत कुमार उन का सब से बड़ा बेटा था. उस के चाचा कुंवरपाल सिंह की ससुराल काशीपुर में थी.

प्रशांत काशीपुर में रह कर पढ़ाई कर रहा था. काशीपुर में ही एक शादी समारोह में प्रशांत की मुलाकात कामिनी से हुई. कामिनी काशीपुर के गांव पैगा के रहने वाले विनोद गौतम की बेटी थी.

विनोद गौतम के 4 बेटियां और एक बेटा था, जिस में कामिनी सब से बड़ी थी. कामिनी भी काशीपुर के एक कालेज से पढ़ाई कर रही थी. कामिनी और प्रशांत दूर के रिश्तेदार थे. शादी समारोह में दोनों एकदूसरे को देख कर बहुत प्रभावित हुए. दोनों में आपस में काफी बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी  दे दिए. यह करीब 2 साल पहले की बात है.

इस के बाद दोनों फोन पर बातचीत करने लगे. जब भी खाली होते, दोनों के बीच खूब बातें होतीं. धीरेधीरे बातों का दायरा बढ़ता चला गया और उन के दिलों में प्यार के अंकुर फूट निकले. चाहतों की उड़ान में दोनों यह भी भूल गए कि वे आपस में रिश्तेदार हैं.

प्रशांत चाहता था कि वह आईएएस  अफसर बने, इसलिए उस ने ठाकुरद्वारा कस्बे की नालंदा आईएएस अकैडमी में कोचिंग करनी शुरू कर दी. उधर कामिनी काशीपुर के एक कालेज से बीए कर रही थी.

इसी दौरान प्रशांत का चयन उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर हो गया. प्रशांत ने सोचा कि नौकरी करते हुए अपनी सिविल सर्विस की तैयारी जारी रखेगा. पुलिस में चयन हो जाने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए मेरठ भेज दिया गया.

प्रशांत की नौकरी लग जाने के बाद कामिनी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच पहले की तरह ही बातचीत चलती रही. इस बातचीत में तय हुआ कि प्रशांत की पुलिस ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद दोनों शादी कर लेंगे.

कामिनी ने प्रशांत को बताया कि उस के पिता दबंग प्रवृत्ति के हैं, इसलिए यह शादी हरगिज नहीं होने देंगे. इस पर दोनों तय किया कि घर वालों को बिना बताए कोर्टमैरिज कर लेंगे.

ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद प्रशांत की पहली पोस्टिंग बरेली स्थित पीएसी की 8वीं बटालियन में हो गई. 28 अगस्त, 2020 को प्रशांत छुट्टी ले कर अपने घर आया. इसी दौरान प्रशांत और कामिनी ने रामपुर की कोर्ट में शादी कर ली.

घटना से 4 दिन पहले की बात है, कामिनी अपने घर वालों को बिना बताए प्रशांत के घर यानी अपनी ससुराल पहुंच गई. घर से कामिनी के अचानक गायब हो जाने के बाद घर वाले परेशान हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि कामिनी अचानक कहां गायब हो गई. उन्होंने उसे अपने स्तर पर ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

जवान बेटी के घर से गायब हो जाने पर जो उस के मातापिता पर गुजरती है, उसे भुक्तभोगी ही समझ सकता है. विनोद गौतम का भी बुरा हाल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि बेटी को कहां ढूंढे.

विनोद गौतम के एक रिश्तेदार सैदनगर में रहते थे. विनोद गौतम ने अपने रिश्तेदार से कामिनी के गायब होने के बारे में बात की. इस पर रिश्तेदार ने बताया कि कामिनी तो यहां प्रशांत के घर आई हुई है. साथ ही यह भी बता दिया कि शायद कामिनी और प्रशांत ने शादी कर ली है.

यह सुन कर विनोद गौतम के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वह दबंग किस्म का व्यक्ति था. राजनीति में भी उस का काफी प्रभाव था. जब लोगों को यह बात पता चलेगी तो उस की समाज में क्या इज्जत रह जाएगी, यह सोचसोच कर वह परेशान था.

काफी सोचविचार के बाद विनोद गौतम ने 9 सितंबर को प्रशांत कुमार के पिता रामऔतार सिंह को फोन किया. उस ने रामऔतार से अपनी बेटी कामिनी के बारे में पूछा. उन्होंने बता दिया कि प्रशांत और कामिनी ने कोर्ट में शादी कर ली है. इस की खबर उन्हें भी शादी के बाद ही मिली.

यह सुन कर गौतम कुछ ज्यादा ही परेशान हो गया. उस ने गंभीर लहजे में रामऔतार से कहा कि तुम्हारे लड़के ने अच्छा नहीं किया. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. कम से कम रिश्तेदारी का तो लिहाज रखता. इस पर रामऔतार ने कहा कि यह जानकारी उन्हें बाद में मिली. अगर पहले पता होता तो वह उसे समझाते भी. वैसे भी दोनों बालिग हैं, इस में हम क्या कर सकते हैं. विनोद कुमार गौतम खून का घूंट पी कर रह गया.

उधर ससुराल में कामिनी खुश थी. ऐसे में विनोद गौतम की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करे, क्योंकि बात उस की इज्जत से जुड़ी थी. काफी सोचविचार के बाद 9 सितंबर, 2020 को गौतम ने प्रशांत के पिता रामऔतार को फोन कर के कहा कि जो हो गया उसे छोड़ो.

हम चाहते हैं कि दोनों की शादी सामाजिक रीतिरिवाज से कर दी जाए. इस सिलसिले में बात करने के लिए हम सैदनगर आ रहे हैं. अपने साथ गांव के कुछ लोगों को भी लाएंगे, आप भी गांव के कुछ संभ्रांत लोगों को इकट्ठा कर लेना,  फिर इस बारे में बातचीत कर ली जाएगी.

विनोद गौतम अपने कई परिचितों और कुछ करीबियों को साथ ले कर तय समय पर सैदनगर पहुंच गया. उधर रामऔतार ने भी गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा कर लिया था. सब लोग साथ बैठे और पंचायत शुरू हो गई.

पंचायत में विनोद गौतम ने अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए कहा कि देखो गांव और समाज में हमारी बहुत बदनामी हो रही है. आप से अनुरोध है कि आप मेरी बेटी कामिनी को मेरे साथ घर भेज दें. इस पर रामऔतार सिंह ने साफ मना करते हुए कहा कि वह अपनी बहू को अभी नहीं भेजेंगे. फलस्वरूप विनोद गौतम मुंह लटका कर लौट गया.

10 सितंबर, 2020 को भी विनोद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर फिर सैदनगर पहुंचा. इस बार भी उस ने कामिनी को साथ भेजने की बात कही, लेकिन कामिनी ने पिता से मना कर दिया कि वह अभी उन के साथ नहीं जाएगी.

विनोद गौतम को यह उम्मीद नहीं थी कि बेटी इतनी बदल जाएगी. वह उसे जबरदस्ती तो घर ले जा नहीं सकता था, इसलिए उस ने कामिनी को समझाने की काफी कोशिश की, पर कामिनी नहीं मानी. रामऔतार सिंह ने भी कह दिया कि जब बेटी जाने से मना कर रही है तो आप उसे फिर कभी ले जाना. इस बार भी विनोद गौतम को खाली हाथ लौटना पड़ा.

लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था. वह चाहता था कि किसी भी तरह एक बार कामिनी उस के साथ घर पहुंच जाए, इस के बाद क्या करना है, वह तय करेगा. लिहाजा वह बेटी को घर लाने के उपाय सोचने लगा.

11 सितंबर, 2020 को भी विनोद गौतम अपने भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत के साथ फिर सैदनगर पहुंचा. चूंकि विनोद गौतम रामऔतार का नजदीकी रिश्तेदार बन चुका था, लिहाजा उन्होंने उन सब की खातिरदारी की.

रात का खाना खाने के बाद गौतम ने उन से कहा कि मेरी बात पर विश्वास करो. मैं कामिनी को घर ले जाना चाहता हूं और इस के बाद दोनों की शादी धूमधाम से करूंगा. अगर कामिनी घर चली जाएगी तो कम से कम समाज में मेरी इज्जत तो बनी रहेगी.

इस बार रामऔतार ने कहा कि हमारी तरफ से कोई रोक नहीं है. हम अपनी बहू को भेजने से मना नहीं कर रहे, पर आप सीधे उस से बात कर लें तो ज्यादा अच्छा है. अगर वह जाना चाहती है तो हमें कोई एतराज नहीं होगा. रामऔतार ने बात करने के लिए बहू कामिनी को कमरे में बुलाया.

कामिनी पति प्रशांत के साथ कमरे में आई तो वहां पहुंचते ही सब से पहले उस ने वहां बैठे अपने ससुर रामऔतार के पैर छुए. प्रशांत का चेहरा देखते ही गौतम का खून खौल उठा, लेकिन उस समय उस ने खुद पर कंट्रोल रखा.

विनोद कुमार गौतम ने कामिनी से बात की और उस से घर चलने को कहा. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. पिता की बातों पर कामिनी का दिल पसीज भी गया. लेकिन उस ने कहा कि पापा अब तो रात ज्यादा हो गई है, सुबह मैं आप के साथ चलूंगी.

लेकिन गौतम अपनी जिद पर अड़ा हुआ था. वह कामिनी पर उसी समय साथ चलने के लिए दबाव डाल रहा था, पर कामिनी पिता के साथ रात में जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार कह रही थी कि अभी नहीं, सुबह चलेंगे.

प्रशांत और कामिनी विनोद गौतम के सामने खड़े थे. प्रशांत का चेहरा देख कर गौतम का धैर्य जवाब दे गया. उस के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि यह सब प्रशांत की वजह से ही हो रहा है, इसी के कारण समाज में उस की नाक कटी है, बदनामी हो रही है.

लिहाजा गुस्से में आगबबूला हुए विनोद गौतम ने अपनी अंटी से लाइसैंसी पिस्तौल निकाली और प्रशांत पर निशाना साधते हुए कई फायर किए. इन में से 2 गोलियां प्रशांत के लगीं और एक गोली कामिनी को. गोली लगते ही प्रशांत और कामिनी फर्श पर गिर पड़े.

कुछ ही पलों में फर्श पर खून फैल गया. अचानक मची अफरातफरी में मौके का फायदा उठा कर विनोद गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग गए. जाते वक्त वे अपनी वैगनआर कार नंबर यूके06 पी7349 वहीं छोड़ गए.

बेटा और बहू को लहूलुहान हालत में देख कर रामऔतार के घर में चीखपुकार मचनी शुरू हो गई. उधर गोलियां चलने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले भी रामऔतार के घर पहुंच गए. उसी दौरान रामऔतार ने इस की सूचना थाना टांडा में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी माधोसिंह बिष्ट कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए और काररवाई शुरू की.

तीनों आरोपियों विनोद कुमार गौतम, महावीर सिंह और रविकांत से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

विनोद कुमार गौतम के जेल जाने के बाद बसपा हाईकमान ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया. इस के अलावा जिला प्रशासन ने  उस के लाइसैंसी पिस्टल का लाइसैंस निरस्त करने की काररवाई शुरू कर दी.

कथा लिखने तक गंभीर रूप से घायल प्रशांत कुमार और उस की पत्नी कामिनी का मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सिर्फ एक भूल : भूल का पश्चाताप

कई बार घंटी बजाने पर भी न दरवाजा खुला, न अंदर कोई आहट हुई. अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन ऐसा ही हो रहा था. अबकी बार वेटर ने दरवाजा खटखटाया, एक नहीं कई बार. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

वेटर रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दुर्गेश पटेल के पास पहुंचा. वह रिसैप्शनिस्ट से बातें कर रहे थे. वेटर ने तेजी से आ कर कहा, ‘‘सर, कमरा नंबर 303 का दरवाजा नहीं खुल रहा. मैं ने घंटी बजाई, दरवाजा थपथपाया, पर कोई नतीजा नहीं निकला.’’

‘‘कमरे में कोई है भी या यूं ही…’’

मैनेजर ने कहा तो वेटर की जगह रिसैप्शनिस्ट ने जवाब दिया, ‘‘हां, मैडम हैं कमरे में. उन का साथी बाहर गया है. कह रहा था थोड़ी देर में आता हूं, पर आया नहीं. मैं उसे फोन करता हूं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने विजिटर्स रजिस्टर खोल कर कमरा नंबर 303 के कस्टमर का फोन नंबर देखा और उसे फोन मिला दिया. लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. इस से वह घबराया. उस ने यह बात दुर्गेश पटेल को बताई. साथ ही यह भी कि चायनाश्ते के बरतन अंदर हैं. वेटर को मैं ने ही भेजा था.

बात चिंता की थी. वेटर, रिसैप्शनिस्ट और मैनेजर दुर्गेश पटेल तुरंत खड़े हो गए. कमरा नंबर 303 के सामने पहुंच कर मैनेजर दुर्गेश पटेल ने भी वही किया, जो वेटर कर चुका था. काफी प्रयास के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न ही कमरे के अंदर कोई हलचल हुई तो उन के मन में तरहतरह की शंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्हें लगा कमरे के अंदर जरूर कोई गड़बड़ है. कमरे में ठहरा युवक थोड़ी देर में आने को कह कर गया था, लेकिन आया नहीं. उस ने अपना फोन भी बंद कर लिया था. कहीं उस ने ही तो कुछ नहीं किया.

कोई और रास्ता न देख मैनेजर दुर्गेश पटेल ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर कमरा खोला तो अंदर का दृश्य देख कर होश उड़ गए. कमरे के बैड पर कस्टमर के साथ आई युवती चित पड़ी हुई थी. उस का चेहरा खून में डूबा हुआ था. मतलब उस के साथ आया युवक उस की हत्या कर के फरार हो गया था.

होटल नटराज उज्जैन का जानामाना होटल था, जिस के प्रबंधक और मालिक इंदौर के एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी थे. उन के होटल में इस तरह की घटना पहली बार घटी थी, इसलिए होटल के सभी कर्मचारी परेशान हो गए. होटल के अन्य ग्राहकों को जब इसबात की जानकारी मिली तो सब घबरा गए. जरा सी देर में होटल के कमरा नंबर 303 के सामने कस्टमर्स की भीड़ एकत्र हो गई.

मामला हत्या का था. होटल के प्रबंधक मालिक और पुलिस को खबर देना जरूरी था. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने फोन से इस मामले की जानकारी थाना नानाखेड़ा के साथ होटल के मालिक को दे दी.

सूचना पाते ही थाना नानाखेड़ा के प्रभारी ओ.पी. अहीर पुलिस टीम के साथ होटल नटराज पहुंच गए. उन्होंने सरसरी तौर पर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इस वारदात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

कमरा नंबर 303 होटल की तीसरी मंजिल पर था. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने देखा, जिस युवती का शव बैड पर खून से सराबोर पड़ा था, उस की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. चेहरेमोहरे से वह किसी सामान्य और शरीफ घर की दिख रही थी.

पुलिस समझ नहीं पाई

मंजर खौफनाक भी था और मार्मिक भी. जिसे देख पुलिस टीम भी स्तब्ध थी. पूछताछ में होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल ने ओ.पी. अहीर को बताया कि मृतका जिस युवक के साथ आई थी, उस की उम्र 23 साल के आसपास रही होगी. उस की साथी युवती के कंधों पर एक कैरीबैग था. देखने में वह किसी कालेज की छात्रा लगती थी. उन्होंने शाम तक के लिए कमरा बुक करवाया था.

कमरा बुक करवाते समय उन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया था. कमरा बुक करवाने के डेढ़ घंटे बाद युवक यह कह कर बाहर निकला था कि मैडम अंदर आराम कर रही हैं, उन का ध्यान रखना. वह किसी काम से बाहर जा रहा है. उस के जाने के कुछ समय बाद वेटर नाश्ते और चाय की प्लेट लेने गया तो मैडम ने दरवाजा नहीं खोला. काफी कोशिशों के बाद हम ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर दरवाजा खोला. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने बताया.

‘‘मृतका के साथी के बारे में कोई जानकारी है?’’ पुलिस टीम ने पूछा.

‘‘जी हां सर, उस का पूरा ब्यौरा विजिटर रजिस्टर में दर्ज है.’’ कहते हुए मैनेजर दुर्गेश पटेल ने रजिस्टर ला कर पुलिस के सामने रख दिया. पुलिस टीम ने विजिटर्स रजिस्टर देख कर उस युवक का नामपता हासिल कर लिया. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नाम पता सही नहीं देते, लेकिन यहां ऐसा नहीं था. आगंतुक द्वारा दी गई जानकारी सही निकली.

युवक का नाम सुभाष पोरवाल था और युवती का नाम तनु परिहार. दोनों के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे कर उन्हें होटल नटराज बुला लिया गया.  खबर मिलते ही दोनों के परिवार वाले जिस स्थिति में थे, उसी में होटल पहुंच गए. तनु परिहार के परिवार वालों की स्थिति काफी दयनीय थी. पुलिस टीम ने उन्हें सांत्वना दे कर संभाला.

थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर अपनी टीम के साथ अभी होटल कर्मचारियों और मृतकों के परिवार वालों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसपी मनोज सिंह, एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी, सीएसपी एच.एम. बाथम और अरविंद नायक फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर को आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने अपने सहायकों के साथ मृतका तनु परिहार के शव का निरीक्षण किया. तनु का शरीर बुरी तरह जख्मी था. उस के गले पर एक और पेट में 3 गहरे घाव थे, जो किसी तेजधार हथियार से वार करने से आए थे.

मृतका के शव का बारीकी से निरीक्षण कर के पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. प्राथमिक काररवाई से निपट कर थानाप्रभारी थाने लौट आए. तनु परिहार की मां को वह अपने साथ ले आए थे.

उस की मां की तहरीर पर सुभाष पोरवाल के खिलाफ हत्या  का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. परिवार से पूछताछ करने के साथसाथ सुभाष के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल की सक्रियता से 24 घंटे में सुभाष को आगरा में खोज निकाला गया. आगरा गई पुलिस टीम सुभाष पोरवाल को गिरफ्तार कर उज्जैन ले आई. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर के सामने आते ही सुभाष पोरवाल ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जांच और सुभाष पोरवाल के बयानों के अनुसार तनु परिहार हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

23 वर्षीय सुभाष साधारण लेकिन भरेपूरे स्वस्थ शरीर का युवक था. उस के पिता का नाम आत्माराम पोरवाल था, जो मूलरूप से गुजरात के पोरबंदर का रहने वाला था. सालों पहले आत्माराम रोजीरोटी की तलाश में उज्जैन आया था. बाद में वह अपने परिवार को भी उज्जैन ले आया और नानाखेड़ा इलाके में बस गया. वह आटोरिक्शा चलाता था.

आटोरिक्शा की कमाई से इस परिवार की गाड़ी आराम से चल जाती थी. सुभाष आत्माराम का एकलौता बेटा था. वह कुछ जिद्दी स्वभाव का था. वह जिस चीज की हठ कर लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था.

सुभाष पोरवाल हट्टाकट्टा जवान था, फैशनपरस्त और दिलफेंक भी. पढ़ाईलिखाई में कभी उस का मन नहीं लगा. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी. पढ़ाई बंद हो जाने के बाद उस ने पिता की तरह ही आटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था.

सुभाष पोरवाल जहां रहता था, उसी के सामने वाले मकान में ऋषि परिहार का परिवार रहता था. उन का अपना 5 सदस्यों का परिवार था. आय के लिए उन की छोटी सी किराने की दुकान थी. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी.

दुकान से किसी तरह दालरोटी चल जाती थी. अपने 3 भाईबहनों में तनु सब से बड़ी थी. पिता ऋषि परिहार की मृत्यु  तभी हो गई थी, जब तनु बहुत छोटी थी. पति के निधन के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी मां आशा देवी के कंधों पर आ गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. आशा का छोटा बेटा 7वीं में और दूसरा 9वीं कक्षा में पढ़ता था. बेटी तनु बीकौम सेकेंड ईयर की छात्रा थी.

तनु जितनी स्वस्थ, सुंदर और चंचल थी, उतनी ही सुशील, सभ्य और सरल स्वभाव की थी. वह किसी से भी ऐसी कोई बात नहीं करती थी, जिस से किसी का दिल दुखे. तनु के मधुर व्यवहार की वजह से आसपास के लोग उसे प्यार करते थे.

यही वज ह थी कि जैसे ही उस की हत्या की खबर इलाके में फैली, लोग थाना नानाखेड़ा के सामने इकट्ठा होने लगे. उन की मांग थी कि आरोपी सुभाष पोरवाल को जल्दी गिरफ्तार किया जाए.

स्थिति बिगड़ती देख एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी ने इस आश्वासन पर लोगों को शांत कराया कि अभियुक्त को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

वैसे तो आमनेसामने रहने के कारण तनु और सुभाष शुरू से एकदूसरे को देखते आए थे लेकिन दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर 5 साल पहले 17-18 साल की उम्र में फूटे थे. तनु परिहार के उभरते यौवन और सौंदर्य को देख सुभाष उस का दीवाना हो गया था. यही हाल तनु का भी था.

शुरूशुरू में तो तनु का ध्यान उस की ओर नहीं था, लेकिन धीरेधीरे उस का झुकाव भी सुभाष की ओर हो गया. इस की अहम कड़ी थी उस का आटोरिक्शा. तनु के करीब आने के लिए सुभाष ने अपने आटोरिक्शा का इस्तेमाल किया था.

जब तनु कालेज जाने के लिए निकलती, सुभाष अपना आटो ले कर उस की राह में आ खड़ा होता था. तनु को अपने आटो में बैठा कर वह उस के कालेज ले जाता और फिर उसे कालेज से ले कर उस के घर के करीब छोड़ देता था. बीच के समय में वह सवारियां ढोता था लेकिन तनु के कालेज के समय पर वह सवारियां नहीं लेता था. बीचबीच में जब भी मौका मिलता, दोनों साथसाथ घूमनेफिरने भी निकल जाते थे.

जैसेजेसे समय आगे बढ़ रहा था, वैसेवैसे दोनों का प्यार परिपक्व होता जा रहा था. दोनों एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. जब भी दोनों साथ होते थे, अपने भविष्य को ले कर तानेबाने बुनते थे. इस में आगे सुभाष रहता था. वह तनु को सपने दिखाता और तनु उन सपनों में खो जाती थी. दोनों शादी कर के अपना अलग संसार बसाना चाहते थे. घटना के एक महीने पहले दोनों ने सात फेरे भी ले लिए थे. 9 जुलाई, 2020 को दोनों ने उज्जैन कोर्ट में कोर्टमैरिज कर ली थी. इस के बाद 13 जुलाई को चिंतामणि गणेश मंदिर जा कर दोनों विधिविधान से शादी के बंधन में बंध गए थे.

सुभाष ने इस बात की जानकारी अपने परिवार को दे दी थी. परिवार वालों ने उस का यह रिश्ता स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन तनु ऐसा नहीं कर पाई. भावनाओं में बह कर उस ने सुभाष से शादी तो कर ली थी लेकिन इस पर उस की मां की ममता और प्यार भारी पड़ रहा था.

मां ने जिन कठिनाइयों में खूनपसीना बहा कर उन्हें पालापोसा था, उसे देख वह मां से धोखा नहीं करना चाहती थी. उसे जब पता चला कि मां उस के योग्य लड़का तलाश कर रही है तो उसे लगा कि मां का दिल दुखाना ठीक नहीं है. इसलिए उस ने अपनी शादी का राज छिपाए रखना ही ठीक समझा.

जब सुभाष को पता चला कि तनु की मां उस के लिए वर ढूंढ रही है तो वह पत्नी होने के नाते तनु पर साथ रहने का दबाव बनाने लगा. लेकिन जब तनु इस के लिए तैयार नहीं हुई तो सुभाष का धैर्य टूट गया और उस ने तनु के प्रति एक खतरनाक निर्णय ले लिया. उस की सोच थी कि तनु उस की दुलहन है और उसी की रहेगी. इस के लिए उस ने एक तेजधार वाला चाकू खरीद कर अपने पास रख लिया था.

घटना वाले दिन सुभाष का मन बहुत उदास था. वह एक बार तनु से मिल कर उस का आखिरी फैसला जान लेना चाहता था. इस के लिए उस ने होटल नटराज को चुना था. होटल में कमरा खाली है या नहीं, यह जानने के लिए उस ने विकास के नाम से होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल से बात की.

होटल से हरी झंडी मिलने के बाद सुभाष ने तनु को मैसेज भेज कर कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया. सुभाष के इरादों से अनभिज्ञ तनु ने अपना कोचिंग बैग और पानी की बोतल उठाई और मां से कोचिंग के लिए कह कर सुभाष से मिलने पहुंच गई. सुभाष उसे अपने आटो से होटल नटराज ले गया.

होटल में कमरा बुक कर के दोनों कमरा नंबर 303 में चले गए. कमरे में आ कर सुभाष ने पहले चायनाश्ता मंगवाया, फिर तनु से साथ रहने वाली बात छेड़ दी. जिसे ले कर दोनों में बहस हो गई. सुभाष ने तनु को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब हमारी शादी दोदो बार हो चुकी है तो तीसरी बार शादी की जरूरत क्यों और किसलिए?

‘‘वह हमारी भूल थी, गुजरे कल की बात. अब हमें आज का सोचना है. मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. मैं अपनी मां को धोखा नहीं दूंगी. मां पहले से बहुत दुखी हैं. मैं उन्हें और दुखी नहीं देख सकती. इसलिए मैं मां के देखे हुए लड़के के साथ शादी करूंगी.’’

‘‘और मैं क्या करूं?’’ सुभाष का चेहरा लाल हो गया. क्रोध में उठ कर उस ने कमरे में टहलते हुए कहा, ‘‘हम दोनों एकदूसरे को भूल जाएं?’’

तनु ने गरदन झुकाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

रक्त में डूब गई प्रेम कहानी

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम मेरी थी मेरी ही रहोगी,’’ कहते हुए सुभाष ने छिपा कर लाए चाकू को बाहर निकाला और तनु की गरदन पर सीधा वार कर दिया. वार इतना तेज था कि तनु की आधी गरदन कट गई. तनु चीख कर बैड पर गिर गई. उस के बैड पर गिरने के बाद क्रोधित सुभाष ने उस के पेट में 3 वार और किए.

कुछ मिनट तड़पने के बाद जब तनु के प्राणपखेरू उड़ गए तब सुभाष ने उस का फोन उठाया और बहाना बना कर होटल से निकल गया. वहां से निकल कर वह अपने आटो से शाजापुर बसअड्डा पहुंचा. फिर वहां से बस पकड़ कर अपनी मौसी के यहां आगरा चला गया.

सुभाष पोरवाल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने तनु परिहार हत्याकांड से  संबंधित चाकू, तनु का मोबाइल फोन और आटोरिक्शा को अपने कब्जे में ले लिया. सुभाष को जिला सत्र न्यायालय के जज के सामने पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

सौजन्यमनोहर कहानियां, अक्टूबर 2020   

पति की औकात : पिंकी को महंगा पड़ा बाहरी प्यार

उस दिन जून 2020 की 6 तारीख थी. सुबह होने पर प्रियंका की आंखें खुलीं तो खिड़की से आती तेज रोशनी उस की आंखों में लगी. पिंकी ने आंखें बंद कर लीं, फिर आंखों को मलते हुए जम्हाई ले कर बैड पर उठ कर बैठ गई.

कुछ देर वह अलसाई सी बैठी रही, फिर मुंह घुमा कर बैड के दूसरे किनारे की ओर देखा तो पति चंदन वहां नहीं था.

शायद आज जल्दी उठ गया, बाहर होगा, सोच कर वह बैड से उठी और पैरों में चप्पल पहन कर बैडरूम से बाहर निकल आई.

जैसे ही वह बाहर आई तो बाहर का दृश्य देख कर सन्न रह गई. चंदन नायलौन की रस्सी से मुख्यद्वार की लोहे की चौखट से लटका था. यह देख पिंकी के मुंह से चीख निकल गई. चीखते हुए वह बाहर की तरफ भागी और पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने आ कर देखा तो सब अपनेअपने कयास लगाने लगे. चंदन रेलवे में नौकरी करता था और पत्नी के साथ रहता था.

यह मामला सोनभद्र जिले के थाना कोतवाली राबर्ट्सगंज क्षेत्र के बिचपई गांव का था. किसी ने सुबह 8 बजे राबर्ट्सगंज कोतवाली को घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चंदन की उम्र 34-35 वर्ष रही होगी. वह दरवाजे की लोहे की चौखट से नायलोन की रस्सी से लटका हुआ था. उस के पैर जमीन को छू रहे थे, घुटने मुड़े हुए थे.

देखने से लग रहा था जैसे चंदन ने आत्महत्या की हो, लेकिन पैर जमीन पर लगे होने से थोड़ा संदेह भी था कि क्या वाकई चंदन ने आत्महत्या की है या किसी ने उस की हत्या कर के आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है.

इंसपेक्टर मिश्रा के दिमाग में ऐसी ही बातें उमड़घुमड़ रही थीं. फिर मिश्राजी ने सोचा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सारी हकीकत सामने आ जाएगी. उन्होंने सिर को झटका और सोचों के भंवर से बाहर आए.

उन्होंने पास में बैठी मृतक चंदन की पत्नी पिंकी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में खाना खा कर दोनों साथ बैड पर सोए थे. सुबह उस की आंख खुली तो चंदन बैड पर नहीं था. वह बाहर आई तो चंदन को इस हालत में चौखट से लटकते हुए पाया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने उस से और विस्तृत पूछताछ की तो पता चला वह चंदन के साथ जिस मकान में रह रही थी, वह पिंकी के पिता परमेश्वर भारती का था. वह खुद बीजपुर में रहते हैं. पिंकी और चंदन के दोनों बच्चे भी अपने नाना के पास रह रहे थे. पतिपत्नी के अलावा उस मकान में कोई नहीं रहता था.

चंदन बिचपई से 25 किमी दूर मदैनिया गांव का निवासी था, जो करमा थाना क्षेत्र में आता था. घटना की सूचना करमा थाने को दी गई, वहां से यह खबर चंदन के परिवार तक पहुंचा दी गई.

इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और कोतवाली लौट आए. 2 घंटे बाद चंदन का भाई अपने गांव से राबर्ट्सगंज कोतवाली पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर मिश्रा को एक लिखित तहरीर दी, जिस में उस ने चंदन की हत्या का आरोप उस की पत्नी पिंकी उर्फ प्रियंका, ससुर परमेश्वर भारती, सास चमेली, साले पिंटू और पड़ोसी कृष्णा चौहान पर लगाया था. भाई ने तहरीर में कृष्णा से पिंकी के संबंध होने का जिक्र किया था.

तहरीर देख कर इंसपेक्टर मिश्रा चौंके. उन के मन का संदेह सच होता दिखने लगा. लाश की स्थिति देख कर उन्हें पहले ही चंदन के आत्महत्या पर संदेह था. पति की मौत पर पिंकी भी उतनी दुखी नहीं लग रही थी, उस का चीखनाचिल्लाना नाटक सा लग रहा था.

खैर, अब इंसपेक्टर मिश्रा को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने का इंतजार था. शाम को जब रिपोर्ट आई तो उस में चंदन की हत्या किए जाने की पुष्टि हो गई.

इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने चंदन की लिखित तहरीर के आधार पर पिंकी, कृष्णा चौहान, परमेश्वर भारती, चमेली और पिंटू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने केस की जांच शुरू करते हुए कृष्णा चौहान उर्फ किशन के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. बिचपई में वह पिंकी के घर के पड़ोस में अपनी मां के साथ किराए पर रहता था.

जांच के दौरान पूछताछ में यह भी पता चला कि कृष्णा का पिंकी के घर काफी आनाजाना था. वह घर से गायब भी था. पिंकी और कृष्णा की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस से भी दोनों के संबंधों की पुष्टि हो गई. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा किशन उर्फ कृष्णा की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गए.

11 जून को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर राबर्ट्सगंज के रोडवेज बस स्टैंड से किशन और प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया. भेद खुल जाने की आशंका से प्रियंका किशन के साथ कहीं भाग जाने की फिराक में थी, लेकिन पकड़ी गई.

कोतवाली ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने चंदन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या करने के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी—

उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के थाना करमा क्षेत्र के मदैनिया गांव में शंकर भारती रहते थे. वह रेलवे में थे. उन के परिवार में पत्नी कबूतरी के अलावा एक बेटी राजकुमारी और 2 बेटे चंद्रशेखर व चंदन थे.

उन्होंने सब से बड़ी बेटी राजकुमारी का विवाह समय रहते कर दिया था. बेटों में चंद्रशेखर बड़ा था. वह किसी के यहां कार ड्राइवर की नौकरी करता था. सब से छोटे चंदन ने बीए तक पढ़ाई की थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि 2002 में शंकर भारती की मृत्यु हो गई.

मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो आपसी सहमति से चंदन का नाम दिया गया. 2004 में चंदन रेलवे में भरती हो गया. वर्तमान में वह चुर्क में बतौर केबिनमैन कार्यरत था. रेलवे में नौकरी लगते ही चंदन के लिए रिश्ते आने लगे.

एनटीपीसी में इंजीनियर परमेश्वर भारती बीजपुर में रहते थे. परिवार में पत्नी चमेली और एक बेटी पिंकी उर्फ प्रियंका व 2 बेटे थे पिंटू और रिंकू.

पिंकी सब से बड़ी थी. उस ने बीए कर रखा था. परमेश्वर को चंदन के बारे में पता चला तो उन्होंने उस के बारे में जानकारी हासिल की. उस समय करमा थाने के जो इंसपेक्टर थे, वह परमेश्वर के रिश्तेदार थे. परमेश्वर ने उन से बात की तो उन्होंने पता करके परमेश्वर को बताया कि लड़का बहुत अच्छा और सीधासादा है. उस में कोई ऐब भी नहीं है, सरकारी नौकरी में है. फिर रिश्ता तय हुआ और 2005 में चंदन और पिंकी का विवाह हो गया.

पिंकी खबसूरत और पढ़ीलिखी थी. वह अच्छे खातेपीते परिवार से ताल्लुक रखती थी. विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल आई तो वहां का मकान और रहनसहन उसे अच्छा नहीं लगा. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.

शादी के बाद पिंकी चंदन से जिद करने लगी कि वह बिचपई में रहे. बिचपई में पिंकी के पिता का एक मकान खाली पड़ा था. पिंकी ने उस में चंदन के साथ रहने की बात अपने पिता परमेश्वर से कर ली थी.

चंदन को मानना पड़ा

आए दिन पिंकी चंदन से बिचपई चल कर रहने की जिद करती. चंदन अपने परिवार के साथ रहना चाहता था, इसलिए पिंकी की बात पर ध्यान नहीं देता था. अपनी बात न मानते देख पिंकी बीवियों वाले हथकंडे अपनाने लगी. उस से नाराज हो कर बोलना बंद कर देती, खाना नहीं खाती थी. इस पर चंदन समझाता तो उस की बात सुनती तक नहीं थी. आखिर चंदन को उस की जिद के आगे झुकना ही पड़ा.

वह पिंकी के साथ बिचपई में अपने ससुर परमेश्वर के मकान में रहने लगा. कालांतर में प्रियंका 2 बेटों अमन और नमन की मां बनी. स्कूल जाने लायक तो प्रियंका ने उन्हें नाना परमेश्वर के पास भेज दिया.

चंदन कभीकभी शराब पी लेता था. पीने पर पिंकी कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पिंकी भी चंदन के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी. वह ज्यादातर मायके का ही गुणगान करती रहती थी.

चंदन अपने घरवालों से बात करता या उन की तारीफ करने लगता तो पिंकी के तनबदन में आग लग जाती थी. पत्नी के रूखे व्यवहार के कारण चंदन ज्यादा शराब पीने लगा था. शराब पीने के बाद दोनों में झगड़ा जरूर होता था.

किशन उर्फ कृष्णा चौहान फुलाइच तरवा आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता रामत चौहान ने 2 शादियां की थीं. रामत चौहान पहली पत्नी और उस की 2 बेटियों के साथ आजमगढ़ में रह रहा था. किशन उस की दूसरी पत्नी रमा का बेटा था.

कृष्णा अपनी मां के साथ डेढ़ साल से पिंकी के घर के पड़ोस में किराए पर रह रहा था. वह अपराधी प्रवृत्ति का था. राबर्ट्सगंज कोतवाली में उस पर 2019 में धारा 457/380/411 के तहत मुकदमा भी दर्ज था. 29 साल का किशन अविवाहित था.

पड़ोस में रहते हुए उस की नजर पिंकी पर गई तो उस की खूबसूरती देख कर किशन उस की ओर आकर्षित हो गया. चंदन ड्यूटी पर रहता था, प्रियंका घर में अकेली होती थी.

पड़ोसी होने के नाते पिंकी और किशन एकदूसरे को जानते  थे, पर अभी तक बात नहीं हुई थी. दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ती, तो जल्दी नहीं हटती थी.

एक दिन किशन सुबहसुबह पिंकी के घर पहुंच गया. हमेशा की तरह पिंकी उस समय भी अकेली थी. दरवाजा खटखटाने पर पिंकी ने दरवाजा खोला तो किशन को खडे़ पाया और मुंह से निकला, ‘‘अरे आप…’’

‘‘जी, मैं आप का पड़ोसी किशन.’’

‘‘जानती हूं आप को, बताने की जरूरत नहीं.’’ पिंकी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘अरे अंदर आइए, बाहर क्यों खड़े हैं.’’

औपचारिकतावश पिंकी ने कहा तो किशन बोला, ‘‘चाय बनाने जा रहा था तो देखा चीनी नहीं है. अभी दुकानें भी नहीं खुली हैं. फिर सोचा पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है, इसलिए आप के पास चला आया. इस बहाने आप से परिचय भी हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा किया. अब मैं खुद आप को चाय बना कर पिलाती हूं. उस के बाद आप चीनी भी ले जाइएगा.’’ कह कर पिंकी ने उसे कुरसी पर बैठाया और खुद चाय बनाने किचन में चली गई.

कामी नजर

किशन जिस जगह कुरसी पर बैठा था, ठीक उसी के सामने किचन थी. किशन चाय बनाती पिंकी को पीछे से ताड़ रहा था. पिंकी के शरीर की बेहतरीन बनावट उस की आंखों में प्यास जगा रही थी. इसी बीच पिंकी ने पलट कर उस की ओर देखा तो उसे अपनी ओर देखते पाया. एकाएक दोनों की आंखें मिलीं तो होंठ खिल उठे. चाय के कप टे्र में रख कर पिंकी किचन से बाहर आई और टे्र मेज पर रख कर किशन को चाय देते हुए पूछा, ‘‘आप लोग कुछ समय पहले यहां रहने आए हैं, इस से पहले कहां रहते थे?’’

‘‘भाभी, मैं पहले आजमगढ़ में रहता था. वहां मेरे पिता रहते हैं. यहां मैं अपनी मां के साथ रहता हूं.’’

फिर चाय का घूंट भरते हुए किशन पिंकी की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘वाह, आप चाय बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ तारीफ सुन कर पिंकी खुशी से बोली.

चाय पीतेपीते उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी ली. पिंकी को किशन से बात करना बहुत अच्छा लग रहा था. उस की बातें और बात करने का ढंग अलग ही था. काफी देर तक बातें करने के बाद किशन वहां से चला गया.

इस के बाद तो दोनों के बीच हर रोज बातें होने लगीं. किशन किसी न किसी बहाने से पिंकी के पास पहुंच जाता. पिंकी भी जान गई थी कि किशन उस से मिलने और बातें करने के लिए बहानों का सहारा लेता है. इसलिए एक दिन उस ने किशन से कह दिया कि उसे मिलने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं है. वह ऐसे भी मिलने आ सकता है.

किशन खुश हो गया कि अब उसे बहाने नहीं बनाने पड़ेंगे. अब जब देखो किशन पिंकी के पास ही नजर आने लगा. घर के कामों में भी उस की मदद करने लगा. साथ में काम करतेकरते हंसीमजाक करते कब समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता. चंदन के घर आने से पहले ही किशन वहां से चला आता था.

कुछ ही दिनों में दोनों काफी घुलमिल गए. दोनों को एकदूसरे के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था. किशन तो जानता था कि वह पिंकी को जी जान से चाहने लगा है. लेकिन अब पिंकी को भी एहसास होने लगा कि किशन चुपके से आ कर किस तरह उस की जिंदगी बन गया, उस के दिलोदिमाग पर छा गया.

पिंकी के दिमाग में सिर्फ उस की बातें ही घूमती रहती थीं. किशन पिंकी के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि वह भी उस की ओर खिंचने लगी. जब प्यार का एहसास हुआ तो वह भी किशन से मजाक कर के लिपटनेचिपटने लगी. पिंकी का ऐसा करना किशन के लिए शुभ संकेत था कि वह उस की होने के लिए

बेताब है.

एक दिन दोनों पासपास बैठे किशन की लाई आइसक्रीम खा रहे थे. किशन ने अपनी आइसक्रीम खाई तो उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे उसे आइसक्रीम अच्छी न लगी हो. फिर उस ने पिंकी की आइसक्रीम की ओर देखा और तेजी से उस का हाथ पकड़ कर उस की आइसक्रीम की एक बाइट खा ली.

किशन की इस हरकत पर पिंकी भौंचक्की रह गई. फिर शरारती अंदाज में उस की पीठ पर प्यार से धौल जमाने लगी. उस के इस अंदाज से किशन हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘आप की आइसक्रीम सच में बहुत मीठी है.’’

पिंकी उस से नाराज होने की बात कह कर चुपचाप बैठ गई तो किशन की नजर पिंकी के पिंक लिप्स पर गई, जहां कुछ आइसक्रीम लगी हुई थी. उसे शरारत सूझी, वह अपने चेहरे को पिंकी के चेहरे के पास ले गया और उस के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उस के पिंक लिप्स को अपने होंठों से चाट लिया.

इस शरारत से पिंकी अचंभित रह गई, लेकिन इस शरारत ने उस के शरीर में आग भरने का काम किया. किशन भी अपने आप को नहीं रोक पाया. वह बराबर पिंकी के लिप्स को चूमने लगा तो पिंकी ने मस्त हो कर आंखें मूंद लीं. इस के बाद तो उन के बीच वही हुआ जो अकसर उन्माद के क्षणों में होता है. दोनों बहके तो ऐसे फिसले कि अपनी इच्छा पूरी करने के बाद ही अलग हुए.

उन के बीच एक बार जो अनैतिक रिश्ता बना तो वह बारबार दोहराया जाने लगा. लेकिन ऐसे रिश्ते की सच्चाई अधिक दिनों तक छिपी नहीं रह पाती. एक दिन चंदन ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद किशन तो वहां से चला गया, लेकिन चंदन ने पिंकी को जम कर पीटा. साथ ही आगे से ऐसी नापाक हरकत न करने की हिदायत दी.

पिंकी के इस गलत कदम से चंदन परेशान रहने लगा. उस की अपने भाई चंद्रशेखर से बात होती रहती थी. उस ने भाई को भी पिंकी के किशन से अवैध संबंध के बारे में बता दिया.

दूसरी ओर पिंकी पर चंदन द्वारा की गई पिटाई और हिदायत का कोई असर नहीं हुआ. वैसे भी चंदन हर वक्त घर पर रह नहीं सकता था. इस के अलावा घर में पिंकी पर नजर रखने वाला कोई नहीं था. पिंकी पहले की तरह ही किशन के साथ रंगरलियां मनाती रही. वह चाहती थी कि उस के और किशन के रिश्ते पर कोई तर्कवितर्क न करे.

5/6 जून की रात किशन और पिंकी रंगरलियां मना रहे थे कि रात 12 बजे चंदन घर लौट आया. उस ने पिंकी और किशन को एक साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो वह उन से झगड़ने लगा. इस पर किशन ने पिंकी से कहा कि आज इस का काम खत्म कर देते हैं.

पिंकी भी उस की बात से सहमत थी, इसलिए उस का साथ देने लगी. वह घर में पड़ी नायलोन की रस्सी उठा लाई. दोनों ने मिल कर रस्सी से चंदन का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

चंदन की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को नायलोन की रस्सी से बांध कर घर की लोहे की चौखट से लटका दिया, जिस से यह लगे कि चंदन ने आत्महत्या की है. इस के बाद किशन वहां से चला गया.

सुबह जब पुलिस आई तो पिंकी ने उस के आत्महत्या कर लेने की बात ही बताई. लेकिन उन दोनों की चाल काम न आई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व चंद्रशेखर से पूछताछ पर आधारित

सौजन्यमनोहर कहानियां, अक्टूबर 2020

दहेज में आया बहू का प्रेमी भाई

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा की तहसील एत्मादपुर के थाना बरहन के क्षेत्र में एक गांव है खांडा. यहां के निवासी सुरेंद्र सिंह का 27 वर्षीय बेटा विक्रम सिंह उर्फ नितिन नोएडा के सेक्टर-6 में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कंप्यूटर आपरेटर था. उस की शादी नवंबर 2015 में अछनेरा थानांतर्गत कुकथला निवासी किशनवीर सिंह की बेटी रानी उर्फ रवीना के साथ हुई थी. दोनों का 2 साल का एक बेटा है.

विक्रम नोएडा में अपने मातापिता, भाई अमित, बीवी व बच्चे के साथ रहता था. कोरोना वायरस फैलने और लौकडाउन की घोषणा के बाद 27 मार्च, 2020 को विक्रम परिवार सहित अपने गांव खांडा आ गया था. इस के लिए विक्रम को 50 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ा था. उस के पिता सुरेंद्र सिंह नोएडा में ही रह गए थे.

विक्रम को घर आए 5 दिन हो गए थे. 31 मार्च की रात विक्रम अपनी बीवी रानी के साथ कमरे में सोने चला गया. जबकि उस की मां कृपा देवी मकान की छत पर सोने चली गई. छोटा भाई अमित गांव में ही रहने वाली मौसी के यहां सो रहा था. रात डेढ़ बजे रानी अचानक कमरे से चीखती हुई बाहर निकली और छत पर बने कमरे में सो रही सास को जगा कर बताया कि विक्रम ने आत्महत्या कर ली है.

यह सुनते ही कृपा देवी बदहवास सी नीचे उतर कर कमरे में पहुंचीं. कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए. बिस्तर पर विक्रम खून से लथपथ पड़ा था. उस की गरदन से खून निकल रहा था. जिस से तकिया व चादर खून से रंग गए थे.

घटना की जानकारी मिलते ही मृतक का चचेरा भाई राजेश सिकरवार घटनास्थल पर पहुंच गया. विक्रम की मौत की जानकारी होते ही परिवार की महिलाओं में कोहराम मच गया. राजेश ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थाना बरहन के थानाप्रभारी महेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौकाए वारदात पर पहुंच गए. तब तक सुबह हो चुकी थी. हत्या की जानकारी होते ही आसपड़ोस के लोग एकत्र हो गए थे.

पूछताछ में मां कृपा देवी ने बताया, ‘‘रात सभी ने हंसीखुशी खाना खाया था. उस समय विक्रम के चेहरे पर किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं दिख रहा था. न ही उस ने किसी बात का जिक्र किया था. उस ने अचानक आत्महत्या क्यों कर ली, समझ से परे है.’’

सूचना मिलते ही सीओ (एत्मादपुर) अतुल सोनकर भी पहुंच गए. फोरैंसिक टीम भी बुला ली गई थी.

मृतक की बीवी रानी से भी पूछताछ की गई. उस ने बताया कि खाना खाने के बाद हम लोग कमरे में सो गए. रात में पति से झगड़ा हुआ था, हो सकता है उन्होंने गुस्से में गला काट कर आत्महत्या कर ली हो. मुझे तो आंखें खुलने पर घटना के बारे में पता चला, तभी मैं ने शोर मचाया और सास को छत पर जा कर जगाया. विक्रम ने बंद कमरे में आत्महत्या कैसे की? यह रानी नहीं बता सकी.

पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक का गला रेता हुआ था. लेकिन कमरे में कोई चाकू या धारदार हथियार नहीं मिला था.

रानी की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि बिस्तर पर आत्महत्या करते समय रानी भी सो रही थी लेकिन उसे आत्महत्या की कोई जानकारी नहीं हुई. ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घटना की जानकारी मिलने पर मृतक के पिता भी नोएडा से आ गए. उन्होंने अपनी बहू रानी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस के प्रेम संबंध उस के फुफेरे भाई प्रताप सिंह उर्फ अनिकेत से हैं, जो खांडा का रहने वाला है. सुरेंद्र सिंह ने पहली अप्रैल को पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में भी विक्रम की हत्या का आरोप रानी अनिकेत पर लगाया. इस पर पुलिस रानी को पूछताछ के लिए अपने साथ थाने ले गई.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि विक्रम की पत्नी रानी हर महीने बीमारी का बहाना बना कर इलाज के नाम पर विक्रम से दवाइयों का 28,000 रुपए तक का बिल लेती थी. इतना ही नहीं उस ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए 10 हजार रुपए में अपनी सोने की चेन भी गिरवी रख दी थी. पुलिस ने थाने में रानी से घटना के बारे में गहराई से पूछताछ की, ‘‘जब विक्रम ने चाकू से अपना गला अपने आप काट कर आत्महत्या की है तो चाकू भी वहीं होना चाहिए था.’’ इस पर रानी ने चुप्पी साध ली.

पुलिस ने यह भी पूछा, ‘‘अगर विक्रम की हत्या किसी बाहरी व्यक्ति ने की तो कमरे का दरवाजा किस ने खोला? और वह आदमी कौन था?’’

इन सवालों के भी रानी के पास कोई जवाब नहीं थे. उस की चुप्पी सच्चाई बयां कर रही थी. पहले दिन तो रानी पुलिस को गुमराह करती रही, लेकिन दूसरे दिन यानी 2 अप्रैल, 2020 को पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई.

उस ने पति की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने प्रेमी फुफेरे भाई प्रताप जो गांव में ही रहता है के साथ मिल कर रात में विक्रम की हत्या कर दी थी. पुलिस पूछताछ में विक्रम की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

रानी की शादी उस के बुआ के बेटे प्रताप ने अपने ही गांव खांडा निवासी विक्रम सिंह से कराई थी. बहन के घर प्रताप का आनाजाना था. दोनों के बीच 2 साल से नजदीकियां बढ़ गई थीं. धीरेधीरे दोनों का प्रेमसंबंध नाजायज संबंधों में बदल गया.

बीवी की हरकतें देख कर विक्रम को उस पर शक हो गया था. यह बात रानी ने प्रताप को बताई. इस पर उस ने रानी के घर आना बंद कर दिया था. रानी जब मायके जाती तो प्रताप वहां पहुंच जाता था. वहां दोनों किसी तरह मिल कर अपने दिल की प्यास बुझा लेते थे.

जब रानी गांव में रहती थी, तो पति से रुपए मंगा कर अपने प्रेमी के ऊपर खर्च करती थी. इस की जानकारी होने पर विक्रम ने बीवी के मायके जाने पर रोक लगा दी थी. उस ने रानी को समझाया भी, लेकिन रानी पर पति की बातों का कोई असर नहीं हुआ. इस पर विक्रम रानी को नोएडा में अपने साथ रखने लगा था. लौकडाउन होने पर विक्रम परिवार सहित 5 दिन पहले गांव आया था. गांव आने पर रानी को पता चला कि प्रताप की शादी तय हो गई है. 25 अप्रैल को उस की बारात जानी थी. रानी को यह बात नागवार गुजरी.

वह चाहती थी कि प्रताप शादी न करे. वह उस के बिना नहीं रह सकती. वह प्रताप से मिलना चाहती थी. जबकि विक्रम उसे घर से बाहर नहीं जाने दे रहा था. इस पर उस ने मोबाइल पर प्रताप से बात की. इस बातचीत के दौरान मिल कर विक्रम की हत्या की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक रानी ने 31 मार्च की रात आलू की सब्जी में नींद की 8 गोलियां मिला कर विक्रम को खिला दीं. गोलियां प्रताप ने ला कर दी थीं. रात करीब एक बजे विक्रम की तबियत खराब हुई. उस ने रानी से कहा कि उसे बैचेनी हो रही है. इस पर रानी ने पति को अंगूर खिलाए. फिर जैसे ही वह सोया, रानी ने मैसेज कर के प्रताप को बुला लिया. प्रताप और रानी ने उस का गला दबा दिया. वह जिंदा न बच जाए. इस के लिए हंसिए से उस का गला भी रेत दिया. हत्या के बाद प्रताप हंसिया ले कर फरार हो गया.

रानी और प्रताप की साजिश थी कि विक्रम की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप दे देंगे. अगर विक्रम की मां रात में चिल्लाचिल्ला कर भीड़ जमा न करती तो वे ऐसा प्रयास भी करते. लेकिन हड़बड़ाहट में रानी मौके से खून नहीं साफ  कर सकी थी.

रानी को पुलिस ने 3 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस हत्यारोपी प्रताप की तलाश में जुट गई.

3 अप्रैल को ही पुलिस ने प्रताप को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया भी बरामद कर लिया.  रानी ने रिश्तों को कलंकित कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जून 2020  

लव मैरिज का कर्ज : भारी पड़ी विदेशी लव मैरिज

लौैकडाउन में जहां लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित है वहीं अपराधियों के हौसले और भी बुलंदी पर हैं. लौकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर न निकलने को मजबूर हैं, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बिना निकले पेट नहीं पाल सकते. ऐसे ही लोगों में हैं अपराधी. दरअसल, अपराधियों की सोच यह होती है कि पुलिस तो कोरोना के चलते व्यवस्था ठीक करने में लगी है, क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए.

जनपद मथुरा के राया कस्बे की परशुराम कालोनी में रहने वाले लेखपाल राजेंद्र प्रसाद की बीवी कुसुम घर के कामों में व्यस्त थीं. सुबह 11 बजे फुर्सत मिलने पर उन्हें घर के बाहर चबूतरे पर खेल रहे अपने 3 वर्षीय बेटे युवान उर्फ गोलू ॒की याद आई.

वे उसे बुलाने घर के बाहर आईं. चबूतरे पर उन की दोनों बेटियां खेल रहीं थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘गोलू कहां है.’’ इस पर बेटियों ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम.’’

गोलू अक्सर पड़ौसी अमित के घर उन के बच्चे के साथ खेलने चला जाता था. यह सोच कर कि गोलू वहीं होगा. कुसुम अमित के घर पहुंची.

उन्होंने अमित की बीवी मधु से गोलू के बारे में पूछा  तो मधु ने बताया, गोलू व दोनों बहनें आईं थीं सभी बच्चे खेल कर चले गए. कुसुम ने घबराते हुए कहा, ‘‘गोलू कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं कहां चला गया है.’’

मधु ने कहा किसी के घर खेल रहा होगा. कुसुम ने उसे मौहल्ले में तलाश किया, लेकिन कोई पता नहीं लगा.

कुसुम ने यह जानकारी पति राजेंद्र को दी. राजेंद्र और पड़ौसी गोलू को मोहल्ले के साथसाथ कालोनी के आसपास भी तलाशने लगे. तभी कुसुम को घर के पास गोलू की चप्पलें मिल गईं. चप्पलों में एक पर्ची लगी थी. पर्ची में लिखा था, आप का बेटा सही सलामत है, 20 लाख रुपए ले कर हाथिया आ जाना.

पर्ची पढ़ते ही हड़कंप मच गया. बेटे के अपहरण से राजेंद्र और कुसुम का बुरा हाल था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह 8 मई, 2020 की बात है.

सूचना पर थाना राया के थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा मौके पर पहुंच गए. उन की सूचना पर एसपी देहात श्रीश चंद्र और सीओ (महावन)  विजय सिंह चौहान भी आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथ ही चप्पलों में लगी पर्ची भी कब्जे में ले ली.

पुलिस ने घटनास्थल से थोड़ी दूर लगे शिवकुमार लेखपाल के यहां के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी खंगाली, लेकिन उस में कोई भी आताजाता नहीं दिखा. पुलिस ने गोलू के घरवालों के साथ मौहल्ले का एकएक घर छान मारा, लेकिन गोलू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.  इस के बाद पिता राजेंद्र प्रसाद ने थाना राया में अज्ञात के विरूद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

सर्विलांस टीम से भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहरणकर्ताओं ने अभी तक बच्चे के घरवालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था. घटना के बाद से पुलिस कई स्थानों पर दबिश भी दे चुकी थी.

लौकडाउन के कारण पुलिस ने राया से ले कर मथुरा एनएच-2 और एक्सप्रेस-वे तक को सील कर रखा था. ऐसे में बच्चे का अपहरण और फिरौती पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. क्योंकि गाड़ी में बच्चे को ले जाने के लिए पुलिस के हर बैरियर पर चैकिंग से गुजरना पड़ता था. इस के साथ ही एक्सप्रेस वे से ले कर एनएच-2 पर भी वाहन चैकिंग हो रही थी, वहां जा कर भी खोजबीन की गई. पुलिस ने लौकडाउन में ड्यूटी पर लगे पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा.

गोलू के अचानक अपहरण हो जाने की खबर पूरी कालौनी में फैल चुकी थी. लौकडाउन होने के बावजूद तमाम पुरूष, महिलाएं व बच्चे राजेंद्र के घर पर जुटने लगे. सब की जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर 3 साल के गोलू का अपहरण कौन कर ले गया? गोलू के अपहरण से मां कुसुम और दोनों बहनों का रोरो कर बुरा हाल था.

थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा ने राजेंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से रंजिश वगैरह तो नहीं हैं? या तुम्हें किसी पर कोई शक है तो बताओ. राजेंद्र के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के पास अपहरणकर्ताओं का कोई फोन आए तो बताना.’’

कालोनी में बच्चे के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थी. पुलिस ही नहीं लोगों को डर सता रहा था कि लौकडाउन के चलते बदमाश फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं बच्चे की हत्या न कर दें. गोलू के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. घर में चूल्हा भी नहीं जला.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह अपहर्त्ता लेखपाल राजेंद्र के बच्चे गोलू को कालोनी से 15 किमी दूर राया सादाबाद रोड पर गांव तंबका के पास छोड़ गए. ग्रामीणों को बालक रोता हुआ मिला. इस पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी. सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पहुंची और गोलू को कब्जे में ले लिया. बालक की बरामदगी की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

पुलिस ने गाड़ी भेज कर बच्चे के मातापिता को पुलिस चौकी बिचपुरी पर बुला लिया.

गोलू को देखते ही मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. मां की गोद में आते ही गोलू मां से लिपट गया.

उन्होंने उसे सीने से लगा लिया. बदमाशों ने 20 लाख की फिरौती मांगी थी, जो नहीं दी गई. जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर पूरे मामले कर खुलासा कर दिया जाएगा.

परशुराम कालोनी से राया सादाबाद रोड पर जाने के 3 रास्ते हैं. मुख्य मार्ग मांट रोड, फिर हाथरस रोड और फिर यहां से सीधा राया सादाबाद रोड है. इस दौरान रेलवे फाटक, नेहरू पार्क आदि स्थानों पर भी लौकडाउन के चलते पुलिस मौजूद रहती है.  यहां से राया सादाबाद रोड पर जाने के लिए 2 रास्ते और भी हैं. बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस ने इन सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. इस के बावजूद बदमाशों ने सुबह 5 बजे तंबका गांव के मंदिर पर बालक को छोड़ दिया.

पुलिस इस क्षेत्र के आगे तथा पीछे मौजूद थी परंतु उसे बदमाशों की गतिविधि की भनक तक नहीं लग सकी थी. अपहर्त्ताओं ने बालक के अपहरण में चौपहिया वाहन का इस्तेमाल किया था. इस की पुष्टि बच्चे गोलू ने भी की. साथ ही बताया कि बदमाशों ने उस के सिर पर कपड़ा डाला और गाड़ी में ले गए.

सवाल यह था कि चौपहिया वाहन लौकडाउन के चलते इतनी दूर कैसे चला गया? बालक तो बरामद हो गया लेकिन सघन चैकिंग का दावा कर रही पुलिस बदमाशों को नहीं पकड़ सकी थी.

इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी. अपहरणकर्ताओं की चुनौती को पुलिस ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. पुलिस अधिकारियों ने वारदात के तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि यह किसी संगठित गिरोह की गतिविधि नहीं थी. इसलिए पुलिस ने अब लेखपाल राजेंद्र के नजदीकी लोगों की छानबीन शुरू करने का निर्णय लिया.

पुलिस मान रही थी कि फिरौती के लिए जिन्होंने पर्ची लिखी, वे बहुत कम पढ़ेलिखे थे. क्योंकि पर्ची में पहले 10 और बाद में 20 लाख की फिरौती लिखी गई थी. एसपी देहात श्रीश चंद्र ने बताया कि इस संबंध में जहां लेखपाल के नजदीक रहे लोगों की जानकारी ले रहे हैं, वहीं मामले की जांच गहनता से फिर से की जाए. ताकि बच्चे के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा जा सके.

पुलिस ने गोलू की मां से पर्ची मिलने के बारे में पूछताछ की. उस से जानकारी मिली कि गोलू की चप्पलों को उठाते वक्त नीचे दबी फिरौती की पर्ची उड़ गई थी, उस समय उस ने गौर नहीं किया था. बाद में पर्ची पड़ौस में रहने वाले अमित की पत्नी मधु ने ला कर दी थी. इस पर पुलिस ने मधु से पूछताछ की, मधु इनकार करने लगी. मधु की हरकत से पुलिस को उस पर शक हो गया. पुलिस ने 12 मई को मधु को हिरासत में लेने के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की.

इस पर मधु ने फिरौती की पर्ची कुसुम को देने की बात स्वीकार करते हुए गोलू के अपहरण में अपने पति अमित, सगे देवर विनय उर्फ वीनू तथा ममेरे देवर विशाल के शामिल होने की बात बताई.

पुलिस ने इस संबंध में अमित, मधु, विशाल निवासी तिरवाया, थाना राया को गिरफ्तार कर लिया. अमित का भाई  विनय  निवासी टोंटा, हाथरस फरार था. गिरफ्तार तीनों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर गोलू के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.—

अमित मैजिक चालक था. महाराष्ट्र की मधु नाइक मथुरा में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए आई थी. अमित ने मधु को अपनी मैजिक में बैठा कर गोवर्धन की परिक्रमा कराई.

इस मुलाकात के बाद दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. बाद में उस ने 2015 में मधु से प्रेम विवाह कर लिया. उस ने मधु से खुद को बहुत पैसे वाला बताया था. जबकि वह टेंट की सिलाई का काम करने के साथ ही मैजिक भी चलाता था. शादी के बाद शानोशौकत में धीरेधीरे उस पर 5 लाख रुपए का कर्जा हो गया.

इस वारदात से 2 माह पहले ही अमित ने परशुराम कालोनी में रामबाबू का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले वह भोलेश्वर कालोनी में किराए पर रहता था. वह मूल रूप से टोंटा, हाथरस का रहने वाला था. पड़ोसी होने के नाते गोलू व उस की बहनें उस के यहां खेलने आती थीं.

कर्जा चुकाने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. इस योजना में अमित ने पत्नी मधु के साथ ही अपने छोटे भाई विनय उर्फ वीनू व मामा के लड़के विशाल को भी शामिल कर लिया था. गोलू रोजाना की तरह 8 मई को भी अपनी 2 बहनों के साथ पड़ोसी अमित के घर खेलने आया था.

उस दिन दोनों बहनें घर के अंदर लूडो खेलती रहीं और योजना के मुताबिक मधु ने गोलू को अपने पति अमित के साथ मैजिक में बैठा दिया और कहा, ‘‘अंकल तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं. बच्चे को बहलाफुसला कर अमित गोलू को कच्चे रास्ते से होता हुआ छोटे भाई

वीनू के पास नगला टोंटा, हाथरस ले गया.  वहां वीनू को बच्चा देने के बाद कहा, ‘‘जब विशाल फोन करे बच्चे को तभी छोड़ना.’’

बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस का दवाब बढ़ा तो अपहरणकर्ता डर गए. पकड़े जाने के भय से उन्होंने बालक को दूसरे दिन बिना फिरौती वसूले ही छोड़ दिया. यह बालक गांव तंबका के पास ग्रामीणों को रोता हुआ मिला था. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने प्रैस वार्ता में बताया, शादी के बाद अमित पर 5 लाख का कर्जा हो गया था उसे उतारने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी.

पुलिस का दवाब बढ़ा तो इन लोगों ने बच्चे को अगले दिन ही सड़क पर छुड़वा दिया था. प्रोत्साहन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने टीम में शामिल एसपी देहात श्रीश चंद्र, सीओ विनय चौहान, थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा, स्वाट व सर्विलांस टीम को 50 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की है. गिरफ्तार तीनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

दंपति का एक साल का बेटा भी उन के साथ जेल में है क्योंकि उस की सुपुर्दगी लेने वाला कोई नहीं था. जबकि चौथे आरोपी विनय उर्फ वीनू की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. अपने को अमीर दिखाने के चक्कर में यदि अमित ने अपने सिर पर कर्ज का बोझ न चढ़ाया होता तो आज उस की हंसती खेलती जिंदगी होती लेकिन पैसे की झूठी शान दिखाने में उसे जुर्म का सहारा लेना पड़ा, जिस के चलते परिवार सहित जेल की हवा खानी पड़ी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जून 2020   

यार की खुशबू: प्यार के लिए पति से धोखा

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.

कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई.

12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई.

थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है. इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे.

इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी.

कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए.

फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए. उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली.

थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी.

इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था.

फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई.

जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए.

इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

दक्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र  की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई.

पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता.

एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी.

खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे.

कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा.

कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा.

कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी.

कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा.

पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, अप्रैल 2020

पुखराज की खूनी लीला: जब पत्नी ही बन गई पति की खूनी

लीला और पुखराज का विवाह 2017 में हुआ था. पुखराज का परिवार जिला अजमेर के पीसांगन के नाड क्षेत्र में रहता था. पुखराज जाट को मिला कर उस के 5 भाई थे. यह परिवार कई पुश्तों से नाड के पास खेतों में बनी ढाणी में रह रहा था. सारे भाई खेतीबाड़ी व पशुपालन के साथ प्राइवेट नौकरी कर के अपने परिवार का लालनपालन करते थे.

पुखराज की पत्नी लीला का मायका अजमेर जिले के किशनगढ़ की बजरंग कालोनी में था. उस के परिवार में उस की मां रामकन्या और भाई किशन जाट थे. पुखराज और लीला का दांपत्य जीवन खुशहाली में गुजर रहा था. पतिपत्नी में प्यार भी था और अंडरस्टैंडिंग भी. जब दोनों के बीच बेटी अनुप्रिया आ गई तो खुशियां और भी बढ़ गईं.

लीला अपनी मासूम बेटी अनुप्रिया से बहुत प्यार करती थी. उस की वजह से वह पति को पहले की तरह समय नहीं दे पाती थी. इस बात को ले कर दोनों के अपनेअपने तर्क थे. लेकिन पुखराज लीला के तर्कों से संतुष्ट नहीं होता था.

लीला ज्यादातर अपने मायके बजरंग कालोनी, किशनगढ़ में रहती थी. पुखराज को यह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उस ने अपना घर छोड़ कर किशनगढ़ के वार्ड नंबर-2, गांधीनगर में किराए का मकान ले लिया और वहीं रहने लगा.

लीला कहने को तो पति पुखराज को अपना सर्वस्व मानती थी, लेकिन उस का अवैध संबंध सिमारों की ढाणी में रहने वाले रामस्वरूप जाट से था. रामस्वरूप पैसे वाला था. जब उस की नजरें लीला से टकराईं तो वह उसे पाने को बेताब हो उठा. जब तक उस ने लीला का तन नहीं भोगा, तब तक उस के पीछे पड़ा रहा.

लीला और रामस्वरूप ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले रखे थे. जब भी मौका मिलता, दोनों मोबाइल पर बात कर के मिलने की जगह तय कर लेते. रामस्वरूप अपनी प्रेमिका की हर चाहत पूरी करता था. यही वजह थी कि लीला अपने पति पुखराज के बजाय रामस्वरूप को ज्यादा तवज्जो देती थी.

वैसे भी रामस्वरूप पुखराज से स्मार्ट और गठीले बदन वाला युवक था. बातें भी रसदार करता था और तन के खेल में भी माहिर था. रामस्वरूप के आगे पुखराज कुछ नहीं था. लीला ने भी अब अपने दिल में पति की जगह प्रेमी की तसवीर बसा ली थी.

कह सकते हैं कि वह रामस्वरूप पर फिदा थी. दांपत्य में जब भी ऐसा होता है, पतिपत्नी के रिश्ते में दरार आ जाती है. पुखराज लीला के रूखेपन को समझ नहीं पा रहा था. इस सब को ले कर वह मन ही मन परेशान रहने लगा.

जो लीला पुखराज को ले कर प्यार का दंभ भरती थी, उसे वही पति अब फूटी आंख नहीं सुहाता था. बहरहाल, पतिपत्नी में मनमुटाव रहने लगा तो आपसी रिश्तों में भी खटास आ गई.

पुखराज ने लिखाई रिपोर्ट

दिसंबर, 2019 में पुखराज ने रामस्वरूप जाट और उस के दोस्त सुरेंद्र के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. उस ने रामस्वरूप जाट और सुरेंद्र जाट पर पत्नी और बेटी के अपहरण और पत्नी से बलात्कार का आरोप लगाया था.

उस की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रामस्वरूप और सुरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रामस्वरूप ने बताया कि पुखराज की पत्नी लीला अपनी मरजी से उस के साथ गई थी, साथ में उस की बेटी भी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया. गिरफ्तारी के 2 महीने बाद रामस्वरूप जमानत पर छूट गया. उसे लीला से कोई शिकायत नहीं थी. सो उस से फिर से मिलने लगा. इसी बीच रामस्वरूप ने लीला, उस की मां रामकन्या और भाई किशन जाट पर दबाव डाला कि वे पुखराज से राजीनामा करवा दें.

रामस्वरूप के कहने पर लीला, उस की मां और भाई ने पुखराज पर दबाव बना कर कहा कि रामस्वरूप और सुरेंद्र को सजा दिला कर उसे क्या हासिल होगा. बेहतर यह है कि राजीनामा कर ले. लेकिन पुखराज ने समझौते से साफ मना कर दिया.

लीला ने यह बात मां, भाई और रामस्वरूप को बता दी. इस से पतिपत्नी के रिश्ते में और भी जहर घुलने लगा. रामस्वरूप की तमाम कोशिशों के बाद भी पुखराज राजीनामे को राजी नहीं हुआ. दरअसल, रामस्वरूप को डर था कि पुखराज द्वारा दर्ज कराए गए अपहरण और दुष्कर्म के केस में उसे और सुरेंद्र को सजा हो जाएगी.

सजा के डर से ही रामस्वरूप पुखराज पर राजीनामे के लिए दबाव बना रहा था. जबकि पुखराज किसी भी कीमत पर राजीनामे के लिए तैयार नहीं था.

अपना दांव खाली जाता देख रामस्वरूप ने यह कह कर लीला की मां और भाई किशन को पुखराज के खिलाफ भड़काया कि वह कैसा दामाद है जो तुम लोगों का इतना कहना भी नहीं मानता. वह तुम सब की थाने, कचहरी में इज्जत उछाल रहा है और तुम चुप हो. उस ने यह भी कहा कि लीला को उस से अलग हो जाना चाहिए. ऐसा करने पर वह अपने आप राजीनामे को तैयार हो जाएगा.

रामस्वरूप के भड़काने से लीला भी उस की बातों में आ कर पुखराज से रिश्ता तोड़ने को तैयार हो गई. पुखराज को अपने हितैषियों से पता चल गया कि लीला और रामस्वरूप के बीच अवैध संबंध हैं. यह जान कर पुखराज को गहरा आघात लगा. उस ने लीला से इस मामले में बात की तो वह उस पर चढ़ दौड़ी.

इस के बाद पतिपत्नी में रोज झगड़ा होने लगा. दिनबदिन दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. मतभेद इतने गहरे हो गए कि लीला ने मां के कहने पर वकील के मार्फत पुखराज को तलाक का नोटिस भिजवा दिया.

पतिपत्नी ने वकील के हलफनामे के आधार पर एकदूसरे से दूर रहने का निर्णय ले लिया. फिर दोनों अलग हो गए. डेढ़ वर्षीय बेटी अनुप्रिया को पुखराज ने अपने पास रख लिया. लीला ने खूब हाथपैर मारे कि बेटी उसे मिल जाए, मगर पुखराज नहीं माना. बच्ची का वह स्वयं पालनपोषण करने लगा.

पुखराज बेटी के साथ किशनगढ़ में ही वार्ड नंबर 2 गांधीनगर में किराए के मकान में रहता था. जबकि लीला बजरंग कालोनी, किशनगढ़ में मां रामकन्या और भाई किशन के साथ रहती थी. मकान के 2 हिस्से थे, एक हिस्से में लीला रहती थी, जबकि दूसरे हिस्से में उस की मां व भाई रहते थे.

पति से अलग हो कर लीला स्वच्छंद हो गई थी. अब वह और रामस्वरूप खुल कर खेलने लगे. दोनों की मौज ही मौज थी. रामस्वरूप सिमारों की ढाणी का रहने वाला था, लेकिन टिकावड़ा गांव में किराए पर रहता था. उस का दोस्त सुरेंद्र, इसी गांव का रहने वाला था.

एक गांव में रहने और एकदूसरे से विचार मिलने की वजह से दोनों जिगरी यार बन गए थे. रामस्वरूप लीला से मिलने किशनगढ़ जाता था और रंगरेलियां मना कर टिकावड़ा लौट आता था.

मोबाइल पर भी दोनों की खूब बातें होती थीं. रामस्वरूप और लीला एकदूसरे पर जान न्यौछावर करते थे. उधर पत्नी से अलग हो कर पुखराज जैसेतैसे दिन काट रहा था.

पुखराज हुआ गायब

22 फरवरी, 2020 की रात पुखराज ने अपनी मासूम बेटी अनुप्रिया को अपने मकान मालिक को देते हुए कहा कि वह एक जरूरी काम से कहीं जा रहा है, काम होते ही लौट आएगा. लेकिन पुखराज वापस नहीं लौटा.

उस के न आने से मकान मालिक परेशान हो गया. क्योंकि उस की मासूम बेटी रो रही थी. पुखराज के भाई दिलीप जाट ने उस के मोबाइल पर काल लगाई तो फोन लीला ने उठाया. दिलीप ने पूछा कि पुखराज कहां है, इस पर लीला ने कहा कि वह मोबाइल उस के पास छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया. वापस लौटेगा तो बता देगी.

इस पर दिलीप जाट ने 24 फरवरी, 2020 को थाना गांधीनगर, किशनगढ़ में अपने भाई पुखराज की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गांधीनगर थाना पुलिस ने पुखराज की काफी खोजबीन की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पुखराज को उस के भाइयों ने भी नातेरिश्तेदारों में खूब ढूंढा. लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूछताछ में लीला ने बताया कि पुखराज और मैं ने कागजों में भले ही तलाक ले लिया था, लेकिन पुखराज अकसर उस से मिलने आता रहता था.

पता चला कि 22 फरवरी को पुखराज लीला से मिलने बजरंग कालोनी आया था. वह अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर कहीं चला गया था. लीला का कहना था कि उस ने सोचा वह अपना मोबाइल भूल से छोड़ गया होगा, बाद में ले जाएगा. लेकिन वह नहीं आया.

दिन पर दिन गुजरते गए, लेकिन पुखराज का कहीं कोई पता नहीं लगा. पुलिस ने उसे ढूंढने में अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखी थी. 2 हफ्ते गुजर जाने पर भी पुलिस पुखराज का सुराग नहीं लगा सकी. उस के घर वाले भी उसे सब जगह तलाश कर चुके थे. पुखराज के भाई दिलीप जाट की समझ में नहीं आ रहा था कि वह गया तो कहां गया.

अचानक दिलीप को याद आया कि 23 फरवरी की शाम जब वह पुखराज को तलाशने उस की पूर्वपत्नी लीला के घर गया था, तब उस ने उस के घर में पुखराज की चप्पल पड़ी देखी थीं. उस ने लीला से पूछा भी था कि पुखराज के चप्पल तो यहीं हैं, वह बाहर क्या पहन कर गया? इस पर लीला कुछ नहीं बता पाई थी.

दिलीप को अब जा कर कुछकुछ कहानी समझ में आ रही थी. उस ने पुखराज के गायब होने के बाद 2-4 बार लीला के पास रामस्वरूप जाट को भी देखा था. वह इतना नादान नहीं था कि कुछ समझ नहीं पाता. उसे संदेह हुआ कि लीला और रामस्वरूप ने पुखराज को कहीं गायब कर दिया है या फिर मार डाला है. यह विचार मन में आया तो दिलीप 6 मार्च, 2020 को थाना गांधीनगर, किशनगढ़ पहुंचा.

दिलीप ने थानाप्रभारी राजेश मीणा को एक प्रार्थनापत्र दिया. अपनी अरजी में उस ने पुखराज की हत्या का संदेह जताया था. उसे पुखराज की पूर्वपत्नी लीला, प्रेमी रामस्वरूप, सुरेंद्र और रामकन्या पर संदेह था.

केस दर्ज कर के गांधीनगर थाने की पुलिस लीला और रामस्वरूप को थाने ले आई और दोनों से सख्ती से पूछताछ की. पहले तो दोनों ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब पुलिस ने सख्त तेवर दिखाए तो दोनों टूट गए. लीला और रामस्वरूप ने पुखराज की हत्या करने की बात स्वीकार ली.

लीला और रामस्वरूप ने पुलिस पूछताछ में बताया कि 22 फरवरी को पुखराज लीला से मिलने बजरंग कालोनी स्थित लीला के मायके आया था. लीला ने  उसे फोन कर के बुलाया था. लीला ने पुखराज को बियर पिलाई, जिस में नींद की गोलियां मिली थीं. थोड़ी देर में वह बेसुध हो कर सो गया. तब लीला ने फोन कर के रामस्वरूप से कहा, ‘‘पुखराज को मैं ने नशीली दवा डाल कर बियर पिला दी है. अब यह बेहोश हो गया है. आओ और जो करना है, कर डालो.’’

रामस्वरूप अपनी बाइक से लीला के घर पहुंच गया. उस ने बेसुध पड़े पुखराज पर कुल्हाड़ी से घातक वार किया, जिस से पुखराज का सिर धड़ से अलग हो गया. खून का फव्वारा फूट पड़ा. फर्श, आंगन दीवारों और उन दोनों के कपड़े खून से लाल हो गए. रात में ही दोनों ने पुखराज के शव को प्लास्टिक की बोरी में भर दिया. दोनों ने रात में ही आंगन, बिस्तर, कपड़े और दीवार वगैरह धो कर खून के धब्बे मिटा दिए.

बेरहम पत्नी और उस का यार

रामस्वरूप ने सुबहसुबह पुखराज के शव को बाइक पर लादा और टिकावड़ा गांव से थोड़ी दूर जंगल में बने एक गड्ढे में डाल दिया. फिर उस ने लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह टिकावड़ा लौट आया.

अगले दिन रामस्वरूप पुखराज के शव की हालत देखने जंगल में गया. तब तक अधजले शव को चीलकौवों ने नोचनोच कर आधा कर दिया था. उस वक्त भी मांसाहारी पक्षी शव को नोच रहे थे. यह देख उसे दहशत सी हुई और वह घबरा कर लौट आया.

लीला और रामस्वरूप ने पुखराज के घर वालों और पुलिस को शुरू से आखिर तक रटेरटे जवाब दिए थे ताकि वे शांत रहें.

हत्या की स्वीकारोक्ति के बाद इंसपेक्टर राजेश मीणा ने घटना की पूरी जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. पुलिस ने लीला और रामस्वरूप को 7 मार्च, 2020 को गिरफ्तार कर लिया. जानकारी मिलने पर एएसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी, डीएसपी गीता चौधरी, किशनगढ़ थानाप्रभारी मनीष सिंह चारण गांधीनगर थाने पहुंच गए. सभी ने पुखराज के हत्यारों से पूछताछ की.

पूछताछ के बाद पुलिस आरोपियों को टिकावड़ा के जंगल में ले गई. वहां पुखराज के शव को तलाश किया गया तो खोपड़ी और इधरउधर फैली कंकाल की हड्डियां ही मिल पाईं. पुलिस ने जंगल में करीब 2 किलोमीटर की परिधि में शव के टुकड़ों की तलाश की. पुलिस अधिकारियों ने विशेषज्ञों की टीम को मौके पर बुलाया और यह जानने की कोशिश की कि कंकाल पुरुष का है या स्त्री का.

कंकाल पुरुष का होने की पुष्टि के बाद पुलिस ने सर्च कर के मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों को ढूंढा. आसपास के क्षेत्र में मानव शरीर के कई हिस्सों की हड्डियों के टुकड़े मिले.

पुखराज की हत्या के 14 दिन बाद यह बात साफ हो गई कि उस का कत्ल हुआ था. एफएसएल की टीम ने घटनास्थल पर आ कर जांच के लिए नमूने लिए.

एडीशनल एसपी किशन सिंह भाटी, डीएसपी गीता चौधरी, किशनगढ़ थानाप्रभारी मनीष सिंह चारण और गांधीनगर एसएचओ राजेश मीणा की उपस्थिति में हत्या का सीन रीक्रिएट कराया गया.

रामस्वरूप किशनगढ़ से 30 किलोमीटर दूर टिकावड़ा में किराए का मकान ले कर रहता था, वह किशनगढ़ आताजाता रहता था. सुनसान होने की वजह से उस ने शव फेंकने के लिए इस जंगल को हत्या से पहले ही चुन लिया था. मनरेगा का काम होने की वजह से वहां गड्ढे भी खुदे थे. पुखराज का शव पहचाना न जा सके, इसलिए रामस्वरूप ने शव पर पैट्रोल डाल कर उसे जला दिया था.

पशुपक्षियों का निवाला बना पुखराज

पक्षियों और जंगली जानवरों ने हड्डियां जगहजगह बिखेर दी थीं. पुलिस ने हड्डियों को एकत्र कर एफएसएल की जांच के लिए भेज दिया. जांच में जुटी पुलिस टीम का मानना था कि पैट्रोल से जलाने के बाद भी शव पूरा नहीं जला था. बाद में उसे पक्षियों और जंगली जानवरों ने नोचा.

पुलिस ने बताया कि लीला अपने पति से अलगाव के बाद बजरंग कालोनी, किशनगढ़ स्थित मायके में अकेली रहती थी. पुखराज कभीकभार उस से मिलने आता था. 22 फरवरी की रात लीला ने फोन कर पुखराज को घर बुलाया था. लीला ने यह जानकारी रामस्वरूप को दे दी थी.

लीला ने पुखराज को नींद की गोलियां डाल कर बियर पिलाई. ज्यादा नशा होने के कारण पुखराज सो गया. आधी रात को रामस्वरूप ने कुल्हाड़ी से पुखराज के सिर पर वार किया, जिस से उस की मौत हो गई. रामस्वरूप और लीला ने रात भर घर में फैला खून साफ किया और पुखराज की लाश को प्लास्टिक की बोरी में पैक कर दिया.

23 फरवरी की सुबह रामस्वरूप लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर पीछे बांध कर ले गया और ठिकाने लगा आया. अपने साथ वह पैट्रोल भी ले गया. लाश को जंगल में मनरेगा के तहत खोदे गए गड्ढे में डाल कर उस पर कैन का पैट्रोल उड़ेल कर आग लगा दी.

8 मार्च, 2020 को पुलिस ने आरोपी लीला जाट और उस के प्रेमी रामस्वरूप जाट को अवकाशकालीन मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर दोनों को पूछताछ के लिए 2 दिन के रिमांड पर ले लिया.

इस अवधि में थाना गांधीनगर की पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर खून से सने बिस्तर, कपड़े, वारदात में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. इस के बाद दोनों को फिर से अदालत पर पेश कर जेल भेज दिया गया.

रामस्वरूप और लीला का सपना था कि पुखराज को रास्ते से हटाने के बाद मौज से रहेंगे. लेकिन पासा उलटा पड़ गया और दोनों अपने गुनाह से बच नहीं सके.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मई 2020

मां, बाप और बेटे के कंधों पर लाश: अवैध संबंध का नतीजा

20 तारीख के यही कोई सुबह के 6 बजे की बात है. कड़ाके की ठंड के साथसाथ कोहरे की चादर भी फैली हुई थी. पौ फटते ही धीरेधीरे अस्तित्व में आती सूरज की किरणों ने कोहरे से मुकाबला करना शुरू किया तो दिन का मिजाज बदलने लगा. ठंड कम होती गई और कोहरे की चादर झीनी.

ग्वालियर के थाना हजीरा क्षेत्र के कांच मिल इलाके में बसी श्रमिकों की बस्ती में रहने वाले लोग नित्यक्रिया के लिए रेल पटरी के पास गए तो उन्हें वहां एक पुरुष की रक्तरंजित लाश पड़ी दिखाई दी.

खून चूंकि जम कर काला पड़ गया था, इस से लग रहा था कि उसे मरे हुए 1-2 दिन हो गए होंगे. खबर फैली तो पैर कटी लाश के आसपास काफी भीड़ जमा हो गई.

एकत्र भीड़ में तरहतरह की चर्चाएं हो रही थीं. लोग उसे पहचानने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसे कोई भी नहीं पहचान पाया. इस बीच किसी ने हजीरा थाने को फोन कर रेलवे लाइन पर लाश पड़ी होने की सूचना दे दी.

कुछ ही देर में  थानाप्रभारी आलोक परिहार पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस को आया देख भीड़ लाश के पास से हट गई.

थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 45 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में साफी लिपटी थी, जिस का एक भाग मुंह में ठुंसा था. इस से यह बात साफ हो गई कि उस की हत्या कहीं और की गई  थी, और बाद में लाश को यहां डाल दिया गया था.

तलाशी में पुलिस को मृतक की जेबों से एक पर्स मिला, जिस में ड्राइविंग लाइसैंस और ग्वालियर नगर निगम का परिचय पत्र था. इन दोनों चीजों से मृतक की शिनाख्त हो गई. इस से पुलिस का काम आसान हो गया. मृतक का नाम अखिलेश था, परिचय पत्र और लाइसैंस में उस का पता लिखा था. अखिलेश नगर निगम की कचरा ढोने वाली गाड़ी चलाता था. मौके से पुलिस को मृतक के नामपते के अलावा कोई भी अहम सबूत हाथ नहीं लगा.

ड्राइविंग लाइसैंस और परिचय पत्र को कब्जे में ले कर थानाप्रभारी आलोक परिहार ने 2 सिपाहियों को भेज कर मृतक के परिजनों को मौके पर बुलवा लिया. घर वाले अखिलेश की लाश देखते ही बिलखने लगे. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

थाने पहुंचते ही थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

मामला संगीन था, इसलिए एसपी नवनीत भसीन के आदेश पर एसपी (सिटी) रवि भदौरिया ने इस ब्लाइंड मर्डर के खुलासे के लिए हजीरा थानाप्रभारी आलोक परिहार की अगुवाई में एक टीम का गठन कर दिया. इस टीम का निर्देशन एएसपी पंकज पांडे कर रहे थे.

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह गला घोटा जाना बताया गया था. मौत का समय रात 11 बजे से 2 बजे के बीच का था.

समय देख कर पुलिस को लगा कि अखिलेश की हत्या किसी नजदीकी व्यक्ति ने की होगी, इसलिए पुलिस ने उस के पड़ोसियों, रिश्तेदारों के अलावा परिचितों से भी पूछताछ कर के जानना चाहा कि उस का किनकिन लोगों के यहां ज्यादा आनाजाना था.

पूछताछ में पुलिस को पता चला कि अखिलेश पिछले 8 सालों से अवाडपुरा निवासी मुश्ताक के घर आताजाता था. घर में बैठ कर दोनों देर रात तक शराब पीते थे.

पुलिस ने अखिलेश और मुश्ताक के घर वालों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि अखिलेश एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करता था. उस नंबर की जांच हुई तो पता चला कि वह मुश्ताक के नाम पर था. लेकिन उस नंबर पर उस की पत्नी अंजुम भी बात करती थी.

हकीकत जानने के लिए पुलिस मुश्ताक के घर गई और उस की पत्नी अंजुम से पूछताछ की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. दोनों ने यह बात स्वीकारी की अखिलेश से बात भी होती थी और वह घर भी आता था.

कुछ लोगों से की गई पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि पिछले कुछ दिन से मुश्ताक को अखिलेश का घर आनाजाना खटक रहा था. सौरभ और छोटे खान भी उसे टेढ़ी नजर से देखते थे. खास कर सौरभ और छोटे खान को तो अखिलेश फूटी आंख पसंद नहीं था. जबकि अंजुम को बापबेटों की बातें कांटे की तरह चुभती थीं. इसी बात को ले कर अंजुम का अपने शौहर और बेटों से विवाद होता रहता था.

जानकारी काम की थी. पुलिस का शक अंजुम के पति और बेटों के इर्दगिर्द घूमने लगा. यह भी संभव था कि पति और बेटे मां के प्रेमी के कातिल बन गए हों. लेकिन इस बाबत पुख्ता सबूत हाथ न लगने से पुलिस असमंजस की स्थिति में थी.

एक और अहम बात यह थी कि अखिलेश की हत्या की भनक पड़ोसियों तक को नहीं थी. पुलिस के पहुंचने पर ही पड़ोसियों के बीच इस बात को ले कर बहस छिड़ी कि आखिरकार मुश्ताक के घर पुलिस के आने की असल वजह क्या है.

पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर एक बार फिर अंजुम से अलग से पूछताछ की. उस ने बिना डरे बड़ी चतुराई के साथ सभी सवालों के जबाव दिए. अखिलेश से दोस्ती और परिवार में इस बात के विरोध की बात तो उस ने स्वीकार की, लेकिन अखिलेश की हत्या करने की बात नकार दी.

पुलिस ने जब अखिलेश के परिजनों से जानना चाहा कि उस की किसी से कोई ऐसी रंजिश थी, जो हत्या की वजह बनी हो. साथ ही यह भी पूछा कि अखिलेश का किसी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था. घर वालों ने बताया कि उन की जानकारी में अखिलेश का किसी से कोई विवाद नहीं था.

पुलिस टीम ने अखिलेश की तथाकथित प्रेमिका अंजुम और उस के परिवार को शक के दायरे में रख कर जांच में परिवर्तन किया. इस मामले की कई दृष्टिकोण से जांच की गई.

महीनों चली जांच में कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं मिला जो हत्यारों को कटघरे में खड़ा कर देता. लौट कर बात मुश्ताक और अंजुम पर आ कर ठहर जाती थी. अंतत: पुलिस ने एक बार फिर सर्विलांस ब्रांच की मदद ली. काफी मशक्कत के बाद एक ठोस सबूत हाथ लगा. सबूत यह कि अंजुम, मुश्ताक और अखिलेश के मोबाइल फोन की लोकेशन अवाडपुरा में पाई गई थी.

इस सबूत के बाद पुलिस टीम ने एक बार फिर मुश्ताक के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. एक फुटेज से पता चला कि हत्या वाले दिन अखिलेश मुश्ताक के घर आया तो था, मगर किसी भी फुटेज में वह वापस जाता हुआ दिखाई नहीं दिया. मुश्ताक और अंजुम ने उस के आने की बात से इनकार नहीं किया था. इसलिए उन्हें आरोपी नहीं माना जा सकता था.

2 ठोस सबूतों के बाद पुलिस ने बिना देर किए 7 मार्च को अंजुम को हिरासत में ले लिया और उसे थाने ले आई.

थाने की देहरी चढ़ते ही अंजुम की सिट्टीपिट्टी गुम होनी शुरू हो गई. इस बार पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बना कर पूछताछ की.

अंजुम पुलिस की बात को झुठला नहीं सकी. आखिर उस ने सच बोलते हुए कहा, ‘‘साहब, अखिलेश को मैं ने और मेरे पति व बेटे ने पड़ोसी के साथ मिल कर मारा है.’’

अंजुम ने पुलिस को दिए बयान में अखिलेश की हत्या की जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प निकली—

अखिलेश साहू नाका चंद्रबदनी माता वाली गली में रहता था और नगर निगम में कचरा ढोने वाली गाड़ी के चालक के पद पर कार्यरत था. उसे शराब पीने की लत थी. अखिलेश का शैलेंद्र के जरिए मुश्ताक से परिचय हुआ था. शैलेंद्र और मुश्ताक पड़ोसी थे.

पहले अखिलेश खानेपीने के लिए शैलेंद्र के घर आताजाता था. मुश्ताक भी पीने का शौकीन था, इसलिए वह भी इन के साथ बैठने लगा. फिर कुछ दिन बाद अखिलेश के खर्च पर शराब की महफिल मुश्ताक के घर जमने लगी. अखिलेश के घर वालों ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा तो घर वालों ने उस से इस बारे में बात करना ही छोड़ दिया.

अखिलेश रोजाना शाम की ड्यूटी पूरी कर के शराब पीने के लिए अवाडपुरा में मुश्ताक के घर चला जाता था.

इसी दौरान उस की मुलाकात मुश्ताक की पत्नी अंजुम से हुई. जल्दी ही अखिलेश को अंजुम से भावनात्मक लगाव हो गया. अंजुम भी उस से लगाव रखने लगी थी.

दोनों के बीच अकसर मोबाइल पर भी बातें होती थीं. भावनात्मक बातों का यह सिलसिला शरीरों पर जा कर रुका. एक बार दोनों के बीच की दूरी मिटी तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. जब भी अंजुम और अखिलेश को मौका मिलता, बिना आगेपीछे सोचे हदें लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

अंजुम और अखिलेश के बीच अवैध संबंध बने तो उन की बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया.

अखिलेश अंजुम का हर तरह से खयाल रखने लगा था, इसलिए आसपड़ोस वालों को संदेह हुआ तो लोग दोनों के संबंधों को ले कर चर्चा करने लगे. नतीजा यह निकला कि लोग अखिलेश को देख कर मुश्ताक के बच्चों से कहने लगे, ‘तुम्हारा दूसरा बाप आ गया.’

अंजुम को उस के बडे़ बेटे सौरभ ने अखिलेश के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उस ने यह बात पिता को बता दी. मामले ने बेहद संगीन और नाजुक मोड़ अख्तियार कर लिया था, लिहाजा बापबेटे ने अंजुम को ऊंचनीच बता कर भविष्य में अखिलेश से कभी मेलमुलाकात न करने की कसम दिलाई.

अंजुम मुश्ताक की पत्नी ही नहीं, उस के बच्चों की मां भी थी, इसलिए बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए मुश्ताक ने दोबारा ऐसी गलती न करने की चेतावनी दे कर उसे माफ कर दिया.

लेकिन जिस का पैर एक बार फिसल चुका हो, उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजुम और उस के प्रेमी अखिलेश का भी था. कुछ दिन शांत रहने के बाद अंजुम अपने वायदे पर टिकी न रह सकी. मौका पाते ही वह चोरीछिपे अखिलेश से मिलने लगी.

इस बात का पता मुश्ताक को लगा तो अपना घर बचाने के लिए उस ने बड़े बेटे के साथ बैठ कर अखिलेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस योजना में मदद के लिए मुश्ताक के बड़े बेटे ने अपने दोस्त सलमान को भी शामिल कर लिया.

हालांकि बिना अंजुम की मदद के अखिलेश को ठिकाने लगा पाना सौरभ और मुश्ताक के बूते की बात नहीं थी. उन्होंने जैसेतैसे अंजुम को भी इस योजना में शामिल कर लिया. तय योजना के अनुसार 18 दिसंबर की रात अंजुम से फोन करवा कर अखिलेश को घर पर बुलाया गया.

उस के आते ही मुश्ताक ने उसे जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो कर गिरने लगा तो बापबेटे ने अंजुम के हाथों साफी से उस का गला घोटवा कर उस की हत्या करवा दी. इस काम में सौरभ और शौहर मुश्ताक ने भी मदद की.

हत्या करने के बाद मुश्ताक और सौरभ रात में ही अखिलेश की लाश को ठिकाने लगाने की सोचते रहे, लेकिन रात ज्यादा हो जाने से उन का यह मंसूबा पूरा न हो सका. फलस्वरूप लाश को बाथरूम में छिपा दिया गया.

अगले दिन 19 दिसंबर को सौरभ घूमने जाने के बहाने अपने मामा की नैनो कार एमपी07सी सी3726 ले आया.

जब मोहल्ले में सन्नाटा हो गया, तो रात 11 बजे अखिलेश की लाश को बाथरूम से निकाल कर मुश्ताक, सौरभ, अंजुम और सलमान ने मिल कर कार में इस तरह बैठाया कि अगर किसी की नजर पड़े तो लगे कि अखिलेश ज्यादा नशे में है.

लाश को कार में डाल कर आरोपी अंधेरे में कांच मिल क्षेत्र में रेल की पटरी पर लाए और पटरी पर इस तरह रख दिया, जिस से लगे कि उस ने आत्महत्या की है.

अपराध करने के बाद कोई कितनी भी चालाकी  से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है.

अंजुम ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी.

पुलिस ने अंजुम के बेटे सौरभ की निशानदेही पर वह नैनो कार भी बरामद कर ली, जिस में उस ने और उस के पिता ने अखिलेश की लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंका था. काफी खोजबीन के बाद भी अखिलेश का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया.

विस्तार से पूछताछ के बाद हत्या के चारों आरोपियों सौरभ, उस के पिता मुश्ताक खान, गोरे उर्फ सलमान और अंजुम के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मई 2020

फेसबुकिया प्यार: ऑनलाइन मोहब्बत बनी जी का जंजाल

19 जनवरी, 2020 की सुबह लगभग 10 बजे की बात है. जयपुर के तालुका जयसिंह पुरा की रहनेवाली 22 वर्षीय नैना उर्फ रेशमा मंगलानी अपनी स्कूटी ले कर पति के साथ घर से बाहर निकली तो वह वापस घर नहीं लौटी.

घरवालों ने उस का फोन नंबर मिलाया तो फोन बंद आ रहा था. काफी रात बीत जाने के बाद भी जब वह नहीं आई तो उस के मातापिता और परिवार वालों को चिंता होने लगी. घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह अपने 2 महीने के दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर कहां चली गई.

घरवालों ने रेशमा मंगलानी के पति अयाज अंसारी से बात की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया. बेटी के इस तरह गायब होने से मांबाप का तो दिल बैठने लगा. वे अपने स्तर पर उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने बेटी के दोस्तों और सहेलियों से उस के बारे में पूछताछ की.

फोन कर के सगेसंबंधियों से भी पूछताछ करते रहे. लेकिन कहीं से भी राहत देने वाली कोई जानकारी नहीं मिली. 20 घंटे गुजर जाने के बाद भी जब नैना उर्फ रेशमा मंगलानी की कोई खबर नहीं मिली तो किसी अज्ञात अनहोनी को ले कर परिवार वालों का मन अशांत हो गया.

सगेसंबंधियों और पड़ोसियों की सलाह पर रेशमा के पिता थाना आमेर पहुंचे और थानाप्रभारी को सारी बातें बता कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. थानाप्रभारी ने जब उन से किसी पर शक होने के बारे में पूछा तो उन्होंने रेशमा के पति अयाज अंसारी पर संदेह जाहिर किया. क्योंकि वह उस के साथ ही निकली थी.

मामला पौश कालोनी के एक प्रतिष्ठित परिवार से जुड़ा हुआ था. इसलिए थानाप्रभारी ने इसे गंभीरता से लेते हुए यह जानकारी उच्च अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रौल रूम को भी दे दी.

चूंकि नैना के पिता और परिवार वालों ने उस के पति अयाज अंसारी पर अपना संदेह जाहिर किया था. इसलिए पुलिस ने अयाज अंसारी को थाने बुला कर पूछताछ की. अयाज अंसारी ने बताया कि रेशमा सुबह 11 बजे से ले कर रात 9 बजे तक उस के साथ उस के घर पर रही. इस के बाद वह चली गई थी. वह कहां गई इस बात को ले कर वह खुद परेशान है और उसे खोज रहा है.

अयाज से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे घर भेज दिया और पुलिस अपने स्तर से रेशमा की खोज करने लगी. पुलिस के सामने यह बात आई कि नैना उर्फ रेशमा बहुत खूबसूरत थी. वह सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहती थी. यूट्यूब, फेसबुक और वाट्सएप पर वह अपने दोस्तों और सहेलियों के साथ चैटिंग में व्यस्त रहती थी. फेसबुक और वाट्सऐप पर वह नएनए पोज में अपने फोटो खींच कर शेयर करती, जिन्हें काफी लोग पसंद भी करते थे.

थोड़े ही दिनों में नैना उर्फ रेशमा मंगलानी फेसबुक और यूट्यूब पर फेमस हो गई. फेसबुक पर उस के 2 हजार, 300 से अधिक फ्रेंड और 6 हजार, 400 से ज्यादा फोलोअर्स हो गए थे. वह अकसर फोन पर बिजी रहती थी. नैना के पास घूमने के लिए एक स्कूटी थी. जिसे ले कर वह अकसर अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने के लिए आतीजाती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को संदेह हुआ कि नैना उर्फ रेशमा मंगलानी की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है. आगे की जांच के लिए पुलिस ने रेशमा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पहले कि पुलिस उस की काल डिटेल्स का अध्ययन करती, पुलिस को एक सनसनीखेज सूचना मिली.

रेशमा की मिली लाश

21 जनवरी, 2020 की सुबह के समय किसी राहगीर ने थाना आमेर में फोन कर के सूचना दी कि जयपुरदिल्ली राजमार्ग स्थित नए माता मंदिर के सामने झाडि़यों में किसी युवती का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही पुलिस टीम मौके पर पहुंच गई. मृतका का चेहरा इतना विकृत था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था. हत्यारे ने लाश की पहचान मिटाने की पूरी कोशिश की थी.

लाश से कुछ दूर एक स्कूटी खड़ी थी. एक दिन पहले ही नैना के पिता ने थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. रेशमा भी स्कूटी ले कर घर से निकली थी. इसलिए थानाप्रभारी ने रेशमा के घरवालों को फोन कर के मौके पर बुलवा लिया. घरवालों ने लाश की शिनाख्त नैना उर्फ रेशमा के रूप में कर दी. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

नैना मंगलानी की हत्या की खबर पाते ही उस के घर में मातम छा गया. परिवार के लोग रोतेपीटते थाने पहुंचे. उन्होंने पुलिस को बताया कि नैना की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि उस के पति अयाज अंसारी ने ही की है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए. उन्होंने अयाज के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखा दी. जब यह खबर मीडिया द्वारा लोगों को पता चली तो जयपुर और आसपास के शहरों में रहने वाले नैना (रेशमा) के फालोअर्स भी सकते में आ गए.

उन्होंने सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दीं. मामला तूल पकड़ने लगा तो डीसीपी (क्राइम) अशोक कुमार गुप्ता ने इस केस को अपने हाथों में ले कर जांच के लिए पुलिस टीम बना दी.

चूंकि नैना के घर वालों ने नामजद रिपोर्ट लिखाई थी इसलिए पुलिस ने अयाज अंसारी को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. थाने आ कर उस ने वही राग अलापना शुरू किया जो पहले अलापा था. लेकिन इस बार उस का कोई पैंतरा नहीं चला. क्योंकि पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और काल डिटेल्स से उस के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठे कर लिए थे. अयाज अंसारी से विस्तार से पूछताछ के लिए पुलिस ने उसे 2 दिन के रिमांड पर लिया.

रिमांड के दौरान वह पुलिस के सवालों के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि उस के सामने अपना गुनाह स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा.

उस ने अपनी पत्नी नैना उर्फ रेशमा मंगलानी की बिंदास जिंदगी और बेरहम हत्या की जो कहानी बताई उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह थी.

26 वर्षीय अयाज अंसारी एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह अपने परिवार के साथ जयपुर के धारगेट सराय मोहल्ला में रहता था. उस के पिता का नाम रियाज मोहम्मद अंसारी था. छोटा सा कारोबार था. ग्रैजुएशन करने के बाद वह अजमेर स्थित एक फाइनैंस कंपनी में सर्विस करने लगा.

मनमौजी और रंगीन स्वभाव का होने के नाते नैना मंगलानी की तरह वह भी सोशल मीडिया पर सक्रिय था. उस ने भी यूट्यूब और फेसबुक पर अपना अकाउंट खोल रखा था. काम से समय मिलने पर वह अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर चैटिंग में व्यस्त हो जाता था.

एक दिन जब फेसबुक पर उस ने नैना नाम की लड़की का फोटो देखा तो वह उस की तरफ आकर्षित हो गया. उस ने नैना के फोटो को लाइक किया और नैना को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. नैना ने भी अयाज अंसारी की दोस्ती स्वीकार कर ली. नैना के सैकड़ों दोस्तों के साथ एक नाम और जुड़ गया. इस के बाद दोनों के बीच चैटिंग शुरू हो गई थी. करीब 4 महीने तक चली चैटिंग के बाद जब दोनों एकदूसरे के आमनेसामने आए तो उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई.

अयाज से हुई दोस्ती

जुलाई, 2017 तक सब कुछ ठीकठाक था. नैना मंगलानी और अयाज अंसारी की बातचीत सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित थी, लेकिन इस के बाद सब कुछ बदल गया था. जुलाई के ही महीने में एक दिन नैना मंगलानी अपना क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए एक कंपनी में गई. अयाज उसी कंपनी में सर्विस करता था. फेसबुक फ्रेंड होने के नाते दोनों एकदूसरे को तुरंत पहचान गए और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

अपने बिंदास और मौडर्न स्वभाव की वजह से नैना मंगलानी को अयाज अंसारी से घुलनेमिलने में समय नहीं लगा. इस एक मुलाकात से नैना मंगलानी की जिंदगी के मायने ही बदल गए. नैना मंगलानी अयाज अंसारी के स्वभाव और बातचीत से काफी प्रभावित थी. इतना ही नहीं वह उसे अपना दिल दे बैठी थी. अयाज अंसारी तो पहले से नैना मंगलानी का दीवाना था. उस के दिल में भी नैना के लिए एक खास जगह बन गई थी.

जिस दिन से दोनों की मुलाकात और जानपहचान हुई थी. उस दिन से दोनों की आंखों की नींद उड़ गई थी. उन की सुबह की चैटिंग गुड मौर्निंग से शुरू होती थी और पूरे दिन चलती थी.

दोस्ती प्यार में बदल गई थी, चैटिंग के बाद दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं. दोनों साथसाथ सैरसपाटा करते. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि उन्होंने अपनी सीमाएं भी तोड़ डालीं.

एक बार जब मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर टूटती ही चली गई. अब वह जब तक एकदूसरे को मिल या देख नहीं लेते थे, मन बेचैन रहता था. अपनी इस बेचैनी को खत्म करने के लिए दोनों ने साथसाथ रहने का मन बनाया. उन्होंने शादीनिकाह करने का फैसला कर लिया था.

वैसे तो दोनों के परिवार वाले खुले और आजाद विचारों के थे. लेकिन मजहब अलगअलग होने के कारण मन में थोड़ा डर भी था, कि उन के रास्ते में कोई समस्या न खड़ी हो जाए. यह सोच कर वह अक्तूबर, 2017 में अपना घर छोड़ कर जयपुर से भाग कर गाजियाबाद आ गए.

गाजियाबाद में दोनों ने पहले एक मंदिर में जा कर हिंदू रीतिरिवाज से शादी की. उस के बाद उन्होंने एक मसजिद में निकाह कर लिया. निकाह के बाद वह नैना से रेशमा अंसारी बन गई.

नैना मंगलानी और अयाज अंसारी के परिवारों में थोड़ी सी नाराजगी जरूर हुई थी. लेकिन बेटी और बेटे की खुशी के लिए दोनों परिवारों ने समझौता कर लिया था. शादी और निकाह के बाद इन लोगों ने जयपुर के कालवाड़ रोड स्थित एक हाउसिंग कालोनी में एक फ्लैट फाइनेंस करा लिया और उसी में रहने लगे. शादी के कुछ दिनों बाद रेशमा गर्भवती हो गई.

एक कहावत है कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं. लेकिन जैसेजैसे उन के नजदीक पहुंचते हैं तो उन की आवाज शोर लगने लगती है. यही हाल नैना और अयाज अंसारी के बीच हुआ. 2 सालों तक चली दोनों की लव स्टोरी में धीरेधीरे दरार आने लगी. जिस मीडिया ने उन्हें मिलाया था वही मीडिया अब उन के विवाद का कारण बन गया.

अपनी प्रशंसा की भूखी नैना का सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का भूत उतरा नहीं था. वह शादी के बाद भी लगातार एक्टिव रहती थी. उस ने फेसबुक पर अपनी आईडी बना रखी थी. एक नैना के नाम से तो दूसरी रेशमा के नाम से. उस का हेडफोन हमेशा उस के कानों में लगा रहता था, जिस पर वह अकसर बातें किया करती, वह पति अयाज अंसारी की उपेक्षा करने लगी थी, जो उसे पसंद नहीं थी.

इस से अयाज अंसारी के दिल में कहीं न कहीं संदेह पैदा हो रहा था. उसे ऐसा लग रहा था कि जिस तरह से वह सोशल मीडिया के जरिए उस की जिंदगी में आई, उसी प्रकार कहीं वह किसी और की जिंदगी में तो नहीं दाखिल हो रही है. इस संदेह को ले कर पहले तो अयाज अंसारी ने उसे समझाया और सोशल मीडिया से बैकआउट करने का भी दबाव बनाया. लेकिन नैना को उस का यह दबाव पसंद नहीं आया, उस का कहना था कि वह आजाद और आधुनिक विचारों वाली है. उसे किसी तरह के बंधन में बंधना स्वीकार नहीं है.

शादी हो गई पर आदत नहीं बदली नैना की

नैना की इस बात से अयाज अंसारी सहमत नहीं था. नतीजा यह हुआ कि दोनों की तकरार बढ़ गई. इस बीच अयाज ने गुस्से में कई बार उस का फोन छीन कर तोड़ डाला था, लेकिन नैना हर बार नया फोन खरीद लेती थी, फिर रेशमा की डिलीवरी के बाद माहौल ऐसा बना कि वह अपने एक माह के बच्चे को ले कर अपने मायके आ गई और उसे तलाक का नोटिस दे दिया.

नोटिस पा कर अयाज अंसारी बौखला गया. इस के बाद विश्वास हो गया कि उस की पत्नी का किसी न किसी फ्रेंड से चक्कर चल रहा है. कहा जाता है कि संदेह और ईर्ष्या में इंसान खुद ही खोखला हो जाता है. यही हाल अयाज का भी था.

अयाज ने पहले तो पत्नी से कहा कि वह मायके से लौट आए लेकिन जब वह आने के लिए तैयार नहीं हुई तो उस ने एक खतरनाक फैसला कर लिया.

योजना के अनुसार वह पत्नी को मनाने के लिए उस के मायके पहुंच गया और उस ने अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगते हुए उस के सामने सुलह का प्रस्ताव रखा. जिसे रेशमा ने स्वीकार कर लिया. यही समझौता रेशमा को महंगा पड़ा.

19 जनवरी, 2020 की सुबह जब नैना अपने बच्चे को मां के पास छोड़ स्कूटी से अयाज अंसारी के साथ घर से बाहर निकली तो वापस घर नहीं आई. अयाज अंसारी पहले नैना पत्नी को अपने घर कालवाड़ ले कर गया. वहां दोनों ने जम कर बीयर पी और मौजमस्ती कर रात 9 बजे के करीब दिल्लीजयपुर राजमार्ग पर स्थित आमेर आ गए. वहां दोनों ने चाय की दुकान पर जा का चाय पी. थोड़ी देर बाद अयाज अंसारी उसे माता मंदिर के पास ले कर गया.

पहले तो नैना उस सुनसान जगह तक जाने के लिए तैयार नहीं थी. लेकिन अयाज अंसारी ने रिक्वेस्ट की तो उस पर विश्वास कर के वह उस के साथ चली गई. उस समय भी नैना के कान से हेडफोन लगा था. वह किसी फ्रेंड से चैटिंग कर रही थी. जिसे सुनसुन कर अयाज गुस्से में जलभुन रहा था. तभी अयाज ने उस का फोन छीन कर माता मंदिर के पीछे फेंक दिया.

उस समय मंदिर के पास अंधेरा था और जगह सुनसान थी. मोबाइल को ले कर रेशमा पति से उलझ गई तो अयाज ने अपने दोनों हाथों से उस का गला पकड़ कर घोट दिया. कुछ ही देर में नैना की मृत्यु हो गई और वह जमीन पर गिर गई. इस के बाद अयाज घबरा गया.

लाश पहचानी न जा सके, इस के लिए अयाज पास ही पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठा लाया, जिस से उस ने नैना का सिर कुचल दिया. उस की स्कूटी ले जा कर उस ने मंदिर के पीछे की घनी झाडि़यों में छिपा दी. फिर कैब पकड़ कर घर आ गया.

पुलिस टीम ने 12 घंटे के अंदर केस का परदाफाश कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. उस से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे जयपुर की सेंट्रल जेल भेज दिया था.

‘उधारी’ का उधार का प्यार

उस रोज बेचू अपने निर्धारित समय से पहले ही घर के लिए निकल पड़ा था. अभी वह अपनी गली के नुक्कड़ पर ही पहुंचा था कि उस ने अपने घर की तरफ से संजीव यादव उर्फ उधारी को आते हुए देखा. संजीव को देख कर बेचू का माथा ठनका. उस के दिलोदिमाग पर शक काबिज हो चुका था. वह तेज कदमों से घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस की पत्नी ममता उसे देखते हुए थोड़ी हड़बड़ाई फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ, आज कैसे जल्दी आ गए?’’

‘‘क्यों, जल्दी आने पर कोई पाबंदी है क्या?’’ बेचू ने पत्नी के अस्तव्यस्त कपड़ों को गौर से देखते हुए तंज किया.

‘‘लगता है आज तुम फिर लड़ाई के मूड में हो. मैं ने पूछ कर कोई गुनाह कर दिया क्या?’’ पत्नी बोली.

‘‘पहले यह बता कि संजीव यहां क्यों आया था?’’ बेचू ने पत्नी ममता से सीधे सवाल किया.

‘‘कौन संजीव?’’ ममता के चेहरे पर हैरानी उभरी.

‘‘वही संजीव, जो अभीअभी यहां से बाहर निकला है. ढोंग क्यों करती है, साफसाफ बता.’’ बेचू लगभग चीखने वाले अंदाज में बोला.

शौहर के तेवर देख कर एक पल के लिए ममता सकपका गई, लेकिन जल्द ही संभल कर बोली, ‘‘तुम्हारे दिमाग में तो लगता है शक बैठ गया है. हर वक्त उल्टा ही सोचते रहते हो. मैं कह रही हूं न कि घर में कोई नहीं आया था.’’

बेचू को लगा कि उस की पत्नी सफेद झूठ बोल रही है. जबकि उस ने संजीव को खुद अपनी आंखों से अपने घर की तरफ से आते देखा था. उस ने आव देखा न ताव, एक झन्नाटेदार चांटा ममता के गाल पर जड़ दिया, ‘‘कमीनी, कुछ तो शरम कर, कम से कम अपने बच्चों की शरम कर. मेरी तो किस्मत ही फूट गई जो तुझ जैसी बेहया औरत से पाला पड़ गया.’’

आक्रोश और आवेग के मारे बेचू रोने लगा तो ममता अपना गाल सहलाती हुई धीमे बोली, ‘‘देखो जी, बिना पूरी बात जाने तुम गुस्से में मत आया करो. बेकार ही तुम मुझ पर लांछन लगा रहे हो. वह आया जरूर था, पर मैं ने उसे दरवाजे से ही भगा दिया. तुम बेकार में ही मुझ पर तोहमत लगा रहे हो. क्या मुझे तुम्हारी इज्जत का खयाल नहीं है?’’

बेचू ने ममता की आंखों में देखा तो वहां आंसू झिलमिला रहे थे. उस ने सोचा कि कहीं उस से गलती तो नहीं हो गई. शायद ममता सच बोल रही हो.

बेचू उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया के ब्रहमाइन गांव के रहने वाले सरल यादव का बेटा था. वह छोटा ही था जब उस के मांबाप की मृत्यु हो गई थी. उस की बड़ी बहन रागिनी ने ही उसे पाला था.

15 साल पहले बेचू का विवाह बलिया के थाना रेवती के गांव वशिष्ठ नगर निवासी ममता से हो गया. ममता काफी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती में बेचू खो सा गया. वह अपने आप को खुशकिस्मत समझता था कि ममता जैसी सुंदर पत्नी उसे मिली है. इसलिए वह उस पर जम कर प्यार लुटाता था. इस प्यार का परिणाम भी कुछ समय पर सामने आने लगा. ममता ने एक बेटी प्रियांशी (10 वर्ष) और 3 बेटों पीयूष (8 वर्ष), प्रिंस (6 वर्ष), विशाल (4 वर्ष) को जन्म दे दिया.

परिवार बढ़ गया तो परिवार के भरणपोषण में दिक्कतें आने लगीं. उसे मेहनतमजदूरी कर के इतना पैसा नहीं मिल पाता था कि वह आसानी से अपने परिवार कर खर्चा उठा ले. जबकि बेचू सुबह 8 बजे घर से निकलता तो रात को कभी 9 बजे तो कभी 11 बजे ही घर में घुस पाता था.

जो इंसान सुबह से देर रात तक मेहनत करेगा तो जाहिर है उस का बदन थक कर चूरचूर हो ही जाएगा. बेचू भी जब घर पहुंचता तो वह काफी थकाहारा होता था. ऐसे में वह किसी तरह खाना खा कर चारपाई पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता.

उधर 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी ममता की जवानी उफान पर थी. जबकि बेचू की थकान उस की हसरतों का गला घोंट देती थी. बलिया के हलदी थाना क्षेत्र के हरिहरपुर गांव में भोला यादव रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी सीमा और 2 बेटे संजय और संजीव उर्फ उधारी थे. संजीव सब से छोटा था. वह अविवाहित था. संजीव बनारस के एक होटल में खाना बनाने का काम करता था. वह चाइनीज फूड काफी अच्छा बनाता था.

मंदिर पर हुई मुलाकात

हरिहरपुर से ब्रहमाइन गांव के बीच की दूरी महज 7 किलोमीटर थी. ब्रहमाइन गांव में ब्रहमाणी देवी का मंदिर था. संजीव अकसर मंदिर में माता रानी के दर्शन के लिए आता था. मंदिर के पास में ही बेचू का घर था. बेचू तो सुबह ही काम पर निकल जाता था और देर रात लौटता था. उस की पत्नी ममता मंदिर पर ही अधिकतर बनी रहती थी. वहीं पर ममता की जानपहचान संजीव से हुई थी. दोनों में परिचय हुआ तो बातें हुईं. एकदूसरे से मिल कर उन्हें काफी खुशी हुई.

उस दिन के बाद उन की मुलाकातें अकसर मंदिर पर होने लगीं. ममता को अपने से कम उम्र का संजीव पहली ही नजर में भा गया था. ममता की खूबसूरती और उस के बारे में जान कर संजीव भी उस में रुचि लेने लगा. दोनों में जब काफी मेलमिलाप होने लगा तो ममता उसे अपने घर भी ले जाने लगी.

दोनों का साथ रंग दिखाने लगा था. वह एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए थे. जब भी उन का आमनासामना होता तो दोनों के होंठ स्वत: ही मुसकरा उठते थे.

संजीव जल्द से जल्द ममता से नजदीकी संबंध बनाना चाहता था. ममता को देख कर संजीव की कामनाएं अंगडाइयां लेने लगती थीं. एक दिन जब वह ममता के घर आया तो सजीधजी ममता को देख कर उस का मन डोल गया. संजीव उसे अपनी कल्पनाओं की दुलहन बना कर न जाने क्याक्या सोचने लगा. तभी ममता चाय बना कर ले आई. दोनों की नजरें मिलीं तो एक मूकसंदेश का आदानप्रदान हो गया. संजीव ने ममता की आंखों में प्यास देख ली थी तो ममता ने भी उस की आंखों में कामना का पानी.

उस रोज के बाद संजीव का बेचू के घर आनाजाना शुरू हो गया. बेचू ममता को भाभी कह कर बुलाता था, इस नाते ममता से हंसीमजाक भी कर लिया करता था.

एक दिन संजीव ममता के घर गया तो उस समय वह अकेली थी. अंदर आते ही उस ने पूछा, ‘‘भाभी, बच्चे घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि इस वक्त बच्चे घर पर नहीं होते.’’ ममता ने उस की आंखोें में आंखें डाल कर कहा तो वह एकदम ऐसे सकपका गया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. सच भी यही था. वह जानबूझ कर ऐसे समय आया था.

‘‘तुम तो बहुत पारखी हो भाभी.’’

‘‘औरत की नजरें मर्द के मन को अच्छी तरह पहचानती हैं संजीव.’’ ममता ने इठलाते हुए कहा, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

संजीव पलंग पर बैठ गया, ‘‘तुम ने तो मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन यह नहीं बताया कि मेरा इस तरह आना तुम्हें बुरा तो नहीं लगता?’’

‘‘बुरा लगता तो इस तरह चाय के लिए क्यों पूछती?’’ ममता ने आंखें नचाईं.

‘‘एक बात कहूं, भाभी?’’ संजीव ने सूखे गले से थूक निगलते हुए कहा.

‘‘कहो.’’ ममता की आंखों में उम्मीद की एक नई चमक आ गई.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो. जब से तुम्हें देखा है, मन बारबार तुम्हें देखने को मचलता रहता है.’’ संजीव ने कहा.

‘‘ये सब कहने की बातें हैं, संजीव. पहले ये भी ऐसा कहते थे. सब मर्द एक जैसे होते हैं. बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और.’’ ममता ने ताना मारा.

‘‘बेचू तो तुम्हारी कद्र करना ही नहीं जानता. इंसान की आंखें भी तो दिल का हाल बयां कर देती हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में तुम्हारे दिल का दर्द देखा है.’’ संजीव को जैसे बात कहने का मौका मिल गया.

संजीव की बातों में ममता को भी मजा आ रहा था. यही वजह थी कि वह चाय बनाना ही भूल गई. अचानक खयाल आया तो वह बोली, ‘‘मैं तो चाय बनाना ही भूल गई.’’

‘‘रहने दो भाभी, बस तुम्हें देख लिया, आत्मा तृप्त हो गई, अब मैं चलता हूं.’’ यह कह कर संजीव उर्फ उधारी चला तो गया लेकिन ममता की हसरतों को हवा दे गया था.

ममता भी होने लगी आकर्षित

ममता अब संजीव की फूटती जवानी का ख्वाब देखने लगी थी. अब संजीव और ममता के बीच होने वाला हंसीमजाक छेड़छाड़ तक पहुंच गया था. संजीव जबतब ममता के घर आता तो उस के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता.

एक दिन ममता ने उसे दबे स्वर में टोका, ‘‘तुम्हें बच्चों की खुशी का तो बहुत खयाल रहता है, लेकिन भाभी की खुशी का खयाल नहीं रहता.’’

अपनी बात कह कर वह मुसकराई तो संजीव उस का इशारा फौरन समझ गया. बात यहां तक पहुंची तो संजीव एक कदम आगे बढ़ा, ‘‘भाभी, तुम्हारी आंखों की चाहत मुझे यहां खींच लाती है.’’ कह कर उस ने ममता का हाथ पकड़ लिया.

तभी ममता बोली, ‘‘छोड़ो, मैं तुम्हें चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘इस तनहाई में मैं चाय पीने नहीं, तुम्हारी आंखों के जाम पीने आया हूं.’’ संजीव ममता के एकदम करीब खिसक आया, ‘‘बोलो पिलाओगी?’’

‘‘मैं ने कब मना किया, ममता भी उस के सीने से लग गई. पर पहले दरवाजा तो बंद कर लो.’’

ममता का खुला आमंत्रण पा कर संजीव की बांछें खिल गईं. उस के बाद जो हुआ वह किसी भी लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता.

उस दिन के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, वह एकदूसरे की बांहों में समा जाते. लेकिन कहते हैं कि बुराई ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सकती.

पड़ोसियों को हुआ शक

आसपड़ोस के लोगों को संजीव का बारबार बेचू की गैरमौजूदगी में उस के घर आना अखरने लगा था. वे समझ गए थे कि संजीव और ममता के बीच जरूर कोई खिचड़ी पक रही है. अब उन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. उड़तेउड़ते यह बात बेचू के कानों तक भी पहुंची तो उसे पहले यकीन नहीं आया.

जब लोगों ने उस पर ताने कसने शुरू कर दिए तो एक दिन उस ने ममता को समझाया, ‘‘मैं ने सुना है कि मेरी गैरमौजूदगी में संजीव घर आता है.’’

‘‘हां, कभीकभी आ जाता है, बच्चों से मिलने के लिए.’’ ममता ने झूठ बोल दिया.

‘‘तुम्हें पता है कि मोहल्ले वाले तुम्हें ले कर तरहतरह की बातें करने लगे हैं?’’

‘‘पड़ोसियों का क्या है, वे किसी को खुश कहां देख सकते हैं, इसलिए मनगढ़ंत कहानी रच रहे हैं. क्या तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा गलत काम करूंगी?’’ ममता ने यह सवाल किया तो बेचू उल्टा शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि उस ने पत्नी पर शक कर के ठीक नहीं किया. इस बीच उस ने शक होने पर एकदो बार ममता की पिटाई भी की लेकिन ममता हमेशा यह सिद्ध करने में सफल रही कि पति का शक झूठा है.

लेकिन बेचू के मन में शक का कीड़ा जन्म ले चुका था, जो कि कुलबुलाता रहता था. एक शाम बेचू जल्दी काम से वापस आ गया. उसे अपने बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि ममता बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ उस की बेटी ने जवाब दिया.

बेचू घर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि ममता ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा संजीव ने खोला. अपने सामने यूं अचानक बेचू को खड़ा पा कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. बेचू सीधा कमरे में पहुंचा. वहां का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया.

ममता बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. बेचू ने आगे बढ़ कर उस की चादर खींच दी. ममता के जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था. यह देख कर बेचू का खून खौल उठा. वह उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर यह गुल खिला रही है तू?’’

ममता और संजीव का चेहरा सफेद पड़ गया. दोनों रंगे हाथ जो पकड़े गए थे. ममता ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए पर पति से माफी मांगने लगी, जबकि संजीव मौका देख कर वहां से खिसक गया. बेचू ने ममता को माफ नहीं किया, बल्कि उस की जम कर पिटाई कर दी.

रंग चुकी थी प्रेमी के रंग में

इस के बाद ममता और संजीव कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब दूरियां बरदाश्त नहीं हुईं तो फिर से पुरानी हरकतों पर उतर आए. इस से पतिपत्नी में आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे.

ममता तो पूरी तरह संजीव के रंग में रंग गई थी. उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. वह तो अपने नाजायज रिश्ते में डूब कर इतनी अंधी हो गई कि उसे उस के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.

26 जनवरी, 2020 को सुबह 5 बजे के करीब गांव के शिवजी यादव बेचू के घर दूध लेने गया तो मेन गेट से घुस कर जैसे ही वह अंदर गया तो जमीन पर बेचू मृत अवस्था में पड़ा मिला. उस ने तुरंत शोर मचा कर गांव के लोगों को एकत्र कर बात बताई. गांव में ही बेचू के चाचा का परिवार भी रहता था. बेचू के मकान से उन के मकान की दूरी करीब 700 मीटर थी.

खबर सुन कर बेचू का चचेरा भाई रविशंकर यादव उस के घर पहुंचा. बेचू की लाश देखने के बाद उस ने सवा 6 बजे सुखपुरा थाने में फोन कर के सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर वीरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का मुआयना किया तो बेचू की गरदन पर गहरे घाव थे. वह घाव किसी तेजधार हथियार के थे.

उस समय बेचू की पत्नी ममता बच्चों के साथ अपनी बहन के बेटे के मुंडन संस्कार में शामिल होने टिकुलिया दियर गई थी. उसे सूचना मिली तो वह भी घर वापस आ गई और पति की मौत पर रोने लगी.

इंसपेक्टर वीरेंद्र यादव ने ममता और ग्रामीणों से आवश्यक पूछताछ की. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. पुलिस ने मृतक के ताऊ के बेटे रविशंकर यादव की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

काल डिटेल्स से मिला सुराग

प्रारंभिक जांच में इंसपेक्टर यादव को ममता के प्रेमप्रसंग की जानकारी हुई. उस के प्रेमप्रसंग के बारे में पूरा गांव जानता था. उन्होंने ममता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक नंबर पर उस की सब से अधिक बातें होने की जानकारी मिली. यहां तक कि घटना से पहले और बाद में भी ममता की उस नंबर से बात हुई थी. वह नंबर संजीव यादव का था जो कि ममता का प्रेमी था.

घर में बेचू और ममता के अलावा कोई रहता था तो वो थे उन के बच्चे. इंसपेक्टर यादव ने बच्चों से बात की तो उन्होंने बताया कि 24 जनवरी को संजीव अंकल घर आए थे, साथ में साड़ी और गिफ्ट भी लाए थे. तभी पापा आ गए तो संजीव अंकल चले गए. फिर मम्मीपापा में झगड़ा हुआ.

इंसपेक्टर यादव ने संजीव के घर दबिश दी तो वह घर से फरार मिला. इस के बाद उन्होंने 30 जनवरी, 2020 को सुबह 7 बजे हनुमानगंज बसंतपुर मार्ग पर आंवला नाला पर स्थित पुलिया से संजीव यादव को एक मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि बेचू की हत्या में ममता भी शामिल थी. इस के बाद ममता को भी घर से गिरफ्तार कर लिया गया.

दोनों से पूछताछ के बाद पता चला कि ममता और संजीव साथ जिंदगी जीने का फैसला कर चुके थे. इसलिए 24 मई, 2019 को ममता और संजीव ने शहर के भृगुजी के मंदिर में विवाह कर लिया. संजीव से विवाह के बाद भी ममता बेचू के साथ ही रहने लगी. संजीव से उस के संबंध पहले की तरह चलते रहे.

ममता का पति बेचू से विवाद होता रहता था. 24 जनवरी को संजीव ममता के लिए साड़ी और गिफ्ट ले कर घर आया. तब ममता खुशी से फूली नहीं समाई. लेकिन उस की खुशी ने तब दम तोड़ दिया, जब उस का ब्याहता बेचू भी उसी समय घर आ गया.

बेचू के आते ही संजीव उर्फ उधारी वहां से चला गया. इस के बाद संजीव को ले कर ममता और बेचू के बीच जम कर झगड़ा हुआ. इस झगड़े के बाद ममता ने साड़ी और गिफ्ट रख लिए और बच्चों के साथ अपनी बहन के यहां उस के बेटे के मुंडन संस्कार में शामिल होने चली गई.

वहां जा कर उस ने एकांत में संजीव से मोबाइल पर बात की और पति बेचू की हत्या कर देने को कहा. संजीव उस के लिए तैयार हो गया. मौका भी अच्छा था. बेचू उस समय घर में अकेला था.

26 जनवरी को तड़के 3 बजे संजीव उर्फ उधारी बेचू के घर में घुसा और बिस्तर पर सो रहे बेचू की गरदन पर साथ लाए दांव से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए. बेचू चीख तक न सका और मौत की नींद सो गया. बेचू को मारने के बाद संजीव वहां से फरार हो गया लेकिन घर न जा कर वह इधरउधर छिपता रहा. घटना को अंजाम देने के बाद उस ने जानकारी ममता को दे दी थी.

लेकिन दोनों का गुनाह पुलिस की नजरों से छिप न सका. मुकदमे में पुलिस ने भादंवि की धारा 120बी और बढ़ा दी. संजीव की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त दांव भी बरामद कर लिया. फिर आवश्यक लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मार्च 2020