True Crime: हर बहन को अपने भाई से रक्षा की उम्मीद होती है लेकिन आरिफ ऐसा भाई था जो बहनों की रक्षा करना तो दूर उन के जिस्म से खेलना चाहता था. मां भूरी भी बेटियों की नहीं सुनती थी. इसी दौरान एक दिन तो…
23 मई, 2015 को सुबह के कोई 11 बजे रुखसार और शमीमा थाना काशीपुर के थानाप्रभारी के पास पहुंची. दोनों ही काफी परेशान सी दिख रही थीं. उन्हें देखते ही थानाप्रभारी समझ गए कि इन का कोई पारिवारिक झगड़ा हुआ होगा. उसी झगड़े की शिकायत करने आई होंगी. इसलिए उन्होंने उन से पूछा, ‘‘बोलो, क्या बात है?’’
उम्र में बड़ी दिखने वाली रुखसार ने बताया, ‘‘सर, हम लोग यहीं के ढेला बस्ती के मधुवननगर में रहते हैं. पिछले 16 दिनों से हमारी बहन सायरा गायब है. हमें शक है कि हमारे भाइयों व अम्मी ने मिल कर उस की हत्या कर दी है.’’
हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंके, ‘‘क्या! यह तुम क्या कह रही हो?’’
‘‘हां, सर, मैं सही कह रही हूं. हमारे घर के एक कोने से तेज बदबू भी आ रही है.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी हैरत में पड़ गए. पहली बार तो उन्हें उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने गहराई से सोचा तो उन्हें इन लड़कियों ने जरूर कोई ऐसीवैसी बात देखी होगी, तभी तो ये इस तरह की बात कह रही हैं. वह उसी समय दोनों बहनों को ले कर उन के घर पहुंच गए. घर पहुंचते ही दोनों बहनें थानाप्रभारी को अपने घर में उस जगह ले गईं, जहां पर मिट्टी खुदी नजर आ रही थी. वहां पहुंचते ही थानाप्रभारी ने तेज दुर्गंध महसूस की. उस वक्त उस घर में उन दोनों बहनों के अलावा कोई नहीं था. उस समय बाकी लोग कहीं गए हुए थे.
दुर्गंध से पुलिस को लगा कि ये जो भी कह रही थीं, वह सही हो सकता है. उस जगह उन्हें भी लाश दफन होने की आशंका दिखी, इसलिए उन्होंने इस की सूचना एएसपी कमलेश उपाध्याय, सीओ प्रकाश आर्य को फोन द्वारा दे दी तो दोनों पुलिस अधिकारी भी मधुवन नगर पहुंच गए. तब तक मोहल्ले के भी कुछ लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे. जहां से दुर्गंध आती महसूस हो रही थी, पुलिस ने उस जगह पर खुदाई शुरू करा दी. जैसेजैसे उस स्थान की मिट्टी हटती गई, दुर्गंध बढ़ने लगी. कुछ ही देर की खुदाई के बाद सच्चाई सभी के सामने आ गई. लगभग 3 फुट नीचे गड्ढे में एक युवती दफन थी. लाश को देखते ही रुखसार और शमीमा रोने लगीं. उन्होंने बताया कि यह लाश उन की बहन सायरा की है.
सायरा की लाश के ऊपर काली पौलीथिन और प्लास्टिक के कट्टे डाले गए थे. उस की लाश को जल्दी गलाने के लिए ऊपर से नमक भी डाला गया था. लाश काफी गल चुकी थी, इस से लग रहा था कि घटना कई दिनों पहले की थी. मोहल्ले के लोगों को जैसे ही पता लगा कि सायरा की हत्या कर के उसी के घर में लाश दफना दी गई थी और उस लाश को पुलिस ने बरामद कर लिया है तो थोड़ी देर में सैकड़ों लोगों का वहां जमघट लग गया. शव को गड्ढे से निकलवाने के बाद पुलिस छानबीन में लग गई. पुलिस ने घर की तलाशी ली तो वहां लोहे की एक रौड मिली. उस रौड पर खून लगा हुआ था. अंदाजा लगया कि उसी रौड से उस की हत्या की गई होगी.
एएसपी कमलेश उपाध्याय ने रुखसार और शमीमा से पूछताछ की तो शमीमा ने बताया, ‘‘मैं अपनी बड़ी बहन रुखसार के पास हल्द्वानी में थी. जब घर आई तो मां भूरी ने बताया कि सायरा किसी के साथ भाग गई है. यह बात मुझे बड़ी अजीब लगी. फिर मैं ने देखा कि मां रोज आंगन के इस कोने में अगरबत्ती जलाती थी. वह जिस जगह अगरबत्ती जलाती थी, वहां से दुर्गंध उठ रही थी. तब मुझे शक होने लगा कि भाइयों ने कहीं सायरा को मार कर यहां दफना तो नहीं दिया है. आज मां जब अपने मायके गईं तो मैं ने यह बात हल्द्वानी में रह रही बड़ी बहन रुखसार को फोन से बता दी. खबर सुन कर रुखसार तुंरत ही काशीपुर आ गई. फिर हम दोनों थाने चली गईं.’’
इस मामले को ले कर पुलिस ने पड़ोसियों से पूछताछ की तो पड़ोसियों ने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया. कुछ लोगों ने पुलिस को इतनी जानकारी जरूर दी कि जब भूरी से सायरा के बारे में पूछा जाता था तो वह केवल यही बात कहती थी कि वह घर से भाग गई है. घटनास्थल से सभी तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने सायरा की सड़ीगली लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. रुखसार की तहरीर पर पुलिस ने उस की मां भूरी, 2 भाइयों, नाजिम और आरिफ के खिलाफ हत्या और साक्ष्य छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. फिर तीनों आरोपियों की धरपकड़ के लिए एएसपी ने 3 टीमें गठित कीं.
पुलिस ने भूरी के रिश्तेदारों के यहां दबिश डालनी शुरू कर दी. उसी दौरान पुलिस टीम को पता चला कि भूरी कहीं से अपने घर लौट रही है. महिला पुलिसकर्मियों के साथ एक पुलिस टीम उस के घर के पास पहुंच गई. जैसे ही वह एक युवक के साथ अपने घर पहुंची, पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. भूरी के साथ युवक उस का बेटा नाजिम था. मामला खुल चुका है, इस बात का भूरी को पता नहीं था. पुलिस की गिरफ्त में आते ही वह दोनों घबरा गए. थाने ले जा कर उन से कड़ी पूछताछ की तो वे ज्यादा देर तक नहीं टिक सके. उन्होंने जल्दी ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ के दौरान इस हत्याकांड की जो सचाई सामने आई, उस से मां की क्रूरता और भाईबहन के रिश्ते को कलंकित कर देने वाली कहानी उजागर हुई.
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की तहसील ठाकुरद्वारा के अंतर्गत आता है एक गांव रतपुरा. नाजिर हुसैन इसी गांव का निवासी था. वह घोड़ाबग्गी चला कर अपने गुजरबसर करता था. कई साल पहले उस ने रतपुरा का घर बेच कर उत्तराखंड के काशीपुर शहर के मधुवननगर में अपना मकान बना लिया था. काशीपुर आने के बाद उस ने घोड़ाबग्गी बेच दी और राजगीरी करने लगा. शहर में रहने पर उस के घर के खर्चे भी बढ़ गए थे. जितने पैसे वह कमाता था, उस से घर चलाने में भी दिक्कत आने लगी. नाजिम उस का सब से बड़ा बेटा था, वह कुछ समझदार हुआ तो उस ने ड्राइवरी सीख ली. वह कमाने लगा तो घर का खर्च आसानी से चलने लगा. नाजिर ने समय के साथ ही उस की शादी भी कर दी. शादी होने के कुछ समय बाद ही नाजिम परिवार से अलग रहने लगा.
नाजिम से छोटा आरिफ था. वह शुरू से ही आवारा किस्म के लड़कों के साथ रहता था. वह कोई कामधंधा भी नहीं करता था. जबकि उस से छोटा हारुन पिता के साथ राजगीरी करने लगा था. आरिफ और नाजिम दबंग किस्म के थे. दोनों की दबंगई की वजह से भी मोहल्ले में उन से कोई पंगा लेना नहीं चाहता था. आरिफ तो छोटीछोटी बातों पर हर किसी से लड़ने के लिए तैयार रहता था. उस की इसी आवारागर्दी के कारण उस का पिता नाजिर उस से खफा रहता था. वह कभी उस से कोई कामधंधा करने को कहता तो वह अपने पिता से ही गालीगलौज करने लगता था. जबकि भूरी उसे जेबखर्च के लिए पैसे देती रहती थी. नाजिर ने पत्नी से उसे खर्च के लिए पैसे देने से मना किया तो वह नहीं मानी.
दरअसल, काशीपुर आने के बाद भूरी के कदम भी बहक गए थे, इसलिए वह पति को ज्यादा तवज्जो नहीं देती थी. आरिफ को पैसे देने की बात को ले कर दोनों मियांबीवी में मनमुटाव रहने लगा था. भूरी बेहद चालाक थी. उस ने सभी बच्चों को अपने पक्ष में कर रखा था. पति उसे जो भी कमा कर देता, वह उसे अपने और बच्चों के ऊपर ही खर्च कर डालती थी. नाजिर जब भी उसे समझाने की कोशिश करता वह उस की नहीं सुनती और न ही बच्चों को डांटने देती थी. लगभग 5 साल पहले नाजिर ने बड़ी बेटी रुखसार की शादी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के गांव शाहपुरा निवासी मोहम्मद रफीक के साथ कर दी थी. शादी के बाद मोहम्मद रफीक रुखसार को ले कर हल्द्वानी के इंदिरानगर में आ कर रहने लगा.
रुखसार की शादी हो जाने के बाद आरिफ और भी ज्यादा बिगड़ गया था. हालांकि वह कबाड़ा खरीदने का काम करने लगा था, लेकिन उस से जितनी भी कमाई होती, उसे वह अय्याशी और शराब पर खर्च कर देता था. उसे मालूम था कि उस की अम्मी किस के साथ क्याक्या गुल खिलाती है. इसी वजह से वह उस से कुछ भी नहीं कह पाती थी. मां की शह मिलते ही वह अपने पिता के साथ बगावत पर उतर आता था. बीवी और बेटों से नाजिर बहुत तंग आ चुका था. उन के व्यवहार की वजह से उस का घर में रहना मुश्किल हो गया था. उन से आजिज आ कर वह कुछ दिन के लिए काम करने शहर से बाहर चला गया. उस के घर से निकलते ही भूरी और उस के बेटे पूरी तरह से आजाद हो गए.
इस के बाद भूरी और उस के बेटों की ही घर में चलने लगी. कुछ दिनों बाद नाजिर घर आया तो भूरी ने उसे टिकने नहीं दिया. जिस से वह अकसर बाहर रह कर काम करने लगा. भूरी हमेशा अपनी मस्ती में मस्त रहती और आरिफ शराब और शबाब में. इसी बीच आरिफ के अंदर ऐसी दरिंदगी पैदा हो गई कि वह अपनी सगी बहनों पर ही गलत नजरें रखने लगा. शराब के नशे में वह मौका देखते ही बहनों से अश्लील हरकतें करता. भाई की इस हरकत पर वे हैरान थीं. दबी जुबान में उन्होंने उस की शिकायत अम्मी से की तो उस ने भी बेटियों की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया, जिस से आरिफ की हिम्मत और बढ़ गई.
इस के बाद उस ने कई बार अपनी छोटी बहन फरीदा के साथ जबरदस्ती नाजायज संबंध बनाने की कोशिश की. फरीदा जानती थी कि यदि वह अम्मी से शिकायत करेगी तो वह उलटे उसे ही डांटेगी, इसलिए बात को वह मन में ही दबाए रही. वह आरिफ से सतर्क रहने लगी. उसी दौरान फरीदा की भी शादी हो गई तो उस ने चैन की सांस ली. शादी के बाद वह अपनी ससुराल रुद्रपुर चली गई. फिर उस ने मायके की तरफ मुड़ कर नहीं देखा. फरीदा की शादी के बाद घर में 3 बहनें और जवान थीं. आरिफ के दिमाग में इतनी गंदगी भर गई थी कि वह हर वक्त उन्हें हवस भरी नजरों से देखता था. चूंकि घर में आरिफ की ही चलती थी, इसलिए किसी भी बहन की हिम्मत उस का विरोध करने की नहीं हो पाती थी.
बहनों ने एकदो बार मां के सामने मुंह खोला तो आरिफ ने उलटे उन पर ही दूसरों लड़कों के साथ अय्याशी का आरोप लगा कर उन्हें मां से पिटवा दिया. इतना ही नहीं, उस ने तीनों बहनों के बाहर आनेजाने पर पाबंदी भी लगा दी. नाजिर को पता नहीं था कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. वह कभीकभी पत्नी से फोन पर बात कर लेता था. कभी वह बेटियों से बात कराने को कहता तो भूरी कोई बहाना बना कर बेटियों की उस से बात नहीं कराती. तीनों बहनें मां और भाई के जुल्मों से तंग आ चुकी थीं. एक दिन उन्होंने चोरीछिपे यह बात बड़ी बहन रुखसार को फोन पर बता दी.
सगे भाई द्वारा बहनों के साथ किए जा रहे कृत्यों की खबर पा कर उसे बहुत दुख हुआ. सोचने लगी कि यह भाई है या जानवर, जो अपनी ही बहनों का शोषण कर रहा है. एक दिन टाइम निकाल कर वह मायके आ गई. इस बात को ले कर उस ने अपनी अम्मी और भाई को समझाने की कोशिश की. लेकिन मांबेटे ने उस की एक न मानी, बल्कि उल्टे ही लड़कियों पर गलत राह पर चलने का आरोप लगा दिया. रुखसार पहले से ही जानती थी कि घर में आरिफ और अम्मी की चलती है. इसलिए अपने फर्ज के मुताबिक दोनों मांबेटों को समझाबुझा कर अपनी ससुराल लौट गई. उस के चले जाने के बाद आरिफ हैवानियत की हदें पार करने लगा. इस के बाद भूरी और उस के बेटों का रुखसार से मनमुटाव हो गया, जिस से रुखसार ने मायके आना बंद कर दिया.
उसी दौरान आरिफ की बहन शमीमा बड़ी बहन रुखसार के पास हल्द्वानी चली गई. शमीमा के घर से जाने के बाद घर में सायरा और सब से छोटी फरीदा रह गई. आरिफ ने सायरा को अपनी हवस का शिकार बनाने की कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार सायरा ने उस का विरोध किया. जिस की वजह से वह अपने मंसूबे में सफल नहीं हो सका. शमीमा जब रुखसार के यहां चली गई तो आरिफ को डर लगने लगा कि कहीं वह रुखसार के सामने उस की पोल न खोल दे, इसलिए उस ने कई बार रुखसार को फोन कर के कहा भी कि वह शमीमा को काशीपुर भेज दे. लेकिन शमीमा घर आने को तैयार नहीं थी.
सायरा खुले मिजाज की थी. आधुनिक कपड़े पहनने का उसे शौक था. वह अकसर जींसटौप पहनती थी. एक दिन वह मोहल्ले के एक लड़के से कुछ बातचीत कर रही थी. आरिफ ने उसे देख लिया, लेकिन सायरा आरिफ को नहीं देख पाई. आरिफ ने यह बात अपनी अम्मी के सामने बढ़ाचढ़ा कर रख दी. फिर क्या था, भूरी ने सायरा को खूब खरीखोटी सुनाई. 5 मई को भूरी कहीं गई हुई थी. रात को घर पर आरिफ और उस की दोनों बहनें शमीमा और सायरा थीं. वह इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था. शमीमा और सायरा गहरी नींद में सो रही थीं. तभी अपनी हसरतें पूरी करने के लिए वह सायरा की चारपाई पर पहुंच गया. जैसे ही उस ने उसे दबोचा, तभी सायरा की आंखें खुल गईं. उस ने भाई का विरोध किया. लेकिन वह उस के साथ जबरदस्ती पर उतारू था.
घबराहट में सायरा समझ नहीं पा रही थी कि दानवरूपी भाई के चंगुल से कैसे बचे. इत्तफाक से उसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया. आरिफ बुदबुदाता हुआ दरवाजा खोलने गया. सामने उस की अम्मी थी. अम्मी को देखते ही उस के अरमानों पर जैसे पानी फिर गया. लेकिन सायरा ने राहत की सांस ली थी. सायरा ने भाई की शिकायत अम्मी से की. उस के सामने वह खून के आंसू रोई, लेकिन भूरी ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया. अम्मी का रवैया देख कर सायरा को लगा कि अब इस घर में उस का रहना सुरक्षित नहीं है. वह अपनी चारपाई पर ही सुबकसुबक कर रोती रही. उस ने तय कर लिया कि वह इस घर में वह नहीं रहेगी. मौका मिलते ही रात को यहां से कहीं भाग जाएगी.
उस दिन के बाद आरिफ को भी डर लगने लगा था कि कहीं सायरा यह बात घर के बाहर के किसी व्यक्ति को न बता दे. इस के लिए उस ने अम्मी से सायरा के बारे में उल्टीसीधी बात लगा कर उस के घर से निकलने की सख्त पाबंदी लगा दी. सायरा अब घर में कैद हो कर रह गई थी. 9 मई, 2015 को उसे मौका मिल गया और किसी तरह से चोरीछिपे घर से निकल कर वह काशीपुर रेलवे स्टेशन पहुंच गई. उस समय वहां से जाने वाली कोई गाड़ी नहीं थी. तब वह स्टेशन पर बैठ कर गाड़ी का इंतजार करने लगी. भूरी को जैसे ही पता चला कि सायरा घर पर नहीं है तो वह घबरा गई. उसे लगा कि घर से भाग कर या तो वह बसअड्डा गई होगी या फिर रेलवे स्टेशन. बसअड्डे के लिए उस ने आरिफ को भेज दिया और स्टेशन के लिए खुद निकल गई. सायरा उसे स्टेशन पर दिखाई दी तो उसे पकड़ कर घर ले आई.
सायरा घर आ तो गई, लेकिन उस की इस हिम्मत को देख कर आरिफ डर गया. उसे डर था कि अगर सायरा आईंदा घर से निकल गई तो उस की पोल जरूर खोल देगी. इसी डर की वजह से उस ने उसे मौत की नींद सुलाने का प्लान बना लिया. इस काम में वह अम्मी और भाई को भी शामिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने एक दिन अम्मी और भाई नाजिम से कहा, ‘‘सायरा का किसी लड़के के साथ चक्कर चल रहा है. वह आज नहीं तो कल जरूर उस के साथ भाग जाएगी. उस के बाद सारे शहर में हमारी बहुत ही बदनामी होगी. इस से पहले वह घर से भागे, उसे खत्म कर देने में ही भलाई है.’’ भूरी भी उस के कहने में
आ गई. माता कुमाता बन गई तो आरिफ को उसे खत्म करने का साफ रास्ता मिल गया. फिर अगले दिन 10 मई, 2015 को दोपहर में नाजिम और अम्मी के साथ मिल कर सायरा की उस वक्त हत्या कर दी, जब वह गहरी नींद में सोई हुई थी. आरिफ ने सब से पहले सोती हुई सायरा के सिर पर लोहे की रौड से वार किया. इस के बाद उस की ही चुन्नी से उस का मुंह दबा दिया. उसी दौरान उस का कर उस की हत्या कर दी. हत्या करने के बाद समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. आपस में सलाहमशविरा करने के बाद उन्होंने घर में ही लाश ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. उन के कमरे के पीछे एक टिन शेड था. उस दिन शेड के नीचे ही उन्होंने 3-4 फुट गहरा गड्ढा खोदा. उसी गड्ढे में उस की लाश को दफन कर दिया.
दफन करने से पहले सायरा की लाश पर नमक डाल कर पौलीथिन डाल दी. ताकि लाश जल्दी से गल सके. लाश ठिकाने लगाने के बाद उस जगह को लेवल में कर के भूरी ने गोबर से लिपाई कर दी. बेटी को घर में ही दफन करने के बाद भूरी रोजाना ही उस जगह को गोबर से लीपती और अगरबत्ती लगाती थी, ताकि लाश के सड़ने की बदबू महसूस नहीं हो. सब से हैरत वाली बात तो यह थी कि भूरी उस के पास में ही रोज खाना बनाती और वहीं पर दरी भी बुनती थी.
आरिफ ने सायरा को मौत के घाट उतार तो दिया था, लेकिन इस के बाद भी उस के मन को तसल्ली नहीं मिली थी. उस की नजरों में अभी भी शमीमा चढ़ी हुई थी. वह उस के साथ भी सोते वक्त कई बार अश्लील हरकतें कर चुका था. लेकिन इस से आगे बढ़ने का उसे मौका नहीं मिला. उसे इस वक्त शमीमा से भी बहुत डर लग रहा था. उसे मालूम था कि शमीमा ने जरूर अपने साथ घटी घटना रुखसार को बता दी होगी. इसी कारण उस ने अम्मी को उस के खिलाफ भी भड़का कर उसे रुखसार के पास से बुलाने के लिए हल्द्वानी भेज दिया.
भूरी शमीमा को बुलाने के लिए हल्द्वानी पहुंच गई. हल्द्वानी जाते ही भूरी ने रुखसार को आड़े हाथों लिया, ‘‘तू हर वक्त अपनी बहनों का ही पक्ष लेती रहती है. तू ने सभी को बिगाड़ कर रख दिया है. अब सायरा की करतूत भी सुन ले. वह किसी लड़के के साथ भाग गई है. उस ने सारे मोहल्ले में हमारी नाक कटवा कर रख दी है. घर से बाहर निकलते ही लोग तरहतरह के सवालजवाब करते हैं. अब किस को क्या जवाब दूं, समझ में नहीं आता.’’
अम्मी की बात सुनते ही रुखसार चौंकी, ‘‘सायरा घर से भाग गई? किस के साथ?’’
‘‘मुझे क्या पता कि वह किस के साथ भागी है?’’ इतना कहते ही भूरी ने कहा, ‘‘अब तू ही उस का पता लगाती रहना. मैं तो शमीमा को लेने आई थी, उसे ले कर जा रही हूं. जब भी तुझे टाइम मिले आ जना.’’
शमीमा उस वक्त रुखसार के पास ही बैठी थी. उसे अम्मी की बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं हो रहा था. डर की वजह से वह उस के साथ घर जाना नहीं चाहती थी. उस ने साफ मना कर दिया कि वह अम्मी के साथ काशीपुर नहीं जाएगी. शमीमा की बात सुनते ही भूरी आगबबूला हो उठी, ‘‘एक तो नाक कटा गई. अब तेरी बारी है. तेरा भी क्या पता कि तू यहां रह कर क्या गुल खिला रही है. इसलिए मैं इस वक्त तुझे यहां हरगिज नहीं छोड़ सकती. तेरी भलाई इसी में है कि तू जल्दी से तैयार हो कर मेरे साथ चल.’’
शमीमा ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया तो भूरी गुस्से में अकेली ही काशीपुर चली आई. आरिफ ने जब देखा कि मां के साथ शमीमा नहीं आई है तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने उसी समय रुखसार को फोन कर के उल्टासीधा कहा. तब रुखसार ने कहा कि शमीमा को साथ ले कर वह परसों काशीपुर पहुंच जाएगी. तीसरे दिन रुखसार शमीमा को साथ ले कर काशीपुर पहुंची तो उस ने वहां छोटी बहन फरीदा को भी परेशान देखा. रुखसार ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी. लेकिन फरीदा ने अम्मी के सामने अपना मुंह बंद रखा. रुखसार को लग रहा था कि फरीदा किसी गहरे सदमे में है. उसे इस हालत में देख कर वह समझ चुकी थी कि उस के साथ जरूर कुछ न कुछ घटा है.
उसी दौरान रुखसार को घर में से दुर्गंध आती महसूस हुई तो उस ने चारों तरफ देखा, लेकिन उसे कहीं भी कुछ नहीं दिखाई दिया. उस ने अम्मी से भी इस बारे में जिक्र किया. जिस पर भूरी ने सफाई दी कि यह दुर्गंध उस के पड़ोस वाले घर से आ रही है. वहां कोई चूहा मर गया होगा. कुछ देर बातचीत करने के बाद रुखसार शमीमा को घर छोड़ कर हल्द्वानी चली गई. 23 मई, 2015 को भूरी किसी काम से अपने मायके भोजपुर गई थी. उसी दौरान मौका पाते ही फरीदा ने अपनी आंखों देखी बात शमीमा को सुना दी. फरीदा ने बताया, ‘‘10 मई, 2015 को दोपहर की बात है. अम्मी ने मुझ से कहा था कि तू इन मुरगों को बाहर घुमा ला, ये घर में सारे दिन गंदगी करते हैं. जबकि उस वक्त बाहर बहुत तेज धूप थी. उन्होंने यह भी कहा था कि घर आने में जल्दीबाजी नहीं करना.
‘‘मेरे घर से निकलते ही उन्होंने घर के किवाड़ बंद कर लिए. उस वक्त सायरा घर में ही सो रही थी. देर बाद जब मैं घर आई तो घर के किवाड़ अंदर से बंद मिले. मुझे कुछ शंका हुई. उसी वक्त मैं ने आहिस्ते से बाहर वाली खिड़की पर लगी पौलीथिन हटा कर अंदर झांक कर देखा तो अम्मी और दोनों भाई आरिफ व नाजिम सायरा की चारपाई को घेरे खड़े थे. उन्हें इस तरह से खड़े देख कर मुझे डर लग रहा था. मैं वापस चली गई.
‘‘काफी देर बाद मैं फिर लौटी तो उस समय भी किवाड़ नहीं खुले थे. मैं ने डरते हुए दरवाजा खटखटाया तो अम्मी ने दरवाजा खोला. मुझे देखते ही वह बोली, ‘‘तू यहीं रहना. अभी अंदर नहीं आना. काफी देर बाद मुझे घर में जाने दिया. मुझे घर में सायरा दिखाई नहीं दी. पता नहीं इन लोगों ने सायरा के साथ क्या किया. उस दिन के बाद अम्मी और भाइयों ने मुझे टिन शैड की तरफ नहीं जाने दिया. अगले दिन मैं ने अम्मी से सायरा के बारे में पूछा तो मुझ से कहा कि वह घर से भाग गई है, तू उस के बारे में क्यों पूछ रही है, अपने काम से काम रख. फिर डर की वजह से मैं भी चुप हूं.’’
फरीदा की बातें सुनने के बाद शमीमा को भी शक हो गया कि कहीं अम्मी और भाइयों ने सायरा को मार तो नहीं डाला. अपनी शंका दूर करने के लिए शमीमा ने टिन शेड के नीचे की जमीन थोड़ी खोदी तो उसे बदबू तेज आती महसूस हुई. इस से उसे पूरा विश्वास हो गया कि सायरा की लाश वहीं पर दफन है. फरीदा ने उसी समय बड़ी बहन रुखसार को फोन कर के सारी हकीकत बताते हुए जल्दी से काशीपुर आने को कहा. खबर पाते ही रुखसार काशीपुर आ गई और थाने पहुंच कर इस की सूचना काशीपुर के थानाप्रभारी विनोद कुमार जेठा को दे दी. तब कहीं इस केस का खुलासा हो सका. सायरा को ठिकाने लगाने के बाद आरिफ शमीमा को भी मौत की नींद सुलाना चाहता था, लेकिन अम्मी के साथ आने से इनकार करने के कारण ही वह जिंदा बच सकी, वरना वह भी सायरा की तरह घर में ही मौत की नींद सो रही होती.
कहते हैं कि एक बार बाप दरिंदा हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती. लेकिन यहां एक मां इतनी कू्रर हो सकती है, इस का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. लाश के सड़ने की किसी को बदबू न आए, इसलिए वह उस की कब्र पर अगरबत्ती जलाती रही. उस ने किसी को अहसास तक नहीं होने दिया कि जवान लड़की को घर में ही दफनाया हुआ है. लोगों से कहती रही कि सायरा अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है. उन दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने मुख्य अभियुक्त आरिफ को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या की पूरी कहानी पुलिस के सामने दोहरा दी. पुलिस ने तीनों अभियुक्तों भूरी, आरिफ और नाजिम को भादंवि की धारा 302/201/34 के तहत गिरफ्तार कर के 2 मई, 2015 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.
मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी विनोद कुमार जेठा कर रहे हैं. True Crime
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.






