प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 1

राजस्थान की स्वर्णनगरी जैसलमेर शहर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित मोहल्ला कंसारापाड़ा के रहने वाले भगवानदास सोनी की पत्नी  सुबह सो कर उठीं तो उन्हें बेटी की चारपाई खाली दिखी. उन्हें लगा, सुनीता वौशरूम गई होगी. लेकिन जब वह वौशरूम की तरफ गईं तो उस का दरवाजा खुला था. सुनीता वैसे भी उतनी सुबह उठने वालों में नहीं थी. वौशरूम खाली देख कर उन्हें हैरानी होने के साथसाथ बेटी को ले कर उन्होंने जो अफवाहें सुन रखी थीं, संदेह भी हुआ.

वह भाग कर कमरे में पहुंची तो अलमारी खुली पड़ी थी और उस में से सुनीता के कपड़े गायब थे. अलमारी में रखा एक बैग भी गायब था. अब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सुनीता कहां है? वह सिर थाम कर वहीं बैठ गईं और जोरजोर से रोने लगीं.

उन के रोने की आवाज पति भगवानदास और बेटे ने सुनी तो वे भाग कर उन के पास आ गए और पूछने लगे कि सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि वह इस तरह रो रही हैं. वह इतने गहरे सदमे में थीं कि उन के मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. भगवानदास ने जब झकझोर कर पूछा, ‘‘अरे बताओगी भी कि क्या हुआ?’’

तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या बताऊं, गजब हो गया. जिस बात का डर था, आखिर वही हुआ. सुनीता कहीं दिखाई नहीं दे रही है. अलमारी से उस के कपड़े और बैग भी गायब है.’’

भगवानदास सोनी को भी समझते देर नहीं लगी कि सुनीता प्रेमी के साथ भाग गई है. वह भी सिर थाम कर बैठ गए. पलभर में यह खबर पूरे घर में फैल गई. पूरा परिवार इकट्ठा हो गया. इस के बाद सुनीता के प्रेमी सुमेरनाथ गोस्वामी के बारे में पता किया गया. वह भी घर से गायब था.

संदेह यकीन में बदल गया. धीरेधीरे बात पूरे मोहल्ले में फैलने लगी. लोग भगवानदास सोनी के घर इकट्ठा होने लगे. बात इज्जत की थी, समाज बिरादरी में हंसी फजीहत की थी, इसलिए सलाहमशविरा होने लगा कि अब आगे क्या किया जाए.

दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है, इसी के साथ तमाम बदलाव भी आए हैं. इस के बावजूद आज भी देश में ऐसे तमाम इलाके हैं, जहां आधुनिक होते हुए भी लोग अपनी परंपराओं में जरा भी बदलाव नहीं ला पाए हैं. वैसे ही इलाकों में एक है पश्चिमी राजस्थान का जैसलमेर. यहां हर जाति की अपनी अलगअलग परंपराएं हैं.

दुनिया भले ही 21वीं सदी में पहुंच गई है, कंप्यूटर ने पूरी दुनिया को एक जगह समेट दिया है, पर जैसलमेर के लोग अपनी परंपराओं को बिलकुल नहीं बदल पाए हैं. जबकि यह भारत का एक ऐसा पर्यटनस्थल है, जहां पूरी दुनिया से लोग आते रहते हैं. कह सकते हैं कि एक तरह से यह नगर पूरी दुनिया की सभ्यता का केंद्र है.

विदेशों से आने वाले पर्यटक लड़कियों का हाथ पकड़ कर घूमते हैं. यह सब देख कर भी यहां के लोग प्रेम या प्रेम विवाह के नाम से घबराते हैं. यहां के लोग अपने ही समाज और जाति बिरादरी में शादी करते हैं. अगर किसी की लड़की या लड़के ने गैरजाति में शादी कर ली तो उसे जाति से बाहर कर दिया जाता है. कोई भी न उस के घर जाता है और न उसे अपने घर आने देता है. ऐसे में घर के अन्य बच्चों की शादियों में रुकावट आ जाती है. इसीलिए यहां के लोग प्रेम विवाह करने से बचते हैं.

नई पीढ़ी इस परंपरा से परेशान तो है, लेकिन इसे तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है. इस परंपरा में सब से बड़ी परेशानी यह है कि घर वाले शादी अपनी मरजी से करते हैं. कुछ जातियों में तो आज भी शादी के पहले लड़का न लड़की को देख सकता है और न लड़की लड़के को. ऐसे में घर वाले कभी पढ़ेलिखे लड़के की शादी अनपढ़ लड़की से कर देते हैं तो कभी पढ़ीलिखी लड़की अनपढ़ लड़के से ब्याह दी जाती है.

इस का दुष्परिणाम भी सामने आ रहा है. तमाम पतिपत्नी में विलगाव हो रहा है. लेकिन ज्यादातर लड़केलड़कियां ऐसे हैं, जो न चाहते हुए भी जिंदगी निर्वाह करते हैं. बालविवाह पर रोक तो लग गई है, लेकिन रिवाज के अनुसार यहां आज भी सगाई किशोरावस्था तक पहुंचतेपहुंचते कर दी जाती है. बाद में शादी उसी से होती है, जिस के साथ सगाई हुई होती है. सगाई भी इस तरह होती है कि जान कर हैरानी होती है.

एक कोठरी में बड़ेबुजुर्ग बैठ कर लड़का लड़की के नाम खोलते हैं. जिस लड़की का जिस लड़के के साथ नाम खुल जाता है, अफीम और गुड़ बांट कर उस के साथ उस की सगाई पक्की कर दी जाती है. इस के बाद अगर कोई सगाई तोड़ता है तो उसे भारी जुर्माना देना पड़ता है. इसलिए सगाई हो गई तो शादी पक्की मानी जाती. ये परंपराएं तब बनी थीं, जब लोग अनपढ़ थे. आज लोग पढ़लिख गए हैं, लेकिन परंपराओं और प्रथाओं में कोई बदलाव नहीं आया है.

परंपराओं और प्रथाओं में बंधे होने की वजह से बेटी के इस तरह भाग जाने से  भगवानदास सोनी और उन के घर वालों को भी जाति से बाहर किए जाने और अन्य बच्चों की शादियों की चिंता सताने लगी थी. उन के लिए परेशानी और चिंता की बात यह थी कि वे बात को आगे बढ़ाते थे तो उन्हीं की बदनामी होती थी. इस के बावजूद वे शांत हो कर बैठ भी नहीं सकते थे.

बात बिरादरी की इज्जत की थी, इसलिए सभी ने सलाहमशविरा कर के तय किया कि जो हुआ, वह ठीक नहीं हुआ. आगे फिर कभी ऐसा न हो, इसलिए सुनीता को भगा कर ले जाने वाले सुमेरनाथ को सबक सिखाने के लिए उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना जरूरी है. इस के बाद भगवानदास सोनी अपने कुछ शुभचिंतकों के साथ महिला थाने पहुंचे और सुमेरनाथ गोस्वामी के खिलाफ सुनीता को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जो तहरीर दी,

उस में लिखा, ‘मेरी बेटी को दिनांक 2 जुलाई, 2014 को 3 बजे सुबह के आसपास मेरे घर से सुमेरनाथ गोस्वामी पुत्र ईश्वरनाथ गोस्वामी बहलाफुसला कर शादी करने की नीयत से भगा ले गया है.’

महिला थाने में सुमेरनाथ गोस्वामी के खिलाफ सुनीता सोनी को भगा ले जाने की रिपोर्ट भगवानदास सोनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर दर्ज कर ली गई. इस के बाद इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक विजय शर्मा और उपपुलिस अधीक्षक अशोक कुमार को दे दी गई. पुलिस अधिकारियों ने महिला थाना की थानाप्रभारी को जल्दी से जल्दी अभियुक्त सुमेरनाथ को गिरफ्तार कर लड़की बरामद करने के निर्देश दिए.

अधिकारियों के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी ने सबइंसपेक्टर भवानी सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर अभियुक्त सुमेरनाथ की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौंप दी. भवानी सिंह का मुखबिर तंत्र बहुत मजबूत था. उन्होंने अपने मुखबिरों को सुमेरनाथ के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया.

इसी के साथ सुमेरनाथ और सुनीता की खोज रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों पर की जाने लगी. लेकिन इन जगहों से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इसी क्रम में पुलिस टीम पोकरण, फलोदी, बालोतरा, पाली, अजमेर, अलवर और बीकानेर तक ढूंढ़ने गई, लेकिन इन जगहों पर भी उन के बारे में कुछ पता नहीं चला.

पैसों की चकाचौंध में बह गई भावना

30 जून, 2023 को गुजरात के जिला भरूच के थाना जंबुसर पुलिस को सूचना मिली कि पगरनाला में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. लाश किसी पुरुष की थी, जिस की उम्र 36 साल के आसपास थी.

मरने वाले के शरीर पर कपड़े के नाम पर सिर्फ पैंट थी. पुलिस ने पैंट की तलाशी ली कि शायद उस की जेब से ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की पहचान हो जाए. पर उस की जेब से कुछ भी नहीं मिला. आसपास भी ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. तब पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस के बाद थाने आ कर यह पता करने की कोशिश की जाने लगी कि जिले में कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. पर जिले के किसी थाने में उस हुलिए के किसी व्यक्ति की कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने लाश को बड़ौदा की मोर्चरी में रखवा दी. इस के बाद पुलिस यह पता करने की कोशिश करती रही कि मरने वाला कौन है?

10 दिन बाद हुई लाश की शिनाख्त

लाश मिलने के 10 दिनों बाद थाना जंबुसर से करीब 400 किलोमीटर दूर जिला बनासकांठा के थाना थराद के एसएचओ इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी ने फोन कर के जंबुसर पुलिस से पूछा, “पता चला है कि आप के थानांतर्गत एक पुरुष की लाश मिली है. मरने वाले की उम्र 36 साल के आसपास है.”

“जी, आज से 10 दिन पहले नाले में एक लाश मिली थी. मरने वाले की यही उम्र होगी, जितनी आप बता रहे हैं. मैं उस के फोटो भेज रहा हूं. लाश अभी मोर्चरी में रखी है.” थाना जंबुसर पुलिस ने कहा.

जंबुसर पुलिस ने लाश के फोटो भेजे तो पता चला कि वह लाश गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील थराद के गांव चोटपा के रहने वाले मारवाड़ी चौधरी पटेल शंकरभाई की थी. वह गांव में रह कर खेती करने के साथसाथ मकान बनाने के ठेके लेता था. उस के परिवार में पत्नी भावना पटेल के अलावा 3 बच्चे और बूढ़े मांबाप थे. पिता को लकवा मार दिया था, इसलिए वह चलफिर नहीं सकते थे.

29 जून, 2023 को साइट से आने के बाद शाम का खाना खा कर शंकर यह कह कर घर से निकला था कि वह पड़ोस में रहने वाले ऊदाजी के पास जा रहा है. वह घर से गया तो फिर लौट कर नहीं आया. घर वालों ने थोड़ी देर इंतजार किया. पर जब समय ज्यादा होने लगा तो उस के बारे में पता करने लगे. फोन किया गया तो पता चला फोन बंद है.

अगले दिन यानी 30 जून को थाना थराद पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन थाना थराद पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेने के बजाय एकदो दिन और इंतजार करने के लिए कह कर सूचना देने गई शंकर की मां मीरादेवी को वापस भेज दिया था.

गुमशुदगी दर्ज कर पुलिस ने की कार्यवाही

जब 2 जुलाई तक शंकर नहीं आया तो मीरादेवी दोबारा थाने जा पहुंची. इस बार इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी से उन की मुलाकात हो गई. उन्होंने तुरंत शंकर की गुमशुदगी दर्ज कराई और शंकर के बारे में पता कराने का आश्वासन दे कर मीरादेवी को घर भेज दिया.

इस के बाद एसएचओ ने शंकर की तलाश शुरू की. गांव वालों से पूछताछ में पता चला कि शंकर की पत्नी भावनाबेन का चरित्र ठीक नहीं है. इस के बाद उन्होंने भावना का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उन्हें पता चला कि भावना लगातार पड़ोसी गांव कलश के रहने वाले शिवा पटेल के संपर्क में है.

जब उन्होंने शिवा पटेल के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह 29 जून को अंकलेश्वर से गांव आया तो था, पर अपने घर नहीं गया था. इस के अलावा 29 जून को उस ने शंकर को फोन भी किया था. 29 जून की शंकर और शिवा के फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो पता चला कि दोनों के फोन की लोकेशन एक साथ थी.

इस से पुलिस को उस पर शक हुआ तो पुलिस ने उस की लोकेशन निकलवाई. उस की लोकेशन अंकलेश्वर की मिली. इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी की टीम अंकलेश्वर पहुंची और शिवा को गिरफ्तार कर के थाने ले आई.

थाने ला कर शिवा से पूछताछ शुरू हुई. शिवा पुलिस को गोलगोल घुमाता रहा. उस का कहना था कि वह 29 जून को गांव गया ही नहीं था. इधर शंकर से उस की मुलाकात ही नहीं हुई, लेकिन जब पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की लोकेशन उस के सामने रखी तो उस ने शंकर के मर्डर में अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि भावना के साथ रहने के लिए उस ने शंकर की हत्या की है. इस के बाद उस ने भावना से प्यार होने से ले कर शंकर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मेले में मिल गए दोनों के दिल

शंकरभाई पटेल और भावनाबेन का विवाह करीब 14 साल पहले हुआ था. शंकर अपने परिवार के साथ चोटपा गांव में खेतों के बीच मकान बना कर रहता था. उस की दोस्ती कलश गांव के शिवाभाई पटेल से थी. वह भी मारवाड़ी चौधरी पटेल था. वह भी खेतों के बीच घर बना कर रहता था, शायद इसीलिए दोनों में कुछ ज्यादा पटती थी.

शिवा शंकर के घर भी खूब आताजाता था. शिवा अंकलेश्वर में मेटल का धंधा करता था. वह जब भी अंकलेश्वर से गांव आता, शंकर को अपनी क्रेटा गाड़ी में बैठा कर घुमाता था.

एक बार वह राजस्थान के बौर्डर पर लगने वाले लवाड़ा के मेले में घूमने जा रहा था तो शंकर के साथ उस की पत्नी भावना भी मेला देखने गई थी. उसी मेले में शिवा और भावना ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया था. बाद में दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. फोन पर बातें करतेकरते दोनों के बीच प्रेम संबंध बना तो फिर शारीरिक संबंध भी बन गए.

शिवा कुंवारा था, जवान था, अच्छा पैसा कमाता था, उसे एक महिला शरीर की जरूरत भी थी, जो भावना ने पूरी कर दी थी. शिवा के पास पैसों की कमी नहीं थी, वह दिल खोल कर भावना पर पैसे खर्च करता था तो भावना भी प्यार से उस की शारीरिक जरूरतें पूरी करती थी. यह अवैध संबंध इसी तरह चलते रहे.

यह लगाव जब गहराया तो भावना अकसर शिवा से शिकायत करने लगी, “मेरा पति शंकर मुझे बहुत परेशान करता है. जराजरा सी बात पर मुझे मारता है.”

शिवा के प्यार में डूब गई भावना

जब कभी भावना और शंकर में झगड़ा होता तो भावना शिवा को फोन कर के पति और अपना झगड़ा शिवा को सुनाती भी थी. शंकर भावना के साथ जो बरताव कर रहा था, वह शिवा को अच्छा नहीं लगता था. पर वह शंकर से कुछ कह भी नहीं सकता था.

शिवा भावना से बहुत प्यार करता था, इसलिए एक दिन उस ने कहा, “तुम शंकर को छोड़ कर मेरे साथ क्यों नहीं रहने आ जाती? मैं तुम्हें रानी की तरह रखूंगा.”

इस पर भावना ने कहा, “घर में बूढ़े मांबाप हैं, उन्हें छोड़ कर आऊंगी तो समाज मुझ पर थूकेगा. मेरी बहुत बदनामी होगी.”

“तब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं?” शिवा ने कहा.

“कुछ तो करना ही होगा, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रह सकती.” भावना बोली.

28 जून, 2023 को किसी बात पर शंकर और भावना में झगड़ा हुआ. तब भावना ने शिवा को फोन कर के कहा, “शिवा, तुम किसी भी तरह मुझे इस आदमी से छुड़ाओ. अब मैं इस आदमी के साथ बिलकुल नहीं रह सकती.”

शिवा भावना से प्यार तो करता ही था. पर उस के लिए परेशानी यह थी कि उस की बिरादरी में पति या पत्नी को छोडऩा आसान नहीं है. इसलिए जब उस ने भावना से एक बार फिर शंकर को छोड़ कर आने को कहा तो भावना बोली, “अगर मैं शंकर को छोड़ कर आती हूं तो समाज में मेरी बहुत बदनामी होगी. इसलिए शंकर से छुटकारा पाने के लिए उस का कुछ करना होगा.”

“वही तो मैं पूछ रहा हूं कि शंकर का किया जाए?” शिवा ने पूछा.

“ऐसा है, अगर तुम मेरे साथ रहना चाहते हो तो उसे खत्म कर दो. वह नहीं रहेगा तो हम दोनों आराम से रह सकेंगे.” भावना ने कहा.

“ठीक है, जैसा तुम कह रही हो, वैसा ही करते हैं. आराम से बैठ कर योजना बनाते हैं, उस के बाद शंकर को खत्म कर देते हैं.” शिवा ने कहा.

शंकर की हत्या की हुई प्लानिंग

28 जून को यह बात हुई थी. इस के पहले भी दोनों में शंकर नाम के कांटे को निकालने की कई बार बात हो चुकी थी, लेकिन इस के पहले फाइनल योजना नहीं बनी थी. पर इस बार दोनों ने फोन पर ही शंकर को खत्म करने की फाइनल योजना बना डाली.

योजना बनाने के बाद किसी को शक न हो, इसलिए भावना 28 जून को ही मायके चली गई. 29 जून को शिवा ने एक दूसरे नंबर से अपने दोस्त शंकर को फोन कर के अच्छीअच्छी बातें करने के बाद विश्वास में ले कर कहा, “यार शंकर, तुम से एक जरूरी काम है. मैं गाड़ी ले कर आ रहा हूं. तुम ऐसा करो, सडक़ पर आ कर मुझ से मिलो.”

इस बीच भावना से भी शिवा की बातचीत होती रही. 2 महीने पहले भावना और शिवा के बीच शंकर को मारने की बात हुई थी, तब भावना ने कहा था कि शंकर को नींद की गोली खिला कर खत्म कर दो. इसलिए 2 महीने पहले ही उस ने भरूच सिटी से नींद की गोलियां खरीद कर रख ली थीं, जो उस की गाड़ी में ही रखी थीं. 2 महीने पहले हुई बातचीत के अनुसार शिवा अपनी योजना में आगे बढ़ रहा था.

कार में गला घोंट कर की थी हत्या

29 जून, 2023 की दोपहर को अपनी क्रेटा कार नंबर जीजे16डी के1389 ले कर शिवा अंकलेश्वर से निकला. उस ने अपने निकलने की बात शंकर को बता दी थी. चलने के पहले उस ने नींद की गोलियां पीस कर पानी की बोतल में मिला दी थीं.

रात करीब 9 बजे वह गांव चोटपा पहुंचा. उस ने शंकर से बता ही दिया था कि एक जरूरी काम से उसे साथ चलना है, इसलिए वह खाना खा कर तैयार था. गांव पहुंचते ही शिवा ने फोन किया तो शंकर आ कर उस की कार में बैठ गया. शिवा इधरउधर गाड़ी घुमाने लगा.

शिवा समय गुजार रहा था कि शंकर उस से पानी पीने के लिए मांगे. इसलिए वह शंकर को चोटपा से खोडा चरकपोस्ट, साचोर, ननेवा से घानेरा ले गया. जब वह काफी दूर निकल गया तो शंकर ने पानी पीने के लिए मांगा. शिवा ने तुरंत पानी की वही बोतल पकड़ा दी, जिस में उस ने नींद की गोलियां पीस कर मिलाई थीं.

वह पानी पीने के थोड़ी देर बाद शंकर को नींद आ गई. इस के बाद शिवा घानेरा से सीधे डीसा रोड पर गया. सडक़ पर सुनसान जगह देख कर शिवा ने कार रोकी और शंकर के मोबाइल को स्विच्ड औफ कर दिया कि किसी को पता न चल सके.

इस के बाद वह गाड़ी ले कर चल पड़ा. काफी दूर जाने के बाद सुनसान जगह देख कर उस ने सडक़ के किनारे गाड़ी रोक दी. शंकर गहरी नींद में था. शिवा ने कार में रखी रस्सी निकाली और शंकर के गले में लपेट कर कस दी. गला घोंटने से शंकर की सांस हमेशा हमेशा के लिए रुक गई.

बच्चों के अनाथ होने पर समाज ने की मदद

अब उसे शंकर की लाश को ठिकाने लगाना था. वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां कोई उस की पहचान न कर सके. उस ने शंकर को आगे की सीट पर इस तरह बैठा दिया, जिस से लगे कि वह बैठेबैठे सो रहा हो.

शंकर की लाश को ले कर वह डीसा, पालनपुर, मेहसाणा, अहमदाबाद, बड़ौदा होते हुए वह जंबुसर गया. जंबुसर चौराहे से थोड़ी दूर आगे से सिंगल रोड गई थी. उसे वह रोड सुनसान दिखाई दी तो उस ने कार उसी रोड पर उतार दी. लगभग एक किलोमीटर जा कर शिवा को एक पगरनाला दिखाई दिया तो उस ने शंकर की लाश उसी पगरनाले में फेंक दी. उस समय सुबह के 6 बज रहे थे.

लाश को ठिकाने लगाने के बाद शिवा ने फोन कर के यह बात भावना को बताई और वहां से सीधे अंकलेश्वर चला गया. 2 दिन बाद भावना भी ससुराल आ गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो.

हत्याकांड का खुलासा हो जाने के बाद थाना थराद पुलिस ने भावना को भी गिरफ्तार कर लिया. शिवा को थाने में देख कर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद थाना थराद पुलिस ने शिवा और भावना को बनासकांठा की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों का 6 दिन का रिमांड लिया गया.

रिमांड के दौरान बनासकांठा के एसपी अक्षयराज मकवाना ने प्रैस कौन्फ्रैंस की. पत्रकारों के सामने भी प्रेमिका प्रेमी भावना और शिवा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

शंकर, जिस की हत्या हुई है, उस के पिता लकवाग्रस्त हैं, मां बूढ़ी है. 3 बच्चे हैं, जिस में सब से बड़ी बेटी 7 साल, उस से छोटा बेटा 4 साल और सब से छोटा बेटा 2 साल का है. पिता की हत्या हो गई है. पिता की हत्या के आरोप में मां जेल में है. बच्चों की हालत पर दया खा कर आजणा चौधरी समाज के बुजुर्गों ने बच्चों की मदद के लिए 15 लाख रुपए इकट्ठा कर के दिए हैं.

प्यार की वो आखिरी रात

प्रेमिका को गोली मार की खुदकुशी

दांपत्य की लालसा – भाग 3

प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया.

जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा आ गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’

प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से न रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया.

वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी.

प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’

प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गया.

प्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया.

मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया. प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया.

प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है.

11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई.

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा है.

पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने आ कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस आ चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी.

प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया.

शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी.

प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी. मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मंगेतर की कब्र पर रासलीला – भाग 3

संतोष और रेखा मिलते तो थे सब की नजरें बचा कर, लेकिन उन के हावभाव से रमा को उन पर शक हो गया. इस की एक वजह यह थी कि रमा को अपने पति की फितरत पता थी. उस ने रेखा को अपने घर में रखने से मना किया तो संतोष ने उसे अपने मामा चंद्रपाल के यहां बेलहिया पहुंचा दिया. अपनी होने वाली ससुराल देख कर और होने वाले पति से मिल कर रेखा खुश थी.

संतोष ने वहां पहुंच कर चंद्रपाल से कहा था, ‘‘मामा, तुम्हारी होने वाली बहू ले आया हूं. कुछ दिन रख कर देख लो. मैं 10 दिन बाद अंबाला जाऊंगा, तब इसे साथ ले जाऊंगा.’’

चंद्रपाल ने रेखा को अपने घर में रख लिया. रामकुमार अपनी होने वाली पत्नी से बातचीत तो करता था, लेकिन संतोष की तरह कभी उस के नजदीक जाने की कोशिश नहीं की थी. वह सोचता था कि जो काम शादी के बाद होता है, उसे शादी के बाद ही होना चाहिए.

रेखा को मामा के यहां छोड़ कर संतोष अपने घर तो लौट गया, लेकिन जल्दी ही उसे रेखा की याद सताने लगी. 2-3 दिन तो उस ने किसी तरह बिताए, लेकिन जब उस से नहीं रहा गया तो वह मामा के घर आ गया. रेखा चंद्रपाल के यहां घर के अंदर वाले कमरे में लेटती थी, जबकि रामकुमार अपनी मां जनकदुलारी के साथ वाले कमरे में सोता था. संतोष के सोने की व्यवस्था रामकुमार वाले कमरे में की गई थी.

रात में जब संतोष को लगा कि रामकुमार सो गया है तो वह चुपके से उठा और रेखा के कमरे में जा पहुंचा. रेखा ने उसे मना किया तो उस ने कहा, ‘‘यहां सभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं, इसलिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हें पता होना चाहिए कि इतनी दूर मैं सिर्फ तुम से मिलने आया हूं.’’

रेखा मान गई तो संतोष उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगा. इसी बीच अचानक रामकुमार की आंख खुल गई तो उसे रेखा के कमरे में फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी. उस ने संतोष का बिस्तर टटोला तो वह गायब था.

रामकुमार सारा माजरा समझ गया, वह उठ कर सीधे रेखा के कमरे में जा पहुंचा. उस ने वहां जो देखा, उसे देख कर उसे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उस ने उस गुस्से को जब्त कर के सिर्फ इतना ही कहा,

‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने शादी के लिए हामी भर दी थी. लेकिन यह सब देख कर मेरा इरादा बदल गया है. निश्चिंत रहो, मैं यह बात किसी से नहीं बताऊंगा. तुम लोग चुपचाप अपने घर चले जाना.’’

उन दोनों को चेतावनी दे कर रामकुमार अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया. रामकुमार की इस धमकी से रेखा और संतोष सन्न रह गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. पलभर सोचविचार कर के रेखा बोली, ‘‘तुम शादीशुदा हो, इसलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. चिंता की बात यह है कि अंबाला लौट कर हम भैयाभाभी को क्या जवाब देंगे कि रामकुमार शादी क्यों नहीं करना चाहता? अगर रामकुमार ने यह बात सब को बता दी तो हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’

सुन कर संतोष परेशान हो उठा. वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘अगर रामकुमार न रहे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा कि रात में क्या हुआ था. इस का हल अब यही है कि उसे खत्म कर दें. इस से सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘मार तो देंगे, लेकिन उस की लाश का क्या करेंगे?’’ रेखा ने चिंता जाहिर की तो संतोष बोला, ‘‘उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं ने इस बारे में भी सोच लिया है.’’

उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. रेखा और संतोष दबे पांव रामकुमार के कमरे में पहुंचे. तब तक वह सो गया था. संतोष ने रेखा का दुपट्टा ले कर फुर्ती से रामकुमार के गले में डाला और जल्दी से कस दिया. रामकुमार छटपटा कर मर गया.

इस के बाद दोनों लाश को उसी कमरे में ले आए, जहां थोड़ी देर पहले रंगरलियां मना रहे थे. उन्होंने तख्त हटा कर वहां 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा और उस में लाश डाल कर मिट्टी भर दी. सारा काम निपटा कर संतोष ने कहा,  ‘‘रेखा हमें यहां 3-4 दिन रुकना पड़ेगा. अन्यथा लोग हम पर शंका करेंगे. जब मामला शांत हो जाएगा, उस के बाद अंबाला चले जाएंगे.’’

‘‘लेकिन लाश से बदबू आने लगेगी तो हमारा राज खुल जाएगा.’’ रेखा ने आशंका व्यक्त की.

‘‘तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. आज मुझे किसी ने यहां आते देखा तो है नहीं. केवल रामकुमार जानता था, वह रहा नहीं. कल मैं 5-6 किलो नमक ले आऊंगा. उसे डाल देंगे तो लाश गल जाएगी और बदबू नहीं आएगी.’’ कह कर संतोष रात में ही अपने गांव चला गया.

सुबह किसी ने रामकुमार की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जैसेजैसे समय बीता, उस की तलाश शुरू हुई. शाम होतेहोते पूरे गांव में खबर फैल गई कि रामकुमार गायब है. रेखा भी घर वालों के साथ रामकुमार की तलाश में लगी थी.

चंद्रपाल ने संतोष को रामकुमार के गायब होने की बात बताई तो वह भी उस की तलाश के बहाने बेलहिया आ गया. जब सब सो गए तो वह रेखा के कमरे में गया और रामकुमार की लाश पर पड़ी मिट्टी हटा कर अपने साथ लाया नमक उस पर डाल कर ठीक से मिट्टी फैला कर गड्ढा बंद कर दिया. इस के बाद उस के ऊपर तख्त डाल दिया. उस कमरे में अंधेरा रहता था, इसलिए किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया कि वहां गड्ढा खोदा गया है.

घर में अब रामकुमार की मां जनकदुलारी ही रह गई थी. ऐसे में उन्हें किसी का डर नहीं था. इसलिए संतोष रामकुमार की लाश के ऊपर पड़े तख्त पर रेखा के साथ हर रात रंगरलियां मनाने लगा. चूंकि उन्हें इस के बाद इस तरह का मौका फिर मिलने वाला नहीं था. इसलिए इस का वे भरपूर लाभ उठा रहे थे.

रामकुमार का जब कई दिनों तक पता नहीं चला तो चंद्रपाल ने थाना भदोखर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने भी 2-4 दिनों तक राजकुमार को इधरउधर खोजा. जब उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो पुलिस भी सुस्त पड़ गई. अब तक सभी को यकीन हो गया था कि रामकुमार घर छोड़ कर कहीं चला गया है.

उधर जब संतोष को पूरा यकीन हो गया कि गांव और घर वालों ने रामकुमार को लापता मान लिया है तो वह रेखा को ले कर वापस अंबाला चला गया. वहां उस ने रामकुमार के गायब होने की बात बता कर रेखा और रामकुमार की शादी वाली बात खत्म कर दी.

बाद में संतोष को रेखा से भी डर लगने लगा कि कहीं वह किसी से सच्चाई न बता दे. इस से बचने के लिए उस ने रेखा की शादी भोपाल के कटरा सुल्तान के रहने वाले रामगोपाल यादव से करा दी. रामगोपाल उसी के साथ नौकरी करता था. इस के बाद संतोष निश्चिंत हो गया, क्योंकि उस ने फंसने के सारे रास्ते साफ कर दिए थे.

वह समयसमय पर फोन कर के रामकुमार के पिता चंद्रपाल से उस का हालचाल लेता रहता था. लेकिन रामकुमार की लाश मिली तो पुलिस ने चंद्रपाल से विस्तार से पूछताछ की. उस ने उस रात घर में रेखा और संतोष के होने की बात बता कर उन के बारे में भी सारी बातें बता दी थीं.

पुलिस को रेखा और संतोष पर संदेह हुआ तो अंबाला जा कर दोनों को पकड़ लिया. पहले तो वे आनाकानी करते रहे, लेकिन पुलिस ने अंतत: सच्चाई उगलवा ही ली. रेखा और संतोष ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना भदोखर पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

दो बहनों का एक प्रेमी

दांपत्य की लालसा – भाग 2

रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए.

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था.

मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था. वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया.

इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था.

लेकिन मनोज अपने घर न जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली आ गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया.

उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटके झटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’

सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी. वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी न तो मनोज उस के सामने आया और न उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई.

जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था.

जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी. कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था.

एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था.

उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब आ गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है.

तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे.

तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी.

तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था. वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था.

मंगेतर की कब्र पर रासलीला – भाग 2

पुलिस ने जब चंद्रपाल से उन के उस भांजे संतोष के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह पंजाब के अंबाला शहर में रहता है. पुलिस को उस पर संदेह हो रहा था, इसलिए पुलिस उस से ही नहीं, उस लड़की से भी पूछताछ करना चाहती थी, जो उस के साथ आई थी. पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय ने चंद्रपाल के भांजे संतोष और उस के साथ आई लड़की को रायबरेली लाने के लिए एक पुलिस टीम अंबाला भेज दी.

पुलिस ने दोनों को रायबरेली ला कर पूछताछ की तो 11 महीने पुराने रामकुमार हत्याकांड से पर्दा उठ गया. उन दोनों ने रामकुमार की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

रायबरेली के ही थाना डलमऊ के गांव ठाकुरद्वारा का रहने वाला दिनेश कुमार अपने साले संतोष कुमार के साथ पंजाब के अंबाला शहर में रहता था. वहां दोनों एक साइकिल बनाने की फैक्ट्री में नौकरी करते थे. दोनों ने पंजाबी बाग मोहल्ले में किराए का एक कमरा ले रखा था, जिस में वे एक साथ रहते थे. उसी मोहल्ले में पटना की साधु बस्ती का रहने वाला रमेश कुमार यादव भी रहता था. वह कृषिकार्य की मशीनें बनाने के कारखाने में काम करता था. रमेश के साथ उस का परिवार भी रहता था. रमेश के परिवार में पत्नी सुधा, 10 साल का बेटा राजू और 20 साल की बहन रेखा थी.

एक मोहल्ले में रहने की वजह से और एक ही जाति का होने की वजह से दिनेश और रमेश की पहले जानपहचान हुई, जो बाद में दोस्ती में बदल गई. बीच में दिनेश के साले संतोष की नौकरी छूट गई तो रमेश ने उसे अपनी फैक्ट्री में नौकरी दिलवा दी थी. इस के बाद संतोष से भी रमेश की दोस्ती हो गई थी. अकसर सभी एकसाथ बैठते और एकदूसरे का सुखदुख बांटते.

ऐसे में ही एक दिन रमेश ने कहा, ‘‘भाई दिनेश, सब तो ठीक है. मुझे चिंता रेखा की है. समझ में नहीं आ रहा कि उस की शादी कहां करूं, क्योंकि गांव से अब मेरा कोई रिश्ता नहीं रह गया है.’’

‘‘रमेश भाई, परदेश में आप ने हमारी बहुत मदद की है. मैं इस मामले में आप की मदद कर सकता हूं. दरअसल संतोष के एक मामा हैं चंद्रपाल. वह रायबरेली के नजदीक बेलहिया गांव में रहते हैं. उन का खातापीता परिवार है. उन के पास खेती की ठीकठाक जमीन है. उन का बेटा रामकुमार आप की बहन रेखा के लिए एकदम ठीक है. जाति बिरादरी भी एक है. आप कहें तो बात चलाऊं?’’ दिनेश ने कहा.

‘‘दिनेश भाई, तुम कह तो ठीक रहे हो. लेकिन परेशानी यह है कि मेरी बहन कई सालों से यहां शहर में हमारे साथ रह रही है. वह गांव में कैसे रहेगी?’’ रमेश ने अपनी परेशानी बताई तो दिनेश ने कहा, ‘‘रमेश भाई, आप भी कैसी बात करते हैं. न जाने कितने लोगों को आप ने नौकरी दिलवाई है. शादी के बाद बहनोई को भी यहीं बुला लेना. उस के बाद आप की बहन यहीं रहेगी.’’

दिनेश की बात रमेश को सही लगी. इस के बाद उस ने अपनी पत्नी सुधा से बात की तो उस ने भी हामी भर दी. इस के बाद तो दिनेश और संतोष से रमेश की और भी गहरी दोस्ती हो गई. रमेश की बहन रेखा की उम्र बामुश्किल 20 साल थी. उस का गोल चेहरा, बोलती आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थीं.

संतोष तो उसे देख कर पागल सा हो गया था. अब वह अकसर रमेश के घर आनेजाने लगा. उस की पत्नी को वह भाभी कहता था. अगर रेखा वहां होती तो वह उस की शादी की बात छेड़ देता. वह अपने मामा के बेटे रामकुमार की खूब तारीफें करता था. ऐसी ही बातों के बीच एक दिन सुधा ने कहा, ‘‘आप मेरी ननद को तो देख ही रहे हैं इस का दूल्हा भी इस जैसा है कि नहीं? अगर दूल्हा सुंदर न हुआ तो रेखा उस के साथ नहीं जाएगी. बारात को बिना दुल्हन के ही जाना होगा.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा भाभीजी, रामकुमार भी कम सुंदर नहीं है. एकदम हीरो लगता है. लड़कियां उस पर जान छिड़कती हैं.’’

‘‘अच्छा तो यह बताओ कि वह मेरी रेखा को पसंद कर लेगा या नहीं?’’ सुधा ने हंसते हुए पूछा.

‘‘रेखा भी कहां कम है,’’ संतोष ने रेखा की ओर तिरछी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘एकदम हीरोइन लगती है. अगर मैं शादीशुदा न होता तो खुद ही इस से शादी कर लेता.’’

रेखा का दीवाना हो चुका संतोष रेखा की तारीफों के कसीदे काढ़ने लगा. दरअसल वह किसी भी तरह रेखा के नजदीक जाना चाहता था. दिलफेंक संतोष जानता था कि लड़कियों को अपनी तारीफ अच्छी लगती है. इसीलिए वह उस की तारीफ कर के उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.   दरअसल वह किसी भी तरह रेखा को पाने के सपने देखने लगा था और किसी भी तरह अपने उसी सपने को पूरा करने का तानाबाना बुन रहा था.

रमेश, दिनेश और संतोष जब भी मिलते, रेखा की शादी को ले कर चर्चा जरूर होती. ऐसे में ही एक दिन दिनेश और संतोष ने रमेश की रायबरेली के रहने वाले अपने रिश्तेदार चंद्रपाल से बात भी कराई. इस के बाद संतोष ने कहा, ‘‘मामा, आप चिंता न करें. अगले सप्ताह मैं आ रहा हूं. अपने साथ आप की होने वाली बहू को भी ले आऊंगा. आप लोग उसे अपने घर रख कर कायदे से देख लीजिएगा.’’

चंद्रपाल अपने बेटे रामकुमार के लिए लड़की तलाश ही रहा था. संतोष और दिनेश ने इस रिश्ते की बात की तो उस ने हामी भर दी. संतोष रमेश का विश्वस्त था. उस ने जब रेखा को दिखाने के लिए उसे अपने साथ रायबरेली स्थित अपने गांव ले जाने की बात की तो वह इनकार नहीं कर सका.

दिसंबर, 2012 के आखिरी सप्ताह में संतोष रेखा को साथ ले कर अपने गांव जाने के लिए रवाना हुआ. रास्ते में उस ने रेखा को अकेली पा कर उस से खूब प्यारभरी बातें कीं. बहाने से उस के संवेदनशील अंगों को भी छुआ. लेकिन रेखा सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी रही. इस से संतोष की हिम्मत बढ़ गई. घर जा कर उस ने रेखा को अपनी पत्नी रमा और 3 साल की बेटी सुमन से मिलवाया. संतोष ने रमा को बताया कि रेखा को वह बेलहिया के रहने वाले मामा के बेटे रामकुमार से शादी कराने के लिए लाया है.

रमा को इस में क्या परेशानी हो सकती थी. उस ने रेखा की खूब आवभगत की. लेकिन घर मे रहते हुए रेखा और संतोष एकदूसरे से कुछ ज्यादा ही खुल गए. एक दिन मौका मिलने पर संतोष ने रेखा को बांहों में भर लिया. थोड़ी नानुकुर के बाद रेखा ने भी स्वयं को उसे समर्पित कर दिया. इस के बाद जब भी मौका मिलता, संतोष और रेखा अपनी इच्छा पूरी करते.

दांपत्य की लालसा – भाग 1

प्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे  लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलने खाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनीअपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा.

रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी. प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर आ जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई.

अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बा तहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं आ पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ.

ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए.

अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी.

प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए.

उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा.

बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थीं.

समय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी. मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी.

जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा.

प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था.