Crime Stories : पिता ने दामाद के साथ मिलकर किया बेटी के प्रेमी का कत्ल

Crime Stories :  जिस इज्जत और बेटी की जिंदगी बचाने के लिए सुरेश ने राजू की हत्या की, उस के जेल जाने से इज्जत तो गई ही, बेटी की जिंदगी भी बरबाद हो गई राजू को पड़ोस में रहने वाली सर्वेश से प्यार हुआ तो हर वक्त वह उस की एक झलक पाने की फिराक में रहने लगा. पूरापूरा दिन वह उसे देखने के लिए दरवाजे पर चारपाई डाले पड़ा रहता. वह उस से मिल कर अपने दिल की बात कहना चाहता था. मौके तो उसे तमाम मिले, लेकिन उन मौकों पर वह उस से दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका.

राजू जिला कांशीरामनगर की कोतवाली खोरो के गांव दतलाना के रहने वाले रामवीर के 2 बेटों में छोटा बेटा था. बड़े बेटे अमर की शादी हो गई थी. शादी के बाद वह खेती के कामों में पिता की मदद करने लगा था. राजू ने हाईस्कूल कर के भले पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन घर का लाडला होने की वजह से घर का कोई काम नहीं करता था. घर का कोई आदमी उस से किसी काम के लिए कहता भी नहीं था. मांबाप के लिए वह अभी भी बच्चा था, इसलिए वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला उन की आंखों से ओझल हो, इसलिए राजू ने दिल्ली जा कर नौकरी करने की इच्छा जताई तो उन्होंने उसे वहां भी नहीं जाने दिया. क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला बेटा अभी से किसी की गुलामी करे. इसलिए कोई कामधाम न होने की वजह से राजू दिनभर इधरउधर भटकता रहता था.

चारपाई पर पड़ेपड़े ही उस की नजर सर्वेश पर पड़ी थी तो कोई कामधाम न होने की वजह से उस की ओर आकर्षित हो गया था. कोई कामधाम न होने की ही वजह से हुआ था. जबकि सर्वेश को वह बचपन से ही देखता आया था. पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था. सर्वेश राजू के पड़ोस में ही रहने वाले सुरेश की बेटी थी. वह कासगंज में किसी मशीनरी स्टोर पर नौकरी करता था, इसलिए सुबह टे्रन से कासगंज चला जाता था तो रात को ही लौटता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी सर्वेश तथा एक बेटा नीरज था. अपने इस छोटे से परिवार को सुखी रखने के लिए वह रातदिन मेहनत करता था.

पड़ोसी होने के नाते सर्वेश और राजू का आमनासामना होता ही रहता था. लेकिन जब से उस के लिए राजू के मन में आकर्षण पैदा हुआ, तब से सर्वेश के सामने पड़ने पर उस का दिल तेजी से धड़कने लगता. राजू अब सर्वेश के लिए बेचैन रहने लगा था. बेचैनी बरदाश्त से बाहर होने लगी तो एक दिन सर्वेश जब अपने दरवाजे पर खड़ी थी तो उस के पास जा कर राजू ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. अगर आज शाम को तुम प्राइमरी स्कूल में आ जाओ तो मैं वह बात कह कर अपने दिल का बोझ हलका कर लूं.’’

‘‘जो बात कहनी है, यहीं कह दो. अंधेरे में वहां जाने की क्या जरूरत है?’’ सर्वेश ने बोली.

‘‘नहीं, वह बात यहां नहीं कही जा सकती. शाम को स्कूल में मिलना.’’ कह कर राजू चला गया.

सर्वेश इतनी भी बेवकूफ नहीं थी कि वह स्कूल में बुलाने का मकसद न समझती. वह सोच में पड़ गई कि उस का वहां जाना ठीक रहेगा या नहीं? वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. उस के मन में भी लालसा उठ रही थी कि वह स्कूल जा कर देखे तो राजू उस से क्या कहता है? वहां जाने में हर्ज ही क्या है? शाम होतेहोते उस ने स्कूल जा कर राजू से मिलने जाने का निर्णय कर लिया. शाम को वह प्राइमरी स्कूल पहुंची तो राजू उसे वहां इंतजार करता मिल गया. राजू ने उस के पास आ कर कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘लेकिन अब बताओ तो सही कि तुम ने मुझे यहां बुलाया क्यों है?’’

राजू ने उस का हाथ पकड़ कह कहा, ‘‘सर्वेश, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

सर्वेश को पता था कि राजू कुछ ऐसी ही बात कहेगा. लेकिन अभी वह इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘यह अच्छी बात नहीं है. अगर यह बात मेरे पापा को पता चल गई तो वह दोनों को ही मार डालेंगे.’’

‘‘अब प्यार हो गया है तो मरने से कौन डरता है. तुम भले ही मुझ से प्यार न करो, लेकिन मैं तुम से प्यार करता रहूंगा.’’ राजू ने कहा.

राजू की इस दीवानगी पर सर्वेश ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो? मुझे मरवाना चाहते हो क्या?’’

‘‘प्यार में आदमी पागल ही हो जाता है. सर्वेश सचमुच मैं पागल हो गया हूं. अगर तुम ने मना किया तो मैं मर जाऊंगा.’’ राजू रुआंसा सा हो कर बोला. प्यार सचमुच दीवाना होता है. इस का नशा दिल और दिमाग में चढ़ने में देर कहां लगती है. राजू ने सर्वेश की जवान उमंगों को हवा दी तो उस पर भी प्यार का सुरूर चढ़ने लगा. उसे राजू की बात भा गई. प्रेमी के रूप में वह उसे अच्छा लगने लगा. लेकिन उसे मांबाप का भी डर लग रहा था. इस के Crime Stories बावजूद उस ने अपना हाथ राजू की ओर बढ़ा दिया.

उसी दिन के बाद यह प्रेमी युगल जिंदगी के रंगीन सपने देखने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. लेकिन एक बात का डर तो था ही कि वे कसमें चाहे जितनी खाते, यह इतना आसान नहीं था. मुलाकातों में दोनों इतने करीब आ गए कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए. सर्वेश जानती थी कि उस के मांबाप उस की शादी किसी अच्छे परिवार के कमाने वाले लड़के से करना चाहते हैं. जबकि राजू कोई कामधाम नहीं करता था. वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था. इसलिए किसी दिन एकांत में मिलने पर उस ने राजू से कहा, ‘‘राजू, अगर तुम मुझे पाना चाहते हो तो अपने पिता की खेती संभालो या फिर कोई नौकरी कर लो. तभी हमारे घर वाले मेरा हाथ तुम्हें दे सकते हैं.’’

गांव में कोई नौकरी तो थी नहीं, खेती वह कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से दूर जाने की सोच भी नहीं सकता. खेती मुझ से हो नहीं सकती. लेकिन तुम कह रही हो तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा.’’

राजू और सर्वेश अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचा पाते, उस के पहले ही लोगों की नजर उन पर पड़ गई. गांव के किसी आदमी ने दोनों को एकांत में मिलते देख लिया. उस ने यह बात सुरेश को बताई तो घर आ कर उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने पत्नी को भी डांटा और सर्वेश को भी. उस ने सर्वेश को चेतावनी भी दे दी, ‘‘अब तुम अकेली कहीं नहीं जाओगी.’’

सुरेश जानता था कि बेटी इतनी आसानी से नहीं मानेगी. इसलिए खाना खा कर वह पत्नी मोहिनी के पास लेटा तो चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मुझे लगता है, अब हमें सर्वेश की शादी कर देनी चाहिए. क्योंकि अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो हम गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रह पाएंगे.’’

‘‘मैं भी यही सोच रही हूं. आप लड़का देख कर उस की शादी कर दीजिए. सारा झंझट अपने आप खत्म हो जाएगा.’’ मोहिनी ने कहा.

सुरेश ने रामवीर से भी कहा था कि वह राजू को सर्वेश से मिलने से रोके. गांव का मामला था, इसलिए रामवीर को राजू को डांटाफटकारा ही नहीं, गांव के लड़कों के साथ दिल्ली भेज दिया. वे लड़के पहले से ही दिल्ली में रहते थे. उन्होंने राजू को भी दिल्ली में नौकरी दिलवा दी. राजू दिल्ली चला गया तो सुरेश को थोड़ी राहत महसूस हुई. उस ने सोचा कि राजू के वापस आने से पहले वह अगर सर्वेश की शादी कर दे तो ठीक रहेगा. किसी रिश्तेदार की मदद से उस ने अलीगढ़ के थाना दादों के गांव बरतोलिया के रहने वाले डोरीलाल के बेटे भूरा से सर्वेश की शादी तय कर दी.

डोरीलाल का खातापीता परिवार था. बेटा भूरा गुजरात में रहता था. सुरेश का सोचना था कि शादी के बाद भूरा सर्वेश को ले कर गुजरात चला जाएगा तो वह पूरी तरह से निश्चिंत हो जाएगा. यही सब सोच कर सुरेश ने सर्वेश की शादी भूरा से कर दी. सर्वेश की शादी की जानकारी राजू को हुई तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. सर्वेश ने कसम तो उस के साथ जीनेमरने की खाई थी, फिर उस ने दूसरे से शादी क्यों कर ली. प्रेमिका की बेवफाई पर उसे बहुत गुस्सा आया. इस के बाद उस का मन नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.

राजू का आना मांबाप को बहुत अच्छा लगा. अब उन्हें चिंता भी नहीं थी, क्योंकि सर्वेश की शादी हो गई थी. लेकिन राजू काफी तनाव में था. वह सर्वेश से मिलना चाहता था, लेकिन वह ससुराल में थी. इसलिए तनाव कम करने के लिए उस ने शराब का सहारा लिया. कुछ दिनों बाद भूरा अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया तो सुरेश सर्वेश को लिवा लाया. राजू को सर्वेश के आने का पता चला तो वह उस से मिलने की कोशिश करने लगा. चाह को राह मिल ही जाती है, राजू को भी सर्वेश मिल गई. सुरेश अपनी नौकरी पर कासगंज चला गया था तो मोहिनी दवा लेने डाक्टर के पास गई थी. उसी बीच सर्वेश ने राजू को गली में जाते देखा तो घर के अंदर बुला लिया. अंदर आते ही राजू ने कहा, ‘‘तुम बेवफा कैसे हो गई सर्वेश?’’

‘‘मैं बेवफा कहां हुई. बेवफा होती तो तुम्हें क्यों बुलाती. मेरी मजबूरी थी. किस के भरोसे मैं विरोध करती. तुम दिल्ली में थे और तुम्हें संदेश देने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था. भूरा से शादी कर के मैं बिलकुल खुश नहीं हूं. तुम कुछ करो वरना मैं मर जाऊंगी.’’

‘‘अभी तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा. पहले मैं कामधाम की व्यवस्था कर लूं. उस के बाद तुम्हें अपने साथ दिल्ली ले चलूंगा.’’ राजू ने कहा.

सर्वेश को राजू पर पूरा भरोसा था. इसलिए उस ने उस की यह बात भी मान ली और मौका निकाल कर उस से मिलने लगी. उन के इस तरह एकांत में मिलने की जानकारी सुरेश को हुई तो वह परेशान हो उठा. शादीशुदा बेटी पर वह हाथ भी नहीं उठा सकता था. क्योंकि बात खुल जाती तो उसी की बदनामी होती. दामाद गुजरात में था. वह चाहता था कि दामाद सर्वेश को अपने साथ ले जाए. उस ने यह बात भूरा से कही भी. तब भूरा ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरी इतनी कमाई नहीं है कि मैं पत्नी को अपने साथ रख सकूं. इसलिए सर्वेश को अभी वहीं रहने दो.’’

सुरेश दामाद को असली बात बता भी नहीं सकता था. बहरहाल इज्जत बचाने के लिए वह सर्वेश को उस की ससुराल पहुंचा आया. लेकिन इस से भी उस की परेशानी दूर नहीं हुई, क्योंकि राजू सर्वेश से मिलने उस की ससुराल भी जाने लगा. ससुराल में पति नहीं था, इसलिए सर्वेश का जब मन होता, मायके आ जाती. मायके आने पर सुरेश सर्वेश पर नजर तो रखता था, लेकिन वह राजू से मिल ही लेती थी. इसी का नतीजा था कि एक रात सुरेश ने छत पर सर्वेश को राजू के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

सुरेश को देख कर राजू तो भाग गया, लेकिन सर्वेश पकड़ी गई. वह उसे खींचता हुआ नीचे लाया और फिर उस की जम कर पिटाई की. सुरेश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी बेटी को राजू से मिलने से रोके. उस ने उस की शादी भी कर दी थी. इस के बावजूद सर्वेश ने उस से मिलना बंद नहीं किया था.

काफी सोचविचार कर सुरेश भूरा के आने का इंतजार करने लगा. वह जानता था कि एक न एक दिन दामाद को बेटी की करतूतों का पता चल ही जाएगा. तब वह सर्वेश को छोड़ भी सकता था. ऐसे में सर्वेश की जिंदगी तो बरबाद होती ही, बदनामी भी होती. इसलिए उस ने सोचा कि वह खुद ही दामाद को सब कुछ बता कर कोई उचित राय मांगे. इस के बाद भूरा गांव आया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा भूरा, गांव का ही राजू सर्वेश के पीछे पड़ा है. मैं ने कई बार उसे समझाया, लेकिन वह मानता ही नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं उस से बात करता हूं.’’ भूरा ने कहा.

‘‘इस तरह बात करने से काम नहीं चलेगा. इस से हमारी ही बदनामी होगी. मैं इस कांटे को जड़ से ही खत्म कर देना चाहता हूं, जिस से सर्वेश और तुम चैन से जिंदगी जी सको.’’ सुरेश ने कहा.

भूरा को भी ससुर की बात उचित लगी. फिर दोनों ने राजू को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत भूरा सर्वेश को लिवा कर अपने यहां चला गया.

इस के सप्ताह भर बाद ही थाना खोरों के थानाप्रभारी रामअवतार कर्णवाल को उठेर बांध के पास एक कंकाल के पड़े होने की सूचना मिली. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. नरकंकाल सिरविहीन था. कंकाल के पास एक बनियान और पैंट पड़ी थी. उन्हें याद आया कि 7 दिनों पहले दतलाना के रहने वाले रामवीर के भाई फूल सिंह ने भतीजे राजू की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने सूचना दे कर फूल सिंह को वहीं बुला लिया. कंकाल से तो कुछ पता चल नहीं सकता था, उस के पास पड़े पैंट को देख कर फूल सिंह ने बताया कि यह पैंट उस के भतीजे राजू की है.

फूल सिंह ने राजू की हत्या का संदेह सुरेश पर व्यक्त किया था. उस ने पुलिस को वजह भी बता दी थी कि राजू के संबंध उस की बेटी सर्वेश से थे. थानाप्रभारी ने सुरेश को बुलाने के लिए सिपाही भेजा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. वह दामाद के साथ गुजरात चला गया था. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि राजू की हत्या कर के सुरेश गुजरात भाग गया था. कपड़ों के अनुसार कंकाल राजू का ही हो सकता था, लेकिन पक्के सुबूत के लिए उस की डीएनए जांच जरूरी थी. डीएनए जांच के लिए हड्डियां विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ भेज दी गईं. रिपोर्ट आने से पहले रामअवतार कर्णवाल का तबादला हो गया. उन की जगह पर आए सुरेश कुमार.

जनवरी महीने में डीएनए रिपोर्ट आई तो पता चला कि वह कंकाल रामवीर के बेटे राजू का ही था. पुलिस को सुरेश पर ही नहीं, उस के दामाद भूरा, गंगा सिंह और रूप सिंह पर भी संदेह था. क्योंकि ये सभी उसी समय से गायब थे. संयोग से उसी बीच गंगा सिंह गांव आया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने राजू की Crime Stories हत्या का सारा राज उगल दिया. गंगाराम ने बताया था कि 1 अक्तूबर की शाम को भूरा ने राजू को शराब और मुर्गे की दावत के लिए बुलाया. उस दावत में राजू को इतनी शराब पिला दी गई कि उसे होश ही नहीं रहा. इस के बाद उस की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

उस की लाश Crime Stories को ठिकाने लगाने के लिए उठेर बांध पर ले जाया गया, जहां उस के सिर को धड़ से अलग कर दिया गया. सिर को नहर में फेंक दिया गया, जबकि धड़ को बांध के पास ही छोड़ दिया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने गंगा सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मोहिनी से फोन करा कर सुरेश को बहाने से गांव बुलवाया और उसे भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी राजू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का कहना था कि इज्जत और बेटी की जिंदगी बचाने की खातिर उस ने यह कदम उठाया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक भूरा और रूप सिंह पकड़े नहीं जा सके थे. शायद उन्हें गंगा सिंह और सुरेश के पकड़े जाने की जानकारी हो गई थी, इसलिए पुलिस के बहाने से लाख बुलाने पर भी वे गांव नहीं आए. दोनों गुजरात में कहीं छिपे हैं. सुरेश ने जिस इज्जत को बचाने के लिए यह कू्रर कदम उठाया, राज खुलने पर इज्जत तो गई ही, सब के सब जेल भी पहुंच गए. बेटी की भी जिंदगी बरबाद हुई. एक तरह इसे नासमझी ही कहा जाएगा. अगर वह चाहता तो किसी और तरीके से इस मामले को सुलझा सकता था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Top 5 love Murder story : टॉप 5 लव मर्डर स्टोरी

Top 5 love Murder story  : इन लव क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे समाज में प्रेम ने कईओं के घर बर्बाद किये है और किसी ने प्यार के लिए अपनों को ही शिकार बना लिया. और अपने ही प्यार को धोखा देकर उसे मार देना. अपने और अपने परिवार को ऐसे हो रहे क्राइम से सावधान करने के लिए पढ़िए Top 5 love Murder story in Hindi मनोहर कहानियां जो आपको गलत फैसले लेने से बचा सकती है.

1. प्रेमिका के बाप ने कहा मर के दिखाओ, बच गए तो होगी शादी

बीती 4 जुलाई को प्रीति जब मीडिया से रूबरू हुई, तब उस का चेहरा हालांकि उतरा और निचुड़ा हुआ था, लेकिन इस के बावजूद वह यह जताने की कोशिश करती नजर आई कि अतुल लोखंडे उर्फ अत्तू की आत्महत्या में उस का या उस के पिता का कोई हाथ नहीं हैमतलब उसे खुदकुशी के लिए उकसाया नहीं गया था. यह खुद अतुल का फैसला था, लेकिन जबरन उस के पिता का नाम बीच में घसीटा जा रहा है

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2. पापा को मरवाने की सुपारी दे डाली प्रेम में पागल बेटी ने

कुलदीप की पत्नी गीता पुलिस को दिए अपने बयान में खुद ही बुरी तरह फंस गई थीउस ने पुलिस को बताया कि जब वह सुबह उठी तो सीढि़यों के दरवाजे की कुंडी उस ने ही खोली थी. नीचे आई तो घर के मेन गेट के लौक में अंदर से चाबी लगी थी और वह खुला हुआ था. पुलिस को संदेह हुआ तो. अपनी नौकरी के चलते गीता को घर का काम निपटा कर जल्दी सोना होता था और सुबह जल्दी ही उठना पड़ता था.

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3. शादीशुदा महिला ने दो प्रेमियों के साथ मिलकर किया तीसरे का कत्ल

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था

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4. दोस्त से कराई प्रेमिका की हत्या

सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए

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5. बाइक रोक कर प्रेमिका के मुंह में कट्टा घुसेड़ मारी गोली

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे. पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे.

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True Crime Stories : स्टूडेंट के प्यार में सैनिक पति को उतारा मौत के घाट

True Crime Stories :  दोपहर 3 बजे के करीब दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को सुब्रतो पार्क स्थित एयरफोर्स मैडिकल सेंटर से सूचना दी गई कि एक सैनिक की मौत हो गई है, इसलिए थाना पुलिस भेजी जाए. यह मैडिकल सेंटर दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के थाना कैंट के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने तत्काल यह जानकारी थाना कैंट को वायरलेस द्वारा दे दी. यह 10 अप्रैल, 2014 की बात है.

चूंकि उस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव का मतदान चल रहा था. इसलिए दिल्ली पुलिस के ज्यादातर पुलिसकर्मी चुनाव ड्यूटी पर थे. पुलिस चौकी सुब्रतो पार्क के चौकीप्रभारी के.बी. झा की भी ड्यूटी क्षेत्र के पोलिंग बूथ पर लगी थी. पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा वायरलेस से जो संदेश प्रसारित किया गया था, उसे उन्होंने सुन लिया था. इस के अलावा थानाप्रभारी ने भी उन्हें वहां जाने का निर्देश दिया था. इसलिए चौकीप्रभारी के.बी. झा एयरफोर्स मैडिकल सेंटर की ओर रवाना हो गए. दूसरी ओर सूचना मिलने पर थाना कैंट से भी एएसआई देवेंद्र कांस्टेबल सचिन के साथ एयरफोर्स अस्पताल के लिए चल पड़े थे.

पुलिस के अस्पताल पहुंचने तक डाक्टरों ने लाश को सफेद कपड़े में बंधवा दिया था. चौकीप्रभारी ने जब वहां के डाक्टरों से मृतक और उस की लाश के बारे में पूछा तो उन्होंने सफेद कपड़ों में बंधी उस (True Crime Stories) लाश को दिखाते हुए बताया कि यही एयरफोर्स के सार्जेंट रमेशचंद्र की लाश है. चौकीप्रभारी के.बी. झा ने पूछा कि रमेशचंद्र की मौत कैसे हुई तो डाक्टर ने बताया कि करीब एक घंटे पहले इन्हें इन की पत्नी सुधा एंबुलेंस से ले कर आई थीं. अस्पताल आने पर सुधा ने बताया था कि इन्हें हार्टअटैक आया था, लेकिन जब इन की जांच की गई तो पता चला कि इन की मौत हो चुकी है.

मृतक रमेशचंद्र की पत्नी सुधा गुप्ता वहीं थी. चौकीप्रभारी के.बी. झा ने पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो उस ने कहा, ‘‘सर, यह शराब के आदी थे. कल रात यानी 9 अप्रैल की रात 10 बजे के करीब जब यह घर आए तो काफी नशे में थे. यह इन की रोजाना की  आदत थी, इसलिए मैं कुछ नहीं बोली. खाना खाने के बाद जब यह सोने के लिए लेटे तो कहा कि सीने में दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा कि दर्द गैस की वजह से हो रहा होगा, क्योंकि इन्हें गैस की शिकायत थी.

‘‘मैं ने इन्हें पानी पिलाया और वहीं पास में बैठ गई. काफी देर तक इन्हें हलकाहलका दर्द होता रहा. उस के बाद यह सो गए तो मैं ने सोचा कि शायद इन्हें आराम हो गया है. फिर मैं भी इन्हीं के बगल में सो गई.

‘‘सुबह 9 बजे जब यह सो कर उठे तो मैं ने इन से तबीयत के बारे में पूछा. इन्होंने बताया कि अब ठीक है. नहाधो कर इन्होंने नाश्ता किया और वोट डालने की तैयारी करने लगे. यह तैयार हो कर घर से निकलने लगे तो इन्हें चक्कर आ गया. उस समय मैं किचन में थी. दौड़ कर मैं ने इन्हें संभाला और इन्हें ले जा कर बैड पर लिटा दिया.

‘‘एक बजे के करीब इन के सीने में फिर से दर्द उठा और वह दर्द भी वैसा ही था, जैसा रात में हो रहा था. मैं ने इन्हें पानी पिलाया. लेकिन इस बार दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उस समय क्वार्टर में मैं अकेली थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? मैं कुछ करती, दर्द अचानक काफी तेज हो गया, फिर यह बेहोश हो गए.

‘‘मैं ने इन्हें हिलायाडुलाया, लेकिन इन का शरीर एकदम ढीला पड़ चुका था. इन के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर होश में लाने की कोशिश की, लेकिन इन्हें होश नहीं आया. मैं घबरा गई, भाग कर पड़ोस में रहने वाले एयरफोर्स औफिसर एम.पी. यादव के यहां पहुंची. उन्हें पूरी बात बता कर मैं ने इन्हें अस्पताल ले चलने के लिए कहा. उन्होंने फोन कर के एयरफोर्स की एंबुलैंस बुलवाई और इन्हें यहां लाया गया. यहां आने पर डाक्टरों ने बताया कि इन की मौत हो चुकी है.’’

सुधा गुप्ता से बातचीत करते हुए चौकीप्रभारी के.बी. झा ने देखा कि इस स्थिति में जहां महिलाओं का रोरो कर बुरा हाल होता है और वे किसी से बात करने की स्थिति में नहीं होती हैं, वहीं इस के चेहरे पर लेशमात्र का भी दुख नजर नहीं आ रहा. वह बातचीत भी इस तरह से कर रही है, जैसे सब कुछ सामान्य हो. चूंकि उस समय उस के पति की लाश अस्पताल में रखी थी, इसलिए उन्होंने उस से ज्यादा पूछताछ करना ठीक नहीं समझा.

रमेशचंद्र की लाश सफेद कपड़े में लिपटी थी, इसलिए चौकीप्रभारी लाश को भी नहीं देख सके थे. उन्हें यह मामला संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने सारी जानकारी थानाप्रभारी सुरेश कुमार को दी तो वह भी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने भी सुधा गुप्ता और अस्पताल  के डाक्टरों से बात की. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भिजवा दिया. सूचना पा कर सार्जेंट रमेशचंद्र के घर वाले भी इलाहाबाद से सफदरजंग अस्पताल पहुंच गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ की थी. लेकिन उन से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पोस्टमामर्टम के बाद पुलिस ने लाश मृतक के भाई सुरेश शाहू को सौंप दी.

सुधा से बातचीत के बाद थानाप्रभारी को भी शक हो गया था, इसलिए उन्होंने चौकीप्रभारी के.बी. झा को एयरफोर्स कालोनी में जा कर गुप्त रूप से मामले की छानबीन करने को कहा था. चौकीप्रभारी के.बी झा ने एयरफोर्स कालोनी जा कर अपने ढंग से सार्जेंट रमेशचंद्र की मौत के बारे में पता करना शुरू किया. इसी पता करने में उन्हें एयरफोर्स के एक अधिकारी ने बताया कि पूरी कालोनी में इस बात की चरचा है कि मृतक रमेशचंद्र की पत्नी सुधा गुप्ता का पड़ोस में ही रहने वाले 17 वर्षीय अमित से (True Crime Stories) प्रेमसंबंध है. यह बात कहां तक सच है, वह कुछ कह नहीं सकते.

कालोनी में रहने वाले एयरफोर्स कर्मचारियों की पत्नियों ने अपना एक एसोसिएशन बना रखा था. उस एसोसिएशन में सुधा गुप्ता भी थी. चौकीप्रभारी सार्जेंट की मौत के बारे में पता करने के लिए जब एसोसिएशन की महिलाओं के पास पहुंचे तो उन्होंने सार्जेंट की मौत पर अपना संदेह जाहिर करते हुए उन से सुधा गुप्ता के आचरण के बारे में पूछा तो संयोग से वहां मौजूद सुधा गुप्ता बोल पड़ी, ‘‘सर, मेरे ही पति की मौत हुई है और आप मेरे ही ऊपर इस तरह का आरोप लगा कर मुझे बदनाम कर रहे हैं. यह अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘मैडम, हमारी आप से कोई दुश्मनी नहीं है कि हम आप को बदनाम करेंगे. जिस तरह की बातें हमें सुनने को मिल रही हैं, हम उसी के आधार पर यह बात कर रहे हैं. बहरहाल पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिल जाए, उस के बाद हम आप से बात करेंगे.’’ चौकीप्रभारी ने कहा.

चौकीप्रभारी ने कालोनी में रहने वाले कुछ एयरफोर्स के अधिकारियों से सुधा गुप्ता और अमित पर नजर रखने को कहा था. उन्हें डर था कि कहीं दोनों भाग न जाएं. 4 मई, 2014 को सार्जेंट रमेशचंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिली. रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस हैरान रह गई. सुधा गुप्ता ने बताया था कि उस के पति की मौत हार्टअटैक से हुई थी, जबकि पोस्टमार्टम के अनुसार उस की मौत गला दबाने से हुई थी. इस रिपोर्ट से पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह सब सुधा और अमित ने ही साजिश रच कर किया होगा.

आगे की काररवाई करने से पहले चौकीप्रभारी ने सफदरजंग अस्पताल के उन डाक्टरों से बात की, जिन्होंने सार्जेंट रमेशचंद्र की लाश का पोस्टमार्टम किया था. डाक्टरों ने बताया था कि उस की मौत सांस की नली दबाने यानी गला घोंटने से हुई थी, उन्होंने यह भी बताया था कि उस की गले की हड्डी में फै्रक्चर भी था. ऐसा गला दबाने पर ही हुआ होगा. डाक्टरों ने पुलिस को यह भी बताया था कि रमेशचंद्र की जेब से एक परची मिली थी, जो उन्होंने एयरपोर्ट अथौरिटी को पहली अप्रैल को लिखी थी. उस में लिखा था, ‘मेरा कुछ दिनों से पारिवारिक क्लेश चल रहा है. मुझे नहीं पता कि मैं कितने दिन और रहूंगा. अगर मेरे साथ कुछ हो जाता है तो मेरी संपत्ति का आधा हिस्सा गरीबों में बांट दिया जाए, बाकी मेरी बेटी के लालनपालन पर खर्च किया जाए.’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डाक्टरों की बातचीत से साफ हो गया था कि रमेशचंद्र की मौत हार्टअटैक से नहीं, गला दबाने से हुई थी. यानी उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट और उस परची के बारे में पुलिस उपायुक्त को भी अवगत कराया गया. उन के निर्देश पर 6 मई, 2014 को थाना दिल्ली कैंट में सार्जेंट रमेशचंद्र गुप्ता की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी सुमन गोयल ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा, सुब्रतो पार्क चौकी के प्रभारी के.बी. झा, एसआई रामप्रताप, जी.आर. मीणा, एएसआई देवेंद्र, हेडकांस्टेबल अनिल, सचिन, महिला कांस्टेबल सुनीता, निर्मला आदि को शामिल किया गया.

चौकीप्रभारी के.बी. झा ने जब अस्पताल में सुधा गुप्ता से बात की थी, तभी उन्हें रमेशचंद्र की मौत पर शक हो गया था. लेकिन उस समय लाश कपड़े में बंधी हुई थी, इसलिए वह उसे देख नहीं पाए  थे. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और परची ने उन का संदेह सच में बदल दिया था. उन्हें कालोनी वालों से सुधा गुप्ता और 17 वर्षीय अमित के संबंधों के बारे में पता चल गया था. अब उन्हें लग रहा था कि इन्हीं संबंधों की वजह से सुधा गुप्ता और अमित ने रमेशचंद्र को ठिकाने लगाया था. चूंकि सुधा गुप्ता तेजतर्रार और उच्चशिक्षित महिला थी इसलिए पुलिस पूरे सुबूतों के साथ ही अब उस से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस को सुधा गुप्ता और अमित के मोबाइल नंबर मिल गए थे. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि दोनों ने पिछले एक महीने में एकदूसरे को करीब डेढ़ हजार फोन किए थे. दोनों ने इतनी काल्स किसी अन्य नंबर पर नहीं की थीं. इस काल डिटेल्स ने पुलिस के शक को और मजबूत कर दिया था. पुलिस को पर्याप्त सुबूत मिल गए तो सुधा को पूछताछ के लिए थाने बुलाने की तैयारी होने लगी. सुधा एयरफोर्स कालोनी के कवार्टर नंबर जी-28 में रहती थी. अमित भी वहीं पास में रहता था. पूछताछ के लिए बुलाने की खातिर पुलिस जब दोनों के क्वार्टरों पर पहुंची तो दोनों ही अपने क्वार्टरों से गायब मिले. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि पुलिस की जांच सही दिशा में जा रही थी.

दोनों कहीं दूर न चले जाएं, इसलिए पुलिस टीम सरगर्मी से उन की तलाश करने लगी. इधरउधर भागादौड़ी करने के बाद पता चला कि सुधा गुप्ता और अमित वसंत विहार के वसंत गांव में रह रहे हैं. आखिर पुलिस उन के ठिकाने पर पहुंच ही गई. सुधा को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि पुलिस वहां पहुंच जाएगी, इसलिए पुलिस को देख कर वह हैरान रह गई. सुधा ने वह फ्लैट किराए पर ले रखा था. पुलिस को देख कर मकान मालिक भी आ गया था. पूछताछ में मकान मालिक ने बताया कि फ्लैट किराए पर लेते समय सुधा ने अमित को अपना पति बताया था. इस तरह पुलिस को सुधा के खिलाफ एक और सुबूत मिल गया था. पुलिस सुधा और अमित को ले कर थाने आ गई.

थाने में आते ही थानाप्रभारी ने सुधा से पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम ने अपने पति को क्यों मारा?’’

‘‘सर, मैं भला अपने पति को क्यों मारूंगी, उन की मौत तो हार्टअटैक से हुई थी.’’

‘‘तुम यह बात इतने दावे के साथ कैसे कह सकती हो? तुम्हें कैसे पता चला कि मौत हार्टअटैक से हुई थी?’’ थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा ने पूछा.

‘‘उन के सीने में जिस तरह से दर्द हुआ था, उस से मैं ने अंदाजा लगाया था कि उन्हें हार्टअटैक आया था.’’

‘‘हमारे पास जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट है, उस में साफ लिखा है कि रमेशचंद्र की मौत गला दबाने से हुई थी.’’

‘‘यह कैसे हो सकता सर? मेरे सामने उन्हें हार्टअटैक आया था. सीने में दर्द से ही वह बेहोश हुए थे.’’ सुधा गुप्ता ने कहा.

थानाप्रभारी कुछ और पूछते, इस से पहले वहीं बैठे चौकीप्रभारी के.बी. झा बोले, ‘‘अच्छा, सुधा यह बताओ कि अमित से तुम्हारा क्या संबंध है?’’

‘‘अमित मेरा स्टूडेंट है. मैं उसे ट्यूशन पढ़ाती हूं.’’ सुधा ने कहा.

‘‘यह तो हमें भी पता है कि तुम उसे ट्यूशन पढ़ाती थी. लेकिन मैं उस संबंध के बारे में पूछ रहा हूं, जो सब की नजरों से छिपा रखा था. तुम पढ़ीलिखी और समझदार हो, फिर भी इस तरह का गलत काम कर रही थी. क्यों उस बच्चे की जिंदगी बरबाद कर रही हो?’’

‘‘सर, आप क्यों बिना मतलब हमें बदनाम कर रहे हैं?’’

‘‘हम बदनाम नहीं कर रहे हैं, बल्कि सही कह रहे हैं. तुम अपने फोन की काल डिटेल्स देखो.’’ चौकीप्रभारी ने उसे काल डिटेल्स दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों ने पिछले एक महीने में डेढ़ हजार से ज्यादा फोन किए हैं. ऐसा कौन सा काम था, जो तुम उस से रातदिन बातें करती रहती थीं?

‘‘इस के अलावा वसंत गांव में तुम ने जो फ्लैट ले रखा था. तुम उस में उसे अपना पति बता कर रह रही थी. मेरे खयाल से तुम्हें अब पता चल गया होगा कि मुझे सब जानकारी मिल गई है. इसलिए अब तुम्हें सच्चाई बता देनी चाहिए, वरना तुम्हें पता ही है कि पुलिस चाहेगी तो सच्चाई उगलवा लेगी.’’

चौकीप्रभारी के इतना कहते ही सुधा रो पड़ी. हथेलियों से आंसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो केवल नाम के पति थे. किसी भी औरत को सिर्फ पैसा ही नहीं चाहिए. पैसे के अलावा भी उस की तमाम जरूरतें होती हैं. इस बात को वह समझते ही नहीं थे, बल्कि इधर घर में काफी क्लेश करने लगे थे.’’

इस के बाद सुधा ने पति की हत्या के पीछे की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

रमेशचंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के गांव लालबिहारा के रहने वाले थे. 19 साल पहले वह एयरफोर्स में सार्जेंट के रूप में भरती हुए थे. अनेक जगह नौकरी करने के बाद उन का तबादला दिल्ली हुआ तो उन्हें रहने के लिए सुब्रतो पार्क स्थित एयरफोर्स कालोनी में जी-28 नंबर का फ्लैट आवंटित हुआ.

दूसरी मंजिल पर स्थित इस फ्लैट में वह अकेले ही रहते थे. करीब 5 साल पहले उन की शादी गोरखपुर के सैनिक कुंज में रहने वाली सुधा गुप्ता से हुई थी. सुधा के पिता भी भारतीय वायु सेना में नौकरी करते थे. बीकौम पास सुधा की जब शादी हुई थी, तब वह 23 साल की थी, जबकि रमेशचंद्र 35 साल के थे. दोनों की उम्र में 12 साल का अंतर था.

शादी के बाद सुधा पति के साथ दिल्ली आ कर सरकारी क्वार्टर में रहने लगी थी. कुछ दिनों तक उन की गृहस्थी ठीकठाक चली. उसी बीच सुधा एक बेटी की मां बनी. शादी के बाद भी सुधा अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. इस के लिए उस ने पति से बात की तो उस ने इजाजत दे दी. सुधा कानपुर यूनिवर्सिटी से पत्राचार द्वारा एमकौम करने लगी. रमेशचंद्र रोज शराब पीते थे. एक तरह से वह शराब के आदी थे. शाम को घर लौटते तो शराब के नशे में धुत होते थे. सुधा ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन उन्होंने अपनी आदत नहीं बदली. रोजरोज एक ही बात कहने से रमेशचंद्र चिढ़ने लगा.

इस के अलावा सुधा की सब से बड़ी समस्या यह थी कि रमेशचंद्र उस की जरूरतों पर बिलकुल ध्यान नहीं देते थे. घर में हर तरह की सुखसुविधा थी, लेकिन रमेशचंद्र यह नहीं समझते थे कि सुखसुविधाओं के अलावा भी पत्नी की अन्य जरूरतें भी होती हैं. रमेशचंद्र नशे में धुत आते और खाना खा कर सो जाते. पत्नी की भावनाओं पर वह बिलकुल ध्यान नहीं देते. सुधा कभी पहल करती, तब भी वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाते थे. लिहाजा वह तड़प कर रह जाती थी.

सुधा की यह ऐसी समस्या थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी. उस की और रमेशचंद्र की उम्र में जो 12 साल का अंतर था, उसे अब वह साफ महसूस कर रही थी. पति की इन उपेक्षाओं से वह चिड़चिड़ी सी हो गई थी. पति के ड्यूटी पर चले जाने पर सुधा बेटी के साथ मन बहलाने की कोशिश करती. अब तक सुधा की एमकौम की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए सुधा पास ही संकुल कोचिंग सेंटर में पढ़ाने जाने लगी. इस से उस का समय भी कट जाता था, साथ ही चार पैसे भी मिल रहे थे.

उसी कोचिंग सेंटर में अमित पढ़ने आता था. 11वीं में पढ़ने वाले अमित को सुधा कौमर्स पढ़ाती थी. अमित के पिता भी एयरफोर्स में थे. रहने के लिए उन्हें जो फ्लैट मिला था, वह सुधा के फ्लैट के करीब ही था. इसलिए सुधा अमित को अच्छी तरह से जानती थी.

अमित की उम्र 17 साल जरूर थी, लेकिन हष्टपुष्ट होने की वजह से वह अपनी उम्र से काफी बड़ा लगता था. वह थोड़ा मजाकिया स्वभाव का था, इसलिए उस की चुलबुली बातें सुधा को बहुत अच्छी लगती थीं. पति से असंतुष्ट सुधा अमित में दिलचस्पी लेने लगी थी. उसे लगा कि जो ख्वाहिश उसे बेचैन किए है, वह अमित से पूरी हो सकती है. लिहाजा उम्र में 11 साल छोटे अमित को वह प्यार के जाल में फांसने की कोशिश करने लगी. अब वह पढ़ाई के बहाने अमित को अपने कमरे पर बुलाने लगी.

अमित भले ही नाबालिग था, लेकिन अपनी टीचर सुधा के हावभाव और बातों से उस के मन की बात को समझ गया था, इसलिए सुधा की पहल से वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाया और एक दिन उस ने वही कर डाला, जो सुधा चाहती थी. यह करीब 6 महीने पहले की बात है. एक बार उन्होंने सीमाएं लांघी तो यह रोज का नियम बन गया. रमेशचंद्र के ड्यूटी पर चले जाने के बाद सुधा अमित को अपने क्वार्टर पर पढ़ाने के बहाने बुला लेती. बेटी छोटी थी, वह खापी कर सो जाती. इस के बाद दोनों को किसी की चिंता नहीं रहती थी.

सुधा को जिस चीज की जरूरत थी, अब वह अमित से मिल रही थी. इसलिए उसे अब पति से कोई शिकायत नहीं रह गई थी. उस ने पति से लड़नाझगड़ना भी बंद कर दिया था. रमेशचंद्र यह नहीं जान पाए कि पत्नी में अचानक यह बदलाव कैसे आ गया.

उन्हें लगता था कि सुधा अब समझदार और जिम्मेदार हो गई है. बहरहाल घर की रोजरोज की किचकिच बंद होने से वह खुश थे. इस तरह अमित और सुधा को रमेशचंद्र से कोई दिक्कत नहीं हो रही थी. सुधा अमित को इस कदर चाहने लगी कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगी. अमित भी इस के लिए तैयार था. लेकिन यह भी सच है कि यह खेल कितना भी छिपा कर खेला जाए, इस की भनक लग ही जाती है.

रमेशचंद्र की गैरमौजूदगी में अमित का रोजरोज उन के घर जाने से लोगों को शक होने लगा. सुधा और अमित को ले कर एयरफोर्स कालोनी में तरहतरह की चरचा होने लगी. जब इस बारे में रमेशचंद्र को पता चला तो उन्होंने सुधा को समझाया कि वह अमित को अपने घर न आने दे, क्योंकि उसे ले कर लोग उस पर शक कर रहे हैं.

‘‘लोग जो कहते हैं, तुम ने उस  पर विश्वास कर लिया.’’ सुधा तुनक कर बोली, ‘‘अगर वह मेरे पास पढ़ने आता है तो लोगों को न जाने क्यों तकलीफ होती है? लोगों से अपना घर तो संभलता नहीं, दूसरों के घरों में ताकझांक करते हैं. मेरे सामने कोई कहे तो मैं बताऊं.’’

‘‘मेरे खयाल से तुम अमित को पढ़ाना बंद कर दो, वैसे भी तुम्हें पैसों की क्या जरूरत है? हमारी एक ही तो बेटी है. जो मैं कमाता हूं, वह हमारे परिवार के लिए काफी है.’’ रमेशचंद्र ने कहा.

‘‘तुम चुप रहो,’’ सुधा गुस्से में बोली, ‘‘मैं किसी के कह देने से शांत हो कर घर में नहीं बैठ जाऊंगी. मैं ने पढ़ाई घर में बैठने के लिए नहीं की है. लोग कुछ भी कहें, मैं अमित को पढ़ाना बंद नहीं करूंगी.’’

सुधा को नाराज होते देख रमेशचंद्र चुप हो गए. क्योंकि उन्हें लगा कि बात बढ़ाने से बेकार ही झंझट होगा. बात जहां से शुरू हुई थी, वहीं की वहीं रह गई. पति के समझाने का सुधा पर कोई असर नहीं हुआ. वह अमित से पहले की ही तरह मिलतीजुलती रही. कालोनी वालों की बातें सुन सुन कर रमेशचंद्र परेशान हो चुके थे. इन बातों से वह खुद को अपमानित महसूस करते थे. वह सुधा को समझाते थे. लेकिन वह रवैया बदलने को तैयार नहीं थी. वह जब भी उस से कुछ कहते, वह लड़ने को तैयार हो जाती.

सुधा और अमित ने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन रमेशचंद्र के रहते यह संभव नहीं था. इसलिए सुधा ने अमित के साथ मिल कर रमेशचंद्र को खत्म करने की योजना बना डाली. 10 अप्रैल, 2014 को साढे़ 10 बजे के करीब सुधा ने योजना के अनुसार, प्रेमी अमित को अपने क्वार्टर पर बुला लिया. उस समय रमेशचंद्र कमरे में ही थे. जैसे ही उन्होंने अमित को अपने क्वार्टर में देखा, भड़क उठे. अमित ने आगे बढ़ कर पूरी ताकत से सार्जेंट रमेशचंद्र की गरदन पर एक घूंसा मारा. उसी घूंसे में नशेड़ी रमेशचंद्र गिर पड़े.

वह गिर ही नहीं पड़े, बल्कि बेहोश हो गए. अमित को लगा इस का खेल खत्म हो गया है. लेकिन सुधा ने पति की नाक पर हाथ रख कर देखा तो सांस चल रही है. उस ने कहा, ‘‘अमित अभी इस की सांस चल रही है. इसे खत्म कर दो. अगर यह जिंदा रहा तो हम बेमौत मारे जाएंगे.’’

अमित झुका और रमेशचंद्र की गरदन पकड़ कर पूरी ताकत से दबा दी. थोड़ी देर में गरदन लुढ़क गई. यानी उस का खेल खत्म हो गया. दोनों ने रमेशचंद्र की लाश को उठा कर बैड पर रखा. सुधा ने पति की लाश को रजाई ओढ़ाते हुए कहा, ‘‘अमित, अब तुम जाओ, आगे का काम मैं कर लूंगी.’’

अमित चला गया तो सुधा पड़ोस में रहने वाले एम.पी. यादव के यहां पहुंची और पति को हार्टअटैक आने की बात कही. उन्होंने एंबुलैंस बुला कर रमेशचंद्र को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. सुधा ने सोचा था कि हार्टअटैक की बात बताने पर वह बच जाएगी. शुरू में उसे लगा था कि वह अपनी योजना में सफल हो गई है. पुलिस से बचने के लिए उस ने दक्षिणी दिल्ली के वसंत गांव में एक फ्लैट किराए पर ले लिया था. जिस में अमित के साथ रह रही थी. पति की हत्या के 10 दिनों बाद वह अमित के साथ अमृतसर भी घूमने गई थी. दोनों वहां 3 दिनों तक एक होटल में रुके थे.

थाना कैंट पुलिस को सुधा के हावभाव पर पहले ही शक हो गया था, लेकिन सुबूत के अभाव से उस समय पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकी थी. परंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो पुलिस के हाथ एक बड़ा सुबूत लग गया. इस के बाद सुधा को पति की (True Crime Stories) हत्या की बात स्वीकार करनी पड़ी. सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने अमित से भी पूछताछ की. उस ने भी वही सब बताया, जो सुधा ने बताया था. इस के बाद पुलिस ने रमेशचंद्र की हत्या के आरोप में सुधा को गिरफ्तार कर 9 मई, 2014 को पटियाला हाउस में महानगर दंडाधिकारी धीरज मित्तल की अदालत में पेश किया, जहां से उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

जबकि नाबालिग अमित को दिल्ली गेट स्थित बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 2 दिनों बाद 11 मई को पुन: सुधा को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सुधा के साथ उस की ढाई साल की बेटी भी उस के साथ जेल चली गई, क्योंकि उस ने ससुराल वालों को बेटी सौंपने से मना कर दिया था. लिहाजा मां के गुनाह की वजह से बेटी भी जेल की चारदीवारी में कैद है. मामले की जांच थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. अमित परिवर्तित नाम है.

Crime stories : शादी का झांसा देता फरजी सीबीआई अधिकारी

Crime stories : 12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थी. धीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था.

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.

लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे.

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती

जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी.

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव आ गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए.

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इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गए.

उस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है—

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात की.

इस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में

इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल आ कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलग.

लेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई.  यह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया.

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली.

होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

समीर ने पसंद किया जेबा को

अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और  (CBI )सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

जेबा भी उस के बहकावे में आ कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगा.

लेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान न हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान न हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल आ रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही.

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.

जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद आ गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

ट्रेनिंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए

समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है.

जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में आ कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’

समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था.

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परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था

जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी.

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

समीर को पता नहीं कैसे भनक लग गई कि उस की पोल खुल गई है. वह अपना बैग ले कर घर से भागने की फिराक में था, तभी जेबा ने कहा, ‘‘समीर, हमें तुम्हारी असलियत का पता चल गया है. अब मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करूंगी, जिस से तुम्हारी जिंदगी जेल में कटेगी.’’

समीर डर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम लोगों ने मेरी शिकायत पुलिस में की तो मैं तुम सभी को जान से मार दूंगा.’’

लेकिन उस की इस धमकी से न जेबा डरी और न उस के मम्मीपापा. याकूब मंसूरी ने अपने दोस्तों की मदद से समीर को पकड़ लिया और थाना अशोका गार्डन ले गए, जहां वह खुद को पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाता रहा और वादा करता रहा कि जेबा से ही शादी करेगा.

लेकिन शादी का झांसा दे कर शारीरिक शोषण करने के साथ लाखों रुपए ऐंठने वाले समीर की असलियत जेबा को पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस की किसी बात पर भरोसा नहीं किया. मामले की नजाकत को भांपते हुए अशोका गार्डन पुलिस ने समीर को तुरंत हिरासत में ले लिया.

समीर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने याकूब मंसूरी के घर में रखे उस के बैग को कब्जे में ले कर तलाशी ली तो उस में से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सीबीआई सहित कई संस्थानों की फरजी मोहरें मिलीं. यही नहीं, उस के पास से डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की वरदी भी मिली. समीर ने एक गलती यह की थी कि उस ने जो वरदी खरीदी थी, वह डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की थी. 3 स्टार और अशोक चक्र लगी वरदी को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह वरदी उस ने बिहार के भागलपुर से खरीदी थी.

शातिर दिमाग है ठग समीर खान

एएसपी हितेश चौहान के अनुसार, समीर अनवर खान बहुत ही शातिर दिमाग था. उस ने बड़ी चालाकी से शादी डाटकौम पर अपनी प्रोफाइल बना कर जेबा मंसूरी जैसी पढ़ीलिखी लड़की को अपने जाल में फांस लिया था. बाद में पता चला कि उस ने ऐसा ही कारनामा पंजाब में किया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने पंजाब पुलिस से जानकारी हासिल की तो पता चला कि ऐसे ही मामले में वह वहां भी गिरफ्तार किया गया था. जमानत पर रिहा होने के बाद वह फरार हो गया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, समीर मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का रहने वाला था. उस ने दिखावे के लिए एमटेक में अप्लाई कर रखा था. उस के पिता मुंबई में झुग्गीझोपड़ी में रहते थे और फेरी में कपड़े बेच कर गुजरबसर करते थे. उस ने जेबा से बताया था कि वाराणसी में उस की तमाम जमीनजायदाद है, लेकिन यह सब झूठ था.

मजे की बात यह थी कि उस ने पंजाब में जो धोखाधड़ी की थी, उस में उस ने 40-50 लाख रुपए की चपत लगाई थी. लेकिन कहीं से भी नहीं लगता था कि इतना पैसा उस के पास होगा.

थाना अशोका गार्डन पुलिस ने समीर के खिलाफ भादंवि की धारा 170, 419, 420, 471, 472, 473, 376 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. कथा लिखे जाने तक समीर पुलिस रिमांड पर था. पुलिस उस से कई पहलुओं पर पूछताछ कर रही थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में समीर ने जो बताया है, उस से जाहिर होता है कि वह छोटामोटा अपराधी नहीं है.

होटल प्रबंधन को भी लगाया लाखों का चूना

समीर कितना शातिरदिमाग है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह भोपाल के सब से मशहूर होटल नूरउससबा में 2 नवंबर, 2017  से 23 नवंबर, 2017 तक लड़की के साथ रुका रहा, लेकिन होटल प्रबंधन को उस की कारगुजारियों की तनिक भी भनक नहीं लगी. वह इतने बड़े होटल को लाखों का चूना लगा कर रफूचक्कर हो गया था.

अच्छा हुआ कि वक्त रहते जेबा मंसूरी को उस पर शक हो गया, वरना हाथ से निकलने के बाद फिर शायद ही कभी वह चंगुल में फंसता. नूरउससबा पैलेस होटल में 20 दिनों से ज्यादा रहने के बाद भी वह पैसे दिए बिना  वहां से फरार हो गया था. होटल प्रबंधन के बताए अनुसार, 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2017 तक होटल में रहने और खानेपीने का बिल 2 लाख 15 हजार 311 रुपए बना था.

समीर ने चालाकी से काम लेते हुए होटल प्रबंधन को भरोसे में लेने के लिए 20 हजार रुपए एडवांस जमा करा दिए थे. उसे वहां 24 नवंबर तक रुकना था, लेकिन एक दिन पहले ही वह अपना बोरियाबिस्तर समेट कर वहां से चलता बना.

पंजाब में आईएएस बन कर कर चुका है फरजीवाड़ा

समीर के बताए अनुसार, उस ने पंजाब के कपूरथला में भी एक बीएससी की छात्रा के साथ जालसाजी की थी. वहां भी उस ने कुछ ऐसी ही कहानी गढ़ी थी. उस ने वहां बताया था कि उस का सिलेक्शन ( Crime stories ) आईएएस में हो गया है. इस तरह उस के बहकावे में आ कर उस लड़की ने समीर से सन 2016 में निकाह कर लिया था. वहां उस ने अपना नाम शमशेर बताया था.

जब फरजी आईएएस का झूठ सामने आया तो कपूरथला के थाना फगवाड़ा पुलिस ने जनवरी, 2016 में शमशेर के खिलाफ धोखाधड़ी, दहेज अधिनियम और धमकाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया था. शमशेर उर्फ समीर वहां 2 महीने तक जेल में बंद रहा. उस की दादी ने जमानत कराई तो जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया.

अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के साथसाथ पंजाब पुलिस समीर उर्फ शमशेर को धोखाधड़ी, पैसे ऐंठने, शारीरिक शोषण और फरजी पदों का गलत इस्तेमाल करने के अपराध में कितनी सजा दिलवा सकती है. पुलिस यह भी पता कर रही है कि यह काम समीर अकेला ही करता था या उस के साथ और कोई भी था.

काजल का असली रंग : बेटे को पढ़ाने वाले Teacher से बनाए संबंध

Tuition Teacher : वासना की आग ऐसी भड़की कि पतिपत्नी के उस रिश्ते को भी भूल गई, जिस के लिए 12 साल पहले उस ने सात जन्मों का बंधन निभाने का वादा किया था. उस ने प्रेमी संग मिल कर पति की हत्या कर डाली. प्रेमी ने योजना तो ऐसी बनाई थी कि पति की हत्या में मायके वाले ही फंस जाएं और वह प्रेमिका संग मौज मनाता रहे. लेकिन उन के मंसूबों पर तब पानी फिर गया, जब उन की काल डिटेल्स में 13 सौ बार बातचीत करने का पता चला.

35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक बिहार के बेगूसराय जिले के थाना तेघरा के गांव रानीटोल में अपनी ससुराल आया था. उस की पत्नी काजल उर्फ कंचन एकलौते बेटे अंश को ले कर सालों से मायके में रह रही थी. अंश मामा के घर रह कर ही पढ़ता था. काजल भी वहीं रहते हुए एक नर्सरी स्कूल में पढ़ाती थी.

वैसे भी दिलीप की माली हालत ठीक नहीं थी. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. प्रौपर्टी डीलिंग के इस धंधे में उस ने अपनी सारी जमापूंजी लगा दी थी. इस धंधे में उसे इतना घाटा हुआ था कि वह पैसेपैसे के लिए मोहताज हो गया था. अपनी स्थिति सुधारने के लिए ही उस ने पत्नी और बेटे को ससुराल भेजा था.

उस ने सोचा था कि जब तक हाथ खाली है, तब तक पत्नी और बच्चे को मायके में रहने दे. पैसों का थोड़ा इंतजाम हो जाने के बाद उन्हें वापस बुला लेगा. इसीलिए उस ने काजल और बेटे अंश को रहने के लिए ससुराल भेज दिया था.

उस दिन 25 नवंबर, 2017 की तारीख थी. शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप घर से अकेला ही बेटे की कौपी खरीदने चौर बाजार के लिए निकला. उस ने पत्नी से कहा कि कौपी खरीद कर थोड़ी देर में लौट आएगा. उसे घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. देखतेदेखते रात के 10 बज गए, लेकिन दिलीप लौट कर घर नहीं आया. इस से काजल और अंश दोनों परेशान हो गए. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. इतनी रात गए उसे कहां ढूंढें.

परेशान काजल को जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने देवर विनीत के पास ससुराल फोन कर के पूछा कि दिलीप वहां तो नहीं गए हैं? शाम 5 बजे के करीब बाजार जाने के लिए कह कर घर से पैदल ही निकले थे, लेकिन अभी तक लौट कर नहीं आए. मेरा तो सोचसोच कर दिल बैठा जा रहा है.

भाभी के मुंह से भाई के बारे में ऐसी बात सुन कर विनीत भी परेशान हो गया कि आखिर बिना कुछ बताए भाई कहां चला गया. फिर उस ने बड़े भाई दिलीप के फोन पर काल की तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. उस ने कई बार उस से बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार फोन बंद मिला. आखिर उस ने यह बात घर वालों को भी बता दी.

दिलीप के घर वाले जिला समस्तीपुर में रहते थे. वहां से बेगूसराय थोड़ी दूरी पर था. विनीत ने सोचा अब तो सुबह ही कुछ हो सकता है. उस ने रात तो जैसेतैसे काट ली. सुबह होते ही वह भाई का पता लगाने रानीटोल पहुंच गया.

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वहां पहुंच कर उसे पता चला कि रानीटोल से सटी बूढ़ी गंडक नदी के किनारे हृष्टपुष्ट गोरे रंग और औसत कदकाठी के एक युवक की लाश पाई गई है. लाश का जो हुलिया बताया जा रहा था, वह काफी कुछ उस के भाई दिलीप से मेल खा रहा था. यह सुन कर विनीत थोड़ा विचलित हो गया कि कहीं लाश भाई की तो नहीं है. हो सकता है, उस के साथ कोई घटना घट गई हो.

जितनी भी जल्दी हो सकता था, वह मौके पर पहुंच गया. वहां काफी भीड़ जमा थी. भीड़ को चीरता हुआ वह लाश तक पहुंच गया. लाश दाईं करवट पड़ी थी. हत्यारों ने उस की गरदन पर किसी तेज धारदार हथियार से पीछे से वार किया था. पास ही पूजा की सामग्री पड़ी थी और लाश के ऊपर अधखुली पीली मखमली चादर पड़ी थी.

ऐसा लग रहा था, जैसे मृतक जब पूजा कर रहा था, तभी हत्यारे ने मौका देख कर उस पर पीछे से वार कर दिया हो. विनीत लाश देख कर पहचान गया कि लाश उस के भाई की है. वह भाई की लाश से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगा.

गांव वाले भी लाश को देखते ही पहचान गए थे कि काजल के पति दिलीप की लाश है. जैसे ही काजल को पति की हत्या की सूचना मिली तो वह गश खा कर गिर गई. घर में रोनापीटना शुरू हो गया. घर वाले वहां पहुंच गए, जहां दामाद का शव पड़ा था.

जहां से दिलीप का शव बरामद हुआ था, वह इलाका समस्तीपुर जिले के थाना मुफस्सिल में पड़ता था. थाना मुफस्सिल को घटना की सूचना मिल चुकी थी. थानाप्रभारी पवन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पवन सिंह ने इस बात की सूचना पुलिस अधीक्षक दीपक रंजन और डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद को दे दी थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद थानाप्रभारी पवन सिंह ने मृतक के भाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि दिलीप के पास उस का एक सेलफोन था, जो गायब है.

घटनास्थल पर पूजा की सामग्री के अलावा दूसरी कोई चीज नहीं मिली थी. पुलिस ने पूजा सामग्री और चादर अपने कब्जे में ले ली. कागजी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. फिर पुलिस थाने लौट आई.

विनीत ने अपने भाई दिलीप की हत्या की तहरीर थाने में दे दी, जिस के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

दिलीप पाठक हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसपी दीपक रंजन ने डीएसपी तनवीर अहमद के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. डीएसपी तनवीर अहमद ने घटनास्थल का दौरा कर के स्थिति को समझने की कोशिश की. परिस्थितियां बता रही थीं कि हत्या के इस मामले में मृतक का कोई अपना ही शामिल था. वह कौन था, इस का पता लगाना जरूरी था.

पुलिस ने मृतक के भाई विनीत पाठक से दिलीप की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. काजल ने भी यही कहा. इसी दौरान एक मुखबिर ने चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि दिलीप और उस की पत्नी काजल के बीच काफी मनमुटाव चल रहा था. प्रारंभिक जांच के दौरान तनवीर अहमद को काजल की हरकतें खटकी भी थीं, लेकिन उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे, इसलिए उन्होंने उस से सीधे बात करना ठीक नहीं समझा था.

डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद ने दिलीप और काजल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काजल के फोन की डिटेल्स देख कर उन के होश उड़ गए. उस के फोन पर डेढ़ महीने में एक ही नंबर से 13 सौ फोन आए थे. कई काल तो ऐसी थीं, जिन में उसी नंबर से 2 से 3 घंटे तक बातचीत की गई थी.

यह नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर लक्ष्मण कुमार पासवान, निवासी रातगांव करारी, थाना-तेघरा, जिला बेगूसराय का निकला. पुलिस ने बिना समय गंवाए उसी दिन लक्ष्मण के घर पर दबिश दी और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ में लक्ष्मण टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने काजल के कहने पर उस के पति दिलीप की हत्या की थी. काजल उस की प्रेमिका थी. यह सुन कर सभी अधिकारी स्तब्ध रह गए. क्योंकि देखने में भोलीभाली लगने वाली औरत नागिन से भी जहरीली निकली, जिस ने इश्क के नशे में अपने पति को ही डंस लिया.

काजल को यह समझते देर नहीं लगी कि उस के गुनाहों की पोल खुल चुकी है. ऐसे में भलाई सच बताने में ही है. काजल ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उसी के कहने पर लक्ष्मण ने दिलीप की हत्या की थी. काजल ने हत्या की पूरी कहानी कुछ ऐसे बयां की—

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35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक मूलत: बिहार के समस्तीपुर जिले के थाना भगवानपुर के गांव बुढ़ीवन तैयर का रहने वाला था. पिता अनिल पाठक की 4 संतानों में वह सब से बड़ा था. हंसमुख स्वभाव का दिलीप मेहनतकश था. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया था, उस का यह धंधा सही चल निकला था.

दिलीप अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था और ईमानदारी से पैसा कमा रहा था. पिता ने 12 साल पहले उस की शादी बेगूसराय के तेघरा, रानीटोल की रहने वाली काजल के साथ कर दी थी. शादी के कई साल बाद उस के घर में एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम अंश रखा गया. समय के साथ प्रौपर्टी के धंधे में दिलीप को काफी नुकसान हुआ. इस के बाद उस का धंधा धीरेधीरे और भी मंदा होता गया. स्थिति यह आई कि प्रौपर्टी के बिजनैस में उस ने जितनी पूंजी लगाई थी, सब डूब गई. यह करीब 3 साल पहले की बात है.

पति की माली हालत खराब देख काजल बेटे को ले कर अपने मायके रानीटोल चली गई और वहीं मांबाप के साथ रहने लगी. पत्नी का यह रवैया दिलीप को काफी खला, क्योंकि मुसीबत के वक्त साथ देने के बजाय वह उसे अकेला छोड़ कर चली गई. वह मन मसोस कर रह गया और सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया.

उधर काजल ने बेटे को वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. दिलीप बीचबीच में पत्नी और बेटे से मिलने ससुराल जाता रहता था. ससुराल में 1-2 दिन रह कर वह अपने घर लौट आता था. अंश जिस कौन्वेंट स्कूल में पढ़ता था, वहां की किताबें भाषा में काफी मुश्किल होती थीं. कभीकभी अंगरेजी के कुछ शब्दों के अर्थ काजल को भी पता नहीं होते थे, जबकि वह अच्छीभली पढ़ीलिखी थी. बेटे की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए, इसलिए उस ने अंश के लिए घर पर ही एक ट्यूटर लगा दिया. यह पिछले साल जुलाईअगस्त की बात है.

ट्यूटर ( Tuition Teacher ) का नाम लक्ष्मण कुमार पासवान था. रातगांव करारी का रहने वाला 21 वर्षीय लक्ष्मण कुमार एकदम साधारण शक्लसूरत और सांवले रंग का युवक था. लक्ष्मण की वाकपटुता से काजल काफी प्रभावित थी. अंश को भी वह खूब मन लगा कर पढ़ाता था. थोड़े ही दिनों में लक्ष्मण उस परिवार का हिस्सा बन गया. बेटे को पढ़ाते समय काजल लक्ष्मण के पास ही बैठी रहती थी. लक्ष्मण जवान था. ऊपर से कुंवारा भी. जब काजल उस कमरे में आ कर बैठती थी, जिस में वह अंश को पढ़ाता था तो लक्ष्मण उसे कनखियों से निहारता रहता था. काजल भी लक्ष्मण के पास बैठने के लिए बेकरार रहती थी.

एक दिन लक्ष्मण अंश को (Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने उस के घर पहुंचा. उस समय शाम का वक्त था. उस रोज काजल काफी परेशान थी. उस ने अपने दुखों का पिटारा उस के सामने खोल कर रख दिया. लक्ष्मण काजल की दुखभरी व्यथा सुन कर भावनाओं में बह गया.

काजल ने उस से कहा कि वह उस के लिए कोई छोटीमोटी नौकरी ढूंढने में मदद करे. लक्ष्मण मना नहीं कर सका. बाद में लक्ष्मण ने अपने एक परिचित के माध्यम से एक नर्सरी स्कूल में उसे अध्यापिका की नौकरी दिलवा दी. काजल लक्ष्मण के अहसानों की कायल थी. धीरेधीरे वह उस की ओर झुकती गई. लक्ष्मण भी उस की ओर आकर्षित होता गया. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया. प्यार भी ऐसा कि एकदूसरे को देखे बिना रह न सके. यह बात भी जुलाई अगस्त 2016 की है. 2 महीने के प्यार के बाद लक्ष्मण और काजल ने चुपके से मंदिर में विवाह कर लिया. काजल ने इस की भनक किसी को नहीं लगने दी, पति तक को नहीं.

9 वर्ष का अंश भले ही छोटा था, लेकिन उस में इतनी अक्ल थी कि वह अच्छे और बुरे में फर्क महसूस कर सके. उस ने अपनी मम्मी और ट्यूटर के बीच के रिश्तों को महसूस कर लिया था. उसे लगता था कि कहीं कुछ गलत हो रहा है, जो घरपरिवार के लिए अच्छा नहीं है. अंश ने यह बात अपने पापा दिलीप को बता दी. बेटे की बात सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. बहरहाल, सूचना मिलने के अगले दिन दिलीप ससुराल रानीटोल पहुंच गया. उस दिन (Tuition Teacher) ट्यूटर लक्ष्मण को ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. काजल पति को समझाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रही थी. उस ने सफाई देते हुए कहा कि उस के और लक्ष्मण के बीच कोई संबंध नहीं है.

लक्ष्मण को उस ने बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए रखा है. ट्यूटर आता है और बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर चला जाता है. उस रोज काजल अपने त्रियाचरित्र के दम पर पति को काबू करने में कामयाब हो गई थी. जैसेतैसे मामला शांत तो हो गया, लेकिन दिलीप पत्नी पर नजर रखने लगा.

पति को उस पर शक हो गया है, काजल ने यह बात लक्ष्मण को फोन कर के बता दी थी. उस ने लक्ष्मण को यह कहते हुए सावधान कर दिया था कि पति जब तक घर पर रहे, तब तक वह बच्चे को(Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने भी न आए. लक्ष्मण उस की बात मान गया और वैसा ही किया, जैसा उस ने करने को कहा था. काजल लक्ष्मण से मिलने के लिए बेचैन रहती थी. पति के रहते उन के मिलन में बाधा पड़ रही थी. काजल से लक्ष्मण की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए लक्ष्मण पर दबाव बनाया कि वह उस की हत्या कर दे. उस के बाद रास्ते में रुकावट पैदा करने वाला कोई नहीं रहेगा. काजल को पाने के लिए लक्ष्मण उस की बात मानने के लिए तैयार हो गया.

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लक्ष्मण जानता था कि दिलीप की माली हालत अच्छी नहीं है, इसलिए कुछ ऐसा चक्कर चलाया जाए, जिस से वह उस के काबू में आ जाए. इस के लिए उस ने काजल को धोखे में रखते हुए एक और खेल खेलने की सोची.

उस ने सोचा कि दिलीप की हत्या का ऐसा तानाबाना बुना जाए, जिस से पूरा शक काजल और काजल के मायके वालों पर ही जाए. कभी मामले का खुलासा हो भी तो वह शक के दायरे से बचा रहे. दिलीप ने लक्ष्मण को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह उसे जानतापहचानता नहीं था. लक्ष्मण और काजल ने इसी बात का फायदा उठाते हुए योजना बनाई कि दिलीप को भरोसा दिलाया जाए कि एक ऐसी पूजा है, जिसे ध्यानमग्न हो कर करने पर पूजा की जगह पर ही 25 हजार रुपए मिल जाते हैं.

योजना बनाने के बाद काजल ने पति को इस पूजा के लिए मना लिया. दिलीप इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति एकदम जर्जर हो चुकी थी. वह पैसेपैसे के लिए मोहताज था. उस ने सोचा कि संभव है ऐसा करने पर उसे आर्थिक लाभ मिल जाए. बहरहाल, सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. काजल ने 25 नवंबर, 2017 को दिन में एक तेज धार वाला गंडासा दिलीप की मोटरसाइकिल की डिक्की में छिपा कर रख दिया. उस ने यह बात फोन कर के लक्ष्मण को बता दी. अब केवल योजना को अमलीजामा पहनाना बाकी था. लक्ष्मण ने काजल को भरोसा दिलाया कि आज काम तमाम हो जाएगा.

25 नवंबर की शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप बेटे के लिए कौपी खरीदने के लिए घर से अकेला निकला. घर से निकल कर जब वह चौर बाजार पहुंचा तो पीछे से लक्ष्मण पंडित बन कर उस की मोटरसाइकिल के पास पहुंच गया.

दरअसल, दिलीप के घर से निकलते ही काजल ने लक्ष्मण को फोन कर के बता दिया था कि शिकार घर से निकल चुका है. चौर में उस से मुलाकात हो जाएगी. आगे क्या करना है, यह उसे पता था ही. चौर बाजार में उस की मुलाकात दिलीप से हुई तो उस ने काजल का परिचय देते हुए उसे पूजा वाली बात बताई. दिलीप समझ गया कि यह वही पंडित है, जिस से पूजा करानी है. लक्ष्मण उसे बाइक पर बैठा कर चौर (तेघरा) से समस्तीपुर ले आया, जहां उस ने पूजा की सामग्री खरीदी. सामग्री खरीदने के बाद वह दिलीप को ले कर मोटरसाइकिल से रानीटोल स्थित माधोपुर बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पहुंच गया. यह इलाका जिला समस्तीपुर में आता था.

योजना के अनुसार, लक्ष्मण ने पहले दिलीप से पूजा करवाई. पूजा की प्रारंभिक विधि समाप्त होने के बाद उस ने पैसे पाने के लिए दिलीप से 15 मिनट तक आंखें बंद कर ध्यानमग्न होने को कहा. साथ यह भी कहा कि आंखें बंद करने के बाद ही पैसे मिलेंगे.

दिलीप ध्यानमग्न हो गया. तभी लक्ष्मण बाइक की डिक्की में रखा धारदार गंडासा ले आया. उस ने पीछे से दिलीप की गरदन पर जोरदार वार किया. गरदन कटने से दिलीप की मौके पर ही मौत हो गई. दिलीप की हत्या करने के बाद लक्ष्मण वहां से बाइक से वापस बेगूसराय लौट गया. बेगूसराय जाते वक्त लक्ष्मण ने दिलीप का मोबाइल फोन गरुआरा चौर की झाडि़यों में फेंक दिया. वहां से आगे जा कर उस ने गंडासा दलसिंहसराय के पास एनएच-28 के किनारे एक झाड़ी में फेंक दिया, ताकि पुलिस उस तक कभी न पहुंच सके.

इत्मीनान होने के बाद वह मोटरसाइकिल ले कर प्रेमिका काजल के घर रानीटोल पहुंचा. काजल उस के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. लक्ष्मण को देखते ही उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. घर में सभी सो गए थे. उस ने दबे पांव मोटरसाइकिल बरामदे में चढ़ा दी. उस वक्त रात के करीब 10 बज रहे थे.

मोटरसाइकिल खड़ी करवाने के बाद काजल ऊपर खाली पड़े कमरे में गई तो पीछेपीछे लक्ष्मण भी हो लिया. वहां दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. बाद में लक्ष्मण अपने घर चला गया.

दोनों के रास्ते का रोड़ा साफ हो चुका था. दोनों यह सोच कर खुश थे कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन कानून के लंबे हाथों ने उन के मंसूबों पर पानी फेर दिया और दोनों वहां पहुंच गए, जहां उन का असली ठिकाना था यानी जेल की सलाखों के पीछे. अंश अपने दादा अनिल के साथ अपने पैतृक गांव बूढ़ीवन आ गया और दादादादी के साथ रह रहा है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Film ‘दृश्सम’ की तर्ज पर प्रेमिका को तड़पा कर मारा

Film पति से तलाक होने के बाद 32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे फौजी अजय वानखेड़े के संपर्क में आई. होटल में हसरतें पूरी करने के बाद फौजी ने उस से शादी करने का वायदा किया, लेकिन इस दौरान इन के बीच ऐसा क्या हो गया कि फौजी अजय ने न सिर्फ ज्योत्सना की हत्या कर दी, बल्कि घटना को फिल्म ‘दृश्यम’ की कहानी का रूप देने की कोशिश की?

28 अगस्त, 2024 को अजय वानखेड़े ने अपनी प्लानिंग के मुताबिक एक दूसरे फोन से ज्योत्सना से बात करने के बाद उसे नागपुर के वर्धा रोड पर आने के लिए कहा. उस ने ज्योत्सना को कहा कि वह उस से शादी करने को बिलकुल तैयार है, मगर उस से पहले वह शादी की कुछ जरूरी बातचीत अकेले में करना चाहता है.

इस बारे में वह अपने घर वालों को अभी कुछ न बताए, क्योंकि इस मामले में कुछ अड़चन सामने आ गई है, जोकि दोनों की आपसी बातचीत से ही सुलझ सकती है. ज्योत्सना ने प्रेमी अजय की बातों पर विश्वास कर लिया और उस ने प्रेमी से मिलने के लिए हामी भर दी. फिर ज्योत्सना ने अपने पिता और भाई को झूठ बोलते हुए यही बताया कि वह अपनी दोस्त अमृता उगे के घर किसी काम से जा रही है और वह रात को उसी के घर पर रुकेगी.

अजय ने होटल में कमरा पहले से ही बुक कर रखा था. जैसे ही ज्योत्सना वहां पहुंची तो अजय उसे पहले होटल में ले गया, फिर वह होटल में सामान रख कर घूमने के बहाने ज्योत्सना को अपनी कार में ले कर होटल से बाहर निकल गया. अजय ने रास्ते में टोल प्लाजा के पास ज्योत्सना को नशीली कोल्डड्रिंक पिला दी और फिर ज्योत्सना के बेहोश होते ही उस ने पहले ज्योत्सना की गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आधी रात को न सिर्फ जंगल में गड्ढा खोदा, बल्कि उस में ज्योत्सना की लाश को दफन करने के बाद अपने साथ लाए सीमेंट से लाश वाले गड्ढे को पूरी तरह से बंद कर दिया.

इस के बाद कातिल प्रेमी अजय वानखेड़े ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तर्ज पर सभी को उलझाने के लिए एक और काम किया. उस ने कत्ल करने के बाद ज्योत्सना के मोबाइल को एक चलते ट्रक में फेंक दिया, ताकि पुलिस इस कत्ल की साजिश का कभी भी परदाफाश न कर सके. इस के बाद उस ने एक और शातिराना चाल चली और इस वारदात को अंजाम देने के बाद वह तुरंत पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती हो गया, ताकि कोई भी उस पर वारदात में शामिल होने को ले कर शक न कर सके.

फौजी के बायोडाटा से क्यों इंप्रैस हुई ज्योत्सना

 

32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे तीखे नाकनक्श की खूबसूरत युवती थी. वह हुडको कालोनी कमलेश्वर नागपुर की रहने वाली थी. ज्योत्सना के घर पर उस के पापा कमल आकरे व एक छोटा भाई सिद्धेश्वर आकरे था. उस की मम्मी की काफी पहले मृत्यु हो चुकी थी. ज्योत्सना ने ग्रैजुएशन करने के बाद कंप्यूटर में भी 3 साल का कोर्स कर रखा था. पढ़ीलिखी थी तो उसे नागपुर में ही एक आटोमोबाइल कंपनी में जौब मिल गई थी. वर्ष 2019 में ज्योत्सना का विवाह अनूप नामक युवक से हुआ था, लेकिन पति से अनबन के कारण एक साल बाद ही दोनों में तलाक हो गया था.

उस के बाद ज्योत्सना ने विवाह करने का विचार लगभग छोड़ ही दिया था, लेकिन दूसरी ओर उस के पापा की उम्र बढ़ती जा रही थी इसलिए उस के पापा और भाई ज्योत्सना से विवाह करने के लिए अकसर कहते रहते थे. ज्योत्सना के पापा कमल आकरे ने तो एक दिन उस से कह ही दिया, ”देख बेटी ज्योत्सना, घर में तेरी मम्मी भी अब जीवित नहीं रहीं. एक तेरा छोटा भाई सिद्धेश्वर है, जिस की नौकरी लग चुकी है. एक दिन उस का विवाह भी हो जाएगा. मेरी उम्र अब इतनी अधिक हो चुकी है कि न जाने कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए. मेरे मरने के बाद तेरा क्या होगा, यही सोचसोच कर मैं चिंता में रहता हूं. मांबाप के बाद बेटी को भाई, बहन या भाभी या दूसरे रिश्तेदार कोई भी नहीं पूछते. अब तू बता कि तुझे शादी करनी है या नहीं?’’

इस के बाद ज्योत्सना ने भी अपने पापा से कह ही दिया, ”पापा, आप इतने दुखी व परेशान न रहा करें. मैं अपना बायोडाटा शादी डौटकौम पर डाल देती हूं, अगर मुझे कोई लड़का पसंद आ गया तो आप की सहमति से उस के साथ विवाह कर लूंगी. अब तो आप थोड़ा मुसकरा दीजिए.’’ और यह कहते हुए अपने पापा के गले लग गई थी. उस के बाद हंसमुख ज्योत्सना ने शादी डौटकौम पर अपनी फोटो और अपना पूरा विवरण अपलोड कर दिया और फिर इसी के जरिए अप्रैल 2024 में अजय वानखेड़े ने उस से संपर्क किया. अजय वानखेड़े न्यू कैलाश नगर, मानेवाड़ा, नागपुर का ही रहने वाला था. मैट्रीमोनियल साइट से अब दोनों की बातचीत होने लगी थी. ज्योत्सना को अजय वानखेड़े की बातचीत काफी अच्छी लगने लगी थी.

अजय और ज्योत्सना आकरे के बीच अब काफी बातचीत भी होने लगी थी. एक दिन कुरिअर से ज्योत्सना को एक पत्र मिला, भेजने वाले का नाम अजय वानखेड़े था और पता नागालैंड का था. ज्योत्सना को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अजय वानखेड़े ने तो बातचीत में कभी नागालैंड का जिक्र तक नहीं किया था. उत्सुकतावश उस ने लिफाफा फाड़ा और पत्र गौर से पढऩे लगी. अजय ने पत्र में लिखा था, ‘मेरी प्रिय ज्योत्सनाजी, आप की फोटो और आप की बातें दिनरात सताती रहती हैं. ऐसा कोई भी पल नहीं होता, जब तुम्हारी याद मेरे ऊपर हावी नहीं होती, अगर आप मेरी इस सूनी जिंदगी में नहीं आतीं तो मेरा क्या होता? इस कल्पना से ही मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है.

‘ज्योत्सना मैं ने तुम से अपनी कुछ बातें छिपाई हैं, जो मैं तुम्हें अपने पत्र मैं खुल कर बताना चाहता हूं, ताकि कल तुम मेरे ऊपर कोई तोहमत न लगा सको. पहली बात तो यह है कि भले ही मैं पोस्ट ग्रैजुएट हूं, लेकिन मैं भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हूं. फौज की नौकरी में मैं आप को सारे सुख दे भी पाऊंगा या नहीं, मैं कह नहीं सकता.

‘दूसरा, मैं एक बार शादी भी कर चुका हूं और मेरा पत्नी से तलाक हो गया. अब इस मुकाम पर आ कर कभीकभी मेरे दिलोदिमाग में यह विचार आता है कि मेरी इस सूनी जिंदगी के इस नाजुक मोड़ पर अगर तुम भी मुझे छोड़ दोगी तो फिर मेरा क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाऊंगा. तुम मुझे छोड़ोगी तो नहीं न?

‘सौरी ज्योत्सना, मैं आप से तो अब तुम पर भी आ गया. इसलिए कि मैं तुम्हें काफी अपना समझने लगा हूं और तुम्हें तो अब अपने दिल के काफी करीब भी मानने लगा हूं. देखो, मैं अगले महीने की 10 तारीख को एक महीने की छुट्टी पर नागपुर आ रहा हूं. एक बार तुम से मिलना चाहता हूं. मुझ से मिलोगी न तुम?

तुम्हारा अजय’

अजय का पत्र पढ़ कर ज्योत्सना भावविभोर हो उठी थी. उसे सब से अच्छी बात तो अजय की यह लगी कि उस ने अपने अतीत की सारी बातें सचसच पत्र में लिख डाली थीं. दूसरा वह उस की फोटो देख कर ही ज्योत्सना से इतना अधिक प्यार करने और चाहने लगा था. इसलिए उसी दिन शाम को ज्योत्सना ने अजय को फोन कर के बता दिया कि वह भी उसे पसंद करने लगी है. बाकी सारी बातें मिलने पर एकदूसरे को देख कर आपस में बातचीत कर के हो जाएंगी. उस ने अजय से ये भी कह दिया कि उसे फौजी बहुत पसंद हैं और वह अजय से मिलने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है.

होटल में मिला नजदीक से जानने का मौका

10 जनवरी, 2024 को पहली बार अजय और ज्योत्सना की मुलाकात एक होटल में हुई. दोनों एकदूसरे से बातचीत करते और कुछ ही देर के बाद उन्हें ऐसा लगा कि वे दोनों तो वर्षों एकदूसरे को जानते हैं. इस के बाद एक दिन अजय ने ज्योत्सना से कहा कि एक दिन एक होटल में कमरा ले कर रुकते हैं. इस से हमें एकदूसरे को नजदीक से जानने का मौका भी मिल सकेगा. ज्योत्सना ने अजय की बात बात मान ली.

”हां अजयजी, यहां पर आप क्या बात कहना चाहते हैं. यहां पर आ कर भला हमारे बीच नजदीकियां कैसे बढ़ सकती हैं?’’ होटल में आ कर ज्योत्सना ने अजय से पूछा.

”ज्योत्सनाजी, आज आप को अपने सामने देख कर मैं अपने आप को दुनिया का सब से बड़ा भाग्यशाली व्यक्ति समझ रहा हूं. तुम्हारे सौंदर्य के सामने तो स्वर्ग की अप्सराएं भी कुछ नहीं हैं. कभीकभी तो मुझे विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि दुनिया की सब से सुंदर नारी मेरी बांहों में है.’’ यह कहतेकहते अजय ने ज्योत्सना को अपनी दोनों बांहों में ले लिया.

यह सुन कर और अजय की एकाएक बांहों में आ कर ज्योत्सना के गालों पर गुलाबी सुर्खी छा गई थी. भावावेश में आ कर ज्योत्सना ने अपना सिर अजय के कंधों पर रख दिया था. तभी उन के कमरे में बैरा कोल्डड्रिंक्स और स्नैक्स ले कर आ गया तो अजय ने फुरती से एक गिलास में नशे की गोली मिला दी थी. अजय की यह एक शातिराना चाल थी. अगले ही पल उस ने वह गिलास ज्योत्सना के हाथों में थमा दिया और कहा, ”ज्योत्सना, आज की हमारी पहली मुलाकात का एक छोटा सा जाम!’’

”अरे अजयजी, आप जाम की बात कहां करने लगे, मैं तो इस से दूर रहती हूं.’’ कहते हुए ज्योत्सना ने गिलास थाम लिया और उसे धीरेधीरे पीने लगी.

थोड़ी ही देर के बाद उसे एक अजीब सा नशा छाने लगा था और फिर वह अचेत हो गई. अजय ने इस का भरपूर फायदा उठाते हुए ज्योत्सना के साथ बेहोशी की अवस्था में संबंध स्थापित कर लिए. ज्योत्सना की बेहोशी पूरे 2 घंटे के बाद टूटी तो उस ने अपने आप को निर्वस्त्र अजय की बांहों में पाया. अजय उस समय चैन की नींद सो रहा था. ज्योत्सना ने उसे झिंझोड़ कर उठा दिया और जब अजय की आंखें खुलीं तो ज्योत्सना उस के ऊपर बुरी तरह से भड़क गई थी.

”अजय, तुम इतने गिरे हुए इंसान निकलोगे, ऐसा कभी मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. तुम ने तो मुझे कहीं पर भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. शादी से पहले ही तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा आखिर क्यों किया?’’ ज्योत्सना ने गुस्से से कहा.

”ज्योत्सना, मैं सचमुच तुम्हारे सौंदर्य को देख कर बहक गया था. अपने आप पर बिलकुल ही काबू नहीं रख सका. इस के लिए मैं तुम से दिल से माफी मांगता हूं. मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं केवल तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा.’’ अजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सब कुछ लुटाने के बाद भी ज्योत्सना ने फौजी को क्यों किया माफ

उस के बाद दोनों मिलते रहे. ज्योत्सना उसे हर बार अपने घर में आने के लिए कह चुकी थी, मगर अजय कुछ न कुछ बहाना कर के उसे टालता रहता था. एक दिन ज्योत्सना उसे जबरदस्ती अपने घर ले कर आ गई. उस समय ज्योत्सना के घर पर उस के पापा और भाई सिद्धेश्वर भी था. ज्योत्सना ने अजय की तारीफों के पुल बांधते हुए अपने पापा से उस का परिचय कराते हुए कहा, ”पापा, यही अजय वानखेड़े है. अजय भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हैं. मैं ने इन के बारे में पहले भी आप को बताया था. अजय बहुत ही अच्छे इंसान हैं. मुझ से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

उस के बाद ज्योत्सना चाय बना कर ले आई. अजय से ज्योत्सना के भाई और पापा ने काफी देर बातचीत भी की. कुछ देर के बाद अजय अपने घर चला गया. उस के बाद ज्योत्सना के पापा ने उस से कहा, ”बेटी, आजकल किसी पर इतनी जल्दी विश्वास करना ठीक नहीं है. तुम ने उस के बारे में पता किया है कि वह कौन है, उस के परिवार में कौनकौन लोग हैं, उस के परिवार का और उस का क्या इतिहास रहा है?’’

”पापा, मैं ने अजय के बारे में सब कुछ जान लिया है. मुझे तो वह हर तरह से योग्य लगता है, उस का भविष्य भी मुझे काफी उज्जवल दिखता है,’’ ज्योत्सना ने कहा.

”देख बेटी, मेरा अनुभव तो यह कहता है कि वह ठीक इंसान नहीं है, पहली ही नजर में वह मुझ से नजरें चुराने लगा था. इसलिए मैं तो कहता हूं कि जरा सोचसमझ कर फैसला लेना. एक बार शादी कर के तुम देख चुकी हो, इस बार कहीं धोखा मत खा जाना.’’ कमल आकरे ने उसे समझाते हुए कहा. उधर ज्योत्सना ने अजय को अपना तन समर्पित कर दिया तो वह उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. सच्चाई यह थी कि अजय उस से शादी नहीं करना चाहता था. वह तो केवल उसे मौजमस्ती का साधन समझ रहा था. इसलिए उस ने ज्योत्सना से दूरी बनानी शुरू कर दी.

ज्योत्सना जब कभी उसे फोन करती तो वह उस की काल रिसीव नहीं करता. ज्योत्सना बहुत परेशान रहने लगी. वह वह वाट्सऐप पर भी चैटिंग का जवाब नहीं देता. एक दिन ज्योत्सना ने अपनी एक परिचित महिला, जो अजय की भी रिश्तेदार थी, से उसे मैसेज भिजवाया कि अजय उस से जल्द बातचीत करे नहीं तो वह उस की सारी करतूतें नागालैंड में अजय के कमांड अधिकारी को बता कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करवा देगी. इस से अजय वानखेड़े घबरा गया और वह ज्योत्सना से पीछा छुड़ाने के उपाय तलाशने लगा. फिर उस ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तरह ज्योत्सना को खत्म करने की प्लानिंग तैयार कर ली. और 28 अगस्त को उसे मिलने के बहाने बुला कर उस की हत्या कर दी.

29 अगस्त, 2024 को बेलतरोड़ी थाने के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे ही थे कि तभी एक युवक बदहवास सा उन के कार्यालय में आ गया. उस ने अपना नाम सिद्धेश्वर आकरे निवासी हुडको कालोनी कमलेश्वर, नागपुर बताया. उस ने बताया कि उस की बड़ी बहन ज्योत्सना आकरे बेसा में रहने वाली अपनी सहेली अमृता उगे के घर में रात को रुकने को कह कर कल दोपहर में निकली थी. आज सुबह अमृता उगे का फोन मेरे मोबाइल पर आया और उस ने ज्योत्सना के बारे में पूछा. इस पर मैं ने उसे बताया कि ज्योत्सना तो कल रात तुम्हारे घर पर रहने को कह कर घर से निकली थी.

अमृता ने बताया कि ज्योत्सना तो कल उस के घर आई ही नहीं थी, उस का फोन भी नहीं लग रहा था. अमृता ने सिद्धेश्वर से कहा कि ज्योत्सना कभी झूठ नहीं बोलती, इसलिए वह जरूर किसी मुसीबत में फंस गई होगी, तुम उस को अपने रिश्तेदारों में और पुलिस में रिपोर्ट कर दो. सिद्धेश्वर ने एसएचओ को बताया कि वह अपने सारे नातेरिश्तेदारों व जानपहचान वाले लोगों से संपर्क कर चुका है, मगर मेरी बहन का कहीं कुछ पता नहीं चला. यह कह कर वह जोरजोर से रोने लगा.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने रोते हुए सिद्धेश्वर आकरे को ढांढस बंधाया और तुरंत उस की तरफ से लिखित रिपोर्ट दर्ज कर ली. बेल्तारोड़ी पुलिस ही 29 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस के बाद ज्योत्सना आकरे को ढूंढने से जुट गई. इधर दूसरी तरफ ज्योत्सना के पिता, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी उसे अपनेअपने स्तर पर ढूंढ रहे थे.

पुलिस ने ज्योत्सना का मोबाइल ट्रैकिंग पर लगा दिया था, उस का मोबाइल फोन तो औन था, मगर फोन कोई रिसीव नहीं कर रहा था. दूसरी तरफ फोन की लोकेशन लगातार बदलती जा रही थी. ऐसे में पुलिस कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रही थी. इस तरह 2 हफ्ते से ज्यादा का समय गुजर गया.

मोबाइल की लोकेशन से क्यों उलझी पुलिस

18 सितंबर, 2024 को सिद्धेश्वर आकरे फिर थाने पहुंचा. उस पर नजर पड़ते ही एसएचओ ने उसे पास बैठने को कहा.

”देखो, हम लोग ज्योत्सना को दिनरात ढूंढने में व्यस्त हैं. मगर अभी तक हमें कोई सफलता नहीं मिल सकी है. आप फिर भी निश्चिंत रहें, हम जरूर कामयाब होंगे.’’ एसएचओ मुकुंदा कावड़े ने कहा.

”इंसपेक्टर साहब, हमें यह मामला किडनैपिंग का लग रहा है. मेरी दीदी बालिग लड़की है, पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर भी. इसलिए आप अपहरण का केस दर्ज कर लीजिए.’’ कहते हुए सिद्धेश्वर ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे.

पुलिस को भी यह मामला कुछ अजीब सा ही लग रहा था, क्योंकि ज्योत्सना आटोमोबाइल के एक शोरूम में काम करती थी और दूसरी बात यह थी कि वह हमेशा अपने घर वालों के संपर्क में रहती थी, ऐसी स्थिति में उस का अचानक से गायब हो जाना और पिछले 20 दिनों से किसी से भी फोन पर बात न करना पुलिस को भी अखर रहा था. इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने इस बात की सूचना तुरंत अपने उच्च अधिकारियों को दे दी. बेलतरोड़ी पुलिस थाने में 18 सितंबर, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी का मामला अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया गया और नागपुर पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंघल के आदेश पर तुरंत एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया गया.

नागपुर पुलिस की विशेष टीम ने सीसीटीवी फुटेज, काल डिटेल्स और मोबाइल फोन का डंप डाटा निकाल कर ये समझने की कोशिश की कि ज्योत्सना की आखिरी बार किस से बातचीत हुई थी और उस की लास्ट लोकेशन कहां थी. काफी छानबीन के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका. पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ट्रैस की तो उस की लोकेशन अलगअलग जगहों की आ रही थी. लोकेशन के अनुसार पुलिस महाराष्ट्र से ले कर हैदराबाद और छत्तीसगढ़ तक ढूंढती रही, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

नागपुर पुलिस ज्योत्सना के मोबाइल की लोकेशन का पता लगाते हुए एक ट्रक ड्राइवर के पास पहुंची तो पता चला कि उस ने ज्योत्सना के मोबाइल सिम कार्ड निकाल कर अपना सिम लगा लिया था और काम के सिलसिले में वह देश भर में घूम रहा था. ड्राइवर ने उसे बताया कि यह मोबाइल उसे उस के ट्रक में पड़ा मिला था. पुलिस ने ड्राइवर से ज्योत्सना का सिम कार्ड ले कर जब उस की जांच की तो पता चला कि ज्योत्सना ने अंतिम काल अजय वानखेड़े को की थी. पुलिस ने अजय वानखेड़े के बारे में जांच की तो पता चला कि वह सेना में फार्मेसिस्ट है और उस की पोस्टिंग नागालैंड में है. पुलिस को उस पर 3 वजहों से शक हुआ, जो बाद में सही भी निकला.

पहली वजह तो यह कि अजय उन्हीं दिनों पुणे के सेना अस्पताल में भरती हुआ था, जिन दिनों ज्योत्सना गायब हुई थी. हालांकि वह नागालैंड में पोस्टेड था, परंतु सेना का अधिकारी या जवान जो सेना में वर्तमान में कार्य कर रहा है, वह छुट्टी के दौरान भी किसी एक्सीडेंट या किसी अन्य कारण से अस्वस्थ महसूस करता है तो वह अपने नजदीकी किसी भी सेना के अस्पताल में भरती हो कर अपना इलाज करा सकता है. अजय वानखेड़े अपनी शुगर की बीमारी को दिखा कर दक्षिणी कमान के सेना के अस्पताल जोकि पुणे में स्थित था, वहां पर भरती हो गया था.

दूसरी वजह यह थी कि गुमशुदगी के दिन यानी कि 28 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना और अजय वानखेड़े की लोकेशन एक जगह पर थी और तीसरी वजह यह थी कि अजय वानखेड़े की ज्योत्सना के अलावा और भी कई अन्य गर्लफ्रैंड थीं. ऐसे में पुलिस को उस की हरकतों पर शक होने लगा था. नागपुर की विशेष टीम ने जब विस्तृत जांच की तो पता चला कि सेना में फार्मेसिस्ट की नौकरी करने वाला अजय वानखेड़े की असल में पहले भी 2 शादियां हो चुकी थीं और वह अब तीसरी बीवी की तलाश में था. उस का उस का दोनों पत्नियों से तलाक हो चुका था, जबकि ज्योत्सना आकरे का भी पहले एक बार तलाक हो चुका था.

ज्योत्सना के परिजनों से भी पुलिस को यह मालूम हो चुका था कि ज्योत्सना और अजय एकदूसरे के संपर्क में काफी समय से थे और शादी भी करना चाहते थे. अब नागपुर पुलिस अजय वानखेड़े के पीछे पड़ गई थी. अजय वानखेड़े की तलाश करते हुए नागपुर पुलिस को पता चला कि अजय डाइबिटीज की शिकायत को ले कर पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती है. चूंकि अब अजय पुलिस की रडार पर आ चुका था, इसलिए नागपुर पुलिस ने सेना अस्पताल से रिक्वेस्ट की कि हमें इस जवान पर शक है, इसलिए इस के ऊपर कड़ी निगरानी रखी जाए और जैसे ही यह अस्पताल से डिस्चार्ज हो, उसे तुरंत नागपुर पुलिस के हवाले कर दिया जाए.

मगर अजय वानखेड़े इतना शातिर निकला कि वह सेना के अस्पताल से ही फरार हो गया और नागपुर पुलिस और सेना भी भौचक्की हो कर रह गई पुलिस अब पूरी तरह से अजय वानखेड़े के पीछे पड़ चुकी थी. इसी बीच पुलिस का शक तब और भी गहरा हो गया, जब अजय वानखेड़े ने नागपुर के सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन उस की याचिका खारिज कर दी गई. उस के बाद अजय वानखेड़े ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

एडवोकेट श्रीरंग भंडारकर और एडवोकेट एस.पी. सोनवाने ने अजय वानखेड़े की ओर से उच्च न्यायालय में पैरवी की, लेकिन न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के ने 15 सितंबर, 2024 को अजय वानखेड़े की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया.

अजय ने किया पुलिस के सामने सरेंडर और फिर खुला ज्योत्सना मर्डर का राज

तब आखिरकार उस ने खुद ही नागपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की. दरअसल, ज्योत्सना कहीं गायब नहीं हुई थी बल्कि उस की नृशंस हत्या की गई थी और हत्या करने वाला भी कोई और नहीं बल्कि खुद अजय वानखेड़े ही था. अजय ने ज्योत्सना की हत्या की बात कुबूल करने के साथ ही उस की लाश को जंगल में दफनाने की बात भी कही.

उस के बाद पुलिस ने अजय की निशानदेही पर नागपुर के बाहरी इलाके में मौजूद एक सुनसान जगह से ज्योत्सना की जमीन में दफन सड़ीगली लाश बरामद की. फौजी अजय वानखेड़े ने ज्योत्सना की लाश जहां पर दफनाई थी, उस जगह को उस ने सीमेंट डाल कर सील कर दिया था, ताकि किसी भी कीमत पर लाश का राज कभी भी न खुल सके. बस यूं समझ लीजिए कि अजय देवगन और तब्बू द्वारा अभिनीत Film फिल्म ‘दृश्यम’ की तर्ज पर ही अजय वानखेड़े ने इस कत्ल की साजिश और प्लानिंग की थी. मगर इतनी सारी कोशिशें करने के बावजूद आखिरकार पुलिस ने उस की हरकतों, उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स, उस की लोकेशन और ज्योत्सना के भाई के बयान के आधार पर उसे पकड़ ही लिया. और इस मर्डर मिस्ट्री का परदाफाश हो गया.

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि अपराध चाहे कितनी भी चतुराई से क्यों न किया जाए, कानून से बच पाना असंभव है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आरोपी फौजी अजय वानखेड़े को जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Extramarital Afaair : 4 साल बाद मिले कंकाल ने बयां की इश्क की कहानी

Extramarital Afaair गाजियाबाद के थाना नंदग्राम के गांव सिकरोड का रहने वाला चंद्रवीर बहुत खुश था. क्योंकि उस ने अपनी पैतृक जमीन का छोटा सा टुकड़ा अच्छे दामों में एक बनिए को जो बेच डाला था. बनिया वहां अपनी दुकान बनाना चाहता था. अब बनिया वहां दुकान खोले या कुछ और बनवाए, चंद्रवीर को इस से कोई मतलब नहीं रह गया था. वह तो नोटों को अपने अंगौछे में बांध कर घर की ओर लौट पड़ा था. रास्ते से उस ने देशी दारू की बोतल भी खरीद कर अंटी में खोंस ली थी.

घर के पास पहुंच कर उस ने अपने पास वाले घर के दरवाजे पर जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरुण…ओ अरुण.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खोल कर दुबलापतला गोरे रंग का युवक सामने आया. चंद्रवीर के चेहरे की चमक और खुशी देख कर ही वह ताड़ गया कि चंद्रवीर ने बेकार पड़ा जमीन का वह टुकड़ा बेच डाला है, जिसे बेचने की वह पिछले एक महीने से कोशिश कर रहा था. फिर भी अरुण उर्फ अनिल ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, काहे पुकार रहे थे मुझे? और इतने खुश काहे हो आप?’’

‘‘अरुण, मैं ने अपनी जमीन का बलुआ रेत वाला वह टुकड़ा बनिए को एक लाख रुपए में बेच डाला है. आज मैं बहुत खुश हूं.यह लो 2 सौ रुपए, दौड़ कर चिकन ले आओ. तुम्हारी भाभी से चिकन बनवाएंगे. जब तक चिकन पकेगा, हमारी महफिल में जाम छलकते रहेंगे, आज जी भर कर पीएंगे.’’

अरुण हंस पड़ा, ‘‘होश में रहने तक ही पीनी होगी भैया. ज्यादा पी ली तो भाभी बाहर चौराहे पर चारपाई लगा देंगी.’’

ही..ही..ही.. चंद्रवीर ने खींसें निपोरी, ‘‘होश में ही रहूंगा अरुण, तुम्हारी भाभी के गुस्से का शिकार थोड़े ही होना है. अब तुम देर मत करो, जल्दी चिकन खरीद लाओ.’’

‘‘यूं गया और यूं आया भैया.’’ अरुण ने हाथ नचा कर कहा और भीतर घुस गया.

कुछ ही देर में वह थैला ले कर बाहर आया, ‘‘भैया, आप पानी गिलास तैयार करिए, मैं दौड़ कर चिकन ले आता हूं.’’

अरुण तेजी से मुरगा मंडी की तरफ चला गया तो चंद्रवीर ने अपने घर में प्रवेश किया.

बैठक में पहुंच कर उस ने पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सविता…’’

नहाते समय देख लिया था सविता को

उस की पत्नी चुन्नी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई बैठक में आ गई. वह सुंदर और गेहुंए रंग की थी. चेहरे पर अब उम्र की रेखाएं उभरने लगी थीं लेकिन उस के भरे हुए मांसल जिस्म की बनावट के कारण वह प्रौढ़ावस्था में भी जवान ही दिखाई पड़ती थी.

‘‘यह एक लाख रुपया है, संभाल लो. अपने लिए कान के झुमके बनवा लेना. एक अच्छा सा सूट, स्वेटर और शाल भी खरीद लाना. इस में से 500 रुपए मैं ने अपने शौक के लिए लिया है. अरुण को चिकन लेने बाजार भेजा है.’’

‘‘अरुण!’’ सविता ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘उसे काहे भेजा बाजार?’’

‘‘भाई है मेरा, वो काम नहीं करेगा तो कौन करेगा?’’ चंद्रवीर ने कहा, ‘‘वैसे तुम काहे इस बात पर नाराज हो रही हो. कुछ कहा क्या उस ने?’’

‘‘आज…’’ सविता कुछ कहतेकहते रुक गई और पति की ओर देखने लगी.

‘‘क्या हुआ आज?’’ चंद्रवीर ने उस की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा.

‘‘आज मैं ने बालों में डालने के लिए तेल की शीशी उठाई तो उस में तेल खत्म था. मैं ने अरुण को बुला कर तेल लाने के लिए कहा तो वह मना कर के चला गया. कह रहा था कि उसे नींद आ रही है.’’

चंद्रवीर हंस पड़ा, ‘‘अरे नींद आ ही रही होगी उसे, तभी तो मना कर दिया होगा. इस में नाराज क्या होना, जाओ यह रुपए बक्से में रख दो और ताला लगा देना. हां, मिर्चमसाला भी पीस लो, चिकन पकेगा आज.’’

सविता ने रुपए लिए और अंदर के हिस्से में बने उस बैडरूम में आ गई, जिस में वे लोग सोते थे. उस में एक संदूक रखा था. सविता ने रुपए संदूक में संभाल कर रख दिए. इस के बाद सविता किचन में आ गई. उस ने आज पति चंद्रवीर से झूठ बोला था, बात को वह बड़ी सफाई से घुमा गई थी जबकि मामला दूसरा ही था. बात यह थी कि आज जब वह दोपहर में घर के आंगन में लगे हैंडपंप पर नहाने बैठी थी तो उस ने अपने अंगवस्त्र तक उतार कर धोने के लिए डाल दिए थे. वह अपनी देह को मल रही थी. कड़क धूप में बाहर बैठ कर नहाना उसे अच्छा लगता था. उस की पीठ चारदीवारी के दरवाजे की तरफ थी.

उस का देवर अरुण न जाने कब आंगन में आ गया था और उसे बड़ी ललचाई नजरों से नहाते हुए देख रहा था. वह उस के नग्न जिस्म को घूर रहा था. सविता को इस की भनक तक नहीं लगी थी, नहाने के बाद वह तौलिया उठाने के लिए खड़ी हो कर घूमी तो उस की नजर अरुण पर चली गई. वह घबरा गई. उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और शरीर पर लपेट कर कमरे की ओर भागी. अरुण उस की बदहवासी देख कर खिलखिला कर हंस पड़ा. सविता ने कमरे में आ कर किवाड़ बंद कर लिए. तौलिया उस के हाथों से नीचे गिर पड़ा. उस ने अपने बदन को देखा तो खुद ही लजा गई. उस की सांसें अभी भी धौंकनी की तरह चल रही थीं.

वह यह सोच कर ही शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी कि उस के इसी नग्न जिस्म को अरुण ने बड़ी बेशर्मी से देखा है. अरुण की आंखों में वासना और चेहरे पर वहशी चमक थी. सविता को उस समय लगा था कि यदि वह क्षण भर भी और आंगन में रह जाती तो अरुण लपक कर उसे बांहों में भर लेता. अरुण उर्फ अनिल था तो चचिया ससुर का लड़का, लेकिन था तो मर्द और यह सविता की जिंदगी का पहला वाकया था कि उस के पति चंद्रवीर के अलावा किसी दूसरे मर्द ने उस की नग्न देह को देखा था.

कमरे में वह काफी देर तक अपनी उखड़ी सांसों को दुरुस्त करती रही, उस के बाद अपने कपड़े पहन कर उस ने दरवाजा खोल कर बाहर झांका था. अरुण आंगन से जा चुका था. सविता ने राहत की सांस ली और बाहर आई थी. फिर वह अपने कपड़े धोने बैठ गई थी. सारा दिन यही सोच कर वह शरम महसूस करती रही कि अब अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी.

कुसूर इस में अरुण का नहीं था. वह नहाने बैठी थी तो उसे दरवाजा अंदर से बंद कर लेना चाहिए था. अरुण अचानक आ गया तो इस में दोष उस का कैसे हुआ? हां, यदि वह नग्न नहा रही थी तो अरुण को तुरंत वापस चले जाना चाहिए था.

अरुण से नहीं मिलाना चाहती थी नजरें

सविता यह सोच कर सारा दिन पशोपेश में रही कि अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी. कम से कम दोचार दिन वह अरुण के सामने नहीं जाएगी, सविता ने सोच कर दिल को समझा लिया था, लेकिन चंद्रवीर ने अरुण को शराब की दावत दे कर चिकन लाने बाजार भेज रखा था. अब अरुण घर जरूर आएगा, उस से उस का सामना भी होगा. उफ! सविता का वह दिल फिर तेजी से धड़कने लगा था, जिसे दोपहर में उस ने बड़ी कोशिश कर के काबू में किया था.

रसोई में आ कर वह काम तो कर रही थी, लेकिन सामान्य नहीं थी.

‘‘सविता…’’ उस के कानों में पति की आवाज पड़ी. चंद्रवीर उसे पुकार रहा था, इस का मतलब था अरुण चिकन ले आया था. सविता अरुण के सामने नहीं आना चाहती थी. सविता ने किचन से आवाज लगाई, ‘‘क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो?’’

‘‘अरुण चिकन ले आया है, ले जाओ.’’ चंद्रवीर ने बताया.

‘‘आप ही यहां ला दो, मैं ने मसाला तवे पर डाला है, जल जाएगा.’’

चंद्रवीर थैला ले कर आ गया. थैला रख कर उस ने 2 कांच के गिलास, पानी का लोटा व प्लेट उठाई और चला गया.

सविता ने जैसेतैसे खाना तैयार किया और चंद्रवीर को आवाज लगाई, ‘‘खाना बन गया है, मैं थाली लगा रही हूं. आ कर ले जाओ.’’

‘‘तुम ही ले आओ.’’ चंद्रवीर ने कहा तो सविता को थाली में भोजन रख कर खुद ही बैठक में लाना पड़ा. उस ने उस वक्त चुन्नी को अपने सिर पर इतना खींच लिया था कि अरुण की नजरें उस की नजरों से न मिल सकें.

थालियां पति और अरुण के सामने रखते हुए उस के हाथ कांप रहे थे, उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था और सांसें धौंकनी सी चल रही थीं. उस ने चोर नजरों से देखा. अरुण उसे देख कर बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

खाना परोस कर वह तेजी से बैठक से बाहर आ गई. जैसेतैसे चंद्रवीर और अरुण की वह दावत रात के 10 बजे तक खत्म हुई. अरुण चला गया तो सविता की जान में जान आई. दूसरे दिन चंद्रवीर किसी काम से चला गया तो सविता ने कुछ सोच कर अरुण के घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह रात को ही इस बात का फैसला कर चुकी थी कि अरुण से कल की बेशर्मी भरी हरकत पर सख्ती से बात करेगी. अगर वह चुप रहेगी तो अरुण फिर से वैसी हरकत कर सकता है.

अरुण का दरवाजा ढुलका हुआ था. सविता ने दरवाजा धकेला तो वह अंदर की तरफ खुल गया. सविता सीधा अरुण के कमरे में आ गई. अरुण उस वक्त बिस्तर में लेटा टीवी देख रहा था. आहट पा कर उस ने नजरें घुमाईं तो सविता को देख कर हड़बड़ा कर चारपाई पर उठ बैठा, ‘‘भाभी आप?’’ उस ने हैरानी से कहा.

‘‘हां, मैं.’’ सविता रूखे स्वर में बोली.

‘‘बैठो.’’ अरुण जल्दी से चारपाई से उतर गया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई हूं. तुम से कुछ पूछने आई हूं.’’ सविता तीखे स्वर में बोली, ‘‘मुझे यह बताओ, तुम ने वह बेहूदा हरकत क्यों की थी?’’

‘‘कैसी बेहूदा हरकत भाभी?’’ अरुण ने खुद को संभाल कर संयत स्वर में पूछा.

‘‘कल मैं जब नहा रही थी तो तुम अंदर घुस आए और मुझे आंखें फाड़ कर देखते रहे… क्यों?’’

‘‘भाभी,’’ अरुण बेशरमी से मुसकराया, ‘‘आप हो ही इतनी हसीन कि मैं चाह कर भी अपनी नजरें नहीं हटा सका.’’

सविता उस की बात पर अचकचा गई. उसे कुछ नहीं सूझा कि वह क्या कहे.

अरुण अपनी ही धुन में बोलता चला गया, ‘‘भाभी, आप का गदराया यौवन है ही इतना हसीन कि उस पर से कोई मूर्ख ही अपनी नजरें हटाएगा. मैं बेवकूफ और मूर्ख नहीं हूं, कसम ले लो भाभी मैं ने आप की पीठ के तिल भी गिने हैं…’’

सविता शरम से जमीन में जैसे गड़ गई. उस के मुंह से धीरे से निकला, ‘‘चुप हो जाओ अरुण. प्लीज, अब आगे कुछ मत कहना.’’

अरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘हकीकत बयां कर रहा हूं भाभी. भले ही आप की शादी हुए 14 साल हो गए, लेकिन आप की सुंदरता एक बेटी की मां बनने के बाद भी कम नहीं हुई है. आप रूप की देवी हो. चंद्रवीर भैया आप की पूजा नहीं करते होंगे. कसम ले लो यदि आप मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं आप को सिंहासन पर बिठा कर पूजता.’’

सविता अपनी तारीफ सुन कर मंत्रमुग्ध हो गई थी. अरुण की एकएक बात उस के रोमरोम को पुलकित कर रही थी. उस के मन में अजीब सी हलचल मच गई थी. उसे अरुण की अंतिम बात ने रोमांच से भर दिया. उसे लगा अरुण उसे शिद्दत से प्यार करता है. उस के यौवन का वह प्यासा भंवरा है, तभी तो उस की चाहत शब्दों के रूप में उस के होंठों पर आ गई है.

शिकायत करतेकरते हो गई शिकार

वह अरुण को डांटने आई थी. अब उस की बातों ने उसे मोह में बांध लिया. सविता से कुछ कहते नहीं बना तो अरुण ने उस की कलाई पकड़ ली और हथेली अपने सीने पर रख कर दीवानों की तरह आह भरते हुए बोला, ‘‘इस सीने में जो दिल है भाभी, वह सिर्फ तुम्हें चाहता है. आज से नहीं बरसों से मैं तुम्हें मन ही मन प्यार करता आ रहा हूं.’’

‘‘तो कहा क्यों नहीं…’’ सविता आंखें बंद कर के धीरे से फुसफुसाई.

‘‘डरता था भाभी, कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम चंद्रवीर भैया की अमानत हो. मैं अमानत में खयानत करना नहीं चाहता था.’’

‘‘अब क्या कर रहे हो?’’ सविता मदहोशी के आलम में बोली, ‘‘तुम मेरी हथेली सहला रहे हो, यह भी तो गुनाह है न.’’

‘‘आज हिम्मत बटोर ली है भाभी. देखता रहूंगा तो जी जलता रहेगा. आज तुम्हें संपूर्ण पा लेने की इच्छा है, तभी मन में ठंडक पड़ेगी.’’

सविता 35 वर्षीय अरुण की बातों और उस के प्यार भरे स्पर्श से अपना होश गंवा चुकी थी. उस ने आंखें बंद कर के फुसफुसा कर कहा, ‘‘लो कर लो अपने दिल की, तुम्हारे दिल में जो आग भड़क रही है, उसे शांत कर लो.’’

सविता की इजाजत मिली तो अरुण ने उसे बांहों में समेट लिया. देवरभाभी के पवित्र रिश्ते की दीवार को ढहने में फिर वक्त नहीं लगा. सविता जब अरुण के कमरे से निकली तो उस का गुस्सा कपूर की गंध की तरह उड़ चुका था. जिस अरुण ने उसे नहाते हुए नग्न हालत में देखा था, वही अरुण अब उस के तनमन पर छा गया था. सविता बहुत खुश थी. उस ने अपने पति चंद्रवीर के साथ देवर अरुण को भी दिल में जगह दे दी थी. यह बात सन 2017 की है.

42 वर्षीय चंद्रवीर को पैतृक संपत्ति का काफी बड़ा हिस्सा बंटवारे में मिला था. वह उसी संपत्ति का थोड़ाथोड़ा हिस्सा बेच कर अपने परिवार का गुजरबसर कर रहा था. परिवार में 3 ही प्राणी थे— वह, उस की पत्नी सविता और बेटी दीपा (काल्पनिक नाम). चंद्रवीर घर में  किसी चीज की कमी नहीं होने देता था. उस की गृहस्थी की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

28 सितंबर, 2018 को चंद्रवीर लापता हो गया. सविता के बताने के अनुसार चंद्रवीर अपने खेत का एक बड़ा हिस्सा बेचने के इरादे से घर से निकला था. शाम ढल गई और अंधेरा जमीन पर उतर आया तो सविता के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने अपनी बेटी दीपा को साथ लिया और पति चंद्रवीर को उन जगहों पर तलाश करने निकल गई, जहांजहां वह उठताबैठता था.

सविता और दीपा ने हर संभावित जगहों पर पति की तलाश की, उस के विषय में पूछताछ की लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा मिली. चंद्रवीर आज उन जगहों पर नहीं आया था. दोनों घर आ गईं. जैसेतैसे रात गुजर गई. सुबह सविता ने अरुण को बुला कर बताया कि चंद्रवीर कल सुबह से घर से निकला है, अभी तक वापस नहीं लौटा है. उसे रिश्तेदारी में तलाश करो.

अचानक लापता हो गया चंद्रवीर

अरुण अपने साथ 2-3 लोगों को ले कर उन रिश्तेदारियों में गया, जहांजहां चंद्रवीर आनाजाना करता था. उस ने कितनी ही रिश्तेदारियों में मालूम किया, लेकिन चंद्रवीर कई दिनों से उन लोगों से मिलने नहीं आया था. 2 दिन की तलाश करने के बाद अरुण वापस आ गया. उसे मालूम हुआ कि 3 दिन बीत जाने पर भी चंद्रवीर घर नहीं लौटा है. उस ने सविता को बताया कि चंद्रवीर किसी रिश्तेदारी में भी नहीं पहुंचा है. सुन कर सविता दहाड़े मार कर रोने लगी.

अब तक पूरे गांव में यह बात फैल चुकी थी कि चंद्रवीर 3 दिनों से लापता है. गांव वाले चंद्रवीर की तलाश में सविता की मदद के लिए इकट्ठे हो गए. पूरे गांव में चंद्रवीर को ढूंढा जाने लगा. नदी तालाब, खेत खलिहान हर जगह चंद्रवीर को खोजा गया, लेकिन वह नहीं मिला. इन लोगों में चंद्रवीर का भाई भूरे भी था. भूरे से चंद्रवीर की बनती नहीं थी, वह चंद्रवीर के घर आताजाता नहीं था लेकिन चंद्रवीर था तो सगा भाई, इसलिए उस की तलाश में वह भी जान लड़ा रहा था.

चंद्रवीर जब 5 दिन की खोजखबर के बाद भी नहीं मिला तो 5 अक्तूबर, 2018 को भूरे ने गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में चंद्रवीर के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी. नंदग्राम थाने के तत्कालीन एसएचओ पुलिस टीम के साथ सिकरोड गांव में स्थित सविता के घर पहुंच गए. सविता 5 दिनों से आंसू बहा रही थी. दीपा भी पिता की याद में सिसक रही थी. वह एकदम बेसुध और बेहाल सी नजर आ रही थी.

एसएचओ ने सविता के सामने पहुंच कर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘देखो रोओ मत, चंद्रवीर की तलाश करने में हम लोग पूरी जान लड़ा देंगे. तुम हमें यह बताओ कि चंद्रवीर के घर से जाने से पहले तुम्हारा क्या चंद्रवीर से झगड़ा हुआ था?’’

‘‘नहीं, मैं उन से आज तक नहीं लड़ी, वह भी मुझ से नहीं लड़ते थे. वह दिल के बहुत अच्छे और नेक इंसान थे. मुझे और अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे.’’ सविता ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘चंद्रवीर ने जाने से पहले तुम्हें बताया था कि वह कहां और क्यों जा रहा है?’’ एसएचओ ने दूसरा प्रश्न किया.

‘‘कहां जा रहे हैं, यह भी नहीं बताया था. मेरे सामने वह घर से नहीं निकले थे साहब, वह अंधेरे में ही निकल कर चले गए थे. हम मांबेटी तब सोई हुई थीं.’’

‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’

‘‘मेरे पति का अपने भाई भूरे से संपत्ति विवाद रहता था. मुझे लगता है कि वो अंधेरे में घर से नहीं गए, बल्कि उन्हें अंधेरे में गायब कर दिया गया है. यह काम भूरे ने किया है साहब. उस ने शायद मेरे पति की हत्या कर दी है.’’

‘‘यह पक्का हो, ऐसा तो नहीं कह सकते. जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या भूरे ने संपत्ति विवाद के कारण चंद्रवीर को लापता करने की हिमाकत की है.’’ एसएचओ ने कहा और उठ कर उन्होंने एसआई को भूरे को पकड़ कर थाने लाने का आदेश दे दिया.

चंद्रवीर के भाई से की पूछताछ

आवश्यक जानकारी जुटा लेने के बाद एसएचओ अकेले ही थाने लौट आए. एसआई अपने साथ 2 कांस्टेबल ले कर भूरे को हिरासत में लेने के लिए निकल गए थे. थोड़ी देर में ही भूरे को ले कर एसआई और कांस्टेबल थाने आ गए. भूरे ने कभी थाना कचहरी नहीं देखा था. वह काफी डरा हुआ था. आते ही उस ने एसएचओ के पांव पकड़ लिए, ‘‘साहब, मुझे क्यों पकड़ा है आप ने? मैं ने ऐसा क्या अपराध किया है?’’

‘‘तुम ने अपने भाई चंद्रवीर को कहां लापता किया है भूरे?’’ एसएचओ ने उसे खुद से परे कर सख्त स्वर में पूछा.

‘‘मैं चंद्रवीर को कहां लापता करूंगा साहब, वह मेरा भाई है.’’

‘‘तुम्हारा अपने भाई से संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘नहीं साहब,’’ भूरे तुरंत बोला, ‘‘हमारा आपस में संपत्ति का बंटवारा बहुत प्रेम से हुआ था. कौन कहता है कि हमारा संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘सविता कह रही है,’’ एसएचओ ने भूरे को घूरते हुए कहा, ‘‘सविता का कहना है कि संपत्ति विवाद में तुम ने उस के पति को लापता किया है और उस की हत्या कर दी है.’’

यह सुनते ही भूरे ने सिर थाम लिया. कुछ देर तक वह स्तब्ध सा बैठा रहा फिर तैश में आ कर बोला, ‘‘सविता मुझ से जलती है साहब, वह मुझ पर झूठा आरोप लगा रही है. आप ही बताइए, मैं ने यह काम किया होता तो थाने में आ कर खुद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट क्यों लिखवाता?’’

‘‘रिपोर्ट लिखवाने से तुम निर्दोष थोड़ी हो गए. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे.’’

‘‘बेशक तलाशी लीजिए साहब, मैं अपने मांबाप की कसम खा कर कहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. चंद्रवीर कहां गया, मैं नहीं जानता.’’

एसएचओ को लगा भूरे सच कह रहा है लेकिन वह पूरी तसल्ली कर लेना चाहते थे. उन्होंने भूरे को साथ लिया और उस के घर की तलाशी ली. उन्हें उस के घर में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह साबित होता कि भूरे ने चंद्रवीर की हत्या की है या उसे लापता किया है. उन्होंने भूरे को छोड़ दिया. पुलिस कई दिनों तक चंद्रवीर को अपने तरीके से तलाश करती रही. सविता ने इस बीच यह शक भी व्यक्त किया कि उस के पति की हत्या कर के भूरे ने शव उस के घर में या अपने घर में गाड़ दिया है.

अपना शक दूर करने के लिए पुलिस ने भूरे और चंद्रवीर का आंगन और कमरों को खुदवा कर भी देख डाला लेकिन तब भी कोई ऐसा सूत्र नहीं हाथ आया, जिस से समझा जाता कि चंद्रवीर की हत्या कर के उस का शव जमीन में दबा दिया गया है. पुलिस ने चंद्रवीर के मामले में काफी माथापच्ची की, जब कोई सुराग हाथ नहीं आया तो पुलिस ने चंद्रवीर के लापता होने वाली फाइल वर्ष 2021 में बंद कर दी गई. सविता ने दिल पर पत्थर रख लिया. पहले चोरीछिपे अरुण से उस की आशनाई चलती थी अब तो अरुण का ज्यादा समय उसी के घर में बीतने लगा. सविता अपनी बेटी की गैरमौजूदगी में अरुण के साथ रास रचाती.

उस ने यह आसपड़ोस में जाहिर करना शुरू कर दिया था कि चंद्रवीर के बाद अरुण उस के परिवार का सच्चे मन से साथ दे रहा है. लोगों को क्या लेनादेना था. वैसे भी लोगों की नजर में अरुण सविता का चचेरा देवर था, कोई गैर नहीं था.

4 साल बाद फिर खुली फाइल

समय तेजी से सरकता रहा. चंद्रवीर को लापता हुए पूरे 4 साल बीत गए, तब 2021 में बंद हुई एकाएक उस की बंद धूल चाट रही फाइल दोबारा से खुल गई. दरअसल, 4 अप्रैल, 2022 को गाजियाबाद के नए नियुक्त हुए एसएसपी मुनिराज जी. ने वह तमाम फाइलें खुलवाईं, जिन के केस अनसुलझे थे. इन्हीं में एक फाइल चंद्रवीर की भी थी. एसएसपी मुनिराज जी. ने यह फाइल थाना नंदग्राम गेट से ले कर क्राइम ब्रांच की एसपी दीक्षा शर्मा के हवाले कर दी.

दीक्षा शर्मा ने इस केस की जांच इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) अब्दुर रहमान सिद्दीकी को सौंप दी. क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर ने पूरी फाइल का गहराई से अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि चंद्रवीर कोई बच्चा नहीं था जिसे चुपचाप गोद में उठा कर लापता कर दिया गया हो. यह काम 2 या उस से अधिक लोग कर सकते हैं. वह लोग जब चंद्रवीर के घर में आए होंगे तो कुछ शोरशराबा होना चाहिए था. चंद्रवीर को खामोशी से गायब नहीं किया जा सकता. अगर कुछ आहट वगैरह हुई तो सविता और उस की बेटी ने जरूर सुनी होगी. पूछताछ इन्हीं से शुरू की जाए तो कुछ सूत्र हाथ आ सकता है.

इंसपेक्टर अपने साथ पुलिस टीम को ले कर सविता के घर पहुंच गए.

तब सविता घर पर नहीं थी. उस की 16 वर्षीय बेटी दीपा घर में ही थी. इंसपेक्टर ने उस से ही पूछताछ शुरू की. दीपा को सामने बिठा कर उन्होंने गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम दीपा है न बेटी?’’

‘‘जी,’’ दीपा ने सिर हिलाया.

‘‘तुम्हारे पापा रात के अंधेरे में लापता हुए, क्या यह बात ठीक है?’’

‘‘सर…’’ दीपा गहरी सांस भर कर एकाएक रोने लगी.

इंसपेक्टर ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा, ‘‘मुझे इतना अनुभव तो है बेटी कि कोई बात तुम्हारे सीने में दफन है, जो बाहर आना चाहती है. लेकिन तुम्हारी हिचक उसे बाहर आने से रोक रही है. क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं न दीपा?’’

दीपा ने आंसू पोंछे और सिर हिलाया, ‘‘हां सर, मेरे दिल में एक बात 4 साल से दबी पड़ी है. मैं बताती तो किसे, मां को बताने का मतलब होता मेरी भी मौत. चाचा को भी नहीं बता सकती थी, वह मां से मिले हुए हैं. आसपड़ोस में बताती तो मेरे पिता की बदनामी होती…’’

बेटी ने बयां कर दी हकीकत

इंसपेक्टर की आंखों में चमक आ गई. चंद्रवीर के लापता होने का राज दीपा के दिल में छिपा हुआ है, यह समझते ही वह पूरे उत्साह से भर गए. सहानुभूति से उन्होंने दीपा के सिर पर फिर हाथ घुमाया, ‘‘देखो दीपा, मैं चाहता हूं कि तुम्हारे पापा के साथ न्याय हो. मुझे बताओ तुम्हारे मन में कौन सी बात दबी हुई है. डरो मत, अब तुम्हारी सुरक्षा हम करेंगे.’’

‘‘सर, मेरे पिता की हत्या हो चुकी है. मेरी मां और चाचा अरुण ने उन्हें मारा है.’’ दीपा ने बताया, ‘‘यह हत्या मेरी मां के चाचा से अवैध संबंधों के कारण हुई है.’’

‘‘ओह, क्या तुम ने अपनी आंखों से देखा था पिता की हत्या होते हुए?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन 28 सितंबर, 2018 की रात थी. अरुण चाचा को मां ने आधी रात को घर बुलाया. पापा गहरी नींद में थे. अरुण चाचा ने साथ लाए तमंचे से मेरे पापा के सिर में गोली मार दी. मैं बहुत डर गई. मैं कंबल में दुबक गई. मुझे नहीं पता कि दोनों ने पापा की लाश का क्या किया. सुबह मां ने पापा के रात में कहीं चले जाने की बात उड़ा दी और उन्हें तलाश करने का नाटक करने लगी.’’

‘‘हूं, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बनाऊंगा. तुम्हारी सुरक्षा अब हमारी जिम्मेदारी है बेटी.’’ इंसपेक्टर ने कहा और उठ कर खड़े हो गए.

उन्होंने यह बात तुरंत एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा को बता कर उन से आदेश मांगा. एसपी दीक्षा शर्मा ने सविता और अरुण को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए. क्राइम ब्रांच टीम ने 13 नवंबर, 2022 को सविता को अरुण के घर से अरुण के साथ ही हिरासत में ले लिया. दोनों को क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया और उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों टूट गए. सविता ने अपने पति की हत्या अरुण के साथ मिल कर करने की बात कुबूल करते हुए बताया, ‘‘साहब, मेरे अपने देवर अरुण से अवैध संबंध हो गए थे. एक दिन चंद्रवीर ने हमें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उसी दिन से वह मुझे बातबात पर गाली देता और मारता था.

‘‘मैं कब तक मार खाती. मैं ने अरुण को उकसाया तो उस ने चंद्रवीर की हत्या करने के लिए 28 सितंबर, 2018 का दिन तय किया. वह पहले अपने मांबाप को मेरठ में अपने दूसरे घर में छोड़ आया फिर उस ने अपने घर में गहरा गड्ढा खोदा.

‘‘28 सितंबर की रात को वह तमंचा ले कर मेरे इशारे पर घर में आया. चंद्रवीर तब खापी कर चारपाई पर गहरी नींद सो गया था. अरुण ने उस के सिर में गोली मार दी. मैं ने चंद्रवीर के सिर से निकलने वाले खून को एक बाल्टी में भरने के लिए चारपाई के नीचे बाल्टी रख दी. ऐसा इसलिए किया कि खून से फर्श खराब न हो.’’

‘‘तुम लोगों ने लाश क्या उसी गड्ढे में छिपाई है, जिसे अरुण ने खोद कर तैयार किया था?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी सर,’’ अरुण ने मुंह खोला, ‘‘मैं ने 7 फुट गहरा गड्ढा अपने घर में खोदा था. लाश और खून सना तकिया उसी में डाल कर मिट्टी भर दी, फिर उस पर पहले की तरह फर्श बनवा दिया.’’

पति की हत्या कर शव ठिकाने लगाने के बाद भी सविता नंदग्राम थाने में हर सप्ताह चक्कर लगा कर पति को ढूंढने की गुहार लगाती थी.

हत्या की बात कुबूल करने के बाद अरुण उर्फ अनिल और सविता को विधिवत हिरासत में ले कर उन पर भादंवि की धारा 302, 201 व 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया.

पुलिस ने निकलवाया 4 साल पहले दफन किया शव

मजिस्ट्रैट, क्राइम ब्रांच की टीम और एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा की मौजूदगी में अरुण के कमरे में गड्ढा खुदवाया गया तो उस में तकिया और चंद्रवीर की सड़ीगली लाश मिली गई, जिसे बाहर निकाल कर कब्जे में ले लिया गया. अरुण और सविता को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. क्राइम ब्रांच ने रिमांड अवधि के दौरान अरुण से तमंचा और एक कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली. वह बाल्टी भी कब्जे में ले ली गई, जिस में चंद्रवीर को गोली मारने के बार सिर से निकलने वाला खून इकट्ठा किया गया था.

खून बाथरूम में बहा कर पानी चला दिया गया था. बाल्टी का इस्तेमाल सविता ने नहीं किया था, उस ने बाल्टी धो कर कोलकी में रख दी थी. कुल्हाड़ी के बारे में पूछने पर अरुण ने बताया, ‘‘सर, चंद्रवीर के हाथ में चांदी का कड़ा था, जिस पर उस का नाम खुदा हुआ था. इस कुल्हाड़ी से मैं ने उस का हाथ काट कर कैमिकल फैक्ट्री के पीछे गड्ढा खोद कर दबा दिया था.’’

‘‘हाथ इसलिए काटा होगा कि कड़े से लाश पहचान ली जाती, क्यों?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, अगर लाश पुलिस के हाथ आती तो तब तक वह सड़ चुकी होती लेकिन इस कड़े से यह पता चल जाता कि लाश चंद्रवीर की है.’’ अरुण ने कुबूल करते हुए बताया.

क्राइम ब्रांच की टीम अरुण को कैमिकल फैक्ट्री के पीछे ले कर गई. वहां अरुण ने एक जगह बताई, जहां पुलिस ने खुदाई कर के हाथ का पिंजर बरामद कर लिया. सभी चीजें सीलमोहर कर कब्जे में ले ली गईं. सविता और अरुण को 2 दिन बाद न्यायालय में पेश किया गया तो वहां से दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का आदेश दे दिया. पुलिस टीम अब चंद्रवीर की लाश जो अस्थिपंजर के रूप में थी, का डीएनए टेस्ट करवाने के प्रयास में थी ताकि यह साबित किया जा सके कि 7 फुट गहरे गड्ढे से बरामद लाश चंद्रवीर की ही है.

जिस औरत की खुशियों के लिए चंद्रवीर हमेशा एक पांव पर खड़ा रहता था, उसी औरत ने क्षणिक सुख पाने के लिए अपने देवर पर खुद को न्यौछावर कर दिया और उसी के साथ मिल कर अपने पति चंद्रवीर की जघन्य हत्या कर दी.

Love Passion Crime Story : सुहागन बनने से पहले प्रेमिका बनी विधवा

23 वर्षीय गुलशन गुप्ता ड्यूटी से थकामांदा कुछ ही देर पहले घर पहुंचा था, तभी उस ने फोन देखा तो पता चला कि उस के जिगरी यार राहुल सिंह का कई बार फोन आ चुका था. उस ने सोचा कि पता नहीं राहुल ने क्यों फोन किया है. झट से उस ने राहुल को फोन कर वजह पूछी तो राहुल बोला, ”गुलशन, तू घर पहुंच गया हो तो मेरे घर आ जा, कहीं चलना है.’’

”ठीक है, मैं आता हूं.’’ गुलशन ने कहा और उस ने अपनी मम्मी से चाय बनवाई.

वह चाय की चुस्की ले फटाफट हलक के नीचे गरमागरम उतारता गया. मिनटों में चाय की प्याली खाली कर अपनी बाइक निकाली और मम्मी को दोस्त राहुल के घर जाने की बात कह कर चल दिया. कुछ देर बाद वह राहुल के घर पहुंच गया था. यह बात 16 सितंबर, 2023  की है. गुलशन गुप्ता पंजाब के लुधियाना जिले की डाबा थानाक्षेत्र के न्यू गगन नगर कालोनी में मम्मी सोनी देवी और 3 बहनों के साथ रहता था. उस के पापा की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. मां सोनी देवी और खुद गुलशन यही दोनों मिल कर परिवार की जिम्मेदारी संभाले हुए थे.

गुलशन का दोस्त 25 वर्षीय राहुल सिंह लुधियाना के माया नगर में अपने मम्मीपापा के साथ रह रहा था. वह अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान था. सब का लाडला था. उस की एक मुसकान से मांबाप की सुबह होती थी. वह अपनी जो भी ख्वाहिश उन के सामने रखता था, वह पूरी कर देते थे. पापा अशोक सिंह एक प्राइवेट कंपनी में थे, पैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी, बेटे पर वह अपनी जान छिड़कते थे.

गुलशन को देख कर राहुल का चेहरा खुशी से खिल उठा था तो गुलशन ने भी उसी अंदाज में राहुल के साथ रिएक्ट किया था. वैसे ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब वे एकदूसरे से न मिलते हों. इन की यारी ही ऐसी थी कि बिना मिले इन्हें चैन नहीं आता था. ये जिस्म से तो दो थे, लेकिन जान एक ही थी. खैर, राहुल गुलशन के ही आने का इंतजार कर रहा था. उस के आते ही उस की बाइक अपने घर के सामने खड़ी कर दी और बाहर खड़ी अपनी एक्टिवा ड्राइव कर गुलशन को पीछे बैठा कर मम्मी से थोड़ी देर में लौट कर आने को कह निकल गया.

दोनों दोस्त कैसे हुए लापता

राहुल सिंह के साथ गुलशन गुप्ता को निकले करीब 4 घंटे बीत गए थे, लेकिन न तो राहुल घर लौटा था और न गुलशन ही घर लौटा था. और तो और दोनों के सेलफोन भी बंद आ रहे थे. राहुल के जितने भी दोस्त थे, पापा अशोक सिंह ने सब के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा. यही नहीं लुधियाना में रह रहे अपने रिश्तेदारों और चिरपरिचितों से भी राहुल के बारे में पूछ लिया था, लेकिन किसी ने भी उस के वहां आने की बात नहीं कही.

दोनों के घर वालों ने रात आंखों में काट दी थी. अगले दिन 17 सितंबर को सुबह 10 बजे राहुल के पापा अशोक सिंह और गुलशन की मम्मी सोनी देवी दोनों डाबा थाने जा पहुंचे. उन्होंने राहुल और गुलशन के गायब होने की पूरी बात बता दी. गुलशन की मम्मी सोनी देवी ने बताया कि सर, हमें पूरा यकीन है कि हमारे बच्चों का अमर यादव ने अपहरण किया है.

”क्या..?’’ सोनी देवी की बात सुन कर इंसपेक्टर सिंह उछले, ”अमर यादव ने आप के बच्चों का अपहरण किया है? लेकिन यह अमर यादव है कौन और उस ने दोनों का अपहरण क्यों किया?’’

अमर यादव पर क्यों लगाया अपहरण का आरोप

सोनी देवी ने राहुल और गुलशन के अपहरण किए जाने की खास वजह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को बता दी. उन की बातों में दम था. फिर इंसपेक्टर ने राहुल और गुलशन की एक एक फोटो मांगी तो उन्होंने दोनों के फोटो उन के वाट्सऐप पर सेंड कर दिए. सोनी ने लिखित तहरीर इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को सौंप दी थी. इस बीच एक जरूरी काल आने के बाद अशोक सिंह वहां से जा चुके थे. उधर कुलदीप सिंह ने सोनी देवी से तहरीर ले कर अपने पास रख ली और आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर उन्हें वापस घर भेज दिया था.

राहुल सिंह के पिता अशोक सिंह को एक परिचित ने फोन कर के बताया कि टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास लावारिस हालत में राहुल की एक्टिवा खड़ी है और वहीं मोबाइल फोन भी पड़ा है. यह सुन कर वह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह से टिब्बा रोड चल दिए थे. वह जैसे ही वहां पहुंचे, सफेद एक्टिवा और मोबाइल देख कर अशोक पहचान गए, दोनों ही चीजें उन के बेटे राहुल की थीं. अभी वह खड़े हो कर कुछ सोच ही रहे थे कि उसी वक्त एक और चौंका देने वाली सूचना उन्हें मिली. टिब्बा रोड से करीब 2 किलोमीटर दूर वर्धमान कालोनी से गुलशन का मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया.

राहुल की एक्टिवा और दोनों के लावारिस हालत में पड़े हुए फोन की सूचना अशोक ने डाबा थाने के इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को फोन द्वारा दे दी थी. सूचना मिलने के बाद कुलवीर सिंह मय दलबल के मौके पर पहुंच गए, जहां अशोक सिंह खड़े उन के आने का इंतजार कर रहे थे.

दोनों मोबाइल फोन बंद थे. इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने दोनों फोन औन किए. उन्होंने राहुल के फोन की काल हिस्ट्री चैक की तो पता चला कि बीती रात साढ़े 5 बजे के करीब उस के फोन पर एक नंबर से फोन आया था. उसी नंबर से 15 सितंबर को करीब 3 बार काल आई थी.

इंसपेक्टर सिंह ने इस नंबर पर काल बैक किया तो वह नंबर लग गया. काल रिसीव करने वाले से उस का नाम पूछा गया तो उस ने अपना नाम अमर यादव बताया और टिब्बा रोड स्थित रायल गेस्टहाउस का कर्मचारी होना बताया.

अमर यादव का नाम सुन कर वह चौंक गए, क्योंकि सोनी देवी ने भी बच्चों के अपहरण करने की अपनी आशंका इसी के प्रति जताई थी और राहुल के फोन में आखिरी काल भी अमर यादव की ही थी. इस का मतलब था कि राहुल और गुलशन के गायब होने में कहीं न कहीं से अमर यादव का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने बरामद कीं दोनों दोस्तों की लाशें

फिर देर किस बात की थी. पुलिस रायल गेस्टहाउस पहुंच गई, जो मौके से कुछ ही दूरी पर स्थित था. गेस्टहाउस पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह अमर यादव को पूछते हुए सीधे अंदर घुस गए. मैनेजर वाले कमरे में एक 23 वर्षीय सांवले रंग का दुबलापतला गंदलुम कपड़े पहने युवक बैठा मिला. सामने पुलिस को देख उस को पसीना छूट गया.

”अमर यादव तुम हो?’’ गुर्राते हुए इंसपेक्टर सिंह बोले.

”हां जी सर, मैं ही अमर यादव हूं.’’ बेहद सम्मानित तरीके से उस ने जवाब दिया था, ”बात क्या है, क्यों मुझे खोज रहे हैं.’’

”अभी पता चल जाएगा बेटा. राहुल और गुलशन कहां हैं? तुम ने कहां छिपा कर दोनों को रखा है? सीधे तरीके से बता दे वरना…’’

”बताता हूं सर, बताता हूं. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ बिना किसी डर के वह आगे कहता गया, ”मैं ने अपने साथियों के साथ मिल कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया है और मैं करता भी क्या. मेरे पास इस के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं बचा था.

”राहुल मेरे प्यार को मुझ से छीनने की कोशिश कर रहा था, इसलिए मैं ने अपने रास्ते का कांटा सदा के लिए हटा दिया. यहीं नहीं जो जो भी मेरे प्यार के रास्ते का रोड़ा बनेगा, मैं उसे ऐसे ही मिटाता रहूंगा.’’ और फिर अमर ने पूरी पूरी घटना विस्तार से उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने अमर यादव को गिरफ्तार कर लिया और उसी की निशानदेही पर 3 और आरोपियों अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और नाबालिग मनोज को शेषपुर से गिरफ्तार कर लिया. चारों को हिरासत में ले कर पुलिस ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल के पास बहने वाले कक्का धौला बुड्ढा नाला (भामियां) पास पहुंची, जहां आरोपियों ने हत्या कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट कर बोरे में भर कर फेंकी थीं.

थोड़ी मशक्कत के बाद राहुल और गुलशन गुप्ता की लाशें बरामद कर ली थीं. इस के बाद दोहरे हत्याकांड की घटना पल भर में समूचे लुधियाना में फैल गई थी. घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. लोगबाग कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाने लगे थे.

खैर, इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, डीसीपी (ग्रामीण) जसकिरनजीत सिंह तेजा, एडीसीपी (सिटी-2) सुहैल कासिम मीर और एसीपी (इंडस्ट्रियल एरिया-15) संदीप बधेरा मौके पर पहुंच गए थे.

खुशियां कैसे बदलीं मातम में

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया. दोनों में से राहुल की लाश विकृत हो चुकी थी. हत्यारों ने धारदार हथियार से उस की गरदन पर हमला किया था. उसे इतनी बेरहमी से मारा था कि उस की बाईं आंख बाहर निकल गई थी. मौके पर मौजूद मृतक राहुल के पापा ने दिल पर पत्थर रख कर बेटे की पहचान कर ली थी. 4 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी, उस से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गया. घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गई थीं. घर वालों का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए लुधियाना जिला अस्पताल भेज दिया और चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई कड़ी पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी पुलिस के सामने आई, वह मंगेतर के बीच मोहब्बत की जंग पर रची हुई थी. 25 वर्षीय राहुल सिंह मम्मीपापा का इकलौता था. वही मांबाप के आंखों का नूर था और उन के जीने का सहारा भी. वह जवान हो चुका था और एक प्राइवेट कंपनी में एचआर की नौकरी भी करता था. अच्छा खासा कमाता था.

चूंकि राहुल जवान भी हो चुका था और कमा भी रहा था, इसलिए पापा अशोक सिंह ने सोचा कि बेटे की शादी वादी हो जाए. घर में बहू आ जाएगी तो उस की मम्मी को भी सहारा हो जाएगा. यही सोच कर अशोक सिंह ने अपने जानपहचान और रिश्तेदारों के बीच में बेटे की शादी की बात चला दी थी कि कोई अच्छी और पढ़ीलिखी बहू मिले जो घरगृहस्थी संभाल सके.

जल्द ही राहुल के लिए कई रिश्ते आए. उन में से जमालपुर थाना क्षेत्र स्थित मुंडिया कलां के रहने वाले अजय सिंह की बेटी स्नेहा घर वालों को पसंद आ गई. खुद राहुल ने भी उसे पसंद किया था. स्नेहा पढ़ीलिखी और सुंदर थी. 2 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. राहुल और स्नेहा की शादी पक्की हो गई और फरवरी 2023 में दोनों की मंगनी भी हो गई और शादी फरवरी 2024 में होने की बात पक्की हुई.

इंस्टाग्राम के किस फोटो को ले कर हुई कलह

अपनी शादी तय होने से राहुल बहुत खुश था. अपने दिल का हर राज अपने खास दोस्तों गुलशन और सूरज के बीच शेयर करता था. मंगनी के दिन राहुल ने स्नेहा को देखा तो अपनी सुधबुध खो दी थी. वह थी ही इतनी सुंदर. उस की सुंदरता पर वह फिदा था. उस के बाद दोनों के बीच फोन पर अकसर दिल की बातें होती रहती थीं. वह अपने दिल की बात स्नेहा से करता और स्नेहा अपने दिल की बातें मंगेतर से करती. धीरेधीरे दोनों के बीच प्यार हो गया था और वे चाहते थे कि उन का मिलन जल्द से जल्द हो जाए.

लेकिन उन का मिलन होने में अभी 4 महीने बचे थे. जैसे तैसे वे अपने दिल पर काबू किए थे. वह जून-जुलाई, 2023 का महीना रहा होगा, जब राहुल के परिवार पर दुखों के बादल मंडराने लगे थे.

एक दिन की बात थी. इंस्टाग्राम पर गुलशन अपना अकाउंट देख रहा था. अचानक उस की एक नजर ठहर गई और 2 फोटो देख कर वह चौंक गया.फोटो में स्नेहा किसी अमर यादव के साथ गलबहियों में चिपकी पड़ी थी. फिर उस ने फोटो का स्क्रीनशौट ले कर सेव कर लिया और सूरज को दिखाया. फोटो देख कर वह हैरान था, ये तो राहुल की होने वाली पत्नी स्नेहा है. उस के पीठ पीछे क्या गुल खिलाया जा रहा है. दोनों ने राहुल से सारी बातें साफसाफ बता दीं.

फिर राहुल ने समझदारी का परिचय देते हुए इंस्टाग्राम पर स्नेहा का अकाउंट चैक किया तो बात सच साबित हो गई थी. इस के बाद उस ने स्नेहा से बात की. स्नेहा अपनी ओर से सफाई देती हुई बोली, ”आप ने जिस फोटो को देखा था, वो उस का अतीत था. कभी अमर नाम के लड़के से वह प्यार करती थी, लेकिन शादी पक्की होने के बाद से उस ने उस से अपनी ओर से रिश्ता तोड़ लिया है. वह अब अमर से नहीं मिलती. पुरानी बातों को मुद्दा बना कर वह उसे हर समय परेशान करता रहता है.’’

पूर्व प्रेमी और मंगेतर के बीच बढ़ता गया विवाद

राहुल को अपनी मंगेतर स्नेहा की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था कि वह जो कह रही है, सच कह रही है. उस के बाद राहुल ने अमर यादव को सावधान करते हुए पोस्ट लिखा कि स्नेहा उस की होने वाली पत्नी है. आने वाले साल 2024 में हमारी शादी होनी है. तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उसे बदनाम न करो वरना इस का परिणाम बुरा हो सकता है.

इस पर अमर यादव ने भी पलट कर जवाब दिया था, ”स्नेहा उस का प्यार है. उसे वह टूट कर प्यार करता है. तेरे कारण उस ने उस से बात करनी बंद कर दी है और दूरदूर रहती है. मुझ से इस की जुदाई, उस की तन्हाई जीने नहीं देती. मेरे और मेरे प्यार के बीच में जो भी रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, उसे हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा और तू भी समझ ले, अभी वक्त है हम दोनों के बीच से हट जा, उसी में तेरी भलाई है. नहीं तो मैं किस हद तक चला जाऊंगा, मुझे खुद भी नहीं पता.’’

उस दिन के बाद राहुल और अमर यादव के बीच स्नेहा को ले कर वर्चस्व की टेढ़ी लकीर खिंच गई थी. बारबार राहुल इंस्टाग्राम पर फोन कर के स्नेहा से दूर रहने को धमकाता था. वहीं अमर भी स्नेहा से दूर हट जाने को धमकाता था. राहुल ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपने घर वालों को बता भी दिया था कि अमर यादव नाम का एक लड़का स्नेहा को बदनाम करने के एवज में उसे परेशान करता रहता है. घर वालों ने इस बात को हल्के में लिया और समझा दिया कि शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाएगा. नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस के बाद राहुल भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था.

शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे, अमर को प्रेमिका स्नेहा से जुदाई के दिन साफ नजर आ रहे थे. यह सोच कर गुस्से से पागल हो जाता था कि उस के जीते जी कोई उस के प्यार को उड़ा ले जाए, ये कैसे हो सकता है. क्यों न रास्ते के कांटे को ही जड़ से ही उखाड़ दिया जाए. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

जैसे ही उस के दिमाग में यह विचार आया, खुशी से उछल पड़ा. उस ने अपने दोस्तों को रायल गेस्टहाउस बुला लिया. यह गेस्टहाउस टिब्बा थाने के टिब्बा रोड पर स्थित था, गेस्टहाउस एक डीसीपी (पुलिस अधिकारी) का था, जो इन दिनों उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में तैनात है.

नौकर क्यों समझता था खुद को डीसीपी

अमर यादव मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला था, लेकिन सालों से वह लुधियाना के शेषपुर मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहता था. उस के मांबाप घर रहते थे. उज्जवल भविष्य की कामना ले कर ही वह दरभंगा से लुधियाना चला था. पहले से वहां उस के कई परिचित रहते थे. उन्हीं के सहारे वह यहां रहने आया था. देखने में तो वह एकदम दुबलापतला मरियल जैसा लगता था, लेकिन था वह अपराधी प्रवृत्ति वाला. बातबात पर हर किसी से झगड़ जाना उस की आदत थी और अपराधियों और नशे का कारोबार करने वालों से उस की खूब बनती थी.

जिस दिन से डीसीपी के गेस्टहाउस पर काम करना शुरू किया था, खुद को ही अमर डीसीपी समझ बैठा. दूसरों पर डीसीपी जैसा रौब झाड़ता था और इसी गेस्टहाउस के तले नशे का कारोबार भी करता था. कुछ महीनों पहले भी यह गेस्टहाउस खासी चर्चा का विषय बना था. उस के दोस्तों में अभिषेक राय, अनिकेत ऊर्फ गोलू और मनोज खास थे. अमर जब भी कोई जुर्म करता था तो इन्हीं को अपना हमराज बनाता था. इन के मुंह बंद करने के लिए वह इन पर खर्च भी खूब करता था.

बहरहाल, राहुल को रास्ते से हटाने के लिए अमर ने अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को 14 सितंबर, 2023 को रायल गेस्टहाउस बुलाया और चारों ने आपस में बैठ कर मीटिंग की कि राहुल की हत्या कैसे करनी है और फिर लाश को कैसे ठिकाने लगाना है.

सब कुछ तय हो जाने के बाद 15 सितंबर, 2023 को अमर ने बाजार से लोहे का दांत और रौड खरीद लाया और गेस्टहाउस के एक कमरे में छिपा दिए.

15 सितंबर, 2023 की शाम करीब 5 बजे अमर यादव ने राहुल को फोन किया और उसे मिलने के लिए रायल गेस्टहाउस बुलाया. इस पर राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और उस का फोन काट दिया था. इस के बाद उस ने 3 बार और उसे फोन कर के गेस्टहाउस बुलाया, लेकिन राहुल नहीं गया.

किस वजह से राहुल अपने दुश्मन के पास जाने को मजबूर हुआ

16 सितंबर की शाम को अमर यादव ने फिर से राहुल को फोन किया और बताया कि उस के पास स्नेहा के साथ आपत्तिजनक स्थिति का एक वीडियो है, जो उसे देना चाहता है. आ कर ले जा सकता है.

इस पर राहुल ने कहा, ”ठीक है, वह आज मिलने जरूर आएगा.’’

और फिर ड्यूटी से राहुल जल्दी छुट्टी ले कर घर पहुंच आया. ड्यूटी से निकलते हुए राहुल ने गुलशन को भी फोन कर दिया कि अमर ने फोन कर के बताया है कि स्नेहा की कोई खास वीडियो उस के पास है, आ कर ले जाए. मेरे दोस्त, वो वीडियो किसी तरह से हासिल करनी है तो तुम्हें मेरे साथ उस से मिलने टिब्बा रोड रायल गेस्टहाउस चलना होगा.

साढ़े 8 बजे गुलशन गुप्ता जब घर से अपनी बाइक ले कर निकला तो मम्मी को बता दिया था कि वह राहुल से मिलने उस के घर जा रहा है, थोड़ी देर बाद वह लौट आएगा. कौन जानता था इस के बाद वह कभी नहीं आएगा.थोड़ी देर बाद वह राहुल के सामने खड़ा था. दोनों ने चाय की चुस्की ली और अमर से मिलने टिब्बा रोड पहुंच गए. सनद रहे, गुलशन ने अपनी बाइक राहुल के घर खड़ी कर दी थी और राहुल अपनी एक्टिवा ले कर गया था. आधे घंटे बाद राहुल और गुलशन रायल गेस्टहाउस के बाहर खड़े थे. उस ने अपनी एक्टिवा गेस्टहाउस के बाहर खड़ी कर दी थी.

”अमर…अमर…’’ की आवाज लगाते हुए राहुल गेस्टहाउस के अंदर दाखिल हुआ तो गुलशन भी उसी के पीछे हो लिया था. 2 मिनट बाद एक लड़का बाहर निकला और राहुल के सामने खड़ा हो गया. उसे अपनी बातों में उलझा लिया. तब तक वहां अभिषेक राय और मनोज भी पहुंच गए और स्नेहा को ले कर राहुल से भिड़ गए.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी अचानक अमर यादव लोहे का दांत लिए बाहर निकला और राहुल की गरदन पर जोरदार तरीके से वार किया. वहां कटे वृक्ष के समान हवा में लहराते हुए धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. उस के बाद अभिषेक उसे लोहे की रौड से मारता गया.

राहुल को देख कर अमर गुस्से से इतना पागल हो गया था कि लोहे के दांत उस के बाईं आंख में घुसेड़ कर आंख बाहर निकाल दी थी. राहुल मर चुका था. उस के सिर से खून बह रहा था. यह देख गुलशन सन्न रह गया और वहां से भागने लगा लेकिन चारों ने उसे घेर लिया और उसे भी मार डाला. अमर यादव उसे नहीं मारना चाहता था. चूंकि पूरी घटना गुलशन की आंखों के सामने घटी थी और हत्या का वह एकमात्र चश्मदीद गवाह था, इसलिए अमर और उस के साथियों ने उसे भी उसी लोहे के दांत से मौत के घाट उतार दिया था.

इस के बाद चारों ने मिल कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट दीं. राहुल की ही एक्टिवा पर दोनों की लाश बारीबारी से सेंट्रल जेल के ताजपुर रोड स्थित कक्का धौला बुड्ढा नाले में फेंक आए. फिर गेस्टहाउस में फर्श पर फैले खून को पानी से धो कर सारे सबूत मिटा दिए और राहुल की एक्टिवा टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास खड़ी कर दी. स्विच औफ कर के उस के मोबाइल फोन को भी गाड़ी के बगल में गिरा दिया.

अमर वहीं गेस्टहाउस में ही रुका रहा जबकि अभिषेक राय, मनोज और अनिकेत उर्फ गोलू अपने घर शेषपुर निकल गए. घर जाते हुए तीनों ने गुलशन के मोबाइल को वर्धमान कालोनी में स्विच औफ कर के फेंक दिया था. इश्क की जंग में पागल प्रेमी अमर यादव इस कदर हैवान बन चुका था कि उसे स्नेहा के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था जबकि स्नेहा ने उस से अपना संबंध तोड़ लिया था. वह एक नई जिंदगी बसाने का हसीन ख्वाब देख रही थी, लेकिन सुहागन बनने से पहले ही विधवा बन गई.

खैर, कथा लिखे जाने तक पुलिस चारों आरोपियों अमर यादव, अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और हत्या में प्रयुक्त लोहे की दांत, रौड, 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे. पुलिस ने अपहरण की धारा को 302, 201, 120बी व 34 आईपीसी में तरमीम कर दिया.

Crime Story : 23 साल बाद मिला साधु के वेश में कातिल प्रेमी

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा के बरसाना का नंदगांव यहीं है कुंजकुटी आश्रम. तपती 25 जून, 2023 को जून की गरमी से बेहाल 3 साधुओं की टोली कुंजकुटी आश्रम के दरवाजे पर आ कर रुक गई. इन के शरीर पर लाल, पीले रंग के साधुओं वाले कपड़े थे, तीनों ने सिर पर सफेद, भगवा अंगौछे बांध रखे थे. गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का लेप था. तीनों साधु पसीने से तरबतर थे.

कंधे पर लटक रही लाल रंग की झोली से भगवा रुमाल निकाल कर चेहरे का पसीना पोंछते हुए एक साधु हैरत से बोला, “दरवाजे पर क्यों रुक गए गुरुदेव, भीतर प्रवेश नहीं करेंगे क्या?”

“मछेंद्रनाथ, मैं किसी आश्रम वासी के बाहर आने की राह देख रहा हूं. बगैर इजाजत लिए किसी भी जगह प्रवेश करना उचित नहीं होता.”

“आप का कहना ठीक है गुरुदेव,” मछेंद्रनाथ विचलित हो कर बोला, “लेकिन मुझे जोरों की भूख लग रही है. हम अंदर जाते तो मैं पेट की भूख शांत कर लेता.”

उस की बात पर दोनों साधु हंसने लगे. हंसते हुए गुरुदेव, जिन का नाम हरिहरनाथ था, बोले, “देखा कालीनाथ, इस पेटू मछेंद्र को, इसे खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता.”

फिर वह मछेंद्रनाथ की तरफ पलटे और कुछ कहना ही चाहते थे कि आश्रम के दरवाजे पर एक भगवा वस्त्र धारी दुबलापतला साधु आ गया.

“आप दरवाजे पर क्यों रुक गए?” उस साधु के स्वर में हैरानी थी, “कोई और आने वाला है क्या?”

“नहीं महाराज, हम तो अंदर आने की इजाजत की प्रतीक्षा में यहां रुक गए थे.” हरिहरनाथ ने मुसकरा कर कहा.

“यहां इजाजत कौन देगा जी, गुरुजी की ओर से इस आश्रम में हर किसी को आने की छूट है. आप लोग अंदर आ जाइए.”

हरिहरनाथ अपनी साधु टोली के साथ अंदर आ गए. आश्रम में एक ओर रहने के लिए कमरे बने हुए थे. सामने दाहिनी ओर छप्परनुमा शेड था. नीचे चबूतरा था, इस के बीच में अग्निकुंड बना हुआ था. अग्निकुंड में लकडिय़ों की धूनी सुलग रही थी. उस के आसपास कई जटाधारी साधु बैठे हुए थे. कुछ चिलम पी रहे थे. कुछ आपस में बातें कर रहे थे. एक साधु बैठा हुआ कोई धार्मिक ग्रंथ पढऩे में तल्लीन था.

तीनों साधुओं को वहां लाने वाला साधु आदर से बोला, “आप लोग चाहें तो स्नान आदि कर लीजिए. मैं आप के खाने का बंदोबस्त करता हूं, खापी कर आप आराम कर लेना. गुरुदेव अपने कक्ष में हैं, उन से आप की भेंट शाम को 5 बजे होगी.”

“ठीक है महाराज,” हरिहर मुसकरा कर बोले.

वह अपनी टोली के साथ आश्रम के कोने में लगे हैंडपंप पर आ गए. उन्होंने बाहर ही हैंडपंप पर नहानाधोना किया. फिर चबूतरे पर आ गए. उन्हें वहां भोजन परोसा गया. खापी लेने के बाद वे चटाइयों पर विश्राम करने के लिए लेट गए.

अन्य साधुओं से बढ़ाई घनिष्ठता

शाम को उन की मुलाकात इस आश्रम के गुरु महाराज से हुई. वह वयोवृद्ध थे. उन्हें हरिहरनाथ ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद बताया, “हम काशी विश्वनाथ होते हुए मथुरा आए थे. यहां आप के आश्रम कुंजकुटी की बहुत चर्चा सुनी तो आप के दर्शन करने आ गए. हम यहां कुछ दिन ठहरना चाहेंगे गुरुदेव.”

“आप का आश्रम है हरिहरनाथ, आप अपनी मंडली के साथ ताउम्र यहां रहिए. यह साधुसंतों का डेरा है, यहां कोई भी कभी भी आजा सकता है.”

“धन्यवाद गुरुदेव,” हरिहरनाथ ने कहा.

गुरु महाराज के पास से उठ कर हरिहरनाथ ने चबूतरे के एक कोने में अपने उठने बैठने की व्यवस्था कर ली. तीनों ने वहां चटाइयां बिछा कर बिस्तर लगा लिया.

2-3 दिनों में ही हरिहरनाथ, मछेंद्रनाथ और कालीनाथ वहां आनेजाने और रहने वाले साधुसंतों से घुलमिल गए थे. वह उन से आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा करते. अपना मोक्ष पाने के लिए साधु वेश धारण करने की बात बता कर यह पूछते कि वह साधु क्यों बने? यह वेश धारण कर के उन्हें कैसा अनुभव हो रहा है?

आज उन्हें कुंजकुटी आश्रम में रुके हुए 4 दिन हो गए थे. गुरु हरिहरनाथ आज सुबह से ही उस साधु के साथ चिपके हुए थे जो पहले दिन उन्हें सब से अलग बैठा कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ता दिखाई दिया था. यह 50 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति था. दुबलापतला गेहुंए रंग का वह व्यक्ति लाल कुरता, पीली जैकेट और लुंगी पहनता था. उस की दाढ़ीमूंछ के बालों में सफेदी झलकने लगी थी. यह साधु पहले दिन से ही सभी से अलगथलग रहने वाला दिखाई दिया था.

हरिहरनाथ ने शाम को खाना खा लेने के बाद उस के साथ गांजे की चिलम भर कर पी. गांजे का नशा हरिहरनाथ के दिमाग पर छाने लगा तो वह सिर झटक कर बोले, “मजा आ गया आप की चिलम में महाराज, मैं ने पहली बार गांजा की चिलम पी है. यह नशा मेरा सिर घुमा रहा है.”

“मैं रोज पीता हूं हरिहरनाथ. इसे पी लेने के बाद न अपना होश रहता है, न दुनिया की फिक्र.”

“क्यों क्या आप का इस दुनिया में अपना कोई नहीं है?” हरिहरनाथ ने पूछा.

“थे. मांबाप, बहनभाई और…” बतातेबताते वह रुक गया.

“एक पत्नी.” हरिहरनाथ ने उस की बात को पूरा किया, “क्यों मैं ने ठीक कहा न?”

वह साधु हंस पड़ा, “पत्नी नहीं थी, वह मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था.”

“प्यार करते थे तो पत्नी क्यों नहीं बना सके उसे?”

“वह बेवफा निकली हरिहर,” वह साधु गहरी सांस भर कर बोला, “उस ने किसी और से दिल लगा लिया था.”

“ओह!” हरिहरनाथ ने अफसोस जाहिर किया, “ऐसी बेवफा प्रेमिका को तो सजा मिलनी चाहिए थी. मेरी प्रेमिका ऐसा करती तो मैं उस का गला काट देता.”

“नहीं हरिहर, मैं ने उस बेवफा से सच्ची मोहब्बत की थी. मैं उस के गले पर छुरी नहीं चला सकता था. मैं ने उस को नहीं, उस के प्रेमी को यमलोक पहुंचा दिया.”

“ओह! आप ने अपनी प्रेमिका के यार को ही उड़ा डाला.” हरिहर हैरानी से बोले, “फिर तो आप को कत्ल के जुर्म में सजा हुई होगी.”

गांजे के नशे में आई सच्चाई बाहर

चिलम का एक गहरा कश लगा कर धुंआ ऊपर छोड़ते हुए वह साधु हंसने लगा, “सजा किसे मिलती महाराज, कातिल तो कत्ल कर के फुर्र हो गया था. आज 23 साल हो गए उस बात को, मैं साधु बन कर यहां बैठा हूं, पुलिस वहां मेरे लिए हाथपांव पटक रही है. सुना है, मुझ पर 45 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है पुलिस कमिश्नर ने.” साधु फिर हा…हा… कर के हंसने लगा.

हंसी थमी तो बोला, “हरिहर, मुझ पर पुलिस 45 हजार क्या 45 लाख का इनाम घोषित कर दे, तब भी वह मुझे नहीं पकड़ पाएगी.”

हरिहर के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह कमर की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोले, “तुम ने सुन रखा होगा मिस्टर पदम, कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. देख लो, फांसी का फंदा तुम्हारे गले तक पहुंच गया.”

“पदम,” वह साधु चौंक कर बोला, “तुम मेरा नाम कैसे जानते हो हरिहर?”

हरिहर का हाथ कमर से निकल कर बाहर आया तो उस में रिवौल्वर था. रिवौल्वर साधु की कनपटी पर सटा कर हरिहर गुर्राए, “मैं तेरा नाम भी जानता हूं और तेरा भूगोल भी. तू सूरत में विजय साचीदास की हत्या कर के फरार हो गया था. आज 23 साल बाद तू हमारी पकड़ में आया है.”

आप को बताते चलें कि साधु के वेश में यह सूरत की क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एएसआई सहदेव थे, इन के साथ जो 2 साधु वेशधारी मछेंद्रनाथ और कालीनाथ थे, उन के नाम जनार्दन हरिचरण और अशोक थे. ये दोनों भी सूरत की क्राइम ब्रांच में एएसआई और हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात हैं.

इन दिनों सूरत की पुलिस ने मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर रखी है. पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा ने 3 सितंबर, 2001 को विजय साचीदास नाम के युवक की हत्या कर दी थी, वह सूरत से भाग गया था. पुलिस उसे सालों तक सूरत और उस के पैतृक गांव ओडिशा के गंजाम जिले में तलाश करती रही. वह हाथ नहीं लगा तो उस पर 45 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. निराश हो कर इस केस की फाइल बंद कर दी गई.

23 साल बाद पकड़ा गया हत्यारा

23 साल बाद विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल फिर से खोली गई. पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने भगोड़े मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू की थी. इसी मुहिम के तहत पीसीबी (प्रिवेशन औफ क्राइम ब्रांच) के 2 एएसआई और एक हैडकांस्टेबल को विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल सौंपी गई.

हत्यारे पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए साधु बन गया है और इस समय उत्तर प्रदेश में रह रहा है. उसे ढूंढते हुए यह टीम मथुरा आई. साधु वेश बना कर इस टीम ने 8 दिनों में 100 से अधिक धार्मिकस्थल, आश्रम और मठों की खाक छानी. इसी दौरान एक सर्विलांस टीम ने सूचना दी कि पदम साधु बना हुआ मथुरा के नंदगांव में रह रहा है, इसलिए यह टीम साधु के वेश में कुंजकुटी आश्रम में पहुंची.

पदम उन्हें कुंजकुटी आश्रम में मिला. साधु वेश धारण कर के 23 साल से वह यहां छिपा बैठा था. तेजतर्रार अपराध शाखा की टीम ने उसे अपनी सूझबूझ से ढूंढ निकाला. पदम उर्फ चरण पांडा की कनपटी पर रिवौल्वर रख कर एएसआई सहदेव ने अपने साथियों को इशारा किया. वह तुरंत पदम के सिर पर पहुंच गए.

पदम को घेर कर हथकड़ी लगा दी गई.

आश्रम में हडक़ंप मच गया. एक साधु जो 23 साल से कुंजकुटी आश्रम में रह रहा था, उस के हाथ में हथकड़ी देख कर सभी आश्रमवासी चौंक गए.

एएसआई सहदेव ने उन्हें इस साधु पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा की हकीकत बताई तो सभी दंग रह गए. एक हत्यारा 23 सालों से साधु बन कर वहां रह रहा था. अपराध शाखा की टीम पदम उर्फ चरण पांडा को ले कर 28 जून, 2023 को मथुरा से सूरत के लिए रवाना हो गई. जाने से पहले उन्होंने नंदगांव पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज के पास अपनी रवानगी दर्ज करवा दी थी.

पदम को रजनी से हुआ प्यार

पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा मूलरूप से ओडिशा के गंजाम जिले के श्रीराम नगर इलाके का निवासी था. उस का मांबाप और बहनभाई का एक बड़ा परिवार था, लेकिन इस परिवार के गुजरबसर के लिए ज्यादा कमाई नहीं थी. पदम के पिता मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी को धकेल रहे थे.

पदम जवान हुआ तो घर की गरीबी उस से देखी नहीं गई. वह काम की तलाश में ट्रेन में सवार हो कर सूरत शहर आ गया. बहुत कम पढ़ालिखा था, इसलिए कोई अच्छी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, मेहनत मजदूरी पदम करना नहीं चाहता था. यही करना था तो गंजाम जिले में ऐसे कामों की कमी नहीं थी.

बहुत सोचविचार कर के पदम ने गांधी चौराहे पर थोड़ी सी जगह ढूंढ कर भजिया (पकौड़े) की रेहड़ी लगा ली. पदम का यह काम चल निकला. उस ने शांतिनगर सोसायटी में रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. भजिया रेहड़ी से अच्छी कमाई हो रही थी. पदम बनसंवर कर रहने लगा. कमरे का किराया और अपना खर्चा निकाल कर वह अब गंजाम में अपने मांबाप के पास बचा हुआ पैसा भेजने लगा था.

शांतिनगर सोसायटी में ही किराए पर रजनी नाम की युवती रहती थी. रजनी 23 साल की साढ़े 5 फुट की नवयौवना थी. रंग गोरा, नाकनक्श तीखे, होंठ संतरे के फांक जैसे. जवानी के बोझ से लदी रजनी को देख कर कोई भी फिदा हो सकता था. पदम की नजर सीढिय़ों से उतरते हुए रजनी पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन का दीवाना हो गया. पहली नजर में ही उस को रजनी से प्यार हो गया.

रजनी ने भी किया प्यार का इजहार

वह रोज सीढिय़ों से चढ़ कर ऊपर तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में जाता तो रजनी के कमरे के सामने तब तक रुकता था, जब तक रजनी दरवाजे पर नहीं आ जाती थी. रजनी यह भांप चुकी थी कि इसी सोसाइटी में रहने वाला यह युवक उस का दीवाना है. अब वह पदम के शाम को लौट कर आने के वक्त पर खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी होने लगी थी.

उस की नजरें पदम से टकरातीं तो वह शरम से नजरें झुका लेती, ठंडी सांस भर कर आह भरता हुआ पदम सीढिय़ां चढ़ जाता था. पदम यह महसूस कर चुका था कि रजनी उसे चाहने लगी है. उस से मेलजोल बढ़ाने के इरादे से एक शाम वह भजिया मिर्च को अखबार में पैक कर के ले आया. रजनी अन्य दिनों की तरह उस दिन भी दरवाजे पर खड़ी मिली. पदम ने हिम्मत बटोर कर भजियामिर्च का पैकेट रजनी की तरफ बढ़ा दिया.

“क्या है इस में?” पहली बार उस की कोयल जैसी आवाज पदम के कानों में पड़ी.

“आप खुद देख लीजिए” पदम कह कर तेजी से सीढ़ियां चढ गया. दिन में रजनी उसे दिखाई नहीं देती थी, शायद वह कहीं काम पर जाती थी, लेकिन सुबह जब पदम सीढ़ियां उतर कर नीचे आया तो रजनी अपने दरवाजे पर खड़ी दिखाई दी.

पदम को देख कर वह मुसकराई, “भजिया स्वादिष्ट थी. कहां से लाए थे?”

“मेरे ठेले की है. मैं गांधी चौक पर भजिया का ठेला लगाता हूं, आप को भजिया स्वादिष्ट लगी है तो मैं रोज शाम को ले आया करूंगा.” पदम के स्वर में उत्साह भरा था.

“नहीं, अब तो मैं तुम्हारे पास गांधी चौक पर आ कर ही भजिया खाया करूंगी,” रजनी ने हंस कर कहा.

“मैं एक शर्त पर आप को भजिया खिलाऊंगा.”

“कैसी शर्त?”

“आप भजिया के पैसे नहीं देंगी.”

“ऐसा क्यों?” हैरानी से रजनी ने पूछा.

“अपनों से कोई पैसा नहीं लेता,” पदम ने हिम्मत बटोर कर कह डाला, “आप को दिल से प्यार करने लगा हूं मिस…”

हया से सिर झुका कर बोली रजनी, “मेरा नाम रजनी है, मैं भी आप को चाहने लगी हूं.”

पदम खुशी से उछल पड़ा. उस ने रजनी का हाथ पकड़ कर चूम लिया. रजनी शरमा कर अंदर भाग गई.

प्यार में मिला धोखा

उस दिन के बाद से रजनी शाम को उस के ठेले पर आने लगी. पदम उसे भजिया खिलाता. इस बीच दोनों प्यार भरी बातें करते. ये मुलाकातें भजिया की ठेली से हट कर सूरत के पिकनिक स्पौट, सिनेमा हाल और रेस्टोरेंट तक पहुंच गईं. पदम जो कमाता था, वह रजनी पर खर्च करने लगा. वह रजनी को सच्चे दिल से चाहने लगा था. रजनी से वह शादी करने का प्लान भी बना रहा था. रजनी से उस ने वादा भी ले लिया था कि वह उस से शादी करेगी.

प्रेम प्रसंग बढ़ने लगा तो पदम अब शादी के लिए रुपए भी जोड़ने लगा था. वह रजनी को पत्नी बना कर अपने घर ओडिशा ले जाना चाहता था, लेकिन एक दिन उस का ख्वाब बिखर गया.उस ने रजनी को एक युवक के साथ हाथ में हाथ डाले शौपिंग माल में खरीदारी करते हुए देखा. पदम वहां अपने लिए शर्ट खरीदने के लिए गया था. वह रजनी को चोरीछिपे देखता रहा.

शाम को उस ने रजनी से उस युवक के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी बेशरमी से कहा, “वह विजय साचीदार है. तुम से अच्छा कमाता है. मैं उस के साथ खुश रह सकती हूं.”

“लेकिन तुम ने मेरे साथ शादी करने का वादा किया है रजनी, मुझे तुम छोड़ कर किसी दूसरे से दिल नहीं लगा सकती.”

“दिल मेरा है पदम…” रजनी कंधे झटक कर बोली, “मैं इसे कहीं भी लगाऊं. फिर तुम्हारे पास है भी क्या? किराए का कमरा है, फुटपाथ पर भजिया तलते हो. मैं एक ठेली वाले से शादी कर के अपनी जगहंसाई नहीं करवाना चाहती. अब तुम अपना रास्ता बदल लो.”

“नहीं. मैं अपना रास्ता नहीं बदलूंगा. रास्ता तुम्हें बदलना होगा रजनी. तुम मेरी थी, मेरी ही रहोगी.”

“कोई जबरदस्ती है तुम्हारी.” रजनी गुस्से से चीखी, “मैं विजय से शादी करूंगी, समझे.”

“मैं उस हरामी विजय को काट डालूंगा.” पदम गुस्से से बोला, “देखता हूं तुम कैसे उस से शादी करती हो.”

पदम कहने के बाद गुस्से में भरा वहां से चला गया. वह रात उस ने अपने ठेले पर फुटपाथ पर बिताई. वह विजय साचीदार के विषय में सोच रहा था जो उस के प्यार की राह में कांटा बन गया था. वह कब सोया उसे पता नहीं चला

रजनी के प्रेमी विजय की मिली लाश

4 सितंबर, 2001 दिन मंगलवार को मयूर विहार सोसायटी के शांतिनगर थाने में रजनी ने विजय साचीदार के लापता हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए पुलिस के सामने बयान दिया कि विजय साचीदार को जान से मारने की धमकी पदम चरण ने दी थी. पदम चरण शांतिनगर सोसायटी में तीसरी मंजिल पर किराए पर रहता है और गांधी चौक पर भजिया की ठेली लगाता है. विजय साचीदार को लापता करने में पदम चरण का हाथ हो सकता है. उसे गिरफ्तार कर के पूछताछ की जाए.

रजनी द्वारा लिखित रिपोर्ट के आधार पर पुलिस शांतिनगर सोसायटी में पदम चरण के कमरे पर पहुंची. वहां ताला बंद था. पदम चरण की तलाश में उस की भजिया की ठेली (गांधी चौक) पर पुलिस पहुंची तो ठेली पर कोई नहीं था. पदम चरण दोनों जगह से लापता था. इस से उस पर शक गहरा गया कि उस ने विजय साचीदार का अपहरण किया है और कहीं दुबक गया है.

पुलिस पदम चरण का मूल पता लगाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे उधना क्षेत्र (खाड़ी) में विजय साचीदास की लाश मिलने की सूचना कंट्रोल रूम द्वारा दी गई. उधना क्षेत्र की पुलिस को खाड़ी में एक युवक की लाश पड़ी मिली थी. उस युवक की तलाशी में आधार कार्ड मिला, जिस में उस का नाम विजय साचीदार, उस का फोटो और एड्रेस था.

आधार कार्ड से पता चला कि विजय साचीदार शांतिनगर थाना क्षेत्र में रहता था, इसलिए कंट्रोल रूम द्वारा इस थाने को सूचित किया गया. शांतिनगर थाने ने उधना क्षेत्र थाने से यह लाश अपने अधिकार में ले कर जांच की. विजय को गला दबा कर मारा गया था. विजय का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस मामले को भादंवि की धारा 302 में दर्ज कर के पदम चरण की तलाश शुरू कर दी गई.

पदम चरण के बारे में रजनी से बहुत कुछ मालूम हो सकता था. पुलिस ने रजनी को थाने में बुला कर पूछताछ की तो रजनी ने बताया कि पदम का ओडिशा के गंजाम जिले में बरहमपुर इलाके में घर है. इस से अधिक वह कुछ नहीं जानती. रजनी ने पदम से प्रेम करने के दौरान जो फोटो खींचे थे, वे भी उस ने पुलिस को दे दिए.

शांतिनगर थाने की पुलिस पदम की तलाश में ओडिशा गई. वहां उस के मांबाप को श्रीराम नगर में ढूंढ निकाला गया. उन्होंने बताया पदम कई दिनों बाद घर आया था, लेकिन एक रात रुक कर वह चला गया. वह कहां गया, यह उन्हें नहीं मालूम. पुलिस ओडिशा से खाली हाथ वापस आ गई. इस के बाद पदम को सालों पुलिस यहांवहां ढूंढती रही, लेकिन वह कहां छिप गया, पुलिस को पता नहीं चला.

पदम के ऊपर घोषित हुआ ईनाम

पुलिस द्वारा उस के ऊपर 45 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया, लेकिन सब व्यर्थ. हताश हो कर विजय साचीदास हत्या केस की फाइल पुलिस को ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी. जून 2023 को पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने सूरत शहर के भगोड़े व मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की लिस्ट तैयार करवाई तो उस में 23 सालों से फरार चल रहे पदम चरण उर्फ चरण पांडा का भी नाम था. उस पर 45 हजार का ईनाम भी घोषित था.

पदम को पकडऩे का जिम्मा अपराध शाखा के एएसआई सहदेव, एएसआई जनार्दन हरिचरण और हैडकांस्टेबल अशोक को सौंपा गया. इस टीम की पहली सफलता यह थी कि 23 साल से फोन बंद कर के बिल में छिपे पदम ने मोबाइल फोन से अपने परिजनों से संपर्क किया था.

ओडिशा के गंजाम जिले में श्रीराम नगर इलाके से गोपनीय जानकारी अपराध शाखा को मिली तो पदम के परिजनों से पदम का नया नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया गया. उस की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह मथुरा के बरसाना की थी.

क्राइम ब्रांच को बनना पड़ा साधु

अपराध शाखा की टीम मथुरा के बरसाना पहुंची. वहां से टोह लेती हुई नंदगांव पहुंच गई. यहां की पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज की मदद से साधु वेश बना कर 8 दिन आश्रमों, मठों में पदम को तलाश करती रही. अपने असली नाम छिपा कर 100 से ज्यादा धार्मिक स्थलों में उसे खोजा गया, फिर कुंजकुटी आश्रम में तलाश करने पंहुचे तो उन्हें साधु वेश में रह रहे पदम चरण को पकडऩे में सफलता मिल गई.

पदम चरण को शांतिनगर थाना (सूरत) में ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि विजय साचीदास उस के और रजनी के प्रेम में बाधा बन गया था. उसे समझाने पर भी वह नहीं माना तो उस का अपहरण कर के वह उद्यान खाड़ी क्षेत्र में ले गया और वहां गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद वह ओडिशा भाग गया.

एक रात रुक कर वह मथुरा आया, यहां नंदगांव के कुंजकुटी में साधु वेश बना कर रहने लगा. उसे लगा कि विजय की हत्या हुए 23 साल गुजर गए हैं, पुलिस खामोश बैठ गई है तो उस ने मोबाइल खरीद कर परिजनों से बात की. इसी क्लू द्वारा पुलिस उस तक पहुंची और वह पकड़ा गया.

पुलिस ने पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

Top 5 Love Crime Story : टॉप 5 लव क्राइम स्टोरी

Top 5 love Crime Story Of 2022 : इन लव क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे समाज   में प्रेम ने कईओं के घर बर्बाद किये है और किसी ने प्यार के लिए अपनों को ही शिकार बना लिया. और अपने ही प्यार को धोखा देकर उसे मार देना. अपने और अपने परिवार को ऐसे हो रहे क्राइम से सावधान करने के लिए पढ़िए Top 5 love Crime story in Hindi मनोहर कहानियां जो आपको गलत फैसले लेने से बचा सकती है.

1. प्रेमिका बनी भाभी तो किया भाई का कत्ल

नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’ मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी. मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

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2. भाई ने बहन को दोस्त के साथ रंगे हाथ पकड़ा तो दबा दिया तमंचे का ट्रिगर

निश्चित जगह पर पहुंच कर अखिलेश उर्फ चंचल को प्रियंका दिखाई नहीं दी तो वह बेचैन हो उठा. उस बेचैनी में वह इधरउधर टहलने लगा. काफी देर हो गई और प्रियंका नहीं आई तो वह निराश होने लगा. वह घर जाने के बारे में सोच रहा था कि प्रियंका उसे आती दिखाई दे गई. उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. प्रियंका के पास आते ही वह नाराजगी से बोला, ‘‘इतनी देर क्यों कर दी प्रियंका. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अच्छा हुआ तुम आ गईं, वरना मैं तो निराश हो कर घर जाने वाला था.

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3. महिला को गैस नली लगाकर जला डाला जिंदा

अवैध संबंधों की राह बड़ी ढलवां होती है. दीपा ने इस राह पर एक बार कदम रखा तो वह संभल नहीं सकी. फिर इस का जो नतीजा निकला, वह बड़ा ही भयावह था. टना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है.

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4. ट्रॉली बैग में 72 घंटे तक रखा प्रेमिका की लाश को

नोएडा के खोड़ा कालोनी के वंदना एनक्लेव स्थित 4 मंजिला मकान में कुल 33 कमरे थे. सभी कमरों में नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली में काम करने वाले किराएदार रह रहे थे. इन में से कुछ लोग अपने परिवार के साथ रहते थे. लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे थे जो अकेले ही रहते थे. चूंकि सभी लोग नौकरीपेशा थे, इसलिए वे सुबह ही अपनी ड्यूटी पर चले जाते और देर शाम या रात को वापस अपने कमरों पर लौटते थे.

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5. विवाहिता के प्यार में 4 हत्याएं

चंदन वर्मा ने 12 सितंबर, 2024 को अपने वाट्सऐप पर लिखा, ‘5 लोग मरने वाले हैं. मैं जल्दी कर के दिखाऊंगा (5 people are going to die. I will show you soon.)उस का इशारा अपनी प्रेमिका पूनम व उस के परिवार, स्वयं और पूनम के भाई सोनू की तरफ था. चंदन वर्मा ने इस के लिए अवैध पिस्टल का इंतजाम तो कर लिया था, लेकिन गोलियों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. इस के लिए उस ने जानपहचान के अपराधियों से संपर्क किया और 10 राउंड गोलियों वाली मैगजीन मुंहमांगी कीमत पर खरीद कर रख ली,

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