मिसकाल का प्यार – भाग 2

जब किसी लड़की या लड़के को प्यार होता है तो उसे अपने साथी के अलावा सब कुछ बेकार लगता है. हर समय वह उसी के बारे में सोचता रहता है. रूबी और सुजाय का भी यही हाल था. वे जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं पड़ता था.

वह नेट पर चैटिंग भी करने लगे थे. फेसबुक पर उन्होंने अपने फोटो अपलोड कर दिए थे. रूबी का फोटो देख कर सुजाय फूला नहीं समा रहा था. उस ने बातचीत के बाद उस की जैसी तसवीर अपने दिल में बसा ली थी, वास्तव में वह उस से भी ज्यादा सुंदर निकली.

सुजाय भी हैंडसम था. रूबी को उस की छवि भी अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही लगी. यानी दोनों अपनी पसंद पर इतरा रहे थे. सुजाय और रूबी बालिग थे. भले ही वे एकदूसरे से सैकड़ों मील दूर रह रहे थे, लेकिन फोन की बातचीत और चैटिंग के जरिए वे एकदूसरे के दिल में थे.

मोहब्बत ने उन की सैकड़ों किलोमीटर दूरी को समेट कर रख दिया था. उन्होंने एकदूसरे को जता दिया था कि भले ही उन के बीच में जातिधर्म की या अन्य कोई दीवार आए, वह उस दीवार को चकनाचूर कर के शादी करेंगे. दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी. फोन और सोशल मीडिया के जरिए उन का प्यार और मजबूत होता गया.

रूबी 22 साल की हो चुकी थी. बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई के साथ वह टेलरिंग का काम भी सीख रही थी. उस के घर वालों को इस बात की भनक तक नहीं लग पाई थी कि उस का पश्चिम बंगाल के रहने वाले किसी अन्य मजहब के लड़के साथ चक्कर चल रहा है.

हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि इज्जत के साथ वह बेटी को विदा करे. इसलिए रूबी के पिता भी उस के लिए लड़का देखने लगे. उन की मंशा थी कि जब तक कोई लड़का मिलेगा, तब तक वह बीए की पढ़ाई पूरी कर लेगी. उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी रूबी के लिए सही लड़का तलाशने को कह दिया था.

इधरउधर भागदौड़ करने के बाद जनवरी, 2014 में रूबी का रिश्ता एक लड़के से तय हो गया और इसी साल अप्रैल महीने में निकाह की तारीख रखी गई. रूबी को जब अपने रिश्ते के बारे में जानकारी मिली तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले प्रेमी सुजाय से जीवन भर साथ रहने का वादा किया था. इसलिए रिश्ते की बात पता लगते ही उस ने सुजाय से फोन पर बात की.

प्रेमिका की बातें सुन कर सुजाय भी हैरत में पड़ गया कि अचानक यह कैसे हो गया. रूबी ने कहा कि वह उस के अलावा किसी और से शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती. कुछ भी हो जाए वह घर वालों द्वारा तय की गई शादी का विरोध करेगी. इस के लिए यदि उसे अपना घर भी छोड़ना पड़ जाए तो वह उसे भी छोड़ देगी.

‘‘नहीं रूबी, तुम जल्दबाजी में अभी ऐसा कदम मत उठाना. तुम्हारे घर वालों ने अप्रैल में शादी की तारीख रखी है. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही कोई ऐसा उपाय निकालता हूं कि हमें कोई जुदा न कर पाए.’’ सुजाय ने उसे भरोसा दिलाया.

‘‘सुजाय, जो भी करना है जल्दी करो. कहीं ऐसा न हो कि हम लोग सोचते ही रह जाएं और…’’

‘‘नहीं रूबी, ऐसा हरगिज नहीं होगा. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं और वादा करता हूं कि मैं तुम्हीं से शादी करूंगा.’’

‘‘ठीक है सुजाय, तुम जैसा कहोगे मैं करने को तैयार हूं. तुम बस मुझे एक दिन पहले फोन कर देना. तुम जहां कहोगे, मैं आ जाऊंगी.’’ रूबी खुश होते हुए बोली.

उधर शादी तय करने के बाद रूबी के घर वाले शादी का सामान जुटाने लगे. लेकिन उन्हें बेटी के मन की बात पता नहीं थी. उन्हें पता नहीं था कि जिस की शादी की तैयारी करने में वे फूले नहीं समा रहे हैं, वही बेटी परिवार की इज्जत उछालने के तानेबाने बुनने में लगी है.

इसी बीच 11 फरवरी, 2014 को सुजाय ने रूबी को फोन किया और बताया कि उस के घर वालों ने भी उस की शादी कहीं और तय कर दी है… सुजाय की बात पूरी होने के पहले ही रूबी गुस्से में बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘रूबी, तुम ने मेरी पूरी बात तो सुनी नहीं.’’

‘‘बताओ.’’

‘‘देखो रूबी, घर वालों ने मेरी शादी तय जरूर कर दी है, लेकिन मैं उस लड़की से नहीं, बल्कि तुम से शादी करूंगा. मैं जब प्यार तुम से करता हूं तो भला शादी किसी और से कैसे करूंगा?’’

प्रेमी की बात सुन कर रूबी की जान में जान आई. इस के बाद दोनों काफी देर तक सामान्य रूप से बातें करते रहे. उन्होंने तय कर लिया था कि अब जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे.

इस के बाद एक दिन सुजाय ने रूबी को फोन किया, ‘‘रूबी, मैं ने पूरा प्लान तैयार कर लिया है कि हमें क्या करना है. ऐसा करना, तुम 21 फरवरी को अपने घर से बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंच जाना. इधर से मैं भी वहां पहुंच जाऊंगा. तुम्हारी और अपनी एयर टिकट मैं पहले ही खरीद लूंगा. बंगलुरु से हम लोग दिल्ली आ जाएंगे. यहां शादी करने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

‘‘घर जाने के बाद अगर तुम्हारे घर वालों ने मुझे नहीं स्वीकारा तो..?’’

‘‘तो क्या हुआ? वे हमारे रिश्ते को स्वीकारें या न स्वीकारें, मुझे चिंता नहीं है. मैं घर छोड़ दूंगा और कहीं दूसरी जगह जा कर रह लेंगे. रूबी, मुझे केवल तुम्हारा साथ चाहिए, जमाना चाहे कुछ भी कहे, मुझे फिक्र नहीं है.’’

‘‘सुजाय, मैं तो मन से तुम्हारी कब की हो चुकी हूं और शादी के बाद हमारी बेताबी भी दूर हो जाएगी. मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ सकती.’’

‘‘बस, मुझे तुम्हारी इसी हिम्मत की जरूरत है. अच्छा, तुम एक काम करना, घर से निकलते समय ज्वैलरी और कुछ पैसे लेती आना, जो हम लोगों की जरूरत पर काम आ सकेंगे.’’

‘‘तुम फिक्र न करो. अगर तुम न भी कहते तो मैं ये सब साथ लाती. बस तुम मुझे बंगलुरु हवाईअड्डे पर मिलना.’’

‘‘हां, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. गांव से बंगलुरु आते समय तुम अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ओके, तुम भी अपना खयाल रखना.’’ कहने के बाद उन्होंने अपनी बात खत्म कर दी.

रूबी एक ठोस निर्णय ले चुकी थी. वह घर से फरार होने की तैयार करने लगी. 20 फरवरी की शाम तक उस ने घर में रखी 10 तोला सोने की ज्वैलरी और साढ़े 3 लाख रुपए अपने कालेज ले जाने वाले बैग में रख लिए. अगले दिन उसे बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचना था, इसलिए रात भर वह सो नहीं पाई.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 3

उसी दौरान उन्होंने सरिता को देर रात प्रमोद से मोबाइल फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उसे लगा कि अब वह बेटी को प्रमोद से अलग नहीं कर पाएगा, क्योंकि वह सरिता के साथ मारपीट, डांटफटकार कर के हार चुका था. सरिता प्रमोद को छोड़ने को तैयार नहीं थी. हद तो तब हो गई, जब सरिता ने मां से साफ कह दिया, ‘‘मां, आखिर प्रमोद में बुराई ही क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. आप लोगों को मेरी शादी कहीं न कहीं तो करनी ही है, उसी से कर दीजिए.’’

बेटी की बात सुन कर मां हैरान रह गई थी. बेटी के इसी इरादे से जीवनराम चिंतित था. उस ने देखा कि अब वह खुद कुछ नहीं कर सकता तो उस ने पंचायत बुलाई. पंचायत ने सलाह दी कि इस झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि दोनों ही अपनेअपने बच्चों की शादी जल्द से जल्द कर दें. पंचायत ने प्रमोद से साफसाफ कह दिया था कि अगर उस ने कोई उल्टीसीधी हरकत की तो उसे गांव से निकाल दिया जाएगए.

प्रमोद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. सरिता का स्कूल जाना बंद करा दिया गया था. उसे घर से बिलकुल नहीं निकलने दिया जा रहा था. उन्हीं दिनों डालचंद अपनी बेटी अर्चना की शादी के लिए प्रमोद के घर पहुंचे तो प्रमोद के बाप छदामीलाल ने तुरंत यह रिश्ता स्वीकार कर लिया. इस के बाद 14 जून, 2013 को अर्चना और प्रमोद की शादी हो गई.

अर्चना ससुराल आई तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. इस से अर्चना बहुत खुश हुई. लेकिन पहली रात को प्रमोद ने उस के साथ जो व्यवहार किया, वह उसे कुछ अजीब सा लगा था. एक पति पहली रात जिस तरह पत्नी से प्यार करता है, वैसा प्रमोद के प्यार में नजर नहीं आया था.

अर्चना सप्ताह भर ससुराल में रही. इस बीच प्रमोद के बातव्यवहार से अर्चना ने अंदाजा लगा लिया कि पति उसे पसंद नहीं करता. लेकिन मायके आने पर यह बात उस ने किसी से नहीं कही क्योंकि अगर वह यह बात मायके में किसी से बताती तो वे काफी परेशान होते.

कुछ दिनों बाद अर्चना फिर ससुराल आ गई. पति का व्यवहार संतोषजनक नहीं था, इसलिए अर्चना परेशान रहने लगी थी. उस ने यह भी देखा कि प्रमोद दिनभर मटरगश्ती करता रहता है. घर का एक काम नहीं करता. पति की बेजा हरकतों से उस से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘तुम दिनभर इधरउधर घूमा करते हो, पापा के साथ खेतों पर काम क्यों नहीं करते?’’

‘‘मुझ से खेती के काम नहीं होते.’’ प्रमोद ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर कोई दूसरा काम करो. इस तरह आवारा की तरह घूमना ठीक नहीं है.’’ अर्चना ने कहा.

पत्नी की इस सलाह पर प्रमोद को गुस्सा आ गया. उस ने उसे डांट कर कहा, ‘‘तू अपने काम से काम रख. मैं क्या करूं, यह मुझे तू बताएगी?’’

‘‘तुम्हारी स्थिति से तो यही लगता है कि तुम कोई कामधंधा करने वाले नहीं. पापा से तो तुम्हारे घर वालों ने बताया था कि तुम दिल्ली में नौकरी करते हो. शादी के बाद तुम मुझे दिल्ली ले जाओगे. लेकिन मैं देख रही हूं कि आवारागर्दी करने के अलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है.’’ अर्चना ने गुस्से में बोली.

प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने अपनी शक्ल देखी है. तुम जैसी गंवार लड़की दिल्ली में रहेगी तो यहां गांव में चूल्हाचौका कौन करेगा?’’

‘‘अगर मैं गंवार थी तो मुझ से शादी ही क्यों की.’’ अर्चना ने कहा.

‘‘बहुत हो गया, अब चुप रह. मैं फालतू की बकवास सुनना नहीं चाहता.’’

अर्चना को लगा कि कुछ ऐसा है जिस की जानकारी उसे नहीं है. लेकिन जल्दी ही उसे उस की भी जानकारी हो गई. उस ने प्रमोद के पर्स में सरिता के साथ उस की फोटो देख ली. उस ने तुरंत वह फोटो प्रमोद के सामने रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ यह किस की फोटो है?’’

जवाब देने के बजाय प्रमोद उस के गाल पर जोरदार तमाचा मार कर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा पर्स छूने की?’’

अर्चना तड़प कर बोली, ‘‘आज तो मार दिया, लेकिन फिर कभी ऐसी गलती मत करना, वरना जिंदगीभर पछताओगे. सब के सामने मैं विवाह कर के आई हूं. इसलिए तुम पर मेरा पूरा हक है. मेरे रहते यह सब नहीं चलेगा.’’

प्रमोद चुपचाप घर से निकल गया. अर्चना जान गई कि उस के पति के जीवन में उस के अलावा भी कोई है. यह उस के लिए चिंता की बात थी. अभी उस के हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उसे पता चल गया कि उसे बचाखुचा प्यार मिल रहा है.

अगर यह संबंध इसी तरह चलते रहे तो अर्चना का जीवन नरक हो जाता, इसलिए रात में प्रमोद आया तो उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘शादी से पहले तुम्हारी जिंदगी में जो भी रही हो, मुझ से कोई मतलब नहीं है. लेकिन शादी के बाद यह सब नहीं चलेगा. मैं तुम्हारे प्रति समर्पित हूं तो तुम्हें भी मेरे प्रति समर्पित होना पड़ेगा.’’

‘‘अगर मैं समर्पित न हो सका तो…?’’

…तो इस का भी इलाज है, मुझे कानून का सहारा लेना होगा.’’ अर्चना ने कहा.

प्रमोद सन्न रह गया. जिसे वह सीधीसादी गंवार समझता था, वह तो उस से भी तेज निकली. अर्चना ने उसी समय अपने बाप को फोन कर के कह दिया कि वह मायके आना चाहती है.

प्रमोद को लगा कि अर्चना से उस की शादी गले की हड्डी बन रही है. उस ने घर वालों के दबाव में यह शादी की थी. उस ने सोचा था कि पत्नी को जैसे चाहेगा, रखेगा, लेकिन यह तो उस के लिए मुसीबत बन रही है. अब वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने दोस्त मुकेश से मिला और उस से पूरी बात बता कर कहा, ‘‘यार! मैं किसी भी तरह इस अर्चना नाम की मुसीबत से छुटकारा चाहता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि जीतेजी तो उस से छुटकारा मिल नहीं सकता. ठिकाने लगाने के बाद ही शुकून मिल सकता है. और इस काम में तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ प्रमोद ने कहा.

इस के बाद दोनों कई दिनों तक योजनाएं बनाते रहे. आखिर में जब योजना फाइनल हो गई तो दोनों मौके की तलाश करने लगे.

अर्चना को घर में तो मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि घर में प्रमोद उसे मारता तो सीधे आरोप उसी पर लगता. यानी उस का फंसना तय था. इसलिए वह उसे घर के बाहर ही मारना चहाता था. उस ने ससुर को फोन किया कि पत्नी को विदा कराने आ रहा है.

अर्चना इस बार पिता के साथ मायके पहुंची थी तो उस ने मां से प्रमोद के गांव की किसी लड़की से संबंध होने की बात बता दी थी. बेटी की बात सुन कर शारदा स्तब्ध रह गई थी. कुछ महीने पहले ही तो उस ने बेटी की शादी की थी. अभी तो बेटी की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस ने बेटी को समझाया कि वह पति को संभाले. अब वह इस बात का जिक्र किसी और से न करे, क्योंकि अगर उस के पिता को इस बारे में पता चल गया तो मामला काफी संगीन हो जाएगा.

प्रमोद ससुराल पहुंचा तो अर्चना को उस के साथ जाना ही था. उसी दिन प्रमोद ने दोपहर के बाद विदाई के लिए कहा तो डालचंद ने कहा, ‘‘यह समय विदाई करने का नहीं है. लालपुर पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. इसलिए तुम कल चले जाना.’’

‘‘नहीं पापा, जाना बहुत जरूरी है. साधन से ही तो जाना है. आराम से पहुंच जाएंगे.’’

डालचंद को क्या पता था कि उस के मन में क्या है. उन्होंने अर्चना को विदा कर दिया. प्रमोद खुश था कि सब कुछ उस के मन मुताबिक हो रहा है. अर्चना भी पति के मन की बात से बेखबर थी. वह प्रमोद के साथ गजरौला कलां पहुंची तो वहां मुकेश मिल गया. दोनों अर्चना को ले कर लालपुर की ओर चल पड़े.

अंधेरा हो जाने की वजह से लालपुर जाने वाली सड़क सुनसान हो गई थी. रास्ते में खेतों के बीच प्रमोद ने अर्चना को दबोच लिया तो वह चीखी, ‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.’’

लेकिन प्रमोद ने उसे छोड़ने के लिए थोड़े ही पकड़ा था. उस ने उसे जमीन पर गिरा दिया तो मुकेश ने फुरती से उस के दोनों हाथ पकड़ लिए. इस के बाद प्रमोद ने उस का गला दबा कर उसे मार डाला. इस तरह अर्चना का खेल खत्म कर के प्रमोद ने रास्ते का कांटा निकाल दिया था. इस के बाद प्रमोद ने जल्दीजल्दी अर्चना के गहने उतारे और फिर लाश को उठा कर गन्ने के खेत में फेंक दिया.

फिर योजना के मुताबिक प्रमोद थाना गजरौला कलां पहुंचा, जहां उस ने अपनी पत्नी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन उस के हावभाव से ही थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने ताड़ लिया कि यह झूठ बोल रहा है. इस के बाद तो उन्होंने उसे थाने ला कर सच्चाई उगलवा ही ली.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने प्रमोद और मुकेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. बाद में डालचंद ने कहा कि उन की बेटी की हत्या की साजिश में प्रमोद का बाप छदामीलाल भी शामिल था तो पुलिस ने उसे भी इस मामले में अभियुक्त बना कर जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी ने सीओ दिनेश शर्मा की देखभाल में इस मामले की चार्जशीट तैयार कर के अदालत में पेश कर दी गई है. अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को सजा क्या होती है.  द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 3

एक दिन बबीता की मुलाकात रविंद्र से हुई तो रविंद्र ने उसे अपने दिल में बसा लिया. इस के बाद वह उस दुकान के आसपास मंडराने लगा, जहां बबीता काम करती थी. धीरेधीरे बबीता का झुकाव भी रविंद्र की ओर हो गया. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गए. उन के दिलों में पनपी मोहब्बत पूरे शबाब पर थी.

रविंद्र ने अपने दोस्त अनिल की मदद से अंजलि और बबीता को बदरपुर में ही दूसरी जगह किराए पर मकान दिलवा दिया और वह खुद भी उन दोनों के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

चंद्रा दिल्ली के सराय कालेखां इलाके में रहने वाले रामपथ चौधरी की बेटी थी. रामपथ चौधरी की चंद्रा के अलावा एक बेटा नरेंद्र चौधरी और 2 बेटियां थीं. वह सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. नरेंद्र चौधरी का दूध बेचने का धंधा था. करीब 15 साल पहले उन्होंने चंद्रा का ब्याह नोएडा सेक्टर-5 स्थित हरौला गांव में रहने वाले महावीर अवाना के साथ किया था. महावीर अवाना प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.

शादी के कुछ सालों तक महावीर और चंद्रा के बीच सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. इस की वजह यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. चंद्रा शराब पीने को मना करती तो वह उस के साथ गालीगलौज करता और उस की पिटाई कर देता था. रोजरोज पति की पिटाई से परेशान हो कर चंद्रा अपनी मां के पास आ जाती थी.

इस दरम्यान वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की बेटी सोनिया 11 साल की और बेटा प्रिंस 7 साल का था. सोनिया 5वीं में पढ़ रही थी और प्रिंस यूकेजी में. कुछ दिन मां के यहां रहने के बाद चंद्रा ससुराल लौट जाती थी.

20 नवंबर, 2013 को भी चंद्रा बच्चों के साथ मायके आई थी. नानी के यहां आ कर बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि यहां वे एमसीडी के पार्क में मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ जी भर कर खेलते थे. दूसरी ओर नरेंद्र के रिश्ते का भाई रविंद्र कोई कामधंधा नहीं करता था. उस का खर्चा बबीता ही उठाती थी.

एक दिन अंजलि ने रविंद्र से कहा, ‘‘तुम बबीता के साथ बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रह रहे हो. वह कमाती है और तुम खाली रहते हो. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. तुम कोई काम क्यों नहीं करते?’’

रविंद्र भी कोई काम करना चाहता था, लेकिन काम शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह सोचता था कि कहीं से मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह कोई कामधंधा शुरू करे. यह बात उस ने अंजलि और बबीता को बताई. काम शुरू करने के लिए रविंद्र 1-2 लाख रुपए की बात कर रहा था. इतने पैसे दोनों बहनों के पास नहीं थे. रविंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के हाथ मोटी रकम लग जाए. काफी सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना आई तो वह उछल पड़ा.

उस ने उन दोनों से कहा, ‘‘मैं ने एक योजना सोची है, अगर तुम मेरा साथ दो तो वह पूरी हो सकती है.’’

‘‘क्या योजना है?’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘हम किसी बच्चे का अपहरण कर लेंगे. फिरौती में जो रकम मिलेगी, उस से हम कोई अच्छा काम शुरू कर सकते हैं. काम जोखिम भरा है, लेकिन अगर सावधानी से किया जाएगा तो जरूर सफल होगा. काम हो जाने पर हम दिल्ली से कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’

‘‘अगर कहीं पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सारी उम्र जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.’’ अंजलि और बबीता ने कहा.

‘‘पुलिस को पता तो तब चलेगा, जब हम उस बच्चे को जिंदा छोड़ेंगे. मैं ने पूरी योजना तैयार कर ली है.’’ रविंद्र ने अपने मन की बात बता दी.

‘‘मगर अपहरण करोगे किस का?’’

‘‘सराय कालेखां में नरेंद्र की बहन चंद्रा अपने बच्चों के साथ आई हुई है. मैं चाहता हूं कि नरेंद्र के भांजे प्रिंस को किसी तरह उठा लें. उस से हमें मोटी रकम मिल सकती है.’’

बबीता और अंजलि भी उस की बात से सहमत हो गईं. रविंद्र प्रिंस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बड़ा सा एक ट्रैवलिंग बैग भी ले आया.

इस के बाद रविंद्र ने अपने दोस्तों अनिल और संदीप को भी पैसों का लालच दे कर अपहरण की योजना में शामिल कर लिया. संदीप के पास पल्सर मोटरसाइकिल थी, उसी से तीनों ने अपहरण की वारदात को अंजाम देने का फैसला किया. इन लोगों ने तय किया कि फिरौती मिलने के बाद वे बच्चे को मौत के घाट उतार देंगे और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर के बैग में भर कर बदरपुर के पास वाले बूचड़खाने में डाल देंगे.

पूरी योजना बन जाने के बाद तीनों प्रिंस को अगवा करने का मौका देखने लगे. 24 नवंबर, 2013 को कुछ बच्चे इलाके में बने एमसीडी पार्क में खेल रहे थे. उस वक्त प्रिंस बच्चों से अलग पार्क के किनारे चुपचाप बैठा था. रविंद्र अनिल के साथ आहिस्ता से वहां गया और उस ने प्रिंस को गोद में उठा लिया. इस से पहले कि प्रिंस शोर मचाता, उस ने उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया. फिर तीनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे.

सोनिया ने यह सब देख लिया था, वह भागती हुई घर गई और अपनी मां से सारी बात बता दी.

सभी आरोपियों ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने अनिल के पास से 6 फोन भी बरामद किए, जिन से उस ने फिरौती की काल्स की थीं. पता चला कि वे फोन भी चोरी के थे. पुलिस ने पल्सर मोटरसाइकिल के अलावा वह बैग भी बरामद कर लिया, जिस में ये लोग प्रिंस को मारने के बाद लाश के टुकड़े भर कर फेंकते.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि फिरौती की रकम मिलती या न मिलती, वे लोग प्रिंस को मौत के घाट उतारने वाले थे, क्योंकि प्रिंस ने रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर को पहचान लिया था. क्राइम ब्रांच ने सभी आरोपियों को 29 नवंबर, 2013 को साकेत कोर्ट में पेश कर के थाना सनलाइट कालोनी पुलिस के हवाले कर दिया.

बाद में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने रविंद्र उर्फ रवि, अनिल, संदीप, अंजलि और बबीता को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

—कथा पुलिस सूत्रों तथा चंद्रा और नरेंद्र चौधरी के बयानों पर आधारित है.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 3

दिल्ली आते समय उस ने रुखसाना पर नजर रखने की जिम्मेदारी भाई दिलशाद को सौंपी थी. भाई के कहने पर दिलशाद उस पर रातदिन नजर रखने लगा. रुखसाना की आदत बिगड़ चुकी थी. अब वह सुधरने वाली नहीं थी. वह बिना मर्द के बिलकुल नहीं रह सकती थी. लेकिन देवर की वजह से वह किसी मर्द तक पहुंच नहीं पा रही थी.

पिछले साल मई महीने में अचानक दिलशाद की करंट लगने से मौत हो गई. गांव वालों का कहना था कि यह सब रुखसाना ने अपने पुराने प्रेमी असरुद्दीन से करवाया था. इस की वजह यह थी कि असरुद्दीन उन दिनों गांव में ही था. जबकि वह सूरत में रहता था. वह रुखसाना का बचपन का प्रेमी था. बहरहाल सच्चाई कुछ भी रही हो, सुबूत न होने की वजह से पुलिस केस नहीं बना.

पुलिस केस भले ही नहीं बना, लेकिन गांव वाले इस बात को ले कर काफी गुस्से में थे. इसलिए घर वालों ने असरुद्दीन को सूरत भेज दिया. वह सूरत तो चला गया, लेकिन वह वहां भी नहीं बच सका. दिलशाद के भतीजे ताहिर ने चाचा की मौत का बदला लेने के लिए सूरत में ही उस की हत्या कर दी.

गांव वाले रुखसाना के कारनामों से परेशान हो गए तो उन्होंने जाबिर को फोन कर के उसे अपने साथ दिल्ली ले जाने को कहा. उन का कहना था कि वे इस गंदगी को गांव में नहीं रहने देंगे. क्योंकि इस की वजह से खूनखराबा भी होने लगा है. गांव वालों के कहने पर जाबिर रुखसाना को दिल्ली ले आया. रुखसाना ने पति से वादा किया था कि अब वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उस के मानसम्मान को ठेस पहुंचे. लेकिन रुखसाना मानी नहीं. उस ने  ठान लिया था कि अब वह जाबिर के साथ नहीं रहेगी. फिर उस ने पति से छुटकारा पाने के लिए जो योजना बनाई, वह बहुत ही खतरनाक थी.

पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल गया था कि हत्या में रुखसाना का हाथ है. फिर भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया था. दरअसल उसी के माध्यम से पुलिस असली हत्यारों तक पहुंचना चाहती थी. अगर पुलिस उसे पकड़ लेती तो असली हत्यारे छिप जाते.

इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव ने मुखबिरों की मदद से नंदनगरी के गगन सिनेमा के पास से जानेआलम उर्फ टिंकू, आमिर हुसैन और हनीफ उर्फ काला को पकड़ा. थाने ला कर तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि रुखसाना ने ही 4 लाख रुपए की सुपारी दे कर जाबिर की हत्या कराई थी. हत्यारों के पकड़े जाने के बाद पुलिस रुखसाना के घर पहुंची तो पता चला कि वह घर से गायब हो चुकी है. शायद उसे हत्यारों के पकड़े जाने की भनक लग चुकी थी.

पुलिस रुखसाना की तलाश कर रही थी कि तभी अलाउद्दीन उर्फ आले पुलिस के हाथ लग गया. इस के बाद 4 नवंबर, 2013 को पुलिस ने रुखसाना को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह अपने घर जरूरी सामान लेने आई थी. इस के बाद पुलिस को नौकर जाबिर अली, कमर और शानू की तलाश थी.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में रुखसाना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद उस ने जाबिर की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी.

गांव में रहने के दौरान जब उस के संबंध नौकर जाबिर अली से बने थे तो इस का खुलासा होने पर उस का शौहर जाबिर उस के साथ बुरी तरह मारपीट करने लगा था. तब रुखसाना ने तय कर लिया था कि अब वह उसे ठिकाने लगवा कर ही रहेगी. नौकर जाबिर से उस की फोन पर बात होती रहती थी. उस ने उस से बात की तो उस ने रुखसाना की मुलाकात अलाउद्दीन उर्फ आले से कराई. उस ने आले को 4 लाख रुपए देने की बात की तो वह जाबिर की हत्या करने के लिए तैयार हो गया.

अलाउद्दीन नौकर जाबिर का दोस्त था और रमजानपुर का ही रहने वाला था. आले अपराधी प्रवृत्ति का था. उस ने गांव के ही अब्बन की हत्या तलवार से काट कर की थी. चूंकि आले को गांव वालों से जान का खतरा था, इसलिए वह जेल से छूटने के बाद पत्नी मुनीजा के साथ गांव बीकमपुर में रहने लगा था. आले कामकाज के नाम पर दिल्ली की फैक्ट्रियों से कौपर डस्ट की चोरी कर के कबाडि़यों को बेचता था.

दिल्ली में रहते हुए ही उस की जानपहचान 26 वर्षीय हनीफ उर्फ काला से हुई. वह भी रमजानपुर का ही रहने वाला था. काफी समय से वह गाजियाबाद के भोपुरा में रहता था. वह चोरी का माल तो खरीदता ही था, खुद भी चोरी करता था.

आले ने जाबिर की हत्या करने पर 4 लाख रुपए मिलने की बात बता कर उसे भी योजना में शामिल कर लिया था. हनीफ को लगा कि वह आले के साथ मिल कर इस योजना को अंजाम नहीं दे पाएगा, इसलिए उस ने अपने दोस्तों कमर, आमिर हुसैन, शानू और जानेआलम उर्फ टिंकू को भी अपने साथ मिला लिया.

पूरी योजना तैयार कर के सभी 15 जून, 2013 को रुखसाना के घर पहुंचे. रुखसाना ने सभी को घर में ही अलगअलग जगहों पर छिपा दिया. रात में क्या होना है, रुखसाना को पता ही था, इसलिए उस ने जाबिर के रात के खाने में बेहोशी की दवा मिला दी, जिसे खा कर जाबिर सो गया. लेकिन थोड़ी देर बाद उसे टौयलेट आई तो रुखसाना ने उसे ऊपर वाले टौयलेट में जाने को कहा. क्योंकि नीचे वाले टौयलेट में कमर छिप कर बैठा था. जबकि टिंकू कमरे में ही चाकू लिए छिपा था.

जाबिर सीढि़यां चढ़ने लगा, तभी कमर ने उसे पीछे से पकड़ लिया तो टिंकू ने उस पर चाकू से लगातार कई वार कर दिए. जाबिर का मुंह दबा था, इसलिए वह चीख भी नहीं सका और छटपटा कर मर गया. खून बहुत ज्यादा बह रहा था, इसलिए उसे रोकने के लिए लाश को चादर में लपेट कर बालकनी में डाल दिया. इस के बाद वे सभी चले गए. उन के जाने के बाद रुखसाना ने इधरउधर फैले खून को साफ किया और असलम के घर जा कर जाबिर के ऊपर जा कर वापस न आने की बात बताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने रुखसाना को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 4 लोगों को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी. पुलिस को अभी नौकर जाबिर, कमर और शानू की तलाश है. कथा लिखे जाने तक इन में से एक भी अभियुक्त पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना छाता के गांव मांगरौली के रहने वाले हाकिम सिंह की 3 बेटियों में रचना दूसरे नंबर की थी. वह थोड़ा चंचल  स्वभाव की थी, इसलिए हर समय घर की रौनक बनी रहती थी. लेकिन अब उस की यही चंचलता मांबाप को परेशान करने लगी थी, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.

बड़ी बेटी की शादी करने के बाद हाकिम सिंह रचना की शादी के बारे में सोचने लगे थे. लेकिन रचना ने यह कह कर शादी से मना कर दिया कि वह पढ़ना चाहती है. चूंकि वह पढ़ने में ठीकठाक थी, इसलिए हाकिम सिंह ने सोचा कि अगर बेटी पढ़ना चाहती है तो इस में बुराई क्या है.

रचना गांव की लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. वह बनसंवर कर तो रहती ही थी, उसे अपनी खूबसूरती पर गुरुर भी था, इसलिए वह सपने भी अपने ही जैसे खूबसूरत साथी के देखती थी.

हाकिम सिंह के पड़ोस में ही राम सिंह का घर था. राम सिंह उसी की जाति बिरादरी का था, इसलिए दोनों परिवारों में खूब पटती थी. इसी वजह से एकदूसरे के यहां आनाजाना भी खूब था. राम सिंह की ससुराल मथुरा के ही थाना शेरगढ़ के गांव राम्हेरा में थी. उन के साले का बेटा रामेश्वर उन के यहां खूब आताजाता था. वह जब भी आता, बूआ के यहां कईकई दिनों तक रुकता.

रामेश्वर शक्लसूरत से तो ठीकठाक था ही, कदकाठी से भी मजबूत था. बातें भी वह बड़ी मजेदार करता था. बूआ के यहां आनेजाने और कईकई दिनों तक रहने की वजह से रचना से भी उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई थी. दोनों में बातें भी खूब होने लगी थी. अपनी लच्छेदार बातों से रामेश्वर रचना को धीरेधीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा था.

कुछ ही दिनों में रचना को लगने लगा कि वह जैसा साथी चाहती है, रामेश्वर बिलकुल वैसा ही है. दिल में यह खयाल आते ही उस के मन में रामेश्वर से मिलने की बेचैनी होने लगी. इस का नतीजा यह हुआ कि रामेश्वर जब भी आता, रचना ज्यादा से ज्यादा समय राम सिंह के घर ही बिताती.

रामेश्वर बेवकूफ नहीं था कि वह रचना के दिल की बात न भांप पाता. रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होते ही रामेश्वर फूला नहीं समाया. बात ही ऐसी थी. रचना जैसी खूबसूरत लड़की के मन में उस के प्रति चाहत जागना सामान्य बात नहीं थी. उस की जगह कोई भी होता, उस का भी यही हाल होता.

रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होने के बाद भला रामेश्वर ही क्यों पीछे रहता. वह भी अपनी चाहत व्यक्त करने की कोशिश करने लगा यह बात चूंकि किसी के सामने कही नहीं जा सकती थी. इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. रामेश्वर की यह तलाश जल्दी ही पूरी हो गई. एक दिन वह बूआ के घर जा रहा था, तभी रास्ते में रचना मिल गई. उस समय वह स्कूल से आ रही थी.

रामेश्वर को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि उस के मिलते ही रचना ने सहेलियों का साथ छोड़ दिया था. वह रामेश्वर से बातें करने में इस तरह तल्लीन हो गई कि उस की सारी सहेलियां उस से काफी आगे निकल गईं. रामेश्वर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने मौका देख कर दिल की बात कह दी. रचना ने पहले से ही इरादा बना रखा था, इसलिए उसे हामी भरते देर नहीं लगी.

इस तरह उन दोनों की मोहब्बत की बुनियाद रखी गई तो धीरेधीरे उस पर प्यार की दीवारें भी खड़ी होने लगीं. लेकिन उन के प्यार की इमारत तैयार होती, उस के पहले ही लोगों को उन पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि रचना को लगता था कि वह जो कर रही है, किसी को पता नहीं है. वह बेखौफ होती गई. उस का बेखौफ होना ही उस के प्यार की चुगली कर गया. रामेश्वर से मिलनाजुलना, हंसना खिलखिलाना तमाम लोगों की नजरों में आया तो उस की इन्हीं हरकतों से उस की मां को भी संदेह हो गया.

संदेह हुआ तो रामवती रचना पर नजर रखने लगी. जल्दी ही उसे पता चल गया कि रचना का पड़ोसी राम सिंह के रिश्तेदार रामेश्वर से कुछ ज्यादा ही मिलनाजुलना होता है. रामवती के लिए यह चिंता की बात थी. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह थी कि बिटिया पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बालिग भी हो चुकी थी. अगर वह कोई उलटासीधा कदम उठा लेती तो उन के पास तमाशा देखने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. इसलिए उस ने हाकिम सिंह से पूरी बात बता कर जल्दी से जल्दी रचना के लिए घरवर ढूंढने को कहा.

बेटी की इस हरकत के बारे में जान कर हाकिम सिंह हैरान रह गया. जिस बेटी को उस ने हमेशा पलकों पर बैठाए रखा, वही उस की इज्जत का जनाजा निकालने पर तुली थी. हाकिम सिंह ने पत्नी की बातें सुन तो ली थीं, लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ था कि रचना ऐसा कर सकती है. सच्चाई जानने के लिए उन्होंने रचना से पूछा तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा कि उस का रामेश्वर से कोई लेनादेना नहीं है.

रचना ने भले ही झूठ बोल कर बाप को संतुष्ट कर दिया था, लेकिन हाकिम सिंह को अब रामेश्वर खटकने लगा था. उस ने राम सिंह से बात की. रामेश्वर भले ही रिश्तेदार था, लेकिन हाकिम सिंह पड़ोसी ही नहीं था, बल्कि जातिबिरादरी का भी था. बात गांव और परिवार की इज्जत की थी, इसलिए उस ने रामेश्वर को काफी डांटाफटकारा. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह उस के घर तभी आए, जब कोई बहुत जरूरी काम हो.

रचना पर भी सख्ती की जाने लगी, जिस से रामेश्वर से उस का मिलनाजुलना नामुमकिन सा हो गया. बंदिशों से प्यार कम होने के बजाय बढ़ता ही है. रचना और रामेश्वर का प्यार बढ़ा जरूर, लेकिन वे कुछ कर पाते, उस के पहले ही राम सिंह की मदद से हाकिम सिंह ने रचना की शादी मथुरा के ही थाना गोवर्धन के गांव मडौरा के रहने वाले पतिराम के बेटे बिहारी से तय कर दी.

दरअसल, पतिराम की बेटी राम सिंह की सलहज थी. इसी रिश्ते की वजह से राम सिंह ने यह शादी तय करा दी थी. पतिराम का खाता पीता परिवार था. उस के 3 बेटे थे, मोहर सिंह, बिहारी सिंह और रोहतान सिंह. पतिराम के पास खेती की जो जमीन थी, उस पर पतिराम और उस के बेटे मेहनत से खेती करते थे, इसलिए घरपरिवार में खुशी और समृद्धि थी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 2

शीलेश महीने, 2 महीने में घर आता और 1-2 दिन रह कर वापस दिल्ली चला जाता. उस के बाद ममता को जब भी हरीश से मिलना होता, किसी न किसी बहाने एटा चली जाती और उस से मिल लेती. मोबाइल फोन इस काम में उन की पूरी मदद कर रहा था. अब वह खुश थी.

ममता का बारबार एटा जाना रामरखी को अच्छा नहीं लगता था. उस ने रोका भी, लेकिन ममता के बहाने ऐसे होते थे कि वह रोक नहीं पाती थी. फिर उस पर उस का इतना जोर भी नहीं चलता था, इसलिए ममता आराम से हरीश से मिल रही थी.

लेकिन किसी दिन गांव के किसी आदमी ने ममता को हरीश के साथ देख लिया तो उस ने रुकुमपाल से बता दिया कि उस की बहू शहर में किसी लड़के के साथ घूम रही थी. बात चिंता वाली थी. लेकिन रुकुमपाल ने अपनी आंखों से नहीं देखा था, इसलिए वह बहू से कुछ कह नहीं सकता था. रुकुमपाल को पता था कि उन का बेटा उन से ज्यादा पत्नी पर विश्वास करता था, इसलिए उस से कुछ कहने से कोई फायदा नहीं हो सकता था.

उसी बीच रामरखी कुछ दिनों के लिए आशा के यहां चली गई तो ममता को हरीश से घर में ही मिलने का मौका मिल गया. रुकुमपाल दिनभर खेतों पर रहता था, इसलिए ममता हरीश को घर में बुलाने लगी. संयोग से एक दिन रुकुमपाल की तबीयत खराब हो गई तो वह दोपहर को ही घर आ गया. घर में अनजान युवक को देख कर उस ने ममता से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

‘‘मेरे मामा का बेटा है.’’ ममता ने कहा.

‘‘आज से पहले तो इसे कभी नहीं देखा.’’

‘‘पापा, यह पहली बार मेरे यहां आया है.’’

ममता और रुकुमपाल बातचीत कर रहे थे, तभी हरीश चुपके से खिसक गया था. इस से रुकुमपाल को पूरा शक हो गया. उसे लगा कि यह वही लड़का है, जिसे ममता के साथ एटा में देखा गया था.

अब रुकुमपाल ममता पर नजर रखने लगा. बाहर आनेजाने के लिए भी वह मना करने लगा. परेशान हो कर आखिर एक दिन ममता ने कह दिया, ‘‘मैं इस घर की बहू हूं, नौकरानी नहीं कि 24 घंटे घर में कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहूं. मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं. जब देखो तब आप रोकतेटोकते रहते हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

रुकुमपाल समझ गया कि बहू उस के हाथ से निकल चुकी है. अब इसे संभालना उस के वश का नहीं है. इसलिए उस ने शीलेश को फोन किया कि वह आ कर अपनी बीवीबच्चों को ले जाए. क्योंकि अब उन्हें संभालना उस के वश में नहीं है.

‘‘ऐसा क्या हो गया पापा?’’ शीलेश ने पूछा.

रुकुमपाल ने सच्चाई छिपा ली, क्योंकि वह जानता था कि सच्चाई बताने पर बेटे का घर टूट सकता है. उस ने कहा, ‘‘मुझे लगता है, तुम्हारे बिना ममता उदास रहती है. बच्चे भी तुम्हें बहुत याद करते हैं.’’

‘‘ठीक है पापा, मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आ रहा हूं.’’

ममता को जब पता चला कि रुकुमपाल उसे दिल्ली भेजना चाहता है तो वह बेचैन हो उठी. उस ने तुरंत शीलेश को फोन किया, ‘‘तुम अपने काम में मन लगाओ. अगर मैं दिल्ली आ गई तो यहां दादी और पापा को कौन देखेगा. तुम मेरी और बच्चों की चिंता बिलकुल मत करो. मेरी तो अब तुम्हारे बिना रहने की आदत सी पड़ गई है.’’

रामरखी के न रहने से ममता आजाद थी. उस ने एक दिन फोन कर के फिर हरीश को बुला लिया. रुकुमपाल ममता पर बराबर नजर रख रहा था. इसलिए हरीश के आने की खबर उसे लग गई. संयोग से उस दिन ममता ने दरवाजा बंद नहीं किया था, इसलिए रुकुमपाल ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया.

रुकुमपाल को देख कर हरीश तो भाग खड़ा हुआ, जबकि ममता डर के मारे कांपने लगी. रुकुमपाल ने पहले तो उसे खूब फटकारा. इस के बाद कहा, ‘‘अब तुम्हें गांव में रहने की जरूरत नहीं है. मैं सब कुछ बता कर शीलेश को बुलाता हूं और तुम्हें उस के साथ दिल्ली भेज देता हूं.’’

ममता बुरी तरह डर गई. क्योंकि अगर उस के और हरीश के संबंधों की जानकारी शीलेश को हो गई तो उस की नजरों में गिर जाएगी. दूसरी ओर वह दिल्ली बिलकुल नहीं जाना चाहती थी. इसलिए सोचने लगी कि वह ऐसा क्या करे कि शीलेश को बाप की बात पर विश्वास न हो.

रुकुमपाल ने ममता को भले ही धमकी दे दी थी, लेकिन शीलेश को यह सब बताना नहीं चाहता था. क्योंकि बेटे की गृहस्थी बरबाद नहीं करना चाहता था. ममता ने हरीश से कह दिया था कि कुछ दिनों तक वह इधर बिलकुल न आए. इस के बाद उस ने पूरी योजना बना कर जो ड्रामा रचा, उस में सचमुच उस ने रुकुमपाल को चारों खाने चित कर दिया. उस ने शीलेश को फोन किया, ‘‘तुम जल्दी से गांव आ जाओ. मैं यहां बहुत परेशान हूं.’’

‘‘तुम्हें जो भी परेशानी हो, पापा से बता दो. मैं अभी नहीं आ सकता, क्योंकि मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी.’’ शीलेश ने कहा.

‘‘उन से क्या बताऊं परेशानी, परेशानी की वजह ही वही हैं. तुम्हें अपनी नौकरी की पड़ी है और मैं यहां उन की हरकतों से परेशान हूं.’’

‘‘क्या… पापा की हरकतों से परेशान हो?’’ शीलेश हैरानी से बोला.

‘‘एक ही बात को कितनी बार कहूं?’’ ममता गुस्से में बोली.

ममता ने ऐसी बात कह दी थी कि मजबूरन शीलेश को छुट्टी ले कर घर आना पड़ा. बेटे को देख कर रुकुमपाल ने राहत की सांस ली. उस ने सोचा कि बेटा आ गया है तो वह बहू को उस के साथ भेज देंगे. उस के बाद सारा झंझट खत्म हो जाएगा.

रुकुमपाल कुछ दूसरा सोच रहा था, जबकि ममता कुछ और ही सोचे बैठी थी. रात में उस ने रोते हुए शीलेश से कहा, ‘‘तुम तो दिल्ली में रहते हो, यहां मुझे इज्जत बचाना मुश्किल हो गया है.’’

‘‘तुम्हें भ्रम हुआ होगा. करने की कौन कहे, पापा ऐसा कभी सोच भी नहीं सकते.’’ शीलेश ने कहा.

‘‘उन्हें पता है कि तुम मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे, इसीलिए तो वह मुझे गंदी नजरों से देखते हैं. इस हालत में मैं अपनी इज्जत कैसे बचाऊं?’’

शीलेश को पत्नी की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था. जिस बाप ने उस की खातिर अपनी जवानी होम कर दी थी, वह उस की पत्नी के साथ गलत काम करने की कैसे सोच सकता था. उस ने ममता को समझाना चाहा, लेकिन ममता अपनी जिद पर अड़ी थी.

तब उस ने दिल्ली चलने को कहा तो ममता ने वहां जाने से मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं जाना मुझे दिल्ली, वहां उस छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है.’’

उस रात ममता ने रोधो कर ऐसा त्रियाचरित्र रचा कि शीलेश को पूरा विश्वास हो गया कि ममता सही है और उस के पापा गलत. यही नहीं, उस ने वादा भी कर लिया कि सुबह वह इस बात को ले कर पापा से आरपार की बात करेगा.

सुबह रुकुमपाल शीलेश से ममता के बारे में कुछ कहता, उस से पहले ही शीलेश ने कहा, ‘‘पापा आप एकदम बेशरम ही हो गए हैं क्या?’’

‘‘क्यों? मैं ने ऐसा क्या किया, जो तुम मुझे बेशरम कह रहे हो?’’ रुकुमपाल ने हैरानी से कहा.

‘‘बहू पर नीयत खराब किए हो और कह रहे हो कि मैं ने क्या किया है.’’

रुकुमपाल की समझ में सारा माजरा आ गया. उस ने बेटे को समझाने के लिए कहा, ‘‘बेटा अपना पाप छिपाने के लिए तुम्हारी पत्नी मेरे ऊपर यह लांछन लगा रही है. सोचो, जिस आदमी ने अपनी पूरी जिंदगी तुम लोगों के पीछे होम कर दी, अब इस उम्र में वह ऐसी घटिया हरकत करेगा. मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि बुढ़ापे में मुझ पर यह कलंक भी लगेगा.’’

‘‘पापा, आप कुछ और कह रहे हैं और ममता कुछ और.’’

ममता ने रोधो कर शीलेश के मन में रुकुमपाल के खिलाफ जो जहर भरा था, उस की वजह से वह बाप की न कोई बात सुनने को तैयार था न कोई तर्क. रुकुमपाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह शीलेश को कैसे समझाए कि गलत वह नहीं, गलत ममता है.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 3

जिद बन गई मौत का सबब

नितिन काफी दिनों से रेनू से जिद कर रहा था कि वे इस कोठी को बेच कर ब्रिटेन चलते हैं, जहां वे कोई बिजनैस या जौब कर लेंगे. लेकिन नितिन की इस जिद का रेनू ने कभी समर्थन नहीं किया. रेनू को क्या पता था कि नितिन की यही जिद उस की मौत का सबब बन जाएगी.

नितिन नाथ की जिद थी कि रेनू उस के साथ सेक्टर 30 वाला घर बेच कर ब्रिटेन में बस जाएं, लेकिन रेनू की बारबार की न के कारण दोनों के बीच झगड़े होने लगे. कभीकभी तो नितिन रेनू पर हाथ भी छोड़ देता था. रेनू ने अपने भाई और बेटे को यह बात बता दी थी. इसलिए बेटे ने तो अपने पिता से बात तक करनी बंद कर दी. अजय सिन्हा भी नितिन को इस बात पर लानत देने लगे.

इसी दौरान जब 3 महीने पहले रेनू इलाज के लिए बेटे के पास अमेरिका गई तो नितिन ने अपनी कोठी को बेचने के प्रयास शुरू कर दिए. एक महीना पहले जब रेनू कैंसर के इलाज से ठीक हो कर घर आईं तो उस से पहले नितिन ने मनमोहन भंडारी नाम के एक ब्रोकर से अपनी कोठी का 5 करोड़ 70 लाख में सौदा कर लिया और बतौर एडवांस 55 लाख रुपए का बयाना भी ले लिया था.

पत्नी कोठी बेचने का कर रही थी विरोध

घर आने के 15 दिन बाद नितिन ने रेनू को बताया कि उस ने कोठी का सौदा कर दिया है. बस इस बात पर दोनों के बीच आए दिन लड़ाई होनी शुरू हो गई. पहले तो केवल कहासुनी होती थी बाद में हाथापाई भी होने लगी और उस के बाद इस झगड़े की बात उन के बेटे व रेनू के घर वालों को पता चल गई.

रेनू ने साफ कह दिया था कि वह किसी भी हाल में अपना घर नहीं बेचने देगी, क्योंकि उस घर में उन के मेहनत की कमाई भी लगी थी और इस घर में उन की जिंदगी भर की यादें जुड़ी थीं.

कत्ल से 2 दिन पहले रेनू और उन के पति नितिन के बीच प्रौपर्टी को ले कर ही विवाद हुआ था. रेनू ने यह बात भी अपने बेटे व भाई को बताई थी. रविवार को सुबह से ही दोनों के बीच कोठी बेचने के विवाद पर बहस चल रही थी. दरअसल, ब्रोकर ने कह दिया था कि वह जल्द ही मकान खाली कर रजिस्ट्री उन के नाम कर दे या एडवांस वापस कर दे.

नितिन नाथ ब्रिटेन में सैटल होने की तैयारी में इतना पैसा पानी की तरह बहा चुका था कि अब वह मकान बेचने के फैसले से पीछे नहीं हट सकता था. यही कारण था कि आए दिन रेनू से उस की बहस होने लगी.

रविवार की सुबह 10 से 11 बजे के बीच में इसी बात को ले कर रेनू व नितिन की बहस इतनी बढ़ी कि गुस्से में आ कर उस ने रेनू का सिर दीवार पर दे मारा. जब वह चीखने लगीं तो नितिन नाथ ने तकिए से रेनू का मुंह दबाना शुरू कर दिया, जिस से वह निस्तेज हो गईं. उस ने मुंह पर कपड़ा बांध कर उसे खींच कर बैडरूम के ही बाथरूम में डाल दिया. अपने गुस्से में रेनू से हाथापाई करते वक्त नितिन ये भूल गया था कि ब्रोकर को किसी ग्राहक के साथ उस का घर देखने के लिए एक घंटे बाद आना है.

थोड़ी देर में ब्रोकर घर देखने आने वाला था तो नितिन नाथ ने बैडरूम में बने बाथरूम में रेनू की लाश को छिपाया और बाहर से उस पर ताला लगा दिया. जब ब्रोकर व खरीदार कोठी देखने आए तो उस ने पूरी कोठी दिखाई भी थी, सिवाय उस बाथरूम के जहां उस की बीवी की लाश थी.

नितिन ने खरीदार को बताया था कि उस की बीवी को कैंसर है, इसलिए बाथरूम की तरफ न ही जाएं तो ठीक है, क्योंकि इस से इंफेक्शन का खतरा हो सकता है. मकान देखने के बाद ब्रोकर व खरीदार गए. इस के बाद नितिन ने बाथरूम खोल कर देखा तो रेनू की नाक व कान से खून निकल रहा था. पत्नी के मर्डर के बाद उस ने ठंडे दिमाग से सोचा कि क्या करना है और क्या नहीं, क्या चीजें उसे फंसा सकती हैं.

ब्रिटेन भाग जाना चाहता था नितिन

इस के बाद नितिन ने घर में बिखरा सारा खून साफ कर दिया. और तो और रेनू का लैपटाप, उस की गाड़ी की चाबी ये सारी चीजें भी उस ने ठिकाने लगा दी थीं. उस ने घर के सीसीटीवी कैमरे को भी छिपा कर रख दिया, ताकि अगर कोई घर में आए तो यह लगे कि रेनू शायद कहीं बाहर गई हैं.

नितिन के पास ब्रिटिश पासपोर्ट पहले से ही था, जिस से वह आसानी से भारत से बाहर भाग सकता था. उस ने फैसला कर लिया था कि वह अगले दिन या रात में रेनू की लाश को ठिकाने लगा देगा. इस के बाद उस ने बचने के लिए खुद को स्टोर रूम में बंद कर लिया.

उसे पता था कि रेनू से मिलने के लिए उस के परिवार का कोई सदस्य या परिचित घर आ सकता है. इसलिए उस ने सुबह से ही अपने घर के मुख्य गेट पर बाहर से ताला लगा दिया था. ब्रोकर को भी उस ने कोठी के अंदर बुलाने के लिए छोटे दरवाजा को खोला था.

शव मिलने के बाद पुलिस को लगा कि नितिन देश छोड़ कर भाग गया होगा, क्योंकि वह ब्रिटेन भागना ही चाहता था. लेकिन जब नितिन व रेनू दोनों के मोबाइल की लोकेशन घर के अंदर मिली और रेनू की लाश मिलने के बावजूद सीसीटीवी में नितिन के घर से बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं मिली तो पुलिस को लग गया कि हो न हो कोठी के भीतर ही कातिल का राज छिपा है. फिर कत्ल के 15 घंटे बाद स्टोररूम में छिपे रेनू के कातिल पति नितिन नाथ को गिरफ्तार कर लिया गया.

नितिन नाथ ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि स्टोर रूम में छिपे रहने के दौरान उस के फोन पर जिस की भी काल आई, उस ने सब को बताया था कि वह दिल्ली में लोधी रोड पर है, जब घर आएगा तो मुलाकात करेगा. उस का कहना था कि अगर वह पकड़ा नहीं जाता तो वह बाहर भाग जाता और फिर बाद में कभी कोर्ट में अपने वकील के माध्यम से हाजिर होता.

नितिन नाथ स्टोररूम में छिपे रहने के दौरान सिर्फ कौफी पी कर अपना पेट भरता रहा. उस ने अपने व रेनू के फोन को साइलेंट मोड पर डाल कर वाइब्रेशन पर कर दिया ताकि घर में कोई आ भी जाए तो उस के स्टोररूम में छिपे होने की जानकारी किसी को न मिले.

विस्तार पूछताछ के बाद जांच अधिकारी इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला ने नितिन नाथ को अपनी पत्नी रेनू की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उसे अगले दिन हत्या व सबूत नष्ट करने के आरोप में अदालत के समक्ष पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस की जांच, आरोपी के बयान व पीडि़तों के कथन पर आधारित)

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 3

एक दिन बिजनैस ट्रिप की बात कह कर मनु अहमदाबाद जा पहुंचा. मनु को रिसीव करने मिंटू और रश्मि स्टेशन पर आई थीं. मिंटू के पापा वहां किसी फैक्ट्री में काम करते थे. उन की 12 घंटे की नौकरी थी. प्राइवेट नौकरी, ऊपर से महंगाई में पूरे परिवार का खर्च. मनु उन के यहां 2 दिन रुका. सुकृति जानती थी कि वह मुंबई गया है. यह अस्वाभाविक भी नहीं था, क्योंकि अकसर बिजनैस के काम से वह वहां जाता रहता था.

अहमदाबाद में किराए के छोटे से मकान में मिंटू का परिवार जैसेतैसे गुजर कर रहा था. भले ही मनु की शाही आवभगत नहीं हुई, लेकिन उसे वहां जो प्यार और अपनत्व मिला, वह उस के लिए अप्रत्याशित था. बातोंबातों में रश्मि ने मनु के सामने अपनी दिली ख्वाहिश भी जाहिर कर दी थी कि 10 लाख में एक मकान मिल रहा है, लेकिन पैसे नहीं हैं. मनु के लिए उन की हैल्प कर देना मुश्किल नहीं था.

2 दिन और 2 रात का समय कम नहीं होता. इस बीच मनु की उन लोगों से जी भर कर बातें हुईं. सब से अहम बात तो यह थी कि रश्मि ने उसे मिंटू से बातचीत करने, उस के साथ घूमनेफिरने का भरपूर मौका दिया था. वह मिंटू को सिनेमा दिखाने भी ले गया था. यहां गांव जैसी पाबंदियां तो थी नहीं, सब खुले विचारों वाले लोग थे, सो मनु को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था.

मनु ने अपनी अहमदाबाद की 2 दिनों की यात्रा में जम कर पैसा खर्च किया. अंकलआंटी और अन्य बच्चों को बहुत से उपहार ला कर दिए. मिंटू को उस ने एक गोल्डन रिंग भी गिफ्ट की थी, जिस में डायमंड जड़े थे. शायद उस की असली कीमत का अहसास मिंटू को तो क्या, उस के मम्मीपापा को भी नहीं था.

रात में जब रश्मि और मिंटू से मनु की बातें हो रही थीं तो सुकृति का जिक्र आना स्वाभाविक था. नजदीकियां बढ़ चुकी थीं, सो मनु ने रश्मि से सुकृति के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में बता दिया. अपने जीवन के एकाकीपन को उस ने इन नए अपनों के सामने खुली किताब की तरह स्पष्ट कर दिया. रश्मि के अनुभव की गहराई की थाह वह नहीं ले पाया था. उस ने अभी दुनिया देखी ही कहां थी?

मौके का फायदा उठा कर रश्मि ने कहा था, ‘‘बेटा, तुम सुकृति से शादी कर के फंस गए. अगर तुम पहले मिले होते तो मिंटू की शादी मैं तुम्हीं से करती.’’

रश्मि ने यह बात मजाक में कही थी या गंभीरता से, यह मनु नहीं समझ पाया. लेकिन इस बात से मनु इतना प्रभावित हुआ कि अब वह उन्हीं का हो कर रह गया. रश्मि आंटी और मिंटू अब उस के लिए खास बन चुके थे.

मनु शब्द के पीछे छिपी विवशता के आगे मौन था, लेकिन अब हो भी क्या सकता था? मिंटू सामने बैठी अपलक उसे ही निहारे जा रही थी. मनु के दिमाग में एक अनोखा विचार चल रहा था. शायद वैसा ही विचार इस परिवार के दिलोदिमाग में कब से बैठा था, इस का मनु को अहसास भी नहीं हो पाया था.

रश्मि उठी और दूसरे कमरे में चली गई. उस के जाते ही मिंटू ने कहा, ‘‘आई लव यू जीजू, मैं अब आप के बगैर नहीं रह सकती.’’

यह सब संयोगवश हुआ था अथवा इस के पीछे कोई पूर्व योजना काम कर रही थी, मनु को इस बारे में सोचने का मौका नहीं मिला. अब उसे मिंटू के अलावा दुनिया में कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. रश्मि दूसरे कमरे में जा कर सो चुकी थी. दरवाजा भिड़ा दिया गया था. यह किस बात का संकेत था, मनु समझ नहीं पाया.

मिंटू आ कर उस के एकदम नजदीक सट कर बैठ गई. भावनाओं पर परिस्थितिजन्य असर होने लगा. मिंटू का स्पर्श पाते ही मनु उस की बांहों में समा गया. धीरेधीरे सब दीवारें ढह गईं. रश्मि गहरी नींद में सो चुकी थी. यह नींद कितनी गहरी थी, मनु को कुछ पता नहीं था.

मनु को लगा कि मिंटू में जोश और प्रेम का जो उफान है, वह सुकृति जैसी साधारण लड़की में नहीं है. वह बर्फ की मूरत जैसी थी, जो घर में अपने सासससुर और बड़ों की सेवा करना ही अपना धर्म समझती थी. पति को ऐसा विलक्षण सुख देने में शायद वह पूरी तरह असफल थी.

उस पूरी रात मनु और मिंटू एकदूसरे के हो कर जिए. उसी बीच उन्होंने संग जीने और मरने की कसमें भी खा लीं. सुबह रश्मि ने साफ कह दिया कि अगर वह सुकृति से तलाक ले लो तो वह उसे अपना दामाद बनाने को तैयार है.

तब मनु ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि ने सुबहसुबह यह बात कह कैसे दी? क्योंकि रात में मिंटू की अपनी मम्मी से कोई बात भी नहीं हुई थी. ऐसे में उन्हें बीती रात की घटना के बारे में कैसे अनुमान हो गया? शायद इसे ही बुद्धि कहते हैं. रश्मि ने 45 साल की उम्र तक भाड़ नहीं झोंका था. शतरंज का खिलाड़ी चाल चलने से पहले ही सब सोच लेता है.

मनु ने रश्मि की बातों को सिरआंखों से स्वीकार कर लिया. बैग से उस ने चैक बुक निकाली और 3 लाख रुपए का चैक रश्मि को थमाते हुए कहा, ‘‘लीजिए आंटीजी, आप मकान लेना चाहती हैं न, एडवांस दे कर सौदा कर लीजिए.’’

रश्मि ने चैक झपट लिया. सौदा मकान का हो रहा था या किसी और चीज का, इस पर बात करना बेकार है. 2 दिन अहमदाबाद में रह कर मनु ने जीभर कर एंजौय किया. उस का मन घर लौटने का नहीं हो रहा था, लेकिन मजबूरी थी, सो लौटना पड़ा. मिंटू ने जल्द आने का प्रौमिस करवा कर ही उसे छोड़ा था.

मनु में आए बदलाव को घर के लगभग हर आदमी ने महसूस किया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. मनु अब अक्सर घर से बाहर रहने लगा था. घर का कोई शख्स कहता भले कुछ नहीं था, लेकिन यह जरूर सोचने लगा था कि मसला क्या है.

गर्मियां शुरू हो चुकी थीं. कुछ दिनों बाद एक दिन मनु सूटकेस ले कर जाने लगा तो बड़े भाई ने टोका, ‘‘क्या हुआ, कहां जा रहे हो?’’

‘‘मुंबई, एक डील करनी है.’’ मनु ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.

मां से नहीं रहा गया. उस ने सख्ती से कहा, ‘‘कोई जरूरत नहीं बाहर जाने की. पहले इस बिजनैस को संभालो, आगे की बाद में देखी जाएगी.’’

मनु को यह टोकाटाकी अच्छी नहीं लगी. उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘45 लाख की डीलिंग है मां, नहीं जाऊंगा तो हाथ से निकल जाएगी. आप कह रही हैं तो नहीं जाता. आप दे देंगी 45 लाख रुपए.’’

मां भला बिजनैस की बात क्या समझती. सुकृति ने मनु का पक्ष लेते हुए सास को समझाया, ‘‘बड़ी डीलिंग है मम्मी, 2-4 दिन में लौट आएंगे. इन्हें जाने दीजिए ना.’’

मां लाचार हो गई. मनु आराम से चला गया. जिंदगी रोजमर्रा की तरह आगे बढ़ती रही. 2 दिनों में लौटने को कहा था, लेकिन 4 दिन बीत गए और मनु नहीं लौटा. चिंता की बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन बंद था. सभी घबराने लगे. एक दिन और इंतजार किया गया. लेकिन मनु का कोई मेसेज नहीं आया. इस बीच एक बात जरूर पता चली कि उस ने किसी मित्र से मौरिशस जाने और एक सप्ताह बाद लौटने की बात कही थी.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 2

पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी.

हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, न ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास न तो कोई व्यवस्था थी, न ही समाज उस के साथ था.

सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि न तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, न ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’

प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता न चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया.

एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’

जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता न करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’

प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’

प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी.