प्यार की ये कैसी सजा : प्रेमी बने जान के दुश्मन

सुबह के करीब 7 बजे होंगे. थानाप्रभारी आशीष चौधरी नाइट ड्यूटी से अपने घर लौटे थे. वरदी उतार कर खूंटी से टांग ही रहे थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. काल करने वाला उन के ही सिलवानी थाने का कांस्टेबल था. काल रिसीव करते ही आशीष चौधरी ने जैसे ही हेलो कहा, दूसरी तरफ से आवाज आई.

‘‘सर, जमुनिया घाटी पर कोई एक्सीडेंट हुआ है, जिस में 2 युवतियां घायल हुई हैं.’’

पूरी बात सुने बिना ही थानाप्रभारी ने निर्देश दिया ‘‘उन्हें तत्काल हौस्पिटल में एडमिट कराओ.’’

कांस्टेबल ने जानकारी देते हुए बताया, ‘‘सर, घायल युवतियों को एक एंबुलेंस चालक ने सिविल अस्पताल सिलवानी में भरती करा दिया है.’’

‘‘ओके, ड्यूटी पर तैनात स्टाफ को हौस्पिटल भेजो. मैं भी पहुंच रहा हूं.’’

इतना कह कर वह अपनी वरदी को खूंटी से उतार वह फिर से तैयार होने लगे. घर में उन की पत्नी ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘पुलिस की नौकरी में रातदिन चैन कहां.’’ यह बात 28 जून, 2021 की है.

यह पहला अवसर नहीं था, जब थानाप्रभारी आशीष घर लौटने के बाद फिर से ड्यूटी पहुंच रहे थे. पिछले 8-10 साल की नौकरी का उन का अनुभव यही था कि पुलिस की नौकरी में सातों दिन और चौबीसों घंटे अपना फर्ज निभाना पड़ता है.

सिलवानी थाने के प्रभारी आशीष चौधरी एसआई रामसुजान पांडे को साथ ले कर सिविल हौस्पिटल पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर दंग रह गए. हौस्पिटल में भरती दोनों युवतियों के कपड़े खून से सने हुए थे.

दोनों युवतियों के गले पर बने घावों को देख कर सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता था कि इन दोनों को जान से मारने की नीयत से उन पर धारदार हथियार से हमला किया गया था.

हौस्पिटल में मौजूद पुलिस स्टाफ ने मेडिको लीगल एक्सपर्ट को बुलाया तो उन्होंने बताया कि दोनों युवतियां एक्सीडेंट में घायल नहीं हुई हैं. भोपाल से सिलवानी की तरफ आ रहे एंबुलेंस चालक शाहरुख खान को दोनों युवतियां जमुनिया घाटी के ऊपर सड़क पर घायल अवस्था में मिली थीं. शाहरुख की नजर खून से लथपथ सड़क पर पड़ी इन युवतियों पर पड़ी तो गाड़ी रोकी.

एंबुलेंस चालक ने तत्काल पुलिस को सूचना दी और वहां से निकल रहे एक डंपर को रोक कर ड्राइवर सुरेंद्र सिंह की मदद से दोनों को तत्काल सिविल अस्पताल सिलवानी ले कर आ गया.

पहले तो शाहरुख भी यही समझ रहा था कि किसी गाड़ी ने इन्हें टक्कर मारी होगी, लेकिन घायल युवतियों ने उसे बताया कि उन दोनों को धक्का दे कर घाटी से नीचे धकेला गया है.

युवतियों का प्राथमिक उपचार सिलवानी में कराने के बाद जब उन की हालत सामान्य हुई तो उन के बयान लिए गए. आगे के इलाज के लिए रायसेन जिला अस्पताल रेफर करने के पहले उन दोनों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम जरीना और तबस्सुम बताए. पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह दिल दहलाने वाली थी.

मंडला जिले की निवास तहसील में रहने वाले जाकिर खान (परिवर्तित नाम) की 2 बेटियां जरीना और तबस्सुम हैं. जाकिर खान की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी, इसलिए वह हमेशा इस बात के लिए चिंतित रहता कि बेटियों की शादी किस तरह होगी. जरीना और तबस्सुम आजाद खयालात रखने वाली थीं.

पिता के कंधों का बोझ कम करने के लिए 22 साल की जरीना और 20 साल की तबस्सुम करीब ढाईतीन साल पहले नौकरी की तलाश में भोपाल आ गईं. उन्हें भोपाल के आदर्श प्रिंटिंग प्रेस में काम मिल गया तो जरीना और तबस्सुम अशोका गार्डन में किराए के मकान में रहने लगीं.

करीब 2 साल पहले की बात है. दोनों बहनें प्रिंटिंग प्रेस पर अपने काम में व्यस्त थीं, तभी एक युवक प्रेस पर आया. काउंटर पर बैठी जरीना से वह वोला, ‘‘मुझे मैडिकल स्टोर्स की बिल बुक प्रिंट करानी है.’’

अपने काम में व्यस्त जरीना ने कागज पेन देते हुए उस नवयुवक से बिल बुक का मैटर बनाने को कहा. थोड़ी देर बाद जरीना ने नजरें उठा कर जैसे ही उस युवक को देखा तो बस देखती ही रह गई.

गोरे रंग के स्मार्ट लड़के ने उसे सम्मोहित कर दिया था. जरीना ने और्डर बुक करते हुए उस का नाम व मोबाइल पूछा तो उस लड़के ने अपना नाम निखिल गौर बताया.

21 साल का निखिल भोपाल के सुभाष नगर इलाके में रहता था. निखिल ने बिल बुक प्रिंट होने की जानकारी लेने के लिए जरीना का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

बिल बुक प्रिंट होने की जानकारी लेने की गरज से निखिल और जरीना की रोज मोबाइल फोन पर बातें होने लगीं. इस तरह जरीना की निखिल से दोस्ती हो गई. तबस्सुम अब बड़ी बहन जरीना को घंटों फोन पर ही बिजी देखती.

कभीकभी निखिल अपने दोस्त करण परिहार को ले कर आदर्श प्रिटिंग प्रेस पर जरीना से मिलने जाता था. 20 साल का करण गोविंदपुरा भोपाल का रहने वाला था. जब निखिल जरीना के साथ प्यारमोहब्बत की बातें करता तो तबस्सुम और करण भी एकदूसरे से नजरें मिलाने लगे.

इसी दौरान तबस्सुम की दोस्ती भी करण सिंह परिहार से हुई जो पाइप फैक्ट्री में काम करता था.

अब दोनों बहनें दोस्तों की तरह अपने प्यार की चर्चा आपस में करती रहती थीं. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई .जब भी उन्हें समय मिलता वे अपने बौयफ्रैंड निखिल गौर और करण सिंह परिहार के साथ घूमने निकल जातीं.

किसी पार्क में दोनों प्रेमी जोड़े बाहों में बाहें डाले घूमते और एकांत पाते ही एकदूसरे को चूमते हुए प्यार का इजहार करते. दोनों बहनों का प्यार अब परवान चढ़ चुका था. जरीना और तबस्सुम अपने बौयफ्रैंड के बिना एक दिन भी नहीं रह पाती थीं.

उन्हें जब भी मौका मिलता अशोका गार्डन के किराए वाले कमरे में निखिल और करण को बुला लेतीं. जरीना और तबस्सुम के अपने प्रेमियों के साथ शारीरिक संबंध भी बनने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले इन प्रेमियों में तजुर्बे की कमी थी. भले ही वे प्रेम की पींगें बढ़ा रहे थे, मगर उन का प्यार वासना के रंग में रंगा हुआ था. यही वजह थी कि एकदूजे के प्यार में पागल प्रेमी जोड़े इस कदर डूब जाते कि उन्हें शारीरिक संबंध बनाते समय रखने वाली सावधानियों का ध्यान ही नहीं रहता.

बिना सोचेविचारे बनाए गए असुरक्षित यौन संबंधों के चलते जरीना और तबस्सुम पेट से हो गईं. पेट से होते ही दोनों अपने प्रेमियों पर शादी करने का दबाव बनाने लगीं.

निखिल और करण इतनी जल्दी शादी के लिए तैयार नहीं थे. पहले तो दोनों ने एक निजी क्लीनिक में उन का गर्भपात करा दिया और जब शादी का जिक्र होता तो दोनों चुप्पी साध कर रह जाते.

एक रात जरीना से मिलने निखिल उस के कमरे पर आया था. जरीना से मिलते ही निखिल उसे अपनी बाहों में भरने को बेताब हो रहा था, परंतु जरीना ने उसे अपने से दूर करते हुए निखिल से कहा, ‘‘देखो निखिल, तुम मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ मत करो. मेरे साथ शादी कर लो, वरना मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’

हमेशा की तरह निखिल ने जरीना का मन बहलाते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, मैं शादी करने के लिए खुद तैयार हूं, लेकिन घर वाले आसानी से मानने वाले नहीं हैं. मुझे डर है कि वे कोई बखेड़ा खड़ा न कर दें.’’

‘‘प्यार में डर कैसा निखिल, हम कहीं मंदिर में शादी कर लेते हैं.’’ जरीना बोली.

‘‘मैं करण से बात कर के कोई तरकीब सोचता हूं, मुझे थोड़ा वक्त और दो जरीना.’’ निखिल ने उस के माथे को चूमते हुए कहा.

उस दिन के बाद निखिल जब करण से मिला तो करण ने बताया कि तबस्सुम भी उस पर शादी करने दबाब डाल रही है.

दोनों ने प्यार के नाम पर मजे तो खूब लूट लिए, मगर शादी करने के नाम से उन के पसीने छूट रहे थे. निखिल और करण को यह उम्मीद कतई नहीं थी कि ये लड़कियां हाथ धो कर उन के पीछे ही पड़ जाएंगी.

निखिल के पिता का कुछ समय पहले देहांत हो गया था. घर में उस की मां और एक भाई था. मां को उस से काफी उम्मीदें थीं. करण के पिता रात की पारी में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करते थे.

निखिल और करण को पता था कि दूसरे धर्म की लड़कियों से उन के घर वाले कभी शादी करने की इजाजत नहीं देंगे. रातदिन निखिल और करण इसी चिंता में परेशान रहने लगे. उन का प्यार का भूत उतर चुका था.

जरीना और तबस्सुम के साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाले निखिल और करण ने आखिरकार ऐसा निर्णय ले लिया, जिस की कल्पना जरीना और तबस्सुम ने कभी सपने में भी नहीं की होगी.

दोनों ने अपनी प्रेमिकाओं को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने की योजना बना ली. निखिल और करण ने जरीना और तबस्सुम को झांसा दिया कि हम लोग शादी करने को राजी हैं. करण ने चालबाजी के साथ कहा ‘‘भोपाल में शादी करने में घर वाले रोड़ा बन सकते हैं.’’

निखिल ने बात को आगे बढ़ाते हुए सुझाव दिया, ‘‘मेरे एक चाचा रायसेन जिले के सिलवानी में रहते हैं. हम ने उन के बेटे अंकित को सब कुछ बता दिया है. हम वहां पहुंच कर शादी कर लेंगे.’’

जरीना और तबस्सुम निखिल और करण के शादी के लिए रजामंद होने से खुशी के मारे चहक रही थीं. योजना के मुताबिक निखिल व करण ने दोनों युवतियों को सिलवानी चलने को कहा.

रविवार 27 जून, 2021 की शाम को 6 बजे निखिल व करण तथा जरीना और तबस्सुम को ले कर भोपाल से सिलवानी के लिए दीपक ट्रेवल्स की एक बस में सवार हो कर रवाना हो गए.

रात करीब 11 बजे सिलवानी पहुंचने से पहले ही योजनाबद्ध तरीके से युवकों ने बस को जमुनिया घाटी के पास रुकवाया. बस के रुकते ही चारों लोग बस से उतर गए. निखिल का चचेरा भाई अंकित पटेल बाइक ले कर वहां पहले से उन का इंतजार कर रहा था. अंकित पहले बाइक पर करण व तबस्सुम को बैठा कर घाटी की ओर ले गया. तबस्सुम दोनों के बीच में बैठी थी.

बमुश्किल 2-3 किलोमीटर का फासला तय हुआ था कि करण ने तबस्सुम के दुपट्टे से गले में फंदा डाल दिया. पहले तो तबस्सुम को लगा कि करण उस के साथ कोई चुहलबाजी कर रहा है, मगर जब उस का दम घुटने लग तो वह तड़पने लगी. फिर बाइक रोक कर दोनों ने तबस्सुम पर चाकू से हमला कर के उसे वहीं छोड़ दिया.

फिर अंकित अकेला बाइक ले कर निखिल और जरीना को लेने चला गया. जरीना के वहां पहुंचते ही निखिल ने उस के सिर पर पत्थर से हमला कर दिया. अचानक हुए इस हमले से जरीना बेहोश हो गई. दोनों बहनों को गंभीर रूप से घायल कर मरणासन्न हालत में निखिल, करण और अंकित ने घाटी के नीचे जंगल में फेंक दिया.

तीनों वहां से बाइक से नौनिया बरेली गांव पहुंच गए. वहां जा कर उन्होंने एक हैंडपंप पर अपने कपड़ों पर लगे खून के दागधब्बों को धो लिया. इस के बाद निखिल और करण को सुबह की बस में भोपाल की ओर रवाना कर अंकित वहां से अपने गांव मढि़या पगारा चला गया.

रात के चौथे पहर में जब जरीना और तबस्सुम को होश आया तो उन्होंने अपने आप को एक गहरी खाई में पाया. खून से लथपथ दोनों बहनें दर्द से कराह रही थीं. हिम्मत जुटा कर जैसेतैसे दोनों बहनें धीरेधीरे घाटी चढ़ कर सड़क पर आ गईं.

तब तक सुबह का उजाला दिखने लगा था. दोनों बहनें सड़क से गुजरने वाले वाहनों को हाथ हिला कर रोकने का इशारा करतीं, मगर कोई उन की मदद के लिए नहीं रुक रहा था.

तभी भोपाल से सिलवानी की तरफ जा रहे एक एंबुलेंस के चालक शाहरुख की नजर सड़क पर खून से लथपथ उन दोनों बहनों पर पड़ी. उस ने एंबुलेंस रोक कर देखा तो दोनों के कपड़े खून से सने थे और वे दर्द से कराह रही थीं.

शाहरुख ने सड़क से गुजर रहे एक डंपर को रोक कर उस के ड्राइवर से मदद मांगी. डंपर ड्राइवर सुरेंद्र सिंह की मदद से दोनों बहनों को वह सिलवानी अस्पताल ले आया. इस तरह जरीना और तबस्सुम की जान बच गई.

सिलवानी थानाप्रभारी आशीष चौधरी सूचना मिलते ही अपने स्टाफ के साथ अस्पताल पहुंच गए तथा युवतियों का प्राथमिक उपचार सिलवानी में कराने के बाद रायसेन जिला अस्पताल भिजवा दिया.

दोनों बहनों की हालत में सुधार होने पर उन के बयान के आधार पर पुलिस ने निखिल गौर निवासी सुभाष नगर भोपाल, करण सिंह परिहार निवासी गोविंदपुरा, भोपाल और अंकित पटेल निवासी मढि़या पगारा, सिलवानी के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 201, 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

अपने जिन प्रेमियों निखिल और करण परिहार के लिए दोनों बहनों ने घरपरिवार तक छोड़ दिया, उन्होंने ही दोनों बहनों को मौत की कगार पर ला खड़ा किया. रात के अंधेरे में दोनों बहनों पर धारदार हथियारों से हमला किया और मृत समझ कर घाटी से नीचे फेंक कर फरार हो गए.

जरीना और तबस्सुम को मरा समझ कर गहरी घाटी में धकेल कर निखिल और करण निश्चिंत हो गए थे. अपने प्लान को सफल मान कर वे बस में सवार हो कर भोपाल अपने घर जा रहे थे. दोनों को अब इस बात का सुकून मिल गया था कि अब उन्हें जबरदस्ती उन लड़कियों से शादी नहीं करनी पड़ेगी.

सुबह करीब 9 बजे दोनों बस से उतर कर अपनेअपने घर चले गए.

रायसेन जिले की एसपी मोनिका शुक्ला ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए सिलवानी पुलिस टीम को जल्द ही दोनों आरोपी प्रेमियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

सिलवानी पुलिस ने सब से पहले मढि़या पगारा गांव के अंकित को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि अपने चचेरे भाई निखिल के कहने पर वह बाइक ले कर जमुनिया घाटी पहुंचा था.

निखिल और करण की तलाश में सिलवानी पुलिस थाने की एक टीम भोपाल रवाना हो गई. भोपाल के अशोका गार्डन थाना पुलिस की मदद से निखिल और करण के बताए गए पते पर पहुंची तो दोनों घर पर ही मिल गए. पुलिस को घर आया देख कर उन के हाथपैर कांपने लगे.

दोनों को हिरासत में ले लिया. अशोका गार्डन पुलिस थाने ला कर उन से पूछताछ की तो निखिल और करण ने पूरी सच्चाई पुलिस को बता दी.

निखिल और करण की निशानदेही पर वारदात के समय प्रयुक्त चाकू और मुंह बांधने का एक कपड़ा पुलिस ने घटनास्थल से बरामद कर लिया.

युवतियों के बयान के आधार पर पुलिस ने भोपाल अशोका गार्डन पुलिस की मदद से आरोपी तीनों युवकों निखिल गौर, करण सिंह परिहार और अंकित पटेल को हिरासत में ले कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हे बेगमगंज जेल भेज दिया गया.

नौकरी की तलाश में भोपाल आईं 2 सगी बहनें जवानी की इस उम्र में प्यार तो कर बैठीं, मगर उन्हें यह मालूम नहीं था कि दुनिया में प्यार के नाम पर धोखा देने वालों की कमी नहीं है.

प्यार का नाटक कर वासना की आग बुझाने वाले निखिल और करण को जरीना और तबस्सुम ने अपने प्रेमियों को भरपूर प्यार दिया, मगर दोनों प्रेमियों ने उन्हें प्यार की जो सजा दी उसे वे ताउम्र नहीं भूल सकतीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पीडि़त युवतियों के भविष्य को देखते हुए उन के नाम परिवर्तित कर दिए हैं.

प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल – भाग 2

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’

मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

भोगनाथ का भोग : क्या पूरे हो पाए भोगनाथ के अरमान – भाग 2

गांव में मकान एक लाइन से बने थे. उन की छतें भी आपस में मिली हुई थीं. भोगनाथ अपने मकान से कई मकानों की छत फांद कर बिट्टू के पास पहुंच जाता था और छत पर बने कमरे में उस के साथ घंटों प्यार की मीठीमीठी बातें करता था.

प्रेम के हिंडोले में झूमती हुई बिट्टू कहती, ‘‘भोग, दिल तो मैं ने तुम्हें दे दिया है, पर तुम भी उस की लाज रखना. देखना कभी भूले से मेरा दिल न टूटे.’’

‘‘कैसी बात करती हो बिट्टू, तुम्हारा दिल अब मेरी जान है और कोई अपनी जान को यूं ही जाने देता है क्या?’’

‘‘इसी भरोसे पर तो मैं ने तुम से प्यार किया है. मनआत्मा से तुम्हें वरण कर के मैं 7 जन्मों के लिए तुम्हारी हो चुकी. देखना है कि तुम किस हद तक प्यार निभाओगे.’’

‘‘प्यार निभाने की मेरी कोई हद नहीं है. प्यार निभाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.’’

बिट्टू ने इत्मीनान से सांस ली, ‘‘पता नहीं, वह दिन कब आएगा, जब मैं तुम्हारी पत्नी बनूंगी.’’

‘‘विश्वास रखो बिट्टू, हमारे प्यार को मंजिल मिलेगी.’’ बिट्टू का हाथ अपने हाथों में ले कर भोगनाथ बोला, ‘‘वैसे भी हमारी शादी में कोई अड़चन तो है नहीं, हमारा धर्म और जाति एक है. हमारा सामाजिकआर्थिक स्तर एक जैसा है. सब से बड़ी बात यह कि हम दोनों प्यार करते हैं.’’

भोगनाथ की बात तो बिट्टू को यकीन दिलाती ही थी, उसे खुद भी पूरा भरोसा था कि दोनों की शादी कोई अड़चन नहीं आएगी. इसलिए उसे अपने प्रेम व भविष्य के प्रति कभी नकारात्मक विचार नहीं आते थे. उसे पलपल भोगनाथ का इंतजार रहता था. भोगनाथ के आते ही वह खुली आंखों से भविष्य के सुनहरे सपने देखने लगती थी.

तन्हाई, दो जवां जिस्म और किसी के आने का कोई डर नहीं. यही भावनाओं के बहकने का पूरा वातावरण होता था. कभीकभी बिट्टू और भोगनाथ के दिल बहकने लगते थे, लेकिन बिट्टू जल्द ही संभल जाती और भोगनाथ को भी बहकने से रोक लेती थी. लेकिन एक वर्ष पूर्व कड़कड़ाती ठंड में वह सब तनहाई में हो गया, जो बिट्टू नहीं चाहती थी.

उस दिन दोपहर को बने शारीरिक संबंध में बिट्टू को ऐसा आनंद आया कि वह बारबार उस आनंद को पाने के लिए उतावली रहने लगी. भोगनाथ भी कम मतवाला नहीं था.

इसी दौरान एक दिन इत्तफाक से बिट्टू की अनस नाम के एक युवक से बात हुई. उस के बाद इन दोनों की प्रेम कहानी में एक नया मोड़ आ गया.

सीतापुर की सीमा से सटे हरदोई जनपद के टडि़यावां थाना क्षेत्र के कस्बा गोपामऊ में नवी हसन रहते थे. नवी हसन के परिवार में पत्नी नाजिमा के अलावा 3 बेटे थे- साबिर, अनस और असलम.

नबी हसन की कस्बे में ही खाद की दुकान थी, जिस पर उस के साथ उस के बेटे अनस और असलम बैठते थे. साबिर किसी फैक्ट्री में काम करता था. अनस काफी खूबसूरत नौजवान था, साथ ही अविवाहित भी. उसे दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने में काफी मजा आता था.

एक दिन सुहानी सुबह अनस उठ कर छत पर चला आया. छत की मुंडेर पर बैठ कर वह आसमान की तरफ निहार रहा था कि अचानक उस का मोबाइल बज उठा इतनी सुबह फोन करने वाला कोई दोस्त ही होगा, सोच कर अनस मोबाइल स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही बोला, ‘‘हां बोल?’’

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की आवाज सुनाई दी तो अनस चौंक पड़ा. उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. उस ने तुरंत ‘सौरी’ कहते हुए कहा, ‘‘माफ करना, दरअसल मैं समझा इतनी सुबह कोई दोस्त ही फोन कर सकता है, इसलिए… वैसे आप को किस से बात करनी है, आप कौन बोल रही हैं?’’

‘‘मैं बिट्टू बोल रही हूं. मुझे भी अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन गलत नंबर डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा करने से दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’

‘‘पूछताछ तो पुलिस वालों की तरह कर रहे हैं. 25 सवाल और सलाह भी.’’ कह कर बिट्टू जोर से हंसी.

‘‘अरे नहीं, मैं ने तो वैसे ही बोल दिया. दोस्त आप की, फोन भी आप का. आप चाहें नंबर सेव करें या न करें.’’

‘‘तो आप दार्शनिक भी हैं?’’ बिट्टू ने फिर छेड़ा.

‘‘नहीं नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी अनस की थी. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताएं, मैं क्या करूं?’’ अनस ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल बिट्टू ने अपनी सहेली से बात करने के लिए नंबर मिलाया था, लेकिन गलत नंबर डायल होने से अनस का नंबर मिल गया था. लेकिन अनस की आवाज उसे भा गई थी. इस के बाद उस के दिल में फिर से अनस से बात करने की इच्छा हुई, लेकिन संकोचवश वह अपने आप को रोक लेती थी.

फिर एक दिन उस से रहा नहीं गया तो उस ने अनस का नंबर फिर मिला दिया. इस बार अनस भी जैसे उस के फोन का इंतजार कर रहा था. उसे इस बात का एहसास था कि बिट्टू उसे फिर से फोन जरूर करेगी. इस बार जब दोनों की बात हुई तो काफी देर तक चली.

बिट्टू ने अपने बारे में बताया तो अनस ने भी अपने बारे में सब कुछ बता दिया. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन सा महसूस करने लगे. यह दिसंबर 2017 की बात है.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं. एक दिन दोनों ने रूबरू मिलने का फैसला कर लिया. दोनों मिले तो एकदूसरे को सामने पा कर काफी खुश हुए. बिट्टू काफी खुश थी.

उस ने भोगनाथ और अनस की तुलना की तो पाया कि भोगनाथ और अनस का कोई मुकाबला नहीं है. अनस भोगनाथ से ज्यादा खूबसूरत था और उस की आर्थिक स्थिति भी भोगनाथ से लाख गुना अच्छी थी. इसलिए वह भोगनाथ से दूरी बना कर अनस से नजदीकियां बढ़ाने लगी.

अनस अपने आप चल कर आए मौके को भला कैसे गंवा देता. उसे भी बैठेबिठाए एक खूबसूरत युवती का साथ मिला तो वह भी बिट्टू का हो गया. समय के साथ दोनों की नजदीकियां इतनी बढ़ीं कि तन की दूरियां भी खत्म हो गईं. एक दिन दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 2

रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.

नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

नरगिस को भी एक दोस्त की जरूरत थी, अत: धीरेधीरे वे दोनों मोबाइल पर दिल की बातें करने लगे. रशीद जब नरगिस के घर जाता तो बच्चों के लिए कुछ खानेपीने की चीजें भी ले जाता. इस से नरगिस के बच्चे भी उस के साथ घुलमिल गए थे. बातचीत के दौरान नरगिस को यह जानकारी हो गई थी कि रशीद शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप भी है.

लेकिन उसे तो एक सहारे की जरूरत थी इसलिए उस का रशीद के प्रति झुकाव बढ़ता गया. एक दिन नरगिस देर शाम को उस की दुकान पर आई. कुछ देर बाद जब वह जाने लगी तो रशीद ने उस का हाथ पकड़ लिया और आई लव यू कहते हुए अपने मन की बात कह डाली. नरगिस ने उसे घूर कर देखा और तमक कर बोली, ‘‘कुछ देर बाद तुम घर आ जाना. मैं खाना बना कर रखूंगी. तभी बात करेंगे.’’ इस के बाद वह चली गई.

रशीद का दिल बल्लियों उछल रहा था. नरगिस जैसी हसीन औरत का सामीप्य जो उसे मिलने वाला था. उस समय वह भूल गया कि शिकोहाबाद में उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. रशीद ने उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा पहले ही दुकान बंद कर दी. फिर कुछ देर इधरउधर टहलता रहा. हलका अंधेरा होने पर उस ने नरगिस के घर का रुख कर दिया. जब वह उस के घर पहुंचा तो देखा कि उस के बच्चे सो चुके थे और वह उस का इंतजार कर रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद नरगिस ने खाना लगा दिया. रशीद ने नरगिस को भी साथ बैठा कर खाना खिलाया. खाना खाने के बाद वह उसे कमरे में ले आई. अब कमरे में रशीद और नरगिस के अलावा तनहाई थी जो उन्हें कोई गुनाह करने को उकसा रही थी. उस रात उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. रात काली और लंबी जरूर थी लेकिन उन के लिए खुशनुमा थी. सुबह रशीद ने चलते समय कुछ रुपए नरगिस के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘ये खर्चे के लिए हैं.’’ फिर बोला, ‘‘तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो.’’ नरगिस भी हंसते हुए बोली, ‘‘आज से तुम्हें ये खाना रोज मिलेगा.’’

रशीद चला गया पर नरगिस का अधूरापन पूरा कर गया था. वह खुश थी. उसे एक सहारा मिल गया था. शाम को उस ने खाना बनाया और टिफिन ले कर रशीद की दुकान पर पहुंच गई. उसे देखते ही रशीद बोला, ‘‘अरे तुम यहां, मैं तो अपने घर शिकोहाबाद जाने वाला था.’’

‘‘हां, चौंक क्यों रहे हो. जब रोज शाम का खाना तुम्हें यहीं मिल जाया करेगा. तब शिकोहाबाद जा कर क्या करोगे.’’ वह बोली.

इस के बाद नरगिस का रशीद की दुकान पर आनाजाना होने लगा. रशीद को जब रोजाना ही शाम का खाना मिलने लगा तो उस ने शिकोहाबाद में अपने घर जाना बंद कर दिया. कई दिनों तक वह घर नहीं गया तो उस की पत्नी सलमा को चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन किया तो रशीद ने दुकान पर काम ज्यादा होने का बहाना कर दिया.

फिर एक दिन रशीद नरगिस को बताए बिना अपने घर चला गया. नरगिस जब खाना ले कर उस की दुकान पर पहुंची तो दुकान का ताला बंद देख कर उस ने रशीद को फोन मिलाया. तब उसे उस के घर जाने की जानकारी मिली. अगले दिन रशीद आया तो नरगिस ने उस से शिकायत की.

उस ने रशीद से कहा कि उस का रोजरोज दुकान पर आना ठीक नहीं है. उस ने उसे मक्खनपुर में ही किराए का कमरा लेने की सलाह दी. रशीद को उस की सलाह उचित लगी. इसलिए उस ने मक्खनपुर में किराए का कमरा ले लिया. अब नरगिस वहीं शाम का खाना ले कर पहुंच जाती और फिर सारी रात प्रेमी के आगोश में होती थी. करीब 6 महीने तक उन दोनों के बीच गुपचुप तरीके से संबंध बने रहे. कभीकभी नरगिस यह सोच कर डरती थी कि कहीं रशीद उसे छोड़ न दे.

उस का रशीद पर कोई कानूनी हक तो था नहीं, जो वह उस पर अधिकार जताती. वह रशीद के मन की बात टटोलना चाहती थी. एक दिन बातों ही बातों में नरगिस ने उस की पत्नी सलमा के बारे में कुछ कह दिया तो रशीद भड़क उठा. नरगिस को लगा कि अभी सही वक्त नहीं आया है. रशीद को अपना बनाने में कुछ वक्त देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिस से वह पत्नी को छोड़ उसी का हो जाए.

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 2

इसलामनगर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर दहगवां एक विकसित गांव है, जो कस्बे का रूप ले चुका है. दहगवां बदायूं जिले के ही थाना जरीफनगर के अंतर्गत आता है. इसे नगर पंचायत का दरजा मिल चुका है. पहली बार वहां चेयरमैन चुना जाना है. दहगवां से करीब 7 किलोमीटर दूर गांव परड़या है.

यहीं शबनम का भरापूरा परिवार रहता है. संभ्रांत लोगों में उन की गिनती होती है.

शबनम की शादी के बाद से ही उस के परिजन परेशान रहने लगे थे. आए दिन शबनम का पति और ससुरलवालों से झगड़े निपटाए जाते थे. शबनम की जिद के चलते शरीफ को 4 साल दहगवां में किराए का मकान ले कर रहना पड़ा था. तब लोग उन पर काफी तंज कसा करते थे.

शरीफ ने एक दिन शबनम को घर ला कर समझाने की कोशिश की. शरीफ और उस के घर वालों ने उसे काफी समझाया. यहां तक कि पंचायत हुई, लेकिन पंचायत में भी कोई खास समाधान नहीं निकल पाया.

आखिरकार, शरीफ शबनम को उस के मायके में ही छोड़ कर दिल्ली चला गया. कुछ दिन बाद शबनम बच्चे को ले कर अपनी ससुराल इसलामनगर पहुंची और ताला तोड़ कर रहने लगी. तब शबनम ने शरीफ से फोन पर माफी मांगते हुए नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की बात कही. साथ ही वादा किया कि वह आइंदा सलीम से कोई संबंध नहीं रखेगी.

पत्नी की बात सुन कर शरीफ ने उसे माफ तो कर दिया, साथ ही बच्चों के भविष्य के लिए सही रास्ते पर चलने को कहा. शबनम ने भी वादा करते हुए कहा कि ऐसा ही होगा. वह पुरानी बातों को दिमाग से निकाल दे और हम लोग मेहनत कर अधूरे मकान को पूरा करेंगे. पत्नी की बात पर यकीन करने के अलावा शरीफ के पास और कोई रास्ता भी नहीं था.

शबनम के इस माफीनामे और पति के प्रति वफादारी में कितनी सच्चाई थी, इस का पता तो तब चला जब शबनम ने सलीम से मिलनेजुलने का तरीका बदल लिया.

दोनों के मकान के उत्तरी दीवार की ओर कई प्लौट खाली थे. काफीकाफी दूरी पर इक्कादुक्का मकान बने थे. प्लौटों की तरफ से शबनम के कमरे के आंगन की दीवार काफी नीची थी. इस दीवार पर ही बांस प्लास्टिक का टटिया टिकाया हुआ था.

दीवार और टटिया के बीच के गैप को बरसाती पन्नी से ढंक दिया गया था. सलीम को शबनम के घर में  घुसने का यह एक गुप्त रास्ता मिल गया था, जिस का फायदा सलीम उठाने लगा था. वह उस रास्ते से रात में किसी समय शबनम के घर में घुस जाता था. फिर बेफिक्र हो कर दोनों अपने जिस्म की आग शांत करते थे. फिर सलीम उसी रास्ते से अपने घर चला जाता था.

उत्तरी दीवार से घर में उतरने में आ रही दिक्कत को दूर करने के लिए शबनम ने सीमेंट के खाली कट्टों में मिट्टी भर कर दीवार से सटा कर रख दिए थे.

मिलने से पहले शबनम अपने बच्चों को नींद की गोलियां खिला देती थी. उस के बाद सलीम को मोबाइल से खबर कर देती थी. सलीम पीछे के रास्ते से रात में शबनम के घर में घुस जाता था. दोनों रंगरलियां मनाते फिर सलीम मिट्टी से भरे कट्टे पर चढ़ कर इधरउधर देखता हुआ अपने घर चला जाता था.

सलीम दिखने में भले ही आकर्षक नहीं था. रंग गहरा सांवला था, जिसे काला भी कहा जा सकता है. भोंडा सा चेहरा, कदकाठी भी सामान्य से कम थी, लेकिन शरीरिक कसावट किसी भी औरत को आकर्षित करने के लिए काफी थी. सलीम में सैक्स के प्रति अधिक रुचि को देखते हुए वह उसे सैक्सी घोड़ा कहा करती थी.

शबनम से पहले मोहल्ले की एक और महिला से भी सलीम का प्रेम संबंध था. वह बिरादरी के अख्तर की पत्नी को भगा ले गया था. दोनों एक ही बिरादरी के थे, जिस के कारण मामला रफादफा हो गया. कुछ दिन साथ रखने के बाद महिला को उस के पति के हवाले कर दिया था.

जब सलीम और शबनम वासना की बयार में बहे जा रहे थे. उन पर किसी भी तरह की कोई रोकटोक नहीं थी. उन के मन में केवल आशंका थी तो यह कि शरीफ के आने या उस की जानकारी होने पर उन की मौजमस्ती में कभी भी खलल पड़ सकती है. यही सोच कर दोनों ने एक योजना बनाई.

योजना के मुताबिक शबनम ने 3 जुलाई, 2022 को सुबहसुबह पति शरीफ को फोन किया. कलपती आवाज में बोली कि बड़े बेटे की तबीयत खराब है. वह जिस हालत में है तुरंत घर आ जाएं. बेटे की तबीयत खराब की खबर सुनते ही शरीफ घबरा गया और उसी दिन शाम के 6 बजे के करीब घर आ गया. घर आ कर देखा तो बेटा ठीकठाक था. वह खेलकूद रहा था.

इस तरह अचानक बुलाने पर उस ने नाराजगी जताई. शबनम ने नाराज पति को बांहों में भर कर उस की नाराजगी दूर करने की कोशिश की. कुछ हद तक इस में उसे सफलता मिल गई.

काफी दिनों बाद पत्नी से मिलने पर शरीफ शबनम की बाहों में समा गया. उस का गुस्सा दूर हो गया. जब बच्चों ने दरवाजा खटखटाया, तब उस ने शबनम को खुद से अलग किया.

शरीफ इसलामनगर पंचायत से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर मऊकलां गांव का मूल निवासी था. वह सैफी यानी बढ़ई समुदाय के रहमान खानदान में 5 भाइयों में एक था. उस्मान, मेहरबान, एहसान, इरफान और शरीफ सभी भाई फरनीचर बनाने का काम जानते थे.

पांचों भाइयों ने 50 से 100 गज तक के प्लौट ले कर इसलामनगर में अपनेअपने घर बना लिए थे. उन के बीच आपसी मेलजोल था. एक भाई गांव में ही रहता था. दूसरा भाई इरफान इसलामनगर में डीजे संचालक के यहां मजदूरी करता है, जिस के चलते वह देर रात तक ही घर लौट पाता था. 3 भाई दिल्ली में अलगअलग जगहों पर काम करते हैं.

शबनम ने 3 जुलाई की आधी रात को ही करीब 2 बजे शरीफ के बड़े भाई उस्मान को फोन किया. उस ने नींद में आननफानन में घबराहट के साथ फोन रिसीव किया. सिसकियां भरते हुए शबनम ने बताया कि आप के भाई को बिजली ने पकड़ लिया है और उन की मौत हो गई है.

इतना बताने के बाद उस की सिसकियां थोड़ी कम हो गईं. फिर उस ने धीमी गमगीन आवाज में करंट लगने की पूरी घटना का जिक्र किया. उस ने बताया कि रात के एक बजे जब आंखें खुलीं, तब उस ने शरीफ को अपनी चारपाई पर नहीं पाया. कमरे में नजर दौड़ाने पर शरीफ को इनवर्टर के तारों से चिपका देखा.

शरीफ को बिजली का करंट लगने की बात सुन कर उस्मान को गहरा सदमा लगा. साथ ही उसे आश्चर्य हुआ कि यह खबर उस ने पड़ोस में रह रहे इरफान को क्यों नहीं दी. वैसे इस की जानकारी उस ने अपने सभी भाइयों और रिश्तेदारों को भी दे दी.

आश्चर्य की बात यह भी थी कि इरफान की पत्नी फरहीन घर पर ही थी, लेकिन उसे पड़ोस में रहने वाले देवर शरीफ की मृत्यु की भनक तक न लगी.

उस्मान भागाभागा शरीफ के घर आया. वहां इरफान की पत्नी फरहीन से मालूम हुआ कि रात के करीब 12 बजे उसे किवाड़ों पर आहट महसूस हुई थी. उस की नींद से आंखें खुलीं. वह समझ नहीं पाई. उस ने तुरंत यह जान कर दरवाजा खोल दिया कि शायद उस का पति इरफान आया हो. किंतु उस ने सलीम को शरीफ के घर से जाते हुए देखा.

शरीफ की अचानक मौत से घर में मातम का माहौल बन गया था. सभी रोने लगे थे. बच्चे एक कोने में गुमसुम बैठे थे. सुबह होते ही शबनम के घर काफी भीड़ जमा हो गई थी. शरीफ की लाश देख कर हर कोई हत्या होने की ही आशंका जाहिर कर रहा था. जबकि शबनम हर किसी से एक ही बात कह रही थी कि रात में पता नहीं वह किसी समय इनवर्टर में कुछ करने लगे और उस के तार से चिपक गए. बिजली करंट से उन की मौत हो गई.

इस हादसे की सूचना शरीफ के भाई इरफान ने पुलिस को दी. थाने से 2 सिपाही आए और मौका मुआयना किया. उन्होंने पाया कि शरीफ के शरीर में चोट और करंट के कई जगह निशान हैं.

संबंधों की कच्ची दीवार : रिश्तें बने बोझ

—‘देशप्रेमी’ छाया-राजेश वर्मा

36 वर्षीया रीता मनचली भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. कस्बे के तमाम लोग उस से नजदीकियां बढ़ाना चाहते थे. मगर पिछले 4 सालों से उस के मन में बसा हुआ था, पड़ोस में रहने वाला 41 वर्षीय राजेंद्र सिंह. वह उस का रिश्तेदार भी था और हर समय उस का ध्यान भी रखता था.

शादीशुदा होते हुए भी रीता और राजेंद्र के संबंध बहुत गहरे थे. राजेंद्र 3 बच्चों का बाप था तो रीता भी 2 बच्चों की मां थी. राजेंद्र और रीता का पति मनोज दोनों ईंट भट्ठे पर काम करते थे. वहीं पर दोनों के बीच नजदीकियां बनी थीं.

राजेंद्र व रीता के संबंधों की जानकारी रीता के पति मनोज को भी थी और कस्बे के लोगों को भी. इस बाबत रीता के पति मनोज ने दोनों को समझाने का काफी प्रयास भी किया था, मगर न तो रीता मानी और न ही राजेंद्र. उन दोनों का आपस में मिलनाजुलना चलता रहा. दोनों का लगाव इस स्थिति तक पहुंच गया था कि दोनों एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते थे.

इसी दौरान 16 मार्च, 2021 को रीता गायब हो गई. उस के पति मनोज ने उसे सभी संभावित जगहों पर ढूंढा. वह नहीं मिली तो वह झबरेड़ा थाने जा पहुंचा.

थानाप्रभारी रविंद्र कुमार को उस ने बताया, ‘‘साहब, कल मेरी पत्नी रीता काम से अपनी सहेली हुस्नजहां के साथ बैंक गई थी लेकिन आज तक वापस नहीं लौटी है. मैं उसे आसपास व अपनी सभी रिश्तेदारियों में जा कर तलाश कर चुका हूं, मगर उस का कुछ पता नहीं चल सका.’’

थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने रीता की बाबत मनोज से कुछ जानकारी ली. साथ ही उस का मोबाइल नंबर भी नोट कर लिया. पुलिस ने रीता की गुमशुदगी दर्ज कर मनोज को घर भेज दिया.

थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने रीता की गुमशुदगी को गंभीरता से लिया. उन्होंने रीता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और इस प्रकरण की जांच थाने के तेजतर्रार थानेदार संजय नेगी को सौंप दी.

मामला महिला के लापता होने का था, इसलिए रविंद्र कुमार ने इस बाबत सीओ पंकज गैरोला व एसपी (क्राइम) प्रदीप कुमार राय को जानकारी दी.

अगले दिन रीता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स पुलिस को मिल गई. संजय नेगी ने विवेचना हाथ में आते ही क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में रीता अपने पड़ोसी राजेंद्र के साथ बाइक पर बैठ कर जाती दिखाई दी.

hindi-love-crime-story-in-hindi

इस के बाद शक के आधार पर एसआई संजय नेगी ने राजेंद्र को हिरासत में ले लिया और उस से रीता के लापता होने के बारे में गहन पूछताछ की.

पूछताछ के दौरान राजेंद्र पुलिस को बरगलाते हुए कहता रहा कि उस की रीता से रिश्तेदारी है और उस ने 2 दिन पहले रीता को थोड़ी दूर तक बाइक पर लिफ्ट दी थी. लेकिन अब रीता कहां है, उसे इस बाबत कोई जानकारी नहीं है.

शाम तक राजेंद्र इसी बात की रट  लगाए रहा. शाम को अचानक ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना दी कि सैदपुरा के पास गंगनहर में एक महिला का शव तैर रहा है.

इस सूचना पर थानेदार संजय नेगी अपने साथ रीता के पति मनोज को ले कर वहां पहुंचे. संजय नेगी ने ग्रामीणों की मदद से शव को गंगनहर से बाहर निकलवाया. मनोज ने शव को देखते ही पहचान लिया कि वह शव उस की पत्नी रीता का ही है. शव के गले पर निशान थे.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दिया. रीता का शव बरामद होने की सूचना पा कर एसपी (क्राइम) प्रदीप कुमार राय थाना झबरेड़ा पहुंचे.

राय ने जब राजेंद्र से पूछताछ की तो वह अपने को बेगुनाह बताने लगा. राय व थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब सख्ती से राजेंद्र से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने रीता की हत्या करना स्वीकार कर लिया और उस से पिछले कई सालों से चल रहे आंतरिक संबंधों को भी कबूल कर लिया. रीता की हत्या करने की राजेंद्र ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस तरह थी—

राजेंद्र जिला हरिद्वार के कस्बा झबरेड़ा स्थित एक ईंट भट्ठे पर पिछले 20 साल से काम कर रहा था. उस के परिवार में उस की पत्नी सुनीता, बेटी प्रिया (21), दूसरी बेटी खुशी (15) व बेटा कार्तिक (12) था. ईंट भट्ठे पर काम कर के राजेंद्र को 15 हजार रुपए प्रतिमाह की आमदनी हो जाती थी. इस तरह से राजेंद्र के परिवार की गाड़ी अच्छी से चल रही थी. उसी ईंट भट्ठे पर रीता का पति मनोज भी काम करता था.

साथ काम करतेकरते मनोज और राजेंद्र में दोस्ती हो गई. फिर दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. इस आनेजाने में रीता और राजेंद्र के बीच नाजायज संबंध बन गए. वह दोनों आपस में दूर के रिश्तेदार भी थे. दोनों के संबंधों की खबर उन के घर वालों को ही नहीं बल्कि गांव वालों को भी हो गई थी. इस के बावजूद उन्होंने एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ा. उन के संबंध करीब 7 सालों तक बने रहे.

पिछले साल अचानक राजेंद्र व रीता के जीवन में एक ऐसा मोड़ आ गया कि दोनों के बीच में दूरियां बढ़ने लगीं. 30 मार्च, 2020 का दिन था. उस समय देश में लौकडाउन चल रहा था. उस दिन जब राजेंद्र से रीता मिली तो उस ने राजेंद्र के सामने शर्त रखी कि वह उस के साथ शादी कर के अलग घर में रहना चाहती है.

रीता की बात सुन कर राजेंद्र सन्न रह गया. उस ने रीता को समझाया कि अब इस उम्र में यह सब करना हम दोनों के लिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि हम दोनों पहले से ही शादीशुदा व बड़े बच्चों वाले हैं. अलग रहने से हम दोनों के परिवार वालों की जगहंसाई होगी. हम किसी परेशानी में भी पड़ सकते हैं.

राजेंद्र के काफी समझाने पर भी रीता नहीं मानी और राजेंद्र से शादी करने के लिए जिद करने लगी. खैर उस वक्त तो राजेंद्र किसी तरह से रीता को समझाबुझा कर वापस आ गया. इस के बाद उस ने रीता से दूरी  बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का मोबाइल अटैंड करना कम कर दिया और उस से कन्नी काटने लगा.

अपनी उपेक्षा से आहत रीता घायल शेरनी की तरह क्रोधित हो गई. उस ने मन ही मन में राजेंद्र से बदला लेने का निश्चय कर लिया. उस दौरान राजेंद्र अपनी बड़ी बेटी प्रिया की शादी के लिए वर की तलाश में था. राजेंद्र अपनी बिरादरी के लोगों से शादी के लिए प्रिया के संबंध में बात करता रहता था.

जब इस बात का पता रीता को चला कि राजेंद्र अपनी बेटी के लिए लड़का तलाश रहा है तो उस ने राजेंद्र की बेटी की शादी में अड़ंगा लगाने का निश्चय किया. इस के बाद जो भी लोग प्रिया को शादी के लिए देखने आते रीता उन लोगों से संपर्क करती और उन्हें बताती कि राजेंद्र की बेटी प्रिया का किसी से चक्कर चल रहा है.

रीता के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र की बेटी से शादी करने वाले लोग शादी का विचार बदल देते थे. इस तरह रीता ने प्रिया से शादी करने वाले 2 परिवारों को झूठी व भ्रामक जानकारी दे कर प्रिया के रिश्ते तुड़वा दिए थे. जब इस बात की जानकारी राजेंद्र को हुई तो वह तिलमिला कर रह गया.

धीरेधीरे समय बीतता गया. वह 28 फरवरी, 2021 का दिन था. उस दिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिस से राजेंद्र तड़प उठा और उस ने रीता की हत्या करने की योजना बना डाली.

हुआ यूं कि 28 फरवरी, 2021 को कस्बे में रविदास जयंती मनाई जा रही थी. उस समय राजेंद्र की छोटी बेटी खुशी ट्यूशन पढ़ कर वापस घर जा रही थी. तभी रास्ते में उसे रीता का बेटा सौरव खड़ा दिखाई दिया.

खुशी कुछ समझ पाती, इस से पहले ही सौरव ने खुशी के साथ अश्लील हरकतें करनी शुरू कर दीं. इस पर खुशी ने शोर मचा दिया. खुशी के शोर मचाने पर सौरव वहां से भाग गया.

खुशी ने घर आ कर इस छेड़खानी की जानकारी अपने पिता राजेंद्र को दी. इस के बाद राजेंद्र ने रीता को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. राजेंद्र रीता की हत्या का तानाबाना बुनने लगा. दूसरी ओर रीता राजेंद्र के इस खतरनाक इरादे से बेखबर थी.

योजना के तहत राजेंद्र ने 15 मार्च, 2021 को रीता को फोन कर के कहा कि वह उसे 20 हजार रुपए देना चाहता है, इस के लिए उसे मंगलौर आ कर मिलना पड़ेगा.

उस की इस बात पर लालची रीता राजी हो गई. 16 मार्च को रीता उस के साथ बाइक पर बैठ कर मंगलौर के लिए चल पड़ी. जब दोनों सैदपुरा की गंगनहर पटरी पर पहुंचे तो राजेंद्र ने बाइक रोक कर रीता से कहा, ‘‘मैं तुम्हें सरप्राइज दे कर 20 हजार रुपए देना चाहता हूं, तुम जरा मुंह दूसरी ओर घुमा लो.’’

जैसे ही रीता ने मुंह दूसरी ओर घुमाया तो राजेंद्र ने रीता के गले में लिपटी चुन्नी से उस का गला घोंट दिया. रीता की हत्या के सबूत मिटाने के लिए उस ने उस का मोबाइल व चुन्नी गंगनहर के पानी में फेंक दिए. फिर वह बाइक से अपने घर लौट आया.

पुलिस ने राजेंद्र के बयान दर्ज कर लिए और इस प्रकरण में उस के खुलासे के बाद इस मुकदमे में धारा 302 व 201 बढ़ा दी. एसआई संजय नेगी ने अभियुक्त की निशानदेही पर गंगनहर की पटरी से सही झाडि़यों में फंसी रीता की चुन्नी बरामद कर ली. रीता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण गला घोंटने से दम घुटना बताया गया.

राजेंद्र से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल – भाग 1

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

साजिश के चक्रव्यूह में 3 बहनें

उन्नाव जिले के असोहा थाना अंतर्गत एक गांव है बबुरहा. करीब 300 की आबादी वाले इस गांव में ज्यादातर घर ब्राह्मणों और गोस्वामियों के हैं. कुछ परिवार दलितों के भी हैं. बबुरहा में दलित सूरज पाल, संतोष व सूरजबली अपने परिवार के साथ रहते हैं. इन में सूरज पाल व सूरजबली सगे भाई हैं, जबकि संतोष उन का भतीजा है.

सूरज पाल के परिवार में पत्नी विटोला के अलावा 4 बेटे सरयू, मनीष, सुमित, अमित तथा 2 बेटियां काजल व नैंसी थी. बड़ी बेटी काजल 15 साल की थी. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद उस की पढ़ाई बंद हो गई थी. वह मां के साथ घर खेत में काम करने लगी थी.

सूरजबली के परिवार में पत्नी गंगाजली के अलावा 3 बेटे विशाल, कल्लू, मल्लू तथा एक बेटी रोशनी थी. 3 भाइयों के बीच वह इकलौती थी, इसलिए घर की दुलारी थी. उस ने 9वीं कक्षा पास करने के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया था और घर के काम में हाथ बटाने लगी थी. 17 वर्षीय रोशनी का रंगरूप तो साधारण था, लेकिन दिखने में सुंदर थी.

संतोष के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा एक बेटा शिवांग तथा बेटी मोनिका थी. संतोष की पहली पत्नी का नाम सन्नो था. उस की 12 साल पहले मौत हो चुकी थी. सन्नो की एक बेटी कोमल थी. सुनीता कोमल की सौतेली मां थी. 14 वर्षीय कोमल 10वीं की छात्रा थी.

चूंकि रोशनी, कोमल तथा काजल हमउम्र और एक ही परिवार की थीं, सो उन में गहरी दोस्ती थी. तीनों का एकदूसरे के घर आनाजाना बना रहता था. दोस्ती के चलते वे हर बात एकदूसरे से शेयर करती थीं. साथ खातीपीती थीं तथा हंसतीबतियाती थीं. खेतों पर भी साथ ही जाती थीं और साथ ही लौटती थीं.

रोशनी, काजल और कोमल दिन में 2 बार पशुओं का चारा (वरसीम) काटने खेत पर जाती थीं. पहली पाली में वे सुबह 8 बजे जातीं और 11 बजे घर वापस आ जातीं. फिर नहातीधोती, खानाखाती और आराम करतीं. दूसरी पाली में वे शाम 3 बजे खेत पर जातीं और शाम 5 बजे तक पशुओं का चारा ले कर वापस घर आ जातीं. इस के बाद घरेलू काम करतीं.

हर रोज की तरह 17 फरवरी, 2021 को भी रोशनी, काजल व कोमल शाम 3 बजे पशुओें का चारा काटने बबुरहा नाला स्थित अपने खेतों पर गई थीं. उन्हें शाम 5 या साढ़े 5 बजे तक आ जाना चाहिए था, लेकिन जब शाम 6 बजे तक वापस घर नहीं आईं, तो घर वालों को चिंता हुई.

काजल के पिता सूरज पाल से नहीं रहा गया तो वह उन की तलाश में खेत की ओर निकल पड़ा. लड़कियों की खोज करते हुए जब वह भतीजे संतोष के सरसों के खेत पर पहुंचा, तो उस के मुंह से चीख निकल गई. रोशनी, कोमल व काजल एक के ऊपर एक पड़ी थीं. उन के मुंह से झाग निकल रहे थे और गले में दुपट्टे कसे हुए थे.

सूरज पाल बदहवास हालत में गांव की ओर भागा और परिवार तथा पड़ोसियों को सूचना दी. इस के बाद तो गांव में सनसनी फैल गई. घर व गांव के लोग घटनास्थल पर आ गए.

hindi-love-crime-story-in-hindi

केवनी गांव के निवासी जिला पंचायत सदस्य उमाशंकर दीक्षित उर्फ पवन अपनी कार से असोहा जा रहे थे. उन्होंने बबुरहा नाला के पास खेत में भीड़ देखी तो कार सड़क किनारे खड़ी कर दी और खेत पर जा पहुंचे. वहां 3 लड़कियों को मरणासन्न स्थिति में देख कर उन का दिल पसीज गया.

इस के बाद तीनों अचेत किशोरियों को उन्होंने अपनी कार से सीएचसी असोहा पहुंचाया. जहां डा. विमल आर्या ने काजल और कोमल को तो मृत घोषित कर दिया, जबकि रोशनी जीवित थी. उस की सांसें चल रही थीं. डा. आर्या ने आशंका जताई कि किशोरियों की मौत जहर पीने से हुई है. काजल और

कोमल की मौत से असोहा के सरकारी अस्पताल में सनसनी फैल गई. घर वाले रोनेधोने लगे.

इसी बीच थाना असोहा पुलिस को 2 दलित किशोरियों की मौत की खबर लगी तो थानाप्रभारी ओम प्रकाश रजक पुलिस टीम के साथ सीएचसी असोहा पहुंच गए. उन्होंने घटना की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तथा नाजुक हालत में पड़ी रोशनी को जिला अस्पताल उन्नाव में भरती कराया.

सूचना पा कर एसपी आनंद कुलकर्णी, डीएम रवींद्र कुमार, एडीएम राकेश सिंह, सिटी मजिस्ट्रैट चंदन पटेल, डीएसपी गौरव त्रिपाठी तथा कोतवाल दिनेश चंद्र जिला अस्पताल आ गए और रोशनी के संबंध में जानकारी ली.

इमरजेंसी के डा. गौरव अग्रवाल ने पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों को बताया कि रोशनी की हालत बेहद नाजुक है. उसे इलाज हेतु कानपुर रेफर करना होगा. इस पर पुलिस अधिकारियों ने रोशनी को कानपुर के सर्वोदय नगर स्थिति रीजेंसी अस्पताल में भरती करा दिया.

इधर 2 दलित किशोरियों की संदिग्ध मौत की खबर टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज के रूप में चलने लगी तो हड़कंप मच गया. एडीजी (लखनऊ जोन) एस.एन. सावंत तथा आईजी लक्ष्मी सिंह असोहा थाना पहुंच गईं. वहां एसपी आनंद कुलकर्णी, एएसपी विनोद कुमार पांडेय, कमिश्नर रंजन कुमार, एसडीएम राजेश चौरसिया तथा डीएम रवींद्र कुमार पहले से मौजूद थे.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने रोतेबिलखते मृतका के घर वालों को धैर्य बंधाया, फिर उन से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. इस के बाद मृतका काजल और कोमल के शवों को पोस्टमार्टम के लिए उन्नाव के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को डर था कि कहीं यह मामला हाथरस कांड की तरह तूल न पकड़ ले. अत: आईजी लक्ष्मी सिंह ने कड़ा रुख अपनाया और बबुरहा गांव को छावनी में तब्दील करा दिया. बबुरहा गांव को जाने वाला हर रास्ता सील कर दिया गया. सतर्कता के नाते पुलिस का कड़ा पहरा बैठा दिया गया.

लक्ष्मी सिंह ने यह भी आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति पीडि़त परिवार से न मिलने पाए. मीडियाकर्मियों को भी गांव में जाने तथा पीडि़त परिवार के सदस्यों से बातचीत करने को मना कर दिया गया.

प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने भी दलित किशोरियों की मौत की घटना को गंभीरता से लिया और इस मामले में डीजीपी हितेशचंद्र अवस्थी से पूरी रिपोर्ट मांगी.

उन्होंने घटना को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया तथा मृतकों के घर वालों को 5-5 लाख रुपया मुआवजा देने का आदेश दिया. वहीं अस्पताल में भरती पीडि़त रोशनी के घर वालों को 2 लाख रुपया नकद देने को कहा गया. साथ ही उन्नाव के डीएम रवींद्र कुमार को सरकारी खर्चे पर उस का बेहतर से बेहतर इलाज कराने का आदेश दिया गया.

18 फरवरी, 2021 को 2 दलित किशोरियों की संदिग्ध मौत का मामला अखबारों की सुर्खियों में छपा तो राजनीतिक पार्टियां मुद्दा गरमाने में लग गईं.

आईजी लक्ष्मी सिंह इस मामले का खुलासा जल्द करना चाहती थीं, सो उन्होंने असोहा थाने में डेरा डाल दिया और उन्नाव कप्तान आनंद कुमार कुलकर्णी को जल्द खुलासे का आदेश दिया.

कुलकर्णी ने खुलासे हेतु एएसपी विनोद कुमार पांडेय के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में असोहा थानाप्रभारी ओम प्रकाश रजक, उन्नाव कोतवाल दिनेश चंद्र, डीएसपी गौरव त्रिपाठी तथा एक दरजन तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी साथ लिया गया.

गठित टीम ने सब से पहले आपस में विचारविमर्श किया, जिस से तय हुआ कि किशोरियों की मौत के 3 कारण हो सकते हैं. पहला उन्होंने आत्महत्या के लिए जहर पिया. दूसरा हत्या के लिए उन्हें जहर दिया गया और तीसरा मामला औनर किलिंग का हो सकता है.

पुलिस टीम ने इन्हीं बिंदुओं पर जांच शुरू की. टीम ने सब से पहले घर के एकएक सदस्य से अलगअलग पूछताछ की, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के अनुसार कोमल और काजल की मौत जहर से हुई थी. उन के शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं थे और न ही दुष्कर्म किया गया था.

रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद पुलिस टीम खोजी कुत्ता टीम व फोरैंसिक टीम के साथ घटना वाले खेत पर पहुंची. यहां पुलिस टीम ने बारीकी से निरीक्षण किया तथा घर वालों के अलावा कई अन्य लोगों के बयान दर्ज किए.

खोजी कुत्ता टीम ने घटनास्थल पर कुत्ता छोड़ा, तो वह सूंघ कर पाठकपुरा गांव की ओर भागा और गुलशन की परचून की दुकान पर जा कर रुका.

टीम ने उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की दुकान पर दरजनों लोग आते हैं, कब कौन क्या सामान ले गया, वह नहीं बता पाएगा. पूछताछ के बाद जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो टीम वापस आ गई.

फोरैंसिक टीम ने जांच शुरू की तो घटनास्थल से 25 मीटर दूर एक खेत के बाहर कुरकुरे के 2 तथा नमकीन के 2 खाली रैपर मिले. पास में ही कीटनाशक का खाली रैपर भी मिला. करीब 10 मीटर आगे सोडा बोतल भी पड़ी थी. यहीं पर पान मसाले का खाली रैपर तथा अधजली सिगरेट पड़ी थी.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से मिले सामान को सुरक्षित कर लिया. टीम ने बबुरहा गांव के परचून के दुकानदार साबिर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रोशनी जब खेत पर जा रही थी, तब उस ने कुरकुरे के 2 पैकेट खरीदे थे.

अब सवाल यह था कि रोशनी ने जब 2 पैकेट खरीदे थे, तो रैपर 4 कैसे मिले. इस का मतलब किशोरियों के अलावा कोई और भी था.

पर वह कौन था? फोरैंसिक और पुलिस टीम अभी माथापच्ची कर ही रही थी कि एक मुखबिर ने आ कर जानकारी दी कि उस ने 17 फरवरी की शाम 6 बजे के आसपास पाठकपुरा गांव के विनय उर्फ लंबू तथा उस के दोस्त सचिन को खेत से गांव की ओर भाग कर आते देखा था.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. चूंकि रैपर व अन्य सामान भी विनय के खेत से ही मिला था, अत: पुलिस का शक उस पर और भी गहरा गया. इस के बाद पुलिस टीम ने रात में पाठकपुरा गांव में छापा मार कर विनय उर्फ लंबू तथा सचिन को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना असोहा लाया गया.

थाने पर आईजी लक्ष्मी सिंह तथा एसपी आनंद कुलकर्णी ने डीएम रवींद्र कुमार की उपस्थिति में विनय व सचिन से घटना के संबंध में पूछताछ की. पूछताछ में विनय व सचिन ने जुर्म का कबूल कर लिया. उस के बाद आईजी लक्ष्मी सिंह ने प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि विनय उर्फ लंबू तथा सचिन ने जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ओमप्रकाश रजक ने मृतका काजल के पिता सूरज पाल की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत विनय उर्फ लंबू तथा सचिन के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक नाकाम आशिक के षडयंत्र की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

बबुरहा गांव निवासी रोशनी, काजल और कोमल तथा पाठकपुरा गांव निवासी किशन पाल के बेटे विनय उर्फ लंबू के खेत अगलबगल थे. दोनों का अपनेअपने खेतों पर आनाजाना लगा रहता था. खेतों पर ही एक रोज 17 वर्षीय रोशनी की मुलाकात विनय से हुई. विनय मन ही मन रोशनी को चाहने लगा और उस से ब्याह रचाने की सोचने लगा.

एक रोज विनय ने बातों ही बातों में रोशनी से प्यार का इजहार किया तो उस ने उसे बुरी तरह झिड़क दिया. अपमानित होने के बावजूद विनय ने रोशनी से बातचीत बंद नहीं की. रोशनी पशुओं का चारा लेने कोमल व काजल के साथ खेत पर आती थी. रोशनी से बतियाने विनय भी उन के पास पहुंच जाता था.

वह अपने साथ कभी नमकीन तो कभी चिप्स लाता था. वह बतियाने के लालच में चिप्स व नमकीन रोशनी को देता था, जिसे वे तीनों मिलबांट कर खा लेती थीं.

रोशनी विनय से हंसतीबोलती जरूर थी, लेकिन विनय से प्यार नहीं करती थी. जबकि विनय उस का आशिक बन चुका था. एक दिन रोशनी ने विनय से पूछा, ‘‘तुम्हारे खेत से चारा काट लूं?’’

विनय मुसकरा कर बोला, ‘‘काट लो, तुम्हारे ससुर का ही खेत है.’’

‘‘ऐसी बात क्यों कर रहे हो? मेरे ससुर का खेत कैसे हुआ?’’ रोशनी ने तुनक कर पूछा.

‘‘मुझ से शादी के बाद मेरे पिता तुम्हारे ससुर ही तो होंगे.’’ विनय ने जवाब दिया.

रोशनी गुस्से से बोली, ‘‘तुम्हें शरम नहीं आ रही, क्या बोल रहे हो? तुम मेरी जाति के जरूर हो, लेकिन तुम ने सोच कैसे लिया कि मैं तुम से प्यार… शादी करूंगी. आगे से ऐसी बात की तो अच्छा नहीं होगा. समझे.’’

शादी से इनकार करने और अपमानित होने के बाद विनय ने निश्चय कर लिया कि अगर रोशनी उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. उस ने रोशनी की हत्या की योजना बना ली और दोस्त सचिन को भी शामिल कर लिया. इस के बाद वह उचित समय का इंतजार करने लगा.

17 फरवरी, 2021 की शाम 4 बजे विनय उर्फ लंबू अपने दोस्त सचिन के साथ अपने खेत पर पहुंचा. विनय के हाथ में पानी की बोतल थी तथा सचिन के हाथ में नमकीन के 2 पैकेट और पान मसाला की पुडि़या थी, जिसे विनय ने ही गुलशन की दुकान से मंगाया था.

खेत के किनारे बैठ कर विनय ने कीटनाशक दवा की पुडि़या जेब से निकाली और उसे फाड़ कर पानी की बोतल में अच्छी तरह से मिला दिया. फिर नमकीन का एक पैकेट खोल कर खाता हुआ संतोष के खेत पर पहुंचा, जहां रोशनी, कोमल व काजल वरसीम काट रही थीं.

विनय ने नमकीन का पैकेट रोशनी की तरफ बढ़ाया, लेकिन उस ने नहीं लिया और बोली वह कुछ देर पहले कुरकुरे खा चुकी है. लेकिन लालचवश काजल ने पैकेट ले लिया और आधा नमकीन कोमल को दे कर खाने लगी.

नमकीन कड़वा था सो काजल ने विनय से पानी की बोतल मांग ली, फिर बारीबारी से काजल और कोमल ने पानी पिया. कुछ पानी बचा जिसे रोशनी ने पी लिया.

पानी पीने के चंद मिनट बाद ही उन तीनों की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और वे अचेत हो कर गिर पड़ीं. उन के मुंह से झाग निकलने लगे. विनय तो केवल रोशनी को मारना चाहता था, लेकिन तीनों की बिगड़ी हालत देख कर वह घबरा गया. उस ने सचिन की मदद से एक के ऊपर दूसरी को लिटाया. फिर पान मसाला खाया और सिगरेट पी. उस के बाद दोनों गांव की ओर भाग गए.

इधर जब रोशनी, कोमल व काजल खेत से घर नहीं लौटीं तो सूरज पाल उन की खोज में गया. वहां वह बेहोश मिलीं. उन्हें तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया, जहां कोमल व काजल को मृत घोषित कर दिया गया तथा रोशनी को रीजेंसी अस्पताल में भरती कराया गया. सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की और हत्या का परदाफाश किया.

20 फरवरी, 2021 को असोहा पुलिस ने अभियुक्त विनय उर्फ लंबू तथा सचिन को उन्नाव कोर्ट में सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. रीजेंसी अस्पताल में रोशनी का इलाज सरकारी खर्च पर चल रहा था. साथ ही सहायता राशि पीडि़त परिवारों को उन्नाव डीएम द्वारा दे दी गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 1

11 दिसंबर, 2016 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला शिकोहाबाद के थाना मक्खनपुर के 2 कांस्टेबल क्षेत्र में रात्रि गश्त पर निकले थे, तभी उन्होंने मक्खनपुर गांव के ही एक अधबने मकान से जबरदस्त धुआं उठते देखा. वे दोनों उस मकान में घुसे तो प्लास्टिक की बोरियों में आग लगी देखी. उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह और अग्निशमन दल को फोन कर के दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

गांव के जो लोग वहां इकट्ठे थे, उन से लाश की शिनाख्त कराई तो इकबाल ने उस की पुष्टि अपनी भाभी नरगिस के रूप में की. उस ने बताया कि भाई महबूब की मौत के बाद यह रशीद के साथ रहती थी. रशीद शिकोहाबाद के रुकुनपुरा का रहने वाला था और शिकोहाबाद शहर में संदूक बनाने का काम करता था. प्रारंभिक पूछताछ में पुलिस को काफी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने रशीद की तलाश में उस के रुकुनपुरा स्थित घर पर दबिश दी पर वह घर पर नहीं मिला. शिकोहाबाद में जो उस की संदूक की दुकान थी, वह भी बंद मिली. इस से पुलिस को उस पर पूरा शक होने लगा.

रशीद के जो भी ठिकाने थे, पुलिस ने उन सभी जगहों पर उसे तलाशा पर उस का पता नहीं चला. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा था. ऐसे में थानाप्रभारी ने सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को उस के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

करीब 15 दिन बाद आखिर एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रशीद को शिकोहाबाद के बसस्टैंड से हिरासत में ले लिया. वह वहां दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. थाने ला कर जब उस से नरगिस की हत्या के सिलसिले में पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सामने हालात ऐसे बन गए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

नरगिस पश्चिम बंगाल के रहने वाले सलीम की बेटी थी. सलीम मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. आज भी ऐसे युवक, जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है, वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों का रुख करते हैं. इन राज्यों के कुछ करीब अभिभावक अपनी बेटी के भविष्य को देखते हुए बेटियों का हाथ उन युवकों के हाथ में दे देते हैं. वे बाकायदा सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करते हैं. इसी तरह नरगिस की शादी भी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रामगढ़ के रहने वाले महबूब से हुई थी.

महबूब का अपना निजी घर था, जहां वह अपने 5 भाइयों के साथ रहता था. कालांतर में उस के 3 बड़े भाई मुंबई चले गए. घर में वह और उस का छोटा भाई इकबाल ही रह गया था. दोनों भाई मजदूरी कर के अपना घर चला रहे थे. नरगिस के आ जाने से उन्हें समय पर पकीपकाई रोटी मिल जाती थी. समय बीतता गया और नरगिस 4 बच्चों की मां बन गई.

नरगिस पति के साथ खुश थी. मांबाप के घर गरीबी के अलावा कुछ नहीं था पर यहां पति और देवर अपनी कमाई ला कर उस के हाथ पर रखते तो वह खुश हो जाती. उस ने भी अपनी जिम्मेदारी से घरगृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था.

महबूब मजदूरी कर के जब घर लौटता तो वह थकामांदा होता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस की तबीयत खराब रहने लगी थी. वह शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गया था. उसे सांस फूलने की शिकायत हो गई थी. इस की वजह से उस का काम पर जाना भी मुश्किल हो गया था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस ने खाट पकड़ ली. इस के बाद वह फिर उठ नहीं सका.

पति के बीमार होने के बाद नरगिस परेशान रहने लगी. देवर जो कमा कर लाता, उस से घर का खर्च ही चल पाता था. पैसे के अभाव में वह पति का इलाज तक नहीं करा पा रही थी. फिर मजबूरी में उस ने चूड़ी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई पर महबूब को बीमारी ने बुरी तरह जकड़ लिया और इलाज के अभाव में एक दिन उस की मौत हो गई.

पति का साया सिर से उठने के बाद नरगिस बुरी तरह टूट गई और बुरे दिनों में देवर इकबाल ने भी उस का साथ छोड़ दिया. नरगिस को बच्चों की चिंता खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इसी बीच एक दिन उस की मुलाकात रशीद नाम के एक आदमी से हुई. रशीद रुकुनपुरा थाना शिकोहाबाद का रहने वाला था और मक्खनपुर में संदूक बनाने का काम करता था.

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 1

सलीम जब अपने बिस्तर पर लेटा, तब उस की आंखों के सामने शबनम का चेहरा घूम गया. उस का मुंह बिचका कर बोलना, आंखों से इशारे करना और मांसल देह बारबार नजरों के सामने एक पिक्चर की तरह उस के मस्तिष्क में घूम रहा था. उस की आंखों से नींद गायब थी.

उस के दिमाग से उस की चंचल आंखें, अदाएं और मादकता के साथ मटकती देह हट ही नहीं रही थी. पहली मुलाकात में ही शबनम उस के दिल में उतर गई थी. वह उस से दोबारा मिलने के लिए बेचैन हो गया था.

दरअसल, सलीम का शबनम से आमनासामना पहली बार तब हुआ था, जब वह उस के मकान के एकदम पीछे अपने पति शरीफ और 3 बच्चों के साथ काफी समय से रह रही थी. उन का मकान उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में इसलाम नगर के मोहल्ला मुस्तफाबाद में है. सलीम का मकान नया, मगर अधबना है. करीब 40 गज के इस मकान से सटा ही शरीफ का मकान है.

विवाहित और 3 बच्चों का बाप सलीम 4 भाई हैं. वे मूलरूप से इसलाम नगर से करीब 25 किलोमीटर दूर आटा नामक गांव के रहने वाले हैं. वह गांव बहजोई हाईवे पर है. सलीम इसलाम नगर में पिछले 6 सालों से रह रहा था.

बात इसी साल सर्दियों के दिनों की है. सलीम के बच्चे छत पर धूप में गेंद से खेल से रहे थे. खेलतेखेलते उन की गेंद उछलती हुई शरीफ की छत पर चली गई. वहां से लुढ़कती गेंद बरसाती पन्नी के बनाए गए छप्परनुमा टटिया पर जा गिरी.

इस बारे में बच्चों ने सलीम को बताया और गेंद लाने को कहा. छत तो दोनों की मिली हुई थी, लेकिन शरीफ ने कमरे के आगे आंगन में बांसों से टटिया बना कर छत के आगे डाल ली थी.

सलीम ने शरीफ की छत पर जा कर लंबे बांस से गेंद निकालने की कोशिश की. लेकिन गेंद फिसल पर शरीफ के घर में चली गई. तब सलीम ने छत से आवाज दी, लेकिन उस के घर से कोई जवाब नहीं आया. फिर वह अपनी छत से नीचे उतर कर सड़क के रास्ते से शरीफ के घर जा पहुंचा.

शरीफ के मुख्य दरवाजे से पहले उस के भाई इरफान का मकान है.

इस तरह शरीफ के घर में कोई भी दाखिल होने पर उस की जानकारी पहले इरफान के परिवार को हो जाती है. सलीम जब शरीफ के मुख्य दरवाजे पर पहुंचा, तब इरफान की पत्नी फरहीन पूछ बैठी, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘शरीफ भाई से,’’ सलीम तुरंत बोला. इस पर फरहीन बेरुखी से बोली, ‘‘शरीफ घर पर नहीं है.’’

तभी शरीफ की पत्नी शबनम खुले दरवाजे का परदा हटाती हुई बाहर निकली. वह बोली, ‘‘हां, बताओ क्या बात है?’’

सलीम की नजर जैसे ही शबनम पर पड़ी, वह अपने होशोहवास खो बैठा. उसे टकटकी बांधे देखने लगा. शबनम ने जब दोबारा सवाल किया तब खयालों में खोए सलीम का ध्यान टूटा. हकलाता हुआ बोला, ‘‘जी..जी… वो भाभीजी! बात यह है कि बच्चों की गेंद आप के घर में आ गई है. वही लेने आया हूं.’’

शबनम कुछ बोले बगैर तेजी से पलटती हुई अंदर चली गई. सलीम उस के पलटने के अंदाज को देखता रह गया. कुछ पल में ही शबनम ने गेंद ला कर सलीम को पकड़ा दी और तिरछी नजर डालते हुए शिकायती लहजे में बोली, ‘‘बच्चों को हिदायत कर देना कि गेंद मेरे घर में दोबारा नहीं आने पाए.’’

सलीम कुछ नहीं बोला. सिर्फ उसे घूरता रहा. जबकि शबनम एकदम से तल्ख लहजे में बोली, ‘‘घूरते क्यों हो? कभी औरत नहीं देखी क्या? अबकी बार गेंद घर में आई तो नहीं दूंगी…’’

सलीम कुटिल मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘भाभीजी, कैसी बातें कर रही हैं, इस गेंद को भी रख लो. पड़ोसियों का तो हक बहुत होता है. …और आप जैसी पड़ोसी हो तो बात ही कुछ और है.’’

‘‘आप जैसी का मतलब?’’ शबनम बोली.

‘‘आप जैसी का मतलब मदमस्त..’’ यह बात सलीम ने शबनम के एकदम कान के पास जा कर बोली. शबनम कुछ नहीं बोली. आंखें चौड़ी कीं और तेजी से पलटती हुई परदे के पीछे चली गई. दरवाजा भी बंद कर लिया. सलीम गेंद ले कर अपने घर चला आया.

कई दिन गुजर गए, लेकिन उस दिन की शबनम की छोटी सी मुलाकात को सलीम भूल नहीं पा रहा था. वह इसी फिराक में रहने लगा कि शबनम बाजार वगैरह कब जाती है?

इसलाम नगर का मोहल्ला मुस्तफाबाद नई आबादी में शामिल है. यहां से मार्केट काफी दूरी पर है. एक दिन उस ने शबनम को हाथ में थैला लिए बाजार की तरफ जाते देख लिया. वह चुपके से उस के पीछे हो लिया. कुछ दूरी पर चलता हुआ बाजार की भीड़ में शामिल हो गया, लेकिन नजर शबनम पर गड़ाए रहा.

संयोग से दोनों एक दुकान के पास टकरा गए. सलीम तुरंत बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी आप? अकेली हैं? लाइए, भारी थैला मुझे पकड़ा दीजिए.’’

शबनम ने पहले की तरह ही कुछ बोले बगैर अपना थैला उसे पकड़ा दिया और साथसाथ चलने लगी. कुछ कदम चलने के बाद सलीम ने ही टोका, ‘‘आप नाराज हैं क्या? कुछ बोल नहीं रहीं.’’

‘‘आखिर में पड़ोसियों का हक होता है, देखो तुम पर हक जता रही हूं. तुम काम आ रहे हो,’’ बोलती हुई शबनम मुसकराई.

‘‘समोसा चाट खानी है?’’ सलीम बोला.

‘‘सस्ते में निपटाना चाहते हो. कबाब खिलाओ तब जानें,’’ शबनम ने कहा.

‘‘अरे कबाब क्या चीज है, चलिए उसी के मजे लेते हैं.’’ सलीम बोला.

उस के बाद दोनों ने बाजार में मजे में कबाब खाए और घर आ गए. उस के बाद दोनों का सिलसिला चल पड़ा. वे बाजार में मिलनेजुलने लगे. समय मिलता तो इकट्ठे समय गुजारते हुए एकदूसरे के मन की बातें करने लगे.

इस बीच सलीम शबनम की सुंदरता की तारीफ करता और शबनम अपनी ऊबी हुई जिंदगी का रोना रोती. तब वह उसे सुनहरी जिंदगी के सपने दिखाते हुए हिम्मत बंधाता.

जल्द ही दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. पति की उपेक्षा के चलते शबनम कामेच्छा की आग में तपी हुई थी, जबकि सलीम शबनम के यौवन को देख कर वासना की पूर्ति की चाहत के खयालों में डूबा रहने लगा था. एक सच तो यह भी था कि दोनों एकांत की ताक में रहने लगे थे. संयोग से एक रोज वह मौका भी मिल गया और दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

दूसरी तरफ सलीम और शबनम का घर और बाजार एक साथ आनाजाना पड़ोसियों की आंखों में चुभने लगा. इस की शिकायत शबनम की ससुराल वाले और पति शरीफ तक पहुंची. तब शरीफ के घर वाले उस पर निगरानी रखने लगे.

शरीफ बढ़ई का काम करने दिल्ली जाता, तब वह अपने घर वालों से सलीम और शबनम के संबंध के बारे में जानकारी लेता रहता था. वह फोन पर ही शबनम को डांटताफटकारता रहता था. इस तरह घर में कलह होने लगी. शरीफ से झगड़ा होने पर शबनम मायके चली जाती थी.

अकसर मायके वाले समझाबुझा कर उसे ससुराल भेज देते. इस बीच शबनम का सलीम से मेलजोल बना रहा. दोनों एकदूसरे से जुदा होने को तैयार नहीं थे. शरीफ कमाई कर के खर्च करने के लिए जितनी रकम शबनम को देता, उस में सामान्य तौर पर खानपान या दूसरी जरूरतें ही पूरी हो पाती थीं. सलीम के संपर्क में आने पर शबनम के रहनसहन में तब्दीली आ गई थी.

उन दिनों इसलामनगर में स्थित शाह सदरुद्दीन रहमतुल्ला अलेह का उर्स चल रहा था. दरगाह पर चादर चढ़ाने वालों का तांता लगा था. इसलामनगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से लोग सदरुद्दीन के मजार में गहरी आस्था रखते हैं.

बात पहली जून, 2022 की है. शबनम और सलीम भी वहां आए हुए थे. उन्हें शबनम के भाई ने एक साथ देख लिया था. इस की जानकारी उस ने तुरंत शरीफ को दे दी. वह सीधा दरगाह पर ही पहुंच गया. आव देखा न ताव, मेले में ही उस ने सलीम को खूब खरीखोटी सुनाई.

होहल्ला होने पर सलीम वहां से चला आया. जबकि शरीफ शबनम को डांटताफटकारता घर आया.

अगले रोज 2 जून की सुबह वह शबनम और बच्चों को ले कर अपने गांव चला गया.  शबनम के 4 भाई अनीस, जुगनू, नूरुद्दीन और नफीस का गांव में काफी रुतबा था. उन की 5 बहनों में से 4 का विवाह हो चुका था. 3 अन्य बहनें ठीकठाक रह रही थीं.