इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 4

उस समय तक टिंकू लाश को ठिकाने लगाने के लिए बाजार से गंडासा और प्लास्टिक के कुछ खाली कट्टे, रस्सी खरीद लाया था. संदीप कमरे पर पहुंचा तो टिंकू ने कहा, ‘‘यार, यह अपनी पत्नी से झगड़ रहा था, मैं ने बीचबचाव किया तो इस का सिर दीवार से लग गया और इस का काम तमाम हो गया. अब यह मुसीबत गले पड़ी है तो इसे ठिकाने लगाना भी जरूरी है. इसी के लिए मैं ने तुझे बुलाया है.’’

ऐसी मुसीबत से बाहर निकालने में संदीप ने उस का साथ देने की हामी भर दी. टिंकू ने इंद्रपाल की लाश ठिकाने लगाने की योजना पहले ही बना रखी थी. उसी योजना के अनुसार उस ने सब से पहले गंडासे से इंद्रपाल की गरदन काट कर धड़ से अलग की. सिर को उस ने एक बड़ी सी पौलीथिन थैली में रख लिया.  धड़ को प्लास्टिक के कट्टे में भर कर कट्टे को रस्सी से अच्छी तरह लपेट दिया. फिर उस कट्टे को दूसरे कट्टे में रखा और उसे अच्छी तरह बांध दिया.

लाश की अच्छी तरह पैकिंग करने के बाद अब वह रास्तों के सुनसान होने का इंतजार करने लगा. आधी रात के बाद धड़ वाले कट्टे को टिंकू ने अपने कंधे पर रखा और सिर वाली थैली संदीप ने ले ली. दोनों साढ़े 3 पुश्ता से होते हुए मेन रोड पर पहुंचे. फिर वहां से वे खादर की तरफ उतर कर गैस पाइपलाइन से थोड़ा आगे चल कर पानी के गड्ढे में सिर वाली थैली डाल दी.

धड़ वाला कट्टा उन्होंने तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया. लाश को ठिकाने लगाने के बाद संदीप रात में ही नांगलोई लौट गया और टिंकू अपने कमरे पर लौट आया. कमरे में खून फैला हुआ था. टिंकू ने रात में ही खून को साफ किया. उस के कपड़ों पर खून के जो छींटे आ गए थे, उन्हें भी उस ने साफ किए. सुबह होने पर करावलनगर चला गया. करावल नगर में जिस जगह उस का काम चल रहा था, वहीं पर उस ने अपना सामान वगैरह रख दिया और वहीं रहने लगा.

उधर शशिबाला छोटी बहन सुषमा के कमरे पर गई तो उस ने शशिबाला से पूछा कि जीजू कहां हैं, वह क्यों नहीं आए?

तब शशिबाला ने उस से यह कह दिया कि वह घर पर बैठ कर ही खापी रहे हैं. शशिबाला की बुआ विनोद नगर में रहती थीं. उन से मिले हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह सुषमा के साथ उन से मिलने के लिए चली गई. वहां से वह उसी इलाके में रहने वाली चचेरी बहन संगीता के यहां भी गईं.

अगले दिन बुआ के घर से लौटते समय सुषमा ने कहा, ‘‘दीदी, जीजू से नहीं मिली हूं, चलो पहले तुम्हारे कमरे पर चलते हैं. जीजू से मिल कर फिर तुम मेरे साथ ही मेरे कमरे पर चलना.’’

‘‘उन से क्या मिलेगी. शराब पी कर कहीं घूमफिर रहे होंगे. फिर भी जब तेरा मन उन से मिलने को हो रहा है तो तू चल.’’ कहते हुए शशिबाला अपने कमरे पर गई तो वहां ताला लगा था. ताला देखते ही वह सुषमा से बोली, ‘‘मैं कह रही थी न कि वह कहीं घूमफिर रहे होंगे. तू ही देख, कमरे को बंद कर के पता नहीं कहां चले गए. मुझे लगता है शराब पी कर कहीं पड़े होंगे.’’

सुषमा को क्या पता था कि जिस जीजा से वह मिलने की इच्छा जता रही है, उस का काम तमाम हो चुका है और बहन उसे बेवकूफ बना रही है. खैर, बहन के कमरे का ताला बंद होने पर सुषमा बहन और उस के बच्चों को अपने कमरे पर ले आई. शशिबाला उस दिन सुषमा के यहां रही.

अगले दिन भी इंद्रपाल का पता नहीं चला तो सुषमा ने उस की सूचना थाने में दर्ज कराने को कहा. बहन के दबाव डालने पर शशिबाला ने 20 मार्च, 2014 को पति की गुमशुदगी थाने में दर्ज करा दी.

इस के बाद पुलिस मामले की छानबीन में लग गई. उस बीच टिंकू और शशिबाला की फोन पर बातें होती रहीं. जब उसे पता चला कि पुलिस बहुत सक्रिय हो गई है तो टिंकू ने 22 मार्च को सुषमा के कमरे पर पहुंच कर शशिबाला से मुलाकात की और उस से कहा कि वह पुलिस से काररवाई बंद करने की बात कह कर अपने गांव चली जाए. बाद में जब मामला शांत हो जाएगा तो वह उसे वहां से बुला लाएगा, फिर कहीं दूसरी जगह रहा जाएगा.

शशिबाला को उस का सुझाव पसंद आ गया और वह अगले दिन 23 मार्च की सुबह ही सुषमा और उस के पति को ले कर थाने पहुंच गई. लेकिन इत्तफाक से उसी समय थाने में सुषमा के मोबाइल पर टिंकू का फोन आ गया तो पुलिस टिंकू तक पहुंच गई.

टिंकू से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने 24 मार्च को संदीप और शशिबाला को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने टिंकू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त गंडासा और कपड़े आदि भी बरामद कर लिए.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को कड़कड़डूमा न्यायालय में अतिरिक्त सत्र दंडाधिकारी शरद गुप्ता की कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह कर रहे हैं. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित.

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 3

शशिबाला पहली बार दिल्ली आई थी. यहां आ कर उस का भी मन लग गया. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. मां बनने के बाद इंद्रपाल और शशिबाला की खुशी का ठिकाना न रहा.  उन के दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. इस के बाद शशिबाला एक और बेटी की मां बनी. 2 बच्चों के जन्म के बाद भी शशिबाला के हुस्न में जबरदस्त आकर्षण था. बल्कि इस के बाद तो उस के रूप में और भी निखार आ गया था.

इंद्रपाल जिस ठेकेदार के साथ काम करता था, उस का नाम टिंकू था. टिंकू बिहार के जिला मुंगेर के पहाड़पुर गांव के रहने वाले मुदीन सिंह का बेटा था. बीए पास टिंकू 3 साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था. काफी कोशिश के बाद जब उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो उस ने कंस्ट्रक्शन कंपनियों में लेबर सप्लाई का काम शुरू कर दिया. कंस्ट्रक्शन ठेकेदारों के संपर्क में रहरह कर उसे भी मकान बनवाने के काम का अनुभव हो गया. फिर उस ने भी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के ठेके लेने शुरू कर दिए.

इंद्रपाल कुछ दिनों से टिंकू के साथ ही काम कर रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. टिंकू का काम उस्मानपुर में चल रहा था. वह वहीं अपने रहने के लिए किराए का कमरा देख रहा था, ताकि अपने काम पर नजर रख सके. किराए के कमरे के बारे में उस ने इंद्रपाल से बात की. इंद्रपाल न्यू उस्मानपुर के गौतम विहार में पवन शर्मा के यहां रहता था. उस ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे.

उस ने टिंकू से कहा, ‘‘मेरे पास 2 कमरे हैं. चाहो तो तुम उन में से एक कमरा ले सकते हो. एक में मेरा परिवार रह लेगा.’’

टिंकू जब उस का कमरा देखने गया तो इंद्रपाल ने अपनी बीवी को बताया कि यह हमारे ठेकेदार हैं और इन्हें हमारा कमरा पसंद आ गया तो यह यहीं रहेंगे. ठेकेदार के घर आने पर शशिबाला ने उस की जम कर खातिरदारी की.  29 साल का टिंकू शशिबाला की मेहमाननवाजी से बहुत प्रभावित हुआ. उसे इंद्रपाल का कमरा भी पसंद आ गया तो अगले दिन से वह वहां रहने लगा.

टिंकू कमरे पर अकेला रहता था. उस की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह जी खोल कर पैसे खर्च करता था. चूंकि शशिबाला बराबर वाले कमरे में रहती थी, इसलिए उस की बेटियों के लिए वह अकसर खानेपीने की चीजें लाता रहता था. जिस की वजह से दोनों बच्चियां उस से घुलमिल गई थीं. कभीकभी वह शराब पीता तो इंद्रपाल को भी अपने कमरे पर बुला लेता था. फ्री में शराब मिलने पर इंद्रपाल की भी मौज आ गई थी.

इंद्रपाल जो कमाता था, उस से उस के घर का गुजारा तो हो जाता था, लेकिन वह बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. जबकि टिंकू बहुत ठाठबाट से रहता था. 32 साल की शशिबाला की भी कुछ ख्वाहिशें थीं. पति की कमाई से उसे ख्वाहिशें पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसलिए उस ने अपने कदम टिंकू की तरफ बढ़ा दिए.

टिंकू जवान और अविवाहित था. अनुभवी शशिबाला ने अपने हुस्न के जाल में उसे जल्द ही फांस लिया. उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. यह करीब एक साल पहले की बात है.

अपनी उम्र से छोटे टिंकू के साथ संबंध बन जाने के बाद शशिबाला को अपना 40 वर्षीय पति बासी लगने लगा. अब वह उस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती. इंद्रपाल सुबह का घर से निकलने के बाद शाम को ही लौटता था, जबकि टिंकू का जब मन होता घर आ जाता था. मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस तरह दोनों का यह खेल चलता रहा.

टिंकू अब शशिबाला को आर्थिक सहयोग भी करने लगा था. इस के अलावा वह उस के पसंद के कपड़े आदि भी खरीदवा देता. शशिबाला भी उस की खूब सेवा करती. पत्नी की बेरुखी को इंद्रपाल समझ नहीं पा रहा था.  वह पत्नी से इस की वजह पूछता तो वह उलटे उस पर झुंझला जाती. तब इंद्रपाल उस की पिटाई कर देता. अगर उस समय टिंकू घर पर होता तो बीचबचाव कर देता और नहीं होता तो शशिबाला को वह जम कर धुन डालता था.

पति द्वारा आए दिन पिटने से शशिबाला आजिज आ चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे पति की पिटाई से कैसे निजात मिले.  टिंकू के सामने उस की प्रेमिका की पिटाई हो, यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी. शशिबाला चाहती थी कि वह हमेशा टिंकू के साथ ही पत्नी की तरह रहे. लेकिन इंद्रपाल के होते हुए ऐसा मुमकिन नहीं था.

इस बारे में उस ने टिंकू से भी बात की तो टिंकू ने उसे भरोसा दिलाया कि समय आने दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा. शशिबाला जानती थी कि टिंकू जो कहता है, उस काम को पूरा जरूर कर देता है. इसलिए उसे विश्वास था कि वह पति से छुटकारा दिलाने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा.

होली के मौके पर टिंकू ने इंद्रपाल के बीवीबच्चों पर खूब खर्च किया. खानेपीने के सामान के अलावा उस ने बच्चों को भी रंग और उन की पसंद की पिचकारियां दिलवाईं. बड़ी हंसीखुशी से त्यौहार मनाया. इंद्रपाल को भी जम कर शराब पिलाई.

18 मार्च, 2014 को इंद्रपाल का नशा उतरा तो किसी बात को ले कर उस की पत्नी से कहासुनी हो गई. उस समय दोनों बेटियां छत पर खेल रही थीं. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ा तो इंद्रपाल ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. इत्तफाक से टिंकू उस समय कमरे पर ही था. शोरशराबा सुन कर टिंकू वहां पहुंच गया. उस ने जब इंद्रपाल को रोकना चाहा तो इंद्रपाल ने उल्टे उसे ही झटक दिया. इस पर टिंकू को भी गुस्सा आ गया. उस ने इंद्रपाल को जोर से धक्का दिया तो इंद्रपाल का सिर दीवार से टकरा गया.

दीवार से सिर टकराने पर इंद्रपाल बेहोश हो कर नीचे गिर गया. यह देख कर टिंकू और शशिबाला घबरा गए. उन दोनों ने सोचा कि इंद्रपाल शायद मर चुका है.

शशिबाला ने टिंकू से कहा, ‘‘अब सब कुछ तुम्हें ही संभालना है, मैं अभी अपनी बहन सुषमा के घर जा रही हूं. जब काम हो जाए तो फोन कर देना.’’

इंद्रपाल को ठिकाने लगाने का टिंकू के पास इस से अच्छा मौका नहीं था. उस ने उसी समय दोनों हाथों से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद इंद्रपाल का शरीर ठंडा पड़ता गया.  इंद्रपाल की हत्या के बाद उस के सामने इस बात की समस्या यह थी कि लाश को ठिकाने कहां लगाए. तब तक शशिबाला दोनों बेटियों को ले कर वहां से 200 मीटर दूर जयप्रकाश नगर में रहने वाली सुषमा के यहां चली गई थी.

कुछ देर सोचने के बाद टिंकू ने नांगलोई के चंदन विहार में रहने वाले अपने दोस्त संदीप को फोन कर के कहा, ‘‘यार संदीप, इस समय मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तू इसी समय मेरे कमरे पर आ जा.’’

23 वर्षीय संदीप भी मूलरूप से टिंकू के ही गांव का रहने वाला था. वह 3 साल पहले ही दिल्ली आया था. फिलहाल वह टिंकू के साथ ही राजमिस्त्री का काम कर रहा था. दोस्त टिंकू की परेशानी की बात सुन कर संदीप तुरंत अपने कमरे से निकल गया और रात करीब 8 बजे टिंकू के कमरे पर पहुंच गया.

जबरदस्ती का प्यार

देह की राह के राही – भाग 3

पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना सिंहानी गेट के थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव, सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी, सबइंसपेक्टर विनोद कुमार त्यागी, अवधेश कुमार, हेडकांस्टेबल के.पी. सिंह के साथ नंदग्राम स्थिति मंजू शर्मा के घर पहुंच गए. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. क्योंकि उस के गले से चुन्नी लिपटी हुई थी, गले पर कसने के निशान भी थे.

सुमन को कमरा बबिता ने दिलाया था, इसलिए मंजू ने उसे भी सुमन की हत्या की सूचना दे दी थी, जिस से इस बात की सूचना सुमन के घर वालों तक पहुंच गई थी.

पुलिस घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण कर मकान मालकिन मंजू शर्मा से पूछताछ कर रही थी कि रोतेबिलखते सुमन के घर वाले भी पहुंच गए. थोड़ी देर के लिए वहां का माहौल काफी गमगीन हो गया.

पुलिस को मंजू शर्मा से मृतका के बारे में काफी जानकारी मिल चुकी थी. उस ने बताया कि मृतका यहां अकेली रहती थी. उस का अपने पति से कोई संबंध नहीं था. उस से मिलने एक लड़का आता था. कभीकभी वह उस के कमरे पर रुकता भी था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.

पुलिस ने सुमन के घर वालों को ढांढस बंधाया और घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए हिंडन स्थित मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद थाना सिंहानी गेट पुलिस मृतका सुमन के घर वालों को साथ ले कर थाने आ गई, जहां मृतका की छोटी बहन राखी की ओर से सुमन की हत्या का मुकदमा धूकना निवासी सत्येंद्र त्यागी के बेटे राजीव उर्फ राजू उर्फ नोनू त्यागी के खिलाफ दर्ज कर लिया.

मामला हत्या का था और रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए क्षेत्राधिकारी अनुज यादव ने अगले दिन अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.  इस टीम ने राजीव को गिरफ्तार करने के लिए धूकना स्थित उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस के बाद पुलिस टीम ने कई जगहों पर छापा मारा, लेकिन वह पुलिस टीम के हाथ नहीं लगा.

इस के बाद राजीव की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी को सौंप दी गई. उन्होंने राजीव को काबू में करने के लिए उस का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन्हें उस की लोकेशन का पता चल गया.

मोबाइल के लोकेशन के आधार पर ही सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश ने अपनी टीम की मदद से गाजियाबाद के पुराने बसअड्डे के पास से 5 जून की शाम 7 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया. राजीव को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने किसी भी तरह की बहानेबाजी किए बगैर सुमन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.

शुरूशुरू में राजीव और सुमन का संबंध लेनदेन का रहा. वह सुमन के खर्च उठाता था और सुमन उसे औरत वाला सुख देती थी. राजीव ने सुमन से ये संबंध सिर्फ औरत का सुख पाने के लिए बनाए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद सुमन कहने लगी कि उसे उस से प्यार हो गया है. उसे खुश करने के लिए राजीव ने भी कह दिया कि वह भी उस से प्यार करता है.

सुमन ने राजीव की इस बात को सच माना और उस के साथ शादी के सपने ही नहीं देखने लगी, बल्कि उसे साकार करने की कोशिश भी करने लगी. राजीव उसे टालता रहा.  सुमन को जब लगा कि राजीव उसे टाल रहा है तो वह उस पर शादी के लिए दबाव बनाने के साथसाथ ज्यादा से ज्यादा माल झटकने की कोशिश करने लगी.

सुमन की हरकतों से राजीव को लगने लगा कि मौजमस्ती के लिए की गई यह दोस्ती गले का फांस बन रही है. वह सुमन से बचने की कोशिश करने लगा. लेकिन उस से मिलने वाले सुख के बिना वह रह नहीं सकता था, इसलिए मजबूर हो कर उसे उस के पास आता भी रहा.

3 जून की शाम को राजीव सुमन से मिलने आया तो सुमन ने एक बड़ी फरमाइश कर डाली. उस ने मुरादनगर में एक प्लौट दिलाने को कहा. हजारों की बात होती तो शायद राजीव तैयार भी हो जाता, लेकिन यहां तो मामला लाखों का था, इसलिए राजीव ने मना कर दिया. तब सुमन उसे फंसाने की धमकी देने लगी.

सुमन द्वारा धमकी देने पर राजीव को गुस्सा आ गया कि इस औरत के लिए उस ने कितना कुछ किया. उस का एहसान मानने के बजाय यह उसे बेनकाब करने की धमकी दे रही है. उसी गुस्से में उस ने सुमन के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ा और लपेट कर कस दिया. सुमन फर्श पर गिरी और मर गई. उसे उसी तरह छोड़ कर राजीव भाग गया. घबराहट में वह सुमन के कमरे का दरवाजा भी बंद करना भूल गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने राजीव के खिलाफ सारे सुबूत जुटा कर अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह देह का यह राही जेल पहुंच गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 2

दूसरे सुषमा ने टिंकू वाली बात पुलिस को बताई तो शशिबाला उस के कान में खुसरफुसर क्यों कर रही थी? इस का मतलब यह हुआ कि शशिबाला और टिंकू की इस बीच फोन पर भी बातचीत होती रही होगी. इन सब बातों से शशिबाला पर इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह का शक का दायरा बढ़ता जा रहा था.

पहले तो पुलिस यही समझ रही थी कि इंद्रपाल के साथ टिंकू भी गायब है, लेकिन अब यह बात साफ हो चुकी थी कि टिंकू कहीं और रह रहा है. वह कहां रह रहा है, इस बात को शशिबाला जरूर जानती होगी. इसलिए इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने शशिबाला से ही टिंकू के बारे में पूछताछ की तो उस ने साफसाफ कह दिया कि उसे नहीं पता कि अब वह कहां रह रहा है?

जिस समय पुलिस शशिबाला से पूछताछ कर रही थी, सुषमा भी वहीं थी. तभी सुषमा के फोन की घंटी बजी. सुषमा ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से टिंकू की आवाज आई.   सुषमा को पता था कि पुलिस टिंकू से पूछताछ करना चाहती है, इसलिए उस ने अपने फोन के स्पीकर पर हथेली रखी, ताकि उस की आवाज टिंकू तक न पहुंचे.

फिर वह इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह से आहिस्ता से बोली, ‘‘सर, टिंकू का फोन आया है.’’

जितेंद्र सिंह ने उस से धीरे से कहा, ‘‘उसे तुम किसी तरह शास्त्री पार्क बुला लो.’’

सुषमा ने ऐसा ही किया. उस ने टिंकू से बात करनी शुरू की तो टिंकू ने कहा, ‘‘सुषमा जी, मैं आप से एक जरूरी बात करना चाहता हूं.’’

सुषमा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम शास्त्री पार्क बस स्टौप पर आ जाओ. मैं भी वहीं पहुंच रही हूं.’’

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने सुषमा द्वारा टिंकू से कही गई बात सुन ली थी, इसलिए वह 2-3 पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सुषमा के साथ शास्त्री पार्क बस स्टौप पर पहुंच गए. पुलिस टीम सादा लिबास में थी.

सुबह साढ़े 10 बजे के करीब वहां एक युवक पहुंचा. वह जैसे ही सुषमा से बात करने लगा तो पुलिस ने सोचा कि यही टिंकू होगा, उसे दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम टिंकू बताया. उसे ले कर पुलिस थाने पहुंची तो उस से पहले शशिबाला थाने से जा चुकी थी. वह वहां से क्यों और कहां गई, यह बाद की बात थी. उस से पहले इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने टिंकू से इंद्रपाल के बारे में मालूमात की.

टिंकू पहले तो उन के सामने झूठ बोलता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने इंद्रपाल की हत्या करने के बाद उस की लाश को तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया है. टिंकू ने बताया था कि उस की हत्या 18 मार्च को ही कर दी गई थी.

उस की लाश को जंगल में डाले हुए 6 दिन हो गए थे. लाश को कहीं जंगली जानवर वगैरह न खा गए हों, इसलिए पुलिस टिंकू को साथ ले कर तीसरे पुश्ते की तरफ चल दी. पुलिस के साथ इंद्रपाल के चाचा और चचेरा भाई भी था.

पुलिस तीसरे पुश्ते के पास यमुना खादर पहुंची और वहां टिंकू की निशानदेही पर झाडि़यों से प्लास्टिक का एक कट्टा बरामद किया. उस कट्टे का मुंह एक रस्सी से बंधा हुआ था. टिंकू ने बताया कि इंद्रपाल की लाश इसी कट्टे में है.  इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने फोन कर के क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी वहां बुलवा लिया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के सामने जब उस कट्टे को खोला गया तो उस के अंदर रस्सी से लपेटा हुआ एक और कट्टा निकला.

उस कट्टे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लेकिन उस लाश का सिर गायब था. सिर के बारे में टिंकू से पूछा गया तो उस ने कहा कि सिर को जानवर खा गए होंगे. यह बात जितेंद्र सिंह के गले नहीं उतरी, क्योंकि जब प्लास्टिक के कट्टे रस्सी से बंद थे तो जानवर सिर कैसे खा सकते थे. इस का मतलब टिंकू उन से झूठ बोल रहा था. उन्होंने उस से सख्ती की तो उस ने बताया कि सिर पाइपलाइन के पास खादर में पानी के एक गड्ढे में डाल दिया था.

पुलिस वहां से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर टिंकू की बताई जगह पर पहुंची. वहां गैस पाइपलाइन के पास पानी से भरे एक गड्ढे में एक पौलीथिन की थैली दिखाई दी. उस थैली को निकलवाया गया तो उस में सिर निकला. सुषमा और इंद्रपाल के रिश्तेदारों ने उस की पहचान इंद्रपाल के सिर के रूप में की.

पुलिस ने इंद्रपाल के सिर और धड़ को कब्जे में ले कर पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाने लौट कर इंद्रपाल की गुमशुदगी के मामले को हत्या कर लाश को छिपाने की धाराओं में दर्ज कर लिया.

अब पुलिस यह जानना चाह रही थी कि जिस इंद्रपाल के साथ टिंकू की गहरी दोस्ती थी, उसी इंद्रपाल के उस ने टुकड़े क्यों कर दिए? यह जानने के लिए पुलिस ने टिंकू से पूछताछ की तो इंद्रपाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस की वजह उस की बीवी शशिबाला निकली.

इंद्रपाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के कस्बा सिंभावली के नजदीक बसे गांव भगवानपुर का रहने वाला था. सन 1999 में उस की शादी जिला हापुड़ के ही गांव पटना मुरादपुर की रहने वाली शशिबाला से हुई थी.   जिस दिन शशिबाला की शादी हुई थी, उसी दिन उस की छोटी बहन सुषमा की शादी विक्रम के साथ हुई थी. यानी दोनों बहनों की शादी एक ही मंडप के नीचे हुई थी.

शादी के 7 साल बाद भी शशिबाला जब मां नहीं बनी तो वह बहुत टेंशन में रहने लगी. इंद्रपाल भी परेशान रहता था. उस ने बीवी का इलाज करवाया. जिस की वजह से उस पर कुछ लोगों का कर्ज भी हो गया.   वह गांव में खेतीकिसानी करता था. इस काम से उसे अपने ऊपर का कर्ज उतरने की कोई उम्मीद नहीं थी. इसलिए उस ने दिल्ली जा कर कमाने की सोची. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में काम करते थे, इसलिए वह भी दिल्ली आ गया.

वह मामूली पढ़ालिखा था, इसलिए उसे उस की इच्छा के मुताबिक नौकरी नहीं मिली. तब उस ने मजबूरी में बेलदारी करनी शुरू कर दी. दिल्ली में इस काम के बदले उसे जो मजदूरी मिल रही थी, वह उस के हिसाब से अच्छी थी. इसलिए कुछ दिनों बाद ही वह पत्नी शशिबाला को भी दिल्ली लिवा लाया और उत्तरपूर्वी दिल्ली के न्यू उस्मानपुर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

देह की राह के राही – भाग 2

25 वर्षीया सुमन सिंह अपने 3 साल के बेटे तनुष के साथ उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के नंदग्राम में मंजू शर्मा के मकान में किराए पर रहती थी. उस के मकान का किराया 3 हजार रुपए महीना था. उस के पिता नत्थू सिंह अपनी पत्नी विमलेश और 4 बच्चों के साथ गाजियाबाद के इंद्रापुरम के न्यायखंड-3 में रहते थे.

नत्थू सिंह मूलरूप से मुरादनगर के रहने वाले थे. जहां वह चाट का ठेका लगाते थे. यह उन का पुश्तैनी धंधा था. गाजियाबाद आ कर भी उन्होंने अपने इसी काम को तरजीह दी और यहां वह अपना चाट का ठेला अपने एकलौते बेटे की मदद से न्यायखंड की मेन बाजार में लगाने लगे. यहां भी उन का धंधा बढि़या चल रहा था.

बच्चों में सुमन सब से बड़ी थी, इसलिए मांबाप की कुछ ज्यादा ही लाडली थी. लाड़प्यार से वह जिद्दी होने के साथसाथ बेलगाम भी हो गई थी. चाट के ठेले से इतनी कमाई नहीं होती थी कि नत्थू सिंह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला पाते. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उस के बच्चे अनपढ़ थे. जरूरत भर की शिक्षा उस ने सभी को दिला रखी थी.

कहा जाता है कि बेटी के सयानी होने की जानकारी मातापिता से पहले पड़ोसियों को हो जाती है. नत्थू सिंह की बेटी सुमन भी सयानी हो गई थी, बेटी वैसे ही जिद्दी और बेलगाम थी. कोई ऊंचनीच हो, नत्थू सिंह और विमलेश उस से पहले ही उस के हाथ पीले कर उसे विदा कर देना चाहते थे.

विमलेश ने जब इस बारे में नत्थू सिंह से बात की तो उस ने कहा, ‘‘मैं तो पूरा दिन घर से बाहर काम में लगा रहता हूं. अगर तुम्हीं कोई ठीकठाक लड़का देख कर शादी तय कर लो तो ज्यादा ठीक रहेगा. मेरे आनेजाने से नुकसान ही होगा.’’

इस तरह नत्थू सिंह ने यह जिम्मेदारी पत्नी पर डाल दी. विमलेश तेजतर्रार थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं ही कुछ करती हूं.’’

विमलेश ने कहा ही नहीं, बल्कि लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. उस ने अपने तमाम रिश्तेदारों एवं परिचितों से सुमन के लायक लड़का बताने के लिए कह दिया.

विमलेश की यह कोशिश रंग लाई और जल्दी ही इस का सुखद नतीजा सामने आ गया. किसी से उसे पता चला कि गांव के रिश्ते की एक मौसी का एकलौता बेटा परवीन शादी लायक है. वह दिल्ली नगर निगम के उद्यान विभाग में माली था. उस के पिता सहदेव की मौत हो चुकी थी. यहां वह परिवार के साथ फरीदाबाद के लक्कड़पुर में रहता था.

सरकारी नौकरी वाला लड़का था, वेतन तो ठीकठाक था ही, उस के साथ भविष्य भी सुरक्षित था. यही सोच कर नत्थू सिंह और विमलेश ने परवीन के साथ सुमन की शादी फरवरी, 2008 में अपनी हैसियत के हिसाब से दहेज दे कर कर दी.

विदा हो कर सुमन ससुराल आ गई. तेजतर्रार, सपनों में जीने वाली सुमन ने जैसे पति की कामना की थी, परवीन उस का एकदम उलटा था. साधारण शक्लसूरत वाला परवीन बहुत ही सीधा था. वह न तो किसी से ज्यादा बातचीत करता था और न ही किसी से ज्यादा मेलजोल रखता था. अपने काम से काम रखने वाले परवीन का रवैया पत्नी के प्रति भी ऐसा ही था. शादी के बाद भी उस की इस आदत में कोई बदलाव नहीं आया तो सुमन परेशान रहने लगी.

सुमन तो अपनी ही तरह का खुशमिजाज पति चाहती थी, जो खुद भी हंसताबोलता रहे और दूसरों को भी बोलबोल कर हंसाता रहे. शाम को साथ घूमने जाने को कौन कहे, परवीन घर में भी सुमन से प्यार के 2 शब्द नहीं बोलता था. जब तक घर में रहता, मौनी बाबा की तरह चुप बैठा रहता. बोलता भी तो सिर्फ जरूरत भर की बात करता. पति की इस आदत से सुमन जल्दी ही ऊब गई.

सुमन को परवीन के साथ जिंदगी बोझ लगने लगी और घुटन सी होने लगी तो वह उसे छोड़ कर मायके आ गई. हालांकि अब तक वह परवीन के 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की 5 साल की बेटी तनु थी और 3 साल का बेटा तनुष. मात्र 6 साल ही उस का यह वैवाहिक संबंध चला था.

सुमन के घर वालों ने ही नहीं, परवीन के घर वालों ने भी बहुत कोशिश की कि परवीन और सुमन एक बार फिर साथ आ जाएं, लेकिन सुमन इस के लिए कतई तैयार नहीं हुई. दोनों बच्चे भी उसी के साथ थे. नत्थू सिंह का अपना छोटा सा मकान था, जिस में 9 लोग नहीं रह सकते थे. इस के अलावा सुमन को पता था कि मांबाप के घर से विदा होने के बाद अगर किसी वजह से बेटी वापस आ जाती है तो उसे पहले जैसा सम्मान नहीं मिलता.

सुमन के आने से रहने में तो परेशानी हो ही रही थी, मांबाप पर खर्च का बोझ भी बढ़ गया था. इसलिए अपने और बच्चों के गुजरबसर के लिए उस ने जोरशोर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी. परिणामस्वरूप जल्दी ही उसे गाजियाबाद की एक गारमेंट फैक्टरी में ‘पैकर’ की नौकरी मिल गई. रोजीरोटी का जुगाड़ हो गया तो समस्या आई रहने की, क्योंकि उस छोटे से घर में उतने लोगों का रहना मुश्किल हो रहा था.

सुमन की मां विमलेश ने गाजियाबाद के ही नंदग्राम इलाके में रहने वाली अपनी एक मुंहबोली बहन बबिता उर्फ पारो से बात की तो उस ने अपनी जिम्मेदारी पर मंजू शर्मा के मकान में पहली मंजिल के हिस्से को 3 हजार रुपए महीने के किराए पर दिला दिया. सुमन उसी मकान में अपने 3 वर्षीय बेटे तनुष के साथ रहने लगी, जबकि बेटी मांबाप के साथ रहती थी.

सुमन की जिंदगी पटरी पर आ रही थी कि एकाएक उस की नौकरी चली गई, जिस से जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी से उतर गई. सुमन के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. नौकरी चली जाने से वह आर्थिक परेशानियों में घिर गई. अब उसे मकान का किराया भी देना पड़ रहा था  मातापिता भी कब तक सहारा देते. संकट की इस घड़ी में एक बार फिर सहारा दिया मुंहबोली मौसी बबिता ने. उसी ने सुमन की दोस्ती धूकना गांव के रहने वाले राजीव त्यागी से करा दी, जो उस का पूरा खर्च उठाने लगा.

राजीव त्यागी के पिता सत्येंद्र त्यागी की नंदग्राम में बिजली के सामान की दुकान थी, जिसे बापबेटे मिल कर चलाते थे. दुकान ठीकठाक चलती थी, इसलिए राजीव के पास पैसों की कमी नहीं थी. पैसे वाला होने की वजह से सुमन का खर्च उठाने में उसे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी.

राजीव और सुमन का लेनदेन का यह संबंध प्यार में बदला तो सुमन को लगने लगा कि राजीव उस से शादी कर लेगा. वह राजीव से शादी करना भी चाहती थी, क्योंकि राजीव ठीक वैसा था, जैसा पति वह चाहती थी. लेकिन वह राजीव की पत्नी बन पाती, उस के पहले ही 3 जून, 2014 को उस की हत्या हो गई.

रात 9 बजे के आसपास मकान मालकिन मंजू शर्मा किसी काम से पहली मंजिल पर गईं तो उन्होंने देखा, सुमन का कमरा खुला पड़ा है. उन्होंने कमरे में झांका तो दरवाजे के पास ही वह चित पड़ी दिखाई दी. उस की चुन्नी गले में लिपटी थी, इसलिए उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उस की हत्या की गई है. उन्होंने इस बात की जानकारी पड़ोसियों को दे कर सुमन की हत्या की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दिला दी.

प्रेमिका बनी ब्लैकमेलर

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 1

शशिबाला अपनी छोटी बहन सुषमा के साथ 20 मार्च, 2014 को दोपहर के समय उत्तर पूर्वी दिल्ली के थाना न्यू उस्मानपुर पहुंची. थानाप्रभारी महावीर सिंह से मुलाकात कर उस ने बताया कि उस का पति इंद्रपाल 18 मार्च से गायब है. हम ने सभी जगह देख लिया, लेकिन उन का कहीं भी पता नहीं चला.

‘‘वह कहां से लापता हुए हैं. ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मैं उन्हें घर पर ही छोड़ कर गई थी. हम यहीं गौतम विहार की गली नंबर 5 में रहते हैं.’’ शशिबाला बोली.

‘‘जब उन्हें घर पर ही छोड़ कर गई थीं तो वह गायब कैसे हो गए?’’

‘‘साहब, न्यू उस्मानपुर के जयप्रकाशनगर में मेरी यह छोटी बहन सुषमा रहती है. होली के अगले दिन मैं बच्चों को ले कर इस के यहां होली मिलने चली गई थी. उस समय वह घर पर बैठे शराब पी रहे थे. जब मैं वापस आई तो वह नहीं मिले. कमरे पर ताला लगा था. मैं ने उन का फोन मिलाया, जो स्विच औफ मिला. तब मैं ने सोचा कि अपने यारदोस्तों के साथ कहीं खापी रहे होंगे. क्योंकि ऐसा वह अकसर करते रहते थे. लेकिन अब तक उन का कहीं पता नहीं चला तो मैं थाने आई हूं.’’ शशिबाला ने बताया.

शशिबाला से बातचीत करने के बाद थानाप्रभारी ने उस के पति इंद्रपाल की गुमशुदगी थाने में दर्ज करा कर जांच हेडकांस्टेबल श्रीपाल को सौंप दी. हेडकांस्टेबल श्रीपाल ने सब से पहले दिल्ली के समस्त थानों में इंद्रपाल के हुलिया के साथ उस की गुमशुदगी की सूचना वायरलेस से प्रसारित करा दी.

गौतम विहार का इलाका हेडकांस्टेबल श्रीपाल की बीट में ही आता था, इसलिए उन्होंने इलाके के लोगों से उस के बारे में छानबीन शुरू की. इस में उन्हें पता चला कि वह यारदोस्तों के साथ शराब पीने का शौकीन था.

हेडकांस्टेबल श्रीपाल को यह भी जानकारी मिली कि इंद्रपाल ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे, जिन में से एक कमरा उस ने टिंकू नाम के युवक को दे रखा था. इंद्रपाल उस के साथ भी खातापीता था. इंद्रपाल के गायब होने के बाद टिंकू भी लापता था. उस के कमरे पर भी ताला लटका मिला.

हेडकांस्टेबल श्रीपाल ने जो जांच की थी वह सब थानाप्रभारी को बता दी. एक की जगह 2 लोग गायब थे, इसलिए थानाप्रभारी को यह मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

डीसीपी के निर्देश पर एसीपी अमित शर्मा को नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी महावीर सिंह, इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह, एसआई पंकज तोमर, हेडकांस्टेबल श्रीपाल, प्रदीप शर्मा, कांस्टेबल अनिल कुमार, सोनू राठी, सचिन खोखर आदि को शामिल किया गया. पुलिस टीम सब से पहले गौतम विहार में उस कमरे पर गई, जहां इंद्रपाल और टिंकू रहते थे. पड़ोसियों ने बताया कि वे दोनों मंगलवार यानी 18 मार्च से दिखाई नहीं दिए हैं.

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने इंद्रपाल की पत्नी शशिबाला से टिंकू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि टिंकू उसे कई दिनों से नहीं दिखा है. शशिबाला से टिंकू का मोबाइल नंबर ले कर जितेंद्र सिंह ने उसे अपने फोन से मिलाया तो उस का फोन नंबर स्विच औफ मिला. दोनों के ही फोन स्विच औफ मिलने की बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी.

इंद्रपाल के लापता होने की जानकारी मिलने पर उस के चाचा दिनेश कुमार और चेचरा भाई संजय कुमार भी थाना न्यू उस्मानपुर पहुंच चुके थे. उन्होंने भी पुलिस पर इंद्रपाल का जल्द से जल्द पता लगाने का दबाव बनाया. पुलिस ने उन्हें किसी तरह समझाया.

जो 2 लोग गायब थे, पुलिस के पास उन के केवल फोन नंबर थे और वे भी बंद थे, इस के अलावा पुलिस के पास ऐसी कोई चीज नहीं थी, जिस से उन दोनों के बारे में कुछ पता चल सके. पूछताछ के लिए सिर्फ इंद्रपाल की पत्नी शशिबाला ही बची थी. इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने शशिबाला से मालूमात की तो उस ने वही बातें उन के समने दोहरा दी, जो पहले थानाप्रभारी को बताई थीं.

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह उस से पूछताछ कर रहे थे तो शशिबाला बोली, ‘‘साहब, अब मैं अपने गांव जाना चाहती हूं. मैं ने पति की गुमशुदगी की जो सूचना दर्ज कराई थी, उसे वापस लेना चाहती हूं. मैं पुलिस के किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहती. वह कहीं गए होंगे, अपने आप घर लौट आएंगे.’’ शशिबाला हापुड़ के पटना मुरादपुर गांव की रहने वाली थी.

शशिबाला के मुंह से यह बात सुन कर जितेंद्र सिंह चौंके कि पता नहीं यह कैसी औरत है जो पति के गुम हो जाने के बाद भी इस तरह की बातें कर रही है. उस ने एक बार भी पुलिस से यह नहीं कहा कि उस के पति का जल्द पता लगाया जाए.

पति के गायब होने पर जिस तरह कोई महिला परेशान हो जाती है, ऐसी कोई परेशानी शशिबाला के चेहरे पर नहीं दिख रही थी. वह एमदम सामान्य थी. इस से इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह को उस पर शक होने लगा. बहरहाल उन्होंने उस समय तो उस से कुछ नहीं कहा, लेकिन उस की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए हेडकांस्टेबल श्रीपाल को लगा दिया.

23 मार्च को शशिबाला, उस की बहन सुषमा, बहनोई विक्रम फिर थाने आए. इंद्रपाल के रिश्तेदार भी उस समय थाने में ही थे. तभी सुषमा ने इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह को बताया, ‘‘सर, कल रात शशिबाला उस के कमरे पर थी. रात करीब 8 बजे टिंकू भी उस के घर आया था. टिंकू ने शशिबाला से अलग में बात की थी. शशिबाला से बात कर के वह चला गया था. उस के चले जाने के बाद मैं ने शशिबाला से पूछा तो उस ने मुझे बताया कि टिंकू ने उस से कहा था कि वह पुलिस के पास चक्कर लगाने के बजाय अपने गांव चली जाए. इंद्रपाल अपने आप लौट आएगा.’’

सुषमा ने आगे कहा, ‘‘सर, मुझे टिंकू पर शक हो रहा है. आखिर वह इस तरह की बातें क्यों कर रहा है? इंद्रपाल जब टिंकू का दोस्त था तो इस परेशानी में उसे हमारा साथ देना चाहिए था, जबकि वह इधरउधर घूमता फिर रहा है.’’

सुषमा ने जैसे ही यह बात पुलिस से कही तो पास में खड़ी शशिबाला उस के कान में फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘तुझे यह बात यहां कहने की क्या जरूरत थी?’’

चूंकि जिस दिन से इंद्रपाल गायब था उसी दिन से उस का दोस्त टिंकू भी गायब था. पुलिस को टिंकू की भी तलाश थी. उस के बारे में भी पुलिस को पता नहीं चल रहा था. इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने सोचा कि कल जब टिंकू शशिबाला से मिला था तो उसे यह बात पुलिस को बता देनी चाहिए थी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया.

देह की राह के राही – भाग 1

फोन की घंटी बजी तो सुमन ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर मुंहबोली मौसी बबिता का  था, जो उस के घर से कुछ दूरी पर रहती थीं. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो, मौसी नमस्ते, आप कैसी हैं, फोन कैसे किया?’’

‘‘नमस्ते बेटा, मैं तो ठीक हूं. तू बता कैसी है?’’ बबिता ने अपने बारे में बता कर सुमन का हालचाल पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं भी ठीक हूं मौसी. बताइए, फोन क्यों किया?’’

‘‘मैं ने फोन इसलिए किया है कि तू ने जिस काम के लिए मुझ से कहा था, वह हो गया है. तू जब भी उस से मिलना चाहे, मिल सकती है.’’

‘‘अगर मैं आज ही उस से मिलना चाहूं तो..?’’ सुमन ने चहक कर पूछा.

‘‘हां…हां, आज ही मिल ले. लेकिन रुक, मैं उसे एक बार और फोन कर के पूछ लेती हूं. उस के बाद तुझे फोन करती हूं.’’ कह कर बबिता ने फोन काट दिया.

कुछ देर बाद बबिता ने फोन कर के कहा, ‘‘ठीक है, आज शाम को राजनगर के प्रियदर्शिनी पार्क में तू उस से मिल सकती है. उस का नाम राजीव है. मैं तुझे उस का मोबाइल नंबर दिए देती हूं. जाने से पहले तू उसे एक बार फोन कर लेना.’’

इस के बाद बबिता ने राजीव का मोबाइल नंबर सुमन को लिखा दिया. दरअसल सुमन ने अपनी मुंहबोली मौसी बबिता से कहा था कि नौकरी छूट जाने की वजह से वह काफी तंगी में आ गई है. इसलिए वह उस की दोस्ती किसी ऐसे आदमी से करा दे, जो उस की हर तरह मदद कर सके और वक्त जरूरत काम आ सके. उसी के लिए बबिता ने उसे फोन किया था. उस ने कहा था कि राजीव अच्छा लड़का है और उसे भी उसी की तरह एक बढि़या दोस्त की तलाश है.

बबिता से नंबर ले कर सुमन ने राजीव को फोन किया तो उस ने सुमन को शाम को राजनगर के प्रियदर्शिनी पार्क में मिलने के लिए बुला लिया. राजीव को प्रभावित करने, एक तरह से उसे अपने जाल में फंसाने के लिए सुमन खूब सजसंवर कर तय समय पर पार्क पहुंची तो राजीव उसे इंतजार करता मिला.

24 वर्षीय राजीव चढ़ती उम्र का खूबसूरत नौजवान था. पहली ही नजर में वह सुमन को भा गया. मौसी ने बताया था कि वह काफी पैसे वाला भी है. इस तरह सुमन ने जिस तरह के दोस्त की कल्पना की थी, राजीव एकदम वैसा ही था.

25 वर्षीया सुमन भी कम सुंदर नहीं थी. यही वजह थी कि उस पर राजीव की नजर पड़ी तो वह हटा नहीं सका. उसे सुमन बेहद खूबसूरत लगी. दोनों ही एकदूसरे को भा गए, इसलिए इसी पहली मुलाकात में उन दोनों की दोस्ती पक्की हो गई. वैसे भी आजकल के नौवजवान ऐसे पलों में एकदूसरे के प्रति कुछ अधिक ही जोशीले अंदाज में पेश आते हैं.

इस के बाद राजीव और सुमन घर के बाहर तो मिलने ही लगे, राजीव सुमन के घर भी आनेजाने लगा. राजीव को पता ही था कि सुमन ने उस से दोस्ती क्यों की है, इसीलिए वक्त जरूरत वह उस की मदद भी करने लगा. राजीव यह मदद ऐसे ही नहीं कर रहा था. वह सुमन की देह से अपनी पाई पाई वसूल रहा था.

राजीव स्मार्ट तो था ही, बातचीत में भी तेजतर्रार था. इसलिए सुमन को लगा कि अगर वह उस से शादी कर ले तो उस की सूनी जिंदगी में एक बार फिर बहार तो आ ही जाएगी, यह जिंदगी आराम से कट भी जाएगी. यही सोच कर एकांत के क्षणों में एक दिन उस ने राजीव कहा, ‘‘राजीव, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

राजीव और सुमन में प्यार जैसा कुछ भी नहीं था. उन का लेनदेन का संबंध था, इसलिए उसे लगा कि सुमन कोई बड़ी मांग करेगी. थोड़ा गंभीर हो कर उस ने कहा, ‘‘बताओ, क्या चाहिए?’’

‘‘मैं जो चाहती हूं, पता नहीं तुम दे भी पाओगे या नहीं?’’

‘‘आज तक तुम ने जो भी मांगा है, मैं ने कभी मना किया है,’’ राजीव ने कहा, ‘‘जो भी चाहिए, साफसाफ कहो. पहेलियां मत बुझाओ.’’

‘‘मैं कोई चीज नहीं मांग रही हूं.’’ सुमन ने करीब आ कर राजीव का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए.’’

सुमन के मुंह से ये शब्द सुन कर राजीव जैसे झूम उठा. उस ने अपने हाथ से सुमन का हाथ दबा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार ही तो दे रहा हूं. अगर तुम से प्यार न होता तो मैं तुम्हारे पास आता ही क्यों.’’

‘‘यह प्यार थोड़े ही है. हमारा तुम्हारा संबंध तो लेनदेन का है. तुम मेरी जरूरत पूरी करते हो और मैं तुम्हें खुश करती हूं. लेकिन तुम्हें खुश करते करते ही अब मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘हमारा तुम्हारा जो भी संबंध है, बिना प्यार के हो ही नहीं सकता. तुम जिस तरह के संबंध की बात कर रही हो, वैसा बाजार में होता है. वहां आदमी ने पैसे फेंके, मौज लिया और चल दिया. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. जरूरतें तो आदमी पत्नी की भी पूरी करता है. तो क्या वहां भी इसी तरह लेनदेन का संबंध होता है. सुमन सही बात तो यह है कि मैं भी तुम से प्यार करता हूं. बस, परेशानी यह है कि तुम मुझ से बड़ी हो.’’ राजीव ने कहा.

‘‘सिर्फ एक ही साल तो बड़ी हूं. पुरुष तो 20-20 साल बड़े होते हैं. तब तो कोई फर्क नहीं पड़ता,’’ सुमन ने कहा.

‘‘मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था. कहां तुम्हें छोड़ कर जा रहा हूं.’’ राजीव ने सुमन के गले में बाहें डाल कर कहा तो वह उस के सीने से लग कर बोली, ‘‘अच्छा राजीव, इस प्यार को कब तक निभाओगे?’’

सुमन की आंखों में आंखें डाल कर राजीव ने कहा, ‘‘आखिरी सांस तक, जब तक जिंदा रहूंगा. तुम यह कभी मत सोचना कि मैं सिर्फ तुम्हारा शरीर पाने के लिए तुम्हारे पास आता हूं. मुझे तो तुम से पहले ही दिन प्यार हो गया था. अब वह इतना बढ़ गया है कि अब मैं तुम से अलग हो कर रह ही नहीं सकता. अगर जरूरत पड़ी तो दिखा भी दूंगा.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो राजीव. तुम सहानुभूति की वजह से तो ऐसा नहीं कर रहे हो? क्योंकि मैं पति से अलग रहने वाली 2 बच्चों की मां हूं.’’ सुमन ने भावुक हो कर राजीव के सामने अपनी हकीकत बयां कर दी.

सुमन की हकीकत जान कर राजीव एक पल को चौंका. लेकिन उसे सुमन की देह का चस्का लग चुका था, इसलिए तुंरत संभल कर हंसते हुए उस ने उस का गाल थपथपा कर कहा, ‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. प्यार में जब जाति और उम्र नहीं देखी जाती तो मैं इसे ही क्यों देखूंगा.’’

राजीव का इतना कहना था कि सुमन उस की बांहों में समा गई. इस के बाद जहां राजीव सुमन पर पति की तरह अधिकार जताने लगा था, वहीं सुमन भी राजीव से पत्नी की तरह हर जरूरत पूरी करवाने लगी थी. राजीव अब कभीकभी सुमन के कमरे पर रात को भी रुकने लगा था. बात यहां तक पहुंच गई तो सुमन और राजीव के संबंधों की जानकारी सुमन के मकान मालकिन मंजू शर्मा को ही नहीं, उस के घर वालों को भी हो गई.

पहले तो मकान मालकिन मंजू शर्मा ने उसे टोका. लेकिन सुमन ने उस की टोकाटाकी पर ध्यान नहीं दिया, तब उस ने उस से मकान खाली करने के लिए कह दिया. मांबाप ने सुमन से राजीव के बारे में पूछा तो उस ने सबकुछ सचसच बता दिया. उस ने बताया कि राजीव उस से शादी करने को तैयार है तो मांबाप ने कोई आपत्ति नहीं की.

मकान मालकिन जब सुमन को ज्यादा परेशान करने लगी तो एक दिन सुमन ने उस से भी कह दिया कि वह राजीव से शादी करने वाली है. इस के बाद उन्होंने भी टोकाटाकी बंद कर दी.

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