प्रभाकर कुट्टी शेट्टी को थाने ला कर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में पूछताछ की जाने लगी. पहले तो वह हीलाहवाली करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस के सामने अकाट्य साक्ष्य रखे तो उस ने कांता की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में प्रभाकर ने कांता शेट्टी से प्रेमसंबंध से ले कर उस की हत्या करने तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी :
30 वर्षीय प्रभाकर कुट्टी शेट्टी कर्नाटक के जिला उडि़पी के गांव इन्ना का रहने वाला था. पढ़ाईलिखाई कर के नौकरी की तलाश में वह मुंबई चला आया था, लेकिन उस के मांबाप और एक भाई तथा बहन अभी भी रह रह रहे थे. उस का पूरापरिवार सभ्यसभ्रांत और पढ़ालिखा था, जिस की वजह से गांव में उस का परिवार सम्मानित माना जाता था.
प्रभाकर काफी महत्वाकांक्षी था. पढ़ाई पूरी कर के उस ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और काम की तलाश में मुंबई आ गया. मुंबई में उस का एक मित्र पहले से ही रह रहा था. वह उसी के साथ रहने लगा. थोड़ी भागदौड़ के बाद उसे एक रेस्टोरेंट में मैनेजर की नौकरी मिल गई.
लगभग डेढ़ साल पहले प्रभाकर कुट्टी शेट्टी की कांता से मुलाकात कर्नाटक से मुंबई आते समय ट्रेन में हुई थी. ट्रेन में दोनों की सीटें ठीक एकदूसरे के आमनेसामने थीं. पहले दोनों के बीच परिचय हुआ, इस के बाद बातचीत शुरू हुई तो मुंबई पहुंचतेपहुंचते दोनों एकदूसरे से इस तरह खुल गए कि अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया. फिर तो ट्रेन से उतरते उतरते दोनों ने एकदूसरे के नंबर भी ले लिए थे.
कांता शेट्टी अपने घर तो आ गई थी, लेकिन उस का दिल युवा प्रभाकर के साथ चला गया था. क्योंकि यात्रा के दौरान प्रभाकर से हुई बातों ने पुरुष संबंध से वंचित कांता को हिला कर रख दिया था. प्रभाकर का व्यवहार, उस की बातें, उस की स्मार्टनेस और मजबूत कदकाठी ने उसे इस तरह प्रभावित किया था कि वह उस के दिलोदिमाग से उतर ही नहीं रहा था. प्रभाकर ने एक बार फिर उसे पति करुणाकर शेट्टी और वैवाहिक जीवन की याद ताजा करा दी थी.
कांता को वह सुख याद आने लगा था, जो उसे पति से मिलता था. याद आता भी क्यों न, अभी उस की उम्र ही कितनी थी. भरी जवानी में पति छोड़ कर चला गया था. तब से वह बेटे के लिए अकेली ही जिंदगी बसर कर रही थी. वह अपने काम और बेटे में इस तरह मशगूल हो गई थी कि बाकी की सारी चीजें भूल गई थी. लेकिन प्रभाकर की इस मुलाकात ने उस की उस आग को एक बार फिर भड़का दिया था, जिसे उस ने पति की मौत के बाद दफन कर दिया था.
जो हाल कांता का था, लगभग वही हाल अविवाहित प्रभाकर का भी था. पहली ही नजर में कांता की सुंदरता और जवानी उस के दिल में बस गई थी. वह किसी भी तरह कांता के नजदीक आना चाहता था. क्योंकि वह पूरी तरह उस के इश्क में गिरफ्तार हो चुका था. 2-4 दिनों तक तो किसी तरह उस ने स्वयं को रोका, लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने कांता का नंबर मिला दिया.
प्रभाकर के इस फोन ने बेचैन कांता के मन को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, लेकिन बातचीत का रास्ता तो खुल ही गया. इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो जल्दी ही दोनों मिलनेजुलने लगे. इस मिलनेजुलने में दोनों जल्दी ही एकदूसरे के काफी करीब आ गए. इस के बाद दोनों स्वयं को संभाल नहीं सके और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर एकदूसरे के हो गए. मर्यादा टूटी तो सिलसिला चल पड़ा. मौका निकाल कर वे शारीरिक भूख मिटाने लगे.
कांता प्रभाकर में कुछ इस तरह खो गई कि वह स्वयं को उस की पत्नी समझने लगी. फिर एक समय ऐसा आ गया कि वह प्रभाकर से शादी के लिए कहने लगी. लेकिन प्रभाकर कांता की तरह उस के प्यार में पागल नहीं था. वह पढ़ालिखा और होशियार युवक था. वह कांता के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था. वह भंवरे की तरह था. उसे फूल नहीं, उस के रस से मतलब था. उस के मांबाप थे, जिन की गांव और समाज में इज्जत थी. अगर वह एक विधवा से शादी कर लेता तो उन की गांव और समाज में क्या इज्जत रह जाती. इसीलिए कांता जब भी उस से शादी की बात करती, बड़ी होशियारी से वह टाल जाता.
समय पंख लगाए उड़ता रहा. भंवरा फूल का रसपान करने में मस्त था तो फूल रसपान कराने में. अचानक कांता को कहीं से पता चला कि प्रभाकर मांबाप की पसंद की लड़की से शादी करने जा रहा है. यह जान कर उसे झटका सा लगा. उस ने जब इस बारे में प्रभाकर से बात की तो उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘यह तो एक दिन होना ही था. मांबाप चाहते हैं तो शादी करनी ही पड़ेगी.’’
‘‘लेकिन तुम ने वादा तो मुझ से किया था.’’ कांता ने कहा.
‘‘मांबाप से बढ़ कर तुम से किया गया वादा नहीं हो सकता. इसलिए मांबाप का कहना मानना जरूरी है.’’ कह कर प्रभाकर ने बात खत्म कर दी.
लेकिन कांता इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘आज तक मैं अपना तनमन तुम्हारे हवाले करती आई हूं. तुम ने जैसे चाहा, वैसे मेरे तन और मन का उपयोग किया. मैं ने तुम्हें हर तरह से शारीरिक सुख दिया. कभी नानुकुर नहीं की. तुम्हारी बातों से साफ लग रहा है कि तुम प्यार के नाम पर मुझे धोखा देते रहे. तुम्हें मुझ से नहीं, सिर्फ मेरे शरीर से प्यार था. लेकिन मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि तुम आसानी से मुझ से पीछा छुड़ा लोगे. अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो में तुम्हारे गांव जा कर तुम्हारे मांबाप से अपने संबंधों के बारे में बता दूंगी. अगर इस से भी बात नहीं बनेगी तो कानून का सहारा लूंगी.’’
कांता की इस धमकी से प्रभाकर के होश उड़ गए. उस समय तो उस ने किसी तरह समझाबुझा कर कांता को शांत किया. लेकिन वह मन ही मन काफी डर गया. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस कांता को फूल समझ कर वह सीने से लगा रहा था, एक दिन वह उस के लिए कांटा बन जाएगी. इस का मतलब यह हुआ कि जब तक कांता नाम का यह कांटा जीवित रहेगा, वह समाज में इज्जत की जिंदगी नहीं जी पाएगा. इसलिए उस ने कांता रूपी इस कांटे को अपने जीवन से निकाल फेंकने का फैसला कर लिया.
29 अक्तूबर, 2013 की शाम कांता के जीवन की आखिरी शाम साबित हुई. उस शाम कांता ने प्रभाकर को फोन कर के कहीं चलने के लिए अपने घर आने को कहा तो प्रभाकर ने उस के घर जाने के बजाय कांता को यह कह कर अपने घर बुला लिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. इसलिए वही उस के घर आ जाए. प्रभाकर की तबीयत खराब है, यह जान कर कांता परेशान हो उठी. वह जल्दी से तैयार हुई और प्रभाकर के घर के लिए निकल पड़ी. इसी जल्दबाजी में वह अपना मोबाइल फोन ले जाना भूल गई.
जिस समय कांता प्रभाकर के घर पहुंची, वह बीमारी का बहाना किए बेड पर लेटा था. कांता उस के पास बैठ गई तो वह उस से मीठीमीठी बातें कर के उसे खुश करने की कोशिश करने लगा. उसे खुश करने के लिए उस ने एक बार फिर उस से शादी का वादा किया. इस के बाद अपनी योजनानुसार उस ने कांता से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की.
कांता इस के लिए तैयार हो गई तो उस ने बाथरूम में चलने को कहा. पहले भी वह कई बार बाथरूम में उस के साथ शारीरिक संबंध बना चुका था, इसलिए कांता खुशीखुशी बाथरूम में चलने को तैयार हो गई. बाथरूम में जाने से पहले उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए. इस के बाद बाथरूम की फर्श पर कांता के साथ शारीरिक संबंध बनाने के दौरान ही प्रभाकर ने पहले से वहां छिपा कर रखे चाकू से उस का गला काट दिया.
कांता की मौत हो गई तो उस ने आराम से बाथरूम में ही शव के 3 टुकड़े किए. इस के बाद उन टुकड़ों को लाल कपड़ों में लपेट कर पैकेट बनाए और उन्हें पौलीथीन में लपेट कर आटो से अलगअलग स्थानों पर फेंक दिए. इस के बाद वापस आ कर बाथरूम को खूब अच्छी तरह से साफ किया.
पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रभाकर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. प्रभाकर ने मांबाप की जिस इज्जत को बचाने की खातिर कांता से पीछा छुड़ाने के लिए उस के खून से अपने हाथ रंगे, जेल जाने के बाद आखिर वह बरबाद हो ही गई.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित