गलत राह के राही : पूरे इंदौर को हिला कर रख दिया था इस पुलिस वाली ने

जितेंद्र एक दिन अपनी पत्नी लीना के साथ एक दोस्त के परिवार में आयोजित शादी समारोह में शामिल होने आया था. समारोह में वह पत्नी के साथ औपचारिकता भर निभा रहा था, क्योंकि उस की पत्नी से बनती नहीं थी. उसी दौरान जितेंद्र की नजर समारोह में मौजूद एक युवती पर पड़ी तो वह उसे देखता रह गया, मानो किसी दूसरी दुनिया में खो गया हो.

जितेंद्र उस की खूबसूरती पर ऐसा फिदा हुआ कि कुलांचें भरता मन बस उसी के इर्दगिर्द घूम रहा था. जितेंद्र ने उसे पहले कभी नहीं देखा था. वह उस युवती से बात करने के लिए उतावला हुए जा रहा था.

पत्नी लीना को सहेलियों के बीच छोड़, वह आत्ममुग्ध हो कर उस युवती की ओर बढ़ चला. जब तक वह उस के पास पहुंचा, तब तक युवती उस के दोस्त राजेश के साथ खड़ी बातें करने लगी. जितेंद्र इस मौके को खोना नहीं चाहता था. वह राजेश के पास पहुंच गया.

बातें करतेकरते उस ने युवती की तरफ इशारा करते हुए राजेश से पूछा, ‘‘यह कौन है भाई?’’

‘‘अरे यार यह मेरी मुंह बोली बहन संगीता है.’’ कहते हुए राजेश ने जितेंद्र का परिचय संगीता से करवाया. जितेंद्र यही चाहता भी था. जितेंद्र ने संगीता से बातचीत करनी शुरू कर दी. संगीता ने उस से पूछा, ‘‘आप क्या करते हैं?’’

यह सुन कर जितेंद्र मुसकराया और कंधे उचकाते हुए बोला, ‘‘मैं पुलिस का दामाद हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर संगीता हंस पड़ी.

राजेश ने बताया, ‘‘जितेंद्र की पत्नी लीना मध्य प्रदेश पुलिस में है. जब बीवी पुलिस में है तो इस का तो कहना ही क्या, इस की तो मौज ही मौज है, हरफरनमौला आदमी है यह.’’

संगीता कुछ समझी, कुछ नहीं समझी. मगर जितेंद्र के व्यक्तित्व और पुलिसिया दामाद होने की बातें सुन कर वह उस से प्रभावित हो गई. दोनों बातें करने लगे.

इसी बीच राजेश वहां से हटा तो जितेंद्र ने संगीता को इंप्रेस करने की हर कोशिश करनी शुरू कर दी. लच्छेदार बातें कर उसे वह मानो एक ही पल में अपने आगोश में लेने को आतुर हो उठा. वह बोला, ‘‘संगीताजी, मैं आप से एक बात कहूं.’’

‘‘जरूर कहिए, आप बड़े दिलचस्प व्यक्ति हैं, ऐसा लगता है कि आप से आज अभी की नहीं, वर्षों पहले की मुलाकात हो.’’ संगीता ने कहा.

जितेंद्र के सामने सुनहरा मौका था, उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, संगीता के लिए उसे सारे संसार से लड़ना भी पड़ा तो लड़ेगा. उस ने थोड़ा झिझकने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘आप से एक बात कहनी है, बुरा तो नहीं मानेंगी?’’

संगीता उस की बातों और नजरों से कुछकुछ भांप चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है. उस ने सहजता से कहा, ‘‘आप कहिए, मैं बुरा नही मानूंगी.’’

जितेंद्र को हिम्मत मिली तो उस ने पहली मुलाकात में ही इश्क का इजहार कर दिया. उस की बात सुन कर संगीता की आंखें फटी रह गईं. मगर वह नाराज नहीं हुई. तभी जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता जी, मैं आप की खातिर सारे संसार को छोड़ने को तैयार हूं.’’

संगीता आ गई जितेंद्र की बातों में

संगीता को यह पता चल चुका था कि जितेंद्र शादीशुदा है. वह खुद भी किसी की अमानत थी. उस वक्त उस की मांग में सिंदूर, और गले में मंगलसूत्र था. संगीता ने जितेंद्र की बातें सुन आत्मीय स्वर में कहा, ‘‘आप तो शादीशुदा हैं न?’’

‘‘हां, मगर मैं ने आप को देखते ही अलग तरह का आकर्षण महसूस किया. रही बात मेरी पत्नी लीना की, तो उस के साथ मैं कैदी जैसी जिंदगी जी रहा हूं.’’ जितेंद्र बोला. उस की आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे.

संगीता भी कम नहीं थी. उस से बिना मौका छोड़े तत्काल कहा, ‘‘अभी तो खुद को सरकारी दामाद बता कर खुश भी थे और गर्व भी महसूस कर रहे थे. इतनी सी देर में क्या हो गया?’’

‘‘दिल का दर्द हर किसी के सामने नहीं छलकता. पता नहीं दिल ने आप में ऐसा क्या देखा कि…’’

जितेंद्र की बात सुन और उस की आंखों में आंसू देख संगीता को महसूस हआ कि वह मन का सच्चा आदमी है. संगीता भी अपने पति राकेश से कहां खुश थी. उस ने सुन रखा था कि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो वैवाहिक जीवन में खुश नहीं होते. शायद जितेंद्र भी उन्हीं में हो.

राकेश का गुस्सैल चेहरा संगीता की आंखों के आगे घूमने लगा. बातबात में प्रताड़ना, मारपीट, गालीगलौज उस के लिए आम बात थी. वह राकेश से भीतर ही भीतर नफरत करती थी, फिर भी पत्नी धर्म का निर्वहन कर रही थी.

उस ने जितेंद्र की ओर आत्मीय दृष्टि डालते हुए कहा, ‘‘आप जल्दबाजी मत कीजिए. अभी मेरी तरफ से हां भी है और ना भी, मुझे सोचने का कुछ वक्त दीजिए.’’

जितेंद्र संगीता की बातें सुन मन ही मन खुश हुआ, उस ने कहा, ‘‘बिलकुल, लेकिन हम जल्दी ही मिलेंगे न?’’

सुन कर संगीता मुसकराई. दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. जितेंद्र राय और संगीता सुसनेर की यह पहली मुलाकात लगभग 5 साल पहले सन 2014 में हुई थी.

दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. दोनों को अपने जीवनसाथियों से परेशानियां थीं, इसलिए अपना  अपना दुखड़ा सुनाते सुनाते एकदूसरे के करीब आ गए.

जल्दी ही दोनों का इंदौर के मोती गार्डन में मिलना तय हुआ. जितेंद्र समय से पहले पहुंच गया. समय बीत रहा था और संगीता का कहीं अतापता नहीं था. वह बेचैन हो उठा. तभी संगीता सामने आ कर खड़ी हो गई. दोनों एकदूसरे को देख कर खुश थे. एक बेंच पर बैठ कर दोनों ने बातचीत शुरू की.

जितेंद्र ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘संगीता, मैं तो घबरा गया था. अगर तुम नहीं आती तो…’’

संगीता ने मुसकरा कर उस पर तिरछी नजर डाली फिर कहा, ‘‘ओह, फिर तो मुझ से बड़ी भूल हो गई.’’

चाहत का कर दिया इजहार

इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पडे़. कुछ देर तक इधरउधर की बातें होती रहीं. दोनों के बीच मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों एकदूसरे से मिलने लगे.

एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘मैं ने आज एक निर्णय लिया है, मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘हांहां, कहो.’’ संगीता ने कहा.

‘‘मैं लीना को छोड़ रहा हूं, मैं आज ही उस से संबंध खत्म कर दूंगा.’’

‘‘क्यों?’’ संगीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं. आखिर हम कब तक अलग रहेंगे. तुम्हारे लिए मैं दुनिया से भी टकरा जाऊंगा.’’ जितेंद्र ने संगीता की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

यह सुन कर संगीता मन ही मन खुश थी कि कोई तो है संसार में जो उसे इतना चाहता है. उस ने बचपन से ही दुख झेले थे. पति के घर आई तो वहां भी लड़ाईझगड़ा और अवसाद भरी जिंदगी. उस ने जितेंद्र के हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ हूं जितेंद्र. मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूं. तुम्हारी खातिर सब कुछ छोड़ दूंगी.’’

संगीता का समर्थन मिला तो जितेंद्र की बांछें खिल गईं, वह बोला, ‘‘लेकिन तुम्हें एक काम करना होगा, मेरे पास हमारे सुनहरे दिनों की प्लानिंग है.’’

‘‘वह क्या?’’ संगीता ने सहजता से पूछा.

‘‘आज शाम को मैं एक चीज ले कर आऊंगा, उसे तुम्हें पहननना होगा.’’ जितेंद्र ने रहस्यमय स्वर में कहा.

‘‘क्या, मंगलसूत्र?’’ संगीता ने भोलेपन से पूछा.

जितेंद्र हंस पड़ा, ‘‘नहीं, वह तो मैं पहनाऊंगा ही, लेकिन एक चीज और है.’’

‘‘क्या, बताओ भी न.’’ संगीता इठलाई.

‘‘तुम्हें लीना की वरदी पहननी है?’’ जितेंद्र ने दिल की बात बता दी.

‘‘क्यों, इस से क्या होगा?’’ संगीता ने आश्चर्य पूछा.

‘‘मैं तुम्हें ऐसी दुनिया दिखाऊंगा कि तुम सोच में पड़ जाओगी. जानती हो, एक पुलिसवाली जब डंडा ले कर निकलती है तो तमाम लोग उसे सलाम ठोकते हैं.’’

‘‘तुम यह सब मेरे लिए क्यों कर रहे हो और फिर मैं लीना की वरदी कैसे पहन सकती हूं?’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, तुम वरदी पहनना, मैं फोटो ले लूंगा, तुम्हारा आईडी कार्ड भी बन जाएगा.’’ जितेंद्र ने कहा.

‘‘अच्छा ठीक है, अगर तुम कह रहे हो तो… पर मुझे कुछ अटपटा लग रहा है.’’

जितेंद्र ने संगीता पर फेंका जाल

उस शाम जब जितेंद्र राय संगीता से मिलने आया तो उस के बैग में लीना की पुलिस की वरदी थी. उस ने वरदी निकाल कर संगीता के सामने रख दी और आत्मविश्वास से लबरेज स्वर में बोला, ‘‘संगीता इसे पहन कर दिखाओ, देखूं तो कैसी दिखती हो.’’

संगीता ने उस के सामने ही लीना राय की लाई पुलिस वरदी पहन ली. जितेंद्र ने प्रसन्न भाव से कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मानो इस वरदी के लिए ही बनी हो.’’

संगीता वरदी पहन कर इठला रही थी. जितेंद्र ने उस के कुछ फोटो लिए और बताया, ‘‘जल्द ही तुम्हारा आईडी कार्ड बन जाएगा, फिर हमारी तकदीर खुल जाएगी.’’

संगीता विस्मय से जितेंद्र की ओर देखने लगी, उसे अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी.

जितेंद्र के प्यार में पड़ कर संगीता ने किसी और की पुलिस वरदी पहन तो ली लेकिन आगे चल कर वह एक ऐसे भंवर जाल में फंसती चली गई जो उस की जिंदगी को तबाह करने के लिए काफी था.

जितेंद्र राय और लीना राय का विवाह हुए 8 साल हो चुके थे. जितेंद्र एक ट्रैवल कंपनी में ट्रैवल एजेंट था उस की पत्नी लीना राय मध्य प्रदेश पुलिस में प्रधान आरक्षक थी. फिलहाल उस की ड्यूटी पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में थी. लेकिन दोनों के विचार नहीं मिलते थे, जिस की वजह से उन के बीच खटास बनी रहती थी.

जितेंद्र के बड़ेबड़े ख्वाब थे जिन्हें वह साकार करना चाहता था. आनन फानन में लखपति बनने के बारे में वह पत्नी को बताता रहता था. वह लीना को पुलिस वरदी की महत्ता बताता और कहता, इस वरदी में बड़ी ताकत है. अगर इस वरदी का सही इस्तेमाल किया जाए तो उन की मुफलिसी दूर हो जाएगी.

मगर लीना राय वरदी की मर्यादा समझती थी. इसलिए वह नहीं चाहती थी कि पैसों के लिए वह किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल हो. इसलिए वह प्यार से पति को समझाती कि वह ऐसी बातें न तो सोचे, और न ही उसे करने के लिए कहे.

जितेंद्र तरहतरह के तर्क देता कुछ पुलिस वालों के उदाहरण भी बताता, लेकिन लीना ने उस की बात नहीं मानी. जितेंद्र का मन लीना से उचट गया तो वह संगीता के प्यार की नैय्या में बैठ कर आगे की योजना बनाने लगा.

जितेंद्र ने अपना घर छोड़ा और संगीता ने अपने पति का घर छोड़ा. दोनों इंदौर महानगर के मूसाखेड़ी कस्बे में किराए के एक मकान में रहने लगे. जितेंद्र ने टै्रवल एजेंट का काम छोड़ दिया और अपनी वर्षों की कल्पना को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए. उस ने निश्चय कर लिया कि संगीता को फरजी पुलिसवाली बना कर आगे की जिंदगी खुशहाली से व्यतीत करेगा.

asli-or-nakli-leena-rai-indore-case

जितेंद्र ने पत्नी लीना के आईडी कार्ड पर संगीता का फोटो लगा कर फरजी आईडी कार्ड भी बनवा दिया.  जितेंद्र ने लीना को नजदीक से देखा था, उस के हर गुणधर्म को वह जज्ब कर चुका था. उस ने संगीता को एकएक बात प्रेम से समझानी शुरू की. उसे बताया कि लीना कैसे चलती है कैसे बातें करती है. जितेंद्र ने संगीता को कुछ फिल्में भी दिखाईं ताकि पुलिस का रौब पैदा करना आ जाए. पुलिस वाली बन कर वह लोगों को डराधमका कर उन से मोटी रकम ऐंठ सके.

जितेंद्र जब पत्नी लीना को छोड़ कर संगीता के साथ रहने लगा तो लीना मन मसोस कर रह गई. उस ने एक दिन जितेंद्र से बात की और कहा, ‘‘तुम जो कर रहे हो, क्या यह ठीक है. जानते हो, लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा और मेरा क्या होगा?’’

ठगी के लिए छोड़ा पत्नी को

लीना की बातें सुन जितेंद्र कुछ क्षण मौन रहा फिर कहा, ‘‘लीना, कितना अच्छा होता तुम मेरी जिंदगी में नहीं आती. अब मुझे भूल जाओ.’’

लीना तड़प कर बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, क्या शादी विवाह गुड्डे गुडि़यों का खेल है, जो भूलने की बात कह रहे हो.’’

‘‘जब हमारे आचार विचार नहीं मिलते तो हम एक साथ क्यों रहें. तुम्हारे साथ रहने पर मुझे घुटन होती है.’’ जितेंद्र ने कहा.

जितेंद्र को लीना ने समझाने का पूरा प्रयास किया, घर परिवार की दुहाई दी मगर उस ने उस की एक नहीं सुनी. वह संगीता के साथ मूसाखेड़ी में रहने लगा. लीना एकाकी जीवन यापन करने लगी. जबकि जितेंद्र संगीता के साथ खुश था क्योंकि संगीता लीना से ज्यादा सुंदर थी. इतना ही नहीं वह उस की एकएक बात मानती थी. साथ ही उस की अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों में उस की सहभागी भी बन गई थी.

दोनों ने महानगर इंदौर के लोगों को ठगना शुरू कर दिया. संगीता पुलिस की वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ कहीं भी पहुंच जाती और धौंस दे कर लोगों से रुपए वसूल करती. इस तरह दोनों मोटी कमाई कर के ऐश की जिंदगी जीने लगे.

दोनों ने थोड़े समय में ही पुलिस की वरदी की आड़ में लाखों रुपए की कमाई कर ली. जितेंद्र अवैध काम करने वालों पर पैनी निगाह रखता, उस ने कुछ ऐसे लोग से मित्रता कर रखी थी जो उसे अवैध काम करने वालों के ठिकाने बताते थे. इस के बदले में वह उन्हें अवैध वसूली में से कमीशन देता था.

नकली घी बनाने वाले एक व्यापारी से संगीता ने पुलिसिया रौब झाड़ कर 2 लाख रुपए की रकम वसूल की थी. कई जगह से अवैध वसूली के बाद संगीता की हिम्मत बढ़ गई थी. अब वह और भी निर्भीक हो कर अवैध काम करने वालों को धमकाती थी.

जितेंद्र को एक दिन पता चला कि शहर के एक इलाके में नामी कंपनी के नाम का नकली कोल्ड ड्रिंक बनाने की फैक्ट्री चल रही है. संगीता वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ उस जगह पहुंच गई. फैक्ट्री संचालक को हड़का कर दोनों ने उस से 2 लाख रुपए ऐंठ लिए.

जितेंद्र और संगीता की गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं. यह सब करतेकरते संगीता यह तक भूल गई कि वह फरजी पुलिस वाली है. लेकिन वरदी और आईडी कार्ड होने की वजह से वह खुद को असली पुलिसकर्मी ही समझती थी.

वह समझती थी कि इंदौर इतना बड़ा महानगर है कि वह जितेंद्र के साथ इसी तरह लोगों को ब्लैकमेल कर के आनंदपूर्वक जीवन यापन करती रहेगी.

एक दिन लीना राय अपने औफिस में थी कि एक शख्स उसे बारबार देखता और चला जाता, 2-3 बार जब उस ने ऐसा ही किया तो लीना ने उसे पास बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम बारबार मुझे इतने गौर से क्यों देख रहे हो?’’

उस ने डरते हुए पूछा, ‘‘मैडम क्या आप ही लीना राय हैं?’’

लीना ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हां, कहो क्या बात है?’’

‘‘मैडम, मैं ने एकांत नगर में लीना राय नाम की जो महिला देखी थी, वह तो कोई दूसरी थी.’’ उस ने बताया.

‘‘क्या मतलब?’’ लीना ने पूछा.

उस व्यक्ति ने बताया कि उस का नाम रमन गुप्ता है और वह गल्ले किराने का थोक व्यापारी है. रमन गुप्ता ने लीना को जो कुछ बताया, उसे सुन कर लीना राय चौंकी. उस ने बताया कि पिछले महीने  लीना राय नाम की एक महिला पुलिस वरदी में उस के पास आई थी और उस से एक लाख रुपए ले गई थी. उस पुलिस वाली ने उसे बताया था कि वह पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में बैठती है. कोई भी काम हो तो वहां आ जाना. इसलिए उन्हें ढूंढता हुआ यहां चला आया.

खबर पहुंच गई लीना तक

रमन गुप्ता की बात सुन कर लीना समझ गई कि जरूर यह काम उस के पति जितेंद्र के साथ रहने वाली संगीता का होगा, क्योंकि उसे और भी कई लोगों ने बताया था कि संगीता पुलिस वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ घूमती है.

रमन गुप्ता के जाने के बाद लीना ने तय कर लिया कि कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. नहीं तो जितेंद्र की गतिविधियां उस के गले की फांस बन सकती है.

लीना उसी शाम जितेंद्र को ढूंढती हुई मूसाखेड़ी पहुंच गई. मगर घर में ताला लगा था. उस ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की तो भी बातचीत नहीं हो सकी. उस दिन वह घर लौट आई. लेकिन एक दिन फिर से उस के यहां गई तो जितेंद्र घर पर मिल गया.

जितेंद्र ने अपनी ब्याहता लीना को देखा तो चौंका, ‘‘अरे लीना तुम.’’

लीना मुसकराई, ‘‘जितेंद्र तुम मुझे भूल सकते हो मगर मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं.’’ लीना ने प्रेम भरे अल्फाजों में कहा तो जितेंद्र की सांस में सांस आई.

कुछ बातचीत करने के बाद लीना ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो संगीता नहीं दिखी. उस ने जितेंद्र से पूछा, ‘‘वह कहां है?’’

‘‘कौन, संगीता!’’ जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता बाजार गई है सब्जी लाने.’’

‘‘यह तो बड़ा अच्छा हुआ. हम आराम से बैठ कर बातें कर सकते हैं.’’ लीना ने प्यार जताते हुए जितेंद्र से कहा, ‘‘क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगे.’’ लीना जानती थी कि जितेंद्र रसोई के काम भलीभांति कर लेता है और वह उसे अकसर चाय बना कर पिलाया करता था.

जितेंद्र मुसकरा कर उठा और चाय बनाने चला गया. जितेंद्र का मोबाइल वहीं रखा था. लीना ने झट से मोबाइल उठा लिया और फोन की गैलरी देखने लगी. गैलरी में संगीता के कुछ फोटो मिले, जिस में वह पुलिस की वरदी पहने हुई थी.

लीना ने उन फोटो को तुरंत अपने वाट्सएप में सेंड कर लिया. इस तरह उसे एक बड़ा सबूत मिल गया. वह समझ गई संगीता पुलिस वाली बन कर क्या कर रही है. इस का मतलब रमन गुप्ता सही कह रहा था. जितेंद्र के कमरे में रखे सामान देख कर वह समझ गई कि फरजी पुलिस वाली बन कर संगीता मोटा पैसा कमा रही है.

जितेंद्र चाय ले कर आया तो लीना वहां से जा चुकी थी. लीना सीधे एएसपी अमरेंद्र सिंह के पास पहुंची और उस ने संगीता द्वारा फरजी पुलिस बन कर लोगों से पैसे ऐंठने वाली बात उन्हें बता दी.

एएसपी अमरेंद्र सिंह ने आजाद नगर के टीआई संजय शर्मा को मामले की जांच कर सख्त काररवाई करने के आदेश दिए. टीआई संजय शर्मा ने 13 जुलाई, 2019 को जितेंद्र राय और संगीता के घर दबिश डाल कर दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया.

fake-police-wali-in-custody

                        आरोपी संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय 

थाने ला कर दोनों से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने तमाम लोगों से मोटी रकम ऐंठने की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 380, 120बी के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पुलिस की वरदी, कैप, आईडी कार्ड बरामद कर लिया. 14 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

22 साल से लापता बेटा जब संन्यासी बन कर लौटा

किसी चमत्कार के इंतजार में सालों से दिन गुजार रहे रतिपाल और घर वालों को 22 साल बाद साधु वेश में अपना खोया बेटा पिंकू मिला तो सब की आंखें छलक उठीं थीं. बेटा मिलने की खुशी में रतिपाल ने दिल्ली से अपनी पत्नी माया देवी को भी बुला लिया. खोए बेटे पिंकू को साधु वेश में देखते ही मां भावुक हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

दरअसल, संन्यासी की पारंपरिक पोशाक में आए एक युवक ने सारंगी बजा कर भिक्षा देने की गुहार लगा कर जैसे ही एक रुदन गीत गाना शुरू किया तो उसे सुन कर बड़ी संख्या में गांववाले एकत्र हो गए. जोगी ने अपने आप को गांव के ही रहने वाले रतिपाल सिंह का गायब हुआ बेटा बताया. रुदन गीत सुन कर गांव की महिलाओं और पुरुषों के साथ ही रतिपाल के घर वालों की आंखों से आंसू झरने लगे.

दरअसल, 22 साल से लापता अरुण उर्फ पिंकू के लौटने की खुशी में पूरा गांव रो पड़ा. घर वालों के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. यह दृश्य उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के थाना जायज के गांव खरौली का था. तारीख थी 28 जनवरी, 2024.

Jogi or Sathi ke Ane Par Ekatra Ganv Wale

बताते चलें कि साधु के वेश में अपने एक साथी के साथ आया वह युवक गांव के ही रतिपाल सिंह का बेटा अरुण उर्फ पिंकू था, जो 22 साल से अधिक समय तक लापता रहने के बाद अब संन्यासी के वेश में उन के सामने था. जब पिंकू लापता हुआ, उस समय वह 11 साल का था. अब पिंकू जोगी बन कर अपने गांव में मां से भिक्षा लेने पहुंचा था. इतने लंबे समय बाद अपने खोए बेटे को संन्यासी के रूप में सामने देख पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए.

मां माया देवी, पिता रतिपाल के अलावा पिंकू की बुआओं उर्मिला व नीलम ने भी साधु वेश में आए पिंकू से गृहस्थ जीवन में लौटने की मिन्नतें कीं. लेकिन युवक की जुबान पर एक ही रट थी, ‘आप से भिक्षा लिए बिना मेरी दीक्षा पूरी नहीं होगी. गुरु का आदेश है कि मां के हाथ से भिक्षा पाने के बाद ही योग सफल होगा.’ उस ने कहा, ‘मां, यदि आप भिक्षा नहीं दोगी तो मैं दरवाजे की मिट्टी को ही भिक्षा के रूप में स्वीकार कर चला जाऊंगा.’

अब बेटा नहीं संन्यासी हूं मैं

साधु ने कहा, ”माई, मैं अब आप का बेटा पिंकू नहीं, बल्कि संन्यासी हूं. मैं भिक्षा ले कर वापस झारखंड स्थित पारसनाथ मठ में दीक्षा पूरी करने के लिए चला जाऊंगा.’’

साधु की बातें सुन कर रतिपाल और उन की पत्नी का कलेजा बैठ गया. उन्होंने उसे मनाने के साथ ही कहीं भी जाने से मना किया.

साधु खरौली गांव में 22 जनवरी, 2024 से ही आनेजाने लगा था. वह साथी के साथ आधे गांव में चक्कर लगा कर सारंगी व ढपली पर भजन गाता था. इस के बाद शाम होते ही वापस चला जाता.

रतिपाल मूलरूप से गांव खरौली के रहने वाले हैं. गांव में उन का छोटा भाई जसकरन सिंह, भतीजे व अन्य लोग रहते हैं. गांव में उन की खेती की जमीन भी है. 11वीं पास करने के बाद उन की शादी हो गई थी. साल 1986 में वह दिल्ली आ गए. यहां उन के एक बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने अरुण रखा. घर में सभी प्यार से उसे पिंकू के नाम से पुकारते थे.

Arun Pankoo Birthday Par Kek Khata Huaa

                                      पिंकू के बचपन की तस्वीर

जब पिंकू 5-6 साल का था, उस की मां भानुमति बीमार हो गई. 3 साल तक उन का दिल्ली में इलाज चलता रहा, लेकिन उन की मृत्यु हो गई. रतिपाल ने बच्चे की परवरिश व अपनी आगे की जिंदगी के लिए वर्ष 1998 में माया देवी से दूसरी शादी कर ली. सब कुछ ठीक चल रहा था.

डांटने से गुस्से में घर से चला गया था पिंकू

कंचे खेलने पर मां की डांट से गुस्से में आ कर साल 2002 में 11 साल की उम्र में पिंकू अपने घर से कहीं चला गया. उस समय वह दिल्ली के शहादतपुर स्थित स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ता था. घर वालों ने पिंकू को काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिलने पर पिता रतिपाल ने दिल्ली के थाना खजूरी खास में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

समय गुजरता गया लेकिन लापता बेटा नहीं मिला. रतिपाल हफ्ते दस दिन में थाने जा कर पुलिस से अपने खोए बेटे के बारे में जानकारी लेते, लेकिन उन्हें हर बार एक ही जबाव मिलता कि तलाशने पर भी आप का बच्चा नहीं मिल रहा है.

रतिपाल ने अपने स्तर से भी बच्चे को तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. अपने इकलौते बेटे के इस तरह घर से चले जाने पर मातापिता ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब्र कर लिया.

27 जनवरी, 2024 को खरौली में रह रहे भतीजे दीपक ने दिल्ली रतिपाल के पास फोन किया, ”चाचा, साधु भेष में एक युवक 22 जनवरी से गांव में आया हुआ है, जो अपने को आप का खोया हुआ बेटा अरुण उर्फ पिंकू बता रहा है. जब उस से पिंकू की कोई पहचान बताने को कहा तो उस ने कहा कि पिता जब खुद देख कर बताएंगे, तभी पहचान सभी गांव वालों को दिखाऊंगा. चाचा, आप गांव आ कर देख लो. साधु कल आने की बात कह कर रायबरेली से लगभग 30 किलोमीटर दूर बछगांव स्टेशन जाने की बात कह कर चला गया है.’’

बेटे से मिलने की चाहत और मन में ढेरों सवाल लिए रतिपाल अपनी बहन नीलम के साथ दिल्ली से गांव खरौली 28 जनवरी को ही पहुंच गए. दूसरे दिन वह साधु अपने एक साथी के साथ सुबह 11 बजे गांव आया. आधे गांव का चक्कर लगाता और सारंगी पर भजन गाते हुए साधु रतिपाल के घर पर पहुंचा.

pinku-nikla-nafees-amethi

पिंकू निकला नफीस

साधु ने देखते ही पापा व बुआओं को पहचान लिया. साधु ने उन्हें बताया कि वह वास्तव में उन का बेटा पिंकू है. वह संन्यासी हो गया है, भिक्षा मांगने आया हुआ है. रतिपाल ने उस के पेट पर बचपन की चोट के निशान को देखने के बाद अपने खोए बेटे अरुण उर्फ पिंकू के रूप में उस की पहचान की.

बेटे की खातिर रतिपाल सब कुछ न्यौछावर करने को हो गया तैयार

बचपन में खोए बेटे को 22 साल बाद दरवाजे पर देख पिता व परिजनों की उम्मीद लौट आई थी. आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी. स्नेह ऐसा जागा कि भींच कर उसे सीने से लगा लिया. बेटे को घर लाने के लिए पिता सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार था.

खोए बेटे के मिलने पर रतिपाल ने घर पर साधु व उस के साथी के साथ भोजन भी किया. अब साधु रतिपाल को पापा तथा रतिपाल उसे पिंकू कह कर पुकारने लगे थे. रतिपाल ने खोए बेटे के मिलने की खुशखबरी अपनी रिश्तेदारी में भी दे दी थी. इस पर कई रिश्तेदार गांव आ गए थे.

एक सप्ताह तक वह जोगी अपने साथी के साथ रोजाना गांव आता और शाम होते ही वापस चला जाता. इस दौरान उस की रतिपाल और परिजनों से बातें भी होतीं. भोजन भी पापा के साथ करता. अपने पापामम्मी व अन्य घर वालों के प्यार को देख कर पिंकू का झुकाव भी उन की ओर होने लगा.

वहीं रतिपाल की बूढ़ी आंखों ने अपने खोए बेटे को 22 साल बाद देखा तो प्यार फफक पड़ा. खोए बेटे को किसी भी तरह वापस पाने के लिए परिवार तड़प उठा. सभी के प्रयास विफल होने पर रतिपाल ने जोगी से किसी भी तरह घर लौटने की गुजारिश की.

इस पर उस ने कहा, ”पापा, आप मेरे गुरु महाराज से बात कर मुझे आश्रम से छुड़ा लो.’’

”पापा, आश्रम से गुरुजी ने मुझे दीक्षा के दौरान लंगोटी, कमंडल व अंगवस्त्र दिए हैं. मठ की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. मठ का सामान वापस करना होगा.’’

तब रतिपाल ने कहा, ”बेटा, तुम गुरुजी से बात कर प्रक्रिया के बारे में बताना. मैं तुम्हें घर लाने के लिए प्रक्रिया पूरी कर दूंगा.’’

अनाज व नकदी दे कर किया विदा

दिल पर पत्थर रख कर घर वालों व गांव वालों ने भिक्षा के रूप में उसे 13 क्ंिवटल अनाज और रतिपाल ने जोगी बने बेटे पिंकू को संपर्क में बने रहने के लिए एक नया मोबाइल फोन व नकदी दे कर पहली फरवरी को विदा किया. रतिपाल की बाराबंकी में रहने वाली बहन निर्मला ने पिंकू द्वारा बताए खाते में 11 हजार रुपए की रकम ट्रांसफर कर दी.

पिंकू ने कहा कि वह यहां से सभी सामान ले कर अयोध्या जाएगा, जहांं साधुओं को भंडारा कराएगा. सामान पहुंचाने के लिए रतिपाल ने एक वाहन का इंतजाम कर दिया. पहली फरवरी, 2024 को जोगी अपने साथी के साथ सामान ले कर चला गया. रतिराम, पत्नी माया देवी परिजनों के साथ ही गांव वालों ने भारी मन से जोगी को विदा किया.

22-saal-baad-lauta-pinku

घर से भिक्षा ले कर जाने के बाद संन्यासी बेटे पिंकू का मन पसीज गया. दूसरे दिन उस ने फोन कर पिता से घर लौटने की इच्छा जताई. बेटे के गृहस्थ जीवन में लौटने की बात सुन कर रतिराम की खुशी का पारावार नहीं रहा. उस ने बताया कि गुरु महाराज का कहना है कि गृहस्थ आश्रम में लौटने के लिए दीक्षा के रूप में 10.80 लाख रुपए चुकाने पड़ेंगे.

रतिपाल ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई. इतना ही नहीं, पिंकू ने पिता की मठ के गुरु महाराज से फोन पर बात भी कराई. लेकिन इतनी बड़ी रकम देने की उन की हैसियत नहीं थी. तब 4.80 लाख देने की बात कही गई.

गुरुओं की दीक्षा चुकाने की शर्त पर पिता ने आखिरकार बेटे को पाने के लिए 3 लाख 60 हजार रुपए में हां कर दी.

मठ का खाता न बताने पर हुआ शक

बेटे को वापस पाने के लिए मजबूर पिता ने 14 बिस्वा जमीन का सौदा गांव के ही अनिल कुमार वर्मा से 11 लाख 20 हजार रुपए में तय कर लिया. 3-4 दिन रतिपाल को पैसों का इंतजाम करने में लग गए.

इस के बाद साधु पिंकू की ओर से बताए गए आईसीआईसीआई बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करने भाई जसकरन व भतीजे धर्मेश के साथ पहुंचे. रतिपाल ने बताया, बैंक मैनेजर ने उन से कहा कि एक दिन में 25 हजार से ज्यादा रुपए ट्रांसफर नहीं हो सकते. पिंकू ने यूपीआई से भुगतान करने को कहा.

रतिपाल ने पिंकू से कहा कि अपने मठ के ट्रस्ट का बैंक खाते का नंबर दे दो, उस पर भुगतान कर देंगे. इस के बाद वहां आ कर तुम्हें अपने साथ घर ले आएंगे तो साधु ने मना कर दिया. यहीं से रतिपाल को कुछ शक होने लगा. तब प्रशासन से उन्होंने मदद मांगी.

रतिपाल सिंह समझ गए कि बेटे पिंकू के रूप में आया जोगी कोई ठग है. उस ने उन की भावनाओं का सौदा किया है. रतिपाल ने 10 फरवरी, 2024 को थाना जायस में 2 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 419 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई.

एसएचओ देवेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद इस केस की जांच बहादुरपुर चौकी प्रभारी राजकुमार सिंह को सौंपी. आरोपी का मोबाइल बंद आने पर उसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इस के बाद रतिपाल को जब शंका हुई तो उन्होंने अपने स्तर से जांचपड़ताल करनी शुरू कर दी. उन के हाथ उसी साधु बने युवक के कई फोटो और वीडियो लग गए हैं. रतिपाल ने बताया कि उन्होंने झारखंड के एसपी से फोन पर बात की. पूरा प्रकरण बताया. एसपी को जोगी का मोबाइल नंबर भी दिया.

उन्होंने अपने स्तर से जांच कराई फिर फोन कर बताया कि यह नंबर झारखंड में नहीं, बल्कि गोंडा में चल रहा है. इस के साथ ही झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. उन्होंने कहा कि उसे पकड़ा जाए और यदि वह गलत है तो सजा मिले.

जोगी की सच्चाई पता करने के लिए रतिपाल ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. जिस गुरु का नाम बताया, वह भी गलत निकला. दीक्षा में मिले 13 क्विंटल अनाज व अन्य सामान को पिकअप में ले कर साधु अयोध्या जाने की कह कर गया था. पिकअप चालक  के साथ रतिपाल अयोध्या पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला. पिकअप चालक ने बताया कि अरुण अयोध्या न जा कर उसे गोंडा ले गया था, वहीं सारा सामान उतरवाया था.

गोंडा की जिस आईसीआईसीआई बैंक के खाते का नंबर साधु ने रतिपाल को दिया था वह खाता आशीष कुमार गुप्ता, आशीष जनरल स्टोर मुंबई का निकला. बाराबंकी में रहने वाली रतिपाल की बहन निर्मला ने उसी खाते में 11 हजार रुपए की धनराशि ट्रांसफर की थी.

रतिपाल ने बताया कि उन्होंने पुलिस को बैंक स्टेटमेंट सौंप दिया है. उन्होंने बताया कि उन्हें मीडिया के माध्यम से पता चला है कि साधु के भेष में आया युवक जो अपने को उन का खोया बेटा पिंकू बताता था, उस युवक का नाम नफीस है.

ठगी के लिए साधु का वेश धारण किया

सीओ (तिलोई) अजय सिंह ने बताया कि मामला ठगी से जुड़ा हुआ है. पूरे मामले पर मुकदमा पंजीकृत कर मामले की छानबीन की जा रही है. जल्द से जल्द इस पूरे मामले में कड़ी से कड़ी काररवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि 10 फरवरी को जायस थाना क्षेत्र के खरौली गांव निवासी रतिपाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल ने बताया, ”टिकरिया गांव में रहने वाले कई लोगों द्वारा जोगी बन कर जालसाजी करने की शिकायत मिली है. 2 आरोपियों द्वारा अमेठी जिले में भी साधु वेश बना किसी को झांसा देने का मामला प्रकाश में आया है. पुलिस को तलाश के निर्देश दिए गए हैं.’’

रिपोर्ट दर्ज होने और उच्चाधिकारियों के निर्देश के बाद जायस थाने की पुलिस सक्रिय हो गई. रतिपाल ने बताया कि 16 फरवरी, 2024 को एक प्राइवेट वाहन से जायस पुलिस के साथ गोंडा कोतवाली देहात की सालपुर पुलिस चौकी पहुंचे. वहां के चौकी इंचार्ज पवन कुमार सिंह से मिले, उन्होंने जांच में पूरा सहयोग करने की बात कही. इस चौकी से कुछ दूरी पर ही टिकरिया गांव है.

उन्होंने कहा कि गोंडा की सालपुर चौकी पर उन्हें 5 घंटे तक बैठाया गया. कहा कि आप यहीं बैठो, पुलिस दबिश देने जा रही है. नफीस के घर पहुंची पुलिस टीम सब से पहले नफीस के परिवार से मिली. उस समय घर पर बुजुर्ग महिलाएं ही थीं. उन्होंने बताया कि 25 वर्षीय नफीस करीब एक महीने से घर से बाहर है.

पुलिस को आया देख कर आरोपी गन्ने के खेत में भाग गया था. पुलिस ने उसे पकडऩे का प्रयास किया, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस ने बताया, पिंकू बन कर घर पहुंचा ठग टिकरिया निवासी सिजाम का बेटा नफीस है, जो ठगी के मामले में पहले भी जेल जा चुका है.

जबकि उस का भाई राशिद 29 जुलाई, 2021 को जोगी बन कर मिर्जापुर के गांव सहसपुरा परसोधा निवासी बुधिराम विश्वकर्मा के यहां उन का 14 साल पहले लापता हुआ बेटा रवि उर्फ अन्नू बन कर पहुंचा था. मां से भिक्षा मांगी ताकि उस का जोग सफल हो जाए. परिजनों ने बेटा मान कर उसे घर में रख लिया. कुछ दिन बाद वह लाखों रुपए ले कर फरार हो गया था. बाद में पकड़ा गया और जेल गया.

पुलिस की दस्तक के चलते नफीस, उस के दोनों भाई दिलावर और राशिद समेत अधिकांश तथाकथित साधु अंडरग्राउंड हो गए. उस का एक रिश्तेदार असलम भी ऐसे मामले में वांछित चल रहा है. नफीस का मोबाइल बंद है.

पड़ताल में सामने आया कि नफीस के ससुर का भाई असलम उर्फ लंबू घोड़ा भी वाराणसी में जेल जा चुुका है. तब पुलिस ने शिकायत के आधार पर एक परिवार को इसी तरह जोगी का झांसा दे कर ठगने के बाद उसे दबोच लिया था.

पेट के टांकों को देख कर की पहचान

रतिपाल ने बताया कि 22 साल पहले उस का 11 वर्षीय बेटा अरुण उर्फ पिंकू घर से कहीं चला गया था. एक बार वह सीढ़ी से गिर गया था, जिस से उस के पेट में अंदरूनी चोट आई थी. इस बात का 6 माह तक पता नहीं चला. पिंकू की आंत सड़ गई थी, जिस के चलते उस का औपरेशन दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित होली चाइल्ड अस्पताल में हुआ था. उस के 14 टांके आए थे.

साधु के भेष में आए व्यक्ति ने उन्हें टांकों के निशान दिखाए थे. लेकिन वे असली थे या बनाए हुए थे, ये नहीं पता. रतिपाल सिंह पहले अपनी बहन नीलम के साथ खरौली गांव पहुंचे थे. खबर दिए जाने पर बहन उर्मिला भी आ गई थी. उन्होंने अपनी पत्नी माया देवी को घर पर ही बच्चों की देखभाल के लिए छोड़ दिया था. खोए पिंकू की पहचान हो जाने के बाद उन्होंने पत्नी को भी गांव बुला लिया था.

रतिपाल की दूसरी शादी के बाद 4 बच्चे हुए. 2 बेटी व 2 बेटे हैं. बड़ी बेटी 24 वर्ष की है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. एक बेटा 12वीं तथा सब से छोटा 9वीं में पढ़़ रहा है. वे घर पर ही बर्थडे में बच्चों के लगाए जाने वाली कैप बनाने का कार्य पत्नी के सहयोग से कर गुजरबसर करते हैं.

पूरा परिवार जिस युवक को अपना खोया बेटा पिंकू मान कर प्यार लुटा रहा था. असल में वह जालसाज गोंडा जिले के टिकरिया गांव  का नफीस निकला. टिकरिया के 20-25 लोगों का गैंग कई राज्यों में सक्रिय है. वह खोए बच्चों के बारे में जानकारी करने के बाद परिजनों की भावनाओं से खिलवाड़ कर ठगी करने का काम करते हैं.

साइबर सेल प्रभारी बृजेश सिंह का कहना है कि किसी गांव में बच्चों के खोने या लापता होने पर परिजन खुद उस का प्रचार प्रसार करते हैं. इस प्रचार से उन्हें आस होती है कि शायद कोई व्यक्ति उन की खोई संतान को वापस मिला देगा. पैंफ्लेट व अखबारों से भी पहचान के लिए चोट के निशानों का उल्लेख किया जाता है. ठगों का यह गैंग स्थानीय स्तर पर जानकारी एकत्र कर इसी का फायदा उठा कर ठगी करता है.

मातापिता की भावनाओं से खेल कर संपत्ति व धन हड़पने का नफीस का षडयंत्र विफल हो गया. 22 साल पहले लापता बेटा पिंकू बन कर गांव जायसी पहुंचा साधु वेशधारी पुलिस जांच में गोंडा के गांव टिकरिया निवासी नफीस और उस का साथी पट्टर  निकला. गांव वालों ने वायरल वीडियो में भी दोनों की तस्दीक की. पुलिस की सक्रियता से ठगी की मंशा का खुलासा हुआ तो ठग और उस का साथी दोनों फरार हो गए.

गोंडा में पड़ताल करने पर पता चला कि टिकरिया गांव के कुछ परिवार इस तरह की ठगी करते हैं. उन का एक गैंग ठगी का काम करता है. ठगी जेल तक जा चुकी है. उन्हीं में से एक नफीस का भी परिवार है.

नफीस मुकेश (मुसलिम) का दामाद है. उस की पत्नी का नाम पूनम है. उस का एक बेटा अयान है. ठग साधु कहता था कि उस ने झारखंड के पारसनाथ मठ में दीक्षा ली है. मठ के गुरु का आदेश था कि अयोध्या में दर्शन के बाद गांव जा कर अपनी मां से भिक्षा मांगना, तभी दीक्षा पूरी होगी. सच यह है कि झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. बेटा बन कर अब तक नफीस कई लोगों को चूना लगा चुका है.

रतिपाल का कहना है कि दोनों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी है. दोनों ठग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. जिस बैंक खाते में 11 हजार रुपए बहन निर्मला ने जमा कराए थे, उस खाते वाले को पकड़ा जाए, जिस से स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और इन ठगों का गैंग पकडऩे में मदद मिलेगी.

पुलिस फरार चल रहे दोनों साधु वेशधारी ठगों की सरगरमी से तलाश में जुटी है. पुलिस का कहना है कि समय रहते इन ठगों का भेद खुल जाने से रतिपाल व उन का परिवार बहुत बड़ी ठगी व मुसीबत से बच गए.

पिता रतिपाल को पुत्र वियोग और मिलन के बाद उसे दोबारा पाने की चाह है, लेकिन किसी षडयंत्र की आशंका भी है. उन का कहना है कि खोया हुआ बेटा इस समय 33 वर्ष का होता.

—कथा पुलिस व परिजनों से की गई बातचीत पर आधारित

दलदल में डूबी जन्नत

15 जून,  2019 शनिवार की सुबह की बात है. कुछ लोग नहर के किनारे घूम रहे थे. तभी उनकी नजर सूखी नहर में पड़ी एक महिला पर पड़ी. महिला को ऐसी हालत में देख कर लोग इधरउधर खिसक लिए. लेकिन गांव नंदपुर के रहने वाले कुलदीप माहेश्वरी ने हिम्मत जुटाते हुए इस की सूचना रामनगर कोतवाली को दे दी.

सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी रवि कुमार सैनी पुलिस टीम के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां पहले से ही कुछ लोग जमा थे. महिला की लाश नहर में पड़ी थी और उस के हाथपांव बंधे थे. उस की पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे को भी जलाने की कोशिश की गई थी. कोतवाली प्रभारी ने यह सूचना अपने अफसरों को दे दी.

घटना की सूचना पर एएसपी (हल्द्वानी), सीओ तथा फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस अधिकारियों ने मौका मुआयना किया. महिला की लाश के पास एक तौलिया, एक चादर और एक रुमाल पड़ा था. महिला का चेहरा इतनी बुरी तरह से झुलसा हुआ था कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

सब से पहले पुलिस ने नहर में सीढ़ी लगा कर शव को बाहर निकाला. युवती ने लाल रंग की कमीज और सलवार पहन रखी थी. मौका मुआयना करने पर जाहिर हो रहा था कि उस की हत्या कहीं दूसरी जगह कर के लाश वहां डाली गई है.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से उस की शिनाख्त करानी चाही तो कोई भी मृतका को नहीं पहचान सका. उसी वक्त चिल्किया का रहने वाला छोटे नाम का एक व्यक्ति वहां पहुंचा. उस ने पुलिस को बताया कि उस की बीवी पिछले 4 महीने से लापता है, जिस की गुमशुदगी वह थाने में दर्ज करा चुका है.

पुलिस ने नन्हे को लाश दिखाई तो उस ने कहा कि वह उस की पत्नी की लाश नहीं है. छोटे ने पुलिस को बताया कि उस की बीवी के हाथ पर उस का नाम गुदा हुआ था, लेकिन उस महिला के किसी भी हाथ पर कुछ भी गुदा हुआ नहीं था.

काफी प्रयास के बाद भी जब उस महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई तो पुलिस ने अपनी काररवाई आगे बढ़ाते हुए शव को मोर्चरी में रखवा दिया. इस के बाद पुलिस उस के फोटो ले कर आसपास के क्षेत्र व स्थानीय होटलों में जा कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश करने लगी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस पर पुलिस ने युवती की शिनाख्त के लिए समाचार पत्रों में उस का फोटो छपवाया, साथ ही पैंफ्लेट छपवा कर सीमा से सटे जिलों और दिल्ली में लगवा दिए गए.

मृतका की शिनाख्त के लिए पुलिस इधरउधर हाथपांव मारती रही. इसी दौरान 22 जून, 2019 को दिल्ली के भजनपुरा का रहने वाला अंकित शर्मा रामनगर कोतवाली पहुंचा.

अंकित शर्मा ने पुलिस को बताया कि अखबार में जिस महिला की लाश का फोटो छपा है, वह उस की बीवी जन्नत निखत अंसारी से मिलता जुलता है, जो चिल्किया में किराए का कमरा ले कर अकेली रहती थी.

पुलिस ने अंकित शर्मा को मोर्चरी में रखी युवती की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी बीवी जन्नत निखत के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस टीम ने राहत की सांस ली. लेकिन पुलिस इस बात को ले कर हैरत में थी कि अंकित ब्राह्मण है और उस की बीवी मुसलिम.

पुलिस को अंकित पर ही शक हुआ कि कहीं उसी ने या उस के परिवार वालों ने जन्नत के दूसरे समुदाय की होने की वजह से उसे मौत के घाट तो नहीं उतार दिया. अपना शक दूर करने के लिए पुलिस ने अंकित शर्मा से इस मामले में पूछताछ की. लेकिन अंकित बेकसूर लगा.

पूछताछ पूरी हो जाने के बाद अंकित शर्मा ने पुलिस को एक लिखित तहरीर देते हुए बताया कि मुझे अपनी पत्नी की हत्या का शक उसी के जीजा सोनू पर है, जो रामनगर में ही रहता है. अंकित की तहरीर पर पुलिस ने सोनू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी.

इसी दौरान पुलिस ने अंकित शर्मा से विस्तृत जानकारी लेते हुए इस मामले से संबंधित सारे तथ्य जुटा लिए. पुलिस सोनू के ठिकाने पर पहुंची तो वह अपने घर से फरार मिला. कई पुलिस टीमें उस की तलाश में लग गईं.

22 जून की शाम को पुलिस को एक मुखबिर ने सूचना दी कि सोनू इस वक्त चोरपानी स्टोन क्रेशर के पीछे छिपा हुआ है. पुलिस ने उस जगह की घेराबंदी कर के सोनू को हिरासत में ले लिया. कोतवाली में उस से पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली सच्चाई सामने आई, जो कालगर्ल रैकेट से जुड़ी हुई थी.

उत्तराखंड के जिला नैनीताल से 56 किलोमीटर दूर पहाड़ों पर स्थित है रामनगर. यह आबादी के हिसाब से छोटा शहर ही सही, लेकिन सदियों से पर्यटकों के लिए पसंदीदा पर्यटन स्थल रहा है. इस की वजह वनों और पहाड़ों वाला रमणीक स्थल तो है ही, लेकिन इस से भी बड़ी वजह है जिम कार्बेट नैशनल पार्क, जहां शेर और हाथी जैसे जीवों को खुले जंगल में घूमते देखा जा सकता है.

यहां पर हर साल देशविदेश से लाखों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं. रामनगर में पर्यटकों के हिसाब से होटलों और रिसोर्टों की भी भरमार है. जिन के सहारे यहां पर कालगर्ल्स का धंधा फलफूल रहा है.

सोनू सैनी रामनगर के चोरपानी इलाके में स्टोन क्रैशर के पीछे रहता था. शादी से पहले वह आवारा और झगड़ालू प्रवृत्ति का था. उस की हरकतों से आजिज आ कर उस के पिता पूरन सैनी ने उस की शादी उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर के मोहल्ला रफतपुरा की रहने वाली मीना से कर दी थी. पूरन सिंह को उम्मीद थी कि वह शादी के बाद सुधर जाएगा, लेकिन शादी के बाद वह और भी ज्यादा बिगड़ गया था.

उस के कई औरतों से अनैतिक संबंध थे. अपनी मोटी कमाई वह अपने इस शौक पर उड़ा देता था. बाद में वह धीरेधीरे जिस्मफरोशी के धंधे में उतर गया. यह काम करते हुए वह ऐसी कई औरतों के संपर्क में आ गया, जो पहले से देहव्यापार से जुड़ी थीं.

सोनू उन के साथ मौजमस्ती करने के अलावा उन के लिए ग्राहक भी लाने लगा. ग्राहक लाने पर उसे भी दलाली के रूप में कमाई होने लगी थी. सोनू इस धंधे में पड़ कर खुश था.

कुछ समय बाद उस की पत्नी भी उस के इस धंधे से वाकिफ हो गई. घर में बिना करेधरे पैसा आए तो किसे बुरा लगता है. घर की बढ़ी आमदनी को देखते हुए उस की बीवी भी उस के रंग में रंग गई. बीवी ने उस के इस धंधे में भागीदारी करनी शुरू कर दी. फिर तो वह बिना किसी खौफ के ग्राहकों को अपने घर पर बुला लेता और मोबाइल से फोन कर के कालगर्ल को भी वहीं आने को कह देता था.

उस का यह धंधा बिना किसी रुकावट के काफी समय तक चलता रहा. लेकिन जब गांव वालों को उस की कारगुजारी का पता चला तो उन्होंने विरोध किया. गांव में सोनू की इस पोल का खुलासा होते ही हंगामा हो गया. इसे ले कर उस की गांव वालों से मारपीट हो जाती थी. कई बार मारपीट होने पर यह मामला थाने तक पहुंचा, तो सोनू फरार हो गया.

बाद में उस ने रामनगर के पास पीरूमदारा में किराए पर कमरा ले लिया. उस ने वहां पर रह कर फिर से देहव्यापार की दलाली का काम शुरू कर दिया. इसी धंधे के दौरान उस की मुलाकात उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के कस्बा नूरपुर की रुखसार उर्फ प्रिया से हुई. प्रिया देखने भालने में खूबसूरत और गदराए शरीर की कमसिन युवती थी.

पहली मुलाकात में ही सोनू का दिल प्रिया पर आ गया. उस ने प्रिया को अपनी मीठी मीठी बातों में फंसा कर उस के साथ शादी कर ली. समय के साथसाथ रुखसार भी उस के 2 बच्चों की मां बन गई. पैसों के लालच में उस ने रुखसार को भी धंधे में लगा दिया.

रुखसार की एक छोटी बहन थी जन्नत निखत, जो अपनी अम्मी सलीमा के साथ दिल्ली के भजनपुरा इलाके में रहती थी. रुखसार की अम्मी सलीमा पहले से ही देहव्यापार से जुड़ी थी.

सलीमा हालांकि दिल्ली में रह कर अपना धंधा चला रही थी. लेकिन वह जानती थी कि यह काम रामनगर जैसे क्षेत्र में ज्यादा फलेगा फूलेगा. यही सोच कर उस ने अपनी बेटी रुखसार के पास आनाजाना बढ़ा दिया था. सोनू उसे पहले से ही जानता था. सोनू के संपर्क में आने के बाद उस ने दिल्ली से रामनगर तक इस धंधे से जुड़ी युवतियों की सप्लाई शुरू कर दी.

अंकित शर्मा दिल्ली के भजनपुरा इलाके में सलीमा के घर के सामने ही रहता था. आमने सामने रहने के कारण सलीमा ने अंकित शर्मा से जानपहचान बढ़ा ली. उसी दौरान अंकित की मुलाकात जन्नत निखत से हुई. जन्नत देखनेभालने में खूबसूरत थी. जन्नत की खूबसूरती अंकित को ऐसी भायी कि वह उसे दिल दे बैठा. इतना ही नहीं, बल्कि शादी करने को भी तैयार हो गया.

यह बात जब जन्नत की अम्मी सलीमा को पता चली तो उस ने खुशीखुशी जन्नत की शादी अंकित शर्मा से कर दी. शादी के बाद जन्नत मां को छोड़ कर अंकित के साथ रहने लगी.

शादी से पहले अंकित को सलीमा या जन्नत की हकीकत मालूम नहीं थी. लेकिन जब उस का सलीमा के घर आनाजाना शुरू हुआ तो वह सच्चाई जान गया. हकीकत सामने आते ही अंकित सलीमा से कन्नी काटने लगा. धीरेधीरे उस ने अपनी बीवी जन्नत और उस की मां के मिलने पर पाबंदी लगा दी. जिस की वजह से दोनों परिवारों में विवाद की स्थिति पैदा हो गई थी.

इस के बाद सलीमा अंकित को ले कर कई बार रामनगर रुखसार के पास आई, जो अंकित को बिलकुल पसंद नहीं था. उस की सास देहव्यापार के धंधे से जुड़ी है, जान कर उसे बहुत दुख हुआ था. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपनी बीवी जन्नत को उस की अम्मी से दूर करने की कोशिश शुरू की थी, लेकिन जन्नत ने उस की एक नहीं सुनी.

अंकित और जन्नत के बीच विवाद इतना बढ़ा कि मामला पुलिस तक जा पहुंचा, जिस के बाद जन्नत ने अपने पति अंकित से अलग रहना शुरू कर दिया. दोनों का विवाद अभी तक दिल्ली न्यायालय में विधाराधीन है.

बाद में जन्नत दिल्ली छोड़ कर रामनगर में अपनी बहन के साथ आ कर रहने लगी थी. उसी समय सोनू और रुखसार के बीच देह व्यापार के धंधे को ले कर इतना विवाद बढ़ा कि रुखसार भी सोनू को छोड़ कर अलग कमरा ले कर रहने लगी.

रामनगर आते ही जन्नत को जीजा की याद सताने लगी थी. हालांकि वह अपनी बहन और सोनू के रिश्तों के बारे में भलीभांति जान चुकी थी, लेकिन इस के बावजूद उस से सोनू से मिलना जुलना शुरू कर दिया. उस समय तक सोनू का जिस्मफरोशी का धंधा ठीकठाक चल रहा था. उस ने रामनगर के कई इलाकों में किराए के कमरे ले रखे थे.

चूंकि सोनू सैनी रामनगर क्षेत्र में काफी समय से देहव्यापार से जुड़ा था, इसीलिए आसपास के क्षेत्र में उस की काफी लोगों से जानपहचान हो गई थी. कई सफेदपोश भी उस के संपर्क में थे. जब उस के पास लड़कियों की डिमांड आती तो वह फोन कर उन्हें देह के पुजारियों से मिलवा देता. उसे सिर्फ अपने कमीशन से मतलब था.

कभीकभी तो सोनू एक ही सौदे में 10 हजार रुपए तक कमा लेता था. कमाई बढ़ने पर उसने एक नई वैगनआर कार भी खरीद ली. वह पार्टियों की डिमांड पर युवतियों को उसी कार में बिठा कर उन के पते तक छोड़ आता था.

इसी दौरान एक दिन जन्नत अपनी बहन रुखसार को बिना बताए सोनू से मिलने जा पहुंची. जन्नत को देखते ही सोनू खुश हो गया. उस दिन उस की और सोनू की काफी देर बातचीत हुई. उसी दौरान जन्नत ने सोनू को बताया कि उस का अपने पति अंकित से विवाद हो गया था, जिस कारण वह उसे छोड़ कर रामनगर चली आई.

जन्नत की यह बात सुनते ही सोनू के मन में लड्डू फूटने लगे. उस की दूसरी बीवी रुखसार उसे पहले ही छोड़ कर जा चुकी थी, इसलिए जन्नत को देखते ही उस ने ठान लिया कि वह उसे किसी भी तरह अपने विश्वास में ले कर उस से शादी करेगा. हुआ भी यही. वह रोजाना जन्नत को फोन करने लगा.

कुछ ही दिनों में दोनों के बीच अच्छे संबंध बन गए. सोनू जानता था कि जन्नत के आते ही उस का जिस्मफरोशी का धंधा और भी फलने फूलने लगेगा. सोनू की मेहनत रंग लाई. उस ने कुछ ही दिनों में जन्नत को विश्वास में ले कर उसे अपने साथ रहने को मजबूर कर दिया. अंतत: जन्नत उसी के साथ रहने लगी.

जन्नत को अपने जाल में फंसाने के बाद सोनू ने उसे पीरूमदारा स्थित साईं मंदिर के पास एक कमरे में ठहरा दिया था. उस की देखरेख और खाने पीने की व्यवस्था के लिए उस ने रेखा नाम की एक महिला उस के पास छोड़ दी थी, जो उसे सारी सुविधाएं मुहैया कराती थी. कुछ दिनों से जन्नत और सोनू पीरूमदारा के उसी कमरे में मियांबीवी की तरह साथ रह रहे थे.

सोनू जन्नत के परिवार की कमजोरी पहले ही पकड़ चुका था. उसे पता था कि जन्नत शुरू शुरू में भले ही इस धंधे में आने से मना करे, लेकिन वह बाद में अपने आप लाइन पर आ जाएगी. जन्नत देखने में मौडल जैसी लगती थी. सोनू जानता था कि देहव्यापार के बाजार में उस के दाम भी अच्छे मिलेंगे.

यही सोच कर उस ने जन्नत की मजबूरी का लाभ उठाते हुए उसे दलदल में धकेलने की कोशिश की. लेकिन अंकित के साथ शादी करने के बाद वह फिर से उस दलदल में नहीं फंसना चाहती थी.

सोनू ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह सीधेसीधे रास्ते पर आ जाए, लेकिन जब वह उस के बहकावे में नहीं आई तो उसे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ा. उस ने कई रईसों को उस के फोटो भेज रखे थे. जिस के लिए उसे मुंहमांगी रकम भी मिली थी.

सोनू ने एक दिन उसे कोल्डड्रिंक में नशे की गोली डाल कर पिला दी. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद वह नशे में बेसुध हो गई. मौके का फायदा उठा कर सोनू ने उस के साथ अवैध संबंध बनाए. जब इस बात की जानकारी जन्नत को हुई तो उसे गहरा सदमा पहुंचा. लेकिन उस वक्त वह मजबूर थी. उसे छोड़ कर वह कहीं जा भी नहीं सकती थी.

अंतत: वह सोनू पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी. जबकि सोनू जानता था कि जब उस की बहन ही उस की न हुई तो वह उस के साथ क्या निभा पाएगी. यही सोचते हुए उस ने जन्नत के साथ शादी से साफ मना कर दिया.

सोनू के साथ रहते हुए जन्नत भी शराब की आदी हो गई थी. वह सोनू के साथ बैठ कर पीती थी. एक दिन उस ने सोनू के पीछे शराब पी और घर में पूरी तरह से उत्पात मचाया. उस ने सोनू की गैरमौजूदगी में उस की पहली बीवी मीना और उस के भाई गुड्डू को बहुत बुराभला कहते हुए देख लेने की धमकी दी.

यह बात मीना और गुड्डू को नागवार लगी. सोनू के घर आते ही उन दोनों ने उस के कान भर दिए. मीना ने सोनू से कहा कि वह अपनी चहेती साली से सावधान रहे. वह कभी भी उस की जान ले सकती है.

यह जानकारी मिलते ही सोनू ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन जन्नत ने सोनू से भी साफ शब्दों में कह दिया कि या तो वह उस से शादी कर ले वरना वह उसे किसी भी लायक नहीं छोड़ेगी, पुलिस में जा कर उस का भंडाफोड़ कर देगी. जन्नत की इस धमकी के बाद सोनू गंभीर हो गया. इस के बाद सोनू जन्नत को मौत की नींद सुलाने का रास्ता खोजने लगा.

14 जून, 2019 को सोनू शराब ले कर कमरे पर पहुंचा. उस दिन उस का साला गुड्डू भी उस के साथ था. शाम को गुड्डू और जन्नत ने एक साथ बैठ कर शराब पी. जल्दी ही नशा जन्नत के सिर चढ़ कर बोलने लगा. उस दिन भी शराब के नशे में जन्नत ने सोनू के सामने शादी वाली बात रखी, जिस पर सोनू ने साफ शब्दों में कहा कि वह एक बीवी के होते दूसरी शादी नहीं कर सकता.

इतना सुनने के बाद जन्नत आपे से बाहर हो गई. उस ने सोनू के साथ हाथापाई तक कर डाली थी. जिस से बौखला कर सोनू ने जन्नत को उठा कर जमीन पर पटक दिया.

जमीन पर गिरते ही जन्नत बेहोश हो गई. उस के बाद वह अपने साले गुड्डू की मदद से उसे कमरे में ले गया. फिर वहां पड़े बिजली के तार से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

जन्नत को मौत की नींद सुलाने के बाद सोनू ने अपने साले की मदद से उस की लाश वैगनआर कार से ले जा कर पीरूमदारा रेलवे लाइन की तरफ सूखी नहर में डाल दी. नहर में डालने के बाद लाश की पहचान छिपाने के लिए दोनों ने उस के चेहरे को जलाने की योजना बनाई. लाश नहर में डालने के बाद दोनों कार से भवानीगंज पैट्रोलपंप पर पहुंचे. वहां से पैट्रोल ले कर वापस उसी जगह गए, जहां नहर में लाश डाली थी.

सोनू ने जन्नत के सोने के कुंडल और अंगूठी उतार कर अपने पास रख लीं. फिर जन्नत के चेहरे और कपड़ों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. बाद में दोनों ही अपने कमरे पर चले आए.

यह संयोग ही रहा कि मृतका के चेहरे और उस के कपड़ों पर पैट्रोल डालने के बाद भी न तो पूरी तरह से उस का चेहरा जल पाया था और न ही उस के कपड़े. जिस के आधार पर ही उस की पहचान हो पाई वरना जन्नत की मौत राज बन कर रह जाती.

सोनू ने अपनी पहली बीवी मीना के अलावा 2 और बीवियां रखनी चाहीं. वह सभी को देहव्यापार में उतारना चाहता था. लेकिन उस की यह मंशा पूरी नहीं हो सकी.

इस केस का खुलासा होने के बाद पुलिस ने अभियुक्त सोनू की निशानदेही पर पीरूमदारा में किराए के मकान से हत्या में इस्तेमाल किया गया बिजली का तार, चोरपानी वाले मकान की अलमारी से मृतका के कुंडल तथा अंगूठी भी बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने इस हत्याकांड में इस्तेमाल की गई वैगनआर कार भी अपने कब्जे में ले ली. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों सोनू और गुड्डू को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

जादूगर का आखिरी जादू

बीते 16 जून की बात है. उस दिन पश्चिम बंगाल के हावड़ा शहर में हुगली नदी के किनारे सुबह से ही लोगों का हुजूम जुटने लगा था. इन लोगों को इंतजार था जादूगर चंचल लाहिड़ी के आने का. कोलकाता के मशहूर जादूगर चंचल ने उस दिन हैरतअंगेज कारनामा दिखाने की घोषणा की थी. चंचल पश्चिम बंगाल में जादूगर ‘मैंडे्रक’ के नाम से मशहूर थे.

जादूगर चंचल जो नायाब कारनामा दिखाने जा रहे थे, वह जादुई करतब दुनिया के महान अमेरिकी जादूगर हैरी हुडिनी से मशहूर हुआ था. करीब सौ साल पहले जादूगर हुडिनी ने खुद को एक पिंजरे में बंद कर ताले लगवा दिए थे. यह पिंजरा गहरे पानी में डुबो दिया गया. इस के बाद हुडिनी अपने जादू की कला से पिंजरे के ताले खोल कर कुछ ही देर में पानी की सतह पर आ गए. यह खेल दिखा कर जादूगर हुडिनी ने अपना नाम पूरी दुनिया में अमर कर लिया था.

कोलकाता के मशहूर जादूगर चंचल ने जादूगर हुडिनी के इसी करतब को दिखाने की तैयारी की थी. चंचल यह कारनामा तीसरी बार दिखाने जा रहे थे. सब से पहले मैंड्रेक यानी चंचल ने यह कारनामा 1998 में दिखाया था. इस के बाद दूसरी बार 2013 में भी उन्होंने यह करतब दिखा कर पूरे देश में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी. अपनी लोकप्रियता के चलते जादूगर चंचल विभिन्न राज्यों में अपने जादू का प्रदर्शन करने लगे थे.

jadugar-chanchal-lahiri

जादूगर चंचल ने पानी की सतह पर चलने का करतब दिखाने की भी घोषणा कर रखी थी. जब वे प्रचार के लिए निकलते थे, तो गाड़ी के साथ करीब 10 फुट ऊंचाई पर हवा में चलते थे. भीड़ भरी सड़कों पर जादूगर का इस तरह का लाइव कारनामा देख कर दर्शक रोमांचित हो जाते थे.

इस से पहले 2013 में यही करतब दिखाते समय जादूगर चंचल की बचने की कला को दर्शकों ने पकड़ लिया था. उस समय चंचल को शीशे के पारदर्शी बौक्स में तालों से बंद कर हुगली नदी में फेंका गया था. तब वे 29 सेकंड में पानी से बाहर आ गए थे. दरसअल  जादूगर चंचल ने पानी में बौक्स फेंके जाने के बाद उसे अपने तरीके से खोला और बाहर आ गए थे.

यह बौक्स इस तरह से बना हुआ था कि आम दर्शक को इस बात का पता नहीं चल सकता था कि ताले लगाने के बाद बौक्स का एक गेट खुल जाता है. जादूगर ने पानी के अंदर इसी गेट से खुद को बाहर निकाल कर दर्शकों को जादू का अहसास कराया था.

पता नहीं कहां गलती हुई कि दर्शकों को इस बौक्स के गेट से जादूगर के निकलने का पता चल गया और बाहर निकलने पर उन्होंने चंचल को घेर लिया. दर्शकों की भीड़ ने चंचल की सुनहरी विग भी खींच ली थी. उस समय बड़ी मुश्किल से दर्शकों को समझा कर शांत किया गया था.

अब तीसरी बार यही कारनामा दिखाने के लिए जादूगर चंचल के सहयोगियों ने पूरी तैयारी कर ली थी. सारे आवश्यक साजोसामान भी जुटा लिए गए थे. इस के लिए पुलिस और प्रशासन को आवश्यक पत्र भी दिया गया था.

निर्धारित दिन 16 जून को जादूगर के सहयोगियों का दल हावड़ा ब्रिज के पास पहुंच गया. सुबह करीब 10 बजे के आसपास जादूगर चंचल भी वहां आ गए. तब तक जादूगर का अनूठा कारनामा देखने के लिए वहां हजारों लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी.

चंचल ने हाथ हिला कर दर्शकों की भीड़ का अभिवादन किया. जादूगर चंचल ने इस दौरान दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर मैं यह खतरनाक करतब दिखाते हुए नदी से सफलतापूर्वक बाहर आ गया, तो यह जादू होगा और अगर नहीं आ सका तो दुखांत होगा.

jadugar-chanchal-lahiri-maut

हावड़ा ब्रिज के नीचे पहले से ही 2 जलयान तैयार खड़े थे. जादूगर चंचल इन में से एक जलयान पर चढ़ गए. दूसरे पर उन के सहयोगियों की दूसरी टीम सवार थी, जो पूरे दृश्य को कैमरे में कैद कर रही थी.

हजारों लोगों की मौजूदगी में एक जलयान पर सवार सहयोगियों ने चंचल के हाथपैर मोटी रस्सी और जंजीरों से बांध दिए. जंजीर को 2 तालों से जड़ दिया गया ताकि जादूगर आसानी से न तो अपने हाथपैर हिला सके और न ही ताले खोल सकें. इस के बाद जादूगर की आंखों पर पट्टी बांध दी गई.

jadugar-chanchal-lahiri-last-stunt

पूरी तैयारी के बाद दोपहर करीब 12.30 बजे रस्सी और जंजीरों से बंधे जादूगर को क्रेन में लंबी रस्सी लटका कर हुबली व गंगा नदी के बीच पानी की तेज धारा में फेंक दिया गया. नदी में फेंके जाने से पहले जादूगर चंचल ने हाथपैर बंधे होने और आंखों पर पट्टी होने के बावजूद एक बार फिर दर्शकों का अभिवादन करने का प्रयास किया. इस पर दर्शकों ने तालियां बजा कर, जयकारे लगा कर जादूगर की हौसला अफजाई की.

जादूगर को नदी के गहरे पानी में फेंके जाने के बाद वहां खड़ी हजारों की भीड़ बिना पलक झपकाए नदी के पानी की सतह पर जादूगर के दिखने का इंतजार करने लगी, दर्शकों को कुछ सेकंड के लिए एक बार जादूगर नदी की सतह पर नजर जरूर आए लेकिन फिर अचानक गायब हो गए और फिर दिखाई नहीं दिए.

magician-chanchal-lahiri-mandrake

जादूगर को 5-7 मिनट के दरम्यान अपनी कला के बल पर रस्सी, जंजीरों और तालों से मुक्त हो कर नदी की सतह पर आ जाना था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

लोग टकटकी लगाए जादूगर चंचल के फिर से दिखाई देने का इंतजार कर रहे थे. दर्शकों को एकएक पल मुश्किल लग रहा था. 5 मिनट क्या, जादूगर चंचल को नदी में डाले 15 मिनट से ज्यादा का समय हो चुका था. लेकिन वे नजर नहीं आए.

इस से हजारों दर्शकों के साथ उन के सहयोगियों की बेचैनी भी बढ़ गई. काफी देर इंतजार के बाद अधिकांश दर्शक निराश हो कर लौट गए. सैकड़ों दर्शक वहां रुक कर अगले समाचार का इंतजार करते रहे.

इसी बीच, जादूगर के सहयोगियों ने चंचल की तलाशी के लिए अपने कुछ साथियों को नदी में उतार दिया था. लेकिन जादूगर का कुछ पता नहीं चला. इस के बाद पुलिस को सूचना दे दी गई. सूचना मिलने पर रिवर ट्रैफिक पुलिस जादूगर की तलाश में जुट गई.

बाद में आपदा प्रबंधन टीम और गोताखोर भी आ गए. जिस पिंजड़े में जादूगर को नदी की धारा में फेंका गया था, वह तो मिल गया लेकिन चंचल का कोई पता नहीं चला. इस का मतलब चंचल हाथपैर खोल कर पिंजरे से बाहर तो निकल गए थे, लेकिन किन्हीं कारणों से पानी के सतह से ऊपर नहीं आ सके थे.

इस का मतलब था कि जादूगर के साथ कोई दुर्घटना हो गई थी. फिर भी शाम तक नदी में जादूगर की तलाश होती रही, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. रात को अंधेरा हो जाने के कारण बचाव अभियान रोक दिया गया.

इस बीच, जादूगर के सहयोगियों को कुछ लोगों से पता चला कि घटनास्थल से दूर उन्होंने नदी की तेज धारा में पीले कपड़े पहने हुए एक आदमी को हाथ मारते और बचाव की कोशिश करते देखा था. इन परिस्थितियों में बचाव दल और चंचल के सहयोगियों को जादूगर के जीवित होने की उम्मीद कम ही रह गई थी.

दूसरे दिन 17 जून को रिवर ट्रैफिक पुलिस और आपदा प्रबंधन की टीम के साथ गोताखोर हुगली नदी में जादूगर चंचल की तलाश में फिर से जुट गए. दिनभर तलाशी का काम चलता रहा. इस दौरान वहां हजारों लोग आतेजाते रहे. अधिकारी भी आए गए.

जादूगर के सहयोगियों का दल तो 16 जून की सुबह से ही बिना कुछ खाए पिए वहीं डटा हुआ था. उन की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी. वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्या हुआ, जो जादूगर वापस नहीं आ सके. यह तय था कि जादूगर की कला में कोई कमी रह गई थी.

लगभग 30 घंटे तक चले खोज अभियान के बाद 17 जून की शाम को जादूगर मैंड्रेक का शव हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट के पास बरामद हुआ. उन का शव नाव से कदमतल्ला घाट पर लाया गया.

चंचल की पहचान उन के पहने कपड़ों से की गई. करतब दिखाने के लिए वे पीले रंग की शर्ट, लाल पैंट और पीले रंग के नकली बाल पहन कर नदी में कूदे थे. उन का शव देख कर उन के सहयोगी फूटफूट कर रोने लगे. वहां मौजूद चंचल के शुभचिंतकों की आंखों से भी आंसू आ गए.

पुलिस ने आवश्यक काररवाई के बाद इस मामले को धारा 304 के तहत नौर्थ पोर्ट थाने में दर्ज कर लिया. पुलिस का कहना था कि जादूगर ने करतब दिखाने और उस से होने वाले जोखिम की आवश्यक अनुमति नहीं ली थी. जिस जलयान से जादूगर नदी में उतरे थे, उस में जीवनरक्षक व्यवस्था नहीं थी.

जिस क्रेन के सहारे जादूगर को हाथपैर बंधी हालत में नदी में फेंका गया, उस क्रेन के लिए पोर्ट ट्रस्ट से अनुमति नहीं ली गई थी. पुलिस ने 18 जून को जादूगर के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उन के घर वालों को सौंप दिया.

इस बीच, जादूगर चंचल के सहायक और भतीजे रुद्रप्रसाद लाहिड़ी ने दावा किया कि जादूगर चंचल यानी मैंड्रेक अपनी जादू की कला से सारे बंधन खोल कर नदी की सतह पर आ गए थे और उन्होंने हाथ भी हिलाया था. लेकिन फिर अचानक गायब हो गए. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जादूगर ने करतब दिखाने की अनुमति लेते समय नियमों की कमी का फायदा उठाया हो और अपनी जान से हाथ धो बैठे हों.

कहा जा रहा है कि जादूगर ने पुलिस को अनुमति देने के लिए दिए पत्र में यह नहीं लिखा था कि वे पानी में छलांग लगाएंगे. डीसी पोर्ट सैयद वकार रजा का कहना था कि चंचल लाहिड़ी ने पत्र में लिखा था कि पूरा करतब किसी नाव पर दिखाया जाएगा. इसी आधार पर उन को अनुमति दी गई थी.

अधिकारियों का कहना है कि नदी में फेंके जाने के बाद जादूगर रस्सी और लोहे की जंजीर से बंधे हाथपैर कैसे खोलेगा, इस की जानकारी चंचल के सहयोगी नहीं दे सके. हो सकता है जादूगर ने अपने बंधन खोलने का राज सहयोगियों को बताया ही नहीं हो.

विशेषज्ञों का मानना है कि जादूगर चंचल के शरीर पर भारी भरकम कपड़े और दूसरी चीजें थीं, संभवत: इसी कारण वे नदी के तेज बहाव में तैर नहीं पाए होंगे और मौत के मुंह में समा गए. माना जा रहा है कि जादूगर के टाइम मैनेजमेंट में कुछ कमियों और गलतियों की कीमत उन्हें अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

इस के अलावा जादूगर को नदी में फेंके जाते समय मौके पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे. अगर सुरक्षा के इंतजाम होते, तो तुरंत खोजने का अभियान शुरू कर दिया जाता और संभवत: उन की जान बच जाती.

41 साल के जादूगर चंचल लाहिड़ी पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सोनारपुर स्थित सुभाष ग्राम के रहने वाले थे. परिवार में उन की मां उमा लाहिड़ी, पत्नी और 10वीं में पढ़ रहा एक बेटा है.

मां उमा लाहिड़ी अपने बेटे को याद करती हुई कहती है कि उसे बचपन से ही जादूगरी के करतब सीखने और दिखाने का शौक था. वह छोटी सी उम्र में ही जादूगरी के बल पर मशहूर हो गया था.

यह दुखद रहा कि जादूगर चंचल उर्फ मैंड्रेक का आखिरी कारनामा उन के जीवन का अंत साबित हुआ. लाहिड़ी की असमय मौत से जादूगर समुदाय में शोक छा गया. देश के मशहूर जादूगर पी.सी. सरकार का कहना है कि शायद लाहिड़ी को ऐसे करतब के लिए और ज्यादा प्रैक्टिस की जरूरत थी.

भारत में करतब दिखाते समय जादूगर की मौत का यह पहला मामला बताया जा रहा है. इस से पहले किसी नामी या चर्चित जादूगर के इस तरह दुखद अंत की कोई बात सामने नहीं आई.

जादू कला भारत में सैकड़ों साल से प्रचलित है. जादूगरों के मामले में बंगाल का नाम मुख्य रहा है. राजा महाराजाओं के काल में जादू कला खूब फली फूली थी. जादू मुख्य रूप से आधुनिक तकनीक, समय प्रबंधन, विज्ञान के सहारे हाथ की सफाई और सम्मोहन पर निर्भर होता है.

कुछ लोग तंत्र विद्या को भी जादू से जोड़ते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं. आजकल जादूगरी मनोरंजन के साथ लोगों को साधु-बाबाओं के अंधविश्वास से बचने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

हमारे देश में कई मशहूर जादूगर हुए हैं. इन जादूगरों ने भारत के साथ विदेशों में भी अपने करतबों से काफी नाम कमाया है. इन में पीसी सरकार, ओपी शर्मा, अशोक भंडारी, जादूगर आनंद, के. लाल, प्रह्लाद आचार्य, गोपीनाथ मुथुकाड, नकुल शेनौय, यमुनाथ पालिनाथ, गणपति चक्रवर्ती आदि के नाम प्रमुख हैं.

इस से पहले जादूगरी में गोगिया पाशा का पूरी दुनिया में नाम रहा था. भारतीय जादूगरों ने आजकल पुराने और परंपरागत जादू के कारनामों के स्थान पर विज्ञान और तकनीक के सहारे नई नई प्रस्तुतियां शुरू की हैं.

आंखों पर पट्टी पर बांध कर भीड़ भरी सड़कों पर मोटरसाइकिल चलाना, वाटर औफ इंडिया, हैट में से कबूतर निकालना, हथकड़ी लगाना और खोल देना, मंच से गायब हो जाना, आरा मशीन से लड़की के 2 टुकड़े करना, इंद्रजाल आदि कारनामे लोगों को जादू कला देखने के लिए आकर्षित करते हैं.

कुछ जादूगर स्टेज शो के अलावा खुले आसमान तले भी अपनी कला दिखाते हैं. इन में हाथी, बस या ट्रेन गायब करने के करतब भी शामिल हैं. कुछ जादूगर ताजमहल को गायब कर दिखाने का दावा भी करते हैं.

करतब दिखाते समय हुआ यह हादसा कोई पहला नहीं है. इस से पहले भी दुनिया के कई नामी जादूगर अपना करतब दिखाते समय मौत की नींद सो गए. वे करतब उन के लिए आखिरी स्टंट साबित हुए. इस में अमेजिंग जौय के नाम से जाने जाते रहे जौय बुरस एक ताबूत में अपना करतब दिखाते समय मौत के मुंह में समा गए थे. इस करतब में जादूगर को ताबूत में बंद कर सीमेंट से चिन दिया गया था, बाद में जादूगर को अपनी कला से जीवित बाहर निकल आना था. लेकिन अमेजिंग जौय के साथ ऐसा नहीं हुआ.

जादूगरनी प्रिंसेज टेनको अपनी पोशाकों के बल पर जादू दिखाती थीं. एक कारनामा दिखाते हुए उन के पहने कपड़ों पर 10 तलवारें घोंपी गईं. यह कारनामा उन की जिंदगी का आखिरी सफर बन गया. चार्लिस रोवन की कार स्टंट के दौरान मौत हो गई थी. उन्हें यह कारनामा दिखाते हुए कार से भी तेज गति से भागना था.

जादूगर जेनेस्टा को पानी से भरे टैंक में कारनामा दिखाना था. लेकिन वे सफल नहीं हो सके और उन की मौत हो गई. बालाब्रेगा की मौत आग का स्टंट दिखाने के दौरान हुई थी. सन 1934 में नामी जादूगर बेजामिन खुद को जमीन में गाड़ने के बाद भी जीवित बाहर निकल आए थे. लेकिन इस के तुरंत बाद उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

स्टेज पर जादू के कारनामे दिखाते जादूगरों की लोकप्रियता सोशल मीडिया के इस युग में लगातार कम हो रही है, इसलिए जादूगर भी खुद को समय के साथ अपडेट कर रहे हैं. लोगों में जादू के प्रति आकर्षण बनाए रखने के लिए जादूगर नईनई ट्रिक सीख कर उन का प्रदर्शन कर रहे हैं.

कहा जाता है कि बीसवीं सदी में ‘रोप ट्रिक’ नाम के जादू का कारनामा सब से हैरतअंगेज हुआ करता था. इस कारनामे के सफल प्रदर्शन में एकदो जादूगर ही कामयाब हो सके थे. इस कला में जादूगर एक रस्सी को जादू के सहारे आसमान में सीधी खड़ी कर उस पर सीढ़ी की तरह चढ़ कर गायब हो जाता है. इस के बाद उस जादूगर के एकएक अंग नीचे जमीन पर गिरते थे. बाद में वह जादूगर प्रकट हो जाता था. आज भी जादूगरों की नई पीढ़ी इस हैरतअंगेज कारनामे को सीखने को लालायित हैं.

एक धूर्त का बैंड बाजा बारात

25 मई, 2019 की बात है. राजस्थान के जिला सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर से मिलने के लिए एक अधेड़ उम्र का आदमी उन के औफिस पहुंचा. उस आदमी ने अपना नाम सुशील कुमार शर्मा निवासी सीकर शहर बताया. सुशील ने करीब आधे घंटे तक एसपी को अपनी दास्तान सुनाई.

सुशील की बातें सुन कर एसपी डा. कपूर हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि मेरी पुलिस की अब तक की नौकरी में पहली बार इस तरह का अनोखा मामला सामने आया है. आप पुलिस थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए. हम उस धोखेबाज और उस के साथियों का पता लगा कर कानून के मुताबिक सजा दिलवाएंगे.

सुशील को आश्वासन देने के बाद एसपी डा. कपूर ने उसी समय कोतवाली प्रभारी को फोन कर कहा कि आप के पास सुशील कुमार जी आएंगे. उन की रिपोर्ट दर्ज कर किसी होशियार अधिकारी से पूरे मामले की जांच कराइए और इस मामले में जो भी प्रोग्रेस हो, मुझे बताते रहिए.

एसपी की बातें सुन कर सुशील कुमार को कुछ उम्मीद जगी. एसपी साहब से मिलने के बाद वह सीधे थाने पहुंच गए. वहां मौजूद थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह को उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि उन्हें एसपी साहब ने भेजा है.

थानाप्रभारी ने सुशील को सम्मान से बिठाया, फिर पूछा कि आप लिखी हुई रिपोर्ट लाए हैं या यहां बैठ कर लिखेंगे. सुशील ने बताया कि वह पहले ही रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए तहरीर लिख कर लाए हैं. इसी के साथ सुशील ने अपने बैग से 2-3 कागज निकाल कर थानाप्रभारी को दे दिए.

थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह ने तसल्ली से उन कागजों को पढ़ा. फिर अपने मातहत अधिकारी को बुला कर उन्हें कागज सौंपते हुए एफआईआर दर्ज करने को कहा. जब तक कंप्यूटर पर रिपोर्ट दर्ज करने की काररवाई चलती रही, तब तक थानाप्रभारी ने फौरी तौर पर सुशील से केस संबंधी कई बातें पूछ लीं, ताकि मुलजिमों को जल्द पकड़ा जा सके.

रिपोर्ट दर्ज करने की काररवाई में तकरीबन एक घंटे का समय लग गया. एफआईआर की एक कौपी सुशील शर्मा को दे कर थानाप्रभारी ने भरोसा दिया कि अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ने का प्रयास किया जाएगा.

सुशील कुमार की ओर से पुलिस थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह था कि इमरान नाम के युवक ने फरजी तरीके से ब्राह्मण बन कर कबीर शर्मा के नाम से उन की बेटी सुमन से धोखे से शादी रचा ली थी. शादी के लिए इमरान ने फरजी परिवार और फरजी ही बाराती तैयार किए थे. ये सभी लोग कबीर की शादी में माथे पर तिलक छाप लगा कर ब्राह्मण के रूप में शामिल हुए थे.

sikar-imran with dulhan

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की. सुशील शर्मा और उन के परिवार के बयान और प्रारंभिक जांच में सामने आया कि कुछ साल पहले इमरान भाटी ने कबीर शर्मा के नाम से फरजी फेसबुक आईडी बनाई थी. फेसबुक पर उस ने सीकर की रहने वाली युवती सुमन शर्मा से दोस्ती की. उस समय सुमन सीकर जिले के एक निजी कालेज में पढ़ती थी.

फेसबुक पर दोस्ती हुई तो दोनों में चैटिंग करने लगे. बाद में मोबाइल पर भी बातें होने लगीं. सुमन को कबीर की बातों से यह अहसास नहीं हुआ कि वह किसी दूसरी जातिधर्म का है. सुमन उस की बातों और उस के व्यक्तित्व से प्रभावित थी. कबीर ने इस का फायदा उठाया और सुमन को अपने प्रेमजाल में फंसा लिया. सुमन उस से प्यार करने लगी.

कबीर इस खेल में माहिर था. वह सुमन को नित नए सपने दिखाने लगा. सुमन उन सतरंगी सपनों की कल्पना में खो कर मन ही मन कबीर से विवाह करने की सोचने लगी. लेकिन वह संस्कारी युवती थी. उसे अपने मातापिता की इज्जत प्यारी थी. वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से उस के परिवार की प्रतिष्ठा पर जरा सी भी आंच आए. इस बीच वह एक निजी कालेज में जौब करने लगी थी.

सुमन कालेज स्तर तक पढ़लिख चुकी थी. उस की उम्र भी शादी लायक हो गई थी. कालेज में जौब करने से वह आत्मनिर्भर भी हो गई थी. मांबाप अब उस के हाथ पीले करने की सोच रहे थे. इस के लिए उन्होंने अपने नाते रिश्तेदारों से भी सुमन के लिए अच्छा वर तलाशने को कह दिया था. घर में जब सुमन की शादी के लिए लड़का देखने की बातें होने लगीं तो नवंबर 2018 में एक दिन उस ने अपने मातापिता को कबीर के बारे में बताया. सुमन ने मोबाइल पर कबीर की फोटो दिखा कर उस से शादी करने की इच्छा जताई.

पिता को सुमन की यह बात जरा भी बुरी नहीं लगी. उन्होंने सुमन से कहा कि अगर कबीर शर्मा उस की नजर में अच्छा और सज्जन लड़का है तो उन्हें उस से शादी करने में कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन पहले कबीर से मिल कर उस के मातापिता, परिवार और खानदान वगैरह के बारे में पता लगाएंगे.

सुमन ने भी इस पर सहमति जता कर कहा कि मैं कबीर से आप की बात करा दूंगी. सुमन ने कबीर को फोन कर अपने पिता की इच्छा के बारे में बता दिया. इस के 1-2 दिन बाद ही कबीर ने सुशील शर्मा को फोन कर खुद का परिचय दिया.

सुशील के पूछने पर कबीर ने खुद को जयपुर निवासी गौड़ ब्राह्मण बताया. कबीर ने विदेश में खुद का बिजनैस होने का हवाला दे कर कहा कि वह जनवरी में जयपुर आएगा.

इस के बाद कबीर की सुशील शर्मा से 1-2 बार और बात हुई. सुमन से तो उस की प्राय: बात रोज ही बात होती थी. सुमन को भी उम्मीद थी कि परिवार की सहमति से उस की शादी उस के सपनों के राजकुमार कबीर से हो जाएगी.

इसी साल जनवरी में एक दिन जयपुर में लड़का लड़की देखने का कार्यक्रम तय हो गया. तय कार्यक्रम के मुताबिक सीकर से सुमन, उस के पिता और परिवार के अन्य लोग जयपुर के निवारू रोड पर स्थित साउथ कालोनी के एक फ्लैट पर पहुंच गए.

फ्लैट पर कबीर ने सुशील शर्मा और उन के परिवार के लोगों को अपने चाचा रामकुमार शर्मा, चाची संतोष और भतीजे मनन से मिलवाया. उस समय फ्लैट पर कई अन्य लोग भी मौजूद थे. कबीर ने उन्हें भी अपना रिश्तेदार बताया.

कबीर ने सुमन के पिता को बताया कि उस के पिता रामेश्वर शर्मा जयपुर में ही पीतल फैक्ट्री के पास शास्त्रीनगर में रहते हैं. पिता ने दूसरी शादी की है. सौतेली मां के कारण पिता उस के पास नहीं आते.

उसे यह फ्लैट चाचा रामकुमार ने दिलवाया है. कबीर के पिता के दूसरी शादी करने और अलग रहने पर सुशील शर्मा को कुछ शंका हुई कि रामेश्वरजी शादी में शरीक होंगे या नहीं. यह शंका जताने पर कबीर ने सुशील शर्मा को आश्वस्त किया कि वह उन्हें मना लेगा.

बातचीत में सुशील शर्मा को बेटी सुमन के लिए कबीर उपयुक्त लड़का लगा. ब्राह्मण कुल के कबीर के चाचाचाची और अन्य रिश्तेदारों से मिल कर वह उन के घर परिवार के बारे में संतुष्ट हो गए.

फिर भी सुशील शर्मा ने कबीर की जन्मकुंडली का मिलान कराने की बात कही. कबीर ने पहले से तैयार अपनी जन्मकुंडली सुमन के पिता को सौंप दी. दूसरी तरफ, कबीर के रिश्तेदार भी सुमन को अपने घर की बहू बनाने को तैयार हो गए.

सुशील शर्मा ने सीकर आ कर कबीर की जन्मकुंडली पंडित को दिखाई तो उस में कोई दोष नजर नहीं आया. जन्मपत्री के मुताबिक कबीर मांगलिक था और सुमन भी मांगलिक थी. मांगलिक युवती की शादी मांगलिक युवक से ही हो सकती है, यह बात इमरान उर्फ कबीर को पता थी.

सुमन को प्रेमजाल में फांसने के बाद जब इमरान को सुमन के मांगलिक होने का पता चला तो उस ने फरजी नाम, जातिधर्म व पते वाली मांगलिक दोष की जन्मपत्री बनवा कर रख ली थी. यही जन्मपत्री कबीर ने सुमन के पिता को दी थी.

जन्मपत्री का मिलान होने पर सुशील शर्मा ने कबीर से शादी की बात आगे बढ़ाई. इस पर कबीर ने कहा कि हमारे सारे रिश्तेदार जयपुर में रहते हैं. वे सब सीकर नहीं आ सकते, आप को जयपुर आ कर शादी करनी होगी. जयपुर में शादी की सारी व्यवस्था हम लोग कर देंगे. आप केवल पैसों और जेवरों का इंतजाम कर लेना. सुशील शर्मा चाहते तो यही थे कि बेटी की शादी सीकर से ही धूमधाम से हो लेकिन वरपक्ष की इच्छा को देखते हुए वह जयपुर में शादी करने को तैयार हो गए.

बातचीत के बाद तय हुआ कि 12 फरवरी को जयपुर में सगाई करेंगे और इस के अगले ही दिन विवाह का सही मुहूर्त है, इसलिए 13 फरवरी की शादी तय हो गई.

कुछ दिन बाद कबीर ने सुशील शर्मा को जयपुर बुला कर शादी के लिए लोहामंडी में मातेश्वरी रिसोर्ट दिखाया. सुशील शर्मा को व्यवस्था ठीकठाक लगी तो उन्होंने 12 और 13 फरवरी के लिए रिसोर्ट बुक करवा दिया. शादी के लिए बैंड, कैटरिंग, सजावट, घोड़ी, पंडित, वीडियो फोटोग्राफर और अन्य सारी व्यवस्थाएं करने की जिम्मेदारी कबीर ने ले ली थी.

शादी में कबीर की ओर से छपवाए गए शादी के कार्ड में उस के पिता का नाम रामेश्वर शर्मा और दादा का नाम भागीरथ शर्मा लिखा था. कार्ड में जयपुर के पीतल फैक्ट्री शास्त्रीनगर निवारू रोड का पता और 2 मोबाइल नंबर भी लिखे हुए थे.

12 फरवरी, 2019 को जयपुर के मातेश्वरी रिसोर्ट में पारंपरिक रीतिरिवाज से कबीर और सुमन की सगाई  हो गई. रिंग सेरेमनी में सुमन और कबीर ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई. सगाई के दस्तूर में कबीर के वे सारे रिश्तेदार शामिल हुए, जो जनवरी में फ्लैट में मिले थे. वधू पक्ष से भी सीकर से कई लोग वहां पहुंचे थे.

इस के दूसरे ही दिन 13 फरवरी, 2019 को इसी रिसोर्ट में धूमधाम से कबीर और सुमन की शादी हो गई. वधूपक्ष के लोगों ने वरपक्ष के रिश्तेदारों के बारे में पूछा तो किसी को कबीर का चाचा, किसी को जीजा और किसी को भतीजा बताया गया. स्टेज पर वरवधू को आशीर्वाद देने का कार्यक्रम हुआ. बाद में हिंदू रीतिरिवाज से अग्नि के समक्ष फेरे लिए गए.

धूमधाम से शादी होने पर सुमन के पिता सुशील शर्मा ने रात को ही सारी व्यवस्थाओं के बिल ले कर कबीर को 11 लाख रुपए नकद दिए. रिसोर्ट के किराए के डेढ़ लाख रुपए और खाने के करीब पौने 2 लाख रुपए अलग से दिए.

इस के अलावा उन्होंने बेटी को शादी में करीब 5 लाख रुपए की ज्वैलरी कपड़े वगैरह दिए. एकलौती बेटी होने के कारण सुशील शर्मा ने दिल खोल कर दानदहेज दिया था. वैवाहिक रस्में पूरी होने के बाद तड़के सुशील शर्मा ने बेटी सुमन को ससुराल के लिए विदा कर दिया. सुमन की ससुराल निवारू रोड पर साउथ कालोनी के उसी फ्लैट में बताई गई थी, जहां पहली बार लड़का लड़की देखने की रस्म हुई थी.

शादी के कुछ दिनों बाद सुमन अपने पीहर सीकर आ गई. दामाद कबीर शर्मा कुछ दिन बाद सीकर आया तो उस की खूब आवभगत की गई. इस दौरान कबीर ने सुशील शर्मा से कारोबार के लिए 5 लाख रुपए की आवश्यकता बताई. सुशील ने कुछ दिन पहले ही बेटी की शादी की थी, इसलिए वह पैसों की व्यवस्था नहीं कर सके.

1-2 दिन ससुराल में खातिरदारी कराने के बाद जमाई राजा कबीर जयपुर जाने की बात कह कर सुमन के साथ चला गया. बाद में कबीर फोन कर सुमन के पिता पर पैसों का इंतजाम करने का दबाव डालने लगा. थक हार कर सुशील शर्मा ने अपने परिचित से ढाई लाख रुपए उधार लिए. यह रुपए ला कर उन्होंने घर में रख दिए और कबीर को बता दिया.

कबीर और सुमन 14 मई को सीकर आए और उसी रात करीब 3 बजे कबीर वे ढाई लाख रुपए और घर में रखे जेवर चुरा कर सुमन के साथ वहां से भाग गया.

अगले दिन सुबह जब सुशील शर्मा को दामाद और बेटी घर में नहीं मिले तो वह समझ नहीं पाए कि अचानक बिना बताए कहां चले गए. बाद में घर में पैसे और जेवर भी गायब मिले तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने कबीर और सुमन के मोबाइल पर काल किया, लेकिन उन के फोन स्विच्ड औफ मिले.

सुशील को बड़ा ताज्जुब हुआ. वह समझ नहीं पा रहे थे कि माजरा क्या है. 1-2 दिन इंतजार करने के बाद भी दामाद और बेटी से बात नहीं हुई तो सुशील शर्मा ने शादी में मोबाइल द्वारा खींची गई फोटो अपने परिचितों और कुछ जानकारों को दिखाईं. फोटो देख कर उन्हें जो बातें पता चलीं, उसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

लोगों ने बताया कि जिस युवक को आप कबीर शर्मा बता रहे हैं, उस का असली नाम इमरान भाटी है. वह सीकर के ही वार्ड 28 में अंजुमन स्कूल के पास अपने बीवीबच्चों के साथ रहता है, परिवार में पत्नी के अलावा 3 बच्चे हैं.

कबीर शर्मा के इमरान भाटी होने और फरजी जातिधर्म, नकली परिवार और बाराती बना कर फरजीवाड़े से शादी रचाने की बात पता चलने के बाद सुशील शर्मा ने 25 मई, 2019 को सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर से मुलाकात की. इस के बाद ही उन की रिपोर्ट दर्ज हुई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एडिशनल एसपी डा. देवेंद्र शर्मा के नेतृत्व में पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. पुलिस ने सीकर शहर में इमरान भाटी के घर पहुंच कर उस के घर वालों से पूछताछ की. पता चला कि इमरान की पत्नी और तीनों बच्चे मुंबई गए हुए हैं. इमरान के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. साथ ही उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया गया.

जांचपड़ताल में पता चला कि इमरान सीकर में जयपुर रोड स्थित एक कार शोरूम में मार्केटिंग की नौकरी करता था. बाद में पैसों की हेराफेरी करने पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. कार शोरूम में नौकरी करते हुए भी उस ने एक युवती का एमएमएस बना लिया था. फिर उसे धमकी दे कर मोटी रकम ऐंठी थी. बदनामी के डर से युवती ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी.

इमरान की शादी सन 2005 में सीकर के रोशनगंज मोहल्ले में रहने वाली सईदा से हुई थी. सईदा पढ़ीलिखी है. उस के 3 बच्चे हैं. बड़ा बेटा 13 साल, उस से छोटा 11 साल का और सब से छोटी बेटी 7 साल की है. इमरान के पिता इकबाल भाटी ने पुलिस को बताया कि इस साल फरवरी में इमरान ने कहा था कि उस का ट्रांसफर जयपुर हो गया है, इसलिए अब वह जयपुर में ही रहेगा.

जयपुर जाते समय इमरान उन से 4 लाख रुपए ले कर गया था. इकबाल भाटी ने बताया कि उन के बेटे इमरान ने सीकर की सुमन शर्मा से जयपुर में दूसरी शादी कर ली, इस का पता उन्हें बाद में लगा था. इमरान की पत्नी सईदा और उस के पीहर व ननिहाल वालों को भी इस बात की जानकारी मिल गई थी.

पति द्वारा दूसरी शादी करने का पता चलने पर सईदा मुंबई में अपने पीहर वालों के पास चली गई. उस ने यह बात मायके वालों को बताई तो उन्हें भी उस की इस करतूत पर हैरत हुई.

सईदा ने बताया कि उस के लिए इमरान मर चुका है. उस ने मेरा और बच्चों का जीवन बरबाद कर दिया. जातिधर्म बदल कर फरजी तरीके से दूसरी शादी कर के उस ने अब हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.

बेटे इमरान की करतूतें सामने आने पर पिता इकबाल भाटी ने भी उसे अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया. जो मकान इमरान के नाम था, उसे बहू सईदा और उस के बच्चों के नाम गिफ्ट डीड करवा दिया. एक गैराज में से इमरान का हिस्सा बहू और उस के बच्चों के नाम कर दिया.

फरजीवाड़े से दूसरी शादी करने के बाद इमरान ने एक दिन सईदा को फोन कर कहा, ‘‘मैं 40 दिन की जमात पर जा रहा हूं. इस दौरान मैं धर्म के काम में व्यस्त रहूंगा, इसलिए मुझे फोन मत करना.’’ लेकिन जब बाद में सईदा को असलियत पता चली तो इमरान ने उसे फोन नहीं किया.

जांच में यह भी पता चला कि अय्याश किस्म का इमरान भाटी उर्फ कबीर शर्मा चेन स्मोकर और शराबी है. उस ने सीकर के अपने कई दोस्तों से भी लाखों रुपए उधार ले रखे थे. वह देर रात तक मोबाइल पर लड़कियों से चैटिंग करता था. रात को शराब पी कर घर आने पर पत्नी सईदा और मां से झगड़ा करता था.

जातिधर्म बदल कर फरजीवाड़े से शादी करने के मामले में पुलिस किसी भी आरोपी को नहीं पकड़ पाई थी, इस से लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. सर्वसमाज के लोग पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने के लिए लामबंद हो गए. 31 मई को सर्वसमाज के प्रमुख लोगों ने सीकर में बैठक कर कहा कि मामले में जल्द काररवाई नहीं की गई तो सड़क पर उतरना पड़ेगा.

जनाक्रोश को देखते हुए पुलिस ने जांचपड़ताल तेज कर दी. आरोपी इमरान उर्फ कबीर शर्मा की तलाश में 4 पुलिस टीमें जयपुर, पुणे, दिल्ली व मुंबई भेजी गईं. पुलिस ने कई लोगों से इमरान के संभावित ठिकाने के बारे में पूछताछ की, लेकिन उस का सुराग नहीं मिला.

वह बी चबीच में मोबाइल बंद रख कर अपने ठिकाने बदलता रहा, जिस से पुलिस को उस की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. सुमन का मोबाइल फोन भी बंद था. इमरान अपने परिवार, किसी दोस्त से फोन, इंटरनेट या सोशल साइट्स के जरिए भी संपर्क नहीं कर रहा था.

एडिशनल एसपी डा. देवेंद्र कुमार शर्मा और सीओ सिटी सौरभ तिवाड़ी के नेतृत्व में पुलिस टीमें लगातार भागदौड़ कर इमरान के बारे में सूचनाएं हासिल कर रही थीं, लेकिन उस का पता नहीं चल पा रहा था. पुलिस ने इमरान की शादी में ब्राह्मण के रूप में नकली बाराती बन कर पहुंचे लोगों को भी तलाश कर पूछताछ की गई.

इस बीच 2 जून को इस मामले में उस वक्त नया मोड़ आ गया, जब सुमन के 2 वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किए गए, जो कुछ ही देर में वायरल हो गए. वीडियो में सुमन ने एक दल और अपने परिवार वालों से खुद और इमरान की जान को खतरा बताया था. सुमन ने यह भी कहा कि मैं इमरान को 6 साल से जानती हूं. यह भी जानती हूं कि वह शादीशुदा है और उस के 3 बच्चे हैं.

इन में एक वीडियो 8.21 मिनट का और दूसरा 7.40 मिनट का था. दोनों वीडियो में 17 कट थे. वीडियो देख कर महसूस हो रहा था कि जैसे सुमन कोई लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ रही है. इस से यह माना गया कि सुमन पर दबाव बना कर यह वीडियो बनाया और जारी किया गया.

वीडियो में सुमन का कहना था कि वह 18 मार्च को एएसपी के सामने पेश हुई थी, वहां परिजनों ने उस से एक प्रार्थनापत्र दिलवाया था. लेकिन असल में एएसपी 18 मार्च को खाटू श्यामजी के मेले में ड्यूटी पर थे और अगले दिन 19 मार्च को वह अवकाश पर थे. इस से सुमन की कहानी में झूठ पकड़ में आ गया.

पुलिस ने वायरल हुए वीडियो के संबंध में भी जांच शुरू कर दी, लेकिन वीडियो से उन के ठिकाने के बारे में कोई अनुमान नहीं लग सका. वीडियो वायरल होने के बाद सर्वसमाज और भगवा रक्षा वाहिनी ने 3 जून, 2019 को मामले में जल्द गिरफ्तारी की मांग करते हुए तहसीलदार को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया. ज्ञापन में कहा गया कि आरोपियों ने युवती को डराधमका कर झूठा वीडियो वायरल करवाया है. लगातार भागदौड़ के बाद पुलिस को इमरान के मुंबई में होने का पता चला.

मुंबई में पहले से ही सीकर पुलिस की टीम इमरान और सुमन की फोटो ले कर होटलों व अन्य स्थानों पर उस की तलाश में जुटी हुई थी. पुलिस को पता चला कि 3 व 4 जून की रात इमरान अपनी बीवी के साथ मुंबई के पालघर इलाके में नियामतनगर के एक फ्लैट पर आएगा. पुलिस ने उस फ्लैट पर निगरानी रखी.

रात करीब 2 बजे इमरान जब सुमन के साथ उस फ्लैट पर पहुंचा तो पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. यह फ्लैट इमरान के एक परिचित का था. पुलिस दल 4 जून की सुबह दोनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हो गई.

पुलिस पूछताछ में इमरान ने बताया कि 15 मई, 2019 को सीकर से भागने के बाद वे दोनों दिल्ली चले गए. दिल्ली में काफी पैसे खर्च हो गए थे. बाद में सुमन को साथ ले कर इमरान अपने दोस्त के पास शरण लेने के लिए पुणे चला गया. लेकिन पुणे में वह दोस्त नहीं मिला. तब इमरान अपने सौतेले भाई की पत्नी के पास मुंबई के नियामत नगर आ गया.

सौतेले भाई की पत्नी इन दोनों के आने से परेशान हो गई. इस पर इमरान और सुमन सुबह जल्दी उस के फ्लैट से निकल जाते और आधी रात के बाद वापस आते थे. दिन में वे रेलवे स्टेशन पर छिप कर रहते और शाम को किराए का मकान तलाशते थे.

इस बीच इमरान को सुमन के पिता की ओर से पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने का पता चल गया था. इमरान ने खुद को बचाने के लिए सुमन से 6 पेज में वे सारी बातें लिखवाईं जो उस के पक्ष में हो सकती थीं. इस के बाद उस ने सुमन को डराधमका कर दोनों वीडियो बनवाए.

इमरान ने कई बार वीडियो रुकवा कर उस से अपने मन मुआफिक बातें बुलवाईं. वीडियो बनवा कर इमरान ने ही यूट्यूब पर अपलोड कर दिए. फिर अपने दोस्तों को लिंक शेयर कर वीडियो वायरल करा दिए. दोनों वीडियो पुणे में बनाए गए थे.

सुमन ने पुलिस को बताया कि इमरान उसे डराधमका कर ले गया था. पुलिस को सुमन के बैग से 6 पेज की वह स्क्रिप्ट भी मिल गई जो इमरान ने वीडियो बनाने के लिए उस से लिखवाई थी. सुमन के पास जेवर व अन्य दस्तावेज भी मिल गए. बाद में सुमन को उस की इच्छा पर मां के साथ भेज दिया गया.

6 जून, 2019 को पुलिस ने इमरान को अदालत में पेश कर 4 दिन के रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान पूछताछ में उस ने बताया कि जयपुर में फरजी ब्राह्मण परिवार और रिश्तेदारों की व्यवस्था करने के लिए उस ने एक इवेंट कंपनी को ठेका दिया था. इवेंट कंपनी के मालिक रामकुमार शर्मा को ही उस ने अपना चाचा बना कर सुमन के परिजनों के सामने पेश किया था.

सगाई और शादी में भी रामकुमार ने ही कबीर के रिश्तेदारों के नाम पर किराए के लोगों की व्यवस्था की और उन्हें किराए के ही सूटबूट पहना दिए. इन में किसी को जीजा, किसी को मामा और फूफा बताया गया.

पूछताछ में इमरान से पता चला कि सुमन परिवार में एकलौती थी, इसलिए उस की नजर सुमन के मातापिता की संपत्ति पर थी. इमरान ने पहली बीवी सईदा से पीछा छुड़ाने के लिए फरवरी में जयपुर जाने से पहले खुद के नाम की संपत्ति सईदा और बच्चों के नाम कर दी थी. इमरान की करतूतों का ही परिणाम था कि ईद वाले दिन वह अपने शहर में पुलिस की गिरफ्त में था, लेकिन ईद पर उस से मिलने के लिए कोई नहीं आया.

पुलिस ने 7 जून, 2019 को सुमन शर्मा के बयान अदालत में मजिस्ट्रैट के समक्ष दर्ज कराए. बयान में उस ने अपहरण और शादी से पहले दुष्कर्म करने की बात कही. यह भी कहा कि हिंदू रीतिरिवाज से शादी करने के बाद इमरान उसे दिल्ली ले गया, वहां निजामुद्दीन में एक मसजिद में जबरन निकाह भी किया. इमरान ने उस पर जबरन धर्म बदल कर अपने साथ रहने का दबाव बनाया.

बयान में उस ने कहा कि 15 मई की रात इमरान ने साथ चलने को कहा तो उस ने मना कर दिया था. इस पर इमरान ने धमका कर कहा कि तूने मुझ से शादी की है, अपराध में तू भी बराबर की भागीदार है. मेरे साथ तू भी जेल जाएगी. इस के बाद डराधमका कर घर से जेवर और नकदी निकाल कर वे दोनों रात करीब 3 बजे चले गए थे.

सुमन ने बयान में कहा कि इमरान से उस का परिचय 6 साल पहले तब हुआ, जब वह सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ में पढ़ाई करती थी. इमरान ने जयपुर में एक होटल में ले जा कर उस के साथ दुष्कर्म किया था. बाद में भी उस ने यह काम कई बार किया था.

बयानों के आधार पर पुलिस ने सुमन का मैडिकल परीक्षण कराया. इस में दुष्कर्म की पुष्टि हुई. नतीजतन मुकदमे में दुष्कर्म की धाराएं भी जोड़ दी गईं. केस की जांच भी एसआई अमित कुमार से बदल कर थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह को सौंप दी गई.

पुलिस ने 9 जून, 2019 को इमरान उर्फ कबीर शर्मा का पोटेंसी टेस्ट कराया. इस में वह पूरी तरह स्वस्थ और सक्षम पाया गया. पुलिस ने जयपुर में उस होटल पर पहुंच कर भी जांच-पड़ताल की, जहां इमरान ने युवती के साथ दुष्कर्म किया था. सुमन और इमरान के फोन नंबरों की काल डिटेल्स की भी जांच की गई.

रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने 10 जून, 2019 को इमरान उर्फ कबीर शर्मा को अदालत में पेश कर फिर से 2 दिन के रिमांड पर लिया. पुलिस ने इमरान से फरजी रिश्तेदारों और बारातियों के बारे में पूछताछ की. उसे शादी का वीडियो दिखा कर उन की पहचान कराई गई. कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी.

—कथा में सुशील कुमार शर्मा और सुमन शर्मा परिवर्तित नाम हैं

कुत्ते वाली मैडम के काले कारनामे

कानपुर के साकेत नगर के डब्ल्यू ब्लौक के रहने वाले लोग कुत्ते वाली मैडम से  बहुत परेशान थे. सीमा तिवारी नाम की वह महिला संदीप अग्रवाल के मकान में किराए पर रहती थी. उस ने विदेशी नस्ल का कुत्ता पाल रखा था. वह कुत्ता था तो छोटा सा, लेकिन अकसर भौंकता रहता था. जिस से मोहल्ले वाले डिस्टर्ब होते थे.

इस के अलावा सीमा तिवारी के घर शाम ढलते ही लड़के और लड़कियों की आवाजाही शुरू हो जाती थी. कालोनी के लागों को शक था कि सीमा के घर जरूर कोई गैरकानूनी काम होता है. कुछ लोगों को लगता था कि सीमा चकला घर चलाती है. इस मामले में पुलिस ने काररवाई कराने के लिए कुछ लोग एसपी (साउथ) रवीना त्यागी से मिले.

रवीना त्यागी ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और आश्वासन दिया कि यदि जांच में यह सूचना सही पाई गई तो सीमा तिवारी व अन्य दोषियों के खिलाफ जरूरी काररवाई की जाएगी.

उन के जाने के बाद रवीना त्यागी ने तत्काल किदवई नगर के थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को अपने कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने मिश्रा से कहा कि तुम्हारे थाना क्षेत्र के डब्ल्यू ब्लौक, साकेत नगर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. जांच कर इस मामले में जरूरी काररवाई करो.

कप्तान साहिबा को मिलने के बाद थानाप्रभारी सीधे साकेत नगर पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह से इस बारे में बात की और इस शिकायत की गोपनीय जांच करने को कहा.

चूंकि मामला कप्तान साहिबा ने सौंपा था इसलिए थानाप्रभारी और चौकी प्रभारी ने अपने मुखबिरों को लगा दिया. इस के 2 दिन बाद ही एक खास मुखबिर ने आ कर बताया कि डब्ल्यू ब्लौक साकेत नगर में टेलीफोन एक्सचेंज के पास वाले मकान में जिस्मफरोशी का धंधा होता है. इस रैकेट की संचालिका सीमा तिवारी है, जो कुत्ते वाली मैडम के नाम से जानी जाती है. सीमा का पति भी इस धंधे में दलाली करता है.

थानाप्रभारी ने इस जानकारी से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत करा दिया. चूंकि दबिश के दौरान सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी की मौजूदगी जरूरी होती है, इसलिए एसपी ने सीओ मनोज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा, चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह के साथसाथ कुछ हैडकांस्टेबल और सिपाहियों को शामिल किया गया.

11 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम ने सीमा तिवारी के अड्डे पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर पुलिस चौंकी. कमरे में 2 अर्धनग्न महिलाएं बिस्तर पर चित पड़ी थीं. उन के साथ 2 युवक कामक्रीड़ा में लीन थे.

पुलिस पर निगाह पड़ते ही दोनों युवकों ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया पर दरवाजे पर खडे़ पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में एक युवती सजी संवरी बैठी थी. शायद उसे ग्राहक के आने का इंतजार था.

महिला सिपाही ने उसे भी हिरासत में ले लिया. कमरे में तलाशी के दौरान सैक्सवर्धक दवाएं तथा कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई. पुलिस ने ऐसी सभी चीजें अपने कब्जे में ले लीं. छापे में सरगना के अलावा 3 युवतियां, 2 ग्राहक तथा एक दलाल पकड़ा गया. इन सभी को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चल रहा था, वह संदीप अग्रवाल का था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. संदीप अग्रवाल के पकड़े जाने से हड़कंप मच गया. कई रसूखदार लोगों ने थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को फोन किया और संदीप अग्रवाल को निर्दोष बताते हुए उसे छोड़ने के लिए दबाव डाला.

लेकिन मिश्राजी ने जांच में दोषी न पाए जाने के बाद ही रिहा करने की बात कही. पूछताछ में संदीप अग्रवाल ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि वह व्यापारी है. हर साल हजारों रुपया टैक्स देता है. उस ने तो मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. हर पहलू से जांच के बाद जब संदीप अग्रवाल बेकसूर लगा तो पुलिस ने 2 दिन बाद उसे क्लीन चिट दे दी.

सीओ मनोज कुमार ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवक, युवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपने नाम सीमा तिवारी, खुशी, विविता तथा मंतसा बताए. इन में सीमा तिवारी सैक्स रैकेट की संचालिका थी. युवकों ने अपने नाम महेश, शैलेंद्र तथा चंद्रेश तिवारी बताए. इन में चंद्रेश तिवारी सीमा का पति था और वह दलाल भी था.

चूंकि सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए सीओ मनोज कुमार ने वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ में देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनीअपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

सैक्स रैकेट की संचालिका सीमा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के कुमऊपुर गांव की रहने वाली थी. उस के पिता बाबूराम तिवारी किसान थे. उन के 3 बच्चों में सीमा सब से छोटी थी.

बाबूराम के पास मात्र 2 बीघा खेती की जमीन थी. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक बेटे तथा एक बेटी की शादी कर चुके थे. सीमा भी शादी योग्य थी, इसलिए वह उस की शादी के लिए प्रयासरत थे.

सीमा तिवारी साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी लेकिन वह थी खूबसूरत. सीमा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. कालेज में कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई थी. उन के साथ वह घूमती और मौजमस्ती करती थी. घर वाले देर से घर आने को टोकाटाकी करते तो सीमा कोई न कोई बहाना बना देती थी.

जवान बेटी कहीं बहक न जाए इसलिए उन्होंने उस के लिए लड़का देखने के प्रयास तेज कर दिए. थोड़ी दौड़धूप करने के बाद घाटपुरम का चंद्रेश तिवारी उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने सीमा का विवाह चंद्रेश तिवारी के साथ कर दिया.

सीमा ससुराल में कुछ समय तक ठीक रही, फिर धीरेधीरे वह खुलने लगी. दरअसल सीमा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना देखा था, चंद्रेश वैसा नहीं था. चंद्रेश एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. उस की आमदनी भी सीमित थी. सीमा न तो पति से संतुष्ट थी और न ही उस की आमदनी से. उस की जरूरतें पूरी नहीं होती थीं. इसे ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी.

चंद्रेश चाहता था कि सीमा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन सीमा को बंधन मंजूर नहीं था. वह चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका, सासससुर और पति का कठोर बंधन पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर चंद्रेश व सीमा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आजिज आ कर सीमा पति का साथ छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.

सीमा को मनाने चंद्रेश कई बार ससुराल आया लेकिन सीमा उसे हर बार दुत्कार कर भगा देती थी. यद्यपि सीमा के मातापिता चाहते थे कि वह  उन की छाती पर मूंग न दले और पति के साथ चली जाए. मांबाप ने सीमा को बहुत समझाया लेकिन जिद्दी सीमा ने उन की बात नहीं मानी. सीमा मायके में पड़ीपड़ी जब बोर होने लगी तो उस ने कानपुर शहर में नौकरी करने की सोची.

कानपुर शहर के जवाहर नगर मोहल्ले में सीमा की मौसी रहती थी. एक रोज वह सीमा से मिलने गई. सीमा पढ़ीलिखी भी थी और खूबसूरत भी. उसे विश्वास था कि जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयापन मजे से होने लगेगा. सीमा ने नौकरी के बाबत मौसी से राय मांगी तो मौसी ने भी उसे नौकरी की इजाजत दे दी.

सीमा नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. सीमा को लगा कि उस का नौकरी का सपना पूरा नहीं होगा.

लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. आखिर उस का सपना पूरा हुआ. उसे कपड़े की एक फर्म में नौकरी मिल गई. सीमा का काम था सजसंवर कर काउंटर पर बैठना और बिक्री का लेनदेन करना. सीमा अब नोटों की चकाचौंध में रहने लगी थी.

मौसी को जब पता चला कि सीमा और उस के पति चंद्रेश के बीच विवाद है तो विवाद को सुलझाने के लिए मौसी ने पहले सीमा से बात की. फिर उस के पति चंद्रेश को अपने घर बुलवाया. इस के बाद दोनों को आमनेसामने बैठा कर विवाद को सुलझा दिया. फलस्वरूप दोनों साथसाथ रहने को राजी हो गए.

विवाद सुलझाने के बाद सीमा तिवारी पति चंद्रेश के साथ बर्रा 2 में रहने लगी. दोनों की जिंदगी एक बार फिर ठीक से व्यतीत होने लगी. इधर सीमा को फर्म में नौकरी करते  3 महीने ही बीते थे कि उस पर फर्म के मालिक की नीयत खराब हो गई. वह उसे ललचाई नजरों से देखने लगा और एकांत में बुला कर छेड़छाड़ भी करने लगा.

सीमा ने उस की हरकतों का विरोध करना बंद कर दिया तो फर्म मालिक का हौसला बढ़ गया. आखिर एक रोज उस ने सीमा को अपनी हवस का शिकार बना लिया. सीमा रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उस हवस के दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई.

सीमा का मुंह बंद करने के लिए उस ने 2 हजार रुपए उस के हाथ में थमा दिए. इस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया. जब भी उसे मौका मिलता सीमा से भूख मिटा लेता. आखिर सीमा ने सोचा कि जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी करने की क्या जरूरत है.

इन्हीं दिनों सीमा की मुलाकात अंजलि से हुई. अंजलि बर्रा 2 में रहती थी और सैक्स रैकेट चलाती थी. वह खूबसूरत मजबूर लड़कियों को अपने जाल में फंसाती थी और उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देती थी. सीमा ने अपनी व्यथा अंजलि को बताई तो उस ने सीमा को जिस्मफरोशी का धंधा अपनाने की सलाह दी.

सीमा ने अंजलि की बात मान ली और उस के धंधे से जुड़ गई. सीमा खूबसूरत और जवान थी. ऐसी लड़कियों या औरतों को ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहती थी. शुरूशुरू में सीमा को इस धंधे से झिझक हुई. लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई.

सीमा जब जिस्मफरोशी करने लगी और खूब पैसा कमाने लगी तो उसके पति चंद्रश्े को उस पर शक हुआ. क्योंकि वह देर रात घर आती तो कभी पूरी रात नहीं आती थी. चंद्रेश पूछता तो अंजलि सहेली के घर रुकने का बहाना बना देती. लेकिन एक रोज जब चंद्रेश ने सख्ती से पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया. उस ने चंद्रेश से भी अनुरोध किया कि वह भी उस के धंधे में सहयोग करे.

सीमा की बात सुन कर चंद्रेश हक्काबक्का रह गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि सीमा इतना गिर सकती है. उसे लगा कि अब सीमा को समझाना व्यर्थ है. क्योंकि उसे नोटों और परपुरुष की लत लग चुकी है. चंद्रेश की पैट्रोल पंप वाली नौकरी छूट गई थी. वह बेरोजगार हो गया था.

पत्नी की कमाई से उसे खाना और पीने को शराब मिल रही थी. सो सीमा के अनैतिक काम का विरोध करने के बजाए वह उस के धंधे का सहयोगी बन गया. अब चंद्रेश भी ग्राहक ढूंढ कर लाने लगा. कह सकते हैं कि वह बीवी का दलाल बन गया.

सीमा तिवारी ने सैक्स रैकेट संचालिका अंजलि के साथ जुड़ कर जिस्मफरोशी के सारे गुर सीख लिए थे. अब वह खुद ही रैकेट चलाने लगी. उस ने अपने जाल में कई और लड़कियां फंसा लीं और जिस्म का सौदा करने लगी.

इस ध्ांधे में उसे अच्छी आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह मकान किराए पर लेती और खूबसूरत व जमान युवतियों को सब्ज बाग दिखा कर अपने जाल में फांसती फिर उन्हें देह व्यापार में उतार देती. वह ज्यादातर साधारण परिवार की उन युवतियों को फंसाती जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं.

सीमा तिवारी खूबसूरत के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्दी ही प्रभावित कर लेती थी. यही कारण था कि ग्राहक एक बार उस के अड्डे पर आता तो वह बारबार आने लगता था.

सीमा वाट्सऐप के जरिए युवतियों की फोटो अपने ग्राहकों को भेजती. फिर पसंद आने पर उन के जिस्म की कीमत तय करती. उस के यहां 500 से 5 हजार रुपए तक की कीमत तय होती. वह टूर बुकिंग भी करती थी, लेकिन उस की कीमत ज्यादा होती थी. उस का पुराना ग्राहक ही नए ग्राहक लाता था.

अलग सैक्स रैकेट चलाने के बावजूद सीमा, अंजलि के संपर्क में रहती थी. वह सीमा के अड्डे पर लड़कियां व ग्राहक भेजती रहती थी. इस के बदले में वह उस से कमीशन लेती थी. सीमा का पति चंद्रेश भी दलाल बन गया था, वह भी ग्राहक लाता था.

सीमा अब बेहद चालाक हो चुकी थी. वह एक क्षेत्र में कुछ माह ही अपना धंधा चलाती थी. जैसे ही क्षेत्र के लोगों को उस के धंधे की सुगबुगाहट होने लगती, वह जगह बदल देती थी. अंजलि अकसर ऐसा मकान या फ्लैट किराए पर लेती थी, जिस में कोई दूसरा किराएदार न रहता हो.

पहले वह बर्रा क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और पनकी क्षेत्र में देहव्यापार चलाने लगी. वहां उस का टकराव एक स्थानीय गुंडे से हो गया था. दरअसल वह गुंडा सीमा से टैक्स वसूलना चाहता था. इस के अलावा वह अय्याशी भी करना चाहता था. सीमा इस गुंडे से परेशान थी और अड्डा बदलना चाहती थी.

मार्च 2019 में सीमा ने किदवई नगर थाना क्षेत्र के डब्लू ब्लौक साकेत नगर में 15 हजार रुपए महीना किराए पर एक मकान ले लिया. यह मकान व्यापारी संदीप अग्रवाल का था, जो किदवई नगर स्थित अपने दूसरे मकान में रहते थे. इस मकान में रह कर सीमा अपने पति चंद्रेश की मदद से सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस के अड्डे पर नए पुराने ग्राहक तथा युवतियों आने जाने लगीं. बर्रा की अंजलि भी उस के अड्डे पर युवतियां और ग्राहक भेजने लगी.

सीमा के पास एक विदेशी नस्ल का कुत्ता था. छोटे कद का वह कुत्ता बहुत तेज था. इस कुत्ते को उस ने प्रशिक्षित कर रखा था. वह पूरे मकान में रेकी करता था.

जैसे ही कोई मकान के गेट पर आता, वह तेज आवाज में भौंकने लगता था. कुत्ते की आवाज सुन कर सीमा सतर्क हो जाती और छिप कर देखती थी कि गेट पर कौन आया है. कुछ ही समय में सीमा तिवारी उस ब्लौक में कुत्ते वाली मैडम के नाम से मशहूर हो गई.

सीमा के घर युवक युवतियों का देर रात आनाजाना शुरू हुआ तो पासपड़ोस के लोगों का माथा ठनका. वह आपस में चर्चा करने लगे कि कुत्ते वाली मैडम के यहां युवक युवतियां क्यों आते हैं. उन्होंने निगरानी रखनी शुरू कर दी तो उन्हें शक हो गया कि मैडम सैक्स रैकेट चलाती है. इन्हीं संभ्रांत लोगों ने एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय में शिकायत की थी.

देहव्यापार अड्डे से पकड़ी गई 22-23 साल की खुशी बर्रा 4 की कच्ची बस्ती में रहती थी. गरीब परिवार में पली खुशी बेहद खूबसूरत थी. उस की सहेलियां महंगे कपड़े पहनती थीं और ठाठबाट से रहती थीं. उन के पास एक नहीं 2-2 मोबाइल होते थे. वह मोबाइल पर बात करतीं और खूब हंसतीबतियातीं. खुशी जब उन्हें देखती तो सोचती काश ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.

एक रोज बर्रा सब्जी मंडी से लौटते समय खुशी की मुलाकात अंजलि से हुई. दोनों की बातचीत हुई तो अंजलि समझ गई कि खुशी महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में आसानी से फंस सकती है.

इस के बाद अंजलि उसे अपने घर बुलाने लगी और उस की आर्थिक मदद भी करने लगी. धीरेधीरे अंजलि ने खुशी को अपने जाल में फंसा लिया और उसे देह व्यापार के धंधे में उतार दिया. छापे वाली रात अंजलि ने ही सौदा कर खुशी को सीमा के घर भेजा था. जहां वह पकड़ी गई. उस समय वह कमरे में ग्राहक के इंतजार में बैठी थी.

पुलिस छापे के दौरान पकड़ी गई विविता भी बर्रा 4 में रहती थी. उस का शौहर साजिद अली शराबी था. वह विविता को मारतापीटता था. विविता पति से परेशान थी और कहीं नौकरी कर अपना गुजरबसर करना चाहती थी. एक रोज सीटीआई टैंपो स्टैंड पर विविता की बातचीत अंजलि से हुई तो उस ने उसे नौकरी दिलाने का भरोसा दिलाया.

एक सप्ताह बाद अंजलि उसे नौकरी दिलाने के बहाने लखनऊ ले गई. वहां उसने एक जानेमाने सफेदपोश नेता के साथ विविता का सौदा कर दिया. विविता को जिस्म के बदले नोट मिले तो वह इसी धंधे में रम गई. पुलिस छापे वाली रात अंजलि ने ही विविता के जिस्म का सौदा तय कर ग्राहक महेश के साथ सीमा के मकान पर भेजा था, जहां दोनों रंगे हाथों पकड़े गए थे.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई मंतसा जवाहर नगर निवासी अली अहमद की पत्नी थी. उस के शौहर ने उसे तलाक दे कर दूसरा निकाह कर लिया था. मंतसा ने कुछ रुपए जोड़ कर सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन उसे यह काम रास नहीं आया. उस ने एक रिश्तेदार से कर्ज लिया तो वह रिश्तेदार उस के पीछे पड़ गया. कर्ज के बदले उस ने मंतसा को अपनी हवस का शिकार बनाया.

वह रिश्तेदार बड़ा चलाक निकला. उस ने खुद तो हवस पूरी कर ली, अब वह उस का सौदा दोस्तों से भी करने लगा. मंतसा जवान और खूबसूरत थी. उसे ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर उस के पास जगह नहीं थी. इसी बीच उसे पता चला कि साकेत नगर में रहने वाली सीमा तिवारी सैक्स रैकेट चलाती है.

मंतसा ने सीमा से मुलाकात की और अपनी मजबूरी बताई. मजबूरी का फायदा उठा कर सीमा तिवारी ने मंतसा को अपने रैकेट में शामिल कर लिया. छापे वाली रात सीमा ने मंतसा के जिस्म का सौदा व्यापारी शैलेंद्र के साथ किया था. पुलिस रेड में वे दोनों रंगेहाथों पकड़े गए थे.

पुलिस छापे में पकड़ा गया महेश व्यापारी है. उस का प्लास्टिक का व्यवसाय है. वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा भाग अय्याशी और शराब में खर्च कर देता था. शादीशुदा होते हुए भी वह दूसरी औरतों की बाहों में सुख खोजता था. उस की अय्याशी से उस की पत्नी बेहद परेशान थी. उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन पति सुधरने के बजाय उलटे उस की पिटाई कर देता था.

एक रोज महेश को पता चला कि बर्रा-2 में रहने वाली अंजलि लड़कियां भी उपलब्ध कराती है और जगह भी. यह पता चलते ही महेश ने अंजलि से मुलाकात की और अच्छी लड़की के बदले मुंहमांगी रकम देने को कहा. अंजलि ने उसे जगह और युवती उपलब्ध करा दी.

इस के बाद वह अंजलि का ग्राहक बन गया. छापे वाली रात अंजलि ने ही महेश से रकम तय करने के लिए विविता को उस के साथ सीमा तिवारी के अड्डे पर भेजा था. जहां महेश, विविता के साथ रंगेहाथ पकड़ा गया था.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ा गया शैलेंद्र भी बर्रा में ही रहता था और महेश का दोस्त था. दोनों का व्यापार भी एक था. दोनों साथसाथ शराब पीते थे और अय्याशी करते थे. छापे वाली रात महेश ही शैलेंद्र को सीमा के अड्डे पर ले गया था. सीमा ने मंतसा को दिखा कर उस का सौदा शैलेंद्र से किया था. चंद्रेश तिवारी को पुलिस ने निगरानी करते पकड़ा था.

सीमा की सहयोगी अंजलि को पकड़ने के लिए पुलिस ने बर्रा स्थित उस के किराए वाले मकान पर छापा मारा लेकिन वह पकड़ी नहीं जा सकी. पुलिस का कहना है कि जब वह पकड़ी जाएगी, तब उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई की जाएगी.

12 अप्रैल, 2019 को थाना किदवई नगर पुलिस ने देह व्यापार में पकड़ी गई सीमा तिवारी, विविता, मंतसा, खुशी तथा ग्राहक महेश, शैलेंद्र व दलाल चंद्रेश तिवारी को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां बेटे ने खेला पशु व्यापारी की मौत का खेल

रामचंद्र छाबड़ा का गाय भैंस खरीद फरोख्त का कारोबार था. 70 वर्षीय रामचंद्र यह कारोबार पिछले 40 वर्षों से कर रहे थे. उम्र बढ़ने के साथ जब शरीर कमजोर होने लगा तो उन्होंने अपने भतीजे कुलदीप छाबड़ा को अपने कारोबार का साझीदार बना लिया.

दोनों मिल कर यह धंधा करने लगे. रामचंद्र छाबड़ा  जालंधर शहर के न्यू शीतल नगर में रहते थे जबकि उन का भतीजा कुलदीप वहां से कुछ दूर स्थित डीएवी कालेज के सामने स्थित फ्रैंड्स कालोनी में रहता था.

तायाभतीजे दोनों गांवगांव घूम कर अच्छी नस्ल के सस्ते पशु खरीदते थे और फिर उन्हें अपनी डेयरी में कुछ दिन रखने के बाद महंगे दामों पर बेच देते थे. इस काम में उन्हें अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था. उन्होंने लिदडा गांव में दूध की एक डेयरी भी बना रखी थी. खरीदा हुआ पशु जब तक बिक नहीं जाता था, उसे डेयरी में अन्य पशुओं के साथ रखा जाता था. रामचंद्र की डेयरी का दूध पूरे शहर में सप्लाई होता था.

पशुओं की खरीदफरोख्त का काम अधिकतर रामचंद्र ही संभालते थे जबकि डेयरी व अन्य लेनदेन के मामले कुलदीप देखा करता था. इन सब कामों के अलावा रामचंद्र ने अपना लाखों रुपया जरूरतमंद लोगों को मामूली ब्याज पर भी दे रखा था, जिस की वसूली के लिए वे गांव गांव जाया करते थे.

4 अक्तूबर, 2018 की सुबह करीब 11 बजे रामचंद्र अपने भतीजे कुलदीप को यह बता कर घर से निकले कि वह पैसों की वसूली के लिए जा रहे हैं और दोपहर तक लौट आएंगे. वह अपनी स्कूटी नंबर पीबी 08 डीएच-3465 पर गए थे. लेकिन वह देर रात तक घर नहीं लौटे. उन का फोन नंबर मिलाया तो वह भी बंद था.

उन की स्कूटी का भी कोई पता नहीं चला. ऐसे में कुलदीप और परिवार के अन्य लोगों का चिंतित होना लाजमी था. कुलदीप और परिवार के लोग उन्हें रात में ही ढूंढने के लिए निकल पड़े. पूरी रात और अगला दिन तलाश करने पर भी रामचंद्र का कहीं कोई पता नहीं चला.

रामचंद्र को कहां ढूंढा जाए, परिजनों के सामने यह बड़ी समस्या थी. रामचंद्र को किस गांव के किस आदमी से पैसे लेने थे, यह बात कुलदीप को भी पता नहीं थी. काफी तलाश करने के बाद भी जब रामचंद्र के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के पोते संजय छाबड़ा ने देर रात थाना डिविजन-1 में रामचंद्र की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.

रामचंद्र मिलनसार और समाजसेवी इंसान थे. उन की पुलिस प्रशासन और शहर में काफी इज्जत थी, सो पुलिस बड़ी तत्परता से उन की तलाश में जुट गई. पुलिस के साथसाथ रामचंद्र के भाईभतीजे और पोते भी अपने स्तर पर उन की तलाश में जुटे थे. उधार की डायरी से कुछ लोगों के नाम देख कर उन के गांव जा कर भी पता किया गया, पर कोई सुराग नहीं मिला.

उधार की डायरी में एक नाम रणजीत कौर का भी था, जो पतारा के गांव जोहला की रहने वाली थी. रामचंद्र को रणजीत कौर से करीब 75 हजार रुपए लेने थे, जिन्हें देने में वह आनाकानी कर रही थी.

कुलदीप ने रणजीत कौर के गांव जा कर उस से भी रामचंद्र के बारे में पता किया, पर रणजीत कौर ने साफ कह दिया कि रामचंद्र उस के यहां नहीं आए थे.

कुलदीप को उस की बातें संदेहास्पद लगीं. बहरहाल उस रात कुलदीप और संजय अपने घर वापिस लौट आए. लेकिन अगली सुबह वे दोबारा जोहला गांव गए तो गांव में गुरुद्वारा साहेब के पास एक किराने की दुकान के पास उन्हें रामचंद्र की स्कूटी लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. पास में ही रणजीत कौर का मकान था.

अब इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया था कि रणजीत कौर ने उन से झूठ बोला था.  रामचंद्र अवश्य ही रणजीत कौर के पास आए थे. उस ने झूठ क्यों बोला इस का पता करने के लिए कुलदीप और संजय उस के घर पहुंचे और रामचंद्र के बारे में पूछा. पर इस बार रणजीत कौर उन के साथ बदतमीजी से पेश आई. रणजीत कौर ने उन से यह भी कहा कि रामचंद्र का उस के पास कोई पैसा नहीं है. उस ने सारे पैसे चुका दिए हैं.

कुलदीप ने जब जोहला गांव के कुछ लोगों से रामचंद्र के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि रामचंद्र को कल दोपहर में रणजीत कौर के घर देखा गया था. उस के बाद उन की स्कूटी गुरुद्वारे के पास खड़ी मिली थी. अब यह बात पक्के तौर पर साबित हो गई थी कि रामचंद्र रणजीत कौर के घर ही अपने पैसे लेने आए थे और वहीं से वह गायब हो गए थे.

जबकि रणजीत कौर इस मामले में कुछ भी बताने को तैयार नहीं थी. अत: कुलदीप ने और देर करना उचित नहीं समझा और जालंधर देहात के थाना पतारा में जा कर एसओ सतपाल सिंह सिद्धू को पूरी बात बताई. साथ ही शंका भी व्यक्त की कि हो न हो रणजीत कौर ने ही रुपयों की खातिर उस के ताया रामचंद्र को कहीं गायब करा दिया हो.

कुलदीप की शिकायत के बाद सतपाल सिंह ने एसआई मेजर सिंह, सुखराज सिंह, हवलदार मनोहर लाल, कांस्टेबल जसपाल सिंह, जोबन, प्रीत सिंह और दीपक कुमार की एक टीम बना कर रामचंद्र की तलाश में भेज दी. वह स्वयं रणजीत कौर से पूछताछ करने के लिए उस के गांव पहुंचे.

हर बार की तरह इस बार भी रणजीत कौर ने यही जवाब दिया कि रामचंद्र उस के घर नहीं आए थे. इस पर एसआई सतपाल सिंह ने रामचंद्र के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक करवाई तो उन की लास्ट लोकेशन जोहला गांव में रणजीत कौर के घर के आसपास की मिली.

पुलिस के सामने यह एक बड़ी समस्या थी कि रणजीत कौर रामचंद्र के वहां आने की बात से साफ इनकार कर रही थी. पुलिस ने रंजीत कौर के घर के पास वाली किराने की दुकान और उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर चैक की.

फुटेज में रामचंद्र रणजीत कौर के साथ उस के घर के अंदर जाते हुए साफसाफ दिखाई दे रहे थे. वह घर के अंदर तो गए थे पर बाहर लौट कर नहीं आए थे. अब रणजीत कौर के मुकरने का सवाल ही नहीं था, पर फिर भी वह अपनी इस बात पर डटी रही कि रामचंद्र उस के घर नहीं आए थे.

आखिर मजबूरन पुलिस रणजीत कौर को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. थाने पहुंच कर लेडी हवलदार सुरजीत कौर ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो रणजीत कौर टूट गई. उस ने बताया कि रामचंद्र की हत्या उस ने अपने एक साथी मनजिंदर सिंह के साथ मिल कर की थी.

रामचंद्र की हत्या करने के बाद उस की लाश को जला दिया गया था. ताकि कोई सबूत बाकी ना बचे. रणजीत कौर ने हत्या में साथ देने वाले जिस दूसरे आरोपी का नाम बताया था, वह पंजाब पुलिस का सस्पैंड कांस्टेबल मनजिंदर सिंह था.

मनजिंदर सिंह साल 2012 में बतौर कांस्टेबल पंजाब पुलिस में भरती हुआ था और उस की पोस्टिंग देहात क्षेत्र के थाने में थी. लेकिन कुछ महीने पहले किसी आपराधिक मामले में उस पर केस दर्ज हो जाने की वजह से उसे नौकरी से सस्पैंड कर दिया गया था. तब से वह सस्पैंड ही चल रहा था.

मनजिंदर तरनतारन का रहने वाला था और रणजीत कौर के संपर्क में था. कुछ समय पहले वह उसी के घर के पास किराए पर रह चुका था. अब तक की जांच में यह बात सामने आई थी कि रामचंद्र ने रणजीत कौर को पशु बेचे थे, जिस के 75 हजार रुपए रणजीत कौर पर उधार थे.

काफी दिन बाद भी जब रुपए नहीं मिले तो वह 4 अक्तूबर को रणजीत कौर के घर पहुंचे. उस ने रुपए देने में आनाकानी शुरू कर दी. बाद में रणजीत कौर ने रामचंद्र को अपने घर के अंदर बुला लिया. इस के बाद उस ने अपने पड़ोस में रहने वाले मनजिंदर को बुलाया और दोनों ने मिल कर रामचंद्र की गला दबा कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद उन के शव को घर की तीसरी मंजिल पर ले जाया गया. वहां शव को एक चारपाई पर रख कर ऊपर से कुछ कपड़े डाले और जला दिया और राख अपने खेतों में बिखेर दी थी. अधजले शव को वहीं छत पर पड़ी हुई ईंटों के पीछे छिपा दिया गया.

रणजीत कौर के अनुसार मनजिंदर सिंह की यह योजना थी कि बाद में मौका देख कर वह शव को वहां से निकाल कर कहीं ले जा कर खुर्दबुर्द कर देंगे. रणजीत कौर की निशानदेही पर पुलिस ने अधजला शव भी बरामद करा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस का डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल सुरक्षित रखवा लिए. इस के अलावा पुलिस ने सबूत के तौर पर अधजले कपड़े, अधजली लकडि़यां भी बरामद कर लीं.

रामचंद्र की जेब में उन के कारोबार से संबंधित एक पाकेट डायरी हमेशा रहती थी. वह डायरी पुलिस बरामद नहीं कर पाई थी. रामचंद्र के भतीजे कुलदीप छाबड़ा ने बताया कि उन के ताया ने कभी अपने पास रुपए रखने के लिए पर्स नहीं रखा था. वह अपने कागज और पैसे तक लिफाफे में रखते थे.

रणजीत कौर की निशानदेही पर उसी दिन गांव से मनजिंदर सिंह को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया.

लेकिन मनजिंदर ने खुद को बेकसूर बताया. पुलिस ने रणजीत कौर और मनजिंदर सिंह को रामचंद की हत्या करने और लाश छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जांच की तो रणजीत कौर के घर के पास लगे सीसीटीवी में मनजिंदर की फोटो नहीं दिखी. पुलिस इस बात से हैरान थी कि दूसरा आरोपी मनजिंदर सिंह कैमरे में कैद होने से कैसे बच गया.

इस पर रणजीत कौर ने बताया कि मनजिंदर सिंह को यह बात पता थी कि घर के सामने सीसीटीवी कैमरा लगा है. इसलिए वह कैमरे से बचने के लिए घर के पीछे की दीवार फांद कर उस के घर में दाखिल हुआ था.

इस मामले में नया मोड़ उस समय आया जब मनजिंदर से अकेले में हत्या के बारे में पूछताछ की गई. उस ने बताया कि घटना वाले दिन वह उस गांव से कोसों दूर कहीं और था. पुलिस ने मनजिंदर के बयान को क्रौस चैक किया तो पता चला कि वह सच कह रहा था.

उस के फोन की लोकेशन भी घटनास्थल से मीलों दूर थी. इसीलिए वह सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी नहीं आया था. इतना ही नहीं पुलिस ने रणजीत कौर द्वारा बताई गई उस दीवार को भी देखा, रणजीत कौर के अनुसार जिसे फांद कर मनजिंदर रणजीत कौर के घर आया था. छानबीन में उस की यह बात भी गलत साबित हुई.

पुलिस का मार्गदर्शन करते हुए मनजिंदर सिंह ने बताया कि हो सकता है रामचंद्र की हत्या रणजीत कौर और उस के बेटे हरजाप सिंह उर्फ जापा ने की हो. जापा नशे का आदि था. इस नई जानकारी के साथ पुलिस ने जब रणजीत कौर से दोबारा पूछताछ की तो इस बार वह सब सच बोल गई. उस ने रामचंद्र की हत्या में अपने बेटे का नाम उजागर कर दिया.

पुलिस ने रामचंद्र छाबड़ा हत्याकांड की पुन: जांच की तो पाया कि सस्पेंड सिपाही मनजिंदर सिंह का इस हत्याकांड से कोई लेनादेना नहीं था. इसलिए उसे इस केस से निकाल दिया गया. पता चला कि रणजीत कौर इस मामले में मनजिंदर को फंसा कर अपने बेटे हरजाप को बचाना चाहती थी.

पुलिस जांच में यह भी स्पष्ट हो गया है कि रणजीत कौर का 20 वर्षीय बेटा हरजाप सिंह नशे का आदि था. रणजीत कौर के रामचंद्र के साथ नाजायज संबंध थे, इसीलिए वह उसे रुपया उधार दे दिया करता था.

जांच में पता चला कि घटना वाले दिन 4 अक्तूबर, 2018 को रामचंद्र और रणजीत कौर घर में अकेले थे. ऊपर से अचानक रणजीत कौर का बेटा हरजाप घर आ गया और उस ने अपनी मां को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया.

गुस्से में आ कर उस ने लोहे की रौड रामचंद्र के सिर पर दे मारी. रौड के एक ही वार से रामचंद्र खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर पड़े. अपने बेटे को इस मामले में फंसते देख कर रणजीत कौर ने रामचंद्र की गला दबा कर हत्या कर दी.

उस के बाद मांबेटे ने मिल कर रामचंद्र की लाश को तीसरी मंजिल पर ले जा कर चारपाई पर रख दिया. फिर पुराने कपड़ों और लकड़ी के पीढ़े आदि को तोड़ कर चारपाई पर डाला और आग लगा दी. उस की अधजली लाश को मांबेटे ने वहीं छत पर पड़ी ईंटों के बीच छिपा दिया था.

रामचंद्र की लाश का जो हिस्सा पूरी तरह से जल गया था उस की राख और हड्डियां मांबेटे ने एक पौलीथिन थैली में डाल कर खेतों में फेंक दी थी.

नई जांच और रणजीत कौर के इस बयान के आधार पर पुलिस ने 7 अक्तूबर को हरजाप को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर के उसे 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. मांबेटे की निशानदेही पर पुलिस ने लोहे की रौड भी बरामद कर ली. मृतक की डायरी जिसे वह अपनी जेब में रखता था और उन का फोन पुलिस को नहीं मिल सके. आरोपियों ने बताया कि फोन और डायरी भी उन्होंने जला दी थी.

लंबी पूछताछ और पुलिस काररवाई पूरी करने के बाद जब रिमांड अवधि समाप्त हो गई तो मांबेटे को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से अदालत के आदेश पर पुलिस ने उन्हें जिला जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक किसी की भी जमानत नहीं हुई थी. पुलिस ने जांच के बाद केस से सस्पैंड कांस्टेबल मनजिंदर सिंह का नाम हटा दिया था. पुलिस ने जिस अधजली लाश को डीएनए टेस्ट के लिए भेजा था, उस की जांच से यह बात स्पष्ट हो गई कि वह शव रामचंद्र का ही था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डाक्टर कामदेव : भोपाल का नर्स यौन शोषण केस

बात 26 अक्तूबर, 2018 की है. भोपाल (Bhopal) के शाहपुरा (Shahpura) के टीआई जितेंद्र वर्मा अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी 29- 30 साल की एक महिला उन के पास आई. उस महिला ने अपना नाम अल्पना बताया. उस ने बताया कि वह मूलरूप से केरल की रहने वाली है और पिछले 4 महीनों से शाहपुरा के लाहोटी हौस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर ( Lahoti Hospital And Research Center) में नर्स के रूप में काम कर रही है. इतना कह कर वह चुप हो गई और इधरउधर देखने लगी.

टीआई वर्मा समझ गए कि अल्पना को परेशानी क्या है, इसलिए उन्होंने महिला आरक्षक सुनीता को बुलाया. उन्होंने सुनीता से कह दिया कि वह अल्पना की पूरी समस्या सुने. सुनीता अल्पना को अपने साथ दूसरे कमरे में ले गईं.

इस के बाद अल्पना ने आरक्षक सुनीता को बताया कि डा. कपिल लाहोटी (Dr. Kapil Lahoti) उस का यौन शोषण कर रहे थे. उस के इस कृत्य से वह गर्भवती हो गई तो डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा लाहोटी ने साजिश कर के उस का गर्भपात करवा दिया.

अल्पना ने बताया कि संबंध बनाने से ले कर गर्भ गिराने तक डा. कपिल ने उसे बड़े बड़े सपने दिखाए थे. यहां तक कि गर्भ गिराने के लिए उन्होंने दिखावे के लिए क्षेत्र के आर्यसमाज मंदिर में उस के साथ शादी भी रचा ली थी. उस की बातों में आ कर जैसे ही उस ने गर्भपात कराया तो डा. कपिल और उस की पत्नी सीमा के तेवर बदल गए.

डा. सीमा लाहोटी, जो कल तक उसे अपनी छोटी बहन कहती थी, अब उसे डायन, वेश्या आदि कहने लगी है. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे जल्द से जल्द भोपाल छोड़ने की धमकी भी दी है.

आरक्षक सुनीता ने अल्पना की पूरी बात सुनने के बाद सारी जानकारी टीआई जितेंद्र वर्मा को दे दी, जिस पर उन्होंने अल्पना का मैडिकल करवाने के बाद एसपी (पश्चिम) राहुल कुमार लोढ़ा और सीएसपी दिशेष अग्रवाल को भी मामले की जानकारी दे दी. इस के बाद लाहोटी अस्पताल के संचालक डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा लाहोटी के खिलाफ बलात्कार सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जांच एसआई जयपाल सिंह बिल्लोरे को सौंप दी.

डा. कपिल का कृत्य आया सामने

दौलत का नशा भी किसी दूसरे नशे से कम नहीं होता, इसलिए चेहरों पर बेफिक्री लिए थाने आए डा. कपिल और डा. सीमा पहले तो खुद को मेहमान के तौर पर पेश करते रहे. लेकिन खुद को निर्दोष बताने वाले दंपति से जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो परत दर परत दोनों के कारनामे सामने आते गए. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने भी पतिपत्नी को उसी दिन शाम को गिरफ्तार कर लिया. दूसरे दिन सुबह डा. कपिल और उस की पत्नी की गिरफ्तारी की खबर लोगों में फैली तो लाहोटी क्लीनिक में काम कर चुकी कई पूर्व नर्सों ने राहत की सांस ली. क्योंकि अल्पना से पहले वह कई नर्सों के साथ संबंध बना चुका था. इस काम में उस की पत्नी डा. सीमा भी पति की मदद करती थी.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने डा. लाहोटी के अस्पताल में छापेमारी कर उस के केबिन से कई आपत्तिजनक चीजें बरामद कीं. डाक्टर दंपति से पूछताछ के बाद नर्स अल्पना का यौनशोषण, फरजी शादी करने आदि की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

अल्पना मूलरूप से केरल की रहने वाली थी. इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद वह करीब 5 साल पहले भोपाल आई थी. चूंकि केरल की अनेक युवतियां भोपाल स्थित तमाम नर्सिंग होम्स व अस्पतालों में नौकरी कर रही हैं, इसलिए भोपाल में उसे कोई परेशानी नहीं हुई.

दक्षिण भारतीय होने के कारण उस का रंग जरूर सांवला था, लेकिन उस के काले घने बाल और मोटी मोटी झील सी आंखों के अलावा उस का शरीर संतुलित और आकर्षक था. इस के अलावा वह दयावान भी थी. भोपाल में नर्स का कोर्स पूरा करने के बाद करीब 5 महीने पहले अपनी नौकरी के सिलसिले में वह लाहोटी अस्पताल के संचालक डा. कपिल लाहोटी के पास पहुंची थी.

डा. कपिल ने अल्पना को जब पहली बार देखा तो उस की आकर्षक नैननक्श और कदकाठी को देखता ही रह गया. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देख रहा था तो उस की तीर जैसी नजरें अल्पना को अपने सीने में उतरती सी महसूस हुईं. डा. कपिल का इशारा पा कर उस ने सीट पर बैठने से पहले अपना दुपट्टा संभाला और नजरें झुका कर बैठ गई.

‘‘केरल से हो?’’ डा. कपिल लाहोटी ने उस से पहला प्रश्न किया.

‘‘यस.’’ अल्पना बोली.

‘‘बताओ, मैं ने कैसे जाना?’’ डा. कपिल ने बात को लंबी खींचने के मकसद से पूछा.

‘‘आई डोंट नो सर, मैं कैसे कह सकती हूं.’’ वह बोली.

‘‘अरे भाई, तुम्हारे घने काले बाल, बड़ीबड़ी आंखें और ये भरा हुआ बदन देख कर कोई भी कह सकता है कि तुम केरल में पैदा हुई होगी.’’ ऐसा कहते हुए डा. कपिल की नजरें लगातार अल्पना के चेहरे पर ही टिकी हुई थीं. इस से अल्पना अपने अंदर एक अजीब सी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. यह बात डा. लाहोटी भांप कर बोले, ‘‘काफी शरमीली हो. लेकिन तुम जानती हो कि हमारे इस प्रोफेशन में शर्म वाला काम नहीं होता.’’

‘‘यस सर, जानती हूं.’’

‘‘गुड. कल से काम पर आ जाओ. शुरू में तुम्हारी ड्यूटी मौर्निंग में होगी. पर बाद में हम दोनों अपने हिसाब से तुम्हारी शिफ्ट फिक्स कर लेंगे.’’ कहते हुए डा. लाहोटी ने उसे नौकरी मिलने की बधाई देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो अल्पना ने भी औपचारिकतावश उस से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया, जिसे लाहोटी काफी देर तक थामे रहा.

फंस गई मछली जाल में

दूसरे दिन से अल्पना लाहोटी अस्पताल में मन लगा कर अपना काम करने लगी. इस दौरान उसे पता चला कि डा. कपिल लाहोटी मूलरूप से पास के शहर विदिशा का निवासी है. उस ने मुंबई से एमबीबीएस की पढ़ाई की थी, उस की पत्नी डा. सीमा भी महाराष्ट्र की रहने वाली है. लोगों से अल्पना को यह भी पता चला कि डा. सीमा कपिल की क्लासमेट थी और दोनों ने लवमैरिज की थी.

इन सब बातों से अल्पना को कोई मतलब नहीं था. वह अपने काम से काम रखती थी. डा. सीमा का व्यवहार उस के प्रति सामान्य था लेकिन कपिल उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान दिखाई देता था. हर काम में उस की तारीफ करता था और जल्द ही अस्पताल में उसे बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कहता था. लेकिन अल्पना को डा. कपिल के सामने जाने में डर लगता था क्योंकि वह जब भी उस के सामने खड़ी होती, कपिल उस के सीने पर अपनी नजरें जमाए रहता था.

यह सब देख कर अल्पना दूसरे अस्पताल में नौकरी खोजने की सोचने लगी थी, लेकिन कपिल ने उसे इतना मौका नहीं दिया. अल्पना को नौकरी करते हुए एक महीना ही हुआ था.  इस दौरान एक रोज त्यौहार होने के कारण अस्पताल में मरीजों की भीड़ काफी कम थी. इस के अलावा अस्पताल का ज्यादातर स्टाफ भी छुट्टी पर था.

उस रोज अस्पताल आने के बाद डा. कपिल ने उसे अपने केबिन में बुलाया और काम के बहाने परदे के पीछे वहां ले गया, जहां वह मरीजों की जांच करता था. वहां पर डा. कपिल ने उसे दबोच लिया और पागलों की तरह उसे प्यार करने लगा. अल्पना ने बचने की काफी कोशिश की लेकिन उस ने अल्पना को मरीज की जांच करने वाली टेबल पर गिरा कर उस के साथ बलात्कार कर दिया.

अल्पना के अनुसार इस घटना के बाद उस ने उसे धमकी दी कि तुम भोपाल में अकेली रहती हो. इस बात की जानकारी किसी को दी तो तुम्हें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि राजनीति में उस के ऊपर तक संबंध हैं, पुलिस भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकती.

इस घटना के कुछ समय बाद ही सीमा अस्पताल आई और उस रोज उस ने जिस तरह से अल्पना की तरफ मुसकरा कर देखा, उस से वह समझ गई कि सीमा को पहले ही इस बात की जानकारी थी कि आज उस के साथ क्या होने वाला है.

इस घटना से अल्पना बुरी तरह डर गई थी. वह नौकरी छोड़ना चाहती थी, लेकिन कपिल उसे धमकी देने लगा कि वह अपने अस्पताल के अलावा भोपाल में कहीं और काम नहीं करने देगा. इस दौरान वह उस का लगातार बलात्कार करता रहा. उसे जब भी मौका मिलता, वह उसे अपने केबिन में बुला लेता, जिस के चलते 2 महीने बाद वह गर्भवती हो गई.

डा. कपिल ने चली नई चाल

अल्पना ने यह बात कपिल को बताई तो वह कुछ देर तक चुप रहा फिर बोला, ‘‘गुड, मैं खुद यही चाहता था. क्योंकि सीमा को मैं तलाक दे चुका हूं, वह केवल दिखावे के लिए मेरे साथ रहती है. अब तुम मेरी पत्नी और इस अस्पताल की मालकिन बनोगी.’’

अल्पना को उस की बातों पर भरोसा नहीं था. लेकिन उस वक्त भरोसा करना पड़ा, जब 13 सितंबर, 2018 को डा. कपिल ने आर्यसमाज मंदिर में उस के साथ शादी कर ली. अल्पना को भरोसा था कि शादी के बाद कपिल उसे अपने घर ले जाएगा. लेकिन उस ने कुछ दिन तक अलग रहने की बात कह कर उसे दानिश कुंज स्थित उस के कमरे पर ही छोड़ दिया और रात में आ कर सुहागरात मनाने की बात कही.

अल्पना ने पुलिस को बताया कि कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा. लेकिन इस के बाद सीमा का उस के प्रति बदला व्यवहार देख कर वह समझ गई कि उस से शादी करना सीमा और कपिल की चाल थी. यह बात उस समय साफ हो गई जब कुछ दिन बाद ही कपिल उस का गर्भ गिराने के लिए कहने लगा. लेकिन जब उस ने मना किया तो 1-2 बार सीमा ने उस से इशारे में कपिल की बात मान लेने को कहा. इस से वह समझ गई कि उस के साथ शादी भी एक धोखा थी, जिस में सीमा बराबर की शरीक रही.

पत्नी भी बनी पाप की भागीदार

इस दौरान अल्पना को इस बात की जानकारी भी लग चुकी थी कि उस से पहले भी कपिल अपने अस्पताल में काम करने वाली कुछ महिला कर्मचारियों का शोषण इसी तरह कर चुका था. इसलिए अल्पना कपिल के चंगुल से निकलने के लिए छटपटाने लगी.

यह बात कपिल और सीमा समझ गए, जिस के चलते 9 अक्तूबर को कपिल और सीमा लाहोटी उस के कमरे पर आए और डराधमका कर उसे गर्भपात की दवा खिला दी, जिस से उस का गर्भपात हो गया. कुछ देर बाद अल्पना की हालत बिगड़ी तो वे लोग पहले उस का इलाज अपने अस्पताल में करते रहे. जब उस की हालत में सुधार नहीं हुआ तो वे उसे अपने जानने वाले किसी दूसरे अस्पताल में ले गए.

वहां भरती रह कर उस का इलाज चला. स्वस्थ हो कर जब अल्पना वापस अपने कमरे पर आई तो कपिल और सीमा दोनों उस पर दबाव डालने लगे कि वह हमेशा के लिए भोपाल छोड़ कर चली जाए. दोनों ने ऐसा न करने पर उसे अगवा कर हत्या करवाने के बाद जंगल में शव फेंक देने की धमकी भी दी.

जांच अधिकारी एसआई जयपाल सिंह बिल्लोरे के अनुसार, इस मामले में डा. कपिल के अपराध में उस की पत्नी डा. सीमा बराबर की शरीक थी.

दोनों को उम्मीद थी कि उन की धमकी से डर कर अल्पना भोपाल छोड़ कर हमेशा के लिए कहीं और चली जाएगी. लेकिन अल्पना ने अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ कानून का दरवाजा खटखटाया, जिस के चलते आरोपियों के खिलाफ काररवाई की गई. पुलिस ने डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अल्पना परिवर्तित नाम है

नफरत की आग : महिला वकील की बेटी की निर्मम हत्या

बात 18 फरवरी, 2019 की है. शाम करीब 5 बजे रमाशंकर गुप्ता एडवोकेट पदमा गुप्ता  के केशव नगर स्थित घर पहुंचे तो उन के मकान का मेनगेट बंद था. गेट के बाहर 2 युवक खड़े थे. दोनों आपस में बतिया रहे थे. रमाशंकर ने उन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम क्रमश: मोहित और शुभम बताए.

उन्होंने बताया कि वे दोनों औनलाइन शौपिंग कुरियर डिलिवरी बौय हैं. स्नेह गुप्ता ने औनलाइन कोई सामान बुक कराया था, वह उस सामान को देने आए हैं. लेकिन आवाज देने पर वह न तो गेट खोल रही हैं और न ही फोन रिसीव कर रही हैं.

रमाशंकर गुप्ता स्नेह के मौसा थे. वह उसी से मिलने आए थे. कुरियर बौय मोहित की बात सुन कर रमाशंकर का माथा ठनका. उन्होंने भी स्नेह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ. इस के बाद रमाशंकर ने स्नेह की मां एडवोकेट पदमा गुप्ता को फोन किया. वह उस समय कचहरी में थीं. पदमा गुप्ता ने उन्हें बताया कि स्नेह घर पर ही है. शायद वह सो गई होगी, जिस की वजह से काल रिसीव नहीं कर रही होगी.

रमाशंकर गुप्ता ने किसी तरह गेट खोला और अंदर गए. उन्होंने स्नेह को कई आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मेनगेट से लगा बरामदा था. बरामदे में पदमा का पालतू पामेरियन कुत्ता टहल रहा था. 2 कमरों के दरवाजे भी खुले थे.

रमाशंकर स्नेह को खोजते हुए पीछे वाले कमरे में पहुंचे तो उन के मुंह से चीख निकल गई. स्नेह खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उस की सांसें चल रही थीं या थम गईं, कहना मुश्किल था. स्नेह की यह हालत देख कर कुरियर बौय मोहित व शुभम भी घर के अंदर पहुंच गए. कमरे में एक लड़की की लाश देख कर वह भी आश्चर्यचकित रह गए.

रमाशंकर ने पुलिस को खबर देने के लिए कई बार 100 नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया तो वह डिलिवरी बौय की मोटर साइकिल पर बैठ कर उस्मान पुलिस चौकी पहुंचे और उन्होंने वारदात की सूचना दी. चौकी से सूचना थाना नौबस्ता को दे दी गई. उस के बाद थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह पुलिस टीम के साथ डब्ल्यू ब्लौक केशव नगर स्थित एडवोकेट पदमा गुप्ता के घर पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी.

थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जहां 24 वर्षीय स्नेह खून से लथपथ पड़ी थी. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. स्नेह के पैर दुपट्टे से बंधे थे और दोनों हाथों की कलाइयां किसी तेजधार वाले हथियार से काटी गई थीं. सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से सिर फट गया था. गरदन को रेता गया था और चेहरे पर भी कट का निशान था.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने स्नेह के दुपट्टे से बंधे पैर खुलवाए फिर जीवित होने की आस में एंबुलैंस मंगवा कर तत्काल चकेरी स्थित कांशीराम ट्रामा सेंटर भिजवाया. लेकिन वहां डाक्टरों ने स्नेह को देखते ही मृत घोषित कर दिया था. थानाप्रभारी ने पदमा गुप्ता की बेटी की घर में घुस कर हत्या करने की जानकारी पुलिस के बड़े अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया.

इधर पदमा गुप्ता कचहरी से सीधे अपने साथियों के साथ कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंचीं और बेटी का शव देख कर गश खा कर गिर पड़ीं. महिला पुलिसकर्मी व उन के सहयोगी वकीलों ने उन्हें संभाला. होश आने पर वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

naubasta-advocate-padma-gupta

                                         रोती बिलखती एडवोकेट पदमा गुप्ता

चूंकि मामला एक वकील की जवान बेटी की हत्या का था. अत: सूचना पाते ही एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी अनंत देव ने मौके पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

सूचना पा कर आईजी आलोक सिंह अस्पताल पहुंचे और उन्होंने पदमा गुप्ता को धैर्य बंधाया. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि हत्यारा कितना भी पहुंच वाला क्यों न हो, बच नहीं पाएगा. इस के बाद आईजी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में खून ही खून फैला था. कमरे में अंदर रखी अलमारी खुली थी और सामान पलंग पर बिखरा पड़ा था. पालतू कुत्ता बरामदे से ले कर गेट तक चहलकदमी कर रहा था. वह डरासहमा नजर आ रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने अलमारी खुली होने व सामान बिखरे पड़े होने से अनुमान लगाया कि हत्या शायद लूट के इरादे से की गई होगी. शव के पास मृतका का मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने अपने पास सुरक्षित रख लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. टीम ने अलमारी व पलंग और कई जगह से फिंगरप्रिंट लिए. घटनास्थल के पास ही खून सनी एक ईंट पड़ी थी. इस ईंट से भी टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जांच हेतु ईंट को भी सुरक्षित कर लिया. टीम को वाशिंग मशीन पर रखा पानी से धुला एक चाकू मिला. इस धुले चाकू की जब टीम ने जांच की तो पुष्टि हुई कि उस पर लगा खून धोया जा चुका है. टीम ने चाकू को भी अपने पास सुरक्षित कर लिया.

खोजी कुतिया ‘जूली’ घटनास्थल को सूंघ कर भौंकते हुए पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी के घर जा घुसी. उस के घर के अंदर चक्कर काटने के बाद जूली वापस आ गई. पुलिस ने संदेश चतुर्वेदी से बात की लेकिन उन से हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी मृतका की मां पदमा गुप्ता से पूछताछ करना चाहते थे. अत: वह कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंच गए. वह बेटी के शव के पास बदहवास बैठी थीं. उन के आंसू थम नहीं रहे थे. उस समय उन की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन से कुछ पूछताछ की जा सके. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को इस बात का अंदेशा था कि कहीं वकील उग्र न हो जाएं, अत: उन्होंने पोस्टमार्टम हाउस पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दूसरे दिन 3 डाक्टरों के पैनल ने स्नेह का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ राकेशपति तिवारी, कांशीराम ट्रामा सेंटर के डा. अभिषेक शुक्ला और विधनू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डा. श्रवण कुमार शामिल रहे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर के पीछे भारी वस्तु के प्रहार करने, चाकू से गले पर वार करने के 3 निशान और चेहरे पर एक निशान मिला. इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस के दोनों हाथों की कलाइयां चाकू से काटी गई थीं. बताया कि स्नेह की मौत खून ज्यादा मात्रा में निकलने की वजह से हुई थी. वहीं दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइडें भी बना ली गईं.

महिला एडवोकेट की बेटी की हत्या का समाचार दैनिक समाचार पत्रों की सुर्खियां बना तो कानपुर कचहरी खुलते ही वकीलों में रोष छा गया. एडवोकेट पंकज कुमार सिंह, ताराचंद रुद्राक्ष, रतन अग्रवाल, टीनू शुक्ला, डी.एन. पाल, संजीव कनौजिया, शरद कुमार शुक्ला आदि अधिवक्ता भवन पर एकत्र हुए.

इस के बाद इन वकीलों ने हत्या के विरोध में न्यायिक काम ठप करा दिया. इस के बाद वकीलों ने एसएसपी कार्यालय के बाहर सड़क पर वाहन खड़े कर रास्ता बंद कर दिया, जिस से लंबा जाम लग गया.

एसएसपी अनंत देव ने सीओ (कोतवाली) राजेश पांडेय को प्रतिनिधि के रूप में वकीलों के पास भेजा. श्री पांडेय ने उग्र वकीलों को आश्वासन दिया कि स्नेह के हत्यारे जल्द ही पकड़ लिए जाएंगे. इस आश्वासन पर वकील शांत हुए.

कानपुर बार एसोसिएशन ने इस बात का भी फैसला लिया कि स्नेह के हत्यारोपियों की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा. अब तक पदमा गुप्ता सामान्य स्थिति में आ चुकी थीं. अत: एसपी (साउथ) रवीना त्यागी उन से पूछताछ करने उन के आवास पर पहुंचीं.

पूछताछ में पदमा गुप्ता ने बताया कि 18 फरवरी की सुबह सब कुछ सामान्य था. बेटी स्नेह ने खाना बनाया और उसे टिफिन लगा कर दिया. इस के बाद वह कोर्ट चली गईं. शाम सवा 5 बजे बहनोई रमाशंकर द्वारा ही उन्हें बेटी की हत्या के बारे में सूचना मिली.

‘‘आप की बेटी की हत्या किस ने की? आप को किसी पर शक है?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, मुझे 2-3 लोगों पर शक है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

‘‘किस पर?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी और उस के बेटे सूरज तथा मोहल्ले के शोहदे अन्नू अवस्थी पर.’’

‘‘वह कैसे?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

पदमा गुप्ता ने बताया, ‘‘संदेश चतुर्वेदी और उस का बेटा पिछले 3 महीने से उन के साथ विवाद कर रहे हैं. दोनों बापबेटे हर समय झगड़ा व मारपीट के लिए उतारू रहते हैं. इन लोगों ने सन 2012 में उन पर जानलेवा हमला भी करवाया था और मोहल्ले का शोहदा अन्नू अवस्थी उन की बेटी से छेड़छाड़ करता था. लोकलाज के कारण उस की शिकायत नहीं की. इन्हीं कारणों से इन लोगों पर शक है.’’

‘‘घर में क्या लूटपाट भी हुई?’’ एसपी रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी से कुछ गहने व मामूली नकदी गायब है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

पदमा गुप्ता से पूछताछ के बाद एसपी रवीना त्यागी ने स्नेह की हत्या के खुलासे के लिए एक विशेष टीम गठित की. इस टीम में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम व सिविल पुलिस के तेजतर्रार दरजन भर पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पदमा गुप्ता ने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी, उस के बेटे सूरज तथा एक अन्य युवक अन्नू अवस्थी को उठा लिया. पुलिस टीम को यह भी संदेह था कि किसी बेहद नजदीकी ने ही स्नेह की हत्या की है.

अत: पुलिस ने मृतका स्नेह के मौसा रमाशंकर को भी उठा लिया. क्योंकि रमाशंकर ही सब से करीबी रिश्तेदार थे और उन का स्नेह के घर आनाजाना था. दूसरे वह अचानक घटना वाले दिन स्नेह के घर पहुंचे भी थे.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर संदेश चतुर्वेदी ने पदमा गुप्ता से विवाद की बात तो स्वीकार की लेकिन हत्या करने या कराने से साफ इनकार कर दिया. पूछताछ और बौडी लैंग्वेज से पुलिस को भी लगा कि संदेश व उस के बेटे सूरज का स्नेह की हत्या में हाथ नहीं है. अत: इस हिदायत के साथ उन्हें छोड़ दिया कि जरूरत पड़ने पर उन्हें फिर से थाने आना पड़ सकता है.

शोहदे अन्नू अवस्थी से भी टीम ने सख्ती से पूछताछ की. अन्नू ने स्वीकार किया कि वह स्नेह से एकतरफा प्यार करता था. उस ने उस के साथ एकदो बार छेड़खानी भी की थी, पर हत्या जैसा जघन्य अपराध उस ने नहीं किया है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को चैक किया तो घटनास्थल वाले दिन उस की लोकेशन स्नेह के घर के आसपास की मिली. इस शक के आधार पर पुलिस टीम ने पुन: उस से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पुलिस किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजना चाहती, अत: अन्नू अवस्थी को भी हिदायत के साथ छोड़ दिया.

रमाशंकर गुप्ता, मृतका स्नेह का मौसा थे और वह बेहद करीबी रिश्तेदार भी थे. पुलिस ने जब उन से पूछा कि घटना वाले दिन वह अचानक स्नेह के घर क्यों और कैसे पहुंचे.

इस पर रमाशंकर ने बताया कि स्नेह ने उन से मोबाइल पर बतियाते हुए कहा था कि 20 फरवरी को उस के इंस्टीट्यूट में कोई कार्यक्रम है. उसे भी कार्यक्रम में हिस्सा लेना है, अत: कुछ पैसे चाहिए. मैं ने उसे पैसे देने का वादा कर लिया था.

18 फरवरी को वह रतनलाल नगर आए थे. यहीं उन्हें याद आया कि स्नेह ने उन से पैसे मांगे थे. इसलिए वह रतनलाल नगर से सीधा डब्ल्यू ब्लौक केशवनगर स्थित स्नेह के घर पहुंचे. वहां 2 युवक कुरियर लिए खड़े थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि वह काफी देर से गेट खटखटा रहे हैं. न तो दरवाजा खुल रहा है और न ही स्नेह फोन रिसीव कर रही है. इस के बाद जब वह घर में गए तो वहां स्नेह की लाश देखी.

रमाशंकर पुलिस की निगाह में संदिग्ध थे. इसलिए उन की सच्चाई जानने के लिए पुलिस टीम ने पदमा गुप्ता से उन के बारे में जानकारी ली. पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट देते हुए कहा कि वह उस की बहन का सुहाग है. समयसमय पर वह उन की मदद करते रहते हैं. स्नेह को वह बेटी जैसा प्यार करते थे. स्नेह भी उन से खूब हिलीमिली थी. वह उन से अकसर फोन पर बतियाती रहती थी.

पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट दी तो पुलिस ने भी रमाशंकर को छोड़ दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने कुरियर बौय मोहित और शुभम को उठाया. पुलिस को शक था कि कहीं वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाहर तो नहीं आ गए और तभी रमाशंकर के आ जाने पर उन्होंने कहानी बनाई हो.

पुलिस ने मोहित से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किदवईनगर में रहता है, जबकि उस का साथी शुभम यशोदा नगर में रहता है. स्नेह ने औनलाइन कोई सामान मंगाया था. उसी का पैकेट ले कर वह दोनों उस के घर गए थे. पैकेट पर स्नेह का मोबाइल नंबर लिखा था. उस नंबर को उस ने कई बार मिलाया. लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की.

वे दोनों जाने ही वाले थे कि रमाशंकर आ गए. उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. पुलिस को कुरियर बौय की बातों पर विश्वास हो गया तो दोनों कुरियर बौय की डिटेल्स ले कर उन्हें भी थाने से भेज दिया.

स्नेह के मोबाइल से पुलिस टीम को 10 संदिग्ध फोन नंबर मिले. जांच करने पर पता चला कि यह नंबर स्नेह के घर काम कर चुके राजमिस्त्री, मजदूर, टिन शेड डालने वाले लोगों के थे. पुलिस ने इन नंबरों पर बात की और एकएक को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

इन में से एक नंबर ऐसा था, जो बंद था. इस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया तो पता चला कि यह नंबर घटना वाली शाम से बंद है. लेकिन उस रोज उस नंबर से दूसरे एक नंबर पर बात हुई थी. इस नंबर को पुलिस ने ट्रैस किया तो पता चला कि यह नंबर दबौली निवासी अमित का है. पुलिस टीम अमित की तलाश में जुट गई.

आखिर टीम ने नाटकीय ढंग से अमित को धर दबोचा. थाना नौबस्ता ला कर जब अमित से सख्ती से पूछताछ की तो अमित टूट गया. उस ने बताया कि बंद मोबाइल नंबर जुबेर आलम का है, जो मेहरबान सिंह पुरवा में रहता है. रतनलाल नगर में उस की वैल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान है. जावेद ने उसे बताया कि उस ने स्नेह की हत्या कबाड़ी सुरेश वाल्मिकी की मदद से की थी.

अमित के बयान से पुलिस टीम की टेंशन दूर हो गई. अमित के सहयोग से पुलिस ने महादेव नगर निवासी सुरेश वाल्मिकी को पकड़ लिया. पुलिस ने उस के पास से सोने के 4 कंगन भी बरामद कर लिए, जो उस ने पदमा गुप्ता के यहां से चुराए थे.

इस के बाद पुलिस टीम ने जुबेर आलम के मेहरबान सिंह पुरवा स्थित किराए के मकान पर छापा मारा लेकिन वह वहां नहीं मिला. वहां पता चला कि जुबेर आलम मकान खाली कर मुरादाबाद में अपने किसी रिश्तेदार के घर चला गया है. अब जुबेर आलम को पकड़ने के लिए पुलिस टीम ने गहरा जाल बिछाया. साथ ही मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

7 मार्च, 2019 को प्रात: 8 बजे एक खास मुखबिर से पुलिस टीम को पता चला कि जुबेर आलम अपनी दुकान का सामान निकालने व उसे बेचने आया है. वह इस समय चिंटिल इंग्लिश मीडियम स्कूल के पास मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस वहां पहुंच गई और घेराबंदी कर उसे दबोच लिया.

थाने में जब उस का सामना सुरेश वाल्मिकी से हुआ तो वह सब समझ गया. फिर उस ने बिना किसी हीलाहवाली के पदमा गुप्ता की बेटी स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल लिया. जुबेर आलम ने चुराए गए जेवरों में से झुमका और एक अंगूठी दबौली के एक ज्वैलर्स के यहां बेची थी. पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से अंगूठी व झुमके बरामद कर लिए. साथ ही जुबेर के पास से 900 रुपए भी बरामद कर लिए.

चूंकि सुरेश और जुबेर आलम ने स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और उन से जेवर, नकदी भी बरामद हो गई थी, इसलिए पुलिस ने स्नेह की हत्या के जुर्म में जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को गिरफ्तार कर लिया.

abhiyukt-juber-or-suresh

            पुलिस हिरासत में अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी

यह जानकारी एसएसपी अनंतदेव तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को हुई तो दोनों अधिकारी थाने पहुंच गए और उन्होंने टीम की सराहना करते हुए 25 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की. फिर एसएसपी अनंतदेव ने प्रैस वार्ता कर इस चर्चित हत्याकांड का खुलासा पत्रकारों के समक्ष किया. पत्रकार वार्ता के दौरान अभियुक्तों ने स्नेह की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला केशवनगर पड़ता है. इसी मोहल्ले के डब्ल्यू ब्लौक में एडवोकेट पदमा गुप्ता अपनी बेटी स्नेह के साथ रहती थीं. यह उन का निजी मकान था. पदमा गुप्ता के पति राजकुमार गुप्ता अलग रहते हैं. दांपत्य जीवन में मनमुटाव के चलते उन्होंने पदमा को तलाक दे दिया था.

पदमा गुप्ता कानपुर कोर्ट में वकालत करती हैं. स्नेह की उम्र जब एक साल से भी कम थी, तभी उन के पति ने उन का साथ छोड़ दिया था.

पिता के प्यार से वंचित स्नेह की पदमा गुप्ता ने बड़े ही लाड़प्यार से परवरिश की थी. स्नेह बेहद खूबसूरत थी. पढ़ाई में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. इस के बाद उस ने पौलिटेक्निक में प्रवेश पा लिया था. वह महिला पौलिटेक्निक से फार्मेसी की पढ़ाई कर रही थी.

पदमा गुप्ता अपने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी से दुखी रहती थीं. वह और उस का बेटा सूरज हमेशा झगड़े पर उतारू रहते थे. पदमा गुप्ता मोहल्ले के अन्नू अवस्थी से भी परेशान थीं. पौलिटेक्निक आतेजाते वह स्नेह को परेशान करता था.

हालांकि स्नेह कड़े मिजाज की थी और वह अन्नू को पास नहीं फटकने देती थी. लेकिन अन्नू एकतरफा प्यार में पागल था, जिस से वह उस से छेड़छाड करने से बाज नहीं आता था. पदमा गुप्ता अन्नू को सबक तो सिखाना चाहती थीं, किंतु लोकलाज के कारण चुप बैठ जाती थीं.

पदमा गुप्ता की बहन जरौली निवासी रमाशंकर गुप्ता को ब्याही थी. रमाशंकर पीओपी कारोबारी थे. उन का पदमा गुप्ता के घर आनाजाना था. घर बाहर का कोई काम हो वह रमाशंकर के बिना नहीं कराती थी.

अक्तूबर 2018 में पदमा गुप्ता ने अपने मकान का निर्माण कराया था. इस में राजमिस्त्री, मजदूर, कारपेंटर आदि की व्यवस्था रमाशंकर ने ही कराई थी. प्लास्टिक की शेड डालने का ठेका रमाशंकर ने जुबेर आलम को दिया था. जुबेर आलम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर हापुड़ का रहने वाला था. कानपुर में वह परिवार सहित रहता था.

रतनलाल नगर में उस की वेल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान थी. वह शेड डालने का भी काम करता था. पदमा गुप्ता के घर शेड डालने का ठेका उस ने 14 हजार रुपए में लिया था. काम खत्म होने पर जुबेर आलम को पदमा गुप्ता ने 12 हजार रुपए दे कर उस के 2 हजार रुपए रोक लिए थे.

पदमा गुप्ता के घर के सामने शशि शुक्ला का मकान था. काम के दौरान पदमा गुप्ता ने जुबेर आलम को उन के यहां लोहे की जाली लगाने का ठेका दिलवा दिया था. साथ ही तय रकम भी दिलवा दी थी. लेकिन जुबेर आलम ने आधा काम किया. शशि शुक्ला पदमा को उलाहना देती थी. स्नेह के पास सभी कामगारों के फोन नंबर थे. वह जब भी जुबेर आलम को शशि शुक्ला के यहां जाली लगाने का काम पूरा करने को कहती तो वह बहाना बना देता था.

जुबेर आलम का एक दोस्त सुरेश वाल्मिकी था. सुरेश कबाड़ का काम करता था. सुरेश जुबेर की दुकान से भी कबाड़ खरीदता था. सो दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों की अकसर शराब की महफिल जमती थी.

दोनों पर लाखों का कर्ज था. सुरेश को कबाड़ के काम में घाटा हो गया था जबकि जुबेर आलम का बेटा बीमारी से जूझ रहा था, जिस से उस पर कर्ज हो गया था. दोनों कर्ज चुकाने की जुगत में परेशान रहते थे.

इधर एकडेढ़ माह से जुबेर आलम अपने 2 हजार रुपए मांगने स्नेह के घर आने लगा था. स्नेह उसे यह कह कर पैसा देने से मना कर देती थी कि पहले शशि आंटी के घर का काम पूरा करो. बारबार पैसा मांगने पर जब स्नेह ने पैसे नहीं दिए तो वह नफरत से भर उठा.

वह सोचने लगा कि वकील की लड़की जानबूझ कर उस की बेइज्जती कर रही है और उसे उस की मेहनत का पैसा नहीं दे रही. उस ने इस बाबत दोस्त सुरेश से सलाहमशविरा किया फिर निश्चय किया कि इस बार अगर उस ने पैसे देने से इनकार किया तो वह अपनी बेइज्जती का बदला ले कर ही रहेगा. इस के बाद उस ने 2 दिन स्नेह के घर की रेकी कर सुनिश्चित कर लिया कि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच स्नेह घर में अकेली रहती है.

18 फरवरी, 2019 की दोपहर जुबेर आलम स्कूटर से अपने दोस्त सुरेश के साथ स्नेह के घर पहुंचा. जुबेर आलम ने गेट खटखटाया तो स्नेह ने गेट खोला. स्नेह उस समय घर पर अकेली थी. उस की मां पदमा गुप्ता कोर्ट गई हुई थीं.

जुबेर आलम का साथी सुरेश गेट के बाहर स्कूटर लिए खड़ा रहा और जुबेर आलम बरामदे में पहुंच गया. जुबेर को देख कर स्नेह का कुत्ता भौंका तो स्नेह ने इशारा कर के कुत्ते को शांत करा दिया. फिर स्नेह ने जुबेर से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘बेबी, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हिसाब का बाकी 2 हजार रुपए लेने आया हूं.’’

‘‘देखो जुबेर, तुम्हें बाकी पैसा तभी मिलेगा जब तुम शशि शुक्ला आंटी का काम पूरा कर दोगे. वैसे भी मां घर पर नहीं हैं. शाम को जब वह आ जाएं, तब हिसाब लेने आ जाना.’’ स्नेह कड़ी आवाज में बोली.

जुबेर गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘बेबी, मेरा बेटा बीमार है. उसे दिखाने डाक्टर के पास जाना है. पूरा पैसा न सही 500 रुपए ही दे दो.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बेटे की बीमारी से क्या लेनादेना. इस समय मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगी. समझे.’’ वह बोली.

स्नेह की बात सुन कर जुबेर तिलमिला उठा. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक उठी. जुबेर अभी यह सोच ही रहा था कि वह इस बदमिजाज लड़की को सबक कैसे सिखाए, तभी स्नेह बोल पड़ी, ‘‘जुबेर, मुझे पलंग के पास एक अलमारी बनवानी है. उस की नाप ले लो.’’

इस के बाद वह जुबेर को अंदर के कमरे में ले गई. जुबेर ने स्नेह को इंचटेप पकड़ाया और वह पलंग पर चढ़ कर नाप लेने लगी. इसी समय नफरत से भरे जुबेर आलम की नजर जीने में रखी ईंट पर पड़ गई. उस ने लपक कर ईंट उठाई और भरपूर वार स्नेह के पीछे सिर में किया. स्नेह का सिर फट गया और वह पलंग के नीचे आ गिरी.

इसी समय खून से लथपथ पड़ी स्नेह के पैर उस ने उसी के दुपट्टे से बांध दिए. फिर रसोई में जा कर चाकू उठा लाया. इस के बाद उस ने चाकू से उस के गले को रेत दिया तथा दोनों हाथों की कलाइयों की नसें काट दीं. उस ने उस के चेहरे पर भी चाकू से वार कर दिया.

स्नेह को मौत के घाट उतारने के बाद जुबेर ने अलमारी का सामान पलंग पर बिखेर दिया और अलमारी से सोने के 4 कंगन, एक जोड़ी झुमके, एक अंगूठी और 900 रुपए निकाल लिए. यह सब ले कर वह घर के बाहर आ गया.

बाहर उस का दोस्त सुरेश स्कूटर स्टार्ट किए खड़ा था. इस के बाद स्कूटर से दोनों भाग गए. लेकिन शास्त्री चौक पर उस का स्कूटर खराब हो गया. तब उस ने मोबाइल फोन पर अपने एसी मैकेनिक दोस्त दबौली निवासी अमित को सारी घटना बताई और मोटरसाइकिल ले कर आने को कहा. लेकिन अमित घबरा गया. उस ने दोबारा फोन न करने की चेतावनी दे कर अपना फोन बंद कर दिया.

इस के बाद सुरेश ने स्कूटर ठीक कराया और जुबेर को उस के घर छोड़ा. जुबेर ने 4 कंगन तो सुरेश को दे दिए तथा झुमके और अंगूठी उस ने उसी शाम दबौली के ज्वैलर के यहां 24 हजार रुपए में बेच दिए और रात में ही मिनी ट्रक पर सामान लाद कर पत्नी बच्चों सहित मुरादाबाद में रिश्तेदार के यहां रवाना हो गया. इधर घटना की जानकारी तब हुई जब कुरियर देने मोहित व शुभम आए.

8 मार्च, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अमित को पुलिस ने सरकारी गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

30 लाख मांगने पर बैंक मैनेजर की हत्या

घर वालों ने रंजीत मेला सिंह के दोस्त नारायण बापूराव इंगले को फोन किया, जिन से मिलने वह चिंचवड़ गांव गए थे. इंगले ने बताया कि रंजीत तो उन के घर से साढ़े 12 बजे ही निकल गए थे. उन्हें तो घर पहुंच जाना चाहिए था.

अब घर वाले सोच में पड़ गए कि जब वह दोपहर को ही इंगले के घर से निकल गए थे तो घर आने के बजाय कहां चले गए? अगर कहीं और गए थे तो घर में बताया क्यों नहीं? फिर उन का फोन स्विच्ड औफ क्यों है? घर वालों के मन में तरहतरह के सवाल उठने लगे.

महाराष्ट्र के पुणे में उबालेनगर एरिया के रहने वाले पंजाब ऐंड सिंध बैंक से रिटायर बैंक मैनेजर रंजीत मेला सिंह एक अच्छी जिंदगी जी रहे थे. वह इस के हकदार भी थे. क्योंकि पूरी जवानी उन्होंने बैंक की नौकरी में गंवा दी थी. रिटायर होने पर उन्हें बैंक से ठीकठाक पेंशन मिल रही थी, जिस से वह अपने भरेपूरे परिवार के साथ आराम से रह रहे थे.

एक दिन सुबह रंजीत मेला सिंह अपने एक दोस्त नारायण बापूराव इंगले से मिलने उस के घर गए. नारायण बापूराव इंगले पुणे के पास चिंचवड़ गांव के पार्वती अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर बने फ्लैट में रहता था. वह एक इंडस्ट्रियलिस्ट था. उस की स्माल स्केल इंडस्ट्रीज थी. वह पैसे वाला तो था ही, काफी प्रभावशाली व्यक्ति भी था.

रंजीत मेला सिंह और नारायण बापूराव इंगले की काफी पुरानी दोस्ती थी. इसलिए रंजीत मेला सिंह अकसर उस से मिलने उस के घर जाया करते थे.

रंजीत मेला सिंह घर वालों से जल्दी ही यानी दोपहर तक घर लौट आने के लिए कह कर गए थे, लेकिन उन के घर वाले उन के लौटने का इंतजार करते रहे और वह देर शाम तक भी घर नहीं लौटे तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने यह पता लगाने के लिए रंजीत मेला सिंह को फोन किया कि वह इस समय कहां हैं और कब तक लौट कर आ रहे हैं? लेकिन उन की तब चिंता एवं परेशानी और बढ़ गई, जब रंजीत मेला सिंह का फोन स्विच्ड औफ मिला.

जब रंजीत मेला सिंह का कहीं पता नहीं चला तो घर वालों ने दोस्त इंगले को थाना चिंचवड़ ले जा कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

चूंकि रंजीत मेला सिंह अंतिम बार नारायण बापूराव इंगले से मिले थे, इसलिए थाना पुलिस ने सब से पहले उसी से पूछताछ की. उस ने पुलिस को भी वही बताया, जो घर वालों को बताया था कि रंजीत मेला सिंह उस के घर से लगभग साढ़े 12 बजे चले गए थे.

इस के बाद पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह रंजीत को कहां ढूंढे. क्योंकि अब उस के पास कोई क्लू ही नहीं था. महाराष्ट्र में कोई भी मामला होता है तो वहां थाना पुलिस के साथसाथ उस मामले की जांच क्राइम ब्रांच खुद करने लगती है.

रंजीत मेला सिंह की भी गुमशुदगी दर्ज हुई तो इस मामले की जांच भी क्राइम ब्रांच यूनिट 2 की टीम करने लगी. क्राइम ब्रांच यूनिट 2 के सीनियर इंसपेक्टर जितेंद्र कदम के नेतृत्व में कृष्णदेव खराडे, इंसपेक्टर प्रकाश जादव, एसआई गणेश माने, शंभु रणवरे, कांस्टेबल जयंत राऊत, प्रमोद वेताल, देवा राऊत, जमिर तांबोली, संतोष इंगले, सागर अवसरे, विपुल जाधव, आतिश कुडके आदि कर रहे थे.

साथ ही इस टीम की मदद के लिए थाना चिंचवड़ के सिपाही पांडुरंग जगताप, धर्मनाथ तोडकर, पंकज बदाडे, उमेश वानखेड़े भी कर रहे थे.

क्राइम ब्रांच पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि रंजीत मेला सिंह कहां चले गए और उन्होंने अपना मोबाइल फोन क्यों स्विच्ड औफ कर दिया है? जब क्राइम ब्रांच की टीम को जांच आगे बढ़ाने की कोई राह नहीं मिली तो इंसपेक्टर जितेंद्र कदम ने रंजीत मेला सिंह के घर वालों से नारायण बापूराव इंगले और उन के संबंधों के बारे में पूछा.

घर वालों ने बताया कि दोनों के संबंध काफी पुराने हैं. इन की दोस्ती तब हुई थी, जब इंगले को स्माल स्केल इंडस्ट्री लगाने के लिए बैंक से लोन लेना था. रंजीत मेला सिंह बैंक में मैनेजर थे. इंगले लोन के लिए बारबार बैंक के चक्कर लगा रहा था. रंजीत मेला सिंह ने उस की इंडस्ट्री के लिए लोन करा दिया था. उसी बीच दोनों में दोस्ती हो गई थी, जो धीरेधीरे गहरी होती गई थी.

इस के बाद जब रंजीत मेला सिंह रिटायर हुए तो उन्हें पीएफ और ग्रेच्युटी का जो पैसा मिला था, उस में से 30 लाख रुपए उन्होंने नारायण बापूराव इंगले को दे कर कहा था कि उन का यह पैसा वह कहीं इन्वैस्ट कर दें. क्योंकि वह बिजनैसमैन हैं और स्माल स्केल इंडस्ट्री के मालिक भी हैं. वह पैसा आसानी से इन्वेस्ट कर सकते हैं, जिस का उन्हें अच्छा लाभ मिल सकता है.

इंगले ने मेला सिंह से पैसे तो ले लिए थे, लेकिन उस ने उन का पैसा इन्वैस्ट नहीं किया था. इसलिए उस ने रंजीत मेला सिंह को कभी कोई लाभ दिया नहीं. महीने बीते, फिर साल बीत गया. 2 साल बीत गए और जब रंजीत को इंगले की ओर से अपने 30 लाख रुपयों का कोई लाभ नहीं मिला तो वह उस से अपने पैसे वापस मांगने लगे. क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि इंगले ने उन के पैसे इन्वैस्ट नहीं किए हैं.

इंगले पैसे देने में टालमटोल कर रहा था. क्योंकि उस ने वे पैसे निजी इस्तेमाल में खर्च कर दिए थे. जब रंजीत मेला सिंह ने अपने रुपए वापस करने के लिए इंगले पर दबाव बनाया तो उस ने उन्हें अपने पैसे ले जाने के लिए 19 जुलाई, 2023 को अपने घर बुलाया. उस के बुलावे पर रंजीत मेला सिंह पैसे लेने के लिए इंगले के घर गए, लेकिन वापस लौट कर नहीं आए थे.

दोस्त इंगले पर पुलिस को क्यों हुआ शक

जब इस बात की जानकारी चिंचवड़ पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम को हुई तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. क्योंकि 30 लाख रुपए की वसूली का मामला था, जो काफी समय से नारायण बापूराव के पास फंसे थे और रंजीत मेला सिंह पैसे वापस करने के लिए उस के पीछे पड़े थे.

यहीं पर पुलिस को शक हुआ कि रंजीत के गायब होने के पीछे कहीं इंगले का हाथ तो नहीं है? क्योंकि इतनी बड़ी रकम के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है. लेकिन इंगले तो पहले ही मना कर चुका था. इंगले का 30 साल का एक जवान बेटा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की थी. उस ने भी मना कर दिया था. उस का कहना था कि वह तो उस दिन घर पर ही नहीं था.

इस से क्राइम ब्रांच की टीम ने सोचा कि अब वह अपने हिसाब से छानबीन करेगी. इस के बाद जितेंद्र कदम ने रंजीत मेला सिंह के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथसाथ लोकेशन भी निकलवाई, जिस से यह पता चल सके कि उस दिन उन की किनकिन लोगों से बात हुई थी और वह कहांकहां गए थे.

काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि रंजीत मेला सिंह की नारायण बापूराव इंगले से बात भी हुई थी और वह उस के घर भी गए थे. इस के बाद पुलिस ने यह पता लगाना शुरू किया कि इंगले जिस अपार्टमेंट में रहता है, वहां कोई सीसीटीवी कैमरा है या नहीं, जिस से यह पता किया जा सके कि इंगले के घर से निकल कर रंजीत मेला सिंह किधर गए थे.

लेकिन ताज्जुब की ही बात थी कि इंगले के घर के आसपास की तो छोड़ो, उस की पूरी गली में ही कहीं भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था.

यह जान कर क्राइम ब्रांच की टीम को झटका तो लगा, पर उस ने हिम्मत नहीं हारी. सीनियर इंसपेक्टर जितेंद्र कदम ने कहा कि अगर यहां कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है तो आगे जा कर देखो शायद कहीं कोई सीसीटीवी कैमरा लगा मिल जाए.

इस क्रम में पुलिस की टीम आगे बढ़ी तो कालीवाड़ी चिंचवड़ रोड पर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में रिटायर बैंक मैनेजर रंजीत सिंह मेला की मारुति ब्रेजा कार तेजी से जाती दिखाई दी और वह समय था दोपहर के 3 बज कर 5 मिनट का. जबकि इंगले ने बताया था कि रंजीत उन के घर से साढ़े 12 बजे ही निकल गए थे.

उस हिसाब से उन की गाड़ी इस जगह से ज्यादा से ज्यादा एक बजे तक गुजर जानी चाहिए थी. जबकि उन की कार उस जगह से 3 बजे के बाद गुजरी थी, जो संदेह पैदा करने वाली बात थी. इसी बात को ले कर क्राइम ब्रांच की टीम को शक हुआ.

क्राइम ब्रांच टीम को इंगले पर पहले से ही शक था. क्योंकि एक मोटी रकम के लेनदेन का मामला था. इस के बाद सीनियर इंसपेक्टर जितेंद्र कदम ने तय किया कि वह इंगले को अपने औफिस में बुला कर पूछताछ करेंगे.

जितेंद्र कदम ने इंगले को क्राइम ब्रांच के औफिस बुलाया और सारी बातें उस के सामने रखते हुए सख्ती से पूछताछ की. थोड़ी सी सख्ती बरतने पर ही इंगले टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि रंजीत मेला सिंह की गुमशुदगी दर्ज कराने में ही नहीं, उन की हत्या में भी उसी का हाथ है और उन की यह हत्या उस ने 2 सुपारी किलर को 4-4 लाख रुपए दे कर कराई है. जिन के नाम हैं, राजेश नारायण पवार और समाधान ध्यानोबा म्हस्के. ये दोनों चिखली गांव के रहने वाले हैं.

इन दोनों सुपारी किलर्स से नारायण बापूराव इंगले ने पहले ही बात कर ली थी कि एक आदमी की हत्या करनी है, जिस के लिए वह उन्हें 4-4 लाख रुपए देगा. इस पर किराए के इन हत्यारों ने कहा था कि वे हत्या भी आसानी से कर देंगे और लाश को इस तरह ठिकाने लगा देंगे कि किसी को पता ही नहीं चल पाएगा कि वह आदमी कहां गया.

इन हत्यारों से बात करने के बाद योजना के तहत नारायण बापूराव इंगले ने रंजीत मेला सिंह को पैसे देने के बहाने 19 जुलाई, 2023 को अपने घर बुलाया. क्योंकि रंजीत मेला सिंह जब देखो, तब उन्हें फोन कर के अपने 30 लाख रुपए मांगा करते थे. यही नहीं, वह अपने पैसे वापस पाने के लिए उस के घर भी आ धमकते थे.

इस से इंगले बहुत ज्यादा त्रस्त हो चुका था. इस की वजह यह थी कि रंजीत मेला सिंह ने जो 30 लाख रुपए उसे इन्वेस्ट करने के लिए दिए थे, वह उस ने इन्वेस्ट करने के बजाय निजी उपयोग में खर्च कर डाले थे. इतनी बड़ी रकम वापस करने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे.

सुपारी किलर्स ने कैसे ठिकाने लगाई लाश

इंगले ने जो योजना बनाई थी, उस के अनुसार रंजीत मेला सिंह को पैसा वापस करने के बहाने अपने घर बुलाया. वह आ कर उस के घर के अंदर बैठे ही थे कि इंगले घर के बाहर निकला और अपार्टमेंट में नीचे बैठे चिखली निवासी सुपारी किलर राजेश नारायण पवार और समाधान ध्यानोबा म्हस्के को ऊपर बुला लिया.

उन दोनों ने ऊपर आ कर पीछे से रंजीत मेला सिंह के गले में रस्सी डाल कर कस दी. जब उन की सांस रुक गई तो उन पर चाकू से भी हमला किया गया.

जब तीनों को पूरा विश्वास हो गया कि रंजीत मेला सिंह की मौत हो चुकी है तो उन्होंने उन की लाश को एक बोरे में डाल कर उन्हीं की मारुति ब्रेजा कार में रख दी, जिसे ले कर राजेश और समाधान निकल पड़े. जिस समय वे रंजीत मेला सिंह की लाश को ले कर जा रहे थे, उसी समय की वह फुटेज थी, जिस से पुलिस को नारायण बापूराव इंगले पर शक हुआ था.

हत्यारे रंजीत की लाश ले कर थामिनी घान पहुंचे और वहीं पर लाश वाला बोरा निकाल कर नदी में फेंक दिया, साथ ही रंजीत मेला सिंह का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ कर के नदी में फेंक दिया. इस के बाद उन की कार ले जा कर रायगढ़ में लावारिस खड़ी कर दी. फिर दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर रंजीत मेला सिंह की हत्या करवा कर इंगले ने ड्राइंगरूम में फैला खून साफ किया और फिर निश्चिंत हो कर आराम से सो गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह दोस्त की हत्या के आरोप में पकड़ा जाएगा. लेकिन क्राइम ब्रांच ने अपनी सूझबूझ से उसे पकड़ ही लिया.

इंगले को गिरफ्तार करने के बाद क्राइम ब्रांच पुलिस ने उसी की शिनाख्त पर चिखली गांव से रंजीत की हत्या करने वाले दोनों हत्यारों राजेश नारायण पवार तथा समाधान ध्यानोबा म्हस्के को गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों की निशानदेही पर क्राइम ब्रांच की टीम ने थामिनी घाट के पास नदी से गोताखोरों की मदद से रंजीत मेला सिंह की लाश एवं मोबाइल फोन बरामद कर लिया.

रायगढ़ से रंजीत की कार भी बरामद कर ली गई थी. इस के बाद क्राइम ब्रांच ने तीनों अभियुक्तों को थाना चिंचवड़ पुलिस के हवाले कर दिया था.

थाना पुलिस ने तीनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 364, 302, 201, 392 एवं 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया और नारायण बापूराव इंगले, राजेश नारायण पवार और समाधान ध्यानोबा म्हस्के को अदालत में पेश किया, जहां से तीनों अभियुक्तों को जेल भेज दिया गया.