Madhya Pradesh News : बिजनैसमैन को फसाया और मांगे 20 लाख

Madhya Pradesh News : पिछले दिनों इंदौर और भोपाल में हनीट्रैप के जो मामले सामने आए, उन में बड़ेबड़े लोगों को ब्लैकमेल कर के करोड़ों रुपए वसूले गए थे. पिंकी ने भी इसी तर्ज पर जावरा के बिजनैसमैन मोहित पोरवाल को ब्लैकमेल करने की योजना बनाई. लेकिन तयशुदा रकम मिलने से पहले ही…

घटना मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की है. 29 नवंबर, 2019 को दोपहर के 2 बजे का समय था. रतलाम के पास अलकापुरी क्षेत्र में स्थित हनुमान ताल के पास कस्बा जावरा के एक प्रसिद्ध व्यापारी मोहित पोरवाल हाथ में सूटकेस लिए खड़े थे. वह काफी घबराए हुए थे, चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, डर की छाया साफ दिखाई दे रही थी. चेहरे पर आ रहे पसीने को वह बारबार रूमाल से पोंछ रहे थे. उन की नजर सुनसान सड़क पर लगी हुई थी. जबकि वहां से कुछ दूर सुनसान जगह पर सादा कपड़ों में मौजूद 10 पुलिस वालों की नजरें मोहित कुमार पर जमी हुई थीं. साथ ही वहां आनेजाने वाले व्यक्तियों पर भी थीं.

उसी समय एक पुलिसकर्मी थाना औद्योगिक नगर के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर से संपर्क बनाए हुए था. मोहित के आसपास फैले पुलिसकर्मी उस समय सतर्क हो गए, जब उन्होंने 3 व्यक्तियों को चौकन्ने भाव से मोहित की तरफ आते देखा. वे तीनों मोहित के पास आ कर कुछ पल के लिए रुके और मोहित के हाथ से सूटकेस ले कर जाने के लिए तेजी से मुड़े. वे तीनों भाग पाते उस से पहले ही आसपास छिपे पुलिसकर्मियों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन युवकों ने पूछताछ में अपने नाम शिव उर्फ भोला निवासी लक्ष्मणपुरा, कालू उर्फ अविनाश, दिनेश टका निवासी बिरयाखेड़ी, रतलाम बताए. उन तीनों को पकड़ कर पुलिसकर्मी टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के पास ले आए.

टीआई शिवमंगल सेंगर ने उन से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने कबूल कर लिया कि उन के गिरोह की सरगना पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी है, जिस ने व्यापारी मोहित को अपने जाल में फंसाया था. साइबर सेल से मिली जानकारी के बाद एसपी रतलाम को पहले से ही शक था कि पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी इस गिरोह में शामिल है. जब उस का नाम सरगना के तौर पर सामने आया, तो महिला पुलिस के साथ गई टीम ने उसे एमबी नगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पकड़े जाने पर पिंकी शर्मा ने स्वीकार किया कि पिछले दिनों इंदौर में चर्चाओं में रहे हनीट्रैप कांड की तरह उस ने मोहित को लालच दे कर शिकार बनाया था.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों के पास से लूट में प्रयुक्त एक स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोहित की सोने की अंगूठी और नकद 2 हजार रुपए के अलावा सोने की बाली, चांदी का कड़ा, खिलौना रिवौल्वर एवं एक चाकू बरामद कर लिया. उन से की गई पूछताछ के बाद ब्लैकमेलिंग करने की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के रहने वाले 45 वर्षीय मोहित जावरा के जानेमाने अनाज व्यापारियों में से एक हैं. जमा हुआ खानदानी कारोबार है. शहर के रईसों में इन का नाम भी शुमार है. मोहित छोटी उम्र से ही परिवार का बिजनैस संभाल रहे थे. व्यापार के अलावा वह सोशल मीडिया में भी एक्टिव रहते थे. इसी के चलते कुछ महीने पहले वाट्सऐप पर उन की मुलाकात रतलाम की एमबी कालोनी निवासी आधुनिक विचारों वाली 22 वर्षीय सुंदरी पिंकी शर्मा से हुई. धीरेधीरे यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई और समय के साथ इस दोस्ती में वे सब बातें भी होने लगीं, जिन्हें बेहद निजी कहा जा सकता है. धीरेधीरे वह पिंकी में काफी रुचि लेने लगे.

बताते हैं पिंकी से उन की 1-2 मुलाकातें सार्वजनिक स्थानों पर हुईं. फिर वह मोहित को अकेले में मिलने के लिए बुलाने लगी. अब तक परिवार के प्रति ईमानदार रहे मोहित, उस से अकेले में मिलने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे थे. लेकिन जवान और खूबसूरत दोस्त का खुला आमंत्रण वह भला कब तक ठुकराते, इसलिए न न करते हुए भी वह एक दिन उस की बताई जगह पर मिलने को तैयार हो गए. मिलने के लिए तारीख तय हुई 24 नवंबर की दोपहर और स्थान था विरियाखेड़ी के ईंट भट्ठों का सुनसान इलाका. मन में कुछ आशंकाएं और ढेर सारे सपने ले कर मोहित तय वक्त पर विरियाखेड़ी पहुंच गए. उन के मन में एक शंका थी कि शायद ही पिंकी उन से मिलने आए. लेकिन यह देख कर उन का दिल खुश हो गया कि पिंकी उन के पहुंचने से पहले ही वहां खड़ी उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘कितनी देर कर दी जनाब आने में. क्या इसी तरह इंतजार करवाओगे?’’ पिंकी मुसकरा कर बोली.

‘‘नहीं यार,बस आतेआते टाइम लग गया.’’ मोहित ने कहा.

‘‘ओके चलो, पहली बार देर हुई है, इसलिए माफ करती हूं. मालूम है लड़कों को अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने उस से पहले पहुंचना चाहिए.’’ वह बोली.

‘‘लड़कों को न, लेकिन मैं लड़का नहीं हूं.’’ मोहित ने कहा.

‘‘तो क्या हुआ, मेरे बौयफ्रैंड तो हो. लेकिन मैं आप को एक बात बताऊं कि मुझे लड़कों के बजाए परिपक्व मर्दों में रुचि है.’’ पिंकी ने बताया.

‘‘वो क्यों?’’ मोहित ने पूछा.

‘‘सब से बड़ी बात तो यह है कि वह इस मामले में अनुभवी होते हैं. दूसरे लड़कों की तरह ज्यादा परेशान भी नहीं करते.’’ पिंकी ने तिरछी नजरों से मोहित की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अब ज्यादा समय खराब मत करो. वहां सामने एक घर है, वहां कोई नहीं आताजाता. चलो, वहीं चल कर बात करते हैं.’’

मोहित उस के साथ उस मकान में जाने से मना करना चाहते थे, लेकिन पिंकी को देखने के बाद वह उसे मना नहीं कर सके और उसे साथ ले कर उस के बताए मकान में चले गए. दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. पिंकी की सैक्सी बातों और हरकतों से मोहित अपना होश खोने लगे. इस से पहले कि वह अपनी हसरतें पूरी कर पाते, तभी दरवाजे पर लात मार कर अंदर घुस आए 3 युवकों को देख कर मोहित घबरा गए. उन का गीला गला एक झटके में रेगिस्तान बन गया.

‘‘क्या हो रहा है बुड्ढे, बेटी की उम्र की लड़की के साथ अय्याशी की जा रही है.’’ उन में से एक युवक ने मोहित से कहा तो उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

‘‘चल कर ले अय्याशी, हम तेरा लाइव शो देखेंगे.’’ दूसरा बोला.

‘‘देखिए, ऐसा कुछ नहीं है. हम लोग यहां यूं ही आए थे.’’ मोहित ने थूक गटकते हुए किसी तरह कहा.

लेकिन वे तीनों नहीं माने. उन्होंने चाकू की नोंक पर मोहित और पिंकी के पूरे कपड़े उतरवा दिए और फिर उसी अवस्था में दोनों के अश्लील फोटो और वीडियो अपने कैमरे में कैद करने के बाद बोले, ‘‘अब जाओ, यह वीडियो हम तुम्हारे बीवीबच्चों को भेज देंगे. फिर आराम से बैठ कर सब के साथ देखना.’’

‘‘देखिए, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं. हम यहां ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे थे. आप वीडियो और फोटो डिलीट कर दें.’’ मोहित ने उन तीनों से कहा तो उन्होंने इस के बदले में 20 लाख रुपयों की मांग की. उस वक्त मोहित के पास इतना रुपया नहीं था, सो तय हुआ कि हफ्ते भर में मोहित 20 लाख रुपए बदमाशों को दे कर उन से वीडियो और फोटो वापस ले लेंगे. मामला सुलट गया तो पिंकी और मोहित के वहां से जाने के पहले बदमाशों ने मोहित की सोने की अंगूठी और जेब में रखे 2 हजार रुपयों के अलावा पिंकी के जेवर भी लूट लिए.

मोहित जैसेतैसे वापस जावरा पहुंच तो गए लेकिन उन के दिल को पलभर का भी सुकून नहीं था. पिंकी के चक्कर में उन्हें पीढि़यों से बनाई बापदादाओं की इज्जत धूल में मिलती दिखाई दे रही थी. मामला अगर दुनिया के सामने आ जाता तो समाज और अपने परिवार के सामने नजरें ऊंची नहीं कर पाते. इन्हीं सब खयालों से डरे हुए मोहित को रात में नींद भी नहीं आई. पिंकी को याद करने का तो सवाल ही नहीं था. लेकिन अगले ही दिन सुबहसुबह पिंकी का फोन आ गया. उन्होंने बेमन से पिंकी से बात की तो उस ने कल की घटना पर दुख जताया लेकिन उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे इस बात की कोई टेंशन है. उस समय उन्होंने पिंकी की इस बेफिक्री पर ज्यादा गौर नहीं किया.

इधर दोपहर होते ही बदमाशों का फोन आ गया, जिस में कहा गया कि वह जल्द से जल्द उन्हें 20 लाख रुपए दे दें. इस के कुछ देर बाद पिंकी का भी फोन आ गया. उस ने बताया कि बदमाशों ने उसे भी फोन कर जल्द से जल्द 20 लाख रुपए की मांग की है. साथ ही उस ने सलाह भी दी कि वह जल्द से जल्द बदमाशों की मांग पूरी कर दें वरना अपनी दोस्ती खतरे में पड़ जाएगी. यहां पूरी बनीबनाई इज्जत खतरे में पड़ी थी और पिंकी को अब भी प्यारमोहब्बत की बातें सूझ रही थीं. मोहित को पिंकी पर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन यह मौका गुस्सा दिखाने का नहीं था, इसलिए वह किसी तरह अपने गुस्से को काबू में किए रहे.

दूसरी तरफ एक के बाद एक तीनों बदमाश उन्हें बारबार फोन कर 20 लाख रुपयों की मांग करते हुए पिंकी के साथ बनाया उन का अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे थे. जितनी बार बदमाशों का फोन आता, उतनी ही बार पीछे से पिंकी का फोन आ जाता. वह हर बार मोहित को सलाह देती कि जैसे भी हो, बदमाशों की मांग जल्द पूरी कर दें. इस से मोहित को शक होने लगा कि कहीं पिंकी भी इन बदमाशों से मिली हुई तो नहीं है. क्योंकि वह जानते थे कि अगर बदमाशों ने वीडियो वायरल कर भी दी, तो पिंकी का कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन उन की पूरी इज्जत धूल में मिल जाएगी. मीडिया में न तो पिंकी का नाम आएगा और न फोटो लेकिन उन के नाम के तो पोस्टर छप जाएंगे. फिर पिंकी क्यों इतना डर रही है. वह बारबार बदमाशों को रुपए देने का दबाव क्यों बना रही है.

काफी सोचविचार के बाद मोहित ने 4 दिन बाद पूरी कहानी रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को बता दी. मोहित की बात सुन कर एसपी साहब समझ गए कि मोहित किसी ब्लैकमेल कराने वाले गिरोह के शिकार बन गए हैं. इसलिए उन्होंने इस गिरोह को गिरफ्तार करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बना दी. पुलिस की साइबर सेल ने पिंकी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि बदमाश जिन फोन नंबरों से मोहित से बात कर रहे थे, उन नंबरों पर काफी दिनों से पिंकी की बारबार बात होती रही है. इस से यह साफ हो गया कि पिंकी ने ही मोहित को हनीट्रैप में फंसा कर ठगने की साजिश रची है. इसलिए एसपी के निर्देश पर जांच अधिकारी शिवमंगल सिंह सेंगर ने योजना बना कर मोहित से आरोपियों को पैसों का इंतजाम हो जाने का फोन करवाया.

बदमाशों ने उन्हें 29 नवंबर, 2019 की दोपहर 2 बजे पैसा ले कर हनुमान ताल पर बुलाया. जिस के बाद योजना अनुसार एसपी रतलाम ने सुबह से ही हनुमान ताल पर सादा लिबास में पुलिसकर्मी तैनात कर दिए. दोपहर में जैसे ही तीनों बदमाश शिव, कालू और दिनेश मोहित से फिरौती के 20 लाख रुपए लेने के लिए आए, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पिंकी के बारे में बताया जाता है कि वह मूलरूप से किला मैदान, झाबुआ की रहने वाली थी. वह रतलाम में एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करती थी. उस कंपनी में राकेश (परिवर्तित नाम) भी नौकरी करता था. वहीं पर दोनों की दोस्ती हुई. राकेश रतलाम के ही  जावरा का रहने वाला था. चूंकि दोनों ही जवान थे, इसलिए जब उन की दोस्ती प्यार में बदली, तब उन्होंने शादी का फैसला कर लिया.

दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना लवमैरिज कर ली. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनों के बीच मतभेद हो गए. हालांकि इस दौरान पिंकी एक बेटी की मां बन चुकी थी. जब दोनों के बीच ज्यादा ही कलह रहने लगी तो वह बेटी को पति के पास छोड़ कर चली आई. इस दौरान पिंकी की मुलाकात रतलाम के ही रहने वाले सन्ना नाम के बदमाश से हुई. वह सन्ना के साथ रतलाम के चांदनी चौक क्षेत्र में रहने लगी. सन्ना के जरिए पिंकी की जानपहचान लक्ष्मणपुरा, रतलाम के रहने वाले भोला, हाट की चौकी के कालू और बीरियाखेड़ा के दिनेश से हुई. ये सभी आपराधिक सोच वाले युवक थे.

पिछले दिनों इंदौर में हनीट्रैप के मामले में हाईफाई लोगों के फंसने का मामला सामने आया था. उसी से प्रेरित हो कर पिंकी और उस के इन साथियों ने मोटा पैसा कमाने के लिए प्लान बनाया. लिहाजा पिंकी के जरिए वे सब मोटी आसामी को अपने जाल में फांस कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. पिंकी पिछले 5 सालों से शहर के युवकों को अपने रूपजाल में फंसा कर ठगने का काम कर रही थी. इसी योजना के तहत उस ने मोहित से दोस्ती की और एकांत जगह पर स्थित भट्ठों पर बने कमरे में ले गई और उन्हें अपने रूपजाल में फंसाने का जतन करने लगी. तभी उस के तीनों साथियों ने आ कर मोहित के साथ उस की अश्लील फिल्म बना ली.

मोहित को उस के ऊपर शक न हो इसलिए मोहित के साथ उन्होंने पिंकी के साथ भी लूटपाट का नाटक किया था. लेकिन रतलाम पुलिस ने जल्द ही इस गिरोह के नाटक का परदा गिरा दिया. आरोपी शिव उर्फ भोला, कालू, दिनेश और पिंकी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

 

UP Crime : बॉयफ्रेंड के संग साजिश रचकर पत्नी ने कुल्हाड़ी से पति को मारवाया

UP Crime : पति, बच्चे और अच्छी गृहस्थी होने के बावजूद अगर कोई औरत सामाजिक मर्यादाओं को लांघ जाए तो बरबादी निश्चित होती है. प्रतीक्षा ने यही गलती की और…

यशवंत की जगह कोई दूसरा होता तो सुहागरात को ही प्रतिक्षा की कामेच्छाओं के वेग को समझ जाता, लेकिन यशवंत को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ. पत्नी की खूबसूरती ने उसे कुछ भी सोचनेसमझने का मौका नहीं दिया, दिमाग कुंद हो गया था उस का. सुहागरात को यशवंत कमरे में पहुंचा तो प्रतीक्षा पलंग पर लेटी थी. उस की आहट पाते ही उस ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. पति को आया देख वह उठ कर बैठ गई और साड़ी के पल्लू को घूंघट बना कर मुंह ढक लिया.

मिलन की उमंगों से भरा यशवंत अपनी दुलहन प्रतीक्षा के पास जा बैठा. उसे उन शादीशुदा दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जिन्होंने उसे सुहागरात को बीवी का तनमन जीतने का हुनर सिखाया था. उसे दोस्तों की पहली टिप्स याद आई. जब तुम दुलहन का घूंघट उठाओगे, तब उस के गाल शर्म से गुलाबी हो जाएंगे. उस के होठों पर मुसकान तो रहेगी, मगर लाज से नजरें झुक जाएंगी. हालांकि सुहागरात का यह दूसरा अनुभव था यशवंत का, फिर भी वह प्रतीक्षा के सामने पहली बार बने दूल्हे की तरह व्यवहार कर रहा था. यशवंत ने उंगलियों से साड़ी का किनारा पकड़ा और अपनी दुलहन का घूंघट उलट दिया.

चेहरे की दमक तो सामने आ गई, लेकिन न तो लाज से दुलहन की नजरें झुकीं और न होठों पर सौम्य मुसकान आई. कुछ देर तक वह यशवंत की आंखों में देखती रही, फिर खिलखिला कर हंसने लगी. हतप्रभ यशवंत प्रतीक्षा का मुंह ताकता रह गया. पति के भावों को समझने की कोशिश करते हुए प्रतीक्षा शोखी से बोली, ‘‘ऐ ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं पागल नहीं हूं.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ कुछ नहीं सूझा तो हैरानपरेशान यशवंत ने सवाल किया, ‘‘दूल्हा घूंघट उठाए तो इस तरह नहीं हंसना चाहिए.’’

‘‘यह क्या बात हुई’’ प्रतीक्षा की हंसी घट कर मुसकान में तबदील हो गई. ‘‘सुहागरात को दुलहन पति के लिए निर्वस्त्र हो सकती है, मगर हंस नहीं सकती. मैं हंस दी तो कौन सा पाप हो गया?’’

‘‘पाप तो नहीं हुआ,’ यशवंत ने धीमे से मुंह खोला, ‘‘लेकिन दुलहनें इस तरह नहीं हंसा करतीं.’’

‘‘मैं पुराने जमाने की नहीं, इक्कीसवी सदी की दुलहन हूं’’ प्रतीक्षा का लहजा बेबाक था, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मेरे पास क्यों आए हो. मैं जानती हूं कि तुम मेरे साथ क्याक्या करने वाले हो. मेरे मातापिता जानते हैं कि आज की रात दूल्हादुलहन कैसे खेलेंगे. तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें मेरे पास खेलने के लिए ही भेजा है. सब जानते हैं कि आज क्या होगा, फिर मैं क्यों लाज का आडंबर करूं.’’

यशवंत हैरत से प्रतीक्षा का मुंह देखता रह गया. प्रतीक्षा अपनी रौ में बोली, ‘‘मैं जिंदगी के हर पल को शिद्दत से जीना चाहती हूं. आज रात हमारी देहों का मिलन होना है. लाज संकोच के बजाय अगर सबकुछ हंसीखुशी हो तो उस का आनंद ही निराला होगा.’’ वह यशवंत की आंखों में देखते हुए मुसकराई. ‘‘होगा न?’’

यशवंत प्रतीक्षा के तर्कों से प्रभावित हुआ. सोचा, नए जमाने की लड़कियां शर्म की गुडि़यां थोड़े ही बनेंगी. पुराने जमाने की बात अलग थी, जब लड़कियां स्त्रीपुरूष के अंतरंग संबंध से अंजान होती थीं. शादी के पहले भावी दुलहनों को रिश्ते की भाभियां समझाती थीं कि सुहागरात को दूल्हादुल्हन के बीच क्या होता है. अब तो फिल्मों, केबल और इंटरनेट सब कुछ सिखा देते हैं. लड़केलड़कियों को होश संभालते ही इस सब की समझ आने लगती है. यही सब सोच कर यशवंत के होठों पर मुसकान आ गई. ‘‘तुम सही कहती हो प्रतीक्षा, एक घंटे बाद हमें बेशर्म होना है तो क्यों न पहले ही शर्म का लबादा उतार कर खूंटी पर टांग दें. मिलन का आनंद दूना हो जाएगा.’’

‘‘तो फिर दूर क्यों हो, करीब आओ.’’ प्रतीक्षा ने मुसकरा कर बांहे फैला दी. यशवंत सारी बातें भूल कर प्रतीक्षा की बांहों में समा गया. 40 वर्षीय प्रतीक्षा फतेहपुर जनपद के दुर्गा कालोनी, हरिहरगंज की रहने वाली थी. उस की मां का नाम कमला और पिता का नाम चंद्रभान था. चंद्रभान विकास भवन में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. प्रतीक्षा के अलावा उन की कोई संतान नहीं थी.

प्रतीक्षा मांबाप की एकलौती संतान थी. इसलिए न तो उस के कहीं घूमने पर पाबंदी थी, और न ही उसे किसी चीज के लिए तरसना पड़ता था. फरमाइश करते ही मनचाही चीज हाजिर हो जाती थी. संभवत: परिवार में मिली आजादी का ही नतीजा था कि प्रतीक्षा जीवन के हर पल को खुल कर और मस्ती से जीने की आदी हो गई थी. मांबाप भी प्रतीक्षा के खुल कर मस्ती से जीने के अंदाज को जानते थे. इसलिए जब वह जवान हुई तब उन्हें डर सताने लगा कि कहीं प्रतीक्षा जवानी को भी खुल कर एंजौय न करने लगे. यह अलग बात थी कि प्रतीक्षा ने न किसी से प्रेमिल संबंध बनाया, न किसी को अपने यौवन का अनमोल तोहफा दिया. उस ने अपना कौमार्य पति की अमानत समझ कर सहेजे रखा.

हां, उस की यह तमन्ना जरूर थी कि शादी के बाद का जीवन वह खुल कर मस्ती से जीएगी और इस की शुरुआत वह सुहागरात से ही कर देगी. क्रांतिकारी विचारधारा की पुत्री को मातापिता अधिक दिनों तक घर में बैठाए रखने के पक्ष में नहीं थे. जवानी का क्या भरोसा, कब बहक जाए. लेकिन सोचने भर से सब काम नहीं हो जाते. प्रतीक्षा के लिए कई रिश्ते देखे गए लेकिन बात नहीं बनी. शायद समय और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन कहीं भी उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उस के मांबाप को चिंता सताने लगी. जवान बेटी को अधिक दिनों तक घर में नहीं बैठाया जा सकता, लोग तरहतरह की बातें बनाने लगते हैं.

फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव चांदपुर में भवानी शंकर सिंह रहते थे. वह एक स्कूल में अध्यापक थे. इस के साथ ही खेतीबाड़ी का काम भी करते थे. परिवार में पत्नी शिवरानी देवी और 3 बेटे थे. कालिका, रवींद्र और यशवंत. बेटे जवान हो गए तो उन्होंने अपनी जमीनजायदाद का बराबरबराबर बंटवारा कर दिया. बड़े बेटे कालिका का विवाह करने के बाद 1994 में भवानी शंकर दुनिया से चल बसे. रवींद्र शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. सन 2000 में विवाह के बाद वह फतेहपुर शहर में शिफ्ट हो गया था.

सब से छोटा यशवंत सरल स्वभाव का था. बीएससी करने के बाद वह गांव में ही खेती करने लगा. 2003 में उस का विवाह फतेहपुर के मलौली थाना क्षेत्र की कुर्रा कनक गांव निवासी गुड्डन से हुआ. गुड्डन ने 2 बेटों को जन्म दिया लेकिन दूसरे बच्चे की डिलीवरी के समय उस की मृत्यु हो गई. गुड्डन की मौत के बाद दोनों बच्चों को उन की नानी अपने साथ ले गई. 2013 में चंद्रभान अपनी बेटी प्रतीक्षा का रिश्ता ले कर आए तो यशवंत के घर वाले मना नहीं कर पाए क्योंकि यशवंत के सामने लंबी जिंदगी पड़ी थी. बिना हमसफर के जिंदगी काटना मुश्किल था. शादी तय हो जाने के बाद दोनों का विवाह हो गया. प्रतीक्षा सुर्ख जोड़े में मायके से ससुराल आ गई.

ससुराल में दूल्हादुलहन के मिलन की पहली रात थी, अरमानों की रात सुहागरात. सुहागशैया पर यशवंत के घूंघट उठाते ही जिस तरह प्रतीक्षा खुलेपन से पेश आई, उस से यशवंत स्तब्ध रह गया. यह अलग बात है कि प्रतीक्षा ने उसे गलत सोचने नहीं दिया. उस ने यशवंत को विश्वास दिला दिया कि वह इक्कीसवीं सदी की औरत है, बिंदास जिंदगी के हर पल का आनंद ले कर शिद्दत से जीने वाली. नई और पुरानी का फर्क यशवंत को भी अलग अनुभव हुआ. पहली पत्नी गुड्डन पुराने ढर्रे पर चलने वाली ठेठ परिवारिक युवती थी. उस के साथ यशवंत ने वहीं अनुभव किया था जो वह सोच रहा था. लेकिन प्रतीक्षा के साथ उसे एक अलग ही अनुभव मिला.

जो युवती पहली रात को खुल कर खेल सकती थी, वह आगामी रातों में क्या गजब करेगी कहना मुश्किल था. यही सोच कर सशवंत के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगा कि प्रतीक्षा शायद ऐसा अनुभव मायके से ले कर आई है. यशवंत ने उसे कटघरे में खड़ा भी किया, मगर उस का जवाब था कि वह जीवन के हर पल को आनंद से जीने की आदी है. खुलापन उस के जीने का अंदाज है, चरित्रहीनता का प्रमाण नहीं. यशवंत उस समय तो चुप रहा, पर प्रतीक्षा की तरफ से उस का मन साफ नहीं हुआ. यशवंत ने किसी तरह प्रतीक्षा के मायके से जानकारी जुटाई तो उस पर उंगली उठाने लायक कोई बात पता नहीं चली. इस से यशवंत ने मान लिया कि प्रतीक्षा तबियत से शौकीन जरूर है, पर उस का चरित्र बेदाग है.

यह प्रतीक्षा का शौक ही था कि वह एक रात भी न तो यशवंत से अलग रहती थी और न उसे अलग सोने देती थी. फलस्वरूप प्रतीक्षा ने 5 वर्ष पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम यतेंद्र रखा गया. उस के कुछ बड़ा होने पर दोनों ने उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उस के नाना के घर भेज दिया. यशवंत की यह दूसरी शादी थी, उस की उम्र भी 40 के पार हो गई थी. अब उस में इतना दमखम नहीं रह गया था कि हर रोज प्रतीक्षा के बिस्तर का साथी बन कर रास रचाए. दूसरी ओर प्रतीक्षा को काफी देर से पुरूष सुख मिलना शुरू हुआ था, बढ़ती उम्र के साथ उस की कामेच्छाएं भी बढ़ गई थीं.

रात को यशवंत जब उस के पास नहीं आता तो वह झुंझला जाती. इस बात को ले कर दोनों में काफी बहस भी होती. प्रतीक्षा जिस तरह सुहागरात में यशवंत पर हावी हुई थी, उसी तरह समय के साथसाथ उस की जिंदगी पर भी हावी होती चली गई. उस के गलत व्यवहार के कारण ही यशवंत के भाई और परिवार उन दोनों से दूर हो गए थे. वे लोग उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखते थे. यशवंत कभीकभी चोरीछिपे अपने भाइयों से बात कर लेता था. दूसरी ओर प्रतीक्षा ने शादी से पहले तक अपने यौवन को किसी के हवाले नहीं किया था, अब वह पति की बेरुखी के चलते अपने यौवन के खजाने को दूसरों पर लुटाने को अमादा थी. यशवंत के ठंडेपन के चलते वह अपनी मर्यादा की सीमा को भी लांघने को तैयार थी. लेकिन इस के लिए उसे उपयुक्त साथी की जरूरत थी.

नवंबर 2018 में यशवंत के बड़े भाई कालिका की मुत्यु हो गई. उस की तेरहवीं में खाना बनाने के लिए एक व्यक्ति से बात की गई. पेसा वगैरह तय हो जाने के बाद उसे खाना बनाने का काम दे दिया गया. खाना बनाने के लिए आए कारीगरों में 30 वर्षीय संग्राम सिंह भी था. संग्राम सिंह फतेहपुर के थाना मलवां के गांव नसीरपुर बेलवारा निवासी कुंवर बहादुर सिंह का बेटा था. जो अविवाहित था. खाना बनाने के दौरान संग्राम प्रतीक्षा के संपर्क में आया. प्रतीक्षा ने कुंवारे खूबसूरत जवान संग्राम को देखा तो वह उसे मन भा गया. कभी कोई सामान देने तो कभी खाना कैसे बनाना है, को ले कर प्रतीक्षा उसे अपने पास बुलाती और रिझाने की कोशिश करती.

प्रतीक्षा की चालढाल और उस की हरकतों से संग्राम को भी समझते देर नहीं लगी कि वह उस पर डोरे डाल रही है. संग्राम खुद से 10 साल बड़ी प्रतीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो गया. जब शिकार खुद शिकार होने को तैयार था तो शिकारी क्यों चिंता करता. दोनों में हंसीमजाक, चुहलबाजियां हुई लेकिन लोगों की नजरों से बच कर. संग्राम जब अपना काम निपटा कर जाने लगा तो प्रतीक्षा की नजरों में बेचैनी झलकने लगी, जिसे संग्राम ने अच्छी तरह समझ लिया था. वह प्रतीक्षा से बोला, ‘‘अब हमारी इतनी जानपहचान तो हो ही गई है कि आगे भी मिलते रहें.’’

संग्राम खेलने के लिए कूदा प्रतीक्षा की पिच पर प्रतीक्षा ने मुसकरा कर संग्राम को हरी झंडी दे दी. यशवंत के गांव चांदपुर से संग्राम के गांव की दूरी महज 8 किलोमीटर थी. उस दिन के बाद से संग्राम अपनी बाइक से प्रतीक्षा से मिलने आने लगा. जब वह आता तो यशवंत खेतों पर होता. घर में प्रतीक्षा अकेली रहती थी. बारबार मिलते रहने से उन के बीच की झिझक खत्म होती गई. झिझक खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बेशर्मी से पेश आने लगे. उन के बीच अश्लील मजाक भी होने लगे. एक दिन ऐसे ही अश्लील मजाक के दौरान संग्राम ने प्रतीक्षा को दबोच लिया. घबराने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो संग्राम?’’

जबकि मन ही मन वह संग्राम की इस हरकत से खुश थी. संग्राम ने उस के नाटक को भांप लिया था, क्योंकि वह यह सब दिखावे के लिए कर रही थी. संग्राम ने प्रतीक्षा को और ज्यादा कसके दबोचते हुए कहा, ‘‘मैं तो वही कर रहा हूं, जो तुम चाहती हो.’’

‘‘मैं ऐसा चाहती हूं, यह मैं ने तुम से कहा?’’

‘‘हर बात जुबां से ही नहीं कही जाती, आंखों भी बहुत कुछ बता देती हैं. मुझे तुम्हारी खूबसूरत आंखों ने बता दिया कि तुम्हें मेरे प्यार की बेहद जरूरत है.’’

‘‘अच्छा जी, मेरी आंखों ने तुम्हें सब कुछ बता दिया. जब बता ही दिया तो मेरी देह की किताब के पन्ने भी खोल कर पढ़ लो.’’

प्रतीक्षा बेचैन हो कर संग्राम के बदन से लिपट गई. इस के बाद संग्राम ने उस की देह की किताब का एकएक पन्ना खोल कर ऐसा पढ़ा कि प्रतीक्षा उस की दीवानी हो गई. उस दिन के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. 29 जनवरी, 2020 की सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा घर से निकल कर चीखनेचिल्लाने लगी. उस की चीखपुकार सुन कर गांव के लोग घर के सामने इकट्ठा हो गए. प्रतीक्षा ने बताया कि कुछ बदमाशों ने घर में घुस कर उस के पति यशवंत की हत्या कर दी है. लगभग 10 बजे प्रतीक्षा ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को घटना की सूचना दी. चूंकि घटनास्थल थाना हुसैनगंज क्षेत्र में आता था, सो कंट्रोल रूप से इस घटना की सूचना हुसैनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर इंसपेक्टर निशिकांत राय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक यशवंत के शरीर, सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. प्रतीक्षा से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ लोगों द्वारा घर में घुस कर यशवंत को मारने की बात बताई. प्रतीक्षा की बातें इंसपेक्टर राय के गले से नहीं उतर रही थीं. एक तो सुबह कोई घर में नहीं घुस सकता था. ऐसा होता तो हत्यारों के आते जाते या शोर मचने पर पड़ोसियों को पता चल जाता. दूसरे बदमाशों ने यशवंत की तो हत्या कर दी थी, लेकिन प्रतीक्षा को छोड़ दिया, उसे एक खरोंच तक नहीं आई थी. इस से इंसपेक्टर निशिकांत राय का शक प्रतीक्षा पर ही गया. फिलहाल उन्होंने यशवंत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

मौके पर आए यशवंत के भाई रविंद्र और पड़ोसियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर राय का शक प्रतीक्षा पर और गहरा हो गया. रविंद्र ने अपनी लिखित तहरीर में प्रतीक्षा और उस के प्रेमी संग्राम सिंह पर हत्या का शक जताया था. रविंद्र की तहरीर मिलने के बाद इंसपेक्टर निशिकांत राय ने थाने में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के विरूद्ध भादवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. गिरफ्तार हुई प्रतीक्षा 31 जनवरी को इंसपेक्टर राय ने प्रतीक्षा को घर से गिरफ्तार कर लिया. महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने यशवंत की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने दिया था.

प्रतीक्षा ने बताया कि जब उस के संग्राम से नाजायज संबंध बने, तो फिर बेरोकटोक जारी रहे. लेकिन ऐसा कब तक चलता. लोगों की नजरों में उन के नाजायज संबंध छिपे नहीं रह सके. गांव में तरहतरह की बातें होने लगीं. यशवंत के कानों तक भी प्रतीक्षा की बेवफाई के किस्से पहुंच गए. इस के बाद उस के और प्रतीक्षा के बीच काफी तीखी बहस होने लगी. लेकिन उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि प्रतीक्षा पर उस का कोई असर नहीं हुआ था. यशवंत को उस के अवैध रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद प्रतीक्षा संग्राम से खुल कर मिलने लगी. वह यशवंत की उपस्थित में भी आने लगा. वह पूरेपूरे दिन यशवंत के घर में पड़ा रहता.

यशवंत खून का घूंट पी कर रह जाता. जब उस से बर्दाश्त नहीं होता तो वह उन दोनों से भिड़ जाता था. लेकिन दोनों के सामने उस की एक नहीं चलती थी.  मिलन में यशवंत के बारबार व्यवधान डालने से प्रतीक्षा और संग्राम परेशान हो गए. इसलिए दोनों ने यशवंत नाम के कांटे को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया. 28/29 जनवरी, 2020 की रात यशवंत के खाने में प्रतीक्षा ने कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. खाना खाने के बाद यशवंत बेसुध हो कर बिस्तर पर लेट गया. संग्राम देर रात प्रतीक्षा के पास पहुंचा और बेसुध पड़े यशवंत पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए. यशवंत चीखचिल्ला भी न सका, उस ने दम तोड़ दिया.

इस के बाद संग्राम वहां से चला गया. सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा ने चीखचिल्ला कर बदमाशों द्वारा यशवंत को मार देने की झूठी कहानी लोगों को सुनाई, लेकिन वह अपने को बचाने में सफल नहीं हो सकी. पुलिस ने प्रतीक्षा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के दबाव के चलते संग्राम सिंह ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Social Crime : Code के जरिए किया जाता था जिस्मफरोशी का धंधा

Social Crime : ज्यादातर युवतियां या महिलाएं देह व्यापार में अपनी मरजी से नहीं आतीं. उन्हें या तो रंगीन सपने दिखा कर जिस्म की मंडी में लाया जाता है या फिर मोटी कमाई के बहाने. कई लड़कियां ऐसी होती हैं जो शरीर को दांव पर लगा कर अमीर बनना चाहती हैं. बरेली की बबीता भी ऐसी ही लड़कियों…

एक मुखबिर ने बरेली के एएसपी अभिषेक वर्मा को उन के मोबाइल पर फोन कर के सूचना दी कि बबीता नाम की एक महिला सनसिटी विस्तार कालोनी के एक दोमंजिला मकान में बड़े स्तर पर जिस्मफरोशी का धंधा चला रही है. मुखबिर ने उन्हें बबीता का फोन नंबर भी दे दिया. इतना ही नहीं, उस ने बबीता से बात करने के कुछ कोड नाम भी दे दिए, जिन का उपयोग वह अपने धंधे में करती थी. खबर महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए एएसपी ने खुफिया तौर पर पहले इस सूचना की जांच कराई, तो खबर सही निकली. इस के बाद उन्होंने इज्जतनगर के थानाप्रभारी और महिला थाने की थानाप्रभारी को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने दोनों पुलिस अधिकारियों को इस सूचना से अवगत कराते हुए तुरंत रेड पार्टी तैयार करने को कहा. आननफानन में रेड पार्टी तैयार कर ली गई. टीम में शामिल एक हैड- कांस्टेबल को डिकोय कस्टमर (फरजी ग्राहक) बनाया गया. डिकोय कस्टमर ने बबीता का फोन नंबर मिलाया. जैसे ही बबीता ने हैलो कहा तो वह बोला, ‘‘मैडम, मैं अमरीश बोल रहा हूं. मुझे आप का नंबर रहमान भाई ने दिया है.’’ रहमान का नाम सुनते ही बबीता समझ गई कि यह कस्टमर वास्तविक है. वह बोली, ‘‘हां, बताइए अमरीशजी, मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं.’’

‘‘मैडम, रहमान भाई ने बताया था कि नईनई गाडि़यां हैं, जिन पर सवारी करने में बड़ा ही मजा आता है. ऐसी किसी अच्छी गाड़ी पर मैं भी सफर करना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, आप का स्वागत है. कल ही हमारे पास दिल्ली से 2 नई गाडि़यां आई हैं. आप आ जाइए. रहमान भाई ने हमारा पता तो बता ही दिया होगा.’’ वह बोली.

‘‘हांजी, उन्होंने बता दिया है.’’ डिकोय कस्टमर ने कहा.

‘‘ठीक है आप आ जाइए. और हां, जब आप मेरे यहां आएंगे तब गेट पर चौकीदार आप से कोड पूछेगा तो कोड ‘समंदर में तैरना है’ बता देना. वह आप को मेरे पास ले आएगा.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी कुछ देर में आप के पास पहुंचता हूं.’’ इस के बाद डिकोय कस्टमर बने हैडकांस्टेबल ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. यह बात 12 नवंबर, 2019 की है.

बबीता से बात पक्की हो जाने के बाद 12 नवंबर, 2019 की रात 10 बजे ही एएसपी अभिषेक वर्मा के नेतृत्व में पुलिस टीम सनसिटी विस्तार कालोनी पहुंच गई. टीम के सभी सदस्य बबीता के घर से कुछ दूर अलगअलग गाडि़यों में रहे. केवल हैडकांस्टेबल ही फरजी ग्राहक बना कर उस के घर पहुंचा. उसे बबीता के घर के बाहर चौकीदार खड़ा मिला. उस ने चौकीदार से कहा, ‘‘मुझे बबीता मैडम से मिलना है.’’

‘‘क्या काम है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘समंदर में तैरना है.’’ डिकोय कस्टमर बने हैडकांस्टेबल ने कहा.

यह सुनते ही चौकीदार समझ गया कि वह ग्राहक है, इसलिए वह उसे ले कर घर के अंदर चला गया. वहां कमरे में एक महिला मौजूद थी. फरजी ग्राहक ने पूछा, ‘‘क्या आप ही बबीताजी हैं?’’

‘‘जी हां, वैसे नाम में क्या रखा है. असल में तो काम ही मायने रखता है.’’ बबीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘बैठिए, मैं आप को अभी गाडि़यां दिखाती हूं. वैसे मैं आप को एक बात और बताना चाहती हूं कि कस्टमर की डिमांड पर हम विदेशी गाडि़यों की भी डील करते हैं.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. फिलहाल तो आप हमें नई गाड़यां दिखाइए.’’ वह बोला.

तभी बबीता ने आवाज लगाई तो 2 युवतियां कमरे में आ कर खड़ी हो गईं. उन्हें देखते ही डिकोय कस्टमर ने कहा, ‘‘क्या बात है मैडम, जैसा हम ने सुना था, यहां तो उस से ज्यादा देखने को मिला. वास्तव में आप बहुत पहुंची हुई हैं. इन्हें देख कर मन कर रहा है कि दोनों को ही पसंद कर लूं. लेकिन फिलहाल मैं इन के साथ जाना पसंद करूंगा.’’ उस ने आसमानी रंग का टौप पहनी युवती की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘यह मोहिनी है. इस का 2 घंटे का चार्ज 3 हजार रुपए है.’’ बबीता ने कहा.

‘‘मैडम, आप पैसों की चिंता न करें.’’ कहते हुए डिकोय कस्टमर ने 3 हजार रुपए बबीता के हाथ में दे दिए. इस के बाद उस ने अपनी जेब से फोन निकालते हुए कहा, ‘‘इसे बंद कर देते हैं वरना बीच में डिस्टर्ब करेगा.’’ उसी समय डिकोय कस्टमर ने एएसपी अभिषेक वर्मा को फोन पर मिस काल कर दी थी. यह मिस काल बाहर इंतजार कर रही पुलिस टीम के लिए एक इशारा थी. कुछ देर बाद कमरे का दरवाजा खटखटाने पर फरजी ग्राहक बने हैडकांस्टबल ने दरवाजा खोल दिया. पुलिस टीम धड़धड़ाती हुई उस कमरे में आ गई.

महिला पुलिस ने बबीता की तलाशी ले कर वे 3 हजार रुपए बरामद कर लिए जो हेड कांस्टेबल ने सौदा तय करते समय उसे दिए थे. उन नोटों के नंबर एएसपी ने पहले से ही अपने पास लिख लिए थे. ऊपर की मंजिल पर 2 युवतियां कमरों में मिलीं चौकीदार पुलिस को आया देख भाग चुका था. कुल मिला कर पुलिस ने वहां से 6 युवतियों को हिरासत में ले लिया. सभी के मोबाइल फोन और पर्स पुलिस ने कब्जे में ले लिए कमरों से भी कई आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद हुईं. बबीता का मोबाइल पुलिस ने चैक किया तो उस में जिस्मफरोशी का धंधा कराने वाली कई युवतियों के फोटो मिले. सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना इज्जतनगर आ गई. वहां उन से पूछताछ की गई.

पूछताछ के बाद पता चला कि रैकेट की सरगना बबीता काफी समय से जिस्मफरोशी के धंधे का संचालन कर रही थी. 45 वर्षीय बबीता उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के सिविल लाइंस एरिया की बाबा कालोनी की रहने वाली थी. वह शादीशुदा थी लेकिन अपने पति को छोड़ चुकी थी. बबीता फोन पर संपर्क के बाद वाट्सऐप पर ग्राहकों को युवतियों के आकर्षक फोटो भेज देती थी. इस के बाद रेट तय होने पर वह ग्राहक को अपने ठिकाने पर बुला लेती थी.

वहीं पर उस की मुलाकात बरेली के इज्जतनगर थानाक्षेत्र की सनसिटी विस्तार कालोनी में रहने वाले गोविंदा नाम के युवक से हुई थी. बाद में उस ने गोविंदा को भी अपने धंधे में शामिल कर लिया था. अपने धंधे को बढ़ाने के लिए बबीता ने छोटे शहर बदायूं से निकल कर महानगर बरेली में धंधा शुरू करने की सोची. चूंकि गोविंदा बरेली का ही रहने वाला था, इसलिए उस ने उस की सोच को और बढ़ावा दिया. करीब 6 महीने पूर्व बबीता ने गोविंदा के सहयोग से सनसिटी विस्तार कालोनी में किराए पर एक मकान ले लिया. वह मकान गोविंदा के घर के पास ही था. गोविंदा ग्राहकों को लाने के अलावा मकान के बाहर रह कर पहरेदारी करता था. दोनों ने धंधे के संचालन के लिए कुछ कोड वर्ड बना रखे थे. धीरेधीरे बबीता के संबंध दूसरे शहरों के संचालकों से भी हो गए.

वह दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु कोलकाता आदि शहरों से भी लड़कियां भी बुलाती थी. दबिश के दौरान पकड़ी गई 2 लड़कियां मोहिनी और प्रिया दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र की थीं. इन्हें बबीता ने दिल्ली से कुछ दिन पहले ही बुलवाया था. दिल्ली की रहने वाली मोहिनी के जिस्मफरोशी के धंधे में आने की कहानी रोमांस से शुरू हुई थी. मोहिनी खूबसूरत थी. उस का यौवन निखरा तो कोई भी उसे देख कर आकर्षित हो जाता था. एक दिन मोहिनी बाजार गई तो वहां कुछ लड़के उसे छेड़ने लगे. पहले तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन जब परेशान हो गई तो उस ने शोहदों को झाड़ना शुरू कर दिया.

तभी एक युवक ने आगे आ कर उन लड़कों का विरोध किया तो वे लड़के मिल कर उसे पीटने लगे. इसी बीच वहां पुलिस आ गई और उन लड़कों को पकड़ कर ले गई. मोहिनी अपने कपड़े ठीक कर के उस अजनबी युवक के पास पहुंची, जो उस की इज्जत बचाने के लिए उन बदमाश लड़कों से भिड़ गया था. उस युवक के शरीर पर चोटें भी आई थीं. मोहिनी ने उस की चोटें देखीं तो उस की आंखों में आंसू भर आए. घर पहुंच कर मोहिनी को अपनी भूल का अहसास हुआ कि जिस युवक ने अपनी जान पर खेल कर उस की इज्जत बचाई थी, वह उस का नाम तक नहीं पूछ सकी. उस रात मोहिनी की आंखों से नींद कोसों दूर रही. वह पूरी रात उस अजनबी के बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही.

कुछ दिनों बाद मोहिनी बाजार गई तो एक दुकान पर वही युवक दिखाई दे गया. मोहिनी तुरंत उस के पास पहुंच गई. नजरों से नजरें मिलीं तो दोनों मुसकरा दिए.

मोहिनी ने उस युवक के पास पहुंच कर पूछा, ‘‘कैसे हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, आप कैसी हैं?’’ उस ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं.’’ मोहिनी बोली.

उसे देख मोहिनी के दिल के तार झनझना उठे. वह उस युवक के चेहरे को निहारने लगी. फिर कुछ देर बाद खुद को संभाल कर बोली, ‘‘उस दिन भी मैं ने आप का नाम नहीं पूछा था और आज भी आप से बातें कर रही हूं, मगर नाम अभी भी नहीं पूछा.’’

‘‘मेरा नाम सूरज है. यहीं कुछ दूरी पर रहता हूं. अपना नाम भी बता दीजिए.’’

‘‘मुझे मोहिनी कहते हैं और मैं तुगलकाबाद में रहती हूं.’’

इस के बाद दोनों पास के एक रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. चाय पीते हुए उस दिन मोहिनी और सूरज ने काफी बातें कीं. उस के बाद फिर मिलने का वादा कर के दोनों विदा हो गए. उस दिन के बाद मोहिनी और सूरज अकसर रोज ही मिलने लगे. मेलमुलाकातों में दोनों को ही पता नहीं चला कि वे कब एकदूसरे से प्यार की डोर में बंध गए. एक दिन मोहिनी ने अपने प्यार की बात घर में बता दी. इस से घर में तूफान आ गया. उसी दिन से उस पर तमाम तरह की पाबंदियां लग गईं. प्यार के नाम पर मोहिनी ने सख्त फैसला लिया और सूरज के लिए घर छोड़ दिया. सूरज भी यही चाहता था. वह दिल्ली में एक जगह किराए का कमरा ले कर मोहिनी के साथ रहने लगा. दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जबजब मोहिनी सूरज से शादी करने की बात कहती तो वह किसी तरह उसे समझाबुझा कर शांत करा देता.

जब मोहिनी से उस का जी भर गया तो एक दिन वह उसे अकेला छोड़ कर फरार हो गया. मोहिनी ने सूरज को ढूंढने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उसे नहीं मिला. वह निराश हो गई. मोहिनी की समझ में आ गया कि सूरज वास्तव में उस के रूप का लोभी भंवरा था. साल भर साथ रह कर वह उस का पराग चूसता रहा. मन भर गया तो दूसरे फूल की तलाश में उड़ गया. सूरज के जाने के बाद मोहिनी की भूखों मरने की नौबत आ गई. उसे एक कंपनी में काम मिल गया था. जहां वह काम करती थी, वहां के कर्मचारी उसे भूखे भेडि़ए की तरह देखते और उसे पाने के लिए अकसर मौके की तलाश में रहते थे.

मोहिनी उन की गंदी नजरों को पहचान नहीं पाई और एक दिन धोखे से उन की हवस का शिकार हो गई. उन्होंने पहले मोहिनी के जिस्म से खिलवाड़ किया फिर 3 हजार रुपए उस की झोली में डाल दिए. मोहिनी बेबस थी. उस ने अपने होंठ सिल लिए. इसी का लाभ उठा कर वे लोग समयसमय पर मोहिनी के साथ मौजमस्ती करने लगे. जब मोहिनी उन लोगों से ज्यादा परेशान हो गई तो उस ने सोचा कि अगर किस्मत में यही सब लिखा है तो क्यों न वह स्वयं अपनी शर्तों पर अपने जिस्म का सौदा करे. इस के बाद मोहिनी नौकरी छोड़ कर जिस्म बेचने लगी. धीरेधीरे वह हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट में शामिल हो गई, जिस में उसे कौंट्रैक्ट बेसिस पर दूसरे शहरों में भी भेजा जाने लगा. जब बरेली आई तो पकड़ी गई.

दिल्ली की दूसरी युवती प्रिया छात्र थी. अच्छे रहनसहन, खानपान और अपनी लग्जरी सुविधाओं का पूरा करने के लिए वह जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. इसे वह गलत भी नहीं मानती थी. अगर अपने तन की कमाई से अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकती है तो इस में गुरेज ही क्या है. यही सोच उसे इस धंधे में ले आई. पुलिस हिरासत में ली गई तीसरी युवती बरेली के जोगी नवादा मोहल्ले की रहने वाली ज्योति थी. वह मध्यम परिवार से थी. अचानक उस के पिता की मृत्यु हो गई तो वह एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करने लगी. लेकिन ज्योति की मामूली तनख्वाह से खर्च पूरे नहीं होते थे, इसलिए वह किसी दूसरी अच्छी नौकरी की तलाश में लग गई.

पुरानी नौकरी के दौरान उस की मुलाकात चांदनी नाम की एक महिला से हुई. चांदनी को ज्योति की समस्या का पता लगा तो वह सोचने लगी कि वह किसी तरह ज्योति को रंगीन मर्दों की आंखों की ज्योति बना दे तो वह उस के लिए टकसाल साबित हो सकती है. चांदनी देह के धंधे में काफी समय से थी और शिकार की तलाश में रहती थी. चूंकि ज्योति अभावों से त्रस्त थी, इसलिए उस ने चांदनी को धैर्य रखने को कहा. ज्योति ने अपनी मजबूरी का रोना रोते हुए चांदनी से जल्दी नौकरी दिलाने को कहा तो चांदनी बोली, ‘‘चिंता मत करो ज्योति, मेरी बात मानोगी तो मैं तुम्हें हजारों रुपए कमाने वाली लड़की बना दूंगी.’’

‘‘कैसे?’’ ज्योति ने पूछा तो चांदनी ने अपने हाथ से उस की ठोड़ी उठाई और उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘जो काम लाखोंकरोड़ों में नहीं हो सकता, वह काम एक कमसिन, खूबसूरत और अनछुआ जिस्म बहुत आसानी से कर सकता है.’’

ज्योति को शांत देख चांदनी ने ऐसा बातों का जाल फेंका कि ज्योति के बचने के लिए एक छेद नहीं था. अपनी बात कह कर चांदनी चली गई. ज्योति घंटों सोचती रही. उस ने अपनी मजबूरी पर सोचा, भविष्य पर विचार किया. अंतत: उस ने फैसला कर ही लिया कि जिंदगी की हजारों सुनहरी रातों के लिए यह भी सही. बाद में ज्योति ने अपने फैसले से चांदनी को अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘बेटी, मैं जानती थी कि तेरा यही फैसला होगा. इसीलिए मैं ने एक कंपनी के जनरल मैनेजर से बात कर ली है. रात करीब 9 बजे वह आएगा, तू सजसंवर कर तैयार रहना.’’

निश्चित समय पर एक अधेड़ व्यक्ति आया और ज्योति को कली से फूल बना गया. उस के जाने के बाद चांदनी ज्योति के पास पहुंची और उसे 5 हजार रुपए देते हुए बोली, ‘‘जीएम साहब खुश हो गए. जातेजाते ईनाम में ये रुपए दे गए हैं.’’

ज्योति ने वह रुपए रख लिए. अगले दिन चांदनी ज्योति से बोली, ‘‘बेटी, आज एक बड़ा आदमी आएगा उसे खुश करना है.’’

ज्योति को न चाहते हुए भी दूसरी रात काली करनी पड़ी. मैनेजर गया तो चांदनी ने उसे 3 हजार रुपए थमा दिए. इस के बाद तो यह रोज का काम हो गया. चांदनी आधा पैसा खुद रख लेती और आधा उसे दे देती थी. ज्योति मैली तो हो ही चुकी थी, उस ने इसी को अपनी नियति मान लिया और वह खुशीखुशी जिस्मफरोशी का धंधा करने लगी. इस समय वह बबीता के सैक्स रैकेट से जुड़ी थी. शाहजहांपुर के तारीन बहादुरगंज की रहने वाली 21 वर्षीय शिल्पी और बरेली के फरीदपुर की रहने वाली 45 वर्षीय रानी भी पैसों का अभाव दूर करने के लिए देहव्यापार की कुछ शातिर महिलाओं के चंगुल में फंस गई थीं.

पुलिस ने इन सभी से पूछताछ कर कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. पुलिस बबीता के धंधे के सहयोगी गोविंदा की तलाश कर रही थी. उस के बारे में जब विस्तृत जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह भी सनसिटी में ही रहता है और केबल का काम करता है. फरार होने के बाद उस ने अपने घर के दरवाजे ग्राहकों के लिए खोल दिए थे. 17 नवंबर की रात को एएसपी अभिषेक वर्मा ने इज्जतनगर थाना पुलिस और महिला थाना पुलिस के सहयोग से गोविंदा के घर पर दबिश दी तो गोविंदा घर पर ही मिल गया. उस के अलावा 2 अलगअलग कमरों में 2 ग्राहक 2 युवतियों के साथ आपत्तिजनक अवस्था में मिले. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पकड़ी गई युवतियां श्याम और रश्मि बरेली के जोगी नवादा की रहने वाली थीं. आर्थिक अभावों के चलते वे भी इस धंधे में आ गई थीं और काफी समय से इस धंधे में थीं. पकड़े गए दोनों युवकों ने अपने नाम राशिद निवासी काजी टोला, खेड़ा कांठ, जिला मुरादाबाद और दूसरे ने संजीव सिंह गंगवार निवासी विष्णुधाम बीडीए कालोनी तुलाशेरपुर, थाना इज्जतनगर बरेली बताया. तलाशी में राशिद के पास से तमंचा मिला. पूछताछ में पता चला कि राशिद गैंगस्टर है. उस पर बरेली के सीबीगंज में लूट का मुकदमा दर्ज था. जबकि संजीव भी दुष्कर्म के केस में आरोपित है. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने सभी को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा में कई पात्रों के नाम बदले गए हैं.

 

Murder Stories : दुपट्टे से गला घोंटकर पड़ोसन को मार डाला

Murder Stories : शाहिद के दिमाग में पड़ोसन रेखा के प्रति नफरत की आग भर चुकी थी. वह आग शोला तब बनी जब शाहिद की 18 वर्षीय बेटी फातिमा घर से अचानक गायब हो गई. शाहिद को जब बेटी के गायब होने की सच्चाई पता चली तो…

लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा बनाई गई एक डूडा कालोनी है कांशीराम कालोनी, जो पारा थाने के अंतर्गत आती है. रमेश गौतम का परिवार इसी कालोनी में रहता था. उस की पत्नी रेखा (45 वर्ष) आलमबाग स्थित एक निजी क्लिनिक में वार्ड आया की नौकरी करती थी, जबकि उस का पति रमेश आटो मैकेनिक था. रेखा रोजाना सुबह के समय अपनी ड्यूटी के लिए निकलती थी और ड्यूटी पूरी कर के नियत समय पर घर लौट आती थी. 16 अक्तूबर, 2019 की शाम को रमेश घर लौटा तो पत्नी रेखा को घर न पा कर उस ने बेटी रीतू गौतम से पूछा, ‘‘अभी तक तुम्हारी मम्मी घर नहीं आई है?’’

‘‘नहीं पापा, मम्मी अभी नहीं आई है. पता नहीं आज कैसे इतनी देर हो गई?’’ रीतू ने बताया.

‘‘हो सकता है आज क्लिनिक में कोई जरूरी काम आ गया हो.’’ रमेश ने सोचा और पत्नी का इंतजार करने लगा.

काफी रात तक इंतजार करने के बाद भी रेखा नहीं आई तो रमेश पत्नी को देखने उस के क्लिनिक पहुंच गया. वहां उसे पता चला कि रेखा अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद शाम को घर चली गई थी. क्लिनिक के कर्मियों से पूछने पर रमेश को पता चला कि रेखा कृष्णानगर में टीपू नामक व्यक्ति से पैसे लेने की बात कह रही थी. जब देर रात तक रेखा घर वापस नहीं लौटी तो रमेश गौतम ने अगले दिन दोपहर तक उसे परिचितों के यहां तलाशा. इस के बाद भी जब उस का कोई सुराग न लगा तो उस ने थाना पारा पहुंच कर पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अगले दिन 17 अक्तूबर, 2019 को थाना पारा के एसएसआई संतोष कुमार को एक दुखद सूचना मिली.

पता चला कि वहां से 25 किलोमीटर दूर थाना सरोजनी नगर के अंतर्गत आने वाले कालिया खेड़ा गांव के पास वन विभाग के जंगल में एक महिला का शव मिला है. पता चला कि वह शव पोस्टमार्टम हाउस की मोर्चरी में रखा हुआ है. चूंकि थाना पारा में रमेश गौतम ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी, इसलिए एसएसआई संतोष कुमार ने अज्ञात लाश मिलने की सूचना रमेश गौतम को दे दी. रमेश गौतम मोर्चरी पहुंच गया. जब उसे सरोजनी नगर थाना पुलिस द्वारा बरामद की गई महिला की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी पत्नी रेखा के रूप में कर दी. फिर पोस्टमार्टम के बाद रेखा का शव रमेश को सौंप दिया गया.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने रमेश गौतम की बेटी रीतू गौतम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत टीपू निवासी कृष्णानगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. टीपू को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने अतिरिक्त थानाप्रभारी अरविंद कुमार पांडेय, एसआई संजय कुमार सिंह, दिनेश बहादुर आदि के साथ उस के घर दबिश दी. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे थाने ले आई. थाने में टीपू से पूछताछ की गई तो उस ने रेखा की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस ने पुलिस को कुछ ऐसे सुराग दे दिए, जिस से पुलिस रेखा के सही कातिल तक पहुंच गई. टीपू द्वारा पुलिस को ज्ञात हुआ कि रेखा का पड़ोस में रहने वाले शाहिद अली से आपसी मनमुटाव लगभग 10 महीने पहले हो गया था. शाहिद अली रेखा से रंजिश रखता था.

मांगने पर रमेश गौतम ने पुलिस को रेखा गौतम और शाहिद अली के मोबाइल नंबर उपलब्ध करा दिए. पुलिस ने दोनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन का अध्ययन किया तो पता चला कि शाहिद अली ने 16 अक्तूबर, 2019 को रेखा को फोन किया था. यह जानकारी मिलने पर पुलिस शाहिद अली की तलाश में लग गई. इसी दौरान मुखबिर से पता चला कि शाहिद अली सरोजनी नगर इलाके में शहीद पथ तिराहे के पास मौजूद है. यह सूचना मिलने के बाद पुलिस टीम शहीद पथ तिराहे पर पहुंच गई. वहां शाहिद अली मिल गया. पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने रेखा गौतम की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

शाहिद अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की तहसील कर्नलगंज के गांव बाबूदास भयापुरवा का रहने वाला था. शाहिद जब जवान हुआ तो उसे रोजगार की चिंता होने लगी. गांव में रोजगार का कोई साधन न होने की वजह से शाहिद कामधंधे की तलाश में लखनऊ आ गया. यह बात सन 2016 की है. शाहिद अली ने लखनऊ में कामधंधा तलाश किया. उस ने लखनऊ की डूडा कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया. वहां रह कर उस ने टैंपो चलाना शुरू किया. जब उस की आमदनी बढ़ी तो उस ने डूडा कालोनी में अपने नाम एक फ्लैट आवंटित करा लिया और अपनी पत्नी व बच्चों को लखनऊ बुला लिया. उस के फ्लैट के पास रमेश गौतम का फ्लैट था. रमेश गौतम के परिवार में पत्नी रेखा गौतम के अलावा 2 बच्चे थे. रेखा गौतम आलमबाग में स्थित एक क्लिनिक में आया थी.

आसपास रहने के कारण शाहिद अली की रमेश गौतम से अच्छी जानपहचान हो गई थी. दोनों के परिवार भी आपस में घुलमिल गए थे, जिस की वजह से दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. शाहिद अली सीधा व सरल स्वभाव का था, इसी वजह से रेखा उसे पसंद करती थी. रेखा गौतम बेहद चालाक व शातिर किस्म की महिला थी. उस ने शाहिद अली को अपने झांसे में ले लिया. शाहिद ने अपने परिवार के गुजरबसर के लिए रमेश गौतम से एक विक्रम टैंपो किराए पर दिलाने या खरीद कर देने की पेशकश की. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह हर महीने टैंपो की किस्त का भुगतान करता रहेगा. रमेश गौतम ने शाहिद की यह बात रेखा को बताई तो वह कुछ देर तक सोचती रही. फिर उस ने हां में सिर हिला दिया और सहानुभूति दिखाते हुए शाहिद को एक पुराना टैंपो दिलवा दिया. रेखा ने वह टैंपो कुछ दिनों पहले ही किसी और से खरीदा था. यह सन 2017 की बात है.

शाहिद अली अवध अस्पताल इको गार्डन से ले कर पारा कालोनी होता हुआ बुद्धेश्वर चौराहे तक टैंपो चलाने लगा. धीरेधीरे पुलिस की मिलीभगत से यह टैंपो डग्गामारी में कई महीने तक चलता रहा. अचानक एक बार नहरिया अस्पताल के निकट शाहिद का टैंपो पुलिस ने चैकिंग के दौरान पकड़ा गया. पुलिस ने उस के कागज मांग कर छानबीन की तो टैंपो चोरी का निकला. रेखा ने शाहिद को उस टैंपो के फरजी कागज बना कर दिए थे. दरअसल, रेखा ने किसी को थोड़ीबहुत कीमत दे कर वह टैंपो खरीद लिया था, जो बाद में उस ने 60 हजार रुपए में शाहिद अली को बेच दिया. लेकिन शाहिद अली इस बात से बिलकुल अंजान था कि रेखा ने उस के साथ धोखा किया है. सन 2017 में शाहिद अली इसी टैंपो की चोरी के आरोप में जेल चला गया, जहां वह 3 महीने से अधिक जेल में रहा.

शाहिद के जेल जाने के बाद उस की पत्नी मेहरुन्निसा (परिवर्तित नाम) बेसहारा हो गई और उस की गुजरबसर की समस्या सामने आ खड़ी हुई. रेखा ने शाहिद की पत्नी को सहानुभूतिवश आर्थिक सहायता की. शाहिद जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे पता चला कि उस की पत्नी मेहरुन्निसा रेखा से काफी घुलमिल गई है. इतना ही नहीं, उस ने मेहरुन्निसा के कानों में शाहिद के खिलाफ उलटी सीधी बातें भी भर दीं. इस का नतीजा यह निकला कि शाहिद के जेल से आने के बाद मेहरुन्निसा उस से तलाक देने की बातें करने लगी थी. शाहिद रेखा से बहुत खफा था लेकिन वक्तबेवक्त उस के द्वारा मदद करने के कारण वह उस के अहसानों से दबा हुआ था.

इसलिए उस की करतूतों और अपनी पत्नी का विरोध खुल कर नहीं कर पाता था, बल्कि वह पत्नी को सचेत करता रहता था कि कहां तुम रेखा के चक्कर में पड़ी रहती हो. वह बहुत शातिर किस्म की औरत है. लेकिन मेहरुन्निसा पति की एक भी बात नहीं सुनती थी. कहनेसुनने का पत्नी पर कोई फर्क न पड़ते देख शाहिद अली परेशान हो गया. उस की बेटी पर रेखा का कोई गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए वह मजबूरीवश अपनी पत्नी और बेटी को अपने पैतृक गांव बाबूदास भयापुरवा, जिला गोंडा में छोड़ आया. इस के अलावा उस ने अपनी दूसरी बेटी फातिमा (18 वर्ष) को अपने बहनोई मुजीबुल्ला के घर छोड़ दिया. बहनोई का घर उस के डूडा कालोनी स्थित घर से कुछ दूर दरोगाखेड़ा में था.

कुछ समय के बाद शाहिद को पता चला कि रेखा फातिमा से मिलने दरोगाखेड़ा जाती है और उसे लालच दे कर अपने साथ बाहर घुमाने भी ले जाती है. शाहिद ने बेटी को समझाया और रेखा से दूर रहने को कहा लेकिन फातिमा ने रेखा का साथ नहीं छोड़ा. शाहिद दिन भर किराए का टैंपो चला कर मजदूरी कर के अपना पेट पालता था. वह अपना टैंपो ले कर सुबह निकल जाता और देर रात लौटता था. वह फातिमा के दिन भर के क्रियाकलापों से अंजान था. शाहिद अली जून, 2018 में अपने पैतृक निवास बाबूदास भयापुरवा आया हुआ था. इसी दौरान 30 जून, 2018 को उस की बेटी फातिमा दरोगाखेड़ा से कहीं गायब हो गई. शाहिद अली को शक हुआ कि रेखा ही उस की बेटी को बरगलाती रहती थी. उस ने ही फातिमा को कहीं गायब किया होगा. इसलिए उस ने लखनऊ आ कर रेखा से फातिमा के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में अनभिज्ञता जता दी.

शाहिद पुलिस को सूचना दिए बगैर खुद ही बेटी को ढूंढता रहा, पर उस का पता नहीं चला. शाहिद रेखा की करतूतों से काफी तंग आ चुका था. उस की ही वजह से वह टैंपो चोरी के आरोप में जेल गया था और अब उस ने उस की बेटी को कहीं गायब करा दिया था. इस के अलावा वह उस की पत्नी मेहरुन्निसा को भी सिखापढ़ा कर घर को बरबाद करने पर तुली हुई थी. इन्हीं सब बातों को देखते हुए उस ने रेखा को सबक सिखाने का निर्णय ले लिया. अपने मकसद में कामयाब होने के लिए उस ने रेखा से दोस्ती गांठ कर अपने संबंध प्रगाढ़ एवं विश्वसनीय बना लिए. अब रेखा उस पर विश्वास करने लगी. शाहिद कभी रेखा को उस के क्लिनिक से टैंपो में बिठा कर उस के घर छोड़ आता था और कभी घर से उसे बाजार भी ले जाता था.

धीरेधीरे रेखा को शाहिद पर इतना विश्वास हो गया कि शाहिद उसे फोन कर के कहीं बुलाता तो वह वहीं चली जाती थी. रेखा भी क्लिनिक से घर वापस आने के लिए शाहिद को फोन करती तो शाहिद टैंपो ले कर पहुंच जाता था. 16 अक्तूबर, 2019 को शाम शाहिद अली ने रेखा को फोन कर के नादरगंज टैंपो स्टैंड पर बुलाया तो रेखा क्लिनिक से सीधे शाहिद अली की बताई गई जगह पर पहुंच गई. शाहिद ने अपना टैंपो नादरगंज में आटो मैकेनिक की दुकान पर खड़ा कर दिया था और उस ने कुछ देर के लिए मैकेनिक की बाइक मांग ली. वह रेखा को बाइक पर बैठा कर नादरगंज तिराहे से टीएस अस्पताल के निकट कलियाखेड़ा गांव की ओर जाने वाले सुनसान रोड पर ले गया. वहां एक जगह उस ने बाथरूम के बहाने बाइक रोकी. तभी उस ने बाइक की डिक्की से बांका निकाल कर रेखा के सिर और चेहरे पर हमला कर दिया.

रेखा घायल हो कर नीचे गिर पड़ी तो गुस्से से भरे शाहिद ने उसी के दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या कर दी. बाद में उस के शव को खींच कर वन विभाग के जंगल में डाल दिया, जबकि बांका और रेखा का दुपट्टा वहीं कुछ दूरी पर छिपा कर फरार हो गया. पुलिस ने शाहिद की निशानदेही पर 22 अक्तूबर, 2019 को हत्या में प्रयुक्त बांका, मृतका का दुपट्टा, प्रयोग में लाई गई बाइक बरामद कर ली. 23 अक्तूबर को सीजेएम न्यायालय में पेश करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया. पुलिस को इस जांच के दौरान ही पता चला कि शाहिद की बेटी फातिमा का पड़ोस में रहने वाले आलम नाम के युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह 30 जून, 2018 को उस के साथ ही घर से भाग गई थी.

उस ने उस के साथ निकाह कर लिया था. बहरहाल, जिस बेटी के गायब कराने के शक में शाहिद ने रेखा की हत्या की थी, वह बेटी प्रेमी से पति बने आलम के साथ मौजमजे से रह रही है.

 

Crime Stories : लाठियों से पीटकर पिता ने बेटी को मारा डाला

Crime Stories : राहुल प्रीति को प्यार करता था, प्रीति भी प्यार के बंधन में बंधी थी. लेकिन प्रीति के घरवाले इस प्रेम के दुश्मन बन गए. उन्होंने प्रीति की हत्या कर उस की लाश न केवल जला दी, बल्कि उस से जुड़े सारे सबूत भी नदी में बहा दिए. राहुल इस से पूरी तरह अनभिज्ञ था. प्रीति की हत्या का राज 7 महीने बाद तब खुला जब…

राहुल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. उसे सुबहसुबह बनसंवर कर जाते देख मां ऊषा देवी ने टोकते हुए कहा,‘‘राहुल, इतना बनसंवर कर कहां चल दिया?’’

‘‘मां, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से न टोका करो. मैं एक बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं.’’

‘‘लेकिन बेटा, तू तो आज मेरे साथ बाजार जाने वाला था.’’

‘‘मां, बाजार शाम को चलेंगे. मैं लौट कर नहीं आऊंगा क्या, जाता हूं मुझे देर हो रही है.’’ इतना कह कर राहुल घर से निकल गया. थोड़ी देर में वह पूर्व निश्चित जगह पर पहुंच गया और इंतजार करने लगा. लगभग 20 मिनट बाद उस की नजर अपनी तरफ आती एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस के पास आते ही राहुल बोला,‘‘इतनी देर क्यों लगा दी प्रीति, मैं कब से यहां बाजार में खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार तो करना ही पड़ेगा. वैसे अब तक तुम्हें इस की आदत पड़ जानी चाहिए थी.’’ प्रीति ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए शरारती लहजे में कहा.

‘‘क्या करूं प्रीति, यह कमबख्त दिल नहीं मानता. जब तक तुम्हारा दीदार नहीं हो जाता, मुझे चैन नहीं आता. मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

राहुल का प्यार देख प्रीति भावविभोर हो कर बोली,‘‘मुझे मालूम है राहुल, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्यार है. तुम्हारे इस प्यार के लिए तो मैं किसी से भी लड़ जाऊंगी. मेरी इन आंखों को भी तुम्हारा दीदार करने के बाद ही सुकून मिलता है.’’

‘‘प्रीति, आज कालेज की छुट्टी करो. खूब घूमेंगे, खाएंगे पीएंगे. आज मौसम भी काफी रोमांटिक है, खासतौर पर हम जैसे प्यार करने वालों के लिए.’’

प्रीति तैयार हो गई तो ही राहुल उसे बाजार घुमाने लगा. राहुल ने उस की पसंद की चीजें भी दिलाईं. फिर कुल्फी खरीदी और कुल्फी खातेखाते वह दूर एक सुनसान जगह पर पहुंच गए. वहां दोनों एक एकांत जगह देख बैठ गए. दोनों ही बहुत खुश थे. जिस दिन एक साथ घूमने का मौका मिल जाता था, दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में डूब जाते थे. उन की शरारतें भी एकाएक बढ़ जाती थीं. प्रीति को तल्लीनता से कुल्फी खाते देख राहुल को शरारत सूझी. उस ने अचानक प्रीति का हाथ अपनी तरफ खींच कर उस की थोड़ी कुल्फी खा ली और आंख बंद कर के उस के स्वाद का आनंद लेते हुए बोला, ‘‘वाह प्रीति, तुम्हारी कुल्फी का तो जबाब नहीं. तुम्हारी कुल्फी मेरी कुल्फी से ज्यादा मीठी है.’’

‘‘राहुल, हम दोनों की कुल्फी एक जैसी है. फिर केवल मेरी कुल्फी कैसे ज्यादा मीठी हो सकती है.’’ प्रीति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कुल्फी तुम्हारे गुलाबी होंठों से लग कर मीठी हुई है.’’ राहुल ने प्रीति के गुलाबी होंठों को अंगुली से छूते हुए कहा. इस पर प्रीति प्यार से राहुल के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बहुत शरारती होते जा रहे हो. एक बार शादी हो जाने दो, फिर तुम्हारी सारी शरारतें छुड़वा दूंगी.’’

‘‘अभी शादी हुई नहीं और ये तेवर. अब तो मैं तुम से शादी ही नहीं करूंगा.’’

‘‘बच्चू, मुझ से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’’ प्रीति ने इस अंदाज में कहा कि राहुल हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर प्रीति भी हंस पड़ी. दोनों में काफी देर तक प्रेमिल नोंकझोंक होती रही. जब काफी समय हो गया तो दोनों एकदूसरे से विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए. प्रीति जनपद प्रतापगढ़ के अंतू थाना क्षेत्र के गांव नंदलाल का पुरवा की रहने वाली थी, उस के दादा रामप्यारे वर्मा थे, जो खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे थे राजू, राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश. वे सभी भाई शादीशुदा थे. सभी बेटों के पास अपनेअपने हिस्से की जमीन थी. रामप्यारे के सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ सुखी थे.

रामप्यारे का सब से बड़ा बेटा था राजू. वह सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटियां प्रीति और पूजा थीं. प्रीति निहायत खूबसरत थी. उस पर उस की कातिल मुसकान उस के चेहरे को और भी खूबसूरत बना देती थी. वह बीए तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. राहुल प्रतापगढ़ के सांगीपुर थानाक्षेत्र के गांव सिंघनी निवासी नन्हे वर्मा का बेटा था. नन्हे खेतीबाड़ी करते थे. नन्हे और ऊषा के 3 बेटों में राहुल बड़ा था. वह बीए तक पढ़ा था. राहुल काफी स्मार्ट था. राहुल के मामा फूलचंद्र वर्मा नंदलाल का पुरवा गांव के रहने वाले थे. फूलचंद्र राजू वर्मा का पड़ोसी था.

राहुल बाइक से अकसर अपने मामा के यहां जाता रहता था. इस आनेजाने में उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो उस के दिल की घंटी बजने लगी. अब जब भी उस का मन होता माया के गांव जा कर प्रीति को देख ले. जब कभी प्रीति बाजार या सहेलियों के यहां जाती तो राहुल उस के पीछे लग जाता. प्रीति से उस की गतिविधियां छिपी नहीं थीं. उसे भी राहुल अन्य युवकों की अपेछा कुछ अलग सा लगा था. प्रीति रोज कालेज जाती थी. एक दिन रास्ते में खड़ा हो कर वह प्रीति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में प्रीति आती दिखाई दी. उसे देखते ही राहुल के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. जैसे ही उस की नजरें प्रीति से टकराईं, उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. प्रीति ने उसे देख लिया था. वह राहुल के पास आ कर धीरे से मुसकराई और सामने से गुजर गई.

राहुल ने भी प्रीति के पीछे अपने कदम बढ़ा दिए. उस ने आसपास देखा और फि़र आहिस्ता से उसे आवाज दी, ‘‘प्रीतिजी!’’

प्रीति को भी आभास था कि राहुल उस के पीछे आ रहा है. लिहाजा चौंकने के बजाय उस पर नजर पड़ते ही प्रीति बोली, ‘‘त…तुम, मेरा मतलब आप..?’’

‘‘पहला संबोधन ही रहने दो, मुझे वही अच्छा लगता है.’’ राहुल ने उस के बराबर में आते हुए कहा.

‘‘सम्मान में बोलना चाहिए,’’ प्रीति बोली.

‘‘खैर छोडि़ए इन बातों को.’’ राहुल ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा,‘‘आज इतनी देर कैसे हो गई आप को?’’

‘‘रात देर तक जागती रही, इसलिए सुबह देर से आंख खुली.’’ प्रीति ने शोखी से जवाब दिया.

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सका, सुबह के वक्त नींद आई.’’

‘‘क्या रात भर पढ़ते रहे?’’

‘‘हां, रात भर मैं तुम्हारे चेहरे की हसीन किताब अपनी आंखों के सामने रख कर पन्ने पलटता रहा.’’ राहुल ने कहा तो प्रीति ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘इस तरह की बात न करो.’’

‘‘क्यों, क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. आप की बातें रात को मुझे परेशान करेंगी. अब आप जाओ, कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा.’’

प्रीति चौंकी,‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि कल फिर मिलोगी.’’

‘‘देखूंगी.’’ कह कर प्रीति आगे बढ़ गई. राहुल उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन राहुल का किसी काम में मन नहीं लगा. रात भी जैसेतैसे गुजरी. अगले दिन वह फिर उसी निर्धारित जगह जा पहुंचा. थोड़ी ही देर में प्रीति वहां आई तो वह भी उस के साथ हो लिया.

‘‘एक बात कहूं प्रीति?’’

‘‘कहो.’’

‘‘किसी से मिलने की चाहत हो या उस की एक झलक पाने की तड़प, बहुत अजीब सा लगता है न?’’ राहुल ने गंभीरता ने कहा तो प्रीति बोली, ‘‘पहेलियां क्यों बुझाते हो? जो कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सच कह दूं.’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और…’’ राहुल कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन प्रीति ने अपनी तर्जनी उस के होंठों पर रख कर चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘सड़क पर सब को सुनाओगे क्या?’’ इसी के साथ उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई.

राहुल की खुशी का पारावार न रहा. वह प्रीति से बोला, ‘‘मेरी बात का जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘क्या जवाब दूं?’’ प्रीति ने उल्टा प्रश्न किया.

‘‘जो तुम्हें अच्छा लगे.’’ राहुल बोला.

‘‘मुझे तो सभी कुछ अच्छा लगता है.’’

‘‘फिर भी.’’

‘‘इतने नासमझ तो नहीं हो, जो आंखों की भाषा भी न पढ़ सको. जरूरी नहीं कि जुबां से प्यार का इजहार किया जाए.’’

प्रीति की बात सुनते ही राहुल खुशी से झूम उठा. उस ने आसपास देखा, फिर प्रीति की कलाई पकड़ कर उस ने धीरे से दबा दी. राहुल के ऐसा करने से प्रीति के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने जल्दी से अपनी कलाई छुड़ा ली.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो, प्रीति.’’

‘‘देखने वाले की नजर अच्छी हो तो सभी अच्छे लगते हैं.’’

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को हसरत भरी नजरों से देखा और अलगअलग रास्तों पर चले गए. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. हालांकि दोनों अपने प्रेमसंबंधों को ले कर काफी सावधानी बरतते थे. मगर गांव में उन्हें ले कर कानाफूसी होने लगी थी. दूसरी तरफ प्रीति ने हिम्मत कर के अपनी मां रमा से राहुल से शादी करने की बात बताई तो वह चीखती हुई बोली, ‘‘करमजली, इसी दिन के लिए तुझे पालपोस कर बड़ा किया था कि तू सरेराह नाक कटवाती घूमे. फिर जिस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं, उस के बारे में बात करना ही बेकार है.’’

रमा उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, देख हम तेरे दुश्मन नहीं हैं, इसलिए तुझे अच्छी शिक्षा ही देंगे. मेरी बात मान कर उसे भूल जा. वैसे भी रिश्ते में तू उस की मौसी लगती है, इसलिए तेरा विवाह उस से नहीं हो सकता. अपनी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का देख कर तेरी शादी धामधाम से करेंगे.’’

‘‘तो एक बात मेरी भी कान खोल कर सुन लो. अगर हमारे दरवाजे पर राहुल के अलावा कोई और बारात ले कर आया तो इस घर से मेरी अर्थी ही उठेगी.’’ कह कर प्रीति पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई. उस के बाद वह हिचकियां लेकर रो पड़ी. इन सब अड़चनों के बीच प्रीति और राहुल काफी चिंताग्रस्त रहने लगे. इन्हीं परेशानियों से घिर कर राहुल ने प्रीति के पिता राजू से जब विवाह की बाबत बात की तो वह एकाएक भड़क उठे, ‘‘अभी तक लोगों से तुम्हारी आवारगी के बारे में ही सुन रखा था, तुम तो चरित्र के भी गिरे निकले. तुम दोनों के बीच ऐसा रिश्ता है कि शादी तो संभव ही नहीं है. कान खोल कर सुन लो, आज के बाद तुम मेरी बेटी से नहीं मिलोगे.’’

राजू जानता था कि लाख चेतावनी के बाद भी दोनों मानेंगे नहीं, मिलेंगे जरूर. इसलिए वह प्रीति को अपने साथ सूरत ले गया. वहां एक निजी स्कूल में उस की अध्यापिका के पद पर नौकरी लगवा दी. राहुल भी दिल्ली चला गया और वहां प्राइवेट नौकरी करने लगा. राहुल और प्रीति मिल तो नहीं पाते थे लेकिन मोबाइल पर बातें कर लेते थे. इस बातचीत के दौरान ही दोनों ने परिजनों से बिना बताए विवाह करने का फैसला कर लिया. राहुल दिल्ली से सूरत गया. वहां दोनों ने एक मंदिर में विवाह कर लिया. राहुल की उम्र 21 वर्ष से कम थी, इसलिए कोर्ट मैरिज नहीं हो सकती थी. इस की भनक राजू को लग गई. वह प्रीति को ले कर अपने गांव वापस आ गया. आननफानन में प्रीति का विवाह प्रतापगढ़ के सांगीपुर थाना क्षेत्र के पूरे बक्शी गांव में तय कर दिया.

प्रीति बेचैन हो उठी. उस ने राहुल से बात की तो राहुल ने उसे घर वालों से विवाह का विरोध करने से मना कर दिया. उस ने कहा कि वह विवाह से पहले की रस्में कर ले और विवाह को कुछ समय तक टालने की कोशिश करे. जब तक विवाह का समय आएगा, तब तक उस की उम्र 21 वर्ष हो जाएगी. फिर दोनों किसी तरह से कोर्ट में जा कर विवाह कर लेंगे. प्रीति इस के लिए तैयार हो गई. 15 मई, 2019 को प्रीति के लापता होने पर उस के चाचा राजेश  वर्मा ने अंतू थाने में प्रीति के गुम होने की तहरीर दी. थानाप्रभारी संजय यादव ने प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. लेकिन प्रीति का कोई पता नहीं चला.

समय बीतता चला गया. 11 नवंबर, 2019 को थाना अंतू के गांव पूरब निवासी काबीना मंत्री के रिश्तेदार सर्वेश उर्फ विक्की सिंह पर उस के पोल्ट्री फार्म के पास जानलेवा हमला हमला हुआ, जिस पर उसी दिन अंतू थाने में 307 आईपीसी में मुकदमा दर्ज हो गया. जांच के दौरान हमले में चिह्नित हुए अजय पासी निवासी टेकनिया, थाना सांगीपुर व पवन सरोज निवासी नेवादा, थाना सांगीपुर. दोनों हमलावरों पर पुलिस द्वारा 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. इस केस पर एसटीएफ को भी लगाया गया. 11 फरवरी, 2020 को एसटीएफ के इंसपेक्टर हेमंत भूषण और उन की टीम ने अंतू थाना इंसपेक्टर मनोज तिवारी की मदद से दोनों ईनामी बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि अजय पासी गांव नंदलाल का पुरवा की प्रीति से एकतरफा प्यार करता था. लेकिन प्रीति काफी दिन से लापता है. प्रीति के चाचा राजेश वर्मा के साथ विक्की भी प्रीति की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने गया था. अजय ने समझा कि विक्की सिंह ने ही प्रीति को गायब कराया है. उस के बाद पवन ने सरोज व एक अन्य साथी बाबू के साथ कई दिन तक विक्की सिंह की रेकी की फिर 11 नंवबर को उस ने विक्की सिंह पर कई राउंड गोलियां बरसाई. विक्की को मरा समझ कर दोनों फरार हो गए. विक्की इस हमले से बुरी तरह घायल हुआ था.

इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने गहराई से जांच की तो पता चला कि लापता प्रीति वर्मा का प्रेम प्रसंग राहुल वर्मा से था. इस के बाद उन्होंने राहुल को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो राहुल ने जो कुछ बताया, उसे जान कर मनोज तिवारी को प्रीति के लापता होने का पूरा मामला समझ आ गया. राहुल से पूछताछ के बाद 12 फरवरी को इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने प्रीति के पिता राजू वर्मा, चाचा राजेश वर्मा और जमुना प्रसाद वर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. उन्होंने प्रीति की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया और हत्या के पीछे की वजह भी बयान कर दी.

प्रीति का विवाह तय होने के बाद 13 मई, 2019 को उस की सगाई की तारीख निश्चित हुई. 13 मई को वर पक्ष के लोगों के आने के बाद प्रीति की सगाई की रस्म अदा की गई. वर पक्ष के लोगों के जाने के बाद प्रीति ने राहुल को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया. रात 8 बजे प्रीति घर से कुछ दूर जा कर राहुल से मिली.  घर पर प्रीति को एकाएक न पा कर प्रीति के पिता राजू और तीनों चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश उसे खोजने निकले. कुछ दूरी पर प्रीति राहुल से बात करते दिखाई दी. राहुल ने उन को अपनी तरफ आते देख लिया. इस पर वह अपनी बाइक छोड़ कर वहां से भाग निकला.

प्रीति के पिता और चाचा उस के पीछे नहीं भागे, बल्कि प्रीति को मारतेपीटते हुए घर ले जाने लगे. राहुल काफी दूर जा कर बेबस खड़ा यह सब देखता रहा. जब वह लोग वहां से चले गए तो राहुल भी वहां से चला गया. दूसरी ओर पिता और उस के तीनों चाचाओं ने घर ले जा कर प्रीति को लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. घर की महिलाएं बेबस खड़ी देखती रहीं. अगले दिन 14 मई की रात प्रीति के पिता और उस के तीनों  चाचा उस की लाश को पूरब गांव ले गए. वहां नदी किनारे सिंघनी घाट पर प्रीति की लाश को जला दिया और साथ में उस के मोबाइल को भी आग के हवाले कर दिया. प्रीति की लाश को जलाने के बाद उस की राख नदी में बहा दी गई.

अगले दिन राजेश वर्मा ने विक्की सिंह के साथ अंतू थाने जा कर प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. काफी समय बीत जाने पर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया तो वे निश्चिंत हो गए कि प्रीति की हत्या रहस्य बन कर रह जाएगी, लेकिन गुनाह किसी न किसी तरह से सामने से आ ही जाता है. प्रीति के पिता राजू वर्मा और चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश का भी गुनाह सामने आ गया. इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने सभी के विरुद्ध भांदंवि की धारा 193/302/201/34/204 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक ब्रजेश फरार था, पुलिस उस की तलाश कर रही थी. पुलिस ने प्रीति के प्रेमी को मुकदमे में गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : प्रेमिका ने शादी का प्रपोजल ठुकरा तो लवर ने मां बेटी का किया कत्ल

Love Crime :  समाज या लोग भले ही कहते रहें कि औरत अब अबला नहीं है. लेकिन सच यह है कि महिलाएं कुछ मामलों में पुरुष की ओर ही देखती हैं. सुमिता और समरिता के साथ भी यही हुआ, जिस की वजह से विक्रांत नागर ने…  दिल्ली, दिल्ली क्राइम, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश क्राइम दिल्ली क्राइम

राजधानी दिल्ली की पूर्वी सीमा पर बसा वसुंधरा एनक्लेव ऐसा पौश इलाका है, जहां अधिकतर उच्चमध्यम वर्गीय नौकरीपेशा लोग रहते हैं. कभी गाजीपुर, कोंडली से सटा ये इलाका पिछले कुछ सालों में ऊंची अट्टालिकाओं और बहुमंजिले सोसाइटी अपार्टमेंट से पट गया है. इन्हीं आलीशान सोसाइटी अपार्टमेंट्स में से एक है मनसारा अपार्टमेंट. वसुंधरा एनक्लेव स्थित इसी मनसारा अपार्टमेंट के बी ब्लौक में तीसरी मंजिल के फ्लैट संख्या  303 में कुछ सालों से सुमिता मैसी (45) और उन की बेटी समरिता मैसी (25) रहती थीं. मूलरूप से केरल की रहने वाली सुमिता के पति की करीब 20 साल पहले मौत हो गई थी. उस वक्त समरिता महज 5 साल की थी.

सुमिता ने विकासपुरी में रहने वाले एक व्यक्ति से प्रेम विवाह किया था. 20 साल पहले पति की मौत के बाद भी सुमिता कई सालों तक विकासपुरी में रहती रही. कुछ सालों पहले सुमिता ने नोएडा में अपनी जौब की वजह से विकासपुरी का इलाका छोड़ दिया और वसुंधरा एनक्लेव में आ कर रहने लगी. सुमिता की बहन और भाई केरल में रहते थे. सुमिता खुद नोएडा के सेक्टर 142 के एक एनजीओ में ऊंचे पद पर थीं. जबकि उन की बेटी समरिता पढ़ाई के बाद पिछले 5 महीने से एक 5 स्टार होटल में हौस्पिटैलेटी की ट्रेनिंग ले रही थी.

सुमिता सिंगल मदर थी. जवान बेटी को पालने के लिए जिंदगी में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है, सुमिता को अच्छी तरह पता था. मांबेटी के बीच चूंकि दोस्ताना रिश्ता था, इसलिए सुमिता को ज्यादा चिंता नहीं होती थी. 9 मार्च सोमवार को होली का त्यौहार था, जबकि रविवार को अवकाश था. इसीलिए सुमिता व समरिता दोनों की ही 2 दिन छुट्टी थी. मांबेटी ने रविवार को ही प्लान बना लिया था कि 10 मार्च को होली का रंग खेलने के बाद अपने कुछ दोस्तों के घर मिलने जाएंगी.  9 मार्च की सुबह करीब 8 बजे सुमिता के यहां काम करने वाली नौकरानी चंदा जब काम करने के लिए उन के घर पहुंची और कालबेल बजाई, तो अंदर से किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

कुछ देर इंतजार के बाद चंदा ने दोबारा कालबेल बजाई. इस बार भी न कोई जवाब मिला, न ही दरवाजा खोला गया. चंदा ने सुमिता को आंटी…आंटी कह कर दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. लेकिन यह क्या, दरवाजा पहले से ही खुला था. हाथ लगते ही दरवाजे का पट खुल गया. चंदा ‘आंटी..आंटी’ पुकारते हुए फ्लैट के अंदर आ गई. जैसे ही वह सुमिता के कमरे में पहुंची तो उस के हलक से चीख निकल गई. वहां का नजारा देख वह हैरान रह गई. कमरे में चारों तरफ खून बिखरा हुआ था. खून के सैलाब में डूबा सुमिता का शव जमीन पर पड़ा था. चंदा न आई होती तो सुबह को पता नहीं चलता मां के साथ क्या हुआ, ये बताने के लिए चंदा तेजी से सुमिता की बेटी समरिता के कमरे में गई. लेकिन वहां का नजारा और भी दिल दहला देने वाला था.

मांबेटी के लहूलुहान शव देख कर कामवाली मेड चंदा थरथर कांपने लगी. अगले ही क्षण जब उस की तंद्रा लौटी तो वह शोर मचाते हुए फ्लैट से बाहर निकल आई और ‘खून…खून’ चिल्लाने लगी. शोर सुन कर आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोग घरों से बाहर निकल आए. चंदा ने हांफते रोते हुए एक ही सांस में सारी कहानी बता दी. उत्सुकतावश कुछ लोगों ने फ्लैट के भीतर जा कर देखा तो चंदा की बात सही निकली. जानकारी मिलने के बाद मनसारा अपार्टमेंट के सिक्युरिटी गार्ड और आरडब्लूए के पदाधिकारी मौके पर पहुंच गए. एक सुरक्षित सोसाइटी में फ्लैट के भीतर रहने वाले 2 लोगों का कत्ल हो जाए तो सोसाइटी की सुरक्षा पर सवाल खडे़ होना लाजिमी है.

पासपड़ोस के लोग सुरक्षा में ढिलाई को ले कर खुसरफुसर करने लगे. लोगों की भारी भीड़ एकत्रित हो चुकी थी, इसलिए सोसाइटी के लोगों ने तुरंत पुलिस कंट्रोलरूम को सोसाइटी में हुए दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. सुबह के वक्त इलाके में हत्या जैसी वारदात, वह भी दोहरे हत्याकांड की सूचना मिल जाए, तो किसी भी पुलिस अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला होना स्वाभाविक है. न्यू अशोक नगर थाने के एसएचओ तेजराम मीणा की नींद ड्यूटी अफसर द्वारा दी गई इसी मनहूस सूचना से खुली. स्वाभाविक है उन के मुंह का जायका भी बिगड़ा ही होगा. लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए हर दिन ऐसी वारदातों की सूचनाएं मिलना कोई नई बात नहीं होती.

इंसपेक्टर तेजराम मीणा ने तत्काल बिस्तर छोड़ा और तैयार हो कर अपने सहायक एसएचओ विनोद कुमार, इंसपेक्टर इन्वेस्टीगेशन सरिता व अन्य स्टाफ के साथ मौकाएवारदात की तरफ रवाना हो गए. रास्ते से ही उन्होंने फोन कर के अपने सबडिवीजन कल्याणपुरी के एसीपी जितेंद्री पटेल, डीसीपी जसमीत सिंह, एडीशनल डीसीपी राकेश पावरिया को भी सूचना दे दी थी. कमोबेश सभी अधिकारी थोड़े से अंतराल के बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर क्राइम और एफएसएल की टीम को भी बुला लिया गया. फ्लैट के बाहर खड़ी भीड़ को हटाने के बाद एसएचओ मीणा ने जब घर में प्रवेश किया तो मांबेटी के शव देख कर उन की भी रूह कांप उठी.

सुमिता के शरीर पर चाकू जैसे धारदार हथियार से करीब आधा दर्जन से ज्यादा वार किए गए थे, जबकि अपने बैडरूम में फर्श पर पड़ी उन की बेटी समरिता के शरीर पर धारदार हथियार के अनगिनत वार किए गए थे. दोनों के ही कमरों का सामान चारों तरफ बिखरा पड़ा था. घटनास्थल को देख कर साफ लग रहा था कि किसी ने लूटपाट का विरोध करने पर  दोनों हत्याओं को अंजाम दिया है. लेकिन यह बताने वाला कोई नहीं था कि हत्यारे घर से कितनी नकदी, कीमती सामान अपने साथ ले गए हैं. लेकिन अगले ही पल पुलिस को लूटपाट की अपनी थ्योेरी बदलनी पड़ी क्योंकि घर में फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

घर में जबरन प्रवेश करने के कोई लक्षण नहीं थे, न ही पुलिस को हत्या के समय मांबेटी के साथ गलत नीयत से जोरजबरदस्ती के कोई निशान मिले थे. हां, 2 बातों की शंका जरूर थी कि हत्या करने वाला या वाले मृतक परिवार के परिचित रहे हों. दूसरी संभावना यह थी कि दोनों हत्याएं सोते वक्त की गई थीं या फिर उन्हें मारने से पहले नशीला पदार्थ दिया गया था. क्राइम और एफएसएल की टीमों ने अपना काम पूरा कर लिया था. डीसीपी जसमीत सिंह की अगुवाई में एसएचओ तेजराम मीणा और उन की टीम ने जांचपड़ताल का सारा काम पूरा कर लिया था, जिस के बाद सुमिता व समरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

रहस्य थी मांबेटी की हत्या इस दौरान सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोगों की मदद से पुलिस ने मृतक मांबेटी के कुछ स्थानीय परिचितों के नंबर हासिल कर के उन्हें इस वारदात की सूचना दी, तो एकएक कर के उन के ज्यादातर परिचितों को इस वारदात की खबर लग गई. पुलिस ने एकएक कर के उन सभी परिचितों से सवालजवाब और उन के बैकग्राउंड के बारे में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी. मांबेटी की हत्या क्यों हुई, इस का तत्काल खुलासा तो नहीं हो सका लेकिन पुलिस ने पूछताछ के दौरान आपसी रंजिश, लूटपाट, प्रेम प्रसंग समेत तमाम दृष्टिकोणों से छानबीन कर के जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

इस दोहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि सोसाइटी चारों तरफ से कवर थी, ऊंची बाउंड्री थी. गेट पर बिना पहचान बताए और बिना फ्लैट ओनर की रजामंदी के किसी को भीतर नहीं आने दिया जाता था. फिर ऐसा कैसे संभव हुआ कि रात के वक्त एक ही घर के 2 लोगों की हत्याएं कर के हत्यारे आसानी से फरार हो गए. पुलिस ने पिछले 24 घंटों के दौरान सोसाइटी की सिक्युरिटी में तैनात सभी गार्ड्स को बुला कर उन से एकएक कर के पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि मनसारा अपार्टमेंट सोसाइटी में मुख्यद्वार से ले कर हर ब्लौक हर फ्लोर पर सीसीटीवी कैमरों का ऐसा जाल बिछा हुआ था कि कोई भी शख्स  किसी भी घर में जाते वक्त इन कैमरों की कैद में आने से नहीं बच सकता था.

एसएचओ मीणा की टीम ने कंट्रोल रूम में जा कर सभी कैमरों की फुटेज देखने का काम शुरू कर दिया. पुलिस टीमों की तरफ से शाम 3 बजे तक की गई कोशिशों से कम से कम इस दोहरे हत्याकांड पर पड़ी धुंध काफी हद तक हट गई. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि शुक्रवार को सुमिता व समरिता आखिरी बार अपनेअपने दफ्तर गई थीं. पुलिस को शुरू से ही लग रहा था कि इस वारदात को किसी जानकार ने ही अंजाम दिया है. सीसीटीवी की जांच और लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ भी हो गई.

दरअसल, मृतका सुमिता मैसी की बेटी समरिता की एक सहेली प्रेरणा से पुलिस को जानकारी मिली कि समरिता नोएडा में स्कूली पढ़ाई के दौरान से उस की दोस्त थी. समरिता अपनी जिंदगी के बारे में प्रेरणा को अच्छीबुरी हर बात बताया करती थी. प्रेरणा ने पुलिस को बताया कि वारदात से एक दिन पहले यानी रविवार की रात को समरिता कार से अकेली घर लौट रही थी. उस वक्त उस ने गाना गाते हुए वाट्सऐप पर अपना स्टेटस अपडेट किया था. स्टेटस में वह काफी खुश दिख रही थी. प्रेरणा ने बताया कि करीब 3 साल पहले एक पुराने फ्रैंड की मदद से समरिता की दोस्ती विक्रांत नागर से हुई थी, जिस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ और बाद में दोनों लिवइन में रहने लगे. लेकिन एक साल पहले दोनों के बीच अनबन हो गई थी, जिस की वजह से समरिता उस से छुटकारा पाना चाहती थी.

समरिता उस से दूरी बनाने लगी थी, क्योंकि 2-3 महीने पहले समरिता की दोस्ती उस के ही साथ हौस्पिटैलिटी में कैरियर बना रहे एक अन्य युवक से हो गई थी और समरिता ने उस के साथ पार्टियों में जाना शुरू कर दिया था. प्रेरणा ने बताया कि हो सकता है विक्रांत नागर इस से नाखुश हो. हालांकि प्रेरणा ने यह भी बताया कि विक्रांत के बुलावे पर समरिता उस के दोस्तों के बीच पार्टी के लिए अब भी जाती थी. लेकिन उस ने तय कर लिया था कि वह उस के साथ शादी नहीं करेगी. पुलिस द्वारा यह पूछे जाने पर कि विक्रांत नागर कहां रहता है, प्रेरणा ने बताया कि वह सिर्फ इतना ही जानती है कि विक्रांत ने समरिता व उस की मां को बता रखा था कि उस के मातापिता नहीं हैं. वह अपनी मौसी के साथ अमर कालोनी के गढ़ी इलाके में रहता है.

‘‘विक्रांत काम क्या करता है?’’ एसएचओ मीणा ने सवाल किया तो प्रेरणा ने जवाब दिया, ‘‘काम क्या करता है ये तो पता नहीं सर, लेकिन समरिता ने बताया था कि वह आर्टिस्ट है. उस ने 1-2 टीवी शोज में काम किया था. उसे बौडी बनाने का भी शौक था. लेकिन समरिता और उस की मां विक्रांत की आर्थिक मदद किया करती थीं. वह अक्सर उन के घर पर भी रुक जाया करता था.’’

बेटी का दोस्त संदेह के घेरे में दोनों मांबेटी घर में अकेली रहती थीं, इस लिए विक्रांत के रुकने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के होने से घर में एक मर्द के होने से उन्हें सुरक्षा का अहसास होता था. सुमिता और समरिता बाजार से सामान खरीद कर उसे दिया करती थीं. कई बार तो वह अपने घर के लिए घरेलू सामान भी उन्हीं से खरीदवा कर ले जाया करता था. चूंकि विक्रांत अक्सर घर आता था. इसलिए सोसायटी के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी उसे परिवार का सदस्य मान कर नहीं रोकते थे. प्रेरणा से मिली जानकारी पुलिस के लिए काफी मददगार थी. वारदात की सूचना पा कर जितने भी परिचित वहां पहुंचे थे, उन में विक्रांत नहीं था. प्रेरणा ने पुलिस को विक्रांत नागर का मोबाइल नंबर दे दिया था. डीसीपी जसमीत सिंह के आदेश पर तत्काल उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स मंगवा ली गई और उस के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इसी दौरान पुलिस टीम को मनसारा अपार्टमेंट की सिक्युरिटी में तैनात गार्ड्स और सीसीटीवी की फुटेज से भी बड़ा खुलासा हुआ, जिस से पता चला कि बीती रात विक्रांत नागर सुमिता के घर पर आया हुआ था. रात को करीब 2.51 बजे वह समरिता की कार ले कर सोसाइटी से निकला था. उस के साथ गाड़ी में एक और युवक बैठा था. सोसाइटी से जाते समय वह इतनी हड़बड़ी में था कि उस की कार सोसायटी के गेट से टकरा गई थी और गेट का कुछ हिस्सा टूट गया था. सिक्युरिटी गार्ड ने बैरीकेड लगा कर उस की गाड़ी रुकवा ली थी, लेकिन विक्रांत ने उन से माफी मांगते हुए कहा कि उस की गाड़ी के ब्रेक में अचानक कुछ दिक्कत आ गई है, इसलिए गलती से गाड़ी टकरा गई.

सीसीटीवी से यह भी साफ हो गया कि विक्रांत और उस का दोस्त रात करीब सवा 11 बजे पैदल ही सोसाइटी में आए थे. उस के बाद सुमिता के फ्लैट के बाहर लगे सीसीटीवी से पता चला कि विक्रांत कुछ दूरी पर छिपा था और समरिता करीब डेढ़ बजे अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आई थी. वह काफी देर तक नीचे टहलती रही. उस के बाद वह ऊपर फ्लैट में चली गई. इन तमाम सीसीटीवी फुटेज से यह बात साफ हो गई कि इस हत्याकांड के पीछे विक्रांत नागर व उस के दोस्त का ही हाथ था. क्योंकि हत्याकांड के वक्त वही परिवार के पास था और उस के बाद से उस का कोई पता नहीं था.

इसी बीच उच्चाधिकारियों के आदेश पर एसएचओ तेजराम मीणा ने न्यू अशोक नगर थाने में भादंसं की धारा 302 के तहत मामला दर्ज करवा दिया था. केस की जांच का जिम्मा उन्होंने खुद ही ले लिया था. समरिता के लिवइन पार्टनर के लापता होने और उस के बारे में अन्य जानकारी पुलिस के हाथ लग गई थी. जसमीत सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ तेजराम मीणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में एएसआई किशनपाल सिंह, हेडकांसटेबल आदेश, कांसटेबल प्रवीण और नरेंद्र को शामिल किया गया. टीम का सुपरविजन करने की जिम्मेदारी एसीपी जितेंद्र पटेल को सौंपी गई. डीसीपी जसमीत सिंह ने न्यू अशोक नगर पुलिस की मदद के लिए जिले के स्पैशल स्टाफ व एटीएस की टीमों को भी जांच और गिरफ्तारी के काम में लगा दिया.

जांच अधिकारी मीणा ने साइबर सेल और सर्विलांस की मदद से पता लगवाया कि विक्रांत की लोकेशन कहां है. पता चला विक्रांत के मोबाइल की लोकेशन जयपुर में है. उसी शाम पुलिस की 2 टीमें जयपुर के लिए रवाना कर दी गईं. डीसीपी जसमीत सिंह ने जयपुर पुलिस से संपर्क साध कर उन्हें विक्रांत का मोबाइल नंबर और उस की लोकेशन से अवगत करा दिया. जयपुर पुलिस ने भी उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. विक्रांत था हत्यारा अगले तीन घंटों में पुलिस ने जयपुर में विक्रांत को उस होटल से दबोच लिया जहां वह ठहरा हुआ था. विक्रांत के पकड़े जाने की सूचना तत्काल दिल्ली पुलिस को दे दी गई.

दिल्ली पुलिस की 2 टीमें पहले ही जयपुर रवाना हो चुकी थीं. उन्होंने जयपुर पहुंचते ही विक्रांत को अपनी गिरफ्त में ले लिया. अगली दोपहर तक पुलिस की टीमें उसे दिल्ली  ले आईं. विक्रांत नागर ने न्यू अशोक नगर थाने आ कर पुलिस को बताया कि उस ने अपने दोस्त शैंकी शर्मा के साथ मिल कर अपनी प्रेमिका समरिता और उस की मां की हत्या की थी. वारदात को अंजाम देने के बाद विक्रांत नागर बस द्वारा दिल्ली से जयपुर चला गया था. उस ने बताया कि 2 साल तक लिवइन में रहने के बाद समरिता अक्सर उसे ताने देने लगी थी कि वह कुछ कमाताधमाता नहीं है और उन के टुकड़ों पर पलता है.

अगर दोनों की शादी हो गई तो वह उसे कमा कर कैसे खिलाएगा. शुरू में तो विक्रांत समरिता के तानों को हवा में उड़ा देता था, लेकिन बाद में यह बात जब ज्यादा बढ़ने लगी तो दोनों के बीच इस बात को ले कर अक्सर झगड़ा होने लगा. विक्रांत को 3 महीने पहले तब दिक्कत होने लगी, जब समरिता ने उस से साफ कह दिया कि वह उस के घर कम आयाजाया करे. साथ ही जब विक्रांत को यह खबर लगी कि आजकल समरिता अपने साथ होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले एक युवक के साथ इश्क कर बैठी है और दोनों एक साथ घूमतेफिरते भी हैं. यह जान कर विक्रांत का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

करीब 3 महीने पहले अपने प्रति समरिता के लगाव को परखने के लिए विक्रांत ने शादी का प्रपोजल दिया, जिसे समरिता ने ठुकरा दिया. इस के बाद साफ हो गया कि वह उस से किनारा कर रही है. विक्रांत ने अपने दोस्त शैंकी को एक दिन फोन कर के बताया कि अगर समरिता उस की ना हो सकी तो वह उसे किसी ओर की भी नहीं होने देगा. होली से 2 दिन पहले जब विक्रांत को पता चला कि होली से एक दिन पहले समरिता का नया प्रेमी होली की पार्टी दे रहा है और वह भी उस में जाने वाली है तो उस ने उसी दिन इरादा बना लिया कि वह समरिता को खत्म कर देगा. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लानिंग ने जन्म ले लिया.

इस से आहत हो कर उस ने अपने दोस्त शैंकी को उसी शाम मुंबई से दिल्ली पहुंचने के लिए कहा. शैंकी फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ गया. एयरपोर्ट से विक्रांत उसे साथ ले कर होली की रात को ही सीधे समरिता के घर पहुंच गया. होली की रात को दोनों समरिता के अपार्टमेंट में पहुंचे. घर के बाहर छिप कर उस ने समरिता को फोन किया और बातचीत के लिए नीचे बुलाया. जब समरिता नीचे आने लगी तो वे दोनों मौका पा कर घर में दाखिल हो गए. सुमिता अपने कमरे में लौटी सोने की तैयारी कर रही थी. विक्रांत और शैंकी ने रसोई से मीट काटने वाला चाकू ले कर सब से पहले बेरहमी से सुमिता पर 7-8 वार कर के उस की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों समरिता का इंतजार करने लगे. जब समरिता घर में लौटी और कमरे में पहुंची तो दोनों ने उस के कमरे में ले जा कर उस की भी चाकू से गोद कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने कीमती सामान की तलाश में कमरे की तलाशी ली. वहां से दोनों ने 43 हजार रुपए की नकदी और समरिता के डेबिट व क्रेडिट कार्ड अपने कब्जे में ले लिए. उस के बाद आधी रात को करीब 2:51 बजे दोनों पार्किंग में खड़ी समरिता की कार ले कर फरार हो गए. इसी हड़बड़ी में कार सोसाइटी के मेन गेट से टकरा गई थी. विक्रांत जयपुर में तो शैंकी मुंबई में मिला सोसाइटी से निकलने के बाद विक्रांत ने समरिता की कार को त्रिलोकपुरी इलाके में छोड़ दिया था. शैंकी वहां से आटो पकड़ कर ईस्ट औफ कैलाश स्थित एक होटल में चला गया. जबकि विक्रांत बस पकड़ कर जयपुर रवाना हो गया और वहां जा कर एक होटल में ठहर गया. जहां से उस के फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उसे दबोच लिया था.

विक्रांत से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम को ईस्ट औफ कैलाश में उस होटल पर छापा मारा, जहां शैंकी ठहरा हुआ था. शैंकी को उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वह होटल का बिल चुका कर फरार होने की तैयारी में था. उसी शाम दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने त्रिलोकपुरी से समरिता की कार भी बरामद कर ली. साथ ही उन की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया. यह चाकू समरिता के घर में ही छिपा कर रखा गया था.

जांच के बाद जांच अधिकारी तेजराम मीणा को यह भी पता चला कि विक्रांत को नशे की आदत थी. कुछ साल पहले इसी लत के कारण वह नशामुक्ति केंद्र में भी रह चुका था. उस ने इस वारदात को नशे में अंजाम दिया या नहीं, इस की जांच के लिए पुलिस ने उस के ब्लड सैंपल टेस्ट के लिए भेजे हैं. जांच में पता चला कि शैंकी मुंबई में रह कर मौडलिंग में अवसर ढूंढ रहा था. उस ने कुछ टीवी शोज में भी काम किया था. वहीं विक्रांत भी एक शो में काम कर चुका था इसी कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. पूछताछ में विक्रांत ने बताया कि वह और शैंकी हत्या करने के बाद घर में रखे 43 हजार रुपए अपने साथ ले कर निकले थे. इस रकम से दोनों ने नए मोबाइल ले लिए थे. समरिता के डेबिट और क्रेडिट कार्ड भी वे अपने साथ ले गए थे.

विक्रांत ने कनौट प्लेस में एक एटीएम से पैसे निकालने की कोशिश भी की थी, लेकिन समरिता ने कुछ दिन पहले ही अपना पिन बदल दिया था, जिस की जानकारी विक्रांत को नहीं थी. इसलिए वह एटीएम से रकम नहीं निकाल सका. पुलिस ने उसी शाम को विक्रांत और शैंकी के खिलाफ दर्ज हत्या के मामले में लूट की धारा भी जोड़ दी और दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. उसी शाम पुलिस को मिली पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ कि समरिता मैसी के शरीर पर 30 से ज्यादा चाकू के वार किए गए थे, जबकि मां सुमिता मैसी के शरीर पर चाकू के 10 घाव मिले थे.

सुमिता और समरिता को इस बात का अहसास भी नहीं था कि जिस विक्रांत को उन्होंने अपना सहारा मान कर घर में पनाह दी थी, वही आस्तीन का सांप निकलेगा और उन की जिंदगी को डस लेगा.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

 

Agra News : वकील का अपहरण करके मांगी 50 लाख रुपए की फिरौती

Agra News : एडवोकेट अकरम अंसारी का अपहरण फिल्मी अंदाज में किया था. बदमाश 50 लाख रुपए की फिरौती मांग रहे थे. पुलिस ने उन्हें फिरौती भी दे दी लेकिन बाद में अपहर्त्ता पुलिस के चंगुल में ऐसे फंसे कि…

फिरोजाबाद जिले के थाना दक्षिण के अंतर्गत एक मोहल्ला है राजपूताना. यहीं के निवासी 35 वर्षीय मोहम्मद अकरम अंसारी पेशे से वकील हैं. वह 3 फरवरी, 2020 को आगरा के बोदला निवासी अपने रिश्तेदार की बीमार बेटी को देखने के लिए आगरा के श्रीराम अस्पताल गए थे. बीमार बेटी को देखने के बाद वकील अकरम अंसारी घर जाने के लिए शाम के समय अस्पताल से निकले. चूंकि उन्हें बस अड्डे से बस पकड़नी थी, इसलिए बस अड्डा तक जाने के लिए उन के साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें कारगिल चौराहे से एक आटो में बैठा दिया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचे.

परिजन सारी रात बेचैनी से अकरम अंसारी का इंतजार करते रहे. बारबार वह अकरम को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. इस से घरवालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह अकरम के भाई असलम उन्हें तलाशने के लिए आगरा पहुंचे. वहां पता चला कि साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें बस अड्डा जाने वाले एक आटो में बैठा दिया था. वहां से वह कहां गए, किसी को पता नहीं. इस के बाद असलम ने भाई को रिश्तेदारी व अन्य परिचितों के यहां तलाशा. लेकिन अकरम कहीं नहीं मिले. तब असलम ने आगरा के थाना सिकंदरा में भाई की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

दूसरे दिन बुधवार को दोपहर डेढ़ बजे वकील अकरम के छोटे भाई असलम के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘अकरम हमारे कब्जे में है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. फिरौती की रकम कहां पहुंचानी है, इस बारे में फिर से फोन कर के बताएंगे और अगर, पुलिस को बताया तो ठीक नहीं होगा.’’

इस पर असलम ने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम उन के पास नहीं है.’’

इस पर अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘हमें पता है कि तुम्हारे 4 मकान हैं. इसलिए रुपयों का इंतजाम कर लो.’’ इस के बाद फोन कट गया. फिरौती मांगने से असलम का परिवार दहशत में आ गया. असलम ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी पुलिस को दी. इस पर सिकंदरा के थानाप्रभारी ने तुरंत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद उन्होंने एक पुलिस टीम को अकरम की बरामदगी के लिए लगा दिया. वकील अकरम अंसारी का फिरौती के लिए आगरा से अपहरण करने का समाचार जब समाचारपत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर आया तो अधिवक्ताओं ने उन की बरामदगी के लिए पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मामला एक वकील का था, इसलिए पुलिस की 10 टीमें जांच में जुट गईं. इन टीमों का निर्देशन एसएसपी बबलू कुमार स्वयं कर रहे थे. जिस मोबाइल नंबर से असलम के पास फोन आया था सर्विलांस टीम उस की भी जांच में जुट गई. कई दिन बाद भी जब पुलिस एडवोकेट अकरम के बारे में कोई सुराग नहीं लगा पाई तो 7 फरवरी को फिरोजाबाद सदर तहसील के अधिवक्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करते हुए वकील अकरम अंसारी की शीघ्र बरामदगी की मांग की. धीरेधीरे यह आग जनपद की तहसील शिकोहाबाद, जसराना, सिरसागंज के साथ ही आगरा के अधिवक्ताओं में भी फैल गई.

अकरम की बरामदगी न होने से परिजनों में दिनप्रतिदिन बेचैनी बढ़ रही थी. पिता आरिफ अंसारी और मां सरकरा बेगम सीने पर पत्थर रख कर बच्चों को तसल्ली दे रहे थे. अकरम की पत्नी रूबी उर्फ रुकैया अपने दोनों बच्चों के पूछने पर कहती कि पापा दिल्ली रिश्तेदारी में गए हैं, जल्दी आ जाएंगे. पुराने किडनैपरों की हुई तलाश उधर पुलिस ने 100 ऐसे बदमाशों की सूची बनाई जो अपहरण के मामलों में पिछले 5 सालों में जेल जा चुके थे. यह बदमाश आगरा, धालपुर, भरतपुर, फिरोजाबाद और इटावा के थे. इन पर काम करने के बाद 10 गिरोह चुने गए. इन के मोबाइल नंबर हासिल किए गए. 3 गिरोह पर पुलिस का शक था लेकिन तीनों ही उस समय मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.

इस पर पुलिस पूरी तरह अपने मुखबिरों पर आश्रित हो गई. एसएसपी बबलू कुमार और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद लगातार पुलिस टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. शासन से भी इस मामले में पुलिस से लगातार अपडेट लिया जा रहा था. पुलिस के आला अधिकारी भी पत्रकारों को कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. सिर्फ यही जवाब दिया जा रहा था कि जल्द ही कोई न कोई ठोस सुराग मिलने की उम्मीद है. अपहृत वकील अकरम के छोटे भाई असलम और मुकर्रम घटना के बाद से ही आगरा में डेरा डाले थे. जैसेजैसे एकएक कर दिन बीत रहे थे परिवार की दहशत बढ़ती जा रही थी.

उग्र हो गया आंदोलन उधर, अधिवक्ताओं का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आगरा व फिरोजाबाद जनपद के अधिवक्ताओं में अपहृत वकील के 12वें दिन भी बरामद न होने से आक्रोश बढ़ गया था. उन्होंने विरोध में हड़ताल शुरू कर दी थी. पुलिस दिनरात अपहृत वकील की तलाश में जुटी थी. आगरा में 24 फरवरी, 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताजमहल देखने आने वाले थे. उन के आगमन से पूर्व तैयारियों का जायजा लेने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा के दौरे पर आ रहे थे. पुलिस जानती थी कि अधिवक्ता मुख्यमंत्री से मिल कर इस मामले को जरूर उठाएंगे. इसलिए पुलिस के हाथपैर फूल रहे थे. इस बीच पुलिस टीमों ने बाह और धौलपुर के बीहड़ों में डेरा डाल रखा था.

उधर अपहृत वकील के भाई असलम के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने अलगअलग नंबरों व स्थानों से 4 बार फिरौती की काल कर के संपर्क किया. इस दौरान परिजन पुलिस के संपर्क में रहे. काल आने से पुलिस को बदमाशों की पहचान सुनिश्चित हो गई. लेकिन अपहृत की सकुशल बरामदगी को ले कर पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. बदमाशों ने जो 50 लाख फिरौती मांगी, उसे कम कर के वह 15 लाख पर आ गए. उन्होंने परिजनों से कह दिया कि इतनी भी रकम नहीं मिली तो वह अकरम को मार देंगे. अपहृत अकरम को सकुशल छुड़वाने के लिए पुलिस ने परिजनों के साथ मजबूत योजना बनाई. 16 फरवरी को अपहर्त्ताओं का फोन आने के बाद अकरम के परिजन बदमाशों के बताए गए स्थान आगरा में सिकंदरा स्थित गुरुद्वारे के पास पैसे ले कर पहुंच गए.

बदमाशों ने उन से पहचान के लिए अपनी गाड़ी पर झंडा लगाने को कहा था. भाई असलम अपने दोस्त के साथ किराए की गाड़ी पर झंडा लगा कर पहुंचा. तभी बदमाशों ने कहा कि बाड़ी कस्बा आ जाओ. वहां पहुंचे तो बदमाश लगातार काल कर के अलगअलग जगह बुलाते गए. करौली मार्ग पर आने के बाद उन्होंने कहा कि सिगरेट के 2 पैकेट ले कर आना. इस के बाद उन्होंने भरतपुर जनपद के गढ़ी भासला क्षेत्र के जंगल में स्थित भैरों बाबा के मंदिर पर रुपयों का बैग रखने को कहा. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जरा सी भी चालाकी की या पुलिस को बताया तो अपने भाई को जिंदा नहीं देख सकोगे. वह लोग शाम 6 बजे बताए गए स्थान पर रुपयों से भरा बैग रख कर वापस आ गए. इस बीच पुलिस योजनाबद्ध तरीके से वहां मौजूद रही. बदमाशों ने परिजनों से सोमवार, 17 फरवरी को अधिवक्ता अकरम को गुरुद्वारा पर छोड़ने का वादा किया.

जंजीरों से बांध रखा था अकरम को फिरौती देने के बाद पुलिस टीम सक्रिय हो गई. पुलिस बैग उठाने वाले के पीछे लग गई. इतना ही नहीं, पुलिस ने कस्बा बाड़ी स्थित वह मकान भी पहचान लिया, जिस में अपहर्त्ता नोटों से भरा बैग ले कर गया था. मकान चिह्नित करने के बाद पुलिस ने रात लगभग 8 बजे उस मकान पर दबिश दे कर अपहृत अधिवक्ता अकरम को सकुशल बरामद कर लिया. अपहर्त्ताओं ने उन्हें जंजीरों से बांध कर रखा था. पुलिस ने मकान से 3 अपहर्त्ताओं 56 वर्षीय गैंग लीडर उग्रसैन निवासी कस्बा बाड़ी, धौलपुर, लाखन गुर्जर निवासी सूखे का पुरा, थाना कंचनपुरा, धौलपुर के अलावा सुरेंद्र गुर्जर निवासी कुआंखेड़ा, बिहारी का पुरा, थाना सदर, धौलपुर शामिल को हिरासत में ले लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने राकेश व उस के भाई मुकेश निवासी जमूहरा, थाना बाड़ी, धौलपुर के साथ उग्रसैन की पत्नी उर्मिला को भी गिरफ्तार कर लिया. राकेश व मुकेश दोनों उग्रसैन के साले हैं. फिरौती के लिए फोन लाखन करता था. लाखन पर 7-8 मुकदमे चल रहे हैं. उग्रसेन व सुरेंद्र गुर्जर पर भी कई मुकदमे हैं. इन में अपहरण व जानलेवा हमले शामिल हैं. सुरेंद्र गुर्जर पूर्व में राजस्थान के केशव और हनुमंत गिरोह में काम कर चुका है. उस के साथ उग्रसैन और लाखन भी थे. यह मध्य प्रदेश और आगरा में अपहरण कर फिरौती वसूल चुके हैं. गिरोह ने पहले आगरा के सदर क्षेत्र में दंत चिकित्सक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूली थी.

अधिवक्ता अकरम अंसारी की सकुशल बरामदगी की जानकारी जैसे ही उन के परिजनों को मिली तो पूरे परिवार की आंखें खुशी से छलछला उठीं. उन के आवास पर लोगों ने खुशी में आतिशबाजी की. पुलिस अधिकारी पूरे दिन अकरम से पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेते रहे. 25 फरवरी को अकरम के घर आते ही मां ने उन्हें गले से लगा लिया. बच्चे भी उन से लिपट गए. अकरम ने बताया कि वह मौत के मुंह से निकल कर आए हैं. 26 फरवरी, 2020 को पुलिस लाइन में एडीजी अजय आनंद ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस सनसनीखेज अपहरण कांड का परदाफाश किया. उन्होंने बताया कि एसएसपी बबलू कुमार के निर्देशन में फूलप्रूफ औपरेशन चला कर पुलिसकर्मियों की 10 टीमें बनाई गई थीं.

जिस में सीओ (कोतवाली) चमन सिंह चावड़ा, सर्विलांस टीम प्रभारी नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर कमलेश सिंह, अरविंद कुमार, अनुज कुमार, अजय कौशल, राजकमल, बैजनाथ सिंह, उमेश त्रिपाठी, एसआई राजकुमार गिरि, कुलदीप दीक्षित अरुण कुमार बालियान, सुशील कुमार, हैड कांस्टेबल आदेश त्रिपाठी, कांस्टेबल अजीत, प्रशांत, करन, विवेक, राजकुमार, अरुण कुमार, आशुतोष त्रिपाठी, रविंद्र, प्रमेश आदि शामिल थे. पुलिस ने अधिवक्ता को सकुशल बरामद करने के साथ 5 अपहर्त्ताओं व एक महिला को गिरफ्तार कर फिरौती की रकम, जो 15 लाख बता कर केवल साढ़े 12 लाख बैग में रखी थी, भी बरामद कर ली. एडीजी ने बताया कि अपहृत को 2-3 दिन पहले बरामद कर सकते थे. लेकिन उन की सकुशल बरामदगी के लिए इंतजार करना पड़ा.

अलगअलग हुलिया बनाए पुलिस ने टीमों के साथ सीओ, एसपी, एसएसपी, तक ने बीहड़ में डेरा डाला. अपहर्त्ताओं की नजर से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ अपना हुलिया बदला, बल्कि बकरी चराने से ले कर खेतों में मजदूर बन कर काम किया. पुलिस ने फिरौती के लिए फोन करने वाले की आवाज भी रिकौर्ड की. वह आवाज मुखबिरों को सुनाई गई. इस के बाद ही पुलिस को सुराग मिला. पुलिस ने 40 घंटे के औपरेशन के बाद अधिवक्ता अकरम अंसारी को मुक्त करा लिया. इस औपरेशन का नाम ‘अकरम मुक्ति’ रखा गया था. पुलिसकर्मी कोड वर्ड बांकेबिहारी और वंदेमातरम में एकदूसरे से बात करते थे.

बदमाशों ने फिरौती के लिए 4 बार फोन किया था. पहली काल 5 फरवरी को भरतपुर के रूपवास से की गई, इस के लिए सिम खेरागढ़ से ली गई थी. दूसरी काल 8 फरवरी को की गई, जबकि 12 व 15 फरवरी की काल कस्बा बाड़ी से की गई थीं. काल करने के लिए हर बार नया मोबाइल और नया सिम खरीदा गया था. इस के साथ ही हर बार अपहर्त्ता लोकेशन भी बदलते रहे थे. उन्होंने कहा कि पुलिस ने न सिर्फ अधिवक्ता अकरम अंसारी को सकुशल बरामद किया बल्कि 5 अपहर्त्ताओं और एक महिला को गिरफ्तार कर उन से फिरौती की वसूली गई रकम साढ़े 12 लाख भी बरामद कर ली. पुलिस ने बैग में रखी यह रकम 15 लाख बताई थी. डीजीपी ने टीम के इस कार्य की सराहना की. इस संबंध में अपहरण की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के गुर्जर गैंग ने बीच आगरा शहर से अधिवक्ता अकरम अंसारी का अपहरण किया था. दरअसल 3 फरवरी, 2020 को अकरम को उन के साढ़ू ने फिरोजाबाद जाने के लिए एक आटो में बैठा दिया था. अकरम सिकंदरा स्थित आईएसबीटी पर उतरे लेकिन वहां फिरोजाबाद जाने के लिए कोई बस नहीं मिली. जब बस नहीं मिली तब अकरम दूसरे आटो से भगवान टाकीज पहुंच कर बस का इंतजार करने लगे. वहां पर आगरा आने व जाने वाली बसें रुकती हैं. शाम 7.20  बजे एक बोलेरो उन के पास आ कर रुकी और ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कहां जाओगे?’’

अकरम ने फिरोजाबाद जाने की बात कही तो ड्राइवर ने कहा, ‘‘हां, फिरोजाबाद ही जा रहे हैं.’’ उस समय उस बोलेरो में चालक के अलावा 3 लोग और बैठे थे. उस गाड़ी में अकरम के बैठते ही ड्राइवर चलने लगा तो अकरम ने कहा कि और सवारियां ले लो तो चालक ने कहा कि आगे से ले लेंगे. 10-12 मिनट गाड़ी चलने के बाद अचानक बगल में यात्री के रूप में बैठे बदमाश ने अकरम को सीट के नीचे गिरा कर दबोच लिया और धमकी दी कि यदि चिल्लाया तो गोली मार देंगे. इस के साथ ही उन के ऊपर कपड़ा डाल दिया. बदमाश कह रहे थे यदि तू वीरेंद्र नहीं हुआ तो हम तुझे छोड़ देंगे. अपहर्त्ता ये बात इसलिए कह रहे थे ताकि वह शोर न मचाए. उन्होंने अकरम की आंखों पर पट्टी भी बांध दी.

गाड़ी चलती रही. रात 11 बजे अपहर्त्ता अधिवक्ता अकरम को एक सुनसान जगह पर ले गए. वहां एक घर में उन्हें रखा गया. यह घर धौलपुर के बाड़ी कस्बे में था. वहां 2-3 कमरे थे. पैरों में जंजीर बांध कर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया. आंखों पर पट्टी बांधने के साथ ही अकरम के मुंह पर टेप भी लगा दिया. उन का मोबाइल उन लोगों ने गाड़ी में ही छीन लिया था. कमरे पर ही बदमाशों ने अकरम से उस के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद दूसरे दिन फिरौती के लिए परिजनों को फोन किया था. कमरे में ही चटाई पर अकरम सोते थे. रात में सोने के लिए एक हलकी रजाई दी गई थी. 24 घंटे 2 युवक पहरेदारी पर रहते थे. रात में एक बदमाश भी पास में ही दूसरी चटाई पर सोता था. कई दिन बीत गए. बदमाश बीचबीच में आ कर उन्हें धमका जाते थे. कहते कि तेरे परिवार के लोग फिरौती की रकम नहीं दे पा रहे हैं, हम तुझे मार देंगे.

हालात देख कर बचना था मुश्किल वहां जिस तरह का माहौल चल रहा था इस से अकरम को लग रहा था कि वह अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएंगे. उन्हें डर था कि परिजन अपहर्त्ताओं की मांग पूरी नहीं कर पाएंगे. उन का अब घर जाना मुश्किल होगा. बदमाश खाने के लिए कभी रोटी सब्जी तो कभी रोटी दाल देते थे. अकरम रात को ही खाना खाते थे. 15 दिन तक अकरम को नहाने नहीं दिया गया. मकान में एक महिला और उस का पति था. मकान में आगे व पीछे दरवाजे थे. आगे के दरवाजे पर ताला लगा रहता था. अन्य लोग मकान के पीछे के दरवाजे से आतेजाते थे. अकरम ने बताया कि बदमाशों ने उन के साथ मारपीट नहीं की.

अकरम हर दिन यही दुआ करते थे कि पुलिस उन्हें कब छुड़ाएगी? दहशत की वजह से नींद भी नहीं आती थी. जैसेजैसे दिन निकलते जा रहे थे, उम्मीद भी कम होती जा रही थी. मगर, रविवार 23 फरवरी की रात को पुलिस आई और अकरम को मुक्त करा लिया. अपनी दास्ता बयां करतेकरते अकरम की आंखें भर आई थीं. पुलिस लाइन में अकरम के भाई मोउज्जम, असलम, मोहम्मद सोहेल, मुकर्रम और पिता आरिफ अंसारी आए थे. भाइयों ने अकरम को गले लगा लिया. परिवार से मिल कर अकरम की खुशी का ठिकाना नहीं था. पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान अकरम ने पुलिस अधिकारियों को मिठाई खिलाई और उन को धन्यवाद दिया.

पुलिस ने बताया कि धौलपुर के बीहड़ में अपहर्त्ताओं के 25 गैंग सक्रिय हैं. यह गैंग शिकार को बीहड़ में पकड़ कर ले जाने के बाद फिरौती वसूलते हैं. पुलिस ने सौ से ज्यादा गैंग के बारे में पड़ताल की. इन में 25 गैंग के सक्रिय होने के बारे में पता चला. इन में गब्बर, केशव, रामविलास, भरत, धर्मेंद्र, लुक्का, मुकेश ठाकुर गैंग विशेष रूप से सक्रिय हैं. यह गैंग अलगअलग तरीके से फिरौती के लिए अपहरण की वारदात को अंजाम देते हैं. इन के खिलाफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अनेक मुकदमे दर्ज हैं.

अपहृत वकील को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने वाली पुलिस टीम को एडीजी अजय आनंद ने पुरस्कृत कर सम्मानित किया. पुलिस ने सारी काररवाई पूरी कर गिरफ्तार अपहर्त्ताओं को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Uttar Pradesh Crime : शराब में जहरीला पदार्थ मिलाकर प्रेमी को मार डाला

Uttar Pradesh Crime : बेटी मानसी चौरसिया के कदम बहकने के बाद पिता रोहित चौरसिया को किसी भी तरह उस के कदमों को रोकना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि वह बेटी के कहने पर बेटे के साथ मिल कर ऐसा  कुछ कर बैठा कि …

25 नवंबर, 2019 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा का रहने वाला रमेश गुप्ता घर में बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था. तभी अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठा कर काल रिसीव की, बात होने के बाद उस ने कपडे़ बदले और छोटे भाई सुरेश से यह कह कर चला गया कि मनोज के घर जा रहा है. अगर जरूरत हुई तो वह उन के घर पर रुक जाएगा. दरअसल, मनोज गुप्ता के ससुर बीमार थे, सुरेश उन की देखभाल के लिए उन के घर जाता रहता था. दोनों परिवारों के घ्निष्ठ संबंध थे. रमेश को गए काफी देर हो गई. जब वह नहीं लौटा तो सुरेश ने समझा कि वह मनोज के घर रुक गए होंगे. रमेश जब 26 नवंबर की सुबह तक भी नहीं लौटा तो सुरेश ने मनोज गुप्ता को फोन किया तो उन्होंने बताया कि रमेश कल रात को उन के यहां आया ही नहीं था.

यह जान कर सुरेश को चिंता हुई. रमेश जहांजहां जा सकता था, सुरेश ने उन सभी जगहों पर उस की खोज की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. 30 वर्षीय रमेश गुप्ता अपने परिवार के साथ जिला गोंडा के थाना कोतवाली क्षेत्र में स्थित विष्णुपुरी कालोनी में रहता था. जब सुरेश रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों से पूछपूछ कर परेशान हो गया तो उस ने 29 नवंबर को थाना कोतवाली जा कर भाई रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कोतवाल आलोक राव ने सुरेश की तहरीर पर रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने उस की तलाश के लिए आवश्यक काररवाई शुरू कर दी. गोंडा शहर के ही सिविल लाइंस क्षेत्र में अफीम कोठी मोहल्ले में एक खाली मैदान है, जिस में तमाम झाडि़यां थीं. इस खाली मैदान में 2 दिसंबर को कुछ लोग गए तो वहां बदबू के तेज भभके उठ रहे थे.

लोगों ने खोजबीन शुरू की तो वहां एक सूखे कुएं में क्षतविक्षत अवस्था में लाश पड़ी देखी. वह कुआं मिट्टी से आधा पट चुका था, इसलिए चित अवस्था में पड़ी उस लाश का चेहरा स्पष्ट दिख रहा था. उन लोगों ने वह लाश पहचान ली. वह लाश विष्णुपुरी कालोनी के रहने वाले रमेश गुप्ता की थी. रमेश के मकान से उस जगह की दूरी महज 200 मीटर थी. उन में से ही एक आदमी ने जा कर रमेश के भाई सुरेश गुप्ता को रमेश की लाश मिलने की सूचना दे दी. सुरेश तुरंत मौके पर पहुंचा तो उस ने कुएं में पड़ी भाई की लाश पहचान ली. सुरेश ने कोतवाल आलोक राव को भाई की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर आलोक राव, एसएसआई राजेश मिश्रा आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मौके पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इंसपेक्टर राव ने लाश कुएं से निकलवाई. लाश काफी सड़गल चुकी थी, इसलिए लाश का निरीक्षण करने पर मौत की वजह पता नहीं चल रही थी. इसी बीच एसपी राजकरन नैयर और एएसपी महेंद्र कुमार भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने के बाद उन्होंने रमेश के भाई सुरेश से पूछताछ की. सुरेश ने भाई की हत्या में उस की प्रेमिका मानसी का हाथ होने का शक जताया. वैसे भी अफीम कोठी मोहल्ले में ही 100 मीटर की दूरी पर मानसी चौरसिया का मकान था.

सुरेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर सुरेश की तहरीर पर मानसी चौरसिया के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया. इंसपेक्टर राव ने मृतक रमेश गुप्ता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि 25 नवंबर की रात को उस के मोबाइल पर जो काल आई थी, वह मानसी चौरसिया के फोन नंबर से ही की गई थी. अब मानसी से पूछताछ करनी जरूरी थी. लिहाजा 3 दिसंबर को इंसपेक्टर आलोक राव ओर एसएसआई राजेश मिश्रा ने महिला कांस्टेबल की मदद से मानसी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कोतवाली ला कर जब मानसी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि रमेश की हत्या करने में उस के दूसरे प्रेमी अंकित सिंह, पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू चौरसिया ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद मानसी ने रमेश की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की नगर कोतवाली अंतर्गत रामचंद्र गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते थे. रामचंद्र के परिवार में उन की पत्नी राजकुमारी और 2 बेटियों के अलावा 3 बेटे दिनेश, रमेश और सुरेश थे. रामचंद्र प्राइवेट नौकरी करते थे. उन्होंने दिनेश का विवाह कर दिया था. दिनेश को विवाह के कुछ समय बाद ही चालचलन ठीक न होने पर रामचंद्र ने उसे घर से निकाल दिया. यह लगभग 8 साल पहले की बात है. इस समय दिनेश परिवार के साथ बस्ती जिले में रहता है. रामचंद्र ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया था. रमेश और सुरेश अभी अविवाहित थे. रमेश ने बीए तक पढ़ाई की थी. रामचंद्र के कूल्हे में रौड पड़ी थी. उस रौड की वजह से उन्हें इंफेक्शन हो गया था, जो कि किडनी और उस के आसपास फैल गया था. वह काफी समय से बीमार थे.

इस की वजह से उन की देखभाल बड़ा बेटा रमेश किया करता था. देखभाल करने के कारण रमेश कोई काम नहीं करता था. घर पर ही रहता था. जबकि सुरेश एक बैंक में मैनेजर के रहमोकरम पर काम करने लगा था. विष्णुपुरी कालोनी से सटा अफीम कोठी मोहल्ला था. इसी मोहल्ले में रोहित चौरसिया परिवार के साथ रहता था. रोहित रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की पत्नी जगदेवी का देहांत हो चुका था. रोहित के 2 बेटे दीपू चौरसिया और सूरज चौरसिया और एकलौती बेटी मानसी थी. दीपक का रीमा नाम की युवती से विवाह हो चुका था. सूरज अविवाहित था और मुंबई में रहता था. मानसी ने इंटरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण की थी, इस के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह घर के रोजमर्रा के काम करने लगी.

रमेश और मानसी के मकान के बीच महज 200 मीटर की दूरी थी. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. मानसी काफी महत्त्वाकांक्षी थी. छरहरी काया वाली मानसी को लड़कों से दोस्ती करना बहुत अच्छा लगता था. उस की वजह थी कि उस के नाजनखरे उठाने में लड़कों की लाइन लगी रहती थी. उन के साथ घूमने, मौजमस्ती के उसे खूब मौके मिलते थे. रमेश मोहल्ले में ही घूमता रहता था, इसलिए वह मानसी के चालचलन से बखूबी वाकिफ था. उस ने भी मानसी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मानसी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों की दोस्ती धीरेधीरे रंग दिखाने लगी. वैसे भी दोस्ती प्यार की पहली सीढ़ी होती है. रमेश और मानसी दोनों यह सीढ़ी चढ़ चुके थे.

दोनों साथ में काफी समय बिताने लगे. उन के बीच मोबाइल पर भी बातें होती रहती थीं. जैसेजैसे समय गुजरने लगा, दोनों को अहसास होने लगा कि दोनों दोस्ती की सीमाओं को पार कर उस से भी आगे निकल चुके हैं. उन के दिलों में प्यार की उमंगें हिलारें मार रही थीं. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. यह भी तय कर लिया कि जीवन भर दोनों पतिपत्नी के रूप में साथसाथ रहेंगे. दोनों ने विवाह करने की बात अपने घरों में की तो रमेश के घर वालों को तो शादी से कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन मानसी के पिता रोहित और भाई दीपू ने मना कर दिया. उन्होंने मानसी से कहा कि रमेश एक तो उन की जातिबिरादरी का नहीं और दूसरे वह निठल्ला है. कुछ कामधाम नहीं करता. ऐसे में शादी के बाद वह उसे कैसे रख पाएगा.

बाप की नसीहत बेटी के दिमाग में घर कर गई. मानसी ने अभी तक इस बारे में सोचा ही नहीं था. वह तो प्यार में इतनी डूब गई थी कि और कुछ सोचसमझ ही नहीं पा रही थी. बाप की नसीहत ने जैसे उस की आंखें खोल दी थीं. अब उस ने रमेश से दूरी बनानी शुरू कर दी. लेकिन रमेश था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं था. इसी बीच मानसी की मुलाकात कुछ दूर जानकीनगर मोहल्ला निवासी अंकित से हो गई. अंकित अच्छा कमाता था. रमेश के मुकाबले हर लिहाज से अंकित मानसी को अच्छा लगा था. दोनों की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं. दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. मानसी अंकित के साथ बहुत खुश थी. रमेश ने मानसी चौरसिया को अपने से दूरी बनाते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा. वह ऐसा क्यों कर रही है, यह जानने की उस ने कोशिश की तो उस के सामने हकीकत आते देर नहीं लगी.

रमेश को लगा कि दूसरा प्रेमी मिलते ही मानसी ने उस से किनारा कर लिया है. यह बात रमेश के दिमाग में बारबार कौंध रही थी. वह इसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह मानसी को हर हाल में पाना चाहता था. एक दिन रमेश ने मानसी से मिल कर उसे समझाया लेकिन मानसी नहीं मानी. मानसी ने उसे बताया कि परिवार वाले उस से विवाह करने को तैयार नहीं हैं और वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. इस पर रमेश ने सीधे कहा कि ऐसे में तुम्हें अपने घर वालों को मनाना चाहिए. लेकिन तुम ने तो दूसरा प्रेमी ही ढूंढ लिया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

मानसी को न मानते देख रमेश ने उसे धमकाया कि अगर उस ने उसे छोड़ कर किसी दूसरे को चुना तो उस के जो अश्लील फोटो उस के पास हैं, वह उन्हें वायरल कर देगा. रमेश के इतना कहने पर मानसी डर गई लेकिन उस ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह अब उस की नहीं हो सकती. इस के बाद मानसी के दिमाग में यही चलता रहता था कि कहीं रमेश उस के अश्लील फोटो को वायरल न कर दे. वह इसी डर में जी रही थी. ऐसे में उस ने रमेश को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. उस ने अपने दूसरी प्रेमी अंकित से कहा कि कुछ दिनों पहले रमेश ने धोखे से उस के कुछ अश्लील फोटो खींच लिए थे, उन के बल पर वह उसे ब्लैकमेल कर फोटो वायरल करने की धमकी दे रहा है.

मानसी ने अंकित से कहा कि उसे रोकने का एक ही तरीका है कि उसे मार दिया जाए. अंकित इस काम में उस का साथ देने को तैयार हो गया. उसे कहां और कैसे मारना है, इस पर दोनों ने विचार कर लिया. इस के बाद दोनों को लगा कि वे दोनों इस काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाएंगे. इस पर मानसी ने रमेश को ठिकाने लगाने के लिए अपने पिता और भाई को राजी करने का उपाय सोचा. योजनानुसार मानसी ने रोते हुए अपने पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू को बताया कि रमेश के पास उस के कुछ अश्लील फोटो हैं. उन को वायरल कर के वह उस की जिंदगी बरबाद करना चाहता है. यह सुन कर दोनों को मानसी और रमेश पर गुस्सा आया. पर पहले तो उन्हें रमेश को देखना था, क्योंकि उन के लिए मानसी की इज्जत यानी परिवार की इज्जत पहले थी. इज्जत बचाने की खातिर उस के पिता व भाई रमेश को सबक सिखाने को तैयार हो गए.

तब मानसी ने दोनों को बता दिया था कि इस सब में उस का एक दोस्त अंकित भी मदद करने को तैयार है. इस के बाद एक दिन मानसी ने अंकित को घर बुला लिया. फिर सब ने मिल कर रमेश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. 25 नवंबर को मानसी के भाई दीपू की पत्नी रीमा अपने मायके गई हुई थी. योजनानुसार रात साढ़े 10 बजे मानसी ने फोन कर के रमेश को अपने घर बुलाया. रमेश अपने भाई सुरेश से घर के सामने रहने वाले मनोज गुप्ता के यहां जाने की बात कह कर निकला और सीधे मानसी के घर पहुंच गया.  वहां मानसी, उस के पिता रोहित, भाई दीपू के अलावा अंकित भी मौजूद था. रमेश के पहुंचने पर सब ने पहले उसे शराब पिलाई. शराब में पहले से ही जहरीला पदार्थ मिला दिया गया था. शराब में मिले जहर ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो रमेश की हालत बिगड़ने लगी. वह उठ कर जाने की कोशिश करने लगा तो सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और गला दबा कर उसे मार डाला.

रमेश को मौत की नींद सुलाने के बाद रात एक बजे उस की लाश अपने घर के पीछे झाडि़यों से पटे खाली मैदान में बने सूखे कुएं में डाल दी. इस के बाद अंकित अपने घर चला गया. लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. मानसी चौरसिया ने सभी के नाम खोले तो इंसपेक्टर आलोक राव ने अंकित, रोहित चौरसिया और दीपू चौरसिया की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी. मानसी के हिरासत में लिए जाने के बाद ही तीनों अपने घरों से फरार हो गए थे. पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते अंकित ने 6 दिसंबर, 2019 को न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर राव ने दीपू चौरसिया को गिरफ्तार कर लिया. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित चौरसिया फरार चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनोज गुप्ता परिवर्तित नाम है.

 

Delhi News : बच्चों की हत्या कर पत्नी व प्रेमिका संग इमारत से कूदा कपड़ा व्यापारी

Delhi News : गुलशन वासुदेवा एक अच्छे व्यवसाई थे. दिल्ली की गांधीनगर मार्केट में उन का जींस का कारोबार था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ, जो उन्हें अपने 2 बच्चों की हत्या करने के बाद अपनी पत्नी और प्रेमिका संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या करनी पड़ी…

गुलशन वासुदेवा उर्फ हरीश यूं तो मूलरूप से पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कालोनी के रहने वाले थे. लेकिन अक्तूबर 2019 से वे इंदिरापुरम की कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी की आठवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट संख्या ए-806 में किराए पर आ कर रहने लगे थे. उन के साथ उन का बेटा रितिक (13), बेटी कृतिका (18), पत्नी परमीना (43) और उन की मैनेजर संजना (26) भी साथ रहती थी. गुलशन का दिल्ली के गांधीनगर की रेडीमेड कपड़ों की मार्केट में जींस का कारोबार था. कृतिका और रितिक दिल्ली के श्रेष्ठ विहार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल में क्रमश: 12वीं और 9वीं कक्षा में पढते थे. कृतिका की फैशन में बहुत रुचि थी. इसलिए वह 12वीं के बाद फैशन इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने की की भी तैयारी कर रही थी.

उस का सपना एक कामयाब फैशन डिजाइनर बनने का था. इस के लिए वह काफी मेहनत भी करती थी. गुलशन को भी अपने दोनों बच्चोें से बेहद प्यार था. इसलिए वह उन की हर ख्वाहिश पूरी करते थे. जींस के कारोबार के साथ गुलशन के कई और भी कारोबार थे. उन्होंने प्रौपर्टी के काम में काफी पैसा निवेश किया हुआ था. कोलकाता में एक बड़े बिजनेसमैन के साथ भी उन्होंने लाखों का निवेश किया हुआ था. लेकिन पिछले कुछ समय से उन का करीब 2 करोड़ से अधिक का ये निवेश बुरी तरह फंस गया था. देश में जब से नोटबंदी हुई थी उन का पैसा वापस मिलना बंद हो गया था. लेकिन इस के बावजूद गुलशन के परिवार में सब एकदूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. गुलशन को जब भी फुरसत मिलती तो परिवार को ले कर अकसर घूमने निकल जाते थे.

जिस अपरा सफायर सोसाइटी में गुलशन 2 महीने पहले रहने के लिए आए थे, उस से पहले वह करीब 4 सालों तक पास की ही एटीएस सोसायटी में रहे थे. उस वक्त उन के साथ में 80 वर्षीय पिता नारायण दास वासुदेवा भी रहते थे. गुलशन की पत्नी परमीना बहुत समझदार महिला थीं. वह अपने बीमार ससुर की बहुत सेवा करती थीं. नारायण दास अपने बेटे से ज्यादा बहू परमीना को मानते थे. लेकिन अचानक खराब होती आर्थिक परिस्थितियों के कारण गुलशन ने जब मकान बदला तो उन्होंने पिता को बड़े भाई सतपाल के घर रहने के लिए छोड़ दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उन की आर्थिक बदहाली से पिता की सेहत पर बुरा असर पड़े.

गुलशन वासुदेवा 3 भाई व एक बहन में सब से छोटे थे. सब से बड़ी बहन विधवा है और अपने बच्चों के साथ रहती है. जबकि उन के दोनों बड़े भाई देवेंद्र और सतपाल भी विवाहित हैं. दोनों भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली की झिलमिल कालोनी में ही रहते हैं. उन का भी गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है. पिता नारायण दास रेलवे से सेवानिवृत्त  हुए थे. चूंकि पिता की देखभाल गुलशन ही करता था, लिहाजा पिता अपनी सारी पेंशन विधवा बेटी को भेज देते थे. हालांकि उन के दोनों बड़े भाई काफी समृद्ध हैं. इधर कई सालों से कारोबार में घाटे के बाद दोनों भाइयों ने शुरूशुरू में तो गुलशन व उस के परिवार की काफी मदद की, लेकिन बाद में अपनी खुद की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने भी सहयोग देना बंद कर दिया. यही कारण रहा कि परिवार के लोगों से गुलशन की दूरी बनने लगी थी.

एटीएस सोसाइटी में गुलशन के पास 2 बैडरूम वाला फ्लैट था, जबकि कृष्णा अपरा सोसाइटी में उन्होंने 3 बैडरूम का फ्लैट लिया था. इसी कारण उन की मैनेजर संजना भी उन के साथ आ कर रहने लगी थी. 3 दिसंबर, 2019 की सुबह के करीब पौने 5 बजे का वक्त था. कृष्णा अपरा सोसाइटी के गेट पर तैनात तीनों सुरक्षा गार्ड कुर्सियों पर बैठे अलाव से हाथ सेंकते हुए ठंड दूर करने का प्रयास कर रहे थे. अचानक उन्हें सोसाइटी के टावर-ए के पास से धड़ाम की ऐसी आवाज आई जैसे ऊपर की किसी मंजिल से कोई भारी चीज सड़क पर आ कर गिरी हो.

एक सिक्योरिटी गार्ड वहीं रुक गया, बाकी 2 गार्ड देखने के लिए उस तरफ चले गए, जहां से आवाज आई थी. दोनों गार्ड जैसे ही टावर-ए के पास पहुंचे तो बिजली की रोशनी में उन्होंने देखा कि सड़क पर 3 लोग खून से लथपथ पडे़ हैं. उन में एक पुरुष व 2 महिलाएं थीं. ऐसा लगता था जैसे ऊपर की मंजिल के किसी फ्लैट से या तो वे गिर पड़े थे या किसी ने उन्हें धक्का दिया था. गिरने के कारण आसपास काफी खून फैल चुका था. एक पुरुष व एक महिला के शरीर लगभग निर्जीव हो चुके थे, जबकि एक महिला के मुंह से दर्दभरी आह सुनाई पड़ रही थी और शरीर में हल्की हरकत भी थी. दोनों गार्डों ने तत्काल आवाज दे कर तीसरे गार्ड को भी अपने पास बुला लिया.

तीनों गार्डों ने सड़क पर खून से लथपथ तीनों लोगों को जब गौर से देखा तो वे देखते ही पहचान गए कि खून से लथपथ पडे़ वे तीनों लोग गुलशन वासुदेवा, उन की पत्नी परमीना और उन के साथ रहने वाली संजना थी. गार्डों ने दी सूचना सोसाइटी के तीनों गार्डों ने तत्काल सोसाइटी के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी को सूचना दी तो वे भी मौके पर आ गए. चंद मिनटों में ही सोसाइटी के अन्य लोग भी इस घटना की एकदूसरे से मिली जानकारी पा कर वहां पहुंच गए थे. दयानंद नाम के एक गार्ड ने तब तक पुलिस कंट्रोल रूम को इस हादसे की जानकारी दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना उसी समय स्थानीय इंदिरापुरम थाने को दी गई. एसएचओ इंदिरापुरम इंसपेक्टर महेंद्र सिंह पूरी रात गश्त के बाद थाने में अपने कार्यालय में आ कर बैठे थे और थकान उतारने के लिए चाय की चुस्की ले ही रहे थे कि उसी वक्त मुंशी ने आ कर उन्हें कंट्रोलरूम से अपरा सोसाइटी में हुई घटना के बारे में बताया. खबर ऐसी थी जिसे सुन कर चाय का घूंट इंसपेक्टर महेंद्र सिंह के गले से नीचे उतरना भारी हो गया उन्होंने एसआई शिशुपाल सिंह, धीरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार, कांस्टेबल विकासवीर, श्यामलाल को साथ लिया और अगले 10 मिनट के भीतर कृष्णा अपरा सोसाइटी पुहंच गए.

पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही सोसाइटी के लोगों ने समीप के शांति गोपाल अस्पताल में फोन कर के एंबुलेंस बुलवा ली थी. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो खून से लथपथ तीनों लोगों की नब्ज टटोलने के बाद उन के सामने ये बात साफ हो चुकी थी कि गुलशन सचदेवा और उन की पत्नी परमीना दम तोड़ चुके हैं. जबकि उन के परिवार की एक दूसरी महिला सदस्य संजना की सांसें चल रही थीं. लिहाजा एंबुलेंस आने के बाद पुलिस ने आननफानन में उसे शांतिगोपाल अस्पताल भिजवा दिया. साथ में एसआई शिशुपाल सिंह भी अस्पताल पहुंचे थे. इधर, घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने का काम शुरू कर दिया. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि छत से गिरने वाले गुलशन वासुदेवा और उन के घर के तीनों सदस्य थे.

सोसाइटी के लोगों से पूछताछ करने पर यह भी पता चल गया कि गुलशन टावर-ए की 8वीं मंजिल के फ्लैट संख्या 806 में अपने परिवार के साथ रहते हैं. सोसाइटी के पदाधिकारियों और व अपने सहयोगियों को ले कर इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब 8वीं मंजिल के उस फ्लैट पर पहुंचे तो वहां दरवाजा भीतर से लौक मिला. गार्डों की मदद से दरवाजे की कुंडी को तोड़ क र पुलिस ने भीतर प्रवेश किया. 2 लाशें और मिलीं कमरे में ड्राइंगरूम की दीवारों पर कई जगह परिवार की तसवीरें फ्रेम में लगी हुई थीं, जिस में परिवार के सदस्यों की बचपन से लेकर अभी तक की लगभग सभी तसवीरें थीं. पुलिस ने एकएक कर सभी कमरों का निरीक्षण किया, जिस के बाद पता चला कि घर के सिर्फ 3 सदस्यों की ही मौत नहीं हुई थी, बल्कि घर के भीतर भी 2 लाशें और पड़ी थीं, जिस में एक लाश लड़की व दूसरी लड़के की थी.

सोसाइटी के लोगों ने बताया कि वे गुलशन के बच्चे कृतिका व रितिक थे. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. उसी कमरे में एक खरगोश का शव भी मिला, ऐसा लग रहा था कि पालतू खरगोश को गरदन मरोड़ कर मारा गया था. इस बीच भोर का उजाला पूरी तरह अपने पांव पसार चुका था. 5 लोगों की मौत की खबर पूरी सोसाइटी में जंगल की आग की तरह फैल गई. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने अपने क्षेत्र के एएसपी केशव कुमार के साथ एसपी (सिटी) मनीष मिश्रा और एसएसपी सुधीर कुमार सिंह को फोन कर के पूरे हादसे की इत्तिला दे दी. मामला इतना बड़ा था कि सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जिले के सभी आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम के अलावा मीडिया के लोग भी जानकारी पा कर घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. एक तरह से कृष्णा अपरा सोसाइटी के भीतरबाहर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. हर कोई माजरा जानना चाहता था कि इतने बड़े हादसे की वजह आखिर क्या थी.

पुलिस के तमाम आला अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के अलगअलग जगह से फोटो और फिंगरप्रिंट एकत्र किए. उन तमाम सबूतों को अपने कब्जे में लिया, जिस से वारदात का खुलासा करने में मदद मिल सकती थी. इस बीच वारदात की सूचना गुलशन के कुछ नजदीकी मित्रों और झिलमिल कालोनी में रहने वाले उस के परिजनों के पास भी पहुंच गई थी. सुबह होतेहोते वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी से इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने पूछताछ की, उन के बयान दर्ज किए. करीब 11 बजतेबजते पुलिस ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

इस दौरान पुलिस की जांच में पाया गया कि गुलशन वासुदेवा ने बच्चों की हत्या करने के बाद खुद भी फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था. क्योंकि पुलिस को एक कमरे में पंखे से लगा एक फंदा भी मिला. ऐसा प्रतीत होता था शायद एक कमरे में ही 3 फंदे लगाने की जगह न होने पर उस ने आत्महत्या करने का तरीका बदला. गुलशन उस की पत्नी व साथ में ही खुदकुशी करने वाली संजना ने बालकनी में लाइन से कुर्सियां लगाईं और फिर तीनों एक साथ नीचे कूद गए. कूदते समय उस कमरे को चुना, जिस की बालकनी में जाली नहीं लगी थी. ड्राइंगरूम वाले कमरे में दीवार पर एक बड़ा प्रोजेक्टर लगाया था. बड़ा होम थिएटर भी लगा था, जिस से लग रहा था कि पूरा परिवार डिजिटल उपकरणों का काफी प्रयोग करता था.

पुलिस को एक कमरे से आला कत्ल चाकू व रस्सी बरामद हुई. संभवत: उसी से दोनों बच्चों की गला रेत कर हत्या की गई थी. कमरे से 5-5 सौ के 18 नोट और 100 के नोट भी मिले. जो कुल रकम करीब 10 हजार थी. कालोनी के लोगों से पूछताछ में पता चला कि जिस रात पूरे परिवार ने बच्चों की हत्या कर खुदकुशी की, उसी दिन उन्होंने गार्ड, मेड व सोसायटी के अन्य कर्मचारियों को जैकेट व कंबल बांटे. शाम को घर में बने मंदिर में परिवार के साथ पूजाअर्चना की थी. पूरी घटना का विश्लेषण करने के बाद एक बात स्पष्ट हो रही थी कि गुलशन नहीं चाहता था कि परिवार का कोई भी सदस्य जिंदा बचे. इस के लिए शायद उस ने मौत को गले लगाने के कई तरीके सोचे थे.

रसोई में मिली सल्फास और 3 गिलास, बाथरूम में मिली सिरींज तथा बैडरूम में मिले चाकू व रस्सी इस बात की गवाही दे रहे थे कि गुलशन हर हाल में बच्चों की हत्या करना चाहता था, ताकि उस के मरने के बाद किसी को कोई तकलीफ भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े. ऐसा लगता था कि गुलशन ने पहले बेटाबेटी को खाने में नशीला पदार्थ मिला कर बेहोश किया, फिर सोने के बाद उन का पहले गला दबाया फिर गला काट कर हत्या कर दी. जिस के बाद गुलशन ने परमीना और संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली.

वारदात की पहले ही कर ली थी प्लानिंग पूरे हालात को देखने के बाद ये भी स्पष्ट था कि गुलशन व दोनों महिलाओं ने सहमति से कूदने का फैसला लिया था. हो सकता है कि दोनों बच्चों को उन की मौत के बारे में पता न चले, इसलिए दोनों को पहले भारी नशे की डोज दी गई हो. अगर नशे की डोज नहीं दी होती और सहमति नहीं होती तो मारने के दौरान बच्चों के चीखनेचिल्लाने की आवाज जरूर आती. कालोनी के लोगों से पूछताछ में यह भी पता चला कि गुलशन ने काफी दिन पहले ही शायद इस हादसे को अंजाम देने का मन बना लिया था, क्योंकि उस के घर पर एक मेड कुंती काम करती थी. कुंती की मौसी गीता ने पुलिस को बताया कि गुलशन के घर पर कुंती ने एक महीने काम किया था. 27 नवंबर को गुलशन ने उस का हिसाब कर दिया. इस के बाद कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं.

एक सब से अहम बात यह थी कि ड्राइंगरूम में कमरे की दीवार पर पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिस में गुलशन ने लिखा था कि उन सभी की मौत के लिए उस का साढ़ू राकेश वर्मा जिम्मेदार है. साथ ही उस ने अपनी अंतिम इच्छाभी दीवार पर लिखी थी कि उन सभी के शव का एक साथ एक ही जगह पर अंतिम संस्कार किया जाए. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से मशविरा करने के बाद उसी दिन इंदिरापुरम थाने में अपराध भादंसं की धारा 302 का मुकदमा पंजीकृत कर लिया. चूंकि जांच में सामने आ चुका था कि गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा ने उस के लाखों रुपए हड़प लिए थे और वापस नहीं किए थे, जिस के कारण आर्थिक तंगी और अवसाद में आ कर गुलशन को बच्चों की हत्या कर मौत को गले लगाना पड़ा.

जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने इस मामले में धारा 306 भी जोड़ दी. मौके से बरामद हुए सीरींज, सल्फास और तीनों गिलासों से बरामद हुए पेय पदार्थ, चाकू व रस्सी को जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. गुलशन के परिजनों से बातचीत करने के बाद पुलिस को राकेश वर्मा से गुलशन के सारे लेनदेन की बात भी पता चल चुकी थी. मामला बड़ा होने से पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया. जिलाधिकारी से रात में पोस्टमार्टम की अनुमति मांगी गई. अगली सुबह तक सभी का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ खुलासा इधर पांचों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हो गई. सामने आया कि कृतिका की मौत फंदे पर लटकाने के कारण हुई थी. जबकि बेटे रितिक की मौत चाकू से गला रेतने के कारण हुई. गुलशन, परमीना और संजना की मौत हैमरेज से हुई. यानी गुलशन ने पहले बेटी कृतिका को फंदे पर लटकाया, उस के बाद उस का गला रेता था. यानी उस का गला रेतने से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक गुलशन के शरीर पर 4 जगहों पर चोट आईं, जबकि परमीना और संजना के शरीर पर करीब 6-6 जगहों पर चोट आई थीं. मृतकों ने विषैला पदार्थ खाया था या नहीं, इस का खुलासा विसरा की उस रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा, जिसे पुलिस ने फोरैंसिक जांच के लिए भेजा है. इस के अलावा यह बात भी साफ हो गई कि सभी लोगों की मौत 4 घंटे के अंदर हुई थी. इसी बीच पुलिस ने अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पांचों शव गुलशन के परिजनों को सौंप दिए. चूंकि गुलशन, उस की पत्नी परमीना व दोनों बच्चे एक ही परिवार के सदस्य थे, इसलिए परिजनों ने उन के शव की सुपुर्दगी ले कर उसी दिन हिंडन घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. जबकि संजना जो कि गुलशन की मैनेजर थी, उस का शव लेने के लिए उस की मां नूरजहां व भाई फिरोज वहां पहुंच गए थे, इसलिए वे उस का शव ले कर गए और उसे सुपुर्दे खाक कर दिया गया.

दूसरे धर्म की थी संजना 5 लोगों की मौत के मामले में सब से अधिक चर्चा संजना पर छिड़ी हुई थी. दूसरे समुदाय की संजना गुलशन वासुदेवा परिवार के साथ जान देने को कैसे तैयार हो गई, इस पर चर्चाओं में सवाल उठाए जाने लगे. सवाल था कि संजना के साथ गुलशन के रिश्ते का नाम क्या था? हालांकि संजना की मां और भाई ने पुलिस को जो बयान दिए उस से स्थिति काफी हद तक साफ हो गई. यह बात साफ हो गई कि दिल्ली के वेलकम इलाके की रहने वाली संजना करीब 7 सालों से गुलशन के साथ थी. शुरुआत में तो वह फैक्ट्री में काम देखती थी लेकिन धीरेधीरे उस का गुलशन के घर में आनाजाना शुरू हो गया. डेढ़ महीने पहले गुलशन परिवार के साथ एटीएस सोसायटी से कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी में शिफ्ट हुए. तब से संजना उन के साथ ही रह रही थी. लेकिन संजना का गुलशन से क्या रिश्ता था, यह किसी को नहीं पता.

संजना मुसलिम समुदाय से थी. उस का असली नाम गुलशन था. 3 साल पहले उस ने अपना नाम संजना कर लिया था. 26 वर्षीय संजना करीब 7 साल से गुलशन वासुदेवा की फैक्ट्री में बतौर सुपरवाइजर काम कर रही थी. इसी दौरान दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. दोनों के बीच बेहद करीबी रिश्ते कायम हो गए. करीब डेढ़ साल पहले संजना घर छोड़ कर गई तो यह कह कर गई थी कि वह गुलशन वासुदेवा से शादी करने जा रही है. उस के कुछ दिन बाद वह घर आई और अपने कपड़े व अन्य सामान ले कर चली गई. संजना अब गुलशन के कारोबार में पूरी तरह से उस की मदद करने लगी थी.

परमीना के परिजनों ने पुलिस को बताया कि गुलशन वासुदेवा और संजना पहले कुछ समय तक लिवइन रिलेशन में रहे. उन्होंने शायद चोरी से शादी भी कर ली थी, इस का पता परमीना को भी हो गया था. पतिपत्नी के बीच जब इस मुद्दे पर बात हुई तो परमीना ने पति की खुशी के लिए संजना को पत्नी के तौर पर साथ में रहने की अनुमति दे दी थी. इसलिए जब गुलशन अपरा सोसाइटी में आए तो उन्होंने संजना से किराए का फ्लैट छुड़वा दिया और अपने परिवार के साथ फ्लैट में ले आए. साढ़ू पर लगाया आरोप इस बात की पुष्टि किसी ने नहीं की कि संजना वाकई गुलशन की पत्नी थी या प्रेमिका. लेकिन यह बात स्पष्ट थी कि पूरे परिवार में संजना व गुलशन के रिश्ते को मान्यता मिली हुई थी. इस से भी बड़ी बात यह थी कि संजना पूरे परिवार से इस तरह जुड़ी थी कि गुलशन के साथ उस ने भी खुशीखुशी मौत को गले लगाया था.

लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि आखिर गुलशन ने इतना बड़ा कदम क्यों  उठाया? जांच में यह बात भी स्पष्ट हो गई. परमीना की बड़ी बहन संगीता का पति राकेश वर्मा जो साहिबाबाद के शालीमार गार्डन में रहता है, उस ने कुछ समय पहले गुलशन से प्रौपर्टी के कारोबार में निवेश करने को कहा था. गुलशन ने उसे सवा करोड़ रुपए दिए थे. बदले में राकेश वर्मा ने 2015 में अपनी मां फूला वर्मा से शालीमार गार्डन स्थित कोठी का एग्रीमेंट गुलशन के करीबी सीए प्रवीण बख्शी के नाम करा दिया. लेकिन 2018  में उक्त कोठी 1.49 करोड़ रुपये में किसी और को बेच दी. राकेश ने खुद ही पैसा निवेश नहीं किया था बल्कि अपने कुछ दोस्तों से भी उधार पैसे ले कर निवेश करा दिया था.

इस पर गुलशन ने पैसे मांगे तो राकेश ने चैक दिए जो बाउंस हो गए. तगादा करने के बावजूद राकेश द्वारा पैसे नहीं लौटाने से गुलशन व उस का पूरा परिवार तनाव में आ गया. जिस के बाद कई बार मांगने पर भी राकेश वर्मा ने पैसे वापस नहीं लौटाए. उस का साफ कहना था कि जिन प्रौपर्टी में उस ने राकेश व उस के जरिए मिले दूसरे लोगों को पैसा निवेश किया था, उन सभी प्रौपर्टी के दाम नोटबंदी और रियल एस्टेट में आई मंदी के कारण भाव काफी गिर गए हैं. निराश हो कर गुलशन ने राकेश वर्मा और उस की मां के खिलाफ साहिबाबाद थाने में धोखाधड़ी, चेक बाउंस होने व अमानत में खयानत का मामला दर्ज कराया, जिस के आधार पर साहिबाबाद पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में दोनों की उच्च न्यायालय से जमानत हो गई थी.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर महेंद्र सिंह को जांचपड़ताल करने पर पता चला कि राकेश वर्मा प्रौपर्टी कारोबारी तो है ही, वह पंजाब में होटल भी चलाता था. आर्थिक तंगी के कारण वहां भी घाटा उठाना पड़ रहा था. झूठ और फरेब पर चल रहा था कारोबार उस का कारोबार झूठ और फरेब के आधार पर कई राज्यों में पसरा था. पुलिस को अभी तक कोलकाता, दिल्ली और नोएडा में उस के कारोबार की पुख्ता जानकारी मिली है. राकेश वर्मा ने पटना, उत्तराखंड और झारखंड तक में संपत्तियां बनाईं. इन संपत्तियों को बनाने के लिए उस ने केवल गुलशन वासुदेव को ही नहीं, कई अन्य जानकारों और रिश्तेदारों को मोहरा बनाया था. राकेश वर्मा ने कई जगह होटल कारोबार में भी अपने हाथ डाले थे.

गोवा जैसे कुछेक स्थानों पर होटल किराए पर ले कर संचालन किया, लेकिन हर जगह उसे घाटा उठाना पड़ा. इसलिए वह गुलशन का पैसा लौटाने में नाकामयाब रहा. एक तरफ राकेश के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर खरीदी या विकसित की गई प्रौपर्टी निकल नहीं पा रही थी. बीते 4-5 सालों से वह खुद भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इधर करोड़ों के नुकसान तले दबा गुलशन पहले कई सालों तक तो घाटे से उबरने की जद्दोजेहद में जुटा रहा. लेकिन अपने लेनदारों का दबाव गुलशन की सहनशक्ति से अब बाहर हो चुका था. कुछ दिन पहले कोलकाता की कंपनी में करीब 60 लाख रुपए डूबने का पता लगने पर वह बुरी तरह टूट गया और आखिरकार परिवार के खात्मे का फैसला ले लिया.

इंदिरापुरम पुलिस ने सभी तथ्य सामने आने के बाद गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. हालांकि राकेश की मां फूला देवी इस से पहले ही फरार हो गई.  इस लोमहर्षक हत्या व आत्महत्या कांड के बाद पुलिस मामले की पड़ताल कर आरोप पत्र तैयार करने के काम में लगी थी.

(कथा पुलिस व परिजनों से पूछताछ पर आधारित)

 

Lucknow Crime : बेवफा बीवी ने प्रेमी के साथ मिल कर बनाया पति का मर्डर प्‍लान

Lucknow Crime : कमला और रामकुमार की अच्छीभली गृहस्थी थी. लेकिन जब ज्ञान सिंह दोनों के बीच आया तो उन की गृहस्थी भी बिखरने लगी और रिश्तों के धागे भी उलझ गए. अब कमला और उस के चाहने वाले ज्ञान सिंह के पास एक ही विकल्प था कि…

शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी. अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे. इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.

जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है. रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’

यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी. घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए. रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.

चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे. डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.

अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली. पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी. उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.

एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’

‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा. यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.

अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए. मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.

एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया. थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’

इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’

थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’

सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया. चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई. पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था. रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था. उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था.

रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था. ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया. इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था.

रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा. चूंकि ज्ञान सिंह और रामकुमार के गांवों में महज 3 किलोमीटर की दूरी थी. ज्ञान सिंह का रामकुमार के घर भी आनाजाना हो गया और धीरेधीरे रामकुमार ज्ञान सिंह का विश्वासपात्र बन गया. इसी दौरान ज्ञान सिंह की नजरें रामकुमार की पत्नी कमला पर जा टिकीं. रामकुमार दिन में जब दूध ले कर शहर को निकल जाता तो ज्ञान सिंह दोपहर के वक्त कमला के घर में बैठ कर उस से घंटों बतियाता. दरअसल वह उस के मन को टटोला करता था. कमला की नजरों ने ज्ञान सिंह के मन को भांप लिया कि वह क्या चाहता है. ज्ञान सिंह कमला को भाभी कहता था.

उम्र में वह कमला से काफी छोटा था. इसलिए दोनों में नजदीकियां काफी बढ़ गईं. वक्तजरूरत पर ज्ञान सिंह ने पैसे से मदद कर कमला का मन जीत लिया था. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी और कमला का झुकाव ज्ञान सिंह की तरफ हो गया था. फिर दोनों में करीबी रिश्ता बन गया. एक दिन कमला ने मौका देख कर ज्ञान सिंह से कहा, ‘‘तुम मेरे मकान के नजदीक खाली पड़े खंडहर में दूध की डेयरी का काम क्यों नहीं शुरू कर देते. तुम्हारे भाईसाहब को भी शिवपुरी मानपुर लाला से जा कर रोजाना दूध लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उन्हें भी आसानी हो जाएगी. समय निकाल कर मैं भी दूध की डेयरी पर हाथ बंटा दिया करूंगी. बच्चों का खर्च उठाने के लिए मुझे भी धंधा मिल जाएगा.’’

कमला की बात सुन कर ज्ञान सिंह हंसते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. मैं अपने रिश्तेदार अंकित यादव से इस बारे में बात करूंगा.’’

ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अंकित यादव का रिश्तेदार था. उस के अंकित के परिवार से अच्छे संबंध थे. ज्ञान सिंह ने अंकित के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह शिवपुरी बरा खेमपुर में दूध की डेयरी खोलना चाहता है. अंकित ने ज्ञान सिंह के प्रस्ताव को सुन कर हामी भर ली और शिवपुरी बरा खेमपुर में रामकुमार के आवास के पास ही दूध की डेयरी खोल ली और दूध के कारोबार की जिम्मेदारी कमला के पति रामकुमार को सौंप दी. कमला ज्ञान सिंह की इस पहल से काफी खुश थी. गांव में दूध की डेयरी खुल जाने के बाद कमला और ज्ञान सिंह की नजदीकियां बढ़ गईं तो दोनों ने इस का भरपूर फायदा उठाया. रामकुमार भी पहले से अधिक ज्ञान सिंह की डेयरी पर समय बिताने लगा. रामकुमार ज्ञान सिंह की काली करतूतों से अनजान था.

धीरेधीरे ज्ञान सिंह और कमला की नजदीकियों की चर्चा रामकुमार के कानों तक पहुंच गई. पहले तो रामकुमार ने इन चर्चाओं पर विश्वास नहीं किया. उस ने कहा कि जब तक वह आंखों से देख नहीं लेगा, विश्वास नहीं करेगा. लेकिन फिर एक दिन कमला और ज्ञान सिंह को रामकुमार ने अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय रामकुमार कमला से कुछ नहीं बोला लेकिन रात का खाना खा कर रामकुमार ने फुरसत के क्षणों में कमला से पूछा, ‘‘क्यों, मैं जो कुछ सुन रहा हूं और जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा, वह सच है?’’

चतुर कमला ने दोटूक जवाब देते हुए ज्ञान सिंह से अपने संबंधों की बात नकार दी. लेकिन रामकुमार के मन में संदेह का बीज पनपते ही घर में कलह की नींव पड़ गई. धीरेधीरे उस का मन ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम करने को ले कर उचटने लगा. मन में दरार पड़ते ही उस ने ज्ञान सिंह से साफ कह दिया कि उस की पत्नी और उस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उस के जीवन में जहर घोल रहा है. उस ने ज्ञान सिंह से उस की डेयरी पर काम करने के लिए न केवल इनकार कर दिया, बल्कि ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम भी छोड़ दिया. दोनों की दोस्ती कमला को ले कर दुश्मनी में बदल गई. यह बात ज्ञान सिंह और कमला को अच्छी नहीं लगी. कमला ने पति से कहा कि उस ने ज्ञान सिंह का कारोबार छोड़ कर दुश्मनी मोल ले ली है,

लेकिन रामकुमार ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी कमला पर दबाव बना कर पत्नी की तरफ से ज्ञान सिंह के खिलाफ थाना बख्शी का तालाब में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ज्ञान सिंह की बदनामी हुई तो कुछ लोगों ने गांव में ही दोनों का फैसला करा दिया. ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर काम बंद करने एवं थाने में शिकायत दर्ज कराने को ले कर ज्ञान सिंह के मन में काफी खटास पैदा हो गई थी. दूसरे, दूध की डेयरी की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह पर स्वयं आ पड़ी. रामकुमार ने भी अपनी मेहनतमजदूरी के वास्ते शहर जा कर काम ढूंढ लिया. पुलिस की जानकारी में आया कि एक बार ज्ञान सिंह ने शहर के एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा रामकुमार पर हमला करवा दिया था. उस दिन से रामकुमार और ज्ञान सिंह दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए. उस दिन घर लौट कर रामकुमार ने कमला को खूब खरीखोटी सुनाई थी.

रामकुमार ने कमला को हिदायत देते हुए ज्ञान सिंह ने दूर रहने की चेतावनी दे दी. ऐसा न करने पर उस ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी. लेकिन दोनों में से कोई भी रामकुमार की हिदायतों को मानने के लिए तैयार नहीं था. इधर कमला की भी मजबूरी थी. वह ज्ञान सिंह द्वारा वक्तवक्त पर आर्थिक मदद के कारण उस के दबाव और अहसानों से दबती चली गई. रामकुमार इस बात से बिलकुल अंजान था. कमला ने ज्ञान सिंह से ली हुई रकम को चुकता करने के लिए डेयरी पर आनेजाने का सिलसिला जारी रखा. वह चाहती थी कि ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर अधिक से अधिक दिनों तक काम कर के उस की ली हुई आर्थिक मदद में उधार की रकम की देनदारी को चुकता कर दे.

रामकुमार को कमला का उस की डेयरी पर आनाजाना बिलकुल नहीं भाता था. लेकिन कमला ने पति की चिंता नहीं की. वह पति से ज्यादा प्रेमी ज्ञान सिंह को चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि ज्ञान सिंह उच्च जाति का धनवान व्यक्ति था. रामकुमार से अनबन कर लेने पर उसे कोई नुकसान नहीं था, लेकिन ज्ञान सिंह से अलग हो जाने पर गृहस्थी का सारा खेल बिगड़ सकता था. इसी वजह से कमला ने ज्ञान सिंह से मिलनाजुलना जारी रखा. रामकुमार मन ही मन कुढ़ता रहता और रोजाना घर में कलह होती रहती. पति के चाहते हुए भी कमला ज्ञान सिंह को अपनी जिंदगी से दूर करने का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही थी.

ज्ञान सिंह ने एक दिन कमला से कहा, ‘‘भाभी, पानी सिर से ऊपर हो चुका है. अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. तुम ही बताओ कुछ न कुछ तो करना होगा.’’

कमला ने कहा, ‘‘तुम ही बताओ, कौन सा रास्ता निकाला जाए.’’

ज्ञान सिंह ने कमला से मिल कर अपने मन की छिपी हुई बात बताते हुए कहा कि तुम्हारे पास मेरी जो 20 हजार रुपए की रकम है, वह तुम्हें वापस करनी थी. उन में से अब 13 हजार रुपए देने होंगे और रामकुमार को किराए के लोगों से बुला कर शाम के समय लखनऊ से गांव लौटते समय रास्ते से हटा देंगे. इस प्रस्ताव को सुन कर कमला भी खुश हो गई. उस ने ज्ञान सिंह को रजामंदी दे दी, फिर ज्ञान सिंह ने कमला के साथ मिल कर षडयंत्रपूर्वक एक योजना बना ली. तब ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को रास्ते से हटाने के लिए अंकित यादव को इस वारदात के लिए राजी कर लिया. ज्ञान सिंह ने उस से और किराए के आदमी जुटाने को कहा.

तब अंकित यादव ने रामकुमार की हत्या के लिए 20 हजार रुपए में सौदेबाजी पक्की कर ली. इस काम के लिए उस ने राजा, निवासी बरगदी, के.डी. उर्फ कुलदीप सिंह निवासी बख्शी का तालाब, उत्तम कुमार निवासी अस्ती रोड, गांव मूसानगर को तैयार किया. राजा के कहने पर कमला और ज्ञान सिंह ने 13 हजार रुपए अंकित यादव को सौंप दिए और 7 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा कर लिया गया. सभी ने तय किया कि 25 दिसंबर, 2019 को लखनऊ से आते समय भखरामऊ गोलइया मोड़ पर रामकुमार की हत्या को अंजाम दिया जाएगा. योजना के अनुसार 25 दिसंबर, 2019 की शाम को के.डी. सिंह के साथ राजा और उस के साथी पहुंच गए. राजा ने रामकुमार पर बाइक से आते समय तमंचे से हमला कर दिया. उस समय बाइक रामकुमार स्वयं चला रहा था और उस का भतीजा मतोले पीछे बैठा हुआ था.

पुलिस को अभी 2 अभियुक्तों राजा व कुलदीप सिंह की तलाश थी. पुलिस द्वारा मुखबिरों का जाल फैला दिया गया था. मुखबिर की सूचना पर 3 जनवरी, 2020 को राजा व कुलदीप दोनों को मय तमंचे और बाइक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. राजा ने पुलिस के साथ जा कर हमले में उपयोग किया गया तमंचा बरामद करा दिया. पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.