MP News : कामुक तांत्रिक और शातिर बेगम की खौफनाक कहानी

MP News : मध्य प्रदेश के जिला देवास की एक तहसील है खातेगांव, जहां से 5-7 किलोमीटर दूर स्थित है गांव सिराल्या. इसी गांव में रूप सिंह पत्नी मीराबाई और एकलौती बेटी सत्यवती के साथ झोपड़ी बना कर रहता था. रूप सिंह को कैंसर होने की वजह से उस के इलाज से ले कर पेट भरने और तन ढकने तक की जिम्मेदारी मीराबाई उठा रही थी.

आदमी कितना भी गरीब क्यों न हो, जान पर बन आती है तो सब कुछ दांव पर लगा कर जान बचाने की कोशिश करता है. मीराबाई भी खानेपहनने से जो बच रहा था, पति रूप सिंह के इलाज पर खर्च कर रही थी. लेकिन उस की बीमारी मीराबाई की कमाई लील कर भी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी.

जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.

उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.

मीराबाई ने पूरी बात ड्यूटी अफसर को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी तहजीब काजी को दे दी. वह तुरंत थाने आ पहुंचे और मीराबाई को शांत करा कर पूरी बात बताने को कहा.

मीराबाई ने जवानी की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटी सत्यवती के लापता होने की पूरी बात तहजीब काजी को बताई तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सत्यवती भले ही नाबालिग थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि उस के गायब होने के पीछे किसी बुरी घटना की आशंका न हो, जबकि आजकल तो लोग दूधपीती बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं.

तहजीब काजी को प्रेमप्रसंग को ले कर सत्यवती के भाग जाने की आंशका थी. लेकिन जब इस बारे में उन्होंने मीराबाई से पूछताछ की तो उन की यह आशंका निराधार साबित हुई, क्योंकि मीराबाई का कहना था कि सत्यवती की न तो गांव के किसी लड़के से दोस्ती थी और न ही किसी लड़के का उस के घर आनाजाना था.

बस, एक MP News राशिद बाबा का उस के घर आनाजाना था. यही वजह थी कि गांव वालों ने उस के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. लेकिन नेमावर के रहने वाले राशिद बाबा पांचों वक्त नमाजी और पक्के मजहबी हैं, इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती. फिर वह सत्यवती के दादा की उम्र के भी हैं. इसलिए मासूम बच्ची पर नीयत खराब कर के वह अपना बुढ़ापा क्यों बेकार करेंगे.

बहरहाल, सत्यवती की उम्र को देखते हुए उस की तलाश करना जरूरी था. इसलिए तहजीब काजी पूछताछ करने के लिए रात में ही मीराबाई के गांव जा पहुंचे, जहां उन्हें चौकाने वाली बात यह पता चली कि राशिद बाबा के आनेजाने से लगभग पूरा गांव रूप सिंह से नाराज था. इस की वजह यह थी कि एक तो वह दूसरे मजहब का था, जो गांव वालों को पसंद नहीं था, इस के अलावा वह तंत्रमंत्र करता था, जिस से गांव वाले उस से डरते थे.

राशिद के तांत्रिक होने की जानकारी होते ही तहजीब काजी को उसी पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस की अब तक की नौकरी से उन्हें यह अच्छी तरह पता चल चुका था कि तंत्रमंत्र कुछ नहीं है, सिर्फ मन का वहम है. इसलिए जो लोग खुद को तांत्रिक होने का दावा करते हैं, सीधी सी बात है कि वे बहुत ही शातिर किस्म के होते हैं.

तांत्रिकों द्वारा महिलाओं और मासूम लड़कियों के यौनशोषण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यही सब सोच कर तहजीब काजी को राशिद बाबा पर शक हुआ. उन्होंने तुरंत एसपी शशिकांत शुक्ला और एएसपी राजेश रघुवंशी को घटना के बारे में बता कर दिशानिर्देश मांगे.

अधिकारियों के आदेश पर समय गंवाए बगैर वह 15 किलोमीटर दूर स्थित राशिद के घर जा पहुंचे, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस से उन का शक और बढ़ गया. घर वालों से पूछताछ कर के वह वापस आ गए.

तहजीब काजी सत्यवती की तलाश में तत्परता से जुट गए थे. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी राशिद बाबा की तलाश में लगा दिया था. उन की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि अगले दिन नेमावर की ही रहने वाली कमला सत्यवती को ले कर थाने आ पहुंची.

कमला ने बताया कि किसी बात को ले कर कल मीराबाई ने सत्यवती को डांट दिया था, जिस से नाराज हो कर यह उस के पास आ गई थी. सुबह उसे पता चला कि इसे पुलिस खोज रही है तो वह इसे ले कर इस के घर पहुंचाने आ गई.

बेटी को देख कर मीराबाई तो सब भूल गई, लेकिन तहजीब काजी को याद था कि पूछताछ में मीराबाई ने सत्यवती के साथ डांटडपट वाली बात से मना करते हुए कहा था कि वही तो उस की सब कुछ है, इसलिए उस ने या उस के पति ने इसे डांटनेडपटने की कौन कहे, इस की तरफ कभी अंगुली तक उठा कर बात नहीं की.

इसीलिए तहजीब काजी को लगा कि कमला सत्यवती को ले कर आई है, यह तो ठीक है, लेकिन जो बता रही है, वह झूठ है. क्योंकि कमला जिस अंदाज में बात कर रही थी, उस से उन्होंने अनुमान लगाया कि यह काफी शातिर किस्म की औरत है. वह समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

तहजीब काजी जानते थे कि यह औरत सच्चाई बता नहीं सकती, इसलिए उन्होंने सत्यवती से सच्चाई जानने की जिम्मेदारी एसआई रविता चौधरी को सौंप दी.

एसआई रविता चौधरी थानाप्रभारी के मकसद को भली प्रकार समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने जल्दी ही बातों ही बातों में सत्यवती का विश्वास जीत कर उस से सचसच बताने को कहा तो उस ने कमला और राशिद बाबा की जो सच्चाई बताई, उसे सुन कर सभी हक्केबक्के रह गए.

मीराबाई को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस राशिद बाबा को वह भला आदमी समझ कर पूज रही थी, वही उस की बेटी को गंदा कर रहा था. सत्यवती के बयान से साफ हो गया था कि राशिद बाबा के जुर्म में कमला भी बराबर की हकदार थी, इसलिए पुलिस ने उसे तो गिरफ्तार कर ही लिया, उस की निशानदेही पर राशिद बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पकड़े जाने के बाद राशिद ने दीनईमान की बातों में उलझा कर तहजीब काजी को प्रभावित करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने राशिद और कमला के खिलाफ दुष्कर्म एवं धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राशिद, उस की सहयोगी कमला और सत्यवती के बयान के आधार पर तंत्रमंत्र के नाम पर सत्यवती के यौनशोषण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नेमावर के अपने घर में साइकिल सुधारने और छोटीमोटी जरूरत के सामानों की दुकान चलाने वाला राशिद बाबा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही कामुक और शातिर प्रवृत्ति का हो गया था. उस का निकाह जल्दी हो गया था, परंतु बीवी के आ जाने के बाद भी उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

कहा जाता है कि राशिद के मन में किशोर उम्र की लड़कियों के प्रति अजीब सी चाहत थी, इसलिए उम्र बढ़ने पर भी वह लड़कियों को हसरत भरी नजरों से देखता रहता था. दुकान पर आने वाली लड़कियों से भी वह छेड़छाड़ करता रहता था. यही वजह थी कि गांव की कुछ आवारा किस्म की औरतों से उस के संबंध बन गए थे. उन्हीं में एक कमला भी थी.

कमला राशिद के पड़ोस में ही रहती थी. कहा जाता है कि राशिद के संबंध कमला से तो थे ही, उस के माध्यम से उस ने कई अन्य औरतों से भी संबंध बनाए थे. लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से अब औरतें उस के पास आने से कतराने लगी थीं.

इस से परेशान राशिद को अखबारों से ऐसे तांत्रिकों के बारे में पता चला, जो तंत्रमंत्र की ओट में महिलाओं का यौनशोषण करते थे. उस ने वही तरीका अपनाने की ठान कर कमला से बात की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गई. राशिद जानता था कि तांत्रिक बनने में डबल फायदा है. एक तो नईनई औरतें अय्याशी के लिए मिलेंगी, दूसरे कमाई भी होगी.

इस के बाद पूरी योजना बना कर उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पांचों वक्त का नमाजी बन गया. इस के अलावा यहांवहां से कुछ तंत्रमंत्र सीख कर वह तांत्रिक बन गया. इस में कमला ने उस का पूरा साथ दिया. अगर वह मदद न करती तो शायद राशिद की तंत्रमंत्र की दुकान इतनी जल्दी न जम पाती.

दरअसल, कमला ने ही गांव की औरतों में यह बात फैला दी कि राशिद बाबा को रूहानी ताकत ने तंत्रमंत्र की शक्ति दी है, इसलिए उन की झाड़फूंक से बड़ी से बड़ी समस्या और बड़ी से बड़ी बीमारी दूर हो जाती है. अगर इस तरह की बातें फैलानी हों तो औरतों की मदद ले लो, फिर देखो इस तरह की बात फैलते देर नहीं लगेंगी.

राशिद के मामले में भी यही हुआ था. कमला ने नमकमिर्च लगा कर देखतेदेखते राशिद को आसपास के गांवों में बड़ा तांत्रिक के रूप में घोषित कर दिया. फिर क्या था, राशिद बाबा के यहां अपनी समस्याओं के हल और बीमारियों के इलाज के लिए औरतों की भीड़ लगने लगी.

राशिद ने तो योजना बना कर ही काम शुरू किया था. उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान कुछ इस तरह जमाई कि उस के पास समस्या ले कर आने वाली महिलाओं से पहले कमला बात करती थी, उस के बाद कमला उस की पूरी बात राशिद बाबा को बता देती थी.

समस्या ले कर आई महिला राशिद बाबा के सामने जाती थी तो वह उस के बिना कुछ कहे ही उस की समस्या के बारे में बता देता था. गांव की भोलीभाली औरतें समझ नहीं पातीं कि बाबा को यह बात कमला ने बताई होगी. वे तो बाबा को अंतरयामी मान कर उन के चरणों में गिर जाती थीं.

बाबा उन की पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें ढेरों आशीर्वाद देता. जबकि असलियत में शातिर राशिद आशीर्वाद देने के बहाने वह अपनी ठरक मिटा रहा होता था.

इस दौरान वह महिला के हावभाव पर पूरी नजर रखता था. इसी पहले स्पर्श में वह समझ जाता था कि किस महिला के साथ कैसे पेश आना है. जो महिला उस के चंगुल में फंस सकती थी, उस के लिए वह कमला को इशारा कर देता था. कमला उस औरत को धीरेधीरे बाबा की विशेष सेवा के लिए राजी कर लेती थी. इस तरह कमला की मदद से राशिद बाबा की दुकानदारी बढि़या चल रही थी, साथ ही उसे अय्याशी के लिए नईनई औरतें भी मिल रही थीं.

राशिद पैसा भी कमा रहा था और मौज भी कर रहा था. कमला को भी इस का फायदा मिल रहा था, इसलिए वह आसपास के गांवों में ऐसी महिलाओं पर नजर रखती थी, जो किसी न किसी परेशानी में होती थीं. वह ऐसी औरतों को पकड़ती थी, जो बाबा पर पैसा भी लुटा सकें और जरूरत पड़ने पर बाबा को मौज भी करा सकें.

कमला को जब मीराबाई के पति रूप सिंह की बीमारी के बारे में पता चलने के साथ यह भी पता चला कि उस के घर युवा हो रही बेटी भी है तो वह मीराबाई से मिली और उसे राशिद बाबा के बारे में खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया.

मीराबाई परेशान तो थी ही, उस ने कमला के पैर पकड़ कर कहा कि अगर वह उस के पति की बीमारी ठीक करवा दे तो वह जिंदगी भर उस का एहसान मानेगी. कमला ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बाबा से रूप सिंह की बीमारी ठीक करवा देगी.

इस के बाद कमला बाबा को ले कर अगले ही दिन मीराबाई के घर आ पहुंची. दुर्भाग्य से जिस समय राशिद मीराबाई के घर पहुंचा, सत्यवती सजीधजी कहीं जाने को तैयार थी. उसे देखते ही राशिद की नीयत डोल गई. उस ने मीराबाई और रूप सिंह से मीठीमीठी बातें कर के तंत्रमंत्र का नाटक करते हुए कहा कि साल भर में वह उस की बीमारी ठीक कर देगा. लेकिन इस के लिए उसे उस के यहां से दवा ला कर खानी होगी.

रूप सिंह तो चलफिर नहीं सकता था, मीराबाई उस की देखाभाल में लगी रहती थी, इसलिए तय हुआ कि सत्यवती हर सप्ताह बाबा के यहां दवा लेने जाएगी. इस के अलावा जरूरत पड़ने पर बाबा खुद आ कर रूप सिंह की झाड़फूंक कर देगा.

सत्यवती हर सप्ताह दवा के लिए नेमावर जाने लगी. राशिद बाबा ने कमला की मदद से सत्यवती पर जाल फेंकना शुरू कर दिया. उस ने सत्यवती से कहा कि उस की सरकारी अफसरों से अच्छी जानपहचान है. अगर वह चाहे तो वह उस की सरकारी नौकरी ही नहीं लगवा सकता, बल्कि अच्छे लड़के से उस की शादी भी करवा सकता है. शादी की बात सुन कर सत्यवती लजाई तो बाबा ने हंस कर उसे सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देने के बहाने कभी पीठ तो कभी कंधे पर हाथ फेरने लगा.

सत्यवती के कंधे से सरक कर राशिद बाबा का हाथ कब नीचे आ गया, सत्यवती को पता ही नहीं चला. इसी तरह एक दिन उस ने पूजा के नाम पर उसे निर्वस्त्र कर के उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना डाला. वह रोने लगी तो राशिद ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने इस बारे में किसी को कुछ बताया या दवा लेने नहीं आई तो वह अपने तंत्रमंत्र से न केवल उस के पिता की जान ले लेगा, बल्कि उस के शरीर में कोढ़ भी पैदा कर देगा.

मासूम सत्यवती को राशिद ने तो डराया ही, कमला ने भी कसर नहीं छोड़ी. उस ने सत्यवती से कहा कि बाबा ने उस के साथ जो किया है, उस से उस की किस्मत खुल गई है. बाबा जल्दी ही उस की सरकारी नौकरी लगवा देगा. उस के पिता भी एकदम ठीक हो जाएंगे. उस ने भी यह बात किसी को बताने से मना किया.

पिता की मौत और खुद को कोढ़ हो जाने के डर से सत्यवती ने बाबा के पाप को मां से छिपा लिया तो राशिद बाबा की हिम्मत बढ़ गई. सत्यवती जब भी उस के यहां दवा लेने आती, कमला की मदद से वह उस से अपनी हवस मिटाता.

बाबा की यह पाप लीला न जाने कब तक चलती रहती. लेकिन बरसात में बाबा का रंगीन मन कुछ ज्यादा ही मचल उठा. कमला को भेज कर उस ने चुपचाप सत्यवती को बुला लिया. सत्यवती घर में बता कर नहीं आई थी, इसलिए मांबाप परेशान हो उठे.

इधरउधर तलाशने पर सत्यवती नहीं मिली तो मीराबाई पुलिस तक पहुंच गई. उस के बाद तांत्रिक राशिद बाबा की पोल खुल गई. राशिद बाबा की सारी हकीकत सामने आने के बाद थानाप्रभारी तहजीब काजी ने उसे और उस की सहयोगी कमला को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. MP News

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. सत्यवती बदला हुआ नाम है.

UP News : रेलवे से करोड़ों की ठगी करने वाले लड़के का ऐसे हुआ पर्दाफाश

UP News : 12 वीं जमात में पढ़ने वाले हामिद अशरफ नाम के एक 19 साला लड़के ने 2 सालों में भारतीय रेल को करोड़ों रुपए का चूना लगाया और रेलवे अफसरों को इस की भनक तक नहीं लगी. मामले का खुलासा तब हुआ, जब रेलवे विजिलैंस टीम ने इस की शिकायत बेंगलुरु व लखनऊ की सीबीआई टीम से की. पता चला कि रेल का टिकट बुक करने वाली आईआरसीटीसी वैबसाइट का क्लोन तैयार कर देशभर की कई जगहों से फर्जी तरीके से तत्काल टिकट की बुकिंग की जा रही थी.

इस मामले के खुलासे के लिए रेलवे विजिलैंस व सीबीआई टीम द्वारा पिछले 2 सालों से कोशिश की जा रही थी कि अचानक सीबीआई के हाथ एक क्लू लगा कि देशभर में तकरीबन 5 हजार एजेंटों के जरीए आईआरसीटीसी की वैबसाइट को हैक कर तत्काल टिकटों के कोटे में सेंध लगा दी गई थी और इस का संचालन उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से किया जा रहा था.

इस के बाद बेंगलुरु की सीबीआई टीम के इंस्पैक्टर टी. राजशेखर और लखनऊ सीबीआई टीम के इंस्पैक्टर रमेश पांडेय की टीम रेलवे विजिलैंस के साथ बस्ती पहुंची और पुरानी बस्ती के थाना प्रभारी रणधीर मिश्र के साथ मिल कर 3 दिनों तक इस मामले के खुलासे की कोशिश करती रही.

आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 27-28 अप्रैल, 2016 की रात सीबीआई टीम ने पुरानी बस्ती थाने के थाना प्रभारी रणधीर मिश्र व एसआई अरविंद कुमार व रामवृक्ष यादव, एचसीपी रामकरन और महिला सिपाही प्रीति पांडेय के साथ मिल कर दरवाजा नाम की जगह पर बनी एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान पर छापा मारा, तो गुफानुमा संकरे गलियारों से होते हुए जब पुलिस के लोग एक कमरे में पहुंचे, तो वहां तकरीबन 19 साला एक किशोर को 10 लैपटौप के बीच काम करता हुआ पाया गया.

उस लड़के ने पुलिस को देखते ही भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस की मुस्तैदी से वह धर दबोचा गया.

हामिद अशरफ ने बताया कि वह पिछले 2 साल से आईआरसीटीसी का क्लोन तैयार कर वैबसाइट को हैक कर चुका था, जिस के जरीए उस ने नकली सौफ्टवेयर बना कर पूरे देश में तकरीबन 5 हजार एजेंट तैयार किए थे. इन एजेंटों से उसे अच्छीखासी रकम मिलती थी.

जहां रेल महकमा एक टिकट को बुक करने में एक मिनट का समय लगाता था, वहीं हामिद अशरफ द्वारा तैयार किए गए सौफ्टवेयर से 30 सैकंड में ही टिकट की बुकिंग हो जाती थी.

हामिद की चाहत

 हामिद अशरफ ने पुलिस को बताया कि वह बस्ती जिले के कप्तानगंज थाने के वायरलैस चौराहे का रहने वाला है. उस के पिता जमीरुलहसन उर्फ लल्ला बिल्डिंग मैटीरियल का कारोबार करते हैं. लेकिन घर का खर्च मुश्किल से ही चल पाता था. ऐसे में उसे इंजीनियर बनने का सपना पूरा होता नहीं दिखा.

माली तंगी से परेशान हो कर वह अपने मामा के घर आ कर रहने लगा. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही एक दुकान पर वह रेलवे टिकट निकालने का हुनर सीखने लगा.

चूंकि हामिद अशरफ का झुकाव इंजीनियरिंग की ओर था. ऐसे में रेलवे टिकट की बुकिंग के दौरान उस के दिमाग में एक ऐसी योजना आई, जिस से न केवल उस ने आईआरसीटीसी का सौफ्टवेयर तैयार किया, बल्कि रुपयों की बौछार भी होने लगी.

बेचता था सौफ्टवेयर

 हामिद अशरफ ने आईआरसीटीसी की डुप्लीकेट वैबसाइट को बेचने के लिए तमाम सोशल साइटों का सहारा लिया. देखते ही देखते पूरे देश में तकरीबन 5 हजार एजेंटों की फौज तैयार कर ली. इस सौफ्टवेयर को वह 60 हजार से 80  हजार रुपए में एजेंटों को बेचता था.

2 साल में हामिद अशरफ ने नकली सौफ्टवेयर के जरीए इतना पैसा कमा लिया था कि उस के एक ही खाते में तकरीबन 50 लाख रुपए जमा होने की जानकारी पुलिस को हुई.

हामिद अशरफ लोगों की नजर में तब आया, जब उस ने औडी जैसी महंगी गाड़ी की बुकिंग कराई. साथ ही, उस ने अपने पिता के लिए नकद रुपए दे कर एक बोलैरो गाड़ी खरीदी थी.

इंटरनैट पर सर्च कर के हामिद अशरफ ने जानकारी इकट्ठा की थी कि किस तरह से किसी भी साइट को हैक कर इस की सिक्योरिटी में सेंध लगाई जा सकती है.

हामिद अशरफ ने यह कबूला कि उस ने 2 सालों में रेलवे को तकरीबन 16 करोड़ रुपए का चूना लगाया है, लेकिन सीबीआई व पुलिस का मानना है कि यह रकम कई करोड़ रुपए हो सकती है.

टूटेगा गिरोह का नैटवर्क

 पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र से पकड़े गए हामिद अशरफ की कारगुजारी को ले कर हर कोई हैरान है. यहां के लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा कि हामिद इतना बड़ा शातिर निकलेगा.

गिरफ्तारी के बाद उसे सीबीआई की लखनऊ कोर्ट में पेश किया गया, जहां से बेंगलुरु की सीबीआई टीम उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले कर बेंगलुरु चली गई.

सूत्रों की मानें, तो सीबीआई बस्ती के अलावा गोरखपुर, संत कबीरनगर, फैजाबाद, गोंडा समेत देश के अलगअलग इलाकों से जुड़े लोगों के बारे में जानकरी इकट्ठा करने की कोशिश कर रही है.

रेलवे पर उठे सवाल

 भारतीय रेल सेवा के नैटवर्क में 19 साला एक लड़के ने इस तरह से सेंध लगाई कि देखते ही देखते 2 साल में उस ने रेलवे को 16 करोड़ रुपए का चूना लगा दिया. इस के अलावा देशभर में तैयार किए गए तकरीबन 5 हजार एजेंटों ने पता नहीं कितने रुपए का चूना लगाया होगा.

इस मामले की जांच सीबीआई के हवाले है. बस्ती पुलिस ने बताया कि उस की भूमिका सीबीआई और रेलवे विजिलैंस टीम के साथ हामिद अशरफ की गिरफ्तारी तक थी. इस के बाद क्या हुआ, पुलिस को नहीं पता.

इस मामले के मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी हो चुकी है. अब देखना यह है कि सीबीआई और रेलवे विजिलैंस टीम हामिद अशरफ द्वारा तैयार किए गए देशभर के नैटवर्क को किस तरह से खत्म करती है. UP News

Delhi News : किन्नर के वेश में घूम रहा था बहुरुपिया बच्चा चोर

Delhi News : रुखसाना पिछले एक हफ्ते से आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ देखने की जिद पति सोनू से कर रही थी, लेकिन सोनू अपने काम में व्यस्त था इसलिए वह पत्नी को फिल्म दिखाने के लिए टाइम नहीं निकाल पा रहा था. पत्नी के काफी कहने के बाद उस ने 2 जनवरी, 2017 को उसे फिल्म दिखाने का वादा कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने 2 जनवरी को शाम के शो की 2 टिकटें भी बुक करा दीं. टिकट बुक हो जाने पर रुखसाना बहुत खुश हुई.

2 जनवरी, 2017 को रुखसाना और उस के पति सोनू को शाम के शो में पिक्चर देखने जाना था, इसलिए रुखसाना अपराह्न 3 बजे ही तैयार हो गई. वह पति से भी तैयार होने के लिए बारबार कह रही थी पर वह वाट्सऐप पर किसी से चैटिंग करने में लगा हुआ था. रुखसाना के कहने पर फोन टेबल पर रख कर वह नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया. इस के बाद रुखसाना अपनी ढाई साल की बेटी सोनी को भी तैयार करने लगी.

उसी समय उस के दरवाजे पर हलकी सी दस्तक के साथ किसी की आवाज आई, ‘‘भाभी, घर में हो क्या?’’

‘‘कौन?’’ रुखसाना ने पूछा.

‘‘मैं हूं इच्छा.’’ एक दुबलेपतले से युवक ने अंदर प्रवेश करते हुए कहा.

‘‘इच्छा, तुम कहां थे, 2 दिन से दिखे नहीं.’’ रुखसाना ने अपना दुपट्टा सीने पर ठीक करते हुए पूछा.

‘‘एक बड़ा प्रोग्राम था भाभी, अपनी मंडली के साथ मैं उसी में गया था. इधर आने का वक्त ही नहीं मिला.’’ कह कर इच्छा उर्फ राकेश रुखसाना की बेटी सोनी के पास बैठ कर उसे प्यार करने लगा.

‘‘पानी लोगे तुम?’’ रुखसाना ने पूछा.

‘‘नहीं भाभी, पानी नहीं, बस एक कप चाय पिला दो.’’ वह बोला.

‘‘चाय का समय भी है और तुम्हारे भाई को नहाने के बाद चाय पीने की आदत है. तब तक तुम सोनी से खेलो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’ कह कर रुखसाना किचन में चली गई.

‘‘क्या भाई घर पर ही हैं?’’ इच्छा ने चौंक कर पूछा तो रुखसाना ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हां, बाथरूम में नहा रहे हैं. आज हम लोग पिक्चर देखने जा रहे हैं.’’

रुखसाना ने अभी चाय का पानी गैस पर चढ़ाया ही था कि इच्छा की आवाज उस के कान में पड़ी, ‘‘भाभी, मैं सोनी बेटी को चौकलेट दिलवाने के लिए दुकान पर ले जा रहा हूं.’’

‘‘अच्छा.’’ रुखसाना ने अंदर से ही कहा और चाय बनाने में व्यस्त हो गई.

चाय बनी तब तक सोनू भी नहा कर कमरे में आ गया. उसे सोनी नजर नहीं आई तो उस ने रुखसाना से पूछा, ‘‘सोनी कहां है?’’

‘‘इच्छा आया है, वही उसे चौकलेट दिलाने दुकान पर ले गया है. चाय भी उसी ने बनवाई है.’’ चाय की ट्रे टेबल पर रखते हुए रुखसाना बोली.

तैयार होने के बाद सोनू ने चाय पी ली लेकिन इच्छा सोनी को ले कर नहीं लौटा था. तब सोनू ने पत्नी से झल्ला कर पूछा, ‘‘चाय ठंडी हो रही है, कहां चला गया यह इच्छा?’’

‘‘चौकलेट लेने को कह कर गया है. अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.’’ रुखसाना के स्वर में परेशानी उभर आई, ‘‘दुकान भी ज्यादा दूर नहीं है.’’

‘‘तुम देख आओ रुखसाना, हमें फिल्म के लिए देर हो जाएगी.’’ सोनू ने कहा तो रुखसाना घर से निकल कर मोहल्ले की परचून वाली दुकान पर पहुंच गई. वह जब भी आता था, उसी दुकान से सोनी को चौकलेट दिलाता था.

उस दुकान पर इच्छा और उस की बेटी नहीं दिखी तो उस ने दुकानदार से पूछा. दुकानदार रुखसाना की बेटी सोनी को जानता था. वह दुकान पर आई नहीं थी, इसलिए उस ने मना कर दिया.

‘आखिर वह सोनी को ले कर किस दुकान पर गया है’, बुदबुदाते हुए वह दूसरी दुकान पर गई.

इस तरह एकएक कर के उस ने मोहल्ले की सारी दुकानें देख डालीं, पर इच्छा कहीं भी नजर नहीं आया. बाद में थकहार कर वह उदास चेहरा ले कर घर लौट आई. उस ने पति को बताया, ‘‘इच्छा मोहल्ले की किसी दुकान पर नहीं है. पता नहीं वह बेटी को ले कर कहां गया है.’’

इतना सुनते ही सोनू झल्ला उठा, ‘‘यह आज हमारा प्रोग्राम चौपट करवा देगा. तुम्हें उस के साथ बेटी को भेजना ही नहीं चाहिए था.’’

‘‘वह जब भी आता था तो सोनी को चौकलेट दिलाने दुकान पर ले जाता था. मैं ने सोचा 5-10 मिनट में आ ही जाएगा, इसलिए उसे जाने दिया.’’ वह बोली, ‘‘आप देख आइए, कहीं किसी परिचित से खड़ा बतिया तो नहीं रहा.’’

‘‘देख कर आता हूं.’’ कह कर सोनू इच्छा की तलाश में निकल गया. सोनू ने भी मोहल्ले की सभी दुकानें देख डालीं. इस के अलावा उस ने लोगों से इच्छा और अपनी बेटी सोनी के बारे में मालूम किया पर उन का कहीं पता नहीं लगा. बेटी को ले कर उस की घबराहट बढ़ने लगी. घर से निकले हुए आधा घंटा बीत चुका था. उसे अब अहसास होने लगा था कि इच्छा कुछ गड़बड़ कर गया है. परेशान हालत में वह घर लौटा तो रुखसाना भी घबरा कर रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपास की औरतें भी उस के यहां आ गईं.

सोनू की आंखें भी बारबार नम हो रही थीं. इच्छा को मोहल्ले के सभी लोग जानते थे क्योंकि वह था तो लड़का पर हावभाव और स्वभाव लड़कियों की तरह था. और तो और वह जनाने कपड़े पहन कर किन्नरों के साथ रहता था. वह सोनी को क्यों ले गया, इस बात को कोई भी नहीं समझ पा रहा था. मोहल्ले के लड़के भी इच्छा को ढूंढने के लिए इधरउधर निकल पड़े. 2 घंटे बीतने के बाद भी जब वह नहीं मिला तो यह विश्वास हो गया कि इच्छा ने किसी योजना के तहत ही सोनी को गायब किया है. वह योजना फिरौती या फिर गलत नीयत में से कोई एक हो सकती थी.

सोनू की हैसियत फिरौती की रकम देने की नहीं थी, इसलिए सभी को यह शंका थी कि इच्छा ढाई साल की मासूम के साथ कुछ गलत हरकत न कर बैठे. जमाना है भी बहुत खराब. हवस की आग में जल रहे दुराचारियों के लिए क्या बुजुर्ग और क्या मासूम. हवस का कीड़ा उन्हें अंधा जो बना देता है.

रुखसाना और सोनू की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें, क्या न करें. आखिर तय हुआ कि उन्हें पुलिस थाने में जा कर इस घटना की जानकारी दे देनी चाहिए. अभी यह विचार बना ही था कि किसी परिचित ने 100 नंबर पर फोन कर के इस घटना की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. सोनू अपनी पत्नी रुखसाना और ढाई साल की बेटी सोनी के साथ दिल्ली के मध्य जिला के पहाड़गंज क्षेत्र के  पानदरीबा में किराए पर रहता था. करीब 4 साल पहले वह यहां आया था.

गुजरबसर के लिए उस ने यहीं पर पटरी लगानी शुरू कर दी थी. रुखसाना भी घर का काम निपटा कर उस के काम में हाथ बंटाती थी. इसी किराए के मकान में रुखसाना ने सोनी को जन्म दिया था. 20 साल का इच्छा उर्फ राकेश उर्फ फलक मूलरूप से राजस्थान के जोधपुर जिले का रहने वाला था. दिल्ली में वह कई सालों से रह रहा था. यहां वह किन्नरों के साथ लड़की की वेशभूषा में घूमता रहता था. किन्नर जहां भी नेग लेने जाते, वह उन के साथ जाता.

पहाड़गंज की पानदरीबा बस्ती में रहने वाले किन्नरों के पास भी उस का आनाजाना था. यहीं उस की पहचान सोनू और रुखसाना से हुई थी. बाद में वह उन का घनिष्ठ बन गया था. इच्छा जब भी रुखसाना के घर जाता तो उस की बेटी सोनी को चौकलेट दिलवाने के लिए पास की दुकान पर ले जाता था. यही कारण था कि आज जब शाम को इच्छा आया तो रुखसाना ने उसे सोनी को ले जाने से इनकार नहीं किया. रुखसाना को क्या मालूम था कि इच्छा आज उन के विश्वास को तारतार कर देगा.

रुखसाना का रोरो कर बुरा हाल था. जब उन की गली के सामने पुलिस वैन आ कर रुकी, रुखसाना विलाप ही कर रही थी. संग तराशान चौकीइंचार्ज एसआई देवेंद्र प्रणव 2 कांस्टेबलों के साथ रुखसाना के कमरे पर पहुंचे. सोनू भी वहीं मौजूद था. सोनू और उस की पत्नी ने एसआई देवेंद्र प्रणव को बेटी के गायब होने की बात विस्तार से बता दी.

‘‘इच्छा कहां रहता है?’’ एसआई ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस का घर नहीं देखा.’’ सोनू बोला.

‘‘रुखसाना, क्या तुम ने इच्छा का घर देखा है?’’ एसआई प्रणव ने रोती हुई रुखसाना से पूछा.

‘‘नहीं जी, वह कहां रहता है, मैं नहीं जानती.’’ रुखसाना रोते हुए बोली.

‘‘तुम लोग कब से जानते हो उसे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘यही कोई 3-4 साल से साहब. वह इसी मोहल्ले में रहता होगा. क्योंकि 2-3 दिन में उस की हम से मुलाकात होती रहती थी.’’ सोनू ने बताया.

इस के बाद उन्होंने वहां मौजूद लोगों से पूछा, ‘‘क्या तुम में से किसी ने इच्छा का घर देखा है?’’

इस प्रश्न पर सभी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. इस से जाहिर हो रहा था कि उन में से कोई भी इच्छा के घर के बारे में नहीं जानता था. पुलिस के लिए यह एक हैरान कर देने वाली बात थी. इच्छा अगर इसी बस्ती में रहता है तो कोई उस के घर का पता क्यों नहीं जानता. एसआई प्रणव ने साथ आए एक कांस्टेबल को इच्छा के घर का पता लगाने के लिए भेज दिया और सोनू से इच्छा के हुलिए तथा अन्य जानकारी जुटाने में लग गए.

सोनू ने उन्हें इच्छा का हुलिया बताने के बाद यह जानकारी दी कि वह ज्यादातर किन्नरों के साथ रहता है. उन के साथ ही घूमता है. एसआई देवेंद्र प्रणव सोनू और रुखसाना को ले कर थाने लौट आए. देवेंद्र प्रणव उन दोनों को थानाप्रभारी इंद्रकुमार झा के कक्ष में ले गए. रुखसाना और सोनू से बात करने के बाद थानाप्रभारी ने सोनू की तरफ से इच्छा के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज करवा दी. फिर तसल्ली दे कर रुखसाना और सोनू को घर भेज दिया.

उन के जाने के बाद थानाप्रभारी ने एसआई देवेंद्र से इस बारे में कुछ विचारविमर्श किया और मामले की जानकारी डीसीपी संदीप सिंह रंधावा को दे दी. चूंकि मामला अपहरण का था, इसलिए डीसीपी रंधावा ने उसी समय श्री झा को आवश्यक निर्देश दे कर इस मामले को जल्द से जल्द निपटाने का आदेश दिया. थानाप्रभारी ने एसआई देवेंद्र के साथ इस केस पर काम करना शुरू कर दिया तो पता चला कि इच्छा के पास कोई मोबाइल फोन नहीं है. यदि होता तो उस के सहारे उस तक पहुंचा जा सकता था. अब दूसरा रास्ता था किन्नरों से पूछताछ कर के. चूंकि वह किन्नरों के साथ रहता था इसलिए किन्नरों द्वारा ही उस के बारे में जानकारी मिलने की उम्मीद थी.

देवेंद्र पुन: पानदरीबा पहुंच गए. उन्होंने लोगों से बातचीत कर यह पता लगा लिया कि उस इलाके में किन्नर कहां रहते हैं. उन्होंने किन्नरों से इच्छा के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश शुरू कर दी. उन्हें उन में से ऐसा कोई किन्नर नहीं मिला जो इच्छा के निवास स्थान के बारे में जानता हो.

आधी रात हो चुकी थी. इतनी सर्द रात में लोगों से पूछताछ करना उचित नहीं लगा इसलिए वह थाने लौट आए. अगले दिन तैयार हो कर वह थाने पहुंचे. थानाप्रभारी इंद्रकुमार झा थाने में ही रुके हुए थे. एसआई देवेंद्र ने उन्हें अपनी जांच की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने आगे की जांच के लिए 4 कांस्टेबलों की एक टीम बनाई. थानाप्रभारी से दिशानिर्देश ले कर एसआई देवेंद्र टीम के साथ पानदरीबा पहुंच गए. उन्होंने अपनी पूछताछ उसी जगह से शुरू की, जहां पर छोड़ी थी.

2 घंटे की मेहनत के बाद उन्हें कुछ कामयाबी मिली. एक कांस्टेबल को चांदनी नाम का एक किन्नर मिला जो इच्छा को पहचानता था. चांदनी किन्नर मूलरूप से कानपुर का रहने वाला था. उस ने बताया कि इच्छा उर्फ राकेश त्रिलोकपुरी की झुग्गियों में रहता है. उस ने इच्छा का एक रंगीन फोटो भी पुलिस को दे दिया. एसआई देवेंद्र प्रणव टीम के साथ चांदनी किन्नर को ले कर त्रिलोकपुरी पहुंच गए. पर वह अपनी झुग्गी में नहीं मिला. तब पुलिस ने उस की आसपास तलाश की.

काफी भागदौड़ के बाद आखिर शाम को इच्छा पकड़ में आ गया. उस समय वह अपना हुलिया बदल कर बाजार में घूम रहा था. पर उस के साथ सोनी नहीं थी. पूछने पर उस ने बताया कि वह सोनी को बेचने की फिराक में था. फिलहाल उस ने उसे त्रिलोकपुरी में ही अपनी मौसी के घर में रखा है. पुलिस उसे ले कर उस की मौसी के यहां पहुंची. सोनी वहीं पर मिल गई. पुलिस ने सब से पहले सोनी को अपने कब्जे में लिया. उस की मौसी ने बताया कि इच्छा इस बच्ची को अपने दोस्त की बेटी बता कर यहां कुछ समय के लिए छोड़ गया था. इच्छा का इरादा क्या था, वह नहीं जानती.

पुलिस इच्छा को हिरासत में ले कर पहाड़गंज थाने लौट आई. यहां इच्छा से सख्ती से पूछताछ शुरू हुई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस ने बताया कि वह इस से पहले किन्नर वेश में 3 और बच्चों का अपहरण कर के उन्हें बेच चुका है. किन्नर तो वह दिखावे के लिए बना था. इस की वजह यह थी कि किन्नरों के साथ उसे मोहल्ले में घूमने में दिक्कत नहीं होती थी और कोई उस पर शक भी नहीं करता था. किन्नर होने की सहानुभूति बटोर कर वह छोटी बच्ची के मांबाप से दोस्ती गांठता फिर उन का विश्वास जीतने के बाद मौका पा कर उन की बच्ची ले उड़ता.

थानाप्रभारी इंद्रकुमार झा ने रुखसाना और सोनू को थाने बुला कर उन की बेटी सोनी उन के हवाले कर दी. बेटी को सुरक्षित पा कर दोनों खुश हो गए. 24 घंटे के अंदर इस केस को हल करने वाली टीम को डीसीपी संदीप सिंह रंधावा ने सराहना की. बच्ची का अपहरण करने वाले बहरूपिए से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि उस ने कितने बच्चों का अपहरण किया और उन्हें कहां बेचा था. Delhi News

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और सोनी काल्पनिक नाम है.

Gangster : अधूरी रह गई डौन बनने की चाहत

Gangster : ‘‘है लो, एसएचओ कानूनगो साहब बोल रहे हैं?’’ मोबाइल पर आई काल पर किसी अनजान आदमी ने पूछा.

‘‘हां, मैं एसएचओ बोल रहा हूं.’’ फतेहपुर थाने के थानेदार मुकेश कानूनगो ने जवाब दिया.

‘‘एसएचओ साहब, आप के मतलब की एक सूचना है.’’ दूसरी ओर से काल करने वाले ने कहा.

‘‘आप कौन बोल रहे हो और सूचना क्या है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘एसएचओ साहब, आप आम खाओ, पेड़ मत गिनो.’’ काल करने वाला बोला, ‘‘सूचना यह है कि बदमाश अजय चौधरी, जगदीप उर्फ धनकड़ और कैलाश नागौरी वगैरह फतेहपुर में मंडावा रोड स्थित बेसवा गांव के पास पर आ रहे हैं.’’

सूचना देने वाले ने अपनी बात कह कर बिना नाम, परिचय बताए फोन काट दिया. थानेदार कानूनगो ने पलट कर उसी नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने काल रिसीव नहीं की.

यह बात बीते 6 अक्तूबर की रात 11 बजे के आसपास की है. उस समय राजस्थान में सीकर जिले के थाना फतेहपुर के थानेदार मुकेश कानूनगो अपने मातहतों को निर्देश दे कर रात की गश्त पर निकलने वाले थे. निकलने से कुछ देर पहले ही उन के मोबाइल पर यह काल आई थी.

कानूनगो को पता था कि अजय चौधरी गैंगस्टर है और कई बड़ी वारदातें कर चुका है. अजय को फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने का शौक था. कुछ समय पहले अजय की हिस्ट्रीशीटर मनोज स्वामी से खटपट हो गई थी. उस ने मनोज स्वामी को देख लेने की धमकी दी थी. तभी से अजय उस की हत्या करने की फिराक में था.

मनोज ने पुलिस को अपनी जान पर मंडराते खतरे के बारे में बता दिया था. पुलिस ने बदमाशों की तलाश के लिए मनोज जैसी दिखने वाली स्कौर्पियो प्राइवेट गाड़ी किराए पर ले रखी थी. यह गाड़ी थाने के बाहर ही खड़ी थी.

दरअसल, पुलिस को अजय चौधरी और उस के साथियों के फतेहपुर में होने की सूचना 2-3 दिन से मिल रही थी. पुलिस लगातार भागदौड़ कर उन की तलाश भी कर रही थी, लेकिन वे पकड़ में नहीं आ पा रहे थे.

थानाप्रभारी ने सोचा कि अजय चौधरी के फतेहपुर इलाके में घूमने की सूचना सही है तो वह कोई अपराध भी कर सकता है, इसलिए उस की तलाश की जाए. अगर वह पकड़ में आ गया तो कोई बड़ा अपराध नहीं हो सकेगा.

यही सोच कर थानाप्रभारी कानूनगो ने अपनेसाथ 4 कांस्टेबल रामप्रकाश, रमेश, शिव भगवान और सांवरमल को लिया और थाने के बाहर खड़ी स्कौर्पियो गाड़ी से बदमाशों की तलाश में चल दिए. सभी सादे कपड़ों में थे.

मंडावा रोड पर बेसवा गांव के पास पुलिस को एक बोलेरो आती दिखाई दी. बोलेरो जब पुलिस की स्कौर्पियो के पास से आगे निकली तो ड्राइवर ने बताया कि बोलेरो में अजय है. यह सुन कर इंसपेक्टर ने ड्राइवर से पीछा करने को कहा. पुलिस की स्कौर्पियो बोलेरो का पीछा करने के लिए आगे बढ़ती, उस से पहले ही बोलेरो पलट कर वापस आई और पुलिस की गाड़ी के पास रुक गई.

यह देख कोतवाल मुकेश कानूनगो और सिपाही रामप्रकाश गाड़ी से नीचे उतर गए. इसी दौरान बोलेरो में सवार बदमाशों ने फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग में मुकेश कानूनगो और रामप्रकाश गंभीर रूप से घायल हो गए.

कानूनगो की गरदन में और रामप्रकाश की छाती में गोली लगी थी. फायरिंग होती देख कानूनगो के साथ आए शेष तीनों कांस्टेबल कुछ करते, इस से पहले ही बदमाश फायरिंग करते हुए बोलेरो से भाग गए.

तीनों कांस्टेबल खून से लथपथ थानाप्रभारी और सिपाही को फतेहपुर स्थित अस्पताल ले कर गए, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. कांस्टेबलों ने पुलिस कंट्रोल रूम और अपने थाने को वारदात की सूचना दे दी. थाने से पुलिस अधिकारियों को घटना की जानकारी दी गई.

कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या की सूचना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. सीकर एसपी प्रदीप मोहन शर्मा सहित जिले के तमाम अफसर मौके पर पहुंच गए. जयपुर से आईजी वी.के. सिंह भी रात को ही फतेहपुर आ गए. पुलिस ने बदमाशों को पकड़ने के लिए सीकर, चुरू और झुंझुनू जिले में कड़ी नाकेबंदी करा दी.

इस बीच कोतवाल और कांस्टेबल पर फायरिंग करने के बाद बदमाश बोलेरो से फतेहपुर शहर में नायकों के मोहल्ले में पहुंचे और वहां अब्दुल हन्नान के मकान का दरवाजा खटखटाया.

काफी देर तक दरवाजा नहीं खुलने पर बदमाशों ने परिवार के लोगों को धमकी दी. इस के बाद उन्होंने पहले हवाई फायर किया और फिर दरवाजे पर गोली चलाई. फायरिंग की आवाज सुन कर आसपास के लोग जाग गए तो बदमाश भाग खड़े हुए.

राजस्थान में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के दूसरे दिन हुई इस घटना ने पूरी पुलिस फोर्स के साथ सरकार को भी झकझोर दिया था. इस घटना से शेखावटी में फिर गैंगवार होने की आशंका बढ़ गई थी. इस का कारण यह था कि पुलिस जो प्राइवेट स्कौर्पियो ले कर गैंगस्टर अजय चौधरी और उस के साथियों को पकड़ने के लिए निकली थी, उस गाड़ी को संभवत: अजय ने मनोज स्वामी की समझा था. अजय ने पुलिस के सहयोग से मनोज द्वारा उसे पकड़वाए जाने की आशंका से ही फायरिंग की थी.

दूसरे दिन इस घटना के विरोध में फतेहपुर कस्बा बंद रहा. राजस्थान के डीजीपी ओ.पी. गल्होत्रा, एटीएस के एडीशनल डीजीपी उमेश मिश्रा सहित जयपुर से आला पुलिस अफसर फतेहपुर पहुंच गए.

कोतवाल मुकेश कानूनगो और कांस्टेबल रामप्रकाश के घर वालों ने दोनों को शहीद का दर्जा देने और बदमाशों की गिरफ्तारी की मांग को ले कर शव लेने से इनकार कर दिया. जयपुर के आईजी वी.के. सिंह के आश्वासन पर वे लोग शव लेने पर राजी हुए.

कोतवाल मुकेश कानूनगो का परिवार जयपुर में थाना मुरलीपुरा के पास रहता है. वे मूलत: जयपुर जिले के गोविंदगढ़ के रहने वाले थे. कांस्टेबल रामप्रकाश झुंझुनू जिले में मुकंदगढ़ के घोड़ीवारा के रहने वाले थे. रामप्रकाश के पिता राजेंद्र सिंह सीकर जिले में थाना सदर में एएसआई हैं.

फतेहपुर में पोस्टमार्टम वगैरह की आवश्यक काररवाई पूरी होने के बाद पुलिस अफसरों ने कोतवाल मुकेश कानूनगो और कांस्टेबल रामप्रकाश के तिरंगे में लिपटे शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कोतवाल के शव को आईजी और एसपी ने कंधा दे कर जयपुर के लिए रवाना किया. इस से पहले पुलिस अधिकारियों और सीकर कलेक्टर नरेश ठकराल ने उन के शव पर पुष्पचक्र अर्पित किए. दोनों को गार्ड औफ औनर भी दिया गया.

कोतवाल मुकेश कानूनगो का शव जयपुर में मुरलीपुरा की रामेश्वरम धाम कालोनी स्थित उन के मकान पर पहुंचा, तो परिवार में कोहराम मच गया. दरअसल, मुकेश ने पत्नी मीरा से 7 अक्तूबर को जयपुर स्थित घर आने की बात कही थी, क्योंकि उस दिन ससुराल में उन की सास का श्राद्ध था. यह अलग बात है कि मुकेश 7 अक्तूबर को ही घर पहुंचे, लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए.

अंत्येष्टि की तैयारी के दौरान मुकेश के बैच के साथी पुलिस अधिकारियों और रिश्तेदारों ने सरकार से शहीद का दरजा देने और विशेष सहायता पैकेज देने की मांग की. लोगों में इस बात का भी गुस्सा था कि कोई मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी संवेदना जताने तक नहीं आया था.

बाद में विधायक हनुमान बेनीवाल वहां पहुंचे. उन्होंने दोनों पुलिसकर्मियों को वीरता अवार्ड, अनुकंपा नियुक्ति और स्पैशल पैकेज की मांग की. सीकर एसपी प्रदीप मोहन और जयपुर के डीसीपी वेस्ट अशोक कुमार गुप्ता ने लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

कांस्टेबल सांवरमल की रिपोर्ट पर थाने में मुकेश कानूनगो व कांस्टेबल रामप्रकाश की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया था. इस में फतेहपुर निवासी अजय चौधरी, खांजी का बास निवासी जगदीप उर्फ धनकड़, फतेहपुर निवासी दिनेश उर्फ लारा और जलालसर निवासी ओमप्रकाश उर्फ ओपी को नामजद किया गया था. इन के अलावा 3-4 अज्ञात बदमाश बताए गए थे.

फतेहपुर में पुलिस ने जांचपड़ताल की तो पता चला कि पुलिस दल पर फायरिंग कर के बेसवा गांव की तरफ तेज गति से भागे बदमाशों की गाड़ी थोड़ी दूर आगे जा कर पलट गई थी. वहां उन्होंने अपने साथियों से 3 मोटरसाइकिलें मंगाईं.

इन मोटरसाइकिलों पर अजय और उस के साथी फतेहपुर पहुंचे और नायकों के मोहल्ले में फायरिंग की. पुलिस ने सड़क पर पलटी मिली बोलेरो बरामद कर ली. बोलेरो के अंदर खून के निशान मिले. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि गाड़ी पलटने से बदमाशों को चोटें आई होंगी.

अजय और उस के साथियों को बाइक मुहैया कराने वाले नारीबारी गांव के 2 युवकों को पुलिस ने दूसरे दिन हिरासत में ले कर पूछताछ की तो पता चला कि अजय चौधरी अपने गैंग के साथ चुनाव के लिए आने वाले अवैध पैसे लूटने की फिराक में था. इसीलिए वह फतेहपुर आया था. पैसा लूट कर वह हथियार खरीदना चाहता था.

पुलिस का स्पैशल औपरेशन ग्रुप और आतंकवाद निरोधक दस्ता भी बदमाशों की तलाश में जुटा था. कई संदिग्ध लोगों से पूछताछ की गई. पुलिस की 10 से ज्यादा टीमें लगातार छापे मारती रहीं, साथ ही कड़ी नाकेबंदी कर के जांचपड़ताल भी करती रहीं. लेकिन हत्यारों का कोई ठोस सुराग नहीं मिला.

सरकार के निर्देश पर 9 अक्तूबर की रात करीब साढ़े 10 बजे से सीकर, चुरू व झुंझुनू जिले में इंटरनेट बंद करवा दिया गया. इस के पीछे कारण यह था कि पुलिस को जांच में पता चला था कि अजय चौधरी के गिरोह के बदमाश वाट्सऐप कालिंग, मैसेजिंग और वीडियो कालिंग के जरिए एकदूसरे से बात कर रहे थे.

इस वजह से पुलिस उन की लोकेशन ट्रेस नहीं कर पा रही थी. पुलिस का अनुमान था कि बदमाश शेखावटी इलाके में ही कहीं छिपे हैं, इसलिए आईजी ने संभागीय आयुक्त से बात कर के 3 जिलों में इंटरनेट बंद करवा दिया था.

पुलिस ने थानाप्रभारी व कांस्टेबल की हत्या वाली रात फतेहपुर शहर में नायकों का मोहल्ला में अब्दुल हन्नान के घर फायरिंग करने के मामले में 10 अक्तूबर को 2 बदमाशों दिनेश लारा और कैलाश नागौरी को गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में अब्दुल हन्नान के बेटे मुख्तियार ने अजय चौधरी, दिनेश उर्फ लारा और कैलाश उर्फ नागौरी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

दूसरी ओर, 3 जिलों में इंटरनेट बंद किए जाने के बाद तरहतरह की अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. सोशल मीडिया पर पुलिस द्वारा 2 बदमाशों का एनकाउंटर किए जाने की सूचना वायरल होती रही. बाद में एनकाउंटर की सूचनाओं को गलत बताते हुए पुलिस ने लोगों से अपील की कि सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाली बातें शेयर न करें.

पुलिस की जांचपड़ताल में 11 अक्तूबर को यह खुलासा हुआ कि अजय चौधरी और उस के गिरोह ने कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या में जिस बोलेरो का इस्तेमाल किया था, वह चुरू जिले के श्रवण के नाम थी. श्रवण ने यह गाड़ी चुरू के ही एक व्यक्ति को बेच दी थी.

इस तरह यह गाड़ी 9 बार बिक चुकी थी, लेकिन किसी भी खरीदार ने गाड़ी के कागजात व आरसी अपने नाम ट्रांसफर नहीं करवाए थे. केवल स्टांप पेपर पर इकरारनामे के आधार पर गाड़ी की खरीदफरोख्त होती रही. फिलहाल यह बोलेरो फतेहपुर के एक व्यक्ति के पास थी. पुलिस ने उस की तलाश की तो वह फरार हो गया.

अब्दुल हन्नान के घर फायरिंग वाले मामले में गिरफ्तार दिनेश उर्फ लारा और कैलाश उर्फ नागौरी को पुलिस ने 11 अक्तूबर को अदालत में पेश कर के 5 दिन के रिमांड पर ले लिया. पूछताछ में इन के हरियाणा सहित राजस्थान के कई जिलों के अपराधियों से संपर्क का पता चला.

कोतवाल व कांस्टेबल की हत्या के आरोपी पकड़ में न आए तो सीआईडी अपराध शाखा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने 12 अक्तूबर को 4 आरोपियों पर इनाम घोषित कर दिया.

इन में मुख्य आरोपी अजय चौधरी और जगदीप उर्फ धनकड़ पर 40-40 हजार रुपए और ओमप्रकाश उर्फ ओपी व अनुज उर्फ छोटा पांडिया पर 20-20 हजार रुपए का इनाम रखा गया. इसी के साथ इन बदमाशों के पोस्टर सीकर, चुरू व झुंझुनू जिलों के अलावा कई अन्य स्थानों पर लगवाए गए.

इन में झुंझुनू जिले के मंडावा निवासी अनुज उर्फ छोटा पांडिया का नाम गिरफ्तार आरोपी दिनेश उर्फ लारा से पूछताछ में सामने आया था.

कोतवाल व कांस्टेबल की हत्या की वारदात में अनुज मुख्य आरोपी अजय के साथ था. अनुज का पहला भी आपराधिक रिकौर्ड था. आजकल वह फतेहपुर में अपनी ननिहाल में रहता था. पहले वह पांडिया गैंग से जुड़ा हुआ था, लेकिन बाद में अजय चौधरी के साथ जुड़ गया था. वह अजय का खास गुर्गा और हथियार चलाने में माहिर था.

दिनेश उर्फ लारा से पूछताछ में पुलिस को अजय, जगदीप और अनुज के कई ठिकानों का पता चला. इस पर पुलिस ने दिल्ली, हरियाणा सहित राजस्थान के शहरों से ले कर गांव ढाणी तक विभिन्न स्थानों पर छापे मारे, लेकिन घटना के एक सप्ताह बाद भी पुलिस के हाथ खाली ही रहे.

बदमाशों के संबंध में सूचना मिलने पर राजस्थान एटीएस के एडिशनल एसपी बजरंग सिंह अपनी टीम के साथ 12 अक्तूबर की शाम जयपुर से पुणे के लिए रवाना हुए. जयपुर स्थित एटीएस मुख्यालय से पुलिस इंसपेक्टर मनीष शर्मा और राजेश दुनेजा लगातार उन को तकनीकी सहयोग दे रहे थे.

पुणे पहुंच कर 3-4 जगह दबिश देने के बाद 14 अक्तूबर को तड़के पुलिस टीम ने रामपाल जाट को पकड़ लिया. रामपाल जाट भी मुकेश कानूनगो और रामप्रकाश की हत्या में शामिल था. पूछताछ में उस ने बताया कि अजय और जगदीप नेपाल जाने की बात कह कर 13 अक्तूबर की रात मुंबई चले गए थे.

यह जानकारी मिलने पर एडिशनल एसपी बजरंग सिंह बिना समय गंवाए पुणे से रवाना हो कर 14 अक्तूबर की सुबह करीब 8 बजे मुंबई पहुंच गए. मुंबई में रामपाल को उन्होंने पहले से आई हुई जयपुर रेंज की पुलिस टीम के हवाले कर दिया. फिर सीकर जिले के नवलगढ़ के डीएसपी रामचंद्र मूंड और सीआई महावीर को ले कर मुंबई एटीएस व क्राइम ब्रांच के साथ दादर रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अजय व जगदीप को दादर स्टेशन पर कोलकाता जाने वाली ट्रेन से पकड़ा गया.

तीनों आरोपियों को पुलिस मुंबई व पुणे से ले कर 15 अक्तूबर को जयपुर पहुंची. बाद में पुलिस इन्हें कड़े सुरक्षा घेरे में सीकर लाई. इधर पुलिस ने एक अन्य आरोपी आमिर को फतेहपुर के कोलीड़ा गांव से पकड़ा. वह अजय के गैंग का मुख्य चालक था. उस दिन भी वह अजय के साथ था और बोलेरो चला रहा था. पुलिस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह थी—

अजय चौधरी राजस्थान में शेखावटी का डौन बनने के लिए हिस्ट्रीशीटर मनोज स्वामी की हत्या करना चाहता था. 6 अक्तूबर की रात मनोज की स्कौर्पियो देख कर ही अजय अपने साथियों के साथ बोलेरो से वापस लौट आया था. स्कौर्पियो में मनोज के होने की संभावना के चलते अजय और उस के साथियों ने स्कौर्पियो से उतरे फतेहपुर इंसपेक्टर मुकेश कानूनगो व कांस्टेबल रामप्रकाश पर फायरिंग की थी. अजय को यह पता नहीं था कि वे लोग पुलिस वाले हैं.

उस समय सभी पुलिस वाले सादे कपड़ों में थे और मनोज स्वामी जैसी ही स्कौर्पियो में थे. अजय और उस के साथियों को दूसरे दिन पता चला कि उन्होंने जिन लोगों को गोली मारी थी, वे पुलिस वाले थे.

इंसपेक्टर और कांस्टेबल को गोली मारने के बाद अजय अपने साथियों के साथ बोलेरो से तेजीसे भागा तो इन लोगों की गाड़ी पलट गई. इस से जगदीप के हाथ में फ्रैक्चर आ गया और रामपाल को चोटें आईं. अजय व लारा बाइक मंगवा कर वहां से फतेहपुर चले गए.

आमिर व ओमप्रकाश उर्फ ओपी नवलगढ़ की तरफ गए, जबकि रामपाल व जगदीप पास में ही रामपाल की बहन के घर छोटी बिड़ौदी चले गए. बहन के घर से दोनों नवलगढ़ पहुंचे और अपना इलाज कराया. बाद में बाइक पर कच्चे रास्तों से सीकर जिले के नीमकाथाना पहुंचे. नीमकाथाना से ट्रेन द्वारा ये लोग अहमदाबाद गए और फिर पुणे. पुणे से जगदीप अजय के साथ मुंबई चला गया और रामपाल वहीं रह गया. रामपाल को पुलिस ने पुणे से पकड़ा.

दूसरी तरफ अजय 7 अक्तूबर को फतेहपुर से बस से सीकर आया. सीकर से जयपुर हो कर वह बस से पहले दिल्ली फिर फरीदाबाद पहुंचा. उस ने फरीदाबाद में पढ़ाई की थी, इसलिए फरीदाबाद में उस के कई दोस्त थे. फरीदाबाद से वह पुणे गया.

पुलिस उन के मोबाइल नंबर ट्रेस न कर सके, इस के लिए वे वाट्सऐप कालिंग करते थे. मोबाइल में सिम का इस्तेमाल करने के बजाए ये लोग इंटरनेट के लिए डोंगल का इस्तेमाल करते थे. इस के अलावा ट्रेन में यात्रियों या सड़क पर राहगीरों से मोबाइल मांग कर वाईफाई का इस्तेमाल करते थे.

पुणे में ये लोग दिन में मंदिरों में रहते थे और रात को किराए के फ्लैट में चले जाते थे. अजय ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. उस ने अपने बाल छोटे करवा लिए थे और क्लीन शेव रहने लगा था.

बाद में पुलिस ने 16 अक्तूबर को एक अन्य आरोपी ओमप्रकाश उर्फ ओपी को गिरफ्तार कर के उस से एक पिस्टल बरामद की. वह घटनास्थल से 5 किलोमीटर दूर जलालसर गांव में खेतों में छिपा रहा था. यहां तक कि वह अपने घर पर भी गया था, जबकि पुलिस उसे पूरे राजस्थान और हरियाणा में ढूंढ रही थी. वह अपने पास मोबाइल नहीं रखता था, इसलिए पुलिस को उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी.

इसी दिन अनुज उर्फ छोटा पांडिया को पुलिस ने भीलवाड़ा से गिरफ्तार कर लिया. वह अहमदाबाद से भीलवाड़ा आया था. अहमदाबाद में उस के परिवार का ट्रांसपोर्ट का काम है. वारदात के बाद वह फतेहपुर से सीकर आया और वहां से जयपुर चला गया. जयपुर से ट्रेन द्वारा वह अहमदाबाद चला गया था.

मुख्य आरोपी अजय ने सीकर की मोहन कालोनी में अपने मामा बलबीर के घर हथियार छिपा कर रखे थे. पुलिस ने इस मकान से 2 देसी कट्टे और 14 कारतूस बरामद किए. साथ ही बलबीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लारा के घर से भी हथियार बरामद किए गए. रामपाल और अनुज उर्फ छोटा पांडिया के ठिकानों से भी 2 देसी कट्टे व कारतूस बरामद किए गए.

सवाल यह है कि कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या की घटना के बाद राजस्थान की पूरी पुलिस फोर्स सक्रिय हो गई थी. जगहजगह कड़ी नाकेबंदी और जांचपड़ताल की जा रही थी. इस के बावजूद आरोपी फतेहपुर से नवलगढ़ चले गए, जहां उन्होंने इलाज करवाया. फिर नीमकाथाना में घूमते रहे.

वे आराम से सीकर, जयपुर, दिल्ली, फरीदाबाद, पुणे व मुंबई पहुंच गए. लेकिन पुलिस ने उन्हें कहीं भी रोकाटोका नहीं. उन की मोबाइल पर भी आपस में बातचीत होती रही, फिर भी पुलिस उन की लोकेशन एक सप्ताह तक नहीं ढूंढ सकी.

Gangster : शिकंजे में सुपर लेडी तस्कर

Gangster : राजस्थान के जिला जोधपुर के पाल बाईपास स्थित शहर के सब से महंगे कहे जाने वाले रिहायशी इलाके पार्श्वनाथ सिटी के दक्षिणपश्चिम दिशा की ओर से दाखिल होते ही निचले तल में बेरीकैड्स से घिरी विशाल चौमंजिला इमारत अपनी भव्यता से ही नहीं चौंकाती थी, बल्कि इस बात का अहसास कराती थी कि निश्चित रूप से यह किसी बड़े और रसूखदार आदमी का मकान है. वह जिस रसूखदार महिला का मकान था, उस का नाम सुमता विश्नोई था. मंगलवार 11 अक्तूबर, 2016 को नवरात्र खत्म होने पर आयोजित पूजाअर्चना में मेहमानों की आवाजाही को ले कर इमारत के बाहर और भीतर अच्छीखासी गहमागहमी थी.

दोपहर लगभग 2 बजे नवरात्र पूजन के बाद जब सुमता अपने मेहमानों की खातिरदारी में लगी थी, तभी एकाएक वहां पसरी चहलपहल को जैसे काठ मार गया. मेहमानों के खिले और ठहाके लगाते चेहरों पर एकाएक बदहवासी सी छा गई. महफिल की इस रौनक को बदमजा करने वाली उस शख्सियत का नाम था अर्जुन सिंह, जो शहर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त थे.

वह बड़ी लापरवाही से विशाल ड्राइंगरूम के महंगे कालीन को रौंदते हुए सातवें आश्चर्य की तरह सुमता विश्नोई के सामने आ खड़े हुए थे. हतप्रभ सुमता की चौकस निगाहें पहले सीसीटीवी स्क्रीन पर गईं, जो सलेट की तरह साफ पड़ी थी. इस के बाद उस की भेदती निगाहें अपने बौडीगार्ड और सब से विश्वसनीय सहयोगी प्रदीप विश्नोई के चेहरे पर जा कर अटक गईं, जो असहाय निगाहों से उसी की तरफ देख रहा था.

सुमता के चेहरे पर हैरानी के भाव आए बिना नहीं रह सके. क्योंकि बंगला पूरी तरह से हाईटेक था. उस के एक कमरे से तकनीकी उपकरणों एस्कौर्टिंग तथा पायलटिंग सरीखे ‘एप’ की मदद से इमारत में किसी के भी दाखिल होने को ले कर चौकस नजर रखी जा रही थी. इस के बावजूद बंगले में पुलिस आ गई थी और किसी को भनक तक नहीं लगी थी. सीसीटीवी की स्क्रीन पर भी किसी के भीतर आने की झलक तक नहीं दिखी थी.

सुमता का सब से बड़ा ‘सुरक्षा चक्र’ टूट चुका था. इस का मतलब साफ था कि कोई घर का भेदी पलीता लगा गया था. उस का चेहरा जर्द पड़ चुका था. लेकिन उस ने समय की नजाकत को फौरन भांप लिया था और अगले ही पल चेहरे का तनाव दूर करते हुए भरपूर आत्मविश्वास के साथ एडीसीपी अर्जुन सिंह से नजरे मिलाते हुए पूछा, ‘‘आप से सिर्फ एक बात पूछूंगी औफिसर कि आप मुझ तक पहुंचे कैसे?’’

अर्जुन सिंह के कठोर चेहरे पर एक पल के लिए कई रंग आए और गए, लेकिन अगले ही पल चेहरे की कठोरता मुसकराहट में बदल गई. किसी गहरे रहस्य को उजागर करने के अंदाज में उन्होंने कहा, ‘‘आप के जीपीएस सिस्टम में लगी ‘सिम’ को जब हम ने ‘टै्रस’ किया तो उसे मौनीटर करने वाले नंबर और उस से बात करने वाले दूसरे लोगों के नंबर हमारे सामने आ गए. जब उन नंबरों को खंगाला गया तो उस से जो नाम सामने आया, मैं गलत नहीं हूं तो वह नाम आप का था.’’

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मारवाड़ी लिबास में चेहरे पर हल्का घूंघट डाले किसी कुलीन परिवार की सुलक्षणा बहूबेटी की तरह नजर आने वाली महिला के रूप में 3 राज्यों की कुख्यात तस्कर लेडी डौन के रूप में कल्पना करने से भी हिचक रहे अर्जुन सिंह अब सुमता के जवाब से पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे थे कि उन्होंने प्रदेश की सब से बड़ी शातिर महिला तस्कर को पहचानने में कहीं कोई गलती नहीं की थी.

अर्जुन सिंह ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए पुलिस की गिरफ्त में आई लेडी डौन की उत्सुकता को मिटाना जरूरी समझा. उन्होंने कहा, ‘‘पहले तो मैं तुम्हारे हौसले की दाद देना जरूरी समझता हूं कि शुक्रवार 7 अक्तूबर, 2016 को यानी 4 दिनों पहले डोडापोस्त से भरी गाड़ी पकड़े जाने के बाद भी तुम्हारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा और न तुम ने भागने की कोशिश की और न छिपने की. क्योंकि तुम्हें तस्करी के अपने ‘फूलप्रूफ’ सिस्टम पर पूरा भरोसा था कि पुलिस चाहे जितनी भी गहरी जांच कर ले, तुम्हारी छाया तक को नहीं छू सकती.’’

अर्जुन सिंह ने पस्त होते सुमता के चेहरे पर एक नजर डाल कर आगे कहा, ‘‘कल यानी मंगलवार 10 अक्तूबर को पुलिस को जोधुपर की तरफ से आने वाली फौर्च्यूनर गाड़ी में डोडापोस्त होने की जानकारी मिली तो गाड़ी को लूणी-काकाणी के पास रोक कर उस की तलाशी ली गई. मालबरामदगी के साथ उस में जीपीएस सिस्टम भी लगा पाया गया. डोडापोस्त के साथ पकडे़ गए तुम्हारे आदमी तो इस बारे में कुछ नहीं बता पाए, क्योंकि वे तो सिर्फ माल सप्लाई करते थे. इस के बाद उन का काम खत्म हो जाता था.

‘‘गाड़ी में लगे जीपीएस सिस्टम ने हमें तुम तक पहुंचा दिया. हम ने जब जीपीएस से ताल्लुक रखने वाली कंपनी से जानकारी जुटाई तो हमें पता चला कि इसे सुमता विश्नोई औपरेट कर रही थी. सूचना सही थी, लिहाजा तुम्हारी वह सोच गलत साबित हो गई कि महंगी टाउनशिप में रिहायश से आपराधिक गतिविधियो ंपर परदा पड़ा रहता है और कोई शक नहीं करता. लेकिन उस में सेंध लग गई.’’

पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) समीर कुमार के निर्देशन में तस्करी के इतने बड़े नेटवर्क का खुलासा होने के बाद पुलिस कमिश्नर अशोक राठौर भी तत्काल मौके पर पहुंच गए थे. सुमीर कुमार के निर्देशन में 50 से अधिक जवानों की टीम ने सुमता विश्नोई के घर छापा मारा था. अर्जुन सिंह, विपिन कुमार और थाना बोरानाडा के थानाप्रभारी अनवर खां छापे की पूरी कमान संभाले थे.

पुलिस टीम ने सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई और उस के विश्वसनीय सहयोगी प्रवीण विश्नोई को 75 ग्राम अफीम और 4 लाख 20 हजार रुपए की नकदी के साथ हिरासत में लिया था. सुमता के विशाल मकान की तलाशी में होने वाले खुलासों ने पुलिस अधिकारियों को बुरी तरह चौंका दिया था.

अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर विपिन शर्मा के अनुसार, सिर्फ चौथी तक पढ़ीलिखी ग्रामीण परिवेश की औरत अपने बैडरूम में बनाए गए जीपीएस कंट्रोल रूम से 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में तस्करी का पूरा नेटवर्क चला रही थी. तलाशी में उस का जो स्मार्ट फोन मिला था, उस से वह करोड़ों की तस्करी का कारोबार करती थी.

नोट गिनने वाली मशीन की बरामदगी ने पुलिस को हैरान कर दिया था कि तस्करी के धंधे से इतनी रकम आ रही थी कि नोट गिनने के लिए उसे मशीन की जरूरत पड़ती थी. इनोवा और फौर्च्यूनर गाड़ी तो पुलिस पहले ही जब्त कर चुकी थी. इस के बाद उस के घर से मिली स्कौर्पियो, वेरना, स्विफ्ट और इंडिगो ने पुलिस के इस शक को और पुख्ता कर दिया था कि सुमता अपने धंधे में रफ्तार और टैक्नोलौजी का बेहतर इस्तेमाल कर रही थी.

पुलिस ने उस के घर से फर्जी आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस के अलावा भारी संख्या में जमीनों के दस्तावेज बरामद किए. इस के अलावा पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत मनोहरलाल, शैतानाराम, घेवरराम तथा शांतिलाल को भी गिरफ्तार किया था.

सुमता को अब इस बात पर पछतावा हो रहा था कि तस्करी के लिए गाडि़यों पर नजर रखने के लिए उस ने जो जीपीएस सिस्टम लगवाया था, वही उस की गिरफ्तारी की वजह बन गया. यही नहीं, किसी प्रकार के खतरे से बचने के लिए वह चुराई गई लग्जरी गाडि़यां ही इस्तेमाल करती थी. लेकिन अब उस का यह भ्रम टूट गया था. अपने घर के बैडरूम से सुमता ने जीपीएस टै्रकर को ‘एप’ के जरिए मोबाइल से कनेक्ट कर रखा था.

सुमता विश्नोई एक बार की सप्लाई के लिए 2 गाडि़यों का इस्तेमाल करती थी. एक गाड़ी में डोडापोस्त होता था तो दूसरी गाड़ी एस्कौर्ट के रूप में 3-4 किलोमीटर आगे चलती थी. अगर कहीं पुलिस चैकिंग का अंदेशा होता था तो पीछे वाली गाड़ी को तुरंत सतर्क कर दिया जाता था. इस मामले में सुमिता गैरों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती थी. एस्कौर्ट गाडि़यों में उस के अपने लोग होते थे.

यही नहीं, सुमता को स्थानीय ड्राइवरों पर भी भरोसा नहीं होता था, इसलिए वह मध्य प्रदेश के ड्राइवरों का इस्तेमाल करती थी. 3 ट्रिप के बाद उस ड्राइवर को हटा दिया जाता था. इस बीच ड्राइवर को इस बात की भनक तक नहीं लग पाती थी कि वह किस के लिए काम कर रहा है. स्थानीय ड्राइवर वह इसलिए नहीं रखती थी, क्योंकि उन से उसे पुलिस और तस्करों के दूसरे गैंग से मुखबिरी का अंदेशा रहता था.

50 तस्करों के गिरोह की मुखिया सुमता अपने इस धंधे में बहुत ज्यादा सतर्कता बरतती थी. उसे पता था कि पुलिस मोबाइल लोकेशन और कौल ट्रैस कर के आसानी से पकड़ सकती है. इसीलिए हर 6 दिन बाद वह गिरोह के सदस्यों के मोबाइल के सिम बदलवा देती थी. सिम खरीदने के लिए फरजी आईडी का उपयोग किया जाता था. पैसों के लेनदेन के लिए उस ने फर्जी नामों से बैंक खाते खुलवा रखे थे.

सुमता ने तस्करी जैसे खतरनाक और जटिल धंधे का इतना बड़ा नेटवर्क कैसे खड़ा  किया, यह बात हैरान करने वाली थी. जबकि इस की वजह यह थी कि वह अखबारों की उन खबरों को गौर से पढ़ती थी, जिन में तस्करों के बारे में लिखा होता था कि पुलिस ने उन्हें कैसे पकड़ा था, उन की कौन सी कमजोरी पुलिस के लिए फायदेमंद बनी थी, पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए कौन से तरीके अपनाए थे, कौन सी कमजोरियों की वजह से वे पुलिस के हत्थे चढ़े थे?

सुमता के बताए अनुसार, तस्करी उस के लिए एक तरह से नशा बन गई थी. यही वजह थी कि कई बार चित्तौड़गढ़ से जोधपुर तक का साढ़े 3 सौ किलोमीटर का फासला उस ने खुद गाड़ी चला कर तय किया था. इस से उसे पता चला कि लग्जरी गाड़ी चलाने वाली महिलाओं पर पुलिस जल्दी शक नहीं करती. उस ने इस का भरपूर फायदा उठाया और प्रदेश में जब भी डोडापोस्त को ले कर पुलिस ने सख्ती की, उस ने खुद गाड़ी चला कर माल पहुंचाया.

सुमता की दिलेरी की इसी बात से पता चलता है कि पुलिस गिरफ्त में होने के बावजूद डरने के बजाय वह मीडिया को डराने से बाज नहीं आई थी. कोर्ट में पेशी के दौरान उस के तेवरों में जरा भी कमी नहीं आई थी. जिस समय उसे रिमांड पर पुलिस के हवाले किया जा रहा था, मीडिया वालों ने उस के फोटो लेने के लिए उसे घेर लिया. इस पर वह बुरी तरह से भड़क उठी और चेतावनी देने वाले अंदाज में बोली, ‘‘कैमरे नीचे कर लो, वरना अभी कोर्ट में हंगामा हो जाएगा.’’

सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई की कहानी वाकई हैरान करने वाली है. बकरियां और गायभैंस चरा कर बामुश्किल जिंदगी गुजारने वाली गांव की सीधीसादी औरत कैसे 3 राज्यों की इनामी तस्कर के रूप में खतरनाक ‘लेडी डौन’ बन गई, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

जोधपुर के ओसियां में एक गांव है बानों का बास. यहां सुनीता, जो अब सुमता के नाम से जारी जा रही है, कभी गायभैंस और बकरियां चराया करती थी. चौथी कक्षा में फेल होने की वजह से वह पढ़ाई छोड़ चुकी थी. पिता किसान थे. सुनीता भले ही गायभैंस चराती थी, लेकिन उस का सपना था कि उस के पास सवारी के लिए अमीरों की तरह महंगी कारों का काफिला हो और बंगलों में ऐशोआराम की जिंदगी जिए.

अच्छे कपड़ों के लिए बचपन में गुल्लक में एकएक रुपए जमा करने वाली सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई के घर में जब पुलिस ने छापा मारा तो तलाशी लेने में पूरा एक दिन लग गया. मकान में बाथरूम से ले कर हर कमरे में एसी लगे थे. सारा फर्नीचर विदेशी था. हाईटेक सिक्योरिटी लौक लगे उस के घर से पुलिस ने 5 लग्जरी कारें बरामद कीं. उस के बैंक एकाउंट में करोड़ों की रकम होने का अंदेशा है.

राजूराम भादू से बाल विवाह के बाद सन 2001 में सुनीता का गौना हुआ था. इस के बाद उसे 2 बेटे हुए. पति के पास कोई रोजगार नहीं था, इसलिए जीवन तंगहाली में गुजर रहा था. पति के लिए नौकरी और बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने की चाहत सन 2010 में उसे गांव से जोधपुर ले आई. शहर में वह किराए के मकान में रहती थी.

सुनीता उर्फ सुमता पति के लिए नौकरी ढूंढ रही थी, तभी किसी रिश्तेदार ने उसे राजूराम ईरोम से मिलवाया. अनपढ़ होने के बावजूद राजूराम को लग्जरी कार में देख कर वह चौंकी. रिश्तेदार से पूछने पर पता चला कि वह गुजरात का अवैध शराब का बहुत बड़ा तस्कर है.

अमीर बनने का राजूराम का यह तरीका उसे इस कदर भाया कि उस ने उस से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. जल्दी ही वह उस के काम करने के तरीके और नेटवर्क को समझ गई. पर राजूराम ने उसे काम देने से मना कर दिया. उस का कहना था कि औरतों को तस्करी जैसे खतरनाक धंधे में नहीं आना चाहिए.

लेकिन एक बार शराब की डिलवरी के लिए एस्कौर्ट वाहन का ड्राइवर नहीं आया तो सुनीता इस काम के लिए अड़ गई. उस ने कहा कि वह कार चलाना जानती है और यह काम अच्छी तरह कर लेगी. सुनीता की जिद पर राजूराम ने उसे काम सौंप दिया. पहली बार में उसे 10 हजार रुपए की कमाई हुई.

फिर क्या था, सुनीता ने शराब से भरी गाडि़यों को नियमित रूप से एस्कौर्ट करना शुरू कर दिया और फिर धीरेधीरे वह राजूराम की पार्टनर बन गई. तस्करी के धंधे में आने के बाद उस के घर तस्करों का आनाजाना शुरू हो गया. इस से ससुराल वालों की बदनामी होने लगी तो उन्होंने उस से नाता तोड़ लिया.

पति ने भी ऐतराज किया तो सुनीता ने उसे ट्रैक्टर दिलवा कर बंगलुरु भेज दिया और खुद पूरी तरह से तस्करी के धंधे में उतर गई. लेकिन जब अंधाधुंध कमाई होने लगी तो खिलाफत करने वाले ससुराल वाले भी उस के साथ आ गए और उस के काम में हाथ बंटाने लगे.

सुनीता ने राजूराम ईरोम का रुझान अपनी ओर होते देखा तो उसे प्रेमजाल में फंसा कर धंधे की कमान अपने हाथों में ले ली. अब तक वह सुनीता से सुमता हो गई थी. उस का दोहरा व्यक्तित्व भले ही चौंकाने वाला था, लेकिन यही उस के कारोबार की बरकत और लोगों को प्रभावित करने का सब से बड़ा हथियार था.

बुधवार 12 अक्तूबर, 2016 को कोर्ट से रिमांड हासिल करने के बाद शाम को जब उसे थाना बोरानाडा लाया गया तो मारवाड़ी पोशाक में चेहरे पर घूंघट डाले सुमता एकदम शांत थी. बेंच पर बैठने की इजाजत ले कर जब वह बैठी तो पूछताछ में उस ने बताया कि तस्करी के कारोबार में पांव रखने से पहले उस ने एक तीर से 2 निशाने साधे.

अपना मैदान खाली करने के लिए उस ने पुलिस की मुखबिरी कर के तस्करी के बड़े घडि़यालों को पकड़वाया. इस से उसे पुलिस का विश्वास हासिल हो गया. रास्ता खुला तो तस्करी के काम में मारवाड़ से ले कर मध्य प्रदेश तक उस की कमाई में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई. बेहिसाब कमाई को देख कर जैसे उसे पंख लग गए.

इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हर दूसरे दिन 2 से 3 क्विंटल डोडापोस्त की सप्लाई से उसे 3 लाख रुपए का मुनाफा होता था. इस तरह हर महीने उसे 45 से 50 लाख रुपए की कमाई होती थी.

कभी पार्श्वनाथ कालोनी के बाहरी इलाके में किराए की टापरी में रहने वाली सुमिता का अपना मकान अब करीब 4 करोड़ का है. उस के बच्चे शहर के प्रतिष्ठित कान्वैंट स्कूल में पढ़ते हैं. ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए उस ने बेटे मनीष के नाम से कंस्ट्रक्शन कंपनी खोल रखी थी.

कारोबार को ले कर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा था. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले उसने तस्करी के धंधे में जमे लोगों को खत्म किया. क्योंकि वह जानती थी कि जब तक वे लोग रहेंगे, वह निश्ंिचत हो कर धंधा नहीं कर पाएगी. इस धंधे में गैंगवार भी होती है. सीधी लड़ाई लड़ने के बजाय उस ने कांटे से कांटा निकालने की जुगत लड़ाई. अपने पार्टनर राजूराम की गैंगवार का नतीजा वह देख चुकी थी.

इसलिए उस ने सीधी लड़ाई लड़ने के बजाय पुलिस को इत्तला दे कर विरोधी तस्करों को पकड़वाया.  इस तरह बिना जंग के ही उस के लिए पूरा मैदान खाली हो गया. जालौर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर और जैसलमेर की डोडापोस्त की सप्लाई आसानी से उस के हाथों में आ गई.

डोडापोस्त की सप्लाई के हिसाब से पश्चिमी राजस्थान बहुत अच्छा इलाका है. यहां लोग इस के लती भी हैं. जिस से सुमिता को काफी लाभ हुआ.

जोधपुर पश्चिम के डीसीपी समीर सिंह के अनुसार, राजस्थान में किसी महिला तस्कर से जुड़ा यह पहला मामला है. अभी तो बहुत कुछ खुलासा होना बाकी है, क्योंकि कई सालों तक ‘लेडी डौन’ सुमिता ने पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर अंधाधुंध कमाई की है. डोडापोस्त की इतनी बड़ी तस्कर को पकड़ लेना जोधपुर पुलिस की एक बहुत बड़ी कामयाबी है. फिलहाल सुमता पुलिस अभिरक्षा में है. देखना यह है कि अभी उस के और कितने किस्सों का खुलासा होता है.

सुनीता उर्फ सुमता ने तस्करी से 6 सालों में करोड़ों की कमाई कर के जो प्रौपटी बनाई है, पुलिस उसे कुर्क कराने का प्रयास कर रही है. इस के लिए पुलिस तस्करी से कमाई गई उस की और उस के रिश्तेदारों की प्रौपटी का पता लगाया जा रहा है. पुलिस उस से और उस के गिरोह से जुड़े तस्करी के कई पुराने लंबित मामलों को भी खोलने का प्रयास कर रही है.

पुलिस एनडीपीएस एक्ट की धारा 68 के तहत सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई के पिछले 6 साल के तस्करी के सारे मामले खंगाल रही है. लूणी थाना क्षेत्र में गत 15 अगस्त, 2016 को पुलिस ने 2 क्विंटल 85 किलोग्राम डोडापोस्त से भरी इनोवा गाड़ी पकड़ी थी, लेकिन तस्कर फरार हो गए थे.

पूछताछ में सुमता ने स्वीकार  किया कि वह इनोवा और उस में भरा डोडापोस्त उसी का था. पुलिस सुमता गिरोह के पूरे नेटवर्क का खुलासा करने के लिए उस के पार्टनर राजूराम ईरोम की तलाश में जुटी है. लेकिन वह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है.

Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Oyo Hotel का रंगीन अखाड़ा

सुषमा की पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पलभर को भी नहीं सोई वह. कभी घर के भीतर चहलकदमी करने लगतीं तो कभी सोचने लगतीं कि मुश्किल की इस घड़ी में क्या करें, किस की मदद लें. उन की आंखों के सामने बारबार पति का चेहरा घूमने लगता. क्योंकि जो मुसीबत उन के सामने आ खड़ी हुई थी, उस में जरा सी लापरवाही उस की मांग का सिंदूर लील सकती थी, मन में यह खयाल आते ही डर के कारण सुषमा का पूरा शरीर सिहर उठता था.

आखिरकार बहुत सोचने के बाद सुषमा ने कठोर फैसला लिया और अपने पति के बौस को फोन कर के पूरी बात बताई. 37 वर्षीय अजय प्रताप सिंह अपनी पत्नी सुषमा के साथ नोएडा के सेक्टर-77 की सुपरटेक केपटाउन सोसाइटी में रहते थे. वह डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) दिल्ली में बतौर रिसर्च साइंटिस्ट तैनात थे. मूलत: उन्नाव के रहने वाले अजय प्रताप 26 सितंबर, 2020 की शाम करीब साढ़े 5 बजे अपनी पत्नी से यह कह कर घर से निकले थे कि घर की जरूरतों का कुछ सामान लेने के लिए मार्किट जा रहे हैं और कुछ देर में वापस लौट आऐंगे.

अजय घर से अपनी होंडा सिटी कार यूपी 14 बीएस 5232 ले कर निकले थे. डेढ़दो घंटे बीत जाने पर सुषमा को चिंता होने लगी कि आखिर अजय ऐसी कौन सी शौपिंग करने के लिए गए हैं कि 2 घंटे से ज्यादा का वक्त बीतने पर भी नहीं लौटे. सुषमा ने अजय का फोन लगाया तो फोन स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन की चिंता बढ़ गई. सुषमा बारबार पति का नंबर मिलाती रहीं, मगर फोन स्विच्ड औफ बताता रहा. इसी तरह करीब ढाई घंटे बीत गए. सुषमा सोच ही रही थी कि ऐसे में क्या करें. अचानक सुषमा के फोन पर एक अंजान नंबर से काल आई तो उस ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि हो सकता है अजय का फोन खराब हो गया हो या उस की बैटरी चली गई हो. संभव है वह किसी का फोन ले कर काल कर रहे हों.

फोन उठाते ही उम्मीद के मुताबिक दूसरी तरफ से अजय की आवाज सुनाई दी, जैसे ही अजय ने ‘हैलो मैं अजय बोल रहा हूं’ कहा तो उस के बाद पूरी बात बिना सुने ही सुषमा ने गुस्से में एक ही सांस में कई सवाल कर डाले, ‘‘अजय, तुम कहां हो… तुम्हारा फोन क्यों बंद है… ऐसी कौन सी शौपिंग करने चले गए कि ढाई घंटे होने को हैं और अब फोन कर रहे हो?’’

‘‘अरे मेरी बात तो सुनो, मैं बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं.’’ दूसरी तरफ से अजय ने सुषमा के सवालों का जवाब देने के बजाए बीच में उस की बात काट कर कहा तो सुषमा के होश उड़ गए. उस ने अटकती सांसों से पूछा, ‘‘मुसीबत…कैसी मुसीबत?’’

‘‘सुषमा मुझे कुछ लोगों ने पकड़ लिया है और एक कमरे में बंद कर रखा है. वे मुझ से बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहे हैं.’’

‘‘कौन लोग हैं वे और उन्होंने तुम्हें क्यों पकड़ा…किस बात के पैसे मांग रहे हैं?’’

घबराहट के कारण सुषमा ने पूरी बात सुने बिना ही सवालजवाब शुरू कर दिए तो अजय ने फिर उस की बात काटी, ‘‘मुझे नहीं पता ये लोग कौन हैं, किसलिए पैसे मांग रहे हैं लेकिन इतना जानता हूं कि ये लोग बहुत खतरनाक हैं और अगर हम ने इन की बात नहीं मानी तो ये लोग मुझे मार देंगे… हो सकता है ये तुम से बात करें. इन की बात सुन लेना बेबी और अगर हो सके तो पूरा कर देना वरना शायद हम दोबारा ना मिल सकें.’’

दूसरी तरफ से फोन कट गया. इस फोन के बाद तो सुषमा को पूरा ब्रह्मांड घूमता नजर आने लगा. उसे सुझाई नहीं दे रहा था कि वह करे तो क्या करे. सुषमा ने उसी नंबर पर कई बार फोन किया, जिस से अजय ने फोन किया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. सुषमा समझ गई कि किसी मुसीबत में फंसने की वजह से ही अजय घर नहीं पहुंचे. अजय की रूआंसी और परेशानी भरी आवाज सुन कर उसे समझ आ गया था कि वह जिन लोगों के चंगुल में हैं, वे सचमुच खतरनाक लोग रहे होंगे. लेकिन मुश्किल यह थी कि अभी तक उसे पूरा मामला समझ नहीं आया था कि उन्होंने अजय को किसलिए बंधक बनाया हुआ है. पैसे क्यों मांग रहे हैं और उन्होंने कितनी रकम मांगी है.

पति के लिए परेशान पत्नी

सुषमा यह सब सोच ही रही थी कि कुछ देर बाद उस के फोन पर फिर से एक अंजान नंबर से काल आई. इस बार नंबर वह नहीं था, जिस से अजय ने बात की थी. सुषमा ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि हो सकता है अजय को बंधक बनाने वाले लोग ही दूसरे नंबर से बात कर रहे हों. सुषमा की शंका सच निकली. फोन पर एक पुरुष ने कड़कती हुई आवाज में कहा कि अजय उन के कब्जे में है और अपने पति से बात करने के बाद वह ये तो समझ ही गई होंगी कि वह जिंदा और सहीसलामत हैं.

दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने धमकी दी कि अगर अगले 24 घंटे में उस ने 10 लाख रुपए का इंतजाम कर के रकम नहीं दी तो शायद उसे उस का पति जिंदा नहीं मिलेगा. फोन करने वाले ने जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम करने के लिए कहा, साथ ही धमकी भी दी कि अगर इस बारे में पुलिस को सूचना दी या कोई और चालाकी की तो उस तक अजय की लाश ही पहुंचेगी. फोन करने वाले ने जब यह कहा कि उन के आदमी हर जगह नजर रख रहे हैं कोई भी चालाकी की तो तुरंत यह खबर उस तक पहुंच जाएगी. यह सुन कर सुषमा का कलेजा मुंह को आ गया. फोन सुनते ही उस ने सुनसान घर में इधरउधर देखा कि कोई आदमी उन के घर में तो नहीं छिपा है.

‘‘देखो भैया, मैं आप की सारी मांग पूरी कर दूंगी लेकिन यह तो बता दो, आप पैसे किस बात के मांग रहे हो… आखिर मेरे हसबैंड ने कौन सी गलती की है? क्या आप का उन से कोई उधार का लेनदेन है?’’

सुषमा ने फोन करने वाले की बात को बीच में काटते हुए हिम्मत जुटा कर सहमते हुए सवाल किया तो दूसरी तरफ से कहा गया, ‘‘मैडम ये नोएडा में रहने का टैक्स है और तुम्हारे पति की ठरक का जुरमाना भी…

‘‘अब ज्यादा सवाल न कर के पैसे का इंतजाम करो… टाइम कम है हमारे पास… रकम कैसे और कहां लेनी है इस के लिए तुम्हें कल फोन करेंगे लेकिन याद रखना हमारे लोग तुम पर नजर रख रहे हैं.’’ कहते हुए दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया.

रात को करीब 10 बजे अजय का अपहरण करने वालों से सुषमा की ये आखिरी बात थी. इसी के बाद से सुषमा की जान गले में अटकी थी और वह पूरी रात बेचैनी से घर के भीतर टहलती रही. उसे बारबार लग रहा था कि कहीं कोई वाकई उस की एकएक गतिविधि पर नजर तो नहीं रख रहा. सोचते-सोचते रात आंखोंआंखों में बीत गई. आखिरकार सुषमा ने सुबह अपने पति के बौस को फोन कर के सारी बात बताई. उन्होंने कहा कि वह घर में रहें, कुछ ही देर में पुलिस पहुंच जाएगी.

ठीक वैसा ही हुआ, जैसा अजय के बौस ने कहा था. सुषमा का घर जिस इलाके में है, वह सैंट्रल नोएडा पुलिस के अंडर में आता है. कुछ ही देर में उस के घर की डोरबैल बजी, उस ने दरवाजा खोला तो सादे लिबास में नोएडा पुलिस के एडीशनल कमिश्नर लव कुमार, सैंट्रल नोएडा पुलिस डीसीपी राजेश कुमार सिंह, एडीशनल कमिश्नर रणविजय सिंह, एसीपी विमल कुमार सिंह और सेक्टर 49 थाने के एसओ सुधीर कुमार सिंह सामने खड़े थे.

दरअसल, सुषमा ने जब अपने पति के बौस को अजय के किडनैप होने की जानकारी और इस की एवज में फिरौती मांगने की बात बताई तो डीआरडीओ की तरफ से नोएडा के कमिश्नर आलोक सिंह को फोन कर के इस मामले में गोपनीय ढंग से काम कर के जल्द से जल्द अजय प्रताप सिंह को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने को कहा गया.

डीआरडीओ का एक्शन

डीआरडीओ देश के सुरक्षा उपकरणों व प्रतिष्ठानों से जुड़ा ऐसा संगठन है जो रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है. अजय प्रताप सिंह इसी संस्था से जुड़े वैज्ञानिक थे. उन के पास संस्था से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी रहती थीं. इसलिए जैसे ही पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी मिली, उन्होंने एडिशनल कमिश्नर लव कुमार को सारी जानकारी दे कर बेहद गोपनीय ढंग से अजय प्रताप को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने का औपरेशन शुरू करने का आदेश दिया. इस के बाद लव कुमार ने तड़के ही तमाम अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई और सभी अफसरों को सादे कपड़ों में अजय प्रताप के घर पहुंचने को कहा.

अधिकारियों ने अपना परिचय देने के बाद जब सुषमा से अजय प्रताप सिंह के अपहरण से जुड़ी सारी जानकारियां मांगी तो उन्होंने वह पूरा घटनाक्रम बयान कर दिया, जो अब तक हुआ था. पुलिस ने सुषमा से वे दोनों नंबर हासिल कर लिए, जिन पर पहले पति अजय प्रताप से बात हुई थी और दूसरी बार अपहर्त्ता ने फोन कर के रकम की मांग की थी. सुषमा वर्मा से पुलिस ने एक लिखित शिकायत भी ले ली. सादे लिबास में पुलिस के कुछ लोगों और महिला पुलिस की कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को सुषमा के पास छोड़ कर पुलिस टीम वापस लौट गई.

सुषमा की शिकायत पर उसी दिन थाना 49 पर भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया. डीसीपी राजेश कुमार सिंह ने एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह की निगरानी में एक विशेष टीम का गठन कर दिया. एसीपी विमल कुमार सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में थाना सेक्टर 49 के थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह के अलावा एसआई विकास कुमार, महिला एसआई प्रीति मलिक, हैड कांस्टेबल प्रभात कुमार, जय विजय, कांस्टेबल सुबोध कुमार, सुदीप कुमार,अंकित पंवार और महिला कांस्टेबल रेनू यादव को शामिल किया गया.

इस के अलावा दूसरी स्टार टू टीम के एसआई शावेज खान तथा जोन फर्स्ट की सर्विलांस टीम के एसआई नवशीष कुमार को शामिल किया गया. सभी टीमों को बता दिया गया था कि मामला बेहद संवेदनशील है, इसलिए बिना विलंब किए और बिना किसी को भनक लगे सावधानी से औपरेशन को अंजाम देना है. गठित की गई टीमों में काम का बंटवारा कर दिया गया कि किसे इस औपरेशन में क्या भूमिका निभानी है. एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने गठित की गई टीमों के साथ कोऔर्डिनेशन का जिम्मा खुद संभाला लिया. सर्विलांस टीम ने सुषमा वर्मा से मिले दोनों मोबाइल नंबरों के साथ अजय प्रताप सिंह के नंबर की काल डिटेल्स निकाली और तीनों नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर निगरानी शुरू कर दी.

स्टार टू की टीम ने फिरौती के लिए अपहरण करने वाले बदमाशों की धरपकड़ और उन के ठिकानों पर छापेमारी का काम शुरू कर दिया. जबकि इस मामले के जांच अधिकारी थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह ने अपने थाने की टीम के साथ सर्विलांस टीम से मिल रही जानकारी के आधार पर धरपकड़ शुरू कर दी. सर्विलांस टीम को पता चला कि शाम को 5 बजे के बाद जब अजय प्रताप सिंह का फोन बंद हुआ था, तो उस से पहले उन्होंने आखिरी बार 3 नंबरों पर बात की थी. उन सभी नंबरों की लोकेशन सेक्टर 41 में आगाहपुर के पास बने ओयो होटल की पाई गई. इतना ही नहीं, फोन बंद होते समय अजय प्रताप के फोन की लोकेशन भी पुलिस को इसी होटल की मिली.

पुलिस को मिली राह

जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन इस पर ठोस काररवाई करने से पहले अधिकारी यह पुष्टि कर लेना चाहते थे कि उक्त होटल से अपहरण करने वालों का कोई वास्ता है या नहीं. क्योंकि अगर सर्विलांस के आधार पर वहां छापा मारा जाता और अजय प्रताप नहीं मिलते तो उन की जान को खतरा हो सकता था. लिहाजा अधिकारियों ने एसओ सुधीर कुमार की टीम के एक तेजतर्रार हैड कांस्टेबल जय विजय सिंह को फरजी ग्राहक बना कर ओयो होटल भेजा. जय विजय सिंह ने सेक्टर 41 के ओयो होटल में पहुंच कर वहां एक कमरा बुक कराया और खुद को काम के सिलसिले में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आया हुआ बताया.

कमरा बुक करने के बाद जब जय विजय ने होटल में चल रही गतिविधियों की निगरानी शुरू की तो दूसरी मंजिल पर बने 2 कमरों के आसपास कुछ संदिग्ध गतिविधियां दिखीं. जय विजय ने होटल की पार्किंग की छानबीन की तो वहां अजय प्रताप सिंह की वह होंडा सिटी कार भी खड़ी दिखाई दी, जिस का नंबर सुषमा वर्मा से मिला था. जय विजय को जब यकीन हो गया कि हो न हो अजय प्रताप को ओयो होटल के अंदर ही छिपाकर रखा गया है तो उस ने अधिकारियों को सूचना दे दी. इस पर पुलिस की तीनों टीमों ने 27 सितंबर की रात को सेक्टर 41 के आई ब्लौक में प्लौट नंबर 64 पर बने ओयो होटल को चारों तरफ से घेर कर छापा मारा. एकएक कमरे की तलाशी ली गई तो पुलिस कमरा नंबर 203 में बंधक बना कर रखे गए अजय प्रताप तक पहुंच गई.

उन के कमरे में 3 लोग मिले, जिन में से एक राकेश कुमार उर्फ रिंकू फौजी निवासी गांव चेहडका, जिला भिवाड़ी, राजस्थान था. दूसरा युवक दीपक पुत्र राजेश कुमार भी इसी गांव का रहने वाला था, जबकि इसी कमरे में एक महिला सुनीता गुर्जर उर्फ बबली मिली जो आगाहपुर गांव में सेक्टर 41 की ही रहने वाली थी. पुलिस ने अचानक उस कमरे में धड़ाधड़ प्रवेश किया और अजय प्रताप को अपने कब्जे में ले लिया. साथ ही कमरे में मौजूद तीनों लोगों को हिरासत में लिया तो सुनीता गुर्जर उर्फ बबली भड़क उठी. उस ने पुलिस को हड़काना शुरू कर दिया, ‘‘औफिसर, इस बदतमीजी की वजह जान सकती हूं?’’

‘‘मैडम, बदतमीजी की वजह आप को पता होगी, फिर भी हम थाने चल कर इस की असली वजह बताएंगे.’’ रणविजय सिंह ने जवाब दिया. जब पुलिस ने उन्हें बताया कि उन्हें अजय प्रताप का अपहरण कर फिरौती मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है तो सुनीता गुर्जर फिर भड़क उठी. उस ने अधिकारियों को धमकाते हुए बताया कि वह बीजेपी की नेता और सोशल वर्कर है. उन की इस गलती की सजा अभी दिलवाएगी. इस के बाद उस ने कुछ लोगों को फोन किया और फोन करने के बाद धमकी दी कि अभी देखो, थोड़ी देर में तुम को तुम्हारे बाप लोग फोन करेंगे तो देखना तुम कैसे छोड़ोगे.

एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने अपनी पुलिस की नौकरी में ऐसे बहुत से छुटभैए नेता देखे थे जो किसी अपराध में पकडे़ जाने पर पुलिस को ऐसी गीदड़भभकियां देते हैं. उन्हें इस बात का भी इल्म था कि कई बार पुलिस ऐसी धमकियों के प्रभाव में आ कर ऐसे लोगों को छोड़ देती है. लेकिन यह मामला जिस तरह का था, उसे देखने के बाद रणविजय सिंह किसी धमकी में नहीं आए और सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना सेक्टर 49 लौट आए.

पुलिस टीम अपहृत अजय प्रताप सिंह की होंडा सिटी कार के साथ होटल के रजिस्टर तथा होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर भी साथ ले आए.

कैसे फंसे अजय

जब पुलिस ने थाने आ कर थोड़ी सी सख्ती बरती और आरोपियों को सुषमा वर्मा से की गई बातचीत की काल रिकार्डिंग तथा उन के फोन की काल डिटेल्स दिखा कर पुख्ता सबूत सामने रखे तो आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और खुलासा किया कि उन्होंने अपने 2 फरार साथियों के साथ मिल कर अजय प्रताप को हनीट्रैप में फंसाया था और उन से मोटी फिरौती वसूलने की योजना थी. अजय प्रताप ने बताया कि उन्होंने गूगल पर मसाज कराने वाले किसी पार्लर का नंबर सर्च किया था, जिस के बाद उन्हें जस्ट डायल पर नोएडा में मसाज कराने वाला एक नंबर हासिल हुआ. उन्होंने उस नंबर पर फोन किया था.

26 सितंबर को शाम 4 बजे अजय ने जब मसाज सेवा देने वाले उस पार्लर के नंबर पर बात की तो दूसरी तरफ से बात करने वाले ने बताया कि उन के पास एक से एक खूबसूरत लड़कियां है जो सिर्फ मसाज ही नहीं करती बल्कि जिस्म की भूख भी मिटाती हैं. फोन करने वाले ने इतना प्रलोभन दिया कि अजय प्रताप का मन मचलने लगा. उन्होंने उसी वक्त मसाज कराने का इरादा कर लिया, जब फोन करने वाले ने उन्हें वाट्सऐप पर उन लड़कियों की फोटो भेजीं, जिन में से किसी से भी वे मसाज करा सकते थे.

बस उन्हीं लडकियों की खूबसूरत और मादक तसवीरें देख कर अजय प्रताप घर का सामान लाने के बहाने कार ले घर से निकल पडे़. लेकिन घर से निकल कर जब उन्होंने मसाज वाले नंबर पर फोन कर के पूछा कि कहां आना है तो उन्हें लौजिक्स सिटी सेंटर बुलाया गया. वहां उन्हें दीपक नाम का शख्स मिला जो उन्हें सेक्टर 41 के आई ब्लाक में ओयो होटल पर ले आया. शाम को 6 बजे जब वे होटल पहुंचे तो वहां उन की गाड़ी पार्किंग में खड़ी करवा कर इसी होटल के रूम नंबर 203 में ले जाया गया, जहां पहले से ही राकेश फौजी उर्फ रिंकू और बरौला नोएडा के 48बी में रहने वाला अनिल शर्मा और सेक्टर 27 के मकान नंबर 618 में रहने वाला आदित्य मौजूद थे.

वहां पहुंचने के कुछ देर तक तो अजय प्रताप उन चारों से बात करते रहे. जब काफी वक्त गुजर गया और मसाज करने वाली लड़कियां नहीं आईं तो उन्होंने उन लड़कियों को बुलाने को कहा, जिन के फोटो उन्हें भेजे गए थे. उस के बाद अचानक उन चारों का गिरगिट की तरह रंग बदल गया. उन लोगों ने अजय प्रताप को कुरसी से बांध दिया और धमकी देने लगे कि परिवार के होते हुए वह लड़कियों से मसाज के नाम पर अय्याशी करता है तो अजय प्रताप के होश उड़ गए. क्योंकि उन्हें सपने में गुमान नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. होटल के कमरे में मौजूद चारों लोगों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया कि वे थाने में फोन कर के पुलिस को बुलाएंगे और उसे पुलिस के हवाले कर देंगे.

उन्होंने अजय प्रताप की काल रिकौर्डिंग सुनवाई तो वे और ज्यादा डर गए. अपने ओहदे की संवेदनशीलता और पारिवारिक बदनामी के कारण वह उन के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे. उसी वक्त उन में से किसी एक के फोन करने पर एक महिला ने आई, जिसे देख कर वे सभी मैम… मैम कह कर बात करने लगे. उस महिला के बारे में चारों ने बताया कि वह नोएडा क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर हैं और उसे पकड़ने के लिए आई हैं. सुनीता ने खुद को इंसपेक्टर बता कर अजय प्रताप को धमकाना शुरू कर दिया और उन्हें आतंकित करने लगी कि जब वह गिरफ्तार हो कर अय्याशी के जुर्म में जेल जाएगा तो उस की ऐसी बदनामी होगी कि न उस का परिवार रहेगा, न ही नौकरी.

अजय प्रताप को तब तक पता नहीं था कि वह किस ट्रैप में फंस गए हैं, इसलिए उन्होंने किसी भी तरह इस मामले को निबटाने के लिए हाथपांव जोड़ने शुरू कर दिए. सुनीता ने कहा कि ठीक है वह इस मामले को अपने अधिकारियों के नोटिस में नहीं लाएगी, लेकिन उसे जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम कर उन्हें देने होंगे. सुनीता ने उन्हें बताया कि वह अपनी पत्नी को यह कह कर फोन करें कि उन्हें बदमाशों ने पकड़ लिया है और 10 लाख रुपए मांग रहे हैं क्योंकि उसे लड़की से मसाज की बात पता चल गई तो वह पैसा नहीं देगी, उलटे पत्नी की नजर में उन की इज्जत चली जाएगी.

सुनीता के दबाव में आ कर अजय ने उसी के नंबर से अपनी पत्नी सुषमा को फोन किया था. इस के बाद रात में कई बार अजय प्रताप की पिटाई की गई. इस के साथ ही वे लोग छोड़ने के लिए उन से मोलभाव करते रहे. आरोपियों ने अजय प्रताप की पिटाई कर के उन का ऐसा वीडियो भी बना लिया था जिस में वह मसाज कराने के लिए लड़की की मांग कर रहे थे. बंधक बनाने वालों ने अजय को धमकी दी कि अगर उन्हें पैसे नहीं मिले तो वे यह वीडियो उस के परिवार वालों को भेज कर, फिर सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे.

लेकिन इस से पहले सुनीता और उस के साथी अजय प्रताप की पत्नी को अपने नंबर से फोन कर के एक बड़ी चूक कर गए थे. उन्हें शायद अजय की हैसियत तो पता चल गई थी लेकिन उन की पहुंच के बारे में पूरी तरह अंजान थे.

आइडिया सुनीता का था

दरअसल, सेक्टर-41 के जिस ओयो होटल में अजय प्रताप सिंह को अगवा कर रखा गया था, उस में 16 कमरे बने हुए हैं. होटल का संचालन सन 2017 से किया जा रहा था. राकेश उर्फ रिंकू फौजी ने यह होटल 1.60 लाख रुपए प्रतिमाह के किराए पर ले रखा था. रिंकू की सुनीता के साथ जानपहचान थी, इसलिए उस का होटल में आनाजाना था. रिंकू का होटल वैसे तो ज्यादा नहीं चलता था, लेकिन सुनीता ने ही रिंकू को आइडिया दिया कि नोएडा में अय्याशी करने वाले लोग सुरक्षित जगह की तलाश में होटलों और गेस्टहाउसों का आसरा लेते हैं. इसलिए उस ने कुछ लोगों को अय्याशी के लिए होटल में कमरे देने शुरू किए.

इसी दौरान उसे आइडिया आया कि क्यों न जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली लड़कियों को होटल में रख कर उन से मसाज कराने का काम शुरू कराया जाए. इस काम के लिए रिंकू ने दीपक, आदित्य और अनिल को भी अपने साथ जोड़ लिया. अगाहपुर की रहने वाली सुनीता उर्फ बबली को इलाके में लोग भाजपा नेत्री के रूप में जानते थे. वह अकसर रिंकू के होटल में आतीजाती थी. उस का बड़ेबड़े लोगों में बैठनाउठना था. उस ने आइडिया दिया कि अगर मोटा पैसा कमाना है तो लड़कियों से मसाज कराने आने वाले लोगों को समाज में बदनाम करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया जा सकता है. फिर वे आसानी से मोटी रकम दे देंगे.

रिंकू ने मसाज करने के लिए जस्ट डायल पर अपने कुछ मोबाइल नंबर रजिस्टर करवा रखे थे. लोग गूगल पर सर्च कर के जब बात करते तो वे उसे अपने ओयो होटल में बुला लेते थे. उन्होंने मसाज और जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली कुछ लड़कियों की फोटो अपने पास रखी हुई थीं, ग्राहक के मांगने पर वे मसाज बाला की फोटो वाट्सऐप पर सेंड कर देते थे. खूबसूरत लड़कियों की फोटो देख कर ग्राहक उसी तरह उन के जाल में फंस जाते थे, जिस तरह अजय प्रताप सिंह उन के जाल में फंसे थे.

बिगबौस 10 कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर को बताया रिश्तेदार

सुनीता गुर्जर ने पुलिस की पकड़ में आने के बाद यह भी बताया कि वह बिग बौस के एक बहुचर्चित कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर की भाभी है. उस ने पुलिस को मनवीर गुर्जर के परिवार के साथ अपनी फोटो और बिग बौस के दसवें सीजन में सलमान खान के साथ ली गई फोटो दिखाई तो पुलिस भी चकरा गई. लेकिन पुलिस की एक टीम ने जब अगाहपुर में मनवीर गुर्जर के घर जा कर इस बात की छानबीन की तो पता चला कि गांव और एक ही बिरादरी होने के कारण मनवीर गुर्जर सुनीता को भाभी कहता था. उस का मनवीर के परिवार में आनाजाना भी था लेकिन मनवीर गुर्जर के परिवार से उस की कोई रिश्तेदारी या दूर का नाता तक नहीं था.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपित दीपक और राकेश चचेरे भाई हैं. जबकि अनिल शर्मा उर्फ सौरभ तथा आदित्य उन के दोस्त हैं. उन्होंने सुनीता के बहकावे में आ कर शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में मसाज की आड़ में लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल कराने का काम शुरू किया था. लोग बदनामी के डर से 2-4 लाख दे कर अपनी जान छुड़ा लेते थे. जब वे शिकार को फंसा कर लाते तो सुनीता क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर बन कर पहुंच जाती थी और जेल जाने तथा बदनामी का ऐसा भय दिखाती थी कि शिकार कुछ न कुछ दे कर अपनी जान छुड़ाता था.

पुलिस ने उन के होटल से जो रजिस्टर व दस्तावेज बरामद किए, उस में 800 से ज्यादा लोगों के नामपते दर्ज हैं. आंशका है कि उन में से कुछ ऐसे जरूर रहे होंगे, जिन्हें मसाज के नाम पर जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया गया होगा. पुलिस उन सभी लोगों की छानबीन कर रही है. पुलिस का दावा है कि यह गिरोह नोएडा व एनसीआर में हनीट्रैप की कई वारदात कर चुका है. आरोपियों के पास से अजय प्रताप की कार, घटना में प्रयुक्त मोबाइल समेत अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं. एक आरोपी बरौला निवासी अनिल कुमार शर्मा को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि कथा लिखे जाने तक सेक्टर-27 निवासी आदित्य कुमार फरार था.

उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने आरोपियों को पकड़ने वाली टीम को 5 लाख नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है.

पराठों के लिए मशहूर है मुरथल के ढाबों पर विदेशी कौलगर्लस का तड़का

जब आप दिल्ली से करनाल जाने वाले जीटी हाईवे पर जाएंगे तो सोनीपत के नजदीक मुरथल में हाईवे के किनारे जगमगाते व सजे हुए अनेक ढाबे दिखाई देंगे. रात में तो इन ढाबों की रौनक देखने लायक होती है.

इन ढाबों के परांठों का स्वाद भारत भर में मशहूर है. तभी तो रात में इन ढाबों की पार्किंग में सैकड़ों गाडि़यां खड़ी रहती हैं. दूरदूर से लोग मुरथल के परांठों का स्वाद लेने आते हैं. एक तरह से इन ढाबों की वजह से मुरथल की भारत भर में पहचान बनी हुई है.

इन्हें भले ही ढाबा कहते हैं लेकिन ये किसी आधुनिक होटल से कम नहीं हैं, लेकिन पैसे कमाने के लालच में कुछ लोगों ने ढाबों की परिभाषा ही बदल दी है. इन ढाबों पर ग्राहकों को मौजमस्ती कराने के लिए कालगर्ल भी बुलाई जाने लगी हैं. जिस से ग्राहकों के खाने के देशी और विदेशी देह का सुख भी मिल सके. अनैतिक देह व्यापार का धंधा भी खूब फलफूल रहा था.

7 जुलाई, 2021 की रात के तकरीबन 8 बजे का वक्त था, जब ढाबे रंगबिरंगी रोशनी से नहाए हुए थे. ढाबों के बाहर वाहनों की कतारें लगी थीं. तभी एक कार एक ढाबे के बाहर आ कर रुकी. उस में से 2 लोग उतरे. पहले उन्होंने अपनी खोजी नजरों से ढाबे का मुआयना किया और फिर आराम से टहलते हुए सीधे काउंटर पर पहुंचे.

काउंटर पर मौजूद मैनेजर ने एक नजर उन पर डालते हुए पूछा, ‘‘कहिए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’

‘‘हमें स्पैशल परांठे चाहिए.’’ उस ने कुरसियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘प्लीज आप बैठ कर मेन्यू देख कर और्डर कीजिए, अभी भिजवाता हूं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘हमें खाने के नहीं, इस्तेमाल करने वाले परांठे चाहिए.’’ उन की बात सुन कर काउंटर पर बैठा व्यक्ति एक पल के लिए सकपका गया, लेकिन दूसरे ही पल उन दोनों को गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘हम ने ऐसी तो कोई बात की नहीं, जो आप समझ न सको. आप के एक पुराने ग्राहक ने ही हमें यह जगह बताई थी, इस भरोसे पर आज मनोरंजन के इरादे से यहां चले आए.’’ आगंतुक ने राजदाराना अंदाज में कहा.

तभी मैनेजर मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह समझ गया, यह बात है तो आप को पहले बताना चाहिए था. दरअसल, बात यह है सर कि पुलिस का भी चक्कर रहता है, इसलिए अंजान लोगों के साथ संभल कर बात करनी पड़ती है हमें. वैसे आप को किस तरह का परांठा चाहिए?’’

‘‘हमें एकदम बढि़या चाहिए, जो दिल खुश हो जाए.’’ एक व्यक्ति बोला.

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा कि हमारे पास देशीविदेशी दोनों तरह के हैं. अब मरजी आप की है, आप जो भी पसंद करें. सर्विस में भी आप को कोई शिकायत नहीं मिलेगी.

‘‘हमारे कई रेग्युलर कस्टमर हैं, जो हमारी शानदार सर्विस से हमेशा खुश रहते हैं. ऐसा करता हूं, मैं आप को फोटो दिखा देता हूं, आप पसंद कर लीजिए.’’ कहने के साथ ही उस ने अपना मोबाइल उन के सामने कर दिया और एकएक कर के फोटो दिखाने लगा.

उस के पास कई सुंदर लड़कियों के अदाओं के साथ खिंचे फोटोग्राफ थे. इन में विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. वास्तव में वह परांठों की नहीं, बल्कि कालगर्ल के बारे में बात कर रहे थे.

‘‘विदेशी का इंतजाम कैसे करोगे?’’

‘‘सर, आप सिर्फ पसंद कीजिए, इंतजाम हमारे कमरों में पहले से है, फिलहाल कुछ लड़कियां आई हुई हैं.’’ उस ने कहा.

आगंतुक ने उन में से एक लड़की को पसंद किया और उस का रेट तय करने के बाद एक 500 का नोट उस की तरफ बढ़ाया, ‘‘ठीक है यह आप एडवांस रख लीजिए, हमारा एक दोस्त भी मस्ती के लिए आने वाला है.’’ कहने के साथ ही आगंतुक ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को काल कर के कहा, ‘‘दोस्त, जल्दी आ जाओ बढि़या इंतजाम हो गया है.’’

उस के फोन किए अभी 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि तभी पुलिस की गाडि़यां वहां आ कर रुकीं. पुलिसकर्मी दनदनाते हुए उस ढाबे में आ गए और मैनेजर को हिरासत में लेने के बाद कमरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

काउंटर पर बैठा व्यक्ति व अन्य लोग यह सब देख कर सकपका गए, जबकि 2 आगंतुक जो मैनेजर से बातचीत कर रहे थे, वे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

वास्तव में वह कोई और नहीं, बल्कि पुलिस के नकली ग्राहक थे. सटीक जानकारी होने के बाद ही पुलिस ने रेड की काररवाई की थी. पुलिस जब कमरों में पहुंची तो हैरान रह गई. कमरों में कई लड़कियां मौजूद थीं, जो पुलिस को देख कर अपना मुंह छिपाने लगीं.

महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें कमरे में ही अपनी निगरानी में ले लिया. सभी लड़कियां हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘हमें छोड़ दीजिए प्लीज, वरना हमारी बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘क्यों, यह सब खयाल तुम लोगों को पहले नहीं आया.’’ महिला पुलिसकर्मी ने कहा.

‘‘गलती हो गई अब कभी नहीं आएंगे.’’ कई लड़कियां गिड़गिड़ाते हुए बोलीं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उन की गुहार को नजरंदाज कर दिया. एक पुलिस अधिकारी ने अधीनस्थों को निर्देश दिया, ‘‘तुम लोग इन को यहीं रखो, कोई भी यहां से जाने न पाए, हम बाकी जगह को चैक करते हैं.’’ इस के बाद पुलिस ने अन्य 2 ढाबों पर भी रेड की.

दरअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उड़नदस्ता टीम थी, जिस का नेतृत्व डीएसपी अजीत सिंह कर रहे थे. टीम में सोनीपत की एसडीएम शशि वसुंधरा को भी शामिल किया गया था.

स्पैशल टीम को सूचना मिल रही थी कि मुरथल के कुछ ढाबों पर देह व्यापार, जुएसट्टे व नशे का धंधा जोरों पर चल रहा है. सूचना को पुख्ता करना जरूरी था. इसलिए टीम ने पहले 2 लोगों को नकली ग्राहक बना कर वहां भेजा था. जब उन की बातचीत में सब कुछ साफ हो गया तो उन का इशारा मिलने पर काररवाई की.

पुलिस टीम ने वहां स्थित हैप्पी ढाबा, राजा ढाबा व होटल वेस्ट ढाबों पर रेड की. इस काररवाई में 12 लड़कियों व 5 युवकों को देह व्यापार में जबकि 9 लोगों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया. वे महफिल सजा कर जुआ खेल रहे थे.

वे सभी अच्छे परिवारों से थे, इसलिए उन्होंने पुलिस पर रौब गालिब करने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस उन के प्रभाव में नहीं आई. 9 जुआरियों से पुलिस ने एक लाख 63 हजार रुपए भी बरामद किए.

जिस्मफरोशी के आरोप में गिरफ्तार लोगों में 3 विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. इन में एक लड़की उज्बेकिस्तान, दूसरी तुर्की व तीसरी रूस की रहने वाली थी. बाकी 9 लड़कियां दिल्ली निवासी थीं. गिरफ्तार किए गए युवक सोनीपत, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के थे.

पुलिस ने सभी लोगों के मोबाइल व नकदी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस की इस काररवाई से ढाबों पर भगदड़ मच गई. पुलिस ने सभी आरोपियों को कस्टडी में ले कर पुलिस वैन में बैठाया और उन्हें ले कर मुरथल थाने पहुंची.

वहां आरोपियों से पूछताछ की तो ढाबों पर चलने वाले अनैतिक धंधे की ऐसी परतें खुलीं, जिस पर हर कोई सोचने पर मजबूत हो जाए. क्योंकि ढाबों पर यह सब होता होगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो.

ढाबों पर अमूमन लोग खाना खाने के लिए ही आते हैं, क्योंकि ढाबे इसी काम के लिए बने होते हैं, लेकिन मुरथल के ढाबों की बात अलग है. उन्होंने जीटी करनाल हाइवे किनारे बने ढाबों की छवि को नया रूप दिया. नाम भले ही ढाबा रखा गया, लेकिन उन्हें आधुनिक होटल का रूप दिया गया.

होटल की तरह ढाबों में रूम तक बनाए गए थे. ग्राहकों को खाने के साथसाथ रुकने की सुविधा भी दी जाने लगी. ढाबों की ख्याति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एनसीआर सहित दूरदूर से लोग यहां परांठों का स्वाद लेने आते हैं.

मुरथल के ढाबों के ज्यादातर मालिक खुद हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ढाबे बनाने के बाद वह दूसरे लोगों को किराए पर दे दिए. यानी ढाबे के चलने न चलने से उन का कोई मतलब नहीं होता, उन्हें तो बस महीने में किराए की रकम चाहिए होती है.

वैसे तो ये ढाबे इतने मशहूर हैं कि उन पर न तो कमाई की कमी है और न ही ग्राहकों की, लेकिन कुछ ढाबे वालों को इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई, उन्होंने लालच में अपने काम को चमकाने में चारचांद लगाने शुरू कर दिए.

ढाबे वाले वह काम भी कराने लगे जो नैतिक नहीं थे. इन में जुआ, सट्टा या नशा ही नहीं, बल्कि देह व्यापार भी शामिल हो गया. ऐसे लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि ढाबों की छवि पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा. ऐसे ढाबों पर देह व्यापार का धंधा संगठित तरीके से चलाया जाने लगा.

ढाबे वालों से ऐसी लड़कियों के संपर्क हो गए, जो पैसे कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थीं. वहां पर ऐसी लड़कियों को सप्ताह 10 दिन के हिसाब से एकमुश्त रकम दे कर बुलाया जाता था. उन की बुकिंग का काम ढाबा संचालक व उन से जुड़े दलाल करते थे. ग्राहकों से वह खुद तयशुदा रकम लेते थे, जिस में कालगर्ल का हिस्सा नहीं होता था.

एकमुश्त रकम लेने के बाद कालगर्ल को उस व्यक्ति के इशारों पर काम करना होता था, जो उन्हें लाता था. लड़कियोें के ठहरने व खाने का खर्च भी उन्हें ही उठाना होता था.

कहते हैं कि गलत काम गुपचुप तेजी से चलता है. ढाबों का देह व्यापार भी कुछ इस तरह चला कि लड़कियां वहां शिफ्टों में काम करती थीं. इन में दिल्ली और उस के आसपास के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल व कोलकाता की लड़कियां भी शामिल होती थीं.

जो विदेशी लड़कियां पकड़ी गईं, वैसे तो वे टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं, लेकिन देह व्यापार में भी जुट गई थीं. उन के संपर्क कई ऐसे दलालों से थे, जो उन के लिए ग्राहक ढूंढते थे. तयशुदा कमीशन ले कर दलाल उन्हें ग्राहकों को परोसते थे.

देह के धंधे में लिप्त ढाबे वाले औन डिमांड विदेशी लड़कियां बुलाते थे. विदेशी लड़कियों को इतनी कमाई होती थी कि वह ऐसी जगहों पर आनेजाने के लिए अपने साथ पेमेंट पर गाइड भी रखती थीं. गाइड भी उन के लिए ग्राहक ढूंढने में मदद करते थे.

अमूमन कोई भी व्यक्ति सोचता है कि ढाबे तो सिर्फ खाने के लिए होते हैं, इसलिए किसी को शक नहीं होता था कि वहां के कमरों के अंदर क्या कुछ चलता है. इस बात का भी ढाबे वाले जम कर फायदा उठा रहे थे. उन्हें लगता था कि जल्दी से उन पर कोई शक भी नहीं करेगा.

ढाबों पर देह व्यापार के लिए नए ग्राहकों को जोड़ने का काम भी उन्हें औफर दे कर चलता था. ऐसे लोगों को बताया जाता था कि उन के यहां खाने के साथ शबाब का भी इंतजाम है, जो लोग इच्छुक होते थे, उन्हें लड़कियां परोस दी जाती थीं. इसी तरह चेन बनती रही.

देह व्यापार के लिए वाट्सऐप का भी इस्तेमाल किया जाता था. पुलिस से बचने के लिए नेटवर्क से जुड़े लोग वाट्सऐप के जरिए ही बातें किया करते थे और उसी से फोटो भेज कर लड़कियां पसंद कराई जाती थीं.

कई बार लड़कियों को औन डिमांड बुलाया जाता था. विदेशी लड़कियां ज्यादातर औन डिमांड आती थीं. जैसे ही उन्हें फोन किया जाता था, वे टैक्सी से कुछ देर में वहां पहुंच जाती थीं.

पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के अगले दिन अदालत में पेश किया. जुए के आरोप में पकड़े गए 9 लोगों व स्थानीय लड़कियों को तो जमानत मिल गई, जबकि तीनोें विदेशी लड़कियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

हैरानी की बात यह थी ढाबों से मुरथल थाने की दूरी करीब एक किलोमीटर थी, ऐसे में पुलिस की नाक के नीचे ही देह का धंधा आबाद था.

मामला खुलने पर स्थानीय पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई. भला यह कैसे संभव था कि ढाबों पर जुआ, सट्टा व देह व्यापार होता हो और पुलिस को पता तक न हो.

लापरवाही सामने आने पर सोनीपत के एसपी जश्नदीप सिंह रंधावा ने इसे बेहद गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी अरुण कुमार को तुरंत लाइन हाजिर करते हुए उन के विरुद्ध विभागीय जांच के आदेश दे दिए.

सुखवीर सिंह को मुरथल थाने का नया प्रभारी बनाया गया. दूसरी तरफ ढाबों की छवि को ले कर मुरथल ढाबा एसोसिएशन के पदाधिकारी भी चिंतित हो गए. ढाबा संचालक अमरीक सिंह, देवेंद्र कादियान आदि का मानना है कि कुछ लोगों की करतूत की वजह से कारोबार प्रभावित हो सकता है.

इसलिए एसोसिएशन ने बैठक कर के तय किया कि उन के द्वारा निगरानी कर के गलत काम करने वालों को बेनकाब किया जाएगा. ऐसे लोग वहां ढाबा संचालन नहीं कर सकेंगे. जल्द ही वह ढाबा संचालन की गाइडलाइन तैयार कर के उस का पालन कराएंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

डेढ़ करोड़ का विश्वास

घटना 14 जुलाई, 2020 की है. उस रोज राम गोयल सो कर उठे तो घर का अस्तव्यस्त हाल देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में तिजोरी खुली पड़ी थी, जिस में रखी कई किलोग्राम सोनाचांदी व नकदी सब गायब थी. यह देख कर घर में हड़कंप मच गया.

राम गोयल को पता चला कि घर से 3 किलो सोने और चांदी के आभूषण, नकदी और अन्य कीमती सामान गायब है. इस के अलावा परिवार के साथ रह रही बेटी की नौकरानी अनुष्का, जो दिल्ली से आई थी, वह भी गायब थी. अनुष्का राम गोयल की बेटीदामाद की नौकरानी थी. वह उन के बच्चों की देखभाल करती थी.

जून, 2020 महीने में राम गोयल की बेटी एक समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली से राजगढ़ अपने पिता के यहां आई थी. बेटी के बच्चों की देखभाल के लिए अनुष्का भी उस के साथ आ गई थी. इसलिए पिछले एक महीने से वह राम गोयल के घर पर ही रह रही थी.

वह एक नेपाली लड़की थी. नेपाली अपनी बहादुरी और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं. राम गोयल की भी अनुष्का के प्रति यही सोच थी. लेकिन कुछ ही समय में अनुष्का अपना असली रंग दिखा कर करोड़ों का माल साफ कर के भाग चुकी थी.

घटना की रात अनुष्का ने अपने हाथ से कढ़ी और खिचड़ी बना कर पूरे परिवार को खिलाई थी. खाने के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. जाहिर था, खाने में कोई नशीली चीज मिलाई गई थी, जिस के असर से घर में हलचल होने के बावजूद किसी सदस्य की आंख नहीं खुली.

इस बात की खबर मिलते ही थाना पचोर के टीआई डी.पी. लोहिया तुरंत पुलिस टीम के साथ राम गोयल के यहां पहुंचे तथा उन्होंने मौकामुआयना कर सारी घटना की जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा को दी. कुछ ही देर में एसपी शर्मा भी मौके पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जांच करने के बाद एसपी प्रदीप शर्मा ने आरोपियों को पकड़ने के लिए एडिशनल एसपी नवलसिंह सिसोदिया के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में एसडीपीओ पदमसिंह बघेल, टीआई डी.पी. लोहिया, एसआई धर्मेंद्र शर्मा, शैलेंद्र सिंह, साइबर सैल टीम प्रभारी रामकुमार रघुवंशी, एसआई जितेंद्र अजनारे, आरक्षक मोइन खान, दिनेश किरार, शशांक यादव, रवि कुशवाह एवं आरक्षक राजकिशोर गुर्जर, राजवीर बघेल, दुबे अर्जुन राजपूत, अजय राजपूत, सुदामा, कैलाश और पल्लवी सोलंकी को शामिल किया गया.

इधर लौकडाउन के चलते पुलिस का एक काम आसान हो गया था. टीआई लोहिया जानते थे कि लौकडाउन के दिनों में ट्रेन, बस बंद हैं इसलिए लुटेरी नौकरानी अनुष्का ने पचोर से भागने के लिए किसी प्राइवेट वाहन का उपयोग किया होगा.

क्योंकि इतनी बड़ी चोरी एक अकेली लड़की नहीं कर सकती, इसलिए उस के कुछ साथी भी जरूर रहे होंगे. अनुष्का कुछ समय पहले ही दिल्ली से आई थी. टीआई लोहिया ने अनुष्का का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि अनुष्का एक फोन नंबर पर लगातार बातें करती थी और ताज्जुब की बात यह थी कि वारदात वाले दिन उस फोन नंबर की लोकेशन पचोर टावर क्षेत्र में थी. जाहिर था कि वह मोबाइल वाला व्यक्ति अनुष्का का कोई साथी रहा होगा, जो उस के बुलाने पर ही घटना को अंजाम देने राजगढ़ आया होगा.

एसपी प्रदीप शर्मा के निर्देश पर टीआई लोहिया की टीम पचोर क्षेत्र में हर चौराहे, हर पौइंट, हर क्रौसिंग पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने में जुट गई. इसी कवायद में एक संदिग्ध कार पुलिस की नजर में आई, जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी-14एफ-टी2355 था.

टीआई लोहिया समझ गए कि चोर शायद इसी गाड़ी में सवार हो कर पचोर आए और घटना को अंजाम दे कर फरार हो गए. इसलिए पुलिस की एक टीम ने पचोर से व्यावह हो कर गुना और ग्वालियर तक के रास्ते में पड़ने वाले टोल नाकों के कैमरे चैक कर उस गाड़ी के आनेजाने का रूट पता कर लिया.

जांच में पता चला कि उक्त नंबर की कार दिल्ली के उत्तम नगर के रहने वाले मनोज कालरा के नाम से रजिस्टर्ड थी, इसलिए तुरंत एक टीम दिल्ली भेजी गई. टीम ने मनोज कालरा को तलाश कर उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किराए पर गाडि़यां देने का काम करता है. उक्त नंबर की कार उस ने एक नौकर पवन उर्फ पद्म नेपाली के माध्यम से 12 जुलाई को इंदौर के लिए बुक की थी.

जबकि इस कार के ड्राइवर से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 13 जुलाई, 2020 को 3 युवक उसे शादी में जाने की बात बोल कर पचोर ले गए थे. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम सारी जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा से शेयर कर रही थी. इस से एसपी प्रदीप शर्मा समझ गए कि उन की टीम सही दिशा में आगे बढ़ रही है.

लेकिन वे जल्द से जल्द चोरों को पकड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि देर होने पर आरोपी माल सहित नेपाल भाग सकते हैं. ड्राइवर ने यह भी बताया कि वापसी में सभी लोगों को उस ने दिल्ली में बदरपुर बौर्डर पर बस स्टैंड के पास छोड़ा था.

अब पुलिस को जरूरत थी उन तीनों नेपाली लड़कों की पहचान कराने की, जो दिल्ली से गाड़ी ले कर पचोर आए थे.

इस के लिए पुलिस ने दिल्ली में रहने वाले सैकड़ों नेपाली परिवारों से संपर्क किया. शक के आधार पर 16 लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. जिस में एक नया नाम सामने आया बिलाल अहमद का, जो लोगों को घरेलू नौकर उपलब्ध कराने के लिए एशियन मेड सर्विस की एजेंसी चलाता था.

बिलाल ने पुलिस को बताया कि अनुष्का उस के पास आई थी, उस की सिफारिश सरिता पति नवराज शर्मा ने की थी. जिसे उस ने दिल्ली में एक बच्ची की देखभाल के लिए नौकरी पर लगवा दिया था.

जांच के दौरान पुलिस टीम को पवन थापा के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि पवन ही वह आदमी है जो उन तीनों लोगों को दिल्ली से पचोर ले कर आया था. पवन भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने पूछताछ में बताया कि उत्तम नगर के सम्राट उर्फ वीरामान ने टैक्सी बुक की थी, जिस के लिए उसे15 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे.

इस से पुलिस को पूरा शक हो गया कि इस मामले में सम्राट की खास भूमिका हो सकती है. दूसरी बात यह पुलिस समझ चुकी थी कि इस बड़ी चोरी के सभी आरोपी उत्तम नगर के आसपास के हो सकते हैं. इसलिए न केवल पुलिस सतर्क हो गई, बल्कि अन्य आरोपियों की रैकी भी करने लगी.

आरोपी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे, इसलिए तकनीकी टीम के प्रभारी एसआई रामकुमार रघुवंशी और आरक्षक मोइन खान ने चाय व समोसे वाला बन कर उन की रैकी करनी शुरू कर दी, जिस से जल्द ही जानकारी हासिल कर सम्राट उर्फ वीरामान धामी को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में वीरामान पहले तो कुछ भी बताने की राजी नहीं था. लेकिन जब उस ने मुंह खोला तो चौंकाने वाला सच सामने आया.

वास्तव में वीरामान खुद वारदात करने के लिए पचोर जाने वाली टीम में शामिल था. अन्य 2 पुरुषों और महिला के बारे में पूछताछ की तो सम्राट ने बताया कि अनुष्का अपने प्रेमी तेज के साथ नई दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहती है.

पुलिस ने बदरपुर इलाके में छापेमारी कर के दोनों को वहां से गिरफ्तार कर उन के पास से चोरी का माल बरामद कर लिया. यहां तेज रोक्यो और अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल के साथ उन का तीसरा साथी भरतलाल थापा भी पुलिस गिरफ्त में आ गए.

मौके पर की गई पूछताछ के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस की मदद से मामले के मुख्य आरोपी वीरामान उर्फ सम्राट मूल निवासी धनगढ़ी, नेपाल, अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल निवासी जनकपुर, तेज रोक्यो मूल निवासी जिला अछम, नेपाल, भरतलाल थापा को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी.

इस के अलावा आरोपियों को पचोर तक कार बुक करने वाला पवन थापा निवासी उत्तम नगर नई दिल्ली, बेहोशी की दवा उपलब्ध कराने वाला कमल सिंह ठाकुर निवासी जिला बजरा नेपाल, चोरी के जेवरात खरीदने वाला मोहम्मद हुसैन निवासी जैन कालोनी उत्तम नगर, जेवरात को गलाने में सहायता करने वाला विक्रांत निवासी उत्तम नगर भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

अनुष्का को कंपनी में काम पर लगवाने वाली सरिता शर्मा निवासी किशनपुरा, नोएडा तथा अनुष्का को नौकरानी के काम पर लगाने वाला बिलाल अहमद उर्फ सोनू निवासी जामिया नगर, नई दिल्ली को गिरफ्तार कर के बरामद माल सहित पचोर लौट आई. जहां एसपी श्री शर्मा ने पत्रकार वार्ता में महज 7 दिनों के अंदर जिले में हुई चोरी की सब से बड़ी घटना का राज उजागर कर दिया.

अनुष्का ने बताया कि राम गोयल का पूरा परिवार उस पर विश्वास करता था. इसलिए परिवार के अन्य लोगों की तरह अनुष्का भी घर में हर जगह आतीजाती थी. एक दिन उस के सामने घर की तिजोरी खोली गई तो उस में रखी ज्वैलरी और नकदी देख कर उस की आंखें चौंधिया गईं और उस के मन में लालच आ गया. यह बात जब उस ने दिल्ली में बैठे अपने प्रेमी तेज रोक्यो को बताई तो उसी ने उसे तिजोरी पर हाथ साफ करने की सलाह दी.

योजना को अंजाम देने के लिए उस का प्रेमी तेज रोक्यो ही दिल्ली से बेहोशी की दवा ले कर पचोर आया था. वह दवा उस ने रात में खिचड़ी में मिला कर पूरे परिवार को खिला दी. जिस से खिचड़ी खाते ही पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. तब अनुष्का अलमारी में भरा सारा माल ले कर पे्रमी के संग चंपत हो गई. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर एक करोड़ 53 लाख रुपए का चोरी का सामान और नकदी बरामद कर ली.

पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच टीआई डी.पी. लोहिया कर रहे थे.