Haryana Crime : धर्म परिवर्तन नहीं किया तो प्रेमिका को मार दी गोली

Haryana Crime : निकिता और तौसीफ के मामले में प्यार या दोस्ती जैसा कुछ नहीं था. फिर भी सवाल यह उठता है कि ज्यादातर मुसलिम युवक शादी के मामले को ले कर हिंदू युवतियों से धर्म परिवर्तन की बात क्यों करते हैं? ऐसी 5 कहानियां ‘मनोहर कहानियां’ के पिछले 2 अंकों में छपी हैं. क्या ये लव जिहाद नहीं है? अगर ऐसा नहीं है तो क्यों…

बीते 26 अक्तूबर की बात है. शाम के करीब 4 बजने वाले थे. निकिता तोमर अपनी सहेली के साथ परीक्षा  दे कर बल्लभगढ़ के अग्रवाल कालेज से बाहर निकल रही थी. उन का पेपर पौने 4 बजे खत्म हुआ था. निकिता बीकौम आनर्स फाइनल ईयर की छात्रा थी. उस का पेपर अच्छा हुआ था. फिर भी वह सहेली से एकदो सवालों के आंसर को ले कर संतुष्ट हो जाना चाहती थी. दोनों सहेलियां पेपर में आए सवालों पर बात करते हुए कालेज के बाहर सड़क पर निकल आईं. सड़क पर कोई ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी. कालेज से परीक्षा दे कर बाहर निकली छात्राओं के अलावा कुछ वाहन आजा रहे थे. कुछ छात्राओं को उन के घर वाले लेने आए थे. कुछ अपने खुद के वाहन से आई थीं, तो कुछ आटोरिक्शा वगैरह से जा रही थीं.

निकिता को कालेज से लेने के लिए उस का भाई नवीन आने वाला था. इसलिए वह अपनी सहेली के साथ सड़क पर एक तरफ खड़ी हो कर भाई का इंतजार करने लगी. उन्हें खड़े हुए एकदो मिनट ही हुए थे कि वहां एक कार आ कर रुकी. कार में 2 युवक थे. एक गाड़ी चला रहा था और दूसरा उस के पास वाली सीट पर बैठा था. कार से एक युवक तेजी से निकला और निकिता की तरफ आया. निकिता उस युवक को देख कर घबरा गई. वह उसे पहले से जानती थी, लेकिन उस से नफरत करती थी. युवक को अपनी तरफ आता देख कर उस ने तेजी से भागने की कोशिश की. लेकिन युवक ने उसे पकड़ लिया और खींच कर कार की तरफ ले जाने लगा. युवक की मदद के लिए कार चला रहा उस का साथी भी आ गया था.

निकिता भले ही घबराई हुई थी, लेकिन उस ने साहस से दोनों युवकों का मुकाबला किया और खुद को उन के चंगुल से छुड़ा लिया. निकिता की सहेली और कुछ दूसरी छात्राओं ने भी निकिता को युवकों से बचाने में मदद की. निकिता के अपहरण में कामयाब नहीं होने पर उस परिचित युवक ने अपनी पैंट की जेब से देसी पिस्तौल निकाली और उसे गोली मार दी. गोली उस के बाएं कंधे से छाती को चीरती हुई बाहर निकल गई. गोली लगते ही वह जमीन पर गिर गई. जमीन पर खून बहने लगा. निकिता के गिरते ही दोनों युवक उसी कार में बैठ कर भाग गए. निकिता को गोली मारने के दौरान कालेज से परीक्षा दे कर निकल रही छात्राएं डर के मारे इधरउधर छिप गईं.

मामला सीधासादा नहीं था यह घटना हरियाणा के फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ शहर की है. शहर में दिनदहाड़े कालेज के बाहर छात्रा को गोली मारने की घटना से सनसनी फैल गई. निकिता की सहेली की गुहार पर कुछ लोग लहूलुहान हालत में पड़ी निकिता को उठा कर अस्पताल ले गए. डाक्टरों ने उसे देख कर मृत घोषित कर दिया. पता चलने पर निकिता के मातापिता और भाई भी अस्पताल पहुंच गए. उस की मौत का पता चलने पर उन की आंखों से आंसू बह निकले. वे लोगों से पूछते ही रह गए कि कैसे हुआ.. क्या हुआ… निकिता के साथ की छात्राओं ने उन्हें सारी बात बताई, तो कोहराम मच गया.

सूचना मिलने पर पुलिस भी पहुंच गई. मामला संगीन था. पुलिस के उच्चाधिकारी भी पहले मौके पर और फिर अस्पताल पहुंचे. उन्होंने निकिता के घर वालों को ढांढस बंधाया. फिर उन से हत्यारों के बारे में पूछा. अधिकारियों के कहने पर निकिता के भाई ने तौसीफ और एक अन्य युवक के खिलाफ पुलिस को लिखित शिकायत दी. शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया. निकिता का शव पोस्टमार्टम के लिए बीके अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस ने मौके से कुछ साक्ष्य जुटाए. जिन लोगों ने निकिता की हत्या होते देखी थी, उन से पूछताछ की. क्राइम ब्रांच ने भी जांचपड़ताल शुरू कर दी. घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई.

फुटेज में पुलिस को कार का नंबर मिल गया. इस के अलावा निकिता के अपहरण का प्रयास और इस में नाकाम रहने पर उसे गोली मारने के सारा घटनाक्रम भी कैमरे में कैद हो गया था. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हो गई थी, लेकिन पुलिस को निकिता की हत्या के आरोपी तौसीफ और उस के साथी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चला था. इसलिए अधिकारियों ने निकिता के पिता मूलचंद तोमर को विश्वास में ले कर निकिता की हत्या के कारणों के बारे में पूछा. निकिता के घरवालों ने रोतेसुबकते हुए पुलिस को बताया कि सोहना इलाके के रोजका मेव का रहने वाला तौसीफ उसे स्कूल के समय से ही परेशान करता था. तौसीफ ने 2018 में भी उस का अपहरण किया था. उस समय बल्लभगढ़ शहर थाना पुलिस में तौसीफ के खिलाफ अपहरण का मामला भी दर्ज कराया गया था.

हालांकि निकिता को पुलिस ने 2 घंटे बाद ही बरामद कर लिया था. बाद में बेटी की बदनामी के डर से उन्होंने राजीनामा कर लिया था. इस के बाद भी वह निकिता से दोस्ती के साथ धर्म बदलने का दबाव बना रहा था. रसूखदार परिवार का था तौसीफ पुलिस को तौसीफ के परिवार के बारे में पता चला कि वह हरियाणा के रसूखदार राजनीतिक परिवार का लड़का है. उस के दादा कबीर अहमद पूर्व विधायक हैं. चचेरा भाई आफताब आलम इस समय हरियाणा के मेवात जिले की नूंह सीट से कांग्रेस विधायक है.  तौसीफ के चाचा और आफताब के पिता खुर्शीद अहमद हरियाणा की हुड्डा सरकार में मंत्री रह चुके हैं. तौसीफ के चाचा जावेद अहमद सोहना विधानसभा सीट से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं.

आरोपी भले ही राजनीतिक रसूख वाला था, लेकिन कानून की नजर में अपराध तो अपराध ही होता है. फिर उस ने तो जघन्य अपराध किया था, वह भी दिनदहाड़े खुलेआम. इसी चुनौती के बीच पुलिस ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.  फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह के निर्देश पर आरोपियों की तलाश में 10 टीमें जुट गईं. तौसीफ के मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया गया. उस ने मोबाइल बंद नहीं किया था. वह लगातार अपने आकाओं से बात कर रहा था. इसलिए पुलिस को उस की लोकेशन मिलती रही. पुलिस ने बल्लभगढ़ से ले कर फरीदाबाद और पलवल से ले कर नूंह तक भागदौड़ कर तौसीफ को रात को ही नूंह से गिरफ्तार कर लिया. जाकिर का बेटा तौसीफ आजकल गुड़गांव जिले के सोहना कस्बे के कबीर नगर में रहता था.

तौसीफ से पूछताछ में पता चला कि वारदात में उस के साथ नूंह के रेवासन गांव का रहने वाला रेहान भी था. पुलिस ने रेहान को भी रात को ही धर दबोचा. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हापुड़ के गांव रघुनाथपुर के रहने वाले मूलचंद तोमर कोई 25 साल पहले बल्लभगढ़ शहर आ कर बस गए थे. अब वे सेक्टर 23 के पास एक सोसायटी में परिवार के साथ रह रहे थे. परिवार में पत्नी विजय देवी, बड़ा बेटा नवीन और छोटी बेटी निकिता थी. मूलचंद बल्लभगढ़ में ही एक कंपनी में नौकरी करते हैं. घर में सुखसुविधाओं के साथ हर तरह की मौज थी. कहीं कोई परेशानी नहीं. बेटा नवीन बीटेक की पढ़ाई करने के बाद सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा था. अपना नाम राहुल राजपूत बताया निकिता ने 5वीं से 12वीं कक्षा तक की पड़ाई बल्लभगढ़ में सोहना रोड पर स्थित रौयल इंटरनेशनल स्कूल से की थी. तौसीफ भी उसी स्कूल में पढ़ता था. वह यहां हौस्टल में रहता था और निकिता से एक क्लास सीनियर था.

निकिता उसे जानती नहीं थी. एक बार उस ने खुद ही अपना परिचय राहुल राजपूत के रूप में दिया था. तब निकिता उसे राहुल के नाम से जानने लगी थी, लेकिन उस की राहुल में कोई दिलचस्पी नहीं थी. बाद में निकिता को पता चल गया कि राहुल का असली नाम तौसीफ है. इस के बाद वह उस से खफा हो गई. सन 2017 में निकिता ने 12वीं की परीक्षा 95 प्रतिशत अंकों से पास की. इस के बाद उस ने बीकौम करने के लिए शहर के अग्रवाल कालेज में प्रवेश ले लिया. तब तक निकिता की उम्र 17-18 साल हो गई थी. तौसीफ उस से 1-2 साल बड़ा था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह फिजियोथैरेपी का कोर्स करने लगा था. अब वह अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. तौसीफ के मन में स्कूल के समय से ही निकिता के प्रति आकर्षण था. वह उस से दोस्ती करना चाहता था. लेकिन निकिता उस के पहले बोले गए झूठ से खफा थी.

वैसे भी निकिता इस तरह की लड़की नहीं थी. दोस्ती व प्यार के चक्करों से वह कोसों दूर थी और पढ़लिख कर अफसर बनना चाहती थी. सन 2018 में निकिता कालेज में प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी. उस साल 3 अगस्त को तौसीफ निकिता की 3-4 सहेलियों को कार में बैठा कर बल्लभगढ़ छोड़ने जा रहा था. उस ने निकिता से भी कार में साथ चलने को कहा. लेकिन निकिता ने साफ मना कर दिया, तो उस ने उसे जबरन कार में बैठा लिया. निकिता ने इसलिए ज्यादा विरोध नहीं किया क्योंकि उस की सहेलियां भी साथ थीं. कुछ दूर आगे जा कर तौसीफ ने बहाना बना कर सहेलियों को कार से उतार दिया और निकिता को कार में अगवा कर ले गया. निकिता के घरवालों को पता चला, तो उन्होंने बल्लभगढ़ सिटी थाने में तौसीफ के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई. उस समय पुलिस ने भागदौड़ कर के 2 घंटे में ही निकिता को बरामद कर लिया था.

उस समय अपहरण के आरोपी तौसीफ के घर वालों ने तोमर परिवार पर दबाव बनाया और वादा किया कि भविष्य में वह निकिता को कभी परेशान नहीं करेगा. निकिता के पिता मूलचंद तोमर ने आरोपी के घरवालों के दबाव और सामाजिक बदनामी के डर से उन से समझौता कर लिया था. बाद में पुलिस ने निकिता अपहरण केस की फाइल बंद कर दी थी. तौसीफ का कुछ नहीं बिगड़ा, तो उस के हौसले बढ़ गए. वह निकिता से दोस्ती करना चाहता था. साथ ही उस का धर्म परिवर्तन करा कर उस से शादी की इच्छा भी रखता था. इस के लिए वह उस पर बारबार दबाव डाल रहा था. जबकि निकिता उसे पहले ही दुत्कार चुकी थी.

एकतरफा प्यार में मात खाए तौसीफ ने निकिता के अपहरण की योजना बनाई. इसी योजना के तहत उस ने अपने रिश्तेदार की मार्फत नूंह इलाके के रहने वाले अजरुद्दीन नामक युवक से देसी पिस्तौल हासिल की. उस ने निकिता के बारे में सारी सूचनाएं जुटाई कि उस की परीक्षाएं कबकब हैं. वह कालेज कब आतीजाती है. उसे पता चला कि 26 अक्तूबर को निकिता की परीक्षा है. वह दोपहर करीब पौने 4 बजे परीक्षा दे कर कालेज से निकलेगी. इसी हिसाब से वह अपने साथी रेहान के साथ कार से तय समय पर अग्रवाल कालेज के बाहर पहुंच गया. कार रेहान चला रहा था और तौसीफ उस के पास आगे की सीट पर बैठा था.

निकिता पेपर दे कर कालेज से अपनी सहेली के साथ बाहर निकली, तभी तौसीफ ने कार उस के पास ले जा कर रुकवाई और खुद कार से उतर कर निकिता को कार की तरफ खींच कर अपहरण कर ले जाने का प्रयास किया, लेकिन निकिता साहस दिखाते हुए उस के चंगुल से निकल गई. इस से तौसीफ बौखला गया. वह हर कीमत पर निकिता को हासिल करना चाहता था. अपने मंसूबों पर पानी फिरता देख कर उस ने जेब से देसी पिस्तौल निकाली और निकिता पर फायर कर दिया. गोली उस के बांए कंधे से छाती को चीरते हुए निकल गई. इस से मौके पर ही उस की मौत हो गई. लोगों का आक्रोश निकिता की हत्या का पता चलने पर वारदात के दूसरे दिन 27 अक्तूबर को बल्लभगढ़ में लोगों में आक्रोश छा गया. आरोपियों को सख्त सजा दिलाने की मांग को ले कर निकिता के परिजनों के साथ विभिन्न संगठनों के लोगों ने सुबह से शाम तक शहर में कई जगह जाम लगा दिए.

सुबह 9 बजे सोहना रोड पर जाम का सिलसिला शुरू हुआ. शहर में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए लोगों ने हत्या के आरोपियों को फांसी की सजा दिलाने की मांग की. बाद में लोग सोहना पुल के पास धरना दे कर बैठ गए. दूसरी तरफ गुस्साए लोग बीके अस्पताल पहुंच गए. वहां काफी देर तक शव मिलने का इंतजार करते रहे. पोस्टमार्टम के बाद भी जब पुलिस प्रशासन की ओर से निकिता के घरवालों को शव नहीं दिया गया, तो लोगों में गुस्सा भड़क गया. बीके अस्पताल चौक पर लोगों ने पुलिस के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन किया. लोगों ने इसे लव जिहाद का मामला बताया. गुडईयर के पास नैशनल हाइवे पर भी जाम लगाया गया.

शहर में जगहजगह जाम लगा कर प्रदर्शन करने का सिलसिला करीब 8 घंटे तक चलता रहा. इस दौरान पूरे शहर में जगहजगह पुलिस तैनात रही. शाम करीब साढ़े 4 बजे पुलिस ने निकिता का शव उस के घरवालों को सौंपा. निकिता के पिता ने प्रशासन के सामने चार मांगें रखी. इन में परिवार की सुरक्षा, एसआईटी से जांच और मामले की जल्द सुनवाई आदि शामिल थी. अधिकारियों ने ये मांगें मान लीं, इस के बाद अधिकारियों के आश्वासन पर जाम लगाने और प्रदर्शन करने का सिलसिला थमा. बाद में शाम को ही परिजनों ने निकिता के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. इस से पहले पुलिस ने निकिता की हत्या के मामले में गिरफ्तार दोनों आरोपियों को कड़ी सुरक्षा में अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को 2 दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया.

मामला तूल पकड़ने पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई की जाएगी. किसी को बख्शा नहीं जाएगा. गृहमंत्री अनिल विज ने कहा कि फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह ने निकिता हत्याकांड की जांच एसआईटी को सौंप दी है. एसीपी (क्राइम) अनिल कुमार के नेतृत्व में स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम बनाई गई है. गृहमंत्री ने पुलिस कमिश्नर को पीडि़त परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए. हरियाणा के परिवहन मंत्री और बल्लभगढ़ के विधायक मूलचंद शर्मा ने बीके अस्पताल जा कर निकिता के पिता मूलचंद तोमर से मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि हत्या के आरोपियों को कठोर सजा दिलाई जाएगी.

खूब मचा बवाल वारदात के तीसरे दिन 28 अक्तूबर को इस मामले को ले कर हरियाणा से ले कर उत्तर प्रदेश तक खूब बवाल मचा. निकिता के पिता मूलचंद तोमर के पैतृक गांव हापुड़ के रघुनाथपुरा में पंचायत हुई. इस में निकिता के बड़े भाई नवीन ने हत्यारों को जल्द से जल्द फांसी देने की मांग की. बाद में पंचायत के लोगों ने एसडीएम को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा. एसआईटी ने हत्याकांड की जांच शुरू कर दी. टीम इंचार्ज एसीपी अनिल कुमार ने अधिकारियों के साथ निकिता के पिता से मिल कर जरूरी जानकारियां हासिल कीं. अनिल कुमार ने उन्हें विश्वास दिलाया कि मामले में सभी साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं. हर हाल में परिवार को न्याय दिलाया जाएगा.

इस दौरान निकिता के घरवालों ने सत्तारूढ़ दल के नेताओं और जिला उपायुक्त यशपाल यादव को खूब खरीखोटी सुनाई. उन का कहना था कि एक दिन पहले वे बेटी का शव लेने के लिए दिनभर इंतजार करते रहे और पुलिस उन्हें शव देने को तैयार नहीं थी, तब आप लोग कहां थे?  परिवार की महिलाओं ने सवाल किया कि जब सरकार बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकती, तो उन्हें कोख में ही मारने की इजाजत क्यों नहीं दे देती? हत्या के आरोपी तौसीफ ने पुलिस की पूछताछ में कबूल किया कि निकिता ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया था. इसलिए उस ने फैसला किया कि वह मेरी नहीं हो सकती तो उसे किसी दूसरे की भी नहीं होने दूंगा. उस ने बताया कि 2018 में भी उस ने शादी की नीयत से ही निकिता का अपहरण किया था.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल की गई कार और देसी पिस्तौल भी बरामद कर ली. इस हत्याकांड को ले कर बल्लभगढ़ शहर में विरोध प्रदर्शन होता रहा. एबीवीपी ने अग्रवाल कालेज के बाहर धरनाप्रदर्शन किया. संगठन के कार्यकर्ता सुबह 11 बजे से ले कर रात को भी धरने पर बैठे रहे.  एनएसयूआई ने फरीदाबाद में जिला उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन कर नारेबाजी की. कार्यकर्ताओं ने दोषियों को फांसी देने की मांग की. पलवल में सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन कर जुलूस निकाला. हाइवे पर जाम भी लगाया गया. राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में निकिता की हत्या के विरोध में प्रदर्शन किए गए और जुलूस निकाले गए.

विभिन्न संगठनों का धरनाप्रदर्शन 29 अक्तूबर को भी चलता रहा. निकिता को न्याय दिलाने के लिए करणी सेना भी मैदान में कूदी. करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूरजपाल अम्मू निकिता के निवास पर पहुंचे. उन्होंने कहा कि खून के बदले खून चाहिए. मामले की फास्टट्रैक अदालत में एक महीने में सुनवाई पूरी कर हत्यारों को फांसी दी जाए.  हरियाणा कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने भी तोमर के मकान पर पहुंच कर सांत्वना दी. फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने ट्वीट कर निकिता को झांसी की रानी और रानी पद्मावती की तरह बहादुर बताया तथा भारत सरकार से निकिता को देवी नीरजा की तरह ब्रेवरी अवार्ड देने की मांग की.

शीघ्र होगी सजा हरियाणा सरकार ने निकिता के परिवार को सुरक्षा के लिए 3 गनर मुहैया करा दिए हैं. इस के बावजूद तोमर परिवार दहशत में है. उन्हें आशंका है कि हरियाणा की राजनीति में दखल रखने वाले आरोपी तौसीफ के रिश्तेदार कहीं पूरे परिवार की ही हत्या न करा दें. गृहमंत्री अनिल विज ने कहा है कि निकिता हत्याकांड में पुलिस जल्द से जल्द जांच पूरी कर अदालत में चालान पेश करेगी. मामले में 2018 से केस की भी जांच की जाएगी. केस की सुनवाई फास्टट्रैक अदालत में होगी. आरोपियों को जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी. पुलिस ने इस मामले में तीसरे आरोपी अजरुद्दीन को भी गिरफ्तार किया है. हत्या के मुख्य आरोपी तौसीफ को अजरुद्दीन ने ही देसी पिस्तौल दिलाई थी. इसी पिस्तौल से गोली मार कर निकिता की हत्या की गई थी.

कहा जा रहा है कि अजरुद्दीन ने तौसीफ के मामा के कहने पर उसे देसी पिस्तौल मुहैया कराई थी. तौसीफ का मामा इस्लामुद्दीन जून 2016 में गुरुग्राम में एक पुलिस इंसपेक्टर के अपहरण के मामले में भोंडसी जेल में 10 साल की सजा काट रहा है. इस्लामुद्दीन हरियाणा व दिल्ली का कुख्यात बदमाश है. पुलिस ने मुख्य आरोपी तौसीफ और उस के साथी रेहान के मोबाइल फोन भी जब्त किए हैं. सीसीटीवी फुटेज सहित अन्य इलैक्ट्रौनिक साक्ष्य भी जुटाए हैं. दूसरे सबूत भी एकत्र किए जा रहे हैं. पुलिस का दावा है कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, जो उन्हें सख्त सजा दिलाएंगे.

बहरहाल, निकिता की हत्या के दोषियों को तो अदालत सजा देगी, लेकिन लव जिहाद और इस तरह महिलाओं की हत्या की घटना कैसे रुकेंगी, इस पर सरकार को सोचना होगा.

 

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तेजी से आई एक कार झटके से त्रिवेणी अस्पताल के सामने रुकी, कार का दरवाजा खोल कर जल्दी से 3-4 लोग उतरे. उन में से 25-26 साल का एक युवक लगभग दौड़ता हुआ अस्पताल के अंदर गया, बाकी लोग एक युवती को कार से बाहर निकालने लगे. युवती को कार से निकालते देख अस्पताल के गेट पर खड़े लोगों ने उत्सुकतावश कार को घेर लिया. तभी अस्पताल के अंदर गया युवक कंपाउंडर के साथ स्ट्रेचर ले कर आया. युवती को जल्दी से स्ट्रेचर पर लिटा कर सभी उसे ले कर औपरेशन थिएटर की ओर भागे.

दुर्घटना में युवती का एक पैर पूरी तरह नष्ट हो चुका था. देख कर ही लग रहा था कि पैर घुटनों से काटना पड़ेगा. खून से लथपथ जींस में लिपटा वह पैर घुटने के पास से एकदम झूल गया था. बाकी शरीर में कहीं खरोंच तक नहीं आई थी. युवती को उठा कर लाने में उस के बाल खुल गए थे. टीशर्ट भी अस्तव्यस्त हो गई थी. जिस से उस के अंग झलक रहे थे. उसे अंदर लाने वाले युवक ने देखा तो अपनी शर्ट उतार कर उस के ऊपर डाल दी. औपरेशन थिएटर में ले जाते समय वह बेहोश थी. इस बीच डा. ऋतुल त्रिपाठी आ गए थे. युवती की ओर देखे बगैर उन्होंने स्टाफ से औपरेशन की तैयारी करने को कहा. औपरेशन की तैयारी होने लगी. युवती बेहोश थी, फिर भी वह पीड़ा से छटपटा रही थी.

कंपाउंडर ने एक इंजेक्शन लगाया, तब उस का शरीर शांत हुआ. तब तक डा. सिद्धार्थ राय भी आ गए. उन्होंने एनेस्थेसिया का इंजेक्शन दिया, फिर औपरेशन शुरू हुआ. अभी तक युवती के घरपरिवार से कोई नहीं आया था. साथ आए लोगों में से एक युवक ने कहा, ‘‘लड़की भले घर की लगती है. देखा नहीं, उस का चेहरा दूध की तरह सफेद है. यह किसी खानदानी रईस परिवार की है.’’

‘‘कपड़ों से लगता है, परिवार भी काफी मौडर्न है. पता नहीं क्यों, इस के घर से कोई आया नहीं?’’ बगल में खड़े आदमी ने कहा.

‘‘घर वालों को पता चलेगा तब तो आएंगे. हम लोगों ने तो अपना धर्म निभा दिया. अब आगे क्या होगा, वह डाक्टर के हाथ में है. यह बचती है या मरती है, डाक्टर जानें या ऊपर वाला. इस के घर वाले आएं न आएं, उन की मरजी. अगर इस का पैर काटना पड़ा तो इस की जिंदगी खराब हो जाएगी.’’ वहीं बैठे एक बुजुर्ग ने कहा.

तभी भाग कर स्ट्रेचर लाने वाले युवक ने आ कर कहा, ‘‘भाइयों, मदद के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. आप लोग चाहें तो जा सकते हैं.’’

‘‘अरे भाई धन्यवाद किस बात का. तुम भी तो हमारी तरह हो. युवती तुम्हारी कोई रिश्तेदार तो है नहीं?’’

युवक ने कोई जवाब नहीं दिया. धीरेधीरे एकएक कर के सभी चले गए. सब के जाने के बाद उस युवक ने युवती के पास मिले मोबाइल को जेब से निकाला. मोबाइल बंद था. उस ने उसे हथेली से साफ कर के चलाने की कोशिश की. संयोग से वह चल गया. कौन्टैक्ट लिस्ट खोल कर वह नाम देखने लगा. तभी कंपाउंडर ने आ कर पूछा, ‘‘सर, आप का नाम?’’

‘‘नील रत्न.’’

कंपाउंडर ने एक फौर्म उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए,  इस पर साइन कर दीजिए.’’

‘‘औपरेशन चालू होने के बाद साइन करवा रहे हो?’’ नील ने पूछा.

‘‘जी सर, इमरजेंसी केस में ऐसा ही होता है. अब दुर्घटना के किसी भी मामले में पुलिस केस की जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं.’’ कंपाउंडर ने कहा.

‘‘ओके…ओके.’’ कह कर नील ने फौर्म पर साइन कर दिए.

कंपाउंडर चला गया तो नील फिर कौन्टैक्ट लिस्ट देखने लगा. पहला ही नंबर अक्कू डार्लिंग के नाम से सेव था. नील को लगा, आकाश शायद लड़की का बौयफ्रैंड रहा होगा. उस ने अक्कू को फोन किया, ‘‘हैलो.’’

‘‘हां, कौन?’’

‘‘आप आकाश बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, मैं आकाश ही बोल रहा हूं, आप कौन?’’

‘‘मैं नील बोल रहा हूं. एक लड़की का एक्सीडेंट हो गया है, जिसे मैं अस्पताल ले आया हूं. अभी तक उस के घर से कोई नहीं आया है. शायद उन्हें सूचना नहीं मिली होगी. लड़की के मोबाइल में पहला नंबर आप का ही है. इसीलिए आप को बताने के लिए फोन किया है.’’

‘‘सौरी ब्रदर, रांग नंबर. मैं ने तो हाल ही में यह नंबर लिया है.’’ कह कर आकाश ने फोन काट दिया.

नील के मन को चैन नहीं पड़ा. इसलिए उस ने दूसरा नंबर देखना शुरू किया. उस ने ‘पी’ अक्षर पर देखा, पर उसे जो चाहिए था, वह नहीं मिला. ‘एम’ पर देखा, वहां भी असफलता ही मिली. पापा या मम्मी किसी का नंबर नहीं मिला. इसी तलाश में उसे एक नाम नियति दिखाई दिया. शायद यह लड़की की फ्रैंड होगी, सोच कर उस ने नियति को फोन मिला दिया. घंटी जाते ही फोन रिसीव हो गया. दूसरी ओर से कहा गया

‘‘हां, बोल गार्गी.’’

‘‘जी, मैं नील बोल रहा हूं. गार्गी का एक्सीडेंट हो गया है.’’

‘‘कब और कहां? आप कौन?’’

‘‘नियतिजी, आप मुझे नहीं जानतीं. मैं तो गार्गी को जानता भी नहीं. आप ने फोन उठाते ही गार्गी का नाम लिया, इसलिए मुझे पता चल गया कि दुघर्टना में जो घायल हुई है, उस का नाम गार्गी है.’’

‘‘अच्छा तो आप डाक्टर बोल रहे हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं गार्गी को अस्पताल लाने वालों में एक हूं.’’

‘‘आप ने आकाश को फोन क्यों नहीं किया?’’

नियति ने आकाश का नाम लिया तो नील कोे धक्का सा लगा. इस का मतलब वही आकाश था, जिस ने रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया था. कोई जवाब न पा कर नियति ने दोबारा पूछा, ‘‘आप ने आकाश को फोन किया?’’

‘‘किया था, लेकिन उस ने रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया.’’

‘‘मुझे पता था कि साला हरामी है. पर गार्गी ने मेरी सुनी कहां.’’ नियति बड़बड़ाई.

नील को चिंता होने लगी, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’

‘‘आप और गार्गी किस अस्पताल में हैं?’’

‘‘सेक्टर 22 वाले त्रिवेणी अस्पताल में.’’

‘‘सेक्टर 22 वाले..?’’ नियति ने पूछा.

‘‘जी.’’

‘‘डाक्टर त्रिपाठी..?’’ नियति को धक्का सा लगा.

‘‘आप जरा भी चिंता मत कीजिए. डाक्टर साहब बहुत अच्छे हैं. उन्होंने बिना पैसे लिए औपरेशन शुरू कर दिया है. अगर आप गार्गी के घर वालों को ले कर आ जाएं तो…’’ नील इतना ही कह पाया था कि मोबाइल बंद हो गया.

नील अस्पताल के वेटिंग रूम में बैठ कर नियति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में औपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला तो स्ट्रेचर पर गार्गी को निकाला जा रहा था. पीछेपीछे डाक्टर भी निकल रहे थे. नील ने लगभग दौड़ते हुए डाक्टर के पास जा कर पूछा, ‘‘डाक्टर साहब अब गार्गी कैसी है?’’

डा. त्रिपाठी ने उस का कौलर पकड़ कर लगभग झकझोरते हुए बोले, ‘‘तू मेरे हर काम में टांग अड़ाने क्यों चला आता है.’’

डा. त्रिपाठी के इन शब्दों से नील को लगा जैसे अस्पताल की पूरी इमारत उस के सीने पर गिर पड़ी हो. डा. त्रिपाठी दांत पीसते हुए अपने चैंबर की ओर चले गए. उस के साथ डाक्टर ने ऐसा व्यवहार क्यों किया, नील समझने की कोशिश कर रहा था कि नियति आ गई. नील को आईसीयू के आगे बैठा देख कर उस ने पूछा, ‘‘आप, मिस्टर नील?’’

‘‘जी.’’

‘‘मैं नियति, ’’ कह कर उस ने अपना दाहिना हाथ आगे किया तो नील ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘औपरेशन तो हो गया, पर…’’

‘‘पर क्या..?’’ नियति ने घबरा कर पूछा तो नील ने डाक्टर त्रिपाठी के व्यवहार के बारे में बताया.

नियति ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘देखिए मिस्टर नील… ’’

‘‘प्लीज आप मुझे केवल नील ही कहिए,’’ नील बीच में बोल पड़ा.

‘‘हां तो नील, यह डाक्टर त्रिपाठी ही गार्गी के हसबैंड हैं.’’

‘‘क्या?’’ नील की आंखें फैल गईं.

‘‘जी, यही सच है.’’

‘‘तो फिर आकाश कौन है? उस ने ऐसा क्यों कहा? रौंग नंबर का क्या मतलब?’’ नील ने एक साथ कई सवाल कर डाले.

‘‘आकाश गार्गी का दूसरा पति है. और डा. त्रिपाठी ने तुम्हें शायद आकाश ही समझा है. क्योंकि उन्होंने कभी आकाश को देखा नहीं है.

‘‘ओह, आई सी.’’ नील को एक बार फिर धक्का सा लगा, ‘‘यह भी कैसा संयोग है. एक्सीडेंट होने पर गार्गी अपने पूर्व पति के ही अस्पताल में आई.’’

‘‘सब संयोग की ही बात है.’’ नियति की आंखों में चमक सी आई.

‘‘आप गार्गी के घर वालों को तो बता दीजिए.’’ नील ने कहा.

‘‘कोई फायदा नहीं है. उस के घर वाले नहीं आएंगे. वह मर जाए, तब भी नहीं आएंगे.’’ कह कर नियति ने सिर झुका लिया.

‘‘क्यों नहीं आएंगे? बेटी की यह हालत है. ऐसे में भला घर वाले क्यों नहीं आएंगे?’’ नील ने हैरानी से पूछा.

‘‘गार्गी एक धार्मिक संस्कारी ब्राह्मण परिवार की बेटी है. जब वह कालेज में पढ़ रही थी, तभी उसे आकाश से प्यार हो गया था. वह यह बात घर में नहीं बता सकी, क्योंकि आकाश उस की जाति का नहीं था. घर वालों ने डा. त्रिपाठी से उस की शादी कर दी. डा. त्रिपाठी उसे बहुत प्यार करते थे. वह एक अच्छे  पति थे. उन का यह अपना अस्पताल है. उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी. पर गार्गी आकाश को भुला नहीं पाई और शादी के 2 महीने बाद उस ने भाग कर आकाश के साथ शादी कर ली.

‘‘डा. त्रिपाठी फ्रैंडली और खुले दिमाग के थे, इसलिए उन्होंने मुकदमा वगैरह कुछ नहीं किया. उन्होंने गार्गी के घर वालों से भी कुछ नहीं कहा. पर इकलौती बेटी ने समाज में नाक कटा दी थी, इसलिए गार्गी के पिता रामनारायण शास्त्री के लिए वह उसी दिन मर गई थी.’’

‘‘ओ माई गौड.’’ नील को गार्गी की कहानी फिल्मों जैसी लगी, पर हकीकत यही थी.

थोड़ी देर में कंपाउंडर नील और नियति को गार्गी के पास ले गया. गार्गी को देख कर नियति रो पड़ी. उस का एक पैर घुटनों से काट दिया गया था. कटा पैर देख कर नियति और नील कांप उठे. बातचीत में नियति ने गार्गी को आकाश के बारे में जो बताया, गार्गी के लिए यह हैरान करने वाली बात नहीं थी. अंत में गार्गी ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘मुझे सब पता है नियति.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता है?’’ नील ने हैरानी से पूछा.

‘‘जब मेरा एक्सीडेंट हुआ था, वह कमीना मेरे साथ ही था.’’ कह कर गार्गी रोने लगी. क्योंकि हृदय की वेदना पैर कटने से हजार गुना ज्यादा थी. गार्गी को रोते देख नियति उस से लिपट गई. गार्गी ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं कहीं की नहीं रही नियति… मेरे मांबाप, ऋतुल, अब मुझे सहारा देने वाले नहीं हैं.’’

गार्गी की हालत वाकई खराब थी. उस ने गलती तो की ही थी, पर अभी उस की उम्र ही क्या थी कि वह इस बारे में सोच सकती. गार्गी इस तरह रो रही थी कि सुनने वाले का कलेजा फट जाए. उस का चांद जैसा चेहरा वेदना में बुझ गया था. डाक्टर ऋतुल की हालत भी कुछ वैसी ही थी. वह भी केबिन में बैठे रो रहे थे. कहने को तो वह लाखों रुपए कमा रहे थे, लेकिन उन्हें प्यार करने वाला कोई नहीं था. साहब कहने वाले कंपाउंडर और नर्सें तो बहुत थीं, पर बेटा कहने वाला कोई नहीं था. ऋतुल ने जिस साल डाक्टरी की पढ़ाई पूरी की थी, उसी साल मांबाप दोनों ही 3 महीने के अंतर में गुजर गए थे. अब डा. ऋतुल का सिर्फ एक भाई था, जो हौस्टल में रह कर पढ़ रहा था.

गार्गी के भाग जाने के बाद उन की हालत गार्गी से भी करुण हो गई थी. वह एकदम अकेले पड़ गए थे, अंदर ही अंदर घुटते रहते थे. उन के पिता की मौत ठीक से इलाज न हो पाने की वजह से हुई थी. इसीलिए वह अस्पताल चला रहे थे. अगर भाई न होता तो शायद वह मतलबी संसार को छोड़ कर कब के साधु बन गए होते. उन का दुख बहुत बड़ा था. उन्होंने गार्गी के मांबाप से कभी कोई शिकायत नहीं की थी. क्योंकि वह जानते थे कि किसी को भी बांध कर नहीं रखा जा सकता. अचानक गार्गी के पैर से खून बहने लगा. नील भाग कर डाक्टर के पास पहुंचा. नील को देख कर डा. ऋतुल ने खुद को संभालने की कोशिश की. हांफते हुए नील ने कहा, ‘‘डाक्टर साहब, गार्गी को ब्लीडिंग हो रही है.’’

कुछ कहे बगैर डा. ऋतुल गार्गी के कमरे में पहुंचे. थोड़ा सकुचाए तो पर एक डाक्टर के रूप में आगे बढ़े, शर्म या झिझक यहां नहीं चल सकती थी. उन्होंने चादर हटा कर पैर देखा. उस के बाद नील से कहा, ‘‘यह तो नौर्मल ब्लीडिंग है. अभी कुछ समय तक इसी तरह रहेगा.’’

डा. त्रिपाठी के इन शब्दों ने नील और नियति को राहत पहुंचाई. पर गार्गी शर्म के मारे मुंह फेर कर रोती रही. डा. ऋतुल ने उस के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा, ‘‘रोती क्यों हो गार्गी, जो होना था, वह हो गया. अब मैं दोबारा शादी पर रुपए खर्च नहीं करूंगा.’’

डा. ऋतुल त्रिपाठी के यह कहते ही कमरे में सन्नाटा पसर गया. एकदम नीरव शांति. नियति और नील का मुंह खुला का खुला रह गया. यह आदमी है या आदमी के रूप में देवता. अपनी लाचारी और शर्म के साथ गार्गी ने डबडबाई आंखों से ऋतुल की ओर देखा. वह ऋतुल के पैर पकड़ने के लिए उठना चाहती थी, पर उसे याद आया कि उस का एक पैर तो काट दिया गया है. उस दिन बिना किसी की मौत हुए अस्पताल में सभी खूब रोए थे. शायद ऋतुल पहले डाक्टर होंगे, जो खुद अस्पताल में रोए थे. अगले दिन गार्गी के कपड़े बदलने के और उस की देखभाल के लिए डा. त्रिपाठी ने नियति से जल्दी आने को कहा, पर नियति नहीं आई. उस का इरादा गलत नहीं था. ऐसा नहीं था कि वह गार्गी की सेवा नहीं करना चाहती थी.

वह जानती थी कि वह समय पर नहीं पहुंचेगी तो यह काम डा. ऋतुल त्रिपाठी खुद करेंगे. इसी बहाने दोनों नजदीक आएंगे और गार्गी के वैवाहिक संसार का पहिया एक बार फिर सही रास्ते पर चल पड़ेगा. नियति और नील अस्पताल पहुंचे तो ऋतुल और गार्गी इस तरह बातें कर रहे थे, जैसे सालों से साथ रहे हों.

‘‘गुड मौर्निंग गार्गी, गुड मौर्निंग डाक्टर.’’ नील और नियति ने हंसते हुए दोनों की बातचीत में खलल डाला. ऋतुल ने नील के साथ जो व्यवहार किया था, उस के लिए उस से माफी मांगी और उस के घरपरिवार के बारे में पूछा. गार्गी ने हाथ जोड़ कर नील का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘नील, तुम्हें बहन नहीं है और मुझे भाई. 15 दिनों बाद दिवाली है. उस के बाद भइया दूज. भाई तुम्हें मैं भइया दूज पर टीका करना चाहती हूं.’’

उसी दिन डा. ऋतुल त्रिपाठी ने अपने ससुर रामनारायण शास्त्री को फोन कर के सारी बात बताई तो पहले तो वह भड़क उठे, ‘‘अरे तुम ने उसे जहर का इंजेक्शन क्यों नहीं लगा दिया.’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया. उन की पत्नी रेणुका ने यह बात सुन ली थी. उन्होंने अंदाज से ही कहा, ‘‘तुम बाप हो या राक्षस?’’

‘‘तुम यह क्या कह रही हो रेणुका?’

‘‘जहर का इंजेक्शन दिलाने के लिए तुम ने हाथी घोड़ा बन कर उसे पीठ पर बैठा कर घुमाया था?’’ रेणुका बस इतना ही कह सकी थी. कोई भी मां हो, ऐसे में वह स्वाभाविक रो पड़ेगी. पर उस दिन रुढि़वादी ब्राह्मण रामनारायण शास्त्री की भी भारी आवाज रुदन में बदल गई थी. अस्पताल पहुंच कर सिद्धांतवादी रामनारायण शास्त्री बेटी का कटा पैर देख उस के बचपन की बातों, शैतानियों और खिलखिलाहटों को याद कर के वह जिस तरह रोए, देखने वालों की भी आंखें भर आईं. इस के बाद गार्गी के जीवन में पति, मांबाप, दोस्त और एक भाई नील आ गया था. गार्गी और ऋतुल एक बार फिर सुखी जीवन की राह पर चल पड़े. नील रोजाना बहन से मिलने आता. एक पैर गंवा कर गार्गी जीवन के हजारों रहस्य एक साथ समझ गई थी. उस एक पैर के बदले उसे सच्चे संबंधों की जानकारी हो गई थी.

भइया दूज के दिन सुबह ही नील बहन के घर पहुंच गया. टीका करवा कर वह घर से निकलने लगा तो पीछे से गार्गी ने कहा, ‘‘नील…’’

पलट कर नील ने कहा, ‘‘जी दीदी.’’

‘‘आज नियति के बारे में कुछ नहीं पूछोगे?’’ यह कहते हुए गार्गी के चेहरे पर रहस्यमई मुसकान फैल गई.

Mumbai Crime : पहले दुपट्टे से पत्नी का गला घोंटा, फिर लाश ड्रम में डाल झाड़ियों में छिपाई

Mumbai Crime : संदेह और कलह ऐसी चीजें हैं, जो हंसतेखेलते परिवार को बरबादी के कगार पर ले जा कर खड़ा कर देती हैं. अंबुज ने तो दोनों को ही प्यार से पाल रखा था, नतीजा यह…

नवी मुंबई के उपनगर घनसोली के रहने वाले महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी की बहू नीलम और बेटा अंबुज तिवारी 22 जुलाई, 2020 की शाम साढ़े 5 बजे बिना किसी को बताए घर से निकल गए. पतिपत्नी थे, कहीं भी घूमने जा सकते थे, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. घर वाले तब परेशान हुए, जब दोनों शाम को लौट कर नहीं आए. परेशानी तब हदें पार कर गई जब अगले दिन भी दोनों न तो घर लौटे और न ही फोन किया. दोनों के फोन भी स्विच्ड औफ थे, सो उन से बात भी नहीं हो पा रही थी. मामला जवान बहू और बेटे का था, इसलिए घर वाले सोच रहे थे कि दोनों जवान हैं, कहीं दूर घूमने भी जा सकते हैं. फिर भी जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर वालों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, इस की खास वजह थी उन के मोबाइल स्विच्ड औफ होना.

हैरानपरेशान महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी पूरी रात पूरे दिन 10 बजे तक उन की तलाश जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों के यहां करते रहे. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के मन में किसी तरह की अनहोनी को ले कर तरहतरह के विचार आने लगे. जब सारी कोशिशें बेकार गईं तो महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी रात साढ़े 10 बजे कुछ नातेरिश्तेदारों के साथ थाना रबाले पहुंचे और थानाप्रभारी योगेश गावड़े को सारी बातें बता दीं. योगेश गावड़े ने उन के बेटे और बहू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होते ही थानाप्रभारी योगेश गावड़े हरकत में आ गए.

उन्होंने इस मामले की जानकारी पहले पुलिस कमिश्नर संजय कुमार, जौइंट सीपी राजकुमार व्हटकर, डीसीपी जोन-1 पंकज दहाणे, एसीपी (वाशी डिवीजन) विनायक वस्त के साथ नवी मुंबई पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर गिरधर गोरे को सौंप दी. उन की सहायता के लिए इंसपेक्टर उमेश गवली, सहायक इंसपेक्टर तुकाराम निंबालकर, प्रवीण फड़तरे, संदीप पाटिल और अमित शेलार को नियुक्त किया गया. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपने सहायकों के साथ मामले पर गहराई से विचार कर के जांच की रूपरेखा तैयार की ताकि जांच तेजी से हो सके. सब से पहले उन्होंने गुमशुदा अंबुज तिवारी और उस की पत्नी नीलम तिवारी के हुलिए सहित उन की फोटो नवी मुंबई के सभी पुलिस थानों को भेजे.

साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि उन के बारे में कहीं से कोई सूचना मिले तो जानकारी दें. साथ ही तेजतर्रार मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया था. इस के बाद इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अंबुज और नीलम के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए. जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी, गिरधर गोरे ने वहांवहां अपनी टीम भेजी. लेकिन अंबुज और नीलम के बारे में कहीं से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के सहारे उन तक पहुंचा जा सके. उन के पड़ोसियों ने यह जरूर बताया कि अंबुज और नीलम की अकसर तकरार होती थी. लेकिन दोनों घर छोड़ कर कहां गए होंगे, किसी को कोई जानकारी नहीं थी. जिस फर्म में अंबुज काम करता था, वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर गिरधर गोरे अपनी टीम के साथ जांच तो कर रहे थे, लेकिन उन की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि पतिपत्नी दोनों वयस्क थे, जहां जाना चाहते, आजा सकते थे. फिर लौकडाउन में उन का बिना किसी को कुछ बताए घर से निकल जाना और पूरे दिनरात घर न आना, रहस्यमय था. कहां गए होंगे और क्यों गए होंगे, यह गुत्थी सुलझ नहीं रही थी. इस गुत्थी को सुलझाने में पुलिस टीम को 4 से 5 दिन लग गए. जब यह गुत्थी सुलझी तो जांच टीम अवाक रह गई. मुखबिर ने दिया सूत्र 28 जुलाई, 2020 को इंसपेक्टर गिरधर गोरे को एक मुखबिर ने खबर दी कि जिस अंबुज और नीलम तिवारी को वह खोज रहे हैं, उन्हें घनसोली की अर्जुनवाड़ी में देखा गया है. यह खबर मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपनी काररवाई के लिए टीम को सजग कर दिया.

उन की टीम ने छापा मार कर अंबुज तिवारी को अपनी गिरफ्त में लिया और उसे वरिष्ठ अधिकारियों के सामने ले जाया गया. अधिकारियों ने उस से फौरी तौर पर पूछताछ कर के जांच टीम के हवाले कर दिया. जांच टीम ने जब उस से नीलम के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. लेकिन जांच टीम उस की बातों से सहमत नहीं थी. उस के चेहरे से मक्कारी साफ झलक रही थी, वह कुछ छिपा रहा था. सच की तह में जाने के लिए जब उसे रिमांड पर लिया तो उसे बोलना पड़ा.

अंबुज ने बताया कि उस ने अपने दोस्त के साथ मिल कर नीलम की हत्या कर दी है. उस ने आगे बताया कि नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर वह और उस का दोस्त टैंपो से मुंबई-पुणे हाइवे होते हुए लोनावला के पास गांव दापोली के पास पहुंचे और लाश घनी झाडि़यों में छिपा दी. पुलिस टीम को नीलम तिवारी का शव बरामद करना था. अंबुज तिवारी के बयान पर पुलिस टीम ने अपराध में शामिल उस के दोस्त श्रीकांत चौबे को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अंबुज तिवारी की बातों की पुष्टि की.  श्रीकांत चौबे की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम दोनों को ले कर मुंबई-पुणे हाइवे के लोनावला, दापोली के बीच पहुंची और प्लास्टिक का वह ड्रम बरामद कर लिया.

ड्रम का ढक्कन खोल कर नीलम तिवारी का शव बाहर निकाला गया फिर बारीकी से उस का निरीक्षण कर के पंचनामा बनाया गया. शव को पोस्टमार्टम के लिए मुंबई के गांधी अस्पताल भेज कर पुलिस टीम थाने लौट आई. पूछताछ में नीलम तिवारी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह थी—

65 वर्षीय महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के लालगंज बाजार के रहने वाले थे. अच्छे काश्तकार होने के साथ वह एक उच्चकुल के ब्राह्मण थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उन का पूरा परिवार गांव में रहता था. महेंद्रनाथ सालों पहले मुंबई आ बस गए. वह करीब 30 सालों से महानगर नवी मुंबई के घनसोली इलाके में रहते आ रहे थे और फलों का व्यवसाय करते थे. 28 वर्षीय अंबुज तिवारी उन का बेटा था, जिसे वह बहुत प्यार करते थे. स्वस्थ, सुंदर अंबुज तिवारी ने साइंस से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. फलस्वरूप उसे मुंबई जैसे महानगर में नौकरी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा.

पढ़ाई पूरी कर के वह सन 2010 में नौकरी के लिए पिता के पास मुंबई आ गया था. मुंबई में उसे कुर्ला की एक जानीमानी सीमेंट मिक्सिंग कंपनी में क्वालिटी सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई. अंबुज तिवारी जिस फर्म में काम करता था, उसी में श्रीकांत चौबे भी नौकरी कर रहा था. वह फर्म में टैंपो ड्राइवर था. वह माल डिलिवरी करता था. 23 वर्षीय श्रीकांत जयनारायण चौबे भी मूलरूप से आजमगढ़ का ही रहने वाला था. जल्दी ही दोनों की जानपहचान दोस्ती में बदल गई. जब भी मौका मिलता, दोनों घूमनेफिरने निकल जाते थे. अच्छी नौकरी और अंबुज की बढ़ती उम्र को देखते हुए महेंद्रनाथ तिवारी अंबुज की शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. उन्होंने जानपहचान और नातेरिश्तेदारी में अंबुज की शादी की बात चलाई तो उन्हें नीलम के बारे में जानकारी मिली.

बातचीत के बाद 2016 में नीलम और अंबुज की शादी हो गई. शादी के बाद अंबुज ने कुछ दिनों के लिए नीलम को अपनी मां की सेवा के लिए गांव में छोड़ दिया था. वह खुद पिता के साथ मुंबई में रहता रहा. बीचबीच में वह छुट्टी ले कर गांव जाता रहता था. मगर नीलम इस से संतुष्ट नहीं थी. वह उस से इस बात की शिकायत करती थी कि उस के बिना उसे गांव अच्छा नहीं लगता. वह सारी रात उस को याद करकर के करवटें बदलती है. वैसे भी तुम्हें और पापा को खाना बनाने में तकलीफ होती होगी. नीलम की शिकायत वाजिब थी. क्योंकि वह जवान और नईनवेली दुलहन थी. उस के भी अपने सपने और अरमान थे. उस का भी दिल पति के साथ रहने के लिए मचलता था, पर अंबुज की अपनी कुछ विवशताएं थीं.

उस की मां बूढ़ी हो चली थी. मुंबई में वह पिता के साथ रहता था. घर छोटा था, ऐसे में वह घर में कैसे रहेगी. काफी सोचविचार के बाद उसे नीलम की जिद पर उसे मुंबई ले कर आना पड़ा. नीलम को अपने पति और ससुर के साथ रहते हुए लगभग एक साल से अधिक हो गया था. मुंबई आ कर नीलम ने घर और रसोई का सारा काम संभाल लिया था. पति के साथ नीलम बहुत खुश थी. मगर उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रही. उस के सुखी जीवन में परेशानी कुछ इस कदर आ कर बैठ गई कि उस का मानसम्मान सब रेत की दीवार की तरह ढह गया.

फोन बना परेशानी नीलम का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह चंचल स्वभाव और खुले विचारों वाली हंसमुख और मिलनसार युवती थी. घर का कामकाज निपटा कर वह दिल बहलाने के लिए फोन पर अपनी फ्रैंड्स और मायके वालों के साथ चिपक जाती थी. इस बीच जब अंबुज को नीलम से बात करने की इच्छा होती थी तो उस का फोन बिजी रहता था, जिसे ले कर अंबुज के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे थे. धीरेधीरे यही खयाल संदेह का वायरस बन कर अंबुज के दिमाग में बैठ गया. उसे लगा कि नीलम का गांव में किसी युवक के साथ चक्कर है. इस बारे में अंबुज ने जब नीलम से बात की तो वह स्तब्ध रह गई. फिर उस ने अपने आप को संभाल लिया और कहा कि यह सब उस के मन का वहम है.

नीलम के लाख सफाई देने के बाद भी संदेह का वायरस अंबुज के दिमाग से नहीं गया. वह बातबात पर अकसर नीलम से लड़ाई और मारपीट करने लगा. संदेह का वायरस उस के दिमाग में कुछ इस प्रकार घुसा था कि उस ने नीलम को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. घटना वाली रात अंबुज पिता महेंद्रनाथ तिवारी को बिना बताए नीलम को यह कह कर साथ ले गया कि उस के दोस्त की बर्थडे पार्टी है. दोनों श्रीकांत चौबे के घर अर्जुनवाड़ी आ गए. अर्जुनवाड़ी में श्रीकांत चौबे के घर कोई पार्टी न देख नीलम को ठीक नहीं लगा क्योंकि अंबुज उसे झूठ बोल कर लाया था. इसलिए वह अंबुज से घर लौटने की जिद करने लगी. इस पर अंबुज ने उस के दुपट्टे से गला कस दिया और तब तक कसता रहा जब तक नीलम के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए.

अंबुज की इस हरकत से श्रीकांत चौबे बुरी तरह डर गया. श्रीकांत को अंबुज तिवारी की यह योजना मालूम नहीं थी. उस ने अंबुज को खाना खाने के लिए बुलाया था. नीलम की हत्या करने के बाद अंबुज ने उस के शव को ठिकाने लगाने के लिए श्रीकांत चौबे से मदद मांगी. दोस्ती के नाते श्रीकांत उस की मदद करने को तैयार हो गया. उस की मजबूरी यह भी थी कि लाश उस के घर में पड़ी थी. दोनों ने नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर टैंपो पर लाद दिया और मुंबई-पुणे हाइवे के दोपाली और लोनावला के बीच घनी झाडि़यों में डाल आए, जहां से पुलिस ने शव बरामद कर लिया.

अंबुज महेंद्रनाथ तिवारी और श्रीकांत जयनारायण चौबे से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. बाद में दोनों को अदालत पर पेश कर के तलोजा जेल भेज दिया गया. वारदात में इस्तेमाल टैंपो को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था.

 

UP Crime : कार में पत्नी को बंद करके जिंदा जला डाला

UP Crime : अपने घर वालों को बिना बताए शुभम ने शिवांगी से लवमैरिज कर ली थी. एक बेटे के जन्म के बाद शुभम ने घर वालों को शादी की बात बताई. इस के बाद ऐसा क्या हुआ कि शुभम को अपने भाई के साथ मिल कर पत्नी शिवांगी को कार में जिंदा जलाने के लिए मजबूर होना पड़ा…

शिवांगी और शुभम ने उस छोटे से कमरे में प्रवेश किया तो हैरानी से उन की आंखें फैल गईं. कमरे को रंगीन गुब्बारों और चमकीली पन्नी की झालरों से अच्छी तरह सजाया हुआ था. कमरे में बैड के पास एक मेज पर दिल के आकार का केक रखा हुआ था, जिस के पास कुछ मोमबत्तियां और माचिस रखी हुई थी. शिवांगी ने चौंक कर शुभम की ओर देखा, ‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है शुभम और तुम ने मुझे बताया भी नहीं.’’

‘‘जन्मदिन मेरा नहीं तुम्हारा है जान.’’ शुभम उस का गाल थपथपा कर बोला तो शिवांगी ने सिर पकड़ लिया, ‘‘ओह! आज मेरा जन्मदिन है और मुझे ही याद नहीं है.’’

‘‘लेकिन मैं ने याद रखा है माई लव, चलो अब फटाफट केक काटो.’’

शिवांगी शुभम की ओर प्यार भरी नजरों से देखने लगी. शुभम ने केक पर मोमबत्तियां लगा कर जला दीं. शुभम ने इशारा किया तो शिवांगी ने जलती मोमबत्तियों को फूंक मार कर बुझा दिया. शुभम उसे तेज आवाज में बारबार बर्थडे विश करने लगा. शिवांगी ने चाकू से केक काटा और केक का टुकड़ा उठा कर शुभम के मुंह में रखा तो थोड़ा सा केक खा कर उस ने बाकी केक शिवांगी को खिला दिया. केक खाती हुई शिवांगी बोली, ‘‘तुम ने मेरे जन्मदिन की इतनी अच्छी तैयारी की है. बोलो, जन्मदिन पर तुम्हें क्या तोहफा दूं?’’

‘‘जन्मदिन तो तुम्हारा है, तोहफा तो तुम्हें मिलना चाहिए.’’

‘‘तुम मुझे दुनिया में सब से ज्यादा प्यार करते हो शुभम. तभी तो तुम मेरा इतना खयाल रखते हो. आज मैं दूंगी तुम्हें तोहफा, मांगो क्या मांगते हो?’’

‘‘जो मागूंगा, देने से इंकार तो नहीं करोगी?’’ शुभम ने शिवांगी की आंखों में झांक कर पूछा तो शिवांगी उस के दिल की मंशा समझ गई. फिर भी अंजान बनते हुए बोली, ‘‘मांग के तो देखो.’’

शुभम ने उस के दोनों कंधों पर हाथ रख कर उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘शिवांगी, हम दिल से तो एक हो गए हैं, तन से भी एक हो जाएं तो हमारा प्यार पूर्ण हो जाएगा. हमारे प्यार में कोई कमी नहीं रह जाएगी.’’

यह सुन कर शिवांगी ने आंखों के परदे गिरा कर मूक सहमति दी और शुभम के सीने से लग गई. यही वह दिन था, जब मन के बाद तन से भी दोनों एक हो गए. उन के प्यार में कोई कमी नहीं रह गई. उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के वजीरगंज कस्बा के बनिया मोहल्ले की रहने वाली थी शिवांगी. उस के पिता का नाम अजय पाल सिंह और मां का नाम मुन्नी देवी था. अजय पाल खेतीकिसानी करते थे. शिवांगी 3 भाईबहन थे. सब से बड़ी बहन रेखा, उस से छोटा भाई बौबी और सब से छोटी शिवांगी. रेखा का विवाह गाजियाबाद के साहिबाबाद में रहने प्रोफेसर राणा से हुई थी. राणा कनाडा में प्रोफेसर थे. रेखा के कोई बच्चा नहीं था. इसलिए रेखा घर में अकेली रहती थी. पति के कहने पर रेखा ने बहन शिवांगी को अपने यहां रहने के लिए बुला लिया.

शिवांगी ने बीए करने के बाद एमए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया था, लेकिन बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर वह बहन के यहां चली गई. वहां रह कर वह ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी. शिवानी की बहन के पड़ोस में ही शुभम लोहित रहता था. उस के पिता देवेंद्र सिंह एयरफोर्स में थे, वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद वह स्पेलर, चक्की लगाने के साथ दूध डेयरी का भी काम करने लगे. घर में शुभम की मां गीता के अलावा एक बड़ा भाई शशांक उर्फ सनी और एक छोटा भाई सार्थक उर्फ शानू था. समारोह में हुई थी शिवानी से मुलाकात शशांक एक प्राइवेट बैंक में जौब करता था. शुभम होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद गाजियाबाद के एक होटल में नौकरी कर रहा था.

जहां शुभम रहता था, उसी क्षेत्र के एक परिचित के यहां वैवाहिक समारोह में शुभम शामिल हुआ. शादी का जश्न चल रहा था. जश्न की इसी चहलपहल में शुभम की नजर एक लड़की से टकरा गई तो वह उसे देखता रह गया. वह लड़की और कोई नहीं शिवांगी थी, जो अपनी बहन के साथ उस विवाह के जश्न में शामिल हुई थी. शिवांगी अपनी कुछ परिचित लड़कियों से बात कर रही थी. कभीकभी वह किसी बात पर खिलखिला कर हंसने लगती. पता नहीं शिवांगी की हंसी में ऐसा क्या था, जो शुभम के दिल में अंदर तक उतर कर असर कर रहा था. शुभम जानना चाहता था कि वह लड़की कौन है और कहां से आई है. वह उस का नाम भी जानना चाहता था. इसलिए वह उस के आसपास मंडराने लगा.

तभी उन लड़कियों में से एक ने शिवांगी को कंधा मारते हुए कहा, ‘‘शिवांगी, शादी के बारे में तेरा क्या इरादा है?’’ जवाब में शिवांगी फिर हंसने लगी. शुभम मुसकराया, ‘‘चलो नाम तो पता चला. अब यह जानना है कि वह रहती कहां है.’’ वह सोच ही रहा था कि शुभम के आसपास रहने वाले कुछ दोस्त वहां आ गए. दोस्तों ने वहां उस के खड़े होने के बारे में पूछा तो शुभम ने दोस्तों से पूछा, ‘‘उस लड़की को जानते हो तुम लोग?’’

एक दोस्त ने कहा, ‘‘वह शिवांगी है और तुम्हारे घर के पास ही अपनी बहन के यहां रहती है. लेकिन तू क्यों पूछ रहा है?’’

शुभम ने यह कहते हुए टाल दिया, ‘‘कुछ नहीं, मैं ने तो ऐसे ही पूछ लिया था.’’

उस रात शुभम घर तो आ गया लेकिन शिवांगी उस के खयालों में इर्दगिर्द मंडरा रही थी. अगले दिन शिवांगी की एक झलक देखने की कोशिश में वह उस की बहन के घर के पास गया, लेकिन शिवांगी उसे नहीं दिखी, तो उस की बेचैनी और बढ़ गई. यह बेचैनी अधिक दिन की नहीं थी. 2 दिन बाद ही उसे अपने काम पर जाते हुए शिवांगी दिख गई. वह अकेली थी. यह एक अच्छा मौका था. शुभम उस के पास पहुंच गया और प्यार से पूछा, ‘‘शिवांगी, शौपिंग करने निकली हो क्या?’’

शिवांगी ने पलट कर देखा, ‘‘तुम… तुम्हें तो मैं ने शादी के फंक्शन में देखा था. लेकिन तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?’’

शुभम हंसा, ‘‘नाम जानना क्या मुश्किल है, मैं तो यह भी जानता हूं कि तुम अपनी बहन के घर में रहती हो.’’ इस के बाद शुभम ने शिवांगी को अपना नाम बताया और उस की बहन के घर के पास ही खुद के रहने की बात बताई और इसे अपने यहां एक कप चाय पीने का निमंत्रण दिया. शुभम का व्यवहार शिवांगी को काफी दिलचस्प लगा. उस ने शुभम का निमंत्रण स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों एक रेस्टोरेंट में आ गए और चाय की चुस्कियों के बीच बात शुरू हुई. अचानक शुभम ने पूछा, ‘‘शिवांगी, मैं तुम्हें कैसा लगता हूं?’’

शिवांगी ने हैरानी से शुभम को देखा, ‘‘क्या मतलब, मैं समझी नहीं कि तुम कहना क्या चाहते हो?’’

शुभम गंभीर हो गया. उस ने शिवांगी से कहा, ‘‘जब से मैं ने तुम्हें देखा है, मेरा मन बेचैन है. दिल में एक बात है जो मैं तुम से कहना चाहता हूं. पता नहीं तुम क्या सोचोगी, पर यह सच है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शिवांगी ने स्वीकार किया प्यार शुभम की बात से शिवांगी घबरा गई. उस ने ऐसा कुछ सोचा भी नहीं था. वह उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘चलो, अब चलते हैं.’’

शुभम को अपनी बात का कोई जवाब नहीं मिला था. शिवांगी सड़क पर आ गई और एक आटो में बैठ कर चली गई. शुभम को लगा जैसे उस के हाथ से कुछ छूट गया था. पता नहीं उस की बात की शिवांगी पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी. वह मन ही मन डर गया. तनाव और विषाद में डूबे शुभम ने सोचा तक न था कि शिवांगी उस की मोहब्बत को कुबूल कर लेगी. अचानक उस के मोबाइल की घंटी बजी तो उधर से एक सुरीली आवाज आई, ‘‘मैं शिवांगी बोल रही हूं, शुभम.’’

शिवांगी के नाम से उस की धड़कनें तेज हो गईं. शिवांगी ने उसे बुलाया था. शुभम कुछ ही देर में शिवांगी के बताए स्थान पर पहुंच गया. शिवांगी उस का इंतजार कर रही थी. वह उसे देख कर मुसकराई. शुभम ने राहत की सांस ली. वे दोनों एकांत में आ कर बैठ गए. शिवांगी काफी गंभीर थी. उस ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘शुभम, तुम जानते हो कि जिस रास्ते पर तुम मुझे ले जाना चाहते हो, वह कितना कांटों भरा है. क्या तुम परिवार और समाज के विरोध का मतलब समझते हो? कहीं प्यारमोहब्बत तुम्हारे लिए खेल तो नहीं है?’’

शुभम ने गौर से शिवांगी को देखा और उस का हाथ पकड़ लिया. उस ने शिवांगी को आश्वस्त किया कि वह उसे दिलोजान से चाहता है और हर बाधा को पार करने का साहस रखता है. शिवांगी ने अपना हाथ उस के हाथ में हमेशा के लिए थमा दिया. उस दिन के बाद दोनों की दुनिया ही बदल गई. उन की आंखों में सतरंगी सपने समा गए. उन के दिल मिले तो एक दिन खुशी के मौके पर तन भी मिल गए. उन का प्यार पूर्ण हो गया. शिवांगी शुभम से 10 साल बड़ी थी और उस की जाति की भी नहीं थी. फिर भी शुभम ने उस से अंतरजातीय विवाह करने का फैसला कर लिया. गाजियाबाद में ही एक कमरा ले कर दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे. 2016 में दोनों ने मंदिर में विवाह कर लिया. शिवांगी ने विवाह की बात अपनी बहन रेखा को बता दी.

2017 की शुरुआत में ही एक दिन शिवांगी की बहन रेखा ने अपने मातापिता को शिवांगी द्वारा विवाह कर लेने की बात बता दी. यह सुन कर वे चुप हो गए. बेटी की खुशी में ही उन्होंने अपनी खुशी देखी और रस्म के नाम पर एक स्विफ्ट कार नंबर यूपी14डीएच 6794 गिफ्ट में दे दी. कार शिवांगी के नाम पर रजिस्टर थी. विवाह का एक साल पूरा होतेहोते शिवांगी एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम युवराज रखा गया. इसी दौरान शिवांगी की बहन रेखा की मृत्यु हो गई. 2018 में शुभम के बड़े भाई शशांक का विवाह हुआ. तब शुभम ने अपने घर वालों को बताया कि उस ने शिवांगी से विवाह कर लिया है. यह सुन कर सभी दंग रह गए.

जब यह पता चला कि शिवांगी शुभम से 10 साल बड़ी है और उन की जाति की नहीं है तो घर में कोहराम मच गया. लेकिन जो हो गया सो हो गया, की बात सोच कर शुभम के घर वाले शिवांगी को घर में रखने को तैयार हो गए. शुभम गया जर्मनी दोनों घर आ कर रहने लगे. इसी बीच शुभम का स्टडी वीजा बन कर आ गया. वह जर्मनी चला गया. वहां वह होटलों में काम के तौरतरीके सीखने गया था. उस के जाते ही घर में रोज छोटीबड़ी बात को ले कर कलह होने लगी. शिवांगी की सास गीता बातबात में उसे ताने मारती और घर के काम को ले कर भी उन में बहस हो जाती. गीता अपने बेटे शुभम को शिवांगी के बारे में गलतसलत बातें बोलने लगी.

रोज घर के कलह की बातें मां के मुंह से सुन कर शुभम का मन भी शिवांगी की तरफ से पलटने लगा. गीता अच्छी तरह जानती थी कि बेटा उस का कहा ही सुनेगा और उस की ही बात मानेगा. वही हो रहा था. गीता चाहती थी कि किसी तरह शिवांगी उस के बेटे की जिंदगी से निकल जाए तो वह उस का विवाह अपनी ही जाति की किसी लड़की से करा देगी. इसीलिए वह शिवांगी को चैन नहीं लेने देती थी. शुभम जर्मनी से लौट आया. गीता और शशांक दोनों ने शुभम को काफी समझाया, जिस से शुभम भी उन की तरफ हो गया. शिवांगी ताने सुनसुन कर पक गई थी. इसलिए पलट कर जवाब दे देती थी और जो मन होता वह काम करती, वरना नहीं करती.

शुभम को शिवांगी का यह रवैया पसंद नहीं आया. जून 2019 में शशांक और शुभम ने फैसला किया कि शिवांगी की हत्या कर दी जाए. लेकिन हत्या घर में करने से घर वालों पर हत्या का शक आएगा. इसलिए हत्या ऐसे की जाए कि हत्या न लग कर हादसा लगे. कई बार प्रयास किए लेकिन रास्ता नहीं बना. इसी बीच शुभम शिवांगी और बेटे युवराज को ले कर नैनीताल के थाना भवाली अंतर्गत गांव नगारी में अपने पिता के मकान में जा कर रहने लगा. वहां वह एक होटल लीज पर ले कर चलाना चाहता था. होटल को लीज पर लेने को ले कर बात चल रही थी कि लौकडाउन लग गया. इस वजह से उसे वापस अपने घर लौटना पड़ा.

शिवांगी की हत्या की बनी योजना लौकडाउन के दौरान शशांक और शुभम ने आराम से शिवांगी की हत्या को हादसा कैसे बनाना है, इस पर पूरी योजना बनाई. उन की इस योजना में शुभम का जिगरी दोस्त प्रशांत राजपूत भी शामिल था. प्रशांत गाजियाबाद के साहिबाबाद थाना क्षेत्र के पसौड़ा का रहने वाला था. शुभम और प्रशांत रोज बैठ कर साथ शराब पीते थे. पीने के बाद लांग ड्राइव पर जाते थे. वे दोस्ती में एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. योजनानुसार शुभम ने शिवांगी से कहा कि वह कुछ दिन अपने मातापिता से मिल आए. उस का तो मन हो ही रहा होगा, उस के मातापिता को भी उसे देखने का मन होगा. शिवांगी खुश हो गई. वैसे भी वह एक बार फिर से गर्भवती हो गई थी.

लौकडाउन खुल चुका था. लौकडाउन की सारी बंदिशें हटीं तो शुभम उसे कार में बैठा कर मायके जा कर छोड़ने को तैयार हो गया. शिवांगी से उस ने पूरी ज्वैलरी पहनने को कहा कि घर जा रही हो तो घर के आसपास के लोग देखेंगे तो बिना ज्वैलरी के अच्छा नहीं लगेगा. शिवांगी ने पूरी ज्वैलरी पहन ली. शुभम उसे ले कर बदायूं स्थित शिवांगी के घर पहुंच गया. वहां उस ने शिवांगी के घर वालों से काफी घुलमिल कर बातें की. उसे वहां छोड़ कर शुभम वापस लौट आया. वापस आ कर उस ने फिर से पूरी योजना को सही से अंजाम देने के लिए शशांक और प्रशांत से बात की.

16 अक्तूबर, 2020 को कार से शुभम शिवांगी और बेटे युवराज को लेने बदायूं पहुंच गया. वापस लाते समय भी शुभम ने शिवांगी पर पूरी ज्वैलरी पहनने का दबाव डाला. शिवांगी ने पूरी ज्वैलरी पहन ली. शिवांगी को बिलकुल भी आभास नहीं था कि जिस से उस ने प्यार किया और शादी की. इतना विश्वास किया, वह उस की जान लेने तक को तैयार हो जाएगा. शाम 6 बजे कार से शुभम पत्नीबेटे को ले कर निकला. बरेली के बहेड़ी कस्बे में पहुंच कर उस ने कार रोकी. वहां एक दुकान से उस ने जूस खरीदा और उस में चालाकी से नशीली गोलियां मिला दीं. वह जूस उस ने शिवांगी को दिया तो उस ने पी लिया.

गोलियों का असर धीरेधीरे शिवांगी पर होने लगा. बहेड़ी कस्बे से निकल कर कुछ दूर नैनीताल रोड पर एक ढाबे के पास उस ने कार रोकी. उस ने युवराज को गोद में लिया और शिवांगी से उसे चौकलेट दिलाने की बात कह कर चल दिया. कार उस ने स्टार्ट छोड़ दी थी. उस समय तक काफी अंधेरा हो गया था. अगले ही पल शशांक प्रशांत के साथ बाइक से वहां पहुंचा. शशांक कार की ड्राइविंग सीट पर जा कर बैठ गया और कार को गति दे दी. प्रशांत बाइक से उस के पीछे चलने लगा. गांव आमडंडा के पास सुनसान सड़क पर शशांक ने कार रोकी. प्रशांत भी वहां पहुंच गया. दोनों शिवांगी के शरीर से ज्वैलरी उतारने लगे.

साथ ही साथ वे शिवांगी के साथ मारपीट भी करने लगे. शिवांगी उस समय होश में आ गई थी. वह अपने जेठ शशांक से कहने लगी, ‘‘आप को जो लेना है ले लो, लेकिन मुझे मारो मत.’’

योजना को दिया अंजाम ज्वैलरी उतारने के बाद उन्होंने कार को लौक कर दिया. इस के बाद प्रशांत बाइक की डिक्की में रखी पैट्रोल से भरी केन निकाल लाया और कार के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. कार धूधू कर जलने लगी. शिवांगी कार के अंदर बंद फड़फड़ा कर चिल्लाने लगी लेकिन कार लौक होने से उस की आवाज बाहर नहीं आ रही थी. शिवांगी ने कार से निकलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुई. कुछ गांव वालों ने दूर से कार को जलते देखा तो उस ओर दौड़ पड़े. गांव वालों को आता देख कर शशांक और प्रशांत बाइक पर बैठ कर वहां से भाग गए.

गांव वालों ने किसी तरह से शिवांगी को कार से निकाल कर बचाया. कार बाहर से जल रही थी, लेकिन आग अंदर तक नहीं पहुंची थी इसलिए शिवांगी जली नहीं थी, बस झुलस गई थी. गले पर कुछ निशान बन गए थे. बदहवास हालत में वह कार से थोड़ी दूर सड़क पर बैठ गई. दूसरी ओर योजनानुसार कार जाने के कुछ समय बाद शुभम चिल्लाने लगा. चिल्ला कर वह अपनी पत्नी के अपहरण की बात लोगों से कहने लगा. शुभम ने 112 नंबर पर पुलिस को पत्नी के अपहरण की सूचना भी दे दी. वायरलैस पर प्रसारित संदेश से बहेड़ी थाना पुलिस को घटना की सूचना मिली. सूचना पा कर बहेड़ी थाने के इंसपेक्टर पंकज पंत पुलिस टीम के साथ तुरंत ढाबे पर पहुंचे. वहां खड़े शुभम लोहित ने उन्हें पत्नी शिवांगी को अपहर्त्ताओं द्वारा कार से नैनीताल रोड पर ले जाने की बात बताई.

इंसपेक्टर पंत अपनी टीम के साथ नैनीताल रोड पर गए तो आमडंडा के पास उन को एक कार जलते हुए मिली. वहां गांव के काफी लोग मौजूद थे. पुलिस को देख कर गांव के लोगों ने पूरी बात बताई और शिवांगी से मिलवाया. शिवांगी ने जब घटना बताई तो अपनों द्वारा रची गई साजिश का खुलासा हुआ. इस के बाद शिवांगी को इंसपेक्टर पंत ने उपचार हेतु भेजा. फिर शुभम को हिरासत में ले कर थाने आ गए. कुछ सख्ती करने पर शुभम ने पूरी घटना बयान कर दी. जिस के बाद इंसपेक्टर पंकज पंत ने शुभम लोहित, शशांक लोहित और प्रशांत राजपूत के खिलाफ भादंवि की धारा 364/328/307/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. बेटे युवराज को भी शुभम से ले कर शिवांगी को सौंप दिया गया.

कागजी खानापूर्ति पूरी करने के बाद शुभम को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. शुभम ने सोचा था कि इस तरह शिवांगी को मारने से उस पर या उस के घरवालों पर आरोप नहीं लगेगा. ज्वैलरी भी उस के पास आ जाएगी और कार के इंश्योरेंस की रकम भी उसे मिल जाएगी. शिवांगी से भी उसे हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन बुरा करने वालों का किस्मत कभी साथ नहीं देती. शुभम के साथ भी ऐसा ही हुआ.

कथा लिखे जाने तक शशांक और प्रशांत फरार थे. पुलिस उन की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और शिवांगी से पूछताछ पर

Extramarital Affair : पत्नी के प्रेमी की हत्या कर लाश संदूक में छिपाई

Extramarital Affair : रौंग काल से पैदा हुआ प्यार शादीशुदा नरगिस और महबूब को उस मुकाम तक ले गया जिस की दोनों ने कल्पना तक नहीं की थी. फिर एक दिन ऐसा क्या हुआ कि नरगिस के घर संदूक में महबूब की लाश मिली…

18 सितंबर, 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया. यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी. नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे. जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया. मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी. थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था. पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था. नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था. दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था. जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए. पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया. आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं. जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं. पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था. इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे. महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंडिग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी. लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था. उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली. एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया. महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा. इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था. महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे. नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे. महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा. 15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था. भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था. गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया. दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था. उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था. घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई. इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया. हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : प्रेमिका के पहले प्रेमी ने दूसरे प्रेमी को बेरहमी से मार डाला

UP Crime : उस का नाम था मायरा बानो, लेकिन उस की सूरत और सीरत की वजह से सब उसे चांदनी कहने लगे थे. चांदनी का पहला प्यार था इमरान और इमरान का पहला प्यार थी चांदनी. डाक्टर संजय भदौरिया ने जब चांदनी पर नजर डाली तो…

पेशे से डाक्टर संजय सिंह भदौरिया बरेली के धनेटा-शीशगढ़ मार्ग से सटे आनंदपुर गांव में रहते थे. उन के पिता राजेंद्र सिंह गांव के संपन्न किसान थे. परिवार में मां और पिता के अलावा एक छोटा भाई हरिओम और एक बहन पूनम थी. पूनम का विवाह हो चुका था. संजय डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1999 में बरेली के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देने लगे. सन 2000 में नीलम से उन का विवाह हो गया. लेकिन काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला. छोटे भाई हरिओम का विवाह बाद में हुआ. हरिओम के 3 बेटे हुए. संजय ने उन्हीं में से एक बेटे को गोद ले लिया था. कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के बाद डा. संजय ने अपना अस्पताल खोलने का निश्चय किया.

5 साल पहले उन्होने गौरीशंकर गौडि़या में किराए पर एक इमारत ले कर अस्पताल खोला. उन्होंने अस्पताल का नाम रखा ‘आनंद जीवन हौस्पिटल’. अस्पताल अच्छा चलने लगा. लेकिन घर से काफी दूर होने के कारण आनेजाने में दिक्कत होती थी. इसलिए डा. संजय कहीं घर के नजदीक अस्पताल खोलने पर विचार करने लगे. 6 महीने तक गौडि़या में अस्पताल चलाने के बाद संजय ने अपने गांव आनंदपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विकसित गांव दुनका में एक इमारत किराए पर ले ली. इमारत दुनका गांव निवासी नत्थूलाल की थी, जिसे संजय ने 8 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था. संजय ने इमारत में बने हाल को 2 हिस्सों में बांट दिया.

एक हिस्से में बैठ कर वह मरीजों को देखते थे. जबकि दूसरा हिस्सा एडमिट किए गए मरीजों के लिए था. मरीजों को दवा भी वहीं दी जाती थी, जबकि यह काम उन के छोटे भाई हरिओम सिंह भदौरिया करते थे. हरिओम बड़े भाई के अन्य कामों में भी सहयोग करते थे. संजय और हरिओम के मामा नत्थू सिंह भी उन के साथ लगे रहते थे. संजय कई सालों से हिंदू युवा वाहिनी से भी जुडे़ थे. पिछले 5 सालों में संजय का अस्पताल अच्छा चल निकला था. रात में वह अधिकतर अस्पताल में ही रुकते थे. घर जाते तो कुछ ही देर में वापस लौट आते थे. रात में वह अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते थे. इमारत के बाहर लोहे का एक बड़ा सा गेट था, जो दिन में खुला रहता था लेकिन रात में बंद कर दिया जाता था. रात में कोई मरीज आता तो गेट खोल दिया जाता था.

16/17 सितंबर की रात डा. संजय अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सो गए. उन के भाई हरिओम अस्पताल के अंदर मामा नत्थू सिंह के साथ सोए थे. 17 सितंबर की सुबह 6 बजे हरिओम उठ कर बाहर आए तो बड़े भाई संजय को मृत पाया. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन की हत्या कर दी थी. हरिओम के मुंह से चीख निकल गई. चीख की आवाज सुन कर मामा नत्थू सिंह भी वहां आ गए. भांजे को मरा पाया तो वह भी सकते में आ गए. हरिओम ने अपने घर वालों को सूचना देने के बाद शाही थाना पुलिस को घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में शाही थाना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

हत्यारा इमरान था हिंदू युवा वाहिनी के तहसील अध्यक्ष डा. संजय भदौरिया की हत्या की खबर फैलते देर नहीं लगी. हिंदू नेता की हत्या से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. कई थानों की पुलिस और फील्ड यूनिट के साथ एसएसपी रोहित सिंह सजवान स्वयं मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले, चेहरे, पेट व आंख पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. हत्या इतनी बेदर्दी से की गई थी जैसे हत्यारे को मृतक से बेइंतहा नफरत रही हो. अस्पताल की इमारत के मालिक दुनका में रहने वाले नत्थूलाल थे. पीछे की ओर उन के भाई की दुकानों के टीन शेड में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उन कैमरों की रिकौर्डिंग की जांच की.

रिकार्डिंग में रात साढ़े 3 बजे के करीब एक युवक अस्पताल में खड़ी टाटा मैजिक के पीछे से निकलते दिखा. वह संजय की चारपाई के नजदीक आया. फिर उस ने मच्छरदानी हटाते ही धारदार छुरे से संजय पर वार करने शुरू कर दिए. एक मिनट के अंदर उस ने संजय का काम तमाम कर दिया और जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापस लौट गया. हत्यारे युवक को हरिओम ने पहचान लिया. वह दुनका का ही रहने वाला इमरान था. हत्यारे की पहचान होते ही पुलिस अधिकरियों ने उस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. पुलिस की कई टीमें इमरान की तलाश में लग गईं. इंसपेक्टर वीरेंद्र राणा की टीम ने दोपहर पौने एक बजे इमरान को रतनपुरा के जंगल में खोज निकाला. पुलिस को आया देख इमरान ने 315 बोर के तमंचे से पुलिस पर फायर कर दिया, जिस से कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ.

जवाब में पुलिस ने उस के पैर को निशाना बना कर गोली चला दी, जो सीधे इमरान के पैर में लगी. गोली लगते ही इमरान के हाथ से तमंचा छूट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इमरान के पास से पुलिस ने एक तमंचा, एक खोखा कारतूस, 2 जिंदा कारतूस और आलाकत्ल छुरा बरामद कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो पूरा मामला आइने की तरह साफ हो गया. इमरान शाही थाना क्षेत्र के गांव दुनका में रहता था. वह भाड़े पर टाटा मैजिक चलाता था. इस से पहले वह संजय के अस्पताल के मालिक नत्थूलाल के यहां ड्राइवर था. इमरान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. उस के पिता छोटे तांगा चलाते थे. इमरान 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

इमरान के घर से कुछ दूरी पर चांदनी उर्फ मायरा बानो (परिवर्तित नाम) रहती थी. नाम के अनुसार उस के रूप की चांदनी भी लोगों को लुभाती थी. उम्र के 18वें बसंत में चांदनी का यौवन अपने चरम पर था. खूबसूरत देहयष्टि वाली चांदनी युवकों से बात करने में हिचकती थी, वह बातबात में शरमा जाती थी. यौवन द्वार पर आते ही उस में कई परिवर्तन आ गए थे, शारीरिक रूप से भी और सोच में भी. कई युवक उस के आगेपीछे मंडराते थे, लेकिन चांदनी इमरान को पसंद करती थी. इमरान काफी स्मार्ट था, वह उस की नजरों से हो कर दिल में उतर गया था. इमरान भी उस के आगेपीछे मंडराता था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. घर वाले भी एकदूसरे के घर आतेजाते थे.

ऐसे में उन के बीच बातचीत होती रहती थी. लेकिन जब से उन के बीच प्यार के अंकुर फूटने लगे थे, तब से उन के बीच संकोच की दीवार सी खड़ी हो गई थी. जब भी इमरान उस की आंखों के सामने होता तो उस की निगाहें उसी पर जमी रहतीं. चेहरे पर इस की खुशी साफ झलकती थी. इमरान को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल तो वैसे भी चांदनी के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों से एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. दोनों इस बात को महसूस भी करते थे, लेकिन बात जुबां पर नहीं आ पाती थी. शुरू हो गई प्रेम कहानी एक दिन चांदनी जब इमरान के घर गई तो उस समय वह घर में अकेला था. चांदनी को देखते ही इमरान का दिल तेजी से धड़कने लगा.

उसे लगा कि दिल की बात कहने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. इमरान ने उसे कमरे में बैठाया और फटाफट 2 कप चाय बना लाया. चाय का घूंट भर कर चांदनी उस से दिल्लगी करती हुई बोली, ‘‘चाय तो बहुत अच्छी बनी है. बेहतर होगा कहीं चाय की दुकान खोल लो. खूब बिक्री होगी.’’

‘‘अगर तुम रोजाना दुकान पर आ कर चाय पीने का वादा करो तो मैं दुकान भी खोल लूंगा.’’ इमरान ने चांदनी की बात का जवाब उसी अंदाज में दिया तो चांदनी लाजवाब हो गई.

दोनों इसी बात पर काफी देर हंसते रहे, फिर इमरान गंभीर हो कर बोला, ‘‘चांदनी, मुझे तुम से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां, कहो न.’’

‘‘सोचता हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं कि बात क्या है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि अच्छा मानना है कि बुरा.’’

‘‘चांदनी, मैं तुम से दिलोजान से प्यार करता हूं. ये प्यार आज का नहीं बरसों का है जो आज जुबां पर आया है. ये आंखें तो बस तुम्हें ही देखना पसंद करती हैं, तुम्हारे पास रहने से दिल को करार आता है. तुम्हारे प्यार में मैं इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

इमरान के दिल की बात जुबां पर आ गई. सुन कर चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पलकें झुक गईं, होंठों ने कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां ने साथ नहीं दिया. चांदनी की यह हालत देख कर इमरान बोला, ‘‘कुछ तो कहो चांदनी. क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम से प्यार कर के तुम्हारा साथ पा सकूं.’’

‘‘क्या कहना ही जरूरी है, तुम अपने आप को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. सच पूछो तो जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया था. पर डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’ चांदनी ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया तो इमरान खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे सारी दुनिया की दौलत चांदनी के रूप में उस की झोली में आ समाई हो. एक बार दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो फिर उन के मिलनेजुलने का सिलसिला बढ़ गया. अब दोनों रोज गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर मिलने लगे. वहां दोनों एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते. जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई.

इसी बीच चांदनी को पेट दर्द की समस्या हुई तो उस ने इमरान को बताया. इमरान डा. संजय भदौरिया से परिचित था. इसलिए वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के अस्पताल में ले आया. डा. संजय ने चांदनी का चैकअप किया, फिर कुछ दवाइयां लिख दीं, जोकि उन के हौस्पिटल के मैडिकल स्टोर में उपलब्ध थीं, हरिओम ने पर्चे में लिखी दवाइयां दे दीं. चांदनी को देखते और उसे छूते समय संजय को एक सुखद अनूभूति हुई थी. चांदनी की खूबसूरती को देख संजय की आंखें चुंधिया गई थीं, दिल में भी उमंगें उठने लगी थीं. उस दिन के बाद चांदनी संजय के पास दवा लेने के लिए अकेले ही आने लगी. संजय उसे अकेले में देखता और उस से खूब बातें करता. बातोंबातों में उस ने चांदनी को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया. उस ने चांदनी से दवा के पैसे लेना भी बंद कर दिया था.

डा. संजय ने छीना इमरान का प्यार चांदनी भी संजय से खुल कर बातें करती थी. एक दिन संजय ने उस से कहा, ‘‘चांदनी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. लगता है मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.’’

यह कह कर संजय ने चांदनी के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. यह सुन कर चांदनी पल भर के लिए चौंकी, फिर बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में बहुत बड़े हैं और शादीशुदा भी. ऐसे में प्यार मुझ से…’’

‘‘पगली, प्यार उम्र और बंधन को कहां देखता है, जिस से होना होता है, हो जाता है. तुम मुझे अब मिली हो, अगर पहले मिल जाती तो मैं तुम से ही शादी करता. खैर अब वह तो हो नहीं सकता, उस की क्या बात करें. मैं तुम्हारा पूरा ख्याल रखूंगा, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं इमरान से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘इमरान से प्यार कर के तुम्हें क्या मिलेगा? वह एक मामूली इंसान है. तुम्हारी खुशियों का खयाल नहीं रख पाएगा. मेरे पास पैसा है, शोहरत है. मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. हर तरह से…’’

‘‘आप की बात तो सही है लेकिन…’’ दुविधा में पड़ी चांदनी इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई.

‘‘सोच लो, विचार कर लो, वैसे भी जिंदगी के अहम फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. कोई जल्दी नहीं, आराम से सोच कर बता देना.’’

इस के बाद चांदनी अस्पताल से घर लौट आई. उस के दिमाग में तरहतरह के विचार घुमड़घुमड़ रहे थे. इमरान उस का प्यार था लेकिन उस के सिर्फ प्यार से अच्छी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी. अच्छी जिंदगी के लिए पैसों की जरूरत होती है, वह जरूरत संजय से पूरी हो सकती थी. संजय के प्यार को स्वीकार कर के वह अच्छी जिंदगी गुजार सकती थी. आगे चल कर वह उसे शादी के लिए भी मना सकती थी, नहीं तो वह उस की दूसरी बीवी की तरह ताउम्र गुजार सकती थी. चांदनी का मन बदल गया और उस का फैसला संजय के हक में गया था. अगले ही दिन चांदनी संजय के अस्पताल पहुंच कर उस से मिली. उस के चेहरे की खुशी देख कर संजय जान गया था कि चांदनी ने उस का होने का फैसला कर लिया है. फिर भी अंजान बनते हुए उस ने चांदनी से पूछ लिया, ‘‘तो चांदनी, तुम ने क्या सोचा…इमरान या मैं?’’

‘‘जाहिर है आप, आप को न चुनती तो मैं यहां वापस आती भी नहीं.’’ चांदनी ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा. संजय उस का फैसला सुन कर खुश हो गया. उस दिन के बाद से संजय और चांदनी का मिलनाजुलना बढ़ गया. दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. इन नजदीकियों के बाद चांदनी ने इमरान से दूरी बनानी शुरू कर दी. चांदनी का अपने प्रति रूखा व्यवहार देख कर इमरान को उस पर शक हो गया. वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे सारी सच्चाई पता चल गई. इमरान ने बदले की ठान ली  इस बात को ले कर वह चांदनी से तो झगड़ा ही, संजय से भी लड़ा. संजय ने उसे डांटडपट कर वहां से भगा दिया. अपनी प्रेमिका को अपने से दूर जाते देख कर इमरान बौखला गया. वह उस दिन को कोसने लगा जब वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के पास ले गया था.

संजय ने उस की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए उस ने संजय की जिंदगी छीन लेने का फैसला कर लिया. 16/17 सितंबर की रात साढ़े 3 बजे के करीब वह संजय के अस्पताल में घुसा. उस ने संजय को बाहर चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते देखा. वह चारपाई के नजदीक पहुंचा और मच्छरदानी हटा कर साथ लाए छुरे से संजय पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. सोता हुआ संजय चीख तक न सका और उस की मौत हो गई. संजय को मौत के घाट उतारने के बाद इमरान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से अस्पताल से बाहर निकल गया. वहां से जाने के बाद वह रतनपुरा के जंगल में जा कर छिप गया. लेकिन उस का गुनाह तीसरी आंख में कैद हो गया था, जिस के बाद पुलिस को उस तक पहुंचने में देर नहीं लगी.

इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा ने हरिओम को वादी बना कर इमरान के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के अलावा मुठभेड़ के दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करने पर भी उस के खिलाफ धारा 307 का भी मुकदमा दर्ज किया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद इमरान को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Love Story : प्रेमी कपल को गेहूं के खेत बुलाकर गला दबाया और शव को कुएं में फेंका

Love Story : एक ही गांव में रहने वाले अंकित और सुलेखा साथसाथ पढ़ते थे. नाबालिग होते हुए भी दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया. धीरेधीरे उन के प्यार के चर्चे कालेज से होते हुए गांव तक पहुंच गए. फिर एक दिन उन के प्यार का ऐसा हश्र हुआ कि…

इटावा जिले के दिवरासई गांव का रहने वाला मेवाराम यादव अपनी गेहूं की पकी फसल काट रहा था. साथ में कई मजदूर भी कटाई कर रहे थे. दोपहर करीब 12  बजे प्यास लगी तो मेवाराम ने मजदूर सुदामा को पानी लाने प्रदीप कुमार के कुएं पर भेजा. सुदामा कुएं पर पहुंचा तो उसे कुएं से बदबू आती महसूस हुई. जिज्ञासावश उस ने कुएं में झांका तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कुएं में लाश पड़ी थी. सुदामा की चीख सुन कर मेवाराम और मजदूर भी कुएं के पास पहुंच गए. इस के बाद तो पूरे गांव में शोर मच गया. यह बात 2 अप्रैल, 2020 की है.

अपने कुएं में लाश पड़ी होने की जानकारी प्रदीप कुमार शाक्य को हुई तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का 17 वर्षीय बेटा अंकित 30 मार्च की शाम 7 बजे घर से निकला था और वापस नहीं लौटा था. उस ने घर वालों के साथ गांव का कोनाकोना छान मारा था, लेकिन अंकित का कुछ भी पता नहीं चला. वह बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने पुलिस के पास भी गया था लेकिन पुलिस ने उसे टरका दिया था. प्रदीप के मन में तमाम आशंकाओं के बादल उमड़ने लगे. इन्हीं आशंकाओं के बीच उस ने पत्नी दिलीप कुमारी तथा घर के अन्य लोगों को साथ लिया और खेत पर स्थित अपने कुएं पर जा पहुंचा. उस समय वहां दरजनों लोग थे, जो कुएं में झांकझांक कर लाश को देख रहे थे.

प्रदीप कुमार और उस के घर के अन्य लोगों ने भी कुएं में झांक कर लाश देखी, पर यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल था कि लाश किस की है. इस बीच गांव के चौकीदार ने भरथना थाने में फोन कर यह जानकारी दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी बलिराज शाही पुलिस टीम के साथ दिवरासई गांव स्थित उस कुएं पर पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी. गांव के 2 युवकों सूरज और राजू को कुएं में उतारा गया. दोनों अच्छे तैराक थे. कुएं में उतरते ही सूरज चिल्लाया, ‘‘सर, कुएं में एक नहीं 2 लाशें हैं.’’ यह सुन कर पुलिस के साथसाथ गांव वालों की भी सांसें अटक गईं. उन युवकों के सहयोग से पुलिस ने रस्सी के सहारे खींच कर दोनों शव कुएं से बाहर निकलवाए. शवों को देख कर वहां मौजूद लोगों ने उन की शिनाख्त कर ली. एक शव प्रदीप कुमार शाक्य के बेटे अंकित का था और दूसरा 16 वर्षीया सुलेखा का, जो गांव के ही रामप्रसाद की बेटी थी.

रामप्रसाद तथा उस के घर का कोई सदस्य वहां मौजूद नहीं था. थानाप्रभारी ने उस के घर सूचना भिजवाई. पर सूचना के बाद भी उस के घर से कोई नहीं आया. घटनास्थल पर मौजूद प्रदीप कुमार व उस की पत्नी दिलीप कुमारी अपने 17 वर्षीय बेटे अंकित के शव को देख कर दहाड़ें मार कर रो रहे थे. परिवार के अन्य लोगों का भी रोरो कर बुरा हाल था. इसी बीच थानाप्रभारी बलिराज शाही ने कुएं से युवकयुवती के शव मिलने की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एसएसपी आकाश तोमर तथा सीओ (भरथना) आलोक प्रसाद आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतक के घर वालों तथा अन्य लोगों से घटना के संबंध में जानकारी जुटाई. जिस से पता चला कि अंकित और सुलेखा एक ही कालेज में पढ़ते थे, दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. दोनों के घर वाले इस का विरोध करते थे. 2 दिन पहले ही दोनों देर शाम घर से निकले थे.

जामातलाशी में उन के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. पुलिस अधिकारियों को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि सुलेखा के घर वाले वहां नहीं आए थे. लोगों ने बताया कि मृतका के घर पर केवल महिलाएं हैं. पुरुष फरार हैं. सूचना के बावजूद घर की महिलाएं भी मृतका का शव देखने नहीं आईं, यह बात पुलिस की समझ से बाहर थी. इस से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यह मामला औनर किलिंग का हो सकता है. अंकित की मां दिलीप कुमारी भी चीखचीख कर कह रही थी कि उस के बेटे की हत्या सुलेखा के घर वालों ने की है. हत्या कर के शव कुएं में फेंक दिया ताकि लोग समझें कि दोनों ने आत्महत्या की है. मामला हत्या का था या आत्महत्या का, यह बात तो पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकती थी. पुलिस ने अंकित व सुलेखा के शव पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल इटावा भिजवा दिए.

3 अप्रैल, 2020 को 3 डाक्टरों के पैनल ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया. थानाप्रभारी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी तो चौंके. क्योंकि मामला आत्महत्या का नहीं, हत्या का था. उन की मौत पानी में डूबने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसएसपी आकाश तोमर को दे दी. एसएसपी ने प्रेमी युगल हत्याकांड को गंभीरता से लिया और कातिलों को पकड़ने के लिए सीओ आलोक प्रसाद की निगरानी में एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बलिराज शाही, एसआई अनिल कुमार, महिला सिपाही सरिता सिंह, एसओजी प्रभारी सत्येंद्र सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी बेचैन सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक अंकित के घर वालों से पूछताछ की. मृतक की मां दिलीप कुमारी ने बताया कि 30 मार्च को 7 बजे अंकित के मोबाइल पर एक काल आई थी. उस ने काल रिसीव कर बात की फिर घर से चला गया. उस के बाद वापस नहीं लौटा. 2 दिन बाद उस की लाश मिली. उस ने अंकित की हत्या का आरोप सुलेखा के घर वालों पर लगाया. अंकित का मोबाइल घर पर ही था, जिसे वह चार्जिंग पर लगा गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने जब उस का मोबाइल खंगाला तो पता चला कि उस के मोबाइल पर अंतिम काल 30 मार्च की शाम 7 बजे आई थी. पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला वह नंबर सुलेखा के चचेरे भाई सौरभ का है. पर सौरभ सहित घर के अन्य सदस्य फरार थे.

पुलिस टीम सुलेखा के घर पहुंची तो उस की मां सीता देवी और बहनें फूटफूट कर रोने लगीं. उन्होंने बताया कि सुलेखा की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. घर के पुरुष बदनामी और पुलिस के डर से फरार हो गए हैं. सीता देवी ने यह बात स्वीकार की कि सुलेखा अंकित से प्यार करती थी और परिवार के लोग विरोध करते थे. सुलेखा का मोबाइल फोन भी घर पर ही था. पुलिस ने उस का मोबाइल अपने पास सुरक्षित रख लिया. प्रेमी युगल की हत्या का इलजाम दोनों परिवार एकदूसरे पर लगा रहे थे. पुलिस परेशान थी कि आखिर अंकित और सुलेखा का कातिल कौन सा परिवार है. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने सुलेखा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि सुलेखा 2 नंबरों पर दिन में कईकई बार बात करती थी.

इन में एक नंबर अंकित का था और दूसरा अंकित की चचेरी बहन आरती का था, जो उस की सहेली थी और उस के साथ ही पढ़ती थी. पुलिस को लगा कि आरती से सच्चाई पता चल सकती है. 4 अप्रैल की रात 11 बजे पुलिस टीम अंकित के चाचा रामकुमार के घर पहुंची और पूछताछ के बहाने उस की बेटी आरती को जीप में बिठा लिया. घर वालों ने रात में बेटी को थाने ले जाने का विरोध किया तो पुलिस ने कहा कि उस से कुछ पूछताछ करनी है. थाने में पुलिस ने आरती को प्रताडि़त कर पूछताछ शुरू की. दरअसल पुलिस चाहती थी कि आरती यह स्वीकार कर ले कि प्रेमी युगल की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. इस बीच आरती के पिता और भाई थाने पहुंच गए तो उन दोनों को भी जम कर पीटा गया. जब आरती नहीं टूटी तो पुलिस उसे उस के घर छोड़ गई.

आरती एवं उस के घर वालों ने एसएसपी आकाश तोमर से प्रताड़ना की शिकायत की. इस पर एसएसपी ने थानाप्रभारी बलिराज शाही को फटकार लगाई, साथ ही सीओ से भी बात की. उन्होंने कहा कि वह केस को वर्कआउट करें, लेकिन किसी को अनावश्यक प्रताडि़त न करें. एसएसपी की हिदायत के बाद पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाते हुए मृतका सुलेखा के पिता, भाई, चाचा और चचेरे भाई पर शिकंजा कस दिया. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही उन की टोह के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. यही नहीं, पुलिस ने घर जा कर मृतका सुलेखा की बहन बरखा से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की.

बरखा ने बताया कि पिता, चाचा व भाई सुलेखा को बहलाफुसला कर गेहूं के खेत पर ले गए थे. उस के बाद वह घर वापस नहीं आई. बरखा के बयान से स्पष्ट हो गया कि सुलेखा व उस के प्रेमी अंकित की हत्या उस के घर वालों ने ही की थी, अत: पुलिस ने सुलेखा के पिता रामप्रसाद, भाई सनी कुमार, चाचा राजीव उर्फ राजी तथा चचेरे भाई सौरभ को गिरफ्तार करने के लिए कई जगह ताबड़तोड़ दबिश डालीं, लेकिन वे लोग पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. हालांकि उन की लोकेशन भरथना के आसपास के गांवों की मिल रही थी. 7 अप्रैल की सुबह करीब 6 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि इटावा कन्नौज हाइवे पर स्थित झिझुआ मोड़ गेट के पास रामप्रसाद अपने भाई राजीव, बेटे सनी और भतीजे सौरभ के साथ मौजूद है.

यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम झिझुआ मोड़ गेट के पास पहुंच गई और घेराबंदी कर चारों को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी को थाना भरथना लाया गया. थाने में उन से सुलेखा और अंकित की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए. उन चारों से गहन पूछताछ के बाद पता चला कि प्रेमी युगल की हत्या का मास्टरमाइंड सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी था. उस ने ही पूरा षडयंत्र रचा था और घर के अन्य लोगों को उकसाया था. चूंकि हत्यारोपियों ने जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी बलिराज शाही ने मृतका के पिता प्रदीप शाक्य की ओर से भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रामप्रसाद, राजीव उर्फ राजी, सनी कुमार तथा सौरभ कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस जांच में नादान प्रेमियों की हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के थाना भरथना क्षेत्र में एक गांव है दिवरासई. इसी गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा 2 बेटे सनी और मनी तथा 4 बेटियां थीं. जिन में सुलेखा तीसरे नंबर की थी. रामप्रसाद के पास 10 बीघा जमीन थी. रामप्रसाद का एक अन्य भाई राजीव प्रसाद था, जिसे गांव के लोग राजी कहते थे. दोनों भाइयों के बीच जमीन व मकान का बंटवारा हो चुका था. राजीव दबंग था, पढ़ालिखा भी. किसानी के साथ वह किराने की दुकान भी चलाता था. दुकान पर उस का बेटा सौरभ बैठता था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. सुलेखा और बरखा के अलावा सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. बरखा 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. घर के कामों के साथसाथ वह पढ़ती भी थी.

रामप्रसाद के पड़ोस में प्रदीप कुमार शाक्य का मकान था. उस के परिवार में पत्नी दिलीप कुमारी के अलावा 2 बेटे अमन और अंकित थे. प्रदीप कुमार शाक्य खेतीकिसानी के अलावा गल्ले का व्यवसाय भी करता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. उन का 17 वर्षीय बेटा अंकित 11वीं में पढ़ रहा था. पढ़ाई के साथसाथ वह पिता के गल्ले के काम में हाथ बंटाता था. रामप्रसाद व प्रदीप कुमार हालांकि अलगअलग जातिबिरादरी के थे, लेकिन पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों में मधुर संबंध थे. एकदूसरे के सुखदुख में बराबर शरीक होते थे. सुलेखा और अंकित हमउम्र थे. बचपन से ही दोनों साथ खेलेबढ़े थे. उन में खूब पटती थी.

दोनों अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इसलिए वे साथसाथ खेल तो नहीं पाते थे पर आंखों से एकदूसरे को मूक संदेश देने लगे थे. अंकित की शरारत पर सुलेखा शरमा जाती तो अंकित उसे छूते ही मदहोशी के आलम में पहुंच जाता था. हकीकत यह थी कि सुलेखा उस के दिल की गहराइयों तक समा चुकी थी. वह रातदिन उसी के ख्वाब देखता था. सुलेखा और अंकित एक ही कालेज में पढ़ते थे. सुलेखा अंकित की चचेरी बहन आरती के साथ कालेज जाती थी. वह उस की प्रिय सहेली थी और उसी की कक्षा में पढ़ती थी. एक दिन सुलेखा कालेज जा रही थी तभी अंकित उसे रास्ते में मिल गया. अंकित ने इशारे से उसे पेड़ की ओट में बुलाया. दोनों की आंखें चार हुईं और दिल धड़कने लगे.

अंकित ने अनायास ही सुलेखा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘सुलेखा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारा खूबसूरत चेहरा हर समय मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है.’’

सुलेखा नजरें नीची कर के मंदमंद मुसकराती हुई पैर के अंगूठे से मिट्टी खुरचती रही. उस की खामोशी से अंकित को उस के दिल की बात पता चल गई. वह समझ गया कि जो हाल उस का है, वही सुलेखा का भी है. अंकित ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘कुछ तो बोलो, मैं तुम्हारा जवाब सुनने को बेचैन हूं. अगर तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो मुझे डांट दो. लेकिन एक बात जान लो सुलेखा कि अगर तुम ने इनकार किया तो तुम्हारी कसम मैं जान दे दूंगा. तुम्हारे बिना अब मैं जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

सुलेखा ने आंखें फाड़ कर अंकित को देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंकित, मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं जितना तुम मुझे करते हो. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी कि तुम मुझ से यह बात कहो, लेकिन तुम तो निरे बुद्धू हो.’’ अपनी बात कह कर वह घर की तरफ चल दी. जवाब में अंकित ने कहा, ‘‘सुलेखा, सचमुच मैं बुद्धू हूं, डरपोक हूं. तभी तो सब कुछ जानते हुए भी तुम्हारे सामने नहीं आ पाता था.’’

इस के बाद अंकित और सुलेखा का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुलेखा और अंकित घर से कालेज जाने को निकलते लेकिन वे कालेज न जा कर बागबगीचे में बैठ कर प्यारभरी बातें करते. एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा तो दोनों शारीरिक मिलन के लिए लालायित रहने लगे. और एक दिन उन की यह हसरत भी पूरी हो गई. समय बीतता रहा. धीरेधीरे दोनों के प्यार की खुशबू स्कूलकालेज के साथसाथ गांव की गलियों में फैलने लगी. एक कान से दूसरे कान होती हुई यह बात रामप्रसाद के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उस ने बेटी को डांटने के बजाए प्यार से समझाया, ‘‘सुलेखा, जब तक तेरा बचपन रहा, मैं ने तुझ पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. लेकिन अब तू सयानी हो गई है, इसलिए अंकित के साथ चोरीछिपे बतियाना छोड़ दे. तुझे और अंकित को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. इसलिए मेरी इज्जत की खातिर तू उस का साथ छोड़ दे. इसी में हम सब की भलाई है.’’

‘‘पापा, लोग यूं ही बातें बनाते हैं. हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं हैं. मैं अंकित से पढ़ाई के बारे में बातचीत कर लेती हूं.’’ सुलेखा ने झूठ बोला. रामप्रसाद ने सुलेखा की बातों पर विश्वास कर लिया. इस के बाद कुछ रोज सुलेखा अंकित से कटी रही. हालांकि चोरीछिपे दोनों मोबाइल पर बतिया लेते थे. उस के बाद वह पुराने ढर्रे पर आ गई. एक दिन सुलेखा घर में अकेली थी, तभी अंकित आ गया. उसे देखते ही सुलेखा चहक उठी. सूना घर देख कर अंकित ने उसे अपने आगोश में भर लिया, ‘‘लगता है, तुझे मेरा ही इंतजार था.’’

‘‘क्यों, तुम्हें मेरा इंतजार नहीं रहता क्या?’’ सुलेखा ने आंखें नचाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे, दरवाजा खुला है.’’

अंकित को लगा मौका अच्छा है. सुलेखा भी मूड में थी. उस ने फौरन दरवाजा बंद किया और लौट कर जैसे ही सुलेखा का हाथ पकड़ा, वह अमरबेल की तरह उस से लिपट गई. फिर दोनों सुधबुध खो बैठे. अवैध संबंधों का सिलसिला इसी तरह चलता रहा. लेकिन यह रिश्ता कब तक छिपा रहता. एक दिन सुलेखा की मां सीता अपनी बड़ी बेटी बरखा के साथ पड़ोसी के घर गई थी. कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम था. एकांत मिलते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उसी समय अचानक सीता आ गई.  सुलेखा और अंकित को आलिंगनबद्ध देख कर सीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. अंकित को खरीखोटी सुनाते हुए वह उसे थप्पड़ जड़ कर बोली, ‘‘आस्तीन के सांप, मैं ने तुझे बेटा समझा था. तुझ पर भरोसा किया था, लेकिन तूने मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया.’’

अंकित सिर झुकाए वहां से चला गया तो सीता सुलेखा पर टूट पड़ी. उसे लातघूंसों से मारते हुए बोली, ‘‘आज के बाद अगर तू कभी अंकित से मिली तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

सीता देवी ने सुलेखा के गलत राह पर जाने की जानकारी पति रामप्रसाद व बेटे सनी कुमार को दी तो उन दोनों ने सुलेखा को मारापीटा तथा घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी. जब पाबंदियां सुलेखा को बेचैन करने लगीं तब उस ने अंकित की चचेरी बहन आरती का सहारा लिया. चूंकि आरती सुलेखा की सहेली थी, सो वह उस की मदद को राजी हो गई. आरती अपने फोन पर अंकित और सुलेखा की बात कराने लगी. मां या बहन बरखा जब कभी सुलेखा का फोन चैक करतीं तो पता चलता कि फोन पर आरती से बात हुई थी. सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी गांव का दबंग आदमी था. जब उसे पता चला कि उस की भतीजी सुलेखा गैरजाति के लड़के अंकित के प्यार में दीवानी है तो उसे बहुत बुरा लगा.

उस ने अंकित और उस के घर वालों से मारपीट की. साथ ही हिदायत दी कि वह सुलेखा से दूर रहे वरना अंजाम ठीक नहीं होगा. राजीव ने सुलेखा को भी प्रताडि़त किया तथा उस पर पाबंदी बढ़ा दी. अंकित और सुलेखा प्यार के उस मुकाम पर पहुंच चुके थे, जहां से वापस लौटना नामुमकिन था. पाबंदी के बावजूद वे एकदूसरे से मिल लेते थे. ऐसे ही एक रोज जब अंकित की मुलाकात सुलेखा से हुई तो वह बोला, ‘‘सुलेखा, तुम्हारी जुदाई मुझ से बरदाश्त नहीं होती और घर वाले मिलने में बाधक बने हुए हैं. इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ भाग चलो. हम दोनों कहीं दूर जा कर अपना आशियाना बना लेंगे.’’

अंकित की बात सुन कर सुलेखा गंभीर हो गई, ‘‘तुम्हारे साथ भागने से मेरे परिवार की बदनामी होगी. मेरी एक गलती चाचा, पापा और परिवार पर भारी पड़ेगी. मेरी सगी बहन बरखा व चचेरी बहनें भी कुंवारी रह जाएंगी. इस के लिए मजबूर मत करो.’’

‘‘सोच लो सुलेखा, यह हमारी जिंदगी का सवाल है. मैं तुम्हें कुछ वक्त देता हूं. इतना जान लो कि तुम मुझे नहीं मिली तो मैं कुछ भी कर गुजरूंगा.’’ अंकित ने कहा और चला गया. पर इस के पहले कि सुलेखा कुछ निर्णय कर पाती, मार्च के अंतिम सप्ताह में देश में लौकडाउन की घोषणा हो गई. ऐसी स्थिति में घर से भागना खतरे से खाली न था, अत: अंकित ने इंतजार करना ही उचित समझा. इधर न जाने कैसे सुलेखा के चाचा राजीव उर्फ राजी को यह पता चल गया कि अंकित और सुलेखा घर से भागने की फिराक में हैं.

इस के पहले कि सुलेखा घर से भागे और उस के परिवार पर दाग लगे, राजीव ने दोनों को ही मिटाने की ठान ली. इस के बाद उस ने अपने भाई रामप्रसाद, बेटे सौरभ कुमार और भतीजे सनी के साथ एक योजना बनाई. योजना के तहत सौरभ ने 30 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे सुलेखा के प्रेमी अंकित को फोन कर के अपनी दुकान पर बुलाया. जब अंकित दुकान पर पहुंचा तो वह दुकान बंद कर रहा था. सौरभ अंकित को सुलेखा के संबंध में कुछ जरूरी बात करने के बहाने गांव के बाहर अपने गेहूं के खेत पर ले गया. वहां राजीव, रामप्रसाद और सनी पहले से घात लगाए बैठे थे. अंकित के पहुंचते ही उन सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और मुंह दबा कर मार डाला.

अंकित को मौत की नींद सुलाने के बाद राजीव अपने भतीजे सनी के साथ घर पहुंचा. सुलेखा उस समय अपनी बहन बरखा के साथ बतिया रही थी. उन दोनों ने सुलेखा से बात की और फिर अंकित और सुलेखा को आमनेसामने बैठा कर बात करने और कोई ठोस निर्णय लेने की बात कही. सुलेखा इस के लिए राजी हो गई. इस के बाद वे उसे बहला कर गेहूं के खेत पर ले आए. सुलेखा ने पूछा, ‘‘अंकित कहां है?’’

‘‘वह वहां पड़ा सो रहा है. उसे जगा कर बात करो.’’ राजीव के होठों पर कुटिल मुसकान तैर रही थी. चंद कदम चल कर सुलेखा अंकित के पास पहुंची और उसे हिलायाडुलाया, पर वह तो मर चुका था. सुलेखा को समझते देर नहीं लगी कि घर वालों ने उस के प्रेमी अंकित को मार डाला है. अब वे उसे भी नहीं छोडेंगें. वह बदहवास हालत में घर की ओर भागी. लेकिन अभी वह खेत की मेड़ भी पार नहीं कर पाई थी कि रामप्रसाद और सौरभ ने उसे सामने से घेर लिया, ‘‘भागती कहां है कुलच्छिनी. अब तुझे भी नहीं छोडेंगे.’’

इसी के साथ रामप्रसाद, राजीव, सनी और सौरभ ने मिल कर सुलेखा को जमीन पर पटक दिया. फिर रामप्रसाद ने मुंह दबा कर बेटी की सांसें बंद कर दीं. हत्या करने के बाद उन लोगों ने बारीबारी से दोनों के शव अंकित के ही कुएं में डाल दिए. ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि लोगों को लगे कि दोनों ने आत्महत्या की है. इधर जब अंकित देर रात तक घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने उस की खोज शुरू की. अंकित को खोजते हुए उस की मां दिलीप कुमारी रामप्रसाद के घर गई तो उस ने इलजाम लगाया कि अंकित उस की बेटी को भगा ले गया है. दिलीप कुमारी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही तो रामप्रसाद अपने बेटे सनी कुमार, भाई राजीव व भतीजे सौरभ के साथ घर से गायब हो गया.

दिलीप कुमारी रिपोर्ट लिखाने गई थी, पर पुलिस ने उस की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. 2 अप्रैल, 2020 को घटना का खुलासा तब हुआ जब सुदामा नाम का मजदूर पानी लेने कुएं पर गया. पुलिस ने 8 अप्रैल, 2020 को अभियुक्त राजीव उर्फ राजी, सौरभ कुमार, रामप्रसाद तथा सनी से पूछताछ के बाद इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra Crime : प्रेमिका ने प्रेमी संग मिलकर पति को पत्थर से कुचलकर मार डाला

Agra Crime : अनीता की घरगृहस्थी ठीक चल रही थी, लेकिन उस ने पड़ोसी युवक सनी की तरफ अनीति के कदम बढ़ा दिए. यही कदम उसे और उस के प्रेमी सनी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा देंगे, ऐसा उन्होंने सोचा तक न था…

ताजनगरी आगरा के सिकंदरा क्षेत्र के नगला सोहनलाल में अपने पति व बच्चों के साथ रहती थी 30 वर्षीय अनीता. उस का विवाह करीब 14 साल पहले गुलाब सिंह से हुआ था. उस के 3 बच्चे थे. गुलाब सिंह घर के पास ही जूते बनाने की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस दिन गुलाब सुबह फैक्ट्री चला गया. बच्चे स्कूल चले गए. फिर अनीता ने आराम से बैठ कर चायनाश्ता किया. चाय पी कर जब उस ने दोपहर के खाने का इंतजाम करना चाहा  तो बनाने के लिए घर पर कोई सब्जी नहीं थी. इसलिए वह दोपहर व शाम के लिए बाजार से सब्जी खरीदने चली गई. घंटे भर बाद जब वह बाजार से वापस लौट रही थी, तभी उसे पीछे से बाइक के हौर्न की आवाज सुनाई दी. अनीता ने मुड़ कर देखा तो उसे अपनी बगल में बाइक पर सवार एक युवक दिखाई दिया. उसे देखते ही अनीता पहचान गई.

वह उस के पड़ोस में रहने वाला सनी था. 22 वर्षीय सनी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अनीताजी, इतना सारा सामान ले कर पैदल क्यों जा रही हो? मैं भी घर ही जा रहा हूं, आइए आप को छोड़ दूंगा.’’

‘‘आप बेवजह परेशान होंगे?’’ अनीता ने मुसकरा कर कहा. हालांकि वह मन ही मन सनी की पेशकश पर राहत महसूस कर रही थी.

‘‘देखिए, आप मुझ से गैरों की तरह व्यवहार कर रही हैं. मैं आप का पड़ोसी हूं. पड़ोसी होने के नाते आप की मदद करना मेरा फर्ज है.’’ कह कर सनी ने बाइक रोकी और अनीता के हाथ से सामान के थैले ले कर बाइक में लगे हुक में फंसा दिए. फिर बाइक पर बैठते हुए अनीता से बोला, ‘‘आइए बैठिए.’’

अनीता सकुचाते हुए बाइक पर उस के पीछे बैठ गई. कुछ ही देर में दोनों नगला सोहनलाल पहुंच गए. अनीता बाइक से उतरी और थैले हुक से निकालने लगी तो सनी ने उसे टोका, ‘‘आप नाहक परेशान हो रही हैं, मैं सामान अंदर रख देता हूं. इस बहाने कम से कम आप एक कप चाय तो पिलाओगी.’’

‘‘अरे, आप कैसी बातें कर रहे हैं? चाय तो मैं आप को पिलाऊंगी ही.’’ अनीता सनी की बात से झेंप गई थी.

अनीता ने अपने घर के मेन गेट का ताला खोला और सनी के साथ अंदर आ गई. सनी को कमरे में बैठा कर अनीता चाय बनाने चली गई. सनी कागारौल में रहता था. लेकिन नगला सोहनलाल के पास एक फैक्टरी में काम करने के कारण उस ने नगला सोहनलाल में ही किराए पर एक कमरा ले लिया था. सनी अविवाहित था और काफी खूबसूरत नौजवान था. जब उस की नजर पड़ोस में रह रही अनीता पर पड़ी तो उस के हुस्न से उस की आंखें चुंधिया गईं. उस के पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए उसे अनीता के बारे में जानने में देर नहीं लगी. वह जान गया था कि अनीता विवाहित है और 3 बच्चों की मां है. 3 बच्चों की मां होने वाली बात जानने के बाद तो सनी हैरत में पड़ गया. क्योंकि देखने से किसी तरह भी नहीं लगता था कि वह 3 बच्चों की मां है. इस का मतलब यह था कि अनीता का खूबसूरत हुस्न सदाबहार था, ऐसे हुस्न पर उम्र का कोई असर नहीं पड़ता.

सनी उसे किसी भी तरह अपना बनाना चाहता था. इसी वजह से वह जानबूझ कर उस के सामने पड़ता और राह चलते पड़ोसी होने का एहसास कराते हुए उस के हालचाल पूछ लेता. नजरें टकरातीं तो वह अनीता को देख कर मुसकरा देता. उस दिन संयोग ही था कि जब वह बाजार से घर लौट रहा था तो उस की नजर अनीता पर पड़ गई. मौका अच्छा देख कर वह उस के पास पहुंच गया और मदद के बहाने उस के साथ उस के घर तक पहुंच गया. चाय पीने के बाद सनी जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, ‘‘अनीताजी, अपने हाथों से बढि़या टेस्टी चाय पिलाने का शुक्रिया. अगर आप को कभी किसी चीज की जरूरत हो या मेरी मदद की आवश्यकता पड़े तो आप मुझे तुरंत बुला लेना.’’

कह कर उस ने अनीता को अपना मोबाइल नंबर नोट करा दिया और अनीता ने भी उसे अपना नंबर दे दिया. उस दिन के बाद उन दोनों में गाहेबगाहे फोन पर बातचीत होने लगी. कभी सुबह कभी दोपहर के समय सनी अनीता के पास आ कर बैठ जाता था. दोनों काफी देर वे बातें करते रहते थे. सनी उस से मीठीमीठी बातें करता था, अत: अनीता को भी उस से अपना वक्त बांटना अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे दोनों की मित्रता गहराने लगी. उस रोज शाम को तेज बरसात हो रही थी. अपने कमरे के बाहर खड़ा सनी बादल की गरज और बरसते पानी को देख रहा था. ऐसे मौसम में उसे अकेलापन बहुत साल रहा था. तभी अचानक उस की निगाह सामने सड़क पर पानी में भीगती हुई आ रही अनीता पर पड़ी. अनीता के हाथ में एक बैग भी था.

पानी से पूरी तरह भीग जाने से अनीता का पीला कुरता उस के बदन से चिपक गया था, जिस से उस का हुस्न उस भीगे कुरते में नुमाया हो रहा था. उस के भीगे अप्रतिम सौंदर्य को सनी एकटक देखता रह गया. एकाएक उस के तनमन में चाहत की एक अनोखी बरसात होने लगी.  फिर एकाएक उस ने कमरे में जा कर छतरी उठाई और अनीता की तरफ दौड़ा. उस ने अनीता को छतरी की ओट में लेते हुए पूछा, ‘‘आप तो बारिश में बुरी तरह भीग गई हैं?’’

‘‘जब मैं घर से निकली थी, तब अनुमान नहीं था कि इतनी तेज बारिश हो जाएगी. मुझे उम्मीद थी कि मैं बारिश होने से पहले ही घर पहुंच जाऊंगी.’’ अनीता अपने आप में सिमट गई. अपनी हालत पर उसे शर्म आ रही थी.

सनी अनीता को छतरी की ओट में उस के घर तक लाया. अनीता ने उसे कमरे में बैठने का संकेत करते हुए कहा, ‘‘आप दो मिनट बैठो. मैं कपड़े बदल कर आती हूं.’’

सनी के दिमाग में अजीब सी उथलपुथल मची हुई थी. वह अनीता का भीगा सौंदर्य देखने के बाद अपनी सुधबुध खो बैठा था. वह सोच भी नहीं सकता था कि अनीता की खूबसूरती इस तरह कयामत ढाने वाली होगी. रहरह कर अनीता का भीगा बदन उस के हवास पर ठोकर मार रहा था.

‘‘ये लीजिए चाय.’’ आवाज सुन कर सनी की तंद्रा टूटी. उस ने चौंक कर अनीता की तरफ देखा. भीगे खुले बालों में अनीता उस समय अनिंद्य रूपसी नजर आ रही थी. सनी ने कांपते हाथों से चाय का प्याला पकड़ा. अनीता उस के सामने एक कुरसी पर बैठ कर तौलिए से अपने गीले बालों को सुखाने लगी. सनी नजरें झुका कर चाय पीने की कोशिश करने लगा. लेकिन कनखियों से वह अनीता के सौंदर्य को निहार रहा था. अनीता ने भी उस की इस चोरी को पकड़ लिया था. वह मुसकराते हुए सनी से बोली, ‘‘तुम्हारी शादी हो गई?’’

‘‘अभी नहीं हुई,’’ सनी मुसकराया, ‘‘रिश्ते तो बहुत आ रहे हैं, लेकिन मुझे कोई लड़की पसंद नहीं आ रही.’’

‘‘लगता है तुम्हारी कोई खास पसंद है?’’

‘‘हां, ऐसा ही कुछ समझ लो. जिस के सामने रूप का खजाना फैला हो, उसे सामान्य लड़की कैसे पसंद आ सकती है.’’ सनी ने यह बात अनीता की तरफ देखते हुए कुछ इस ढंग से कही कि अनीता एक क्षण के लिए सकुचा गई.

उस ने अपने आप को संभाल कर कहा, ‘‘कम से कम कुछ हिंट तो दो कि तुम्हें कैसी दुलहन चाहिए. अगर तुम मुझे अपनी पसंद बताओगे तो मैं कोशिश करूंगी कि तुम्हारी पसंद की लड़की ढूंढ सकूं.’’

सनी कुछ क्षणों के लिए चुपचाप अनीता को निहारता रहा, ‘‘मुझे बिलकुल आप जैसी दुलहन चाहिए.’’

सनी ने यह बात कही तो कुछ देर के लिए अनीता चुप रही, फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘तुम मजाक बहुत अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा हूं. अगर ऊपर वाले ने आप जैसी कोई और लड़की बनाई हो तो मुझे दिखाना. वैसे मेरा खयाल है कि वह ऐसा नायाब हीरा एक ही बनाता है.’’

तारीफ की यह इंतहा थी. ऐसी इंतहा औरतों को अच्छी लगती है. फिर भी अनीता ने बनते हुए कहा, ‘‘आखिर मुझ में ऐसा क्या खास है कि आप को मेरे जैसी बीवी की आस है.’’

‘‘यह तो मेरा दिल और मेरी आंखें जानती हैं कि आप में ऐसा क्या खास है. जो कुछ भी मैं कह रहा हूं, वह एकदम सच है.’’ सनी ने जब यह बात कही तो अनीता के मुंह से बोल नहीं फूटे. सनी के जाने के बाद भी अनीता के कानों में सारी रात उस के कहे शब्द गूंजते रहे. यह हकीकत है कि तारीफ हर नारी की कमजोरी है. सनी की बातों ने उस रात उस की आंखों से नींद छीन ली थी. अगले दिन जब सनी अनीता के घर आया तो उसे ही देखता रहा. अनीता ने उस से नजरें चुराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें और कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे ही देखते रहते हो?’’

‘‘जी हां, आप सही कह रही हैं. मुझे आप के सिवा कुछ भी नहीं दिखता. आप नहीं जानतीं, आप ने मेरा सुखचैन छीन लिया है. आप की वजह से मैं कोई काम नहीं कर पाता. मैं हर वक्त केवल आप के बारे में ही सोचता रहता हूं.’’ सनी अपनी ही रौ में कहता चला गया. अनीता ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘मुझे परेशान मत करो.’’

यह सुन कर सनी वहां से चला गया. सनी अपने कमरे पर पहुंच गया. वह कुछ देर चुपचाप बैठा रहा और अनीता के बारे में सोचता रहा. फिर उस ने मोबाइल उठाया और अनीता के मोबाइल पर मैसेज भेज दिया. मैसेज में उस ने ‘सौरी’ लिखा था. अनीता ने अपने मोबाइल पर आए सनी के मैसेज को देखा तो कुछ देर तक मैसेज को देखती रही, फिर उस ने सनी को काल किया. सनी ने जैसे ही फोन उठाया, अनीता ने कहा, ‘‘तुम तुरंत मेरे  घर आओ.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. सनी हड़बड़ा गया. उसे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि अनीता ने खुद उसे अपने घर बुलाया है. वह समझ गया कि अनीता उस से नाराज नहीं है. वह लगभग दौड़ता हुआ अनीता के कमरे पर पहुंच गया. अनीता ने उसे बैठने का इशारा किया. सनी कुरसी पर बैठ गया. अनीता ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम ने कल जो भी कहा था, वह तुम्हें नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं, मैं ने कुछ भी गलत नहीं कहा था. मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं.’’ सनी एकएक शब्द सोच कर कह रहा था, ‘‘आप मेरी बातों का गलत मतलब मत निकालिए. मेरे दिल में कोई पाप नहीं है. मुझे आप बेहद सुंदर लगती हैं, इसलिए मैं ने अपने दिल की बात ईमानदारी से आप से कह दी थी. यदि यह बात मैं छिपा कर रखता तो यह अच्छा नहीं होता.’’

सनी की बात सुन कर अनीता मुसकरा दी, ‘‘तुम से बातों में कोई नहीं जीत सकता.’’

सनी को महसूस होने लगा कि अनीता के दिल में उस के लिए कुछ जगह जरूर है. इस के बाद दोनों की नजदीकियां और भी बढ़ गईं. जब भी दोनों बैठते तो घंटों बातें करते रहते. सर्दियों के दिन आ गए थे. एक दिन दोनों बाइक पर सवार हो कर काफी दूर निकल गए थे. खुली सड़क पर बाइक चलाते हुए सनी को सर्दी लगने लगी थी. यह देख कर पीछे बैठी अनीता ने उसे अपनी शौल में ढकने की कोशिश की. इस कोशिश में वह सनी से चिपक कर बैठ गई. अनीता के बदन का स्पर्श पा कर सनी की कनपटियां गरम होने लगीं. वह फंसेफंसे स्वर में बोला, ‘‘प्लीज, आप मुझ से इतना सट कर मत बैठिए.’’

‘‘क्यों? मैं तो तुम्हें ठंड से बचाना चाहती हूं.’’

‘‘लेकिन मैं ठीक से गाड़ी नहीं चला पाऊंगा, मुझे कुछकुछ हो रहा है.’’ सनी कांपती हुई आवाज में बोला.

‘‘क्यों जनाब! ऐसा क्या हो रहा है?’’ अनीता ने यह बात कुछ इस अदा से कही कि सनी ने बाइक रोक दी और पीछे पलट कर शरारत से अनीता की आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘मैं बता दूं कि मुझे क्या हो रहा है?’’

‘‘तुम्हें जो कुछ बताना है, वह यहां खुली सड़क पर नहीं, मेरे घर चल कर बताना.’’ अनीता ने प्यार से उस के चेहरे को आगे घुमाया तो सनी को कुछ और समझने की जरूरत नहीं रह गई थी. अनीता सनी को ले कर घर पहुंच गई. उस ने कमरा बंद किया तो वह अनीता का हाथ पकड़ कर शरारत से बोला, ‘‘अब बता दूं, क्या हो रहा था?’’

‘‘मुझे पता है तुम कांप रहे थे,’’ अनीता ने अपना हाथ उस के सीने पर रख दिया, ‘‘और तुम्हारा दिल भी तेजतेज धड़क रहा है.’’

‘‘जब तुम सब कुछ जानती हो तो तरसा क्यों रही हो, मेरी धड़कनों को समझा दो न.’’ कहते हुए सनी ने उस की कमर में बांहें डाल कर उसे खुद से चिपका लिया.

‘‘मैं कैसे समझाऊं?’’ अनीता ने हया से सिर झुका लिया.

‘‘ऐसे.’’ अनीता की चिबुक उठा कर उस के लरजते होंठ अपने सामने कर लिए. फिर अपने दहकते होंठों से चूमा तो अनीता के बदन में चिंगारियां सी उठने लगीं. इस के बाद जो दोनों उन के बीच हुआ, वह दुनिया की नजर में नाजायज रिश्ता कहलाता है. हवस की जो आग उस दिन दोनों के जिस्म में उतरी थी, उसे बुझाने के लिए अब दोनों प्राय: दिन में एकदूसरे के जिस्म में खुशियां ढूंढने लगे. 12 सितंबर, 2020 को तड़के 4 बजे नगला सोहनलाल गांव के कुछ लोगों ने गांव के पास ही एनएच-2 के सामने निर्माणाधीन पुल के नीचे किसी युवक की लाश पड़ी देखी. पास जा कर गांव वालों ने देखा तो वह लाश गांव की ही रहने वाली अनीता के पति गुलाब सिंह की निकली. गांव के लोगों ने घटना की सूचना पत्नी अनीता के अलावा गुलाब सिंह के भाई बच्चू सिंह को दी जोकि गुलाब सिंह के घर के पास में ही रहता था. बच्चू सिंह अपने पिता मवासीराम के साथ मौके पर पहुंच गया.

अनीता भी वहां पहुंच गई. गुलाब सिंह की लाश देख कर सभी बिलखबिलख कर रोने लगे. किसी ने 112 नंबर पर काल कर के घटना की सूचना दे दी थी. घटनास्थल सिकंदरा थाने के अंतर्गत आता था. सिकंदरा थाने के इंसपेक्टर अरविंद कुमार पुलिस टीम के साथ तत्काल मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर पर चोट के निशान थे, साथ में पैरों में भी चोट थी. देखने से मामला एक्सीडेंट का लग रहा था. किसी तेज वाहन से टकरा कर मृतक गंभीर रूप से घायल हुआ और उस की मौत हो गई. इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने मृतक गुलाब सिंह के पिता मवासीराम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि गुलाब कल रात में 8 बजे फैक्ट्री से आया था. रात 9 बजे खाना खाने के बाद सो गया था. रात में या सुबह कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता.

बेटे का रोड एक्सीडेंट नहीं हुआ, बल्कि उस की हत्या उस की पत्नी अनीता ने कराई है. उस का किसी युवक से प्रेम संबंध है. अनीता ने अपने ससुरालीजनों पर हत्या का शक जताया. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर अनीता ने खुद को बेकुसूर बताया. फिलहाल मामला फौरी तौर पर एक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दी. थाने आ कर उन्होंने एक्सीडेंट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर में लगी गंभीर चोट से मौत होना बताया गया. एसएसपी बबलू कुमार ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर विशेषज्ञों की राय ली. उन की राय के बाद उन्होंने इंसपेक्टर अरविंद कुमार को मामले की जांच के आदेश दिए.

इंसपेक्टर कुमार ने गुलाब सिंह के घर आनेजाने वालों के बारे में पता किया तो बाहरी लोगों में सनी का नाम था. वह पड़ोस में किराए पर रहता था. इंसपेक्टर कुमार ने सनी का मोबाइल नंबर पता किया और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो घटना की रात सनी की अनीता के नंबर पर बात करने की पुष्टि हो गई. 17 सितंबर को इंसपेक्टर कुमार ने सनी को हिरासत में ले कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस से पूछताछ के बाद अनीता को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. गुलाब सिंह शराब का शौकीन था. फैक्ट्री से जब भी रात में लौटता तो अपनी थकान उतारने के लिए शराब पी कर आता था और घर आ कर अनीता से झगड़ा करता था. उसे मारतापीटता था.

इसी बीच जब सनी से अनीता की मुलाकात हुई तो वह उस की ओर खिंचने लगी. सनी अनीता से 8 साल छोटा था और काफी खूबसूरत था. अनीता ने कुंवारे जवान युवक का अपने से लगाव देखा तो वह भी उस की ओर खिंचती चली गई. दिनप्रतिदिन वह सनी में खोती चली गई. सनी से संबंध बने तो वह जीजान से उसे चाहने लगी. सनी ने भी गुलाब से दोस्ती गांठ ली. गुलाब की अनुपस्थिति में वह अकसर अनीता से मिलने आता था. उन की चाहत इस कदर बढ़ गई कि एक साथ जिंदगी जीने का सपने देखने लगे. यह सपना हकीकत में तभी बदल सकता था, जब गुलाब कोई अड़चन न डाले. इसलिए दोनों ने गुलाब सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया और इस के लिए योजना भी बना ली.

11/12 सितंबर, 2020 की रात गुलाब सिंह शराब पी कर घर आया था. खाना खाने के बाद वह सो गया. योजनानुसार रात में अनीता ने सनी को फोन कर के बुला लिया. रात डेढ़ बजे के करीब सनी अनीता के घर आया तो अनीता ने चुपके से मेन गेट खोल दिया. सनी अंदर आ गया. दोनों कमरे में सो रहे गुलाब सिंह के पास पहुंचे. अनीता ने पति के पैर पकड़े तो सनी ने हाथों से उस का गला दबा दिया, जिस से वह बेहोश हो गया. दोनों उसे उठा कर घर से कुछ दूरी पर निर्माणाधीन पुल के नीचे ले गए. वहां पत्थर से गुलाब के सिर पर कई प्रहार किए. उस की मौत हो जाने के बाद पत्थर से उस के पैरों को भी कुचल दिया, जिस से मामला रोड एक्सीडेंट का लगे. इस के बाद दोनों अपने घर लौट गए.

लेकिन तमाम चालाकियों के बाद भी उन दोनों का गुनाह छिप न सका और पकड़े गए. सनी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त पत्थर बरामद कर लिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रें पर आधारित

 

Hindi Stories : जुड़वा बहनें चिंकी और मिंकी की कहानी

Hindi Stories :  जुड़वा बहनें चिंकी और पिंकी वाकई अपने आप में अजूबा हैं, जिन की बातें, अदाओं, एक्टिंग और प्रस्तुति को देख कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. अभी इन बहनों का एक्टिंग सफर शुरु हुआ है. देखिए आगे…

जुड़वा बच्चों का जीवन हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है. इस को ले कर कई फिल्में भी बनीं और उपन्यास भी लिखे गए. कह सकते हैं यह विषय हमेशा से रोचक रहा है. दिल्ली की रहने वाली ‘चिंकी- मिंकी’ ने जब टिकटौक और इंस्टाग्राम पर अपने रोचक वीडियो पोस्ट करने शुरू किए तो रातोंरात वे मशहूर हो गईं. अपनी इस खासियत को अपना हुनर बना कर ‘चिंकी-मिंकी’ ने खुद को टीवी की दुनिया में भी स्थापित कर लिया है. अब वे फैशन, टीवी और फिल्मों की दुनिया में अपना नाम कमाना चाहती हैं. कम उम्र में ही दोनों ने दौलत और शोहरत दोनों ही हासिल कर ली है. ‘चिंकी-मिंकी’ दोनों में ही भरपूर ग्लैमर है. जिस की वजह से वे लगातार हिट हो रही हैं.

भारत और चीन के विवाद में भले ही टिकटौक को बंद कर दिया गया हो, पर टिकटौक पर वीडियो बना कर मशहूर होने वालों की संख्या कम नहीं है. छोटे शहरों और गांव के युवा अपने वीडियो बना कर खूब मशहूर हुए हैं. ‘चिंकी-मिंकी’ उन में सब से मशहूर हैं. दिल्ली की रहने वाली चिंकी मिंकी जुड़वा बहनों के असली नाम सुरभि मेहरा और समृद्धि मेहरा हैं. ये दोनों टिकटौक की पापुलर स्टार्स हैं. इन दोनों के टिकटौक पर करीब 10 लाख फालोअर्स हैं. 2019 के टौप 5 वायरल वीडियो में से एक वीडियो इन दोनों का भी था. खास बात यह है कि दोनों सिर्फ टिकटौक पर ही नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम पर भी बेहद मशहूर हैं. चिंकी और मिंकी का नाम इतना मशहूर हुआ कि दोनों के असली नाम सुरभि मेहरा और समृद्धि मेहरा को लोग भूल ही गए हैं.

दिल्ली की रहने वाली इन दोनों जुड़वा बहनों के जीवन में तमाम ऐसे पल मौजूद हैं, जो मुश्किल और हास्यपूर्ण भी रहे हैं. दोनों को देख कर अंदाज लगाना मुश्किल है कि किस का क्या नाम है. चिंकी और मिंकी दोनों केवल 60 सेकेंड के अंतर से छोटी और बड़ी बहनें हैं. चिंकी यानी सुरभि मेहरा बड़ी और मिंकी यानी समृद्धि मेहरा छोटी है. समृद्धि मेहरा की आवाज थोड़ी पतली है. इन का जन्म दिसंबर 1998 में हुआ था. चिंकी और मिंकी दोनों की पढ़ाई दिल्ली के 2 अलगअलग कालेजों से हुई. चिंकी ने पीजीडी कालेज लाजपतनगर से अपनी 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की और मिंकी ने एसएसबी कालेज, नई दिल्ली से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की. चिंकी को 92 प्रतिशत और मिंकी को 89 प्रतिशत नंबर मिले थे.

कालेज औफ वोकेशनल स्टडीज, शेख सराय, दिल्ली से दोनों ने ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई के दौरान ही चिंकी मिंकी दोनों टिकटौक वीडियो बनाने लगी थीं. ये दोनों ही बहनें स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करना चाहती थीं. इन की तैयारी कनाडा जाने की थी. इसी बीच मशहूर हास्य टीवी सीरियल ‘द कपिल शर्मा शो’ में औडिशन के लिए इन्होंने अपना वीडियो भेजा तो उन को सिलेक्ट कर लिया गया. यह बात जब दोनों ने अपने पैरेंट्स को बताई तो उन्हें लगा कि दोनों मस्तीमजाक कर रही हैं. जब उन को पता चला कि यह सच बोल रही हैं तो इन को शूटिंग के लिए मुंबई बुलाया गया. वहां इन लोगों ने स्क्रिप्ट याद कर के मेहनत से अपना किरदार निभाया और इन के लिए सफलता का रास्ता खुल गया.

अब चिंकी मिंकी ने जौब करने का फैसला दरकिनार कर दिया है. दोनों अलगअलग फैशन ब्रांड के लिए फोटो शूट और तमाम दूसरे तरह के काम करने लगी हैं. सुरभि और समृद्धि मेहरा में सब से खास बात यह है कि दोनों हुबहू एक जैसी हैं. दोनों अपने हेयरस्टाइल और गेटअप को भी एकदूसरे से पूरी तरह मैच रखती हैं. चिंकी मिंकी को देख कपिल शर्मा भी कंफ्यूज हो गए थे. चिंकी बताती है कि उन्हें खुद उन के पैरेंट्स नहीं पहचान पाते थे. ऐसे में कई बार बीमार एक होती थी और दवाई दूसरी को खिला दी जाती थी. 22 साल की उम्र में ही इन का फीगर 32-28-32 किसी अभिनेत्री को मात देता है. इस से साफ लगता है कि फिल्मों में भी ये बहुत आसानी से सफल हो सकती हैं.

फैशन ब्रांड, फोटो शूट, वीडियोज और इवेंट के जरिए ये दोनों बहनें 1 से 2 लाख रुपए हर माह कमा लेती हैं. इन की अपनी सालाना कमाई 70 से 80 लाख के करीब होगी. चिंकी मिंकी दोनों को ही घूमने का बेहद शौक  है. इन दोनों को अपने वीडियो बनाने, पबजी खेलने का भी शौक है. इन का पहला वीडियो ‘चिंकी मिंकी झाबुआ इंदौर ब्लौग’ था. इसे बहुत सफलता मिली. चिंकी मिंकी दोनों को ही अपना फीगर बनाए रखने का बेहद शौक  है. ऐसे में ये खानेपीने का बहुत ख्याल रखती हैं. इस के बाद भी कभीकभार चौकलेट और पिज्जा खाती हैं. टमाटर सूप इन को बेहद पसंद है. फलों में आम खाने का शौक है और पहनने में काला और पीला रंग बेहद पसंद है.

चिंकी मिंकी दोनों को ही दूसरों को चौंकाने में मजा आता है. इस कारण दोनों एक जैसे कपड़े पहनती हैं और एक जैसे हावभाव प्रदर्शित करती हैं. उन की बातों से किसी को यह पता नहीं चलता कि कौन चिंकी है कौन मिंकी. दोनों की आवाज में थोड़ा सा अंतर है. इस के अलावा हावभाव और बातचीत करने के अंदाज में अंतर है. यह अंतर वही पकड़ सकता है जो लगातार इन के साथ रहता हो, इन्हें पूरी तरह से समझता हो. सामान्य लोगों के लिए इस अंतर को पकड़ना सरल नहीं है. जिस से ये सभी को चौंकाती रहती हैं.

 

UP Crime News : पति का गला काट रहा था प्रेमी, पत्नी मोबाइल देखकर हंसती रही

UP Crime News : 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी कुसुम की हसरतें उफान पर थीं. ऐसे में उस के पैर बहक गए और उस का झुकाव कलंदर नाम के युवक की ओर हो गया. इस बात का गांव, समाज में विरोध हुआ तो कुसुम ने पति मुकेश को रास्ते से हटाने की ऐसी चाल चली कि…

उस रोज सुबह से ही कुसुम का मन उल्लास से भरा हुआ था. उस की एक खास वजह थी. उस सुबह नाश्ता करने के बाद मुकेश आंगन में हाथ धोने, कुल्ला करने के बाद रोज की तरह सीधे काम पर नहीं गया था. बल्कि अंगोछे से हाथमुंह पोंछते हुए वह रसोई में चला आया था. पास में पति के आते ही रोटी बेल रही कुसुम के हाथ रुक गए. सिर उठा कर उस ने पति को देखा, फिर पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’

मुकेश कुसुम के पास बैठ गया. वह इतनी धीमी आवाज में बोला कि कोई तीसरा न सुन सके, ‘‘हां चाहिए, लेकिन अभी नहीं रात को.’’

इस के बाद वह सीधा खड़ा हुआ, मुसकरा कर दाहिनी आंख दबाई और चला गया. पति की यह शरारत देख कर कुसुम के मन की कलियां खिल गईं. किसी भी पत्नी के लिए समझना बहुत आसान होता है कि रात को पति उस से क्या चाहता है. कुसुम का दिल बागबाग हो गया कि देर से ही सही, पतिदेव की कामनाएं तो जागीं. पूरे दिन कुसुम प्रफुल्लित रही. दौड़दौड़ कर उत्साह से सारे काम करती रही. पड़ोसन ने उस का यह जोश देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है कुसुम, आज बहुत जोश में हो और तुम्हारी खुशी भी छलक रही है.’’

नहाधो कर कुसुम ने सुर्ख साड़ी पहनी, फिर शृंगार किया. उस के बाद शाम होने पर आंगन में बैठ कर अपने पति के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर में मुकेश आ गया. पानी गरम हो गया तो मुकेश नहा लिया. इस के बाद कुसुम ने उसे खाना परोस कर दिया. खाना खाने के बाद मुकेश ने अपनी मासूम बेटी दीक्षा को गोद में उठाया और अपने कमरे में चला गया. कुसुम ने निखरे हुए अपने रूप का बहाने से पति के सामने प्रदर्शन भी किया लेकिन मुकेश के मुख से तारीफ के दो मीठे बोल भी न निकले. खैर, कुसुम ने झटपट जूठे बरतन मांजे और कमरे में पहुंच गई. आजमगढ़ जिले का एक गांव है असाढ़ा. यहीं रहता था मुक्खू. उस के परिवार में पत्नी सुखवती देवी के अलावा 4 बेटियां और इकलौता बेटा मुकेश था.

मुक्खू ने अपनी सभी बेटियों का विवाह कर दिया था, वे सभी अपनी ससुराल में हंसीखुशी से रह रही थीं. इस के बाद इकलौते बेटे मुकेश के विवाह की बारी आई. तो 14 साल पहले करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गोढाव गांव निवासी सुभाष की बेटी कुसुम से मुकेश का विवाह हो गया. कुसुम मायके से ससुराल आ गई. कालांतर में कुसुम ने 3 बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया. परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़े. खेती के नाम पर मुकेश के पास केवल 4 विसवा जमीन थी, उस से कुछ होने वाला नहीं था. मुकेश बढ़ईगिरी का काम भी करता था. लेकिन उसे रोजरोज काम नहीं मिलता था तो वह मनरेगा में मजदूरी का काम करने लगा. काम में व्यस्तता अधिक होने के कारण अगले 2-3 साल में हाल यह हो गया कि थकान और जीवन की एकरसता ने मुकेश को उत्साहहीन कर दिया.

रासरंग में भी उस की रुचि नहीं रह गई. खाना खाने के कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद में सो जाता. कुसुम की ख्वाहिशें मचलती रह जातीं. कामनाओं को काबू में रख पाना कठिन हो जाता. देर रात तक वह गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती. कुसुम असंतोष भरा जीवन जीने लगी थी. कुसुम की उमंगों को एक बार फिर तब पर लगे, जब उस दिन नाश्ता करने के बाद मुकेश रसोई में उस के पास आया था. कुसुम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने सोचा कि वह आज पिछली कसर भी पूरी कर लेगी. उमंगों के हिंडोले में झूलती कुसुम कमरे में पहुंची तो पिताबेटी को सोते हुए देखा. उस रात पति को सोया देख कर कुसुम को झुंझलाहट नहीं हुई बल्कि होंठों पर मुसकान खेलने लगी कि बेटी परेशान न करे, इसलिए उसे सुलातेसुलाते वह खुद भी सो गए. बाकी बच्चे भी दूसरे कमरे में सो चुके थे.

कुसुम ने पति के पास सो रही बेटी को उठा कर अलग सुला दिया. इस के बाद वह स्वयं मुकेश की बगल में आ कर लेट गई और उसे जगाने के लिए प्यार से छेड़ने लगी. मुकेश कच्ची नींद में था. वह कुनमुनाया, ‘‘क्या है…?’’

‘‘और क्या होना है,’’ कुसुम धीमी आवाज में बोली, ‘‘आज रतजगा है.’’

मुकेश ने आंखें खोल कर पत्नी की ओर देखा, उस के बाद फिर से आंखें बंद कर लीं. कुसुम ने हलके से उसे फिर हिलाया, ‘‘मुझे ठीक से देख कर बताओ, कैसी लग रही हूं.’’

‘‘जब से शादी हुई है, तब से देख ही तो रहा हूं.’’

‘‘पहले की छोड़ो, आज की बात करो,’’ कुसुम अपनी सांसों से पति के चेहरे को गरमाने लगी, ‘‘आज मैं ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से शृंगार किया है. देख कर बताओ न कि मैं कैसी लग रही हूं.’’

मुकेश ने ऐसे हावभाव से आंखें खोलीं, मानो कोई आफत टूट पड़ी हो. कुसुम को देखा, फिर टालने के अंदाज में बोला, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

‘‘अच्छी लग रही हूं तो सो क्यों रहे हो,’’ कुसुम ने उसे उकसाया, ‘‘नींद भगाओ और तुम भी कुछ अच्छा करो. इतना अच्छा कि मुझे भी फौरन नींद आ जाए.’’

‘‘क्या करूं…’’

‘‘वही, जो सुबह नाश्ता करने के बाद रात को करने को कह गए थे.’’

‘‘यार, सुबह मन था, अब नहीं है. बहुत थका हूं, मैं सोना चाहता हूं. आज का प्रोग्राम फिर कर लेंगे. तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो.’’

‘‘रात होने का मैं ने भी पूरा इंतजार किया है, इसलिए कैसे सो जाऊं,’’ कुसुम शरारत पर उतारू हो गई. वह उसे बेतहाशा चूमने लगी. मुकेश के तेवर तीखे हो गए. उस ने झल्ला कर पत्नी को कुछ गालियां दीं और उस की ओर पीठ कर ली. पति के व्यवहार से कुसुम की हसरतों पर तो मानो बर्फ पड़ गई. उस ने भी पति की ओर पीठ कर ली. उस रात कुसुम का विश्वास मजबूत हो गया कि वास्तव में उस की किस्मत फूट गई थी. उसी रात कुसुम के विद्रोही मन ने फैसला कर लिया कि यदि उसे यौवन का सुख पाना है तो मुकेश के भरोसे नहीं रहा जा सकता. खुद ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.

अतृप्ति एवं असंतोष के पलों में कुसुम ने जो निर्णय लिया, रात बीतने के बाद उसे भूली नहीं. सुबह होते ही उस की आंखों ने ऐसे साथी को तलाशना आरंभ कर दिया जो उस की हसरतें पूरी कर सके. नियति ने कुसुम को यह अवसर भी दे दिया. असाढ़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर गांव उबारसेपुर है. इसी गांव में 30 वर्षीय कलंदर रहता था. वह अविवाहित था और आटो चलाता था. कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना था. एक दिन चबूतरे पर बैठ कर कलंदर मुकेश से बातें कर रहा था. कुसुम को न जाने क्या सूझा कि खिड़की के पास खड़े हो कर वह उन दोनों की बातें सुनने लगी. खिड़की की ओर मुकेश और कलंदर की पीठ थी. इसलिए दोनों को पता नहीं था कि कुसुम उन की बातें सुन रही है. वे दोनों रसीली बातें कर रहे थे.

कुसुम का यह सोच कर जी जल गया कि रात होते ही मुकेश रूखाफीका हो जाता है और बाहर रसीली बातें करता है, लानत है ऐसे पति पर. बातोंबातों में कलंदर मुकेश से बोला, ‘‘मुकेश, सच कहूं तो तुम मुकद्दर के सिकंदर हो. क्या पटाखा बीवी पाई है, जो देखे देखता रह जाए.’’

यह सुन कर कुसुम का दिमाग कलंदर में उलझ गया. वह सोचने लगी कि निश्चित रूप से कलंदर उस पर दिल रखता होगा, इसीलिए तो वह उसे पटाखा नजर आती है. उस दिन हंसीमजाक में कलंदर का पटाखा कहना कुसुम के मन में एक नई सोच को जन्म दे गया. कुसुम को भी कलंदर अच्छा लगता था. कलंदर कुसुम को भाभी कह कर बुलाता था. देवरभाभी का रिश्ता बनने के कारण कुसुम से हंसीमजाक भी कर लेता था. अलबत्ता उस का दिल कुसुम के लिए बेईमान हो गया. कलंदर को ले कर कुसुम की सोच बदली तो उस के हावभाव भी बदल गए. वह चुपकेचुपके कलंदर से आंखें लड़ाने लगी. कलंदर को कुसुम अपनी तरफ आकर्षित होती हुई महसूस हुई तो वह ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब कुसुम घर में अकेली हो.

एक दिन अश्लील मजाक करतेकरते एकाएक कलंदर ने कुसुम की कलाई पकड़ ली, ‘‘भाभी बहुत तरसा चुकीं, अब तो रहम करो.’’

कुसुम ने नारीसुलभ नखरा किया, ‘‘कलंदर, यह पाप है. इस पाप में न खुद गिरो और न मुझे गिराओ.’’

‘‘भाभी, मुझे आज मत रोको.’’ कहते हुए उस ने कुसुम को बांहों में समेट कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. अपेछा के अनुरूप कुसुम ने मामूली विरोध किया, कुछ नखरे दिखाए. फिर मन का काम होते देख उस ने विरोध और नखरे छोड़ दिए. कलंदर के बाजुओं में कसमसाते हुए बोली, ‘‘जरा ठहरो, दरवाजा तो बंद कर लूं.’’

‘‘तुम्हें छोड़ दिया तो फिर हाथ नहीं आने वाली.’’

‘‘विश्वास करो मैं कहीं भागूंगी नहीं, लौट कर तुम्हारे पास आऊंगी.’’

कलंदर ने कुसुम को बांहों के बंधन से मुक्त कर दिया. कुसुम ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और कलंदर के पास लौट आई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. एक बार सीमाएं टूटीं फिर तो उन का यह रोज का यह नियम बन गया. कुसुम के दिल और तन पर कलंदर के जोश की ऐसी छाप पड़ी कि कलंदर के आगे वह सब कुछ भूल गई. अब जो कुछ था उस के लिए कलंदर ही था. वह भी कुसुम की भावनाओं का पूरा खयाल रखता था. किसी चीज की जरूरत होती तो वह झट से ला देता. कलंदर के लिए दिल में प्यार बढ़ रहा था तो मुकेश के लिए मन में नफरत. 7 मई, 2020 की शाम को कुसुम ने मुकेश से सब्जी लाने को कहा तो मुकेश सब्जी लेने चला गया. लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी मुकेश घर नहीं लौटा तो कुसुम को चिंता हुई. उस ने गांव के प्रधान को सूचना दी. मुकेश को तलाशा गया लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

अगले दिन 8 मई को कुसुम सरायमीर थाने गई और इंसपेक्टर अनिल सिंह को अपने पति के गायब होने की सूचना दी. उस ने पति के गायब होने का आरोप गांव के कुछ लोगों पर लगाया. साथ ही पति के गायब होने की सूचना मीडिया को भी दे दी. मीडिया में मामला तूल पकड़ा तो पुलिस भी सक्रिय हो कर मुकेश को तलाशने लगी. 9 मई को लोगों ने मुकेश की लाश नरईपुर पुल के पास पड़ी देखी. कुसुम को इस की सूचना दे दी गई. प्रधान मौके पर पहुंचा तो उस ने घटना की सूचना सरायमीर थाने को दे दी. सूचना पर इंसपेक्टर अनिल सिंह दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश झाडि़यों में औंधे मुंह पड़ी थी. मृतक की गरदन पर तेज धारदार हथियार से काटने के निशान मौजूद थे. डौग स्क्वायड को मौके पर बुलाया गया. इंसपेक्टर सिंह ने कुसुम और मृतक की मां सुखवती से जरूरी पूछताछ की.

इस के बाद उन्होने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और सुखवती की ओर से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम से पूछताछ की तो उस ने गांव के कुछ लोगों पर आरोप लगाया कि वे लोग उस के पति से दुश्मनी मानते थे. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह ने गांव के लोगों व प्रधान से पूछताछ की तो केस की गुत्थी सुलझने लगी. इंसपेक्टर अनिल सिंह को पता चला कि कुसुम के उबारसेपुर गांव के कलंदर के साथ अवैध संबंध थे. यह भी पता चला कि इस मामले को ले कर गांव में पंचायत भी हुई थी. गांव के जिन लोगों ने पंचायत में कुसुम और कलंदर का विरोध किया था, कुसुम ने उन पर ही मुकेश की हत्या का आरोप लगाया था. इस का मतलब यह था कि सारा रचारचाया खेल कुसम और कलंदर का है, मुकेश की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है.

इस के बाद इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम और कलंदर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में दोनों की रोज घंटों बात करने के साक्ष्य मिले. घटना की रात भी कलंदर के नंबर से कुसुम के नंबर पर काल की गई थी. जिस समय कलंदर ने काल की थी उस के नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल की थी. पुख्ता साक्ष्य मिलते ही इंसपेक्टर अनिल सिंह ने 11 मई को कुसुम और कलंदर को गिरफ्तार कर लिया. थाने में ला कर जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए घटना में शामिल साथियों के नाम भी बता दिए. घटना में साथ देने वालों में कलंदर की बहन शकुंतला, रविंद्र उर्फ छोटू, बिरेंद्र उर्फ करिया व धीरेंद्र निवासी गांव ऊदपुर और मिथिलेश उर्फ पप्पू निवासी महराजपुर थे.

इन सभी को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद मुकेश की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार निकली—

कुसुम से संबंध बन गए तो कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना भी बढ़ गया. इस से उन के संबंध गांव वालों से छिपे न रह सके. गांव वालों ने इस का विरोध करना शुरू कर दिया. इतने पर भी ये दोनों नहीं माने तो गांव में इस को ले कर पंचायत बुलाई गई. पंचायत में कलंदर के गांव आने पर पाबंदी लगा दी गई. इस से कुसुम बिफर पड़ी. मुकेश ने उस की लानतमलानत की तो उस की नफरत ने विद्रोह का रूप ले लिया. कुसुम वैसे भी कलंदर की हो चुकी थी और शादी कर के उस के साथ घर बसाना चाहती थी. ऐसे में कुसुम और कलंदर ने मुकेश की हत्या करने का फैसला कर लिया.

4 फरवरी, 2020 को कुसुम के मायके में शादी थी. वहां पर कलंदर और कलंदर की बहन शकुंतला भी मौजूद थी, वहीं पर मुकेश को मारने का प्लान बना. इस के बाद शकुंतला के घर पर कुसुम और कलंदर बैठे. वहीं पर शकुंतला ने अपने देवरों रविंद्र, वीरेंद्र, धीरेंद्र और उन के साथी मिथलेश को बुला लिया. ये सभी कुछ पैसों के लालच में उन का साथ देने को तैयार हो गए थे. सभी ने साथ बैठ कर यह समझा कि प्लान को कैसे अमल में लाना है. 5 मई को मुकेश की हत्या करने के इरादे से सभी निकले लेकिन अचानक आंधीबारिश आने के कारण प्लान टल गया. फिर 7 मई की शाम को प्लान के मुताबिक कुसुम ने मुकेश को सब्जी लाने के लिए भेज दिया.

शाम साढ़े 6 बजे मुकेश पोखरा पहुंचा तो वहां कलंदर, शकुंतला और उस के साथी एक टैंपो में पहले से बैठे थे. कलंदर ने तेरही खाने के लिए चलने की बात कह कर मुकेश को टैंपो में बैठा लिया. मुकेश को सभी के साथ ले कर छित्तेपुर गया. वहां शराब खरीद कर मुकेश को पिलाई और खुद पी. सभी अंधेरा होने का इंतजार कर रहे थे. योजना के मुताबिक सभी लोग अपने मोबाइल अपने घरों में ही रख कर आए थे, केवल कलंदर ही अपना मोबाइल साथ लाया था. अपने मोबाइल से वह कुसुम को लगातार काल कर रहा था. कुसुम अपने पति को मौत के मुंह में भेजने को बहुत आतुर थी. वह कलंदर के साथ में तो नहीं थी. लेकिन उस से फोन पर पलपल की जानकारी ले रही थी. उन के बीच क्या बात हो रही है, यह भी कुसुम सुन रही थी. एक बीवी अपने ही पति के मर्डर का लाइव ब्राडकास्ट सुन रही थी.

रात साढे़ 8 बजे सभी मुकेश को टैंपो से ले कर तेजपुर में मघई नदी पर नरईपुर पुल के पास पहुंचे. मुकेश को नीचे उतारा और मुकेश की गले में गमछा डाल कर दबाने में सभी टूट पड़े. नशे की हालत में मुकेश की आंखें बंद हो गईं और वह बेसुध हो गया. सभी उसे मरा हुआ समझ कर झाडि़यों में छिपा आए. इस के बाद कलंदर ने कुसुम से बात की तो कुसुम ने कहा कि वह मुकेश का चाकू से गला काटे, जिस से वह उस के चीखने की आवाजें सुन सके. इस पर वापस पहुंच कर कलंदर ने जैसे ही मुकेश की गरदन पर चाकू रखा. मुकेश चिल्ला उठा. सभी ने उस को दबोचा तो कलंदर कसाई की तरह मुकेश का गला चाकू से रेतने लगा, इस से मुकेश की चीखें निकलने लगीं, जिसे मोबाइल पर सुन कर कुसुम ठहाके मार कर हंसती रही.

मुकेश को मौत के घाट उतारने के बाद कलंदर ने मुकेश का मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल लिया और उसे ले कर काफी देर तक इधरउधर घूमता रहा. इस के बाद कुसुम अपने मोबाइल से बात न हो पाने का बहाना बना कर आसपड़ोस के लोगों से मोबाइल ले कर मुकेश के मोबाइल पर फोन मिलाती, दूसरी ओर से कलंदर मुकेश बन कर उस से बात करता. बात करने के बाद कुसुम उन्हें मोबाइल वापस कर देती और कह देती कि मेरे पति कह रहे हैं कि कुछ देर में वापस आ जाएंगे. कुसुम पड़ोसियों को दिखाने के लिए यह नाटक कर रही थी. देर रात योजनानुसार कुसुम प्रधान के पास गई और पति के गायब होने की सूचना दी. अगले दिन थाने जा कर उस ने पति की गुमशुदगी लिखाई लाश मिलने पर वह बराबर पंचायत में कलंदर और उस का विरोध करने वालों पर मुकेश की हत्या का आरोप लगाती रही.

वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहती थी. मुकेश को रास्ते से हटाने के बाद उस की हत्या करने के आरोप में अपने विरोधियों को जेल भेजना चाहती थी. लेकिन उस की चाल धरी की धरी रह गई. पति की हत्या के समय चीखें सुनना उसे भारी पड़ गया. इंसपेक्टर अनिल सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू व टैंपो और कुसुम, कलंदर और मुकेश का मोबाइल बरामद कर लिए. मुकदमे में धारा 147/404/34 और बढ़ा दी गईं. सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सातों अभियुक्तों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.द

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित