शराबी की विनाश लीला – भाग 1

शराब पीना अलग बात है और शराबी होना अलग. शराबी जब मनमाफिक शराब पी लेता है तो उसे न तो अच्छेबुरे का ज्ञान रहता है और न रिश्तेनातों का. शराब ने हजारों घर उजाड़े हैं. यही हाल रामभरोसे  का था. दुख की बात यह है कि सजा उस की पत्नी और 4 बेटियों को भोगनी पड़ी.

अगर… श्यामा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में रसोइया के पद पर कार्यरत थी. वह छात्राओं के लिए मिड डे मील तैयार करती थी. वह 2 दिन से काम पर नहीं आ रही थी, जिस से छात्राओं को मिड डे मील नहीं मिल पा रहा था. श्यामा शांतिनगर में रहती थी. वह काम पर क्यों नहीं आ रही, इस की जानकारी लेने के लिए कालेज की प्रधानाचार्य ने एक छात्रा प्रीति को उस के घर भेजा. प्रीति श्यामा के पड़ोस में रहती थी और उसे अच्छी तरह जानती थी.

प्रीति सुबह 9 बजे श्यामा देवी के घर पहुंची. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. प्रीति ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला, न ही अंदर कोई हलचल हुई. श्यामा की बेटी प्रियंका प्रीति की सहेली थी, दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. प्रीति ने आवाज दी, ‘‘प्रियंका, ओ प्रियंका दरवाजा खोलो. मुझे मैडम ने भेजा है.’’

प्रीति की काफी कोशिश के बाद भी दरवाजा नहीं खुला, न ही कोई हलचल हुई.

पड़ोस में श्यामा का ससुर रामसागर रहता था. प्रीति ने दरवाजा न खोलने की जानकारी उसे दी तो वह श्यामा के घर आ गया. उस ने दरवाजा पीटा और ‘बहू…बहू’ कह कर आवाज दी. लेकिन दरवाजा नहीं खुला.

रामसागर ने दरवाजे की झिर्री से झांकने की कोशिश की तो अंदर से तेज बदबू आई. इस से उसे लगा कि जरूर कोई गंभीर बात है. उस ने घबरा कर पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने उसे पुलिस में सूचना देने की सलाह दी. यह 1 फरवरी, 2020 की बात है.

सुबह 10 बजे रामसागर बदहवास सा फतेहपुर सदर कोतवाली पहुंचा. कोतवाल रवींद्र कुमार श्रीवास्तव कोतवाली में ही थे. उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को बदहवास हालत में देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है, इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रामसागर है. मैं शांतिनगर में रहता हूं. पड़ोस में मेरा बेटा रामभरोसे अपनी पत्नी श्यामा और 4 बेटियों के साथ रहता है. उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद है और भीतर से तेज दुर्गंध आ रही है. मुझे किसी अनिष्ट की आशंका हो रही है. आप मेरे साथ चलें.’’

रामसागर ने जो कुछ बताया, गंभीर था. थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने पुलिस टीम साथ ली और रामसागर के साथ रामभरोसे के घर पहुंच गए. उस समय वहां पड़ोसियों का जमघट लगा था. लोग दबी जुबान से कयास लगा रहे थे.

थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव लोगों को परे हटा कर दरवाजे पर पहुंचे. दरवाजा अंदर से बंद था, उन्होंने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे. घर के अंदर मां और उस की 4 बेटियां थीं. अंदर से दुर्गंध आ रही थी. निस्संदेह कोई गंभीर बात थी. थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने इस मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी.

जानकारी मिलने पर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा मौके पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने पहले जानकारी जुटाई, फिर थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव को कमरे का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया. रवींद्र कुमार ने अपनी पुलिस टीम की मदद से दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तेज दुर्गंध का भभका निकला.

पुलिस अधिकारियों ने घर के अंदर जा कर देखा तो उन का दिल कांप उठा. वहां का दृश्य बड़ा वीभत्स था. फर्श पर आड़ीतिरछी 5 लाशें एकदूसरे के ऊपर पड़ी थीं. मृतकों की पहचान रामसागर ने की. उस ने बताया कि मृतकों में एक उस की बहू श्यामा है, 4 उस की नातिन पिंकी (20 वर्ष), प्रियंका (14 वर्ष), वर्षा (13 वर्ष) और रूबी उर्फ ननकी (10 वर्ष) हैं.

सभी लाशें फर्श पर पड़ी थीं. देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे सभी ने जहरीला पदार्थ पी कर आत्महत्या की थी. क्योंकि लाशों के पास ही एक भगौना रखा था, जिस में कोई जहरीला पदार्थ आटे में घोला गया था. संभवत: उसी पदार्थ को पी कर मां तथा बेटियों ने आत्महत्या की थी.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच हेतु फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच की तो पता चला कि उन लोगों ने जहरीला पदार्थ (क्विक फास) पी कर जान दी थी. घर से क्विक फास के 7 पैकेट मिले, 4 खाली 3 भरे हुए.

फोरैंसिक टीम ने जहरीले पदार्थ के सातों पैकेट जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिए. भगौना तथा उस में घोला गया जहरीला पदार्थ भी जांच के लिए रख लिया गया.

श्यामा और उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबर जिस ने भी सुनी, वही स्तब्ध रह गया. इस दुखद घटना की खबर जब निरंकारी बालिका इंटर कालेज पहुंची तो वहां शोक की लहर दौड़ गई. प्रधानाचार्य ने कालेज की छुट्टी कर दी. छुट्टी के बाद 20-25 छात्राएं शांतिनगर स्थित मृतकों के घर पहुंची. दरअसल, मृतका प्रियंका, रूबी और वर्षा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में ही पढ़ती थीं.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे कि श्यामा ने आर्थिक तंगी और शराबी पति की क्रूरता से तंग आ कर बेटियों सहित आत्महत्या की है. हत्या जैसी कोई बात नहीं थी. पुलिस अधिकारियों ने पांचों शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घर में 5 लाशें पड़ी हुई थीं, इतना कुछ हो गया था, लेकिन घर के मुखिया रामभरोसे का कुछ अतापता नहीं था. पुलिस अधिकारियों ने उस के संबंध में पिता रामसागर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामभरोसे शराबी है. वह दिन भर मजदूरी करता है और शाम को शराब के ठेके पर जा कर शराब पीता है. उस की तलाश ढाबों व शराब ठेकों पर की जाए तो वह मिल सकता है.

उधार की बीवी बनी चेयरमैन : रहमत ने नसीम को ठगा – भाग 1

5 अगस्त, 2018 को एक डेली न्यूजपेपर में एक खबर प्रमुखता से छपी, जिस की हैडलाइन ऐसी थी जिस पर जिस की भी नजर गई, उस ने जरूर पढ़ी. न्यूज कुछ इस तरह से थी— ‘भरोसे पर दोस्त ने दोस्त को पत्नी उधार दी थी, चेयरमैन बन गई तो वापस नहीं किया.’

इस न्यूज में उधार में दी गई बीवी वाली बात पढ़ने वाला हर आदमी हैरत में था. इस हैडलाइन की न्यूज में यह भी शामिल था कि महिला के पति की ओर से बीवी को वापस दिलाने के लिए अदालत में अर्जी लगाई गई है.

इस न्यूज के हिसाब से एक शादीशुदा व्यक्ति को अपनी बीवी को नेता बनाने का ऐसा खुमार चढ़ा कि उस ने पत्नी को सियासी गलियारों में उतारने के लिए यह सोच कर बीवी अपने दोस्त को उधार दे दी कि वह उसे चुनाव लड़ाएगा.

यह संयोग ही था कि उस की बीवी चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन बन गई. लेकिन चेयरमैन बनने के बाद पत्नी ने पति को भुला दिया. शर्त के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद महिला के पति ने दोस्त से बीवी लौटाने को कहा तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. यहां तक कि दोस्त ने महिला के पति को पहचानने तक से इनकार कर दिया. इस पर मामला गरमा गया. नतीजा यह हुआ कि जो बात अभी तक 3 लोगों के बीच थी, वह सार्वजनिक हो गई.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के थाना कुंडा, जसपुर के थाना क्षेत्र में एक गांव है बावरखेड़ा. नसीम अंसारी का परिवार इसी गांव में रहता है. नसीम के अनुसार, मुरादाबाद जिले के भोजपुर निवासी पूर्व नगर अध्यक्ष शफी अहमद के साथ उस की काफी समय से अच्छी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के नाते शफी अहमद का उस के घर आनाजाना था. कुछ महीने पहले शफी ने उसे विश्वास में ले कर उस की पत्नी रहमत जहां को भोजपुर से चेयरमैन का चनुव लड़ाने की बात कही.

शफी अहमद ने नसीम को बताया कि इस बार चेयरमैन की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. जबकि वह सामान्य जाति के अंतर्गत आने के कारण अपनी बीवी को चुनाव नहीं लड़ा सकता. नसीम अपने दोस्त के झांसे में आ गया और उस ने दोस्त की मजबूरी समझते हुए चुनाव लड़ाने के लिए अपनी बीवी उस के हवाले कर दी.

लेकिन दूसरे की बीवी को चुनाव लड़ाना इतना आसान काम नहीं था. यह बात नसीम ही नहीं, नसीम की बीवी रहमत जहां भी जानती थी. इस के लिए सब से पहले रहमत जहां का कानूनन शफी अहमद की बीवी बनना जरूरी था. शफी की बीवी का दरजा मिलने के बाद ही वह चुनाव लड़ने की हकदार होती.

चुनाव के लिए इशरत बनी शमी की पत्नी

चुनाव लड़ने में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए दोनों दोस्तों और रहमत जहां ने साथ बैठ कर गुप्त रूप से समझौता किया. उसी समझौते के तहत शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद शफी अहमद ने अपने पद और रसूख के बल पर जल्दी ही सरकारी कागजातों में रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शा कर उस का आईडी कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिया. रहमत जहां का आधार कार्ड बनते ही उस ने चुनाव की अगली प्रक्रिया शुरू कर दी.

इस से पहले सन 2012 से 2017 तक भोजपुर के चेयरमैन की कुरसी पर शफी अहमद का ही कब्जा रहा था. शफी को पूरा विश्वास था कि इस बार भी जनता उन्हीं का साथ देगी. लेकिन इस बार आरक्षण के कारण शफी को सपा से टिकट नहीं मिल पाया. वजह यह थी कि इस बार भोजपुर चेयरमैन की सीट पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी.

शफी अहमद सामान्य वर्ग में आते थे. इस समस्या से निपटने के लिए शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर के उसे कानूनन अपनी बीवी बना कर निर्दलीय चुनाव लड़वाया. शफी के पुराने रिकौर्ड और रसूख की वजह से रहमत जहां चुनाव जीत गई. उस ने अपनी प्रतिद्वंदी परवेज जहां को 117 वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी.

रहमत जहां को चेयरमैन बने हुए अभी 8 महीने ही हुए थे कि नसीम अंसारी ने अपनी बीवी रहमत जहां को वापस ले जाने के लिए शफी अहमद से बात की तो बात बढ़ गई. शफी ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए नसीम से कहा कि वह स्वयं ही रहमत जहां से बात करे.

नसीम ने जब इस बारे में रहमत जहां से बात की तो उस ने साफ कह दिया कि तुम से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने शफी अहमद से कोर्टमैरिज की है. वही मेरे कानूनन पति हैं. मैं तुम्हें नहीं जानती.

रहमत जहां की बात सुन कर नसीम स्तब्ध रह गया. उस ने बच्चों का वास्ता दे कर रहमत से ऐसा न करने को कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया.

नसीम ने वापस मांगी बीवी

इस पर नसीम ने फिर से शफी अहमद से बात की और अपनी बीवी वापस मांगी, लेकिन उस ने रहमत जहां को देने से साफ मना कर दिया. शफी अहमद का कहना था कि उस ने रहमत के साथ निकाह किया है और वह कानूनन उस की बीवी है. उसे जो करना है करे, वह रहमत को वापस नहीं देगा.

उस के बाद नसीम के पास एक ही रास्ता था कि वह अदालत की शरण में जाए. उस ने जसपुर के अधिवक्ता मनुज चौधरी के माध्यम से जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दिया, जिस में कहा गया कि शफी अहमद ने उस की बीवी से जबरन निकाह कर लिया.

नसीम अंसारी ने अदालत में जो प्रार्थनापत्र दिया, उस में कहा कि वर्ष 2006 में उस का निकाह सरबरखेड़ा निवासी दादू की बेटी रहमत जहां के साथ हुआ था, जिस से उस का एक बेटा और एक बेटी हैं.

17 नवंबर, 2017 की रात 10 बजे शफी अहमद, नईम चौधरी, मतलूब, जिले हसन निवासी भोजपुर, उस के घर आए. उन लोग ने मेरी कनपटी पर तमंचा रखा और मेरी पत्नी को कार में डाल कर ले गए. बाद में शफी अहमद ने उस की बीवी के साथ जबरन निकाह कर लिया. उस के कुछ समय बाद कुछ लोग कार से फिर उस के घर आए और उस के दोनों बच्चों को उठा ले गए.

77 पेज के सुसाइट नोट की दिल दहलाने वाली कहानी – भाग 1

रविवार 4 सितंबर, 2022 को रात 8-साढ़े 8 बजे का वक्त था. दिल्ली के रोहिणी स्थित बुद्ध विहार थाने के प्रभारी विपिन यादव अपने मातहतों के साथ दिन भर के कार्यों की समीक्षा में व्यस्त थे. तभी उन्हें सूचना मिली कि उन के इलाके के एक घर का दरवाजा लाख खटखटाए जाने के बावजूद नहीं खुल रहा है और भीतर से उठ रही सड़ांध से मोहल्ले के लोग परेशान हैं. थानाप्रभारी विपिन यादव इस सूचना की भयावहता को तुरंत भांप गए और तुरंत अपनी टीम ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

सूचना के अनुसार रोहिणी सेक्टर-24 के पौकेट 18 में वह जिस घर के बंद दरवाजे पर पहुंचे, वह श्रीनिवास पाल का 3 मंजिला मकान था. बिजली विभाग में कार्यरत रहे श्रीनिवास पाल को गुजरे तो 10 साल हो चुके थे. इस घर में उन की विधवा मिथिलेश पाल अपने इकलौते बेटे क्षितिज उर्फ सोनू के साथ रहती थीं. मगर मोहल्ले के लोगों ने कई दिनों से दोनों को देखा नहीं था.

घर के चारों ओर अजीब सी बदबू फैली हुई थी. यह बदबू किसी अनहोनी को बयां कर रही थी. विपिन यादव ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई, मगर दरवाजा नहीं खुला. वे काफी देर तक घंटी बजाते रहे, मगर भीतर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली.

हार कर उन्होंने ऊपर की ओर देखा. मकान की पहली मंजिल कोई बहुत ज्यादा ऊंची नहीं थी. उन्होंने अपने सिपाही को घर की पहली मंजिल की बालकनी पर चढ़ने का आदेश दिया.

सिपाही बालकनी के रास्ते तुरंत ऊपर चढ़ गया. उस ने पहली मंजिल से नीचे जाने वाली सीढि़यों का दरवाजा तोड़ा और नीचे उतर कर मेन गेट खोल दिया. थानाप्रभारी विपिन यादव अपने सहयोगी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह और अन्य सिपाहियों के साथ जैसे ही अंदर पहुंचे, मारे बदबू के उन का सिर घूम गया.

पूरे घर में सड़ांध भरी हुई थी. सामने के दरवाजे पर एक कागज चिपका था, जिस पर लिखा था, ‘मेरी मां का शव इस दरवाजे के पीछे बाथरूम में है.’

थानाप्रभारी विपिन यादव तेजी से बाथरूम में घुसे. वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. जमीन पर सड़ीगली हालत में घर की मालकिन मिथिलेश पाल का शव पड़ा था. उन के शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे. गरदन पर तेज धार वाली किसी वस्तु से काटे जाने का निशान था और शरीर का सारा खून बह कर बाथरूम के फर्श पर जम चुका था.

विपिन यादव के साथ आए सिपाही अन्य कमरों की पड़ताल करने लगे. दूसरे कमरे में उन्हें मिथिलेश पाल के 25 वर्षीय बेटे क्षितिज की लाश बैड पर पड़ी मिली. पुलिस यह देख कर हैरान रह गई कि बैड के दोनों तरफ पानी से भरी 2 बाल्टियां रखी थीं, जिन से क्षितिज ने अपने पैरों के अंगूठे बांधे हुए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और पूरा पलंग उस के खून से सना हुआ था.

क्षितिज के सिरहाने की तरफ 2 मोबाइल फोन पड़े थे और बिजली के स्विच से कनेक्ट किया हुआ एक इलैक्ट्रिक कटर खून से सना हुआ नीचे जमीन पर पड़ा था. वहीं पास में एक बड़े साइज (250 पेज) का रजिस्टर भी मिला, जिस के शुरुआती पेजों पर कार्बन पेंसिल से अध्यात्म की बातें लिखी थीं.

गंधर्व विवाह और देव विवाह जैसी बातें भी उस में लिखी हुई थीं और उस के बाद के 77 पेजों में एक लंबाचौड़ा सुसाइड नोट था. यह सुसाइड नोट क्षितिज पाल द्वारा लिखा गया था.

थानाप्रभारी विपिन यादव को यह देख कर हैरत हुई कि ये पूरा रजिस्टर किसी पेन के बजाय कार्बन पेंसिल से लिखा गया था, जो आमतौर पर कम ही इस्तेमाल होती हैं. हालांकि 77 पेज के सुसाइड नोट के आखिर में क्षितिज ने स्याही से अपने दोनों हाथ के अंगूठे के निशान लगाए थे.

थानाप्रभारी विपिन यादव को यह समझते देर नहीं लगी कि पूरा मामला हत्या और आत्महत्या का है. क्षितिज ने पहले अपनी 60 वर्षीय मां मिथिलेश को मारा और फिर खुद आत्महत्या कर ली. लेकिन इलैक्ट्रिक कटर से हत्या और आत्महत्या का जो तरीका उस ने अपनाया, वह बेहद खौफनाक था.

विपिन यादव ने तुरंत फोरैंसिक जांच के लिए क्राइम टीम और एफएसएल टीम को बुलाया. आसपास के लोगों से पूछताछ में पता चला कि इस घर में मिथिलेश अपने इकलौते बेटे क्षितिज के साथ रहती थीं. अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था, बस झांसी में मिथिलेश की छोटी बहन और जीजा थे, जो कभीकभार यहां आतेजाते थे.

लोगों ने यह भी बताया कि क्षितिज की मां बड़ी धार्मिक थीं और हर हफ्ते सत्संग भी जाया करती थीं. वहीं क्षितिज अकसर घर पर ही रहता था. मोहल्ले में उस का कोई दोस्तयार नहीं था और वह बहुत कम लोगों से मिलता था. लोग यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि क्षितिज ने अपनी मां की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली.

आखिर क्षितिज ने ऐसा क्यों किया? अपनी उस मां को क्यों मार दिया, जिस से वह बेहद प्यार करता था? हत्या में इलैक्ट्रिक कटर का इस्तेमाल भी अचरज में डालने वाला था. लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा था कि खुद की गरदन इलैक्ट्रिक कटर से काटने से पहले क्षितिज ने पानी से भरी बाल्टियों से अपने पैर के अंगूठे क्यों बांधे?

लेकिन इन सभी सवालों के जवाब सामने आए क्षितिज के 77 पेज के सुसाइड नोट से. उस रजिस्टर में क्षितिज ने न सिर्फ पूरी घटना के एकएक पल का ब्यौरा लिखा था, बल्कि अपनी पूरी जिंदगी की दास्तान उस में दर्ज कर दी थी.

पुलिस के मुताबिक क्षितिज 2 साल से खुद को मारने की उधेड़बुन में लगा था. हत्या और आत्महत्या के लिए क्या उपाय अपनाए जाएं, ये सब वह लंबे समय से गूगल पर सर्च कर रहा था.

यह वारदात भागतीदौड़ती दिल्ली के एक घर की चारदीवारी में घिरे अकेले पुरुष के अवसाद की कहानी है. क्षितिज, जिसे अपने नाम की तरह बचपन से ही क्षितिज को छूने की चाह थी, मगर उस के अकेलेपन ने उसे ऐसी मानसिक स्थिति में धकेल दिया कि वह जिंदगी की जेल से आजाद होने के लिए बेचैन हो उठा.

उसे अपने चारों ओर उदासी और नकारात्मकता ही दिखाई देने लगी. वह खुद को अकेला और हताश महसूस करने लगा और आखिर में जो कदम उठाया, उसे देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए.

टुकड़ों में बंटी औरत – भाग 1

भिवाड़ी राजस्थान ही नहीं, उत्तरी भारत का प्रमुख औद्योगिक इलाका है. भिवाड़ी और हरियाणा के बीच केवल एक सड़क का फासला है. भिवाड़ी में सुई से ले कर अंतरिक्ष यान तक के कलपुर्जे बनाने वाले उद्योग हैं.

भिवाड़ी वैसे तो अलवर जिले में आता है, लेकिन अपराधों के नजरिए से महत्त्वपूर्ण होने के कारण साल भर पहले अलवर जिले में भिवाड़ी को नया पुलिस जिला बना दिया गया था.राजस्थान में केवल अलवर ही ऐसा जिला है, जहां अलगअलग जिलों के नाम से 2 एसपी हैं. राज्य के कुछ जिलों में ग्रामीण और शहर एसपी हैं.

जबकि जयपुर और जोधपुर शहर में पुलिस कमिश्नरेट है. अपराधों के लिहाज से 2 महीने पहले भिवाड़ी में दबंग और इंटेलीजेंट एसपी के रूप में राममूर्ति जोशी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

बात 14 अगस्त की है. एसपी साहब जब अपने औफिस में स्वतंत्रता दिवस पर पुलिस की ओर से किए जाने वाले इंतजामों की फाइल देख रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर यूआईटी फेज थर्ड थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार का फोन आया. थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘सर, खिदरपुर गांव के सरकारी स्कूल के पास सड़क किनारे एक महिला के शव के अलगअलग टुकड़े मिले हैं.

’’महिला के शव के टुकड़े मिलने की बात सुन कर एसपी साहब चौंके. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने थानाप्रभारी को कुछ जरूरी निर्देश दे कर कहा, ‘‘आप शव के बाकी टुकड़े तलाश कराओ, मैं मौके पर आता हूं.’’

एसपी साहब ने अपने पीए को एडिशनल एसपी अरुण माच्या से बात कराने और तुरंत गाड़ी लगवाने को कहा. पीए ने फोन पर लाइन दी, तो एसपी साहब ने एडिशनल एसपी को महिला के शव के टुकड़े मिलने की बात बता कर तुरंत मौके पर चलने को कहा और खुद औफिस के बाहर खड़ी गाड़ी में सवार हो कर खिदरपुर स्कूल की ओर चल दिए.कुछ ही देर में वह खिदरपुर गांव पहुंच गए. स्कूल के पास तमाशबीन खड़े थे.

वहां सड़क किनारे झाडि़यां उगी हुई थीं. थानाप्रभारी और कई पुलिसकर्मी भी वहां मौजूद थे. एसपी जोशी के पहुंचने के 2-4 मिनट बाद ही एडिशनल एसपी अरुण माच्या भी पहुंच गए. पुलिस के आला अधिकारियों को देख कर लोगों की भीड़ एक तरफ हट गई.

थानाप्रभारी ने आगे आ कर एसपी और एडिशनल एसपी को सैल्यूट किया. फिर बताया कि सब से पहले कमर से नीचे और जांघों से ऊपर का हिस्सा मिला. इस के बाद आसपास तलाश कराई गई तो कुछ दूर झाडि़यों में अलगअलग जगह पर दोनों हाथ मिले. एक जगह पर बालों में उलझा इंसानी मांस का टुकड़ा मिला. शव के ये अलगअलग टुकड़े महिला के थे, जो करीब 200 मीटर के दायरे में मिले थे.

टुकड़ों से पता लगाना मुश्किल था

एसपी राममूर्ति जोशी ने शव के टुकड़ों का निरीक्षण किया. वे 4-5 दिन पुराने लग रहे थे. जांघ और कमर से नीचे के हिस्से पर कोई कपड़ा नहीं था. शव के टुकड़े आवारा जानवरों के नोंचने और फूल जाने के कारण उम्र का अंदाज भी नहीं लग सका.

जहांजहां शव के टुकड़े मिले, वहां तेज बदबू आ रही थी. मौकामुआयना कर जोशी समझ गए कि महिला की बेरहमी से हत्या कर उस के शव को टुकड़ों में काट कर अलगअलग जगह फेंका गया है. यह भी आशंका थी कि महिला के साथ दुष्कर्म किया गया हो.

चिंता की बात यह थी कि सिर सहित शव के अन्य टुकड़े नहीं मिले थे. जोशीजी ने थानाप्रभारी और एडिशनल एसपी को आसपास के इलाकों में शव के बाकी हिस्से तलाशने के निर्देश दिए. इसी के साथ उन्होंने अलवर से विधि विज्ञान विशेषज्ञों और डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया.अलवर से एफएसएल के विशेषज्ञ और डौग स्क्वायड मौके पर पहुंच गया. पुलिस ने खोजी कुत्ते को शव के टुकड़े सुंघा कर बाकी टुकड़ों की तलाश कराई, लेकिन पुलिस को शव का कोई अन्य हिस्सा नहीं मिला. इस का कारण यह था कि 2-3 दिन से हो रही बारिश ने सुराग मिटा दिए थे.

फोरैंसिक विशेषज्ञों ने भी मौके से साक्ष्य जुटाए, लेकिन 8-10 घंटे की खोजबीन के बाद भी पुलिस को न तो महिला के बारे में कोई सुराग मिला और न ही कातिलों के बारे में कोई जानकारी.पुलिस ने जगहजगह से एकत्र किए शव के टुकड़े सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिए. भिवाड़ी के यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने में इस संबंध में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर के निर्देश पर एसपी (भिवाड़ी) राममूर्ति जोशी के निर्देशन में विशेष जांच टीम का गठन किया गया. इस टीम को एडिशनल एसपी अरुण माच्या के नेतृत्व में काम करना था. टीम में डीएसपी (भिवाड़ी) हरिराम कुमावत और यूआईटी फेज थर्ड थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार सहित कई अफसरों और जवानों को शामिल किया गया.

पुलिस ने तेजी से जांचपड़ताल शुरू की, लेकिन कहीं कोई ओरछोर नहीं मिल पा रहा था. इस का कारण यह था कि औद्योगिक इलाका होने के कारण भिवाड़ी में रोजाना राजस्थान के ही नहीं बल्कि हरियाणा के गुड़गांव, धारूहेड़ा, रेवाड़ी, बावल, फरीदाबाद, पलवल और दिल्ली तक के रोजाना हजारों लोग नौकरी और कामकाज के सिलसिले में भिवाड़ी आतेजाते हैं.

यह भी आशंका थी कि हरियाणा में हत्या करने के बाद शव के टुकड़े राजस्थान के भिवाड़ी में फेंके गए हों. हत्या के ऐसे एकदो मामले पहले भी सामने आए थे. दूसरी बड़ी समस्या यह थी भिवाड़ी में देश के विभिन्न राज्यों के लाखों श्रमिक काम करते हैं, इन श्रमिकों की भिवाड़ी सहित आसपास के गांवों में बड़ीबड़ी बस्तियां हैं. साथ ही भिवाड़ी में भी सैकड़ों बहुमंजिला सोसायटियां हैं. इन सभी इलाकों में एक महिला के बारे में खोजबीन करना चुनौती भरा काम था.

17 महीने तक लाश में दिखी आस – भाग 1

कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जिन पर विश्वास कर पाना बहुत ही कठिन होता है. ऐसी अविश्वसनीय घटनाएं या तो अंधविश्वास में घटित होती हैं या फिर मनोरोग विकार में. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी ऐसी ही एक अविश्वसनीय घटना घटित हुई, जिस ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया.

कानपुर शहर का एक मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला रोशन नगर है. इसी मोहल्ले के कृष्णापुरी के मकान नं. 7/401 में रामऔतार गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 3 बेटे दिनेश, सुनील व विमलेश थे.

रामऔतार गौतम फील्डगन फैक्ट्री में मशीनिष्ट के पद पर कार्यरत थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना तीनमंजिला मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं.

रामऔतार गौतम के तीनों बेटे होनहार थे. बड़ा बेटा दिनेश सिंचाई विभाग में है और वह कानपुर के फूलबाग कार्यालय में तैनात है. जबकि सुनील बिजली उपकरणों की ठेकेदारी करता है. दिनेश व सुनील शादीशुदा हैं. दिनेश की शादी अर्चना से तथा सुनील की गुडि़या से हुई थी. दिनेश व सुनील अपने परिवार के साथ पिता के मकान में ही रहते हैं.

रामऔतार गौतम का सब से छोटा बेटा विमलेश कुमार था. वह अपने अन्य भाइयों से ज्यादा तेज दिमाग का था. विमलेश ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रामलला स्कूल से की, फिर बीकौम व एमकौम की पढ़ाई छत्रपति शाहूजी महाराज महाविद्यालय से पूरी की.

उस के बाद विमलेश की नौकरी आयकर विभाग में लग गई. वर्तमान में वह अहमदाबाद में आयकर विभाग में असिस्टेंट एकाउंट औफिसर के पद पर कार्यरत था.

विमलेश कुमार की शादी मिताली दीक्षित के साथ हुई थी. यह अंतरजातीय प्रेम विवाह था. विमलेश अनुसूचित जाति के थे, जबकि मिताली दीक्षित ब्राह्मण थी. दरअसल, विमलेश कुमार मिताली को उन के किदवई नगर स्थित घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे. ट्यूशन पढ़ाने के दौरान ही दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए और उन के बीच प्यार पनपने लगा.

मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों ने शादी का निश्चय किया. विमलेश के घरवाले शादी को राजी थे, लेकिन मिताली के घर वाले राजी नहीं थे. लेकिन घरवालों के विरोध के बावजूद मिताली दीक्षित ने वर्ष 2015 में विमलेश कुमार के साथ विवाह रचा लिया और विमलेश की दुलहन बन कर रोशन नगर स्थित ससुराल आ गई.

ससुराल में मिताली को सासससुर व पति का भरपूर प्यार मिला, जिस से वह अपने भाग्य पर इतरा उठी. शादी के 2 साल बाद मिताली ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने संभव रखा. संभव के जन्म से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं. मिताली संयुक्त परिवार में जरूर रहती थी, लेकिन कभी उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई.

मिताली दीक्षित पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह किदवई नगर स्थित कोऔपरेटिव बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत थी. सुबह वह सास व जेठानियों के साथ घर का काम निपटाती फिर बैंक जाती. बैंक से वापस आ कर वह फिर घरेलू काम निपटाती. यही उन की दिनचर्या बन गई थी. वह हर तरह से खुशहाल थी.

वर्ष 2019 में विमलेश का ट्रांसफर अहमदाबाद (गुजरात) हो गया. पति के बाहर जाने से मिताली विचलित नहीं हुई और अपने कर्तव्य का पालन करती रही. पति का आनाजाना लगा रहता था. वह अपने बेटे संभव से बहुत प्यार करते थे. बेटे के अलावा उन्हें अपने मातापिता व भाइयों से भी बेहद लगाव था. मां से उन्हें कुछ ज्यादा ही लगाव था.

इस बीच मिताली दोबारा गर्भवती हुई और उस ने मार्च 2021 में एक बेटी कोे जन्म दिया. इस का नाम उस ने दृष्टि रखा. नवजात की देखभाल हेतु मिताली ने 6 महीने की छुट्टी बैंक से ले ली.

22 अप्रैल, 2021 को हुई थी मौत

इधर आयकर अधिकारी विमलेश कुमार गौतम 16 अप्रैल, 2021 को विभागीय कार्य हेतु अहमदाबाद स्थित आयकर कार्यालय से निकले तो वह बीमार हो गए. उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. उन दिनों कोरोना काल की दूसरी भयंकर लहर चल रही थी और लोग कीड़ेमकोड़ों की तरह मर रहे थे. अत: घबरा कर विमलेश कुमार ने अहमदाबाद से लखनऊ की फ्लाइट पकड़ी, फिर लखनऊ से अपने घर कानपुर आ गए.

19 अप्रैल, 2021 को घर वालों ने विमलेश कुमार को बिरहाना रोड के मोती हौस्पिटल में भरती करा दिया. अस्पताल में विमलेश का महंगा इलाज शुरू हुआ. लेकिन डाक्टर काल के हाथों से विमलेश कुमार को बचा न सके.

22 अप्रैल, 2021 की सुबह 4 बजे विमलेश ने दम तोड़ दिया. विमलेश के शव को निजी वाहन से रोशन नगर स्थित घर लाया गया. अस्पताल में लगभग 9 लाख रुपया खर्च हुआ तथा अस्पताल की तरफ से घर वालों को मौत का सर्टिफिकेट भी थमा दिया.

आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत से गौतम परिवार में हाहाकार मच गया. नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया. मातापिता जहां बेटे की मौत पर आंसू बहा रहे थे, वहीं मिताली की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. भाई सुनील व दिनेश भी बेहाल थे.

इसी बीच एक रिश्तेदार महिला ने रोते हुए विमलेश के सीने पर सिर रखा तो उसे विमलेश के सीने से धड़कन महसूस हुई. वह आंसू पोंछते हुए रामदुलारी से बोली, ‘‘बहना, तुम्हारा बिटवा जीवित है.’’

फिर तो बारीबारी से रामदुलारी व दिनेश ने भी धड़कन महसूस की.

इस के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी रोक दी गई और पड़ोस में रहने वाले एक डाक्टर को बुलाया गया. उस ने विमलेश की मृत देह की अंगुली में पल्स औक्सीमीटर लगाया तो औक्सीजन 77 और पल्स 62 आने लगी. उसे देख मौत का सर्टिफिकेट हाथ में थामने के बावजूद घर वालों ने विमलेश को जीवित मान लिया. इस के बाद सभी अपने घरों को चले गए.

जीवित मान कर शव की करते रहे साफसफाई

परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी, इसलिए परिवार के लोग विमलेश कुमार को तुरंत पनेशिया, केएमसी, फार्च्यून व सिटी हौस्पिटल ले गए. लेकिन सभी आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांग रहे थे. रिपोर्ट उन के पास नहीं थी. इसलिए शहर के किसी भी अस्पताल ने विमलेश को भरती नहीं किया.

घर वालों को लाश में आस नजर आ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने घर को ही अस्पताल बना दिया. उन्होंने विमलेश को घर के एसी रूम में तख्त पर लिटा दिया और इलाज शुरू कर दिया.

इस इलाज पर उन्होंने करीब 30 लाख रुपए भी खर्च कर दिए. विमलेश की मां रामदुलारी गंगाजल छिड़क कर उस के शरीर को पोछतीं फिर साफसुथरे कपड़े पहनातीं. इस काम में उन का पति रामऔतार भी मदद करते. रामदुलारी चम्मच से 2-4 बूंद गंगाजल उस के मुंह में भी डालतीं.

किसी तरह की बदबू न आए. इस के लिए कमरे में सुगंधित अगरबत्ती, धूपबत्ती भी जलाई जाती. गुप्तरूप से झोलाछाप डाक्टर व कथित तांत्रिक भी आते व पूजापाठ व तंत्रमंत्र करते.

धरी रह गई झूठी आन, बान और शान

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना सिरसागंज का एक गांव है नगला नाथू. 23 अप्रैल, 2018 की रात 11 बजे गांव का ही एक आदमी गांव में आयोजित एक कार्यक्रम से दावत खा कर अपने घर जा रहा था.

जब वह मुन्नीलाल झा के घर के पास से गुजर रहा था तो उसे झाडि़यों में किसी लड़की के कराहने की आवाज सुनाई दी. उस ने पास जा कर देखा तो खून से लथपथ एक युवती कराह रही थी. उस व्यक्ति ने पूछा कौन है, लेकिन युवती की ओर से कोई जवाब नहीं आया.

उस व्यक्ति ने आसपास के लोगों को जानकारी दी, तो लोग अपनेअपने घरों से निकल आए. उन्होंने जब झाडि़यों में देखा तो वे उस लड़की को पहचान गए. वह मुन्नीलाल की 19 वर्षीय बेटी किरन थी.

जब लोगों ने मुन्नीलाल को यह सूचना देनी चाही तो देखा मुन्नीलाल के दरवाजे पर ताला लगा था. सभी परेशान थे कि किरन की यह हालत किस ने की है? उसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी सिरसागंज रविंद्र कुमार दुबे पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस को किरन अपने घर के बाहर चबूतरे के कोने पर झाडि़यों में लहूलुहान अवस्था में तड़पती मिली. पुलिस किरन को उपचार के लिए सरकारी ट्रामा सेंटर फिरोजाबाद ले गई.

उस समय उस के परिवार का कोई भी व्यक्ति साथ नहीं था. केवल पड़ोस की एक महिला साथ थी. उस की हालत गंभीर थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे आगरा के लिए रेफर कर दिया. लेकिन आगरा ले जाते समय रास्ते में ही किरन ने दम तोड़ दिया.

पुलिस ने चौकीदार राजकुमार की तरफ से भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी. पुलिस को यह मामला औनर किलिंग का लग रहा था. थानाप्रभारी ने मामले की जानकारी एसएसपी डा. मनोज कुमार को दी तो वह भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को मृतका के घर वालों का पता लगाने के निर्देश दिए.

पुलिस ने किरन की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. उस समय रिश्तेदारों की बात तो छोडि़ए, मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति शव के पास नहीं था. लावारिस हालत में शव ऐसे ही पड़ा था.

काफी समय बाद मृतका की बड़ी बहन सीमा, जोकि विधवा है, के ससुराल वाले वहां आ गए. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव उन के हवाले कर दिया. उन्होंने अपने गांव वरनाहल ले जा कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

मुन्नीलाल और परिवार वालों को तलाशने के लिए एसएसपी मनोज कुमार ने पुलिस की 3 टीमों का गठन किया. एसपी (देहात) महेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीमों ने संभावित स्थानों पर दबिश दी लेकिन उन का पता नहीं चला.

घटना के तीसरे दिन पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मुन्नीलाल को करहल रोड पर स्थित दिहुली चौराहे के निकट से सीओ अजय चौहान और थानाप्रभारी रविंद्र कुमार दुबे ने हिरासत में ले लिया. वह फरार होने के लिए वहां किसी वाहन का इंतजार कर रहा था.

थाने ला कर जब उस से उस की बेटी किरन की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने कहा कि बेटी ने उस का जीना हराम कर दिया था. ऐसे हालात में उस के सामने यह कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. अपनी बेटी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली.

गांव नगला नाथ निवासी मुन्नीलाल अहमदाबाद में प्राइवेट नौकरी करता था. उस की पत्नी की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. मुन्नीलाल के 2 बेटियां सीमा व किरन और 3 बेटे गौरव, आकाश व राज थे. बड़े बेटे गौरव की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी.

उस की विधवा पत्नी भी गांव में ही परिवार के साथ रहती है. बड़ी बेटी सीमा की शादी जिला मैनपुरी के गांव बरनाहल में हो गई थी. जब उस के बेटे बड़े हुए तो वह भी मजदूरी करने लगे. बेटों के काम करने पर घर का खर्चा आसानी से चलने लगा.

किरन जब जवान हुई तो उस के घर से कुछ दूर रहने वाले अवनीश से उसे प्यार हो गया. दोनों जब तक एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता था. धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा.

वे चोरीछिपे मुलाकात भी करने लगे. हालांकि दोनों की जाति अलगअलग थी. इस के बावजूद उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. एक बार किरन ने उस से पूछा भी लिया, ‘‘अवनीश, वैसे मैं जातपांत में विश्वास नहीं करती, पर समाज से डर कर तुम मुझे कहीं भूल तो नहीं जाओगे?’’

इस पर अवनीश ने उस के होंठों पर हाथ रख कर उसे चुप कराते हुए कहा, ‘‘किरन, दो सच्चे प्रेमियों को मिलने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. हमारे प्यार के बीच चाहे कितने भी व्यवधान आएं, मैं वादा करता हूं कि तुम्हारा हर तरह से साथ दूंगा. मैं जिंदगी भर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगा.’’

किरन और अवनीश अपने भावी जीवन के सपने देखते. जमाने से बेखबर वे अपने प्यार में मस्त रहते थे. पर गांवदेहात में प्यारमोहब्बत की बातें ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पातीं. यदि किसी एक व्यक्ति को भी इस की भनक लग जाती है तो कानाफूसी से बात पूरे मोहल्ले में ही नहीं बल्कि गांव भर में फैल जाती है.

किसी तरह किरन के घर वालों को भी पता चल गया कि उस का अवनीश के साथ चक्कर चल रहा है. लिहाजा उस के पिता ने उसे समझाया कि वह उस लड़के से मिलनाजुलना बंद कर दे. पर उस के सिर पर तो प्यार का भूत सवार था. ऐसे में पिता के समझाने का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

उधर अवनीश के घर वालों ने भी उसे समझाया पर उस पर भी कोई असर नहीं हुआ. यानी दोनों की मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा. वह पहले से अब ज्यादा सतर्क जरूर हो गए थे. मुन्नीलाल तो अहमदाबाद में काम करता था. वह कभीकभार घर आता था. किरन अपनी विधवा भाभी, भाई आकाश व राज के साथ रहती थी.

घर वालों की बंदिशें लगाने के बाद भी प्रेमी युगल छिपछिप कर मिलते रहे. उन के मिलने का यह सिलसिला निरंतर चलता रहा. इस के चलते दोनों परिवारों में तल्खी बढ़ती गई. 22 मार्च, 2018 को मुन्नीलाल गांव आया हुआ था. उस ने जब अवनीश को अपने घर के पास चक्कर काटते देखा तो उस का खून खौल उठा.

वह अवनीश को सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उस ने किरन पर दबाव डाल कर थाना सिरसागंज में अवनीश, उस के 2 भाइयों चिंटू व धर्मवीर, जगदीश और मनीष के खिलाफ किरन के साथ छेड़छाड़ की रिपोर्ट दर्ज करा दी. घर वालों के दबाव में किरन ने रिपोर्ट तो लिखा दी, लेकिन उस ने आरोपियों के खिलाफ बयान नहीं दिया.

गांव वालों ने दोनों पक्षों में समझौता कराने का भरसक प्रयास किया, लेकिन मुन्नीलाल ने समझौता करने से साफ मना कर दिया. एक दिन किरन ने अवनीश से मुलाकात कर बता दिया कि उस के पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए उसे मजबूर कर दिया था, पर वह अभी भी उस से प्यार करती है और करती रहेगी. यानी किरन का अपने प्रेमी से मिलना बंद नहीं हुआ.

किरन अवनीश से मिलती तो उस पर जल्दी शादी करने के लिए दबाव डालती. अवनीश ने कहा कि वह उस से शादी को तैयार है लेकिन जो मुकदमा लिखा दिया है, उसे वापस ले लो. इस के बाद किरन ने अपने घर वालों पर अवनीश के साथ शादी कराने का दबाव बनाना शुरू कर दिया.

चूंकि अवनीश दूसरी बिरादरी का था, इसलिए किरन के घर वालों ने साफ कह दिया कि उस के साथ शादी नहीं हो सकती. पर किरन अपनी जिद पर अड़ी रही. उस ने साफ कह दिया कि वह छेड़खानी के मुकदमे में अवनीश और उस के भाइयों के खिलाफ गवाही नहीं देगी और अगर अवनीश के साथ उस की शादी नहीं की तो वह अपनी जान दे देगी.

इस बात ने आग में घी का काम किया. मुन्नीलाल समझ गया कि किरन की जिद से मोहल्ले में उन की बदनामी हो रही है. तब उस ने अपने बेटे आकाश के साथ योजना बना कर एक खौफनाक निर्णय ले लिया. इसी बात को ले कर किरन का घटना की रात को पिता व भाई आकाश से काफी झगड़ा हुआ.

उस झगड़े में इश्क का जुनून किरन के सिर चढ़ कर बोलने लगा. उस ने इस बात की भी चिंता नहीं की कि उस का अंजाम क्या होगा. किरन के तेवर देख कर बापबेटे गुस्से में भर गए लेकिन उन्होंने उस समय उस से कुछ नहीं कहा.

रात को किरन जब चारपाई पर गहरी नींद में सो गई तो मुन्नीलाल ने उस पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया. वह चीखी तो आकाश ने उसे ईंट से मारना शुरू किया.

कुल्हाड़ी और ईंट के वार से वह बेहोश हो गई. वह उसे चारपाई पर ही जलाना चाहते थे पर वह फिर से चीख पड़ी. कहीं पड़ोसी न आ जाएं, इसलिए उन्होंने उसे उठा कर बाहर चबूतरे के पास झाडि़यों में फेंक दिया और घर के सभी लोग ताला लगा कर फरार हो गए.

रात में गांव वालों ने किरन की चीखपुकार की आवाज सुनी तो उन्होंने सोचा कि मुन्नीलाल शायद किरन को पीट रहा है. क्योंकि किरन के किस्से की पूरे मोहल्ले को जानकारी थी. इस के कुछ देर बाद आवाज आनी बंद हो गई तो लगा कि उन का झगड़ा अब बंद हो गया है.

पुलिस ने मुन्नीलाल से पूछताछ के बाद उस के घर से खून सनी चारपाई व ईंट भी कब्जे में ले ली. बाद में मुन्नीलाल की निशानदेही पर कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई. हत्या में शामिल उस के बेटे आकाश के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी. पुलिस ने मुन्नीलाल से विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

अवनीश की भाभी कविता ने बताया कि किरन शादी करने के लिए अवनीश पर दबाव डाल रही थी. उस से कहा गया कि हम शादी के लिए तैयार हैं, लेकिन पहले मामले में राजीनामा कर ले. लेकिन किरन का पिता राजीनामा नहीं होने दे रहा था. घटना वाले दिन अवनीश के घर वाले राजीनामे के लिए जब किरन को थाने ले जाने लगे तो मुन्नीलाल व उस का बेटा आकाश तैयार नहीं हुए.

कविता ने बताया कि घटना वाले दिन मुन्नीलाल दोपहर को यही कोई बारहएक बजे पटिया पर कुल्हाड़ी पैनी कर रहा था. इसे गांव के कई लोगों ने देखा था. लोग समझे कि लकड़ी काटने के लिए धार लगा रहा है. लेकिन क्या पता था कि वह अपनी बेटी को मारने के लिए धार लगा रहा था.

बहरहाल, झूठी शान दिखाने के चक्कर में मुन्नीलाल बेटी के कत्ल के आरोप में जेल चला गया और एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया. कथा लिखे जाने तक आकाश को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर

हसनप्रीत सिंह लाइब्रेरी में अपने सामने अखबार फैलाए बैठा था. फिर भी उस का सारा ध्यान सीढि़यों की तरफ ही लगा हुआ था. सीढि़यों पर जैसे ही किसी के आने की आहट होती, वह चौकन्ना हो कर उधर देखने लगता. उसे पूरी उम्मीद थी कि रमनदीप कौर जरूर आएगी. दरअसल वह खुद ही तयशुदा वक्त से 15-20 मिनट पहले आ गया था.

कस्बे में उन दोनों की मुलाकातें न के बराबर ही हो पाती थीं. सारा दिन एकदूसरे के लिए तड़पते रहने के बावजूद वे 10-15 दिनों में एकाध बार, बस 3-4 मिनट के लिए ही मिल पाते थे. इस छोटी सी मुलाकात के दौरान भी आमतौर पर उन में आपस में कोई बात नहीं हो पाती थी.

उन की बातचीत का माध्यम वे पर्चियां ही रह गई थीं, जो एकदूसरे को लिखा करते थे. इन्हीं पर्चियों में वे अपनी सब भावनाएं, अपने सब दर्द उड़ेल दिया करते थे. इन्हीं पर्चियों में उन की अगली मुलाकात की जगह और उस का वक्त तय होता था.

दरअसल, खेमकरण जैसे छोटे से उस कस्बे में लड़केलड़की का आपस में बात करना इतना आसान नहीं था. फिर बात जब एक ही गांव और एक ही बिरादरी की हो तो और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.

बात तो कहीं न कहीं की जा सकती थी, पर बात करने की खबर पूरे कस्बे में फैलते देर नहीं लगती थी. कम उम्र होने के बावजूद लड़केलड़की में इतनी समझ थी कि वे न तो अपनी और न अपने घर वालों की बदनामी होने देना चाहते थे.

इसलिए जब भी वे मिलते तो यही कोशिश करते कि बात न की जाए. हां, कभीकभार मौका मिल जाने पर एकाध वाक्य का आदानप्रदान हो जाया करता था. बावजूद इतनी सावधानी के आखिर एक दिन उन की चोरी पकड़ी गई और उस दिन दोनों के घर में जो तूफान उठा, वह बड़ा भयानक था. दरअसल, उन के मोहल्ले के किसी आदमी ने दोनों को एक साथ देख कर उन के घर शिकायत कर दी थी.

हसनप्रीत सिंह के पिता परविंदर सिंह भारतपाक सीमा पर बसे कस्बा खेमकरण सेक्टर के वार्ड-2 में रहते थे. परविंदर सिंह के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अर्शदीप सिंह जो शादीशुदा था और छोटा बेटा 21 वर्षीय हसनप्रीत, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था.

जाट परिवार से संबंधित परविंदर सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि है और उन की गिनती बड़े किसानों में होती थी. उन के पास धनदौलत, ऐश्वर्य किसी चीज की कमी नहीं थी.

वहीं रमनदीप कौर के पिता जस्सा सिंह की गिनती भी बड़े किसानों में होती थी. उन के पास भी कई एकड़ उपजाऊ भूमि और सुखसुविधाओं का सभी सामान था. जस्सा सिंह का परिवार परविंदर के घर से कुछ दूरी पर वार्ड नंबर-2 में ही रहता था. दोनों परिवारों में अच्छा मेलमिलाप था पर वर्चस्व को ले कर कभीकभार कहासुनी हो जाती थी.

बहरहाल, हसनप्रीत अखबार सामने रखे अपने आसपास बैठे लोगों पर भी नजर रखे हुए था. यह ध्यान रखना बेहद जरूरी था कि उन लोगों में से कोई उस की जानपहचान का न हो. साथ ही इस बात का भी खयाल रखना जरूरी था कि वहां बैठे किसी आदमी को उस पर यह शक न हो जाए कि वह वहां अखबार पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि किसी और इरादे से आया है.

society

एक समस्या और भी थी. सामने के किताबों से भरी अलमारियों वाले कमरे में लाइब्रेरियन के अलावा कई लोग मौजूद थे. उस कमरे में लोगों का आनाजाना भी लगा रहता था.

हसन और रमनदीप की मुलाकात करीब 2 साल पहले एक शादी में हुई थी. 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद हसन एग्रीकल्चर का डिप्लोमा कर के पिता के साथ अपने खेतों में आधुनिक तरीके से खेती का काम करने लगा था.

रमनदीप कौर सामान्य कद की गोरी लेकिन साधारण सी लड़की थी. उस की यही साधारणता उस के आकर्षण का कारण थी, जिस पर हसनप्रीत पूरी तरह कुरबान था.

शहर में 2 लाइब्रेरियां थीं. एक तो बहुत छोटी थी, जिस में मात्र 4-6 लोग बड़ी मुश्किल से बैठ पाते थे. वहां मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. हां, यह दूसरी लाइब्रेरी काफी बड़ी थी.

वे लोग इसी लाइब्रेरी में मिला करते थे. अब दोनों कोडवर्ड के जरिए मिलने की जगह, तारीख और समय तय कर लेते और इस तरह 10-15 दिनों में एक बार मिला करते.

इन्हीं मुलाकातों में वे भावनाओं से लबालब अपनीअपनी पर्चियां किसी न किसी तरीके से एकदूसरे को पकड़ा दिया करते थे. उस दिन उन का मिलना भी इसी तरह एक चिट्ठी के जरिए तय हुआ था.

हसनप्रीत की नजरें बारबार अपनी कलाई घड़ी से टकरातीं. तय वक्त से पूरे 7 मिनट ऊपर हो चुके थे. वह मायूस हो चुका था. उसे लगने लगा था कि अब रमन नहीं आएगी.

तभी हाथ में एक छोटा सा लिफाफा पकड़े रमन सीढि़यों पर नजर आई. बेंच पर संयोगवश हसनप्रीत के पास वाली जगह खाली थी, जहां आ कर रमन बैठ गई. आसपास इतने लोग बैठे थे कि बात करना बिलकुल असंभव लग रहा था. हसनप्रीत के दिल में तूफान सा मचल रहा था.

लाइब्रेरी में जमे तल्लीनता से अखबार पढ़ रहे लोगों के बीच पसरी चुप्पी के बावजूद बात करना कतई संभव नहीं लग रहा था. हसन ने कनखियों से रमन की ओर देखा. वह भी अखबार सामने रखे हुए उसे पढ़ने का नाटक करने लगी. इसी उधेड़बुन में कई मिनट बीत गए.

हसनप्रीत बड़ी बेचैनी सी महसूस कर रहा था. इस से पहले ऐसे कई मौके आए थे, जब वे इस तरह लाइब्रेरी में मिले थे और आपस में उन की कोई बात नहीं हो पाई थी. पर उन के लिए आज का दिन तो विशेष था.

रमन ने कोई खास बात करने के लिए हसन को बुलाया था. आखिर अपने चारों ओर देखने के बाद रमन ने चौकन्ने हो कर धीमे स्वर में कहा, ‘‘हसन, मेरे पिताजी किसी भी सूरत में हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘अपने प्यार को भूलना क्या इतना आसान होता है? तुम भी पागलों जैसी बातें करती हो.’’ हसन ने रोआंसे हो कर कहा, ‘‘देखो मेरे पिता को देखो, वह मेरी खुशी की खातिर तुम्हें अपनी बहू बनाने को तैयार हो गए हैं. क्या तुम्हारे पिताजी मुझे अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकते?’’

‘‘यही तो विडंबना है मेरे भाग्य की. तुम्हारी जुदाई शायद मेरा नसीब है.’’

‘‘तुम भी बेकार की बातें करती हो. इंसान को अपनी कोशिश तब तक जारी रखनी चाहिए जब तक उस की समस्या का समाधान नहीं हो जाता.’’ हसनप्रीत ने रमन को हौसला बंधाते हुए कहा.

‘‘तुम पुरुष हो और तुम्हारे लिए ऐसी बातें करना सहज है, लेकिन मैं लड़की हूं. मैं इस समाज का और अपने परिवार का सामना नहीं कर सकती.’’

रमन के ये वाक्य उस के टूटे हृदय की वेदना और उस की हार की निशानी थे, जिसे हसनप्रीत ने स्पष्ट महसूस किया. इसलिए उस ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘एक काम करो, तुम सारी बातें उस वाहेगुरु पर छोड़ दो. अगर हमारा प्यार सच्चा है और इरादा पक्का है तो मुझे पूरा विश्वास है कि सच्चे पातशाह हमारी मदद जरूर करेंगे. वही कोई न कोई रास्ता निकालेंगे. बस तुम विश्वास रखना.’’

बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

जस्सा सिंह और उस के भाइयों को जिस दिन से यह खबर लगी थी कि परविंदर का छोटा बेटा हसनप्रीत उन की बेटी रमनदीप में दिलचस्पी ले रहा है, उन्होंने उसी दिन से रमन पर नजर रखनी शुरू कर दी थी. यहां तक कि उसे किसी काम से अपने घर के सामने रहने वाले अपने चाचा के घर भी अकेले जाने की इजाजत नहीं थी.

ऐसे में हसन से मिलना तो बिलकुल संभव ही नहीं था, इसीलिए अपनी आखिरी मुलाकात में वह हसन को स्पष्ट कह आई थी कि शायद अब दोबारा मिलना कभी संभव न हो.

हसनप्रीत के कहने पर रमनदीप ने अपने जीवन की बागडोर वाहेगुरु के हाथों में सौंप दी थी और आने वाले समय का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. हसन ने भी अपने आप को वाहेगुरु की मरजी के हवाले कर दिया था. अब उन की मुलाकातें लगभग समाप्त हो गई थीं.

दूसरी ओर जस्सा सिंह और उन के परिवार के दिमाग में यह फितूर अभी तक बना हुआ था. उन्हें हर समय यह संदेह घेरे रहता था कि हसन अब भी उन की लड़की से मिलताजुलता है. वह किसी न किसी बहाने से हसन और उस के परिवार को सबक सिखाने के लिए उतावले रहते थे.

13 मई, 2018 की बात है. शाम के लगभग 4 बजे का समय होगा. परविंदर ने अपने बेटे हसन से कहा कि वह बाड़े में जा कर पशुओं को चारा डाल आए. परविंदर के पास कई दुधारू पशु थे. उस ने पशुओं के लिए अपने घर के बाहर एक बाड़ा बना रखा था.

वह बाड़ा जस्सा सिंह के घर की तरफ था और पशुओं को प्रतिदिन चारा डालने की जिम्मेदारी हसन की थी. 13 तारीख रविवार की शाम 4 बजे भी वह रोज की तरह पशुओं को चारा डालने बाड़े में गया.

पशुओं को चारा डाल कर हसन लगभग 2 घंटे में लौट आता था, लेकिन उस दिन देर रात गए जब वह वापस नहीं लौटा तो परविंदर को उस की चिंता हुई. उन्होंने अपने बड़े बेटे अर्शदीप के साथ जा कर बाड़े में देखा तो हैरान रह गए. पशु चारे के बिना भूख से बिलबिला रहे थे.

इस का मतलब हसन बाड़े में आया ही नहीं था. परविंदर ने मन ही मन कुढ़ते हुए अर्शदीप से कहा, ‘‘बहुत लापरवाह लड़का है, भूखे पशुओं को छोड़ कर न जाने कहां आवारागर्दी कर रहा है. आज इस की खबर लेनी पड़ेगी.’’

इस के बाद दोनों बापबेटे ने मिल कर पशुओं को चारा खिलाया और हसन की तलाश शुरू कर दी. परविंदर के भाइयों को इस बात का पता चला तो वे भी हसन की तलाश में जुट गए.

सब को इस बात का आश्चर्य था कि आज से पहले हसन ने इस तरह की हरकत कभी नहीं की थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि जो वह बिना कुछ बताए घर से लापता हो गया था. बहरहाल, रात भर हसन की तलाश की जाती रही पर उस की कहीं कोई खोजखबर नहीं मिली.

अगले दिन सुबह परविंदर सिंह को उन की रिश्तेदारी में लगते भाई दया सिंह ने आ कर बताया कि उस के लड़के हसन को जस्सा सिंह का परिवार पकड़ कर अपने घर ले गया है. उसे यह खबर किसी ने बताई थी. बताने वाले ने कहा था कि जिस समय हसन पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो उस ने देखा, जस्सा सिंह और उस के भाई हसन को अपने साथ अपने घर की ओर ले जा रहे थे.

यह पता चलते ही परविंदर, उस का बेटा अर्शदीप और उन के रिश्तेदार जस्सा सिंह के घर पहुंचे पर जस्सा सिंह ने हसन के वहां होने से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने परविंदर और उन के साथ आए लोगों की बेइज्जती कर के अपने घर से भगा दिया.

जस्सा सिंह के ऐसे व्यवहार से परविंदर सिंह का शक विश्वास में बदल गया. किसी अनहोनी के डर से उन का तनमन बुरी तरह कांप उठा. वह वहीं से सभी लोगों के साथ थाना खेमकरण पहुंचे और थानाप्रभारी बलविंदर सिंह को हसनप्रीत के लापता होने की पूरी घटना बता कर जस्सा सिंह और उस के परिवार पर संदेह जताया.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने परविंदर की पूरी शिकायत सुनने के बाद उन के लिखित बयान दर्ज किए और एएसआई चरण सिंह, दर्शन सिंह, हैडकांस्टेबल दिलबाग सिंह, बलविंदर सिंह, इंदरजीत सिंह, मेजर सिंह, तरलोक सिंह और दलविंदर सिंह को साथ ले कर जस्सा सिंह के घर जा पहुंचे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह द्वारा हसन के बारे में पूछने पर जस्सा सिंह ने बताया कि उन्होंने तो कई दिनों से हसन को नहीं देखा. इस के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने रमनदीप कौर के बारे में पूछा तो जस्सा सिंह ने बताया कि वह रिश्तेदारी में गई हुई है.

कहां गई है, यह पूछने पर वह बगलें झांकने लगा. इस से थानाप्रभारी बलविंदर सिंह का संदेह गहरा गया. उन्होंने परिवार के हर सदस्य से जब अलगअलग पूछताछ की तो सब के बयान एकदूसरे से भिन्न थे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अब वहां ठहरना उचित नहीं समझा और पूछताछ के लिए सब को हिरासत में ले कर थाने आ गए. थाने पहुंच कर जब सब से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन लोगों ने मिल कर हसनप्रीत और रमनदीप कौर की हत्या कर के उन दोनों की लाशों को छिपा दिया है.

अपराध स्वीकृति के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने एसएसपी (तरनतारन) दर्शन सिंह मान को इस हत्याकांड की सूचना दे दी. उन के निर्देश पर जस्सा सिंह, उस की पत्नी मंजीत कौर और बेटा आकाश, उस के भाई हरपाल सिंह, शेर सिंह, मनप्रीत कौर, शेर सिंह के बेटे राणा और एक रिश्तेदार धुला सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 201, 148, 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर की हत्या के अपराध में पुलिस ने इन सभी को सक्षम अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ के दौरान अभियुक्तों ने बताया कि दोनों की हत्या करने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दिया है, जबकि हसन की लाश को उन्होंने जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दी ाि.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर एसएसपी दर्शन सिंह मान और पट्टी के एसडीएम सुरिंदर सिंह की मौजूदगी में दोनों घरों से हसन और रमनदीप की लाशें बरामद कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह 2 प्रेमियों को जुदा करने की क्रूरता भरी दास्तां थी.

हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर दोनों एकदूसरे से बेहद प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे. लेकिन जस्सा सिंह को यह बात किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं थी. उस ने अपनी बेटी पर पहरा बैठा दिया था. उस का घर से बाहर तक निकलना बंद करवा दिया गया था.

पर इस के बावजूद जस्सा के मन में यह बात कहीं घर कर गई थी कि एक न एक दिन हसन उस की बेटी को भगा ले जाएगा या उस की बेटी घर वालों को धोखा दे कर हसन के साथ भाग कर शादी कर लेगी.

जस्सा को अपनी मूंछों पर बड़ा गर्व था, वह नहीं चाहता था कि बेटी को ले कर कभी उसे अपनी मूंछें नीची करनी पड़ें. इसलिए वह इस किस्से को ही जड़ से खत्म करना चाहता था.

उस का सोचना था कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी, इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. अपने भाइयों के साथ मिल कर हसन की हत्या की योजना वह बहुत पहले ही बना चुका था.

सो 13 मई की शाम जब हसन अपने पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो जस्सा सिंह और उस के भाई हरपाल ने उसे रास्ते में रोक लिया और कोई बात करने का बहाना बना कर अपने घर ले गए.

उन के घर पहुंचने पर घर की औरतों मंजीत कौर और मनप्रीत कौर ने घर का मुख्यद्वार बंद कर दिया और हसन से बिना कोई बात किए, बिना कोई मौका दिए ट्रैक्टर की लोहे की रौड उठा कर उस के सिर पर दे मारी.

अचानक हुए इस हमले से हसन चक्कर खा कर जमीन पर गिर गया. रमनदीप कौर अपने कमरे से यह सब देख रही थी. अपने प्रेमी की यह हालत देख वह उस का बचाव करने के लिए भागती हुई आई तो जस्सा सिंह ने उसी रौड का एक जोरदार वार उस के सिर पर भी कर दिया और चीखते हुए बोला, ‘‘अपने यार को बचाने आई है, अब तू भी मर.’’

इस के बाद सब ने मिल कर हसन और रमन पर रौड से तब तक प्रहार किए, जब तक उन के प्राण नहीं निकल गए.

2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपाया गया और हसन की लाश को जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में.

पुलिस रिमांड के दौरान अभियुक्तों की निशानदेही पर वह लोहे की रौड भी बरामद कर ली गई, जिस से दोनों प्रेमियों की हत्या की गई थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड से जुड़े सभी आठों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

देवर पर भारी पड़ा भाभी से संबंध

‘‘अरे वाह देवरजी, तुम तो एकदम मुंबइया हीरो लग रहे हो,’’ सुशीला ने अपने चचेरे देवर शिवम को देख कर कहा.

‘‘देवर भी तो तुम्हारा ही हूं भाभी. तुम भी तो हीरोइनों से बढ़ कर लग रही हो,’’ भाभी के मजाक का जवाब देते हुए शिवम ने कहा.

‘‘जाओजाओ, तुम ऐसे ही हमारा मजाक बना रहे हो. हम तो हीरोइन के पैर की धूल के बराबर भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे नहीं भाभी, ऐसा नहीं है. हीरोइनें तो  मेकअप कर के सुंदर दिखती हैं, तुम तो ऐसे ही सुंदर हो.’’

‘‘अच्छा तो किसी दिन अकेले में मिलते हैं,’’ कह कर सुशीला चली गई. इस बातचीत के बाद शिवम के तनमन के तार झनझना गए. वह सुशीला से अकेले में मिलने के सपने देखने लगा. नाजायज संबंध अपनी कीमत वसूल करते हैं. यह बात लखनऊ के माल थाना इलाके के नबी पनाह गांव में रहने वाले शिवम को देर से समझ आई. शिवम मुंबई में रह कर फुटकर सामान बेचने का काम करता था. उस के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह किसान थे. गांव में साधारण सा घर होने के चलते शिवम कमाई करने मुंबई चला गया था. 4 जून, 2016 को वह घर वापस आया था.

शिवम को गांव का माहौल अपना सा लगता था. मुंबई में रहने के चलते वह गांव के दूसरे लड़कों से अलग दिखता था. पड़ोस में रहने वाली भाभी सुशीला की नजर उस पर पड़ी, तो दोनों में हंसीमजाक होने लगा. सुशीला ने एक रात को मोबाइल फोन पर मिस्ड काल दे कर शिवम को अपने पास बुला लिया. वहीं दोनों के बीच संबंध बन गए और यह सिलसिला चलने लगा. कुछ दिन बाद जब सुशीला समझ गई कि शिवम पूरी तरह से उस की गिरफ्त में आ चुका है, तो उस ने शिवम से कहा, ‘‘देखो, हम दोनों के संबंधों की बात हमारे ससुरजी को पता चल गई है. अब हमें उन को रास्ते से हटाना पड़ेगा.’’ यह बात सुन कर शिवम के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. सुशीला इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी. वह बोली, ‘‘तुम सोचो मत. इस के बदले में हम तुम को पैसा भी देंगे.’’ शिवम दबाव में आ गया और उस ने यह काम करने की रजामंदी दे दी. नबी पनाह गांव में रहने वाले मुन्ना सिंह के 2 बेटे थे. सुशीला बड़े बेटे संजय सिंह की पत्नी थी. 5 साल पहले संजय और सुशीला की शादी हुई थी.

सुशीला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के महराजगंज थाना इलाके के मांझ गांव की रहने वाली थी. ससुराल आ कर सुशीला को पति संजय से ज्यादा देवर रणविजय अच्छा लगने लगा था. उस ने उस के साथ संबंध बना लिए थे. दरअसल, सुशीला ससुराल की जायदाद पर अकेले ही कब्जा करना चाहती थी. उस ने यही सोच कर रणविजय से संबंध बनाए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के देवर की शादी हो. इधर सुशीला और रणविजय के संबंधों का पता ससुर मुन्ना सिंह और पति संजय सिंह को लग चुका था. वे लोग सोच रहे थे कि अगर रणविजय की शादी हो जाए, तो सुशीला की हरकतों को रोका जा सकता है. सुशीला नहीं चाहती थी कि रणविजय की शादी हो व उस की पत्नी और बच्चे इस जायदाद में हिस्सा लें.

लखनऊ का माल थाना इलाका आम के बागों के लिए मशहूर है. यहां जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है. सुशीला के ससुर के पास  करोड़ों की जमीन थी. सुशीला को पता था कि ससुर मुन्ना सिंह को रास्ते से हटाने के काम में देवर रणविजय उस का साथ नहीं देगा, इसलिए उस ने अपने चचेरे देवर शिवम को अपने जाल में फांस लिया. 12 जून, 2016 की रात मुन्ना सिंह आम की फसल बेच कर अपने घर आए. इस के बाद खाना खा कर वे आम के बाग में सोने चले गए. वे पैसे भी हमेशा अपने साथ ही रखते थे. सुशीला ने ससुर मुन्ना सिंह के जाते ही पति संजय और देवर रणविजय को खाना खिला कर सोने भेज दिया. जब सभी सो गए, तो सुशीला ने शिवम को फोन कर के गांव के बाहर बुला लिया.

शिवम ने अपने साथ राघवेंद्र को भी ले लिया था. वे तीनों एक जगह मिले और फिर उन्होंने मुन्ना सिंह को मारने की योजना बना ली. उन तीनों ने दबे पैर पहुंच कर मुन्ना सिंह को दबोचने से पहले चेहरे पर कंबल डाल दिया. सुशीला ने उन के पैर पकड़ लिए और शिवम व राघवेंद्र ने उन को काबू में कर लिया. जान बचाते समय मुन्ना सिंह चारपाई से नीचे गिर गए. वहीं पर उन दोनों ने गमछे से गला दबा कर उन की हत्या कर दी. मुन्ना सिंह की जेब में 9 हजार, 2 सौ रुपए मिले. शिवम ने 45 सौ रुपए राघवेंद्र को दे दिए. इस के बाद वे तीनों अपनेअपने घर चले गए. सुबह पूरे गांव में मुन्ना सिंह की हत्या की खबर फैल गई. उन के बेटे संजय और रणविजय ने माल थाने में हत्या का मुकदमा दर्ज कराया. एसओ माल विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच शुरू की. पुलिस ने हत्या में जायदाद को वजह मान कर अपनी खोजबीन शुरू की. मुन्ना सिंह की बहू सुशीला पुलिस को बारबार गुमराह करने की कोशिश कर रही थी. पुलिस ने जब मुन्ना सिंह के दोनों बेटों संजय और रणविजय से पूछताछ की, तो वे दोनों बेकुसूर नजर आए.

इस बीच गांव में यह पता चला कि सुशीला के अपने देवर रणविजय से नाजायज संबंध हैं. इस बात पर पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, तो उस की कुछ हरकतें शक जाहिर करने लगीं. एसओ माल विनय कुमार सिंह ने सीओ, मलिहाबाद मोहम्मद जावेद और एसपी ग्रामीण प्रताप गोपेंद्र यादव से बात कर पुलिस की सर्विलांस सैल और क्राइम ब्रांच की मदद ली. सर्विलांस सैल के एसआई अक्षय कुमार, अनुराग मिश्रा और योगेंद्र कुमार ने सुशीला के मोबाइल को खंगाला, तो  पता चला कि सुशीला ने शिवम से देर रात तक उस दिन बात की थी. पुलिस ने शिवम का फोन देखा, तो उस में राघवेंद्र का नंबर मिला. इस के बाद पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला से अलगअलग बात की. सुशीला अपने देवर रणविजय को हत्या के मामले में फंसाना चाहती थी. वह पुलिस को बता रही थी कि शिवम का फोन उस के देवर रणविजय के मोबाइल पर आ रहा था.

सुशीला सोच रही थी कि पुलिस हत्या के मामले में देवर रणविजय को जेल भेज दे, तो वह अकेली पूरी जायदाद की मालकिन बन जाएगी, पर पुलिस को सच का पता चल चुका था. पुलिस ने तीनों को साथ बिठाया, तो सब ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. 14 जून, 2016 को पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. वहां से उन तीनों को जेल भेज दिया गया. सुशीला अपने साथ डेढ़ साला बेटे को जेल ले गई. उस की 4 साल की बेटी को पिता संजय ने अपने पास रख लिया. जेल जाते समय सुशीला के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. वह शिवम और राघवेंद्र पर इस बात से नाराज थी कि उन लोगों ने यह क्यों बताया कि हत्या करते समय उस ने ससुर मुन्ना सिंह के पैर पकड़ रखे थे.

भौजाई से प्यार, पत्नी सहे वार

19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.

पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित