Crime Stories : लाठियों से पीटकर पिता ने बेटी को मारा डाला

Crime Stories : राहुल प्रीति को प्यार करता था, प्रीति भी प्यार के बंधन में बंधी थी. लेकिन प्रीति के घरवाले इस प्रेम के दुश्मन बन गए. उन्होंने प्रीति की हत्या कर उस की लाश न केवल जला दी, बल्कि उस से जुड़े सारे सबूत भी नदी में बहा दिए. राहुल इस से पूरी तरह अनभिज्ञ था. प्रीति की हत्या का राज 7 महीने बाद तब खुला जब…

राहुल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. उसे सुबहसुबह बनसंवर कर जाते देख मां ऊषा देवी ने टोकते हुए कहा,‘‘राहुल, इतना बनसंवर कर कहां चल दिया?’’

‘‘मां, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से न टोका करो. मैं एक बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं.’’

‘‘लेकिन बेटा, तू तो आज मेरे साथ बाजार जाने वाला था.’’

‘‘मां, बाजार शाम को चलेंगे. मैं लौट कर नहीं आऊंगा क्या, जाता हूं मुझे देर हो रही है.’’ इतना कह कर राहुल घर से निकल गया. थोड़ी देर में वह पूर्व निश्चित जगह पर पहुंच गया और इंतजार करने लगा. लगभग 20 मिनट बाद उस की नजर अपनी तरफ आती एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस के पास आते ही राहुल बोला,‘‘इतनी देर क्यों लगा दी प्रीति, मैं कब से यहां बाजार में खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार तो करना ही पड़ेगा. वैसे अब तक तुम्हें इस की आदत पड़ जानी चाहिए थी.’’ प्रीति ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए शरारती लहजे में कहा.

‘‘क्या करूं प्रीति, यह कमबख्त दिल नहीं मानता. जब तक तुम्हारा दीदार नहीं हो जाता, मुझे चैन नहीं आता. मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

राहुल का प्यार देख प्रीति भावविभोर हो कर बोली,‘‘मुझे मालूम है राहुल, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्यार है. तुम्हारे इस प्यार के लिए तो मैं किसी से भी लड़ जाऊंगी. मेरी इन आंखों को भी तुम्हारा दीदार करने के बाद ही सुकून मिलता है.’’

‘‘प्रीति, आज कालेज की छुट्टी करो. खूब घूमेंगे, खाएंगे पीएंगे. आज मौसम भी काफी रोमांटिक है, खासतौर पर हम जैसे प्यार करने वालों के लिए.’’

प्रीति तैयार हो गई तो ही राहुल उसे बाजार घुमाने लगा. राहुल ने उस की पसंद की चीजें भी दिलाईं. फिर कुल्फी खरीदी और कुल्फी खातेखाते वह दूर एक सुनसान जगह पर पहुंच गए. वहां दोनों एक एकांत जगह देख बैठ गए. दोनों ही बहुत खुश थे. जिस दिन एक साथ घूमने का मौका मिल जाता था, दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में डूब जाते थे. उन की शरारतें भी एकाएक बढ़ जाती थीं. प्रीति को तल्लीनता से कुल्फी खाते देख राहुल को शरारत सूझी. उस ने अचानक प्रीति का हाथ अपनी तरफ खींच कर उस की थोड़ी कुल्फी खा ली और आंख बंद कर के उस के स्वाद का आनंद लेते हुए बोला, ‘‘वाह प्रीति, तुम्हारी कुल्फी का तो जबाब नहीं. तुम्हारी कुल्फी मेरी कुल्फी से ज्यादा मीठी है.’’

‘‘राहुल, हम दोनों की कुल्फी एक जैसी है. फिर केवल मेरी कुल्फी कैसे ज्यादा मीठी हो सकती है.’’ प्रीति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कुल्फी तुम्हारे गुलाबी होंठों से लग कर मीठी हुई है.’’ राहुल ने प्रीति के गुलाबी होंठों को अंगुली से छूते हुए कहा. इस पर प्रीति प्यार से राहुल के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बहुत शरारती होते जा रहे हो. एक बार शादी हो जाने दो, फिर तुम्हारी सारी शरारतें छुड़वा दूंगी.’’

‘‘अभी शादी हुई नहीं और ये तेवर. अब तो मैं तुम से शादी ही नहीं करूंगा.’’

‘‘बच्चू, मुझ से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’’ प्रीति ने इस अंदाज में कहा कि राहुल हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर प्रीति भी हंस पड़ी. दोनों में काफी देर तक प्रेमिल नोंकझोंक होती रही. जब काफी समय हो गया तो दोनों एकदूसरे से विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए. प्रीति जनपद प्रतापगढ़ के अंतू थाना क्षेत्र के गांव नंदलाल का पुरवा की रहने वाली थी, उस के दादा रामप्यारे वर्मा थे, जो खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे थे राजू, राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश. वे सभी भाई शादीशुदा थे. सभी बेटों के पास अपनेअपने हिस्से की जमीन थी. रामप्यारे के सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ सुखी थे.

रामप्यारे का सब से बड़ा बेटा था राजू. वह सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटियां प्रीति और पूजा थीं. प्रीति निहायत खूबसरत थी. उस पर उस की कातिल मुसकान उस के चेहरे को और भी खूबसूरत बना देती थी. वह बीए तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. राहुल प्रतापगढ़ के सांगीपुर थानाक्षेत्र के गांव सिंघनी निवासी नन्हे वर्मा का बेटा था. नन्हे खेतीबाड़ी करते थे. नन्हे और ऊषा के 3 बेटों में राहुल बड़ा था. वह बीए तक पढ़ा था. राहुल काफी स्मार्ट था. राहुल के मामा फूलचंद्र वर्मा नंदलाल का पुरवा गांव के रहने वाले थे. फूलचंद्र राजू वर्मा का पड़ोसी था.

राहुल बाइक से अकसर अपने मामा के यहां जाता रहता था. इस आनेजाने में उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो उस के दिल की घंटी बजने लगी. अब जब भी उस का मन होता माया के गांव जा कर प्रीति को देख ले. जब कभी प्रीति बाजार या सहेलियों के यहां जाती तो राहुल उस के पीछे लग जाता. प्रीति से उस की गतिविधियां छिपी नहीं थीं. उसे भी राहुल अन्य युवकों की अपेछा कुछ अलग सा लगा था. प्रीति रोज कालेज जाती थी. एक दिन रास्ते में खड़ा हो कर वह प्रीति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में प्रीति आती दिखाई दी. उसे देखते ही राहुल के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. जैसे ही उस की नजरें प्रीति से टकराईं, उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. प्रीति ने उसे देख लिया था. वह राहुल के पास आ कर धीरे से मुसकराई और सामने से गुजर गई.

राहुल ने भी प्रीति के पीछे अपने कदम बढ़ा दिए. उस ने आसपास देखा और फि़र आहिस्ता से उसे आवाज दी, ‘‘प्रीतिजी!’’

प्रीति को भी आभास था कि राहुल उस के पीछे आ रहा है. लिहाजा चौंकने के बजाय उस पर नजर पड़ते ही प्रीति बोली, ‘‘त…तुम, मेरा मतलब आप..?’’

‘‘पहला संबोधन ही रहने दो, मुझे वही अच्छा लगता है.’’ राहुल ने उस के बराबर में आते हुए कहा.

‘‘सम्मान में बोलना चाहिए,’’ प्रीति बोली.

‘‘खैर छोडि़ए इन बातों को.’’ राहुल ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा,‘‘आज इतनी देर कैसे हो गई आप को?’’

‘‘रात देर तक जागती रही, इसलिए सुबह देर से आंख खुली.’’ प्रीति ने शोखी से जवाब दिया.

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सका, सुबह के वक्त नींद आई.’’

‘‘क्या रात भर पढ़ते रहे?’’

‘‘हां, रात भर मैं तुम्हारे चेहरे की हसीन किताब अपनी आंखों के सामने रख कर पन्ने पलटता रहा.’’ राहुल ने कहा तो प्रीति ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘इस तरह की बात न करो.’’

‘‘क्यों, क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. आप की बातें रात को मुझे परेशान करेंगी. अब आप जाओ, कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा.’’

प्रीति चौंकी,‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि कल फिर मिलोगी.’’

‘‘देखूंगी.’’ कह कर प्रीति आगे बढ़ गई. राहुल उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन राहुल का किसी काम में मन नहीं लगा. रात भी जैसेतैसे गुजरी. अगले दिन वह फिर उसी निर्धारित जगह जा पहुंचा. थोड़ी ही देर में प्रीति वहां आई तो वह भी उस के साथ हो लिया.

‘‘एक बात कहूं प्रीति?’’

‘‘कहो.’’

‘‘किसी से मिलने की चाहत हो या उस की एक झलक पाने की तड़प, बहुत अजीब सा लगता है न?’’ राहुल ने गंभीरता ने कहा तो प्रीति बोली, ‘‘पहेलियां क्यों बुझाते हो? जो कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सच कह दूं.’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और…’’ राहुल कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन प्रीति ने अपनी तर्जनी उस के होंठों पर रख कर चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘सड़क पर सब को सुनाओगे क्या?’’ इसी के साथ उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई.

राहुल की खुशी का पारावार न रहा. वह प्रीति से बोला, ‘‘मेरी बात का जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘क्या जवाब दूं?’’ प्रीति ने उल्टा प्रश्न किया.

‘‘जो तुम्हें अच्छा लगे.’’ राहुल बोला.

‘‘मुझे तो सभी कुछ अच्छा लगता है.’’

‘‘फिर भी.’’

‘‘इतने नासमझ तो नहीं हो, जो आंखों की भाषा भी न पढ़ सको. जरूरी नहीं कि जुबां से प्यार का इजहार किया जाए.’’

प्रीति की बात सुनते ही राहुल खुशी से झूम उठा. उस ने आसपास देखा, फिर प्रीति की कलाई पकड़ कर उस ने धीरे से दबा दी. राहुल के ऐसा करने से प्रीति के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने जल्दी से अपनी कलाई छुड़ा ली.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो, प्रीति.’’

‘‘देखने वाले की नजर अच्छी हो तो सभी अच्छे लगते हैं.’’

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को हसरत भरी नजरों से देखा और अलगअलग रास्तों पर चले गए. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. हालांकि दोनों अपने प्रेमसंबंधों को ले कर काफी सावधानी बरतते थे. मगर गांव में उन्हें ले कर कानाफूसी होने लगी थी. दूसरी तरफ प्रीति ने हिम्मत कर के अपनी मां रमा से राहुल से शादी करने की बात बताई तो वह चीखती हुई बोली, ‘‘करमजली, इसी दिन के लिए तुझे पालपोस कर बड़ा किया था कि तू सरेराह नाक कटवाती घूमे. फिर जिस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं, उस के बारे में बात करना ही बेकार है.’’

रमा उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, देख हम तेरे दुश्मन नहीं हैं, इसलिए तुझे अच्छी शिक्षा ही देंगे. मेरी बात मान कर उसे भूल जा. वैसे भी रिश्ते में तू उस की मौसी लगती है, इसलिए तेरा विवाह उस से नहीं हो सकता. अपनी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का देख कर तेरी शादी धामधाम से करेंगे.’’

‘‘तो एक बात मेरी भी कान खोल कर सुन लो. अगर हमारे दरवाजे पर राहुल के अलावा कोई और बारात ले कर आया तो इस घर से मेरी अर्थी ही उठेगी.’’ कह कर प्रीति पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई. उस के बाद वह हिचकियां लेकर रो पड़ी. इन सब अड़चनों के बीच प्रीति और राहुल काफी चिंताग्रस्त रहने लगे. इन्हीं परेशानियों से घिर कर राहुल ने प्रीति के पिता राजू से जब विवाह की बाबत बात की तो वह एकाएक भड़क उठे, ‘‘अभी तक लोगों से तुम्हारी आवारगी के बारे में ही सुन रखा था, तुम तो चरित्र के भी गिरे निकले. तुम दोनों के बीच ऐसा रिश्ता है कि शादी तो संभव ही नहीं है. कान खोल कर सुन लो, आज के बाद तुम मेरी बेटी से नहीं मिलोगे.’’

राजू जानता था कि लाख चेतावनी के बाद भी दोनों मानेंगे नहीं, मिलेंगे जरूर. इसलिए वह प्रीति को अपने साथ सूरत ले गया. वहां एक निजी स्कूल में उस की अध्यापिका के पद पर नौकरी लगवा दी. राहुल भी दिल्ली चला गया और वहां प्राइवेट नौकरी करने लगा. राहुल और प्रीति मिल तो नहीं पाते थे लेकिन मोबाइल पर बातें कर लेते थे. इस बातचीत के दौरान ही दोनों ने परिजनों से बिना बताए विवाह करने का फैसला कर लिया. राहुल दिल्ली से सूरत गया. वहां दोनों ने एक मंदिर में विवाह कर लिया. राहुल की उम्र 21 वर्ष से कम थी, इसलिए कोर्ट मैरिज नहीं हो सकती थी. इस की भनक राजू को लग गई. वह प्रीति को ले कर अपने गांव वापस आ गया. आननफानन में प्रीति का विवाह प्रतापगढ़ के सांगीपुर थाना क्षेत्र के पूरे बक्शी गांव में तय कर दिया.

प्रीति बेचैन हो उठी. उस ने राहुल से बात की तो राहुल ने उसे घर वालों से विवाह का विरोध करने से मना कर दिया. उस ने कहा कि वह विवाह से पहले की रस्में कर ले और विवाह को कुछ समय तक टालने की कोशिश करे. जब तक विवाह का समय आएगा, तब तक उस की उम्र 21 वर्ष हो जाएगी. फिर दोनों किसी तरह से कोर्ट में जा कर विवाह कर लेंगे. प्रीति इस के लिए तैयार हो गई. 15 मई, 2019 को प्रीति के लापता होने पर उस के चाचा राजेश  वर्मा ने अंतू थाने में प्रीति के गुम होने की तहरीर दी. थानाप्रभारी संजय यादव ने प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. लेकिन प्रीति का कोई पता नहीं चला.

समय बीतता चला गया. 11 नवंबर, 2019 को थाना अंतू के गांव पूरब निवासी काबीना मंत्री के रिश्तेदार सर्वेश उर्फ विक्की सिंह पर उस के पोल्ट्री फार्म के पास जानलेवा हमला हमला हुआ, जिस पर उसी दिन अंतू थाने में 307 आईपीसी में मुकदमा दर्ज हो गया. जांच के दौरान हमले में चिह्नित हुए अजय पासी निवासी टेकनिया, थाना सांगीपुर व पवन सरोज निवासी नेवादा, थाना सांगीपुर. दोनों हमलावरों पर पुलिस द्वारा 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. इस केस पर एसटीएफ को भी लगाया गया. 11 फरवरी, 2020 को एसटीएफ के इंसपेक्टर हेमंत भूषण और उन की टीम ने अंतू थाना इंसपेक्टर मनोज तिवारी की मदद से दोनों ईनामी बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि अजय पासी गांव नंदलाल का पुरवा की प्रीति से एकतरफा प्यार करता था. लेकिन प्रीति काफी दिन से लापता है. प्रीति के चाचा राजेश वर्मा के साथ विक्की भी प्रीति की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने गया था. अजय ने समझा कि विक्की सिंह ने ही प्रीति को गायब कराया है. उस के बाद पवन ने सरोज व एक अन्य साथी बाबू के साथ कई दिन तक विक्की सिंह की रेकी की फिर 11 नंवबर को उस ने विक्की सिंह पर कई राउंड गोलियां बरसाई. विक्की को मरा समझ कर दोनों फरार हो गए. विक्की इस हमले से बुरी तरह घायल हुआ था.

इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने गहराई से जांच की तो पता चला कि लापता प्रीति वर्मा का प्रेम प्रसंग राहुल वर्मा से था. इस के बाद उन्होंने राहुल को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो राहुल ने जो कुछ बताया, उसे जान कर मनोज तिवारी को प्रीति के लापता होने का पूरा मामला समझ आ गया. राहुल से पूछताछ के बाद 12 फरवरी को इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने प्रीति के पिता राजू वर्मा, चाचा राजेश वर्मा और जमुना प्रसाद वर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. उन्होंने प्रीति की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया और हत्या के पीछे की वजह भी बयान कर दी.

प्रीति का विवाह तय होने के बाद 13 मई, 2019 को उस की सगाई की तारीख निश्चित हुई. 13 मई को वर पक्ष के लोगों के आने के बाद प्रीति की सगाई की रस्म अदा की गई. वर पक्ष के लोगों के जाने के बाद प्रीति ने राहुल को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया. रात 8 बजे प्रीति घर से कुछ दूर जा कर राहुल से मिली.  घर पर प्रीति को एकाएक न पा कर प्रीति के पिता राजू और तीनों चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश उसे खोजने निकले. कुछ दूरी पर प्रीति राहुल से बात करते दिखाई दी. राहुल ने उन को अपनी तरफ आते देख लिया. इस पर वह अपनी बाइक छोड़ कर वहां से भाग निकला.

प्रीति के पिता और चाचा उस के पीछे नहीं भागे, बल्कि प्रीति को मारतेपीटते हुए घर ले जाने लगे. राहुल काफी दूर जा कर बेबस खड़ा यह सब देखता रहा. जब वह लोग वहां से चले गए तो राहुल भी वहां से चला गया. दूसरी ओर पिता और उस के तीनों चाचाओं ने घर ले जा कर प्रीति को लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. घर की महिलाएं बेबस खड़ी देखती रहीं. अगले दिन 14 मई की रात प्रीति के पिता और उस के तीनों  चाचा उस की लाश को पूरब गांव ले गए. वहां नदी किनारे सिंघनी घाट पर प्रीति की लाश को जला दिया और साथ में उस के मोबाइल को भी आग के हवाले कर दिया. प्रीति की लाश को जलाने के बाद उस की राख नदी में बहा दी गई.

अगले दिन राजेश वर्मा ने विक्की सिंह के साथ अंतू थाने जा कर प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. काफी समय बीत जाने पर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया तो वे निश्चिंत हो गए कि प्रीति की हत्या रहस्य बन कर रह जाएगी, लेकिन गुनाह किसी न किसी तरह से सामने से आ ही जाता है. प्रीति के पिता राजू वर्मा और चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश का भी गुनाह सामने आ गया. इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने सभी के विरुद्ध भांदंवि की धारा 193/302/201/34/204 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक ब्रजेश फरार था, पुलिस उस की तलाश कर रही थी. पुलिस ने प्रीति के प्रेमी को मुकदमे में गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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Love Crime :  समाज या लोग भले ही कहते रहें कि औरत अब अबला नहीं है. लेकिन सच यह है कि महिलाएं कुछ मामलों में पुरुष की ओर ही देखती हैं. सुमिता और समरिता के साथ भी यही हुआ, जिस की वजह से विक्रांत नागर ने…  दिल्ली, दिल्ली क्राइम, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश क्राइम दिल्ली क्राइम

राजधानी दिल्ली की पूर्वी सीमा पर बसा वसुंधरा एनक्लेव ऐसा पौश इलाका है, जहां अधिकतर उच्चमध्यम वर्गीय नौकरीपेशा लोग रहते हैं. कभी गाजीपुर, कोंडली से सटा ये इलाका पिछले कुछ सालों में ऊंची अट्टालिकाओं और बहुमंजिले सोसाइटी अपार्टमेंट से पट गया है. इन्हीं आलीशान सोसाइटी अपार्टमेंट्स में से एक है मनसारा अपार्टमेंट. वसुंधरा एनक्लेव स्थित इसी मनसारा अपार्टमेंट के बी ब्लौक में तीसरी मंजिल के फ्लैट संख्या  303 में कुछ सालों से सुमिता मैसी (45) और उन की बेटी समरिता मैसी (25) रहती थीं. मूलरूप से केरल की रहने वाली सुमिता के पति की करीब 20 साल पहले मौत हो गई थी. उस वक्त समरिता महज 5 साल की थी.

सुमिता ने विकासपुरी में रहने वाले एक व्यक्ति से प्रेम विवाह किया था. 20 साल पहले पति की मौत के बाद भी सुमिता कई सालों तक विकासपुरी में रहती रही. कुछ सालों पहले सुमिता ने नोएडा में अपनी जौब की वजह से विकासपुरी का इलाका छोड़ दिया और वसुंधरा एनक्लेव में आ कर रहने लगी. सुमिता की बहन और भाई केरल में रहते थे. सुमिता खुद नोएडा के सेक्टर 142 के एक एनजीओ में ऊंचे पद पर थीं. जबकि उन की बेटी समरिता पढ़ाई के बाद पिछले 5 महीने से एक 5 स्टार होटल में हौस्पिटैलेटी की ट्रेनिंग ले रही थी.

सुमिता सिंगल मदर थी. जवान बेटी को पालने के लिए जिंदगी में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है, सुमिता को अच्छी तरह पता था. मांबेटी के बीच चूंकि दोस्ताना रिश्ता था, इसलिए सुमिता को ज्यादा चिंता नहीं होती थी. 9 मार्च सोमवार को होली का त्यौहार था, जबकि रविवार को अवकाश था. इसीलिए सुमिता व समरिता दोनों की ही 2 दिन छुट्टी थी. मांबेटी ने रविवार को ही प्लान बना लिया था कि 10 मार्च को होली का रंग खेलने के बाद अपने कुछ दोस्तों के घर मिलने जाएंगी.  9 मार्च की सुबह करीब 8 बजे सुमिता के यहां काम करने वाली नौकरानी चंदा जब काम करने के लिए उन के घर पहुंची और कालबेल बजाई, तो अंदर से किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

कुछ देर इंतजार के बाद चंदा ने दोबारा कालबेल बजाई. इस बार भी न कोई जवाब मिला, न ही दरवाजा खोला गया. चंदा ने सुमिता को आंटी…आंटी कह कर दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. लेकिन यह क्या, दरवाजा पहले से ही खुला था. हाथ लगते ही दरवाजे का पट खुल गया. चंदा ‘आंटी..आंटी’ पुकारते हुए फ्लैट के अंदर आ गई. जैसे ही वह सुमिता के कमरे में पहुंची तो उस के हलक से चीख निकल गई. वहां का नजारा देख वह हैरान रह गई. कमरे में चारों तरफ खून बिखरा हुआ था. खून के सैलाब में डूबा सुमिता का शव जमीन पर पड़ा था. चंदा न आई होती तो सुबह को पता नहीं चलता मां के साथ क्या हुआ, ये बताने के लिए चंदा तेजी से सुमिता की बेटी समरिता के कमरे में गई. लेकिन वहां का नजारा और भी दिल दहला देने वाला था.

मांबेटी के लहूलुहान शव देख कर कामवाली मेड चंदा थरथर कांपने लगी. अगले ही क्षण जब उस की तंद्रा लौटी तो वह शोर मचाते हुए फ्लैट से बाहर निकल आई और ‘खून…खून’ चिल्लाने लगी. शोर सुन कर आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोग घरों से बाहर निकल आए. चंदा ने हांफते रोते हुए एक ही सांस में सारी कहानी बता दी. उत्सुकतावश कुछ लोगों ने फ्लैट के भीतर जा कर देखा तो चंदा की बात सही निकली. जानकारी मिलने के बाद मनसारा अपार्टमेंट के सिक्युरिटी गार्ड और आरडब्लूए के पदाधिकारी मौके पर पहुंच गए. एक सुरक्षित सोसाइटी में फ्लैट के भीतर रहने वाले 2 लोगों का कत्ल हो जाए तो सोसाइटी की सुरक्षा पर सवाल खडे़ होना लाजिमी है.

पासपड़ोस के लोग सुरक्षा में ढिलाई को ले कर खुसरफुसर करने लगे. लोगों की भारी भीड़ एकत्रित हो चुकी थी, इसलिए सोसाइटी के लोगों ने तुरंत पुलिस कंट्रोलरूम को सोसाइटी में हुए दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. सुबह के वक्त इलाके में हत्या जैसी वारदात, वह भी दोहरे हत्याकांड की सूचना मिल जाए, तो किसी भी पुलिस अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला होना स्वाभाविक है. न्यू अशोक नगर थाने के एसएचओ तेजराम मीणा की नींद ड्यूटी अफसर द्वारा दी गई इसी मनहूस सूचना से खुली. स्वाभाविक है उन के मुंह का जायका भी बिगड़ा ही होगा. लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए हर दिन ऐसी वारदातों की सूचनाएं मिलना कोई नई बात नहीं होती.

इंसपेक्टर तेजराम मीणा ने तत्काल बिस्तर छोड़ा और तैयार हो कर अपने सहायक एसएचओ विनोद कुमार, इंसपेक्टर इन्वेस्टीगेशन सरिता व अन्य स्टाफ के साथ मौकाएवारदात की तरफ रवाना हो गए. रास्ते से ही उन्होंने फोन कर के अपने सबडिवीजन कल्याणपुरी के एसीपी जितेंद्री पटेल, डीसीपी जसमीत सिंह, एडीशनल डीसीपी राकेश पावरिया को भी सूचना दे दी थी. कमोबेश सभी अधिकारी थोड़े से अंतराल के बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर क्राइम और एफएसएल की टीम को भी बुला लिया गया. फ्लैट के बाहर खड़ी भीड़ को हटाने के बाद एसएचओ मीणा ने जब घर में प्रवेश किया तो मांबेटी के शव देख कर उन की भी रूह कांप उठी.

सुमिता के शरीर पर चाकू जैसे धारदार हथियार से करीब आधा दर्जन से ज्यादा वार किए गए थे, जबकि अपने बैडरूम में फर्श पर पड़ी उन की बेटी समरिता के शरीर पर धारदार हथियार के अनगिनत वार किए गए थे. दोनों के ही कमरों का सामान चारों तरफ बिखरा पड़ा था. घटनास्थल को देख कर साफ लग रहा था कि किसी ने लूटपाट का विरोध करने पर  दोनों हत्याओं को अंजाम दिया है. लेकिन यह बताने वाला कोई नहीं था कि हत्यारे घर से कितनी नकदी, कीमती सामान अपने साथ ले गए हैं. लेकिन अगले ही पल पुलिस को लूटपाट की अपनी थ्योेरी बदलनी पड़ी क्योंकि घर में फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

घर में जबरन प्रवेश करने के कोई लक्षण नहीं थे, न ही पुलिस को हत्या के समय मांबेटी के साथ गलत नीयत से जोरजबरदस्ती के कोई निशान मिले थे. हां, 2 बातों की शंका जरूर थी कि हत्या करने वाला या वाले मृतक परिवार के परिचित रहे हों. दूसरी संभावना यह थी कि दोनों हत्याएं सोते वक्त की गई थीं या फिर उन्हें मारने से पहले नशीला पदार्थ दिया गया था. क्राइम और एफएसएल की टीमों ने अपना काम पूरा कर लिया था. डीसीपी जसमीत सिंह की अगुवाई में एसएचओ तेजराम मीणा और उन की टीम ने जांचपड़ताल का सारा काम पूरा कर लिया था, जिस के बाद सुमिता व समरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

रहस्य थी मांबेटी की हत्या इस दौरान सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोगों की मदद से पुलिस ने मृतक मांबेटी के कुछ स्थानीय परिचितों के नंबर हासिल कर के उन्हें इस वारदात की सूचना दी, तो एकएक कर के उन के ज्यादातर परिचितों को इस वारदात की खबर लग गई. पुलिस ने एकएक कर के उन सभी परिचितों से सवालजवाब और उन के बैकग्राउंड के बारे में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी. मांबेटी की हत्या क्यों हुई, इस का तत्काल खुलासा तो नहीं हो सका लेकिन पुलिस ने पूछताछ के दौरान आपसी रंजिश, लूटपाट, प्रेम प्रसंग समेत तमाम दृष्टिकोणों से छानबीन कर के जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

इस दोहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि सोसाइटी चारों तरफ से कवर थी, ऊंची बाउंड्री थी. गेट पर बिना पहचान बताए और बिना फ्लैट ओनर की रजामंदी के किसी को भीतर नहीं आने दिया जाता था. फिर ऐसा कैसे संभव हुआ कि रात के वक्त एक ही घर के 2 लोगों की हत्याएं कर के हत्यारे आसानी से फरार हो गए. पुलिस ने पिछले 24 घंटों के दौरान सोसाइटी की सिक्युरिटी में तैनात सभी गार्ड्स को बुला कर उन से एकएक कर के पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि मनसारा अपार्टमेंट सोसाइटी में मुख्यद्वार से ले कर हर ब्लौक हर फ्लोर पर सीसीटीवी कैमरों का ऐसा जाल बिछा हुआ था कि कोई भी शख्स  किसी भी घर में जाते वक्त इन कैमरों की कैद में आने से नहीं बच सकता था.

एसएचओ मीणा की टीम ने कंट्रोल रूम में जा कर सभी कैमरों की फुटेज देखने का काम शुरू कर दिया. पुलिस टीमों की तरफ से शाम 3 बजे तक की गई कोशिशों से कम से कम इस दोहरे हत्याकांड पर पड़ी धुंध काफी हद तक हट गई. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि शुक्रवार को सुमिता व समरिता आखिरी बार अपनेअपने दफ्तर गई थीं. पुलिस को शुरू से ही लग रहा था कि इस वारदात को किसी जानकार ने ही अंजाम दिया है. सीसीटीवी की जांच और लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ भी हो गई.

दरअसल, मृतका सुमिता मैसी की बेटी समरिता की एक सहेली प्रेरणा से पुलिस को जानकारी मिली कि समरिता नोएडा में स्कूली पढ़ाई के दौरान से उस की दोस्त थी. समरिता अपनी जिंदगी के बारे में प्रेरणा को अच्छीबुरी हर बात बताया करती थी. प्रेरणा ने पुलिस को बताया कि वारदात से एक दिन पहले यानी रविवार की रात को समरिता कार से अकेली घर लौट रही थी. उस वक्त उस ने गाना गाते हुए वाट्सऐप पर अपना स्टेटस अपडेट किया था. स्टेटस में वह काफी खुश दिख रही थी. प्रेरणा ने बताया कि करीब 3 साल पहले एक पुराने फ्रैंड की मदद से समरिता की दोस्ती विक्रांत नागर से हुई थी, जिस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ और बाद में दोनों लिवइन में रहने लगे. लेकिन एक साल पहले दोनों के बीच अनबन हो गई थी, जिस की वजह से समरिता उस से छुटकारा पाना चाहती थी.

समरिता उस से दूरी बनाने लगी थी, क्योंकि 2-3 महीने पहले समरिता की दोस्ती उस के ही साथ हौस्पिटैलिटी में कैरियर बना रहे एक अन्य युवक से हो गई थी और समरिता ने उस के साथ पार्टियों में जाना शुरू कर दिया था. प्रेरणा ने बताया कि हो सकता है विक्रांत नागर इस से नाखुश हो. हालांकि प्रेरणा ने यह भी बताया कि विक्रांत के बुलावे पर समरिता उस के दोस्तों के बीच पार्टी के लिए अब भी जाती थी. लेकिन उस ने तय कर लिया था कि वह उस के साथ शादी नहीं करेगी. पुलिस द्वारा यह पूछे जाने पर कि विक्रांत नागर कहां रहता है, प्रेरणा ने बताया कि वह सिर्फ इतना ही जानती है कि विक्रांत ने समरिता व उस की मां को बता रखा था कि उस के मातापिता नहीं हैं. वह अपनी मौसी के साथ अमर कालोनी के गढ़ी इलाके में रहता है.

‘‘विक्रांत काम क्या करता है?’’ एसएचओ मीणा ने सवाल किया तो प्रेरणा ने जवाब दिया, ‘‘काम क्या करता है ये तो पता नहीं सर, लेकिन समरिता ने बताया था कि वह आर्टिस्ट है. उस ने 1-2 टीवी शोज में काम किया था. उसे बौडी बनाने का भी शौक था. लेकिन समरिता और उस की मां विक्रांत की आर्थिक मदद किया करती थीं. वह अक्सर उन के घर पर भी रुक जाया करता था.’’

बेटी का दोस्त संदेह के घेरे में दोनों मांबेटी घर में अकेली रहती थीं, इस लिए विक्रांत के रुकने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के होने से घर में एक मर्द के होने से उन्हें सुरक्षा का अहसास होता था. सुमिता और समरिता बाजार से सामान खरीद कर उसे दिया करती थीं. कई बार तो वह अपने घर के लिए घरेलू सामान भी उन्हीं से खरीदवा कर ले जाया करता था. चूंकि विक्रांत अक्सर घर आता था. इसलिए सोसायटी के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी उसे परिवार का सदस्य मान कर नहीं रोकते थे. प्रेरणा से मिली जानकारी पुलिस के लिए काफी मददगार थी. वारदात की सूचना पा कर जितने भी परिचित वहां पहुंचे थे, उन में विक्रांत नहीं था. प्रेरणा ने पुलिस को विक्रांत नागर का मोबाइल नंबर दे दिया था. डीसीपी जसमीत सिंह के आदेश पर तत्काल उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स मंगवा ली गई और उस के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इसी दौरान पुलिस टीम को मनसारा अपार्टमेंट की सिक्युरिटी में तैनात गार्ड्स और सीसीटीवी की फुटेज से भी बड़ा खुलासा हुआ, जिस से पता चला कि बीती रात विक्रांत नागर सुमिता के घर पर आया हुआ था. रात को करीब 2.51 बजे वह समरिता की कार ले कर सोसाइटी से निकला था. उस के साथ गाड़ी में एक और युवक बैठा था. सोसाइटी से जाते समय वह इतनी हड़बड़ी में था कि उस की कार सोसायटी के गेट से टकरा गई थी और गेट का कुछ हिस्सा टूट गया था. सिक्युरिटी गार्ड ने बैरीकेड लगा कर उस की गाड़ी रुकवा ली थी, लेकिन विक्रांत ने उन से माफी मांगते हुए कहा कि उस की गाड़ी के ब्रेक में अचानक कुछ दिक्कत आ गई है, इसलिए गलती से गाड़ी टकरा गई.

सीसीटीवी से यह भी साफ हो गया कि विक्रांत और उस का दोस्त रात करीब सवा 11 बजे पैदल ही सोसाइटी में आए थे. उस के बाद सुमिता के फ्लैट के बाहर लगे सीसीटीवी से पता चला कि विक्रांत कुछ दूरी पर छिपा था और समरिता करीब डेढ़ बजे अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आई थी. वह काफी देर तक नीचे टहलती रही. उस के बाद वह ऊपर फ्लैट में चली गई. इन तमाम सीसीटीवी फुटेज से यह बात साफ हो गई कि इस हत्याकांड के पीछे विक्रांत नागर व उस के दोस्त का ही हाथ था. क्योंकि हत्याकांड के वक्त वही परिवार के पास था और उस के बाद से उस का कोई पता नहीं था.

इसी बीच उच्चाधिकारियों के आदेश पर एसएचओ तेजराम मीणा ने न्यू अशोक नगर थाने में भादंसं की धारा 302 के तहत मामला दर्ज करवा दिया था. केस की जांच का जिम्मा उन्होंने खुद ही ले लिया था. समरिता के लिवइन पार्टनर के लापता होने और उस के बारे में अन्य जानकारी पुलिस के हाथ लग गई थी. जसमीत सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ तेजराम मीणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में एएसआई किशनपाल सिंह, हेडकांसटेबल आदेश, कांसटेबल प्रवीण और नरेंद्र को शामिल किया गया. टीम का सुपरविजन करने की जिम्मेदारी एसीपी जितेंद्र पटेल को सौंपी गई. डीसीपी जसमीत सिंह ने न्यू अशोक नगर पुलिस की मदद के लिए जिले के स्पैशल स्टाफ व एटीएस की टीमों को भी जांच और गिरफ्तारी के काम में लगा दिया.

जांच अधिकारी मीणा ने साइबर सेल और सर्विलांस की मदद से पता लगवाया कि विक्रांत की लोकेशन कहां है. पता चला विक्रांत के मोबाइल की लोकेशन जयपुर में है. उसी शाम पुलिस की 2 टीमें जयपुर के लिए रवाना कर दी गईं. डीसीपी जसमीत सिंह ने जयपुर पुलिस से संपर्क साध कर उन्हें विक्रांत का मोबाइल नंबर और उस की लोकेशन से अवगत करा दिया. जयपुर पुलिस ने भी उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. विक्रांत था हत्यारा अगले तीन घंटों में पुलिस ने जयपुर में विक्रांत को उस होटल से दबोच लिया जहां वह ठहरा हुआ था. विक्रांत के पकड़े जाने की सूचना तत्काल दिल्ली पुलिस को दे दी गई.

दिल्ली पुलिस की 2 टीमें पहले ही जयपुर रवाना हो चुकी थीं. उन्होंने जयपुर पहुंचते ही विक्रांत को अपनी गिरफ्त में ले लिया. अगली दोपहर तक पुलिस की टीमें उसे दिल्ली  ले आईं. विक्रांत नागर ने न्यू अशोक नगर थाने आ कर पुलिस को बताया कि उस ने अपने दोस्त शैंकी शर्मा के साथ मिल कर अपनी प्रेमिका समरिता और उस की मां की हत्या की थी. वारदात को अंजाम देने के बाद विक्रांत नागर बस द्वारा दिल्ली से जयपुर चला गया था. उस ने बताया कि 2 साल तक लिवइन में रहने के बाद समरिता अक्सर उसे ताने देने लगी थी कि वह कुछ कमाताधमाता नहीं है और उन के टुकड़ों पर पलता है.

अगर दोनों की शादी हो गई तो वह उसे कमा कर कैसे खिलाएगा. शुरू में तो विक्रांत समरिता के तानों को हवा में उड़ा देता था, लेकिन बाद में यह बात जब ज्यादा बढ़ने लगी तो दोनों के बीच इस बात को ले कर अक्सर झगड़ा होने लगा. विक्रांत को 3 महीने पहले तब दिक्कत होने लगी, जब समरिता ने उस से साफ कह दिया कि वह उस के घर कम आयाजाया करे. साथ ही जब विक्रांत को यह खबर लगी कि आजकल समरिता अपने साथ होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले एक युवक के साथ इश्क कर बैठी है और दोनों एक साथ घूमतेफिरते भी हैं. यह जान कर विक्रांत का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

करीब 3 महीने पहले अपने प्रति समरिता के लगाव को परखने के लिए विक्रांत ने शादी का प्रपोजल दिया, जिसे समरिता ने ठुकरा दिया. इस के बाद साफ हो गया कि वह उस से किनारा कर रही है. विक्रांत ने अपने दोस्त शैंकी को एक दिन फोन कर के बताया कि अगर समरिता उस की ना हो सकी तो वह उसे किसी ओर की भी नहीं होने देगा. होली से 2 दिन पहले जब विक्रांत को पता चला कि होली से एक दिन पहले समरिता का नया प्रेमी होली की पार्टी दे रहा है और वह भी उस में जाने वाली है तो उस ने उसी दिन इरादा बना लिया कि वह समरिता को खत्म कर देगा. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लानिंग ने जन्म ले लिया.

इस से आहत हो कर उस ने अपने दोस्त शैंकी को उसी शाम मुंबई से दिल्ली पहुंचने के लिए कहा. शैंकी फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ गया. एयरपोर्ट से विक्रांत उसे साथ ले कर होली की रात को ही सीधे समरिता के घर पहुंच गया. होली की रात को दोनों समरिता के अपार्टमेंट में पहुंचे. घर के बाहर छिप कर उस ने समरिता को फोन किया और बातचीत के लिए नीचे बुलाया. जब समरिता नीचे आने लगी तो वे दोनों मौका पा कर घर में दाखिल हो गए. सुमिता अपने कमरे में लौटी सोने की तैयारी कर रही थी. विक्रांत और शैंकी ने रसोई से मीट काटने वाला चाकू ले कर सब से पहले बेरहमी से सुमिता पर 7-8 वार कर के उस की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों समरिता का इंतजार करने लगे. जब समरिता घर में लौटी और कमरे में पहुंची तो दोनों ने उस के कमरे में ले जा कर उस की भी चाकू से गोद कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने कीमती सामान की तलाश में कमरे की तलाशी ली. वहां से दोनों ने 43 हजार रुपए की नकदी और समरिता के डेबिट व क्रेडिट कार्ड अपने कब्जे में ले लिए. उस के बाद आधी रात को करीब 2:51 बजे दोनों पार्किंग में खड़ी समरिता की कार ले कर फरार हो गए. इसी हड़बड़ी में कार सोसाइटी के मेन गेट से टकरा गई थी. विक्रांत जयपुर में तो शैंकी मुंबई में मिला सोसाइटी से निकलने के बाद विक्रांत ने समरिता की कार को त्रिलोकपुरी इलाके में छोड़ दिया था. शैंकी वहां से आटो पकड़ कर ईस्ट औफ कैलाश स्थित एक होटल में चला गया. जबकि विक्रांत बस पकड़ कर जयपुर रवाना हो गया और वहां जा कर एक होटल में ठहर गया. जहां से उस के फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उसे दबोच लिया था.

विक्रांत से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम को ईस्ट औफ कैलाश में उस होटल पर छापा मारा, जहां शैंकी ठहरा हुआ था. शैंकी को उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वह होटल का बिल चुका कर फरार होने की तैयारी में था. उसी शाम दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने त्रिलोकपुरी से समरिता की कार भी बरामद कर ली. साथ ही उन की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया. यह चाकू समरिता के घर में ही छिपा कर रखा गया था.

जांच के बाद जांच अधिकारी तेजराम मीणा को यह भी पता चला कि विक्रांत को नशे की आदत थी. कुछ साल पहले इसी लत के कारण वह नशामुक्ति केंद्र में भी रह चुका था. उस ने इस वारदात को नशे में अंजाम दिया या नहीं, इस की जांच के लिए पुलिस ने उस के ब्लड सैंपल टेस्ट के लिए भेजे हैं. जांच में पता चला कि शैंकी मुंबई में रह कर मौडलिंग में अवसर ढूंढ रहा था. उस ने कुछ टीवी शोज में भी काम किया था. वहीं विक्रांत भी एक शो में काम कर चुका था इसी कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. पूछताछ में विक्रांत ने बताया कि वह और शैंकी हत्या करने के बाद घर में रखे 43 हजार रुपए अपने साथ ले कर निकले थे. इस रकम से दोनों ने नए मोबाइल ले लिए थे. समरिता के डेबिट और क्रेडिट कार्ड भी वे अपने साथ ले गए थे.

विक्रांत ने कनौट प्लेस में एक एटीएम से पैसे निकालने की कोशिश भी की थी, लेकिन समरिता ने कुछ दिन पहले ही अपना पिन बदल दिया था, जिस की जानकारी विक्रांत को नहीं थी. इसलिए वह एटीएम से रकम नहीं निकाल सका. पुलिस ने उसी शाम को विक्रांत और शैंकी के खिलाफ दर्ज हत्या के मामले में लूट की धारा भी जोड़ दी और दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. उसी शाम पुलिस को मिली पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ कि समरिता मैसी के शरीर पर 30 से ज्यादा चाकू के वार किए गए थे, जबकि मां सुमिता मैसी के शरीर पर चाकू के 10 घाव मिले थे.

सुमिता और समरिता को इस बात का अहसास भी नहीं था कि जिस विक्रांत को उन्होंने अपना सहारा मान कर घर में पनाह दी थी, वही आस्तीन का सांप निकलेगा और उन की जिंदगी को डस लेगा.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

 

Ujjain Crime : चार्जर के वायर से घोंटा दोस्त का गला

Ujjain Crime : नितेश और राजेश साथसाथ काम करते थे और अच्छे दोस्त थे. जब राजेश ने दोस्ती की आड़ में नितेश की रिश्ते की बहन से प्यार की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं तो नितेश विरोध पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि राजेश ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर…

नितेश चौहान के घर वाले उज्जैन के नागदा सिटी थाने के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो चुके थे. लेकिन पुलिस नितेश के हत्यारों का पता नहीं लगा पा रही थी. दरअसल, किसी ने नितेश (19 साल) की हत्या कर दी थी. 10 जून, 2018 को उस का शव नागदा-जावरा रोड पर स्थित पार्क में मिला था. तत्कालीन टीआई अजय वर्मा ने केस की जांच की. वह इस केस को नहीं खोल पाए तो उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जांच साइबर सेल को सौंप दी गई, लेकिन साइबर सेल भी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. कहने का तात्पर्य यह है कि हत्या के 16 महीने बाद भी पुलिस इस केस को खोलने में नाकाम रही. उधर बेटे के हत्यारों का पता न चलने पर नितेश के मातापिता परेशान थे. वे लोग थाने से ले कर एसपी औफिस तक चक्कर काटतेकाटते थकहार चुके थे.

टीआई अजय वर्मा के स्थानांतरण के बाद टीआई श्यामचंद्र शर्मा ने नागदा सिटी थाने का पदभार संभाला तो बेटे की मौत के गम में डूबे नितेश के पिता ने श्यामचंद्र शर्मा से मुलाकात कर अपना दुखड़ा रोया. टीआई ने नितेश हत्याकांड की फाइल निकलवा कर उस का अध्ययन किया. उन्होंने इस संबंध में सीएसपी मनोज रत्नाकर से दिशानिर्देश ले कर फिर से केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में टीआई श्यामचंद्र शर्मा के हाथ कुछ ऐसे क्लू लगे, जिन के आधार पर वह नितेश चौहान के हत्यारों का पता लगाने में सफल हो गए. इतना ही नहीं उन्होंने 5 अक्तूबर, 2019 को आरोपी जगदीश और राजेश को नागदा स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों आरोपियों से थाने में पूछताछ की गई तो 19 वर्षीय नितेश चौहान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

19 वर्षीय नितेश नागदा के ब्लौक 58 में रहने वाले गोविंद चौहान का बेटा था. गोविंद चौहान आटोरिक्शा चालक था. बड़े बेटे नितेश के अलावा गोविंद चौहान की 2 बेटियां थीं. बीकौम पास करने के बाद नितेश चंबल ब्रिज के पास स्थित सहारा अस्पताल में कंपाउंडर की नौकरी कर रहा था. इस पार्टटाइम नौकरी के अलावा वह उज्जैन के एक अस्पताल में नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था. 19 जून, 2018 को नितेश सहारा अस्पताल से घर जाने के लिए निकला. जब वह रास्ते में था, तभी उस की मां सुनीता ने उसे फोन कर के कहा कि वह घर आते समय दूध की एक थैली लेता आए. नितेश को नर्सिंग की ट्रेनिंग करते अभी 25 दिन ही हुए थे.

चूंकि वह नर्सिंग का काम जानता था, इसलिए वह वहां पूरी जिम्मेदारी से काम कर रहा था. अस्पताल में काम करने वाले सभी लोग उस से खुश थे. उस की योग्यता व लगन को देखते हुए अस्पताल के प्रबंधक ने उसे सम्मानित करने की घोषणा भी कर दी थी. नितेश ने अपनी मां से कहा कि वह कुछ ही देर में घर पहुंच जाएगा, लेकिन आधी रात से ज्यादा हो गई, वह घर नहीं आया. तब नितेश के पिता गोविंद चौहान ने बेटे के मोबाइल पर फोन किया. किसी ने फोन रिसीव तो किया लेकिन कोई बात नहीं हुई. फोन पर बाइक के चलने की आवाज आ रही थी. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि शायद वह बाइक चला रहा होगा. कुछ देर में घर आ जाएगा.

लेकिन 2 घंटे बाद भी नितेश घर नहीं पहुंचा तो उन्होंने छत पर जा कर पड़ोस में रहने वाले नितेश के खास दोस्त ताहिर को आवाज लगाई. जवाब में ताहिर के घर से कोई आवाज नहीं आई तो वह घर में बैठ कर बेटे का इंतजार करते रहे. धीरेधीरे पूरी रात बीत गई लेकिन नितेश घर नहीं आया और न ही उस की कोई खबर आई. अब नितेश का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हो गया था. दूसरे दिन सुबह लगभग साढ़े 6 बजे कुछ लोगों ने नागदा जावरा रोड पर स्थित अटल निसर्ग उद्यान में एक संदिग्ध बोरा पड़ा देखा. किसी ने यह सूचना नागदा सिटी थाने के तत्कालीन टीआई अजय वर्मा को दे दी. टीआई कुछ देर में अटल निसर्ग उद्यान पहुंच गए. पुलिस ने जब पार्क में पड़ा मिला वह बोरा खोल कर देखा तो उस में लगभग 19-20 साल के एक युवक की लाश मिली.

कुछ ही देर में पूरे नागदा में युवक की लाश मिलने की खबर फैल गई. चूंकि नितेश भी बीती रात से घर नहीं पहुंचा था, इसलिए गोविंद चौहान भी सूचना पा कर उस पार्क में पहुंच गए. लाश देखते ही गोविंद चौहान की चीख निकल गई, क्योंकि वह लाश उन के बेटे नितेश की ही थी. टीआई अजय वर्मा ने लाश मिलने की सूचना तत्कालीन एसपी (उज्जैन) सचिन अतुलकर को दे दी. खबर पा कर एसपी सचिन अतुलकर भी मौके पर पहुंच गए. एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर शव की जांच की. नितेश के शरीर पर चोटों के निशानों के अलावा गले पर भी निशान था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या किसी तार या पतली रस्सी से गला घोंट कर की गई है.

जांच के दौरान बोरे के ऊपर किसी महिला के सिर का बाल भी चिपका मिला. इस से पुलिस को औनर किलिंग की आशंका हुई. क्योंकि एक रोज पहले ही पास के गांव रूई में लगभग इसी उम्र की एक युवती का जला हुआ शव मिला था. इसलिए पुलिस नितेश की हत्या को उस युवती के शव के साथ जोड़ कर देख रही थी. पुलिस ने नितेश के दोस्तों से पूछताछ की, जिस में उस के एक खास दोस्त ने बताया कि नितेश का किल्लीपुरा की रहने वाली एक लड़की से प्रेम प्रसंग चल रहा था. जिस के चलते करीब 3 साल पहले उस के साथ मारपीट भी की गई थी. कुछ रोज पहले उस लड़की को ले कर रितेश का विवाद हुआ था. इस से पुलिस को यकीन हो गया कि मामला औनर किलिंग का ही हो सकता है.

संभावना थी कि रूई गांव में मिला शव नितेश की प्रेमिका का रहा होगा, इसलिए पुलिस ने नितेश की प्रेमिका की खोज शुरू कर दी, लेकिन प्रेमिका अपने घर में सुरक्षित मिली. पुलिस ने उस के बयान दर्ज कर उस की अंगुलियों के निशान भी मिलान के लिए ले लिए. 3 दिन बीत जाने पर भी पुलिस के खाली हाथ देख लोगों में गुस्सा बढ़ने लगा, जिस से पुलिस पर काम का दबाव बढ़ गया. पुलिस ने नितेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकालने के अलावा सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. फुटेज में नितेश 3 दोस्तों के साथ सड़क पर मस्ती करते हुए दिखाई तो दिया लेकिन उन लड़कों का चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था.

नितेश जिस अस्पताल में पार्टटाइम काम करता था, वहां के लोगों को जब वह फुटेज दिखाई गई तो उन दोनों लड़कों की पहचान हो गई. वे दोनों उस के साथ अस्पताल में ही काम करने वाले राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी थे. पुलिस ने राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वे उस के साथ थे जरूर, लेकिन कुछ देर में वे आ गए थे. रात लगभग साढ़े 8 बजे नितेश घर जाने को बोल कर चला गया था. पुलिस को यह भी पता चला कि कुछ दिन पहले नितेश के साथ ट्रेनिंग ले रही एक युवती के कारण उज्जैन में भी उस का एक युवक से विवाद हुआ था. इसलिए पुलिस ने उज्जैन जा कर भी मामले को हल करने की कोशिश की, लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा. इस के बाद पुलिस ने नितेश की बहनों को केंद्र में रख कर जांच की, लेकिन इस दिशा में काम करने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली रहे.

जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो एसपी सचिन अतुलकर ने जांच थाना पुलिस से ले कर उज्जैन की साइबर सेल को सौंप दी. साइबर सेल की टीम ने शुरुआत से जांच की. टीम ने लगभग डेढ़ लाख फोन काल की जांच की. कई नंबरों को विशेष तौर पर जांच में लिया. इस जांच में नागदा के 3 युवक ताहिर, अशफाक और अजहर शक के दायरे में आए. पुलिस टीम ने उन से गहन पूछताछ की, लेकिन पुलिस को ऐसा कोई सिरा नहीं मिला, जिसे पकड़ कर वह नितेश के हत्यारों तक पहुंच पाती. कुल मिला कर साइबर सेल भी केस का खुलासा नहीं कर सकी तो समय के साथ मामला ठंडा पड़ता गया और धीरेधीरे लोग नितेश हत्याकांड को भूलने लगे. लेकिन पुलिस नहीं भूली थी, वह अपनी गति से मामले की जांच में जुटी थी.

इस केस में निर्णायक मोड़ नागदा सिटी थाने के नए टीआई श्यामचंद्र शर्मा के पदभार संभालने के बाद आया. उन्होंने इस हत्याकांड को एक चैलेंज के रूप में लिया. इस केस की फाइल का अध्ययन करने के दौरान जिन संदिग्ध लोगों के बयान पर उन्हें शक हुआ, उन्हें फिर से थाने बुला कर पूछताछ की गई. साथ ही नितेश के प्रेम प्रसंग को भी खंगाला गया. किल्लीपुरा में रहने वाली नितेश की प्रेमिका से भी कई बार फिर से पूछताछ की गई. इस के साथसाथ सीएसपी मनोज रत्नाकर के निर्देशन में टीआई श्यामचंद्र शर्मा ने एक बार फिर वे तमाम सीसीटीवी फुटेज खंगालने का काम शुरू कर दिया, जिन्हें पहले भी पुलिस कई बार खंगाल चुकी थी. विशेषकर सहारा  अस्पताल के फुटेज बारबार चैक किए गए क्योंकि नितेश वहां पार्टटाइम नौकरी करता था.

सहारा अस्पताल के फुटेज चैक करते हुए टीआई उस समय चौंके, जब उन्होंने देखा कि घटना वाली रात में 9 बज कर 34 मिनट के बाद एक मिनट कुछ सैकेंड की फुटेज गायब थी. जाहिर है या तो उस वक्त लाइट चली गई होगी या फिर कैमरा बंद किया गया होगा. नितेश भी लगभग इसी समय गायब हुआ था, इसलिए टीआई समझ गए कि नितेश हत्याकांड के तार कहीं और नहीं बल्कि उसी सहारा अस्पताल से जुड़े हैं, जहां वह नौकरी करता था. इस से टीआई शर्मा ने अस्पताल में नितेश के साथ काम करने वाले राजेश और जगदीश को बुला कर कई बार पूछताछ की, लेकिन उन के बयानों में ऐसा कुछ भी संदिग्ध नजर नहीं आया, जिस से उन दोनों को घेरा जा सके. इस के बावजूद टीआई शर्मा को पूरा भरोसा था कि नितेश हत्याकांड की पूरी कहानी अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरे के मिसिंग फुटेज में ही छिपी है.

इसलिए सीएसपी मनोज रत्नाकर और टीआई शर्मा मिल कर अस्पताल की फुटेज की बारीकी से जांच करते रहे, जिस के चलते नितेश की हत्या के 16 महीने बाद एक ऐसा क्लू मिल गया जो उन्हें नितेश के हत्यारों तक ले गया. हुआ यह कि दोनों अधिकारी बारबार अस्पताल के कैमरे के उन फुटेज को देख रहे थे, जो रात में कैमरा बंद होने से पहले और बाद में रिकौर्ड हुए थे. इस दौरान अचानक उन की नजर अस्पताल की टेबल पर एक फाइल के ऊपर रखी दूध की थैली पर पड़ी. यह दूध की थैली उस वक्त फाइल पर नहीं थी, जब कैमरा बंद किया गया था. कैमरा वापस चालू होने पर थैली वहां रखी मिली.

घटना की रात नितेश भी दूध की थैली ले कर घर जाने वाला था. डेयरी वाले ने भी बताया कि उस रात नितेश ने उस से दूध की थैली खरीदी थी. मतलब साफ था कि अस्पताल से घर के लिए निकलने के बाद नितेश ने दूध की थैली खरीदी थी. इस के बाद वह दूध की थैली ले कर घर जाने से पहले एक बार फिर अस्पताल लौटा था, जिस के बाद अगले दिन उस की लाश ही मिली. टीआई ने अब अपना पूरा ध्यान सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पर लगा दिया, जिस में उन्होंने पाया कि रात में कैमरे फिर से चालू होने के लगभग 20 मिनट बाद 9 बज कर 59 मिनट पर फिर बंद कर दिए गए थे. इस के बाद जब अगले दिन सुबह जगदीश और राजेश ने अस्पताल खोला तो कैमरे फिर चालू किए गए.

सुबह 7 बजे जब कैमरे चालू किए गए, उस वक्त भी दूध की थैली टेबल के ऊपर ही रखी थी, जो बाद में राजेश ने वहां से हटा दी थी. मतलब साफ था कि नितेश दूध ले कर अस्पताल गया था और उस के बाद वह वहां से निकला तो इस स्थिति में नहीं था कि अपने साथ दूध की थैली ले जा सके. यानी उस की हत्या अस्पताल के अंदर ही की गई थी. इस पूरे मामले पर सीएसपी मनोज रत्नाकर ने उज्जैन एसपी सचिन अतुलकर से लंबी चर्चा की. इस के बाद उन्होंने एक बार फिर राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी को थाने बुला कर पूछताछ की. पूछताछ में दोनों अपने पुराने बयान ही दोहराते रहे.

जब टीआई ने देखा कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकल सकता तो उन्होंने दोनों से सख्ती से पूछताछ की. जिस से कुछ ही देर में राजेश ने नितेश की हत्या की बात स्वीकार कर पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार है—

साथसाथ काम करते हुए नितेश और राजेश गहलोत के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई थी. पास के एक शहर में नितेश के एक नजदीकी रिश्तेदार थे, जिन की बेटी नताशा थी. करीब 2 साल पहले नितेश काम के सिलसिले में नताशा के घर गया तो संयोग से राजेश भी उस के साथ था. वहां नितेश ने अपने रिश्ते की बहन नताशा से राजेश का परिचय करवाया था. उस रोज राजेश नितेश के साथ वापस नागदा तो आ गया, लेकिन अपना दिल नताशा के पास ही छोड़ आया था. उसे नताशा से प्यार हो गया था. नागदा आने के कुछ दिन बाद राजेश ने फेसबुक पर नताशा को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी, जो उस ने स्वीकार कर ली. इस के बाद फेसबुक के माध्यम से दोनों की दोस्ती बढ़ती गई. राजेश और नताशा में प्रेम संबंध बन गए. समय के साथ दोनों का प्रेम इतना आगे बढ़ गया कि राजेश नितेश से छिप कर नताशा से मिलने उस के शहर जाने लगा. इस दौरान राजेश नताशा को ले कर होटल में जाता था.

लेकिन कुछ दिनों बाद दोनों के प्रेम संबंधों की खबर उस के परिवार वालों को लग गई. उन्हें इस बात की जानकारी भी हो गई कि नताशा का प्रेमी युवक नितेश का दोस्त है और नितेश ने ही उस से नताशा को मिलवाया था. जबकि सच्चाई यह थी कि नितेश को नताशा और राजेश की प्रेम कहानी के बारे में कुछ पता नहीं था. घटना से कुछ रोज पहले राजेश अपनी प्रेमिका नताशा से एकांत में मिलने उस के शहर पहुंचा तो नताशा की बड़ी बहन को इस की जानकारी हो गई. बताते हैं कि बड़ी बहन ने नताशा को राजेश के साथ देख लिया तो उस ने वहीं खड़े हो कर नितेश को फोन कर दिया और उसे राजेश की हरकत के बारे में बताया.

इस पर नितेश ने राजेश को फोन कर तुरंत नागदा आने को कहा. नागदा पहुंच कर वह नितेश से मिला तो दोनों के बीच कुछ विवाद भी हुआ, लेकिन बाद में राजेश ने माफी मांगते हुए नताशा से न मिलने का वादा कर बात खत्म कर दी. राजेश और नताशा प्यार की डगर पर काफी आगे तक निकल चुके थे, लेकिन अब दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था. दरअसल, राजेश कभी नागदा से बाहर जाता तो नितेश यह खबर नताशा की बड़ी बहन को कर देता था, जिस से वह नताशा पर नजर रखे. इस से धीरेधीरे राजेश और नताशा के मिलने पर पूरी तरह से रोक लग गई.

नितेश की जासूसी की बात राजेश को पता चली तो वह उस से रंजिश रखने लगा. साथ में काम करने वाले जगदीश को पहले से ही राजेश और नताशा की प्रेम कहानी की जानकारी थी. इसलिए जब राजेश नताशा से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा तो दोनों ने मिल कर नितेश को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली. क्योंकि वही उन दोनों के रास्ते का कांटा था. 10 जून, 2018 को नितेश शाम को अस्पताल से घर के लिए निकला. तभी राजेश ने उसे फोन कर सिगरेट पीने के बहाने से वापस बुलाया. राजेश के बुलाने पर नितेश अस्पताल में आया, जहां राजेश और जगदीश ने मोबाइल चार्जर के वायर से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस का शव बोरे में भर कर जावरा रोड पर स्थित पार्क में फेंक दिया.

अगले दिन जब पार्क में शव मिलने पर लोग जमा हुए तो दोनों हत्यारोपी भी नितेश के घर जा कर शोक में शामिल भी हो गए. घटना के बाद लंबा समय लग जाने पर भी पुलिस दोनों आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी, जिस से उन्हें भरोसा हो गया था कि अब पुलिस उन्हें कभी नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन टेबल पर रखी दूध की थैली ने दोनों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नताशा परिवर्तित नाम है.

 

Love Crime Story : सगाई वाले दिन ही प्रेमिका का किया मर्डर

Love Crime Story : शादीशुदा युवराज उर्फ जुगराज सिंह ने हरप्रीत को प्यार के जाल में फांस तो लिया, लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो वह परेशान हो गया. गले में अटकी इस हड्डी को निकालने के लिए युवराज ने अपने दोस्तों सुखचैन सिंह व सुखविंदर के साथ ऐसी योजना बनाई कि…

कानपुर के जवाहर नगर निवासी सरदार गुरुवचन सिंह की 22 वर्षीय बेटी हरप्रीत कौर श्रमशक्ति एक्सप्रेस से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे घर से निकली. रात 10 बजे कानपुर सेंट्रल पहुंचने पर हरप्रीत ने अपनी मां गुरप्रीत को फोन पर बताया कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है, उसे आसानी से सीट मिल जाएगी. बेटी की बात से संतुष्ट हो कर गुरप्रीत कौर निश्चिंत हो गई. दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था. इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी. सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए.

उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे. गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी.

गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया. 11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया. इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई.

फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई. गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे. गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया. इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया. 13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं. वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए. सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए. गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए. पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना. एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी. वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी. गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची.

कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी. इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे. पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए. युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई. रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई. इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी. अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था. युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी.

सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया. सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था.

हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी. दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया. चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं. गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था. भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी.

उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था. हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी. हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे. युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी. युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई. चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया. किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली. हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी. युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी. उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी. अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी. 9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा.

हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया. इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई. कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया. चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया. लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Social Crime : बुजुर्ग से की शादी, माल समेटा और हो गई फरार

Social Crime : सोमेश्वर, राजकुमार शर्मा और सोनी तीनों वृद्ध थे, पैसे और प्रोपर्टी वाले, लेकिन विधुर. तीनों को सहारे के लिए जीवनसाथी की जरूरत थी, सो तीनों ने अखबार में अलगअलग विज्ञापन दे कर शादी की. लेकिन एक महिला और पुरुष ने तीनों को ऐसा चूना लगाया कि…

भोपाल के कोलार इलाके में रहने वाले 72 वर्षीय सोमेश्वर के पास सब कुछ था. दौलत, इज्जत, अपना बड़ा सा घर और वह सब कुछ जिस की जरूरत सुकून, सहूलियत और शान से जीने के लिए होती है. पेशे से इंजीनियर रहे सोमेश्वर की पत्नी की करीब एक साल पहले मृत्यु हो गई थी, तब से वह खुद को काफी तन्हा महसूस करने लगे थे, जो कुदरती बात भी थी. रोमांटिक और शौकीनमिजाज सोमेश्वर ने एक दिन अखबार में इश्तहार दिया कि उन की देखरेख के लिए एक स्वस्थ और जवान औरत की जरूरत है, जिस से वह शादी भी करेंगे.

जल्द ही उन की यह जरूरत पूरी करने वाला एक फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम शंकर दूबे बताते हुए कहा कि वह पन्ना जिले के भीतरवार गांव से बोल रहा है. उस की जानपहचान की एक जवान औरत काफी गरीब है, जिस के पेट में गाय ने सींग मार दिया था, इसलिए उस ने शादी नहीं की क्योंकि वह मां नहीं बन सकती थी. सोमेश्वर के लिए यह सोने पे सुहागा वाली बात थी, क्योंकि इस उम्र में वे न तो औलाद पैदा कर सकते थे और न ही बालबच्चों वाली बीवी चाहते थे, जो उन के लिए झंझट वाली बातें थीं. बात आगे बढ़ी तो उन्होंने शंकर को उस औरत के साथ भोपाल आने का न्यौता दे दिया.

चट मंगनी पट ब्याह शंकर जब रानी को ले कर उन के घर आया तो सोमेश्वर उसे देख सुधबुध खो बैठे. इस में उन की कोई गलती थी भी नहीं, भरेपूरे बदन की 35 वर्षीय रानी को देख कर कोई भी उस की मासूमियत और भोलेपन पर पहली नजर में मर मिटता. देखने में भी वह कुंवारी सी ही लग रही थी, लिहाजा सोमेश्वर के मन में रानी को देखते ही लड्डू फूटने लगे और उन्होंने तुरंत शादी के लिए हां कर दी. इस उम्र और हालत में कोई बूढ़ा भला बैंडबाजा बारात के साथ धूमधाम से तो शादी करता नहीं, इसलिए बीती 20 फरवरी को उन्होंने रानी से घर में ही सादगी से शादी कर ली और घर के पास के मंदिर में जा कर उस की मांग में सिंदूर भर कर अपनी पत्नी मान लिया.

‘जिस का मुझे था इंतजार, वो घड़ी आ गई…’ की तर्ज पर सुहागरात के वक्त सोमेश्वर ने अपनी पहली पत्नी के कोई 15 तोले के जेवरात जिन की कीमत करीब 6 लाख रुपए थी, रानी को उस की मांग पर दे दिए और सुहागरात मनाई. उन की तन्हा जिंदगी में जो वसंत इस साल आया था, उस से वह खुद को बांका जवान महसूस कर रहे थे. रानी को पत्नी का दरजा और दिल वह दे ही चुके थे, इसलिए ये सोना, चांदी, हीरे, मोती उन के किस काम के थे. ये सब तो रानी पर ही फब रहे थे. लेकिन रानी ने दिल के बदले में उन्हें दिल नहीं दिया था, यह बात जब उन की समझ आई तब तक चिडि़या खेत चुग कर फुर्र हो चुकी थी. साथ में उस का शंकर नाम का चिड़वा भी था.

जगहंसाई से बचने के लिए सोमेश्वर ने अपनी इस शादी की खबर किसी को नहीं दी थी. यहां तक कि कोलकाता में नौकरी कर रहे एकलौते बेटे को भी इस बात की हवा नहीं लगने दी थी कि पापा उस के लिए उस की बराबरी की उम्र वाली मम्मी ले आए हैं. यूं खत्म हुआ खेल सोमेश्वर की सुहागरात की खुमारी अभी पूरी तरह उतरी भी नहीं थी कि दूसरे ही दिन शंकर ने घर आ कर यह मनहूस खबर सुनाई की रानी की मां की मौत हो गई है, इसलिए उसे तुरंत गांव जाना पड़ेगा. रोकने की कोई वजह नहीं थी, इसलिए सोमेश्वर ने उसे जाने दिया और मांगने पर रानी को 10 हजार रुपए भी दे दिए जो उन के लिए मामूली रकम थी. पर गैरमामूली बात यह रही कि जल्दबाजी में रानी रात को पहने हुए गहने उतारना भूल गई. उन्होंने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

2 दिन बाद शंकर फिर उन के घर आया और उन्हें बताया कि रानी अब मां की तेरहवीं के बाद ही आ पाएगी और उस के लिए 40 हजार रुपए और चाहिए. सोमेश्वर ने अभी पैसे दे कर उसे चलता ही किया था कि उन के पास राजस्थान के कोटा से एक फोन आया. यह फोन राजकुमार शर्मा नाम के शख्स का था, जिस की बातें सुन उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. 63 वर्षीय राजकुमार ने उन्हें बताया कि कुछ दिन पहले ही उन की शादी रानी से हुई थी, जोकि उस के रिश्तेदार शंकर ने करवाई थी. लेकिन दूसरे ही दिन रानी की मां की मौत हो गई थी, इसलिए वे दोनों गांव चले गए थे. इस के बाद से उन दोनों का कहीं अतापता नहीं है.

रानी और शंकर भारी नगदी ले गए हैं और लाखों के जेवरात भी. राजकुमार को सोमेश्वर का नंबर रानी की काल डिटेल्स खंगालने पर मिला था. दोनों ने खुल कर बात की और वाट्सऐप पर रानी के फोटो साझा किए तो इस बात की तसल्ली हो गई कि दोनों को कुछ दिनों के अंतराल में एक ही तरीके से बेवकूफ बना कर ठगा गया था. कल तक अपनी शादी की बात दुनिया से छिपाने वाले सोमेश्वर ने झिझकते हुए अपने बेटे को कोलकाता फोन कर आपबीती सुनाई तो उस पर क्या गुजरी होगी, यह तो वही जाने लेकिन समझदारी दिखाते हुए उस ने भोपाल पुलिस को सारी हकीकत बता दी.

जांच हुई तो चौंका देने वाली बात यह उजागर हुई कि इन दोनों ने सोमेश्वर और राजकुमार को ही नहीं, बल्कि जबलपुर के सोनी नाम के एक और अधेड़ व्यक्ति को भी इसी तर्ज पर चूना लगाया था, जो सरकारी मुलाजिम थे. भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने फुरती दिखाते हुए दोनों को दबोच लिया तो रानी का असली नाम सुनीता शुक्ला निवासी सतना और शंकर का असली नाम रामफल शुक्ला निकला. हिरासत में इन्होंने तीनों बूढ़ों को ठगना कबूल किया. पुलिस ने दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया. बन गए बंटी और बबली दरअसल, सुनीता रामफल की दूसरी पत्नी थी. सतना का रहने वाला रामफल सेना में नौकरी करता था, लेकिन तबीयत खराब रहने के चलते उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी. पहली पत्नी के रहते ही उस ने सुनीता से शादी कर ली थी.

दोनों बीवियों में पटरी नहीं बैठी और वे आए दिन बिल्लियों की तरह लड़ने लगीं. इस पर रामफल ने सुनीता को छोड़ दिया. कुछ दिन अलग रहने के बाद सुनीता को समझ आ गया कि बिना मर्द के सहारे और पैसों के इज्जत तो क्या बेइज्जती से भी गुजर करना आसान नहीं है. यही सोच कर वह रामफल के पास वापस आ गई और अखबारों के वैवाहिक विज्ञापनों के बूढ़ों के बारे में उसे अपनी स्कीम बताई तो रामफल को भी लगा कि धंधा चोखा है. एक के बाद एक इन्होंने 3 बूढ़ों को चूना लगाया. हालांकि पुलिस को शक है कि इन्होंने कई और लोगों को भी ठगा होगा. अभी तो इस हसीन रानी के 3 राजा ही सामने आए हैं, मुमकिन है कि कई दूसरों ने शरमोहया के चलते रिपोर्ट ही दर्ज न कराई हो.

लुटेरी दुलहनों द्वारा यूं ठगा जाना कोई नई बात नहीं है, बल्कि अब तो यह सब आम बात होती जा रही है. सोमेश्वर, राजकुमार और सोनी जैसे बूढ़े जिस्मानी जरूरत और सहारे के लिए शादी करें, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है इन की हड़बड़ाहट और बेसब्री, जो इन के ठगे जाने की बड़ी वजह बनते हैं.

—कथा में सोमेश्वर परिवर्तित नाम है

 

Love Crime : शादीशुदा प्रेमिका के लिए जल्लाद बना विधायक

Love Crime :  पद और पैसों के घमंड में कई लोग इतने अंधे हो जाते हैं कि गलत कदम तक उठा लेते हैं. सत्ता के गुरूर में चूर हो कर पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ने अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी की नृशंस हत्या तो कर दी, लेकिन यह कदम उस के लिए कितना घातक होगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ओडिशा के झारसुगड़ा स्थित होटल मेघदूत में अपनी प्रेमिका कल्पना दास के साथ ठहरा था. कल्पना के साथ उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती दास भी थी. कल्पना और अनूप कुमार के बीच एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी. कमरे में बैठे अनूप कुमार साय ने पास बैठी कल्पना दास की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कल्पना, हम छत्तीसगढ़ के शहर रायगढ़ चलते हैं. वहीं पर हमीरपुर में एक साईं मंदिर है. उसी मंदिर में हम शादी कर लेंगे, वहां मेरे कुछ रिश्तेदार भी हैं. कुछ दिनों वहीं रह लेंगे. यह बताओ कि अब तो तुम खुश हो न?’’

कल्पना दास ने उचटतीउचटती निगाह अनूप कुमार साय पर डाली और बोली, ‘‘देखो, अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. कितने साल बीत गए, तुम तो बस हम मांबेटी का खून पीते रहे हो. पता नहीं वह दिन कब आएगा, जब मुझे शांति मिलेगी.’’

कल्पना के रूखे स्वर से अनूप कुमार साय के तनबदन में आग लग गई. वह अपने ड्राइवर बर्मन टोप्पो की ओर देख कर बोला, ‘‘बर्मन, चलना है रायगढ़.’’

मालिक का आदेश सुन कर बर्मन टोप्पो मुस्तैद खड़ा हो गया. वह अनूप कुमार साय का सालों से ड्राइवर था. यानी एक तरह से उस का विश्वासपात्र मुलाजिम था. उस ने विनम्रता से कहा, ‘‘साहब, मैं नीचे इंतजार करता हूं.’’

इतना कह कर वह वहां से चला गया. माहौल थोड़ा सामान्य हुआ तो अनूप साय ने बड़े प्यार से कल्पना को समझाया, ‘‘देखो कल्पना, मैं वादा करता हूं कि बस यह आखिरी मौका है. इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी नाराज होने का मौका नहीं दूंगा.’’

अनूप साय की बात पर कल्पना शांत हो गई और बेटी के साथ जाने के लिए उस की बोलेरो में बैठ गई. झारसुगुडा से रायगढ़ लगभग 85 किलोमीटर दूर है. बोलेरो रायगढ़ की तरफ रवाना हो गई. यह 6 मई, 2016 की बात है. 3 बार विधायक रहा अनूप कुमार साय वर्तमान में ओडिशा के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन था. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खासमखास लोगों में से एक. मुख्यमंत्री से अनूप कुमार के नजदीकी संबंधों की ही एक नजीर यह थी कि मई 2019 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी उसे मुख्यमंत्री का वरदहस्त प्राप्त था. राजनीतिक रसूख के कारण ही उसे कारपोरेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया था.

यह कथा है पूर्व विधायक अनूप कुमार साय की जो सन 1999, 2004 एवं 2009 में ओडिशा के ब्रजराजनगर विधानसभा से विधायक चुना गया. अनूप कुमार साय ने कल्पना दास के साथ प्रेम की पींगे भरीं. फिर देखते ही देखते वह अपराध के दलदल में चला गया. राजनीति की उजलीकाली रोशनी में कोई राजनेता जब स्वयं को स्वयंभू समझने लगता है तो उस का पतन उस का समूल अस्तित्व नष्ट कर जेल के सींखचों में पहुंचा देता है. यही सब अनूप कुमार साय के साथ भी हुआ. 6 मई, 2016 की सुबह के समय अनूप कुमार साय अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी को अपनी बोलेरो कार में बिठा कर रायगढ़ की तरफ रवाना हो गया. करीब 2 घंटे बाद वह छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया. इस बीच दोनों आपस में बातें करते रहे.

बातोंबातों में एक बार फिर से उन के स्वर तल्ख होते जा रहे थे. कल्पना ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे साथ मेरा जीवन तो बरबाद हो ही गया, अब मैं प्रवती की जिंदगी कतई बरबाद नहीं होने दूंगी.’’

अनूप कुमार साय का स्वर तल्खीभरा हो चला था, ‘‘अच्छा, मेरी वजह से तुम्हारा जीवन बरबाद हो गया? तुम ने कभी यह सोचा कि पहले क्या थीं, क्या बन गई हो और कहां से कहां पहुंच गई हो. अहसानफरामोशी इसी को कहते हैं. तुम अपने दिल से पूछो कि क्या नहीं किया है मैं ने तुम्हारे और प्रवती के लिए. तुम लोगों की खातिर मैं ने अपना राजनीतिक जीवन तक दांव पर लगा दिया. बदनाम हो गया, मेरी विधायकी चली गई. यहां तक कि अपनी विवाहिता पत्नी, बच्चों तक से संबंध तोड़ बैठा हूं.’’

‘‘झूठ…बिलकुल झूठ.’’ कल्पना दास का स्वर स्पष्ट रूप से कठोर था, ‘‘जब तक तुम मुझे मेरा अधिकार नहीं दोगे, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘देखो, मैं भी तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं कि जिद छोड़ दो, सब कुछ तो तुम्हारा ही है. सिर्फ लिख कर दे दूंगा तो क्या होगा? अरे पगली, मन जीतना सीखो. अगर मेरा मन तुम्हारे साथ है तो मैं जो भी लिखूंगा, नहीं लिखूंगा सब तुम्हारा है.’’ अनूप ने समझाया.

‘‘मुझे बातों में मत उलझाओ. 12 साल हो गए देखते हुए. मैं अब सब्र नहीं कर सकती. अब तो तुम्हें मुझ से शादी करनी ही होगी और तुम्हारी संपत्ति में भी मुझे हिस्सा चाहिए.’’ कल्पना ने स्पष्ट कह दिया.

‘‘तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?’’ अनूप कुमार बिफर पड़ा.

‘‘हां, यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कल्पना दास के स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘तो ठीक है, फिर…’’ कहते हुए अनूप कुमार साय ने ड्राइवर टोप्पो से गाड़ी रोकने का इशारा किया. ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी रोक दी.अनूप कुमार साय ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘आओ, आओ बाहर आओ.’’

उस के स्वर में बेहद रोष था. कल्पना दास जब तक बाहर आती, अनूप कुमार साय जल्दी से गाड़ी के पीछे गया और पीछे रखी लोहे की एक मोटी रौड ले कर सामने खड़ा हो गया. कल्पना बाहर निकली तो उस ने रौड से कल्पना दास पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. लोहे की रौड जब कल्पना के सिर पर पड़ी तो वह चीख कर वहीं गिर पड़ी. मां के चीखने की आवाज सुनते ही बेटी प्रवती घबरा गई. मां को घायल देख घबरा कर वह बाहर आई तो अनूप कुमार ने उस के सिर पर भी उसी रौड से प्रहार कर दिया. उस का भी सिर फट गया और खून की धार फूट निकली. वह भी वहीं धराशाई हो कर गिर पड़ी. मांबेटी घायल पड़ी थीं. उन के सिर से खून बह रहा था. दोनों को घायलावस्था में देख अनूप कुमार उन्हें गालियां देते हुए चिल्ला रहा था, ‘‘मुझ से शादी करोगी, मेरी संपत्ति पर नजर लगा रखी है, मार डालूंगा.’’

कहते हुए उस ने रौड से उन पर कई वार किए, जिस से कुछ ही देर में उन दोनों की मौत हो गई. उन्हें मौत के घाट उतार कर उस ने लहूलुहान लोहे की रौड बोलेरो में रख ली. इस के बाद उस ने ड्राइवर बर्मन टोप्पो से कहा, ‘‘इन दोनों का हश्र ऐसा करो कि कोई पहचान भी न पाए. गाड़ी से दोनों का सिर कुचल डालो.’’

बर्मन टोप्पो ने मालिक के कहने पर बोलेरो स्टार्ट कर के कल्पना और उस की बेटी पर कई बार चढ़ाई. वह पहिया चढ़ा कर उन के चेहरे बिगाड़ने लगा ताकि कोई पहचान न पाए. अनूप ने यह वारदात छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में मां शाकुंभरी फैक्ट्री के सुनसान रास्ते पर की थी. घटनास्थल थाना चक्रधर नगर के अंतर्गत आता था. अनूप कुमार साय अपनी बरसों से प्रेयसी रही कल्पना दास और उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती की नृशंस हत्या कर उसी बोलेरो में बैठ कर बृजराजनगर, ओडिशा की ओर चला गया. यह बात 6 मई, 2016 की है. आइए जानें कि कल्पना दास कौन थी और वह पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के चक्कर में कैसे फंसी?

कल्पना दास ब्रजराज नगर के रहने वाले रुद्राक्ष दास की बेटी थी. रुद्राक्ष दास की बेटी के अलावा 2 बेटे भी थे. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाई. पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को कालेज में ही अपने साथ पढ़ने वाले सुनील श्रीवास्तव से प्यार हो गया था. सुनील भी ब्रजराज नगर में रहता था. उन का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया था कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया था. कल्पना ने जब अपने प्यार के बारे में घर वालों को बताया तो उन्होंने उसे सुनील के साथ शादी करने की अनुमति नहीं दी. लेकिन कल्पना ने अपने घर वालों की बात नहीं मानी. लिहाजा एक दिन सुनील श्रीवास्तव और कल्पना दास ने घर वालों को बिना बताए एक मंदिर में शादी कर ली. यह सन 2000 की बात है.

सुनील से शादी करने के बाद कल्पना ने अपने पिता का घर छोड़ दिया. इस के बाद सुनील ने भी इलैक्ट्रौनिक की एक दुकान खोल ली, जिस से गुजारे लायक आमदनी होने लगी. शादी के बाद भी कल्पना ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी दौरान सन 2002 में उस ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम प्रवती रखा. इसी बीच कल्पना ने अपनी वकालत की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी. कल्पना सुनील के साथ खुश थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही जब उस के सिर से प्यार का नशा उतरा तो उसे पति में कई कमियां नजर आने लगीं. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि उसे खर्चे के लिए तंगी होती थी, क्योंकि सुनील की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं थी. कम आय में कल्पना की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाती थीं.

कल्पना जब कभी किसी पर्यटक स्थल पर घूमने को कहती तो सुनील पैसों का रोना रोने लगता था. न ही वह कल्पना को रेस्टोरेंट वगैरह में खाना खिलाने ले जाता था. एक बार कल्पना ने उस से गोवा घूमने की जिद की तो सुनील ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अरे भई, ये सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. हम साधारण लोग क्या गोवा घूमने जाएंगे.’’

सुनील कल्पना को समझाता मगर कल्पना की काल्पनिक उड़ान बहुत ऊंची थी. वह जीवन में उल्लास और ऐश्वर्य चाहती थी. वह सुनील के साथ घुट कर जीने से आजिज आ चुकी थी. एक दिन कल्पना ने पति से कहा, ‘‘मैं ने वकालत की डिग्री हासिल की है. क्यों न वकालत कर के पैसे और नाम दोनों ही अर्जित करूं. इस से हमारे सपने भी पूरे होंगे और मेरा मन भी लगा रहेगा.’’

सुनील को कल्पना की यह सलाह पसंद आई. कल्पना ने बृजराज नगर में वकालत करनी शुरू कर दी. इसी दौरान कल्पना ने अपने मांबाप से बातचीत करना शुरू कर दिया था. वह मायके भी आनेजाने लगी थी. कल्पना ने वकालत जरूर शुरू कर दी थी लेकिन पेशे के पेंच समझे बिना कैसे पैसा कमाती. फिर भी किसी तरह धीरेधीरे गाड़ी चल निकली. कल्पना के अपने मायके वालों से संबंध सामान्य हो चुके थे. पिता रुद्राक्ष दास ने भी सुनील और कल्पना को माफ कर दिया था. एक दिन कल्पना ने पिता रुद्राक्ष दास से जब अपने वकालत के पेशे में आ रही दिक्कतों के बारे में चर्चा की तो वे बोले, ‘‘वकालत का पेशा गहराई मांगता है. यह संबंधों का खेल है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ कल्पना ने भोलेपन से पूछा.

‘‘बेटी, जिन के संबंध जितने गहरे यानी दूर तक फैले होते हैं, वकालत में उसे ही ज्यादा काम मिलता है. मैं तुम्हें यहां के कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता अनूप कुमार साय से मिला दूंगा. वह मेरे अच्छे परिचित हैं. वह तुम्हारी मदद जरूर करेंगे. रोजाना उन से सैकड़ों लोग मिलने आते हैं. देखना, उन के सहयोग से तुम्हारी वकालत को कैसे रवानगी मिलती है.’’

‘‘पापा, वह तो क्षेत्र के विधायक हैं न?’’ कल्पना ने आश्चर्य से पिता की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हांहां, हमारे एमएलए हैं अनूप कुमार साय.’’ रुद्राक्ष दास ने बेटी की बात की पुष्टि करते हुए कहा.

कल्पना बहुत खुश हुई. दूसरे दिन पिता के साथ वह स्थानीय कांग्रेस नेता व विधायक अनूप कुमार साय के आवास पर पहुंची, जहां उस के पिता ने उसे विधायक अनूप कुमार से मिलाया. एमएलए ने उस की भरपूर मदद करने का आश्वासन दिया. कल्पना उस समय 24 साल की थी, प्रवती 4 वर्ष की बालिका थी. कल्पना को देख कर विधायक पहली ही नजर में उस का मुरीद हो गया. अब कल्पना रोजाना ही नेताजी के घर-औफिस आ जाती और उस का काम संभालती. दोनों जल्द ही एक रंग में रंग गए तो सुनील श्रीवास्तव का बसाबसाया घर टूट गया. एमएलए से बन गए संबंध इस की वजह यह थी कि 2006 आतेआते कल्पना अनूप कुमार साय की हमसाया बन चुकी थी. फिर एक दिन उस ने पति सुनील श्रीवास्तव से संबंध विच्छेद कर लिया.

सन 2009 में अनूप कुमार तीसरी बार विधायक बना तो उस ने कल्पना के लिए 24, सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में एक आवासीय भूखंड खरीदा और वहां 2 मंजिला मकान बनवा कर दे दिया. मकान के ऊपर वाले भाग में कल्पना दास अपनी एकलौती बेटी के साथ ठसक से रहने लगी. विधायक ने मकान के नीचे का हिस्सा एक ठेकेदार शरद साहू को दे दिया जो मकान की देखरेख करता था. विधायक अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक तरह से दूसरी पत्नी के रूप में रखा हुआ था. उस की सारी जरूरतें वही पूरी करता था. प्रवती दास को विधायक ने अपना नाम दे कर उस का दाखिला नामीगिरामी सेंट जेवियर्स इंग्लिश स्कूल में करा दिया था.

कल्पना हंसीखुशी से रहने लगी. विधायक के रूप में अनूप कुमार साय की क्षेत्र में बड़ी प्रतिष्ठा थी. वह कांग्रेस पार्टी का एक तरह से सर्वेसर्वा था. राज्य में बीजू जनता दल की सरकार होने के बावजूद वह बारबार कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हो रहा था और अंचल में उस का खासा रुतबा और दबदबा बढ़ता रहा. विधायक अनूप व कल्पना प्रेम से रहते रहे. दोनों बच्ची प्रवती को साथ ले कर कभी गोवा, कभी हैदराबाद और कभी विशाखापट्टनम सहित देश भर के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर घूमने जाते. मगर धीरेधीरे कल्पना को यह लगने लगा था कि वह दूसरी औरत है. उस की अपनी कोई हैसियत नहीं है इसलिए वह अनूप से शादी की जिद करने लगी. जिस की परिणति 6 मई, 2016 को उस की और बेटी प्रवती की हत्या के साथ पूरी हुई.

7 मई, 2016 को शाकुंभरी फैक्ट्री के निकट लोगों ने एक महिला और एक लड़की का शव देखा. यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो वहां लोगों का हुजूम जुट गया. किसी ने इस की सूचना चक्रधर नगर थाने में दी तो तत्कालीन टीआई अमित पाटले तुरंत घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल पर वह 10 मिनट में ही पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने घटनास्थल का सूक्ष्य निरीक्षण किया. वहां पर एक महिला और एक लड़की की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. दोनों लाशें किसी गाड़ी के टायरों से कुचली हुई दिख रही थीं. टायरों के निशान भी साफ दिख रहे थे. मीडिया में उछला मामला इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि किसी ने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है. घटना के बारे में उच्चाधिकारियों को जानकारी देने के बाद टीआई ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मीडिया में जब यह घटना प्रमुखता से आई तो पुलिस अधिकारी भी हरकत में आ गए. अगले दिन तत्कालीन आईजी पवन देव, एसपी संजीव शुक्ला सहित कई अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने अंदेशा जताया कि ये कालगर्ल्स से जुड़ा मामला हो सकता है. इस केस की जांच के लिए उन्होंने एक जांच टीम बनाई, जिस में टीआई अमित पाटले, राकेश मिश्रा (प्रभारी क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने जिले के सभी थानों को घटना की जानकारी देते हुए गुमशुदा हुए लोगों के संदर्भ में जानकारी मांगी.

जब पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो रायगढ़ पुलिस आईजी के निर्देश पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तक जांच के लिए पहुंच गई. इन राज्यों के पुलिस कप्तानों के पास दोनों लाशों से संबंधित पैंफ्लेट भी छपवा कर भेज दिए ताकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो सके. ओडिशा के बरगढ़ थाने में कांस्टेबल के पद पर तैनात सरोज दास ने जब पैंफ्लेट पढ़ा तो वह परेशानी में पड़ गया. क्योंकि उन लाशों का हुलिया उस की बहन कल्पना दास और भांजी प्रवती दास से मिलताजुलता था. दोनों ही कुछ दिनों से लापता भी थीं.

सरोज दास ने उसी समय पैंफ्लेट में क्राइम ब्रांच प्रभारी राकेश मिश्रा के दिए गए फोन नंबर पर संपर्क किया. उस ने उन्हें बताया कि उस की बहन कल्पना दास एक वकील थी. उस का विवाह सुनील श्रीवास्तव नाम के शख्स से हुआ था. फिलहाल वह सुनील से अलग रह रही थी. उस ने उन्हें सुनील श्रीवास्तव का फोन नंबर भी दे दिया. यह जानकारी मिलने के बाद जांच टीम को केस के खुलने के आसार नजर आने लगे. पुलिस ने सुनील श्रीवास्तव को चक्रधर थाने बुलवा लिया ताकि उस से विस्तार से बात की जा सके. पुलिस ने सुनील को दोनों लाशों के फोटो दिखाए तो फोटो देखते ही वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने महिला की लाश की शिनाख्त कल्पना दास के रूप में की. लेकिन वह लड़की को नहीं पहचान सका.

उस ने बताया कि पिछले 10 साल से वह पत्नी व बच्ची से अलग रहता है. कल्पना से उस का सन 2011 में तलाक हो चुका है, इसलिए वह उसे एक तरह से भूल चुका था. सुनील ने बताया कि कल्पना पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के साथ रहती थी. तलाक होने से पहले वह पत्नी और बेटी से मिलने जाता था तो विधायक उसे बेटी व पत्नी से मिलने नहीं देता था. एमएलए से की पूछताछ पुलिस के सामने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय का नाम आया, तो इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर जांच टीम ने इस मामले की गहराई से जांच की. इस जांच में यह तथ्य सामने आ गया कि कल्पना और अनूप कुमार साय की 6 मई, 2016 को मोबाइल पर बातचीत हुई थी.

पुलिस ने कल्पना व प्रवती दोनों का डीएनए टेस्ट करा लिया था, अब पूर्व विधायक अनूप कुमार साय से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए उस का बयान लेने के लिए पुलिस ने उसे नोटिस जारी किया. लेकिन व्यस्तता का बहाना बना कर वह पुलिस से बचने की कोशिश करता रहा. एसपी के दबाव पर एक दिन वह चक्रधर नगर थाने पहुंचा तो उस ने बड़ी ही विनम्रता से घटना के बारे में अनभिज्ञता जाहिर कर दी. उस ने बयान में कहा कि वह कल्पना दास और प्रवती दास से वाकिफ तो है मगर घटना के संदर्भ में कुछ नहीं जानता. विधायक अनूप कुमार साय के साफसाफ कन्नी काट जाने के बाद और राजनीतिक दखलंदाजी बढ़ने पर पुलिस जांच की गति धीमी पड़ने लगी.

समय के साथ परिस्थितियां बदलीं. अनूप कुमार साय ने कांग्रेस पार्टी से अचानक इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के समक्ष बीजू जनता दल का दामन थाम लिया. सत्तासीन पार्टी में होने के कारण अनूप कुमार साय राजनीतिक रूप से दबंग हो गया था. चूंकि ओडिशा राज्य में बीजू जनता दल और छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार थी और दोनों में अच्छा समन्वय था, सो इस का असर इस दोहरे हत्याकांड की जांच पर पड़ा. फलस्वरूप जांच ठंडे बस्ते में चली गई. अनूप कुमार साय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का खासमखास बन चुका था. नवीन पटनायक 2014 के विधानसभा चुनाव में आस्का विधानसभा के अलावा बरगढ़ की बिजेपुर से चुनाव लड़े थे. जबकि अनूप कुमार को किसी भी विधानसभा से टिकट नहीं मिला था. तब नवीन पटनायक ने अनूप कुमार साय को चुनाव संचालक बना दिया था.

यहां से जब मुख्यमंत्री भारी मतों से चुनाव जीत गए तो उपहारस्वरूप उन्होंने अनूप कुमार साय को ओडिशा प्रदेश के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन बना दिया. इस से अनूप का राजनीतिक रसूख और ज्यादा बढ़ गया. इधर छत्तीसगढ़ में भाजपा 2018 के चुनावों में बुरी तरह पराजित हो गई और कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आ गई. मामला जब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंचा तो उन्होंने रायगढ़ पुलिस को निष्पक्ष तरीके से केस की जांच करने के आदेश दिए. उस समय संतोष सिंह ने एसपी (रायगढ़) का पदभार संभाला था. एसपी ने अपने निर्देशन में इस दोहरे हत्याकांड की जांच करानी प्रारंभ कर दी.

दोबारा शुरू हुई जांच चूंकि कल्पना दास और उस की बेटी प्रवती की बड़ी ही बेदर्दी से सिर कुचल कर हत्या की गई थी, इसलिए यह हत्याकांड पुलिस के लिए एक चुनौती था. पुलिस ने अनूप कुमार साय के एकएक कदम की निगरानी करनी शुरू कर दी. 6 महीने निगरानी करने के बाद पुलिस को तमाम सबूत मिल गए. पुलिस को पता चल गया था कि अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक मकान 24 सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में दे रखा था. प्रवती को वह एक महंगे और प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ा रहा था और उन्हें ले कर गोवा, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, दिल्ली आदि जगहों घूमने के लिए गया था. पुलिस ने कई पुख्ता सबूत इकट्ठा कर लिए, जिन्हें वह झुठला नहीं सकता था.

इस के बाद 13 फरवरी, 2020 को आधी रात रायगढ़ पुलिस ने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के ब्रजराज नगर स्थित आवास पर दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया. अनूप कुमार साय अपने बचाव के लिए खूब राजनीतिक दांवपेंच खेलता रहा. मगर पुलिस ने उस की एक न सुनी और थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की तो अंतत: वह टूट गया और उस ने स्वीकार कर लिया कि 6 मई, 2016 को उस ने लिवइन रिलेशनशिप में रह रही कल्पना दास व उस की बेटी प्रवती की हत्या लोहे की रौड से की थी. इस के बाद उस के आदेश पर उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो ने दोनों की लाशें बोलेरो गाड़ी से कुचल दी थीं.

अनूप कुमार साय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने ब्रजराज नगर से उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी अंतत: कल्पना व प्रवती मर्डर केस में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने घटना का सीन रीक्रिएट किया ताकि पता चल सके कि हत्याकांड को किस तरह अंजाम दिया गया था. अनूप कुमार साय के गिरफ्तार होने की खबर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक पहुंची तो उन्होंने जरा भी देर किए बिना अनूप कुमार साय को वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के चेयरमैन पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बरखास्त कर दिया.

रायगढ़ पुलिस ने हत्या के आरोपी 59 वर्षीय अनूप कुमार साय और उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर रायगढ़ के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Chhattisgarh के अरबपति को किडनैप करके मांगी 50 करोड़ की फिरौती

Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh) के अरबपति प्रवीण सोमानी का अपहरण पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. अपहर्त्ताओं ने जिस तरह योजनाबद्ध ढंग से प्रवीण से 50 करोड़ रुपए की फिरौती वसूलने के लिए उन का अपहरण किया था, पुलिस ने भी उसी तरह योजनाबद्ध तरीके से अपहर्त्ताओं का पीछा किया. आखिर कैसे…

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के उपनगर सिलतरा में लोहे, स्टील, सीमेंट के अनेक कारखाने हैं. यहीं पर सोमानी प्रोसेसर लिमिटेड नाम की स्टील की बड़ी फैक्ट्री है, जिस के मालिक हैं प्रवीण सोमानी. 8 जनवरी, 2020 की शाम प्रवीण सोमानी अपनी लाल रंग की रेंज रोवर कार नंबर सीजी10ए एल9637 द्वारा फैक्ट्री से घर आ रहे थे. कार वह स्वयं चला रहे थे. रास्ते में परसुलीडीह के बीच अचानक एक गाड़ी ने ओवरटेक कर के उन की कार के सामने इस तरह से कार लगा दी कि वह रुकने को विवश हो गए. प्रवीण सोमानी अभी संभले ही थे कि 2-3 लोगों ने उन की गाड़ी को घेर लिया. प्रवीण ने शीशा नीचे किया और उन की तरफ उत्सुक भाव से देखा.

तभी एक शख्स बोला, ‘‘मिस्टर… हमें तुम्हारी तलाश थी. आई एम इनकम टैक्स सीनियर औफिसर.’’

प्रवीण भौचक उन की ओर देखते रह गए. जब तक वह संभलते, तब तक 3-4 लोग और आ गए. उन में से एक शख्स ने कहा, ‘‘मिस्टर राजन!’’

यह सुनते ही प्रवीण बोले, ‘‘मगर सर, मैं राजन नहीं हूं. मैं प्रवीण सोमानी हूं. सोमानी इंडस्ट्रीज का मालिक.’’

‘‘ओह…’’ एक शख्स ने आश्चर्य से उन की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अपनी आईडेंटिटी कार्ड दिखाओ.’’

प्रवीण सोमानी ने तत्काल जेब से अपना आइडेंटिटी कार्ड निकाल कर उस व्यक्ति को दिखाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं प्रवीण सोमानी ही हूं, यह रहा मेरा कार्ड.’’

प्रवीण सोमानी को घेर कर खड़े लोग एकदूसरे को ऐसे देख रहे थे, जैसे कुछ गलत हो गया हो.

तभी सहसा एक शख्स ने उन की कार का पिछला गेट खोल कर कार में बैठते हुए कहा, ‘‘हमें तुम्हारी भी तलाश है… तुम्हारा नाम भी हमारी लिस्ट में है.’’

और देखते ही देखते 3-4 लोग उन की गाड़ी में सवार हो गए. प्रवीण सोमानी कुछ संभलते समझते, इस से पहले वे सब उन पर हावी हो चुके थे. एक ने कहा, ‘‘तुम, गाड़ी धीरेधीरे आगे बढ़ाओ और डरो मत, हम कुछ पूछताछ कर के तुम्हें छोड़ देंगे.’’

जनवरी की सर्द रात में भी प्रवीण सोमानी के चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. उन्होंने विवश हो कर अपनी लाल रंग की रेंज रोवर कार आगे बढ़ाई. उन के पीछेपीछे 2 गाडि़यां और चल रही थीं. 46 वर्षीय प्रवीण सोमानी के साथ गाड़ी में बैठे लोगों ने उन से पूछताछ शुरू कर दी. थोड़ी देर में जब वे धरसींवा से सिमगा, फिर बेमेतरा जिले की ओर बढ़े, तभी उन में से एक ने उन्हें रिवौल्वर के बल पर काबू कर बताया. ‘‘तुम हमारे कब्जे में हो, तुम्हारा अपहरण कर लिया गया है.’’

इस से प्रवीण सोमानी समझ गए कि ये लोग इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नहीं हैं, बल्कि वह इन के किसी गहरे षडयंत्र में फंस चुके हैं. उन लोगों ने सोमानी को पूरी तरह कब्जे में ले लिया था. उन का मोबाइल फोन भी छीन लिया गया था. प्रवीण पूरी शिद्दत के साथ दिमाग पर जोर डाल रहे थे कि उन के चंगुल से कैसे बच सकते हैं. मगर जब तक वे कोई फैसला ले पाते, उन में से एक युवक ने उन्हें बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उन पर बेहोशी सी छाने लगी. तभी एक युवक ने ड्राइविंग सीट पर कब्जा कर लिया. प्रवीण सोमानी को पीछे की सीट पर डाल दिया गया. अपहर्त्ता प्रवीण को ले कर कवर्धा (छत्तीसगढ़) से कटनी (मध्य प्रदेश) और आगे इलाहाबाद होते हुए दूसरे दिन फैजाबाद पहुंचे.

आधी रात को मचा हड़कंप इधर जब रात 9 बजे तक प्रवीण सोमानी घर नहीं पहुंचे तो परिजन चिंतित हो उठे. पत्नी रश्मि ने फैक्ट्री फोन लगाया तो पता चला, साहब शाम तकरीबन 6 बजे ही घर के लिए फैक्ट्री से रवाना हो गए थे. प्रवीण सोमानी आमतौर पर 7 बजे तक घर आ जाया करते थे. रश्मि ने जहां भी मोबाइल खड़काया उन्हें निराशा ही मिली. अंतत: उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए प्रवीण सोमानी के चचेरे भाई ललित सोमानी को यह जानकारी दे दी. इस के बाद उन की खोजबीन और तेज हो गई. जब उन के सभी मित्रों से पता कर लिया गया, तब ललित सोमानी ने धरसींवा थाने पहुंच कर टीआई बृजेश तिवारी को मामले की जानकारी दी.

प्रवीण सोमानी कोई मामूली इंसान नहीं थे बल्कि वह एक बड़े उद्योगपति थे, इसलिए उन के गायब होने की बात सुन कर टीआई भी चौंके. उन्होंने उसी समय उच्चाधिकारियों से बात करने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. यह मामला काफी गंभीर लग रहा था. यही कारण था कि जैसेजैसे रात गहराती गई, वैसेवैसे प्रवीण सोमानी के गायब होने की खबर जंगल की आग की तरह फैलती चली गई. घटना बहुत बड़ी थी, जिस का असर देर रात को ही देखने को मिला. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर छत्तीसगढ़ के डीजीपी डी.एम. अवस्थी ने आईजी (रायपुर रेंज) आनंद छाबड़ा और डीआईजी व एसएसपी आरिफ शेख को ले कर अपने नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया, ताकि अपहृत कारोबारी को छुड़ाने और अपहर्ताओं को गिरफ्तार करने का काम जल्दी और जिम्मेदारी से किया जा सके.

एसएसपी आरिफ शेख ने त्वरित काररवाई करते हुए एडिशनल एसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा, एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल, उरला के एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी, एसपी (सिटी) आजाद चौक नसर सिद्दीकी को सम्मिलित कर के तेजतर्रार 60 पुलिसकर्मियों की विशेष टीम बनाई. छत्तीसगढ़ के नामचीन उद्योगपति प्रवीण सोमानी की खोज में लगी विशेष टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद इस विशेष टीम को 8 टीमों में विभाजित कर के हर एक टीम को अलगअलग काम सौंपे गए. पुलिस टीमें सीसीटीवी फुटेज संग्रहण, तकनीकी विश्लेषण, कारोबारी के संबंध में स्थानीय जानकारी एकत्रित करने के कामों में लग गईं.

सीसीटीवी फुटेज की जांच में लगी टीम को घटनास्थल पर 2 संदिग्ध वाहनों की फुटेज मिली. वाहनों का रूट निर्धारण कर के जांच बिलासपुर की ओर से शुरू की गई. टीम ने उस रोड पर 1500 किलोमीटर से अधिक दूरी तक लगे सीसीटीवी फुटेज एकत्र किए. उन फुटेज की जांच से पता चला कि संदिग्ध वाहन उत्तर प्रदेश के शहर प्रतापगढ़ तक गए थे. लिहाजा एक पुलिस टीम उत्तर प्रदेश रवाना की गई. तकनीकी विश्लेषण में लगी टीम को कुछ संदिग्ध फोन नंबर मिले, जिस के बाद एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल और उरला के एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी के नेतृत्व में 2 टीमें बिहार भेजी गईं. साथ ही एक टीम एसपी (सिटी) आजाद चौक नसर सिद्दीकी के नेतृत्व में गुजरात और एक टीम ओडिशा के लिए रवाना कर दी गई.

सभी टीमें प्राप्त सूचना व जानकारी के आधार पर अलगअलग राज्यों में काम कर रही थीं. जिस की मौनिटरिंग एसएसपी (रायपुर) आरिफ शेख खुद कर रहे थे. वह सभी टीमों को आवश्यक दिशानिर्देश दे रहे थे. तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर टीम द्वारा दोंदेकला निवासी अनिल चौधरी, जोकि मूलत: बिहार का निवासी है, को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी गई. चंदन गिरोह का नाम आया सामने अनिल चौधरी से मिली जानकारी और तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर बिहार भेजी गई पुलिस टीम को गौरव कुमार उर्फ पप्पू चौधरी के बारे में कुछ जानकारी मिली. वह हिंगोरा अपहरण कांड का आरोपी भी था और चंदन सोनार गिरोह से संबंधित था. पुलिस टीम ने उस के संबंध में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

टीम को जानकारी मिली कि पप्पू चौधरी वैशाली जिले के बीहड़ क्षेत्र में गंगा नदी के किनारे स्थित गांव मथुरा गोकुला का निवासी है. उस पर बिहार पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा है. पता चला कि उस ने ही गिरोह के सदस्यों के साथ मिल कर प्रवीण सोमानी का अपहरण किया है. यह जानकारी मिलते ही एसएसपी आरिफ शेख खुद पटना पहुंच गए. उन्होंने बिहार पुलिस की एसटीएफ के साथ मिल कर दीयरा बीहड़ क्षेत्र में सर्च औपरेशन शुरू किया. संयुक्त टीमों ने दीयरा के 100 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में सर्च की, लेकिन गिरोह का सरगना पप्पू चौधरी वहां से फरार हो चुका था.

टीम को गिरोह के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली तो बिहार वाली टीम को तुरंत उत्तर प्रदेश भेजा गया. इस के अलावा एक अन्य टीम को ओडिशा के गंजम शहर के लिए रवाना किया गया. उत्तर प्रदेश गई पुलिस टीम से मिली जानकारी के आधार पर ओडिशा गई पुलिस टीम ने गंजम निवासी मुन्ना नायक को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की. उस से मिली जानकारी के आधार पर उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले के अलगअलग गांवों में छापेमारी कर के उस स्थान की पहचान सुनिश्चित की गई, जहां अपहृत सोमानी को रखा गया. देर रात उक्त स्थान पर दबिश दी गई. पता चला कि रेड करने से कुछ समय पहले ही आरोपी प्रवीण सोमानी को ले कर वहां से निकल गए थे.

इस पर टीम ने उन का पीछा करना शुरू कर दिया. अपहर्त्ताओं को जानकारी मिल चुकी थी कि पुलिस उन के पीछे पड़ी है. ऐसे में गिरोह के लोग प्रवीण सोमानी को सुनसान जगह पर छोड़ कर फरार हो गए. पुलिस टीम ने 22 जनवरी, 2020 को अपहृत प्रवीण सोमानी को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. 500 करोड़ रुपए की वसूली पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि छत्तीसगढ़ के उद्योगपति प्रवीण सोमानी का अपहरण करने वाला चंदन सोनार और उस के गिरोह का टौप कारकुन पप्पू चौधरी कोई साधारण अपराधी नहीं हैं. बिहार, झारखंड के साथसाथ पश्चिम बंगाल और अब छत्तीसगढ़ पुलिस की नाक में दम कर देने वाले चंदन और पप्पू दोनों मूलत: हाजीपुर के ही रहने वाले हैं. यह गैंग अब तक 40 से ज्यादा अपहरण की वारदातों में शामिल रहा है. इन लोगों ने अब तक केवल अपहरण से ही 500 करोड़ रुपए की बड़ी वसूली की है.

चंदन हाजीपुर सदर थाना क्षेत्र के सेंदुआरी का रहने वाला है, जबकि पप्पू चौधरी बिदुपुर का है. दोनों बदमाशों पर बिहार में पुलिस ने भारी ईनाम रख रखा है. यह गिरोह सूरत के हीरा व्यापारी के बेटे सोहैल हिंगोरा समेत कई लोगों का अपहरण कर उन से करोड़ों रुपए की फिरौती वसूल चुका है. इस गिरोह की खासियत यह है कि अपहरण की वारदात को अंजाम देने के लिए चंदन स्थानीय लड़कों का इस्तेमाल करता रहा था. गिरोह को जहां भी अपहरण करना होता था, वहां के स्थानीय लड़कों को गिरोह में शामिल कर लिया जाता था. ऐसा ही छत्तीसगढ़ में भी किया गया. साल 2017 में चंदन पटना पुलिस के हत्थे चढ़ा, लेकिन वर्ष 2018 में जमानत पर छूटने के बाद वह फरार हो गया था.

चंदन सोनार का लंबा आपराधिक इतिहास रहा है. कभी रेलवे क्षेत्र में अपराध करने वालों के बीच उस की तूती बोलती थी. जीआरपी के द्वारा जब उसे गिरफ्तार कर हाजीपुर जेल भेजा गया तो वहां उस की दोस्ती कई शातिर अपराधियों से हुई. इस के बाद अंडरवर्ल्ड में उस की पहचान तेजी से फैली. उस के खिलाफ वैशाली जिले के कई थानों में अपराध दर्ज हैं. चंदन सोनार ज्यादातर किडनैपिंग प्लान को पप्पू चौधरी के ही माध्यम से क्रियान्वित करता था. झारखंड के भाजपा नेता मदन सिंह के बेटे और 2 रिश्तेदारों के अपहरण के लिए भी उस ने प्रवीण सोमानी वाला ही तरीका अपनाया था. झारखंड में चंदन सोनार का पहला शिकार गोमिया के व्यवसायी महावीर जैन बने थे.

करीब 12 साल पहले, 2008 में गिरोह ने महावीर जैन का अपहरण किया था. इस के बाद रांची के ज्वैलर्स परेश मुखर्जी और लव भाटिया के अपहरण में भी उस की संलिप्तता सामने आई. खास बात यह है कि गुजरात के हीरा कारोबारी के बेटे सुहैल हिंगोरा को भी चंदन गिरोह ने 25 करोड़ की फिरौती लेने के बाद ही छोड़ा था. इस अपहरण में भी केंद्रीय भूमिका पप्पू ने निभाई थी. दक्षिण गुजरात के उद्यमी हनीफ हिंगोरा के बेटे सुहैल को साल 2013 में केंद्र शासित प्रदेश दमन से अगवा किया गया था. एक महीने बाद फिरौती चुका कर सुहैल के परिवार ने उसे मुक्त करवाया था.

छत्तीसगढ़ के कई उद्योगपति थे निशाने पर  वैशाली जिले के कई थानों में चंदन सोनार के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं. बिहार के वैशाली जिले के कुख्यात बदमाश पप्पू चौधरी ने पूरी तैयारी कर के रायपुर के उद्योगपति प्रवीण सोमानी ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के 5 बड़े कारोबारियों का अपहरण कर करोड़ों की फिरौती वसूलने की योजना सूरत जेल में बनाई थी. पप्पू ने तय कर लिया था कि जेल से बाहर निकलने के बाद अपहरण करना है. करीब 5 महीने पहले पप्पू जब जेल से बाहर आया तो उस ने गूगल पर सर्च कर छत्तीसगढ़ के 5 उद्योगपतियों की प्रोफाइल खंगाली. चूंकि रायपुर में उस का रिश्तेदार अनिल चौधरी पहले से ही था, इसलिए उस ने पहले स्टील कारोबारी प्रवीण सोमानी को ही उठाने का फैसला किया. यह खुलासा पूछताछ में मूलत: बिहार निवासी और मौजूदा रायपुर के दोंदेकला में सपरिवार रह रहे सरगना पप्पू के रिश्तेदार अनिल चौधरी ने किया.

अनिल के अनुसार पप्पू के कहने पर उस ने 3 महीने तक दैनिक मजदूर बन कर सोमानी समेत 5 बड़े कारोबारियों की रेकी की थी. घर से ले कर औफिस तक हर बात की जानकारी जुटाई. इस के बाद 8 जनवरी को पप्पू ने ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के बदमाशों के साथ ईडी अफसर बन कर प्रवीण का अपहरण किया. हालांकि पुलिस ने उन कारोबारियों के नामों को गुप्त रखा है, गिरोह जिनजिन का अपहरण करने वाला था. कैसे मिली सफलता 8 जनवरी, बुधवार की रात तकरीबन 2 बजे प्रवीण के गायब होने की सूचना मिलते ही पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. 9 जनवरी की शाम तक पुलिस को प्रवीण सोमानी की फैक्ट्री के बाहर लगे कैमरे से 2 सफेद कारों के धुंधले फुटेज मिले थे. फुटेज में एक कार लंबी और दूसरी क्रेटा टाइप थी जो ठीक प्रवीण की गाड़ी के पीछे नजर आ रही थीं.

उन्हीं कारों की फुटेज परसूलीडीह, राम कुटीर में जहां प्रवीण की कार मिली थी, वहां के कैमरे से मिली. बस इसी क्लू से पुलिस आगे बढ़ी. एक फुटेज में एक कार का नंबर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की सीरीज सीजी-10 था. उसी संदिग्ध कार की तलाश में बिलासपुर और कवर्धा टीम भेजी गई.  जिला बेमेतरा के पास एक कैमरे में वही कार नजर आई. इस से पुलिस को यह पता चल गया कि वह सही दिशा में आगे बढ़ रही है. आगे बढ़ने पर कवर्धा के टोल प्लाजा में फिर वही कार दिखी. टीम फिर आगे बढ़ी. रास्ते भर रोड और टोल प्लाजा के कैमरे खंगालने पर इलाहाबाद में उसी कार का नंबर नजर आया. इलाहाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर सोमानी की कार की फुटेज मिली. उस के बाद 3 रास्ते थे. तीनों रास्तों में कई किलोमीटर तक फुटेज खंगाले गए, लेकिन कार नजर नहीं आई. इस से पुलिस की जांच एक तरह से वहीं ठहर गई.

उस के बाद पुलिस टीम ने करीब 5 लाख मोबाइल नंबरों को खंगाला. बस, ट्रेन और एयरपोर्ट के एकएक यात्री का टिकट चैक करवाया. 2 महीने पहले तक का रिकौर्ड खंगाला गया. दोनों कारों पर जो नंबर थे, जांच में गलत पाए गए. एक गाड़ी का नंबर बिलासपुर का था, जबकि दूसरा रायपुर का था, लेकिन वह किसी ट्रेवल एजेंसी की कार थीं. इस बीच मोबाइल नंबरों को खंगालने से 2 संदिग्ध नंबर मिले. इस कवायद में प्रवीण सोमानी अपहरण का एक संदिग्ध अनिल चौधरी पुलिस के हाथ आ गया. पुलिस ने उस के परिवार वालों तक को पता नहीं लगने दिया कि पप्पू का रिश्तेदार उस के कब्जे में है. उसी से पूछताछ में गैंग के सदस्यों के नाम पता चल गए.

12 जनवरी, रविवार की रात ओडिशा में गैंग का सब से अहम सदस्य मन्नू पकड़ में आ गया. उसे ले कर पुलिस फैजाबाद पहुंची और 22 जनवरी बुधवार को सुबह 4 बजे पुलिस प्रवीण को अपहर्ताओं से छुड़ाने में सफल हो गई. प्रवीण उस समय अर्धबेहोशी की हालत में थे. उन्हें पता भी नहीं था कि वह पुलिस के कब्जे में हैं. उन्हें काफी देर बाद होश आया. खुद को पुलिस के संरक्षण में देख कर प्रवीण की जान में जान आई. पुलिस जब प्रवीण को ले कर लखनऊ जा रही थी, तब पप्पू के गैंग के लोग प्रवीण के परिवार वालों को धमकी भरे फोन कर पैसे मांग रहे थे.

खौफ में गुजरे थे दिन प्रवीण सोमानी के अनुसार अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें बहुत टार्चर किया गया था. 13 दिनों तक लगभग दिन भर आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी. फिरौती की रकम के लिए उन के सामने ही बारबार उन के परिजनों से पैसों की मांग की जाती रही. उन के साथ बड़ी अमानवीयता का व्यवहार होता था. अचानक एक दिन अपहर्ता उन्हें छोड़ कर चले गए. उन के जाते ही वहां सन्नाटा छा गया. आंखों पर पट्टी बंधी होने से कुछ सूझ नहीं रहा था. काफी देर बाद उन्होंने आंखों की पट्टी हटाई. कमरे में हलकी रोशनी थी, आसपास कोई नहीं था. दिल तेजी से धड़कने लगा. काफी देर तक समझ नहीं आया कि क्या करें?

काफी देर तक वह वहां वैसे ही बैठे रहे, फिर कुछ तेज कदमों की आवाजों से दिल बैठने लगा. एकाएक कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया. यह देख प्रवीण की घबराहट बढ़ गई. फिर किसी ने उन के कंधे पर हाथ रख

का कहा, ‘‘डरो नहीं, हम छत्तीसगढ़ पुलिस से हैं.’’

यह सुनते ही ऐसा महसूस हुआ जैसे वह अपनों के बीच पहुंच गए हैं. उस के बाद उन्हें गाड़ी में बिठा कर सीधे दिल्ली लाया गया. प्रवीण ने बताया कि अपहर्त्ता भोजन देते समय ही आंखों से पट्टी खोलते थे. फिर पूरे दिन आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी. प्रवीण सोमानी ने पुलिस को बताया कि किडनैपर्स ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. बाथरूम भी अकेले नहीं जाने देते थे. उन्हें आवाज से ही आभास होता था कि कमरे में कितने लोग हैं. आवाज बदलने से अहसास होता कि आज नए लोग आए हैं. वे आपस में बात करते समय एक दूसरे को विराट, धोनी, कोहली आदि कह कर पुकारते थे.

अपहरण किसी और का होना था, पर…

पहले लगा कि ये उन के नाम होंगे, फिर अहसास हुआ कि पहचान छिपाने के लिए एकदूसरे को गलत नाम से पुकार रहे हैं. किडनैप करने के बाद वे उन से बदतमीजी से बात करते थे. लेकिन धीरेधीरे उन का बात करने का अंदाज बदलने लगा, भाषा भी बदलती जा रही थी. वे बारबार कहने लगे थे कि आप की छत्तीसगढ़ पुलिस तो पीछे ही पड़ गई. क्या वो तुम को छुड़ा कर ही दम लेगी? अंत में 2 दिन तो वे भीतर से डरे हुए लगने लगे थे. वे कहने लगे थे कि अगर हम ने तुम्हें छोड़ दिया तो पुलिस से कहना कि हमारे परिवार वालों को परेशान न करे. जिस दिन उन्हें छोड़ा गया, उस दिन जातेजाते कुछ पैसे दे कर कहा, ‘‘तुम्हें यहां से बस मिल जाएगी.’’

अपहर्त्ता पप्पू चौधरी गैंग का टारगेट प्रवीण नहीं, बल्कि प्रदेश के एक बड़े उद्योगपति का बेटा था. वे उसी का अपहरण करने के लिए आए थे. उन की एक फैक्ट्री भी उसी रोड पर है. उद्योगपति का बेटा जिस कार से चलता था, उसी ब्रांड और हूबहू उसी रंग की कार प्रवीण के पास थी. इसलिए अपहर्त्ता धोखा खा गए और प्रवीण को उठा कर ले गए. 9 जनवरी, 2020 को उत्तर प्रदेश पहुंचने के बाद अपहर्त्ताओं को पता चला कि उन से गलती हो गई है. इस के बावजूद उन्होंने प्रवीण के परिजनों से 50 करोड़ की फिरौती मांग ली. पुलिस ने प्रवीण के गायब होने के तीसरे दिन परसूलीडीह की झाडि़यों से उन का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. उस में एक सिम था. हालांकि अपहर्त्ताओं ने मोबाइल फेंकने के पहले उस का सिम निकाल लिया था. लेकिन एक सिम उस में इनबिल्ट था. अपहर्त्ताओं का ध्यान उस की ओर नहीं गया था.

उद्योगपति प्रवीण सोमानी के अपहरण के 5 दिन पहले 3 जनवरी को गैंग लीडर पप्पू चौधरी बिहार से पूरी तैयारी के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी आ गया था. रायपुर पहुंच कर उस ने अपने रिश्तेदार और रेत सप्लायर अरुण चौधरी को बुलाया. दोनों उसी गाड़ी से शहर में कई जगह घूमते हुए पंडरी बस स्टैंड के सामने एक फाइनैंस कंपनी के दफ्तर पहुंचे. चेन गिरवी रखने के बहाने वहां की रेकी की, लेकिन वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में उन की फुटेज आ गई थी. यही वह फुटेज थी, जिस से अरुण को पुलिस ने चौथे दिन ही गिरफ्तार कर लिया. अरुण ने पप्पू और उस के गैंग के बाकी सदस्यों की पूरी कुंडली बताई और इस तरह मामले का भंडाफोड़ हो गया.

प्रवीण सोमानी 8 जनवरी को गायब हुए थे. पुलिस को आधी रात करीब 2 बजे इस की सूचना मिली. पुलिस ने उसी समय खोजबीन तो शुरू की लेकिन असल जांच 9 जनवरी, 2020 को दोपहर 12 बजे के बाद शुरू हुई. शाम होतेहोते पुलिस को प्रवीण के पीछे लगी 2 संदिग्ध गाडि़यों के फुटेज मिल गए. पुलिस ने धुंधले फुटेज से उस का नंबर निकाल लिया. पुलिस की एक टीम फुटेज के आधार पर गाड़ी के पीछे चलते हुए उत्तर प्रदेश पहुंच गई. दूसरी टीम ने शहर के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज खंगालने शुरू किए. इस दौरान पंडरी खालसा स्कूल के सीसीटीवी कैमरे में उसी क्रेटा कार का फुटेज मिल गया. पुलिस को गाड़ी के आने का फुटेज तो मिल गया था, लेकिन जाते हुए नजर नहीं आ रही थी.

पुलिस अफसरों की टीम ने पहले ये पता लगाया कि फुटेज कहां की है. जगह की पहचान होने के बाद पुलिस अफसर वहां पहुंचे. इस दौरान गाड़ी जहां से गायब हुई, वहां जूते का एक बड़ा शोरूम है. पुलिस की टीम ने उस शोरूम के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. उसी कैमरे में 2 युवक नजर आए, जो उसी क्रेटा कार से उतरे थे. वहां पता चला कि जूतों के शोरूम के ऊपर एक फाइनैंस कंपनी का औफिस है. पुलिस ने वहां के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज देखे. उस में पप्पू चौधरी और अरुण चौधरी के साफसाफ फुटेज मिल गए. पुलिस की टीम ने फाइनैंस कंपनी को फुटेज दिखा कर पूछताछ की तो पता चला कि अरुण ने 50 हजार रुपए में अपनी और पप्पू की चेन गिरवी रखी है.

पुलिस को वहां पप्पू और अरुण का सीसीटीवी फुटेज मिल गया. उसी रात यानी अपहरण के चौथे दिन पुलिस अरुण चौधरी के घर पहुंच गई. वारदात के चौथे दिन रात में अरुण को उठा लिया गया. पूछताछ में उस ने अपहरणकांड की पूरी साजिश उजागर कर दी. अपहरण का किंगपिन पप्पू चौधरी पहले चंदन सोनार का गुर्गा था. चंदन के साथ मिल कर उस ने गुजरात के सोहैल हिंगोरा का अपहरण किया था. कहते हैं करोड़ों रुपए ले कर गिरोह ने हिंगोरा को हाजीपुर में रिहा किया था. बाद में पप्पू चौधरी गिरफ्तार हो गया और उसे गुजरात के सूरत जेल भेज दिया गया. इस के बाद वह चंदन सोनार की तरह अपहरण की योजना बनाने लगा.

नाम बदल बनवाया आधार कार्ड मूलरूप से वैशाली के बिदुपुर, मजलिसपुर पंचायत के गोपालुपुर घाट निवासी पप्पू चौधरी का एक और नाम गौरव कुमार भी है. उस ने अपने आधार कार्ड से ले कर अन्य सभी पहचान से जुड़े कागजात गौरव नाम से तैयार कराए थे. सोहैल हिंगोरा अपहरण कांड में पप्पू भी चंदन सोनार के साथ था. पप्पू पहले अपने पिता के साथ ताड़ी बेचता था. हिंगोरा अपहरण कांड के बाद पप्पू के हिस्से में भी फिरौती की रकम आई थी. इस के बाद उस ने बिदुपुर में आलीशान मकान बनवाया. पप्पू के जेल जाने के बाद उस के पिता ने ताड़ी बेचनी बंद कर दी और हाजीपुर महनार रोड पर खुद की सीमेंट, बालू और सरिया की दुकान खोल ली.

उद्योगपति प्रवीण सोमानी के अपहरण का सरगना भले ही पप्पू चौधरी रहा हो, लेकिन अपहर्त्ताओं की कई टीमें इस में शामिल थीं. गाडि़यों का बंदोबस्त करना, सोमानी को छिपाने की जगह ढूंढना और फिरौती के लिए फोन करने जैसे काम गिरोह के अलगअलग सदस्य करते थे. ये सभी अपहरण के बाद से ही एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. तभी सोमानी के छुड़ाए जाने के लिए भी फिरौती के लिए काल आते रहे. अपहरण कांड में ओडिशा के शिशिर व कालिया गुंजाम, नालंदा के सुमन कुमार, अनिल चौधरी व बाबू प्रदीप, अंबेडकर नगर के अजमल व आफताब, बेंगलुरु का अंकित और ओडिशा का मुन्ना नायक शामिल था. पुलिस इस में मुन्ना नायक, अनिल चौधरी, शिशिर, तूफान और बाबू को गिरफ्तार कर चुकी है.

पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ थाना धरसींवा में भादंवि की धारा 365, 120बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया. इस अपहरण कांड के महत्त्वपूर्ण तथ्य भी सामने आ चुके हैं कि अपहर्त्ताओं ने एक तरह से पुलिस के डर से प्रवीण सोमानी को बिना फिरौती लिए रिहा कर दिया. दूसरी तरफ यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसे शातिर अपहर्त्ताओं के चंगुल से बिना फिरौती प्रवीण सोमानी को कैसे छोड़ सकते हैं?

कुल मिला कर संशय का विषय बना हुआ है कि आखिर सच क्या है. बहरहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रवीण सोमानी अपहरण कांड की जांच में जुटी और सफल रही पुलिस टीम को पुरस्कृत कर उस की हौसलाअफजाई की है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Madhya Pradesh Crime : तकिए से मुंह दबाकर ली पत्नी की जान, गर्लफ्रेंड थी वजह

Madhya Pradesh Crime : अमितेश गर्लफ्रैंड के लिए अपने 2 बच्चों की मां और पत्नी को मारना चाहता था. इस के लिए उस ने काफी जतन से शिवानी की हत्या कर भी दी, लेकिन हत्या के लिए कोबरा इस्तेमाल करना उसे भारी पड़ गया. जब उस की हकीकत…

1 दिसंबर, 2019 की शाम की बात है. इंदौर के मोहल्ला संचार नगर एक्सटेंशन का रहने वाला अमितेश एकदम से चिल्लाया, ‘‘निखिल, ओ निखिल, शिवानी को सांप ने काट लिया है. जल्दी आओ, वह बेहोश हो गई है. मेरी मदद करो, इसे अस्पताल ले जाना है.’’

शिवानी अमितेश की पत्नी थी. निखिल कुमार खत्री उस का किराए था. जिस समय अमितेश ने उसे आवाज लगाई, वह रात का खाना बना रहा था. उस ने झट से गैस बंद की और सब कुछ जस का तस छोड़ कर अमितेश के बैडरूम में जा पहुंचा. क्योंकि शिवानी उस समय बैडरूम में ही थी. उस ने देखा शिवानी बैड पर पड़ी थी. उसी के पास बैड पर एक काला कोबरा सांप मरा पड़ा था. अमितेश काफी घबराया हुआ था. शिवानी के पास पड़े सांप को देख कर निखिल को समझते देर नहीं लगी कि इसी सांप ने शिवानी को काटा है. उस के आते ही अमितेश ने कहा, ‘‘निखिल, जल्दी करो, इसे अस्पताल ले चलते हैं. जल्दी इलाज मिलने से शायद बच जाए. देर होने पर सांप का जहर पूरे शरीर में फैल सकता है.’’

दोनों शिवानी को उठा कर बाहर ले आए. बाहर अमितेश की कार खड़ी थी. उसे कार में लिटा कर अमितेश अंदर जाने लगा तो निखिल ने सोचा, चाबी लेने जा रहा होगा. पर जब वह लौटा तो उस के हाथ में एक बरनी थी, जिस में वही मरा हुआ सांप था, जिस ने शिवानी को काटा था. उसे देख कर निखिल ने पूछा, ‘‘इसे कहां ले जा रहे हो?’’

‘‘डाक्टर को दिखा कर बताएंगे कि इसी सांप ने काटा है.’’ अमितेश ने कहा और बरनी को पीछे की सीट पर शिवानी के पास रख कर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. बगल वाली सीट पर निखिल के बैठते ही कार आगे बढ़ गई. शिवानी को वह इंदौर के जानेमाने अस्पताल एमवाईएच अस्पताल ले गया. अमितेश ने डाक्टरों को बताया कि इसे सांप ने काटा है. शिवानी को देखते ही डाक्टर समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. अमितेश के अनुसार शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई थी. लेकिन जब डाक्टरों ने शिवानी को ध्यान से देखा तो उन्हें मामला गड़बड़ लगा. शिवानी के हाथ पर 3 काले गहरे नीले निशान थे, जो सांप के काटने के हो सकते थे, पर साथ ही उस के शरीर पर चोट के भी निशान थे.

अमितेश कह रहा था कि शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई है. सांप के काटने के निशान भी उस के बाएं हाथ पर थे. यही नहीं, उस ने डाक्टरों को वह सांप भी दिखाया, जिस ने शिवानी को काटा था. डाक्टरों ने देखा कि जहां सांप ने काटा था, वहां तो नीले निशान थे, पर बाकी शरीर सफेद पड़ गया था, जबकि सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है. किसी को विश्वास नहीं हुआ अमितेश की बात पर डाक्टरों का संदेह जब विश्वास में बदल गया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है तो उन्होंने हत्या का शक होने की सूचना अस्पताल प्रशासन को दे दी. अमितेश थाना कनाडिया क्षेत्र में रहता था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की जानकारी थाना कनाडिया पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना कनाडिया के थानाप्रभारी अनिल सिंह, एसआई अविनाश नागर, 2 सिपाही महेश और मीना सुरवीर को साथ ले कर एमवाईएच अस्पताल पहुंच गए. पुलिस को देख कर अमितेश घबराया जरूर, पर वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि शिवानी की मौत सांप के काटने से ही हुई है. अमितेश भले ही अपनी बात पर अड़ा था, पर पुलिस ने शिवानी के शव का निरीक्षण किया तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अमितेश झूठ बोल रहा है. इस की वजहें भी थीं. सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है, जबकि शिवानी का शरीर सफेद था. इस के अलावा उस की बाईं आंख के नीचे चोट का निशान भी था. दोनों पैरों के पंजे नीचे की ओर खिंचे हुए थे. हाथों की मुट्ठियां बंद थीं और नाक के बाहरी किनारों की चमड़ी छिली थी, जैसे किसी चीज से रगड़ी गई हो.

अमितेश जिस डेजर्ट कोबरा सांप को बरनी में भर कर लाया था, वह कोबरा मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता था. इस के अलावा जिस तरह सांप का सिर कुचला हुआ था, उस तरह सांप का सिर कुचलना आसान नहीं है. क्योंकि कोबरा बहुत फुर्तीला होता है. पुलिस को लग रहा था कि सांप को पकड़ कर मारा गया है. इस सब के अलावा अहम बात यह भी थी कि घटना बरसात के मौसम की होती तो एक बार मान भी लिया जाता कि सांप कहीं से आ गया होगा. पर ठंड के मौसम में शहर के बीचोबीच इस तरह बैडरूम में जा कर सांप के काटने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर अनिल सिंह ने शिवानी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद घटनास्थल के निरीक्षण के लिए अमितेश और निखिल को साथ ले कर संचार नगर एक्सटेंशन स्थित अमितेश के घर आ गए. पुलिस ने बैडरूम का निरीक्षण किया. बैड पर बिछी चादर इस तरह अस्तव्यस्त थी, जैसे उस पर लेटने वाला खूब छटपटाया हो. बैड पर 2 तकिए थे. उन में से एक तकिए के कवर पर लार का निशान था. पुलिस ने तकियों के कवर और बैडशीट को फोरैंसिक जांच के लिए भिजवा दिया. अनिल सिंह ने अब तक की जांच में जो पाया था और जो काररवाई की थी, उसे अपने अधिकारियों को बता दिया. निखिल और अमितेश से पूछताछ शुरू करने से पहले उन्होंने शिवानी की मौत की सूचना उस के मायके वालों को देना जरूरी समझा.

अमितेश से फोन नंबर ले कर उन्होंने शिवानी की मौत की बात उस के पिता को बताई, तो उन्होंने सीधा आरोप लगाया, ‘शिवानी की मौत सांप के काटने से नहीं हुई, उस की हत्या की गई है.’ अनिल सिंह ने उन से इंदौर आने को कहा और निखिल कुमार खत्री से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में निखिल ने जो देखा था, सचसच बता दिया. अमितेश से घर वालों के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, दोनों बच्चों बेटी वैदिका और बेटे वैदिक को ले कर राऊ में रहने वाली उस की बहन रिचा चतुर्वेदी के यहां गए हैं. पुलिस ने फोन कर के उन्हें भी शिवानी की मौत की सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.

अगले दिन सब लोग इंदौर आ गए. ललितपुर से शिवानी के पिता और भाई भी आ गए थे. पुलिस ने एक बार फिर अमितेश कुमार पटेरिया, पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी, किराएदार निखिल कुमार खत्री से विस्तारपूर्वक पूछताछ की. इस पूछताछ में सभी के बयान अलगअलग पाए गए. इस से पुलिस का शक विश्वास में बदल गया, लेकिन पुलिस को सबूत चाहिए था. दूसरी ओर शिवानी के पिता और भाई का कहना था कि अमितेश का नोएडा में रहने वाली किसी युवती से प्रेमसंबंध है. वह युवती नोएडा में उस के साथ लिवइन में रहती थी, इसीलिए वह शिवानी को साथ नहीं रखता था. उस ने शिवानी से तलाक के लिए मुकदमा भी दायर किया था, लेकिन बाद में खुद ही मुकदमा वापस ले लिया था. उस युवती को ले कर शिवानी और अमितेश में अकसर लड़ाई झगड़ा होता था.

पतिपत्नी के बीच विवाद की बात अमितेश और उस के घर वालों ने भी स्वीकार की. पुलिस चाहती तो अमितेश को गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन वह किसी साधारण परिवार से नहीं था इसलिए पुलिस को अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरैंसिक रिपोर्ट का इंतजार था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पोल तीसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, शिवानी की मौत अस्पताल लाने से 8 घंटे पहले सांप के काटने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. फोरैंसिक रिपोर्ट से भी साबित हो गया था कि शिवानी की हत्या की गई थी. पुलिस ने अमितेश के बैडरूम से जो तकिए के कवर जब्त किए गए थे, उन में से एक तकिए के कवर पर शिवानी की लार के धब्बे पाए गए थे.

शक विश्वास में बदल गया था, पुलिस ने अमितेश को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शिवानी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि उसी ने पिता ओमप्रकाश एवं बहन रिचा की मदद से शिवानी की हत्या सोते समय मुंह पर तकिया रख कर की थी. अमितेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया और बहन रिचा चतुर्वेदी को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन दोनों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूरी पूछताछ में शिवानी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

 

जल संसाधन विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पद से रिटायर 73 वर्षीय ओमप्रकाश पटेरिया परिवार के साथ मध्य प्रदेश, इंदौर के थाना कनाडिया क्षेत्र में पड़ने वाले संचार नगर एक्सटेंशन में रहते थे. उन के परिवार में बेटा अमितेश कुमार और बेटी रिचा पटेरिया थी. पत्नी की मौत हो गई थी. बेटी बड़ी थी और बेटा छोटा. बेटी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

बेटा अमितेश कुमार पटेरिया पढ़लिख कर एक्सिस बैंक में मैनेजर के पद पर तैनात हो गया था. करीब 13 साल पहले ओमप्रकाश ने उस की शादी ललितपुर की शिवानी के साथ कर दी थी. अमितेश बैंक में अधिकारी था. पिता भी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर था, घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ अमितेश एक बेटी और एक बेटे का पिता बना. बेटी वैदिका इस समय 8 साल की है तो बेटा वैदिक 4 साल का. सब मिलजुल कर रह रहे थे, इसलिए घर में खुशी ही खुशी थी. घर में परेशानी तब शुरू हुई, जब करीब 5 साल पहले अमितेश का तबादला इंदौर से नोएडा हो गया.

पिता सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए वह घर पर ही रहते थे. पत्नी और बच्चों को पिता के भरोसे इंदौर में छोड़ कर अमितेश नोएडा आ गया था. उस ने पत्नी से वादा किया था कि बच्चों की परीक्षा हो जाने के बाद वह उन्हें साथ ले जाएगा. लेकिन अमितेश अपने इस वादे पर कायम नहीं रहा.

बच्चों की परीक्षा खत्म हो गई तो शिवानी ने पति के साथ चलने की जिद की. तब उस ने पिता के अकेले होने की बात कह कर उसे इंदौर में ही रहने को कहा. उस का कहना था कि उस के नोएडा जाने पर पिता परेशान तो होंगे ही, उन की देखभाल भी नहीं हो पाएगी.

शिवानी जबरदस्ती नहीं कर सकती थी, क्योंकि अमितेश ने बहाना ही ऐसा बनाया था. मजबूर हो कर शिवानी को ससुर के पास इंदौर में ही रुकना पड़ा. जबकि सही बात यह थी कि अमितेश ने पिता की देखभाल का सिर्फ बहाना बनाया था. क्योंकि उस का नोएडा की एक युवती मोना सिंह से प्रेम संबंध बन गया था. इसी वजह से वह शिवानी को नोएडा नहीं लाना चाहता था.

मोना से उस की मुलाकात बैंक में ही हुई थी. वह किसी काम से बैंक आई थी. उस का वह काम बिना मैनेजर के नहीं हो सकता था. मोना अमितेश से मिली तो उस ने उस की जिस तरह मदद की, उस से वह काफी प्रभावित हुई. फिर तो वह जब भी बैंक आती, अमितेश से जरूर मिलती. धीरेधीरे ये मुलाकातें दोस्ती में बदल गईं तो दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर ले लिए.

मोना आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. किसी भी मर्द से बातें करने में उसे जरा भी परहेज नहीं था. यही वजह थी कि वह अमितेश से फोन पर बातें करने लगी. धीरेधीरे बातों का यह सिलसिला बढ़ता गया और समय भी. इसी के साथ बातें करने का विषय भी बदलता गया. दुनियादारी की बातों के साथ प्रेम की बातें भी होने लगीं.

गर्लफ्रैंड लगी पत्नी से प्यारी अमितेश शादीशुदा था. साथ ही 2 बच्चों का बाप भी. उस की उम्र बताती थी कि वह शादीशुदा होगा, मोना को यह बात पता भी थी. फिर भी अमितेश से दोस्ती और प्यार में उसे कोई आपत्ति नहीं थी. शायद वह मौके का फायदा उठाने वाली युवती थी. अमितेश घर और पत्नी से दूर नोएडा में अकेला रह रहा था. उसे प्यार और पत्नी के साथ की जरूरत भी महसूस होती थी. पर पत्नी बच्चों की परीक्षा की वजह से साथ नहीं आ पाई थी. इसी का फायदा मोना सिंह ने उठाया. पत्नी साथ होती तो शायद अमितेश का झुकाव मोना सिंह की ओर नहीं होता. पत्नी के प्यार को तरस रहे अमितेश ने अपनी यह जरूरत मोना सिंह से पूरी करने की कोशिश की. वह बैंक के बाहर भी उस से मिलने लगा.

मोना मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने वाली युवती थी. तभी तो उस ने अमितेश जैसे कमाऊ आदमी को अपने प्रेमजाल में फांसा था. मोना अमितेश को अकसर अट्टा बाजार में मिलने के लिए बुलाती. नोएडा में अट्टा बाजार ही एक ऐसी जगह है, जहां आदमी की हर जरूरत का सामान मिल जाता है. प्रेमियों के मिलने का उचित स्थान भी वही है. क्योंकि वहां इतनी भीड़ होती है कि कोई एकदूसरे को नहीं देखता. बैठने की जगहें भी हैं तो घूमने और खरीदारी के लिए दुकानें और मौल भी हैं. आधुनिक फैशन की हर चीज वहां मिलती है तो खाने के अच्छे रेस्टोरेंट भी हैं. अब तक मोना और अमितेश की बातें ही नहीं मुलाकातें भी लंबी हो गई थीं. दोनों लगभग रोज ही अट्टा बाजार में मिलने लगे थे. इस से मन नहीं भरता तो छुट्टी के दिन भी पूरा पूरा दिन साथ बिताते.

एक कहावत है, आदमी को अगर बैठने की जगह मिल जाए तो वह लेटने की सोचने लगता है. ऐसा ही कुछ अमितेश के साथ भी हुआ. मोना से दोस्ती के बाद प्यार हुआ, फिर दोनों साथसाथ घूमने लगे. शादीशुदा अमितेश का मन मोना से एकांत में मिलने का होने लगा. वह उस पर पैसे भी जम कर खर्च कर रहा था. ऐसे में भला फायदा क्यों न उठाता. लेकिन इस के लिए मोना को अपने फ्लैट पर लाना जरूरी था, क्योंकि उस से बढि़या एकांत जगह कहां हो सकती थी. मोना भी बेवकूफ नहीं थी. वह अच्छी तरह जानती थी कि अमितेश उस पर पैसा क्यों लुटा रहा है. वह तो उस की हर इच्छा पूरी कर उसे पूरी तरह अपना बनाना चाहती थी, क्योंकि अब तक उसे अमितेश के बारे में सब कुछ पता चल चुका था. उस की हैसियत का भी उसे पता था. वह बैंक में मैनेजर था, अगर ऐसा आदमी इस तरह मिल जाए तो भला कौन नहीं पाना चाहेगा. मोना उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी.

वैसा ही हाल अमितेश का भी था. वह भी मोना को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. क्योंकि उस के आगे अब पत्नी बेकार लगने लगी थी. वैसे भी उसे पत्नी से एकांत में मिलने वाला प्यार नहीं मिल रहा था. उस के लिए वह तड़प रहा था. इंदौर इतना नजदीक भी नहीं था कि उस का जब मन होता, पत्नी से मिलने चला जाता. इसलिए मोना से नजदीकी बनने के बाद वह उस से उस प्यार की अपेक्षा करने लगा, क्योंकि वह प्यार उस की जरूरत भी बन चुका था.

मोना का हाथ हाथ में ले कर अमितेश घूमता ही था. ऐसे में ही एक दिन उस ने कहा, ‘‘मोना, तुम मेरे फ्लैट पर मिलने क्यों नहीं आती?’’

‘‘मैं तो तैयार हूं, तुम्हीं नहीं बुलाते.’’ मोना ने कहा.

‘‘मेरे कमरे पर आने की तुम्हारी हिम्मत है?’’ अमितेश ने पूछा.

‘‘मेरी तो आने की हिम्मत है, तुम अपनी हिम्मत की बात करो.’’

‘‘मैं तो तुम्हारे बारे में सोच रहा था कि कहीं तुम मना न कर दो.’’ अमितेश ने कहा.

‘‘मैं जब तुम्हारे साथ घूम सकती हूं, तुम जहां बुलाते हो, वहां आ सकती हूं तो भला मैं तुम्हारे फ्लैट पर क्यों नहीं आ सकती. तुम बुलाने की हिम्मत तो करो.’’ मोना ने अमितेश की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘फ्लैट पर आने का मतलब समझती हो?’’ अमितेश ने कहा.

‘‘खूब अच्छी तरह समझती हूं, इसीलिए तो हिम्मत की बात कही है. कमरे पर आने का मतलब है, तुम्हारी इच्छा पूरी करना. मैं उस के लिए भी तैयार हूं. अब तुम सोचो कि तुम उस के लिए तैयार हो कि नहीं?’’

‘‘मैं तैयार हूं, तभी तो तुम से फ्लैट पर चलने को कह रहा हूं.’’

‘‘तैयार तो मैं भी हूं पर अगर तुम पत्नी वाला प्यार चाहते हो तो मुझे तुम्हें पत्नी का दर्जा भी देना होगा.’’ मोना ने मन की बात स्पष्ट बता दी.

 

पत्नी की जगह लेने को तैयार हुई गर्लफ्रैंड मोना की इस बात पर अमितेश सोच में पड़ गया. उसे सोच में डूबा देख कर मोना ने कहा, ‘‘किस सोच में डूब गए. पत्नी वाला प्यार चाहिए तो दर्जा तो पत्नी वाला ही देना होगा. जिम्मेदारियां तो उठानी ही पड़ेंगी न?’’

अमितेश को मोना बहुत अच्छी लगती थी. उस ने पत्नी और मोना में जोड़ लगाना शुरू किया. उस की पत्नी शिवानी घरेलू, पुराने विचारों वाली, घरपरिवार में ही सुख तलाशने वाली महिला थी. उस ने ससुराल में साड़ी के अलावा कभी कुछ नहीं पहना था. उस की शक्लसूरत भी साधारण थी. उस में नाजनखरे नहीं थे, अपने बच्चों में ही उलझी रहती थी. उस के लिए बच्चे पहले थे, पति बाद में. अमितेश को इस सब की आदत भी पड़ चुकी थी, लेकिन मोना से मिलने के बाद शिवानी उसे बेकार लगने लगी थी. उसे अब मोना ही मोना दिखाई देती थी. मोना जींसटौप तो पहनती ही थी, अमितेश उसे जो भी कपड़े खरीद कर देता, वह उन सभी को पहनती थी. बाजार में खुलेआम उस का हाथ पकड़ कर चलती थी. नाजनखरे करने भी खूब आते थे. भला इस उम्र में इस तरह की प्रेम करने वाली मिले तो कौन नहीं, उस की हर शर्त मान लेगा.

अमितेश ने भी मोना की हर शर्त मान ली. फिर तो मोना अमितेश के फ्लैट पर आने की कौन कहे, अपना सामान ले कर हमेशाहमेशा के लिए आ गई. वह बिना शादी के ही अमितेश के साथ रहने लगी. इस तरह किसी मर्द के साथ रहने को आजकल लिवइन कहा जाता है. महानगरों में इस तरह रहना नई पीढ़ी के लिए एक तरह का फैशन बन गया है. अमितेश मोना के प्रेमजाल में पूरी तरह फंस चुका था, उस के आगे शिवानी बेकार लगने लगी थी. उस की हर जरूरत मोना से पूरी होने लगी तो वह शिवानी को भूलने लगा. उस की उपेक्षा करने लगा. शुरूशुरू में घरपरिवार में व्यस्त रहने वाली शिवानी ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया, पर बात जब कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो उस ने अमितेश को उलाहना देना शुरू किया. ऐसे में अमितेश काम का बहाना बना कर खुद को बचाने की कोशिश करता.

लेकिन कोई भी गलत काम कितने दिन छिपा रह सकता है. उस ने शिवानी को बच्चों की परीक्षा के बाद नोएडा लाने को कहा था. बच्चों की परीक्षा हो गई तो शिवानी बच्चों को ले कर नोएडा आने की तैयारी करने लगी. क्योंकि नोएडा में बच्चों के दाखिले भी कराने थे. लेकिन उन्हें नोएडा लाने के बजाय अमितेश बहाने बनाने लगा. क्योंकि अब तक वह पूरी तरह मोना का हो चुका था. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, वह मोना के नजदीक आता जा रहा था और शिवानी से दूर होता जा रहा था.

अभी तक अमितेश पूरी तरह मोना का नहीं हुआ था. वह भले ही उस के साथ लिवइन में रहती थी, लेकिन उस पर पूरा हक शादी के बाद ही हो सकता था. क्योंकि कुछ भी हो, कोई कितना भी प्यार करता हो, पहला और ज्यादा हक तो उस की ब्याहता पत्नी का ही बनता है. लिवइन में रहने वाली महिला पत्नी के सामने रखैल से ज्यादा कुछ नहीं होती. अमितेश की एक शादी हो चुकी थी. उस पत्नी से उसे 2 बच्चे भी थे, इसलिए दूसरी शादी के लिए उसे पहली पत्नी से तलाक लेना जरूरी था. मोना के लिए वह शिवानी से तलाक लेने को भी तैयार था, पर उसे तलाक की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी. क्योंकि शिवानी सीधीसादी गृहस्थ महिला थी. अभी ससुराल वाले भी उसी के पक्ष में थे. इस के लिए अमितेश को पिता और बहन को भी अपने पक्ष में करना था.

घर वाले उस के पक्ष में तभी आते, जब शिवानी से उन्हें परेशानी होती. इस के लिए उस ने चाल चलनी शुरू कर दी. वह जम कर शिवानी की उपेक्षा करने लगा, जिस से शिवानी तिलमिला उठी और यह सोचने पर मजबूर हो गई कि अमितेश उस के साथ ऐसा क्यों कर रहा है. जल्दी ही उसे अपनी उपेक्षा की वजह पता चल गई. पता चला कि उस के पति को बीवी जैसा सुख देने वाली कोई और मिल गई है, इसीलिए वह उस की उपेक्षा कर रहा है. विवाद बढ़ा तो पिता और बहन ने अमितेश का ही लिया पक्ष मोना से अमितेश के संबंध होने की बात पता चलते ही पतिपत्नी में विवाद होने लगा. विवाद बढ़ा तो इस का असर घरपरिवार पर भी पड़ने लगा, जिस से घर में परेशानी होने लगी. पिता और बहन को जितना लगाव अमितेश से था, उतना शिवानी से नहीं था. होता भी कहां से अमितेश उन का अपना खून था, शिवानी गैर घर से आई थी.

घर वालों को शिवानी का अमितेश से लड़ना अच्छा नहीं लगता था. उन्हें लगता था कि शिवानी उसे परेशान करती है इसलिए वे शिवानी का पक्ष लेने के बजाए अमितेश का ही पक्ष लेते थे. इस से शिवानी घर में अकेली पड़ गई. उस के ससुर और ननद दोष उसे ही देते थे. उन का कहना था कि उसी की वजह से अमितेश ने इंदौर आना छोड़ दिया. वह अपनी बात कहती तो उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता था. पिता और बहन अमितेश के पक्ष में आ गए तो उस ने शिवानी को तलाक देने की तैयारी कर ली. क्योंकि मोना तलाक के लिए उस पर लगातार दबाव डाल रही थी. शिवानी अमितेश से लड़ाईझगड़ा करती थी, उस ने इसे ही आधार बना कर तलाक की अर्जी तो लगा दी पर बाद में उसे लगा पतिपत्नी में लड़ाईझगड़े का आधार तलाक के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उस ने तलाक की अर्जी वापस ले कर शिवानी से समझौता कर लिया.

उस ने तलाक की अर्जी भले ही वापस ले ली थी, पर वह शिवानी से किसी भी तरह छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि अब वह मोना के बगैर नहीं रह सकता था. जब उस ने विचार करना शुरू किया कि किस तरह शिवानी से पूरी तरह मुक्ति मिल सकती है तो उस के दिमाग में एक ही बात आई, उस की हत्या. लेकिन यह काम आसान नहीं था. अगर वह हत्या के आरोप में पकड़ा जाता तो पूरी जिंदगी जेल में बीतती, मोना भी उसे नहीं मिल पाती. लेकिन हत्या के अलावा अमितेश को दूसरा कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था. वह इस बात पर विचार करने लगा कि शिवानी की हत्या किस तरह करे कि वह मर जाए और उस पर शक न जाए. काफी सोचविचार के बाद भी जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने टीवी पर आने वाले अपराध आधारित शो देखने शुरू किए. इन्हीं में से किसी धारावाहिक के एपिसोड में उस ने देखा कि एक आदमी ने जहरीले सांप से कटवा कर पत्नी की हत्या कर दी.

अमितेश को यह उपाय अच्छा लगा. उस ने इसी तरह की योजना बनानी शुरू कर दी. वह पता लगाने लगा कि भारत में सब से जहरीला सांप कौन सा होता है. उसे पता चला कि भारत में सब से अधिक जहरीला सांप डेजर्ट कोबरा है. पर वह मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता. आजकल गूगल पर किसी भी बात के बारे में जाना जा सकता है. उस ने गूगल पर सर्च किया तो पता चला यह सांप राजस्थान में पाया जाता है. सारी जानकारी जुटा कर अमितेश नवंबर 2019 में नौकरी से इस्तीफा दे कर इंदौर स्थित अपने घर आ गया. घर आ कर उस ने शिवानी से कहा, ‘‘लो अब मैं हमेशाहमेशा के लिए तुम्हारे पास आ गया. अब तो तुम्हें विश्वास हो जाना चाहिए कि मैं केवल तुम्हारा हूं.’’

‘‘कहीं इस में भी तुम्हारी कोई चाल न हो?’’ शिवानी ने कहा.

‘‘तुम्हें तो अब मेरी हर बात में चाल ही नजर आती है. अरे मैं तुम्हारे पास रह कर कौन सी चाल चलूंगा.’’ शिवानी को विश्वास दिलाने की गरज से अमितेश ने कहा, ‘‘तुम मेरी पत्नी ही नहीं, मेरे बच्चों की मां भी हो. मैं तुम्हें छोड़ कर भला कहां जा सकता हूं.’’

शिवानी को पति की बातों पर विश्वास करना ही पड़ा. उस के पास इस के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था क्योंकि उसे रहना तो वहीं था. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां यह मान लिया जाता है कि शादी के बाद बेटी का घर ससुराल ही होता है. भले ही ससुराल में उसे कितनी भी तकलीफ झेलनी पड़े, शादी के बाद बेटी मांबाप के लिए बोझ बन जाती है. ऐसा ही शिवानी के साथ भी था. फिर अब वह अकेली भी नहीं थी. उस के 2 बच्चे भी थे. उन्हें साथ ले कर वह मायके नहीं जा सकती थी.

योजना पर अमल के लिए इंदौर पहुंच कर अमितेश ने शिवानी से छुटकारा पाने वाली बात पिता ओमप्रकाश पटेरिया को बता कर उन से मदद मांगी. अमितेश उन का एकलौता बेटा था, बुढ़ापे की लाठी. वह भला उस का साथ क्यों न देते. क्योंकि उस ने उन से साफ कह दिया था कि मोना के बगैर वह नहीं रह सकता. अगर वह उस का साथ नहीं देते तो वह या तो हमेशाहमेशा के लिए घर छोड़ देता या मौत को गले लगा लेता. ऐसा ही कुछ कह कर उस ने बहन को भी शिवानी की हत्या में साथ देने के लिए राजी कर लिया. जब पिता और बहन राजी हो गए तो अमितेश 19 नवंबर को राजस्थान के जिला अलवर गया और वहां रहने वाले किसी संपेरे से 5 हजार रुपए में डेजर्ट कोबरा खरीद लाया. सांप को उस ने एक बरनी में बंद कर के अलमारी में छिपा दिया और मौके का इंतजार करने लगा.

वह हर रात शिवानी के सो जाने पर उसे जहरीले सांप से कटवाने की कोशिश करता पर सांप को हाथ से पकड़ कर शिवानी को कटवाने की वह हिम्मत नहीं कर पाता. इस तरह एकएक कर के 11 रातें गुजर गईं. सांप से कटवाने में उसे एक बात का डर और सता रहा था कि कहीं शिवानी जाग गई और उस के हाथ में सांप देख लिया तो शोर मचा देगी. उस के बाद वह पकड़ा जाएगा और हत्या की कोशिश में उसे सजा हो जाएगी. जब अमितेश ने देखा कि वह जीते जी शिवानी को सांप से नहीं कटवा पा रहा है तो उस ने पिता और बहन की मदद ली. जब वे दोनों मदद के लिए राजी हो गए तो पहली दिसंबर की सुबह पिता और बहन की मदद से अमितेश ने सो रही शिवानी के मुंह को तकिए से दबा कर मार डाला.

शिवानी की हत्या के बाद उस के पिता और बहन बच्चों को ले कर साऊ चले गए तो अमितेश अपनी अगली योजना पर काम करने लगा. अब वह मृत शिवानी को सांप से कटवाना चाहता था. इस कोशिश में उसे काफी समय लग गया, क्योंकि वह खुद भी डर रहा था कि कहीं सांप उसे ही न काट ले. आखिरकार दोपहर बाद वह चिमटे से सांप को पकड़ कर शिवानी को कटवाने में सफल हो गया. शिवानी तो पहले ही मर चुकी थी लेकिन अमितेश को तो यह दिखाना था कि शिवानी सांप के काटने से मरी है, इसलिए उस ने क्रिकेट खेलने वाले बैट से सांप को मार कर शिवानी के पास बैड पर रख दिया. इस के बाद सारी तैयारी कर के उस ने किराएदार निखिल को आवाज लगाई कि शिवानी को सांप ने काट लिया है. वह निखिल को गवाह बनाना चाहता था कि उस ने शिवानी के पास उस सांप को देखा है, जिस के काटने से उस की मौत हुई है.

निखिल गवाह तो बना पर अमितेश को बचाने का नहीं बल्कि फंसाने का. उसी ने पुलिस को बताया था कि पतिपत्नी में नहीं पटती थी. उस की इस बात से अमितेश शक के घेरे में आ गया था. सभी से विस्तारपूर्वक की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने अमितेश, उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी के खिलाफ शिवानी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें बाकायदा गिरफ्तार कर लिया. इस के अलावा अमितेश ने यह भी स्वीकार किया कि उस ने डेजर्ट कोबरा की हत्या क्रिकेट बैट से की थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 51 के तहत भी केस दर्ज किया.

इस धारा में कम से कम 3 साल और ज्यादा से ज्यादा 7 साल की सजा का प्रावधान है. इस के अलावा 10 हजार रुपए का जुरमाना भी देना होता है. सारी काररवाई पूरी कर पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. जिस मोना के लिए आज अमितेश जेल में है, क्या वह उस का इंतजार करेगी? कतई नहीं, मोना अपनी जवानी उस के इंतजार में क्यों गंवाएगी. अब वह अमितेश जैसा ही कोई और ढूंढ लेगी.

 

 

Delhi News : बच्चों की हत्या कर पत्नी व प्रेमिका संग इमारत से कूदा कपड़ा व्यापारी

Delhi News : गुलशन वासुदेवा एक अच्छे व्यवसाई थे. दिल्ली की गांधीनगर मार्केट में उन का जींस का कारोबार था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ, जो उन्हें अपने 2 बच्चों की हत्या करने के बाद अपनी पत्नी और प्रेमिका संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या करनी पड़ी…

गुलशन वासुदेवा उर्फ हरीश यूं तो मूलरूप से पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कालोनी के रहने वाले थे. लेकिन अक्तूबर 2019 से वे इंदिरापुरम की कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी की आठवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट संख्या ए-806 में किराए पर आ कर रहने लगे थे. उन के साथ उन का बेटा रितिक (13), बेटी कृतिका (18), पत्नी परमीना (43) और उन की मैनेजर संजना (26) भी साथ रहती थी. गुलशन का दिल्ली के गांधीनगर की रेडीमेड कपड़ों की मार्केट में जींस का कारोबार था. कृतिका और रितिक दिल्ली के श्रेष्ठ विहार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल में क्रमश: 12वीं और 9वीं कक्षा में पढते थे. कृतिका की फैशन में बहुत रुचि थी. इसलिए वह 12वीं के बाद फैशन इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने की की भी तैयारी कर रही थी.

उस का सपना एक कामयाब फैशन डिजाइनर बनने का था. इस के लिए वह काफी मेहनत भी करती थी. गुलशन को भी अपने दोनों बच्चोें से बेहद प्यार था. इसलिए वह उन की हर ख्वाहिश पूरी करते थे. जींस के कारोबार के साथ गुलशन के कई और भी कारोबार थे. उन्होंने प्रौपर्टी के काम में काफी पैसा निवेश किया हुआ था. कोलकाता में एक बड़े बिजनेसमैन के साथ भी उन्होंने लाखों का निवेश किया हुआ था. लेकिन पिछले कुछ समय से उन का करीब 2 करोड़ से अधिक का ये निवेश बुरी तरह फंस गया था. देश में जब से नोटबंदी हुई थी उन का पैसा वापस मिलना बंद हो गया था. लेकिन इस के बावजूद गुलशन के परिवार में सब एकदूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. गुलशन को जब भी फुरसत मिलती तो परिवार को ले कर अकसर घूमने निकल जाते थे.

जिस अपरा सफायर सोसाइटी में गुलशन 2 महीने पहले रहने के लिए आए थे, उस से पहले वह करीब 4 सालों तक पास की ही एटीएस सोसायटी में रहे थे. उस वक्त उन के साथ में 80 वर्षीय पिता नारायण दास वासुदेवा भी रहते थे. गुलशन की पत्नी परमीना बहुत समझदार महिला थीं. वह अपने बीमार ससुर की बहुत सेवा करती थीं. नारायण दास अपने बेटे से ज्यादा बहू परमीना को मानते थे. लेकिन अचानक खराब होती आर्थिक परिस्थितियों के कारण गुलशन ने जब मकान बदला तो उन्होंने पिता को बड़े भाई सतपाल के घर रहने के लिए छोड़ दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उन की आर्थिक बदहाली से पिता की सेहत पर बुरा असर पड़े.

गुलशन वासुदेवा 3 भाई व एक बहन में सब से छोटे थे. सब से बड़ी बहन विधवा है और अपने बच्चों के साथ रहती है. जबकि उन के दोनों बड़े भाई देवेंद्र और सतपाल भी विवाहित हैं. दोनों भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली की झिलमिल कालोनी में ही रहते हैं. उन का भी गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है. पिता नारायण दास रेलवे से सेवानिवृत्त  हुए थे. चूंकि पिता की देखभाल गुलशन ही करता था, लिहाजा पिता अपनी सारी पेंशन विधवा बेटी को भेज देते थे. हालांकि उन के दोनों बड़े भाई काफी समृद्ध हैं. इधर कई सालों से कारोबार में घाटे के बाद दोनों भाइयों ने शुरूशुरू में तो गुलशन व उस के परिवार की काफी मदद की, लेकिन बाद में अपनी खुद की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने भी सहयोग देना बंद कर दिया. यही कारण रहा कि परिवार के लोगों से गुलशन की दूरी बनने लगी थी.

एटीएस सोसाइटी में गुलशन के पास 2 बैडरूम वाला फ्लैट था, जबकि कृष्णा अपरा सोसाइटी में उन्होंने 3 बैडरूम का फ्लैट लिया था. इसी कारण उन की मैनेजर संजना भी उन के साथ आ कर रहने लगी थी. 3 दिसंबर, 2019 की सुबह के करीब पौने 5 बजे का वक्त था. कृष्णा अपरा सोसाइटी के गेट पर तैनात तीनों सुरक्षा गार्ड कुर्सियों पर बैठे अलाव से हाथ सेंकते हुए ठंड दूर करने का प्रयास कर रहे थे. अचानक उन्हें सोसाइटी के टावर-ए के पास से धड़ाम की ऐसी आवाज आई जैसे ऊपर की किसी मंजिल से कोई भारी चीज सड़क पर आ कर गिरी हो.

एक सिक्योरिटी गार्ड वहीं रुक गया, बाकी 2 गार्ड देखने के लिए उस तरफ चले गए, जहां से आवाज आई थी. दोनों गार्ड जैसे ही टावर-ए के पास पहुंचे तो बिजली की रोशनी में उन्होंने देखा कि सड़क पर 3 लोग खून से लथपथ पडे़ हैं. उन में एक पुरुष व 2 महिलाएं थीं. ऐसा लगता था जैसे ऊपर की मंजिल के किसी फ्लैट से या तो वे गिर पड़े थे या किसी ने उन्हें धक्का दिया था. गिरने के कारण आसपास काफी खून फैल चुका था. एक पुरुष व एक महिला के शरीर लगभग निर्जीव हो चुके थे, जबकि एक महिला के मुंह से दर्दभरी आह सुनाई पड़ रही थी और शरीर में हल्की हरकत भी थी. दोनों गार्डों ने तत्काल आवाज दे कर तीसरे गार्ड को भी अपने पास बुला लिया.

तीनों गार्डों ने सड़क पर खून से लथपथ तीनों लोगों को जब गौर से देखा तो वे देखते ही पहचान गए कि खून से लथपथ पडे़ वे तीनों लोग गुलशन वासुदेवा, उन की पत्नी परमीना और उन के साथ रहने वाली संजना थी. गार्डों ने दी सूचना सोसाइटी के तीनों गार्डों ने तत्काल सोसाइटी के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी को सूचना दी तो वे भी मौके पर आ गए. चंद मिनटों में ही सोसाइटी के अन्य लोग भी इस घटना की एकदूसरे से मिली जानकारी पा कर वहां पहुंच गए थे. दयानंद नाम के एक गार्ड ने तब तक पुलिस कंट्रोल रूम को इस हादसे की जानकारी दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना उसी समय स्थानीय इंदिरापुरम थाने को दी गई. एसएचओ इंदिरापुरम इंसपेक्टर महेंद्र सिंह पूरी रात गश्त के बाद थाने में अपने कार्यालय में आ कर बैठे थे और थकान उतारने के लिए चाय की चुस्की ले ही रहे थे कि उसी वक्त मुंशी ने आ कर उन्हें कंट्रोलरूम से अपरा सोसाइटी में हुई घटना के बारे में बताया. खबर ऐसी थी जिसे सुन कर चाय का घूंट इंसपेक्टर महेंद्र सिंह के गले से नीचे उतरना भारी हो गया उन्होंने एसआई शिशुपाल सिंह, धीरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार, कांस्टेबल विकासवीर, श्यामलाल को साथ लिया और अगले 10 मिनट के भीतर कृष्णा अपरा सोसाइटी पुहंच गए.

पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही सोसाइटी के लोगों ने समीप के शांति गोपाल अस्पताल में फोन कर के एंबुलेंस बुलवा ली थी. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो खून से लथपथ तीनों लोगों की नब्ज टटोलने के बाद उन के सामने ये बात साफ हो चुकी थी कि गुलशन सचदेवा और उन की पत्नी परमीना दम तोड़ चुके हैं. जबकि उन के परिवार की एक दूसरी महिला सदस्य संजना की सांसें चल रही थीं. लिहाजा एंबुलेंस आने के बाद पुलिस ने आननफानन में उसे शांतिगोपाल अस्पताल भिजवा दिया. साथ में एसआई शिशुपाल सिंह भी अस्पताल पहुंचे थे. इधर, घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने का काम शुरू कर दिया. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि छत से गिरने वाले गुलशन वासुदेवा और उन के घर के तीनों सदस्य थे.

सोसाइटी के लोगों से पूछताछ करने पर यह भी पता चल गया कि गुलशन टावर-ए की 8वीं मंजिल के फ्लैट संख्या 806 में अपने परिवार के साथ रहते हैं. सोसाइटी के पदाधिकारियों और व अपने सहयोगियों को ले कर इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब 8वीं मंजिल के उस फ्लैट पर पहुंचे तो वहां दरवाजा भीतर से लौक मिला. गार्डों की मदद से दरवाजे की कुंडी को तोड़ क र पुलिस ने भीतर प्रवेश किया. 2 लाशें और मिलीं कमरे में ड्राइंगरूम की दीवारों पर कई जगह परिवार की तसवीरें फ्रेम में लगी हुई थीं, जिस में परिवार के सदस्यों की बचपन से लेकर अभी तक की लगभग सभी तसवीरें थीं. पुलिस ने एकएक कर सभी कमरों का निरीक्षण किया, जिस के बाद पता चला कि घर के सिर्फ 3 सदस्यों की ही मौत नहीं हुई थी, बल्कि घर के भीतर भी 2 लाशें और पड़ी थीं, जिस में एक लाश लड़की व दूसरी लड़के की थी.

सोसाइटी के लोगों ने बताया कि वे गुलशन के बच्चे कृतिका व रितिक थे. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. उसी कमरे में एक खरगोश का शव भी मिला, ऐसा लग रहा था कि पालतू खरगोश को गरदन मरोड़ कर मारा गया था. इस बीच भोर का उजाला पूरी तरह अपने पांव पसार चुका था. 5 लोगों की मौत की खबर पूरी सोसाइटी में जंगल की आग की तरह फैल गई. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने अपने क्षेत्र के एएसपी केशव कुमार के साथ एसपी (सिटी) मनीष मिश्रा और एसएसपी सुधीर कुमार सिंह को फोन कर के पूरे हादसे की इत्तिला दे दी. मामला इतना बड़ा था कि सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जिले के सभी आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम के अलावा मीडिया के लोग भी जानकारी पा कर घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. एक तरह से कृष्णा अपरा सोसाइटी के भीतरबाहर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. हर कोई माजरा जानना चाहता था कि इतने बड़े हादसे की वजह आखिर क्या थी.

पुलिस के तमाम आला अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के अलगअलग जगह से फोटो और फिंगरप्रिंट एकत्र किए. उन तमाम सबूतों को अपने कब्जे में लिया, जिस से वारदात का खुलासा करने में मदद मिल सकती थी. इस बीच वारदात की सूचना गुलशन के कुछ नजदीकी मित्रों और झिलमिल कालोनी में रहने वाले उस के परिजनों के पास भी पहुंच गई थी. सुबह होतेहोते वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी से इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने पूछताछ की, उन के बयान दर्ज किए. करीब 11 बजतेबजते पुलिस ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

इस दौरान पुलिस की जांच में पाया गया कि गुलशन वासुदेवा ने बच्चों की हत्या करने के बाद खुद भी फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था. क्योंकि पुलिस को एक कमरे में पंखे से लगा एक फंदा भी मिला. ऐसा प्रतीत होता था शायद एक कमरे में ही 3 फंदे लगाने की जगह न होने पर उस ने आत्महत्या करने का तरीका बदला. गुलशन उस की पत्नी व साथ में ही खुदकुशी करने वाली संजना ने बालकनी में लाइन से कुर्सियां लगाईं और फिर तीनों एक साथ नीचे कूद गए. कूदते समय उस कमरे को चुना, जिस की बालकनी में जाली नहीं लगी थी. ड्राइंगरूम वाले कमरे में दीवार पर एक बड़ा प्रोजेक्टर लगाया था. बड़ा होम थिएटर भी लगा था, जिस से लग रहा था कि पूरा परिवार डिजिटल उपकरणों का काफी प्रयोग करता था.

पुलिस को एक कमरे से आला कत्ल चाकू व रस्सी बरामद हुई. संभवत: उसी से दोनों बच्चों की गला रेत कर हत्या की गई थी. कमरे से 5-5 सौ के 18 नोट और 100 के नोट भी मिले. जो कुल रकम करीब 10 हजार थी. कालोनी के लोगों से पूछताछ में पता चला कि जिस रात पूरे परिवार ने बच्चों की हत्या कर खुदकुशी की, उसी दिन उन्होंने गार्ड, मेड व सोसायटी के अन्य कर्मचारियों को जैकेट व कंबल बांटे. शाम को घर में बने मंदिर में परिवार के साथ पूजाअर्चना की थी. पूरी घटना का विश्लेषण करने के बाद एक बात स्पष्ट हो रही थी कि गुलशन नहीं चाहता था कि परिवार का कोई भी सदस्य जिंदा बचे. इस के लिए शायद उस ने मौत को गले लगाने के कई तरीके सोचे थे.

रसोई में मिली सल्फास और 3 गिलास, बाथरूम में मिली सिरींज तथा बैडरूम में मिले चाकू व रस्सी इस बात की गवाही दे रहे थे कि गुलशन हर हाल में बच्चों की हत्या करना चाहता था, ताकि उस के मरने के बाद किसी को कोई तकलीफ भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े. ऐसा लगता था कि गुलशन ने पहले बेटाबेटी को खाने में नशीला पदार्थ मिला कर बेहोश किया, फिर सोने के बाद उन का पहले गला दबाया फिर गला काट कर हत्या कर दी. जिस के बाद गुलशन ने परमीना और संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली.

वारदात की पहले ही कर ली थी प्लानिंग पूरे हालात को देखने के बाद ये भी स्पष्ट था कि गुलशन व दोनों महिलाओं ने सहमति से कूदने का फैसला लिया था. हो सकता है कि दोनों बच्चों को उन की मौत के बारे में पता न चले, इसलिए दोनों को पहले भारी नशे की डोज दी गई हो. अगर नशे की डोज नहीं दी होती और सहमति नहीं होती तो मारने के दौरान बच्चों के चीखनेचिल्लाने की आवाज जरूर आती. कालोनी के लोगों से पूछताछ में यह भी पता चला कि गुलशन ने काफी दिन पहले ही शायद इस हादसे को अंजाम देने का मन बना लिया था, क्योंकि उस के घर पर एक मेड कुंती काम करती थी. कुंती की मौसी गीता ने पुलिस को बताया कि गुलशन के घर पर कुंती ने एक महीने काम किया था. 27 नवंबर को गुलशन ने उस का हिसाब कर दिया. इस के बाद कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं.

एक सब से अहम बात यह थी कि ड्राइंगरूम में कमरे की दीवार पर पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिस में गुलशन ने लिखा था कि उन सभी की मौत के लिए उस का साढ़ू राकेश वर्मा जिम्मेदार है. साथ ही उस ने अपनी अंतिम इच्छाभी दीवार पर लिखी थी कि उन सभी के शव का एक साथ एक ही जगह पर अंतिम संस्कार किया जाए. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से मशविरा करने के बाद उसी दिन इंदिरापुरम थाने में अपराध भादंसं की धारा 302 का मुकदमा पंजीकृत कर लिया. चूंकि जांच में सामने आ चुका था कि गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा ने उस के लाखों रुपए हड़प लिए थे और वापस नहीं किए थे, जिस के कारण आर्थिक तंगी और अवसाद में आ कर गुलशन को बच्चों की हत्या कर मौत को गले लगाना पड़ा.

जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने इस मामले में धारा 306 भी जोड़ दी. मौके से बरामद हुए सीरींज, सल्फास और तीनों गिलासों से बरामद हुए पेय पदार्थ, चाकू व रस्सी को जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. गुलशन के परिजनों से बातचीत करने के बाद पुलिस को राकेश वर्मा से गुलशन के सारे लेनदेन की बात भी पता चल चुकी थी. मामला बड़ा होने से पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया. जिलाधिकारी से रात में पोस्टमार्टम की अनुमति मांगी गई. अगली सुबह तक सभी का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ खुलासा इधर पांचों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हो गई. सामने आया कि कृतिका की मौत फंदे पर लटकाने के कारण हुई थी. जबकि बेटे रितिक की मौत चाकू से गला रेतने के कारण हुई. गुलशन, परमीना और संजना की मौत हैमरेज से हुई. यानी गुलशन ने पहले बेटी कृतिका को फंदे पर लटकाया, उस के बाद उस का गला रेता था. यानी उस का गला रेतने से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक गुलशन के शरीर पर 4 जगहों पर चोट आईं, जबकि परमीना और संजना के शरीर पर करीब 6-6 जगहों पर चोट आई थीं. मृतकों ने विषैला पदार्थ खाया था या नहीं, इस का खुलासा विसरा की उस रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा, जिसे पुलिस ने फोरैंसिक जांच के लिए भेजा है. इस के अलावा यह बात भी साफ हो गई कि सभी लोगों की मौत 4 घंटे के अंदर हुई थी. इसी बीच पुलिस ने अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पांचों शव गुलशन के परिजनों को सौंप दिए. चूंकि गुलशन, उस की पत्नी परमीना व दोनों बच्चे एक ही परिवार के सदस्य थे, इसलिए परिजनों ने उन के शव की सुपुर्दगी ले कर उसी दिन हिंडन घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. जबकि संजना जो कि गुलशन की मैनेजर थी, उस का शव लेने के लिए उस की मां नूरजहां व भाई फिरोज वहां पहुंच गए थे, इसलिए वे उस का शव ले कर गए और उसे सुपुर्दे खाक कर दिया गया.

दूसरे धर्म की थी संजना 5 लोगों की मौत के मामले में सब से अधिक चर्चा संजना पर छिड़ी हुई थी. दूसरे समुदाय की संजना गुलशन वासुदेवा परिवार के साथ जान देने को कैसे तैयार हो गई, इस पर चर्चाओं में सवाल उठाए जाने लगे. सवाल था कि संजना के साथ गुलशन के रिश्ते का नाम क्या था? हालांकि संजना की मां और भाई ने पुलिस को जो बयान दिए उस से स्थिति काफी हद तक साफ हो गई. यह बात साफ हो गई कि दिल्ली के वेलकम इलाके की रहने वाली संजना करीब 7 सालों से गुलशन के साथ थी. शुरुआत में तो वह फैक्ट्री में काम देखती थी लेकिन धीरेधीरे उस का गुलशन के घर में आनाजाना शुरू हो गया. डेढ़ महीने पहले गुलशन परिवार के साथ एटीएस सोसायटी से कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी में शिफ्ट हुए. तब से संजना उन के साथ ही रह रही थी. लेकिन संजना का गुलशन से क्या रिश्ता था, यह किसी को नहीं पता.

संजना मुसलिम समुदाय से थी. उस का असली नाम गुलशन था. 3 साल पहले उस ने अपना नाम संजना कर लिया था. 26 वर्षीय संजना करीब 7 साल से गुलशन वासुदेवा की फैक्ट्री में बतौर सुपरवाइजर काम कर रही थी. इसी दौरान दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. दोनों के बीच बेहद करीबी रिश्ते कायम हो गए. करीब डेढ़ साल पहले संजना घर छोड़ कर गई तो यह कह कर गई थी कि वह गुलशन वासुदेवा से शादी करने जा रही है. उस के कुछ दिन बाद वह घर आई और अपने कपड़े व अन्य सामान ले कर चली गई. संजना अब गुलशन के कारोबार में पूरी तरह से उस की मदद करने लगी थी.

परमीना के परिजनों ने पुलिस को बताया कि गुलशन वासुदेवा और संजना पहले कुछ समय तक लिवइन रिलेशन में रहे. उन्होंने शायद चोरी से शादी भी कर ली थी, इस का पता परमीना को भी हो गया था. पतिपत्नी के बीच जब इस मुद्दे पर बात हुई तो परमीना ने पति की खुशी के लिए संजना को पत्नी के तौर पर साथ में रहने की अनुमति दे दी थी. इसलिए जब गुलशन अपरा सोसाइटी में आए तो उन्होंने संजना से किराए का फ्लैट छुड़वा दिया और अपने परिवार के साथ फ्लैट में ले आए. साढ़ू पर लगाया आरोप इस बात की पुष्टि किसी ने नहीं की कि संजना वाकई गुलशन की पत्नी थी या प्रेमिका. लेकिन यह बात स्पष्ट थी कि पूरे परिवार में संजना व गुलशन के रिश्ते को मान्यता मिली हुई थी. इस से भी बड़ी बात यह थी कि संजना पूरे परिवार से इस तरह जुड़ी थी कि गुलशन के साथ उस ने भी खुशीखुशी मौत को गले लगाया था.

लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि आखिर गुलशन ने इतना बड़ा कदम क्यों  उठाया? जांच में यह बात भी स्पष्ट हो गई. परमीना की बड़ी बहन संगीता का पति राकेश वर्मा जो साहिबाबाद के शालीमार गार्डन में रहता है, उस ने कुछ समय पहले गुलशन से प्रौपर्टी के कारोबार में निवेश करने को कहा था. गुलशन ने उसे सवा करोड़ रुपए दिए थे. बदले में राकेश वर्मा ने 2015 में अपनी मां फूला वर्मा से शालीमार गार्डन स्थित कोठी का एग्रीमेंट गुलशन के करीबी सीए प्रवीण बख्शी के नाम करा दिया. लेकिन 2018  में उक्त कोठी 1.49 करोड़ रुपये में किसी और को बेच दी. राकेश ने खुद ही पैसा निवेश नहीं किया था बल्कि अपने कुछ दोस्तों से भी उधार पैसे ले कर निवेश करा दिया था.

इस पर गुलशन ने पैसे मांगे तो राकेश ने चैक दिए जो बाउंस हो गए. तगादा करने के बावजूद राकेश द्वारा पैसे नहीं लौटाने से गुलशन व उस का पूरा परिवार तनाव में आ गया. जिस के बाद कई बार मांगने पर भी राकेश वर्मा ने पैसे वापस नहीं लौटाए. उस का साफ कहना था कि जिन प्रौपर्टी में उस ने राकेश व उस के जरिए मिले दूसरे लोगों को पैसा निवेश किया था, उन सभी प्रौपर्टी के दाम नोटबंदी और रियल एस्टेट में आई मंदी के कारण भाव काफी गिर गए हैं. निराश हो कर गुलशन ने राकेश वर्मा और उस की मां के खिलाफ साहिबाबाद थाने में धोखाधड़ी, चेक बाउंस होने व अमानत में खयानत का मामला दर्ज कराया, जिस के आधार पर साहिबाबाद पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में दोनों की उच्च न्यायालय से जमानत हो गई थी.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर महेंद्र सिंह को जांचपड़ताल करने पर पता चला कि राकेश वर्मा प्रौपर्टी कारोबारी तो है ही, वह पंजाब में होटल भी चलाता था. आर्थिक तंगी के कारण वहां भी घाटा उठाना पड़ रहा था. झूठ और फरेब पर चल रहा था कारोबार उस का कारोबार झूठ और फरेब के आधार पर कई राज्यों में पसरा था. पुलिस को अभी तक कोलकाता, दिल्ली और नोएडा में उस के कारोबार की पुख्ता जानकारी मिली है. राकेश वर्मा ने पटना, उत्तराखंड और झारखंड तक में संपत्तियां बनाईं. इन संपत्तियों को बनाने के लिए उस ने केवल गुलशन वासुदेव को ही नहीं, कई अन्य जानकारों और रिश्तेदारों को मोहरा बनाया था. राकेश वर्मा ने कई जगह होटल कारोबार में भी अपने हाथ डाले थे.

गोवा जैसे कुछेक स्थानों पर होटल किराए पर ले कर संचालन किया, लेकिन हर जगह उसे घाटा उठाना पड़ा. इसलिए वह गुलशन का पैसा लौटाने में नाकामयाब रहा. एक तरफ राकेश के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर खरीदी या विकसित की गई प्रौपर्टी निकल नहीं पा रही थी. बीते 4-5 सालों से वह खुद भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इधर करोड़ों के नुकसान तले दबा गुलशन पहले कई सालों तक तो घाटे से उबरने की जद्दोजेहद में जुटा रहा. लेकिन अपने लेनदारों का दबाव गुलशन की सहनशक्ति से अब बाहर हो चुका था. कुछ दिन पहले कोलकाता की कंपनी में करीब 60 लाख रुपए डूबने का पता लगने पर वह बुरी तरह टूट गया और आखिरकार परिवार के खात्मे का फैसला ले लिया.

इंदिरापुरम पुलिस ने सभी तथ्य सामने आने के बाद गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. हालांकि राकेश की मां फूला देवी इस से पहले ही फरार हो गई.  इस लोमहर्षक हत्या व आत्महत्या कांड के बाद पुलिस मामले की पड़ताल कर आरोप पत्र तैयार करने के काम में लगी थी.

(कथा पुलिस व परिजनों से पूछताछ पर आधारित)

 

Love Crime : शादी के लिए गर्लफ्रेंड नहीं मानी, तो मार डाला

Love Crime : ससुरालियों से खटपट हो जाने के बाद आराधना अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके आ गई. फिर एकाउंटेंट की नौकरी करने के दौरान उसे प्रवीण कुमार से प्यार हो गया. इस से पहले कि प्रवीण उस से शादी कर पाता, आराधना का झुकाव शोएब की तरफ हो गया. आराधना की यह गुस्ताखी प्रवीण को इतनी नागवार लगी कि…

उस दिन दिसंबर 2019 की 16 तारीख थी, रात के 9 बज रहे थे. रामप्रकाश गौतम बेहद परेशान थे. वह घर के अंदर चहलकदमी कर रहे थे. कभी उन की निगाह कमरे की दीवार घड़ी पर टिक जाती तो कभी दरवाजे की ओर. दरअसल वह अपनी बेटी के लिए परेशान हो रहे थे. उन की 35 वर्षीय बेटी आराधना गौतम किदवई नगर स्थित जैन ट्रेडिंग कंपनी में एकाउंटेंट थी. वह हर हाल में 8 बजे तक घर आ जाती थी, किंतु उस दिन तो रात के 9 बज गए, उस का कुछ अतापता नहीं था. वह उस के मोबाइल फोन पर कई बार काल कर चुके थे. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, लेकिन वह रिसीव नहीं कर रही थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों रामप्रकाश गौतम की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर जब उन के सब्र का बांध टूट गया तो रात 10 बजे उन्होंने अपने साले रामकुमार तथा भाई रमन गौतम को घर बुला लिया. उन्होंने उन्हें आराधना के घर वापस न आने के बारे में बताया तो वह भी चिंतित हो उठे. आपस में विचारविमर्श कर के रामप्रकाश ने पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद पुलिस तातियागंज, कानपुर स्थित उन के घर पहुंच गई. रामप्रकाश ने पुलिस को बेटी के संबंध में जानकारी दी तो पुलिसकर्मियों ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि मामला किदवई नगर थाना क्षेत्र का है. अत: किदवई नगर थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराएं.

इस पर रात 11 बजे रामप्रकाश गौतम अपने भाई रमन तथा साले रामकुमार के साथ थाना किदवईनगर पहुंचे. थानाप्रभारी राजेश पाठक उस समय थाने पर ही मौजूद थे. उन्होंने थानाप्रभारी को अपनी बेटी के अभी तक घर न लौटने की जानकारी दी. चूंकि मामला एक महिला एकाउंटेंट के लापता होने का था, अत: थानाप्रभारी राजेश पाठक ने आराधना गौतम की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की खोज में जुट गए. उन्होंने रामप्रकाश से आराधना का फोन नंबर लिया फिर उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. डिटेल्स में उस के फोन की अंतिम लोकेशन कल्याणपुर थाना क्षेत्र के शताब्दी नगर की मिली. राजेश पाठक आराधना के घर वालों के साथ रात में ही कल्याणपुर पहुंचे और आराधना के संबंध में वहां के थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय को जानकारी दी.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी राजेश पाठक तथा थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय फोर्स के साथ शताब्दी नगर पहुंचे और उन्होंने वहां स्थित मोबाइल टावर के 500 मीटर की परिधि में आराधना की खोजबीन शुरू की. लेकिन उस का पता नहीं चला. दरअसल, उस समय आराधना के मोबाइल फोन का इंटरनेट बंद था, जिस से पुलिस को उस के फोन की वास्तविक लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. इंसपेक्टर राजेश पाठक ने कई बार आराधना का नंबर अपने मोबाइल फोन से मिलाया तो उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, लेकिन रिसीव नहीं हो रहा था. पुलिस ने उस के परिजनों के संग सुबह 4 बजे तक आराधना की तलाश की लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस लौट गई.

सुबह 5 बजे रामप्रकाश गौतम भाई रमन के साथ घर पहुंचे तो उन की पत्नी रमा गौतम परिवार की अन्य महिलाओं के साथ दरवाजे पर ही बैठी थीं. उन्होंने पूरी रात आराधना के इंतजार में ही गुजार दी थी. रामप्रकाश को देखते ही रमा गौतम ने पूछा, ‘‘मेरी बेटी का कुछ पता चला?’’

जवाब में नहीं सुनते ही वह फफक पड़ीं. रामप्रकाश ने उन्हें धैर्य बंधाया कि बेटी का पता जल्द ही लग जाएगा. इधर सुबह 10 बजे के लगभग कुछ लोग शताब्दी नगर स्थित जवाहरपुरम पार्क पहुंचे तो उन्होंने पार्क के अंदर झाडि़यों के बीच एक महिला का शव पड़ा देखा. उन्हीं लोगों में से किसी ने इस की सूचना उसी समय थाना कल्याणपुर को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय जवाहरपुरम पार्क पहुंच गए. उन्होंने एक महिला का शव पाए जाने की खबर पहले अधिकारियों को दी फिर थाना किदवई नगर पुलिस को भी सूचित कर दिया. क्योंकि उन के थाना क्षेत्र से आराधना गौतम नाम की युवती भी लापता थी.

सूचना पाते ही एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार तथा किदवई नगर थानाप्रभारी राजेश पाठक आराधना के पिता रामप्रकाश गौतम को साथ ले कर घटनास्थल पर आ गए. रामप्रकाश गौतम ने झाडि़यों में पड़े शव को देखा तो वह शव देखते ही फफक पडे़ और बोले, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी आराधना का है. पता नहीं इसे किस ने बेरहमी से मार डाला.’’ इस के बाद तो रामप्रकाश के घर में कोहराम मच गया. पुलिस अधिकारियों ने रामप्रकाश गौतम को धैर्य बंधाया फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के गले पर खरोंच का निशान था, जिस से स्पष्ट था कि उस की हत्या रस्सी या तार से गला कस कर की गई थी.

शव से कुछ दूरी पर मृतका के कान की एक बाली पड़ी थी तथा दूसरी उस के कान में ही थी. कुछ चूडि़यां भी टूटी हुई थीं तथा उस का पर्स भी पार्क में पड़ा था. निरीक्षण में पार्क की घास से साफ दिखाई दे रहा था कि शव घसीट कर झाडि़यों तक ले जाया गया है. मौकामुआयना करने से यही लग रहा था कि आराधना ने मृत्यु से पहले हत्यारे से संघर्ष किया होगा. पुलिस अधिकारियों ने यह भी अनुमान लगाया कि हत्यारा मृतका का अति करीबी रहा होगा, जिस के साथ वह यहां तक आई. उस करीबी का इरादा सिर्फ आराधना की हत्या का ही रहा. क्योंकि उस ने उस के आभूषणों पर हाथ नहीं लगाया था. पुलिस ने मौके से सबूत अपने कब्जे में ले लिए. इस के बाद जरूरी काररवाई कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने महिला एकाउंटेंट आराधना गौतम की हत्या के मामले को बेहद गंभीरता से लिया और खुलासे की जिम्मेदारी किदवई नगर थानाप्रभारी राजेश पाठक को सौंपी. उन्होंने स्वयं भी किदवई नगर थाने में डेरा डाल दिया. श्री पाठक ने आराधना की गुमशुदगी भादंवि की धारा 302 में तरमीम कर दी. फिर वह जांच में जुट गए. उन्होंने सब से पहले जैन ट्रेडर्स के कर्मचारियों को जांच के दायरे में लिया, जहां आराधना गौतम काम करती थी. श्री पाठक ने मालिक से ले कर कर्मचारियों तक से पूछताछ की, जिस से पता चला कि आराधना गौतम पिछले 3 साल से यहां काम कर रही थी. वह समय से काम पर आती थी और समय से घर जाती थी. कंपनी के किसी कर्मचारी से उस की कहासुनी तक नहीं हुई थी.

जैन टे्रडर्स के यहां जांचपड़ताल के दौरान 2 बातें चौंकाने वाली सामने आईं. एक तो यह कि 16 दिसंबर को आराधना गौतम किसी का फोन आने के बाद शाम सवा 6 बजे औफिस से निकली थी. दूसरा यह कि पिछले कुछ दिनों से आराधना का झुकाव फर्म के कर्मचारी शोएब की ओर बढ़ गया था. इस बाबत थानाप्रभारी ने शोएब से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि दोनों के बीच दोस्ती तो थी, लेकिन हत्या से उस का कोई वास्ता नहीं है. फर्म में पूछताछ के बाद थानाप्रभारी राजेश पाठक ने मृतका के पिता रामप्रकाश गौतम को थाना किदवई नगर बुलाया और उन का बयान दर्ज किया. रामप्रकाश ने बताया कि उन्होंने आराधना का विवाह दौलतपुर (कानपुर देहात) गांव निवासी धर्मेंद्र गौतम के साथ किया था.

धर्मेंद्र केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का जवान था. वह आराधना को दहेज के लिए मारतापीटता था, जिस से आराधना अपने 2 बच्चों के साथ मायके में आ कर रहने लगी थी. उस ने पति पर दहेज उत्पीड़न तथा भरणपोषण का मामला दर्ज करवाया था. धर्मेंद्र गौतम इस समय छत्तीसगढ़ में तैनात है. उस ने पत्नी के रहते दूसरी शादी भी रचा ली. आराधना उस के वैवाहिक जीवन में बाधा न बने तथा मुकदमे से छुटकारा मिल जाए, इसलिए धर्मेंद्र ने ही अपने मामा प्रकाश व जयशंकर के साथ मिल कर आराधना की हत्या की है. रामप्रकाश के बयान के आधार पर थानाप्रभारी राजेश पाठक ने जांच आगे बढ़ाई और आराधना के पति धर्मेंद्र गौतम से संपर्क साधने का प्रयास किया लेकिन न तो धर्मेंद्र से संपर्क हो सका और न उस के मामा प्रकाश व जयशंकर से, क्योंकि दोनों फरार थे.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मृतका के पर्स की जामातलाशी कराई. उस के पर्स में 2 मोबाइल फोन, कुछ नकदी, चाबी तथा साजशृंगार का सामान मिला. उन में से एक मोबाइल चालू हालत में था. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स में एक संदिग्ध नंबर मिला. उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि वह नंबर राजेंद्र का है. थानाप्रभारी राजेश पाठक ने राजेंद्र को उस के घर से दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाना किदवई नगर ले आए. थाने आतेआते राजेंद्र कांपने लगा था. उस ने सहज ही बता दिया कि उस के मोबाइल फोन से उस के दोस्त प्रवीण ने किसी महिला को फोन किया था. प्रवीण तातियागंज (चौबेपुर) थाना क्षेत्र के मालौगांव में रहता है और बस ड्राइवर है. वह उस के बारे में और कुछ ज्यादा नहीं जानता.

थानाप्रभारी राजेश पाठक ने प्रवीण को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर मालौगांव छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. पुलिस ने तब उस के कई खास रिश्तेदारों के घर दबिश दी, पर प्रवीण हाथ नहीं आया. तब पुलिस ने उस की टोह में एक खास मुखबिर लगा दिया. 18 दिसंबर, 2019 को इस खास मुखबिर ने थानाप्रभारी राजेश पाठक को जानकारी दी कि प्रवीण कुमार इस समय गौशाला (जुही) टैंपों स्टैंड पर मौजूद है. चूंकि मुखबिर की सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ गौशाला टैंपो स्टैंड पहुंच गए. पुलिस जीप रुकते ही वहां खड़ा एक युवक मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. तभी पुलिस ने उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम प्रवीण कुमार बताया. पुलिस उसे थाने ले आई.

पुलिस ने जब प्रवीण से आराधना गौतम की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने मोटरसाइकिल के बैग से वह रस्सी भी बरामद करा दी, जिस से उस ने आराधना का गला घोंटा था. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मोटरसाइकिल तथा रस्सी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस पूछताछ में प्रवीण ने बताया कि वह आराधना से प्रेम करता था और उस से शादी करना चाहता था. आराधना भी राजी हो गई थी, लेकिन जब उस का एक्सीडेंट हो गया तो वह उस से कतराने लगी. इतना ही नहीं, उस ने फोन पर बात करनी भी बंद कर दी, तब उसे आराधना पर शक हुआ. उस ने गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह किसी और से प्यार करने लगी है. यही बात उसे चुभ गई.

इस के बाद उस ने निश्चय कर लिया कि यदि आराधना उस की नहीं होगी तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. फाइनल बात करने को उस ने घटना वाली शाम दोस्त राजेंद्र के फोन से बात कर आराधना को बुलाया. फिर मोटरसाइकिल पर बिठा कर उसे जवाहरपुरम पार्क ले गया. वहां शादी को ले कर दोनों के बीच झगड़ा हुआ. वह शादी को राजी नहीं हुई तो उस ने गला घोंट कर आराधना को मार दिया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने भी प्रवीण कुमार से पूछताछ की, फिर आननफानन में थाना किदवई नगर में ही प्रैसवार्ता आयोजित कर प्रवीण को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि प्रवीण कुमार ने आराधना गौतम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद करा दी थी, अत: थानाप्रभारी राजेश पाठक ने प्रवीण कुमार को आराधना की हत्या के जुर्म में भादंवि की धारा 302 के तहत विधिसम्मत बंदी बना लिया. प्रवीण के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा मंधना पड़ता है. इसी से सटा हुआ तातियागंज है. तातियागंज पहले गांव था, लेकिन जैसेजैसे मंधना का विकास होता गया, यह गांव कस्बा के समीप आता गया. इस तातियागंज में लिपस्टिक तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कई फैक्ट्रियां हैं, जहां ज्यादातर महिलाएं काम करती हैं.

तातियागंज में ही रामप्रकाश गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रमा गौतम के अलावा 3 बच्चे थे, जिस में बेटी आराधना सब से छोटी थी. रामप्रकाश गौतम ट्रांसपोर्टर हैं. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत है. रामप्रकाश गौतम की बेटी आराधना बीकौम करने के बाद नौकरी के लिए प्रयासरत थी. वहीं उस के पिता रामप्रकाश गौतम उस के योग्य वर खोज रहे थे. रामप्रकाश की तमन्ना थी कि वह अपनी लाडली तथा खूबसूरत बेटी की शादी किसी संपन्न परिवार में ही करेंगे, ताकि उसे किसी प्रकार की कमी महसूस न हो. ऐसा संपन्न घरवर खोजने में रामप्रकाश को 3 साल लग गए. तब कहीं जा कर वह बेटी के योग्य लड़के की खोज कर पाए. लड़के का नाम था धर्मेंद्र गौतम उर्फ लालजी.

धर्मेंद्र के पिता दयाराम गौतम कानपुर देहात जिले के मैथा ब्लौक के गांव दौलतपुर के रहने वाले थे. उन के 4 बच्चों में धर्मेंद्र सब से छोटा था. धर्मेंद्र उर्फ लालजी पढ़ालिखा युवक था. वह सीआरपीएफ का जवान था. दयाराम गौतम के पास 10 बीघा खेती की जमीन थी, जिस में अच्छी उपज होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. रामप्रकाश गौतम को घरवर पसंद आया तो वह आराधना की शादी धर्मेंद्र से करने को राजी हो गए. इस के बाद 6 अप्रैल, 2003 को आराधना की शादी धर्मेंद्र गौतम उर्फ लालजी के साथ धूमधाम से कर दी.

आराधना के मुकाबले धर्मेंद्र उम्र में बड़ा था. ऊपर से वह सांवला भी था. धर्मेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इतनी सुंदर बीवी मिलेगी. उस से शादी कर के वह बहुत खुश था. आराधना ने अपनी समझदारी और काम से पति ही नहीं बल्कि सासससुर का मन भी जीत लिया था. हंसीखुशी से उस की गृहस्थी को 7 साल बीत गए. इन 7 सालों में आराधना एक बेटा अभय तथा एक बेटी सुप्रिया की मां बन चुकी थी. बच्चों के जन्म से परिवार की खुशियां दूनी हो गई थीं. धर्मेंद्र गौतम की ड्यूटी एक राज्य से दूसरे राज्य में लगती रहती थी. उसे जब छुट्टी मिलती थी, तभी घर आ पाता था. लेकिन छुट्टियां खत्म होने के बाद जब वह अपनी ड्यूटी पर चला जाता तो आराधना को अपनी जिंदगी नीरस लगने लगती थी. उस का दिन तो बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात बैरन बन जाती थी.

इन्हीं दिनों पति, सास व ससुर का व्यवहार भी आराधना के प्रति बदल गया, जिस से वह और भी परेशान रहने लगी. सासससुर उसे बातबेबात प्रताडि़त करते थे. मकान के निर्माण हेतु उस पर मायके से पैसा लाने का दबाव बनाते. उसे दहेज कम लाने के ताने भी दिए जाने लगे. मायके से रुपए न लाने पर आराधना को प्रताडि़त किया जाने लगा. आखिर जब आराधना आजिज आ गई तो उस ने पति का घर त्याग दिया और अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर पिता के घर रहने लगी. आराधना को विश्वास था कि पति धर्मेंद्र बच्चों की खातिर उसे मनाने आएगा और अपने साथ ले जाएगा. लेकिन धर्मेंद्र ने ऐसा नहीं किया. वह आराधना को मनाने नहीं आया.

पति के इस रूखे व्यवहार से आराधना को गहरी ठेस पहुंची. उस ने पति व सासससुर को सबक सिखाने के लिए उन के खिलाफ कानपुर कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दहेज उत्पीडन तथा भरणपोषण का मुकदमा कायम करा दिया. मुकदमा दर्ज कराने की जानकारी धर्मेंद्र को हुई तो आराधना के प्रति उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने आराधना से समझौता करने के बजाए मुकदमा लड़ने का निश्चय किया. आराधना ने 3 साल तक इंतजार किया कि शायद धर्मेंद्र समझौते का प्रस्ताव लाएगा और उसे तथा बच्चों को साथ ले जाएगा. लेकिन धर्मेंद्र नहीं आया. तब आराधना ने बच्चों को पढ़ाने तथा उन के भविष्य को बनाने के लिए नौकरी करने का निश्चय किया. हालांकि आराधना तथा उस के बच्चों को पिता रामप्रकाश के घर पर हर प्रकार की सुविधा थी, फिर भी वह पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. वह कोई नौकरी करना चाहती थी.

आराधना पढ़ीलिखी युवती थी. उस ने बीकौम कर रखी थी. एकाउंट की ट्रेनिंग भी उस ने की थी, अत: उसे नौकरी हासिल करने में ज्यादा समय नहीं गंवाना पड़ा. सन 2016 में उसे किदवई नगर स्थित जैन ट्रेडिंग नामक फर्म में एकाउंटेंट की नौकरी मिल गई. आराधना ने अपने कुशल व्यवहार व अच्छे काम से कुछ महीने में ही मालिक व कर्मचारियों का दिल जीत लिया और सब की चहेती बन गई. आराधना के हाथ पर सैलरी का पैसा आने लगा तो वह अपनी तथा बच्चों की जरूरतें उचित तरीके से पूरी करने लगी. अब उसे पिता का मुंह नहीं ताकना पड़ता था. आराधना पहले दिन भर घर में बैठे बोर हुआ करती थी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद उस के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे थे. रामप्रकाश को भी सकून मिला था कि आराधना अब खुश रहने लगी है.

आराधना तातियागंज से औफिस बस व टैंपो से आतीजाती थी. वह मंधना से झकरकटी बस द्वारा फिर झकरकटी से किदवईनगर औफिस टैंपो द्वारा पहुंचती थी. वह सुबह 10 बजे औफिस पहुंचती थी और शाम सवा 6 बजे औफिस छोड़ देती थी. वह हर हाल में रात 8 बजे तक अपने घर पहुंच जाती थी. हां, यह बात दीगर थी कि जब औफिस में किसी दिन काम ज्यादा होता तो उसे घर पहुंचने में देर हो जाती थी. ऐसी हालत में वह फोन द्वारा पिता को बता देती थी. आराधना जिस बस से औफिस आतीजाती थी, उस बस का ड्राइवर प्रवीण कुमार था. वह चौबेपुर थाने के मालौगांव का रहने वाला था. प्रवीण एक ट्रैवल कंपनी की बस चलाता था. उस का रूट मंधना से जाजमऊ तक था. प्रवीण की बस से आतेजाते आराधना और प्रवीण में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई.

रविवार को आराधना की छुट्टी रहती थी. प्रवीण भी रविवार को छुट्टी करता था, अत: उस दिन दोनों कभी मोतीझील तो कभी साईंमंदिर में मिलते थे. यहां दोनों घंटों बतियाते थे और खूब हंसीठिठोली करते थे. आराधना अपने दोनों बच्चों को भी साथ लाती थी. प्रवीण उन्हें खूब खिलातापिलाता था. दोनों बच्चे प्रवीण से खूब घुलमिल गए थे. आराधना के प्यार में आकंठ डूबा प्रवीण सारी कमाई आराधना व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा था. आराधना भले ही 2 बच्चों की मां थी, लेकिन उस के सौंदर्य और जिस्मानी कसाव में जरा भी कमी नहीं आई थी. स्वभाव से आराधना मजाकिया तथा खुले विचारों की थी. प्रवीण से हंसीमजाक तथा नयनों के तीर भी चला देती थी. इस से प्रवीण उसे पाने के सपने देखने लगा था. प्रवीण आराधना से 8-10 साल छोटा था.

एक दिन प्रवीण ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘आराधना, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारा साथ जीवन भर चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

आराधना प्रवीण की बात सुन कर गहरी सोच में पड़ गई. फिर कुछ देर बाद बोली, ‘‘प्रवीण, मैं शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं. पति से मेरा तलाक भी नहीं हुआ है. ऐसी हालत में मैं तुम से कैसे शादी कर सकती हूं. रही बात प्यारमोहब्बत की तो वह मैं तुम से करती हूं और करती रहूंगी.’’

आराधना के जवाब से प्रवीण कुछ मायूस जरूर हुआ, लेकिन उसे लगा कि जब आराधना उस से प्यार करती है तो आज नहीं तो कल शादी भी उसी से करेगी. इसलिए वह उस का दीवाना बना रहा. उस ने अपनी और आराधना की मोहब्बत की जानकारी अपने परिवार वालों को भी दे दी. इस पर उस के मातापिता ने उसे समझाया और एक शादीशुदा महिला से रिश्ता तोड़ने को कहा. लेकिन प्रवीण ने घर वालों की बात नहीं मानी. आराधना और प्रवीण रिश्ते में बंध पाते, उस से पहले ही प्रवीण का एक्सीडेंट हो गया. उस की नौकरी छूट गई और उस की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. प्रवीण को यकीन था कि आराधना एक्सीडेंट की जानकारी पा कर उस से मिलने आएगी और उस की हरसंभव मदद करेगी.

लेकिन महीनों बीत गए, आराधना न तो उस से मिलने आई और न ही उस की कोई आर्थिक मदद की. और तो और उस ने मोबाइल पर प्रवीण से बतियाना भी बंद कर दिया. आराधना में आए इस अकस्मात बदलाव से प्रवीण बेचैन हो उठा. उस ने गुप्तरूप से आराधना के संबंध में जानकारी जुटाई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उसे पता चला कि आराधना औफिस के ही एक कर्मचारी शोएब की मोहब्बत में बंधी है. वह उस के साथ ही सैरसपाटा करती है. उस ने इस का विरोध आराधना से किया तो उस ने दोटूक जवाब दे दिया कि वह उस की जिंदगी में दखल देने वाला होता कौन है. वह कुछ बन कर दिखाए, तब उस से बात करे.

आराधना के जवाब से प्रवीण का दिल घायल हो गया. आराधना के प्रति वह नफरत से भर उठा. फिर भी वह आराधना को दिल से निकाल नहीं सका. आराधना ने अब उस से फोन पर बात करनी भी बंद कर दी थी. वह काल पर काल करता, तब कहीं जा कर उस की काल रिसीव करती और जवाब दे कर अपना फोन बंद कर लेती. प्रवीण तब खिसिया कर रह जाता था. 10 दिसंबर, 2019 को प्रवीण आराधना के औफिस के पास पहुंचा. कुछ देर बाद आराधना औफिस से बाहर निकली और सहकर्मी शोएब की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. प्रवीण ने उस का पीछा किया. वह उस के साथ घंटाघर गई. शौपिंग की, फिर उसी के साथ घर गई. इस बीच प्रवीण ने आराधना को फोन कर पूछा कि वह कहां है तो उस ने कहा कि वह अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में शामिल होने आई है.

उस के इस झूठ से प्रवीण बौखला गया. उस ने आराधना की हत्या का फैसला कर लिया. 16 दिसंबर, 2019 की शाम 6 बजे प्रवीण ने अपने दोस्त राजेंद्र के मोबाइल से आराधना से बात की और मिलने का अनुरोध किया. आराधना ने पहले तो साफ मना कर दिया लेकिन प्रवीण के विशेष अनुरोध पर वह मान गई. इस के बाद प्रवीण मोटरसाइकिल से आराधना के औफिस पहुंच गया. शाम सवा 6 बजे आराधना औफिस से बाहर निकली. प्रवीण ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा लिया. रास्ते में शोएब को ले कर दोनों के बीच झगड़ा हुआ.

लड़तेझगड़ते प्रवीण आराधना को शताब्दी नगर स्थित जवाहरपुरम पार्क ले आया. अब तक रात के 8 बज चुके थे. भीषण सर्दी पड़ने के कारण पार्क में सन्नाटा था. पार्क में प्रवीण ने उस से सीधे पूछा, ‘‘आराधना, तुम मुझ से शादी करोगी या नहीं?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

इतना सुनते ही प्रवीण भड़क उठा.

दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. इसी झगड़े में आराधना की चूडि़यां टूट गईं और कान की एक बाली पार्क में गिर गया. झगड़े के दौरान ही प्रवीण ने आराधना का पर्स पार्क में फेंक दिया और उसे दबोच लिया. फिर उस के गले में रस्सी का फंदा कसते हुए बोला, ‘‘आराधना, तू मेरी नहीं हुई तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’

उस के बाद उस ने फंदा तभी गले से निकाला, जब उस के प्राणपखेरू उड़ गए. हत्या करने के बाद प्रवीण ने आराधना के शव को घसीट कर झाडि़यों में छिपाया और फिर मोटरसाइकिल से फरार हो गया. हत्यारोपी प्रवीण कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 19 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट महेंद्र कुमार गर्ग की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. आराधना के दोनों बच्चे नाना रामप्रकाश गौतम के संरक्षण में पल रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित