Punjab Crime : चचेरी बहन से संबंध बनाता और ब्लैकमेल करके पैसे वसूलता

Punjab Crime : आस्ट्रेलिया जाते समय राहुल ने अपने चाचा के बेटे रिशु ग्रोवर पर विश्वास कर के अपनी मां ऊषा और बहन हिना की देखभाल की जिम्मेदारी उसे सौंप दी थी. रिशु इतना बदकार निकलेगा, राहुल ने सोचा तक नहीं था. उस का विश्वास तो टूटा ही, मां और बहन भी…  

10 सितंबर, 2018 को लुधियाना के जिला एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा भीड़ थी. वजह यह थी कि उस दिन लुधियाना शहर के एक ऐसे दोहरे मर्डर केस का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे शहर में सनसनी फैला दी थी. इस में हतप्रभ कर देने वाली बात यह थी कि आरोपी रिशु ग्रोवर मृतकों के परिवार का ही सदस्य था और उस परिवार की हर तरह से देखरेख करता थाइस के बावजूद उस ने मां और बेटी की इतनी वीभत्स तरीके से हत्या की थी कि उन की लाशें देख कर पुलिस तक का कलेजा कांप उठा था. यह केस लगभग 5 सालों तक न्यायालय में चला, जिस में 23 गवाहों ने अपने बयान दर्ज कराए.

इन गवाहों में एक गवाह ऐसा भी था, जिस ने आरोपी को घटनास्थल से फरार होते देखा था. अभियोजन पक्ष ने इस केस में पुलिस वालों, फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट एक्सर्ट्स, पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों आदि के बयान भी अदालत में दर्ज कराए थे. निर्धारित समय पर जिला एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ के अदालत में बैठने के बाद जिला अटौर्नी रविंदर कुमार अबरोल ने कहा कि आरोपी रिशु ग्रोवर ने अपनी ताई और उन की बेटी की खंजर से बेहद क्रूरतम तरीके से हत्या की थी. लिहाजा ऐसे आरोपी को फांसी की सजा मिलनी चाहिए. वहीं बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि ये दोनों मर्डर किसी और ने किए हैं. हत्याएं करने के बाद हत्यारा खून से दीवार पर एक नाम भी लिख कर गया था.

खून से दीवार पर जिस का नाम लिखा गया था, पुलिस को उस शख्स से सख्ती से पूछताछ करनी चाहिए थी. लेकिन पुलिस ने उस शख्स को बचा कर सीधेसादे रिशु ग्रोवर को फंसा कर जेल में डाल दिया. रिशु पर लगाए गए सारे आरोप निराधार हैं. लिहाजा उसे इस केस से बाइज्जत बरी किया जाना चाहिए. जिला एडिशनल सेशन जज ने तमाम गवाहों के बयान, सबूतों और वकीलों की जिरह के बाद आरोपी रिशु ग्रोवर को दोषी करार दिया और सजा सुनाने के लिए 13 सितंबर, 2018 का दिन नियत कर दिया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि इस हत्याकांड के फैसले पर लुधियाना के लोगों के अलावा वकीलों और मीडिया तक की निगाहें जमी थीं. सनसनी फैला देने वाले इस केस को समझने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

लुधियाना के बाबा थानसिंह चौक के निकट मोहल्ला फतेहगंज में बलदेव राज अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी ऊषा के अलावा 2 बेटियां आशना हिना के अलावा एक बेटा राहुल था. बड़ी बेटी आशना की वह शादी कर चुके थे. शादी के लिए 2 बच्चे और बचे थे. वह उन की शादी की भी तैयारी कर रहे थे, लेकिन इस से पहले ही उन की मृत्यु हो गई. बलदेव राज की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी ऊषा के ऊपर गई थी. खेती की जमीन से वह परिवार का गुजरबसर करने लगीं. पंजाब के तमाम लोग विदेशों में काम कर के अच्छा पैसा कमा रहे हैं. ज्यादा पैसे कमाने की चाह में राहुल भी अपने एक जानकार की मदद से आस्ट्रेलिया चला गया. वहां उसे अच्छा काम मिल गया था.

राहुल समझ नहीं पाया चचेरे भाई को  राहुल के आस्ट्रेलिया जाने के बाद लुधियाना में उस के घर में 55 वर्षीय मां ऊषा और 21 वर्षीय बहन हिना ही रह गई थीं. उन का ध्यान रखने के लिए राहुल अपनी बहन आशना और बहनोई विकास मल्होत्रा को कह गया था. इस के अलावा उस ने अपने चाचा के बेटे रिशु ग्रोवर से भी मांबहन का ध्यान रखने को कहा थारिशु टिब्बा रोड के इकबाल नगर में रहता था. वैसे भी ऊषा का घर बाबा थानसिंह चौक पर ऐसी जगह रास्ते में था कि रिशु आतेजाते अपनी ताई ऊषा का हालचाल जान लिया करता था. जब रिशु ऊषा के यहां आनेजाने लगा तो ऊषा उस से घर के छोटेमोटे काम करा लिया करती थीं.

इस में रिशु के मातापिता को भी कोई ऐतराज नहीं था. कुछ समय और बीता तो ताई के कहने पर रिशु कभीकभी रात को भी उन के घर रुकने लगा था. इसी बीच एक यह परेशानी सामने आई कि बाबू नाम का एक लड़का हिना के पीछे पड़ गया. बाबू का सेनेटरी का काम था. हिना जब भी घर से बाहर निकलती, बाबू उस का रास्ता रोक कर उस से छेड़छाड़ करता था. इस से परेशान हो कर हिना ने इस की शिकायत पहले रिशु से की और बाद में यह बात अपनी बहन और जीजा को भी बता दीरिशु ने अपने तरीके से बाबू को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना.

कोई हल निकलता देख हिना के बहनोई विकास ने इस की शिकायत थाना डिवीजन नंबर-3 में कर दी. पुलिस ने बाबू को थाने बुला कर धमका दिया. इस के बावजूद वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. यह सन 2012 की बात है. इस बीच राहुल आस्ट्रेलिया से लुधियाना लौटा तो यह बात उसे भी पता चली. लगभग 2 महीने लुधियाना में रहने के बाद जब वह वापस आस्ट्रेलिया लौटा तो अपनी मां ऊषा और बहन हिना की जिम्मेदारी वह रिशु को सौंप गया. आगे चल कर यही राहुल की सब से बड़ी भूल साबित हुई. रिशु एक आवारा, बदचलन और बेहद गिरा हुआ इंसान था. सिगरेट, शराब, जुए से ले कर कोई ऐसा गलत ऐब नहीं बचा था, जो रिशु में नहीं था.

ऊषा और हिना का ध्यान रखने की आड़ में वह ऊषा के घर पर ही अपना डेरा जमाए बैठा था. दरअसल, रिशु के खुराफाती दिमाग में एक भयानक षड्यंत्र ने जन्म ले लिया था. उस का सीधा निशाना हिना थी जो इस बात से बिलकुल अनजान थी. नाजायज रिश्ते, नाजायज तरीके. कब किसी इंसान को गुनाह के रास्ते पर ला कर खड़ा कर दें, कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जिस भाई को राहुल मां और बहन की देखभाल की जिम्मेदारी सौंप गया था, उसी भाई के मन में एक अपराध ने जन्म ले लिया था.

अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए रिशु ने अपनी ताई की बेटी हिना को अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. जल्दी ही वह अपने मकसद में कामयाब भी हो गया. उस ने हिना के साथ नाजायज रिश्ता कायम कर लिया. बाद में वह इसी नाजायज रिश्ते की आड़ ले कर उसे ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने लगा. उस से मिले पैसों का इस्तेमाल वह अपने सपने पूरे करने में खर्च करता था. ताज्जुब की बात यह थी कि उसी घर में रहते हुए भी ऊषा को इस सब की भनक तक नहीं लग पाई थी. इस की वजह यह थी कि रिशु अपनी ताई को खाने में नींद की गोलियां दे देता था. गोलियों के नशे को ऊषा अपनी उम्र का रोग समझती थीं.

शुरूशुरू में तो हिना रिशु के आकर्षण में फंस गई थी पर जब तक उसे उस की नीयत का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लेकिन अब पछताने से कोई फायदा नहीं था. क्योंकि वह सिर से ले कर पांव तक रिशु के चंगुल में फंसी हुई थी, जहां से अकेले बाहर निकलना उस के बूते की बात नहीं थी. अंत में हार कर हिना ने अपने भाई राहुल को आस्ट्रेलिया में फोन कर के यह बात बता दिया. यहां हिना ने एक बार फिर बड़ी गलती की. वह राहुल से अपने और रिशु के शारीरिक संबंधों और रिशु द्वारा ब्लैकमेल करने की बात छिपा गई थी. यह बात फरवरी 2013 की है.

अपनी बहन की बात सुन राहुल आस्ट्रेलिया से लुधियाना आया और उस ने रिशु को आड़े हाथों लिया. रिशु के मातापिता ने भी उस की अच्छी खबर ली. आखिर अपनी करनी से शर्मिंदा हो कर रिशु ने राहुल के अलावा अन्य सभी रिश्तेदारों से माफी मांग ली थी. रिशु बुनता रहा तानाबाना  बात तो यहीं खत्म हो गई थी पर राहुल कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. उस ने हिना की शादी करने के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी और लुधियाना के पखोवाल रोड निवासी सौरव के साथ हिना की मंगनी कर के शादी पक्की कर दी. शादी की तारीख 20 नवंबर, 2013 तय कर दी गई. इस बार राहुल ने बहन की शादी की जिम्मेदारी अपनी बहन आशमा और जीजा विकास मल्होत्रा को सौंपी

यह सब कर के वह 24 अप्रैल, 2013 को आस्ट्रेलिया लौट गया. आस्ट्रेलिया जा कर उस ने वहां से 4 लाख रुपए और करीब 100 डौलर अपनी मां को भेजे. मां ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं. राहुल समयसमय पर अपनी मां को फोन कर के बात करता रहता था. 21 मई, 2013 को राहुल ने आस्ट्रेलिया से अपनी मां को फोन कर के हालचाल पूछना चाहा तो मां का फोन बंद मिला. उस ने 2-3 बार मां को फोन मिलाया, पर हर बार फोन बंद ही मिला. उस ने 22 मई को फिर से मां को फोन किया. उस दिन भी उन का फोन स्विच्ड औफ था. बहन हिना का फोन भी बंद रहा था. राहुल परेशान था कि दोनों के फोन क्यों नहीं मिल रहे.

फिर उस ने अपने जीजा विकास मल्होत्रा को फोन कर कहा, ‘‘जीजाजी, पता नहीं क्यों मां और हिना का फोन नहीं मिल रहा है. मैं कल से कोशिश कर रहा हूं. आप वहां जा कर पता तो करें, क्या बात है?’’

‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं है. मैं और आशमा कल रात को वहीं थे. हो सकता है वे लोग सो रहे हों या कोई सामान खरीदने बाजार गए हों. फिर भी मैं जा कर देखता हूं.’’ विकास ने कहा. उस के बाद विकास अपनी पत्नी आशमा को ले कर ससुराल गया. दोनों ने वहां जा कर देखा तो मकान का मुख्य दरवाजा बंद जरूर था पर उस में कुंडी नहीं लगी थी. असमंजस की हालत में विकास ने अंदर जा कर देखा तो नीचे वाले कमरे में बैड पर सास ऊषा की खून से लथपथ लाश पड़ी थीमां की लाश देख कर आशमा की चीख निकल गई. विकास भी घबरा गया और सोचने लगा कि हिना कहां है. इस के बाद उस ने ऊपर के फ्लोर पर जा कर देखा तो बाथरूम के बाहर हिना की भी खून सनी लाश पड़ी थी. उस की लाश के पास दीवार पर खून सेबाबलिखा हुआ था. बाब यानी बाबू.

शक के दायरे में आया बाबू विकास को यह समझते देर नहीं लगी थी कि ये दोनों हत्याएं बाबू सेनेटरी वाले ने ही की है. क्योंकि वह हिना को अकसर परेशान करता था. विकास ने इस की सूचना थाना डिवीजन-3 को दे दी. साथ ही उस ने फोन द्वारा राहुल को भी बता दिया. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजमोहन, एसआई प्रीतपाल सिंह, एएसआई राजवंत पाल, हवलदार वरिंदर पाल सिंह, सरजीत सिंह और सिपाही राजिंदर सिंह के साथ बताए गए पते की तरफ रवाना हो गएघटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि उन की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. मौके पर उन्होंने क्राइम टीम को बुलवाया. कई जगह से फिंगरप्रिंट और खून के सैंपल लिए और दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

प्राथमिक पूछताछ में विकास मल्होत्रा से यह बात भी पता चली थी कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे घर में रखे 4 लाख रुपए, 100 डौलर और सोने की एक चेन भी ले गए थे. विकास के बयानों के आधार पर पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा आईपीसी की धारा 302, 460 के तहत दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर दी. विकास ने इस हत्याकांड का शक बाबू पर जाहिर किया था और दीवार पर भी खून सेबाबलिखा हुआ था, इसलिए इंसपेक्टर बृजमोहन ने बाबू को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी.

सख्ती से पूछताछ करने पर भी बाबू इस हत्याकांड के बारे में कुछ नहीं बता पाया था. उस का कहना था कि वह हिना का पीछा जरूर करता था पर इन हत्याओं में दूरदूर तक भी उस का कोई हाथ नहीं है. अचानक पुलिस को यह शक हुआ कि कहीं पैसों के लालच में विकास ने ही तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया क्योंकि उसे भी पता था कि घर में इतना कैश रखा है. फोरेंसिक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि घटनास्थल से मिले खून के सैंपल के साथ एक किसी तीसरे आदमी का भी खून था, जो शायद हत्यारे का थाइन्हीं आशंकाओं को देखते हुए पुलिस ने विकास से पूछताछ की. विकास ने भी खुद को बेकसूर बताया. उस से की गई पूछताछ के बाद भी पुलिस को हत्यारों से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला.

संभावनाओं का पिटारा पुलिस के सामने खुला हुआ था. लेकिन अभी तक कोई ठोस लीड नहीं मिल रही थी. तफ्तीश के दौरान पुलिस को एक ऐसा शख्स मिला, जिस ने हत्यारे को घर से निकलते देखा था और वह उसे अच्छी तरह से पहचानता भी थाइस के बाद पुलिस ने अन्य सबूत जुटाने के लिए हिना के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. उस में कई संदिग्ध नंबर थे. उन सभी नंबरों में एक नंबर ऐसा भी था जिस पर हिना की सब से ज्यादा बातें होती थीं. वह नंबर हिना के चचेरे भाई रिशु ग्रोवर का थाफोन की काल डिटेल्स से सामने आया रिशु का नाम इस हत्याकांड के 2 दिन बाद राहुल भी आस्ट्रेलिया से गया.

25 मई को ही वह इंसपेक्टर बृजमोहन से मिला. राहुल ने बताया कि रिशु ने उस की बहन हिना से नाजायज संबंध बना लिए थे. इतना ही नहीं वह हिना को ब्लैकमेल कर उस से पैसे भी ऐंठता रहता था. राहुल के बयानों ने इस केस का पासा पलट दिया और कातिल सामने गया. पता चला कि हिना और ऊषा का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि रिशु ग्रोवर था. पुलिस ने रिशु को हिरासत में ले लिया. रिशु के खून की जांच कराई गई तो वह उसी खून से मैच कर गया जो घटनास्थल पर मृतकों के अलावा मिला था. रिशु से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर इंसपेक्टर बृजमोहन ने नाले से हत्या में इस्तेमाल खंजर, प्लास्टिक के दस्ताने और एक रूमाल बरामद किया.

पुलिस ने हत्या के बाद लूटे हुए पैसों में से 2 लाख 11 हजार रुपए और 100 डौलर भी बरामद कर लिए. काररवाई पूरी करने के बाद रिशु को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था. तफ्तीश पूरी करने के बाद इंसपेक्टर बृजमोहन ने एक महीने बाद इस केस की चार्जशीट अदालत में दाखिल कर दी थी. पुलिस ने अदालत में तमाम गवाह पेश किए. उन में एक ऐसी महिला गवाह थी जिस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के बाद रिशु को घटनास्थल से फरार होते देखा था. दरअसल वह महिला रोज तड़के ढाई बजे सेवा करने के लिए गुरुद्वारा साहिब जाती थी. उसी समय उस ने रिशु को ऊषा के घर से निकलते देखा था.

अदालत ने उस महिला की गवाही को अहम माना. तमाम गवाहों और सबूतों के आधार पर एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ ने रिशु ग्रोवर को दोषी ठहरायारिशु को दोषी ठहराने के बाद लोगों के जेहन में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं 13 सितंबर को जज साहब उसे कौन सी सजा सुनाएंगे. लोगों के 3 दिन इसी ऊहापोह की स्थिति में गुजरे. आखिर वो दिन भी गया जो माननीय जज ने सजा सुनाने के लिए मुकर्रर किया थाआखिर गया फैसले का दिन13 सितंबर को तमाम लोग बड़ी बेताबी के साथ कोर्टरूम में पहुंच गए थे. सुबह ठीक 10 बजे माननीय जज अदालत में बैठे.

उन्होंने केस फाइल पर नजर डालते हुए कहा कि जिला अटौर्नी रविंदर कुमार अबरोल की दलीलों, गवाहों के बयानों और मौके पर मिले अन्य साक्ष्यों से यह बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि रिशु ग्रोवर ने अपनी ताई और हिना को खंजर से ताबड़तोड़ वार कर के बेरहमी से मार डाला थारिशु चचेरी बहन से अवैध संबंध बना कर उसे ब्लैकमेल कर पैसे वसूलता था, जबकि 6 महीने बाद उस की शादी तय थी. लिहाजा ब्लैकमेलिंग का धंधा पैसा मिलना बंद होने की रंजिश में ही उस ने दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया था और हिना की शादी के लिए घर में रखा सारा पैसा लूट लिया था.

रिशु इतना शातिरदिमाग था कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के बाद उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए घर में रखे गहने कैश भी गायब कर दिए थे. साथ ही दीवार पर खून सेबाबलिख दिया था, जिस से पुलिस उस तक पहुंच सके. दोषी की घृणित मानसिकता से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि उस ने जघन्यतम अपराध किया है. ऐसे आदमी को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है. अभियोजन पक्ष ने अपनी चार्जशीट में आरोपी पर जो आरोप लगाए हैं, वह उन्हें पूरी तरह से साबित करने में सक्षम रहा है.

आरोपी का दोष पूरी तरह से साबित होता है, लिहाजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत दोषी रिशु ग्रोवर को अदालत मृत्युदंड की सजा सुनाती है. अपना फैसला सुनाने के बाद न्यायाधीश अरुणवीर वशिष्ठ ने अपनी कलम की निब तोड़ दी और उठ कर अपने चैंबर में चले गए. रिशु ग्रोवर को फांसी की सजा सुनाए जाने पर आशमा और उस के पति विकास ने संतोष व्यक्त किया.

  

Family dispute : पत्नी की आंखों में मिर्ची झोंक कर किया कत्ल

Family dispute : कौशल किशोर जैसे लोगों की समाज में कमी नहीं है, जो खुद की जिंदगी को तो नरक बनाए ही रहते हैं, पत्नी और बच्चों को भी नहीं छोड़ते. कौशल किशोर अगर चाहता तो लेक्चरर राजकंवर के साथ चैन की जिंदगी गुजार सकता था, लेकिन..

गभग 40-45 साल की थुलथुल जिस्म की सुमित्रा पिछले 15-20 मिनट से राजकंवर के फ्लैट की कालबेल बजा रही थी. जब दरवाजा नहीं खुला तो वह परेशान हो गई. फिर थकहार कर वहीं बैठ गई. वह झल्लाते हुए आश्चर्य से दरवाजे की तरफ देख रही थी. उसे समझ नहीं रहा था कि एक बार कालबेल बजाने पर दरवाजा खोल देने वाली राजकंवर मेमसाहब दरवाजा क्यों नहीं खोल रहीं. जबकि फ्लैट के अंदर गूंजती कालबेल की आवाज उसे बाहर भी सुनाई दे रही थी. बमुश्किल कमर पर हाथ रख कर खड़ी हुई सुमित्रा ने एक बार फिर दरवाजा खुलवाने की कोशिश में दरवाजे को हाथ से जोर से पीटा. इतना ही नहीं, उस ने मेमसाहब का नाम ले कर भी दरवाजा खोलने को कहा. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सुमित्रा राजकंवर नागर के यहां खाना बनाने, कपड़े धोने से ले कर सभी घरेलू कामकाज करती थी.

जिस फ्लैट की हम बात कर रहे हैं, वह कोटा से लगभग 100 किलोमीटर दूर शहरनुमा कस्बे इटावा की सरोवर कालोनी में स्थित स्थानीय राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल की व्याख्याता राजकंवर नागर का था, जहां वह अपने पति कौशल किशोर और 6 वर्षीय बेटे उदित के साथ किराए पर रह रही थीं. उस दिन मंगलवार था और तारीख थी 4 सितंबर. सुबह के करीब 8 बज चुके थे. जब सुमित्रा रोजाना की तरह राजकंवर के फ्लैट पर पहुंची थी. उस तिमंजिला इमारत में राजकंवर दूसरी मंजिल के आखिरी ब्लौक में रहती थीं. सुमित्रा राजकंवर की रोजमर्रा की दिनचर्या से भलीभांति वाकिफ थी.

सुबह जिस समय सुमित्रा काम करने के लिए फ्लैट पर पहुंचती थी, राजकंवर ब्रेकफास्ट कर चुकी होती थीं और स्कूल जाने के लिए तैयार मिलती थीं. बेटे उदित को भी स्कूल जाना होता था, इसलिए वह भी उन के साथ जाने को तैयार हो चुका होता था. आमतौर पर दरवाजा राजकंवर ही खोलती थीं. कभीकभार ही ऐसा हुआ होगा कि उबासियां और अंगड़ाइयां लेते हुए उन के पति ने दरवाजा खोला हो. जब फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो सुमित्रा को किसी अनहोनी का अंदेशा सताने लगा था. इतनी देर तक राजकंवर मेमसाहब के सोते रहने का तो कोई सवाल ही नहीं था.

राजकंवर के बगल वाले फ्लैट में रहने वाले कुंदनलाल रहेजा (परिवर्तित नाम) को सिर्फ घंटी की आवाज सुनाई दे रही थी, बल्कि वह कामवाली बाई सुमित्रा की आवाजें भी सुन रहे थे. सब कुछ इतना संदेहास्पद था कि उन से रहा नहीं गया. रहेजा कारोबारी थे. लिहाजा उस समय वह दुकान पर जाने की तैयारी में थे. उन्हें भी समझ नहीं रहा था कि राजकंवर या उन के पति दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे. आखिरकार जब रहेजा से रहा नहीं गया तो वह अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आए, जहां उन की नजरें सामने खड़ी सुमित्रा पर पड़ीं.

रहेजा ने सुमित्रा से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमित्रा?’’

खून से लथपथ मिलीं राजकंवर अब तक अनहोनी के अंदेशे से सांस ऊपरनीचे करती सुमित्रा को जैसे राहत मिल गई. उस ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘देखिए सेठजी, कितनी देर से मैं घंटी बजा रही हूं, दरवाजा भी खटखटा चुकी हूं, लेकिन कोई दरवाजा खोल ही नहीं रहा.’’

अनहोनी की आशंका में डूबतेउतराते रहेजा ने भी कालबेल बजाई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उन्होंने सुमित्रा से पूछा, ‘‘मैडम का बेटा उदित भी तो होगा अंदर, उसे दरवाजा खोल देना चाहिए था.’’

‘‘साहबजी, वो तो 3-4 दिन से अपने नाना के घर गया है. वह 6 साल का ही तो है, यहां होता भी तो दरवाजा खोलना उस के वश की बात नहीं थी.’’ सुमित्रा ने बताया.

आखिर थकहार कर रहेजा ने मोबाइल पर राजकंवर का मोबाइल नंबर डायल किया. लेकिन कुछ देर रिंग जाने के बाद एक घिसीपिटी रिकौर्डिंग सुनाने के साथ ही मोबाइल बंद हो गया. रहेजा के कानों में जैसे खतरे की घंटियां बजने लगीं. कुछ सोच कर उन्होंने सुमित्रा को वहीं रुकने को कहा और फिर अपने फ्लैट के पिछवाड़े की बालकनी की तरफ बढ़े. तब तक आवाज सुन कर इमारत के कुछ और लोग भी वहां गए थे. रहेजा ने अपने नेपाली नौकर को बालकनी की परछत्ती पर चढ़ कर राजकंवर के कमरे में झांकने को कहा. बहादुर सब कुछ सुन चुका था, इसलिए वह भी घबराया हुआ था. लेकिन लोगों के हौसला दिलाने पर ऊपर चढ़ कर उस ने जो कुछ देखा, बुरी तरह सहम कर रह गया. वह घबरा कर नीचे कूदा और हांफते हुए बोला, ‘‘शाबशाबमेमशाब नीचे फर्श पर पड़ा है. आसपास खून फैला है.’’

बहादुर ने जो कुछ बताया, उस से वहां के माहौल में सन्नाटा खिंच गया. आगे की काररवाई की पहल भी रहेजा ने ही की. उन्होंने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया. आधे घंटे के अंदर थानाप्रभारी संजय राय की अगुवाई में पुलिस टीम वहां पहुंच गई. पुलिस ने वहां मौजूद रहेजा और अन्य लोगों से पूछताछ की. चूंकि फ्लैट का दरवाजा बंद था, इसलिए लोगों की मौजूदगी में दरवाजा तोड़ कर थानाप्रभारी फ्लैट में घुसे तो सामने का दृश्य देख कर भौंचक रह गए. राजकंवर जमीन पर बेसुध पड़ी हुई थीं और उन के कपड़े खून से सने हुए थे

एक बार जान बचाई पुलिस ने थानाप्रभारी ने चैक किया तो राजकंवर की सांस फंसफंस कर रही थीं. यानी कि वह जीवित थीं, लेकिन जिस तरह उन की कनपटी और कलाइयों से खून रिस रहा था और साड़ीब्लाउज खून से सने थे, लगता था उन के साथ बड़ी निर्दयता से मारपीट की गई थी. संजय राय ने राजकंवर को अस्पताल भेजने का बंदोबस्त कियाइस के बाद उन्होंने पूरे कमरे का निरीक्षण किया. सब कुछ उलटापुलटा पड़ा था. लगता था, हमलावर ने कमरे में रखे सामान पर भी अपना गुस्सा उतारा था. थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या राजकंवर यहां अकेली रहती थीं?’’

‘‘नहीं सर,’’ रहेजा ने बताया, ‘‘इन का पति कौशल किशोर और करीब 6 साल का बेटा उदित भी रहता है.’’

‘‘…तो वे दोनों कहां हैं?’’ राय ने रहेजा से ही पूछा.

‘‘सर, बेटा तो 3-4 दिन पहले ही ननिहाल गया है. लेकिन पति कौशल किशोर को तो यहीं होना चाहिए था.’’ इस के साथ ही रहेजा ने इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद कहा, ‘‘वह तो कहीं नजर नहीं रहे. पता नहीं कहां हैं?’’

थानाप्रभारी ने रहेजा से ही पूछा, ‘‘आप के पड़ोस के फ्लैट में इतना घमासान मचा और आप को भनक तक नहीं लगी.’’

पति नहीं, कसाई था वो त्रहेजा ने कुछ पल चुप्पी साधे रहने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘साहब, पतिपत्नी के बीच झगड़ाफसाद होना रोज की बात थी. मैडम के पति का तो स्वभाव ही बेसुरा था. किसी से बोलचाल तक नहीं थी. कोई बात करता भी और समझाता भी तो कैसे, वह तो बातबात पर खाने को दौड़ता था

‘‘पता नहीं कोई काम करता भी था या नहीं. हम ने तो उसे कभी काम पर जाते नहीं देखा. अगर वह गायब है तो सीधा मतलब है कि मैडम की ऐसी दुर्गति उसी ने की होगी.’’

थानाप्रभारी घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के थाने लौट आए. फिर वह अस्पताल में राजकंवर को देखने पहुंचे. उन की हालत में सुधार हो रहा था. घटना के 2 दिन बाद यानी 6 सितंबर को राजकंवर बयान देने लायक हो गईं. उन्होंने बताया कि उन पर जानलेवा हमला किसी और ने नहीं, उन के पति ने ही किया था. राजकंवर ने पति के खिलाफ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई. उन्होंने अपनी जो कहानी थानाप्रभारी संजय राय को सुनाई, उस का एकएक शब्द चौंकाने वाला था.

राजस्थान के जिला कोटा के कस्बा दीगोद के रमेशचंद नागर संपन्न व्यक्ति हैं. उन के पास अच्छीखासी खेतीबाड़ी है. करीब 8 साल पहले सन 2010 में उन्होंने अपनी इकलौती बेटी राजकंवर का विवाह करीबी कस्बे अयाना के कौशल किशोर नागर से कर दिया था. कौशल किशोर के पिता भी किसान थे. राजकंवर पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी, उस ने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और एमएड की डिग्री हासिल कर ली. नतीजतन उन्हें लेक्चरर की प्रतिष्ठित नौकरी मिल गई. राजकंवर की पोस्टिंग नजदीक के कस्बा इटावा के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल में हुई थी. वह पिछले डेढ़ साल से इटावा में तैनात थीं, इसलिए घर से स्कूल आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

शादी के 2 साल बाद ही राजकंवर को बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने उदित रखा. उदित अब 6 साल का हो गया था. उन्होंने अपने बेटे का दाखिला इटावा के एक निजी स्कूल में करा दिया था. राजकंवर के जीवन की सब से दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी यह थी कि विवाह के कुछ ही सालों में पति कौशल किशोर और उन के दांपत्य संबंधों में तनाव गया था. यह तनाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. पूरा परिवार खेती पर आश्रित था, इसलिए नियमित आमदनी के लिए कौशल किशोर क्या करता है, उस ने कभी पत्नी को नहीं बताया. उस के स्वभाव को देखते हुए राजकंवर ने उस से पूछताछ नहीं की.

बेटे के जन्म पर तो लोग खुशी से दोहरे हो जाते हैं, लेकिन उदित के पैदा होने पर कौशल के चेहरे पर खुशी नहीं दिखी. इतना ही नहीं, पत्नी के प्रति कौशल की नफरत में इजाफा होता रहा. राजकंवर तीन पाटों में फंसी हुई थी. एक तरफ पति की रोजरोज की मार और दुत्कार थी तो दूसरी तरफ पारिवारिक मर्यादा और अपने पिता से सब कुछ छिपाए रखने की मजबूरी थी. और तीसरी थी पति के तौरतरीके देख कर अपने भविष्य की चिंता. पति के जुल्म पर ससुर की खामोशी भी उसे हैरान करती थी. रोजरोज की कलह तब और ज्यादा बढ़ गई, जब कौशल ने राजकंवर के चरित्र पर लांछन लगाना शुरू कर दिया. पढ़ाई के दौरान वह किसी व्यक्ति या टीचर से बात कर लेतीं तो राजकंवर पर कौशल के लातघूंसों का कहर टूट पड़ता था.

राजकंवर जब कभी मायके में अपने मातापिता से मिलने जातीं तो चुपचाप ही रहती थीं. उन के चेहरे पर हमेशा उदासी छाई रहती थी. पिता रमेशचंद  को उड़तेउड़ते कुछ भनक लगी थी, इसलिए उन्होंने ससुरालियों के व्यवहार को ले कर बेटी से पूछताछ भी की, लेकिन राजकंवर ने उन्हें अपने दिल का दर्द कभी नहीं बताया. पत्नी पर लगाता था निराधार आरोप शराब के नशे में धुत पत्नी से मारपीट पर उतारू होते कौशल का यह रटारटाया इलजाम होता था कि पढ़ाई के बहाने जाने किसकिस से पेंच लड़ाती है. राजकंवर के दिल पर ये गंदे आरोप तीर की तरह चुभते थे. नतीजतन कलह की कड़वाहट का परनाला पूरे गलीमोहल्ले में फूट पड़ता था. यह राजकंवर का दुर्भाग्य था कि उसे जुल्म से बचाने के लिए ससुर खड़े हुए और ही पासपड़ोस के लोग.

राजकंवर चुप्पी साधे रहीं, लेकिन जब सहनशक्ति जवाब दे गई तो रहने के लिए वह इटावा गईं. पति को वह साथ नहीं रखना चाहती थीं, लेकिन यह सोच कर साथ रखा कि लोगों के तानों से भी बची रहेंगी और यहां रह कर पति भी शायद सुधर जाए. लेकिन सुधरना तो दूर, पति और दरिंदा हो गया. वह यहां भी उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडि़त करता. थानाप्रभारी ने राजकंवर के पति कौशल किशोर नागर को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया. उसे सबडिवीजनल मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया गया तो उस ने अपनी गलती की क्षमा मांगी

मामला पारिवारिक था, इसलिए अदालत ने उसे पत्नी से अलग रहने की ताकीद करते हुए कहा कि अगर भविष्य में वह पत्नी राजकंवर के पास गया, उसे धमकाया, मारपीट या अभद्रता की तो उस के खिलाफ सख्त कानूनी काररवाई की जाएगी. कौशल किशोर के लिए यह फैसला अंगारों पर लोटने जैसा था. कानूनी ताकीद के बावजूद अपमान से तिलमिलाता कौशल घर छोड़ कर जाती राजकंवर को धमकाने से बाज नहीं आया. उस ने कहा, ‘‘देखता हूं, तुझे मेरे पंजों से कौन सा कानून बचाता है.’’

इस घटना के बाद राजकंवर पति कौशल किशोर से अपना रिश्ता खत्म कर के अपने बेटे उदित को ले कर कोटा गईं और किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. वह कोटा से ही रोजाना ड्यूटी के लिए अपडाउन करती थीं. लेकिन राजकंवर के सिर से दुर्भाग्य की छाया अभी छंटी नहीं थीसंजय राय अनुभवी पुलिस अधिकारी थे. राजकंवर के पति कौशल किशोर को जिस समय मजिस्ट्रैट के सामने पाबंद किया जा रहा था, संजय राय ने उस की अंगार सी सुलगती आंखों में छिपा लावा देख लिया था. वह अपने सहयोगी से अपने मन की बात कहे बिना नहीं रहे, ‘इस की आंखों में भेडि़ए की सी मक्कारी है. मैं दावे से कह सकता हूं कि इस में इंसानी जज्बा कतई नहीं है. यह शख्स कब क्या कर जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता.’

राय का सहयोगी पता नहीं उन की बात की गहराई समझा या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन राय ने जो अंदेशा जताया था, घटना के ठीक 10 दिन बाद 17 सितंबर को हो गया. सोमवार की दोपहर जिस समय थानाप्रभारी संजय राय अपने औफिस में बैठे थे, तभी फोन की घंटी बजी. उन्होंने अनमने मन से फोन उठाया, ‘‘यस, इटावा पुलिस स्टेशन.’’

दूसरी तरफ से हड़बड़ाती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘साहब, पीपल्दा रोड पर स्थित एक निजी स्कूल के गेट पर अभीअभी एक टीचर की गला रेत कर हत्या कर दी गई है.’’

‘‘कौन? किस की?’’ पूछते हुए थानाप्रभारी चिल्लाते ही रह गए. लेकिन दूसरी से फोट कट चुका था. काल बन गया कौशल किशोर थानाप्रभारी तुरंत बताए गए पते की ओर रवाना हो गए. साथ ही उन्होंने एसपी (ग्रामीण) राजीव पचार को भी घटना की जानकारी दे दी. घटनास्थल पर खासी भीड़ जुटी हुई थी. स्कूल का पूरा स्टाफ वहां मौजूद था. उन्हें जब बताया गया कि मरने वाली सीनियर सैकेंडरी स्कूल की व्याख्याता राजकंवर थीं तो संजय राय सन्न रह गए. राय ने पूछा, ‘‘लेकिन राजकंवर का इस स्कूल में क्या काम?’’

स्कूल स्टाफ ने पूरा वाकया बयान करते हुए कहा, ‘‘राजकंवर का बेटा उदित यहीं पढ़ता था. अब वह कोटा रहने लगी थीं तो बेटे का दाखिला कोटा के किसी स्कूल में कराने के लिए बेटे की टीसी लेने आई थीं.’’

‘‘…फिर?’’ राय ने बेसब्री से पूछा.

‘‘दोपहर करीब 12 बजे राजकंवर अपने स्कूल के छात्र गोलू बैरवा की मोटरसाइकिल पर यहां पहुंची थीं.’’ स्टाफ के एक व्यक्ति ने बताया.

गोलू बैरवा वहीं मौजूद था. उस ने बात पूरी करते हुए कहा, ‘‘मैडम, टीसी लेने स्कूल के भीतर चली गई थीं. लेकिन मैं ने बाहर ही इंतजार करना ठीक समझा. जैसे ही बाहर कर वह मेरे पास पहुंची, अचानक कोई पीछे से आया और मेरी और मैडम की आंखों में मिर्ची झोंक दी. मैं ने आंखें मलते हुए मैडम की तरफ देखा तो वह खून से लथपथ नीचे पड़ी थीं. लगता था उन का गला काट दिया गया था. गले और सीने से खून बह रहा था. मैं जोर से चिल्लाया तो लोग इकट्ठा हो गए.’’

‘‘तुम ने देखा, कौन था वो?’’ राय ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मिर्ची की जलन और दर्द के मारे चेहरा तो दूर आदमी को ही नहीं देख पाया.’’ गोलू ने बताया.

थानाप्रभारी राय ने तुरंत घायल राजकंवर को अस्पताल पहुंचाया. तब तक एसपी राजीव पचार भी मौके पर गए थे. छात्र गोलू बैरवा से की गई पूछताछ की बाबत राय ने एसपी साहब को जानकारी दी तो उन्होंने भी गोलू से पूछताछ की. एसपी पचार ने गोलू को भी तुरंत अस्पताल भिजवा दिया. उसी समय उन की नजर धूप से चमकते चाकू पर पड़ी. उन्होंने राय की तरफ देख कर कहा, ‘‘यह मर्डर वेपन लगता है. जल्दी में हमलावर इसे यहीं छोड़ कर भाग गया होगा. कोटा के एसपी भार्गव को घटना की जानकारी दे कर एफएसएल टीम भिजवाने का आग्रह किया. साथ ही उन्होंने सीओ भोपाल सिंह और थानाप्रभारी राय को निर्देश दिया कि अभी हमलावर ज्यादा दूर नहीं जा पाया होगा, शहर की नाकेबंदी का बंदोबस्त करो.’’

राजकंवर ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था. चिकित्सा प्रभारी डा. के.सी. शर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मृतका के शरीर पर एक दरजन से ज्यादा घाव थे, जो किसी नुकीले हथियार से किए गए थे. लगता था ताबड़तोड़ वार किए गए थेपिता ने बताई हकीकत बेटी की नृशंस हत्या की खबर पा कर इटावा पहुंचे पिता रमेशचंद नागर ने इस मामले में राजकंवर के पति कौशल किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. थानाप्रभारी राय उस समय हैरान रह गए, जब रमेशचंद नागर ने बिलखते हुए बताया कि अदालत के पाबंद करने के बावजूद कौशल किशोर राजकंवर के पीछे पड़ा हुआ था. वह मोबाइल पर उसे जान से मारने की धमकियां देता था.

केस दर्ज होने के बाद पुलिस आरोपी की तलाश में जुट गई. मुखबिर से मिली सूचना पर कौशल किशोर को तीसरे दिन इटावा के गणेशगंज चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में वह जल्दी ही टूट गया. एसपी (देहात) राजीव पचार, सीओ भोपाल सिंह की मौजूदगी में थानाप्रभारी राय द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया कि उस ने पत्नी की आवाजाही पर नजर रखने के लिए 2 दिन तक रेकी की थी. बेटे उदित को स्कूल ले जाने वाले वैन ड्राइवर से भी जानकारी जुटाई थी. घटना वाले दिन उस ने नकाब पहन कर उस का पीछा किया था. फिर मौका पा कर उस की आंखों में मिर्ची झोंक कर उस पर चाकू से हमला कर दिया. उस ने बताया कि पत्नी ने पुलिस से पाबंद करा कर उस का अपमान किया था, इसलिए उस ने उस के साथ ऐसा किया

पुलिस ने कौशल किशोर नागर से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.                 

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या कराई

UP Crime : सीधीसादी खूबसूरत रश्मि का विवाह एक ऐसे आदमी से हो गया, जिसे इंसान से कम, शराब से ज्यादा प्यार था. उत्तर प्रदेश (UP Crime) के जिला गोरखपुर के थाना कैंट का सब से व्यवस्ततम है इलाका अग्रसेन चौराहा. फर्नीचर व्यवसायियों की सब से बड़ी मार्केट होने की वजह से यहां पूरे दिन भीड़ लगी रहती है. इस मार्केट की दुकानगीता फर्नीचरकाफी बड़ी और प्रतिष्ठित मानी जाती है. फर्नीचर व्यवसायी अभिषेक रंजन अग्रवाल की यह दुकान उन की पत्नी गीता के नाम पर है. दुकान के पीछे ही उन का मकान भी है.

18 जून, 2013 की रात साढ़े 8 बजे अभिषेक अग्रवाल ने दुकान के कर्मचारियों सनी प्रजापति और राजेंद्र साहनी से दुकान बढ़ाने को कह कर खुद दुकान से बाहर कर अपने परिचित रवि अग्रवाल के साथ खड़े हो कर बातें करने लगे. इसी बीच बैंक रोड की ओर से एक मोटरसाइकिल उन के करीब कर रुक गईउस पर 2 युवक सवार थे. वे कौन हैं, यह देखने के लिए जैसे ही अभिषेक पलटे, पीछे बैठे युवक ने रिवाल्वर निकाल कर उन पर 2 गोलियां दाग दीं. दोनों ही गोलियां उन के सिर में लगीं. गोलियां लगते ही अभिषेक जहां जमीन पर गिर गए, वहीं मोटरसाइकिल युवक भाग निकले. उन के हाथों में रिवाल्वर थे, इसलिए कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका.

अप्रत्याशित घटी इस घटना से जहां सभी हैरान थे, वहीं पूरी बाजार में हड़कंप सा मच गया था. दोनों नौकर पहले तो भाग कर घायल हो कर गिरे अभिषेक के पास आए. उन्हें तड़पता देख कर सनी जहां रवि अग्रवाल की मदद से उन्हें संभालने लगा, वहीं रवींद्र घर के अंदर की ओर घटना की सूचना देने के लिए भागा. घर के सदस्य सूचना पा कर बाहर आते, उस के पहले ही पड़ोस के दुकानदारों ने अभिषेक को एक रिक्शे पर बैठाया और पास के विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंगहोम के लिए रवाना हो गए. पीछेपीछे अभिषेक के घर वाले भी अस्पताल की ओर भागे. लेकिन अभिषेक को अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि अस्पताल पहुंचने के पहले ही उस की मौत हो चुकी थी. डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था. मौत की जानकारी होते ही घरवाले बिलखबिलख कर रोने लगे.

सूचना पा कर अभिषेक के तमाम परिचित भी अस्पताल पहुंच चुके थे. किसी ने घटना की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी, जहां से सूचना पा कर थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहीं से उन्होंने इस घटना की सूचना अधिकारियों को दे कर खुद अस्पताल जा पहुंचे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, क्षेत्राधिकारी (कैंट) वी.के. पांडेय, कोतवाली के इंसपेक्टर बृजेंद्र कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए.

पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दी. पुलिस ने घटनास्थल से 9 एमएम के 2 खोखे बरामद किए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अभिषेक के बहनोई विवेक कुमार लाट, उस के मंझले भाई विनय कुमार लाट तथा 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 513/2013 पर भादंवि की धारा 302/120 बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट पुलिस ने उसी दिन विनय कुमार लाट को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं, इसलिए पुलिस ने जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उसे टूटते देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुपारी दे कर किराए के हत्यारों से अभिषेक की हत्या कराई थी. विनय द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने और हत्यारों के नाम बता देने के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस मामले में नामजद दूसरा अभियुक्त विनय का भाई विवेक पहले से ही जेल में बंद था. पुलिस अन्य अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. इस मामले में सोचने वाली बात यह थी कि आखिर बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या क्यों कराई? अभिषेक का बहनोई जेल में क्यों बंद था? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा. गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले 72 वर्षीय अर्जुन कुमार अग्रवाल ढुनमुनदास बालमुकुंददास इंटर कालेज से 30 जून, 2003 को रिटायर होने के बाद अपने एकलौते बेटे अभिषेक रंजन के साथ उस के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चों में 3 बेटियां रश्मि, शालिनी, दिवीता और एकलौता बेटा अभिषेक रंजन था. उन का यह बेटा तीसरे नंबर पर था.

अध्यापक होने की वजह से अर्जुन कुमार खुद तो संस्कारी थे ही, उन के चारों बच्चे भी उन्हीं की तरह संस्कारी थे. अर्जुन की बड़ी बेटी रश्मि सीधीसादी, बेहद सुशील थी. उस ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर (UP Crime) विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए करने के बाद नेट परीक्षा भी पास कर ली थी. अर्जुन कुमार अग्रवाल के सभी बच्चे इसी तरह पढ़ेलिखे थे. बायोलौजी से प्रथम श्रेणी में बीएससी करने के बाद अभिषेक रंजन अग्रवाल ने पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ाया था. अपने घर के आगे पड़ी जमीन में दुकान बनवा कर उस ने फर्नीचर और हार्डवेयर का काम शुरू कर दिया था. जल्दी ही उस का यह व्यवसाय चल निकला.

घर में हर तरह से खुशहाली थी. रश्मि शादी लायक हुई तो अर्जुन कुमार उस के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे. एक दिन अर्जुन कुमार अग्रवाल की नजर स्थानीय अखबार के शहनाई कालम मेंवधु चाहिएमें छपे एक विज्ञापन पर पड़ी तो उन्हें लगा कि यहां बात बन सकती है. यह विज्ञापन रामस्वरूप लाट ने अपने बेटे के विवाह के लिए छपवाया था. उस  में फोन नंबर भी दिया था, इसलिए अर्जुन कुमार अग्रवाल ने तुरंत फोन कर के बात कर लीआखिर वहां बात बन गई. जल्दी गोदभराई कर के कुल 15 दिनों में अर्जुन कुमार ने अपनी बड़ी बेटी रश्मि का विवाह रामस्वरूप लाट के बेटे विवेक कुमार से कर दिया था. पहली और बड़ी बेटी का विवाह था, इसलिए अर्जुन कुमार ने अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा इस शादी में खर्च किया था.

रामस्वरूप लाट ने यह विवाह इतनी जल्दी में कराया था कि अर्जुन कुमार को मौका ही नहीं मिला था कि वह लड़के या उस के घर वालों के बारे में ठीक से पता कर पाते. बाद में जो पता चला, उस के अनुसार गोरखपुर की कोतवाली के आर्यनगर के दक्षिणी हुमायूंपुर मोहल्ले के राज नर्सिंग होम के पास रहने वाले रामस्वरूप लाट ठेकेदारी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे, कमलेश कुमार लाट, विनय कुमार लाट, विवेक कुमार लाट, विकास कुमार लाट तथा 3 बेटियां, कमला, वंदना और एप्पुल थीं

कमलेश प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस से छोटे विनय, विवेक और विकास विजय चौक स्थित फोटो विजन स्टूडियो को संभालते थे. रामस्वरूप लाट सुखी और संपन्न थे, इसलिए उन की समाज में एक हैसियत थी. रामस्वरूप की बड़ी बेटी कमला की शादी कोलकाता में हुई थी. बेटों में भी कमलेश और विनय की शादी हो चुकी थी. अब उन्हें 2 बेटों और 2 बेटियों की शादी करनी थी. उसी बीच उन का बड़ा बेटा कमलेश अपने परिवार के साथ कैंट स्थित हरिओमनगर कालोनी में रहने चला गया. बाद में उस ने अपने लिए लखनऊ में मकान बनवा लिया तो अपना वह मकान सब से छोटे भाई विकास को दे कर परिवार के साथ लखनऊ चला गया.

विकास उस में रहने लगा तो विनय ने कोतवाली के विष्णु मंदिर स्थित बशारतपुर मोहल्ले में अपने लिए मकान बनवा लिया. विवेक उस की दोनों, बहनें वंदना और एप्पुल तथा मांबाप आर्यनगर स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहते थे. रहते भले ही सभी भाई अलगअलग थे, लेकिन एकदूसरे से दिल से जुड़े थे. अभिषेक को जब भी मौका मिलता, बहन का हालचाल लेने उस के घर जाता रहता था. इस के अलावा विवेक का स्टूडियो अभिषेक के घर के नजदीक ही था, इसलिए सालेबहनोई की मुलाकात अकसर होती रहती थी. रश्मि जब भी मायके आती, खुश नजर आती. इसलिए मायके वालों को यही लगता था कि वह ससुराल में खुश है.

लेकिन रश्मि की यह खुशी ऊपरी तौर पर थी, जबकि अंदर से वह बहुत दुखी थी. इस की वजह थी पति का शराबी होना. इस में दुख देने वाली बात यह थी कि शराब का घूंट हलक के नीचे उतरते ही विवेक किसी को भी नहीं पहचानता था, वह उस की पत्नी की क्यों हो. उस स्थिति में अगर रश्मि कुछ कह देती तो विवेक उसे भद्दीभद्दी गालियां तो देता ही था, पिटाई करने में भी पीछे नहीं रहता थाइस की एक वजह यह भी थी कि विवेक की कल्पना के अनुरूप रश्मि खूबसूरत नहीं थी, इसलिए वह उसे पत्नी नहीं मानता था.पति के इस उपेक्षित व्यवहार को रश्मि ने अपना भाग्य मान लिया था और ससुराल में उस के साथ क्या होता है, मायके वालों से नहीं बताया

बात उन दिनों की है कि जब रश्मि को 7 माह का गर्भ था. नवरात्र चल रहे थे. विवेक स्टूडियो बंद कर के घर पहुंचा ही था कि उस की मां का फोन गया. मां उन दिनों लखनऊ में थी. विवेक ने फोन रिसीव किया तो मां ने बिना हालचाल पूछे ही कहा, ‘‘कैसे कहूं, समझ में नहीं रहा है. कहूंगी तो कहोगे कि मेरे पत्नी के पीछे हाथ धो कर पड़ी हूं.’’

‘‘कहो तो बात क्या है?’’ विवेक ने कहा.

‘‘तेरी पत्नी कह रही थी कि बहुओं को पीटना इस घर का रिवाज है. अब तुम्हीं बताओ, मैं ने कब किस के साथ मारपीट की है, जो मुझ पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं. जब से सुना है, कलेजे में आग लगी है. पूछ तो अपनी लुगाई से, आखिर वह चाहती क्या है? मांबेटे के बीच दरार क्यों डाल रही है?’’

मां ने ये बातें जिस तरह कही थीं, सुनते ही विवेक की देह में आग लग गई. उस ने आव देखा ताव, रश्मि पर पिल पड़ा. उस के हाथ में जो भी आया वह उसी से उसे मारता रहा. उस समय उस ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि गर्भवती है. कहीं उल्टासीधा चोट लग गई तो क्या होगा. आखिर इस पिटाई से रश्मि की हालत बिगड़ गई. वह चलनेफिरने लायक नहीं रही. तब विवेक उसे रिक्शे पर बैठा कर ससुराल छोड़ आया. मांबाप और अभिषेक उस की हालत देख कर दंग रह गए. यह सब कैसे हुआ, सभी पूछते रह गए. लेकिन रश्मि ने बताया नहीं. उस ने झूठ बोल दिया कि पीरियड नजदीक होने की वजह से उसे कुछ तकलीफ हो गई है

जिस की वजह से इतनी रात को यहां गई. मांबाप ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस की वजह यह थी कि उस के साथ यह सब जो हुआ था, उस के बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. उन्होंने उसे आराम करने के लिए कह दिया. विवेक उसे छोड़ कर उसी समय अपने घर लौट गया. पति ने इतना मारापीटा था, इस के बावजूद रश्मि ने इस बात को दिल से नहीं लिया. शायद यही वजह थी कि उस ने मायके वालों से सच्चाई छिपा ली थी. उसे यह भी पता था कि अगर भाई को सच्चाई का पता चल गया तो हंगामा हो जाएगा. इसलिए चुप रहने में ही सब की भलाई है.

यही सोच कर रश्मि ने इस बात को भुला दिया. 3 दिनों बाद विवेक ने फोन किया. माफी मांगते हुए उस ने कहा कि उसे अपने किए पर काफी पछतावा है. इतने में ही रश्मि का दिल पसीज गया और उस ने विवेक को माफ कर दिया. यही नहीं, उस के साथ वह ससुराल भी गई.

रश्मि के ससुराल आने के बाद 2-4 दिनों तक घर का माहौल ठीक रहा. उस के बाद फिर पहले जैसे ही हालात हो गए. छोटीछोटी बातों को ले कर तूफान खड़ा होने लगा. विवेक पहले की तरह फिर रश्मि के साथ बदसलूकी और मारपीट करने लगा. जबकि उसे मना कर लाते समय उस ने वादा किया था कि अब वह उस के साथ बदसलूकी करेगा मारपीट. लेकिन घर आते ही वह अपना वादा भूल गया. धीरेधीरे रोज की यही नियति बन गई. समय पर रश्मि ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम श्रद्धा रखा गया. विवेक बेटी को पा कर निहाल था. उस की एप्पुल बुआ उस पर जान छिड़कती थी. वैसे तो सब कुछ ठीक रहता था, लेकिन विवेक की मां के आते ही घर का माहौल खराब हो जाता.

वह उलटासीधा पढ़ाती तो मां के प्रेम में अंधा विवेक वही करता, जो मां उसे करने को कहती. जब तक वह घर में नहीं रहती, घर में सुखचैन रहता. वैसे वह ज्यादातर बड़े बेटेबहू के साथ लखनऊ में रहती थी. श्रद्धा 2-3 महीने की थी, तभी एक दिन विवेक की बहन वंदना ने विवेक और रश्मि को अपने घर खाने पर बुलाया. बेटी को साथ ले कर रश्मि पति के साथ ननद के यहां पहुंची. हंसीठिठोली के बीच विवेक बातबात में रश्मि को जलील करने लगा. रश्मि वहां तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर कर वह विवेक से जलील करने की वजह पूछने लगी. विवेक ने ठीक से जवाब नहीं दिया तो इसी बात पर दोनों में नोकझोंक हो गई. विवेक दूसरे कमरे में जा कर सो गया और रश्मि अपने कमरे में सुबह रश्मि ने विवेक से कुछ कहा तो रात की खुन्नस निकालने के लिए वह उस की पिटाई करने लगा.

पति की इस हरकत से क्षुब्ध हो कर उसी समय रश्मि बेटी को ले कर मायके गई. रश्मि के अकेली आने पर मांबाप को समझते देर नहीं लगी कि बेटीदामाद में ऐसा कुछ जरूर हुआ है, जिस की वजह से रश्मि को घर छोड़ कर अकेली आना पड़ा. जब उन्होंने ध्यान से देखा तो उस के जिस्म पर उभरे नीले निशान दामाद की दरिंदगी की कहानी कह रहे थे. पहली बार उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने बेटी को गलत हाथों में सौंप दिया है. आगे से ऐसा हो, इस के लिए अर्जुन कुमार ने बेटी का मेडिकल करवाया और उसे ले कर महिला थाने पहुंच गए. महिला थाने की थानाप्रभारी से रश्मि के साथ हुए अत्याचार के बारे में बता कर कानूनी काररवाई करने को कहा, ताकि भविष्य में बेटी के साथ कोई अनहोनी हो तो इस के लिए उस के दामाद विवेक को जिम्मेदार माना जाए.

रश्मि नहीं चाहती थी कि उस के पिता कोई ऐसा काम करें, जिस से ससुराल जाने पर उसे परेशानी हो. इसलिए थानाप्रभारी से उस ने कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस के बावजूद रश्मि के लिए परेशानी खड़ी हो गई. विवेक को पता चल ही गया था कि रश्मि पिता के साथ महिला थाने गई थी. इस बात से रश्मि के प्रति उस का व्यवहार और बदल गया. अब वह पहले से ज्यादा शराब पी कर आने लगा और रश्मि को परेशान करने लगा. इसी तरह 3 साल बीत गए. इन 3 सालों में रश्मि ने ससुराल में एक दिन भी सुख का अनुभव नहीं किया. कोई भी ऐसा दिन नहीं बीता, जिस दिन पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा या मारपीट हुई हो. शारीरिक उत्पीड़न और प्रताड़ना उस की जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. एक तरह से उस की जिंदगी नरक बन कर रह गई थी.

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहतेसहते रश्मि पूरी तरह से टूट गई थी. जब उस की सहनशक्ति खत्म हो गई तो ससुराल में उस के साथ क्याक्या हुआ, उस ने एकएक बात मांबाप को बता दी. बेटी की दुखद कहानी सुन कर मांबाप के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे हैरानी से बेटी का मुंह ताकते रह गए कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उस ने उफ तक नहीं की. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि नाजों से पलीबढ़ी बेटी ससुराल में दुख के अंगारों पर झुलस रही है. वह ऐसे गुनाह की सजा वह काट रही है, जिसे उस ने कभी किया ही नहीं है. बिना वजह रश्मि को परेशान किए जाने की बात से अर्जुन कुमार और अभिषेक बहुत दुखी हुए. अब उन के पास कानून का सहारा लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. इसलिए उन्होंने बेटी से दामाद द्वारा मारपीट करने की तहरीर महिला थाने में दिलवा दी.

रश्मि द्वारा दी गई तहरीर ने आग में घी का काम किया. महिला थाने की थानाप्रभारी ने विवेक को थाने बुलवा कर सब के सामने उसे इस तरह जलील किया कि वह भीगी बिल्ली बन कर रह गया. उस ने सब के सामने माफी मांगी और वादा किया कि भविष्य में वह फिर कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा. विवेक के घडि़याली आंसू पर रश्मि तो पिघल गई, लेकिन उस के इस नाटक पर तो अर्जुन और अभिषेक को यकीन हुआ, ही थानाप्रभारी को. रश्मि के कहने पर उस के घर वाले और पुलिस उसे इस शर्त पर विवेक के साथ भेजने को राजी हुई कि भविष्य में अगर रश्मि के साथ किसी भी तरह की कोई अनहोनी होती है तो इस के लिए वही जिम्मेदार होगा. विवेक ने यह शर्त मान ली तो रश्मि को उस के साथ भेज दिया गया.

रश्मि पति के साथ ससुराल तो गई, लेकिन इस के बाद उसे मायके वालों का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ. विवेक का सख्त आदेश था कि वह तो मायके जाएगी और ही वहां फोन करेगी. यही नहीं, मायके वालों का फोन आता है, तब भी वह बात नहीं करेगी. इस तरह विवेक ने ससुराल वालों से संबंध लगभग तोड़ लिए. उसे नाराजगी इस बात की थी कि ससुर और साले ने दूसरी बार पत्नी से उस की शिकायत करा दी थी, जिस की वजह से उसे थाने में सब के साने जलील किया गया था. यह अपमान वह भूल नहीं पा रहा था.

रश्मि ने सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था. अब बेटी ही उस के लिए एकमात्र जीने का सहारा रह गई थी. उसे ही देख कर वह जी रही थी. सासससुर, ननददेवर सभी ने मुंह मोड़ लिया था. शायद उस ने भी ठान लिया था कि वह वही करेगी, जो भारतीय नारियां करती आई हैं. जिस इज्जत के साथ वह ब्याह कर ससुराल आई है, उसी इज्जत के साथ उस की अर्थी ससुराल से ही उठेगी. इसी तरह 5 साल बीत गए. सन 2008 में रश्मि की छोटी बहन दिवीता की शादी तय हुई. बेटी की शादी तय होने की बात अर्जुन कुमार ने बेटी रश्मि और दामाद विवेक को भी बताई. बहन की शादी तय होने की बात सुन कर रश्मि बहुत खुश हुई. जाने क्या सोच कर विवेक ने रश्मि को शादी में जाने की अनुमति दे दी. यही नहीं, वह खुद भी उस शादी में शामिल हुआ.

बेटीदामाद के आने से सभी को खुशी हुई. अर्जुन कुमार और उन की पत्नी को लगा, शायद अब सब ठीक हो जाएगा. इस के बाद विवेक खुद भी ससुराल आनेजाने लगा और रश्मि को भी साथ ले जाने लगा. 2 बार वह रश्मि को ले कर सिंगापुर भी घूमने गया. विवेक भले ही ससुराल आनेजाने लगा था और रश्मि को देश के बाहर घुमाने भी ले गया था, लेकिन रश्मि के साथ वह जो व्यवहार करता आया था, उस में कोई बदलाव नहीं आया थावह अभी भी रश्मि को जलील करने से चूकता था, उस के साथ मारपीट करने में पीछे रहता था. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह यह भी नहीं देखता था कि पत्नी से कहां और कैसा व्यवहार किया जाए. बाप के इस व्यवहार से श्रद्धा भी दुखी रहती थी. कहने का मतलब यह था कि विवेक ने शराफत का जो चोला ओढ़ रखा था, वह मात्र दिखावा था, जबकि उस की आदत में कोई सुधार नहीं आया था.

विवेक का जब मन होता, वह गंदीगंदी गालियां देते हुए रश्मि की पिटाई करने लगता. जबकि रश्मि को गालियों से बहुत चिढ़ थी. ऐसे में रश्मि विरोध करती तो घर का माहौल बिगड़ जाता. मजबूरन समझदारी का परिचय देते हुए रश्मि को ही चुप होना पड़ता. मार्च महीने की बात है. रश्मि मायके आई हुई थी. उसी बीच एक दिन उस ने देवर विकास और उस की पत्नी को खाने पर अपने घर बुलाया. रात में विवेक भी गया. खाना खा कर विकास तो पत्नी के साथ चला गया, लेकिन विवेक ससुराल में ही रुक गया. सब के जाने के बाद विवेक सोने के लिए लेटा तो पत्नी से लाइट बंद करने को कहा. काम में व्यस्त होने की वजह से रश्मि सुन नहीं पाई. इसलिए लाइट औफ नहीं की. विवेक गुस्से में उठा तो शराब की खाली पड़ी बोतल उस के पैर से टकरा गई.

फिर तो विवेक का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उस ने चप्पल निकाली और रश्मि के घर में ही उस की पिटाई करने लगा, साथ ही गंदीगंदी गालियां भी दे रहा था. हद तो तब हो गई, जब गिलास में रखी शराब उस ने उस के मुंह पर उड़ेल दी. इस पर रश्मि को भी गुस्सा गया. उस ने आवाज दे कर मांबाप को बुला लिया. इस के बाद उस रात विवेक से खूब झगड़ा हुआ. विवेक अकेला था, जबकि रश्मि का पूरा परिवार था. अंत में रश्मि ने ही बीचबचाव कर के मामला शांत कराया. इस के बाद एक बार फिर विवेक के संबंध ससुराल वालों से खराब हो गए. इतना सब होने के बावजूद रश्मि बेटी को ले कर पति के साथ ससुराल गई.

3 अप्रैल, 2013 की शाम 4 बजे के आसपास रश्मि ने अभिषेक को फोन कर के बताया कि विवेक ने उसे और श्रद्धा को खाने की चीज में जहर मिला कर खिला दिया है. इस के आगे वह कुछ नहीं कह पाई, क्योंकि दूसरी ओर से फोन कट गया था. शायद किसी ने फोन छीन कर काट दिया था. अभिषेक के पास सोचने का भी समय नहीं था. उस ने जल्दी से गाड़ी निकाली और पिता को साथ ले कर रश्मि की ससुराल जा पहुंचाविवेक घर में ही था. लेकिन उस से कोई बात किए बगैर बापबेटे सीधे रश्मि के कमरे में पहुंचे. श्रद्धा और रश्मि बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थीं. बापबेटे ने मिल कर दोनों को गाड़ी में लिटाया और विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंग होम ले गए. दोनों का इलाज शुरू हुआ. इस बीच ससुराल का कोई भी सदस्य उन्हें देखने नहीं आया. रात करीब 11 बजे रश्मि की ननद वंदना जरूर आई. थोड़ी देर रुक कर वह भी चली गई.

श्रद्धा की हालत तो स्थिर रही, लेकिन रश्मि की हालत बिगड़ती गई. तब अर्जुन कुमार और अभिषेक, दोनों को वहां से डिस्चार्ज करा कर डा. मल्ल नर्सिंगहोम ले गए. श्रद्धा तो जैसेतैसे बच गई, लेकिन 2 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए 5 अप्रैल की शाम 6 बजे रश्मि मौत से हार गई और यह दुनिया छोड़ कर चली गई. रश्मि की मौत की सूचना पा कर कोतवाली पुलिस अस्पताल पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद श्रद्धा के बताए अनुसार अभिषेक ने कोतवाली पुलिस को जो तहरीर दी, उस के आधार पर कोतवाली पुलिस ने अपराध संख्या 139/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 498 के तहत विवेक कुमार लाट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच कोतवाल प्रभारी इंसपेक्टर बृजेंद्र सिंह ने स्वयं संभाली.

6 अप्रैल, 2013 की सुबह बृजेंद्र सिंह ने विवेक कुमार को आर्यनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद उसी दिन उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जांच के दौरान इंस्पेक्टर बृजेंद्र सिंह को अभिषेक ने रश्मि के हाथों के लिखी 13 बिंदुओं में 7 पृष्ठों की मर्मस्पर्शी एक चिट्ठी सौंपी. उस चिट्ठी में रश्मि ने पति के हर जुर्म को विस्तार से लिखा था. जांच के दौरान कोतवाली प्रभारी ने उस में लिखा एकएक शब्द सच पाया. इस मामले में पुलिस ने 29 जून, 2013 को विवेक कुमार लाट के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया.

श्रद्धा ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि उस के पापा ने ही उसे और उस की मां को खाने के चीज में जहर मिला कर जबरदस्ती खिलाया था. जिसे खाने के कुछ देर बाद दोनों की हालत बिगड़ने लगी थी. अभिषेक ने पुलिस को बताया था कि उस की बहन बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी. वह निहायत सीधीसादी और परंपराओं में जीने वाली नारी थी. उस की यही बातें विवेक की पसंद नहीं थीं. वह अय्याश था. उस के कई औरतों से नाजायज संबंध थे. रश्मि ने इस का विरोध किया तो वह उस के साथ मारपीट करने लगा. 15 सालों तक वह तिलतिल मरती रही.

अभिषेक बहन की मौत का बदला लेना चाहता था. इसी वजह से वह बहन की हत्या के मामले की पैरवी ठीक से कर रहा था. विवेक के घर वालों ने जब उस की जमानत के लिए अदालत में याचिका दायर की तो अभिषेक की पैरवी की वजह से उस की जमानत याचिका खारिज हो गई. विवेक का मंझला भाई विनय कुमार लाट अभिषेक पर दबाव बना रहा था कि इस मामले से धारा 302 हटवा दे. अभिषेक इस के लिए तैयार नहीं था. अभिषेक और अर्जुन कुमार रश्मि की ससुराल वालों की धमकियों की परवाह किए बगैर मामले की पैरवी करते रहे. आखिरकार वही हुआ, जिस की उन्होंने परवाह नहीं थी. 18 जून, 2013 को भाड़े के शूटरों से विनय कुमार लाट ने अभिषेक रंजन अग्रवाल की हत्या करवा दी. मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल ने बेटे की हत्या की नामजद रिपोर्ट विवेक, उस के मंझले भाई विनय कुमार और 2 अज्ञात शूटरों के खिलाफ थाना कैंट में दर्ज कराई थी.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव ने जांच के दौरान पाया कि यह हत्या पूर्व में हुए झगड़े की वजह से जेल में बंद एक बाहुबली सफेदपोश अपराधी को सुपारी दे कर कराई गई थी. विनय ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार भी किया था. लेकिन हत्यारे कौन थे, कहां से आए थे? पुलिस इस का पता नहीं लगा सकी. जबकि इस मामले में नामजद अभियुक्त विनय और विवेक के बड़े भाई और प्रौपर्टी डीलर कमलेश कुमार लाट का कहना था कि रश्मि ने पारिवारिक कारणों से आजिज कर खुद ही जहर खा लिया था और श्रद्धा को भी खिलाया था. अस्पताल में उस ने सब के सामने यही कहा भी था. लेकिन अर्जुन कुमार और अभिषेक ने जबरदस्ती उस के निर्दोष भाई को जेल भिजवा दिया. उस की जमानत तक नहीं होने दी. अभिषेक की हत्या में भी उन का कोई हाथ नहीं है.

इस लड़ाई में एकमात्र गवाह 14 वर्षीया श्रद्धा लाट की जान खतरे में है. शूटरों के पकड़े जाने से अर्जुन कुमार का परिवार दहशत में है. उन की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है. पुलिस ने विवेक कुमार और विनय कुमार पर 8 नवंबर, 2013 को गैंगस्टर एक्ट भी लगा दिया है. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों विवेक और विनय की जमानत नहीं हुई थी.

   —कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime stories : सिपाही का बेटा बना कातिल

Crime stories : सिपाही का बेटा होने की वजह से सूरज का मन काफी बढ़ा हुआ था. बाप भी उसे नहीं रोकता था. उसी का परिणाम था कि उस ने पूरे गांव से दुश्मनी तो मोल ली ही, एक निर्दोष को मार भी डाला. ढलते सूरज से वातावरण की गरमी जरूर कम हो गई थी, लेकिन गांव बिलासपुर का तापमान अचानक तब बढ़ गया, जब सिपाही रामनाथ रावत के बेटे सूरज रावत और रामानंद की पत्नी लक्ष्मी के बीच घंटों से चल रही तूतूमैंमैं मारपीट तक पहुंच गई. यह कहासुनी शुरू तो सूरज के मौसेरे भाई हृदयनाथ रावत से हुई थी, लेकिन जैस ही बात बढ़ी सूरज भी छोटे भाई गुड्डू के साथ वहां पहुंच गया था.

लड़ाईझगड़ा शुरू होते ही तमाशा देखने वाले इकट्ठा हो ही जाते हैं, वैसा ही यहां भी हुआ था. लगभग पूरा गांव तमाशा देखने के लिए लक्ष्मी के घर के सामने इकट्ठा हो गया था. गांव वालों ने बीचबचाव कर के मामला जरूर शांत करा दिया, लेकिन सूरज मारपीट नहीं कर पाया था, इसलिए उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. वह सब के साथ अपने घर गया. गुस्से में होने की वजह से उस ने आव देखा ताव खूंटी पर टंगी पिता की लाइसेंसी राइफल उतारी और छत पर जा कर लक्ष्मी को निशाना बना कर गोलियां चलाने लगासंयोग से उस का हर निशाना चूक गया और गोलियां लक्ष्मी को लगने के बजाय तमाशा देखने वालों को लगीं, जिन में 13 साल के अमरनाथ की मौत हो गई.

इस के अलावा परमशीला, प्रीति, सुधा, सीमा, उमेश, पवन कुमार और रोशन घायल हुए. उस की इस हरकत से गांव में भगदड़ मच गई. किसी ने इस घटना की सूचना फोन द्वारा थाना उरुवा पुलिस को दी तो सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार राय के हाथपांव फूल गए. थोड़ी ही देर में वह पुलिस बल के साथ गांव बिलासपुर जा पहुंचे. पुलिस कोई काररवाई कर पाती, नाराज गांव वालों ने थानाप्रभारी सहित सभी पुलिसकर्मियों को एक कमरे में बंद कर के बंधक बना लिया. इस के बाद उन्होंने पुलिस की जीप में आग लगा दी.

बंधक बने अरुण कुमार राय ने मोबाइल फोन द्वारा घटना और बंधक बनाए जाने की सूचना उच्च अधिकारियों को दी तो थोड़ी ही देर में पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. सूचना पा कर आईजी जकी अहमद, डीआईजी नवीन अरोड़ा, एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (ग्रामीण) यस चेन्नपा, क्षेत्राधिकारी विजय शंकर 4 थानों के थानाप्रभारी तथा भारी मात्रा में पीएसी पहुंच गई थी. अधिकारियों ने आते ही सब से पहले बंधक बनाए थानाप्रभारी अरुण कुमार राय एवं उन के सहोगियों को मुक्त कराया. इस के बाद मृतक अमरनाथ के शव को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मेडिकल कालेज भिजवाने के साथ घायलों को इलाज के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की औपचारिक काररवाई से फारिग हो कर पुलिस ने सूरज द्वारा चलाई गई गोली से मारे गए अमरनाथ के पिता बलिकरन यादव से एक तहरीर ले कर थाना उरुवा में अपराध संख्या 76/2013 पर भादंवि की धाराओं 302/504/506 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट के तहत सूरज रावत, उस के छोटे भाई गुड्डू, मौसेरे भाई हृदयनाथ और चंदन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने नामजद चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया

इस के तुरंत बाद पुलिस ने एक अन्य मुकदमा अपराध संख्या 77/2013 पर भादंवि की धाराओं 147, 148, 323, 504, 506, 307, 353, 332, 427, 435 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट तथा 2/3 के तहत ग्रामप्रधान असलम, आजम, पूर्व ब्लाकप्रमुख मुख्तार अहमद, विनोद, पप्पू, प्रवीण, मोतीलाल, उमेश, सागर तथा 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के सभी की धरपकड़ शुरू कर दी. ग्रामप्रधान असलम को छोड़ कर बाकी सभी नामजद लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया. पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इसी के साथ आइए अब यह जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ था, जिस की वजह से एक नाबालिग मारा गया तो 7 लोग घायल हुए. यही नहीं, गांव के इतने लोग जेल भेजे गए. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह की पृष्ठभूमि पर तैयार हुई है, जिस में पुलिस की लापरवाही साफ नजर आती है. जिला मुख्यालय गोरखपुर से दक्षिण में 60 किलोमीटर की दूरी पर है थाना उरुवा. इसी थाने का एक गांव है बिलासपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में ज्यादातर लोग खेतीकिसानी करते हैं. कुछ लोग सरकारी नौकरियों में भी हैं. मेहनती होने की वजह से गांव के ज्यादातर लोग साधनसंपन्न और आर्थिक रूप से मजबूत हैं. 50 वर्षीय रामानंद यादव उर्फ नंदू भी अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा तीन बच्चे, जिन में 2 बेटे और 1 बेटी राखी थी. रामानंद मेहनती था, जिस की वजह से खेती से ही उस के दिन मजे से कट रहे थे.

रामानंद की एकलौती बेटी राखी कुछ ज्यादा ही समझदार थी. दोनों भाई पढ़ाई छोड़ कर पिता के काम में हाथ बंटाने लगे थे, लेकिन राखी पूरी लगन के साथ पढ़ रही थी. यही वजह थी कि मातापिता ही नहीं, भाई भी उसे पढ़ालिखा कर किसी लायक बनाना चाहते थे. घर में छोटी होने की वजह से वह सब की लाडली भी थी. बलिया के रहने वाले रामनाथ रावत भी इसी गांव में कर रहने लगे थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. उन की तैनाती थाना उरुवा में हुई थी, तभी उन्होंने गांव बिलासपुर में अपना मकान बनवा लिया था और उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे सूरज और चंदन थे. उन्हीं के साथ उन की साली का बेटा हृदयनाथ भी रहता था. वह होमगार्ड था और थाना उरुवा में ही तैनात था.

रामनाथ का बड़ा बेटा सूरज कोचिंग चलाता था, जिस में गांव के बच्चों के साथ रामानंद की बेटी राखी भी पढ़ने जाती थी. बात तब की है, जब वह छठवीं में पढ़ती थी. राखी साथ पढ़ने वाली अन्य लड़कियों से खूबसूरत तो थी ही, हृष्टपुष्ट होने की वजह से अपनी उम्र से अधिक की भी लगती थी. चुलबुली होने की वजह से वह हर किसी का मन मोह लेती थी. यही वजह थी कि वह सूरज को भी अच्छी लगने लगी थी. जब भी वह उसे देखता, उस की आंखों में एक अजीब सी चमक जाती. उम्र में भले ही राखी छोटी थी, लेकिन सूरज की नीयत को भांप गई थी. जिन कातिल नजरों से सूरज उसे घूरता था, उस से वह समझ गई थी कि गुरु क्या चाहता है

इसलिए राखी सूरज से सतर्क और होशियार रहने लगी थी. क्लास खत्म होते ही वह अन्य सहपाठियों के साथ निकल जाती थी. पिछले साल मार्च की बात है. राखी घर से कोचिंग पढ़ने गई थी. बच्चों के साथ वह क्लास में भी थी. लेकिन शाम को वह घर नहीं पहुंची. घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने उस की तलाश शुरू की. तलाश में सूरज से भी पूछा गया. उस ने बताया कि राखी तो क्लास खत्म होते ही चली गई थी. सूरज के जवाब से रामानंद परेशान हो उठा. 2 दिनों तक रामानंद और उस का परिवार राखी की तलाश में भटकता रहा. लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. तीसरे दिन सुबह विक्षिप्त हालत में राखी घर पहुंची तो उस की हालत देख कर कोहराम मच गया. राखी बुरी तरह डरी हुई थी.

उस की हालत देख कर मां लक्ष्मी का तो बुरा हाल था. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. किसी तरह खुद पर काबू पा कर बेटी को नहलायाधुलाया और भोजन कराया. मां की ममता और अपनों के बीच आने के बाद राखी का डर थोड़ा कम हुआ तो घर वालों के पूछने पर 2 दिनों तक गायब रहने की उस ने जो वजह बताई, वह कलेजा चीर देने वाली थी. राखी ने बताया था कि वह कोचिंग से घर के निकली तो रास्ते में सूरज ने अपने दोस्तों, चंदन, अमित, नागेंद्र और बृजेश के साथ मिल कर उस का अपहरण कर लिया था और उसे ले जा कर एक कमरे में बंद कर दिया था. उस के बाद 2 दिनों तक लगातार उस के साथ जबरदस्ती करते रहे. उस की हालत खराब हो गई तो उसे गांव के बाहर छोड़ कर भाग गए.

बेटी की करुण कहानी सुन कर मांबाप का दिल खून के आंसू रो पड़ा. कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. सीधासीधा सामूहिक दुष्कर्म का मामला था. रामानंद ने गांव वालों को जमा किया और बेटी को साथ ले कर थाना उरुवा जा पहुंचा. बेटी के साथ घटी घटना की नामजद तहरीर थानाप्रभारी को सौंपी. थानाप्रभारी ने काररवाई का भरोसा दे कर सभी को घर भेज दिया. रामानंद को तहरीर दिए धीरेधीरे 3 महीने बीत गए, लेकिन पुलिस ने उस की तहरीर पर कोई काररवाई नहीं की. बाद में पता चला कि उसी थाने में आरोपी सूरज का बाप रामनाथ रावत तैनात था, इसीलिए रामानंद की तहरीर दबा दी गई थी.

थाने से रामानंद को न्याय नहीं मिला तो उस ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. आखिर 8 जून, 2012 को अदालत के आदेश पर पुलिस ने पांचों आरोपियों सूरज, चंदन, अमित, नागेंद्र और बृजेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया और गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. इसी के साथ होहल्ला होने पर रामनाथ को थाना उरुवा से हटा कर थाना कैंपियरगंज में तैनात कर दिया गया. बेटे के जेल जाने से रामनाथ रावत तिलमिला उठा. रामानंद और उस का साथ देने वाले ग्रामप्रधान असलम, दिनेश, विजीत और लक्ष्मण को उस ने सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. ग्रामप्रधान असलम की पहल पर सूरज और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था, इसलिए रामनाथ ने उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन माना और सब से पहले उसे ही सबक सिखाने के लिए मौके की तलाश में जुट गया.

आखिर उसे मौका मिल ही गया. उसे कहीं से पता चला कि गांव की एक जमीन को ले कर रामकृपाल की पत्नी बिंदू देवी और ग्रामप्रधान असलम के बीच झगड़ा चल रहा हैपुलिस सूत्रों की मानें तो गांव की उस जमीन पर बिंदू जबरन कब्जा करना चाहती थी. इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान असलम को हुई तो उस ने बिंदू के मंसूबों पर पानी फेरते हुए जमीन पर सरकारी कब्जा करवा दिया. ग्रामप्रधान के इस रवैये से बिंदू ने उसे अपना दुश्मन मान लिया. कहते हैं, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. यही सोच कर रामनाथ बिंदू तक पहुंच गया. वह कानून का मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने बिंदू को ग्रामप्रधान असलम के खिलाफ इतना उकसाया कि अपने फायदे के लिए बिंदू नैतिकअनैतिक किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गई.

रामनाथ के कहने पर 21 सितंबर, 2012 को बिंदू अदालत के माध्यम से उरुवा थाना में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. न्यायालय के आदेश पर यह रिपोर्ट रामानंद यादव उर्फ नंदू, ग्रामप्रधान असलम, रामानंद के बेटों श्याम, सुंदर, दिनेश, विजीत और लक्ष्मण के खिलाफ दर्ज हुई थी. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. लेकिन ग्रामप्रधान असलम फरार होने में कामयाब रहा. बाद में उस ने अग्रिम जमानत करा ली, जिस से वह जेल जाने से बच गया. इस तरह एक बार रामनाथ की फिर विजय हो गई. 6 महीने बाद सूरज और उस के चारों दोस्तों की जमानत हो गई. जेल से बाहर आने के बाद शरम करने के बजाय सूरज की अकड़ और बढ़ गई. दूसरी ओर रामानंद यादव उर्फ नंदू को छोड़ कर बाकी अन्य 5 लोगों को भी सेशन कोर्ट से जमानत मिल गई. इस तरह वे भी जेल से बाहर गए.

लक्ष्मी पति की जमानत के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए थी. 5 जुलाई, 2013 को रामानंद की जमानत पर सुनवाई थी, जिस के लिए कुछ जरूरी कागजात उरुवा थाने को अदालत भेजने थे. रामनाथ का रिश्तेदार हृदयनाथ वहीं तैनात था. कहा जाता है कि उस ने वे कागजात इधरउधर करवा दिए, जिस से उस दिन कागजात अदालत देर से पहुंचे और रामानंद की जमानत नहीं हो सकी. लक्ष्मी के घर का रास्ता रामनाथ रावत के घर के सामने से ही था. पति की जमानत होने से दुखी लक्ष्मी अपने घर जा रही थी, तभी सूरज के मौसेरे भाई हृदयनाथ ने दरवाजे से उस पर गंदीगंदी फब्तियां कसीं तो दुखी और परेशान 

लक्ष्मी को उस पर गुस्सा गया. उस ने उसे उसी तरह जवाब दे दिया. लक्ष्मी की बातें हृदयनाथ को इतनी बुरी लगीं कि वह उस से लड़ने लगा. दोनों के बीच तूतू मैंमैं होने लगी तो घर के अंदर बैठा सूरज भी बाहर गया. उस के पीछेपीछे उस का छोटा भाई गुड्डू भी था. भाइयों को देख कर हृदयनाथ को ताव गया और उस ने आव देखा ताव, लक्ष्मी के गाल पर दो थप्पड़ लगा दिए.

लक्ष्मी अकेली थी, इसलिए वह उस समय चुपचाप घर चली गई. बड़ा बेटा श्याम घर पर ही था. उस ने बेटे से पूरी बात बताई तो उस का खून खौल उठा. वह रोजरोज की इस किचकिच से ऊब चुका था. अब वह इस किस्से को हमेशाहमेशा के लिए खत्म करना चाहता था. मजे की बात यह थी कि रामनाथ के परिवार से गांव के किसी भी आदमी से नहीं पटती थी. गांव का हर आदमी उस के व्यवहार से परेशान था. उस के बेटे गांव वालों से जबतब बिना मतलब पंगा लेते रहते थे.

यही वजह थी कि पूरा गांव रामनाथ और उस के बेटों के खिलाफ था. लक्ष्मी के साथ मारपीट की जानकारी गांव वालों को हुई तो वे श्याम को ले कर थाने जा पहुंचे. थानाप्रभारी छोटेलाल छुट्टी पर थे. उन की जगह सबइंस्पेक्टर अरुण कुमार राय ने थाने की जिम्मेदारी संभाल रखी थी. संयोग से वह भी उस समय थाने में नहीं थे. श्याम ने मां के साथ हुई मारपीट की जानकारी थाना पुलिस को दी तो उन्होंने काररवाई करने के बजाय उसे थाने से भगा दिया. श्याम, मां और गांव वालों के साथ थाने से लौट आया. किसी तरह इस बात की जानकारी अरुण कुमार राय को हुई तो उन्होने सूरज, गुड्डू और हृदयनाथ को थाने बुलाया. पूछताछ कर के उन्होंने कोई काररवाई किए बगैर उन्हें वापस भेज दिया.

सूरज, गुड्डू और हृदयनाथ को थाने से छोड़ दिए जाने की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन्हें पुलिस पर बहुत गुस्सा आया. वे बीच गांव में इकट्ठा हो कर आगे की रणनीति पर विचार करने लगे. सूरज के दोस्त चंदन को लक्ष्मी के साथ मारपीट और थाने जाने की बात की जानकारी हुई तो मित्र की मदद के लिए वह भी उस के घर जा पहुंचा. सूरज का वह खास दोस्त था. उसी समय सीनाजोरी दिखाते हुए हृदयनाथ वहां जा पहुंचा, जहां गांव वाले इकट्ठा थे. उस के पीछेपीछे सूरज, गुड्डू और चंदन भी वहां जा पहुंचे. उन्हें पता था कि माहौल अभी गरम है, फिर भी वे वहां चले गए. हृदयनाथ के वहां पहुंचते ही गांववालों ने उसे घेर लिया.

स्थिति मारपीट तक पहुंच गई. हृदयनाथ के साथी पिट सकते थे, इसलिए सभी वापस गए. लेकिन सभी गुस्से में थे. इसी का नतीजा था कि कमरे में खूंटी पर टंगी पिता की लाइसेंसी राइफल सूरज ने उतारी और छत पर जा कर गोलियां चलाने लगा. घटना के समय सूरज का बाप रामनाथ रावत थाना कैंपियरगंज में अपनी ड्यूटी पर था. उस का इस कांड से कोई लेनादेना नहीं था. लेकिन पुत्रमोह में उस ने उसे जो अनुचित बढ़ावा दिया, यह उसी का परिणाम था, जिस में एक निर्दोष मारा गया तो 7 लोग घायल हुए. कथा लिखे जाने तक फरार ग्रामप्रधान असलम की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. पुलिस ने अदालत से 82/83 की काररवाई कर के उस के घर की कुर्की कर ली थी. इस के बावजूद वह हाजिर नहीं हुआ था. गोली कांड में भी गिरफ्तार अभियुक्तों में से किसी की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर के अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में राखी बदला हुआ नाम है.

   

Punjab Crime : टेलीफोन के तार से बेटी के प्रेमी का घोंटा गला

Punjab Crime : ठंडे बस्ते में पड़ी गुरदीप सिंह की हत्या की फाइल धूल फांक रही थी. मेरे आदेश पर गुरदीप की हत्या के मामले की फिर से जांच की गई तो हत्या की चौंकाने वाली ऐसी कहानी सामने आई कि…  

पूरे मामले को पढ़ने के बाद एक बात मेरी समझ में नहीं रही थी कि जब गुरदीप सिंह 18 तारीख को अपने काम पर लुधियाना चला गया था तो फिर 2 दिन बाद उस की लाश अपने ही घर के सामने कैसे मिली. इस का मतलब यह है कि या तो गुरदीप लुधियाना गया ही नहीं या फिर किसी के बुलावे पर वह 2 दिन बाद ही गांव वापस गया था. पर वह शख्स कौन था, जिस के साथ वह शहर से 2 दिन बाद ही गांव गया था. इन्हीं सब बातों का मुझे पता लगाना था.

साल 2018 के जुलाई महीने में मेरी नियुक्ति पंजाब के खन्ना जिले में बतौर एसएसपी हुई थी. इस के पहले मैं होशियारपुर, दसूहा में रहा था. 2011 बैच से आईपीएस करने के बाद मेरी पहली नियुक्ति 2014 में लुधियाना में एसीपी के पद पर हुई थी. जब मैं ने वहां अपना काम शुरू किया, तब शहर की कानूनव्यवस्था चरमराई हुई थी. यातायात का तो बहुत बुरा हाल था. सब से पहले मैं ने शहरवासियों से मिलमिल कर अपना परिचय बढ़ाया और जगहजगह सभाएं कर पुलिस और जनता के बीच की दूरी खत्म करने की कोशिश की. उन्हें कानून के दायरे में रह कर एक अच्छा नागरिक बनने की सलाह दी.

यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए मैं ने अपने स्टाफ को कड़े आदेश दे रखे थे कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाला कोई नेता हो या कोई अधिकारी, उसे बख्शा नहीं जाए. इसी कड़ी में अपनी नौकरी के मात्र 3 महीने बाद ही दिसंबर माह में पंजाब ऐंड हरियाणा हाईकोर्ट के एक जस्टिस की गाड़ी का नो पार्किंग का चालान काटने के बदले में मुझे ट्रांसफर झेलना पड़ा था.

लुधियाना से जालंधर, दसूहा, होशियारपुर आदि होते हुए जब मैं ने खन्ना पहुंच कर एसएसपी का कार्यभार संभाला तो अपनी आदत के अनुसार मैं ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को यह सख्त आदेश दिया कि किसी भी मामले में लापरवाही नहीं बरती जाएगी. कार्यभार संभालने के बाद सब से पहले मैं ने उन फाइलों को अपना निशाना बनाया जो पिछले 3-4 सालों से बंद पड़ी हुई थीं और उन पर अब तक कोई काररवाई नहीं हुई थी.

इन ढेरों फाइलों में एक फाइल सरवन कौर की थी. शिकायतकर्ता 50 वर्षीय सरवन कौर के 23 वर्षीय शादीशुदा बेटे गुरदीप की किसी ने हत्या कर के उस की लाश उसी के ही घर के सामने डंगरों वाले बाड़े में फेंक दी थी. मैं ने सरवन कौर के बयान पढ़े. उस का बयान पढ़ने के बाद पता चला कि वह समराला थाने के गांव लोपो के रहने वाले लक्ष्मण सिंह की पत्नी थी. वह अपने पति के साथ खेतों पर मेहनतमजदूरी करती थी. उस के 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. सभी शादीशुदा थे और अपनेअपने घरों में खुश थे. बेटों में पवित्र सिंह बड़ा था और गुरदीप उर्फ निका छोटा

गुरदीप ने किसी लड़की से लवमैरिज की थी और वह उसी के साथ लुधियाना में रहता था. गुरदीप जेसीबी चलाता था. जब भी मौका मिलता, अपनी मां से मिलने वह गांव चला आता था16 नवंबर, 2015 को भी गुरदीप अपनी मां से मिलने के लिए घर आया था और 2 दिन रहने के बाद 18 तारीख को अपने काम पर लुधियाना लौट गया. 22 तारीख की सुबह 6 बजे गुरदीप का पिता लक्ष्मण सिंह अपने घर के सामने डंगरों के बाड़े में पशुओं को चारा डालने गया तो वहां पर बेटे गुरदीप की लाश देख कर गश खा कर गिर गया

देखने से लग रहा था कि किसी ने गुरदीप की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस के गले में केसरी रंग का पटका बंधा हुआ था. बेटे की लाश देख कर लक्ष्मण ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. रोने की आवाज सुन कर उस के परिवार के साथसाथ गांव वाले भी वहां जमा हो गए. गांव के किसी आदमी ने इस घटना की सूचना थाना समराला को दे दी. थाना समराला के तत्कालीन प्रभारी मंजीत सिंह एसआई नछत्तर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे थे. घटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद उन्होंने मृतक के परिवार वालों और ग्रामीणों के बयान दर्ज करने के बाद गुरदीप की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 34 के तहत दर्ज कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दी थी.

आगे की काररवाई के नाम पर तफ्तीश जारी है, लिख कर फाइल बंद कर दी गई थी. थानाप्रभारी मंजीत सिंह का तबादला हो जाने के बाद शायद नए थानाप्रभारी ने उक्त फाइल को खोल कर देखने की जहमत भी नहीं उठाई थी. उस के बाद कई थानाप्रभारी आए और गए, गुरदीप की हत्या की फाइल नीचे दब कर रह गई थी. इस घटना को लगभग ढाई साल गुजर गए थे. फाइल का पूरी तरह से अध्ययन करने के बाद मैं ने तत्कालीन डीएसपी समराला हरसिमरत सिंह शेतरा और थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह को अपने औफिस बुलाया. मैं ने उक्त फाइल उन्हें सौंपते हुए कहा कि मुझे जल्द से जल्द गुरदीप के हत्यारों का पता चाहिए. साथ ही केस की प्रोग्रैस रिपोर्ट रोज शाम को मेरी टेबल पर होनी चाहिए.

इस के बाद थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह ने लोपा गांव में अपना नेटवर्क फैला दिया. गांव में ज्यादातर मेहनतमजदूरी करने वाले लोग थे. किसी को फुरसत नहीं थी. सभी अपने कामों में व्यस्त थे. फिर इतनी पुरानी बात लोग भूल से गए थे. उन्हें सिर्फ इतना याद था कि सरवन के बेटे गुरदीप की हत्या हुई थी. मृतक की मां बेटे के हत्यारों को पकड़ने के लिए समयसमय पर अधिकारियों के यहां चक्कर काटती रहती थी. सरवन ने पुलिस को 4 संदिग्ध लोगों के नाम पुलिस को देते हुए उन पर शक जताया था, पर उस की बातों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

मैं ने उन चारों लोगों के नाम अपने खास मुखबिर को सौंपते हुए कहा था कि इन चारों की पूरी कुंडली का पता लगाओ और साथ में इस बात का भी पता लगाओ कि उस दिन गुरदीप अपने गांव किस के बुलावे पर लुधियाना से आया थाअगले 2 दिन में मुझे इस पूरे मामले की तह तक की जानकारी मिल गई. और तो और, इस हत्या की योजना का एक चश्मदीद गवाह भी मेरे हाथ लग चुका था. सारी बातें मैं ने थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह को बताईं. मैं ने उन चारों लोगों के नाम देते हुए कहा, ‘‘इन्हें बुलवा कर पूछताछ करो.’’

भूपिंदर सिंह ने उसी दिन गांव लोपो के मोहन सिंह, गुरमुख सिंह, दविंदर सिंह और बब्बू सिंह को थाने बुलवा लिया. इन चारों में मोहन सिंह के अलावा उस का एक बेटा, एक भाई और एक भतीजा था. मैं भी थाने पहुंच गया. ढाई साल बाद जब गुरदीप की हत्या की जांच शुरू हुई तो सब चौंक गए. काफी देर याद करने का नाटक करने के बाद मोहन सिंह ने बताया था कि लक्ष्मण के बेटे की मौत हुई तो थी पर उस की मौत से उस का या उस के परिवार का कोई वास्ता नहीं था. लेकिन मेरे पास इस बात का पुख्ता सबूत था कि गुरदीप की हत्या के पीछे सिर्फ और सिर्फ मोहन सिंह का ही वास्ता है.

मैं ने काफी कोशिश की थी कि वह प्यार से अपने आप जुर्म कबूल कर के सब कुछ बता दे पर वह अपनी बातों से मुझे गुमराह करने की कोशिश करता. अंत में मैं ने चंद सिंह नाम के उस आदमी को ला कर मोहन सिंह के सामने खड़ा कर दिया, जिस के सामने उस ने अपने बेटे और भाई के साथ मिल कर गुरदीप की हत्या की योजना बनाई थी. चंद सिंह भी लोपो गांव का एक जाट जमींदार था. चंद सिंह को अपने सामने देख कर मोहन की घिग्घी बंध गई. वह बगलें झांकने लगा. अंत में उस ने और अन्य तीनों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया था कि उन्होंने ही योजना बना कर गुरदीप की हत्या की थी.

चारों आरोपियों को उसी दिन 5 अगस्त, 2018 को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर लिया गया. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद गुरदीप की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस में दोष गुरदीप का अधिक था. गुरदीप के पड़ोस में मोहन सिंह का घर था. मोहन सिंह मजदूर किसान था. मोहन की एक बेटी थी हरमनदीप कौर जो पास के रोपलो गांव में स्थित स्कूल में पढ़ती थी. गुरदीप गांव का बांका नौजवान था. पड़ोसी होने के नाते बचपन से ही हरमन और गुरदीप साथसाथ खेले थे और दोनों परिवारों का एक दूजे के घर काफी आनाजाना था.

हरमन जब जवान हुई तो उस का झुकाव गुरदीप की ओर हो गया था, जबकि गुरदीप ने लुधियाना काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह जब भी गांव आता तो हरमन को अपने आसपास मंडराते पाता था. फिर मौका देख कर दोनों एकदूसरे से मिलने लगे. हरमन के लिए गुरदीप से मिलने में कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि दोनों के परिवार में घनिष्ठ संबंध थे. वह स्कूल से छुट्टी मार कर गुरदीप के साथ सैरसपाटे पर चली जाया करती थी. धीरेधीरे उन के याराने के चर्चे गांव में भी होने लगे थे. उड़तेउड़ते यह बात मोहन सिंह को भी पता चल गई थी. उस ने जब अपनी बेटी की निगरानी की तो असलियत सामने गई थी.

फिर एक दिन मोहन सिंह को स्कूल से खबर मिली कि हरमनदीप कौर कई दिनों से स्कूल से गैरहाजिर है. यह सुन कर मोहन समझ गया कि वह गुरदीप के साथ ही घूमफिर रही होगी. उस दिन मोहन ने बेटी हरमन को खूब डांटाफटकारा. साथ ही उस ने गुरदीप के घर जा कर उस की मां और बाप को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं उन्हें धमकी भी दी कि अगर गुरदीप ने अपनी आदत नहीं बदली तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा.

गलती गुरदीप की थी, इसलिए बात को खत्म करने के लिए सरवन कौर और उस के पति लक्ष्मण ने मोहन सिंह के पैर पकड़ कर माफी मांग ली. कुछ दिन के लिए मामला ठंडा पड़ गया था. एक दिन मोहन को गांव वालों से पता चला कि गुरदीप के पास हरमन की अश्लील फोटो हैं. वह गांव में लोगों को बताता फिर रहा है कि अगर मोहन ने उसे हरमन से मिलने से रोका तो ये फोटो इंटरनेट पर डाल कर उन्हें बदनाम कर देगा.  यह बात सुन कर मोहन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मोहन सिंह ने उसी दिन गुरदीप के घर जा कर उस के मांबाप से बात की. उन्होंने मोहन को आश्वासन दिया कि यदि ऐसी कोई फोटो गुरदीप के पास है तो वह उस से फोटो ले कर उन्हें सौंप देंगे. गुरदीप ने वे फोटो किसी को नहीं दिए. इस बात को ले कर मोहन और लक्ष्मण के परिवार में कई बार झगड़ा भी हुआ पर गुरदीप ने वह फोटो नहीं दीं.

गुरदीप को किसी भी तरह मानता देख कर मोहन सिंह को अपनी इज्जत बचाने का एक ही रास्ता दिखाई दिया. वह रास्ता था गुरदीप की हत्या कर देने का. रहेगा बांस, बजेगी बांसुरी. अपने भाई और बेटे के साथ मिल कर मोहन ने गुरदीप की हत्या की योजना बनाई. इस बारे में मोहन सिंह ने चंद सिंह से भी मशविरा किया. अपनी योजना के अनुसार 21 नवंबर, 2015 की शाम को मोहन ने हरमन से गुरदीप का फोन नंबर ले कर उसे फोन कर गांव के बाहर मिलने के लिए बुलाया था. मोहन ने गुरदीप को कहा था कि अगर तुम फोटो वापस नहीं लौटाना चाहते तो हरमन से शादी कर लो. अगर हरमन से शादी करनी है तो आज रात 9 बजे तक गांव के अड्डे पर मिलो. यह बात सुन कर गुरदीप झट से तैयार हो गया. वह ठीक 9 बजे अड्डे पर पहुंच गया.

नवंबर महीने में हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. वैसे भी गांवों में दिन छिपने के बाद लोग अपनेअपने घरों में दुबक जाते हैं. जिस समय गुरदीप अड्डे पर पहुंचा तो उस समय चारों ओर सन्नाटा पसरा पड़ा था. बात करने के बहाने वे चारों उसे सुनसान खेत में ले गए. मोहन सिंह ने एक बार फिर गुरदीप को अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए फोटो लौटाने के लिए कहा. गुरदीप ने शराब पी रखी थी. फोटो लौटाने की बात सुन कर गुरदीप भड़क गया. इतना ही नहीं, वह धमकी देने लगा तो मोहन सिंह को गुस्सा गया. चारों ने पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और अपने साथ लाए टेलीफोन के तार से उस का गला घोंट दिया

इस के बाद उसी के सिर पर बंधे पटके को उतार कर उस के गले में डाला और कस दिया. गुरदीप की हत्या करने के बाद चारों ने उस की लाश खेत से उठा कर उस के घर के सामने डाल दी. इस मुकदमे की जांच पूरी गहराई, तकनीकी ढंग और खुफिया सूत्रों के साथ की गई थी. इसी कारण इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को ढाई साल बाद सुलझाया जा सका था. रिमांड के बाद 6 अगस्त, 2018 को गुरदीप की हत्या के आरोप में मोहन सिंह, गुरमुख सिंह, दविंदर सिंह और बब्बू को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.

स्टोरी में दी गई फोटो काल्पनिक है.

  — प्रस्तुति: हरमिंदर कपूर

 

Murder story : बहन के प्रेमी को भाई ने उतारा मौत के घाट

Murder story : जोबन और पम्मी एक ही गांव के थे. दोनों यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि एक ही गांव के लड़केलड़की की शादी नहीं हो सकती. इसके बावजूद भी वह एकदूसरे से प्यार कर बैठे. फिर उन के प्यार का भी वही अंजाम हुआ, जैसा कि ऐसे मामलों में होता है…

जुलाई का महीना था. अन्य महीनों की अपेक्षा उस दिन गरमी कुछ अधिक थी. जतिंदर उर्फ जोबन ने चाटी से लस्सी निकाल उस में बर्फ मिलाया. फिर एक गिलास भर कर अपने पिता तरसेम सिंह को देते हुए कहा, ‘‘ले बापू, लस्सी पी ले. आज बड़ी गरमी है.’’

20 वर्षीय जोबन अपने 60 वर्षीय पिता के साथ घर के आंगन में बैठा गपशप कर रहा था. लस्सी का गिलास अपने हाथ में लेते हुए तरसेम सिंह बोले, ‘‘बेटा, गरमी हो या सर्दी, हम जट्ट किसानों को तो खेतों में ही रहना पड़ता है. हम एसी में तो नहीं बैठ सकते न.’’

जोबन ने पिता से मजाक करते हुए कहा, ‘‘बापू क्यों न हम अपने खेतों में एसी लगवा लें.’’

‘‘क्या ये बिना सिरपैर की बातें कर रहा है.’’ तरसेम बेटे की बात पर हंसते हुए बोले, ‘‘कहीं खेतों में भी एसी लगते हैं.’’

यूं ही फिजूल की इधरउधर की बातें कर के बापबेटा अपना मन बहला रहे थे कि जोबन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अचानक फोन की घंटी ने उन की बातों पर विराम लगा दिया. जोबन पिता के पास से उठ कर एक तरफ चला गया और फोन पर किसी से बातें करने लगा. तरसेम सिंह अपनी जगह ही बैठे रहे. जोबन फोन पर बातें करते हुए जब घर से बाहर जाने लगा तो तरसेम सिंह ने उसे टोका, ‘‘ओए पुत्तर, खाने के वक्त कहां जा रहा है?’’

‘‘अभी आया पापाजी,’’ जोबन ने फोन सुनते हुए ही पिता को आवाज दे कर कहा और बातें करते हुए घर से बाहर निकल गया. यह बात 17 जुलाई, 2018 रात 9 बजे की है. जोबन के चले जाने के बाद तरसेम सिंह पोतेपोतियों से बातें करने लगे. तरसेम सिंह पंजाब के जिला अमृतसर देहात के कस्बा ब्यास के पास वाले गांव शेरों निगाह के रहने वाले थे. गांव में उन का बहुत बड़ा कुनबा था. उन के पिता मोहन सिंह गांव के नामी जमींदार थे. उन की मृत्यु के बाद तरसेम सिंह ने भी अपने पुरखों की जागीर को संभाल कर रखा था. तरसेम सिंह ने 2 शादियां की थीं. दोनों ही पत्नियों की मृत्यु हो चुकी थी.

पहली पत्नी से उन की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने दूसरी शादी की थी. दूसरी पत्नी से उन्हें 2 बेटियां और एक बेटा जतिंदर उर्फ जोबन था. पूरे परिवार में जोबन ही सब से छोटा था और इसी वजह से सब का प्यारा था. तरसेम सिंह के सभी बेटे शादीशुदा थे और गांव में पासपास बने घरों में रहते थे. जोबन को घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. जबकि अपने पिता से वह यह कह कर गया था कि अभी लौट आएगा. तरसेम सिंह के पोतेपोतियां भी सोने चले गए थे. उन्होंने समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे. उन का चिंतित होना स्वाभाविक ही था. उन्होंने जोबन को फोन मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. बारबार फोन मिलाने पर भी जब हर बार फोन बंद मिला तो वह अकेले ही गांव में उस की तलाश के लिए निकल पड़े.

उन्होंने पूरा गांव छान मारा पर जोबन का कहीं कोई पता नहीं चला. अंत में उन्होंने घर लौट कर अपने दूसरे बेटों को जगा कर सारी बात बताई. बेटे की तलाश के लिए उन्होंने अपने भाई सुखविंदर सिंह और शादीशुदा दोनों बेटियों को भी फोन कर के अपने यहां बुला लिया था. सभी लोग एक बार फिर से जोबन को ढूंढने के लिए निकल पड़े. तरसेम के बेटों के साथ गांव के कुछ और लोग भी थे. पूरा कुनबा सारी रात ढूंढता रहा पर जोबन का पता नहीं चला. उसे हर उस संभावित जगह पर तलाशा गया था, जहां उस के मिलने की उम्मीद थी.

अगली सुबह जोबन के लापता होने की खबर थाना ब्यास में दे दी गई. उस की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने भी उस की तलाश शुरू कर दी. अपने घर फोन पर किसी से बात करतेकरते जोबन अचानक कहां गायब हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. जोबन को लापता हुए 24 घंटे से भी अधिक का समय बीत चुका था. उस का फोन अब भी बंद था. शाम के समय गांव जोधा निवासी जोबन के एक दोस्त तरसपाल सिंह ने तरसेम सिंह को फोन पर बताया कि उस ने पहली जुलाई की रात जोबन को सुखबीर सिंह के साथ गांव से बाहर जाते देखा था.

उस वक्त सुखबीर के साथ 2 लड़के और भी थे. वह उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उन दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. इस से पहले रात करीब 8 बजे सुखबीर उस के घर आया था और बहुत घबराया हुआ था. बता रहा था कि उस का स्कूल के ग्राउंड में किसी से झगड़ा हो गया था. विस्तार से बात समझने के लिए तरसेम सिंह ने तरसपाल को अपने पास बुलवा लिया और उस से पूरी बात पूछी. उस के बाद तरसेम सिंह को पूरा विश्वास हो गया कि उन के बेटे के लापता होने में सुखबीर का ही हाथ हो सकता है. वह जानते थे कि जोबन का सुखबीर की बहन के साथ चक्कर चल रहा था. उन के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं इस रंजिश की वजह से सुखबीर ने जोबन को सबक सिखाने के लिए गायब तो नहीं करवा दिया.

बहरहाल, तरसेम ने इन सब बातों से अपने रिश्तेदारों को अवगत करवाया और तरसपाल को अपने साथ ले कर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी किरणदीप सिंह को उन्होंने जोबन के लापता होने से ले कर अब तक की पूरी बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी के पूछने पर तरसपाल ने बताया कि जोबन को फोन कर के सुखबीर सिंह उर्फ हीरा ने ही बुलाया था. सुखबीर के साथ 2 और युवक भी थे, जिन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. वे तीनों जोबन को गांव शेरो बागा के स्कूल के ग्राउंड में ले गए थे, जहां पर झगड़े के दौरान सुखबीर ने जोबन के सिर पर ईंट से वार किया. इस से जोबन की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के बाद सुखबीर ने अपने साथियों के साथ मिल कर जोबन की लाश ब्यास नदी में फेंक दी.

तरसपाल का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी किरणदीप सिंह ने 3 जुलाई, 2018 को भादंवि की धारा 302 के तहत सुखबीर सिंह और 2 अन्य लोगों के खिलाफ जोबन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुखबीर के घर दबिश दे कर उसे गिरफ्तार कर लिया. सुखबीर से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर जोबन की हत्या में शामिल दूसरे युवक लवप्रीत सिंह को भी गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. 4 जुलाई, 2018 को पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ के दौरान सुखबीर सिंह ने जोबन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार से थी. कह सकते हैं कि यह मामला औनर किलिंग का था.

सुखबीर सिंह उर्फ हीरा अमृतसर के गांव अर्क के एक मध्यवर्गीय परिवार से था. उस के पिता बलबीर सिंह इतना कमा लेते थे जिस से घर खर्च और अन्य जरूरतें आराम से पूरी हो जाती थीं. सुखबीर 2 भाईबहन थे. किसी कारणवश सुखबीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. अब सुखबीर और उस के मातापिता का एक ही सपना था कि वे किसी तरह अपनी बेटी पम्मी को उच्चशिक्षा दिलाएं. इस के लिए सुखबीर भी जीतोड़ मेहनत कर रहा था. एक कहावत है कि जब इंसान के जीवन में 16वां साल तूफान बन कर आता है तो कोई विरला ही अपने आप को इस तूफान से बचा पाता है, ज्यादातर लोग तूफान की चपेट में आ जाते हैं. जोबन और पम्मी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. जोबन करीब 20 साल का  था और पम्मी 16 पार कर चुकी थी. दोनों एक ही गांव के और एक ही जाति के थे.

आग और घी जब आसपास हों तो आंच पा कर घी पिघल ही जाता है. दुनिया और समाज के अंजाम की परवाह किए बिना जोबन और पम्मी प्रेम अग्नि के कुंड में कूद पड़े थे. लगभग एक साल तक तो किसी को उन की प्रेम कहानी का पता नहीं चला था. क्योंकि मिलनेजुलने में दोनों बड़ी ऐहतियात बरतते थे. पर ये बात जगजाहिर है कि इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं छिपते. एक न एक दिन किसी न किसी को तो खबर लग ही जाती है. किसी माध्यम से सुखबीर को जब अपनी बहन के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला तो जैसे घर में तूफान आ गया. सुखबीर को ज्यादा गुस्सा इस बात पर था कि वह बहन पम्मी को ऊंचाई तक पहुंचाना चाहता था और वह गलत रास्ते पर जा रही थी. गुस्सा या मारपीट करने से कोई लाभ नहीं था. उस ने पम्मी को प्यार से काफी समझाया.

पम्मी ने भी भाई को साफसाफ बता दिया कि वह जोबन के बिना नहीं रह सकती. सुखबीर अपनी बहन की खुशियों के लिए शायद उस की बात मान भी लेता, पर समस्या यह थी कि जोबन पर अदालत में एक आपराधिक मुकदमा चल रहा था. सुखबीर नहीं चाहता था कि उस की बहन ऐसे आदमी से शादी करे जो अपराधी किस्म का हो. बहन को समझाने के बाद उस ने जोबन के पास जा कर उस के सामने हाथ जोड़ कर उसे समझाया, ‘‘जोबन, हम एक ही गांव के हैं और एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए हैं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दो और हमें और हमारे सपनों को बरबाद न करो.’’

जोबन ने आश्वासन तो दे दिया कि वह आइंदा पम्मी से नहीं मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं. वह पम्मी से मिलता रहा. घटना से एक दिन पहले सुखबीर ने जोबन को पम्मी के साथ गांव के बाहर खेतों में देख लिया. उस समय वह खून का घूंट पी कर खामोश रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या का समाधान कैसे करे. काफी सोचने के बाद उस ने जोबन को अपनी बहन की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर करने का फैसला कर लिया. पर यह काम वह अकेले नहीं कर सकता था, इसलिए इस काम के लिए उस ने अपने दोस्त लवप्रीत और सुरजीत को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. जोबन सहित ये सभी लोग एकदूसरे के दोस्त थे.

अगले दिन पहली जुलाई की रात में सुखबीर ने जोबन को फोन कर के मिलने के लिए गांव के स्कूल के ग्राउंड में बुलाया. उस ने कहा था कि पम्मी के बारे में जरूरी बात करनी है. उस वक्त लवप्रीत और सुरजीत उस के साथ थे. सुखबीर ने पहले से ही तय कर लिया था कि पहले वह जोबन को समझाएगा. अगर वह नहीं माना तो उसे अंत में ठिकाने लगा देगा. पर ऐसा नहीं हुआ. बातोंबातों में उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों का आपस में झगड़ा हो गया. इसी दौरान सुखबीर ने पास पड़ी ईंट उठा कर पूरी ताकत से जोबन के सिर पर दे मारी, जिस से जोबन लुढ़क गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई.

जोबन की मौत के बाद तीनों घबरा गए. अपना अपराध छिपाने के लिए उन्होंने मिल कर उस की लाश पास में बह रही ब्यास नदी में बहा दी और अपनेअपने घर चले गए. चूंकि नदी से जोबन की लाश बरामद करनी थी, इसलिए पुलिस ने गोताखोरों की टीम बुलवा कर काफी खोजबीन की. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद भी जोबन की लाश नहीं मिल सकी. जिन थाना क्षेत्रों से नदी गुजरती थी, थानाप्रभारी ने वहां की पुलिस से भी संपर्क किया कि उन के क्षेत्र में कोई लाश तो बरामद नहीं हुई है. कथा लिखे जाने तक जोबन की लाश पुलिस को नहीं मिली थी.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया. इस हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुरजीत की पुलिस तलाश कर रही है.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पम्मी परिवर्तित नाम है.

UP Crime : प्यार करने के बहाने प्रेमिका को बाहों में भरकर घोंटा गला

UP Crime : शादीशुदा होने के बावजूद साथ काम करने वाली प्रभावती पर तेजभान का दिल आया तो कोशिश कर के उस ने उस से संबंध बना लिए. फिर इस संबंध का भी वैसा ही अंत हुआ, जैसा अकसर होता आया है. प्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे

लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलनेखाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनी अपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा.

रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी. प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर आ जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई. अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बातहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं आ पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ.

ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए. अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी.

प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए. उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा. बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थीं.

समय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी. मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी. जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा.

प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था. रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए.

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था. मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.

वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया. इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था. लेकिन मनोज अपने घर न जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली आ गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया. उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटकेझटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’

सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी. वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी न तो मनोज उस के सामने आया और न उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई.

जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था. जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी.

कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था. एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था.

उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब आ गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है. तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे.

तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी. तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था. वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था.

प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया. जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा आ गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’

प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से न रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया. वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी.

प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’

प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गया. प्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया. मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया.

प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया. प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है. 11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई.

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा है. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने आ कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस आ चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी.

प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया. शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी. प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी.

मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Dispute : रोटी बना रही मां को बेटे ने मारी गोली

Family Dispute : कभीकभी औरत अपने व परिवार के विनाश की खुद ही रचयिता बन जाती है. बेबीरानी का पति रेलवे में नौकरी करता था, उस के 2 बेटे भी थे. घर में सब कुछ होते हुए भी बेबी ने रेलवे के गार्ड गजेंद्र से नाजायज संबंध बना लिए. यही संबंध उस के परिवार के लिए इतने घातक साबित हुए कि…

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला क्षेत्र के मोहल्ला इंदिरा कालोनी में 19 सितंबर, 2018 को दोपहर 2 बजे गोली चलने की आवाज से सनसनी फैल गई. गोली चलने की आवाज रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र के मकान की ओर से आई थी. इस मकान में ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर पर किराएदार रहते थे. चूंकि गोली की आवाज फर्स्ट फ्लोर से आई थी, इसलिए नीचे रहने वाले किराएदार तुरंत ऊपर पहुंचे तो वहां किराए पर रहने वाली महिला बेबीरानी खून में लथपथ किचन में पड़ी थी. उसे इस हालत में देखते ही उन्होंने शोर मचाया. इस के बाद तो मोहल्ले के कई लोग वहां पहुंच गए.

महिला के सिर से खून बह रहा था. उस के शरीर में कोई हरकत न होने से लोग समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. घटना के समय मृतका का 4 साल का बच्चा आदित्य घर में ही मौजूद था. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. पता चला कि हत्या के समय महिला रसोई में खाना बना रही थी. खाना बनाते समय कोई उस के सिर में गोली मार कर चला गया. पुलिस को पूछताछ के दौरान पता चला कि 35 साल की बेबीरानी अपने 4 साल के बेटे आदित्य के साथ इस मकान में रहती थी. यह मकान रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र का है.

इस बीच मकान मालिक रमेशचंद्र भी वहां पहुंच गए. उन्होंने बताया कि डेढ़ महीने पहले ही बेबी ने उन का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले यह इसी क्षेत्र में अमित जाट के मकान में किराए पर रहती थी. थानाप्रभारी ने महिला की हत्या की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. इस पर एसएसपी सचिंद्र पटेल, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, सीओ संजय वर्मा फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के साथ ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी.

फोरैंसिक टीम द्वारा कई स्थानों से फिंगरप्रिंट उठाए गए. घटनास्थल का जायजा लेने पहुंचे एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. अधिकारियों ने 4 साल के मासूम आदित्य से पूछा कि घर में कौन आया था? मम्मी को गोली किस ने मारी? आदित्य ने बताया, ‘‘भैया आए थे. उन्होंने ठांय किया और मर गई मेरी मम्मी.’’

उस बच्चे ने भैया का नाम लिया तो पुलिस पता करने में जुट गई कि यह भैया कौन है. पुलिस ने छानबीन की तो जानकारी मिली कि मृतका बेबीरानी के पहले पति रामवीर के बड़े बेटे गुलशन को आदित्य भैया कहता था. बेबी के पहले पति रामवीर की हत्या 9 साल पहले हो चुकी है. पहले पति की हत्या के बाद बेबी ने अपने प्रेमी विजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू से दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति से 4 साल का बेटा आदित्य है. दूसरे पति से भी नहीं बनी बेबी की पुलिस को पूछताछ में पता चला कि शादी के कुछ समय बाद बेबी की दूसरे पति से नहीं पटी और वह उस से अलग हो गया. वर्तमान में वह आगरा में रह रहा है. बेबी पहले पति रामवीर की पेंशन से गुजारा करते हुए बेटे आदित्य के साथ किराए के मकान में रहती थी.

बेबी के पास उस के पहले पति का बेटा गुलशन अकसर आयाजाया करता था. पड़ोसियों ने भी गुलशन के वहां आते रहने की बात कही. बेबी के पहले पति रामवीर से 2 बेटे हैं गुलशन और हिमांशु. पिता की हत्या के बाद बच्चों के दादादादी दोनों को अपने साथ शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग ले गए थे. वहीं रह कर दोनों बच्चे बड़े हुए. मृतका के 4 वर्षीय बेटे के बयान के आधार पर पुलिस को यह शक हो गया कि बेबी की हत्या (Family Dispute) में उस के बेटे गुलशन का हाथ हो सकता है. जांच के दौरान यह भी पता चला कि दूसरा पति विजेंद्र सिंह पिछले ढाई साल से अपने बेटे आदित्य को देखने तक नहीं आया. चूंकि पुलिस का शक 20 वर्षीय गुलशन की तरफ था, इसलिए पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय दूसरे दिन पुलिस की एक टीम के साथ गांव कटौरा बुजुर्ग पहुंचे. घर पर उस का बीमार भाई हिमांशु मिला. उस ने बताया कि उसे मां की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उस ने बताया कि गुलशन घर पर नहीं है. वह दिल्ली में रह कर काम करता है. लिहाजा पुलिस टीम वहां से बैरंग लौट आई. 29 सितंबर को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी गुलशन को ऐत्मादपुर तिराहे से बाइक सहित गिरफ्तार कर लिया. गुलशन बाइक से कहीं जा रहा था. गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय, एसआई मुकेश कुमार, सुरेंद्र कुमार, इब्राहीम खां, धर्मेंद्र सिंह शामिल थे. गुलशन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा पुलिस ने बरामद कर लिया. आरोपी गुलशन ने थाने में मौजूद एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह द्वारा की गई पूछताछ में जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

बेबीरानी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना भौगांव अंतर्गत गांव मोटा की रहने वाली थी. उस की शादी थाना शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग निवासी 30 साल के रामवीर सिंह से हुई थी, जो रेलवे में खलासी पद पर नौकरी करता था. उस की पोस्टिंग टूंडला में हुई थी तो वह वहीं आ कर बस गया. वह रेलवे कालोनी के क्वार्टर में पत्नी बेबीरानी व दोनों बच्चों गुलशन व हिमांशु के साथ रहने लगा. तीखे नैननक्श, सुंदर और शोख अदाओं वाली बेबी के प्रेम संबंध हाथरस के सादाबाद के रहने वाले गजेंद्र उर्फ गुड्डू से हो गए थे, जोकि रेलवे में गार्ड था तथा टूंडला के रैस्टकैंप में ही रहता था. रामवीर के ड्यूटी पर जाने के बाद गुड्डू बेबी से मिलने उस के क्वार्टर पर पहुंच जाता था.

इस की भनक जब रामवीर को लगी तो उस ने बेबी पर निगाह रखनी शुरू कर दी. वह पत्नी पर सख्ती करने लगा, जिस की वजह से बेबी अपने पति से नाखुश रहने लगी. गहरी साजिश रची थी हत्या की  3-4 अक्तूबर, 2009 की आधी रात को जब पूरा परिवार घर में सोया हुआ था, तभी रात लगभग 2 बजे 2 व्यक्ति उस के क्वार्टर पर आए तथा दरवाजा खटखटाया. जैसे ही बेबी ने दरवाजा खोला, उन्होंने सोते हुए रामवीर को दबोच लिया तथा चाकू से उस का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. उस समय घर पर उस का बेटा गुलशन 11 साल का था.

बेबी अपने प्रेमी गुड्डू के प्रेमपाश में पूरी तरह बंध चुकी थी. उस से अवैध संबंध थे. अवैध संबंधों में बाधक बनने पर रामवीर भेंट चढ़ गया. इस मामले में तत्कालीन एसएसपी रघुवीर लाल को बेबीरानी ने बताया कि जगदीश नामक व्यक्ति ने दरवाजा खुलवाया था. उस के साथ एक व्यक्ति कोई और था. उन के द्वारा पति को चाकू मारने पर वह चीखीचिल्लाई, लेकिन कोई सहायता के लिए नहीं आया. घटना के बाद पड़ोसी वहां पहुंचे, लेकिन तब तक बदमाश भाग गए. पुलिस जांचपड़ताल कर ही रही थी, तभी पुलिस को मृतक के 11 वर्षीय बेटे गुलशन ने ऐसी जानकारी दी कि उस से न सिर्फ हत्यारे के बारे में जानकारी मिली बल्कि हत्या की वजह भी सामने आ गई.

एसपी रघुवीर लाल के निर्देश पर मृतक के चश्मदीद बेटे गुलशन व दूसरे बेटे हिमांशु को भी पूरी पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के साथ उन बच्चों की मां बेबीरानी को हिरासत में ले लिया गया था. घटना की रिपोर्ट मृतक के भाई श्यामवीर सिंह ने अपनी भाभी बेबीरानी और उस के प्रेमी गजेंद्र उर्फ गुड्डू व शाहिद के विरुद्ध दर्ज कराई थी. ‘मेरे पिता को हत्यारों ने जिस तरह से मारा है, उन्हें उन की सजा मैं ही दूंगा कोई और नहीं.’ यह बात गुलशन ने तत्कालीन एसपी से कही तो वह भी सन्न रह गए. उन्होंने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में पूछा तो उस की आंखों में खून उतर आया था.

घटना के चश्मदीद गुलशन ने तब पूरी घटना को बताते हुए कहा था कि बस उसे अपनी रिवौल्वर दे दो, वह अपनी मां को अभी मार देगा. उस ने सिर्फ हत्यारों की पहचान ही नहीं कराई बल्कि अपनी मां की पोल भी खोल दी थी. उस ने बताया, ‘‘बदमाशों ने उस के पिता को पलंग से खींच कर जमीन पर गिराया तभी वह जाग गया था. इस दौरान उस की मां उसे खींच कर दूसरे कमरे में ले जाने लगी थी. पिता की चीख पर जब उस ने पलट कर देखा तो उस ने पिता के गले में चाकू घुसा पाया.’’ इस दौरान उस ने मां के रोने की बात को नाटक बताया था.

गुलशन के सामने हुई थी पिता की हत्या इस छोटी सी उम्र में अपनी आंखों के सामने हुई पिता की हत्या से उस समय मासूम गुलशन के चेहरे पर बदले की भावना के तीखे तेवर स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. पुलिस कस्टडी में बैठी बेबीरानी को तब उस के प्रेम संबंधों के चलते न ही प्रेमी मिल पाया था और न ही पति रहा और बच्चे भी उस से दूर चले गए थे. पिता की हत्या के बाद बिखरे रिश्ते अंत तक नहीं जुड़ पाए. गुलशन पिता की हत्या का चश्मदीद गवाह था. बेबी जेल से जल्दी छूट आई थी. वह पति की पेंशन से अपना खर्च चला रही थी. गुलशन ने रिश्तों की बर्फ पिघलाने की हरसंभव कोशिश की. उस ने मां को दादादादी के गांव चल कर रहने की बात कही, लेकिन उस ने साफ इनकार कर दिया.

बेबी व गुड्डू के कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद बेबी के गुड्डू से एक बेटा आदित्य हुआ जो इस समय 4 साल का है. शादी के बाद बेबी की अपने दूसरे पति गजेंद्र से भी नहीं पटी. वक्त गुजरने के साथसाथ बेबी और गजेंद्र अलग हो गए. गुलशन ने बताया कि वह कई दिन से मां के पास लगातार जा रहा था. छोटा भाई बीमार था, उस का इलाज कराने की बात पर मां ने कहा कि मेरे पास आ कर रहो. गुलशन ने मना कर दिया. उस का कहना था कि जो मेरे बाप को मरवा सकती है, वह मुझे भी मरवा सकती थी. गुलशन को पिता की जगह आश्रित कोटे से रेलवे में नौकरी मिलने का मामला भी तय हुआ था.

मां उस से इस कदर नफरत करने लगी थी कि जब उस की नौकरी लगने का मौका आया तो उस ने सहमतिपत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया. वह उस से बेगाने जैसा (Family Dispute) व्यवहार कर रही थी. मां के सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर जरूरी थे. भाई का इलाज व नौकरी को मना करने पर गुलशन का खून खौल उठा. गुलशन बना मां का हत्यारा 19 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह मां के पास पहुंचा. उस समय वह रसोई में रोटी बना रही थी. आटे की लोई बेल रही थी. गुलशन ने तमंचे से उस के सिर के पीछे गोली मार दी. गोली लगते ही बेबी कटे पेड़ की तरह रसोई में ही गिर गई. उस के हाथ से आटे की लोई छूट कर पास ही गिर गई. घटना को अंजाम दे कर गुलशन तेजी से घर से भाग गया. भागते समय उस के 4 वर्षीय सौतेले भाई आदित्य ने उसे देख लिया था.

मृतका बेबी का 4 साल का बेटा आदित्य अनाथ हो गया. मां की हत्या के बाद अब उसे कहां भेजा जाएगा, कोई नहीं बता रहा है. क्योंकि पिछले ढाई साल से उस का पिता गजेंद्र उर्फ गुड्डू एक बार भी उसे देखने नहीं आया. फिलहाल पुलिस ने उसे पड़ोस में रहने वाली एक महिला को सौंप दिया है. यह अजीब संयोग था कि मां का कातिल बना बेटा गुलशन अपने पिता की हत्या में मां के खिलाफ गवाह था. वहीं अब दूसरा बेटा आदित्य मां की हत्या के मामले में अपने बड़े भाई के खिलाफ गवाह है. अपने प्रेमी की मोहब्बत पाने के लिए उस ने अपनी ही मांग का सिंदूर उजाड़ डाला. जेल से छूटने के बाद प्रेमी के साथ घर बसाया, मगर सब कुछ उजड़ गया.

पहले पति के बेटे की गोली का शिकार बनी मृतका बेबी का शव पोस्टमार्टम कक्ष में रखा रहा. टूंडला में ही मृतका की बहन रेनू रहती है, लेकिन मायका व ससुराल पक्ष से, यहां तक कि बेबीरानी से शादी रचाने वाला गजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू भी सामने नहीं आया. बेबी को अपने किए की सजा उसे मौत के रूप में मिली. अपनों के होते हुए भी पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ही लावारिस लाशों की तरह उस का अंतिम संस्कार किया.

पुलिस ने हत्यारोपी गुलशन को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Rajasthan Crime : संपत्ति के लिए प्रेमी से कराई पति की हत्या

Rajasthan Crime : जब किसी ब्याहता के पैर बहक जाते हैं तो उसे वापस अपने रास्ते पर लाना बड़ा मुश्किल होता है. बैंक मैनेजर रोशनलाल की पत्नी निर्मला के साधनसंपन्न होने के बावजूद पड़ोसी उमेश शर्मा से नाजायज संबंध हो गए. इस का नतीजा इतना दुखद निकला कि…

इसी साल 19 सितंबर की बात है. रोशनलाल यादव को बैंक में काम करतेकरते काफी देर हो गई थी. रोशनलाल जयपुर में गवर्नमेंट हौस्टल चौराहे के पास स्थित सिटी बैंक की शाखा में मैनेजर थे. वैसे तो उन्हें आमतौर पर रोजाना ही शाम के 7-8 बज जाते थे. इस की वजह यह थी कि निजी बैंकों में सरकारी बैंकों की तरह सुबह 10 से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी नहीं होती है. हालांकि निजी बैंकों में भी ड्यूटी आवर्स होते हैं, लेकिन सारी जिम्मेदारियां मैनेजर की होती हैं. इसीलिए उन्हें बैंक से निकलने में रात के साढ़े 8 बज गए थे.

दिन भर कामकाज करने और उच्चाधिकारियों के ईमेल, वाट्सऐप के जवाब देतेदेते रोशनलाल भी थक गए थे. काम की व्यस्तता में वह शाम की चाय भी नहीं पी सके थे. जोरों की भूख भी लग रही थी. वे जल्द घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद भोजन करना चाह रहे थे. रोशनलाल ने बैंक के बाहर खड़ी अपनी कार निकाली और घर की ओर चल दिए. उन के साथ बैंक का एक कर्मचारी उन की कार में पानीपेच चौराहे तक साथ आया, वह पानीपेच चौराहे पर उतर गया. रोशनलाल जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार कालोनी में पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे.

कोई पुराना गीत गुनगुनाते हुए रोशनलाल अपनी कार मध्यम रफ्तार से चला रहे थे. रास्ते में उन्हें सिगरेट पीने की तलब लगी तो अपने घर से करीब एक किलोमीटर पहले रास्ते में कार रोक दी. कार से उतर कर वह दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर के पास एक थड़ी पर सिगरेट लेने चले गए. सिगरेट ले कर वह अपनी कार में आ कर बैठे ही थे कि सामने से अचानक एक स्कूटी पर सवार 2 युवक तेजी से उन की कार के सामने आ गए. स्कूटी से उतर कर एक युवक उन के पास आया और नजदीक से 2 फायर कर दिए. दोनों गोलियां रोशनलाल के सीने में लगीं यह रात करीब 9 बजे की घटना है. गोली चलते ही उस इलाके में अफरातफरी मच गई. यह इलाका रोशनलाल के घर के पास था, इसलिए कुछ लोग उन्हें जानतेपहचानते थे.

आसपास के लोग रोशनलाल को उन की ही कार से नजदीकी निजी अस्पताल ले गए. निजी अस्पताल के डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन की गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जाने को कहा. रोशनलाल को निजी अस्पताल ले जाने वाले लोग जब उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में करधनी पुलिस थाने पर रुक कर पुलिस को इस घटना के बारे में बता दिया. थाने में ही खड़ी सरकारी एंबुलेंस से एक पुलिसकर्मी के साथ रोशनलाल को सवाई मानसिंह अस्पताल भेजा गया. साथ ही उन के परिजनों को भी सूचना दे दी गई.

सूचना मिलने पर रोशनलाल की पत्नी निर्मला यादव और कुछ सगेसंबंधी सीधे अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों ने रोशनलाल की जिंदगी बचाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन रात करीब सवा 11 बजे उन की मृत्यु हो गई. बैंक मैनेजर रोशनलाल पर हुई फायरिंग की जानकारी मिलने पर पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर जांचपड़ताल की. पुलिस ने फायरिंग करने वाले बदमाशों का पता लगाने के लिए घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, लेकिन पुलिस को रात भर की भागदौड़ के बाद भी बदमाशों का कुछ पता नहीं चला. केवल इतना ही पता चल पाया कि बदमाश पहले से ही घात लगा कर बैठे थे. वे लोग रोशनलाल का बैंक से लौटने का इंतजार कर रहे थे.

दूसरे दिन रोशनलाल के बड़े भाई कोटपुतली निवासी रत्तीराम यादव की रिपोर्ट पर थाना करधनी में रोशनलाल की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 व 34 में दर्ज कर लिया गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने रोशनलाल का शव उन के घर वालों को सौंप दिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी निर्मला सहित परिवार के लोगों और बैंककर्मियों से पूछताछ कर के पता लगाने का प्रयास किया कि क्या उन की किसी से दुश्मनी थी. पुलिस ने बैंक के उस कर्मचारी से भी पूछताछ की, जो रोशनलाल के साथ पानीपेच चौराहे तक आया था.

उस ने बताया कि रास्ते में चिंकारा कैंटीन के पास रोशनलाल के मोबाइल पर एक फोन आया था, जिस पर वे कुछ देर तक बात करते रहे थे. फोन किस का था, यह उसे पता नहीं. वह पूरा दिन करीब सौ लोगों से पूछताछ, मौकामुआयना और कैमरों की फुटेज की जांच में निकल गया. रात तक हत्यारों के बारे में कुछ पता नहीं चला. रोशनलाल मूलरूप से जयपुर जिले के कोटपुतली के रहने वाले थे. उन की मौत की सूचना मिलने पर उन के गांव से भी कुछ लोग जयपुर आ गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ कर के रोशनलाल के हत्यारों का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन इस से कोई खास मदद नहीं मिल सकी.

पुलिस की जांच में 2-3 बातें मुख्यरूप से सामने आईं. एक तो यह कि रोशनलाल बैंक में कामर्शियल वाहनों के लोन मंजूर करते थे. बैंक से लोन देने के अलावा वह निजी रूप से भी ब्याज पर लोगों को पैसा उधार देते थे. रोशनलाल ने कुछ लोगों को मोटी रकम भी उधार दे रखी थी. एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली कि पत्नी निर्मला से उन का अकसर झगड़ा होता रहता था. निर्मला ने करीब 4 महीने पहले मारपीट की शिकायत पुलिस को दी थी. पुलिस इन तीनों कोणों से जांच करने में जुट गई.

इस के लिए जयपुर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) नितिन दीप ब्लग्गन के निर्देश पर पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (प्रथम) रतन सिंह और झोटवाड़ा के सहायक पुलिस आयुक्त आस मोहम्मद के सुपरविजन में करधनी थानाप्रभारी मानवेंद्र सिंह चौहान, मुरलीपुरा, झोटवाड़ा व कालवाड़ के थानाप्रभारियों और इंसपेक्टर जहीर अब्बास के नेतृत्व में अलगअलग स्पैशल टीमें गठित कीं. इस बीच पुलिस ने रोशनलाल के मकान के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो लोगों ने उमेश शर्मा पर शक करते हुए उस के मोबाइल नंबर भी दे दिए. उमेश पहले रोशनलाल के पड़ोस में ही रहता था. पारिवारिक बातों को ले कर रोशनलाल, उन की पत्नी निर्मला और उमेश के बीच कई बार झगड़े होते थे.

बाद में उमेश वहां से अपना खुद का मकान खाली कर के जयपुर (Rajasthan Crime) में ही मानसरोवर कालोनी में रहने लगा था. उस ने गणेश नगर विस्तार के अपने मकान के 2 कमरे किराए पर दे दिए थे. अपने मकान की देखभाल के बहाने उमेश आए दिन इस कालोनी में आता रहता था. पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबरों की लोकेशन खंगाली तो उत्तराखंड की आई. पुलिस ने उत्तराखंड पुलिस की मदद से 21 सितंबर को उमेश और उस के 3 साथियों को अल्मोड़ा से पकड़ लिया. मृतक की पत्नी भी थी शामिल पुलिस इन सब को जयपुर ले आई. उमेश ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उस ने बैंक मैनेजर रोशनलाल की हत्या अपने भाई की मार्फत उत्तर प्रदेश के शूटरों को सुपारी दे कर करवाई थी.

उमेश ठेकेदारी करता था. इसी काम के बहाने वह रोशनलाल की हत्या से करीब 10 दिन पहले उत्तराखंड चला गया था. उत्तराखंड से ही वह मोबाइल के जरिए रोशनलाल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. उस ने यह काम शातिराना तरीके से इसलिए किया था, ताकि उस की लोकेशन जयपुर में न आए. उमेश ने पुलिस को बताया कि रोशनलाल की हत्या की साजिश में उन की पत्नी निर्मला भी शामिल थी. इस पर पुलिस ने निर्मला को थाने बुला कर पूछताछ की. निर्मला और उमेश से अलगअलग और आमनेसामने बैठा कर की गई पूछताछ में रोशनलाल की हत्या का राज खुल कर सामने आ गया.

इस से यह बात भी साफ हो गई कि निर्मला ने ही उमेश के साथ मिल कर अपने बैंक मैनेजर पति की हत्या करवाई थी. निर्मला को प्रेमी के साथ पति की संपत्ति भी चाहिए थी, इसलिए उस ने रोशनलाल को तलाक देने के बजाय उन की हत्या करवा दी. यह रोशनलाल का दुर्भाग्य था कि निर्मला की बेवफाई का पता होने के बावजूद वह अपनी जान नहीं बचा सके. उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि उन की पत्नी एक दिन उस की हत्या करा देगी. फिर भी वह इतने दरियादिल थे कि अपनी पत्नी की उस के प्रेमी से शादी कराने को भी तैयार हो गए थे. लेकिन निर्मला का प्रेमी उमेश समय पर अदालत नहीं पहुंचा, जिस से दोनों की शादी नहीं हो सकी.

निर्मला यादव और उमेश शर्मा से पूछताछ के आधार पर पुलिस के सामने जो कहानी आई, वह इस तरह थी—

रोशनलाल यादव जयपुर जिले के कोटपुतली के पवाना गांव के रहने वाले थे. सन 2004 में रोशन का विवाह निर्मला से हो गया. वह उन से उम्र में 6 साल छोटी थी. जब निर्मला की शादी हुई, तब वह 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. उन्होंने शादी के बाद निर्मला को एमए तक पढ़ाया. साथ ही फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी कराया. नौकरी के दौरान रोशनलाल की जहां भी पोस्टिंग हुई, उन्होंने निर्मला को अपने साथ रखा. बैंक में बड़े पद पर होने के कारण रोशन की तनख्वाह भी अच्छी थी. घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रही.

8 साल पहले सन 2010 में जयपुर (Rajasthan Crime) में पोस्टिंग होने पर रोशनलाल ने करधनी में एक प्लौट ले कर अपना मकान बनवा लिया. उसी दौरान उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के नई आबादी रैना गांव के रहने वाले उमेश शर्मा ने भी रोशनलाल के पड़ोस में मकान बनवाया. दोनों ने एक ही दिन अपनेअपने मकान में गृह प्रवेश किया. रोशनलाल और उमेश के बीच बन गए पारिवारिक संबंध उमेश शर्मा 2003 के आसपास जयपुर आया था. उस समय जयपुर में प्रौपर्टी बाजार में बूम आया हुआ था. उमेश ने प्रौपर्टी में रकम लगा कर काफी पैसा कमाया. वह अमीरों की तरह जिंदगी जीता था. फिलहाल उस के पास करधनी इलाके में 2 मकान और अजमेर रोड पर बिचून में 15 बीघा जमीन थी. कई प्रौपर्टीज में उस ने मोटा पैसा लगा रखा था. अब वह ठेकेदारी का काम भी करने लगा था.

पड़ोसी होने के नाते उमेश व रोशनलाल के परिवार के बीच अच्छे संबंध थे. एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में भी काम आते थे. सन 2016 में उमेश और रोशनलाल सहित कालोनी के कई परिवार शिमला घूमने गए. शिमला में उमेश की निर्मला से नजदीकियां बढ़ गईं. शिमला से जयपुर लौटने के कुछ दिन बाद ही निर्मला के भाई की मौत हो गई. उस समय सांत्वना देने के लिए उमेश का पूरा परिवार कई बार निर्मला के घर गया. जनवरी 2017 में उमेश और निर्मला के बीच मोबाइल पर एसएमएस और वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग होने लगी.

कभीकभी दोनों मोबाइल पर भी बातें कर लेते थे. बाद में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. पहले दोनों छिप कर मिलते थे. बाद में जब उन के संबंधों की चर्चा पासपड़ोस में होने लगी तो रोशनलाल को इस बात का पता चल गया. उन्होंने निर्मला को काफी भलाबुरा कहा और समझाया भी. इस के बाद दोनों परिवारों में झगड़े होने लगे. निर्मला से अवैध संबंधों को ले कर कई बार उमेश और रोशनलाल के बीच मारपीट की नौबत भी आ गई थी. बाद में नवंबर 2017 में उमेश शर्मा गणेश नगर विस्तार करधनी का अपना मकान खाली कर के मानसरोवर कालोनी में रजतपथ पर किराए के मकान में रहने लगा. उमेश ने रोशनलाल के पड़ोस का अपना मकान किराए पर दे दिया था.

उमेश भले ही रोशनलाल के मकान से 20 किलोमीटर दूर रहने लगा था, लेकिन निर्मला से उस की बातचीत होती रहती थी. इतना जरूर हुआ था कि अब निर्मला और उमेश का मिलनाजुलना कम हो गया था. फिर भी जैसे ही मौका मिलता, तब दोनों एकदूसरे से मिल लेते थे. निर्मला करती थी पति को निपटाने की बातनिर्मला जब भी उमेश से मिलती, तो उस से अपने पति रोशनलाल को रास्ते से हटाने की बात कहती थी, ताकि दोनों बिना किसी डर के एकदूसरे के साथ रह सकें. उमेश तो पहले से ही निर्मला के प्यार में अंधा हो चुका था. निर्मला के बारबार कहने पर उस ने इसी साल अप्रैल में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपने सगे भाई राहुल शर्मा को रोशन की हत्या की जिम्मेदारी सौंप दी. राहुल ने रोशन की हत्या करवाने के लिए अपने भाई से 4 लाख रुपए लिए.

राहुल के खिलाफ उत्तर प्रदेश में मारपीट, लूट और वाहन चोरी के कई मामले दर्ज थे. राहुल ने जयपुर के जगतपुरा में टीएस टेक्सटाइल्स नाम से बैडशीट बनाने की फैक्ट्री लगा रखी थी, जिस में उसे काफी नुकसान हुआ था. वह कर्ज में डूबा हुआ था. राहुल भी पहले गणेश नगर विस्तार में ही रहता था. बाद में वह जगतपुरा में रहने लगा था.  राहुल ने रोशनलाल की हत्या के लिए उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू, पप्पू कश्यप और विष्णु कश्यप नाम के बदमाशों से संपर्क किया. संपर्क होने के बाद राहुल ने इन बदमाशों को जयपुर बुलाया. बदमाश हथियार ले कर जयपुर पहुंचे. राहुल ने 29 मई से 1 जून तक तीनों बदमाशों को जयपुर के एक होटल में ठहराया.

राहुल ने रोशल की हत्या के लिए एडवांस के तौर पर शूटर शिवकांत को 30 हजार रुपए, विष्णु को 15 हजार और पप्पू कश्यप को 10 हजार रुपए दिए थे. राहुल ने भाई उमेश से लिए 4 लाख रुपए में से बाकी पैसे अपना कर्ज चुकाने में खर्च कर दिए थे. इस दौरान राहुल ने इन बदमाशों से रोशनलाल की उन के मकान, सिटी बैंक और कोटपुतली के पास स्थित गांव के आसपास की रैकी करवाई. उमेश शर्मा इन शूटरों से फिरोजाबाद और जयपुर में तो मिला ही, रोशनलाल की रैकी में कई बार उन के साथ भी रहा.

रैकी के दौरान निर्मला अपने पति रोशन के आनेजाने की पूरी सूचना उमेश को देती रही. कई बार कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश से आए शूटरों को रोशनलाल की हत्या का मौका नहीं मिला. बाद में तीनों शूटर जयपुर से वापस चले गए. 2 सप्ताह बाद ही राहुल ने फिरोजाबाद से तीनों शूटरों को फिर जयपुर बुलाया. उन्हें 15 और 16 जून को गोपालपुरा के एक होटल में ठहराया गया. इस बार भी राहुल और उमेश ने रोशनलाल की रैकी करवाई, लेकिन शूटर अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. इस बीच उमेश शर्मा से मुलाकात होने और कई जगह रैकी में साथ रहने के दौरान फिरोजाबाद से आए शूटरों को पता चला कि राहुल तो केवल मोहरा है.

रोशनलाल की जान तो उमेश शर्मा लेना चाहता है और उमेश काफी मोटी आसामी है, इसलिए शूटरों ने राहुल से रोशनलाल को मारने के एवज में अपनी डिमांड बढ़ा कर 15 लाख रुपए कर दी. राहुल उन दिनों कर्ज में डूबा हुआ था. रोशनलाल की हत्या की सुपारी के नाम पर वह अपने भाई उमेश से 4 लाख रुपए पहले ही ले चुका था. दूसरी ओर एकएक दिन गिन रही निर्मला लगातार उमेश पर रोशन को मरवाने के लिए दबाव बना रही थी. इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल पर रोशनलाल की जल्द से जल्द हत्या करवाने या 4 लाख रुपए वापस लौटाने का दबाव बनाया.

भाई पर दबाव बना कर उमेश उत्तराखंड चला गया. उसे उम्मीद थी कि जल्दी ही रोशनलाल का खेल खत्म हो जाएगा. इसलिए अपने बचाव के लिए वह अपने साथी महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू के साथ अल्मोड़ा में कार्यरत अपने साले आकाश रावत के पास चला गया. महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू को रोशनलाल की हत्या की साजिश और पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. वह उमेश के गांव के पास का ही रहने वाला था और दोनों भाइयों उमेश व राहुल का खास दोस्त था. उमेश ने महेंद्र प्रताप को काफी पैसा भी दे रखा था. निर्मला ने प्रेमी को दिया था उलाहना 18 सितंबर को निर्मला ने मोबाइल पर उमेश से बात कर के अभी तक काम न होने का उलाहना दिया.

इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल को रोशन की हत्या या पैसे वापस करने का अल्टीमेटम दे दिया. उन दिनों राहुल का भांजा फरीदाबाद निवासी मनीष उर्फ सनी जयपुर आया हुआ था. आखिरकार राहुल ने अपने भांजे के साथ मिल कर रोशनलाल की हत्या करने का फैसला किया. राहुल ने मनीष के साथ मिल कर 19 सितंबर की रात करीब 9 बजे फायरिंग कर के रोशनलाल की हत्या कर दी. रोशन को गोलियां मारने के तुरंत बाद राहुल ने उमेश को फोन कर के बता दिया कि रोशन को मार दिया. रोशनलाल की मौत की सूचना मिलने के बाद उमेश के साले आकाश रावत ने राहुल के बैंक खाते में 20 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए.

पुलिस ने रोशनलाल की हत्या के मामले में उस की पत्नी निर्मला यादव और उस के प्रेमी उमेश शर्मा के अलावा जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार के रहने वाले महेंद्र प्रताप ओझा उर्फ टीटू, उमेश के साले आकाश रावत और फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू को गिरफ्तार कर लिया. इन में आकाश रावत मूलत: आगरा के सिकंदरा थानांतर्गत शास्त्रीपुरम का रहने वाला था. वह आजकल उत्तराखंड में जिला ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर में रह रहा था. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई राहुल की स्कूटी उस के घर से बरामद कर ली.

पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि रोशनलाल ने लोगों को करीब 50 लाख रुपए ब्याज पर दे रखे थे. निर्मला इस रकम के साथसाथ रोशनलाल की सारी संपत्तियां लेना चाहती थी. इसलिए वह रोशन से तलाक लेने के बजाय उस की हत्या करवाना चाहती थी. उमेश ने भी रोशनलाल से मोटी रकम ब्याज पर ले रखी थी. उमेश चाहता था कि रोशनलाल मारा जाए तो पैसे नहीं चुकाने पड़ेंगे. इसलिए उस ने रोशन की मौत का सौदा किया. वह निर्मला के सामने यह दिखावा करता रहा कि वह यह सब उस के प्रेम की वजह से कर रहा है.

पत्नी के प्रेमी से शादी कराने को राजी हो गए थे रोशनलाल उमेश और निर्मला के अवैध संबंधों के बारे में रोशनलाल को सब से पहले उमेश की पत्नी ने ही बताया था. इस के दूसरे ही दिन रोशन ने घर में नया मोबाइल चार्जिंग के लिए लगा देखा तो निर्मला से पूछा. उस ने बताया कि यह मोबाइल उमेश ने दिया है. रोशन ने पत्नी से मोबाइल का लौक खुलवाया. मोबाइल में निर्मला और उमेश के बीच हुई वाट्सऐप चैटिंग देख कर रोशनलाल अपनी 2 बेटियों और 3 साल के बेटे के भविष्य और अपनी प्रतिष्ठा के कारण खून का घूंट पी कर रह गए.

निर्मला का उमेश के प्रति लगातार बढ़ा झुकाव देख कर रोशनलाल अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए उस की शादी उमेश से कराने को भी तैयार हो गए थे. पतिपत्नी कोर्ट में पहुंच भी गए, लेकिन वहां पर उमेश नहीं आया. इस के कुछ दिन बाद तक रोशन के घर में शांति रही. निर्मला उमेश से नहीं मिली लेकिन कुछ दिन बाद ही वह फिर उस से मिलने लगी. एक दिन रोशन ने दोनों को देख लिया तो निर्मला ने कहा कि उमेश ने उस के साथ जबरदस्ती की है. तब रोशन ने उस से कहा कि अगर जबरदस्ती की है तो उमेश के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराने चलो. निर्मला थाने पहुंच भी गई, लेकिन उमेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले ही वह बदल गई. वह आगे से उमेश से न मिलने का वादा कर के रोशनलाल को मना कर बिना रिपोर्ट दर्ज कराए घर वापस लौट आई.

इस के कुछ दिन बाद करीब एक साल पहले निर्मला अपने ढाईतीन साल के बेटे को गोद में ले कर प्रेमी उमेश के साथ भागने के लिए घर से निकल गई. निवारू रोड पर वह उमेश से मिलने के बाद अपने रिश्तेदार के घर चली गई. बाद में रोशन उसे समझाबुझा कर घर ले आए. निर्मला प्रेमी के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह अपने प्रेमी और उस के रिश्तेदारों के जरिए पति को धमकी भरे फोन करवाती, फिर खुद ही पड़ोसियों से जा कर कहती कि पति को कोई जान से मारने की धमकी दे रहा है. हत्या से करीब एक सप्ताह पहले निर्मला और रोशनलाल के बीच झगड़ा हुआ. मामला पुलिस तक पहुंच गया.

रोशन ने मिल रही धमकियों के बारे में पुलिस को बताया. लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से न ले कर दोनों को समझा कर घर भेज दिया. पुलिस ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि धमकियां कहां से मिल रही हैं. अगर पुलिस जांच करती तो शायद रोशनलाल आज जीवित होते. बाद में पुलिस ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के शूटर पप्पू कश्यप को भी गिरफ्तार कर लिया. पप्पू ने पुलिस को बताया कि शिवकांत के साथ उस ने और विष्णु कश्यप ने जयपुर व कोटपुतली में रोशनलाल की रैकी की थी.

उन्हें लगा कि अगर रोशन की हत्या के बाद पुलिस उन तक पहुंच गई तो वे फंस जाएंगे. इसलिए पप्पू और विष्णु कश्यप उत्तर प्रदेश में पहले से दर्ज आपराधिक मामलों में जारी वारंट की वजह से खुद ही गिरफ्तार हो गए और जमानत नहीं करवाई. कथा लिखे जाने तक इस मामले में राहुल शर्मा और उस के भांजे मनीष उर्फ सनी के अलावा एक शूटर फरार था. पुलिस इन की तलाश में जुटी थी. पुलिस ने गिरफ्तार सभी 6 आरोपियों को 30 सितंबर को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दिया.

यह विडंबना रही कि निर्मला को अपने बैंक मैनेजर पति के खून से हाथ रंगने के बाद भी प्रेमी नहीं मिल सका. अभी 6वीं और 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्मला की 2 बेटियां बड़ी होने के बाद भी अपनी मां को कभी माफ नहीं कर सकेंगी. और तो और निर्मला के 3 साल के अबोध बेटे से भी मां का आंचल छिन गया है.

Maharashtra Crime : बेटे को मरवाने के लिए मां ने बेचा मंगलसूत्र

Maharashtra Crime : बेटा कितना भी राक्षस बन जाए, मां के साथ दुराचार नहीं कर सकता. लेकिन रामचरण द्विवेदी ऐसा दुराचारी बन गया था कि उस ने उस मां का भी शिकार कर लिया, जिस ने उसे जन्म दिया था. मां इस अनर्थ को सह नहीं पाई और उस ने…

सुबह के यही कोई साढ़े 9 बजे का समय था. मुंबई (Maharashtra Crime) महानगर से सटे जनपद पालघर के उपनगर वसई जानकी पाड़ा की पहाडि़यों के बीच की खाई के पास काफी लोगों की भीड़ जमा थी. लोगों के जमा होने की वजह यह थी कि उस गहरी खाई में एक युवक की लाश पड़ी थी. मामला हत्या का लग रहा था, इसलिए किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पालघर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह क्षेत्र थाना वालिव के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने युवक की लाश की सूचना थाना वालिव के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संजय हजारे इंसपेक्टर डी.वी. वांदेकर और एसआई विनायक माने को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल थाने से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर था. पुलिस 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने खाई में उतर कर युवक की लाश पर सरसरी नजर डाली. उस की उम्र करीब 22 साल थी. वह जमीन पर औंधे मुंह पड़ा हुआ था, शरीर पर किसी धारदार हथियार के कई घाव थे. उस का गला भी काटा हुआ था.

थानाप्रभारी संजय हजारे टीम के साथ लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि पालघर डिवीजन के एसपी मंजूनाथ सिंगे, एसडीपीओ दत्ता तोटेवाड़ फोरेंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. फोरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक के शव का निरीक्षण किया और थानाप्रभारी को दिशानिर्देश दे कर लौट गए. थानाप्रभारी संजय हजारे ने शव को खाई से बाहर निकलवाया और वहां भीड़ से उस की शिनाख्त करने को कहा. लेकिन भीड़ में ऐसा कोई नहीं था जो मृतक को पहचान पाता. इस से यह बात साफ हो गई कि मृतक उस जगह या उस इलाके का रहने वाला नहीं था.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए पालघर जिला अस्पताल भेज दिया. यह 21 अगस्त, 2017 की बात है. थाने लौटने के बाद थानाप्रभारी संजय हजारे ने इस केस के बारे में अपने सहायकों के साथ विचारविमर्श किया और जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर डी.वी. वांदेकर को सौंप दी. डी.वी. वांदेकर ने मामले की तह तक जाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एसआई विनायक माने और कुछ सिपाहियों को टीम में शामिल किया. पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या लाश की शिनाख्त की थी, क्योंकि शिनाख्त के बाद ही आगे की कडि़यां जुड़ सकती थीं.

शिनाख्त के लिए पुलिस ने वायरलैस से जिले के सभी पुलिस थानों को मृतक का हुलिया भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी पुलिस थाने में उस हुलिए के युवक की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. पुलिस टीम को पूरी आशा थी कि किसी न किसी पुलिस थाने में मृतक के लापता होने की शिकायत जरूर दर्ज होगी. लेकिन पुलिस टीम की यह उम्मीद विफल हो गई. किसी भी थाने में मृतक के हुलिए से मिलतेजुलते किसी युवक की गुमशुदगी की सूचना दर्ज नहीं थी. लेकिन इस से पुलिस टीम निराश नहीं हुई. टीम ने लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट छपवा कर जिले के सभी रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सार्वजनिक स्थानों पर लगवा दिए.

इस के अलावा पुलिस ने सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया का सहारा ले कर मृतक की शिनाख्त की अपील की. लेकिन इस से भी कामयाबी नहीं मिली. जैसेजैसे समय गुजर रहा था, वैसेवैसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का दबाव बढ़ता जा रहा था. तमाम कोशिशों के बावजूद पुलिस के हाथ खाली थे. 15 दिसंबर को पुलिस को अचानक एक गुप्त सूचना मिली. इस सूचना पर काम किया गया तो सफलता मिलती गई. पुलिस को सूचना मिली कि जिस युवक की हत्या हुई थी, उस युवक का नाम रामचरण द्विवेदी है. वह उसी दिन से गायब है, जिस दिन खाई में अज्ञात लाश मिली थी. सूचना में यह भी बताया गया कि रामचरण उपनगर भायंदर के गणेश देवल नगर में रहने वाले रामदास द्विवेदी का बेटा है.

सूचना मिलने के बाद पुलिस ने रामदास और उस के परिवार वालों को थाने बुला लिया. उन्हें जब लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए तो वे फोटो और कपड़ों को देखते ही दहाड़ मार कर रोने लगे. रामदास ने बताया कि यह उस का बेटा रामचरण है. पुलिस ने रामदास द्विवेदी से उस के बेटे के बारे में पूछताछ की तो उस ने बस इतना ही बताया कि रामचरण का चालचलन ठीक नहीं था. वह आवारा किस्म का युवक था. ड्रग्स के अलावा वह शराब और शबाब का भी आदी था. औरत उस की खास कमजोरी थी, जिस की वजह से इलाके के कई लोगों से उस की दुश्मनी हो गई थी.

प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रामचरण द्विवेदी और उन के परिवार को घर भेज दिया. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस टीम का सिरदर्द आधा हो गया था. अब उन्हें यकीन हो गया था कि हत्या की गुत्थी जल्दी ही सुलझ जाएगी. पुलिस टीम ने मुखबिरों के जरिए जब मृतक रामचरण का इतिहास खंगाला तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. इस के बाद पुलिस गणेश देवल नगर पहुंची. पुलिस ने वहां के लोगों से पूछताछ की तो संदेह की सुई रामचरण द्विवेदी के घर वालों की तरफ ही घूम गई.

पुलिस ने रामचरण के घर वालों को फिर से थाने में बुला कर पूछताछ की तो वे पुलिस के सवालों के बीच उलझ कर रह गए. उन के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उन्होंने रामचरण के गायब होने की शिकायत स्थानीय पुलिस थाने में क्यों नहीं दर्ज कराई. पुलिस समझ गई कि दाल में जरूर ही कुछ काला है. लिहाजा जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो रामदास ने सच उगल दिया. उस ने बताया कि उस के सामने ऐसे हालात बन गए थे कि उसे अपने ही बेटे की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. चूंकि उस से विस्तृत पूछताछ करनी थी, इसलिए पुलिस ने उसे वसई कोर्ट के मैट्रोपोलिटन मजिस्टै्रट के यहां पेश कर के एक सप्ताह के रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान रामदास और उन की पत्नी रजनी ने अपने ही बेटे की हत्या करने की जो कहानी बताई वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली. रामदास द्विवेदी मुंबई के उपनगर भायंदर (वेस्ट) में अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में उस की पत्नी रजनी के अलावा 2 बेटे थे. बड़े बेटे का नाम सीताराम और छोटे का नाम रामचरण था. बड़े बेटे की शादी हो चुकी थी. छोटा बेटा रामचरण भी शादी के लायक हो गया था. लेकिन उस का आचरण ठीक नहीं होने के कारण उस के लिए कोई रिश्ता नहीं आ रहा था.

रामदास द्विवेदी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के मछली शहर का रहने वाला था. उस के पिता रामचंद्र द्विवेदी कथावाचक ब्राह्मण थे. गांव, समाज और बिरादरी में उन की काफी इज्जत थी. लेकिन उन के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पूजापाठ में इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च सुचारू रूप से चल सके. घर की परेशानियों की वजह से रामदास द्विवेदी रोजीरोटी की तलाश में मुंबई चला आया था. मुंबई के भायंदर इलाके में उस के गांव के कई लोग रहते थे. उन के सहयोग से रामदास को कोई अच्छी नौकरी तो नहीं मिली, उसी इलाके की एक इमारत में चौकीदारी की नौकरी जरूर मिल गई. हालांकि चौकीदारी में इतनी कमाई नहीं थी. लेकिन रामदास मेहनती इंसान था.

वह लोगों की कारों की धुलाई और साफसफाई कर के इतना कमा लेता था कि घरपरिवार का काम चल सके. धीरेधीरे पैसे जमा कर के उस ने अपना एक झोपड़ा खरीद लिया था. अपने खर्चे के बाद जो पैसा बचता, उसे वह गांव भेज देता था. इस से परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी थी. इसी दौरान बनारस की रहने वाली लक्ष्मी से उस की शादी हो गई. शादी के बाद रामदास ने कुछ दिनों तक अपनी पत्नी को मांबाप की सेवा में छोड़ा. उस के बाद वह पत्नी को ले कर (Maharashtra Crime) मुंबई चला आया. समय के साथसाथ लक्ष्मी सीताराम और रामचरण 2 बच्चों की मां बन गई थी. रामचरण चूंकि छोटा था, इसलिए सभी उसे बहुत प्यार करते थे. उस समय उन्हें यह नहीं पता था कि यही लाड़प्यार एक दिन उन के पूरे परिवार को समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा.

परिवार के लाड़प्यार ने रामचरण को इस कदर बिगाड़ दिया कि बाद में उसे संभालना मुश्किल हो गया. स्कूल में उस का मन पढ़ाईलिखाई में कम मटरगश्ती में ज्यादा लगता था. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह अपने बड़े बेटे सीताराम को अधिक पढ़ालिखा नहीं पाए थे. लेकिन रामचरण से उन्हें काफी उम्मीदें थीं. मगर घर वालों का यह सपना सपना ही रह गया. कहने के लिए तो वह स्कूल जाता था लेकिन पढ़ाई के नाम पर वह आवारा बच्चों के साथ घूमता था जो अपने ही घरों से चोरी कर के लाए पैसों का गलत इस्तेमाल करते थे. छोटी सी उम्र में ही रामचरण ड्रग्स, चरस, शराब और शबाब के चक्कर में पड़ गया.

शुरू में रामदास द्विवेदी और घर वालों को रामचरण की इस कमजोरी के बारे में पता नहीं चला और जब पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी. रामचरण नशे के उस मुकाम पर पहुंच गया था, जहां से लौटना मुश्किल था. वह जिस बस्ती और इलाके में रहता था, वहां के लोगों के लिए वह सिर दर्द बन गया था. मारपीट, राहजनी और अय्याशी के शौक में वह पूरी तरह जकड़ चुका था. मोहल्ले की कोई भी लड़की या औरत रास्ते में उस के सामने आने तक से डरती थी. अपनी बस्ती और इलाके की कई औरतों को वह अपनी हवस का शिकार बना चुका था. अपनी धौंस और डर दिखा कर रामचरण कई औरतों का यौनशोषण कर चुका था.

इज्जत और समाज में बदनामी होने के डर से कोई उस के खिलाफ पुलिस में नहीं जाता था. इस से उस का हौसला इतना बढ़ गया था कि ड्रग्स के नशे में उस ने अपने घर को भी नहीं छोड़ा. पहले उस ने अपनी भाभी के साथ रेप किया और इस के बाद अपनी मां की इज्जत भी तारतार कर डाली थी. रामचरण इंसान से जानवर बन गया था. मां ने जिस बेटे को जन्म दिया, वही बेटा एक दिन उस के साथ ही रेप कर बैठेगा, यह बात लक्ष्मी ने सपने में भी नहीं सोची थी. एक जानवर में और रामचरण में अब कोई फर्क नहीं रह गया था. कहावत है कि जब कोई आदमी जानवर बन जाए और फिर आदमखोर हो जाए तो उसे मार देना ही एक रास्ता होता है.

यही सोच कर लक्ष्मी ने रामचरण के लिए एक खतरनाक फैसला ले लिया. बेटे के कृत्य की वजह से वह बड़ी ही शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. एक तरह से वह घुटघुट कर जी रही थी. अपने खतरनाक फैसले में अपने पति रामदास द्विवेदी, बेटे सीताराम द्विवेदी और बहू को भी शामिल कर लिया. यह काम उन में से किसी के भी बस का नहीं था, लिहाजा वह किराए के हत्यारे को तलाशने लगे. इस तलाश में लक्ष्मी और उस के पति को अपने ही इलाके में रहने वाले अपराधी प्रवृत्ति के केशव मिस्त्री की याद आई. केशव मिस्त्री वसई के जानकीपाड़ा में रहता था और राजगीर का काम करता था. कभीकभार वह लक्ष्मी और उन के परिवार से मिलनेजुलने आया करता था.

इस मामले में लक्ष्मी और उस के पति, बेटे और बहू ने केशव मिस्त्री से मिल कर जब सारी बातें बता कर अपनी योजना बताई तो वह रामचरण को मारने के लिए तैयार हो गया. उस ने इस काम के लिए एक लाख रुपए की मांग की. लक्ष्मी इतना पैसा देने की स्थिति में नहीं थी. उस ने अपनी मजबूरी बताई तो मामला 50 हजार रुपए में तय हो गया. लक्ष्मी के पास 50 हजार रुपए भी नहीं थे उस के पास शादी का मंगलसूत्र था. बेटे को मरवाने के लिए उस ने अपना मंगलसूत्र तक बेच कर केशव मिस्त्री को पैसे दे दिए. पैसे मिलने के बाद केशव मिस्त्री ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने दोस्त राकेश यादव को तैयार कर लिया.

योजना के अनुसार 20 अगस्त, 2017 को केशव मिस्त्री और राकेश यादव लक्ष्मी के घर आए और रामचरण द्विवेदी को शराब और शबाब की पार्टी के बहाने अपने साथ लाए टैंपो में बैठा कर जानकीपाड़ा की खाई के पास ले गए और उसे टैंपो से उतार कर उस के गले और शरीर पर गंड़ासे से वार कर के अधमरा कर दिया. फिर उन्होंने उस की गरदन काट कर उसे खाई में फेंक दिया. पुलिस ने गिरफ्तार रामदास द्विवेदी, उस की पत्नी लक्ष्मी द्विवेदी, बेटे सीताराम द्विवेदी और बहू के बयान दर्ज किए. तत्पश्चात उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. जब पुलिस टीम केशव मिस्त्री और राकेश यादव के घर पहुंची तो पता चला कि वे दोनों घटना को अंजाम देने के बाद अपने गांव उत्तर प्रदेश चले गए.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी संजय हजारे ने एसआई विनायक माने को एक पुलिस टीम के साथ उत्तर प्रदेश के लिए रवाना कर दिया, जहां उन्होंने केशव मिस्त्री और राकेश यादव को गिरफ्तार कर लिया और मुंबई ले आए थे. पुलिस ने दोनों आरोपियों से भी विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. लक्ष्मी परिवर्तित नाम है.