Police Story : SP सुरेंद्र दास ने आत्महत्या करने के लिए जहर क्यों खाया

Police Story : सुरेंद्र कुमार दास कानपुर के एसपी पद पर थे. उन के जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं था. इस के बावजूद भी ऐसी क्या वजह रही जो उन्हें खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’

पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दीपुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया. पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था. स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी. यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी

रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गएमुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.

जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी. सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे. नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थीवैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं थावह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थेकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी .के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था. अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी. इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना हैरवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते. एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया. रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया. बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.    

Atul Subhash Suicide Case : कलश में कैद इंसाफ मांगता इंजीनियर

 Atul Subhash Suicide Case : 34 वर्षीय अतुल सुभाष मोदी बेंगलुरु की एक कंपनी में एआई इंजीनियर था. पत्नी निकिता सिंघानिया भी एक इंजीनियर थी. शादी के 5 साल बाद ही दोनों के बीच ऐसे हालात बन गए कि अतुल को सुसाइड करने पर मजबूर होना पड़ा. उस के 24 पन्नों के सुसाइड नोट में लिखी बातों ने समाज और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए. अतुल की आत्महत्या देश में चर्चा का विषय क्यों बन गई?

एआई इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी की हिम्मत टूट चुकी थी. अब वह सुसाइड कर जीवन से मुक्त हो जाना चाहता था. इस के लिए उस ने कई  महीने पहले ही प्लान बना लिया था. लेकिन उसे यह कदम उठाने में कुछ महीने की देर हो गई थी. सुसाइड करने से पहले उस ने 2 दिन में अपने सारे कार्यों को सिस्टेमेटिक तरीके से कंप्लीट किया. कहीं कोई काम रह न जाए, इसलिए किए जाने वाले कामों की सूची भी बनाई.

 

कर्नाटक के बेंगलुरु में स्थित एक बड़ी कंपनी में एआई इंजीनियर 34 वर्षीय अतुल सुभाष मोदी शीर्ष पद पर काम करता था. वह फ्लैट में अकेला रहता था. पत्नी निकिता सिंघानिया दिल्ली की एक आईटी कंपनी में जौब करती थी. अतुल का साढ़े 4 साल का एक बेटा भी था, जो मम्मी के पास रहता था. अतुल सुभाष ने सुसाइड करने से पहले अपने सारे कामों को निपटाने के साथ ही अपने औफिस के काम को भी पूरा किया. उस ने अपने कुक व मेड को भी सैलरी दी. इस के साथ ही बैंक के व अन्य जरूरी कामों को भी निपटाया.

कोई जरूरी काम रह न जाए, इसलिए अतुल सुभाष ने 24 पन्नों का एक सुसाइड नोट लिखने के साथ ही एक घंटा 21 मिनट 46 सेकेंड का एक वीडियो भी इंटरनेट पर जारी किया, ताकि सुसाइड करने के बाद उस के पीछे किसी को परेशानी न उठानी पड़े. 9 दिसंबर, 2024 को बेंगलुरु पुलिस को एक एनजीओ से जैसे ही खबर मिली तो पुलिस आननफानन में  मेंजूनाथ लेआउट स्थित अतुल सुभाष के फ्लैट पर पहुंच गई. फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था. पुलिस ने किसी तरह दरवाजा खोल कर जैसे ही फ्लैट में पहुंची, अतुल का शव पंखे से लटका हुआ मिला. 

कमरे की दीवार पर गोंद से चिपके पन्ने पर अंगरेजी में लिखा था- जस्टिस इज ड्यू’ (न्याय अभी बाकी है). पुलिस को वहीं टेबल से 24 पन्नों का सुसाइड नोट भी मिला, जिस के 4 पन्ने हाथ से लिखे थे और 20 पन्ने कंप्यूटर से प्रिंट किए गए थे. अतुल ने इन 24 पन्नों में अपने भावनात्मक संकट, पत्नी की प्रताडऩा और न्यायपालिका से मिली निराशा बयां की थी. इस सुसाइड नोट में अतुल ने अपने दिल का दर्द पूरी तरह उड़ेल दिया था.  यानी शादी के बाद अपनी जिंदगी में मची उथलपुथल की पूरी कहानी लिखी थी. इंजीनियर अतुल सुभाष के 24 पन्नों में बयां की गई आपबीती और वीडियो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई थी. देखते ही देखते प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक मीडिया में यह घटना पूरी तरह छा गई. 

इस सुसाइड नोट में अपनी शादीशुदा जिंदगी के सामाजिक तानेबाने की कमियां, पत्नी निकिता व उस के परिवार के लालच और षडयंत्र की दास्तां और कानूनी महकमे में भ्रष्टाचार को उजागर किया गया था.  अतुल ने अपने पीछे छूटे अपने बुजुर्ग मम्मीपापा, बेटे और भाई की सलामती की दुआ भी की. सुसाइड से पहले लिखा गया यह नोट व वीडियो उस ने कुछ मित्रों के साथ वैवाहिक मामलों में पुरुषों की मदद करने वाली एक एनजीओ को भेज दिए थे. जैसे ही एनजीओ को यह नोट मिला तो उस ने पुलिस को अतुल के सुसाइड करने की जानकारी दी थी. इस के साथ ही कमरे में एक स्लिप और चिपकी थी, जिस में आत्महत्या करने से पहले जिनजिन शेष कामों को पूरा करना था, उन का जिक्र किया गया था.

सुसाइड से पहले अतुल ने क्यों निपटाए काम

 

सुसाइड करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी के भाई विकास मोदी ने बेंगलुरु के मराठाहल्ली थाने में आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साले अनुराग उर्फ पीयूष सिंघानिया व चाचा सशुील सिंघानिया के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), धारा 3(5) (जब 2 या ज्यादा लोग शामिल हों तो सामूहिक जिम्मेदारी बनती है) का केस दर्ज किया है. 

8 और 9 दिसंबर, 2024 इन 2 दिनों में अतुल सुभाष मोदी ने सुसाइड करने से पहले 32 जरूरी काम निपटाए. उस के दिमाग में क्या चल रहा था? वह बंद कमरे में अकेला था. मौत से पहले वहां क्या कुछ हो रहा है? वह क्या करने जा रहा है? ऐसा वह क्यों करने जा रहा था? इन प्रश्नों का जवाब आगे मिल जाएगा.

आइए, जानें सुसाइड करने से पहले अतुल सुभाष ने क्याक्या किया? दीवार पर चिपकाए पेपर पर लिखा था— ‘फाइनल टास्क बिफोर मुक्ति’. यानी दुनिया छोडऩे से पहले उस ने किए जाने वाले 32 कामों को 3 हिस्सों में बांटा था. बिफोर लास्ट डे यानी 8 दिसंबर को करने वाले काम, दूसरा लास्ट डे व तीसरा एग्जीक्यूट लास्ट मोमेंट. 8 दिसंबर को जोजो काम होते जा रहे थे, अतुल सुभाष सूची में उन पर टिक लगाता जा रहा था या डन लिखता जा रहा था. 

उस ने जरूरी डाक्यूमेंट्स को पैक किया. इन में बैंक की एफडी आदि थी. कानूनी व मुकदमों से संबंधित पेपर एक जगह रखे, औफिस के सारे काम को पूरा किया, पैसे सुरक्षित रखे ताकि उस के बाद सही हाथों में पहुंचे. अपने बनाए वीडियो का बैकअप लिया, औफिस, कार, बाइक की चाबियों को फ्रिज के ऊपर रखा. अब 9 दिसंबर जिंदगी के आखिरी दिन के कामों को 2 हिस्सों में बांटा. पहले हिस्से में 10 काम करने थे. इन में कुक, मेड के पैसे चुकाने थे, डाक्यूमेंट्स को स्कैन कर अपलोड किए, सारे डाक्यूमेंट्स अपने मेल के साथ अटैच किए. लैपटाप, चार्जर, आईडी कार्ड, गेट की आईडी औफिस में जमा कराना आदि. अतुल ने बता दिया था कि कहांकहां जमा करना है. 

इतना ही नहीं, उस ने अपने मोबाइल फोन से फिंगरप्रिंट को हटाया व फेस रिकग्निशन को हटा दिया.उसे मालूम था कि पुलिस सब से पहले उस के मोबाइल को खोल कर देखेगी, इसीलिए उसे अनलौक कर दिया.   9 दिसंबर, 2024 को आत्महत्या करने से कुछ समय पहले उस ने 108 बार शिव के नाम का जाप किया, कमरे की सारी खिड़कियां खोल दीं. फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. टास्क में यह भी लिखा कि अब वह बाथरूम जा कर नहाया. नहा कर वह मुक्ति यात्रा पर जाने के लिए कदम बढ़ाता हुुआ पंंखे पर बनाए फंदे तक पहुंचा और अपनी जान दे दी. 

अतुल ने 33वें टास्क का जिक्र सुसाइड नोट में नहीं किया था, क्योंकि फंदे पर लटकने के बाद वह 33वें टास्क पर डन या टिक नहीं लगा सकता था. 

अतुल की कहानी उसी की जुबानी 

अतुुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले 24 पन्नों का सुसाइड नोट लिखने के साथ ही एक घंटा 21 मिनट 46 सेकेंड का वीडियो भी बनाया और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर  दिया, जिस में उस ने अपने दिल का दर्द बयां किया था. अपनी आत्महत्या की जो कहानी बताई, उसे सुन कर सभी सकते में आ गए. अतुल ससुरालीजनों द्वारा सुसाइड के लिए उकसाने, 2 साल से लगातार आर्थिक व मानसिक शोषण करने व न्यायालय से इंसाफ न मिलने पर वह अंदर तक आहत हो गया था. तब वह सुसाइड जैसा आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर हो गया.  

अतुल सुभाष के पिता पवन मोदी छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के रहने वाले थे. बिहार आ कर उन्होंने व्यवसाय किया और बिहार के जिला समस्तीपुर के पूसा प्रखंड के वैनी पूसा रोड बाजार में रहने लगे. अतुल ने शुरुआती शिक्षा पूसा में लेने के बाद दिल्ली आ कर सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. 26 जून, 2019 को अतुल सुभाष की शादी उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी निकिता सिंहानिया  के साथ एक मैट्रीमोनियल पोर्टल के माध्यम से तय हुई थी. उस के बाद दोनों फैमिली वालों की रजामंदी से वाराणसी के हिंदुस्तान इंटरनैशनल होटल में धूमधाम से शादी हुई. शादी के बाद निकिता Atul Subhash Suicide Case ससुराल समस्तीपुर पहुंची. वहां 2 दिन रहने के बाद पति अतुल सुभाष के साथ बेंगलुरु चली गई. बेंगलुरु में 20 फरवरी, 2020 को उसे बेटा हुआ.

अतुल के पिता पवन मोदी ने बताया कि पोते के जन्म के बाद देखभाल के लिए अतुल की मम्मी बेंगलुरु गईं. लेकिन डायबिटीज व अन्य बीमारियों के चलते उन्हें वापस आना पड़ा. फिर 2021 में अतुल की सास निशा सिंहानिया भी बेंगलुरु पहुंच गईं. उन्हें वहां बुलाना सब से बड़ी भूल साबित हुई. यहीं से हालत खराब हो गए.’’

सास पर क्यों लगाया घर तोडने का आरोप

सुसाइड के पीछे एकएक कर के कई राज अब सामने आ रहे हैं. अतुल सुभाष ने अपने 24 पन्नों के सुसाइड नोट में लिखा है कि वह कई साल से ससुरालीजनों से प्रताडि़त हो रहा था. पत्नी निकिता सिंघानिया की मां निशा सिंघानिया की उस के वैवाहिक जीवन में दखलंदाजी से उस की बसीबसाई खुशहाल जिंदगी बिखरने लगी. अतुल के अनुसार, बेटे के जन्म के बाद सास निशा जब भी बेंगलुरु आती, निकिता को भड़काती थी. इस के चलते निकिता घर में मनमानी करने लगी और  पतिपत्नी के रिश्ते में खटास आनी शुरू हो गई.

इस के बाद सास अपनी बेटी निकिता और और उस के 2 महीने के बच्चे को ले कर जौनपुर चली गई. पत्नी निकिता व ससुरालीजनों द्वारा रुपयों की मांग अतुल से की जाने लगी. अतुल ने लाखों रुपए ससुरालीजनों को दिए. लेकिन मांग फिर 50 लाख की होने लगी. तब अतुल ने असमर्थता व्यक्त करते हुए अपने दिए रुपए वापस मांगे. 

अतुल पर हुए 9 मुकदमे दर्ज

अतुल सुभाष ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उस की पत्नी निकिता साल 2021 में बेटे को ले कर मायके जौनपुर चली गई. इस के 8 महीने बाद साल 2022 में उस ने उस के फैमिली वालों पर दहेज उत्पीडऩ, हत्या की कोशिश, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने सहित 9 अलगअलग मामले दर्ज करा दिए. इतना ही नहीं, निकिता ने अपने पिता की मौत का जिम्मेदार भी अतुल व उस के परिवार वालों पर मढ़ दिया. उस ने रिपोर्ट में लिखाया कि दहेज में 10 लाख रुपए मांगने पर पिता सदमे में आ गए और उन्हें हार्ट अटैक आ गया, जिस से उन की 17 अगस्त, 2019 को मौत हो गई.

साल 2022 में निकिता ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, जौनपुर पीठासीन रीता कौशिक के न्यायालय में अपने व बेटे के मेंटीनेंस का वाद दाखिल किया. न्यायालय ने निकिता के नौकरी करने के बावजूद केवल बेटे के लिए 40 हजार रुपए प्रतिमाह गुजाराभत्ता देने के आदेश अतुल सुभाष को दिए. अतुल कोर्ट के आदेशानुसार 40 हजार रुपए प्रतिमाह भेजता था. अतुल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उस के खिलाफ 9 मामलों में 6 मुकदमे ट्रायल कोर्ट और 3 हाईकोर्ट में थे. 2 साल में कोर्ट में 120 तारीखें लगीं, जिस से वह पूरी तरह टूट गया. उसे साल में केवल 23 छुट्टियां मिलती थीं, बेंगलुरु से जौनपुर आनेजाने में ही समय निकल जाता. 

वह तारीख से लौट कर आता, तब तक दूसरी तारीख का सम्मन आ जाता. उस का आरोप था कि जौनपुर अदालत की जज और उस के पेशकार ने मामला निपटाने के लिए उस से 5 लाख रुपए की रिश्वत भी मांगी. अतुल ने लिखा कि इस सिस्टम ने मुझे न्याय नहीं दिया, मेरा फैसला बाकी है. जौनपुर की परिवार अदालत में मुकदमे की सुनवाई का जिक्र करते हुए अपने सुसाइड नोट में अतुल ने लिखा है कि उस ने जज के सामने जब बताया कि उस की पत्नी ने झूठे मामले दर्ज कराए हैं. इस पर जज ने कहा, ”तो क्या हुआ? वह आप की पत्नी है और यह आम बात है.’’

अतुल ने कहा, ”झूठे मामलों के कारण कई लोग मर जाते हैं.’’

तो पत्नी निकिता ने कहा, ”आप भी ऐसा क्यों नहीं करते?’’

इस पर जज जोर से हंसी. अतुल ने लिखा, पत्नी ने ही मुझे सही रास्ता दिखाया. मर जाना ही इन सब का अंत है. अतुल ने बताया कि उस की पत्नी ने कंप्रोमाइज के लिए शुरू में एक करोड़ रुपए की मांग की, बाद में मांग बढ़ा कर 3 करोड़ कर दी.

मेहनत के पैसे से दुश्मन हो रहा बलवान 

अतुल ने लिखा कि मेरी मेहनत का पैसा मेरे दुश्मनों को बलवान बना रहा है. बेहतर है कि मैं ही न रहंू. मेरी पत्नी और उस के फैमिली वाले मुझे मेरे बेटे से मिलने नहीं देते, वे लोग सिर्फ मुझ से पैसे मांग रहे हैं. अब तक लाखों रुपए दे चुका हंू. मैं जितना अधिक मेहनत करूंगा और अपने काम में बेहतर होता जाऊंगा, उतना ही मुझे और मेरे परिवार को परेशान किया जाएगा. जबरन वसूली की जाएगी और पूरी कानून व्यवस्था मुझे परेशान करने वालों के साथ है. मेरे पैसे से मेरे दुश्मन मजबूत हो रहे हैं. 

उस ने लिखा कि जो पैसा मैं बेटे की परवरिश के लिए पत्नी को दे रहा हूं उसी पैसे का इस्तेमाल मेरे खिलाफ किया जा रहा है. मैं अपने वेतन पर जो टैक्स देता हंू, उस से पुलिस, कानूनी व्यवस्था मुझे और मेरे परिवार को परेशान करने में मदद कर रही है. अब मेरे जाने के बाद, कोई पैसा नहीं होगा और मेरे बूढ़े मम्मीपापा और मेरे भाई को परेशान करने का कोई कारण नहीं होगा. मैं ने भले ही अपने शरीर को नष्ट कर दिया हो, लेकिन मैं ने वह सब कुछ बचा लिया है, जिस पर मैं विश्वास करता हंू. 

इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी ने अपने एक्स अकाउंट पर अपने आखिरी वीडियो का लिंंक पोस्ट करते हुए एलन मस्क और अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को टैग किया. अतुल ने लैटर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम भी एक लैटर लिखा है. इस में उस ने देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की खामियों के बारे में लिखा और पुरुषों के खिलाफ झूठे केस दर्ज कराने के ट्रेंंड के बारे में बताया. जज की शिकायत सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट से करने की बात भी कही.

बेटे को अतुल ने क्या दिया गिफ्ट

अतुल ने अपने सुसाइड नोट में अपने साढ़े 4 साल के बेटे के गिफ्ट का जिक्र किया है. अतुल के मुताबिक, उस का एक साढ़े 4 साल का बेटा है, जिस से उसे मिलने तक नहीं दिया जाता था. हालांकि अपनी मौत से पहले अपने बेटे के लिए एक गिफ्ट की बात करते हुए उस ने कहा कि वह उस के लिए एक गिफ्ट छोड़ कर जा रहा है, जिसे वह चाहता है कि वर्ष 2038 में बेटे के 18 साल का होने पर खोला जाए. लेकिन अभी तक कोई ये समझ नहीं पाया है कि आखिर अतुल सुभाष ऐसा कौन सा गिफ्ट छोड़ कर गया, जिसे उस ने सालों बाद खोलने की बात कही है.

अतुल ने अपनी अस्थियां गटर में बहाने को क्यों कहा

अतुल सुभाष ने सुसाइड नोट में अपनी अंतिम 12 इच्छाओं में कहा है कि पत्नी मेरा शव न छू सके. इस के साथ ही उस से संबंधित जो भी 9 केस पेंडिंग हैं, उन की सुनवाई लोगों के सामने हो, ताकि लोग सच्चाई जान सकें. प्रताडि़त करने वालों को जब तक सजा न हो, मेरी अस्थियां विसर्जित न की जाएं. अगर उन्हें प्रताडि़त करने वाले बरी हो जाएंं तो अस्थियां कोर्ट के बाहर गटर में बहा दी जाएं. 

उस के 24 पन्नों के सुसाइड नोट व वीडियो को कोर्ट सबूत माने. जौनपुर की अदालत में जो केस चल रहे हैं, उन्हें ट्रांसफर कर बेंगलुरु में सुनवाई हो. बेटे की परवरिश निकिता अच्छी तरह नहीं कर सकती, उसे मेरे मम्मीपापा के सुपुर्द किया जाए. मेरे गुनहगारों को अधिकतम सजा दी जाए, लेकिन लीगल सिस्टम पर यकीन नहीं है. मेरे जाने के बाद गुनहगारों से कोई समझौता न किया जाए. मेरे मम्मीपापा व भाई को न सताया जाए. अतुल द्वारा सुसाइड की घटना मीडिया में हाईलाइट हो जाने के बाद जौनपुर में अपने घर से 12 दिसंबर की रात निकिता की मां निशा व भाई अनुराग रात सवा 11 बजे फरार हो गए. इस दौरान मीडिया वालोंं ने उन का वीडियो बनाते हुए पूछा, ”कहां जा रहे हैं?’’ तो जबाव में अनुराग ने कहा, ”मां की तबियत खराब है, उन्हें डाक्टर को दिखाने जा रहे हैं.’’ 

मां, बेटे मकान के पीछे वाले रास्ते से निकल कर किले के पास पहुंचे, जहां पहले से ही 2 बाइकें खड़ी थीं. उन पर बैठ कर वे निकल गए. वहां से वे जौनपुर के एक होटल पहुंचे, जहां कुछ देर रुकने के बाद वे कहीं निकल गए. इस से पहले दिन में जब मीडिया वाले निशा सिंघानिया के घर पहुंचे तो निशा व बेटे अनुराग ने उन्हें हड़काने का प्रयास किया. उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार करते हुए कहा, ”कोर्ट जाइए, हमारे एडवोकेट आप को पूरी बात बताएंगे.’’

डीसीपी शिवकुमार के आदेश पर 13 दिसंबर को बेंगलुरु से पुलिस की एक टीम जौनपुर निकिता के घर पहुंची तो वहां ताला लगा हुआ था. इस पर पुलिस ने घर पर एक नोटिस चस्पा किया, जिस में 3 दिनों में थाने में उपस्थित हो कर अपने बयान दर्ज कराने की बात कही गई थी. एसीजेएम (प्रथम) काव्या सिंह की अदालत में चल रहे दहेज उत्पीडऩ के मामले में 12 दिसंबर को अतुल सुभाष पर आरोप तय होने थे, लेकिन 9 दिसंबर को ही अतुल सुभाष ने आत्महत्या कर ली थी. इस पर अतुल सुभाष के एडवोकेट ने अतुल की डैथ रिपोर्ट मंगाने का प्रार्थनापत्र अदालत में दिया. इस मामले में कोर्ट ने सुनवाई के लिए 12 जनवरी, 2025 की तिथि नियत कर दी थी. 

 

अतुल ने सुसाइड को उकसाने में लिए 5 नाम 

अतुल सुभाष ने 5 लोगों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया. उकसाने वालों में महिला जज रीता कौशिक, पत्नी निकिता, सास निशा, साला अनुराग, चचिया ससुर सुशील के साथ ही पेशकार माधव के नाम शामिल थे. पुलिस ने 4 लोगों पत्नी निकिता, सास निशा, साले अनुराग व चचिया ससुर सुशील के खिलाफ केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. चारों आरोपी फरार हो गए थे. जब ये चारों आरोपी बयान दर्ज कराने नहीं आए तो पुलिस ने इन्हें अरेस्ट करने की काररवाई तेज कर दी. एक सुराग मिलने के बाद बेंगलुरु पुलिस ने निकिता, निशा सिंघानिया व अनुराग उर्फ पीयूष को 14 दिसंबर को हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद से निकिता लगातार अपना ठिकाना बदल रही थी. पुलिस ट्रैक न कर पाए, इसलिए निकिता वाट्सऐप काल करती थी. निकिता ने गुरुग्राम से एक फोन काल किया था, जिस की वजह से बेंगलुरु पुलिस ने उसे ट्रैक कर के गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया. 15 दिसंबर को कोर्ट में पेश करने के बाद सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. इस मामले में पत्नी निकिता के चाचा सुशील सिंघानिया को इलाहाबाद हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई थी. हाईकोर्ट के जज आशुतोष श्रीवास्तव ने 16 दिसंबर को  सुनवाई करते हुए सुशील सिंघानिया को अग्रिम जमानत दे दी. कोर्ट ने उन से पासपोर्ट पुलिस स्टेशन में जमा करने का निर्देश दिया. 

निकिता ने अतुल पर लगाए कौन से आरोप

अतुल सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया ने अतुल व उस के फैमिली वालों के खिलाफ जो मामले दर्ज कराए थे, उन में आरोप लगाया गया था कि 26 जून, 2019 को उस की शादी अतुल के साथ हुई थी. शादी के बाद अतुल, उस के पापा पवन, मम्मी अंजू देवी, भाई विकास दहेज से संतुष्ट नहीं थे और दहेज में 10 लाख रुपए की मांग को ले कर प्रताडि़त करते थे. जबकि उस के पिता ने शादी में लगभग 35 लाख रुपए खर्च किए थे. इन में नकदी के साथ जेवर, बरतन व अन्य सामान भी दिया था.

अतुल शराब पी कर मारपीट व हैवानियत करता था. अतुल ने 16 अगस्त, 2019 को मायके पहुंच कर 10 लाख रुपए मांगे थे. इस सदमे में अगले दिन 17 अगस्त को उस के पापा मनोज की मौत हो गई. मम्मी, भाई व अन्य सगेसंबंधियों के समझाने पर अतुल उसे विदा करा कर बेंगलुरु ले गया. फिर 17 मई, 2021 को अतुल ने मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया था. तब से वह अपने मायके में रह रही है. 

पतिपत्नी की लव स्टोरी में कौन था तीसरा शख्स 

निकिता का पति अतुल पर आरोप था कि उस का एक लड़की से नाजायज संबंध था. औफिस की 1-2 लड़कियों से अफेयर था. इन बातों की जानकारी निकिता को बेंगलुरु जा कर पता चली. निकिता का आरोप था कि इस संबंध में जब उस ने अपनी मम्मी के सामने अतुल से पूछा तो अतुल ने मां के सामने ही मुझे लातघूेसों से पीटा. ये आरोप निकिता ने कोर्ट में अतुल पर लगाए थे. जबकि कोर्ट में ही अतुल सुभाष ने पत्नी निकिता पर आरोप लगाया था कि निकिता का संबंध किसी युवक अशोक (परिवर्तित नाम) से था. उस की हरकतों से ऐसा लगता है. इस बात को ले कर मेरे और निकिता के बीच विवाद हुआ था.

अतुल और उस की पत्नी इंजीनियर निकिता सिंघानिया के बीच सिर्फ दहेज उत्पीडऩ जैसे ही विवाद नहीं थे. दोनों में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को ले कर भी विवाद था. दोनों को एकदूसरे पर शक था. अतुल के पापा पवन, मम्मी अंजू देवी व भाई विकास घटना के बाद बेंगलुरु गए, जहां पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद अतुल की डैडबौडी फैमिली वालों को सौंप दी. डैडबौडी को ले कर फैमिली वाले हवाई मार्ग से पटना पहुंचे, जहां से डैडबौडी को समस्तीपुर घर पर लाया गया. वहां अंतिम संस्कार करने के बाद अतुल की अस्थियां कलश में बंद कर दी गईं.

पापा पवन मोदी ने बताया कि शादी के बाद कब, कैसे और किन कारणों से दोनों के बीच रिश्ते बिगड़े, यह पता नहीं. लेकिन मेरा बेटा बहुत मानसिक पीड़ा से गुजर रहा था. एक आदमी जिस ने शादी की या बरबादी, वो खुद भी नहीं जानता था. शादी के बाद दोनों हनीमून के लिए मारीशस गए थे. इस के बाद वह पत्नी के दबाव में रहा. उस की हर बात मानी. अतुल 17 किलोमीटर दूर रोज उसे उस के औफिस छोडऩे जाता, फिर 17 किलोमीटर लेने जाता. इस के अलावा वह खुद अपने औफिस भी जाता था. उस का आधा दिन तो ट्रैवलिंग में ही गुजर जाता था. हमारी वृद्धावस्था का लिहाज करते हुए बेटे अतुल ने हमें कभी नहीं बताया कि उस की पत्नी उसे कितना टार्चर कर रही है. वह सब कुछ सहता रहा. मेरे बेटे पर नशे का आरोप लगाया, जबकि वह कभी शराब नहीं पीता था. उस ने पत्नी Atul Subhash Suicide Case की डिलीवरी के दौरान लाखों रुपए खर्च किए. 

उस से केस सेटलमेंट के लिए कोर्ट में 5 लाख रुपए मांगे गए. तब अतुल ने कहा कि मैं पढ़ालिखा आदमी हंू. मैं अगर रिश्वत दूंगा तो इस से क्या संदेश जाएगा, इसलिए मैं रिश्वत नहीं दूंगा. वह बेंगलुरु से जौनपुर तारीख करने जाता, पता चलता कि उस दिन जज साहिबा नहीं आई हैं. पेशी के लिए चाहे कितनी दूर से आदमी आए, पेशकार उसे अगली तारीख दे देता है. पवन मोदी ने बताया कि पहले दोनों के संबंध मधुर थे. जब कोराना काल शुरू हुआ तो बेंगलुरु में सब से ज्यादा खराब हालात थे. बहू निकिता को कोराना हुआ तो अपनी मम्मी की जगह अतुल ने सास निशा को बुला लिया. बस, यही गलती उसे भारी पड़ गई. 

सास ने अतुल से पैसे मांगने शुरू कर दिए. अतुल पहले ही काफी रुपए दे चुका था, उस ने और रुपए देने से मना कर दिया. इस के चलते संबंधों में दरार आ गई.  

धारा 498ए के मिसयूज पर अंकुश जरूरी

वकीलों ने अतुल सुभाष मोदी के मामले में एक बार फिर धारा 498ए के मिसयूज पर सवाल उठाते हुए इस मामले को गंभीरता से लेने की मांग की है. एडवोकेट विकास पाहवा ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मामला है. पिछले 3 दशकों की वकालत में मैं ने देखा है कि कैसे 498ए का दुरुपयोग हमारे अपने लोगों, कानूनी बिरादरी, पुलिस तंत्र और असंतुष्ट महिलाओं की ओर से किया जाता है. उन्होंने कहा कि इस घटना ने विवाद को नया जन्म दिया है और इस मुद्ïदे को देश के लोगों के सामने लाया है. इसे बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए. धारा 498ए के मिसयूज पर अंकुश लगाया जाना चाहिए, क्योंकि यह हमारे समाज के सामाजिक तानेबाने को प्रभावित करता है.

सुसाइड जैसा कदम उठाने से न्याय व्यवस्था को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. सुसाइड जैसा फैसला लेना गलत है. जान देना समस्या का कोई हल नहीं है. अनसुलझे वैवाहिक मुद्ïदों, वाइफ व उस की फैमिली के टार्चर और अदालत से न्याय नहीं मिलने के फेर में 34 वर्षीय एआई इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी ने मौत को चुना. सुसाइड को अंतिम विकल्प मानते हुए अतुल सुभाष चला तो गया लेकिन अपने पीछे तमाम प्रश्न छोड़ गया, जिन का उत्तर तलाशना अभी शेष है.       

दूर के रिश्तेदारों को न फंसाया जाए-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मतभेदों से पैदा हुए घरेलू विवादों में पति और उस के फैमिली वालों को घरेलू प्रताडऩा के झूठे मामले में फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई. जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 10 दिसंबर, 2024 को ऐसा ही एक मामला खारिज करते हुए कहा कि धारा 498ए (घरेलू प्रताडऩा) पत्नी और उस के परिजनों के लिए हिसाब बराबर करने का हथियार बन गई है.

शीर्ष कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना से जुड़े एक मामले में की. दरअसल, एक पति ने पत्नी से तलाक मांगा था. इस के खिलाफ पत्नी ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू क्रूरता का केस दर्ज करा दिया. पति इस के खिलाफ तेलंगाना हाईकोर्ट गया, लेकिन कोर्ट ने उस के खिलाफ दर्ज केस रद्ïद करने से इनकार कर दिया. इस के बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. शीर्ष कोर्ट ने इसे हाईकोर्ट की गंभीर गलती मानते हुए केस रद्द कर दिया. पिछले महीने भी शीर्ष कोर्ट ने सभी अदालतों को चेतावनी दी थी कि वे यह सुनिश्चित करें कि डोमेस्टिक वायलेंस के मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों को अनावश्यक रूप से न फंसाया जाए.    

पत्नी के टार्चर पर एक और आत्महत्या

बेंगलुरु में एआई इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी के सुसाइड पर हंगामा अभी थमा भी नहीं है कि शहर में एक और सुसाइड का ऐसा ही मामला सामने आ गया. हुलीमावु पुलिस स्टेशन के 33 वर्षीय पुलिस हैडकांस्टेबल टिपन्ना अलुगुर ने 13 दिसंबर, 2024 की देर रात बायप्पनहल्ली में ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली. 

कन्नड़ भाषा में लिखे अपने सुसाइड नोट में उस ने अपनी पत्नी पार्वती और ससुर यमुनाप्पा पर टार्चर और हैरेसमेंट के आरोप लगाते हुए आत्महत्या करने के लिए जिम्मेदार ठहराया. टिपन्ना उत्तर कर्नाटक के विजयपुरा जिले के सिंधगी शहर के पास हंडिगानुरू गांव का निवासी था. बायप्पनहल्ली रेलवे पुलिस मामले की जांच कर रही है.             

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Superstition : 10 साल में 12 कत्ल करने वाले तांत्रिक का खौफनाक रहस्य

Superstition : एक ऐसा सीरियल किलर जो बेहद शातिर और खतरनाक था, 6 महीने तक ड्राइवर बन कर छिपा रहा और लोगों व पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहा।

पुलिस भी उस की असलियत नहीं जान पाई थी. इस मास्टरमाइंड ने अपनी चालाकी और रहस्यमयी पहचान से लंबे समय तक कानून को मात देता रहा. इस सनकी कातिल ने 12 लोगों की हत्या की थी मगर लाख कोशिशों के बावजूद पुलिस को चकमा दे कर फरार हो जाता था। मगर कहते हैं न कि कानून के हाथ लंबे होते हैं और यही हुआ भी। एक दिन पुलिस के शिकंजे में यह आ ही गया।

उसे पकड़ने के लिए पुलिस को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. मीडिया की सुर्खियों में रही इस कातिल की कहानी ने सब को हैरान कर दिया था। जानते हैं, इस कातिल की रहस्य से जुड़ी क्राइम स्टोरी :

हम बात कर रहे हैं गुजरात के राजकोट में पुलिस हिरासत में लिए गए नवल सिंह और उसे पकड़वाने वाला शख्स जिगर गोहिल की. नवल सिंह नगमा (काल्पनिक नाम) महिला से प्यार करता था. दोनों के बीच प्यार हुआ तो फिर जिस्मानी ताल्लुकात भी बन गए। इस बीच नगमा उस पर शादी करने का दबाव डालने लगी। लेकिन वह शादी करने का झांसा देता रहता. इस के बाद प्यार का झूठा वायदा करने वाले इस तांत्रित प्रेमी ने उस महिला से पीछा छुड़ाने के लिए उस का कत्ल कर कर दिया. जब नगमा के मांबाप और उस के भाई को पता चला कि नगमा गुम है तो उस की तलाशी हुई. मांबाप और उस के भाई को नहीं पता था कि उस के तांत्रिक प्रेमी ने नगमा की हत्या कर उसे दफना दिया है.

पुलिस में शिकायत

जब नगमा के घर वाले अपनी बेटी को ढूंढ़ने में कामयाब नहीं हो पाए तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी. तांत्रिक डरा हुआ था और जब उसे लगा कि पुलिस मेरे पास पहुंच सकती है तो उस ने एक साजिश रची. उस ने नगमा के मांबाप और भाई से बताया कि वह अपनी तंत्र (Superstition) विद्या से नगमा को ढूंढ़ सकता है मगर इस के लिए सब को एक सुनसान दरगाह पर आना होगा.

फिर तांत्रिक अपने षड्यंत्र में कामयाब हो गया और तीनों को प्रसाद में खतरनाक जहर मिला कर खिला दिया, जिस से तत्काल तीनों की मौत हो गई.

मौत के घाट उतार कर उस ने उन तीनों के पास एक सुसाइड नोट रख दिया. इस मर्डर में सीरियल किलर जिगर गोहिल भी था. पुलिस ने इस अपराधी को पकड़ कर हिरासत में रखा था, लेकिन अचानक लौकअप में उस की तबियत बिगड़ गई और वह मर गया.

इस की मौत को लेकर पुलिस खुद ताज्जुब कर रही थी। इस के बाद पुलिस द्वारा इस सीरियल किलर का पोस्टमार्टम कराया गया. जब पुलिस को पता चला कि उस की मौत हार्ट अटैक से हुई है तो पुलिस सोच में पड़ गई क्योंकि जिन 12 लोगों की मौत हुई थी उन की भी हार्ट अटैक से मौतें हुई थीं.

कौन था नवल

नवल एक तांत्रिक था। वह अपने झूठे तंत्रमंत्र का डर दिखा कर लोगों को फंसाता और उन के पैसे लूट कर मौत के घाट उतार दिया करता था. यह तांत्रिक अहमदाबाद के सुरेंद्र नगर में काला जादू किया करता था. इस को तांत्रिक बनने का आइडिया एक तांत्रिक को देख कर आया था. बाकी इस ने टीवी पर आने वाले क्राइम शो पर सीखा.

तांत्रिक जानता था कि बहुत से लोग लालच में पैसे या सोना डबल कराने के लिए तांत्रिक का सहारा लिया करते हैं. बस, इसी बात को जान कर उस ने लोगों को फायदा उठाना चालू कर दिया. इस तांत्रिक का काला जादू चल पडा. इस के बाद वह लोगों को ठगता चला गया.

2021 के एक रोड ऐक्सिडैंट में एक नौजवान की मौत हो गई थी. पुलिस इसे रोड ऐक्सिडैंट मान कर फाइल बंद कर दी। मगर उस के भाई को शक था कि उस का भाई रोड ऐक्सिडैंट में नहीं बल्कि किसी ने उस की हत्या की है. भाई की मौत का पता लगाने के लिए वह पुलिस के चक्कर काटता रहा, लेकिन पुलिस ने उस की एक भी बात नहीं मानी. इस के बाद वह अपने भाई के कातिल का पता करने में लग गया.

कौन था हत्यारा

उसे पता चला कि 1 महीने पहले उस का भाई एक तांत्रिक (Superstition) के संपर्क में आया था. उस का नाम नवल था. इस के बाद वह नवल के करीब जाने लग गया। उस को पता चला कि उस के पास भी एक कार है जिसे रात में टैक्सी के रूप में चलवाता है. नवल को एक टैक्सी ड्राइवर की जरूरत थी और वह उस के पास जा पहुंचा और पार्ट टाइम टैक्सी चलाने लगा.

उस का ड्राइवर बनने के बाद जिगर को पता चला कि तंत्रमंत्र के अलावा उस के और भी कई रूप हैं. इस के बाद जिगर 7 महीने तक उस का ड्राइवर बना और तंत्रमंत्र के अलावा सारी जानकारी इकट्ठा करने लगा.

जिगर ने नवल का भरोसा इतना जीत लिया था कि उसे अपने पूरे रहस्य बता दिया करता था. नवल ने जिगर से कहा कि एक बिजनैसमैन मेरे पास पैसे डबल कराने आने वाला है. फिर क्या था, नवल जिगर को लालच दे कर बोला कि कार की स्टैपनी में एक बोतल और उस में सोडियम नाइट्रेट नाम का रसायन छिपा हुआ है.

इस के साथ ही एक शराब की बोतल भी है. नवल ने प्लान बनाया था कि वह आदमी उस के पास पैसे डबल कराने आएगा तो तुम उसे इस शराब को पिला देना जिस से उस की मौत हो जाएगी. उस ने बताया कि इस रसायन को पिला कर उस ने कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया है. उस ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह हार्ट अटैक आती है. इस बात को सुन कर जिगर को यकीन हो गया था कि उस के भाई की भी मौत इस ने ही की है, क्योंकि पोस्टमार्टम में भी इसी रसायन का नाम आया था. इस के बाद वह पुलिस को मैसेज के जरिए इस बात की जानकारी देता है और अपनी लोकेशन भी बता देता है.

इस के बाद नवल को अरेस्ट कर लिया गया। पुलिस ने पूछताछ की तो उस की बात सुन कर हैरान हो गई थी क्योंकि पुलिस ने एक आम आदमी को अरेस्ट नहीं किया था बल्कि एक सीरियल किलर को अरेस्ट किया था क्योंकि यह किलर 10 साल में 12 कत्ल कर चुका था. पहला कत्ल दादी, दूसरा कत्ल मां और तीसरा कत्ल अपने चाचा का. पुलिस का कहना है कि नवल एक पैसे वाले तांत्रिक (Superstition) को जानता था जो इसी रसायन का प्रयोग किया करता था. पुलिस का मानना है कि 12 कत्ल से भी ज्यादा मौतों का आंकड़ा भी हो सकता था. इस से पूरी पूछताछ करने से पहले ही इस की मौत हो चुकी है.

जीजा साली के खेल में मारा गया डाक्टर

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.

लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करने की खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोते बिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.

पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा.

संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा.

इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग.

इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

बेलगाम दिल का हश्र

11जुलाई, 2014 को सुबह साढ़े 10 बजे इंदौर के स्काई होटल के मालिक दर्शन पारिख ने अपने कर्मचारी को होटल के कमरा नंबर 202 में ठहरे व्यक्ति से 500 रुपए लाने को कहा. एक दिन पहले इस कमरे में रोहित सिंह अपनी छोटी बहन के साथ ठहरा था. कमरा बुक कराते समय उस ने कहा था कि वह कमरे में पहुंच कर फ्रैश होने के बाद पैसे दे देगा.

पैसे लेने के लिए कर्मचारी कमरा नंबर 202 पर पहुंचा तो उसे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. उस ने कालबेल का बटन दबाया. बटन दबाते ही कमरे के अंदर लगी घंटी के बजने की आवाज उस के कानों तक आई तो वह दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दोबारा घंटी बजाई. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला और न ही अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं पड़ी. फिर उस ने दरवाजा थपथपाया. इस के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो वह कर्मचारी अपने मालिक दर्शन पारिख के पास पहुंचा और उन्हें दरवाजा न खोलने की बात बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि कई बार घंटी बजाने के बाद भी कमरे में कोई हलचल नहीं हुई.

उस की बात सुन कर दर्शन पारिख खुद रूम नंबर 202 पर पहुंच गया और उस ने भी कई बार दरवाजा थपथपाया. उसे भी कमरे से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. उसे शंका हुई कि कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं है. उस ने उसी समय थाना खजराना फोन कर के इस बात की सूचना दे दी.

ऐसी कंडीशन में ज्यादातर कमरे के अंदर लाश मिलने की संभावना होती है. इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सी.बी. सिंह एसआई पी.सी. डाबर और 2 सिपाहियों को ले कर बाईपास रोड पर बने नवनिर्मित होटल स्काई पहुंच गए. उन्होंने भी रूम नंबर 202 के दरवाजे को जोरजोर से खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस ने दर्शन पारिख से दूसरी चाबी ले कर दरवाजा खोला. अंदर फर्श पर एक लड़का और लड़की आलिंगनबद्ध मिले.

उन की सांसों को चैक किया तो लगा कि उन की सांसें टूट चुकी हैं. दर्शन पारिख ने उन दोनों को पहचानते हुए कहा कि कल जब यह लड़का आया था तो इस ने इस लड़की को अपनी बहन बताया था और इस समय ये इस हालत में पड़े हैं. कहीं उन की सांसें बहुत धीरेधीरे न चल रही हों, यह सोच कर पुलिस ने उन्हें अस्पताल भेजा. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद पुलिस ने होटल के उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी बुला लिया गया. कमरे में मिठाई का एक डिब्बा, केक, जलेबी आदि खुले पड़े थे.  जिस जगह लाशें पड़ी थीं, वहीं पास में एक पुडि़या में पाउडर रखा था. उसे देख कर डा. सुधीर शर्मा ने बताया कि यह हाई ब्रोस्वोनिक नाम का जहरीला पदार्थ हो सकता है. इन्होंने मिठाई वगैरह में इस पाउडर को मिला कर खाया होगा. जिस की वजह से इन की मौत हो गई.

एसआई पी.सी. डाबर ने सामान की तलाशी ली तो उस में जो कागजात मिले, उन से पता चला कि उन के नाम रोहित सिंह और मीनाक्षी हैं. वहीं 20 पेज का एक सुसाइड नोट भी मिला. उस से पता चला कि वे मौसेरे भाईबहन के अलावा प्रेमी युगल भी थे. पुलिस ने कमरे में मिले सुबूत कब्जे में ले लिए.

कागजात की जांच से पता चला कि लड़की का नाम मीनाक्षी था. वह खंडवा जिले के नेहरू चौक सुरगांव के रहने वाले महेंद्र सिंह की बेटी थी, जबकि लड़के का नाम रोहित था. वह हरदा के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह का बेटा था. पुलिस ने दोनों के घरवालों को खबर कर दी तो वे रोतेबिलखते हुए अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाशों की पहचान रोहित और मीनाक्षी के रूप में कर दी. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें उन के परिजनों को सौंप दी गईं.

दोनों के घर वालों से की गई बातचीत और सुसाइड नोट के बाद पुलिस जान गई कि रोहित और मीनाक्षी के बीच प्रेमसंबंध थे. उन के प्रेमप्रसंग से ले कर सुसाइड करने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के हरदा शहर के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रोहित सिंह उन का दूसरे नंबर का बेटा था. बेटी को पढ़ानेलिखाने के बाद वह उस की शादी कर चुके थे. रोहित इंटरमीडिएट पास कर चुका था. उस की तमन्ना कृषि वैज्ञानिक बनने की थी, इसलिए पिता ने भी उस से कह दिया था कि उस की पढ़ाई में वह किसी तरह की रुकावट नहीं आने देंगे.

करीब 3 साल पहले की बात है. रोहित अपने परिजनों के साथ इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर अपनी मौसेरी बहन की शादी में गया था. उस शादी में रोहित की दूसरी मौसी की बेटी मीनाक्षी भी अपने घर वालों के साथ आई हुई थी.

मीनाक्षी बेहद खूबसूरत और हंसमुख थी. वह जीवन के 22 बसंत पार कर चुकी थी. मजबूत कदकाठी का 17 वर्षीय रोहित भी बहुत हैंडसम था. पूरी शादी में मीनाक्षी रोहित के साथ रही थी, दोनों ने शादी में काफी मस्ती भी की. मीनाक्षी की रोहित के प्रति दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. चूंकि वे मौसेरे भाईबहन थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर किसी को कोई शक वगैरह नहीं हुआ.

शादी के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. घर जाने के बाद मीनाक्षी के मन में उथलपुथल होती रही. शादी में रोहित के साथ की गई मस्ती के वह पल उस के दिमाग में घूम रहे थे. समझदार होने के बाद इतने ज्यादा समय तक मोहित उस के साथ पहली बार रहा था. मौसेरा भाई होने के बावजूद मीनाक्षी का उस की तरफ झुकाव हो गया. दोनों के पास एकदूसरे के फोन नंबर थे. समय मिलने पर वे फोन पर बात करते और एसएमएस भेजते रहते.

मीनाक्षी उसे अपने प्रेमी के रूप में देखने लगी. एक दिन उस ने फोन पर ही रोहित से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रोहित भी जवानी की हवा में उड़े जा रहा था. उस ने उस का प्रस्ताव मंजूर कर लिया. उस समय वे यह भूल गए कि आपस में मौसेरे भाईबहन हैं. फिर क्या था, दोनों के बीच फोन पर ही प्यार भरी बातें होने लगीं. बातचीत, मेलमुलाकातों के साथ करीब 3 साल तक प्यार का सिलसिला चलता रहा. इस दौरान उन के बीच की दूरियां भी मिट चुकी थीं.

कहते हैं कि प्यार को चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, वह छिप नहीं पाता, लेकिन मीनाक्षी और रोहित के संबंधों पर घर वालों को जल्दी से इसलिए शक नहीं हुआ था, क्योंकि वे आपस में मौसेरे भाईबहन थे.

भाईबहन का रिश्ता होते हुए भी घर वालों ने जब उन्हें सीमाओं को लांघते देखा तो उन्हें शक हो गया. फिर क्या था, उन के संबंधों को ले कर घर में चर्चा होने लगी. पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन उन की हरकतें ऐसी थीं कि संदेह पैदा हो रहा था. इस के बावजूद घर वाले लापरवाह बने रहे.

उधर मीनाक्षी और रोहित का इश्क परवान चढ़ता जा रहा था. अब मीनाक्षी 25 साल की हो चुकी थी और रोहित 20 साल का. वह रोहित से 5 साल बड़ी थी. इस के बावजूद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.   दोनों ने शादी का फैसला तो कर लिया, लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि अपनी बात घर वालों से कहें कैसे.

सच्चे प्रेमियों को अपने प्यार के आगे सभी चीजें बौनी नजर आती हैं. वे अपना मुकाम हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. हालांकि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उन के घर वाले उन की बात मानेंगे, लेकिन वे यह बात कह कर घर वालों को यह बता देना चाहते थे कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं. मौका पा कर रोहित और मीनाक्षी ने अपनेअपने घर वालों से साफसाफ कह दिया कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं.

यह सुन कर घर वाले सन्न रह गए कि ये आपस में सगे मौसेरे भाईबहन हैं और किस तरह की बात कर रहे हैं? ऐसा होना असंभव था. घर वालों ने उन्हें बहुत लताड़ा और समझाया भी कि सगेसंबंधियों में ऐसा नहीं होता. मोहल्ले वाले और रिश्तेदार जिंदगी भर ताने देते रहेंगे. लेकिन रोहित और मीनाक्षी ने उन की एक न सुनी. उन्होंने आपस में मिलनाजुलना नहीं छोड़ा. घर वालों को जब लगा कि ये ऐसे नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन पर सख्ती करनी शुरू कर दी.

मीनाक्षी और रोहित बालिग थे. उन्होंने अपनी गृहस्थी बसाने की योजना पहले ही बना ली थी. फिर योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 15 जून, 2014 को वे अपने घरों से भाग कर इंदौर पहुंच गए. घर से भागने से पहले रोहित अपने दादा के पैसे चुरा कर लाया था तो वहीं मीनाक्षी भी घर से पैसे व जरूरी कपड़े आदि बैग में रख कर लाई थी. वे इंदौर आए और 3 दिनों तक एक होटल में रहे. इस के बाद उन्होंने राज मोहल्ला में एक मकान किराए पर ले लिया.

मीनाक्षी के अचानक गायब होने पर घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने सब से पहले उस का फोन मिलाया. वह बंद आ रहा था. फिर उन्होंने अपने खास लोगों को फोन कर के उस के बारे में पता किया. मामला जवान बेटी के गायब होने का था, इसलिए बदनामी को ध्यान में रखते हुए वे अपने स्तर से ही उसे ढूंढते रहे. बाद में जब उन्हें पता चला कि रोहित भी घर पर नहीं है तो उन्हें बात समझते देर नहीं लगी. फिर मीनाक्षी के पिता महेंद्र सिंह ने बेटी के लापता होने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

घर से भाग कर गृहस्थी चलाना कोई आसान काम नहीं होता. खास कर तब जब आमदनी का कोई स्रोत न हो. वे दोनों घर से जो पैसे लाए थे, वे धीरेधीरे खर्च हो चुके थे. अब पैसे कहां से आएं, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. एक दिन रोहित ने मीनाक्षी से कहा, ‘‘मैं घर जा कर किसी तरह पैसा लाता हूं. वहां से लौटने के बाद हमें गुजरबसर के लिए कुछ करना होगा.’’

मीनाक्षी को इंदौर में ही छोड़ कर रोहित अपने गांव चला गया. वह खंडवा रेलवे स्टेशन पर पहुंचा था कि तभी इत्तफाक से मीनाक्षी के भाई ने उसे देख लिया. उस ने उसे वहीं पर पकड़ लिया. वहां भीड़ जमा हो गई. भीड़ में उस के कुछ परिचित भी थे. उन्होंने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा, लेकिन रोहित ने कुछ नहीं बताया तो वह अपने परिचितों के सहयोग से उसे पकड़ कर थाने ले गया.

पुलिस ने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि वह इंदौर में है. पुलिस उसे ले कर इंदौर के राज मोहल्ले में पहुंची. इस से पहले कि वह उस के कमरे पर पहुंच पाती, रोहित पुलिस को झांसा दे कर रफूचक्कर हो गया. पुलिस से छूट कर वह तुरंत अपने कमरे पर पहुंचा और वहां से मीनाक्षी को ले कर खिसक गया. कमरा छोड़ कर वे इंदौर के रेडिसन चौराहे के पास स्थित स्काई होटल पहुंचे.

उन के पास अब ज्यादा पैसे नहीं थे. होटल मालिक दर्शन पारिख से मीनाक्षी ने रोहित को अपना छोटा भाई बताया था. दर्शन पारिख ने जब कमरे का एडवांस किराया 500 रुपए जमा करने को कहा तो उस ने कह दिया कि पैसा हम सुबह दे देंगे, अभी जरा थोड़ा आराम कर लें.

कमरे में सामान रखने के बाद वे खाना खाने बाहर गए. वापस आते समय कुछ मिठाइयां आदि ले कर आए और सुबह होटल के कमरे में उन की लाशें मिलीं. अब संभावना यह जताई जा रही है कि उन्होंने मिठाइयों में वही जहरीला पदार्थ मिला कर खाया होगा, जो घटनास्थल पर मिला था.

कमरे से 20 पेज का जो सुसाइड नोट मिला है, उस में दोनों ने 5-5 पेज अपनेअपने घर वालों को लिखे हैं. रोहित ने लिखा है कि पापा मेरी आखिरी इच्छा है कि आप शराब पीना छोड़ दें. गांव में जा कर दादादादी के साथ रहें. मम्मी के लिए उस ने लिखा कि आप पापा, दादादादी, भैया का खयाल रखना. तुम मुझ से सब से ज्यादा प्यार करती हो, अब मैं यहां से जा रहा हूं.

मीनाक्षी ने भी अपने पिता को लिखा था कि पापा, मैं जो कुछ कह रही हूं, जो कुछ किया है, वह शायद किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि मौसी के लड़के से प्यार करती हूं. आप के और रोहित के साथ रहना चाहती थी, लेकिन आप ने अनुमति नहीं दी, इसीलिए मैं ने यह कदम उठाया है. आप अपनी सेहत का ख्याल रखना और कमर दर्द की दवा बराबर लेते रहना. उस ने मां के लिए लिखा था कि आप पापा से झगड़ा मत करना.

उन्होंने सामूहिक सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे पत्र के साथ हमारे फोटो भी हैं. आत्महत्या का समाचार हमारे फोटो के साथ अखबारों में छापा जाए.

रोहित और मीनाक्षी की मौत के बाद उन के घर वाले सकते में हैं. सुसाइड नोट के बाद यह बात साबित हो गई थी कि वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. यह बात जगजाहिर होने के बाद दोनों के घर वालों का समाज के सामने सिर झुक गया. क्योंकि रोहित और मीनाक्षी के बीच जो संबंध थे, उसे हमारा समाज मान्यता नहीं देता.

बहरहाल, रोहित के पिता सोहन सिंह का बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाने का सपना धराशाई तो हो ही गया, साथ ही बेटा भी हमेशा के लिए उन से जुदा हो गया. इस के अलावा महेंद्र सिंह को भी इस बात का पछतावा हो रहा है कि जैसे ही उन्होंने मीनाक्षी और रोहित के बीच चक्कर चलने की बात सुनी थी, उसी दौरान वह उस की शादी कहीं और कर देते तो शायद यह दुखद समाचार सुनने को नहीं मिलता. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

सनकी ‘मोबाइल चिपकू’ का कारनामा

उस समय रात के 8 बज रहे थे. विनोद तुरंत अपने जीजा ओमप्रकाश के घर पहुंचा. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. काफी देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से कोई आवाज नहीं आई. विनोद जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा, तो भीतर से ओमप्रकाश की आवाज आई. विनोद ने जब अपनी बहन नीतू के बारे में पूछा, तो उस ने दरवाजा खोले बगैर ही कह दिया कि वह काफी देर पहले घर से निकल चुकी है.

विनोद उस की बात मानने को तैयार नहीं था. उस ने जब दरवाजे पर धक्का मारना शुरू किया, तो ओमप्रकाश ने अंदर से कहा, ‘‘कुछ देर ठहरो, मैं कपड़े पहन कर बाहर निकलता हूं.’’

5 मिनट बाद घर के पिछले हिस्से में किसी के कूदने की आवाज सुनाई पड़ी, तो विनोद के कान खड़े हो गए. उस ने दोबारा दरवाजा खटखटाया, तो कोई आवाज नहीं आई. उस के बाद विनोद घर के पिछले हिस्से में गया और दीवार फांद कर घर के अंदर कूद गया. अंदर जाने पर देखा कि दोनों कमरों के दरवाजे पर भी ताले लटके हुए थे.

उस ने फिर दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई. उस ने एक कमरे के दरवाजे का ताला तोड़ा, तो देखा कि उस के दोनों मासूम भांजे जमीन पर ही पड़े हुए थे. उन्हें जगाने की कोशिश की गई, तो उन के जिस्म में कोई हलचल नहीं हुई.

दूसरे कमरे का ताला तोड़ा गया, तो वहां सुमन और नीतू बेसुध पड़ी हुई थीं. नीतू के मुंह से काफी झाग निकला हुआ था. अपनी दोनों बहनों और भांजों की ऐसी हालत देख विनोद रोने लगा और उस ने गांव के मुखिया को सूचना दी.

मुखिया के पति महेंद्र चौहान और पंचायत समिति के सदस्य बलिराम चौहान मौके पर पहुंचे और तुरंत पुलिस को खबर की. विनोद ने पुलिस को बताया कि जब उस की छोटी बहन नीतू शाम तक घर नहीं पहुंची, तो उस ने अपने जीजा ओमप्रकाश को फोन पर ही सारा माजरा बताया.

ओमप्रकाश के बात करने के लहजे से लग रहा था कि वह काफी घबराया हुआ है. कुछ देर बाद उस का मोबाइल स्विच औफ बताने लगा. इस से विनोद के मन में तरहतरह की शंकाएं उठने लगीं और वह तुरंत ओमप्रकाश के घर पहुंच गया.

झारखंड के धनबाद जिले के बरोरा थाने की प्योर बरोरा बस्ती में 19 फरवरी को बीसीसीएल में काम करने वाले मुलाजिम ओमप्रकाश चौहान ने अपनी बीवी, साली और 2 मासूम बच्चे को जहर दे कर मार डाला. चारों की लाशें घर में पड़ी मिलीं. 4 जानें लेने के बाद 35 साला ओमप्रकाश फरार हो गया.

पुलिस ओमप्रकाश की खोज में इधरउधर हाथपैर मारती रही और 20 फरवरी को धनबाद के पास ही गोमो रेलवे स्टेशन के डाउन यार्ड की 5 नंबर लाइन पर ट्रेन के सामने आ कर उस ने अपनी जान दे दी.

ओमप्रकाश झारखंड के धनबाद जिले की बरोरा ब्लौक-2 कोलियरी में काम करता था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक, ओमप्रकाश की बीवी की मौत 17-18 फरवरी को ही हो चुकी थी. उसे जहर दे कर मारा गया था. सुमन, नीतू, पीयूष और हर्षित के पेट में जहर पाया गया. सभी के जिस्म में कोई भीतरी और बाहरी चोट नहीं पाई गई.

ओमप्रकाश की बीवी का नाम सुमन उर्फ तेतरी (30 साल), साली का नाम नीतू (23 साल), बड़े बेटे का नाम पीयूष(12 साल) और छोटे बेटे का नाम हर्षित  (8 साल) था. ओमप्रकाश की ससुराल फुसरो के ढोरी इलाके में है. उस की साली नीतू ढोरी में ही रह कर ब्यूटीशियन का कोर्स कर रही थी.

नीतू के भाई विनोद नोनिया और गुड्डन चौहान ने बताया कि नीतू रोज की तरह 19 फरवरी को ब्यूटीशियन की क्लास करने के लिए घर से निकली थी. शाम को जब वह घर नहीं लौटी, तो घर वालों को चिंता सताने लगी. उन्होंने नीतू की सहेली से उस के बारे में पूछा, तो सहेली ने बताया कि आज नीतू क्लास में नहीं गई थी. उस के बाद नीतू की खोज शुरू हुई.

विनोद ने अपने जीजा ओमप्रकाश को फोन कर के बताया कि नीतू घर से गायब है. ओमप्रकाश ने बताया कि नीतू उस के घर आई थी और शाम को कुछ सामान लेने के लिए बाजार की ओर गई है. उस के बाद वह घर पहुंच जाएगी.

ओमप्रकाश ने अपने सुसाइड नोट में अपनी साली को बहन की तरह बताया है, लेकिन उस के दोस्तों ने पुलिस को बताया है कि ओमप्रकाश और उस की साली के बीच नाजायज रिश्ता था और दोनों मोबाइल फोन पर घंटों बातें किया करते थे.

ओमप्रकाश के साथ काम करने वाले मजदूरों ने पुलिस को बताया है कि डंपर औपरेटर ओमप्रकाश अकसर उन के साथ बातचीत के दौरान साली से प्रेम संबंध होने की बात किया करता था. काम के दौरान भी वह घंटों अपनी साली के साथ फोन पर बातें करता रहता था. इस वजह से सभी साथी उसे मजाक में ‘मोबाइल चिपकू’ के नाम से पुकारने लगे थे.

ओमप्रकाश को उस की मां सोनवा कामिन की जगह बीसीसीएल में नौकरी मिली थी. साल 2000 में सोनवा की मौत हो गई थी. उस ने सब से पहले फुलेरीटांड कोलियरी में ड्यूटी जौइन की थी और फिलहाल वह ब्लौक-2 में डंपर औपरेटर था. उस के दफ्तर के हाजिरी बाबू अभय पांडे ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि ओमप्रकाश पिछले 2-3 महीने से गैरहाजिर था. वह काफी सनकी आदमी था और बातबात पर तैश में आ जाता था. उस ने कभी भी अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं की.

अकसर वह पहाड़ी पर बैठ कर अपने स्मार्टफोन में मसरूफ रहा करता था. अफसरों ने उसे कई बार काम से निकालने की धमकी भी दी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता था. ओमप्रकाश और सुमन की शादी साल 2003 में हुई थी. ओमप्रकाश का पैतृक घर बिहार के औरंगाबाद जिले के रफीगंज के कसमा थाने के तहत पड़ने वाले भटुकीकलां गांव में है.

ओमप्रकाश के भाई जयराम कुमार ने बताया कि 11 फरवरी को ओमप्रकाश गांव गया था. उस ने बताया कि उस का भाई अपनी साली से अकसर बातें किया करता था. 19 फरवरी की सुबह को भी ओमप्रकाश ने जयराम से बातें की थीं, लेकिन साली के साथ उस का कोई गलत रिश्ता था, इस की भनक किसी को नहीं लगी थी. नीतू के भाई विनोद ने बरोरा थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिस में कहा है कि ओमप्रकाश के साथ नीतू के किसी तरह के गलत संबंध होने की जानकारी किसी को नहीं थी.

बरोरा थाने के थानेदार प्रवीण कुमार ने बताया कि शुरुआती जांच में पता चला है कि ओमप्रकाश पिछले कुछ महीनों से काफी तनाव में था. वह लोगों से मिलता भी नहीं था. काम से लौट कर वह अपने घर में ही कैद हो जाता था.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 4

हर रोज सुबह को बीना के सासससुर रेस्टोरेंट पर चले जाते थे. थोड़ी देर बाद देवर सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला जाता था. एंजल के स्कूल का समय भी वही होता था. उधर सुधीर भी अपने काम के लिए सुबह को निकलता था तो शाम को वापस लौटता था.  सब के जाने के बाद बीना घर में अकेली रह जाती थी. यह समय उस के लिए उपयुक्त था, इसलिए अगले दिन ही उस ने फोन कर के मृदुल को घर बुला लिया.

बातचीत हुई तो मृदुल बीना से बोला, ‘‘एक बार फिर सोच लो, तुम्हें बहुत कठिन परीक्षा से गुजरना होगा जिस में तुम्हें काफी कष्ट सहना पड़ेगा.’’

‘‘मैं अपने पति के लिए किसी भी परीक्षा से गुजरने को तैयार हूं. हर कष्ट सहूंगी मैं. आप बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘दरअसल, मैं काला जादू करूंगा. इस में थोड़ी तकलीफ तो होती है, पर रिजल्ट एक दम परफैक्ट आता है. अगर थोड़ा कष्ट सह सकती हो, तो कोई परेशानी ही नहीं है.’’

‘‘बताइए तो मुझे करना क्या होगा?’’

मृदुल ने कोई जवाब देने के बजाए पूरे मकान में घूम कर देखा. तभी उसे किचन में काफी ऊपर लगा लोहे का एक जंगला नजर आ गया. उसे देख कर वह बीना से बोला, ‘‘मैं इस जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे में फांसी का फंदा बनाऊंगा. वह फंदा गले में डाल कर तुम्हे स्टूल पर खड़ा होना पड़ेगा. फिर मैं तंत्रमंत्र से अपना काला जादू शुरू कर दूंगा. जब मंत्र पूरे हो जाएंगे तो तुम्हें यह कह कर पैर से स्टूल गिरा देना होगा कि मेरे पति के जीवन में कोई प्रेमिका न रहे. स्टूल गिरने से फांसी का फंदा तुम्हारे गले में कस जाएगा और तुम्हें तकलीफ होने लगेगी.’’

घबराई हुई बीना बड़े ध्यान से मृदुल की बात सुन रही थी. उसे शांत देख मृदुल बोला, ‘‘डरने की जरूरत नहीं है, तुम्हें जब ज्यादा तकलीफ होगी तो इशारा कर देना, मैं तुम्हें संभाल कर फंदा गले से निकाल दूंगा. इस क्रिया में होगा यह कि तुम्हारा गला घुटने से जितनी तकलीफ तुम्हें होगी, उस से चार गुना ज्यादा तकलीफ तुम्हारे पति की प्रेमिका को होगी. इस तरह मौत के डर से वह तुम्हारे पति का खयाल अपने मन से निकाल देगी.’’

एक पल रुक कर मृदुल बोला, ‘‘काले जादू का यह अनुष्ठान पूरे 40 दिन चलेगा, लेकिन रोजाना नहीं बल्कि हफ्ते में एक बार. अगर तुम तैयार हो तो हम आज से ही शुरू कर देते हैं. हां, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मैं हूं सब कुछ संभालने के लिए.’’

बीना डर तो रही थी, पर पति को बचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. इसलिए बिना दूरगामी परिणाम सोचे उस ने हां कर दी. उस की स्वीकृति मिलते ही मृदुल ने जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे पर फांसी का फंदा बना दिया. इस के बाद उस ने बीना को स्टूल पर खड़ा कर के फंदा उस के गले में डाल दिया. शुरू में तो बीना को डर लग रहा था, लेकिन जब मृदुल उस के चारों ओर चक्कर लगा कर मंत्र पढ़ने लगा तो उस का डर कम हो गया.

करीब 20-25 मिनट का आडंबर रचने के बाद मृदुल ने बीना से स्टूल गिराने को कहा तो उस ने पैर से स्टूल गिरा दिया. स्टूल गिरते ही उस का गला रस्से के फंदे में फंस गया, लेकिन मृदुल ने फंदा कुछ इस तरह बनाया था कि उसे तकलीफ तो हो पर गला पूरी तरह न घुटे. इस तरह बीना ने 5-7 मिनट तकलीफ झेली, तत्पश्चात मृदुल ने उसे नीचे उतार लिया. यह सब आडंबर उस ने बीना का विश्वास जीतने के लिए किया था.

बीना का विश्वास जीतने के बाद मृदुल चला गया. बीना को उस पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं था. इसी का लाभ उठा कर उस ने ऐसा 2 बार किया. अब बीना स्टूल को लात मार कर बेहिचक नीचे कूदने लगी थी. यानि मृदुल के लिए मैदान साफ था.

योजना पहले ही तैयार थी. 8 जून को रविवार था. उस दिन बीना का फोन आया तो मृदुल शाम 7 बजे अपने पिता श्याम कुमार और मनीष धूसिया के साथ उस के पास पहुंच गया. मनीष को उस ने इसलिए बाहर छोड़ दिया ताकि वह बाहर नजर रख सके. अपने पिता श्याम कुमार के साथ वह अंदर चला गया.

उस दिन मृदुल ने बीना से कहा, ‘‘आज आखिरी पूजा है, इसलिए मैं अपने चेले को भी साथ लाया हूं. आज काम हो जाएगा और अब किसी पूजा पाठ या तंत्रमंत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ सुन कर बीना खुश हो गई. उस दिन भी मृदुल ने पूरी क्रिया दोहराई, लेकिन इस से पहले उस ने रस्सी में बने फांसी के फंदे को थोड़ा ढीला कर के ऐसा बना दिया था कि बीना के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इस बार बीना को न बचाना था, न वह बच सकी. मृदुल और श्याम कुमार के सामने ही उस ने छटपटाते हुए दम तोड़ दिया.

बीना के घर आनेजाने के चक्कर में मृदुल को यह पता चल गया था कि थोड़ी सी कोशिश कर के जीने की कुंडी अंदर की तरह बाहर से भी खोली और बंद की जा सकती है. जाते वक्त उस ने इसी का लाभ उठाया. अपना काम कर के बाप बेटे मनीष धूसिया को ले कर वहां से फार हो गए.

पूरी कहानी पता चलने के बाद पुलिस ने मनीष धूसिया, रूबी यादव और तांत्रिक अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को भी गिरफ्तार कर लिया. श्याम कुमार को शुक्लागंज उन्नाव से पकड़ा गया. सभी आरोपियों को पुलिस ने 15 जुलाई को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल सभी जेल में हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 3

बीना समझ गई कि उसी की वजह से उस के घर में आग लगी हुई है. वह अपने गुस्से को जब्त नहीं कर सकी और उस ने रूबी के बाल पकड़ कर उस की धुनाई करनी शुरू कर दी. जरा सी देर में आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. जब बीना ने उन्हें हकीकत बताई तो रूबी मुंह छिपा कर वहां से चली गई.

पिटपिटा कर रूबी लौट तो आई पर उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह बीना से बदला जरूर लेगी. लेकिन सवाल यह था कि कैसे? क्योंकि वह खुलेआम कुछ करती तो सुधीर उस से दूर जा सकता था. दूसरे जेल जाने का भी डर था, इसलिए उस दिन के बाद वह इस मुददे पर गंभीरता से सोचने लगी.

एक दिन सुबह रूबी अखबार पढ़ रही थी तो उस की नजर एक विज्ञापन पर ठहर गई. विज्ञापन बाबा अकबर शाह का था, जिसने विज्ञापन में प्रेमीप्रेमिका को मिलाने का दावा बड़ी गारंटी के साथ किया था. रूबी को तांत्रिक बाबा के दावों में दम नजर आया, तो उस ने बाबा अकबर शाह से मिलने का फैसला कर लिया.

बाबा अकबर शाह ने अपना अड्डा बर्रा में हरी मस्जिद के पास बना रखा था. रूबी उस से जा कर मिली और उसे अपनी और सुधीर की पूरी प्रेमकहानी सुना दी. साथ ही बीना के बारे मे भी बता दिया जिस की वजह से दोनों का मिलना मुमकिन नहीं था. अकबर शाह का असली नाम शाकिर अली था. वह नंबर एक का धूर्त था और रुबी जैसों को अपने जाल में फंसाने को तैयार बैठा रहता था. पूरी कहानी सुन कर उस ने रूबी से कहा, ‘‘इस का एक ही रास्ता है कि बीना को इस दुनिया से विदा करा दे.’’

‘‘अगर मैं ने ऐसा कुछ किया तो मैं तो फंस जाऊंगी. सुधीर तो मुझे क्या मिलेगा, उल्टे जेल जाना पड़ेगा.’’ रूबी ने कहा तो बाबा बोला, ‘‘तुम्हें तुम्हारा प्रेमी मिल जाएगा और जेल भी नहीं जाना पड़ेगा. यह काम मैं करुंगा, तुम नहीं.’’

‘‘मेरे और सुधीर के प्यार की कहानी तमाम लोग जान गए हैं. बीना और मेरा झगड़ा भी हुआ है. अगर उस का कत्ल होगा तो नाम तो मेरा ही आएगा, फिर कैसे बचूंगी मैं?’’

‘‘क्योंकि यह काम मैं तंत्रमंत्र से करूंगा. मेरी भेजी गई मूठ घर बैठे उस की जान ले लेगी, सब के सामने खून उगल कर मरेगी वह. इस तरह की मौत में तुम्हारा नाम कैसे आएगा?’’ बाबा ने कहा तो रूबी को यह युक्ति सही लगी. उस ने सुन रखा था कि तांत्रिक अपने तंत्रमंत्र से मूठ भेज कर किसी की भी जान ले सकते हैं. इसलिए उस ने पूछ लिया, ‘‘मुझे क्या करना होगा बाबा?’’

‘‘कुछ नहीं, बस 30 हजार रुपए खर्च करने हैं.’’

बीना की जान लेने के लिए रूबी को यह सही तरीका लगा. वह एचडीएफसी बैंक में अच्छीभली नौकरी करती थी, पैसों की उस के पास कोई कमी नहीं थी. थोड़ी सौदेबाजी के बाद उस ने बाबा अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को 25 हजार रुपए दे दिए. उसे पूरा यकीन था कि अब जल्दी ही बीना उस के रास्ते से हट जाएगी. लेकिन हफ्तों से ज्यादा बीत जाने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो रूबी अकबर शाह के पास गई. उस ने बाबा से शिकायत की तो वह बोला, ‘‘कोशिश कर रहा हूं पर उस के सितारे बहुत अच्छे हैं. तुम चिंता मत करो, मैं ने उस का भी तोड़ निकाल लिया है. इस हफ्ते में बीना जरूर मर जाएगी.’’

रूबी बाबा की बात का यकीन कर के वापस आ गई. लेकिन जब एक हफ्ता बाद भी बीना को कुछ नहीं हुआ तो रूबी को बहुत गुस्सा आया. उस ने 25 हजार रुपए खर्च किए थे. वह गुस्से से दनदनाती हुई बाबा अकबर शाह के औफिस जा पहुंची. लेकिन अकबर शाह उसे नहीं मिला. अलबत्ता, वहां उसे हंसपुरम की आवास विकास कालोनी में रहने वाला मनीष धूसिया जरूर मिल गया. बाबा के पास आतेजाते मनीष धूसिया और रूबी का अच्छा परिचय हो गया था.

बातचीत हुई तो मनीष धूसिया ने रूबी से कहा, ‘‘बाबा की मूठ पता नहीं क्यों काम नहीं कर रही है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारा काम दूसरे तरीके से करा सकता हूं. लेकिन इस के लिए 50 हजार रुपए लगेंगे.’’

रूबी किसी भी तरह बीना को रास्ते से हटाना चाहती थी ताकि सुधीर से शादी कर सके. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मैं कितने भी पैसे खर्च करने को तैयार हूं, लेकिन तरीका ऐसा होना चाहिए कि उस की मौत कत्ल न लगे. क्योंकि कत्ल के मामले में मैं फंस जाऊंगी.’’

‘‘उस की चिंता छोड़ो, मैं ऐसी योजना बनाऊंगा कि काम भी हो जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि बीना का कत्ल हुआ है.’’ मनीष ने कहा तो बीना ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उस ने रूबी को जल्दी ही उस आदमी से मिलाने का वादा किया जो उस का काम कर सकता था.

पैसा लेने के बाद जब मनीष धूसिया ने इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया तो उस के दिमाग में मृदुल वाजपेयी का नाम आया. गांव राजेपुर, उन्नाव का रहने वाला मृदुल वाजपेयी पेशे से ड्राइवर था और फिलहाल नौबस्ता, कानपुर में रह रहा था. उस का पिता श्याम कुमार वाजपेयी शुक्लागंज, कानपुर में रहता था. मनीष धूसिया को पता था कि मृदुल पैसे के लिए परेशान है, उसे किसी की कर्ज की रकम चुकानी थी.

मनीष ने मृदुल से बात की तो वह पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गया. जब बात हो गई तो मनीष ने मृदुल को रूबी से मिलवा दिया. उस ने इस काम के लिए 50 हजार रुपए मांगे. थोड़ी सौदेबाजी के बाद बीना की मौत की कीमत 40 हजार रुपए तय हो गई. रूबी ने इस शर्त के साथ पैसे दे दिए कि बीना की मौत आत्महत्या लगनी चाहिए ताकि किसी को उस पर शक न हो.

मृदुल और मनीष ने मिल कर बीना को ठिकाने लगाने के लिए एक अनोखी योजना तैयार की. इस योजना में मृदुल ने अपने पिता श्याम कुमार को भी शामिल कर लिया. अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए मृदुल ने सब से पहले फरजी आईडी से एक सिम खरीदा. उस सिम को अपने मोबाइल में डाल कर एक दिन वह बीना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. यह उसे पता ही था कि बीना दिन में घर में अकेली होती है.

डोरबेल बजाने पर बीना ने दरवाजा खोला, तो मृदुल ने खुद को तांत्रिक बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पति ने मेरी भांजी को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है. उसे समझा लो, वरना ऐसा तंत्रमंत्र करूंगा कि खून उगलउगल कर मरेगा.’’

बीना अपने पति से प्यार भी करती थी और यह भी जानती थी कि वह रंगीनमिजाज आदमी है. उस ने मृदुल की बातों पर यकीन कर लिया, साथ ही वह घबराई भी. उस ने मृदुल से कहा, ‘‘मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगी. प्लीज, आप उन का अहित मत सोचिए.’’

‘‘उसे तुम नहीं, मैं ही सुधार सकता हूं. तुम अगर चाहो तो मैं उसे लाइन पर ला सकता हूं. लेकिन इस के लिए तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘बताइए कैसे?’’ बीना ने पूछा तो मृदुल बोला, ‘‘फिलहाल तो आप अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दीजिए. क्योंकि यह मामला इतना आसान नहीं है. इस के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. मैं अपना नंबर आप को दे देता हूं. जब भी आप के पास 2 ढाई घंटे का समय हो, मुझे बुला लीजिएगा. मैं अपना काम शुरू कर दूंगा.’’

बीना ने विश्वास कर के मृदुल को अपना फोन नंबर दे दिया. बातचीत के बाद मृदुल चला गया. जब से सुधीर रूबी के चक्कर में फंसा था, पत्नी के प्रति उस का व्यवहार बिल्कुल बदल गया था. दोनों के बीच लड़ाईझगड़े आम बात हो गई थी. बीना को इस बात का तो जरा भी आभास नहीं था कि रूबी सुधीर से शादी का सपना देख रही है. अलबत्ता, मृदुल की बातों से उसे यह जरूर यकीन हो गया था कि सुधीर रूबी की तरह ही किसी और लड़की से भी चक्कर चला रहा होगा. इसलिए वह चाहती थी कि किसी भी तरह उस का पति लाइन पर आ जाए और किसी दूसरी औरत के चक्कर में न पड़े. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 2

जांच के लिए ओमप्रकाश सिंह ने सुधीर से नंबर ले कर सब से पहले बीना के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. बीना ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस पर ओमप्रकाश सिंह की निगाह टिक गई. कारण यह था कि उस नंबर से 31 मई से 8 जून तक 15 बार बातें हुई थीं. ओमप्रकाश सिंह ने वह नंबर सुधीर को दिखा कर पूछा कि वह किस का नंबर है, सुधीर उस नंबर के बारे में कुछ नहीं जानता था.

उस नंबर पर फोन किया गया तो वह बंद मिला. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला उस नंबर से जो फोन किए गए थे, वह केवल बीना को ही किए गए थे. बीना ने भी उस नंबर पर कई बार बातें की थीं. बीना की हत्या के बाद उस नंबर से कोई फोन  नहीं हुआ था. इस का मतलब वह सिम केवल बीना से बात करने के लिए खरीदा गया था.

पुलिस ने उस नंबर की सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से यह जानकारी ली कि वह नंबर किस का है. जानकारी मिलने पर पुलिस उस आदमी तक पहुंच गई जिस के नाम पर सिम इश्यू हुआ था. लेकिन उस आदमी ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह उस नंबर के बारे में कुछ जानता है. अलबत्ता, उस ने यह जरूर माना कि नंबर लेने के लिए फोटो और आईडी उस की ही इस्तेमाल हुई है.

उस व्यक्ति से पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि किसी ने सिम लेने के लिए फरजी तरीके से उस के फोटो और आईडी का इस्तेमाल किया था. इस के बाद यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

स्थिति के मद्देनजर एसएसपी सुनील इमैनुएल ने इस मामले की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया जिस में एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ ओमप्रकाश सिंह, सबइंसपेक्टर एनुद्दीन, आनंद शर्मा, हेड कांस्टेबल राजकिशोर, सिपाही अरविंद पांडेय, गौरव गुप्ता, भूपेंद्र सिंह और सर्विलांस विशेषज्ञ शिवभूषण को शामिल किया गया.

जिस नंबर से बीना को फोन किए जाते थे, वह चूंकि बंद था, इसलिए शिवभूषण ने सर्विलांस के माध्यम से उस फोन के आईएमईआई नंबर का सहारा लिया जिस में उस नंबर की सिम का इस्तेमाल किया गया था. युक्ति काम कर गई, पुलिस को इससे उस नंबर का पता चल गया जो उस वक्त उस मोबाइल में चल रहा था. उस नंबर का पता चलते ही पुलिस ने सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से उस के धारक की जानकारी ले ली. पता चला वह सिम मृदुल वाजपेयी, निवासी नौबस्ता, कानपुर के नाम पर था. इस के बाद पुलिस ने तत्काल मृदुल वाजपेयी को हिरासत में ले कर उस से विस्तृत पूछताछ की.

थोड़ी सी सख्ती के बाद मृदुल वाजपेयी टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बीना की हत्या उसी ने की थी. साथ ही यह भी बता दिया कि इस मामले में उस के पिता श्याम कुमार वाजपेयी, रूबी यादव, मनीष धूसिया और तांत्रिक शाकिर अली उर्फ बाबा अकबर शाह भी शामिल थे.

पुलिस टीम ने उसी दिन ओमप्रकाश सिंह के निर्देशन में छापा मार कर श्याम कुमार वाजपेयी, मनीष धूसिया, रूबी यादव और बाबा अकबर शाह को गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों से पूछताछ में आत्महत्या में हत्या की जो कहानी सामने आई वाकई हैरतअंगेज भी थी और आंखें खोलने वाली भी.

दरअसल सुधीर बिल्डिंग बनवाने के ठेके तो लेता ही था, समाजवादी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता भी था. समाजवादी युवजन सभा का महासचिव होने के नाते पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उस की सीधी पहुंच थी. इस नाते परिचितों, रिश्तेदारों में उस का खूब मानसम्मान था. एक बार सुधीर जब अपने एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने इटावा गया तो वहां उस की मुलाकात रूबी यादव से हुई.

22 साल की रूबी विश्व बैंक कालोनी, कानपुर के रहने वाले प्रमोद कुमार यादव की बेटी थी. वह एचडीएफसी बैंक में अकाउंटेंट कोआर्डिनेटर के पद पर काम कर रही थी. सुधीर और रूबी पहली बार मिले तो दोनों ही एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातचीत में दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी एकदूसरे को दे दिए.

इस मुलाकात के बाद सुधीर और रूबी जब कानपुर लौट आए तो दोनों के बीच फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं, जिनमें रोमांटिक बातें भी होती थीं. बातों का सिलसिला बढ़ा तो फिर मुलाकातें भी होने लगीं. सुधीर शादीशुदा था और एक बेटी का बाप भी. यह बात रूबी भी अच्छी तरह जानती थी. इस के बावजूद न तो रूबी ने इस बात की परवाह की और न सुधीर को अपनी पत्नी और बेटी का खयाल आया. रूबी के सामने उसे अपनी पत्नी बीना फीकी और उबाऊ लगने लगी थी.

धीरेधीरे सुधीर और रूबी की एकदूसरे के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. रूबी का तो यह हाल हो गया कि वह सुधीर को देखे बिना नहीं रह पाती थी. दोनों ही अपनेअपने प्यार का इजहार कर चुके थे. मोबाइल पर बातें होना तो आम बात थी, इस के लिए दोनों ही न दिन देखते थे न रात. इस का नतीजा यह हुआ कि बीना को सुधीर पर शक होने लगा कि उस की जिंदगी में कोई और औरत भी है.

बीना ने जब अपने स्तर पर पता लगने की कोशिश की तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि वह रूबी नाम की एक लड़की से इश्क लड़ा रहा है. इस के बाद पतिपत्नी में आए दिन झगड़ेहोने लगे. बीना सद्गृहणी थी, उस की मजबूरी यह थी कि परिवार के सामने पति से खुल कर लड़ भी नहीं सकती थी. किसी से शिकायत करने से भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि सुधीर पावरफुल नेता था. घर में भी उस की दंबगई चलती थी.

उधर गुजरते वक्त के साथ रूबी के दिल में सुधीर के लिए प्यार बढ़ता जा रहा था. सुधीर भी शादीशुदा और एक बेटी का बाप होने के बावजूद रूबी से ऐसे प्यार जताता था जैसे उस के बिना रह ही नहीं सकता. कभीकभी वह रूबी के सामने अपनी पत्नी की बुराई भी करता और अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए कहता, ‘‘क्या करूं, मेरे मांबाप ने कमउम्र में ही मेरी शादी कर दी, उन की वजह से मैं उसे छोड़ भी नहीं सकता. मैं जैसी पत्नी की कल्पना करता था, तुम बिलकुल वैसी ही हो.’’

सुधीर की अपनत्व भरी प्यारीप्यारी बातें सुन कर रूबी फूली नहीं समाती थी. ऐसी बातें सुन कर उस के दिल में सुधीर के लिए और भी प्यार बढ़ जाता था. नतीजा यह हुआ कि वह सुधीर को सदा के लिए पाने की चाहत पाल बैठी.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिस ने रूबी के मन में बीना के प्रति जहर घोल दिया.  दरअसल सुधीर और रूबी प्राय: रोज ही बात किया करते थे. अचानक एक दिन सुधीर का मोबाइल पानी में गिर गया जिससे पानी उस के अंदर चला गया और मोबाइल बंद हो गया. इत्तेफाक से उस दिन सुधीर को लखनऊ जाना था. रूबी का नंबर उस के मोबाइल में तो फीड था, पर वैसे उसे याद नहीं था. इस वजह से वह उसे फोन कर के लखनऊ जाने की बात बता भी नहीं सका. वह उसे बिना बताए ही लखनऊ चला गया.

उधर रूबी बराबर उस का नंबर ट्राई कर रही थी. जब कई घंटे तक उस का फोन नहीं मिला तो वह हकीकत पता लगाने के लिए सुधीर के घर जा पहुंची. उस समय बीना घर में अकेली थी, सासससुर और देवर रेस्टोरेंट पर गए हुए थे. यह बीना और रूबी की पहली मुलाकात थी. बीना ने रूबी से उस का नाम पूछा तो उस ने बता दिया.