एक अधूरी प्रेम कहानी – भाग 2

काल डिटेल्स की जांच में पता चला कि नीलम की मां के मोबाइल से एक नंबर पर अधिकतर बातें होती थीं. मां इस बारे में अनजान थी. तब इस नंबर को खंगाला गया. यह नंबर थाना किरावली के गांव डावली निवासी गणेश का निकला.

पुलिस ने बिना देर किए शाम को गणेश को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. नीलम के परिजनों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि नीलम किसी युवक से मोबाइल पर बातचीत करती है.

सिकंदरा पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद गणेश झूठ बोलता रहा. गणेश का कहना था कि नीलम उस से मिलने आई थी. वह उसे छोड़ने गांव आ रहा था. उस का कहना था कि वह रुनकता गांव गया ही नहीं था. नीलम ने उस से कहा कि गांव के बाहर ही छोड़ दो, कोई देख लेगा तो घर वालों को मालूम पड़ जाएगा. वह यहां से पैदल घर चली जाएगी. तब उस ने उसे गांव के बाहर ही छोड़ दिया था.

उस के बाद नीलम के साथ क्या हुआ, उसे नहीं मालूम. उधर, नीलम के घर वाले भी सही सोच रहे थे कि वह घर में मौजूद है तो घटना नहीं कर सकता. पीड़िता के घर वाले भी उस पर शक नहीं कर रहे थे. मगर, पुलिस ने घटना वाले दिन गणेश के मोबाइल की काल डिटेल्स और लोकेशन निकाल कर पूरी घटना का परदाफाश कर दिया.

गणेश के मोबाइल की लोकेशन नीलम के गांव और रुनकता क्षेत्र की आई. गणेश ने इस दौरान मोबाइल खरीदने और रेस्टोरेंट में नाश्ते के लिए औनलाइन भुगतान भी किए थे. इस बात ने उसे सच बोलने पर मजबूर कर दिया.

पुलिस ने उस से कहा कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं होगा. पुलिस के सख्ती दिखाने पर वह टूट गया. इस के बाद उस ने पुलिस के सामने सारा सच उगल दिया. गणेश ने घटना का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने घटना में शामिल अपने गांव के दोस्त संतोष का नाम भी बताया.

पुलिस ने उस के दोस्त संतोष को 11 मार्च, 2023 को गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद घटना की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

गणेश नीलम के गांव मांगरौल गूजर में अपनी रिश्तेदारी में आयाजाया करता था. नीलम से 6 महीने पहले उस की दोस्ती हुई थी.  एक दिन नीलम अपनी मौसी के घर जा रही थी. गणेश की नजर उस पर पड़ी. वह नीलम की खूबसूरती पर लट्टू हो गया. उस ने पहली बार में ही उसे दिल में बसा लिया.

नीलम को भी इस बात का अहसास हो गया कि युवक उसे चाहत भरी नजरों से देख रहा है. 24 वर्षीय गणेश कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 14 वर्षीय नीलम का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था. दोनों ने एक दूसरे को पीछे मुड़ कर भी कई बार देखा.

गणेश जब भी नीलम के गांव जाता उस की मुलाकात नीलम से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. आखिर एक दिन गणेश को मौका मिल ही गया. गणेश बाइक से नीलम के घर के सामने से निकल रहा था. उस समय वह अपने घर के  दरवाजे पर खड़ी थी.

नीलम को देखते ही गणेश ने चुपचाप एक परची गिरा दी. नीलम ने वह परची उठा कर अपने पास रख ली. उस ने घर जा कर एकांत में परची खोली तो उस में एक मोबाइल नंबर लिखा था. नीलम समझ गई कि यह नंबर उसी युवक का है. उस ने बिना देर किए उस नंबर को मिलाया.

दूसरी ओर से ‘हैलो की आवाज आई तो नीलम ने कहा, ”मैं नीलम बोल रही हूं, आप कौन?’‘

नीलम का नाम सुनते ही गणेश खुश हो गया. वह बोला, ”मैं गणेश बोल रहा हूं. आप के गांव में मेरी रिश्तेदारी है, इसलिए वहां आताजाता रहता हूं. आप को जब से देखा है, तब से बात कर ने का मन कर रहा था. इसलिए परची पर अपना मोबाइल नंबर लिख दिया था.’‘ इस तरह गांव की रिश्तेदारी से गणेश ने नीलम को अपने जाल में फंसाया.

फिर एक दिन दोनों की मुलाकात हुई. नीलम ने कहा, ”मैं जिस कालेज में पढ़ती हूं उस कालेज में मैं ने आप को पहले भी देखा है.’‘

इस पर गणेश ने कहा, ”मैं कालेज कम ही जाता हूं.’‘

फिर दोनों को पता चल गया कि वे दोनों एक ही कालेज में पढ़ते हैं. गणेश ने इंटरमीडिएट जबकि नीलम ने हाईस्कूल की परीक्षा दी थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था, लेकिन जब प्यार होता है तो वह उम्र या जाति नहीं देखता.

गणेश गांव में अपनी रिश्तेदारी में आताजाता था. दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे से दिल खोल कर बातें करते थे. अब दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर भी थे. दोनों मौका मिलते ही मोबाइल पर खूब प्यारमोहब्बत की बातें करते. नीलम अपनी मां के मोबाइल से उन की जानकारी के बिना गणेश से बातें करती थी.

गणेश 3 भाईबहनों में सब से बड़ा है. वह जयपुर स्थित एक सैलून में बाल काटता है. उस की रिश्तेदारी नीलम के गांव में है. वह जब भी अपने गांव आता तो मांगरौल गूजर गांव में अपनी रिश्तेदारी में भी आयाजाया करता था. 12 फरवरी को इंटरमीडिएट की परीक्षा देने आया था. 3 मार्च तक वह वहीं रुका था. इस के बाद वह अपने काम पर जयपुर चला गया. होली पर वह 7 मार्च, 2023 को अपने गांव फिर आया था.

क्यों की गई नीलम की हत्या

9 मार्च को गणेश की नीलम से बाइक पर घूमने चलने की बात हुई. तब नीलम अपनी मां से मौसी के यहां होली खेलने की बात कह कर घर से निकल गई थी. गणेश अपने गांव के ही 23 वर्षीय दोस्त संतोष के साथ नीलम को बाइक से रुनकता घुमाने ले गया. जाते समय मांगरौल के जंगल में गणेश और उस के दोस्त संतोष ने शराब पार्टी की. इस के लिए वे घर से ही शराब की बोतल ले कर आए थे.

इस के बाद गणेश व संतोष उसे बाइक से रुनकता ले गए. वहां एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया. नीलम अपनी मां के मोबाइल से चोरीछिपे गणेश से बात करती रहती थी. बात करने में आसानी रहे, इसलिए गणेश ने नीलम को एक मोबाइल और सिम भी दे दिया.

शाम को गांव लौटते समय दोनों दोस्तों गणेश व संतोष की नीयत में खोट आ गई. वे नीलम को जंगल में खींच कर ले गए. गणेश और उस के दोस्त ने नीलम के साथ रेप किया. मनमानी करने के बाद उन्हें लग रहा था कि नीलम गांव में जा कर सब कुछ बता देगी. इस के बाद दोनों ने उस की हत्या कर शव ठिकाने लगाने का निर्णय लिया.

इस के लिए उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट  दिया. पेड़ से सिर को कई बार टकराया. इतना ही नहीं किशोरी के सिर पर ईंट से प्रहार किया. उस की नाक, मुुंह और आंखों पर घूंसों से ताबड़तोड़ प्रहार किए जिस से आंख, नाक और मुंह से खून निकलने लगा.

नीलम बेहोश हो गई. दोनों को विश्वास हो गया कि वह मर गई है. उसे मरा समझ कर गले में दुपट्टा बांध खींचते हुए जंगल में और अंदर ले गए और कांटों की झाड़ियों के बीच डाल कर फरार हो गए. इस के बाद दोनों अपने घर जा कर सो गए.

इत्तफाक से नीलम बच गई. आरोपियों को दूसरे दिन समाचारपत्रों से पता चला कि नीलम जिंदा है तो दोनों के होश उड़ गए. दोनों भागने की तैयारी में थे. मगर पुलिस ने 10 मार्च, 2023 की शाम को ही डावली निवासी गणेश को पकड़ लिया. इस के बाद उस के साथी संतोष को भी दबोच लिया.

जांच में पता चला कि आरोपी गणेश और संतोष बचपन के दोस्त हैं. संतोष अपने पिता के साथ गांव में ही सैलून की दुकान चलाता है. जबकि गणेश यही काम जयपुर में करता है.

2 दिन इलाज के बाद नीलम की हालत में कुछ सुधार हुआ. उसे जिला अस्पताल से एस.एन. मैडिकल कालेज में रेफर कर दिया गया था. डाक्टरों ने नीलम को 72 घंटे तक अपनी निगरानी में रखने को कहा. नीलम के सिर में गहरा घाव था, शरीर में जख्म और गले पर सूजन थी. परिजनों का कहना था कि बेटी बस जिंदा बच गई उसे नया जीवन मिला गया.

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या – भाग 1

शोभाराम ने नफरत से दोनों लाशों को देखा. फिर वहीं बैठ कर बीड़ी सुलगा कर पीने लगा. एक लाश उस की पत्नी रागिनी की थी और दूसरी रिंकू की थी. छत पर उस ने दोनों को रंगेहाथ रंगरलियां मनाते पकड़ा था. उस के बाद उस ने दोनो की ईंट से सिर कूंच कर हत्या कर दी थी.

बीड़ी के कश के साथ शोभाराम के मन में तरहतरह के विचार आजा रहे थे. इन्हीं विचारों के बीच शोभाराम ने जेब में पड़ा मोबाइल निकाला और पुलिस कंट्रोल रूम के 112 नंबर पर काल की. उस समय रात के 12 बज रहे थे और आसमान में बादल गरज रहे थे.

शोभाराम की काल डायल 112 के एसआई पंकज मिश्रा ने रिसीव की. उन्होंने पूछा, ”बताइए, आप को क्या परेशानी है? आप कौन और कहां से बोल रहे हैं?’‘

”साहब, मेरा नाम शोभाराम दोहरे है. मैं गांव नंदपुर से बोल रहा हूं. मैं ने डबल मर्डर किया है. आप जल्दी से आ कर मुझे गिरफ्तार कर लो.’‘

शोभाराम के मुंह से डबल मर्डर की बात सुन कर पंकज मिश्रा दंग रह गए. फिर वह सोचने लगे, ‘कहीं शोभाराम शराबी तो नहीं और नशे में गुमराह कर रहा है.Ó अत: वह कड़कदार आवाज में बोले, ”इतनी रात बीतने के बावजूद अभी तक तेरा नशा उतरा नहीं, जो डबल मर्डर की सूचना दे रहा है.’‘

”साहब, मैं शराबी नही हूं. मैं पूरे होशोहवास में हूं. मैं सच बोल रहा हूं. मैं ने रागिनी और उस के प्रेमी रिंकू यादव को मार डाला है. दोनों लाशें मेरे मकान की छत पर पड़ी हैं. यकीन हो तो आ जाइएगा.’‘

शोभाराम ने जिस आत्मविश्वास के साथ बात की, उस से एसआई पंकज मिश्रा को यकीन हो गया कि वह जो बता रहा है, वह सच है. अत: उन्होंने सूचना से पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया फिर सहयोगियों के साथ नंदपुर गांव पहुंच गए.

cDigamber Kushwaha (ASP)

शोभाराम का घर गांव के पूर्वी छोर पर था. पुलिस जीप वहीं जा कर रुकी. शोभाराम पुलिसकर्मियों को छत पर ले गया, जहां 2 लाशें पड़ी थीं. लाशें देख कर एसआई पंकज मिश्रा सिहर उठे. उन्होंने तत्काल शोभाराम को हिरासत में ले लिया. डबल मर्डर की यह घटना उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के नंदपुर गांव में 14 जून, 2023 की रात घटी थी.

डबल मर्डर से मचा हड़कंप

डबल मर्डर की सूचना से जिले के पुलिस अधिकारियों में भी हड़कंप मच गया था. कुछ देर बाद ही एसएचओ आर.डी. सिंह, सीओ (सिटी) प्रदीप कुमार, एसपी चारू निगम तथा एएसपी दिगंबर कुशवाहा घटनास्थल पर आ गए.

cCharu Nigam (S.P.)

पुलिस अधिकारियों ने बड़ी बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया. हत्यारे शोभाराम ने बड़ी बेरहमी से दोनों की ईंट से कूंच कर हत्या की थी. मृतकों में रागिनी व रिंकू यादव था. रागिनी की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. रिंकू की उम्र 22 वर्ष के आसपास थी. दोनों के शव अर्धनग्नावस्था में थे. छत पर शवों के करीब ही खून से सनी ईंट पड़ी थी, जिसे पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

पौ फटते ही नंदपुर गांव में सनसनी फैल गई. जिस ने भी 2 हत्याओं की बात सुनी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. कुछ ही देर में शोभाराम के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई. मीना यादव को जब पता चला कि शोभाराम ने उस के बेटे रिंकू को मार डाला है तो वह बदहवास हालत में घटनास्थल पहुंची और बेटे का शव देख कर फूटफूट कर रोने लगी.

महिलाओं ने उन्हें किसी तरह संभाला. रिंकू के पिता लायक सिंह होमगार्ड थे. वह सहार थाने में ड्यूटी पर थे. उन्हें बेटे की हत्या की खबर लगी तो वह भी गांव आ गए. बेटे का शव देख कर वह भी बिलखने लगे.

रिंकू यादव की हत्या से नंदपुर गांव की यादव जाति में गुस्से की आग भड़क उठी थी. उन में आक्रोश इस बात से था कि शोभाराम जैसे छोटी जाति के व्यक्ति ने उन की बिरादरी के युवक की हत्या कर दी थी. इस हत्या से उन की प्रतिष्ठा पर आंच आई है. नवयुवकों में गुस्सा कुछ ज्यादा था.

एसपी चारू निगम व एएसपी दिगंबर कुशवाहा को जब यादव बिरादरी में जन आक्रोश की जानकारी हुई तो उन्होंने कई थानों की पुलिस फोर्स को घटनास्थल पर बुलवा लिया और नंदपुर गांव की हर गली के मोड़ पर पुलिस पहरा लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने हर स्थिति से निपटने के लिए पीएसी का कैंप भी लगा दिया.

कड़ी सुरक्षा के बीच पुलिस अधिकारियों ने मृतक रिंकू व मृतका रागिनी के शवों को सीलमोहर करा पोस्टमार्टम के लिए औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

cRote Hue Mratak Ke Parijan

शोभाराम दोहरे को पुलिस सुरक्षा में थाना सहायल लाया गया. यहां पर पुलिस अधिकारियों ने उस से घटना के संबंध में पूछताछ की. शोभाराम ने अधिकारियों के सामने दोनों हत्याओं का जुर्म कुबूल कर पूरी घटना की जानकारी दी. उस ने इस घटना में किसी अन्य के शामिल होने से साफ इंकार किया.

चूंकि शोभाराम ने जुर्म कुबूल कर लिया था और पुलिस ने आलाकत्ल खून सनी ईंट भी बरामद कर ली थी, इसलिए एसएचओ आर.डी. सिंह ने मृतक रिंकू यादव की मां मुन्नी देवी की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत शोभाराम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा शोभाराम को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में उस ने इस हत्याकांड की जो वजह बताई, वह एक बेवफा पत्नी की कहानी निकली.

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के थाना रसूलाबाद के अंतर्गत एक गांव है-झकर गढ़ा. रागिनी इसी गांव की रहने वाली थी. उस के पिता राजाराम दोहरे गांव के दबंग किसान थे. 3 बहनों में रागिनी सब से छोटी, सब से दुलारी और बेहद खूबसूरत थी. राजाराम अपनी 2 बड़ी बेटियों का विवाह कर चुके थे. अब वह रागिनी का घर बसाना चाहते थे. इस बारे में घर में बात भी होने लगी थी.

शादी की चर्चा चलते ही रागिनी का मन गुदगुदाने लगा. खुली आंखों से वह जीवनसाथी के सुहाने सपने देखने लगी थी. वह सोचती कि मेरे दोनों जीजा हैंडसम हैं तो पिता मेरे लिए भी सैकड़ों में से किसी एक को चुनेंगे क्योंकि अपनी बहनों से मैं ज्यादा हसीन जो हूं.

रागिनी की तमन्ना थी कि उस का पति फिल्मी हीरो जैसा और खूब प्यार करने वाला हो. राजाराम की तलाश जारी थी. इसी तलाश के दौरान राजाराम को शोभाराम के बारे में पता चला.

जगदीश दोहरे औरैया जिले के नंदपुर गांव के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी सरला के अलावा 2 बेटियां व एक बेटा शोभाराम था. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. शोभाराम अभी कुंवारा था. बापबेटे दोनों मिल कर अपनी जमीन पर मौसमी सब्जियों की खेती करते थे और शहर कस्बे में बेचते थे. शोभाराम राजमिस्त्री भी था.

राजाराम ने नंदपुर गांव जा कर जगदीश दोहरे से मुलाकात की और उन के बेटे शोभाराम के साथ अपनी बेटी रागिनी की शादी करने की बात की.

जगदीश की पत्नी सरला की मौत हो चुकी थी. इसलिए जगदीश भी बेटे का विवाह करने के इच्छुक थे. इसलिए पहले लड़की देखने की इच्छा जताई. इस के बाद उन्होंने झकर गढ़ा गांव जा कर रागिनी को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गई. फिर सन 2012 की पहली लगन में रागिनी और शोभाराम का विवाह हो गया.

विवाह मंडप में रागिनी ने पहली बार पति को देखा था. शोभाराम सूट पहने था, सिर पर सेहरा बंधा था, उस के चारों ओर घर वालों का हुजूम था, इसलिए रागिनी उसे नजर भर कर देख नहीं पाई.

एक अधूरी प्रेम कहानी – भाग 1

4 जुलाई, 2023 का दिन था. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पोक्सो एक्ट) प्रमेंद्र  कुमार की कोर्ट में काफी गहमागहमी थी. घटना होने के मात्र 116 दिनों बाद उस दिन एक ऐसे मामले में फैसला सुनाया जाना था, जिस में दोस्ती परवान चढऩे से पहले ही तारतार हो गई थी. आइए, कोर्ट का फैसला जानने से पहले इस मामले के बारे में जान लेते हैं.

आगरा के सिकंदरा क्षेत्र के रुनकता के पास मांगरौल गूजर का जंगल करीब 6 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. यमुना का किनारा है और अकसर जंगली जानवर यहां घूमते रहते हैं. जंगल की सन्नाटे भरी सर्द रात में जंगली जानवरों के खतरे के बीच कांटेदार झाड़ियों के बीच पड़ी घायल 14 वर्षीय नीलम को जब हलका सा होश आया, तब चारों ओर घना अंधेरा छा चुका था.

नीलम दर्द से कराह रही थी. उस के अंगअंग में दर्द हो रहा था. वह रातभर तड़पती रही. वह अस्मत जाने के बाद भी टूटती सांसों को संजोए हुए थी. प्यास से उस का गला सूख रहा था, वहीं घावों से खून बह रहा था.

इस हालत में भी नीलम ने हिम्मत नहीं हारी. बेसुध शरीर ने हिम्मत कर हिलने की कोशिश की तो कांटे चुभ उठे. वह असहनीय दर्द को पी गई और कांटों के बिस्तर पर पड़ीपड़ी भोर होने का इंतजार कर ने लगी.

जीवन और मृत्यु से संघर्ष के बीच सुबह जब सूरज की रोशनी दिखाई दी तो इतनी हिम्मत आ गई कि वह करीब 100 मीटर घिसट कर रोड तक पहुंच गई. आखिर नीलम जंगल में कैसे पहुंची? उस की यह हालत कैसे और किस ने की?

गांव देहात में होली का पर्व कई दिनों तक मनाया जाता है. 9 मार्च, 2023 को  आगरा जिले के थाना सिकंदरा के मांगरौल गूजर निवासी 14 वर्षीय नीलम गांव में रहने वाली अपनी मौसी के यहां होली खेलने को कह कर घर से अपराह्नï लगभग ढाई बजे निकली थी.

शाम 7 बजे तक जब नीलम घर वापस नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. इस बारे में मौसी से संपर्क किया तो पता चला कि वह उन के यहां भी नहीं पहुंची थी. घबराए हुए घर वालों ने उस की सहेलियों व परिचितों के यहां तलाश किया, लेकिन नीलम का गांव में कोई सुराग नहीं मिला.

पूरी रात घर वाले गांव वालों के साथ उस की तलाश करतेे रहे, लेकिन नीलम का कोई सुराग नहीं लगा. सारी रात घर वालों को नींद भी नहीं आई.

10 मार्च की सुबह 8 बजे  पास के ही गांव का रहने वाला सिक्योरिटी गार्ड जयप्रकाश ड्यूटी समाप्त कर अपने गांव जा रहा था. उस के गांव का रास्ता मांगरौल हो कर ही जाता है. उसे सिकंदरा के जंगल के रास्ते में सड़क किनारे मांगरौल गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर एक किशोरी लहूलुहान अर्द्धबेहोशी की हालत में पड़ी मिली. गार्ड जयप्रकाश को देखते ही किशोरी ने हाथ हिलाया. गार्ड ने अपनी साइकिल खड़ी कर दी और किशोरी के पास पहुंचा.

किशोरी के खून से सने और फटे हुए कपड़े देख कर जयप्रकाश ने अपने गमछे से उस का बदन ढक दिया. जयप्रकाश के कई बार पूछने पर कि कौन हो तुम बेटी? किशोरी सही ढंग से बोल नहीं पा रही थी. उस ने किसी तरह अपना नाम बताया. पूछने पर अपने पिता व गांव का नाम भी बता दिया.

गार्ड से किशोरी ने कहा कि मेरे भाई को फोन कर दो. किशोरी ने नंबर बताया तब गार्ड जयप्रकाश ने उस के भाई को फोन कर घटना की जानकारी दी. इसी बीच वहां से आ जा रहे राहगीर एकत्र हो गए.

इस पर जयप्रकाश ने उस के घर फोन कर दिया. जानकारी मिलते ही घर वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. घर वालों नेे पुलिस को भी नीलम के मिलने की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में थाना सिकंदरा के एसएचओ आनंद कुमार शाही, पुलिस उपायुक्त (नगर) विकास कुमार भी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए.

सड़क से करीब 100 मीटर अंदर झाड़ी पर नीलम की चुन्नी पड़ी थी. पास में ही चप्पलें और कुछ कपड़े थे. उस की आंखों, नाक और सिर से खून बह रहा था. उसे कई बार उल्टियां भी हुईं. गंभीर हालत को देखते हुए एंबुलेंस बुलाकर नीलम को पहले जिला अस्पताल और बाद में आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल की इमरजेंसी भरती कराया गया.

घटनास्थल पर भी खून पड़ा था. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. नीलम के चेहरे और गले पर खरोंचें थीं, उस का गला सूजा हुआ था, जिस से वह बोल नहीं पा रही थी. बेटी को इस हालत में देख कर मां के आंसू नहीं रुक रहे थे.

पुलिस का अनुमान था कि कल नीलम होली खेलने घर से निकली थी. रास्ते में ही उस का अपहरण कर जंगल में उस के साथ दरिंदगी की गई थी. इतना ही नहीं उसे बुरी तरह पीटा गया और गला घोंट कर जान से मारने की कोशिश भी की गई. किसी तरह नीलम की जान तो बच गई थी, लेकिन उस की हालत चिंताजनक थी.

आरोपी उसे मरा समझ कर झाडिय़ों में डाल कर फरार हो गए थे. रात भर नीलम जंगल में पड़ी रही. इस संबंध में गांव मझली पार्टी, थाना सिकदंरा, जिला आगरा निवासी नीलम के पिता ने थाने में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 376(3), 307 व 3/4 पोक्सो एक्ट के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई, जिस में बेटी से सामूहिक दुष्कर्म, जान से मारने के लिए गंभीर चोटें पहुंचाने का आरोप लगाया गया था.

नीलम को दोपहर में होश आ गया. उस का गला सूजा हुआ था इसलिए वह बोल नहीं पा रही थी.  फिर भी किसी तरह उस ने बताया कि वह कल दोपहर को मौसी के यहां जाने के लिए अपने घर से निकली थी, तभी एक बाइक सवार उसे मिला. उस ने पूछा, ”कहां जा रही हो?’‘

”गांव में मौसी के यहां.’‘

”चलो, बाइक पर बैठ जाओ. मैं उधर ही जा रहा हूं, तुम्हें छोड़ दूंगा.’‘ बाइक सवार बोला.

तब वह उस की बाइक पर बैठ गई. वह उसे जंगल में ले गया. पीने को बोतल से पानी दिया. पानी पीने के बाद वह बेहोश हो गई. उस के बाद उसे कुछ याद नहीं.

पुलिस को नीलम की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था. क्योंकि अनजान व्यक्ति की बाइक पर वह क्यों बैठ गई? फिर जब वह गांव से बाहर ले जाने लगा तो उस ने शोर क्यों नहीं मचाया?

जंगल में कैसे पहुंची नीलम?

नाबालिग की मां का दर्द उस की आंखों से छलक रहा था. मां ने रोते हुए कहा कि उस की बेटी के साथ जिस ने भी यह कृत्य किया है उसे फांसी की सजा मिले. उस की बेटी गांव में होली खेलने निकली थी. वहीं से उस का अपहरण कर लिया गया. यह बात बेटी को पूरी तरह होश आने के बाद ही पता चलेगी कि कितने लोग थे? सुबह वह केवल इतना बता पाई थी कि उसे कोई नशीला पदार्थ पिलाया गया था. इस के बाद वह बेहोश हो गई थी.

महिला पुलिस द्वारा तब नीलम को विश्वास में ले कर उस से बातचीत की गई. तब नीलम ने हकीकत बताई. उस ने बताया कि घटना वाले दिन उस के दोस्त गणेश का फोन आया था. उस ने कहा कि गांव के बाहर आ जा होली खेलेंगे.

इस के बाद वह अपने घर मौसी के घर जाने की बात कह कर गांव से बाहर गणेश से मिलने पहुंच गई. गणेश के साथ उस का दोस्त संतोष भी था. गणेश ने उस से कहा, ”यहां बहुत भीड़ है, रुनकता चलते हैं, वहां होली खेलेंगे.’‘

इस के बाद वह गणेश और संतोष के साथ बाइक पर बैठ गई. रुनकता ले जा कर उन्होंने उसे बर्फी (मिठाई) खिलाई. फिर उस ने बाइक जंगल की ओर मोड़ दी. जंगल में ले जा कर दोनों ने उस के साथ जोर जबरदस्ती की और यह हाल गणेश व उस के दोस्त ने किया है.

नीलम से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास की घटना बड़ी थी. पुलिस आयुक्त डा. प्रीतिंदर सिंह ने सिकंदरा पुलिस की कई टीमों को घटना के खुलासे के लिए लगाया. इस जानकारी के बाद कि गणेश से नीलम की बातचीत होती थी, पुलिस ने नीलम के घर वालों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

जोरू और जमीन : लालची प्रेमी ने पहुंचाया जेल

जवानी बनी जान की दुश्मन – भाग 4

भूपेंद्र की पत्नी मायके गई हुई थी. इसलिए अकेला लेटा वह योजनाएं बनाता रहता था. ऐसे में ही उस ने सोचा कि क्यों न वह शीला नाम की इस बला को ही खत्म कर दे. इस में पकड़े जाने की संभावना कम रहेगी. इस योजना को अंजाम देने के लिए उस ने शीला से एक बार फिर मेलजोल बढ़ा लिया. अब वह उस से सिर्फ बातें करता था. रात में उस के पास आने के लिए कभी नहीं कहता था.

शीला भी अब फिर उस में दिलचस्पी लेने लगी. एक दिन बातचीत में शीला ने भूपेंद्र से कहा कि वह जल्दी ही विजय सिंह के साथ भाग जाएगी. बच्चों को भी वह साथ ले जाएगी. तब भूपेंद्र ने मन ही मन सोचा जब वह उसे भागने के लिए जिंदा छोडे़गा, तब न वह भागेगी. वह कमजोर था क्या, जो इस ने विजय सिंह का दामन थाम लिया.

शीला अपने बच्चों को ले कर भागे, उस के पहले ही वह उसे खत्म कर देना चाहता था. 30 जुलाई को उसे पता चला कि शीला दवा लेने डा. बंगाली के यहां जाएगी. तब भूपेंद्र ने उस से कहा, ‘‘तुम डा. बंगाली की दवा कब से खा रही हो. इस से तुम्हें कोई फायदा नहीं हो रहा है. ऐसा करो, तुम किसी बहाने से गांव के बाहर आ जाओ. मैं तुम्हें शहर ले जा कर अच्छे डाक्टर से दवा दिला देता हूं.’’

पिछले कई महीनों से शीला खुजली से परेशान थी. गांव के डा. बंगाली की दवा से उसे कोई फायदा नहीं हो रहा था. इसलिए वह भूपेंद्र के साथ किसी अच्छे डाक्टर के पास जाने को तैयार हो गई. फिर उसे पता भी तो नहीं था कि भूपेंद्र के मन में क्या है.

भूपेंद्र पर शीला को पूरा विश्वास था, इसलिए 31 जुलाई को बच्चों को स्कूल से ला कर वह भूपेंद्र के साथ डाक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो गई. चलते समय उस ने बड़े बेटे सतीश को 20 रुपए दे कर कहा, ‘‘सतीश, तुम भाइयों को संभालना. मैं शमसाबाद के डा. बंगाली से दवा लेने जा रही हूं. वहां से लौटने में 2 घंटे तो लग ही जाएंगे. अगर तुम लोगों को भूख लगे तो बाजार से कुछ ला कर खा लेना.’’

इस के बाद शीला ने भूपेंद्र को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘तुम शमसाबाद चौराहे पर आ जाओ. मैं वहीं खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

भूपेंद्र ने शीला को खत्म करने की तैयारी पहले से ही कर रखी थी. वह शीला को कोई तेज जहर दे कर मारना चाहता था. जब उसे कोई जहर नहीं मिला तो उस ने छिपकली मार कर सुखा कर उस का जहर तैयार कर लिया था. शमसाबाद चौराहे पर शीला उसे मिली तो उस ने वहां से रबड़ी खरीदी और उस में छिपकली का चूर्ण मिला कर पौलीथीन में पैक कर लिया.

भूपेंद्र शीला को मोटरसाइकिल पर बैठा कर निबोहरा रोड पर चल पड़ा. दोपहर की वजह से सड़क पर आवागमन काफी कम था.

अपनी योजना को अंजाम देने लायक जगह देख कर भूपेंद्र ने मोटरसाइकिल खराब होने के बहाने रोक दी. इस के बाद दोनों वहीं बने एक चबूतरे पर बैठ गए. भूपेंद्र ने कहा, ‘‘शीला मैं बाप बनने वाला हूं. इस खुशी में मैं तुम्हारा मुंह मीठा कराने के लिए रबड़ी खरीद कर लाया हूं.’’

‘‘मुबारक हो, इतनी बड़ी खुशखबरी है. तब तो मुंह मीठा करूंगी ही.’’ शीला ने कहा.

इस के बाद भूपेंद्र ने मोटरसाइकिल की डिक्की से रबड़ी और बोतल का पानी निकाल शीला को थमा दिया. शीला ने उस से भी रबड़ी खाने को कहा, लेकिन उस ने मना करते हुए कहा, ‘‘यह पूरी रबड़ी मैं तुम्हारे लिए लाया हूं. मैं ने तो दुकान पर ही खा ली थी.’’

शीला ने आराम से पूरी रबड़ी खाई और बोतल का पानी पी कर प्रेमिल नजरों से भूपेंद्र की ओर देखा. तब भूपेंद्र ने कहा, ‘‘शीला, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहो क्या कहना है?’’ शीला ने पूछा.

‘‘मैं चाहता हूं कि अब हमारा मिलना ठीक नहीं है. मेरी शादी हो गई है, इसलिए मैं अपना परिवार देखूं. तुम्हारा अपना परिवार है, इसलिए तुम अपना परिवार देखो.’’

‘‘यही तो मैं भी कह रही थी. भई तुम्हारी नईनई पत्नी है. उस के साथ मौज करो. कहां मेरे पीछे पड़े हो.’’ शीला ने भूपेंद्र को समझाया.

इसी तरह की बातें करते करते आधा घंटा बीत गया. अब तक जहर शीला पर अपना असर दिखाने लगा था. जहर का असर होते देख भूपेंद्र ने अपने दोस्त फतेह सिंह को फोन कर के वहां आने को कहा. करीब आधे घंटे में फतेह सिंह वहां पहुंचा तो भूपेंद्र उसे फतेह सिंह की मोटरसाइकिल पर बिठा कर उस के पीछे खुद बैठ गया.

इस तरह बेहोश शीला को बीच में बैठा कर सड़क से कुछ अंदर जा कर शीला को जमीन पर पटक दिया. वहीं पर उस की गला दबा कर हत्या कर दी गई. इस के बाद लाश को कंजी के पेड़ के नीचे इस तरह रख दिया कि वह आसानी से दिखाई न दे.

इस के बाद भूपेंद्र ने फतेह सिंह को इस मदद के लिए एक हजार रुपए नकद और शीला का मोबाइल फोन दे कर विदा कर दिया. फतेह सिंह अपने घर चला गया तो भूपेंद्र भी अपनी मोटरसाइकिल से अपने घर चला गया.

शीला के घर वाले क्या कर रहे हैं, भूपेंद्र को सब पता चलता ही रहता था. लेकिन शीला की लाश का क्या हुआ, यह देखने के लिए वह अगले दिन घटनास्थल पर गया. तेज गरमी की वजह से अगले दिन ही शीला की लाश सड़ने लगी थी. प्रेमिका की लाश को सड़ते देख भूपेंद्र बेचैन हो उठा. जिस शरीर से उसे इतना सुख मिला था, उसे वह सड़ता गलता नहीं देखना चाहता था.

फिर भी उस दिन वह चुप रहा. लेकिन जब उस के परिवार के 4 निर्दोष लोग जेल चले गए तो उस से रहा नहीं गया और उस ने फतेह सिंह से फोन कर के लाश की जानकारी पहले शीला की बुआ और उस के बाद उस के भाई श्रीनिवास को दे दी. शायद उसे पता नहीं था कि इस तरह फोन करने से वह पकड़ा जाएगा. अगर उसे पता होता तो वह यह गलती कतई न करता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने भूपेंद्र एवं फतेह सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस ने फतेह सिंह के पास से शीला का वह मोबाइल भी बरामद कर लिया था, जिस से निबोहरा रोड पर लाश पड़ी होने की सूचना दी गई थी. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त जेल में थे.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

जवानी बनी जान की दुश्मन – भाग 3

सर्विलांस से मिली जानकारी के अनुसार, शीला का फोन 31 जुलाई की शाम को बंद हो गया था. 2 दिनों बाद फोन चालू हुआ तो उस की लोकेशन गांव अमर सिंह का पुरा की थी. फोन की लोकेशन तो बदलती रही थी, लेकिन ज्यादातर उस की लोकेशन अमर सिंह का पुरा की ही बता रही थी. इस का मतलब फोन उसी गांव के किसी आदमी के पास था. थानाप्रभारी ने अमर सिंह का पुरा में अपने मुखबिरों को तैनात कर दिया.

इस के बाद उन्होंने काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि शीला के फोन पर 30 जुलाई से 31 जुलाई की दोपहर तक एक नंबर से लगातार बात हुई थी. मुनीष कुमार ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर शीला के ही परिवार के एक लड़के भूपेंद्र कुमार का था. रिश्ते में वह उस का भतीजा लगता था. भूपेंद्र शीला के जेठ लगने वाले रामलाल का बेटा था. थानाप्रभारी मुनीष कुमार सोचने लगे कि आखिर भूपेंद्र ने शीला को फोन क्यों किए थे? उन्होंने जब इस सवाल पर गहराई से सोचा तो भूपेंद्र पर उन्हें शक हो गया.

भूपेंद्र पर शक होते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ शाहपुर के लिए निकल पड़े. थाना फतेहाबाद पुलिस टीम शाहपुर गांव पहुंची तो गांव वाले परेशान हो उठे, क्योंकि शीला की हत्या के मामले में पहले से ही 4 लोग जेल जा चुके थे. पुलिस किसे पकड़ने आई है, गांव में इसी बात की चर्चा होने लगी.

पुलिस गांव वालों से पूछ कर रामलाल के घर पहुंची. भूपेंद्र घर पर ही था. पुलिस ने उसे जीप में बैठा लिया. गांव वालों ने इस बात का काफी विरोध किया, लेकिन पुलिस के आगे किसी की भी एक नहीं चली और थानाप्रभारी उसे थाने ले आए. थाने ला कर उन्होंने उस से सीधे पूछा, ‘‘शीला की हत्या तुम ने क्यों की?’’

मुनीष कुमार ने भूपेंद्र से यह बात इस तरह पूछी जैसे उन्हें पता हो कि शीला की हत्या इसी ने की है. उन के इस सवाल से भूपेंद्र परेशान हो उठा कि इन्हें कैसे पता चला कि शीला की हत्या उसी ने की है. उस ने सुना था कि अपराध उगलवाने के लिए पुलिस आरोपियों को बहुत बुरी मार मारती है. पुलिस की मार से बचने के लिए उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि अपने दोस्त फतेह सिंह के साथ मिल कर उसी ने शीला की हत्या की है.

अमर सिंह का पुरा के रहने वाले फतेह सिंह के पास ही शीला का मोबाइल फोन है. उसी ने फोन कर के पहले शीला की बुआ और उस के बाद श्रीनिवास को लाश के बारे में बताया था.

थानाप्रभारी मुनीष कुमार ने अमर सिंह का पुरा जा कर भूपेंद्र की निशानदेही पर उस के दोस्त फतेह सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद भूपेंद्र और फतेह सिंह से की गई पूछताछ में शीला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

थाना डौकी गांव कटोरा के रहने वाले रामसनेही के परिवार में पत्नी रामदेवी के अलावा 7 संतानों का भरापूरा परिवार था. संतानों में बेटी मुन्नी देवी सब से बड़ी थी तो कल्लो सब से छोटी. शीला रामसनेही की दूसरे नंबर की बेटी थी. बेटियों में वह सब से खूबसूरत थी. विवाहयोग्य होते ही रामसनेही ने उस के घरवर की तलाश शुरू कर दी थी.

खूबसूरत होने की वजह से रामसनेही को उस के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ी. शाहपुर के रहने वाले छोटेलाल का बेटा जयपाल उन्हें शीला के लिए पसंद आ गया. जयपाल को शीला पहली ही नजर में भा गई थी. इस के बाद दोनों का विवाह हो गया. यह 10-11 साल पहले की बात है.

शीला ससुराल आ गई. ससुराल में एक जेठ और 3 देवरों का भरापूरा परिवार था. जयपाल दिल्ली में नौकरी करता था. महीने, 2 महीने में ही उस का गांव आना होता था. समय के साथ शीला 3 बच्चों सतीश, मनोज और हरीश की मां बनी.

हरीश के पैदा होने के बाद जयपाल की तबीयत खराब रहने लगी. लेकिन परिवार की जिम्मेदारी उसी पर थी, इसलिए दिल्ली में रह कर नौकरी करना उस की मजबूरी थी. उस की इस बीमारी का असर सब से ज्यादा शीला पर पड़ा. क्योंकि बीमारी की वजह से उस का शरीर इस लायक नहीं रहा कि घर जाने पर वह शीला को खुश कर पाता.

शीला को जब लगा कि पति अब उसे खुश नहीं कर सकता तो वह अपनी खुशी किसी और में तलाशने लगी. उस की यह तलाश जल्दी ही खत्म हो गई, क्योंकि इस के लिए उसे कहीं बाहर नहीं जाना पड़ा. परिवार के ही जेठ रामलाल का 20-22 साल का बेटा भूपेंद्र उसे भा गया. वह सेल्समैन था. उस का शहर भी आनाजाना लगा रहता था. गांव में वह सब से ज्यादा स्मार्ट था. शहर आनेजाने की वजह से वह रहता भी बनठन कर था.

शीला को भूपेंद्र भा गया तो वह उस पर डोरे डालने लगी. खूबसूरत शीला का गदराया बदन था. चाची का खुला आमंत्रण पा कर जवानी की दहलीज पर खड़ा कुंवारा भूपेंद्र उस के मोहपाश में बंधता चला गया. फिर तो वह दिन आते देर नहीं लगी, जब चाचीभतीजे ने सारी मर्यादाएं तोड़ कर 2 जिस्म एकजान कर दिए.

शीला गांव में बच्चों के साथ अकेली ही रहती थी, इसलिए भूपेंद्र से उसे मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. भूपेंद्र उस के घर से मात्र 20 मीटर की दूरी पर रहता था. बच्चों के सो जाने पर वह फोन कर के भूपेंद्र को अपने घर बुला लेती. दोनों का मिलन रात में ही होता था. यही वजह थी कि उन के इन संबंधों की जानकारी गांव या परिवार के किसी भी आदमी को नहीं हो पाई.

इसी तरह एकएक कर के 3 साल बीत गए. भूपेंद्र से संबंध बनने के बाद शीला को जयपाल की कोई फिकर नहीं रह गई थी. लेकिन जब घरवालों ने भूपेंद्र के लिए लड़कियां देखनी शुरू कीं तो एक बार शीला फिर परेशान हो उठी. फिर वह भी अपने लिए नया यार खोजने लगी, क्योंकि उसे पता था कि भूपेंद्र की शादी हो जाएगी तो वह उसे घास डालना बंद कर देगा. जबकि अब उसे दूसरों का ही सहारा था. जयपाल तो अब कईकई महीने बाद घर आता था.

इस बार शीला की नजर गांव के ही विजय सिंह पर जम गई. विजय सिंह भी कुंवारा था, इसलिए जल्दी ही वह शीला के प्रेमजाल में फंस गया. इस तरह शीला के अब 2 यार हो गए. विजय सिंह को अपने प्रेमजाल में फांस कर शीला निश्चिंत हो गई. भूपेंद्र उस के पास आना छोड़ देगा तो विजय सिंह तो रहेगा ही. वह विजय को भी भूपेंद्र की ही तरह सब के सो जाने पर रात को बुलाती थी.

गर्मियों में जयपाल घर आया तो जायदाद को ले कर भाइयों से विवाद हो गया. जयपाल अकेला था, जबकि भाई 4 थे. उन्होंने जयपाल की पिटाई कर दी. शीला पति को बचाने गई तो उन लोगों ने उसे भी जमीन पर गिरा कर मारापीटा. इस के बाद मामला पुलिस तक पहुंचा तो जेठ और देवरों ने सब के सामने अपनी गलती के लिए लिखित रूप से माफी मांग ली. इस के बाद पूरा परिवार शीला से नफरत करने लगा. ठीक होने के बाद जयपाल दिल्ली चला गया तो शीला अपने पुराने ढर्रे पर चल पड़ी.

भूपेंद्र ने मांबाप से विवाह का काफी विरोध किया, लेकिन उम्र का वास्ता दे कर मांबाप ने उस की एक नहीं सुनी और 13 जुलाई, 2013 को उस का विवाह कर दिया. पत्नी के आने के बाद वह शीला की ओर से लापरवाह तो हुआ, लेकिन उस के पास जाना नहीं छोड़ा. ऐसे में ही किसी दिन उसे शीला और विजय सिंह के संबंधों का पता चला तो वह बौखला उठा.

उस ने यह बात शीला से कही तो शीला ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी ब्याहता तो हूं नहीं कि सिर्फ तुम्हारी हो कर रहूं. मैं ने जिस के साथ 7 फेरे लिए, जब उस की नहीं हुई तो तुम्हारी क्यों होऊंगी. मेरे मन में जो आएगा, वह करूंगी. रौबदाब दिखाना है तो अपनी पत्नी को दिखाओ. उसे पल्लू में बांध कर रखो. तुम उस के पास सोते हो तो मैं ने तो नहीं मना किया. फिर तुम मुझे क्यों रोक रहे हो.’’

शीला की ये बातें भूपेंद्र को अच्छी नहीं लगीं. फिर भी वह कुछ नहीं बोला. लेकिन मन ही मन उस ने तय कर लिया कि शीला जिस शरीर और सुंदरता के बल पर कूद रही है, उसे वह ऐसा कर देगा कि छूने की कौन कहे, कोई उस की ओर देखेगा तक नहीं. इस के लिए उस ने तेजाब डालने की योजना बनाई. लेकिन इस में उसे लगा कि वह फंस जाएगा. क्योंकि तेजाब डालते समय शीला उसे पहचान लेगी. फंसने के डर से उस ने इस योजना पर पानी डाल दिया और कोई नई योजना बनाने लगा.

फरेबी के प्यार में फंसी बदनसीब कांता – भाग 3

प्रभाकर कुट्टी शेट्टी को थाने ला कर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में पूछताछ की जाने लगी. पहले तो वह हीलाहवाली करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस के सामने अकाट्य साक्ष्य रखे तो उस ने कांता की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में प्रभाकर ने कांता शेट्टी से प्रेमसंबंध से ले कर उस की हत्या करने तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी :

30 वर्षीय प्रभाकर कुट्टी शेट्टी कर्नाटक के जिला उडि़पी के गांव इन्ना का रहने वाला था. पढ़ाईलिखाई कर के नौकरी की तलाश में वह मुंबई चला आया था, लेकिन उस के मांबाप और एक भाई तथा बहन अभी भी रह रह रहे थे. उस का पूरापरिवार सभ्यसभ्रांत और पढ़ालिखा था, जिस की वजह से गांव में उस का परिवार सम्मानित माना जाता था.

प्रभाकर काफी महत्वाकांक्षी था. पढ़ाई पूरी कर के उस ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और काम की तलाश में मुंबई आ गया. मुंबई में उस का एक मित्र पहले से ही रह रहा था. वह उसी के साथ रहने लगा. थोड़ी भागदौड़ के बाद उसे एक रेस्टोरेंट में मैनेजर की नौकरी मिल गई.

लगभग डेढ़ साल पहले प्रभाकर कुट्टी शेट्टी की कांता से मुलाकात कर्नाटक से मुंबई आते समय ट्रेन में हुई थी. ट्रेन में दोनों की सीटें ठीक एकदूसरे के आमनेसामने थीं. पहले दोनों के बीच परिचय हुआ, इस के बाद बातचीत शुरू हुई तो मुंबई पहुंचतेपहुंचते दोनों एकदूसरे से इस तरह खुल गए कि अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया. फिर तो ट्रेन से उतरते उतरते दोनों ने एकदूसरे के नंबर भी ले लिए थे.

कांता शेट्टी अपने घर तो आ गई थी, लेकिन उस का दिल युवा प्रभाकर के साथ चला गया था. क्योंकि यात्रा के दौरान प्रभाकर से हुई बातों ने पुरुष संबंध से वंचित कांता को हिला कर रख दिया था. प्रभाकर का व्यवहार, उस की बातें, उस की स्मार्टनेस और मजबूत कदकाठी ने उसे इस तरह प्रभावित किया था कि वह उस के दिलोदिमाग से उतर ही नहीं रहा था. प्रभाकर ने एक बार फिर उसे पति करुणाकर शेट्टी और वैवाहिक जीवन की याद ताजा करा दी थी.

कांता को वह सुख याद आने लगा था, जो उसे पति से मिलता था. याद आता भी क्यों न, अभी उस की उम्र ही कितनी थी. भरी जवानी में पति छोड़ कर चला गया था. तब से वह बेटे के लिए अकेली ही जिंदगी बसर कर रही थी. वह अपने काम और बेटे में इस तरह मशगूल हो गई थी कि बाकी की सारी चीजें भूल गई थी. लेकिन प्रभाकर की इस मुलाकात ने उस की उस आग को एक बार फिर भड़का दिया था, जिसे उस ने पति की मौत के बाद दफन कर दिया था.

जो हाल कांता का था, लगभग वही हाल अविवाहित प्रभाकर का भी था. पहली ही नजर में कांता की सुंदरता और जवानी उस के दिल में बस गई थी. वह किसी भी तरह कांता के नजदीक आना चाहता था. क्योंकि वह पूरी तरह उस के इश्क में गिरफ्तार हो चुका था. 2-4 दिनों तक तो किसी तरह उस ने स्वयं को रोका, लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने कांता का नंबर मिला दिया.

प्रभाकर के इस फोन ने बेचैन कांता के मन को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, लेकिन बातचीत का रास्ता तो खुल ही गया. इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो जल्दी ही दोनों मिलनेजुलने लगे. इस मिलनेजुलने में दोनों जल्दी ही एकदूसरे के काफी करीब आ गए. इस के बाद दोनों स्वयं को संभाल नहीं सके और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर एकदूसरे के हो गए. मर्यादा टूटी तो सिलसिला चल पड़ा. मौका निकाल कर वे शारीरिक भूख मिटाने लगे.

कांता प्रभाकर में कुछ इस तरह खो गई कि वह स्वयं को उस की पत्नी समझने लगी. फिर एक समय ऐसा आ गया कि वह प्रभाकर से शादी के लिए कहने लगी. लेकिन प्रभाकर कांता की तरह उस के प्यार में पागल नहीं था. वह पढ़ालिखा और होशियार युवक था. वह कांता के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था. वह भंवरे की तरह था. उसे फूल नहीं, उस के रस से मतलब था. उस के मांबाप थे, जिन की गांव और समाज में इज्जत थी. अगर वह एक विधवा से शादी कर लेता तो उन की गांव और समाज में क्या इज्जत रह जाती. इसीलिए कांता जब भी उस से शादी की बात करती, बड़ी होशियारी से वह टाल जाता.

समय पंख लगाए उड़ता रहा. भंवरा फूल का रसपान करने में मस्त था तो फूल रसपान कराने में. अचानक कांता को कहीं से पता चला कि प्रभाकर मांबाप की पसंद की लड़की से शादी करने जा रहा है. यह जान कर उसे झटका सा लगा. उस ने जब इस बारे में प्रभाकर से बात की तो उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘यह तो एक दिन होना ही था. मांबाप चाहते हैं तो शादी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने वादा तो मुझ से किया था.’’ कांता ने कहा.

‘‘मांबाप से बढ़ कर तुम से किया गया वादा नहीं हो सकता. इसलिए मांबाप का कहना मानना जरूरी है.’’ कह कर प्रभाकर ने बात खत्म कर दी.

लेकिन कांता इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘आज तक मैं अपना तनमन तुम्हारे हवाले करती आई हूं. तुम ने जैसे चाहा, वैसे मेरे तन और मन का उपयोग किया. मैं ने तुम्हें हर तरह से शारीरिक सुख दिया. कभी नानुकुर नहीं की. तुम्हारी बातों से साफ लग रहा है कि तुम प्यार के नाम पर मुझे धोखा देते रहे. तुम्हें मुझ से नहीं, सिर्फ मेरे शरीर से प्यार था.  लेकिन मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि तुम आसानी से मुझ से पीछा छुड़ा लोगे. अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो में तुम्हारे गांव जा कर तुम्हारे मांबाप से अपने संबंधों के बारे में बता दूंगी. अगर इस से भी बात नहीं बनेगी तो कानून का सहारा लूंगी.’’

कांता की इस धमकी से प्रभाकर के होश उड़ गए. उस समय तो उस ने किसी तरह समझाबुझा कर कांता को शांत किया. लेकिन वह मन ही मन काफी डर गया. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस कांता को फूल समझ कर वह सीने से लगा रहा था, एक दिन वह उस के लिए कांटा बन जाएगी. इस का मतलब यह हुआ कि जब तक कांता नाम का यह कांटा जीवित रहेगा, वह समाज में इज्जत की जिंदगी नहीं जी पाएगा. इसलिए उस ने कांता रूपी इस कांटे को अपने जीवन से निकाल फेंकने का फैसला कर लिया.

29 अक्तूबर, 2013 की शाम कांता के जीवन की आखिरी शाम साबित हुई. उस शाम कांता ने प्रभाकर को फोन कर के कहीं चलने के लिए अपने घर आने को कहा तो प्रभाकर ने उस के घर जाने के बजाय कांता को यह कह कर अपने घर बुला लिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. इसलिए वही उस के घर आ जाए. प्रभाकर की तबीयत खराब है, यह जान कर कांता परेशान हो उठी. वह जल्दी से तैयार हुई और प्रभाकर के घर के लिए निकल पड़ी. इसी जल्दबाजी में वह अपना मोबाइल फोन ले जाना भूल गई.

जिस समय कांता प्रभाकर के घर पहुंची, वह बीमारी का बहाना किए बेड पर लेटा था. कांता उस के पास बैठ गई तो वह उस से मीठीमीठी बातें कर के उसे खुश करने की कोशिश करने लगा. उसे खुश करने के लिए उस ने एक बार फिर उस से शादी का वादा किया. इस के बाद अपनी योजनानुसार उस ने कांता से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की.

कांता इस के लिए तैयार हो गई तो उस ने बाथरूम में चलने को कहा. पहले भी वह कई बार बाथरूम में उस के साथ शारीरिक संबंध बना चुका था, इसलिए कांता खुशीखुशी बाथरूम में चलने को तैयार हो गई. बाथरूम में जाने से पहले उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए. इस के बाद बाथरूम की फर्श पर कांता के साथ शारीरिक संबंध बनाने के दौरान ही प्रभाकर ने पहले से वहां छिपा कर रखे चाकू  से उस का गला काट दिया.

कांता की मौत हो गई तो उस ने आराम से बाथरूम में ही शव के 3 टुकड़े किए. इस के बाद उन टुकड़ों को लाल कपड़ों में लपेट कर पैकेट बनाए और उन्हें पौलीथीन में लपेट कर आटो से अलगअलग स्थानों पर फेंक दिए. इस के बाद वापस आ कर बाथरूम को खूब अच्छी तरह से साफ किया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रभाकर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. प्रभाकर ने मांबाप की जिस इज्जत को बचाने की खातिर कांता से पीछा छुड़ाने के लिए उस के खून से अपने हाथ रंगे, जेल जाने के बाद आखिर वह बरबाद हो ही गई.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जवानी बनी जान की दुश्मन – भाग 2

शीला के अपहरण और हत्या के मामले में 4 लोगों को जेल तो भेज दिया गया, लेकिन उस के बारे में कुछ पता नहीं चला. उस की लाश भी बरामद नहीं हुई. शीला के गायब होने से अब वे लोग भी परेशान थे, जिन्हें जेल भेजा गया था. अब उन के घर वाले भी शीला की तलाश में लग गए, क्योंकि वे तभी जेल से बाहर आ सकते थे, जब शीला का कुछ पता चलता.

वे शीला की तलाश तो कर ही रहे थे, इस के अलावा उन्होंने गांव वालों तथा रिश्तेदारों की एक पंचायत भी बुलाई. इस पंचायत में श्रीनिवास तथा उस के गांव के भी 10-12 लोगों को बुलाया गया था. पंचायत में जेल भेजे गए लोगों के घर वालों ने शीला के चरित्र पर सवाल उठाते हुए किसी के साथ भाग जाने का आरोप लगाया तो श्रीनिवास भड़क उठा. उस ने शीला के जेठ और देवरों और देवरानी को शीला के अपहरण और हत्या को दोषी मानते हुए अपनी काररवाई को उचित ठहराया.

श्रीनिवास अपनी जिद पर अड़ा रहा तो 3-4 घंटों तक बातचीत चलने के बाद पंचायत बिना किसी फैसले के खत्म हो गई. जिस काम के लिए यह पंचायत बुलाई गई थी, वह वैसा का वैसा ही रह गया. जेल भेजे गए लोगों की रिहाई भी नहीं हो सकी. शीला के गायब होने से उस के घर तथा मायके वाले तो परेशान थे ही, उन के घर वाले भी परेशान थे, जो जेल भेजे गए थे.

सभी इस कोशिश में लगे थे कि कहीं से भी शीला का कोई सुराग मिल जाता. उन लोगों की कोशिश कोई रंग लाती, उस से पहले ही शीला के बारे में अपने आप पता चल गया. किसी ने फिरोजाबाद में रहने वाली शीला की बुआ महादेवी को फोन कर के बताया कि उन की भतीजी शीला का शव निबोहरा रोड से थोड़ा आगे सड़क से अंदर जा कर एक कंजी के पेड़ के नीचे पड़ा है.

इस खबर से महादेवी चौंकी. उस ने फोन अपने बेटे शीलू को पकड़ा दिया. शीलू ने उस से जानना चाहा कि वह कौन है और कहां से बोल रहा है तो उस ने फोन काट दिया. शीलू ने तुरंत यह बात श्रीनिवास को बताई और वह फोन नंबर भी लिखा दिया, जिस नंबर से फोन कर के यह बताया गया था.

श्रीनिवास वह नंबर देख कर चौंका, क्योंकि वह नंबर उस की बहन शीला का ही था. देर किए बगैर श्रीनिवास कुछ दोस्तों को साथ ले कर बहन की लाश की तलाश में बताए गए स्थान की ओर चल पड़ा. निबोहरा रोड 10 किलोमीटर के आसपास थी. इतनी बड़ी सड़क पर सड़क से थोड़ा अंदर जा कर कंजी का पेड़ तलाशना आसान नहीं था. श्रीनिवास दोस्तों के साथ शीला के शव की तलाश में घंटों लगा रहा.

काफी कोशिश के बाद भी उन्हें लाश नहीं मिली. अंत में निराश हो कर सब लौट पड़े. वे शमसाबाद चौराहे पर पहुंचे थे कि श्रीनिवास के मोबाइल पर फोन आया. उस ने नंबर देखा तो वह शीला का था. उस ने फोन रिसीव करने के साथ ही रिकौर्डिंग चालू कर दी, जिस से वह फोन करने वाले की बात रिकौर्ड कर सके.

फोन रिसीव होते ही दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘भाई साहब, आप लोग शीला की लाश जहां ढूंढ़ रहे थे, वह जगह तो काफी आगे है. शीला की लाश शमसाबाद चौराहे से निबोहरा रोड पर 2 किलोमीटर के अंदर ही पड़ी है.’’

‘‘भाई, तुम बोल कौन रहे हो? यह शीला का मोबाइल तुम्हें कहां से मिला? तुम्हें कैसे पता कि शीला की हत्या हो चुकी है और उस की लाश निबोहरा रोड पर थोड़ा अंदर जा कर कंजी के पेड़ के नीचे पड़ी है?’’ श्रीनिवास ने एक साथ कई सवाल पूछ लिए.

श्रीनिवास के सवालों का जवाब देने के बजाय दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. निराश और थकेमांदे श्रीनिवास के अंदर इस दूसरे फोन ने जान डाल दी. एक बार फिर वह फोन पर बताई गई जगह पर जा कर लाश की तलाश करने लगा. आखिर उस की मेहनत रंग लाई और वह बदनसीब घड़ी आ गई, जिस का कोई भी भाई इंतजार नहीं करना चाहता.

लाश इस तरह सड़ चुकी थी कि पहचान में नहीं आ रही थी. श्रीनिवास ने अपनी मां और थाना शमसाबाद पुलिस को शीला की लाश मिलने की सूचना दे दी. तब थाना शमसाबाद पुलिस ने थाना फतेहाबाद पुलिस को सूचना देने को कहा, क्योंकि जहां शीला की लाश पड़ी थी, वह जगह थाना फतेहाबाद के अंतर्गत आती थी. तब श्रीनिवास ने 100 नंबर पर फोन कर के सारी बात बताई. इस के बाद जिला नियंत्रण कक्ष ने थाना फतेहाबाद के थानाप्रभारी मुनीष कुमार को सूचना दे कर तत्काल काररवाई का निर्देश दिया.

बेटी की लाश मिलने की सूचना पा कर रामदेवी भी घटनास्थल पर जा पहुंची. शक्लसूरत से वह भी लाश को नहीं पहचान सकी. तब उस ने बेटी की लाश कान के कुंडल, गले के मंगलसूत्र और साड़ी से पहचानी. अब तक थाना फतेहाबाद के प्रभारी मुनीष कुमार भी सहयोगियों के साथ वहां पहुंच गए थे.

लाश देख कर ही वह जान गए कि 3-4 दिनों पहले हत्या कर के इसे यहां ला कर फेंका गया है. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. जिस से साफ लगता था कि हत्या यहां नहीं की गई है. इस के अलावा लाश के पास तक मोटरसाइकिल के टायरों के आने और जाने के निशान भी थे.

लाश से इतनी तेज दुर्गंध आ रही थी कि वहां खड़ा होना मुश्किल हो रहा था. इसलिए पुलिस ने आननफानन में जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद थाना शमसाबाद पुलिस ने अपने यहां दर्ज शीला के अपहरण और हत्या का मुकदमा थाना फतेहाबाद पुलिस को स्थानांतरित कर दिया, जहां यह अपराध संख्या 183/2013 पर भादंवि की धाराओं 302, 201 के अंतर्गत दर्ज हुआ. मुकदमा दर्ज होते ही थानाप्रभारी मुनीष कुमार ने जांच शुरू कर दी. यह 3 अगस्त, 2013 की बात है.

मुनीष कुमार ने सब से पहले श्रीनिवास से पूछताछ की. उस ने शुरू से ले कर लाश बरामद होने तक की पूरी कहानी उन्हें सुना दी. उस की इस कहानी में मृतका शीला के मोबाइल फोन से उस की हत्या और लाश पड़ी होने की बताने वाली बात चौंकाने वाली थी, क्योंकि अकसर हत्या करने वाले मृतक का मोबाइल सिम निकाल कर फेंक देते हैं. जिस से वे पकड़े न जाएं. लेकिन यहां मामला अलग था. साफ था कि मृतका का मोबाइल जिस किसी के भी पास था, वह उस के हत्यारे को जानता होगा या खुद ही हत्यारा होगा.

यही सोच कर मुनीष कुमार ने उस नंबर को सर्विलांस टीम को सौंप दिया, क्योंकि इस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन हत्यारे तक पहुंचा सकती थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शीला की हत्या 31 जुलाई, 2013 की शाम को गला दबा कर की गई थी. लेकिन गला दबाने से पहले उसे कोई जहरीली चीज भी खिलाई गई थी. इस का मतलब शीला की हत्या उसी दिन हो गई थी, जिस दिन वह गायब हुई थी.

फरेबी के प्यार में फंसी बदनसीब कांता – भाग 2

काफी कोशिश के बाद आखिर पुलिस ने 14 साल के एक ऐसे लड़के को खोज निकाला, जिस ने उस आदमी को देखा था, जो धड़ वाला पार्सल चरई तालाब में फेंक गया था. पूछताछ में उस लड़के ने पुलिस को बताया था कि उस रात साढ़े नौ बजे के आसपास वह तालाब के किनारे बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था, तभी एक सुंदर स्वस्य युवक उस के पास आया. उस के हाथों में प्लास्टिक का एक थैला था, जिस में लाल रंग के कपड़ों में लिपटा एक बड़ा सा पैकेट पार्सल जैसा था.

उस युवक ने उस से पानी में फेंकने के लिए कहा. इस के लिए वह उसे कुछ पैसे भी दे रहा था. पैकेट काफी भारी और गरम था. पूछने पर उस युवक ने उसे बताया था कि इस में पूजापाठ की सामग्री के अलावा कुछ ईंटे भी हैं, सामान अभी ताजा है, इसलिए गरम है. पैकेट भारी था, इसलिए लड़के ने उसे पानी में फेंकने के लिए कुछ अधिक पैसे मांगे. पैसे कम कराने के लिए वह युवक कुछ देर तक उस लड़के से झिकझिक करता रहा.

जब वह लड़का कम पैसे लेने को तैयार नहीं हुआ तो उसने खुद ही जा कर उस पैकेट को पानी में डाला और जिस आटोरिक्शे से आया था, उसी में बैठ कर चला गया. उस लड़के ने आटो वाले का भी हुलिया पुलिस को बताया था. इस में खास बात यह थी कि आटो वाला दाढ़ी रखे था.

इस तरह पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने का एक रास्ता मिल गया. अब पुलिस उस दाढ़ी वाले आटो ड्राइवर को ढूंढ़ने लगी. आखिर पुलिस ने उस दाढ़ी वाले आटो ड्राइवर को ढूंढ़ निकाला. पुलिस टीम ने उसे थाने ला कर पूंछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, वह आदमी मेरे आटो में चेंबूर के सुभाषनगर वस्ता से बैठा था. वापस ला कर भी मैं ने उसे वहीं छोड़ा था.’’

आटो ड्राइवर ने यह भी बताया था कि वह हिंदी और दक्षिणी भाषा मिला कर बोल रहा था. आटो ड्राइवर ने उस युवक का जो हुलिया बताया था, वह उस लड़के द्वारा बताए गए हुलिए से पूरी तरह मेल खा रहा था. इस से साफ हो गया कि हत्यारा कोई और नहीं, वही युवक था, जो दक्षिण भारतीय था.

इस के बाद पुलिस की जांच दक्षिण भारतीय बस्तियों और दक्षिण भारतीय युवकों पर जा कर टिक गई. पुलिस ने आटो ड्राइवर और लड़के द्वारा बताए हुलिए के आधार पर हत्यारे का स्केच बनवा कर हर दक्षिण भारतीय बस्ती एवं सुभाषनगर में लगवा दिए. यह सब करने में 2 दिन और बीत गए. दुर्भाग्य से इस मामले की जांच कर रही पुलिस टीम को इस सब का कोई लाभ नहीं मिला. लेकिन पुलिस टीम इस सब से निराश नहीं हुई. वह पहले की ही तरह सरगरमी से मामले की जांच में लगी रही.

पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के लिए कडि़यां जोड़ ही रही थी कि तभी उसे थाना साकीनाका से एक ऐसी सूचना मिली, जिस से लगा कि अब उसे हत्यारे तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी. 4 नवंबर, 2013 को दीपावली का दिन था. उसी दिन साकीनाका पुलिस ने फोन द्वारा सूचना दी कि चरई तालाब में मिले धड़ वाली मृतका का जो हुलिया बताया गया था, उस हुलिए की महिला की गुमशुदगी उन के थाने में दर्ज कराई गई है.

थाना साकीनाका में जो गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी, वह गुमशुदा महिला की बहन सुहासिनी प्रसाद हेगड़े ने दर्ज कराई थी. सूचना मिलते ही पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर ने सुहासिनी से संपर्क किया. उन्हें थाने बुला कर टुकड़ोंटुकड़ों में मिली लाश के फोटोग्राफ्सदिखाए गए तो फोटो देखते ही वह रो पड़ीं. सुहासिनी ने टुकड़ोंटुकड़ों में मिली उस लाश की शिनाख्त अपनी बहन कांता करुणाकर शेट्टी के रूप में कर दी, जो 29 अक्तूबर, 2013 से गायब थी.

कर्नाटक की रहने वाली 36 वर्षीया स्वस्थ और सुंदर कांता करुणाकर शेट्टी अपने 14 वर्षीय बेटे के साथ चांदीवली, साकीनाका की म्हाणा कालोनी के सनसाइन कौआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की इमारत के ‘ए’ विंग के ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. वह फैशन डिजाइनर थी. उस के पति करणाकर शेट्टी का मिक्सर ग्राइंडर का अपना व्यवसाय था.

लेकिन 2 साल पहले करुणाकर के व्यवसाय में ऐसा घाटा हुआ कि वह स्वयं को संभाल नहीं सके और आत्महत्या कर ली. इस के बाद कांता अकेली पड़ गई. अब उस का सहारा एकमात्र 12 साल का बेटा रह गया था. पति के इस कदम के बाद कांता पर मानो पहाड़ टूट पड़ा था.

लेकिन उच्च शिक्षित कांता ने अपने मासूम बेटे के भविष्य को देखते हुए खुद को संभाला और अपने काम में लग गई. अंत में सुहासिनी ने पुलिस को बताया था कि पिछले कुछ समय से कांता चेंबूर के रहने वाले किसी लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था.

29 अक्तूबर, 2013 की शाम को कांता घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई. पूरी रात उस का बेटा इंतजार करता रहा. घर में अकेले पड़े हैरानपरेशान 14 साल के उस के बेटे ने सुबह सुहासिनी को फोन कर के मां के वापस न आने की बात बताई. सुहासिनी ने परेशान और घबराए बच्चे को ढ़ांढ़स बधाया और थोड़ी देर में उस के पास जा पहुंची.

इस के बाद सुहासिनी बच्चे को ले कर कांता शेट्टी की तलाश में निकल पड़ी. जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, सुहासिनी ने उस की तलाश की. जब कहीं से भी उन्हें कांता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह थाना साकीनाका पहुंची और कांता की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

सुहासिनी की बातों से पुलिस टीम को उसी युवक पर संदेह हुआ, जिस से कांता का प्रेमसंबंध था. पुलिस कांता के बारे में जरूरी जानकारी लेने के साथसाथ उस के घर की तलाशी भी ली कि शायद उस युवक तक पहुंचने का कोई सूत्र मिल जाए. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी कुछ नहीं मिला तो पुलिस कांता का मोबाइल फोन ले कर थाने आ गई. यह संयोग ही था कि उस दिन वह अपना मोबाइल फोन साथ नहीं ले गई थी.

Prabhakar-Shetty

पुलिस टीम ने कांता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से सब से अधिक जिस नंबर पर बात हुई थी, वह नंबर प्रभाकर कुट्टी शेट्टी का था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो पता चला कि वह सुभाषनगर में बिल्डिंग नंबर 6 एम 224 आचार्यमार्ग जोलड़ी चेंबूर में रहता है और चेंबूर जिमखाना के रेस्टोरेंट के.वी. कैटरर्स में मैनेजर है.

पुलिस टीम ने पहले प्रभाकर के नंबर पर संपर्क करना चाहा. लेकिन नंबर बंद होने की वजह से उस से संपर्क नहीं हो सका. इस के बाद पुलिस टीम ने उस के घर और रेस्टोरेंट पर छापा मारा. प्रभाकर पुलिस को दोनों जगहों पर नहीं मिला. इस से पुलिस का शक और बढ़ गया. पुलिस टीम ने उस की सरगरमी से तलाश शुरू कर दी. साथ ही मुखबिरों को भी लगा दिया. आखिर 8 नवंबर, 2013 को पुलिस ने मुखबिर की ही सूचना पर घाटकोपर की एक इमारत से प्रभाकर को गिरफ्तार कर लिया.

जवानी बनी जान की दुश्मन – भाग 1

दोपहर 2 बजे की गई शीला रात होने तक घर नहीं लौटी तो उस के बच्चे परेशान होने लगे. वह  डा. बंगाली से खुजली की दवा लेने शमसाबाद गई थी. उसे घंटे, 2 घंटे में लौट आना चाहिए था. लेकिन घंटे, 2 घंटे की कौन कहे, उसे गए कई घंटे हो गए थे और वह लौट कर नहीं आई थी. अब तक तो डा. बंगाली का क्लिनिक भी बंद हो गया होगा.

शीला का बड़ा बेटा 10 साल का सतीश रात होने की वजह से डर रहा था. वह ताऊ चाचाओं से भी मदद नहीं ले सकता था, क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही उस की मां की ताऊ और चाचाओं से खूब लड़ाई हुई थी. उस लड़ाई में ताऊ और चाचाओं ने उस की मां की खूब बेइज्जती की थी.

सतीश के मन में मां को ले कर तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. मां के न आने से वह परेशान था ही, उस से भी ज्यादा परेशानी उसे छोटे भाइयों के रोने से हो रही थी. 8 साल के मनोज और 3 साल के हरीश का रोरो कर बुरा हाल था. अब तक उन्हें भूख भी लग गई थी. उस ने उन्हें दुकान से बिस्किट ला कर खिलाया था, लेकिन बच्चे कहीं बिस्किट से मानते हैं. अब तक खाना खाने का समय हो गया था.

सतीश अब तक मां को सैकड़ों बार फोन कर चुका था, लेकिन मां का फोन बंद होने की वजह से उस की बात नहीं हो पाई थी. जब वह हद से ज्यादा परेशान हो गया और उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने मामा श्रीनिवास को फोन कर के मां के बंगाली डाक्टर के यहां जाने और वापस न लौटने की बात बता दी.

दोपहर की गई शीला उतनी देर तक नहीं लौटी, यह जान कर श्रीनिवास परेशान हो गया. वह समझ गया कि मामला कुछ गड़बड़ है. बहन के इस तरह अचानक रहस्यमय ढंग से गायब होने की जानकारी पा कर वह बेचैन हो उठा. उस के भांजे मां को ले कर किस तरह परेशान होंगे, उसे इस बात का पूरा अंदाजा था. उस ने भी शीला को फोन किया, लेकिन जब फोन बंद था तो शीला की भी उस से कैसे बात होती.

बहन से बात नहीं हो सकी तो दोस्त की मोटरसाइकिल ले कर वह तुरंत घर से निकल पड़ा. 8 किलोमीटर का रास्ता तय कर के वह 15-20 मिनट में भांजों के पास आ पहुंचा.

बहन को ले कर उस के मन में तरहतरह के विचार आ रहे थे. जवान बहन के साथ बदनीयती से किसी ने बुरा तो नहीं कर दिया, यह सोचने के पीछे वजह यह थी कि एक तो शीला घर नहीं लौटी थी, दूसरे उस का फोन बंद था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा अचानक क्या हो गया कि बहन का फोन बंद हो गया?

श्रीनिवास ने सब से पहले तो अपने तीनों भांजों के लिए खाने की व्यवस्था की. इस बीच बातचीत में सतीश ने मामा को बताया कि उन्हें स्कूल से ला कर खाना खिलाया. वे अपना होमवर्क करने लगे तो मां तैयार हो कर दवा लेने चली गई. उस ने घंटे, डेढ़ घंटे में लौटने को कहा था. लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि वह लौट कर ही नहीं आई.

सतीश ने बताया था कि शीला शमसाबाद वाले डा. बंगाली से दवा लेने गई थी. सतीश की इस बात से श्रीनिवास को हैरानी हुई, क्योंकि अभी तक तो शीला गांव से थोड़ी दूरी पर अपना क्लिनिक चलाने वाले डा. बंगाली से दवा लेती थी. इस बार वह शमसाबाद क्यों चली गई? शीला का पति यानी श्रीनिवास का बहनोई जयपाल दिल्ली में रहता था. श्रीनिवास ने जयपाल को फोन कर के सारी बात बताई तो उस ने मजबूरी जताते हुए उस समय गांव पहुंचने में असमर्थता व्यक्त करते हुए शीला की खोजबीन करने का अनुरोध किया.

श्रीनिवास ने बहन के इस तरह अचानक गायब होने पर उस के जेठ सहीराम और देवरों गिरिराज, राकेश तथा दिनेश से बात की तो इन लोगों में से किसी ने भी उसे ठीक से जवाब नहीं दिया. उन्होंने शीला और उस के बच्चों से किसी तरह की हमदर्दी या सहानुभूति दिखाने के बजाय साफसाफ कह दिया कि वह खुद ही ढूंढ ले. उस से उन्हें कोई लेनादेना नहीं है.

अपनी बहन के जेठ और देवरों की बातों से श्रीनिवास समझ गया कि पिछले दिनों संपत्ति को ले कर इन लोगों का उस की बहनबहनोई से झगड़ा हुआ था, उसी वजह से ये लोग नाराज हैं. इसलिए इन लोगों से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद करना बेकार है. वह तीनों भांजों को ले कर अपने गांव चला गया. बच्चों को अपनी मां के पास छोड़ कर वह बहन की तलाश करने लगा. बेटी के इस तरह अचानक गायब होने से उस की मां भी चिंतित थी.

शीला के जेठ और देवरों ने श्रीनिवास के साथ जैसा व्यवहार किया था, उस से उसे लगा कि उस के गायब होने के पीछे इन लोगों का हाथ तो नहीं है? उस की मां को भी कुछ ऐसा ही लग रहा था. इसलिए मांबेटे ने इस बात पर गहराई से विचार किया. रात काफी हो गई थी, इस के बावजूद श्रीनिवास शमसाबाद चौराहे पर डा. बंगाली की क्लिनिक तक शीला को ढूंढ़ आया था.

उस का सोचना था कि साधन न मिल पाने की वजह से बहन घर न जा पाई हो. लेकिन पूरे रास्ते में उसे एक भी आदमी आताजाता नहीं मिला. रास्ते में ही नहीं, बाजार में भी सन्नाटा पसरा था. विकलांग श्रीनिवास. पूरी रात बहन की तलाश में भटकता रहा.

अगले दिन डा. बंगाली की क्लिनिक खुलने के पहले ही वह शमसाबाद पहुंच गया. डा. सपनदास विश्वास 9 बजे के आसपास क्लिनिक पर पहुंचे तो श्रीनिवास ने उन से बहन के बारे में पूछा. डा. विश्वास ने मरीजों का रजिस्टर देख कर बताया कि कल तो शीला नाम की कोई मरीज उन के यहां नहीं आई थी.

इस से श्रीनिवास को किसी अनहोनी की आशंका हुई. वह सीधे थाना शमसाबाद जा पहुंचा. उस ने शीला के अपहरण और हत्या की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो थानाप्रभारी ने अगले दिन शीला की फोटो ले कर आने को कहा. थानाप्रभारी ने अगले दिन आने को कहा तो श्रीनिवास को लगा पुलिस टाल रही है. इसलिए वह वहां से सीधे जिलाधिकारी के यहां चला गया.

एक विकलांग को अपनी जवान विवाहिता बहन की तलाश में भटकते देख जिलाधिकारी गुहेर बिन सगीर ने उस की व्यथा  ध्यान से सुनी और थाना शमसाबाद पुलिस को आदेश दिया कि तत्काल पीडि़त की रिपोर्ट दर्ज कर के काररवाई की जाए. जिलाधिकारी के आदेश के बाद श्रीनिवास थाना शमसाबाद पहुंचा और शीला का अपहरण कर हत्या करने की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए उस ने शीला के जेठ सहीराम, देवर, गिरिराज, दिनेश, राकेश और देवरानी रामलाली को नामजद करते हुए तहरीर दे दी.

रिपोर्ट दर्ज कर के पुलिस शीला की देवरानी को छोड़ कर चारों नामजद लोगों को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थाने में की गई पूछताछ और जांच में पुलिस ने सभी को निर्दोष पाया, लेकिन अपना पीछा छुड़ाने के लिए पुलिस ने कागजी काररवाई कर के उन्हें जेल भेज दिया.