हुस्न की मछली का कांटा – भाग 2

शादी के एक साल बाद आरती ने एक बेटे को जन्म दिया. गौरव सुबह ही टैंपो ले कर निकल जाता था. आरती जब कोई सामान आदि खरीदने बाजार जाती तो आतेजाते कुछ लड़के उसे छेड़ा करते थे. उस ने यह बात पति को कई बार बताई, लेकिन उस ने यह कह कर आरती को चुप करा दिया कि वे लड़के आवारा किस्म के हैं. उन से झगड़ा कर के दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं है. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. एक न एक दिन वे अपने आप शांत हो जाएंगे.

पति की बातें सुन कर आरती चुप तो रह गई, लेकिन उसे गौरव पर गुस्सा भी आया. वह सोचती कि पता नहीं कैसे डरपोक के पल्ले बंध गई, जो उन लोगों से कुछ कहने के बजाय उलटा उसे ही चुप रहने को कहता है. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ. आरती के पड़ोस में राजू नाम का युवक रहता था. पास में रहने की वजह से दोनों एकदूसरे से बातें करते रहते थे. राजू के घर उस के दोस्त नीरज और मुकीम भी आते रहते थे. 25 साल का मुकीम अपने शरीर का बहुत ध्यान रखता था. वह जिम भी जाता था. इलाके में उसे लोग ‘बौडीगार्ड’ के नाम से जानते थे.

आरती ने राजू के मुंह से कई बार मुकीम का नाम सुना था. यह भी कि वह बहादुर है. एक दिन उस ने राजू से कह कर मुकीम को अपने घर बुलवाया और उसे आवारा लड़कों द्वारा छेड़ने वाली बात बताई.

आरती सुंदर तो थी ही, उसे देखते ही मुकीम का मन भी डोल गया. उस ने आरती की तरफ चाहत भरी नजरों से देखा तो आरती ने भी उस की नजरों में अपनी नजरें उतार दीं. उस ने नजरों के जरिए उसे अपने दिल में बसा लिया. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘काश ऐसा ही कोई बांका जवान मेरा जीवनसाथी होता तो कितना अच्छा होता.’

‘‘भाभीजी, क्या सोच रही हैं. आप मुझे उन लड़कों को बस एक बार दिखा दीजिए जो आप को छेड़ते हैं. फिर मैं उन से खुद निपट लूंगा.’’ मुकीम ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम अभी मेरे साथ चलो. वे वहीं बैठे होंगे.’’

आरती ने मुकीम और राजू को उन लड़को दिखा दिया. अगले दिन मुकीम, आरती और अपने कई दोस्तों के साथ उन लड़कों के पास पहुंच गया. उस ने उन्हें चेतावनी दी कि आइंदा उन में से किसी ने भी आरती से कुछ कहा तो अंजाम बहुत बुरा होगा.

मुकीम की इस धमकी का इतना असर हुआ कि उन लड़कों ने आरती के साथ छेड़छाड़ बंद कर दी. मुकीम की इस बहादुरी से आरती बहुत प्रभावित हुई. वह उसे अपना दिल दे बैठी. दूसरी तरफ मुकीम भी उस का दीवाना बन गया. मुकीम का उस के यहां आनाजाना भी बढ़ गया. वह उस के यहां उस वक्त आता, जब उस का पति घर पर नहीं होता. दोनों का प्यार बढ़ने लगा तो फिर जल्दी ही शारीरिक संबंधों के मुकाम तक जा पहुंचा.

आरती का मुकीम की तरफ इतना ज्यादा झुकाव हो गया कि वह पति से दूरियां बनाने लगी. वह चाहती थी कि मुकीम ही उस का जीवनसाथी बन जाए. एक दिन उस ने मुकीम से कह दिया, ‘‘तुम मुझे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चलो, जहां सिर्फ मैं और तुम हों.’’ अविवाहित मुकीम इस के लिए तैयार हो गया. तब मौका पा कर एक दिन आरती पति और बच्चे को छोड़ कर मुकीम के साथ चली गई.

मुकीम ने नंदनगरी के पास मंडोली में किराए पर कमरा ले लिया. जहां दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जब आरती की मां पुष्पा को पता चला कि उस की बेटी पति को छोड़ कर दूसरे धर्म के लड़के के साथ रह रही है तो समझाने के बजाय उस ने आरती को संरक्षण देने के लिए उसे और मुकीम को अपने पास रहने के लिए गाजीपुर बुला लिया.

अनुभवी पुष्पा को अंदेशा था कि कुछ दिनों बाद मुकीम आरती को छोड़ कर जा सकता है. इसलिए उस ने उन दोनों को समझाया, ‘‘तुम दोनों जल्द से जल्द शादी कर लो, ताकि दुनिया वाले तुम्हारे रिश्ते को शक की नजरों से न देखें.’’

‘‘मैं खुद चाहता हूं कि आरती मेरे साथ ब्याह कर ले, लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है,’’ मुकीम बोला.

‘‘नहीं मां, मैं मुकीम के साथ शादी नहीं करना चाहती. हम ऐसे ही ठीक हैं.’’ आरती ने कहा.

इस पर मुकीम और आरती का झगड़ा बढ़ गया तो मुकीम ने आरती को 2-4 थप्पड़ जड़ दिए. आरती जिद्दी और गुस्सेबाज थी. उस ने उसी समय पुलिस को फोन कर दिया. उस की शिकायत पर गाजीपुर थाना पुलिस मुकीम को थाने ले गई, लेकिन बाद में पुष्पा थाने में बात कर के मुकीम को घर ले आई. उस के बाद पुष्पा ने मुकीम और आरती की शादी का कभी जिक्र नहीं किया.

एक दिन मुकीम और आरती लेटेलेटे आपस में बातें कर रहे थे तो मुकीम ने कहा, ‘‘मैं सोचता हूं कि आखिर हम कब तक इसी तरह गरीबी का जीवन जीते रहेंगे?’’

‘‘तो तुम ही बताओ, हम दौलत कहां से लाएं?’’ आरती ने पूछा तो मुकीम बोला, ‘‘ऊपर वाले ने तुम्हें रूप के साथ कोयल जैसी मीठी आवाज दी है, क्यों न हम इन्हें ही कमाई का जरिया बनाएं.’’ यह सुन कर आरती उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगी.

उसे इस तरह देखते देख मुकीम बोला, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं सच कह रहा हूं.’’

‘‘वह कैसे?’’

इस पर मुकीम ने आरती को अपनी सारी योजना समझा दी. आरती सहमत तो हो गई, लेकिन उस ने कहा, ‘‘यह काम कोई बच्चों का खेल नहीं है. बहुत ही जोखिम भरा काम है. अगर जरा सा भी चूके तो समझो जेल ही आखिरी पड़ाव होगा,’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं ने सब सोच लिया है. मेरा जिगरी दोस्त नीरज कब काम आएगा.’’ कह कर मुकीम ने मोबाइल निकाला और नीरज को फोन कर के मिलने के लिए कहा.

नीरज मिला तो मुकीम ने उसे अपनी सारी योजना समझा दी. नीरज बेरोजगार था, इसलिए वह मुकीम और आरती का साथ देने के लिए राजी हो गया. नीरज के बाद राजू और दीपक को भी उन्होंने योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए मुकीम ने लोनी में एक कमरा भी किराए पर ले लिया था.

पूरी योजना तैयार करने के बाद जब इन लोगों ने पहली बार अपने काम को अंजाम दिया तो उस में उन्हें सफलता हाथ लगी. उस में जो भी सामान हाथ लगा, उसे सभी ने आपस में मिल कर बांट लिया. पहली सफलता के बाद उन के हौसले बढ़ गए और एक के बाद एक वारदात को अंजाम देने लगे.

दरअसल आरती मोबाइल फोन से कोई भी 10 डिजिट का नंबर मिलाती. नंबर मिलने पर अगर दूसरी तरफ की आवाज किसी महिला की होती तो वह सौरी कह कर फोन काट देती. अगर कोई पुरुष काल रिसीव करता तो उसे वह अपनी मीठीमीठी बातों में फंसा कर उस के सामने कुछ इस तरह प्रेमप्रस्ताव रखती कि वह इनकार नहीं कर पाता था. 2-4 बार की बातों के बाद वह व्यक्ति खुद ही आरती से मिलने के लिए कहता तो वह उसे कभी किसी पार्क में तो कभी किसी रेस्टोरेंट में बुला लेती थी.

रेस्टोरेंट में वह मजे से उस के साथ खातीपीती, फिर अकेले में बातें करने की गुजारिश कर के उसे किसी पार्क या अपने लोनी वाले कमरे में ले जाती. पार्क या कमरे में पहुंचने से पहले आरती मुकीम को फोन कर के बता देती थी. उस के साथ हमबिस्तर होने का नाटक करते हुए पहले वह उस शख्स के कपड़े उतार देती थी.

इस से पहले कि उस के अपने कपड़े उतारने की नौबत आती, इस से पहले ही मुकीम और नीरज आ जाते थे. आरती के साथ मौजूद आदमी के साथ वे लोग मारपिटाई कर के उस से उस का सारा सामान, पैसे आदि छीन कर उसे भगा देते थे. लोगों को डरानेधमकाने के लिए मुकीम ने एक देशी तमंचा भी खरीद लिया था.

आरती के चक्कर में फंस कर लुटने वाला शख्स लोकलाज के डर से पुलिस में शिकायत करने भी नहीं जाता था. इस तरह इन लोगों ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया था.

इस योजना में शामिल राजू आरती को मन ही मन चाहने लगा था, लेकिन उसे अपने दिल की बात आरती से कहने का मौका नहीं मिल पा रहा था. एक दिन जब कमरे में आरती अकेली थी तब राजू उस के पास पहुंच गया. हिम्मत कर के उस ने आरती के सामने अपना प्रेमप्रस्ताव रख दिया. आरती ने उस के प्रेम आमंत्रण को स्वीकार करते हुए उस के गले में अपनी दोनों बांहें डाल दीं. यह देख कर राजू गदगद हो उठा. वह मारे खुशी से फूले नहीं समा रहा था.

इस से पहले कि वे दोनों और आगे बढ़ते कि अचानक मुकीम और नीरज वहां आ गए. उन्हें देख कर आरती और राजू घबरा गए. अकसर ऐसे मौके पर महिला तुरंत गिरगिट की तरह रंग बदल लेती है. खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए मुकीम के सामने आरती नाटक करने लगी. उस ने राजू पर गंभीर आरोप मढ़ दिए. यह सुन कर मुकीम और नीरज को राजू पर गुस्सा आ गया और दोनों ने राजू की बुरी तरह से पिटाई कर दी.

राजू के पास जितने पैसे और सामान था, वह सब उन्होंने छीन लिया. राजू जान बचा कर वहां से भाग गया. राजू के जाने के बाद मुकीम के गैंग में सिर्फ 4 लोग ही रह गए थे, मुकीम, नीरज, आरती और दीपक.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 4

शिवा को ले कर छत्तीसगढ़ पुलिस टीम दिल्ली पुलिस टीम के साथ भिलाई के लिए रवाना हो गई. एसपी 2 सिपाहियों की कस्टडी में लोकेश राव को साथ ले कर अपने औफिस लौट आए.

भिलाई के स्मृति नगर के एक किराए के कमरे में लोकेश श्रीवास बड़े इत्मीनान से पलंग पर लेटा आराम कर रहा था. इस कमरे तक पुलिस पहुंच जाएगी, उसे जरा भी अनुमान नहीं था. पुलिस ने उसे कस्टडी में ले लिया. लोकेश श्रीवास और शिवा चंद्रवंशी को छत्तीसगढ़ की रायपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया गया.

इंसपेक्टर विष्णु दत्त ने डीसीपी को फोन कर लोकेश श्रीवास के पकड़े जाने की खबर दे दी. डीसीपी के आदेश पर निजामुद्ïदीन थाने के एसआई जितेंद्र रघुवंशी रायपुर पहुंच गए. उन्होंने चोरी के आरोपी लोकेश श्रीवास की औपचारिक गिरफ्तारी और ट्रांजिट रिमांड तथा उस से जब्त किए गए आभूषणों को अपने कब्जे में लेने के लिए कोर्ट में दरख्वास्त की.

अदालत ने लोकेश श्रीवास की 72 घंटे की ट्रांजिट रिमांड मंजूर कर ली तथा लोकेश श्रीवास से जब्त संपत्ति भी जांच अधिकारी को सौंप दी.

अदालत में दुर्ग के एसीपी संजय कुमार धु्रव भी मौजूद थे. उन्होंने दिल्ली से आए इंसपेक्टर विष्णु दत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार तथा निजामुद्दीन थाने के एसआई जितेंद्र रघुवंशी की कस्टडी में महाचोर लोकेश श्रीवास को दिल्ली के लिए रवाना कर दिया.

चोरी के तरीके से पुलिस भी रह गई दंग

दिल्ली में लोकेश श्रीवास को थाना निजामुद्दीन लाया गया तो उसे देखने के लिए वहां भारी भीड़ जमा हो गई थी. डीसीपी राजेश देव, इंसपेक्टर विष्णुदत्त, इंसपेक्टर दिनेश कुमार, निजामुद्दीन थाने के एसएचओ परमवीर, एसआई जितेंद्र रघुवंशी और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर के सामने शातिर चोर लोकेश श्रीवास एकदम शांत खड़ा था. उस के चेहरे से नहीं लग रहा था कि 25 करोड़ की चोरी करने के बाद पकड़े जाने पर उसे खौफ हो.

वह पहले कितनी ही बार पकड़ा गया था, इसलिए उसे इस बार भी कस्टडी का कोई डर नहीं था. डीसीपी राजेश देव ने लोकेश श्रीवास के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘छत्तीसगढ़ में रहते हो. तुम्हें यहां दिल्ली में उमराव सिंह ज्वेलर्स की जानकारी किस ने दी?’’

‘‘साहब, मैं अकेले ही काम करने में विश्वास रखता हूं. मैं ने आज एक जितनी भी चोरियां की हैं, अकेले ही की हैं. मैं इस बार बड़ा हाथ मारना चाहता था. मुझे मालूम है कि बड़े ज्वेलर्स महानगरों में ही होते हैं. मैं ने दिल्ली का चुनाव किया. दिल्ली में बड़े ज्वेलर्स कहांकहां पर हैं, इस के लिए मैं ने गूगल पर सर्च किया.

‘‘दिल्ली के कितने ही ज्वेलर्स के नाम मेरे सामने आए. मैं चोरी के लिए इन में से किसी एक को टारगेट करना चाहता था. मैं 9 सितंबर, 2023 को सुबह करीब 11 बजे दिल्ली आया. 10 से 12 सितंबर तक चांदनी चौक में रहा और गूगल पर सर्च किए गए ज्वेलर्स की दुकानों पर जा कर उन की भोगोलिक स्थिति को चेक करता रहा. मुझे भोगल का उमराव सिंह ज्वेलर्स चोरी के लिए सब से आसान टारगेट लगा. क्योंकि इस के पास जो इमारत थी, उस में कई परिवार रहते थे. उस की सीढिय़ों से छत पर पहुंचा जा सकता था.’’

कुछ क्षण को चुप होने के बाद लोकेश श्रीवास ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने उमराव सिंह ज्वेलर्स की रेकी की. पास की इमारत से छत पर जा कर देखा. मुझे किसी ने भी नहीं टोका. शायद वहां रहने वाले लोग यही सोच रहे थे कि मैं किसी परिवार का मेहमान हूं. मैं ने उमराव सिंह ज्वेलर्स की दुकान में जा कर अंदर का मुआयना किया और फिर अपनी योजना को अंतिम टच देने लगा.

‘‘12 सितंबर को मैं मथुरा-वृंदावन चला गया. मंदिरों में दर्शन करने के बाद 15 सितंबर को दिल्ली लौट आया. 17 सितंबर को मैं ने कश्मीरी गेट बस अड्ïडे से बस पकड़ी और मध्य प्रदेश चला गया. 21 सितंबर को मैं बस से साढ़े 7 बजे शाम को दिल्ली के सराय काले खां आया और सवा 9 बजे जंगपुरा पहुंचा और एक होटल में ठहरा.

‘‘22 से 23 सितंबर तक मैं ने चोरी में इस्तेमाल होने वाले औजार एकत्र किए. मैं ने जीबी रोड से 1300 रुपए में कटर मशीन खरीदी. चांदनी चौक से मैं ने 100 रुपए का हथौड़ा खरीदा. मैं पेंचकस और प्लास अपने घर से लाया था. मैं ने ये औजार 23 सितंबर की रात को उमराव सिंह ज्वेलर्स की छत पर ले जा कर छिपा दिए.

‘‘24 सितंबर को भोगल मार्किट से मैं ने कोल्डड्रिंक, चौकलेट, बिसकुट, ड्राईफ्रूट, केक आदि सामान खरीद कर अपने बैग में रख लिया. फिर 24 सितंबर की रात 11 बजे मैं पास की इमारत की सीढिय़ों द्वारा छत पर पहुंचा. वहां से ज्वैलरी शोरूम की छत पर उतरा.

‘‘वहां परछत्ती में ग्रिल का दरवाजा था, जिस पर ताला लगा था. मैं ने ग्रिल काट कर अंदर जाने का रास्ता बनाया और इत्मीनान से सीढिय़ां उतर कर नीचे शोरूम में पहुंच गया. मुझे मालूम था कि सोमवार को मार्केट की छुट्टी रहती है. मेरे पास 25 तारीख की शाम तक का समय था.

‘‘मैं ने सब से पहले सीसीटीवी की तारें काटी, फिर आराम से सो गया. सुबह फ्रैश होने के बाद नाश्ता किया और स्ट्रांगरूम की दीवार काटने लगा. दीवार में अंदर जाने का रास्ता बन गया तो मैं ने अंदर जा कर लौकर का दरवाजा भी कटर से काट डाला और उस में रखे सोनेहीरों के सारे आभूषण बैग में भर लिए.’’

‘‘वहां से तुम्हें नकदी रुपया भी मिला होगा?’’ एसआई जितेंद्र ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी में 5 लाख रुपए कैश था. वह भी मैं ने अपने बैग में भर लिया. मैं दुकान से 7 बजे बाहर निकला और छत पर आ कर पास वाली इमारत से नीचे आ गया.’’

‘‘यहां से तुम ने आटो किया और कश्मीरी गेट गए, जहां से तुम ने 8.40 बजे की छत्तीसगढ़ जाने वाली बस पकड़ ली.’’ डीसीपी ने कहते हुए लोकेश श्रीवास को घूरा, ‘‘इतना मोटा हाथ मारने के बाद तुम ने सरकारी बस में धक्के खाने का मन क्यों बनाया था?’’

लोकेश श्रीवास मुसकराया, ‘‘मैं ने अभी तक करोड़ों रुपए की चोरियां की हैं साब, लेकिन मुझ में अमीरों वाले ठाठ नहीं आए. मैं साधारण कपड़े पहनता हूं, साधारण ही रहता हूं क्योंकि दिखावा करने वाला अकसर लोगों की नजरों में आ जाता है. सरकारी बस में मैं ने लंबा सफर इसीलिए किया कि मुझे साधारण यात्री समझा जाए, कोई मुझ पर शक न करे.’’

‘‘यह शिवा और लोकेश राव तुम्हारे साथी रहे हैं चोरी के काम में…’’

‘‘नहीं साब!’’ लोकेश श्रीवास ने बात काटी, ‘‘मैं अकेला ही सारे काम को अंजाम देता हूं. वे छोटेमोटे चोर हैं, जेलों में उन से मेरी जानपहचान बनी. मैं ने दिल्ली में बड़ी चोरी करने की बात शिवा को बता दी थी और किराए पर कवर्धा में एक कमरा भी ले कर शिवा को वहां ठहरा दिया था. कवर्धा पहुंच कर मैं ने चोरी का माल वहां के कमरे में छिपा दिया. मुझ से गलती यह हुई कि मैं ने तरस खा कर लोकेश राव को सोने की एक चेन पहनने को दे दी थी और भिलाई चला गया.’’

लोकेश श्रीवास द्वारा जुर्म कबूल करने के बाद डीसीपी ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर लोकेश श्रीवास की उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां से 25 करोड़ की चोरी करने की पूरी कहानी बताते हुए उस से 18 किलो आभूषण और 12 लाख रुपए बरामद करने की जानकारी दी.’’

महावीर प्रसाद जैन ने शातिर चोर लोकेश श्रीवास को 4 दिन में ही छत्तीसगढ़ जा कर गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम का आभार प्रकट करते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि कुछ मिलेगा, लेकिन दिल्ली पुलिस ने ज्वैलरी और नकदी बरामद कर मेरे अंदर चेतना जगा दी. मैं दिल से इन्हें धन्यवाद देता हूं.’’

पुलिस ने सुपर चोर लोकेश श्रीवास को न्यायालय में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 1

2 दिन बीत चुके थे, लेकिन कृष्ण कुमार अभी तक घर नहीं आए थे. उन का फोन भी नहीं लग रहा था, इसलिए घर के सभी लोग परेशान  थे. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर वह गए तो कहां गए. कृष्ण कुमार दिल्ली के धौलाकुआं स्थित डिफेंस सर्विस औफिसर इंस्टीट्यूट की कैंटीन में नौकरी करते थे. उन की पत्नी मीनू उन का पता लगाने के लिए 31 दिसंबर की सुबह बेटे के साथ धौलाकुआं  स्थित मिलिट्री कैंटीन पहुंची. वहां उन्होंने अपने पति के बारे में मालूमात की तो पता चला कि वह 29 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी पर आए थे.

इस के बाद वह वहां नहीं आए. यह पता चलने पर वे और ज्यादा परेशान हो गए. उन्हें ले कर उन के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. बिना इसलिए समय गंवाए वे धौलाकुआं पुलिस चौकी पहुंच गए और कृष्ण कुमार के गायब होने की सूचना दर्ज करवा दी. सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस ने कृष्ण कुमार को तलाशने की जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

घर पहुंचने के बाद कपिल ने अपने सभी रिश्तेनातेदारों के घर फोन कर के पिता के बारे में पता किया. लेकिन उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कपिल घर में था. उसे किसी परिचित से पता चला कि लोनी थाना क्षेत्र में किसी अज्ञात आदमी की लाश मिली है.

यह खबर मिलते ही कपिल और उस के परिवार वाले शाम 7 बजे थाना लोनी पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला से बात की तो उन्होंने अपने मोबाइल फोन से ली गई एक फोटो दिखाई. वह फोटो उस अज्ञात आदमी की लाश की थी, जो उन्होंने आज सुबह किशन विहार फेज-2 से बरामद हुई थी. उन के मोबाइल फोन में फोटो देखते ही परिवार वालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. सभी रोने लगे.

कपिल अपने आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘सर, यह तो हमारे पिताजी हैं. इन्हें हम 2 दिनों से तलाश कर रहे हैं. लेकिन हमारी समझ में ये नहीं आ रहा कि इन की यह हालत कैसे हुई?’’

एसएसआई संजीव कुमार ने उन्हें बताया, ‘‘दरअसल, आज करीब 10 बजे एक व्यक्ति ने हमें फोन कर के बताया था कि लोनी के किशन विहार, फेस-2, सहबाजपुर गांव में एक अज्ञात आदमी की लाश पड़ी है.

हम वहां पहुंचे तो वाकई वहां करीब 50-51 साल के एक आदमी की लाश पड़ी थी. जिस के सीने में गोली का निशान था, लेकिन वहां ज्यादा खून नहीं था. इस का मतलब हत्या की वारदात को कहीं और अंजाम दिया गया था और लाश यहां ला कर फेंक दी गई थी. फिलहाल लाश गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल की मोर्चरी में रखी हुई है.’’

कपिल ने वैसे तो मोबाइल में खिंचे फोटो को देख कर पिता की लाश पहचान ली थी, लेकिन जब एसएसआई ने उस से गाजियाबाद की मोर्चरी में लाश रखी होने के बारे में बताया तो वह उन के साथ गाजियाबाद मोर्चरी पहुंच गया. पुलिस ने वहां रखी लाश उसे दिखाई तो उस ने उस की पहचान अपने पिता कृष्ण कुमार के रूप में की.

लोनी पुलिस पहले ही अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर के लाश ठिकाने लगाने का मामला दर्ज कर चुकी थी. चूंकि अब लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए अब पुलिस का काम हत्यारों का पता लगा कर उन्हें गिरफतार करना था. थाने लौटने के बाद एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला ने सब से पहले कपिल से ही पूछा कि तुम्हारे पिता किस तरह लापता हुए थे और तुम्हारा किसी पर कोई शक है?

‘‘सर, मेरे पिता धौलाकुआं (दिल्ली) की मिलिट्री कैंटीन में नौकरी करते थे. वह सुबह ही घर से निकलते थे और रात 8 बजे घर लौटते थे. 29 दिसंबर, 2013 को वह घर नहीं लौटे तो हम ने सोचा कि वहीं रुक गए होंगे, क्योंकि कभीकभी वह 1-2 दिन वहीं रुक जाते थे. उन का फोन मिलाया तो वह बंद निकला.

2 दिनों बाद भी जब वह नहीं लौटे और न ही उन का फोन मिला तो हमें चिंता हुई. हम ने उन के औफिस में जा कर संपर्क किया तो पता चला कि वह 29 दिसंबर के बाद ड्यूटी पर नहीं आए थे. रही बात दुश्मनी की तो सर मैं बताना चाहता हूं कि हमारे परिवार में सब सीधेसादे लोग हैं. दुश्मनी तो बड़ी बात, हमारा किसी से कोई झगड़ा तक नहीं हुआ. न ही हमारा किसी से कोई लेनदेन था.’’

जरूरी जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस ने कपिल और उस के घर वालों को घर भेज दिया.

कृष्ण कुमार के मोबाइल पर आखिरी बार 29 दिसंबर को मोबाइल नंबर 9990733333 से बात हुई थी. हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला, कांस्टेबल अजय शंकर, मंगल त्यागी, जितेंद्र, सतवीर, अमरदीप के अलावा एसओजी प्रभारी रतेंद्र सिंह गहलौत को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले मृतक कृष्ण कुमार के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकालवाई. उस डिटेल में पता चला कि इस नंबर से उन की 5-7 मर्तबा बात हुई थी. इस नंबर का पता किया गया तो वह नंबर मुकीम नाम के आदमी का निकला.

मुकीम नंदनगरी के पास स्थित मंडोली की गली नंबर-6 में रहता था. बिना समय गंवाए पुलिस उस के घर पहुंच गई. मुकीम घर पर नहीं मिला. घर पर उस की मां थी. उस ने पुलिस को बताया, ‘‘मुकीम को हम अपने घर मकान, रूपएपैसों से पूरी तरह से बेदखल कर चुके हैं. अब हमारा उस से कोई लेनादेना नहीं है. वह कहां जाता है, क्या करता है हमें उस के बारे में कुछ भी नहीं मालूम.’’

लेकिन उस ने पुलिस को एक बात बताई है कि हो सकता है वह पुष्पा के साथ गाजीपुर में रह रहा हो.’

‘‘यह पुष्पा कौन है?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘आरती की मां. आरती की वजह से ही वह आवारा हो गया.’’

पुलिस ने दिल्ली स्थित गाजीपुर में भी मुकीम की तलाश की, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. पुलिस ने उसे हर संभावित जगह पर तलाशा, लेकिन हर जगह नाकामी ही हाथ लगी. कोई रास्ता न देख पुलिस ने मुखबिरों का सहारा लिया. साथ ही आसपास के सभी थानों में इस की सूचना भी दे दी.

लोनी पुलिस तो मुकीम को ढूंढती रही, लेकिन गाजियाबाद के कविनगर थाने की पुलिस ने मुकीम और उस के साथियों को धर दबोचा.

हुआ यह कि 16 जनवरी, 2014 को कवि नगर थानाप्रभारी पंकज पंत को एक मुखबिर ने सूचना दी कि पिछले दिनों लोनी थानाक्षेत्र में जिस फौजी को मार कर फेंक दिया गया था, उस के हत्यारे इस वक्त राजनगर में एएलटी के पास मौजूद हैं. इस सूचना को सही मान कर थानाप्रभारी ने एसओजी प्रभारी रतेंद्र सिंह गहलौत, हेडकांस्टेबल देवपाल सिंह, हरीश राघव, कांस्टेबल लोकेंद्र सिंह, सतवीर सिंह, संदीप आदि की टीम बनाई और मुखबिर के साथ एएलटी भेज दिया. वहां पर पुलिस को एक महिला सहित 3 लोग खड़े मिले.

पुलिस उन सभी को हिरासत में थाने ले आई. थाने में उन तीनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम नीरज, मुकीम और आरती बताए उन्होंने कुबूल किया कि कृष्ण कुमार फौजी की हत्या उन्होंने ही की थी. हत्या के बाद उन लोगों ने उस की लाश लोनी क्षेत्र में डाल दी थी. पुलिस ने मुकीम के पास से एक देशी तमंचा भी बरामद किया.

चूंकि यह मामला लोनी थाने में दर्ज था, इसलिए थानाप्रभारी पंकज पंत ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानकारी लोनी थाने के प्रभारी गोरखनाथ यादव को दे दी. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया. लोनी के थानाप्रभारी संजीव कुमार शुक्ला सूचना मिलते ही गाजियाबाद न्यायालय पहुंच गए. उन के आवेदन पर कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को लोनी पुलिस के सुपुर्द कर दिया. थाने ले जा कर जब तीनों अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कृष्ण कुमार फौजी की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

52 वर्षीय कृष्ण कुमार अपने परिवार के साथ उत्तरांचल कालोनी, लोनी बार्डर में रहते थे. परिवार में पत्नी मीना के अलावा 4 बच्चे थे. कपिल उन का सब से बड़ा बेटा था. कृष्ण कुमार दिल्ली में धौलाकुआं स्थित ‘डिफेंस सर्विस औफिसर इंस्टीट्यूट’ की कैंटीन में कैंटीन संचालक के पद पर कार्यरत थे. उन का बेटा कपिल एक कुरियर कंपनी में नौकरी करता था. कुल मिला कर उन का परिवार हर तरह से संपन्न था.

करीब 12-13 साल पहले की बात है. कृष्ण कुमार के मकान में सोनपाल नाम का एक आदमी अपनी पत्नी पुष्पा और बेटी आरती के साथ किराए पर रहता था. उन दिनों आरती की उम्र 12-13 साल थी.

सोहनपाल कोई खास काम तो नहीं करता था, लेकिन इतना जरूर कमा लेता था कि परिवार का गुजरबसर आराम से हो जाता था. वह अकसर मकान मालिक कृष्ण कुमार से पैसे उधार ले लिया करता था. बाद में वह उधार के पैसे चुका भी देता था. चूंकि कृष्ण कुमार के परिवार से उसे काफी सहारा मिलता था, इसलिए दोनों परिवारों के बीच अच्छे और गहरे संबंध बन गए थे. कृष्ण कुमार उसे अपनी कैंटीन से सस्ते दामों में सामान भी ला कर दे दिया करता था. सोहनपाल कृष्ण कुमार के मकान में करीब 8 सालों तक रहा.

अब तक आरती बड़ी हो गई थी. विवाह लायक होने पर सोहनपाल उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. जल्दी ही गाजियाबाद के भौपुरा में रहने वाला गौरव उसे पसंद आ गया. वह किराए पर टैंपो चलाता था और बहुत सीधासादा था. बातचीत हो जाने के बाद आरती की शादी गौरव से कर दी गई. बेटी के ससुराल जाने के बाद सोनपाल ने कृष्ण कुमार का मकान खाली कर दिया और पत्नी के साथ दिल्ली के गाजीपुर इलाके में किराए पर रहने लगा.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 3

सुपर चोर की पत्नी चलाती है ब्यूटीपार्लर

32 वर्षीय लोकेश श्रीवास छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा शहर में कैलाश नगर इलाके में रहता था. परिवार में मांबाप, पत्नी रमा और 2 बेटियां क्रमश: 11 वर्ष और 6 वर्ष है.

लोकेश श्रीवास का मकान तीनमंजिला है. वह अपने घर में कम ही रहता है. उस का ज्यादातर वक्त छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों की जेलों में ही कटता है. लोकेश की पत्नी रमा मकान के निचले हिस्से में ब्यूटीपार्लर चलाती है. मकान का एक हिस्सा रमा ने किराए पर दे रखा है, जिस से वह अपने घर का खर्च चलाती है.

लोकेश श्रीवास शातिर चोर है, यह पत्नी रमा को शादी के बहुत बाद में पता चला था. लोकेश ने उसे कभी नहीं बताया कि वह क्या काम करता है. जब घर के दरवाजे पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के दुर्ग, भिलाई की पुलिस लोकेश को दबोचने के लिए आने लगी और घर में लोकेश श्रीवास द्वारा छिपा कर रखा गया चोरी का माल बरामद होने लगा तो रमा को पता चला कि उस का पति शातिर चोर है.

लोकेश श्रीवास पहले एक सैलून में बाल काटने का काम करता था. उस के ख्वाब ऊंचे थे. बाल काटते वक्त उस का ख्वाब होता था कि उस के हाथ में सोने का कंघा, सोने की कैंची और सोने का उस्तरा हो, जिस से वह देश के प्रधानमंत्री के बाल काटे.

प्रधानमंत्री तक तो उस की पहुंच संभव नहीं थी, लेकिन अपने सुनहरे ख्वाब पूरे करने के लिए उस ने 20 मई, 2006 को एक ज्वेलरी शोरूम में चोरी की. लाखों के गहने हाथ लगे तो लोकेश श्रीवास ने चोरी को ही अपना धंधा बना लिया.

लोकेश श्रीवास ने आंध्र प्रदेश के विजय नगर शहर में एक ज्वेलरी शोरूम में 6 किलोग्राम सोने के आभूषणों की चोरी की. तेलंगाना स्टेट में एक ज्वेलर के यहां 4 किलोग्राम, ओडिशा में 500 ग्राम, भिलाई के बजाज ज्वेलर के यहां से 17 लाख के आभूषणों पर हाथ साफ किया. सन 2019 में लोकेश श्रीवास ने भिलाई के आनंद नगर में पारख ज्वेलर के यहां से 15 करोड़ के आभूषण चोरी किए.

19 और 25 अगस्त, 2023 को बिलासपुर में मास्टरमाइंड लोकेश श्रीवास ने एक ही रात में 10 ज्वेलरी शोरूम को अपना निशाना बनाया था.

लोकेश श्रीवास को विभिन्न राज्यों की पुलिस ने कितनी ही बार पकड़ कर चोरी का माल बरामद किया. उसे जेल की सलाखों में भी डाला, लेकिन वह किसी न किसी तिकड़म से अपनी जमानत करवा लेता और बाहर आ कर फिर से किसी ज्वेलरी शोरूम को निशाना बनाता.

उस ने 5 साल पहले चोरी के माल से 60 हजार की पल्सर मोटरसाइकिल खरीदी और 60 लाख रुपए से जिम खोला था, लेकिन वहां के कलेक्टर अमरीश कुमार शरण ने जिम को सील करा कर लोकेश श्रीवास को जिलाबदर कर दिया.

चूंकि उस वक्त देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे और लोकेश श्रीवास सैकड़ों चोरियां कर के पुलिस रिकौर्ड में अपना एक अलग ही क्रिमिनल रिकौर्ड दर्ज करवा चुका था, इसलिए उसे जिलाबदर करना बहुत जरूरी था.

शातिर मास्टरमाइंड चोर लोकेश श्रीवास इतनी चोरियां करने के बाद भी चैन से नहीं बैठा. छत्तीसगढ़ से 11 सौ किलोमीटर की दूरी तय कर के वह देश की राजधानी दिल्ली आया और 25 सितंबर, 2023 को उस ने साउथईस्ट दिल्ली के थाना निजामुद्दीन क्षेत्र के भोगल मार्केट में स्थित उमराव सिंह ज्वेलर्स के शोरूम में लगभग 25 करोड़ के आभूषणों पर हाथ साफ कर दिया. यह लोकेश श्रीवास द्वारा अब तक की गई चोरियों में सब से बड़ी चोरी मानी जा रही थी.

इसी सुपर चोर लोकेश श्रीवास को गिरफ्त में लेने के लिए दिल्ली पुलिस के इंसपेक्टर विष्णुदत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एसपी संतोष सिंह के औफिस में पहुंचे थे.

शातिर चोर के बारे में उस के साथी से मिला सुराग

एसपी संतोष सिंह ने शातिर चोर लोकेश श्रीवास की पूरी हिस्ट्री दोनों को बताते हुए कहा, ‘‘इंसपेक्टर, कमाल की बात यह है कि लोकेश श्रीवास अकेले ही चोरियां करता है. हम ने उस से इस विषय में पूछा था. उस का कहना था कि अकेले चोरी करने में वह अधिक सुविधा महसूस करता है. गैंग बना कर चोरी की जाए तो कोई न कोई गैंग का साथी बड़बोलेपन में फंसा सकता है. एक आदमी फंसा तो समझो सारा गैंग पकड़ में आया, इसलिए मैं जो करता हूं अपने हिसाब से अकेला ही करता हूं.’’

‘‘कमाल की बात है सर. दिल्ली में उमराव सिंह ज्वेलरी शोरूम में जिस हिसाब से दीवार और लौकर काटा गया है, वह एक व्यक्ति का काम नहीं लगता.’’ इंसपेक्टर विष्णुदत्त ने हैरानी से कहा.

‘‘वह अकेले लोकेश श्रीवास के ही शातिर दिमाग और हाथों का कमाल होगा. आप देख लेना, जब वह पकड़ में आएगा, तब वह यही कहेगा, मैं ने दिल्ली के उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां अकेले ही 25 करोड़ के आभूषणों पर हाथ साफ किया था.’’

‘‘वह पकड़ में कैसे आएगा सर?’’ विष्णुदत्त बोले, ‘‘क्या हमें उस के कवर्धा वाले घर पर रेड करनी चाहिए?’’

‘‘वह वहां नहीं मिलेगा.’’ एसपी संतोष सिंह बोले, ‘‘दिल्ली से उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां चोरी करके वह छत्तीसगढ़ वाली बस में बैठा है, यह मुझे आप के डीसीपी राजेश देव ने बताया था. तभी मैं ने लोकेश श्रीवास को दबोचने के लिए पुलिस को अलर्ट कर दिया था. पुलिस ने बिलासपुर आने वाली बस और उस के कबीर नगर के घर पर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

‘‘बस से वह पहले ही उतर गया था, इस की सीसीटीवी कैमरों से फुटेज मिल गई है. हम यह मान कर चल रहे हैं कि लोकेश श्रीवास छत्तीसगढ़ वाली बस से बिलासपुर आया है, लेकिन सुरक्षा के मद्देनजर वह बसअड्ïडे तक आने से पहले ही रास्ते में उतर गया. उस की तलाश यहां की पुलिस कर रही है. उसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.’’

अभी एसपी संतोष सिंह ने अपनी बात खत्म की ही थी कि उन का लैंडलाइन फोन बजने लगा. उन्होंने रिसीवर उठा कर कान से लगाया, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर, यहां पर लोकेश राव चोर अभीअभी आंध्रा पुलिस के हाथ लगा है. उस ने गले में मोटी सोने की चेन पहन रखी है. पूछताछ में उस ने बताया है कि यह चेन उसे लोकेश श्रीवास ने दी है.’’

‘‘ओह!’’ एसपी संतोष सिंह खुशी से उछल पड़े, ‘‘तब तो लोकेश राव यह भी जानता होगा कि लोकेश श्रीवास कहां है?’’

‘‘बेशक जानता होगा. उस से पूछताछ की जा रही है, आप कवर्धा आ जाइए सर, मैं कवर्धा थाने से बात कर रहा हूं.’’

‘‘हम आते हैं.’’ एसपी संतोष सिंह उठते हुए बोले.

उन्होंने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और वह इंसपेक्टर विष्णुदत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार से मुखातिब हुए, ‘‘चलिए, लोकेश श्रीवास हाथ आने ही वाला है.’’

इंसपेक्टर विष्णुदत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार ने कुरसी छोड़ दी. वह एसपी संतोष सिंह के साथ कक्ष से बाहर की ओर बढ़ गए. पुलिस का एक दस्ता भी उन के साथ था.

अकेले ही चुरा ले गया 25 करोड़ की ज्वेलरी

कवर्धा पुलिस थाने में कुरसी पर बैठा वह पतलादुबला व्यक्ति लोकेश राव था. लोकेश श्रीवास के नाम से मिलताजुलता नाम. काम छोटीमोटी चोरियां करना. उस ने आंध्र प्रदेश में चोरी की थी. वहां की पुलिस उस की तलाश में कवर्धा आई तो वह हत्थे चढ़ गया.

उस वक्त वह गले में सोने की मोटी चेन पहने था. पूछने पर उस ने बताया कि लोकेश श्रीवास उसे जानता है, उस ने अभी दिल्ली में किसी ज्वेलरी शोरूम में मोटा हाथ मारा है, खुश हो कर उस ने सोने की चेन उसे उपहार में दी है.

लोकेश राव से पुलिस लोकेश श्रीवास के ठिकाने का पता मालूम कर रही थी, लेकिन वह बारबार एक ही बात कह रहा था कि वह लोकेश श्रीवास का ठिकाना नहीं जानता.

‘‘तुम अपने किसी दूसरे साथी का नामपता जानते हो, जो तुम्हारी तरह ही चोरियां करता हो?’’ इंसपेक्टर विष्णुदत्त ने उसे घूरते हुए पूछा.

‘‘हां, मेरा एक दोस्त है शिवा चंद्रवंशी, वह भी मेरी तरह चोर है.’’

‘‘शिवा चंद्रवंशी कहां रहता है?’’

‘‘वह कबीर धाम में रह रहा है, वहां उस ने किराए का कमरा ले रखा है.’’

‘‘चलो, हमें शिवा से मिलवाओ,’’ इंसपेक्टर विष्णुदत्त ने कहा.

लोकेश राव इस के लिए न नहीं कह सका. वह सभी को अपने साथ ले कर कबीर धाम में शिवा के कमरे पर पहुंच गया. उस वक्त शिवा सो रहा था. अधिकारियों ने उसे सोते हुए ही दबोचा तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. पुलिस को देख कर वह कांपने लगा.

‘‘तुम लोकेश श्रीवास को जानते हो, यह लोकेश राव ने हम से कहा है. बताओ, इस वक्त लोकेश श्रीवास कहां है?’’ इंसपेक्टर दिनेश कुमार ने अंधेरे में तीर चलाया.

‘‘व.. वह भिलाई के स्मृतिनगर में है…’’ शिवा चंद्रवंशी ने हकलाते हुए बताया.

‘‘वह तुम से कब मिला था?’’

‘‘कल वह दिल्ली से मोटा माल ले कर आया था. यह कमरा उस ने पहले ही किराए पर ले लिया था ताकि माल यहां छिपा सके.’’

शिवा के मुंह से यह रहस्य उजागर होते ही पुलिस टीम ने कमरे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. तकिए, रजाई गद्दों और पलंग में छिपा कर रखे गए सोनेहीरों के आभूषणों को पुलिस ने बरामद किया. 19 लाख रुपया कैश भी बरामद हुआ.

यह आभूषण अनुमान से 18-19 किलोग्राम वजन के थे और इन की कीमत करोड़ों में आंकी जा सकती थी. यह आभूषण उमराव सिंह ज्वेलर्स के शोरूम से चुराए गए हैं या कहीं और से, यह लोकेश श्रीवास ही बता सकता था.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 2

पुलिस टीमें जुटीं जांच में

डीसीपी राजेश देव ने फिगरप्रिंट एक्सपर्ट और तेजतर्रार इंसपेक्टर विष्णु दत्त और इंसपेक्टर दिनेश को भी वहां बुला कर जांच में लगा दिया. स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर वहां आ गए. दुकान में 6 सीसीटीवी कैमरे थे, जिन की तार चोरों ने काट दी थी.

उन कैमरों की फुटेज कब्जे में ले ली गई. पड़ोस की इमारत में रहने वालों से पूछताछ की गई. इमारत में कई परिवार रहते थे. उन लोगों का कहना था कि उन्होंने ज्वेलरी शोरूम के आसपास किसी को संदिग्ध हालत में घूमते नहीं देखा, न उन लोगों ने ज्वेलरी शोरूम में घुसे चोरों के द्वारा अंदर की गई तोडफ़ोड की आवाजें सुनीं. चोर ज्वेलरी शोरूम में कब और कैसे घुसे, वे नहीं जानते.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि चोर इसी इमारत की सीढिय़ों से इमारत की छत पर पहुंचे. वहां से ज्वेलरी शोरूम की इमारत पर आए और सीढ़ी के ग्रिल दरवाजे का ताला तोड़ कर ग्राउंड फ्लोर पर आ गए. उन्होंने यह काम सोमवार को किया, क्योंकि उस दिन साप्ताहिक अवकाश के कारण शोरूम बंद था.

उन्हें सोमवार का दिन और रात का पूरा वक्त स्ट्रांगरूम की दीवार तोड़ कर लौकर तक पहुंचने के लिए मिला. उन्होंने कटर से लौकर भी काट डाला और सारे आभूषण ले कर चले गए.

पुलिस की कई टीमें इस हाईप्रोफाइल चोरी का सुराग तलाशने में जुटी थीं. साइबर सेल टैक्निकल सर्विलांस पर काम कर रही थी. काल डिटेल्स खंगालने का भी काम जारी था.

छत्तीसगढ़ पुलिस से मिला सुराग

चोरों ने ज्वेलरी शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरों की वायर अंदर घुसते ही काट डाली थी, लेकिन वायर काटने से पहले की एक व्यक्ति की तसवीर सीसीटीवी फुटेज में कैद हो गई थी. उस व्यक्ति का हुलिया ज्यादा स्पष्ट नहीं था और पुलिस के लिए उसे पहचान पाना भी आसान नहीं था, लेकिन जांच में जुटी पुलिस टीम ने हिम्मत नहीं हारी.

दूसरे दिन भोगल एरिया में लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगालते वक्त पुलिस को एक फुटेज में उसी कदकाठी के एक व्यक्ति की तसवीर मिली, जैसी ज्वेलरी शोरूम में मिली थी. इस में उस व्यक्ति का चेहरा साफसाफ दिखाई पड़ रहा था. फोटो के सहारे पुलिस इस व्यक्ति का क्रिमिनल रिकौर्ड खंगालने में जुट गई.

दिल्ली के किसी भी थाने में इस व्यक्ति का फोटो नहीं था. हां, उस फोटो के जरिए गूगल पर इंटरस्टेट चोरों का रिकौर्ड खंगाला गया तो यह छत्तीसगढ़ के मशहूर चोर लोकेश श्रीवास के रूप में दर्ज मिला.

Inspector rajender and Jitender raghuvanshi

एसआई जितेंद्र ने स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर, इंसपेक्टर विष्णु दत्त से विचारविमर्श किया. तीनों ने यह तय किया कि छत्तीसगढ़ पुलिस से इस लोकेश श्रीवास की पूरी जानकारी मालूम की जाए.

वह अभी छत्तीसगढ़ पुलिस को फोन करने वाले ही थे कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर थाने से एक एसआई की काल एसआई जितेंद्र के मोबाइल पर आ गई. उस सबइंसपेक्टर ने कहा, ‘‘जितेंद्रजी, हम यहां रुटीन चेकिंग के लिए निकले थे. हमें आज लोकेश राव नाम का एक चोर हाथ लगा. यह लोकेश राव छोटीमोटी चोरियां करता है. एक चोरी के मामले में आंध्र प्रदेश की पुलिस को उस की तलाश थी.

‘‘इस चोर का कहना है, मुझ जैसे छोटे चोर को क्यों पकड़ते हो, दिल्ली में शातिर चोर लोकेश श्रीवास ने बड़े ज्वेलरी शोरूम पर हाथ साफ किया है, उसे पकड़ो तो जानूं. मैं यह जानना चाहता हूं क्या दिल्ली में कोई बड़ा ज्वेलरी शोरूम लूटा गया है?’’

‘‘हां. कल यहां उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां 25 करोड़ के आभूषणों पर उसी लोकेश श्रीवास ने हाथ साफ कर दिया है.’’ एसआई जितेंद्र ने बताया, ‘‘हमें भोगल मार्किट में एक व्यक्ति संदिग्ध अवस्था में घूमता सीसीटीवी फुटेज में मिला है. गूगल पर सर्च करने से वह व्यक्ति शातिर चोर लोकेश श्रीवास ही निकला. वह आटो में सवार हो कर ज्वेलरी शोरूम से गया है, हम आटो का पता लगवा रहे हैं. आप ने हमारा विश्वास पक्का किया है. इस जानकारी के लिए आप का धन्यवाद. जल्द ही हम छत्तीसगढ़ आ सकते हैं.’’

‘‘वेलकम जितेंद्रजी. यहां हम आप का पूरा सहयोग करेंगे.’’ कहने के बाद एसआई ने एक मोबाइल नंबर जितेंद्र रघुवंशी के वाट्सऐप पर भेज दिया. और कहा, ‘‘यह लोकेश श्रीवास का मोबाइल नंबर है. आप इस से लोकेश की लोकेशन ट्रेस कर सकेंगे.’’

उधर से नंबर मिलते ही एसआई जितेंद्र ने लोकेश श्रीवास का मोबाइल नंबर सर्विलांस सेल के पास भेज दिया, ताकि इस नंबर की लोकेशन मालूम हो सके. इधर पुलिस की एक टीम उस आटो का पता तलाशने में जुट गई. जांच में उस आटो के मालिक का पता मिल गया.

पुलिस उस आटो मालिक के घर पहुंच गई. उसे लोकेश श्रीवास की फोटो दिखा कर पूछा गया कि कल रात इसे उमराव सिंह ज्वेलर्स के पास से बिठा कर कहां उतारा?

आटो वाले ने तुरंत बताया, ‘‘वह सवारी मुझे एक हजार रुपया भाड़ा दे गई थी, इसलिए याद है. मैं ने उसे कश्मीरी गेट बसअड्ïडे पर उतारा था.’’

पुलिस के 4 सिपाही साथ ले कर इंसपेक्टर विष्णुदत्त, इंसपेक्टर दिनेश और निजामुद्दीन थाने के एसआई जितेंद्र कश्मीरी गेट बसअड्डा पहुंच गए.

यहां हर स्टेट की ओर जाने वाली बसों के टर्मिनल पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. इंसपेक्टर दिनेश के इशारे पर पुलिस टीम ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखनी शुरू की तो उन्हें वह व्यक्ति छत्तीसगढ़ जाने वाली एक बस में सवार होता दिखाई दे गया. सर्विलांस टीम ने भी पुष्टि कर दी कि इस फोन नंबर की लोकेशन छत्तीसगढ़ में शो हो रही है. इस से पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि मास्टरमाइंड चोर लोकेश श्रीवास ही है.

इंसपेक्टर विष्णु दत्त ने डीसीपी राजेश देव को यह जानकारी दे दी और बिलासपुर के एसआई के फोन की बात भी बता दी. डीसीपी पूरी संतुष्टि करना चाहते थे. उन्होंने लोकेश श्रीवास की तसवीर छत्तीसगढ़ पुलिस के पास फ्लैश करवा दी. वहां से जो कुछ बताया गया, उस से जांच में जुटी पुलिस टीम की बांछें खिल गईं.

पता चला कि वह व्यक्ति छत्तीसगढ़ के क्रिमिनल रिकौर्ड में दर्ज है. उस का नाम लोकेश श्रीवास उर्फ गोलू है. उम्र 32 साल. जानकारी मिली कि वह अब तक दरजनों ज्वेलरी शोरूम को अपना निशाना बना चुका है.

छत्तीसगढ़ पुलिस ने उसे कई बार पकड़ कर जेल में डाला था, लेकिन न जाने कैसे यह शातिर चोर अपनी जमानत करवा कर जेल से बाहर आ जाता है. फिलहाल वह छत्तीसगढ़ पुलिस की कस्टडी में नहीं था. छत्तीसगढ़ पुलिस एक ज्वेलर के यहां हुई चोरी के केस में लोकेश श्रीवास को तलाश कर रही थी.

डीसीपी राजेश देव ने इस जानकारी पर राहत की सांस ली. लोकेश श्रीवास एक शातिर चोर है और उसी ने दिल्ली के भोगल इलाके में उमराव सिंह ज्वेलर्स के शोरूम में 25 करोड़ की ज्वेलरी पर हाथ साफ किया था. चूंकि वह छत्तीसगढ़ गया था, इसलिए डीसीपी को उम्मीद थी कि लोकेश श्रीवास को छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा सकता है.

उन्होंने नारकोटिक्स सेल के इंसपेक्टर विष्णुदत्त शर्मा और इंसपेक्टर दिनेश कुमार को फ्लाइट से छत्तीसगढ़ जाने का आदेश दे दिया. दोनों इंसपेक्टर छत्तीसगढ़ पुलिस की मदद से लोकेश श्रीवास को तलाश कर के गिरफ्तार करने के लिए छतीसगढ़ रवाना हो गए. स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर को सर्विलांस विभाग में रह कर लोकेश श्रीवास के मोबाइल काल पर नजर रखनी थी.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 1

पत्नी रमा को शादी के बहुत दिनों बाद ही यह बात पता चली कि उस का पति लोकेश श्रीवास एक शातिर चोर है. लोकेश ने उसे कभी नहीं बताया कि वह क्या करता है. जब घर के दरवाजे पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के दुर्ग, भिलाई की पुलिस उस के पति को दबोचने के लिए आने लगी और घर में पति द्वारा छिपा कर रखा गया चोरी का माल बरामद होने लगा तो रमा को पता चला कि उस का पति शातिर चोर है.

लोकेश श्रीवास पहले एक सैलून में बाल काटने का काम किया करता था. उस के ख्वाब ऊंचे थे. बाल काटते वक्त उस का ख्वाब होता था कि उस के हाथ में सोने का कंघा, सोने की कैंची और सोने का उस्तरा हो, जिस से वह देश के प्रधानमंत्री के बाल काटे. प्रधानमंत्री तक तो उस की पहुंच संभव नहीं थी, लेकिन अपने सुनहरे ख्वाब पूरे करने के लिए उस ने 20 मई, 2006 को एक ज्वेलरी शोरूम में चोरी की. लाखों के गहने हाथ लगे तो लोकेश श्रीवास ने चोरी को ही अपना धंधा बना लिया.

लोकेश श्रीवास ने आंध्र प्रदेश के विजय नगर शहर में एक ज्वेलरी शोरूम में 6 किलोग्राम सोने के आभूषणों की चोरी की. तेलंगाना स्टेट में एक ज्वेलर के यहां 4 किलोग्राम, ओडिशा में 500 ग्राम, भिलाई के बजाज ज्वेलर के यहां से 17 लाख के आभूषणों पर हाथ साफ किया. सन 2019 में लोकेश श्रीवास ने भिलाई के आनंद नगर में पारख ज्वेलर के यहां से 15 करोड़ के आभूषण चोरी किए.

19 और 25 अगस्त, 2023 को बिलासपुर में मास्टरमाइंड लोकेश श्रीवास ने एक ही रात में 10 ज्वेलरी शोरूम को अपना निशाना बनाया था.

लोकेश श्रीवास को विभिन्न राज्यों की पुलिस ने कितनी ही बार पकड़ कर चोरी का माल बरामद किया. उसे जेल की सलाखों में भी डाला, लेकिन वह किसी न किसी तिकड़म से अपनी जमानत करवा लेता और बाहर आ कर फिर से किसी ज्वेलरी शोरूम को निशाना बनाता.

दिल्ली में स्थित थाना निजामुद्दीन के भोगल में स्थित उमराव सिंह ज्वेलर्स का शोरूम 25 सितंबर, 2023 को साप्ताहिक अवकाश की वजह से बंद था. 26 सितंबर को शोरूम के मालिक महावीर प्रसाद जैन सुबह 10 बजे दुकान पर पहुंचे तो वहां पूरा स्टाफ आ चुका था. सभी गपशप कर रहे थे.

मालिक को कार से उतरता देख उन्होंने अपने मालिक को अभिवादन किया. मुसकरा कर उन का अभिवादन स्वीकार करते हुए महावीर प्रसाद जैन ने बैग से चाबियों का गुच्छा निकाल कर एक कर्मचारी की तरफ बढ़ा दिया.

उस कर्मचारी ने शोरूम के ताले खोले और एक अन्य कर्मचारी के सहयोग से दुकान का शटर उठाया तो धूल का गुबार दुकान के भीतर से निकल कर दोनों से टकराया. दोनों धूल को हाथ से हटाने का प्रयास करते हुए बुरी तरह खांसने लगे.

‘‘इतनी धूल शोरूम में कहां से आ गई?’’ महावीर प्रसाद जैन हैरानी से बोले.

‘‘कल शोरूम बंद था न मालिक, इस की वजह से अंदर धूल जमा हो गई होगी.’’ एक कर्मचारी ने अपनी राय प्रकट की.

‘‘एक दिन में इतनी धूल दुकान में थोड़ी इकट्ठा हो जाएगी, जरा अंदर जा कर देखो तो…’’

महावीर प्रसाद जैन कह ही रहे थे, उस से पहले ही एक युवा कर्मचारी हाथों से धूल हटाने की कोशिश करता हुआ शोरूम में घुस गया था. वह धूल के गुबार में किसी तरह आंखें जमाने में कामयाब हुआ तो उस के गले से चीख निकल गई.

वह चीखता हुआ बाहर भागा, ‘‘मालिक अंदर स्ट्रांग रूम की दीवार टूटी हुई है…’’

‘‘क्… क्या कह रहे हो?’’ महावीर प्रसाद घबरा कर बोले और जल्दी से शोरूम में घुस गए.

शोरूम में धूल ही धूल भरी हुई थी. अंधेरा भी था.

अन्य स्टाफ के लोग भी अंदर आ गए थे. धूल और अंधेरे के कारण कुछ देख पाना संभव नहीं था.

एक कर्मचारी ने समझदारी दिखाते हुए लाइट्स और एग्जास्ट फैन चालू कर दिए. थोड़ी देर में दुकान की धूल छंटी तो रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, वह उन के होश उड़ाने के लिए काफी था. स्ट्रांगरूम की दीवार को तोड़ कर खिडक़ी जैसा रास्ता बना दिया गया था. फर्श पर ईंटों और सीमेंट का मलबा पड़ा था.

यह रास्ता क्यों बनाया गया होगा, इस का अनुमान लगाते ही महावीर प्रसाद चीखे, ‘‘स्ट्रांगरूम का लौक खोलो और लौकर चेक करो.’’

स्ट्रांगरूम का दरवाजा खोला गया तो अंदर रखा लौकर टूटा हुआ था, उस में रखे सोने और हीरों के आभूषण गायब थे. बड़ी दुकानों में सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत स्ट्रांगरूम का निर्माण करवाया जाता है. दुकान बंद होने से पहले सारे आभूषण स्ट्रांगरूम के लौकर में रख दिए जाते हैं.

24 सितंबर रविवार को जब दुकान बंद की गई थी, महावीर प्रसाद ने अपने सामने सारे आभूषणों को स्ट्रांगरूम के लौकर में रखवाया था. अब वह लौकर खाली था. उस का मजबूत दरवाजा काट कर किसी ने सारे आभूषणों की चोरी कर ली थी.

महावीर प्रसाद खाली लौकर देखते ही गश खा कर गिर पड़े. अन्य कर्मचारियों के होश फाख्ता हो गए थे, उन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. अपने मालिक को बेहोश हो कर गिरता देख कर वे संभले. 2-3 कर्मचारी उन्हें उठा कर बाहर के हाल में लाए और चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में लाने का प्रयास करने लगे.

थोड़े प्रयास से महावीर प्रसाद होश में आ कर उठ बैठे. उन्होंने सब से पहले मोबाइल निकाल कर पुलिस कंट्रोल रूम को अपने यहां हुई चोरी की जानकारी दे दी.

मजबूत लौकर टूटने पर पुलिस हुई हैरान

भोगल का थाना क्षेत्र निजामुद्दीन था. कंट्रोल रूम से थाने को उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां लौकर तोड़ कर आभूषण चोरी चले जाने की सूचना दी गई तो थोड़ी देर में ही निजामुद्दीन के एसएचओ परमवीर और एसआई जितेंद्र रघुवंशी मय स्टाफ के उमराव सिंह ज्वेलर्स शोरूम पर पहुंच गए.

एसएचओ और एसआई जितेंद्र रघुवंशी ने दुकान में चोरों द्वारा तोड़ी गई स्ट्रांगरूम की डेढ़ फुट मोटी दीवार को देखा तो उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ. यह काम 1-2 घंटे का नहीं हो सकता था. लौकर का लोहे का मजबूत दरवाजा भी काटा गया था. इस में भी काफी समय लगा होगा.

पुलिस का मानना था कि चोर रात भर ज्वेलरी शोरूम में रहे हैं और उन्होंने इत्मीनान से यह चोरी की है. उमराव सिंह ज्वेलर्स की दुकान ग्राउंड फ्लोर पर थी. यह 4 मंजिला इमारत में ऊपर के 3 मंजिल पर आवासीय फ्लैट हैं. पूरी छानबीन करने के बाद यह अनुमान लगाया गया कि चोर पड़ोस की छत से शोरूम की छत पर आए. ऊपर ग्रिल दरवाजे में मजबूत ताला था, उसे तोड़ कर वह सीढियों के रास्ते शोरूम में घुसे और आभूषणों पर हाथ साफ कर दिया.

एसएचओ और एसआई शोरूम के मालिक महावीर प्रसाद जैन के पास आए. वह पत्थर की मूरत बने बैठे थे. उन का चेहरा पसीने से तरबतर था.

‘‘इस चोरी का आप को कैसे पता चला?’’ एसआई जितेंद्र रघुवंशी ने सवाल किया.

‘‘सुबह हम ने जैसे ही शोरूम खोला तो अंदर धूल का गुबार भरा था. एग्जास्ट चलाने से जब धूल छंटी, तब हम ने स्ट्रांगरूम की दीवार को टूटा हुआ पाया. स्ट्रांगरूम का दरवाजा खोल कर देखा गया तो लौकर का दरवाजा भी कटा मिला, उस में रखे सारे आभूषण गायब हैं सर.’’

‘‘आप के अनुमान से चोरों ने कितने मूल्य के आभूषण चोरी किए हैं?’’

‘‘लौकर में लगभग 25 करोड़ के आभूषण थे, सभी चोरी कर लिए गए हैं. 5 लाख रुपए का कैश था, उसे भी चोर ले गए हैं.’’

‘‘25 करोड़ की चोरी!’’ एसएचओ परमवीर का मुंह खुला का खुला रह गया. एसआई जितेंद्र रघुवंशी भी इतनी बड़ी चोरी की जानकारी पा कर चौंक गए कि यह किसी मामूली चोर का काम नहीं हो सकता.

SHO Paramveer Dhaiya

इस की जानकारी एसएचओ परमवीर ने उच्चाधिकारियों को दी तो जिले से ले कर पुलिस हैडक्वार्टर तक के अधिकारी हरकत में आ गए. अधिकारियों की गाडिय़ां उमराव सिंह ज्वेलर्स शोरूम की ओर दौड़ पड़ीं.

साउथईस्ट जिले के डीसीपी राजेश देव भी खबर पा कर तुरंत उमराव सिंह ज्वेलर्स शोरूम पर आ गए. उन्होंने शोरूम में जा कर बड़ी बारीकी से चोरों द्वारा की गई चोरी की वारदात का निरीक्षण किया.

स्ट्रांगरूम की 3 ओर की दीवारें लोहे की थीं, एक दीवार मोटे सरिया और कंक्रीट से बनाई गई थी. चोरों ने कंक्रीट की दीवार को तोड़ कर अंदर जाने का रास्ता बनाया था. वे छत के रास्ते से नीचे दुकान में उतरे थे. लौकर भी कटर से काट दिया गया था.

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स्ट्रांगरूम में लोहे की बड़ीबड़ी 2 तिजोरियां भी रखी थीं, लेकिन चोरों ने उन के साथ छेड़छाड़ नहीं की. क्योंकि स्ट्रांगरूम के अंदर ही भारी मात्रा में सोने और हीरे के आभूषण मिल गए थे. स्ट्रांगरूम भी अलमारी जैसा था. उस में कई किलोग्राम चांदी के भी आभूषण थे, लेकिन चोर उन आभूषणों को नहीं ले गए.

रिश्तों का कत्ल : पैसों के लिए की दोस्त की हत्या

सुंदरियों के हसीन सपने – भाग 3

2 दिनों बाद बेअंत सिंह अपने ममेरे भाई एडवोकेट हरजिंदर सिंह से मिलने उस के घर गया. दोनों धूप में बैठे चाय पी रहे थे, तभी बेअंत सिंह के मोबाइल फोन की घंटी बजी.  उस ने फोन रिसीव किया तो फोन करने वाले ने उस का नामपता पूछ कर कहा, ‘‘मैं पीलीबंगा थाने का सिपाही जसवंत बोल रहा हूं. तुम्हारे खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है.’’

यह सुनते ही बेअंत सिंह घबरा गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. हरजिंदर समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. उस ने खुद फोन ले कर बात शुरू की तो फोन करने वाले कांस्टेबल जसवंत ने कहा, ‘‘3 लोग एक महिला को ले कर आए थे. महिला कह रही थी कि बेअंत सिंह ने उस के साथ दुष्कर्म किया है. लेकिन घटनास्थल हमारे क्षेत्र के बाहर का था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन्हें वापस भेज दिया.’’

बेअंत सिंह ने इस आरोप को खारिज करते हुए हरजिंदर सिंह को पूरी घटना के बारे में बता दिया. वकील होने के नाते हरजिंदर सिंह को पता था कि मामला कितना गंभीर है. कथित पीडि़ता के आरोप को एकबारगी नकारा नहीं जा सकता था. लवप्रीत कौर का फोन नंबर बेअंत सिंह के पास था ही. मामला पुलिस तक जाए, इस के पहले ही हरजिंदर ने सुलटाने की कोशिश शुरू कर दी.

सूचना मिलने पर बेअंत सिंह का बहनोई बौड़ा सिंह भी आ गया. बौड़ सिंह लवप्रीत कौर और उस के उन दोनों साथियों को जानता था, जो उस की मदद कर रहे थे. बातचीत शुरू हुई तो लवप्रीत ने मामला सुलटाने के लिए 40 लाख रुपए या 2 बीघा जमीन मांगी. जबकि बेअंत सिंह 2 लाख रुपए देने को तैयार था.

लवप्रीत का एक साथी था जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा, जो स्वयं को पूर्व सरपंच बता रहा था, उस ने कथित पीडि़ता लवप्रीत का एक औडियो कैसेट तैयार कर रखा था. उस कैसेट में लवप्रीत कह रही थी कि मांग पूरी होने पर वह बेअंत के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराएगी. जबन सिंह लवप्रीत को अपनी नौकरानी बता रहा था.

लवप्रीत की इस मांग से बेअंत सिंह, बौड़ा सिंह और हरजिंदर सिंह परेशान थे. वहीं हरजिंदर का कहना था कि यह सरासर ब्लैकमेलिंग है. अन्य लोगों के न चाहते हुए भी हरजिंदर सिंह ने ब्लैकमेल करने वालों लवप्रीत और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का निर्णय ले लिया. इस के बाद 27 दिसंबर को बेअंत ने थाना हनुमानगढ़ में प्रकट सिंह पुत्र मुख्तयार सिंह निवासी 2 जीजीआर, जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा पुत्र मखन सिंह निवासी 3 जीजीआर तथा लवप्रीत कौर उर्फ हरप्रीत उर्फ रानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी भंवरलाल ने इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश को सौंप दी. अगले दिन उन्होंने बेअंत सिंह से जबन सिंह व प्रकट सिंह को रुपए ले जाने के लिए फोन करवा दिया. वे रुपए लेने आए तो पुलिस ने जाल बिछा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन शाम को पुलिस ने लवप्रीत को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. पूछताछ के बाद तीनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी ओर विजयनगर से एएसआई बलवंतराम ने सपना को भी महिला पुलिस की मदद से गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

पुलिस पूछताछ में सपना ने जो बताया था, वह इस प्रकार था. सपना उर्फ सोना पंजाब के मुक्तसर जिले के गांव लूलबाई के रहने वाले सतनाम सिंह की बेटी थी. सपना की शादी हनुमानगढ़ के रहने वाले अशोक के साथ हुई थी. सपना उस के एक बच्चे की मां भी बनी, लेकिन उस की सास माया समाज की मर्यादाओं को तोड़ कर असलम के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी थी. अशोक को मां की तरह पत्नी का भी चरित्र ठीक नहीं लगता था. इस से आहत हो कर उस ने घर छोड़ दिया. इसी सपना को चारा बना कर असलम ने भूपेंद्र को फांस कर लूटने की योजना बनाई थी.

लवप्रीत कौर की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. उस की शादी गंगूवाला सिरवान में हुई थी. पति से अनबन होने के बाद वह हनुमानगढ़ आ कर अकेली ही रहने लगी थी. यहीं उस का संपर्क प्रकट सिंह और जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा से हुआ. लवप्रीत कथित रूप से जबन सिंह की रखैल थी. लवप्रीत को चारा बना कर बेअंत सिंह को ब्लैकमेल करने की योजना जबन सिंह की थी.

लवप्रीत से जबन सिंह ने कहा था कि पैसे मिलने पर वह उस के लिए घर बनवा देगा. लेकिन उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. दिल्ली में हुए दामिनी कांड के बाद जो नया कानून बना है, इस तरह के अराजक तत्व उस का गलत फायदा उठाना चाहते हैं. इन तत्वों के खेल में 2 निर्दोष महिलाएं फंस गई हैं. कथा लिखे जाने तक इन में से कुछ अभियुक्तों की जमानतें हो चुकी थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुंदरियों के हसीन सपने – भाग 2

लुटापिटा भूपेंद्र बुझे मन से अपनी कार ले कर घर आ गया. गाड़ी की आरसी, एटीएम कार्ड, नगदी और आभूषण लुटेरों ने छीन लिए थे. भूपेंद्र को गुमसुम देख कर घर वालों ने उस से पूछा भी. लेकिन तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह बात टाल गया. जब अगली सुबह उस के बड़े भाई ने पास बैठा कर उस से परेशानी की वजह पूछी तो उस ने उन से पूरी बात बता दी.

सलाहमशविरा कर के दोनों भाई उसी समय हनुमानगढ़ के लिए रवाना हो गए. 10 दिसंबर की दोपहर थाना हनुमानगढ़ के थानाप्रभारी भंवरलाल को भूपेंद्र ने अपनी व्यथा बताई. मामला गंभीर था, लेकिन थानाप्रभारी को लग रहा था कि इस मामले में अभियुक्त शीघ्र ही पकड़ लिए जाएंगे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई बलवंतराम को सौंप दी. बलवंतराम ने उसी समय भूपेंद्र से सपना को रुपयों की व्यवस्था हो जाने का फोन करवा दिया. सपना ने आधे घंटे में अबोहर रोड पर जहां भूपेंद्र के साथ घटना घटी थी, पहुंचने को कहा.

भूपेंद्र अपनी कार से वहां पहुंच गया. एएसआई बलवंतराम भी पुलिस टीम के साथ प्राइवेट वाहन से बिना वर्दी के वहां पहुंच कर थोड़ी दूर खड़े हो गए थे. कुछ देर बाद भूपेंद्र के पास एक कार आ कर रुकी. उस में से 3 लोग उतरे और पैसे लेने के लिए भूपेंद्र के पास पहुंच गए. भूपेंद्र का इशारा पाते ही पुलिसकर्मियों ने तीनों को घेर कर पकड़ लिया. तीनों के नाम थे असलम, तुफैल मोहम्मद और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोगी.

इस के बाद भूपेंद्र की तहरीर पर पुलिस ने सपना, असलम, तुफैल मोहम्मद और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोगी के खिलाफ भादंवि की धारा 342, 385, 382, 323 व 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. लेकिन सपना पुलिस के हाथ नहीं लगी थी. शायद उसे अपने साथियों के पकड़े जाने की खबर लग गई थी, इसलिए वह फरार हो गई थी. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया, जहां से विस्तृत पूछताछ और माल बरामद करने के लिए उन की 2 दिनों की रिमांड की मांग की गई.

रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में तीनों अभियुक्तों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इसी पूछताछ में उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले इसी तरह सपना से फोन करवा कर उन्होंने पंजाब के अबोहर  के एक आदमी को लूटा था. उस ने पुलिस को सूचना दे दी थी तो पंजाब पुलिस ने उन्हें पकड़ कर जेल भिजवा दिया था. अदालत से जमानत मिलने पर जब ये लोग बाहर आए तो इन्होंने भूपेंद्र को शिकार बनाया. रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को जेल भिजवा दिया. सपना अभी भी फरार थी.

27 दिसंबर को थानाप्रभारी भंवरलाल एएसआई बलवंतराम से सपना की गिरफ्तारी के बारे में चरचा कर रहे थे, तभी 3 लोग उन से मिलने आए. उन में से एक व्यक्ति ने अपना परिचय हरजिंदर सिंह एडवोकेट (पूर्व बार संघ उपाध्यक्ष हनुमानगढ़) के रूप में दिया. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

हरजिंदर सिंह ने अपनी बगल में खड़े व्यक्ति की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह बेअंत सिंह है. मेरी बुआ का बेटा. भूपेंद्र सोनी की तरह इसे भी एक गिरोह ने फांस रखा है, वह गिरोह इस से 40 लाख रुपए नकद या फिर 2 बीघा जमीन देने पर इसे छोड़ने की बात कर रहा है. न देने पर इसे रेप के केस में झूठा फंसाने की धमकी दे रहा है.’’

सूचना गंभीर और चौंकाने वाली थी. एक बार थानाप्रभारी को लगा कि यह काम भी सपना के गिरोह का हो सकता है. लेकिन उस गैंग के सदस्य तो जेल में थे. इसी बात पर चरचा हो रही थी कि तभी बलवंतराम के फोन की घंटी बजी. फोन उन के मुखबिर का था. उस ने सपना के विजयनगर (श्रीगंगानगर) में होने की सूचना दी थी. थानाप्रभारी से अनुमति ले कर बलवंतराम विजयनगर के लिए निकल पड़े.

बलवंतराम चले गए तो बेअंत सिंह ने थानाप्रभारी भंवरलाल को अपनी जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी:

12 दिसंबर, 2013 की दोपहर की बात है. चक सुंदरसिंह वाला (पीलीबंगा) का रहने वाला 50 वर्षीय बेअंत सिंह अपने खेतों में पानी लगा रहा था. उस की 2 संतानें हैं, जिन की शादियां हो चुकी हैं. हाड़तोड़ मेहनत और मितव्ययी स्वभाव का होने की वजह से इलाके में उस की पहचान एक समृद्ध किसान की है. बेअंत सिंह खेतों में जाने वाले पानी की निगरानी कर रहा था, तभी उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से किसी औरत की आवाज आई, ‘‘सरदारजी, मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं और मुझ से क्यों मिलना चाहती हैं?’’ बेअंत सिंह ने पूछा.

‘‘जी मैं लवप्रीत कौर बोल रही हूं. पिछले दिनों आप को पीलीबंगा के गुरुद्वारे में देखा था. तभी से मैं आप पर लट्टू हूं. किसी तरह आप का फोन नंबर हासिल कर के आप को फोन किया है. रही बात मिलने की तो आप खुद ही समझ लीजिए कि कोई जवान लड़की किसी मर्द से क्यों मिलना चाहेगी.’’

बेअंत सिंह के प्रौढ़ शरीर में एकबारगी सिहरन सी दौड़ गई. औरत हो या मर्द, एकदूसरे के प्रति आकर्षण स्वाभाविक ही है. उसी आकर्षण में बंधे बेअंत सिंह ने कहा, ‘‘लवप्रीतजी अभी तो मैं खेतों में पानी लगा रहा हूं. मैं कल आप को फोन करता हूं.’’

कह कर बेअंत सिंह ने फोन काट दिया. लवप्रीत के मीठे बोल और खुले आमंत्रण से प्रौढ़ बेअंत सिंह का रोमरोम पुलकित था. वह जवान लवप्रीत से मिलने को लालायित हो उठा.

अगले दिन सुबह बेअंत सिंह ने खेतों पर जा कर लवप्रीत को फोन किया. दूसरी ओर से फोन रिसीव हुआ तो उस ने कहा, ‘‘लवप्रीत, मैं बेअंत बोल रहा हूं.’’

‘‘सरदारजी, मुझे लवप्रीत नहीं सिर्फ लव कहिए. अब आप के लिए मैं सिर्फ लव हूं. मैं 2 घंटे बाद पीलीबंगा बसस्टैंड पर पहुंच रही हूं. मेहरबानी कर के आप वहीं आ जाइए. आगे का प्रोग्राम मिलने पर बनाएंगे.’’ इतना कह कर लवप्रीत ने फोन काट दिया.

खेतों से लौट कर बेअंत सिंह ने मोटरसाइकिल उठाई और पीलीबंगा के बसस्टैंड पर पहुंच गया. बेअंत सिंह ने बसस्टैंड से लवप्रीत को फोन किया तो सामने खड़ी लड़की को फोन रिसीव करते देख वह सकपका गया. लड़की उस की बेटी की उम्र की थी. उस ने पूछा, ‘‘सरदार जी, आप कहां हो?’’

बेअंत सिंह ने पहचान बताई तो वही लड़की उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उसे देख कर लवप्रीत के चेहरे पर कई रंग आए और गए. वह भी बेअंत सिंह की ही तरह सकपका गई थी. पास आ कर उस ने कहा, ‘‘अभीअभी उन का फोन आया था. मेरे ससुर को दिल का दौरा पड़ गया है. मुझे तुरंत वहां पहुंचना होगा. कृपया मुझे पुराने बसस्टैंड तक अपनी मोटरसाइकिल से छोड़ दीजिए. समय मिलते ही मैं आप को फोन करूंगी.’’

बेअंत सिंह ने मोटरसाइकिल से लवप्रीत को पुराने बसस्टैंड पर छोड़ दिया और अपने घर आ गया. लाख कोशिशों के बाद भी बेअंत सिंह लवप्रीत को इस तरह कन्नी काट कर चली जाने का कारण समझ नहीं पाया. हां, इतना जरूर हुआ कि उस ने लवप्रीत को सपना समझ कर भुला दिया.