Extramarital Affair : पत्नी के साथ संबंध बनाते देखा तो दोस्त की कुल्हाड़ी मारकर ले ली जान

Extramarital Affair : गुड्डा ठाकुर और मोहन की गहरी दोस्ती थी. लेकिन इस दोस्ती का लाभ उठा कर मोहन ने उस की पत्नी से नाता जोड़ लिया. नतीजा यह निकला कि गुड्डा ठाकुर का घर तो उजड़ा ही लेकिन उस ने…

22 अप्रैल, 2020 को लाठगांव पिपरिया में सहकारी समिति के माध्यम से गेहूं की खरीदी चल रही थी. गांव के हीरालाल विश्वकर्मा को भी अपना गेहूं बेचने जाना था. वह अपने बड़े बेटे मोहन का इंतजार कर रहे थे. मोहन खेतों पर था. उस का दोस्त कुंजी भी उस के साथ था. दरअसल, गांव के ही देवेंद्र पटेल से बंटाई पर लिए गए खेत पर गेहूं की फसल की मड़ाई हो रही थी. मोहन और कुंजी बीती रात 9 बजे खाना खा कर खेत पर गए थे. सुबह 11 बजे के बाद भी मोहन घर नहीं आया तो हीरालाल ने उसे फोन किया. लेकिन रिंग जाने पर भी फोन रिसीव नहीं हुआ.

हीरालाल को लगा कि थ्रेशर की आवाज में फोन की रिंग सुनाई नहीं दी होगी. हीरालाल अपने छोटे बेटे को साथ ले कर गेहूं बेचने सहकारी समिति चला गया. हीरालाल गेहूं बेच कर दोपहर के 2 बजे घर आया तो उस की पत्नी ने बताया कि मोहन अभी तक खेत से नहीं लौटा है. इस से उसे लगा कि थ्रेशर में कोई खराबी आने की वजह से फसल की मड़ाई पूरी नहीं हो पाई होगी, इसलिए मोहन घर नहीं आया होगा. जल्दी से खाना खा कर हीरालाल खुद ही खेत पर चला गया. दूर से ही खेत में रखे गेहूं और भूसे के ढेर को देख कर हीरालाल खुश हुआ कि रात में फसल की मड़ाई हो गई है. लेकिन जब पास जा कर देखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. बिस्तर पर उस के बेटे मोहन विश्वकर्मा और उस के दोस्त कुंजी यादव की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं.

जैसेतैसे खुद को संभाल कर हीरालाल ने गांव के कोटवार (चौकीदार) द्वारा इस वारदात की सूचना पुलिस चौकी झोतेश्वर को दिलवा दी. सूचना मिलने पर थाना गोटेगांव के टीआई प्रभात शुक्ला और झोतेश्वर पुलिस चौकी की एसआई अंजलि अग्निहोत्री पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लौकडाउन में हुए दोहरे हत्याकांड से पूरे जिले में सनसनी फैल गई थी. घटना को ले कर गांव में आक्रोश न फैले, इसलिए कलेक्टर दीपक सक्सेना और एसपी डा. गुरुकरण सिंह ने शाम के समय घटनास्थल का दौरा किया और पुलिस को जरूरी निर्देश दिए. उन्होंने गांव वालों को आश्वस्त किया कि हत्यारों को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

पुलिस टीम ने जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए गोटेगांव के सरकारी अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शवों को उन के घर वालों के सुपुर्द कर दिया गया. पुलिस की उपस्थिति में लाठगांव में दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया. पुलिस टीम ने जब मृतकों के घर वालों के साथ गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की तो मामला नाजायज प्रेम संबंधों से जुड़ा हुआ निकला. कुंजी यादव की दादी ने तो पुलिस के सामने दोनों की हत्या का शक गांव के शिवराज उर्फ गुड्डा ठाकुर पर व्यक्त किया. इस से पुलिस की राह आसान हो गई. जब पुलिस टीम गुड्डा ठाकुर के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

घर के पास ही रहने वाले उस के भाई ने बताया कि गुड्डा उस के घर दोपहर को खाना खाने आया था. भाई ने बताया कि वह ज्यादा समय जामुनपानी गांव के खेत में बनी टपरिया (झोपड़ी) में रहता है. पुलिस टीम ने 22 अप्रैल, 2020 की रात खेत में बनी गुड्डा ठाकुर की झोपड़ी में दबिश दी तो वह वहां नहीं मिला. 23 अप्रैल के तड़के पुलिस ने फिर झोपड़ी में दबिश दी. मगर पुलिस को देख कर उस की झोपड़ी में मौजूद कुत्ता दूर से ही भौंकने लगा. जिस पर गुड्डा ठाकुर बिस्तर से उठा और चड्ढीबनियान में ही जंगल की ओर भाग गया.

जब पुलिस झोपड़ी में पहुंची तो चूल्हे की आग गरम थी. बिस्तर बिछा हुआ था. उस के कपड़े और जूते रखे थे. झोपड़ी में पुलिस को गुड्डा ठाकुर की बैंक पासबुक और फोटो मिली. 23 अप्रैल, 2020 की शाम 5 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि गुड्डा झोतेश्वर के मंदिर के पास घूम रहा है. एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने पुलिस टीम के साथ जा कर झोतेश्वर मंदिर के आसपास के पूरे क्षेत्र की घेरेबंदी कर दी. लेकिन गुड्डा पुलिस से बच कर संकरे रास्तों से भाग गया. अंतत: उसे झोतेश्वर में हनुमान टेकरी मंदिर के पास से पकड़ लिया गया.

थाना गोटेगांव ले जा कर उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पिपरिया लाठगांव निवासी मोहन और कुंजी यादव की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी. गुड्डा के पुलिस को दिए गए बयान के अनुसार हत्या का कारण दोस्ती में विश्वासघात था. मोहन ने उस की पत्नी रति से नाजायज संबंध बना रखे थे. पिपरिया लाठगांव नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है. हीरालाल का परिवार इसी गांव में किसानी करता है. हीरालाल के 2 बेटों में 30 साल के बड़े बेटे मोहन की शादी हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे भी हैं.

मोहन और कुंजी गुड्डा ठाकुर के अच्छे दोस्त थे. दोस्ती के चलते दोनों गुड्डा के घर आतेजाते थे. मोहन की नजर गुड्डा की खूबसूरत बीवी रति (परिवर्तित नाम) पर टिकी थी. तीखे नैननक्श और गठीले बदन की रति से मोहन हंसीमजाक कर लिया करता था. जब भी गुड्डा ठाकुर घर से बाहर रहता, मोहन उस के घर पहुंच जाता. हंसीमजाक का सिलसिला बढ़ते देख एक दिन मोहन ने रति से कहा, ‘‘रति भाभी, तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो, जी चाहता है कि तुम पर मैं अपना सब कुछ लुटा दूं.’’

रति भी मोहन को मन ही मन चाहने लगी थी. उस ने भी कह दिया, ‘‘तुम्हें रोका किस ने है.’’

रति की इस सहमति पर मोहन का दिल मचल गया. वह रति से बोला, ‘‘तो हुस्न के इस खजाने को लूटने का मजा कब मिलेगा?’’

रति मानो प्यासी बैठी थी. उस ने कह दिया, ‘‘रात में तुम्हारा दोस्त गन्ने के खेत में पानी देने जाता है, तभी घर आ जाना.’’

तमाम लोग क्षणिक दैहिक सुख के लिए अंधे हो जाते हैं. उन्हें न समाज में बदनामी का डर रहता है और न ही अपने बीवीबच्चों की फिक्र. मोहन भी रति से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कोई भी हद पार करने तैयार था. रति की सहमति मिलते ही मोहन के मन की मुराद पूरी हो गई. रात में जब गुड्डा खेत पर गया था, मौका पा कर मोहन रति के पास पहुंच गया. निगरानी के लिए उस ने गुड्डा के घर के बाहर कुंजी को खड़ा कर दिया था. रति भी जैसे उसी के इंतजार में मूड बनाए बैठी थी. मोहन के आते ही उस ने घर का दरवाजा बंद किया और मोहन के सीने में सिमट गई. मोहन रति को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘आज तो मेरी प्यास बुझा दो रानी.’’

फिर दोनों पास पड़े बिस्तर पर लेट गए. दोनों के अंदर मचल रहा वासना का तूफान तभी शांत हुआ, जब उन के जिस्मों की प्यास बुझ गई. मोहन और रति के नाजायज संबंधों का यह खेल परवान चढ़ने लगा. धीरेधीरे इस की चर्चा गांव के गलीमोहल्लों से हो कर रति के पति गुड्डा के कानों तक भी पहुंच गई थी. नाजायज संबंधों की जानकारी होने पर गुड्डा ने मोहन को समझाने का प्रयास किया. मगर मोहन ने अपनी गलती मानने के बजाए उलटे गुड्डा की मर्दानगी का मजाक बनाना शुरू कर दिया. रति के मोहन से बने इन नाजायज संबंधों से पतिपत्नी के बीच आए दिन झगड़े और मारपीट होने लगी. इस के चलते करीब 2 महीने पहले रति अपने मायके गांव घरगवां चली गई.

गुड्डा अपनी घरगृहस्थी उजड़ने से परेशान रहने लगा. समाज में भी उस की बदनामी हो गई थी. गुड्डा का मन अब किसी काम में नहीं लगता था. उस के दिल में मोहन के प्रति इतनी नफरत भर गई थी कि उसे देखते ही उस का खून खौलने लगा था. उस के दिमाग में बारबार यही खयाल आता था कि मोहन की वजह से उस की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई. वह मोहन को अपने रास्ते से हटाने के बारे में सोचता रहता था. एक दिन गुड्डा ने अपनी यह योजना कुंजी यादव के घर जा कर बता दी. उस ने कुंजी के घर वालों से साफ शब्दों में कहा, ‘‘मोहन उस की बीवी पर बुरी नजर रखता था, इसलिए वह मोहन को जान से मारना चाहता है.’’ फिर उस ने कुंजी के पिता को समझाया, ‘‘तुम्हारे बेटे कुंजी ने अगर मोहन के साथ रहना नहीं छोड़ा तो उस की भी खैर नहीं.’’

इस बात को ले कर कुंजी के घर वालों ने कुंजी को मोहन के साथ न रहने की हिदायत भी दी लेकिन कुंजी ने उन का कहना नहीं माना. प्रतिशोध की आग में जल रहे गुड्डा ने निश्चय कर लिया था कि वह मोहन को मौत के घाट उतार कर ही दम लेगा. गुड्डा को यह तो पता था ही कि मोहन और कुंजी रोज खेतों पर जाते हैं. 21 अप्रैल की रात वह अपने खेत की टपरिया से मोहन और कुंजी पर नजर रख रहा था. फसल की मड़ाई पूरी होने के बाद जब दोनों खेत पर सो गए तो रात करीब 2 बजे वह कुल्हाड़ी ले कर उन के पास पहुंच गया. गहरी नींद सो रहे मोहन और कुंजी के सिर पर लगातार कई वार कर के गुड्डा ने उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिया.

कुंजी ने चेतावनी के बाद भी उस का कहा नहीं माना था. मोहन की हत्या का कोई सबूत और गवाह न मिल सके, इसलिए गुड्डा ने कुंजी की भी हत्या कर दी थी. गुड्डा के बयानों के आधार पर मोहन विश्वकर्मा और कुंजी यादव की हत्या के आरोप में आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर गुड्डा ठाकुर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. नाजायज संबंधों का अकसर इसी तरह दुखद अंत होता है. इस मामले में भी शादीशुदा होने के बावजूद विश्वासघात कर के दोस्त की पत्नी से नाजायज संबंध रखने वाले मोहन और इन संबंधों में सहयोग करने वाले कुंजी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. पत्नी की बेवफाई से हुई बदनामी ने गुड्डा ठाकुर को दोहरी हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP News : देवर के साथ मिलकर पति का कराया कत्ल

UP News : 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी कुसुम की हसरतें उफान पर थीं. ऐसे में उस के पैर बहक गए और उस का झुकाव कलंदर नाम के युवक की ओर हो गया. इस बात का गांव, समाज में विरोध हुआ तो कुसुम ने पति मुकेश को रास्ते से हटाने की ऐसी चाल चली कि…

उस रोज सुबह से ही कुसुम का मन उल्लास से भरा हुआ था. उस की एक खास वजह थी. उस सुबह नाश्ता करने के बाद मुकेश आंगन में हाथ धोने, कुल्ला करने के बाद रोज की तरह सीधे काम पर नहीं गया था. बल्कि अंगोछे से हाथमुंह पोंछते हुए वह रसोई में चला आया था. पास में पति के आते ही रोटी बेल रही कुसुम के हाथ रुक गए. सिर उठा कर उस ने पति को देखा, फिर पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’

मुकेश कुसुम के पास बैठ गया. वह इतनी धीमी आवाज में बोला कि कोई तीसरा न सुन सके, ‘‘हां चाहिए, लेकिन अभी नहीं रात को.’’

इस के बाद वह सीधा खड़ा हुआ, मुसकरा कर दाहिनी आंख दबाई और चला गया. पति की यह शरारत देख कर कुसुम के मन की कलियां खिल गईं. किसी भी पत्नी के लिए समझना बहुत आसान होता है कि रात को पति उस से क्या चाहता है. कुसुम का दिल बागबाग हो गया कि देर से ही सही, पतिदेव की कामनाएं तो जागीं. पूरे दिन कुसुम प्रफुल्लित रही. दौड़दौड़ कर उत्साह से सारे काम करती रही. पड़ोसन ने उस का यह जोश देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है कुसुम, आज बहुत जोश में हो और तुम्हारी खुशी भी छलक रही है.’’

नहाधो कर कुसुम ने सुर्ख साड़ी पहनी, फिर शृंगार किया. उस के बाद शाम होने पर आंगन में बैठ कर अपने पति के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर में मुकेश आ गया. पानी गरम हो गया तो मुकेश नहा लिया. इस के बाद कुसुम ने उसे खाना परोस कर दिया. खाना खाने के बाद मुकेश ने अपनी मासूम बेटी दीक्षा को गोद में उठाया और अपने कमरे में चला गया. कुसुम ने निखरे हुए अपने रूप का बहाने से पति के सामने प्रदर्शन भी किया लेकिन मुकेश के मुख से तारीफ के दो मीठे बोल भी न निकले. खैर, कुसुम ने झटपट जूठे बरतन मांजे और कमरे में पहुंच गई. आजमगढ़ जिले का एक गांव है असाढ़ा. यहीं रहता था मुक्खू. उस के परिवार में पत्नी सुखवती देवी के अलावा 4 बेटियां और इकलौता बेटा मुकेश था.

मुक्खू ने अपनी सभी बेटियों का विवाह कर दिया था, वे सभी अपनी ससुराल में हंसीखुशी से रह रही थीं. इस के बाद इकलौते बेटे मुकेश के विवाह की बारी आई. तो 14 साल पहले करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गोढाव गांव निवासी सुभाष की बेटी कुसुम से मुकेश का विवाह हो गया. कुसुम मायके से ससुराल आ गई. कालांतर में कुसुम ने 3 बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया. परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़े. खेती के नाम पर मुकेश के पास केवल 4 विसवा जमीन थी, उस से कुछ होने वाला नहीं था. मुकेश बढ़ईगिरी का काम भी करता था. लेकिन उसे रोजरोज काम नहीं मिलता था तो वह मनरेगा में मजदूरी का काम करने लगा.

काम में व्यस्तता अधिक होने के कारण अगले 2-3 साल में हाल यह हो गया कि थकान और जीवन की एकरसता ने मुकेश को उत्साहहीन कर दिया. रासरंग में भी उस की रुचि नहीं रह गई. खाना खाने के कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद में सो जाता. कुसुम की ख्वाहिशें मचलती रह जातीं. कामनाओं को काबू में रख पाना कठिन हो जाता. देर रात तक वह गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती. कुसुम असंतोष भरा जीवन जीने लगी थी. कुसुम की उमंगों को एक बार फिर तब पर लगे, जब उस दिन नाश्ता करने के बाद मुकेश रसोई में उस के पास आया था. कुसुम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने सोचा कि वह आज पिछली कसर भी पूरी कर लेगी.

उमंगों के हिंडोले में झूलती कुसुम कमरे में पहुंची तो पिताबेटी को सोते हुए देखा. उस रात पति को सोया देख कर कुसुम को झुंझलाहट नहीं हुई बल्कि होंठों पर मुसकान खेलने लगी कि बेटी परेशान न करे, इसलिए उसे सुलातेसुलाते वह खुद भी सो गए. बाकी बच्चे भी दूसरे कमरे में सो चुके थे. कुसुम ने पति के पास सो रही बेटी को उठा कर अलग सुला दिया. इस के बाद वह स्वयं मुकेश की बगल में आ कर लेट गई और उसे जगाने के लिए प्यार से छेड़ने लगी. मुकेश कच्ची नींद में था. वह कुनमुनाया, ‘‘क्या है…?’’

‘‘और क्या होना है,’’ कुसुम धीमी आवाज में बोली, ‘‘आज रतजगा है.’’

मुकेश ने आंखें खोल कर पत्नी की ओर देखा, उस के बाद फिर से आंखें बंद कर लीं. कुसुम ने हलके से उसे फिर हिलाया, ‘‘मुझे ठीक से देख कर बताओ, कैसी लग रही हूं.’’

‘‘जब से शादी हुई है, तब से देख ही तो रहा हूं.’’

‘‘पहले की छोड़ो, आज की बात करो,’’ कुसुम अपनी सांसों से पति के चेहरे को गरमाने लगी, ‘‘आज मैं ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से शृंगार किया है. देख कर बताओ न कि मैं कैसी लग रही हूं.’’

मुकेश ने ऐसे हावभाव से आंखें खोलीं, मानो कोई आफत टूट पड़ी हो. कुसुम को देखा, फिर टालने के अंदाज में बोला, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

‘‘अच्छी लग रही हूं तो सो क्यों रहे हो,’’ कुसुम ने उसे उकसाया, ‘‘नींद भगाओ और तुम भी कुछ अच्छा करो. इतना अच्छा कि मुझे भी फौरन नींद आ जाए.’’

‘‘क्या करूं…’’

‘‘वही, जो सुबह नाश्ता करने के बाद रात को करने को कह गए थे.’’

‘‘यार, सुबह मन था, अब नहीं है. बहुत थका हूं, मैं सोना चाहता हूं. आज का प्रोग्राम फिर कर लेंगे. तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो.’’

‘‘रात होने का मैं ने भी पूरा इंतजार किया है, इसलिए कैसे सो जाऊं,’’ कुसुम शरारत पर उतारू हो गई. वह उसे बेतहाशा चूमने लगी. मुकेश के तेवर तीखे हो गए. उस ने झल्ला कर पत्नी को कुछ गालियां दीं और उस की ओर पीठ कर ली. पति के व्यवहार से कुसुम की हसरतों पर तो मानो बर्फ पड़ गई. उस ने भी पति की ओर पीठ कर ली. उस रात कुसुम का विश्वास मजबूत हो गया कि वास्तव में उस की किस्मत फूट गई थी. उसी रात कुसुम के विद्रोही मन ने फैसला कर लिया कि यदि उसे यौवन का सुख पाना है तो मुकेश के भरोसे नहीं रहा जा सकता. खुद ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.

अतृप्ति एवं असंतोष के पलों में कुसुम ने जो निर्णय लिया, रात बीतने के बाद उसे भूली नहीं. सुबह होते ही उस की आंखों ने ऐसे साथी को तलाशना आरंभ कर दिया जो उस की हसरतें पूरी कर सके. नियति ने कुसुम को यह अवसर भी दे दिया. असाढ़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर गांव उबारसेपुर है. इसी गांव में 30 वर्षीय कलंदर रहता था. वह अविवाहित था और आटो चलाता था. कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना था. एक दिन चबूतरे पर बैठ कर कलंदर मुकेश से बातें कर रहा था. कुसुम को न जाने क्या सूझा कि खिड़की के पास खड़े हो कर वह उन दोनों की बातें सुनने लगी. खिड़की की ओर मुकेश और कलंदर की पीठ थी. इसलिए दोनों को पता नहीं था कि कुसुम उन की बातें सुन रही है. वे दोनों रसीली बातें कर रहे थे.

कुसुम का यह सोच कर जी जल गया कि रात होते ही मुकेश रूखाफीका हो जाता है और बाहर रसीली बातें करता है, लानत है ऐसे पति पर. बातोंबातों में कलंदर मुकेश से बोला, ‘‘मुकेश, सच कहूं तो तुम मुकद्दर के सिकंदर हो. क्या पटाखा बीवी पाई है, जो देखे देखता रह जाए.’’

यह सुन कर कुसुम का दिमाग कलंदर में उलझ गया. वह सोचने लगी कि निश्चित रूप से कलंदर उस पर दिल रखता होगा, इसीलिए तो वह उसे पटाखा नजर आती है. उस दिन हंसीमजाक में कलंदर का पटाखा कहना कुसुम के मन में एक नई सोच को जन्म दे गया. कुसुम को भी कलंदर अच्छा लगता था. कलंदर कुसुम को भाभी कह कर बुलाता था. देवरभाभी का रिश्ता बनने के कारण कुसुम से हंसीमजाक भी कर लेता था. अलबत्ता उस का दिल कुसुम के लिए बेईमान हो गया. कलंदर को ले कर कुसुम की सोच बदली तो उस के हावभाव भी बदल गए. वह चुपकेचुपके कलंदर से आंखें लड़ाने लगी. कलंदर को कुसुम अपनी तरफ आकर्षित होती हुई महसूस हुई तो वह ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब कुसुम घर में अकेली हो.

एक दिन अश्लील मजाक करतेकरते एकाएक कलंदर ने कुसुम की कलाई पकड़ ली, ‘‘भाभी बहुत तरसा चुकीं, अब तो रहम करो.’’

कुसुम ने नारीसुलभ नखरा किया, ‘‘कलंदर, यह पाप है. इस पाप में न खुद गिरो और न मुझे गिराओ.’’

‘‘भाभी, मुझे आज मत रोको.’’ कहते हुए उस ने कुसुम को बांहों में समेट कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. अपेछा के अनुरूप कुसुम ने मामूली विरोध किया, कुछ नखरे दिखाए. फिर मन का काम होते देख उस ने विरोध और नखरे छोड़ दिए. कलंदर के बाजुओं में कसमसाते हुए बोली, ‘‘जरा ठहरो, दरवाजा तो बंद कर लूं.’’

‘‘तुम्हें छोड़ दिया तो फिर हाथ नहीं आने वाली.’’

‘‘विश्वास करो मैं कहीं भागूंगी नहीं, लौट कर तुम्हारे पास आऊंगी.’’

कलंदर ने कुसुम को बांहों के बंधन से मुक्त कर दिया. कुसुम ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और कलंदर के पास लौट आई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. एक बार सीमाएं टूटीं फिर तो उन का यह रोज का यह नियम बन गया. कुसुम के दिल और तन पर कलंदर के जोश की ऐसी छाप पड़ी कि कलंदर के आगे वह सब कुछ भूल गई. अब जो कुछ था उस के लिए कलंदर ही था. वह भी कुसुम की भावनाओं का पूरा खयाल रखता था. किसी चीज की जरूरत होती तो वह झट से ला देता. कलंदर के लिए दिल में प्यार बढ़ रहा था तो मुकेश के लिए मन में नफरत. 7 मई, 2020 की शाम को कुसुम ने मुकेश से सब्जी लाने को कहा तो मुकेश सब्जी लेने चला गया.

लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी मुकेश घर नहीं लौटा तो कुसुम को चिंता हुई. उस ने गांव के प्रधान को सूचना दी. मुकेश को तलाशा गया लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. अगले दिन 8 मई को कुसुम सरायमीर थाने गई और इंसपेक्टर अनिल सिंह को अपने पति के गायब होने की सूचना दी. उस ने पति के गायब होने का आरोप गांव के कुछ लोगों पर लगाया. साथ ही पति के गायब होने की सूचना मीडिया को भी दे दी. मीडिया में मामला तूल पकड़ा तो पुलिस भी सक्रिय हो कर मुकेश को तलाशने लगी. 9 मई को लोगों ने मुकेश की लाश नरईपुर पुल के पास पड़ी देखी. कुसुम को इस की सूचना दे दी गई. प्रधान मौके पर पहुंचा तो उस ने घटना की सूचना सरायमीर थाने को दे दी. सूचना पर इंसपेक्टर अनिल सिंह दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए.

लाश झाडि़यों में औंधे मुंह पड़ी थी. मृतक की गरदन पर तेज धारदार हथियार से काटने के निशान मौजूद थे. डौग स्क्वायड को मौके पर बुलाया गया. इंसपेक्टर सिंह ने कुसुम और मृतक की मां सुखवती से जरूरी पूछताछ की. इस के बाद उन्होने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और सुखवती की ओर से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम से पूछताछ की तो उस ने गांव के कुछ लोगों पर आरोप लगाया कि वे लोग उस के पति से दुश्मनी मानते थे. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह ने गांव के लोगों व प्रधान से पूछताछ की तो केस की गुत्थी सुलझने लगी.

इंसपेक्टर अनिल सिंह को पता चला कि कुसुम के उबारसेपुर गांव के कलंदर के साथ अवैध संबंध थे. यह भी पता चला कि इस मामले को ले कर गांव में पंचायत भी हुई थी. गांव के जिन लोगों ने पंचायत में कुसुम और कलंदर का विरोध किया था, कुसुम ने उन पर ही मुकेश की हत्या का आरोप लगाया था. इस का मतलब यह था कि सारा रचारचाया खेल कुसम और कलंदर का है, मुकेश की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है. इस के बाद इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम और कलंदर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में दोनों की रोज घंटों बात करने के साक्ष्य मिले. घटना की रात भी कलंदर के नंबर से कुसुम के नंबर पर काल की गई थी. जिस समय कलंदर ने काल की थी उस के नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल की थी.

पुख्ता साक्ष्य मिलते ही इंसपेक्टर अनिल सिंह ने 11 मई को कुसुम और कलंदर को गिरफ्तार कर लिया. थाने में ला कर जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए घटना में शामिल साथियों के नाम भी बता दिए. घटना में साथ देने वालों में कलंदर की बहन शकुंतला, रविंद्र उर्फ छोटू, बिरेंद्र उर्फ करिया व धीरेंद्र निवासी गांव ऊदपुर और मिथिलेश उर्फ पप्पू निवासी महराजपुर थे. इन सभी को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद मुकेश की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार निकली—

कुसुम से संबंध बन गए तो कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना भी बढ़ गया. इस से उन के संबंध गांव वालों से छिपे न रह सके. गांव वालों ने इस का विरोध करना शुरू कर दिया. इतने पर भी ये दोनों नहीं माने तो गांव में इस को ले कर पंचायत बुलाई गई. पंचायत में कलंदर के गांव आने पर पाबंदी लगा दी गई. इस से कुसुम बिफर पड़ी. मुकेश ने उस की लानतमलानत की तो उस की नफरत ने विद्रोह का रूप ले लिया. कुसुम वैसे भी कलंदर की हो चुकी थी और शादी कर के उस के साथ घर बसाना चाहती थी. ऐसे में कुसुम और कलंदर ने मुकेश की हत्या करने का फैसला कर लिया.

4 फरवरी, 2020 को कुसुम के मायके में शादी थी. वहां पर कलंदर और कलंदर की बहन शकुंतला भी मौजूद थी, वहीं पर मुकेश को मारने का प्लान बना. इस के बाद शकुंतला के घर पर कुसुम और कलंदर बैठे. वहीं पर शकुंतला ने अपने देवरों रविंद्र, वीरेंद्र, धीरेंद्र और उन के साथी मिथलेश को बुला लिया. ये सभी कुछ पैसों के लालच में उन का साथ देने को तैयार हो गए थे. सभी ने साथ बैठ कर यह समझा कि प्लान को कैसे अमल में लाना है. 5 मई को मुकेश की हत्या करने के इरादे से सभी निकले लेकिन अचानक आंधीबारिश आने के कारण प्लान टल गया. फिर 7 मई की शाम को प्लान के मुताबिक कुसुम ने मुकेश को सब्जी लाने के लिए भेज दिया.

शाम साढ़े 6 बजे मुकेश पोखरा पहुंचा तो वहां कलंदर, शकुंतला और उस के साथी एक टैंपो में पहले से बैठे थे. कलंदर ने तेरही खाने के लिए चलने की बात कह कर मुकेश को टैंपो में बैठा लिया. मुकेश को सभी के साथ ले कर छित्तेपुर गया. वहां शराब खरीद कर मुकेश को पिलाई और खुद पी. सभी अंधेरा होने का इंतजार कर रहे थे. योजना के मुताबिक सभी लोग अपने मोबाइल अपने घरों में ही रख कर आए थे, केवल कलंदर ही अपना मोबाइल साथ लाया था. अपने मोबाइल से वह कुसुम को लगातार काल कर रहा था. कुसुम अपने पति को मौत के मुंह में भेजने को बहुत आतुर थी. वह कलंदर के साथ में तो नहीं थी. लेकिन उस से फोन पर पलपल की जानकारी ले रही थी. उन के बीच क्या बात हो रही है, यह भी कुसुम सुन रही थी. एक बीवी अपने ही पति के मर्डर का लाइव ब्राडकास्ट सुन रही थी.

रात साढे़ 8 बजे सभी मुकेश को टैंपो से ले कर तेजपुर में मघई नदी पर नरईपुर पुल के पास पहुंचे. मुकेश को नीचे उतारा और मुकेश की गले में गमछा डाल कर दबाने में सभी टूट पड़े. नशे की हालत में मुकेश की आंखें बंद हो गईं और वह बेसुध हो गया. सभी उसे मरा हुआ समझ कर झाडि़यों में छिपा आए. इस के बाद कलंदर ने कुसुम से बात की तो कुसुम ने कहा कि वह मुकेश का चाकू से गला काटे, जिस से वह उस के चीखने की आवाजें सुन सके. इस पर वापस पहुंच कर कलंदर ने जैसे ही मुकेश की गरदन पर चाकू रखा. मुकेश चिल्ला उठा. सभी ने उस को दबोचा तो कलंदर कसाई की तरह मुकेश का गला चाकू से रेतने लगा, इस से मुकेश की चीखें निकलने लगीं, जिसे मोबाइल पर सुन कर कुसुम ठहाके मार कर हंसती रही.

मुकेश को मौत के घाट उतारने के बाद कलंदर ने मुकेश का मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल लिया और उसे ले कर काफी देर तक इधरउधर घूमता रहा. इस के बाद कुसुम अपने मोबाइल से बात न हो पाने का बहाना बना कर आसपड़ोस के लोगों से मोबाइल ले कर मुकेश के मोबाइल पर फोन मिलाती, दूसरी ओर से कलंदर मुकेश बन कर उस से बात करता. बात करने के बाद कुसुम उन्हें मोबाइल वापस कर देती और कह देती कि मेरे पति कह रहे हैं कि कुछ देर में वापस आ जाएंगे. कुसुम पड़ोसियों को दिखाने के लिए यह नाटक कर रही थी. देर रात योजनानुसार कुसुम प्रधान के पास गई और पति के गायब होने की सूचना दी. अगले दिन थाने जा कर उस ने पति की गुमशुदगी लिखाई लाश मिलने पर वह बराबर पंचायत में कलंदर और उस का विरोध करने वालों पर मुकेश की हत्या का आरोप लगाती रही.

वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहती थी. मुकेश को रास्ते से हटाने के बाद उस की हत्या करने के आरोप में अपने विरोधियों को जेल भेजना चाहती थी. लेकिन उस की चाल धरी की धरी रह गई. पति की हत्या के समय चीखें सुनना उसे भारी पड़ गया. इंसपेक्टर अनिल सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू व टैंपो और कुसुम, कलंदर और मुकेश का मोबाइल बरामद कर लिए. मुकदमे में धारा 147/404/34 और बढ़ा दी गईं. सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सातों अभियुक्तों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Story : सब्जी काटने वाले चाकू से सोई पत्नी का काटा गला

Murder Story : सरिता से लवमैरिज करने के बाद अजय साहू की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. लेकिन साली कविता के सौंदर्य में फंस कर उस ने न सिर्फ अपनी गृहस्थी उजाड़ी, बल्कि साली के साथ उसे जाना पड़ा जेल…

9 साल पहले जब अजय साहू उर्फ मोहित ने सरिता से विवाह किया था, तब सरिता से छोटी साली कविता 15 साल की थी. इस के 3 साल बाद 18 साल की उम्र में वह भरीपूरी युवती लगने लगी थी. ससुराल में अजय के सासससुर के अलावा उस की 2 सालियां कविता और सविता थीं, कोई साला नहीं था. सविता काफी छोटी थी, इसलिए अजय को खिलानेपिलाने व उस की सुखसुविधा का खयाल रखने की जिम्मेदारी बड़ी साली कविता की थी. कविता भी अपने जीजा का हुक्म मानने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती थी.

जीजा की जरूरतों का खयाल रखना साली का कर्त्तव्य होता है, इस में कोई नई बात नहीं है. अजय भी इन बातों को सामान्य रूप से लेता था. लेकिन एक दिन अचानक ही वह कविता के अद्भुत सौंदर्य की तेज रोशनी में चौंधिया गया. एक दिन जब अजय ससुराल पहुंचा तो कविता किसी परिचित के यहां मांगलिक समारोह में जाने के लिए तैयार हो रही थी. कविता ने सुर्ख लाल जोड़ा पहन रखा था और अपने बाल खुले छोड़ रखे थे. कलाई में चूडि़यां और चेहरे पर सादगी भरा शृंगार. आंखों में काजल की रेखा और होंठों पर हलकी सी लिपस्टिक. उसे देख कर अजय की नजरें ऐसी चिपकीं कि हटने को ही तैयार नहीं हुईं.

कविता ने अजय को मीठा और पानी ला कर दिया, फिर चाय बना कर पिलाई. कुछ देर उस के पास बैठ कर अपनी बहन की खैरियत पूछी. फिर उस के पास से उठते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप आराम करो, मैं जल्दी ही लौट आऊंगी.’’

कविता चली गई और वह देखता रह गया. अजय बैड पर लेट गया और कविता के बारे में सोचने लगा कि इतनी सुंदर तो सरिता तब भी नहीं लगी थी, जब दुलहन बन कर उस के घर आई थी. अजय ने अपने मन से कविता का खयाल निकालने की बहुत कोशिश की, पर कामयाब नहीं हो सका. कविता के सौंदर्य की तेज रोशनी से उस ने जितना दूर जाना चाहा, उतना ही मस्तिष्क से अंधा होता गया. अजय सोचने लगा कि मेरी शादी भले ही सरिता से हो गई पर कविता भी तो उस की साली ही है. साली यानी आधी घरवाली.

अजय के मन में पाप समाया तो वह कविता को पाने की जुगत में लग गया. उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के गांव पूरब थोक में राजेश चंद्र अपने परिवार के साथ रहते थे. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. परिवार में पत्नी उषा और 3 बेटियां सरिता, कविता और सविता थीं. बेटा न होने का राजेश को कतई गम नहीं था. उन्होंने तीनों बेटियों की बेटों से बढ़ कर परवरिश की थी. सरिता ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली थी. कौशांबी के ही कुम्हियवा गांव में रामहित साहू रहते थे. वह भी खेतीकिसानी करते थे. उन के 3 बेटे थे, जिस में अजय उर्फ मोहित सब से बड़ा था. अजय ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद अपना खुद का काम करने का निर्णय लिया.

काफी सोचविचार के बाद उस ने डीजे संचालन का काम शुरू किया. उस का यह काम अच्छा चल गया. अपने इसी काम के दौरान एक वैवाहिक समारोह में उस की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस समारोह में काफी सजधज कर आई थी. इस वजह से वह काफी खूबसूरत दिख रही थी. डीजे पर डांस करने के दौरान सरिता ने ‘डीजे वाले बाबू मेरा गाना बजा दो’ गाना चलाने की मांग की. अजय औपरेटर के पास ही खड़ा था. उस की पीठ सरिता की तरफ थी. मधुर आवाज सुनते ही अजय पलटा तो पलटते ही सरिता को देखा तो देखता ही रह गया.

अजय काफी स्मार्ट था. उसे अपनी तरफ देखते पा कर सरिता भी लजा गई और बोली, ‘‘सौरी, मैं आप को डीजे वाला समझ बैठी. इसलिए अपनी पसंद का गाना चलाने के लिए कह दिया.’’

अजय उस के भोलेपन पर मुसकराते हुए बोला, ‘‘आप से कोई गलती नहीं हुई, मैं डीजे वाला बाबू ही हूं यानी इस डीजे का मालिक.’’

‘‘ओह…तो यह बात है, तो मेरा पसंदीदा गाना लगवा दें, जिस से मैं डांस कर सकूं.’’ सरिता ने तिरछी नजरों से अजय को निहारते हुए कहा.

अजय ने औपरेटर को बोल कर ‘डीजे वाले बाबू…’ गाना लगवा दिया. गाना भारीभरकम स्पीकरों पर गूंजने लगा तो सरिता अपनी सहेलियों के साथ डांस करने लगी. वह डांस कर जरूर रही थी, लेकिन उस का सारा ध्यान अजय पर ही था. अजय भी उसे देखते हुए मुसकरा रहा था. वह इशारे से बारबार सरिता की तारीफ भी कर रहा था. उस की तारीफ पा कर सरिता लजा कर दूसरी ओर देखने लगती थी. डांस खत्म होने के बाद भी दोनों वहां से हटने को तैयार नहीं थे. उन की निगाहें मिलने के बाद अब उन के दिल मिलने को तड़प रहे थे. वह तड़प उन की निगाहों में बखूबी नजर आ रही थी.

आखिर अजय ने उसे इशारे से अपने पीछेपीछे आने को कहा तो सरिता उस का इशारा समझ कर दिल के हाथों मजबूर हो कर उस के पीछेपीछे चली गई. अजय एकांत में सुनसान जगह पर खड़ा हुआ तो शरमातेसकुचाते सरिता भी वहां पहुंच गई और पूछने लगी, ‘‘आप ने मुझे इशारे से अपने पीछे आने को क्यों कहा?’’

‘‘क्यों…क्या तुम्हें वास्तव में नहीं पता?’’ अजय उस की आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘जरा अपने दिल पर हाथ रख कर अपनी धड़कनों को सुनो, जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सब दिल का ही तो मामला है, ये ऐसा मजबूर कर देता है कि इंसान अपनी सुधबुध खो बैठता है. और इंसान वही करने लगता है जो यह चाहता है. मैं भी दिल के हाथों मजबूर हो कर यहां आ गई हूं.’’ सरिता अपने दिल की व्यथा उजागर करती हुई बोली.

‘‘ये दिल ही तो है जब इस के अपने मन का मीत मिल जाता है तो प्यार की घंटी बजा कर आगाह कर देता है. देखो न, जब तुम्हारे दिल को मेरे दिल ने पुकारा तो तुम्हारा दिल मेरे पीछेपीछे खिंचा चला आया. कहने को हम अजनबी हैं, लेकिन हमारे दिलों ने हमारे बीच प्यार के रिश्ते की नींव रख दी है, जिस पर हमें मिल कर प्यार की इमारत खड़ी करनी है. अगर मेरा प्यार मेरा साथ मंजूर हो तो मेरे पास आ कर गले लग जाओ.’’ कहते हुए अजय ने बड़ी चाहत भरी नजरों से देखा तो सरिता उस की ओर खिंची चली गई और उस के गले लग गई.

यह ऐसा प्यार था, जिस ने बिना एकदूसरे के बारे में जाने उन के दिलों को मिला दिया था. उस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना, खूब ढेर सारी बातें कीं. मोबाइल नंबर एकदूसरे को दिए. फिर मिलने का वादा कर के जुदा हो गए. उस दिन के बाद उन में बराबर बातें और मुलाकातें होने लगीं. करीब 9 साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. सरिता के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था लेकिन अजय के घर वाले इस प्रेम विवाह के खिलाफ थे. अजय विवाह करने के बाद कौशांबी के सिराथू कस्बे में सैनी रोड पर किराए का कमरा ले कर सरिता के साथ रहने लगा. अजय अपनी जिंदगी से काफी खुश था.

सरिता की छोटी बहन कविता की खूबसूरती अजय का मन लुभाती तो थी, पर उस की नजरें बेईमान नहीं थीं. लेकिन उस दिन कविता को सुर्ख लाल जोड़े में सजासंवरा देखा तो वह उसे दुलहन सी हसीन लगी. बस, जीजा के मन में साली के लिए फितूर समा गया. कविता के बारे में सोचते हुए अजय सो गया और सपने में भी कविता उस का चैन हरती रही. सुखद सपनों में खोया अजय न जाने कब तक सोया रहता कि उस की सास उषा ने आ कर जगा दिया, ‘‘अजय बेटा उठो, शाम हो गई है.’’

अजय हड़बड़ा कर उठ बैठा, ‘‘मैं दोपहर को सोया था और अब शाम ढल रही है. मम्मी, आप ने मुझे जगाया क्यों नहीं.’’

‘‘तुम्हारे आराम में विघ्न न पड़े, इसलिए मैं ने नहीं जगाया.’’ उषा बोली, ‘‘तुम उठ कर हाथमुंह धो लो, तब तक कविता चाय बना कर ले आएगी.’’

अजय ने बाथरूम में जा कर हाथमुंह धोया और तौलिए से पोंछने के बाद कुरसी पर आ कर बैठ गया. सामने किचन में कविता खड़ी चाय बना रही थी. अब उस के शरीर पर लाल जोड़े की जगह सफेद सलवारसूट था. कलाई में चूडि़यां भी नहीं थीं. उस ने चेहरा पानी से जरूर धो लिया था, पर मेकअप की मौजूदगी अब भी नुमायां हो रही थी. आंखें मिलते ही कविता मुसकराई, ‘‘जीजाजी, खूब मजे से सोए.’’

अजय ने मन ही मन में जवाब दिया, ‘सपने में बिजली गिरा कर मासूम बन रही हो.’ लेकिन जुबान से बोला, ‘‘मजा ले कर सो रहा था या कजा से गुजर रहा था, बाद में बताऊंगा. पहले तुम बताओ, कब आईं?’’

‘‘थोड़ी ही देर में आ गई थी. घर आ कर देखा तो आप सो गए थे. इसलिए मैं भी घर के कामों मे लग गई थी.’’ कविता ने मुसकरा कर कहा और उस के सामने टेबल पर चाय का कप रख दिया. फिर उसी के पास बैठ गई.

अजय को उस समय वहां अपनी सास की मौजूदगी खल रही थी. कविता अकेली होती तो वह उसे रिझाने का प्रयास करता. अजय की मजबूरी यह थी कि वह न सास को वहां से जाने को कह सकता था और न कविता का हाथ पकड़ कर अकेले में बात करने के लिए ले जा सकता था. रात को खाना खाने के बाद अजय को कविता के कमरे में सोने के लिए पहुंचा दिया गया. और कविता सविता के कमरे में उस के साथ सो गई. अगले दिन सुबह होने पर अजय के सासससुर खेतों पर चले गए. सविता स्कूल चली गई. इस से अजय को कविता से बात करने का मौका मिल गया. उस समय कविता नहाने जा रही थी. अजय ने उस से पूछा, ‘‘कविता, नहाने के बाद तुम कौन से कपड़े पहनोगी?’’

कविता ने सहजता से उत्तर दिया, ‘‘मुझे कहीं जाना तो है नहीं, इसलिए घर में जो पहनती हूं, वही पहन लूंगी.’’

‘‘घर में पहनने वाले नहीं,’’ अजय ने मन की परतें उस के सामने खोलनी शुरू कर दीं, ‘‘तुम वही लाल जोड़ा पहनो, जो तुम ने कल पहना था.’’

‘‘वह रोज पहनने के लिए थोड़े ही है,’’ कविता मुसकरा कर बोली,‘‘ वह लाल जोड़ा विशेष अवसरों पर पहनने के लिए बनवाया है. कहीं विशेष प्रोग्राम होता है, तभी पहनती हूं.’’

अजय कविता के सामने आ कर खड़ा हो गया और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘तुम मुझे चाहती हो न?’’

कविता जीजा के मन का मैल नहीं समझ सकी. उस ने सहजता से जवाब दिया, ‘‘हां, चाहती हूं.’’

‘‘अगर तुम मुझे चाहती होगी तो वही लाल जोड़ा पहनोगी.’’

‘‘जीजाजी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम लाल जोड़े को पहनने की जिद क्यों कर रहे हो?’’ वह बोली.

‘‘इसलिए कि उसे पहन कर तुम दुलहन जैसी लगती हो.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि आप लोग मेरा विवाह कर के मुझे इस घर से निकालने पर तुले हैं.’’ कविता हंसी, ‘‘अब तो मैं उसे हरगिज नहीं पहनने वाली.’’ कह कर कविता तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई.

लड़की ‘न’ कहे तो उस की ‘हां’ समझना चाहिए, सोच कर अजय के होंठों पर मुसकान फैल गई. अजय पहले ही तैयार हो चुका था. इसलिए वह बैठ कर अखबार पढ़ने लगा. कुछ देर बाद जब कविता नहा कर तैयार हुई तो मन ही मन खयाली पुलाव पका रहे अजय ने देखा तो जैसे उस के अरमान बिखर कर रह गए. कविता ने लाल जोड़ा नहीं पहना था. उस ने मेहंदी कलर का सलवारसूट पहन रखा था. उस सलवार सूट में भी उस का सौंदर्य कयामत ढा रहा था. भीगे बालों से टपकती बूंदें उस के चेहरे पर आ कर ठहर गई थी, जिस से भीगाभीगा उस का सौंदर्य दिल को लुभाने वाला था. अजय बेकाबू हो उठा और उस ने कविता को बांहों में भर लिया और उस के गालों को चूम लिया.

कविता स्तब्ध रह गई. जीजा ने यह क्या गजब कर डाला. किसी तरह उस ने स्वयं को अजय के चंगुल से आजाद किया और कमरे से निकल भागी. तभी सास भी घर लौट आई. जीजा की हरकत से कविता का दिल खिल गया. वह सोचने लगी कि मैं इतनी गजब की सुंदर हूं कि जीजा को अपनी बीवी फीकी लगती है. जबकि उन्होंने दीदी से प्रेम विवाह किया है. दोपहर को अजय को भोजन कराने के बाद उषा किसी काम से बाजार चली गई. अजय कविता के कमरे में गया और उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘कविता जब से तुम को लाल जोड़े में देखा है, दिल वश में नहीं है. कुछ करो कविता, वरना मैं तुम्हारे वियोग में तड़पतड़प कर मर जाऊंगा.’’

‘‘अब मैं क्या कर सकती हूं, आप की शादी तो सरिता दीदी से हो गई और वह भी आप ने लव मैरिज की है.’’

‘‘तुम पहले मिल जाती तो सरिता से बिलकुल शादी नहीं करता. लेकिन अब भी देर नहीं हुई है शादी टूटने में कितनी देर लगती है. तुम हां बोलो तो मैं सरिता को तलाक दे कर तुम से विवाह करने का जतन करूं.’’ अजय बेबाकी से बोला.

‘‘धत्त,’’ कविता हंसते हुए बैड से उठ खड़ी हुई, ‘‘जीजा, तुम पागल हो गए हो.’’

उस के बाद उस ने हाथ छुड़ाया और कमरे से जाने लगी तो अजय बेसब्र हो उठा और उस का हाथ पकड़ कर खींच कर बैड पर गिरा लिया. इस के बाद वह उसे पागलों की तरह चूमने लगा. कविता के कुंवारे बदन को परपुरुष का कामुक स्पर्श मिला तो वह भी बहक गई. उस के बाद उन के बीच अनैतिक रिश्ता कायम हो गया. कविता को अपने जीजा के प्यार में गजब का न भूलने वाला आनंद मिला. इस के बाद जब तक अजय रहा, वह कविता के साथ मजे लेता रहा. संबंधों का यह सिलसिला चलता रहा. दूसरी ओर सरिता ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम तनु रखा गया. लेकिन अजय तो कविता के प्यार में पागल था. अब वह ससुराल के अधिक चक्कर लगाने लगा.

ससुराल वालों का माथा ठनका. जब नजर रखी तो उन्होंने कविता के साथ अजय की खिचड़ी पकती देखी. इस से पहले कि कोई अनर्थ हो जाए राजेश चंद्र ने बेटी कविता का विवाह कौशांबी के चरवा गांव निवासी नीरज से कर दिया. यह 5 साल पहले की बात है. विवाह का एक साल बीततेबीतते कविता भी एक बेटी की मां बन गई. अब वह कभीकभार ही मायके आ पाती थी. उस के आने पर अजय ससुराल पहुंच जाता था. दोनों की चाहत तन मिलने से कुछ समय के लिए पूरी हो जाती, लेकिन फिर वही पहले जैसा हाल हो जाता.  दोनों को अपने बीच की दूरी बहुत अखर रही थी. कविता पूरी तरह से अजय के प्यार में रंगी थी. इसलिए उस का ससुराल में मन नहीं लगता था. एक साल पहले वह ससुराल से मायके आई तो वापस लौट कर ससुराल नहीं गई.

अजय की खुशी का ठिकाना न रहा. वह पहले की भांति उस से मिलने जाने लगा. अजय की ससुराल वाले सब जान कर भी कुछ न कर पाते. वह चुपचाप तमाशा देखते रहे. सरिता को भी अपने पति के अपनी बहन कविता से संबंध की जानकारी हो गई. इस के बाद अजय और सरिता में विवाद होने लगा. अजय एक बहन का पति था तो दूसरे का प्रेमी. वह दोनों के जीवन से खेल रहा था. 13 अक्तूबर को अजय इलैक्ट्रौनिक्स का सामान खरीदने के लिए सुबह प्रयागराज चला गया. शाम 6 बजे जब वह घर लौटा तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, धक्का देते ही खुल गया. जैसे ही वह अंदर पहुंचा तो कमरे में उस की पत्नी सरिता और 7 वर्षीय बेटी तनु की लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगा.

शोर सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. घटना की खबर मिलने पर क्षेत्र के विधायक शीतला प्रसाद पटेल भी वहां पहुंच गए. अजय के कमरे में उस की पत्नी व बेटी की लाशें देखने के बाद उन्होंने सैनी कोतवाली के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को घटना की सूचना दे दी. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने अपने उच्चाधिकारियों को दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. फिर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया. सरिता की लाश कमरे में मेज के पास जमीन पर पड़ी थी. उस के गले को चाकू से रेता गया था. शरीर पर भी 4-5 घाव के निशान थे.

लाश के पास काफी खून पड़ा था, जो सूख चुका था. लाश अकड़ी हुई थी. दरवाजे के पास सरिता की बेटी तनु की लाश पड़ी थी. उस के गले पर दबाए जाने के निशान मौजूद थे. तनु की लाश में काफी चींटियां लग गई थीं. निरीक्षण करने के बाद अनुमान लगाया गया कि दिन में किसी वक्त दोनों को मारा गया है. घर में किसी व्यक्ति द्वारा जबरन घुसने का कोई सबूत नहीं मिला. न ही आसपास पड़ोस में किसी ने घटना को अंजाम देने के समय किसी प्रकार का शोरशराबा सुना था. इस का मतलब यह कि हत्यारा कोई परिचित व्यक्ति है. इसी बीच एसपी अभिनंदन, एएसपी समर बहादुर सिंह और सीओ (सिराथू) श्यामकांत भी डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम साक्ष्य जुटाने में लग गई.

उच्चाधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. तत्पश्चात अजय साहू से पूछताछ की तो उस ने सुबह प्रयागराज जाने और शाम 6 बजे घर आने पर घटना का पता होने की बात बताई. सीसीटीवी फुटेज देखी गई. लेकिन कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखा. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को अजय पर ही शक था. उन्होंने अपना शक एसपी अभिनंदन को बताया. एसपी अभिनंदन की सोच भी वही थी. अजय ने बताया था कि वह दोपहर 12 बजे के करीब प्रयागराज गया था. उस के बाद ही लगभग 2-3 बजे घटना हुई होगी. लेकिन 3-4 घंटे में लाश अकड़ नहीं सकती.

ऐसा तभी होता है, जब घटना हुए 10-12 घंटे का समय हो जाए. यानी सुबह के समय तब अजय घर पर ही था. अजय ने ही हत्या कर के सारी कहानी गढ़ी है, इस का विश्वास हुआ तो अजय से और सख्ती से पूछताछ के लिए उसे थाने ले जाया गया. लेकिन इस से पहले दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. अजय के ससुर राजेश चंद्र और छोटी साली सविता आई तो इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने उन से पूछताछ की. राजेश चंद्र काफी दुखी थे. उन्होंने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ करने पर वह चुप ही रहे लेकिन सविता फट पड़ी. उस ने बताया कि कविता दीदी और जीजा का आपस में काफी लगाव था. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह का शक सही साबित हुआ.

इस के बाद अजय से थाने में सख्ती से उन्होंने पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और इस जुर्म में उस ने साली कविता के भी शामिल होने की बात स्वीकारी. दोनों ने ही मिल कर सरिता की हत्या की साजिश रची थी. इस के बाद कविता को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि अजय और कविता एकदूसरे से विवाह कर के साथ रहना चाहते थे. सरिता उन के संबंधों का विरोध कर रही थी, वह उन के रास्ते में आ रही थी. इसलिए कविता और अजय ने मिल कर सरिता की हत्या की योजना बनाई. अजय ने कविता से बात करने के लिए दूसरा नंबर ले रखा था, उसी से बराबर कविता से बात करता था.

उसी नंबर से बात कर के उन्होंने हत्या का षडयंत्र रचा. 13 अक्तूबर की सुबह 6 बजे अजय ने घर में रखे सब्जी काटने वाले चाकू से नींद में सोई सरिता का गला काट दिया. सरिता चीख भी न सकी, जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. अजय ने फिर उस के शरीर पर कई वार किए, जिस से सरिता की मौत हो गई. अपने पिता के हाथों मां को मरता देख कर मासूम तनु जाग गई और डर की वजह से रोते हुए बाहर की तरफ भागने लगी. अजय ने दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही उसे पकड़ लिया और उस का सिर दीवार पर पटक दिया.

सिर में लगी चोट से तनु बेहोश हो गई. अजय ने फिर उस का गला घोंट कर उस की भी हत्या कर दी. अजय तनु को मारना नहीं चाहता था लेकिन भेद खुलने के डर से उसे बेटी की हत्या करनी पड़ी. उस ने हत्या के बाद कविता से मोबाइल पर बात की और दोनों की हत्या करने की बात बता दी. इस के बाद वह बाजार गया और कई जगह जानबूझ कर गया, जिस से वह सीसीटीवी कैमरों में कैद में आ जाए. एक जगह उस ने समोसा खरीद कर भी खाया. इस के बाद वह प्रयागराज चला गया. वहां वह शाहगंज इलाके में कई उन इलैक्ट्रौनिक सामानों की दुकानों पर गया, जहां सीसीटीवी कैमरे लगे थे. अपने प्रयागराज में होने के सबूत छोड़ कर शाम को वह कौशांबी लौट

आया. यहां लौटने के बाद भी कुछ जगहों पर गया. शाम 6 बजे वह कमरे पर पहुंचा और लाश देख कर शोर मचाने लगा. लेकिन काफी होशियारी के बाद भी वह कविता के साथ कानून के शिकंजे में फंस गया. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

UP News : पिटाई से तंग आकर पत्नी ने प्रेमी से कराया पति का कत्ल

UP News : दंपति के बीच आपसी विवाद होना एक आम बात होती है. लेकिन समझदार लोग पहल कर के खुद ही विवादों को निपटा लेते हैं. अवतार सिंह और अंजना यादव भी अगर अपना अहंकार छोड़ कर घरेलू विवाद निपटाने की कोशिश करते तो शायद…

उत्तर प्रदेश का एक मशहूर जिला है ललितपुर. यह झांसी डिवीजन के तहत आता है. महाराजा सोमेश सिंह ने अपनी पत्नी ललिता देवी की यादगार में इस का नाम ललितपुर रखा था. साल 1974 में यह जिले के रूप में अस्तित्व में आया. जिले की सीमाएं झांसी व दतिया से जुड़ी हैं. झांसी जहां ऐतिहासिक क्रांति के लिए मशहूर है तो दतिया दूधदही व खोया व्यापार के लिए. जबकि ललितपुर उधार व्यापार के लिए चर्चित है. इन 3 जिलों को मिला कर एक कहावत बहुत मशहूर है ‘झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार. ललितपुर न छोडि़ए, जब तक मिले उधार.’

ललितपुर जिला ऐतिहासिक तथा धर्मस्थलों के लिए भी मशहूर है. यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. भारत के 3 बांधों में प्रमुख गोविंद सागर बांध इसी ललितपुर में स्थित है. इस बांध को लव पौइंट के नाम से भी जाना जाता है. इसी ललितपुर शहर में एक गांव है जिजयावन. यादव बाहुल्य इस गांव में शेर सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी रामरती और बेटा अवतार सिंह था. शेर सिंह की आजीविका खेती थी. उसी की आय से उस ने बेटी का ब्याह कर उसे ससुराल भेजा था. शेर सिंह यादव खुद तो जीवन भर खेत जोतता रहा, लेकिन वह अपने बेटे अवतार सिंह को पढ़ालिखा कर अच्छी नौकरी दिलवाना चाहता था.

लेकिन उस की यह तमन्ना अधूरी ही रह गई. क्योंकि अवतार सिंह का मन पढ़ाई में नहीं लगा. हाईस्कूल में फेल होने के बाद उस ने पढ़ाई बंद कर दी और खेती के काम में पिता का हाथ बंटाने लगा. अवतार सिंह का मन खेतीकिसानी में लग गया तो शेर सिंह ने उस का विवाह भसौरा गांव निवासी राजकुमार यादव की बेटी अंजना उर्फ सुखदेवी के साथ कर दिया. अंजना थी तो सांवली, लेकिन उस का बदन भरा हुआ और नाकनक्श सुंदर थे. अवतार सिंह उस की अदाओं पर फिदा था, इसी कारण वह धीरधीरे जोरू का गुलाम बन गया. दोनों की शादी को 5 साल बीत गए. इस बीच अंजना 2 बेटियों की मां बन गई.

अंजना की सास कमला की दिली तमन्ना थी कि उस का एक पोता हो. लेकिन जब अंजना ने एक के बाद एक 2 बेटियों को जन्म दिया तो कमला गम में डूब गई. इसी गम से वह बीमार रहने लगी और फिर एक दिन उस की मृत्यु हो गई. पत्नी छोड़ कर चली गई तो शेर सिंह को भी संसार से मोह नहीं रह गया. उस ने साधु वेश धारण कर लिया और तीर्थस्थानों के भ्रमण करने लगा. वह महीने दो महीने में घर आता, हफ्तादस दिन रहता, उस के बाद फिर भ्रमण पर निकल जाता. ससुर के घर छोड़ने से जहां अंजना खुश थी, वहीं अवतार सिंह को इस बात का गहरा सदमा लगा था. अवतार सिंह का मानना था कि मां की मौत की जिम्मेदार उस की पत्नी अंजना ही है.

पिता भी उसी के कारण घर छोड़ कर गए हैं. कभीकभी वह अंजना को इस बात का ताना भी देता था. इसे ले कर दोनों में झगड़ा होता, फिर अंजना रूठ कर मायके चली जाती. अवतार सिंह के मनाने पर ही वह घर वापस आती थी. पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ा, तो उन के अंतरंग संबंधों पर भी असर पड़ने लगा. जब मन में दूरियां पैदा हो जाएं तो तन अपने आप दूर हो जाते हैं. अब महीनों तक दोनों देह मिलन से भी दूर रहते. अंजना चाहती थी कि प्रणय की पहल अवतार सिंह करे, जबकि अवतार सिंह चाहता था कि अंजना खुद उस के पास आए. इसी जिद पर दोनों अड़े रहते. तनाव पैदा होने से, घर में एक बुराई और घुस आई. अवतार सिंह को शराब पीने की आदत पड़ गई. वह शराब पी कर आने लगा. इस से मनमुटाव और बढ़ गया.

अवतार सिंह की जानपहचान कल्याण उर्फ काले कुशवाहा से थी. कल्याण पड़ोस के गांव मिर्चवारा का रहने वाला था और काश्तकार था. अवतार और कल्याण के खेत मिले हुए थे सो दोनों की खेतों पर अकसर मुलाकात हो जाती थी. कल्याण की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उस के पास बुलेरो कार भी थी, जिसे मोहन कुशवाहा चलाता था. बोलेरो कार बुकिंग पर चलती थी, जिस से कल्याण को अतिरिक्त आय होती थी. मोहन कुशवाहा ड्राइवर ही नहीं बल्कि उस का दाहिना हाथ था. कल्याण उर्फ काले कुशवाहा शराब व शबाब का शौकीन था. अवतार सिंह को भी शराब पीने की लत थी, सो उस ने कल्याण से दोस्ती कर ली. अब दोनों की महफिल साथसाथ जमने लगी. चूंकि अवतार सिंह को पैसा खर्च नहीं करना पड़ता था सो वह उस के बुलावे पर तुरंत उस के पास पहुंच जाता था.

एक रोज कल्याण शराब की बोतल ले कर अवतार सिंह के घर आ पहुंचा. उस रोज पहली बार कल्याण की नजर अवतार की पत्नी अंजना पर पड़ी. पहली ही नजर में अंजना उस के दिल में रचबस गई. अंजना भी हृष्टपुष्ट कल्याण को देख कर प्रभावित हुई. दरअसल अंजना अपने पति अवतार सिंह से संतुष्ट नहीं थी. उस का जिस्मानी रिश्ता खत्म सा हो गया था. अत: उस ने मन ही मन कल्याण को अपने प्यार के जाल में फंसाने का निश्चय कर लिया. कल्याण कुशवाहा का अंजना के घर आनाजाना शुरू हुआ, तो दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ने लगीं. 2 बेटियों की मां बन जाने के बाद भी अंजना का यौवन अभी ढला नहीं था. अंजना की आंखों में जब उसे मूक निमंत्रण दिखने लगा, तो कामना की प्यास भी बढ़ गई.

अंजना की नजदीकियां पाने के लिए कल्याण ने अवतार सिंह को ज्यादा भाव देना शुरू कर दिया. वह उसे मुफ्त में शराब तो पिलाता ही था, अब उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. कल्याण का घर आना बढ़ा तो अंजना समझ गई कि कल्याण पर उस के हुस्न का जादू चल गया है. वह अपने हावभाव से उस की प्यास और भड़काने लगी. बेताबी दोनों ओर बढ़ती गई. अब उन्हें मौके का इंतजार था. एक रोज कल्याण ने अंजना को पाने का मन बनाया और दोपहर को अवतार सिंह के घर पहुंच गया. अंजना उस समय घर में अकेली थी. बच्चे स्कूल गए थे और अवतार सिंह खेतों पर.

मौका अच्छा था. कल्याण को देख अंजना के होंठों पर शरारती मुसकान बिखरी और उस ने पूछा, ‘‘तुम तो शाम को अंगूर की बेटी को होंठों पर लगाने यहां आते थे, आज दिन में रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘अंजना, अंगूर की बेटी से होंठों की प्यास कहां बुझती है, उल्टा और भड़क जाती है. सोचा कि आज शराब से भी ज्यादा नशीली, उस से ज्यादा मादक अपनी अंजना का नशा कर लूं.’’ कहते हुए कल्याण ने उस के कंधे पर हाथ रख दिए.

‘‘तुम ने न मुझे हाथ लगाया, न होंठ लगाए. फिर कैसे कह सकते हो कि मैं शराब से ज्यादा मादक और नशीली हूं.’’ अंजना ने अपनी अंगुलियों से कल्याण की छाती सहलानी शुरू कर दी. यह मिलन का साफ आमंत्रण था. कल्याण का हौसला बढ़ा. उस ने अंजना को अपनी बांहों में भर लिया. इस के बाद दोनों ने हसरतें पूरी कीं. उस रोज के बाद कल्याण तथा अंजना के बीच अकसर यह खेल खेला जाने लगा. दोनों को न मर्यादा की परवाह थी, न रिश्तेनातों की. अंजना अब खूब बन संवर कर रहने लगी. अकसर दोपहर को कल्याण का अवतार सिंह के घर आना, लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय बनना ही था. धीरेधीरे पासपड़ोस वाले समझ गए कि दोनों के बीच कौन सी खिचड़ी पक रही है.

चर्चा फैली तो बात अवतार सिंह के कानों तक पहुंची. उस ने पत्नी से जवाबतलब किया तो अंजना बोली, ‘‘कल्याण तो तुम्हारे साथ पीनेखाने के लिए आता है. इसी बात की जलन लोगों को होती है. तुम्हें अगर उस के आने से परेशानी है, तो तुम ही उसे मना कर देना. मैं बेकार में क्यों बुरी बनूं.’’

पत्नी की बातों से अवतार सिंह को लगा कि गांव वाले बिना वजह बातें कर रहे हैं. अंजना गलत नहीं है. वह शांत हो कर चारपाई पर जा लेटा. अवतार सिंह ने अंजना की बात पर यकीन तो कर लिया, लेकिन मन का शक दूर नहीं हुआ. इधर अंजना ने सारी बात कल्याण को बताई. इस के बाद दोनों मिलन में बेहद सतर्कता बरतने लगे. अब जब अंजना फोन पर उसे सूचना देती, तभी कल्याण घर आता. उस रोज अवतार सिंह ललितपुर जाने की बात कह कर घर से निकला, लेकिन किसी वजह से 2 घंटे बाद ही घर वापस आ गया. वह घर के अंदर कमरे के पास पहुंचा तभी उसे कमरे के अंदर से खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुन कर वह समझ गया कि कमरे में अंजना के साथ कोई मर्द भी है. उस की आंखों में खून उतर आया. उस ने पूरी ताकत से दरवाजे पर लात मारी. भड़ाक से दरवाजा खुला, सामने बिस्तर पर कल्याण और अंजना आपत्तिजनक हालत में थे. अवतार सिंह पूरी ताकत से दहाड़ा, ‘‘हरामजादे तेरी यह हिम्मत कि तू मेरे ही घर में घुस कर मेरी इज्जत लूटे. मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा.’’

गुस्से से आग बबूला अवतार सिंह आंगन के कोने में रखा डंडा लेने लपका. तब तक कल्याण और अंजना संभल चुके थे. कल्याण तो भाग गया, लेकिन अंजना कहां जाती. अवतार सिंह ने उस की जम कर पिटाई की, और गालियां बकता रहा. फिर वह सीधा देशी शराब के ठेके पर चला गया. वहां से वह धुत हो कर लौटा, फिर पत्नी की खबर लेनी शुरू कर दी. उस रोज पूरा गांव जान गया कि अंजना का कल्याण से गलत रिश्ता है. अंजना तो कल्याण की दीवानी बन चुकी थी. अत: पिटाई के बावजूद भी उस ने कल्याण का साथ नहीं छोड़ा. अब वह घर के बजाए खेतखलिहान व बागबगीचे में प्रेमी से मिलने लगी. इस की जानकारी जब अवतार सिंह को हुई तो उस ने फिर अंजना को पीटा और चेतावनी दी कि आज के बाद जिस दिन वह उसे रंगे हाथ पकड़ लेगा, उस दिन बहुत बुरा होगा. पति की इस चेतावनी से अंजना बुरी तरह डर गई थी.

11 अगस्त, 2020 को अचानक अवतार सिंह लापता हो गया. कई दिन बीत जाने के बाद जब गांव वालों को अवतार सिंह नहीं दिखा तो लोगों ने अंजना से उस के बारे में पूछा. उस ने लोगों को बताया कि उस के पति मथुरा वृंदावन गए हैं. हफ्तादस दिन में वापस आ जाएंगे. अंजना का जवाब पा कर लोग संतुष्ट हो गए. लगभग एक हफ्ते बाद अंजना का ससुर शेर सिंह तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर घर लौटा तो अंजना ने उसे भी बता दिया कि अवतार सिंह मथुरा गया है. इधर 15 अगस्त, 2020 को वानपुर थानाप्रभारी राजकुमार यादव को सूचना मिली कि खिरिया छतारा गांव के पास नहर की पटरी के किनारे झाडि़यों में एक आदमी की लाश पड़ी है. जिस से दुर्गंध आ रही है.

सूचना से राजकुमार यादव ने अपने अधिकारियों को अवगत कराया फिर चौकी इंचार्ज कृष्ण कुमार, एसआई दया शंकर, सिपाही रजनीश चौहान और देवेंद्र कुमार को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां गांव वालों की भीड़ जुटी थी. थानाप्रभारी ने झाडि़यों से शव बाहर निकलवाया, जो एक चादर में लिपटा था. चादर से शव निकाला तो वह 34-35 साल के युवक का था. शव की हालत देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि उस की हत्या 4-5 दिन पहले की गई होगी. बरसात के कारण शव फूल भी गया था. देखने से प्रतीत हो रहा था कि युवक की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

थानाप्रभारी राजकुमार यादव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी एस.एस. बेग, एएसपी बृजेश कुमार सिंह तथा डीएसपी केशव नाथ घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पता चला कि युवक की हत्या कहीं और की गई थी और शव को नहर किनारे झाडि़यों में फेंका गया था. पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में सैकड़ों लोग शव को देख चुके थे. पर कोई भी उसे पहचान नहीं पा रहा था. इस से अधिकारियों ने अंदाजा लगाया कि मृतक आसपास के गांव का नहीं बल्कि कहीं दूरदराज का है. तब अधिकारियों ने शव का फोटो खिंचवा कर पोस्टमार्टम के लिए ललितपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

एसपी एम.एम. बेग ने इस ब्लाइंड मर्डर का परदाफाश करने की जिम्मेदारी थानाप्रभारी राजकुमार यादव को सौंपी. सहयोग के लिए एसओजी व सर्विलांश टीम को भी लगाया. पूरी टीम की कमान एएसपी बृजेश कुमार सिंह को सौंपी गई. थानाप्रभारी राजकुमार यादव ने इस केस को खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. मुखबिरों को गांवगांव भेजा. पासपड़ोस के कई थानों से गुमशुदा लोगों की जानकारी जुटाई पर उस अज्ञात शव की किसी ने शिनाख्त नहीं की. तब यादव को शक हुआ कि मृतक किसी दूरदराज गांव का हो सकता है. इस पर थानाप्रभारी ने दूरदराज के गांवों में अज्ञात युवक की लाश बरामद करने की मुरादी कराई.

जिजयावन गांव का शेर सिंह यादव उस समय खेत पर जा रहा था. अपने गांव में डुग्गी पिटती देख वह रुक गया. ऐलान सुना तो वह अंदर से कांप सा गया. क्योंकि उस का बेटा अवतार सिंह भी 11 अगस्त से घर से लापता था. खेत पर जाना भूल कर शेर सिंह ने पड़ोसी रामसिंह को साथ लिया और थाना वानपुर पहुंच कर थानाप्रभारी राजकुमार यादव से मिला. थानाप्रभारी ने जब शेर सिंह को लाश के फोटो, कपड़े, चादर आदि दिखाई तो उन दोनों ने उस की शिनाख्त अवतार सिंह के तौर पर कर दी. पड़ोसी रामसिंह ने थानाप्रभारी राजकुमार यादव को यह भी जानकारी दी कि अवतार सिंह के घर मिर्चवारा गांव के कल्याण उर्फ काले का आनाजाना था. काले तथा अवतार सिंह की बीवी अंजना के बीच नाजायज रिश्ता था. अवतार सिंह इस का विरोध करता था. संभव है, इसी विरोध के कारण उस की हत्या की गई हो.

अवतार सिंह की हत्या का सुराग मिला तो पुलिस टीम अंजना से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गई. अंजना ने पूछताछ में बताया कि उस के पति मथुरा गए हैं. वहां से कहीं और चले गए होंगे. 2-4 दिन बाद आ जाएंगे. लेकिन जब पुलिस ने बताया कि उस के पति की हत्या हो गई है और उस के ससुर शेर सिंह ने फोटो चादर से उस की शिनाख्त भी कर ली है. तब अंजना ने जवाब दिया कि उस के ससुर वृद्ध हैं. बाबा बन गए हैं. उन की अक्ल कमजोर हो गई, इसलिए उन्होंने हत्या की बात मान ली और उन की गलत शिनाख्त कर दी. पर सच्चाई यह है कि पति तीर्थ करने गए हैं. आज नहीं तो कल आ ही जाएंगे. बिना सबूत के पुलिस टीम ने अंजना को गिरफ्तार करना उचित नहीं समझा. पुलिस ने पूछताछ के बहाने उस का मोबाइल फोन जरूर ले लिया तथा उस की निगरानी के लिए पुलिस का पहरा बिठा दिया.

पुलिस ने अंजना का मोबाइल फोन खंगाला तो पता चला कि अंजना एक नंबर पर ज्यादा बातें करती है. पुलिस ने उस नंबर का पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर अंजना के प्रेमी कल्याण उर्फ काले का है और वह हर रोज उस से बात करती है. फिर क्या था, पुलिस टीम ने 3 सितंबर, 2020 की सुबह अंजना को उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना वानपुर ले आई. फिर अंजना की ही मदद से पुलिस टीम ने कल्याण उर्फ काले को भी भसौरा तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस समय वह अपनी बोलेरो यूपी94एफ 4284 पर सवार था और ड्राइवर मोहन कुशवाहा का इंतजार कर रहा था. उसे मय बोलेरो थाना वानपुर लाया गया.

थाने पर जब उस ने अंजना को देखा तो समझ गया कि अवतार सिंह की हत्या का राज खुल गया है. जब पुलिस ने कल्याण से अवतार सिंह की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया और अपनी बोलेरो से तार का वह टुकड़ा भी बरामद करा दिया जिस से उस ने अवतार सिंह का गला घोंटा था. कल्याण के टूटते ही अंजना भी टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. कल्याण उर्फ काले कुशवाहा ने पुलिस को बताया कि अवतार सिंह की पत्नी अंजना से उस के नाजायज संबंध हो गए थे. इस रिश्ते की जानकारी अवतार को हुई तो वह विरोध करने लगा और अंजना को पीटने लगा.

अंजना की पिटाई उस से बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए उस ने अंजना और अपने ड्राइवर मोहन कुशवाहा के साथ मिल कर अवतार की हत्या की योजना बनाई और सही समय का इंतजार करने लगा. 11 अगस्त, 2020 की रात 8 बजे अंजना ने फोन कर के कल्याण को जानकारी दी कि अवतार सिंह फसल की रखवाली के लिए खेत पर गया है. वह रात को ट्यूबवैल वाली कोठरी में सोएगा. यह पता चलते ही वह अपनी बोलेरो यूपी94एफ 4284 से ड्राइवर मोहन कुशवाहा के साथ जिजयावन गांव के बाहर पहुंचा. वहां योजना के तहत अंजना उस का पहले से ही इंतजार कर रही थी. उस के बाद वह तीनों खेत पर पहुंचे. जहां अवतार सिंह कोठरी में जाग रहा था.

वहां पहुंचते ही तीनों ने अवतार सिंह को दबोच लिया, फिर बिजली के तार से अवतार सिंह का गला घोंट दिया. हत्या के बाद तीनों ने शव चादर में लपेटा और बोलेरो गाड़ी में रख कर वहां से 20 किलोमीटर दूर खिरिया छतारा गांव के बाहर नहर की पटरी वाली झाडि़यों के बीच फेंक दिया. शव ठिकाने लगाने के बाद सभी लोग अपनेअपने घर चले गए. चूंकि कल्याण उर्फ काले ने ड्राइवर मोहन कुशवाहा को भी हत्या में शामिल होना बताया था, अत: पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए 4 सितंबर की दोपहर 12 बजे मोहन कुशवाहा को भी ललितपुर बस स्टैंड के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाना वानपुर की हवालात में जब उस ने कल्याण को देखा तो सब कुछ समझ गया. पूछताछ में उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने हत्यारोपित कल्याण उर्फ काले, मोहन कुशवाहा तथा अंजना यादव के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें 5 सितंबर 2020 को ललितपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Mumbai Crime News : पत्नी पर शक था इसलिए दुपट्टे से गला घोंटकर की हत्या

Mumbai Crime News : संदेह और कलह ऐसी चीजें हैं, जो हंसतेखेलते परिवार को बरबादी के कगार पर ले जा कर खड़ा कर देती हैं. अंबुज ने तो दोनों को ही प्यार से पाल रखा था, नतीजा यह…

नवी मुंबई के उपनगर घनसोली के रहने वाले महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी की बहू नीलम और बेटा अंबुज तिवारी 22 जुलाई, 2020 की शाम साढ़े 5 बजे बिना किसी को बताए घर से निकल गए. पतिपत्नी थे, कहीं भी घूमने जा सकते थे, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. घर वाले तब परेशान हुए, जब दोनों शाम को लौट कर नहीं आए. परेशानी तब हदें पार कर गई जब अगले दिन भी दोनों न तो घर लौटे और न ही फोन किया. दोनों के फोन भी स्विच्ड औफ थे, सो उन से बात भी नहीं हो पा रही थी. मामला जवान बहू और बेटे का था, इसलिए घर वाले सोच रहे थे कि दोनों जवान हैं, कहीं दूर घूमने भी जा सकते हैं. फिर भी जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर वालों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, इस की खास वजह थी उन के मोबाइल स्विच्ड औफ होना.

हैरानपरेशान महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी पूरी रात पूरे दिन 10 बजे तक उन की तलाश जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों के यहां करते रहे. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के मन में किसी तरह की अनहोनी को ले कर तरहतरह के विचार आने लगे. जब सारी कोशिशें बेकार गईं तो महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी रात साढ़े 10 बजे कुछ नातेरिश्तेदारों के साथ थाना रबाले पहुंचे और थानाप्रभारी योगेश गावड़े को सारी बातें बता दीं. योगेश गावड़े ने उन के बेटे और बहू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होते ही थानाप्रभारी योगेश गावड़े हरकत में आ गए.

उन्होंने इस मामले की जानकारी पहले पुलिस कमिश्नर संजय कुमार, जौइंट सीपी राजकुमार व्हटकर, डीसीपी जोन-1 पंकज दहाणे, एसीपी (वाशी डिवीजन) विनायक वस्त के साथ नवी मुंबई पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर गिरधर गोरे को सौंप दी. उन की सहायता के लिए इंसपेक्टर उमेश गवली, सहायक इंसपेक्टर तुकाराम निंबालकर, प्रवीण फड़तरे, संदीप पाटिल और अमित शेलार को नियुक्त किया गया. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपने सहायकों के साथ मामले पर गहराई से विचार कर के जांच की रूपरेखा तैयार की ताकि जांच तेजी से हो सके.

सब से पहले उन्होंने गुमशुदा अंबुज तिवारी और उस की पत्नी नीलम तिवारी के हुलिए सहित उन की फोटो नवी मुंबई के सभी पुलिस थानों को भेजे. साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि उन के बारे में कहीं से कोई सूचना मिले तो जानकारी दें. साथ ही तेजतर्रार मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया था. इस के बाद इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अंबुज और नीलम के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए. जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी, गिरधर गोरे ने वहांवहां अपनी टीम भेजी. लेकिन अंबुज और नीलम के बारे में कहीं से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के सहारे उन तक पहुंचा जा सके. उन के पड़ोसियों ने यह जरूर बताया कि अंबुज और नीलम की अकसर तकरार होती थी. लेकिन दोनों घर छोड़ कर कहां गए होंगे, किसी को कोई जानकारी नहीं थी. जिस फर्म में अंबुज काम करता था, वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर गिरधर गोरे अपनी टीम के साथ जांच तो कर रहे थे, लेकिन उन की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि पतिपत्नी दोनों वयस्क थे, जहां जाना चाहते, आजा सकते थे. फिर लौकडाउन में उन का बिना किसी को कुछ बताए घर से निकल जाना और पूरे दिनरात घर न आना, रहस्यमय था. कहां गए होंगे और क्यों गए होंगे, यह गुत्थी सुलझ नहीं रही थी. इस गुत्थी को सुलझाने में पुलिस टीम को 4 से 5 दिन लग गए. जब यह गुत्थी सुलझी तो जांच टीम अवाक रह गई. मुखबिर ने दिया सूत्र 28 जुलाई, 2020 को इंसपेक्टर गिरधर गोरे को एक मुखबिर ने खबर दी कि जिस अंबुज और नीलम तिवारी को वह खोज रहे हैं, उन्हें घनसोली की अर्जुनवाड़ी में देखा गया है. यह खबर मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपनी काररवाई के लिए टीम को सजग कर दिया.

उन की टीम ने छापा मार कर अंबुज तिवारी को अपनी गिरफ्त में लिया और उसे वरिष्ठ अधिकारियों के सामने ले जाया गया. अधिकारियों ने उस से फौरी तौर पर पूछताछ कर के जांच टीम के हवाले कर दिया.  जांच टीम ने जब उस से नीलम के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. लेकिन जांच टीम उस की बातों से सहमत नहीं थी. उस के चेहरे से मक्कारी साफ झलक रही थी, वह कुछ छिपा रहा था. सच की तह में जाने के लिए जब उसे रिमांड पर लिया तो उसे बोलना पड़ा. अंबुज ने बताया कि उस ने अपने दोस्त के साथ मिल कर नीलम की हत्या कर दी है. उस ने आगे बताया कि नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर वह और उस का दोस्त टैंपो से मुंबई-पुणे हाइवे होते हुए लोनावला के पास गांव दापोली के पास पहुंचे और लाश घनी झाडि़यों में छिपा दी.

पुलिस टीम को नीलम तिवारी का शव बरामद करना था. अंबुज तिवारी के बयान पर पुलिस टीम ने अपराध में शामिल उस के दोस्त श्रीकांत चौबे को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अंबुज तिवारी की बातों की पुष्टि की. श्रीकांत चौबे की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम दोनों को ले कर मुंबई-पुणे हाइवे के लोनावला, दापोली के बीच पहुंची और प्लास्टिक का वह ड्रम बरामद कर लिया. ड्रम का ढक्कन खोल कर नीलम तिवारी का शव बाहर निकाला गया फिर बारीकी से उस का निरीक्षण कर के पंचनामा बनाया गया. शव को पोस्टमार्टम के लिए मुंबई के गांधी अस्पताल भेज कर पुलिस टीम थाने लौट आई. पूछताछ में नीलम तिवारी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह थी—

65 वर्षीय महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के लालगंज बाजार के रहने वाले थे. अच्छे काश्तकार होने के साथ वह एक उच्चकुल के ब्राह्मण थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उन का पूरा परिवार गांव में रहता था. महेंद्रनाथ सालों पहले मुंबई आ बस गए. वह करीब 30 सालों से महानगर नवी मुंबई के घनसोली इलाके में रहते आ रहे थे और फलों का व्यवसाय करते थे. 28 वर्षीय अंबुज तिवारी उन का बेटा था, जिसे वह बहुत प्यार करते थे. स्वस्थ, सुंदर अंबुज तिवारी ने साइंस से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. फलस्वरूप उसे मुंबई जैसे महानगर में नौकरी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा. पढ़ाई पूरी कर के वह सन 2010 में नौकरी के लिए पिता के पास मुंबई आ गया था.

मुंबई में उसे कुर्ला की एक जानीमानी सीमेंट मिक्सिंग कंपनी में क्वालिटी सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई. अंबुज तिवारी जिस फर्म में काम करता था, उसी में श्रीकांत चौबे भी नौकरी कर रहा था. वह फर्म में टैंपो ड्राइवर था. वह माल डिलिवरी करता था. 23 वर्षीय श्रीकांत जयनारायण चौबे भी मूलरूप से आजमगढ़ का ही रहने वाला था. जल्दी ही दोनों की जानपहचान दोस्ती में बदल गई. जब भी मौका मिलता, दोनों घूमनेफिरने निकल जाते थे.

 

अच्छी नौकरी और अंबुज की बढ़ती उम्र को देखते हुए महेंद्रनाथ तिवारी अंबुज की शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. उन्होंने जानपहचान और नातेरिश्तेदारी में अंबुज की शादी की बात चलाई तो उन्हें नीलम के बारे में जानकारी मिली. बातचीत के बाद 2016 में नीलम और अंबुज की शादी हो गई. शादी के बाद अंबुज ने कुछ दिनों के लिए नीलम को अपनी मां की सेवा के लिए गांव में छोड़ दिया था. वह खुद पिता के साथ मुंबई में रहता रहा. बीचबीच में वह छुट्टी ले कर गांव जाता रहता था. मगर नीलम इस से संतुष्ट नहीं थी. वह उस से इस बात की शिकायत करती थी कि उस के बिना उसे गांव अच्छा नहीं लगता. वह सारी रात उस को याद करकर के करवटें बदलती है. वैसे भी तुम्हें और पापा को खाना बनाने में तकलीफ होती होगी.

नीलम की शिकायत वाजिब थी. क्योंकि वह जवान और नईनवेली दुलहन थी. उस के भी अपने सपने और अरमान थे. उस का भी दिल पति के साथ रहने के लिए मचलता था, पर अंबुज की अपनी कुछ विवशताएं थीं. उस की मां बूढ़ी हो चली थी. मुंबई में वह पिता के साथ रहता था. घर छोटा था, ऐसे में वह घर में कैसे रहेगी. काफी सोचविचार के बाद उसे नीलम की जिद पर उसे मुंबई ले कर आना पड़ा. नीलम को अपने पति और ससुर के साथ रहते हुए लगभग एक साल से अधिक हो गया था. मुंबई आ कर नीलम ने घर और रसोई का सारा काम संभाल लिया था. पति के साथ नीलम बहुत खुश थी. मगर उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रही. उस के सुखी जीवन में परेशानी कुछ इस कदर आ कर बैठ गई कि उस का मानसम्मान सब रेत की दीवार की तरह ढह गया.

फोन बना परेशानी नीलम का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह चंचल स्वभाव और खुले विचारों वाली हंसमुख और मिलनसार युवती थी. घर का कामकाज निपटा कर वह दिल बहलाने के लिए फोन पर अपनी फ्रैंड्स और मायके वालों के साथ चिपक जाती थी. इस बीच जब अंबुज को नीलम से बात करने की इच्छा होती थी तो उस का फोन बिजी रहता था, जिसे ले कर अंबुज के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे थे. धीरेधीरे यही खयाल संदेह का वायरस बन कर अंबुज के दिमाग में बैठ गया. उसे लगा कि नीलम का गांव में किसी युवक के साथ चक्कर है. इस बारे में अंबुज ने जब नीलम से बात की तो वह स्तब्ध रह गई. फिर उस ने अपने आप को संभाल लिया और कहा कि यह सब उस के मन का वहम है.

नीलम के लाख सफाई देने के बाद भी संदेह का वायरस अंबुज के दिमाग से नहीं गया. वह बातबात पर अकसर नीलम से लड़ाई और मारपीट करने लगा. संदेह का वायरस उस के दिमाग में कुछ इस प्रकार घुसा था कि उस ने नीलम को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. घटना वाली रात अंबुज पिता महेंद्रनाथ तिवारी को बिना बताए नीलम को यह कह कर साथ ले गया कि उस के दोस्त की बर्थडे पार्टी है. दोनों श्रीकांत चौबे के घर अर्जुनवाड़ी आ गए. अर्जुनवाड़ी में श्रीकांत चौबे के घर कोई पार्टी न देख नीलम को ठीक नहीं लगा क्योंकि अंबुज उसे झूठ बोल कर लाया था. इसलिए वह अंबुज से घर लौटने की जिद करने लगी. इस पर अंबुज ने उस के दुपट्टे से गला कस दिया और तब तक कसता रहा जब तक नीलम के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए.

अंबुज की इस हरकत से श्रीकांत चौबे बुरी तरह डर गया. श्रीकांत को अंबुज तिवारी की यह योजना मालूम नहीं थी. उस ने अंबुज को खाना खाने के लिए बुलाया था. नीलम की हत्या करने के बाद अंबुज ने उस के शव को ठिकाने लगाने के लिए श्रीकांत चौबे से मदद मांगी. दोस्ती के नाते श्रीकांत उस की मदद करने को तैयार हो गया. उस की मजबूरी यह भी थी कि लाश उस के घर में पड़ी थी. दोनों ने नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर टैंपो पर लाद दिया और मुंबई-पुणे हाइवे के दोपाली और लोनावला के बीच घनी झाडि़यों में डाल आए, जहां से पुलिस ने शव बरामद कर लिया.

अंबुज महेंद्रनाथ तिवारी और श्रीकांत जयनारायण चौबे से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. बाद में दोनों को अदालत पर पेश कर के तलोजा जेल भेज दिया गया. वारदात में इस्तेमाल टैंपो को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था.

 

UP News : प्रेमी ने विवाहिता प्रेमिका की गमछे से गला दबाकर की हत्या

UP News : 2 बच्चों की मां होने के बावजूद ननकी अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी. इस बेहयाई से तंग आ कर उस का पति अंबिका प्रसाद घर छोड़ कर चला गया. इस के बाद ऐसा क्या हुआ कि प्रेमी छत्रपाल ही ननकी का कातिल बन गया.

सुबह होते ही गांव में शोर मचने लगा कि छत्रपाल अपनी प्रेमिका ननकी की हत्या कर फरार हो गया है, उस की लाश कमरे में पड़ी है. हल्ला होते ही गांव वाले ननकी के मकान की ओर दौड़ पड़े. गांव का प्रधान भी उन में शामिल था. गांव के पूर्वी छोर पर ननकी का मकान था. वहां पहुंच कर लोगों ने देखा, सचमुच ननकी की लाश कमरे में जमीन पर पड़ी थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि छत्रपाल ने ननकी की हत्या क्यों कर दी. इसी बीच ग्राम प्रधान रामसिंह यादव ने थाना बिंदकी में फोन कर के इस हत्या की खबर दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने महिला की हत्या किए जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी फिर निरीक्षण में जुट गए.

वह उस कमरे में पहुंचे जहां ननकी की लाश पड़ी थी. लाश के पास कुछ महिलाएं रोपीट रही थीं. पूछने पर पता चला कि मृतका अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ रहती थी. उस का पति अंबिका प्रसाद करीब 5 साल पहले घर से चला गया था और वापस नहीं लौटा. मृतका के 2 बच्चे भी हैं, जो अपनी ननिहाल में रहते हैं. मृतका ननकी की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में गमछा लिपटा था. लग रहा था जैसे उसी गमछे से गला कस कर उस की हत्या की गई हो. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. साथ ही टूटी चूडि़यां भी बिखरी पड़ी थीं. इस से लग रहा था कि हत्या से पहले मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ योगेंद्र कुमार मलिक घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद मृतका के घरवालों तथा पासपड़ोस के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की. मौके पर शारदा नाम की लड़की मिली. मृतका ननकी उस की मौसी थी. शारदा ने पुलिस को बताया कि वह कल शाम छत्रपाल के साथ मौसी के घर आई थी. खाना खाने के बाद वह कमरे में जा कर लेट गई. रात में किसी बात को ले कर मौसी और छत्रपाल में झगड़ा हो रहा था. सुबह 5 बजे छत्रपाल बदहवास हालत में निकला और घर के बाहर चला गया.

कुछ देर बाद मैं ननकी मौसी के कमरे में गई तो कमरे में जमीन पर मौसी मृत पड़ी थी. मैं बाहर आई और शोर मचाया. मैं ने फोन द्वारा अपने मातापिता और नानानानी को खबर दी तो वह सब भी आ गए. मृतका की मां चंदा और बड़ी बहन बड़की ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि छत्रपाल ननकी के चरित्र पर शक करता था. मायके का कोई भी युवक घर पहुंच जाता तो वह उसे शक की नजर से देखता था और फिर झगड़ा तथा मारपीट करता था. इसी शक में छत्रपाल ने ननकी को मार डाला है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

अधिकारियों ने दिए निर्देश पूछताछ के बाद एएसपी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद हत्यारोपी छत्रपाल को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. इस के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मौके से सबूत अपने कब्जे में लिए और ननकी का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया. फिर थाने आ कर शारदा की तरफ से छत्रपाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने हत्यारोपी छत्रपाल की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने उस की तलाश में नातेरिश्तेदारों के घर सरसौल, बिंदकी, खागा और अमौली में छापे मारे, लेकिन छत्रपाल वहां नहीं मिला. तब उस की टोह में मुखबिर लगा दिए.

29 मई, 2020 की शाम 5 बजे खास मुखबिर के जरीए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह को पता चला कि हत्यारोपी छत्रपाल इस समय बिंदकी बस स्टैंड पर मौजूद है. शायद वह कहीं भागने की फिराक में किसी साधन का इंतजार कर रहा है. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी आवश्यक पुलिस बल के साथ बस स्टैंड पहुंच गए. पुलिस जीप रुकते ही बेंच पर बैठा एक युवक उठा और तेजी से सड़क की ओर भागा. शक होने पर पुलिस ने उस का पीछा किया और रामजानकी मंदिर के पास उसे दबोच लिया.

उस ने अपना नाम छत्रपाल बताया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने जब उस से ननकी की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती बरती तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से की गई पूछताछ में ननकी की हत्या के पीछे की कहानी अवैध रिश्तों की बुनियाद पर गढ़ी हुई मिली—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक व्यापारिक कस्बा है अमौली. इसी कस्बे में चंद्रभान अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटियां बड़की व ननकी और एक बेटा मोहन था. चंद्रभान कपड़े का व्यापार करता था. इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था. उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया. अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता. ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं. छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी. दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था. ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा.

वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए. उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी. अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

शरम से अंबिका ने छोड़ा घर अंबिका प्रसाद ने पत्नी को सही राह पर लाने की बहुत कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुआ. एक रात तो अंबिका ने ननकी और छत्रपाल को अपने घर में ही आपत्तिजनक हालत में देख लिया. अंबिका ने इस का विरोध किया तो शर्मसार होने के बजाय ननकी और छत्रपाल उसी पर हावी हो गए. ‘‘जो आज देखा है, वह हर रात देखोगे. देख सको तो घर में रहो, न देख सको तो घर छोड़ कर कहीं चले जाओ.’’

ननकी की सीनाजोरी पर अंबिका प्रसाद दंग रह गया. वह घर के बाहर आ गया और माथा पकड़ कर चारपाई पर बैठ गया. इस वाकये के बाद अंबिका को पत्नी से नफरत हो गई. अंबिका आंखों के सामने पत्नी की बदचलनी के ताने भला कब तक बरदाश्त करता. अत: जनवरी 2015 में ऐसे ही एक झगड़े के बाद उस ने घर छोड़ दिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगा. अंबिका प्रसाद के घर छोड़ने के बाद छत्रपाल उस के घर पर कुंडली मार कर बैठ गया. उस ने उस की जर, जोरू और जमीन पर भी कब्जा कर लिया. ननकी अभी तक उस की प्रेमिका थी किंतु अब उस ने ननकी को पत्नी का दरजा दे दिया. यद्यपि छत्रपाल ने ननकी से न तो कोर्ट मैरिज की थी और न ही प्रेम विवाह किया था.

ननकी की बेटी अब तक 10 साल की उम्र पार कर चुकी थी, जबकि बेटा 5 साल का हो गया था. दोनों बच्चे छत्रपाल की अय्याशी में बाधक बनने लगे थे. अत: वह दोनों को पीटता था. ननकी को बुरा तो लगता था, पर वह मना नहीं कर पाती थी. बच्चों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए ननकी ने दोनों बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया. बच्चे चले गए तो ननकी और छत्रपाल के मिलन की बाधा दूर हो गई. अब वे स्वतंत्र रूप से रहने लगे. ननकी और छत्रपाल को साथसाथ रहते 4 साल बीत चुके थे. इस बीच न तो ननकी का पति अंबिका प्रसाद वापस घर लौटा और न ही ननकी ने उस की कोई सुध ली. वह कहां है, किस परिस्थिति में है. इस की जानकारी न तो ननकी को थी और न ही किसी सगेसंबंधी को.

ननकी बच्चों से मिलने मायके अमौली जाती थी. फिर वहां कई दिन तक रुकती थी. इस से छत्रपाल को शक होने लगा था कि ननकी का मन उस से भर गया है और अब उस ने मायके में कोई नया यार बना लिया है. इस कारण वह मायके में डेरा जमाए रहती है. इसे ले कर अब ननकी और छत्रपाल में झगड़ा होने लगा था. मायके का कोई भी व्यक्ति घर आता तो छत्रपाल उसे शक की नजर से देखता और उस के जाने के बाद ननकी के चरित्र पर लांछन लगाते हुए झगड़ा करता. ननकी की बड़ी बहन बड़की खागा कस्बे में ब्याही थी. उस की बेटी का नाम शारदा था. शारदा अपनी मौसी से ज्यादा हिलीमिली थी सो उस ने ननकी से उस के घर आने की बात कही. ननकी ने शारदा की बात मान ली और उसे जल्द ही बुलाने की बात कही.

25 मई, 2020 की सुबह ननकी ने छत्रपाल को पैसे दे कर शारदा को बुलाने खागा भेज दिया. छत्रपाल खागा के लिए निकला तो ननकी के मायके से उस का पड़ोसी गोपाल आ गया. ननकी ने उसे घर के अंदर कर दरवाजा बंद कर लिया. ननकी का दरवाजा बंद हुआ तो पड़ोसी आपस में कानाफूसी करने लगे. शाम 5 बजे छत्रपाल शारदा को साथ ले कर वापस आ गया. कुछ देर बाद छत्रपाल घर से निकला तो चुगलखोरों ने चुगली कर दी, ‘‘छत्रपाल तुम घर से निकले तभी कोई सजीला युवक आया. ननकी ने उसे घर के अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया था. बंद दरवाजे के पीछे क्या गुल खिला होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं.’’

छत्रपाल पहले से ही ननकी पर शक करता था, पड़ोसियों की चुगली ने आग में घी डालने जैसा काम किया. गुस्से में छत्रपाल शराब ठेका गया और शराब पी कर घर लौटा. रात में कमरे में जब उस का सामना ननकी से हुआ तो उस ने ननकी के चरित्र पर अंगुली उठाई और उसे बदचलन, बदजात और वेश्या कहा. इस पर दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े के दौरान ननकी के ब्लाउज से 5-5 सौ के 2 नोट नीचे गिर गए जो छत्रपाल ने उठा लिए थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि यह नोट अय्याशी के दौरान घर पर आए उस युवक ने दिए होंगे. शक का कीड़ा दिमाग में कुलबुलाया तो छत्रपाल का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उस ने ननकी को जमीन पर पटक दिया और फिर गमछे से गला कसने लगा. ननकी कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. हत्या करने के बाद छत्रपाल कमरे से निकला और फरार हो गया.

छत्रपाल से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने 30 मई, 2020 को छत्रपाल को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट पी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मृतका के बच्चे अपने नानानानी के पास रह रहे थे.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

 

 

Murder Story : गन्ने के खेत में लेकर क्यों पत्नी ने पति को मरवाया

Murder Story : पतिपत्नी के बीच सब से बड़ी डोर विश्वास होती है, जिस के सहारे घरगृहस्थी चलती है. इसी विश्वास के नाते लाखों लोग घर से सैकड़ोंहजारों किलोमीटर दूर नौकरियां करते हैं. लेकिन जब किसी तीसरे की वजह से विश्वास की डोर कमजोर पड़ती है तो कई जिंदगियों में जलजला सा…

जिला मुरादाबाद से करीब 19 किलोमीटर दूर है थाना मूंढापांडे. इसी थाना क्षेत्र का एक गांव है जैतपुर विशाहट. रोहित सिंह इसी गांव का मूल निवासी था. वैसे वह अपनी पत्नी अन्नू के साथ मुरादाबाद शहर में रहता था. मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार में उस ने 400 वर्गगज में अपना मकान बनवा रखा था. रोहित पेशे से ट्रक ड्राइवर था और बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी करता था. रोहित हफ्ते में कम से कम एक बार अपने गांव जैतपुर जरूर जाता था. गांव में उस के पिता सत्यभान सिंह परिवार के साथ रहते थे.

रोहित का गांव मूंढापांडे कस्बे से करीब 6 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह गांव से बाइक से मूंढापांडे तक आता था और वहां पर भारतीय स्टेट बैंक के पास एक मोटर मैकेनिक की दुकान पर बाइक खड़ी कर के बस से बरेली चला जाता था. 23 अगस्त, 2020 को रोहित बरेली जाने के लिए अपने गांव जैतपुर विशाहट से दोपहर करीब 12 बजे बाइक ले कर  निकला. रात करीब 8 बजे रोहित के पिता सत्यभान सिंह ने रोहित को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. पिता ने उसे कई बार फोन मिलाया लेकिन हर बार फोन बंद मिला.

ऐसा कभी नहीं होता था, इसलिए फोन न मिलने से सत्यभान सिंह चिंतित हुए. उन्होंने बरेली की उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में फोन किया, जहां रोहित नौकरी करता था. पता चला रोहित उस दिन अपनी ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था.  सत्यभान परेशान हो गए. उन्होंने मुरादाबाद में रह रही रोहित की पत्नी अन्नू से पूछा तो उस ने  बताया कि वह मुरादाबाद नहीं आए, अपनी ड्यूटी पर ही होंगे. जबकि रोहित ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था. बेटे की चिंता में सत्यभान और उन के घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. सुबह होने पर वह उस मोटर मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे, जहां रोहित अपनी बाइक खड़ी किया करता था. मैकेनिक ने बताया कि रोहित ने उस के यहां बाइक खड़ी नहीं की थी और न ही आया था.

उधर अन्नू भी पति का फोन बंद मिनने से परेशान थी. अपनी चिंता वह ससुर से व्यक्त कर रही थी. सत्यभान ने अपने तमाम रिश्तेदारों के यहां भी फोन कर के रोहित के बारे में  पता किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. अंतत: सत्यभान ने 24 अगस्त, 2020 को थाना मूंढापांडे में बेटे रोहित की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी नवाब सिंह ने गुमशुदगी दर्ज होने के बाद जरूरी काररवाई  शुरू कर दी. 2 दिन हो गए, रोहित का कहीं पता नहीं चला. घरवाले उस की चिंता में परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें.

25 अगस्त, 2020 मंगलवार  के अखबारों में अमरोहा देहात थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की लाश मिलने की खबर छपी. लाश गांव कंकरसराय के गन्ने के एक खेत से मिली थी. उस का सिर कुचला हुआ था. सत्यभान के एक रिश्तेदार अमरोहा में रहते थे. रिश्तेदार ने सत्यभान को गन्ने के खेत में लाश मिली होने की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया कि मृतक के हाथ पर रोहित लिखा हुआ है, इसलिए आप अमरोहा देहात थाने आ कर लाश देख लें. खबर मिलते ही सत्यभान सिंह 26 अगस्त को परिवार के लोगों के साथ अमरोहा देहात थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी ने सत्यभान को बरामद लाश के फोटो व कपड़े दिखाए. कपड़ों से सत्यभान ने पहचान लिया कि कपड़े उन के बेटे रोहित के हैं.

थानाप्रभारी लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें जिला अस्पताल ले गए. मोर्चरी में रखी लाश देखते ही सत्यभान फूटफूट कर रोने लगे. वह लाश उन के बेटे रोहित की ही थी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लाश उसी दिन मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम में पता चला कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई थी. इस के अलावा उस के सिर और लिंग को ईंट से बुरी तरह कुचला गया था. चूंकि गुमशुदगी का मामला थाना मूंढापांडे में दर्ज हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट थाना मूंढापांडे पुलिस के पास आ गई.

थानाप्रभारी नवाब सिंह मामले को सुलझाने में जुट गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे की मृतक रोहित से कोई गहरी दुश्मनी थी, इसलिए उस ने इतनी क्रूरता दिखाई. उन्होंने मृतक के पिता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है? अगर उन्हें किसी पर कोई शक हो तो बता दें. सत्यभान सिंह ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार निवासी अजय पाल व 2 अन्य लोगों पर शक जताया. इस के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम गठित की और 28 अगस्त को नामजद आरोपी अजय पाल और उस के साथी कुलदीप सैनी को मुरादाबाद स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मान लिया कि रोहित की हत्या उन्होंने ही की थी और यह सब कुछ मृतक की पत्नी अन्नू के इशारे पर किया था. पुलिस ने अन्नू और अजय पाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन दोनों ने आपस में कई बार बात की थी और एकदूसरे को मैसेज भी भेजे थे. दोनों से पूछताछ के बाद रोहित की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी. करीब 10 साल पहले रोहित सिंह की शादी संभल जिले के गांव भोजपुर की अन्नू के साथ हुई थी. उस समय रोहित मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाया करता था.

रोहित का गांव मुरादाबाद शहर से करीब 19 किलोमीटर दूर था, इसलिए उसे रोजाना आनेजाने में परेशानी होती थी. इस परेशानी से बचने के लिए उस ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती में 400 वर्गगज का एक प्लौट खरीद लिया. 5 साल पहले उस ने प्लौट पर अपना मकान बनवा लिया. उस की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. उस के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी. रोहित का एक दोस्त था अजय पाल. वह भी मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाता था. इसलिए दोनों की दोस्ती हो गई थी. शाम को दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. अजय पाल का रोहित के घर आनाजाना लगा रहता था.

बाद में रोहित सिंह की बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग गई. वह ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक चलाता था, जिस की वजह से वह कईकई दिन बाद घर लौटता था. उसी दौरान अजय पाल के रोहित की पत्नी अन्नू से अवैध संबंध बन गए. पति की गैरमौजूदगी में अन्नू अपने प्रेमी के साथ खूब मौजमस्ती करती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए किसी का डर भी नहीं था. रोहित जब बरेली से घर लौटता तो पत्नी को फोन कर के सूचना दे देता था. अन्नू सतर्क हो जाती और प्रेमी से भी सतर्क रहने के लिए कह देती थी. घर लौटने के बाद रोहित की अपने दोस्त अजय पाल के साथ महफिल सजती थी. रोहित दोस्त पर विश्वास करता था, यह अलग बात थी कि वही दोस्त विश्वास की आड़ में उस के घर में सेंध लगा चुका था.

2-3 दिन घर रुकने के बाद रोहित मातापिता से मिलने अपने गांव जैतपुर वशाहट जाता और फिर अगले दिन वहीं से ड्यूटी पर बरेली चला जाता था. उधर अन्नू और अजय पाल के संबंध गहरे होते जा रहे थे. उन्होंने जीवन भर साथ रहने की कसम खा ली थी. अजय अन्नू पर घर से भाग चलने का दबाव डालता था, लेकिन अन्नू घर से भागने को मना कर देती. वह कहती थी कि घर से भागने की जरूरत क्या है, यदि रोहित का काम तमाम कर दो तो रास्ता अपने आप साफ हो जाएगा.

अन्नू के प्यार में अंधे हो चुके अजय पाल को प्रेमिका की यह सलाह बहुत अच्छी लगी. उस ने अन्नू से वादा कर दिया कि वह रोहित का काम तमाम करा देगा. इस के बाद अन्नू और अजय पाल ने रोहित को ठिकाने लगाने की योजना बनानी शुरू कर दी. अजय ने इस बारे में अपने दोस्त कुलदीप सैनी से बात की. वह भी अजय का साथ देने को तैयार हो गया. फिर वे उचित मौके का इंतजार करने लगे. 23 अगस्त, 2020 को उन्हें यह मौका मिल गया. क्योंकि उस दिन रोहित ड्यूटी से अपने घर मुरादाबाद आया हुआ था और उसी दिन उसे मुरादाबाद से अपने गांव जैतपुर वशाहट जाना था. सुबह 9 बजे नाश्ता करने के बाद वह बाइक से गांव जाने के लिए निकल गया.

अन्नू ने यह जानकारी फोन से अजय को दे दी. योजना के अनुसार अजय पाल अपने साथी कुलदीप सैनी को ले कर पीतल बस्ती के आगे गुलाबबाड़ी में सड़क किनारे खड़े हो कर रोहित के आने का इंतजार करने लगा. रोहित वहां पहुंचा तो अजय ने हाथ दे कर उस की बाइक रुकवाई. अजय ने कुलदीप का परिचय रोहित से कराते हुए कहा कि इस की बहन मूंढापांडे में रहती है. हम लोग वहीं जा रहे हैं. तुम हमें मूंढापांडे छोड़ कर अपने गांव निकल जाना. रोहित दोस्त की बात नहीं टाल सका. वह दोनों को अपनी बाइक पर बैठा कर चल दिया. अजय पाल और कुलदीप को मूंढापांडे छोड़ने के बाद रोहित अपने गांव जैतपुर विशाहट चला गया.

उस ने अजय को बता दिया कि वह मातापिता से मिलने के बाद आज ही ड्यूटी पर बरेली चला जाएगा. उस का गांव मूंढापांडे से करीब 6 किलोमीटर दूर था. अजय पाल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए वह मूंढापांडे में ही रोहित के लौटने का इंतजार करने लगा. अजय को यह बात पता थी कि रोहित अपनी बाइक मूंढापांडे में एक मैकेनिक के पास खड़ी कर के बस से बरेली जाता है, इसलिए अजय और कुलदीप उस के आने का इंतजार करने लगे. मातापिता से मिलने के बाद रोहित ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकल गया. उसे अपनी बाइक मैकेनिक के पास खड़ी करनी थी, लेकिन उस से पहले ही रास्ते में उसे अजय पाल और कुलदीप  खड़े मिले. उन्हें देखते ही रोहित ने बाइक  रोक दी. उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग अभी तक यहीं हो.’’

‘‘हां, हम तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.’’ अजय बोला.

‘‘क्यों, क्या कोई खास बात है?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘हां भाई, बात खास है तभी तो तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ अजय ने कहा.

‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘रोहित बात यह है कि यहां पर कुलदीप के किसी के पास मोटे पैसे फंसे हुए थे. आज सारे पैसे मिल गए. इसलिए हम लोग बहुत खुश हैं और इसी खुशी में आज पार्टी करना चाहते हैं.’’ अजय बोला.

‘‘नहीं यार, अभी तो मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं. फिर कभी पार्टी कर लेंगे.’’

‘‘अरे यार, एकएक पेग लेने में क्या बुराई है.’’ अजय ने जोर डाला.

रोहित अपने दोस्त की बात को टाल नहीं सका. तभी अजय का दोस्त कुलदीप सैनी एक बोतल और पकौड़े ले आया. तीनों ने पकौड़े के ठेले पर ही शराब पीनी शुरू कर दी. रोहित पर नशा ज्यादा चढ़ गया तो वह बोला, ‘‘आज मैं ड्यूटी नहीं जाऊंगा.’’ वे तीनों बाइक से दलपतपुर जीरो पौइंट हाइवे पर आ गए. हाइवे से सटा हुआ एक गांव है मछरिया. वहीं पर कुलदीप ने रोहित का मोबाइल ले कर उस की बैटरी निकाल दी, ताकि उस का किसी से संपर्क न हो सके.

इस के बाद तीनों हाइवे से होते हुए कस्बा पाकवड़ा पहुंचे. पाकवड़ा में तीनों ने फिर शराब पी और खाना खाया. खाना खाने के बाद रोहित ने घर चलने को कहा तो अजय बोला, ‘‘अभी चलते हैं. हमें अमरोहा में कुछ जरूरी काम है. अमरोहा यहां से थोड़ी ही दूर है. बस, काम निपटा कर आ जाएंगे.’’

अजय और कुलदीप अपनी योजना के अनुसार रोहित को अमरोहा ले गए. रात करीब 10 बजे तीनों अमरोहा देहात के गांव कंकरसराय पहुंचे. उस समय तक रोहित को ज्यादा नशा चढ़ चुका था. नशे की हालत में दोनों उसे गन्ने के खेत में ले गए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. रोहित की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का सिर ईंट से कुचल दिया, जिस से उस का चेहरा पहचान में न आ सके. इस के अलावा उन्होंने उस के लिंग को भी ईंट से कुचल दिया. हत्या से पहले अजय के मोबाइल पर रोहित की पत्नी अन्नू का फोन आया था. अंजू ने उस से कहा था कि किसी भी हालत में रोहित को जिंदा मत छोड़ना.

मरने से पहले रोहित दोनों के सामने गिड़गिड़ाया था कि यार मुझ से क्या गलती हो गई, मुझे क्यों मार रहे हो लेकिन उन का दिल नहीं पसीजा. कुलदीप ने रोहित की टांगें पकड़ लीं और अजय ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. अजय ने हत्या की जानकारी अन्नू को दे दी थी. हत्यारों को  विश्वास था कि यहां रोहित की लाश कुछ दिनों में सड़गल जाएगी और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंचेगी लेकिन उन की यह सोच गलत साबित हुई. वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. अभियुक्त अजय पाल और कुलदीप सैनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें रोहित की हत्या कर शव छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर 28 अगस्त, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया.

इस मामले में मृतक रोहित की पत्नी अन्नू का भी हाथ था, इसलिए पुलिस ने 29 अगस्त को अन्नू को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अन्नू ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttar Pradesh News : सूटकेस में सिमट गया चचेरे भाईबहन का प्यार

Uttar Pradesh News : 25 वर्षीय शिल्पा और 22 वर्षीय अमित तिवारी चचेरे भाईबहन थे, लेकिन दोनों ही एकदूसरे को प्यार करते थे. घर वालों की बंदिशों को तोड़ कर एक दिन शिल्पा सूरत से प्रेमी अमित के पास दिल्ली आ गई. दोनों हंसीखुशी से लिवइन रिलेशन में रहने लगे. इसी दौरान एक दिन शिल्पा की लाश सूटकेस में मिली. आखिर किस ने की उस की हत्या?

अमित तिवारी के कदम लडख़ड़ा रहे थे. वह अभीअभी शराब के ठेके से पूरा पव्वा खरीद कर गले से नीचे उतार चुका था. न पानी, न सोडा. और तो और अमित ने शराब की कड़वाहट कम करने के लिए चखना भी नहीं खरीदा था, जबकि ठेके के साथ ही ‘चखना फैक्ट्री’ नाम से एक दुकान थी, जहां नमकीन आइटम के ढेरों पैकेट सजा कर रखे हुए थे. पूरी शराब नीट पीने के बाद अमित पर गहरा नशा सवार हो गया था. वह सड़क पर लडख़ड़ा कर चल रहा था. वह गिरने वाला ही था, लेकिन बिजली के एक खंबे का सहारा ले कर थोड़ी देर के लिए नहीं खड़ा रहा. इस वजह से गिरने से बच गया.

कुछ ही देर बाद वह सड़क पर पैदल ही चलने लगा तो उस की चाल में लडख़ड़ाहट आना स्वाभाविक थी. वह चल रहा था, लडख़ड़ाते हुए, झूमते हुए. अब तो उस के होंठों पर एक फिल्मी तराना भी आ गया था— ‘पी ले..पी ले… ओ मोरे राजा, पी ले पी ले ओ मोरे जानी…’

मस्ती में गाते हुए अमित अपने घर के दरवाजे पर जब पहुंचा, उस वक्त रात के पौने 12 बज चुके थे. घर का दरवाजा बंद था. अमित ने इसे धकेला तो वह खुल गया. अंदर जीरो वाट का बल्ब जल रहा था. अमित लडख़ड़ाते हुए अपने बिस्तर की तरफ बढ़ा तो उस की नजर बैड पर सो रही शिल्पा पर चली गई. वैसे शिल्पा उस की चचेरी बहन थी, लेकिन फिलहाल वह उस की प्रेमिका थी, जो नींद की आगोश में सोई हुई थी. नींद की वजह से उसे अपने कपड़ों का होश नहीं था. उस की सलवार घुटनों से ऊपर सरक गई थी, जिस की वजह से उस की मखमली टांगें नग्न हो गई थीं. पेट से ऊपर तक उस का कुरता भी हट गया था.

सुतवां पेट और उस की खूबसूरत नाभि नशे में भी उस के होश उड़ा रही थी. शराब के बाद लाजवाब शवाब की कामना हर शराबी पुरुष के मन में पैदा होती है, जो जल्दी से हासिल नहीं होता. लेकिन यहां तो शवाब अद्र्धनग्न हालत में शराबी के सामने था. अमित की रगों में खून उबाल मारने लगा, उस की सांसें अनियंत्रित होने लगीं. वह लडख़ड़ाती चाल से आगे बढ़ा और प्रेमिका के पास लेट गया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर उस की गुदाज देह को अपनी तरफ खींचा तो प्रेमिका शिल्पा कुनमुनाई, उस की नींद से बोझिल आंखें हलकी सी खुलीं, फिर बंद हो गईं. उस ने नींद की खुमारी में अपनी बांहें अमित की गरदन में डाल दीं और उस के सीने से चिपक गई.

उस की गर्म सांसें अमित की चौड़ी छाती से टकराईं तो अमित की वासना और ज्यादा भड़क गई. उस ने शिल्पा को अपनी आगोश में समेट लिया और उस की देह पर छाता चला गया. रात को अमित ने प्रेमिका के साथ जी भर कर मौजमस्ती की, फिर उसे गहरी नींद आ गई, जब उस की आंखें खुलीं उस वक्त दिन के साढ़े 10 बज चुके थे. भरपूर अंगड़ाई ले कर वह उठने के लिए पांव नीचे रखने ही वाला था कि एक मधुर आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘चाय… गरमागरम चाय’. अमित ने तिरछी नजर से देखा. शिल्पा उस की ओर चाय का कप बढ़ा रही थी. हाथ बढ़ा कर उस ने चाय का कप ले लिया. शिल्पा मुसकराती हुई उस के सामने बैठ गई. अमित ने उसे देखा.

वह नहा चुकी थी. उस के लंबे घने केशों से अभी भी पानी की बूंदे टपक रही थीं. उस के तन पर इस वक्त साफ धुला हुआ पिंक रंग का सूट था. उस ने हलका सा मेकअप किया था. अमित ने चाय का घूंट भरा. चाय बहुत बढिय़ा बनाई गई थी. एक ही घूंट ने अमित में ताजगी भर दी. शिल्पा उस के सामने बैठी मुसकरा रही थी. अमित उस के सामने बैठा जरूर था, लेकिन वह कहीं विचारों में खो गया था.

”हैलो!’’ शिल्पा ने उस की आंखों के सामने चुटकी बजाई, ”यहां मैं भी हूं जनाब.’’

अमित ने चौंकते हुए बोला, ”ओह! सौरी मैं कहीं खो गया था.’’

”सौरीवौरी छोड़ो और मेरी एक बात यह मान लो कि अब तुम बाहर से शराब पी कर मत आया करो. घर पर बैठ कर थोड़ीबहुत पी लिया करो. मैं पिछले 3 महीने से देख रही हूं कि तुम शराब ज्यादा पीने लगे हो.’’ शिल्पा ने अमित को समझाया.

”ठीक है मेरी जान, मैं ऐसा ही करूंगा.’’ अमित बोला.

कह कर अमित ने शिल्पा का चेहरा चूम लिया. शिल्पा ने उस के गले में प्यार से बांहें डाल दीं, ”तुम मेरी बाहों में हमेशा यूं ही खिलेखिले और मुसकराते रहोगे, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारे हर सुखदुख में पूरा साथ दूंगी. अब उठो और फ्रेश हो जाओ, मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूं.’’

”हां, अब पेट की भूख सताने लगी है.’’ अमित शिल्पा की बाहों से निकलते हुए उठ खड़ा हुआ और टावेल उठा कर वह बाथरूम की तरफ बढ़ गया.

सूटकेस में निकली लाश

26 जनवरी, 2025. जब देश 76वां गणतंत्र दिवस मनाने के लिए पूरे हर्षोल्लास से तैयार था. भोर के 4-सवा 4 बजे के बीच पुलिस कंट्रोल रूम को एक चौंका देने वाली सूचना मिली, ‘गाजीपुर आईएफसी पेपर मार्केट के पास शिवाजी रोड और अंबेडकर चौक के बीच में खाली पड़ी जगह पर जमा कूड़े के ढेर पर एक सूटकेस जली अवस्था में पड़ा है, जिस में किसी की लाश दिखाई दे रही है.’

कंट्रोल रूम से यह जानकारी पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर थाने में दी गई तो वहां के एसएचओ निर्मल झा पुलिस टीम के साथ थाने से सूचना में बताए गए पते पर रवाना हो गए. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे, वहां पर अच्छीखासी भीड़ लग चुकी थी. अभी दिन का उजाला नहीं फैला था, लेकिन सब से पहले जिस ने भी उस सूटकेस में जली लाश को देखा था, उस से यह बात आसपास की बस्ती तक पहुंच गई थी और लोग बिस्तरों से निकल कर वहां आ गए थे. सभी यह जानने को उत्सुक थे कि यह सूटकेस यहां कूड़े के ढेर पर कौन ले कर आया और इसे आग के हवाले क्या उसी व्यक्ति ने किया और इस में जो लाश है, वह किस की है.

पुलिस ने भीड़ को पीछे हटाया. एसएचओ श्री झा उस सूटकेस के पास आए, जो पूरी तरह जल चुका था. उस के स्टील के हैंडल आदि साफ दिखाई दे रहे थे. वह आग में जले नहीं थे. जले सूटकेस में एक लाश दिखाई दे रही थी, जो झुलस कर काली पड़ गई थी. लाश को पहचानना नामुमकिन था, लेकिन उस लाश से यह अनुमान लगाया जा सकता था कि लाश किसी युवती की है. उसे सूटकेस में जबरन ठूंसा गया था, वह जिस अवस्था में ठूंसी गई थी, उसी अवस्था में अभी भी थी. झुलस जाने के कारण वह पहचानी नहीं जा सकती थी.

एसएचओ निर्मल झा ने वहां बारीकी से जांच की, लेकिन वहां कोई ऐसा सूत्र उन्हें नहीं मिला, जिस से मृतका और कातिल के बारे में कुछ पता चल सके, लेकिन पुलिस को यह सिखाया जाता है कि राख के ढेर में भी सूई की तलाश की जा सकती है. निर्मल झा की नजरें वहां कुछ दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर चली गई थीं. उन्हें विश्वास था उस सीसीटीवी कैमरे से इस सूटकेस को यहां फेंकने वाले का कुछ सुराग अवश्य मिलेगा. उन्होंने पूरी जांच के बाद ईस्ट डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी अभिषेक धानिया को इस घटना की जानकारी दे दी. एसएचओ ने तब फोरैंसिक टीम को भी घटनास्थल पर आने के लिए फोन कर दिया.

थोड़ी ही देर में डीसीपी अभिषेक धानिया वहां घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएचओ निर्मल झा ने उन्हें सैल्यूट करने के बाद वह सूटकेस दिखाया, जो वहां फेंका गया था और उसे नष्ट करने के लिए आग के हवाले भी कर दिया गया था. डीसीपी धानिया ने सूटकेस सहित जली हुई लाश को ध्यान से देख कर कहा, ”यह युवती ज्यादा उम्र की नहीं लगती मिस्टर झा, इस की हत्या कर के जिस ने भी इसे सूटकेस में भर कर यहां फेंका है, वह इस का पति या प्रेमी हो सकता है. हमें दोनों को ध्यान में रख कर जांच करनी होगी. किसी महिला से पीछा छुड़ाने के लिए प्रेमी या पति ही ऐसा काम करते हैं.’’

”आप ठीक कह रहे हैं सर.’’ निर्मल झा बोले, ”इस की हत्या कर के लाश को ठिकाने लगाने के लिए इस के प्रेमी या पति ने इसे सूटकेस में ठूंसा और इस निर्जन नजर आने वाले स्थान पर ला कर सूटकेस सहित जला डाला. वह लाश की शिनाख्त मिटाने के मकसद से ऐसा कर गया. मेरे विचार से वह यहीं आसपास का ही होगा.’’

”यह आप किस आधार पर कह रहे हैं?’’ डीसीपी ने एसएचओ की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखते हुए पूछा.

”सर, आज 26 जनवरी है यानी हमारा गणतंत्र दिवस. इस के लिए 2 दिन पहले से ही हर बोर्डर, हर नाके पर पुलिस के बैरिकेड लग जाते हैं. कड़ी जांच होती है, हर वाहन को चैक किया जाता है. ऐसे में कोई इस सूटकेस को किसी वाहन में दूर से ले कर यहां नहीं आ सकता. मैं ने इसी से अनुमान लगाया है कि वह शख्स यहीं आसपास का ही होगा.’’

”गुड.’’ डीसीपी अभिषेक धानिया ने निर्मल झा की प्रसंशा की, ”आप का सोचना ठीक ही है. कड़ी चैकिंग के बीच कोई हत्यारा लाश ले कर दूर से यहां नहीं आएगा, वह आसपास का ही होगा. आप फोरैंसिक जांच करवा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए नजदीक के हौस्पिटल भेज दीजिए. मैं आप को इस ब्लाइंड केस को सौल्व करने के लिए नियुक्त कर रहा हूं, आप का साथ देने के लिए स्पैशल स्टाफ को भी मैं आप के साथ लगा रहा हूं. आप को हत्यारे का पता लगा कर उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना है.’’

”मैं आप के विश्वास पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा सर.’’ श्री निर्मल झा गंभीर स्वर में बोले.

डीसीपी धानिया कुछ जरूरी हिदायतें दे कर वहां से चले गए. फोरैंसिक टीम अपना काम निपटाने में लगी हुई थी. इस बीच निर्मल झा ने वहां उपस्थित भीड़ के पास जा कर इस सूटकेस के विषय में पूछा, ”क्या इस सूटकेस को यहां फेंकते हुए किसी ने देखा है?’’

सीसीटीवी फुटेज से मिली जांच को दिशा

भीड़ ने इस के लिए इंकार में सिर हिला दिया. तभी भीड़ में से एक अधेड उम्र का व्यक्ति आगे आया, ”सर, यह सूटकेस यहां रात को डेढ़ से 2 बजे के करीब ला कर जलाया गया है.’’

”तुम यह किस आधार पर कह रहे हो?’’ श्री झा ने हैरानी से पूछा.

”सर, मैं रात को लघुशंका के लिए उठा था, मेरा टौयलेट छत पर है, मैं वहां गया और मैं ने लघुशंका की. जब मैं वहां से लौटने लगा तो मुझे कूड़े के ढेर पर कुछ जलता हुआ दिखाई दिया. मेरा ध्यान एकाएक इधर इसलिए गया कि आग की लपटें बहुत ऊपर तक उठ रही थीं यानी कुछ ही देर पहले वह आग भड़की थी. मैं ने ज्यादा ध्यान यूं नहीं दिया कि अकसर यहां कूड़े में आग लगती रहती है. कुछ ऐसा ही समझ कर मैं नीचे कमरे में चला गया और सो गया. सुबह कालोनी में यह शोर हुआ कि कूड़े पर किसी सूटकेस को जलाया गया है, उस सूटकेस में लाश थी, जो बुरी तरह जल गई है. मैं यही देखने यहां आ गया.’’

”इस पर तुम ने कमरे में जा कर घड़ी देखी थी या लघुशंका को उठते समय घड़ी में समय देखा था?’’

”सर, लघुशंका कर के लौटने पर मैं ने मोबाइल में टाइम देखा था. उस वक्त 2 बजने में 10 मिनट शेष थे.’’ अधेड़ ने बताया.

”इस का मतलब यहां सूटकेस रात को डेढ़ बजे के बाद ही फेंका गया और जलाया गया है.’’

”हां साहब.’’ उस व्यक्ति ने सिर हिला कर कहा.

”तुम्हारी बात की पुष्टि हम जांच करेंगे तो हो जाएगी.’’ श्री झा ने कहा. अब तक फोरैंसिक टीम अपना काम निपटा चुकी थी. एसएचओ ने सूटकेस सहित लाश लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दी. फिर वह वहां एक सिपाही का पहरा लगवा कर वापस थाना गाजीपुर के लिए लौट आए. थाने में यह ब्लाइंड मर्डर केस बीएनएस की धारा 103(1), 238 (ए) के तहत दर्ज कर लिया गया. डीसीपी (पूर्वी जिला) अभिषेक धानिया के निर्देश पर पुलिस की स्पैशल स्टाफ और गाजीपुर थाने के एसएचओ निर्मल झा अपनी टीम के साथ सूटकेस में मिली लाश के केस पर काम करने के लिए पूरी मुस्तैदी से जुट गए थे.

सब से पहले उन्होंने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की. कैमरे में सड़क से रात के एक बजे से 2 बजे के बीच जितने वाहन गुजरे थे, उन्हें देख कर नोट किया गया. इन में बड़े वाहन नहीं थे. कुछ स्कूटर और कारें वहां से रात को एक से 2 बजे के बीच सड़क पर आतेजाते दिखाई दिए. पुलिस टीम ने सिर्फ कारों को फोकस किया. इन में जो कारें संदिग्ध नजर आईं, उन के नंबर को आटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन तकनीक द्वारा जांच कर के नोट कर लिया गया.

टीम ने इन कारों के रजिस्ट्रैशन नंबर से इन के मालिकों का पता मालूम किया और इन की जांचपड़ताल शुरू कर दी. लगभग सभी कारों के मालिकों को जांच में सही पाया गया, लेकिन एक कार के मालिक तक टीम लोनी (उत्तर प्रदेश) में उस के घर पहुंची तो उस ने बताया, ”साहब, मैं ने अपनी हुंडई वेरना कार कुछ दिन पहले अमित तिवारी नाम के व्यक्ति को बेच दी थी. मेरी कार का नंबर- यूपी16ईटी 0329 है, जिसे अब अमित कैब के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.’’

”यह अमित कहां रहता है?’’ एसएचओ निर्मल झा ने पूछा.

”अमित तिवारी पुत्र गुलाब शंकर तिवारी, एसबीआई बिल्डिंग, थर्ड फ्लोर मंगल बाजार रोड, खोड़ा कालोनी, गाजीपुर. साहब, कार के सौदे में यहीं एड्रैस लिखवाया गया था मुझे.’’ उस व्यक्ति ने बताया.

यह एड्रैस पुलिस टीम को चौंका गया. कारण जिस सूटकेस को युवती की लाश सहित जिस जगह जलाया गया था, वह जगह खोड़ा रोड पर गाजीपुर पेपर मार्केट ही थी. पुलिस टीम तुरंत बिना देर किए अमित तिवारी की तलाश में उपरोक्त पते पर पहुंच गई. अमित तिवारी उस वक्त अपना बैग तैयार कर रहा था. वह कहीं जाने की फिराक में लग रहा था. दरवाजे पर पुलिस के दरजनों लोगों को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह बुरी तरह घबरा गया.

”आप?’’ वह कांपते स्वर में बोला

”हां, हम.’’ एसएचओ मुसकराए, ”कहां भागने की तैयारी हो रही है अमित तिवारी?’’

”आ…प मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’ अमित तिवारी घबराते हुए बोला.

”हम तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानते हैं तिवारी.’’ श्री निर्मल झा ने अंधेरे में तीर चलाया, ”रात को तुम ने जिस सूटकेस में अपनी प्रेमिका की लाश गाजीपुर की पेपर मार्किट के पास जलाई थी, यह भी हमें मालूम है. अब तुम चुपचाप थाने चलो. बाकी पूछताछ वहीं कर लेंगे.’’

”मैं ने किसी सूटकेस को नहीं जलाया, मैं तो कल रात अपने कमरे में ही सो रहा था.’’

”फिर तुम्हारी हुंडई वरना कार रात डेढ़ बजे पेपर मार्केट, गाजीपुर कौन चला कर ले गया था?’’

”म…मैं नहीं जानता सर.’’ अमित हकलाया.

श्री निर्मल झा ने इशारा किया तो 2 पुलिस वालों ने अमित तिवारी को दबोच लिया. वह चीखता रहा, लेकिन इस की परवाह न कर के पुलिस टीम उसे थाने ले गई. थाने में उस से सख्ती से पूछताछ हुई तो उस ने अपना जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ”सर, मैं ने शिल्पा की हत्या की थी, वह मुझ पर शादी के लिए दवाब बना रही थी. शनिवार को रात साढ़े 8 बजे मेरा उस से शादी की बात पर झगड़ा हुआ तो गुस्से में मैं ने उस का गला दबा कर जान से मार डाला.’’

शिल्पा को चचेरे भाई से हुआ प्यार

कहतेकहते अमित रोने लगा. रोते हुए ही बोला, ”सर, मैं ने शिल्पा को कभी दिल से नहीं चाहा, वही मेरे प्यार में पागल हो कर एक महीने पहले घर से भाग कर मेरे पास खोड़ा कालोनी (गाजियाबाद) में आ गई थी. वह मेरे साथ रहने लगी तो जवान होने के कारण हम बहक गए. हमारे बीच अनैतिक संबंध बन गए. बस यहीं मुझ से चूक हो गई. वह मुझ पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी. मुझे धमकी देने लगी कि मैं शादी नहीं करूंगा तो रेप केस में फंसा देगी.. मुझे जेल में सड़ा देगी. आखिर तंग आ कर मैं ने उस की हत्या करने का निर्णय लिया और उसे मार डाला.’’

”उस का परिवार कहां रहता है, वह कहां से भाग कर तुम्हारे पास आई थी?’’ श्री झा ने पूछा.

”सर, मैं उस का चचेरा भाई हूं. हमारा परिवार प्लौट नंबर ए-19 खसरा नंबर 2020, शिवा ग्लोबल सिटी-4, मेन रोड, थाना बादलपुर, दादरी गौतमबुद्ध नगर में रहता है. शिल्पा के पिता गुजरात में नौकरी करते हैं तो उस का परिवार इस वक्त गुजरात के सूरत में ही है. शिल्पा वहीं से नवंबर, 2024 में भाग कर मेरे पास आई थी.’’

”तुम को शिल्पा की लाश सूटकेस में रखने का आइडिया किस ने दिया?’’

”मेरे दोस्त अनुज का आइडिया था. शिल्पा की हत्या करने के बाद मैं ने यह बात अनुज शर्मा को बता कर उस से लाश को ठिकाने लगाने के लिए सहयोग मांगा था. अनुज मेरे पास तुरंत आ गया. उस ने ही आइडिया दिया कि सूटकेस में लाश रख कर कैब से ले जाते हैं और उत्तरी पश्चिम उत्तर प्रदेश के इलाके में किसी नदी में इसे फेंक आते हैं.

”मेरे पास बड़ा सूटकेस था. मैं ने अनुज के सहयोग से लाश सूटकेस में रखी. हम पहले रास्ते की रैकी करने कैब से दोनों ही यूपी बौर्डर गए. वहां 26 जनवरी के चलते बहुत सख्त चैकिंग चल रही थी. हमारी वैन की भी 2 बार चैकिंग हुई तो हम घबरा गए. हमें लगा, यदि तलाशी में पुलिस को लाश वाला सूटकेस मिलेगा तो हम फंस जाएंगे. हम ने दूर जाने का प्लान छोड़ दिया.

”हम रात को एक बजे सूटकेस कैब की डिक्की में रख कर गाजीपुर की पेपर मार्किट की तरफ आए. हम ने एक पेट्रोल पंप से 160 रुपए का डीजल बोतल में भरवा दिया. हम गाजीपुर के शिवाजी रोड, खोड़ा रोड़ के नजदीक, आईएफसी पेपर मार्केट की तरफ आए. वहां कूड़े का ढेर लगा था. चारों ओर सन्नाटा था. हम ने कार की डिक्की से सूटकेस कूड़े के ढेर पर रखा, ऊपर घासफूस डाल कर उस पर डीजल डाला और आग लगा दी.

”आग की लपटें उठीं तो हम कैब ले कर वहां से भाग निकले. अनुज रात को ही अपने घर चला गया और मैं सो गया. आज मैं प्रयागराज भाग जाना चाहता था कि आप के द्वारा पकड़ा गया.’’

”अनुज का एड्रैस दो हमें.’’ श्री झा ने पूछा.

अमित तिवारी ने अनुज शर्मा का पता नोट करवा दिया. अनुज, डी-162, करण विहार, खोड़ा कालोनी में रहता था.

पुलिस ने उस के घर दबिश दी तो वह घर में ही मिल गया. उसे हिरासत में थाना गाजीपुर लाया गया. अनुज शर्मा की उम्र 22 साल थी, उस के पिता जगदीश शर्मा गांव में रहते थे. अनुज यहां वेल्डर का काम करता था. कभीकभी कैब भी चला लेता था. शिल्पा अमित से 3 साल बड़ी थी. अमित 22 साल का था और शिल्पा 25 साल की थी. पुलिस ने उस के परिवार को उस की हत्या की जानकारी फोन द्वारा दे दी. उन्हें गाजीपुर थाने आने को कह दिया गया.

शिल्पा की लाश का पोस्टमार्टम होने के बाद लाश को उस के घर वालों को सौंपना आवश्यक था. अमित तिवारी और अनुज शर्मा उर्फ भोला को डीसीपी अभिषेक धानिया के समक्ष पेश किया गया तो उन्होंने 24 घंटे में इस ब्लाइंड केस को हल करने के लिए इस केस को हैंडिल करने वाले स्पैशल पुलिस स्टाफ और गाजीपुर थाने के एसएचओ निर्मल झा को शाबासी दी. प्रैस कौन्फ्रैंस करने के बाद डीसीपी अभिषेक धानिया ने दोनों आरोपियों को जेल भिजवा दिया. कथा लिखे जाने तक पुलिस आगे की काररवाई निपटाने में व्यस्त हो गई थी.

 

 

UP Crime News : धर्म परिवर्तन से इनकार करने पर प्रेमिका के सिर को धड़ से अलग किया

UP Crime News : एजाज ने जिस तरह प्रिया को अपने जाल में फांसा, उस से शादी की और धर्म परिवर्तन की बात न मानने पर मार डाला, उसे भले ही लव जेहाद न कहा जाए, लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा तो इसे जरूर…

जि ला: सोनभद्र, उत्तर प्रदेश. तारीख: 21 सितंबर 2020. वक्त: अपराह्न 3 बजे. स्थान: वाराणसी-शक्ति नगर राजमार्ग. इस राजमार्ग पर वन विभाग के एक भुखंड की झाडि़यों में किसी युवती की सिर कटी लाश मिली. जिस झाड़ी में लाश पड़ी थी, वह मुख्य मार्ग से 10 मीटर अंदर थी. यह खबर तेजी से फैली. कुछ ही देर में स्थानीय लोगों का वहां जमावड़ा लग गया. वहां के चौकीदार ने लाश देखी तो तत्काल स्थानीय थाना चोपन को लाश मिलने की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चोपन थाना इंसपेक्टर नवीन तिवारी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश घासफूस से ढकी हुई थी, जिसे हटवा कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

मृतका की उम्र लगभग 20-25 साल के बीच रही होगी. उस के धड़ पर जींस पैंट, टीशर्ट और पैरों में जूते थे. कपड़ों के साथ जूते भी काले रंग के थे. इंसपेक्टर तिवारी ने आसपास सिर की तलाश कराई, लेकिन सिर कहीं नहीं मिला. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर पाया. लाश के फोटो आदि करवाने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट गए. थाने में चौकीदार को वादी बना कर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

लाश की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. वह फोटो देखने के बाद मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर-7 निवासी लक्ष्मी नारायण सोनी अपनी छोटी बेटी शर्मिला के साथ थाना चोपन पहुंचे. जिस वन भूखंड में लाश मिली थी, वह प्रीतनगर में ही आता था. थाने पहुंचे लक्ष्मी नारायण ने मृतका के कपड़ों, जूतों व शरीर की बनावट के आधार पर लाश की शिनाख्त कर दी. वह उन की 21 वर्षीया बेटी प्रिया सोनी थी. लक्ष्मी नारायण ने बताया कि प्रिया ने उन की मरजी के बिना पड़ोसी युवक एजाज अहमद उर्फ आशिक से प्रेम विवाह कर लिया था और फिलहाल वह ओबरा में रह रही थी.

शिनाख्त होने के बाद मृतका के संबंध में कुछ अहम बातें पता चलीं तो इंसपेक्टर तिवारी ने राहत की सांस ली. लेकिन अभी तक प्रिया का सिर बरामद नहीं हुआ था. देर रात एएसपी (मुख्यालय) ओ.पी. सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जबकि एसपी आशीष श्रीवास्तव ने मोर्चरी पहुंच कर प्रिया की लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने स्वाट टीम प्रभारी प्रदीप सिंह को और सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को थाना पुलिस की मदद के लिए लगा दिया ताकि जांच तेजी से और जल्दी हो. अगले दिन यानी 22 सितंबर को फिर से घटनास्थल पहुंच कर सिर की तलाश शुरू की गई. तलाशी के दौरान एक झाड़ी से लोहे की रौड और एक फावड़ा मिला.

फावड़ा मिलने से यह संभावना बढ़ गई कि हत्यारों ने सिर को कहीं जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाया होगा. फावड़ा मिलने से तलाश तेज की गई तो एक झाड़ी से प्रिया का सिर मिल गया. सिर लाश मिलने वाली जगह से 150 मीटर की दूरी पर मिला. इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने प्रिया के पति एजाज अहमद और उस के संपर्क में रहने वालों की लिस्ट बनाई. उन के मोबाइल नंबरों का पता लगा कर सारे नंबर सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को सौंप दिए गए. सरोजमा सिंह और स्वाट प्रभारी प्रदीप सिंह ने उन सभी नंबरों की लोकेशन व काल रिकौर्ड की जांच की तो प्रिया का पति एजाज शक के घेरे में आ गया.

संदेह के फंदे में एजाज प्रिया और एजाज के मोबाइल नंबरों के काल रिकौर्ड की जांच की गई तो घटना के दिन दोपहर में दोनों के बीच बातचीत होने के सुबूत मिले. बातचीत के समय प्रिया की लोकेशन ओबरा में थी. बात होने के बाद प्रिया की लोकेशन ओबरा से होते हुए घटनास्थल तक आई. सड़क किनारे जिस जगह प्रिया की लाश मिली. उस के दूसरे किनारे पर एजाज की टायर रिपेयरिंग की दुकान थी. पुख्ता साक्ष्य मिलने के बाद इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने 24 सितंबर को शाम साढ़े 5 बजे बग्घा नाला पुल के नीचे से एजाज अहमद को उस के साथी शोएब के साथ गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयां कर दी.

लक्ष्मीनारायण सोनी का परिवार जिला सोनभद्र के थाना चोपन के मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर 7 में रहता था. उन की पत्नी सुमित्रा का देहांत हो चुका था. उन की 4 बेटियां थीं— प्रीति, शीना, प्रिया और शर्मिला. प्रीति और शीना का विवाह हो चुका था. लक्ष्मी नारायण ‘कन्हैया स्वीट हाउस ऐंड रेस्टोरेंट’ पर काम करते थे. इसी नौकरी से वह घर का खर्च चलाते थे. उन की सभी बेटियां होनहार और समझदार थीं. उन्होंने दिल लगा कर पढ़ाई की और जब कुछ करने लायक हुई तो नौकरी करने लगीं, जिस से खुद का खर्च स्वयं उठा सकें. प्रिया ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण कर ली थी. गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और छरहरा बदन प्रिया की अलग पहचान बनाते थे. इसीलिए वह आसानी से किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी.

महत्त्वाकांक्षी प्रिया फैशनेबल कपड़े पहनती थी, मौडर्न बनने की चाह में वह अपने बालों को अलगअलग रंगों में रंगवा लेती थी. उस का रहनसहन हाईसोसायटी की लड़कियों की तरह था. जब फैशन उन की तरह था तो प्रिया की सोच भी उन की तरह ही थी. वह हर किसी से आसानी से हंसबोल लेती थी. शर्मसंकोच से वह कोसो दूर थी. प्रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एजाज अहमद उर्फ आशिक का मकान था. उस के पिता जाकिर हुसैन टायर रिपेयरिंग का काम करते थे. एजाज भी पिता की दुकान पर बैठ कर उन के काम में हाथ बंटाता था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर का था. प्रिया पर एजाज की नजर भी थी. उस की खूबसूरती को देख वह पागल सा हो गया था. यह जान कर भी कि वह उस के धर्म की नहीं है, इस के बावजूद वह उस की चाहत को पाने के लिए आतुर था.

पड़ोसी होने की वजह से प्रिया और एजाज एकदूसरे को जानते तो थे ही, जबतब बातचीत भी हो जाती थी. लेकिन जब से प्रिया ने अपने रूपयौवन को आधुनिक रूप से सजाना शुरू किया था, तब से वह कयामत ढाने लगी थी. प्रिया का यौवन जब कदमताल पर थिरकता तो एजाज का दिल तेजी से धड़कने लगता. एजाज अब प्रिया के नजदीक रहने की कोशिश करता. उस से किसी न किसी बहाने से बात करने की कोशिश करता. जब बारबार ऐसा होने लगा तो प्रिया भी समझ गई कि एजाज उस के नजदीक रहने और बात करने के बहाने ढूंढढूंढ कर पास आता है, ऐसा तभी होता है जब दिल में चाहत होती है.

वह समझ गई कि एजाज उसे चाहने लगा है, इसलिए उस के नजदीक रहने की कोशिश करता है. यह सब जान कर भी न जाने क्यों प्रिया को खराब नहीं लगा. बल्कि उस के दिल में भी कुछ कुछ होने लगा. इस का मतलब था कि उस के दिल में एजाज के लिए सौफ्ट कौर्नर था, जो उसे बुरा मानने नहीं दे रहा था. प्रिया ने एजाज को यह बात जाहिर नहीं होने दी कि वह उस की हरकतों को जान गई है. अपनी धुन में डूबा एजाज उस के नजदीक रह कर अपने दिल को तसल्ली देता रहता था. वह सोचता था कि एक न एक दिन अपनी बातों से प्रिया का दिल जीत ही लेगा. प्रिया भी उस की बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी. बातों में वह भी पीछे नहीं रहती थी. बातें बढ़ीं तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए.

अब दोनों को कोई भी बात कहने में संकोच नहीं होता था. दोनों साथ घूमने भी जाने लगे थे. दोनों खातेपीते और मौजमस्ती करते. इस से दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अब प्रिया एजाज पर विश्वास करने लगी थी. साथ ही वह यह भी सोचने लगी थी कि एजाज उसे हमेशा खुश रखेगा, कभी कोई कष्ट नहीं होने देगा. एजाज बड़ी ऐहतियात से कदम दर कदम आगे बढ़ रहा था. वह प्रिया के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए वह सब कर रहा था, जो उसे करना चाहिए था. जब उसे लगा कि प्रिया उस के रंग में पूरी तरह रंग गई है, तो उस ने प्रिया से प्रेम का इजहार करने का फैसला कर लिया.

एजाज की दुकान के सामने सड़क पार किनारे पर वन विभाग की जमीन का छोटा सा टुकड़ा था. प्रिया से वह वहीं मिलता था. प्रिया भी जानती थी कि वह सुरक्षित जगह है, वहां कोई आताजाता नहीं था. उन दोनों को साथ देख बात मोहल्ले में फैल सकती थी. इसलिए प्रिया को एजाज से वहां मिलने से कोई गुरेज नहीं था. पहली मुलाकात में जब दोनों वहां बैठे थे, तो एजाज ने प्यार से प्रिया को निहारते हुए उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला, ‘‘प्रिया,  मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं जो काफी दिन से मेरे दिल में कैद है.’’

‘‘कहो, तुम कब से अपनी बात कहने में संकोच करने लगे.’’ प्रिया ने उस की आंखों में देखते हुए मुसकरा अपनी भौंहें उचकाईं. इस से एजाज की हिम्मत बढ़ गई और वह बेसाख्ता बोल पड़ा, ‘‘प्रिया, आई लव यू… आई लव यू प्रिया.’’ कह कर एजाज ने बड़ी उम्मीद से प्रिया की ओर देखा. प्रिया को पहले ही एजाज से ऐसी उम्मीद थी. क्योंकि वह जो भूमिका बना रहा था, उस से ही जाहिर हो गया था कि एजाज अपने प्यार का इजहार करेगा. प्रिया ने भी बिना देरी लगाए प्यार का जवाब प्यार से दे दिया, ‘‘लव यू टू एजाज.’’

प्रिया के मुंह से प्यार के मीठे शब्द निकले तो एजाज ने खुशी से उसे अपनी बांहों में भर लिया. प्रिया ने भी उस की खुशी देख कर उस का साथ दिया. उस का जवाब सुन एजाज ने उस के होंठों को चूम लिया. प्रिया ने उस में भी उस का साथ दिया. लेकिन एजाज जब इस से आगे बढ़ने लगा तो प्रिया ने उसे रोक दिया, ‘‘इतने तक ठीक है, इस के आगे नहीं.’’ एजाज ने मन मसोस कर उस की बात मान ली. इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. प्रिया अच्छी तरह जानती थी कि एजाज से प्यार की बात जानते ही घर में कोहराम मच जाएगा.

उस के पिता लक्ष्मी नारायण कभी भी गैरधर्म के युवक से शादी को तैयार नहीं होंगे. इसलिए उस ने एजाज से बात की. सलाह मशवरे के बाद दोनों ने घरवालों की बिना मरजी के शादी करने का मन बना लिया. धर्म के नाम पर पंगा घटना से डेढ़ महीने पहले दोनों ने चोरीछिपे शादी कर ली. शादी के बाद एजाज ने प्रिया को ओबरा के एक महिला लौज में ठहरा दिया. उस ने प्रिया से कहा कि जब मामला ठंडा हो जाएगा, तब उसे घर ले जाएगा. इस बीच वह अपने घर वालों को भी मना लेगा.

प्रिया ने उस की बात मान ली. वह महिला लौज में रहने लगी. उस ने पास की ही कपड़े की एक दुकान में नौकरी जौइन कर ली. शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि एजाज प्रिया पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. प्रिया इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एजाज से कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे साथ रहने को तैयार हूं. लेकिन मैं अपना धर्म नहीं बदल सकती. जैसे तुम को अपने धर्म से प्यार है, वैसे ही मुझे अपना धर्म प्यारा है. जैसे मैं ने तुम्हें तुम्हारे धर्म के साथ स्वीकारा है, वैसे ही तुम मुझे मेरे धर्म के साथ स्वीकार करो. इस में दिक्कत क्या है. हमारे प्यार के बीच धर्म को क्यों ला रहे हो.’’

‘‘प्रिया, हमारे यहां गैरधर्म की लड़की को उस के धर्म के साथ नहीं स्वीकारा जाता. उसे अपना धर्म परिवर्तन करना ही पड़ता है. तुम मेरा धर्म स्वीकार कर लो तो मैं तुम्हें अपने घर ले चलूं.’’

‘‘मैं किसी भी हालत में अपना धर्म नहीं बदलूंगी. यह बात तुम्हें शादी और प्यार करने से पहले सोचना चाहिए था. मुझ से ही पूछ लेते तो ये नौबत न आती.’’

‘‘मैं ने सोचा जब तुम मुझ से प्यार कर सकती हो, शादी कर सकती हो तो मेरा धर्म भी स्वीकार कर लोगी.’’

‘‘सब तुम ने अपने आप ही सोच लिया, मुझ से एक बार भी पूछने की जहमत नहीं उठाई. इस में गलती तुम्हारी है, मेरी नहीं.’’

दोनों के बीच इस बात को ले कर काफी देर तक बहस होती रही लेकिन प्रिया नहीं मानी. फिर दो दोनों के बीच जबतब इस बात को ले कर विवाद होने लगा.

19 सितंबर को शाम 6:05 बजे प्रिया की एजाज से बात हुई. प्रिया ने उस से मिलने आने की बात कही. एजाज ने आने के लिए हां कर दी. प्रिया से बात होने के बाद एजाज ने फोन कर अपने दोस्त शोएब को बुला लिया. उस के साथ मिल कर उस ने योजना बनाई. प्रेमी का असली रूप कुछ देर बाद प्रिया ओबरा से आटो ले कर आई और एजाज की दुकान के सामने उतरी. एजाज ने उसे आते देख लिया था. वह उसे सड़क के दूसरी ओर वन विभाग की जमीन पर ले गया, जहां दोनों शादी से पहले मिला करते थे. एजाज और प्रिया लगभग 10 मीटर अंदर जा कर एक जगह बैठ गए. दोनों में बात हुई. एजाज ने एक बार फिर प्रिया से धर्म परिवर्तन करने की बात छेड़ी लेकिन प्रिया ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘नहीं.’’

एजाज गुस्से से भर उठा, लेकिन उस ने प्रिया पर जाहिर नहीं होने दिया. एक मिनट में आने की बात कह कर वह दुकान पर आ गया. वहां से उस ने एक लीवर रौड और चाकू उठाया और शोएब को पीछे आने को कहा. एजाज फिर वहां पहुंचा, जहां प्रिया बैठी थी. प्रिया की पीठ उस की तरफ थी. एजाज ने प्रिया के सिर पर पीछे से लीवर रौड से तेज प्रहार किया. उस का वार इतने जोरों का था कि प्रिया चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई. इस के बाद शोएब के वहां पहुंचने पर एजाज ने तेज धारदार चाकू से प्रिया का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर सिर को वहां से डेढ़ सौ मीटर दूर एक झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद धड़ को जमीन में दफनाने के लिए एजाज अपनी मारुति आल्टो कार से फावड़ा लेने चला गया.

बाजार से फावड़ा खरीद कर लाने के बाद दोनों ने जमीन को खोदने का प्रयास किया, लेकिन जमीन पथरीली होने के कारण दोनों गड्ढा नहीं खोद पाए. लाश को दफना नहीं सके तो दोनों ने आसपास उगी घास और पौधों से लाश ढक दी. प्रिया का मोबाइल उस की जींस की जेब में था. एजाज ने उस का मोबाइल निकाल कर अपनी जेब में रख लिया. लोहे की रौड, चाकू और फावड़ा झाडि़यों में छिपाने के बाद दोनों वापस लौट आए. अगले दिन 20 सितंबर को एजाज ने प्रिया के मोबाइल में उस का वाट्सऐप एकाउंट खोल कर प्रिया की तरफ से अपने नंबर पर न मिलने आने का मैसेज भेज दिया, जिस से उस पर शक न जाए. फिर उस ने प्रिया का मोबाइल स्विच्ड औफ कर के अपनी दुकान के पीछे फेंक दिया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. आखिर वह और शोएब कानून की गिरफ्त में आ ही गए. एजाज की निशानदेही पर प्रिया का मोबाइल और आल्टो कार भी पुलिस ने बरामद कर ली. हत्या में इस्तेमाल बाकी हथियार घटनास्थल से बरामद हो चुके थे. जरूरी कानूनी लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : एकतरफा इश्क में डॉक्टर ने प्रेमिका को मार डाला

Love Crime : डिगरी ले कर डाक्टर बन जाना ही सब कुछ नहीं होता. इस पेशे में डाक्टर के लिए सेवाभाव, संयम, विवेक और इंसानियत भी जरूरी हैं. विवेक तिवारी डाक्टर जरूर बन गया था, लेकिन उस में इन में से कोई भी गुण नहीं था. अपने एक तरफा प्यार में वह चाहता था कि डा. योगिता वही करे जो वह चाहता है. ऐसा नहीं हुआ तो…

बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है. कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी.

पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी. डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था. नहीं सुनी पुलिस ने  पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया.  डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो. मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े.

शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की. आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

प्रतिभावान डा. थी योगिता पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी. योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया. योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा.

इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे. कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी. इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया. डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी. बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था. इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं. सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी.

डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया. बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली.