जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 3

डाक्टर की बग्घी बहुत शानदार थी. उस में मोटे गद्दे और नरम कुशन लगे थे. बैठने और लेटने के लिए बड़ी आरामदायक जगह बनाई गई थी. एक काला सा आदमी डाक्टर का कोचवान था.

डाक्टर जव्वाद ने मुझ से यह नहीं पूछा कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं. मैं भी चुपचाप आंख बंद कर के लेटा रहा. कुछ देर बाद उस ने मुझे दूध के साथ दवा दी.

दवाई पी कर मैं ने बग्घी से उतरना चाहा तो मुझे एकदम से जोर का चक्कर आ गया. डाक्टर ने मुझे फिर लिटा दिया. कुछ देर बाद उस ने मुझे नाश्ता और कुछ फल खिलाए. फिर कहा, ‘‘अभी तुम लेटे रहो, चलनाफिरना मुश्किल है. तुम्हें बहुत कमजोरी हो गई है.’’

मैं सोचने लगा कि आहन और तूबा ने मुझे जहर क्यों दिया, उन से मेरी कोई दुश्मनी भी नहीं थी. मेरी आंखों में तूबा का खूबसूरत चेहरा घूम गया. मैं सोच भी नही सकता था कि हुस्न भी इतना जहरीला हो सकता है.

बग्घी वहां से रवाना हो गई. मेरा घोड़ा पीछे आ रहा था. एकाएक डाक्टर ने पूछा, ‘‘तुम्हें जहर किस ने दिया?’’

‘‘मैं एक फार्महाउस पर रुका था. वहां रहने वाले एक मियां बीवी के साथ खानापीना हुआ था. उन लोगों ने ही जहर दिया होगा.’’

‘‘उन से तुम्हारी कोई अदावत थी या कोई झगड़ा हुआ था?’’

‘‘न मेरी उन से कोई दुश्मनी थी न झगड़ा हुआ था, पता नहीं उन लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? वैसे मैं जिन की बात कर रहा हूं उन में मर्द मर्दाना खूबसूरती का नमूना था और औरत बेहद हसीन.’’

‘‘हो सकता है, वे लोग कोई मुजरिम हों और उन्हें तुम से कोई खतरा हो?’’

‘‘नहीं ऐसे तो नहीं लगते थे, खासे अमीर लोग थे.’’ कहते हुए मैं ने डाक्टर से पूछा, ‘‘आप कहां से आ रहे हैं?’’

‘‘मैं इस इलाके के लोगों का इलाज करने के लिए दूरदूर तक जाता हूं. खास कर जहां इलाज और डाक्टर की सहूलियत नहीं है. समझ लो साल के 6 महीने घर से बाहर बीतते हैं.’’

‘‘आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘हां, मेरी बीवी बहुत अच्छी है, मेरी गैरहाजरी में घर अच्छे से संभालती है, फारमिंग वगैरह भी देख लेती है. इस मामले में मैं बहुत खुशनसीब हूं.’’

‘‘डाक्टर साहब, अब मुझे कोई बस्ती देख कर उतार दीजिए. मुझे अपनी मंजिल की तलाश में निकलना चाहिए.’’

‘‘नहीं, नहीं, अभी तुम बहुत कमजोर हो, घुड़सवारी कतई नहीं कर सकते. अगर तुम ने सफर किया तो मेरी सारी मेहनत बेकार जाएगी. अभी तुम्हारे शरीर से जहर का असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. तुम मेरे साथ चलो. 2 दिन मेरे घर पर आराम करना. इलाज के बाद जब पूरी तरह ठीक हो जाओगे फिर जहां चाहो, चले जाना.’’

मैं इनकार करने की सोच ही रहा था कि मेरे दिमाग में एक खयाल बिजली की तरह कौंधा तो मैं ने झट से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आप का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा. आप मेरी इतनी परवाह कर रहे हैं तो मैं आप के साथ ही चलूंगा और इलाज पूरा होने के बाद आप की पूरी फीस दे कर जाऊंगा.’’

डा. जव्वाद ने हंस कर कहा, ‘‘मैं इलाज बढि़या करता हूं. इस के लिए फीस भी अच्छी लेता हूं.’’

हम डाक्टर के घर पहुंचे तो मैं चौंका. वह जगह मेरे लिए अपरिचित नहीं थी. जहां गाड़ी रुकी वह वही खूबसूरत फार्महाउस था, जहां मुझे जहर दिया गया था. दरवाजा खोलने वाली वही हसीन औरत थी. वह बड़े प्यार से डाक्टर के गले लग गई. डाक्टर ने पीछे मुड़ कर कहा, ‘‘शमशेर, ये मेरी बीवी ऐना है.’’

उस की नजर मुझ पर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे उस ने कोई भूत देख लिया हो. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. मैं ने झुक कर उसे सलाम किया. गुलाबी साड़ी में उस का हुस्न दमक रहा था.

डाक्टर ने उस से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘ऐना इन के लिए ऊपर का कमरा खुलवा दो, ये 2 दिन यहां रुकेंगे. इन्हें किसी जालिम ने जहर दे दिया था, लेकिन मैं वक्त पर पहुंच गया और इन्हें बचा लिया. मैं इन्हें आराम और इलाज के लिए अपने साथ ले आया हूं.’’

मैं सीढि़यों की तरफ बढ़ा. ऐना मेरे पीछे थी. कमरा खोल कर वह एक तरफ हट गई. वह गुस्से से लाल हो रही थी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘वापस क्यों लौट आए?’’ मैं ने मुसकरा कर व्यंग में कहा, ‘‘ये जानने के लिए कि तुम ने मुझे जहर क्यों दिया?’’ लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘मैं भला तुम्हें क्यों जहर देने लगी? तुम्हें गलतफहमी हुई है.’’

‘‘मैं ने तुम्हारे घर के अलावा कहीं और कुछ नहीं खाया पिया था, इसलिए यकीनन जहर तुम ने दिया था.’’

उस ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम ने खुद कोई जहरीली चीज खा ली होगी. मुझे तुम्हें जहर देने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी क्योंकि मैं ने तुम्हें आहन के साथ देख लिया था. तुम्हारे इश्क का गवाह बन गया था मैं.’’

वह बात काट कर बोली, ‘‘मैं किसी आहन को नहीं जानती.’’

‘‘ओह, यानी तुम दोनों ने मुझे अपने नाम गलत बताए थे. खैर, मैं यहां तुम्हारी आशनाई का राजफाश करने नहीं आया हूं. मुझे डाक्टर से अपना पूरा इलाज करवाना है. उन का कहना है कि अगर इलाज पूरा न हो तो ये जहर कुछ दिन बाद फिर असर दिखाता है. इसलिए दवा का 3 दिन का कोर्स पूरा करना जरूरी है.’’

इस पर उस ने तमक कर कहा, ‘‘अगर तुम ने कुछ उलटासीधा करने की कोशिश की तो बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे, याद रखना.’’

‘‘मैं एक जुआरी हूं, फायदा उठाने के साथसाथ नुकसान उठाने के लिए भी तैयार रहता हूं. यह तुम सोचो कि क्या तुम नुकसान उठा सकती हो?’’

ऐना गुस्से से जाने के लिए पलट गई. मैं ने उसे फिर याद दिलाया, ‘‘ऐना एक बात जहन में रख लो, मैं एक बार धोखा खा सकता हूं, बारबार नहीं.’’

डाक्टर ने मेरा बहुत खयाल रखा. इलाज में भी कोई कोताही नहीं बरती. शाम तक मैं काफी फ्रेश महसूस करने लगा. मैं ने डाक्टर से कहा, ‘‘मैं थोड़ा बाहर घूमना चाहता हूं, आप ठीक समझें तो चला जाऊं?’’

‘‘हां, थोड़ी देर के लिए चले जाओ. पास ही कस्बा अजीरा है, पर ज्यादा नहीं घूमना. थक जाओगे.’’

बाहर निकला तो ऐना को गेट के पास कहीं जाने को तैयार खड़ा देखा. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं कस्बे जा रहा हूं. आहान को कोई पैगाम देना हो तो बता दो.’’

उस ने गुस्से से दांत पीसे और रुख बदल कर खड़ी हो गई. मैं बाहर निकल गया. थोड़ी दूर चलने के बाद एक शराबखाना नजर आया. मैं ने एक पैग रम का आर्डर दिया, शराब सर्व करने वाला एक 14-15 साल का लड़का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम बिना किसी मेहनत के 10 रुपए कमाना चाहते हो?’’

वह हैरान सा मुझे देखते हुए बोला, ‘‘क्या काम करना होगा मुझे?’’

‘‘कुछ खास नहीं, मैं तुम्हें एक आदमी का हुलिया बताता हूं, तुम मुझे उस का नाम और पता बता दो बस.’’

हुलिया सुन कर वह डर सा गया, बोला, ‘‘साब, वह बहुत जालिम और खतरनाक आदमी है. बीच में मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’ मैं ने उस का नाम न आने का वादा किया तो उस ने उस का नाम बाबर बताया और उस का पता समझा दिया. मैं उसे 10 रुपए दे कर बाहर आ गया.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 2

फार्महाउस के अहाते पर कांटेदार तार लगा हुआ था. अंदर दो मंजिला खूबसूरत मकान बना था जो बाहर से ही दिख रहा था. मैं बेहिचक गेट खोल कर अंदर दाखिल हो गया. अंदर एक कोने में हैंडपंप लगा था. मैं ने बेताब हो कर पानी निकाला और मुंह हाथ धो कर जीभर के पानी पिया. फिर वहीं रखी एक बाल्टी भर कर घोड़े के आगे रख दी.

फार्महाउस में मक्की की फसल लगी थी. हैंडपंप के पास ही भुट्टे के छिलके और पौधों के तने पड़े थे. मैं ने घोड़े को उस ढेर के पास खड़ा कर दिया ताकि वह पेट भर सके. मैं खुद भी भुट्टा तोड़ कर खाने लगा ताकि कुछ सुकून मिले.

अभी मैं भुट्टा खा ही रहा था कि घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुन मैं ने मुड़ कर देखा. एक हट्टाकट्टा मजबूत जिस्म का व्यक्ति मेरे ऊपर बंदूक ताने खड़ा था मुझे लगा जैसे अभी गोली चलेगी और मेरा काम तमाम हो जाएगा. वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘कौन हो तुम? बिना इजाजत अंदर कैसे आ गए?’’

मैं ने उसे गौर से देखा, तांबे सा चमकता रंग, भूरे घुंघराले बाल, जो गर्दन तक लटके हुए थे. उस के चेहरे और जिस्म से ऐसी मर्दाना खूबसूरती नुमाया हो रही थी जो औरतों के लिए खास कशिश रखती है.

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत प्यासा था, पानी की तलाश में यहां आ गया. मैं किसी गलत मकसद से यहां नहीं आया हूं.’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, शमशेर.’’

उस ने मुझे घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम कहां से आ रहे हो? जाना कहां है?’’

मैं ने अपने शहर का गलत नाम बता कर कहा, ‘‘मैं काम की तलाश में निकला हूं. अगर आप को मेरा आना नागवार लगा है तो मैं तुरंत वापस चला जाता हूं. आसपास कोई आश्रय ढूंढ़ लूंगा.’’ लेकिन मेरी बात से वह संतुष्ट नहीं हुआ और डपट कर बोला, ‘‘तुम्हारे पास कोई हथियार हो तो चुपचप निकाल कर दे दो.’’

मजबूरी थी, मैं ने अपना कट्टा और चाकू उसे दे दिया. इस के बाद उस के तेवर कुछ नरम पड़े. उस ने बंदूक से इशारा करते हुए कहा, ‘‘अपने घोड़े को इस पेड़ से बांध दो ताकि फसल में न घुसे और अंदर चलो.’’

मैं ने घोड़ा बांधा और उस के साथ मकान के अंदर दाखिल हो गया. मकान अंदर से बहुत अच्छा था, खूबसूरत फर्नीचर से सजा हुआ. पर इस से भी खूबसूरत वह औरत थी जो वहां मौजूद थी. उस ने खुला ढीला सा सुर्ख गाउन पहन रखा था. गुलाबी बेदाग रंगत, चमकती नीली आंखें, सुडौल जिस्म, उस की नीली आंखें बड़ी सर्द सी लगी. औरत और उस व्यक्ति का हुलिया यह बताने के लिए काफी था कि कुछ देर पहले दोनों अंदर किस तरह की स्थिति में रहे होंगे.

औरत ने उस व्यक्ति की तरफ देख कर कहा, ‘‘इसे अंदर लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी जानेमन.’’ उस ने मुसकुरा कर कहा और औरत का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चला गया. घर की सजावट और रहनसहन से लग रहा था कि वे काफी अमीर लोग हैं.

वह व्यक्ति मेरे हथियार अंदर रख कर बाहर आया तो उस के चेहरे पर मुसकुराहट और संतोष के भाव थे. अब उस का अंदाज ही बदला हुआ था. उस ने नरम लहजे में मुझ से कहा, ‘‘माफ करना शमशेर, हम लोग चूंकि वीराने में रहते हैं इसलिए जल्दी से किसी पर एतबार नहीं करते. कस्बा अजीरा भी यहां से थोड़ी दूरी पर है.’’

उस की बात सुन कर मैं ने इत्मीनान की सांस लेते हुए कहा, ‘‘यानि अब आप को यकीन आ गया कि मैं जरूरतमंद हूं.’’

वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने कहा, ‘‘खैर, आप का शुक्रिया. अब अगर आप मेरे हथियार मुझे लौटा दें तो मैं जाना चाहूंगा.’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है? बैठो अभी.’’

इस बीच वह औरत भी ढंग के कपडे़ पहन कर आ गई थी. नीले रंग के सलवार कुर्ते में वह गजब ढा रही थी. इस से ज्यादा हसीन औरत मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी. मैं भले ही सब तरह के गुनाहों में डूबा था, पर औरत से दूर रहा था. पर उस औरत को देख कर मेरा दिल अजब से अंदाज में धड़कने लगा था.

औरत ने मुसकुरा कर कहा, ‘‘खाने का वक्त है, मेरे हाथ का खाना तुम्हें पसंद आएगा.’’

मैं भूख से बेहाल था. मैं ने मुसकरा कर उस की पेशकश कुबूल कर ली.’’ वह व्यक्ति बोला. ‘‘मेरा नाम आहन है. ये मेरी बीवी तूबा है.’’

मैं ने खुशदिली से कहा, ‘‘इतना खूबसूरत जोड़ा मैं ने पहली बार देखा है. आप जैसे लोगों की मेहमाननवाजी मेरी खुशनसीबी है.’’

तारीफ सुन कर तूबा के गाल सुर्ख हो गए. वह खाना लगाने अंदर चली गई. इस बीच आहन शराब के 2 पेग बना लाया. शराब बड़ी जायकेदार थी, जल्द ही हम दोनों अच्छे दोस्तों की तररह पीते पीते बातें करने लगे. उस ने बताया कि वह फार्म में मक्की, गेहूं और सब्जियां उगाता है. मैं ने उस से बच्चों के बारे में पूछा तो वह कहकहा लाते हुए बोला, ‘‘फिलहाल हम दोनों अकेले हैं और जिंदगी का आनंद ले रहे हैं. बच्चे तो हो ही जाएंगे, पर ये हसीन पल फिर कहां आएंगे.’’

खाना बेहद मजेदार था, मटन टिक्के बड़े लजीज लगे. मैं ने जी भर खाया. खानेपीने के बाद मैं ने उस से करीबी शहर के बारे में पूछा.

‘‘फाटक के सामने की सड़क पर बाईं तरफ सीधे चले जाओ. रात तक तुम बहादुरगढ़ पहुंच जाओगे. वह एक बड़ा शहर है, वहां काम मिल जाएगा.’’ उस ने मुझे रास्ता बताया.

मैं ने उस से अपने हथियार मांग लिए जिन्हें देने में उस ने कोई आनाकानी नहीं की. मैं ने हथियार और पानी साथ रख लिया. घोड़ा भी खापी कर ताजादम हो चुका था. मैं ने अपना घोड़ा उस के बताए रास्ते पर डाल दिया. सूरज की तपिश कम हो चुकी थी. मैं दोढाई घंटे का सफर तय कर चुका था. अचानक मेरे पेट में तेज दर्द उठा. ऐसा लगा जैसे आंतें फटी जा रही हों. निस्संदेह वह जानलेवा दर्द था. तभी एकाएक मुझे उबकाई के साथ उलटी हो गई. सारा खायापीया बाहर आ गया.

उल्टी में खून देख कर मैं डर गया. उल्टी के बाद थोड़ा आराम जरूर मिला पर कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सिर चकरा रहा था. घोड़े पर बैठे रहना मुश्किल हो रहा था. दोनों हाथों से घोड़े की गरदन पकड़ कर मैं उस पर गिर सा गया. मेरा वफादार घोड़ा खुद ब खुद आगे बढ़ता रहा. पता नहीं मैं कब होशो हवास से बेगाना हो गया.

‘‘ऐ, होश में आओ.’’ किसी ने मेरे गाल पर थपकी मार कर कहा तो धीरेधीरे मेरी आंखें खुल गईं. मुझे अपने आसपास रोशनी सी महसूस हुई. कुछ देर में मुझे होश आ गया. उस वक्त मैं एक बग्घी में था जिस की छत पर रेशम का कपड़ा मढ़ा हुआ था. जो चेहरा मेरे सामने आया वह किसी अधेड़ उम्र के आदमी का था. हल्की खिचड़ी दाढ़ी, गोरा रंग, नरम चेहरा, सोने के फ्रेम का चश्मा. उस आदमी ने मुझ से बड़े प्यार से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही है. मैं कहां हूं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘मैं डा. जव्वाद हूं. तुम्हें किसी ने जहर दिया था. शुक्र है कि मैं वक्त पर पहुंच गया और तुम बच गए. मैं ने ही तुम्हारा इलाज किया है. गनीमत रही कि तुम्हें उल्टी हो गई थी जिस से जहर का असर कम हो गया था और मेरी दवा की खुराक कारगर साबित हुई. बच गए जनाब तुम.’’

मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘मुझे जहर दिया गया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे पेट में जहर था. एक जंगली जहरीली बूटी है जिस का पाउडर जहर का काम करता है. उस का कोई खास स्वाद या गंध नहीं होती. पानी में डालो तो हलका बादामी रंग झलकता है, शराब या किसी शरबत में तो पता भी नहीं चलता. खासियत यह है कि इस जड़ी को खाने के 2 ढाई घंटे बाद असर होता है.’’

मेरा दिमाग आहन द्वारा खाने के समय दी गई शराब की तरफ चला गया. शराब तो हम तीनों ने पी थी पर शायद उस ने मेरे गिलास में जहरीला पाउडर मिला दिया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि मुझे जहर दिया गया है?’’

‘‘ये तुम्हारी खुशनसीबी थी. ये जहरीली बूटी इसी इलाके में ही पाई जाती है और मैं इस के इलाज का एक्सपर्ट हूं. तुम्हारी कमीज पर जो उल्टी गिरी थी उस में खून भी था. उसे देख कर मुझे पता चल गया कि तुम्हें जहर दिया गया है. इसलिए मैं ने फौरन इलाज शुरू कर दिया था.’’

मैं सोचने लगा कि सचमुच यह इत्तेफाक ही है कि इस वीराने में ये रहमदिल डाक्टर मिल गया और उस के इलाज से मेरी जान बच गई. वरना मौत यकीनी थी. डाक्टर ने मुझे सोच में पड़ा देख पूछा, ‘‘तुम जा कहां रहे थे?’’

‘‘बहादुरगढ़.’’

‘‘पर तुम तो बहादुरगढ़ की उल्टी दिशा में सफर कर रहे थे?’’

‘‘या तो मेरा घोड़ा गलत दिशा में निकल आया होगा या फिर बताने वाले ने गलत दिशा बताई होगी.’’

मुझे अपने घोड़े की याद आई तो मैं ने पूछा, ‘‘मेरा घोड़ा कहां है?’’

‘‘वह देखो पीछे बंधा है.’’ उस ने इशारा कर के कहा, ‘‘दाना खा रहा है.’’ अपने घोड़े को देख मुझे बड़ी तसल्ली मिली.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 1

मेरा नाम शमशेर है. जो बात मैं बताने जा रहा हूं वह 35-40 साल पुरानी है. मेरा बाप तांगा चलाता था. इस काम में हमारी अच्छे से गुजरबसर  हो जाती थी. जब मैं 11-12 साल का था, मेरा बाप एक एक्सीडेंट में चल बसा. मां ने तांगा घोड़ा किराए पर चलाने को दे दिया. वह बड़ी मेहनती औरत थी और घर में बैठ कर सिलाई का काम करती थी. इस तरह हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी.

मां मुझे पढ़ाना चाहती थी. पर मेरा पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. वैसे मुझे अंगरेजी जरूर अच्छी लगती थी. अंगरेजी को मैं बड़े ध्यान से पढ़ता और सीखता था. इसी वजह से 9वीं क्लास में मैं अंगरेजी के अलावा सारे विषयों में फेल हो गया.

फेल होने के बाद स्कूल से मेरा मन एकदम उचाट हो गया था. मैं ने पढ़ाई छोड़ दी. उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती गलत किस्म के कुछ युवकों से हो गई. दोस्तों के साथ रह कर मुझे कई तरह के ऐब लग गए. सिगरेट पीना, ताश खेलना, होटलों में जाना मेरी आदतों में शामिल हो गया. इस के लिए पैसे की जरूरत होती थी. पैसे के लिए मैं दोस्तों के साथ मिल कर हाथ की सफाई भी करने लगा.

इस में कोई दो राय नहीं कि बुराई शैतान की आंत की तरह होती है. एक बार शुरू हो जाए तो रुकना आसान नहीं होता. मां ने मुझे फिर से स्कूल भेजने की बहुत कोशिश की पर गुनाह की आदत ने मुझे पीछे नहीं लौटने दिया.

धीरेधीरे मैं जुए में माहिर हो गया. मेरे पास पैसे की रेलपेल होने लगी. ताश के पत्ते मेरे हाथ में आते ही जैसे मेरे गुलाम हो जाते थे. मेरी चालाकी ने मुझे जीतने का हुनर सिखा दिया था. जीतने की कूवत ने मेरी मांग भी बढ़ा दी और शोहरत भी. अब बाहर की पार्टियां भी मुझे बुला कर जुआ खिलवाने लगीं. इस काम में मुझे अच्छाखासा पैसा मिल जाता था. जिंदगी ऐश से गुजर रही थी.

देखतेदेखते मैं 23 साल का गबरू जवान बन गया. मेरी मां से मेरी बरबादी बरदाश्त न हुई और एक दिन वह सारे दुखों से निजात पा गई. मां की मौत के बाद मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था. जुए की महारत ने जहां कई दोस्त बनाए वहीं बहुत से दुश्मन भी बन गए. दोस्त तो पैसे के यार होते हैं. मैं ने ऐसे ही दोस्तों के साथ छोटा सा एक गिरोह बना लिया ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके. हम लोग अपने पास चाकू कट्टे भी रखने लगे.

एक दिन मैं जुआखाने में एक बड़े गिरोह के सूरमा के साथ जुआ खेल रहा था. शुरू में वह जीतता रहा फिर अचानक बाजी पलट गई. मैं लगातार जीतने लगा,  नोटों का ढेर बढ़ता गया. यह देख उस के साथी गाली गलोच पर उतर आए. गुस्से में मैं ने खेल रोक कर जैसे ही नोट समेटने चाहे उन लोगों के हाथों में चाकू और पिस्तौल चमकने लगे. मेरे साथियों ने भी हथियार निकाल लिए. गोलियों चलने लगीं.

उसी दौरान एक गोली मेरे बाजू से रगड़ती हुई निकल गई. इस से मुझ पर जुनून सा तारी हो गया. हम 4 लोग थे और वो 7-8. दोनों तरफ से घमासान शुरू हो गया. 3 लोग जमीन पर गिर कर तड़पने लगे. दूसरे लोग चीखतेचिल्लाते हुए बाहर भागे. मैं और मेरे साथी भी सारे नोट समेट कर वहां से भाग लिए. अंधेरे ने हमारा साथ दिया. पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाजों के साथ गोलियां चल रही थीं. भागते भागते मेरा एक साथी भी चीख कर ढेर हो गया.

मैं ने जल्दी से रास्ता बदला और एक तंग गली से होता हुआ एक टूटीफूटी वीरान बिल्डिंग के जीने के नीचे दुबक गया. मेरे साथी पता नहीं किधर निकल गए. मैं घंटों वहां बैठा रहा. रात का गहरा सन्नाटा फैल चुका था. कहीं कोई आहट नहीं थी. मैं छिपते छिपाते घर पहुंचा और अपना घोड़ा ले कर एक अनजानी दिशा की तरफ बढ़ गया.

मैं मौत के मुंह से निकला था और बुरी तरह घबराया हुआ था. जुए से कमाए पैसे मैं ने घर के अंदर कपड़ों में छिपा कर रख रखे थे. मुझ में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उन पैसों को ले आता. अभी तक मैं ने चोरी, लूट और जुआ जैसी छोटीछोटी वारदातें की थीं. मेरे हाथों कत्ल पहली बार हुआ था. मैं ने अपराध भले ही किए थे, लेकिन अभी तक मेरे अंदर का इंसान मरा नहीं था. मेरे हाथों किसी की जान गई है, यह अहसास मुझे मन ही मन विचलित कर रहा था.

मुझे ये पता नहीं था कि मेरे हाथों से कितने लोग मरे हैं, पर मेरा निशाना चूंकि अच्छा था इसलिए मुझे लग रहा था कि कत्ल मेरे हाथों ही हुआ होगा. एक मरे या दो, गुनाह तो गुनाह है और इस गुनाह की सजा मौत है. अगर मैं पुलिस के हाथ लग जाता तो वह मेरी एक नहीं सुनती क्योंकि पुलिस में भी मेरा रिकौर्ड खराब था.

जुए में जीतने की मेरी शोहरत की वजह से मेरे दुश्मनों की कमी नहीं थी. निस्संदेह वे मेरे खिलाफ गवाही दे कर मेरी मौत का सामान कर देते और अगर मैं इत्तफाक से सूरमा के गिरोह के हाथ लग जाता तो वे लोग मेरे टुकड़ेटुकड़े करने में जरा भी देर नहीं लगाते क्योंकि उन के 3-4 आदमी मरे थे.

मुझे जल्द से जल्द वहां से बहुत दूर चले जाना था इसलिए मैं ने जंगल का सुनसान रास्ता पकड़ा. पता नहीं मैं कब तक घोड़ा दौड़ाता रहा. जब घोड़े ने थक कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और मैं भी भूखप्यास और थकान से पस्त हो गया तो एक साफ जगह देख कर रुक गया. तब तक दिन का उजाला फैलने लगा था. मैं ने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और उसी पेड़ के नीचे लेट गया.

जिस वक्त सूरज की तेज तपिश से मेरी आंखें खुलीं तब तक दिन काफी चढ़ आया था. घोड़ा भी आसपास की घासपत्ती खा कर ताजादम हो गया था.

मैं ने पानी की तलाश में आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन दूरदूर तक छितराए पेड़ों और झाडि़यों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. वह पूरा इलाका सूखा बंजर सा था. मजबूरन मैं ने फिर से अपना सफर शुरू कर दिया. मैं जानबूझ कर बस्तियों से बच कर चल रहा था इसलिए कोई कस्बा या शहर भी रास्ते में नहीं आया. दोपहर तक भूख ने मेरी हालत खराब कर दी. इस के बावजूद मैं किसी ऐसी जगह पहुंच कर रुकना चाहता था जहां मेरे दुश्मन मुझ तक न पहुंच सकें. अब तक मैं काफी दूर निकल आया था. इसलिए जंगल का रास्ता छोड़ कर मैं सड़क पर आ गया.

भूखप्यास बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. मुझे लग रहा था कि अगर कुछ देर और दानापानी नहीं मिला तो घोड़ा भी नहीं चल पाएगा. मैं ने लस्तपस्त हो कर अपना सिर घोड़े की पीठ पर रख दिया और सोचने लगा कि पता नहीं जिंदगी मिलेगी या मौत. घोड़ा धीमी गति से चलता रहा. कुछ देर बाद मैं ने भूख और धूप से चकराया हुआ अपना सिर उठाया तो सामने एक फार्म हाउस देख कर आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 3

सुबहसुबह साल्वी का फोन घनघना उठा. सोहम का एक दोस्त जो उस के साथ वाले फ्लैट में रहता था, उस ने जो बताया, सुन कर साल्वी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अकबकाई सी वह जिन कपड़ों में थी, उन्हीं कपड़ों में भागी. उस के साथ निधि भी थी.

दोनों सोहम के कमरे पर पहुंच गईं. वहां जा कर देखा तो सोहम बेहोशी की हालत में पड़ा था. इस हालत में उसे देख कर साल्वी घबरा गई. दोनों किसी तरह उसे पास के अस्पताल में ले गईं. मगर डाक्टर ने यह कह कर इलाज करने से मना कर दिया कि यह पुलिस केस है. जब तक पुलिस नहीं आ जाती, वह इलाज नहीं कर सकते.

अस्पताल से पुलिस को फोन कर दिया गया. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. साल्वी का तो रोरो कर बुरा हाल था. अगर निधि वहां नहीं आती तो पता नहीं कौन उसे संभालता. इस बीच उस के दोस्त ने बताया कि रात को उस ने बड़े अनमनेपन से थोड़ा सा खाना खाया था. उस ने पूछा भी कि सब ठीक तो है, कोई परेशानी तो नहीं पर वह सब ठीक है कह कर कमरे में जा कर सो गया.

जब कुछ देर बाद वह भी कमरे में गया तो दंग रह गया क्योंकि वहां नींद की गोलियों की खाली शीशी पड़ी थी और सोहम अचेत पड़ा हुआ था. उसे समझते देर नहीं लगी कि सोहम ने नींद की गोलियां खा ली हैं लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. कुछ न सूझा तो घबरा कर उस ने साल्वी को फोन कर दिया था.

घंटों इंतजार के बाद जब डाक्टर ने आ कर बताया कि सोहम खतरे से बाहर है और पुलिस उस का बयान ले सकती है, तो सब की जान में जान आई.

पुलिस पूछताछ के दौरान सोहम बस यही कहता रहा कि किसी ने उसे मरने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि उस ने अपनी मरजी से यह फैसला लिया था, क्योंकि थक चुका था वह अपनी जिंदगी से.

पूछताछ कर के पुलिस तो चली गई लेकिन साल्वी यह मानने को तैयार नहीं थी कि सोहम जो बोल रहा है, वह सच है. कोई तो बात जरूर है, जो वह सब से छिपा रहा है.

अस्पताल से आने के बाद साल्वी ने उस से पूछा, ‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सोहम? क्या एक बार भी तुम्हें अपने मातापिता का खयाल नहीं आया? तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारी 2-2 जवान बहनें हैं, उन का क्या होगा? बताओ न क्यों किया तुम ने ऐसा? जानती हूं कोई तो ऐसी बात है जो तुम हम से छिपा रहे हो. बोलो, क्या बात है, तुम्हें मेरी कसम. हमारे प्यार की कसम.’’

यह सब सुनने के बाद सोहम अपने आंसुओं का सैलाब रोक नहीं पाया और एकएक कर साल्वी को सारी बातें बता दीं. सुन कर साल्वी का पूरा शरीर कंपकंपा गया.

‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन तुम ने आत्महत्या करने की कोशिश क्यों की? यह नहीं सोचा कि उस नागिन को सजा दिलवानी है.’’ साल्वी हैरानी से सवाल पर सवाल किए जा रही थी और सोहम अपने बहते आंसू पोंछे जा रहा था.

‘‘अब बच्चों की तरह रोना बंद करो और मेरी बात सुनो. वह तुम्हें फिर बुलाएगी और तुम जाओगे. हां, जाओगे तुम. लेकिन ऐसे नहीं पूरी तैयारी के साथ. उस से पहले हमें पुलिस के पास जा कर सारी सच्चाई बतानी होगी.’’

साल्वी के समझाने के बाद सोहम थाने पहुंच गया और एकएक कर सारी बातें पुलिस को बताईं. हकीकत जानने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि मामला गंभीर है. इसलिए उन्होंने सोहम को फिर मनोरमा के पास जाने को कहा, मगर पूरी तैयारी के साथ, जिस से सबूत के साथ उसे पकड़ा जा सके.

4-5 दिन बाद मनोरमा ने सोहम को फोन किया, ‘‘सोहम, कहां थे तुम इतने दिनों तक? अपना फोन भी नहीं उठा रहे हो. एक काम करो, आज रात यहां आ जाओ. एक जगह माल पहुंचाना है.’’

योजनानुसार सोहम उस के यहां पहुंच गया. उस ने वहां जा कर फिर से वही बात छेड़ी, ‘‘नहीं, अब मैं आप की एक भी बात नहीं मानने वाला और क्या लगता है आप को, आप अपनी अंगुलियों पर मुझे नचाती रहेंगी और मैं नाचता रहूंगा. नहीं, अब ऐसा नहीं होगा मैडम.’’

‘‘पता भी है तुम्हें, तुम क्या बोल रहे हो? एक मिनट भी नहीं लगेगा मुझे तुम्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने में. समझ रहे हो तुम?’’ मनोरमा ने धमकी दी.

‘‘हां, मैं सब समझ रहा हूं और देख भी रहा हूं कि एक औरत ऐसी भी हो सकती है. आप को पता है न आंटी, उस वीडियो में जो भी है, वह गलत है. मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरी बेहोशी का फायदा उठाया और मेरे साथ…’’

‘‘चुप क्यों हो गए, बोलो न कि मैं ने तुम्हारा रेप किया. हां, किया ताकि तुम्हें अपनी मुट्ठी में कर सकूं.’’ बोलते बोलते मनोरमा ने अपने ड्रग्स के सालों से चले आ रहे धंधे के बारे में भी बोलना शुरू कर दिया. वह बोलती चली गई, मगर उसे यह नहीं पता था कि उस की सारी बातें रिकौर्ड हो रही थीं और बाहर खड़ी पुलिस भी उस की बातें सुन रही थी.

‘‘देख लिया न इंसपेक्टर साहब, इस औरत का असली चेहरा?’’ पुलिस के साथ अंदर आते ही साल्वी ने कहा.

अचानक पुलिस को अपने सामने देख कर मनोरमा के होश फाख्ता हो गए. जुबान तो जैसे हलक में ही अटक गई. किसी तरह मुंह से कुछ शब्द निकाल पाई, ‘‘आ…प आप यहां किसलिए इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप को नमस्ते करने के लिए मैडम.’’ कह कर जब इंसपेक्टर ने लेडीज कांस्टेबल को उसे हथकड़ी लगाने को कहा तो वह चीख उठी, ‘‘किस जुर्म में आप मुझे हथकड़ी लगा रहे हैं? पता भी है आप को, मैं कौन हूं? ’’ अपने रुतबे की धौंस दिखाते हुए मनोरमा चीखी.

‘‘मैं बताता हूं कि तुम कौन हो? तुम निहायत ही बदचलन और बददिमाग औरत हो.’’ कह कर सोहम ने एक जोर का थप्पड़ उस के गाल पर दे मारा और कहने लगा, ‘‘तुम्हें क्या लगा, तुम बच जाओगी और यूं ही मुझे इस्तेमाल करती रहोगी. आज तुम्हारे कारण मेरा परिवार अनाथ हो जाता. अगर साल्वी न होती तो शायद आज मैं इस दुनिया में ही नहीं होता. बचा लिया इस ने मुझे और मेरे परिवार को भी. शर्म नहीं आई तुम्हें अपने बेटे जैसे लड़के के साथ संबंध बनाते हुए?’’

गुस्से से आज सोहम की आंखें धधक रही थीं. उस के शरीर का खून इतना उबल रहा था कि वश चलता तो वह खुद ही मनोरमा की जान ले लेता. पर कानून को वह अपने हाथों में नहीं लेना चाहता था.

‘‘इंसपेक्टर साहब ले जाइए इसे और इतनी कड़ी सजा दिलवाइए कि यह अपनी मौत की भीख मांगे और इसे मौत भी नसीब न हो.’’ गुस्से से साल्वी ने कहा, ‘‘इसे ऐसी सजा दिलाना कि अब ये मुट्ठी भर उजियारे के लिए तरसती रह जाए.’’ कह कर वह सोहम का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गई.

प्राथमिक पूछताछ में गिरफ्तार मनोरमा ने पुलिस को बताया कि वह सालों से नेपाल से ड्रग्स मंगवा कर महानगर के विभिन्न बड़े क्लबों, रेव पार्टियों व अन्य रेस्तराओं में सप्लाई करती आ रही थी. वह कुछ युवकों को गुप्त तरीके से नेपाल भेज कर ड्रग्स मंगवाती थी.

सोहम से मिल कर उसे लगा कि यह लड़का उस के धंधे को और आगे तक ले जा सकता है, इसलिए पहले उस ने उसे अपने जाल में फंसाया और फिर उस का इस्तेमाल करती रही. मनोरमा के साथ इस धंधे में और कौन कौन लोग जुड़े थे, पुलिस ने उन का भी पता लगा लिया.

खुद को बचाने और निर्दोष साबित करने के लिए मनोरमा ने एड़ीचोटी का जोर लगाया, लेकिन असफल रही. क्योंकि पुलिस के पास उस के खिलाफ पक्के सबूत और गवाह थे.

मनोरमा को अब मौत की सजा मिले या उम्रकैद, सोहम और साल्वी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. साल्वी के लिए तो बस इतना काफी था कि सोहम को इंसाफ मिल गया और मनोरमा को उस के कर्मों की सजा.

सोहम को आज साल्वी पर गर्व महसूस हो रहा था. सोच रहा था कि उस के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता. उधर साल्वी भी सोहम की बांहों में मंदमंद मुसकरा रही थी. खुले आसमान के नीचे दो मुट्ठी उजियारा उन के लिए काफी था.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 2

एग्जाम्स के बाद साल्वी और पीजी की सारी लड़कियां और सोहम के दोस्त अपने अपने घर चले गए. मगर सोहम नहीं गया. पार्टटाइम नौकरी करने की वजह से वह अहमदाबाद में ही रुक गया था. साल्वी के यहां न रहने पर सोहम कभीकभार मनोरमा के घर चला जाता था और वह भी तब जब मनोरमा किसी काम के लिए उसे बुलाती थी, वरना वह व्यस्त रहता था.

एक रोज सोहम के पास मनोरमा का फोन आया, ‘‘हैलो सोहम, मैं मनोरमा आंटी बोल रही हूं. कहीं बिजी हो क्या?’’

‘‘नहीं तो आंटी, कहिए न?’’ सोहम बोला.

‘‘बस ऐसे ही बेटा, अगर फुरसत मिले तो आ जाना. लेकिन अगर बिजी हो तो रहने दो.’’ मनोरमा बड़ी धीमी आवाज में बोली.

‘‘नहींनहीं आंटी, कोई बात नहीं. बस थोड़ा काम है, खत्म कर के अभी आता हूं.’’ सोहम ने कहा और कुछ देर बाद ही वह मनोरमा के घर पहुंच गया.

‘‘क्या बात है आंटी, आज मुझे कैसे याद किया?’’ अपनी आदत के अनुसार हंसी बिखेरते हुए सोहम ने कहा.

‘‘मैं तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं पर तुम ही अपनी आंटी को भूल जाते हो. वैसे जब साल्वी रहती है तब तो खूब आते हो मेरे पास.’’ मनोरमा हंसते हुए बोली.

सोहम झेंप गया और कहने लगा कि ऐसी कोई बात नहीं है. बस काम और पढ़ाई के चक्कर में वक्त नहीं मिलता.

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी बेटा, पर तुम तो सीरियस हो गए. अच्छा बताओ क्या लोगे, चाय, कौफी या फिर कोल्ड ड्रिंक्स लाऊं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ भी चलेगा आंटी.’’ कहते हुए सोहम टेबल पर रखी मैगजीन उठा कर उलटने पलटने लगा, ‘‘अरे क्या बात है आंटी, आप भी सरिता मैगजीन पढ़ती हो? मेरी मां तो इस मैगजीन की कायल हैं. पता है क्यों, क्योंकि सरिता धर्म की आड़ में छिपे अधर्म की पोल खोलती है इसलिए.

‘‘मां के साथसाथ हम भाईबहनें भी इसे पढ़ने के आदी हो गए हैं और चंपक मैगजीन की तो पूछो मत आंटी. हम भाईबहनों में लड़ाई हो जाती थी उसे ले कर कि पहले कौन पढ़ेगा.’’ बोलते हुए सोहम की आंखें चमक उठीं.

चाय पी कर वह जाने को हुआ तो मनोरमा ने उसे रोक लिया और कहा कि अब वह रात का खाना खा कर ही जाए. सोहम ने मना किया पर मनोरमा की जिद के आगे उस की एक न चली. खाने के बाद एकएक कप कौफी हो जाए कह कर मनोरमा ने फिर उसे कुछ देर रोक लिया.

लेकिन कौफी पीतेपीते ही अचानक सोहम को न जाने क्या हुआ कि वह वहीं सोफे पर लुढ़क गया. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं चला. सुबह उस ने जो दृश्य देखा, उस के होश उड़ गए. रोरो कर मनोरमा कह रही थी कि उस ने जिसे बेटे जैसा समझा और उसी ने उस का ही रेप कर डाला.

‘‘पर आंटी, मम..मैं ने कुछ नहीं किया.’’ सोहम मासूमियत से बोला.

सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है और आंटी ऐसा क्यों बोल रही हैं.

‘‘तो किस ने किया? कौन था यहां हम दोनों के सिवा. तुम्हें पता है कि रात में तुम ने पी कर कितना तमाशा किया था. मैं लाख कहती रही कि तुम्हारी मां जैसी हूं पर तुम ने मेरी एक नहीं सुनी. मुझे कहीं का नहीं छोड़ा तुम ने सोहम.’’ कह कर सिसकते हुए मनोरमा ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

अपने कमरे में आ कर वह 2 दिन तक यूं ही पड़ा रहा. न तो वह कालेज जा रहा था और न ही काम पर. वह अपने किसी दोस्त से भी बातचीत नहीं कर रहा था, क्योंकि वह खुद में ही शर्मिंदा था. एक ही बात उस के दिल को मथे जा रही थी कि उस से इतनी बड़ी गलती कैसे हुई. धिक्कार रहा था वह खुद को. उधर मनोरमा ने भी इस बीच न तो उसे कोई फोन किया और न ही उसे मिलने के लिए बुलाया.

लेकिन एक दिन मनोरमा ने उसे खुद फोन कर अपने घर बुलाया. वह वहां जाना तो नहीं चाह रहा था, पर डरतेसहमते चला गया.

‘‘आ गया सोहम.’’ मनोरमा ने उस से ऐसे बात की, जैसे उन दोनों के बीच कुछ हुआ ही न हो.

‘‘ये बैग तुम्हें इस होटल में पहुंचाना होगा. ये रहा होटल का पता. देखो, इस नाम के आदमी के हाथ में ही बैग जाना चाहिए, समझे?’’  आज मनोरमा का व्यवहार और उस की बातें सोहम को कुछ अटपटी सी लग रही थीं.

बड़ी हिम्मत कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘इस बैग में है क्या और इतनी रात को ही क्या इसे उस आदमी तक पहुंचाना जरूरी है?’’

‘‘ज्यादा सवाल मत करो. जानना चाहते हो इस बैग में क्या है, तो सुनो, इस में ड्रग्स और अफीम है.’’ सुनते ही सोहम के रोंगटे खड़े हो गए और बैग उस के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया.

‘‘अरे, इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हारे माथे पर. बैग उठाओ और जाओ जल्दी, वह आदमी तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा.’’ इस बार मनोरमा की आवाज जरा सख्त थी.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो सोहम. क्या उस रात के बारे में सोच रहे हो. भूल जाओ उस बात को और जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करो. ऐसी छोटीमोटी गलतियां तो होती रहती हैं इंसान से.’’

मनोरमा की बातें और हरकतें देख सोहम दंग था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही औरत है जिसे वह एक अच्छी और सच्ची औरत समझता था. इस तरह मजबूरी में ही कई बार वह ड्रग्स से भरा बैग यहांवहां लोगों के पास पहुंचाता रहा. लेकिन उस ने सोच लिया कि अब वह यह गलत काम नहीं करेगा. मना कर देगा मनोरमा को.

एक दिन सोहम ने कह ही दिया, ‘‘नहीं मैडम, अब मुझ से यह गंदा काम नहीं होगा. कल को अगर मैं पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो क्या आप बचाने आएंगी मुझे? और क्यों करूं मैं यह काम?’’

कह कर वह वहां से जाने लगा तो मनोरमा ठठा कर हंसी और कहने लगी, ‘‘तुम ने मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है? क्या सोचा मैं भूल गई उस रात की बात? नहीं सोहम, मैं उन लोगों में से नहीं हूं. देखो, गौर से देखो इस वीडियो को. इस में साफसाफ दिख रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से बचने की कोशिश कर रही हूं. समझ रहे हो इस का क्या मतलब हुआ?’’

वीडियो देख कर सोहम के होश उड़ गए. वह समझ गया कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि मनोरमा की सोचीसमझी चाल थी, जो उस ने उसे फंसाने के लिए चली थी. वह बोला, ‘‘तो यह सब आप की सोचीसमझी साजिश थी और रेप मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरा किया है.’’

‘‘हां, पर वीडियो तो यही बता रहा है कि रेप तुम ने किया. तुम्हें पता है सोहम, अगर मैं चाहूं तो यह वीडियो पुलिस तक पहुंचा सकती हूं. लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हारी लाइफ बरबाद नहीं करना चाहती और फिर तुम्हारी 2 जवान बहनें हैं. उन का क्या होगा? कौन शादी करेगा उन से?

‘‘तुम्हारे बूढ़े मांबाप उन का क्या होगा? यह सब सोच कर मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. पर तुम मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रहे हो.’’  मनोरमा का चेहरा उस समय किसी विलेन से कम नहीं लग रहा था.

‘‘पर क्यों, क्या बिगाड़ा था मैं ने आप का? मैं तो आप को अपनी मां समान समझता था और आप ने…’’ सोहम चीखते हुए बोला. आज उसे साल्वी की कही बातें याद आने लगीं कि इस मनोरमा मैडम को कम मत समझना. बिना अपने मतलब के कुछ नहीं करती. पर मैं ही बेवकूफ था, उसे ही चुप करा दिया था.

‘‘अब छोड़ो ये सब बातें और चलो अपने काम पर लग जाओ. कल एक रेव पार्टी में तुम्हें एक बैग पहुंचाना है. समय से आ जाना.’’

सोहम मनोरमा के जाल में इस तरह से फंस चुका था कि उसे निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल हो गया था उस का. हंसने और सब को हंसाने वाला सोहम अब चुप रहने लगा था. अपने सारे दोस्तों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था. उस से कोई कुछ कहतापूछता तो वह चिढ़ कर उसी से लड़ पड़ता.

अपने आप को वह एक हारे हुए इंसान के रूप में देखने लगा था जो मुट्ठी भर उजियारा तलाशने यहां आया था, अब उसे अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा था. कभी वह सोचता कि सारी बातें साल्वी को बता दे, लेकिन फिर मनोरमा की धमकी उसे याद आने लगती थी और वह सहम कर मुंह सिल लेता.

‘‘सोहम, क्या हो गया है तुम्हें, जब से आई हूं देख रही हूं कि न तो मुझ से मिलने आते हो और न ही कभी फोन करते हो. जब मैं फोन करती हूं तो बाद में करता हूं, कह कर फोन काट देते हो. बोलो न, हो क्या गया है तुम्हें सोहम?’’ तैश में आ कर साल्वी ने पूछा.

‘‘हां, नहीं बोलना. मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूं कि जब तुम बुलाओ दौड़ा चला आऊं तुम्हारे पास? अरे मैं यहां पढ़ने आया हूं, तुम्हारा दिल बहलाने नहीं, समझीं. बड़ी आई.’’ कह कर सोहम वहां से चलता बना और साल्वी अवाक उसे देखती रह गई. सोहम ने एक बार पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि वह उसे ही देखे जा रही है.

जब भी साल्वी उस से बात करने की कोशिश करती, चुप्पी साधने का कारण पूछती तो वह झुंझला जाता. इतना ही नहीं, वह उसे अनापशनाप बोलने लगता था. धीरेधीरे साल्वी का मन भी उस से खट्टा होने लगा. उस ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया.

इस बीच कई महीनों तक दोनों के बीच कोई खास बातचीत नहीं हुई. बस ‘हां..हूं..’ में ही बातें हो जातीं कभीकभार. सोहम तो जान रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, पर साल्वी नहीं समझ पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो सोहम उस से कटाकटा रहने लगा है. एक दिन साल्वी ने सोहम को मनोरमा मैडम के घर से निकलते देखा तो वह हैरान रह गई. साल्वी ने उस से पूछा भी कि वह यहां क्या कर रहा था.

‘‘मैं कुछ भी कर रहा हूं, तुम्हें इस से क्या मतलब?’’ सोहम ने कहा तो साल्वी चुप हो गई.

सोहम के जाने के बाद साल्वी सोचने लगी, ‘अच्छा, तो अब मुझ से ज्यादा मनोरमा मैडम उस की अपनी हो गई.’

दूसरी ओर सोहम एक पंछी की तरह बंद पिंजरे से निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था. एक तो साल्वी के लिए उस की बेरुखी और ऊपर से मनोरमा मैडम का उसे जबतब बुला कर उस का यूज करना, अब उस के बरदाश्त के बाहर हो रहा था. लेकिन उस दिन बड़ी हिम्मत कर के उस ने बड़ा फैसला ले लिया कि अब वह मनोरमा की एक भी बात नहीं मानेगा, चाहे जो भी हो जाए.

जैसे ही मनोरमा का फोन आया, सोहम ने कहा, ‘‘नहीं, मैं नहीं करूंगा अब ये काम. आप क्या समझती हैं कि आप इस तरह से मुझे अपनी कैद में रख पाएंगी. दिखा दो जिसे भी वीडियो दिखाना हो. एक काम करो, मुझे वह वीडियो भेजो, मैं खुद ही उसे वायरल कर देता हूं. अब सारी सच्चाई दुनिया वालों के सामने आ ही जानी चाहिए. नहीं डरना अब मुझे किसी से भी, जो होगा देखा जाएगा.’’

कह कर सोहम ने फोन काट दिया और साल्वी को सब कुछ बताने के लिए फोन कर ही रहा था कि उस की मां का फोन आ गया. मां कहने लगीं कि उस की बहन का रिश्ता तय हो गया है, वह घर आ जाए. इधर मनोरमा मैडम उसे फोन पर धमकी दिए जा रही थी कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को पुलिस को सौंप देगी.

ऐसे में सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सोचने लगा कि फिर क्या होगा उस की बहन का?

सोचतेसोचते सोहम को लगा कि उस का दिमाग फट जाएगा. मन तो कर रहा था कि वह कहीं भाग जाए या मर जाए. हर तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था. आखिर उस ने एक फैसला ले ही लिया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 1

अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.

Top 25 Crime Kahaniyan In Hindi : टॉप 25 क्राइम कहानियां हिंदी में

Top 25 Crime Kahaniyan :  इन क्राइम कहानियों को पढ़कर आप जान पाएंगे कि इस बदलते समाज में कैसे और किस तरह के अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं. समाज में हो रहे अपराध और धोखाधड़ी से आप स्वयं को और अपने आस पास के लोगों को जागरूक करने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां Best 25 Crime Kahaniyan in Hindi 

1. दिल्ली का साहिल साक्षी केस : प्यार पर नफरत के वार – भाग 1

“किसी को जो कुछ कहना है, कहे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तुझे दिल से चाहता हूं और तुम किसी और को, यह मुझे कदापि बरदाश्त नहीं होगा, समझी?” बोलते हुए साहिल उस के बालों को कस कर पकड़ कर खींचने लगा. उस का दूसरा हाथ साक्षी की गरदन पर आ गया था. साक्षी अचानक साहिल के इस हमले से लडख़ड़ा गई. किसी तरह उस के हाथ से अपने बालों को छुड़ाया. तब तक वह जमीन पर गिरने की स्थिति में आ गई थी.

दूसरी तरफ साहिल हारे हुए शिकारी की तरह तिलमिलाने लगा था, चीखा, “हरामजादी, रंडी कहीं की, इश्क करेगी? अभी बताता हूं, तूने अभी तक मेरा गुस्सा नहीं देखा है. कल तक प्यार से समझा रहा था, फिर भी तू नहीं मानी, अब देख मैं क्या करता हूं…”

साहिल ने फुरती से अपनी जींस पैंट में से बड़ा चाकू निकाल लिया. बाएं हाथ से बाल समेत उस की गरदन दबोच ली, दाएं हाथ में चाकू से दनादन उस पर वार करने लगा. साक्षी चीखने लगी. उस की चीख सुन कर पास से गुजर रहे कुछ लोग ठिठक गए.

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2. नन्हा हत्यारा, जिसने पूरा पंजाब हिला दिया

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रमेश दीपू को अपने कमरे में ले जा कर अंदर से कुंडी बंद कर ली. इस के बाद उसे उठा कर पलंग पर पटक दिया. अचानक हुए इस हमले से दीपू घबरा गया और खुद को रमेश के चंगुल से छुड़ाने के लिए हाथपैर चलाने लगा. दीपू छोटा और उस से कमजोर था, इसलिए उस का मुकाबला नहीं कर सका. उस ने रमेश को 2-3 जगह दांतों से काटा भी. लेकिन रमेश उस की छाती पर सवार हो गया और उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

दीपू की हत्या करने के बाद रमेश ने लाश को पलंग से नीचे उतारा और घसीट कर बाथरूम में ले गया. इस के बाद घर में रखी खुरपी से उस के शरीर के टुकड़े कर प्लास्टिक के कट्टे में भर दिए. दिल निकाल कर उस ने अलग पौलीथिन में रख लिया. जब गली में कोई नहीं दिखाई दिया तो लाश के टुकड़ों वाले कट्टे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक आया.

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3. रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 1

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पुलिस टीम जब अंदर दाखिल हुई तो वहां का नजारा देख चौंकी. कमरों का इंटीरियर बहुत अच्छा था, हर कमरे में एलसीडी लगे थे पर पूरा घर अस्तव्यस्त पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे वहां मुद्दत से साफसफाई नहीं की गई है. पुलिस ने उदयन से आकांक्षा के बारे में पूछा तो वह खामोश रहा.

पहली मंजिल पर चबूतरा बना देख पुलिस वालों का चौंकना स्वाभाविक था. कमरों में सिगरेट के टोंटे पड़े थे. साथ ही शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. सिगरेट के टोंटों की तादाद हजारों में थी. कुछ प्लेटों में बासी सब्जी व दाल पड़ी थी, जिन से बदबू आ रही थी.

जैसेजैसे पुलिस टीम घर को देख रही थी, वैसेवैसे रोमांच और उत्तेजना दोनों ही बढ़ती जा रही थीं. हर कमरे की दीवार पर लव नोट्स लिखे हुए थे, जिन में आकांक्षा के साथ बिताए लम्हों का जिक्र साफ दिखाई दे रहा था. कुछ देर घर में घूमने के बाद पुलिस ने जब उदयन से दोबारा पूछा कि आकांक्षा कहां है तो उस ने बेहद सर्द आवाज में जवाब दिया, ‘‘मैं ने उस का कत्ल कर दिया है और वह इस चबूतरे के नीचे है.’’

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4. अपनों के खून से रंगे हाथ : ताइक्वांडो कोच को मिली सजा – भाग 1

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युवा प्रेमी से मिलने वाले जिस्मानी सुख को पाने की चाहत में संतोष शर्मा का दिमाग इस कदर खराब हुआ कि वह अपना घरबार, गृहस्थी, पति, बच्चे सभी कुछ भुला बैठी. संतोष शर्मा खुद से 10 साल छोटे आशिक हनुमान को हनी कह कर बुलाने लगी. हनी एक दोस्त के साथ उदयपुर में किराए के कमरे में रह कर बीपीएड की ट्रेनिंग कर रहा था. वह शारीरिक शिक्षक की नौकरी हासिल करना चाहता था. अविवाहित था.

घर से पैसे मंगा कर उदयपुर में दोस्त के साथ रह कर ट्रेनिंग कर रहा था. साथ ही मार्शल आर्ट का भी उसे शौक था. इसी दौरान कोचिंग में उस की मुलाकात संतोष शर्मा से हुई थी. उम्र में बड़ी हो कर भी उस का फिगर नवयुवतियों को मात करने वाला था. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 3 बच्चों की मां है. सलवार सूट में तो वह अभी भी किसी कालेज गर्ल जैसी ही दिखती थी. खूबसूरती और सैक्स अपील की अदाओं पर ही हनुमान मर मिटा था. जल्द ही वह संतोष शर्मा के इशारों पर नाचने लगा था.

अविवाहित हनुमान संतोष शर्मा के शारीरिक आकर्षण से पागल सा हो गया था. संतोष शर्मा एक आधुनिक दौर की युवती थी, जो जिंदगी का भरपूर आनंद लेने में विश्वास रखती थी. उसे अपने तीनों बच्चों से कोई मोह नहीं था और न ही वह अपने पति बनवारी लाल को दिल से पसंद करती थी.

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5. 60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 1

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देखतेदेखते एक प्रोफाइल पर उस की नजर अटक गई. नाम था डा. बिधु प्रकाश स्वैन. केंद्र सरकार की नौकरी थी. वह स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल बोर्ड औफ ऐडमिशन कमिटी का डेप्युटी डायरेक्टर जनरल के पद पर बेंगलुरु में पोस्टेड था. उस ने अपनी पसंद के बारे में लिखा था, ‘‘उसे एक एक समझदार और कल्चर्ड महिला की तलाश है.’’

प्रोफाइल में उम्र दर्ज थी 42 साल. मैरिटल स्टेटस में अनमैरेड लिखा था. साथ ही अपने अविवाहित होने का कारण भी था कि उस की शादी पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने और नौकरी के सिलसिले में ट्रांसफर आदि होते रहने के चलते नहीं हो पाई थी. पुश्तैनी घर, परिवार और इलाके की कुछ तसवीरों के अलावा अशोक स्तंभ चिह्न के लोगो लगे विजिटिंग कार्ड और भारत सरकार लिखे लालबत्ती गाड़ी की तसवीरें भी लगी हुई थीं.

यह सब देख कर अवंतिका को उस पर भरोसा बन गया. दूसरी बात यह कि वह भुवनेश्वर में पढ़ाई के सिलसिले में रह चुकी थी, इसलिए उस प्रोफाइल को नजरंदाज नहीं कर पाई. लैपटाप पर सेव कर वह विशलिस्ट में डाल दी.

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6. 3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज – भाग 1

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“अरे जीजाजी सब ठीक है, बहुत दिनों से हमारी राधा दीदी से बात नहीं हुई तो सोचा आज होली का त्यौहार है, इसी बहाने उस से बात कर लूं.’’ दिलीप ने शैलेंद्र से कहा.

“लेकिन तुम्हारी जीजी तो 8-10 दिन पहले ही देवरी जाने की बोल कर गई है, क्या तुम्हारे पास नहीं पहुंची?’’ शैलेंद्र ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

“अरे जीजा, काहे मजाक कर रहे हो. चलो जल्दी से राधा से बात कराओ,’’ दिलीप बोला.

“अरे भाई, मैं मजाक नहीं कर रहा, सच बोल रहा हूं. राधा घर पर यही बोल कर निकली है कि काफी दिनों से वह अपने मायके नहीं गई है, इसलिए होली पर गुलाल लगाने भाई के घर जा रही है. यकीन न हो तो शक्ति और शौर्य से बात कर लो.’’

शैलेंद्र ने दिलीप को यकीन दिलाते हुए मोबाइल अपने बड़े बेटे शौर्य को पकड़ाते हुए कहा. शौर्य ने दिलीप को बताया, ‘‘मामाजी, मम्मी तो यहां से यही बोल कर गई है कि कुछ दिनों के लिए मामा के यहां जा रही हूं.’’

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7. सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 1

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सुनील कुमार एसएचओ के औफिस से उठ कर बाहर आ गए और बेटी की गुमशुदगी लिखा कर वापस घर लौट आए. अपनी तहरीर में इन्होंने दीपक कुमार साव और रोहित कुमार मेहता को नामजद किया था. उन्होंने यह आशंका जताई थी कि दीपक बेटी को बारबार फोन कर के परेशान किया करता था. दीपक को पकड़ कर कड़ाई से पूछताछ की जाए तो बेटी के बारे में जानकारी मिल सकती है.

दरअसल, कई साल पहले दीपक सोनाली को उस के घर ट्यूशन पढ़ाया करता था. तब वह 12वीं क्लास में पढ़ती थी. तभी से दोनों एकदूसरे को जानतेपहचानते थे. सोनाली के घर वाले भी दीपक को अच्छी तरह जानते थे. शिक्षक की हैसियत से वह अकसर सोनाली को फोन किया करता था. इस का घर वालों ने कभी ऐतराज नहीं किया. वे जानते थे इन के बीच एक पवित्रता और मर्यादा का रिश्ता है. इस रिश्ते का उन को खास खयाल है.

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8. कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 1

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मोनिका ने उस ओर देखा, तब तक एक कार उस के पास आ कर ही रुक गई थी. दूसरी तरफ ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक ने अपना परिचय सुनील के रूप में दिया और उसे गाड़ी में बैठने को कहा. मोनिका हिचकिचाई. उस के कुछ बोलने से पहले ही सुनील ने मोबाइल फोन का स्पीकर औन कर उस के सामने कर दिया. दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी. ‘‘हैलो, सुनील, बोलो क्या बात है?’’

“भाभीजी, मोनिका से बात कीजिए…’’

“मोनिका…तुम्हारे पास?’’ उधर से चिंतातुर आवाज आई.

“जी भाभी, उस की बस खराब हो गई है, दूसरी बस का इंतजार कर रही है. मैं उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट देने के लिए बोल रहा हूं, लेकिन वह हिचकिचा रही है. शायद मुझे नहीं पहचानती है.’’ सुनील बोला.

दूसरी तरफ से उस की भाभी सोनिया की आवाज आई, ‘‘अरे उसे फोन तो दो, मैं बात करती हूं. तुम्हारे बारे में बताती हूं.’’

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9. अपराध: लव, सैक्स और गोली

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शूटरों के साथ यह डील अगस्त महीने की शुरुआत में ही हुई थी. अगस्त महीना खत्म हो गया और उस के बाद सितंबर भी आधा खत्म हो गया और विक्रम को ठिकाने नहीं लगाया जा सका तो खुशबू परेशान हो गई. उस ने मिहिर पर दबाव बनाना शुरू किया. विक्रम राजीव को जिम ट्रेनिंग देने के लिए उस के घर पर जाता था. वहीं खुशबू से जानपहचान हुई और बातचीत शुरू हुई.

विक्रम के गठीले बदन को देख खुशबू उस पर फिदा हो गई. वह धीरेधीरे विक्रम के करीब आती गई. वह पटना मार्केट के पास विक्रम के जिम में पहुंचने लगी और वहीं कईकई घंटों तक बैठी रहती थी. विक्रम ने पुलिस को बताया कि वह उस के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना चाहती थी. ऐसा नहीं करने पर वह उसे फंसाने और ब्लैकमेल करने की धमकी देने लगी.

जब विक्रम उस से दूर रहने की कोशिश करने लगा तो एक रात को विक्रम के घर पहुंच गई और हंगामा मचाने लगी. खुशबू की हरकतों से आजिज आ कर विक्रम ने डाक्टर राजीव को फोन कर सारे मामले की जानकारी भी दी. विक्रम ने उस से कहा कि खुशबू उसे पिछले कई दिनों से परेशान कर रही है. डाक्टर राजीव ने विक्रम की बातों पर यकीन नहीं किया और उस से कहा कि सुबूत ले कर आओ, उस के बाद देखा जाएगा.

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10. सिरफिरे का प्यार : बना गले की फांस – भाग 1

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राहुल अच्छी कदकाठी का आकर्षक नौजवान था. नेहा ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. इस के बाद दोनों के बीच चैटिंग का सिलसिला चल निकला. जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई और उन्होंने एकदूसरे का नंबर ले लिया. बातों का दायरा बढ़ा तो बातों के साथसाथ मुलाकातें भी शुरू हो गईं.

चंद दिनों की मुलाकातों में दोनों के बीच प्यार हो गया. नेहा शादीशुदा थी, लेकिन उस ने यह बात राहुल से छिपा ली थी. वक्त के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ा, तो राहुल उस के साथ अपनी दुनिया बसाने का ख्वाब देखने लगा. राहुल उसे दिल से चाहता है, नेहा यह बात बखूबी जानती थी. यही वजह थी कि वह उस की एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी.

सामाजिक लिहाज से शादीशुदा हो कर भी किसी युवक के साथ इस तरह का रिश्ता रखना यूं तो गलत था, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में बह कर नेहा भी दिल के हाथों मजबूर हो गई थी. पतन की डगर कभी अच्छी नहीं होती.

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11. प्रेम त्रिकोण में मारा गया ग़ालिब

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कुछ महीने पहले गालिब जब जेल से छूट कर आया तो उस ने अपनी प्रेमिका जरीन से मिलने की कोशिश की, लेकिन जरीन ने अयाज से संबंधों के चलते गालिब खान से दूरी बना ली. वह जरीन को अपने साथ रहने के लिए उस पर तरहतरह के दबाव बनाने लगा, जबकि वह नए आशिक के साथ इश्क फरमा रही थी. वह अयाज को छोडऩे के लिए राजी नहीं थी.

यह बात गालिब को अखरने लगी. गालिब को यह कतई बरदाश्त नहीं हुआ कि उस की प्रेमिका उस के होते हुए किसी दूसरे की बांहों में दिखाई दे. वह सिरफिरे आशिक की तरह हो गया. जहां भी अयाज दिखाई दे जाता, वह उस के साथ मारपीट कर देता.

गालिब बहुत शातिर था. उस ने पहले ही अपने और जरीन के शारीरिक संबंधों की एक वीडियो बना ली थी. गालिब उस अश्लील वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर उस के साथ जब चाहे तब दुष्कर्म करता था. इसी ब्लैकमेलिंग से आजिज आ कर जरीन ने अपने प्रेमी गालिब से दूरी बनाई थी. लेकिन जेल से छूट कर आने के बाद वह फिर से वही काम करने लगा.

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12. बदनामी सह न सकी बदनाम औरत

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ब्रांडी का कमरा किसी जन्नत से कम नहीं था. कमरे के बीचोबीच बेड पड़ा था, जो बेहद कीमती था. उस के सिरहाने एक छोटी सी टेबल रखी थी, जिस पर सुगंधित मोमबत्ती जल रही थी. हलका उत्तेजक संगीत बज रहा था. मोमबत्ती की हलकी रोशनी में पारदर्शी गाउन पहने ब्रांडी लेटी थी.

उसे देख कर फिलिप्स की आंखें हैरत से फटी रह गई थीं. उसे ब्रांडी नहीं, जन्नत दिखाई दे रही थी. वह होश खो बैठा. उसे आगे बढ़ने का होश ही नहीं रहा. उसे ठगा सा देख ब्रांडी ने कहा, ‘‘एक घंटे के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं, जिस की कीमत तुम अदा कर चुके हो. अब दूर खड़े क्या देख रहे हो, करीब आ जाओ.’’

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13. ठगी का नया जामताड़ा: नूंह-मेवात – भाग 1

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नूंह जिले के साथ ही मेवात क्षेत्र राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले तक फैला हुआ है. इन जिलों के 40 गांवों के युवा जामताड़ा के साइबर ठगों के संपर्क में आ कर इतने शातिर अपराधी बन चुके हैं कि उन्होंने झारखंड के जामताड़ा की यादों को फीका कर मेवात के जामताड़ा को उस से भी बड़ा कर दिया है.

जामताड़ा के बाद साइबर अपराध के मामलों में देश का दूसरा सब से बड़ा केंद्र मेवात बन चुका है. हरियाणा-राजस्थान के मेवात क्षेत्र में बैठे ये ठग विभिन्न राज्यों के सैकड़ों लोगों को अपना शिकार बनाते हैं और उन से लाखों की ठगी करते हैं. अनपढ़ से ले कर आठवीं और दसवीं पास युवा ठगी करने में माहिर हैं.

वे बैंक मैनेजर से ले कर बीमा कंपनी के अफसर बन कर पढ़ेलिखे व्यक्ति को बड़ी आसानी से अपने चंगुल में फंसा लेते हैं. इन बदमाशों ने फिल्म अभिनेताओं, सैन्यकर्मियों तथा कई प्रतिष्ठित नेताओं को भी चूना लगाया है. बीते साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बेटी को भी साइबर ठगों ने अपने चंगुल में फंसा लिया था.

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14. व्हाइट कालर्स को पसंद ब्लैक ब्यूटी

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पकड़ी गई भोपाली युवतियों ने इस का राज भी यह बता कर खोल दिया कि भोपाल में इन दिनों अफ्रीकन लड़कियों के शौकीनों की तादाद बढ़ रही है. इस के पीछे मर्दों की यह सोच है कि अफ्रीकन यानी काली लड़कियां सैक्स में माहिर होती हैं और अप्राकृतिक व ओरल सैक्स से परहेज नहीं करतीं. इस के अलावा इन के सामान्य से बड़े आकार के स्तन भी पुरुषों को बहुत लुभाते हैं.

एक कालगर्ल का कहना था कि मर्द जो कुछ ब्लू फिल्मों में देखते हैं, वह खुद भी वैसा ही करना चाहते हैं. लेकिन आमतौर पर देसी कालगर्ल्स इस तरह के जंगली सैक्स से परहेज करती हैं, इसलिए युगांडाई युवतियों को फंसाया गया या राजी किया गया, कहना मुश्किल है. हां, सैक्स में प्रयोग का यह शौक पांचों युवकों को महंगा पड़ा.

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15. कामुक पति की पांचवीं पत्नी का खेल

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वीरेंद्र ने उस की एक नहीं सुनी और अपनी जिद पर अड़ा रहा. उस रात उस ने जबरन कंचन के साथ अप्राकृतिक सैक्स संबंध बनाए. कंचन को उल्टियां भी हो गईं. देह चूरचूर हो गई. शराब की गंध नथुने में भर गई. जीभ पर शराब का तीखापन भरा हुआ था.

अप्राकृतिक सैक्स संबंध  से काफी पीड़ा हो रही थी. उस की आंखें सूज गई थीं. गालों पर थप्पड़ों के निशान भी पड़ गए थे. शरीर पर नाखूनों से नोचे जाने की खरोंचें भी थीं. किसी तरह से उस ने कपड़े पहने. कंबल घिसटते हुए बच्चों के कमरे में आ गई. तब तक वीरेंद्र निढाल हो चुका था, कंबल में खर्राटे भरने लगा था.

कंचन वीरेंद्र गुर्जर की पांचवीं पत्नी थी. वीरेंद्र अव्वल दरजे का शराबी था. साथ ही अय्याश किस्म का व्यक्ति था. वह कहने को इंसान था, लेकिन उस के चरित्र में हैवानियत शामिल थी. कामुकता से भरा हुआ था. सैक्स की बातों से उबलता रहता था. बातबात में घूमफिर कर सैक्स की बातें ही उस के जुबान से निकल पड़ती थीं. मांबहन की भद्ïदी गालियों के साथसाथ यौनाचार संबंधी गालियां तो उस की जुबान पर रहती थीं.

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16. पुलिस की छाया में कैसे बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर – भाग 1

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ठीक इसी वक्त अशरफ बोल पड़े, ‘‘मेन बात ये है कि गुड्ïडू मुसलिम…’’ उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी मीडियाकर्मियों की भीड़ में से 2 लोगों ने अपने माइक और आईडी नीचे फेंक दी. उन्होंने तुरंत हथियार निकाल कर अतीक और अशरफ को निशाना बनाया. एक ने अतीक की कनपटी पर पिस्टल सटा दी और दूसरे ने तड़ातड़ फायरिंग शुरू कर दी. वे फायरिंग अत्याधुनिक सेमी आटोमैटिक हथियार से कर रहे थे. इसी दौरान तीसरे कथित मीडियाकर्मी ने भी अतीक और अशरफ को निशाना बना कर फायर करने शुरू कर दिए थे.

जब तक कोई कुछ समझ पाता और पुलिस सचेत हो पाती, तब तक मीडियाकर्मी बन कर आए हमलावरों द्वारा अतीक और अशरफ पर दनादन कई गोलियां दागी जा चुकी थीं. हमलावरों की लगातार हुई फायरिंग से कांस्टेबल मान सिंह भी जख्मी हो गए. उन के दाहिने हाथ में गोली लगी थी. गोलीबारी के बीच आधुनिक हथियार थामे हुए पुलिस वालों ने हमलावरों पर गोली नहीं चलाई और न ही अतीक व उस के भाई को बचाने की कोशिश की. इसे लोगों ने सुनियोजित साजिश बताया. हमलावर निर्भीकता के साथ ‘जय श्रीराम’ का जयघोष कर भागने लगे, जबकि मीडियाकर्मियों के कैमरे औन थे

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17. अभिनेत्री आरती मित्तल का सैक्स रैकेट

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“जी बोलिए शुभमजी, आप को पसंद आई हैं न मेरी बिंदास मौडल्स?” आरती ने काल रिसीव करते हुए कहा.

“आरतीजी, फोटो देख कर तो सचमुच मेरा दिल खुश हो गया. अब मैं ने गोरेगांव के चितरंजन होटल में आप केकहे अनुसार 2 कमरे भी बुक करा दिए हैं. एक कमरा विवेक के नाम और दूसरा कमरा मैं ने अपने क्लाइंट कैलाश के नाम बुक करा दिया है. देखिए आरतीजी, मेरा आप से रिक्वेस्ट है कि ये दोनों मेरे काफी खास कस्टमर हैं. मैं इन दोनों को बिलकुल भी नाराज नहीं कर सकता, इसलिए मैं खुद इन दोनों को ले कर 10 मिनट में गोरेगांव के चितरंजन होटल पहुंच रहा हूं.” मनोज सुतार ने बताया.

“शुभमजी, आप अपने कस्टमर्स का काफी अच्छा खयाल रखते हैं. व्यापार में तो यह सब करना ही पड़ता है, पर आप कुछ निवेदन करना चाहते थे, वह तो आप ने अब तक किया ही नहीं. बोलिए, आखिर क्या निवेदन करना चाहते हैं आप?” आरती ने पूछा.

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18. क्रूरता की इंतिहा

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जसबीर नीयत की साफ थी और भोली भी. रविंदर कौर की बातों को वह समझ नहीं पाई और उस के घर चली गई. वहां पहले से ही रविंदर कौर के परिवार के सब लोग मौजूद थे. सो समय व्यर्थ न करते हुए सब ने किसी तरह जसबीर को अपने कब्जे में ले कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

दम घुटते ही जसबीर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. तभी तांत्रिक दीशो ने अपने साथ लाए सर्जिकल ब्लेड से उस का पेट चीर कर पेट का शिशु बाहर निकाल लिया. शिशु को गोद में ले कर जब देखा तो पता चला कि जसबीर कौर के साथसाथ वह भी मर चुका है. मां और बच्चे की मौत के बाद उन सब के हाथपैर फूल गए.

अब क्या किया जाए? सब के सामने अब यही एक प्रश्न था. काफी सोचविचार के बाद तय किया गया कि शिशु के शव को घर में बनी सीढि़यों के नीचे गाड़ दिया जाए और जसबीर की लाश कमरे के बाहर रखे संदूक में छिपा दिया जाए.

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19. दिलजली प्रेमिका ने जब मंडप में खेला तेजाबी खेल

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पलभर में बदले उस के हावभाव और बातों से अंजना को झटका सा लगा. वह कुछ समझ पाती, उस से पहले ही दोनों लड़कियों ने एकदूसरे की तरफ देख कर इशारा किया तो उन में से एक ने झपट कर अंजना के हाथ पकड़ लिए तो उस की साथी लड़की ने एक बोतल निकाली और उस का ढक्कन खोल कर उस में भरा तरल अंजना पर उछाल दिया.

बचाव के लिए अंजना ने अपना चेहरा घुमा लिया. अपना काम कर के दोनों लड़कियां तेजी से कमरे के बाहर निकल गईं. जबकि तरल पड़ते ही अंजना जलन से चीखने लगी.

उस की चुनरी भी जल गई थी, क्योंकि उस पर उछाला गया तरल तेजाब था. जलन से अंजना बिलबिला उठी. वह दरवाजे की तरफ भागी, लेकिन लड़कियों ने बाहर जाते वक्त दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था.

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20. परी का प्यार हुआ जानलेवा – भाग 1

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3 दिन बाद मालती का पति सोनू उसे लेने अपनी ससुराल मोहनगढ़ आया तो वह बेमन से ससुराल चली गई. ससुराल में किसी को भी उस के शादी से पूर्व के प्रेम प्रसंग के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए उसे देर रात मोबाइल पर बतियाते देख किसी को उस पर संदेह नहीं हुआ. ससुराल वाले यही समझते रहे कि वह अपने मांबाप की लाडली बेटी है उन्हीं से बतियाती होगी.

इत्तफाक से एक दिन मालती के पति सोनू की देर रात अचानक नींद टूट गई, तब उस ने उसे किसी पुरुष से खिलखिला कर हंसते हुए वीडियो कालिंग पर बात करते हुए देखा. इस से सोनू को मालती पर शक हो गया. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि शादी के बाद भी पत्नी का किसी अन्य पुरुष से चक्कर चल रहा होगा. काफी प्रयत्न करने पर सोनू को पता चला कि मालती का प्रेम प्रसंग मोहनगढ़ गांव के पवन से चल रहा है. इस जानकारी से सोनू को गहरा झटका लगा.

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21. आफरीन के प्यार में मनोहर के 8 टुकड़े

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6 जून, 2023 को मनोहर लाल अपने घर वालों से झूठ बोल कर अपने साथ दोनों खच्चरों को ले कर घर से निकला था. मनोहर लाल ने आफरीन के घर जाने से पहले ही अपने दोनों खच्चरों को सलूनी नाले के पास छोड़ दिया. फिर वह आफरीन के घर चला गया. उस के बाद उन्होंने उसे फिर से समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उन की एक भी बात मानने को तैयार न था.

उसी से तंग आ कर उन्होंने उसे घर में ही डंडों से बुरी तरह से मारापीटा. जब मनोहर लाल बेहोश हो गया तो उन्होंने उस की हत्या कर दी. उस के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए लकड़ी काटने वाली आरी से उसे 8 टुकड़ों में काट डाला. फिर उस के सभी टुकड़ों को 3 बोरियों में भर कर नाले में पानी के नीचे पत्थरों से दबा दिया.

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22. अधेड़ उम्र का खूनी प्यार

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ऐसे कब तक मिलतेजुलते दोनों? ज्यादा समय साथ बिताने के लिए सविता ने आशीष को रिश्ते में बांधने का फैसला किया. खुद तो आशीष के साथ सामाजिक तौर पर एक हो नहीं सकती थी, इसलिए उस ने अपनी 21 वर्षीय बेटी रवीना की शादी अपने प्रेमी आशीष के साथ करने की सोची. इस से दोनों आसानी से मिल सकते थे और सास दामाद का रिश्ता बनने के कारण कोई उन पर शक भी नहीं करता.

सविता अपने प्यार को पाने के लिए अपनी ही सगी बेटी को बलि का बकरा बनाने की सोच रही थी. आशीष भी उस की बेटी से शादी करने को तैयार था. तैयार होता भी क्यों नहीं, इस फैसले से उस के दोनों हाथों में लड्डू ही लड्डू होते. एक तरफ वह अपनी प्रेमिका से मजे लेता, वहीं दूसरी तरफ उस की बेटी के साथ भी मजे लेता. सविता ने बेटी की शादी की बात अपने पति और बेटी के सामने चलाई तो दोनों ने शादी करने से साफसाफ मना कर दिया.

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23. वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर?

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रविंद्र को अपनी कामवासना शांत करने का यह तरीका अच्छा लगा. क्योंकि वह 2 हत्याएं कर चुका था और दोनों ही मामलों में वह सुरक्षित रहा, इस से उस के मन का डर निकल गया. इस के बाद वह कंझावला इलाके में एक बच्ची को बहलाफुसला कर सुनसान जगह पर ले गया और उस के साथ कुकर्म कर के उस की हत्या कर दी.

बच्चियों को देख कर जाग जाती थी कामकुंठा

वह कोई एक काम जम कर नहीं करता था. कभी गाड़ी पर हेल्परी का काम करता तो कभी बेलदारी करने लगता. नोएडा के सेक्टर-72 में वह एक बिल्डिंग में काम कर रहा था. वहां भी उस ने अपने साथ काम करने वाली महिला बेलदारों की 2 बच्चियों को अलगअलग समय पर अपनी हवस का शिकार बनाया. वह उन बच्चियों को चौकलेट दिलाने के लालच में गेहूं के खेत में ले गया था. वहीं पर उस ने उन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

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24. एक क्रूर औरत की काली करतूत

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भाई ने पूछा कि वह गड्ढा क्यों खोद रही है तो उस ने कहा, ‘‘तू अंदर जा कर सो जा, मैं क्या कर रही हूं, इस बात पर ध्यान न दे.’’

शिवपूजन जा कर सो गया. अर्चना ने साढ़े 3 फुट गहरा गड्ढा खोद डाला. गड्ढा खोद कर अर्चना अंदर पहुंची तो देखा सुमिक्षा बेहोश पड़ी थी. दरअसल उस ने मैगी में नशीली दवा मिला दी थी, इसलिए मैगी खा कर सुमिक्षा बेहोश हो गई थी.

अर्चना ने बेहोश पड़ी सुमिक्षा के दोनों हाथ पीछे बांध कर मुंह और नाक में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद ऊपर से पौलीथिन लपेट कर उसे उठाया और गड्ढे में लेटा कर ऊपर से 2 थैली नमक डाल कर गड्ढे को ढक दिया. नमक उस ने इसलिए डाला था, ताकि लाश जल्दी गल जाए.

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25. भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी

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एक दिन घर में थोड़ा ज्यादा झगड़ा हो गया. अप्सरा ऐसी बिफरी की मुझे और कार्तिक को गंदीगंदी गालियां देने लगी. कार्तिक को भी गुस्सा आ गया. उस ने अप्सरा पर हाथ उठा दिया. इस के बाद अप्सरा थाने चली गई और कार्तिक के खिलाफ तरहतरह के आरोप लगा कर शिकायत दर्ज करा दी. अप्सरा की सुंदरता देख कर पुलिस ने भी फटाफट मुकदमा दर्ज कर लिया और कार्तिक को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद अप्सरा अपनी मां के साथ चेन्नै से हैदराबाद चली गई.

करीब डेढ़ महीने बाद कार्तिक जमानत पर जेल से बाहर आया. जेल जाने से उस की नौकरी भी चली गई थी, जिस की वजह से वह भारी डिप्रेशन में आ गया. मां धनलक्ष्मी ने उसे बहुत समझाया, हिम्मत दी. पर अप्सरा ने उसे जिस तरह परेशान किया था, उस से वह इस हद तक टूट गया था कि वह इस हादसे से उबर नहीं पाया और जेल से बाहर आने के चौथे दिन उस ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

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