पबजी का प्यार

जेबा अंडमान के डालीगंज इलाके में रहती थी. उस की उम्र 14 साल थी. वह स्थानीय स्कूल के 8वीं कक्षा में पढ़ती थी. जेबा के पिता सुलेमान अंडमान के एयरपोर्ट पर एजेंट थे. जबकि उस की मां हसीना बानो एक आम घरेलू औरत थीं. बचपन से ही उसे मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने का शौक था. कुछ दिनों पहले मोबाइल प्रेमियों के बीच पबजी नाम का एक नया गेम आया था, जिस में किशोर उम्र के बच्चे खूब रुचि लेतेथे. देखते ही देखते यह गेम दुनिया भर के बच्चों के बीच लोकप्रिय हो गया.

एक दिन जेबा को उस की सहेली फातिमा ने इस गेम के बारे में बताया तो उस ने भी पबजी खेलना शुरू किया. इस गेम में एक बैटलग्राउंड है, जिस में उसे विरोधी खिलाड़ी के मोहरों पर निशाना लगाना पड़ता था. इस गेम की खूबी थी कि एक खिलाड़ी घर पर औनलाइन रह कर सैकडों किलोमीटर दूर दुनिया के किसी भाग में स्थित अजनबी पार्टनर के साथ भी खेल सकता है. हालांकि दोनों पार्टनर अपनेअपने मोबाइल फोन पर दूसरे खिलाड़ी की चाल को देख सकते थे. मजे की बात थी कि वे आपस में अजनबी होते थे.  जेबा को इसे खेलने में दूसरे गेम से कहीं ज्यादा मजा आ रहा था. स्कूल से लौटने के बाद उसे जब भी मौका मिलता, वह पबजी गेम खेलने में मशगूल हो जाती थी.

एक दिन कि बात है. जेबा औनलाइन पबजी गेम खेल रही थी तो इस दौरान उस की मुलाकात एक नए प्रतिद्वंदी खिलाड़ी से हुई. यह प्रतिद्वंदी उस के साथ बड़ी चतुराई से खेल रहा था. गेम के दौरान जेबा ने उसे मात देने की पूरी कोशिश की, मगर काफी दिमाग लड़ाने के बाद भी वह उसे गेम में नहीं हरा सकी. अलबत्ता वह हर बार हार जरूर गई. हालांकि यह बात अलग थी कि हार जाने के बावजूद उसे खेल में बहुत मजा आया था. उस दिन के बाद जब भी जेबा को मौका मिलता, वह उस खिलाड़ी के साथ गेम जरूर खेलती थी. उधर जेबा का प्रतिद्वंद्वी भी उस के औनलाइन होने का इंतजार करता था.

जेबा के पिता सुलेमान उसे बहुत प्यार करते थे. वह उन की एकलौती बेटी थी. दुनिया के हर पिता की तरह सुलेमान भी बेटी की सभी फरमाइश पलक झपकते ही पूरी करने की कोशिश करते. हालांकि पिछले कुछ दिनों से बेटी को हर समय मोबाइल गेम में डूबा हुआ देख कर उन्हें दुख भी होता था पर वह बेटी से ज्यादा डांटडपट इसलिए नहीं करते थे क्योंकि वह अब बड़ी हो रही थी. उन के डांटने का प्रभाव गलत भी पड़ सकता था.

सुलेमान जब तक घर में मौजूद होते, जेबा पढ़ाई करती लेकिन जैसे ही वह किसी काम से घर से बाहर निकलते वह मोबाइलपर गेम खेलने बैठ जाती थी. मां की डांटडपट का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था. एक भी दिन पबजी खेले बिना उस के दिल को चैन नहीं मिलता था. धीरेधीरे जेबा को इस खेल की लत पड़ गई. साथ ही वह इस अजनबी खिलाड़ी की मुरीद बन गई. वह रोज उसे हराने का प्रयास करती, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह कभीकभार ही उसे हराने में सफल हो पाती थी.

पबजी का प्यार…

एक दिन जब वह गेम खेल रही थी, उस के किशोर मन में इस अजनबी खिलाड़ी के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. उस ने मैसेज भेज उस का मोबाइल नंबर पूछ ही लिया. दरअसल, इस औनलाइन गेम में दूसरी तरफ से कौन खेल रहा है, इस का पता पहले खिलाड़ी को तब तक नहीं चल पाता जब तक कि दूसरा खिलाड़ी खुद अपनी असलियत उस पर जाहिर न करे. जेबा के मैसेज का जवाब उस के मोबाइल पर तुरंत ही आ गया. उस खिलाड़ी ने अपना नाम बंटू बताया. उस ने अपना मोबाइल नंबर भी भेजा था.

बंटू का मोबाइल नंबर जानने के बाद जेबा ने उस के मोबाइल पर फोन कर उस से बात की. जेबा से बात कर के बंटू बहुत खुश हुआ. वह यह सोच कर खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था कि लडक़ी खुद ही उस में रुचि लेने लगी थी. इस के अलावा जेबा की आवाज भी बड़ी मीठी थी. बंटू ने भी जेबा को अपने बारे में बताया तो जेबा को पता चला कि वह उस से उम्र में 5 साल बड़ा था. फिर भी दोनों लगभग हमउम्र थे और उन के खयालात भी एकदूसरे से काफी मिलते थे. इस कारण कुछ ही दिनों में उन के बीच दोस्ती हो गई. वे गेम खेलने के साथ साथ फेसबुक फ्रैंड भी बन गए और हर समय एकदूसरे के संपर्क में रहने लगे.

हालांकि जेबा मांबाप की नजरों से बच कर गेम खेलने की कोशिश करती, जिस से उन की नजरों में वह अच्छी बनी रहे. जेबा और बंटू की यह दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. बाली उम्र का यह इश्क समय के साथ परवान चढ़ता जा रहा था. दोनों का पसंदीदा मोबाइल गेम पबजी था, जिसे वे रोज खेला करते थे. गेम खेलने के अलावा वे प्यार की उड़ान में फोन पर दुनिया भर की बातें करते थे.

एक ओर बंटू अपनी प्यार भरी बातों से जेबा का दिल जीतने की कोशिश करता तो दूसरी ओर जेबा भी अपनी मीठीमीठी बातों से उसे खुश रखती थी. बातों ही बातों में उन का वक्त कैसे गुजर जाता, इस का उन्हें पता ही नहीं चलता था. खेलखेल में हुआ प्यार उन्हें बेचैन किए जा रहा था. जिस दिन वे किसी कारण आपस में बात नहीं कर पाते तो उन का दिल तब तक बेचैन रहता, जब तक कि वे अपना हालेदिल एकदूसरे से बयां नहीं कर देते थे. बंटू को लगने लगा था कि जेबा के बिना उस की जिंदगी अधूरी है. कुछ यही हालत जेबा की थी.

अंडमान की प्रेमिका पहुंची बरेली…

समय का कारवां अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा. सोलहवां साल किसी भी लडक़ी के जीवन का सब से सुनहरा दौर होता है. इन दिनों विपरीत सैक्स का आकर्षण उस के सिर पर चढ़ कर बोलता है. 16 साल की हो चुकी जेबा इन दिनों 10वीं में पढ़ रही थी. नाबालिग का प्यार बढ़ता ही जा रहा था, जिस से उस का जी पढ़ाई में जरा भी नहीं लगता था. उसे लगता था किअब बंटू से मिलने के लिए उसे ही कुछ करना होगा.

हालांकि इस दौरान बंटू ने जेबा को अपने बारे में बता दिया कि वह एक मामूली घर का लडक़ा है. घर की माली हालत भी अच्छी नहीं है. उस के पिता सब्जी बेचने का काम करते हैं, जबकि वह खुद शादियों में सजावट करने का काम करता है. एक और भाई है जो कोई प्राइवेट नौकरी करता है.  बंटू की माली हालत के बारे में सुन कर भी जेबा के प्यार में कोई कमी नहीं आई. अपने घर की सारी सुखसुविधाएं छोड़ कर वह हर हाल में उस के साथ रहने को तैयार थी.

इस प्रकार देखते ही देखते 3 साल निकल गए. इन 5 सालों में जेबा और बंटू एकदूसरे के दिल के इतने करीब आ गए कि अब उन्हें एकदूसरे से दूर रहना मुश्किल लगने लगा. जेबा रोज बंटू के साथ अपने भावी जीवन को ले कर तरहतरह के सपने संजोती रहती थी. लेकिन जेबा के सामने एक समस्या यह थी कि एक तो वह अभी नाबालिग थी दूसरे उन की जाति और धर्म अलग थी, इसलिए परिवार की रजामंदी से उन की शादी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता था. इसलिए जेबा खामोशी के साथ बंटू से मिलने की योजना बनाने लगी. बंटू कदमकदम पर उस का साथ देने के लिए तैयार था. यानी जेबा बंटू की मोहब्बत परवान चढ़ रही थी.

22 जनवरी, 2023 की आधी रात को जब जेबा के घर के सभी लोग गहरी नींद में थे, वह मौका देख कर घर से निकल गई. सुबह होने पर हसीना बानो की आंखें खुलीं तो बेटी को घर में नहीं पा कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने जल्दी से जेबा के मोबाइल नंबर पर काल की तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. यह देख कर वह घबरा गई. जल्दी से हसीना ने अपने पति को जगाया और जेबा के घर से गायब होने के बारे में बताया.

बेटी के घर में नहीं होने की बात सुन कर सुलेमान ने अपना सिर पकड़ लिया. इस के बाद पहले तो उन दोनों ने अपने सभी नातेरिश्तेदारों के घर फोन कर जेबा का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वे स्थानीय अंडमान के पहाड़ गांव थाने में पहुंचे और अपनी बेटी जेबा की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

जेबा का पता लगाने के लिए पहाड़ गांव थाने की महिला एसआई अग्नेश बरथोलोम के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस मे एसआई प्रदीप और एक अन्य एसआई को शामिल किया. जेबा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाया तो उस के मोबाइल की लोकेशन अंडमान से हजारों किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के कस्बा फरीदपुर इलाके में मिली. 29 जनवरी को यह पुलिस टीम अंडमान निकोबार से चल कर उत्तर प्रदेश के फरीदपुर कस्बा में पहुंची और वहां की लोकल पुलिस की मदद से जेबा का पता लगाने में जुट गई.

21 वर्षीय बंटू यादव फरीदपुर थाने के परा मोहल्ले में साईं मंदिर के निकट किराए के मकान में रहता है. 28 जनवरी, 2023 को अंडमान से आई पुलिस टीम ने बंटू के घर पर दबिश दी तो पता चला बंटू जेबा के साथ अपनी मौसी के दातागंज स्थित घर में जा कर छिपा है. वहां छापा मारने पर पुलिस को जेबा मिल गई, मगर बंटू यादव को अपने पीछे पुलिस के पडऩे की भनक लग चुकी थी, इसलिए वह डर से फरार हो गया था.

एसआई अग्नेश बरथोलोम की टीम जेबा को अपने कब्जे में ले कर फरीदपुर थाने लौट गई. थाने में भी जेबा ने काफी ऊधम मचाया. दरअसल, वह किसी भी कीमत पर अंडमान निकोबार लौटने के लिए राजी नहीं हो रही थी. वह बंटू के साथ फरीदपुर में रहने की रट लगा रही थी. जब एसआई अग्नेश बरथोलोम ने उसे प्यार से समझाया. उसे उस के मातापिता की तबीयत खराब होने की बात बताई, तब कहीं जा कर वह अपने घर लौटने के लिए तैयार हुई. बाद में स्थानीय पुलिस ने उस के प्रेमी बंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के दौरान जेबा ने पुलिस को बताया कि 22 जनवरी की रात उस ने पापा की अलमारी से 10 हजार रुपए निकाले और अपनी कुछ सहेलियों की मदद से अंडमान के एयरपोर्ट तक पहुंची थी. वहां से प्लेन पर सवार हो कर वह कोलकाता और वहां से जम्मू तवी ट्रेन पर सवार हो कर बरेली पहुंची थी. बरेली के रेलवे स्टेशन पर बंटू पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. वह उसे अपने घर ले गया था. जहां वे दोनों पिछले एक सप्ताह से पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. बंटू के मांबाप ने उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था.

एसआई अग्नेश बरथोलम की टीम ने अगले दिन जेबा को अंडमान की कोर्ट में पेश कर दिया, जहां कोर्ट के आदेश पर जेबा का मैडिकल कराने के बाद उस के पिता के सुपुर्द कर दिया गया. जेबा अपने घर पहुंच जरूर गई है, लेकिन प्रेमी बंटू यादव की उसे बहुत याद आ रही थी. कथा लिखने तक बंटू भी जेल में बंद था.

कहानी में कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 3

डा. गौरव की हत्या की खबर जब अखबारों में छपी तो कानपुर, उन्नाव में सनसनी फैल गई. सैकड़ों की संख्या में लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. क्षेत्रीय विधायक अभिजीत सिंह सांगा भी पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे और डाक्टर की पत्नी प्रियंका से बातचीत कर उन्हें धैर्य बंधाया तथा हरसंभव मदद का आश्वासन दिया.

हत्यारोपी मुदित श्रीवास्तव की पत्नी नेहा श्रीवास्तव को जब पति की करतूतों का पता चला तो उसे यकीन ही नहीं हुआ. नेहा की 5 साल की बेटी है, जिस का कटे हुए तालू का लखनऊ में इलाज चल रहा है. घटना के समय वह लखनऊ में ही थी. उस ने सोचा भी नहीं था कि मुदित ऐसा कर सकता है.

चूंकि मुदित ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: इंसपेक्टर रत्नेश सिंह ने मृतक के पिता डा. प्रबल प्रताप सिंह की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुदित श्रीवास्तव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में दोस्ती में विश्वासघात की एक सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

परिवार की इकलौती औलाद था डा. गौरव…

उन्नाव शहर की आवास विकास कालोनी एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है. इसी कालोनी के मकान नंबर सी 46 में डा. प्रबल प्रताप सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी आशा सिंह के अलावा एकमात्र बेटा गौरव प्रताप सिंह था. डा. प्रबल प्रताप सिंह होम्योपैथिक डाक्टर थे. उन की पत्नी आशा सिंह भी डाक्टर थीं. पतिपत्नी दोनों शिकोहाबाद के सरकारी अस्पताल में डाक्टर थे. डा. प्रबल प्रताप सिंह प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन्नाव के अलावा शिकोहाबाद में भी उन का निजी मकान था.

डा. प्रबल प्रताप सिंह की पत्नी डा. आशा सिंह रसूखदार राजनीतिक परिवार से थी. आशा सिंह के पिता डा. गंगाबक्श सिंह कांग्रेसी नेता थे. वह उन्नाव की हड़हा विधानसभा सीट से 4 बार विधायक और चिकित्सा शिक्षा समेत कई अन्य विभागों के मंत्री रहे. चूंकि आशा सिंह उन की होनहार और दुलारी बेटी थीं और डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर सरकारी डाक्टर बन गई थी, अत: उन्होंने बेटी का विवाह डा. प्रबल प्रताप सिंह के साथ कर दिया था. डा. आशा सिंह शिकोहाबाद में जिला स्वास्थ्य अधिकारी (डीएचओ) के पद पर तैनात थीं.

डा. प्रबल प्रताप सिंह अपने बेटे गौरव प्रताप सिंह को भी पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहते थे. गौरव प्रताप सिंह कुशाग्र पढ़ाई में होशियार था, लेकिन उस की रुचि दंत चिकित्सा में थी. वह बीडीएस की पढ़ाई हासिल कर डेंटल सर्जन बनना चाहता था. गौरव की रुचि के अनुसार प्रबल प्रताप सिंह ने उस का साथ दिया और खूब पैसा खर्च किया. गौरव ने भी खूब मेहनत की और नीट की परीक्षा पास कर कानपुर मैडिकल कालेज से बीडीएस (बैचलर औफ डेंटल सर्जरी) की डिग्री हासिल कर ली.

डाक्टर की डिग्री हासिल करने के बाद डा. गौरव प्रताप सिंह ने अपने पिता प्रबल प्रताप सिंह के सहयोग से उन्नाव बस स्टैंड के पास ‘साईं डेंटल क्लीनिक’ के नाम से अस्पताल खोल लिया. शुरूशुरू में दंत रोगियों की संख्या कम रही, लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे मरीजों की संख्या बढ़ती गई. 2 साल बीततेबीतते साईं क्लीनिक दंत चिकित्सा के क्षेत्र में मशहूर हो गया. अस्पताल में दंत रोगियों की संख्या बढ़ी तो अस्पताल की कमाई भी अच्छी होने लगी. उन्नाव शहर व आसपास के कस्बों में डा. गौरव का नाम अच्छे दंत चिकित्सक के रूप में मशहूर हो गया.

डा. गौरव की अभी तक शादी नहीं हुई थी. डा. प्रबल प्रताप सिंह अपने डाक्टर बेटे की शादी ऐसी लडक़ी से करना चाहते थे, जो दंत चिकित्सक हो ताकि वह बेटे के काम में सहयोग कर सके और घर अस्पताल को संभाल सके. वैसे डा. गौरव के लिए रिश्ते तो बहुत आ रहे थे, लेकिन बात बन नहीं पा रही थी.

डा. रुचि से हुई पहली शादी…

एक दिन बरेली के जनक सिंह अपनी बेटी रुचि का रिश्ता ले कर डा. प्रबल प्रताप सिंह के पास आए. उन्होंने बताया कि वह झांसी की एक कंपनी में बड़े पद पर तैनात है. उन की बेटी रुचि डेंटल सर्जन है. वह उन के बेटे डा. गौरव के रिश्ते के लिए आए हैं. चूंकि प्रबल प्रताप सिंह को ऐसी ही लडक़ी की तलाश थी, अत: उन्होंने रिश्ते के लिए हां कर दी. रुचि और गौरव ने भी एकदूसरे को देखा तथा आपस में बातचीत की. उस के बाद उन दोनों ने भी अपनी रजामंदी दे दी.

रजामंदी के बाद रुचि का विवाह धूमधाम से डा. गौरव प्रताप सिंह के साथ हो गया. यह बात वर्ष 2013 की है. शादी के बाद डा. रुचि डा. गौरव की पत्नी बन कर ससुराल आ गई. डा. रुचि खूबसूरत थी, इसलिए ससुराल में उस का खूब स्वागतसत्कार हुआ. रुचि भी डाक्टर पति पा कर खुश थी. डा. प्रबल प्रताप सिंह व उन की पत्नी डा आशा सिंह भी रुचि जैसी खूबसूरत व डेंटल सर्जन बहू पा कर खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. वह पड़ोसियों और नातेदारों से भी बहू की तारीफ करते थे.

डा. रुचि ने ससुराल आते ही घर व अस्पताल की जिम्मेदारी संभाल ली थी. वह पति के साथ अस्पताल जाती और महिलादंत रोगियों का इलाज करती. डा. रुचि के कुशल व्यवहार व उचित इलाज से महिला रोगियों की संख्या भी बढऩे लगी थी और आमदनी भी बढ़ गई थी. हंसीखुशी से जीवन बिताते 2 वर्ष बीत गए थे. इन वर्षों में रुचि ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद परिवार की खुशियां बढ़ गई थीं.

डा. गौरव सिंह बीयर पीने के शौकीन थे. वह घर आ कर बीयर पीते थे. बीयर पीने को ले कर डा. रुचि को भी ऐतराज न था. लेकिन बेटी के जन्म के कुछ दिनों बाद वह शराब भी पीने लगे थे. कभी वह दोस्तों के साथ शराब पी कर लौटते तो कभी घर में ही बोतल खोल कर पीने बैठ जाते. डा. रुचि को शराब पीना फिर बकवास करना पसंद न था. रुचि ने शराब का विरोध किया तो पतिपत्नी के बीच तकरार होने लगी. धीरेधीरे तकरार बढ़ती गई और उन के बीच दूरियां भी बढ़ती गईं. अब दोनों एक ही छत के नीचे रहते अजनबी बन गए.

आपसी कलह से हुआ अलगाव…

डा. रुचि को जब आभास हुआ कि डा. गौरव के साथ वह जीवन नहीं बिता पाएगी तो वह अपने पिता के पास बरेली चली गई. डा. प्रबल प्रताप सिंह ने बेटेबहू के बीच समझौता कराने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी. फिर दोनों का आपसी सहमति से तलाक हो गया.

नील कुसुम की कंडक्टर से यारी पड़ी भारी

कोरबा औद्योगिक नगर के न्यू बसस्टैंड से जब शिवम बस लेमरू स्यांग से पत्थल गांव की ओर चली तो वह खचाखच भरी हुई थी. पुरुष और महिलाओं के साथ कुछ लड़कियां भी सीट मिलने की आस में इधरउधर देख रही थीं. मगर ऐसा नहीं हो पा रहा था. बस जब थोड़ा आगे बढ़ी और धीरेधीरे व्यवस्थित होने लगी, तब एक 20 वर्षीय युवती नील कुसुम पन्ना ने देखा कि महिलाओं की सीट पर कुछ लडक़े बैठे हुए हैं. उस ने पास खड़ी एक वृद्ध उम्र की महिला से कहा, ‘‘आंटी देखिए, ये लोग क्या कर रहे हैं? आरक्षित महिला सीट पर बैठ गए हैं, इन्हें उठाइए…’’

महिला विवशता भरे स्वर में बोली, ‘‘अरे, ये लोग पहले से बैठे हुए हैं, क्यों उठेंगे भला.’’

इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘आंटी, यह महिला आरक्षित सीट है. हमारी आप की सुविधा के लिए.’’

महिला बोली, ‘‘हम तो अकसर आतेजाते हैं जिस को जहां सीट मिलती है, बैठ जाता है और फिर उठता ही नहीं है. कोई हमारी सुनता ही कहां है.’’

इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘आंटी, यह हमारा अधिकार है. इन्हें उठना होगा, आप बोलिए तो सही, नहीं बोलेंगे तो कैसे अधिकार मिलेगा.’’ इस पर महिला ने साहस कर महिला सीट पर कब्जा जमाए बैठे युवकों से कहा, ‘‘आप लोग उठिए, यह महिला सीट है. हम लोग बैठेंगी.’’ महिला सीट पर बैठे युवकों ने उस महिला की बात अनसुनी कर दी. जब महिला ने पुन: कहा तो एक युवक ने तल्ख स्वर में कहा, ‘‘देखिए, हम लोग बहुत दूर जाने वाले हैं और हमेशा ऐसा ही है यहां जो पहले आता है, वही बैठता है.’’

यह सुन कर नील कुसुम बिफर पड़ी, ‘‘जब यह महिलाओं के लिए आरक्षित है तो आप क्यों नहीं उठेंगे…’’ यह सुन कर के युवक ने गुस्से में कहा, ‘‘हम नहीं उठेंगे, जो करना हो कर लो.’’

युवकों के तेवर देख कर महिला ने मानो हथियार डालते हुए कहा, ‘‘छोड़ो, रहने दो.’

मगर कुसुम ने आगे आ कर के मोर्चा संभाल लिया. बस के ज्यादातर लोग मौन ही बैठे थे. शायद अंचल के लोग न तो कानून जानते हैं और न अपना अधिकार. ऐसे में बस में जिस को जहां सीट मिलती, बैठ जाता था और कोई कुछ बोलता भी नहीं था. मगर यह पहली दफा हुआ था, जब महिलाओं ने आरक्षित सीट पर बैठने की जिद की थी. मामला जब बिगडऩे लगा तो एक युवक सामने आया और आदेशात्मक स्वर में बोला, ‘‘आप लोग महिला सीट से उठिए, नहीं तो बस आगे नहीं जाएगी.’’ आखिरकार, महिला सीट पर बैठे हुए लोगों को उठना पड़ा.

नील कुसुम और शाहबाज का लव अफेयर…

यह था उस बस का 24 वर्षीय कंडक्टर शाहबाज. उस ने नील कुसुम और अन्य महिलाओं को महिला सीट पर बैठाने के बाद तेज आवाज में कहा, ‘‘देखिए, अभी तक जो हो गया, हो गया. आगे से महिला आरक्षित सीट पर सिर्फ महिलाएं ही बैठेंगी.’’

बस वनांचल की ओर धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी और नील कुसुम की निगाह बरबस शाहबाज की ओर चली जाती थी और शाहबाज नील कुसुम को उचटती निगाह से बारंबार देखता रहा. लगभग 30 किलोमीटर चलने के बाद मदनपुर गांव में जब बस स्टाप आया तो नील कुसुम उतरने लगी, पीछेपीछे शाहबाज भी उतर गया और मधुर स्वर में बोला, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

“नील कुसुम पन्ना,’’ बिना झिझके उस ने उत्तर दिया.

नाम सुन कर शाहबाज मानो उस की आंखों में डूब गया. इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘थैंक्स, आप ने आज बड़ी मदद की.’’

शाहबाज ने कहा, ‘‘दरअसल, बात यह है कि लेडीज ही कुछ नहीं बोलतीं, इसलिए जेंट्स महिलाओं की सीट पर भी बैठ जाते हैं. अपने अधिकार के लिए महिलाओं को आगे आना होगा और जब आप ने मांग की तो आखिर उन्हें उठना ही पड़ा.’’ फिर पूछा, ‘‘क्या आप यहीं रहती हैं?’’

“नहीं, मैं यहां पढऩे आई हूं. यहीं क्रिश्चियन हौस्टल है, वहां रह कर पढ़ रही हूं. कुछ दिनों में घर चली जाती हूं.’’ इस पर शाहबाज ने कहा, ‘‘मोस्ट वेलकम.’’ और मुसकरा दिया. नील कुसुम भी मुसकराहट बिखेरती हुई चली गई.

कोरबा नगर छत्तीसगढ़ का एक औद्योगिक तीर्थ के रूप में एशिया भर में विख्यात है. यहां नवरत्न कंपनी नैशनल थर्मल पावर कारपोरेशन का विशाल विद्युत प्लांट है. इस के साथ ही यहां दुनिया भर में प्रसिद्ध भारत अल्युमिनियम कंपनी (वेदांता) है और कोयले की अनेक खदानें हैं. यहीं दक्षिणपूर्व कोयला प्रक्षेत्र की एक कालोनी पंप हाउस के क्वार्टर में कोलियारी कर्मचारी बुधराम पन्ना अपनी पत्नी फूलबाई, बेटी नील कुसुम और बेटा नीतीश के साथ रहते थे.

दूसरी तरफ नील कुसुम और शाहबाज की मुलाकातें अब अकसर होने लगी थीं. इस दरमियान शाहबाज ने नील कुसुम का मोबाइल नंबर भी ले लिया था और दोनों ही फोन पर रोजाना चैटिंग किया करते थे. यानी नील कुसुम को भी कंडक्टर से प्यार हो गया था. जवानी के प्यार में दोनों डूब चुके थे.

एक दिन शाहबाज ने नील कुसुम से कहा, ‘‘मैं बस कंडक्टर की नौकरी छोड़ कर के अहमदाबाद, गुजरात जा रहा हूं. वहां कुछ मेरे मित्र गए हुए हैं और अच्छा पैसा कमा रहे हैं. मैं भी चाहता हूं कि खूब सारे पैसे कमाऊं. क्या तुम मेरे साथ गुजरात चलोगी?’’ नील कुसुम भी शाहबाज को प्यार तो करती थी, मगर उस की बातें सुन कर वह हैरान होते हुए बोली, ‘‘अरे बाप रे, अहमदाबाद… वह तो बहुत दूर है.’’

मुसकरा कर के शाहबाज ने कहा, ‘‘वहीं तो जिंदगी है, स्वर्ग है, पैसे हैं.’’

“मगर मैं तो अभी पढऩा चाहती हूं, पढ़लिख कर मुझे कुछ बनना है.’’ नील कुसुम मासूमियत से बोली.

यह सुन कर हंसते हुए शाहबाज ने कहा, ‘‘तुम्हें रानी बना कर रखूंगा पैसे तो मैं कमाऊंगा.’’

“मगर, मेरा बचपन से एक सपना है कि मैं नर्स बनूं. मैं लोगों की सेवा करना चाहती हूं.’’

“नर्सवर्स में क्या रखा है, मैं कहां तुम्हें स्वर्ग ले जाने की बात कर रहा हूं और तुम यही गुरबत की जिंदगी जीना चाहती हो.’’

“मुझे थोड़ा समय दो, मुझे समझना पड़ेगा, क्योंकि मैं मांबाप को भी नहीं छोड़ सकती. मैं यहीं कोरबा में ही रहना चाहती हूं.’’

यह सुन कर के शाहबाज को निराशा हुई. मगर उस ने कहा, ‘‘चलो कोई बात नहीं, तुम सोचविचार कर फैसला लो.’’

अहमदाबाद से आया मर्डर करने…

क्रिसमस त्यौहार की चारों ओर धूम मची हुई थी. नील कुसुम का परिवार क्रिसमस की तैयारियों में डूबा हुआ था’ अभी एक दिन पहले ही वह अपने लिए नए कपड़े माल से खरीद कर लाई थी. 24 दिसंबर, 2022 सुबह का समय था. नील कुसुम के मोबाइल पर काल आई, उस ने देखा शाहबाज का नंबर था. काल रिसीव की तो उधर से हंसते हुए शाहबाज ने कहा, ‘‘मैं आ गया हूं तुम से बहुत जरूरी काम है.’’

“मेरे से भला तुम्हें क्या काम हो सकता है? तुम्हारे रास्ते तो अब अलग हो गए हैं न.’’

“अरे यार, तुम नाराज मत हो, मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. एक बार अंतिम बार मिल लो.’’ शाहबाज ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘मैं मदनपुर से कोरबा आई हुई हूं. पंप हाउस घर पर ही हूं बड़े दिन का त्यौहार मनाने के लिए .’’ थोड़ी ही देर में शाहबाज पंप हाउस के क्वार्टर पर आ पहुंचा. नील कुसुम घर पर अकेली थी. पिताजी और मां दोनों ही अपनेअपने काम पर गए हुए थे. भाई कहीं घूमने गया हुआ था. शाहबाज ने थोड़ी देर बाद इधरउधर की बातचीत की और कहा, ‘‘नील, मैं सिर्फ तुम्हारे लिए ही अहमदाबाद से फ्लाइट से सीधा तुम से मिलने आया हूं देखो… एयर टिकट.’’

यह सुन कर नील कुसुम ने एयर टिकट हाथ में ले मुसकराई फिर बोली, ‘‘लगता है अच्छा पैसा कमा रहे हैं. खैर, मैं तो तुम्हारा स्वागत कर रही हूं.’’

“तुम मेरे साथ अहमदाबाद चलो न.’’

“नहीं, मैं नहीं जा सकती.’’ नील कुसुम ने साफसाफ कहा.

“अच्छा, तो तुम राजेश के साथ आजकल मजे कर रही हो.’’

“मुझे तुम्हारी ये बातें अच्छी नहीं लगतीं. मैं क्या कर रही हूं, क्या करूंगी, इस के लिए तो मैं आजाद हूं न.’’

“मैं समझ गया, तुम क्या चाहती हो,’’ यह कह कर गुस्से से लाल शाहबाज ने उस के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए. इस पर नील कुसुम भडक़ गई और बोली, ‘‘तुम मेरे घर से तत्काल निकल जाओ.’’

इतना सुनना था कि शाहबाज गुस्से से लालपीला हो गया और उसे मारने लगा, फिर नीचे पटक कर तकिया सीधा उस के मुंह के ऊपर रख दिया. नील कुसुम छटपटाने लगी. उस की सांस रुकने लगी. मगर शाहबाज पर मानो उस पर भूत सवार हो गया था, थोड़ी ही देर बाद नील कुसुम की सांसें थम गईं और वह मर गई. गुस्से से बड़बड़ाता हुआ शाहबाज उठ खड़ा हुआ, ‘तुम्हें मार डालूंगा’ कह कर पास में रखा हुआ एक बड़ा पेचकस उठा लाया और उस के सीने पर वार करने लगा.

चारों तरफ खून फैल गया. उस के चेहरे पर भी खून के छींटे पड़े, जो उस ने पोंछ लिए. प्रेम प्रसंग में मर्डर कर वह घर के पिछवाड़े से चुपचाप बाहर भाग गया. दोपहर 12 बजे जब नितेश घर के भीतर पहुंचा तो बहन नील कुसुम की खून से लथपथ लाश देख कर उस की चीख निकल गई. वह रोता हुआ बाहर आया और आसपास के लोगों को बुलाया.

पुलिस ने की जांचपड़ताल…

पड़ोसियों ने घर के मंजर को देख कर तुरंत 112 नंबर पर फोन कर पुलिस को घटना की जानकारी दी. थोड़ी ही देर बाद सीएसईबी चौकी का पुलिस स्टाफ आ गया. चौकी इंचार्ज की सूचना पर थाना कोतवाली के एसएचओ रूपक शर्मा जैसे ही घटनास्थल पर पहुंचे तो थोड़ी ही देर में ही एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी वहां आ गए.

पुलिस ने नील कुसुम की लाश का निरीक्षण किया. उस के चेहरे पर तकिया रखा हुआ था. पास ही खून से सना एक बड़ा पेचकस पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर कई जगह उस से वार किया गया था. ऐसा पहली निगाह में ही जान पड़ता था. पुलिस द्वारा डौग स्क्वायड को बुला लिया गया. खोजी कुत्ता आसपास घूमने के बाद वापस आ गया.

पुलिस को नील कुसुम के मातापिता और भाई द्वारा जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि सुबह पिता बुधराम पन्ना कोयला खदान में अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. मां डीएवी स्कूल में साफसफाई का कार्य करती थी और उस दिन स्कूल में एनुअल फंक्शन था. भाई नितेश ने बताया कि वह मां को स्कूल छोडऩे गया था. उस के बाद पास ही के एक गांव दादर में अपने दादाजी से मिलने चला गया था. वहां से जब वह घर पहुंचा तो दीदी को मृत अवस्था में देखा.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला हौस्पिटल भिजवा दिया गया. घटनास्थल पर कुछ कपड़े, संदिग्ध वस्तुएं, अहमदाबाद से रायपुर का एयर टिकट और रायपुर से कोरबा तक का बस टिकट मिला. पूछताछ में यह स्पष्ट हो गया कि अहमदाबाद से शाहबाज कंडक्टर ने ही जान ली है. और वारदात को अंजाम देने के बाद गायब हो गया है. पुलिस ने जब आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच की तो उस में शाहबाज दिखाई दे गया. घटना की गंभीरता को देखते हुए एसपी संतोष सिंह ने आरोपी को पकडऩे के लिए 4 पुलिस टीमें गठित कीं और निर्देश दिए कि जल्द से जल्द शाहबाज को हिरासत में लिया जाए.

एक टीम अहमदाबाद के लिए रवाना हो गई, दूसरी टीम शाहबाज के गांव के लिए निकटवर्ती जिला जशपुर के लिए रवाना हुई. पुलिस को यह जानकारी मिली थी कि शाहबाज अंबिकापुर की तरफ गया है. पुलिस की एक टीम सरगुजा की तरफ रवाना हुई. पुलिस शाहबाज को पकडऩे के लिए प्रयास करती रही. इस दिशा में जब पुलिस को यह जानकारी मिली कि शाहबाज अहमदाबाद पहुंच गया है तो टीम अहमदाबाद के लिए रवाना हो गई. जैसे पुलिस वहां पहुंची तो शाहबाज वहां से फरार हो गया. वह पुणे चला गया. वहां से नागपुर होते हुए जैसे ही छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से रायपुर की ओर बस में जा रहा था तो उस के फोन की लोकेशन के जरिए बस रुकवा कर उसेराजनांदगांव, छत्तीसगढ़ में नील कुसुम मर्डर केस के आरोपी शाहबाज को हिरासत में ले लिया गया.

पूछताछ करने पर प्यार में पागल हुए प्रेमी शाहबाज ने पुलिस को बताया कि 3 साल पहले जब वह कोरबा से पत्थलगांव चलने वाली बस का कंडक्टर था. नील कुसुम से उस की जानपहचान चलने वाली धीरेधीरे प्रेम संबंध में बदल गई. दोनों प्रेम की पींगें भरने लगे. जब वह रुपए कमाने अहमदाबाद चला गया, तब तक भी नील कुसुम उस से बात करती थी. दोनों जीनेमरने की कसमें खाते थे. मगर अचानक कुछ समय पहले नील कुसुम ने बातें करनी कम कर दी.

उस ने पता किया तो जानकारी मिली, वह किसी और से प्यार करने लगी है. इस से वह परेशान हो गया था. इसीलिए नील कुसुम को प्रभावित करने के लिए कि अब अहमदाबाद में वह खूब पैसे कमाने लगा है, यह बताने के लिए जानबूझ कर के हवाईजहाज से रायपुर आया था और उसे टिकट दिखा कर के प्रभावित करना चाहता था. मगर जब बात नहीं बनी तो उस ने गुस्से में 24 दिसंबर, 2022 की सुबह लगभग 11 बजे पहले उस के साथ हाथापाई की फिर मुंह पर तकिया रख मार डाला.

कंडक्टर प्रेमी ने कुबूला जुर्म…

यही नहीं गुस्से में पागल हो कर घर में रखे पेचकस से उस पर अनगिनत वार किए. जब उसे महसूस हुआ कि नील कुसुम की मौत हो चुकी है तो वह पिछले दरवाजे से बाहर निकला और सीधा सीएसईबी चौक पहुंच कर वहां से कटघोरा के लिए बस में बैठ गया.

शाहबाज ने बताया कि वह क्राइम सीरियल देखा करता था, इसलिए उस ने पुलिस को चकमा देने के लिए कटघोरा से बस बदल ली. फिर दूसरी बस से अंबिकापुर की ओर निकल गया. अंबिकापुर में एटीएम से पैसे निकाले. आगे अहमदाबाद के लिए रवाना हो गया. वहां पहुंच कर जब उसे यह जानकारी मिली कि पुलिस अहमदाबाद पहुंचने वाली है तो वह वहां से पुणे, महाराष्ट्र भाग गया. वहां से भी गाड़ी बदल कर के वह एक बार फिर नागपुर के लिए निकल गया. वह भागतेभागते परेशान हो गया था. इसलिए एक बार छत्तीसगढ़ जाने का निश्चय किया और रायपुर की ओर जा रहा था.

एसपी संतोष सिंह ने पहली जनवरी 2023 को एक पत्रकार वात्र्ता में घटनाक्रम का खुलासा कर दिया. शाहबाज से पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि उस का ममेरा भाई तबरेज खान मोबाइल पर शाहबाज को पलपल की जानकारी देता रहता था. इसलिए साक्ष्य छिपाने और मदद करने के इल्जाम में पुलिस ने तबरेज को भी हिरासत में लिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नील कुसुम के शरीर पर पेचकस से गोदने के 51 घाव पाए गए थे.

सीएसईबी चौकी पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के 28 वर्षीय शाहबाज साकिन ग्राम रुपसेरा (भडिया) जिला जशपुर और तबरेज खान उर्फ छोटू (21 साल) साकिन लरंगा, जिला जशपुर, छत्तीसगढ़ को गिरफ्तार कर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कोरबा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को कोरबा जिला जेल दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

फोन फ्रैंड से लाश तक

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित थाना बिसरख पुलिस को कंट्रोलरूम से सूचना मिली कि रेलवे यार्ड के लोको शेड के नजदीक स्थित चिपियाना तालाब में एक कंकाल बन चुकी लाश पड़ी है. लाश मिलने की सूचना पाते ही बिसरख थाने केएसएचओ अनिल कुमार राजपूत मय पुलिस टीम के मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश तालाब से निकलवा कर अपने कब्जे में ले ली.

तालाब से नरमुंड, शरीर के अन्य अंगों की हड्डियां, कपड़े, बेल्ट, जूते, चाबी आदि बरामद हुए. लाश कंकाल में बदल चुकी थी.  इसलिए उस की शिनाख्त होनी संभव नहीं थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई निपटाने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने इस की सूचना सभी अखबारों में भी प्रसारित करा दी. हत्यारों तक पहुंचने से पहले लाश की शिनाख्त होनी जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने जिले भर में गुमशुदगी के दर्ज सारे मामलों की जांचपड़ताल शुरू कर दी.

उधर चिपियाना के तालाब से लाश मिलने की खबर आसपास के क्षेत्र में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी. इसी बीच एक व्यक्ति ने पुलिस को बताया कि करीब 7 महीने से हैबतपुर का रहने वाला रंजीत नाम का एक युवक जो कपड़ों पर प्रैस करने का काम किया करता था, लापता है. इस पर पुलिस ने रंजीत के परिजनों को सूचना भिजवाई.

सूचना मिलते ही हैबतपुर गांव का गुड्डू थाने पहुंचा. पुलिस ने उसे लाश को फोटो और सामान दिखाया तो उस ने बताया कि यह सामान पिछले 7 महीने से लापता उस के 26 वर्षीय छोटे भाई रंजीत कनौजिया का ही है. गुड्डू ने पुलिस को बताया कि हम लोग मूलरूप से हरदोई में रहते हैं. रंजीत गौतमबुद्ध नगर के ही हैबतपुर गांव में रहने लगा था. वह ग्रेटर नोएडा (वेस्ट) की सोसायटी में लोगों के कपड़े प्रैस करता था. 13 जून, 2022 को रंजीत संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गया था. उस का मोबाइल भी बंद हो गया. इस पर घर वाले उस की तलाश में जुट गए. जब उस का कहीं सुरागनहीं मिला तो बिसरख थाने में शिकायत की.

5 माह बाद दर्ज हुई गुमशुदगी…

ग्रेटर नोएडा के रंजीत कनौजिया मर्डर केस की जांच के शुरुआत में पुलिस ने ढुलमुल रवैया अपनाया. पुलिस ने घर वालों से ही अपने स्तर से रंजीत को तलाशने की बात कही. घर वालों ने सभी रिश्तेदारियों व अन्य जगहों पर उस की तलाश की, लेकिन उस का कहीं पता न चला. फिर लापता होने के 5 महीने बाद 24 नवंबर, 2022 को घर वालों के दबाव पर रंजीत की गुमशुदगी पुलिस ने दर्ज कर ली.

गुड्डू ने बताया कि भाई के लापता होने के बाद हमें थाने से ले कर पुलिस चौकी के चक्कर लगाने पड़े. गुमशुदगी दर्ज करने के लिए उन्हें 5 महीने तक टरकाया जाता रहा. समझ नहीं आ रहा था कि आखिर रंजीत को जमीन खा गई या आसमान निगल गया, गुमशुदगी दर्ज होने के बाद भी पुलिस रंजीत का कोई पता नहीं लगा सकी.

कंकाल बरामद होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की. पुलिस ने रंजीत के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो आखिरी काल गाजियाबाद के बम्हैटा निवासी एक युवती की मिली. इस युवती से रंजीत की अकसर लंबीलंबी बातें होती थीं. रंजीत के घर वालों ने पुलिस को बताया कि नेहा दुबे नाम की रंजीत की एक प्रेमिका थी. उन्होंने प्रेमिका और उस के परिवारपर हत्या का शक जता कर पुलिस को इस बारे में पूरी जानकारी दी.

नेहा का परिवार मूलरूप से बिहार का रहने वाला था, लेकिन इस समय नेहा शंकर विहार, मंगल बाजार, शाहपुर बम्हैटाथाना वेव सिटी, गाजियाबाद में काफी समय से अपने परिवार के साथ रह रही थी.इस के बाद पुलिस ने बम्हैटा पहुंच कर नेहा व उस के घर वालों से पूछताछ की. नेहा ने पुलिस को बताया कि 13 जून, 2022 को रंजीत घर आया था. रंजीत ने उस से कहा था कि उस के पिता की मौत हो गई है. इस के चलते वह अपने गांव जा रहा है. उस के बाद से उस से बात नहीं हुई है. पूछताछ करने के बाद पुलिस वापस आ गई.

जब पुलिस ने मृतक के घर वालों से तथ्यों की पुष्टि की तो पता चला कि नेहा और उस के घर वाले पुलिस को गुमराह कर रहे हैं. मजे की बात यह है कि रंजीत के पिता अभी जीवित हैं. तब पुलिस का माथा ठनका. पुलिस के शक की सुई यहीं से नेहा और उस के घर वालों के इर्दगिर्द घूमने लगी. पुलिस को रंजीत के घर वालों से इस बात की जानकारी हुई कि रंजीत और नेहा दुबे के प्रेम संबंध पिछले 8 सालों से चले आ रहे थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने नेहा के घर वालों से सख्ती से पूछताछ की. आखिर में पुलिस की पूछताछ केआगे घर वालों ने घुटने टेक दिए. उन्होंने रंजीत का प्यार में कत्ल करने का जुर्म कुबूल कर लिया. पता चला कि इन के प्यार में नेहा के घर वाले खलनायक बने थे.

पुलिस ने 5 फरवरी, 2023 को रंजीत कनौजिया मर्डर केस में सभी आरोपियों को नामजद कर हत्या, एससी/एसटी एक्ट वशव छिपाने की धारा में केस दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सोमवार 6 फरवरी को रंजीत की प्रेमिका आरोपी नेहा, उस के पिता रामबाबू दुबे, भाई शुभम दुबे, मां मीना दुबे व मामा मनीष पांचों को गिरफ्तार कर लिया. इस के साथ ही हत्या के बाद जिस बाइक से रंजीत की लाश ठिकाने लगाने के लिए ले गए थे, उसे भी बरामद कर लिया.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद प्रैस कौन्फ्रैंस में ग्रेटर नोएडा के एडीशनल डीसीपी विशाल पांडेय ने रंजीत मर्डर केस काखुलासा करते हुए बताया कि रंजीत अपनी प्रेमिका नेहा, जिस के साथ वह पिछले 8 साल से रिलेशनशिप में था, उस ने आपत्तिनजक वीडियो बना लिए थे. प्रेमिका के घर वालों ने जब शादी करने से इंकार कर दिया तब प्रेमी रंजीत ने प्रेमिका के कुछ अश्लील वीडियो उस के भाई के मोबाइल पर भेज दिए. साथ ही घर वालों को वीडियो वायरल करने की धमकी भी दी. डीसीपी ने कहा कि बरामद कंकाल का डीएनए टेस्ट कराया जाएगा. इस के साथ ही पुष्टि के लिए फोरैंसिक जांच का भी सहारा लिया जा रहा है.

मिस्ड काल से शुरू हुआ प्यार…

करीब 8 साल पहले की बात है. ग्रेटर नोएडा स्थित एक सोसायटी के फ्लैट में प्रैस के कपड़े देने रंजीत जा रहा था. वहीं लिफ्ट में एक मोबाइल नंबर लिखा हुआ था. रंजीत ने उस नंबर पर मिस काल दी. वह नंबर गाजियाबाद के शाहपुर बम्हैटा में रहने वाली नेहा दुबे का था. इस तरह दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.  बातचीत के दौरान रंजीत और नेहा में दोस्ती हुई. कुछ दिनों बाद रंजीत ने नेहा से प्यार का इजहार किया. जवाब में युवती ने भी मोहब्बत का इकरार कर लिया.

फिर दोनों की मोहब्बत कुछ ऐसे मुकाम पर जा पहुंची कि दोनों के बीच हर फासला मिट गया था. दोनों मन से ही नहीं बल्कि तन से भी एक हो गए थे. 8 साल पहले रंजीत और नेहा के बीच जब प्यार हुआ, तब दोनों ने ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. उस समय रंजीत 18 साल का तो नेहा 15 साल की थी. यह उम्र बहुत नाजुक होती है. उन्होंने जाति, धर्म की दीवार को तोड़ कर एकदूसरे से सच्चा प्यार किया था. उन्हें अपने प्यार के आगे ये सब बातें बौनी नजर आती थीं.

दोनों ने अपनी जिंदगी के सतरंगी सपने संजोए थे और एकदूसरे का हाथ थाम कर शादी करने का वादा किया था, लेकिन 8 साल की लंबी अवधि में दोनों का प्यार प्यार न रहा, सब कुछ बदल गया.

ज्यादातर युगल प्यार के दौरान मिलन के अंतरंग पलों को फोटो और वीडियो में कैद कर लेना चाहते हैं. प्यार में इस बात से बेखबर रहते हैं कि भविष्य में यही वीडियो और फोटो से उन की जान पर भी बन सकती है. रंजीत और नेहा के प्रेम संबंधों में भी यही हुआ. रंजीत और नेहा की दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया था.

इस की जानकारी जब नेहा केघर वालों को हुई तो उन्होंने रंजीत के दूसरी जाति का होने व कपड़ों पर प्रैस करने का काम करने को ले कर शादी करने से साफ इंकार कर दिया.नेहा ने इस बात को ले कर अपने घर वालों से विरोध भी जताया, लेकिन घर वालों के आगे उस की एक न चली. नेहा चाह कर भी अपने दिल से रंजीत को नहीं निकाल पा रही थी. लेकिन वह घर वालों के सामने बेबस थी. तब उस ने रंजीत से कहा,

‘‘रंजीत, अब हमारी शादी होनी नामुमकिन है, इसलिए बेहतर यही है कि तुम मुझे भूल जाओ और अपनी जिंदगी से निकाल दो.’’

शादी के लिए की ब्लैकमेलिंग…

यह सुनते ही रंजीत की आंखों से आंसू निकल आए. उस ने कहा कि वह अपने 8 साल के प्यार को मरते दम तक नहीं भुला सकता. रंजीत हर हाल में नेहा से शादी करना चाहता था. लेकिन नेहा के घर वालों के विरोध के चलते बात बन नहीं पा रही थी. इस से रंजीत काफी परेशान था. अपने गम को भुलाने के लिए उस ने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया.

जब किसी भी तरह बात नहीं बनी, तब गुस्साए रंजीत ने उन्हीं अंतरंग पलों के आपत्तिजनक वीडियो और फोटो प्रेमिका नेहा के भाई शुभम के मोबाइल पर भेज दिए. वह नेहा के घर वालों पर शादी के लिए दबाव बनाने लगा. उस ने धमकी दी कि यदि नेहा की शादी उस के साथ नहीं की तो वह आपत्तिजनक वीडियो को वायरल कर बदनाम कर देगा. वह उस की शादी कहीं दूसरी जगह नहीं होने देगा. रंजीत शराब के नशे में कभी भी नेहा के घर पहुंच कर शादी के लिए हंगामा भी कर देता था.

रंजीत की रोजरोज की धमकी व उस के द्वारा भेजी गई नेहा की अश्लील तसवीरें और वीडियो देखने के बाद नेहा के घर वालों की नींद उड़ी हुई थी. उस की इन हरकतों से नेहा और उस के घर वाले आजिज आ चुके थे. समाज और बिरादरी में बदनामी के डर से नेहा के घर वालों ने रंजीत से छुटकारा पाने के लिए उस की हत्या का फुलप्रूफ प्लान बनाया. योजना के तहत नेहा ने 13 जून, 2022 की रात रंजीत को फोन किया. उस ने रंजीत से कहा, ‘‘मेरे घर वाले अब हमारी शादी के लिए तैयार हो गए हैं. वे इस संबंध में तुम से बात करना चाहते हैं, इसलिए तुम इसी समय घर आ जाओ.’’

रंजीत नेहा के झांसे में आ गया और रात में ही बम्हैटा स्थित नेहा के घर जा पहुंचा. उस समय वह शराब के नशे में था. शराब के नशे में नेहा के घर पहुंचे रंजीत को नेहा के भाई शुभम उर्फ शिवम दुबे, पिता रामबाबू दुबे, मां मीना उर्फ बीना दुबे व मामा मनीष ने घर में आते ही दबोच लिया. रामबाबू ने रंजीत के हाथ, मनीष ने पैर पकड़े और शुभम ने अपने हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. यानी भाई कसाई तो मामा कंस बन बैठा. वारदात के समय सारा मंजर मां मीना उर्फ बीना व प्रेमिका नेहा वहीं खड़ीखड़ी देख रही थीं.

बाइक से शव को लगाया ठिकाने…

रंजीत की गला दबा कर हत्या करने के बाद अब शव को जल्द से जल्द ठिकाने लगाना था. इस के लिए रात गहराने का इंतजार किया. जब रास्ता सुनसान हो गया, तब रंजीत के शव को भाई शुभम व मामा मनीष ने बाइक पर बीच में इस प्रकार बैठाया जैसे 3 सवारियां बाइक पर बैठ कर जा रही हों, ताकि किसी को शक न हो कि वे लाश को ले जा रहे हैं. शव को ले जाकर दोनों ने चिपियाना गांव के तालाब में फेंक दिया और घर वापस आ गए.

रंजीत 3 भाई व 3 बहनों में तीसरे नंबर का था. 7 माह बीतने के बाद भी जब पुलिस रंजीत का पता नहीं लगा सकी, तब बड़े भाई गुड्डू ने परेशान हो कर मंझले भाई सुशील को बागेश्वर धाम पर रंजीत का पता लगाने के संबंध में अरजी लगाने भेजा था. सुशील द्वारा बागेश्वर धाम में अरजी लगाने से पहले ही पुलिस ने घटना का खुलासा कर रंजीत की हत्या के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

बिसरख थाना पुलिस को चिपियाना गांव के तालाब से जब एक नरकंकाल मिला था, उसी समय से पुलिस जांच करते हुए कडिय़ां जोडऩे में जुट गई थी. मृतक के घर वालों व रंजीत के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने पर पता चला कि रंजीत की एक युवती से लंबे समय तक बात होती थी. आखिर में पुलिस युवती और उस के घर वालों तक पहुंच ही गई.

घटना से एक माह पहले रंजीत शराब पी कर नेहा के घर पहुंच गया था. तब उस ने वहां हंगामा भी किया. जिस पर नेहा के घर वालों ने रंजीत की पिटाई भी की थी. इस से परेशान और नाराज घर वालों ने रंजीत को अपने घर बुला कर 7 महीने पहले उस की हत्या कर दी और हत्या का राज छिपाने के लिए शव को चिपियाना के तालाब में फेंक दिया.

इस ब्लाइंड मर्डर का परदाफाश होने के बाद बिसरख थाने पहुंचे रंजीत के घर वालों ने नेहा के घर वालों पर आरोप लगाया कि नेहा और रंजीत के बीच पिछले 8 सालों से प्यार था. वे एकदूसरे के घर भी आतेजाते थे. चूंकि दोनों अलगअलग जाति के थे, जिस के चलते नेहा के घर वाले उस के साथ शादी नहीं करना चाहते थे. उन्होंने रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि रंजीत को शादी का झांसा दे कर नेहा उस से पैसे ऐंठती रहती थी. उन पैसों से उस ने आभूषण भी बनवा लिए थे. रंजीत कपड़ों पर प्रैस के काम से जो भी कमाता था, वह नेहा पर ही खर्च कर देता था.

मंडप तक नहीं पहुंचा प्यार…

रंजीत और उस की नेहा के बीच प्यार का गहरा रिश्ता था, लेकिन नेहा के परिवार वालों ने उन के बीच जाति की दीवार खड़ी करने के साथ ही अमीरीगरीबी की खाईं खोद दी थी. इस के साथ ही अपनी झूठी शान की खातिर उन्होंने 2 प्रेमियों को मिलने से जुदा कर दिया. परिणामस्वरूप पांचों को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

बिना सोचे गुस्से में उठाए गए इस कदम से उन्हें क्या हासिल हुआ? क्या ऐसा संभव है कि पिछले 8 सालों से रंजीत और नेहा के बीच चल रहे प्रेमसंबंधों की जानकारी नेहा के घर वालों को न हो? जबकि दोनों का एकदूसरे के यहां आनाजाना भी था. लगभग 8 साल पहले मिस्ड काल से शुरू हुआ रंजीत और उस की 23 वर्षीय प्रेमिका नेहा का प्यार शादी के मंडप तक नहीं पहुंच पाया. रंजीत का सपना था कि नेहा के साथ सात फेरों के बंधन में बंधने का, लेकिन इस के बजाय उसे मौत मिली और  रंजीत के घर वालों को शव तक नहीं मिल पाया.

रंजीत नेहा से शादी करना चाहता था, लेकिन उस ने दबाव बनाने के लिए गलत तरीका अपना लिया, जिस का परिणाम यह हुआ कि उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. खुद के व परिवार के दामन पर बदनामी का दाग न लगे, इसलिए प्रेमिका नेहा ने अपने प्रेमी रंजीत को झूठ बोल कर फोन कर के अपने घर बुला लिया. जबकि वह जानती थी कि रंजीत को घर बुलाने के बाद क्या होने वाला है. लेकिन बिसरख थाना पुलिस ने इस दिल दहला देने और मानवता को शर्मसार करने वाले कातिलाना इश्क का परदाफाश कर दिया.

इस ब्लाइंड मर्डर का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को डीसीपी ने पुरस्कृत करने की घोषणा की है.आखिर परिवार जिस बदनामी के दंश से बचना चाह रहा था, उसे अपनी हैवानियत के चलते झेलना ही पड़ा. पुलिस ने प्रेमिका सहित 5 आरोपियों को जेल भेज कर बता दिया कि अपराधी अपने अपराध को चाहे जितना छिपाए, आखिर एक दिन वह उजागर जरूर होता है. रंजीत और नेहा का प्यार 8 साल तक परवान जरूर चढ़ा, लेकिन उस का अंत दुखदाई ही हुआ. जिसे लोग सच्चा प्यार समझते हैं, वह कभी भी उन की जान का दुश्मन बन सकता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मांगा सुहाग मिली मौत

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 2

मुदित पर शक और गहराया तो रत्नेश सिंह ने मुदित और प्रियंका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस रिपोर्ट ने पुलिस को और चौंका दिया. काल डिटेल्स से पता चला कि मुदित और प्रियंका के बीच हर रोज डेढ़दो घंटे बातचीत होती थी. पुलिस को शक हुआ कि कहीं मुदित और प्रियंका के बीच नाजायज संबंध तो नहीं हैं. कहीं इन अवैध रिश्तों के कारण डा.गौरव के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. पर जो भी रहस्य है, इन दोनों के पेट में ही छिपा है. इस रहस्य का परदाफाश होना जरूरी था.

मुदित वायुसेना में सार्जेंट था. उस के पेट से रहस्य उगलवाना इतना आसान न था, इसलिए इंसपेक्टर रत्नेश सिंह ने मुदित पर शक होने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद डीसीपी (ईस्ट) रविंद्र कुमार तथा एसीपी (चकेरी) अमरनाथ यादव थाना चकेरी आ गए. उन्होंने मुदित से पूछताछ की. 2 राउंड की पूछताछ तक मुदित यही कहता रहा कि डा. गौरव उस के घर आए थे. वह नशे में थे. कार वह चला नहीं पाते, इसलिए कार हम ने घर पर खड़ी करा दी और उन्हें रोडवेज बस में बिठा कर उन्नाव भेज दिया था. उस के बाद वह कहां लापता हो गए, उसे जानकारी नहीं.

एयर फोर्स सार्जेंट ने उगला सच…

तीसरे राउंड की पूछताछ पुलिस अधिकारियों ने मोबाइल लोकेशन व काल डिटेल्स के आधार पर सख्ती से की. उन्होंने पूछा, ‘‘मुदित, 13 मार्च की रात 10 बजे तुम कहां थे? घर पर थे या फिर कहीं बाहर गए थे?’’

“सर, मैं घर पर ही था.’’ मुदित ने बताया.

“तुम कुलगांव या रूमा की तरफ नहीं गए थे?’’ मुदित कुछ देर सोचता रहा. उस की भंगिमा भी बदली. लेकिन फिर निडर हो कर बोला, ‘‘सर, मैं रूमा नहीं गया. घर पर ही था.’’

“लेकिन तुम्हारी फोन लोकेशन तो रूमा बता रही है. तुम सरासर झूठ बोल रहे हो और हमें गुमराह कर रहे हो. सचसच बताओ, वरना…’’ अमरनाथ गुस्से से बोले. पुलिस अधिकारियों की सख्ती से मुदित का मनोबल टूट गया. वह सिर झुका कर बोला, ‘‘सर, डा. गौरव अब इस दुनिया में नही है?’’

“क्या तुम ने डा. गौरव को मार डाला है?’’ डीसीपी (पूर्वी) रविंद्र कुमार ने पूछा.

“हां सर, मैं ने उसे बेरहमी से मार डाला. मैं हत्या का जुर्म कुबूल करता हूं.’’

“डा. गौरव तो तुम्हारा जिगरी दोस्त था. फिर उसे क्यों मारा?’’

“सर, यह सच है कि डा. गौरव मेरा जिगरी दोस्त था. इसी दोस्ती की आड़ में मेरे नाजायज संबंध डा. गौरव की पत्नी प्रियंका से हो गए थे. इस अवैध रिश्ते की जानकारी डा. गौरव को हो गई थी. उस के बाद वह मुझे शक की नजरों से देखने लगा था. कभीकभी कटाक्ष भी करता था. फिर मुझे लगा कि अगर मैं ने डा. गौरव की हत्या नहीं की तो वह मेरी हत्या कर देगा. इसलिए उसे मौत की नींद सुला दिया.’’

“हत्या में तुम्हारे साथ प्रियंका या कोई और भी शामिल था?’’

“नहीं, प्रियंका को कोई जानकारी नहीं थी. हत्या में अन्य कोई भी शामिल नहीं था.’’

“डा. गौरव की लाश कहां है?’’ एसीपी अमरनाथ ने पूछा.

“सर, उस की लाश कुलगांव फ्लाईओवर (महाराजपुर) के नीचे वाले जंगल में फेंक दी थी. उस का मोबाइल फोन भी वहीं तोड़ कर फेंक दिया था.’’

अब तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस अधिकारी आवश्यक पुलिस बल और मुदित को साथ ले कर कुलगांव फ्लाईओवर के पास जंगल में पहुंच गए. वहां मुदित की निशानदेही पर डा. गौरव के शव को पुलिस ने बरामद कर लिया. शव से कुछ दूरी पर डा. गौरव का चकनाचूर मोबाइल फोन पड़ा था. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. मुदित ने डा. गौरव की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी. उस ने उस का सिर हाइवे किनारे लगे पत्थर पर कई बार पटका था, जिस से उस का सिर फट गया था और उस की मौत हो गई थी. जामातलाशी में उस के पास से 7 लाख की रकम बरामद नहीं हुई थी.

पुलिस ने की लाश बरामद…

डा. गौरव मर्डर केस का खुलासा होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने हाइवे किनारे लगे उस पत्थर का भी निरीक्षण किया, जिस से मुदित ने सिर पटकपटक कर डा. गौरव की हत्या की थी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने डा. गौरव के शव को बरामद कर मौके की काररवाई पूरी की और शव को पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय जिला अस्पताल भिजवा दिया तथा हत्या में प्रयुक्त क्रेटा कार मुदित के घर से बरामद कर ली.

अगले दिन सुबह को एसीपी (चकेरी) अमरनाथ यादव ने डा. गौरव की हत्या की खबर मृतका के पिता डा. प्रबल प्रताप सिंह तथा पत्नी प्रियंका सिंह को दे दी. डा. गौरव की हत्या की खबर सुनते ही प्रियंका के घर में कोहराम मच गया. कुछ देर बाद प्रियंका अपनी मां और बहन के साथ थाना चकेरी आ गई. वहां जब प्रियंका को पता चला कि पति की हत्या मुदित ने की है तो वह अवाक रह गई. मांबेटी मुदित से कुछ पूछना चाहती थीं, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस ने इजाजत नहीं दी.

अब तक सूचना पा कर डा. प्रबल प्रताप सिंह भी थाना चकेरी आ गए थे. एसीपी अमरनाथ से सामना होते ही वह फफक पड़े. बोले, ‘‘बेटे ने जिस सांप को पाला और उसे दूध पिलाया, उसी ने उसे डस लिया.’’ अमरनाथ ने किसी तरह उन्हें धैर्य बंधाया. मुदित ने हत्या का जुर्म भले ही कुबूल कर लिया था और डा. गौरव का शव भी बरामद करा दिया था, लेकिन पुलिस अधिकारियों के मन में एक फांस चुभ रही थी कि हत्या में गौरव की पत्नी प्रियंका तथा उस की मां व बहन तो शामिल नहीं थीं.

इस के लिए पुलिस ने मुदित, प्रियंका उस की मां कमलेश तथा बहन का बेंजाडीन टेस्ट कराया. टेस्ट में केवल मुदित के कपड़ों और चप्पल पर खून के निशान सामने आए. बेंजाडीन टेस्ट में अगर ब्लड स्टेन मिलते हैं तो इस से खून का डीएनए विश्लेषण किया जाता है. दिल्ली के निर्भया गैंगरेप के मामले में भी पुलिस ने बस से मिले खून के धब्बों की जांच के लिए बेंजाडीन टेस्ट कराया था.

डा. गौरव की हत्या के जुर्म में मुदित श्रीवास्तव की गिरफ्तारी की जानकारी एयर फोर्स के अधिकारियों को हुई तो वह थाना चकेरी आए और सार्जेंट मुदित से पूछताछ की. एयर मार्शल की पूछताछ में मुदित ने गुनाह कुबूल किया. उस ने कहा, ‘‘सर, गलती हो गई. मैं यह करना नहीं चाहता था.’’ पूछताछ के बाद एयर मार्शल ने घटना तथा उस से जुड़े दस्तावेज मांगे. इस पर एसएचओ रत्नेश सिंह ने पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड से बात की. उन्होंने एयर मार्शल की भी बात कराई. इस के बाद थाना चकेरी पुलिस ने एयर मार्शल को घटना तथा उस से जुड़े दस्तावेज सौंप दिए. सार्जेंट के खिलाफ अब विभागीय काररवाई भी हो सकती है.

घर के 7 लोगों ने ली जलसमाधि: इश्क बना जी का जंजाल

बादली नहाने के बाद आईने के सामने आई तो अपना रूप देख कर खुद ही शरमा गई, उस का गुलाबी बदन नहाने के बाद और भी निखर गया था. यौवन का 21वां वसंत पार होने को था. बादली ने 5 बच्चे जन लिए थे, लेकिन उस का यौवन जस का तस था, तब जब वह 10 बरस पहले शंकरा राम की दुलहन बन कर उस के घर में आई थी. चेहरे पर बढ़ती उम्र की अभी एक भी लकीर नहीं उभरी थी.

आईना देखते ही अपने रूपयौवन पर वह इतरा उठी. एक गर्वीली मुसकान उस के चेहरे पर उभर आई. वह गीले बालों को सुखाने के इरादे से घर की छत पर आ गई. धूप खिली हुई थी. गीले बालों को आगे कर के हाथों से उन का पानी झाडऩे के बाद उस ने जैसे ही झटके से बालों को पीछे किया, किसी के द्वारा गहरी आह भरने की आवाज कानों में पड़ी. उस ने पलट कर देखा तो अपनी छत पर चेलाराम खड़ा नजर आया.

“ऐ, मुझे देख कर यूं आहें क्यों भर रहे हो?’’ बादली ने आंखें तरेरी.

“तुम चीज ही गजब की हो भाभी, आह तो निकलेगी ही मुंह से.’’ चेलाराम ठंडी सांस भर कर बोला, ‘‘मुझे शंकरा राम के भाग्य पर जलन होती है, कम्बख्त चांद ही समेट लाया अपने आंगन में.’’

बादली ने मादक अंगड़ाई ली, ‘‘तुम्हारे आंगन में भी तो सुमन ने उजाला फैला रखा है देवरजी.’’

“उस के साथ अपना मुकाबला मत करो भाभी, सुमन तुम्हारे रूपयौवन के सामने कहीं भी नहीं टिकती. तुम्हारा यह खिलाखिला यौवन किसी की भी रातों की नींद उड़ा सकता है.’’

बादली खिलखिला कर हंस पड़ी, हंसते हुए बोली, ‘‘तुम रात को ठीक से सो पाते हो या नहीं? कहीं मेरा यह यौवन तुम्हें बिस्तर पर करवटें बदलने को मजबूर तो नहीं करता देवरजी?’’

“करता है भाभी. अब तो जिस दिन यह यौवन बाहों में होगा, उसी दिन चैन की नींद आएगी.’’ चेलाराम ने ठंडी सांस भरते हुए बेझिझक मन की बात कह डाली.

“बेशरम!’’ बादली झेंप कर बोली और तेजी से सीढिय़ां उतर कर नीचे आ गई. चेलाराम की मंशा भांप कर वह रोमांच से भर गई. उस के गालों पर लाज की लालिमा उभर आई थी.

जालौर (राजस्थान) के थाना क्षेत्र सांचौर का एक गांव था गलीफा. इसी गांव में खेमाराम का परिवार रहता था. परिवार में उस की पत्नी गोमती, 2 बेटे शंकरा राम और जोगाराम के अलावा 5 बेटियां थीं. शुरू में खेमाराम के पास काफी जमीनजायदाद थी, लेकिन जैसेजैसे उस की बेटियां जवान होती गईं, उस की जमीनजायदाद बिकती चली गई. खेमाराम ने बेटियों की शादी में दिल खोल कर पैसा लुटाया, जिस की वजह से उस पर कंगाली छा चुकी थी.

रिश्ते में बदल गई दोस्ती…

इधर बड़ा बेटा शंकरा राम 31 साल का होने को आ गया था. खेमाराम उसे शादी के बंधन में बांधना चाहता था, लेकिन खेमाराम की खस्ताहालत और शंकरा राम की बढ़ी उम्र की वजह से कोई लडक़ी वाला उस से रिश्ता करने को राजी नहीं हो रहा था. खेमाराम काफी निराश और दुखी रहने लगा था, उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेटे शंकरा राम का घर कैसे बसाए.

इसी गांव गलीफा में ही स्वरूप राम अपनी पत्नी और बेटी बादली के साथ रहता था. जमीनजायदाद भी मामूली थी, इसलिए वह अपनी बेटी बादली को ज्यादा पढ़ालिखा नहीं सका. खेमाराम स्वरूप राम का बचपन का मित्र था. दोनों एक ही स्कूल में पढ़े और गांव की मिट््टी में खेलकूद कर बड़े हुए थे. दोनों की शादी होने पर भी उन की दोस्ती बरकरार थी.

स्वरूप राम को मालूम हुआ कि खेमाराम अपने बेटे शंकरा राम के लिए लडक़ी की तलाश कर रहा है तो स्वरूप राम ने दोस्ती को रिश्ते में बदलने का मन बना कर बादली और शंकरा राम की शादी करने की बात खेमाराम से की तो वह खुश हो गया.

शुभ मुहुर्त में शंकरा राम और बादली विवाह बंधन में बंध गए. बादली उस वक्त 20 साल की थी, उसे अपने से 10 साल बड़े और शंकरा राम को पति के रूप में पा कर अधिक खुशी नहीं हुई थी. लेकिन मांबाप के मानसम्मान को ध्यान में रख कर उस ने अधूरे मन से शंकरा को अपना पति स्वीकार कर के उस का घर संभाल लिया.

शंकरा राम खूबसूरत पत्नी पा कर फूला नहीं समाया. बादली के प्यार में वह पगला सा गया. रातदिन वह बादली के आगेपीछे घूमता रहता. समय का पहिया घूमता रहा और बादली एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. परिवार बढ़ रहा था, लेकिन घर की आमदनी नहीं बढ़ रही थी. बादली ने कई बार इस बारे में पति से बात की लेकिन शंकरा राम ने उस की बातों को गंभीरता से नहीं लिया. शंकराराम अपने पिता के साथ खेती में लगा रहता था.

धीरेधीरे बादली कुल मिला कर 5 बच्चों की मां बन गई थी. खेमाराम ने बेटे शंकरा राम के बढ़ते परिवार को ध्यान में रख कर उस के लिए अलग मकान बनवा दिया और जमीन का एक हिस्सा भी उसे अलग से दे दिया. खेमाराम अपनी पत्नी गोमती और बेटे जोगाराम के साथ पुराने मकान में ही रहता रहा.

बादली को नया घर मिला तो उस ने आजादी की सांस ली. अब उसे केवल अपने पति और बच्चों के लिए चूल्हा फूंकना था. सासससुर और देवर के बोझ से उसे मुक्ति मिल गई थी. शंकरा राम सुबह ही तैयार हो कर खेत पर चला जाता था. नाश्ता कर के बच्चे भी गांव में बनी पाठशाला में चले जाते थे. घर में अकेली बादली रह जाती थी. घर का काम निपटा कर वह छत पर जा कर बैठ जाती थी.

2 घर छोड़ कर चेलाराम अपनी पत्नी सुमन और 8 वर्षीय बेटे और 5 साल की बेटी के साथ रहता था. गांव के रिश्ते से बादली को वह भाभी कहता था. चेलाराम की सोच यह थी कि भाभी पर देवर का भी पूरापूरा हक होता है. इसलिए वह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश में लगा रहता था.

देवर से लड़ गए नैना..

बादली उस की हंसीठिठोली का बुरा नहीं मानती थी. गांवदेहात में देवरभाभी के बीच हंसीमजाक का रिश्ता स्वाभाविक माना जाता है. किंतु 2 दिन पहले बाल सुखाने के इरादे से छत पर आई बादली के साथ चेलाराम की जो बात हुई, उस ने बादली के पूरे जिस्म में सनसनाहट भर दी. पहली बार बादली को अहसास हुआ कि चेलाराम उसे पाने के लिए कितना तड़प रहा है.

बादली की उम्र बेशक 31 साल हो गई थी, लेकिन वह अपने आप को 20-21 साल की ही समझती थी. बादली चाहती थी कि शंकरा अभी भी पहले की तरह उसे बाहों में भर कर वह सुख प्रदान करे, जिस की हर युवा औरत कामना करती है. चूंकि बादली से विवाह हुए शंकरा राम को 10 वर्ष हो गए थे, वह अब 41 साल का हो चुका था. पत्नी की भावनाओं को नजरअंदाज कर देता था. ऐसे में बादली के मन में चेलाराम का खयाल आया.

चेलाराम 2-3 दिन उसे नजर नहीं आया. वह गांव में ही था या कहीं बाहर चला गया था, बादली को पता नहीं चला. दूसरे दिन होली थी. बादली चाहती थी कि चेलाराम इस होली पर कुछ ऐसा करे, जिस से होली का त्यौहार हमेशा यादगार बन जाए. उस दिन उस का पति शंकरा राम गांव के लोगों के साथ भांग छानने के लिए निकल गया था. बादली घर में अकेली थी. वह चारपाई पर बैठी चेलाराम के ख्यालों में गुम थी कि पता नहीं कब और कैसे दबे पांव चेलाराम उस के पीछे आ गया. उस ने हाथ में रंग लगा रखा था. बादली सचेत हो पाती, उस से पहले ही चेलाराम ने उस के गालों पर अपने हाथों का रंग रगड़ते हुए कहा, ‘बुरा न मानो भाभी, होली है.’

बादली ने उस के हाथ पकड़ लिए और घूम कर उस की तरफ चेहरा घुमा कर हंसते हुए बोली, ‘‘मैं आज तुम्हारी किसी शरारत का बुरा नहीं मानूंगी देवरजी.’’

“सच भाभी?’’ चेलाराम खुशी से चहक पड़ा, ‘‘फिर तो आज अपनी भाभी को बाहों में लेने की तमन्ना पूरी कर लेता हूं.’’ चेलाराम ने बादली को बाहों के घेरे में ले कर सीने से भींच लिया. बादली की धडक़नें तेज हो गईं. दोनों ही अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाए और अपनी हसरतें पूरी कर डालीं.

प्यार को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, वह छिप नहीं पाता. बादली और चेलाराम के प्रेम प्रसंग के किस्से पूरे गांव में दबी जुबान से होने लगे. शंकरा राम सीधे स्वभाव का था. चेलाराम को कुछ कहने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. इस के लिए वह अपनी पत्नी बादली को ही दोषी मान रहा था. पूरे गांव मे बादली को ले कर उस की थूथू हो रही थी. लोग उसे कायर, दब्बू इंसान और न जाने क्याक्या कह कर ताना मार रहे थे. परेशान हो कर शंकरा राम ने पंचायत बुलवा ली.

पंचायत में दी हिदायत…

25 फरवरी को गांव के पंचों ने पंचायत में चेलाराम पुत्र चेतराम और बादली पत्नी शंकरा राम को हाजिर होने का हुक्म दिया. दोनों पंचायत में उपस्थित हुए तो पंचों ने उन्हें समझाया कि वह जो अमर्यादित काम कर रहे हैं, इस से दूसरी बहूबेटियों पर गलत संदेश जा रहा है. गलीफा गांव की बदनामी हो रही है, सो अलग. इसलिए आज के बाद वह न आपस में मिलेंगे, न बात करेंगे. वे दोनों गांव और अपने परिवारों की इज्जत की खातिर नेकचलनी पर चलेंगे.

पंचायत ने सख्त चेतावनी दी कि आज के बाद यदि उन की शिकायत किसी ने की तो उन दोनों को गांव छोडऩे की सख्त सजा दी जाएगी. कोली समाज का कोई व्यक्ति उन से वास्ता नहीं रखेगा. दोनों ने पंचायत में कसम खा कर कहा कि वे आज से आपस में बात नहीं करेंगे.

बादली ने पंचायत के फैसले का सम्मान करते हुए चेलाराम से मिलना और बात करना बंद कर दिया, किंतु चेलाराम सुधरने को तैयार नहीं था. वह बादली को किसी भी कीमत पर छोडऩे को राजी नहीं हुआ. उस ने बादली के पति शंकरा राम को फोन द्वारा धमकाना शुरू कर दिया. वह बादली को भी रिश्ता तोड़ लेने पर देख लेने की धमकियां देने लगा. इस से शंकरा राम पहले से अधिक परेशान रहने लगा.

पहली मार्च को थाना सांचौर के एसएचओ निरंजन प्रताप सिंह को किसी अंजान व्यक्ति ने एक चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने बताया कि उस ने सिद्धेश्वर में नर्मदा नदी के किनारे कई जोड़े जूते और चप्पलें पड़ी देखी हैं. आसपास कोई नजर नहीं आ रहा है, उसे आशंका है कि किसी परिवार के लोगों ने सामूहिक आत्महत्या करने का प्रयास किया है.

एसएचओ ने घड़ी देखी, दिन के 2 बज रहे थे. उन्होंने यह सूचना एसडीएम संजीव कुमार और एसपी जालौर डा. कविता अंग को दे दी. एसएचओ निरंतर प्रताप सिंह, सीओ रूप सिंह और अन्य पुलिस दल के साथ सिद्धेश्वर के लिए रवाना हो गए. जो घटनास्थल फोन पर बताया गया था, वहां सचमुच जूते, चप्पलों का ढेर था. अब तक उच्चाधिकारी भी एसडीआरएफ टीम को ले कर मौके पर पहुंच गए थे. वहां एक 25 साल का युवक खड़ा रो रहा था.

एसएचओ ने उस से पूछा तो उस युवक ने बताया कि उस का नाम जोगाराम है, वह अपने बड़े भाई शंकरा राम की तलाश में यहां आया है. उस का भाई ही अपने परिवार को ले कर बस से सिद्धेश्वर के लिए निकला था.  “यहां जो जूतेचप्पलों का ढेर है, वह सब उस के भाईभाभी और भतीजीभतीजों के हैं. वे सब शायद नदी में कूद गए हैं. उन्हें तलाश कीजिए साहब”.

एसपी डा. कविता अंग ने तुरंत नहर में गोताखोर उतार दिए. कड़ी मशक्कत के बाद पहला शव 4 वर्षीय बच्चे का निकला. जोगाराम ने रोते हुए बताया, ‘यह उस का सब से छोटा भतीजा हितेष है.’ अधिकारियों को विश्वास हो गया कि नहर में और भी शव हैं. गोताखोरों ने तलाश शुरू कर दी. काफी कड़ी मेहनत के बाद नहर से 6 शव और ढूंढ निकाले गए. ये शव शंकरा राम, बादली, उन की बेटियों रमिला (11 वर्ष), कमला (7 वर्ष), संगीता (8वर्ष) और बेटा विक्रम (10 वर्ष) के थे. हितेष की लाश सब से पहले निकाली गई थी.

जोगाराम दहाड़े मार कर रो रहा था. पूरे परिवार की जलसमाधि के बाद एक साथ 7 शव देख कर पुलिस के आला अफसरों की आंखें भी नम हो गई थीं. घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा हो गई थी, सभी हैरान खड़े थे. शवों को आवश्यक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

थाना सांचौर में यह दुखद घटना भादंवि की धारा 306 के तहत दर्ज कर ली गई. शंकरा राम के भाई जोगाराम ने इस सामूहिक आत्महत्या के लिए चेलाराम को जिम्मेदार बताया. उस ने अधिकारियों के सामने चेलाराम की काली करतूत का जिक्र कर के उसे गिरफ्तार करने की मांग की.

गलीफा गांव में पोस्टमार्टम के बाद शंकरा राम और उस की पत्नी बादली तथा बच्चों के शव पहुंचे तो पूरा गांव शोक में डूब गया. हर किसी की आंखें भींग गईं. जो बच्चे कल तक गांव की गलियों में खेलतेकूदते थे, उन के शव उन्हें अपने कंधों पर गांव से अंतिम विदाई के लिए ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर एक ही चिता पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पुलिस ने जालौर (राजस्थान) में सामूहिक आत्महत्या के पीछे चेलाराम को दोषी मानते हुए उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक पुलिस चेलाराम के खिलाफ ठोस सबूत एकत्र करने में लगी हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति और सास की ली जान: प्यार की चाशनी में डूबी वंदना

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 1

13 मार्च, 2023 को उत्तर प्रदेश के नगर कानपुर में ऐतिहासिक गंगा मेला की धूम थी. इस मेेले का लुत्फ उठाने के लिए उन्नाव के डेंटल सर्जन गौरव प्रताप सिंह, पत्नी प्रियंका व बेटे रूद्रांश के साथ अपनी क्रेटा कार से कानपुर शहर आए. पहले उन्होंने गंगा तट पर लगे मेले का लुत्फ उठाया, फिर अपनी ससुराल राजीव विहार नौबस्ता पहुंच गए.

होली पर बेटीदामाद को घर आया देख कर कमलेश की खुशी का ठिकाना न रहा. वहीं उन की छोटी बेटी दीपिका भी दीदीजीजा के आने पर खुशी से झूम उठी. प्रियंका जहां अपनी मां कमलेश की बातों में मशगूल हो गई, वहीं डा. गौरव प्रताप सिंह अपनी युवा व खूबसूरत साली से रसभरी बातें करने लगे. चूंकि होली का माहौल था और रिश्ता भी जीजासाली का था, सो उन के बीच हंसीमजाक भी होने लगा. इस बीच डा. गौरव ड्रिंक्स का मजा भी लेते रहे.

शाम लगभग 6 बजे डा. गौरव ने पत्नी प्रियंका से कहा कि उन्हें मुदित श्रीवास्तव से मिलने उस के घर जाना है. एक प्रौपर्टी देखने उस के साथ जाएंगे. पसंद आने पर सौदा भी तय करना है. चूंकि मुदित श्रीवास्तव वायुसेना में सार्जेंट था और चकेरी में उस की तैनाती थी. गौरव से उस की गहरी दोस्ती भी थी. इसलिए प्रियंका ने पति से टोकाटाकी नहीं की. उस के बाद डा. गौरव अपनी क्रेटा कार से दोस्त के घर जाने को रवाना हो गए. उस वक्त उन के पास लगभग 7 लाख रुपए नकद भी थे. पति के जाने के बाद प्रियंका निश्चिंत हो गई.

रात लगभग 9 बजे प्रियंका के मोबाइल फोन पर काल आई. प्रियंका ने स्क्रीन पर नजर डाली तो काल मुदित की थी. प्रियंका ने जैसे ही काल रिसीव की तो मुदित बोला, ‘‘भाभीजी, भाई साहब बेहद नशे में हैं. आप ने उन्हें इस हालत में घर से निकलने ही क्यों दिया. उन के पास मोटी रकम भी है. खैर, वह कार चलाने की हालत में नहीं है, इसलिए हम ने उन्हें उन्नाव जाने वाली बस में बिठा दिया है. कुछ देर बाद वह उन्नाव पहुंच जाएंगे.’’ इस के बाद मुदित ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

मुदित की बात सुन कर प्रियंका घबरा उठी. उस ने मां और बहन को जानकारी दी तो वे भी चिंतित हो गईं. अब तो ज्योंज्यों रात बीतती जा रही थी, त्योंत्यों प्रियंका की परेशानी भी बढ़ती जा रही थी. प्रियंका कभी मुदित को काल करती तो कभी पति के फोन पर संपर्क करने की कोशिश करती. लेकिन दोनों फोन से एक ही संदेश प्राप्त होता, ‘‘आप जिस नंबर से संपर्क करना चाहते हैं, वह अभी बंद है.’’

टूट गई धैर्य की सीमा…

प्रियंका की मां कमलेश उसे धैर्य तो बंधा रही थी, लेकिन धैर्य की भी एक सीमा होती है. प्रियंका का धैर्य भी जब टूट गया तो उस ने बहन दीपिका को साथ लिया और उसी की स्कूटी से रात 12 बजे मुदित के घर जा पहुंची. मुदित उस समय घर पर ही था. उस के कमरे में धुआं भरा था और अजीब सी दुर्गंध आ रही थी. कमरे में मुदित कुछ जला रहा था.

प्रियंका ने धुएं के बाबत पूछा तो मुदित बोला, ‘‘भाभी, हमारी पत्नी नेहा बेटी का इलाज कराने लखनऊ गई है. कई रोज से घर बंद था, सो सफाई कर रहा था. कई मरी हुई छिपकलियां व चूहे निकले हैं. उसी को जलाया है, जिस से बदबू फैली है. आप बैठो, मैं नहा कर आता हूं.’’ कह कर मुदित बाथरूम चला गया.

रात डेढ़ बजे प्रियंका मुदित के साथ थाना चकेरी पहुंची. उस ने ड्ïयूटी अफसर से पति की गुमशुदगी दर्ज करने को कहा लेकिन उस ने गुमशुदगी दर्ज करने से साफ मना कर दिया. अफसर ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति को गुम हुए अभी चंद घंटे ही बीते हैं. नियम के मुताबिक हम 24 घंटे बाद ही गुमशुदगी दर्ज कर सकेंगे. आप रात भर इंतजार करें. अगर सुबह तक घर वापस न पहुंचे, तब आना.’’

इस के बाद मुदित श्रीवास्तव अपने घर चला गया और प्रियंका अपनी बहन दीपिका के साथ राजीव विहार स्थित मां के घर आ गई. रात भर मांबेटी परेशान रहीं. उन्होंने रात आंखों ही आंखों में काट दी. इस बीच उन्होंने दरजनों बार डा. गौरव को काल की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया. प्रियंका ने पति के लापता होने की जानकारी ससुर डा. प्रबल प्रताप सिंह को इसलिएनहीं दी कि कहीं उन की तबियत न बिगड़ जाए.

14 मार्च, 2023 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे प्रियंका अपनी मां कमलेश के साथ फिर से थाना चकेरी पहुंची. उस समय एसएचओ रत्नेश सिंह थाने पर मौजूद थे. प्रियंका ने उन्हें सारी बात बताई और पति गौरव की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. प्रियंका की बात सुनने के बाद इंसपेक्टर रत्नेश बोले, ‘‘डा. गौरव राजीव विहार (नौबस्ता) से गए हैं, लिहाजा रिपोर्ट थाना नौबस्ता में दर्ज होगी और काररवाई भी वहीं से होगी.’’

परेशान प्रियंका ने तब मुदित को थाने बुला लिया. फिर वह मुदित के साथ थाना नौबस्ता पहुंची. मगर वहां के इंसपेक्टर ने कहा कि डा. गौरव चकेरी गए थे, इसलिए वहीं रिपोर्ट दर्ज कराओ. 2 थानों के बीच चकरघिन्नी बनी प्रियंका मुदित के साथ एसीपी (चकेरी) अमरनाथ यादव के औफिस पहुंची और अपनी व्यथा बताई.

एसीपी के आदेश पर हुई सूचना दर्ज…

प्रियंका की व्यथा सुनने के बाद एसीपी (चकेरी) अमरनाथ यादव ने फोन पर चकेरी इंसपेक्टर रत्नेश सिंह से बात की और उन्हें तत्काल रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई का आदेश दिया. आदेश पाते ही रत्नेश सिंह ने डा. गौरव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. गुमशुदगी की सूचना दर्ज होने के बाद पुलिस सक्रिय हुई. सब से पहले एसएचओ ने मुदित और प्रियंका से अलगअलग पूछताछ की और उन के बयान दर्ज किए. दोनों के बयानों में भारी विरोधाभास था.

प्रियंका का कहना था कि डा. गौरव अपनी क्रेटा कार से शाम 6 बजे घर से निकले थे, जबकि मुदित का कहना था कि डा. गौरव उस के घर पर साढ़े 5 बजे आ गए थे. इस के अलावा भी कई ऐसी बातें थीं, जो मेल नहीं खा रही थीं. शक होने पर इंसपेक्टर रत्नेश सिंह ने प्रियंका और मुदित की फोन लोकेशन ट्रेस की तो 13 मार्च, 2023 की रात 10-11 बजे के बीच मुदित की लोकेशन रूमा के पास मिल रही थी, जबकि प्रियंका की उस के राजीव विहार स्थित घर की थी.

डा. गौरव के  फोन की लोकेशन पता की गई तो उस की लोकेशन भी रात 10-11 बजे के बीच रूमा की मिल रही थी. इस से जाहिर हो रहा था कि मुदित और डा. गौरव साथसाथ थे. मुदित ने प्रियंका को रात 9 बजे फोन कर बताया था कि डा. गौरव नशे में है, गाड़ी नहीं चला सकते, इसलिए उन्होंने उसे उन्नाव जाने वाली बस में बैठा दिया है. जबकि रात 10 बजे डा. गौरव के फोन की लोकेशन रूमा में थी. जाहिर था कि मुदित झूठ बोल रहा था.

एंकर इशिका मर्डर केस: प्यार पर ज़ोर नहीं

“इशिका आज मैं आ रहा हूं, तुम मुझ से मिलोगी न?’’ प्रेम भरी मनुहार के साथ रोहन पांडु ने कहा.

“भला क्यों, तुम्हें क्या काम है मुझ से…’’ इशिका शर्मा ने इठलाते हुए कहा.

“देखो, नाराजगी छोड़ दो. प्लीज इशिका प्लीज.’’ रोहन अब गिड़गिड़ाते हुए बोला.

“रोहन, मैं तुम से नहीं मिलना चाहती. तुम्हारा व्यवहार मुझे और मम्मीपापा को भी पसंद नहीं है.’’

“इशिका, भला मैं तुम्हारा कभी बुरा चाहता हूं क्या, मैं ने हमेशा ही तुम्हारा कहना माना है. मदद भी की है. यहां तक कि रिपोर्टिंग में भी मैं ने तुम्हारा हर पल साथ दिया है. इस के बावजूद भी क्या तुम मुझे ऐसे ही भुला दोगी?’’ रोहन पांडु ने स्वर में मानो मिश्री घोलते हुए कहा, ‘‘देखो, मैं तुम्हें हमेशा आगे भी मदद करूंगा. तुम जैसे चाहोगी, वैसा ही होगा. बस, एक बार मिल लो फिर सारे गिलेशिकवे दूर हो जाएंगे.’’

“अच्छा, आज नहीं बाद में. आज मम्मीपापा कोरबा गए हुए हैं फिर कभी आना.’’ इशिका ने कहा. यह खबर सुन कर रोहन पांडु खुशी से उछलते हुए बोला, ‘‘इशिका, ऐसा है तो मैं आता हूं. किसी बढिय़ा होटल में तुम्हें खाना भी खिलाऊंगा. बहुत दिन हो गए, हम लोगों ने साथ बैठ कर खाना नहीं खाया, मूवी नहीं देखी. मजा आ जाएगा पहले की तरह. ठीक है, मैं आ रहा हूं.’’ कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी. इशिका शर्मा (21 वर्ष) से बात करने के बाद रोहन पांडु (22 वर्ष) बहुत खुश हुआ.

यह बात 12 फरवरी, 2023 की है. छत्तीसगढ़ का जिला जांजगीर चांपा एक ऐतिहासिक नगर है, जिसे कृषि प्रधान जिले के रूप में भी जाना जाता है. यहां मुख्यरूप से कृषि आधारित व्यवसाय हैं. इसी शहर के वार्ड नंबर 18 में पत्रकार गोपाल शर्मा पत्नी एवं 2 बच्चों इशिका शर्मा और आर्यन शर्मा के साथ रहते थे.

इशिका से बात करने के बाद उसी रात को लगभग 9 बजे बिलासपुर से अपनी गाड़ी पर रोहन पांडु अपने मित्र राजेंद्र सूर्या के साथ इशिका के घर आ पहुंचा. रोहन को देख कर के इशिका ने हंस कर उस का ऐसे स्वागत किया, मानो कोई मनमुटाव वाली बात ही नहीं थी.  राजेंद्र के साथ रोहन पहले भी कई बार वहां आ चुका था. इन की दोस्ती से इशिका के पिता गोपाल शर्मा भी वाकिफ थे.

इशिका पिछले 6 साल से एक एंकर के रूप में शहर में एक जानापहचाना नाम हो गई थी. गोपाल शर्मा को अपनी पत्रकार बिटिया पर गर्व था, जो यूट्यूब पर पत्रकार के रूप में जानापहचाना नाम बन चुकी थी. यूट्यूब पर चलने वाले उस के शो को हजारों लोग देखते थे. जब इशिका ने 6 साल पहले पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा तो इसी दरमियान रोहन पांडु से उस की मुलाकात हुई थी. वह उस के सहायक के रूप में काम करता था. पत्रकारिता में कमाया नाम रोहन मूलरूप से बिलासपुर जिले के मस्तूरी के गांव भदौरा का रहने वाला था और संपन्न परिवार से था. वह पत्रकारिता का शौक रखता था.

इशिका से मिलने के बाद धीरेधीरे वह उस की ओर आकर्षित होता चला गया. इशिका भी अल्हड़ उम्र में उस की तरफ आकर्षित होती चली गई. इसी बीच इशिका शर्मा पत्रकारिता के क्षेत्र में एक बड़ा नाम बन गई. वह पत्रकारिता करिअर के साथसाथ अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दे रही थी. वह एलएलबी की पढ़ाई कर रही थी. साथ ही उस ने राजधानी रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में दाखिला भी ले लिया था. वह यहां से इलैक्ट्रौनिक मीडिया से एमएससी कर रही थी.

रोहन पांडु अपने मित्र राजेंद्र सूर्या के साथ इशिका शर्मा के घर पर बैठा बातें कर रहा था. रोहन लगभग 2 महीने बाद उस से मिलने के लिए आया था. रोहन ने औपचारिक बातों के बीच पूछा, ‘‘अंकल और आंटी कोरबा कैसे गए हैं?’’ इसी समय इशिका के फोन पर किसी की काल आई. काल रिसीव करने के बाद वह रोहन को अनदेखा कर फोन पर हंसहंस कर बातें करने लगी. काफी देर तक इशिका मोबाइल पर बात करने में व्यस्त रही.

रोहन पांडु यह देख कर पहलू बदलने लगा. उसे समझते देर नहीं लगी कि इशिका किसी दूसरे लडक़े से मोबाइल पर बात कर रही है. वह बातें भी कर रही थी और हंसते हुए रोहन की ओर देख भी रही थी. यह देख कर के रोहन को बहुत गुस्सा आ रहा था. जब फोन पर बातचीत बंद हुई तो रोहन ने कड़े शब्दों में कहा, ‘‘तुम नहीं सुधरोगी, मैं ने लाख समझाया. मुझे तो यही लगता है कि शायद मैं ही तुम्हें समझ नहीं पाया.’’

रोहन की बात का जवाब देते हुए इशिका ने कहा, ‘‘तुम मुझ पर बंधन लगा रहे हो, यह अच्छी बात नहीं है.’’

“जब तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा तो फिर बंधन तो बन ही गया.’’

“रोहन, मैं अगर तुम से शादी नहीं करना चाहूं तो..?’’

“यह तो तुम्हारी मरजी है. मैं तो अपने दिल की बात बहुत पहले तुम्हें बता चुका हूं और इसीलिए तुम पर अधिकार रखता हूं.’’

“देखो रोहन, अभी तो जिन्होंने मुझे पैदा किया है न, उन की भी बहुत सी बातों को मैं नहीं मानती हूं. रही बात तुम्हारी तो तुम और हम सिर्फ दोस्त हैं, इस से आगे और कुछ नहीं.’’

“तुम कभी कुछ कहती हो और कभी कुछ, तुम्हें समझना मेरे वश की बात नहीं है. मगर मैं यह कैसे बरदाश्त करूं कि मेरे सामने ही तुम किसी दूसरे लडक़े से बात कर रही हो.’’

“रोहन, जैसे तुम मेरे दोस्त हो, वैसे कई लडक़े मेरे दोस्त हैं और तुम इन सब बातों को दिल पर मत लो.’’ इशिका ने बड़े सख्त लहजे में साफसाफ कहा फिर उसे जाने क्या लगा कि वह चेहरे पर मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘‘चलो ठीक है, अब आगे क्या करना है, बताओ…’’.  रोहन ने राजेंद्र की ओर देखते हुए हाथों को नीचे झटकते हुए कहा, ‘‘चलो ठीक है, अब होटल चलते हैं, वहीं खाना खाएंगे.’’ इस के बाद वे दोनों घर से होटल के लिए निकल गए.

सोमवार, 13 फरवरी 2023 को सुबह लगभग 10 बजे गोपाल शर्मा ने बेटे आर्यन को फोन लगाया. जब उस ने कई बार काल करने के बाद भी फोन रिसीव नहीं किया तो इशिका को फोन किया. मगर उस ने भी काल रिसीव नहीं की. कई दफा काल लगाने के बाद भी जब दोनों ने काल रिसीव नहीं की तो गोपाल शर्मा और उन की पत्नी जानकी शर्मा चिंतित हो गए. दोपहर लगभग 11 बजे कालोनी के गार्ड रघु को गोपाल शर्मा ने फोन कर कहा, ‘‘रघु, मैं कल से कोरबा आया हुआ हूं. इशिका और आर्यन दोनों को मैं ने कई बार फोन किया, लेकिन वे फोन रिसीव नहीं कर रहे हैं. हमें बड़ी चिंता हो गई है. जरा घर जा कर दोनों में से किसी से बात तो कराओ. आज संडे है, हो सकता है दोनों सोए हुए हों.’’

गोपाल शर्मा के कहने पर कालोनी का गार्ड रघु यादव गोपाल शर्मा के घर पर पहुंचा. भीतर झांकने लगा तो देखा दरवाजा खुला हुआ था. वह भीतर चला गया. तभी देखा कि इशिका मृत पड़ी हुई थी. यह देख कर रघु घबरा गया और शोर मच कर पड़ोसियों को बुला लिया. लोगों ने देखा एक कमरे में आर्यन सोया हुआ था. उसे जगाया गया तो वह उठ बैठा. स्थिति समझते में उसे थोड़ी देर लगी फिर बहन को मृत पड़ा देख कर रोने लगा. उसे समझ नहीं आया कि इशिका को किस ने मार दिया.  इसी बीच किसी ने पुलिस को खबर दे दी. थोड़ी ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई.

पत्रकार की बेटी थी इशिका..

इशिका के पिता गोपाल शर्मा नगर के प्रतिष्ठित पत्रकार थे, अत: लोगों की भीड़ भी घटनास्थल पर जुटती चली गई. गोपाल शर्मा को रघु यादव ने सारी जानकारी मोबाइल पर दी तो वह घबरा गए और बोले कि मैं पत्नी के साथ तुरंत निकल रहा हूं. पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. एसपी विजय अग्रवाल से भी इशिका अकसर मिलती रहती थी, इसलिए जब उन्होंने उस की हत्या की बात सुनी तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

तत्काल पुलिस ने डौग स्क्वायड बुलवाई ताकि हत्यारे तक पहुंचा जा सके. मगर खोजी कुत्ता पास ही मोहल्ले में जा कर वापिस आ गया. पुलिस के सामने अब एक अंधी हत्या का मामला था. विजय अग्रवाल ने कोतवाल लखन केवट को निर्देश दिया कि मामला गंभीर है, जांच में तेजी लाई जाए. पुलिस ने इशिका के भाई आर्यन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कल रात को रोहन पांडु और राजेंद्र सूर्या जब घर आए तो कुछ समय बाद रोहन ने दीदी से कहा, ‘‘चलो होटल में डिनर करते हैं.’’ इस पर इशिका ने कहा, ‘‘मैं खाना नहीं खाऊंगी.’’ रोहन के कहने पर बाद में तय हुआ कि रोहन पांडु और राजेंद्र सूर्या जा कर होटल से खाना ले कर आएंगे और घर पर ही खाना खा लिया जाएगा. दोनों चले गए. रात को सभी लोगों ने खाना खाया और फिर उसे पता नहीं क्या हुआ.

अब पुलिस के समक्ष सारी कहानी स्पष्ट थी. नगर कोतवाल और जांच अधिकारी लखन केवट को यह समझते देर नहीं लगी कि रोहन पांडु ने ही खाने में नींद की गोलियां मिला दी होंगी, जिस के कारण आर्यन को नींद आ गई और उन दोनों लोगों ने इस के बाद इशिका की हत्या कर दी. इशिका की डैडबौडी को देख कर पुलिस पहली नजर में ही समझ गई थी कि उस की गला घोट कर हत्या की गई है.

पुलिस कप्तान विजय अग्रवाल इस लोमहर्षक हत्याकांड को ले कर बेहद संजीदा थे. उन्होंने इस के लिए आरोपियों को धर दबोचने के लिए एसपी चंद्रशेखर परमार के निर्देशन में 3 पुलिस टीमें गठित कर दीं. टीमों में इंसपेक्टर मनीष परिहार, लोकेश केवट एसआई कामिक हक, सुरेश धु्रव के अलावा गोपाल सतपति, दिलीप सिंह, मुकेश पांडेय, बलवीर सिंह, राजकुमार चंद्रा, जितेंद्र सिंह परिहार, मनीष राजपूत, वीरेंद्र टंडन, विवेक सिंह आदि को शामिल किया गया. एसपी ने 24 घंटे के अंदर आरोपियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

पुलिस को आर्यन शर्मा के बयान के आधार पर राहुल पांडु पर शक था, क्योंकि वही राजेंद्र सूर्या के साथ वारदात वाले दिन घर पर आया था. पुलिस ने निकटवर्ती जिले की पुलिस के सहयोग से आखिर मुख्य आरोपी राहुल पांडु को मुंगेली मार्ग से गिरफ्तार कर लिया. जांजगीर मुख्यालय ला कर जब उस से पूछताछ शुरू की तो उस ने न सिर्फ इशिका की हत्या की बात स्वीकारी बल्कि वारदात में अपने दोस्त राजेंद्र सूर्या के शामिल होने का खुलासा कर दिया. पुलिस ने रोहन की निशानदेही पर दूसरे आरोपी राजेंद्र सूर्या (22 वर्ष) को भी भदौरा जिला बिलासपुर से गिरफ्तार कर लिया.

रोहन ने बताया कि वह गिरफ्तारी के डर से रायगढ़ शहर चला गया था, जहां वह अपने दोस्तों से मिला और अपने लंबे बाल कटवा दिए, ताकि उस की पहचान न हो सके. इस के बाद वह शिवरीनारायण और शिवरीनारायण से कवर्धा पहुंचा. यहां अपने दोस्तों से मिल कर वह फिर कवर्धा से मुंगेली जा रहा था, तभी पुलिस ने रास्ते में उसे धर लिया. दोनों आरोपियों को घटनास्थल पर ले जा कर पुलिस ने पूछताछ की और सारे सबूत इकट्ïठा किए. आरोपी रोहन पांडु और राजेंद्र सूर्या दोनों भदौरा थाना क्षेत्र मस्तूरी जिला बिलासपुर के निवासी हैं.

आर्यन को दी थी नींद की गोलियां..

हिरासत में ले कर पूछताछ करने पर इशिका शर्मा हत्याकांड के आरोपी राहुल पांडु और राजेंद्र सूर्या ने पुलिस के सामने सारी कहानी उगल दी. रोहन पांडु ने बताया कि 12 फरवरी, 2023 की रात जब वह राजेंद्र सूर्या के साथ होटल ड्रीम पौइंट से खाना पैक करवा कर निकला तो पहले नहर किनारे जा कर दोनों ने शराब पी और वहीं तय किया कि इशिका के अब पर निकल आए हैं, जिस से वह उड़ रही है, इसलिए उस की हत्या कर दी जाए.

दोनों जब घर पहुंचे तो इशिका को फोन पर बात करते देख कर मानो रोहन पांडु के तनबदन में आग लग गई. बातचीत खत्म हुई तो होटल से लाया खाना खाने के लिए बैठ गए. इशिका के साथ आर्यन और राजेंद्र सूर्या खाना खा रहे थे. आर्यन के खाने में रोहन ने पहले ही मैडिकल स्टोर से लाई नींद की गोलियां मिला दी थीं. खाना खाने के बाद जब वह ऊंघने लगा तो राजेंद्र सूर्या ने उसे सहारा दे कर के उस के कमरे में सुला दिया.

थोड़ी ही देर में इशिका और रोहन में फिर बहस शुरू हो गई. रोहन ने तड़प कर कहा, ‘‘इशिका, आज तुम फैसला कर लो कि तुम सिर्फ मेरी हो.’’ इस पर नाराज हो कर इशिका बोली, ‘‘यार तुम्हारा दिमाग खराब है. मैं पढ़ाई कर रही हूं, मुझे कुछ बनना है. मेरे कुछ सपने हैं, तुम्हें इंतजार करना होगा. कर सकते हो तो करो, नहीं तो तुम्हारा हमारा रास्ता अलगअलग है. यह बात तुम अच्छी तरह समझ लो.’’ रोहन ने गुस्से में कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे रंग सही नहीं लग रहे हैं. तुम तो पढ़लिख कर के मुझे भूल जाओगी. तुम तो अभी से जाने कितने लडक़ों के फेरे में हो. मेरा क्या होगा?’’

“मेरे कुछ सपने हैं जो मैं ने तुम्हें बता दिए हैं. अगर तुम इंतजार कर सकते हो तो करो और सुन लो मुझे किस से बात करनी है और नहीं करनी है, यह मुझे मत बताया करो.’’…और कर दिया काम तमाम.

इतना सुनना था कि रोहन का पारा चढ़ गया. वह समझ गया कि इशिका जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता है, उस के हाथों से निकलती चली जा रही है. अब उसे कुछ करना ही होगा. यह सोच कर वह गुस्से से आगे बढ़ा और इशिका को कई थप्पड़ जड़ दिए. जब उस ने विरोध किया तो उस का गला पकड़ लिया. वह तड़पने लगी. अपने आप को छुड़ाने लगी तो राजेंद्र सूर्या ने भी उसे पैरों से पकड़ लिया और दोनों ने मिल कर उस का गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

हत्या के बाद घर पर रखे हुए सोने के सिक्के, अंगूठी, अन्य ज्वैलरी के अलावा इशिका की स्कूटी ले कर के वहां से निकल गए. ताकि पुलिस को यह लगे कि किसी ने चोरी करने की नीयत से घर में प्रवेश किया और हत्या कर दी. पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर 3 मोबाइल फोन, सोने की अंगूठी, चांदी का सिक्का, सोने का लौकेट, सोने का ब्रेसलेट, एक स्मार्ट वाच, चांदी की मूर्ति, ब्रेसलेट, कान की फुल्ली और स्कूटी नंबर सीजी11एवाई6292 भी बरामद कर ली.

पुलिस ने दोनों आरोपियों रोहन पांडु और राजेंद्र सूर्या को गिरफ्तार कर भारतीय दंड विधान की धारा 302, 397 के तहत मामला दर्ज कर दोनों को 14 फरवरी, 2023 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, जांजगीर के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

(अपराध कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित है)