Family Crime: चरित्रहीन मां का गैरतमंद बेटा

Family Crime: भुलऊराम ने जो  हरकत की थी, कोई  भी गैरतमंद बेटा   बरदाश्त नहीं कर सकता था तो समयलाल कैसे बरदाश्त करता. आखिर मां की चरित्रहीनता ने उसे कातिल बना दिया. लंबी बीमारी के बाद ढेलाराम की जब मौत हुई तो पत्नी सुरजाबाई के लिए वह संपत्ति के नाम पर 6 बच्चे और एक छोटा सा मकान छोड़ गया था. गनीमत यह थी कि उस समय तक उस का बड़ा बेटा समयलाल 25 साल का हो चुका था. लड़का कमाने लायक हो गया था, इसलिए पति की मौत से सुरजाबाई को दिक्कतों का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ा.

सुरजाबाई जवान थी, इसलिए खुद तो मजदूरी करती ही थी, समयलाल ने भी बलौदा बाजार मंडी के सामने साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली थी. मांबेटे की कमाई से किसी तरह खींचखांच कर गुजरबसर होने लगा था. इस की वजह यह थी कि कमाई के साथसाथ बच्चे बड़े हो रहे थे, जिस से खर्च बढ़ता जा रहा था. सुरजाबाई गांव के ही राजमिस्त्री भुलऊराम के साथ मजदूरी करने बलौदा बाजार जाती थी. उस के साथ आनेजाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह अपनी साइकिल से उसे साथ ले जाता और ले आता था.

सुरजाबाई अभी अधेड़ थी, इसलिए उसे मर्द की जरूरत महसूस होती थी. दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन रातें तनहाई में बेचैन करती थीं. तब जिस्मानी भूख उसे व्याकुल करती तो वह मन ही मन किसी ऐसे मर्द की कल्पना करती थी, जो उस की जिस्मानी भूख को शांत करता. उस की इस कल्पना में सब से पहले जिस का चेहरा आंखों के सामने आया, वह था भुलऊराम का, जिस के साथ वह पूरा दिन रहती थी. लोकलाज के भय से किसी तरह वह अपनी इस भूख को 2 सालों तक दबाए रही. लेकिन किसी भी चीज को आखिर कब तक दबाया जा सकता है. सुरजाबाई भी अपनी इस भूख को नहीं दबा सकी.

भुलऊराम ही सुरजाबाई के सब से करीब था. वह सुबह उस की साइकिल पर बैठ कर घर से निकलती थी तो सूर्यास्त के बाद ही घर लौटती थी. भुलऊराम था भी उस के जोड़ का. एक तो दोनों का हमउम्र होना, दूसरे पूरे दिन साथ रहने का नतीजा यह निकला कि वे एकदूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे.

एक दिन काम करते हुए भुलऊराम ने कहा, ‘‘सुरजा, काम तो तुम मेरे साथ करती हो, जबकि मैं देखता हूं तुम्हारा मन कहीं और रहता है.’’

‘‘भुलऊ, तुम ठीक कह रहे हो. दिन तो तुम्हारे साथ गुजर जाता है, लेकिन रात गुजारे नहीं गुजरती. ऐसे में मन तो भटकेगा ही.’’ भुलऊराम को घूरते हुए सुरजाबाई ने कहा.

भुलऊराम ने जानबूझ कर यह बात कही थी. सुरजाबाई ने जवाब भी उसी तरह दिया था. वह कुछ कहता, उस के पहले ही सुरजाबाई बोली, ‘‘भुलऊ, तुम्हारी पत्नी कुछ दिनों के लिए मायके चली जाती है तो तुम्हें कैसा लगता है?’’

भुलऊराम ने सहज भाव से कहा, ‘‘मैं तो 10 दिनों में ही बेचैन हो जाता हूं. नहीं रहा जाता तो ससुराल जा कर ले आता हूं.’’

‘‘तुम 10 दिनों में ही बेचैन हो जाते हो, यहां तो मेरे पति को मरे 2 साल हो गए हैं. मेरी क्या हालत होती होगी, कभी सोचा है?’’ सुरजाबाई ने बेचैन नजरों से ताकते हुए कहा.

भुलऊराम इतना भोला नहीं था, जो सुरजाबाई के मन की बात न समझता. लेकिन वहां और भी तमाम लोग थे, इसलिए दोनों मन मसोस कर रह गए. दोनों ने उस दिन समय से पहले ही काम निपटा दिया और घर की ओर चल पड़े. सावन का महीना था, आसमान में घने काले बादल छाए थे. दोनों आधे रास्ते पहुंचे थे कि हवा के साथ बरसात शुरू हो गई. भुलऊराम ने एक पेड़ के नीचे साइकिल रोक दी. बरसात की वजह से रास्ता सूना हो गया था. दोनों भीग गए  थे, इसलिए उन के शरीर के उभार झलकने लगे थे. उस मौसम में रहा नहीं गया तो भुलऊराम ने सुरजा का हाथ थाम लिया. सुरजा ने उस की आंखों में झांका तो उस ने कहा, ‘‘सुरजा, तुम्हारा बदन तो तप रहा है. तुम्हें बुखार है क्या?’’

सुरजा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘भुलऊ, यह बुखार की तपन नहीं, यह तपन दिल में जो आग जल रही है, उस की है. आज तुम ने इस आग को और भड़का दिया है. अब तुम्हीं इस आग को बुझा सकते हो. आज रात को मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. दरवाजा खुला रहेगा और मैं दहलीज में ही लेटूंगी.’’

भुलऊराम ने चाहतभरी नजरों से सुरजा को ताका और फिर साइकिल पर सवार हुआ तो पीछे कैरियर पर सुरजा बैठ गई. गांव आते ही सुरजा अपने घर चली गई तो भुलऊ अपने घर चला गया. कपड़े बदल कर उस ने खाना खाया और सब के सोने का इंतजार करने लगा. गांवों में तो वैसे भी लोग जल्दी सो जाते हैं. भुलऊराम के गांव वाले भी सो गए तो वह सुरजाबाई के घर की ओर चल पड़ा. बरसात होने की वजह से मौसम ठंडा था. बरसाती मेढक टर्रटर्र कर रहे थे तो झींगुरों की तीखी आवाज सन्नाटे को तोड़ रही थी. 5 मिनट बाद वह सुरजाबाई के घर के सामने खड़ा था. उस ने हलके हाथ से दरवाजा ठेला तो वह खुल गया. उस ने धीरे से आवाज दी, ‘‘सुरजा… ओ सुरजा.’’

सुरजा जाग रही थी. इसलिए उस के आवाज देते ही वह उस के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस का हाथ थाम कर धीरे से फुसफुसाई, ‘‘बड़ी देर कर दी.’’

‘‘घर वाले जाग रहे थे. जब सब सो गए, तभी निकला. इसी चक्कर में देर हो गई.’’ भुलऊराम ने कहा.

सुरजा भुलऊराम का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. उसे चारपाई पर बैठा कर खुद भी सट कर बैठ गई. तन की आंखों से भले ही वे एकदूसरे को नहीं देख रहे थे, लेकिन मन की आंखों से वे एकदूसरे का तनमन सब देख रहे थे.

सुरजाबाई ने भुलऊराम का हाथ थाम कर कहा, ‘‘तुम एकदम चुप हो. कुछ सोच रहे हो क्या?’’

भुलऊराम विचारों के भंवर से निकल कर बोला, ‘‘कल की सुरजा में और आज की सुरजा में कितना अंतर है.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रहे हो, मैं समझी नहीं?’’ सुरजा ने पूछा.

‘‘सुरजा थोड़ा ही सही, लेकिन तुम ने खुद को बदला है, यह अच्छी बात है. इंसान के मन को जो अच्छा लगे, वही करना चाहिए.’’

इस के बाद सुरजाबाई का मिजाज बदलने लगा. उसने भुलऊराम के कंधे पर हाथ रखा तो उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. उस की पत्नी 15 दिनों से मायके गई हुई थी, इसलिए वह औरत की नजदीकी पाने के लिए बेचैन था. सुरजाबाई तो सालों से प्यासी थी. भुलऊराम पर टूट पड़ी. इस तरह भुलऊराम और सुरजाबाई के बीच नए संबंध बन गए. इस के बाद घरबाहर जहां भी मौका मिलता, दोनों संबंध बना लेते. वैसे भी दोनों दिन भर साथ ही रहते थे. आतेजाते भी साथ थे, इसलिए उन्हें न मिलने में दिक्कत थी, न संबंध बनाने में. इस के अलावा दोनों अपनी मर्जी के ही नहीं, घर के भी मालिक थे, इसलिए उन्हें कोई रोकटोक भी नहीं सकता था.

लेकिन जब दोनों का मिलनाजुलना खुलेआम होने लगा तो उन के संबंधों की चर्चा गांव में होने लगी. इस के बाद सुरजाबाई को बिरादरी वालों ने बाहर कर दिया. दूसरी ओर भुलऊराम की पत्नी भी इस संबंध का विरोध करने लगी. बिरादरी से बाहर किए जाने के बाद सुरजाबाई का बड़ा बेटा समयलाल भी मां के इस संबंध का विरोध करने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव में सब समयलाल का मजाक उड़ाते थे. इसलिए पहले उस ने मां को समझाया. इस पर भी वह नहीं मानी तो उस ने सख्ती की. लेकिन अब तक वह भुलऊराम के साथ संबंधों की आदी हो चुकी थी, इसलिए बेटे के रोकने पर उस ने कहा,

‘‘किस के लिए मैं दिनरात मेहनत करती हूं, तुम्हीं लोगों के लिए न? इतनी मेहनत कर के अगर मुझे किसी के साथ 2 पल की खुशी मिलती है तो तुम लोगों को परेशानी क्यों हो रही है?’’

‘‘तुम जिस तरह मुझे बहका रही हो, मैं सब जानता हूं. इस दुनिया में ऐसी तमाम औरतें हैं, जिन के पति मर चुके हैं, क्या वे सभी तुम्हारी तरह नाक कटाती घूम रही हैं. अपना नहीं तो कम से कम बच्चों का खयाल करो. तुम मां के नाम पर कलंक हो.’’ समयलाल गुस्से में बोला.

‘‘आज तू मुझे सिखा रहा है. कभी सोचा है मैं ने किन परिस्थितियों से गुजर कर तुम लोगों को पाला है. तुम्हारा बाप क्या छोड़ कर गया था? सिर्फ बच्चे पैदा कर के मर गया था. आज जो बकरबकर बोल रहा है, मुझे कुलटा कह रहा है, इस लायक मैं ने ही अपना खून जला कर बनाया है.’’ सुरजा गुस्से में बोली, ‘‘गनीमत है कि मैं तुम लोगों के साथ हूं. अगर छोड़ कर चली गई होती, तो…?’’

‘‘छोड़ कर चली गई होती, तभी अच्छा रहता. लोग आज हमारी हंसी तो न उड़ाते.’’

‘‘मुझे तुम से कोई सीख नहीं लेनी. मैं जैसी हूं, वैसी ही रहने दे. तुझ से नहीं देखासुना जाता तो तू घर छोड़ कर चला जा. और सुन, आज के बाद इस मामले में मुझ से कोई बात भी मत करना.’’ सुरजा ने साफ कह दिया कि कुछ भी हो, वह उन लोगों को छोड़ सकती है, पर भुलऊराम को नहीं छोड़ सकती.

इसी तरह दिन महीने बीतते रहे. न तो भुलऊराम ने अनीति का रास्ता छोड़ा और न ही सुरजाबाई ने. धीरेधीरे 3 साल बीत गए. इस बीच समयलाल ने मां को न जाने कितनी बार समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आई. समयलाल खून का घूंट पी कर समय से तालमेल बिठाने की कोशिश करता रहा, लेकिन लाख प्रयास के बावजूद वह इस बदनामी को झेल नहीं सका, क्योंकि पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. उस दिन यानी 3 अप्रैल को तो हद हो गई. अभी तक जो चोरीछिपे होता था, उस दिन सब के सामने ही भुलऊराम सुरजा से मिलने आ धमका. हुआ यह कि शाम को बलौदा बाजार से लौटते समय सुरजाबाई और भुलऊराम ने रास्ते में गोश्त और शराब खरीद लिया था.

घर आ कर सुरजा गोश्त बना रही थी कि कपड़े बदल कर भुलऊराम आ गया. इस के बाद दोनों शराब पीने लगे. खाना खातेखाते दोनों ने इतनी पी ली कि भुलऊराम को जहां सुरजाबाई के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दे रहा था, सुरजा का भी कुछ वैसा ही हाल था. दोनों की हरकतों से तंग आ कर समयलाल ने भुलऊराम के पास जा कर कहा, ‘‘रात काफी हो गई है, अब तुम अपने घर जाओ. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘मैं घर जाऊं या यहां सोऊं, तुम मुझ से कहने वाले कौन होते हो?’’ भुलऊराम ने कहा.

समयलाल को गुस्सा आ गया. वह अंदर से चारपाई का पाया उठा लाया और उसी से भुलऊराम पर हमला कर दिया. उस ने पूरी ताकत से पाया भुलऊराम के सिर पर मारा तो उस की खोपड़ी पहली ही बार में फट गई. फिर तो उस ने उसे तभी छोड़ा, जब वह मर गया. उसे मार कर वह घर से गायब हो गया. सुबह गांव वाले दिशामैदान के लिए गांव से बाहर निकले तो बाठी में उन्हें एक लाश दिखाई दी. पल भर में इस की चर्चा पूरे गांव में फैल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था, इस के बावजूद गांव वालों को उसे पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. लाश भुलऊराम की थी. भुलऊराम के भाई पुनीतराम ने बलौदा बाजार के थाना सिटी जा कर भाई की हत्या की सूचना दी.

हत्या का मामला था, इसलिए थानाप्रभारी डी.के. मरकाम ने घटनास्थल पर जाने से पहले घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. जिस से उन के घटनास्थल पर पहुंचतेपहुंचते आईएसपी अभिषेक सांडिल्य, एसडीएपी सी.पी. राजभानु भी घटनास्थल पहुंच गए थे. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी गई थी. लाश वहां घसीट कर लाई गई थी. पुलिस जब लाश घसीट कर लाने के निशान की ओर बढ़ी तो वह निशान सुरजाबाई के घर जा कर खत्म हो गया था.

मृतक भुलऊराम की साइकिल वहां से 2 सौ मीटर की दूरी पर खड़ी मिली. पूछताछ में पता चला कि वह उसी के यहां गया था और सुरजाबाई से उस के संबंध थे तो पुलिस के लिए आशंका की कोई बात नहीं रही. पुलिस ने सुरजाबाई और उस के बड़े बेटे समयलाल को हिरासत में ले लिया. इस तरह पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने से पहले ही अभियुक्तों को पकड़ लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मांबेटे को ले कर थाने आ गई.

थाने आ कर पहले मृतक के भाई पुनीतराम की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज किया, उस के बाद समयलाल से पूछताछ शुरू की. सख्ती के डर से उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर के भुलऊराम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. भुलऊराम के उस की मां से संबंध हैं, यह वह जानता ही था. सब कुछ जान कर भी वह चुप था. लेकिन उस दिन तो भुलऊराम ने हद ही कर दी. उस के यहां शराब पी कर खाना खाया. खाना खाने के बाद उस के सामने ही वह उस की मां से अश्लील हरकतें करने लगा. उस ने मना किया तो उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर कहा, ‘‘मैं यहीं तेरे सामने ही तेरी मां से संबंध बनाऊंगा, देखता हूं तू क्या करता है.’’

भुलऊराम ने जो कहा था, और जो करने जा रहा था, समयलाल की जगह कोई भी गैरतमंद बेटा होता, बरदाश्त नहीं कर सकता था. उस से भी नहीं बरदाश्त हुआ. उस ने इधरउधर देखा, चारपाई का एक पाया पड़ा दिखाई दिया. उस ने उसे उठाया और भुलऊराम पर पिल पड़ा. इस के बाद तो वहां खून ही खून नजर आने लगा. भुलऊराम खून में डूबता गया. भुलऊराम की हत्या कर के समयलाल अपने दोस्त के यहां चला गया. सुबह जब वह घर पहुंचा तो लाश वहां नहीं थी. लाश बाठी तक कैसे पहुंची, उसे मालूम नहीं.

इस के बाद पुलिस ने सुरजाबाई से पूछताछ की तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं दरवाजे के पास खड़ी सब देख रही थी. मैं पतिता ही सही, पर इस की मां हूं. साहब मेरी वजह से आज यह हत्यारा हो गया है. इसे बचाने के लिए मैं लाश को घसीट कर बाठी में डाल आई और सुबह होने से पहले गोबर से लिपाई कर के खून साफ कर दिया.’’

इस के बाद समयलाल की निशानदेही पर पुलिस ने चारपाई का पाया, खून से सने उस के कपड़े बरामद कर लिए. सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने समयलाल और उस की मां सुरजाबाई को कोर्ट में पेश किया, जहां से उस की मां को रायपुर की महिला जेल तो समयलाल को बलौदा बाजार जेल भेज दिया गया. Family Crime

Hindi Crime Stories: ममता को दी मौत

Hindi Crime Stories: पैसों के लिए जितेंद्र मां से झोपड़ी बचेने को कह रहा था जबकि मां झोपड़ी बेचना नहीं चाहती थी. जितेंद्र ने झोपड़ी तो बेच दी लेकिन ममता का कत्ल कर के. जितेंद्र को पैसों की सख्त जरूरत थी, लेकिन कहीं से जुगाड़ नहीं बन रहा था. क्योंकि उसे जितने पैसों की जरूरत थी, उतने कोई उधार नहीं दे सकता था. उस के पास इतनी प्रौपर्टी भी नहीं थी कि किसी बैंक से कर्ज मिल जाता. उस के पास कोई ऐसी जमापूंजी भी नहीं थी कि उसी से काम चला लेता. मजदूरी कर के भी वह उतने पैसे इकट्ठा नहीं कर सकता था.

बाप मनीराम पहले ही किसी दूसरी औरत के चक्कर में उसे और उस की मां को छोड़ कर चला गया था. गांव में औरतों को न तो ठीक से काम मिलता था और अगर काम मिलता भी था तो ठीक से मजदूरी नहीं मिलती थी, इसलिए फिरतीन बाई एकलौते बेटे जितेंद्र को गांव में छोड़ कर बिलासपुर आ गई थी, जहां उसे ठीकठाक काम के साथ अच्छी मजदूरी भी मिल रही थी, जिस से उस का गुजर तो आराम से हो ही रहा था, 4 पैसे बच भी रहे थे. जो पैसे बचते थे, महीने में एक बार वह गांव जा कर बेटे की मदद कर देती थी.

बिलासपुर में रहने के लिए फिरतीन बाई ने सरकारी जमीन पर एक झोपड़ी बना रखी थी. यह बात जितेंद्र को पता थी. उसे यह भी पता था कि वह झोपड़ी आराम से 60-70 हजार में बिक सकती है. इसलिए जब जितेंद्र को पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने मां से झोपड़ी बेचने को कहा. लेकिन फिरतीन बाई इस के लिए राजी नहीं हुई. क्योंकि उसे पता था कि जब तक उस के हाथपैर चल रहे हैं, वह इस झोपड़ी में रह कर कमाखा रही है. जो 4 पैसे बचते हैं, उस से बेटे की मदद कर देती है.

बुढ़ापे के लिए उस का हाथ खाली था. उस की जो जमापूंजी थी, वही झोपड़ी थी. कल को हाथपैर नहीं चलेगा तो इस झोपड़ी को बेच कर किसी तरह वह गांव में गुजरबसर कर लेगी. अगर वह अभी झोपड़ी बेच देती है तो सारे पैसे बेटा ले लेगा. उस के बाद वह खाली हाथ हो जाएगी. बेटे पर उसे भरोसा नहीं था कि बुढ़ापे में वह उस की सेवा करेगा. फिरतीन अपने बारे में सोच रही थी तो जितेंद्र अपने बारे में. उसे किसी भी तरह रुपए चाहिए थे. पहले तो जब मां गांव आती थी, तभी वह उस से झोपड़ी बेचने को कहता था.

लेकिन जब मां ने साफ मना कर दिया तो वह मां को मनाने शहर भी जाने लगा, क्योंकि उस की मंशा भांप कर मां ने गांव आना बंद कर दिया था. एकदो बार तो वह अकेला ही गया, लेकिन जब मां ने हामी नहीं भरी तो दबाव डालने के लिए वह रिश्तेदारों को ले कर जाने लगा. काफी कोशिशों के बाद भी फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो अंत में जितेंद्र मां को समझाने के लिए अपने ससुर तिहारूराम को ले कर मां की झोपड़ी पर पहुंचा. समधी पहली बार फिरतीन बाई की झोपड़ी पर आया था, इसलिए उस ने उस की अपनी हैसियत के हिसाब से आवभगत की. नाश्तापानी के बाद झोपड़ी बेचने की बात चली तो तिहारूराम दामाद का पक्ष ले कर फिरतीन बाई को समझाने लगा.

समधी के समझाने पर भी जब फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो जितेंद्र को गुस्सा आ गया. वह उठा और मां के पास जा कर बोला, ‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए झोपड़ी तो तुम्हें बेचनी ही पड़ेगी. सीधे नहीं बेचोगी तो…’’

जितेंद्र की बात पूरी होती, उस के पहले ही फिरतीन बाई बोली, ‘‘तो क्या तू जबरदस्ती मेरी झोपड़ी बिकवा देगा. झोपड़ी मेरी है, जब मैं चाहूंगी तभी बेचूंगी, नहीं चाहूंगी तो नहीं बेचूंगी. तू कौन होता है मेरी झोपड़ी बिकवाने वाला.’’

‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. अगर सीधेसीधे बेच दे तो अच्छा रहेगा, वरना…’’

‘‘वरना क्या…मैं झोपड़ी कतई नहीं बेचूंगी, तुझे जो करना हो कर ले.’’ फिरतीन बाई चीखी.

‘‘देख, मैं क्या कर सकता हूं…’’ कह कर जितेंद्र ने मां के बाल पकड़े और जमीन पर पटक दिया. फिरतीन बाई ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. इसलिए बेटे की इस हरकत पर वह हक्काबक्का रह गई. वह कुछ कहती या करती, जितेंद्र ने अपना दाहिना पैर उठाया और मां के गले पर रख दिया.

फिरतीन बाई ने गला छुड़ाने के लिए दोनों हाथों से जितेंद्र का पैर पकड़ कर हटाना चाहा, लेकिन तब तक तो वह अपना पैर गले पर इस तरह जमा चुका था कि वह टस से मस नहीं कर पाई. गले पर दबाव पड़ा तो वह छटपटाई. लेकिन वह ठीक से छटपटा भी नहीं सकी, क्योंकि जितेंद्र के ससुर तिहारूराम ने उस के दोनों पैर पकड़ लिए थे. पलभर में जितेंद्र ने ससुर की मदद से मां का खेल खत्म कर दिया. अब उन के सामने फिरतीन बाई की लाश पड़ी थी. लाश छोड़ कर वे जा नहीं सकते थे. अगर वहां लाश पड़ी रहती तो झोपड़ी बिक नहीं सकती थी. बाद में लोग उसे लेने से कतराते. अगर कोई लेता भी तो औनेपौने दाम में लेता, इसलिए ससुरदामाद लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे.

जितेंद्र ने टीवी पर आने वाले सीरियल सीआईडी में देखा था कि कोई लाश 2 थानों या 2 जिलों की सीमा पर मिलती है तो मामला सीमा विवाद में उलझ कर रह जाता है. इसलिए उस ने मां की लाश को 2 जिलों की सीमा पर फेंकने का विचार किया. उस का सोचना था कि सीमा पर लाश फेंकने पर मामला सीमा विवाद में तो उलझेगा ही, लाश की शिनाख्त भी जल्दी नहीं हो पाएगी. तब पुलिस किसी भी सूरत में उस तक नहीं पहुंच पाएगी. यही सब सोच कर उस ने ससुर से बात की और लाश को बोरे में भर कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मोटरसाइकिल से बलौदा बाजार सीमा की ओर चल पड़ा.

बिलासपुर के थाना पचपेड़ी के अंतर्गत बलौदा बाजार और बिलासपुर जिलों की सीमा पर स्थित गांव नयापारा रहटाटोर के पास शिवनाथ नदी पर बने बांध में उन्होंने लाश फेंक दी और अपनेअपने घर चले गए. इस के बाद जितेंद्र ने बिलासपुर जा कर मां की झोपड़ी यह कह कर 67 हजार रुपए में बेच दी कि उस की मां अब गांव में ही रहेगी. इस तरह जितेंद्र ने मां की हत्या कर के झोपड़ी बेच दी. उसे पूरा विश्वास था कि पुलिस उस तक कतई नहीं पहुंच पाएगी. इस की वजह यह थी कि उन्होंने लाश दूसरे जिले यानी बलौदा बाजार जिले में फेंकी थी, जबकि वह रहती बिलासपुर जिले में थी.

हुआ भी वही. 3 मार्च को बलौदा बाजार पुलिस को बांध में लाश पड़ी होने की सूचना मिली. लेकिन बलौदा बाजार पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. तब जिला बिलासपुर के घटनास्थल के नजदीकी थाना पचपेड़ी पुलिस ने जा कर लाश कब्जे में ली और घटनास्थल की काररवाई निपटा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटनास्थल पर लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि महिला की गला दबा कर हत्या की गई थी, इसलिए थाना पचपेड़ी पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करा दिया. थाना पचपेड़ी पुलिस को पूरा विश्वास था कि लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान बलौदा बाजार जिले के अंतर्गत आता है, इसलिए उन्होंने मामले की फाइल बलौदा बाजार पुलिस को भेज दी.

लेकिन जब बलौदा बाजार के एसपी ने नापजोख कराई तो पता चला कि जिस स्थान पर लाश पड़ी थी, वह स्थान जिला बिलासपुर के अंतर्गत ही आता है तो उन्होंने फाइल बिलासपुर के एसपी को भिजवा दी. बिलासपुर के एसपी बद्रीनारायण मीणा ने कत्ल के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया और थाना पचपेड़ी पुलिस को निर्देश दे कर फाइल सौंप दी. कत्ल के इस मामले की जांच चौकीप्रभारी वाई.एन. शर्मा को सौंपी गई. इस मामले में सब से मुश्किल काम था लाश की शिनाख्त कराना. श्री शर्मा ने मृतका की शिनाख्त के लिए बिलासपुर के ही नहीं, बलौदा बाजार के भी सभी थानों से पता किया कि इस तरह की महिला की कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

उन की यह कोशिश असफल रही. क्योंकि इस तरह की महिला की गुमशुदगी किसी थाने में दर्ज नहीं थी. इस के बाद एसपी श्री मीणा ने लाश के फोटो के पैंफ्लेट छपवा कर घटनास्थल से 30 किलोमीटर की रेंज में चस्पा कराने का आदेश दिया. लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट गांवगांव चस्पा कराए गए. इस का परिणाम यह निकला कि जिला बलौदा बाजार की पुलिस चौकी लवन के अंतर्गत आने वाले गांव चिचिरदा के रहने वाले फागुलाल ने मृतका की पहचान अपनी बहन फिरतीन बाई के रूप में कर दी. इस के बाद वाई.एन. शर्मा ने जांच आगे बढ़ाई तो संदेह के घेरे में मृतका का बेटा जितेंद्र आ गया. इस की वजह यह थी कि उस ने थाने में मां की गुमशुदगी नहीं दर्ज कराई थी. झोपड़ी बेचते समय उस ने सभी को यही बताया था कि मां अब गांव में रहेगी. लेकिन वह गांव में भी नहीं थी.

पुलिस जितेंद्र को पकड़ कर थाना पचपेड़ी ले आई. पूछताछ में पहले तो उस ने मां की हत्या से इनकार किया. लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो मजबूर हो कर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि मां के झोपड़ी बेचने से मना करने पर उसी ने अपने ससुर तिहारूराम के साथ मिल कर मां की हत्या की थी. इस के बाद जितेंद्र की निशानदेही पर वाई.एन. शर्मा ने उस के ससुर तिहारूराम को गिरफ्तार कर के वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिस से उन्होंने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे साक्ष्य जुटा कर पुलिस ने 28 वर्षीय जितेंद्र और 60 वर्षीय तिहारूराम को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जितेंद्र से पूछताछ में पता चला कि फिरतीन बाई और उस के भाई के खिलाफ 1991 में बलवा और हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह डेढ़ साल तक जेल में रही थी. Hindi Crime Stories

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Illicit Affair: मामी की मोहब्बत में

Illicit Affair: राहुल और संतोष को जब नर्मदा ने नशे में अपने और सुनीता के संबंधों के बारे में बताया तो दोनों का खून खौल उठा. इस के बाद तो उन्होंने न संबंधों का खयाल रखा और न दोस्ती का. न र्मदा प्रसाद ने 36 वर्षीया मुंहबोली मामी सुनीता के साथ पहली बार शारीरिक संबंध बनाए तो खुद को जांबाज मर्द समझने लगा. बेरोजगारी की वजह से नर्मदा पहले न किसी से प्यार कर पाया था और न किसी से शारीरिक संबंध बनाए थे. इस तरह का खेल उस ने अपने दोस्तों के मोबाइल पर जरूर देखा था. तब उसे लगा था कि यह खेल सचमुच में खेला जाए तो जरूर बड़ा मजा आएगा.

सुनीता के साथ उसी की पहल पर जब पहली बार जिंदगी के इस हसीन सुख से रूबरू हुआ तो सुख के इस समुद्र में डूबतातैरता हुआ वह समझ नहीं पाया कि इस में उस की खुद की कोई खूबी नहीं, बल्कि सुनीता मामी की हिदायतें और सीखें ज्यादा थीं. सुनीता को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह एकदो नहीं, बल्कि 3 बच्चों की मां है.

36 की उम्र में भी उस का अंगअंग सांचे में ढला लगता था. यह कुदरत की ही मेहरबानी थी. क्योंकि वह फिटनैस के लिए रईस औरतों की तरह न किसी फिटनैस सेंटर या जिम में जाती थी, न ही सुंदर दिखने के लिए किसी ब्यूटीपौर्लर में. हां, घर के कामकाज जरूर उसे अपने हाथों से करने पड़ते थे, क्योंकि पति की इतनी आमदनी नहीं थी कि वह कामवाली रख लेती. लेकिन पति की कमाई इतनी कम भी नहीं थी कि फांके मारना पड़ता या किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. भोपाल से सटे औद्योगिक इलाके मंडीदीप में फैक्ट्रियों की भरमार है, जहां आसपास या मध्य प्रदेश के ही नहीं, देश भर के लोग काम की तलाश में आते हैं. नौकरी मिल जाने पर ज्यादातर लोग यहीं बस गए हैं. देश की जिन नामी कंपनियों ने यहां फैक्ट्रियां लगा रखी हैं, उन में एक बड़ा नाम दवा बनाने वाली कंपनी ल्यूपिन का भी है, जिस में हजारों मजदूर काम करते हैं.

उन्हीं हजारों लोगों में एक 37 वर्षीय कुंवर सिंह तोमर भी है, जो फैक्ट्री में नौकरी करते हुए जानता था कि अगर बच्चों और साथ रह रहे भाई राहुल को कुछ बनाना है तो उन्हें बेहतर पढ़ाई मुहैया कराना जरूरी है. लिहाजा वह लगन और मेहनत से नौकरी तो करता ही था, साथ ही शाम को ड्यूटी खत्म होने के बाद पानीपूरी का ठेला भी लगाता था. इस से उसे 3-4 सौ रुपए रोज की ऊपर की आमदनी हो जाती थी. सालों पहले जब कुंवर सिंह हरदा जिले के नीमगांव से मंडीदीप आया था तो अन्य लोगों की तरह खाली हाथ था. लेकिन धीरेधीरे घरगृहस्थी की जरूरत की सारी जरूरी चीजें जमा हो गई थीं. पास में कुछ पैसे भी हो जाएं, इस के लिए वह शाम को पानीपूरी का ठेला लगाने लगा था.

इस काम में उसे न शरम आती थी, न ही हिचक महसूस होती थी. मिलनसार होने की वजह उस का यह धंधा बढि़या चल निकला था. मंडीदीप में हर कोई उसे जानने भी लगा था. फैक्ट्री में अपनी ड्यूटी करने के बाद वह देर रात तक पानीपूरी बेच कर इतना थक जाता था कि घर आते ही खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क कर खर्राटे भरने लगता. यह बात कई बार सुनीता को बेहद नागवार गुजरती, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाती थी. क्योंकि कुंवर सिंह बच्चों और घरगृहस्थी की बेहतरी के लिए ही अपना खूनपसीना एक कर रहा था. पति की इस मजबूरी की वजह से सुनीता बिस्तर पर करवटें बदलते हुए आहें भरती रहती. ऐसे में 12 साल पहले हुई शादी के बाद के दिनों को याद कर के सोने की कोशिश में वासना की आग बुझने के बजाय और भड़क उठती.

किसी तरह उसे नींद आती तो सुबह जल्दी उठ कर घर के कामकाज और बच्चों की तीमारदारी में लग जाना होता. मन ही मन घुट रही सुनीता की समझ में आने लगा था कि अब कुछ नहीं हो सकता. कुंवर सिंह उस के जज्बातों को समझ नहीं सकता. उसे रोज इसी तरह मछली की तरह तड़पना होगा. सुनीता के मन में बारबार यही खयाल आता कि पति को वह कैसे समझाए कि 3 बच्चों की मां बन जाने से औरत की शारीरिक सुख की लालसा कम नहीं हो जाती, बल्कि और बढ़ जाती है. लेकिन यह बात वह कहतेकहते रह जाती. ज्यादा बच्चे न हों, पति के कहने पर उस ने नसबंदी करा ली थी. इस पूरी कशमकश में अच्छी बात यह थी कि अभी तक उस के मन में पराए मर्द का खयाल नहीं आया था. शायद आता भी न, अगर नर्मदा प्रसाद का इस तरह उस के घर आनाजाना न होता.

यह नए साल यानी 2015 की शुरुआत की बात थी, जब एक दिन कुंवर सिंह ने सुनीता से कहा कि होशंगाबाद से भांजा नर्मदा प्रसाद काम की तलाश में उन के घर आने वाला है. नर्मदा को कभी सुनीता ने देखा नहीं था, लेकिन अपने पति की मुंहबोली बहन को वह अच्छी तरह जानती थी, जो कभीकभार उस के यहां राखी बांधने आती थी. और अगर नहीं आ पाती थी तो डाक से भेज देती थी. नर्मदा की मां और उस के पति ने एक ही गुरु से दीक्षा ली थी, इस नाते वह भाईबहन हो गए थे. वे इस रिश्ते का पूरी तरह सम्मान करते थे और हैसियत के मुताबिक निभाते भी थे.

नर्मदा प्रसाद जब मंडीदीप आया तो कुंवर सिंह ने उस की हर तरह से मदद की. पहले तो सिफारिश कर के उसे एक ग्लास फैक्ट्री में नौकरी दिलवाई. इस के बाद मंडीदीप मोहल्ला वार्ड नंबर 2 में अपने घर के सामने ही किराए पर कमरा दिलवा कर रहने की व्यवस्था कर दी. कुंवर सिंह उसे एकदम सगे भांजे की तरह मानता था. यह बात सचमुच मिसाल थी, क्योंकि वजहें कुछ भी हों, आजकल लोग सगे रिश्तों को भी इस तरह नहीं निभा पाते. इधर मुद्दत से काम की तलाश में भटक रहे बेटे को नौकरी मिली तो होशंगाबाद में रह रही उस की मां को भी तसल्ली हुई कि अब बेटे की जिंदगी पटरी पर आ जाएगी.

रायसेन में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे नर्मदा प्रसाद के पिता लक्ष्मीनारायण ने भी बेटे की नौकरी लगने पर बेफिक्री की सांस ली और मन ही मन सोचने लगे कि साल, 2 साल नर्मदा नौकरी कर ले तो अच्छी सी लड़की देख कर उस की शादी कर के गृहस्थी बसाने की जिम्मेदारी पूरी कर देंगे. होशंगाबाद से हो कर बहती नर्मदा नदी की वजह से उसी का प्रसाद मान कर लक्ष्मीनारायण ने बेटे का नाम नर्मदा प्रसाद रखा था. तब उन्हें शायद इस बात का अहसास नहीं था कि मंडीदीप जा कर उस की जिंदगी की नदी एकदम उलटी बह कर अनर्थ कर डालेगी.

नर्मदा जब मंडीदीप में रहने लगा तो स्वाभाविक रूप से मामा के घर उस का जानाआना होता रहा. शुरुआत में तो सुनीता ने उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि पहले से ही उस के काफी रिश्तेदार और जानपहचान वाले मंडीदीप में रहते थे. ऐसे में पति ने इस मुंहबोले भांजे को ला कर उस का सिरदर्द और बढ़ा दिया था. लेकिन उस के लगातार आनेजाने से जल्दी ही वह खुद को फिर से जवान समझने लगी थी. वजह थी नर्मदा की उस के हसीन जिस्म को भेदती नजरें. हट्टाकट्टा और खूबसूरत नर्मदा जब अपनी इस मुंहबोली मामी को देखता तो लाख कोशिश के बाद भी वह मन में उठ रहे वासना के तूफान को चेहरे पर आने से रोक नहीं पाता.

भांजे के मन की बात का अहसास होते ही सुनीता का दिल उछलने लगा था कि नर्मदा चोरीछिपे उस के जिस्म को नापतातौलता रहता है. अकसर उस की निगाहें उस के उभारों पर आ कर ठहर जातीं. यह जानने के बाद उस ने नर्मदा को बातों और हरकतों से शह देना शुरू कर दिया. अब वह सीने को पल्लू से ढंकने के बजाय अकसर गिरा देती और उसी तरह गिरा रहने देती, जिस से नर्मदा उस से नजरें बचा कर अपनी मुराद पूरी कर सके. इस के बाद दोनों में बातें तो खूब होने ही लगीं, मजाक भी होने लगा. धीरेधीरे उन के मजाक में दोअर्थी शब्द भी आने लगे. सुनीता की शारीरिक सुख की कामना अंगड़ाईयां लेने लगीं. सामने बैठा मर्द क्या सोच रहा है, यह एक औरत ही बेहतर समझ सकती है. अब यह उस की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह उसे पहली सीढ़ी पर ही रोक दे या फिर छत तक जाने दे.

सुनीता ने तो अपनी तरफ से पूरा दरवाजा ही खोल दिया था, लेकिन यह नर्मदा के मन की हिचकिचाहट और डर था कि आंखों के सामने मिठाई रखे होने के बाद भी वह उसे उठा कर खाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. लेकिन आंखों से देखने से पेट तो भर नहीं सकता था. यही हालत सुनीता की भी थी और नर्मदा की भी. इस का मतलब आग दोनों तरफ बराबर लगी थी, बस भड़कने का इंतजार था कि पहल कौन करे. नर्मदा अपने दिल की बात इशारों से कहता तो सुनीता खुश होने के साथसाथ झल्ला भी उठती थी कि कैसा बेवकूफ लड़का है, सारी छूट दे रखी है, इस के बावजूद यह सिर्फ आग सुलगा कर चला जाता है. आखिरकार एक दिन सुनीता के सब्र का बांध टूट गया और उस ने पूछ लिया, ‘‘यूं चोरीछिपे देखते ही रहोगे कि मुंह से कहोगे भी कि तुम चाहते क्या हो?’’

नर्मदा इतना नादान और बेवकूफ भी नहीं था कि इतने पर भी चुप रहता. सुनीता की इस पहल पर उस ने वही किया, जो कोई भी युवक करता. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था, इसलिए उस ने सुनीता को बांहों में उठाया और बिस्तर पर ला पटका. इस के बाद वह उस पर छा गया. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं रह गया था. वासना एक तेज तूफान आया और एक नौसिखिया तथा एक तजुर्बेकार तैराक अपनेअपने तरीके से उस में गोते लगाने लगे. सुनीता को मुद्दत बाद मर्द का सुख मिला था, इसलिए वह उस पर निहाल हो उठी. दूसरी ओर नर्मदा भी अपने कमरे में आ कर निढाल सा बिस्तर पर पड़ कर कुछ देर पहले भोगे सुख को याद कर के रोमांचित होने लगा.

उस ने शारीरिक सुख के बारे में जो सुना और पढ़ा था, उस का असली सुख तो उस से कहीं ज्यादा था. इस के बाद यह लगभग रोज की बात हो गई. नर्मदा फैक्ट्री से आता तो सीधे सुनीता के पहलू में जा समाता. मौके की कमी नहीं थी, उस समय बच्चे खेलने गए होते थे और राहुल अपने दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाने में मशगूल रहता था. उन दोनों के इस नाजायज रिश्ते के बारे में कोई शक भी नहीं करता था. इस की वजह कुंवर सिंह का व्यवहार और इन दोनों की सतर्कता थी. उम्र में अपने से कुछ छोटे राहुल को भी नर्मदा ने इस तरह पटा लिया था कि वह भी इस बारे में सोच नहीं सकता था.

धीरेधीरे सुनीता और नर्मदा के शारीरिक संबंध प्यार में बदल गए और दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. यही नहीं, उन का यह प्यार इस हद तक परवान चढ़ा कि दोनों अपना बच्चा पैदा करने के बारे में सोचने लगे. इस के लिए सुनीता नसबंदी का औपरेशन खुलवाने को भी तैयार हो गई. चूंकि मंडीदीप में रहते दोनों शादी नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने भाग कर शादी करने का फैसला कर लिया. सुनीता भूल गई कि वह 3 बच्चों की मां और गरीब ही सही, पर एक इज्जतदार आदमी की पत्नी है, जिस का समाज और रिश्तेदारी में अपना अलग रसूख है.

नर्मदा भी मामा का एहसान भूल गया कि इस शख्स ने भागदौड़ कर किस तरह नौकरी दिलाई और मंडीदीप में जमने में मदद की. शायद उतनी सहायता तो सगा मामा भी नहीं करता और उस ने एवज में क्या किया, इस मुंहबोले मामा की पीठ में छुरा घोंप दिया. नर्मदा और सुनीता सारी दुनियादारी और जिम्मेदारियां भूल कर नई दुनिया बसाने की तैयारी में जुट गए थे. मई के पहले सप्ताह में चिलचिलाती गरमी में नर्मदा, राहुल और सुनीता की बहन के लड़के संतोष को शराब की पार्टी देने होशंगाबाद ले गया. मंडीदीप और होशंगाबाद के बीच औबेदुल्लागंज में रुक कर तीनों ने छक कर शराब पी. नर्मदा आदतन शराबी था, लेकिन उस दिन ज्यादा पी लेने की वजह से उस का दिमाग काबू से बाहर होने लगा. राहुल और संतोष को काफी दिनों बाद मनमाफिक पीने की मिली थी, वह भी मुफ्त में, इसलिए वे दोनों भी धुत होते जा रहे थे.

शराब का नशा क्यों नुकसानदेह कहा जाता है, यह जल्दी ही सामने आ गया. नशे की झोंक में डींगे हांकते हुए नर्मदा ने राहुल और संतोष को हमदर्द समझते हुए उन के सामने सुनीता के साथ के अपने संबंध उजागर कर दिए. उस ने दिल की बात जिस तरह कही, वह सुन कर राहुल का खून खौल उठा. लेकिन उस समय उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा, क्योंकि नशे की हालत में वह कुछ नहीं कर सकता था. दूसरे नर्मदा कितना सच और कितना झूठ बोल रहा था, इस का भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था. नर्मदा के मुंह से यह सुन कर कि जल्दी ही भाग कर दोनों शादी करने वाले हैं, उसे लगा कि दाल में जरूर कुछ काला ही नहीं है, बल्कि पूरी दाल ही काली है.

अपनी भाभी को मां की तरह चाहने और इज्जत देने वाले राहुल का नशा उड़ चुका था. वह बदले की आग में जल रहा था. तीनों पार्टी खत्म कर के मंडीदीप वापस आ गए और सो गए. अगले दिन राहुल ने जिस अंदाज में सुनीता और नर्मदा को बातें करते देखा, उस से उसे ताड़ते देर नहीं लगी कि बीती रात नशे में ही सही, नर्मदा ने जो कहा था, वह गलत नहीं था. अब राहुल की दिमागी स्थिति गड़बड़ाने लगी. कल तक जो नर्मदा उसे पक्का दोस्त लगता था, वह दुश्मन नंबर एक लगने लगा. उसी के साथ मां समान लगने वाली भाभी कुलटा लग रही थी, जो देवता समान पति की धोखा देने में तनिक भी नहीं हिचकिचा रही थी.

क्या किया जाए, यह सवाल राहुल को मथे डाल रहा था. भाई से कहता तो तय था कि वह उस की बात पर यकीन नहीं करते और बेवजह बात का बतंगड़ बनाते. मुमकिन है, भाभी भी उस पर ही उलटासीधा इलजाम लगा देती. हैरानपरेशान राहुल ने संतोष से बात की, जो खुद पिछली रात से तनाव में था कि उस की मौसी ऐसी है. दोनों ने मिल कर तय किया कि अब नर्मदा की हत्या के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है. इस के लिए दोनों ने तुरंत योजना भी बना डाली. शाम के वक्त नर्मदा उन्हें मिला तो दोनों ने ऐसी ऐक्टिंग की, मानों बीती रात क्या हुआ था, उसे वे भूल चुके थे या फिर उस से उन्हें कोई सरोकार नहीं था. इतराते हुए उन्होंने नर्मदा से फिर शराब पिलाने को कहा तो नर्मदा खुशीखुशी तैयार हो गया.

तय हुआ कि आज कलियासोत बांध पर चल कर पी जाए. तीनों बांध पर पहुंचे और पीनी शुरू कर दी. फर्क इतना था कि आज राहुल और संतोष दिखावे के लिए घूंटघूंट पी रहे थे, जबकि नर्मदा को ज्यादा से ज्यादा पिलाने की कोशिश कर रहे थे. नशा चढ़ा तो नर्मदा ने फिर अपने और सुनीता के संबंधों के बारे में बताना शुरू कर दिया. ये बातें राहुल और संतोष के कानों में पिघले शीशे की तरह उतर रही थीं. सुनतेसुनते जब यकीन हो गया कि नर्मदा को इतना नशा चढ़ गया है कि वह कुछ नहीं कर सकता तो दोनों ने एकदूसरे को इशारा किया.

इस के बाद वे उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगे. नर्मदा के शरीर को चाकुओं से गोद कर उस के चेहरे पर एक भारी पत्थर पटका. जब उन्हें तसल्ली हो गई कि यह मर चुका है तो उन्होंने लाश को वहीं कचरे के ढेर में छिपा दिया और मंडीदीप वापस आ गए. दूसरे दिन 8 मई को थाना मिसरोद के थानाप्रभारी के.एस. मुकाती को किसी अज्ञात आदमी ने फोन द्वारा सूचना दी कि कलियासोत नदी के पुल के नीचे एक नौजवान की सिर कुचली लाश पड़ी है तो वह फौरन पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश देख कर ही पुलिस समझ गई कि मामला हत्या का है. मृतक की पहचान के लिए जब उस की तलाशी ली गई तो जेब से मिली परची पर लिखे फोन नंबर से उस की पहचान नर्मदा प्रसाद के रूप में हो गई.

शुरुआती जांच में पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ. राहुल और संतोष से भी पूछताछ हुई, लेकिन उन्होंने इस तरह इत्मीनान से जवाब दिए कि पुलिस का शक उन पर नहीं गया. उन्होंने कहा था कि नर्मदा की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, इसलिए उसे कोई क्यों मारेगा. नर्मदा की मौत शायद रहस्य बन कर रह जाती, अगर उस की मां के बयान न लिए जाते. उस ने अपने बयान में सीधे तो नहीं, लेकिन इशारों में बता दिया था कि नर्मदा के अपनी मुंहबोली मामी सुनीता से नाजायज ताल्लुकात थे. इस के बाद पुलिस के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं रह गया. अपने बयान में राहुल और संतोष यह बात छिपा गए थे कि पिछली रात वे नर्मदा के साथ कलियासोत नदी पर गए थे. पुलिस ने दोनों के हलक में अंगुली डाली तो सारी कहानी बाहर आ गई.

दोनों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. लेकिन सुनीता पर कोई आरोप नहीं लगा, जो इस कत्ल की वजह थी. हैरत की और सोचने की बात यह है कि जो औरत फसाद की जड़ थी, वह कानूनी शिकंजे से बाहर है. उस के पाप की सजा अब उस का जवान देवर और भांजा भुगतेंगे. Illicit Affair

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime News: उम्र के भंवरजाल में फंसी औरत

Crime News: 2 बच्चों की मां नीरू जब जवान हुई तो उस का पति बूढ़ा हो गया. इस स्थिति में उस के कदम बहक गए. इस का दुखद अंत यह हुआ कि बीवी के कत्ल में आज पति जेल में है.

रात के 12 बज रहे थे. अभी तक नीरू उर्फ नीलम घर नहीं लौटी थी. बीते 3 दिनों से यही क्रम चल रहा था. महावीर अग्रवाल ने पत्नी की गैरहाजिरी में खाना बना कर बेटी कोमल और बेटे हर्षित को खिला कर सुला दिया था. खुद खा कर पत्नी नीरू का खाना फ्रिज में रख दिया था. 4 लोगों के इस परिवार में बीते कई सालों से यही सिलसिला चला आ रहा था. महावीर के चेहरे पर कभी शिकन तक नहीं आई थी.

घर और कपड़ों की साफसफाई से ले कर चौकाचूल्हा तक के काम में वह पत्नी की मदद करता था. नीरू की गैरहाजिरी में वह अपने दोनों बच्चों को पिता के साथसाथ मां के स्नेह से भी सराबोर कर रहा था. दोनों बच्चों के चेहरे देख कर और उन्हें लाड़प्यार कर के वह दिन भर की दौड़धूप और घर के कामकाज की थकावट को भूल जाता था. राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के मोहल्ला प्रेमनगर के बने एक साधारण से घर में टीवी के सामने बैठा महावीर अग्रवाल पत्नी का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. रात एक बजे के करीब नीरू घर में दाखिल हुई.

अस्तव्यस्त कपड़े, बिखरे बाल और पस्त बदन देख कर महावीर का माथा ठनका. वह कुछ कहता, उस से पहले ही नीरू बोल पड़ी, ‘‘क्या करूं यार, आज 3 जगहों के और्डर थे और एक दुलहन तो पौर्लर पर ही आ गई थी. अब 4-4 दुलहनों को सजाने में देर तो हो ही जाएगी.’’

नीरू ने देर होने की वजह बता दी. महावीर ने उस की इस सफाई पर ध्यान दिए बगैर कहा, ‘‘सुबह बात करेंगे. खाना फ्रिज में रखा है, मन हो तो खा लेना.’’

इतना कह कर महावीर अपने बिस्तर पर जा कर लेट तो गया, लेकिन उस की नींद आंखों से कोसों दूर थी. दोनों बच्चों के भविष्य, खस्ताहाल दुकानदारी और नीरू के संदिग्ध चालचलन को ले कर उस के दिमाग में तूफान चल रहा था. नीरू कपड़े बदल कर दूसरे कमरे में जा कर अपने बिस्तर पर लेट गई. उस ने खाना नहीं खाया था. महावीर को लगा, संभवत: वह किसी के यहां से मनपसंद खाना खा कर आई होगी. सुबह महावीर की आंख लगी तो वह देर से सो कर उठा. कोमल और हर्षित स्कूल जा चुके थे. नाश्ता कोमल ने बनाया था.

धूप चढ़े नीरू उठी तो महावीर ने 2 कप चाय बनाई. बिस्तर पर बैठी नीरू को चाय का कप पकड़ा कर महावीर उस के सामने पड़ी कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘देखो नीरू, तुम्हारा रवैया दिनबदिन असहनीय होता जा रहा है. तुम मेरी उपेक्षा कर रही हो, इस की मुझे रत्ती भर चिंता नहीं है. लेकिन बच्चों के लिए तो सोचो.’’

‘‘मैं ने क्या कर दिया भई. ब्यूटीपौर्लर चलता हूं. इन दिनों लगनें चल रही हैं. मैं ने तो आप को रात में ही बता दिया था कि 4 दुलहनों को तैयार करना है, घर आने में देर हो जाएगी.’’ नीरू ने कहा.

महावीर को पता था कि उस दिन शादियां नहीं थीं, नीरू रटारटाया बहाना बना कर झूठ बोल रही है. वह नहीं चाहता था कि नीरू बात का बतंगड़ बना कर झगड़ा करने लगे, इसलिए उस ने बड़े धैर्य से उसे समझाने की कोशिश की. महावीर ने कहा, ‘‘देखो नीरू, मुझे पता है कि दुकानदारी से जो कमाई हो रही है, उस से घर के खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं. दोनों बच्चों को अच्छा खिलाड़ी बनाने के लिए कोचिंग करानी है. ठीक से आमदनी न होने की वजह से मैं काफी परेशान रहता हूं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं. तुम मेरी सहनशीलता की परीक्षा लेना बंद कर दो. किसी भी समय मेरे सब्र का बांध टूट सकता है. जिस दिन ऐसा हुआ, अनर्थ हो जाएगा.’’

महावीर ने ये बातें जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए कही थीं, कोई भी समझदार औरत होती तो सिर ऊपर न उठाती. लेकिन नीरू उस की बात समझने के बजाय गुस्से में बोली, ‘‘यह गीदड़ भभकी किसी और  को देना. तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का खर्च पूरा करने के लिए ही तो मैं रातदिन खटती हूं. इस बात का एहसान मानने के बजाय तुम मुझे धमकी दे रहे हो. अपने मांबाप की तरह तुम भी मुझ पर शक करते हो. तुम जैसे निखट्टू के पल्ले बंध कर मेरा तो जीवन नरक हो गया है.’’

नीरू की इन जहरबुझी बातों से महावीर को भी गुस्सा आ गया. अपने 16 साल के वैवाहिक जीवन में महावीर पहली बार आपा खो बैठा. उस ने चाय का कप लिए नीरू के गालों पर तड़ातड़ 2 थप्पड़ रसीद कर दिए. नीरू तिलमिला उठी. भद्दी सी गाली देते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे ऊपर हाथ उठाया है. अब देखो, मैं तुम्हें कैसा मजा चखाती हूं. मैं अभी मम्मी को फोन कर के बुलाती हूं. तुम्हारे शरीर में भूसा न भरवा दिया तो मेरा भी नाम नीरू नहीं.’’

नीरू इसी तरह बड़बड़ाती रही और महावीर घर से निकल गया. मोहल्ले के पार्क में पेड़ के नीचे लेटा महावीर भविष्य के तानेबाने बुनता रहा. उस के मोबाइल पर कई बार उस की सास चंपा देवी का फोन आया, लेकिन उस ने फोन रिसीव नहीं किया. उस की नजर में यह पतिपत्नी के बीच घटी एक मामूली घटना थी. नीरू ने नमकमिर्च लगा कर मां से शिकायत कर दी होगी. इसलिए वह उसे खरीखोटी सुनाने के लिए फोन कर रही होगी.

महावीर की सास चंपा देवी नीरू से भी ज्यादा तीखी थी. नीरू ने उन से कहा था कि उस से ब्याह कर के उस का जीवन नरक हो गया है, जबकि यह सरासर झूठ था. सही बात तो यह थी कि नीरू मजे लूट रही थी और उस की वजह से उसी की नहीं, पूरे परिवार का जीवन नरक हो चुका था. अंधेरा घिरने तक महावीर पार्क में ही पड़ा रहा. अब तक उस की सास ने न जाने कितनी बार फोन कर दिया था, पर उस ने फोन रिसीव नहीं किया था. रात 10 बजे वह घर पहुंचे तो दोनों बच्चे खापी कर सो चुके थे. किचन में मिला खाना खा कर महावीर लेट गया. नीरू अभी पौर्लर से नहीं लौटी थी.

अगले दिन सुबह महावीर थोड़ी देर से उठा. दोनों बच्चे स्कूल चले गए थे. नीरू अपने कमरे में घोड़े बेच कर सो रही थी. घर के थोड़ेबहुत काम निपटा कर महावीर पार्क में जा पहुंचा. नीरू परिवार की ही नहीं, अपने दोनों मासूम बच्चों की भी अनदेखी कर रही थी. उसे उन की जरा भी चिंता नहीं थी. यही सब सोचसोच कर उसे नीरू से नफरत सी होती जा रही थी. उस की सहनशीलता अंतिम पड़ाव पर जा पहुंची थी. तभी उस की सास चंपा देवी का फोन आ गया. महावीर ने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी ओर से चंपा देवी उसे डांटने लगी. अंत में उस ने उसे जेल भिजवाने तक की धमकी दे डाली. महावीर जवाब में तो कुछ नहीं बोला, लेकिन जेल भिजवाने की धमकी उस के दिमाग में बैठ गई.

महावीर के दिमाग में आया, वह तो वैसे भी जेल से बदतर जीवन जी रहा है. वही क्यों, उस के दोनों बच्चे, बूढ़े मांबाप भी एक तरह से जेल से भी गयागुजरा जीवन जीने को मजबूर हैं. उस समय महावीर जिन स्थितियों से गुजर रहा था, उस में सकारात्मक सोच मिलने पर वह संत बन सकता था और नकारात्मक सोच में शैतान. महावीर और उस के परिवार का दुर्भाग्य था कि उस समय उस के दिमग पर नकारात्मक सोच भारी हो गई. अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया. उस का सोचना था कि अब उसे जेल जाना ही है, सास भिजवाए या वह स्वयं चला जाए. अंत में उस ने खुद जेल जाने का निर्णय कर लिया.

खतरनाक निर्णय लेने के बाद महावीर ने खुद को काफी हलका महसूस किया. शायद उस का दिलोदिमाग विवेकहीन हो गया था. वह पार्क से उठा और सीधा घर पहुंचा. नहाधो कर 3 दिनों से बंद पड़ी अपनी स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंचा. उसे अब दुकानदारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. शाम होने से पहले ही वह घर लौट आया. दोनों बच्चे घर पर ही थे. बच्चों की मनपसंद का खाना बना कर उन्हें प्यार से खिलाया और सुला दिया. इस के बाद खुद टीवी देखते हुए नीरू का इंतजार करने लगा.

देर रात नीरू घर लौटी तो महावीर ने उसे मुख्य द्वार पर ही रोक लिया. बरामदे में 2 कुरसी उस ने पहले से रख दी थी. उस ने नीरू का हाथ पकड़ कर एक कुरसी पर बिठा दिया और खुद सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. इस के बाद उस के गाल पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘नीरू जो हो गया, अब उसे भूल जाओ. मैं अपनी गलती के लिए माफी मांगता हूं. अब इस परिवार को बचाना तुम्हारे हाथ में है. मैं तुम्हारा हर आदेश मानने को तैयार हूं. तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगा. बस तुम गलत आदतें छोड़ दो.’’

महावीर की इन बातों पर गंभीर होने के बजाय नीरू खिलखिला कर हंस पड़ी. इस के बाद व्यंग्य से बोली, ‘‘इस तरह की फालतू बातें मैं सुनने की आदी नहीं.’’

नीरू इतना ही कह पाई थी कि महावीर के सब्र का बांध टूट गया. वह उस पर एकदम से पिल पड़ा. उस ने नीरू के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कसना शुरू किया तो फिर तभी छोड़ा, जब वह मर कर कुर्सी से लुढ़क गई. पत्नी को मार कर महावीर ने उस की लाश को उठा कर बरामदे के कोने में बने स्टोर रूम में ले जा कर रख दिया और अपने बिस्तर पर जा कर सो गया. अगले दिन सुबह महावीर बच्चों से पहले उठ गया. बच्चों ने मम्मी के बारे में पूछा तो कहा कि वह ब्यूटीपौर्लर का सामान लेने बाहर गई है. उसी समय सास चंपा देवी का फोन आया तो उन से भी कह दिया कि वह बाहर गई है. बच्चे स्कूल चले गए तो महावीर बाजार गया और लोहा काटने की एक आरी खरीद लाया. मुख्य दरवाजा बंद कर के वह स्टोर रूम में घुस गया.

महावरी ने उस के दोनों पैर आरी से काट कर धड़ से अलग कर दिए. इस के बाद दोनों हाथों के पंजे काटे. दब्बू पति से जल्लाद बना महावीर अब तक थक गया था. उस के दिल में नीरू के प्रति पैदा नफरत बढ़ती जा रही थी. अब वह उस की लाश से बदला ले रहा था. इस के बाद उस ने कमरे में ताला बंद कर दिया और अगले दिन तक बच्चों के साथ सामान्य ढंग से रहता रहा. दोनों बच्चे रोज की तरह स्कूल चले गए. बच्चों के जाने के बाद महावीर कमरे में घुसा तो दोनों हाथ काट कर धड़ से अलग किए. इस के बाद उस ने सिर काट कर अलग किया. इस तरह नीरू की लाश 8 टुकड़ों में बंट गई. जबकि महावीर के चेहरे पर किसी तरह की शिकन या प्रायश्चित नहीं था.

इस बीच चंपा देवी ने महावीर को कई बार फोन कर के नीरू या बच्चों से बात करवाने के लिए कह चुकी थी. लेकिन हर बार उस ने नीरू के न लौटने और बच्चों के बाहर होने की बात कह कर सास को टरका दिया था. अब तक चंपा देवी को किसी अनहोनी की आशंका हो गई थी. इसलिए उस ने श्रीगंगानगर में ही रह रहे अपने दूसरे दामाद धर्मेंद्र अग्रवाल को फोन कर के नीरू के बारे में पता लगाने को कहा. महावीर ने उसे भी टरका दिया था. थकहार कर चंपा देवी ने फाजिल्का में रह रहे अपने भाई अमित को नीरू के बारे में पता लगाने के लिए श्रीगंगानगर भेजा, इसी के साथ वह खुद भी श्रीगंगानगर के लिए रवाना हो गई.

अमित अग्रवाल श्रीगंगानगर पहुंचे तो महावीर ने उन्हें भी गोलमोल जवाब दिया. हर्षित और कोमल घर में ताला बंद होने की वजह से पड़ोसी के यहां बैठे थे. अमित तुरंत सेतिया कालोनी स्थित पुलिस चौकी पहुंचे और अपनी भांजी नीरू के संदिग्ध परिस्थितियों में लापता होने की सूचना दी, लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. तब अमित ने अपने कुछ रिश्तेदारों और परिचितों को इस मामले के बारे में बता कर मदद मांगी. जब सभी लोग महावीर के घर पहुंचे तो वहां से आने वाली असहनीय दुर्गंध से उन्हें आशंका हुई. अमित के साथ आए लोगों ने तुरंत कोतवाली पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी विष्णु खत्री दलबल के साथ महावीर के घर पहुंच गए.

उन्होंने इस बात की सूचना अधिकारियों को दी तो उन की सूचना पर एएसपी (शहर) शशि डोगरा, प्रशिक्षु आईपीएस चूनाराम भी घटनास्थल पहुंच गए. महावीर के पहुंचने पर कमरा खुलवाया गया तो पुलिस अधिकारी भी नफरत की वजह से मानवीय संवेदनाओं का वहशीपन भरा हश्र देख कर भौचक्के रह गए. पुलिस अधिकारियों ने नीरू की 8 टुकड़ों में बंटी लाश को कब्जे में ले लिया. महावीर ने अपना जुर्म कबूल लिया था, इसलिए पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा रही थी, तभी नीरू की मां चंपा देवी भी वहां पहुंच गई थीं.

कोतवाली पुलिस ने चंपा देवी की ओर से नीरू की हत्या का मुकदमा महावीर अग्रवाल के खिलाफ दर्ज कर लिया. यह 6 अप्रैल, 2015 की बात थी. चंपा देवी के बताए अनुसार, नीरू की हत्या 2 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब की गई थी. उस ने तो हत्या के इस मामले में महावीर के पूरे परिवार को नामजद करा दिया था, लेकिन जांच में पता चला कि परिवार के बाकी लोगों से इन लोगों का बहुत पहले ही संबंध खत्म हो चुका था, इसलिए पुलिस ने बाकी लोगों को निर्दोष मान लिया. पुलिस पूछताछ में नीरू की हत्या की जो कहानी सामने आई थी, वह इस प्रकार थी—

पंजाब प्रदेश का एक जिला है फतेहगढ़ साहिब. इसी जिले की एक प्रमुख व्यावसायिक मंडी है गोविंदगढ़. यहीं आयरन मंडी में रहते थे शिवदयाल अग्रवाल. उन की बेटी नीलम उर्फ नीरू विवाह लायक हुई तो रिश्तेदारों के बताने पर उन्होंने अबोहर निवासी खुशीराम के बेटे महावीर से नीरू का विवाह कर दिया था. खुशीराम काफी संपन्न आदमी थे. महावीर भी खूब मेहनती और मिट्टी में सोना निकालने वाला था. लेकिन नीरू और महावीर की उम्र के बीच का फासला काफी लंबा था. नीरू 18 साल की थी, जबकि महावीर 35 साल का. लेकिन धनदौलत और वैभवशाली परिवार की चकाचौंध में दोगुनी उम्र का अंतर गौण हो गया था.

महावीर और नीरू के शुरुआती दिन बड़े अच्छे गुजरे. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उन के दांपत्य में खटास आने लगी. उसी बीच खुशीराम को व्यापार में घाटा हुआ तो वह परिवार के साथ अबोहर से श्रीगंगानगर आ गए. शादी के 2 सालों बाद नीरू ने बेटी कोमल और उस के बाद बेटे हर्षित को जन्म दिया. महत्वाकांक्षी और स्वछंद विचारों वाली नीरू को संयुक्त परिवार में घुटन सी होती थी. इसलिए अलग रहने के लिए उस ने क्लेश शुरू कर दिया. महावीर ने किराए पर अलग मकान ले लिया और कमाई के लिए स्पेयर पार्ट्स का खुदरा व्यवसाय शुरू कर दिया. संजनेसंवरने का शौक रखने वाली नीरू ने अपने इस शौक को व्यावसायिक उपयोग करने की गरज से ब्यूटीपौर्लर खोल लिया.

नीरू का ब्यूटीपौर्लर चल निकला. पतिपत्नी, दोनों के कमाने से परिवार में बरकत होने लगी. नीरू और महावीर की उम्र में अंतर तो था ही, अब उन के विचारों में भी जमीनआसमान का अंतर आ गया था. स्वच्छंद जीवन जीने वाली नीरू को रोकटोक बहुत कस्टदायक लगता था. जबकि महावीर को इस तरह की आजादी बिलकुल पसंद नहीं थी. इस तरह विचारों के टकराव की वजह से पतिपत्नी में कलह रहने लगी. कहा जाता है कि श्रीगंगानगर में आने के बाद खुशीराम और उन की पत्नी मनोरीदेवी ने नीरू की आजादी से नाराज हो कर उस से पूरी तरह रिश्ता खत्म कर लिया था.

खुदगर्जी का जीवन जीने वाली नीरू अपने पति और बच्चों से अलगअलग होती गई. मांबाप के बीच होने वाली कलह और खींचतान से बच्चे भी परेशान रहते थे. उन्होंने अपने ढंग से दोनों को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन नीरू और महावीर के अपनेअपने जो अहम थे, उस की वजह से बात बन नहीं पाई और बात हत्या तक पहुंच गई. हत्या के इस मामले की जांच कोतवाली प्रभारी विष्णु खत्री ने स्वयं संभाली. पूछताछ में महावीर ने बताया कि नीरू की बदचलनी की वजह से वह परेशान हो चुका था. उस की सास चंपा देवी उसे जेल भिजवाने की धमकी देती रहती थी.

अगले दिन पुलिस ने महावीर को न्यायालय में पेश कर के पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने वह आरी बरामद कर ली, जिस से नीरू की लाश के टुकड़े किए गए थे. इस के बाद अन्य औपचारिकताएं पूरी कर के महावरी को पुन: न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. लोगों का कहना है कि इस हत्या की मुख्य वजह मियांबीवी के बीच की उम्र का अंतर था. शादी के समय नीरू 18 साल की थी, जबकि महावीर 35 साल का. नीरू जब पूरी तरह जवान हुई तो महावीर को बुढ़ापा आ गया, जिस की वजह से नीरूके कदम बहके तो बहकते ही चले गए. परिणामस्वरूप उसे असमय ही मरना पड़ा.

महावीर की बेटी कोमल और बेटा हर्षित पढ़ने में तो अच्छे हैं ही, बैडमिंटन और टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी हैं. अब मां का कत्ल हो गया और पापा मां के कत्ल के आरोप में जेल चले गए. दोनों बच्चों के लिए दुख की बात यह है कि उन्होंने दादादादी को मां की मौत और पिता के जेल जाने के बाद पहली बार देखा था. वहीं ननिहाल पक्ष वालों ने उन्हें अपने साथ ले जाने से साफ मना कर दिया था. ऐसे में इन होनहार बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime News: दहेज हत्या – 6 महीने की शादी और मौत का फंदा

Crime News: एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिस ने समाज को झकझोर कर रख दिया है. शादी के मात्र 6 महीने बाद ही एक नवविवाहिता को फांसी पर लटका दिया गया. सवाल वही कि आखिर कब तक महिलाएं दहेज की आग में जलती रहेंगी? यह दर्दनाक क्राइम केस न सिर्फ इंसानियत को शर्मसार करता है, बल्कि हमें आने वाले अपराधों के प्रति सचेत भी करता है.

यह भयानक घटना उत्तर प्रदेश के लखी गांव की है, जहां 24 वर्षीय संध्या की मौत को उस के ससुराल वालों ने आत्महत्या बताया. पिता की शिकायत पर हसनपुर थाना पुलिस ने पति सहित कई ससुरालियों पर दहेज हत्या का केस दर्ज कर लिया है.

पिता मलखान सिंह के मुताबिक उन की बेटी संध्या  की शादी 24 मई, 2025 को गौरव से हुई थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद बेटी पर दहेज का दबाव शुरू हो गया था.

शिकायत में मलखान सिंह ने बताया कि पति गौरव, भाभी कमलेश, ससुर रमेशचंद, देवर मनीष और अन्य परिजन संध्या से लगातार कार की मांग कर रहे थे. संध्या आए दिन परेशान रहती थी और मायके वालों को दहेजी प्रताड़ना की बातें बताती थी.

30 नवंबर की रात करीब 9 बजे उस ने रोते हुए मलखान सिंह को फोन कर कहा था कि ससुराल वाले उसे जान से मार देंगे. फोन पर हुई इस बातचीत के मात्र ढाई घंटे बाद ही रात साढ़े 11 बजे ससुराल वालों का फोन आया कि संध्या ने फांसी लगा ली है.

मायके वालों का आरोप है कि संध्या को पहले बेरहमी से पीटा गया और फिर हत्या कर उसे फंदे पर लटका कर आत्महत्या का रूप दिया गया. पुलिस ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर आगे की काररवाई होगी. Crime News

UP Crime News: सूटकेस में मिला कंकाल

UP Crime News: एक ऐसी हैरान कर देने वाली वारदात जिस ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. नैशनल हाइवे के पास गन्ने के खेत में एक सूटकेस मिला, जिस में एक महिला का कंकाल मिला है. आखिर किस का है यह कंकाल और कौन है महिला का कातिल, यही बड़ा सवाल है. क्या छिपा है हत्या के राज में, जानने के लिए पढ़ें यह पूरी स्टोरी, जो आप को ऐसे अपराधों से करेगी सावधान.

महिला के कंकाल वाला यह सूटकेस उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के नैशनल हाइवे 9 पिलखुवा क्षेत्र में गन्ने के खेत में मिला. सूटकेस के पास से शराब की बोतलें और तेजाब की खाली कंटेनर मिलने पर शक गहरा गया है कि मृतक की पहचान मिटाने के लिए शव को तेजाब से जलाया गया होगा. इस सनसनीखेज खोज ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी है.

पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यह कंकाल लगभग 10 से 12 दिन पुराना लग रहा है. महिला की पहचान स्थापित करने के लिए कई टीमों को सक्रिय कर दिया गया है. आसपास के जिलों से महिलाओं की गुमशुदगी रिपोर्ट भी मंगवाई जा रही है, ताकि पहचान का कोई सुराग मिल सके.

कस्तला कासमाबाद गांव के निवासी योगेंद्र सिंह रामा मैडिकल कालेज के पास सर्विस रोड किनारे लीज पर खेती करते हैं. सोमवार सुबह वह अपने खेत में गन्ने की कटाई करवा रहे थे, तभी दूर एक काला सूटकेस पड़ा दिखाई दिया. पहले उन्हें लगा कि शायद कोई कबाड़ फेंक गया होगा, लेकिन पास जा कर स्थिति बदल गई.

जैसे ही योगेंद्र ने सूटकेस खोला, भीतर महिला का कंकाल देख वह डर गए और तुरंत पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही एसएचओ श्यौपाल सिंह, सीओ जितेंद्र शर्मा, एसपी कुंवर ज्ञानंजय सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने इलाके की घेराबंदी कर फोरैंसिक विशेषज्ञों को जांच में लगाया गया.

फोरैंसिक टीम ने सूटकेस में मौजूद महिला का कंकाल, एक लोअर और आसपास मिले सबूतों के नमूने इकट्ठे किए. शुरुआती जांच में यह साफ हुआ कि शव को खत्म करने और पहचान मिटाने की कोशिश की गई थी. अब पुलिस यह पता लगाने में जुट गई है कि यह हत्या किसी रंजिश, घरेलू विवाद या किसी संगठित अपराध का हिस्सा है. फिलहाल यह रहस्य गहराता जा रहा है. पुलिस मामले की जांच कर रही है. UP Crime News

Hindi Stories: कातिल दरोगा

Hindi stories: फरियाद ले कर पुलिस चौकी पहुंची खूबसूरत ईशा को देख कर दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह इतना प्रभावित हुआ कि शादीशुदा होते हुए भी वह उसे चाहने लगा. इतना ही नहीं, खुद को अविवाहित बता कर उस ने ईशा से शादी भी कर ली. बाद में यही झूठ ऐसा जी का जंजाल बना कि वह एक खौफनाक अपराध कर बैठा. कानपुर के थाना काकादेव क्षेत्र में एक मोहल्ला है नवीन नगर. कौशलेश सचान अपनेपरिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विनीता के अलावा एक बेटा ऐश्वर्य राज, 2 बेटियां ईशा व प्रगति थीं. कौशलेश साधन संपन्न व्यक्ति थे. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

कौशलेश सचान की बड़ी बेटी का नाम वैसे तो ईशा था लेकिन घर में सब लोग उसे ईशू कहते थे. गोरी, तीखे नाकनक्श और बड़ीबड़ी आंखों वाली ईशा सुशील और विनम्र स्वभाव की थी. ईशा तनमन से जितनी खूबसूरत थी, पढ़नेलिखने में भी उतनी ही तेज थी. उस ने कानपुर के सरस्वती बालिका इंटर कालेज से प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट और एएनडी कालेज में बीए पास किया. ईशा की इच्छा थी कि वह आईएएस बने. इसलिए प्रथम श्रेणी में बीए पास करने के बाद उस ने आईएएस की तैयारी के लिए कोचिंग शुरू कर दी थी. लेकिन लगातार 3 साल तक परीक्षा देने के बाद भी वह सिविल सर्विस में न निकल सकी.

एक दिन ईशा अपनी मां विनीता के साथ जेके मंदिर गई. दर्शन करने के बाद जब वह गेट के बाहर निकली, तो एक झपटमार ने उस के गले की सोने की चेन खींच ली और साथ ही उस का पर्स भी छीन कर भाग निकला. बदहवास मांबेटी थाना नजीराबाद पहुंचीं. उस इलाके के चौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह पटेल उस समय थाने में ही थे. ईशा ने ज्ञानेंद्र सिंह को लूट की पूरी घटना बताई तो उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर के लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. 3-4 दिन बाद ही ज्ञानेंद्र ने छोटे यादव नाम के लुटेरे को पकड़ लिया. दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह की इस त्वरित काररवाई से ईशा काफी प्रभावित हुई.

बयान दर्ज कराने, लुटेरे और सामान की शिनाख्त करने के लिए ईशा को कई बार थाना नजीराबाद आनाजाना पड़ा. इसी आनेजाने में ईशा और दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. ज्ञानेंद्र सिंह जहां ईशा की खूबसूरती पर फिदा था, वहीं ईशा भी शरीर से हृष्टपुस्ट व स्मार्ट दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को देख कर उस की ओर आकर्षित हो गई थी. दोनों को एक अनजाना आकर्षण एकदूसरे की तरफ खींचने लगा था. दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को ईशा कुछ ज्यादा ही पसंद आ गई थी, इसलिए उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया था. वह जब तब ईशा से बातें करने लगा. ईशा को भी उस की रसभरी बातों में प्यार झलकता था. वह भी उस से खूब बातें करने लगी. धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं. बात आगे बढ़ी तो दोनों साथसाथ सैरसपाटे के लिए भी जाने लगे. ज्ञानेंद्र ईशा को फिल्म भी दिखाता और रेस्तरां में खाना भी खिलाता.

सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह पटेल मूल रूप से चित्रकूट जिले के मऊ थाना अंतर्गत आने वाले गांव छिवलहा का रहने वाला था. उस का सलेक्शन 2007 के बैच में हुआ था. उस की पहली पोस्टिंग कानपुर के किदवई नगर थाने की साकेत नगर पुलिस चौकी में हुई थी. इस के बाद वह कानपुर शहर और देहात के कई थानों में तैनात रहा. कुछ समय वह क्राइम ब्रांच में भी रहा. ज्ञानेंद्र सिंह नौकरी के अलावा प्लौटिंग का भी काम करता था. इस काम में उस ने खूब पैसा कमाया. उस के पास 4-5 लग्जरी कारें थीं, जिन्हें उस ने एक ट्रैवलिंग एजेंसी में लगवा रखा था. ज्ञानेंद्र सिंह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. उस की शादी मध्य प्रदेश स्थित सतना जिले की बछरांवा निवासी नीलम के साथ हुई थी.

पत्नी और बच्चों के साथ वह साकेत नगर, कानपुर में रह रहा था. जबकि ईशा से उस ने खुद को अविवाहित बताया था. एक रोज ज्ञानेंद्र सिंह ईशा के घर पहुंचा, तो उस वक्त वह घर में अकेली थी. उस के मातापिता किसी काम से माल रोड गए हुए थे, और भाईबहन कालेज में थे. ज्ञानेंद्र सिंह और ईशा कमरे में बैठ कर बातचीत करने लगे. बातोंबातों में ज्ञानेंद्र ने ईशा की खूबसूरती के कसीदे काढ़ने शुरू कर दिए. यह देख उस ने ज्ञानेंद्र की बेचैन आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘ज्ञानेंद्र, क्या सचमुच मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं? कहीं तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी झूठी तारीफ तो नहीं कर रहे?’’

ज्ञानेंद्र सिंह ने ईशा को चाहत भरी नजरों से देखा, वह उसे ही अपलक निहार रही थी. ज्ञानेंद्र ने महसूस किया कि दिल की बात कहने का ऐसा मौका मुश्किल से ही मिलेगा. इसलिए वह ईशा की कलाई थामते हुए बोला, ‘‘ईशा, मुझे तुम से प्यार हो गया है. तुम्हारे बगैर सबकुछ सूनासूना सा लगता है. मुझे लगता है कि तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए ऐसी ही फीलिंग्स हैं. अगर ऐसा है तो प्लीज मेरा प्यार स्वीकार कर लो.’’

‘‘ज्ञानेंद्र, तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे मुंह से ये शब्द सुनने के लिए कितनी बेकरार थी. कितनी देर लगा दी तुम ने अपने दिल की बात कहने में. मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं कि मैं तुम से कितना प्यार करती हूं. आई लव यू ज्ञानेंद्र.’’

उस दिन दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया, इस के बाद जैसे दोनों की दुनिया ही बदल गई. समय के साथ उन की मोहब्बत दिन दूनी रात चौगुनी परवान चढ़ती गई. ज्ञानेंद्र जब ड्यूटी पर होता तो ईशा से मोबाइल पर बातें करता और जब समय मिलता तो उस के साथ घूमताफिरता. इस तरह दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ गए कि उन्हें लगने लगा, अब एकदूसरे के बिना नहीं रहा जा सकता. अंतत: शुरुआत ईशा ने की. उस ने अपने दिल की बात घरवालों को बता कर ज्ञानेंद्र सिंह से शादी करने की इच्छा जाहिर की.

ईशा की बात सुन कर पहले तो उस की मां विनीता और पिता कौशलेश चौंके, लेकिन बाद में बेटी की खुशी के लिए राजी हो गए. दरअसल ईशा ने उन्हें समझाया था कि दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह उन की ही जातिबिरादरी का है. अच्छा कमाता है और पुलिस विभाग में अच्छे पद पर तैनात है. बेटी की मरजी जान कर वे लोग ईशा की शादी ज्ञानेंद्र से करने को राजी हो गए. सबइंसपेक्टर ज्ञानेंद्र से बात की गई तो उस ने बताया कि कुछ कारणों से उस ने अपने घर वालों से संबंध विच्छेद कर रखा है इसलिए उस के परिवार का कोई सदस्य शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.

बहरहाल, बातचीत के बाद कौशलेश ने 10 मार्च, 2013 को अपनी बेटी ईशा का विवाह ज्ञानेंद्र सिंह के साथ कर दिया. शादी के बाद ज्ञानेंद्र उसे साकेत नगर स्थित अपने घर ले गया. उस वक्त उस की पत्नी नीलम मायके गई हुई थी. इस के बाद ईशा ज्यादातर मायके में ही रही. वह उसे अपने घर तभी ले जाता था, जब नीलम मायके गई होती थी. बहरहाल, हंसीखुशी से एक वर्ष कब बीत गया, पता ही न चला. इसी बीच ईशा ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने सान्या रखा. सान्या के जन्म से जहां ईशा के जीवन में बहार आ गई थी, वहीं ज्ञानेंद्र खोयाखोया सा रहने लगा था. दिखावे के तौर पर तो वह उसे प्यार करता था, लेकिन अंदर ही अंदर परेशान रहता था.

ईशा और ज्ञानेंद्र में पहली बार तकरार तब शुरू हुई जब वह अपनी बेटी सान्या का बर्थडे सर्टिफिकेट बनवाने नगर निगम पहुंची. दरअसल, ज्ञानेंद ने सर्टिफिकेट में पिता की जगह अपना नाम लिखवाने से मना कर दिया था. इस बात को ले कर ईशा और ज्ञानेंद्र में काफी विवाद हुआ. यहीं से ईशा को ज्ञानेंद्र पर शक हुआ. जब ईशा ने गुप्त रूप से ज्ञानेंद्र के संबंध में जानकारी हासिल की तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे पता चला कि ज्ञानेंद्र शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता है. वह अपनी पत्नी नीलम और बच्चों के साथ कानपुर में ही रहता है. वह उसे तभी अपने घर ले जाता है, जब नीलम मायके गई होती है.

उस दिन देर रात ज्ञानेंद्र सिंह घर आया तो ईशा ने उस से पूछा, ‘‘मैं कौन हूं तुम्हारी. पत्नी, प्रेमिका या रखैल?’’

‘‘यह तुम कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो? तुम पत्नी हो मेरी.’’ ज्ञानेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘झूठ बोल रहे हो, तुम शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता हो. तुम्हारी पत्नी का नाम नीलम है, जिस के साथ तुम वैवाहिक जीवन बिता रहे हो. तुम फरेबी और धोखेबाज हो. प्यार का नाटक कर के तुम ने मुझे धोखा दिया और मुझ से शादी कर ली. लेकिन अब मैं चुप नहीं बैठूंगी. तुम्हारे खिलाफ लड़ाई लड़ूंगी. जरूरत पड़ी तो रिपोर्ट भी दर्ज कराऊंगी.’’

ज्ञानेंद्र सिंह समझ गया कि ईशा को असलियत का पता चल गया है, इसलिए उस ने माफी मांग ली. फिर बोला, ‘‘ईशा तुम मेरी दूसरी पत्नी बन कर रह सकती हो. मैं तुम्हें पूरा सम्मान दूंगा. कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा. चाहो तो अपने और बेटी के नाम पर जितना चाहे पैसा जमा करा सकती हो. मैं खुशीखुशी जमा कर दूंगा.’’

‘‘मिस्टर ज्ञानेंद्र, पत्नी दूसरी पहली नहीं होती. पत्नी सिर्फ पत्नी होती है. अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो अपनी पत्नी नीलम को तलाक दे दो.’’

‘‘उसे तलाक देना आसान नहीं है.’’ ज्ञानेंद्र ने मजबूरी जाहिर की तो ईशा बोली, ‘‘मेरा क्या होगा. यह सोचा है तुम ने? अपनी पत्नी और बच्चों की चिंता थी तो मेरे साथ प्यार का स्वांग कर के धोखे से शादी क्यों की? अगर तुम ने नीलम को तलाक नहीं दिया तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होगा. मैं जहर खा कर जान दे दूंगी या फिर तुम्हारे खिलाफ धोखाधड़ी से शादी रचाने और शारीरिक शोषण करने की रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी.’’

ईशा की धमकी सुन कर ज्ञानेंद्र सिंह अंदर तक कांप गया.वह तनाव में रहने लगा. ऐसी स्थिति में दोनों के बीच दूरियां बढ़ना स्वभाविक था. फलस्वरूप दोनों में आएदिन झगड़ा होने लगा. लड़झगड़ कर ईशा मायके आ गई. आखिरकार इस गंभीर समस्या के निदान के लिए दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह ने ईशा के कत्ल की योजना बना डाली. अपनी इस योजना में उस ने अपने साथी मनीष कठेरिया, उस के भाई बच्चा और मनीष के साथी अर्जुन व उस की प्रेमिका अवंतिका को शामिल कर लिया. मनीष कठेरिया किदवई नगर में रहता था. वह दबंग किस्म का आदमी था. साकेत नगर में उस की ‘टेलीकाम विला’ नाम से मोबाइल शौप तथा ‘बालाजी ट्रैवल्स’ के नाम से ट्रैवलिंग एजेंसी थी. इस के अलावा वह कमेटी भी चलाता था. पुलिस से दोस्ती करना उस का शौक था.

दर्जनों थानेदारों से उस के दोस्ताना संबंध थे. जिन्हें वह मुफ्त में मोबाइल फोन और आनेजाने के लिए लग्जरी गाडि़यां मुहैया कराता था. इस सेवा के एवज में वह अपने काम निकलवाता था. ज्ञानेंद्र सिंह जब साकेत नगर चौकी इंचार्ज था, तभी उस की दोस्ती मनीष से हुई थी. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती बढ़ती गई. अर्जुन जूही बारादेवी में रहता था और मनीष कठेरिया का दोस्त था. वह मनीष की ट्रैवलिंग एजेंसी में लग्जरी कार चलाता था. अर्जुन की प्रेमिका अवंतिका किदवई नगर में रहती थी. दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. मनीष कठेरिया ने ही अर्जुन और अवंतिका का परिचय दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह से कराया था. मनीष का भाई बच्चा गोविंद नगर में रहता था.

आर्थिक मदद के लिए वह मनीष के पास आता था. मनीष के कहने पर बच्चा हर काम करने के लिए तत्पर रहता था. मनीष की कमेटी का पैसा बच्चा ही वसूल किया करता था. वह हमेशा मारपीट पर आमादा रहता था. इसी बीच ज्ञानेंद्र सिंह का तबादला प्रतापगढ़ हो गया था. वहां वह आंसपुर (देवसरा) थाने में तैनात रहा. बाद में काम में लापरवाही बरतने के कारण उसे लाइन हाजिर कर दिया गया था. लाइन हाजिर होने के बाद वह पुलिस लाइन में ड्यूटी कर रहा था. ईशा की धमकी ने उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम कर दी थी. उसे पता था कि ईशा ने रिपोर्ट दर्ज करा दी तो उस की नौकरी तो जाएगी ही उसे जेल की हवा भी खानी पड़ेगी. इसलिए वह जल्द से जल्द ईशा का काम तमाम करना चाहता था. इस के लिए वह बराबर अपने दोस्तों से संपर्क बनाए हुए था. उस ने उन से मिल कर ईशा की हत्या की योजना बना ली थी.

अपनी योजना के तहत दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह 17 मई, 2015 को ईशा के घर नवीन नगर, काकादेव पहुंचा. वहां उस ने ईशा की मां, मौसी, मामा व अन्य घरवालों से माफी मांगी और वादा किया कि वह ईशा को शारीरिक या मानसिक पीड़ा नहीं पहुंचाएगा और जैसा वह कहेगी, वैसा ही करेगा. उस के कहने पर पहली पत्नी नीलम को तलाक भी दे देगा. उस ने यह भी कहा कि अगर किसी वजह से वह नीलम को तलाक न दे सका तो ईशा व उस की बेटी के भरणपोषण के लिए मोटी रकम देगा. ईशा के घरवालों ने इस समझौते को स्वीकार कर लिया. 18 मई, 2015 की शाम 4 बजे दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह अपने साथी मनीष कठेरिया के साथ लग्जरी कार से ईशा के घर पहुंचा और उस की मां विनीता के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, हम ईशा को कुष्मांडा देवी के दर्शन कराने ले जाना चाहते हैं. हमें आप की इजाजत चाहिए.’’

ईशा ज्ञानेंद्र की पत्नी थी, सो उन्हें क्या ऐतराज हो सकता था. लिहाजा उन्होंने ईशा को ज्ञानेंद्र के साथ जाने की इजाजत दे दी. ईशा व ज्ञानेंद्र को रात 8 बजे तक मंदिर से वापस आ जाना चाहिए था. लेकिन जब दोनों रात 10 बजे तक वापस नहीं आए तो ईशा की मां विनीता सचान को चिंता हुई. उन्होंने ईशा और ज्ञानेंद्र से मोबाइल पर बात करनी चाही, लेकिन दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ थे. रात भर विनीता बेटी के आने का इंतजार करती रहीं, लेकिन वह वापस नहीं लौटी. सुबह को परेशानहाल विनीता सचान थाना काकादेव पहुंचीं. थाने पर उस समय थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव मौजूद थे. उन्होंने सारी बात बताते हुए रिपोर्ट दर्ज करने की गुहार लगई. लेकिन विभाग का मामला होने की वजह से पुलिस ने उन्हें टरका दिया. इस पर विनीता सचान डीआईजी आशुतोष पांडेय से मिलीं और शक जताते हुए रिपोर्ट दर्ज कराने की विनती की.

डीआईजी आशुतोष पांडेय को मामला गंभीर लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी उदय प्रताप को तत्काल रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दे दिया. आदेश मिलते ही उदय प्रताप ने विनीता सचान की ओर से भादंवि की धारा 364 के तहत दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. 20 मई को काकादेव थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव को कौशांबी के थाना महेवाघाट द्वारा एक युवती की सिर विहीन लाश मिलने की सूचना दी गई. शक के आधार पर थानाप्रभारी विनीता सचान, उन के पुत्र ऐश्वर्य राज व अन्य घरवालों के साथ महेवाघाट थाना पहुंचे. पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी थी. विनीता सचान ने जब उस लाश को देखा तो वह फफक कर रो पड़ीं. यह लाश उन की बेटी ईशा की ही थी. विनीता ने लाश की पहचान ईशा के हाथ में बंधी कलाई घड़ी तथा बांह पर गुदे लव आकार के टैटू से की थी.

लाश की शिनाख्त होने पर महेवाघाट थाना पुलिस ने अपने यहां दर्ज हत्या के मामले को थाना काकादेव, कानपुर ट्रांसफर कर दिया. चूंकि ईशा की लाश की शिनाख्त हो चुकी थी, इसलिए काकादेव पुलिस ने अपहरण के इस मामले में धारा 302/201/120बी और जोड़ दी. साथ ही विनीता के बयान के आधार पर ज्ञानेंद्र सिंह के साथसाथ बच्चा, मनीष कठेरिया, अर्जुन और उस की कथित पत्नी अवंतिका को भी आरोपी बना दिया. चूंकि यह मामला पुलिस के एक दरोगा से जुड़ा था इसलिए डीआईजी आशुतोष पांडेय ने ईशा के हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने, कत्ल में प्रयुक्त हथियार और सिर बरामद करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सीओ स्वरूप नगर आतिश कुमार, क्राइम ब्रांच के सीओ अमित कुमार राय, प्रभारी आर.के. सक्सेना तथा काकादेव थानाप्रभारी उदय प्रताप यादव को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ज्ञानेंद्र, बच्चा, मनीष कठेरिया तथा उस के साथी अर्जुन के ठिकानों पर ताबड़तोउ़ छापे मारे. लेकिन सभी आरोपी फरार थे. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही करीब एक दर्जन लोगों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. निर्दोष पाए जाने पर बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. पुलिस टीम को ईशा के मोबाइल की लोकेशन आगरा में मिली. पुलिस टीम आगरा गई और हाइवे के एक ढाबे के कर्मचारी से ईशा का मोबाइल बरामद कर लिया. उस कर्मचारी ने बताया कि कुछ लोग यह मोबाइल खाना खाने के बाद मेज पर छोड़ गए थे. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि हत्यारोपियों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए ऐसा किया होगा.

25 मई, 2015 को पुलिस टीम ने हत्यारोपी अर्जुन व उस की प्रेमिका अवंतिका को छपेड़ा पुलिया, काकादेव से कार सहित गिरफ्तार कर लिया. अर्जुन अपनी प्रेमिका को स्विफ्ट डिजायर कार से घुमाने बिठूर जा रहा था. यह कार मनीष कठेरिया की थी. अर्जुन और अवंतिका के पास से ईशा का एक कंगन भी बरामद हुआ. पूछताछ में अर्जुन ने बताया कि घटना वाले दिन शाम 4 बजे ज्ञानेंद्र सिंह स्विफ्ट कार से ईशा के घर पहुंचा था. उस वक्त कार में मनीष और उस का भाई बच्चा भी मौजूद था. ईशा को साथ ले कर तीनों नौबस्ता आए. मनीष ने उसे व अवंतिका को फोन कर के वहीं बुला लिया.

सभी 6 लोग 2 गाडि़यों के साथ विधनू, घाटमपुर, फतेहपुर होते हुए कौशांबी की ओर बढ़े. रास्ते में एक सुनसान जगह पर ज्ञानेंद्र ने गाड़ी रोक दी. उसी वक्त मनीष ने ईशा को दबोच लिया और ज्ञानेंद्र ने तेज धार वाले चाकू से ईशा का सिर धड़ से अलग कर दिया. धड़ से खून का फव्वारा छूटा तो मनीष ने अपनी शर्ट उतार कर सिर को धड़ से बांध दिया. फिर ईशा के शरीर से कपड़े और जेवर उतार कर सिर को यमुना नदी में तथा धड़ को महेवाघाट यमुना पुल के पास फेंक दिया. तत्पश्चात गाड़ी की अदलाबदली कर के तथा कंगन दे कर उसे वापस भेज दिया गया. मनीष, बच्चा व दरोगा ज्ञानेंद्र दूसरी गाड़ी से कहीं चले गए. अर्जुन व अवंतिका का बयान दर्ज करने के बाद काकादेव पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया.

अब पुलिस टीम ने शातिर दिमाग ज्ञानेंद्र सिंह, उस के साथी मनीष कठेरिया व बच्चा को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया. इस से घबरा कर 30 मई को मनीष कठेरिया ने सीजेएमएम मीना श्रीवास्तव की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे 3 दिनों की रिमांड पर ले लिया. मनीष से कोहना व किदवई नगर थाने में कड़ाई से पूछताछ की गई, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की मां उषा को थाने बुलवा लिया. दोनों को आमनेसामने बैठा कर पुलिस टीम ने पूछताछ शुरू की. जबान न खुलने पर पुलिस ने उस की मां उषा को जेल भेजने की धमकी दी. इस धमकी से मनीष टूट गया और उस ने जबान खोल दी.

वह पुलिस टीम को महेवाघाट थाना क्षेत्र ले गया. वहां उस ने एक गड्ढे से मृतक ईशा का पर्स व सोने का एक कंगन बरामद करा दिया. पर्स में कुछ नकदी व जरूरी कागजात थे. पुलिस टीम ने यहीं से मनीष की खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली, जिसे उस ने हत्या के बाद खून रोकने के लिए इस्तेमाल किया था. बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने मनीष को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. मनीष को जेल भेजने के बाद पुलिस टीम ने ईशा की हत्या के मुख्य आरोपी दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को पकड़ने की कवायद शुरू की. एसएसपी शलभ माथुर ने उसे पकड़ने के लिए 12 हजार का ईनाम घोषित कर दिया था. लेकिन दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह पुलिस की हर युक्ति को धता बता कर 8 जून को कोर्ट में हाजिर हो गया. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम हाथ मलती रह गई.

दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह द्वारा आत्मसमर्पण की बात कानपुर कोर्ट में फैली तो वकीलों का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. वे झुंड बना कर सीजेएमएम कोर्ट जा पहुंचे. पुलिस जब ज्ञानेंद्र को ले जाने लगी तो वकील उस पर टूट पड़े और उसे लातघूंसों से जम कर पीटा, उन्होंने उस के कपड़े फाड़ दिए और मुंह पर थूका. बड़ी मसक्कत के बाद पुलिस उसे जेल ले जा सकी. कत्ल में इस्तेमाल हथियार और मृतका का सिर बरामद करने के लिए पुलिस टीम ने दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को 17 जून को 2 दिनों के रिमांड पर लिया. काफी जद्दोजहद के बाद ज्ञानेंद्र सिंह ने मुंह खोला. वह पुलिस टीम को महेवाघाट, कौशांबी में यमुना नदी के दूसरी तरफ ले गया, जहां उस ने जमीन में गड़े सर्जिकल चाकू, ईशा का मंगलसूत्र, चेन और अंगूठी बरामद कराई. ईशा के सिर के संबंध में पूछने पर ज्ञानेंद्र ने बताया कि उसे यमुना नदी की तेज धारा में फेंक दिया गया था.

सिर को बरामद करने के लिए पुलिस ने यमुना नदी में जाल डलवाया, लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका था. पुलिस पूछताछ में ज्ञानेंद्र ने बताया कि ईशा उस पर पहली पत्नी नीलम को तलाक देने का दबाव बना रही थी. जिस से परेशान हो कर उस ने उसे ठिकाने लगा दिया. वह उसे मंदिर दर्शन कराने के बहाने ले गया था. रास्ते में कार के भीतर ही उस का काम तमाम कर दिया गया. फिर धड़ को महेवाघाट थाने के पास यमुना नदी के पास फेंक दिया गया और सिर यमुना नदी में. वारदात के वक्त मनीष कठेरिया, उस का भाई बच्चा, अर्जुन तथा उस की प्रेमिका अवंतिका उस के साथ थे.

19 जून, 2015 को काकादेव पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर अभियुक्त ज्ञानेंद्र सिंह को सीजेएमएम मीना श्रीवास्तव की कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी. अभियुक्त बच्चा फरार था. Hindi stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suspense Story: जहरीलों निगाहों का निशाना

Suspense Story: प्रगट मसीह ने सुमन से शादी सिर्फ इसलिए की थी, क्योंकि उस की मां के पास लाखों का मकान था. इस के बाद प्रगट ने उस मकान को हासिल करने के लिए ऐसा क्या किया कि उसे जेल जाना पड़ा?

‘‘सा हब, मेरे बेटे को ढूंढ दीजिए. मैं गरीब विधवा औरत हूं, मेरे बेटे के सिवाय मेरा कोई और सहारा नहीं है.’’ कृष्णा नामक एक विधवा औरत ने थाना सदर के अंतर्गत पड़ने वाली पुलिस चौकी मरांडो के प्रभारी बलबीर सिंह के पास जा कर गुहार लगाई. कृष्णा के साथ समाजसेवक सरदार प्रगट सिंह भी थे, जो ग्राम प्रधान भी थे. चौकीप्रभारी ने पूरी बात विस्तार से बताने के लिए कहा तो कृष्णा ने बताया कि वह न्यू गुरु तेगबहादुर नगर के मकान नंबर 15 में रहती है. काफी समय पहले उस के पति मगट सिंह की मृत्यु हो चुकी है. उस की 2 संताने हैं, एक 32 वर्षीय बेटा वीर सिंह, दूसरी 28 वर्षीया बेटी सुमन. 7 साल पहले सुमन की शादी प्रगट मसीह के साथ हुई थी.

कृष्णा ने आगे बताया, ‘‘मेरे घर पर केवल मैं और मेरा बेटा वीर सिंह ही रहते थे. 27 जुलाई, 2014 को वीर सिंह कोल्डड्रिंक पीने के लिए गली के कोने तक गया. उस के बाद लौट कर नहीं आया. मैं ने उस की तलाश उन जगहों पर कर ली है, जहां उस के मिलने की संभावना थी. इसलिए साहब, आप से निवेदन है कि आप मेरे बेटे को ढूंढने में मेरी मदद करें.’’

यह 28 जुलाई, 2014 की बात है. चौकीप्रभारी बलबीर सिंह ने समाजसेवक सरदार प्रगट सिंह और कृष्णा देवी के बयान के आधार पर वीर सिंह की गुमशुदगी दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. लेकिन वह किसी नतीजे पर पहुंच पाते इस के पहले ही उन का तबादला हो गया. उन की जगह चौकी का प्रभार एएसआई निशान सिंह ने संभाला. निशान सिंह ने गुमशुदा वीर सिंह के फोटो की कौपी सभी थानों को भेज दी. लुधियाना व निकटवर्ती शहर के थानों को वीर सिंह का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज करवा दिए गए. इस के बावजूद वीर सिंह का कोई सुराग नहीं मिला.

निशान सिंह ने वीर सिंह के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. उन के अनुसार वीर सिंह सीधासादा मंदबुद्घि इंसान था. अब तक की गई तफ्तीश से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि वीर सिंह का अपहरण नहीं हुआ था. ऐसे में एक संभावना यह बनती थी कि मंदबुद्धि होने की वजह से वह खुद ही कहीं चला गया हो. इस के अलावा एक संभावना यह भी थी कि कहीं किसी दुश्मनी की वजह से किसी ने उसे न उठा लिया हो. बहरहाल, निशान सिंह ने समाजसेवक प्रगट सिंह से इस बारे में बात की तो एक नई बात यह पता चली कि लापता होने वाले दिन वीर सिंह अपने बहनोई प्रगट मसीह के साथ बाइक पर बैठ कर कहीं जाते देखा गया था. मोहल्ले में की गईं पूछताछ के दौरान एक प्रौपर्टी डीलर ने यह भी बताया कि कृष्णा देवी अपना मकान बेचना चाहती थीं.

इस बारे में निशान सिंह ने जब कृष्णा से पूछा तो उस ने इस बात से इनकार करते हुए बताया कि उस ने अपना मकान बेचने की बात कभी नहीं की. हां, उस का दामाद प्रगट मसीह उस पर मकान बेचने के लिए दबाव जरूर डाल रहा था. यहां तक कि उस का बेटा वीर सिंह भी इस बात का विरोध कर रहा था. इन 2 लोगों के बयानों से इस केस की जांच को नई दिशा मिल गई. निशान सिंह का शक विश्वास मे बदलने लगा. उन्होंने प्रगट मसीह की तलाश काररवाईं तो वह घर से फरार मिला. इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. आखिर कई महीनों की मेहनत के बाद 25 मार्च, 2015 को प्रगट मसीह को मलेरकोटला रोड से गिरफ्तार कर लिया गया. उस से पूछताछ के बाद निशान सिंह ने उस की निशान देही पर गांव लोहारा में दबिश दे कर उस के साथी निर्मल सिंह उर्फ मिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद हुई पूछताछ के दौरान दोनों ने हर अपराधी की तरह अपने आप को निर्दोष बताया, लेकिन जब निशान सिंह ने थोड़ी सख्ती की तो दोनों की जुबान खुल गई. अपना अपराध स्वीकार करते हुए प्रगट मसीह ने जो कहानी बताई, वह प्रेम और विश्वास में धोखा देने वाले एक धूर्त इंसान की शर्मनाक कहानी थी. मगट सिंह व उन की पत्नी कृष्णा देवी निहायत ही शरीफ और सीधेसादे लोग थे. उन की 2 संतानें थीं, बेटा वीर सिंह और बेटी सुमन. वीर सिंह मंदबुद्धि था. उसे पागल कहना बेईमानी होगी, क्योंकि वह जो भी काम करता था, उसे भले ही धीरेधीरे करे, लेकिन काफी सोचविचार कर करता था. मगट सिंह ने दोनों बच्चों की पढ़ाई का पूरा खयाल रखा. उस वक्त वह पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में लिपिक थे. घरपरिवार अच्छे से चल रहा था.

सन 2001 में मगट सिंह अपनी नौकरी से रिटायर हो गए. रिटायरमेंट में उन्हें अच्छाखासा पैसा मिला. उन पैसों से उन्होंने गिल गांव की हरगोविंद कालोनी में 100 गज का प्लौट खरीद कर अपना मकान बना लिया. फिलहाल इस मकान की कीमत लाखों में है. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक एक सुबह सैर करते समय प्रगट सिंह फिसल कर गिर गए. उन की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई. वह बिस्तर पर पड़ गए. उन का चलनाफिरना बंद हो गया. वक्त का पहिया ऐसा उल्टा घूमा कि उन्होंने एक बार बिस्तर पकड़ा तो फिर वह उन की मौत के बाद ही छूट पाया. उन की मौत के बाद कृष्णा देवी ने अकेले ही अपने दम पर बच्चों की परवरिश की. मंदबुद्धि होने के कारण वीर सिंह ज्यादा नहीं पढ़ सका, इसलिए कृष्णा ने उसे मशीन का काम सीखने पर लगा दिया.

कृष्णा की बेटी सुमन जवान हो चुकी थी. उसी दौर में उस की मुलाकात प्रगट मसीह से हुई. दरअसल सुमन को पास वाले गांव में अपनी किसी सहेली के विवाह समारोह में जाना था. वह मेन रोड पर खड़ी हो कर आटो का इंतजार कर रही थी. सर्दियों के दिन थे, ऊपर से हलकीहलकी बूंदाबांदी हो रही थी. काफी इंतजार के बाद भी उसे कोई साधन नहीं मिला. बारिश की वजह से सुमन के कपड़े भीगने लगे थे कि तभी सुमन के पास एक कार आ कर रुकी. ड्राइविंग सीट पर बैठा युवक प्रगट मसीह था. उस ने सुमन से बड़ी शालीनता से कहा, ‘‘आइए, मैं आप को छोड़ देता हूं.’’

संकोचवश सुमन ने एक बार तो मना कर दिया, पर मौसम का मिजाज और प्रगट मसीह की शालीनता देख कर उस ने बात मान ली. वह कार में बैठ गई. प्रगट मसीह ने उसे उस की सहेली के गांव पहुंचाया ही नहीं, बल्कि अगले दिन सहेली के घर से वापस भी ले आया. प्रगट मसीह के इस व्यवहार से सुमन काफी प्रभावित हुई. इस मुलाकात के बाद रास्ते में आतेजाते कहीं न कहीं प्रगट मसीह सुमन को दिखाई देने लगा. दोनों मिलते तो 2-4 बातें भी हो जातीं. सुमन भी धीरेधीरे उस की ओर आकर्षित होने लगी. फिर जल्दी ही वह दिन भी आ गया जब एक दिन दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया.

इस के बाद दोनों की रोजाना कहीं न कहीं मुलाकातें होने लगीं. जल्दी ही दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. सुमन की मां कृष्णा इस के पक्ष में नहीं थी, वह उस की शादी अपनी बिरादरी में करना चाहती थी, किसी ईसाई के साथ नहीं. लेकिन सुमन हर हाल में प्रगट मसीह से ही शादी करना चाहती थी. अंतत: उस ने मां से विद्रोह कर के अप्रैल, 2007 में प्रगट मसीह के साथ कोर्टमैरिज कर ली. दरअसल, कहानी वह नहीं थी, जो प्रत्यक्ष में दिखाई दे रही थी. हकीकत में प्रगट मसीह लोहरा गांव निवासी पाल सिंह का बेटा था. वह बचपन से ही आवारा और आपराधिक प्रवृत्ति का था, वह बिना हाथपैर हिलाए खूब पैसा कमाना चाहता था. युवा होते ही उस ने आवारा दोस्तों की एक मंडली बना ली थी और उन के साथ शराबजुआ चोरीचकारी आदि करता रहता था.

सुमन से उस की मुलाकात इत्तफाक से नहीं, बल्कि सोचीसमझी योजना के तहत हुई थी. प्रगट ने कालोनी के बसस्टौप पर सुमन को खड़ी देखा था. उस ने अपने दोस्तों से जब उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘गुरु, यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि इस की मां विधवा है. भाई मंदबुद्धि और इन का मकान लाखों रुपए का है. अगर इस चिडि़या को जाल में फांस लो तो समझो लाखों रुपए का मकान तुम्हारा.’’

बस, उसी दिन से वह सुमन को अपने जाल में फांसने की योजना बनाने लगा. सुमन अपनी सहेली की शादी में पास के गांव जाएगी, यह बात प्रगट मसीह को पहले ही पता लग गई थी. इसीलिए वह सुमन को लिफ्ट देने और उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अपने एक दोस्त की कार मांग लाया था. बहरहाल, सुमन से शादी होने के बाद प्रगट मसीह सुमन के घर पर ही रहने लगा. जबकि यह बात न सुमन को अच्छी लगती थी और न उस की मां को. इस बात को ले कर घर में क्लेश शुरू हो गया. धीरेधीरे झगड़ा इतना बढ़ा कि मजबूरन प्रगट मसीह को अपनी ससुराल छोड़ कर अपने घर लोहारा जाना पड़ा.

समय अपनी गति से चलता रहा. इसबीच एकएक कर सुमन 5 बच्चों की मां बन गई. प्रगट मसीह को जब भी मौका मिलता, वह अपनी सास कृष्णा देवी पर दबाव डालता कि वह यह मकान बेच कर चंडीगढ़ रोड पर मकान ले ले. पर कृष्णा उस की बातों में कभी नहीं आई. इस के बावजूद प्रगट ने इलाके के कई प्रौपर्टी डीलरों को मकान बेचने के लिए कह रखा था. प्रगट मसीह और सुमन की शादी को लगभग 7 साल हो चुके थे. मकान हथियाने के जिस मकसद से प्रगट सुमन से शादी की थी, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ था. आखिर उस ने अपना मकसद पूरा करने के लिए एक योजना बनाई. अपनी योजना में उस ने अपने दोस्त निर्मल सिंह उर्फ मिठू को भी शामिल कर लिया था. निर्मल पेंटर का काम करता था. प्रगट ने योजना पूरी होने के बाद उसे एक लाख रूपए देने का वादा किया था.

अपनी योजना को अंजाम देने के लिए प्रगट ने 28 जुलाई, 2014 की तारीख तय की और निर्मल के साथ घात लगा कर अपनी ससुराल वाली गली के नुक्कड़ पर बैठ गया. उस समय शाम का वक्त था और वह जानता था कि उस का साला इस वक्त टहलने और कोल्डड्रिंक पीने गली से निकल कर रोड तक आता है. वीर सिंह जैसे ही दुकान पर कोल्डड्रिंक पी कर मुड़ा, प्रगट मसीह ने उसे आवाज दे कर रोक लिया और घुमाने के बहाने बाइक पर बैठा कर नहर की ओर चल दिया. बाइक प्रगट मसीह खुद चला रहा था. बीच में वीर सिंह और पीछे निर्मल सिंह बैठा था. रास्ते में बाइक रोक कर प्रगट मसीह ने शराब खरीद ली.

घवदी नहर पर आगे जा कर प्रगट मसीह ने बाइक रोक ली उस के बाद वहीं बैठ कर तीनों ने शराब पी. वीर सिंह को नशा हो गया तो निर्मल सिंह की मदद से उस ने अंगोछे से वीर सिंह का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. तत्पश्चात दोनों ने मिल कर उस की लाश नहर में फेंक दी और वापस लौट आए. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह अपनी सास व प्रधान के साथ मिल कर वीर सिंह की तलाश का नाटक करता रहा. एएसआई निशान सिंह ने प्रगट मसीह और निर्मल सिंह के बयान दर्ज कर के दोनों को 25 मार्च, 2015 को मैडम अमनदीप कौर की अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान दोनों अभियुक्तों की निशानदेही पर मृतक वीर सिंह का पर्स, आधार कार्ड, अंगोछा और बाइक बरामद कर ली गई.

रिमांड की अवधि समाप्त होने पर 27 मार्च, 2015 को दोनों को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला भेज दिया गया. चूंकि अब वीर सिंह की हत्या हो चुकी थी, इसलिए अपहरण की धारा 365 के साथ हत्या की धारा 302, 201, 34 और जोड़ दी गईं. एएसआई निशान सिंह ने नहर में बड़ी दूर तक जाल डलवा कर वीर सिंह की लाश तलाशने का प्रयास किया, पर कथा लिखे जाने तक लाश बरामद नहीं हो सकी थी. शायद पानी के तेज बहाव के कारण लाश दूर तक चली गई थी. Suspense Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime: सीमा के स्वप्न संसार में सेंध

UP Crime: महत्त्वाकांक्षी होना बुरी बात नहीं है, लेकिन अतिमहत्त्वाकांक्षा हमेशा कष्टदायी होती है. सीमा अगर खुद पर नियंत्रण रख कर अपने पति पर भरोसा रखती तो उस का और उस के परिवार का ऐसा भयानक अंजाम कभी न होता.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के कस्बा बकेवर के रहने वाले रामलाल तोमर के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व 3 बेटियां थीं, जिन में सीमा सब से बड़ी थी. वह अपने भाई बहनों से हर मामले में तेज थी. पढ़नेलिखने में भी वह पीछे नहीं थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. सीमा जब जवान हुई तो उस के मातापिता को उस की शादी की चिंता होने लगी.  रामलाल तोमर ने सीमा के लिए रिश्ता देखना शुरू किया तो औरैया के मोहल्ला आर्यनगर का राकेश उर्फ राजू उन्हें पसंद आ गया. पेशे से ड्राइवर राजू का अपना मकान था. देखने में भी वह हृष्टपुष्ट था. उस का एक ही भाई था नरेश, जो प्राइवेट नौकरी करता था. लड़का भी ठीक था और उस का परिवार भी. रामलाल तोमर ने बेटी का रिश्ता उस के साथ तय कर दिया.

सीमा खूबसूरत लड़की थी. राकेश को भी वह पसंद आ गई. फलस्वरूप दोनों की शादी हो गई. यह सन 2006 की बात है. गोरा रंग, भरा हुआ चेहरा, कटीले नैननक्श, छरहरा बदन, ऊपर से भरपूर जवानी. राकेश को लगा जैसे सीमा के रूप में उसे हूर मिल गई है. वह उस की खूबसूरती में डूब कर रह गया. सीमा भी राकेश को पा कर खुश थी. दोनों का जीवन हंसीखुशी से कटने लगा. परिवार की स्थिति के अनुसार जीवन की लगभग हर आर्थिक जरूरत पूरी हो रही थी. विवाह के शुरुआती दिनों में तो पतिपत्नी दोनों खूब खुश थे, लेकिन जब जिम्मेदारियां बढ़ीं तो धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण कम होने लगा. वक्त के साथ राकेश को लगने लगा कि सीमा कुछ ज्यादा ही महत्त्वाकांक्षी औरत है.

वजह यह थी कि अब वह राकेश से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी थी. जबकि ड्राइवरी कर के अपने परिवार का बोझ उठाने वाले राकेश के लिए उस की फरमाइशें पूरा करना आसान नहीं था. लेकिन यह बात सीमा की समझ में नहीं आती थी. वह पति की मजबूरी समझने के बजाय उस से लड़ाईझगड़ा करने लगती थी. सीमा के इसी स्वभाव की वजह से दोनों के दांपत्य जीवन में कटुता आने लगी. फिर भी विषम परिस्थितियों के बावजूद वक्त अपनी चाल चलता रहा. इस बीच सीमा एक बेटी हिना और एक बेटे रूपेश की मां बन गई थी.

सीमा अपने बच्चों का पालनपोषण अच्छी तरह से करना चाहती थी. वह उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहती थी, लेकिन राकेश की सीमित आय में यह संभव नहीं था. सीमा बच्चों की परवरिश और उन की पढ़ाईलिखाई को ले कर अकसर पति से झगड़ती रहती थी. रोजरोज के झगड़े से राकेश तनाव में रहने लगा था. इस तनाव को दूर करने के लिए उस ने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया था. दिन भर के कामकाज से थका मादा राकेश अब ज्यादातर नशे में धुत हो कर देर रात घर लौटता था. घर आ कर वह थोड़ाबहुत खाना खाता और बिस्तर पर लुढक जाता. सीमा अभी जवान थी, उस की रातें बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरतीं. उस का मन करता था कि उस का पति उसे प्यार करे, उस की शारीरिक जरूरतों को पूरा करे. लेकिन राकेश की उपेक्षा की वजह से वह मन मार कर रह जाती थी.

आर्यनगर मोहल्ले में ही सीमा के घर से कुछ दूरी पर सुरेश शर्मा का अपना मकान था, जहां वह सपरिवार रहता था. सुरेश शर्मा प्रौपर्टी डीलर था, साथ ही जरूरतमंदों को ब्याज पर पैसा भी देता था. उस ने अपने घर के भूतल पर प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस बना रखा था. उस का काम अच्छा चल रहा था. एक दिन अचानक सीमा की बेटी हिना की तबियत खराब हो गई. उसे नर्सिंगहोम में भरती कराना पड़ा. सीमा को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह अपने पति राकेश के साथ प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा के औफिस जा पहुंची. खूबसूरत सीमा को देख कर सुरेश के दिल में हलचल मच गई. उस ने आने का कारण पूछा तो सीमा बोली, ‘‘शर्माजी, मेरी बेटी हिना अस्पताल में भरती है. मुझे 10 हजार रुपए चाहिए.’’

सुरेश शर्मा गोरी रंगत व तीखे नयननक्श वाली सीमा के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप जरूरतमंद हैं और मैं जरूरतमंदों को कभी निराश नहीं करता, लेकिन आप को मूल के साथसाथ ब्याज भी देना होगा.’’

‘‘यह मेरे पति राकेश हैं, ड्राइवर की नौकरी करते हैं. हम आप की पाईपाई चुका देंगे.’’ सीमा ने गारंटी सी दी.

सुरेश शर्मा सोचने लगा, ‘इतनी खूबसूरत औरत एक मामूली ड्राइवर की बीवी. इसे तो किसी उस जैसे दौलतवाले की होना चाहिए.’

सोचविचार कर शर्मा सीमा के पति से मुखातिब हुआ, ‘‘क्यों भाई राजू, तुम्हारी बीवी जो वादा कर रही है, उसे पूरा करोगे?’’

‘‘हां शर्माजी, मैं वादा करता हूं कि आप का पैसा ब्याज समेत चुका दूंगा.’’ राजू हाथ जोड़ कर बोला.

‘‘फिर ठीक है.’’ कह कर शर्मा ने 10 हजार रुपए सीमा को दे दिए. सीमा तो पैसे ले कर चली गई, लेकिन सुरेश शर्मा के दिल में खलबली मचा गई. दरअसल वह पहली ही नजर में उस के दिलोदिमाग पर छा गई थी. फलस्वरूप वह उसे हासिल करने के लिए तानेबाने बुनने लगा. उस ने थोड़ी छानबीन की तो उसे पता चला कि सीमा का पति राकेश शराब का लती है. सुरेश शर्मा खुद भी शराब का शौकीन था. उस ने कोशिश की तो पीनेपिलाने के नाम पर जल्द ही दोनों की दोस्ती हो गई. बस फिर क्या था, दोनों की राकेश के घर में महफिल जमने लगी. पीनेपिलाने के दौरान सुरेश शर्मा की नजरें सीमा पर ही टिकी रहती थीं.

30 वर्षीया सीमा 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन उस की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी. उस का गोरा रंग, मांसल शरीर तथा बड़ीबड़ी आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थीं. वह सजसंवर कर आंखों पर काला चश्मा पहन कर जब घर से निकलती तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. अधेड़ उम्र का सुरेश शर्मा सीमा का दीवाना बन गया था. अपनी दीवानगी के चलते जबतब उस ने सीमा के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. वह जब भी आता, बच्चों और सीमा के लिए कुछ न कुछ ले कर आता. वह सीमा से लच्छेदार बातें करता, जो उसे बहुत अच्छी लगतीं. रहीबची कमी उस के लाए उपहार पूरी कर देते. फलस्वरूप धीरेधीरे वह भी सुरेश शर्मा की ओर आकर्षित होने लगी.

सीमा महत्त्वाकांक्षी औरत थी. उसे लगा कि धनाढ्य सुरेश शर्मा के माध्यम से उस की महत्त्वाकांक्षा पूरी हो सकती है. एक रोज जब सुरेश शर्मा उस के घर आया तो वह उस के सामने खुलेपन से पेश आई. बातोंबातों में उस ने कहा, ‘‘शर्माजी, मेरी एक चाहत है. अगर आप चाहें तो पूरी कर सकते हैं.’’

सही मौका देख सुरेश शर्मा उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘बोलो, क्या चाहती हो?’’

‘‘मेरे पति राकेश दूसरे की वैन चलाते हैं. नौकरी से घर का खर्चा नहीं चल पाता. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें एक वैन खरीदवा दें. कमाई का आधा रुपया वह आप को देंगे और बाकी रुपए से घर का खर्च चलता रहेगा.’’

सीमा की डिमांड बड़ी थी. सुरेश शर्मा खामोश हो गया. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘सीमा वाकई चालाक औरत है. अभी पिछला कर्ज चुका नहीं पाई, दूसरी बड़ी डिमांड कर दी. लेकिन वह भी प्रौपर्टी डीलर है. घाटे का सौदा नहीं करेगा. सीमा कर्ज नहीं चुका पाएगी तो वह उस के शरीर से वसूल कर लेगा.’

सुरेश शर्मा को खामोश देख कर सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है शर्माजी, आप को तो सांप सूंघ गया. कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. मैं तो वैसे ही आप की एहसानमंद हूं. आप ने मदद न की होती तो पता नहीं मेरी बेटी का क्या हाल होता.’’

‘‘नहीं…नहीं सीमा, तुम निराश मत हो. तुम्हारी चाहत पूरी होगी.’’ इस के बाद महीना बीतते सुरेश शर्मा ने सीमा के पति राकेश को वैन खरीद कर दे दी. वैन पा कर राकेश शर्मा खुशी से झूम उठा. उस ने वैन को एक अंगे्रजी माध्यम स्कूल में अटैच करा लिया. दिन में वह बच्चों को ढोता और रात में शादी समारोह या बुकिंग पर चला जाता. इस तरह वह दोहरी कमाई करने लगा. कमाई बढ़ी तो घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक हो गई. सुरेश शर्मा वैन की कमाई के रुपए लेने अकसर सीमा के घर आता रहता था. पहले वह आता था तो गंभीर बना रहता था. लेकिन अब वह सीमा से हंसीमजाक के साथ उस के शरीर से हलकीफुलकी छेड़छाड़ भी कर लेता था. सीमा न उस के मजाक का बुरा मानती थी, न शारीरिक छेड़छाड़ का.

कहते हैं, औरत मर्द की निगाहों की बेहद पारखी होती है. सीमा भी समझ गई थी कि प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा उस से क्या चाहता है. सीमा का पति बिस्तर पर उस का साथ नहीं देता था. वह शराब पी कर देर रात घर आता और खापी कर चारपाई पर लुढ़क जाता. वह रात भर तड़पती रहती. यही वजह थी कि जब सुरेश शर्मा ने उस से शारीरिक छेड़छाड़ शुरू की तो उस ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. एक दिन एकांत पा कर सुरेश शर्मा ने जब सीमा को छेड़ा तो वह स्वयं को रोक नहीं सकी और मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘शर्माजी, आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मैं तो तुम्हें चाहता हूं.’’ सुरेश शर्मा ने आगे बढ़ कर सीमा के कंधों पर हाथ रखते हुए मादक स्वर में कहा. उस वक्त उस के स्वर में ही नहीं, आंखों में भी मादकता तैर रही थी. सीमा चाह कर भी सुरेश शर्मा के हाथ को अपने कंधों से नहीं हटा सकी. सुरेश शर्मा का हौसला बढ़ा तो वह उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. फिर उस ने सीमा को अपनी बांहों में भर लिया. सीमा भी उस से लिपट गई. इस के बाद दोनों तभी अलग हुए, जब उन के चेहरों पर पूर्ण संतुष्टि के भाव उभर आए.

सुरेश शर्मा और सीमा के बीच जब एक बार नाजायज रिश्ते बन गए तो फिर यह सिलसिला दिनोंदिन बढ़ता ही गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकदूसरे में समा जाते. शर्मा से शारीरिक सुख मिलने लगा तो सीमा ने पति को दिल से ही निकाल दिया. वह केवल प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा की हो कर रह गई. कहते हैं, पाप कितना भी छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन उजागर हो ही जाता है. धीरेधीरे सुरेश शर्मा और सीमा के अवैध रिश्तों को ले कर पासपड़ोस में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस बात की भनक राकेश तोमर को लगी तो उस का माथा ठनका. उसे अपनी बीवी पर शक तो पहले से ही था, लेकिन लोगों की चर्चाओं ने उस के शक को पक्का कर दिया.

राकेश दोनों को रंगेहाथ पकड़ना चाहता था. इसलिए उस ने गुप्तरूप से सुरेश शर्मा और सीमा पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक शाम राकेश यह कह कर घर से निकला कि वह वैन ले कर बुकिंग पर जा रहा है. अब वह सुबह तक आ पाएगा. राकेश के जाते ही सीमा ने सुरेश शर्मा को मोबाइल से यह जानकारी दे कर उसे घर बुला लिया. कुछ देर तक दोनों हंसीठिठोली करते रहे, फिर बिस्तर पर पहुंच गए. दोनों रंगरेलियां मना ही रहे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. सीमा ने दरवाजा खोला तो सामने राकेश खड़ा था. उसे देख कर सीमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘तुम तो सुबह आने को कह कर गए थे?’’

सीमा के अस्तव्यस्त कपड़े, उलझे बाल और घबराहट देख कर राकेश समझ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. वह सीमा को परे धकेल कर घर के अंदर कमरे में पहुंचा तो सुरेश शर्मा वहां मौजूद था. वह कपड़े पहन चुका था. शर्मा राकेश को देखते ही बोला, ‘‘तुम आ गए, दरअसल मुझे पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए तुम्हारा इंतजार कर रहा था.’’

राकेश गुस्से में बोला, ‘‘शर्माजी, आज के बाद तुम मेरे घर में कदम भी नहीं रखोगे. पैसे मैं खुद देने आऊंगा. तुम्हारे कारण हमारी कितनी बदनामी हो रही है, इस का अंदाजा है तुम्हें? मैं तुम्हारे एहसान के बोझ तले दबा हूं, ऊपर से तुम्हारी उम्र का खयाल. वरना अब तक मेरे हाथ तुम्हारी गर्दन तक पहुंच गए होते.’’

राकेश के तेवर देख कर सुरेश शर्मा ने नजरें झुका लीं और वहां से चला गया. उस के जाते ही राकेश का सारा गुस्सा सीमा पर फूट पड़ा. उस ने उस की जम कर पिटाई की. सीमा चीखनेचिल्लाने लगी. पत्नी के साथ मारपीट कर के राकेश चारपाई पर जा कर लेट गया. कुछ देर में उसे नींद आग गई. जबकि सीमा रात भर दर्द से तड़पती रही. इस के बाद तो मारपीट का सिलसिला सा चल पड़ा. राकेश शराब तो पीता ही था, लेकिन अब वह कुछ ज्यादा ही पीने लगा. देर रात वह नशे में धुत हो कर आता. बातबेबात सीमा से उलझता और फिर उसे जानवरों की तरह पीटता. कभीकभी दोनों का झगड़ा घर से शुरू होता और सड़क पर आ जाता. पासपड़ोस के लोग बड़े मजे से दोनों का झगड़ा देखते. लेकिन सीमा की मदद के लिए कोई नहीं आता.

मारपीट और बदनामी के बावजूद सीमा ने सुरेश शर्मा का साथ नहीं छोड़ा. उसे जब भी मौका मिलता मोबाइल से बात कर के वह उसे बुला लेती और दोनों हमबिस्तर हो जाते. यह अलग बात थी कि अब वे सतर्कता बरतने लगे थे. लेकिन उन की सतर्कता के बावजदू एक दिन राकेश ने दोनों को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन राकेश ने पहले सुरेश शर्मा की पिटाई की, उस के बाद सीमा को मारमार कर अधमरा कर दिया. सीमा कहीं उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट न दर्ज करा दे, राकेश घर से गायब हो गया. इधर जब सुरेश शर्मा को इस बात का पता चला कि राकेश घर से गायब है तो वह सीमा का हालचाल जानने जा पहुंचा. सीमा उसे देख कर फफक कर रो पड़ी,

‘‘राकेश का जुल्म अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. उस ने पीटपीट कर मेरा पूरा शरीर काला कर दिया है. अब मैं उस से छुटकारा पाना चाहती हूं.’’

‘‘छुटकारा… मतलब… हत्या?’’ शर्मा चौंका.

‘‘हां, मेरे पति को मार डालो, वरना एक दिन वह हम दोनों को मार डालेगा.’’ सीमा ने मन की बात कह दी.

‘‘शायद, तुम ठीक कहती हो. लेकिन इस काम के लिए हम दोनों को प्रयास करना होगा. पैसा तो मैं खर्च कर सकता हूं, पर भरोसे का कोई आदमी चाहिए.’’ सुरेश शर्मा ने भी अपनी बात कह दी.

‘‘भरोसे का आदमी है, मैं उस की पत्नी से बात करती हूं.’’ सीमा ने कहा तो सुरेश शर्मा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘कौन है वह?’

‘‘मेरी सहेली छाया वर्मा का पति राजेश वर्मा.’’

‘‘सुपारी किलर राजेश वर्मा?’’ सुरेश ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां, वही राजेश वर्मा, पर कितनी रकम लेगा, यह बात कर के बताऊंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम बात करो. मैं पैसे का बंदोबस्त करता हूं.’’ शर्मा ने आश्वासन दिया.

इस के बाद सीमा शुक्ला टोला में रहने वाली अपनी सहेली छाया वर्मा से मिली और उस से पति से निजात दिलाने की बात कही. इस के लिए छाया वर्मा ने 2 लाख रुपए मांगे. लेकिन बातचीत के बाद एक लाख 60 हजार रुपए में सौदा तय हो गया. छाया वर्मा का पति राजेश वर्मा दिखावे के लिए तो कार ड्राइवर था, लेकिन असल में वह अपराधी था और पैसा ले कर हत्या जैसे जघन्य अपराध करता था. छाया वर्मा ने अपने पति राजेश वर्मा को राकेश उर्फ राजू तोमर की हत्या के लिए राजी कर लिया. सीमा ने सुरेश शर्मा की मुलाकात राजेश वर्मा व उस की पत्नी छाया वर्मा से करवाई और सुपारी किलर राजेश वर्मा को 20 हजार रुपए एडवांस दिलवा दिए. शेष रुपए काम हो जाने के बाद देने को कहा गया. सुपारी लेने के बाद राजेश वर्मा ने इस काम में अपने दोस्त कल्लू सक्सेना को भी शामिल कर लिया.

करीब एक सप्ताह तक इधरउधर घूमने के बाद राकेश घर लौट आया. अब वह पूरी तरह निश्चिंत था. क्योंकि सीमा ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी. उस ने बच्चों से प्यार भरी बातें कीं और सीमा के साथ भी सहज व्यवहार किया. यहां तक कि उस ने सीमा से मारपीट के लिए माफी भी मांग ली. सीमा के व्यवहार में भी बदलाव आ चुका था. दिखावे के लिए वह भी उस से प्यार करने लगी थी. राकेश को क्या मालूम था कि पत्नी का यह प्यार उस के लिए मौत की दस्तक है.

16 मार्च, 2015 की सुबह औरैया के कुछ लोगों ने शहर के पास वाली नहर के किनारे स्थित वीरेंद्र कुशवाहा के खेत में लगे ट्यूबवेल के कमरे के पास एक युवक की लाश पड़ी देख कर औरैया कोतवाली पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी अजय पाठक अपने सहयोगी उपनिरीक्षक मोहम्मद शाकिर व अनिल पांडेय के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पाठक ने लाश पाए जाने की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी और निरीक्षण में जुट गए. युवक की हत्या किसी तेज धार वाले हथियार से की गई थी. उस का गला आधे से ज्यादा कटा हुआ था. हाथ पर भी जख्म थे. मृतक की उम्र 35 साल के आसपास थी. जामातलाशी में उस के पास से ऐसा कुछ भी बरामद नहीं हुआ, जिस से उस का नामपता मालूम हो जाता. लाश को सैकड़ों लोगों ने देखा, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका.

थानाप्रभारी अजय पाठक अभी लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर एसपी मनोज तिवारी, एएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव और सीओ (सिटी) रमेशचंद्र भारतीय भी आ गए. उन्होंने डौग स्क्वायड को भी बुला लिया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. लेकिन मृतक की पहचान नहीं हो सकी. खोजी कुत्ता भी लाश को सूंघ कर भौंकता हुआ नहर तक गया और वापस लौट आया. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने लाश की फोटो वगैरह करा कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक मनोज तिवारी ने मृतक और हत्यारों का पता लगाने के लिए एएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव के निर्देशन में एक सशक्त पुलिस टीम बनाई.

इस टीम में सीओ सिटी रमेशचंद्र भारतीय, कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अजय पाठक, एसआई मोहम्मद शाकिर, अनिल पांडेय तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया. यह पुलिस टीम 4 दिनों तक पसीना बहाती रही, लेकिन मृतक की हत्या का रहस्य खुलना तो दूर उस की शिनाख्त तक नहीं हो सकी. 21 मार्च, 2015 को आर्यनगर मोहल्ला निवासी नरेश तोमर ने थाना कोतवाली आ कर बताया कि उस का भाई राकेश उर्फ राजू तोमर करीब एक हफ्ते से गायब है. इस पर अजय पाठक ने उसे मृतक की फोटो दिखाई. फोटो देखते ही नरेश फफक पड़ा. उस ने बताया कि यह फोटो उस के भाई राकेश की है.

लाश की शिनाख्त होते ही पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस टीम ने नरेश से पूछताछ की तो उस ने अपने भाई की हत्या का संदेह प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा और उस के बेटे शिवम शर्मा पर जाहिर किया. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. थाना कोतवाली ला कर जब पुलिस टीम ने सुरेश शर्मा से पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने हत्या का जुर्म कबूल लिया. पूछताछ में सुरेश शर्मा ने बताया कि राकेश की पत्नी सीमा से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. राकेश इन संबंधों का विरोध करता था और सीमा को बुरी तरह पीटता था. आजिज आ कर सीमा और उस ने राकेश की हत्या की साजिश रची. इस के बाद उन दोनों ने सुपारी किलर राजेश वर्मा और उस की पत्नी छाया वर्मा से बात की.

बातचीत के बाद सीमा ने अपने सुहाग का सौदा एक लाख 60 हजार में कर डाला और एडवांस के तौर पर 20 हजार रुपए भी दे दिए. राजेश वर्मा ने ही राकेश की हत्या की है. सुरेश शर्मा के बयान के आधार पर पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर राजेश वर्मा, उस की पत्नी छाया वर्मा और मृतक की पत्नी सीमा तोमर को गिरफ्तार कर लिया. थाना कोतवाली में जब उन से पूछताछ की गई तो सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. राजेश वर्मा ने कत्ल में प्रयोग किया गया गंड़ासा भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने नहर के किनारे झाडि़यों से छिपा दिया था. राजेश के पास से पुलिस टीम ने 7500 रुपए भी बरामद कर लिए. शेष रुपए वह खर्च कर चुका था.

राजेश वर्मा ने पूछताछ में बताया कि सुपारी लेने के बाद उस ने यह काम करने के लिए अपने दोस्त कल्लू सक्सेना को शामिल कर लिया था. पीनेपिलाने के दौरान उस ने राजू से दोस्ती गांठ ली थी. 15 मार्च को वह राजेश उर्फ राजू को शहर के बाहर नहर पर ले गया और फिर खेत पर वहां पहुंचा, जहां ट्यूबवेल था. ट्यूबवेल के पास कमरा था. राकेश वहीं पसर गया. सही मौका देख कर उस ने कल्लू की मदद से राजू की गर्दन गंड़ासे से काट दी और गंड़ासा छिपा दिया. उस के बाद राकेश की हत्या की सूचना सुरेश शर्मा को दे दी. राकेश की हत्या कर के राजेश और कल्लू सक्सेना घर लौट आए थे.

चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी अजय कुमार पाठक ने मृतक के भाई नरेश को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201/120बी, के तहत, सुरेश शर्मा, राजेश वर्मा, छाया वर्मा, सीमा तोमर और कल्लू सक्सेना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. 24 मार्च, 2015 को पुलिस ने अभियुक्त सुरेश शर्मा, राजेश वर्मा, छाया वर्मा तथा सीमा तोमर को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कल्लू सक्सेना फरार था. UP Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Uttar Pradesh Crime Story: खुले दिल वाली औरत

Uttar Pradesh Crime Story: 3 शादियां करने के बाद भी सरस्वती अपने दिल को काबू में नहीं कर सकी. उस का दिल पड़ोस के ओमवीर पर आ गया. इस नए प्रेमी के साथ उस ने ऐसी साजिश रची कि…

रामपुर बुजुर्ग गांव में सुबहसुबह रोने बिलखने की आवाज सुन कर लोगों की नींद टूट गई. वह आवाज किसी महिला की थी. लोग सोचने लगे कि पता नहीं क्या हो गया जो वह महिला इस तरह रो रही है. लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई और वे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर उस तरफ जाने लगे, जिधर से रोने की आवाज आ रही थी. वह आवाज रामस्वरूप के घर की तरफ से आ रही थी. इसलिए लोगों का उस के घर के बाहर जुटना शुरू हो गया. बाद में पता चला कि रामस्वरूप की मौत हो गई है. रामस्वरूप की पत्नी सरस्वती रोते हुए कह रही थी कि उस के पति ने आत्महत्या कर ली है. उस की लाश कमरे में एक चारपाई पर पड़ी थी. रामस्वरूप की मां मोरकली और भाई ऋषिपाल भी वहां खड़े आंसू बहा रहे थे.

वहां मौजूद लोगों में से किसी ने फोन कर के रामस्वरूप के आत्महत्या करने की जानकारी भमोरा थाने को दे दी. जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव गांव रामपुर बुजुर्ग में रामस्वरूप के घर पहुंच गए. यह गांव उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के अंतर्गत आता है. पुलिस को देखते ही सरस्वती दहाड़े मार कर रोने लगी. थानाप्रभारी ने सरस्वती को दिलासा देते हुए चुप कराया. इस के बाद उस से रामस्वरूप की मौत के बारे में बात की. उस ने रुंधे गले से बताया कि थकान होने की वजह से रात को वह बच्चों के साथ सो गई थी. सुबह आंखें खुलीं तो उस ने पति की लाश धोती के फंदे से लटकी देखी. इस हाल में उस ने जल्दी से धोती को बीच से काट दिया और लोगों को बुलाया.

थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया तो देखा कि रामस्वरूप की लाश चारपाई पर चित अवस्था में पड़ी थी. उस के शरीर पर कमीज और केवल अंडरवियर था. गले पर किसी रस्सी के बांधने जैसे निशान थे. पुलिस ने मृतक के छोटे भाई ऋषिपाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामस्वरूप ने 2 दिन पहले ही अपने हिस्से की जमीन बेची थी. इसलिए फांसी लगा कर आत्महत्या करने का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा. ऋषिपाल की बातों से थानाप्रभारी को दाल में काला नजर आने लगा. चूंकि उस समय सरस्वती बुरी तरह बिलख रही थी, इसलिए उस से पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी. उन्होंने लाश का पंचनामा करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए बरेली के जिला अस्पताल  भेज दिया. यह बात 17 दिसबंर, 2014 की है.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव रिपोर्ट पढ़ कर हैरान रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि रामस्वरूप की मौत गला घुटने से हुई थी. जिस तरह उस के गले पर रस्सी के बांधने का निशान था. उस से यही लगता था कि सोते समय उस के गले में रस्सी बांध कर उस का गला घोंटा गया था. पुलिस को यह मामला हत्या का लगा. जबकि उस की पत्नी इसे आत्महत्या बता रही थी. केस की गुत्थी सुलझाने के लिए थानाप्रभारी उस के घर पहुंचे. घर में सरस्वती तथा उस की सास मोरकली मिलीं. उन्होंने सरस्वती से पूछताछ शुरू की तो उस ने वही कहानी बताई, जो घटना वाले दिन बताई थी. इस के अलावा उस ने इस बार एक नई बात बताई कि उस का पति अपने छोटे भाई ऋषिपाल तथा मां के भी हिस्से की 8 बीघा जमीन बेचना चाहता था.

पहले तो वे दोनों इस के लिए राजी थे. लेकिन जब जमीन लिखने की बात आई तो दोनों मुकर गए. इस के बाद शर्मिंदगी के मारे उन्होंने आत्महत्या कर ली. सरस्वती के बयान की तसदीक करने के लिए पुलिस ने ऋषिपाल और उस की मां मोरकली से पूछताछ की तो दोनों ने बताया कि रामस्वरूप ने केवल अपने ही हिस्से की जमीन श्रीपाल को बेची थी. उन के हिस्से की जमीन बेचने की तो कोई चर्चा ही नहीं हुई. इस से पुलिस को यही लगा कि सरस्वती ने जो कुछ बताया, वह सरासर झूठ था. ऋषिपाल ने आरोप लगाया कि रामस्वरूप की हत्या में उस की पत्नी सरस्वती और उस के तीनों भाइयों रामवीर, भगवानदास तथा जानकी प्रसाद का हाथ है. इन सभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की तहरीर उस ने 9 जनवरी, 2015 को थाने में दे दी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सरस्वती का मायका बरेली जिले के कैंट थाने के पालपुर गांव में था. उस के भाइयों की तलाश में पुलिस अगले दिन ही पालपुर गांव पहुंच गई. रामवीर, भगवानदास तथा जानकी घर पर ही मिल गए. तीनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. तीनों से पूछताछ शुरू की तो तीनों ने खुद को बेगुनाह बताया. उन्होेंने बताया कि रामस्वरूप ने अपनी 8 बीघा जमीन का बैनामा 15 दिसबंर, 2014 को कराया था तो उस दिन वे उस के साथ थे. अगले दिन 16 दिसबंर की शाम को वे अपने घर लौट आए थे. उस समय तक रामस्वरूप बिलकुल ठीक था और सभी से हंसबोल रहा था. इस के बाद रात में उस की मौत कैसे हो गई, उन्हें नहीं पता?

थानाप्रभारी को शक हो गया कि हो न हो, जमीन की बिक्री से मिले रुपयों को पाने के लिए उन लोगों ने रामस्वरूप की हत्या कर दी और रात में ही अपने घर लौट गए हों. इस के बाद सरस्वती ने लोगों को दिखाने के लिए रोनेचिल्लाने का नाटक करना शुरू कर दिया हो. इसी बात को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने तीनों भाइयों से सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. सरस्वती को जब पता चला कि पुलिस उस के भाइयों से सख्ती कर रही है तो वह घबरा गई. अपने भाइयों को पुलिस से बचाने के लिए उस ने थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव को फोन कर के बताया कि वह पति की हत्या के बारे में कुछ अहम बातें बताना चाहती है. सरस्वती की बात सुन क र थानाप्रभारी 11 जनवरी, 2015 की सुबह सरस्वती के घर पहुंच गए.

सरस्वती ने पति की हत्या के बारे में उन्हें जो कुछ बताया उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सरस्वती ने बताया कि पति की हत्या उसी ने अपने प्रेमी ओमवीर साहू के साथ मिल कर की थी. उस के तीनों भाई बेकुसूर हैं, उन्हें हत्या के बारे में कुछ पता नहीं है. वे उस दिन शाम को ही अपने गांव पालपुर लौट गए थे. इस तरह अचानक केस खुलने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने उसी समय सरस्वती को गिरफ्तार कर थाने ले आए. उस के तीनों भाई बेकुसूर थे, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया. एक पुलिस टीम उस के प्रेमी ओमवीर को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर भेजी गई, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. उसी दौरान पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि ओमवीर गांव के बाहर मोड पर अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद है. यह सूचना मिलते ही टीम उसी जगह पहुंच गई. मुखबिर की सूचना सही निकली. ओमवीर अपने दोस्तों के साथ गपशप करता मिल गया.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर को इस बात की बिलकुल भी जानकारी नहीं थी कि उस की प्रेमिका सरस्वती पुलिस गिरफ्त में है और वह अपना गुनाह कुबूल कर चुकी है. इसलिए जब उस से रामस्वरूप की हत्या के बारे में पूछा गया तो वह खुद को बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब थाने में उस का सामना सरस्वती से कराया गया तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सरस्वती और ओमवीर से की गई पूछताछ में रामस्वरूप की हत्या के पीछे अवैध संबंधों की जो दास्तान उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के कैंट थाने का एक गांव है पालपुर. पतिराम इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोनादेवी के अलावा 3 बेटे और एक बेटी सरस्वती थी. वह किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. घर की आर्थिक तंगी की वजह से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी नहीं सका. वक्त गुजरने के साथसाथ बच्चे भी बड़े होते गए. सरस्वती 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. इसलिए भाई उसे पलकों पर बिठा कर रखते थे. सरस्वती जवान हुई तो गांव के ही कुछ लड़के उस पर डोरे डालने लगे. वे उस के घर के आसपास चक्कर काटने लगे. लड़कों को देख कर सोनादेवी बेटी पर नजर रखने लगी. पतिराम तो सारा दिन घर से बाहर रहता था.

उसे इन सब बातों की जानकारी नहीं थी. एक दिन सोनादेवी ने पति को इस की जानकारी दी. पतिराम गरीब था, इसलिए उस ने किसी से पंगा लेने के बजाय बेटी के हाथ पीले करने की सोची. वह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस के एक रिश्तेदार ने उसे बरेली के ही सीबीगंज थानाक्षेत्र के मथुरापुर गांव के एक युवक ओमप्रकाश के बारे में बताया. पतिराम ने ओमप्रकाश के बारे में जांच की तो पता चला कि वह मेहनती है. उस का घर परिवार भी ठीक था. वह बेटी के लिए सही लगा तो उस ने उस के साथ सरस्वती की शादी कर दी. यह 10 साल पहले की बात है.

शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक था, परंतु बाद में उन दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर झगड़े होने शुरू हो गए. अभी उन की शादी को एक साल पूरा भी नहीं हुआ था कि सरस्वती को लगा कि अब उस का ओमप्रकाश के साथ गुजारा होना मुश्किल है. इसी दौरान उस की मुलाकात बदायूं जिले के मोहल्ला टिकटगंज निवासी पप्पू से हुई. पप्पू बनठन कर रहने वाला युवक था. दोनों के बीच नजदीकी इतनी बढ़ गई कि सरस्वती पति ओमप्रकाश को छोड़ कर पप्पू के साथ रहने लगी. करीब एक साल बाद सरस्वती ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम स्वाति रखा गया. सरस्वती पति को छोड़ कर पप्पू के पास इसलिए आई थी कि उस के साथ उस की जिंदगी हंसीखुशी से कटेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. एक दिन जब वह सो कर उठी तो पप्पू अपने बिस्तर पर मृत मिला. पप्पू की मौत के बाद सरस्वती की जिंदगी में जैसे अंधेरा छा गया था.

पप्पू की मौत के 1-2 महीने बाद ही पप्पू के घर वालों ने सरस्वती के ऊपर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि पप्पू की मौत स्वाभाविक नहीं हुई, बल्कि उस ने खाने में जहर दे कर उस की हत्या की थी. सरस्वती इस का लाख विरोध करती रही. उस की बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया. मामला पुलिस तक तो नहीं गया, लेकिन घर वालों ने उस का ससुराल में रहना दूभर कर दिया. रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर एक दिन वह बेटी को ले कर अपने मायके आ गई. बरेली के ही भमोरा थानाक्षेत्र के रामपुर बुजुर्ग गांव में रछपाल अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मोरकली के अलावा 2 बेटे थे, रामस्वरूप और ऋषिपाल. रछपाल की गांव में खेती की काफी जमीन थी, कुल मिला कर वह साधनसंपन्न थे. दोनों बच्चे बड़े हुए तो सब को उन की शादी की चिंता हुई.

चूंकि रामस्वरूप बड़ा था, इसलिए उस की शादी के रिश्ते आने शुरू हुए तो रामस्वरूप लड़की में सौ कमियां निकाल कर शादी करने से इनकार कर देता. गांव में अपनी हैसियत को देखते हुए रछपाल को उम्मीद थी कि बेटे के लिए कोई अच्छा सा रिश्ता अवश्य आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब रामस्वरूप हर रिश्ते में कोई न कोई कमी निकालने लगा तो उस के लिए रिश्ते आने बंद हो गए. समय के साथ उस की उम्र भी बढ़ती गई. अब उसे कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता था. इस से उस के घर वाले भी परेशान रहने लगे कि इस की शादी कैसे हो. यही हाल रहा तो यह कुंवारा ही रह जाएगा. ऐसी हालत में उन्होंने तय कर लिया कि किसी भी हालत में उस का घर बसाने की कोशिश करेंगे. अब वह तलाकशुदा या गरीब परिवार की महिला तक से उस का घर बसाने की बात करने लगे.

इसी बीच एक दिन किसी परिचित ने उन्हें पालपुर की सरस्वती के बारे में बता कर कहा कि वह एक बेटी की मां है और मायके में रह रही है. अगर वह कहें तो उस से शादी की बात चलाई जाए. अंधा क्या चाहे दो आंखें, रछपाल ने तुरंत हामी भर दी. इस बार रामस्वरूप कुछ नहीं बोला. सरस्वती के भाई भी बहन की शादी रामस्वरूप से करने के लिए तैयार हो गए. एक सादे समारोह में सरस्वती और रामस्वरूप की शादी हो गई. सरस्वती की यह तीसरी ससुराल थी. उस ने अपने व्यवहार से सभी लोगों का दिल जीत लिया. रामस्वरूप तो सरस्वती का दीवाना था. वह उस की बातों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगा. वह भी बहुत खुश थी. रामस्वरूप से सरस्वती को 2 बच्चे हुए. बेटा गौरव तथा बेटी गुडि़या.

समय के साथ सरस्वती का घर में दखल बढ़ता गया. यह देख कर उस की सास मोरकली को आभास होने लगा कि यदि बहू को नहीं रोका गया तो जल्दी ही पूरे घर में सिर्फ उस का ही सिक्का चलने लगेगा. इसलिए मोरकली ने उसे बातबात पर टोकना शुरू कर दिया. सरस्वती को सास की दखलंदाजी पसंद नहीं थी. लिहाजा उन दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. घर में रोजरोज ही कलह होने लगी. रामस्वरूप भी मां के बजाय पत्नी का पक्ष लेता था. रछपाल और मोरकली ने देखा कि उन का बेटा ही बीवी का गुलाम बन कर अच्छेबुरे को नहीं पहचान रहा तो उन्होंने बेटाबहू को अलग कर दिया. फिर वह गांव में ही दूसरे घर में रहने लगा. अलग होने पर सरस्वती बहुत खुश हुई. क्योंकि अब उसे ज्यादा जनों का काम नहीं करना पड़ता था.

रामस्वरूप के पड़ोस में हरिबाबू का परिवार रहता था. वह आबकारी विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी कमलेश तथा 6 बच्चे थे. इन में चार लड़के और 2 लड़कियां थीं. वह साधनसंपन्न थे. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए. वह उन की शादियां करते गए. शादी के लिए उन का सब से छोटा बेटा ओमवीर ही बचा था.पड़ोसी होने की वजह से रामस्वरूप और हरिबाबू के परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना बना रहता था. ओमवीर सरस्वती को भाभी कहता था. वह उस से उम्र मे कई साल छोटा था. 28 साल की सरस्वती अपनी उम्र से छोटे ओमवीर से अकसर हंसीमजाक करती रहती थी. ओमवीर को भी यह सब अच्छा लगता था. वह भी मौका ताड़ कर सरस्वती के दिल की थाह लेने लगा. वह उस के मजाक करने का मतलब समझ चुका था. इसलिए उस के मन में भी चाहत पैदा हो गई. वह भी उसी के अंदाज में उस से मजाक करने लगा.

रामस्वरूप और ओमवीर की उम्र में इतना अंतर था कि रामस्वरूप ने उसे गोद खिलाया था. इसलिए सरस्वती का झुकाव ओमवीर की तरफ हो गया. ओमवीर जब भी उस के घर आता सरस्वती के चेहरे की रौनक बढ़ जाती. एक दिन जब रामस्वरूप घर में नहीं था, तभी ओमवीर ‘भाभीभाभी…’ पुकारता हुआ उस के घर में आया तो देखा कि सरस्वती आईने के सामने खड़ी शृंगार कर रही थी. ओमवीर दबे पांव उस के पीछे खड़ा हो गया. लेकिन सरस्वती ने उसे आईने में देख लिया था. वह चहकते हुए बोली, ‘‘आओ ओमवीर इधर बैठो.’’ सरस्वती ने कुरसी की तरफ इशारा किया.

वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. ओमवीर सरस्वती के पास कुरसी पर बैठ गया. उस समय उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. सरस्वती ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ओमवीर, मैं तुम्हें कैसी लगती हूं?’’

‘‘भाभी, तुम कितनी खुबसूरत हो, यह बात मेरे दिल से पूछो. तभी तो मैं तुम्हारी खुबसूरती का दीदार करने यहां चला आता हूं.’’ अपनी तारीफ सुनते ही सरस्वती ओमवीर के करीब आ गई. वह उस के गले में बांहें डालते हुए बोली, ‘‘सच, क्या मैं इतनी सुदंर हूं?’’

उस के नजदीक आते ही ओमवीर की धड़कनें बढ़ गईं. उस का शरीर जैसे तपने लगा. अब वह अपनी भाभी के इरादे समझ चुका था. वह भी अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. उस ने भी झट से उस के गाल पर चुम्मा लेते हुए कहा, ‘‘सचमुच तुम बहुत खुबसूरत हो,’’

सरस्वती भी खिलाड़ी थी. उस ने मौके का फायदा उठाना मुनासिब समझा और अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया. फिर क्या था, थोड़ी ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. सरस्वती को ढलती उम्र के पति की जगह ओमवीर का साथ अच्छा लगा. इस के बाद तो पति के जाते ही सरस्वती उसे फोन कर के उसे अपने घर में बुला लेती. जब पति की गैरमौजूदगी में ओमवीर के सरस्वती के घर कुछ ज्यादा चक्कर लगने शुरू हो गए तो पड़ोसियों को शक हो गया. यह बात रामस्वरूप के कानों में भी पहुंची, मगर पत्नी पर अंधविश्वास की वजह से उस ने लोगों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया.

सरस्वती के चक्कर में ओमवीर अपने कामधंधे पर भी ध्यान नहीं दे रहा था. इस के अलावा वह रामस्वरूप के घर के काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. ओमवीर के घर वालों को यह सब अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वे उसे रामस्वरूप के घर जाने को मना करते थे, लेकिन वह घर वालों की बातों पर ध्यान न दे कर उस के घर चला जाता था. रामस्वरूप की रेलवे लाइन के नजदीक 8 बीघा जमीन थी. वह ज्यादा उपजाऊ नहीं थी. दिसंबर, 2014 में एक दिन सरस्वती ने पति से उस जमीन को बेच कर कोई अच्छा सा ध्ांधा करने को कहा. पहले तो रामस्वरूप को बीवी की बात अटपटी लगी. मगर जब सरस्वती ने जिद की तो उसे बीवी की बात माननी पड़ी. इस बारे में उस ने अपने तीनों सालों से बात की तो उन्होंने भी अपनी बहन की बात में हां मिला दिया. पत्नी और ससुराल वालों की बातों में आ कर रामस्वरूप ने अपनी 8 बीघा जमीन बेचने का फैसला कर लिया.

रामस्वरूप ने भी सोचा कि जमीन बेच कर वह शहर में कोई अच्छा धंधा कर लेगा. उस ने यह बात पत्नी को बताई कि यहां रह कर धंधा करने से कोई फायदा नहीं है. अगर शहर में जा कर कोई धंधा करे तो ज्यादा अच्छा रहेगा. शहर में रहने से बच्चों की पढ़ाई भी ठीक से हो जाएगी. पति के मुंह से शहर जाने की बात सुन कर सरस्वती को पांव तले से धरती खिसकती हुई दिखाई दी. वह किसी भी हालत में ओमवीर से दूर नहीं जाना चाहती थी. इस के लिए पहले तो उस ने जमीन बेचने के बाद भी पति को गांव में रहने के लिए मनाना शुरू किया, मगर जब वह नहीं माना तो वह इस का कोई समाधान निकालने में लग गई.

इसी बीच रामस्वरूप की गैरमौजूदगी में जब ओमवीर उस से मिलने पहुंचा तो सरस्वती ने उस से कहा, ‘‘रामस्वरूप जमीन बेच कर शहर में रहने की बातें कह रहा है. यदि ऐसा हो गया तो हम दोनों एकदूसरे से दूर हो जाएंगे.’’

‘‘बताओ, इस क ा उपाय क्या है?’’ ओमवीर गंभीर हो कर बोला.

‘‘उपाय यह है कि जमीन बेचने के बाद उसे ठिकाने लगा दिया जाए. हमारे पास पैसे भी आ जाएंगें और हमारे बीच का रोड़ा भी हट जाएगा.’’ सरस्वती ने अपने मन की बात कही.

ओमवीर भी सरस्वती से दूर नहीं होना चाहता था, इसलिए वह सरस्वती के साथ मिल कर रामस्वरूप की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. 15 दिसंबर, 2014 को रामस्वरूप की जमीन का बैनामा होना तय हुआ था, इसलिए सरस्वती के तीनों भाई जानकीप्रसाद, रामवीर और भगवानदास पालपुर से रामपुर बुजुर्ग आ गए. जमीन का बैनामा होने के बाद 16 दिसंबर की शाम को तीनों भाई गांव लौट गए. जमीन बेचने से जो रकम मिली थी, वह रामस्वरूप ने सरस्वती को रखने के लिए दे दी थी.

16 दिसंबर की रात को खाना खाने के बाद रामस्वरूप ने थोड़ी देर बच्चों से बातें की. इस के बाद बिस्तर पर जा कर सो गया. योजना के मुताबिक आधी रात होने पर ओमवीर अपने घर की मुंडेर फांद कर उस के घर में आ गया. उस समय सरस्वती जाग रही थी. वह भी बेचैनी से उसी के आने का इंतजार कर रही थी. ओमवीर के आने के बाद उस ने पति को हिलाडुला कर देखा. वह गहरी नींद में था. पति को गहरी नींद में देख कर सरस्वती ने ओमवीर को आंखों से इशारा किया. ओमवीर अपने साथ प्लास्टिक की रस्सी का टुकड़ा लाया था. प्रेमिका का इशारा मिलते ही उस ने प्लास्टिक की रस्सी रामस्वरूप के गले में लपेटी और पूरी ताकत से खींचने लगा. कुछ देर छटपटाने के बाद रामस्वरूप ने दम तोड़ दिया.

रामस्वरूप की हत्या करने के बाद ओमवीर और सरस्वती ने शारीरिक संबंध बनाए. प्रेमी को खुश करने के बाद सरस्वती ने जमीन बेचने से मिली रकम में से कुछ ओमवीर को दे दी. इस हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए सरस्वती ने सुबह होते ही रोनापीटना शुरू कर दिया और उस ने पति के आत्महत्या करने की कहानी गढ़ दी. लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. थानाप्रभारी राकेश सिंह ने सरस्वती और ओमवीर को हत्या के केस में गिरफ्तार कर सक्षम न्यायालय में पेश किया. वहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि