भेद खुलने के डर से नर्स का कत्ल

शादीशुदा होते हुए भी परशुराम ने नूरी से शादी कर ली. यह शादी उस के जी का ऐसा जंजाल बनी कि…

उत्तर प्रदेश की राजधानी से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है गांव दुर्गागंज. इसी गांव में परशुराम अपनी पत्नी राजरानी और 2 बच्चों के साथ रहता था. वह सीधे और सरल स्वभाव का था.  परशुराम पहले गांव में ही छोटामोटा काम करता था जिस से घर का खर्चा चलाने में परेशानी होती थी. तब उस की पत्नी राजरानी ने गांव में ही स्वास्थ्य कार्यकर्त्री आशा के पद पर काम करना शुरू कर दिया. उसी दौरान काम की तलाश में परशुराम भी गांव से लखनऊ चला गया.

लखनऊ में वह ड्राइवर के रूप में काम करने लगा. वह लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में गाड़ी चलाता था. यहीं पर उस की मुलाकात नूरी नाम की एक युवती से हुई. नूरी परशुराम से उम्र में छोटी थी. वह वहीं के एक डाक्टर के घर में खाना बनाने का काम करती थी.

इस के बाद दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं. अलगअलग धर्मों के होने के बावजूद भी उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. नूरी ने परशुराम के दिल में प्यार की ऐसी घंटी बजा दी थी कि उस ने किसी भी कीमत पर नूरी को हासिल करने की ठान ली.

परशुराम ने जब कई बार नूरी से अकेले में मिलने की बात कही तो एक दिन नूरी ने उस से कहा, ‘‘परशुराम हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. पर बिना शादी के हमारा अकेले में मिलना ठीक नहीं है. हमें सब से पहले शादी करनी होगी. इस के बाद हमें कहीं भी मिलनेमिलाने में परेशानी नहीं होगी.’’

  ‘‘नूरी, तुम चिंता मत करो, हम लोग जल्द ही शादी कर लेंगे.’’ परशुराम ने उसे समझाया. यह बात कहने से पहले वह यह भी भूल गया था कि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप है.

‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो. मैं ने अपने डाक्टर साहब से बात की थी. उन्होंने कहा था कि वह मुझे जल्द ही घर के काम से हटा कर अपने नर्सिंगहोम के काम में लगा लेंगे. मैं वहां नर्स के रूप में काम करने लगूंगी. फिर मेरी तनखाह भी बढ़ जाएगी. और हमें वहीं पर रहने के लिए एक क्वार्टर भी मिल जाएगा.’’ नूरी ने बताया.

‘‘तब तो बहुत अच्छी बात है. हम दोनों वहीं साथ रहा करेंगे.’’ कह कर परशुराम नूरी की जुल्फों से खेलने लगा. लेकिन नूरी उसे एक हद से आगे बढ़ने नहीं दे रही थी. उस ने पहले शादी करने को कहा. नूरी को पाने के लिए परशुराम उस से शादी करने को तैयार हो गया. फिर सन 2016 में दोनों ने शादी कर ली. शादी के बाद वह उसी के साथ रहने लगा. उसे नूरी के रूप में शहर की पत्नी मिल गई. नूरी के चक्कर में वह गांव में रही पहली पत्नी राजरानी और दोनों बच्चों को भूल चुका था.

 

वैसे भी परशुराम अपने गांव कम ही जाता था. नूरी से शादी के बाद तो उस ने पूरी तरह से गांव जाना बंद कर दिया था, जिस से नूरी से शादी करने वाली बात उस के गांव में किसी को पता नहीं लगी. अपने भाई बलराम और बाकी सब को परशुराम ने बता रखा था कि वह एक डाक्टर की गाड़ी चलाता है. वहीं पर उस के रुकने का भी इंतजाम हो गया है. वहां से ज्यादा छुट्टी भी नहीं मिलती.

साथ रहते हुए नूरी और परशुराम एकदूसरे को अच्छी तरह समझ गए थे. समय अपनी गति से बीतता रहा और नूरी एक बेटी की मां बन चुकी थी. बेटी होने के बाद परशुराम काफी खुश था. उस ने इस खुशी में नर्सिंगहोम में मिठाई भी बांटी थी, पर उन का यह प्यार बहुत ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका.

कुछ दिनों बाद नूरी को लगा कि परशुराम उस से कुछ छिपा रहा है. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं परशुराम उसे छोड़ कर चला न जाए, इसलिए जब भी परशुराम अपने गांव जाने की बात करता पूरी उसे मना कर देती थी. यहीं से दोनों के बीच लड़ाई शुरू होने लगी. यह लड़ाई अब उस के प्यार पर भारी पड़ने लगी. नूरी से मिलने के लिए उस की बहनें आती थीं. परशुराम को लगा कि यह दोनों बहनें ही नूरी को सिखाती हैं, जिस के बाद घर में झगड़ा शुरू हो जाता है.

परशुराम ने इस की शिकायत नूरी से की तो नूरी ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम गलत समझ रहे हो. मेरी बहनें मुझे कुछ नहीं सिखातीं. सच्ची बात यह है कि अब मुझे ही लग रहा है कि तुम ही मुझ से कुछ छिपा रहे हो. मैं ने तो तुम्हारी बात मान कर सब कुछ तुम्हारे हवाले कर दिया और अब तुम मुझे धोखा दे रहे हो.’’

‘‘बताओ तो सही कि भला मैं तुम्हें धोखा कैसे दे रहा हूं.’’ परशुराम बोला.

‘‘मेरे नाम पर आज तक तुम ने अपनी कोई जायदाद नहीं की. मान लो, तुम किसी दिन मुझे छोड़ कर चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी.’’ नूरी ने अपने दिल की बात खुल कर रख दी.

‘‘नूरी बताओ, मेरे पास क्या है जो मैं तुम्हारे नाम कर दूं. जो कमाता हूं वह तो सब तुम्हारे ऊपर ही खर्च कर देता हूं.’’ परशुराम ने कहा.

‘‘यदि तुम मुझे वास्तव में चाहते हो तो तुम अपनी गाड़ी ही मेरे नाम कर दो.’’ नूरी ने समझाया.

‘‘ठीक है. अगर तुम इस से खुश हो तो मैं यह काम कर देता हूं.’’ इतना कह कर परशुराम चला गया. कुछ दिनों के बाद परशुराम ने अपनी गाड़ी नूरी के नाम कर दी. नूरी और परशुराम के बीच कुछ दिन सब ठीक रहा पर धीरेधीरे फिर तकरार रहने लगी.

एक दिन दोनों में फिर झगड़ा शुरू हो गया. उसी दौरान परशुराम ने नूरी पर लांछन लगाते हुए चरित्रहीन कह दिया. यह बात नूरी को बुरी लगी तो उस ने कहा, ‘‘परशुराम अभी तक तुम जो कह रहे थे उन बातों को मैं ने गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन आज तुम ने जो मुझे चरित्रहीन कहा, यह बात मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभी है. तुम्हारी यह बात भी गलत है कि मैं ने अपनी बहनों के साथ मिल कर तुम्हें फंसाया और लूटा है. इस तरह की बातें सहन करना अब मेरे बस की बात नहीं है.’’

 

जाड़े की रात थी. 31 दिसंबर, 2017 को परशुराम अपने गांव चला गया. नूरी को जब पता चला तो उस ने आधी रात को ही उसे फोन कर के गांव से वापस शहर आने को मजबूर कर दिया. परशुराम आधी रात को अपने घर से यह बहाना बना कर चला आया कि कोई इमरजेंसी की वजह से उसे अभी लखनऊ जाना पड़ेगा.

वह जानता था कि वह अभी नहीं गया तो सुबह को नूरी उस के गांव पहुंच सकती है और गांव में वह हंगामा कर देगी. जिस से गांव के लोगों को भी पता चल जाएगा कि उस ने वहां दूसरी शादी कर ली है. बहरहाल मौजमस्ती के लिए नूरी से की गई शादी अब उसी के लिए तनाव पैदा कर रही थी.

अलीगंज स्थित जिस नर्सिंगहोम में नूरी काम करती थी, उस में 31 जनवरी, 2018 को हंगामा हो गया. अस्पताल में तैनात नर्स ने बताया कि सुबह करीब 3 बजे नूरी के कमरे से चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. ड्यूटी पर तैनात दिनेश, सुशीला और मोनिका ने नूरी का कमरा खुलवाने का प्रयास किया.
इस के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो सब ने नर्सिंगहोम के मालिक डा. राज अवस्थी को घटना की जानकारी दी. डा. राज अवस्थी के आने पर जब परशुराम को आवाज दी तो वह दरवाजा खोल कर बाहर आया और उस ने बताया कि नूरी ने उसे जहर दे दिया है. अस्पताल के कर्मचारी कमरे के अंदर गए तो देखा कि पूरे कमरे में खून फैला था. नूरी की गरदन कटी हुई थी और उस की 2 माह की बेटी की भी गदरन कटी हुई थी.

अस्पताल में सन्नाटा पसर गया था. पुलिस को भी सूचना दे दी गई. सूचना पाते ही एएसपी (ट्रांस गोमती) हरेंद्र कुमार, सीओ (अलीगंज) डा. मीनाक्षी, थानाप्रभारी (मडियांव) अमरनाथ वर्मा पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए.

पुलिस ने परशुराम को हिरासत में ले कर जब उस की तलाशी ली तो हत्या में प्रयोग किया गया चाकू और एक पत्र उस की जेब से मिला. पत्र में उस ने नूरी और उस की बहनों के द्वारा प्रताडि़त किए जाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा था कि यह लोग शादीशुदा लोगों को फंसाती हैं, उन से रुपए भी ऐंठती हैं. परशुराम की बातें कितनी सच हैं यह पता नहीं पर यह बात सही है कि परशुराम ने खुद ही अपने परिवार और पत्नी से झूठ बोला. परशुराम ने अपने पत्र में यह भी लिखा था कि नूरी उसे मार सकती है.

परशुराम की पत्नी राजरानी और भाई बलराम ने बताया कि उन लोगों को परशुराम की दूसरी पत्नी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. जहर खाए परशुराम का इलाज शुरू हुआ पर कुछ ही देर बाद उस की भी मौत हो गई.  पुलिस ने मामले की जांच शुरू की तो पता चला कि परशुराम ने ही नूरी और बेटी की हत्या करने के बाद जहर खा लिया होगा. अगर नूरी ने उसे जहर दिया होता तो वह उन दोनों की हत्या करने की हालत में नहीं रह जाता. कथा संकलन तक पुलिस जांच कर रही थी कि इस अपराध में कोई और तो शामिल नहीं था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जुर्म सामने आ ही गया : कैसे खुला कादिर की हत्या का राज?

मेरी तैनाती एक ऐसे कस्बे में थी, जो अब बहुत बड़ा शहर बन चुका है. थाने में रिपोर्ट आई कि एक  जवान आदमी की लाश खेत में पड़ी है. उस का बाप और बड़ा भाई 2 आदमियों को साथ ले कर थाने आए थे. उन्होंने मृतक का नाम कादिर बताया. रिपोर्ट लिखवा कर मैं घटनास्थल के लिए चल दिया. कस्बा जहां खत्म होता था, वहां से खेत शुरू हो जाते थे. मार्च का आखिरी सप्ताह था. खेतों में फसल खड़ी थी.

लाश मेंड़ से 7-8 कदम फसल के अंदर पड़ी थी. मेंड़ के पास बहुत सारी फसल टूटी पड़ी थी. इस से साफ लगता था कि वहां 2 या 2 से अधिक आदमियों की लड़ाई हुई थी. वहां से खेत के अंदर 2-4 कदम तक फसल टूटी हुई थी. इस का मतलब था कि लाश को थोड़ी दूर घसीट कर ले जाया गया था. लोगों के वहां जाने से पैरों के निशान मिट गए थे. मेंड़ पर भी कोई निशान नहीं था.

मृतक कादिर की उम्र करीब 28 साल थी. पता चला कि वह जिले के शहर में एक सरकारी दफ्तर में काम करता था. शहर कस्बे से 21 मील दूर था. मृतक 5 दिनों की छुट्टी पर आया हुआ था. मैं ने लाश उलटपलट कर देखी, कपड़े हटा कर शरीर को देखा, लेकिन कहीं भी कोई चोट का निशान नहीं था.

उस के गले में एक गज की रस्सी पड़ी थी, जिस में एक हलकी सी गांठ बंधी थी. अनुमानत: रस्सी उस के गले में डाल कर पीछे की ओर खींचा गया था. मृतक मर गया तो हत्यारे रस्सी गले में ही छोड़ भागे थे. इस में कोई शक नहीं था कि यह हत्या का मामला था.

मैं ने उस की जेब की तलाशी ली तो उस में करीब 100 रुपए निकले. साथ ही एक फोटो भी जिस में उस लड़के के साथ एक सुंदर सी लड़की का फोटो था. मृतक की एक अंगुली में सोने की अंगूठी और हाथ में घड़ी थी. मैं ने उस के पिता से पूछा तो उस ने बताया कि यह लड़की इस की पत्नी है.

फोटो मृतक की अपनी पत्नी से प्रेम की निशानी थी. इसीलिए वह उस का फोटो अपने बटुए में रखे घूम रहा था. बटुए में पैसे, अंगुली में सोने की अंगूठी और कलाई में घड़ी. ये इस बात का सबूत था कि हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी और यह काम रहजनों का भी नहीं था. रहजन कैसे लूटते हैं और जरूरत होने पर कैसे हत्या करते हैं, मैं अच्छी तरह जानता था.

मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मृतक के मोहल्ले में चला गया. वहां मुझे एक सरकारी रिटायर्ड कर्मचारी के घर बिठाया गया. घर के रखरखाव से पता लगता था कि वह किसी अच्छे शिक्षित व्यक्ति का घर है.

मैं ने उस घर में मौजूद लोगों से वे सब बातें पूछीं जो जरूरी होती हैं. मैं ने उन से कहा, ‘‘क्या आप मेरी मदद करेंगे? मरने वाले के घर वालों का व्यवहार कैसा है, इन की किसी के साथ कोई दुश्मनी है या नहीं, आप मुझे सब कुछ बता दें.’’

‘‘जी हां, मैं इसी मोहल्ले का रहने वाला हूं. मैं मृतक कादिर को उस के पिता को, उस के भाई को और उस के घर की औरतों को जानता हूं. पूरा परिवार शरीफ है. कादिर भी शरीफ था. उस के घर की औरतें भी बेहद शरीफ हैं.’’

‘‘मृतक की किसी से दुश्मनी थी?’’

‘‘जहां तक मुझे पता है उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. लेकिन अगर उस के दफ्तर में किसी से दुश्मनी हो तो मैं कह नहीं सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता तो उसकी हत्या उसी शहर में होती, यहां नहीं.’’

‘‘मैं तो जो जानता हूं, आप को बता रहा हूं. यह देखना आप का काम है. एक मामूली सी दुश्मनी तो है लेकिन उस में हत्या नहीं हो सकती. दरअसल, कादिर की पत्नी एक साल से अपने घर बैठी है. ये लोग उसे बुलाते भी नहीं और तलाक भी नहीं देते.’’

‘‘इस का कारण क्या था?’’

उस ने कहा, ‘‘जहां तक मुझे पता है, कादिर की मां बहुत सख्त है. बहू से हमेशा लड़ती रहती थी. ये लोग कहते हैं कि लड़की ठीक नहीं थी और उन लोगों का कहना है कि लड़की और कादिर में बहुत प्रेम था, जो उस की मां को पसंद नहीं था.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘कादिर के बटुए से जो लड़की का फोटो निकला है, उस से तो यही लगता है कि कादिर को लड़की से बहुत प्यार था. आप बताइए, लड़की का चालचलन कैसा था?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं,’’ उस ने कहा, ‘‘आप खुद तफ्तीश कर लीजिए. सुनी सुनाई बात तो मैं आप को बता सकता हूं. मैं ने सुना है कि लड़की एक महीने से घर से गायब है.’’

‘‘गायब है? लेकिन मेरे पास उस के गुम होने की रिपोर्ट नहीं आई.’’

‘‘हो सकता है, बात गलत हो. मैं ने कहा न कि मैं सुनी बात कह रहा हूं. जब से वह घर बैठी है, तब से तरहतरह की बातें सुनने को मिलने लगीं. सुना है, लड़की को रात में कहीं जाते देखा गया है.’’

उस की सुनीसुनाई बात पर मैं यकीन नहीं कर सकता था, लेकिन एकदो इशारे मिल गए थे, जिन पर मुझे काम करना था. मैं ने मृतक के पिता को बुलाया. मैं ने उस से पहला सवाल यही किया कि क्या आप की किसी से दुश्मनी थी?

उस ने रोते हुए जवाब दिया, ‘‘हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है, साहब.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘देखो, मुझे तुम्हारे बेटे के हत्यारे को पकड़ना है, इसलिए जो बात भी मैं पूछूं, उस का ठीकठीक जवाब देना, कोई बात छिपाना नहीं. यह बताओ, क्या लड़के की ससुराल वालों से तुम्हारा झगड़ा चल रहा है?’’

‘‘उन की बेटी मेरे बेटे के साथ नहीं रह सकी. शादी के 6 महीने तक वह हमारे घर रही, फिर अपने घर चली गई और उस के बाद वापस नहीं आई.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि लड़की को घर बिठाने में किस की गलती है, मुझे केवल इतना बता दो कि क्या लड़की वालों से तुम्हारी दुश्मनी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने तुम्हारे बेटे की हत्या कर दी?’’

उस ने कहा, ‘‘मेरे जवान बेटे की हत्या हो गई है. मैं तो हर किसी को दोषी बता दूंगा. शुरू में तो उस के सालों पर शक था, लेकिन बाद में मैं ने बहुत सोचा कि अगर उन्हें हत्या ही करनी होती तो काफी दिन पहले कर चुके होते, क्योंकि बहू को मायके में एक साल हो गया.’’

‘‘उन के पास कारण तो है, आप उन की बेटी को तलाक देना नहीं चाहते. उन की बेटी जवान है, सुंदर है. हो सकता है, उन्होंने सोचा हो लड़के को रास्ते से हटा दें, उस के बाद अपनी बेटी की शादी कर देंगे.’’

‘‘कौन सी बेटी की शादी करेंगे?’’ उस ने कहा, ‘‘वह तो एक महीने से लापता है.’’

‘‘आप को पूरा यकीन है?’’

‘‘सारे मोहल्ले की औरतें कहती हैं, पहले वह आती जाती दिखाई दे जाती थी, लेकिन अब बिलकुल नहीं दिखती.’’

मैं ने पूछा, ‘‘लड़की के कितने भाई हैं, उस के पिता का आचरण कैसा है?’’

‘‘पैसे के मामले में तो खुशहाल हैं, पिता होशियार आदमी है. काफी असर रखता है. 3 बेटे हैं, 2 बड़े बेटे तो ठीक हैं, लेकिन छोटा ठीक नहीं है. उस की उम्र 16-17 साल है, वह बदमाश लड़कों में बैठता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘एक बात बताओ, लड़की को कौन तलाक नहीं देना चाहता था, आप, लड़का या उस की मां?’’

‘‘मेरा बेटा कादिर,’’ वह दहाड़ें मार कर रोने लगा, ‘‘वह तो अपनी पत्नी को अपने साथ रखना चाहता था और मैं भी यही चाहता था. लेकिन मेरी पत्नी बहुत खराब है. उस ने कह दिया था कि तलाक देनी ही है. बहुत जिद्दी और झगड़ालू औरत है. मेरे काबू में नहीं है. मैं ने दोनों बेटों से कह दिया था कि इस औरत के साथ रहना है तो आंख और कान बंद कर के रहना.’’

‘‘क्या कादिर के ससुराल वालों को पता था कि कादिर लड़की को रखना चाहता है?’’

उस ने कहा, ‘‘यह बात तो कादिर ही बता सकता था. मुझे तो इतना पता है कि वे लोग तलाक के लिए कहते रहे और मेरी पत्नी जवाब देती रही.’’

‘‘क्या लड़की अब कुछ खराब हो गई थी?’’

‘‘बातें कुछ ऐसी ही सुनी हैं.’’ मृतक के पिता ने कहा, ‘‘यह भी सुना है कि उसे रात को कहीं आतेजाते देखा गया था.’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि वह किस के पास जाती थी?’’

‘‘यह तो पता नहीं किस के पास जाती है लेकिन अब पता करूंगा.’’ उस ने जवाब दिया.

इस बातचीत के बाद मैं ने मृतक के पिता को भेज दिया और लड़की के पिता को बुलाया. उस के आते ही मैं ने उस से सवाल किया कि लड़की कहां है. वह चुप रहा. मैं ने फिर पूछा तो वह इधरउधर देखने लगा. जब मैं ने उसे थानेदार वाले अंदाज में डांट कर पूछा तो वह बोल पड़ा, ‘‘वह तो यहां नहीं है.’’

‘‘मुझ से इज्जत कराना चाहते हो तो सचसच बताओ, वह कहां गई है और किस तरह गई है?’’

‘‘बस जी…’’ उस के कहने के अंदाज से लग रहा था कि वह सब कुछ बताना नहीं चाह रहा था. उस ने कहा, ‘‘एक रात वह सोई थी और सुबह को देखा तो गायब थी. उस की अटैची भी नहीं थी. कुछ जेवर, कीमती सामान, अच्छे कपडे़ और 2 जोड़ी सैंडिल ले गई.’’

‘‘क्या आप जाहिल आदमी हैं, थाने में रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई?’’

‘‘नहीं…बिलकुल साफ मामला था. अटैची, कपड़े, जेवर, जूते ले जाने का अर्थ था कि वह अपनी मरजी से गई थी. अगर कोई जबरदस्ती ले जाता तो यह सब कुछ न ले जाती. रिपोर्ट अपनी इज्जत के लिए नहीं लिखवाई.’’

‘‘कहीं तलाश किया था? उस की ससुराल जा कर पता करते.’’ मैं ने कहा.

‘‘ससुराल से क्यों पूछते, उन से तो उस की बोलचाल भी बंद थी.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘आप की बेटी रातों को किस से मिलती थी,’’ मैं ने पूछा, ‘‘आप को पता तो होगा?’’

‘‘नहीं सर, ऐसा नहीं है. यह उसे बदनाम करने के लिए उस की सास द्वारा उड़ाई हुई बात है. इस से वह यह साबित करना चाहती है कि उस का चालचलन खराब था इसलिए उस के बेटे ने उसे घर से निकाल दिया.’’

उस से मैं ने बहुत बातें पूछीं लेकिन कोई काम की बात पता नहीं लगी. मैं ने लड़की की मां को बुला कर पूछा कि लड़की कहां है तो उस ने भी वही जवाब दिया जो उस के पिता ने दिया था.

पोस्टमार्टम के बाद लाश घर आ गई. मरने का कारण सांस का रुकना लिखा था. सांस रस्सी से रोकी गई थी. मरने का समय रात के 10, साढ़े 10 बजे का लिखा था. मैं ने मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. वे अपनी रिपोर्ट ले कर आ रहे थे. कोई कुछ और कोई कुछ बता रहा था, लेकिन एक आदमी ने जो खबर दी, उस से मेरी कुछ हिम्मत बढ़ी.

उस ने बताया कि एक आदमी जो उसी कस्बे में रहता है, मृतक का मित्र था, कस्बे में मनिहार की सब से बड़ी दुकान उसी की थी. वह जवान और सुंदर था. 2 मुखबिरों ने बताया कि उस लड़की को रात के समय उस के घर से निकलते देखा है. उन दोनों मुखबिरों में से एक ने बताया कि एक बार शाम के बाद एक गली में दोनों को खड़े देखा था. जब मैं उधर से गुजरा तो मुझे देख कर वह लड़की तेजी से अपने घर की ओर चली गई.

मैं ने अगले दिन थाने में कई लोगों को बुलवाया, जिन में मृतक की मां और मृतक का वह मित्र भी था. मैं ने उसे अलग बुला कर पूछा कि क्या मृतक की पत्नी तुम से मिलने आती थी?

उस ने कहा, ‘‘जी, मेरे पास आ कर वह क्या करती, मैं तो उसे अपनी बहन मानता था. हां, वह 2-3 बार मेरे पास आई और कहने लगी कि वह अपने पति के घर जाना चाहती है. यह बात आप कादिर को कह दें. आप यकीन करें, मेरी और मृतक की दोस्ती दिल की गहराइयों में उतरी हुई थी. लड़की को जो लोग बदनाम करते हैं, वह सब बकवास है. वह बेचारी तो अपने पति के पास जाने के लिए तड़पती थी.’’

वह इस तरह की बातें करता रहा और अपने मित्र को याद कर के रोता रहा. उस ने बहुत सी बातें कीं लेकिन एक बात का जवाब वह ठीक से नहीं दे सका. मैं ने उस से पूछा था कि लड़की कहां गायब हुई है?

उस ने कहा, ‘‘उस के लापता हो जाने से मैं उसे खराब नहीं कहूंगा. वह इतनी नीच नहीं है कि जिस पति के साथ रहना चाहती थी, उसे धोखा दे. अगर वह जिंदा है तो जरूर वापस आएगी.’’

‘‘क्या बात करते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘वह तो घर से बहुत सामान ले कर गई है. कैसे वापस आएगी?’’

‘‘मुझे उस पर पूरा भरोसा है, वह जरूर आएगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘ये बातें कह कर मुझे शक में डाल रहे हो. साफ कहूं तो मुझे लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रहे हो.’’

‘‘सर, मैं आप को यह बताने वाला था कि कादिर के साले मेरे पास भी आते थे. उन से दोस्ती तो नहीं थी, लेकिन दूर से दुआसलाम थी. फिर अचानक ऐसा न जाने क्या हुआ कि जो भाई भी मिलता, वह कादिर को गालियां देता. वे कहते थे कि हम पूरे खानदान को बरबाद कर देंगे.

‘‘छोटा भाई तो यहां तक कहता था कि कादिर और उस की मां अब 2-3 दिन के मेहमान हैं. मैं हैरान था कि ये लोग अब ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं, जबकि इन की बहन को ससुराल से गए एक साल हो गया है. 2-3 दिन बाद पता लगा कि उन की बहन घर से भाग गई है.’’

‘‘सुना है, कादिर के छोटे साले का गुंडों से याराना है और वह अपने आप को बहुत बड़ा बदमाश समझता है.’’

‘‘आप ने ठीक सुना है, वह बहुत छिछोरा लड़का है.’’

इस आदमी से मुझे बहुत काम की बातें पता चलीं. मैं ने उसे जाने दिया.

मुझे बताया गया कि कादिर की पत्नी की 2 सहेलियां और उन के पिता आए हैं. मैं ने उन्हें बुलाया और उन के पिताओं से कहा कि आप निश्चिंत रहें, ये मेरी बहनों के बराबर हैं. मैं केवल इन से कादिर की पत्नी के बारे में पूछूंगा.

मैं ने एक लड़की को बुलाया और उस से कुछ सवाल किए. फिर दूसरी को बुला कर कुछ सवाल पूछे. दोनों ने एक ही बात बताई. उन्होंने बताया कि वह लड़की बहुत हिम्मत वाली और चरित्रवान थी और अपने पति के अलावा किसी और का नाम नहीं लेती थी.

उन लड़कियों को भेजने के बाद मैं ने कादिर के बड़े साले को बुलाया. मैं ने उस से कहा, ‘‘अपना इकबाली बयान दे दो और मुझ से फायदा हासिल कर लो. मैं तुम्हें बरी भी करवा सकता हूं. मेरी तुम्हारी कोई दुश्मनी नहीं और जो मारा गया वह मेरा रिश्तेदार नहीं लगता था.’’

उस ने घबरा कर कहा, ‘‘हम ने कोई हत्या नहीं की है. अगर हमें हत्या करनी होती तो उसी दिन कर देते, जिस दिन उस ने हमारी बहन को ले जाने से मना कर दिया था.’’

दूसरे नंबर के भाई ने भी यही बयान दिया. तीसरे नंबर का भाई मेरे कमरे में ऐसे झूमता हुआ आया, जैसे कोई माना हुआ गुंडा हो. मैं ने उसे कुरसी पर बिठा कर कहा, ‘‘तुम्हें देख कर मैं बहुत खुश हुआ. सुना है, तुम्हारी इस शहर में बहुत इज्जत है और दबदबा भी. लोग तुम से डरते हैं.’’

उस ने झूम कर कहा, ‘‘किसी की हिम्मत नहीं जो मेरे सामने बोल सके.’’

मैं ने उस के अंदर इतनी हवा भरी कि वह गुब्बारे की तरह फूलता चला गया. उस का नाम आबिद था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘एक बात बताओ, तुम्हारी बहन कहां चली गई?’’

उस ने कहा, ‘‘अगर उस का पता लग जाता तो क्या वह आदमी और मेरी बहन जिंदा रहते?’’

‘‘तुम्हारी यह बात सुन कर मुझे बहुत खुशी हुई,’’ मैं ने उस से इस तरह बात की जैसे मैं थानेदार नहीं उस का दोस्त हूं. मैं ने आगे कहा, ‘‘तुम्हारे जैसे भाई अपनी इज्जत के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते. पर एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि तुम्हारे जीजा को किस ने मारा?’’

‘‘यह तो मैं भी नहीं बता सकता. वैसे एक बात है, ऐसे आदमी का अंत ऐसा ही होना चाहिए था. किसी की बहनबेटी का घर उजाड़ देना ठीक नहीं है. पुलिस और कानून के पास इस की भले ही कोई सजा न हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि ऐसे आदमी का कुछ न किया जा सके.’’

‘‘तुम ने उस की मां को क्यों माफ कर दिया, उसे भी उड़ा देना चाहिए था. असली कुसूरवार तो वही है.’’ मैं ने कहा.

‘‘अब उसी की बारी है,’’ उस ने ऐसे कहा जैसे नशे में हो.

‘‘बरी कराना मेरा काम है,’’ मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर दोस्तों की तरह कहा.

वह अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘वादा रहा.’’

‘‘तुम वास्तव में शेर हो, अब देखना कादिर की हत्या से मैं तुम्हें कैसे बरी कराता हूं. एक दिन की भी सजा नहीं होने दूंगा. मैं भी 2 बहनों का भाई हूं. तुम ने मेरा दिल खुश कर दिया.’’

फिर मैं ने उस की ओर झुक कर उस के कान में कहा, ‘‘वैसे तुम अकेले थे या…’’

‘‘नहीं,’’ उस के मुंह से एकदम निकल गया, ‘‘मैं अकेला नहीं था.’’

यह कह कर वह एकदम चौंक पड़ा, जैसे नींद से जाग गया हो. वह घबरा गया. उस ने दाएंबाएं देख कर मेरी ओर देखा. उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया था. फिर आहिस्ता आहिस्ता उस के मुंह से आवाजें निकलने लगीं, ‘‘मैं ने उस की हत्या नहीं की…नहीं जी…आप यकीन करें, खुदा कसम मैं ने किसी की हत्या नहीं की.’’

मैं चुपचाप उस के मुंह की ओर देख रहा था. उस के मुंह से ऐसे शब्द निकल रहे थे, जिस का कोई अर्थ नहीं था.

थानेदार के सामने अपराध स्वीकार करने की कोई वैल्यू नहीं होती. क्योंकि बाद में लोग मजिस्ट्रैट के सामने अपने बयान से पलट जाते हैं. केस के लिए सबूत और गवाहों की जरूरत होती है.

‘‘तुम बोलबोल कर थक गए हो,’’ मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इकबाली बयान दे दो. मैं तुम्हें साफ बचा लूंगा.’’

‘‘मैं ने कहा न,’’ बड़ी मुश्किल से उस के मुंह से शब्द निकले, ‘‘आप मेरे ऊपर विश्वास करें, मैं ने कोई हत्या नहीं की.’’

‘‘तुम ने नहीं की तो तुम्हारे किसी दोस्त ने की होगी. तुम ने तो केवल उस के हाथ पकड़े होगे, गले में रस्सी तो तुम्हारे दोस्त ने डाली होगी. तुम उस का नाम बता दो, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बना दूंगा और तुम छूट जाओगे.’’

वह अपने आप को निर्दोष बताने में लगा रहा. मैं ने उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने अपराध स्वीकार नहीं किया तो फिर मैं बहुत बुरा सलूक करूंगा.

मैं ने एक कांस्टेबल को बुला कर कहा कि इसे हवालात में बंद कर दे. वह हवालात में जाने को तैयार नहीं था. मेरे कमरे में कूदकूद कर अपने आप को छुड़ा रहा था. कांस्टेबल उसे घसीट कर हवालात में ले गया.

थाने में जितने लोग थे, मैं ने उन्हें जाने के लिए कह दिया. मैं ने एक कांस्टेबल और एएसआई को यह पता करने के लिए लगा दिया कि आबिद के कौनकौन दोस्त हैं. मैं ने उन से कहा कि मैं घर जा रहा हूं और रात को 11 बजे आ कर आबिद से पूछताछ करूंगा.

मैं घर चला गया. अभी बैठा ही था कि एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि वह लड़की अपने घर आ गई है और सीधी मृतक के घर गई है. वहां जा कर उस ने रोना पीटना शुरू कर दिया है. उस ने जाते ही अपनी सास को गालियां देनी शुरू कर दीं. औरतों ने उसे पकड़ लिया.

मैं ने कांस्टेबल से कहा कि तुम लड़की के बाप के पास जाओ और उसे कहो कि लड़की को तुरंत थाने में पेश करे. मैं खाना खा कर थाने पहुंच कर उस लड़की की प्रतीक्षा करने लगा.

कुछ देर बाद लड़की मेरे कमरे में लाई गई. उस ने अपने मुंह पर हाथ मारमार कर चेहरा लाल कर लिया था. बालों को नोचा था, इसलिए बाल बिखरे हुए थे. आंखें लाल हो रही थीं, मैं ने उस के बाप और भाई को बाहर भेज दिया. मैं ने उसे कुरसी पर बिठा कर पानी पिलाया और उस के पति के मरने का अफसोस जताया. मैं ने उसे हर तरह से सांत्वना दी.

‘‘न थाने से डरो न मुझ से.’’ मैं ने कहा, ‘‘समझो, तुम मेरी छोटी बहन हो. मैं तुम से केवल यह पता करना चाहता हूं कि तुम्हारे पति की हत्या किस ने की है.’’

‘‘उस की मां ने…’’ उस ने मेरी ओर देखते हुए कहा.

यह पहली बात थी, जो उस के मुंह से निकली थी. वह चुपचाप बैठी फटीफटी आंखों से मुझे देख रही थी.

वह थोड़ा पानी पी कर बोली, ‘‘उस चुड़ैल ने अपने ही बेटे को खा लिया है.’’

मैं ने उसे बोलने दिया ताकि उस के दिल का बोझ हलका हो जाए.

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं तो कहती हूं, मेरे पति की मेरे बाप और मेरे भाइयों ने भी हत्या की है. मैं उन से कहती थी कि जिस तरह से कादिर का बड़ा भाई अपने घर से अलग हो कर उसी हवेली में रह रहा है, उसी तरह कादिर को भी मैं अलग कर लूंगी. लेकिन मेरा बाप और भाई कहते थे कि कादिर पर यकीन मत करो, वह अपनी मां जैसा है. वह एक कहता है तो तुम 10 सुनाओ. आप नहीं जानते कादिर को. वह मुझ से कितना प्यार करता था.’’ इतना कह कर वह इतना रोई कि मुझे भी हिला दिया.

कुछ देर बाद जब उस ने रोना बंद किया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह बताओ, तुम चली कहां गई थी?’’

‘‘अपने पति के पास गई थी.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’

इस के बाद उस ने जो बयान दिया, वह अपने शब्दों में सुनाता हूं.

उस लड़की का नाम खदीजा था. उस के मांबाप ने उसे घर बिठा लिया था. कादिर खदीजा को तलाक नहीं देना चाहता था और न ही वह तलाक लेना चाहती थी. कादिर की मां उसे तंग करने के लिए तलाक नहीं दिलवाना चाहती थी. लेकिन कादिर और उस की पत्नी खदीजा की सोच कुछ और थी. वे एकदूसरे से अलग हो कर तड़प रहे थे.

कुछ महीने बाद कादिर ने अपने दोस्त जलील से बात की. जलील ने अपनी पत्नी की मदद से दोनों को मिलवाने का प्रबंध कर दिया. जलील की पत्नी ने खदीजा से जा कर कहा कि कादिर उस से मिलना चाहता है. वह उस के घर आ गई. उस ने एक कमरे में दोनों को मिलवा दिया.

कादिर जिस शहर में काम करता था, वह उन के कस्बे से 20-22 किलोमीटर दूर था. रविवार की छुट्टी हुआ करती थी. कादिर हर शनिवार की शाम को घर आ जाता था और वहां से जलील के घर चला जाता, जहां खदीजा से उस की मुलाकात हो जाती थी.

जलील की पत्नी ने खदीजा से गहरी दोस्ती कर ली थी. खदीजा के मातापिता जलील की पत्नी पर विश्वास करते थे. वह हर शनिवार को आ कर उन से कह कर खदीजा को ले जाया करती थी.

जलील और उस की पत्नी ने खदीजा के मिलने का प्रबंध तो कर दिया था, लेकिन इस में खतरा यह था कि कभी न कभी यह राज खुल सकता था. इसलिए वह उन्हें एक सप्ताह छोड़ कर मिलवाती थी.

एक दिन कादिर ने यह फैसला किया कि खदीजा अपना घर छोड़ कर हमेशा के लिए आ जाए और कादिर उसे अपने साथ शहर ले जा कर रख ले. वे दोनों फिर कभी इधर नहीं आएंगे. और अगर उन के मातापिता को पता लग गया तो वह इस शर्त पर वापस आएंगे कि आपसी झगड़े खत्म करो और हमें चैन से रहने दो.

एक रात कादिर शहर से आया. उस के घर वालों को पता नहीं था. खदीजा ने दिन के समय अपने वे कपड़े और जेवर जो उस ने अपने साथ ले जाने थे, चोरीचोरी एक अटैची में डाल लिए. रात को जब सब सोए हुए थे, वह चुपके से घर से निकल गई.

कादिर और जलील खेत में खड़े थे. वे दोनों जलील के घर गए और सुबहसुबह कादिर और उस की पत्नी शहर जाने वाली बस में सवार हो कर शहर चले गए. वहां कादिर ने एक मकान किराए पर लिया हुआ था. वहां दोनों चैन से रहने लगे.

कादिर ने किसी वजह से दफ्तर से 4-5 दिन की छुट्टी ले ली थी. उस के घर का कोई काम था. वह खदीजा को शहर में अकेला छोड़ आया था और उस ने अपने 2 मित्रों से घर की देखभाल के लिए कह दिया था. खदीजा ने मुझे बताया कि कादिर ने तय किया था कि वह एक महीने बाद अपने मातापिता को बता देगा कि खदीजा उस के पास है और वह कभी वापस नहीं आएगा.

‘‘क्या तुम कादिर की हत्या की बात सुन कर आई हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां जी,’’ उस ने कहा, ‘‘जलील भाईजान ने अपने एक आदमी को यह कह कर कादिर के दफ्तर भेजा था कि वह कादिर के दोस्त को कह दे कि उस की हत्या हो गई है. उस दोस्त ने घर आ कर मुझे बताया और उसी ने मुझे बस में बिठाया था. अगर किसी को शक है कि मैं झूठ बोल रही हूं तो आप किसी को मेरे साथ भेज दें, मैं उसे वह मकान दिखाऊंगी जिस में हम दोनों रहते थे. कादिर के और मेरे कपड़े व जेवर अभी भी उस मकान में पड़े हैं. चलिए, मैं चल कर दिखाती हूं.’’

यह लड़की जिसे मैं कुछ और समझ रहा था, मेरी नजरों में बहुत ऊंचे कैरेक्टर की हो गई. मैं ने एक कांस्टेबल को जलील को लाने के लिए भेज दिया.

मैं ने खदीजा से पूछा, ‘‘तुम्हारा शक किस पर है? ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे भाइयों को तुम्हारे जाने का पता लग गया हो और उन्होंने इस में अपनी बेइज्जती समझी हो.’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह हो तो सकता है लेकिन इस के लिए पहले वे मेरे पास आते और पूरी बात पता करते, मुझ से घर चलने के लिए कहते.’’

मैं ने उसे यह नहीं बताया कि उस का छोटा भाई हवालात में बंद है. मैं ने खदीजा से और कुछ नहीं पूछा और उस के बाप को बुला कर खदीजा को उस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से कह दिया कि यह अपने पति के घर गई थी, लोगों से कह दो कि इसे बदनाम न करें.

जलील मेरे पास आया और मैं ने उस से पूछा कि तुम ने खदीजा के बारे में क्यों नहीं बताया? क्या तुम नहीं जानते कि तफ्तीश के दौरान कोई भी बात पुलिस से नहीं छिपानी चाहिए?

उस ने कहा, ‘‘मैं जानता था या नहीं, मैं ने यह बात छिपाई. आप जो भी चाहें मेरे खिलाफ कानूनी काररवाई कर सकते हैं. मैं ने अपना फर्ज पूरा किया है, आप अपना फर्ज पूरा करें.’’

मुझे उम्मीद थी कि वह डर जाएगा, लेकिन वह तो बहुत निडर निकला. मैं ने उस से पूछा कि उस ने कौन सा फर्ज पूरा किया है.

वह बोला, ‘‘दोस्ती का फर्ज पूरा किया है. मुझे कादिर ने कुछ भी बताने से मना कर दिया था. खदीजा ने भी मना कर रखा था. खदीजा मेरी बहन लगती है, उस से किया हुआ वादा मैं नहीं तोड़ सकता था. मैं ने आप की नजरों में अपराध किया है, आप जो चाहे, मुझे सजा दे सकते हैं.’’

वैसे उस ने कोई अपराध नहीं किया था, क्योंकि खदीजा के गुम होने की मेरे पास कोई रिपोर्ट नहीं आई थी. इसलिए अगर उस ने कोई बात छिपाई तो वह कानून की नजरों में अपराध नहीं थी. मैं तो उस से खदीजा के बयान की पुष्टि चाहता था.

जलील ने कहा, ‘‘मैं आप को एक बात बताता हूं. जिस समय कादिर की हत्या हुई थी, उस से आधे घंटे पहले एक आदमी ने खदीजा के भाई को एक आदमी के साथ खेत की मेंड़ पर बैठे देखा था. उन दोनों की उस आदमी के साथ दुआसलाम भी हुई थी. कादिर उस रास्ते से मेरे घर आया करता था. गलियों से आने में रास्ता लंबा पड़ता है. आप चाहें तो उस आदमी को बुला सकते हैं.

‘‘जो आदमी आबिद के साथ बैठा था, मैं उसे जानता हूं. वह एक बार का सजायाफ्ता सलीम था. उस ने किसी को चाकू मारा था. वह तो बच गया लेकिन चाकू मारने वाले को दफा 307 में 3 साल की सजा हुई थी.’’

मैं ने एक कांस्टेबल को सलीम को बुलाने के लिए भेजा.

मैं ने आबिद को हवालात से निकलवा कर अपने कमरे में बुलाया. उसे बिठा कर मैं ने कहा, ‘‘हां भई आबिद, कुछ सोचा? अपराध स्वीकार कर लो, फायदे में रहोगे.’’

उस ने मना कर दिया और छोड़ने के लिए मिन्नतें करने लगा.

मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छा यह तो बताओ, सलीम के साथ खेत में बैठे तुम क्या बातें कर रहे थे?’’

उस ने कहा, ‘‘कब?’’

‘‘अपने जीजा की हत्या करने से आधे घंटा पहले.’’

‘‘यूं ही बातें कर रहे थे.’’

‘‘इतनी ठंडी रात में तुम्हें बात करने के लिए वही जगह मिली थी. लोग घरों में दरवाजे खिड़की बंद कर के लिहाफ में लेटे हुए थे. तुम दोनों को गरमी लग रही थी. सलीम से क्या बातें हुई थीं, सोच लो अगर झूठ बोलोगे तो मैं सलीम से पूछ लूंगा. फिर तुम्हारा झूठ खुल जाएगा.’’

‘‘सच्ची बात है जी, मैं अपनी बहन और जीजा के बारे में बात कर रहा था. उस ने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी थी. सलीम मेरे जीजा और उस की मां को गालियां दे रहा था.’’

‘‘फिर कादिर आ गया और तुम्हारी बातें रुक गईं.’’

‘‘कादिर नहीं आया था जी,’’ उस ने कहा.

मैं ने उस के मुंह पर जोरदार थप्पड़ मारा. वह रोने लगा. मैं उस से पूछता रहा, वह झूठ बोलता रहा. मैं हर झूठ पर उसे थप्पड़ मार रहा था. मैं ने उस से कहा कि पिटाई के और भी बहुत से तरीके हैं मेरे पास. अगर वह पिटाई से मर भी गया तो उस की लाश गायब कर दी जाएगी.

एक कांस्टेबल ने आ कर बताया, ‘‘सलीम आ गया है.’’

मैं ने उसे अंदर बुलाया और आबिद से पूछा, ‘‘यही था न उस वक्त तुम्हारे साथ?’’

उस ने हां कर दी.

मैं उसे कमरे में छोड़ कर सलीम को हवालत के एक खाली कमरे में ले गया और उस से पूछा, ‘‘तेरे यार ने सब कुछ बक दिया है. तू तो गुरु आदमी है, तूने यह क्या गलती की, इतने कच्चे आदमी के साथ जा कर उस का काम तमाम कर दिया.’’

पलभर रुक कर मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं. अगर तुम ने सच नहीं बोला तो थाने में तुम्हारा पूरा रिकौर्ड मौजूद है. मैं उसे अदालत में पेश कर दूंगा और तुम सीधे फांसी चढ़ जाओगे.’’

उस ने कहा, ‘‘मुझे सरकारी गवाह बना लो.’’

‘‘अरे तुम बयान तो दो, यह मेरे ऊपर छोड़ दो. देखो मैं क्या करता हूं.’’

मैं ने उस से कई तरह की बातें कर के उस का बयान ले लिया. उसे संक्षेप में सुनाता हूं.

आबिद और सलीम की दोस्ती थी. सलीम पक्का बदमाश था और आबिद तो बदमाशी में मुंह मारता ही था. उसे घर से पैसे मिल जाया करते थे. वह घर में पैसों की चोरी भी कर लिया करता था. सलीम और दूसरे दोस्तों ने आबिद को जुए का चस्का भी लगा दिया था.

आबिद की बहन ससुराल से आ कर घर बैठ गई थी. उस की सास उस के साथ जो सलूक करती थी, वह घर आ कर सुनाती थी. सुन कर आबिद को गुस्सा आता था. उस ने सलीम से कहा कि वह बदला लेना चाहता है. सलीम उसे रोकता था. कुछ दिन बाद आबिद की बहन घर से गायब हो गई. घर वालों ने इस बात को छिपा कर रखा. लेकिन धीरेधीरे सब को पता लग गया.

आबिद अपने आप को बहुत बड़ा बदमाश समझता था. उसे यह वहम था कि सारा कस्बा उस से डरता है. एक दिन उस की किसी से लड़ाई हो गई तो उस ने उसे ताना दिया, ‘‘जा पहले अपनी बहन को तो ढूंढ, जो तुम्हारे मुंह पर थूक कर अपने यार के साथ चली गई.’’

आबिद को अपनी बहन के बजाय कादिर पर गुस्सा आया. अगर उस की बहन को कादिर अपने घर रहने देता तो वह घर से क्यों भागती. उसे इस बात पर भी गुस्सा था कि कादिर उस की बहन को तलाक नहीं दे रहा था.

उन्हीं दिनों सलीम को कुछ पैसे की जरूरत पड़ गई. आबिद ने उस के आगे अपने घर का रोना रोया और कादिर की हत्या करने का इरादा जाहिर किया. उस ने सलीम से कहा कि वह उस की मदद करे. सलीम को पैसों की जरूरत थी. उस ने कहा कि अगर उसे एक हजार रुपए मिल जाएं तो उस की जरूरत पूरी हो सकती है.

आबिद ने उस से कहा, ‘‘मैं तुम्हें अभी तो एक हजार नहीं दे सकता. 2-3 दिन में 5 सौ रुपए दे सकता हूं. बाकी बाद में दे दूंगा. तुम कादिर की हत्या करने में मेरी मदद करो. यह रकम तुम से वापस भी नहीं लूंगा.’’

उस जमाने के एक हजार आज के 50 हजार के बराबर होते थे. सलीम तुरंत तैयार हो गया. वे दोनों कादिर की हत्या करने की योजना बनाने लगे. वे चाहते थे कि काम भी हो जाए और उन का नाम भी न आए.

दोनों इस काम के लिए शहर गए, जिस से कि कादिर की हत्या वहां की जा सके. सलीम ने यह काम अपने ऊपर ले लिया कि वह शहर जा कर कादिर से उस का पता ले लेगा और फिर आसानी से उस की हत्या उस के घर में ही कर दी जाएगी.

संयोग से कादिर छुट्टी ले कर घर आया और उसे आबिद ने देख लिया. आबिद ने देखा कि कादिर जलील के घर खेतों से हो कर जाता है. हत्या की रात आबिद ने कादिर को जलील के घर जाते देख लिया, उस ने सलीम को बताया और उसे 3 सौ रुपए भी दे दिए. सलीम अपने घर से रस्सी ले आया और दोनों कादिर के रास्ते में घात लगा कर बैठ गए.

कादिर वापस आया तो दोनों धीरेधीरे उस के पीछे चलने लगे, जिस से कि कादिर को शक न हो और वह उन्हें पहचान न सके.

कादिर ने अंधेरे के कारण उन्हें नहीं पहचाना. वह अभी कुछ ही दूर गया होगा कि आबिद ने उसे पीछे से जकड़ लिया और सलीम ने पीछे से उस के गले में रस्सी डाल कर एक गांठ लगा दी. आबिद ने कादिर को छोड़ कर रस्सी का एक सिरा पकड़ लिया. दूसरा सिरा सलीम ने पकड़ा और दोनों ने रस्सी को अपनीअपनी ओर खींचा. कादिर गिरा तो दोनों उसे खींच कर खेतों के अंदर ले गए. सलीम ने उस के दिल और कलाई पर हाथ रख कर देखा, वह मर चुका था.

मैं ने यह बयान आबिद को बताया और उसे चकमा दिया कि मौके का कोई गवाह नहीं है, इसलिए वह बच जाएगा. उस ने भी अपना बयान दे दिया. मैं ने दोनों के बयान जुडीशियल मैजिस्ट्रैट के सामने करा कर दोनों को जुडीशियल लौकअप में भेज दिया.

मैं ने मुकदमा बहुत मेहनत से तैयार किया. कोई भी खाना खाली नहीं छोड़ा. दोनों अभियुक्तों को मृत्युदंड मिला. सैशन में अपील की गई तो वह भी निरस्त हो गई. रहम की अपील भी. दोनों को फांसी दे दी गई.

— इंसपेक्टर रियाज अहमद

सुहागरात का थप्पड़ : शादी के 25 दिन बाद ही मारा गया मनीष

सुहागरात जिंदगी की ऐसी रात है कि शादी के पहले जहां युवा इस के खयालों में खोए रहते हैं, वहीं शादी के बाद इस की यादों में. यही वजह है कि हर दंपति इसे यादगार  बनाना चाहता है. प्रथम परिचय, पहले अभिसार और दांपत्य की बुनियाद सुहागरात, नीरस और उबाऊ लोगों को भी गुदगुदा जाती है. फिर मनीष तो 22 साल का नौजवान था. वह इस रात का तब से इंतजार कर रहा था, जिस दिन उस की शादी तय हुई थी.

शाम से ही उस के जीजा और भाभियां सुहागरात का कमरा सजाते हुए उस से हंसीमजाक भी कर रहे थे. घर में सब से छोटा होने की वजह से उसे तमाम नसीहतें भी मिल रही थीं, जिस से उसे चिढ़ सी हो रही थी. एक तो वह शादी के उबाऊ रीतिरिवाजों से वैसे ही तंग था, दूसरे पंडित की वजह से 2 दिन गुजर जाने के बाद भी वह पत्नी पूजा के पास नहीं जा सका था. सिर्फ उस के पायलों की छनछनाहट और चूडि़यों की खनखनाहट ही उस तक पहुंच सकी थी.

उतरती मई की भीषण गर्मी से बेखबर मनीष बेचैनी से रात होने का इंतजार कर रहा था. जनवरी में उस की और पूजा की सगाई हुई थी. तभी से उस का चेहरा उस की आंखों के सामने नाच रहा था. अब जब मिलन की घड़ी नजदीक आई तो ये जीजा और भाभियां बेवजह समय बरबाद कर रहे थे.

जैसेतैसे वह घड़ी आ ही गई. भाभियों ने उसे बुला कर सुहागकक्ष में धकेल दिया. कमरे के अंदर जाते ही मनीष ने पहला काम लाइट बुझाने का किया तो बाहर से भाभियों के हंसने के साथ आवाज आई, ‘‘लाला, अंधेरे में दुलहन का चेहरा कैसे दिखेगा?’’

कहीं ऐसा न हो कि भाभियां दरवाजे से कान सटाए मजे लेने की सोच रही हों, इसलिए मनीष कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा. जब उसे लगा कि बाहर कोई नहीं है तो वह उस पलंग की ओर बढ़ा, जिस पर दुलहन पूजा सिमटी गठरी सी बनी बैठी थी.

पूजा का क्या हाल है, यह उसे पता नहीं था. लेकिन उस का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. किसी तरह उसे काबू में कर के वह पलंग पर जा कर बैठ गया और पूजा की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा.

पूजा उसी तरह सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही. लड़कियां कितनी भी पढ़ीलिखी और आधुनिक क्यों न हो जाएं, वे इस रात को शरमाती ही हैं. यह मनीष को पता था, इसलिए उस ने पहल करते हुए पूजा की ओर हाथ बढ़ाया तो वह इस तरह चौंक कर पीछे हट गई, मानो करंट लगा हो. मनीष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

जवाब में पूजा कुछ नहीं बोली तो मनीष ने अगला सवाल किया, ‘‘कोई परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं.’’ पूजा ने धीमे से संक्षिप्त सा जवाब दिया.

मनीष की जान में जान आई कि चलो जवाब तो मिला. उस ने पूछा, ‘‘तो फिर क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं इस सब के लिए अभी तैयार नहीं हूं.’’ पूजा ने कहा.

पूजा की बात का मतलब समझ कर मनीष ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं कहां तुम्हें खाए जा रहा हूं. वैसे भी यह रात बातों के लिए बनी है. वह तो जिंदगी भर होता रहेगा.’’

इतना कह कर मनीष ने पूजा का हाथ पकड़ा तो उस ने उस का हाथ झटक दिया. पत्नी की इस हरकत से उस का माथा ठनका. उस ने थोड़ा गुस्से से पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है?’’

‘‘आप मुझे छू भी नहीं सकते.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस यूं ही.’’

‘‘कोई तो बात होगी. मेरी तुम से शादी हुई है, इसलिए तुम्हें छूने का मेरा हक बनता है. अगर कोई बात है तो बताओ?’’ मनीष ने व्यग्रता से कहा.

जवाब में पूजा कुछ नहीं बोली तो मनीष झल्ला उठा. पूजा की बेरुखी से उस के सुहागरात के सारे अरमान झुलस गए थे. वह यह सोच सोच कर हलकान होने लगा कि पूजा उसे छूने क्यों नहीं दे रही है. यह बात उस की मर्दानगी और वजूद को ललकार रही थी. इसलिए उस ने एक बार फिर थोड़ा गुस्से से पूजा का हाथ पकड़ने की कोशिश की तो इस बार पूजा ने भी थोड़ा गुस्से से उस का हाथ और जोर से झटक दिया.

चटाक की आवाज के साथ एक जोरदार तमाचा पूजा के गाल पर पड़ा. जहां चुंबन जड़ा जाना चाहिए था, वहां तमाचा जड़ दिया गया था. थप्पड़ की वह आवाज कूलर के शोर में दब गई थी. लेकिन इस से इस बात का खुलासा हो गया था कि पूजा पति को शरीर सौंपने की कौन कहे, छूने तक नहीं देना चाहती.

निराश मनीष पलंग पर दूसरी ओर मुंह कर के लेट गया. उस के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए थे. लेकिन मन के किसी कोने में अभी भी एक आस थी कि पूजा शायद हंसते हुए कहेगी कि ‘क्या हुआ यार? मैं तो मजाक कर रही थी. जबकि तुम सीरियस हो गए.’

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उस का दिल टूट चुका था, पर दिमाग दुरुस्त था. उस समय उस की समझ और धैर्य दाद देने लायक थी. वह एकदम से किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहता था. लेकिन दाल में कुछ काला है, यह वह जरूर समझ गया था. कुछ ही देर में वह बेचैन और बेबस नए पति की जगह एक गंभीर युवक बन गया था.

मनीष के पिता सीताराम मीणा का अपने सीहोर रोड स्थित गांव भैंसाखेड़ा में ही नहीं, पूरे मीणा समाज में खासा रसूख था. उन की गिनती इलाके के संपन्न किसानों में होती थी. इस के अलावा उन की अच्छीखासी चलती दूध की डेयरी भी थी. डेयरी की जिम्मेदारी मनीष ही संभालता था. उस के चाचा परशुराम मीणा का नाम कौन नहीं जानता. वह राज्य के गृहमंत्री बाबूलाल गौर के बहैसियत विधायक ग्रामीण प्रतिनिधि हैं और भाजपा से पार्षद भी रह चुके हैं.

4 भाईबहनों में सबसे छोटे मनीष ने पढ़ाई लिखाई में कोई कसर नहीं रखी. लेकिन कमउम्र में ही उसे खेतीकिसानी, खास कर डेयरी में रुचि जाग उठी थी, इसलिए नौकरी के बारे में उस ने सोचा ही नहीं.

मीणाओं में लड़के लड़कियों की शादी कमउम्र में ही कर दी जाती थी. लेकिन अब समय थोड़ा बदल गया है. मनीष जब खेती किसानी में रम गया और उम्र भी शादी लायक हो गई तो उस के पिता ने उस की शादी अपने दोस्त की बेटी पूजा से तय कर दी.

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ससुराल के बारे में मनीष सिर्फ इतना जानता था कि वे लोग भी उसी की तरह संपन्न किसान हैं. इस के अलावा उस के ससुर एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे. उस ने रिश्तेदारों से यह भी सुन रखा था कि उस की होने वाली पत्नी बहुत खूबसूरत है.

जनवरी में पूजा से उस की सगाई हुई और 29 मई को शादी. 30 मई को मनीष पूजा को दुलहन बना कर अपने घर ले आया.

पूजा के बारे में ही सोचते सोचते मनीष की आंख लग गई थी. आंख खुली तो उसे लगा शायद सुबह होने वाली है. उस ने पलट कर पूजा की ओर देखा. वह अब भी जाग रही थी.

सुहागरात को पत्नी को थप्पड़ का तोहफा दे कर मनीष बिलकुल खुश नहीं था. लेकिन उस ने बरताव ही ऐसा किया कि वह खुद को रोक नहीं पाया. उसे उठता देख पूजा भी उठ बैठी. बाहर जाते हुए उस ने पूजा से कहा, ‘‘आज तुम्हारी विदाई है. लेकिन अब जब भी आना, खुल कर बात करना, वरना मेरे घर वालों को तुम्हारे घर वालों से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘ठीक है.’’ पूजा ने कहा, ‘‘लेकिन इस के लिए मुझे थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे आने तक मैं खामोश रहूंगा.’’ कह कर मनीष चला गया.

पूजा विदा हो कर मायके आ गई. पत्नी के व्यवहार से मनीष गुमसुम और उदास रहने लगा था, जिसे घर वालों ने पूजा की याद समझा. कोई भी उस के दिल की व्यथा नहीं समझ सका. बात भी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकता था. 2-4 दिनों बाद घर वालों की बातचीत से पता चला कि 25 जून को वे पूजा को विदा कराने जाएंगे. पूजा की विदाई के बारे में जान कर उस का दिल धड़का जरूर, लेकिन पत्नी के आने की जो खुशी किसी के मन में होती है, वह कहीं भी नही ंथी.

घर वाले 25 जून को पूजा को विदा करा ले आए. उस दिन रिवाज के अनुसार घर में पूजापाठ का आयोजन था. उस आयोजन में काफी लोगों को बुलाया गया था. इसलिए घर में काफी चहलपहल थी.

उस दिन मनीष सुबह ही अपनी भैंसों को ले कर जंगल की ओर चला गया था. क्योंकि घर में पूजा होने की वजह से दोपहर को उसे जल्दी वापस आना था.

दोपहर बाद होने वाली पूजा में उस की मौजूदगी जरूरी थी. वह भैंसों को ले कर कुछ ही दूर गया था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. स्क्रीन पर उभरा नंबर पूजा के फुफेरे भाई संदीप का था, इस से उसे लगा कि पूजा ने ही कोई संदेश भिजवाया होगा. उस ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से संदीप ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप बैरागढ़ आ जाइए, कुछ जरूरी बात करनी है.’’

मनीष ने यह भी नहीं पूछा कि क्या बात करनी है. उस ने अपनी भैंसें चचेरे भाई के हवाले कीं और खुद बैरागढ़ की ओर चल पड़ा. वह कुछ ही दूर गया था कि रास्ते में बीनापुर निवासी वीरेंद्र अपनी एसयूवी कार लिए मिल गया.

वीरेंद्र को वह जानता था. वह संदीप का दोस्त भी था और  रिश्तेदार भी. पूजा के यहां भी उस की रिश्तेदारी थी. वीरेंद्र ने कहा कि संदीप यहीं आ रहा है तो वह वहीं रुक गया. इस के बाद वीरेंद्र ने उसे अपनी कार में रखी माजा की बोतल निकाल कर थमा दी. दूसरी एक बोतल निकाल कर उस ने खुद खोल ली. दोनों माजा पीते हुए बातचीत करने लगे.

दूसरी ओर सुबह का गया मनीष दोपहर तक घर नहीं लौटा तो घर वाले नाराज होने लगे कि कम से कम आज तो उसे जल्दी आ जाना चाहिए था. परेशानी की बात यह थी कि एक तो उस का फोन बंद था, दूसरे वह किसी को कुछ बता कर नहीं गया था.

इंतजार करतेकरते शाम और फिर रात हो गई और मनीष लौट कर नहीं आया तो घर वालों की नाराजगी चिंता में बदल गई. उस की तलाश शुरू हुई. जब उस के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो देर रात उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाना खजूरी सड़क में दर्ज करा दी गई.

पूजा में आए ज्यादातर लोग वापस चले गए थे. सभी की नजरें पूजा पर टिकी थीं कि वह पति के लिए परेशान है. जबकि सही बात यह थी कि सिर्फ वही जानती थी कि इस समय मनीष कहां है और अब वह कभी वापस नहीं आएगा. दोपहर को ही उस के मोबाइल पर मैसेज आ गया था कि काम हो गया है. यानी मनीष की हत्या हो चुकी है.

मनीष के घर वालों ने वह रात आंखों में काटी. सुबह घर वाले उस की तलाश में निकलते, उस के पहले ही थाने से खबर आ गई कि मनीष की लाश बरामद हो गई है. यह खबर मिलते ही घर में कोहराम मच गया. रोनापीटना सुन कर पूरा गांव सीताराम के घर इकट्ठा हो गया.

थाना खजूरी सड़क के थानाप्रभारी एन.एस. रघुवंशी ने गांव वालों की सूचना पर कोल्हूखेड़ी के जंगल से मनीष की लाश बरामद की थी. लाश की शिनाख्त तुरंत हो गई थी. उस की गुमशुदगी दर्ज ही थी, इसलिए तुरंत उन्होंने लाश बरामद होने की जानकारी उस के घर वालों को दे दी थी.

एक कद्दावर भाजपाई नेता के भतीजे की हत्या की सूचना पा कर पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश देख कर ही लगता था कि उस की हत्या गला दबा कर कहीं दूसरी जगह की गई थी. सुबूत मिटाने और पुलिस को चकमा देने के लिए लाश यहां ला कर फेंकी गई थी.

शुरुआती पूछताछ में यह उजागर हो गया था कि मनीष में न कोई ऐब था, न किसी से उस की रंजिश थी. तब किसी ने उस की हत्या क्यों की, पुलिस की यह समझ में नहीं आ रहा था.

लेकिन पुलिस को जब पता चला कि मनीष की अभी जल्दी ही शादी हुई है तो पुलिस का ध्यान तुरंत उस की नवविवाहिता पत्नी पूजा पर गया. पुलिस अधीक्षक अरविंद सक्सेना ने मनीष और पूजा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. इस काल डिटेल्स से पता चला कि शादी के बाद पूजा 25 दिन मायके में रही और इस बीच मनीष से उस की एक भी बार बात नहीं हुई. जबकि एक अन्य नंबर पर पूजा ने इन्हीं 25 दिनों में 470 बार बात की थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर पूजा के बीनापुर निवासी एक रिश्तेदार वीरेंद्र मीणा का था.

इस के बाद मनीष की हत्या का राज खुलने में देर नहीं लगी. पुलिस ने वीरेद्र को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर वीरेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने तुरंत मनीष की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया, ‘‘मांजा की बोतल में मैं ने नींद की गोलियां घोल कर मनीष को पिला दी थीं. जब वह बेहोश होने लगा तो मैं ने अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. उस के बाद संदीप की मदद से उस की लाश को ले जा कर कोल्हूखेड़ी के जंगल के रास्ते पर फेंक दिया था.’’

वीरेंद्र मीणा ने पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनीष की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

वीरेंद्र और पूजा एकदूसरे को प्यार करते थे. यह सिलसिला तकरीबन 4 सालों से चला आ रहा था. भोपाल के करौंद में समाज के एक धार्मिक समारोह में दोनों की मुलाकात हुई तो उसी पहली मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

इन के प्यार की मध्यस्था कर रहा था पूजा का फुफेरा भाई संदीप. वही दोनों के मिलनेजुलने की व्यवस्था करता था. वीरेंद्र और संदीप आपस में रिश्तेदार थे. संदीप पूजा का भाई था, इसलिए उस पर कोई शक नहीं करता था कि वह बहन को ले जा कर उस के प्रेमी वीरेंद्र को सौंपता होगा.

वीरेंद्र होनहार भी था और स्मार्ट भी. वह आईएएस की तैयारी कर रहा था. इस के लिए उस ने दिल्ली जा कर कोचिंग भी की थी. स्नातक भी उस ने जालंधर विश्वविद्यालय से किया था. बड़े शहरों में रहने की वजह से वह रहता भी ठाठ से था. खानदानी रईस था ही.

पूजा और वीरेंद्र का प्यार परवान चढ़ा तो शादी की भी बात चली. लेकिन पूजा के पिता ने इस शादी के लिए साफ मना कर दिया. क्योंकि वीरेंद्र उन का दूर का रिश्तेदार था. इस के बावजूद पूजा और वीरेद्र ने हिम्मत नहीं हारी. उन्हें उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल, घर वाले जरूर मान जाएंगे.

लेकिन जब पूजा के पिता ने उस की शादी अपने दोस्त के बेटे मनीष से तय कर दी तो उन की उम्मीद पर पानी फिर गया. पूजा शादी के लिए मना नहीं कर पाई, लेकिन उस ने वीरेंद्र को भरोसा दिलाया कि वह जब तक जिंदा रहेगी, तनमन से उसी की रहेगी. चाहे वह पति ही क्यों न हो, कोई उसे छू नहीं पाएगा.

ऐसा हुआ भी. पूजा ने सचमुच मनीष को हाथ नहीं लगाने दिया था. सुहागरात को थप्पड़ वाली बात उस ने वीरेंद्र को बताई तो उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय कसम खाई कि मनीष दोबारा पूजा को हाथ लगाए, उस के पहले ही वह उस की हत्या कर देगा.

वीरेंद्र, पूजा और संदीप, तीनों ही हमउम्र थे. वीरेंद्र संपन्न परिवार का था और उस के पास एक्सयूवी कार भी थी. उस का बहुत बड़ा मकान था और फिल्मी हीरो जैसे लटकेझटके भी. इसलिए पूजा को मनीष रास नहीं आया था. उसे वह डेयरी वाला नहीं, बल्कि भैंसों के तबेले वाला नौकर लगता था.

तीनों का सोचना था कि मनीष की हत्या के बाद पूजा विधवा हो जाएगी. उस के कुछ दिनों बाद वीरेंद्र उस से शादी कर लेगा. क्योंकि मीणा समाज में आज भी विधवा से जल्दी कोई शादी नहीं करता. पूजा के सपने बड़े थे, इसीलिए उस के इरादे खतरनाक हो गए थे. मनीष के हाथों थप्पड़ खा कर वह नागिन सी फुफकार उठी थी.

वीरेंद्र के बयान के आधार पर पुलिस ने पूजा और संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ में उन दोनों ने अपनाअपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पूजा का तो कहना था कि वह भले ही जेल में रहेगी, लेकिन अपने प्रेमी के साथ एक छत के नीचे तो रहेगी. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

वीरेंद्र और पूजा के प्यार और साजिश की बलि चढ़ा बेचारा मनीष, जिस का गुनाह सिर्फ यह था कि वह दुनियादारी से ज्यादा वाकिफ नहीं था. वह शादी के पहले ही पत्नी को प्यार करने लगा था.

दरअसल, मीणा समाज में लड़कियों को जो आजादी मिली है, वह फैशनेबल कपड़े पहनने और कौस्मेटिक सामान खरीदने तक ही सीमित है. वे निजी फैसले नहीं ले सकतीं. अगर पूजा अपने पिता के फैसले का डट कर विरोध करती तो शायद खुद भी गुनाह से बच जाती और वीरेंद्र को भी बचा लेती. उस की बेवकूफी 3 परिवारों को ले डूबी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

19 साल बाद खुला हत्या का राज

छठी क्लास में पढ़ने वाले महादेवन का स्कूल घर से कई किलोमीटर दूर था. वह पैदल ही स्कूल आताजाता था, जबकि उस के साथ पढ़ने वले कई छात्र साइकिल से आतेजाते थे. उस का मन करता था कि उस के पास भी साइकिल हो. उस ने अपने पिता विश्वनाथन आचारी से कई बार साइकिल दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन वह अभी उसे साइकिल दिलाना नहीं चाहते थे.

इस की वजह यह थी कि महादेवन की उम्र अभी केवल 13 साल थी. 3 बेटियों के बीच वह उन का अकेला बेटा था, इसलिए वह कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते थे. वह चाहते थे कि 2-3 साल में बेटा जब थोड़ा बड़ा और समझदार हो जाएगा तो उसे साइकिल खरीदवा देंगे.

मगर महादेवन को पिता की बात अच्छी नहीं लगी. उस ने साइकिल खरीदवाने की जिद पकड़ ली. वैसे विश्वनाथन आचारी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन की केरल के चंगनाशेरी के निकट मडुमूला में उदया स्टोर्स के नाम से एक दुकान थी. दुकान से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी और परिवार भी उन का कोई ज्यादा बड़ा नहीं था. परिवार में पत्नी विजयलक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा महादेवन था.

चूंकि वह एकलौता बेटा था, इसलिए घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. सभी का लाडला होने की वजह से उस की हर मांग पूरी की जाती थी. विश्वनाथन ने उस के जन्मदिन पर एक तोला सोने की चेन गिफ्ट की थी, जिसे वह हर समय पहने रहता था. वह उसे साइकिल खरीदवाने के पक्ष में तो थे, लेकिन अभी उस की उम्र कम होने की वजह से फिलहाल मना कर रहे थे.

लेकिन बेटे की जिद और मायूसी के आगे विश्वनाथन को झुकना पड़ा. आखिर उन्होंने बेटे को एक साइकिल खरीदवा दी. साइकिल पा कर महादेवन की खुशी का ठिकाना न रहा. यह बात सन 1995 की है. इस के बाद महादेवन दोस्तों के साथ साइकिल चलाने लगा. जब वह अच्छी तरह से साइकिल चलाना सीख गया तो उसी से स्कूल आनेजाने लगा.

महादेवन 2 सितंबर, 1995 को भी घर से साइकिल ले कर निकला था, लेकिन तब से आज तक वह वापस नहीं लौटा. दरअसल स्कूल से लौटने के कुछ समय बाद महादेवन साइकिल ले कर निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे में घर लौट आता था.

उस दिन वह कई घंटे बाद भी घर नहीं लौटा तो मां विजयलक्ष्मी को चिंता हुई. उन्होंने उसे उन जगहों पर जा कर देखा, जहां वह साइकिल चलाता था. महादेवन नहीं मिला तो विजयलक्ष्मी ने दुकान पर बैठे पति के पास बेटे के गायब होने की खबर भिजवा दी.

बेटे के घर न लौटने की बात सुन कर विश्वनाथन आचारी दुकान से सीधे घर चले आए. उन्होंने बेटे को इधरउधर ढूंढना शुरू किया और उस के यारदोस्तों से पूछा, परंतु उन्हें बेटे के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

एकलौते बेटे का कोई पता न चलने से मां का रोरो कर बुरा हाल था. चारों तरफ से हताश होने के बाद विश्वनाथन पत्नी के साथ थाना चंगनाशेरी पहुंचे और थानाप्रभारी को बेटे के गुम होने की बात बताई. लेकिन थानाप्रभारी ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने बस उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थाने में बच्चे के गुम होने की सूचना दर्ज कराने के बाद भी आचारी अपने स्तर से बेटे को ढूंढते रहे. काफी खोजने के बाद भी उन के हाथ निराशा ही लगी. बच्चे के गायब होने के 4-5 दिनों बाद आचारी के घर पर एक चिट्ठी आई. चिट्ठी पढ़ कर वह सन्न रह गए. उस चिट्ठी में लिखा था, ‘‘तुम्हारा बेटा महादेवन हमारे कब्जे में है. अगर तुम्हें वह जिंदा चाहिए तो मोटी रकम का इंतजाम कर लो.’’

पैसे पहुंचाने के लिए चिट्ठी में एक पता लिखा था. आचारी बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने तय कर लिया कि अपहर्त्ता उन से चाहे जितने पैसे ले लें, लेकिन उन्हें बेटा सही सलामत मिले. मामला कहीं उलटा न हो जाए, इसलिए उन्होंने चिट्ठी वाली बात पुलिस को नहीं बताई.

पैसे इकट्ठे करने के बाद वह अकेले ही चिट्ठी में दिए पते पर नियत समय पर पहुंच गए. जिस कलर के कपड़े पहने हुए व्यक्ति को पैसे सौंपने की बात पत्र में लिखी थी, उस कलर के कपड़े पहने वहां कोई भी नहीं दिखा. आचारी ने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा. फिर भी उन्हें उस रंग के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं दिखा. उन्होंने वहां कुछ देर इंतजार किया. इस के बाद भी उस कलर के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं आया तो वह निराश हो कर घर लौट आए.

फिर आचारी ने अगले दिन अपहर्त्ताओं द्वारा भेजी गई चिट्ठी के बारे में पुलिस को बता दिया. पत्र से पुलिस को भी यकीन हो गया कि महादेवन का किसी ने पैसों के लिए अपहरण किया है. पत्र द्वारा पुलिस ने अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली.

इधरउधर हाथ मारने के बाद पुलिस को कामयाबी नहीं मिली तो उस ने इस संवेदनशील मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. आचारी थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की बातें पर तवज्जो नहीं दी.

13 वर्षीय महादेवन को घर से गए हुए महीने, साल बीत गए. बेटे की याद में रोतेरोते विजयलक्ष्मी की आंखों के आंसू सूख चुके थे तो पुलिस अधिकारियों के पास चक्कर लगाते लगाते आचारी के जूते घिस चुके थे. इस के बाद भी आचारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह बेटे को खोजने का दबाव पुलिस पर बनाए रहे.

आचारी को जब लगा कि पुलिस बेटे को ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही तो उन्होंने उच्च न्यायालय की शरण ली. हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए. हाईकोर्ट के आदेश पर क्राइम ब्रांच के एडीजीपी विल्सन एम. पौल ने पुलिस अधीक्षक के.जी. साइमन के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई. इस टीम में एसआई के. एफ. जोब, ए.बी. पोन्नयम, नंगराज आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने महादेवन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की तफ्तीश शुरू की. चूंकि उस को गायब हुए कई साल बीत चुके थे, इसलिए काफी मशक्कत के बाद भी क्राइम ब्रांच को ऐसा कोई सूत्र नहीं मिल सका, जिस से पता चल सकता कि महादेवन कहां गया था?

अपने एकलौते बेटे के गम में विश्वनाथन आचारी की हालत ऐसी हो गई थी कि सन 2006 में उन्होंने दम तोड़ दिया. 54 साल की उम्र में पति के गुजर जाने के बाद विजयलक्ष्मी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बेटे के गम में वह पहले से ही काफी कमजोर हो गई थी. बाद में उस की भी तबीयत खराब रहने लगी और सन 2009 में उस ने भी दम तोड़ दिया.

महादेवन को गायब हुए 14 साल हो चुके थे. उस की चिंता में मांबाप चल बसे थे और जो 3 बहनें थीं, वे भी भाई के गम में अकसर रोती रहती थीं. उधर क्राइम ब्रांच के लिए यह केस एक चुनौती के रूप में था. क्राइम ब्रांच ने एक बार फिर केस की जांच महादेवन के घर से ही शुरू की.

इस बार क्राइम ब्रांच की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि आचारी की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. फिर यह पता लगाया कि महादेवन जब साइकिल ले कर घर से निकला था तो उस के साथ कौन था.

इस बारे में टीम ने उस के दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से भी बात की. इस पर मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि उस दिन महादेवन को हरि कुमार की साइकिल की दुकान पर देखा गया था. इस बात की पुष्टि महादेवन की दुकान पर काम करने वाले एक युवक ने भी की.

इस से क्राइम ब्रांच के शक की सुई हरि कुमार की तरफ घूम गई. हरि कुमार की मडुमूला जंक्शन के पास साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. क्राइम ब्रांच टीम ने पूछताछ के लिए हरि कुमार को बुलवा लिया. लेकिन उस ने टीम को यही बताया कि महादेवन अपनी साइकिल ठीक कराने अकसर उस की दुकान पर आता रहता था. उस दिन भी उस की साइकिल खराब हो गई थी. साइकिल ठीक करा कर वह उस के यहां से चला गया था.

पुलिस टीम को लग रहा था कि हरि कुमार सही बात नहीं बता रहा था. लिहाजा उस दिन उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. इसी बीच टीम ने हरि कुमार की लिखावट का नमूना ले लिया था. आचारी के पास फिरौती का जो लैटर आया था, वह पुलिस फाइल में लगा हुआ था. क्राइम ब्रांच ने उस पत्र की राइटिंग और हरि कुमार की राइटिंग को जांच के लिए फोरैंसिक लैबोरेटरी भेजा.

फोरैंसिक जांच में दोनों राइटिंग एक ही व्यक्ति की पाई गईं. इस से स्पष्ट हो गया कि आचारी के पास फिरौती का जो पत्र आया था, वह हरि कुमार ने ही भेजा था. इस का मतलब हरि कुमार ने ही महादेवन का अपहरण किया था. हरि कुमार के खिलाफ पक्का सुबूत मिलने पर क्राइम ब्रांच ने उसे पूछताछ के लिए फिर उठा लिया.

चूंकि टीम को अब पुख्ता सुबूत मिल चुका था, इसलिए टीम ने इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि उस ने महादेवन की हत्या कर दी थी. 19 साल पहले उस ने एक नहीं, बल्कि 2-2 हत्याएं की थीं. 2-2 हत्याएं करने का राज उस ने उगल दिया था. दूसरा कत्ल उस ने अपने एक नजदीकी दोस्त का किया था. उस दोस्त की गुमशुदगी भी आज तक रहस्यमय बनी हुई थी.

महादेवन की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली थी.

विश्वनाथन ने बेटे की जिद के आगे झुक कर उसे साइकिल दिला तो दी थी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि यही साइकिल हमेशा के लिए बेटे को उन से दूर कर देगी.

महादेवन की मुराद पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह फूला नहीं समा रहा था. स्कूल भी वह साइकिल से ही आनेजाने लगा. इस के अलावा स्कूल से लौटने के बाद वह यार दोस्तों के साथ साइकिल चलाता था. मडुमूला जंक्शन के पास हरि कुमार की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. जब कभी महादेवन की साइकिल खराब होती, वह हरि कुमार की दुकान पर जा कर ठीक कराता था.

महादेवन एक खातेपीते परिवार से था. वह हर समय गले में सोने की चेन पहने रहता था. जबकि हरि कुमार आर्थिक परेशानी झेल रहा था. साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से उसे कोई खास आमदनी नहीं होती थी. 13 साल के महादेवन के गले में सोने की चेन देख कर हरि कुमार के मन में लालच आ गया. उस पर अपना विश्वास जमाने के लिए हरि कुमार उस से बड़े प्यार से बात करनी शुरू कर दी.

2 सितंबर, 1995 को स्कूल से घर लौटने के बाद महादेवन ने खाना खाया और साइकिल ले कर घर से निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे बाद लौट आता था. उस दिन घर से निकलने के बाद महादेवन की साइकिल खराब हो गई. वह साइकिल ठीक कराने हरि कुमार की दुकान पर गया. चूंकि उस समय दुकान पर कई ग्राहक पहले से बैठे थे, इसलिए हरि कुमार ने साइकिल अपने यहां खड़ी कर ली और उस से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

कुछ देर बाद महादेवन साइकिल लेने पहुंचा तो उस समय हरि कुमार दुकान पर अकेला था. महादेवन से सोने की चेन छीनने का अच्छा मौका देख कर हरि कुमार ने उसे दुकान में बुला लिया. जैसे ही महादेवन दुकान में घुसा, हरि कुमार ने उस के गले से चेन निकालने की कोशिश की. महादेवन ने इस का विरोध किया और चीखने लगा. तभी हरि कुमार ने दुकान बंद कर दी और उस का गला दबाने लगा.

गले पर दबाव बढ़ा तो महादेवन का दम घुटने लगा. कुछ ही पलों में दम घुटने से उस बच्चे की मौत हो गई. उस की हत्या करने के बाद हरि ने उस के गले से एक तोला वजन की सोने की चेन निकाल ली.

उस का मकसद पूरा हो चुका था. अब उस के सामने समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने अपने दोस्त कोनारी सली और साले प्रमोद को दुकान पर ही बुला लिया.

महादेवन की हत्या की बात उस ने उन्हें बता दी. तीनों ने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. योजना के बाद उन्होंने लाश को एक बोरे में भरा और आटो में रख कर उसे कोट्टायम के निकट एक तालाब में डाल आए. लाश ठिकाने लगा कर हरि कुमार निश्चिंत हो गया. लेकिन यह उस की भूल थी.

उस के दोस्त कोनारी सली ने ही उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. पुलिस को हत्या की बात बताने की धमकी दे कर वह उस से पैसे ऐंठने लगा. हरि कुमार उस का मुंह बंद करने के लिए उस की डिमांड पूरी करता रहा.

उसी दौरान हरि कुमार ने सवा लाख रुपए में अपनी जमीन बेची. कोनारी सली को जब यह बात पता लगी तो उस ने हरि कुमार से 50 हजार रुपए की मांग की. अब हरि कुमार उसे कोई पैसा नहीं देना चाहता था. वह जानता था कि अगर उसे पैसे देने को साफ मना कर देगा तो कोलारी पुलिस के सामने हत्या का राज खोल सकता है. इस बारे में हरि ने अपने साले प्रमोद से बात की और दोनों ने कोनारी सली से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का प्लान बना लिया.

योजना के अनुसार, हरि ने वाशपल्लि में त्यौहार के दिन शाम 7 बजे कोनारी सली को शराब पीने के लिए अपनी दुकान में बुला लिया. लालच में कोनारी सली वहां पहुंच गया. दुकान में ही तीनों ने शराब पीनी शुरू की. उसी दौरान उन्होंने कोनारी सली के पैग में साइनाइड मिला दिया. जहर मिली शराब पीने से कुछ ही देर मे कोनारी सली की मौत हो गई.

दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर एक आटो से कोट्टायम मरयपल्लि के पास ले गए. यहां पास में ही कोनारी सली का घर था. वहीं पास में स्थित एक पानी भरे गहरे तालाब में वह बोरी डाल दी. इसी तालाब में इन्होंने महादेवन की भी लाश डाली थी. इस तालाब को लोग प्रयोग नहीं करते थे.

उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने काम में जुट गए. कोनारी सली की हत्या महादेवन की हत्या के करीब डेढ़ साल बाद की गई थी.

उधर जब कोनारी सली कई दिनों बाद भी घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई. काफी छानबीन के बाद भी जब वह घर नहीं आया तो घर वालों ने यही सोचा कि वह बिना बताए घर छोड़ कर कहीं भाग गया है. इस के कुछ दिनों बाद हरि कुमार के साले प्रमोद की भी बाथरूम में फिसल जाने के बाद मौत हो गई. उस की मौत भी एक रहस्य बन कर रह गई.

जुर्म के दोनों राजदारों की मौत के बाद हरि कुमार बेखौफ हो गया. अब उसे किसी का कोई डर नहीं रहा.

इस पूछताछ के बाद जब लोगों को पता चला कि हरि कुमार ने न केवल महादेवन की, बल्कि अपने दोस्त कोनारी सली की भी हत्या की थी, सैकड़ों की संख्या में लोग थाने पर जमा हो गए. वे हरि कुमार को सौंप देने की मांग कर रहे थे, ताकि वे अपने हाथों से उसे सजा दे सकें. लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया.

महादेवन को खोजते खोजते उस के मांबाप गुजर चुके थे. अब उस की 3 बहनें सिंघु, स्वप्ना और स्मिता ही बची थीं. भाई की हत्या का राज खुलने के बाद वे भी थाने गईं. उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया कि उन के घर को तबाह करने वाले हत्यारे हरि कुमार के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए.

पुलिस हत्यारे हरि कुमार को उस जगह भी ले गई थी, जहां उस ने दोनों लाशें ठिकाने लगाई थीं. चूंकि हत्याएं किए हुए 18-19 साल बीत चुके थे, जिस से वहां से लाशों से संबंधित कोई चीज नहीं मिली.

अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, अगर पुलिस कोशिश करे तो अपराधी तक पहुंच ही जाती है. सुबूत खत्म करने के बाद हरि कुमार भले ही पुलिस से 19 साल तक बचता रहा, लेकिन पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. लाख कोशिश करने के बाद भी हत्यारा पुलिस से बच नहीं सका.

क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

-आर. जयदेवान/  डा. अनुराधा पी. के.

फांसी के फंदे पर लटके नोट

सलोनी से करीब 6 किलोमीटर दूर आलबरस गांव है जो दुर्ग जिले में आता है. इस गांव में हर साल 23 दिसंबर को मड़ई मेला लगता है. यह मेला आसपास के जिलों में बहुत प्रसिद्ध है.

मेले में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. रुद्र नारायण को उस के दूर के जीजा पंचराम देशमुख ने मेला देखने को बुलाया तो वह अपने पिता की साइकिल उठा कर आलबरस चौक पर पहुंच गया, जहां पंचराम उस का इंतजार कर रहा था.

रुद्र को देखते ही पंचराम चहका, ‘‘तुम तो बड़े होशियार निकले, बिल्कुल समय पर आ गए.’’

साइकिल खड़ी कर रुद्र नारायण पंचराम की ओर उन्मुख हुआ, ‘‘जीजा, बचपन में मैं एक बार मेला देखने आया था. कितने साल गुजर गए, फिर दोबारा नहीं आ पाया. आज आप के कहने पर आया हूं.’’

पंचराम ने उस से पूछा, ‘‘किसी को बताया है कि सीधे चले आए हो.’’

‘‘नहीं जीजा,’’ किसी को नहीं बताया. बताता तो, पिताजी अकेले आने देते क्या? देखो न कितनी दूर से साइकिल चला कर आया हूं.’’ रुद्र के स्वर में गर्व था.

यह सुन कर पंचराम ने मन ही मन खुश होते कहा, ‘‘शाबाश, तुम ने बहुत अच्छा किया, जो घर पर किसी को नहीं बताया. तुम कोई चिंता मत करना मैं हूं ना, मैं तुम्हें मड़ाई मेला घुमाऊंगा, खिलाऊंगा…और पिलाऊंगा भी?

‘‘क्या मतलब जीजा.’’ रुद्र ने पूछा.

‘‘रुद्र, अब तुम कोई बच्चे नहीं रहे…अच्छा बताओ, तुम ने कभी शराब पी है कि नहीं.’’

‘‘एक बार पी थी दोस्तों के साथ. उस के बाद फिर कभी नहीं पी.’’ रुद्र नारायाण ने आंखें नीची कर के झिझकते हुए कहा.

‘‘तो इस में शरमाने की क्या बात है, शराब पीना तो मर्दों की निशानी है.’’ पंचराम ने उसे उत्साहित किया, तो रुद्र खिल उठा.

‘‘चलो आज मैं तुम्हें दुनिया का आनंद दिलाता हूं. पहले थोड़ा मजा लेंगे फिर मड़ई घूमेंगे. आज मेरे साथ रहने पर देखना कितना आनंद आता है.’’ पंचराम ने कहा, फिर उसे ले कर वह शराब की दुकान पर गया.

शराब और पास की एक दुकान से खाने के लिए कुछ सामान ले कर दोनों एक खेत के पास बैठ गए. वहां पर दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. पंचराम देशमुख ने रुद्र नारायण को योजनानुसार ज्यादा शराब पिला दी.

न न करते भी, सोचीसमझी साजिश के तहत, रुद्र नारायण को पंचराम शराब पिलाता रहा. अबोध रुद्र नारायण मुंह बोले जीजा की इधरउधर की बातों में डूबा शराब पी कर मदमस्त हो गया. उस पर इतना नशा चढ़ा कि वह आंखें बंद कर वहीं लेट गया.

पंचराम यही चाहता था. शराब के नशे में चूर हो चुके रुद्र को अर्ध चेतना अवस्था में लेटा छोड़ कर वह अपनी साइकिल में बंधी रस्सी खोल लाया और मौके का फायदा उठा कर उस ने रुद्र के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया.

गले में फंदा कसते ही रुद्र ने आंखें खोल कर पंचराम को देखा और मौत के आगोश में समा गया.

रुद्र की हत्या करने के बाद पंचराम ऐसे खुश हुआ जैसे उस की वर्षों की साध पूरी हो गई हो. रुद्र ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का मुंह बोला जीजा, पंचराम देशमुख उस की उस तरह बेदर्दी से हत्या कर देगा.

पंचराम ने रुद्र नारायण के गले में पड़ी रस्सी निकाल कर जोरों से अट्टहास लगाया. उसे लग रहा था कि अब उस की मुराद पूरी हो जाएगी. अब उसे लखपति बनने से कोई नहीं रोक सकता. दरअसल उस के गुरु समान मित्र और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम ने बताया था कि अगर वह फांसी की रस्सी उस के पास ले कर आएगा तो वह देखते ही देखते उसे रुपयोंपैसों से मालामाल कर देगा.

पंचराम देशमुख जिला दुर्ग के आलबरस गांव का रहने वाला था. उस ने होश संभाला तो उस के पास एक ही हुनर था वाल पेंटिंग बनाने का. यही काम कर के वह जीवनयापन करने लगा.

मगर अब पेंटर का काम कम मिलने लगा था, क्योंकि प्रिंटिंग की दुनिया में फ्लेक्स प्रिंटिंग का युग आ चुका था और लोग कम दर पर फ्लेक्स प्रिंट करवा लेते थे. आमदनी कम हाने पर उस के तंगहाली में दिन कटने लगे. परिवार पालना भी मुश्किल हो गया.

पंचराम की ससुराल बलोद जिले के गांव सलोनी में थी. एक बार जब वह अपनी ससुराल गया तो वहीं पर उस की मुलाकात धनराज नेताम से हुई, जो गांव सलोनी में बंदर भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया करने आया था. पंचराम को किसी ने धनराज के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ा तांत्रिक है.

उस ने बताया कि गांव में बंदरों का आतंक है, जाने कहां से इतने सारे बंदर आ गए जिन से गांव वाले परेशान हैं. कई प्रयास किए गए, मगर बंदरों से छुटकारा नहीं मिला. तब तांत्रिक धनराज को विशेष रूप से बुलाया गया है. धनराज से मिलने के बाद पंचराम बहुत खुश हुआ. चूंकि पंचराम को गांव के लोग दामाद जैसा ही सम्मान देते थे. इसलिए तांत्रिक के साथ पंचराम की भी अच्छी खातिरदारी हुई.

जब एक साथ जाम छलके तो पंचराम और तांत्रिक की दोस्ती हो गई. बातोंबातों में धनराज ने उस से कहा, ‘‘मैं ने जो तंत्र क्रिया की है, उस का कमाल देखना. इस के बाद गांव में एक भी बंदर नहीं दिखेगा.’’

यह सुन कर पंचराम आश्चर्य चकित रह गया. उस ने तंत्रमंत्र के बारे में सुना था मगर किसी तांत्रिक से मुलाकात पहली बार हुई थी. धनराज ने आगे कहा, ‘‘मैं किसी को भी लखपति बना सकता हूं.’’

‘‘कैसे?’’ यह सुन कर बरबस पंचराम ने पूछा.

‘‘मुझे बस एक फांसी की रस्सी ला दो… फिर देखो, रुपए बरसेंगे.’’ धनराज नेताम ने शराब का गिलास होंठों पर लगा कर कहा.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है.’’ पंचराम ने बोला, ‘‘फांसी की रस्सी तो मैं ला सकता हूं.’’

‘‘तो लाओ, फिर देखना, कैसे पत्तों की तरह आकाश से नोट बरसाऊंगा.’’

धनराज नेताम की आश्चर्य मिश्रित बातें सुन कर पंचराम देशमुख उस का मुरीद बन गया. दूसरे दिन आश्चर्यजनक घटना हुई कि गांव में धनराज द्वारा की गई तांत्रिक किया के बाद किसी को एक भी बंदर देखने को नहीं मिला. यह चमत्कार नहीं, संयोग था. मगर इस से धनराज के प्रति पंचराम देखमुख की आस्था बढ़ गई.

पंचराम उस का भक्त बन गया और लखपति बनने के लिए फांसी की रस्सी ढूंढने की कोशिश तेज कर दी. एक दिन दुर्ग जिले के अंडा थाने में तैनात एक कांस्टेबल से दूर का संबंध निकाल कर पंचराम उस के पास पहुंच गया और उस से कहा, ‘‘भैया, क्या फांसी की रस्सी मिल सकती है?’’

उस की बात सुनते ही कांस्टेबल ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या करोगे तुम उस का वह भला तुम्हें कैसे मिल सकती है, वह तो जल्लाद के पास मिलेगी. और जल्लाद तुम्हें वो क्यों देगा.’’

यह सारी जानकारी मिलने पर वह निराश हो गया. पंचराम का चेहरा लटक गया तो कांस्टेबल ने पूछा ‘‘अच्छा यह तो बाताओ, फांसी की रस्सी का क्या करोगे?’’

‘‘अब तुम से क्या छिपाना. सुना है कि फांसी की रस्सी मिल जाए तो रुपए बरसते हैं.’’ पंचराम ने बताया.

यह सुन कर कांस्टेबल हंसने लगा और उसे समझाया, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा होता तो सारे जल्लाद करोड़पति होते. ये सब फालतू की बातें हैं.’’

मगर पंचराम के दिमाग से यह बात इतनी आसानी से कैसे निकल सकती थी. वह तो करोड़पति बनने के सपने देख रहा था. इसलिए वह फांसी की रस्सी की ताक में लगा रहा.

जब चारों तरफ निराशा मिली तो एक दिन उस की निगाह रुद्र नारायण पर पड़ी. 15 वर्षीय रुद्र नारायण उस की ससुराल वाले गांव सलोनी में रहता था. वह उसे  जीजा कहता था. पंचराम सोचने लगा कि क्यों न उसे मार कर फांसी की रस्सी तैयार कर ले.

उस ने तांत्रिक धनराज नेताम को इस बारे में बताया तो उस ने स्वीकृति देते हुए कहा, ‘‘चलेगा, बस रस्सी फांसी की हो.’’ इस के बाद पंचराम ने पिलेश्वर देखमुख के घर आनाजाना बढ़ा दिया.

पंचराम गांव वालों की निगाह में दामाद बाबू था, पिलेश्वर देशमुख उस का सम्मान करता और अपने दुखसुख की बातें साझा करता था. इसी का फायदा उठा कर पंचराम ने 23 दिसंबर, 2019 को योजनानुसार रुद्र को मड़ई मेला घुमाने के लिए बुलाया और मौका देख कर उस के गले में रस्सी का फंदा डाल उस की हत्या कर दी.

फिर उसी दिन शाम को वह घटनास्थल पर दोबारा पहुंचा और उस की लाश के ऊपर केरोसिन डाल कर, आग लगा दी.

29 दिसंबर, 2019 शनिवार को दोपहर दुर्ग जिले के थाना अंडा के टीआई राजेश झा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गांव आलबरस के पास एक खेत में लाश पड़ी है.

लाश मिलने की सूचना पा कर राजेश झा चौंके, क्योंकि साल के अंतिम दिन चल रहे थे और क्षेत्र में यह वारदात हो गई थी. खबर मिलते ही वह एक एसआई और 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर मौके की तरफ रवाना हो गए.

साल के अंतिम महीने और अंतिम दिनों में पुलिस विभाग सारे पेंडिंग पड़े प्रकरणों का निवारण करता है, जिस की वजह से काफी व्यस्तता रहती है. व्यस्तता अंडा थाने में भी थी, मगर टीआई काम छोड़ कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने घटना स्थल का सूक्ष्मता से अवलोकन किया.

अधजली लाश के पास शराब की खाली 3 बोतलें, गिलास मिले, नीले रंग की टीशर्ट का एक जला हुआ टुकड़ा, बेल्ट और जूते भी पड़े मिले. लाश किसी बालक की थी. घटनास्थल पर मौजूद कोई भी ग्रामीण उस लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था.

मामला संगीन दिखाई पड़ रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर किसी ने बालक के साथ अनाचार किया होगा और उसे जला कर साक्ष्य छिपाने की कोशिश की है. टीआई ने उच्च अधिकारियों एएसपी (ग्रामीण) लखन पटले व एसएसपी अजय कुमार यादव को घटना की जानकारी दे दी. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर टीआई ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

हत्या का केस दर्ज होते ही टीआई राजेश झा ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने अपने जिले के सभी थानों के अलावा सीमावर्ती जिला बालोद के थानों में भी अज्ञात बालक की लाश मिलने की सूचना भेज कर और जानना चाहा कि उन के क्षेत्र से इस आयु वर्ग का कोई बालक लापता तो नहीं है.

टीआई झा को बालोद जिले के अर्जुंदा थाने से खबर मिली कि 26 दिसंबर, 2019 को एक 15 साल के किशोर रुद्र नारायण देशमुख के लापता होने की सूचना वहां थाने में दर्ज है. पता चला कि रुद्र 23 दिसंबर को अपने गांव सलानी से कहीं गया था. गुमशुदगी की सूचना रुद्र के पिता ने दर्ज कराई थी.

टीआई राजेश झा ने रुद्र के पिता पिलेश्वर व परिजनों को अंडा थाने बुलवाया और घटनास्थल पर मिली बेल्ट, टीशर्ट का टुकड़ा आदि दिखाया. उन चीजों को देखते ही पिलेश्वर देशमुख फफक कर रो पड़ा. वह बोला, ‘‘साहब, यह मेरे बेटे रुद्र की टीशर्ट का ही टुकड़ा है, बेल्ट भी उसी की है. मुझे बच्चे की लाश दिखाई जाए.’’

टीआई ने एक एसआई के साथ पिलेश्वर व परिजनों को हास्पिटल भेजा जहां की मोर्चरी में रुद्र की लाश रखी थी. पिलेश्वर और उस के साथ आए लोगों ने लाश की शिनाख्त रुद्र नारायण देशमुख के रूप में की. इस के बाद लाश का पोस्टमार्टम कराया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि रुद्र की हत्या रस्सी के फंदे से गला घोट कर की गई थी. गले पर रस्सी के रेशे भी पाए गए. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि किसी ने रुद्र की हत्या गला घोट कर की और बाद में जला दी. मगर यह हत्या क्यों की गई? पुलिस के सामने यह एक बड़ा सवाल था.

टीआई राजेश झा ने मृतक के पिता पिलेश्वर जो कि एक किसान है से पूछा कि क्या आप की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं है. या किसी पर कोई शक है, जो रुद्र की हत्या कर सकता है?

इस पर पिलेश्वर ने बताया कि उस की किसी से रंजिश नहीं है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि रुद्र का दूर के जीजा पंचराम देशमुख से बहुत लगाव था. वह उस से काफीकाफी देर तक फोन पर भी बातें करता था. कल पंचराम का हमारे पास फोन आया था, वह पूछ रहा था कि क्या कोई आरोपी पकड़ा गया है? पुलिस इस केस में अब क्या कर रही है?

पिलेश्वर के मुंह से यह सुनते ही टीआई राजेश झा का ध्यान पंचराम की तरफ केंद्रित हो गया. उन्होंने पंचराम के बारे में पिलेश्वर से सारी जानकारी ली और पंचराम को फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

तब पुलिस टीम के साथ वह आलबरस गांव स्थित उस के घर पहुंच गए. लेकिन वह घर से गायब था. उस की पत्नी ने बताया कि वह तो 24 दिसंबर से घर नहीं आए हैं.

अब टीआई राजेश झा को इस मामले में अपराध की बू आती दिखने लगी. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस की लोकेशन धमतरी जिले के किसी गांव की मिली.

उन्होंने आरक्षक वीरनारायण, राजकुमार चंद्रा, डी. राव, अलाउद्दीन और राजकुमार दिवाकर की टीम को पंचराम की गिरफ्तारी के लिए भेजा. यह टीम 6 घंटों का सफर कर के धमतरी जिले के गांव गुटकेल पहुंची. यह टीम फोन के टावर की मदद से तांत्रिक धनराज के घर पहुंच गई. वहां पुलिस टीम को पता चला कि धनराज और पंचराम जंगल में चूहा मारने गए हुए हैं.

पुलिस टीम जाल बिछा कर पंचराम का इंतजार करने लगी. 31 दिसंबर, 2019 को जब पंचराम व धनराज जंगल से 2 बड़े चूहे पकड़ कर घर लौटे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया और हिरासत में ले कर अंडा थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई तो पंचराम ने स्वीकार कर लिया कि रस्सी से गला घोट कर उस ने ही रुद्र की हत्या की थी.

उस ने बताया कि वह लखपति बनना चाहता था, तांत्रिक धनराज ने उसे बताया था कि फांसी की रस्सी, नारियल, सिंदूर ला दे तो एक सप्ताह में वह हवा में पत्तों की तरह नोटों की वर्षा कर सकता है, इसीलिए उस ने रस्सी से गला घोंट कर रुद्र की हत्या की थी.

पुलिस ने आरोपी पंचराम देशमुख और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम के इकबालिया बयान दर्ज कर के उन्हें भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट श्रीमती प्रतीक्षा शर्मा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बीमा रकम के लिए भाई का मर्डर

11 मई, 2024 को सुबह घाघरा जंगल की सड़क पर 24 वर्षीय उत्तम जंघेल का शव क्षतविक्षत स्थिति में पड़ा हुआ था. लोगों ने देखा तो किसी ने यह खबर पुलिस को दे दी. कुछ लोगों ने लाश के फोटो खींच कर वाट्सऐप ग्रुप में डाल दिए.

एसपी (खैरागढ़) त्रिलोक बंसल के निर्देश पर सुश्री प्रतिभा लहरे (प्रशिक्षु एसपी) घटनास्थल पर पहुंच गईं. थाना पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी. मौके पर डौग स्क्वायड को बुलवाया गया. युवक के शव को एकबारगी देखने के बाद प्रशिक्षु एसपी प्रतिभा लहरे ने यह पाया कि मृतक के गले पर निशान हैं, जिस से यह अनुमान लगाया गया कि शायद मृतक का गला दबा कर हत्या की गई है.

एसपी त्रिलोक बंसल को घटना के संदर्भ में जानकारी दी और उन से निर्देश मिलने के बाद मामले पर से परदा उठाने के लिए छुई खदान खैरागढ़ पुलिस मुस्तैदी से लग गई.

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उत्तम जंघेल घर पर ही बैठा था कि उस के मोबाइल पर गोंदिया (महाराष्ट्र) में रहने वाले उस के मामा के बेटे हेमंत ढेकवार की काल आई, ”अरे भाई उत्तम, तुम कहां हो, बुआजी कैसी हैं, सब ठीकठाक है न! सुनो, मैं डोंगरगढ़ पहुंच रहा हूं, बहुत जरूरी काम है, तुम भी आ जाना.’’

”भैया, यहां पर सब ठीकठाक है और मैं तो आज घर पर ही हूं. कहेंगे तो आ जाऊंगा, वैसे क्या खास बात हो गई?’’ उत्तम बोला.

”मिलोगे तो सब बताऊंगा, सच कहूं तो तुम मिलोगे तो खुश हो जाओगे.’’ हेमंत ने कहा.

”फिर भी कुछ तो बताओ भैया, आखिर बात क्या है?’’ उत्तम जंघेल ने हंसते हुए ममेरे भाई हेमंत से कहा.

”अरे भाई, तुम्हारे लिए एक गाड़ी लेनी है, यह एक जो ली है उसे तो मैं चला रहा हूं, सोच रहा हूं कि एक स्कौर्पियो तुम्हारे लिए भी खरीदवा दूं. बस, कुछ ऐसी ही प्लानिंग है. इसलिए तुम शनिवार को सुबह डोंगरगढ़ पहुंच जाना.’’

”ठीक है, मैं राजन से बात करता हूं, हम दोनों कल सुबह जल्दी पहुंच जाएंगे.’’ उत्तम ने कहा.

”अरे भाई, तुम किसी और को मत लाना, अकेले आओ, हर बात हर किसी को नहीं बताई जाती…’’ हेमंत ढेकवार ने कहा, ”हार्वेस्टर और स्कौर्पियो के बारे में भी किसी को नहीं बताना कि ये मैं ने तुम्हारे नाम पर लिए हैं. यह दुनिया बड़ी अजीब है भाई, किसी की तरक्की पसंद नहीं करती.’’

”कोई बात नहीं भैया, मैं अकेला ही सुबह डोंगरगढ़ पहुंच जाऊंगा.’’ उत्तम जंघेल ने हंसते हुए कहा.

हेमंत ढेकवार महाराष्ट्र के गोंदिया जिले का निवासी था और उत्तम जंघेल का रिश्ते में वह ममेरा भाई था. दोनों ममेरे फुफेरे भाई थे. दोनों में उम्र का फासला था, मगर उन में अच्छी बनती थी. वे अपने दुखसुख की बातें एकदूसरे से खुल कर करते थे.

दूसरे दिन शनिवार को हेमंत के कहे अनुसार उत्तम जंघेल ने आननफानन में डोंगरगढ़ जाने की तैयारी कर बाइक से निकल पड़ा.

उत्तम जंघेल पुत्र अमृत लाल उर्फ बल्ला वर्मा निवासी आमापारा, खैरागढ़ का बेटा था. अमृत लाल सरपंच रहे हैं, मां रेखा वर्मा भी उदयपुर क्षेत्र से जिला पंचायत की सदस्य रह चुकी थीं. कांग्रेस पार्टी की राजनीति में होने के कारण शहर की राजनीति में अच्छा खासा दबदबा था. उसे डोंगरगढ़ पहुंचते पहुंचते शाम के 5 बज गए थे.

निर्धारित होटल में जब वह पहुंचा तो ममेरा भाई हेमंत ढेकवार 2 अनजान लोगों के साथ वहां मौजूद था. सामने शराब की बोतल खुली हुई थी. उस ने दोनों से परिचय करवाया, ”इन से मिलो, यह है सुरेश मच्छिरके और प्रेमचंद लिलहारे मेरे खास दोस्त.’’

उत्तम जंघेल ने दोनों से हाथ मिलाया और सामने की कुरसी पर बैठ कर शराब पीने लग गया.

”भाई उत्तम, तुम्हारे नाम पर एक स्कौर्पियो लेनी है, मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है.’’ आगे हेमंत ढेकवार ने मानो रहस्य पर से परदा उठाते हुए कहा, ”चलो, जल्दी चलते हैं और औपचारिकताएं पूरी कर लेंगे.’’

फिर थोड़ा रुक कर हेमंत ढेकवार ने कहा, ”मगर सुनो, यह जो तुम मोबाइल ले कर आए हो, उसे कहीं छोड़ देते हैं.’’

”क्यों भला?’’ उत्तम चौंकते हुए बोला.

”अरे! थोड़ा समझा करो, जिस शोरूम से हम गाड़ी लेंगे, वहां तुम्हारे पास मोबाइल नहीं होना चाहिए, ताकि सारी फौर्मेलिटी मेरे मोबाइल नंबर से हो जाए.’’

”अच्छा यह बात है,’’ उत्तम मुसकरा कर  बोला, ”यहां पास ही पिताजी के दोस्त रहते हैं, उन के पास मोबाइल छोड़ देता हूं.’’

”हां, यह ठीक रहेगा, तुम अकेले चले जाओ और कुछ भी बोल कर मोबाइल छोड़ कर आ जाओ.’’ हेमंत ढेकवार ने कहा.

शराब पी कर चारों वहां से झूमते हुए स्कौर्पियो गाड़ी से रवाना हो गए.

आगे थाने के पास से स्कौर्पियो गतापारा घाघरा मार्ग पर आगे बढ़ गई. जबकि एजेंसी तो राजनांदगांव में थी. उधर गाड़ी मुड़ते ही उत्तम बोला, ”अरे, किधर जा रहे हो?’’

”अरे भाई चलते हैं चिंता मत करो.’’ कह कर हेमंत ने उत्तम के कंधे पर धीरे से हाथ मारा.

जब गाड़ी दूसरी दिशा में आगे बढऩे लगी तो उत्तम जंघेल परेशान हो गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि जब स्कौर्पियो लेनी है तो ये लोग राजनांदगांव के बजाय इधर जंगल में क्यों जा रहे हैं.

थोड़ा आगे जा कर के उन्होंने गाड़ी रोक दी. जैसे ही उत्तम नीचे आया, हेमंत ढेकवार ने तत्काल अपना गमछा उस के गले में डाल दिया और गला दबाने लगा. यह सब अचानक से घटित हो गया और उत्तम एकदम घबरा गया. उस के मुंह से कोई आवाज तक नहीं निकली.

इसी बीच हेमंत के दोनों साथी सुरेश और प्रेमचंद ने उसे जोर से पकड़ लिया. हेमंत उस का गला दबाता चला गया और थोड़ी ही देर में उत्तम जंघेल की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उत्तम को स्कौर्पियो में ही डाल दिया फिर वे घाघरा जंगल की ओर आगे बढ़ गए.

आगे जा कर के सुनसान जगह पर तीनों ने उत्तम के शव को सड़क पर डाल दिया और किसी को यह पता न चले कि इसे गला दबा मारा है, इसलिए उत्तम के शरीर पर स्कौर्पियो 2-3 बार चढ़ा दी, ताकि देखने वाले को ऐसा लगे कि सड़क दुर्घटना से उत्तम जंघेल की मौत हुई है.

लाश की कैसे हुई शिनाख्त

दोपहर होतेहोते यह स्पष्ट हो गया कि घाघरा कुम्हीं रोड पर मिला शव उत्तम जंघेल पुत्र अमृतलाल वर्मा (उम्र 24 साल) का है.

शहर में लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे कि आखिरकार उत्तम जंघेल खैरागढ़ से डोंगरगढ़ कैसे पहुंच गया. यह बात भी चर्चा का विषय बन गई कि यह एक्सीडेंट नहीं हत्या का मामला हो सकता है.

पुलिस ने मृतक के पिता और पूर्व सरपंच अमृत वर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उत्तम एक दिन पहले 10 मई, 2024 की सुबह घर से निकला था. घर से निकलने के बाद कहां गया, उस की जानकारी परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं थी.

वह अपने गांव और घर से लगभग 40 किलोमीटर दूर किस के साथ और क्यों गया होगा, यह सवाल भी खड़ा था. मृतक उत्तम की मौत को ले कर कई सवाल खड़े हो गए थे और स्थानीय मीडिया में कई तरह की बातें प्रकाशित हो रही थीं, जो पुलिस के लिए चिंता का सबब थी.

पुलिस को घटनास्थल के आसपास कोई भी वाहन नहीं मिला था और न ही ऐसी कोई वजह सामने आ रही थी जिस से कि इसे सड़क दुर्घटना या कोई हादसा माना जा सके. इसी के चलते लोगों में चर्चा थी कि मृतक उत्तम जंघेल की लाश यहां कैसे और कहां से आई और उस की मौत कैसे हुई.

पुलिस के सामने चुनौती यह थी कि इस केस को कैसे सौल्व करे.

बहरहाल, पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. शव का पोस्टमार्टम जिला सिविल अस्पताल के वरिष्ठ डा. पी.एस. परिहार ने किया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पुलिस के शक की पुष्टि हो गई और स्पष्ट हो गया किसी ने गला दबा कर उत्तम की हत्या की थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद एसडीपीओ सुश्री प्रतिभा लहरे ने उसी दिन एक पुलिस टीम बना कर जांच शुरू कर दी.

टीम में एसडीओपी सुश्री प्रतिभा लहरे, साइबर सेल प्रभारी अनिल शर्मा,  इंसपेक्टर शक्ति सिंह, एसआई बिलकीस खान, वीरेंद्र चंद्राकर, एएसआई टैलेश सिंह,  हैडकांस्टेबल कमलेश श्रीवास्तव, कांस्टेबल चंद्रविजय सिंह, त्रिभुवन यदु, जयपाल कैवर्त, कमलकांत साहू, सत्यनारायण साहू, अख्तर मिर्जा की टीम बनाई.

सब से पहले उत्तम जंघेल के घर वालों से फिर से पूछताछ कर उन के बयान लिए गए. एकएक कड़ी मिलने से स्पष्ट होता चला गया कि उत्तम जघेल के नाम पर हेमंत ढेकवार ने गोंदिया शहर की एक बैंक से लोन लिया है और उत्तम जंघेल का मोटी धनराशि का जीवन बीमा भी करवा रखा है.

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         आरोपी हेमंत ढेकवार

इस के बाद शक की सूई ममेरे भाई हेमंत की ओर घूमती चली गई. पुलिस ने जाल बिछा कर के हेमंत के बारे में जानकारी निकालनी शुरू कर दी. पता चला कि हेमंत एक अपराधी किस्म का व्यक्ति है.

बैंक और बीमा कंपनी से भी पुलिस ने सारी जानकारी निकाली तो यह स्पष्ट होता चला गया कि 80 लाख रुपए का खेल उत्तम जंघेल के नाम से हेमंत ढेकवार कर चुका है.

अब पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि रुपयों की खातिर ही हेमंत ने अपराध किया है. जांचपड़ताल कर के आखिर 13 मई, 2024 को खैरागढ़ पुलिस टीम ने हेमंत  ढेकवार को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और उस से पूछताछ की.

पहले तो वह रोने लगा जैसे कि उत्तम जंघेल की मौत से उसे काफी दुख हुआ है. वह कुछ भी बताने से आनाकानी करता रहा, मगर कड़ी पूछताछ से पुलिस को सफलता मिलती चली गई.

एसडीपीओ प्रतिभा लहरे ने हेमंत से दोटूक शब्दों में पूछा, ”आखिर तुम ने स्कौर्पियो और हार्वेस्टर उत्तम जंघेल के नाम पर क्यों लिया? अपने नाम पर या अपने किसी स्थानीय रिश्तेदार के नाम पर क्यों नहीं लिया?’’

इस बात का हेमंत गोलमोल जवाब देने लगा. पुलिस ने फिर पूछा, ”स्कौर्पियो और हार्वेस्टर का बीमा करवा कर तुम ने उत्तम की हत्या की योजना क्यों बनाई थी?’’

और जब पुलिस ने यह पूछा कि तुम शनिवार को 10 मई को कहां थे? तो हेमंत ढेकवार की पोल खुलती चली गई. कुछ सीसीटीवी कैमरों में चारों डोंगरगढ़ में दिखाई दिए थे. इस सच्चाई के खुलासे के बाद हेमंत असहाय हो गया और उस ने आखिरकार पुलिस के सामने सारा सच स्वीकार कर लिया. उस ने जो कुछ बताया, वह इस तरह था—

10 मई को सुरेश और प्रेमचंद के साथ डोंगरगढ़ आ कर के तीनों ने उत्तम के साथ शराब पी और उसे जाल में फंसाया. फिर जंगल में ले जा कर गमछे से उस की हत्या कर के सड़क पर डाल उस के ऊपर स्कौर्पियो चढ़ा दी, ताकि देखने वाले यह समझें कि उत्तम जंघेल की दुर्घटना में मौत हुई है.

जांच अधिकारी सुश्री प्रतिभा लहरे और सायबर टीम प्रभारी अनिल शर्मा ने जांच के दौरान सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज चैक किए और तकनीकी साक्ष्य के आधार पर जानकारी हासिल कर ली. पता चला कि मृतक के नाम पर कुछ माह पहले हार्वेस्टर और एक स्कौर्पियो खरीदी और बीमा की राशि हत्या का कारण थी.

आखिरकार, हेमंत ढेकवार टूट गया और बताता चला गया कि उस ने लाखों रुपए के लालच में सुनियोजित योजना के तहत अपनी सगे बुआ के बेटे उत्तम जंघेल के नाम पर एक स्कौर्पियो जनवरी 2024 में एवं एक हार्वेस्टर फरवरी 2024 में खरीद कर दोनों गाडिय़ों का करीब 30 लाख रुपए का फाइनेंस करवा लिया था.

साथ ही उसे यह भी पता लग गया था कि यदि फाइनेंस अवधि में उत्तम जंघेल की सामान्य या किसी दुर्घटना में मौत हो जाती है तो उस के नाम पर लिए गए संपूर्ण ऋण की रकम इंश्योरेंस कंपनी द्वारा भुगतान की जाएगी.

यह जानकारी होने के बाद उस के मन में लालच आ गया था. उस ने इसी लालच में  उत्तम जंघेल का भारतीय जीवन बीमा निगम से 40 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा एवं एक्सिस बैंक आमगांव से 40 लाख का दुर्घटना बीमा करा दिया था, जिस की किस्तों का भुगतान भी हेमंत स्वयं करता था.

हेमंत घर का रहा न घाट का

उक्त रकम के लालच में आ कर 10 मई, 2024 को हेमंत ने योजना के मुताबिक उत्तम को कार दिलाने के नाम पर फोन कर डोगरगढ़ बुलाया और अपने साथी सुरेश मच्छिरके निवासी कंवराबंध एवं प्रेमचंद लिल्हारे निवासी खेड़ेपार दोनों को पैसों का लालच दे कर उत्तम की हत्या की योजना में शामिल कर लिया.

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                    आरोपी सुरेश एवं प्रेमचंद

फिर तीनों योजना के मुताबिक उत्तम के नाम पर ली गई स्कौर्पियो में बैठ कर आए और डोंगरगढ़ में उत्तम को साथ में गाड़ी में बैठा कर होटल में चारों ने शराब पी. फिर तीनों आरोपियों ने मृतक को गाड़ी में बैठा कर खैरागढ़ होते गातापार थाने से आगे ले जा कर सुनसान सड़क किनारे उत्तम की गला घोंट कर हत्या कर दी और महाराष्ट्र लौट गए.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गमछा घाघरा पुल से एवं घटना में प्रयुक्त स्कौर्पियो हेमंत के यहां से बरामद कर ली.

छुई खदान पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर के आरोपी हेमंत ढेकवार (38 साल) और सुरेश कुमार मच्छिरके (55 साल), प्रेमचंद लिलहरे (52 साल) को गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. ­­

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खुद का पाला सांप : मौसी के प्यार में भाई की हत्या

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

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पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबह सुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरते डरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

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उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

रोहित शेखर का पितृ दोष

रोहित शेखर का पितृ दोष – भाग 3

जब उठे परदे

जैसे ही रोहित की संदिग्ध मौत की खबर देश भर में फैली तो फिर चर्चाओं, अफवाहों और अटकलों का बाजार गर्म हो उठा. उस के बारे में तो लोग काफी कुछ जानते थे, लेकिन अपूर्वा के बारे में किसी को भी ज्यादा जानकारी नहीं थी. पुलिस को इतना तो समझ आ गया था कि अगर रोहित की हत्या हुई है, तो इस में किसी नजदीकी का ही हाथ है.

19 अप्रैल की रात जब एम्स के 5 डाक्टरों की टीम ने रोहित की लाश का पोस्टमार्टम कर उस की मौत को संदिग्ध बताया तो पुलिसिया काररवाई में न केवल एकएक कर राज खुलने लगे बल्कि 5 दिन बाद खुद अपूर्वा ने भी स्वीकार किया कि हां उस ने ही रोहित की हत्या की है.

यह बेहद चौंका देने वाली बात थी क्योंकि हत्या में किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया था और मामला रात का था, वह भी बैडरूम का तो किसी चश्मदीद के होने का तो सवाल ही नहीं उठता था. पुलिस की काररवाई और अपूर्वा के बयान से रोहित की हत्या की वजह और कहानी इस तरह सामने आई.

दरअसल फसाद शादी के रिसैप्शन के एक दिन पहले से ही तब शुरू हो गया था, जब रोहित ने स्टेज पर ही अपूर्वा को मामूली बात पर बेइज्जत कर दिया था और दहेज में 11 लाख रुपए भी मांगे थे. इस बाबत मंजुला को इंदौर का अपना एक प्लौट भी बेचना पड़ा था. बेटी की बेइज्जती पर मंजुला भड़क उठी थीं और उन्होंने शादी तोड़ने की बात भी कह डाली थी.

हालात और माहौल बिगड़ते देख उज्ज्वला ने उन्हें यह कह कर मनाया था कि अब अपूर्वा ही एन.डी. तिवारी की राजनैतिक विरासत संभालेगी. वह उसे राजनीति में लाएंगी. इस पर मंजुला शांत हो गई थीं लेकिन मन में शंका तो ज्योतिषी की पूजापाठ के चलते आ ही गई थी.

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अपूर्वा जब शादी कर के ससुराल आई तो बहुत जल्द ही उसे यह अहसास हो गया था कि रोहित कहने को ही रईस है, यहां तो उस के नाम जायदाद के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं है. यहां तक कि डिफेंस कालोनी वाले जिस बंगले में वह रह रही थी, वह भी उज्ज्वला के नाम था. यह जान कर अपने शादी के फैसले पर वह भन्ना उठी थी, लेकिन अब चूंकि कुछ नहीं हो सकता था इसलिए खामोश रही. रोहित का अव्वल दरजे का पियक्कड़ होना भी उस के सपनों को तोड़ रहा था.

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भाभी से थे संबंध

कुछ दिन बाद उसे अहसास हुआ कि रोहित की राजीव की पत्नी कुमकुम यानी अपनी भाभी से कुछ ज्यादा ही अंतरंगता है और वह पूरी बराबरी से रोहित के साथ बैठ कर शराब पीती है. कई बार तो घर के नौकर भी मालिकों के साथ बैठ कर शराब पीते थे. कुमकुम ने उसे भी शराब पीने का औफर किया था, लेकिन वह तैयार नहीं हुई.

रोहित न केवल शराबी और अय्याश था बल्कि हिंसक भी था. शादी के छठे दिन ही वह अपूर्वा को  मसूरी ले गया था. साथ में घर के नौकर भी थे. उसे एक दोस्त के अंतिम संस्कार में शामिल होना था, जिस के बाद दोनों में किसी बात पर विवाद हुआ तो रोहित ने उसे भी मारापीटा था. गुस्से में उस ने खुद के हाथपैर भी घायल कर लिए थे.

शादी के छठे दिन से ही अपूर्वा और रोहित में खटपट शुरू हो गई थी और कुछ दिनों बाद ही दोनों अलगअलग सोने लगे थे. बीते कुछ दिनों से अपूर्वा को यह शक भी हो रहा था कि कुमकुम का बेटा असल में रोहित से ही पैदा हुआ है. यानी इन दोनों के नाजायज संबंध शादी के काफी पहले से हैं और घर में हर किसी को इस की जानकारी है.

शादी के 15 दिन बाद अपूर्वा अपने मायके इंदौर आई थी और मंजुला को सब कुछ बताया था तो उन्होंने फिर पूजापाठ कराया था. तब अपूर्वा शायद तय कर के आई थी कि अब ससुराल नहीं जाएगी क्योंकि वह अपने साथ अपना सारा कीमती सामान भी ले आई थी. लेकिन जब रोहित की बाईपास सर्जरी हुई थी तो वह फिर दिल्ली चली गई थी.

सर्जरी के बाद भी दोनों के रिश्ते नहीं सुधरे उलटे कड़वाहट बढ़ती गई, जिस की सब से बड़ी वजह कुमकुम होती थी. सच जो भी हो, लेकिन दोनों अब रिश्ते को जी नहीं बल्कि ढो रहे थे. अपूर्वा को हर समय यह लगता रहता था कि रोहित जानबूझ कर कुमकुम के लिए उस की अनदेखी करता रहता है. इस बात से वह बेहद चिढ़ी हुई थी और बगैर आग के जलती रहती थी.

15 अप्रैल को जब रोहित दिल्ली लौट रहा था तब अपूर्वा ने उसे वीडियो काल किया था, जिस में उस ने देखा कि रोहित और कुमकुम सट कर बैठे एक रेस्टोरेंट में शराब पी रहे हैं तो उस के तनबदन में आग लग गई. उसे लग रहा था कि वह छली गई है और रोहित ने शादी के नाम पर उसे धोखा दिया है.

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यूं की थी हत्या

रात को जब रोहित सोने चला गया तो कोई डेढ़ बजे वह रोहित के कमरे में गई और डेढ़ घंटे बाद लौटी. यह दृश्य घर में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद था, इसलिए पुलिस को इस निष्कर्ष पर पहुंचते देर नहीं लगी कि रोहित की कातिल अपूर्वा ही है. लिहाजा उसे गिरफ्तार कर रिमांड पर ले लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का वक्त रात डेढ़ बजे के लगभग ही बताया गया था.

इस पर अपूर्वा का कहना यह था कि वह तो रात डेढ़ बजे पति के साथ सहवास करने गई थी और किया था. मुमकिन है इस दौरान उस की मौत हो गई हो जबकि पुलिस का अंदाजा यह था कि अपूर्वा ने रोहित का गला दबाया होगा और यह बात उस ने बाद में स्वीकारी भी.

इस हाइप्रोफाइल हत्याकांड में कई पेंच हैं. उज्ज्वला जो पहले बेटे की मौत को स्वभाविक बता रही थीं, अचानक ही पलटी खा गईं और अपूर्वा को हत्यारी ठहराने लगीं.

बकौल उज्ज्वला अपूर्वा की नजर उन की दौलत पर थी और इसी लालच में उस ने रोहित से शादी की थी. बेटे बहू में तनावपूर्ण संबंध थे और दोनों तलाक तक की बात करने लगे थे.

लेकिन उज्ज्वला के बयान का यह विरोधाभास किसी को नहीं समझ आ रहा था कि उन्होंने 16 अप्रैल को सुबह का नाश्ता रोहित के साथ किया था. जबकि पोस्टमार्टम के मुताबिक उस की हत्या रात डेढ़ बजे के लगभग हो चुकी थी.

उज्ज्वला के अपूर्वा पर हत्या का अरोप लगाने के साथसाथ अपूर्वा के माता पिता मंजुला और पी.के. शुक्ला भी हमलावर हो उठे कि उन की बेटी ससुराल में काफी घुटन में रह रही थी और उज्ज्वला ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर के उसे फंसाया है. मंजुला के मुताबिक उज्ज्वला ने दहेज में मोटी रकम मांगी थी.

इस आरोप प्रत्यारोप से अपूर्वा को राहत मिलेगी, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि लंबी पूछताछ के बाद उस ने आखिर 24 अप्रैल को अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उस ने ही गला दबा कर रोहित की हत्या की थी और हत्या के कुछ देर बाद वह अपने कमरे में लौट आई थी. कमरे में आने के बाद वह वाट्सऐप और फेसबुक पर अपने दोस्तों से चैटिंग भी करती रही थी जो बाद में उस ने डिलीट कर दी थी.

अब यह फैसला अदालत करेगी कि रोहित की हत्या अपूर्वा ने की है या नहीं, लेकिन यह तय है कि रोहित की अय्याशी उसे महंगी पड़ी. एन.डी. तिवारी का जैविक बेटा साबित होने के बाद वह बहक गया था. दिल का मरीज होने के बाद भी वह बेतहाशा शराब पीता था. तरस उस पर इसलिए भी आता है कि वह पिता की अय्याशी के चलते पैदा हुआ और खुद की अय्याशी के चलते मारा गया.

एन.डी. तिवारी ने उसे दिल से बेटा माना था या बदनामी से बचने के लिए दिमाग से काम लिया था, यह बात तो उन्हीं के साथ खत्म हो गई. पर लगता ऐसा है कि कानूनी बाध्यता के चलते उन्होंने अपने नाजायज बेटे को स्वीकार लिया था. वह भी उन के ही नक्शेकदम पर चलते अय्याश ही साबित हुआ. इस तरह मरतेमरते भी रोहित साबित कर गया कि वह एन.डी. तिवारी का ही बेटा था.

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