Chhattisgarh के अरबपति को किडनैप करके मांगी 50 करोड़ की फिरौती

Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh) के अरबपति प्रवीण सोमानी का अपहरण पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. अपहर्त्ताओं ने जिस तरह योजनाबद्ध ढंग से प्रवीण से 50 करोड़ रुपए की फिरौती वसूलने के लिए उन का अपहरण किया था, पुलिस ने भी उसी तरह योजनाबद्ध तरीके से अपहर्त्ताओं का पीछा किया. आखिर कैसे…

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के उपनगर सिलतरा में लोहे, स्टील, सीमेंट के अनेक कारखाने हैं. यहीं पर सोमानी प्रोसेसर लिमिटेड नाम की स्टील की बड़ी फैक्ट्री है, जिस के मालिक हैं प्रवीण सोमानी. 8 जनवरी, 2020 की शाम प्रवीण सोमानी अपनी लाल रंग की रेंज रोवर कार नंबर सीजी10ए एल9637 द्वारा फैक्ट्री से घर आ रहे थे. कार वह स्वयं चला रहे थे. रास्ते में परसुलीडीह के बीच अचानक एक गाड़ी ने ओवरटेक कर के उन की कार के सामने इस तरह से कार लगा दी कि वह रुकने को विवश हो गए. प्रवीण सोमानी अभी संभले ही थे कि 2-3 लोगों ने उन की गाड़ी को घेर लिया. प्रवीण ने शीशा नीचे किया और उन की तरफ उत्सुक भाव से देखा.

तभी एक शख्स बोला, ‘‘मिस्टर… हमें तुम्हारी तलाश थी. आई एम इनकम टैक्स सीनियर औफिसर.’’

प्रवीण भौचक उन की ओर देखते रह गए. जब तक वह संभलते, तब तक 3-4 लोग और आ गए. उन में से एक शख्स ने कहा, ‘‘मिस्टर राजन!’’

यह सुनते ही प्रवीण बोले, ‘‘मगर सर, मैं राजन नहीं हूं. मैं प्रवीण सोमानी हूं. सोमानी इंडस्ट्रीज का मालिक.’’

‘‘ओह…’’ एक शख्स ने आश्चर्य से उन की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अपनी आईडेंटिटी कार्ड दिखाओ.’’

प्रवीण सोमानी ने तत्काल जेब से अपना आइडेंटिटी कार्ड निकाल कर उस व्यक्ति को दिखाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं प्रवीण सोमानी ही हूं, यह रहा मेरा कार्ड.’’

प्रवीण सोमानी को घेर कर खड़े लोग एकदूसरे को ऐसे देख रहे थे, जैसे कुछ गलत हो गया हो.

तभी सहसा एक शख्स ने उन की कार का पिछला गेट खोल कर कार में बैठते हुए कहा, ‘‘हमें तुम्हारी भी तलाश है… तुम्हारा नाम भी हमारी लिस्ट में है.’’

और देखते ही देखते 3-4 लोग उन की गाड़ी में सवार हो गए. प्रवीण सोमानी कुछ संभलते समझते, इस से पहले वे सब उन पर हावी हो चुके थे. एक ने कहा, ‘‘तुम, गाड़ी धीरेधीरे आगे बढ़ाओ और डरो मत, हम कुछ पूछताछ कर के तुम्हें छोड़ देंगे.’’

जनवरी की सर्द रात में भी प्रवीण सोमानी के चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. उन्होंने विवश हो कर अपनी लाल रंग की रेंज रोवर कार आगे बढ़ाई. उन के पीछेपीछे 2 गाडि़यां और चल रही थीं. 46 वर्षीय प्रवीण सोमानी के साथ गाड़ी में बैठे लोगों ने उन से पूछताछ शुरू कर दी. थोड़ी देर में जब वे धरसींवा से सिमगा, फिर बेमेतरा जिले की ओर बढ़े, तभी उन में से एक ने उन्हें रिवौल्वर के बल पर काबू कर बताया. ‘‘तुम हमारे कब्जे में हो, तुम्हारा अपहरण कर लिया गया है.’’

इस से प्रवीण सोमानी समझ गए कि ये लोग इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नहीं हैं, बल्कि वह इन के किसी गहरे षडयंत्र में फंस चुके हैं. उन लोगों ने सोमानी को पूरी तरह कब्जे में ले लिया था. उन का मोबाइल फोन भी छीन लिया गया था. प्रवीण पूरी शिद्दत के साथ दिमाग पर जोर डाल रहे थे कि उन के चंगुल से कैसे बच सकते हैं. मगर जब तक वे कोई फैसला ले पाते, उन में से एक युवक ने उन्हें बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उन पर बेहोशी सी छाने लगी. तभी एक युवक ने ड्राइविंग सीट पर कब्जा कर लिया. प्रवीण सोमानी को पीछे की सीट पर डाल दिया गया. अपहर्त्ता प्रवीण को ले कर कवर्धा (छत्तीसगढ़) से कटनी (मध्य प्रदेश) और आगे इलाहाबाद होते हुए दूसरे दिन फैजाबाद पहुंचे.

आधी रात को मचा हड़कंप इधर जब रात 9 बजे तक प्रवीण सोमानी घर नहीं पहुंचे तो परिजन चिंतित हो उठे. पत्नी रश्मि ने फैक्ट्री फोन लगाया तो पता चला, साहब शाम तकरीबन 6 बजे ही घर के लिए फैक्ट्री से रवाना हो गए थे. प्रवीण सोमानी आमतौर पर 7 बजे तक घर आ जाया करते थे. रश्मि ने जहां भी मोबाइल खड़काया उन्हें निराशा ही मिली. अंतत: उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए प्रवीण सोमानी के चचेरे भाई ललित सोमानी को यह जानकारी दे दी. इस के बाद उन की खोजबीन और तेज हो गई. जब उन के सभी मित्रों से पता कर लिया गया, तब ललित सोमानी ने धरसींवा थाने पहुंच कर टीआई बृजेश तिवारी को मामले की जानकारी दी.

प्रवीण सोमानी कोई मामूली इंसान नहीं थे बल्कि वह एक बड़े उद्योगपति थे, इसलिए उन के गायब होने की बात सुन कर टीआई भी चौंके. उन्होंने उसी समय उच्चाधिकारियों से बात करने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. यह मामला काफी गंभीर लग रहा था. यही कारण था कि जैसेजैसे रात गहराती गई, वैसेवैसे प्रवीण सोमानी के गायब होने की खबर जंगल की आग की तरह फैलती चली गई. घटना बहुत बड़ी थी, जिस का असर देर रात को ही देखने को मिला. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर छत्तीसगढ़ के डीजीपी डी.एम. अवस्थी ने आईजी (रायपुर रेंज) आनंद छाबड़ा और डीआईजी व एसएसपी आरिफ शेख को ले कर अपने नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया, ताकि अपहृत कारोबारी को छुड़ाने और अपहर्ताओं को गिरफ्तार करने का काम जल्दी और जिम्मेदारी से किया जा सके.

एसएसपी आरिफ शेख ने त्वरित काररवाई करते हुए एडिशनल एसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा, एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल, उरला के एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी, एसपी (सिटी) आजाद चौक नसर सिद्दीकी को सम्मिलित कर के तेजतर्रार 60 पुलिसकर्मियों की विशेष टीम बनाई. छत्तीसगढ़ के नामचीन उद्योगपति प्रवीण सोमानी की खोज में लगी विशेष टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद इस विशेष टीम को 8 टीमों में विभाजित कर के हर एक टीम को अलगअलग काम सौंपे गए. पुलिस टीमें सीसीटीवी फुटेज संग्रहण, तकनीकी विश्लेषण, कारोबारी के संबंध में स्थानीय जानकारी एकत्रित करने के कामों में लग गईं.

सीसीटीवी फुटेज की जांच में लगी टीम को घटनास्थल पर 2 संदिग्ध वाहनों की फुटेज मिली. वाहनों का रूट निर्धारण कर के जांच बिलासपुर की ओर से शुरू की गई. टीम ने उस रोड पर 1500 किलोमीटर से अधिक दूरी तक लगे सीसीटीवी फुटेज एकत्र किए. उन फुटेज की जांच से पता चला कि संदिग्ध वाहन उत्तर प्रदेश के शहर प्रतापगढ़ तक गए थे. लिहाजा एक पुलिस टीम उत्तर प्रदेश रवाना की गई. तकनीकी विश्लेषण में लगी टीम को कुछ संदिग्ध फोन नंबर मिले, जिस के बाद एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल और उरला के एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी के नेतृत्व में 2 टीमें बिहार भेजी गईं. साथ ही एक टीम एसपी (सिटी) आजाद चौक नसर सिद्दीकी के नेतृत्व में गुजरात और एक टीम ओडिशा के लिए रवाना कर दी गई.

सभी टीमें प्राप्त सूचना व जानकारी के आधार पर अलगअलग राज्यों में काम कर रही थीं. जिस की मौनिटरिंग एसएसपी (रायपुर) आरिफ शेख खुद कर रहे थे. वह सभी टीमों को आवश्यक दिशानिर्देश दे रहे थे. तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर टीम द्वारा दोंदेकला निवासी अनिल चौधरी, जोकि मूलत: बिहार का निवासी है, को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी गई. चंदन गिरोह का नाम आया सामने अनिल चौधरी से मिली जानकारी और तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर बिहार भेजी गई पुलिस टीम को गौरव कुमार उर्फ पप्पू चौधरी के बारे में कुछ जानकारी मिली. वह हिंगोरा अपहरण कांड का आरोपी भी था और चंदन सोनार गिरोह से संबंधित था. पुलिस टीम ने उस के संबंध में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

टीम को जानकारी मिली कि पप्पू चौधरी वैशाली जिले के बीहड़ क्षेत्र में गंगा नदी के किनारे स्थित गांव मथुरा गोकुला का निवासी है. उस पर बिहार पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा है. पता चला कि उस ने ही गिरोह के सदस्यों के साथ मिल कर प्रवीण सोमानी का अपहरण किया है. यह जानकारी मिलते ही एसएसपी आरिफ शेख खुद पटना पहुंच गए. उन्होंने बिहार पुलिस की एसटीएफ के साथ मिल कर दीयरा बीहड़ क्षेत्र में सर्च औपरेशन शुरू किया. संयुक्त टीमों ने दीयरा के 100 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में सर्च की, लेकिन गिरोह का सरगना पप्पू चौधरी वहां से फरार हो चुका था.

टीम को गिरोह के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली तो बिहार वाली टीम को तुरंत उत्तर प्रदेश भेजा गया. इस के अलावा एक अन्य टीम को ओडिशा के गंजम शहर के लिए रवाना किया गया. उत्तर प्रदेश गई पुलिस टीम से मिली जानकारी के आधार पर ओडिशा गई पुलिस टीम ने गंजम निवासी मुन्ना नायक को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की. उस से मिली जानकारी के आधार पर उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले के अलगअलग गांवों में छापेमारी कर के उस स्थान की पहचान सुनिश्चित की गई, जहां अपहृत सोमानी को रखा गया. देर रात उक्त स्थान पर दबिश दी गई. पता चला कि रेड करने से कुछ समय पहले ही आरोपी प्रवीण सोमानी को ले कर वहां से निकल गए थे.

इस पर टीम ने उन का पीछा करना शुरू कर दिया. अपहर्त्ताओं को जानकारी मिल चुकी थी कि पुलिस उन के पीछे पड़ी है. ऐसे में गिरोह के लोग प्रवीण सोमानी को सुनसान जगह पर छोड़ कर फरार हो गए. पुलिस टीम ने 22 जनवरी, 2020 को अपहृत प्रवीण सोमानी को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. 500 करोड़ रुपए की वसूली पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि छत्तीसगढ़ के उद्योगपति प्रवीण सोमानी का अपहरण करने वाला चंदन सोनार और उस के गिरोह का टौप कारकुन पप्पू चौधरी कोई साधारण अपराधी नहीं हैं. बिहार, झारखंड के साथसाथ पश्चिम बंगाल और अब छत्तीसगढ़ पुलिस की नाक में दम कर देने वाले चंदन और पप्पू दोनों मूलत: हाजीपुर के ही रहने वाले हैं. यह गैंग अब तक 40 से ज्यादा अपहरण की वारदातों में शामिल रहा है. इन लोगों ने अब तक केवल अपहरण से ही 500 करोड़ रुपए की बड़ी वसूली की है.

चंदन हाजीपुर सदर थाना क्षेत्र के सेंदुआरी का रहने वाला है, जबकि पप्पू चौधरी बिदुपुर का है. दोनों बदमाशों पर बिहार में पुलिस ने भारी ईनाम रख रखा है. यह गिरोह सूरत के हीरा व्यापारी के बेटे सोहैल हिंगोरा समेत कई लोगों का अपहरण कर उन से करोड़ों रुपए की फिरौती वसूल चुका है. इस गिरोह की खासियत यह है कि अपहरण की वारदात को अंजाम देने के लिए चंदन स्थानीय लड़कों का इस्तेमाल करता रहा था. गिरोह को जहां भी अपहरण करना होता था, वहां के स्थानीय लड़कों को गिरोह में शामिल कर लिया जाता था. ऐसा ही छत्तीसगढ़ में भी किया गया. साल 2017 में चंदन पटना पुलिस के हत्थे चढ़ा, लेकिन वर्ष 2018 में जमानत पर छूटने के बाद वह फरार हो गया था.

चंदन सोनार का लंबा आपराधिक इतिहास रहा है. कभी रेलवे क्षेत्र में अपराध करने वालों के बीच उस की तूती बोलती थी. जीआरपी के द्वारा जब उसे गिरफ्तार कर हाजीपुर जेल भेजा गया तो वहां उस की दोस्ती कई शातिर अपराधियों से हुई. इस के बाद अंडरवर्ल्ड में उस की पहचान तेजी से फैली. उस के खिलाफ वैशाली जिले के कई थानों में अपराध दर्ज हैं. चंदन सोनार ज्यादातर किडनैपिंग प्लान को पप्पू चौधरी के ही माध्यम से क्रियान्वित करता था. झारखंड के भाजपा नेता मदन सिंह के बेटे और 2 रिश्तेदारों के अपहरण के लिए भी उस ने प्रवीण सोमानी वाला ही तरीका अपनाया था. झारखंड में चंदन सोनार का पहला शिकार गोमिया के व्यवसायी महावीर जैन बने थे.

करीब 12 साल पहले, 2008 में गिरोह ने महावीर जैन का अपहरण किया था. इस के बाद रांची के ज्वैलर्स परेश मुखर्जी और लव भाटिया के अपहरण में भी उस की संलिप्तता सामने आई. खास बात यह है कि गुजरात के हीरा कारोबारी के बेटे सुहैल हिंगोरा को भी चंदन गिरोह ने 25 करोड़ की फिरौती लेने के बाद ही छोड़ा था. इस अपहरण में भी केंद्रीय भूमिका पप्पू ने निभाई थी. दक्षिण गुजरात के उद्यमी हनीफ हिंगोरा के बेटे सुहैल को साल 2013 में केंद्र शासित प्रदेश दमन से अगवा किया गया था. एक महीने बाद फिरौती चुका कर सुहैल के परिवार ने उसे मुक्त करवाया था.

छत्तीसगढ़ के कई उद्योगपति थे निशाने पर  वैशाली जिले के कई थानों में चंदन सोनार के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं. बिहार के वैशाली जिले के कुख्यात बदमाश पप्पू चौधरी ने पूरी तैयारी कर के रायपुर के उद्योगपति प्रवीण सोमानी ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के 5 बड़े कारोबारियों का अपहरण कर करोड़ों की फिरौती वसूलने की योजना सूरत जेल में बनाई थी. पप्पू ने तय कर लिया था कि जेल से बाहर निकलने के बाद अपहरण करना है. करीब 5 महीने पहले पप्पू जब जेल से बाहर आया तो उस ने गूगल पर सर्च कर छत्तीसगढ़ के 5 उद्योगपतियों की प्रोफाइल खंगाली. चूंकि रायपुर में उस का रिश्तेदार अनिल चौधरी पहले से ही था, इसलिए उस ने पहले स्टील कारोबारी प्रवीण सोमानी को ही उठाने का फैसला किया. यह खुलासा पूछताछ में मूलत: बिहार निवासी और मौजूदा रायपुर के दोंदेकला में सपरिवार रह रहे सरगना पप्पू के रिश्तेदार अनिल चौधरी ने किया.

अनिल के अनुसार पप्पू के कहने पर उस ने 3 महीने तक दैनिक मजदूर बन कर सोमानी समेत 5 बड़े कारोबारियों की रेकी की थी. घर से ले कर औफिस तक हर बात की जानकारी जुटाई. इस के बाद 8 जनवरी को पप्पू ने ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के बदमाशों के साथ ईडी अफसर बन कर प्रवीण का अपहरण किया. हालांकि पुलिस ने उन कारोबारियों के नामों को गुप्त रखा है, गिरोह जिनजिन का अपहरण करने वाला था. कैसे मिली सफलता 8 जनवरी, बुधवार की रात तकरीबन 2 बजे प्रवीण के गायब होने की सूचना मिलते ही पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. 9 जनवरी की शाम तक पुलिस को प्रवीण सोमानी की फैक्ट्री के बाहर लगे कैमरे से 2 सफेद कारों के धुंधले फुटेज मिले थे. फुटेज में एक कार लंबी और दूसरी क्रेटा टाइप थी जो ठीक प्रवीण की गाड़ी के पीछे नजर आ रही थीं.

उन्हीं कारों की फुटेज परसूलीडीह, राम कुटीर में जहां प्रवीण की कार मिली थी, वहां के कैमरे से मिली. बस इसी क्लू से पुलिस आगे बढ़ी. एक फुटेज में एक कार का नंबर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की सीरीज सीजी-10 था. उसी संदिग्ध कार की तलाश में बिलासपुर और कवर्धा टीम भेजी गई.  जिला बेमेतरा के पास एक कैमरे में वही कार नजर आई. इस से पुलिस को यह पता चल गया कि वह सही दिशा में आगे बढ़ रही है. आगे बढ़ने पर कवर्धा के टोल प्लाजा में फिर वही कार दिखी. टीम फिर आगे बढ़ी. रास्ते भर रोड और टोल प्लाजा के कैमरे खंगालने पर इलाहाबाद में उसी कार का नंबर नजर आया. इलाहाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर सोमानी की कार की फुटेज मिली. उस के बाद 3 रास्ते थे. तीनों रास्तों में कई किलोमीटर तक फुटेज खंगाले गए, लेकिन कार नजर नहीं आई. इस से पुलिस की जांच एक तरह से वहीं ठहर गई.

उस के बाद पुलिस टीम ने करीब 5 लाख मोबाइल नंबरों को खंगाला. बस, ट्रेन और एयरपोर्ट के एकएक यात्री का टिकट चैक करवाया. 2 महीने पहले तक का रिकौर्ड खंगाला गया. दोनों कारों पर जो नंबर थे, जांच में गलत पाए गए. एक गाड़ी का नंबर बिलासपुर का था, जबकि दूसरा रायपुर का था, लेकिन वह किसी ट्रेवल एजेंसी की कार थीं. इस बीच मोबाइल नंबरों को खंगालने से 2 संदिग्ध नंबर मिले. इस कवायद में प्रवीण सोमानी अपहरण का एक संदिग्ध अनिल चौधरी पुलिस के हाथ आ गया. पुलिस ने उस के परिवार वालों तक को पता नहीं लगने दिया कि पप्पू का रिश्तेदार उस के कब्जे में है. उसी से पूछताछ में गैंग के सदस्यों के नाम पता चल गए.

12 जनवरी, रविवार की रात ओडिशा में गैंग का सब से अहम सदस्य मन्नू पकड़ में आ गया. उसे ले कर पुलिस फैजाबाद पहुंची और 22 जनवरी बुधवार को सुबह 4 बजे पुलिस प्रवीण को अपहर्ताओं से छुड़ाने में सफल हो गई. प्रवीण उस समय अर्धबेहोशी की हालत में थे. उन्हें पता भी नहीं था कि वह पुलिस के कब्जे में हैं. उन्हें काफी देर बाद होश आया. खुद को पुलिस के संरक्षण में देख कर प्रवीण की जान में जान आई. पुलिस जब प्रवीण को ले कर लखनऊ जा रही थी, तब पप्पू के गैंग के लोग प्रवीण के परिवार वालों को धमकी भरे फोन कर पैसे मांग रहे थे.

खौफ में गुजरे थे दिन प्रवीण सोमानी के अनुसार अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें बहुत टार्चर किया गया था. 13 दिनों तक लगभग दिन भर आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी. फिरौती की रकम के लिए उन के सामने ही बारबार उन के परिजनों से पैसों की मांग की जाती रही. उन के साथ बड़ी अमानवीयता का व्यवहार होता था. अचानक एक दिन अपहर्ता उन्हें छोड़ कर चले गए. उन के जाते ही वहां सन्नाटा छा गया. आंखों पर पट्टी बंधी होने से कुछ सूझ नहीं रहा था. काफी देर बाद उन्होंने आंखों की पट्टी हटाई. कमरे में हलकी रोशनी थी, आसपास कोई नहीं था. दिल तेजी से धड़कने लगा. काफी देर तक समझ नहीं आया कि क्या करें?

काफी देर तक वह वहां वैसे ही बैठे रहे, फिर कुछ तेज कदमों की आवाजों से दिल बैठने लगा. एकाएक कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया. यह देख प्रवीण की घबराहट बढ़ गई. फिर किसी ने उन के कंधे पर हाथ रख

का कहा, ‘‘डरो नहीं, हम छत्तीसगढ़ पुलिस से हैं.’’

यह सुनते ही ऐसा महसूस हुआ जैसे वह अपनों के बीच पहुंच गए हैं. उस के बाद उन्हें गाड़ी में बिठा कर सीधे दिल्ली लाया गया. प्रवीण ने बताया कि अपहर्त्ता भोजन देते समय ही आंखों से पट्टी खोलते थे. फिर पूरे दिन आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी. प्रवीण सोमानी ने पुलिस को बताया कि किडनैपर्स ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. बाथरूम भी अकेले नहीं जाने देते थे. उन्हें आवाज से ही आभास होता था कि कमरे में कितने लोग हैं. आवाज बदलने से अहसास होता कि आज नए लोग आए हैं. वे आपस में बात करते समय एक दूसरे को विराट, धोनी, कोहली आदि कह कर पुकारते थे.

अपहरण किसी और का होना था, पर…

पहले लगा कि ये उन के नाम होंगे, फिर अहसास हुआ कि पहचान छिपाने के लिए एकदूसरे को गलत नाम से पुकार रहे हैं. किडनैप करने के बाद वे उन से बदतमीजी से बात करते थे. लेकिन धीरेधीरे उन का बात करने का अंदाज बदलने लगा, भाषा भी बदलती जा रही थी. वे बारबार कहने लगे थे कि आप की छत्तीसगढ़ पुलिस तो पीछे ही पड़ गई. क्या वो तुम को छुड़ा कर ही दम लेगी? अंत में 2 दिन तो वे भीतर से डरे हुए लगने लगे थे. वे कहने लगे थे कि अगर हम ने तुम्हें छोड़ दिया तो पुलिस से कहना कि हमारे परिवार वालों को परेशान न करे. जिस दिन उन्हें छोड़ा गया, उस दिन जातेजाते कुछ पैसे दे कर कहा, ‘‘तुम्हें यहां से बस मिल जाएगी.’’

अपहर्त्ता पप्पू चौधरी गैंग का टारगेट प्रवीण नहीं, बल्कि प्रदेश के एक बड़े उद्योगपति का बेटा था. वे उसी का अपहरण करने के लिए आए थे. उन की एक फैक्ट्री भी उसी रोड पर है. उद्योगपति का बेटा जिस कार से चलता था, उसी ब्रांड और हूबहू उसी रंग की कार प्रवीण के पास थी. इसलिए अपहर्त्ता धोखा खा गए और प्रवीण को उठा कर ले गए. 9 जनवरी, 2020 को उत्तर प्रदेश पहुंचने के बाद अपहर्त्ताओं को पता चला कि उन से गलती हो गई है. इस के बावजूद उन्होंने प्रवीण के परिजनों से 50 करोड़ की फिरौती मांग ली. पुलिस ने प्रवीण के गायब होने के तीसरे दिन परसूलीडीह की झाडि़यों से उन का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. उस में एक सिम था. हालांकि अपहर्त्ताओं ने मोबाइल फेंकने के पहले उस का सिम निकाल लिया था. लेकिन एक सिम उस में इनबिल्ट था. अपहर्त्ताओं का ध्यान उस की ओर नहीं गया था.

उद्योगपति प्रवीण सोमानी के अपहरण के 5 दिन पहले 3 जनवरी को गैंग लीडर पप्पू चौधरी बिहार से पूरी तैयारी के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी आ गया था. रायपुर पहुंच कर उस ने अपने रिश्तेदार और रेत सप्लायर अरुण चौधरी को बुलाया. दोनों उसी गाड़ी से शहर में कई जगह घूमते हुए पंडरी बस स्टैंड के सामने एक फाइनैंस कंपनी के दफ्तर पहुंचे. चेन गिरवी रखने के बहाने वहां की रेकी की, लेकिन वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में उन की फुटेज आ गई थी. यही वह फुटेज थी, जिस से अरुण को पुलिस ने चौथे दिन ही गिरफ्तार कर लिया. अरुण ने पप्पू और उस के गैंग के बाकी सदस्यों की पूरी कुंडली बताई और इस तरह मामले का भंडाफोड़ हो गया.

प्रवीण सोमानी 8 जनवरी को गायब हुए थे. पुलिस को आधी रात करीब 2 बजे इस की सूचना मिली. पुलिस ने उसी समय खोजबीन तो शुरू की लेकिन असल जांच 9 जनवरी, 2020 को दोपहर 12 बजे के बाद शुरू हुई. शाम होतेहोते पुलिस को प्रवीण के पीछे लगी 2 संदिग्ध गाडि़यों के फुटेज मिल गए. पुलिस ने धुंधले फुटेज से उस का नंबर निकाल लिया. पुलिस की एक टीम फुटेज के आधार पर गाड़ी के पीछे चलते हुए उत्तर प्रदेश पहुंच गई. दूसरी टीम ने शहर के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज खंगालने शुरू किए. इस दौरान पंडरी खालसा स्कूल के सीसीटीवी कैमरे में उसी क्रेटा कार का फुटेज मिल गया. पुलिस को गाड़ी के आने का फुटेज तो मिल गया था, लेकिन जाते हुए नजर नहीं आ रही थी.

पुलिस अफसरों की टीम ने पहले ये पता लगाया कि फुटेज कहां की है. जगह की पहचान होने के बाद पुलिस अफसर वहां पहुंचे. इस दौरान गाड़ी जहां से गायब हुई, वहां जूते का एक बड़ा शोरूम है. पुलिस की टीम ने उस शोरूम के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. उसी कैमरे में 2 युवक नजर आए, जो उसी क्रेटा कार से उतरे थे. वहां पता चला कि जूतों के शोरूम के ऊपर एक फाइनैंस कंपनी का औफिस है. पुलिस ने वहां के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज देखे. उस में पप्पू चौधरी और अरुण चौधरी के साफसाफ फुटेज मिल गए. पुलिस की टीम ने फाइनैंस कंपनी को फुटेज दिखा कर पूछताछ की तो पता चला कि अरुण ने 50 हजार रुपए में अपनी और पप्पू की चेन गिरवी रखी है.

पुलिस को वहां पप्पू और अरुण का सीसीटीवी फुटेज मिल गया. उसी रात यानी अपहरण के चौथे दिन पुलिस अरुण चौधरी के घर पहुंच गई. वारदात के चौथे दिन रात में अरुण को उठा लिया गया. पूछताछ में उस ने अपहरणकांड की पूरी साजिश उजागर कर दी. अपहरण का किंगपिन पप्पू चौधरी पहले चंदन सोनार का गुर्गा था. चंदन के साथ मिल कर उस ने गुजरात के सोहैल हिंगोरा का अपहरण किया था. कहते हैं करोड़ों रुपए ले कर गिरोह ने हिंगोरा को हाजीपुर में रिहा किया था. बाद में पप्पू चौधरी गिरफ्तार हो गया और उसे गुजरात के सूरत जेल भेज दिया गया. इस के बाद वह चंदन सोनार की तरह अपहरण की योजना बनाने लगा.

नाम बदल बनवाया आधार कार्ड मूलरूप से वैशाली के बिदुपुर, मजलिसपुर पंचायत के गोपालुपुर घाट निवासी पप्पू चौधरी का एक और नाम गौरव कुमार भी है. उस ने अपने आधार कार्ड से ले कर अन्य सभी पहचान से जुड़े कागजात गौरव नाम से तैयार कराए थे. सोहैल हिंगोरा अपहरण कांड में पप्पू भी चंदन सोनार के साथ था. पप्पू पहले अपने पिता के साथ ताड़ी बेचता था. हिंगोरा अपहरण कांड के बाद पप्पू के हिस्से में भी फिरौती की रकम आई थी. इस के बाद उस ने बिदुपुर में आलीशान मकान बनवाया. पप्पू के जेल जाने के बाद उस के पिता ने ताड़ी बेचनी बंद कर दी और हाजीपुर महनार रोड पर खुद की सीमेंट, बालू और सरिया की दुकान खोल ली.

उद्योगपति प्रवीण सोमानी के अपहरण का सरगना भले ही पप्पू चौधरी रहा हो, लेकिन अपहर्त्ताओं की कई टीमें इस में शामिल थीं. गाडि़यों का बंदोबस्त करना, सोमानी को छिपाने की जगह ढूंढना और फिरौती के लिए फोन करने जैसे काम गिरोह के अलगअलग सदस्य करते थे. ये सभी अपहरण के बाद से ही एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. तभी सोमानी के छुड़ाए जाने के लिए भी फिरौती के लिए काल आते रहे. अपहरण कांड में ओडिशा के शिशिर व कालिया गुंजाम, नालंदा के सुमन कुमार, अनिल चौधरी व बाबू प्रदीप, अंबेडकर नगर के अजमल व आफताब, बेंगलुरु का अंकित और ओडिशा का मुन्ना नायक शामिल था. पुलिस इस में मुन्ना नायक, अनिल चौधरी, शिशिर, तूफान और बाबू को गिरफ्तार कर चुकी है.

पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ थाना धरसींवा में भादंवि की धारा 365, 120बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया. इस अपहरण कांड के महत्त्वपूर्ण तथ्य भी सामने आ चुके हैं कि अपहर्त्ताओं ने एक तरह से पुलिस के डर से प्रवीण सोमानी को बिना फिरौती लिए रिहा कर दिया. दूसरी तरफ यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसे शातिर अपहर्त्ताओं के चंगुल से बिना फिरौती प्रवीण सोमानी को कैसे छोड़ सकते हैं?

कुल मिला कर संशय का विषय बना हुआ है कि आखिर सच क्या है. बहरहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रवीण सोमानी अपहरण कांड की जांच में जुटी और सफल रही पुलिस टीम को पुरस्कृत कर उस की हौसलाअफजाई की है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Jharkhand Crime : कर्ज से बचने के लिए महिला को मिट्टी के तेल से जलाया

Jharkhand Crime : उधार की रकम कभीकभी अपराध को भी जन्म देती है. अंजलि के साथ यही हुआ. मोटे ब्याज के चक्कर में उस ने फिरदौस, रमन और आरती को काफी रकम उधार दे दी थी. एक दिन यही रकम अंजलि की जान की ऐसी दुश्मन बनी कि…

झारखंड के रांची जिले के कस्बा अरगोड़ा की 33 वर्षीय अंजलि उर्फ विनीता तिर्की पति मुंसिफ खान के साथ किराए के मकान में रहती थी. दोनों ने कई साल पहले प्रेम विवाह किया था. हालांकि अंजलि पहले से शादीशुदा थी. पहला पति रमन सिमडेगा शहर के सलगापुर गांव में अपने दोनों बच्चों के साथ रहता था. रमन मानसिक रूप से अस्वस्थ था. स्वच्छंदता और आधुनिकता का अंजलि पर ऐसा रंग चढ़ा कि पति और बच्चों को छोड़ कर वह अरगोड़ा के मोहल्ला महावीर नगर में प्रेमी से पति बने मुंसिफ खान के साथ आ कर बस गई थी. ऐसे में जब बच्चों की ममता अंजलि को तड़पाती थी तब वह बच्चों से मिलने चली जाया करती थी.

एकदो दिन उन के पास बिता कर फिर महावीर नगर मुंसिफ खान के पास चली आती थी. वर्षों से अंजलि और मुंसिफ खान दोनों साथ मिल कर सूद पर रुपए बांटने का धंधा करते थे. सूद के कारोबार में उन के लाखों रुपए बाजार में फंस चुके थे. इस के बावजूद भी उन्हें इस धंधे में बड़ा मुनाफा हो रहा था. सूद के साथसाथ उन्होंने जुए का भी धंधा शुरू कर दिया था. जुए के धंधे ने उन के बिजनैस में चारचांद लगा दिए. दिन दूनी, रात चौगुनी आमदनी उन्हें हो रही थी. अंजलि एक बेहद खूबसूरत और चंचल किस्म की महिला थी. महिला हो कर भी उस ने एक ऐसे धंधे में अपने पांव पसार दिए थे जहां ग्राहक घड़ी दर घड़ी औरतों को भूखे भेडि़ए की नजरों से घूरते हैं.

ऐसे में अंजलि ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ जैसा व्यवहार रखती थी. पते की बात तो यह थी कि सूद और जुए का धंधा तो गंदा जरूर था पर अंजलि चरित्र के मामले में बेहद पाकसाफ और सतर्क रहती थी. बुरी नजरों से देखने वालों के साथ वह सख्ती से पेश आती थी. बहरहाल, अंजलि और मुंसिफ खान के धंधे में साथ देने वालों में कई नाम शुमार थे. जिन में फिरदौस रसीद और आरती के नाम मुख्य थे. फिरदौस रसीद और आरती दोनों ही लोअर बाजार इलाके के कलालटोली चर्च रोड मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. धंधे की वजह से फिरदौस और आरती का अंजलि के यहां आनाजाना लगा रहता था. जिस की वजह से दोनों पर अंजलि अंधा विश्वास करती थी. कभीकभी वह अपना धंधा फिरदौस और आरती के भरोसे छोड़ जाती थी. ईमानदारी के साथ वे दोनों धंधा करते और सही हिसाब उन्हें सौंप देते थे.

बात 25 दिसंबर, 2019 की है. अंजलि शाम करीब साढ़े 6 बजे घर से किसी काम से अपनी आल्टो 800 कार ले कर निकली. कई घंटे बीत जाने के बाद भी न तो उस का फोन आया और न ही वह घर लौटी. जबकि घर से निकलते वक्त वह पति मुंसिफ खान से कह गई थी कि जल्द ही लौट कर आ जाएगी. उस के जाने के बाद मुंसिफ भी थोड़ी देर के लिए बाजार टहलने निकल गया था. करीब 2 घंटे बाद जब वह बाजार से घर लौटा तो अंजलि तब तक घर नहीं लौटी थी. ये देख कर वह परेशान हो गया. मुंसिफ खान ने अंजलि के मोबाइल फोन पर काल की तो उस का फोन बंद आ रहा था. यह देख कर वह और भी हैरान हो गया कि उस का फोन बंद क्यों आ रहा है? क्योंकि वह कभी भी फोन बंद नहीं रखती थी.

रात भर ढूंढता रहा मुंसिफ खान बारबार फोन स्विच्ड औफ आने से मुंसिफ खान बहुत परेशान हो गया था. पहली बार ऐसा हुआ था जब अंजलि का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. मुंसिफ ने अपने जानपहचान वालों को फोन कर के अंजलि के बारे में पता किया, लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस के बाद मुंसिफ को यह बात खटकने लगी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच की बात तो नहीं हो गई. अंजलि की तलाश में मुंसिफ खान ने पूरी रात यहांवहां ढूंढ़ते हुए बिता दी, लेकिन उस का पता नहीं चला. अगली सुबह मुंसिफ थकामांदा घर पहुंचा तो दरवाजा देख कर आश्चर्य के मारे उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस के कमरे का ताला टूटा हुआ था. कमरे के भीतर रखी अलमारी के दोनों पाट खुले हुए थे और अलमारी का सारा सामान फर्श पर बिखरा हुआ था.

अलमारी की हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी को अलमारी में किसी खास चीज की तलाश थी और उस व्यक्ति को पता था कि वह खास चीज इसी अलमारी में है, इसीलिए उस ने अलमारी के अलावा घर में रखी किसी भी वस्तु को हाथ नहीं लगाया था. मुंसिफ अंजलि को ले कर पहले से ही परेशान था, ऊपर से एक और मुसीबत ने दस्तक दे कर परेशानी और बढ़ा दी थी. मुंसिफ ने जब अलमारी चैक की तो उस में रखी ज्वैलरी और रुपए गायब थे. ये सोच कर वह परेशान था कि यह किस की हरकत हो सकती है?

मुंसिफ को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? किस के पास जाए? इसी उलझन में डूबे हुए कब दिन के 11 बज गए उसे पता ही नहीं चला. उसी समय उस ने अपना व्हाट्सएप यह सोच कर औन किया कि अंजलि के बारे में कहीं कोई सूचना तो नहीं आई है. एकएक कर के ग्रुप में आए मैसेज को सरसरी निगाहों से वह देखता चला गया. एक मैसेज पर जा कर उस की नजर ठहर गई. मैसेज में एक महिला की बुरी तरह जली लाश की फोटो पोस्ट की गई थी. लाश झुलसी हुई थी इसलिए पहचान में नहीं आ रही थी. वह लाश खूंटी थाना क्षेत्र में कालामाटी के तिरिल टोली गांव के एक खेत से मिली थी. उस मैसेज में लाश का जो हुलिया दिया गया था, वह उस की पत्नी अंजलि की कदकाठी से काफी मेल खाता हुआ नजर आ रहा था.

मैसेज पढ़ कर मुंसिफ खान दंग रह गया था. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. अंजलि को ले कर उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे. मैसेज पढ़ कर मुंसिफ जल्द ही बाइक से खूंटी की तरफ रवाना हो गया. रांची से खूंटी करीब 50-60 किलोमीटर दूर था. तेज गति से बाइक चला का मुंसिफ खान करीब एक घंटे में वह खूंटी थाना पहुंच गया था. उस ने थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो से मुलाकात की. थानाप्रभारी ने अपने मोबाइल द्वारा उस लाश के खींचे गए फोटो मुंसिफ को दिखाए. फोटो देख कर मुंसिफ की सारी आशंका दूर हो गई क्योंकि लाश उस की पत्नी अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की ही थी. हत्यारों ने बेरहमी से उसे जला दिया था. थानाप्रभारी को इस बात की आशंका थी कि कहीं अंजलि के साथ रेप कर के उस की हत्या तो नहीं कर दी.

थानाप्रभारी ने मुंसिफ से बात की तो उन्हें मुंसिफ की बातों और बौडी लैंग्वेज से उसी पर शक हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि कहीं इसी ने तो अपनी पत्नी की हत्या कर के लाश यहां फेंक दी हो और पुलिस से बचने का नाटक कर रहा हो. इसी आशंका के मद्देनजर थानाप्रभारी टोप्पो ने मुंसिफ खान को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस से की गई लंबी पूछताछ के बाद पुलिस को उस से कुछ भी हासिल नहीं हुआ. पूछताछ में उस ने बताया कि अंजलि उस की पत्नी थी. दोनों 10 सालों से दीया और बाती की तरह घुलमिल कर रहते थे. दोनों ने प्रेम विवाह किया था. उन का जीवन खुशहाली में बीत रहा था, तो वो भला पत्नी की हत्या क्यों करेगा.

उस की यह बात सुन कर थानाप्रभारी भी सोच में पड़ गए कि वह जो कह रहा है, सच हो सकता है. इसलिए उन्होंने कुछ हिदायत दे कर उसे छोड़ दिया. अगले दिन यानी 27 दिसंबर, 2019 को अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस के पास आ चुकी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि मृतका के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया था. रिपोर्ट में यह जरूरी उल्लेख किया गया था कि मृतका की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद बदमाशों ने लाश पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा थी. एसपी ने संभाली कमान अंजलि उर्फ विनीता तिर्की हत्याकांड की मानिटरिंग एसपी आशुतोष शेखर कर रहे थे. उन्होंने घटना के खुलासे के लिए एसडीपीओ आशीष कुमार के नेतृत्व में एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी टीम) का गठन किया. उस टीम में इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी, दिग्विजय सिंह,

राजेश प्रसाद रजक, खूंटी थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो, एसआई मीरा सिंह, नरसिंह मुंडा, पुष्पराज कुमार, रजनीकांत, रंजीत कुमार यादव, बिरजू प्रसाद, दीपक कुमार सिंह, पंकज कुमार और विवेक प्रशांत शामिल थे. चूंकि मृतका अंजलि दूसरे जिला यानी रांची की रहने वाली थी. इसलिए पुलिस ने सच की तह तक पहुंचने के लिए रांची से ही घटना की जांच शुरू की. इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी ने रांची पहुंच कर अंजलि के पति मुंसिफ खान से फिर से पूछताछ की और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि अंजलि के मोबाइल फोन पर आखिरी बार काल 25 दिसंबर, 2019 को शाम साढ़े 6 बजे की गई थी. जिस नंबर से काल की गई थी, छानबीन में वह नंबर इसी जिले के लोअर बाजार थाने के कलालटोली चर्च मोहल्ले की रहने वाली आरती का निकला.

28 दिसंबर को लोअर बाजार थाना पुलिस की मदद से एसआईटी टीम और खूंटी पुलिस ने आरती को उस के घर से पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस उसे लोअर बाजार थाने ले आई. पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो आरती उस के सामने पूरी तरह से टूट गई और अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस के सामने सच्चाई उगल दी. उस पता चला कि उस ने अपने साथियों फिरदौस रसीद और रमन कुमार के साथ मिल कर अंजलि की हत्या की थी. लाश की शिनाख्त आसानी से न होने पाए, इसलिए तीनों ने मिल कर उसे जला दिया था.

हत्थे चढ़े आरोपी फिर क्या था? आरती के बयान के बाद पुलिस ने फिरदौस रसीद को कलालटोली चर्च मोहल्ले में स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और दोनों को रांची से खूंटी ले आई. दोनों का तीसरा साथी रमन फरार था. पूछताछ में आरती और फिरदौस ने अंजलि की हत्या की वजह बता दी. उस के बाद दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने अंजलि की हत्या के बाद लूटी गई उस की अल्टो कार, उस के घर से लूटे गए जेवरात और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. गिरफ्तार दोनों आरोपियों के द्वारा बताई गई कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

बिंदास अंजलि उर्फ विनीता तिर्की सूद कारोबार से बेहद फलफूल गई थी. जिंदगी और बिजनैस दोनों का साथ देने वाला प्रेमी पति मुंसिफ खान साये के समान 24 घंटे उस से चिपका रहता था. वह पत्नी के एक हुक्म पर आसमान से तारे तोड़ लाने के लिए तैयार रहता था. सूद के कारोबार से उस ने बहुत पैसे कमाए. जब पैसे आने लगे तो उस ने अपने कारोबार का विस्तार किया और मोहल्ले के एक गुप्त स्थान पर बड़ा कमरा ले कर जुए का अड्डा बना लिया और वहीं जुआ खिलाती थी. जब अंजलि का कारोबार बढ़ा तो उसे बिजनैस संभालने के लिए आदमियों की जरूरत महसूस हुई. उस ने ऐसे आदमियों की तलाश शुरू की जो उसी की तरह ईमानदार और विश्वासपात्र हो.

बिजनैस में बेईमानी करने वाला न हो.अंजली के पड़ोस में फिरदौस रसीद, रमन और आरती रहते थे. तीनों से अंजलि की खूब पटती थी. वे उस से अकसर सूद पर पैसे लेते थे और समय पर ब्याज चुकता भी कर देते थे. तीनों की ईमानदारी और व्यवहार से अंजलि बेहद खुश थी. उस के कहने पर वे कभीकभी जुए का अड्डा संभालने में उस की मदद कर दिया करते थे. फिरदौस रसीद, रमन और आरती तीनों कलालटोली चर्च मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. तीनों एकदूसरे के पड़ोसी थे. तीनों का अपना भरापूरा परिवार था. बस कुछ नहीं था तो वह थी अच्छी सी नौकरी. इस वजह से उन के पास पर्याप्त और खाली समय रहता था. खाली समय में वे करते तो क्या करते?

आरती को छोड़ कर दोनों बालबच्चेदार थे. परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी. शार्टकट तरीके से वे कम समय में ज्यादा पैसे कमाना चाहते थे. पैसे कमाने के लिए जुआ खेलने अंजलि के अड्डे पर चले जाते थे. जुए की लत ने बनाया कंगाल फिरदौस रसीद को जुए की लत ने कंगाल बना दिया था. फिरदौस के साथसाथ आरती और रमन भी जुएबाज बन गए थे. फिरदौस तो जुए में बीवी के गहने तक हार गया था. गहने वापस पाने के लिए फिरदौस यारदोस्तों से कुछ कर्ज ले कर फिर से अपनी किस्मत आजमाने अंजलि के अड्डे पर चला गया. लेकिन उस की किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दी. कर्ज ले कर जिन पैसों से अपनी किस्मत बदलने फरदौस आया था, वो तो हार ही गया, धीरेधीरे वह अंजलि का लाखों रुपए का कर्जदार भी हो गया. ये बात दिसंबर, 2019 के पहले हफ्ते की थी.

अंजलि अपने पैसों के लिए फिरदौस रसीद से हर घड़ी तगादा करती थी. फिरदौस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उस का कर्ज चुकता कर सके. अंजलि के तगादे से वह बच कर भागाभागा यहांवहां फिरता था. धीरेधीरे एक पखवाड़ा बीत गया. न तो वह कर्ज का एक रुपया चुका सका और न ही वह अंजलि के सामने ही आया. उस के बारबार टोकने से फिरदौस खुद की नजरों में अपमानित महसूस करता था. उस की समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे. कैसे उस से छुटकारा पाए. इसी परेशानी के दौर में उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म लिया. उस ने सोचा कि क्यों न अंजलि को ही रास्ते से हटा दें. न वह रहेगी और न ही उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा. यानी न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. यह विचार मन में आते ही वह खुशी से झूम उठा.

फिरदौस रसीद ने योजना तो बना ली थी लेकिन योजना को अंजाम देना उस के अकेले के बस की बात नहीं थी. उस ने अपनी योजना में आरती और रमन को भी शामिल कर लिया. आरती और रमन साथ देने के लिए तैयार हो गए थे. दरअसल, वे दोनों भी अंजलि से नफरत करते थे. वे भी उस से जुए में एक बड़ी रकम हार चुके थे. जिस से कर्जमंद हो गए थे. रकम वापसी के लिए अंजलि उन पर तगादे का चाबुक चलाए हुई थी. आरती और रमन के पास एक फूटी कौड़ी नहीं थी. तो वे इतनी बड़ी रकम कहां से चुकाते. अंजलि के बारबार तगादा करने से वे परेशान हो चुके थे, इसलिए उन्होंने फिरदौस का साथ देना मंजूर कर लिया.

तीनों दुश्मनों ने बनाई योजना अब एकदो नहीं बल्कि अंजलि के 3 दुश्मन सामने आ चुके थे. तीनों ही मिल कर अंजलि से बदला लेने के लिए तैयार थे. तीनों ने मिल कर योजना बना ली थी कि किस तरह अंजलि को रास्ते से हटाना है. 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का त्यौहार था. उन के लिए यह मौका सब से अच्छा था क्योंकि क्रिसमस के त्यौहार की वजह से सभी लोग अपनेअपने घरों में दुबके रहेंगे. वैसे भी अंजलि को कोई पूछने वाला तो था नहीं, इसलिए सुनहरे मौके को तीनों किसी कीमत पर हाथ से गंवाना नहीं चाहते थे. यही मौका उन्हें ठीक लगा. इसी योजना के मुताबिक, फिरदौस ने अंजलि को फोन कर के शाम साढ़े 6 बजे एक पार्टी दी और रिंग रोड बुलाया. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारे पैसे तैयार हैं, उन्हें भी लेती जाना.

पैसों का नाम सुनते ही अंजलि की आंखों में चमक जाग उठी थी. उसे क्या पता था कि पैसे तो एक बहाना है, दरअसल उन्होंने उस के इर्दगिर्द मौत का जाल बिछा दिया था. उस जाल में वह फंस चुकी थी. वह दिन उस का आखिरी दिन था. बहरहाल, अंजलि ने फिरदौस से बता दिया कि वो रिंग रोड पर ही उस का इंतजार करे, कुछ ही देर में वह वहां पहुंच रही है. अंजलि की ओर से हां का जवाब मिलते ही फिरदौस, आरती और रमन की आंखों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. तकरीबन शाम 7 बजे अंजलि रिंग रोड पहुंच गई. जहां पर फिरदौस, आरती और रमन उसी के इंतजार में पलक बिछाए बैठे थे. फिरदौस के साथ आरती और रमन को देख कर अंजलि थोड़ी चौंकी थी.

अंजलि के रिंग रोड पहुंचते ही तीनों उस की कार में सवार हो गए. फिरदौस आगे की सीट पर बैठ गया था और आरती व रमन पीछे वाली सीट पर सवार थे. अंजलि ड्राइविंग सीट पर बैठी कार चला रही थी. उस ने कार जैसे ही आगे बढ़ाई, अचानक पीछे से अंजलि ने अपनी गरदन पर दबाव महसूस किया और वह चौंक गई.  उस के हाथ से स्टीयरिंग छूटतेछूटते बचा और कार हवा में लहराती हुई सड़क के दाईं ओर जा कर रुक गई. अभी वह कुछ समझ पाती तब तक फिरदौस और आरती भी उस पर भूखे भेडि़ए के समान टूट पड़े. रमन पहले ही फिरदौस के इशारे पर टूट पड़ा था.

चलती कार में घोटा गला तीनों दरिंदों के चंगुल से आजाद होने के लिए अंजलि फड़फड़ा रही थी लेकिन उन की मजबूत पकड़ से वह आजाद नहीं हो पाई और वह मौत की आगोश में सदा के लिए समा गई. अंजलि की मौत हो चुकी थी. उस की मौत के बाद तीनों बुरी तरह डर गए कि अब इस की लाश का क्या होगा? जल्द ही फिरदौस ने इस का रास्ता भी निकाल लिया. पहले तीनों ने मिल कर उस की लाश पीछे वाली सीट पर बीच में ऐसे बैठाई जैसे वह आराम से बैठीबैठी सो रही हो. उस के अगलबगल में रमन और आरती बैठ गए. फिरदौस ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. वहां से तीनों खूंटी पहुंचे. खूंटी के कालामाटी के तिरिल टोली गांव के बाहर सूनसान खेत में अंजली का शव ले कर गए. उस के ऊपर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा दी और कार ले कर वापस रांची पहुंचे.

इधर मुंसिफ खान अंजलि की तलाश में यहांवहां भटक रहा था. उधर तीनों अंजलि के घर पहुंचे और उस के घर की अलमारी तोड़ कर उस में से उस के सारे गहने लूट लिए और वहां से रफूचक्कर हो गए. तीनों ने जिस चालाकी से अंजलि की हत्या कर के उस की पहचान मिटाने की कोशिश की थी उन की चाल सफल नहीं हुई. आखिरकार पुलिस उन तक पहुंच ही गई और उन्हें उन के असल ठिकाने तक पहुंचा दिया. तीनों आरोपियों से पुलिस ने अंजलि के घर से लूटे गहने और कार बरामद कर ली थी.  कथा लिखने तक पुलिस अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Stories : मंहगा फोन खरीदने के लिए युवक ने ली महिला की जान

Murder Stories : युवा गांव के हों या शहर के, सभी के लिए कीमती और ज्यादा से ज्यादा फीचर्स वाले मोबाइल फोन जरूरत नहीं बल्कि शौक बनते जा रहे हैं. कई युवा तो ऐसे फोनों को प्रस्टेज इशू बनाने लगे हैं. गौरव भी ऐसे ही युवाओं में था उस की इस चाहत ने एक ऐसी युवती की जान ले ली जो…

18 अक्तूबर, 2019 को दिन के 12 बजे का वक्त रहा होगा. एक मोबाइल फोन शोरूम के मालिक मनीष चावला ने काशीपुर कोतवाली में जो सूचना दी, उसे सुन कर पुलिस के जैसे होश ही उड़ गए. मनीष चावला ने पुलिस को बताया कि उन के शोरूम पर काम करने वाली युवती पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. शहर में दिनदहाड़े एक युवती की हत्या वाली बात सुनते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह हैरान रह गए. उन्होंने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मनीष चावला का मोबाइल शोरूम कोतवाली से कुछ ही दूर गिरीताल रोड पर था, वह थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गए.

तब तक वहां काफी भीड़भाड़ जमा हो गई थी. शव शोरूम से सटे स्टोर में पड़ा था. वहां पहुंचते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने पिंकी के शव का जायजा लिया. वहां पर खून ही खून फैला था. उस के शरीर पर धारदार हथियार के कई घाव थे. देखने से लग रहा था जैसे शोरूम में लूटपाट भी हुई हो. कोतवाल का ध्यान सब से पहले शोरूम के सीसीटीवी कैमरों की ओर गया. पूछताछ में मनीष चावला ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उस के सीसीटीवी कैमरे खराब हो गए थे, जिन्हें वह अभी तक सही नहीं करा पाए. सूचना मिलने पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज कुमार ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार भी वहां पहुंच गए. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि हत्यारे ने पिंकी के पेट पर चाकू से 8 वार किए थे, जिन के निशान साफ दिख रहे थे.

फर्श व शोरूम के काउंटर पर खून के निशान देख कर लग रहा था कि मरने से पहले पिंकी ने हत्यारों का डट कर मुकाबला किया था. एसएसपी के निर्देश पर डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गईं. लेकिन इस मामले में डौग स्क्वायड कोई मदद नहीं कर सका. फोरैंसिक टीम ने शोरूम के अंदर कई जगहों से फिंगर प्रिंट उठाए. प्राथमिक जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने शोरूम के मालिक मनीष चावला से पूछताछ की. चावला ने बताया कि करीब पौने 12 बजे पिंकी ने उन्हें फोन पर बताया था कि दुकान पर कोई ग्राहक आया है और पावर बैंक का रेट पूछ रहा है. पावर बैंक का रेट बताने के बाद उन्होंने पिंकी से कह दिया था कि वह कुछ देर में शोरूम पहुंचने वाले हैं.

उस के लगभग 20 मिनट बाद जब वह शोरूम पहुंचे तो वहां के हालात देख कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने बताया कि बदमाश पिंकी की हत्या कर के शोरूम से लगभग डेढ़ लाख रुपए के मोबाइल भी लूट कर ले गए थे. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि पिंकी को किस ने मारा एसएसपी ने पुलिस अफसरों को इस मामले का जल्दी से जल्दी खुलासा करने के निर्देश दिए. साथ ही साथ उन्होंने जांच के लिए तुरंत पुलिस टीम गठित करने को कहा. पुलिस ने उसी वक्त शोरूम के आसपास सीसीटीवी कैमरों की तलाश की, लेकिन वहां कहीं भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था. घटना स्थल से सारे तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जैसेजैसे शहर में पिंकी हत्याकांड की खबर फैलती गई लोग घटना स्थल पर जमा होते गए. हत्या के बाद पर्वतीय समाज में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया.

बेटी पिंकी की हत्या के सदमे में उस के पिता मनोज बिष्ट तो सुधबुध ही खो बैठे. पिंकी के परिजनों का दुकानदार मनीष चावला के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उसी दिन देर शाम को काफी लोग एकत्र हो कर एएसपी डा. जगदीश चंद्र के पास पहुंचे और इस मामले का जल्दी खुलासा करने की मांग की. मृतका पिंकी के पिता ने इस घटना के लिए शोरूम मालिक मनीष चावला को जिम्मेदार ठहराते हुए उस के खिलाफ काररवाई करने की मांग की. एएसपी को सौंपी गई तहरीर में उन्होंने कहा कि शोरूम मालिक मनीष चावला ने अपने शोरूम में सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं किए थे. शोरूम में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगाए गए थे.

पिंकी वहां काम करने पर स्वयं भी असुरक्षित महसूस कर रही थी. उस ने कई बार इस बात का जिक्र अपने घरवालों से किया था. पिंकी ने उन्हें बताया था कि उस के मालिक ने शोरूम में लगे सभी कैमरे हटवा दिए थे. जिस के कारण उसे वहां पर अकेले काम करते हुए डर लगता है. वह वहां से नौकरी छोड़ देना चाहती थी, लेकिन मनीष चावला उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. उन्हें शक है कि मनीष चावला ने ही उन की बेटी की हत्या कराई है. पुलिस प्रशासन पर बढ़ते दवाब के कारण एएसपी ने उन की तहरीर के आधार पर केस दर्ज करने का आदेश दिया. उसी वक्त युवा पर्वतीय महासभा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर सिंह बिष्ट ने घोषणा की कि अगले दिन शनिवार साढ़े 5 बजे मृतका पिंकी की आत्मा की शांति तथा इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए नगर निगम से सुभाष चौक तक कैंडल मार्च निकाला जाएगा.

अगले दिन सुबह ही पूर्व योजनानुसार कई सामाजिक संगठन सड़क पर उतर गए. सड़कों पर जन शैलाब उमड़ा तो पुलिस प्रशासन के पसीने छूटने लगे. क्योंकि इस से अगले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का काशीपुर आने का प्रोग्राम था. रावत के आगमन से एक दिन पहले ही नगर में हुए जाम और प्रदर्शन को ले कर पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस जाम को हटवाने के लिए रुद्रपुर से एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार, दीपशिखा अग्रवाल, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह, कुंडा थाना प्रभारी राजेश यादव और आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी आदि जनसैलाब को समझाने में जुट गए.

पिंकी हत्याकांड के विरोध में सैकड़ों नागरिकों और डिगरी कालेज के छात्रों ने महाराणा प्रताप चौक तक कैंडल मार्च निकाला और शोक सभा आयोजित कर मृतका को श्रद्धांजलि दी. साथ ही हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग भी की. पर्वतीय महासभा के पदाधिकारियों ने पीडि़त परिवार को 40 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने की मांग की. उसी दौरान मृतका का पोस्टमार्टम होने के दौरान जनाक्रोश भड़क उठा. सैकड़ों लोग पोस्टमार्टम हाउस पर एकत्र हो गए और केस का खुलासा होने पीडि़त परिवार को मुआवजा मिलने तक शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार करने लगे.

लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी शुरू कर दी. लोग नारेबाजी करते हुए चीमा चौराहे पर जा पहुंचे. वहां पहुंच कर भी भीड़ ने काफी उत्पात मचाया. पुलिस अधिकारियों के काफी समझाने के बाद भी लोग टस से मस न हुए. यह देख एसडीएम ने लोगों को आश्वासन दिया कि 48 घंटे में इस केस का खुलासा कर दिया जाएगा. एसडीएम के आश्वासन के बाद वहां लगा जाम खुल सका. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस प्रशासन ने सतर्कता में ढील नहीं दी. मृतका का अंतिम संस्कार होने तक पुलिस प्रशासन चौकन्ना बना रहा. जाम हटाने के बाद प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम हाउस के लिए रवाना हुए तो पुलिस भी उन के पीछेपीछे रही. पोस्टमार्टम के बाद मृतका के परिजन उस के शव को सीधे श्मशान ले गए, जहां पर उस का दाह संस्कार कर दिया गया. दाहसंस्कार के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली.

मृतका के पिता मनोज बिष्ट मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव धुमाकोट के रहने वाले थे. परिवार में मियांबीवी और बच्चों को मिला कर कुल 5 सदस्य थे. बच्चों में 2 बेटियां और उन से छोटा एक बेटा प्रवीण कुमार था. घरपरिवार के लिए नौकरी करती थी पिंकी खेती में गुजरबजर न होने के कारण करीब 2 साल पहले पिंकी अपने भाई प्रवीण को साथ ले कर रोजगार की तलाश में काशीपुर आ गई थी. काशीपुर की सैनिक कालोनी में उस की बुआ आशा रावत रहती थी. जिस के सहारे दोनों भाईबहन यहां आए थे. बुआ ने उन्हें मानपुर रोड स्थित आर.के.पुरम निवासी चंदन सिंह बिष्ट के यहां पर किराए का कमरा दिला दिया था. वहीं रहते हुए पिंकी को गिरीताल रोड स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम में नौकरी मिल गई थी. पिंकी उस मोबाइल शोरूम पर अकेली ही रहती थी.

इस घटना से एक दिन पहले ही उस के पिता मनोज बिष्ट काशीपुर से दवा लेने आए थे. उस दिन वह अपनी बहन आशा रावत के घर पर ही रुके हुए थे. लेकिन उन्हें दिन के 3 बजे तक अपनी बेटी की हत्या वाली बात पता नहीं चली थी. 18 अक्तूबर, 2019 को ही दोपहर लगभग साढ़े 3 बजे फरीदाबाद से पिंकी की दूसरी बुआ मीना ने अपने भाई की खबर लेने के लिए पिंकी के मोबाइल पर फोन किया तो वह काल कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने रिसीव की. उन्होंने पिंकी की बुआ को बताया कि पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. उस के बाद मीना ने काशीपुर में अपनी बहन आशा को फोन पर उस की हत्या वाली बात बताई. बेटी की हत्या की बात सुनते ही इलाज के लिए काशीपुर आए मनोज रावत अपनी सुधबुध खो बैठे.

शनिवार की देर शाम पूर्व सीएम हरीश रावत भी मृतका के परिजनों को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को सांत्वना दी. रावत ने जल्दी ही अपराधियों को पकड़ने के साथसाथ परिवार को आर्थिक सहायता दिलाने और भाई को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया. रावत ने उसी वक्त डीजी (कानून व्यवस्था) अशोक कुमार से फोन पर बात कर घटना की जानकारी दी और पीडि़त परिवार की स्थिति से अवगत कराया. इन सब स्थितियों से निपटने के बाद पुलिस प्रशासन पूरी तरह से पिंकी के हत्यारों की तलाश में जुट गया. घटना स्थल से पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन कब्जे में लिया था. पुलिस अपनी हर काररवाई को इस हत्याकांड से जोड़ कर देख रही थी.

पिंकी की उम्र ऐसी थी जहां बच्चों के कदम बहकना कोई नई बात नहीं होती. पुलिस को शंका थी कि हत्या का कारण किसी युवक के साथ पिंकी के संबंध होना तो नहीं है. यह जानने के लिए पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाकर जांच की. लेकिन मोबाइल से कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली जिस से उस की हत्या की गुत्थी सुलझ पाती. इस बहुचर्चित हत्याकांड के खुलासे के लिए आईजी अशोक कुमार के निर्देश पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने एएसपी डा. जगदीश चंद्र के निर्देशन में 6 पुलिस टीमें गठित कीं. इन टीमों में एक सीओ 2 ट्रेनी सीओ, 2 इंसपेक्टर, एक एसओ के अलावा 9 एसआई और 50 कांस्टेबलों के साथसाथ एसटीएफ और एसओजी की टीमों को भी लगाया गया था.

इस केस को खोलने के लिए पुलिस प्रशासन ने दिनरात एक करते हुए 5 दिनों तक नगर के अलगअलग इलाकों में लगे मोबाइल टावरों से डंप डाटा प्राप्त किए. पुलिस अधिकारी सादा कपड़ों में बाइकों से दिनभर संदिग्धों की टोह लेते नजर आए. एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह आदि सभी अधिकारी सादा कपड़ों में संदिग्धों की तलाश में बाजपुर रोड, मुरादाबाद, रामनगर रोड पर कई जगह वीडियो फुटेज चेक करने में जुटे रहे. इस दौरान लगभग 5 हजार संदिग्ध मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई. साथ ही शहर के अलगअलग वार्डों में लगे लगभग 300 सीसीटीवी कैमरों से फुटेज ली गईं. उन्हीं सीसीटीवी फुटेज के दौरान पुलिस टीम को एक संदिग्ध बाइक नजर आई. पुलिस ने उस बाइक की पहचान करने के लिए उस के मालिक के बारे में जानकारी जुटाना चाही तो उस में भी एक अड़चन सामने आ खड़ी हुई.

उस बाइक का नंबर अधूरा था. जिस का पता लगाने के लिए पुलिस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी. इस के लिए पुलिस ने बाइक के नंबर की 3 सीरिज में पड़ताल की और तीनों बाइक मालिकों के बारे में जानकारी जुटाई. तफ्तीश रंग लाने लगी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस बाइक नंबर यूके18जे0431 ट्रेस करने के बाद बाइक मालिक के पास पहुंची. पुलिस ने इस बाइक के मालिक कचनालगाजी निवासी मनोज उर्फ मोंटी से पूछताछ की. अपने घर पुलिस को आई देख मनोज उर्फ मोंटी के हाथपांव फूल गए. पुलिस पूछताछ में मोंटी ने बताया कि उस की बाइक मुरादाबाद के थाना भगतपुर क्षेत्र के गांव मानपुरदत्ता निवासी गौरव ले गया था. उस ने आगे बताया कि गौरव उस का रिश्तेदार है.

18 अक्तूबर को गौरव एक युवक के साथ उस के यहां आया था. उसी दिन वह उस की बाइक मांग कर ले गया था. लेकिन जब वे दोनों एक घंटे बाद घर लौटे तो दोनों के कपड़ों पर खून लगा था. उन की हालत देख डर की वजह से उस का भाई विनोद उर्फ डंपी दोनों को उन के गांव मानपुरदत्ता छोड़ आया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने मनोज और उस के भाई विनोद को अपनी हिरासत में ले लिया. उस के बाद पुलिस उन दोनों को ले कर गांव मानपुरदत्ता पहुंची. जहां से पुलिस ने गौरव और उस के दोस्त रोहित को हिरासत में ले लिया. मनोज और विनोद को पुलिस जिप्सी में बैठे देख गौरव और रोहित समझ गए कि अब पुलिस के सामने अपनी सफाई पेश करने से कोई लाभ नहीं. क्योंकि मनोज और विनोद पुलिस को सबकुछ उगल कर ही यहां आए होंगे. सभी को ले कर पुलिस टीम सीधे काशीपुर कोतवाली आ गई.

पुलिस ने चारों आरोपियों से एक साथ कड़ी पूछताछ की. पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल करने के बाद उन में से कोई भी नहीं मुकर सका. चारों आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही मोबाइल लूट के लिए पिंकी की जान ली थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पिंकी की हत्या में इस्तेमाल किए गए चाकू, शोरूम से लूटे गए 10 महंगे मोबाइल फोन, खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस पूछताछ में पता चला कि इस हत्याकांड को अंजाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका गौरव की थी. थाना भगतपर, मुरादाबाद निवासी गौरव कुमार बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह पढ़ाई के प्रति गंभीर था. लेकिन पढ़ाई के साथसाथ उसे महंगे मोबाइल रखने का भी शौक था. जिस के लिए वह पढ़ाई के साथसाथ कोई भी काम करने में शर्म नहीं करता था.

इस वारदात को अंजाम देने से 6 माह पूर्व उस ने दिनरात पेंटिंग का काम किया. उसी कमाई से उस ने एक महंगा मोबाइल खरीदा. लेकिन एक महीने बाद ही उस का मोबाइल कहीं पर गिर गया. वह मोबाइल उस ने कड़ी मेहनत कर के खरीदा था. मोबाइल खो जाने का उसे जबरदस्त झटका लगा. उस के पास इतने पैसे इकट्ठा नहीं हो पा रहे थे कि वह उन पैसों से एक दूसरा नया एंड्रोयड मोबाइल फोन खरीद सके. गौरव काशीपुर से ही सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहा था. उस का काशीपुर आनाजाना लगा रहता था. आतेजाते कई बार उस की नजर गिरीताल रोड पर स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम पर पड़ी थी, जहां पर उस ने कई बार एक अकेली युवती को बैठे देखा था. उस युवती से उस ने मोबाइलों के रेट भी मालूम करने की कोशिश की थी. उसी दौरान उसे पता चला कि इस शोरूम में महंगे से महंगे मोबाइल मौजूद हैं.

हत्यारा बन गया मोबाइल की चाह में उस के बाद गौरव ने उसी शोरूम से मोबाइल लूटने की साजिश रची. उस ने इस बात का जिक्र अपने साथ कोचिंग कर हरे 2 साथियों से किया. यह जानकारी मिलते ही उस के दोनों साथियों ने 17 अक्तूबर को गिरीताल रोड पर जा कर मोबाइल शोरूम की रेकी की. लेकिन उस के साथ आए दोनों साथी इस काम में उस का साथ देने से पीछे हट गए. उस के बाद उस ने अपने ही गांव के रहने वाले किशोर कुमार को इस काम के लिए राजी कर लिया. 18 अक्तूबर को किशोर अपने घर से स्कूल बैग ले कर निकला. लेकिन स्कूल न जा कर वह गौरव के बहकावे में आ कर उस के साथ सीधा काशीपुर आ गया. किशोर कक्षा 10 में पढ़ रहा था. किशोर हेकड़ था. इसीलिए वह उस दिन घर से ही पूरी तरह तैयार हो चाकू ले कर निकला था.

इसी दौरान रास्ते में उन दोनों की मुलाकात रोहित से हुई. रोहित जागरण मंडली में काम करता था. वह भी महंगा मोबाइल खरीदना चाहता था. लेकिन वह पैसे की तंगी की वजह से खरीद न पाया था. गौरव ने उसे भी महंगा मोबाइल दिलाने का झांसा दिया तो वह भी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. पूर्व नियोजित योजनानुसार गौरव जिस वक्त अपने साथियों के साथ मोबाइल शोरूम पर पहुंचा, उस वक्त पिंकी शोरूम में अकेली थी. वहां पहुंचते ही गौरव ने पिंकी से पावर बैंक और महंगा मोबाइल दिखाने की बात कही. तभी गौरव ने पिंकी से पीने के लिए पानी मांगा. जैसे ही पिंकी वाटर कूलर से पानी निकालने के लिए झुकी, उसी दौरान गौरव ने साथ लाया बेहोश करने वाला स्प्रे छिड़क कर उसे बेहोश करने की कोशिश की.

स्प्रे करते ही गौरव ने पिंकी को अपने कब्जे में ले लिया. उस के बाद पिंकी ने चिल्लाने की कोशिश की तो सामने खड़े किशोर ने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया. पिंकी पूरी तरह से बेहोश नहीं हुई थी, इसलिए वह बुरी तरह चिल्लाने लगी तो रोहित ने चाकू से उस पर वार करने शुरू कर दिए, जिस से वह फर्श पर गिर गई. रोहित पिंकी पर तब तक चाकू से वार करता रह

Social Crime : मसाज सर्विस के नाम पर कारोबारियो को जाल में फंसाया जाता

Social Crime :  दिल्ली और एनसीआर में मसाज के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा जोरों पर है. नीरज नारंग को भी एक ब्लैकमेलिंग गैंग ने अपना शिकार बना कर कई लाख रुपए ऐंठ लिए थे. शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने गिरोह का परदाफाश किया तो…

नीरज नारंग जिस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी राम गोपाल नाइक के औफिस में पहुंचे तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. क्योंकि वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन के साथ जो हुआ था, उसे डीसीपी को किस तरह बताएं. औफिस में घुसने के बाद उन्होंने जैसे ही डीसीपी का अभिवादन किया तो डीसीपी ने उन्हें सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा किया. नीरज नारंग की तरफ देखने के बाद डीसीपी ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बड़े परेशान लग रहे हो. बताओ क्या समस्या है.’’

‘‘सर, मैं अपनी गलती के कारण कुछ बदमाशों के चक्कर में फंस गया हूं. मुझे उन से बचा लीजिए. वो लोग मुझे ब्लैकमेल कर के मुझ से 3 लाख रुपए ऐंठ चुके हैं और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक ले चुके हैं. अब वो मुझ से फिर एक बड़ी रकम की डिमांड कर रहे हैं. सर, इस तरह से तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ नीरज नारंग ने बताया.

‘‘कौन हैं वो लोग. आप घटना विस्तार से बताइए.’’ डीसीपी ने उन से कहा. इस के बाद नीरज नारंग ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए अपने साथ घटी घटना बता दी. उसे सुन कर डीसीपी राम गोपाल नाइक को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच की शाखा शकरपुर के इंसपेक्टर विनय त्यागी को सौंप दी और उन्होंने पीडि़त नीरज नारंग को शकरपुर क्राइम ब्रांच औफिस भेज दिया. यह बात 19 सितंबर, 2018 की है. नीरज नारंग क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनय त्यागी के औफिस पहुंच गए. उन्होंने उन्हें अपने साथ घटी जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी.

नीरज नारंग दिल्ली के एक बिजनैसमैन हैं. पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में उन की अपनी फैक्ट्री है. एक दिन वह अपने औफिस में लैपटौप पर नेट सर्फिंग कर रहे थे. इस दौरान वह एक गे वेबसाइट देखने लगे. उस साइट को देखने में उन की रुचि बढ़ने लगी. साइट पर उन्होंने एक फोन नंबर देखा. नीरज की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने उसी समय वह नंबर अपने फोन से मिलाया. कुछ देर घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से एक युवक की आवाज आई. उस युवक ने अपना नाम अरमान शर्मा बताया. उस से कुछ देर बात कर ने के बाद नीरज नारंग ने उस से उसी दिन शाम को पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित वीथ्रीएस मौल में मिलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निर्धारित समय पर नीरज नारंग वहां पहुंच गए. कुछ देर में अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया.

वहां स्थित मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट में दोनों की मुलाकात हुई. उस ने नीरज को बताया कि वह आधुनिक तरीके की मसाज सर्विस चलता है. उस के पास अलगअलग कैटेगरी की मसाज करने के पैकेज हैं और यह सुविधा अच्छे होटल में उपलब्ध कराई जाती है. नीरज नारंग एक अलग ही मिजाज वाले थे. इसलिए उन्होंने 8 हजार रुपए के पैकेज का चयन कर लिया. मसाज कराने के लिए वह वैशाली में स्थित एक होटल में पहुंच गए. अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया. अरमान ने जिस तरह से नीरज की मसाज की थी वह तरीका नीरज को बहुत पसंद आया. जिस से उन्होंने होटल के खर्च के अलावा 8 हजार रुपए अरमान को खुशीखुशी दे दिए. अरमान शर्मा ने अपनी कुछ मजबूरियां उन्हें बताईं. फिर अरमान के आग्रह करने पर नीरज नारंग ने उसे 3 हजार रुपए अलग से दे दिए.

इस के 10 दिन बाद नीरज नारंग का मन फिर से मसाज कराने का हुआ. वह अरमान को फोन करने के मूड में थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन स्क्रीन पर जो नंबर उभरा उसे देख कर उन की आंखों में अनोखी चमक उभर आई. यह नंबर अरमान शर्मा का था. अरमान ने उन्हें मसाज के लिए उसी होटल में आने के लिए कहा तो शाम के 5 बजे नीरज नारंग वहां पहुंच गए. करीब आधे घंटे के बाद जब होटल के बंद कमरे में नीरज नारंग निर्वस्त्र हो कर अरमान से मसाज करवा रहे थे तभी कमरे के दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई. दस्तक के बाद अरमान ने नीरज को कपड़े पहनने का मौका दिए बिना झट से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलते ही धड़धड़ाते हुए 2 युवतियां कमरे में घुस गईं. उन में से एक ने सोफे पर रखे नीरज नारंग के सभी कपड़े अपने कब्जे में ले लिए तो दूसरी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो बनाने लगी. अरमान शर्मा जो कुछ देर पहले नीरज नारंग की इच्छा के अनुसार तरहतरह से उन की मसाज कर रहा था. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला और वह भी उन युवतियों के पास जा कर खड़ा हो गया. उन में से एक युवती नीरज नारंग को गालियां बकते हुए उन के नग्न वीडियो को सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देने लगी और कहने लगी कि यदि ऐसा नहीं चाहते तो बदले में 10 लाख रुपए देने होंगे.

कहां तो नीरज नारंग अरमान शर्मा के हाथों से मसाज लेते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और कहां पलक झपकते ही परिस्थितियां उन के विपरीत हो गईं. खुद को इस तरह बेबस पा कर नीरज नारंग सकते में रह गए. उस समय उन के पर्स में एक लाख रुपए थे, जो उन्होंने उस युवती को सौंप दिए और गिड़गिड़ाते हुए अपने कपड़े लौटा देने की गुहार करने लगे. मगर दोनों युवतियां उन्हें प्रताडि़त करते हुए 10 लाख रुपए देने का दबाव बनाती रहीं. उसी समय अरमान ने कमरे में रखी लोहे की रौड से नीरज नारंग को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया.

मरता क्या नहीं करता. बचने का कोई चारा नहीं देख कर नीरज नारंग ने युवती को बताया कि उन की कार पार्किंग में खड़ी है. उन्होंने युवती को कार का नंबर बताते हुए उसे कार की चाबी सौंपी और उस में रखा ब्रीफकेस लाने के लिए कहा. युवती कार की चाबी ले कर होटल की पार्किंग में पहुंची और उस में रखा उन का ब्रीफकेस ले कर कमरे में लौट आई. नीरज नारंग ने उस में रखे 2 लाख रुपए निकाल कर उसे सौंपे तथा साढ़े 4 लाख रुपए के 3 पोस्ट डेटेड चेक उसे दे दिए. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को बताया कि वह लोग अब फिर से पैसों की डिमांड कर रहे हैं.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने बुरी तरह परेशान दिख रहे नीरज नारंग को ढांढस बंधाया फिर उन का मसाज करने वाले अरमान शर्मा और दोनों युवतियों का हुलिया वगैरह पूछ कर अपनी डायरी में दर्ज कर लिया. इस घटना के बारे में पूरी बात जान लेने के बाद उन्होंने उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे कर घर जाने की इजाजत दे दी. इस के बाद नीरज नारंग अपने औफिस की ओर निकल गया. इंसपेक्टर विनय त्यागी ने इस केस के बारे में एसीपी अरविंद कुमार मिश्रा को बताया. एसीपी ने इस रैकेट का परदाफाश करने के लिए इंसपेक्टर विनय त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई बलविंदर, दिनेश, हवा सिंह, अर्जुन, एएसआई रमेश कुमार, सत्यवान, राजकुमार, मो. सलीम, सतीश पाटिल, हैड कांस्टेबल श्यामलाल, शशिकांत, सुनील कुमार, बाबूराम, दिग्विजय, कांस्टेबल कुलदीप, समीर आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर त्यागी ने अपनी टीम के साथ केस के सभी पहलुओं पर विस्तार पूर्वक विचारविमर्श करने के बाद आरोपियों को पकड़ने की एक फूलप्रूफ योजना तैयार की. उन्होंने नीरज नारंग को एक बार फिर अपने औफिस में बुला कर पूरी योजना समझा दी. उन्होंने उन से यह भी कहा कि उन के पास ब्लैकमेलर का जब भी कोई फोन आए तो वह उन्हें सूचित कर दें. इत्तेफाक से अगले ही दिन नीरज नारंग के पास ब्लैकमेलर अरमान शर्मा का फोन आया. उस ने 2 लाख रुपए मांगे थे. उस ने पैसे ले कर दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित सेलेक्ट सिटी वाक मौल में शाम को बुलाया था. ऐसा नहीं करने पर उस ने परिणाम भुगतने को धमकी दी थी. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

नीरज नारंग की बात सुन कर विनय त्यागी ने एसीपी अरविंद मिश्रा को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद वह उन से आगे की योजना पर विचार करने लगे. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर विनय त्यागी ने नीरज नारंग को फोन कर के आगे की पूरी योजना समझा दी. निर्धारित समय पर नीरज नारंग एक बैग में 2 लाख रुपए ले कर साकेत सेलेक्ट वाक सिटी मौल पहुंच गए और अरमान के वहां आने का इंतजार करने गले. थोड़ी देर बाद अरमान अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ नीरज नारंग के पास पहुंच गया. बातचीत होने के बाद नीरज ने उसे पैसों वाला बैग सौंप दिया. जैसे ही अरमान ने नीरज नारंग से पैसों का बैग लिया सादे वेश में वहां मौजूद क्राइम ब्रांच की टीम ने अरमान और उस की गर्लफ्रैंड को अपने काबू में कर लिया.

उन्होंने उन के पास बैग से 2 लाख रुपए भी बरामद कर लिए. इस के बाद क्राइम ब्रांच टीम उन दोनों को ले कर शकरपुर स्थित औफिस लौट आई. यह बात 20 सितंबर, 2018 की है. हिरासत में लिए गए युवक से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का असली नाम अरमान शर्मा नहीं बल्कि शादाब गौहर है. उस के साथ वाली युवती ने अपना नाम मनजीत कौर बताया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना अपराध स्वीकार करते हुए ब्लैकमेलिंग के धंधे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. 25 साल का शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा मूलरूप से श्रीनगर, कश्मीर के कुमो पदशेनी बाग का रहने वाला था. वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उस का रुझान बौडी बिल्डिंग की तरफ हो गया. वह बेहद फैशनेबल युवक था इसलिए खुद के मैनटेन पर बहुत ध्यान देता था.

उस ने जिम जाना शुरू कर दिया. एकदो साल तक तो घर वालों ने उस की बौडी फिटनेस पर पैसे खर्च किए लेकिन बाद में उन्होंने कह दिया कि वह खुद कमाकर अपने ऊपर खर्च करे. शादाब ऐसा कोई काम नहीं जानता था जिस के बूते वह कमाई कर सके. लिहाजा उस ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया. यह काम सीखने के बाद उस ने श्रीनगर में ही मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोल ली. थोड़े ही दिनों में उस का काम चल निकला और इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जेब में पैसे आए तो वह खुद की फिटनैस पर और ज्यादा ध्यान देने लगा. शादाब बहुत खूबसूरत था. अच्छे खानपान और ब्रांडेड कपड़ों के कारण उस की पर्सनैलिटी और भी निखर गई. लेकिन जब कश्मीर के हालात ज्यादा बिगड़े और घाटी में आए दिन उस की दुकान बंद रहने लगी तो वह परेशान हो उठा.

दुकान बंद रहने के कारण उस की आमदनी बंद हो जाती. यानी उसे फिर से रुपयों की किल्लत रहने लगी.  वह परेशान चल रहा था कि एक दिन पत्थरबाजी के दौरान लोगों ने उस की दुकान को आग लगा दी. दुकान के उजड़ जाने के कारण उस की माली हालत बेहद खराब हो गई तो वह काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गया और वहां के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर ली. चंडीगढ़ के जिम में काम करने के दौरान उस की बहुत से ऐसे लड़केलड़कियों से जानपहचान हो गई जो रोजाना वहां एक्सरसाइज के लिए आया करते थे. चूंकि शादाब गौहर एक हैंडसम युवक था इसलिए खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती होते देर नहीं लगती थी. मनजीत कौर नाम की एक युवती से उस की अच्छी दोस्ती थी.

गोरीचिट्टी और आकर्षक मनजीत कौर बेहद खूबसूरत युवती थी. वह मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली थी और उन दिनों चंडीगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रही थी. शादाब मनजीत को अपने साथ चंडीगढ़ के महंगे रेस्टोरेंट में ले जाने लगा. कुछ दिनों में उन के बीच का फासला खत्म हो गया और फिर वह दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे.  शादाब गौहर ने चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. अब मनजीत कौर उस के साथ बतौर उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अभी दोनों को साथ रहते हुए ज्यादा दिन नहीं गुजरे थे कि इसी बीच उन्हें महसूस होने लगा कि केवल जिम की कमाई भर से उन के वे सपने पूरे नहीं हो सकते जिन की ख्वाहिश वे अपने दिलों में पाले हुए थे.

इस के लिए उन्होंने नएनए उपाय खोजने शुरू कर दिए. दोनों यही योजना बनाते कि कम समय में अमीर कैसे हुआ जाए. इसी बीच एक शाम मनजीत कौर की मुलाकात जिम में आने वाली एक अन्य लड़की शीबा से हुई. जो न केवल उस की ही तरह खूबसूरत और आजाद खयालों वाली थी, बल्कि उस की हसरतें भी जल्द अमीर बनने की थीं. बातों के दौरान मनजीत ने शीबा के मन की बात जानी तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई. उस ने शीबा को अपने लिव इन पार्टनर शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा से मिलवाया और अपनी योजनाओं के बारे में बता कर उसे अपने रैकेट में शामिल कर लिया.

अब ये तीनों मुसाफिर एक ही कश्ती में सवार थे. जिस की मंजिल एक थी. जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे. तीनों ने चंडीगढ़ के बजाए दिल्ली चल कर अपनी योजना को अंजाम देने का फैसला किया. 2018 के जुलाई महीने में वे तीनों दिल्ली आ गए और पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के जवाहर पार्क में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगे. यहां के मकान मालिक को शादाब ने बताया कि वे एक इंटरनैशनल काल सेंटर में नौकरी करते हैं. मकान मालिक को अपने किराए से मतलब था. दूसरे इन तीनों की पर्सनेलिटी इतनी प्रभावशाली थी कि उस ने इन से ज्यादा कुछ पूछ ने की जरूरत ही नहीं समझी.

दिल्ली आ कर शादाब गौहर ने एक गे वेबसाइट पर अपना प्रोफाइल अरमान शर्मा के नाम से अपलोड कर के मसाज सर्विस उपलब्ध कराने का विज्ञापन देना शुरू कर दिया. उस की नजर मालदार क्लाइंट पर रहती थी. जिस से वह अधिक से अधिक रुपए ऐंठ सके.  इस के अलावा उस ने अपने रैकेट में 8 कमसिन लड़कों और एक लड़की को भी शामिल कर लिया, जो उस के कहने पर क्लाइंट को मसाज सर्विस देने के लिए दिल्ली और एनसीआर में बताए गए ठिकानों पर जाते थे. ये लड़के अपनेअपने क्लाइंट को मसाज सर्विस दे कर जो भी कमाते थे उन में प्रत्येक सर्विस पर शादाब गौहर अपना कमीशन वसूल करता था. और बीचबीच में मनजीत कौर और शीबा मसाज के दौरान क्लाइंट की वीडियो बना कर उस से मोटी रकम वसूल करती थीं.

सितंबर के पहले हफ्ते में नीरज नारंग वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर फोन कर के शादाब उर्फ अरमान के संपर्क में आए और मसाज करवाने के चक्कर में उस के जाल में फंस गए.  3 लाख रुपए नकद और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक लेने के बावजूद भी शादाब ने नीरज नारंग का पीछा नहीं छोड़ा. वह उन से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. फिर मजबूर हो कर नारंग ने इस की शिकायत क्राइम ब्रांच के डीसीपी से कर दी. शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा और मनजीत कौर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस दौरान दोनों आरोपियों के कब्जे से नीरज नारंग से लिए गए पौने 2 लाख रुपए तथा साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक बरामद कर लिए.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने शादाब गौहर और मनजीत कौर को कोर्ट में पेश किया और वहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गिरोह में शामिल तीसरी शातिर लड़की शीबा कथा लिखे जाने तक फरार थी.

— कथा में दिए गए कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

 

Uttar Pradesh Crime : कामोत्तेजक दवा खा कर बहन के साथ रेप किया और ईट से कुचल डाला

Uttar Pradesh Crime : इरफान और सादिया अपने 3 बच्चों के साथ चैन की जिंदगी गुजार रहे थे. तभी जहरीली हवा का झोंका आया, जिस ने इरफान के घर में 3 लाशें बिछा दीं. पुलिस जांच में पता चला कि जहरीली हवा का वह झोंका नसीरुद्दीन का हमराही बन कर आया था…

उस दिन नवंबर, 2019 की 25 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. आजमगढ़ के गांव इब्राहीमपुर भलवारिया का रहने वाला अनीस अहमद गांव के बाहर अपने खेतों पर पहुंचा. फसल व ट्यूबवेल पर नजर डालने के बाद वह खेत के नजदीक ही मछलियां पकड़ने तालाब पर जा पहुंचा. उस ने तालाब में जाल डाला ही था कि उसे अपने दोस्त इरफान की याद आ गई. उस के खेत के पास ही इरफान का घर था. वह अकसर इरफान के साथ ही मछलियां पकड़ता था. अत: उस ने इरफान को बुलाने के लिए फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं हुई. बारबार रिडायल करने पर भी जब इरफान ने उस की काल रिसीव नहीं की तो अनीस का माथा ठनका.

उस ने तालाब से जाल निकाल कर वहीं किनारे पर रख दिया और तेज कदम बढ़ाता हुआ इरफान के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने इरफान को कई आवाज लगाईं पर कोई जवाब नहीं मिला. इस से अनीस की धड़कनें तेज हो गईं. वह सोचने लगा कि इरफान जवाब क्यों नहीं दे रहा, अनीस ने उस के मकान के चारों तरफ बनी बाउंड्री से झांक कर देखा तो कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला था. वहीं से उसे दरवाजे के पास जमीन पर पड़ी इरफान की पत्नी सादिया का हाथ दिखा. किसी अनहोनी की आशंका भांप कर अनीस ने इस मामले की जानकारी गांव के प्रधान सलाहुद्दीन तथा इरफान के भाइयों को दे दी. सूचना मिलते ही प्रधान सलाहुद्दीन इरफान के घर आ गए. उन के साथ इरफान के भाई इमरान, इरशाद तथा इकबाल भी थे.

तीनों भाई घर के अंदर जा कर हकीकत जानना चाहते थे लेकिन प्रधान ने उन्हें रोक दिया और उसी समय मोबाइल से थाना मुबारकपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा पुलिस टीम के साथ इब्राहीमपुर भलवारिया गांव पहुंच गए. इरफान का घर गांव के बाहर खेत पर था. तब तक वहां काफी भीड़ जुट गई थी. मिश्रा पुलिसकर्मियों के साथ घर के अंदर गए तो वहां का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 3 लाशें पड़ी थीं. एक मासूम बालक और बालिका घायल अवस्था में पडे़ थे. पूछताछ से पता चला कि मरने वालों में घर का मुखिया इरफान, उस की पत्नी सादिया तथा 4 माह की मासूम बेटी नूर थी. घायलों में इरफान का 5 वर्षीय बेटा अमन तथा 10 वर्षीया बेटी अमायरा थी.

दोनों को किसी भारी वस्तु से सिर व माथे पर प्रहार कर चोट पहुंचाई गई थी. दोनों घायल बच्चे इस हालत में नहीं थे कि पुलिस को कुछ बता सकें. उन्हें तत्काल इलाज के लिए मुबारकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया. थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने घटना स्थल का निरीक्षण शुरु किया. सादिया की लाश दरवाजे के पास नग्नावस्था में पड़ी थी. उस के सिर व चेहरे पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. उस की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी और ऐसा लग रहा था जैसे उस के साथ बलात्कार किया गया हो. क्योंकि शव के पास ही प्रयोग में लाया गया कंडोम भी पड़ा था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर उस कंडोम को सुरक्षित कर लिया.

एक साथ 3 कत्ल सादिया के पति इरफान का शव उस के बगल में जमीन पर पड़ा था. उस का सिर फटा हुआ था जिस से खून रिसा हुआ था. उस की मौत हो चुकी थी. इरफान की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. इरफान की 4 माह की बेटी नूर का शव चारपाई पर पड़ा था. उस के शरीर पर चोट का निशान नहीं था. उस की मौत संभवत: दम घुटने से हुई थी. इस तिहरे हत्याकांड की खबर जंगल की आग की तरह आसपास के गांवों में फैली तो सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. भीड़ बढ़ती देख थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी और मौके पर अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

कुछ ही देर बाद आजमगढ़ के एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह, एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय तथा सीओ (सदर) अकमल खां पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह ने मौकाएवारदात पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटना स्थल का बारीकी से निरीक्षण कर मृतक के भाइयों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. डौग स्क्वायड टीम ने खोजी कुत्ते श्वान फैंटम को घटनास्थल पर छोड़ा गया तो वह वहां की गंध सूंघ कर मकान के आसपास चक्कर लगाते हुए भीड़ में मौजूद एक युवक की ओर लपका. डर की वजह से वह युवक गांव की ओर भाग गया. वह गांव का ही था. पुलिस ने उस की पहचान तो कर ली, पर बिना किसी ठोस सबूत के उसे गिरफ्तार नहीं किया.

लोग हो गए आक्रोशित घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारी जब तीनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस भेजने की तैयारी करने लगे तो वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित हो उठी. भीड़ ने मांग की कि जब तक आईजी (जोन), डीआईजी या क्षेत्रीय प्रतिनिधि आ कर काररवाई का आश्वासन नहीं देते तब तक शवों को नहीं उठने देंगे. इस पर एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय तथा सीओ (सदर) अकमल खां ने भीड़ को काफी समझाया. पुलिस अधिकारियों के समझाने का उत्तेजित लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा. वह अपनी मांग पर डंटे रहे. कानूनव्यवस्था न बिगड़ जाए, इसलिए एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय ने डीआईजी तथा क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली से फोन पर बात की और वस्तुस्तिथि से अवगत कराया.

कुछ देर बाद डीआईजी मनोज तिवारी तथा क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली घटनास्थल आ गए. डीआईजी मनोज तिवारी ने उत्तेजित लोगों को समझाया कि आप का गुस्सा जायज है, हम आप की भावनाओं की कद्र करते हैं. लेकिन आप लोग पुलिस की काररवाई में बाधा न पहुंचाएं. हम आप को आश्वासन देते हैं कि हत्यारा भले ही जमीन में छिपा हो, उसे खोज निकालेंगे और इस जघन्य हत्याकांड के लिए उसे कड़ी से कड़ी सजा दिलाएंगे. क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली ने मृतक के घरवालों को भरोसा दिया कि जो भी मदद संभव होगी वह मृतक के परिजनों को दिलाएंगे. साथ ही मृतक के बच्चों के पालनपोषण व पढ़ाई का खर्चा वह स्वयं उठाएंगे. विधायक के आश्वासन का भी लोगों ने स्वागत किया.

डीआईजी व विधायक के आश्वासन के बाद उत्तेजित लोग शांत हो गए. इस के बाद पुलिस ने तीनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए. चूंकि पुलिस अधिकारियों को उपद्रव की आशंका थी. इसलिए उन्होंने गांव में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स तैनात कर दी. रात में ही पोस्टमार्टम करा कर शव उन के भाइयों को सौप दिए गए. शवों को भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दफन करा दिया गया. एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह के सेवा काल का यह जघन्यतम हत्याकांड था. उन्होंने इस तिहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम को एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय की निगरानी में काम करना था. टीम में मुबारकपुर थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा, एसआई ए.के. सिंह, सीओ (सदर) अकमल खां और सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

गठित टीम ने सब से पहले घटना स्थल का निरीक्षण किया, फिर तीनों मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक सादिया की मौत सिर में घातक चोट लगने व ज्यादा खून बहने से हुई थी. उस के साथ दुष्कर्म भी किया गया था. जबकि उस के पति इरफान की मौत सिर तथा दिमाग की नशें फटने  से हुई थी. 4 माह की नूर की मौत दम घुटने से हुई थी.सोचविचार के बाद पुलिस टीम को लगा कि मामला अवैध रिश्तों का है. अत: टीम ने इस बाबत मृतक इरफान के भाई इरशाद व इमरान से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सादिया मिलनसार थी. उस के घर किसी बाहरी व्यक्ति का आनाजाना नहीं था. वह अपने शौहर के अलावा किसी और को पसंद नहीं करती थी.

भाइयों के बयान से साफ  हो गया कि सादिया पाकसाफ औरत थी. उस के किसी गैर मर्द के साथ नाजायज ताल्लुकात नहीं थे. इस से लगने लगा कि किसी वहशी दरिंदे ने सादिया को अपनी हवस का शिकार बनाया और विरोध करने पर मार डाला. यह दरिंदा कौन हो सकता है? इस विषय पर जब टीम के सदस्यों ने मृतक के भाइयों से पूछताछ की तो इमरान ने बताया कि नटबस्ती का एक युवक ऐसा कुकृत्य कर सकता है. शक के आधार पर पुलिस टीम ने नटबस्ती के उस युवक को हिरासत में ले लिया और उस से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन उस ने जुर्म कबूल नहीं किया. उस ने कहा कि उसे रंजिशन फंसाया जा रहा है. वह बेकसूर है. पुलिस टीम किसी निर्दोष को नहीं फंसाना चाहती थी. चूंकि वह शक के दायरे में था इसलिए उसे छोड़ा भी नहीं गया.

अब तक अस्पताल में भरती मासूम अमन और अमायरा के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया था. वह बयान दर्ज कराने की स्थिति में थे. पुलिस उन दोनों का बयान दर्ज करने स्वास्थ्य केंद्र पहुंची. उन का इलाज कर रहे डा. प्रदीप ने पुलिस को बताया कि दोनों के सिर पर चोट थी, जो अब काफी हद तक ठीक है. डाक्टर ने एक चौंकाने वाली बात यह बताई कि 10 वर्षीया अमायरा के साथ कुकर्म किया गया है. यह जान कर पुलिस सोच में पड़ गई. पुलिस ने दोनों बच्चों से पूछताछ की तो अमायरा ने बताया कि उस रात कोई चोर घर में घुसा था. वह उठी और मां से पानी मांगा तो उसे चोर ने दबोच लिया. उस ने माथे पर ईंट से प्रहार किया, जिस से वह बेहोश सी हो गई. इस के बाद चोर ने उस के साथ गंदा काम किया.

वह चीखी तो भाई अमन रोने लगा. तब उस ने उस के माथे पर भी ईंट से चोट पहुंचाई, जिस से दोनों बेहोश हो गए.

‘‘अगर उस चोर को तुम्हारे सामने लाया जाए तो तुम उसे पहचान लोगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां, पहचान लूंगी.’’ अमायरा ने जवाब दिया.

पुलिस हिरासत में लिए गए नट बस्ती के संदिग्ध युवक की पहचान कराने अस्पताल लाई. अमायरा ने उसे गौर से देखा फिर कुछ देर मौन रहने के बाद बोली, ‘‘शायद यही था.’’ पहचान होने पर पुलिस ने उस युवक से फिर सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह नहीं टूटा. उस ने कहा, ‘‘बच्ची के पहचानने में चूक हुई होगी. मैं निर्दोष हूं.’’ पुलिस टीम को भी लगा कि शायद वह निर्दोष है, इसलिए उसे जाने दिया. पुलिस टीम ने अब अपनी जांच की दिशा बदल दी. सर्विलांस टीम ने घटना वाली रात इलाके में लगे मोबाइल टावर के संपर्क में आए डंप फोन नंबरों में से एक ऐेसे मोबाइल नंबर का पता लगाया जो वारदात के समय वहां 3 घंटे तक मौजूद रहा था. इस मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह मोबाइल नंबर नसीरुद्दीन उर्फ अउवापउवा का था, जो इब्राहीमपुर भलवारियां गांव का रहने वाला था.

नसीरुद्दीन था वह हैवान नसीरुद्दीन शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने उस के पीछे महिला मुखबिर लगा दी, जो उस के परिवार की ही थी. उस ने पुलिस को 2 रोज बाद चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि नसीरुद्दीन दिन में तो घर में पड़ा रहता है लेकिन रात को वह घर से निकलता है. घर से वह सीधे कब्रिस्तान जाता है, जहां सादिया, उस के शौहर और बेटी की कब्र के पास बैठ कर रोता है और अपने गुनाहों की तौबा करता है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने 2 दिसंबर, 2019 को नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा को सुबह 5 बजे उस के घर से हिरासत में ले लिया और शिनाख्त हेतु अस्पताल ले गई, जहां मासूम अमन और अमायरा का इलाज चल रहा था.

नसीरुद्दीन को देखते ही अमायरा चीख पड़ी, ‘‘यही, वह चोर है जिस ने मेरे साथ गंदा काम किया था और ईंट मार कर घायल कर दिया था. इसे छोड़ना नहीं. इसे फांसी पर लटका देना.’’

पुलिस टीम नसीरुद्दीन को साथ ले कर थाना मुबारकपुर आ गई. थाने पर जब उस से तिहरे हत्याकांड के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने अपराध कबूल कर लिया. इस के बाद उस ने हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. पुलिस ने तिहरे हत्याकांड का खुलासा करने तथा हत्यारे को पकड़ने की जानकारी एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह को दी. जानकारी मिलते ही त्रिवेणी सिंह थाना मुबारकपुर आ गए. उन्होंने प्रैसवार्ता में कातिल को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. उन्होंने केस का खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई और 25 हजार रुपए नकद पुरस्कार की घोषणा की.

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के थाना मुबारकपुर के अंतर्गत एक गांव है इब्राहीमपुर भलवारिया. मुसलिम बाहुल्य इस गांव में अब्दुल कय्यूम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के 4 बेटे इमरान, इरशाद, इकबाल तथा इरफान थे. इन सभी के विवाह हो चुके थे. उन्होंने चारों बेटों में घर जमीन का बंटवारा कर दिया था. उन के 3 बेटे इमरान, इरशाद और इकबाल बीवीबच्चों के साथ गांव में पैतृक मकान में रहते थे लेकिन सब से छोटे बेटे इरफान ने इब्राहीमपुर भलवरिया गांव के बाहर अपने खेत में टिन शेड वाला मकान बनवा लिया था. वह बीवीबच्चों के साथ वहीं रहता था. लगभग 10 साल पहले इरफान की शादी इसी गांव की सादिया से हुई थी. दरअसल, सादिया एक गरीब परिवार की खूबसूरत बेटी थी. इरफान का सादिया के घर आनाजाना था. आतेजाते इरफान की नजर सादिया पर पड़ी.

पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल बैठे. दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी तो घरवालों को जानकारी हुई. दोनों के परिवार वालों ने आपस में विचारविमर्श कर सादिया और इरफान का निकाह कर दिया. सादिया जैसी खूबसूरत और नेक दिल वाली बीवी पा कर इरफान खुश था. पतिपत्नी के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे. हंसतेबतियाते शादी के 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इन 5 सालों में सादिया ने बेटी अमायरा और बेटे अमन को जन्म दिया. बेटीबेटा के जन्म से उन की खुशियां दोगुनी हो गईं.

वक्त बीतता गया. वक्त के साथ सादिया के बच्चे बड़े हुए तो गांव के ही मदरसे में तालीम हासिल करने जाने लगे. इरफान खेतीकिसानी के साथसाथ दरी बुनाई का काम भी करता था, ताकि अतिरिक्त आमदनी हो.  अमन के जन्म के 4 साल बाद सादिया ने एक बेटी नूर को जन्म दिया. नन्हीं सी नूर इरफान और सादिया की आंखों की नूर बन गई थी. इरफान अपने बीवीबच्चों के साथ खुश था. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. दरअसल इरफान के गांव में ही अजीज अहमद रहते थे. उन के 2 बेटे अजरुद्दीन और नसीरुद्दीन थे. अजरुद्दीन तो सीधासादा और व्यावहारिक था. वह पिता के साथ किसानी करता था. उस की शादी भी हो चुकी थी. लेकिन छोटा बेटा नसीरुद्दीन झगड़ालू और बददिमाग था.

वह गांव के आवारा लड़कों के साथ घूमता, बातबेबात लोगों से उलझता और उन के साथ मारपीट करता. वह आवारा लड़कों के साथ शराब पीता और गांव की लड़कियों से छेड़खानी करता था. नौकरी छोड़ कर लौट आया घर नसीरुद्दीन के कारनामों की शिकायत जब अजीज अहमद के पास आने लगी तो उन्होंने उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं सुधरा. बल्कि ज्यादा शराब पी कर सड़क, नाली में गिरता रहता था, जिस से गांव के लोगों ने उस का नाम अउवापउवा रख दिया था. बिगडै़ल बेटे को सुधारने के लिए अजीज के पास एक ही उपाय बचा था कि उस की शादी कर दी जाए. लेकिन आवारा लड़के से कोई भी अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं था. काफी दौड़धूप के बाद उन्होंने एक गरीब परिवार की रेहाना से उस की शादी कर दी.

रेहाना कम पढ़ीलिखी साधारण रंगरूप की युवती थी. उस ने शौहर को अपने प्रेम बंधन में बांधने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह असफल रही. नसीरुद्दीन की आवारागर्दी से तंग आ कर रेहाना ने उसे कई बार फटकारा और जलील भी किया. साथ ही परिवार का बोझ उठाने के लिए उसे कुछ कामधंधा करने की सलाह भी दी. नसीरुद्दीन ने पहले तो बीवी की बात को अनसुना कर दिया पर जब रेहाना आए दिन उस से झगड़ा करने लगी तो उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया. नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा के कुछ दोस्त फरीदाबाद (हरियाणा) में रहते थे और मशीनों के पार्ट्स बनाने वाली किसी कंपनी में काम करते थे. उस ने अपने दोस्तों से बात की और गांव छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

दोस्तों ने उस के रहने का बंदोबस्त कर उस की वहां नौकरी लगवा दी. नसीरुद्दीन के हाथ में पैसे आने लगे तो वह शराब के साथसाथ दूसरे नशे भी करने लगा. यही नहीं वह अय्याशी के लिए दिल्ली के रेडलाइट एरिया में भी जाने लगा. नसीरुद्दीन कमाता जरूर था, पर वह सारा पैसा नशे और अय्याशी में खर्च कर देता था. वह 3-4 महीने में जब भी घर आता, खाली हाथ ही आता. रेहाना, शौहर से अपने खर्च को पैसा मांगती तो वह उसे दुत्कार देता था. वह रेहाना के शरीर को रौंदता तो था पर उस की चाहत को वह पूरा नहीं कर पाता था. इतना ही नहीं रेहाना को वह अपने साथ भी नहीं रखना चाहता था.

नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा जून 2019 में नौकरी छोड़ कर गांव आ गया. इस के बाद वह जलालपुर स्थित एक बुनाई कारखाने में काम करने लगा. रेहाना की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इस के 2 कारण थे. एक तो वह कमाई का एकचौथाई हिस्सा भी उस के हाथ पर नहीं रखता था. दूसरे वह कामवर्धक दवाओं का प्रयोग कर उस के साथ संबंध बनाता था. झगड़ा तब ज्यादा होता था जब वह उस के ऊपर अप्राकृतिक संसर्ग के लिए दबाव बनाता था. धीरेधीरे झगड़ा बढ़ता गया और रेहाना, शौहर की गंदी हरकतों से आजिज आ कर अक्तूबर में अपने मायके चली गई.

रेहाना रूठ कर मायके चली गई तो अय्यास नसीरुद्दीन उर्फ अउवापउवा सेक्स के लिए परेशान रहने लगा. उस का दिन तो कामधाम में कट जाता, लेकिन रात में औरत की कमी सताने लगती. उस के मन में अपनी भाभी जुनैदा के प्रति भी खोट था, पर भाई के डर से वह उस की तरफ कदम नहीं बढ़ा पा रहा था. यद्यपि वह भाभी के साथ हंसीमजाक तथा अश्लील हरकतें कर देता था. जुनैदा उसे डांटफटकार देती थी. एक रोज अपने काम पर जाते समय नसीरुद्दीन की नजर इरफान की खूबसूरत पत्नी सादिया पर पड़ी. 30 वर्ष की उम्र पार कर चुकी 3 बच्चों की मां सादिया की खूबसूरती में कमी नहीं आई थी. नसीरुद्दीन ने उसे अपनी हवस का शिकार बनाने का निश्चय कर लिया.

उस ने सोचा कि सादिया अपने शौहर और बच्चों के साथ गांव के बाहर खेत पर बने मकान पर रहती है, इसलिए उसे आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. अगर उस ने शोर मचाया भी तो उस की चीखपुकार गांव तक सुनाई नहीं देगी. जिस से उसे कोई बचाने भी नहीं आएगा. सादिया पर जम गईं निगाहें इस के बाद वह सादिया व उस के शौहर की रेकी करने लगा. 20 नवंबर, 2019 को वह रात 9 बजे सादिया के दरवाजे पर पहुंचा. उसने बाउंड्री से झांका तो सादिया मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी. अत: वह वापस घर आ गया. नसीरुद्दीन वापस जरूर आ गया था पर उस की सेक्स की भूख बढ़ गई थी. वह सादिया के शरीर से हर हाल में खिलवाड़ करना चाहता था.

24 नवंबर, 2019 की शाम नसीरुद्दीन अपने गांव के मैडिकल स्टोर से कामोत्तेजक दवा तथा कंडोम खरीद लाया. दवा खाने के बाद उस ने निश्चय कर लिया था कि चाहे जो भी हो, वह आज सादिया के साथ संबंध बना कर ही रहेगा. रात 10 बजे वह घर से निकला और घूमतेफिरते रात साढ़े 10 बजे इरफान के घर जा पहुंचा. उस ने बाउंड्री से झांक कर देखा तो पूरा परिवार टिन शेड के नीचे सो रहा था. दरवाजे में अंदर से कुंडी नहीं लगी थी. बांस का डंडा लगा था, जो दरवाजे को खुलने से रोके हुए था. नसीरुद्दीन ने आहिस्ता से डंडे को सरकाया और दरवाजे को अंदर की ओर धकेला, इस से दरवाजा खुल गया. लेकिन इसी बीच डंडा जमीन पर गिर पड़ा. डंडे के गिरने की आवाज से इरफान की आंखें खुल गईं.

वह जैसे ही उठ कर खड़ा हुआ, नसीरुद्दीन ने लपक कर बाउंड्री से ईंट उठाई और इरफान के सिर पर भरपूर प्रहार किया. इरफान का सिर फट गया. खून की धार बह निकली और वह कराहता हुआ जमीन पर धराशायी हो गया. शौहर के कराहने की आवाज सुन कर तख्त पर अपनी 4 महीने की बच्ची नूर के साथ लेटी सादिया की आंखें खुल गईं. वह उठने को हुई तो नसीरुद्दीन ने उस के सिर पर भी ईंट का प्रहार कर दिया. सादिया का सिर फट गया. वह तड़पने लगी. नसीरुद्दीन को इस सब से कोई लेनादेना नहीं था. उस ने सादिया को दबोच लिया और उस के शरीर से एकएक कपड़ा उतार फेंका. इस के बाद उस ने सादिया के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए. सादिया विरोध करती रही और नसीरुद्दीन उस के जिस्म को रौंदता रहा. इसी बीच वह बेहोश हो गई.

इसी दौरान दूसरी चारपाई पर अपने 5 वर्षीय भाई अमन के साथ लेटी 10 वर्षीया अमायरा की आंखें खुल गईं. उस ने मां से पानी मांगा. तभी नसीरुद्दीन अमायरा के पास जा पहुंचा. उसे देख कर अमायरा को लगा कि घर में चोर घुस आया है. वह शोर मचाने लगी. नसीरुद्दीन ने उस के माथे पर ईंट से प्रहार कर दिया. अमायरा अर्द्धबेहोश हो गई. नसीरुद्दीन कामोत्तेजक दवा खा कर आया था, वह दरिंदा बना हुआ था. उस ने अपने साथ लाए कंडोम का उपयोग किया और मासूम अमायरा को दबोच कर उस के साथ अप्राकृतिक मैथुन किया. इस दौरान वह बच्ची असहनीय दर्द से छटपटाती रही. पर उस दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई. उसी समय मासूम अमन भी जाग गया. वह रोने लगा तो वहशी अउवापउवा ने उस के माथे पर ईंट से प्रहार कर दिया. वह डर व भय से कांपने लगा और फिर बेहोश हो गया.

अब तक नसीरुद्दीन पस्त पड़ गया था. वह कुछ देर सुस्ताता रहा तभी नग्नावस्था में पड़ी सादिया के कराहने की आवाज उस के कानों में पड़ी. उस के नग्न शरीर को देख कर एक बार फिर उस की कामेच्छा भड़क उठी. उस ने फिर सादिया के जिस्म को रौंदा, साथ ही उस ने अपने मोबाइल से वीडियो भी बनाया. सादिया की 4 माह की मासूम बेटी नूर कंबल से ढंकी उस के साथ ही लेटी थी. संबंध बनाने के दौरान वह दब गई और उस का दम घुट गया. संबंध बनाने के बाद नसीरुद्दीन ने सादिया का चेहरा ईंट से कुचल दिया, जिस से उस की मौत हो गई. उस का शौहर पहले ही दम तोड़ चुका था. नसीरुद्दीन ने 3 घंटे तक वहशी खेल खेला फिर सादिया का मोबाइल ले कर वापस घर आ गया.

जुनैदा के कहने पर फेंके मोबाइल सुबह को उस ने अपनी भाभी जुनैदा को सादिया की अश्लील वीडियो दिखाई. जिसे देख कर जुनैदा भड़क गई और बोली, ‘‘पउवा तू ने यह क्या कुकर्म कर डाला. तू ने जिस सादिया को हवस का शिकार बनाया है वह इसी गांव की बेटी है और रिश्ते में तेरी बहन थी. तू ने जो गुनाह किया है उस के लिए कोई भी तुझे माफ नहीं करेगा. तू अभी जा और इस मोबाइल को किसी नदीनाले में फेंक आ.’’

भाभी की बात सुन कर नसीरुद्दीन को पछतावा हुआ. वह गांव के बाहर गया और नदी में दोनों मोबाइल फोन फेंक दिए. घर आ कर कमरे में पड़ गया. रात को मृतकों की कब्र पर जा कर शांत कब्रों से वह अपने गुनाहों की माफी मांगता. बाद में जब पुलिस ने जुनैदा को अपना गवाह बना लिया तो उस ने सारी बातें सचसच बता दीं. इधर सुबह 10 बजे घटना का खुलासा तब हुआ, जब अनीस अहमद अपने खेत पर गया और मछली पकड़ने के लिए इरफान को बुलाना चाहा. पुलिस की अथक मेहनत पर आरोपी एक सप्ताह बाद पकड़ा गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट एक खेत से बरामद कर ली. मोबाइल फोन बरामद करने के लिए पुलिस ने गोताखोरों को तालाब में उतारा, लेकिन फोन बरामद नहीं हो सके.

हत्यारोपी नसीरुद्दीन से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी ने 3 दिसंबर, 2019 को उसे आजमगढ़ कोर्ट में पेश किया. जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. मृतक के मासूम बच्चों अमन और अमायरा की जिम्मेदारी बड़े भाई इमरान ने ले ली थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, अमन व अमायरा परिवर्तित नाम है

 

Crime news : लेडी डाक्टर के साथ गैंगरेप किया और जला डाला

Crime news : दुर्दांत दरिंदों के जाल में फंस कर जान गंवा चुकी दिल्ली की निर्भया के गुनहगारों को सजा मिलने से पहले, हैदराबाद में भी एक लेडी डाक्टर के साथ बर्बरतापूर्ण ऐसी ही दरिंदगी हुई. फर्क बस इतना रहा कि दिल्ली के गुनहगारों को सजा नहीं मिली पर हैदराबाद के दरिंदों ने अपनी सजा खुद चुन ली…

अगर कोई युवती या महिला शिक्षित होने के साथसाथ खूबसूरत, हंसमुख, मृदुभाषी, शालीन और आत्मनिर्भर हो तो उसे सर्वगुण संपन्न माना जाता है. हैदराबाद की 27 वर्षीय डा. प्रियांशी रेड्डी ऐसी ही युवती थी. पेशे से पशु चिकित्सक प्रियांशी रेड्डी 27 नवंबर, 2019  को औफिस जाने के लिए सुबह 8 बजे घर से निकली. उस का औफिस घर से काफी दूर था, इसलिए उसे घर से जल्दी निकलना पड़ता था. वह शमशाबाद स्थित टोल प्लाजा के नजदीक एक जगह अपनी स्कूटी पार्क करती थी और फिर कैब से कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय जाती थी. छुट्टियों को छोड़ कर डा. प्रियांशी का यह रोजमर्रा का काम था. शाम को औफिस से लौटते वक्त वह पार्किंग से स्कूटी ले कर घर आती थी.

27 नवंबर, 2019 को हौस्पिटल से घर लौटने में उसे थोड़ी देर हो गई थी. साढ़े 7 बजे जब वह टोल प्लाजा पार्किंग पहुंची तो देखा उस की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर था. रात का अंधेरा गहरा चुका था. प्रियांशी यह सोच कर परेशान हो गई कि घर कैसे जाएगी. इतनी रात गए पंक्चर लगना मुश्किल था. दूरदूर तक पंक्चर बनाने वाला कोई नहीं था. स्कूटी को ले कर प्रियांशी काफी परेशान हुई. पार्किंग में जहां स्कूटी खड़ी थी, उस के पास ही एक लोडेड ट्रक खड़ा था. जैसेजैसे रात गहरा रही थी, प्रियांशी की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. परेशानी स्वाभाविक ही थी. वजह यह कि एक तो वह अकेली महिला थी, ऊपर से सुनसान इलाका. वैसे भी वहां सब अजनबी थे.

वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में खडे़ 4 लोगों की आंखें प्रियांशी पर जमी थीं. उस की परेशानी को समझ कर वे खुश थे. जब उन्हें लगा कि वह कुछ ज्यादा ही परेशान है तो वे प्रियांशी के पास आए. उन 4 अजनबियों को देख वह और ज्यादा डर गई. उन चारों में से एक हट्टाकट्टा युवक बोला, ‘‘काफी देर से देख रहे हैं कि आप काफी परेशान हैं. क्या हम आप की कोई मदद कर सकते हैं?’’

प्रियका ने सहम कर उन चारों को देखा और कुछ सोच कर दबी जुबान में बोली, ‘‘पता नहीं कैसे मेरी स्कूटी का पहिया पंक्चर हो गया. आसपास कोई दुकान भी नहीं दिख रही, जहां इसे ठीक करा लूं.’’

‘‘इस में परेशानी की क्या बात है मैडम?’’ वह युवक उतावला हो कर बोला, ‘‘आप कहें तो हम आप की परेशानी दूर कर सकते हैं. मैं एक पंक्चर बनाने वाले को जानता हूं, जो देर रात तक पंक्चर बनाता है.’’

‘‘प्लीज, आप मेरी मदद कीजिए, किसी भी तरह मेरी स्कूटी ठीक करा दीजिए. आप लोगों का बहुत अहसान होगा मुझ पर.’’

‘‘अरे मैडम, इस में अहसान की क्या बात है. हम भी तो इंसान हैं. इंसान एकदूसरे के काम न आए तो धिक्कार है इंसानियत पर.’’ उस युवक की भावनात्मक बातें सुन कर प्रियांशी का डर थोड़ा कम हुआ. उस ने चारों युवकों को स्कूटी ठीक कराने को कह दिया. प्रियांशी की स्वीकृति मिलते ही चारों युवकों ने स्कूटी का पिछला पहिया खोल कर निकाल लिया और पंक्चर बनवाने के लिए वहां से चले गए. युवकों के वहां से जाने के बाद प्रियांशी ने अपनी छोटी बहन रुचिका को फोन कर के सारी स्थिति बता दी. साथ ही कहा कि उसे घर पहुंचने में देर हो सकती है. स्कूटी ठीक होते ही वह घर के लिए निकल जाएगी. दोनों बहनों के बीच करीब 15 मिनट तक बातें होती रहीं. आखिर में प्रियांशी ने थोड़ी देर बाद बात करने के लिए कहा. प्रियांशी ने जब अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट किया, तब 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे.

कहीं नहीं मिली प्रियांशी कुछ देर रुक कर रुचिका ने यह जानने के लिए प्रियांशी को फोन किया कि स्कूटी ठीक हुई या नहीं. लेकिन दूसरी ओर से फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस के बाद रुचिका प्रियांशी का नंबर लगातार मिलाती रही, लेकिन उस का फोन बंद ही मिला. इस से रुचिका परेशान हो गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जिस नंबर पर उस ने थोड़ी देर पहले बात की थी, वह बंद कैसे हो गया. घबराहट के मारे उस की धड़कनें बढ़ गईं. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. रुचिका ने जब यह बात मातापिता को बताई तो वे भी घबरा गए. उस के पिता पी.एस. रेड्डी बगैर समय गंवाए रुचिका और बेटे समीर को साथ ले कर प्रियांशी की तलाश में टोल प्लाजा जा पहुंचे, जहां प्रियांशी ने अपनी मौजूदगी बताई थी.

पी.एस. रेड्डी और उन के दोनों बच्चों ने आसपास सब जगह छान मारीं, लेकिन न तो प्रियांशी कहीं दिखी और न ही उस की स्कूटी. टोल प्लाजा के पास लोडेड ट्रक खड़ा था. यह देख कर वे लोग और भी ज्यादा परेशान हुए. प्रियांशी ने फोन पर रुचिका को वहीं होने की बात कही थी. जब प्रियांशी कहीं नहीं मिली तो वह यह सोच कर डर गए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई है. ऐसे में पी.एस. रेड्डी के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे. वह मन ही मन फरियाद करने लगे कि उन की बेटी जहां भी हो, सहीसलामत और सुरक्षित हो. रेड्डी के मन में खयाल आ रहा था कि क्यों न घर फोन कर के पत्नी से पूछ लें कि बेटी कहीं घर तो नहीं पहुंच गई.

रेड्डी ने पत्नी को फोन कर के बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रियांशी अभी घर नहीं पहुंची है. जवाब सुन कर रेड्डी और भी ज्यादा परेशान हो गए. परेशानी के आलम में रात गहराती जा रही थी. जब कुछ भी समझ में नहीं आया तो रुचिका, पिता और भाई को ले कर साइबराबाद थाने पहुंच गई. उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. थाने पहुंच कर उस ने दीवान को अपनी परेशानी बताई और आवश्यक काररवाई करने के लिए बहन की गुमशुदगी की तहरीर दी. साइबराबाद पुलिस ने काररवाई करने के बजाए कहा कि यह मामला उन के थाना क्षेत्र का नहीं है. वहां की पुलिस ने उन्हें थाना शमशाबाद भेज दिया. जिस जगह से प्रियांशी गुम हुई थी, वह इलाका थाना शमशाबाद में आता था.

शमशाबाद पुलिस ने उन की बात सुनी और प्रियांशी की तलाश में रेड्डी परिवार के साथ कई सिपाही लगा दिए. रेड्डी परिवार और पुलिस ने मिल कर सुबह 4 बजे तक तलाशी अभियान चलाया, लेकिन प्रियांशी का कहीं पता नहीं चला. उस के अचानक गुम हो जाने से रेड्डी परिवार के अड़ोसपड़ोस वाले भी हैरानपरेशान थे. प्रियांशी को तलाश करतेकरते सुबह हो गई थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. परिवार वालों ने अपने परिचितों और नातेरिश्तेदारों को भी फोन कर के पता किया लेकिन प्रियांशी का कोई पता नहीं चला. उस की गुमशुदगी से नातेरिश्तेदार भी परेशान थे. रेड्डी परिवार समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे.

परेशान हो कर रेड्डी बच्चों के साथ घर लौट आए. तब तक सुबह के 7 बज गए थे. थकेहारे रेड्डी अपने बरामदे में चिंतातुर कुरसी पर बैठे थे. तभी करीब 8 बजे उन के मोबाइल पर फोन आया, फोन शमशाबाद थाने से आया था. उन्हें तत्काल शमशाबाद थाने पहुंचने को कहा गया था. फोन पर आई काल सुनते ही पी.एस. रेड्डी का कलेजा धक से रह गया. रुचिका और समीर को साथ ले कर वह थाना शमशाबाद पहुंच गए. थाने पर उन्हें बताया गया कि करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे पर चत्तनपल्ली पुलिया के नीचे एक महिला की जली हुई लाश मिली है, आप हमारे साथ चल कर शिनाख्त कर लें.

लाश बरामद होने की बात सुन कर भाईबहन और पिता सन्न रह गए. रेड्डी साहब को तो ऐसा झटका लगा कि वह घुटनों में सिर रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गए. रुचिका ने पिता को संभाला और उन्हें पुलिस के साथ ले कर घटनास्थल जा पहुंची. हैदराबाद-बेंगलुरु राष्ट्रीय राजमार्ग की पुलिया के नीचे एक युवती की बुरी तरह जली लाश पड़ी थी. लाश इतनी ज्यादा जल गई थी कि पहचानना मुश्किल था. उत्सुकतावश रुचिका लाश के पास पहुंची और ध्यान से देखने लगी. लाश के गले में लौकेट पड़ा था. प्रियांशी ऐसा ही लौकेट पहनती थी. गले में पड़े लौकेट को देख रुचिका दहाड़ मार कर रोने लगी.

इस से यह बात साफ हो गई कि लाश डा. प्रियांशी रेड्डी की थी. यह देख पुलिस समझ गई कि मृतका डा. प्रियांशी रेड्डी ही है. वही प्रियांशी जो कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय में बतौर डाक्टर तैनात थी. डा. प्रियांशी रेड्डी की लाश बरामद होते ही यह मामला हाईप्रोफाइल बन गया. यह खबर तेजी से फैली. प्रियांशी की हत्या की सूचना मिलते ही लोग उग्र और आक्रोशित हो गए. शहरी नागरिकों के आक्रोश को देख पुलिस के हाथपांव फूल गए. शहर के लोगों में इस बात को ले कर आक्रोश था कि हत्यारों ने प्रियांशी की हत्या क्यों की और हत्या के बाद उसे जलाया क्यों?

जिले की कानूनव्यवस्था गड़बड़ाती, इस से पहले ही पुलिस सक्रिय हो गई. पुलिस फोर्स को यहांवहां मुस्तैदी से तैनात कर दिया गया. बात बढ़े, इस से पहले ही पुलिस ने चतुराई से लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. 29 नवंबर, 2019 को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस के हाथपांव फूल गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले मृतका के साथ बलात्कार किया गया और बाद में उस का गला घोंटा गया. मतलब मामला बलात्कार और कत्ल का था. प्रियांशी के साथ बलात्कार के बाद हत्या की पुष्टि होेते ही हाहाकार मच गया. न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबर देश भर में फैल गई.

इस घटना को ले कर देश भर में गुस्सा फूटने लगा. सोशल मीडिया से ले कर आम नागरिक तक सड़क पर उतर आए. लोग दरिंदों के लिए फांसी की मांग कर रहे थे. इस घटना ने करीब 7 साल पहले दिल्ली के धौला कुआं में निर्भया के साथ घटी घटना की यादें ताजा कर दी थीं. दरिंदों ने निर्भया के साथ हद दरजे की दरिंदगी की थी. दरिंदगी और बर्बरता की वजह से निर्भया की मौत हो गई थी. प्रियांशी का परिवार ही नहीं देश भर के लोग सरकार से दुष्कर्मियों को मार डालने की गुहार लगा रहे थे. डा. प्रियांशी रेड्डी के रेप और हत्या की हर तबके, हर धर्म के लोगों ने न केवल निंदा की बल्कि हत्यारों को तुरंत फांसी पर चढ़ाने को कहा. घटना में पुलिस की घोर लापरवाही को ले कर लोग उस पर तमाम तरह के आरोप लगा रहे थे.

जब देश भर में बेंगलुरु पुलिस की किरकिरी होने लगी तो प्रदेश के पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. डीजीपी का आदेश मिलते ही साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन के आदेश पर पुलिस गुनहगारों की सघन तलाशी में जुट गई. सज्जनार के आदेश पर पुलिस ने जांच वहीं से शुरू की, जहां से डा. प्रियांशी गुम हुई थी. सज्जनार ने सब से पहले खुद टोल प्लाजा के आसपास के सीसीटीवी फुटेज देखे. सीसीटीवी ही ऐसा चश्मदीद हो सकता था, जो पुलिस को बलात्कारी हत्यारों तक पहुंचा सकता था.

टोल प्लाजा पर पूछताछ करने पर पता चला था कि बीती रात एक लोडेड ट्रक वहां रुका था, जिस में केवल 4 युवक सवार थे. टोल प्लाजा के पास एक कैमरे में 4 युवक, जिन की उम्र 22 से 27 साल के बीच थी, चहलकदमी करते हुए दिखाई दिए. पहनावे से वे चारों ड्राइवर जैसे दिख रहे थे. पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने टोल प्लाजा के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो उन से भी यही पता चला कि काफी देर तक खड़ी रहे लोडेड ट्रक के आसपास 4 युवक देखे गए थे. सीसीटीवी फुटेज में चारों युवक संदिग्ध दिख रहे थे. सीसीटीवी कैमरे और लोगों से की गई पूछताछ से यह बात तय हो गई थी कि संदिग्ध दिखने वाले चारों युवक ही दोषी थे.

ट्रक वाले युवक आए संदेह के दायरे में पूछताछ में पुलिस ने जैसेतैसे चारों युवकों के नाम खोज निकाले. उन में से एक का नाम मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू उर्फ चेन्ना था. इन में से 26 साल का पाशा और 20 साल का जोलू शिवा लौरी ड्राइवर थे, जबकि 23 वर्षीय जोलू नवीन और 20 साल का चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू क्लीनर थे. यह बात सज्जनार के लिए काफी काम की साबित हुई. निर्दयी हत्यारों तक पहुंचने के लिए शादनगर पुलिस और शमशाबाद पुलिस को साथ काम करने को कहा गया. पुलिस ने चारों हत्यारों तक पहुंचने के लिए मुखबिरों का जाल बिछा दिया. जांचपड़ताल में मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ के बारे में जानकारी मिली. वह महबूबनगर जिले के नारायणपेट का रहने वाला था.

पाशा के बारे में सूचना मिलते ही पुलिस ने उसे उस के घर से धर दबोचा. पुलिस उसे थाना शादनगर ले आई. कमिश्नर सज्जनार की देखरेख में थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने जुबान खोल दी. पाशा ने प्रियांशी की स्कूटी से ले कर उसे जलाने तक की कहानी बता दी. उस ने कमिश्नर के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने 3 साथियों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना के साथ मिल कर प्रियांशी रेड्डी के साथ बलात्कार किया था. राज छिपाने के लिए बाद में चारों ने मिल कर उस की हत्या कर दी थी और लाश को जला दिया था. उस ने इस से आगे की सारी बातें विस्तार से बता दीं कि क्याक्या और कैसे हुआ था. पाशा का बयान दिल दहलाने वाला था.

खैर, सज्जनार ने काफी समझदारी से काम लेते हुए पाशा उर्फ आरिफ की निशानदेही पर तीनों दरिंदों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. ये तीनों भी महबूबनगर के नारायणपेट के रहने वाले थे, जिन में नवीन और शिवा सगे भाई थे. इन तीनों ने भी अपनाअपना जुर्म कबूल कर लिया. 30 नवंबर, 2019 को डा. प्रियांशी रेड्डी केस के चारों मुलजिमों की गिरफ्तारी की खबर लगते ही स्थानीय लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने शादनगर थाने पर धावा बोल दिया. लोगों का कहना था कि चारों दरिंदों को उन के हवाले कर दिया जाए. जिस तरह इन दरिंदों ने मिल कर प्रियांशी के साथ बर्बरता की, उसी तरह उन के साथ भी किया जाएगा.

काफी मशक्कत के बाद जैसतैसे सज्जनार ने स्थिति को संभाला और भीड़ को भरोसा दिया कि प्रियांशी का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. उस के चारों गुनहगारों को कड़ी सजा दिलाने में वह पीछे नहीं रहेंगे. उन के आश्वासन पर लोगों का आक्रोश शांत हुआ. लोगों के आक्रोश को देख कर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने पहली बार कहा कि प्रियांशी के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए मुकदमा फास्टट्रैक कोर्ट में चलेगा और मुलजिमों को 6 महीने के अंदर कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी. इस के बाद पुलिस कमिश्नर सज्जनार ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. उन से की गई पूछताछ के बाद दुष्कर्म, हत्या और वहशत से जुड़ी दुर्दांत हत्यारों की हकीकत पता चली.

27 वर्षीय प्रियांशी रेड्डी मूलरूप से हैदराबाद के साइबराबाद की रहने वाली थी. पी.एस. रेड्डी की 3 संतानों में प्रियांशी बड़ी थी. जबकि भाई समीर और रुचिता छोटे थे. प्रियांशी अपनी मेहनत के बूते पर पशु चिकित्सक बनी थी. प्रियांशी रेड्डी का औफिस घर से करीब 30-35 किलोमीटर दूर नवाबपेट मंडल के कोल्लुर में था. ड्यूटी के लिए वह रोजाना सुबह लगभग 8 बजे अपनी स्कूटी से घर से निकलती थी. स्कूटी को वह शमशाबाद टोल प्लाजा के नजदीक पार्क कर के वहां से कैब ले कर कोल्लुर जाती थी. फिर शाम 5 बजे के करीब वह कोल्लुर से कैब ले कर टोल प्लाजा आती और वहां से अपनी स्कूटी ले कर घर पहुंच जाती थी.

घटना से कुछ दिनों पहले उसी टोल प्लाजा पर महबूबनगर के नारायणपेट का रहने वाला मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा अपनी लौरी ट्रक ले कर रुका था. उस की लौरी में हेल्पर के रूप में उसी के गांव के 3 युवक जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू सवार थे. आरिफ जब भी लौरी ले कर बाहर निकलता था, ये तीनों उस के साथ रहते थे. मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा शादीशुदा था. उस की पत्नी ससुराल में पति और सासससुर के साथ रहती थी. आरिफ अपने गांव और घर में किसी से कोई खास मेलजोल नहीं रखता था. वह अपने काम से काम रखता था, जबकि जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना खुराफाती दिमाग के थे.

गांव में हमेशा सब से झगड़ा करते थे, झगड़ालू प्रवृत्ति के तीनों युवकों से गांव वाले अलगथलग रहते थे, ताकि अपना सम्मान बचाए रखें. कम पढ़ेलिखे तीनों युवक बातबात पर भद्दीभद्दी गालियां देने से भी नहीं चूकते थे. कैसे आई प्रियांशी हैवानों के निशाने पर बहरहाल, जिस समय आरिफ लौरी ले कर टोल प्लाजा पर रुका था, उसी समय प्रियांशी भी टोल प्लाजा अपनी स्कूटी लेने पहुंची थी. प्रियांशी की खूबसूरती देख कर आरिफ के मन में पाप जाग उठा. वह तब तक प्रियांशी को देखता रहा, जब तक उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. प्रियांशी के जाने के बाद आरिफ होंठों ही होंठों में बुदबुदाया, ‘‘क्या माल है यार.’’

आरिफ को बुदबुदाता देख जोलू पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है पाशा उस्ताद, किस की बात कर रहे हो?’’

आरिफ ने जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही कह रहा था. कोई बात नहीं है. चलो, चायशाय पीते हैं. फिर अपनी धन्नो को आगे बढ़ाएंगे.’’

आरिफ ने जोलू की बात टाल दी और चाय की दुकान की ओर बढ़ गया. चारों चाय पी कर लौरी से आगे चले गए. आरिफ माल की डिलिवरी दे कर जब 2 दिनों बाद शाम को उसी रास्ते पर लौटा तो उस ने टोल प्लाजा पर फिर अपनी लौरी रोक दी. उसे चाय की जोरों से तलब लगी थी. जब उस ने लौरी सड़क किनारे लगाई, तभी उस की नजर प्रियांशी पर पड़ी. प्रियांशी पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाल रही थी. वह उसे तब तक खा जाने वाली नजरों से घूरता रहा, जब तक वह दिखती रही. डा प्रियांशी रेड्डी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया और वह अपनी स्कूटी ले कर घर चली गई.

उस दिन के बाद आरिफ जब भी लौरी ले कर माल की डिलिवरी करने जाता, टोल प्लाजा के पास अपनी लौरी खड़ी कर के चाय की चुस्की लेने के बहाने प्रियांशी की स्कूटी देखता और चाय पी कर चला जाता. उसे यकीन हो गया था कि प्रियांशी रोज अपनी स्कूटी यहीं खड़ी करती है और फिर कहीं जाती है. आरिफ को बस इतना पता था कि उस के दिमाग में कुछ हलचल सी हुई है. उस के जिस्म में अय्याशी के कीड़े कुलबुलाने लगे. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर एक खरतनाक योजना बना ली थी और उस दिन के बाद वह प्रियांशी पर नजर रखने लगा था. वह सही मौके की तलाश में जुट गया. आखिरकार वह मौका उसे 27 सितंबर, 2019 को मिल ही गया.

उस दिन शाम करीब 5 बजे आरिफ लौरी ट्रक ले कर टोल प्लाजा पहुंचा और लौरी को एक ओर खड़ी कर के चाय की दुकान पर चाय पीने चला गया. उस के साथ तीनों हेल्पर जोलू शिवा, जोलू नवीन और चेन्ना भी थे. आरिफ को पता था कि प्रियांशी के आने का समय हो रहा है. चाय पीने के बाद उस ने अपने साथियों को वहां से उठने का इशारा किया. योजनानुसार प्रियांशी को किसी भी तरह रात 9 बजे तक रोकना था. इस के लिए आरिफ ने नुकीली कील से प्रियांशी की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर कर दिया और चारों वहां से थोड़ी दूर हट कर उस पर नजर रखने लगे. रात करीब 7 बजे प्रियांशी टोल प्लाजा पहुंची. वहां से वह पार्किंग में गई, जहां उस ने अपनी स्कूटी पार्क की थी. स्कूटी पंक्चर देख कर उस का माथा चकरा गया कि वह घर कैसे पहुंचेगी? स्कूटी को ले कर वह परेशान हो गई.

योजना के अनुसार, तभी आरिफ तीनों साथियों के साथ प्रियांशी के पास पहुंचा और परेशानी का सबब पूछा तो उस ने बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है और इतनी रात गए कहीं पंक्चर लग नहीं सकता. आरिफ और उस के तीनों साथी मन ही मन खुश हुए. शिकार जाल में फंस गया था. बस चोट करने की देरी थी. तभी आरिफ ने उस के सामने पंक्चर लगवा देने की पेशकश की तो प्रियांशी ने सकुचाते हुए हां कर दी. प्रियांशी की ओर से हरी झंडी मिलते ही आरिफ ने पिछला पहिया खोल कर जोलू शिवा को सौंप दिया कि वह पंक्चर लगवा कर ले आए. इसी बीच प्रियांशी ने छोटी बहन रुचिका को फोन कर के बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है. कुछ लोग उस की मदद के लिए तैयार हैं. लेकिन पता नहीं क्यों उसे डर सा लग रहा है. उस ने आगे कहा कि वह तब तक बात करती रहे, जब तक कि पंक्चर लग कर आ न जाए.

प्रियांशी की आखिरी फोन काल इस पर रुचिका ने उसे सलाह दी कि डर लग रहा है तो पुलिस को फोन कर दे या आसपास कोई ओर हो तो उस की मदद ले ले. या फिर स्कूटी वहीं छोड़ कर कैब ले कर घर चली आए. उस समय रात के 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे और चारों ओर सन्नाटा फैल चुका था. रात के सन्नाटे में प्रियांशी तीनों लड़कों के बीच अकेली डरीसहमी खड़ी थी. छोटी बहन से बात करने के बाद प्रियांशी को उस की बात जंच गई और कैब ले कर घर जाने का मन बना लिया. उसी समय आरिफ ने देखा कि शिकार उस के हाथ से निकल रहा है. फिर क्या था, अचानक आरिफ, चेन्ना और नवीन फुरती से प्रियांशी पर झपट पड़े और उसे अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया.

सब से पहले आरिफ ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ किया ताकि वह किसी से बात न कर पाए. उस के बाद तीनों उस का मुंह दबा कर घसीटते हुए पीछे खेत में ले गए. तीनों ने बारीबारी से अपनी हवस मिटाई. उसी समय पंक्चर लगवा कर जोलू शिवा भी वहां पहुंचा. बाद में उस ने भी अपनी जिस्मानी भूख मिटाई. अंत में एक बार फिर आरिफ ने प्रियांशी के साथ मुंह काला किया. उस समय उस के मजबूत हाथ की पकड़ प्रियांशी के मुंह और नाक पर बनी रही, जिस से दम घुटने से उस की मौत हो गई. प्रियांशी की मौत होते ही चारों के सिर से हवस का जुनून उतर गया. डर के मारे वे चारों थरथर कांपने लगे थे. आरिफ ने सुझाया कि लाश यहां छोड़ी तो पकड़े जाएंगे.

इसे ठिकाने लगाना होगा. उस के बाद चारों ने पहले प्रियांशी की लाश लौरी में लादी फिर उस की स्कूटी. उस के बाद उस ने शिवा को एक कैन दे कर पैट्रोल पंप से पैट्रोल मंगवाया. पैट्रोल लेते शिवा की तसवीर पैट्रोल पंप के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. शिवा पैट्रोल ले कर आया और चारों वहां से लौरी ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे के चत्तनपल्ली पहुंचे. इन लोगों ने हाइवे के नीचे स्थित पुलिया के अंदर लौरी खड़ी कर दी. फिर चारों ने मिल कर लौरी से प्रियांशी की डेडबौडी और स्कूटी नीचे उतारी. स्कूटी एक ओर खड़ी कर दी. फिर उस की लाश पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद चारों वहां से अपनेअपने घर पहुंच गए.

वहीं मिली सजा, जहां प्रियांशी की लाश जलाई गई रात 2 बजे के करीब आरिफ अपने घर पहुंचा तो उस की मां ने उस से इतनी देर से आने का कारण पूछा. वह कुछ बोला नहीं बस इतना ही कहा कि मुझे सोने दो, सुबह बात करेंगे. फिर वह अपने कमरे में चला गया. उस समय वह बुरी तरह घबराया हुआ था. उस की मां भी उससे कुछ पूछ नहीं पाई थी. इधर प्रियांशी के घर वाले उस से बात न होने और मोबाइल स्विच्ड औफ आने के बाद टोल प्लाजा पहुंचे तो वहां न तो प्रियांशी दिखाई दी और न ही उस की स्कूटी. वह दिखाई तो तब देती जब वह वहां होती. दरिंदे तो उस का काम तमाम कर के वहां से भाग चुके थे. घर वाले रात भर उस की तलाश में मारेमारे यहांवहां फिरते रहे. अगली सुबह जब उस की जली हुई लाश बरामद हुई तो उस की तपिश से पूरा देश धधक उठा. फिर क्या हुआ, कहानी में ऊपर वर्णित है.

बहरहाल, गिरफ्तार किए गए चारों आरोपियों मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को 5 दिसंबर, 2019 को पुलिस ने अदालत से रिमांड पर लिया. उन्हें ले कर पुलिस क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए उसी घटनास्थल पर पहुंची, जहां डा. प्रियांशी को जलाया था. उसी दौरान अंधेरे का लाभ उठा कर अभियुक्तों ने पुलिस के हथियार छीन कर उलटे पुलिस पर ही हमला बोल दिया और भागने की कोशिश की. इस का नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने चारों मार गिराए. हैदराबाद के चारों हैवानों के किस्से 10 दिनों में ही खत्म हो गए.

कुछ सफेदपोशों ने इसे जानबूझ कर बदले की भावना में की गई हत्या करार दिया. उस के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मामले की जांच के लिए मैजिस्ट्रियल जांच बैठा दी गई. अब सच्चाई जो भी निकले, लेकिन देश का हर तबका उन के मारे जाने पर खुश हुआ.

—कथा में मृतका और उस के परिजनों के नाम  परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

 

Police Story : SP सुरेंद्र दास ने आत्महत्या करने के लिए जहर क्यों खाया

Police Story : सुरेंद्र कुमार दास कानपुर के एसपी पद पर थे. उन के जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं था. इस के बावजूद भी ऐसी क्या वजह रही जो उन्हें खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’

पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दीपुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया. पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था. स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी. यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी

रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गएमुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.

जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी. सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे. नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थीवैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं थावह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थेकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी .के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था. अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी. इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना हैरवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते. एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया. रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया. बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.    

Rajasthan Crime : ठेकदारों को पैसा नहीं दिया तो कर लिया अपहरण

Rajasthan Crime : नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को बाड़मेर के गांव उत्तरलाई में सोलर प्लांट लगाना था. इस के लिए नैचुरल पावर कंपनी ने बंगलुरु की सबलेट कंपनी को ठेका दिया, जो काम अधूरा छोड़ कर भाग गई. प्लांट की स्थिति जानने के लिए जब हैदराबाद से कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी अपने दोस्त सुरेश रेड्डी के साथ बाड़मेर आए तो…    

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था. बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गएतेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई. स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिलेश्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थेचूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगेअपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो.

इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया. श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थेश्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता थाश्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके. बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे. उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलायाएसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थीबस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थींएसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए. वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गयापुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ कीश्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया. सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगेनैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया. मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिलेउन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया. पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी. तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थेसबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया. मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना लीइन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगेसभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

Rajasthan Crime : चमत्कारी संदूक के लालच में गंवाए 40 लाख

Rajasthan Crime : अजमेर जिले का केकड़ी उपखंड. यहां ब्यावर रोड देवगांव गेट के बाहर स्थित दीदार नाथ आश्रम में पूर्णिमा होने की वजह से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी. इसी भीड़ में अशोक मीणा भी था. अशोक मीणा शिक्षक था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था. वह बगैर नागा किए दीदार नाथ आश्रम में आता था. यहां पूजाअर्चना करता, कुछ वक्त बड़े चबूतरे पर बैठ कर ध्यान लगाता और फिर परिवार के सुख की कामना करते हुए अपने घर लौट आता.

रोज की भांति दीदार नाथ आश्रम में आने के बाद अशोक मीणा ने देवस्थल में पूजा की. वह चबूतरे पर आ कर ध्यान लगाने के लिए अभी बैठा ही था कि भगवा धोतीकुरता पहने एक व्यक्ति ने उस के हाथ में बताशों का प्रसाद दे कर बहुत कोमल स्वर मे कहा, ‘‘अशोक मीणा, यह आखिरी 2 बताशे तुम्हारे ही भाग्य के बचे थे. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लो.’’

अशोक मीणा ने उस व्यक्ति को हैरानी से देखा. गोरे रंग के उस व्यक्ति की उम्र 50-55 के आसपास थी. उस के सिर के बीच के बाल उड़ चुके थे. माथे पर लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था. उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. अशोक मीणा इस बात पर हैरान था कि वह व्यक्ति उस का नाम जानता था, कैसे? यही जिज्ञासा लिए अशोक ने पूछ लिया, ‘‘मैं आप से पहले कभी नहीं मिला हूं, फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं अशोक,’’ वह व्यक्ति मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम यहां सरकारी स्कूल में टीचर हो. यह बताओ, क्या मैं ने गलत कहा है?’’

अशोक मीणा अपने बारे में यह सब सुन कर उस व्यक्ति का चेहरा देखने लगा. कुछ क्षणों तक वह कुछ बोल नहीं पाया, फिर खुद को संयत करते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं, अपना परिचय देंगे मुझे?’’

‘‘मेरा नाम जयप्रकाश है. पंडित हूं इसलिए अपने नाम के पीछे शर्मा लगाता हूं. तुम मुझे पंडितजी कह सकते हो.’’

‘‘आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं पंडितजी… मैं सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे आप के दर्शन हुए हैं.’’ अशोक मीणा ने बहुत आदर भाव से कहा.

पंडित जयप्रकाश मुसकराया, ‘‘खुद को सौभाग्यशाली यूं भी समझ सकते हो अशोक कि मैं तुम से टकरा गया हूं. मैं तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ रहा हूं. तुम्हारा भविष्य इन्हीं रेखाओं में छिपा हुआ है, जिसे मैं अपनी दिव्य दृष्टि से साफसाफ देख रहा हूं.’’

अशोक मीणा अहसानमंद सा हो कर जयप्रकाश शर्मा के पैरों पर झुक गया, ‘‘मैं आप से अपना भविष्य जानने को आतुर हो उठा हूं महाराज. मेरे विषय में जो देख रहे हैं, मुझे बताइए.’’

‘‘अशोक!’’ जयप्रकाश पंडित एकाएक गंभीर हो गया, ‘‘तुम बहुत नादान और भोले हो.’’

‘‘वह क्यों महाराज?’’ अशोक ने पलकें झपकाईं.

‘‘तुम सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास कर रहे हो कि मैं ने तुम्हारा नाम और थोड़ी सी नौकरी संबंधित बातें बताई हैं.’’

‘‘आप ने गलत तो कुछ भी नहीं बताया महाराज.’’

‘‘लेकिन जो बताया, वह मुझे किसी दूसरे के द्वारा भी तो ज्ञात हो सकता है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे घर के आसपास रहता हो या तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हो और उसी ने मुझे आ कर तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया हो.’’

‘‘जी.’’ अशोक मीणा ने सिर खुजाया, ‘‘हां, ऐसा तो हो सकता है. किसी मेरे पहचान वाले से सुन कर आप ऐसी सटीक जानकारी दे सकते हैं.’’

‘‘तभी कहता हूं, तुम भोले और नादान हो. तुरंत किसी पर विश्वास कर लेना भोले लोगों की कमजोरी होती है. पहले सामने वाले को अच्छी तरह टटोल लेना चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं महाराज,’’ अशोक ने सिर हिलाया, ‘‘अब आप ही बता दीजिए, आप को मैं कैसे टटोलूं?’’

‘‘मैं अपना परिचय खुद दूंगा,’’ जयप्रकाश हंस कर बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में मुझ पर आंख बंद कर के विश्वास करने लगोगे.’’

अशोक मीणा ने गहरी सांस ली, ‘‘आप की बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया है.’’

‘‘नहीं उलझोगे.’’ जयप्रकाश मुसकराया, फिर उस ने पूछा, ‘‘चमत्कार पर विश्वास करते हो?’’

‘‘बहुत अधिक महाराज.’’

‘‘तंत्रमंत्र को भी मानते हो?’’

‘‘हां,’’ अशोक मीणा ने सिर हिलाया, ‘‘तंत्रमंत्र की शक्ति आदिकाल से चली आ रही है. ऋषिमुनि इन तंत्रमंत्र के द्वारा कायाकल्प कर लेते थे. रूप बदलने, किसी को वश में करने और युद्ध के दौरान अस्त्रशस्त्रों को एकदूसरे पर छोड़ने में तंत्रमंत्र शक्ति का ही प्रयोग होता था.’’

‘‘ठीक कह रहे हो.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया, ‘‘मैं भी तुम्हें तंत्रमंत्र के चमत्कार दिखाता हूं.’’

कहने के बाद जयप्रकाश ने आंखें बंद कीं और उस के होंठ यूं फड़फड़ाने लगे जैसे वह कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद उस ने अपना दायां हाथ हवा में लहरा कर कुछ पकड़ा.

अशोक हैरानी से आंखें झपकाने लगा. जयप्रकाश शर्मा के हाथ में मोतीचूर का लड्डू था.

लड्डू जयप्रकाश शर्मा ने अशोक मीणा को दे कर आदेश दिया, ‘‘यह तुम्हें ही खाना है अशोक.’’

‘‘यह… यह आप ने हवा में कहां से पकड़ा है?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

जयप्रकाश शर्मा कुछ नहीं बोला, उस ने फिर से आंखें बंद कीं और मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने एक बार फिर हवा में हाथ घुमाया. इस बार उस की मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था.

उस ने अशोक मीणा के सामने मुट्ठी खोली. उस की मुट्ठी में एक पीतल का ताबीज था.

‘‘लो अशोक, यह ताबीज गले में पहन लो. तुम्हारे ऊपर कोई दुष्ट आत्मा कभी अटैक नहीं करेगी, न तुम्हारा अनिष्ट करेगी.’’

‘‘चमत्कार है महाराज.’’ हैरत से अशोक की आंखें फैल गईं, ‘‘आप साधारण इंसान नहीं, कोई सिद्ध पुरुष हैं.’’

‘‘अब तुम मुझ पर विश्वास या अविश्वास कर सकते हो.’’ जयप्रकाश ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अविश्वास करने वाली बात ही नहीं है महाराज, आप ने मेरी आंखों के सामने यह चीजें तंत्रमंत्र शक्ति से प्रकट की हैं. मैं अब कह सकता हूं कि आप ने अपने दिव्य ज्ञान से ही मेरा नाम और नौकरी के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की है. आप सच्चे इंसान हैं, पूजनीय इंसान हैं.’’

‘‘आओ, अब बैठ कर बात करते हैं.’’ जयप्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अशोक मीणा का हाथ पकड़ा और एक ओर चल पड़ा. अशोक मीणा मंत्रमुग्ध सा उस के पीछेपीछे जा रहा था.

जयप्रकाश शर्मा केकड़ी उपखंड में सब्जी मंडी क्षेत्र में रहता था. यहां उस का जो निवास स्थान था, वह किसी तांत्रिक के साधनास्थल सा दिखाई देता था. कमरे में यज्ञकुंड था, उस के अंदर हर वक्त लकडि़यां जलती रहतीं, कमरा धुएं से काला स्याह और अजीब महक वाला बन गया था.

सुगंधित धूप अगरबत्तियां जगहजगह खोंस कर जलाई जाती रही होंगी, उन के अधजले टुकड़ों के ढेर लगे हुए थे, जाने कभी वहां सफाई की जाती थी या नहीं. कमरे के बीच में बने यज्ञकुंड की धूनी के सामने जयप्रकाश का आसन बिछा रहता.

जयप्रकाश शर्मा वहीं बैठ कर अपनी तंत्रमंत्र साधना की कथित दुकान चलाता था.

प्रेम वशीकरण, टोनाटोटका, बिछुड़ों को मिलाना, गड़े धन की जानकारी, सौतन से छुटकारा जैसे काम करने का जयप्रकाश शर्मा के पास जैसे ठेका था. केकड़ी उपखंड में वह तांत्रिक जय शर्मा के नाम से विख्यात हो गया था. उस के साधनास्थल पर परेशान, किसी समस्या से त्रस्त पुरुषों, औरतों का जमावड़ा लगा रहता था.

जयप्रकाश के द्वारा वह अपनी समस्या का समाधान करवाने आते थे, उन्हें कितना फायदा होता था, यह वह खुद नहीं जानते थे. वह जयप्रकाश शर्मा से तंत्र क्रिया करवाते और मोटा चढ़ावा चढ़ा कर लौट जाते. वह कभी शिकायत ले कर जयप्रकाश या किसी अन्य के पास नहीं गए कि उन्हें लाभ नहीं हुआ है, ऐसी बातों के लिए उन्हें पुलिस से फटकार मिलने का डर बना रहता और लोगों से जगहंसाई का.

अंधविश्वास भरी इन बातों का आज 21वीं सदी में कोई स्थान नहीं था. फिर भी अंधविश्वासियों की वजह से जयप्रकाश शर्मा की दुकान चल रही थी. वह दोनों हाथों से पैसे बटोर रहा था.

लोग यह समझते थे कि जयप्रकाश के पास हवा में ताबीज पकड़ने, लड्डू या 5-5 सौ के नोट पैदा करने जैसे चमत्कारी गुण हैं. वह यह सब किस विधि से करता है, कोई नहीं जानता था. लोग बेवकूफ बन रहे थे और वह बना रहा था. जयप्रकाश शर्मा की नजर में अब मोटा मुरगा चढ़ गया था. वह मुरगा था अशोक मीणा.

जयप्रकाश ने अशोक मीणा को पूर्णिमा के दिन अपने हाथ की सफाई दिखा कर प्रभावित कर दिया था. अशोक मीणा चमत्कृत था. वह जयप्रकाश को कोई सिद्ध पुरुष मानने लगा था. अशोक मीणा नियमित रूप से ब्यावर के दीदारनाथ आश्रम में जाता था, जयप्रकाश शर्मा भी उस के पीछे दीदारनाथ आश्रम पहुंचने लगा.

जयप्रकाश अशोक मीणा को रोज नएनए चमत्कार दिखा कर प्रभावित करता. अशोक उस के चमत्कार देख कर हैरत में पड़ जाता था. उस का झुकाव अब जयप्रकाश शर्मा की तरफ हो गया था. वह जयप्रकाश का आदर करने लगा. एक दिन मौका देख कर जयप्रकाश ने उसे अपने साधनास्थल पर बुला लिया.

अपने सामने उसे बैठने को आसन दिया. अशोक मीणा उस के साधनास्थल को हैरत से देख रहा था.

‘‘इस साधनास्थल पर सब कुछ अलौकिक है अशोक मीणा, मैं ने कठोर परिश्रम कर के कुछ सिद्धियां प्राप्त की हैं. लेकिन मैं अभी गुरु शिवनाथ के मुकाबले बौना ही हूं.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘यह गुरु शिवनाथ कौन है?’’

‘‘यह विश्व के महान तंत्रमंत्र ज्ञाता हैं, अपनी कठोर साधना से मेरे गुरु शिवनाथ ने अनेक जिन्न, खबीश, प्रेत और चंडाल अपने वश में कर लिए हैं. वह उन से हर प्रकार का काम लेते हैं. किसी की कैसी भी समस्या हो, उन को वह चुटकी में हल कर देते हैं.’’ जयप्रकाश ने बता कर अशोक मीणा की तरफ देखा, ‘‘मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने जा रहा हूं, जो मेरे और गुरु शिवनाथ के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति नहीं जानता, चूंकि तुम मेरे खास बन गए हो, इसलिए सिर्फ तुम्हें बता रहा हूं. थोड़ा आगे सरक आओ.’’

अशोक मीणा अपनी जगह से आगे सरका. उस के मन में वह खास बात जान लेने की जिज्ञासा थी.

‘‘अशोक, मेरे गुरु शिवनाथ ने अपने जिन्नों की मदद से रानी हलीमा का वह चमत्कारी बक्सा हासिल कर लिया है, जिस में से सोना, चांदी और नोट निकलते हैं.’’

‘‘भला बक्सा नोट, सोनाचांदी कैसे निकाल सकता है? क्या उस में पहले यह सब डालना पड़ता है?’’ अशोक ने आतुरता से पूछा.

‘‘नहीं अशोक. उस बक्से से अपनी इच्छा से जो मांगो, वह निकल आता है.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है.’’

जयप्रकाश हंसा, ‘‘तांत्रिक की किसी चमत्कार और शक्ति को नकारा नहीं जा सकता अशोक. मैं तुम्हें अपने गुरु शिवनाथ के पास ले कर चलूंगा, तुम अपनी आंखों से उस बक्से का चमत्कार देख लेना.’’

‘‘कब चलेंगे आप?’’ अशोक मीणा ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘जब तुम चाहोगे.’’

‘‘मैं तो आज ही चलना चाहता हूं.’’

जयप्रकाश उस का उतावलापन देख कर मुसकराया फिर वह किसी गहरी सोच में डूब गया.

कक्ष में गहरी खामोशी छा गई.

कुछ देर बाद जयप्रकाश ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘अशोक, मैं सोच रहा हूं कि बक्सा अपने गुरु से तुम्हें दिलवा दूं.’’

‘‘क्या वह बक्सा दे देंगे?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं कहूंगा तो वह इंकार नहीं कर सकेंगे.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया.

‘‘सोचो, यदि वह बक्सा तुम्हें मिल गया तो तुम दुनिया के सब से धनी व्यक्ति बन जाओगे.’’

अशोक मीणा की आंखों में तीखी चमक उभरी, ‘‘काश! ऐसा हो जाए.’’

‘‘हो जाएगा. मैं तुम्हारा भला चाहता हूं इसलिए हर सूरत में मैं वह बक्सा तुम्हें दिलवाऊंगा, लेकिन…’’ अपनी बात अधूरी छोड़ी जयप्रकाश ने.

‘‘लेकिन क्या महाराज, कोई अड़चन हो तो मुझे निस्संकोच बताइए.’’

‘‘तुम्हें कुछ खर्चा करना पड़ेगा.’’

‘‘कर दूंगा. बताइए, कितना खर्च करना होगा?’’

‘‘तुम एक लाख रुपया मेरे एकाउंट में जमा करवा दो, ये रुपए एक सिक्योरिटी के रूप में मेरे पास रहेंगे. तुम्हें मैं वह बक्सा दिलवा रहा हूं, जिस में से तुम रोज लाखों रुपए, सोनाचांदी प्राप्त कर सकोगे. समझ रहे हो न मेरी बात?’’

‘‘मैं एक लाख रुपया आज ही आप के एकाउंट में डाल देता हूं.’’ अशोक मीणा ने बगैर किसी हिचक के कहा, ‘‘आप तो अपने गुरु के पास मुझे ले चलिए.’’

‘‘मेरे गुरु महाराष्ट्र में शाहपुरा (ठाणे) में रहते हैं, वहां चलने में जो खर्चा होगा, वह तुम्हें ही करना होगा.’’

‘‘ठीक है महाराज. सारा खर्च मैं ही करूंगा, आप आज ही टिकट का रिजर्वेशन करवा लीजिए. मैं आप के बैंक एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए डाल देता हूं. आप अपना एकाउंट नंबर मुझे दे दीजिए.’’

जयप्रकाश ने उसे अपना एकाउंट नंबर लिख कर दे दिया. अशोक मीणा वह नंबर ले कर उस साधनास्थल से बाहर निकला तो उस के मन में बेहद उत्साह और चेहरे पर खुशी थी.

अशोक मीणा ने एक घंटे बाद ही जयप्रकाश शर्मा के एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए जमा करवा दिए.

तीसरे दिन जयप्रकाश शर्मा अपने साथ अशोक मीना को ले कर ठाणे के शाहपुरा में अपने गुरु शिवनाथ के यहां पहुंच गया.

शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.

कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.

कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.

शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.

उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.

शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’

‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.

शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.

तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’

‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.

दोनों आसन ले कर बैठ गए.

‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.

‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.

‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.

युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.

‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.

शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’

‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’

‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’

‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.

शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’

‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.

अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’

‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’

‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’

‘‘नहीं महाराज.’’

‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’

‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.

‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.

यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.

‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’

‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.

अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.

अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.

उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.

अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’

अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.

यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में (Rajasthan Crime) एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.

अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.

अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.

अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.

उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.

14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.

इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.

जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.

आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.

कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित

UP Crime news : पत्थर से वार कर दोस्त की खोपड़ी के किए कई टुकड़े

UP Crime news : मनीष जिस सौरभ को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था, पैसों के लालच में वही उस का सब से खतरनाक दुश्मन बन गया था. मनीष को घर से गए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे. इतनी देर तक वह घर वालों को बताए बिना कभी गायब नहीं रहा था. उस के भाई अनिल ने कई बार उस के दोनों फोन नंबरों पर फोन किया था, लेकिन हर बार उस के दोनों नंबरों ने स्विच्ड औफ बताया था. इस के बावजूद वह बीचबीच में फोन मिलाता रहा कि शायद फोन मिल ही जाए. पूरा घर मनीष को ले कर काफी परेशान था.

संयोग से सुबह 7 बजे के लगभग मनीष का फोन मिल गया. मनीष के फोन रिसीव करते अनिल ने कहा, ‘‘मनीष, तू कहां है? कल से तेरा कुछ पता नहीं चल रहा है, तुझे घरपरिवार की इज्जत की भी फिक्र नहीं है. तू किसी को कुछ बताए बगैर ही दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा है?’’

‘‘भाई… मैं घंटे भर में घर पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से मनीष की लड़खड़ाती आवाज आई.

लड़खड़ाती आवाज सुन कर अनिल चौंका. उस की समझ में नहीं आया कि वह इस तरह क्यों बोल रहा है. उस ने कहा, ‘‘वो तो ठीक है. तू घंटे भर में नहीं सवा घंटे में आ जाना, लेकिन यह तो बता कि कल शाम से तेरे दोनों फोन बंद क्यों हैं? और तेरी आवाज को क्या हुआ है, जो इस तरह आ रही है?’’

‘‘भैया, वो क्या है कि मेरे फोन गाड़ी में रह गए थे.’’ मनीष की आवाज फिर लड़खड़ाई. इस के साथ फोन कट गया. अनिल ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन फोन का स्विच औफ हो गया. जिस तरह मनीष की आवाज लड़खड़ा रही थी. साफ लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा नशे में है. 24 वर्षीय मनीष संगत की वजह से शराब भी पीने लगा था. इसलिए अनिल ने तय किया कि उस के आते ही वह उस से बात करेगा कि वह अपनी आदत सुधारेगा या नहीं?

जिस समय अनिल मनीष से फोन पर बातें कर रहा था, उस समय उस की मां और घर के अन्य लोग भी वहीं बैठे थे. मनीष से हुई बातचीत अनिल ने घर वालों को बताई तो वे और ज्यादा परेशान हो उठे. उन्हें चिंता होने लगी कि वह गलत लोगों के साथ तो नहीं उठनेबैठने लगा. चूंकि अनिल की मनीष से बात हो चुकी थी, इसलिए वह यह सोच कर अपनी दुकान पर चला गया कि घंटे, 2 घंटे में मनीष घर लौट ही आएगा. अब वह शाम को उस से बात करेगा.

शाम के 5 बज गए, लेकिन न तो मनीष घर आया और न ही उस का कोई फोन ही आया. बूढ़े पिता ओमप्रकाश गुप्ता बेटे की चिंता में पिछली रात भी नहीं सो पाए थे. बेटे को ले कर सारी रात उन के मन में उलटेसीधे विचार आते रहे. अब दूसरा दिन भी बीत गया था और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. अनिल दुकान से जल्दी ही घर आ गया था. वह मनीष के कुछ दोस्तों को जानता था. उस ने उन से भाई के बारे में पूछा, लेकिन उन से उस के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली. 12 फरवरी को जब मनीष घर से निकला था, तो बड़ी बहन शशि ने उसे फोन किया था. तब उस ने कहा था कि वह मोंटी के मेडिकल स्टोर पर बैठा है और आधे घंटे में घर आ जाएगा.

मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का मेडिकल स्टोर लंगड़े की चौकी में था. अनिल अपने भाई राजीव के साथ मोंटी की दुकान पर पहुंचा. जब अनिल ने मोंटी से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मनीष कल दोपहर को यहां आया तो था, लेकिन घंटे भर बाद मोटरसाइकिल से चला गया था. यहां से वह कहां गया, यह मुझे पता नहीं. वहां से निराश हो कर दोनों भाई मनीष की अन्य संभावित स्थानों पर तलाश करने लगे, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. थकहार कर दोनों भाई रात 11 बजे तक घर लौट आए. बीचबीच में वह मनीष को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उस के दोनों फोन स्विच्ड औफ ही बताते रहे. किसी अनहोनी की आशंका से घर की महिलाओं ने रोनापीटना शुरू कर दिया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मनीष ऐसी कौन सी जगह चला गया है, जहां से उस से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.

खैर, जैसेतैसे रात कटी. अगले दिन पूरे मोहल्ले में मनीष के 2 दिनों से गायब होने की खबर फैल गई. मोहल्ले वाले गुप्ता के यहां सहानुभूति जताने के लिए आने लगे. उन्हीं लोगों के साथ राजीव और अनिल जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी सूरजपाल सिंह को मनीष के लापता होने की जानकारी दी. यह पुलिस चौकी थाना छत्ता के अंतर्गत आती है, इसलिए सूरजपाल सिंह उन्हें ले कर थाने पहुंचे. थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को जब मनीष के गायब होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने तुरंत उस की गुमशुदगी दर्ज करा कर मामले की जांच एसएसआई रमेश भारद्वाज को सौंप दी.

जब उन्हें पता चला कि मनीष अपनी मोटरसाइकिल (UP Crime news) यूपी80एवाई 4799 से घर से निकला था तो उन्होंने वायरलैस से जिले के समस्त थानों को मनीष का हुलिया और उस की मोटरसाइकिल का नंबर बता कर उस के गायब होने की सूचना देने के साथ कहलवाया कि अगर इन के बारे में कुछ पता चलता है तो तुरंत थाना छत्ता को सूचना दें. यह मैसेज प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही थाना सदर बाजार से थाना छत्ता को सूचना मिली कि मैसेज में बताई गई नंबर की नीले रंग की मोटरसाइकिल पिछली शाम को एक रेस्टोरेंट के सामने लावारिस हालात में बरामद हुई है. थाना सदर बाजार आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के नजदीक है.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने यह खबर मिलने के बाद अनिल को थाने बुलाया और उसे साथ ले कर थाना सदर बाजार पहुंचे, ताकि वह मनीष की बाइक को पहचान कर सके. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब उसे रेस्टोरेंट के सामने से लावारिस हालत में बरामद की गई मोटरसाइकिल दिखाई गई तो अनिल ने उसे तुरंत पहचान लिया. वह मोटरसाइकिल मनीष की थी. मनीष गुप्ता का परिवार आर्थिक रूप से काफी संपन्न था. वह हाथों में सोने की वजनी  अंगूठियां और गले में सोने की काफी वजनी चेन पहने था. उस के मोबाइल फोन भी काफी महंगे थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने लूटपाट कर के उस का कत्ल कर के लाश कहीं फेंक दी हो. लव एंगल की भी संभावना थी. इस बारे में पुलिस ने अनिल से पूछा भी, लेकिन उस का कहना था कि इस तरह की कोई बात उस ने नहीं सुनी थी. अगले महीने उस की शादी भी होने वाली थी.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने मनीष के दोनों फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उन की पिछले 5 दिनों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. 13 फरवरी, 2014 को मनीष के दोनों फोनों की लोकेशन लंगड़े की चौकी की मिली थी. इस के बाद लोकेशन खेरिया मोड़ अर्जुननगर की आई. वहीं से उस की अनिल से अंतिम बार बात हुई थी. इस का मतलब वह वहीं से लापता हुआ था. घर वाले भी अपने स्तर से मनीष के बारे में छानबीन कर रहे थे. उस के स्टेट बैंक औफ बीकानेर, आईडीबीआई, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंकों में खाते थे, जिन में उस के लाखों रुपए जमा थे. मनीष के पास हर समय इन बैंकों के डेबिड कार्ड रहते थे.’

मनीष के बड़े भाई राजीव ने सभी बैंकों में जा कर छानबीन की तो पता चला कि अयोध्या कुंज, अर्जुननगर की आईसीआई सीआई बैंक के एटीएम से 13 फरवरी की शाम 17 हजार 5 सौ रुपए निकाले गए थे. इस के अलावा 14,15 और 16 फरवरी को अलगअलग एटीएम कार्डों से साढ़े 3 लाख रुपए निकाले गए थे. यह बात जान कर घर वालों को आश्चर्य हुआ कि मनीष ने इतने पैसे क्यों निकाले. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. जीवन मंडी पुलिस चौकी के इंचार्ज सूरजपाल सिंह राजीव गुप्ता के साथ पास ही स्थित एचडीएफसी बैंक गए. उन्होंने ब्रांच मैनेजर से इस बारे में बात की तो ब्रांच मैनेजर ने बताया कि मनीष गुप्ता के खाते से एटीएम कार्ड द्वारा उस रोज 11 बज कर 19 मिनट पर डेबिड कार्ड द्वारा पैसे निकाले गए थे. वे रुपए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ से निकाले गए थे.

पुलिस जानती थी कि पैसे निकालने वाले का भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ पर लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो जरूर आया होगा. उस दिन की फुटेज हासिल करने के लिए पुलिस ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के अधिकारियों से बात की. जब बैंक अधिकारियों ने पुलिस और राजीव गुप्ता को फुटेज दिखाई तो पता चला, मनीष के खाते से पैसे निकालने वाला कोई और नहीं, मनीष का दोस्त सौरभ शर्मा था. सौरभ शर्मा मुकेश शर्मा उर्फ मोंटी का सगा भांजा था. उस की मोबाइल फोन रिचार्ज करने और एसेसरीज बेचने की दुकान थी. राजीव गुप्ता अकसर उसी के यहां से अपना मोबाइल रिचार्ज कराते थे. उस की दुकान मोंटी के मेडिकल स्टोर के बराबर में ही थी.

मनीष ने अपने पैसे सौरभ से क्यों निकलवाए थे, इस बारे में सौरभ ही बता सकता था. पुलिस राजीव को साथ ले कर सौरभ शर्मा की दुकान पर पहुंची. वह दुकान पर ही मिल गया. पुलिस के साथ राजीव और अनिल को देख कर वह सकपका गया. सबइंस्पेक्टर सूरजपाल सिंह ने उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. परंतु जब उसे एटीएम के कैमरे की फुटेज दिखाई गई तो उस ने कहा, ‘‘क्या इस में मैं मनीष गुप्ता के एटीएम कार्ड्स से रुपए निकालता दिख रहा हूं. सर, उस समय मैं अपने कार्ड से रुपए निकालने गया था.’’

सौरभ झूठ बोला रहा था, यह बात पुलिस और राजीव गुप्ता अच्छी तरह जान रहे थे. पुलिस उस के खिलाफ और सुबूत जुटाना चाहती थी, इसलिए उस समय उस से ज्यादा कुछ नहीं कहा. चौकीप्रभारी ने यह बात थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को बताई. मनीष के बारे में कोई जानकारी न मिलने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. जनता आंदोलन न कर दे, इस से पहले ही एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले को ले कर एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी करुणाकर राव और थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को अपने औफिस में बुला कर मीटिंग की और जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने सौरभ शर्मा और उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. मोंटी ने बताया कि जिस समय मनीष उस के मेडिकल स्टोर पर आया था, वह दुकान पर नहीं था. उस समय मेडिकल पर सौरभ था. सौरभ ने मोंटी की इस बात की पुष्टि भी की. इस के बाद पुलिस ने सौरभ से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मनीष पर बाजार का करीब 15 लाख रुपए का कर्ज हो गया है, इसलिए वह गोवा भाग गया है.

‘‘अगर वह गोवा भाग गया है तो उस का एटीएम कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया, जिस से तुम ने पैसे निकाले थे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस के नहीं, अपने कार्ड से पैसे निकाले थे.’’ सौरभ ने कहा.

पुलिस ने जब उस के खाते की जांच की तो पता चला कि उस ने उस दिन अपने खाते से पैसे निकाले ही नहीं थे. इस सुबूत को सौरभ झुठला नहीं सकता था, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि मनीष के एटीएम कार्ड्स से पिछले 3-4 दिनों में साढ़े 3 लाख रुपए उसी ने निकाले थे. पुलिस ने जब उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि अपने भांजे रिंकू शर्मा के साथ मिल कर उस ने मनीष की हत्या कर उस की लाश को चंबल के बीहड़ों में फूंक दी है. जब घर वालों को पता चला कि उस के दोस्तों ने मनीष की हत्या कर दी है तो घर में हाहाकार मन गया.

पुलिस मनीष की लाश बरामद करना चाहती थी. चूंकि उस समय अंधेरा हो चुका था इसलिए बीहड़ में लाश ढूंढना आसान नहीं था. अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2014 की सुबह इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की अगुवाई में गठित  एक पुलिस टीम सौरभ शर्मा को ले कर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंची. टीम सौरभ शर्मा द्वारा बताए स्थान पर पहुंची तो वहां लाश नहीं मिली. सौरभ पुलिस टीम को वहां 3 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. पुलिस ने जब सख्ती की तो आखिर वह पुलिस को वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर अरंगन नदी के पास स्थित एक पैट्रोल पंप के पीछे ले गया. उस ने बताया कि यहीं से उस ने मनीष की लाश को खाई में फेंकी थी.

खाई में भी पुलिस को लाश दिखाई नहीं दी. इस से अनुमान लगाया गया कि जंगली जानवर लाश खींच ले गए हैं. लिहाजा पुलिस इधरउधर लाश ढूंढने लगी. करीब 15 मिनट बाद एक पुराने खंडहर के पीछे एक सड़ीगली लाश दिखाई दी. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. उस का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था. उस का दाहिना हाथ शरीर के सारे कपड़े गायब थे. बाएं हाथ की एक अंगुली में सोने की अंगूठी थी. उसी अंगूठी और जूतों से मनीष के भाई राजीव ने लाश की शिनाख्त की. लाश की स्थिति से अनुमान लगाया कि मनीष की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मनीष की लाश बरामद होने की बात राजीव ने अपने घर वालों को बता दी.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के पुलिस लाश ले कर आगरा आ गई. जैसे ही लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंची, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और वहां से जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंच कर वहां से गुजरने वाले वाहनों को अपने गुस्से का शिकार बनाना शुरू कर दिया. लोग दुकानों पर तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे. इस में कई राहगीर भी घायल हुए. मौके पर जो 2-4 पुलिसकर्मी थे वे उन्हें समझाने और रोकने में असमर्थ रहे. उसी समय शहर के मेयर वहां पहुंचे तो भीड़ ने उन की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. किसी तरह गनर के साथ भाग कर वह सुरक्षित जगह पर पहुंचे. यह हंगामा लगभग एक घंटे तक चलता रहा.

ऐसा लग रहा था मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है. जब एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज काफी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और हंगामा करने वालों पर लाठीचार्ज किया गया तब जा कर हंगामा रुका. पूछताछ में सौरभ शर्मा ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह ‘मन में राम बगल में छुरी’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली थी. मनीष गुप्ता आगरा जिले के थाना छत्ता के मोहल्ला मस्वा की बगीची का रहने वाला था. वह अपने 9 बहनभाइयों में 8वें नंबर पर था. उस के पिता ओमप्रकाश गुप्ता की इलैक्ट्रिकल की दुकान थी, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होती थी. बीएससी करने के बाद मनीष पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था.

पिछले 8-9 महीने से मनीष दवाइयों का कारोबार करने लगा था. उस के संबंधों और व्यवहार की वजह से उस का यह कारोबार चल निकला था. उसे मोटी कमाई होने लगी थी. उस ने कई बैंकों में अपने खाते खोल लिए थे. मनीष गुप्ता अपने खानपान और पहनावे का काफी खयाल रखता था. शौकीन होने की वजह से वह महंगे मोबाइल फोन रखता था. दोनों हाथों की अंगुलियों में 7 सोने की अंगूठियां और गले में काफी वजनी सोने की चेन पहने रहता था. यह सब देख कर कोई भी उस की संपन्नता को समझ सकता था. वैसे तो अपनी उम्र के तमाम लड़कों के साथ उस का उठनाबैठना था, लेकिन उन में से 5-7 लोग उस के काफी करीबी थे. उन के साथ उस की दांत काटी रोटी थी. उन्हीं में से एक था सौरभ शर्मा. खेरिया मोड़, अर्जुननगर का रहने वाला सौरभ मनीष का ऐसा दोस्त था, जो मनीष की हर बात को जानता था.

सौरभ के पिता का देहांत हो चुका था. वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहता था. उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का लंगड़े की चौकी में मेडिकल स्टोर था. इस के अलावा मोंटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. मोंटी ने अपने मेडिकल स्टोर के पास एक केबिन बनवा कर उस में सौरभ को मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज का धंधा करा दिया था. मनीष मोंटी के मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करता था. इसलिए वहां आने पर सौरभ से अपना मोबाइल फोन रिचार्ज करा लेता था. सौरभ मनीष के हमउम्र था, इसलिए उस की उस से दोस्ती हो गई.

सौरभ काफी तेजतर्रार था. उसी की मार्फत मनीष ने आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंकों में खाते खुलवाए थे. मनीष को उस पर इतना विश्वास हो गया था कि कई बार उस ने अपने खातों में मोटी रकम जमा कराने के लिए सौरभ को भेज दिया था. सौरभ और मनीष बेशक गहरे दोस्त थे, लेकिन दोनों के स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. सौरभ भी चाहता था कि उस के पास भी ढेर सारे पैसे हों. लेकिन उस छोटी सी दुकान की आमदनी से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी. लिहाजा उस ने अपने धनवान दोस्त की दौलत के सहारे अपनी इच्छा पूरी करने की योजना बनाई. उस योजना में उस ने अपने भांजे रिंकू को भी शामिल कर लिया. रिंकू की स्थिति भी सौरभ जैसी ही थी. दोनों ने सलाहमशविरा कर के मनीष के पैसे हड़पने की एक फूलप्रूफ योजना बना डाली.

13 फरवरी, 2014 को देपहर के समय मनीष घर से खापी कर अपनी मोटरसाइकिल से मोंटी के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा. उस समय मोंटी अपनी दुकान पर नहीं था. सौरभ ही वहां बैठा था. सौरभ ने मनीष से अपनी प्रेमिका से मिलवाने की बात कही. पहले तो मनीष ने टाल दिया, लेकिन बारबार कहने पर मनीष तैयार हो गया. तब सौरभ ने मनीष को अर्जुननगर अपने घर के पास भेज कर इंतजार करने को कहा. मनीष अर्जुननगर तिराहे पर पहुंच कर सौरभ का इंतजार करने लगा. करीब 2 मिनट बाद सौरभ वहां पहुंचा. सौरभ उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो मनीष उस के बताए स्थान की तरफ चल दिया. रास्ते में सौरभ का भांजा रिंकू शर्मा भी मिल गया. सौरभ ने उसे भी उसी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया.

सौरभ उसे अर्जुननगर के ही एक कमरे पर ले गया, जिसे रिंकू शर्मा ने अपनी पढ़ाई के लिए किराए पर ले रखा था. कुछ देर बाद रिंकू मनीष के लिए कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. उस कोल्डड्रिंक में रिंकू ने नींद की दवा मिला रखी थी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद मनीष बेहोश होने लगा. तब तक अंधेरा हो चुका था. मनीष की आंखें झपकने लगीं तो सौरभ अपने असली रूप में आते हुए बोला, ‘‘मनीष, मैं ने तुम्हें किडनैप कर लिया है. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हें काट कर किसी नाले में फेंक दिया जाएगा.’’

मनीष जानता था कि उस का दोस्त सौरभ गुस्सैल और लड़ाकू है, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह पैसों के लिए इतना गिर सकता है. उस की जान खतरे में थी. वह बेहोशी की तरफ बढ़ रहा था. फिर भी जान खतरे में देख कर उस ने हाथ जोड़ कर सौरभ से पूछा, ‘‘तुझे क्या चाहिए भाई? मुझे बता दे. मैं तुझे वह सब कुछ दे दूंगा.’’

‘‘फिलहाल तो तू अपनी जेब में रखे सभी एटीएम कार्ड्स मुझे दे कर उन के पिन नंबर बता दे. अर्द्धबेहोशी की हालत में भी मनीष समझ रहा था कि अगर उस ने एटीएम कार्ड्स और पिन नंबर नहीं दिए तो ये दोनों उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं. लिहाजा उस ने अपने सभी एटीएम कार्ड्स उसे सौंपते हुए उन के पिन नंबर बता दिए. इस के थोड़ी देर बाद मनीष पूरी तरह बेहोश हो गया. मनीष के बेहोश होते ही सौरभ ने उसी शाम एक एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर के पास के ही आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से साढ़े 7 हजार रुपए निकाल लिए. उस समय रिंकू मनीष की निगरानी कर रहा था.

सौरभ ने मनीष के दोनों मोबाइल फोनों को स्विच औफ कर दिया था. रात में मनीष को होश न आ जाए, सौरभ ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. मनीष के परिवार वालों को गुमराह करने के लिए अगले दिन सुबह सौरभ ने उस के दोनों फोन चालू कर दिए. दूसरी ओर मनीष के गायब होने से उस के घर वाले परेशान थे. इस बीच जब मनीष के भाई अनिल का फोन आया तो मनीष होश में नहीं था. फिर सौरभ ने उसे पहले ही बता दिया था कि उसे फोन पर क्या कहना है. इसलिए फोन रिसीव कर के मनीष ने वही कहा जो सौरभ ने कहने के लिए कहा था.

भाई से बात कराने के बाद सौरभ ने उसे पुन: बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उस के बाद दोनों मोबाइल फिर बंद कर दिए. उन्होंने उस के हाथों की अंगूठियां और गले से चेन निकाल ली. योजना के अनुसार उन्होंने एक ही अंगूठी छोड़ दी थी. अब वह उसे ठिकाने लगाने योजना बनाने लगे. योजनानुसार 14 फरवरी, 2014 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे रिंकू अरनौटा गांव जाने को कह कर एक टैंपो ले आया. यह गांव चंबल के बीहड़ में पड़ता है.

अर्द्धबेहोशी की हालत में उन दोनों ने मनीष को उस टैंपो में बैठा दिया. सौरभ मनीष के साथ टैंपो में बैठ गया तो रिंकू मनीष की मोटरसाइकिल ले कर टैंपो के पीछेपीछे चलने लगा. अरनौटा गांव के पास सुनसान जगह पर मनीष को टैंपो से उतार कर उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठा लिया और बसई अरेला गांव के नजदीक आंगन नदी के पैट्रोल पंप के पीछे की झाडि़यों में जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

मनीष की शिनाख्त न होने पाए इस के लिए उन्होंने उस के कपड़ों व चेहरे पर तेजाब डाल कर उसे जला दिया. तेजाब वे अपने साथ ले कर आए थे. मनीष के दाहिने हाथ को पत्थर पर रख कर दूसरा भारी पत्थर पटक कर उस के उस हाथ को शरीर से अलग कर दिया. दूसरे हाथ की भी सारी अंगुलियां तोड़ दीं. एक अंगूठी इन लोगों ने जानबूझ कर उस की अंगुली में छोड़ दी थी कि अगर पुलिस को लाश मिल भी जाए तो वह उसे प्रेम प्रसंग के चलते नफरत में की गई हत्या समझे, लूट की वजह से नहीं. वहां से चलने से पहले सौरभ और रिंकू ने एक भारी पत्थर उठा कर मनीष के सिर पर दे मारा. मनीष की खोपड़ी कई टुकड़ों में बंट गई. लाश को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने के बाद दोनों ने उसे 40-50 फुट नीचे गहरी खाई में फेंक दी और फिर आगरा लौट आए.

फतेहाबाद रोड स्थित एटीएम से एक लाख 10 हजार रुपए अलगअलग कार्डों के जरिए निकाल लिए. इस के बाद उन्होंने मनीष की मोटरसाइकिल (UP Crime news) आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी और घर चले गए. सौरभ ने मनीष एटीएम कार्डों से कुल साढ़े 3 लाख रुपए निकाले. मनीष के गहने और एटीएम से निकाले रुपए दोनों ने आपस में बांट लिए. मनीष की मोटरसाइकिल आगरा कैंट स्टेशन के बाहर जीआरपी ने बरामद कर के इस की सूचना थाना सदर बाजार को दे दी थी, जिसे बाद में मनीष के भाई ने पहचान लिया था. सौरभ और रिंकू के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

दूसरे अभियुक्त रिंकू की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दविश डाली गई, लेकिन वह नहीं मिल सका. कथा संकलन तक वह फरार था. पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही है. मामले की विवेचना एसएसआई रमेश भारद्वाज कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.