Social Stories in Hindi : जल्दी अमीर बनने के लालच में महिला ने बनाया हनीट्रैप गिरोह

Social Stories in Hindi : जल्द अमीर बनने के लिए 22 वर्षीय पायल ने 6 महिलाओं व पुरुषों के साथ एक ऐसा गिरोह बना रखा था जो पैसे वाले लोगों को हनीट्रैप के जाल में फांस कर मोटी रकम वसूलता था. कारोबारी युवक धीरज से मोटी रकम ऐंठने के चक्कर में ये सभी ऐसे फंसे कि…

23 नवंबर, 2020 की सुबह का वक्त था. मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ थाने के टीआई कमलेश सिंगार को थाने पहुंचे कुछ ही समय हुआ था कि पास के गांव रतनगढ़ से आए 2 लोग मोहन और धीरज ने उन से मिलने की इच्छा जाहिर की. टीआई ने उन दोनों को केबिन में बुला लिया. मोहन की उम्र कोई 40-45 साल थी, जबकि उस के साथ आए युवक धीरज की उम्र मुश्किल से 22 साल रही होगी. मोहन गांव में पंचायत स्तर की राजनीति से जुड़ा होने के कारण तेज था, इसलिए उस ने बिना लागलपेट के टीआई कमलेश सिंगार को साथ आए युवक धीरज के साथ हुई लूट की रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया. लेकिन धीरज इज्जत के डर से रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाना चाहता था.

पूरे घटनाक्रम में मोहन भी जुड़ा हुआ था. इसलिए उस ने टीआई कमलेश सिंगार को पूरी घटना से अवगत करा दिया. इस के बाद टीआई ने मोहन की तरफ से एक अज्ञात युवती, 2 महिलाओं और 3 पुरुषों के खिलाफ लूट की रिपोर्ट दर्ज कर ली. 22 वर्षीय अविवाहित धीरज रतनगढ़ का रहने वाला था. संपन्न परिवार के धीरज का बड़ा करोबार था. एक दिन उस के मोबाइल फोन पर किसी अज्ञात नंबर से फोन आया.

‘‘हैलो, कौन?’’ धीरज ने फोन रिसीव करते हुए पूछा.

‘‘आप दिनेशजी बोल रहे हैं?’’ किसी लड़की की मीठी सी आवाज आई.

‘‘जी नहीं, शायद आप ने गलत नंबर मिलाया है,’’ धीरज ने कहा.

‘‘मेरी किस्मत में हमेशा गलत डायलिंग क्यों लिखी है.’’ उस युवती ने गहरी सांस लेते हुए कहा तो धीरज को अजीब लगा.

उस से कुछ बोलते नहीं बना. वह चुप रहा तो उधर से फिर आवाज आई, ‘‘हैलो आप सुन रहे हैं न?’’

‘‘हांहां सुन रहा हूं. लेकिन मैं दिनेश नहीं हूं.’’

‘‘मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप का नाम दिनेश है या नहीं. मेरे लिए इतना ही काफी है कि आप ने कम से कम मेरा दर्द तो सुना, वरना इतनी बड़ी दुनिया में मेरा एक भी हमदर्द नहीं है.’’ वह बोली.

‘‘आप ऐसा क्यों सोचती हैं, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.’’ धीरज ने उसे तसल्ली देने वाले अंदाज में कहा.

‘‘पता नहीं कब होगा. मुझे तो लगता है कि सारी प्रौब्लम मेरे लिए ही हैं. मेरे पिता ने मुझे इतना पढ़ायालिखाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया. खैर छोड़ो, आप क्यों मेरी कहानी सुन कर अपना समय खराब करेंगे.’’

‘‘अरे नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ धीरज ने जल्दी से कहा. उसे डर था कि कहीं वह फोन न काट दे.

‘‘आप सुनेंगे मेरे दर्द की दास्तान?’’

‘‘जी, बताइए. हो सकता है मैं आप के किसी काम आ सकूं.’’

‘‘तो ठीक है. मैं रात में आप को इसी नंबर पर फोन करूंगी. कहानी लंबी है, फिर रात की तनहाई में किसी अपने के सामने दिल खोल कर रख देने का सुख ही अलग होता है. अच्छा, यह बताओ कि आप की पत्नी तो गुस्सा नहीं करेंगी.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है.’’ धीरज ने बताया.

‘‘अरे तो फिर किसी लड़की के दिल पर यूं प्यारभरा हाथ रखना आप ने कहां से सीखा. आप मेरी कहानी सुनने के लिए राजी हो गए तो मुझे लगा जैसे आप अभीअभी मेरे दिल को बहुत हौले से छू कर गुजरे हो.’’ वह बोली.

‘‘आप की शादी हो गई?’’ धीरज ने कुछ हिम्मत कर के पूछा.

‘‘इस तन की तो हो गई लेकिन दिल की नहीं हुई.’’

‘‘क्या मलतब?’’

‘‘मतलब सीधा सा है यार. पति है, इसलिए मेरे शरीर को तो उस ने शादीशुदा बना दिया, लेकिन मेरे दिल को अब तक यह भरोसा नहीं दिला पाया कि वह मेरा पति है. अच्छा कोई आ जाएगा, बाकी बातें मैं रात में बताऊंगी, तुम अपनी तरफ से फोन मत करना मैं खुद कर लूंगी.’’

कहते हुए उस युवती ने काल डिसकनेक्ट कर दी तो धीरज ठगा सा खड़ा रह गया. उस का मन कर रहा था कि काश! अभी रात हो जाए और वह फिर उस युवती की मीठी आवाज सुने.

रात में उस युवती का फोन आ गया. वह बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं.’’ धीरज ने कहा.

‘‘धत मैं तो समझी थी कि तुम मुझे याद कर रहे होगे. सच कहूं तो आप से फोन पर बात करने के बाद से मैं लगातार आप को ही याद कर रही हूं.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘शायद इसी को पुराने जन्म का रिश्ता कहते हैं. हो सकता है, पिछले जन्म में आप मेरे रहे हो. इसलिए इस जन्म में भी मिल गए.’’

‘‘हां, हो सकता है.’’ धीरज ने थूक गटकते हुए कहा.

‘‘तो हमारे बीच इस जन्म में ये दूरी क्यों?’’

‘‘सब किस्मत की बात है.’’

‘‘सच कहा आप ने तभी तो नियति ने ऐसे पति के साथ बांध दिया जो दिन भर मेरे ऊपर अपने दिमाग की गरमी निकालता है और रात में अपने तन की. मेरी भावनाओं से तो जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं है. सच कहूं तो मेरा पति रात में तो मुझे केवल मशीन समझता है. आप समझ रहे हैं न, मैं क्या कहना चाहती हूं.’’

‘‘जी, समझ रहा हूं.’’

‘‘कैसे? आप की तो अभी शादी भी नहीं हुई. कहीं ऐसा तो नहीं कि बिना शादी के ही गर्लफ्रैंड ने ये सब सिखा दिया हो.’’

‘‘मेरी कोई गर्लफ्रैंड भी नहीं है.’’

‘‘तो मुझे समझ लो.’’

‘‘आप बनोगी मेरी फ्रैंड?’’

‘‘समझो बन गई. सच कहूं, अब आप मिल गए हो तो लगता है कि सब ठीक हो जाएगा. चंद पलों की इस बात में ही आप से मिलने का मन करने लगा है. आप मिलना चाहेंगे मुझ से?’’

‘‘जरूर.’’

‘‘कहां सब के सामने या कहीं अकेले में? ज्यादा परेशान तो नहीं करोगे न मुझे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो ठीक है, मैं 2-4 दिन में तुम से मिलने की कोशिश करती हूं.’’

उस के बाद काफी देर तक वह धीरज से मीठीमीठी बातें करती रही फिर दूसरे दिन फोन करने को कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया. दूसरे दिन धीरज इंतजार करता रहा लेकिन उस का फोन नहीं आया. अगले दिन उस ने बताया कि उसे मौका नहीं मिल पाया, इसलिए फोन नहीं कर सकी. इस बार उस ने अगले दिन धीरज को मल्हारगढ़ बस स्टैंड पर मिलने को कहा. धीरज न केवल राजी हो गया बल्कि उस के बताए समय पर वहां पहुंच भी गया. एकांत की मुलाकात थोड़ी देर में लगभग 22 साल की एक खूबसूरत युवती उस से आ कर मिली और उसे मस्ती करने के नाम पर गाडगिल सागर डैम ले गई. डैम पर एकांत में वह युवती धीरज को अपने साथ शारीरिक संबंध बनाने की दिशा में ले जाने लगी.

लेकिन इस से पहले कि बात ज्यादा आगे बढ़ती, मौके पर 2 महिलाएं और 2 युवक आ कर सीधे धीरज के साथ मारपीट करने लगे. महिलाएं उस पर आरोप लगा रहीं थी कि उस ने उन के परिवार की बहू को बिगाड़ दिया है. वह उस से अकेले में मिल कर शारीरिक संबंध बनाता है. धीरज ने उन के सामने बहुत हाथपैर जोड़े, लेकिन वे उसे थाने ले जा कर बलात्कार का मामला दर्ज करवाने पर अड़े रहे. इसी बीच वहां से एक आदमी गुजरा, जिस ने पूरा मामला सुन कर दोनों पक्षों को समझाया कि थाने जाने से कोई फायदा नहीं है. यहीं आपस में मामला निपटा लो.

इस के लिए युवती के परिवार वालों ने धीरज से 5 लाख रुपए की मांग की. इतना ही नहीं, उन्होंने उसी समय धीरज की जेब में रखे 70 हजार रुपए छीन लिए. धीरज के पास 5 लाख रुपए नहीं थे, इसलिए मामला 3 लाख में सेट हो जाने पर धीरज ने तुरंत अपने दोस्त मोहन को फोन लगा कर 3 लाख रुपया ले कर बुलाया. मोहन ने इस का कारण पूछा, लेकिन धीरज ने कुछ नहीं बताया. इसलिए अंधेरा होने तक मोहन धीरज के बताए स्थान पर पैसा ले कर तो आ गया मगर वह इस बात पर अड़ गया कि जब तक धीरज पैसों की जरूरत का कारण नहीं बताएगा, वह पैसे नहीं देगा.

लड़की और उस के साथियों ने धीरज की मोटरसाइकिल रख कर उसे अकेले ही मोहन के पास भेजा था. किसी तरह की बदमाशी दिखाने पर उन्होंने उसे बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करवाने का डर भी दिखाया था. लेकिन जब मोहन बिना कारण जाने पैसे देने को राजी नहीं हुआ तो धीरज ने उसे पूरी बात बता दी. संयोग से इसी बीच धीरज के पास फिर बदमाशों का फोन आ गया. उन का कहना था कि जल्दी पैसे ले कर आओ वरना वे थाने जा कर मामला दर्ज करवा देंगे. इस पर मोहन ने धीरज के हाथ से फोन छीन लिया और खुद को पुलिस इंसपेक्टर बताते हुए धमकी दी तो बदमाशों ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया.

अगले दिन मोहन धीरज को किसी तरह थाने ले कर आया, लेकिन धीरज रिपोर्ट लिखवाने को राजी नहीं हुआ तो मोहन ने अपनी तरफ से रिपोर्ट दर्ज करवा दी. धीरज के साथ घटी लूट की घटना सुन कर टीआई कमलेश सिंगार को एक पुरानी घटना याद आ गई, जिस में इसी तरह से एक औरत ने 70 वर्षीय गांव के मुखिया को अपने जाल में फंसा कर उस से एक लाख 80 हजार रुपए लूट लिए थे. इस से टीआई समझ गए कि यह किसी गिरोह का काम है, जो नियोजित योजना के तहत लोगों को इज्जत का डर दिखा कर लूटने हैं. इसलिए उन्होंने इस गिरोह को खत्म करने के लिए कमर कस ली. अगले दिन टीआई कमलेश सिंगार ने उसी नंबर पर फोन लगाया, जिस से वह युवती धीरज को फोन किया करती थी.

युवती ने टीआई से उन का परिचय पूछा तो इंसपेक्टर सिंगार ने एक दिलफेंक युवक की तरह उस से बातें करते हुए उस के मन में यह भ्रम पैदा कर दिया कि उस युवती ने ही कुछ दिन पहले उन्हें फोन किया था. चूंकि युवती इस तरह से कई लोगों को फोन लगाती रहती थी, इसलिए वह टीआई कमलेश सिंगार के जाल में फंस गई. टीआई सिंगार को अपना नया शिकार जान कर युवती ने पहले तो उन के साथ काफी अश्लील बातें कीं, फिर अकेले में मिलने की जगह तय कर गिरोह के दूसरे सदस्यों को शिकार पर चलने के लिए बुला लिया. लेकिन उस गिरोह के लोगों को क्या मालूम था कि आज उन का पाला ऐसे पुलिस इंसपेक्टर से पड़ने वाला है जो खुद उन का शिकार करने शिकारी बन कर आया है.

थोड़ी देर में वही स्थिति बन गई जो धीरज के साथ बनी थी. फिर युवती के बाद साथ आए 2 पुरुष और एक महिला ने उन्हें घेरने की कोशिश की. फिर टीआई कमलेश सिंगार की टीम ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सभी से पूछताछ की गई. पूछताछ के बाद 3 और महिलाओं व एक पुरुष को गिरफ्तार किया गया. गिरोह में शामिल 22 साल की युवती पायल सब से ज्यादा तेजतर्रार थी. उस ने एक मुसलिम युवक से शादी की थी. गिरोह के लोग उस की बात मानते थे. उस ने अपने गिरोह से कह रखा था कि जब वह शिकार पर हो तो गिरोह के लोग उस के पास इशारे पर ही आएं. क्योंकि शिकार पसंद आने पर पायल पहले उस युवक के साथ पूरी तरह संबंध बना कर अपना मन भरती थी, बाद में गिरोह की तिजोरी भरने के लिए बाकी सदस्यों को इशारा कर मौके पर बुला लेती थी.

गिरोह की बाकी महिला सदस्य हीराबाई, कुशालीबाई, नाथी उर्फ सुमन भी शिकार करने में माहिर थीं. मल्हारगढ़ पुलिस ने इन महिलाओं के साथ कारूलाल उर्फ करण निवासी गोपालपुरा, गुलाम हैदर उर्फ भयू निवासी रामपुरा और श्यामलाल उर्फ समरथ निवासी सावन को भी गिरफ्तार कर इन के पास से धीरज और रामपुरा निवासी एक अन्य युवक से लूटे गए एक लाख रुपए बरामद किए. गिरोह में जो 6 महिलाएं थीं, उन में से 3 की उम्र 20 से ले कर 24 साल और बाकी की 30-40 और 48 साल थी. ये ग्राहक की उम्र देख कर उस के सामने चारा बना कर डालने के लिए युवती चुनती थीं.

यदि शिकार जवान होता था तो तीनों युवतियों में से किसी एक को चारा बनाया जाता था और अगर शिकार अधेड़ होता तो फिर 30-40 साल वाली महिला सदस्य उस से प्रेमिका बन कर मिलती थीं. पूछताछ करने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Social Stories in Hindi

 

MP News : ब्यूटीपार्लर में सज रही लड़की को किसने चाकू मारा

MP News : एक शादी समारोह में सोनू से मुलाकात कर के राम यादव बहुत खुश हुआ. बाद में वह अपने से उम्र में 7 साल बड़ी सोनू से दिली मोहब्बत करने लगा. लेकिन जब उसे पता चला कि सोनू की शादी किसी और के साथ होने जा रही है तो शादी वाले दिन उस ने ऐसा कदम उठाया कि…

घटना 5 जुलाई, 2020 की है. मध्य प्रदेश का शाजापुर शहर जब गहरी नींद में सो रहा था, शहर के सदर बाजार क्षेत्र में रहने वाले एक प्रतिष्ठित व्यापारी का परिवार बड़े जोरशोर से अपनी बेटी की शादी की तैयारी में जुटा था. इस परिवार की खूबसूरत और सुशील बेटी सोनू परिवार की शान मानी जाती थी. सोनू शहर के ही सरस्वती स्कूल में उपप्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थी तथा अपनी योग्यता और व्यवहार के कारण स्कूल के सभी विद्यार्थियों की चहेती भी. सोनू की शादी उज्जैन जिले के नागदा के रहने वाले प्रतिष्ठित बागरेचा परिवार के बेटे के साथ होने जा रही थी. दूल्हे के मामा जावरा सर्राफा बाजार में रहते थे.

मामा चाहते थे कि भांजे की शादी जावरा से हो, इसलिए दोनों परिवारों ने एक मत हो कर 5 जुलाई को जावरा के कोठारी रिसोर्ट से विवाह करने की तैयारी कर ली. इसलिए सोनू का परिवार उस दिन सुबह जल्दी ही शाजापुर से जावरा के लिए निकलने वाला था. ऐसे में जिस लड़की की शादी हो, उसे नींद कैसे आ सकती है. इसलिए सोनू भी परिवार वालों के साथ जाग रही थी. सोनू के अलावा रतलाम के दीनदयाल नगर इलाके में रहने वाला एक युवक राम यादव भी जाग रहा था. वैसे राम इस परिवार का सदस्य नहीं था लेकिन राम के इस तरह जागने का कारण सोनू की शादी से जरूर जुड़ा था.

इसलिए सुबह को जिस वक्त सोनू अपने परिवार के साथ जावरा को रवाना हुई, लगभग उसी समय राम यादव भी अपने एक दोस्त पवन पांचाल के साथ मोटरसाइकल पर सवार हो कर जावरा के लिए निकल पड़ा. दोनों एक ही शहर के लिए रवाना हुए थे, मगर उन की मंजिलें अलगअलग थीं. सोनू की मंजिल उस का होने वाला पति था तो राम यादव की मंजिल सोनू थी. सुबह कोई साढ़े 8 बजे सोनू अपने परिवार के साथ जावरा के कोठारी रिसोर्ट पहुंच गई. लौकडाउन के कारण शादी में ज्यादा मेहमानों को शामिल करने की मनाही होने के कारण दोनों पक्षों के गिनेचुने खास मेहमान ही शामिल होने के लिए आए थे. इसलिए उस रिसोर्ट में बहुत ज्यादा चहलपहल नहीं थी.

सुबह के 9 बजे के आसपास सोनू अपनी चचेरी बहन के साथ शृंगार करवाने के लिए पहले से बुक किए ब्यूटीपार्लर जाने को तैयार हुई तो उस के भाई ने दोनों बहनों को कार में बैठा कर आंटिक चौराहे पर स्थित ब्यूटीपार्लर के सामने सड़क पर छोड़ दिया. इधर रतलाम से जावरा पहुंचा राम यादव पिछले 2 घंटे से पागलों की तरह सड़कों पर सोनू को तलाश रहा था. संयोग से जैसे ही चौराहे पर सोनू अपनी बहन के साथ कार से उतरी वैसे ही उस पर राम की नजर पड़ गई. लेकिन जब तक वह उस के पास पहुंचता सोनू बिल्डिंग में दाखिल हो गई. बिल्डिंग के अंदर ब्यूटीपार्लर देख कर राम समझ गया कि सोनू पार्लर में आई होगी, इसलिए उस ने दोस्त पवन के मोबाइल से सोनू के मोबाइल पर फोन लगाया.

सोनू मेकअप सीट पर बैठ चुकी थी, इसलिए उस का फोन साथ आई चचेरी बहन ने रिसीव किया. जिस से राम को पता चल गया कि सोनू पार्लर में ही है. इसलिए फोन काटने के बाद वह चारों दिशाओं का जायजा ले कर पार्लर में दाखिल हो गया. मेकअप सीट पर बैठी सोनू ने सामने लगे आइने में दरवाजे से राम को अंदर आता देखा तो उस का दिल धड़क उठा. लेकिन इस से पहले कि वह कुछ कर पाती राम ने तेजी से पास आ कर सोनू का मेकअप कर रही लड़की को जोर से धक्का दे कर एक तरफ गिरा दिया. फिर झटके के साथ जेब से बड़ा सा चाकू निकाल कर सोनू की गरदन रेत दी और वहां से फरार हो गया.

यह सूचना वरवधू के घर वालों को मिली तो वे सदमे में आ गए. घटनास्थल पर तड़पती सोनू को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचने से पहले उस की मृत्यु हो गई. कुछ ही घंटे बाद फेरे लेने जा रही दुलहन की हत्या की खबर फैलते ही जावरा में सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी बी.डी. जोशी पुलिस टीम के साथ पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद सीएसपी पी.एस. राणावत भी मौके पर पहुंच गए. सोनू के साथ पार्लर गई उस की चचेरी बहन से पूछताछ की गई, लेकिन उस का कहना था कि वह हत्यारे को नहीं जानती. उस ने बताया कि इस घटना से 2 मिनट पहले ही सोनू के मोबाइल पर एक फोन आया था. वह किस का था, यह पता नहीं. थानाप्रभारी ने वह नंबर हासिल कर लिया. वह समझ रहे थे कि हत्यारे तक पहुंचने के लिए वह नंबर पहली सीढ़ी हो सकता है.

इस बीच घटना की खबर पा कर एसपी गौरव तिवारी तथा आईजी (उज्जैन) राकेश गुप्ता भी जावरा पहुंच गए. उन के निर्देश पर पुलिस टीम ने चारों तरफ नाकेबंदी कर जावरा से बाहर जाने वाले रास्तों पर संदिग्ध मोटरसाइकिल की तलाश की. इस जांच में पुलिस को एक बाइक एमपी43डीटी 8979 पर सवार 2 युवक राजस्थान की तरफ तेजी से भागते दिखे. लेकिन वह पुलिस के हाथ न लग सके. सोनू के साथ घटना जावरा में हुई जरूर थी, लेकिन वह जावरा की रहने वाली नहीं थी, इसलिए पुलिस को शक था कि उस का हत्यारा उस के पीछे शाजापुर या किसी अन्य शहर से आया होगा. इसलिए जब बाइक नंबर के आधार पर रतलाम में बाइक की तलाश की गई तो एक सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि इस बाइक पर सवार 2 युवक सुबह करीब 6 बजे रतलाम से जावरा की तरफ निकले थे.

इसलिए सीसीटीवी के आधार पर इस बात की संभावना नजर आई कि वह युवक रतलाम के ही होंगे. लिहाजा पुलिस ने सीसीटीवी से ले कर दोनों युवकों के फोटो पहचान के लिए सभी थानों में भिजवा दिए. इस प्रयास में दीनदयाल नगर थाने में तैनात एक आरक्षक ने फुटेज के फोटो देखते ही दोनों की पहचान राम यादव और पवन पांचाल के रूप में कर दी, जो जाटों का वास इलाके के रहने वाले थे. चूंकि राम यादव पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा की जिला कार्यकारिणी में पदाधिकारी था, जिस से पुलिस ने उसे आसानी से पहचान लिया.

इस पर पुलिस ने राजस्थान के रास्ते पर नाकाबंदी कर दी. क्योंकि सीएसपी राणावत को भरोसा था कि इन में से पवन पांचाल वापस रतलाम लौट सकता है क्योंकि ब्यूटीपार्लर में लगे सीसीटीवी कैमरे में केवल राम यादव पार्लर में जाते और निकल कर भागते दिखाई दिया था. इस से साफ था कि हत्या राम यादव ने की है जबकि पवन उस की मदद करने की गरज से साथ गया था. सीएसपी राणावत का सोचना एकदम सही साबित हुआ. पवन जल्द ही उस समय पुलिस की गिरफ्त में आ गया, जब वह राजस्थान से वापस लौट रहा था. पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बता दिया कि सोनू की हत्या राम यादव ने की थी तथा वह उसे बांसवाड़ा डिपो पर छोड़ कर वापस आ रहा था.

राम को पवन के पकड़े जाने की खबर नहीं थी, इसलिए पुलिस ने पवन से उसे फोन करवाया. राम यादव ने उसे बताया कि कि वह सावरियाजी में है. यह पता चलते ही पुलिस ने एक टीम तुरंत सावरियाजी भेज दी. वहां से पुलिस ने राम को भी गिरफ्तार कर लिया. एक दिन में ही सोनू के हत्यारे पुलिस की गिरफ्त में आ गए थे, जिन से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त बड़ा चाकू और राम के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ की तो सोनू की निर्मम हत्या के पीछे की कहानी इस प्रकार से सामने आई. शाजापुर के व्यापारी परिवार की बेटी सोनू गुणों के संग रूप की भी खान थी. नातेरिश्तेदार, सहेलियां सभी उसे चाहते थे.

सोनू के लिए उस के पिता ने काफी सोचसमझ कर वर का चुनाव कर सन 2010 में उस की शादी उज्जैन निवासी सजातीय युवक से कर दी. लेकिन पति के साथ सोनू की पटरी नहीं बैठने के कारण दोनों में विवाद होने लगा, जो इस हद तक बढ़ा कि शादी के 4 साल बाद ही उस का पति से तलाक हो गया. तलाक के बाद सोनू वापस मायके में आ कर रहने लगी. उच्चशिक्षित तो वह थी ही, इसलिए उस ने शाजापुर आ कर स्थानीय सरस्वती विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी कर ली, जहां वह जल्द ही अपनी योग्यता के आधार पर वह उप प्राचार्य के पद तक पहुंच गई. सोनू की हत्या की कहानी की भूमिका 3 साल पहले सन 2017 में उस वक्त शुरू हुई, जब वह अपने एक रिश्तेदार के घर शादी में शामिल होने के लिए रतलाम गई. वह रिश्तेदार रतलाम शहर के दीनदयाल नगर में रहते थे.

उन के पड़ोस में ही राम यादव रहता था. ज्वैलर्स की दुकान पर काम करने वाला राम भाजयुमो का नेता था. इस शादी में राम यादव भी शामिल हुआ था. यहीं पर राम यादव की सोनू से पहली मुलाकात हुई. राम सोनू से उम्र में 7 साल छोटा था फिर भी सोनू के रूप ने उस पर ऐसा जादू डाला कि वह पूरी शादी में उस के आगेपीछे घूमता रहा. इस दौरान औपचारिकतावश दोनों में बातचीत हुई तो राम ने सोनू से उस का मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से शादी के बाद दोनों की अकसर सोशल मीडिया पर बातचीत होेने लगी. सोनू खुले विचारों की थी ही, इसलिए उसे समाज के इस राजनैतिक युवक की बातों में बहुत कुछ सीखने को मिलने लगा. वह भी राम से अकसर चैटिंग करने लगी.

लेकिन उसे नहीं मालूम था कि राम के मन में उसे ले कर क्या चल रहा है. वह खुद राम से उम्र में काफी बड़ी थी, इसलिए वह सोच भी नहीं सकती थी कि राम उस में अपनी प्रेमिका तलाश रहा है. बहरहाल, इस सब के बीच राम के साथ सोनू की दोस्ती काफी गहरी होती गई तो राम ने एक दिन उस के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सोनू समझदार थी. वह जानती थी कि ऐसे दीवाने अचानक मना करने से कुछ बवाल खड़ा कर सकते हैं, इसलिए उस ने समझदारी दिखाते हुए राम को टालते हुए कहा कि उस ने कभी इस बारे में नहीं सोचा. सोचने का समय दो, फिर अपना निर्णय बता सकूंगी. राम को लगा कि टीचर होने के नाते सोनू प्यार सीधे स्वीकार नहीं कर पा रही है, कुछ दिन बाद वह राजी हो जाएगी.

इसलिए वह लगातार उस से फोन कर के या फेसबुक वाट्सऐप पर चैट करते हुए प्रणय निवेदन करता रहा. दोनों की अकसर फोन पर बातें भी होती थीं. इसलिए जून के अंतिम दिनों में फोन पर बात करते हुए जब राम ने एक बार फिर सोनू के सामने शादी कर प्रस्ताव रखा तो सोनू ने उस से कहा, ‘‘राम, यह संभव नहीं है. एक तो तुम्हारी उम्र मुझ से काफी कम है. दूसरे मैं एक बार तलाक का दंश झेल चुकी हूं, इसलिए अब मैं वहीं शादी करने जा रही हूं, जहां मेरे पिता ने कहा है.’’

‘‘क्याऽऽ तुम शादी कर रही हो?’’ राम ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘हां, 5 जुलाई को मेरी शादी है और घर वालों ने जावरा में एक रिसोर्ट भी बुक करा दिया है.’’

‘‘कहां, किस से.’’ राम ने पूछा तो मन की साफ सोनू ने उसे सब कुछ बता दिया. यह सुन कर राम गुस्से में पागल हो गया तथा उस ने सोनू को यह शादी न करने की धमकी दी. लेकिन सोनू ने उस की नहीं सुनी और आगे से उस का फोन अटैंड करना भी  बंद कर दिया. राम सोनू को ले कर न जाने क्याक्या सपने देख चुका था. सोनू की शादी की खबर ने उस के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. इस से उसे गुस्सा आ गया. उस ने उसी समय फैसला ले लिया कि यदि सोनू उस की नहीं हुई तो वह किसी और की नहीं हो सकती. यह बात राम ने अपने दोस्त पवन पांचाल को बताई तो वह राम का साथ देने को तैयार हो गया.

उस ने 5 जुलाई को ही सोनू की हत्या करने की ठान ली. इस के बाद 5 जुलाई को उस ने दोस्त पवन के साथ जावरा पहुंच कर उस की हत्या कर दी. इधर सोनू के परिवार वालों का कहना है कि उन की बेटी का किसी से कोई संबंध नहीं था. आरोपी अपने अपराध को छिपाने के लिए उन की बेटी पर गलत आरोप लगा रहा है. पुलिस ने आरोपी राम यादव और पवन पांचाल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

 

Extramarital Affair : पति को छत से फिकवाने का राज कैसे खुला

Extramarital Affair : पटवारी संदीप सिंह ने प्रियंका से लवमैरिज की थी. बाद में उन के 2 बच्चे भी हुए. इसी दौरान संदीप की एक अविवाहित पटवारी रानी के साथ लव स्टोरी शुरू हो गई. पत्नी प्रियंका के समझाने के बावजूद भी पति ने रानी का साथ नहीं छोड़ा तो प्रियंका की जिंदगी में भी ‘वो’ आ गया. उस ‘वो’ के साथ प्रिंयका ने एक ऐसी खूनी साजिश रची कि…

32 वर्षीय संदीप सिंह अपने परिवार सहित सतना जिले के कोलगवां थाना क्षेत्र के संतोषी माता मंदिर कालोनी में कैलाश गुप्ता के मकान में किराए पर रहता था. उस के परिवार में पत्नी प्रियंका सिंह और 2 बेटियां थीं. हालांकि संदीप मूलरूप से महादेवा बिहरा क्रमांक-1, सतना का रहने वाला था. चूंकि वह पेशे से पटवारी था और सगौनी तहसील में पदस्थ था, गांव से नौकरी जानेआने में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, इसीलिए उस ने शहर में किराए का कमरा ले लिया था ताकि नौकरी पर आराम से आजा सके.

ऐसा नहीं था कि संदीप का पत्नी और बच्चों के अलावा कोई और नहीं था. उस के मांबाप गांव में अपने पुश्तैनी मकान में अन्य बच्चों के परिवार के साथ रहते थे. वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे. इसलिए गांव में रहते थे. संदीप का जब भी मांबाप से मिलने का मन करता था, वह महीने में एकदो बार गांव जा कर उन से मिल कर उसी दिन वापस लौट आता था. ऐसे में संदीप और उस के परिवार की जिंदगी मजे से कट रही थी. बात 31 मई, 2020 की है. संदीप और उस का परिवार रात 10 बजे खाना खा कर फारिग हुए तो प्रियंका बरतनों को साफ करने किचन में चली गई. उस ने दोनों बेटियों को खिलापिला कर पहले ही सुला दिया था. संदीप की पुरानी आदत थी कि वह रात का खाना खाने के बाद कम से कम एकडेढ़ घंटे टहलता जरूर था.

उस रात भी खाना खाने के बाद संदीप अपना फोन ले कर मकान की छत पर टहलने गया. वह ग्राउंड फ्लोर पर रहता था. उस समय रात के 11 बज रहे थे. प्रियंका जब किचन की साफसफाई कर के फारिग हुई तो दीवार घड़ी पर नजर दौड़ाई. घड़ी में उस समय रात के 12 बज रहे थे. अकसर यही समय हो जाया करता था उसे किचन से फारिग होतेहोते. दिन भर के कामों और 2-2 बच्चों की देखभाल करतेकरते प्रियंका बुरी तरह थक जाती थी. इस रात भी वह बुरी तरह थक गई थी. किचन से फारिग हो कर जैसे ही वह बिस्तर पर लेटी, उस की आंखें लग गईं. दु:स्वप्न देख अचानक प्रियंका की नींद टूटी तो वह बिस्तर पर उठ कर बैठ गई. उस ने दीवार घड़ी पर नजर डाली, उस समय रात के 2 बज चुके थे. पति संदीप बिस्तर पर नहीं था.

पति को बिस्तर पर न पा कर प्रियंका हैरान रह गई. उस ने सोचा इतनी रात गए वह छत पर क्या रह रहे होंगे. वह पति को बुलाने छत पर गई तो देखा, पति छत पर नहीं थे. यह देख कर प्रियंका हैरान रह गई कि पति कमरे में नहीं हैं और छत पर भी नहीं हैं तो कहां चले गए. उस ने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं कि टहलतेटहलते छत से नीचे गिर गए हों. अपनी तसल्ली के लिए उस ने ऊपर छत से नीचे झांक कर देखा, लेकिन नीचे भी कुछ नहीं दिखाई दिया. यह सोच कर प्रियंका और भी हैरान थी कि रहस्यमय ढंग से पति कहां गायब हो गए. उस ने ऊपर से नीचे तक सब जगह देख लिया था. संदीप का कहीं पता नहीं चला तो वह बुरी तरह घबरा गई और मकान मालिक कैलाश गुप्ता को नींद से जगा कर पति के अचानक गायब हो जाने की बात बताई.

प्रियंका की बात सुन क र मकान मालिक गुप्ता की नींद उड़ गई थी कि वह अचानक से घर से कहां गायब हो सकता है? बड़ी हैरान कर देने वाली बात थी यह. मकान मालिक भी प्रियंका के साथ संदीप को ढूंढने में जुट गए. नीचे से ऊपर तक एक बार फिर से दोनों ने संदीप को तलाशा, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. फिर दोनों उसे ढूंढते हुए मकान के पीछे यह सोच कर गए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि छत के ऊपर से नीचे जा गिरा हो. टौर्च की रोशनी में दीवार से करीब 5-6 फीट दूरी छान मारी, फिर भी संदीप का कहीं पता नहीं चला. उधर प्रियंका पति को ढूंढतेढूंढते कुछ आगे बढ़ गई थी.

तभी अचानक प्रियंका के मुंह से जोर से चिल्लाने की आवाज आई. चिल्लाने की आवाज सुन कर कैलाश गुप्ता डर गए और उसी ओर दौड़े, जिस ओर से आवाज आई थी. देखा जमीन पर संदीप का शव पड़ा था. उस के सिर से खून बह रहा था. उस की लाश के पास खून से सना एक पत्थर पड़ा था. पास में ही उस का मोबाइल पड़ा था. प्रियंका पति के पास बैठ कर विलाप कर रही थी. मामला बड़ा संदिग्ध लग रहा था. छत से गिर कर संदीप की मौत हुई थी, यही कह कर प्रियंका विलाप करती रही. पटवारी संदीप की छत से गिर कर मौत की खबर सुन कर पासपड़ोस के लोग रात में ही मौके पर जुटने लगे थे. प्रियंका ने ससुर छोटेलाल सिंह को फोन कर के पति के छत से गिर कर मौत हो जाने की सूचना दे दी थी.

बेटे के मौत की खबर जैसे ही घर वालों को मिली, घर में कोहराम मच गया. सहसा किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि संदीप अब इस दुनिया में नहीं रहा. संदीप की मौत की खबर मिलते ही छोटेलाल बेटों के साथ घटनास्थल पहुंचे. उस समय सुबह के 10 बज चुके थे. संदीप की लाश देख कर किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की मौत छत से गिर कर हुई है. इसी बीच किसी ने घटना की सूचना कोलगवां थाने को दे दी. घटना की सूचना पा कर कोलगवां थाने के इंसपेक्टर मोहित सक्सेना अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन की टीम में एसआई शैलेंद्र सिंह, डी.आर. शर्मा, कांस्टेबल आर. बृजेश सिंह, देवेंद्र सेन और पुष्पेंद्र बागरी शामिल थे.

इंसपेक्टर मोहित सक्सेना ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लाश के पास एक बड़ा पत्थर खून से सना पड़ा था. वहीं लाश के पास ही मृतक का मोबाइल फोन गिरा पड़ा था. जो बिल्कुल सहीसलामत था. मोबाइल पर खरोंच तक नहीं आई थी. उस के बाद इंसपेक्टर सक्सेना ने मौके पर मौजूद मृतक की पत्नी प्रियंका, जिस का रोरो कर हाल बुरा हो रहा था और पिता छोटेलाल सिंह के बयान लिए. पत्नी प्रियंका ने छत से गिर कर पति की मौत होना बताया था. लाश की पोजिशन और घटनास्थल देख कर पता नहीं क्यों इंसपेक्टर सक्सेना मृतक की पत्नी का बयान पचा नहीं पा रहे थे. सब से आश्चर्य वाली बात तो ये थी मृतक करीब 28-30 फीट की ऊंचाई से जमीन पर गिरा था और उस की मौत हो गई थी.

लेकिन उस के मोबाइल फोन पर खरोंच तक नहीं आई थी. ऐसे कैसे हो सकता था? यह बात उन के गले नहीं उतर रही थी. उसी समय उन्होंने एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी, सीएसपी विजय प्रताप और एफएसएल टीम प्रभारी डा. महेंद्र सिंह को फोन कर के सूचना दे दी थी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद मौके पर सारे पुलिस अधिकारी पहुंच चुके थे. पुलिस अधिकारियों ने मौके का बारीकी से मुआयना किया. उन्हें भी पटवारी संदीप सिंह की मौत छत से गिरने से हुई हो, ऐसा नहीं लग रहा था. बल्कि यह हत्या का मामला लग रहा था. लेकिन यह बात पुलिस ने अपने तक ही सीमित रखी ताकि किसी को शक न हो, नहीं तो कातिल मौके का लाभ उठा कर फरार हो सकता था.

बहरहाल, पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया और मौके से मृतक का मोबाइल फोन और खून सना पत्थर बतौर साक्ष्य अपने कब्जे में ले कर पुलिस थाने लौट आई थी. पुलिस ने पटवारी संदीप सिंह की संदिग्ध मौत की जांच शुरू कर दी. फिलहाल न तो मृतक की पत्नी प्रियंका ने और न ही पिता छोटेलाल सिंह ने हत्या की कोई तहरीर पुलिस को दी. पुलिस ने घटना को रीक्रिएट किया. 2 जून, 2020 को एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी, सीएसपी विजय प्रताप, इंस्पेक्टर मनोज सक्सेना और एफएसएल प्रभारी डा. महेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और घटना का रीक्रिएशन किया. पुलिस अधिकारियों ने मृतक संदीप के वजन के बराबर एक डमी तैयार की और वह डमी उसी छत से धक्का दे कर नीचे गिराई.

डमी दीवार से 5 फीट की दूरी पर जा कर गिरी. यह क्रिया उन्होंने 3 बार की थी. तीनों बार डमी 5 फीट की दूरी पर जा कर गिरी थी. जबकि संदीप की लाश दीवार से 15 फीट की दूरी पर मिली थी. यह कैसे संभव हो सकता है. यह सोच कर पुलिस अधिकारियों का माथा ठनक गया. वैज्ञानिक तर्कों से भी यह सिद्ध हो गया कि संदीप की मौत छत से गिरने से नहीं बल्कि एक साजिश के तहत उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी सिर में गहरी चोट के कारण मौत होने का उल्लेख था. अब तक की जांचपड़ताल से यह सिद्ध हो चुका था कि पटवारी संदीप सिंह की हत्या की गई थी. पुलिस को आश्चर्य तब हुआ जब मृतक संदीप सिंह और उस की पत्नी प्रियंका के फोन का काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया गया.

घटना वाली रात प्रियंका ने 2 अलगअलग फोन नंबरों पर बात की थी. एक काल रात करीब 11 बजे की थी और दूसरी काल दूसरे नंबर पर रात डेढ़ बजे के आसपास की थी. ये कौन हो सकते हैं, इस का पता तो प्रियंका से पूछताछ करने पर ही चल सकता था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर शक के आधार पर प्रियंका के नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. उधर दोनों नंबरों की डिटेल्स पुलिस के हाथ लग चुकी थी. उन दोनों नंबरों में एक नंबर अनूप कुमार सिंह का था और दूसरा नंबर सनी कुमार सिंह का. दोनों एक ही मोहल्ले सगमनिया के रहने वाले थे.

वैज्ञानिक साक्ष्यों और काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पटवारी संदीप सिंह की मौत की गुत्थी करीबकरीब सुलझा ली थी. साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका था पति की मौत में पत्नी का हाथ है. इसी बीच एक चौंकाने वाली बात पुलिस को पता चली. प्रियंका ने अपने नंबर से अनूप को फोन किया था. सर्विलांस पर लगे उस के नंबर पर हुई बातचीत को साइबर सेल प्रभारी दीपेश पटेल ने सुन लिया था. प्रियंका अनूप से कह रही थी कि पुलिस को उस पर शक हो गया है. अब क्या होगा? अब तो हम पकड़े जा सकते हैं.

इस के बाद प्रियंका के बचने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी. 5 जून को दोपहर इंसपेक्टर मोहित सक्सेना पूरी टीम के साथ संतोषी माता मंदिर स्थित कैलाश गुप्ता के घर पहुंचे, जहां प्रियंका रहती थी. उस समय घर पर संदीप के घर वाले और पत्नी प्रियंका मौजूद थी. सामने खड़ी पुलिस को देख कर प्रियंका के चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. उसी वक्त इंसपेक्टर मोहित सक्सेना ने कहा, ‘‘आप का खेल खत्म हुआ, प्रियंका. अब हमारे साथ चलिए.’’

‘‘क…कहां चलें? आप के कहने का क्या मतलब है?’’ हकलाती हुई प्रियंका ने पूछा.

‘‘थाने चल कर सब पता चल जाएगा. अरेस्ट हर सरला.’’ इंसपेक्टर सक्सेना ने साथ आई दोनों महिला सिपाहियों सरला शर्मा और प्रियंका चतुर्वेदी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. पुलिस प्रियंका सिंह को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. उस के गिरफ्तार होने की सूचना उन्होंने एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी और सीएसपी विजय को दे दी थी. प्रियंका ने कबूला गुनाह  सूचना मिलते ही पूछताछ करने के लिए एसपी इकबाल थाने पहुंच गए. प्रियंका कोई हार्डकोर क्रिमिनल तो थी नहीं कि घंटों पुलिस को यहांवहां घुमाती. पुलिस को देखते ही उस की हालत पतली हो गई थी. फिर क्या था.

उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उसी ने अपने प्रेमी अनूप कुमार सिंह और उस के दोस्त सनी के साथ मिल कर पति की हत्या कराई थी. अगर वो उसे नहीं मरवाती तो पति अपनी प्रेमिका के साथ मिल कर उस की हत्या करवा देता. प्रियंका का सनसनीखेज बयान सुन कर पुलिस चौंकी. दोनों ही नैतिक पतन चरित्र वाले किरदार थे. दोनों के ही चरित्र मैले हो चुके थे. मैले चरित्र वाले पति और पत्नी दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन बने हुए थे. आगे की कहानी प्रियंका पुलिस के सामने परत दर परत खोलती चली गई. पूछताछ के बाद पटवारी की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

कहते हैं, जोडि़यां ऊपर से बन कर आती हैं, यहां तो सिर्फ फेरे लेते हैं 7 वचनों के बंधन में बंधने के लिए. संदीप और प्रियंका के साथ भी ऐसा ही हुआ था. सामान्य कदकाठी और सुदर नैननक्श वाली प्रियंका के गोरे बदन पर संदीप की जब पहली बार नजर पड़ी थी, वह अपलक उसे निहारता रह गया था. दोनों की मुलाकात एक शादी की पार्टी में हुई थी. जहांजहां प्रियंका जाती, उस की हसरत भरी निगाहें उस का पीछा करती रहतीं. इस बात से बेखबर अल्हड़ प्रियंका मदमस्त बिंदास हो कर पार्टी का लुत्फ उठाती रही.  प्रियंका पहली ही नजर में संदीप के दिल में मुकाम कर गई थी. पार्टी में जब तक वह रहा, उस की नजरें सिर्फ प्रियंका पर टिकी हुई थीं. जब पार्टी समाप्त हुई तभी वह अपने घर वापस लौटा.

तब वह गांव में रह रहा था और वहीं से अपनी बाइक से ड्यूटी करने सगौनी जाया करता था. ये 6 साल पहले की बात है. प्रियंका के इश्क में संदीप इस कदर डूब चुका था कि उसे इस के अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा था. उस दिन के बाद से संदीप प्रियंका की तलाश में जुट गया था. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई और उस ने उसे ढूंढ ही लिया. दरअसल, संदीप जिस दोस्त की पार्टी में शरीक हुआ था, उसी से प्रियंका का हुलिया बता कर उस के बारे में पूछ लिया था. दोस्त ने ही उस लड़की का नाम प्रियंका बताया था. वह भी सतना की रहने वाली थी.

संदीप को भा गई थी प्रियंका संदीप दोस्त के जरिए प्रियंका से मिलने पहली बार उस के घर पहुंच गया था. प्रियंका के घर वालों से उस के दोस्त ने ही संदीप का परिचय करवाया था. बातोंबातों में प्रियंका के घरवालों ने जाना कि संदीप सरकारी नौकरी करता है. वह चकबंदी विभाग में पटवारी के पद पर कार्यरत है. खैर, संदीप को देख कर प्रियंका चकित रह गई थी. वह वही लड़का था, जो उस दिन पार्टी में उसे ही घूर रहा था और आज उस के घर तक पहुंच गया था. यह देख कर वह नतमस्तक थी. ऐसा नहीं था कि वह पार्टी में इतना बेसुध थी कि उसे कुछ दिख नहीं रहा था बल्कि वो संदीप की नजरों पर अपनी नजरें गड़ाए बैठी थी. वह देख रही थी कि संदीप की नजरें बड़ी शिद्दत उसे देख रही थीं. यह देख कर वह मन ही मन मुसकराए जा रही थी.

प्रियंका अपने घर में सब से बड़ी थी. उस से 2 छोटे भाईबहन और थे. प्रियंका ग्रैजुएशन कर चुकी थी. ग्रैजुएशन करने के बाद खाली समय में उस ने कंप्यूटर कोर्स करना शुरू कर दिया था. काफी खुशमिजाज और खुले विचारों वाली वह आधुनिक युवती थी. एक लड़की को कितनी मर्यादा में रहना चाहिए, वह अच्छी तरह जानती थी और उसी मर्यादा के दायरे में रहती थी. उस दिन के बाद संदीप को जब भी मौका मिलता था, अंकल आंटी से मिलने के बहाने प्रियंका के घर आ जाया करता था. घर पहुंचते ही उस की नजरें प्रियंका की खोज में जुट जाती थीं. जब तक वह उसे देख नहीं लेता था, उस के मन को सुकून नहीं मिलता था.

प्रियंका संदीप की नजरों को पहचानती थी. वह उस से बेहद मोहब्बत करता था. वह भी चुपकेचुपके संदीप से प्यार करने लगी थी और अपने दिल के कोरे कागज पर अपने महबूब संदीप का नाम लिख लिया था. मौका देख कर दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार भी कर चुके थे. इश्क के रथ पर सवार मोहब्बत के शहजादे खुले आसमान में पंख फैलाए ऊंचीऊंची कुलांचे भर रहे थे. जल्द ही दोनों ने एक होने का फैसला कर लिया था. दोनों ने की थी कोर्टमैरिज फिर क्या था संदीप और प्रियंका ने घर वालों की मरजी के खिलाफ कोर्ट मैरिज कर ली. संदीप के घर वालों ने प्रियंका को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, लेकिन प्रियंका के घर वालों ने बेटी से अपने संबंध हमेशा के लिए तोड़ लिए थे.

प्रियंका को पा कर संदीप बेहद खुश था. खुश भला क्यों न हो, उस के मन की मुराद जो पूरी हुई थी. आहिस्ताआहिस्ता दोनों के जीवन की गाड़ी पटरी पर चल रही थी. रिया और प्रिया नाम के 2 फूल उन की बगिया में खिल चुके थे. दोनों बेटियों को पा कर उन के जीवन की सारी मुरादें पूरी हो गई थीं. उन का जीवन खुशी से बीत रहा था. पता नहीं दोनों के खुशहाल जीवन में किस की बुरी नजर लगी कि उन के घर से सुख और चैन दोनों काफूर हो गए थे. कल तक एकदूसरे के बिना न रह पाने वाले प्रेमी से पतिपत्नी बने आज एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए थे.

धीरेधीरे संदीप के सिर से प्रियंका के इश्क का भूत उतर चुका था. उस की जिंदगी में एक नई युवती दखल दे चुकी थी. दरअसल, हुआ यूं कि संदीप जहां नौकरी करता था, उसी के साथ रीवा जिले की रहने वाली रानी (परिवर्तित नाम) नाम की एक कुंवारी युवती भी पदस्थ थी. वह भी पटवारी थी. दोनों में गहरी दोस्ती थी. उस का दिल रानी पर आ गया था. संदीप की जिंदगी में आई रानी शाम को छुट्टी मिलते ही संदीप घर वापस लौट आता था. रात को खाना खाने के बाद वह अपना फोन ले कर छत पर चला जाता था. वहां इत्मीनान से घंटों तक रानी से बातें करता. देर रात 12-1 बजे के करीब कमरे में लौटता. ये संदीप का रोजाना का रुटीन बन चुका था. शुरू के दिनों में प्रियंका यही समझती रही कि औफिस के किसी साथी से जरूरी बात करते होंगे.

लेकिन जब महीनों तक यही रुटीन बन गया था तो प्रियंका को पति पर कुछ शक हुआ. उसे लगा कि दाल में कुछ काला है. यह बात दिमाग में आने के बाद से प्रियंका ने पति पर अपनी नजर पैनी कर दी थी. पति फोन ले कर जब भी रात में छत पर पहुंचता था, बिल्ली के मानिंद वह भी दबेपांव उस के पीछेपीछे हो लेती थी. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई. एक दिन उस ने पति को रानी से बात करते सुन लिया. उस रात इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ था. उस ने खुल कर पति से कह दिया कि वह अपने जीते जी सिंदूर का बंटवारा नहीं कर सकती है. उस औरत से अपने संबंध तोड़ ले, वरना इस का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है.

रानी को ले दोनों के बीच घर में एक बार जो संग्राम छिड़ा तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. पत्नी के लाख मना करने के बावजूद संदीप रानी से अलग होने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस ने साफ तौर पर पत्नी से कह दिया था कि चाहे जो हो जाए, वह रानी का साथ नहीं छोड़ सकता. पति का दोटूक जवाब सुन कर प्रियंका ठगी रह गई थी, पर हार मानने वालों में से वह नहीं थी. एक छत के नीचे दोनों किसी अजनबी की तरह रह रहे थे. दोनों के बीच धीरेधीरे मतभेद बढ़ता गया. प्यार की जगह नफरत का साम्राज्य बढ़ता गया. यहां तक कि उन के बीच बातें भी बंद हो गई थीं. प्रियंका ने पति से तलाक लेने के लिए अपने वकील के जरिए पारिवारिक न्यायालय में भरणपोषण की एक याचिका दायर करा दी थी.

उस ने याचिका में दोनों बेटियों की परवरिश के लिए गुजारा भत्ता के लिए 14 हजार रुपए महीने के खर्चे और 25 लाख का दावा किया था. भले ही उन के बीच बातचीत होनी बंद हो गई थी, पर इतना जरुर था कि वह घर की जरूरतों को पूरी करता था. बेटियों को भरपूर प्यार देने में कोताही नहीं करता था. प्रियंका के भी बहक गए कदम इसी बीच प्रियंका के जीवन में एक नए किरदार ने एंट्री ली. प्रियंका की बड़ी बेटी रिया बोनांजा स्कूल में पढ़ती थी. बेटी को स्कूल पहुंचाने प्रियंका ही जाती थी. जातेआते रास्ते में सगमनिया के रहने वाले अनूप कुमार सिंह (21 साल) से उस का परिचय हो गया. वह भी अपने भाई की बेटी को स्कूल पहुंचाने जाता था.

अनूप देखता था कि वह जब भी उस से मिलता था प्रियंका उदास और दुखी रहती थी. एक दिन बातोंबातों में अनूप ने उस के हर घड़ी उदास रहने की बात पूछ ली. प्रियंका की दुखती रग पर पहली बार किसी ने हाथ रखा था. वह भावुक हो गई और अपने घर की कहानी उसे सुना बैठी. उस की कारुणिक कथा सुन कर अनूप का मन द्रवित हो उठा. बातों से उस ने उसे सहारा दिया तो प्रियंका अपने से 9 साल छोटे अनूप की ओर अनायास ही खिंची चली गई. अनूप से बात कर के उस के मन को शांति मिलती थी और खुद को काफी हलका महसूस करती थी. धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया था. पति के ड्यूटी चले जाने के बाद प्रियंका प्रेमी अनूप को अपने कमरे पर बुलाती और दिन भर रंगरलियां मनाती थी.

बात घटना से 15 दिन पहले 16 मई, 2020 की है. उस दिन संदीप ड्यूटी से छुट्टी ले कर जल्दी घर वापस लौट आया था. घर में एक अजनबी युवक को पत्नी के साथ देख कर उस का खून खौल उठा. भले ही पतिपत्नी के बीच अनबन चल रही थी. लेकिन प्रियंका अभी भी उस की पत्नी थी. पत्नी को किसी और की बांहों में देख कर कोई भी पुरुष आपा खो सकता था. संदीप भी आपा खो चुका था. उस ने जम कर दोनों पर लातघूंसे बरसाए. अनूप किसी तरह अपनी जान बचा कर वहां से भाग गया लेकिन प्रियंका की तो शामत आ चुकी थी. संदीप ने अपना सारा गुस्सा उस पर उतार दिया था. पति द्वारा प्रेमी की पिटाई करना प्रियंका को अच्छा नहीं लगा था.

प्रियंका और उस के प्रेमी ने रची साजिश फिर क्या था? दोनों ने संदीप को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी योजना में अनूप ने अपने जिगरी यार सनी कुमार (20 साल) को थोड़ा पैसों का लालच दे कर मिला लिया, जो उसी के गांव का रहने वाला था. उस दिन के बाद घटना से 3 दिन पहले 28, 29 और 30 मई तक अनूप और सनी दोनों ने मिल कर संदीप की रेकी की. उन्होंने पता लगा लिया कि संदीप घर से कब निकलता है? घर वापस कब लौटता है? किसकिस से मिलता है? वैसे भी प्रियंका ने पति की सारी गतिविधियों के बारे में उसे विस्तार से बता दिया था. बस योजना को अंजाम देना था.

प्रियंका और उस के प्रेमी अनूप ने योजना ऐसी बनाई थी कि संदीप की मौत हत्या नहीं वरन स्वाभाविक मौत लगे ताकि किसी का उन पर शक न जाए. यानी सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. योजना के अनुसार, 31 मई, 2020 की रात 11 बजे प्रियंका ने अनूप को फोन कर के बता दिया कि उस ने घर का मुख्यद्वार खोल दिया है. अनूप अपने दोस्त सनी के साथ प्रियंका के घर पहुंचा. उस ने सनी से बाहर ही रह कर देखभाल करने को कहा. फिर वह चुपके से आ कर घर की सीढि़यों के नीचे छिप गया और प्रियंका को अपने आने की सूचना फोन पर दे दी. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. संदीप को अपना फोन ले कर छत पर जाने के करीब डेढ़ घंटे बाद रात साढ़े 12 बजे प्रियंका और उस का प्रेमी अनूप दबे पांव छत पर पहुंचे.

संदीप फोन पर रानी से बात करने में मशगूल था. उस ने जैसे ही दोनों को एक साथ अपनी ओर आते देखा, वहां से भागना चाहा. तब तक दोनों ने झपट्टा मार कर उसे अपने काबू में ले लिया. प्रियंका ने उस के हाथ से फोन छीन कर अपने कब्जे में ले लिया. फिर दोनों ने मिल कर संदीप को छत से नीचे गिरा दिया. संदीप के नीचे गिरते ही अनूप सीढि़यों से तेजी से नीचे आया और प्रियंका फोन ले कर अपने कमरे में चली गई ताकि किसी को शक न हो. फिर वह तेजी से वहां पहुंच गया, जहां संदीप दर्द के मारे कराह रहा था. लेकिन अभी वह जिंदा था. प्लानिंग से की थी हत्या तब तक प्रियंका भी वहां पहुंच गई थी. उस समय सनी वहां मौजूद नहीं था. अनूप और प्रियंका दोनों मिल कर उसे वहां से घसीटते हुए कुछ और दूर लाए, जहां एक बड़ा पत्थर मौजूद था. फिर प्रियंका की आंखों के सामने अनूप ने वह पत्थर उठा कर संदीप के सिर पर जोरदार वार किया.

संदीप के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली और वह मौत की आगोश में समा गया. उस के बाद उसे स्वाभाविक मौत का रूप देने के लिए उस के पास उस का मोबाइल फोन रख दिया. फिर अपने फोन से सनी को फोन कर उसे मौके पर बुलाया ताकि वह अनूप को वहां से घर ले जा सके. अनूप के मौके से जाने के बाद प्रियंका अपने कमरे में वापस लौट आई. उस ने यही सोचा था कि थोड़ी देर बाद वह पति को ढूंढते हुए छत पर जाएगी. जब वहां उस का पति नहीं मिलेगा तो साक्ष्य के तौर पर मकान मालिक को ले कर पति को ढूंढेगी ताकि किसी को उस पर शक न हो और वह बेदाग बच जाए.

योजना के अनुसार प्रियंका ने वही किया. पहले पति को ढूंढने का नाटक किया. जब उस का पता नहीं चला तो 2 बजे रात में मकान मालिक कैलाश गुप्ता को नींद से जगा कर अचानक पति के गायब होने की जानकारी दे उसे ढुंढवाने में उन से मदद मांगी. कैलाश गुप्ता ने प्रियंका के साथ पूरा घर छान मारा, लेकिन संदीप का कहीं पता नहीं चला था. जब वे दोनों उसे तलाशते हुए मकान के पीछे गए तो वहां संदीप की लाश मिली. कहते हैं, कातिल लाख शातिर क्यों न हो, वह कोई न कोई गलती कर बैठता है. प्रियंका और उस के प्रेमी अनूप से भी एक गलती हो चुकी थी. कानून के शातिर खिलाडि़यों ने जांच कर उसी गलती की डोर पकड़ ली और पटवारी संदीप सिंह की मौत की गुत्थी सुलझा दी.

वह गलती थी संदीप के शरीर को मौके से करीब 15 फीट दूर घसीट कर ले आना और फोन का सुरक्षित पाया जाना. जिद्दी प्रियंका थोड़ी सूझबूझ और धैर्य से काम लेती तो शायद उस के रिश्ते सुधर सकते थे. उस का सुहाग भी जिंदा रहता और बेटियां पिता के प्यार से महरूम भी न होतीं, लेकिन उस के गुस्से की सनक ने उसी के हाथों उस के परिवार में आग लगा दी और भरापूरा आशियाना जल कर खाक हो गया.

खैर कथा लिखे जाने तक प्रियंका सिंह, अनूप कुमार सिंह और सनी कुमार तीनों गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए, जहां वे सलाखों के पीछे कैद अपने गुनाहों की सजा काट रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Ujjain News : पैसे के लिए प्रेमी से कराया पति का कत्ल

Ujjain News : सीआरपीएफ के जवान बलवीर सिंह चौहान की पत्नी रेखा 3 बच्चों की मां थी. उसे किसी भी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. इस के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि रेखा ने सीआरपीएफ के ही दूसरे जवान रवि कुमार पनिका के साथ मिल कर…

सूरज सिर पर चढ़ जाने के बावजूद बलवीर सिंह चौहान सो कर नहीं उठे तो उन की पत्नी रेखा को चिंता हुई. दीवार पर टंगी घड़ी में उस समय सुबह के 9 बज चुके थे. अपनी दिनचर्या के मुताबिक, वह सुबह 6 बजते ही उठ जाते थे. 54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान सीआरपीएफ में हेडकांस्टेबल थे. रेखा ने छत के फर्श पर दरी बिछा कर सो रहे पति को पहले तो आवाज दे कर जगाने की कोशिश की. लेकिन जब वह नहीं उठे तो उस ने पति को हिलाडुला कर उठाने की कोशिश की. लेकिन बलवीर के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो रेखा समझ गई कि अब वह दुनिया में नहीं रहे. उन की मौत हो चुकी थी.

पति के शव के पास बैठी रेखा जोरजोर से रोने लगी. मां के रोने की आवाज सुन कर उस के तीनों बच्चे दौडे़भागे छत पर पहुंचे. मां को रोते देख वे भी हकीकत समझ गए, इसलिए वे भी पिता की मौत पर रोने लगे. अचानक बलवीर के घर में रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी उन के घर पहुंचने लगे. लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि चौहान साहब की अचानक मृत्यु कैसे हो गई. जिस ने भी बलवीर सिंह की मौत की खबर सुनी, हैरान रह गया. रेखा ने फोन कर के पति की मौत की सूचना सीआरपीएफ के अधिकारियों को दे दी थी. हेडकांस्टेबल बलवीर की अचानक मौत की सूचना पा कर अधिकारी भी चकित रह गए. मामला संदिग्ध था, अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस को सूचना दी.

बलवीर की मौत की सूचना मिलने के कुछ देर बाद माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह, एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी (सिटी) रविंद्र वर्मा बलवीर के घर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले छत का मुआयना किया, जहां बलवीर सिंह चौहान का शव बिस्तर पर पड़ा हुआ था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि बलवीर की मौत स्वाभाविक रूप से हुई है. क्योंकि खून कान से निकल कर नाक की ओर बहा था, जो पतली रेखा के रूप में जम कर सूख गया था. गले पर दाहिनी ओर चोट जैसा निशान दिख रहा था.

कुल मिला कर बलवीर की मौत रहस्यमई लग रही थी, जबकि मृतक की पत्नी रेखा पुलिस अधिकारियों के सामने चीखचीख कर बारबार यही कह रही थी कि ड्यूटी से देर रात घर लौट कर इन्होंने कपड़े बदले, फ्रैश होने के बाद खाना खाया. फिर ज्यादा गरमी की वजह से कमरे में न सो कर छत पर सोने चले आए थे, जबकि वह बेटी के साथ कमरे में सो गई थी. दोनों बेटे रमेश और चंदन दूसरे कमरे में सो रहे थे. आदत के मुताबिक वह रोज सुबह 6 बजे उठ जाते थे. जब सुबह के 9 बजे भी वह छत से नीचे नहीं आए तो चिंता हुई. उन्हें जगाने छत पर पहुंची तो देखा वह बिस्तर पर मरे पड़े थे.

कहतेकहते रेखा फिर से रोने लगी. खैर, पुलिस ने कागजी काररवाई पूरी कर के मृतक बलवीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही बलवीर की मौत की सही मिल सकती थी. यह 18 जून, 2020 की बात है. हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की रहस्यमय मौत से पूरी बटालियन में शोक था.खुशमिजाज और अपनी बातों से सभी को गुदगुदाने वाले चौहान साहब सदा के लिए खामोश हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों को जिस बात की आशंका थी, वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच साबित हुई. बलवीर की मौत स्वाभाविक नहीं थी, बल्कि उन की गला दबा कर हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफतौर पर बताया गया था बलवीर की मौत गले की हड्डी टूट कर सांस रुकने से हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद आईजी राकेश गुप्त ने एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा को घटना का जल्द से जल्द परदाफाश करने का आदेश दिया. आईजी का आदेश मिलने के बाद एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा ने उसी दिन अपने औफिस में मीटिंग बुलाई. मीटिंग में एएसपी अमरेंद्र सिंह और माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह भी शामिल थे. रवींद्र वर्मा ने एएसपी अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. घटना की मौनिटरिंग एएसपी अमरेंद्र सिंह को करनी थी. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह के साथसाथ अमरेंद्र सिंह खुद भी घटना के एकएक पहलू पर नजर गड़ाए हुए थे. इधर रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी रेखा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रघुवीर सिंह को सौंपी गई. रघुवीर सिंह ने फूंकफूंक कर एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए जांच शुरू की. उन के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? उन की मौत से सब से ज्यादा फायदा किसे होने वाला था? इन सवालों का जवाब बलवीर के घर से ही मिल सकता था. इसलिए उन्होंने चौहान की मौत की वजह उन के घर से ही खोजनी शुरू की. विवेचना के दौरान मृतक की पत्नी रेखा का चरित्र संदिग्ध लगा तो पुलिस की नजर उस के क्रियाकलापों पर जम गई.

पुलिस ने रेखा का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया. साथ ही उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस के अध्ययन में जुट गई. इसी बीच पुलिस को एक खास जानकारी मिली. पता चला कि रेखा से पहले बलवीर की 2 शादियां हुई थीं. उन की पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि दूसरी पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी. सन 2003 में बलवीर ने रेखा से शादी की थी. बलवीर के तीनों बच्चे रेखा से ही जन्मे थे. बलवीर और रेखा की उम्र में करीब 20 साल का अंतर था. इस से भी बड़ी बात यह थी कि पतिपत्नी दोनों के रिश्ते खराब थे. दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे.

पुलिस ने रेखा के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि घटना वाली रात रेखा की एक ही नंबर पर कई बार बातचीत हुई थी. आखिरी बार दोनों के बीच उसी नंबर पर करीब साढ़े 11 बजे बात हुई थी. तमाम सबूत रेखा के खिलाफ थे. वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर पुलिस यह मान चुकी थी कि बलवीर की हत्या में उस की पत्नी रेखा का ही हाथ है. शक के आधार पर पुलिस रेखा को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने इस की सूचना एएसपी अमरेंद्र सिंह को दे दी थी. सूचना मिलते ही एएसपी अमरेंद्र सिंह उस से पूछताछ करने के लिए थाने पहुंच गए. यह 20 जून, 2020 की बात है.

‘‘रेखा, मैं जो सवाल करूंगा, उस का जवाब ठीक से देना, तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा.’’ समझाते हुए एएसपी अमरेंद्र ने रेखा से सख्त लहजे में कहा.

रेखा बुत बनी बैठी रही तो उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह बताओ कि तुम ने बलवीर की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने उन की हत्या नहीं की, मैं निर्दोष हूं.’’ रेखा ने सपाट लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो तुम ऐसे नहीं बताओगी. ठीक है, मत बताओ. यह तो बता सकती हो कि रवि कौन है और उसे तुम कैसे जानती हो?’’ एएसपी अमरेंद्र ने रेखा की आंखों में झांक कर सवाल किया. सवाल सुन कर रेखा सन्न रह गई.

‘‘क..क..क…कौन रवि.’’ वह हकलाती हुई बोली, ‘‘मैं किसी रवि को नहीं जानती.’’

‘‘वही रवि, जिस से घटना वाले दिन फोन पर तुम्हारी कई बार बात हुई थी.’’

सिर पर एक महिला सिपाही खड़ी थी. एएसपी ने उसे इशारा कर के कहा, ‘‘अगर ये झूठ बोले तो बिना कहे शुरू हो जाना.’’

इस पर रेखा हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘सर, पति की हत्या मैं ने ही अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर की थी, मुझे माफ कर दीजिए. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही अपने हाथों अपना घर उजाड़ दिया.’’

इस के बाद रेखा पति की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बताती चली गई. हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की हत्या के मामले से पुलिस ने 72 घंटे के भीतर परदा उठा दिया था. रेखा का प्रेमी रवि भी सीआरपीएफ का जवान था. वह शहडोल में तैनात था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने शहडोल पहुंची तब तक वह फरार हो गया था. अगले दिन एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी रवींद्र वर्मा ने मिल कर प्रैसवार्ता की. पत्रकारों के सामने भी रेखा ने अपना जुर्म कबूल लिया. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली थी—

54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान मूलरूप से उज्जैन में माधवनगर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रमेश और चंदन और एक बेटी शालिनी थी. कहने को तो बलवीर का दांपत्य जीवन खुशहाल था लेकिन हकीकत में वह अपनी पत्नी रेखा से खुश नहीं रहते थे. रेखा ने जब बलवीर के जीवन में कदम रखा, तब से उन के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं. रेखा उन की तीसरी पत्नी थी. बलवीर सिंह चौहान की 2 शादियां पहले भी हुई थीं. बलवीर की पहली पत्नी किरन थी. जब वह ब्याह कर ससुराल आई थी, बलवीर की किस्मत का ताला खुल गया था. शादी के बाद उन की सीआरपीएफ में नौकरी पक्की हुई थी.

बलवीर की नईनई शादी हुई थी. घर में नई दुलहन आई थी. अभी किरन के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा था कि उसे अकेले घर पर छोड़ बलवीर नौकरी चले गए. रात में पत्नी जब बिस्तर पर होती तो पति के बिना बिस्तर काटने को दौड़ता था. वह बेचैन हो जाती थी. पति की दूरियां उस से बरदाश्त नहीं हो रही थीं. जब सब कुछ बरदाश्त के बाहर हो गया तो किरन ने कमरे के पंखे से झूल कर आत्महत्या कर कर ली. पत्नी की आत्महत्या से बलवीर बुरी तरह टूट गए. वह बेपनाह मोहब्बत करते थे. लेकिन नौकरी के फर्ज और घर की जिम्मेदारी के बीच पिस कर उन्होंने 28 साल की उम्र में पत्नी को गंवा दिया था.

पत्नी की मौत के बाद से बलवीर गुमसुम रहने लगे. पूरी जिंदगी सामने थी. अकेले काटना मुश्किल था. इसी नजरिए से मांबाप उन की दूसरी शादी की सोचने लगे. बलवीर सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन की दूसरी शादी के लिए कई प्रस्ताव आए. काफी सोचने के बाद मांबाप ने उस की दूसरी शादी आभा से करवा दी. जब आभा बलवीर की जिंदगी में पत्नी बन कर आई, तो धीरेधीरे बलवीर के जीवन में बदलाव आने लगा. लेकिन बलवीर की ये खुशी भी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रही. एक सड़क हादसे ने बलवीर से आभा को भी छीन लिया. एक बार फिर अकेले पड़ गए. 2-2 पत्नियों की मौत से बलवीर जीवन से निराश होने लगे.

कुछ दिनों बाद बलवीर की जिंदगी में रेखा तीसरी पत्नी बन कर आई. वह दोनों की यह शादी साल 2003 में मंदिर में हुई थी. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. रेखा के आने से बलवीर की जिंदगी फिर से संवर गई. पहले की दोनों बीवियों से बलवीर की कोई संतान नहीं थी, लेकिन रेखा से बलवीर के यहां 3 बच्चे पैदा हुए. 2 बेटे रमेश व चंदन और एक बेटी शालिनी. रेखा भले ही बलवीर के 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह पति के प्यार से संतुष्ट नहीं थी. इसी के चलते रेखा के पांव बहक गए. शहडोल जिले के उमरिया की रहने वाली रेखा को अपना पुराना प्यार याद आ गया. उस का नाम था रवि कुमार पनिका. रवि और रेखा कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे.

उन्हीं दिनों दोनों में प्यार हुआ था. लेकिन दोनों के सपने पूरे नहीं हुए थे. रेखा बलवीर की जिंदगी की डोर से बंध गई थी. यह बात घटना से करीब 4 साल पहले की है. रेखा का वही प्यार एक बार फिर से जवां हो गया. उस के तीनों बच्चे 10-12 साल के हो चुके थे. पति अकसर ड्यूटी पर घर से बाहर रहते थे. इस बीच रेखा घर पर अकेली रहती थी. इस अकेलेपन के दौरान वह रवि के साथ फोन पर चिपकी रहती थी. कभीकभार बलवीर जब बच्चों का हालचाल लेने के लिए पत्नी को फोन लगाता तो वह अकसर व्यस्त मिलता था. यह देख कर बलवीर की त्यौरी चढ़ जाती थी कि आखिर दिन भर वह फोन पर किस से चिपकी रहती है.

35 वर्षीय रवि कुमार पनिका सीआरपीएफ का जवान था. वह रायपुर के जगदलपुर में तैनात था, शादीशुदा. उस के भी बालबच्चे थे. उस का परिवार उमरिया में रहता था. बीचबीच में छुट्टी मिलने पर वह घर जाता था. रेखा रवि की पुरानी प्रेमिका थी. कालेज के दिनों में दोनों एकदूसरे से जुनूनी हद तक प्यार करते थे. उस समय तो दोनों एक नहीं हो सके थे लेकिन अब दोनों एक होने को लालायित थे. जब से रेखा ने प्रेमी रवि को दिल से पुकारा था, रवि का दीवानापन हद से ज्यादा बढ़ गया था. रायपुर से नौकरी से छुट्टी ले कर रवि रेखा से मिलने उज्जैन स्थित उस के घर पहुंच जाता था. दोनों अपनी जिस्मानी आग ठंडी करते और फिर रवि रायपुर लौट जाता. रेखा प्रेमी रवि को घर तभी बुलाती थी जब उस के तीनों बच्चे स्कूल में होते थे और पति नौकरी पर.

रेखा की इस आशनाई का खेल सालों तक चलता रहा. अब रेखा पति को देख कर वैसा आनंदित नहीं होती थी, जैसे पहले हुआ करती थी. पहले की अपेक्षा रेखा के तेवर और रूपरंग में भी बदलाव आ गया था. उस के बदलेबदले तेवर और रूपरंग को देख कर बलवीर को उस पर शक गया. ऊपर से हर समय उस के फोन का बिजी आना. ये उस के शक को और बढ़ावा दे रहा था. वह ठहरा एक पुलिस वाला, जिन की एक आंख में शक तो दूसरी आंख में यकीन होता है. ऐसे में रेखा पति की नजरों से कहां बचने वाली थी. एक दिन बलवीर ने पत्नी से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा फोन अक्सर बिजी क्यों रहता है. जब भी फोन लगाओ तुम किसी से बात करती मिलती हो, किस से बात करती रहती हो? कौन है वो?’’

पति का इतना पूछना था कि रेखा बिदक गई, ‘‘आप मुझ पर शक करते हो. मैं ऐसीवैसी औरत नहीं हूं जो पति की गैरमौजूदगी में यहांवहां मुंह मारती फिरूं.’’

रेखा ने पति की आंखों के सामने ज्यामिति की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी रेखा खींची कि उस की बोलती बंद कर दी. भले ही रेखा ने अपने त्रियाचरित्र से पति की आंखों पर परदा डाल दिया था, लेकिन बलवीर को यकीन हो चुका था कि पत्नी का किसी गैरपुरुष से नाजायज रिश्ता है. इस बात को ले कर अकसर दोनों के बीच विवाद होता रहता था. रेखा जान चुकी थी कि पति को उस पर शक हो गया है. लेकिन पति नाम के कांटे को वह अपने जीवन से कैसे निकाले, समझ नहीं पा रही थी. बात पिछले साल दिसंबर 2019 की है. बलवीर अपने जानकारों से जान चुके थे कि पत्नी का नाजायज रिश्ता उस के पुराने आशिक रवि कुमार पनिका से बन गया है.

इसे ले कर दोनों के बीच खूब लड़ाई हुई. घर में शांति और सुकून जैसे गायब हो गया था. जब देखो पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. मांबाप के झगड़ों से बच्चे भी परेशान हो चुके थे. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे, चुप रहने के अलावा. पति से नाराज हो कर रेखा प्रेमी रवि के पास रायपुर चली गई. अगले 25 दिनों तक वह उसी के साथ रही. इस दौरान दोनों ने जबलपुर, कटनी, मंडसला और रायपुर के अलगअलग होटलों में रातें रंगीन कीं. इसी दौरान दोनों ने बलवीर सिंह चौहान को रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बनाई. योजना ऐसी कि बलवीर की मौत स्वाभाविक लगे और दोनों का लाखों का फायदा हो. रवि ने रेखा को बताया कि बलवीर का एक बड़ी रकम का जीवन बीमा करा दिया जाए. उस की मौत के बाद वह रकम उस की पत्नी यानी तुम्हें मिल जाएगी.

उस रकम को हम दोनों आधाआधा बांट लेंगे. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा और हमारा काम भी हो जाएगा. इस तरह साला बूढ़ा तेरे जीवन से भी निकल जाएगा. फिर हमें मौजमस्ती करने से कोई नहीं रोक सकेगा. पूरी योजना बन जाने के बाद रेखा घर लौट आई और घडि़याली आंसू बहाते हुए पति के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांग ली. बलवीर ने उसे माफ कर दिया लेकिन उसे अपना नहीं सके. सामाजिक मानप्रतिष्ठा के चलते बलवीर ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने बच्चों को देखते हुए रेखा को घर में पनाह तो दे दी, लेकिन दोनों के बीच गहरी खाई खुद चुकी थी, जो पट नहीं सकती थी. रेखा को पति की भावनाओं से कोई लेनादेना नहीं था.

बच्चों से भी उस का कोई वास्ता नहीं था. वह तो योजना बना कर अपने रास्ते के कांटे को सदा के लिए हटाने के लिए आई थी. योजना के अनुसार, रवि और रेखा ने मिल कर 54 साल के बलवीर का 40 लाख रुपए का जीवन बीमा करा दिया, जिस की किस्त 45 हजार रुपए वार्षिक बनी. पहली किस्त के रूप में रवि ने 25 हजार और रेखा ने 20 हजार यानी 45 हजार रुपए फरवरी महीने में जमा करा दिए और निश्चिंत हो गए. अब बारी थी बलवीर को रास्ते से हटाने की. दोनों बेकरार थे कि उन्हें कब सुनहरा मौका मिलेगा. आखिरकार उन्हें वह अवसर मिल ही गया.

मई, 2020 के आखिरी सप्ताह में बलवीर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आए. रेखा यह सुनहरा अवसर अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती थी. 29 मई को फोन कर के उस ने रवि को बता दिया कि शिकार हलाल होने के लिए तैयार है, आ जाओ. प्रेमिका की ओर से हरी झंडी मिलते ही रवि तैयार हो गया. रवि उन दिनों अपने घर शहडोल आया हुआ था. शहडोल से उज्जैन की दूरी 738 किलोमीटर थी. सड़क मार्ग से ये दूरी करीब 18 घंटे में तय की जा सकती थी. रेखा के हां करते ही रवि 30 मई, 2020 को अपनी मोटरसाइकिल से शहडोल से उज्जैन रवाना हो गया. अगले दिन 31 मई को वह उज्जैन पहुंच गया और एक होटल में ठहरा.

फिर फोन कर के रेखा को बता दिया कि वह उज्जैन पहुंच चुका है. आगे की योजना बताओ. रेखा ने रात ढलने तक होटल में ही रुके रहने को कहा. साथ ही यह भी कि जब वह फोन करे तो घर आ जाए.  होटल से रेखा का घर कुछ ही दूरी पर था. रेखा ने रात साढ़े 11 बजे फोन कर के रवि को घर बुला लिया. साथ ही बता भी दिया कि घर का मुख्यद्वार खुला रहेगा. चुपके से घर में आ जाए. उस समय बलवीर नीचे अपने कमरे में सोए हुए थे और तीनों बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे. बेचैन रेखा बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. ठीक साढ़े 11 बजे रवि रेखा के घर पहुंच गया और दबेपांव घर में घुस आया. वैसे भी वह घर के कोनेकोने से वाकिफ था.

रवि को आया देख वह खुशी से उछल पड़ी और उस की बांहों में समा गई. थोड़ी देर बाद रेखा जब होश में आई तो बिस्तर पर पति को सोता देख उस ने नफरत भरी नजर डाली और रवि को इशारा किया. फिर इशारा मिलते ही रवि ने अपने हाथों से बलवीर का गला तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत हुई. बलवीर की मौत हो चुकी थी. हत्या की घटना को दोनों स्वाभाविक मौत दिखाना चाहते थे. इसलिए दोनों ने योजना बनाई. रेखा छत पर बिस्तर लगा आई. फिर दोनों बलवीर की लाश उठा कर छत पर ले गए और बिस्तर पर ऐसे लिटा दिया जैसे वह खुद वहां आ कर सो गए हों.

रेखा और रवि के रास्ते का कांटा हट गया था. सुबह होते ही जब रवि जाने लगा तो रेखा ने उस से कहा कि वह उसे कमरे में बंद कर दरवाजे पर बाहर से सिटकनी चढ़ा दे. रवि ने वही किया, जैसा रेखा ने करने को कहा था. सुबह जब बच्चे उठे तो मां का कमरा बाहर से बंद देख चौंके. उन्होंने कमरे की सिटकनी खोल दी. बच्चों ने देखा उन के पिता कमरे में नहीं थे. पापा के बारे में मां से पूछा तो उस ने बच्चों से झूठ बोलते हुए कहा कि तुम्हारे पापा देर रात लौटे थे और छत पर सो गए. वहीं सो रहे होंगे. उस के बाद रेखा समय का इंतजार करने लगी ताकि अपना ड्रामा शुरू करे.

रेखा और रवि ने बलवीर की हत्या को इस तरह अंजाम दिया था कि उस की मौत स्वाभाविक लगे, लेकिन पुलिस तहकीकात ने उन के सारे राज से परदा उठा दिया. उन के 40 लाख के सपने धरे के धरे रह गए. रेखा तो गिरफ्तार कर ली गई, लेकिन रवि कुमार पनिका फरार था. रवि को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई जगह दबिश दी लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका. 72 घंटे के भीतर घटना का खुलासा करने पर आईजी राकेश गुप्ता ने पुलिस टीम को 25 हजार रुपए नकद देने की घोषणा की. कथा लिखे जाने तक रेखा जेल में थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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Hindi Story : मुकेश लोहार ने जिस तरह कानून का सम्मान किया, वह काबिलेतारीफ है. काश! लोग कानून को इसी सम्मान जनक दृष्टि से देखने लगें तो अदालतों की मर्यादा तो बढ़ेगी ही समाज में भी…

यह कहानी उन गुनहगारों के लिए प्रेरणा का आइना है, जिन के दामन गुनाहों की कालिख से ढके पड़े हैं. अदालतें उन जुर्म के ठेकेदारों को वारंट जारी करतेकरते थक जाती हैं, लेकिन वे कानून को ठेंगा दिखा कर चूहों जैसे संकरे बिलों में छिप जाते हैं. ऐसे गुनहगारों के लिए मुकेश लोहार प्रेरणा का स्रोत बना है. मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के नागझिरी इलाके का रहने वाला 45 वर्षीय मुकेश लोहार अपने किसी रिश्तेदार के घर गया हुआ था. वहां उस की अपने उस रिश्तेदार से गालीगलौज और मारपीट हो गई. इस पर रिश्तेदारों ने थाने में उस के खिलाफ मारपीट, गालीगलौज और जान से मारने की धमकी देने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह सन 2014 की बात है.

पुलिस ने मुकेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, बाद में उस की जमानत हो गई. जेल से छूट कर मुकेश बिहार के सीतामढ़ी में आ कर बस गया. वहां उस के कुछ रिश्तेदार रहते थे. मुकदमा ठंडे बस्ते में पड़ गया. उसे लगा कि मुकदमे का निस्तारण हो गया है. मुकेश कर्तव्यपरायण, परिश्रमी और ईमानदार व्यक्ति था. वह मेहनती इतना था कि अपने कर्म से मिट्टी को सोना बना दे. उस ने सीतामढ़ी में ही प्राइवेट नौकरी कर ली. नौकरी के बाद मुकेश ने यहीं की रहने वाली सुधा से विवाह कर अपना घर बसा लिया.

सुधा के साथ आशियाना बसा कर मुकेश बेहद खुश था. नाम के अनुरूप सुधा ने पति के जीवन में अमृत घोल दिया था. जिस दिन से उस के कदम पति के घरआंगन में पड़े थे, मुकेश का जीवन सुधर गया था. नौकरी में तरक्की होती रही. उस के जीवन का बस एक ही लक्ष्य था कमाना, खाना और परिवार की परवरिश करना, बच्चों को ऐसा सांस्कारिक जीवन देना, जो समाज के लिए उदाहरण बने. बाद में मुकेश एक बेटे और एक बेटी का पिता बना. संतान का सुख पा कर वह बेहद खुश था. धीरेधीरे 6 साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

बात 20 सितंबर, 2020 की है. उस दिन रविवार था. छुट्टी का दिन था. दोपहर का समय था, डेढ़ बजा था. मुकेश कमरे में पड़ी चारपाई पर बैठा था. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. वह फोन उठा कर बोला, ‘‘हैलो!’’

‘‘हैलो, क्या मेरी बात मुकेश से हो रही है?’’ दूसरी ओर से आवाज आई.

‘‘जी, मैं मुकेश बोल रहा हूं. आप कौन हैं?’’

‘‘उज्जैन के नागझिरी थाने से एसओ संजय वर्मा बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने अपना परियच दिया. एसओ का नाम सुनते ही मुकेश घबरा गया.

‘‘सर, बताइए?’’ हिम्मत कर के मुकेश ने पूछा.

‘‘मुकेश, कोर्ट ने तुम्हारे खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है. 6 साल पहले नागझिरी थाने में तुम्हारे खिलाफ मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ था.’’

‘‘हां, सर. लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार, वह मुकदमा तो खत्म हो गया था.’’

‘‘ऐसा नहीं है. कानून की अपनी प्रक्रियाएं होती हैं. मुकदमा खत्म नहीं हुआ है. अभी तक अंडर प्रौसेस रहा होगा, इसलिए समय लग गया.’’ एसओ संजय वर्मा ने मुकेश को समझाया और आगे कहा, ‘‘अगर तुम थाने आ कर हाजिर हो जाओ तो मैं कोर्ट से तुम्हारे लिए निवेदन करूंगा कि तुम्हारे साथ रियायत बरती जाए.’’

थानेदार ने मुकेश को समझाया. मुकेश पर उन की बातों का गहरा असर पड़ा. वह समझ गया और उन से वायदा किया, वह नागझिरी थाने जरूर पहुंचेगा. बस उसे थोड़ी सी मोहलत दे दी जाए. इस पर थानेदार वर्मा ने उसे थोड़ा वक्त दे दिया. मुकेश ने थानेदार से तो वादा कर दिया था कि वह समय से थाने में हाजिर हो जाएगा, लेकिन वहां तक कैसे पहुंचे, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी. लौकडाउन का दौर था. बस, ट्रेनें सुचारु रूप से नहीं चल रही थीं. फिर बिहार के सीतामढ़ी से उज्जैन के लिए कोई सीधा साधन भी नहीं था, जो मुकेश वहां आसानी से पहुंचता.

मुकेश परेशान हो रहा था कि वहां तक कैसे पहुंचे. कानून के प्रति अगाध निष्ठा रखने वाले मुकेश ने अपनी बात की लाज और थानेदार का सम्मान करते हुए उज्जैन जाने का फैसला कर लिया. उज्जैन जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो 26 सितंबर, 2020 को कुछ रुपयों का इंतजाम कर के वह अपनी पुरानी साइकिल से सीतामढ़ी से उज्जैन रवाना हो गया. 10 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद मुकेश सीतामढ़ी, लखनऊ होते हुए मध्य प्रदेश के ग्वालियर पहुंचा. वहां पहुंचतेपहुंचते मुकेश का सारा पैसा खानेपीने में खत्म हो गया था. सफर अभी और लंबा था. ऐसे में वह समझ नहीं पा रहा था कि वह परदेस में पैसों का इंतजाम कहां से करे.

मुकेश को जब कुछ नहीं सूझा और परदेस में कहीं से पैसों के इंतजाम की उम्मीद नजर नहीं आई तो भी उस ने हिम्मत नहीं हारी. समझदारी का परिचय देते हुए 3 दिनों तक ग्वालियर के फुटपाथ पर समय बिताए और मजदूरी कर के पैसों का इंतजाम किया. 15वें दिन यानी 10 अक्तूबर को दिन के 11 बजे मुकेश नागझिरी थाने पहुंच गया. थाने पहुंच कर थानेदार संजय वर्मा से मिला और अपना परिचय दे कर परेशानियों के चलते आने में देरी के लिए माफी मांगी. वर्मा उस की बात सुन कर अचंभित रह गए. उन्हें जैसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था, जिस को वह देख रहे थे, वह 1400 किलोमीटर साइकिल चला कर वहां पहुंचा है.

थानेदार संजय को यकीन ही नहीं हो रहा था कि समाज में ऐसे भी लोग हैं, जिन की कानून के प्रति असीम निष्ठा है. मुकेश की कानून के प्रति ईमानदारी देख कर संजय वर्मा भावविभोर हो गए. उन्होंने तत्काल एसपी रवींद्र वर्मा को फोन कर के मुकेश लोहार के बारे में बताया तो वह भी उस की ईमानदारी और फर्ज के प्रति सजगता की बात सुन दंग रह गए. एसपी रवींद्र वर्मा ने आरोपी मुकेश की ईमानदारी से खुश हो कर थानेदार संजय वर्मा को आदेश दिया कि थाना परिसर में उस का फूलमालाओं से स्वागत किया जाए. एसओ वर्मा ने ऐसा ही किया. कप्तान के आदेश पर उन्होंने आरोपी मुकेश को फूलों की माला पहना कर स्वागत किया. थानेदार की आवभगत से मुकेश भावविभोर था.

चूंकि वह कानून का आरोपी था. इसलिए उसे गिरफ्तार कर के शाम को कोर्ट में पेश किया गया. अदालत ने उसे 24 घंटे के लिए जेल भेज दिया. उस के नेक चालचलन, कानून के प्रति निष्ठा और ईमानदारी पर 12 अक्तूबर, 2020 को उसे जेल से जमानत मिल गई. उस के बाद कोर्ट ने उस मुकदमे का निस्तारण कर के खत्म कर दिया. मुकदमा खत्म होने के बाद नागझिरी पुलिस ने अपने साथियों से मिल कर चंदा एकत्र किया और विदाई स्वरूप मुकेश को रुपए दे कर उज्जैन से निजी साधन से सीतामढ़ी भेजा. सीतामढ़ी पहुंच कर मुकेश अपने परिवार के साथ हंसीखुशी जीवन बिता रहा है. काश! मुकेश जैसी अन्य आरोपियों की भावना हो जाए तो हमारे समाज का स्वरूप ही बदल जाए.

—कथा सोशल मीडिया पर आधारित

 

MP Crime : पत्नी ने होटल मैनेजर संग मिलकर पति को गहरी खाई में धकेल दिया

MP Crime :  थोड़े से स्वार्थ में इंसान अपनी मानमर्यादाएं लांघ जाता है. मायाबाई इस बात को समझ पाती तो उस की घरगृहस्थी सलामत रहती और शायद पति की हत्या के आरोप में उसे जेल भी नहीं जाना पड़ता…

9 मार्च, 2020 की शाम की बात है. पचमढ़ी के जकात नाका पर रहने वाली लगभग 35 वर्षीय मायाबाई थाना पचमढ़ी पहुंची. पचमढ़ी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है. मायाबाई ने टीआई महेश तांडेकर को अपने पति उत्तम श्रीवास के लापता होने की सूचना दी. मायाबाई ने उन्हें बताया कि उस का पति उत्तम छावनी में दैनिक वेतन पर नौकरी करता है. रोज की तरह वह कल भी अपने काम पर गया था. लेकिन फिर लौट कर नहीं आया. मायाबाई ने बताया कि पति को शराब की लत थी. कई बार वह शराब के चक्कर में दोस्तों के घर पर सो जाता था, इसलिए कल घर नहीं आने पर उस ने गंभीरता से नहीं लिया.

लेकिन जब आज सुबह भी वह घर नहीं आया और न ही काम पर गया तो उसे चिंता हुई. मायाबाई ने बताया कि पति का मोबाइल भी बंद आ रहा है. सब जगह ढूंढने के बाद भी जब वह नहीं मिला तो उस की गुमशुदगी दर्ज करवाने यहां आई हूं. टीआई महेश तांडेकर को घटना का ब्यौरा सुना रही मायाबाई के हावभाव मामले की गंभीरता से मेल खाते नजर नहीं आ रहे थे. क्योंकि कोई भी औरत इतनी सफाई से अपने पति के लापता होने की कहानी बिंदुवार तरीके से बखान नहीं कर सकती,  जैसे मायाबाई कर रही थी.

लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने अपने मन की बात मायाबाई पर जाहिर नहीं होने दी और उस की रिपोर्ट पर मामला दर्ज करते हुए इस की जानकारी एसपी संतोष कुमार गौर, एडीशनल एसपी घनश्याम मालवीय एवं एसडीपीओ शिवेंदु जोशी को दे दी. उच्चाधिकारियों के निर्देश पर टीआई महेश तांडेकर ने केस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने उत्तम श्रीवास के संगीसाथियों के अलावा नाका मोहल्ले में रहने वाले उस के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में उत्तम के शराबी होने की बात सामने आने के अलावा जो महत्त्वपूर्ण बात सामने आई, वह यह थी कि उत्तम अकसर पचमढ़ी स्थित होटल फाइव आची के मैनेजर कमलेश के साथ बैठ कर शराब पीता था.

जानकारी चौंका देने वाली थी, क्योंकि एक होटल मैनेजर कमलेश दैनिक वेतनभोगी उत्तम के साथ भला दोस्ती क्यों करेगा. दोस्ती की यह बात आसानी से गले उतरने वाली नहीं थी. इसलिए टीआई ने अपना पूरा ध्यान इस अजूबी दोस्ती की जड़ का पता लगाने में झोंक दिया. इस से जल्द ही यह बात समने आ गई कि लापता उत्तम और होटल मैनेजर कमलेश की दोस्ती के पीछे की मूल वजह उत्तम की पत्नी मायाबाई की खूबसूरती और दूसरे मायाबाई का उस होटल में काम करना था, जिस में कमलेश मैनेजर था.

यह जानकारी सामने आने के बाद टीआई तांडेकर समझ गए कि उत्तम के लापता होने की कहानी में कहीं न कहीं कमलेश का हाथ हो सकता है. इसलिए उन्होंने उत्तम के अंतिम बार देखे जाने की थ्यौरी पर काम शुरू कर दिया, जिस में पता चला कि 8 मार्च को जिस रोज उत्तम लापता हुआ था उस रोज वह कमलेश और कमलेश के एक दोस्त नीलेश के साथ देखा गया था. यह महत्त्वपूर्ण सूचना थी, जिस के बाद टीआई ने जांच परिणाम से उच्चाधिकारियों को अवगत करा कर संदिग्ध कमलेश, नीलेश और मायाबाई के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का बारीकी से अध्ययन किया.

इस से पता चला कि 8 मार्च को कमलेश ने सुबहसुबह उत्तम और नीलेश को कई बार फोन किए किए. जिस के बाद इन तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन एक साथ पिपरिया रोड पर पाई गई थी. इस के कुछ समय बाद उत्तम का फोन बंद हो गया था, जबकि इस के बाद उसी रोज कमलेश ने उत्तम का मोबाइल बंद होने के बाद मायाबाई से कई बार फोन पर लंबीलंबी बातें की थीं. इतना ही नहीं, जब दूसरे दिन मायाबाई पचमढ़ी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने आई थी, तो उस के पहले उस की कमलेश के साथ लंबी बात हुई थी. थाने से वापस लौटने के ठीक बाद भी उस ने कमलेश से बात की थी.

इतना सब जानने के बाद टीआई महेश तांडेकर समझ गए कि उत्तम के लापता होने का राज उस की पत्नी के पेट में छिपा है. इसलिए उन्होंने अपनी टीम के साथ पहले तो इस राज की गहराई तक पड़ताल की, उस के बाद जब उन्हें भरोसा हो गया कि उन की जांच सही दिशा में है, तब उन्होंने कमलेश, नीलेश और मायाबाई को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. कहना नहीं होगा कि जब पचमढ़ी थाने में तीनों का एकदूसरे से सामना हुआ तो उन के चेहरों की रंगत उड़ गई. मामले में तीनों की संलिप्तता का पूरा भरोसा हो जाने पर टीआई ने उन से पहले अलगअलग फिर एक साथ पूछताछ की, जिस से कुछ ही देर में तीनों टूट गए. कमलेश ने स्वीकार कर लिया कि उस ने मायाबाई के कहने पर अपने दोस्त नीलेश के साथ मिल कर उत्तम की हत्या कर दी है.

इस के बाद पुलिस ने 14 अप्रैल को तीनों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर उन की निशानदेही पर देनवा की करीब 200 मीटर गहरी घाटी से उत्तम का शव बरामद कर लिया. चूंकि शव घाटी में एक महीने से ज्यादा अवधि तक पड़ा रहा, इसलिए सड़ चुका था. औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उत्तम की हत्या के पीछे की पूरी कहानी इस प्रकार से सामने आई—

कमलेश और नीलेश दोनों मूलरूप से छिंदवाड़ा जिले के रहने वाले थे. दोनों काम की तलाश में कई साल पहले पचमढ़ी आ कर यहां के होटलों में ग्राहक लाने के लिए लपका (कमीशन एजेंट) का काम करने लगे. इस काम में कमलेश नीलेश से अधिक माहिर था, जिस के चलते कई होटलों के मालिकों से उस के अच्छे संबंध बन गए थे. यही कारण था कि कुछ साल पहले जब यहां होटल फाइव आर्ची के मालिक को अपने होटल के लिए मैनेजर की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने लपका का काम करने वाले कमलेश को अपने होटल में मैनेजर की नौकरी पर रख लिया. जिस के बाद नीलेश कमलेश के साथ अपनी दोस्ती निभाने के लिए अधिक से अधिक पर्यटकों को लपक कर उस के होटल मे ले कर आने लगा.

कमलेश आशिकमिमाज आदमी था. जिस के चलते उस की नजर अपने होटल में काम करने वाली मायाबाई पर थी. लगभग 30-32 साल की मायाबाई न केवल खूबसूरत थी, बल्कि उस की काया कुछ ऐसी थी कि उसे देख कर यह भ्रम होता था मानो खजुराहो के मंदिर से उतर कर कोई अप्सरा मायाबाई का रूप रख कर सामने आ गई हो. मायाबाई का पति उत्तम भी छावनी में दैनिक वेतनभोगी के रूप में नौकरी करता था. लेकिन उसे शराब पीने की बुरी लत थी, जिस के चलते मायाबाई अपनी कमाई से किसी तरह घर चला रही थी.

यह बात कमलेष जानता था, इसलिए वह मायाबाई को अपने जाल में फंसाने के लिए उस के सामने आर्थिक लोभ का जाल बुनने लगा. मायाबाई को पैसों की जरूरत भी थी, इसलिए कमलेश की मेहरबानी के चलते वह उस के जाल में फंसती चली गई. एक रोज जब मायाबाई होटल के एक सूने कमरे में काम कर रही थी, तब पीछे से पहुंच कर कमलेश ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. मायाबाई कमलेश के अहसानों तले दबी थी, इसलिए उस ने कमलेश की पहल का विरोध करने के बजाए उस के सामने खुशीखुशी समर्पण कर दिया.

इस के बाद तो कमलेश रोजरोज उस के साथ संबंध बनाने के मौके खोजने लगा. होटल के सूने पड़े कमरे रोज कमलेश और मायाबाई की गर्म सांसों से भरने लगे. कमलेश ने मायाबाई के साथ संबंध बना लिया है, यह बात नीलेश को पता थी. इसलिए कुछ दिनों में ही यह बात धीरेधीरे दूसरे लपकों को भी पता चल गई. फिर एक से दूसरे कान में होते हुए यह खबर एक दिन उत्तम तक भी पहुंच गई. उत्तम एक नंबर का शराबी है, यह बात कमलेश जानता था सो उस ने उत्तम को अपने सांचे में ढालने के लिए उस से दोस्ती कर ली और उसे रोज शराब की पार्टी में शामिल करने लगा.

उत्तम शराब देख कर सारी बातें भूल कर कमलेश की पार्टी में शामिल तो होता, लेकिन जब सुबह उस का नशा उतरता तो वह अपनी पत्नी मायाबाई को कमलेश का नाम ले कर ताने देने लगता. जब दोनों में तकरार बढ़ जाती तो वह कभीकभी मायाबाई की पिटाई भी कर देता था. पति से मार खा कर मायाबाई होटल पहुंचती तो कमलेश उस की चोटों के दर्द को अपने होठों से खींचने के बहाने फिर एक बार वासना की नींद में साथ उतार लेता. लेकिन घटना से कोई एक महीने पहले से उत्तम मायाबाई पर कमलेश के होटल से नौकरी छोड़ने का दबाव बनाने लगा.

वास्तव में कमलेश और मायाबाई दोनों ही जानते थे कि एक बार मायाबाई ने होटल की नौकरी छोड़ दी तो फिर उन दोनों के अकेले में मिलने के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे. दूसरे मायाबाई भी अब तक कमलेश की दीवानी हो चुकी थी, सो पति की रोजरोज की पिटाई से तंग आ कर उस ने कमलेश के सामने पति की हत्या करने का प्रस्ताव रखा, जिसे कमलेश ने स्वीकार कर लिया. लेकिन उत्तम की हत्या करना कमलेश के अकेले के वश में नहीं था, इसलिए उस ने अपने दोस्त नीलेश से इस काम में मदद मांगी. लेकिन नीलेश ने मना कर दिया.

इस के पीछे वजह यह थी कि नीलेश कई साल से कमलेश को दोस्ती का वास्ता दे कर उसे मायाबाई के साथ एक बार अकेले में मिलवा देने के लिए कह रहा था. लेकिन कमलेश इस पर ध्यान नहीं दे रहा था. एकदो बार नीलेश ने मायाबाई पर डोरे डालने की कोशिश की, पर मायाबाई ने झिड़क दिया था. नीलेश के मना करने पर कमलेश ने उस से बारबार मदद करने को कहा तो नीलेश इस शर्त पर राजी हो गया कि उत्तम की हत्या के बाद कमलेश उस के संबंध भी मायाबाई से बनवा देगा.

मायाबाई भी उत्तम की हत्या के बदले में केवल एक बार नीलेश को खुश करने को राजी हो गई. कमलेश ने बताया कि घटना वाले दिन से एक रोज पहले उत्तम ने मायाबाई के साथ नौकरी छोड़ने को ले कर मारपीट की, जिस से मायाबाई ने कमलेश से साफ कह दिया कि या तो वह उसे उत्तम से छुटकारा दिला दे या फिर आगे कभी उस से मिलने की बात भूल जाए. कमलेश ने तय कर लिया कि अब वह उत्तम का काम तमाम कर के रहेगा. लिहाजा वह 8 मार्च, 2020 को नीलेश को ले कर छावनी काम पर जा रहे उत्तम से मिला और उसे साथ चल कर शराब पीने को कहा.

उत्तम को शराब के आगे कुछ सूझता नहीं था, सो वह उन दोनों के साथ हो गया. वह उसे देवना घाटी के पास ले कर पहुंचे. जहां उन्होंने पहले तो उसे जी भर कर शराब पिलाई फिर नशे में धुत उत्तम को मौका देख कर 200 मीटर गहरी घाटी में धक्का दे दिया और वापस अपने काम पर आ गए. गहरी खाई में गिरने से उस की मौत हो गई. घटना को एक महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद कमलेश को विश्वास हो गया कि पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन टीआई महेश तांडेकर ने इस ब्लाइंड मर्डर के रहस्य पर से परदा उठा ही दिया.

MP News : फेरे लेने से पहले प्रेमी ने कर दी दुल्हन की हत्या

MP News :एक शादी समारोह में सोनू से मुलाकात कर के राम यादव बहुत खुश हुआ. बाद में वह अपने से उम्र में 7 साल बड़ी सोनू से दिली मोहब्बत करने लगा. लेकिन जब उसे पता चला कि सोनू की शादी किसी और के साथ होने जा रही है तो शादी वाले दिन उस ने ऐसा कदम उठाया कि…

घटना 5 जुलाई, 2020 की है. मध्य प्रदेश का शाजापुर शहर जब गहरी नींद में सो रहा था, शहर के सदर बाजार क्षेत्र में रहने वाले एक प्रतिष्ठित व्यापारी का परिवार बड़े जोरशोर से अपनी बेटी की शादी की तैयारी में जुटा था. इस परिवार की खूबसूरत और सुशील बेटी सोनू परिवार की शान मानी जाती थी. सोनू शहर के ही सरस्वती स्कूल में उपप्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थी तथा अपनी योग्यता और व्यवहार के कारण स्कूल के सभी विद्यार्थियों की चहेती भी. सोनू की शादी उज्जैन जिले के नागदा के रहने वाले प्रतिष्ठित बागरेचा परिवार के बेटे के साथ होने जा रही थी. दूल्हे के मामा जावरा सर्राफा बाजार में रहते थे.

मामा चाहते थे कि भांजे की शादी जावरा से हो, इसलिए दोनों परिवारों ने एक मत हो कर 5 जुलाई को जावरा के कोठारी रिसोर्ट से विवाह करने की तैयारी कर ली. इसलिए सोनू का परिवार उस दिन सुबह जल्दी ही शाजापुर से जावरा के लिए निकलने वाला था. ऐसे में जिस लड़की की शादी हो, उसे नींद कैसे आ सकती है. इसलिए सोनू भी परिवार वालों के साथ जाग रही थी. सोनू के अलावा रतलाम के दीनदयाल नगर इलाके में रहने वाला एक युवक राम यादव भी जाग रहा था. वैसे राम इस परिवार का सदस्य नहीं था लेकिन राम के इस तरह जागने का कारण सोनू की शादी से जरूर जुड़ा था.

इसलिए सुबह को जिस वक्त सोनू अपने परिवार के साथ जावरा को रवाना हुई, लगभग उसी समय राम यादव भी अपने एक दोस्त पवन पांचाल के साथ मोटरसाइकल पर सवार हो कर जावरा के लिए निकल पड़ा. दोनों एक ही शहर के लिए रवाना हुए थे, मगर उन की मंजिलें अलगअलग थीं. सोनू की मंजिल उस का होने वाला पति था तो राम यादव की मंजिल सोनू थी. सुबह कोई साढ़े 8 बजे सोनू अपने परिवार के साथ जावरा के कोठारी रिसोर्ट पहुंच गई. लौकडाउन के कारण शादी में ज्यादा मेहमानों को शामिल करने की मनाही होने के कारण दोनों पक्षों के गिनेचुने खास मेहमान ही शामिल होने के लिए आए थे. इसलिए उस रिसोर्ट में बहुत ज्यादा चहलपहल नहीं थी.

सुबह के 9 बजे के आसपास सोनू अपनी चचेरी बहन के साथ शृंगार करवाने के लिए पहले से बुक किए ब्यूटीपार्लर जाने को तैयार हुई तो उस के भाई ने दोनों बहनों को कार में बैठा कर आंटिक चौराहे पर स्थित ब्यूटीपार्लर के सामने सड़क पर छोड़ दिया. इधर रतलाम से जावरा पहुंचा राम यादव पिछले 2 घंटे से पागलों की तरह सड़कों पर सोनू को तलाश रहा था. संयोग से जैसे ही चौराहे पर सोनू अपनी बहन के साथ कार से उतरी वैसे ही उस पर राम की नजर पड़ गई. लेकिन जब तक वह उस के पास पहुंचता सोनू बिल्डिंग में दाखिल हो गई. बिल्डिंग के अंदर ब्यूटीपार्लर देख कर राम समझ गया कि सोनू पार्लर में आई होगी, इसलिए उस ने दोस्त पवन के मोबाइल से सोनू के मोबाइल पर फोन लगाया.

सोनू मेकअप सीट पर बैठ चुकी थी, इसलिए उस का फोन साथ आई चचेरी बहन ने रिसीव किया. जिस से राम को पता चल गया कि सोनू पार्लर में ही है. इसलिए फोन काटने के बाद वह चारों दिशाओं का जायजा ले कर पार्लर में दाखिल हो गया. मेकअप सीट पर बैठी सोनू ने सामने लगे आइने में दरवाजे से राम को अंदर आता देखा तो उस का दिल धड़क उठा. लेकिन इस से पहले कि वह कुछ कर पाती राम ने तेजी से पास आ कर सोनू का मेकअप कर रही लड़की को जोर से धक्का दे कर एक तरफ गिरा दिया. फिर झटके के साथ जेब से बड़ा सा चाकू निकाल कर सोनू की गरदन रेत दी और वहां से फरार हो गया.

यह सूचना वरवधू के घर वालों को मिली तो वे सदमे में आ गए. घटनास्थल पर तड़पती सोनू को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचने से पहले उस की मृत्यु हो गई. कुछ ही घंटे बाद फेरे लेने जा रही दुलहन की हत्या की खबर फैलते ही जावरा में सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी बी.डी. जोशी पुलिस टीम के साथ पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद सीएसपी पी.एस. राणावत भी मौके पर पहुंच गए. सोनू के साथ पार्लर गई उस की चचेरी बहन से पूछताछ की गई, लेकिन उस का कहना था कि वह हत्यारे को नहीं जानती.

उस ने बताया कि इस घटना से 2 मिनट पहले ही सोनू के मोबाइल पर एक फोन आया था. वह किस का था, यह पता नहीं. थानाप्रभारी ने वह नंबर हासिल कर लिया. वह समझ रहे थे कि हत्यारे तक पहुंचने के लिए वह नंबर पहली सीढ़ी हो सकता है. इस बीच घटना की खबर पा कर एसपी गौरव तिवारी तथा आईजी (उज्जैन) राकेश गुप्ता भी जावरा पहुंच गए. उन के निर्देश पर पुलिस टीम ने चारों तरफ नाकेबंदी कर जावरा से बाहर जाने वाले रास्तों पर संदिग्ध मोटरसाइकिल की तलाश की. इस जांच में पुलिस को एक बाइक एमपी43डीटी 8979 पर सवार 2 युवक राजस्थान की तरफ तेजी से भागते दिखे. लेकिन वह पुलिस के हाथ न लग सके.

सोनू के साथ घटना जावरा में हुई जरूर थी, लेकिन वह जावरा की रहने वाली नहीं थी, इसलिए पुलिस को शक था कि उस का हत्यारा उस के पीछे शाजापुर या किसी अन्य शहर से आया होगा. इसलिए जब बाइक नंबर के आधार पर रतलाम में बाइक की तलाश की गई तो एक सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि इस बाइक पर सवार 2 युवक सुबह करीब 6 बजे रतलाम से जावरा की तरफ निकले थे. इसलिए सीसीटीवी के आधार पर इस बात की संभावना नजर आई कि वह युवक रतलाम के ही होंगे. लिहाजा पुलिस ने सीसीटीवी से ले कर दोनों युवकों के फोटो पहचान के लिए सभी थानों में भिजवा दिए. इस प्रयास में दीनदयाल नगर थाने में तैनात एक आरक्षक ने फुटेज के फोटो देखते ही दोनों की पहचान राम यादव और पवन पांचाल के रूप में कर दी, जो जाटों का वास इलाके के रहने वाले थे.

चूंकि राम यादव पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा की जिला कार्यकारिणी में पदाधिकारी था, जिस से पुलिस ने उसे आसानी से पहचान लिया. इस पर पुलिस ने राजस्थान के रास्ते पर नाकाबंदी कर दी. क्योंकि सीएसपी राणावत को भरोसा था कि इन में से पवन पांचाल वापस रतलाम लौट सकता है क्योंकि ब्यूटीपार्लर में लगे सीसीटीवी कैमरे में केवल राम यादव पार्लर में जाते और निकल कर भागते दिखाई दिया था. इस से साफ था कि हत्या राम यादव ने की है जबकि पवन उस की मदद करने की गरज से साथ गया था. सीएसपी राणावत का सोचना एकदम सही साबित हुआ. पवन जल्द ही उस समय पुलिस की गिरफ्त में आ गया, जब वह राजस्थान से वापस लौट रहा था.

पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बता दिया कि सोनू की हत्या राम यादव ने की थी तथा वह उसे बांसवाड़ा डिपो पर छोड़ कर वापस आ रहा था. राम को पवन के पकड़े जाने की खबर नहीं थी, इसलिए पुलिस ने पवन से उसे फोन करवाया. राम यादव ने उसे बताया कि कि वह सावरियाजी में है. यह पता चलते ही पुलिस ने एक टीम तुरंत सावरियाजी भेज दी. वहां से पुलिस ने राम को भी गिरफ्तार कर लिया. एक दिन में ही सोनू के हत्यारे पुलिस की गिरफ्त में आ गए थे, जिन से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त बड़ा चाकू और राम के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ की तो सोनू की निर्मम हत्या के पीछे की कहानी इस प्रकार से सामने आई.

शाजापुर के व्यापारी परिवार की बेटी सोनू गुणों के संग रूप की भी खान थी. नातेरिश्तेदार, सहेलियां सभी उसे चाहते थे. सोनू के लिए उस के पिता ने काफी सोचसमझ कर वर का चुनाव कर सन 2010 में उस की शादी उज्जैन निवासी सजातीय युवक से कर दी. लेकिन पति के साथ सोनू की पटरी नहीं बैठने के कारण दोनों में विवाद होने लगा, जो इस हद तक बढ़ा कि शादी के 4 साल बाद ही उस का पति से तलाक हो गया. तलाक के बाद सोनू वापस मायके में आ कर रहने लगी. उच्चशिक्षित तो वह थी ही, इसलिए उस ने शाजापुर आ कर स्थानीय सरस्वती विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी कर ली, जहां वह जल्द ही अपनी योग्यता के आधार पर वह उप प्राचार्य के पद तक पहुंच गई.

सोनू की हत्या की कहानी की भूमिका 3 साल पहले सन 2017 में उस वक्त शुरू हुई, जब वह अपने एक रिश्तेदार के घर शादी में शामिल होने के लिए रतलाम गई. वह रिश्तेदार रतलाम शहर के दीनदयाल नगर में रहते थे. उन के पड़ोस में ही राम यादव रहता था. ज्वैलर्स की दुकान पर काम करने वाला राम भाजयुमो का नेता था. इस शादी में राम यादव भी शामिल हुआ था. यहीं पर राम यादव की सोनू से पहली मुलाकात हुई. राम सोनू से उम्र में 7 साल छोटा था फिर भी सोनू के रूप ने उस पर ऐसा जादू डाला कि वह पूरी शादी में उस के आगेपीछे घूमता रहा. इस दौरान औपचारिकतावश दोनों में बातचीत हुई तो राम ने सोनू से उस का मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से शादी के बाद दोनों की अकसर सोशल मीडिया पर बातचीत होेने लगी.

सोनू खुले विचारों की थी ही, इसलिए उसे समाज के इस राजनैतिक युवक की बातों में बहुत कुछ सीखने को मिलने लगा. वह भी राम से अकसर चैटिंग करने लगी. लेकिन उसे नहीं मालूम था कि राम के मन में उसे ले कर क्या चल रहा है. वह खुद राम से उम्र में काफी बड़ी थी, इसलिए वह सोच भी नहीं सकती थी कि राम उस में अपनी प्रेमिका तलाश रहा है. बहरहाल, इस सब के बीच राम के साथ सोनू की दोस्ती काफी गहरी होती गई तो राम ने एक दिन उस के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सोनू समझदार थी. वह जानती थी कि ऐसे दीवाने अचानक मना करने से कुछ बवाल खड़ा कर सकते हैं, इसलिए उस ने समझदारी दिखाते हुए राम को टालते हुए कहा कि उस ने कभी इस बारे में नहीं सोचा. सोचने का समय दो, फिर अपना निर्णय बता सकूंगी.

राम को लगा कि टीचर होने के नाते सोनू प्यार सीधे स्वीकार नहीं कर पा रही है, कुछ दिन बाद वह राजी हो जाएगी. इसलिए वह लगातार उस से फोन कर के या फेसबुक वाट्सऐप पर चैट करते हुए प्रणय निवेदन करता रहा. दोनों की अकसर फोन पर बातें भी होती थीं. इसलिए जून के अंतिम दिनों में फोन पर बात करते हुए जब राम ने एक बार फिर सोनू के सामने शादी कर प्रस्ताव रखा तो सोनू ने उस से कहा, ‘‘राम, यह संभव नहीं है. एक तो तुम्हारी उम्र मुझ से काफी कम है. दूसरे मैं एक बार तलाक का दंश झेल चुकी हूं, इसलिए अब मैं वहीं शादी करने जा रही हूं, जहां मेरे पिता ने कहा है.’’

‘‘क्याऽऽ तुम शादी कर रही हो?’’ राम ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘हां, 5 जुलाई को मेरी शादी है और घर वालों ने जावरा में एक रिसोर्ट भी बुक करा दिया है.’’

‘‘कहां, किस से.’’ राम ने पूछा तो मन की साफ सोनू ने उसे सब कुछ बता दिया. यह सुन कर राम गुस्से में पागल हो गया तथा उस ने सोनू को यह शादी न करने की धमकी दी. लेकिन सोनू ने उस की नहीं सुनी और आगे से उस का फोन अटैंड करना भी  बंद कर दिया.

राम सोनू को ले कर न जाने क्याक्या सपने देख चुका था. सोनू की शादी की खबर ने उस के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. इस से उसे गुस्सा आ गया. उस ने उसी समय फैसला ले लिया कि यदि सोनू उस की नहीं हुई तो वह किसी और की नहीं हो सकती. यह बात राम ने अपने दोस्त पवन पांचाल को बताई तो वह राम का साथ देने को तैयार हो गया. उस ने 5 जुलाई को ही सोनू की हत्या करने की ठान ली. इस के बाद 5 जुलाई को उस ने दोस्त पवन के साथ जावरा पहुंच कर उस की हत्या कर दी.

इधर सोनू के परिवार वालों का कहना है कि उन की बेटी का किसी से कोई संबंध नहीं था. आरोपी अपने अपराध को छिपाने के लिए उन की बेटी पर गलत आरोप लगा रहा है. पुलिस ने आरोपी राम यादव और पवन पांचाल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

 

Crime Story : बीवी पर था शक पर ले ली 2 साल की बेटी की जान

Crime Story : सुदर्शन पत्नी प्रीति पर शक ही नहीं करता था बल्कि वह अपनी बेटी देविका को भी नाजायज समझता था. इसी के चलते एक दिन उस ने अपनी 2 साल की बेटी की हत्या कर दी और फिर…

कहा जाता है कि शक का कोई इलाज नहीं है. पतिपत्नी के संबंध विश्वास की बुनियाद पर ही कायम रहते हैं. यदि इन संबंधों से भरोसा उठा कर बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी. मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है.

दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी. दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था. 17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है.

उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे. जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है. चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था. लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे.

देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई. लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी. तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो चुकी थी. उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया. पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी. कुएं से मिली लाश  26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे.

खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था. शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी. अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया. पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया. अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी. शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी. जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई. देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे. एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी. बेटी को समझता था नाजायज 16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था. प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी. सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया.

सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई. सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे. इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.  6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया. सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

MP News : जज के बेटे को सांप का जहर देकर मरवाया

MP News : एनजीओ चलाने वाली संध्या सिंह ने अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश (एडीजे) महेंद्र कुमार त्रिपाठी को पूरी तरह अपने जाल में फांस लिया था. जब उन्होंने उस से किनारा करने की कोशिश की तो संध्या ने तंत्रमंत्र के नाम पर ऐसी खूनी साजिश रची कि जज साहब और उन के बड़े बेटे को जान से हाथ धोना पड़ा. फिर…

मध्य प्रदेश का जिला बैतूल. बैतूल का जिला मुख्यालय कालापाठा. 27 जुलाई, 2020 को कालापाठा स्थित जज आवासीय  कालोनी एक घर से रोनेधोने की चीखोपुकार से थर्रा उठी. रुदन ऐसा कि किसी का भी दिल दहल जाए. रोने की आवाजें बैतूल के जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) महेंद्र कुमार त्रिपाठी के घर से आ रही थीं. लोग वहां पहुंचे तो पता चला महेंद्र त्रिपाठी और उन के जवान बेटे अभियान राज त्रिपाठी की अचानक मृत्यु हो गई थी. खबर सनसनीखेज थी. जरा सी देर कालोनी में रहने वाले तमाम जज और मजिस्ट्रैट वहां आ गए. सूचना मिली तो पुलिस अधिकारियों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी जज साहब के घर पहुंच गए. यह खबर बड़ी तेजी से पूरे बैतूल में फैल गई.

जज साहब के परिवार में कुल 4 सदस्य थे. वह और उन की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और 2 बेटे अभियान राज त्रिपाठी व आशीष राज त्रिपाठी. 4 में से अब 2 बचे थे पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटा बेटा आशीष राज. पत्नी और बेटा महेंद्र त्रिपाठी और अभियान राज त्रिपाठी के शवों को देख बिलखबिलख कर रो रहे थे. महेंद्र त्रिपाठी व उन के बड़े बेटे के कफन में लिपटे शव देख कर उन की पत्नी की समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उन की खुशियों को कौन सा ग्रहण लग गया कि देखते ही देखते हंसतीखेलती जिंदगी मातम में बदल गई.

घटनाक्रम की शुरुआत 20 जुलाई, 2020 को तब हुई थी, जब रात करीब साढ़े 10 बजे पूरे त्रिपाठी परिवार ने डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खाया था. बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की पत्नी अपने मायके इंदौर में थी. खाना खाने के कुछ देर बाद छोटे बेटे आशीष को उल्टियां होने लगीं. थोड़ी देर बाद महेंद्र त्रिपाठी व उन के बड़़े बेटे अभियान के पेट में भी दर्द होने लगा. आशीष को 2-3 बार उल्टियां हुई. उस के बाद पिता व बड़े भाई के पेट में भी दर्द बढ़ता गया तो पूरा परिवार चिंता में डूब गया. चिंता इस बात की थी कि कहीं खाने की वजह से कोई फूड पौइजनिंग हो गई हो. मिसेज त्रिपाठी ने कुल 6 चपाती बनाई थीं, जिस में से एक रोटी आशीष ने खाई थी. बाकी 5 चपातियां आधीआधी महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे ने खा ली थीं.

मिसेज त्रिपाठी ने दाल के साथ सुबह के रखे बासी चावल खाए थे. उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई थी. आमतौर पर घर में जब किसी को खाने के कारण फूड पौइजनिंग होती है या पेट दर्द होता है, तो लोग घरेलू उपचार पर ध्यान देते हैं. मिसेज त्रिपाठी ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने पति और दोनों बेटों को गर्म पानी में हींग और नींबू घोल कर दे दिया. इस से छोटे बेटे आशीष की तबीयत में सुधार हुआ और उस की उल्टियां बंद हो गईं. लेकिन जज साहब और उन के बड़े बेटे का दर्द कुछ देर के लिए कम जरूर हुआ, मगर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ.

चूंकि शाम के खाने में इस्तेमाल सब्जी व दाल सुबह की बनी थी, जिन क ा इस्तेमाल सुबह के खाने में भी हुआ था. इसलिए उन से किसी तरह की फूड पौइजनिंग की संभावना कम ही थी, वैसे भी इन का इस्तेमाल शाम के खाने में मिसेज त्रिपाठी ने भी किया था और वे पूरी तरह ठीक थीं. लिहाजा सब्जी और दाल से कोई बीमारी हुई होगी, इस की आशंका कम ही थी. मिसेज त्रिपाठी ने रोटी ताजी बनाई थीं. घर में जितने भी लोग बीमारी हुए थे उन्होंने रोटी ही खाई थीं. रोटियां खाने के बाद ही सब की तबियत खराब हुई थी. रात के करीब डेढ़ बजे जज साहब और बड़े बेटे की तबियत जब ज्यादा खराब होने लगी तो मिसेज त्रिपाठी ने डाक्टर को फोन कर के घर पर बुला लिया.

21 जुलाई की अलसुबह करीब 3 बजे डाक्टर घर आया और उस ने त्रिपाठी व उन के बेटों को देखा. खाने के बारे में पूछा तो मिसेज त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने क्या खाया था. आशंका इसी बात की थी कि खाने से फूड पौइजनिंग हुई होगी. डाक्टर ने तीनों को दवा मिला कर लिक्विड पीने को दिया और उल्टी करवाई, जिस के बाद उन्हें दवाइयां दीं. बिगड़ती गई दोनों की हालत अगली दोपहर तक आशीष तो पूरी तरह ठीक हो गया. लेकिन जज साहब व उन के बड़े बेटे की तबियत वैसी ही बनी रही. इसी तरह 21 व 22 जुलाई का पूरा दिन व रात गुजर गए, सब का घर में ही इलाज चलता रहा. लेकिन 23 जुलाई को जज साहब व उन के बड़े बेटे की तबियत कुछ जयादा ही खराब होने लगी.

जिला चिकित्सालय के डा. आनंद मालवीय को घर बुला कर दिखाया तो उन्होंने उन दोनों को पाढर जिला अस्पताल, बैतूल में भरती करवा दिया. दोनों को ही आईसीयू में रखा गया. लेकिन इस के बावजूद जज साहब व उनके बेटे की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. वैसे भी सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों की इतनी कमी होती है कि गंभीर बीमारियों को काबू में करने के लिए कभीकभी बहुत समस्या हो जाती है. पाढर जिला अस्पताल में भी यही हालत थी. जज साहब और उन के बड़े बेटे की स्थिति जिस तरह तेजी से बिगड़ रही थी, उसे देखते हुए डाक्टरों ने परिवार वालों को सलाह दी कि दोनों को नागपुर के प्रसिद्ध एलेक्सिस अस्पताल में भरती करवा दिया जाए.

घर वालों ने डाक्टरों की बात मान कर 25 जुलाई को महेंद्र त्रिपाठी व अभियान को एंबुलेंस से ले जा कर नागपुर के एलेक्सिस अस्पताल में भरती करवा दिया, जहां दोनों के सभी तरह के टेस्ट शुरू हो गए. बापबेटे को गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया. लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी. 25 जुलाई की शाम को पहले अभियान की मौत हो गई. फिर 26 जुलाई को सुबह करीब साढ़े 4 बजे महेंद्र त्रिपाठी की भी मौत हो गई. बापबेटे की एक साथ मौत त्रिपाठी परिवार पर वज्रपात था. चूंकि मामला एक जज और उन के बेटे की मौत से जुड़ा था. इसलिए अस्पताल की तरफ से एमएलसी बना कर नागपुर के मानकापुर पुलिस थाने को भेज दी गई. पुलिस ने अस्पताल में पहुंच कर आशीष त्रिपाठी के बयान दर्ज किए और आवश्यक काररवाई के बाद उन के इलाज के सभी दस्तावेज अपने कब्जे में ले लिए.

दोनों मृतक पितापुत्र का इंदिरा गांधी मैडिकल कालेज नागपुर में विधिवत पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक बोर्ड द्वारा किया गया. आवश्यक जांच के लिए बैतूल पुलिस के अनुरोध पर डाक्टरों ने विसरा तथा सिर के बाल और हाथ के नाखून सुरक्षित कर लिए. नागपुर पुलिस ने यह प्रकरण अपराध संख्या शून्य पर अकाल मृत्यु की धारा 174 में दर्ज कर लिया . साथ ही दोनों की मौत से जुड़ी पुलिस डायरी तथा अन्य साक्ष्य व सैंपल बैतूल पुलिस को सौंप दिए. क्योंकि अपराध का न्यायिक क्षेत्र मध्य प्रदेश का बैतूल ही था. दूसरी तरफ महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के शव का पोस्टमार्टम करवा कर जिला प्रशासन ने शव परिजनों के सुपुर्द कर दिए. परिवार वाले शवों को पहले बैतूल में उन के सरकारी आवास पर ले गए, जहां उन की पहचान वालों ने शव के अंतिम दर्शन किए.

इस के बाद परिवार वाले बापबेटे के शव को अंतिम संस्कार के लिए कटनी में उन के पैतृक गांव ले गए, जहां 26 जुलाई की शाम को उन का अंतिम संस्कार कर कर दिया गया. लेकिन बापबेटे की मौत में सब से बड़ा पेंच ये था कि आखिर खाने में ऐसा क्या था कि जिसे खाने के बाद उन की तबियत खराब हो गई. चूंकि मामला एक जज और उन के बेटे की संदिग्ध परिस्थिति में हुई मौत से जुड़ा था, इसलिए बैतूल के एसपी सिमाला प्रसाद ने अपने मातहतों को बुला कर निर्देश दिया कि जांचपड़ताल और मामले की तह में जाने के लिए किसी तरह की कोताही न बरती जाए.

27 जुलाई को इस मामले में जिलाधिकारी बैतूल व जिला न्यायाधीश के आदेश पर एसपी सिमाला प्रसाद ने एक एसआईटी का गठन कर जांच का काम शुरू करवा दिया. विशेष जांच दल ने एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की विषाक्त भोजन खाने से हुई मौत के मामले की जांच शुरू कर दी.  विशेष जांच दल ने घटना की शुरुआत से सारे साक्ष्यों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया. बैतूल पुलिस को जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के अस्पताल में भरती होने की पहली सूचना 24 जुलाई को पाढर अस्पताल बैतूल द्वारा मिली थी, जिस के बाद चौकी प्रभारी ने जज महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी के बयान लिए थे. दोनों ने आशंका जताई थी कि उन्हें रोटियां खाने से फूड पौइजनिंग हुई है.

जिस आटे की रोटियां बनी थीं, उस में वह आटा भी शामिल था जो जज साहब को उन की एक महिला मित्र ने दिया था. एसआईटी ने शुरू की जांच विशेष जांच दल ने जज साहब व उन के बेटे द्वारा दिए गए बयान चौकी प्रभारी से ले लिए. साथ ही जांच दल ने नागपुर में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी अपने कब्जे में ले ली, जिस में आशंका व्यक्त की गई थी कि दोनों की मौत खाने में तीक्ष्ण जहर मिला होने की वजह से हुई थी.  विशेष जांच दल ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटे बेटे आशीष त्रिपाठी के बयान भी कलमबद्ध किए. उन दोनों ने यही बताया कि जज साहब की एक महिला मित्र संध्या सिंह ने किसी तांत्रिक से अभिमंत्रित करा कर ये आटा दिया था, जिसे संध्या के बताए अनुसार घर के आटे में मिला कर रोटियां बनाई गई थीं ताकि घर में सुखसमृद्धि आ सके.

‘‘क्या वो आटा अभी भी आप के पास है?’’ एसपी सिमाला प्रसाद ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी से पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन खाने के बाद से हम ने उस आटे का इस्तेमाल ही नहीं किया है. सारा आटा ज्यों का त्यों रखा है.’’ मिसेज त्रिपाठी के बताने के बाद विशेष जांच दल ने उस आटे को अपने कब्जे में ले कर उसी दिन जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया. इसी दौरान जांच दल को पता चला कि 21 जुलाई को जब विषाक्त खाना खाने से जज महेंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई थी, तब उन्होंने अपने कई जानकारों से फोन पर बात की थी. पुलिस ने महेंद्र त्रिपाठी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उन तमाम लोगों से बातचीत की तो उन्होंने भी यही बताया कि उन की एक दोस्त संध्या सिंह ने उन्हें जो आटा दिया था, घर के आटे में उस के मिश्रण से बनी रोटियां खाने के बाद ही उन की और उन के बेटों की तबियत खराब हुई थी.

पुलिस को काल डिटेल्स में संध्या सिंह नाम की एक महिला का नंबर भी मिला, जिसे इलाज के दौरान जज साहब ने कई बार काल की थी. लेकिन किसी भी काल पर बहुत लंबी बात नहीं हुई थी. जज त्रिपाठी के छोटे बेटे आशीष राज ने भी पुलिस को बयान दिया कि जब उन के पिता व भाई को नागपुर के अस्पताल में शिफ्ट किया जा रहा था तो पिता ने रास्ते में उसे बताया था कि वह आटा उन की परिचित महिला संध्या सिंह ने दिया था, जिसे घर के आटे में मिला कर बनी रोटियां खाने से सब की तबियत खराब हुई थी. उन्होंने बताया था कि उस आटे की पूजा किसी पंडित ने की थी.

विशेष जांच दल को अब तक इस बात के पर्याप्त सुबूत मिल चुके थे कि एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की मौत विषाक्त आटे से बनी रोटियां खाने से हुई थी. अभी तक की जांच में संध्या सिंह नाम की महिला मुख्य किरदार के रूप में सामने आई थी. विशेष जांच दल ने एसपी सिमाला सिंह के निर्देश पर बैतूल के थाना गंज में 27 जुलाई, 2020 की सुबह जज त्रिपाठी व उन के बेटे की अकाल मृत्यु के मामले को अपराध क्रमांक 26 / 2020 पर दर्ज कर लिया. लेकिन जब इस मामले में साक्ष्य एकत्र हो गए तो इसे हत्या की धारा 302, 323, 307, 120बी में पंजीकृत किया गया.

इस मामले में मुख्य किरदार संध्या सिंह थी, इसलिए विशेष जांच दल ने उस की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से बड़ी परेशानी यह थी कि महेंद्र त्रिपाठी न्यायिक अधिकारी थे, उन का परिवार भी संध्या सिंह के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं दे रहा था, मसलन वह कौन है, कहां रहती है और उस के दिए गए आटे को उन्होंने क्यों इस्तेमाल किया. इस के अलावा पुलिस टीम यह भी नहीं समझ पा रही थी कि जज साहब के घर में आखिर ऐसी कौन सी कलह थी जिसे दूर करने के लिए वह पंडित या तांत्रिक का मंत्रपूरित आटा घर ले आए और उन्हें उस की बनी रोटियां खाने को विवश होना पड़ा.

सवाल अनेक थे, लेकिन उन का जवाब किसी के पास नहीं था इसलिए पुलिस ने सारा ध्यान संध्या सिंह पर फोकस कर दिया क्योंकि उस से पूछताछ करने के बाद ही इन सवालों का जवाब मिल सकता था. पुलिस लगातार संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करने में लगी थी क्योंकि वही एक जरिया था, जिस के माध्यम से उस तक पहुंचा जा सकता था. संध्या सिंह का मोबाइल लगातार बंद मिल रहा था. बीचबीच में वह औन होता और फिर बंद हो जाता था. पुलिस ने जब मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो वह हाउसिंग बोर्ड कालोनी छिंदवाड़ा स्थित एक मकान की मिली. इस के बाद पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, तो वहां ताला लगा मिला. मिल गई संध्या पुलिस टीम संध्या सिंह तक पहुंचने के लिए लगातार काम करती रही.

30 जुलाई की शाम के समय संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन रीवा में मिली. छिंदवाड़ा में भटक रही पुलिस टीम को तुरंत रीवा भेजा गया, जहां संयोग से संध्या अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद थी. पुलिस उन सभी को हिरासत में ले कर बैतूल लौट आई. संध्या सिंह की टाटा इंडिगो कार एमपी28 सीबी-3302 भी पुलिस ने जब्त कर ली थी. संध्या सिंह की उम्र करीब 50 साल थी. पहनावे और बातचीत से वह एक आधुनिक महिला लग रही थी. शुरुआती पूछताछ में संध्या सिंह एसपी सिमाला प्रसाद से ले कर पूरे जांच दल को इधरउधर की बातें बना कर समय खराब करती रही. उस ने पुलिस को बताया कि एडीजे त्रिपाठी से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन उन की मौत से उस का कोई संबध नहीं है.

लेकिन पुलिस ने जब उस के सामने उस के खिलाफ मौजूद सारे सुबूत रखे तो उस ने कबूल कर लिया कि उसी ने सर्प विष मिला आटा एडीजे त्रिपाठी को दिया दिया था. संध्या सिंह ने बताया कि उस का इरादा पूरे त्रिपाठी परिवार को खत्म करने का था. संध्या सिंह के साथ जो 5 अन्य लोग पकड़े गए थे, वे भी हत्या की इस साजिश में शामिल थे. संध्या सिंह कौन थी, जज साहब से उस की जानपहचान कैसे हुई तथा उस ने उन्हें परिवार के साथ मारने के लिए जहरीला आटा क्यों दिया, यह सब जानने के लिए पुलिस ने संध्या सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो सारे सवालों का जवाब मिल गया.

मूलरूप से मध्य प्रदेश के सिंगरौली की रहने वाली संध्या सिंह की शादी रीवा के एक संपन्न परिवार के व्यक्ति संतोष सिंह से हुई थी. लेकिन स्वच्छंदता से जीवन व्यतीत करने वाली पढ़ीलिखी संध्या की अपनी ससुराल वालों और पति से अनबन रहने लगी. शादी के कुछ समय बाद वह अपने पति के साथ रीवा से छिंदवाड़ा आ गई. उस ने वहां दुर्गा महिला शिक्षा समिति नाम से एक एनजीओ संचालित करना शुरू कर दिया. बाद में संध्या सिंह की महत्त्वाकांक्षाएं उड़ान भरने लगीं. वह देर रात तक पार्टियों में अपना वक्त बिताने लगी तो संतोष सिंह से उस का मनमुटाव शुरू हो गया और संतोष सिंह संध्या से अलग हो गए और अपने शहर वापस चले गए. इस के बाद संध्या सिंह खुला और एकाकी जीवन बसर करने लगी.

इसी दौरान 10 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की नियुक्ति छिंदवाड़ा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के पद पर हो गई. महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी मध्य प्रदेश के एक सरकारी विभाग में नौकरी करती थीं. उन के दोनों बेटे भी उन्हीं के साथ भोपाल में रहते थे. कभी त्रिपाठी अपने परिवार से मिलने भोपाल चले जाते थे तो कभी उन का परिवार मिलने के लिए उन के पास आ जाता था. एक तरह से महेंद्र त्रिपाठी छिंदवाड़ा में अकेले रहते थे. तैनाती के कुछ महीने बाद ही एक समारोह में संध्या सिंह की मुलाकात जज महेंद्र त्रिपाठी से हुई. त्रिपाठी और संध्या सिंह दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए और पहली ही मुलाकात में उन की दोस्ती हो गई. ये दोस्ती इस कदर आगे बढ़ी कि कुछ ही दिनों में उन के रिश्ते आत्मीय हो गए.

दरअसल संध्या सिंह को लगा कि न्यायिक अधिकारी होने के कारण उसे महेंद्र कुमार त्रिपाठी के बडे़ लोगों के साथ रसूख का लाभ मिल सकता है और उन के जरिए वह अपने एनजीओ के लिए बहुत से लाभ ले सकती है. इंसान भले ही किसी भी पेशे से जुड़ा हो लेकिन प्रकृति का एक नियम है कि जब वह किसी महिला के आकर्षण या रूप जाल में फंस जाता है तो उस का विवेक काम करना बंद कर देता है. वह इस बात को भी भूल जाता है कि वह जिस पेशे से जुड़ा है, उस की मर्यादा क्या है. संध्या के जाल में फंसे जज साहब जैसे ही महेंद्र त्रिपाठी की संध्या सिंह के साथ आसक्ति बढ़ी तो संध्या की तरक्की भी होने लगी. उस ने अब त्रिपाठीजी को अपनी तरक्की की सीढ़ी बना कर पूरी तरह अपने आकर्षण के जाल में फंसा लिया था. उस ने त्रिपाठीजी से आर्थिक मदद ले कर कपड़ों का कारोबार भी शुरू कर दिया था.

संध्या सिंह ने दुर्गा महिला शिक्षा समिति के नाम से जो एनजीओ बना रखा था, उस के लिए वह त्रिपाठीजी के सहयोग से सरकारी प्रोजेक्ट भी हासिल करने लगी. चूंकि उस वक्त त्रिपाठीजी छिंदवाड़ा में सीजेएम जैसे महत्त्वपूर्ण ओहदे पर तैनात थे. संध्या सिंह ने छिंदवाड़ा की उसी हाउसिंग बोर्ड कालोनी में किराए का मकान भी ले कर अपना निवास बना लिया, जहां सीजेएम महेंद्र कुमार त्रिपाठी रहते थे. उन दिनों नगर निगम छिंदवाड़ा ने त्रिपाठीजी के कहने पर संध्या सिंह को आजीविका मिशन के तहत प्रशिक्षण देने का लाखों रुपए का एक प्रोजेक्ट भी दिया था. इस के अलावा संध्या सिंह महेंद्र त्रिपाठी के रसूख का इस्तेमाल कर जम कर फायदे उठाने लगी.

संध्या सिंह और महेंद्र त्रिपाठी के बीच के दोस्ताना रिश्तों की भनक उन की पत्नी व परिवार के दूसरे सदस्यों को भी लग गई थी. जिस के कारण उन के घर में कलह रहने लगी. इसी दौरान 2 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की पदोन्नति हो गई और वे एडीजे बन कर छिंदवाड़ा से बैतूल आ गए. महेंद्र त्रिपाठी के बैतूल आ जाने के बाद संध्या सिंह की मुश्किलें बढ़ गईं. उन के ज्यादा व्यस्त रहने की वजह से न तो आसानी से उस की उन से मुलाकात हो पाती थी और न ही वह उन से कोई फायदा ले पाती थी. हां, इतना जरूर था कि वह महेंद्र त्रिपाठी से मिलने के लिए महीने में 1-2 बार बैतूल आती रहती थी. एडीजे त्रिपाठी उस के लिए सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था करा देते थे. जहां 1-2 दिन उन से मिलने के बाद वह वापस चली जाती थी.

लेकिन संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के इस मेलजोल की खबर भी उन के परिवार तक पहुंचने लगी, जिस के कारण उन की अपनी पत्नी व बच्चों से कलह होती रहती थी. आखिरकार महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी ने अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए कुछ महीने पहले अपनी नौकरी से वीआरएस ले लिया और वे जज साहब के पास बैतूल आ कर रहने लगीं. इस दौरान बड़ा बेटा अभियान भी इंदौर से उन्हीं के पास बैतूल आ कर रहने लगा. वह बैतूल में नौकरी की तलाश कर रहा था. छोटा बेटा आशीष पहले से ही मां के पास रहता था.

इधर 4 महीने से जब से महेंद्र त्रिपाठी का परिवार उन के पास आया था, तब से संध्या सिंह का न तो महेंद्र त्रिपाठी से मिलनाजुलना होता था, न ही त्रिपाठीजी उस की आर्थिक मदद करते थे. इतना ही नहीं, अब महेंद्र त्रिपाठी ने अपने बच्चों को सैटल करने के लिए संध्या सिंह से अपने दिए पैसों का हिसाबकिताब लेना भी शुरू कर दिया था. वे संध्या से अकसर कहते थे कि उन्हें अपने बच्चों को कामधंधा कराना है, इसलिए वह उन से लिए गए पैसे वापस करे. पिछले 10 सालों में महेंद्र त्रिपाठी से संध्या सिंह की दोस्ती आत्मीयता की इस हद तक पहुंच गई थी कि 4 महीने की दूरी उसे सालों की दूरी सी लगने लगी. अब वह महेंद्र त्रिपाठी से कतई दूर नहीं रहना चाहती थी. जबकि महेंद्र त्रिपाठी उस से दूरी बनाना चाहते थे.

जब महेंद्र त्रिपाठी से उस ने कटेकटे रहने और दूरी बनाने का कारण पूछा तो उन्होंने साफ कह दिया कि उस की वजह से उन के परिवार में कलह रहने लगी है, लिहाजा अब वे एकदूसरे से दूर ही रहे तो अच्छा है, साथ ही उन्होंने संध्या से उन पैसों की मांग फिर से कर दी जो संध्या ने उन से लिए थे. संध्या नहीं लौटाना चाहती थी जज साहब के पैसे इन बातों से उपजे तनाव से संध्या सिंह को लगने लगा कि अगर उसे महेंद्र त्रिपाठी का पैसा लौटाना पड़ा तो कहां से इंतजाम करेगी. वैसे भी अब उसे महेंद्र त्रिपाठी से अपनी दोस्ती पहले जैसी होने की कोई उम्मीद नहीं बची थी. अचानक संध्या सिंह के दिमाग में इन मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए एक साजिश कुलांचे मारने लगी.

उस ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर एक ऐसी साजिश रची, जिस से वह महेंद्र त्रिपाठी से लिए गए पैसे लौटाने से भी बच सकती थी और उन के परिवार से उस का इंतकाम भी पूरा हो जाता. इस साजिश को अंजाम देने के लिए उस ने अपने ड्राइवर संजू और संजू के फूफा देवीलाल निवासी काशीनगर, छिंदवाड़ा, मुबीन खान निवासी छिंदवाड़ा और कमल तथा बाबा उर्फ रामदयाल को तैयार कर लिया. संध्या जानती थी कि महेंद्र त्रिपाठी तंत्रमंत्र और पंडितों पर बहुत विश्वास करते हैं. उस ने त्रिपाठीजी की इसी कमजोरी का लाभ उठाया. उस ने साथियों की मदद से सांप का विष हासिल कर लिया. फिर उस ने सर्प विष मिला आटा खिला कर महेंद्र त्रिपाठी व उन के परिवार को खत्म करने की योजना बनाई.

इस षडयंत्र को अंजाम देने के लिए संध्या कुछ दिन पहले बाबा उर्फ रामदयाल को ले कर छिंदवाडा से बैतूल पहुंची और वहां सर्किट हाउस में महेंद्र त्रिपाठी को मुलाकात के लिए बुलवाया. संध्या ने रामदयाल से महेंद्र त्रिपाठी का परिचय एक पहुंचे हुए तांत्रिक के रूप में कराया. उस ने उन्हें बताया कि बाबा ऐसे तांत्रिक हैं, जो उन के घर की आबोहवा देख कर पहचान लेंगे कि घर में किस तरह की कलह है. फिर बाबा अपने तंत्रमंत्र से घर में होने वाली कलह को दूर कर देंगे. एडीजे महेंद्र त्रिपाठी संध्या के झांसे में आ कर बाबा रामदयाल को अपने घर ले गए. जहां बाबा ने घर के हर कोने में जा कर कुछ मंत्र पढ़ने का नाटक किया और जज साहब से कहा कि वह अपने घर में रखा थोड़ा सा आटा एक पौलीथिन में ला कर उन्हें दें.

जज साहब ने वैसा ही किया. उस आटे को ले कर बाबा चला गया और कहा कि वह उस आटे को अभिमंत्रित कर के जल्द ही उन को वापस भिजवा देगा. महेंद्र त्रिपाठी थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के थे. लिहाजा वे संध्या सिंह के झांसे में आ गए थे. बाबा रामदयाल ने उस आटे को ला कर संध्या सिंह को दे दिया, जो त्रिपाठीजी ने पौलीथिन में भर कर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया था. 2 दिन उस आटे को अपने पास रख कर संध्या सिंह ने उस में सांप का विष मिला दिया. 20 जुलाई, 2020 को दोपहर में इसी आटे को ले कर संध्या सिंह अपने ड्राइवर संजू और कमल को ले कर बैतूल पहुंची. कमल को उस ने बैतूल में मुल्ला पैट्रोल पंप के पास उतार दिया. संध्या सिंह अपने ड्राइवर को ले कर कार से सर्किट हाउस बैतूल पहुंची, जहां पहले से एडीजे महेंद्र त्रिपाठी मौजूद थे.

वहां करीब एक घंटे तक संध्या महेंद्र त्रिपाठी के साथ एक बंद कमरे में रही. यहां संध्या सिंह ने उन्हें यह बात समझाने में सफलता हासिल कर ली कि उन का दिया हुआ ये आटा बाबा ने मंत्रपूरित किया है. बाबा की पूजा वाला ये आटा उन के सारे कष्टों का निवारण कर देगा. इतना ही नहीं परिवार में उन के संबंधों के कारण जो कलह हो रही थी, वह भी खत्म हो जाएगी. बस, उन्हें इस आटे को घर के आटे में मिलाना है और इस से बनी हुई रोटियां पूरे परिवार को खानी हैं. संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी की यह आखिरी मुलाकात थी. उन्होंने घर आ कर आटा अपनी पत्नी को दिया और उन्हें उस आटे को घर के आटे में मिला कर रोटी बना कर सब को खिलाने के लिए कहा.

मंत्रपूरित आटे की रोटियां बस उसी रात इसी आटे की रोटियां खाने के बाद एडीजे महेंद्र त्रिपाठी और उन के दोनों बेटों की तबियत खराब हो गई और बाद में महेंद्र त्रिपाठी तथा बड़े बेटे अभियान की मौत हो गई थी. संध्या से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के चालक संजू, उस के फूफा देवीलाल, मुबीन खान और कमल को गिरफ्तार कर लिया . पुलिस बाबा उर्फ रामदयाल नाम के उस तथाकथित तांत्रिक की भी तलाश कर रही है, जिस ने झाड़फूंक कर जहरीला आटा संध्या को दिया था. महेंद्र त्रिपाठी को न तो संध्या सिंह के इरादों का पता था और न ही यह कि उस कथित मंत्रपूरित आटे में जहर मिला है. हालांकि एडीजे त्रिपाठी और उन के बेटे की हत्या की मुख्य आरोपी संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के संबंधों को ले कर पुलिस कुछ

भी साफ कहने से बचती रही. पुलिस का यही कहना है कि दोनों की 10 साल से दोस्ती थी. लेकिन एक न्यायिक अधिकारी की एक अकेली रहने वाली महिला से दोस्ती, उस से एकांत में होने वाली मुलाकातें, इस दोस्ती के कारण त्रिपाठी के अपने परिवार से कलह और अपने पद के प्रभाव से संध्या के एनजीओ को प्रोजैक्ट दिलवाने जैसी बातें साफ इशारा करती हैं कि दोनों के रिश्ते एकदूसरे के लिए कितने खास थे.  एसपी सिमाला प्रसाद के मुताबिक, त्रिपाठी की फैमिली में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था और एडीजे दंपति में मनमुटाव था. संध्या ने इसी का फायदा उठाया. संध्या सिंह को पता था कि महेंद्र त्रिपाठी धर्मकर्म को बहुत मानते हैं और तंत्रमंत्र तथा पूजापाठ की बातों पर बहुत यकीन करते हैं

इसीलिए उस ने उन के पूरे परिवार का खात्मा करने के लिए ऐसी चाल चली कि काम भी हो जाए और किसी को पता भी न चले कि इस काम को किस ने अंजाम दिया है. लेकिन संयोग से इस हादसे में महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी जहां खाना नहीं खाने के कारण बच गईं, वहीं उन का छोटा बेटा कम खाने के कारण मामूली रूप से ही बीमार हुआ. इस साजिश की कडि़यां जुड़ती गईं और फूड पौइजनिंग का साधारण सा मामला हत्या की एक अनोखी कहानी में बदल गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने संध्या सिंह से बरामद कार की तलाशी ली तो उस में रखे कुछ बैग में तंत्रमंत्र की सामग्री मिली. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने सभी छहों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. द्य

—कहानी पुलिस की जांच व आरोपियों तथा पीडि़त परिवार के बयानों पर आधारित

Social Crime : ऑडिशन के नाम पर धोखा, लड़कियों से जबरन बनाई जा रही थी पोर्न वीडियो

Social Crime : कितने ही युवक युवतियां मौडलिंग, फिल्मों, सीरियल्स और ओटीटी प्लेटफौर्म में जाने के लिए उतावले रहते हैं. ग्लैमर के नशे में वह अपना अच्छा बुरा भी भूल जाते हैं. कई कथित निर्माता, निर्देशक उन के इस नशे का भरपूर लाभ उठाते हैं. ब्रजेंद्र और मिलिंद ऐसे ही लोगों में थे. इन लोगों ने…

जुलाई के आखिरी सप्ताह में इंदौर की एक मौडल साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह से मिली. मौडल ने खुद का नाम ऐश्वर्या बताते हुए कहा कि वह धामनोद की रहने वाली है और पिछले कई साल से इंदौर में रह कर मौडलिंग करती है. परेशान दिख रही ऐश्वर्या ने एसपी को बताया कि पिछले साल दिसंबर में उस के पास ब्रजेंद्र सिंह नाम के शख्स का फोन आया था. उस ने खुद को मुंबई का डायरेक्टर और प्रोड्यूसर बताया. वह एक बड़े बैनर पर ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए फिल्म बनाना चाहता था. उस ने इस फिल्म में ऐश्वर्या को लौंच करने की बात कही. बाद में ब्रजेंद्र ने उसे इंदौर में एरोड्रम रोड पर एक फार्महाउस में बुलाया.

तय समय पर वह उस फार्महाउस पर पहुंची. वहां ब्रजेंद्र सिंह के अलावा मिलिंद भी मिला. कई और लोग भी थे. कैमरों लाइटों सहित फिल्म की शूटिंग का पूरा साजोसामान भी था. ऐश्वर्या मिलिंद को पहले से जानती थी. मिलिंद टी सीरीज और अल्ट बालाजी के लिए वेब सीरीज तथा सीरियलों के लिए कास्टिंग का काम करता था. ऐश्वर्या ने एसपी को बताया कि ब्रजेंद्र और मिलिंद ने उसे बालाजी की एक बोल्ड वेब सीरीज में काम दिलाने की बात कही, लेकिन इस के लिए कुछ बोल्ड सीन शूट करने की शर्त थी. मिलिंद ने ऐश्वर्या को विश्वास दिलाने के लिए मोबाइल पर एकता कपूर की कथित पीए युवती से उस की बात भी कराई.

एकता कपूर की उस कथित पीए ने उसे बालाजी की वेब सीरीज के बारे में बताया. पीए से बातें करने के बाद वह आश्वस्त हो गई कि उसे वेब सीरीज में काम मिल जाएगा. ओटीटी प्लेटफौर्म पर जाने का यह अच्छा मौका था. कथित पीए युवती ने मिलिंद से कहा कि वेब सीरीज के लिए प्रोमो बना कर कंपनी को भेजो. इस के बाद ब्रजेंद्र सिंह और मिलिंद ने उसे बोल्ड सीन देने के लिए 25 हजार रुपए देने का वादा किया. बाद में प्रोमो के नाम पर अश्लील फिल्म शूट कर ली गई. इस फिल्म में मेल एक्टर मिलिंद और गजेंद्र सिंह थे. ब्रजेंद्र सिंह और उस के साथियों ने फिल्म शूट की. इन लोगों ने कहा कि एडिटिंग के दौरान इस में से अश्लील कंटेंट हटा कर प्रोमो कंपनी को भेजा जाएगा.

इतनी बातें बताते बताते ऐश्वर्या की आंखों में आंसू आ गए. एसपी जितेंद्र सिंह ने उसे दिलासा देते हुए पूरी बात बताने को कहा ताकि अपराधियों तक पहुंचा जा सके. टेबल पर रखे गिलास से पानी के कुछ घूंट पीने के बाद ऐश्वर्या ने एसपी से कहा कि इन लोगों ने बाद में फिल्म को एडिट किए बिना ही पोर्न वेबसाइट को बेच दिया. ऐश्वर्या ने रोते हुए बताया कि वह फिल्म पोर्न वेबसाइट पर अपलोड होने के कुछ ही दिन में 4 लाख लोगों ने देख ली. कुछ दिन बाद एक परिचित से उसे इस की जानकारी मिली, तो वह घबरा गई. उस ने मिलिंद और ब्रजेंद्र सिंह से संपर्क किया, तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया.

एसपी जितेंद्र सिंह ने ऐश्वर्या से लिखित शिकायत ली और उसे काररवाई करने का भरोसा दे क र भेज दिया. जातेजाते ऐश्वर्या ने एसपी को यह भी बताया कि ऐसा अकेले उस के साथ नहीं हुआ है. कई दूसरी मौडल युवतियों के साथ भी इन्होंने यही किया है. ये लोग पोर्न सीन शूट करने के नाम पर जो पैसा तय करते, शूटिंग के बाद उतना पैसा भी नहीं देते थे. ये लोग फिल्म पोर्न वेबसाइटों को बेचने के साथसाथ कई तरीकों से मौडल्स का दैहिक शोषण भी करते थे. मामला बेहद गंभीर था. ज्यादातर लोग जानते हैं कि ऐसी फिल्में बनती हैं और पोर्न साइटों पर खूब देखी जाती हैं. माना यह जाता है कि इस तरह की अधिकांश फिल्में मुंबई में बनती हैं. लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसी घिनौनी फिल्में बनना बेहद चिंता की बात थी.

मोबाइल इंटरनेट से बढ़ी पोर्न फिल्मों की मार्केट  दरअसल, जब से बच्चों से ले कर बूढ़ों तक के हाथ में इंटरनेट के साथ मोबाइल आ गया है, तब से पोर्न फिल्म अधिकांश मोबाइलधारकों तक पहुंच गई हैं. इस से सामाजिक पतन होने के साथ अपराध भी बढ़ रहे हैं और घरेलू रिश्ते भी टूट रहे हैं. पोर्न फिल्में देखना जितना बड़ा अपराध है, उस से बड़ा अपराध बिना सहमति के ऐसी फिल्में बनाना है. इस सब से न केवल युवा पीढ़ी भटक रही है बल्कि उस की मानसिकता भी घृणित होती जा रही है.

एसपी जितेंद्र सिंह ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की. इस टीम ने जरूरी जांचपड़ताल के बाद 30 जुलाई को 2 लोगों मिलिंद डावर और अंकित सिंह चावड़ा को गिरफ्तार कर लिया. इंदौर की रेसकोर्स रोड निवासी मिलिंद फैशन शो और विज्ञापन के लिए बैकग्राउंड कलाकार व कास्टिंग का काम करता था. वह एमडीएफएम नाम की मौडलिंग एजेंसी चलाने के साथसाथ टी सीरीज और अल्ट बालाजी के लिए वेब सीरीज व सीरियलों के लिए भी कास्टिंग का काम करता था. इंदौर की गुरु गोविंदसिंह कालोनी का रहने वाला अंकित चावड़ा एनएमएच फिल्म प्रोडक्शन हाउस में कैमरामैन था. पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि ये लोग मौडल युवतियों को टीवी सीरियल और ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज में मौका दिलाने का झांसा दे कर जाल में फंसाते थे. इस का अश्लील फिल्में बनाने का काला कारोबार इंदौर के अलावा कई अन्य बड़े शहरों में चल रहा था.

इस काले धंधे में डायरेक्टर ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर, राजेश गुर्जर, गजेंद्र सिंह, सुनील जैन, अनिल द्विवेदी, अशोक सिंह व विजयानंद पांडेय आदि शामिल थे. मिलिंद डावर इस गिरोह के लिए मध्य प्रदेश की मौडल युवतियों को तरहतरह के झांसे दे कर फिल्म, वेब सीरीज या सीरियल आदि में रोल दिलाने के नाम पर जाल में फंसाता था. वह चूंकि मौडलिंग एजेंसी, फैशन शो और विज्ञापनों के लिए बैकग्राउंड कलाकारों की कास्टिंग का काम करता था, इसलिए उस के तमाम मौडलों के अलावा मुंबई के कई नामी रंगमंच कलाकारों से भी अच्छे संबंध थे.

इन्हीं संबंधों की आड़ में जब वह मौडल युवतियों को बौलीवुड में अच्छे रोल दिलाने की बात कहता, तो मौडल उस की बातों पर सहज ही भरोसा कर लेती थी. मिलिंद मौडल युवतियों को जाल में फंसाने के बाद ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर (ठाकुर) से मिलवाता था. ब्रजेंद्र खुद को मुंबई का डायरेक्टर, प्रोड्यूसर बता कर कहता था कि बोल्ड सीन आज की जरूरत हैं. प्रत्येक सीन के लिए वह 25 हजार रुपए देने की बात कहता था. जब लड़की तैयार हो जाती तो वह अपने सहयोगियों के साथ बोल्ड सीन के नाम पर अश्लील फिल्में शूट कर लेता था. शूटिंग के दौरान ये लोग मौडल युवतियों को भरोसा दिलाते थे कि इस फिल्म की एडिटिंग के दौरान अश्लील दृश्य हटा दिए जाएंगे. लेकिन बाद में इन फिल्मों को ये लोग बिना एडिट किए ही मुंबई में रहने वाले अशोक सिंह व विजयानंद पांडेय के माध्यम से लाखों रुपए में पोर्न साइटों को बेच देते थे.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी कि मध्य प्रदेश के रीवा और इंदौर की रहने वाली 2 मौडलों ने 31 जुलाई को साइबर सेल को ऐसी ही शिकायतें दीं. पुलिस ने दोनों के बयान दर्ज किए. इन युवतियों ने बताया कि इस गिरोह में कई बड़े लोग भी शामिल हैं. गिरोह के कुछ सदस्यों ने कुछ समय पहले स्टार फिल्म्स के नाम पर उन से मूवी बनाने का करार किया था. बाद में बोल्ड वेब सीरीज बनाने की बात कह कर अश्लील वीडियो तैयार कर ली गईं. इस पोर्न फिल्म को मुंबई में लाखों रुपए में बेचा गया. यह वीडियो क्लिप ‘देसी आयटम’ के नाम से पोर्न साइट पर डाल दी गई. इतना ही नहीं, मूवी के लिए किए गए करार के मुताबिक पैसे भी नहीं दिए गए, बल्कि ब्लैकमेल कर शारीरिक शोषण किया गया.

दूसरी ओर, पुलिस ने दोनों गिरफ्तार आरोपियों मिलिंद और अंकित को रिमांड पर ले कर एरोड्रम इलाके में गांधीनगर से लगे शिमला फार्महाउस पर छानबीन की, जहां फिल्म की शूटिंग की गई थी. पता चला इस फार्महाउस का मालिक अजय गोयल था. अजय की तलाश की गई, लेकिन वह नहीं मिला. इस बीच, एक उद्योगपति ने पुलिस से संपर्क कर बताया कि फार्महाउस का मालिक वह है न कि अजय गोयल. फार्म हाउस किसी का, खेल खेला किसी और ने  मालिक ने अजय को अपना फार्महाउस कुछ दिनों के लिए किराए पर दिया था. पुलिस को इस दौरान स्कीम 78 और 114 के 2 आलीशान बंगलों में भी फिल्म की शूटिंग करने का पता चला. इसी के साथ गिरोह में प्रमोद, युवराज आदि के शामिल होने की जानकारी भी मिली.

पुलिस ने शूटिंग वाले बंगलों के मालिकों, गिरोह के सरगना ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर और गजेंद्र सिंह सहित अन्य आरोपियों की तलाश के लिए टीम गठित की. इस के साथ ही मिलिंद व अंकित के मोबाइल व लैपटौप की भी जांच शुरू कर दी. जिन साइटों पर फिल्में अपलोड की गईं, उन के संचालकों को पुलिस ने नोटिस भेज कर जवाब मांगा. जांच के दौरान यह बात भी सामने आई कि वेब सीरीज के नाम पर उभरती मौडल्स के हौट वीडियो शूट करने के अलावा कई नामी ब्रांड्स के ऐड शूट करने के नाम पर भी महिला पुरुष मौडल्स से धोखाधड़ी की गई थी.

पुलिस को शिकायतें मिली कि कपड़ों, कौस्मेटिक, ज्वैलरी, गारमेंट्स, जूते व इलेक्ट्रौनिक्स प्रौडक्ट के विज्ञापनों के नाम पर हौट फोटो शूट कराए गए, लेकिन मौडल्स को न तो पैसा दिया गया और न ही कोई सर्टिफिकेट या ब्रैंड कंपनी का लेटर. पीडि़त युवतियों ने पुलिस को यह भी बताया कि जिन फार्महाउसों या बंगलों में शूटिंग की जाती थी, गिरोह के लोग उन पर उन के मालिकों से शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बनाते थे. पुलिस की जांच में यह भी पता चला कि गिरोह में हाई प्रोफाइल एस्कार्ट सर्विस से जुड़ी युवतियां भी शामिल थीं. ये एस्कौर्ट हौट फिल्म शूट के नाम पर नई मौडल्स को शूट के लिए उकसाती थीं. फिर कैमरा बंद करने का बहाना कर उन के न्यूड सीन शूट करा देती थीं. बातों में लगा कर कई सीन बंगलों के कमरों में लगे गुप्त कैमरों से भी शूट किए जाते थे.

ऐसे सीन कैमरे में कैद हो जाने के बाद उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था. उन से अश्लील दृश्यों की शूटिंग कराई जाती थी और फाइनेंसर या फार्महाउस के मालिक से शारीरिक संबंध बनाने के लिए धमकाया जाता था. एक अन्य युवती ने पुलिस से संपर्क कर बताया कि उस के साथ भी ऐसा ही किया गया था. फिल्म शूटिंग के नाम पर उसे 10 दिन तक बंगले में बंधक बना कर रखा गया. उसे किसी से मिलने भी नहीं दिया गया. यहां तक कि उस का मोबाइल भी छीन लिया गया था. किसी को बताने पर बदनाम करने की धमकी दी गई. ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर खुद को टीवी व फिल्म प्रोडक्शन कंपनी का मालिक बताता था. सोशल मीडिया अकाउंट में कई बौलीवुड ऐक्टर उस की फ्रैंड लिस्ट में शामिल थे.

पुलिस में सब से पहली शिकायत दर्ज कराने वाली मौडल ऐश्वर्या को इसी साल फरवरी में ब्रजेंद्र सिंह और उस के साथी खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में भी ले गए थे. वहां इन लोगों ने मौडल को कई लोगों से मिलाया और झांसा दिया कि ये लोग टीवी सीरियल और वेब सीरीज में आसानी से रोल दिलवा देंगे. पुलिस लगातार पोर्न फिल्म बनाने वाले आरोपियों की तलाश में उन के ठिकानों पर दबिश दे रही थी. इस दौरान पता चला कि बिचौली मर्दाना, रितुराज मेंशन, संपत हिल्स में रहने वाला गजेंद्र सिंह हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट मामले में 5 जुलाई से जेल में बंद है. उसे कुछ दिन पहले इंदौर की सराफा पुलिस ने एक होटल में दबिश दे कर पकड़ा था. उस होटल में वह सैक्स रैकेट से जुड़ी उजबेकिस्तान की एक मौडल युवती को सप्लाई करने गया था.

पुलिस की दबिश के दौरान गजेंद्र उर्फ गोवर्धन उर्फ गज्जू चंद्रावत के घर पर एक कार मिली. इस कार पर एक न्यूज चैनल और प्रैस का स्टीकर लगा हुआ था. वह खुद को पत्रकार बता कर घूमता था. गजेंद्र ने इंदौर की मौडल की शूट की गई पोर्न फिल्म में हीरो का रोल किया था. 5 अगस्त को एक और मौडल ने साइबर सेल में शिकायत की. उस ने बताया कि वह फिल्मों में काम करती है. 2014 में एक फोटो शूट के दौरान वह ब्रजेंद्र और शुभेंद्र से मिली थी. ब्रजेंद्र ने उसे अपनी निर्माणाधीन फिल्म में रोल और 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. बाद में उस ने शूटिंग में अश्लील फिल्म बना ली और 2 लाख रुपए भी नहीं दिए. मौडल ने पैसों के लिए दबाव बनाया तो उस ने वीडियो वायरल करने की धमकी दी.

पिछले साल ब्रजेंद्र ने एक युवती की मुलाकात मुंबई के एक डायरेक्टर राज से करवाई. उसे फिल्म शूटिंग के मेहनताने के रूप में रोजाना 10 हजार रुपए देने की बात तय हुई. फिल्म के नाम पर अश्लील सीन शूट कर लिए गए और उन्हें पोर्न साइट पर डाल दिया गया. साइबर सेल पुलिस ने जेल में बंद गजेंद्र का अदालत से प्रोडक्शन वारंट हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की, ताकि उस से पोर्न फिल्मों के मामले में पूछताछ की जा सके. लगातार भागदौड़ के बीच, साइबर सेल पुलिस ने 10 अगस्त को गिरोह के सरगना ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. वह इस मामले में अग्रिम जमानत के प्रयास में इंदौर आया था, तभी पुलिस को सूचना मिल गई और उसे पकड़ लिया गया. दूसरी ओर, गजेंद्र उर्फ गज्जू उर्फ गोवर्धन चंद्रावत को जेल से प्रोडक्शन वारंट के तहत रिमांड पर लिया गया.

ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर से पूछताछ में पता चला कि वह मूलरूप से दमोह का रहने वाला है. बीबीए और एमबीए तक शिक्षित ब्रजेंद्र 2011 में इंदौर आया था. पहले वह इंदौर में बौंबे हौस्पिटल के पीछे एक गेस्टहाउस में रहता था. बाद में टाउनशिप व पौश कालोनियों में किराए पर रहा. इस दौरान ब्रजेंद्र की मुलाकात भोपाल के राजीव सक्सेना से हुई. राजीव एक सीरियल बना रहा था. उस ने ब्रजेंद्र को अपनी प्रोडक्शन कंपनी में मैनेजर रख लिया. यहां से उस ने फिल्म व सीरियल बनाने का अनुभव प्राप्त किया. राजीव ने कुछ महीने तक काम कराने के बाद ब्रजेंद्र को उस के मेहनताने का एक रुपया भी नहीं दिया और भोपाल चला गया.

2014 में उस ने बिपाशा बसु के साथ एक फिल्म में साइड रोल किया था. इस के अलावा एक हौलीवुड फिल्म में भी उसे छोटा सा रोल मिला था. एक वीडियो एलबम अजब इश्क में शान ने एक गाना गाया था, उस का पिक्चराइजेशन ब्रजेंद्र ने किया था. फिल्मों के सिलसिले में वह मुंबई आताजाता रहता था. इस दौरान उस के कई डायरेक्टर, प्रोड्यूसरों से अच्छे संपर्क बन गए थे, लेकिन फिल्मों में उसे अच्छा मुकाम नहीं मिल पाया था. खुद डायरेक्टर बनने की ठानी आखिर ब्रजेंद्र ने खुद ही फिल्म डायरेक्टर बनने की बात सोची. उस ने खुद का प्रोडक्शन हाउस बना लिया. 2015 में ब्रजेंद्र ने मुंबई के अंधेरी स्थित रजिस्ट्रेशन औफिस में स्टार फिल्म्स के नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई थी. उस ने परिवर्तन नाम से एक सीरियल भी बनाया. कुछ वीडियो सौंग्स भी शूट किए.

उस ने ‘द डेट’ नाम की एक फिल्म भी बनाई, लेकिन उस की क्वालिटी अच्छी नहीं होने से कोई खरीदार नहीं मिला. अच्छी क्वालिटी की फिल्म बनाने के लिए करोड़ों रुपए की जरूरत होती है. इतना पैसा ब्रजेंद्र के पास नहीं था. ब्रजेंद्र के इंदौर में कई ऐसे लोगों से संपर्क हो गए थे, जो मौडलिंग, फैशन शो और विज्ञापन के लिए कलाकार व कास्टिंग का काम करते थे. इन के माध्यम से वह उभरती मौडल्स को अपने जाल में फांसता. खुद को मुंबई का डायरेक्टर, प्रौड्यूसर बता कर मौडल्स को वेब सीरीज व सीरियल में काम दिलाने के नाम पर इंदौर बुलाता. फिर आलीशान बंगलों व फार्महाउसों में बोल्ड सीन के नाम पर अश्लील फिल्म शूट कर ली जाती. शूटिंग के दौरान हालांकि वह मौडल को इस बात का विश्वास दिलाता था कि शूट किए गए अश्लील सीन एडिटिंग में हटा दिए जाएंगे, लेकिन वह ऐसा करता नहीं था.

फिल्मों के फाइनेंसर और बंगलों व फार्महाउस के मालिक को खुश करने के लिए भी वह मौडल्स को धमका कर या दबाव बना कर शारीरिक शोषण के लिए तैयार करता था. पोर्न फिल्म तैयार होने पर वह मुंबई के लोगों के मार्फत 10 लाख रुपए तक में फिल्म बेच देता था. वह हर बार नए चेहरे और नए कंटेंट पर ज्यादा ध्यान देता था ताकि पोर्न मार्केट में फिल्म की अच्छी कीमत मिल सके.  सन 2018 में आष्टा के ओम ठाकुर ने ‘उल्लू’ ऐप का एग्रीमेंट दिखा कर इंदौर में 4 एडल्ट एपिसोड बनाने के लिए ब्रजेंद्र से संपर्क किया था, लेकिन ओम ठाकुर का एग्रीमेंट फर्जी निकला. उस ने ब्रजेंद्र को कोई पैसा नहीं दिया.

ब्रजेंद्र ने मिलिंद डावर के जरिए इंदौर की 5 मौडल्स को कास्ट कर के ये एपिसोड बनाए थे. उस ने सैक्स रैकेट से जुड़े गजेंद्र उर्फ गज्जू को लीड हीरो के रूप में साइन किया था. इन एपिसोड की शूटिंग इंदौर में स्कीम नंबर 78 में योगेंद्र जाट का आधुनिक सुखसुविधाओं वाला फार्महाउस किराए पर ले कर की गई थी. ब्रजेंद्र ने शुभेंद्र गुर्जर के साथ मिल कर भी एक मूवी बनाई थी. शुभेंद्र भी उभरती मौडल्स के हौट वीडियो एलबम और फिल्में बनाता था. गिरोह के सरगना ब्रजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस ने इंदौर में मौडल ऐश्वर्या के साथ जो पोर्न फिल्म शूट की थी, वह मुंबई के विजयानंद को एडिटिंग के लिए दे दी थी. विजयानंद पर भी इस तरह की पोर्न फिल्में बनाने के आरोप हैं. इस बीच, कोरोना के चलते लौकडाउन की वजह से वह फिल्म विजयानंद के पास ही रह गई.

उस ने वह फिल्म हाई डेफिनिशन कंपनी के अशोक सिंह को दे दी. अशोक ने वह फिल्म फेनियो मूवी के संजय परिहार को बेच दी. संजय ने उसे पोर्न साइट पर अपलोड कर दिया था. इस के बाद ही मौडल ऐश्वर्या को इस बात की जानकारी हुई थी. पुलिस की जांच में सामने आया कि गजेंद्र उर्फ गजानंद मूलरूप से गरोठ का रहने वाला है. उस ने 2012 में इंदौर आ कर ड्राइवर की नौकरी की. 2014 में देवास में उस की मुलाकात पवन सोनगरा से हुई. पवन ने उस से देह व्यापार एजेंट के रूप में काम कराया. 2018 में पवन के निधन के बाद उस ने खुद का काम शुरू कर दिया. उस के कई विदेशी युवतियों से भी संपर्क थे. वह वाट्सऐप पर युवतियों के फोटो भेज कर ग्राहक ढूंढता था.

इंदौर में एरोड्रम इलाके में जिस शिमला फार्महाउस में ब्रजेंद्र व मिलिंद आदि ने मौडल ऐश्वर्या के साथ पोर्न फिल्म शूट की थी, उस फार्महाउस का मालिक पहले अजय गोयल होने की बात सामने आई थी. बाद में फर्नीचर व्यवसायी ओमप्रकाश बड़के ने पुलिस को बताया कि फार्महाउस उस का है. उन्हें फार्महाउस का मेंटिनेंस कराना था. साढ़ू अशोक गोयल ने फार्महाउस की चाबी ले कर वहां का मेंटिनेंस कराने की बात कही. थी. इसी दौरान पोर्न फिल्म की शूटिंग की गई थी.

पुलिस इस मामले में बाकी आरोपियों की तलाश कर रही है. हालांकि देरसबेर आरोपी पकड़े जा सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि अश्लीलता के महासागर में इन छोटी मछलियों के पकड़ में आने से क्या पोर्न फिल्मों की गंदगी रुक जाएगी? यह इसलिए भी मुश्किल लगता है, क्योंकि आज मोबाइल हर इंसान की पहुंच में है. मोबाइल के जरिए ही यह गंदगी बच्चों से ले कर बूढ़ों तक सहजता से पहुंच रही है.

—कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित, मौडल ऐश्वर्या का नाम बदला हुआ है