मोहम्मद सहवान हत्याकांड : बेमेल शादी बनी बरबादी – भाग 1

कानपुर शहर में आवास विकास द्वारा निर्मित एक जगह है केशवपुरम. वहां के नागेश्वर अपार्टमेंट में फ्लैट नंबर 612 कोचिंग से करोड़पति बने मोहम्मद सहवान का था. अन्य दिनों की तरह बीती 30 अप्रैल को भी नौकरानी राधा सहवान के फ्लैट पर पहुंची तो दरवाजा बंद था. लेकिन चाबी लौक में फंसी हुई थी.  इस फ्लैट में सहवान अपनी दूसरी बीवी नमरा खान के साथ रहते थे.

नौकरानी राधा ने पहले तो घंटी बजाई, लेकिन जब जवाब नहीं मिला तो वह दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुई. वहां फर्श पर खून से लथपथ नमरा का शव पड़ा देख कर उस की चीख निकल गई. वह उलटे पैर फ्लैट के बाहर आई और शोर मचाना शुरू कर दिया.

राधा की आवाज सुन कर अन्य फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए. राधा ने उन्हें नमरा की हत्या की सूचना दी तो सभी अवाक रह गए. इसी नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 610 में सहवान का भाई इरफान रहता था. लोगों ने उसे जानकारी दी तो वह भी आ गया.

इरफान ने राधा से कुछ सवालजवाब किए, फिर तत्काल मोबाइल फोन द्वारा थाना कल्याणपुर पुलिस को भाभी नमरा की हत्या की सूचना दे दी. इमरान ने ही मृतका के पिता शहंशाह खान तथा अपने अन्य परिजनों को यह खबर दी. इस के बाद तो कोहराम मच गया.

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सुबह 10 बजे हत्या की सूचना पा कर थाना कल्याणपुर के इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय चौंके. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी, फिर पुलिस टीम के साथ केशवपुरम स्थित नागेश्वर अपार्टमेंट जा पहुंचे.

बहुमंजिला अपार्टमेंट के बाहर भीड़ जुटी थी और लोग कानाफूसी कर रहे थे. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय फ्लैट नंबर 612 पर पहुंचे, जहां महिला की हत्या किए जाने की सूचना मिली थी. फ्लैट के बाहर कुछ लोग बदहवास हालत में खड़े थे.

पुलिस को देख कर एक युवक सामने आ कर बोला, ‘‘सर, मेरा नाम इरफान है. मैं ने ही आप को नमरा भाभी की हत्या की सूचना दी थी.’’

इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने एक नजर इरफान पर डाली, फिर उसे साथ ले कर फ्लैट के अंदर दाखिल हुए. कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. खून में डूबी नमरा की लाश फर्श पर पड़ी थी.

पलंग पर बिछी सफेद चादर पर भी खून लगा था. पलंग पर खून से सना चाकू, चश्मा तथा कान में लगाने वाली हैंड्सफ्री लीड पड़ी थी. शव के पास खून से सना नया कुकर पड़ा था. देखने से लग रहा था कि कुकर से सिर पर प्रहार कर नमरा की हत्या की गई थी. बाथरूम में खून से सनी जींस हुक पर टंगी थी.

कमरे के अंदर नमरा की लाश तो पड़ी थी, लेकिन उस के शौहर मोहम्मद सहवान का कोई अतापता नहीं था. पूछने पर इरफान ने बताया कि भाईसाहब अपनी स्कोडा कार सहित घर से गायब हैं.

वह कहां हैं, किस हालत में हैं, हम में से किसी को कुछ नहीं पता. मैं ने हर संभावित स्थान पर पता किया है, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिल रही है. इरफान की बात सुन कर इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय का माथा ठनका. वह सोचने लगे कि कहीं शौहर ही तो बीवी का कत्ल कर फरार नहीं हो गया.

इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय अभी जांचपड़ताल कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एएसपी (ट्रेनिंग) आदित्य लांग्हे तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार भी घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और पांडेय जी से कत्ल के बारे में जानकारी ली. फोरैंसिक टीम ने भी बड़ी बारीकी से जांच की. टीम ने घर का कोना कोना छान मारा. इस टीम को रसोई में गैस चूल्हे पर भगौने में कौफी मिली जो उबल कर चूल्हे पर गिरी थी. गैस के पास ही एक कप रखा था.

टीम ने उस कप की जांच की तो उस में जहर के अंश मिले. पुलिस टीम ने कुकर, चश्मा, खून सनी जींस, चाकू तथा कप जांच के लिए कब्जे में ले लिए. बाथरूम, वाश बेसिन तथा जींस पर मिले खून के धब्बों का भी परीक्षण किया गया.

जांच में वाश बेसिन में खून सने हाथ धोने की पुष्टि हुई. जींस व बाथरूम में भी खून होने की पुष्टि हुई. इस के अलावा टीम ने अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

 डायरी के पन्नों पर बिखरा दर्द और कत्ल की हकीकत

पुलिस अधिकारियों ने भी पूरे घर की छानबीन की. इस छानबीन में सीओ अजीत कुमार को सहवान की एक डायरी मिली. उन्होंने डायरी के  पन्नों को पलटा तो 2 पेज का एक नोट मिला. इस में सहवान ने अपनी दूसरी शादी से ले कर आए दिन तकरार, बेटे से अलग होने का दर्द और दूसरी पत्नी नमरा की हत्या से ले कर अपनी आत्महत्या की मजबूरी बयां की थी. डायरी के अंश इस तरह थे.

‘बीवी (पहली) से मेरी लड़ाई थी. सितंबर 2016 में नमरा मेरी जिंदगी में आई. मैं ने इसे कई बार टोका, लेकिन नहीं मानी. अपने बच्चों के बारे में भी बताया फिर भी… इस के कहने पर मैं ने समराना को तलाक दे दिया. फिर हम दोनों ने 21 जुलाई, 2018 में शादी कर ली.

‘नमरा के घर वालों को पता चला तो वे लोग उसे घर ले गए. उन्होंने 27 सितंबर, 2018 को हमारी दोबारा शादी कराई. इस के घर वालों ने बहुत दबाव दे कर 20 करोड़ मेहर बंधवाया. शादी के बाद से ही इस ने मेरे बेटे को मारना पीटना शुरू कर दिया. फाइनली मुझे अपने बच्चे को दूर करना पड़ा. नमरा खुद दिन भर सोती थी और रात में मुझे सोने नहीं देती थी. सीने पर नोचती और इतनी गंदी तरह से बात करती कि मन करता मर जाओ या कहीं भाग जाओ. पता नहीं कैसे कैसे लड़कों से बात करती थी. आज मुझ से यह हो गया, अब मैं भी नहीं जी सकता.’

डायरी के पन्नों में बयां दर्द से स्पष्ट था कि मोहम्मद सहवान ने अपनी दूसरी बीवी नमरा का कत्ल किया और खुद भी जान देने के लिए अपनी कार से घर से निकल गया. लेकिन वह कहां है, किस हालत में है, इस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को अभी तक नहीं थी. नागेश्वर अपार्टमेंट की बहुमंजिला इमारत में लगभग 60 सीसीटीवी कैमरे लगे थे. मोहम्मद सहवान के फ्लैट के बाहर भी कैमरा लगा था.

पुलिस अधिकारियों ने उस कैमरे को खंगाला तो पता चला कि वह 28 अप्रैल से बंद था, जिस से मोहम्मद सहवान के आनेजाने का पता नहीं चल सका. लेकिन नमरा की हत्या के बाद तथा सहवान के घर से जाने के बाद सीसीटीवी कैमरा चालू हो गया था.

कैमरा किस ने बंद और चालू किया, इस पर पुलिस को संदेह हुआ. पुलिस अधिकारियों ने वाचमैन रमेशचंद से पूछताछ की तो उस ने रजिस्टर चैक कर बताया कि 29 अप्रैल की रात पौने 9 बजे मोहम्मद सहवान अपने फ्लैट पर आए थे और रात 12.10 बजे अपनी कार से बाहर चले गए थे. तब से वापस नहीं आए.

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि थाना बिल्हौर पुलिस से सूचना मिली कि एक युवक ने जहर खा लिया है. उसे गंभीर हालत में हैलट अस्पताल में भरती कराया गया है. इस सूचना पर कल्यापुर के इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय इरफान को साथ ले कर हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां भरती व्यक्ति को देख कर इरफान फफक कर रो पड़ा. उस ने भाई की मौत की सूचना घर वालों को भी दे दी.

थाना बिल्हौर पुलिस ने इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय को बताया कि धौरसलार रेलवे स्टेशन के पास जीटी रोड पर सड़क किनारे एक स्कोडा कार खड़ी थी. वहां से थोड़ी दूरी पर यह व्यक्ति सड़क किनारे अचेतावस्था में पड़ा मिला. यह सूचना श्याम मिश्रा नाम के व्यक्ति ने पुलिस को दी थी.

सूचना पर पहुंची पुलिस ने तत्काल इसे हैलट अस्पताल में भरती कराया, जहां इस ने दम तोड़ दिया. कार की जामा तलाशी में प्रौपर्टी के कागजात, थाना कल्याणपुर को दिया गया एक प्रार्थनापत्र तथा सल्फास की 3 खाली पुडि़या बरामद हुई थी. कार में सीट पर उल्टी भी की गई थी.

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विक्रांत वर्मा डेथ केस : अपनी मौत की खूनी स्क्रिप्ट

रमेश वर्मा जब सुबह अपने खेत पर स्थित बकरी फार्म पर गए तो देखा कि अलाव के पास कोयला जैसी जली एक लाश  पड़ी हुई है. उन के बेटे विक्रांत वर्मा (Vikrant Verma) की बाइक भी वहीं खड़ी थी. उस का जला हुआ मोबाइल फोन भी वहीं लाश के पास ही पड़ा था. इस आशंका से कि लाश उन के बेटे विक्रांत की तो नहीं है, उन के होश उड़ गए. रमेश वर्मा ने तुरंत घर फोन किया.

परिवार के अन्य लोग भी वहां आ गए. बड़े बेटे को भी सूचना दी गई. बाइक, मोबाइल और कपड़ों के जले हुए अंश से लाश की पहचान घर वालों ने 25 वर्षीय विक्रांत वर्मा के रूप में कर ली. देखते ही देखते खबर पूरे गांव में फैल गई. पुलिस को सूचना दी गई. सुलतानपुर के कोतवाली देहात की पुलिस मौके पर पहुंची और हालात का जायजा लिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव दुबेपुर में 25 वर्षीय विक्रांत वर्मा पत्नी और 2 जुड़वां बेटियों के साथ रहता था. वैसे उस के पास खेती की जो जमीन थी, उस से गुजारे भर पैदावार हो जाती थी, लेकिन विक्रांत और उस की पत्नी को उस से तसल्ली नहीं थी. वह ऐसी आमदनी चाहते थे, जिस से उन के पास भी भरपूर पैसा और आधुनिक सुखसुविधाओं के सारे साधन हों. दोनों इस पर विचारविमर्श भी करते रहते थे.

विक्रांत ने आमदनी बढ़ाने का जतन शुरू किया. उस ने बैंक से लोन ले कर पहले मुरगी पालन का काम किया. काफी मेहनत और लगन के बाद भी विक्रांत को मुरगी पालन में सफलता नहीं मिली. मुरगियों में बीमारियां लग गईं.

काफी इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. उधर पोल्ट्री फार्म में काम करने वाले मजदूरों ने भी सही तरीके से उन की देखभाल नहीं की, जिस से काफी संख्या में मुरगियां मर गईं. उस का यह कारोबार फेल हो गया. जिस से विक्रांत को इस में काफी बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ.

विक्रांत ने सोचा कि मुरगी पालन बहुत जोखिम का कारोबार है. वह किसी भी तरीके से मुरगी पालन करने में सफल नहीं हो सकता है. इसलिए उस ने फिर बकरी पालन का काम किया, लेकिन वह उस में भी सफल नहीं हुआ. दोनों ही धंधों में असफलता उस के हाथ लगी. जिस से उस की पूंजी डूब गई और वह लाखों रुपए का कर्जदार हो गया था.

इस के बाद विक्रांत हर समय मोबाइल में लगा रहता था. मोबाइल पर लगे रहना पत्नी को अच्छा नहीं लगता था. उस की इस आदत से पत्नी बहुत दुखी थी. उस के मन में यही खयाल आते रहते थे कि कहीं उस के पति का किसी और से चक्कर तो नहीं है. घर की आर्थिक हालत सही नहीं थी. ऊपर से पति का कमाने की तरफ ध्यान नहीं था, इसलिए पत्नी ने विक्रांत को तिकतिकाना शुरू किया.

एक दिन विक्रांत ने पत्नी से कहा कि वह दिल्ली काम की तलाश में जा रहा है. किसी दोस्त ने बताया है कि किसी फैक्ट्री में उसकी नौकरी लग जाएगी.

अचानक दिल्ली जाने की बात सुन कर पत्नी को शक व आश्चर्य तो हुआ, फिर भी उस ने सहज ही हंसीखुशी उसे दिल्ली जाने के लिए घर से विदा किया.

सभी कामों से निराश हो जाने पर विक्रांत दिल्ली में नौकरी करने गया. दिल्ली में कुछ महीने नौकरी करने के बाद  वह घर आया. यह बात 15 जनवरी, 2024 की है. उस समय रात के लगभग 10 बजे थे. कुछ समय रात में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ समय बिताने  के बाद सभी लोग सो गए.

विक्रांत को किस ने जलाया

16 जनवरी, 2024 की सुबह अपनी दैनिक क्रियाएं करने के बाद विक्रांत नाश्ते के लिए बैठ गया. पत्नी परांठे और चाय ले कर आ गई. इस बीच एक बच्ची रोने लगी पत्नी उसे बिस्तर से गोदी में उठा लाई. संभालने चुप कराने के लिए गोदी में ले कर वह पति के पास ही बैठ गई.

इस समय विक्रांत बहुत उदास था और गुमसुम सा बैठा नाश्ता कर रहा था. पत्नी को जब उस के चेहरे से परेशानी झलकती दिखाई दी तो उस ने सवाल कर ही दिया. क्या बात है? कैसे परेशान दिख रहे हो? दिल्ली में सही काम नहीं मिला तो कोई बात नहीं. आप यहीं खेती में ही फिर नए सिरे से मेहनत करो. धीरेधीरे सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

विक्रांत ने भी चुप्पी तोड़ी और कहा कि मुझ पर अब तक 9 लाख का कर्ज हो चुका है. उस का तगादा हो रहा है. मुझे इसी बात की चिंता हो रही है कि यह कर्ज कैसे उतरेगा. काफी देर दोनों में विचार विमर्श हुआ फिर विक्रांत गांव में घूमने निकल गया. दोपहर में घर आया. खाना खाया और फिर मोबाइल में रम गया.

शाम लगभग 6 बजे बाइक ले कर वह अपने बकरी फार्म पर गया. पत्नी से कह कर गया कि देखते हैं, खेती में कैसे और क्या हो सकता है.

रात 10 बजे तक विक्रांत जब वापस नहीं आया, तब उस की पत्नी ने फोन किया. फोन की घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठा नहीं. इस से पत्नी की चिंता बढ़ गई. उस ने  अपने ससुर रमेश वर्मा से यह बात बताई. उन्होंने भी फोन मिलाया, लेकिन फोन नहीं उठा.

रमेश वर्मा ने कई जगह रिश्तेदारियों में फोन कर के पूछा, पर विक्रांत का कोई पता नहीं मिला. उस की पत्नी ने भी अपने रिश्तेदारों में बात की लेकिन पता नहीं चला कि विक्रांत कहां है.

दोनों के दिमाग में यह था कि अगर फार्महाउस पर होता तो अब तक घर आ जाता. इतनी सर्दी में देर रात तक बकरी फार्म पर रुकने का कोई मतलब ही नहीं है. हो सकता है कि कहीं दोस्तों के साथ चला गया हो. बात आईगई हो गई. रात को लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

अगले दिन राजेश वर्मा बेटे के बकरी फार्म पर पहुंचे तो वहां अलाव में जली हुई एक लाश पड़ी थी. पास में बेटे विक्रांत की बाइक खड़ी थी. इस की सूचना उन्होंने घर वालों के अलावा कोतवाली (देहात) पुलिस को भी दे दी.

पुलिस को मामला आत्महत्या का प्रतीत हो रहा था. पास में जला हुआ एक मोबाइल फोन भी पड़ा था. घर वाले लाश की शिनाख्त विक्रांत वर्मा के रूप में पहले ही कर चुके थे. घटनास्थल पर ठंड से बचाव के लिए अलाव भी जलाया गया था, ढेर सारी राख इस बात की गवाही दे रही थी. उन दिनों शीत लहर चल रही थी, जिस से भीषण सर्दी थी. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

लाश का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतक उस वक्त बहुत ज्यादा शराब के नशे में था और आग में जल जाने से उस की मौत हुई है. मृत्यु की बहुत ज्यादा स्थिति स्पष्ट न होने के कारण इस मामले में उस का विसरा जांच के लिए भी भेजा गया.

पुलिस क्यों नहीं कर रही थी हत्या की रिपोर्ट दर्ज

रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई  कि उस ने अत्याधिक शराब का सेवन कर रखा था. ऐसे में कयास लगाया जा रहा था कि विक्रांत शराब के नशे में अलाव के पास पहुंचा और वहां आग की चपेट में आने से उस की मौत हो गई. विक्रांत के पिता इसे आत्महत्या या दुर्घटना मानने को तैयार नहीं थे. उन का मानना था कि उन का बेटा विक्रांत कितने भी डिप्रेशन में हो, लेकिन अत्यधिक शराब का सेवन नहीं कर सकता. वह आत्महत्या जैसा घातक कदम भी नहीं उठा सकता.

मौके की स्थिति भी हत्या किए जाने जैसी थी. एक जगह जलने के संकेत थे. उस ने इधरउधर भागने की कोई कोशिश नहीं की, जिस से स्पष्ट होता है कि विक्रांत को मार कर सबूत मिटाने के लिए जलाया गया है. उन्होंने अंतिम संस्कार की औपचारिकता पूरी करने के बाद दूसरे दिन थाने में हत्या की आशंका जताते हुए तहरीर दे दी.

पीडि़त पिता ने दी तहरीर में कहा कि उन्हें आशंका है कि अज्ञात व्यक्तियों ने उन के बेटे की हत्या कर के सबूत मिटाने के लिए शव जला दिया है. उन की तहरीर पर पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

पुलिस की मानें तो घटना से एक दिन पहले मृतक ने अपने दोस्त रंजीत को काल की थी. फिर उस से मिल कर वह फूटफूट कर रोया कि अब मैं जिंदा नहीं रहूंगा. मुझे कोई अच्छी निगाह से नहीं देखता.

घर परिवार में भी कोई इज्जत नहीं है. समाज भी बुरा समझने लगा है. ऐसी जिंदगी से क्या फायदा. शुरुआती जांच के बाद पुलिस का स्पष्ट मत बन चुका था कि विक्रांत ने आत्महत्या की है. बताया जाता है कि पुलिस ने युवक के मोबाइल फोन समेत कई वस्तुओं को जांच के लिए कब्जे में लिया.

विक्रांत वर्मा की हत्या को 4 दिन बीत गए और अब तक केस दर्ज नहीं हुआ. घर वाले हत्या का आरोप लगाते हुए थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस आत्महत्या का केस दर्ज कराने के लिए परिजनों पर दबाव बनाती रही.

ऐसे में पिता ने अपने बड़े बेटे के साथ एसपी सोमेन वर्मा से मिल कर उन से हत्या का मुकदमा दर्ज कराए जाने की मांग की. थाना पुलिस के काररवाई न करने पर उन्होंने लंभुआ विधायक सीताराम वर्मा से भी हत्या का केस दर्ज कराने की गुहार लगाई.  विधायक विनोद सिंह से भी उन्होंने संपर्क किया. वह इस समय सदर सीट से विधायक हैं.

इन दोनों विधायकों की सिफारिश और बापबेटे की भागदौड़ आखिर रंग लाई और 22 जनवरी, 2024 को कोतवाली (देहात) थाने में अज्ञात के खिलाफ विक्रांत की हत्या का केस दर्ज हुआ. देहात कोतवाल श्याम सुंदर ने बताया कि विक्रांत के पिता ने बेटे की हत्या की केवल शंका जताई थी, जिस के चलते मामला दर्ज कर उन्होंने जांच शुरू की.

एसपी सोमन वर्मा ने विक्रांत वर्मा हत्याकांड के खुलासे के लिए 2 पुलिस टीमें गठित कीं. पहली टीम का नेतृत्व कोतवाल श्याम सुंदर को सौंपा गया. टीम में एसआई अखिलेश सिंह, विनय कुमार सिंह, हैडकांस्टेबल विजय कुमार, विजय यादव व आलोक यादव को शामिल किया गया.

दूसरी टीम एसओजी की गठित की. इस स्वाट टीम के प्रभारी उपेंद्र सिंह थे. इस में समरजीत सरोज, विकास सिंह, तेजभान सिंह और अबू हमजा को शामिल किया गया था. एसपी ने इस केस के खुलासे के लिए 25 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था. दोनों टीमों की निगरानी लंभुआ क्षेत्र के सीओ अब्दुल सलाम कर रहे थे.

मुखबिर की सूचना पर क्यों चौंकी पुलिस

जांच के दौरान ही एक दिन श्याम सुंदर को मुखबिर ने सूचना दी कि विक्रांत मोबाइल फोन से गांव में कभीकभार किसी से बात करता है. यह सुन कर कोतवाल का दिमाग चकराया कि विक्रांत तो मर गया तो फिर वह फोन पर कैसे बात कर सकता है.

उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को यह बात बताई. अधिकारी भी सकते में आ गए. उन्होंने कहा कि विक्रांत जब किसी से बात करता है तो वह जली हुई लाश क्या किसी और की थी? इस का मतलब यह है कि विक्रांत अभी जिंदा है.

अधिकारियों ने हरी झंडी देते हुए कहा कि मुखबिर की सूचना पर जांच आगे बढ़ाई जाए. विक्रांत जिस मोबाइल नंबर से बात करता था, वह मोबाइल नंबर पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पता चला कि इस नंबर पर रात में किसी से कभीकभार बात होती है. दिन के बाकी समय में यह नंबर बंद रहता है.

कोतवाल श्याम सुंदर को पता चला कि यह मोबाइल नंबर एक महिला का है. मोबाइल नंबर की लोकेशन हरियाणा प्रदेश के पानीपत शहर की मिल रही थी.

इस हत्याकांड को खोलने के लिए कोतवाली पुलिस पर 2-2 विधायकों और उच्चाधिकारियों का प्रेशर बना हुआ था. पानीपत की लोकेशन मिलते ही पुलिस की टीमों को वहां भेजा गया. पुलिस मुखबिर को साथ में ले कर उस क्षेत्र की निगरानी कर रही थी. जहां पर टेलीफोन नंबर की लोकेशन मिल रही थी.

पुलिस ने सर्विलांस टीम की मदद ली. लोकेशन ट्रेस हुई. इस के बाद पुलिस ने हरियाणा के पानीपत स्थित गली नंबर- 28 (वार्ड नं. 16) विकास नगर में दबिश दी. यह इलाका थाना सेक्टर- 29 इंडस्ट्रियल एरिया का है.

कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद आखिर विक्रांत वर्मा हत्थे चढ़ गया. उसे जीवित देख कर पुलिस चौंक गई. पता चला कि उस ने यहां अपना नाम विक्की कुमार रख लिया था. अपनी पहचान बदलने की उस ने पूरी कोशिश की, लेकिन मुखबिर की शिनाख्त के कारण विक्रांत वर्मा को पुलिस ने दबोच लिया.

थोड़ी सी सख्ती करने पर विक्रांत वर्मा टूट गया. उस ने अपना को विक्रांत वर्मा होना स्वीकार किया तथा गुनाह कुबूल कर लिया. वहां से पुलिस ने विक्रांत, उस के साथी शक्तिमान कुमार व अनुज साहू निवासी कासगंज के तुमरिया को गिरफ्तार कर लिया.

विक्रांत ने पुलिस को जो कुछ बताया, घटना के 25वें दिन केस का खुलासा करते हुए उस की जानकारी लंभुआ के सीओ अब्दुल सलाम ने पत्रकारों को एक प्रैस कौन्फ्रैंस में दी. कोतवाल श्याम सुंदर भी उस समय वहां मौजूद थे.

विक्रांत ने क्यों उड़ाई थी अपनी आत्महत्या की खबर

जांच में पता चला कि रोजगार के लिए दिल्ली आने पर विक्रांत की मुलाकात शक्तिमान कुमार और अनुज साहू से हुई थी. उस समय विक्रांत डिप्रेशन में था. उस की परेशानी चेहरे से साफ झलक रही थी. उन दोनों ने उस के चेहरे को पढ़ लिया. पूछने लगे  किस बात से परेशान है.

विक्रांत ने बताया कि उस की जुड़वां बच्चियां हैं, जो लगभग डेढ़ साल की हो चुकी हैं. पत्नी बच्चों के पालन पोषण में लगी रहती है, जिस से उस का उस की तरफ कोई ध्यान नहीं है. जबकि एक और लड़की जो उस का पहला प्यार है, वह अब भी मेरा इंतजार कर रही है. मैं आज भी पहले प्यार को भुला नहीं पा रहा हूं.

पत्नी की बेवफाई ने प्रेमिका से प्यार और भी बढ़ा दिया है. उस की बेबसी और लाचारी मुझ से देखी नहीं जा रही. शरीर के बीच जो दूरियां बनी हुई हैं, उस से मैं बहुत दुखी हूं. वह भी दो जिस्म मगर एक जान होने के लिए तत्पर है. मुझ पर दबाव भी बना रही है. प्रेमिका ने बताया है कि अब घर वाले उस की शादी की तैयारी कर रहे हैं. उस की यह बात सुन कर मैं बहुत परेशान हूं. मैं उसे किसी हालत में खोना नहीं चाहता.

विक्रांत ने अपने साथियों को यह भी बताया कि उस का मुरगी पालन और बकरी पालन का व्यवसाय फेल हो गया. उस से कर्जदार हो गया है. करीब 9 लाख रुपए का बैंक का कर्ज है. अब उसे वह ऐसी तरकीब बताएं कि मर कर भी जिंदा रहे और सारी प्रौब्लम दूर हो जाए.

शक्तिमान कुमार और अनुज साहू ने काफी सोचविचार के बाद क्राइम मिस्ट्री तैयार की. उन्होंने बताया कि हम किसी और व्यक्ति की हत्या कर के उस की लाश को जला देंगे और वहां पर तेरा सामान बाइक, मोबाइल आदि छोड़ देंगे, जिस से पता चले कि विक्रांत ने आत्महत्या कर ली है. इस तरह तुम्हारा पत्नी से भी पीछा छूट जाएगा और प्रेमिका भी हासिल हो जाएगी और कर्ज के 9 लाख रुपए भी देने नहीं पड़ेंगे.

किस को बनाया बलि का बकरा

अपनी कार्य योजना को अंजाम देने के लिए 15 जनवरी, 2024 को विक्रांत दोनों दोस्तों के साथ अपने गांव आ गया. उस ने अपने दोनों साथियों को फार्महाउस पर ठहरने की व्यवस्था की.

16 जनवरी की दोपहर अनुज शक्तिमान के साथ अमहट क्षेत्र में स्थित सरकारी देसी शराब के ठेके पर पहुंचा. काफी देर की निगरानी के बाद वहां नशे में झूलता हुआ एक व्यक्ति मिला, जिसे उन दोनों में से कोई नहीं जानता था. वो कदकाठी में बिलकुल विक्रांत ही जैसा था.

उसे वे यह बोल कर बाइक पर बैठाकर लाए कि चलो तुम्हें घर पहुंचा दें. वह दोनों उसे अपने बकरी फार्म पर ले आए. विक्रांत ने शराब की दुकान से एक बोतल खरीदी और फिर वह भी बकरी फार्म आ गया.

वहां उन तीनों ने उस व्यक्ति को और शराब पिलाई. वह इतना बेहोश हो गया कि अपने आप हिलडुल भी नहीं सकता था. वह शराबी सफेद कुरतापाजामा ब्राउन कलर की जैकेट पहने हुआ था. मफलर भी  पहने हुए था.

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आरोपी अनुज साहू, शक्तिमान कुमार और विक्रांत वर्मा पुलिस हिरासत में

विक्रांत ने जो कपड़े पहन रखे थे, जिन्हें पहन कर वह दिन भर गांव में भी घूमा था, वह कपड़े उतार कर उस व्यक्ति को पहना दिए. उस से पहले उस व्यक्ति के सारे कपड़े उतार दिए थे. काम पूरा करने के बाद बकरी फार्म से भागने के लिए उन्होंने सारा सामान बैग में पहले तैयार कर लिया था. उस में से पैंट शर्ट निकाल कर विक्रांत ने पहन लिए.

कुछ लकडिय़ां और उपले उन लोगों ने पहले ही एकत्र कर लिए थे. जिस से कि यह पता चले कि ठंड से बचने के लिए यहां अलाव जलाया गया था. फिर उस व्यक्ति पर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी. उस के कपड़े भी जला दिए.

उस समय रात के लगभग 9 बज चुके थे. चारों तरफ सन्नाटा था. सभी लोग ठंड में अपने घरों में थे. जब उन तीनों लोगों को विश्वास हो गया कि वह व्यक्ति मर चुका है और उस की लाश को पहचाना नहीं जा सकता, फिर वे सब वहां से फरार हो गए.

वहां से पहले लखनऊ फिर कासगंज और उस के बाद में पानीपत चले गए. पानीपत में ही विक्रांत की प्रेमिका भी रहती थी.

जिस को जलाया गया आखिर वो व्यक्ति था कौन?

यह सुन कर पुलिस के भी होश उड़ गए. पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ध्यान से नहीं देखा था. क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की आयु लगभग 60 वर्ष जरूर बताई गई होगी. जबकि विक्रांत की उम्र मात्र 25 साल थी. पुलिस की जांच में सामने आया कि जिस व्यक्ति को शराब के नशे में धुत कर के जिंदा जलाया था, वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, दुबेपुर में चालक द्वारिकानाथ शुक्ला पुत्र चंद बहादुर शुक्ला था. द्वारिकानाथ शुक्ला की बंधु आकला थाने में गुमशुदगी दर्ज थी. वह इसी क्षेत्र में रहता था.

लगभग 60 वर्षीय द्वारिकानाथ शुक्ला उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद के गांव रौतवां का मूल निवासी था. यह भी पता चला कि शक्तिमान इस समय पानीपत में ही रहता है. विक्रांत वर्मा ने भी यहीं पर नौकरी कर ली थी. पुलिस ने द्वारिकानाथ शुक्ला की गुमशुदगी  को हत्या में तरमीम किया.

कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने शक्तिमान कुमार, अनुज साहू और विक्रांत वर्मा को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

अपने ही परिवार के खून से रंगे हाथ – भाग 1

नशे की लत इंसान के सोचने समझने की शक्ति ही नहीं छीनती, बल्कि उसे अपना गुलाम भी बना लेती है. नशे की लत में डूबा इंसान कभी कभी ऐसे खतरनाक कदम उठा लेता है, जिस के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. ऐसा ही कुछ सुमित के साथ भी हुआ.

सुमित गाजियाबाद के इंदिरापुरम ज्ञानखंड-4 में अपने परिवार के साथ टू बैडरूम फ्लैट में रहता था. परिवार में उस की पत्नी अंशुबाला के अलावा 3 बच्चे थे. बच्चों में बड़े बेटे प्रथमेश के बाद 4 साल के 2 जुड़वां बच्चे आकृति और आरव थे.

प्रथमेश रिवेरा पब्लिक स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ रहा था. जबकि उस की पत्नी अंशुबाला इंदिरापुरम के मदर्स प्राइड स्कूल में टीचर थी. दोनों जुड़वां बच्चे इसी स्कूल में मां अंशु के साथ पढ़ने जाते थे. स्कूल से लौटने के बाद अंशुबाला घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी.

बिहार के सारण जिले के गांव अंजनी मकेर के रहने वाले बी.एन. सिंह सेना से रिटायर हो चुके थे. उन्होंने सन 2011 में बेटी अंशुबाला उर्फ पूजा की शादी झारखंड के सिंहभूम के गांव आदित्यपुर के रहने वाले सुमित के साथ की थी. सुमित ने बीटेक कर रखा था.

सुमित के पिता सर्वानंद सिंह व मां की सन 2012 में मृत्यु हो गई थी. परिवार में कुल 4 बहनभाई थे. बड़ा भाई अमित बेंगलुरु में एक आईटी कंपनी में इंजीनियर था और अपने परिवार के साथ वहीं रहता था. 4 बहनें थीं. बड़ी किरन व गुड्डी और 2 छोटी बेबी व रिंकी. 3 बहनों की शादी हो चुकी थी. सब से छोटी बहन रिंकी बड़े भाई अमित के साथ रह कर पढ़ रही थी.

अंशुबाला के परिवार में उस के मातापिता के अलावा 2 भाई थे पंकज और मनीष, दोनों ही शादीशुदा थे. पंकज गाजियाबाद वसुंधरा के सैक्टर 15 में अपने परिवार के साथ रहता था. जबकि छोटा भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहता था.

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अंशुबाला के पिता बी.एन. सिंह और मां मीरा देवी पिछले 4 सालों से बेटी अंशुबाला के साथ रह रहे थे. इस की वजह यह थी कि सुमित का औफिस के काम से बाहर आनाजाना लगा रहता था.

सेना से रिटायर बी.एन. सिंह इंदिरापुरम की एक सिक्योरिटी कंपनी में सिक्योरिटी औफिसर की नौकरी कर रहे थे. हालांकि वह बेटी के पास रहते थे, लेकिन अपना व पत्नी का खर्च खुद उठाते थे. बेटी के पास रहने की वजह बस यही थी कि दामाद सुमित अकसर घर से बाहर रहता था.

बच्चे छोटे होने के कारण बेटी को किसी की मदद की जरूरत थी. बेटी के पास रहते हुए बी.एन. सिंह व उन की पत्नी मीरा देवी दोनों बेटों के पास आते जाते रहते थे. दोनों बेटे भी जब तब उन से व बहन अंशु से मिलने के लिए आते रहते थे.

अक्तूबर 2018 तक सुमित गुरुग्राम की आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी पर था. इस के तुरंत बाद उस ने बेंगलुरु की अमेरिकन बेस आईटी कंपनी यूएसटी ग्लोबल में नौकरी शुरू कर दी थी. 14 लाख रुपए के पैकेज पर उस ने बतौर एप्लीकेशन मैनेजर जौइन किया था.

यूएसटी ग्लोबल कंपनी ने 2 महीने बाद अपना सिस्टम अपग्रेड किया तो सुमित काम नहीं कर पाया. नतीजतन बीती जनवरी में उस ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन घर वालों को इस बारे में पता नहीं था. परिवार को इस सब की जानकारी तब लगी जब वह मार्च में बेंगलुरु छोड़ कर हमेशा के लिए दिल्ली आ गया. बेंगलुरु में वह अपने भाई अमित के पास रहता था.

जनवरी में नौकरी छोड़ने के बाद से ही सुमित लगातार दूसरी नौकरी के लिए प्रयास कर रहा था. लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी. अंशुबाला का वेतन बहुत ज्यादा तो नहीं था, लेकिन वह अपने व बच्चों के छोटेमोटे खर्च पूरा करने लायक कमा ही लेती थी.

अब तक सुमित भी अच्छी कमाई कर रहा था. सासससुर भी घर के खर्चों में सुमित व अंशु की मदद करते थे, इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं था कि 3 महीने की नौकरी के कारण सुमित या परिवार के लोग परेशान होते. कुल मिला कर सब कुछ ठीक चल रहा था. इन दिनों बेरोजगारी के कारण सुमित भी पूरे दिन परिवार के साथ ही रहता था.

बिहार के सारण जिले में एक करीबी रिश्तेदार की बेटी की शादी थी, लिहाजा 7 अप्रैल, 2019 को बी.एन. सिंह अपनी पत्नी के साथ शादी में शामिल होने के लिए सारण चले गए थे.

सुमित के सभी भाईबहन दूरदूर व अलग रहते थे. सभी की खैरखबर मिलती रहे इस के लिए उन्होंने माई फैमिली नाम से एक वाट्सएप ग्रुप बना रखा था. 21 अप्रैल की शाम करीब 6 बजे इस वाट्सऐप ग्रुप पर सुमित ने एक ऐसा वीडियो डाला जिसे देख कर पूरे परिवार में हाहाकार मच गया.

ये वीडियो सब से पहले सुमित की बिहार में रहने वाली बहन गुड्डी ने देखा था. वीडियो में सुमित जो कुछ बोल रहा था उसे सुन कर गुड्डी के पांव तले से जमीन खिसक गई.

दरअसल इस वीडियो में सुमित बता रहा था, ‘मैं ने पत्नी और बच्चों की हत्या कर दी है. मैं खुद भी आत्महत्या करने जा रहा हूं. ये मेरा आखिरी वीडियो है. मैं दुकान से पोटैशियम साइनाइड ले कर आया हूं. अब मैं परिवार पालने लायक नहीं रहा, इसलिए मैं ने सब को जान से मार दिया है. जाओ जा कर शव ले लो. 5 मिनट में मैं पोटैशियम साइनाइड खा लूंगा.’

वीडियो में ही उस ने बताया कि उस ने न्याय खंड के हुकुम मैडिकल स्टोर से 22 हजार रुपए में पोटैशियम साइनाइड खरीदा है, जिसे खा कर वह मरने जा रहा है. सुमित ने वीडियो में यह भी बताया कि वह नशे के लिए ड्रग्स भी हुकुम मैडिकल स्टोर से लेता था.

मैडिकल स्टोर के मालिक मकनपुर निवासी मुकेश ने ड्रग्स के नाम पर उसे काफी लूटा था, जिस के चलते उस पर लाखों का कर्ज हो गया था. उस ने भी मुकेश के खाते से मोबाइल बैंकिंग के जरिए एक लाख रुपए अपने खाते में ट्रांसफर कर लिए हैं.

2.40 मिनट के वीडियो में सुमित ने बताया कि वह इस समय काफी डिप्रेस है और उस ने अपने परिवार की हत्या कर दी है. ये पूरी वीडियो जैसे ही गुड्डी ने देखी तो उस ने बेंगलुरु में रह रहे अपने बडे़ भाई अमित को फोन पर सारी बात बताई तो वह भी बेचैन हो गया. अमित ने गुड्डी से बात करने के बाद खुद भी फैमिली ग्रुप पर डाली गई वह वीडियो देखी और गुड्डी से बात की.

अमित ने गुड्डी से कहा कि वह तुरंत अंशुबाला के भाई पंकज को बता दे. क्योंकि वही एक ऐसा शख्स था, जो सुमित के घर के सब से नजदीक रहता था. भाई की सलाह के बाद गुड्डी ने सुमित द्वारा ग्रुप में डाला गया वीडियो पंकज को भेज दिया और उस से फोन पर बात की. गुड्डी ने पंकज को सारी बात बताई तो पंकज का भी सिर घूम गया.

तब तक हकीकत किसी को मालूम नहीं  थी, इसलिए गुड्डी ने पंकज को सलाह दी कि वह तत्काल सुमित के घर जा कर देखे कि माजरा क्या है. तब तक किसी को यकीन नहीं हो रहा था, वे लोग सोच रहे थे कि सुमित ने कहीं मजाक तो नहीं किया.

हालांकि अमित, गुड्डी और पंकज सभी लोगों को जैसे ही इस वीडियो मैसेज के बारे में पता चला उन्होंने सुमित के मोबाइल फोन पर संपर्क करना चाहा ताकि उस से बात कर असलियत जान सकें. लेकिन सभी को उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. इस से सभी को शंका होने लगी.

लिहाजा उन्होंने अंशु बाला व घर के दूसरे मोबाइल फोन पर भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन दोनों फोन स्विच्ड औफ मिले तो पंकज का मन शंका से भर उठा.

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पंकज ने यह सब सुनने के बाद अपने आसपड़ोस के एक दो लोगों को साथ लिया और ज्ञान खंड-4 में सुमित के मकान पर पहुंच गए. लेकिन वहां ताला लटका देख उन का दिल आशंका से भर गया. उन्होंने सुमित के पड़ोस में रहने वाले और कालोनी के कुछ लोगों को एकत्र कर उन्हें अपने बहनोई द्वारा भेजे गए वीडियो के बारे में बताया तो सभी ने सलाह दी कि घर का ताला तोड़ कर चैक किया जाए.

फलस्वरूप सुमित के घर का ताला तोड़ दिया गया. दरवाजा खोल कर अंदर का नजारा देखा तो सभी दंग रह गए. अंदर ड्राइंगरूम से ले कर बेडरूम तक तीनों बच्चों और अंशुबाला के खून से लथपथ शव पड़े थे. जबकि सुमित का कहीं अता पता नहीं था.

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एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल – भाग 4

डमी परीक्षा में कैसे फेल हुए एसआई

पेपर लीक में एक अन्य चौंकाने वाला मामला एसआई भरती परीक्षा- 2021 का भी सामने आया. इस भरती परीक्षा में मूल परीक्षार्थी की जगह डमी कैंडिडेट को बैठाया गया था. उस की जब एसओजी द्वारा गहन जांच हुई, तब धड़ाधड़ कई खुलासे हो गए.

डमी कैंडिडेट बैठा कर परीक्षा पास करने वाले 4 ट्रेनी एसआई को एसओजी ने गिरफ्तार किया. उन्हें तब गिरफ्तार किया गया, जब सभी राजस्थान पुलिस अकादमी (आरपीए) में ट्रेनिंग कर रहे थे.

14 अप्रैल, 2024 की शाम को सेंटर में एसओजी की टीम जैसे ही पहुंची, वहां हड़कंप मच गया. कई ट्रेनी एसआई उस दिन रविवार होने और अंबेडकर जयंती होने के चलते आराम फरमा रहे थे. तभी एसओजी ने एकएक कमरे से ट्रेनी एसआई का नाम बोल कर उन को अपने कपड़ों के बैग तैयार करने को कहा.

इस के बाद चारों एसआई को एसओजी मुख्यालय ले कर गई. इस बारे में एडीजी (एसओजी) वी.के. सिंह ने बताया कि चारों ट्रेनी एसआई ने अपने स्थान पर डमी अभ्यर्थी बैठा कर एसआई भरती परीक्षा-2021 को पास किया था.

एसआई में फरजीवाड़ा किए जाने की खबर मिलने पर एसओजी ने कुछ दिनों पहले डमी परीक्षा ली थी. उस में चारों एसआई फेल हो गए थे. वे चारों 25 प्रतिशत नंबर भी नहीं प्राप्त कर पाए थे. इस पर एसओजी को उन की योग्यता पर शक हुआ. जब इन के दस्तावेजों और सेंटर की जांच की गई, तब पता चला कि इन चारों ने डमी कैंडिडेट बैठा कर परीक्षा पास की थी. पूछताछ में चारों ट्रेनी एसआई ने डमी कैंडिडेट परीक्षा में बैठाना स्वीकार किया.

पूछताछ में मालूम हुआ कि इन में से हरेक ने परीक्षा में पास होने के लिए 15 से 20 लाख रुपए दिए थे. इस में डमी कैंडिडेट बैठाना और पेपर खरीदना दोनों शामिल था. एसआई भरती-2021 पेपर लीक और डमी अभ्यर्थी केस में अब तक 36 ट्रेनी एसआई और 7 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है. हालांकि, इन में 11 ट्रेनी की जमानत हो चुकी है. एसओजी को अब उन की तलाश है, जो इन चारों ट्रेनी की जगह परीक्षा में डमी अभ्यर्थी बन बैठे थे.

पकड़े गए ट्रेनी एसआई में हरिओम पाटीदार निवासी गलियाकोट का एसआई भरती परीक्षा में मेरिट में 645वां नंबर आया था. हरिओम का प्रकाश पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल निवारू रोड, झोटवाड़ा, जयपुर में सेंटर था और 15 सितंबर, 2021 को परीक्षा हुई थी.

हरिओम को हिंदी में 200 में से 169.69, सामान्य ज्ञान में 200 में से 118.46 और कुल 400 में से 288.15 अंक मिले थे. उस के इंटरव्यू में 28 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 316.15 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में इसे हिंदी में 200 में से 55 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 69 अंक ही मिले.

दूसरा ट्रेनी एसआई विक्रमजीत निवासी बज्जू बीकानेर हाल पाश्र्वनाथ सिटी जोधपुर का मेरिट में 1263वां नंबर आया था. उस का श्री जवाहर जैन सेकेंडरी स्कूल, उदयपुर में सेंटर था और परीक्षा 13 सितंबर, 2021 को हुई थी.

विक्रमजीत को हिंदी में 200 में से 158.27, सामान्य ज्ञान में 200 में से 118.91 कुल 400 में से 277.18 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 20 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 297.98 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 43 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 43 नंबर मिले.

श्रवण कुमार निवासी बज्जू बीकानेर का मेरिट में 1708वां नंबर आया था. उस का गवर्नमेंट गल्र्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल मंडोर रोड जोधपुर में सेंटर था और परीक्षा 14 सितंबर, 2021 को थी. श्रवण कुमार को हिंदी में 200 में से 135.8, सामान्य ज्ञान में 200 में से 120.79 कुल 400 में से 256.59 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 28 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 284.59 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 31 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 36 नंबर ही मिले.

श्याम प्रताप सिंह निवासी लोहावट जोधपुर का मेरिट में 2207वां नंबर आया था. उस का गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल डेसूला, अलवर में सेंटर था और परीक्षा 13 सितंबर, 2021 को थी.

श्याम प्रताप को हिंदी में 200 में से 143.43, सामान्य ज्ञान में 200 में से 95.56 कुल 400 में से 238.99 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 29 नंबर आए. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 267.99 नंबर मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 63 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 70 नंबर ही मिले.

डिप्टी एसपी का बेटा भी हुआ गिरफ्तार

एसआई भरती मामले में भरतपुर में एसपी औफिस जा कर एसओजी ने जरूरी काररवाई कर गहन छानबीन की. इस काररवाई के बाद राजस्थान पुलिस ने अलग से ऐक्शन लिया. एसओजी ने भरतपुर एसपी औफिस में जैसे ही मौके का मुआयना किया, वैसे ही औफिस में रीडर पद पर तैनात सबइंसपेक्टर जगदीश सिहाग को सस्पेंड कर दिया गया.

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उस के बारे में पहले से ही काफी जांचपड़ताल कर चुकी थी. जगदीश पर आरोप था कि उस ने अपनी 2 बहनों को 30 लाख रुपए दे कर एसआई बनवाया था. दोनों बहनें भी गिरफ्तार की जा चुकी हैं.

दोनों की जगह जिस तीसरी बहन ने पेपर दिया था, उस बहन का नाम वर्षा है और वह कथा लिखे जाने तक  फरार चल रही थी. वह प्रथम श्रेणी व्याख्याता है. उस ने 30 लाख दे कर अपनी 2 बहनों की जगह पेपर दिया था और खुद भी पेपर दिया था. तीनों बहनें थानेदार बन गई थीं.

बताया जा रहा है कि साल 2014 में जगदीश सिहाग ने भी एसआई बनने के लिए 10 लाख रुपए खर्च किए थे और नकल कर वह भी थानेदार बन गया था. उस के बाद पहली ही पोस्टिंग में एसीबी के हत्थे चढ़ गया था. उस ने अपनी जगह डमी अभ्यर्थी बिठाया था और उस डमी अभ्यर्थी ने जगदीश को पास कराया था. जगदीश की 23वीं रैंक बनी थी और वह थानेदार बन गया था. उस ने 10 सालों तक ड्यूटी की, लेकिन किसी को पता नहीं चला कि वह नकल कर पास हुआ है. इन दिनों वह भरतपुर एसपी के यहां लगा हुआ था.

यही नहीं, गिरफ्तार 13 ट्रेनी थानेदारों के ठिकानों से हिसाब की डायरी से ले कर मिले ये दस्तावेज और भी हैरान करने वाले थे. एडीजी वी.के. सिंह के अनुसार सभी जगह स्थानीय पुलिस अधिकारियों के सहयोग से आरोपी थानेदारों के घर व अन्य ठिकानों सांचौर, जालौर, बाड़मेर, जोधपुर, जयपुर, चुरू में छापेमारी की गई थी.

इस दौरान बड़ी संख्या में परीक्षा से पहले एसआई भरती को पेपर लेने, अन्य कई अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट, कई परीक्षाओं के प्रश्नपत्र, गिरोह से लेनदेन के हिसाब की डायरी व अन्य दस्तावेज मिले. डिप्टी एसपी ओमप्रकाश गोदारा के जयपुर आवास पर भी सर्च किया गया.

गोदारा के बेटे करणपाल गोदारा को भी एसआई भरती परीक्षा में पहले पेपर लेने के मामले में गिरफ्तार किया गया. करणपाल को भी आरपीए में प्रशिक्षण लेते समय गिरफ्तार किया गया.

आरोपियों में प्रशिक्षु थानेदारों में नरेश कुमार बिश्नोई, सुरेंद्र कुमार बिश्नोई, राजेश्वरी बिश्नोई, मनोहर लाल गोदारा, गोपीराम जांगू, श्रवण कुमार बिश्नोई, नारंगी कुमारी बिश्नोई, प्रेमसुखी बिश्नोई, चंचल कुमारी बिश्नोई, करणपाल गोदारा, राजेंद्र कुमार यादव, विवेक भांभू, रोहिताश कुमार जाट, धर्माराम गिला आदि.

कथा लिखे जाने तक एसओजी इस मामले की जांच में जुटी थी. अब देखना यह है कि एसआई फरजीवाड़े में कितने और आरोपी एसओजी के हत्थे चढ़ेंगे?

एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल – भाग 3

हर्षवर्धन के इस धंधे में आने और पत्नी समेत नेपाल फरार होने, फिर वहां से अपनी ससुराल में छिपे रह कर नौकरी की तलाश करने की कहानी कुछ कम फिल्मी नहीं है. हर्षवर्धन के पिता मुरारी लाल मीणा एक जमाने में जेलर हुआ करते थे. वह रिटायर हो चुके हैं और दौसा जिलांतर्गत महवा तहसील के सलीमपुर गांव के अपने साधारण से मकान में  रहते हैं.

अपने पिता की तरह ही हर्षवर्धन भी अच्छे रुतबे वाली नौकरी पाना चाहता था. आईएएस बनना चाहता था. लेकिन अचानक उस के कदम गलत राह पर मुड़ गए और वह पूर्वी राजस्थान में पेपर लीक करवाने वाले गिरोह के संपर्क में आ गया. इस काम की बारीकियों को सीख समझ कर उस ने खुद ही एक टीम बना ली.

परीक्षाओं में डमी कैंडिडेट बैठाने से ले कर पेपर लीक से ले कर इंटरव्यू क्लियर करवाने तक के काम को अंजाम देने लगा. इस के लिए उस ने अपना नेटवर्क बना लिया.

इस की शुरुआत उस ने 13 साल पहले की थी. बीते एक दशक में वह पेपर लीक का मास्टर बन चुका था. बताते हैं कि उस की बदौलत 500 से अधिक लोगों की नौकरी लग चुकी है. वह बौस के नाम से प्रचलित है. इस धंधे का फायदा उस ने अपने लिए भी उठाया और पटवारी की नौकरी हासिल करने में सफलता भी हासिल कर ली.

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                आरोपी हर्षवर्धन मीणा

यह एक जिम्मेदारी का पद होता है. एक पटवारी अपने कार्यालय में गांव की जमीन का नक्शा, कृषि भूमि संबंधी रिपोर्ट, जमाबंदी बिक्री, राजस्व वसूली पत्र और खसरा नंबर आदि अभिलेखों को सुरक्षित रखता है. इस के अलावा आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र बनवाने और फसल नुकसान के मुआवजे के लिए सर्वे में भी इन के बिना फाइल आगे नहीं बढ़ती है.

हर्षवर्धन ने इस तरह के महत्त्वपूर्ण पद को भी दांव पर लगा दिया था. अपनी ड्यूटी भाड़े पर रखे युवक से करवाता था. बदले में उसे 10 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था.

पेपर लीक करवाने लिए हाईटेक तरीके और नए गैजेट्स का इस्तेमाल करता था. इस की शुरुआत उस ने ब्लूटूथ से की थी. पहली बार उस ने एक परीक्षा के दरम्यान प्रश्नों के जवाब उपलब्ध करवाए थे.

भरती परीक्षाओं में नकल के लिए वह 10 अभ्यर्थियों से सौदा करता था. उन को परीक्षा सेंटर पर जाने से पहले उन्हें ब्लूटूथ से लैस करवा देता था. उन्हें टेप, कपड़े आदि से छिपा देता था. इस डिवाइस से सेंटर परिसर के बाहर गाड़ी में बैठे व्यक्ति को वह प्रश्न बताता था. वहीं से उसे तुरंत उत्तर मिल जाता था.

यह धंधा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कारण सुरक्षा के दौरान ब्लूटूथ समेत अभ्यर्थी  पकड़े जाने लगे थे. उस के बाद मीणा ने नकल का तरीका भी बदल लिया.

उस ने एक ग्रुप बना लिया. जैसे ही सरकारी भरती की घोषणा होती, यह ग्रुप सक्रिय हो जाता था. ग्रुप के लोग अभ्यर्थियों को परीक्षा पास करवाने की गारंटी दे कर सौदा करते थे. इस में कैंडिडेट से 15 से 20 लाख रुपए लिए जाते थे.

20 लाख में पास कराता था एसआई परीक्षा

डमी कैंडिडेट को परीक्षा में बिठाने के लिए नकली एडमिट कार्ड बनाए जाते थे. उस में डमी कैंडिडेट की तसवीर असली कैंडिडेट से मिलतीजुलती तसवीर लगाई जाती थी. मीणा के गिरोह ने 13 से 15 सितंबर, 2021 को हुई एसआई भरती परीक्षा में सब से अधिक डमी कैंडिडेट बिठाए थे.

इस परीक्षा में मीणा ने अपनी पत्नी को भी डमी कैंडिडेट की बदौलत शामिल करवाया था. वह एसआई की परीक्षा पास कर गई थी, लेकिन फिजिकल जांच में फेल हो गई. हालांकि उसे पटवारी की नौकरी दिलाने में सफलता मिल गई थी.

कुछ सालों में हर्षवर्धन पेपर लीक के धंधे का मास्टर बन गया. उस के गिरोह के राजेंद्र यादव ने भी एसआई की भरती परीक्षा में 53वीं रैंक डमी कैंडिडेट की बदौलत ही हासिल की थी. इस तरह से उस के गिरोह में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी ही हैं. उन्हें ट्रांसफर करवाने का भी काम वह करता था. उस के बाद उसे भी इस एहसान के बदले अपने गिरोह में शामिल कर लेता था.

भरती की प्रतियोगिता परीक्षाओं के सेंटर स्कूलों में ही बनाए जाते हैं. इसे देखते हुए हर्षवर्धन ने अपने गिरोह में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों से भी सांठगांठ कर ली थी. उन्हें भी पैसे का लालच दे कर अपने साथ जोड़ लिया था. उन्हीं में खातीपुरा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में काम करने वाला राजेंद्र कुमार यादव भी है. वह उस स्कूल में 23 साल से नौकरी कर रहा था.

मई 2010 में उस का ट्रांसफर मुरलीपुरा में हो गया था. हर्षवर्धन ने उस का दोबारा खातीपुरा में ट्रांसफर करवा दिया था. इस तरह वह हर्षवर्धन के संपर्क से प्रभावित हो कर उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया था. बाद में दोनों पार्टनर बन गए थे.

उन के संपर्क में अलगअलग स्कूलों के शिक्षक भी आ चुके थे. जब भी कोई भरती की परीक्षा होती थी, तब उन में किसी न किसी की स्ट्रांग रूम में ड्यूटी लगती थी. फिर गिरोह में शामिल टीचर पेपर निकाल लेते थे और उसे वाट्सऐप के जरिए बाहर भेज देते थे.

पूछताछ में हर्षवर्धन ने बताया कि उस ने गिरोह के अपने साथियों के साथ मिल कर 13 साल में करोड़ों रुपए कमाए. उस ने सिर्फ जेईएन का पेपर 50 लाख रुपए में खरीदा और उसे ढाई करोड़ रुपए में बेच दिया.

इसी तरह से उस ने पटवारी, सीएचओ, लैब असिस्टेंट, महिला सुपरवाइजर के पेपर लीक करवाए. ये वे पेपर हैं, जो लीक करवाए गए. इस के अलावा नकल करवाने, डमी कैंडिडेट से परीक्षा पास करवाने के बदले में गिरोह के लोग 15 से 20 लाख रुपए लेते थे.

एसआई की परीक्षा में इस गिरोह ने दरजनों लोगों को इस का फायदा पहुंचाया है. फरजीवाड़े से परीक्षा पास करने वालों की संख्या 500 से अधिक बताई जाती है, जिन में हर्षवर्धन मीणा के परिवार के ही 20 से अधिक लोग हैं.

उस ने न केवल अपनी पत्नी को बल्कि अपने भाई पुष्पेंद्र मीणा को निगम में और भाई की पत्नी, बहन को आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर की नौकरी लगवा चुका है. उस के सहयोगी राजेंद्र कुमार यादव के बेटे को भी उस की बदौलत डाक विभाग में नौकरी लग चुकी है.

एक अनुमान के मुताबिक हर्षवर्धन ने पेपर लीक धंधे से 10 करोड़ रुपए कमाए हैं. कहने को तो वह अपने गिरोह की नजर में बौस बना हुआ था, लेकिन काम को बड़ी सतर्कता के साथ करता था. वह किसी से भी डायरेक्ट डील नहीं करता था. इस के लिए वह दलालों की मदद लेता था, जो राजस्थान के हर जिले में फैले हुए थे.

जिस किसी को कोई काम होता था, वह दलाल के माध्यम से ही हर्षवर्धन के संपर्क में आता था. वह कभीकभार अपने गांव भी आता था, लेकिन वहां के ज्यादातर लोगों से नहीं मिलता था.

एसओजी को जब इस बात की जानकारी मिली कि हर्षवर्धन अपनी पटवारी की ड्यूटी के लिए पाली गांव के शिवराम मीणा को लगा रखा है और उसे 10 हजार रुपए मासिक वेतन देता है, तब उस की तलाश शुरू की गई. एसओजी की टीम 25 जनवरी, 2024 को उस की तलाशी के सिलसिले में सिलमपुर स्थित गांव गई थी. वहीं पता चला कि फरार चल रहे हर्षवर्धन की हाजिरी शिवराम लगा रहा था. उस के बाद ही हर्षवर्धन को सस्पेंड कर दिया.

हर्षवर्धन की लाइफ बहुत ही लग्जरी थी. गांव में 2 भव्य मकान बना रखे थे. कई प्रौपर्टी का भी मालिक था. पार्टनरशिप में कुछ कोचिंग सेंटर और स्कूल भी चला रखे थे. राजेंद्र यादव के साथ पार्टनरशिप पर जयपुर के वैशाली नगर में भी स्कूल और कोचिंग सेंटर हैं.

महंगी गाड़ी रखता है, लेकिन इस का वह दिखावा नहीं करता था. यही कारण है कि महंगी क्रेटा गाड़ी से अपने गांव जाता था, तब लोगों से संपर्क करने में सावधानी बरतता था. किंतु वह दौसा में आश्रम के एक बाबा के संपर्क में था. बताते हैं कि कई बार वह आश्रम में ही छिपा रहता था.

रोहित शेखर का पितृ दोष – भाग 3

जब उठे परदे

जैसे ही रोहित की संदिग्ध मौत की खबर देश भर में फैली तो फिर चर्चाओं, अफवाहों और अटकलों का बाजार गर्म हो उठा. उस के बारे में तो लोग काफी कुछ जानते थे, लेकिन अपूर्वा के बारे में किसी को भी ज्यादा जानकारी नहीं थी. पुलिस को इतना तो समझ आ गया था कि अगर रोहित की हत्या हुई है, तो इस में किसी नजदीकी का ही हाथ है.

19 अप्रैल की रात जब एम्स के 5 डाक्टरों की टीम ने रोहित की लाश का पोस्टमार्टम कर उस की मौत को संदिग्ध बताया तो पुलिसिया काररवाई में न केवल एकएक कर राज खुलने लगे बल्कि 5 दिन बाद खुद अपूर्वा ने भी स्वीकार किया कि हां उस ने ही रोहित की हत्या की है.

यह बेहद चौंका देने वाली बात थी क्योंकि हत्या में किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया था और मामला रात का था, वह भी बैडरूम का तो किसी चश्मदीद के होने का तो सवाल ही नहीं उठता था. पुलिस की काररवाई और अपूर्वा के बयान से रोहित की हत्या की वजह और कहानी इस तरह सामने आई.

दरअसल फसाद शादी के रिसैप्शन के एक दिन पहले से ही तब शुरू हो गया था, जब रोहित ने स्टेज पर ही अपूर्वा को मामूली बात पर बेइज्जत कर दिया था और दहेज में 11 लाख रुपए भी मांगे थे. इस बाबत मंजुला को इंदौर का अपना एक प्लौट भी बेचना पड़ा था. बेटी की बेइज्जती पर मंजुला भड़क उठी थीं और उन्होंने शादी तोड़ने की बात भी कह डाली थी.

हालात और माहौल बिगड़ते देख उज्ज्वला ने उन्हें यह कह कर मनाया था कि अब अपूर्वा ही एन.डी. तिवारी की राजनैतिक विरासत संभालेगी. वह उसे राजनीति में लाएंगी. इस पर मंजुला शांत हो गई थीं लेकिन मन में शंका तो ज्योतिषी की पूजापाठ के चलते आ ही गई थी.

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अपूर्वा जब शादी कर के ससुराल आई तो बहुत जल्द ही उसे यह अहसास हो गया था कि रोहित कहने को ही रईस है, यहां तो उस के नाम जायदाद के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं है. यहां तक कि डिफेंस कालोनी वाले जिस बंगले में वह रह रही थी, वह भी उज्ज्वला के नाम था. यह जान कर अपने शादी के फैसले पर वह भन्ना उठी थी, लेकिन अब चूंकि कुछ नहीं हो सकता था इसलिए खामोश रही. रोहित का अव्वल दरजे का पियक्कड़ होना भी उस के सपनों को तोड़ रहा था.

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भाभी से थे संबंध

कुछ दिन बाद उसे अहसास हुआ कि रोहित की राजीव की पत्नी कुमकुम यानी अपनी भाभी से कुछ ज्यादा ही अंतरंगता है और वह पूरी बराबरी से रोहित के साथ बैठ कर शराब पीती है. कई बार तो घर के नौकर भी मालिकों के साथ बैठ कर शराब पीते थे. कुमकुम ने उसे भी शराब पीने का औफर किया था, लेकिन वह तैयार नहीं हुई.

रोहित न केवल शराबी और अय्याश था बल्कि हिंसक भी था. शादी के छठे दिन ही वह अपूर्वा को  मसूरी ले गया था. साथ में घर के नौकर भी थे. उसे एक दोस्त के अंतिम संस्कार में शामिल होना था, जिस के बाद दोनों में किसी बात पर विवाद हुआ तो रोहित ने उसे भी मारापीटा था. गुस्से में उस ने खुद के हाथपैर भी घायल कर लिए थे.

शादी के छठे दिन से ही अपूर्वा और रोहित में खटपट शुरू हो गई थी और कुछ दिनों बाद ही दोनों अलगअलग सोने लगे थे. बीते कुछ दिनों से अपूर्वा को यह शक भी हो रहा था कि कुमकुम का बेटा असल में रोहित से ही पैदा हुआ है. यानी इन दोनों के नाजायज संबंध शादी के काफी पहले से हैं और घर में हर किसी को इस की जानकारी है.

शादी के 15 दिन बाद अपूर्वा अपने मायके इंदौर आई थी और मंजुला को सब कुछ बताया था तो उन्होंने फिर पूजापाठ कराया था. तब अपूर्वा शायद तय कर के आई थी कि अब ससुराल नहीं जाएगी क्योंकि वह अपने साथ अपना सारा कीमती सामान भी ले आई थी. लेकिन जब रोहित की बाईपास सर्जरी हुई थी तो वह फिर दिल्ली चली गई थी.

सर्जरी के बाद भी दोनों के रिश्ते नहीं सुधरे उलटे कड़वाहट बढ़ती गई, जिस की सब से बड़ी वजह कुमकुम होती थी. सच जो भी हो, लेकिन दोनों अब रिश्ते को जी नहीं बल्कि ढो रहे थे. अपूर्वा को हर समय यह लगता रहता था कि रोहित जानबूझ कर कुमकुम के लिए उस की अनदेखी करता रहता है. इस बात से वह बेहद चिढ़ी हुई थी और बगैर आग के जलती रहती थी.

15 अप्रैल को जब रोहित दिल्ली लौट रहा था तब अपूर्वा ने उसे वीडियो काल किया था, जिस में उस ने देखा कि रोहित और कुमकुम सट कर बैठे एक रेस्टोरेंट में शराब पी रहे हैं तो उस के तनबदन में आग लग गई. उसे लग रहा था कि वह छली गई है और रोहित ने शादी के नाम पर उसे धोखा दिया है.

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यूं की थी हत्या

रात को जब रोहित सोने चला गया तो कोई डेढ़ बजे वह रोहित के कमरे में गई और डेढ़ घंटे बाद लौटी. यह दृश्य घर में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद था, इसलिए पुलिस को इस निष्कर्ष पर पहुंचते देर नहीं लगी कि रोहित की कातिल अपूर्वा ही है. लिहाजा उसे गिरफ्तार कर रिमांड पर ले लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का वक्त रात डेढ़ बजे के लगभग ही बताया गया था.

इस पर अपूर्वा का कहना यह था कि वह तो रात डेढ़ बजे पति के साथ सहवास करने गई थी और किया था. मुमकिन है इस दौरान उस की मौत हो गई हो जबकि पुलिस का अंदाजा यह था कि अपूर्वा ने रोहित का गला दबाया होगा और यह बात उस ने बाद में स्वीकारी भी.

इस हाइप्रोफाइल हत्याकांड में कई पेंच हैं. उज्ज्वला जो पहले बेटे की मौत को स्वभाविक बता रही थीं, अचानक ही पलटी खा गईं और अपूर्वा को हत्यारी ठहराने लगीं.

बकौल उज्ज्वला अपूर्वा की नजर उन की दौलत पर थी और इसी लालच में उस ने रोहित से शादी की थी. बेटे बहू में तनावपूर्ण संबंध थे और दोनों तलाक तक की बात करने लगे थे.

लेकिन उज्ज्वला के बयान का यह विरोधाभास किसी को नहीं समझ आ रहा था कि उन्होंने 16 अप्रैल को सुबह का नाश्ता रोहित के साथ किया था. जबकि पोस्टमार्टम के मुताबिक उस की हत्या रात डेढ़ बजे के लगभग हो चुकी थी.

उज्ज्वला के अपूर्वा पर हत्या का अरोप लगाने के साथसाथ अपूर्वा के माता पिता मंजुला और पी.के. शुक्ला भी हमलावर हो उठे कि उन की बेटी ससुराल में काफी घुटन में रह रही थी और उज्ज्वला ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर के उसे फंसाया है. मंजुला के मुताबिक उज्ज्वला ने दहेज में मोटी रकम मांगी थी.

इस आरोप प्रत्यारोप से अपूर्वा को राहत मिलेगी, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि लंबी पूछताछ के बाद उस ने आखिर 24 अप्रैल को अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उस ने ही गला दबा कर रोहित की हत्या की थी और हत्या के कुछ देर बाद वह अपने कमरे में लौट आई थी. कमरे में आने के बाद वह वाट्सऐप और फेसबुक पर अपने दोस्तों से चैटिंग भी करती रही थी जो बाद में उस ने डिलीट कर दी थी.

अब यह फैसला अदालत करेगी कि रोहित की हत्या अपूर्वा ने की है या नहीं, लेकिन यह तय है कि रोहित की अय्याशी उसे महंगी पड़ी. एन.डी. तिवारी का जैविक बेटा साबित होने के बाद वह बहक गया था. दिल का मरीज होने के बाद भी वह बेतहाशा शराब पीता था. तरस उस पर इसलिए भी आता है कि वह पिता की अय्याशी के चलते पैदा हुआ और खुद की अय्याशी के चलते मारा गया.

एन.डी. तिवारी ने उसे दिल से बेटा माना था या बदनामी से बचने के लिए दिमाग से काम लिया था, यह बात तो उन्हीं के साथ खत्म हो गई. पर लगता ऐसा है कि कानूनी बाध्यता के चलते उन्होंने अपने नाजायज बेटे को स्वीकार लिया था. वह भी उन के ही नक्शेकदम पर चलते अय्याश ही साबित हुआ. इस तरह मरतेमरते भी रोहित साबित कर गया कि वह एन.डी. तिवारी का ही बेटा था.

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एसआई भरती घोटाला : वरदी उतरी, मिली जेल – भाग 2

राजस्थान पेपर लीक की समस्या से जूझ रहे कई राज्यों में से एक है. लगभग एक महामारी की तरह है. पेपर लीक जबरदस्त तरीके से संचालित होता आया है. संगठित मशीनरी है, जिस में अपराधी, छात्र माफिया, कोचिंग सेंटर, प्रिंसिपल और अधिकारी तक शामिल होते हैं. जम्मूकश्मीर से ले कर कर्नाटक तक, गुजरात से ले कर अरुणाचल प्रदेश तक, पिछले 5 वर्षों में पूरे भारत में पेपर लीक की कम से कम 41 घटनाएं हुई हैं.

इन में अकेले राजस्थान में पिछले दशक में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों में परीक्षा पेपर लीक के 25 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शासन काल में पिछले 5 सालों में यह मुद्दा काफी बढ़ गया था.

राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी), राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (आरबीएसई) और राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (आरएसएसबी) समेत राज्य की सभी भरती एजेंसियां इस की चपेट में आ चुकी हैं.

यह समस्या प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन कर राज्य में चुनाव अभियानों और विधानसभा की बहसों में शामिल होती रही है. इस का असर भी हुआ है और मार्च 2022 में राजस्थान सरकार ने एक धोखाधड़ी विरोधी कानून भी पारित किया. बाद में सजा के रूप में आजीवन कारावास को शामिल करने के लिए इस के प्रावधानों को कड़ा कर दिया. भारतीय संसद द्वारा भी फरवरी 2024 में इसी तरह का कानून पारित करने की पहल की गई.

शिक्षक बनने की तमन्ना लिए हुए मोहम्मद आबिद एक पखवाड़े से अधिक समय से जयपुर में रह रहा है. वह जोधपुर जिले के बिलारा का रहने वाला है. अपने घर से केवल एक अतिरिक्त जोड़ी कपड़े, एक कंबल और अपने बटुए में 800 रुपए ले कर निकला था. अपनी नियुक्ति की मांग को ले कर जयपुर में अड़ा हुआ था.

जयपुर के एक सरकारी आश्रय स्थल में सोना और गुरुद्वारों और समाजसेवियों द्वारा बांटे जाने वाले मुफ्त भोजन पर आश्रित बना रहना उस के जीवनयापन का हिस्सा बन गया था. उस ने आरईईटी के अलावा वरिष्ठ शिक्षक परीक्षा भी उत्तीर्ण की है. उच्च कट औफ अंकों के बावजूद उस ने 2021 में आरईईटी पास की.

हालांकि एक अतिरिक्त डिग्री आबिद के गले में एक मुसीबत बनी. उस ने उर्दू पढ़ाने के लिए परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन उस ने अपने स्नातक कार्यक्रम के दौरान इस का अध्ययन नहीं किया था. इस के लिए उस ने एक साल की अलग से डिग्री पूरी की थी. सरकार अब ऐसे अभ्यर्थियों को स्वीकार करने से इनकार कर रही है. यह राजस्थान में भरती संबंधी गतिरोध की एक अलग समस्या है. आबिद की तरह राज्य भर में लगभग 700 अन्य लोग अब इस नए नियम के कारण फंस गए हैं.

ऐसी ही एक उम्मीदवार है पूजा सेन, जो एक सिंगल मदर है. उस ने भी धैर्यपूर्वक 2021 के पेपर लीक मुद्दे के हल होने तक इंतजार किया और दोबारा परीक्षा दी. लेकिन इस तकनीकी ने एक नई बाधा पैदा कर दी है. अब उस के पास आंदोलन करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा. वह खुद को गठिया से पीडि़त बताती है. अपने मातापिता और बड़े भाइयों के साथ रहती है. कोविड के दौरान बीमार होने के चलते निजी स्कूल की नौकरी चली गई थी.

पेपर लीक माफिया पर किया 50 हजार का इनाम घोषित

पेपर लीक को ले कर जयपुर में शहीद स्मारक पर तरहतरह की कहानियांं बिखरी पड़ी थीं. सभी नौकरी पाने की ललक लिए हुए थे. समाज और परिवार से कटे हुए महसूस कर रहे थे. पेपर लीक पर गुस्से में थे. सरकारी नौकरी की भूख बनी हुई थी. बहुतों की नौकरी पाने की आधिकारिक आयु सीमा भी समाप्त होने को थी.

राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सरकार द्वारा पेपर लीक माफियाओं पर एक के बाद एक काररवाई शुरू कर दी गई. जांच एसओजी को सौंपी गई थी. बीते 10 सालों के भीतर टीचर, पुलिस, इंजीनियर की भरती प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर परीक्षा के कुछ घंटे पहले ही लीक हो चुके थे. इसे बेहद संगठित तरीके से चलाया जा रहा था.

एसओजी के द्वारा जूनियर इंजीनियर (जेईएन) पेपर लीक 2020 के मामले में 4 गिरफ्तार किए गए थे. सभी इन दिनों सरकारी महकमे के कर्मचारी हैं. इन में एक हर्षवर्धन मीणा मास्टरमाइंड था. वह राजस्थान में पटवारी है. उस का साथ देने वाला एसआई राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू (30) नेपाल बौर्डर से पकड़ा गया था. तीसरा पकड़ा जाने वाला व्यक्ति राजेंद्र कुमार यादव (55) स्कूल टीचर है, जबकि चौथा शिवरतन मोट (30) लाइब्रेरियन है. चारों पर जयपुर के सरकारी स्कूल से पेपर लीक कर कैंडिडेट को बेचने का आरोप लगा था.

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        आरोपी एसआई राजेंद्र कुमार यादव

जेईएन की परीक्षा 9 दिसंबर, 2020 को होनी थी. उस दिन परीक्षा शुरू होने से 2 घंटे पहले ही बेची गई पेपर की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

इस की प्रशासन को खबर लगने पर तत्काल प्रभाव से परीक्षा रद्द कर दी गई. साथ ही इस मामले को ले कर अज्ञात के खिलाफ एसओजी थाना जयपुर में प्राथमिकी दर्ज करा दी गई. केस की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया और इस की टीम ने गहन जांचपड़ताल और छापेमारी शुरू कर दी. जांच के दौरान सब से पहले हर्षवर्धन मीणा का नाम आया. यह भी पता चला कि वह नेपाल फरार हो गया है. कई महीनों तक जांच टीम उसे दबोचने के लिए नेपाल की खाक छानती रही. इधर राजस्थान पुलिस उस पर 50 हजार का इनाम भी घोषित कर चुकी थी.

एसओजी डीएसपी शिव कुमार भारद्वाज के नतृत्व में टीम को हर्षवर्धन मीणा की ससुराल की जानकारी मिली थी. उस की ससुराल भरतपुर जिले में उच्चैन थाना इलाके के गांव मिलकपुर में है. टीम ने उस की ससुराल में 29 फरवरी की सुबहसुबह दबिश दी. वहीं हर्षवर्धन पकड़ा गया और उस के पास से कई संदिग्ध दस्तावेज जब्त कर लिए गए.

4 आरोपियों की गिरफ्तारी में 3 साल से अधिक समय लग गया. राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू भी नेपाल बौर्डर पर दबोच लिया गया. दोनों जयपुर लाए गए.

दोनों से पूछताछ के बाद जेईएन परीक्षा 2020 के पेपर लीक की चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. साथ ही इस का भी खुलासा हुआ कि इस धंधे में कितने लोग किस तरह से संगठित हो कर काम करते थे. उन्होंने इसे अंजाम देने की पूरी कहानी सिलसिलेवार ढंग से बताई.

उन्होंने बताया कि 9 दिसंबर को परीक्षा शुरू होने से जयपुर के खातीपुरा स्थित शहीद दिग्विजय सिंह सुमेल राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से पेपर लीक को अंजाम दिया गया था. इसी स्कूल के शिक्षक राजेंद्र कुमार यादव और लाइब्रेरियन ने उन का साथ दिया था. परीक्षा का पेपर स्ट्रांग रूम में रखा जा चुका था. वहीं से राजू ने पेपर निकाल लिया. उधर स्कूल के लाइब्रेरियन शिवचरण मोटे ने पेपर बिक्री की डील पहले से ही कर रखी थी.

उन का खेल तब बिगड़ गया, जब परीक्षा रद्द हो गई. तब हर्षवर्धन बेरोजगार था और नौकरी पाने के लिए परीक्षाओं में शामिल हो रहा था. वह फरार हो गया. दरअसल, वर्ष 2020 के जेईएन भरती परीक्षा पेपर लीक को ले कर उस समय खूब हंगामा हुआ था. तब इस मामले में 30 से अधिक लोग अभियुक्त बनाए गए थे. जिस में सभी की गिरफ्तारी हो चुकी थी. पूरे मामले के मुख्य अभियुक्त जगदीश विश्नोई को भी गिरफ्तार करने में सफलता मिली.

अतिरिक्त महानिदेशक एटीएस एवं एसओजी के अनुसार जेईएन भरती परीक्षा 2020 के प्रश्न पत्र को परीक्षा से पहले ही पेपर की फोटो कौपी बाहर अभ्यर्थियों में बेच दिए गए थे. उसे गिरोह के सरगना ने 10 लाख में शिक्षक राजेंद्र यादव से पेपर खरीदा था और अपने गैंग के सदस्य के जरिए वाट्सऐप पर भिजवा दिया था.

फरजीवाड़े में हुआ था हाईटेक तकनीक का प्रयोग

गिरफ्तार आरोपियों में इनामी हर्षवर्धन कुमार मीणा दौसा जिले के महुआ का रहने वाला है और वह पटवारी है, जबकि 55 वर्षीय आरोपी राजेंद्र कुमार यादव पुत्र द्वारका प्रसाद जयपुर के खातीपुरा का रहने वाला है. वह तृतीय श्रेणी सरकारी अध्यापक है.

अन्य 2 आरोपियों में एक का नाम राजेंद्र यादव है. उस के पिता तेजपाल यादव कालाडेरा के पास टाडावास गांव के निवासी हैं. यह राजेंद्र यादव की सबइंसपेक्टर भरती 2021 में चुना जा चुका है. शिवरतन मोटे उर्फ शिवा श्रीगंगानगर का रहने वाला है. वह श्रीगंगानगर में सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन है.

रोहित शेखर का पितृ दोष – भाग 2

बदल गई जिंदगी

कल के गंगू तेली उज्ज्वला और रोहित एक झटके में राजा भोज बन गए थे. सब कुछ सैटल हो गया तो एन.डी. तिवारी अपनी नई पत्नी और नाजायज से जायज बन चुके बेटे के साथ दिल्ली स्थित डिफेंस कालोनी में आ कर रहने लगे. इस आलीशान हवेली की आलीशान जिंदगी रोहित को मिली तो वह बौरा उठा. शौकिया शराब पीने वाला रोहित अब आदतन पियक्कड़ बन चुका था.

वह अकसर अपने नजदीकी लोगों से कहता था कि वह शायद दुनिया का पहला शख्स है जिस ने अपने नाजायज होने की लड़ाई लड़ी, साथ ही वह प्रकाश मेहरा निर्देशित मशहूर फिल्म ‘लावारिस’ फिल्म का वह डौयलोग भी दोहराता था जो नायक अमिताभ बच्चन ने अपने नाजायज पिता बने अमजद खान से कहा था कि कोई भी बेटा नाजायज नहीं होता बल्कि बाप नाजायज होता है.

बहरहाल, जिंदगी ढर्रे पर आ गई तो अनुभवी एन.डी. तिवारी ने रोहित को राजनीति में उतारने की सोची क्योंकि तमाम बदनामियों और दुश्वारियों के बाद भी वे राजनीति से पूरी तरह खारिज नहीं हुए थे. यह वह दौर था जब उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बेहद कमजोर पड़ने लगी थी. यह भी सच है कि इन राज्यों में अगर कांग्रेस को कोई वापस खड़ा कर सकता था, तो वह एन.डी. तिवारी ही थे.

लेकिन राहुल और सोनिया गांधी ने एन.डी. तिवारी पर दांव खेलने का जोखिम नहीं उठाया. रोहित के मुकदमे से हुई बदनामी तो इस की एक वजह थी ही, साथ ही वे 88 साल के हो रहे थे. लिहाजा पहले जैसी भागदौड़ नहीं कर सकते थे. एन.डी. तिवारी ने रोहित को कांग्रेस में जमाने की कोशिश की, लेकिन बात बनी नहीं. इस के बाद वह भाजपा की शरण में गए, लेकिन यहां के शटर भी उन के लिए गिर चुके थे.

जब उन्हें समझ आ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता तो वे एक शांत जिंदगी जीने की कोशिश में लग गए. रोहित और उज्ज्वला ने अपना फर्ज बखूबी निभाया और बीमार एन.डी. तिवारी की सेवा की.

जब दिल्ली के मैक्स अस्पताल में कैंसर जैसी घातक बीमारी से वह जूझ रहे थे, तब उन्हें उन्हीं लोगों ने सहारा दिया और संभाला, जिन्हें वह कभी दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक चुके थे. 18 अक्तूबर, 1925 को नैनीताल में जन्मे एन.डी. तिवारी की मौत भी 18 अक्तूबर, 2018 को ही हुई.

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अपूर्वा की एंट्री

मृत्यु से पहले वे बहू का मुंह देख चुके थे. रोहित ने अपनी पसंद की लड़की अपूर्वा शुक्ला से शादी कर ली थी. अपूर्वा मूलत: इंदौर की रहने वाली है और पेशे से रोहित की तरह वकील है. इन दोनों की मुलाकात अकसर सुप्रीम कोर्ट में होती रहती थी. अपूर्वा की पढ़ाई इंदौर में ही हुई थी, उस के पिता पी.के. शुक्ला इंदौर के नामी वकील हैं. इंदौर में प्रैक्टिस के साथसाथ अपूर्वा सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे लड़ने दिल्ली भी जाने लगी थी.

अपूर्वा एक मध्यमवर्गीय परिवार की महत्त्वाकांक्षी और बेइंतहा खूबसूरत लड़की है, जिस की प्रैक्टिस कोई खास नहीं चलती थी. रोहित जैसा भी था, उस की नजर और आकलन में बेशुमार दौलत का मालिक था. इसलिए उस ने शादी के लिए हां कर दी.

इधर रोहित की दिक्कत यह थी कि एक मशहूर शख्सियत का बेटा होने के बाद भी बराबरी के घराने की लड़की उस से शादी करने को शायद ही तैयार होती क्योंकि आखिरकार वह एक समय में नाजायज औलाद था.

उम्र का 40वां पड़ाव छू रहे रोहित को भी अपूर्वा भा गई थी. दोनों एक साल डेटिंग करने के बाद 11 मई, 2018 को शादी के बंधन में बंध गए. दिल्ली के नामी होटल अशोका में हुई इस शादी में देश की कई जानीमानी राजनैतिक हस्तियां शामिल हुई थीं.

अपूर्वा एन.डी. तिवारी की बहू और रोहित शेखर की पत्नी बन कर डिफेंस कालोनी के उन के आलीशान घर में आ कर रहने लगी थी. स्वास्थ्य कारणों से एन.डी. तिवारी बेटे की शादी में शामिल नहीं हो पाए थे.

इस शादी में सब कुछ ठीकठाक नहीं रहा था. एक ज्योतिषी की सलाह पर अपूर्वा की मां मंजुला शुक्ला ने एक खास तरह की पूजा संपन्न कराई थी, जिस से बेटी का दांपत्य जीवन सुखी रहे. वरमाला के वक्त स्टेज पर भी काफी कुछ असहज दिखाई दिया था, जिस का खुलासा रोहित की हत्या के बाद हुआ.

वह 13 अप्रैल, 2018 का दिन था, जब रोहित अपना वोट डालने के लिए उत्तराखंड के कोटद्वार के लिए अपने परिवारजनों के साथ कारों के काफिले के साथ रवाना हुआ था. रोहित की शादी के बाद उज्ज्वला दूसरे बंगले में रहने आ गई थीं जो तिलक लेन में स्थित है. उन के साथ रोहित का मुंहबोला भाई राजीव जो उज्ज्वला के पहले पति का बेटा है और उस की पत्नी कुमकुम रहते थे. रोहित का सौतेला भाई सिद्धार्थ रोहित के साथ रहता था.

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मां के दूसरे घर में चले जाने के बाद रोहित और भी बेलगाम हो चला था. उस के पास बेशुमार पैसा खर्च करने के लिए था, जिस का वारिस वह लंबी कानूनी लड़ाई और बदनामी के बाद बना था. लिहाजा उस ने पैसे की कीमत नहीं समझी. एन.डी. तिवारी की उसे राजनीति में लाने की कोशिशें नाकाम रही थीं यानी उसे अपने जैविक पिता के हिस्से की दौलत तो मिल गई थी, लेकिन शोहरत नहीं मिल पाई थी.

डिफेंस कालोनी के इस बंगले के अंदर क्या कुछ हो रहा है, इस का अंदाजा बाहर किसी को नहीं था. बड़े लोगों के घरों में किस तरह का तनाव पसरा रहता है, इस का अंदाजा आमतौर पर कोई नहीं लगा पाता. क्योंकि लोगों की नजर में पैसा है तो सब कुछ है, होता है. जबकि हकीकत में संभ्रांत और अभिजात्य कहे जाने वाले इन लोगों के घरों में भी खूब घटिया आरोप प्रत्यारोप, कलह और व्यभिचार होता है.

रोहित कोटद्वार में वोट डाल कर 15 अप्रैल की ही रात घर वापस आ गया था. वह शराब के नशे में था, लेकिन पूरी तरह धुत नहीं था. डिनर उस ने परिवारजनों के साथ लिया, इस के बाद उज्ज्वला तिलक लेन अपने घर चली गईं. उन के जाने के बाद अपूर्वा और रोहित में किसी बात पर कलह किचकिच हुई, जिस से दोनों का मूड औफ हो गया.

पतिपत्नी में हुई थी झड़प

कलह के बाद रोहित ऊपरी मंजिल के अपने कमरे में सोने चला गया और अपूर्वा रोज की तरह नीचे की मंजिल के कमरे में सोई. बंगले की बत्तियां बुझीं तो घरेलू नौकर गोलू और ड्राइवर अभिषेक भी अपनेअपने कमरों में जा कर सो गए. भाई भाभी की आज की कलह के अंजाम से अंजान सिद्धार्थ भी अपने कमरे में जा कर पसर गया, जिस ने एक गंभीर बीमारी का मरीज होने के चलते शादी नहीं की थी.

दूसरे दिन सुबह सभी उठ कर अपने अपने काम में लग गए, सिवाए रोहित के जो अकसर देर से उठता था.चूंकि कुछ महीने पहले ही उस की बाईपास सर्जरी हुई थी, इसलिए कोई उस की नींद में खलल भी नहीं डालता था.  वैसे भी वह बीती रात कोटद्वार से लौटा था, इसलिए सभी को उस के देर तक सोने की उम्मीद थी. किसी ने उस के कमरे में झांकने तक की जरूरत नहीं समझी.

दोपहर ढलने लगी थी. शाम कोई 4 बजे गोलू किसी काम से रोहित के कमरे में गया तो वहां का नजारा देख घबराया हुआ उलटे पांव नीचे आ गया. उस ने अपूर्वा को बताया कि साहब बिस्तर पर बेसुध पड़े हैं और उन की नाक से खून बह रहा है. यह सुनते ही वह घबरा गई और उस ने तुरंत उज्ज्वला को फोन कर रोहित की हालत से अवगत कराया.

इत्तफाक से उज्ज्वला अपने इलाज के सिलसिले में उस वक्त साकेत के मैक्स अस्पताल आई थीं, इसलिए उन्होंने तुरंत अस्पताल की एम्बुलैंस डिफेंस कालोनी स्थित अपने घर भेज दी. एम्बुलैंस से अपूर्वा रोहित को ले कर मैक्स अस्पताल आ गई, लेकिन वहां मौजूद डाक्टरों ने चंद मिनटों की जांच के बाद रोहित को मृत घोषित कर दिया.

इस मामले में चूंकि मैडिको लीगल केस बनता था, इसलिए अस्पताल प्रबंधन ने इस की खबर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह मामला चूंकि थाना डिफेंस कालोनी क्षेत्र का बनता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने थाना डिफेंस कालोनी को सूचना दे दी.

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                                               जांचकर्ता पुलिस टीम

पुलिस आई और जांच व पूछताछ में जुट गई. चूंकि मामला एन.डी. तिवारी के बेटे रोहित शेखर की संदिग्ध मौत का था, इसलिए पुलिस ने संभल कर काम लिया. अपने बयान में उज्ज्वला ने रोहित की बाईपास सर्जरी होने की बात बताई और यह भी बताया कि उस के पिता की मौत भी ब्रेन हेमरेज से हुई थी तो एक क्षण को पुलिस वालों को लगा कि यह स्वाभाविक मौत भी तो हो सकती है. अपूर्वा ने भी रात का घटनाक्रम दोहरा दिया.

चूंकि मौत संदिग्ध थी, इसलिए पुलिस कोई लापरवाही न करते हुए रोहित के घर तक गई. मौत का यह शक उस वक्त यकीन में बदलने लगा, जब अपूर्वा ने कानून की दुहाई देते पुलिस को घर में जाने से रोकने की कोशिश की.

रोहित की लाश पोस्टमार्टम के लिए सौंप चुके पुलिस वालों ने जब रोहित के बैडरूम की तलाशी ली तो बिस्तर के आसपास तरह तरह की दवाइयां बिखरी पड़ी थीं. रोहित के सभी परिवारजन मौत को स्वाभाविक बता रहे थे, इसलिए पुलिस ने कमरे को सील कर दिया. अब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था.

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थानागाजी की निर्भया : सहानुभूति या राजनीति?

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. राजस्थान में 2 चरणों में मतदान होना था. पहले चरण में13 सीटों के लिए 29 अप्रैल को वोट डाले जाने थे, जबकि दूसरे चरण में 12 सीटों के लिए 6 मई को मतदान होना था. पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार जोरों पर था. एक तरफ सूरज आग उगल रहा था और दूसरी तरफ सियासत की गरमी थी.

अलवर जिले में एक तहसील है थानागाजी. अलवरजयपुर स्टेट हाइवे पर विश्व प्रसिद्ध सरिस्का बाघ अभयारण्य थानागाजी तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है.

बीती 26 अप्रैल की बात है, दोपहर के करीब 3 बजे थे. आसमान में कुछ बादल घिर आने से सूरज के तेवर कम हो गए थे. थानागाजी इलाके में एक नवदंपति मोटरसाइकिल पर तालवृक्ष की तरफ जा रहे थे. पति मोटरसाइकिल चला रहा था और पत्नी निर्भया उस के पीछे बैठी थी. निर्भया 19 साल की थी और उस का पति 20 साल का. दोनों की कुछ ही दिन पहले शादी हुई थी.

थानागाजी अलवर बाइपास पर दुहार चौगान वाले रास्ते से कुछ दूर अचानक 2 मोटरसाइकिलों पर सवार 5 युवक तेजी से उन के पास आए. इन युवकों ने नवदंपति की बाइक के आगे अपनी मोटरसाइकिलें लगा कर उन्हें रोक लिया. पतिपत्नी समझ ही नहीं पाए कि क्या बात हो गई, उन्हें क्यों रोका गया.

वे कुछ सवाल करते, इस से पहले ही पांचों युवक उन्हें धमकाते और अश्लील शब्द कहते हुए वहां से सड़क के एक तरफ कुछ दूर बने रेत के बड़ेबडे़ टीलों की तरफ ले गए. रेत के ये टीले इतने ऊंचेऊंचे थे कि उन के पीछे क्या हो रहा है, सड़क से गुजरते लोगों को पता नहीं लग सकता था. टीलों के पीछे से सड़क तक आवाज भी नहीं पहुंच सकती थी.

पतिपत्नी को रेत के टीलों के पीछे ले जा कर पांचों युवकों ने उन से मारपीट की. पति को अधमरा कर एक तरफ बैठा दिया गया. फिर पांचों युवकों ने 19 साल की उस निर्भया से दरिंदगी की. पति ने पत्नी को बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह दरिंदों का मुकाबला नहीं कर सका.

पांचों दरिंदे निर्भया को नोचते रहे. वह हाथ जोड़ कर छोड़ने की भीख मांगती रही, लेकिन दरिंदे अपने साथियों की मर्दानगी पर हंसते और अट्टहास लगाते रहे. निर्भया चीखती रही, लेकिन उस की आवाज उस जंगली इलाके के रेतीले टीबों में ही गूंज कर रह गई.

दरिंदों ने निर्भया के कपड़े फाड़ कर दूर फेंक दिए. इस दौरान वे हैवान अपने मोबाइल से दरिंदगी का वीडियो भी बनाते रहे. इस दौरान युवक आपस में छोटेलाल, जीतू और अशोक के नाम ले रहे थे. जब दरिंदों का मन भर गया तो उन्होंने निर्भया के पति का मोबाइल नंबर लिया. फिर उसे जान से मारने और वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर पांचों मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर भाग गए.

उन के जाने के काफी देर बाद तक लुटेपिटे पतिपत्नी एकदूसरे को ढांढस बंधाते हुए अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते रहे. कुछ देर बाद जब उन के होशहवास ठीक हुए तो वे फटे कपड़े लपेट कर मोटरसाइकिल से अपने गांव गए.

गांव पहुंच कर उन्होंने घर वालों को इस घटना के बारे में बताया. निर्भया और उस का पति अनुसूचित जाति से होने के साथ गरीब भी थे. दरिंदगी का वीडियो वायरल करने, पति को मारने की धमकी दिए जाने के कारण निर्भया ने उस समय पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई. घटना के दूसरे दिन निर्भया अपने मायके चली गई और उस का पति जयपुर चला गया, जहां वह पढ़ रहा था.

तीसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह निर्भया के पति के मोबाइल पर छोटेलाल का फोन आया. वह मिलने के लिए कह रहा था. निर्भया के पति ने मना किया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा, मिलना तो तुझे पड़ेगा वरना वीडियो वायरल कर देंगे.’’

निर्भया के पति ने कहा कि तुम से मेरा भाई मिल लेगा. उस ने छोटेलाल को चचेरे भाई का मोबाइल नंबर दे दिया. इस के बाद पति ने यह बात अपने चचेरे भाई को बता दी. उस ने यह सच्चाई निर्भया के पति के सगे भाई को बता दी. छोटेलाल उसे कभी कराणा बुलाता तो कभी थानागाजी आने की बात कहता.

दोपहर में छोटेलाल का फिर फोन आया और उस ने 10 हजार रुपए की डिमांड की. निर्भया के पति ने कहा कि मैं पढ़ता हूं, 10 हजार कहां से दूंगा. इस पर उस ने कहा, ‘‘देने तो पड़ेंगे चाहे एक हजार रुपए कम दे देना.’’

वीडियो वायरल के डर से निर्भया के पति ने उसे कुछ हजार रुपए भिजवा भी दिए. पति के भाई ने यह बात पिता को बताई तो उन्होंने अपने बेटे को जयपुर से बुलवा लिया.

रुपए ऐंठने के बाद भी दरिंदों ने निर्भया के पति को काल कर के फिर पैसे मांगे तो निर्भया का परिवार अपने परिचितों के माध्यम से थानागाजी के विधायक कांती मीणा के पास पहुंचा. उन्होंने विधायक को सारी बात बताई. विधायक ने उन की रिपोर्ट दर्ज करवाने और आरोपियों के खिलाफ काररवाई कराने का आश्वासन दिया, लेकिन चुनाव के बाद.

30 अप्रैल को निर्भया और उस का पति अलवर जा कर एसपी राजीव पचार से मिले. निर्भया ने रोतेरोते एसपी को पति के सामने हुए सामूहिक दुष्कर्म की आपबीती बताई. एसपी ने थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को वाट्सऐप पर पीडि़ता की रिपोर्ट भेज कर मुकदमा दर्ज करने को कहा.

पुलिस को गैंगरेप भी मामूली सी घटना लगा

पुलिस ने इस शर्मनाक वारदात को भी साधारण तरीके से लिया. थानागाजी थानाप्रभारी ने 2 मई को दोपहर 2.31 बजे इस मामले में धारा 147, 149, 323, 341, 354बी, 376डी, 506 आईपीसी और एससी/एसटी ऐक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में छोटेलाल गुर्जर निवासी कराणा बानसूर और जीतू व अशोक के नाम थे, जबकि 2 आरोपी अज्ञात थे.

भले ही पुलिस ने घटना के 7वें दिन मुकदमा दर्ज कर लिया, लेकिन मीडिया से इसे छिपा लिया. पुलिस ने मामले की जांच में भी लापरवाही बरती. उस दिन पीडि़ता का मैडिकल भी नहीं कराया गया. न ही अभियुक्तों को पकड़ने की कोई काररवाई की गई.

पुलिस को यह बात भी बता दी गई थी कि दरिंदे बारबार फोन कर के वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन पुलिस ने न तो इसे गंभीरता से लिया और न ही इस के दूरगामी परिणामों के बारे में सोचा.

रिपोर्ट दर्ज होने के दूसरे दिन 3 मई को पुलिस ने अलवर में पीडि़ता का मैडिकल कराया. पुलिस ने उसी दिन पीडि़ता, उस के पति, पिता और ससुर के बयान दर्ज किए. उसी दिन पुलिस ने पीडि़ता को साथ ले जा कर मौका नक्शा बनाया.

लापरवाही इतनी रही कि एक आरोपी का नामपता और मोबाइल नंबर होने के बावजूद पुलिस ने उसे पकड़ना तो दूर, उसे थाने बुलाने की जहमत तक नहीं उठाई. इस से उन दरिंदों के हौसले बढ़ गए. इस बीच फोन पर बारबार धमकाने के बावजूद जब दोबारा पैसे नहीं मिले तो दरिंदों ने 4 मई को सोशल मीडिया पर वे वीडियो वायरल कर दिए, जो उन्होंने निर्भया से दरिंदगी करते हुए बनाए थे.

6 मई तक ये वीडियो असंख्य मोबाइलों तक पहुंच चुके थे. 6 मई को ही राजस्थान में अलवर सहित 12 लोकसभा सीटों के लिए मतदान था. मतदान के बाद पुलिस ने इस घटना को मीडिया में उजागर किया. तब तक सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो बम बन चुका था, जो किसी भी गैरतमंद आदमी को हिला देने के लिए काफी था.

7 मई को राजस्थान के मीडिया में थानागाजी गैंगरेप की सुर्खियों ने लोकसभा चुनाव की गरमी को भी ठंडा कर दिया. मीडिया ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए सवाल उठाए कि चुनाव के कारण इस घटना का खुलासा नहीं कर पुलिस क्या किसी को सियासी फायदा देना चाहती थी? या फिर समझौता कर इस मामले को रफादफा करना चाहती थी? पुलिस कहीं आरोपियों के पक्ष में तो नहीं थी? अगर ऐसा नहीं था तो वीडियो वायरल होने के बाद ही पुलिस ने यह घटना उजागर क्यों की?

वीडियो वायरल होने से यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई. इस के बाद सरकार और पुलिस अफसरों की नींद खुली. सरकार ने आननफानन में अलवर के एसपी आईपीएस अधिकारी राजीव पचार को हटा कर पदस्थापन की प्रतीक्षा में रख दिया. थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को निलंबित कर दिया गया. इसी थाने के एएसआई रूपनारायण, कांस्टेबल रामरतन, महेश कुमार और राजेंद्र को लाइन हाजिर कर दिया गया.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि पुलिस की ओर से अगर किसी भी स्तर पर लापरवाही हुई है तो सख्त काररवाई होगी. महिला सुरक्षा के प्रति सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी सामूहिक दुष्कर्म की इस घटना को बेहद शर्मनाक बताया.

डीजीपी कपिल गर्ग ने जयपुर में प्रैस कौन्फ्रैंस कर कहा कि थानागाजी थाने के सभी पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की जाएगी. रिपोर्ट दर्ज होने के 5 दिन तक निष्क्रिय बैठी पुलिस ने आननफानन में अभियुक्तों को पकड़ने के लिए 14 टीमों का गठन कर दिया. अलवर से ले कर दिल्ली, गुड़गांव और बीकानेर तक पुलिस टीमें भेजी गईं.

पुलिस ने भागदौड़ कर एक 22 वर्षीय अभियुक्त इंदराज गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. वह जयपुर जिले के प्रागपुरा का रहने वाला था. इस के अलावा वीडियो वायरल करने के आरोप में काली खोहरा निवासी मुकेश गुर्जर को सरिस्का के जंगल से पकड़ा गया.

गैंगरेप में भी राजनीति

सामूहिक दुष्कर्म की घटना सामने आने पर एक ओर जहां लोगों में गुस्सा था, वहीं राजनीति भी शुरू हो गई थी. थानागाजी कस्बे में सर्वसमाज की विशाल पंचायत हुई. इस में राज्यसभा सांसद डा. किरोड़ीलाल मीणा और थानागाजी विधायक कांती मीणा भी शामिल हुए.

पंचायत में फैसला लिया गया कि 24 घंटे में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर कस्बे के बाजार बंद कर आंदोलन किया जाएगा. डा. किरोड़ीलाल मीणा ने 8 मई को हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जयपुर में मुख्यमंत्री कार्यालय का घेराव करने की भी चेतावनी दी. राजनीति में ऐसा ही होता है.

जिला कलेक्टर इंद्रजीत सिंह ने तुरतफुरत पीडि़ता को 4 लाख 12 हजार 500 रुपए की आर्थिक सहायता राशि मंजूर कर दी. दरअसल एससी/एसटी की महिला से दुष्कर्म का मुकदमा होने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से प्रथम किस्त के रूप में इतनी राशि देने का प्रावधान है.

8 मई को इस घटना के विरोध में अलवर से ले कर जयपुर तक धरनाप्रदर्शन होते रहे. थानागाजी में हजारों लोगों ने अलवरजयपुर सड़क मार्ग जाम कर दिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, मंत्री और अधिकारी पीडि़ता से मिलने के लिए थानागाजी से 7 किलोमीटर दूर उस के गांव पहुंच गए.

लोगों ने कहा कि पुलिस प्रशासन के साथ नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. हम ने घटना की जानकारी देने के लिए कई नेताओं को फोन किए लेकिन किसी ने मदद नहीं की.

पीडि़त परिवार ने राजस्थान सरकार के श्रम राज्यमंत्री और अलवर ग्रामीण के विधायक टीकाराम जूली को 30 अप्रैल को फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में व्यस्त हैं. बाद में जूली ने माना कि फोन आया था, लेकिन यह नहीं पता था कि मामला इतना गंभीर है.

जयपुर में राज्यसभा सांसद डा. किराड़ीलाल मीणा एवं पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास के पास सिविललाइन फाटक पर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस आपस में गुत्थमगुत्था हो गए. आधे घंटे तक हंगामा होता रहा.

बाद में प्रदर्शनकारियों ने राजभवन जा कर राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया. राजस्थान यूनिवर्सिटी में एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री के पुतले के साथ प्रदर्शन किया. अलवर में विभिन्न संगठनों के अलावा महिलाओं ने भी जुलूस निकाले और अधिकारियों को ज्ञापन दिए.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में प्रसंज्ञान ले कर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया. साथ ही मुख्य सचिव और महानिदेशक से 6 सप्ताह में रिपोर्ट मांगी.

इस मामले में उस समय नया मोड़ आ गया, जब पीडि़ता के पति ने राज्य के पूर्वमंत्री और थानागाजी के पूर्व विधायक हेमसिंह भड़ाना पर समझौते का दबाव बनाने का आरोप लगाया. हालांकि भड़ाना ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता कर सिरे से नकार दिया.

पुलिस ने 8 मई की रात तक 3 अन्य आरोपियों अशोक गुर्जर, महेश गुर्जर और हंसराज गुर्जर को भी गिरफ्तार कर लिया. मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

9 मई को भी अलवर और जयपुर सहित पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन होता रहा. इस के बावजूद सरकार की लापरवाही रही कि वायरल वीडियो ब्लौक करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को निर्देश तक नहीं दिए. यह वीडियो गूगल, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर 9 मई तक पीडि़तों की इज्जत तारतार करता रहा. भाजपा ने अलवर में धरना दे कर मामले की जांच सीबीआई से कराने, पीडि़ता को 50 लाख रुपए मुआवजा देने, एसपी व थानाप्रभारी पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की.

महिला आयोग भी आया आगे

राष्ट्रीय महिला आयोग के दल ने थानागाजी पहुंच कर पीडि़ता से मुलाकात की. आयोग की सदस्य डा. राहुल बेन देसाई और नेहा महाजन ने इस दौरान मौजूद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजिलेंस गोविंद गुप्ता और आईजी एस. सेंगाथिर को सोशल मीडिया पर वीडियो फोटो अपलोड करने वालों पर तुरंत एक्शन लेने के निर्देश दिए. देश भर से विभिन्न जनसंगठनों के पदाधिकारी भी थानागाजी पहुंचे और पीडि़त परिवार से मिले.

पुलिस ने घटना के 13 दिन बाद मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. उसे सीकर जिले के अजीतगढ़ से पकड़ा गया, जहां वह एक ट्रक में छिपा हुआ था. छोटेलाल इस ट्रक में सवार हो कर गुजरात भागने की फिराक में था. छोटे शराब की दुकान पर सेल्समैन का काम करता था. बानसूर के रतनपुरा गांव निवासी छोटेलाल के खिलाफ 2 आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं.

दूसरी ओर, पुलिस ने अलवर की अदालत में पीडि़ता के धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. वहीं, राज्य सरकार ने मामले की प्रशासनिक जांच के लिए जयपुर के संभागीय आयुक्त को नियुक्त किया. इस के अलावा चुनाव आचार संहिता लगी होने के कारण निर्वाचन आयोग से अनुमति मिलने के बाद आईपीएस औफिसर देशमुख पारिस अनिल को अलवर का एसपी नियुक्त किया गया.

पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाने पर 10 मई को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष एल. मुरुगन इस घटना की जांच करने थानागाजी पहुंचे. वे पीडि़ता और उस के परिवार से भी मिले. इस दौरान राजस्थान के मुख्य सचिव डी.बी. गुप्ता और पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग मौजूद रहे.

आयोग के उपाध्यक्ष ने पीडि़ता से मुलाकात के बाद कहा कि 30 अप्रैल को एसपी को परिवाद देने के बाद भी पुलिस ने 2 मई को मुकदमा दर्ज किया और 7 मई को ऐक्शन में आई, यह साफतौर पर सरकार की लापरवाही है. हम राज्य सरकार की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.

फिलहाल प्रशासन को पीडि़ता के परिवार की नौकरी की मांग और सरकारी सहायता देने के लिए कहा गया है. इस के अलावा केस दर्ज करने में लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और और पीडि़त परिवार की स्थाई सुरक्षा की व्यवस्था करने को भी कहा गया है.

मुरुगन ने कहा कि आयोग के निर्देश पर यूट्यूब से घटना के वीडियो हटवाए गए हैं. पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहे हैं.

जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्चस्तरीय बैठक कर ऐसे मामलों में कड़े कदम उठाने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि अगर कोई थानेदार थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करेगा तो एसपी को दर्ज करनी होगी. ऐसे थानेदार के खिलाफ सख्त काररवाई होगी. महिला अत्याचार की घटनाओं की मौनिटरिंग के लिए हर जिले में महिला सुरक्षा डीएसपी का नया पद सृजित किया जाएगा.

यह सिर्फ महिलाओं के अपहरण, दुष्कर्म, गैंगरेप आदि मामलों की जांच करेगा. यह डीएसपी महिला थानों की मौनिटरिंग के साथ सामाजिक न्याय व महिला बाल विकास विभाग से समन्वय स्थापित करेगा और महिलाओं व बच्चों पर होने वाले अत्याचार के मामलों में काररवाई करेगा. गहलोत ने कहा कि थानागाजी के मामले को केस औफिसर स्कीम में ले कर आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी.

11 मई को थानागाजी गैंगरेप मामले में देश की सियासत गरमा गई. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान सरकार को सीधे निशाने पर लिया.

पीडि़त से हमदर्दी सिर्फ नाम की

मायावती ने लखनऊ में आयोजित चुनावी रैली में इसे अतिघृणित घटना बताते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार के चलते उस दलित महिला को इंसाफ मिलेगा.

पुलिस ने इस मामले में अलवर जेल में न्यायिक अभिरक्षा भुगत रहे 3 आरोपियों हंसराज गुर्जर, महेश गुर्जर व इंदरराज गुर्जर की शिनाख्त परेड कराई. इस के बाद इन्हें 13 मई तक रिमांड पर लिया गया. 3 आरोपी पहले ही 13 मई तक रिमांड पर थे. बाद में अदालत से सभी 6 आरोपियों की रिमांड अवधि 16 मई तक बढ़वा ली गई.

14 मई को इस मामले में जयपुर कूच करने निकले सांसद डा. किरोड़ीलाल और उन के समर्थकों ने दौसा में जयपुरदिल्ली रेलवे ट्रैक जाम करने का प्रयास किया. पुलिस ने खदेड़ा तो किरोड़ी समर्थकों ने पथराव किया. पथराव के कारण कई ट्रेनें बीच रास्ते में रोक दी गईं. काफी देर तक लाठीभाटा जंग होती रही.

इस जंग में 5 पुलिसकर्मियों सहित 8 लोग घायल हो गए. एसपी व एडीएम सहित कई अधिकारियों को भी चोटें आईं. बाद में पुलिस ने किरोड़ी के साथ पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़, विधायक हनुमान बेनीवाल व गोपीचंद को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.

दूसरी ओर, पीडि़ता के पिता ने कहा कि उन का परिवार इस घटना के बाद लोगों के आनेजाने और इस से हुई बदनामी से परेशान है. उन्होंने सरकार से मांग की कि पीडि़त दंपति को सरकारी नौकरी दे कर किसी ऐसी जगह भेज दिया जाए, जहां उन्हें कोई न पहचान सके. 7 दिन में इतने नेता और लोग घर पहुंचे कि पूरे देश और समाज को पता चल गया कि वीडियो में दिखे पतिपत्नी का मकान यह है.

15 मई को भी अलवर व जयपुर सहित प्रदेश के कई हिस्सों में आंदोलन होते रहे. थानागाजी में सर्वसमाज ने आक्रोश रैली निकाली. इस दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का थानागाजी आने का कार्यक्रम था लेकिन मौसम खराब होने से उन का हेलीकौप्टर दिल्ली से उड़ान नहीं भर सका.

16 मई को राहुल गांधी थानागाजी क्षेत्र में पीडि़ता से मिलने उस के घर पहुंचे. राहुल ने पीडि़ता, उस के पति और उस के परिवार के लोगों से करीब 15 मिनट तक अकेले में बात कर घटना की जानकारी ली. घटना के बारे में बताते हुए पीडि़ता व उस का पति रो पड़े तो राहुल भी भावुक हो गए.

राजनीति के लिए नेताओं के घडि़याली आंसू

राहुल ने पीडि़ता के पति को गले लगाया अैर कहा कि यह राजनीति नहीं है, आप को न्याय जरूर मिलेगा. परिवार ने पीडि़ता व उस के पति के पुनर्वास, सरकारी नौकरी व आरोपियों को कठोर सजा दिलाने की मांग रखी.

इस दौरान मौजूद मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि पीडि़ता के लिए सरकारी नौकरी का इंतजाम किया जाएगा. अलवर जिले में अपराध के आंकड़ों को देखते हुए 2 एसपी लगाए जाएंगे. इस केस में 7 दिनों में चालान पेश कर दिया जाएगा.

पुलिस ने सभी आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर अलवर की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस ने अदालत में अर्जी पेश कर पीडि़ता के पति को मोबाइल पर धमकी दे कर 10 हजार रुपए मांगने के आरोपी छोटेलाल की आवाज के नमूने लेने की अनुमति मांगी.

17 मई को इस मामले की प्रशासनिक जांच कर रहे जयपुर के संभागीय आयुक्त के.सी. वर्मा ने अलवर में जनसुनवाई कर घटना से संबंधित तथ्य जुटाए. दूसरी ओर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने राजस्थान में बढ़ रहे यौन अपराधों के मामले में स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक और सरकार से जवाब तलब किया है.

यह विडंबना ही है कि चुनाव के दौरान थानागाजी का यह मामला पूरे देश में चर्चा में आ गया. इस से राजनीति में भी उबाल आया. सभी प्रमुख दलों के नेता बयानबाजी करते रहे. कुछ लोग राजनीतिक रोटियां भी सेकते रहे. जबकि जरूरत थी पीडि़ता का दर्द कम करने की. इस के लिए जरूरी था कि राजनीति बंद होती.

पीडि़ता का पुनर्वास होना जरूरी है. सरकारी नौकरी से उसे कुछ सहारा मिलेगा तो शायद वह अपने कामकाज में व्यस्त हो कर दिल दहलाने वाली इस घटना को भुलाने की कोशिश कर सके. साथ ही ऐसे दरिंदों को कठोर सजा मिलनी चाहिए, ताकि ऐसी मानसिकता के लोगों को सबक मिल सके.

थानागाजी गैंगरेप मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज होने के 16 दिन बाद 18 मई को अलवर की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी. 500 पेज की चार्जशीट में 6 आरोपी हैं. इनमें 5 मुलजिमों के खिलाफ गैंगरेप, अपहरण, रास्ता रोकने, मारपीट, निर्वस्त्र करने, जातिसूचक शब्द बोलने, मानसम्मान को ठेस पहुंचाने, डकैती व धमकी देने सहित प्रताडि़त करने और एक अभियुक्त पर वीडियो वायरल करने का आरोप है.

पुलिस ने मामले की त्वरित सुनवाई के लिए केस औफिसर नियुक्त किया है. अदालत में दिनप्रतिदिन सुनवाई के लिए अरजी दी गई है, ताकि आरोपियों को जल्द सजा मिल सके. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जिन धाराओं में चालान पेश किया है, उन में आरोप साबित होने पर इन दरिंदों को मरते दम तक उम्रकैद की सजा हो सकती है.

मामले का वीडियो फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करने पर पुलिस ने यूट्यूब पर बने एक चैनल टौप न्यूज 24 के खिलाफ अलवर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया है. यह मुकदमा कोतवाली थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने खुद दर्ज कराया है.

दूसरी ओर, सरकार ने पीडि़ता को सरकारी नौकरी देने की तैयारी शुरू कर दी है. सरकार ने उसे राजस्थान पुलिस या जेल पुलिस में से कोई एक कांस्टेबल पद चुनने का विकल्प दिया है. इस में पीडि़ता ने राजस्थान के जयपुर सिटी में पोस्टिंग मांगी.

—पीडि़ता का निर्भया नाम काल्पनिक है