एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल

हमीरपुर सामूहिक हत्याकांड : क्या ये वाकई इंसाफ है?

उस दिन अप्रैल, 2019 की 19 तारीख थी. वैसे तो रविवार को छोड़ कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हर रोज चहलपहल रहती है लेकिन उस दिन न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की स्पैशल डबल बैंच में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. पीडि़त व आरोपी पक्ष के दरजनों लोग भी कक्ष में मौजूद थे.

दरअसल, उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे 22 साल पहले बुंदेलखंड क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी. आरोपी पक्ष के लोग कयास लगा रहे थे कि इस मामले में सभी आरोपी बरी हो जाएंगे, जबकि पीडि़त पक्ष के लोगों को अदालत पर पूरा भरोसा था और उन्हें उम्मीद थी कि आरोपियों को सजा जरूर मिलेगी.

दरअसल, निचली अदालत से सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुनवाई हो रही थी. सब से दिलचस्प बात यह थी कि इस मामले में एक पूर्व सांसद व वर्तमान में बाहुबली विधायक अशोक सिंह चंदेल आरोपी था.

उस ने साम दाम दंड भेद से इस मुकदमे को प्रभावित करने का प्रयास भी किया था. काफी हद तक वह सफल भी हो गया था, लेकिन अब यह मामला उच्च न्यायालय में था और फैसले की घड़ी आ गई थी, जिस ने उस की धड़कनें तेज कर दी थीं. लोग फैसला सुनने के लिए उतावले थे.

स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और अपनीअपनी कुरसियों पर विराजमान हो गए. उन्होंने अभियोजन व बचाव पक्ष के वकीलों पर नजर डाली.

फिर अंतिम बार उन्होंने मुकदमे की फाइल का निरीक्षण किया. वकीलों की बहस पहले ही पूरी हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने ठीक 11 बजे फैसला सुना दिया. फैसले की यह घड़ी आने में 22 साल 2 महीने का समय लग गया था.

आखिर ऐसा क्या मामला था, जिस का फैसला जानने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता थी. इस के लिए हमें 2 दशक पुरानी घटना को जानना होगा जो बेहद लोमहर्षक थी.

अशोक सिंह चंदेल मूलरूप से हमीरपुर जिले के थाना भरूआ सुमेरपुर के टिकरौली गांव का रहने वाला था. लेकिन उस की शिक्षादीक्षा कानपुर में हुई थी. छात्र जीवन में ही उस ने राजनीति का ककहरा सीख लिया था.

कानपुर शहर के किदवईनगर के एम ब्लौक में पिता का पुराना मकान था. इसी मकान में रह कर उस ने पढ़ाई पूरी की थी. अशोक सिंह चंदेल तेजतर्रार था. अपनी बातों से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेना उस की विशेषता थी. पढ़ाई के दौरान उस ने डीवीएस कालेज से छात्र संघ के कई चुनाव लड़े, किंतु सफलता नहीं मिली. वह जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, वह विरोधियों को मात देने में भी माहिर था.

सन 1985 में अशोक सिंह का रुझान व्यापार की तरफ हुआ. काफी सोचविचार के बाद उस ने एम ब्लौक, किदवई नगर में पंजाब नैशनल बैंक वाली बिल्डिंग में शालीमार फुटवियर के नाम से जूतेचप्पल की दुकान खोली. 14 नवंबर, 1985 को धनतेरस का त्यौहार था. इसी दिन दुकान का उद्घाटन था. उद्घाटन के बाद उस की दुकान पर ग्राहकों का आनाजाना शुरू हो गया था और बिक्री होने लगी थी.

शाम 5 बजे बाबूपुरवा कालोनी निवासी कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता उर्फ मामाजी अशोक चंदेल की दुकान पर चप्पल लेने पहुंचे. चूंकि दोनों एकदूसरे से परिचित थे, अत: बातचीत के दौरान रणधीर गुप्ता ने जूतेचप्पल की दुकान खोलने को ले कर अशोक पर कटाक्ष कर दिया. अशोक ने उस समय रणधीर से कुछ नहीं कहा. चप्पल खरीद कर वह अपने घर चले गए.

रात 10 बजे रणधीर गुप्ता किसी काम से थाना बाबूपुरवा गए थे. जब वह वहां से लौट रहे थे तो अशोक की दुकान के सामने उन के स्कूटर का पैट्रोल खत्म हो गया. अशोक नशे में धुत बंदूक लिए दुकान से बाहर खड़ा था. दिन में किए गए रणधीर के कटाक्ष को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इस कहासुनी में अशोक सिंह चंदेल ने कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता को गोली मार दी. गोली पेट में लगी और वह गिर पड़े. गोली मारने के बाद अशोक सिंह चंदेल वहां से फरार हो गया.

यह जानकारी रणधीर गुप्ता के घर वालों को हुई तो उन की पत्नी कमलेश गुप्ता रोतेपीटते परिजनों के साथ मौके पर पहुंची और पति को उर्सला अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों के प्रयास के बावजूद रणधीर गुप्ता की जान नहीं बच सकी.

थाना बाबूपुरवा में अशोक सिंह चंदेल के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम हुआ. पुलिस ने अशोक को पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. आखिर में तत्कालीन एसएसपी ए.के. मित्रा की अगुवाई में एसपी (सिटी) राजगोपाल ने कोर्ट के आदेश पर अशोक सिंह चंदेल के एम ब्लौक किदवईनगर स्थित पुराने घर की कुर्की कर ली.

बाद में एक साल बाद अशोक ने अदालत में सरेंडर कर दिया. कुछ ही दिनों में उस की जमानत हो गई. बाद में अशोक सिंह चंदेल ने कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने गृह जिला हमीरपुर में रहने लगा. बहुत कम समय में अशोक सिंह चंदेल ने ठाकुरों में अपनी पैठ बना ली.

वह गरीब तबके के लोगों की मदद में जुट गया और राजनीतिक मंच पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. अशोक सिंह चंदेल ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां हमीरपुर तक ही सीमित नहीं रखीं, बल्कि पूरे चित्रकूट मंडल में बढ़ा दीं. उस ने अपने समर्थकों की पूरी फौज खड़ी कर ली.

सन 1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. यह चुनाव अशोक सिंह चंदेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हमीरपुर सदर से लड़ा और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए उस ने जीत हासिल की.

इस अप्रत्याशित जीत से अशोक सिंह चंदेल का राजनीतिक कद बढ़ गया. उस ने हमीरपुर में मकान खरीद लिया और इस मकान में दरबार लगाने लगा. वह गरीबों का मसीहा बन गया था. धीरेधीरे अशोक सिंह चंदेल की क्षेत्र में प्रतिष्ठा बढ़ने लगी.

अशोक सिंह का राजनीतिक कद बढ़ा तो उस के राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी सक्रिय हो गए. इन प्रतिद्वंदियों में सब से अधिक सक्रिय थे राजीव शुक्ला. वह मूलरूप से हमीरपुर शहर के रमेडी मोहल्ला के रहने वाले थे. उन के पिता भीष्म प्रसाद शुक्ला प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. गरीबों और असहाय लोगों की मदद करना वह अपना फर्ज समझते थे. रमेडी तथा आसपास के लोग उन्हें लंबरदार कहते थे.

भीष्म प्रसाद शुक्ला के 3 बेटे थे राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला और राजीव शुक्ला. भीष्म प्रसाद भाजपा के समर्थक थे. उन की मृत्यु के बाद तीनों बेटे भी भाजपा के समर्थक बन गए. तीनों भाइयों में राजीव शुक्ला सब से ज्यादा पढ़ेलिखे थे. वह व्यापार के साथसाथ वकालत के पेशे से भी जुड़े थे. पिता की तरह राजीव शुक्ला और उन के भाई भी विधायक अशोक सिंह चंदेल के धुर विरोधी थे.

सन 1993 के विधानसभा चुनाव में अशोक सिंह चंदेल जनता दल में शामिल हो गया. पार्टी ने उसे टिकट दिया और वह चुनाव जीत गया. यह चुनाव जीतने के बाद उस के विरोधियों के हौसले पस्त पड़ गए थे. विरोधियों को धूल चटाने के लिए अशोक सिंह चंदेल अब और ज्यादा सक्रिय रहने लगा.

चंदेल और शुक्ला परिवार में राजीतिक दुश्मनी सन 1996 के विधानसभा चुनाव में खुल कर सामने आ गई. इस चुनाव में राजीव शुक्ला गुट ने अशोक सिंह चंदेल का खुल कर विरोध किया. नतीजतन अशोक सिंह चंदेल चुनाव हार गया.

हार का ठीकरा चंदेल ने राजीव शुक्ला पर फोड़ा. अब दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गई और दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए. दोनों गुट जब भी आमनेसामने होते तो उन में तनातनी बढ़ जाती थी.

शुरू हुई राजनीति की खूनी दुश्मनी

अशोक सिंह चंदेल के पास दरजनों सिपहसालार थे, जो उस की सुरक्षा में लगे रहते थे. राजीव शुक्ला ने भी 2 सुरक्षागार्डों वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय को रख लिया था.

शुक्ला बंधु जहां भी जाते थे, ये दोनों सुरक्षा गार्ड उन के साथ रहते थे. अशोक सिंह चंदेल के मन में हार की ऐसी फांस चुभी थी जो उसे रातदिन सोने नहीं देती थी. आखिर उस ने इस फांस को निकालने का निश्चय किया.

26 जनवरी, 1997 की शाम करीब 7 बजे अपने एक दरजन सिपहसालारों के साथ अशोक सिंह चंदेल अपने दोस्त नसीम बंदूक वाले के घर पहुंचा. नसीम बंदूक वाला हमीरपुर शहर के सुभाष बाजार सब्जीमंडी के पास रहता था. बहाना था रमजान पर मिलने का. सड़क पर अशोक चंदेल व उस के समर्थकों की कारें खड़ी थीं तभी दूसरी ओर से राजीव शुक्ला की कारें आईं.

कार में राजीव शुक्ला के अलावा उन के बड़े भाई राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला, भतीजा अंबुज तथा दोनों निजी गार्ड थे. दरअसल राकेश शुक्ला अपने भतीजे को ले कर उस के जन्मदिन के लिए कुछ सामान खरीदने जा रहे थे.

चूंकि अशोक चंदेल और उस के समर्थकों की कारें सड़क पर आड़ीतिरछी खड़ी थीं, ऐसे में राजीव शुक्ला ने कारें ठीक से लगाने को कहा ताकि उन की कारें निकल सकें. अशोक चंदेल के गुर्गे जानते थे कि राजीव शुक्ला उन के आका का दुश्मन है, इसलिए गुर्गों ने कारें हटाने से मना कर दिया.

इसी बात पर विवाद शुरू हो गया. विवाद बढ़ता देख नसीम और अशोक चंदेल घर से बाहर आ गए. राजीव शुक्ला व उन के भाइयों से विवाद होता देख अशोक चंदेल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. फिर क्या था, तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं.

चौतरफा गोलियों की तड़तड़ाहट से सुभाष बाजार गूंज उठा. कुछ देर बाद फायरिंग का शोर थमा तो चीत्कारों से लोगों के दिल दहलने लगे. सड़क खून से लाल थी और थोड़ीथोड़ी दूर पर मासूम बच्चे सहित 5 लोगों की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

मरने वालों में राजेश शुक्ला, राकेश शुक्ला, राजेश का बेटा अंबुज शुक्ला तथा उन के सुरक्षा गार्ड वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय थे. हमलावर दोनों सुरक्षा गार्डों की बंदूकें भी लूट कर ले गए थे.

इस सामूहिक नरसंहार से हमीरपुर शहर में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना मिलते ही एसपी एस.के. माथुर भारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घायल राजीव शुक्ला व अन्य को जिला अस्पताल भेजा और उन की सुरक्षा में फोर्स लगा दी. इस के बाद माथुर ने नसीम बंदूक वाले के मकान पर छापा मारा. छापा पड़ते ही वहां छिपे हत्यारों ने पुलिस पर भी फायरिंग शुरू कर दी.

पुलिस ने भी मोर्चा संभाला, लेकिन हत्यारे चकमा दे कर भाग गए थे. इस के बाद एसपी माथुर ने मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इधर राजीव शुक्ला अस्पताल में भरती थे. वह रात में ही घायलावस्था में पुलिस सुरक्षा के बीच थाना हमीरपुर कोतवाली पहुंचे और पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल, सुमेरपुर निवासी श्याम सिंह, पचखुरा खुर्द के साहब सिंह, झंडू सिंह, हाथी दरवाजा के डब्बू सिंह, सुभाष बाजार निवासी नसीम, सब्जीमंडी निवासी प्रदीप सिंह, उत्तम सिंह, भान सिंह एडवोकेट तथा एक सरकारी गनर के खिलाफ इस मामले की रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह रिपोर्ट भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 395, 34 के तहत दर्ज की गई.

आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस जगहजगह छापेमारी करने लगी. पुलिस की पकड़ से बचने के लिए ज्यादातर नामजद आरोपियों ने हमीरपुर की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

लेकिन पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में एक साल तक छिपता रहा. उस के बाद जज से सांठगांठ कर के एक दिन वह कोर्ट में हाजिर हो गया. गंभीर केस में भी जज आर.वी. लाल ने उसे उसी दिन जमानत दे दी.

न्यायालय पर हावी रहा अशोक चंदेल

न्यायिक अधिकारी के इस फैसले से राजीव शुक्ला को अचरज हुआ. उन्होंने पैरवी करते हुए हाईकोर्ट से अशोक सिंह चंदेल की जमानत निरस्त करवा दी, जिस से उसे जेल जाना पड़ा.

यही नहीं, राजीव शुक्ला ने जमानत देने वाले जज आर.वी. लाल की भी हाईकोर्ट में शिकायत की. शिकायत सही पाए जाने पर हाईकोर्ट ने जज आर.वी. लाल को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी. जांच रिपोर्ट आने के बाद जज आर.वी. लाल को बर्खास्त कर दिया गया.

इधर हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद सामूहिक नरसंहार के मुख्य आरोपी अशोक चंदेल ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जमानत निरस्त वाले फैसले पर रोक लगा दी, जिस से अशोक चंदेल जेल से बाहर तो नहीं आ सका लेकिन उसे राहत जरूर मिल गई.

इस के बाद उस ने अपने खास लोगों के मार्फत बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख सुश्री मायावती से संपर्क साधा और सन 1999 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांगा. मायावती ने अशोक सिंह चंदेल की हिस्ट्री खंगाली और फिर बाहुबली मान कर उसे टिकट दे दिया.

सन 1999 के लोकसभा चुनाव में चंदेल को टिकट मिला तो उस ने चुनाव का संचालन जेल से ही किया और पूरी ताकत झोंक दी. परिणामस्वरूप वह जेल से ही चुनाव जीत गया.

अब तक कोतवाली हमीरपुर पुलिस अशोक सिंह चंदेल समेत 11 आरोपियों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर चुकी थी. सामूहिक नरसंहार का यह मामला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अश्वनी कुमार की अदालत में विचाराधीन था. इसी दौरान एक आरोपी झंडू सिंह की बीमारी की वजह से मौत हो चुकी थी.

न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार ने 17 जुलाई, 2002 को इस बहुचर्चित हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने मुख्य आरोपी अशोक सिंह चंदेल सहित सभी 10 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया.

अदालत के इस फैसले से राजीव शुक्ला को तगड़ा झटका लगा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह समझ गए कि अशोक सिंह चंदेल ने करोड़ों का खेल खेल कर जज को अपने पक्ष में कर लिया है. अत: राजीव शुक्ला ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. साथ ही न्यायिक अधिकारी पर मनमाना फैसला सुनाने का आरोप लगाया.

पीडि़त राजीव शुक्ला की शिकायत पर हाईकोर्ट ने विजिलेंस और जुडीशियल जांच कराई, जिस में न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को मुकदमे में जानबूझ कर कपट व कदाचार से ऐसा निर्णय देने का आरोप सिद्ध हुआ. जांच अधिकारी की आख्या और हाईकोर्ट की संस्तुति पर तत्कालीन गवर्नर ने न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को बर्खास्त करने की मंजूरी दे दी.

वादी राजीव शुक्ला की आंखों के सामने उन के 2 भाइयों व भतीजे को गोलियों से छलनी किया गया था. जब भी वह दृश्य उन की आंखों के सामने आता तो उन का कलेजा कांप उठता था. यही कारण था कि राजीव ने न्याय पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था.

जब घटना घटी थी तब उन का खुद का व्यवसाय था, लेकिन घटना के बाद वह दिनरात आरोपियों को सजा दिलाने में जुट गए थे. हालांकि उन्हें सुरक्षा मिली थी, फिर भी पूरा परिवार दहशत में रहता था.

राजनीति की गोटियां बिछाता रहा अशोक चंदेल

राजीव शुक्ला जहां न्याय के लिए भटक रहे थे, वहीं अशोक सिंह चंदेल अपनी राजनीतिक गोटियां बिछा रहा था. चूंकि चंदेल सहित सभी आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए थे, अत: अशोक चंदेल खुला घूम कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुटा था.

अशोक सिंह चंदेल दलबदलू था. वह जिस पार्टी का पलड़ा भारी देखता, उसी पार्टी का दामन थाम लेता था. 2007 के विधानसभा चुनाव में उस ने बसपा से भी नाता तोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उसे टिकट दिया और वह जीत हासिल कर तीसरी बार हमीरपुर सदर से विधायक बन गया.

अगले 5 साल तक उस ने पार्टी के लिए कोई खास काम नहीं किया. इस से नाराज हो कर सन 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उसे टिकट नहीं दिया. तब उस ने सपा छोड़ कर बसपा व भाजपा से टिकट पाने की कोशिश की लेकिन दोनों पार्टियों ने उसे टिकट देने से साफ इनकार कर दिया. इस के बाद उस ने मजबूर हो कर पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गया.

अशोक सिंह चंदेल राजनीति का शातिर खिलाड़ी बन चुका था. वह हार मानने वालों में से नहीं था. अत: सन 2017 के विधानसभा चुनाव में उस ने फिर से जुगत लगाई और संघ के एक उच्च पदाधिकारी की मदद से भाजपा से नजदीकियां बढ़ाईं.

परिणामस्वरूप अशोक चंदेल भाजपा से हमीरपुर सदर से टिकट पाने में सफल हो गया. राजीव शुक्ला भी भाजपा समर्थक थे. भाजपा पदाधिकारियों में उन की भी पैठ थी. पार्टी द्वारा अशोक चंदेल को टिकट देने का उन्होंने विरोध भी किया.

इतना ही नहीं, समर्थकों के साथ लखनऊ जा कर धरनाप्रदर्शन भी किया. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी चंदेल को टिकट देने का विरोध किया. फिर भी उस का टिकट नहीं कटा. मोदी लहर में चंदेल ने इस सीट पर विजय हासिल की और चौथी बार हमीरपुर सदर से विधायक बना.

इधर कई सालों से सामूहिक हत्या का मामला हाईकोर्ट में चल रहा था. तारीखों पर तारीखें मिल रही थीं. लेकिन निर्णय नहीं हो पा रहा था. देरी होने पर राजीव शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक हत्याकांड की परिस्थितियों को देखते हुए निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद को प्रार्थनापत्र दें.

इस के बाद राजीव शुक्ला ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को प्रार्थनापत्र दिया और जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर एक स्पैशल डबल बैंच का गठन हुआ, जिस में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने सुनवाई शुरू की. सुनवाई शुरू हुई तो राजीव शुक्ला को जल्द न्याय पाने की आस जगी.

सामूहिक हत्याकांड मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष अधिवक्ता ओंकारनाथ दुबे ने बहस की और बचावपक्ष की ओर से अधिवक्ता फूल सिंह ने. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कृष्ण पहल भी इस बहस में शामिल थे. वकीलों की बहस और गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद उच्च न्यायालय की स्पैशल डबल बैंच ने सभी आरोपियों को दोषी माना और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया.

आखिर मिल ही गया न्याय

19 अप्रैल, 2019 को हाईकोर्ट की स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने इस मामले में फैसला सुनाया. खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

सजा पाने वालों में विधायक अशोक सिंह चंदेल तथा उस के सहयोगी रघुवीर सिंह, डब्बू सिंह, उत्तम सिंह, प्रदीप सिंह, साहब सिंह, श्याम सिंह, भान सिंह, रूक्कू तथा नसीम थे. कोर्ट ने सभी दोषियों को सीजेएम हमीरपुर की अदालत में सरेंडर करने के आदेश दिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां विधायक खेमे में मायूसी छा गई, वहीं पीडि़त परिवारों में खुशी के आंसू छलक आए. साथ ही 22 साल पहले हुआ वीभत्स हत्याकांड फिर से जेहन में ताजा हो गया.

पीडि़त परिवार को मिली तसल्ली

राजीव शुक्ला के आवास पर मोमबत्तियां जला कर खुशी मनाई गई तथा दिवंगत सभी 5 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. देर शाम उन के घर की महिलाओं ने घर की रेलिंग व चबूतरे पर मोमबत्तियां जलाईं.

उधर कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता की पत्नी कमलेश गुप्ता ने कहा कि उसे इस बात की तसल्ली हुई कि भले ही उस के पति की हत्या के मामले में न सही, पर दूसरे केस में बाहुबली विधायक अशोक चंदेल और उस के गुर्गों को सजा तो मिली.

बेवा कमलेश गुप्ता ने बताया कि पति रणधीर गुप्ता की हत्या के बाद उन का परिवार आर्थिक रूप से टूट गया था. हालात यह हैं कि आज दोजून की रोटी के भी लाले हैं. उन्होंने बताया कि पति किदवईनगर के ई-ब्लौक में एक हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. साथ ही प्लंबिंग के काम की ठेकेदारी भी करते थे.

घर पर विश्व शिक्षा निकेतन के नाम से स्कूल भी चलता था. उन की हत्या के बाद बुजुर्ग ससुर ने दुकान संभाली पर वह नहीं चली और बंद हो गई. आर्थिक रूप से कमर टूटी तो बिजली का बिल भी बकाया होता चला गया. आखिर में बिजली कट गई. तब से आज तक परिवार अंधेरे में ही रहता है.

विधवा कमलेश कुछ देर शून्य में ताकती रही फिर बोली कि 40 साल की बड़ी बेटी नमन अविवाहित है. बीए तक पढ़ाई करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. एक बेटा अखिल नौबस्ता में रह कर कार ड्राइवर की नौकरी करता है. सब से छोटा बेटा नवीन नौबस्ता की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. उसे 5 हजार रुपया वेतन मिलता है.

नवीन की नौकरी से ही घर चलता है. जेठ बी.एल. गुप्ता जो वडोदरा में रहते हैं, तथा पीलीभीत में रहने वाली ननद मीरा गुप्ता उन की आर्थिक मदद करती हैं, जिस से परिवार का भरणपोषण होता रहता है.

उन्होंने बताया कि आर्थिक परेशानी के कारण ही वह पति की हत्या के मुकदमे में पैरवी नहीं कर सकीं, जिस से मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है. अशोक सिंह चंदेल बाहुबली विधायक है. उस के आगे मुझ जैसी विधवा भला कैसे टिक सकती है. फिर भी सुकून है कि उसे दूसरे मामले में उम्रकैद की सजा तो मिली.

4 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल ने अकूत संपत्ति अर्जित की थी. राजनीति में आने के बाद उस ने विवादित प्रौपर्टी खरीदने का खेल शुरू किया. कानपुर किदवईनगर के एम ब्लौक में उस का तिमंजिला मकान पहले से था. उस के बाद उस ने जूही थाने के सामने एक वृद्ध महिला का मकान औनेपौने दाम में खरीदा और फिर तीन मंजिला कोठी बनाई.

इसी तरह उस ने ई-ब्लौक किदवई नगर में गुप्ता बंधुओं का विवादित मकान खरीदा. इस समय इस मकान में पहली मंजिल पर देना बैंक है. अशोक सिंह चंदेल ने जिस पीएनबी बैंक वाली बिल्डिंग में जूतेचप्पल की दुकान खोली थी, उस पर भी उस का कब्जा है.

अशोक सिंह चंदेल ने विधायक कोटे से भी 2 मकान आवंटित करा लिए थे. एक मकान गाजियाबाद में आवंटित कराया तथा दूसरा जूही कला कानपुर में. बाद में एक कोटे से 2 मकानों का आवंटन सामने आने पर मामला फंस गया. जब यह मामला कोर्ट गया तो कोर्ट ने उस का एक मकान निरस्त कर दिया. इन सब के अलावा भी हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि शहरों में उस की करोड़ों की प्रौपर्टी है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने इस बारे में बताया कि उच्च न्यायालय से आजीवन सजा मिलने के बाद अशोक सिंह चंदेल की विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार 2 वर्ष से अधिक सजा मिलने पर संबंधित व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व के अयोग्य हो जाता है.

इस नियम के तहत हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव निश्चित है. इस के लिए हाईकोर्ट से सूचना सचिवालय को जाएगी. इस के बाद सचिवालय इस सीट को रिक्त कर इस की सूचना चुनाव आयोग को देगा और चुनाव आयोग इस सीट पर उपचुनाव का कार्यक्रम तय करेगा.

जिस समय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया, विधायक अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर स्थित अपनी कोठी में था. पत्रकारों ने जब उसे उम्रकैद की सजा सुनाए जाने की जानकारी दी तो वह बोला कि उस ने हमेशा गरीबों के आंसू पोंछने का काम किया है. कोई भी ऐसा काम नहीं किया कि उसे सजा मिले. फिर भी अदालत का फैसला स्वीकार्य है. वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा.

बहरहाल कथा संकलन तक विधायक अशोक सिंह चंदेल के अलावा सभी दोषियों ने हमीरपुर की सीजेएम कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से सजा भुगतने को उन्हें जिला जेल भेज दिया गया था.

—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

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रमेश वर्मा जब सुबह अपने खेत पर स्थित बकरी फार्म पर गए तो देखा कि अलाव के पास कोयला जैसी जली एक लाश  पड़ी हुई है. उन के बेटे विक्रांत वर्मा (Vikrant Verma) की बाइक भी वहीं खड़ी थी. उस का जला हुआ मोबाइल फोन भी वहीं लाश के पास ही पड़ा था. इस आशंका से कि लाश उन के बेटे विक्रांत की तो नहीं है, उन के होश उड़ गए. रमेश वर्मा ने तुरंत घर फोन किया.

परिवार के अन्य लोग भी वहां आ गए. बड़े बेटे को भी सूचना दी गई. बाइक, मोबाइल और कपड़ों के जले हुए अंश से लाश की पहचान घर वालों ने 25 वर्षीय विक्रांत वर्मा के रूप में कर ली. देखते ही देखते खबर पूरे गांव में फैल गई. पुलिस को सूचना दी गई. सुलतानपुर के कोतवाली देहात की पुलिस मौके पर पहुंची और हालात का जायजा लिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव दुबेपुर में 25 वर्षीय विक्रांत वर्मा पत्नी और 2 जुड़वां बेटियों के साथ रहता था. वैसे उस के पास खेती की जो जमीन थी, उस से गुजारे भर पैदावार हो जाती थी, लेकिन विक्रांत और उस की पत्नी को उस से तसल्ली नहीं थी. वह ऐसी आमदनी चाहते थे, जिस से उन के पास भी भरपूर पैसा और आधुनिक सुखसुविधाओं के सारे साधन हों. दोनों इस पर विचारविमर्श भी करते रहते थे.

विक्रांत ने आमदनी बढ़ाने का जतन शुरू किया. उस ने बैंक से लोन ले कर पहले मुरगी पालन का काम किया. काफी मेहनत और लगन के बाद भी विक्रांत को मुरगी पालन में सफलता नहीं मिली. मुरगियों में बीमारियां लग गईं.

काफी इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. उधर पोल्ट्री फार्म में काम करने वाले मजदूरों ने भी सही तरीके से उन की देखभाल नहीं की, जिस से काफी संख्या में मुरगियां मर गईं. उस का यह कारोबार फेल हो गया. जिस से विक्रांत को इस में काफी बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ.

विक्रांत ने सोचा कि मुरगी पालन बहुत जोखिम का कारोबार है. वह किसी भी तरीके से मुरगी पालन करने में सफल नहीं हो सकता है. इसलिए उस ने फिर बकरी पालन का काम किया, लेकिन वह उस में भी सफल नहीं हुआ. दोनों ही धंधों में असफलता उस के हाथ लगी. जिस से उस की पूंजी डूब गई और वह लाखों रुपए का कर्जदार हो गया था.

इस के बाद विक्रांत हर समय मोबाइल में लगा रहता था. मोबाइल पर लगे रहना पत्नी को अच्छा नहीं लगता था. उस की इस आदत से पत्नी बहुत दुखी थी. उस के मन में यही खयाल आते रहते थे कि कहीं उस के पति का किसी और से चक्कर तो नहीं है. घर की आर्थिक हालत सही नहीं थी. ऊपर से पति का कमाने की तरफ ध्यान नहीं था, इसलिए पत्नी ने विक्रांत को तिकतिकाना शुरू किया.

एक दिन विक्रांत ने पत्नी से कहा कि वह दिल्ली काम की तलाश में जा रहा है. किसी दोस्त ने बताया है कि किसी फैक्ट्री में उसकी नौकरी लग जाएगी.

अचानक दिल्ली जाने की बात सुन कर पत्नी को शक व आश्चर्य तो हुआ, फिर भी उस ने सहज ही हंसीखुशी उसे दिल्ली जाने के लिए घर से विदा किया.

सभी कामों से निराश हो जाने पर विक्रांत दिल्ली में नौकरी करने गया. दिल्ली में कुछ महीने नौकरी करने के बाद  वह घर आया. यह बात 15 जनवरी, 2024 की है. उस समय रात के लगभग 10 बजे थे. कुछ समय रात में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ समय बिताने  के बाद सभी लोग सो गए.

विक्रांत को किस ने जलाया

16 जनवरी, 2024 की सुबह अपनी दैनिक क्रियाएं करने के बाद विक्रांत नाश्ते के लिए बैठ गया. पत्नी परांठे और चाय ले कर आ गई. इस बीच एक बच्ची रोने लगी पत्नी उसे बिस्तर से गोदी में उठा लाई. संभालने चुप कराने के लिए गोदी में ले कर वह पति के पास ही बैठ गई.

इस समय विक्रांत बहुत उदास था और गुमसुम सा बैठा नाश्ता कर रहा था. पत्नी को जब उस के चेहरे से परेशानी झलकती दिखाई दी तो उस ने सवाल कर ही दिया. क्या बात है? कैसे परेशान दिख रहे हो? दिल्ली में सही काम नहीं मिला तो कोई बात नहीं. आप यहीं खेती में ही फिर नए सिरे से मेहनत करो. धीरेधीरे सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

विक्रांत ने भी चुप्पी तोड़ी और कहा कि मुझ पर अब तक 9 लाख का कर्ज हो चुका है. उस का तगादा हो रहा है. मुझे इसी बात की चिंता हो रही है कि यह कर्ज कैसे उतरेगा. काफी देर दोनों में विचार विमर्श हुआ फिर विक्रांत गांव में घूमने निकल गया. दोपहर में घर आया. खाना खाया और फिर मोबाइल में रम गया.

शाम लगभग 6 बजे बाइक ले कर वह अपने बकरी फार्म पर गया. पत्नी से कह कर गया कि देखते हैं, खेती में कैसे और क्या हो सकता है.

रात 10 बजे तक विक्रांत जब वापस नहीं आया, तब उस की पत्नी ने फोन किया. फोन की घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठा नहीं. इस से पत्नी की चिंता बढ़ गई. उस ने  अपने ससुर रमेश वर्मा से यह बात बताई. उन्होंने भी फोन मिलाया, लेकिन फोन नहीं उठा.

रमेश वर्मा ने कई जगह रिश्तेदारियों में फोन कर के पूछा, पर विक्रांत का कोई पता नहीं मिला. उस की पत्नी ने भी अपने रिश्तेदारों में बात की लेकिन पता नहीं चला कि विक्रांत कहां है.

दोनों के दिमाग में यह था कि अगर फार्महाउस पर होता तो अब तक घर आ जाता. इतनी सर्दी में देर रात तक बकरी फार्म पर रुकने का कोई मतलब ही नहीं है. हो सकता है कि कहीं दोस्तों के साथ चला गया हो. बात आईगई हो गई. रात को लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

अगले दिन राजेश वर्मा बेटे के बकरी फार्म पर पहुंचे तो वहां अलाव में जली हुई एक लाश पड़ी थी. पास में बेटे विक्रांत की बाइक खड़ी थी. इस की सूचना उन्होंने घर वालों के अलावा कोतवाली (देहात) पुलिस को भी दे दी.

पुलिस को मामला आत्महत्या का प्रतीत हो रहा था. पास में जला हुआ एक मोबाइल फोन भी पड़ा था. घर वाले लाश की शिनाख्त विक्रांत वर्मा के रूप में पहले ही कर चुके थे. घटनास्थल पर ठंड से बचाव के लिए अलाव भी जलाया गया था, ढेर सारी राख इस बात की गवाही दे रही थी. उन दिनों शीत लहर चल रही थी, जिस से भीषण सर्दी थी. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

लाश का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतक उस वक्त बहुत ज्यादा शराब के नशे में था और आग में जल जाने से उस की मौत हुई है. मृत्यु की बहुत ज्यादा स्थिति स्पष्ट न होने के कारण इस मामले में उस का विसरा जांच के लिए भी भेजा गया.

पुलिस क्यों नहीं कर रही थी हत्या की रिपोर्ट दर्ज

रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई  कि उस ने अत्याधिक शराब का सेवन कर रखा था. ऐसे में कयास लगाया जा रहा था कि विक्रांत शराब के नशे में अलाव के पास पहुंचा और वहां आग की चपेट में आने से उस की मौत हो गई. विक्रांत के पिता इसे आत्महत्या या दुर्घटना मानने को तैयार नहीं थे. उन का मानना था कि उन का बेटा विक्रांत कितने भी डिप्रेशन में हो, लेकिन अत्यधिक शराब का सेवन नहीं कर सकता. वह आत्महत्या जैसा घातक कदम भी नहीं उठा सकता.

मौके की स्थिति भी हत्या किए जाने जैसी थी. एक जगह जलने के संकेत थे. उस ने इधरउधर भागने की कोई कोशिश नहीं की, जिस से स्पष्ट होता है कि विक्रांत को मार कर सबूत मिटाने के लिए जलाया गया है. उन्होंने अंतिम संस्कार की औपचारिकता पूरी करने के बाद दूसरे दिन थाने में हत्या की आशंका जताते हुए तहरीर दे दी.

पीडि़त पिता ने दी तहरीर में कहा कि उन्हें आशंका है कि अज्ञात व्यक्तियों ने उन के बेटे की हत्या कर के सबूत मिटाने के लिए शव जला दिया है. उन की तहरीर पर पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

पुलिस की मानें तो घटना से एक दिन पहले मृतक ने अपने दोस्त रंजीत को काल की थी. फिर उस से मिल कर वह फूटफूट कर रोया कि अब मैं जिंदा नहीं रहूंगा. मुझे कोई अच्छी निगाह से नहीं देखता.

घर परिवार में भी कोई इज्जत नहीं है. समाज भी बुरा समझने लगा है. ऐसी जिंदगी से क्या फायदा. शुरुआती जांच के बाद पुलिस का स्पष्ट मत बन चुका था कि विक्रांत ने आत्महत्या की है. बताया जाता है कि पुलिस ने युवक के मोबाइल फोन समेत कई वस्तुओं को जांच के लिए कब्जे में लिया.

विक्रांत वर्मा की हत्या को 4 दिन बीत गए और अब तक केस दर्ज नहीं हुआ. घर वाले हत्या का आरोप लगाते हुए थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस आत्महत्या का केस दर्ज कराने के लिए परिजनों पर दबाव बनाती रही.

ऐसे में पिता ने अपने बड़े बेटे के साथ एसपी सोमेन वर्मा से मिल कर उन से हत्या का मुकदमा दर्ज कराए जाने की मांग की. थाना पुलिस के काररवाई न करने पर उन्होंने लंभुआ विधायक सीताराम वर्मा से भी हत्या का केस दर्ज कराने की गुहार लगाई.  विधायक विनोद सिंह से भी उन्होंने संपर्क किया. वह इस समय सदर सीट से विधायक हैं.

इन दोनों विधायकों की सिफारिश और बापबेटे की भागदौड़ आखिर रंग लाई और 22 जनवरी, 2024 को कोतवाली (देहात) थाने में अज्ञात के खिलाफ विक्रांत की हत्या का केस दर्ज हुआ. देहात कोतवाल श्याम सुंदर ने बताया कि विक्रांत के पिता ने बेटे की हत्या की केवल शंका जताई थी, जिस के चलते मामला दर्ज कर उन्होंने जांच शुरू की.

एसपी सोमन वर्मा ने विक्रांत वर्मा हत्याकांड के खुलासे के लिए 2 पुलिस टीमें गठित कीं. पहली टीम का नेतृत्व कोतवाल श्याम सुंदर को सौंपा गया. टीम में एसआई अखिलेश सिंह, विनय कुमार सिंह, हैडकांस्टेबल विजय कुमार, विजय यादव व आलोक यादव को शामिल किया गया.

दूसरी टीम एसओजी की गठित की. इस स्वाट टीम के प्रभारी उपेंद्र सिंह थे. इस में समरजीत सरोज, विकास सिंह, तेजभान सिंह और अबू हमजा को शामिल किया गया था. एसपी ने इस केस के खुलासे के लिए 25 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था. दोनों टीमों की निगरानी लंभुआ क्षेत्र के सीओ अब्दुल सलाम कर रहे थे.

मुखबिर की सूचना पर क्यों चौंकी पुलिस

जांच के दौरान ही एक दिन श्याम सुंदर को मुखबिर ने सूचना दी कि विक्रांत मोबाइल फोन से गांव में कभीकभार किसी से बात करता है. यह सुन कर कोतवाल का दिमाग चकराया कि विक्रांत तो मर गया तो फिर वह फोन पर कैसे बात कर सकता है.

उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को यह बात बताई. अधिकारी भी सकते में आ गए. उन्होंने कहा कि विक्रांत जब किसी से बात करता है तो वह जली हुई लाश क्या किसी और की थी? इस का मतलब यह है कि विक्रांत अभी जिंदा है.

अधिकारियों ने हरी झंडी देते हुए कहा कि मुखबिर की सूचना पर जांच आगे बढ़ाई जाए. विक्रांत जिस मोबाइल नंबर से बात करता था, वह मोबाइल नंबर पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पता चला कि इस नंबर पर रात में किसी से कभीकभार बात होती है. दिन के बाकी समय में यह नंबर बंद रहता है.

कोतवाल श्याम सुंदर को पता चला कि यह मोबाइल नंबर एक महिला का है. मोबाइल नंबर की लोकेशन हरियाणा प्रदेश के पानीपत शहर की मिल रही थी.

इस हत्याकांड को खोलने के लिए कोतवाली पुलिस पर 2-2 विधायकों और उच्चाधिकारियों का प्रेशर बना हुआ था. पानीपत की लोकेशन मिलते ही पुलिस की टीमों को वहां भेजा गया. पुलिस मुखबिर को साथ में ले कर उस क्षेत्र की निगरानी कर रही थी. जहां पर टेलीफोन नंबर की लोकेशन मिल रही थी.

पुलिस ने सर्विलांस टीम की मदद ली. लोकेशन ट्रेस हुई. इस के बाद पुलिस ने हरियाणा के पानीपत स्थित गली नंबर- 28 (वार्ड नं. 16) विकास नगर में दबिश दी. यह इलाका थाना सेक्टर- 29 इंडस्ट्रियल एरिया का है.

कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद आखिर विक्रांत वर्मा हत्थे चढ़ गया. उसे जीवित देख कर पुलिस चौंक गई. पता चला कि उस ने यहां अपना नाम विक्की कुमार रख लिया था. अपनी पहचान बदलने की उस ने पूरी कोशिश की, लेकिन मुखबिर की शिनाख्त के कारण विक्रांत वर्मा को पुलिस ने दबोच लिया.

थोड़ी सी सख्ती करने पर विक्रांत वर्मा टूट गया. उस ने अपना को विक्रांत वर्मा होना स्वीकार किया तथा गुनाह कुबूल कर लिया. वहां से पुलिस ने विक्रांत, उस के साथी शक्तिमान कुमार व अनुज साहू निवासी कासगंज के तुमरिया को गिरफ्तार कर लिया.

विक्रांत ने पुलिस को जो कुछ बताया, घटना के 25वें दिन केस का खुलासा करते हुए उस की जानकारी लंभुआ के सीओ अब्दुल सलाम ने पत्रकारों को एक प्रैस कौन्फ्रैंस में दी. कोतवाल श्याम सुंदर भी उस समय वहां मौजूद थे.

विक्रांत ने क्यों उड़ाई थी अपनी आत्महत्या की खबर

जांच में पता चला कि रोजगार के लिए दिल्ली आने पर विक्रांत की मुलाकात शक्तिमान कुमार और अनुज साहू से हुई थी. उस समय विक्रांत डिप्रेशन में था. उस की परेशानी चेहरे से साफ झलक रही थी. उन दोनों ने उस के चेहरे को पढ़ लिया. पूछने लगे  किस बात से परेशान है.

विक्रांत ने बताया कि उस की जुड़वां बच्चियां हैं, जो लगभग डेढ़ साल की हो चुकी हैं. पत्नी बच्चों के पालन पोषण में लगी रहती है, जिस से उस का उस की तरफ कोई ध्यान नहीं है. जबकि एक और लड़की जो उस का पहला प्यार है, वह अब भी मेरा इंतजार कर रही है. मैं आज भी पहले प्यार को भुला नहीं पा रहा हूं.

पत्नी की बेवफाई ने प्रेमिका से प्यार और भी बढ़ा दिया है. उस की बेबसी और लाचारी मुझ से देखी नहीं जा रही. शरीर के बीच जो दूरियां बनी हुई हैं, उस से मैं बहुत दुखी हूं. वह भी दो जिस्म मगर एक जान होने के लिए तत्पर है. मुझ पर दबाव भी बना रही है. प्रेमिका ने बताया है कि अब घर वाले उस की शादी की तैयारी कर रहे हैं. उस की यह बात सुन कर मैं बहुत परेशान हूं. मैं उसे किसी हालत में खोना नहीं चाहता.

विक्रांत ने अपने साथियों को यह भी बताया कि उस का मुरगी पालन और बकरी पालन का व्यवसाय फेल हो गया. उस से कर्जदार हो गया है. करीब 9 लाख रुपए का बैंक का कर्ज है. अब उसे वह ऐसी तरकीब बताएं कि मर कर भी जिंदा रहे और सारी प्रौब्लम दूर हो जाए.

शक्तिमान कुमार और अनुज साहू ने काफी सोचविचार के बाद क्राइम मिस्ट्री तैयार की. उन्होंने बताया कि हम किसी और व्यक्ति की हत्या कर के उस की लाश को जला देंगे और वहां पर तेरा सामान बाइक, मोबाइल आदि छोड़ देंगे, जिस से पता चले कि विक्रांत ने आत्महत्या कर ली है. इस तरह तुम्हारा पत्नी से भी पीछा छूट जाएगा और प्रेमिका भी हासिल हो जाएगी और कर्ज के 9 लाख रुपए भी देने नहीं पड़ेंगे.

किस को बनाया बलि का बकरा

अपनी कार्य योजना को अंजाम देने के लिए 15 जनवरी, 2024 को विक्रांत दोनों दोस्तों के साथ अपने गांव आ गया. उस ने अपने दोनों साथियों को फार्महाउस पर ठहरने की व्यवस्था की.

16 जनवरी की दोपहर अनुज शक्तिमान के साथ अमहट क्षेत्र में स्थित सरकारी देसी शराब के ठेके पर पहुंचा. काफी देर की निगरानी के बाद वहां नशे में झूलता हुआ एक व्यक्ति मिला, जिसे उन दोनों में से कोई नहीं जानता था. वो कदकाठी में बिलकुल विक्रांत ही जैसा था.

उसे वे यह बोल कर बाइक पर बैठाकर लाए कि चलो तुम्हें घर पहुंचा दें. वह दोनों उसे अपने बकरी फार्म पर ले आए. विक्रांत ने शराब की दुकान से एक बोतल खरीदी और फिर वह भी बकरी फार्म आ गया.

वहां उन तीनों ने उस व्यक्ति को और शराब पिलाई. वह इतना बेहोश हो गया कि अपने आप हिलडुल भी नहीं सकता था. वह शराबी सफेद कुरतापाजामा ब्राउन कलर की जैकेट पहने हुआ था. मफलर भी  पहने हुए था.

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आरोपी अनुज साहू, शक्तिमान कुमार और विक्रांत वर्मा पुलिस हिरासत में

विक्रांत ने जो कपड़े पहन रखे थे, जिन्हें पहन कर वह दिन भर गांव में भी घूमा था, वह कपड़े उतार कर उस व्यक्ति को पहना दिए. उस से पहले उस व्यक्ति के सारे कपड़े उतार दिए थे. काम पूरा करने के बाद बकरी फार्म से भागने के लिए उन्होंने सारा सामान बैग में पहले तैयार कर लिया था. उस में से पैंट शर्ट निकाल कर विक्रांत ने पहन लिए.

कुछ लकडिय़ां और उपले उन लोगों ने पहले ही एकत्र कर लिए थे. जिस से कि यह पता चले कि ठंड से बचने के लिए यहां अलाव जलाया गया था. फिर उस व्यक्ति पर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी. उस के कपड़े भी जला दिए.

उस समय रात के लगभग 9 बज चुके थे. चारों तरफ सन्नाटा था. सभी लोग ठंड में अपने घरों में थे. जब उन तीनों लोगों को विश्वास हो गया कि वह व्यक्ति मर चुका है और उस की लाश को पहचाना नहीं जा सकता, फिर वे सब वहां से फरार हो गए.

वहां से पहले लखनऊ फिर कासगंज और उस के बाद में पानीपत चले गए. पानीपत में ही विक्रांत की प्रेमिका भी रहती थी.

जिस को जलाया गया आखिर वो व्यक्ति था कौन?

यह सुन कर पुलिस के भी होश उड़ गए. पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ध्यान से नहीं देखा था. क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की आयु लगभग 60 वर्ष जरूर बताई गई होगी. जबकि विक्रांत की उम्र मात्र 25 साल थी. पुलिस की जांच में सामने आया कि जिस व्यक्ति को शराब के नशे में धुत कर के जिंदा जलाया था, वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, दुबेपुर में चालक द्वारिकानाथ शुक्ला पुत्र चंद बहादुर शुक्ला था. द्वारिकानाथ शुक्ला की बंधु आकला थाने में गुमशुदगी दर्ज थी. वह इसी क्षेत्र में रहता था.

लगभग 60 वर्षीय द्वारिकानाथ शुक्ला उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद के गांव रौतवां का मूल निवासी था. यह भी पता चला कि शक्तिमान इस समय पानीपत में ही रहता है. विक्रांत वर्मा ने भी यहीं पर नौकरी कर ली थी. पुलिस ने द्वारिकानाथ शुक्ला की गुमशुदगी  को हत्या में तरमीम किया.

कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने शक्तिमान कुमार, अनुज साहू और विक्रांत वर्मा को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड

एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल – भाग 4

डमी परीक्षा में कैसे फेल हुए एसआई

पेपर लीक में एक अन्य चौंकाने वाला मामला एसआई भरती परीक्षा- 2021 का भी सामने आया. इस भरती परीक्षा में मूल परीक्षार्थी की जगह डमी कैंडिडेट को बैठाया गया था. उस की जब एसओजी द्वारा गहन जांच हुई, तब धड़ाधड़ कई खुलासे हो गए.

डमी कैंडिडेट बैठा कर परीक्षा पास करने वाले 4 ट्रेनी एसआई को एसओजी ने गिरफ्तार किया. उन्हें तब गिरफ्तार किया गया, जब सभी राजस्थान पुलिस अकादमी (आरपीए) में ट्रेनिंग कर रहे थे.

14 अप्रैल, 2024 की शाम को सेंटर में एसओजी की टीम जैसे ही पहुंची, वहां हड़कंप मच गया. कई ट्रेनी एसआई उस दिन रविवार होने और अंबेडकर जयंती होने के चलते आराम फरमा रहे थे. तभी एसओजी ने एकएक कमरे से ट्रेनी एसआई का नाम बोल कर उन को अपने कपड़ों के बैग तैयार करने को कहा.

इस के बाद चारों एसआई को एसओजी मुख्यालय ले कर गई. इस बारे में एडीजी (एसओजी) वी.के. सिंह ने बताया कि चारों ट्रेनी एसआई ने अपने स्थान पर डमी अभ्यर्थी बैठा कर एसआई भरती परीक्षा-2021 को पास किया था.

एसआई में फरजीवाड़ा किए जाने की खबर मिलने पर एसओजी ने कुछ दिनों पहले डमी परीक्षा ली थी. उस में चारों एसआई फेल हो गए थे. वे चारों 25 प्रतिशत नंबर भी नहीं प्राप्त कर पाए थे. इस पर एसओजी को उन की योग्यता पर शक हुआ. जब इन के दस्तावेजों और सेंटर की जांच की गई, तब पता चला कि इन चारों ने डमी कैंडिडेट बैठा कर परीक्षा पास की थी. पूछताछ में चारों ट्रेनी एसआई ने डमी कैंडिडेट परीक्षा में बैठाना स्वीकार किया.

पूछताछ में मालूम हुआ कि इन में से हरेक ने परीक्षा में पास होने के लिए 15 से 20 लाख रुपए दिए थे. इस में डमी कैंडिडेट बैठाना और पेपर खरीदना दोनों शामिल था. एसआई भरती-2021 पेपर लीक और डमी अभ्यर्थी केस में अब तक 36 ट्रेनी एसआई और 7 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है. हालांकि, इन में 11 ट्रेनी की जमानत हो चुकी है. एसओजी को अब उन की तलाश है, जो इन चारों ट्रेनी की जगह परीक्षा में डमी अभ्यर्थी बन बैठे थे.

पकड़े गए ट्रेनी एसआई में हरिओम पाटीदार निवासी गलियाकोट का एसआई भरती परीक्षा में मेरिट में 645वां नंबर आया था. हरिओम का प्रकाश पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल निवारू रोड, झोटवाड़ा, जयपुर में सेंटर था और 15 सितंबर, 2021 को परीक्षा हुई थी.

हरिओम को हिंदी में 200 में से 169.69, सामान्य ज्ञान में 200 में से 118.46 और कुल 400 में से 288.15 अंक मिले थे. उस के इंटरव्यू में 28 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 316.15 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में इसे हिंदी में 200 में से 55 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 69 अंक ही मिले.

दूसरा ट्रेनी एसआई विक्रमजीत निवासी बज्जू बीकानेर हाल पाश्र्वनाथ सिटी जोधपुर का मेरिट में 1263वां नंबर आया था. उस का श्री जवाहर जैन सेकेंडरी स्कूल, उदयपुर में सेंटर था और परीक्षा 13 सितंबर, 2021 को हुई थी.

विक्रमजीत को हिंदी में 200 में से 158.27, सामान्य ज्ञान में 200 में से 118.91 कुल 400 में से 277.18 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 20 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 297.98 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 43 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 43 नंबर मिले.

श्रवण कुमार निवासी बज्जू बीकानेर का मेरिट में 1708वां नंबर आया था. उस का गवर्नमेंट गल्र्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल मंडोर रोड जोधपुर में सेंटर था और परीक्षा 14 सितंबर, 2021 को थी. श्रवण कुमार को हिंदी में 200 में से 135.8, सामान्य ज्ञान में 200 में से 120.79 कुल 400 में से 256.59 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 28 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 284.59 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 31 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 36 नंबर ही मिले.

श्याम प्रताप सिंह निवासी लोहावट जोधपुर का मेरिट में 2207वां नंबर आया था. उस का गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल डेसूला, अलवर में सेंटर था और परीक्षा 13 सितंबर, 2021 को थी.

श्याम प्रताप को हिंदी में 200 में से 143.43, सामान्य ज्ञान में 200 में से 95.56 कुल 400 में से 238.99 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 29 नंबर आए. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 267.99 नंबर मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 63 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 70 नंबर ही मिले.

डिप्टी एसपी का बेटा भी हुआ गिरफ्तार

एसआई भरती मामले में भरतपुर में एसपी औफिस जा कर एसओजी ने जरूरी काररवाई कर गहन छानबीन की. इस काररवाई के बाद राजस्थान पुलिस ने अलग से ऐक्शन लिया. एसओजी ने भरतपुर एसपी औफिस में जैसे ही मौके का मुआयना किया, वैसे ही औफिस में रीडर पद पर तैनात सबइंसपेक्टर जगदीश सिहाग को सस्पेंड कर दिया गया.

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उस के बारे में पहले से ही काफी जांचपड़ताल कर चुकी थी. जगदीश पर आरोप था कि उस ने अपनी 2 बहनों को 30 लाख रुपए दे कर एसआई बनवाया था. दोनों बहनें भी गिरफ्तार की जा चुकी हैं.

दोनों की जगह जिस तीसरी बहन ने पेपर दिया था, उस बहन का नाम वर्षा है और वह कथा लिखे जाने तक  फरार चल रही थी. वह प्रथम श्रेणी व्याख्याता है. उस ने 30 लाख दे कर अपनी 2 बहनों की जगह पेपर दिया था और खुद भी पेपर दिया था. तीनों बहनें थानेदार बन गई थीं.

बताया जा रहा है कि साल 2014 में जगदीश सिहाग ने भी एसआई बनने के लिए 10 लाख रुपए खर्च किए थे और नकल कर वह भी थानेदार बन गया था. उस के बाद पहली ही पोस्टिंग में एसीबी के हत्थे चढ़ गया था. उस ने अपनी जगह डमी अभ्यर्थी बिठाया था और उस डमी अभ्यर्थी ने जगदीश को पास कराया था. जगदीश की 23वीं रैंक बनी थी और वह थानेदार बन गया था. उस ने 10 सालों तक ड्यूटी की, लेकिन किसी को पता नहीं चला कि वह नकल कर पास हुआ है. इन दिनों वह भरतपुर एसपी के यहां लगा हुआ था.

यही नहीं, गिरफ्तार 13 ट्रेनी थानेदारों के ठिकानों से हिसाब की डायरी से ले कर मिले ये दस्तावेज और भी हैरान करने वाले थे. एडीजी वी.के. सिंह के अनुसार सभी जगह स्थानीय पुलिस अधिकारियों के सहयोग से आरोपी थानेदारों के घर व अन्य ठिकानों सांचौर, जालौर, बाड़मेर, जोधपुर, जयपुर, चुरू में छापेमारी की गई थी.

इस दौरान बड़ी संख्या में परीक्षा से पहले एसआई भरती को पेपर लेने, अन्य कई अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट, कई परीक्षाओं के प्रश्नपत्र, गिरोह से लेनदेन के हिसाब की डायरी व अन्य दस्तावेज मिले. डिप्टी एसपी ओमप्रकाश गोदारा के जयपुर आवास पर भी सर्च किया गया.

गोदारा के बेटे करणपाल गोदारा को भी एसआई भरती परीक्षा में पहले पेपर लेने के मामले में गिरफ्तार किया गया. करणपाल को भी आरपीए में प्रशिक्षण लेते समय गिरफ्तार किया गया.

आरोपियों में प्रशिक्षु थानेदारों में नरेश कुमार बिश्नोई, सुरेंद्र कुमार बिश्नोई, राजेश्वरी बिश्नोई, मनोहर लाल गोदारा, गोपीराम जांगू, श्रवण कुमार बिश्नोई, नारंगी कुमारी बिश्नोई, प्रेमसुखी बिश्नोई, चंचल कुमारी बिश्नोई, करणपाल गोदारा, राजेंद्र कुमार यादव, विवेक भांभू, रोहिताश कुमार जाट, धर्माराम गिला आदि.

कथा लिखे जाने तक एसओजी इस मामले की जांच में जुटी थी. अब देखना यह है कि एसआई फरजीवाड़े में कितने और आरोपी एसओजी के हत्थे चढ़ेंगे?

एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल – भाग 3

हर्षवर्धन के इस धंधे में आने और पत्नी समेत नेपाल फरार होने, फिर वहां से अपनी ससुराल में छिपे रह कर नौकरी की तलाश करने की कहानी कुछ कम फिल्मी नहीं है. हर्षवर्धन के पिता मुरारी लाल मीणा एक जमाने में जेलर हुआ करते थे. वह रिटायर हो चुके हैं और दौसा जिलांतर्गत महवा तहसील के सलीमपुर गांव के अपने साधारण से मकान में  रहते हैं.

अपने पिता की तरह ही हर्षवर्धन भी अच्छे रुतबे वाली नौकरी पाना चाहता था. आईएएस बनना चाहता था. लेकिन अचानक उस के कदम गलत राह पर मुड़ गए और वह पूर्वी राजस्थान में पेपर लीक करवाने वाले गिरोह के संपर्क में आ गया. इस काम की बारीकियों को सीख समझ कर उस ने खुद ही एक टीम बना ली.

परीक्षाओं में डमी कैंडिडेट बैठाने से ले कर पेपर लीक से ले कर इंटरव्यू क्लियर करवाने तक के काम को अंजाम देने लगा. इस के लिए उस ने अपना नेटवर्क बना लिया.

इस की शुरुआत उस ने 13 साल पहले की थी. बीते एक दशक में वह पेपर लीक का मास्टर बन चुका था. बताते हैं कि उस की बदौलत 500 से अधिक लोगों की नौकरी लग चुकी है. वह बौस के नाम से प्रचलित है. इस धंधे का फायदा उस ने अपने लिए भी उठाया और पटवारी की नौकरी हासिल करने में सफलता भी हासिल कर ली.

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                आरोपी हर्षवर्धन मीणा

यह एक जिम्मेदारी का पद होता है. एक पटवारी अपने कार्यालय में गांव की जमीन का नक्शा, कृषि भूमि संबंधी रिपोर्ट, जमाबंदी बिक्री, राजस्व वसूली पत्र और खसरा नंबर आदि अभिलेखों को सुरक्षित रखता है. इस के अलावा आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र बनवाने और फसल नुकसान के मुआवजे के लिए सर्वे में भी इन के बिना फाइल आगे नहीं बढ़ती है.

हर्षवर्धन ने इस तरह के महत्त्वपूर्ण पद को भी दांव पर लगा दिया था. अपनी ड्यूटी भाड़े पर रखे युवक से करवाता था. बदले में उसे 10 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था.

पेपर लीक करवाने लिए हाईटेक तरीके और नए गैजेट्स का इस्तेमाल करता था. इस की शुरुआत उस ने ब्लूटूथ से की थी. पहली बार उस ने एक परीक्षा के दरम्यान प्रश्नों के जवाब उपलब्ध करवाए थे.

भरती परीक्षाओं में नकल के लिए वह 10 अभ्यर्थियों से सौदा करता था. उन को परीक्षा सेंटर पर जाने से पहले उन्हें ब्लूटूथ से लैस करवा देता था. उन्हें टेप, कपड़े आदि से छिपा देता था. इस डिवाइस से सेंटर परिसर के बाहर गाड़ी में बैठे व्यक्ति को वह प्रश्न बताता था. वहीं से उसे तुरंत उत्तर मिल जाता था.

यह धंधा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कारण सुरक्षा के दौरान ब्लूटूथ समेत अभ्यर्थी  पकड़े जाने लगे थे. उस के बाद मीणा ने नकल का तरीका भी बदल लिया.

उस ने एक ग्रुप बना लिया. जैसे ही सरकारी भरती की घोषणा होती, यह ग्रुप सक्रिय हो जाता था. ग्रुप के लोग अभ्यर्थियों को परीक्षा पास करवाने की गारंटी दे कर सौदा करते थे. इस में कैंडिडेट से 15 से 20 लाख रुपए लिए जाते थे.

20 लाख में पास कराता था एसआई परीक्षा

डमी कैंडिडेट को परीक्षा में बिठाने के लिए नकली एडमिट कार्ड बनाए जाते थे. उस में डमी कैंडिडेट की तसवीर असली कैंडिडेट से मिलतीजुलती तसवीर लगाई जाती थी. मीणा के गिरोह ने 13 से 15 सितंबर, 2021 को हुई एसआई भरती परीक्षा में सब से अधिक डमी कैंडिडेट बिठाए थे.

इस परीक्षा में मीणा ने अपनी पत्नी को भी डमी कैंडिडेट की बदौलत शामिल करवाया था. वह एसआई की परीक्षा पास कर गई थी, लेकिन फिजिकल जांच में फेल हो गई. हालांकि उसे पटवारी की नौकरी दिलाने में सफलता मिल गई थी.

कुछ सालों में हर्षवर्धन पेपर लीक के धंधे का मास्टर बन गया. उस के गिरोह के राजेंद्र यादव ने भी एसआई की भरती परीक्षा में 53वीं रैंक डमी कैंडिडेट की बदौलत ही हासिल की थी. इस तरह से उस के गिरोह में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी ही हैं. उन्हें ट्रांसफर करवाने का भी काम वह करता था. उस के बाद उसे भी इस एहसान के बदले अपने गिरोह में शामिल कर लेता था.

भरती की प्रतियोगिता परीक्षाओं के सेंटर स्कूलों में ही बनाए जाते हैं. इसे देखते हुए हर्षवर्धन ने अपने गिरोह में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों से भी सांठगांठ कर ली थी. उन्हें भी पैसे का लालच दे कर अपने साथ जोड़ लिया था. उन्हीं में खातीपुरा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में काम करने वाला राजेंद्र कुमार यादव भी है. वह उस स्कूल में 23 साल से नौकरी कर रहा था.

मई 2010 में उस का ट्रांसफर मुरलीपुरा में हो गया था. हर्षवर्धन ने उस का दोबारा खातीपुरा में ट्रांसफर करवा दिया था. इस तरह वह हर्षवर्धन के संपर्क से प्रभावित हो कर उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया था. बाद में दोनों पार्टनर बन गए थे.

उन के संपर्क में अलगअलग स्कूलों के शिक्षक भी आ चुके थे. जब भी कोई भरती की परीक्षा होती थी, तब उन में किसी न किसी की स्ट्रांग रूम में ड्यूटी लगती थी. फिर गिरोह में शामिल टीचर पेपर निकाल लेते थे और उसे वाट्सऐप के जरिए बाहर भेज देते थे.

पूछताछ में हर्षवर्धन ने बताया कि उस ने गिरोह के अपने साथियों के साथ मिल कर 13 साल में करोड़ों रुपए कमाए. उस ने सिर्फ जेईएन का पेपर 50 लाख रुपए में खरीदा और उसे ढाई करोड़ रुपए में बेच दिया.

इसी तरह से उस ने पटवारी, सीएचओ, लैब असिस्टेंट, महिला सुपरवाइजर के पेपर लीक करवाए. ये वे पेपर हैं, जो लीक करवाए गए. इस के अलावा नकल करवाने, डमी कैंडिडेट से परीक्षा पास करवाने के बदले में गिरोह के लोग 15 से 20 लाख रुपए लेते थे.

एसआई की परीक्षा में इस गिरोह ने दरजनों लोगों को इस का फायदा पहुंचाया है. फरजीवाड़े से परीक्षा पास करने वालों की संख्या 500 से अधिक बताई जाती है, जिन में हर्षवर्धन मीणा के परिवार के ही 20 से अधिक लोग हैं.

उस ने न केवल अपनी पत्नी को बल्कि अपने भाई पुष्पेंद्र मीणा को निगम में और भाई की पत्नी, बहन को आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर की नौकरी लगवा चुका है. उस के सहयोगी राजेंद्र कुमार यादव के बेटे को भी उस की बदौलत डाक विभाग में नौकरी लग चुकी है.

एक अनुमान के मुताबिक हर्षवर्धन ने पेपर लीक धंधे से 10 करोड़ रुपए कमाए हैं. कहने को तो वह अपने गिरोह की नजर में बौस बना हुआ था, लेकिन काम को बड़ी सतर्कता के साथ करता था. वह किसी से भी डायरेक्ट डील नहीं करता था. इस के लिए वह दलालों की मदद लेता था, जो राजस्थान के हर जिले में फैले हुए थे.

जिस किसी को कोई काम होता था, वह दलाल के माध्यम से ही हर्षवर्धन के संपर्क में आता था. वह कभीकभार अपने गांव भी आता था, लेकिन वहां के ज्यादातर लोगों से नहीं मिलता था.

एसओजी को जब इस बात की जानकारी मिली कि हर्षवर्धन अपनी पटवारी की ड्यूटी के लिए पाली गांव के शिवराम मीणा को लगा रखा है और उसे 10 हजार रुपए मासिक वेतन देता है, तब उस की तलाश शुरू की गई. एसओजी की टीम 25 जनवरी, 2024 को उस की तलाशी के सिलसिले में सिलमपुर स्थित गांव गई थी. वहीं पता चला कि फरार चल रहे हर्षवर्धन की हाजिरी शिवराम लगा रहा था. उस के बाद ही हर्षवर्धन को सस्पेंड कर दिया.

हर्षवर्धन की लाइफ बहुत ही लग्जरी थी. गांव में 2 भव्य मकान बना रखे थे. कई प्रौपर्टी का भी मालिक था. पार्टनरशिप में कुछ कोचिंग सेंटर और स्कूल भी चला रखे थे. राजेंद्र यादव के साथ पार्टनरशिप पर जयपुर के वैशाली नगर में भी स्कूल और कोचिंग सेंटर हैं.

महंगी गाड़ी रखता है, लेकिन इस का वह दिखावा नहीं करता था. यही कारण है कि महंगी क्रेटा गाड़ी से अपने गांव जाता था, तब लोगों से संपर्क करने में सावधानी बरतता था. किंतु वह दौसा में आश्रम के एक बाबा के संपर्क में था. बताते हैं कि कई बार वह आश्रम में ही छिपा रहता था.

अंजाम-ए-साजिश : एक निर्दोष लड़की की हत्या

 रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला.

उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की. रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल – भाग 2

राजस्थान पेपर लीक की समस्या से जूझ रहे कई राज्यों में से एक है. लगभग एक महामारी की तरह है. पेपर लीक जबरदस्त तरीके से संचालित होता आया है. संगठित मशीनरी है, जिस में अपराधी, छात्र माफिया, कोचिंग सेंटर, प्रिंसिपल और अधिकारी तक शामिल होते हैं. जम्मूकश्मीर से ले कर कर्नाटक तक, गुजरात से ले कर अरुणाचल प्रदेश तक, पिछले 5 वर्षों में पूरे भारत में पेपर लीक की कम से कम 41 घटनाएं हुई हैं.

इन में अकेले राजस्थान में पिछले दशक में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों में परीक्षा पेपर लीक के 25 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शासन काल में पिछले 5 सालों में यह मुद्दा काफी बढ़ गया था.

राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी), राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (आरबीएसई) और राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (आरएसएसबी) समेत राज्य की सभी भरती एजेंसियां इस की चपेट में आ चुकी हैं.

यह समस्या प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन कर राज्य में चुनाव अभियानों और विधानसभा की बहसों में शामिल होती रही है. इस का असर भी हुआ है और मार्च 2022 में राजस्थान सरकार ने एक धोखाधड़ी विरोधी कानून भी पारित किया. बाद में सजा के रूप में आजीवन कारावास को शामिल करने के लिए इस के प्रावधानों को कड़ा कर दिया. भारतीय संसद द्वारा भी फरवरी 2024 में इसी तरह का कानून पारित करने की पहल की गई.

शिक्षक बनने की तमन्ना लिए हुए मोहम्मद आबिद एक पखवाड़े से अधिक समय से जयपुर में रह रहा है. वह जोधपुर जिले के बिलारा का रहने वाला है. अपने घर से केवल एक अतिरिक्त जोड़ी कपड़े, एक कंबल और अपने बटुए में 800 रुपए ले कर निकला था. अपनी नियुक्ति की मांग को ले कर जयपुर में अड़ा हुआ था.

जयपुर के एक सरकारी आश्रय स्थल में सोना और गुरुद्वारों और समाजसेवियों द्वारा बांटे जाने वाले मुफ्त भोजन पर आश्रित बना रहना उस के जीवनयापन का हिस्सा बन गया था. उस ने आरईईटी के अलावा वरिष्ठ शिक्षक परीक्षा भी उत्तीर्ण की है. उच्च कट औफ अंकों के बावजूद उस ने 2021 में आरईईटी पास की.

हालांकि एक अतिरिक्त डिग्री आबिद के गले में एक मुसीबत बनी. उस ने उर्दू पढ़ाने के लिए परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन उस ने अपने स्नातक कार्यक्रम के दौरान इस का अध्ययन नहीं किया था. इस के लिए उस ने एक साल की अलग से डिग्री पूरी की थी. सरकार अब ऐसे अभ्यर्थियों को स्वीकार करने से इनकार कर रही है. यह राजस्थान में भरती संबंधी गतिरोध की एक अलग समस्या है. आबिद की तरह राज्य भर में लगभग 700 अन्य लोग अब इस नए नियम के कारण फंस गए हैं.

ऐसी ही एक उम्मीदवार है पूजा सेन, जो एक सिंगल मदर है. उस ने भी धैर्यपूर्वक 2021 के पेपर लीक मुद्दे के हल होने तक इंतजार किया और दोबारा परीक्षा दी. लेकिन इस तकनीकी ने एक नई बाधा पैदा कर दी है. अब उस के पास आंदोलन करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा. वह खुद को गठिया से पीडि़त बताती है. अपने मातापिता और बड़े भाइयों के साथ रहती है. कोविड के दौरान बीमार होने के चलते निजी स्कूल की नौकरी चली गई थी.

पेपर लीक माफिया पर किया 50 हजार का इनाम घोषित

पेपर लीक को ले कर जयपुर में शहीद स्मारक पर तरहतरह की कहानियांं बिखरी पड़ी थीं. सभी नौकरी पाने की ललक लिए हुए थे. समाज और परिवार से कटे हुए महसूस कर रहे थे. पेपर लीक पर गुस्से में थे. सरकारी नौकरी की भूख बनी हुई थी. बहुतों की नौकरी पाने की आधिकारिक आयु सीमा भी समाप्त होने को थी.

राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सरकार द्वारा पेपर लीक माफियाओं पर एक के बाद एक काररवाई शुरू कर दी गई. जांच एसओजी को सौंपी गई थी. बीते 10 सालों के भीतर टीचर, पुलिस, इंजीनियर की भरती प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर परीक्षा के कुछ घंटे पहले ही लीक हो चुके थे. इसे बेहद संगठित तरीके से चलाया जा रहा था.

एसओजी के द्वारा जूनियर इंजीनियर (जेईएन) पेपर लीक 2020 के मामले में 4 गिरफ्तार किए गए थे. सभी इन दिनों सरकारी महकमे के कर्मचारी हैं. इन में एक हर्षवर्धन मीणा मास्टरमाइंड था. वह राजस्थान में पटवारी है. उस का साथ देने वाला एसआई राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू (30) नेपाल बौर्डर से पकड़ा गया था. तीसरा पकड़ा जाने वाला व्यक्ति राजेंद्र कुमार यादव (55) स्कूल टीचर है, जबकि चौथा शिवरतन मोट (30) लाइब्रेरियन है. चारों पर जयपुर के सरकारी स्कूल से पेपर लीक कर कैंडिडेट को बेचने का आरोप लगा था.

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        आरोपी एसआई राजेंद्र कुमार यादव

जेईएन की परीक्षा 9 दिसंबर, 2020 को होनी थी. उस दिन परीक्षा शुरू होने से 2 घंटे पहले ही बेची गई पेपर की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

इस की प्रशासन को खबर लगने पर तत्काल प्रभाव से परीक्षा रद्द कर दी गई. साथ ही इस मामले को ले कर अज्ञात के खिलाफ एसओजी थाना जयपुर में प्राथमिकी दर्ज करा दी गई. केस की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया और इस की टीम ने गहन जांचपड़ताल और छापेमारी शुरू कर दी. जांच के दौरान सब से पहले हर्षवर्धन मीणा का नाम आया. यह भी पता चला कि वह नेपाल फरार हो गया है. कई महीनों तक जांच टीम उसे दबोचने के लिए नेपाल की खाक छानती रही. इधर राजस्थान पुलिस उस पर 50 हजार का इनाम भी घोषित कर चुकी थी.

एसओजी डीएसपी शिव कुमार भारद्वाज के नतृत्व में टीम को हर्षवर्धन मीणा की ससुराल की जानकारी मिली थी. उस की ससुराल भरतपुर जिले में उच्चैन थाना इलाके के गांव मिलकपुर में है. टीम ने उस की ससुराल में 29 फरवरी की सुबहसुबह दबिश दी. वहीं हर्षवर्धन पकड़ा गया और उस के पास से कई संदिग्ध दस्तावेज जब्त कर लिए गए.

4 आरोपियों की गिरफ्तारी में 3 साल से अधिक समय लग गया. राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू भी नेपाल बौर्डर पर दबोच लिया गया. दोनों जयपुर लाए गए.

दोनों से पूछताछ के बाद जेईएन परीक्षा 2020 के पेपर लीक की चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. साथ ही इस का भी खुलासा हुआ कि इस धंधे में कितने लोग किस तरह से संगठित हो कर काम करते थे. उन्होंने इसे अंजाम देने की पूरी कहानी सिलसिलेवार ढंग से बताई.

उन्होंने बताया कि 9 दिसंबर को परीक्षा शुरू होने से जयपुर के खातीपुरा स्थित शहीद दिग्विजय सिंह सुमेल राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से पेपर लीक को अंजाम दिया गया था. इसी स्कूल के शिक्षक राजेंद्र कुमार यादव और लाइब्रेरियन ने उन का साथ दिया था. परीक्षा का पेपर स्ट्रांग रूम में रखा जा चुका था. वहीं से राजू ने पेपर निकाल लिया. उधर स्कूल के लाइब्रेरियन शिवचरण मोटे ने पेपर बिक्री की डील पहले से ही कर रखी थी.

उन का खेल तब बिगड़ गया, जब परीक्षा रद्द हो गई. तब हर्षवर्धन बेरोजगार था और नौकरी पाने के लिए परीक्षाओं में शामिल हो रहा था. वह फरार हो गया. दरअसल, वर्ष 2020 के जेईएन भरती परीक्षा पेपर लीक को ले कर उस समय खूब हंगामा हुआ था. तब इस मामले में 30 से अधिक लोग अभियुक्त बनाए गए थे. जिस में सभी की गिरफ्तारी हो चुकी थी. पूरे मामले के मुख्य अभियुक्त जगदीश विश्नोई को भी गिरफ्तार करने में सफलता मिली.

अतिरिक्त महानिदेशक एटीएस एवं एसओजी के अनुसार जेईएन भरती परीक्षा 2020 के प्रश्न पत्र को परीक्षा से पहले ही पेपर की फोटो कौपी बाहर अभ्यर्थियों में बेच दिए गए थे. उसे गिरोह के सरगना ने 10 लाख में शिक्षक राजेंद्र यादव से पेपर खरीदा था और अपने गैंग के सदस्य के जरिए वाट्सऐप पर भिजवा दिया था.

फरजीवाड़े में हुआ था हाईटेक तकनीक का प्रयोग

गिरफ्तार आरोपियों में इनामी हर्षवर्धन कुमार मीणा दौसा जिले के महुआ का रहने वाला है और वह पटवारी है, जबकि 55 वर्षीय आरोपी राजेंद्र कुमार यादव पुत्र द्वारका प्रसाद जयपुर के खातीपुरा का रहने वाला है. वह तृतीय श्रेणी सरकारी अध्यापक है.

अन्य 2 आरोपियों में एक का नाम राजेंद्र यादव है. उस के पिता तेजपाल यादव कालाडेरा के पास टाडावास गांव के निवासी हैं. यह राजेंद्र यादव की सबइंसपेक्टर भरती 2021 में चुना जा चुका है. शिवरतन मोटे उर्फ शिवा श्रीगंगानगर का रहने वाला है. वह श्रीगंगानगर में सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन है.

थानागाजी की निर्भया : सहानुभूति या राजनीति?

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. राजस्थान में 2 चरणों में मतदान होना था. पहले चरण में13 सीटों के लिए 29 अप्रैल को वोट डाले जाने थे, जबकि दूसरे चरण में 12 सीटों के लिए 6 मई को मतदान होना था. पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार जोरों पर था. एक तरफ सूरज आग उगल रहा था और दूसरी तरफ सियासत की गरमी थी.

अलवर जिले में एक तहसील है थानागाजी. अलवरजयपुर स्टेट हाइवे पर विश्व प्रसिद्ध सरिस्का बाघ अभयारण्य थानागाजी तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है.

बीती 26 अप्रैल की बात है, दोपहर के करीब 3 बजे थे. आसमान में कुछ बादल घिर आने से सूरज के तेवर कम हो गए थे. थानागाजी इलाके में एक नवदंपति मोटरसाइकिल पर तालवृक्ष की तरफ जा रहे थे. पति मोटरसाइकिल चला रहा था और पत्नी निर्भया उस के पीछे बैठी थी. निर्भया 19 साल की थी और उस का पति 20 साल का. दोनों की कुछ ही दिन पहले शादी हुई थी.

थानागाजी अलवर बाइपास पर दुहार चौगान वाले रास्ते से कुछ दूर अचानक 2 मोटरसाइकिलों पर सवार 5 युवक तेजी से उन के पास आए. इन युवकों ने नवदंपति की बाइक के आगे अपनी मोटरसाइकिलें लगा कर उन्हें रोक लिया. पतिपत्नी समझ ही नहीं पाए कि क्या बात हो गई, उन्हें क्यों रोका गया.

वे कुछ सवाल करते, इस से पहले ही पांचों युवक उन्हें धमकाते और अश्लील शब्द कहते हुए वहां से सड़क के एक तरफ कुछ दूर बने रेत के बड़ेबडे़ टीलों की तरफ ले गए. रेत के ये टीले इतने ऊंचेऊंचे थे कि उन के पीछे क्या हो रहा है, सड़क से गुजरते लोगों को पता नहीं लग सकता था. टीलों के पीछे से सड़क तक आवाज भी नहीं पहुंच सकती थी.

पतिपत्नी को रेत के टीलों के पीछे ले जा कर पांचों युवकों ने उन से मारपीट की. पति को अधमरा कर एक तरफ बैठा दिया गया. फिर पांचों युवकों ने 19 साल की उस निर्भया से दरिंदगी की. पति ने पत्नी को बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह दरिंदों का मुकाबला नहीं कर सका.

पांचों दरिंदे निर्भया को नोचते रहे. वह हाथ जोड़ कर छोड़ने की भीख मांगती रही, लेकिन दरिंदे अपने साथियों की मर्दानगी पर हंसते और अट्टहास लगाते रहे. निर्भया चीखती रही, लेकिन उस की आवाज उस जंगली इलाके के रेतीले टीबों में ही गूंज कर रह गई.

दरिंदों ने निर्भया के कपड़े फाड़ कर दूर फेंक दिए. इस दौरान वे हैवान अपने मोबाइल से दरिंदगी का वीडियो भी बनाते रहे. इस दौरान युवक आपस में छोटेलाल, जीतू और अशोक के नाम ले रहे थे. जब दरिंदों का मन भर गया तो उन्होंने निर्भया के पति का मोबाइल नंबर लिया. फिर उसे जान से मारने और वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर पांचों मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर भाग गए.

उन के जाने के काफी देर बाद तक लुटेपिटे पतिपत्नी एकदूसरे को ढांढस बंधाते हुए अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते रहे. कुछ देर बाद जब उन के होशहवास ठीक हुए तो वे फटे कपड़े लपेट कर मोटरसाइकिल से अपने गांव गए.

गांव पहुंच कर उन्होंने घर वालों को इस घटना के बारे में बताया. निर्भया और उस का पति अनुसूचित जाति से होने के साथ गरीब भी थे. दरिंदगी का वीडियो वायरल करने, पति को मारने की धमकी दिए जाने के कारण निर्भया ने उस समय पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई. घटना के दूसरे दिन निर्भया अपने मायके चली गई और उस का पति जयपुर चला गया, जहां वह पढ़ रहा था.

तीसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह निर्भया के पति के मोबाइल पर छोटेलाल का फोन आया. वह मिलने के लिए कह रहा था. निर्भया के पति ने मना किया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा, मिलना तो तुझे पड़ेगा वरना वीडियो वायरल कर देंगे.’’

निर्भया के पति ने कहा कि तुम से मेरा भाई मिल लेगा. उस ने छोटेलाल को चचेरे भाई का मोबाइल नंबर दे दिया. इस के बाद पति ने यह बात अपने चचेरे भाई को बता दी. उस ने यह सच्चाई निर्भया के पति के सगे भाई को बता दी. छोटेलाल उसे कभी कराणा बुलाता तो कभी थानागाजी आने की बात कहता.

दोपहर में छोटेलाल का फिर फोन आया और उस ने 10 हजार रुपए की डिमांड की. निर्भया के पति ने कहा कि मैं पढ़ता हूं, 10 हजार कहां से दूंगा. इस पर उस ने कहा, ‘‘देने तो पड़ेंगे चाहे एक हजार रुपए कम दे देना.’’

वीडियो वायरल के डर से निर्भया के पति ने उसे कुछ हजार रुपए भिजवा भी दिए. पति के भाई ने यह बात पिता को बताई तो उन्होंने अपने बेटे को जयपुर से बुलवा लिया.

रुपए ऐंठने के बाद भी दरिंदों ने निर्भया के पति को काल कर के फिर पैसे मांगे तो निर्भया का परिवार अपने परिचितों के माध्यम से थानागाजी के विधायक कांती मीणा के पास पहुंचा. उन्होंने विधायक को सारी बात बताई. विधायक ने उन की रिपोर्ट दर्ज करवाने और आरोपियों के खिलाफ काररवाई कराने का आश्वासन दिया, लेकिन चुनाव के बाद.

30 अप्रैल को निर्भया और उस का पति अलवर जा कर एसपी राजीव पचार से मिले. निर्भया ने रोतेरोते एसपी को पति के सामने हुए सामूहिक दुष्कर्म की आपबीती बताई. एसपी ने थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को वाट्सऐप पर पीडि़ता की रिपोर्ट भेज कर मुकदमा दर्ज करने को कहा.

पुलिस को गैंगरेप भी मामूली सी घटना लगा

पुलिस ने इस शर्मनाक वारदात को भी साधारण तरीके से लिया. थानागाजी थानाप्रभारी ने 2 मई को दोपहर 2.31 बजे इस मामले में धारा 147, 149, 323, 341, 354बी, 376डी, 506 आईपीसी और एससी/एसटी ऐक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में छोटेलाल गुर्जर निवासी कराणा बानसूर और जीतू व अशोक के नाम थे, जबकि 2 आरोपी अज्ञात थे.

भले ही पुलिस ने घटना के 7वें दिन मुकदमा दर्ज कर लिया, लेकिन मीडिया से इसे छिपा लिया. पुलिस ने मामले की जांच में भी लापरवाही बरती. उस दिन पीडि़ता का मैडिकल भी नहीं कराया गया. न ही अभियुक्तों को पकड़ने की कोई काररवाई की गई.

पुलिस को यह बात भी बता दी गई थी कि दरिंदे बारबार फोन कर के वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन पुलिस ने न तो इसे गंभीरता से लिया और न ही इस के दूरगामी परिणामों के बारे में सोचा.

रिपोर्ट दर्ज होने के दूसरे दिन 3 मई को पुलिस ने अलवर में पीडि़ता का मैडिकल कराया. पुलिस ने उसी दिन पीडि़ता, उस के पति, पिता और ससुर के बयान दर्ज किए. उसी दिन पुलिस ने पीडि़ता को साथ ले जा कर मौका नक्शा बनाया.

लापरवाही इतनी रही कि एक आरोपी का नामपता और मोबाइल नंबर होने के बावजूद पुलिस ने उसे पकड़ना तो दूर, उसे थाने बुलाने की जहमत तक नहीं उठाई. इस से उन दरिंदों के हौसले बढ़ गए. इस बीच फोन पर बारबार धमकाने के बावजूद जब दोबारा पैसे नहीं मिले तो दरिंदों ने 4 मई को सोशल मीडिया पर वे वीडियो वायरल कर दिए, जो उन्होंने निर्भया से दरिंदगी करते हुए बनाए थे.

6 मई तक ये वीडियो असंख्य मोबाइलों तक पहुंच चुके थे. 6 मई को ही राजस्थान में अलवर सहित 12 लोकसभा सीटों के लिए मतदान था. मतदान के बाद पुलिस ने इस घटना को मीडिया में उजागर किया. तब तक सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो बम बन चुका था, जो किसी भी गैरतमंद आदमी को हिला देने के लिए काफी था.

7 मई को राजस्थान के मीडिया में थानागाजी गैंगरेप की सुर्खियों ने लोकसभा चुनाव की गरमी को भी ठंडा कर दिया. मीडिया ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए सवाल उठाए कि चुनाव के कारण इस घटना का खुलासा नहीं कर पुलिस क्या किसी को सियासी फायदा देना चाहती थी? या फिर समझौता कर इस मामले को रफादफा करना चाहती थी? पुलिस कहीं आरोपियों के पक्ष में तो नहीं थी? अगर ऐसा नहीं था तो वीडियो वायरल होने के बाद ही पुलिस ने यह घटना उजागर क्यों की?

वीडियो वायरल होने से यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई. इस के बाद सरकार और पुलिस अफसरों की नींद खुली. सरकार ने आननफानन में अलवर के एसपी आईपीएस अधिकारी राजीव पचार को हटा कर पदस्थापन की प्रतीक्षा में रख दिया. थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को निलंबित कर दिया गया. इसी थाने के एएसआई रूपनारायण, कांस्टेबल रामरतन, महेश कुमार और राजेंद्र को लाइन हाजिर कर दिया गया.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि पुलिस की ओर से अगर किसी भी स्तर पर लापरवाही हुई है तो सख्त काररवाई होगी. महिला सुरक्षा के प्रति सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी सामूहिक दुष्कर्म की इस घटना को बेहद शर्मनाक बताया.

डीजीपी कपिल गर्ग ने जयपुर में प्रैस कौन्फ्रैंस कर कहा कि थानागाजी थाने के सभी पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की जाएगी. रिपोर्ट दर्ज होने के 5 दिन तक निष्क्रिय बैठी पुलिस ने आननफानन में अभियुक्तों को पकड़ने के लिए 14 टीमों का गठन कर दिया. अलवर से ले कर दिल्ली, गुड़गांव और बीकानेर तक पुलिस टीमें भेजी गईं.

पुलिस ने भागदौड़ कर एक 22 वर्षीय अभियुक्त इंदराज गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. वह जयपुर जिले के प्रागपुरा का रहने वाला था. इस के अलावा वीडियो वायरल करने के आरोप में काली खोहरा निवासी मुकेश गुर्जर को सरिस्का के जंगल से पकड़ा गया.

गैंगरेप में भी राजनीति

सामूहिक दुष्कर्म की घटना सामने आने पर एक ओर जहां लोगों में गुस्सा था, वहीं राजनीति भी शुरू हो गई थी. थानागाजी कस्बे में सर्वसमाज की विशाल पंचायत हुई. इस में राज्यसभा सांसद डा. किरोड़ीलाल मीणा और थानागाजी विधायक कांती मीणा भी शामिल हुए.

पंचायत में फैसला लिया गया कि 24 घंटे में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर कस्बे के बाजार बंद कर आंदोलन किया जाएगा. डा. किरोड़ीलाल मीणा ने 8 मई को हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जयपुर में मुख्यमंत्री कार्यालय का घेराव करने की भी चेतावनी दी. राजनीति में ऐसा ही होता है.

जिला कलेक्टर इंद्रजीत सिंह ने तुरतफुरत पीडि़ता को 4 लाख 12 हजार 500 रुपए की आर्थिक सहायता राशि मंजूर कर दी. दरअसल एससी/एसटी की महिला से दुष्कर्म का मुकदमा होने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से प्रथम किस्त के रूप में इतनी राशि देने का प्रावधान है.

8 मई को इस घटना के विरोध में अलवर से ले कर जयपुर तक धरनाप्रदर्शन होते रहे. थानागाजी में हजारों लोगों ने अलवरजयपुर सड़क मार्ग जाम कर दिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, मंत्री और अधिकारी पीडि़ता से मिलने के लिए थानागाजी से 7 किलोमीटर दूर उस के गांव पहुंच गए.

लोगों ने कहा कि पुलिस प्रशासन के साथ नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. हम ने घटना की जानकारी देने के लिए कई नेताओं को फोन किए लेकिन किसी ने मदद नहीं की.

पीडि़त परिवार ने राजस्थान सरकार के श्रम राज्यमंत्री और अलवर ग्रामीण के विधायक टीकाराम जूली को 30 अप्रैल को फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में व्यस्त हैं. बाद में जूली ने माना कि फोन आया था, लेकिन यह नहीं पता था कि मामला इतना गंभीर है.

जयपुर में राज्यसभा सांसद डा. किराड़ीलाल मीणा एवं पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास के पास सिविललाइन फाटक पर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस आपस में गुत्थमगुत्था हो गए. आधे घंटे तक हंगामा होता रहा.

बाद में प्रदर्शनकारियों ने राजभवन जा कर राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया. राजस्थान यूनिवर्सिटी में एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री के पुतले के साथ प्रदर्शन किया. अलवर में विभिन्न संगठनों के अलावा महिलाओं ने भी जुलूस निकाले और अधिकारियों को ज्ञापन दिए.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में प्रसंज्ञान ले कर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया. साथ ही मुख्य सचिव और महानिदेशक से 6 सप्ताह में रिपोर्ट मांगी.

इस मामले में उस समय नया मोड़ आ गया, जब पीडि़ता के पति ने राज्य के पूर्वमंत्री और थानागाजी के पूर्व विधायक हेमसिंह भड़ाना पर समझौते का दबाव बनाने का आरोप लगाया. हालांकि भड़ाना ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता कर सिरे से नकार दिया.

पुलिस ने 8 मई की रात तक 3 अन्य आरोपियों अशोक गुर्जर, महेश गुर्जर और हंसराज गुर्जर को भी गिरफ्तार कर लिया. मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

9 मई को भी अलवर और जयपुर सहित पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन होता रहा. इस के बावजूद सरकार की लापरवाही रही कि वायरल वीडियो ब्लौक करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को निर्देश तक नहीं दिए. यह वीडियो गूगल, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर 9 मई तक पीडि़तों की इज्जत तारतार करता रहा. भाजपा ने अलवर में धरना दे कर मामले की जांच सीबीआई से कराने, पीडि़ता को 50 लाख रुपए मुआवजा देने, एसपी व थानाप्रभारी पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की.

महिला आयोग भी आया आगे

राष्ट्रीय महिला आयोग के दल ने थानागाजी पहुंच कर पीडि़ता से मुलाकात की. आयोग की सदस्य डा. राहुल बेन देसाई और नेहा महाजन ने इस दौरान मौजूद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजिलेंस गोविंद गुप्ता और आईजी एस. सेंगाथिर को सोशल मीडिया पर वीडियो फोटो अपलोड करने वालों पर तुरंत एक्शन लेने के निर्देश दिए. देश भर से विभिन्न जनसंगठनों के पदाधिकारी भी थानागाजी पहुंचे और पीडि़त परिवार से मिले.

पुलिस ने घटना के 13 दिन बाद मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. उसे सीकर जिले के अजीतगढ़ से पकड़ा गया, जहां वह एक ट्रक में छिपा हुआ था. छोटेलाल इस ट्रक में सवार हो कर गुजरात भागने की फिराक में था. छोटे शराब की दुकान पर सेल्समैन का काम करता था. बानसूर के रतनपुरा गांव निवासी छोटेलाल के खिलाफ 2 आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं.

दूसरी ओर, पुलिस ने अलवर की अदालत में पीडि़ता के धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. वहीं, राज्य सरकार ने मामले की प्रशासनिक जांच के लिए जयपुर के संभागीय आयुक्त को नियुक्त किया. इस के अलावा चुनाव आचार संहिता लगी होने के कारण निर्वाचन आयोग से अनुमति मिलने के बाद आईपीएस औफिसर देशमुख पारिस अनिल को अलवर का एसपी नियुक्त किया गया.

पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाने पर 10 मई को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष एल. मुरुगन इस घटना की जांच करने थानागाजी पहुंचे. वे पीडि़ता और उस के परिवार से भी मिले. इस दौरान राजस्थान के मुख्य सचिव डी.बी. गुप्ता और पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग मौजूद रहे.

आयोग के उपाध्यक्ष ने पीडि़ता से मुलाकात के बाद कहा कि 30 अप्रैल को एसपी को परिवाद देने के बाद भी पुलिस ने 2 मई को मुकदमा दर्ज किया और 7 मई को ऐक्शन में आई, यह साफतौर पर सरकार की लापरवाही है. हम राज्य सरकार की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.

फिलहाल प्रशासन को पीडि़ता के परिवार की नौकरी की मांग और सरकारी सहायता देने के लिए कहा गया है. इस के अलावा केस दर्ज करने में लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और और पीडि़त परिवार की स्थाई सुरक्षा की व्यवस्था करने को भी कहा गया है.

मुरुगन ने कहा कि आयोग के निर्देश पर यूट्यूब से घटना के वीडियो हटवाए गए हैं. पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहे हैं.

जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्चस्तरीय बैठक कर ऐसे मामलों में कड़े कदम उठाने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि अगर कोई थानेदार थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करेगा तो एसपी को दर्ज करनी होगी. ऐसे थानेदार के खिलाफ सख्त काररवाई होगी. महिला अत्याचार की घटनाओं की मौनिटरिंग के लिए हर जिले में महिला सुरक्षा डीएसपी का नया पद सृजित किया जाएगा.

यह सिर्फ महिलाओं के अपहरण, दुष्कर्म, गैंगरेप आदि मामलों की जांच करेगा. यह डीएसपी महिला थानों की मौनिटरिंग के साथ सामाजिक न्याय व महिला बाल विकास विभाग से समन्वय स्थापित करेगा और महिलाओं व बच्चों पर होने वाले अत्याचार के मामलों में काररवाई करेगा. गहलोत ने कहा कि थानागाजी के मामले को केस औफिसर स्कीम में ले कर आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी.

11 मई को थानागाजी गैंगरेप मामले में देश की सियासत गरमा गई. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान सरकार को सीधे निशाने पर लिया.

पीडि़त से हमदर्दी सिर्फ नाम की

मायावती ने लखनऊ में आयोजित चुनावी रैली में इसे अतिघृणित घटना बताते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार के चलते उस दलित महिला को इंसाफ मिलेगा.

पुलिस ने इस मामले में अलवर जेल में न्यायिक अभिरक्षा भुगत रहे 3 आरोपियों हंसराज गुर्जर, महेश गुर्जर व इंदरराज गुर्जर की शिनाख्त परेड कराई. इस के बाद इन्हें 13 मई तक रिमांड पर लिया गया. 3 आरोपी पहले ही 13 मई तक रिमांड पर थे. बाद में अदालत से सभी 6 आरोपियों की रिमांड अवधि 16 मई तक बढ़वा ली गई.

14 मई को इस मामले में जयपुर कूच करने निकले सांसद डा. किरोड़ीलाल और उन के समर्थकों ने दौसा में जयपुरदिल्ली रेलवे ट्रैक जाम करने का प्रयास किया. पुलिस ने खदेड़ा तो किरोड़ी समर्थकों ने पथराव किया. पथराव के कारण कई ट्रेनें बीच रास्ते में रोक दी गईं. काफी देर तक लाठीभाटा जंग होती रही.

इस जंग में 5 पुलिसकर्मियों सहित 8 लोग घायल हो गए. एसपी व एडीएम सहित कई अधिकारियों को भी चोटें आईं. बाद में पुलिस ने किरोड़ी के साथ पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़, विधायक हनुमान बेनीवाल व गोपीचंद को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.

दूसरी ओर, पीडि़ता के पिता ने कहा कि उन का परिवार इस घटना के बाद लोगों के आनेजाने और इस से हुई बदनामी से परेशान है. उन्होंने सरकार से मांग की कि पीडि़त दंपति को सरकारी नौकरी दे कर किसी ऐसी जगह भेज दिया जाए, जहां उन्हें कोई न पहचान सके. 7 दिन में इतने नेता और लोग घर पहुंचे कि पूरे देश और समाज को पता चल गया कि वीडियो में दिखे पतिपत्नी का मकान यह है.

15 मई को भी अलवर व जयपुर सहित प्रदेश के कई हिस्सों में आंदोलन होते रहे. थानागाजी में सर्वसमाज ने आक्रोश रैली निकाली. इस दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का थानागाजी आने का कार्यक्रम था लेकिन मौसम खराब होने से उन का हेलीकौप्टर दिल्ली से उड़ान नहीं भर सका.

16 मई को राहुल गांधी थानागाजी क्षेत्र में पीडि़ता से मिलने उस के घर पहुंचे. राहुल ने पीडि़ता, उस के पति और उस के परिवार के लोगों से करीब 15 मिनट तक अकेले में बात कर घटना की जानकारी ली. घटना के बारे में बताते हुए पीडि़ता व उस का पति रो पड़े तो राहुल भी भावुक हो गए.

राजनीति के लिए नेताओं के घडि़याली आंसू

राहुल ने पीडि़ता के पति को गले लगाया अैर कहा कि यह राजनीति नहीं है, आप को न्याय जरूर मिलेगा. परिवार ने पीडि़ता व उस के पति के पुनर्वास, सरकारी नौकरी व आरोपियों को कठोर सजा दिलाने की मांग रखी.

इस दौरान मौजूद मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि पीडि़ता के लिए सरकारी नौकरी का इंतजाम किया जाएगा. अलवर जिले में अपराध के आंकड़ों को देखते हुए 2 एसपी लगाए जाएंगे. इस केस में 7 दिनों में चालान पेश कर दिया जाएगा.

पुलिस ने सभी आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर अलवर की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस ने अदालत में अर्जी पेश कर पीडि़ता के पति को मोबाइल पर धमकी दे कर 10 हजार रुपए मांगने के आरोपी छोटेलाल की आवाज के नमूने लेने की अनुमति मांगी.

17 मई को इस मामले की प्रशासनिक जांच कर रहे जयपुर के संभागीय आयुक्त के.सी. वर्मा ने अलवर में जनसुनवाई कर घटना से संबंधित तथ्य जुटाए. दूसरी ओर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने राजस्थान में बढ़ रहे यौन अपराधों के मामले में स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक और सरकार से जवाब तलब किया है.

यह विडंबना ही है कि चुनाव के दौरान थानागाजी का यह मामला पूरे देश में चर्चा में आ गया. इस से राजनीति में भी उबाल आया. सभी प्रमुख दलों के नेता बयानबाजी करते रहे. कुछ लोग राजनीतिक रोटियां भी सेकते रहे. जबकि जरूरत थी पीडि़ता का दर्द कम करने की. इस के लिए जरूरी था कि राजनीति बंद होती.

पीडि़ता का पुनर्वास होना जरूरी है. सरकारी नौकरी से उसे कुछ सहारा मिलेगा तो शायद वह अपने कामकाज में व्यस्त हो कर दिल दहलाने वाली इस घटना को भुलाने की कोशिश कर सके. साथ ही ऐसे दरिंदों को कठोर सजा मिलनी चाहिए, ताकि ऐसी मानसिकता के लोगों को सबक मिल सके.

थानागाजी गैंगरेप मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज होने के 16 दिन बाद 18 मई को अलवर की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी. 500 पेज की चार्जशीट में 6 आरोपी हैं. इनमें 5 मुलजिमों के खिलाफ गैंगरेप, अपहरण, रास्ता रोकने, मारपीट, निर्वस्त्र करने, जातिसूचक शब्द बोलने, मानसम्मान को ठेस पहुंचाने, डकैती व धमकी देने सहित प्रताडि़त करने और एक अभियुक्त पर वीडियो वायरल करने का आरोप है.

पुलिस ने मामले की त्वरित सुनवाई के लिए केस औफिसर नियुक्त किया है. अदालत में दिनप्रतिदिन सुनवाई के लिए अरजी दी गई है, ताकि आरोपियों को जल्द सजा मिल सके. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जिन धाराओं में चालान पेश किया है, उन में आरोप साबित होने पर इन दरिंदों को मरते दम तक उम्रकैद की सजा हो सकती है.

मामले का वीडियो फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करने पर पुलिस ने यूट्यूब पर बने एक चैनल टौप न्यूज 24 के खिलाफ अलवर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया है. यह मुकदमा कोतवाली थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने खुद दर्ज कराया है.

दूसरी ओर, सरकार ने पीडि़ता को सरकारी नौकरी देने की तैयारी शुरू कर दी है. सरकार ने उसे राजस्थान पुलिस या जेल पुलिस में से कोई एक कांस्टेबल पद चुनने का विकल्प दिया है. इस में पीडि़ता ने राजस्थान के जयपुर सिटी में पोस्टिंग मांगी.

—पीडि़ता का निर्भया नाम काल्पनिक है