बरसों की साध : क्या प्रशांत अपना वादा निभा पाया? – भाग 2

बचपन में प्रशांत की बड़ी लालसा थी कि उस की भी एक भाभी होती तो कितना अच्छा होता. लेकिन उस का ऐसा दुर्भाग्य था कि उस का अपना कोई सगा बड़ा भाई नहीं था. गांव और परिवार में तमाम भाभियां थीं, लेकिन वे सिर्फ कहने भर को थीं.

संयोग से दिल्ली में रहने वाले प्रशांत के ताऊ यानी बड़े पिताजी के बेटे ईश्वर प्रसाद की पत्नी को विदा कराने का संदेश आया. ताऊजी ही नहीं, ताईजी की भी मौत हो चुकी थी. इसलिए अब वह जिम्मेदारी प्रशांत के पिताजी की थी. मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घर वालों से रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. फिर भी प्रशांत के पिता को अपना फर्ज तो अदा करना ही था.

ईश्वर प्रसाद प्रशांत के ताऊ का एकलौता बेटा था. उस की शादी ताऊजी ने गांव में तब कर दी थी. जब वह दसवीं में पढ़ता था. तब गांव में बच्चों की शादी लगभग इसी उम्र में हो जाती थी. उस की शादी उस के पिता ने अपने ननिहाली गांव में तभी तय कर दी थी, जब वह गर्भ में था.

देवनाथ के ताऊजी को अपनी नानी से बड़ा लगाव था, इसीलिए मौका मिलते ही वह नानी के यहां भाग जाते थे. ऐसे में ही उन की दोस्ती वहां ईश्वर के ससुर से हो गई थी. अपनी इसी दोस्ती को बनाए रखने के लिए उन्होंने ईश्वर के ससुर से कहा था कि अगर उन्हें बेटा होता है तो वह उस की शादी उन के यहां पैदा होने वाली बेटी से कर लेंगे.

उन्होंने जब यह बात कही थी, उस समय दोनों लोगों की पत्नियां गर्भवती थीं. संयोग से ताऊजी के यहां ईश्वर पैदा हुआ तो दोस्त के यहां बेटी, जिस का नाम उन्होंने रूपमती रखा था.

प्रशांत के ताऊ ने वचन दे रखा था, इसलिए ईश्वर के लाख मना करने पर उन्होंने उस का विवाह रूपमती से उस समय कर दिया, जब वह 10वीं में पढ़ रहा था. उस समय ईश्वर की उम्र कम थी और उस की पत्नी भी छोटी थी. इसलिए विदाई नहीं हुई थी. ईश्वर की शादी हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि उस के ससुर चल बसे थे. इस के बाद जब भी विदाई की बात चलती, ईश्वर पढ़ाई की बात कर के मना कर देता. वह पढ़ने में काफी तेज था. उस का संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक नौकरी में चयन हो गया और वह डिप्टी कलेक्टर बन गया. ईश्वर ट्रेनिंग कर रहा था तभी उस के पिता का देहांत हो गया था.

संयोग देखो, उन्हें मरे महीना भी नहीं बीता था कि ईश्वर की मां भी चल बसीं. मांबाप के गुजर जाने के बाद एक बहन बची थी, उस की शादी हो चुकी थी. इसलिए अब उस की सारी जिम्मेदारी प्रशांत के पिता पर आ गई थी.

लेकिन मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घरपरिवार से नाता लगभग खत्म सा कर लिया था. आनेजाने की कौन कहे, कभी कोई चिट्ठीपत्री भी नहीं आती थी. उन दिनों शहरों में भी कम ही लोगों के यहां फोन होते थे. अपना फर्ज निभाने के लिए प्रशांत के पिता ने विदाई की तारीख तय कर के बहन से ईश्वर को संदेश भिजवा दिया था.

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

दुर्भाग्य के भंवरजाल में फंसी नवोदा के लिए ज्ञानू का यह कथन डूबते को तिनके का सहारा की तरह था. उस ने ज्ञानू से शादी कर ली थी. प्रशांत का भी मन ज्ञानू बनने का हो रहा था. लेकिन अभी वह छोटा था. उस की उम्र महज 13 साल थी. दुलहन को घर में बैठा कर पिया का इंतजार करने के लिए छोड़ दिया गया.

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 3

कहा जाता है कि बेटेबेटी का सुख मांबाप के लिए अमृत है. लेकिन यही अमृत अगर जहर बन जाए तो उन के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ शकुंतला के साथ हुआ. जब उन्हें पता चला कि मधुमती का पति एक नंबर का शराबी और निकम्मा है तो वह टूट कर बिखर गईं. बेटी के गम में वह बीमार रहने लगीं. उन के इस गम ने उन्हें मौत तक पहुंचा दिया.

शकुंतला की मौत से अगर किसी को खुशी हुई थी तो वह गिरीश था. अब उस फ्लैट में वह जैसे चाहेगा, रह सकेगा. मां की मौत के बाद मधुमती बेटे के साथ अपने फ्लैट में रहने आ गई. फ्लैट में आते ही गिरीश उसे बेचने के चक्कर में रहने लगा. वह उस फ्लैट को बेच कर उस का सारा पैसा अय्याशी मे उड़ा देना चाहता था. इस के लिए वह शातिर चाल भी चलने लगा.

मधुमती से शादी करते समय जिस तरह वह संत बन गया था, फ्लैट बिकवाने के लिए भी उसी तरह एक बार फिर  संत बन गया. मधुमती और बेटे से खूब प्यार करने लगा. मधुमती के दिल में एक अच्छे आदमी की इमेज बनाने के लिए वह नौकरी भी ढूंढ़ने लगा. जब गिरीश को लगा कि मधुमती उस पर विश्वास करने लगी है, तब उस ने अपनी नायाब चाल चली. मजे की बात, मधुमती उस में फंस भी गई.

भोलीभाली मधुमती को विश्वास में ले कर उस ने बिजनैस की योजना बनाई और उस में 50 लाख रुपए लगाने की बात की. इस के बाद मधुमती का फ्लैट 43 लाख रुपए में बेच कर सारा पैसा अपने नाम जमा करा लिया और रहने के लिए भायंदर के नक्षत्र टावर के 14वीं मंजिल पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया.

जैसे ही फ्लैट का पैसा गिरीश के पास आया, वह एकदम से बदल गया. उस के पास लाखों रुपए आ गए थे, इसलिए वह लखपतियों की तरह ठाठ से रहने लगा. वह बीयर बारों में जा कर अपने ऊपर तो शराब शबाब पर पैसे लुटाता ही था, अपने साथ दोस्तों को भी ले जाता था. उन का खर्च भी वह स्वयं ही उठाता था. मधुमती जब भी उसे रोकने की कोशिश करती, उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि उसे मारतापीटता भी. उसे कतई पसंद नहीं था कि वह उस की मौजमसती में दखल दे.

गिरीश जिस तरह अय्याशी पर पैसे लुटा रहा था, उसे देख कर मधुमती को अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी. उसे लगा कि अगर गिरीश का यही हाल रहा तो उसे भिखारी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. वैसे भी उस ने उसे घर से बेघर कर दिया था.

पति की हरकतों से परेशान हो कर मधुमती ने तय किया कि वह गिरीश से तलाक ले कर अपने बचे हुए पैसों और बेटे के साथ नानी के पास फ्रांस चली जाएगी.

इस के लिए उस ने नानी से बात भी कर ली. लेकिन जब इस बात की जानकारी श्रीरंग पोटे को हुई तो वह परेशान हो उठे. क्योंकि इस से समाज में उन की काफी बदनामी होती. बेटे ने तो वैसे ही इज्जत बरबाद कर रखी थी. रहीसही इज्जत बहू के साथ जाने वाली थी. वह पत्नी को ले कर भायंदर पहुंचे और बहू को समझाने के साथ गिरीश को काफी खरीखोटी सुनाई. इस के बाद वह पोते को साथ ले कर माहीम चले आए.

पिता की डांटफटकार और मधुमती के फैसले के बारे में जान कर गिरीश का पारा आसमान पर जा पहुंचा. वह यह कतई नहीं चाहता था कि मधुमती उसे छोड़ कर फ्रांस चली जाए. क्योंकि उस के जाते ही वह भिखारी बन जाता. अब इसी बात को ले कर गिरीश अकसर मधुमती से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा.

3 दिसंबर को भी पैसों को ले कर गिरीश और मधुमती के बीच कहासुनी शुरू हुई तो बात मारपीट तक पहुंच गई. गिरीश ने मधुमती को इस कदर मारा कि वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने उस का गला दबा दिया. इसी गला दबाने में मधुमती की मौत हो गई.

लेकिन गिरीश को पता नहीं चला कि मधुमती मर चुकी है. उसे लगा कि वह बेहोश होने का नाटक कर रही है, ताकि वह मारना बंद कर दे. वह उसे मारतेमारते थक गया था, इसलिए उसे वैसी ही छोड़ कर गुस्सा शांत करने के लिए बाहर चला गया. काफी देर तक आवारा दोस्तों के साथ रहने के बाद वह घर आया तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि वह मधुमति को जिस स्थिति में छोड़ कर गया था, वह अभी भी उसी स्थिति में पड़ी थी.

गिरीश ने मधुमती को उठाने की कोशिश की तो पता चला कि उस का शरीर ठंडा पड़ कर अकड़ चुका है. उसे समझते देर नहीं लगी कि मधुमती मर चुकी है. उस के होश उड़ गए. वह घबरा गया कि अब क्या करे.

गिरीश बुरी तरह डर गया था. उसे हथकड़ी और जेल के सींखचे नजर आने लगे. इस सब से कैसे बचा जाए, वह तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा. मधुमती की लाश को इस तरह बाहर ले जा कर फेंकना उस के लिए संभव नहीं था. क्योंकि लाश की शिनाख्त होने पर वह पकड़ा जाता. तब उस ने ऐसी योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

उस ने तय किया कि वह मधुमती के लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के समुद्र में फेंक देगा, जहां समुद्री मछलियां उन्हें खा जाएंगी. इस के बाद मधुमती की लाश ही नहीं मिलेगी तो कानून उस का कुछ नहीं कर पाएगा. अगर कोई मधुमती के बारे में पूछेगा तो वह कह देगा कि मधुमती उस से लड़ाईझगड़ा कर के अपनी नानी के पास फ्रांस चली गई है. इस तरह उस की हत्या का यह राज राज ही रह जाएगा.

लेकिन इस में भी एक समस्या थी. गिरीश मधुमती की लाश के टुकड़े तो कर सकता था, लेकिन उन टुकड़ों को अकेले ले जा कर फेंक नहीं सकता था. उस ने काफी सोचाविचारा तो उसे अपनी बुआ के बेटे नितिन की याद आई. वह उस का दोस्त भी था, इसलिए उस पर विश्वास भी किया जा सकता था. उसे यह भी विश्वास था कि नितिन उस की मदद भी करेगा.

यही सोच कर गिरीश ने नितिन को फोन कर के अपने पास बुलाया और उसे साथ ले कर भायंदर मौल गया. लेकिन जब गिरीश ने नितिन को सच्चाई बताई तो उसे लगा कि अगर उस ने गिरीश की मदद की तो उस के साथ उसे भी जेल जाना होगा. इसलिए वह चुप के से वहां से खिसक गया. इस के बाद उसी की वजह से यह मामला पुलिस तक जा पहुंचा.

नितिन के चले जाने के बाद गिरीश अपने फ्लैट पर पहुंचा और मधुमती की लाश के कई टुकड़े किए. फ्लैट में दुर्गंध न फैले, इस के लिए उस ने उन टुकड़ों की अच्छी तरह पैकिंग कर के कुछ टुकड़े फ्रिज में रख दिए तो कुछ कमरे में बैड के नीचे छिपा दिए. मौका देख कर वह उन्हें ले जा कर फेंक देता. लेकिन उसे इस का मौका ही नहीं मिला, क्योंकि मदद के बहाने नितिन ने फोन कर के उसे बुलाया तो वह शेवारे पार्क में आ गया, जहां से पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने गिरीश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक गिरीश जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बस एक बेटा चाहिए – भाग 3

संविधा को आघात सा लगा. उस ने उस के दुख और मजबूरी भरे जीवन की अपने शानदार और  ऐशोआराम वाले जीवन से तुलना की, तब उसे लगा कि इस दुनिया में शायद दुख ज्यादा और सुख कम है.

उस ने पूछा, ‘‘आप हर साल एक बच्चा पैदा कर के थकी नहीं?’’

‘‘इस के अलावा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है.’’ शंकरी ने ठंडी आह भरते हुए जवाब दिया.

‘‘आप बहुत बहादुर हैं. मेरे वश का तो नहीं है.’’

‘‘मेरी मजबूरी है. मेरे पति चाहते हैं कि उन का एक बेटा हो जाए, जिस से उन के परिवार का नाम चलता रहे.’’

‘‘नाम चलता रहे..?’’ संविधा ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा. उस पर उसे तरस भी आया. क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उस के जो बच्चे थे, उन्हें ही वह ठीक से पालपोस सकती. जबकि सिर्फ नाम चलाने के लिए वह बच्चे पर बच्चे पैदा करने को तैयार थी.

संविधा को झटका सा लगा था. वह उस से कहना चाहती थी कि आजकल लड़के और लड़कियों में कोई अंतर नहीं रहा. दोनों बराबर हैं. उस की केवल एक ही बेटी है, जिस से वह और उस के पति खुश हैं. लड़कियां लड़कों से ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभाशाली निकल रही हैं. वे मातापिता की बेटों से ज्यादा देखभाल करती हैं. देखो न लड़कियां पहाड़ों पर चढ़ रही हैं, उन के कदम चांद पर पहुंच गए हैं.

लेकिन वह कह नहीं पाई. उस के मन में आया कि वह उस से पूछे कि अगर इस बार भी बेटी पैदा हुई तो..? क्या जब तक बेटा नहीं पैदा होगा, वह इसी तरह बच्चे पैदा करती रहेगी? अगर उसे बेटा पैदा ही नहीं हुआ तो वह क्या करेगी?

इस तरह के कई सवाल संविधा के मन में घूम रहे थे. उस की गरीबी और बेटा पाने की चाहत के बारे में सोचते हुए उसे लगा, अगर यह इसी तरह बच्चे पैदा करती रही तो इस की हालत तो एकदम खराब हो जाएगी. अचानक उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘वह लोकगीत गाते हैं.’’ शंकरी ने कहा.

‘‘लोकगीतों का कार्यक्रम करते हैं?’’

‘‘नहीं, मेलों या गांवों में घूमघूम कर गाते हैं.’’

संविधा को याद आया कि जब वह मेले में प्रवेश कर रही थी तो कुछ लोग चादर बिछा कर ढोलक और हारमोनियम ले कर बैठे थे. वे लोगों की फरमाइश पर उन्हें लोकगीत और फिल्मी गाने गा कर सुना रहे थे.

संविधा समझ गई कि ये लोग कहीं बाहर से आए हैं. उस ने पूछा, ‘‘लगता है, तुम लोग कहीं बाहर से आए हो? अपना गांवघर छोड़ कर कहीं बाहर जाने में तुम लोगों को बुरा नहीं लगता?’’

‘‘हमारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है.’’

‘‘क्यों? जहां तुम लोग रहते हो, वहां तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है?’’

‘‘काम और कमाई होती तो हम लोग इस तरह मारे मारे क्यों फिरते?’’

‘‘लेकिन तुम लोग अपने यहां खेती भी तो कर सकते हो?’’ संविधा ने सुझाव दिया.

‘‘कैसे मैडम, हमारी सारी जमीनों पर दबंगों और महाजनों ने कब्जा कर लिया है. क्योंकि हम ने उन से जो कर्ज लिया था और उसे अदा नहीं कर पाए.’’

‘‘तुम लोगों ने अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए संघर्ष क्यों नहीं किया?’’

‘‘मैडम, हम बहुत कमजोर लोग हैं और वे बहुत शक्तिशाली. उन के पास पैसा भी है और ताकत भी. हम उन से दुश्मनी कैसे मोल ले सकते हैं.’’

‘‘लेकिन तुम लोग यह सब सह कैसे लेते हो?’’

‘‘हम बहुत ही असहाय और बेबस लोग हैं.’’ शंकरी ने लंबी सांस ले कर जमीन पर खेल रही बच्ची के मुंह की धूल को साड़ी के पल्लू से साफ करते हुए कहा.

संविधा के दिमाग में तमाम सवाल उठ रहे थे, लेकिन उसे लगा कि बुद्धिमानी इसी में है कि वह उस से उन सवालों को न पूछे. चेहरे से शंकरी अभी जवान लग रही थी, लेकिन हालात की वजह से चेहरा पीला और सूखा हुआ था. शायद ऐसा गरीबी और बच्चे पैदा करने की वजह से था. संविधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारी शादी कितने साल में हुई थी?’’

‘‘मेरी…’’ उस ने अनुमान लगाने की कोशिश की, मगर नाकाम रही.

‘‘तुम यहां कब आई?’’

‘‘जब यह मेला शुरू हुआ.’’

‘‘तुम लोगों के दिन कैसे गुजरते हैं?’’

‘‘सुबह जहां रहते हैं, वहां की साफसफाई करते हैं. दोपहर को ही रात का भी खाना बना लेते हैं, क्योंकि हमारे पास उजाले की व्यवस्था नहीं है. उस के बाद अपने काम में लग जाते हैं. लड़कियां टोलियों में नाचनेगाने का काम करती हैं. शादीशुदा महिलाएं मेरी तरह बायस्कोप दिखाती हैं तो कुछ कठपुतली का नाच दिखाती हैं. कुछ मेहंदी लगाने का भी काम करती हैं.’’

संविधा ने इधरउधर देखा. दूर दूर तक कोई इमारत नहीं थी. मैदान पर मेले में आए दुकानदारों के तंबू लगे थे. मन में जिज्ञासा जागी तो उस से पूछा, ‘‘तुम पूरे दिन इसी तरह बिना आराम के काम करती हो. ऐसे में तुम्हारे बच्चों की देखभाल कौन करता है?’’

‘‘मेरी बड़ी बेटी इन दोनों बेटियों को संभाल लेती है.’’

‘‘इन का खानापीना और नहानाधोना?’’

‘‘बड़ी बेटी छोटी को नहला देती है, बीच वाली खुद ही नहा लेती है.’’

संविधा ने अपनी 8 साल की बेटी पर नजर डाली, उस के बाद शंकरी की एकएक कर के तीनों बेटियों को देखा. छोटी बेटी अभी भी मां के पास चबूतरे पर खेल रही थी. संविधा ने सोचते हुए एक लंबी सांस ली. कुछ देर वह शंकरी और उस की बेटियों को देखती रही. उस का दिल उन के लिए सहानुभूति से भर गया. उस ने पर्स से 10-10 रुपए के 2 नोट निकाले और खेल रही लड़कियों को थमा दिए. इस के बाद वह चलने लगी तो देखा, कुछ बच्चे उधर आ रहे थे. उन्हें आते देख कर शंकरी अपने बायस्कोप के पास जा कर खड़ी हो गई, लेकिन उस की नजरें चबूतरे पर खेल रही बेटी पर ही जमी थीं.

शाम को संविधा घर पहुंची तो उस के दिलोदिमाग में शंकरी और उस की बेटियां ही छाई थीं. वह भी एक औरत थी, इसलिए उस ने प्रार्थना की कि काश! उस के गमों का सिलसिला खत्म हो जाए और उस की इच्छा पूरी हो जाए. इस बार उसे बेटा पैदा हो जाए.

अनुवाद: एम.एस. जरगाम

दोस्त की खातिर : प्रेमिका को उतारा मौत के घाट – भाग 2

सार्थक के सपनों में लगी सेंध

सार्थक ने अपूर्वा को ले कर न जाने क्या सपने देख रखे थे. अपूर्वा की बातें सुन कर उस का दिल टूट गया. वह अच्छी तरह समझ गया था कि वह अपूर्वा के लिए नहीं बना है.

उस ने लौट कर ये बातें अमर शिंदे को बताईं तो शिंदे ने उसे समझाया, ‘‘तू भूल क्यों नहीं जाता अपूर्वा को. ढूंढने निकलेगा तो सैकड़ों लड़कियां मिलेंगी.’’ लेकिन सार्थक ने दो शब्दों में उस की बात पर पानी फेर दिया, ‘‘उन में अपूर्वा तो नहीं होगी न?’’

सार्थक भावुक लड़का था. अपूर्वा की बात उस ने दिल से लगा ली. उस ने अपनी फेसबुक वाल पर अमर को संबोधित कर के लिखा, ‘‘यार, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी मौत पर कोई रोने वाला भी नहीं होगा.’’

इस के जवाब में अमर शिंदे ने लिखा, ‘‘अगर तुझे कुछ हुआ तो मैं सारी दुनिया को रुलाऊंगा.’’

उस वक्त अमर को इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि उस का दोस्त सार्थक दिल की लगी को दिमाग पर हावी कर लेगा. अपूर्वा ने भी नहीं सोचा था कि सार्थक उस की बातों को इतनी गंभीरता से लेगा. आखिर हुआ वही जो किसी ने नहीं सोचा था. 23 जुलाई, 2018 को सार्थक ने आत्महत्या कर ली.

मामला थाना ढोकी क्षेत्र का था. सार्थक के पिता बालासाहेब ने थाना ढोकी में अपने बेटे सार्थक को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए अपूर्वा और मौली घोपल के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने भादंवि की धारा 306 के अंतर्गत केस दर्ज कर के अपूर्वा और मौली घोपल को 24 जुलाई, 2018 को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन जल्दी ही दोनों को जमानत मिल गई.

सार्थक के आत्महत्या करने से उस के परिवार को तो गहरा धक्का लगा ही, अमर शिंदे को भी बहुत दुख हुआ. सार्थक उस का जिगरी दोस्त था. अपूर्वा ने उस के दोस्त की भावनाओं से खिलवाड़ किया था, इसलिए अमर को अपूर्वा की शक्ल से नफरत हो गई.

सार्थक की मौत और अपूर्वा के जेल जाने के बाद इस बात को खत्म हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

अक्तूबर, 2018 के दूसरे हफ्ते की बात है. फर्स्ट ईयर के पहले एग्जाम के बाद छुट्टी मिली तो अपूर्वा अपने घर लातूर आई. वह चूंकि अनंतराव यादव और मोहिनी यादव की एकलौती संतान थी, इसलिए उस के आने पर घर में बहार सी आई जाती थी.

अपूर्वा की जिंदगी का आखिरी अध्याय

19 अक्तूबर, 2018 को दशहरा था. उस से पहले नवरात्रि के व्रत चल रहे थे. अपूर्वा की मां मोहिनी भी नवरात्रि के व्रत रख रही थीं. 16 अक्तूबर को मोहिनी को मंदिर जाता था. वह साढ़े 11 बजे मंदिर चली गईं. उस समय अपूर्वा घर में ही थी. लौटने में आधा घंटा लग गया. मोहिनी 12 बजे जब विशालनगर के संदीप अपार्टमेंट स्थित अपने घर पहुंची तो घर के बाहर कुंडी लगी देख चौंकी. वजह अपूर्वा घर में थी, अगर उसे कहीं बाहर जाना होता तो वह इस तरह बाहर से कुंडी लगा कर कभी नहीं जाती.

बात परेशानी की थी. मोहिनी कुंडी खोल कर जल्दी से अंदर गईं. लेकिन वहां का हाल देख उन का रोमरोम कांप उठा. अपूर्वा हौल में लहूलुहान पड़ी थी. बेटी की हालत देख मोहिनी के हाथों से पूजा की थाली छूट कर गिर गई. वह रोतेचिल्लाते हुए बाहर की ओर भागीं. पासपड़ोस के लोगों ने उन की आवाज सुनी तो बाहर निकल आए.

कुछ लोगों ने अंदर जा कर देखा तो उन के भी होश उड़ गए. अपूर्वा के पिता अनंत राव उस दिन अपूर्वा की फीस भरने उस के जामखंडी, कर्नाटक स्थित मैडिकल कालेज गए थे. किसी ने फोन कर के उन्हें भी सूचना दे दी और पुलिस को भी.

अपूर्वा के साथ जो भी हुआ था, उसे हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी. कुछ लोगों ने अपूर्वा की मां मोहिनी को संभाला और कुछ लोग खून से लथपथ अपूर्वा को उठा कर पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल ले गए. लेकिन मामला चूंकि गंभीर अपराध से जुड़ा था, इसलिए अस्पताल ने अपूर्वा को सरकारी अस्पताल भेज दिया. सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने देखने के बाद अपूर्वा को मृत घोषित कर दिया.

अस्पताल से इस मामले की सूचना थाना  एमआईडीसी को दी गई. सूचना मिलते ही सीनियर इंसपेक्टर अशोक माली अपनी पुलिस टीम के साथ अस्पताल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों और फोरैंसिक टीम को भी सूचित कर दिया था.

अस्पताल जा कर इंसपेक्टर अशोक माली ने डाक्टरों ने बयान लिए और अपूर्वा की डैडबौडी का परीक्षण किया. अपूर्वा के गले पेट और शरीर के अन्य कई हिस्सों पर गहरे घाव थे. निस्संदेह उस पर किसी तेज धार वाले हथियार से वार किए गए थे. ऐसा लगता था जैसे उस पर वार करने वाले को उस से गहरी नफरत रही हो.

जो लोग पूर्वा को अस्पताल ले कर आए थे, पुलिस ने उन से भी पूछताछ की. इस के बाद उस के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. इस के बाद इंसपेक्टर माली अपनी टीम के साथ अपूर्वा के संदीप अपार्टमेंट स्थित घर (घटनास्थल) पर पहुंचे. तब तक अपूर्वा के पिता अनंत राव यादव भी कर्नाटक जामखंडी से लौट आए थे.

पुलिस के लिए आसान नहीं था, हकीकत को समझना

पुलिस टीम घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि एसपी राजेंद्र माने और क्राइम ब्रांच के डीसीपी काका साहेब डोले भी आ गए. महाराष्ट्र में चूंकि किसी भी बडे़ अपराध में क्राइम ब्रांच समानांतर जांच करती है, इसलिए क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सुनील नागर गोजे भी अपनी टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए. फोरैंसिक टीम भी आ गई थी.

सभी ने अपनेअपने हिसाब घटनास्थल का मुआयना किया. साथ ही पासपड़ोस के लोगों से भी पूछताछ की. अपूर्वा की मां मोहिनी और पिता अनंतराव यादव से भी पूछताछ की गई.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें – भाग 2

भाई को पता लगी बहन की सच्चाई

अशोक ने बहन से कुछ नहीं कहा बल्कि वह पहले यह पता लगाना चाहता था कि किरन किस से बातें करती है. मौका मिलने पर एक दिन अशोक ने जब किरन का फोन चैक किया तो रोहतास का नाम सामने आया. वह रोहतास से फोन पर बात ही नहीं करती थी, बल्कि वाट्सऐप से भी दोनों एकदूसरे को मैसेज भेजते थे.

तमाम मैसेज अशोक ने देखे तो उस का खून खौल उठा. उस ने किरन से रोहतास के विषय में जब पूछा तो किरन ने झूठ बोलने के बजाए साफ बता दिया था कि रोहतास उस का प्रेमी है और वे शादी कर चुके हैं. क्योंकि अब उस की चोरी पकड़ी जा चुकी थी और बात को छिपाने से कोई फायदा भी नहीं था. मौका मिलने पर वह खुद भी तो यह बात घर वालों को बताना चाहती थी. भाई ने पूछ लिया तो किरन से सब बता दिया.

किरन के इस रहस्योद्घाटन से जैसे घर में भूचाल आ गया था. अशोक और उस की मां ने किरन की जम कर पिटाई की. उन्होंने धमकी भी दी कि वह रोहतास को भूल जाए. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो उसे जान से मार दिया जाएगा, लेकिन किरन अपनी किसी बात से टस से मस नहीं हुई.

उसे इस बात का पहले से अहसास था कि शादी वाली बात घर वालों को पता चलने पर यह सब तो होना ही था. इसीलिए उस ने अपने आप को इन सब बातों के लिए पहले से ही तैयार कर रखा था.

इस के बाद किरन को घर में कैद कर लिया गया. 22 जनवरी, 2017 को अशोक ने किरन के पति रोहतास को फोन कर के धमकाया कि वह किरन से अपने संबंध खत्म कर ले नहीं तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. यह भी कहा कि वह इस शादी को भूल जाए.

इस के बाद 9 फरवरी, 2017 को किरन ने किसी तरह फोन द्वारा रोहतास को बता दिया कि उन की शादी के बारे में घर वालों को पता चल गया है और अब वे सब उस पर जुल्म ढा रहे हैं. जल्दी कुछ करो.

इस से पहले कि रोहतास कुछ करता, 9-10 फरवरी, 2017 की रात को अशोक ने अपनी मां के सामने ही किरन को पहले प्यार से समझाने की कोशिश की थी. किरन को बताया गया कि रोहतास जाति का सैनी है और हम जाट हैं. ऊपर से रोहतास और हमारी हैसियत में जमीनआसमान का फर्क है. वह मामूली परिवार से है.

अशोक ने किरन को ऊंचनीच, जातिपात और मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए रोहतास से रिश्ता तोड़ने के लिए कहा, लेकिन किरन पर अपनी मां और भाई की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उस ने अपनी बात पर कायम रहते हुए कह दिया, ‘‘चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए, रोहतास मेरा पति है और पति रहेगा. मैं ने अग्नि और भगवान को साक्षी मान कर उसे अपने मन से पति स्वीकार किया है, इसलिए उसे हरगिज नहीं भुला सकती.’’

किरन की बात सुन कर अशोक के तनबदन में आग लग गई थी. वह उस की चोटी पकड़ कर कमरे में ले गया और उस ने किरन से जबरदस्ती एक रजिस्टर पर सुसाइड नोट लिखवाया, जिस में लिखा गया था, ‘मैं किन्हीं कारणवश अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस मामले में मेरे परिवार के किसी सदस्य का कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें दोषी न ठहराया जाए.’

किरन को पिला दिया जहर

इस के बाद अशोक किरन को छत पर ले गया और उसे एक गिलास में कोई जहरीला पदार्थ मिला पानी जबरदस्ती पिला दिया. पानी पीते ही किरन को उल्टी हो गई, पर तब तक जहर अपना असर दिखा चुका था. कुछ देर तड़पने और छटपटाने के बाद किरन की मौके पर ही मौत हो गई थी.

किरन की हत्या करने के बाद अशोक उस की लाश को वहीं छत पर ही रजाई से ढक कर नीचे आ कर अपने कमरे में सो गया था. किरन के पिता दरोगा सुरेश सिंह उस समय अपनी ड्यूटी पर रोहतक थाने में थे. उन्हें शायद किरन की हत्या के बाद ही बताया गया था.

अपने बेटे को इस हत्या के केस से और बेटी की बदनामी से बचाने के लिए अगली सुबह गांव में यह बात फैला दी गई कि किरन की हार्ट अटैक से मौत हो गई है. इस के बाद आननफानन में बिना पुलिस या किसी अन्य को सूचना दिए किरन का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

किरन रोजाना रोहतास को फोन किया करती थी. जब 2 दिन गुजर जाने पर भी किरन का फोन नहीं आया और न ही डायल करने पर उस का फोन मिला तो रोहतास को चिंता होने के साथ दाल में कुछ काला दिखाई देने लगा. उस ने अपने स्तर पर किरन के गांव किसी को भेज कर पता लगवाया तो जानकारी मिली कि पिछली 10 तारीख को किरन की मौत हो गई थी और उस के परिजनों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया था.

पुलिस से की शिकायत

यह खबर सुन कर रोहतास की तो दुनिया ही वीरान हो गई थी. उसे पक्का विश्वास था कि किरन की हत्या कर दी गई है. रोहतास ने यह बात सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट और जय भीम आर्मी ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान को बताई. संजय चौहान रोहतास को साथ ले कर तत्कालीन डीएसपी भगवान दास से मिले और उन्हें पूरी बात विस्तार से बताते हुए कानूनी काररवाई करने की अपील की.

मामला औनर किलिंग और 2 अलगअलग जातियों के परिवारों से संबंधित था. ऐसे में जातीय दंगा भड़कने का खतरा था सो मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी भगवान दास ने यह सूचना तत्कालीन एसएसपी (हिसार) राजिंदर मीणा को दी.

एसएसपी के दिशानिर्देश पर डीएसपी ने थाना सदर के इंचार्ज इंसपेक्टर प्रह्लाद सिंह को तुरंत इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए. उसी दिन थाने के पास ही रोहतास और संजय चौहान ने एक प्रैसवार्ता कर मीडियाकर्मियों को भी इस बात की पूरी जानकारी दे दी.

ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 2

चूंकि मामला दोहरे हत्याकांड का था, लिहाजा जिले के डीसीपी सेजू पी. कुरुविला ने हत्यारों को पकड़ने के लिए एक बड़ी टीम का गठन कर दिया. इस टीम के सुपरविजन की जिम्मेदारी उन्होंने एडीशनल डीसीपी राजेंद्र सागर को सौंपी और औपरेशन की कमांड संभालने का जिम्मा एसीपी विनय माथुर को दिया.

विशेष टीम में पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने के एसएचओ मुकेश कुमार, एडीशनल एसएसओ मनोज भाटिया, निहाल विहार थाने के एसएचओ धर्मपाल सिंह, एसआई रितुराज, एएसआई अनिल कुमार, महावीर, राजेंद्र सिंह, राजबीर, धनराज, हैडकांस्टेबल कृष्ण राठी, सुभाष, रजनीश, कांस्टेबल संदीप, अनिल, नवीन, नवीन यादव, वीरेंद्र, अमित, सुनील और महिला कांस्टेबल दिव्या को शामिल किया गया.

पुलिस की एक टीम सोनिया व उस के प्रेमी प्रिंस के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकाल कर उस के फोन के सर्विलांस के काम में जुटी तो दूसरी टीम को उस से मिली जानकारी के आधार पर आरोपियों की धरपकड़ का जिम्मा सौंपा गया.

संभावना बेटी के हत्यारी होने की

पुलिस टीम ने जब मृतका जागीर कौर व उन के पति गुरमीत सिंह के घर के आसपास लगे कुछ सीसीटीवी कैमरों की जांचपड़ताल करनी शुरू की तो कुछ सीसीटीवी कैमरों से ऐसी फुटेज भी मिल गई, जिस से साफ हो गया कि सोनिया और प्रिंस ही इस दोहरे हत्याकांड के जिम्मेदार हैं.

पुलिस टीम ने सर्विलांस की मदद से लखनऊ से ले कर दिल्ली तक अपना जाल बिछा दिया, क्योंकि प्रिंस लखनऊ का ही रहने वाला था. ताबड़तोड़ छापेमारी और पुलिस की घेराबंदी का नतीजा यह निकला कि 10 मार्च, 2019 की रात को पुलिस ने बाहरी दिल्ली इलाके में दिलेर मेहंदी फार्महाउस के पास से सोनिया और उस के प्रेमी प्रिंस को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों को गिरफ्तार कर जब थाने लाया गया और पूछताछ की गई तो पता चला, इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए प्रिंस ने लखनऊ के भाड़े के 2 हत्यारों रिंकू और दिवाकर की भी मदद ली थी. पता चला कि दोनों हत्यारों को उस ने 50 हजार रुपए दिए थे.

दोनों सुपारी किलर रिंकू और दिवाकर लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन के रहने वाले थे. प्रिंस से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिंकू और दिवाकर के मोबाइल नंबर हासिल कर लिए और (वेस्ट) थाने के एएसआई राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस की टीम को दोनों की गिरफ्तारी के लिए लखनऊ रवाना कर दिया.

इधर अगली सुबह यानी 31 मार्च को सोनिया और प्रिंस दीक्षित को अदालत में पेश कर मनोज भाटिया ने 10 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. दूसरी तरफ एएसआई राजेंद्र सिंह की टीम ने 11 मार्च की रात को ही दोनों आरोपियों रिंकू और दिवाकर को लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन से गिरफ्तार कर लिया.

अगली सुबह तक राजेंद्र सिंह की टीम उन दोनों को ले कर दिल्ली आ गई. उन्हें भी अदालत में पेश कर 10 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. चारों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर जब पुलिस ने पूछताछ शुरू की तो पूरा सच सामने आ गया और पूरे हत्याकांड की सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं, जिसे सुन कर हर आदमी यही कह सकता है कि ऐसी बेटी किसी की न हो.

मूलरूप से दिल्ली के रहने वाले गुरमीत सिंह की शादी जालंधर की रहने वाली जागीर कौर से हुई थी. जागीर कौर और गुरमीत सिंह के 4 बच्चे हैं. गुरमीत सिंह पेशे से लकड़ी के ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ दीपक विहार, निलोठी एक्सटेंशन स्थित अपने मकान में रहते थे.

उन के 4 बच्चों में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गुरमीत का बड़ा बेटा अमरजीत सिंह अपने परिवार के साथ दुबई में रहता है और वहीं सेटल है. जबकि छोटे बेटे ने दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम विवाह कर लिया था, जिसे उन्होंने घर से निकाल दिया था, जिस के बाद उन के परिवार में बस 2 बेटियां ही रह गई थीं. बड़ी बेटी दविंदर कौर उर्फ सोनिया और छोटी हरजिंदर कौर.

सोनिया की शादी सन 2011 में फरीदाबाद में रहने वाले सुरेंद्र से हुई थी. लेकिन सुरेंद्र एक सीधासादा व्यापारी था, जबकि सोनिया पढ़ीलिखी और चंचल स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. दोनों के विचार नहीं मिले तो उन के बीच अनबन रहने लगी. यही कारण रहा कि एक साल पूरा होतेहोते सोनिया का सुरेंद्र से आपसी सहमति से तलाक हो गया और वह अपने मातापिता के घर आ गई.

पहली शादी भले ही असफल हो गई थी लेकिन मातापिता को बेटी का घर में बैठना गवारा नहीं था. लिहाजा उन्होंने उसी साल निहाल विहार में रहने वाले करुण शर्मा से उस की दूसरी शादी कर दी.

दरअसल करुण शर्मा जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, उस से सोनिया की जानपहचान खुद ही हुई थी. दोनों के बीच जल्द ही घनिष्ठता बढ़ गई और इसी के बाद सोनिया ने मातापिता को यह बात बताई. इस के बाद दोनों की शादी कर दी गई.

दूसरी शादी भी नहीं टिकी सोनिया की

शादी के 5 साल तक दोनों की गृहस्थी ठीकठाक चली. इस बीच सोनिया ने 2 बच्चों एक बेटी और एक बेटे को जन्म दिया. लेकिन 2 साल पहले यानी सन 2017 में उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया. यहां तक कि वह दोनों बच्चों को पति के पास छोड़ कर मायके में आ गई. इस का भी एक अहम कारण था.

दरअसल, जब सोनिया अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी तो उस दौरान उस की छोटी बहन हरजिंदर कौर उस की तीमारदारी करने के लिए उस के घर आई थी. हरजिंदर कौर सुंदर भी थी और जवान भी. लिहाजा पत्नी के बिस्तर पर होने के कारण पति करुण शर्मा का उस की तरफ झुकाव हो गया था.

2-3 महीने में हालात ऐसे हो गए कि हरजिंदर कौर तथा करुण शर्मा के बीच संबंध हो गए. जल्द ही यह राज सोनिया को पता चल गया. दूसरे बच्चे को जन्म देने के बाद जब सोनिया ने हरजिंदर को घर भेज दिया तो उस के बाद भी दोनों का मिलनाजुलना जारी रहा. कभी करुण उस से मिलने मातापिता के घर चला जाता तो कभी वह उसे बाहर बुला कर उस से मिलताजुलता.

अब करुण के लिए बीवी से ज्यादा साली प्यारी हो गई थी. एक साल होतेहोते दोनों के संबंध इतने प्रगाढ़ हो गए कि सोनिया का आए दिन इस बात को ले कर अपने पति और बहन के साथ झगड़ा होने लगा. आखिर एक दिन तंग आ कर सोनिया दोनों बच्चों को पति के पास छोड़ कर हमेशा के लिए घर छोड़ कर अपने मातापिता के घर आ गई.

सोनिया मातापिता के पास क्या आई कि हरजिंदर उस के बच्चों की देखभाल के नाम पर करुण शर्मा के घर में आ कर रहने लगी. कुछ समय बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. इस घटना के बाद से ही सोनिया का रिश्तेनातों से विश्वास उठने लगा. उस ने तय कर लिया कि अब वह जीवन में सिर्फ अपने लिए जिएगी.

मातापिता के घर आ कर सोनिया के सामने अपनी जिंदगी को पालने का संकट था. लिहाजा उस ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी. इस दौरान जौब पोर्टल से इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन निवासी प्रिंस दीक्षित का मोबाइल नंबर सोनिया को मिला. उस ने इवेंट मैनेजमेंट के लिए सोशल मीडिया पर महिला एग्जीक्यूटिव की जौब का विज्ञापन दिया हुआ था. उस नंबर पर बात कर के सोनिया प्रिंस से मिलने लखनऊ गई.

वहां प्रिंस को जब पता चला कि सोनिया पहले पति से तलाक के बाद दूसरे पति को बिना तलाक दिए छोड़ चुकी है तो उसे लगा कि खूबसूरत सोनिया को अगर वह अपने साथ रख ले तो उस का धंधा ही नहीं चलेगा, बल्कि औरत के बिना जिंदगी के अधूरेपन की कमी भी दूर हो जाएगी.

दरअसल प्रिंस ने भी अपनी पत्नी को छोड़ रखा था. लिहाजा प्रिंस ने उसे अपने यहां नौकरी ही नहीं दी बल्कि अपने घर में रहने के लिए एक कमरा भी दे दिया. दोनों ही अधूरेपन की जिंदगी जी रहे थे. फिर ऐसे हालात बने कि दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबंध भी बन गए. लेकिन कुछ समय बाद सोनिया दिल्ली आ गई क्योंकि उस ने कहा था कि वह दिल्ली में रह कर ही उस के इवेंट के लिए क्लाइंट देखा करेगी.

प्रेमी के लिए कातिल बनी रक्षा – भाग 2

6 दिसंबर को हिमांशु का विवाह ठीकठाक संपन्न हो गया और बहू घर आ गई. खुशी के माहौल में राजकुमार गुप्ता पूर्व की घटनाओं को भूल कर अपने कामकाज में लग गए.

रोज की तरह 4 जनवरी को भी राजकुमार गुप्ता अपनी दुकान पर चले गए. घर में पत्नी सुनीता और बहू रश्मि रह गईं. मकान के पीछे वाले एक कमरे में राजकुमार की विधवा भाभी जगतदुलारी अपने बेटे सत्यम के साथ रहती थीं. एक बजे के करीब भाई रामप्रसाद की बेटी रक्षा आ गई. आगे वाले कमरे में सुनीता आराम कर रही थीं, इसलिए उन से दुआसलाम कर के वह हिमांशु की पत्नी रश्मि के पास चली गई. वहां वह लैपटौप पर उस की शादी की वीडियो देखने लगी.

5 बजे के आसपास रक्षा अपने घर जाने के लिए जब बाहर वाले कमरे से हो कर गुजर रही थी तो अपनी चाची सुनीता को बेड पर घायल पड़ी देख चीख पड़ी. उसी की चीख से इस घटना के बारे में पता चला.

पुलिस को पक्का यकीन था कि इस वारदात में घर के किसी आदमी का हाथ है. ऐसे में पुलिस की निगाह बारबार रक्षा गुप्ता पर जा कर टिक रही थी. लेकिन बिना सुबूत के उस पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. इसलिए पुलिस सुबूत जुटाने लगी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसएसपी यशस्वी यादव ने इस मामले के खुलासे के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अनिल मिश्रा, सीओ रोहित मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी संजय मिश्रा और थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी आलोक कुमार के नेतृत्व में 4 टीमें बनाईं.

मोबाइल फोन अपराधियों तक पहुंचने में काफी मददगार साबित होता है, इसलिए पुलिस की इन टीमों ने मोबाइल फोन के जरिए हत्यारों तक पहुंचने की योजना बनाई. पुलिस ने मृतका सुनीता, रश्मि और रक्षा के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इन का अध्ययन करने के बाद पुलिस ने उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया, जिन पर उसे संदेह हुआ.

रक्षा के नंबर की काल डिटेल्स में पुलिस को एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर घटना के बाद तक उस का संपर्क बना रहा था. लेकिन उस के बाद वह मोबाइल नंबर बंद हो गया था. इस बात से पुलिस को रक्षा गुप्ता पर शक और बढ़ गया.

पुलिस ने इसी शक के आधार  पर घटना के समय से 2 घंटे पहले और 2 घंटे बाद का पशुपतिनगर क्षेत्र के सभी मोबाइल टावरों का पूरा विवरण निकलवाया. इस का फिल्टरेशन किया गया तो रक्षा की उस नंबर से घटना के पहले और बाद में बातचीत होने की पुष्टि तो हुई ही, उस नंबर की उपस्थिति भी पशुपतिनगर की पाई गई.

जांच में यह भी पता चला कि दोनों ने एकदूसरे को एसएमएस भी किए थे. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर सत्येंद्र यादव का था, जो रक्षा के ही मोहल्ले का रहने वाला था.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के पहले और बाद में रक्षा और सत्येंद्र ने एकदूसरे को मैसेज किए थे तो पुलिस ने रक्षा के मोबाइल का इनबौक्स देखा. लेकिन उस में कोई मैसेज नहीं था. इस का मतलब उस ने मैसेज डिलीट कर दिए थे.

पुलिस ने बहाने से सत्येंद्र का मोबाइल फोन ले कर उसे भी चेक किया. उस ने भी सारे मैसेज डिलीट कर दिए थे. शायद उन्हें यह पता नहीं था कि पुलिस चाहे तो उन मैसेजों को रिकवर करा सकती है. पुलिस को लगा कि अगर मैसेज रिकवर हो जाएं तो इस लूट और हत्या का खुलासा हो सकता है.

और सचमुच ऐसा ही हुआ. मैसेज रिकवर होते ही राजकुमार के घर हुई लूट और हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि रक्षा ने ही मैसेज द्वारा चाचा के घर की जानकारी दे कर अपने प्रेमी सत्येंद्र यादव से यह लूटपाट कराई थी. पुलिस ने जो मैसेज रिकवर कराए, वे इस प्रकार थे :

घटना से थोड़ी देर पहले रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज किया था, ‘चाची घर पर हैं, अभी मत आना.’

जवाब में सत्येंद्र ने मैसेज किया था, ‘चाची हैं तो क्या हुआ, मैं आ रहा हूं.’

इस के बाद सत्येंद्र ने अगला मैसेज भेज कर रक्षा से पूछा, ‘मैं तुम्हारी चाची के घर के पास पहुंच गया हूं.    गेट खुला है या नहीं?’

रक्षा ने जवाब दिया था, ‘गेट बंद है, लेकिन अंदर से लौक नहीं है.’

‘मैं घर के अंदर आ गया हूं. तुम अपनी भाभी को संभालना.’ सत्येंद्र ने मैसेज भेजा.

‘ठीक है, गुडलक. ओके.’ रक्षा ने जवाब दिया.

इस के बाद सत्येंद्र ने 5 बजे के करीब रक्षा को मैसेज भेजा, ‘काम हो गया है, मैं जा रहा हूं.’

रक्षा ने जवाब दिया, ‘ओके.’

पुलिस जांच शुरू हुई तो रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज भेजा, ‘कहीं हम फंस न जाएं?’

‘सोने वाला जाग कर गवाही नहीं देगा, परेशान मत हो.’ सत्येंद्र ने उसे तसल्ली दी थी.

रक्षा का आखिरी मैसेज था, ‘नौबस्ता पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की टीम भी आई थी. एक मोटा दरोगा मुझे घूर रहा था. लगता है, उसे कुछ शक हो गया है.’

सुरक्षा की दृष्टि से सत्येंद्र और रक्षा ने फोन से बातचीत बंद कर दी थी. दोनों एकदूसरे को केवल एसएमएस कर रहे थे. सत्येंद्र ने रक्षा के आखिरी मैसेज के जवाब में कहा था, ‘तुम मोबाइल के इनबौक्स से सारे मैसेज डिलीट कर दो. उस के बाद कुछ नहीं होगा. मैं भी पुलिस के बारे में पता करता रहूंगा.’

इस के बाद पुलिस के लिए संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. उसे अकाट्य सुबूत मिल गए थे. पुलिस 6 जनवरी, 2014 को रक्षा को उस के घर से हिरासत में ले कर थाना नौबस्ता ले आई. पुलिस ने उस से पूछताछ शुरू की तो काफी देर तक वह इस मामले में अपना और सत्येंद्र का हाथ होने से इनकार करती रही. लेकिन जब पुलिस ने उस के द्वारा डिलीट किए गए मैसेजों को लैपटौप की स्क्रीन पर दिखाना शुरू किया तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं.

अब रक्षा के पास सच उगलवाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उस ने अपनी चाची सुनीता की हत्या और लूट में सहयोग का अपना जुर्म स्वीकार करते हुए पुलिस को सत्येंद्र से प्यार होने से ले कर इस अपराध में शामिल होने तक की पूरी कहानी सुना दी.

रक्षा के पिता रामप्रसाद की छोटी सी परचून की दुकान थी. उस दुकान से सिर्फ गुजरबसर हो पाती थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इस के बावजूद उस के पिताजी उसे पढ़ाना चाहते थे. वह महिला महाविद्यालय किदवईनगर से बीए कर रही थी. वह पढ़ने में ठीक थी. 2 साल पहले कोयलानगर की रहने वाली एक सहेली के यहां उस की मुलाकात सत्येंद्र यादव से हुई तो वह उस के प्रेम में पड़ गई.

सत्येंद्र यादव भी कोयलानगर के ही रहने वाले अमर सिंह का बेटा था. वह रक्षा की सहेली के यहां अकसर आताजाता रहता था. इसी वजह से रक्षा से उस की मुलाकात होने लगी थी. इन्हीं मुलाकातों में दोनों में आंखमिचौली शुरू हुई तो रक्षा बहकने लगी.

आगे चल कर रक्षा और सत्येंद्र के बीच ऐसा आकर्षण बढ़ा कि बिना मिले उन का मन ही नहीं लगता था. दोनों मोबाइल पर भी लंबीलंबी बातें करते थे. इस तरह जब दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा तो इस के चर्चे मोहल्ले में होने लगे.

बरसों की साध : क्या प्रशांत अपना वादा निभा पाया? – भाग 1

प्रशांत को जब अपने मित्र आशीष की बेटी सुधा के साथ हुए हादसे के बारे में पता चला तो एकाएक  उसे अपनी भाभी की याद आ गई. जिस तरह शहर में ठीकठाक नौकरी करने वाले मित्र के दामाद ने सुधा को छोड़ दिया था, उसी तरह डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद प्रशांत के ताऊ के बेटे ईश्वर ने भी अपनी पत्नी को छोड़ दिया था. अंतर सिर्फ इतना था कि ईश्वर ने विदाई के तुरंत बाद पत्नी को छोड़ा था, जबकि सुधा को एक बच्चा होने के बाद छोड़ा गया था.

आशीष के दामाद ने उन की भोलीभाली बेटी सुधा को बहलाफुसला कर उस से तलाक के कागजों पर दस्तखत भी करा लिए थे. सुधा के साथ जो हुआ था, वह दुखी करने और चिंता में डालने वाला था, लेकिन इस में राहत देने वाली बात यह थी कि सुधा की सास ने उस का पक्ष ले कर अदालत में बेटे के खिलाफ गुजारे भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.

अदालत में तारीख पर तारीख पड़ रही थी. हर तारीख पर उस का बेटा आता, लेकिन वह मां से मुंह छिपाता फिरता. कोर्टरूम में वह अपने वकील के पीछे खड़ा होता था.

लगातार तारीखें पड़ते रहने से न्याय मिलने में देर हो रही थी. एक तारीख पर पुकार होने पर सुधा की सास सीधे कानून के कठघरे में जा कर खड़ी हो गई. दोनों ओर के वकील कुछ कहते सुनते उस के पहले ही उस ने कहा, ‘‘हुजूर, आदेश दें, मैं कुछ कहूं, इस मामले में मैं कुछ कहना चाहती हूं.’’

अचानक घटी इस घटना से न्याय की कुरसी पर बैठे न्यायाधीश ने कठघरे में खड़ी औरत को चश्मे से ऊपर से ताकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन?’’

वकील की आड़ में मुंह छिपाए खडे़ बेटे की ओर इशारा कर के सुधा की सास ने कहा, ‘‘हुजूर मैं इस कुपुत्र की मां हूं.’’

‘‘ठीक है, समय आने पर आप को अपनी बात कहने का मौका दिया जाएगा. तब आप को जो कहना हो, कहिएगा.’’ जज ने कहा.

‘‘हुजूर, मुझे जो कहना है, वह मैं आज ही कहूंगी, आप की अदालत में यह क्या हो रहा है.’’ बहू की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप इस की ओर देखिए, डेढ़ साल हो गए. इस गरीब बेसहारा औरत को आप की ड्योढ़ी के धक्के खाते हुए. यह अपने मासूम बच्चे को ले कर आप की ड्योढ़ी पर न्याय की आस लिए आती है और निराश हो कर लौट जाती है. दूसरों की छोडि़ए साहब, आप तो न्याय की कुरसी पर बैठे हैं, आप को भी इस निरीह औरत पर दया नहीं आती.’’

न्याय देने वाले न्यायाधीश, अदालत में मौजूद कर्मचारी, वकील और वहां खडे़ अन्य लोग अवाक सुधा की सास का मुंह ताकते रह गए. लेकिन सुधा की सास को जो कहना था. उस ने कह दिया था.

उस ने आगे कहा, ‘‘हुजूर, इस कुपुत्र ने मेरे खून का अपमान किया है. इस के इस कृत्य से मैं बहुत शर्मिंदा हूं. हुजूर, अगर मैं ने कुछ गलत कह दिया हो तो गंवार समझ कर माफ कर दीजिएगा. मूर्ख औरत हूं, पर इतना निवेदन जरूर करूंगी कि इस गरीब औरत पर दया कीजिए और जल्दी से इसे न्याय दे दीजिए, वरना कानून और न्याय से मेरा भरोसा उठ जाएगा.’’

सुधा की सास को गौर से ताकते हुए जज साहब ने कहा, ‘‘आप तो इस लड़के की मां हैं, फिर भी बेटे का पक्ष लेने के बजाए बहू का पक्ष ले रही हैं. आप क्या चाहती हैं इसे गुजारे के लिए कितनी रकम देना उचित होगा?’’

‘‘इस लड़की की उम्र मात्र 24 साल है. इस का बेटा ठीक से पढ़लिख कर जब तक नौकरी करने लायक न हो जाए, तब तक के लिए इस के खर्चे की व्यवस्था करा दीजिए.’’

जज साहब कोई निर्णय लेते. लड़के के वकील ने एक बार फिर तारीख लेने की कोशिश की. पर जज ने उसी दिन सुनवाई पूरी कर फैसले की तारीख दे दी. कोर्ट का फैसला आता, उस के पहले ही आशीष सुधा की सास को समझाबुझा कर विदा कराने के लिए उस की ससुराल जा पहुंचा. मदद के लिए वह अपने मित्र प्रशांत को भी साथ ले गया था कि शायद उसी के कहने से सुधा की सास मान जाए.

उन के घर पहुंचने पर सुधा की सास ने उन का हालचाल पूछ कर कहा, ‘‘आप लोग किसलिए आए हैं, मुझे यह पूछने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मुझे पता है कि आप लोग सुधा को ले जाने आए हैं. मुझे इस बात का अफसोस है कि मेरे समधी और समधिन को मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. शायद इसीलिए बिटिया को ले जाने के लिए दोनों इतना परेशान हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं हैं समधिन जी. आप के उपकार के बोझ से मैं और ज्यादा नहीं दबना चाहता. आप ने जो भलमनसाहत दिखाई है वह एक मिसाल है. इस के लिए मैं आप का एहसान कभी नहीं भूल पाऊंगा.’’ आशीष ने कहा.

सुधा की सास कुछ कहती. उस के पहले ही प्रशांत ने कहा, ‘‘दरअसल यह नहीं चाहते कि इन की वजह से मांबेटे में दुश्मनी हो. इन की बेटी ने तलाक के कागजों पर दस्तखत कर दिए हैं. उस हिसाब से देखा जाए तो अब उसे यहां रहने का कोई हक नहीं है. सुधा इन की एकलौती बेटी है.’’

‘‘मैं सब समझती हूं. मेरे पास जो जमीन है उस में से आधी जमीन मैं सुधा के नाम कर दूंगी. जब तक मैं जिंदा हूं, अपने उस नालायक आवारा बेटे को इस घर में कदम नहीं रखने दूंगी. सुधा अगर आप लोगों के साथ जाना चाहती है तो मैं मना भी नहीं करूंगी.’’ इस के बाद उस ने सुधा की ओर मुंह कर के कहा, ‘‘बताओ सुधा, तुम क्या चाहती हो.’’

‘‘चाचाजी, आप ही बताइए, मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली अपनी इन सास को छोड़ कर मैं आप लोगों के साथ कैसे चल सकती हूं.’’ सुधा ने कहा.

सुधा के इस जवाब से प्रशांत और आशीष असमंजस में पड़ गए. प्रशांत ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली सास को छोड़ कर अपने साथ चलने के लिए कैसे कह सकता हूं.’’

‘‘तो फिर आप मेरी मम्मी को समझा दीजिएगा.’’ आंसू पोंछते हुए सुधा ने कहा.

‘‘ऐसी बात है तो अब हम चलेंगे. जब कभी हमारी जरूरत पड़े, आप हमें याद कर लीजिएगा. हम हाजिर हो जाएंगे.’’ कह कर प्रशांत उठने लगे तो सुधा की सास ने कहा, ‘‘हम आप को भूले ही कब थे, जो याद करेंगे. कितने दिनों बाद तो आप मिले हैं. अब ऐसे ही कैसे चले जाएंगे. मैं तो कब से आप की राह देख रही थी कि आप मिले तो सामने बैठा कर खिलाऊं. लेकिन मौका ही नहीं मिला. आज मौका मिला है. तो उसे कैसे हाथ से जाने दूंगी.’’

‘‘आप कह क्या रही हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है?’’ हैरानी से प्रशांत ने कहा.

‘‘भई, आप साहब बन गए, आंखों पर चश्मा लग गया. लेकिन चश्मे के पार चेहरा नहीं पढ़ पाए. जरा गौर से मेरी ओर देखो, कुछ पहचान में आ रहा है?’’

प्रशांत के असमंजस को परख कर सुधा की सास ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप तो ज्ञानू बनना चाहते थे. मुझ से अपने बडे़ होने तक राह देखने को भी कहा था. लेकिन ऐसा भुलाया कि कभी याद ही नहीं आई.’’

अचानक प्रशांत की आंखों के सामने 35-36 साल पहले की रूपमती भाभी का चेहरा नाचने लगा. उस के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘भाभी आप…?’’

‘‘आखिर पहचान ही लिया अपनी भाभी को.’’

गहरे विस्मय से प्रशांत अपनी रूपमती भाभी को ताकता रहा. सुधा का रक्षाकवच बनने की उन की हिम्मत अब प्रशांत की समझ में आ गई थी. उन का मन उस नारी का चरणरज लेने को हुआ. उन की आंखें भर आईं.

रूपमती यानी सुधा की सास ने कहा, ‘‘देवरजी, तुम कितने दिनों बाद मिले. तुम्हारा नाम तो सुनती रही, पर वह तुम्हीं हो, यह विश्वास नहीं कर पाई आज आंखों से देखा, तो विश्वास हुआ. प्यासी, आतुर नजरों से तुम्हारी राह देखती रही. तुम्हारे छोड़ कर जाने के बरसों बाद यह घर मिला. जीवन में शायद पति का सुख नहीं लिखा था. इसलिए 2 बेटे पैदा होने के बाद आठवें साल वह हमें छोड़ कर चले गए.

‘‘बेटों को पालपोस कर बड़ा किया. शादीब्याह किया. इस घर को घर बनाया, लेकिन छोटा बेटा कुपुत्र निकला. शायद उसे पालते समय संस्कार देने में कमी रह गई. भगवान से यही विनती है कि मेरे ऊपर जो बीती, वह किसी और पर न बीते. इसीलिए सुधा को ले कर परेशान हूं.’’

प्रशांत अपलक उम्र के ढलान पर पहुंच चुकी रूपमती को ताकता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. रूपमती भाभी के अतीत की पूरी कहानी उस की आंखों के सामने नाचने लगी.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 2

रिमांड के दौरान पूछताछ में गिरीश ने जो बताया, वह एक शराबी पति की हैवानियत की कहानी थी. गिरीश ने बड़ी ही होशियारी से अमीर घर की मधुमती को धोखे में रख विवाह किया.

इस के बाद वह उस की दौलत को शराब और अय्याशी में लुटाने लगा. जब उस ने मना किया तो उस के साथ मारपीट करने लगा. जब वह उस से संबंध तोड़ कर फ्रांस में रह रही अपनी नानी के यहां जाने की तैयारी करने लगी तो उस ने उस की हत्या कर दी. वह उस के शव को समुद्र में फेंक कर मछलियों को खिला देना चाहता था. लेकिन उस के पहले ही वह पकड़ा गया.

श्रीरंग पोटे सीधेसादे, उच्च विचार के महाराष्ट्री ब्राह्मण थे. वह महानगर मुंबई के उपनगर माहीम में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा गिरीश था. एकलौता होने की वजह से गिरीश मातापिता का कुछ ज्यादा ही लाडला था. शायद यही वजह थी कि वह जिद्दी और उद्दंड हो गया.

श्रीरंग पोटे ने गिरीश को बुढ़ापे का सहारा मान कर उस की हर इच्छा पूरी की थी. उसे किसी भी चीज का अभाव नहीं होने दिया था. मगर जैसे जैसे गिरीश बड़ा होता गया, उन की आशाएं धूमिल होती गईं, क्योंकि गिरीश वैसा नहीं बन सका, जैसा उन्हें और उन की पत्नी को उम्मीद थी. उस की आदतें बिगड़ती चली गईं और वह अक्खड़ और जिद्दी बन गया. श्रीरंग पोटे के काफी प्रयास के बाद भी वह किसी काबिल नहीं बन सका.

गिरीश दिन भर अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमताफिरता और राह चलती लड़कियों को छेड़ता. खर्च के लिए वह मां से लड़झगड़ कर पैसे ले ही लेता था. आवारा दोस्तों के साथ रहते हुए वह शराब भी पीने लगा था. बेटे की इन हरकतों से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी परेशान रहती थीं. लेकिन अब उन के वश में कुछ भी नहीं था क्योंकि वे बेटे को सुधारने की हर कोशिश कर के हार चुके थे.

श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी बेटे को सुधारने में पूरी तरह नाकाम रहे तो नातेरिश्तेदारों ने उन्हें सलाह दी कि वे उस की शादी कर दें. उन का मानना था कि जब जिम्मेदारियों का बोझ उस पर पड़ेगा तो वह अपनेआप सुधर जाएगा. यही पुराने लोगों का विचार रहा है, जो एक हद तक सही भी है.

शादी के बाद बेटा सुधर जाएगा, इस की उम्मीद श्रीरंग पोटे को कम ही थी. फिर भी बेटे के सुधरने की उम्मीद में वह उस की शादी करने के लिए तैयार हो गए.

श्रीरंग पोटे ने बेटे की शादी के लिए बात करनी शुरू की तो रिश्ते भी आने लगे, क्योंकि गिरीश उन की एकलौती औलाद थी. आजकल लोग वैसे भी छोटा परिवार ढूंढ़ते हैं. मांबाप यही चाहते हैं कि उन की बेटी को ज्यादा काम न करना पड़े.

यही सोच कर गिरीश के लिए रिश्ते तो बहुत आए, मगर जब उन्हें उस के बारे में पता चलता तो वे पीछे हट जाते. इस बात से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी को तकलीफ तो बहुत होती, लेकिन वे कर ही क्या सकते थे. जब उन्हीं का सिक्का खोटा था तो वे दूसरों को क्या दोष देते.

शायद वे भाग्यशाली लड़कियां थीं, जिन की शादी गिरीश जैसे बिगड़े हुए युवक से होतेहोते रह गई. लेकिन मधुमती उन में नहीं थी. उस का भाग्य खराब था, जिस की वजह से उस की शादी गिरीश से हो गई.

सुंदर सुशील हंसमुख मधुमती भी अपने मातापिता की एकलौती संतान थी. जिस लाड़प्यार से गिरीश की परवरिश हुई थी, उस से कहीं अधिक लाड़प्यार मधुमती को मिला था. वह छोटी थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. इस के बाद बाप का भी प्यार उसे उस की मां शकुंतला ने दिया था. बेटी को उन्होंने किसी चीज का आभाव नहीं होने दिया था. उस की हर ख्वाहिश उन्होंने पूरी की थी. वह खुद नौकरी करती थीं, इसलिए बेटी के पालनपोषण में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई थी.

जब पति की मौत हुई थी, शकुंतला जवान थीं. उन से शादी के लिए तमाम रिश्ते आए थे, लेकिन उन्होने शादी नहीं की थी. उन्होंने अपना जीवन बेटी को न्यौछावर कर दिया था.

मधुमती मां शकुंतला से कहीं ज्यादा अपनी नानी अहिल्या की लाडली थी. वह रहती तो फ्रांस में थीं, लेकिन उस का हमेशा खयाल रखती थीं. शकुंतला का जो पैसा खर्च से बचता था. वह उसे मधुमती के नाम से जमा करती थीं.

इस के अलावा एक हजार डालर हर महीने मधुमती की नानी उस के एकाउंट में जमा करती थीं. इस तरह मधुमती के नाम करोड़ों रुपए जमा हो गए थे. इस के अलावा मधुमती अपनी मां शकुंतला के साथ जिस फ्लैट में रहती थी, वह भी मधुमती के ही नाम था.

करोड़पति मधुमति के बारे में पता चलते ही श्रीरंग पोटे के मुंह में पानी आ गया. जब इस रिश्ते के बारे में गिरीश को बताया गया तो उस के भी मन में लड्डू फूटने लगे. उसे लगा कि अगर उस की शादी मधुमती से हो गई तो वह भी करोड़पति हो जाएगा. इस के बाद उस की जिंदगी आराम से कटेगी. इसलिए वह इस रिश्ते को किसी भी सूरत में हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था.

मधुमती से शादी के लिए गिरीश एकदम से संन्यासी बन गया. सारी बुराइयों को छोड़ कर वह आटोरिक्शा चलाने लगा. वह दिनभर  में जो कमाता, ईमानदारी से ला कर पिता श्रीरंग पोटे के हाथों में रख देता. वह जब भी मधुमती और उस की मां से मिलता, निहायत ही सादगी से मिलता.

गिरीश में आए इस बदलाव से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी बहुत खुश थे. उन्हें लग रहा था कि उन के घर बहू नहीं, देवी आ रही है, जिस के रिश्ते की बात चलते ही उन का बेटा सीधे रास्ते पर आ गया. उन्हें लगा कि शादी के बाद बहू घर आ जाएगी तो वह पूरी तरह से सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मधुमती और गिरीश की शादी हो गई. विवाह के बाद कुछ दिनों तक तो गिरीश ठीक रहा. लेकिन कुछ दिनों बाद वह अपने पुराने रास्ते पर फिर चल पड़ा. बहलाफुसला कर मधुमती से पैसे लेता और शराब तथा शबाब पर लुटा देता.

वह लगभग रोज ही बीयरबारों में जाने लगा. पति की हरकतों से मधुमती रो पड़ती, क्योंकि मां और नानी ने मेहनत की जो कमाई उस के भविष्य के लिए उस के नाम जमा की थी, गिरीश उसे शराब, शबाब और अय्याशी पर उड़ा रहा था.

जब कभी मधुमती और मांबाप गिरीश को समझाने और कामकाज के बारे में कहते, वह बड़े शान से कहता, ‘‘जिस की पत्नी करोड़पति हो, उसे कामधाम करने की क्या जरूरत है. आखिर ये करोड़ों रुपए किस दिन काम आएंगे.’’

समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. मधुमती एक बेटे की मां बन गई. बेटे के जन्म से मधुमती के मन में उम्मीद जागी कि बच्चे का मुंह देख कर शायद गिरीश सुधर जाए. मगर उस का भी गिरीश पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उसे अपने सुख के आगे किसी की कोई चिंता नहीं थी.