Haryana Crime news : करोड़ों की जमीन के लालच में बहन ने किया भाई का कत्ल

Haryana Crime news : सुरजीत को प्रीति से नहीं, उस की करोड़ों की जमीन से प्यार था, जिसे पाने के लिए उस ने सोनू की मदद से षड्यंत्र रच कर उस के पति विजय और नरेश की हत्या की, फिर…

इलाके की गश्त से लौटतेलौटते मुझे सुबह के 4 बज गए थे. थाने आते ही मैं ने एक सिपाही से चाय बना कर लाने को कहा. पूरी रात गश्त करने की वजह से काफी थकान महसूस हो रही थी, इसलिए कमर सीधी करने की गरज से मैं रेस्टरूम में पड़े बेड पर लेट गया. सिपाही चाय बना कर लाता, उस के पहले ही मुंशी ने मेरे पास आ कर कहा, ‘‘सर, अभीअभी मुंडियां चौकी से वायलैस संदेश आया है कि गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर-3 में किसी की हत्या कर दी गई है.’’

चूंकि संदेश स्पष्ट नहीं था, इसलिए अधिक जानकारी नहीं मिल सकी थी. लेकिन उस के बाद चौकीइंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह ने फोन कर के मुझे जल्दी घटनास्थल पर पहुचंने को कहा है. मुंशी अपना काम कर के चला गया था. हत्या की जानकारी मिलने पर चाय पीने का होश कहां रहा. चाय की बात भूल कर मैं उठा और परिसर में खड़ी जीप पर सवार हो कर ड्राइवर से मुंडिया चौकी की ओर चलने को कहा. मेरे जीप पर सवार होते ही मेरे साथ गश्त कर रहे सिपाही भी जीप पर सवार हो गए थे. सब के सवार होते ही जीप चल पड़ी थी.

मुंडिया चौकी, लुधियाना-चंडीगढ़ रोड पर मुंडियां गांव से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर थी. सड़क से गांव जाने वाली टूटीफूटी सड़क पर हम हिचकोले खाते हुए लगभग 25 मिनट में मुंडिया चौकी पहुंचे. चौकी का मुंशी हेडकांस्टेबल सुखविंदर सिंह चौकी पर ही मिल गया था. उसे साथ ले कर मैं घटनास्थल पर जा पहुंचा. चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह वहां पहले ही पहुंच गए थे. जिस घर में वारदात हुई थी, उस के सामने काफी भीड़ जमा थी. उन्हीं लोगों के बीच 24-25 साल की एक खूबसूरत औरत दहाड़े मार कर रो रही थी. पूछने पर पता चला कि इस का नाम प्रीति है और इसी के पति की हत्या हुई है.

‘‘जिस की हत्या हुई है, उस का नाम क्या है?’’ मैं ने सबइंसपेक्टर वरनजीत से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, एक नहीं, 2 लोग मारे गए हैं. यह महिला रो रही है, इस के पति का नाम विजय कुमार था. दूसरा उस का साथी नरेश था. उस की लाश ऊपर के कमरे में पड़ी है.’’

एक ही मकान में 2-2 हत्याओं की बात सुन कर मैं चकरा गया. प्रीति का रोरो कर बुरा हाल था. वह छाती पीटपीट कर रो रही थी. आसपड़ोस की औरतें उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं. फिलहाल वह कुछ बताने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए मैं ने मोहल्ले वालों से घटना के बारे में पूछना शुरू किया. उन लोगों ने बताया कि 2 गोलियां चली थीं. उस के बाद प्रीति गली में खड़ी हो कर चिल्ला रही थी, ‘‘मार दिया रे, मेरे पति को गोली मार दिया रे… पकड़ो… गोली मार कर वे भागे जा रहे है.’’

उस की चीखपुकार सुन कर ही लोग बाहर आए थे. मैं उन लोगों से जानना चाहता था कि गोली मारने वाले कौन थे, कहां से आए थे, उन्होंने दोनों को गोली क्यों मारी? लेकिन इस बारे में आसपड़ोस वाले कुछ नहीं बता सके थे. इस घटना की सूचना अधिकारियों को देने के साथ सुबूत जुटाने के लिए मैं ने क्राइम टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह के साथ मैं ने घटनास्थल और लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया.

गभग 35-40 गज का वह 2 मंजिला मकान था. भूतल पर एक कमरा, रसोई, टायलेट था तो ऊपर वाली मंजिल पर सिर्फ एक कमरा और उस के सामने बरामदा बना हुआ था. मारा गया विजय कुमार पत्नी प्रीती के साथ भूतल पर रहता था. ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश अकेला ही रहता था. वह विजय के साथ ही काम करता था और उस का खानापीना भी उसी के साथ होता था. विजय कुमार की लाश नीचे वाले कमरे में बेड पर पड़ी थी. वह 26-27 साल का अच्छाखासा जवान था. उस के सीने पर एक सुराख था, जिस से उस समय तक खून रिस रहा था. सीने के उस सुराख को देख कर लग रहा था कि हत्यारे ने उस पर एकदम करीब से गोली चलाई थी.

मैं ने कमरे में एक नजर डाली. कमरे का सारा सामान यथावत था. किसी भी चीज के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई थी. अच्छी तरह निरीक्षण करने के बाद भी वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस से हत्यारों तक पहुंचने में मदद मिलती. इस के बाद मैं सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह के साथ ऊपर वाले कमरे में गया. उस कमरे का हाल भी लगभग नीचे वाले कमरे जैसा ही था. नरेश की उम्र भी 26-27 साल थी. उस की भी सीने में गोली मर कर हत्या की गई थी. कमरे में पड़े बेड के पास ही 3 कुरसियां और एक टेबल रखी थी. टेबल पर कांच के 4 खाली गिलास, बीयर की 4 खाली बोतलें, एक शराब की खाली बोतल, पानी का जग और एक प्लेट रखी थी, जिस में शायद खानेपीने का कोई सामान रखा गया था. इस का मतलब था कि हत्याएं होने से पहले सब ने एकसाथ बैठ कर शराब पी थी.

मेरे कहने पर वरनजीत सिंह ने वह सारा सामान कब्जे में ले लिया. क्राइम टीम ने भी अपना काम निबटा लिया तो अन्य औपचारिक काररवाई पूरी कर के मैं ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दीं. इस के बाद थाने लौट कर मैं ने अज्ञात लोगों के खिलाफ इस मामले का मुकदमा दर्ज करा कर जांच शुरू कर दी. प्रीति का बयान लेने की गरज से उसी दिन दोपहर को मैं उस के घर पहुंचा. सांत्वना दे कर मैं ने उस से पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताने को कहा. प्रीति गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर 3 निहाल सिंह वाली मुंडियां में स्थित मकान में अपने पति विजय कुमार के साथ किराए पर रहती थी. विजय कुमार ने वह पूरा मकान किराए पर ले रखा था. इसी मकान के ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश रहता था.

विजय अपने साथी नरेश के साथ मकानों और औफिसों में एल्युमिनियम की खिड़कीदरवाजे लगाने का काम करता था. काम न होने की वजह से उस दिन सुबह से ही दोनों घर पर थे. प्रीति एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी. उस दिन उस की साप्ताहिक छुट्टी थी, इसलिए वह भी घर पर थी. करीब 3 बजे विजय ने प्रीति से कहा, ‘‘तुम 2-3 घंटे के लिए ब्यूटीपार्लर वाली अपनी सहेली के यहां चली जाओ. बाहर से मेरे कुछ दोस्त आ रहे हैं. उन से हमें कुछ व्यक्तिगत बातें करनी हैं, जो तुम्हारे सामने नहीं हो सकतीं.’’

विजय कुमार के कहने पर प्रीति अपनी सहेली के घर चली गई. उसी के साथ विजय और नरेश भी स्कूटर से अपने आने वाले दोस्तों को लेने के लिए समराला चौक की ओर रवाना हो गए थे. शाम 7 बजे के आसपास प्रीति वापस आई तो ऊपर वाले कमरे से बातचीत और हंसने की आवाजें आ रही थीं. प्रीति ने ऊपर जा कर कमरे में झांक कर देखा तो विजय और नरेश के साथ 2 लड़के बैठे थे. सब शराब पीते हुए आपस में हंसीमजाक कर रहे थे. विजय के साथ बैठे उन लड़कों को प्रीति ने इस के पहले कभी नहीं देखा था. उसे देख कर विजय उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं तुम्हें फोन करने वाला था. तुम नीचे जाओ और सभी के लिए खाने का इंतजाम करो.’’

प्रीति नीचे आ गई और खाना बनाने लगी. 10 बजे तक उस का खाना बन गया तो वह बेड पर लेट गई, क्योंकि अभी तक ऊपर उन लोगों की महफिल जमी हुई थी. रात करीब 11 बजे विजय ने प्रीति से खाना लगाने को कहा तो उस ने खाना लगा दिया. खाना खा कर नरेश और बाहर से आए दोनों लड़के ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए तो विजय और प्रीति नीचे वाले कमरे में लेट गए. नशे में होने की वजह से विजय तुरंत सो गया, लेकिन प्रीति को नींद नहीं आ रही थी. लगभग आधे घंटे बाद विजय के दोनों दोस्तों में से एक ने नीचे आ कर कमरे का दरवाजा खटखटाया. प्रीति ने सोचा किसी को पानी वगैरह चाहिए, इसलिए उस ने दरवाजा खोल दिया. विजय का वह दोस्त धीरे से अंदर आ गया और कमरे में पड़े बेड पर बैठ गया. खटरपटर से विजय की भी आंख खुल गई थी. दोस्त को देख कर वह भी उठ कर बैठ गया.

विजय के साथी ने आंखों से कोई इशारा किया तो विजय ने प्रीति की ओर देखते हुए कहा, ‘‘प्रीति, तुम थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाओ. हमें एक जरूरी बात करनी है.’’

विजय की इस बात पर प्रीति हैरान रह गई. उस की समझ में नहीं आया कि ऐसी कौन सी बात है, जो आधी रात को होनी है, सुबह नहीं हो सकती. बात करने का यह भी कोई समय है. प्रीति उतनी रात को बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन विजय जिद पर अड़ गया. आधी रात को कोई तमाशा न खड़ा हो, यह सोच कर प्रीति गुस्से से पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. प्रीति कमरे से बाहर निकली ही थी कि एक धमाका हुआ. वह गोली चलने की आवाज थी. गोली चलने की आवाज सुन कर वह तुरंत लौट पड़ी. वह कमरे के दरवाजे पर ही पहुंची थी कि अंदर से वह लड़का तेजी से प्रीति को धक्का दे कर निकल गया. उस के हाथ में पिस्तौल थी. पिस्तौल देख कर ही वह सारा मामला समझ गई.

तभी एक धमाका ऊपर हुआ. उस ने ऊपर की ओर देखा तो सीढि़यों से उस का दूसरा साथी उतर रहा था. दोनों लड़के नीचे मिले और बाहर गली में खड़े उस के स्कूटर को स्टार्ट किया. पीछे वाले लड़के ने प्रीति को पिस्तौल दिखा कर कहा, ‘‘हम लोगों के जाने तक चुप रहना. अगर शोर मचाया तो तुझे भी गोली मार दूंगा.’’

दोनों लड़के उसी के स्कूटर से चले गए. प्रीति असमंजस की स्थिति में किसी बुत की तरह खड़ी यह सब देखती रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. लड़कों के जाने के बाद वह भाग कर कमरे में गई. अंदर की हालत देख कर उस की सांस थम सी गई. बेड पर उस के पति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. उस के सीने से खून बह रहा था. यह देख कर उस के होश उड़ गए. प्रीति चीखतीचिल्लाती हुई मदद के लिए ऊपर के कमरे की ओर भागी. हड़बड़ाहट में उसे खयाल ही नहीं रहा कि ऊपर भी एक धमाका हुआ था. बेड पर पड़ी नरेश की लाश देख कर उसे उस धमाके की याद आ गई. नरेश की लाश उसी तरह पड़ी थी, जिस तरह विजय की लाश पड़ी थी. 2-2 लाशें देख कर प्रीति पागलों की तरह मदद के लिए चीखने लगी.

प्रीति का चीखनाचिल्लाना सुन कर आसपास वाले अपनेअपने घरों से बाहर आ गए, लेकिन हत्यारे तो कब के भाग चुके थे. पड़ोसी प्रीति को सांत्वना देने लगे. इतनी जानकारी मिलने के बाद मैं ने प्रीति से हत्यारों का हुलिया जानना चाहा तो उस ने बताया, ‘‘दोनों की उम्र 30 साल के आसपास रही होगी. उन की लंबाई ठीकठाक थी. उन के सिर के बाल छोटेछोटे थे. एक ने जींस पर शर्ट पहन रखी थी तो दूसरे ने टीशर्ट.’’

प्रीती से पूछताछ के बाद एक बार फिर मैं ने प्रीति के पड़ोसियों से पूछताछ की. पड़ोसियों ने बताया था कि आधी रात को गोलियों के चलने की आवाज से उन की आंखें खुल गई थीं. उस के बाद स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज आई थी. स्कूटर के चले जाने के कुछ देर बाद प्रीति के चीखनेचिल्लाने की आवाज आई तो सभी घर से बाहर आ कर उस की ओर दौड़ पड़े थे. लुधियाना का मुंडियां कलां अभी नया बस रहा मोहल्ला था. इसलिए वहां के ज्यादातर प्लौट खाली पड़े थे. लेकिन यह मोहल्ला सुनसान भी नहीं था. प्रीति जिस गली नंबर 3 के मकान में रहती थी, उस गली में कोई भी प्लौट खाली नहीं था. मैं ने इंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह को गुप्तरूप से इस मामले की जांच करने का आदेश दिया.

अब तक की जांच से यह पता चल गया था कि हत्यारे मारे गए लोगों की जानपहचान के थे. लेकिन बाद में जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. पड़ोसियों ने बताया था कि प्रीति का असली नाम कमलजीत कौर था. पतिपत्नी में लगभग रोज ही झगड़ा होता था. लेकिन वे इस झगड़े की वजह नहीं बता सके थे. मैं ने अंदाजा लगाया कि झगड़े की वजह नरेश भी हो सकता था, क्योंकि वह शुरू से ही उन दोनों के साथ रह रहा था. पड़ोसियों ने यह भी बताया था कि विजय और नरेश कोई खास कामधंधा नहीं करते थे. इस के बावजूद उन के खर्च शाही थे. इस का अंदाजा तो उन के घर को देख कर भी लगाया जा सकता था.

क्येंकि घर में सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. इस का मतलब यह हुआ कि कहने को वे डोरविंडो फिटिंग का काम करते थे, लेकिन उन का असली काम कुछ और ही था. उन का रहनसहन, खानपान, पहनावा और खर्च देख कर कहीं से भी नहीं लगता था कि वे मेहनतमजदूरी करने वाले साधारण लोग थे. बहरहाल, अब तक मेरी और सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह की जांच एवं पड़ोसियों से मिली जानकारी से यही नतीजा निकल रहा था कि इस दोहरे हत्याकांड की वजह कहीं न कहीं से अवैध संबंध हैं, क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि ये हत्याएं लूटपाट या आपसी रंजिश की वजह से नहीं हुई थीं. अगर ये हत्याएं रंजिश की वजह से हुई होतीं तो हत्यारे प्रीति को भी जिंदा न छोड़ते.

क्योंकि कोई भी अपराधी यह कभी नहीं चाहेगा कि उस के किए अपराध का कोई चश्मदीद गवाह जिंदा रहे. यह सोचने वाली बात थी कि घर के 2 लोगों की हत्या कर के हत्यारे प्रीति को जिंदा क्यों छोड़ गए? यह पता लगाना जरूरी था. क्योंकि इसी के पीछे विजय और नरेश की हत्या का रहस्य छिपा था. इसी बात को ध्यान में रख कर मैं ने अपनी जांच आगे बढ़ाई. मैं ने कुछ विश्वसनीय और तेजतर्रार पुलिस वालों की एक टीम बना कर प्रीति के बारे में पता लगाने के साथ अपने कुछ मुखबिरों की भी मदद ली. टीम को मैं ने मारे गए विजय और नरेश के कामधंधे एवं उन के चरित्र के बारे में भी पता करने को कहा था. आखिर मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में जो नतीजा सामने आया, वह चौंकाने वाला था. मजे की बात यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड की साजिश रचने वाली खुद प्रीति उर्फ कमलजीत कौर ही थी.

मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह प्रीति को थाने ले आए. मैं ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह उस हर बात से मना करती रही, जो मैं ने अपने सूत्रों से पता किया था. मैं ने उस पर दबाव बनाने की कोशिश की तो वह पुलिस को बुराभला कहते हुए बोली, ‘‘मेरे ही पति की हत्या हुई है. आप लोग हत्यारों को ढूंढ़ने के बजाय मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

जब मुझे लगा कि सीधी अंगुली से घी निकलने वाला नहीं है तो मैं ने पुलिसिया दांव आजमाने का मन बनाया. मैं ने उसे महिला पुलिस जसबीर कौर और सिमरन कौर के हवाले कर दिया. फिर तो थोड़ी ही देर में प्रीति अपना अपराध स्वीकार कर के इस दोहरे हत्याकांड की सच्चाई बताने को तैयार हो गई. इस के बाद उस ने विजय और नरेश की हत्याओं के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी:

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर मूलरूप से हरियाणा के करनाल (Haryana Crime news) की रहने वाली थी. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई जोगा सिंह था. मातापिता का नाम बताना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि वे शरीफ, सज्जन और इज्जतदार लोग हैं. जोगा सिंह और प्रीति, दोनों बचपन से उच्च महत्त्वाकांक्षी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के थे. मौजमस्ती में डूबे रहने की वजह से दोनों ही ज्यादा पढ़लिख नहीं सके तो अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अपराधियों से संबंध बना लिए और अपहरण, लूटपाट, डकैती और हत्याओं जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगे.

प्रीति उर्फ कमलजीत कौर अपने भाई जोगा सिंह से 4 कदम आगे थी. खूबसूरत तो वह इतनी थी कि जिस की भी नजर एक बार उस पर पड़ जाती, हटाने का नाम नहीं लेता था. यही वजह थी कि राह चलते लोगों को पलक झपकते वह अपना दीवाना बना लेती थी. यही वजह थी कि प्रीती के जवान होते ही उस के चाहने वालों की लाइन लग गई थी. लेकिन वह सभी को मय के भरे प्याले की तरह अपनी जवानी को दूर से दिखा कर ललचाती रहती थी, किसी को हाथ नहीं लगाने देती थी.

उसी बीच उस के भाई जोगा सिंह के हाथों एक कत्ल हो गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. मातापिता बहनभाई के कारनामों से वैसे ही दुखी थे, इसलिए उन की ओर से जोगा की पैरवी का सवाल ही नहीं उठता था. इसलिए प्रीति को ही भाई को छुड़ाने की पैरवी करनी पड़ रही थी. वह सप्ताह में 2 बार उस से मिलने करनाल जेल भी जाती थी. उन्हीं दिनों हरियाणा के जींद का रहने वाला विजय कुमार भी अपने दोस्त नरेश से मिलने सप्ताह में 2 बार करनाल जेल आता था. उसी दौरान प्रीति की मुलाकात विजय से हुई थी. विजय भी हृष्टपुष्ट एवं इस तरह का खूबसूरत युवक था कि कोई भी लड़की उसे देखे तो कम से कम एक बार उसे और देखने का मन हो जाए.

विजय शक्लसूरत और पहनावे से ठीकठाक तो लगता ही था, यह भी लगता था कि उस के पास पैसों की कमी नहीं है. जबकि सच्चाई यह थी कि वह हरियाणा के एक ऐसे अपराधी गिरोह का सदस्य था, जो लूटमार, अपहरण और डकैती आदि से मोटी कमाई कर रहा था. बहरहाल, जेल में अपनेअपने मिलने वालों का नाम लिखवा कर विजय और प्रीति जेल के बाहर बैठ कर मिलाई का इंतजार करते थे. प्रीति सुंदर तो थी ही, विजय खाली समय में उसे ही ताकता रहता था. स्मार्ट विजय प्रीति को भा गया, इसलिए वह भी उस से आंखें मिलाने लगी. परिणामस्वरूप जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई तो वे सब से अलग हट कर एकांत में एक साथ बैठने लगे. जल्दी ही दोनों की यह दोस्ती काफी गहरी हो गई.

विजय अपने दोस्त नरेश की जमानत की कोशिश कर ही रहा था, प्रीति से दोस्ती के बाद उस ने जोगा की जमानत के लिए कोशिश ही नहीं की, बल्कि पैसा भी पानी की तरह बहाया. उसी की कोशिश का नतीजा था कि नरेश के साथ जोगा को भी जमानत मिल गई. नरेश और जोगा की जमानतें हो गईं तो विजय और प्रीति का करनाल जेल जाना बंद हो गया, लेकिन अब तक दोनों के संबंध इतने गहरे हो चुके थे कि वे कभी हिसार तो कभी जींद तो भी करनाल तो कभी कुरुक्षेत्र में मिलने लगे. विजय ने प्रीति पर जो एहसान किया था, वह उसे कैसे भूल सकती थी. धीरेधीरे वह विजय के इतने करीब आ गई कि घर वालों को बिना बताए ही विजय से कोर्टमैरिज कर ली.

मांबाप से तो वैसे भी कोई मतलब ही नहीं था, लेकिन बहन का यह कदम भाई जोगा सिंह को भी अच्छा नहीं लगा. अत: वह भी उस से नफरत करने लगा, क्योंकि वह विजय की असलियत अच्छी तरह जानता था. शादी के बाद कुछ दिनों तक प्रीति विजय के साथ करनाल में रही, लेकिन उस के बाद विजय और नरेश उसे ले कर लुधियाना आ गए. लुधियाना के मुंडिया में किराए का मकान ले कर सभी एक साथ रहने लगे. दरअसल विजय का प्रीति से शादी कर के लुधियाना आने की वजह यह थी कि हरियाणा (Haryana Crime news) पुलिस, खासकर जींद पुलिस विजय और नरेश के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. वे कभी भी ऐनकाउंटर में मारे जा सकते थे. इसलिए वे लुधियाना भाग आए थे. प्रीति से शादी उस ने इसलिए की थी कि पत्नी के साथ रहने पर लोगों को संदेह कम होता है और मकान वगैरह भी आसानी से मिल जाता है.

विजय और नरेश आपराधिक गिरोह के सदस्य हैं, यह बात प्रीति को पहले मालूम नहीं थी. लेकिन जब उसे इस बात का पता चला तो भी उस ने बुरा नहीं माना, क्योंकि वह ऐशोआराम से जीने की आदी थी. विजय के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. इस के अलावा उस के पास रुतबा भी था. उस के एक बार कहने पर विजय और नरेश किसी को भी गोली मार सकते थे. विजय और प्रीति का दांपत्य ठीकठाक चल रहा था. लेकिन इस में दरार तब आ गई, जब विजय को अपने दोस्त नरेश को ले कर प्रीति पर शक हो गया. दरअसल हुआ यह कि एक दिन नरेश जल्दी घर आ गया. खाना खा कर वह प्रीति के पास बैठ कर बातें करने लगा. किसी बात पर दोनों हंस रहे थे कि तभी अचानक विजय आ गया. उस ने नरेश और प्रीति की इस हंसी का कुछ और ही नतीजा निकाल लिया.

अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की सोच कुछ ऐसी होती है. क्योंकि उन्हें जब स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता तो वे दूसरे पर भला कैसे विश्वास कर सकते हैं. बस उसी दिन से विजय और प्रीति के बीच क्लेश शुरू हो गया. धीरेधीरे यह क्लेश इतना बढ़ गया कि प्रीति विजय से नफरत करने लगी. उसी दौरान विजय के घर उस के गिरोह के सरगना सुरजीत का आनाजाना शुरू हो गया. सुरजीत, बिट्टू और सोनू डागर का एक ऐसा गिरोह था, जिस का आतंक उन दिनों पूरे हरियाणा में था. इन के हाथ इतने लंबे थे कि जेल में रहते हुए भी ये आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते थे. नरेश और विजय सुरजीत के गिरोह के सक्रिय सदस्य थे.

उसी बीच किसी बैंक को लूटने के चक्कर में सुरजीत कई दिनों तक विजय के घर रुका तो प्रीति की खूबसूरती पर वह रीझ गया. वहां रहते हुए उस ने देखा था कि विजय रोज शराब पी कर उस की पिटाई करता है. प्रीति की परेशानी को देखते हुए एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रीति, अगर तुम विजय को छोड़ दो तो मैं तुम्हें अपनाने को तैयार हूं. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि गिरोह का सरगना मैं हूं. विजय और नरेश मेरे गिरोह के सदस्य हैं. मेरे सामने इन की क्या औकात है. अगर मैं इन्हें अपने गिरोह से निकाल दूं तो इन्हें सड़क पर खड़े हो कर भीख मांगनी पड़ेगी.’’

प्रीति भी महसूस कर रही थी कि सुरजीत उस पर पूरी तरह से फिदा है. उस की बात में दम भी था. गिरोह का सरगना वही था. उस ने देखा भी था कि किसी की भी हिम्मत उस के सामने बोलने की नहीं होती थी. उस के सामने शेर बना रहने वाला विजय सुरजीत के सामने आंख तक नहीं उठाता था. प्रीति सुरजीत की बात मान कर उस की झोली में जा गिरी. अब समस्या यह थी कि विजय से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अगर सुरजीत चाहता तो अपनी ताकत के बल पर भी प्रीति को अपने साथ भी रख सकता था. लेकिन इस में खतरा था. जोरू के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है. सामने से नहीं तो पीछे से विजय वार कर ही सकता था. इसलिए सुरजीत ने सोचा, विजय को खत्म कर दिया जाए. जब वह रहेगा ही नहीं तो वार कौन करेगा.

विजय से शादी की वजह से जोगा सिंह प्रीति से काफी नाराज था. इसी वजह से प्रीति को भी भाई से नफरत हो गई थी. जिस की वजह से वह भाई के बारे में कुछ और ही सोचने लगी थी. जोगा सिंह की पैतृक जमीन की कीमत करोड़ों में थी. उस पर उस का अकेले का कब्जा था. जब इस बात का पता सुरजीत को चला तो उस ने बहनभाई की नफरत को हवा दे कर प्रीति को उकसाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी करोड़ों की जमीन जोगा सिंह हड़पे हुए है. अगर उसे निपटा दिया जाए तो करोड़ों की वह जमीन तुम्हारी हो सकती है.’’

करोड़ों की जमीन के लालच में प्रीति भाई की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई. इस के बाद वह सुरजीत को ले कर जींद के सापर गांव में रहने वाली अपनी बड़ी बहन बलजीत कौर के यहां भी गई. उस ने भी हामी भर दी, क्योंकि जोगा सिंह ने उसे भी हिस्सा नहीं दिया था. इस के बाद सुरजीत ने जो योजना बनाई, उस के अनुसार पहले विजय और नरेश को ठिकाने लगा कर प्रीति को हासिल करना था. प्रीति के साथ आने के बाद उसे जोगा सिंह से प्रीति के हिस्से की जमीन मांगना था. अगर उस ने जमीन दे दी तो ठीक अन्यथा उसे ठिकाने लगा कर पूरी जमीन पर कब्जा कर लेना था. इस के बाद प्रीति को भी ठिकाने लगा कर करोड़ों की उस जमीन पर वह कब्जा कर लेता. इस योजना को अंजाम देने के लिए सुरजीत ने सोनू डागर को साथ मिला लिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि सुरजीत और सोनू सजायाफ्ता अपराधी थे. करनाल के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के यहां से सुरजीत को उम्रकैद की सजा हुई थी. 6 साल की सजा काटने के बाद 7 मार्च, 2009 को वह 32 दिनों के पैरोल पर जेल से बाहर आया तो लौट कर गया ही नहीं. इस के बाद अदालत से उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था. जिस रात विजय और नरेश की हत्या हुई थी, उस से एक दिन पहले सुरजीत ने विजय को फोन कर के कहा था कि अगर वह लुधियाना में उस के रहने की व्यवस्था कर दे तो कुछ दिनों के लिए वह लुधियाना आ जाए. विजय ने ऊपर वाले जिस कमरे में नरेश रहता था, उसी में सुरजीत के रहने की व्यवस्था कर के उस ने उसे लुधियाना आने के लिए कह दिया था.

फिर उसी दिन शाम को सुरजीत और सोनू डागर समराला चौक पहुंच गए थे. विजय और नरेश वहां खड़े उन का इंतजार कर रहे थे. विजय उन्हें साथ ले कर अपने घर पहुंचा. घर जाते हुए रास्ते में उन्होंने खानेपीने की चीजें खरीद ली थीं. घर पहुंचते ही महफिल जम गई थी. सुरजीत को देख कर प्रीति खुशी से झूम उठी थी, क्योंकि उसे पता था उस दिन उसे विजय से मुक्ति मिल जाएगी. योजना के अनुसार, सुरजीत ने विजय और नरेश को अधिक शराब पिला दी थी. उन की महफिल देर रात तक जमी रही. रात 11 बजे खाना खा कर सब सो गए. साढ़े 11 बजे के बाद सुरजीत उठा और बगल में सो रहे नरेश को गोली मार दी. नरेश को मार कर दोनों नीचे उतरे. नीचे आ कर सोनू ने सो रहे विजय को गोली मार कर उस का भी खेल खत्म कर दिया. प्रीति खड़ी तमाशा देखती रही.

साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाली प्रीति ने सुख और दौलत के लिए अपनी आंखों के सामने पति की हत्या करवा कर खुद को विधवा करवा लिया. विजय और नरेश की हत्या कर के सुरजीत और सोनू विजय के ही स्कूटर से चले गए. उन के जाने के बाद प्रीती ने अपना नाटक शुरू किया. पूछताछ के बाद मैं ने प्रीती को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मैं ने सुरजीत और सोनू की तलाश में न जाने कहांकहां छापे मारे, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. मैं ने समय से इस मामले की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी, जिस से मुकदमा चला. हत्या का षड्यंत्र रचने और पुलिस को गुमराह करने के जुर्म में प्रीति को 5 साल की सजा हुई. इस समय वह लुधियाना की जेल में अपनी सजा काट रही है. मजे की बात यह है कि सुरजीत और सोनू का पता आज तक नहीं चला है.

— प्रस्तुति : हरमिंदर खोजी

 

Delhi Crime : पहले बीवी से बात की फिर झूल गया फांसी पर

Delhi Crime : उस ने मरने से पहले आखिरी बार अपनी पत्नी से बात की. बातचीत के कुछ समय बाद उस ने फांसी के फंदे पर लटक कर आत्महत्या कर ली. इस सनसनीखेज वारदात ने लोगों को झकझोर कर रख दिया. मामला राजधानी दिल्ली के मौडल टाउन इलाके के कल्याण विहार की है, जहां 39 वर्षीय पुनीत खुराना की मौत की खबर सुन कर सनसनी फैल गई।

उस ने अपने ही घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. जब परिवार वालों को पता चला कि दरवाजा अंदर से बंद है तो उन्होंने देखा कि वह फांसी के फंदे पर लटका हुआ है.

पुलिस को सूचना

आननफानन में इस की सूचना पुलिस को दी गई। पुलिस को जांच में पता चला कि पुनीत की शादी 2016 में हुई थी और उस का अपनी पत्नी से तलाक का केस चल रहा था.

परिवार वालों का कहना है कि पुनीत अपनी पत्नी से परेशान था और उस ने आखिरी बार अपनी पत्नी से बात भी की थी. इसी बीच पुनीत की पत्नी का इंस्टा पोस्ट भी सुर्खियों में रहा. करीब 6 दिन पहले पुनीत की पत्नी मनिका पाहवा ने अपने इंस्टा पोस्ट में लिखा था कि तनावभरे माहौल और दुर्व्यवहार के बाद वह ठीक हो रही है और बेहतर होने की कोशिश कर रही है.

आखिरी बार की बातचीत

पुनीत के परिवार वालों ने कहा है कि आखिरी बार पुनीत ने अपनी पत्नी से बात की थी. बात करते हुए दोनों के बीच बिजनैस को ले कर भी चर्चा हुई थी. इसी बातचीत का एक (Delhi Crime) औडियो कौल सामने आया है. बातचीत का ब्योरा कुछ इस तरह है :

पत्नी : हैलो, नींद नहीं आ रही क्या? तुम तो मुझे और मेरे परिवार को बदनाम कर रहे थे…

पुनीत : साफसाफ बताओ जो चाहिए तुम्हें, बाकी जो तुम्हें करना है करो.

पत्नी : अब धमकी दोगे कि सुसाइड कर लूंगा या घर छोड़ जाऊंगा?

पुनीत : इन बातों का कोई मतलब नहीं निकलता है. तुम बताओ कि मुझ से क्या चाहिए? मेरा किसी से भी अफेयर नहीं है.

पत्नी : मुझे इन बातों से फर्क नहीं पड़ता. हम तलाक की बात कर चुके हैं. हम दोनों सिर्फ बिजनैस पार्टनर हैं, वह भी अलगअलग। लेकिन तुम्हारी झूठ बोलने की आदत है। भिखारी, मैं ने तुझ से क्या मांगा?

पुनीत : तुम मुझे गालियां क्यों दे रही हो?

पत्नी : यह भाषा मैं ने तुम से ही सीखी है. सामने आए तो चांटा मारूंगी, लेकिन तुम्हें मार कर मैं अपने हाथ गंदे नहीं करना चाहती.

पुनीत : मैं ने कौल इसलिए किया कि तुम मेरा अकाउंट हैक न करो.

पत्नी : तुम दूसरी लड़कियों से क्यों मिलते हो…

पुनीत के सुसाइड (Delhi Crime) करने के बाद पुलिस का कहना था कि इस घटना में व्यापार में घाटे के ऐंगल से जांच की जा रही है. पुलिस ने कहा कि दोनों के बीच बिजनैस को ले कर बातचीत हुई थी. पुनीत और उस की पत्नी बेकरी का बिजनैस किया करते थे और दोनों ही उस में पार्टनर थे. इसी बीच पत्नी ने कहा कि हम दोनों के बीच तलाक का केस चल रहा है, लेकिन यह तो नहीं है कि मुझे कारोबार से अलग कर दिया जाए.

इसी बीच पुनीत के परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि पुनीत की आखिरी रिकौर्डिंग कर के पत्नी ने अपने रिश्तेदारों को भेजी थी.

पुलिस ने पुनीत का फोन जब्त कर लिया है और पत्नी को जांच के लिए बुलाया है. पुलिस अभी पूरे मामले की जांच कर रही है. सारे सुबूतों के आधार पर काररवाई की जाएगी.

UP Crime : बेटी ने ‘मां के प्रेमी’ को फंसाकर कराई मां की हत्या

UP Crime : 17 वर्षीय सपना ने अपनी मम्मी अलका के प्रेमी सुभाष के जाल में फंसने के बाद अपने दोनों प्रेमियों अखिलेश और अनिकेत से किनारा कर लिया था. फिर एक दिन ऐसा क्या हुआ कि माइनर सपना ने मम्मी के प्रेमी सुभाष से ही उस की हत्या करा दी? आखिर सपना क्यों बनी मम्मी की दुश्मन?

अलका को जब पता चला कि उस की बेटी सपना ने अपनी ननिहाल में भी अपने प्रेमी से बात करनी बंद नहीं की है तो वह 26 सितंबर, 2024 को अपने मायके से बेटी को घर ले आई. दूसरे रोज अलका ने सुभाष से फोन पर बात की और घर बुला लिया. उस के बाद अलका ने सुभाष से एकांत में बात की और कहा, ”सुभाष, मैं सपना से बहुत परेशान हूं. वह हम दोनों के रिश्तों का राज भी जान गई है. इसलिए तुम मेरी बदचलन बेटी सपना को खत्म कर दो. इस काम के लिए मैं तुम्हें 50 हजार रुपए दूंगी.’’

सुभाष राजी हो गया तो अलका ने कहा कल बेटी के केस की तारीख है. मैं सपना को ले कर एटा कोर्ट जाऊंगी. वहीं मैं तुम्हें सपना को सौंप दूंगी. फिर तुम उस को मार देना और उस की लाश को भी ठिकाने लगा देना. किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा. योजना के तहत अलका 28 सितंबर, 2024 को बेटी सपना को साथ ले कर एटा कोर्ट पहुंची. वहीं उसे सुभाष मिल गया. अलका ने बेटी से कहा कि वह सुभाष मामा के साथ घर चली जाए. वह कुछ और काम निपटा कर घर पहुंचेगी.

अभी तक सपना मम्मी के खतरनाक इरादों से वाकिफ नहीं थी. रास्ते में सुभाष ने कहा, ”सपना, तुम्हारी मम्मी ने मुझे 50 हजार रुपयों की सुपारी दी है. तुम सुनोगी तो तुम्हारे होश उड़ जाएंगे. हो सकता है कि तुम्हें मेरी बात पर यकीन ही न हो.’’

सपना ने पूछा, ”मामा, सच बताओ कि मां ने तुम्हें 50 हजार रुपए देने को क्यों कहा?’’

”तुम्हारी मम्मी तुम्हारी हत्या करवाना चाहती है. इसलिए रुपए देने को कहा है.’’

मम्मी के खतरनाक इरादों की जानकारी पा कर सपना की आंखों से आंसू बहने लगे. वह सुभाष के गले लग गई और बोली, ”मामा, मेरी जान बख्श दो. आप जो कहोगे, वह करूंगी. आप की हर बात मानूंगी.’’

सपना कुछ देर मौन रही फिर आंसू पोंछते हुए बोली, ”मामा, जो मंसूबे मम्मी के थे, वही अब मेरे हैं. तुम मम्मी को मार डालो. उस के बाद मैं तुम से शादी कर लूंगी. तुम्हारे साथ ही जीवन बिताऊंगी. मैं अखिलेश व अनिकेत को भी भुला दूंगी, जिन से मैं प्यार करती हूं. यह मेरा वादा रहा.’’

सपना की बात सुन कर सुभाष ने उस की हत्या का इरादा त्याग दिया. इस के बाद वह सपना को एक खेत में ले गया. वहां उस ने सपना की मोबाइल पर ऐसी फोटो क्लिक की, जैसे उसे मार डाला गया हो. यह फोटो सुभाष ने अलका के मोबाइल पर भेज दी और कहा कि फोटो देख लो. मैं ने तुम्हारी बेटी को मार डाला है. इस के बाद सुभाष सपना को ले कर आगरा चला गया. आगरा (UP Crime) की मधु विहार कालोनी में सुभाष का एक परिचित रहता था. वह उसी के घर में रुका. रात में सपना व सुभाष एक ही कमरे में सोए और उन के बीच संबंध बने. सपना ने किसी तरह का विरोध नहीं किया.

2 अक्तूबर, 2024 को सुभाष अलका के घर अल्हापुर पहुंचा. उस ने फिर से अलका को फोटो दिखाई कि तुम्हारी बेटी को मार डाला है. अब पैसे दे दो. इस पर उस ने कहा 2-3 दिन रुको. मैं पैसे दे दूंगी. इस के बाद सुभाष वापस आगरा आ गया. एक दिन बाद उस ने फिर अलका को फोन किया और पैसे मांगे. लेकिन वह टाल गई. सुभाष समझ गया कि अलका की नीयत पैसे देने की नहीं है. अगले दिन सुभाष ने फिर अलका को फोन किया और कहा कि मुझे पता था कि तुम रुपया नहीं दे पाओगी. इसलिए मैं ने सपना को नहीं मारा. वह मेरे साथ आगरा में है. तुम आ कर उसे ले जाओ.

5 अक्तूबर, 2024 को अलका 12 बजे आगरा पहुंच गई. दोनों फोन से जुड़े थे और उन के बीच बात हो रही थी. आगरा बस स्टाप पर अलका को सुभाष मिला. उस के साथ सपना भी थी. वहां से तीनों पिकअप गाड़ी पर बैठ कर एटा आ गए. यहां रामलीला ग्राउंड में दशहरा मेला लगा था. तीनों ने मेला घूमा. इस के बाद पिपरन चौराहा आए. फिर पैदल ही जसरथपुर थाने के नगला चंदन पुरंजला गांव के पास पहुंचे.

अब तक रात के लगभग साढ़े 10 बज चुके थे. अलका ने एक बार फिर सुुभाष के कान में फुसफुसा कर कहा कि सपना को मार डालो. पैसे मिल जाएंगे. लेकिन सपना ने तो शादी की बात कह कर बाजी पलट दी थी. चारों ओर घुप अंधेरा छाया था. सुभाष सपना को ले कर बाजरे के खेत में पहुंचा. अलका खेत से कुछ दूर मेढ़ पर बैठी थी. सुभाष ने सपना से कहा, ”तुम अपना वादा पूरा करने का वचन दो तो मैं अभी तुम्हारी मां को मार डालूं.’’

सपना सुभाष का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली, ”मैं तुम्हें वचन देती हूं कि तुम से शादी रचा कर मैं अपना वादा पूरा करूंगी. तुम मेरी मां को मार डालो.’’

इस के बाद सुभाष ने अलका को आवाज दी तो वह भी बाजरे के खेत में पहुंच गई. उस के पहुंचते ही सुभाष और सपना ने उस को दबोच लिया और उसे पीटने लगे. फिर उसी की साड़ी के पल्लू को गरदन में लपेट कर गला कस कर मार डाला. शव को बाजरे के खेत में छोड़ कर दोनों फरार हो गए. 6 अक्तूबर, 2024 की सुबह नगला चंदन पुरंजला गांव के कुछ लोगों ने गांव के बाहर बाजरे के खेत में एक महिला की लाश देखी तो सूचना थाना जसरथपुर पुलिस को दी. सूचना पाते ही एसएचओ ओमप्रकाश सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो एसपी श्याम नारायन सिंह, एएसपी राजकुमार सिंह तथा डीएसपी सुधांशु शेखर भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की. मृतका की उम्र 33 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या गला कस कर की गई थी. शरीर पर चोटों के भी निशान थे. वह गुलाबी साड़ी व उसी के मैचिंग का ब्लाउज पहने थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. अभी तक सैकड़ों लोग शव को देख चुके थे, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं पाया था. महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई तो उस का फोटो खींच कर शव को पोस्टमार्टम हाउस एटा भेज दिया गया. पुलिस अधिकारियों के आदेश पर एसएचओ ओमप्रकाश सिंह ने डैडबौडी का फोटो आसपास के थानों तथा सोशल मीडिया पर भेज दिया. साथ ही अखबारों में भी छपने को भेजा गया ताकि उस की जल्दी शिनाख्त हो सके.

7 अक्तूबर को हुलिया सहित अज्ञात लाश का फोटो अखबारों में छपा तो उसे देख कर अल्हापुर के रमाकांत का माथा ठनका. क्योंकि उस की पत्नी अलका 2 दिन से लापता थी. वह तुरंत थाना जसरथपुर पहुंचा और एसएचओ ओमप्रकाश सिंह को सारी बात बताई. रमाकांत को पोस्टमार्टम हाउस ले जाया गया. वहां उस ने जैसे ही लाश को देखा, वह फफक पड़ा और बताया कि लाश उस की पत्नी अलका की है. एएसपी राजकुमार सिंह ने अलका मर्डर केस की तह तक पहुंचने के लिए डीएसपी सुधांशु शेखर की निगरानी में एक पुलिस टीम का गठन किया. साथ ही मृतका की ससुराल व मायके में खबरियों को लगा दिया.

टीम ने सब से पहले मृतका के पति रमाकांत से पूछताछ की. उस ने बताया कि गांव के 2 युवक अखिलेश व अनिकेत उस की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गए थे. अखिलेश जेल भी गया था. इन्हीं दोनों ने रंजिशन उस की पत्नी की हत्या की है. रमाकांत के पास पत्नी का मोबाइल फोन नंबर था. उस ने वह नंबर पुलिस को दे दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के अनुसार अलका की हत्या गला कस कर की गई थी. चोटों के निशान भी शरीर पर थे. लेकिन उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ था. रमाकांत के बयान के आधार पर पुलिस ने गांव के 2 युवकों अखिलेश व अनिकेत को हिरासत में लिया और उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन वे निर्दोष साबित हुए. अत: उन्हें घर जाने दिया गया.

मृतका अलका का मोबाइल फोन नंबर पुलिस के पास था. पुलिस ने उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह एक नंबर पर सब से ज्यादा बात करती थी. यह नंबर सुभाष का था जो फर्रुखाबाद के गांव अकराबाद सिकंदरपुर खास का रहने वाला था. पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई तो यह भी पता चला कि सुभाष का अलका के घर आनाजाना था. दोनों के बीच नाजायज रिश्ता था. मृतका की बेटी सपना तथा सुभाष घर से फरार थे. सुभाष और सपना पर शक गहराया तो पुलिस उन की तलाश में जुट गई. खबरियों को भी उन की टोह में लगा दिया गया. टीम ने अनेक संभावित स्थानों पर छापेमारी की लेकिन उन का पता नहीं चला.

9 अक्तूबर, 2024 की रात 12 बजे पुलिस टीम को खबरियों के जरिए पता चला कि सुभाष और सपना कल्लू इलाके में देखे गए हैं. पुलिस टीम तब वहां पहुंच गई और उन्हें अलीगंज-कुरावली मार्ग के पास से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ करने पर सुभाष ने पहले तो अनजान बनने की कोशिश की, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस के बाद सुभाष और सपना ने अलका की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश (UP Crime) के जिला एटा के थाना नयागांव का एक गांव है- अल्हापुर. रमाकांत इसी गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में पत्नी अलका के अलावा 2 बेटियां थीं. वह किसानी से अपने परिवार का पालनपोषण करता था. वह सीधासादा इंसान था. रमाकांत की बड़ी बेटी सपना खूबसूरत थी. उस ने 16 बरस की उमर पार की तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया. वह स्कूल जाती तो गांव के लड़के उसे अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते. सपना पढ़ाई में तेज थी. उस ने नयागांव स्थित महिला इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही थी.

सपना के चाहने वालों में वैसे तो गांव के कई लड़के थे, लेकिन उस के घर से कुछ दूरी पर रहने वाला अखिलेश उसे कुछ ज्यादा ही चाहता था. उस के पापा राजेश सिंह दबंग व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी. अखिलेश उन का बिगड़ैल बेटा था. वह बनठन कर घूमता रहता था. अखिलेश व सपना एक ही गली में खेलकूद कर बड़े हुए थे. वह उसे बहुत अच्छी लगती थी. सपना स्कूल जाती तो वह उसे देखने के लिए गली के मोड़ पर खड़ा हो जाता था. दोनो की नजरें मिलतीं तो चंचल स्वभाव की सपना खिलखिला कर हंस पड़ती. फिर इतरातीइठलाती स्कूल का रास्ता पकड़ लेती.

उस की यह हंसी अखिलेश के दिल में उतरती चली गई. एक रोज उस ने सपना का रास्ता रोक लिया, फिर उस ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ”सपना, तुम सचमुच बहुुत अच्छी हो. तुम्हारी हंसी से मेरे दिल को सुकून मिलता है.’’

अखिलेश की बात सुन कर सपना मुसकराई, फिर लजाते हुए चली गई. उस ने जिस अंदाज में उस से बातें की थीं, उस से सपना भी उस का मतलब समझ गई थी. लेकिन यह बात उस ने अखिलेश को महसूस नहीं होने दी. जबकि सपना के दिल में अखिलेश की तसवीर उतर गई थी. उस का भावुक मन अखिलेश की ओर खिंचता चला जा रहा था. अखिलेश ने जो कहा था, वे बातें उस के दिमाग में घूम रही थीं.

अखिलेश की बेचैनी अब बढऩे लगी थी. रातदिन वह उसी के बारे में सोचता रहता था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल की बात उस से कैसे कहे. उस के मन में इस बात का भी डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाए. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो हिम्मत कर अखिलेश छुट्टी के समय सपना के कालेज के सामने जा कर खड़ा हो गया. सपना सहेलियों के साथ कालेज से निकली तो अखिलेश को देख कर उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. अखिलेश ने उसे एक तरफ आने का इशारा किया तो वह उस का इशारा समझ गई.

सपना सहेलियों से अलग हो कर अखिलेश के पास आ गई. जैसे ही वह उस के पास आई, अखिलेश ने उसे बाइक पर बैठने का इशारा किया. सपना बैठ गई तो वह तेजी से चल पड़ा. सपना ने कहा, ”कहां जा रहे हो, मुझे घर जाना है?’’

”चली जाना, आज मुझे तुम से कुछ कहना है.’’ अखिलेश ने कहा.

तभी सपना ने हंसते हुए अदा से कहा, ”यही न कि तुम मुझ से प्यार करते हो.’’

अखिलेश ने बिना किसी संकोच के कहा, ”सपना, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

सपना मुसकरा कर बोली, ”मैं भी तो तुम से प्यार करती हूं. लेकिन झिझक की वजह से इजहार नहीं कर पाई.’’

अखिलेश ने उसे हैरानी से देखा तो सपना ने नजरें झुका लीं. यह थी अखिलेश और सपना के प्यार की शुरुआत. अकसर प्रेम करने वालों की शुरुआत ऐसे ही होती है. लेकिन कभीकभी यही प्यार जीवन के लिए एक अभिशाप भी बन जाता है. अखिलेश और सपना का प्यार परवान चढ़ा तो उन के बीच की दूरियां भी मिट गईं. उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा. इश्क की आंधी में दोनों इस तरह उडऩे लगे कि उन्होंने घरसमाज की चिंता ही नहीं की. उन्हें जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में समा जाते.

वह इस खेल में बेहद सावधानी बरतते थे. लेकिन प्यार ऐसी चीज है, जिसे जितना भी छिपा कर रखा जाए, वह कभी न कभी घरसमाज की नजरों में आ ही जाता है. सपना और अखिलेश के साथ भी यही हुआ. एक रोज देर शाम सपना की मम्मी अलका ने उसे फोन पर हंसहंस कर बातें करते देखा तो उसे शक ही नहीं हुआ, बल्कि उसे विश्वास हो गया कि उस की नाबालिग बेटी इश्क की राह पर चल पड़ी है. अलका परेशान हो उठी. उस ने पूछा तो सपना ने झूठ बोल दिया.

कुछ दिनों बाद अलका को पता चला कि सपना स्कूल न जा कर पड़ोस में रहने वाले राजेश सिंह के आवारा बेटे अखिलेश के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. वह समझ गई कि सपना चोरीछिपे अखिलेश से ही मोबाइल पर बात करती है. पूरी बात समझ में आई तो इस बार उस ने बेटी से सख्ती से पूछा तो उस ने बिना झिझक के कहा, ”मम्मी, मैं अखिलेश से प्यार करती हूं और वह भी मुझे बहुत चाहता है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

”शादीप्यार यह सब क्या कह रही है तू? तेरी अभी उम्र ही क्या है? फिर वह हमारी जाति का भी तो नहीं है. अखिलेश अमीर बाप का बिगड़ैल बेटा है. वह तुम्हारे जीवन को बरबाद कर देगा. इसलिए यह बात तू मन से निकाल दे और उसे भुला दे. तेरी शादी उस से किसी भी कीमत पर नहीं हो सकती.’’

”क्यों नहीं हो सकती मम्मी? अब जमाना बदल गया है. दूसरी जाति में शादी करना अब आम बात हो गई है. फिर अखिलेश बहुत अच्छा लड़का है. आज नहीं तो कल तुम्हें भी पसंद आ जाएगा.’’ मम्मी को समझाते हुए सपना बोली.

अपनी कच्ची उम्र की बेटी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर अलका हैरान रह गई. उस ने गुस्से से कहा, ”सपना, अब बहुत हो चुका. कल से तुम मेरी निगरानी में घर में ही रहोगी. तुम्हारा अब कालेज जाना बंद.’’

”क्यों मम्मी?’’ सपना ने हैरानी से पूछा.

”कह दिया न, नहीं जाना है तो नहीं जाना.’’ कह कर अलका अपने काम में लग गई और सपना कमरे में जा कर आंसू बहाने लगी. शाम को रमाकांत खेत से लौटा तो अलका ने पति को बेटी की प्रेम कहानी बयां की.

पत्नी की बात सुन कर रमाकांत को अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. उस ने सोचा कि उस की नादान बेटी यदि उस के सीने में इज्जत का छुरा घोंप कर घर से भाग गई तो वह जीते जी मर जाएगा. उस की इज्जत नीलाम हो जाएगी. वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. इसलिए रमाकांत ने पहले सपना को डांटाफटकारा, फिर सिर पर हाथ रख कर उसे प्यार से समझाया भी.

प्यार पर पहरा लगा तो सपना और अखिलेश का मिलनाजुलना बंद हो गया. अब दोनों मिलन के लिए तड़पने लगे. अलका ने सपना का मोबाइल फोन भी छीन लिया था और उसे तोड़ कर फेंक दिया था. इसलिए वह मोबाइल फोन से भी अखिलेश से बात नहीं कर पाती थी. जैसेजैसे दिन बीतते जा रहे थे, वैसेवैसे दोनों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अखिलेश का एक दोस्त अनिकेत था. वह भी सपना का दीवाना हो गया था, लेकिन सपना ने उस के चक्कर में प्रेमी अखिलेश का विश्वास तोड़ दिया था. अनिकेत उन दोनों के बीच दरार पैदा नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने सपना से दूरियां बना ली थीं.

अखिलेश का सपना से मिलनाजुलना बंद हुआ तो उस ने अनिकेत की मदद ली. अनिकेत की मार्फत उस ने एक लैटर सपना के पास भिजवाया. इस लैटर में उस ने लिखा कि घरवाले उस के प्यार के दुश्मन बन गए हैं. इसलिए वह उस के साथ भाग चले. क्योंकि वह उस के बिना जी नहीं पाएगा. अब अनिकेत उन दोनों के बीच की धुरी बन गया था. इस लैटर का सपना पर असर हुआ. अनिकेत के मार्फत ही उस ने भी एक भावुक लैटर अखिलेश को भिजवाया. इस पत्र में सपना ने लिखा कि वह रातदिन उसी के प्यार में खोई रहती है. वह भी उस के बिना अधूरी है. उस का कमरे में दम घुटता है. मां के ताने उसे सूई की तरह चुभते हैं. वह जल्दी आजाद होना चाहती है. वह उस के साथ कहीं भी जाने को राजी है.

फरवरी 2024 के पहले सप्ताह में एक रात सपना प्रेमी अखिलेश के साथ अपने घर से फुर्र हो गई. सुबह अलका कमरे में चाय ले कर गई तो चारपाई पर बेटी नहीं थी. उस ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली. अलका समझ गई कि सपना अखिलेश के साथ भाग गई है. उस ने यह बात पति को बताई तो रमाकांत ने भी माथा पीट लिया. वह सोचने लगा कि जिस का उसे डर था, वही हो गया. बुरी बातें छिपती कहां हैं? जल्दी ही यह खबर पूरे गांव में फैल गई कि रमाकांत की बड़ी बेटी सपना गांव के राजेश सिंह के बेटे अखिलेश के साथ भाग गई है. इस के बाद तो महिलाएं कुछ ज्यादा ही चटखारे ले कर बातेंकरने लगीं. वे अलका की परवरिश पर अंगुली उठा रही थीं. कुछ तो कहतीं कि जैसी मां, वैसी बेटी.

रमाकांत व अलका ने 2 दिन तक गुपचुप तरीके से बेटी की खोज की, लेकिन जब उस का कुछ भी पता नहीं चला तो रमाकांत रिपोर्ट दर्ज कराने थाना नयागांव जा पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर आर.बी. सिंह को बेटी के गायब होने की बात बता दी. इंसपेक्टर आर.बी. सिंह ने रमाकांत की तहरीर पर अखिलेश के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस सपना की बरामदगी में जुट गई.

चूंकि नाबालिग लड़की का मामला था, इसलिए पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया. जांचपड़ताल से पुलिस को पता चला कि सपना को भगाने में अखिलेश के दोस्त अनिकेत ने अहम भूमिका निभाई थी. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. उस का मोबाइल फोन भी ले लिया. पुलिस ने अखिलेश के पापा राजेश सिंह पर भी दबाव बनाया. इस के अलावा मुखबिरों का भी सहारा लिया.

इस का परिणाम यह निकला कि पुलिस ने 28 फरवरी, 2024 को नाटकीय ढंग से एटा से सपना को बरामद कर लिया और अखिलेश को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस पूछताछ में सपना ने बताया कि अखिलेश उसे भगा कर नहीं ले गया था, बल्कि वह खुद उस के साथ घूमनेफिरने गई थी. अखिलेश उस का बौयफ्रेंड है. पुलिस ने सपना का डाक्टरी परीक्षण कराया और कोर्ट में बयान दर्ज करा कर उसे उस के पेरेंट्स को सौंप दिया तथा अखिलेश को जेल भेज दिया.

सपना वापस तो आ गई, लेकिन उस की गांव भर में थूथू होने लगी. उस की सहेलियां भी उस से कतराने लगीं. सपना के भागने से रमाकांत व अलका का भी जीना दूभर हो गया था. गांव में वे सिर झुका कर घर से निकलते थे. महिलाएं जहां अलका को ताने मारती थीं तो वहीं रमाकांत को पड़ोसी इज्जत की नजरों से नहीं देखते. इन्हीं दिनों अलका के घर सुभाष सिंह का आनाजाना शुरू हुआ. सुभाष फर्रुखाबाद जिले के कायमगंज थाने के गांव अकराबाद सिकंदरपुर खास का रहने वाला था. अलका का इसी गांव में मायका था. सुभाष उस के मायके वाले घर से कुछ दूरी पर रहता था. वह कारपेंटर था. उस की अच्छी कमाई थी. सुभाष अलका के मायके का यार था.

अलका ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा था, तभी उस का नाजायज रिश्ता सुभाष से जुड़ गया था. सुभाष अलका का दीवाना था, सो उस पर खूब खर्च करता था. कुछ समय बाद अलका का विवाह रमाकांत से हो गया तो वह अपनी ससुराल अल्हापुर आ गई. सुभाष अल्हापुर भी आने लगा. अलका की शादी के बाद भी उस ने रिश्ता खत्म नहीं किया.

अलका ने पति को बताया कि सुभाष मायके के रिश्ते से उस का भाई लगता है. इसलिए जब तब मिलने आ जाता है. सीधेसादे रमाकांत ने सहज ही पत्नी की बातों पर भरोसा कर लिया था. रमाकांत की बेटी सपना उन दिनों 6 साल की थी. सुभाष को वह मामा कहती थी. सुभाष उस से खूब बतियाता था और उसे खूब प्यार करता था. सुभाष अय्याश किस्म का था. औरत उस की कमजोरी थी. अलका जब ससुराल में रहने लगी तो वह गांव की एक अन्य महिला पर डोरे डालने लगा था. लेकिन वह महिला उस के झांसे में नहीं आई.

सुभाष ने तब उस से जोरजबरदस्ती की और एक दिन अकेला पा कर महिला को अपनी हवस का शिकार बना डाला. महिला के घरवालों ने तब कायमगंज थाने में सुभाष के खिलाफ भादंवि की धारा 323/504/506/376 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने मारपीट, धमकी व बलात्कार के मामले में सुभाष को जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया और उसे जेल भेज दिया. कोर्ट में मुकदमा चला और अदालत ने उसे 10 साल की सजा सुनाई. सजा भुगतने के लिए उसे फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया. जेल जाने के बाद सुभाष का अलका से मिलनाजुलना बंद हो गया.

फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में सजा काटने के बाद वर्ष 2024 के जनवरी माह में उस की रिहाई हुई. उस के बाद वह गांव आ कर रहने लगा. उस ने बढ़ई का काम फिर शुरू कर दिया. लेकिन उस के काम ने रफ्तार नहीं पकड़ी, क्योंकि गांव के लोग सजायाफ्ता सुभाष से कटने लगे थे. इसलिए उस की आर्थिक स्थिति डावांडोल थी. एक रोज सुभाष को पता चला कि अलका की बेटी सपना गांव के किसी युवक के साथ भाग गई थी. पुलिस ने उसे बरामद कर लिया है तो वह अलका से मिलने अल्हापुर पहुंच गया. सुभाष को देख कर अलका चौंक पड़ी, ”अरे, तुम जेल से कब आए? क्या तुम्हारी सजा पूरी हो गई?’’

”4 हफ्ते पहले ही जेल से आया हूं. मेरी सजा पूरी हो गई है. मैं ने 10 साल जेल में कैसे गुजारे, यह मैं ही जानता हूं. खैर, मेरी छोड़ो अपनी बताओ, तुम कैसी हो. मेरी भांजी सपना कैसी है. वह तो अब जवान हो गई होगी. जब मैं जेल गया था, तब शायद 6-7 साल के आसपास थी.’’ सुभाष ने अलका को जानबूझ कर कुरेदते हुए पूछा. अलका तब गुस्से से बोली, ”उस कमीनी का नाम मत लो. उस की वजह से पूरे गांव में हमारी बदनामी हुई है. अगर मैं जानती कि जवानी में वह ऐसा गुल खिलाएगी तो पैदा होते ही उस का गला घोंट देती. मुझे उस से नफरत हो गई है. वह मुझे फूटी आंख भी नहीं सुहाती है.’’

सुभाष और अलका अभी बात कर ही रहे थे कि कमरे से निकल कर सपना आ गई. सपना के आते ही अलका रसोई में चली गई. सुभाष ने सपना को देखा तो देखता ही रह गया. वह बोला, ”सपना, तुम तो अपनी मां से भी ज्यादा खूबसूरत हो. जेल में रहते मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी.’’

इस के बाद सपना और सुभाष के बीच देर तक बातें होती रहीं. उस ने सपना से कहा कि तुुम ने जवानी में जो भूल की है, उस से पूरे परिवार की बदनामी हुई है. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. सुभाष का अलका के घर आनाजाना शुरू हुआ तो दोनों के बीच फिर नाजायज रिश्ता कायम हो गया. वह जब भी घर आता, बात करने के बहाने अलका के साथ कमरे में बंद हो जाता. सपना ने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर उसे मां और मामा पर शक होने लगा. एक रोज उस ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस का शक यकीन में बदल गया. वह जान गई कि मां और सुभाष मामा के बीच नाजायज रिश्ता है. दोनों पापा की आंखों में धूल झोंक कर घर में रंगरलियां मनाते हैं.

सपना अखिलेश से अब भी प्यार करती थी, लेकिन उस के जेल जाने के बाद सपना उस के दोस्त अनिकेत से प्यार करने लगी. दोनो चोरीछिपे मिलने भी लगे. वह सैक्स सुख का आनंद ले चुकी थी, इसलिए उस का मिलन अनिकेत से होने लगा. उन्हें खेत, बागबगीचा, जहां भी मौका मिलता, मिलन कर लेते. किसी को कानोंकान इस की खबर न लगती. लेकिन अलका को एक रोज पता चल ही गया कि सपना अब अनिकेत के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी है. उस ने तब सपना को खूब फटकार लगाई और उस के गाल पर 2 थप्पड़ भी जड़ दिए.

गाल पर थप्पड़ पड़ते ही सपना का गुस्सा भी फट पड़ा, ”मां, मैं तो जवान हूं. मेरी तो उम्र बहकने की है, लेकिन तुम तो अधेड़ उम्र की हो. तुम पर तो अब भी जवानी सवार है. तुम सुभाष मामा के साथ बंद कमरे में जो गुल खिलाती हो, उस की मुझे पूरी जानकारी है. मैं ने तुम्हें सुभाष मामा के साथ बिस्तर पर अपनी आंखों से देखा है.’’

सपना की बात सुन कर अलका सन्न रह गई. मन ही मन डर भी गई कि अगर सपना ने अपने पापा को सब कुछ बता दिया तो घर में कलह मच जाएगी. इस समस्या से निपटने के लिए अलका ने फोन कर अपने आशिक सुभाष को घर बुला लिया. उस ने सुभाष को बताया कि सपना को हम दोनों के नाजायज रिश्तों के बारे में पता चल गया है. डर है कि वह सब कुछ पति रमाकांत को न बता दे.

सुभाष ने अलका को समझाया कि वह सब कुछ संभाल लेगा और इस बाबत सपना से बात करेगा. सपना उस समय कमरे में सो रही थी. कुछ देर बाद जागी तो सुभाष उस के कमरे में पहुंच गया. फिर बोला, ”अलका ने मुझे बताया कि तुम्हें मेरे और अलका के अफेयर के बारे में पता चल गया है. कोई बात नहीं. लेकिन इस बारे में अपने पापा को मत बताना. उस के एवज में तुम जो मांगोगी, मैं तुम्हें दूंगा.’’

सपना मुसकराते हुए बोली, ”ठीक है मामा, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी. आप मुझे एक नया मोबाइल फोन खरीद कर दे दीजिए.’’

सुभाष ने सपना की बात मान ली और उसे एक मोबाइल खरीद कर दे दिया. मोबाइल फोन हाथ में आया तो वह अनिकेत से फोन पर खूब बतियाने लगी. उस को अब मां का डर भी नहीं सताता था. जब कभी अलका उसे टोकती तो वह उसे ऐसा करारा जवाब देती कि वह तिलमिला उठती. सपना अब एक तरह से उस की दुश्मन बन गई थी. सुभाष अय्याश किस्म का था. उस का अलका से तो नाजायज रिश्ता था ही, अब उस की बुरी नजर सपना पर भी पडऩे लगी थी. वह जब भी अल्हड़ जवान सपना को देखता तो उसे भोगने की ललक जाग उठती थी. लेकिन उम्र का फासला दूने से भी अधिक था. इसलिए सपना उसे भाव नहीं देती थी.

लगभग 2 महीने बाद सपना के प्रेमी अखिलेश को जमानत मिल गई और वह जेल से छूट कर घर आ गया. अखिलेश आया तो अलका की चिंता बढ़ गई. उसे लगा कि अखिलेश कहीं फिर उस की बेटी को भगा न ले जाए. इसलिए उस ने इस बारे में पति रमाकांत से बात की फिर अलका ने सपना को अपने मायके भेज दिया. सपना अपनी ननिहाल अकराबाद सिकंदरपुर खास आई तो वह स्वच्छंद हो कर रहने लगी. उसे अब कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. उस के हाथ में मोबाइल रहता ही था, सो अपने प्रेमी अनिकेत व अखिलेश से खूब बात करती. हालांकि मोबाइल फोन पर ज्यादा बातचीत करना उस के मामामामी को पसंद न था.

सुभाष भी इसी गांव का रहने वाला था. उस का घर सपना के ननिहाल से कुछ ही दूरी पर था. उसे जब पता चला कि सपना ननिहाल आई है तो वह बेहद खुश हुआ. उस ने सपना से मेलजोल व उसे रिझाना शुरू कर दिया. सपना व सुभाष की फोन पर भी बातचीत होने लगी थी. सपना सुभाष के घर भी जाने लगी थी. सुभाष सपना का मोबाइल फोन रिचार्ज कराता तथा उसे खर्च के लिए पैसे भी देता था. इस से सपना का झुकाव सुभाष की तरफ होने लगा. सपना जब भी उस के सामने होती, वह उसे ललचाई नजरों से देखता और उस के शरीर से छेड़छाड़ करता. सुभाष की छेड़छाड़ से सपना रोमांचित हो उठती. आखिर एक रोज एकांत पा कर सुभाष ने सपना को बांहों में भरा और उस के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ की तो सपना पिघल गई और दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया.

इस के बाद तो सुभाष मांबेटी दोनों से मौजमस्ती करने लगा. अलका को सुभाष के साथ बेटी के अवैध रिश्तों की बात पता नहीं चली. ननिहाल में रहते हुए सपना को 5 महीने बीत गए थे. एक रात वह अपने प्रेमी अखिलेश व अनिकेत से हंसहंस कर मोबाइल पर अश्लील बातें कर रही थी, तभी उस की बातें उस के सगे मामा देवीदीन ने सुन लीं. उन का माथा ठनका. उन्होंने तब अपनी बहन अलका से फोन पर बात की और अपनी बिगड़ैल बेटी को तुरंत वहां से लिवा ले जाने को कहा. उन्होंने अलका को खूब खरीखोटी भी सुनाई.  देवीदीन ने यह जानकारी अपनी बहन अलका को देने के बाद उसे घर बुला लिया. फिर अलका बेटी सपना को अपने मायके से घर ले गई.

पुलिस टीम ने हत्या का खुलासा करने और आरोपियों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एएसपी राजकुमार सिंह ने पुलिस सभागार में प्रेसवार्ता कर मीडिया के सामने हत्या का खुलासा किया. चूंकि सुभाष और सपना ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: एसएचओ ओमप्रकाश सिंह ने मृतका के पति रमाकांत की तहरीर पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 के तहत सुभाष और सपना के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

11 अक्तूबर, 2024 को पुलिस ने हत्यारोपी सुभाष और सपना को एटा की कोर्ट में पेश किया, जहां से सुभाष को जिला जेल भेज दिया गया तथा सपना को बालिका सुधार गृह भेजा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सपना नाम परिवर्तित है.