Stories in Hindi Love : दिल के मरीज डौक्टर की हैवानियत – बेरहम एकतरफा प्यार

Stories in Hindi Love : बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है.

कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी. पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी.

डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी. डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था.

नहीं सुनी पुलिस ने

पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया. डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो.

मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े. शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की.

आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी.

प्रतिभावान डाक्टर थी योगिता

योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया.

योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा. इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे.

कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी.

इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया.

डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक

इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी.

बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था.  इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं.

सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी. डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया.

बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली. Stories in Hindi Love

MP Crime News : दो दीवानों की एक हसीना

MP Crime News : लीला की हत्या कर हत्यारों ने सारे सुबूत मिटा दिए, जिस से पुलिस उन तक पहुंच न पाए. पुलिस सचमुच उन तक पहुंच भी नहीं पाई. आखिर 3 सालों बाद एडिशनल एसपी दिलीप सोनी के हाथ ऐसा कौन सा सुबूत लग गया कि उन्होंने लीला के हत्यारों को खोज निकाला. हवा के साथ आने वाली दुर्गंध ने हाईवे पर बने जसपाल ढाबा के कर्मचारियों और ग्राहकों को कुछ ज्यादा ही परेशान कर दिया तो ढाबे के नौकर यह पता करने को मजबूर हो गए कि आखिर यह दुर्गंध आ कहां से रही है? क्योंकि वह दुर्गंध किसी लाश के सड़ने जैसी थी.

ढाबे के नौकर दुर्गंध के बारे में पता करने उस ओर गए, जिस ओर से दुर्गंध आ रही थी तो ढाबे से थोड़ी दूरी पर कच्ची सड़क के किनारे एक टीवी का कार्टन रखा दिखाई दिया. नजदीक जाने पर पता चला कि दुर्गंध उसी से आ रही थी. इस का मतलब उसी में लाश रख कर कोई फेंक गया था. ढाबे के नौकरों ने यह बात मालिक को बताई तो उन्होंने इस बात की सूचना क्षेत्रीय थाना खजराना पुलिस को दे दी. कार्टन में रखी लाश की सूचना मिलते ही तत्कालीन थानाप्रभारी पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. कार्टन खुलवाया गया तो उस में डबलबैड की चादर में लिपटी एक लड़की की लाश निकली.

लाश बाहर निकलवाई गई. लाश सड़ चुकी थी, लेकिन उस का चेहरा ऐसा था कि उसे पहचान जा सकता था. थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी अधिकारियों को दे कर एफएसएल जांच के लिए डा. सुधीर शर्मा को बुला लिया. मृतका की उम्र 24-25 साल रही होगी. वह सलवारकुरता पहने थी. लाश डबलबैड की चादर में लपेट कर कार्टन में रख कर वहां फेंकी गई थी. वह वीरान इलाका था. दूरदूर इक्कादुक्का मकान बने थे. स्थितियां बता रही थीं कि लाश बाहर से ला कर फेंकी गई थी. वहां लाश की शिनाख्त होने का कोई चांस नहीं था, इसलिए पुलिस ने लाश के फोटो करा कर उस के कपड़े, कार्टन और चादर जब्त कर के घटनास्थल की अन्य काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए एम.वाय. अस्पताल भिजवा दिया. यह 27 जून, 2011 की बात थी.

चूंकि लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी, इसलिए उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने पहले तो यह पता किया कि इंदौर या आसपास के जिलों के किसी थाने में किसी लड़की की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब पता चला कि इंदौर या आसपास के जिलों के किसी थाने में इस तरह की महिला की कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं है तो पुलिस ने उस के फोटो अखबार में छपवाए. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मिल गई तो पुलिस ने शिनाख्त होने तक उसे सुरक्षित रखवा दिया. लाश की शिनाख्त जरूरी थी, क्योंकि लाश की शिनाख्त के बिना पुलिस के लिए जांच आगे बढ़ाना नामुमकिन था.

जब कहीं से कोई गुमशुदगी की सूचना दर्ज होने की जानकारी नहीं मिली तो थाना खजराना पुलिस ने लाश के फोटो तो अखबारों में छपवाए ही थे, बाद में उस के पैंफ्लेट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए कि शायद कोई आनेजाने वाला उसे पहचान ले. लेकिन पुलिस की यह युक्ति भी काम नहीं आई. जब न लाश की शिनाख्त हुई और न ही कोई उसे लेने आया तो थाना खजराना पुलिस ने लावारिस के रूप में उस का अंतिम संस्कार करा दिया. अब तक पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल चुकी थी. रिपोर्ट के अनुसार मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी. इस का मतलब उसे गला दबा कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या करने के बाद मृतका से दुष्कर्म भी किया गया था. थाना खजराना पुलिस ने मृतका की शिनाख्त कराने की बहुत कोशिश की, लेकिन किसी भी तरह शिनाख्त नहीं हो सकी. बिना शिनाख्त के जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. मजबूर हो कर खजराना पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी. नवंबर, 2014 में सीएसपी के.के. शर्मा ऐसे मामलों की फाइलें देख रहे थे, जिन्हें थाना पुलिस बंद कर चुकी थी. उन की नजर थाना खजराना के इस मामले की फाइल पर पड़ी तो उन्होंने इसे निकाल लिया. फाइल का अध्ययन करने के बाद उन्होंने कुछ दिशानिर्देशों के साथ इस मामले की फाइल को क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एडिशनल एसपी दिलीप सोनी को सौंप दी.

दिलीप सोनी ने फाइल का गहनता से अध्ययन किया. पहले की जांच में ऐसा कुछ नहीं था, जिस से उन्हें जांच को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता मिलता. उन्होंने जब्त सामान की सूची पढ़ी तो उस में उन्हें एक ऐसा सामान नजर में आया, जिस की मदद से वह अपनी जांच को आगे बढ़ा सकते थे. वह सामान कुछ और नहीं, टीवी का वह कार्टन था, जिस में भर कर लाश फेंकी गई थी. थाना खजराना जा कर दिलीप सोनी ने वह कार्टन निकलवाया. वह कार्टन सनसुई टीवी का था. कार्टन देख कर एडिशनल एसपी दिलीप सोनी के चेहरे पर चमक आ गई. क्योंकि उस की मदद से वह अपनी जांच को आगे बढ़ा सकते थे. घटना भले ही 3 साल पुरानी हो चुकी थी, लेकिन कार्टन पूरी तरह सुरक्षित था.

उन्होंने कार्टन से सीरियल नंबर नोट किया और सीधे इंदौर के एमटीएच कंपाउंड स्थित सनसुई के डीलर के यहां जा पहुंचे. कार्टन पर लिखे सीरियल नंबर से उन्हें उस दुकान का पता मिल गया, जहां उस सीरियल नंबर का टीवी भेजा गया था. दिलीप सोनी ने दुकान के माध्यम से उस आदमी का पता लगा लिया, जिस ने उस कार्टन वाला टीवी खरीदा था. दुकानदार से पता चला कि उस टीवी को इंदौर के रोशननगर के रहने वाले मंसूर के बेटे इमरान ने खरीदा था. दिलीप सोनी ने टीम के साथ इमरान के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस टीम उसे हिरासत में ले कर क्राइम ब्रांच के औफिस ले आई. वहां उस से हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो एकदम भोला बन कर उस ने कहा,

‘‘सर, आप को गलतफहमी हुई है, मैं ने किसी की हत्या नहीं की. मेरी किसी से क्या दुश्मनी थी, जो मैं किसी की हत्या करूंगा.’’

इस के बाद दिलीप सोनी ने इमरान को वह कार्टन दिखा कर कहा, ‘‘तुम ने 3 साल पहले एक महिला की हत्या की थी और इसी कार्टन में उस महिला की लाश भर कर हाईवे के पास मैदान में फेंकी थी.’’

श्री सोनी की इस बात से इमरान थोड़ा घबराया जरूर, लेकिन बहुत जल्दी खुद को संभाल कर बोला, ‘‘साहब, जब मैं उस महिला को ही नहीं जानता तो टीवी के इस डिब्बे में लाश कैसे भर कर फेकूंगा?’’

‘‘तुम उस महिला को अवश्य जानते हो, क्योंकि यह कार्टन तुम्हारा है.’’

‘‘साहब, इस का क्या सुबूत कि टीवी का यह डिब्बा मेरा ही है? कोई और भी तो टीवी के इस डिब्बे में लाश भर कर फेंक सकता है.’’

‘‘इस का भी मेरे पास सुबूत है. इस पर जो सीरियल नंबर पड़ा है, उस से मैं ने पता कर लिया है. इस सीरियल नंबर की रसीद तुम्हारे ही नाम कटी है और इस पर जो सीरियल नंबर पड़ा है, वही सीरियल नंबर तुम्हारे टीवी का भी है, जिसे मैं ने तुम्हारे घर से जब्त किया है.’’ दिलीप सोनी ने कहा. इस के बावजूद इमरान यह बात मानने को तैयार नहीं था कि डिब्बे में मिली लाश वाली महिला की हत्या उस ने की है. मजबूरन पुलिस को थोड़ी सख्ती करनी पड़ी, तब कहीं जा कर उस ने सच्चाई उगली. इस के बाद उस ने मृतका का नाम ही नहीं बताया, बल्कि उस की हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

पता चला कि उस हत्या में उस का एक दोस्त अफगान भी शामिल था. इस के बाद पुलिस ने छापा मार कर उस के घर से उसे भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने उस महिला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी. मृतका का नाम लीला कीर था. वह मध्य प्रदेश के इंदौर के रालामंडल मोहल्ले की रहने वाली थी. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. उस का कोई भाईबहन भी नहीं था. उस का जो कुछ थी, सिर्फ मां थी. मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह मां ने पालापोसा और जब वह शादी लायक हुई तो मां ने उस की शादी जिला देवास के गांव बरोठ के रहने वाले राम सिंह कीर से कर दी. दुर्भाग्य से शादी के कुछ महीने बाद ही लीला के पति की मौत हो गई. ससुराल में सहारा न मिलने पर वह फिर मां के पास इंदौर आ गई.

बूढ़ी होने की वजह से मां अब पहले की तरह कामधाम नहीं कर पाती थी, इसलिए अब उसे बेटी बोझ लगने लगी थी. वह उस का खर्च नहीं उठा सकती थी, इसलिए उस ने बेटी से कोई काम करने को कहा. काम की तलाश में लीला निकली तो उसे पुलिस पत्रिका में काम मिल गया. लीला घर से औफिस तक टाटा मैजिक से आतीजाती थी. उसे नौकरी पर आनेजाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. एक दिन औफिस जाते समय उस ने अपनी परेशानी टाटा मैजिक चलाने वाले इमरान को बताई तो उस ने उसे इंदौर के मोहल्ला खजराना में एक कमरा दिलवा दिया. इस के बाद इमरान अकसर लीला से मिलने उस के कमरे पर जाने लगा और जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी करने लगा.

इमरान ने लीला से खुद को कुंवारा बताया था. इसलिए इमरान के एहसानों तले दबी लीला उस की ओर आकर्षित होने लगी. वैसे भी लीला अकेली थी, इसलिए उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत थी. क्योंकि मां का घर छोड़ने के बाद मां ने उस की कोई सुध नहीं ली थी. उस ने कभी यह भी नहीं पता किया कि जवान बेटी कहां है और क्या कर रही है? इस की वजह शायद यह थी कि वह खुद ही बूढ़ी थी और उस का कोई सहारा नहीं था.

इमरान जवान भी था और ठीकठाक कमाता भी था. इसलिए लीला ने उसे अपना सहारा बनाने का निर्णय ही नहीं कर लिया, बल्कि खुद को उस के हाथों में सौंप भी दिया. इस के बाद इमरान उसी के साथ पति की हैसियत से रहने लगा और उस के सारे खर्च उठाने लगा. लेकिन दोनों ने शादी नहीं की. यह एक तरह से समझौता का संबंध था. कुछ दिन तो सब ठीकठाक चला, लेकिन कुछ दिनों बाद इमरान अकसर रात को गायब रहने लगा. पूरीपूरी रात इमरान के गायब रहने से लीला को शंका होने लगी. पति की मौत के बाद लीला जब से इस नौकरी में आई थी, काफी अनुभवी हो गई थी.

उसे इमरान पर संदेह हुआ तो वह पता करने लगी कि आखिर आए दिन इमरान जाता कहां है? सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने एक दिन उस का पीछा किया तो इमरान की असलियत सामने आ गई. वह इंदौर के ही रोशननगर जाता था, जहां उस की पत्नी और बेटा रहता था. जब लीला को पता चला कि इमरान शादीशुदा ही नहीं, बल्कि एक बेटे का बाप भी है तो उस ने उसे आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘मैं ने तुम पर विश्वास कर के अपना सब कुछ सौंप दिया, जबकि तुम ने मेरे साथ धोखा किया. तुम शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे के बाप भी हो. इस के बावजूद तुम मुझे शादी का झांसा देते रहे.’’

‘‘मैं ने तुम्हें झांसा नहीं दिया, बल्कि मैं तुम से शादी के लिए तैयार हूं. तुम्हें पता होना चाहिए कि हम मुसलमान हैं. हम 4 शादियां कर सकते हैं. जिस दिन तुम कहो, उस दिन मैं तुम से निकाह के लिए तैयार हूं. निकाह कर के तुम मेरे साथ ही रहना.’’ इमरान ने लीला को समझाते हुए कहा.

लेकिन यह लीला को मंजूर नहीं था. वह साझे का पति नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मुझ से शादी करने से पहले तुम्हें अपनी पत्नी को तलाक देना होगा.’’

इमरान ने लीला को बहुत समझाया, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें जो भी फैसला लेना है, अभी लो, वरना मैं जहर खा लूंगी और तुम्हें फंसा दूंगी.’’

परेशान इमरान ने कहा, ‘‘लीला, मुझे कुछ दिनों की मोहलत दो. मैं सोचविचार कर बताता हूं.’’

इस पर लीला भड़क उठी, ‘‘इस में सोचनाविचारना क्या है. तुम अपनी बीवी को तलाक दो और मुझ से शादी करो. इस के अलावा और कुछ नहीं हो सकता.’’

इमरान चाहता था कि लीला उस की पत्नी और बच्चे के साथ रहे. इस के लिए वह लीला को समझाता रहा. लेकिन लीला इस के लिए तैयार नहीं थी. जब लीला ने देखा कि इमरान अपनी बीवी को तलाक देने को तैयार नहीं है तो उस ने सचमुच में जहर खा लिया. लीला की इस हरकत से इमरान घबरा गया. वह फंस सकता था. उसे बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने भी जहर खा लिया. इत्तफाक से उसी समय इमरान का दोस्त अफगान उर्फ बादशाह शेख वहां आ गया. इमरान और लीला फर्श पर पड़े थे. उन के मुंह से झाग निकल रहा था. उन की हालत देख कर उसे समझते देर नहीं लगी कि इन्होंने जहर खा लिया है. दोनों की हालत देख कर अफगान घबरा तो गया, लेकिन उस ने होश नहीं खोया. जल्दी से एक वैन ले आया और दोनों को अस्पताल पहुंचाया.

डाक्टरों के अथक प्रयास से इमरान और लीला बच गए. दोनों ने जहर खाया था, इसलिए मामला पुलिस तक पहुंचा. लेकिन दोनों ने पुलिस पूछताछ में बयान दिया कि उन्होंने गलती से जहरीली चीज खा ली थी. अपने इस बयान से दोनों कानूनी शिकंजें में फंसने से बच गए. दोनों स्वस्थ हो गए तो अस्पताल से छुट्टी मिल गई. लेकिन लीला ने इमरान के साथ जाने से मना कर दिया. अस्पताल में इलाज के दौरान अफगान ने जिस तरह लीला और इमरान की सेवा की थी, उस से लीला को उस पर काफी विश्वास हो गया था. इसलिए जब इमरान के साथ जाने से मना किया तो अफगान ने कहा कि जब तक सब ठीक नहीं हो जाता, तब तक वह उस के घर चल कर रहे.

लीला उस के घर जाने को तैयार हो गई. अफगान के साथ जाने में उसे इसलिए भी किसी तरह का डर नहीं था, क्योंकि अफगान शादीशुदा था. लेकिन यह बात इमरान को खलने लगी. वह लीला को अपने घर चल कर रहने को कहता रहा, लेकिन लीला अब उस के घर अपनी शर्त पर ही जाना चाहती थी. यही नहीं, वह उस पर पत्नी को तलाक दे कर शादी के लिए दबाव भी डाल रही थी. इमरान ने अफगान से लीला को मनाने को कहा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि यह उन दोनों का व्यक्तिगत मामला है, इस में वह कुछ नहीं कर सकता.

दोस्त अफगान की इस बात से इमरान को लगा कि शायद अफगान भी नहीं चाहता कि उस का लीला से समझौता हो जाए. इस बात को ले कर इमरान अफगान से नाराज हो गया और उन के रिश्ते में दरार आ गई. उस ने अफगान से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लीला से उस का मिलनाजुलना पहले ही बंद हो चुका था. अफगान उर्फ बादशाह खान फिरदौसनगर में रहता था. वह प्रौपर्टी का काम करता था. उस की कमाई इमरान से बहुत ज्यादा थी. इसलिए लीला को उस के यहां रहने में कोई तकलीफ नहीं थी. वह आराम से अफगान के यहां रह रही थी. लेकिन लीला के लगातार साथ रहने से अफगान की नीयत उस पर खराब होने लगी. जबरदस्ती वह कर नहीं सकता था, क्योंकि घर में पत्नी थी. वह लीला पर डोरे डालने लगा.

लीला ने उस के मन की बात भांप ली, लेकिन उस ने उसे लिफ्ट नहीं दी. क्योंकि वह सचमुच इमरान से प्यार करती थी. मौका मिलने पर उस से मिलती भी थी और मन की बात उस से कहती भी रहती थी. इमरान भी उसे रखना चाहता था, लेकिन वह पत्नी की वजह से साथ रहने को तैयार नहीं थी. जब अफगान को लगा कि उस की दाल गलने वाली नहीं है यानी लीला से उस की इच्छा नहीं पूरी हो सकती तो वह इमरान से मिला और कहा कि उसे जो भी करना है, जल्दी करे और लीला को ले जाए.

इमरान अफगान से काफी नाराज था और उस के घर बिलकुल नहीं जाना चाहता था. लेकिन अफगान खुद चल कर उस के पास आया था, इसलिए उस की नाराजगी कम हो गई थी. अफगान के घर जा कर इमरान ने लीला से अपने साथ चलने को कहा तो उस ने अपनी वही पुरानी शर्त रख दी. इसलिए कोई फैसला नहीं हो सका. तब इमरान लीला को आशवासन दे कर चला आया. अफगान की नीयत लीला पर खराब हो चुकी थी. अब वह मौके की तलाश में था. आखिर उसे तब मौका मिल गया, जब पत्नी बच्चे को ले कर कुछ दिनों के लिए मायके चली गई. घर में लीला को अकेली पा कर अफगान ने उसे दबोच लिया. लीला ने विरोध किया तो अफगान तिलमिला उठा. लीला ने शोर मचाने की बात कही तो उस ने उस का मुंह दबा दिया.

लीला को बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने अफगान के हाथ में दांतों से काट लिया. दर्द से तिलमिलाए अफगान ने अपना हाथ छुड़ाने के लिए दूसरा हाथ उस के गले पर रख कर दबा दिया, फिर अफगान का हाथ तभी छूटा, जब लीला अचेत हो गई. हाथ छूटने पर अफगान ने गौर से देखा तो पता चला कि लीला मर चुकी है. लीला की मौत पर अफगान का गुस्सा शांत हो गया. लेकिन वह घबराया नहीं. उस हालत में भी वह अपनी वासना को दबा नहीं पाया और लीला की लाश के साथ अपनी वासना को शांत की. वासना शांत करने के बाद उस ने लीला की लाश को चादर में लपेट कर पलंग के नीचे खिसका दिया.

इस के बाद वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. तभी उस के दिमाग में आया कि कल इमरान को इस बारे में पता चलेगा तो वह बखेड़ा खड़ा करेगा और वह पकड़ा जाएगा. इसलिए इस मामले में उस ने इमरान को भी शामिल करने का विचार किया. उस ने इमरान को फोन कर के तुरंत अपने घर बुलाया. इमरान के आने पर अफगान ने कहा, ‘‘देख भाई, मैं ने जो किया है, उसे सुन कर तू चौंकेगा जरूर, लेकिन उस में फायदा तेरा ही है. तू लीला को ले कर परेशान था न? मैं ने उसे खत्म कर दिया. अब तू उस की लाश ठिकाने लगाने में मेरी मदद कर.’’

‘‘क्या, तू ने उसे मार डाला?’’ इमरान ने हैरानी से पूछा.

‘‘मारता न तो क्या करता उस को. वह हमारे बीच दरार पैदा कर रही थी. इसलिए उसे मार कर मैं ने अपने बीच की उस बला को खत्म कर दिया. वह तेरे लिए भी परेशानी बनी हुई थी. अब तू बीवी के साथ आराम से रह. क्योंकि तुझे तेरी बीवी से अलग कराने वाली खत्म हो गई.’’ अफगान ने कहा.

जो होना था, वह हो चुका था. इमरान लीला से प्यार तो करता था, लेकिन इधर उस ने उसे परेशान कर दिया था, इसलिए वह भी उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा था. शायद यही सोच कर कि चलो किसी तरह पीछा छूटा, वह लाश ठिकाने लगवाने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि लाश को कैसे और कहां ठिकाने लगाया जाए.

काफी सोचविचार कर इमरान ने कहा, ‘‘मेरे पास टीवी का एक बहुत बड़ा डिब्बा रखा है. लाश को उसी में भर कर मौका मिलने पर आधी रात के बाद कहीं फेंक आएंगे.’’

‘‘तो क्या मौका मिलने तक इस लाश को घर में ही रखना होगा?’’ अफगान ने पूछा.

‘‘वह तो करना ही होगा. जल्दबाजी में कहीं पकड़े गए तो..?’’ इमरान ने कहा.

‘‘मौके की तलाश में लाश सड़ने लगी तो इस की बदबू से पोल खुल जाएगी.’’ अफगान ने कहा.

इस बात ने इमरान को चिंता में डाल दिया. अगले दिन कुछ करने का आश्वासन दे कर इमरान अपने घर चला गया. रात भर वह इसी बात पर विचार करता रहा.

अगले दिन उस ने घर से टीवी का कार्टन लिया और बाजार जा कर तेज खुशबू वाला इत्र खरीदा. इस के बाद अफगान के घर पहुंचा. अफगान की मदद से उस ने चादर में लिपटी लाश कार्टन में भरी और उस पर साथ लाया इत्र छिड़क कर कार्टन को इस तरह पैक कर दिया कि अंदर की बदबू बाहर न निकल सके.

अगले दिन रात 12 बजे के बाद जब सन्नाटा पसर गया तो इमरान अपनी टाटा मैजिक ले कर आया और लाश वाले कार्टन को उस पर रख कर बाईपास रोड पर पहुंच गया. अफगान साथ था ही, उस की मदद से उस ने लाश वाले कार्टन को वहां खाली पड़ी जगह में उतार दिया और घर आ गया. लीला की लाश को ठिकाने लगा कर दोनों निश्चिंत हो गए. वे रोज अखबार पढ़ते थे कि इस मामले में पुलिस क्या काररवाई कर रही है. पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर पाई तो वे निश्चिंत हो गए. जब उन्हें पता चला कि पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी है तो दोनों ने इत्मीनान की सांस ली. उन्हें विश्वास हो गया कि अब वे बच गए.

लेकिन 3 सालों बाद जब इस मामले की फाइल क्राइम ब्रांच के एडिशनल एसपी दिलीप सोनी के सामने आई तो उन्होंने उस कार्टन की मदद से, जिस में लाश भर कर फेंकी गई थी, इमरान और अफगान को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने हत्यारों को पकड़ लिया और उन से हत्या की पूरी कहानी भी जान ली. लेकिन इतने से काम नहीं चल सकता था. उन्हें एक ऐसा गवाह चाहिए था, जो मृतका की शिनाख्त कर सके और उस के संबंध इमरान से थे, यह साबित कर सके. मृतका इमरान के संपर्क में आने से पहले पुलिस पत्रिका में काम करती थी. दिलीप सोनी ने उस के औफिस को खोज निकाला. उस का औफिस इमली बाजार में था. पुलिस पत्रिका औफिस में काम करने वाली माया ने बताया,

‘‘लीला मेरे साथ ही काम करती थी. वह इमरान और अफगान के संपर्क में थी. इमरान सभी से उसे अपनी बहन बताता था तो अफगान खुद को उस का जीजा बताता था. जबकि दोनों का लीला से प्रेमसंबंध था. इस तरह तीनों ही अपने परिचितों को गुमराह करते हुए अपने अवैध संबंध छिपा रहे थे. वहां से नौकरी छोड़ कर जाने के बाद लीला से मेरी मुलाकात नहीं हुई.’’

इस के बाद पुलिस इमरान और अफगान को माया के सामने ले आई तो उस ने दोनों को  पहचान लिया. पूछताछ और सारे सुबूत जुटा कर पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. MP Crime News

—कथा पुलिस स

UP Crime News : गलती खुद की सजा किसी और को

UP Crime News : राजकुमार पढ़ालिखा ही नहीं था, सरकारी नौकरी में भी था. उस की पत्नी आशा भी पढ़ीलिखी होने के साथसाथ खूबसूरत भी थी. दोनों की अच्छी जोड़ी थी. अचानक राजकुमार के मन में ऐसा क्या आया कि वह बीवी का हत्या करने को मजबूर हो गया. उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के नंदगांव का रहने वाला सुनहरीलाल इलाहाबाद में किसी सरकारी विभाग में नौकरी करता था. उस के परिवार में पत्नी शारदा के अलावा बेटी आशा और बेटा राजकुमार उर्फ राजू था. चूंकि सुनहरीलाल इलाहाबाद में परिवार के साथ रहता था, इसलिए आशा और राजकुमार ने वहीं पढ़ाई की थी.

आशा एमए कर के कोई नौकरी कर पाती, सुनहरीलाल रिटायर हो कर गांव आ गया था. आशा की पढ़ाई पूरी हो गई थी और वह शादी लायक हो गई थी, इसलिए सुनहरीलाल को उस की शादी की चिंता हुई. वह लड़के की तलाश में भागदौड़ करने लगे. भागदौड़ का सुखद परिणाम भी निकला. एटा के थाना सकीट के गांव नौरंगाबाद निवासी रौशनलाल बघेल का छोटा बेटा राजकुमार उन्हें आशा के लिए पसंद आ गया तो उन्होंने बेटी की शादी उस के साथ तय कर दी. आशा पढ़ीलिखी तो थी ही, खूबसूरत भी थी, इसलिए लड़के वालों के मना करने का सवाल ही नहीं था. राजकुमार भी कम खूबसूरत नहीं था. एकदम आशा के जोड़ का था. लेकिन वह आशा से कम पढ़ा था.

आशा एमए पास थी, जबकि वह बीए तक ही पढ़ा था. लेकिन उसे शीतलपुर विकास खंड में सफाईकर्मी की नौकरी मिल गई थी. बीए पास राजकुमार ने यह नौकरी मजबूरी में की थी. क्योंकि काफी भागदौड़ और मेहनत के बाद भी उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली थी. संयोग से मायावती शासनकाल में सफाईकर्मियों की भरती की गई तो उसे यह नौकरी मिल गई थी. राजकुमार सरकारी नौकरी में था. स्मार्ट होने के साथसाथ व्यवहारकुशल भी था. इसलिए उस से झाड़ू लगवाने के बजाय विकास खंड अधिकारी औफिस का काम कराने लगे थे. वह मेहनत और लगन से काम करता था, इसलिए औफिस के लोग उसे पसंद करते थे. यही सब देख कर सुनहरीलाल ने आशा के लिए राजकुमार को पसंद किया था.

आशा की शादी हो गई और वह दुलहन बन कर पिया राजकुमार के घर आ गई. पढ़ीलिखी और सुंदर पत्नी पा कर राजकुमार तो खुश था ही, घर वाले भी फूले नहीं समा रहे थे. क्योंकि गांव में उन्हीं की बहू सब से ज्यादा पढ़ीलिखी थी. राजकुमार को शीतलपुर विकास खंड परिसर में आवास भी मिला था, इसलिए शादी के बाद वह आशा को भी वहीं ले आया. आते ही आशा ने पति की पूरी गृहस्थी संभाल ली. दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. आशा पढ़ीलिखी थी, इसलिए वह भी चाहती थी कि कोई नौकरी मिल जाए, जिस से गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल सके. वह नौकरी तलाश रही थी कि तभी पता चला वह गर्भवती हो चुकी है. अब बच्चा होने तक कुछ नहीं हो सकता था.

शादी के साल भर बाद आशा ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अनंत रखा गया. बेटे के जन्म के बाद खुशियां दोगुनी हो गईं. अनंत थोड़ा बड़ा हुआ तो आशा की नौकरी करने वाली लालसा फिर जाग उठी. आशा पढ़ीलिखी थी, लेकिन उस के पास कोई प्रोफेशनल डिग्री नहीं थी. इस के लिए उस ने राजकुमार से कंप्यूटर सीखने की इच्छा जाहिर की. तब राजकुमार ने कहा कि अभी अनंत इस लायक नहीं है कि उसे घर में अकेला छोड़ा जा सके. उसे थोड़ा बड़ा हो जाने दो. फिर अभी कहां उस की उम्र निकली जा रही है.

‘‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं अनंत के कुछ और बड़े होने तक इंतजार कर लेती हूं.’’ आशा ने कहा.

इस के बाद आशा ने महसूस किया कि राजकुमार अब मोबाइल फोन से कुछ ज्यादा ही चिपका रहने लगा है. वह हंसहंस कर इस तरह फुसुरफुसुर बातें करता है, जैसे उस से कुछ छिपाना चाहता है. वह जिस तरह बातें कर रहा था, उस तरह तो किसी लड़की से ही बातें की जाती हैं. यह शंका होने पर आशा ने राजकुमार से पूछा भी, लेकिन कुछ बताने के बजाय वह टाल गया, जिस से आशा का संदेह बढ़ गया. उस का यह संदेह तब विश्वास में बदल गया, जब वह दिवाली पर ससुराल गई. उस ने देखा कि पड़ोस में रहने वाली सुनीता राजकुमार से हंसहंस कर बातें करती थी. औरत होने के नाते उस ने सुनीता की नजरों से ही जान लिया कि मामला गड़बड़ है.

उस ने इस बारे में जानकारी जुटाई तो उसे पता चला कि सुनीता और राजकुमार का प्रेमसंबंध शादी से पहले से चल रहा है. यह जानने के बाद आशा से रहा नहीं गया और उस ने राजकुमार से पूछ लिया, ‘‘मुझे पता चला है कि सुनीता से तुम्हारा अफेयर था? अगर ऐसा था तो तुम ने मुझ से शादी क्यों की? परेशानी की बात यह है कि तुम अभी भी उसे भूल नहीं पाए हो और उस से फोन पर बातें करते हो.’’

यह सुन कर राजकुमार के चेहरे का रंग उड़ गया, क्योंकि उस की चोरी पकड़ी गई थी. उस ने खुद को संभाल कर आशा को आश्वस्त करने के लिए कहा, ‘‘शादी के पहले क्या था, अब यह सोचनेविचारने की जरूरत नहीं है. अब मैं सिर्फ तुम्हारा हूं और वादा करता हूं कि आज से तुम्हें शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा.’’

राजकुमार ने भले ही आशा से वादा किया था कि अब उसे शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा, लेकिन आशा को अब पति पर भरोसा नहीं रह गया था. उसे अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. उसे लगने लगा था कि अब उस का और बेटे का भविष्य तभी सुरक्षित हो सकता है, जब वह नौकरी कर ले. आशा ने कंप्यूटर का कोर्स करने के लिए ब्रज कंप्यूटर सेंटर में दाखिला ले लिया. घर के बाहर निकलने से आशा का मनोबल थोड़ा बढ़ा. परिणामस्वरूप कभीकभी बातचीत में वह राजकुमार को ताना मार देती कि उस की सफाईकर्मी वाली नौकरी उसे बिलकुल पसंद नहीं है. पत्नी के इस ताने से राजकुमार के मन में हीनभावना पैदा होने लगी.

उस की पत्नी सुंदर तो थी ही, उस से ज्यादा पढ़ीलिखी भी थी. यह बात उसे खटकने लगी. हीनभावना से ग्रस्त राजकुमार के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. वह खुद को आशा से हीन समझने लगा था, इसलिए आशा को किसी आदमी से बातचीत करते देख लेता तो जरूर पूछ लेता, ‘‘क्या बातें हो रही थीं, तुम्हें किसी पराए मर्द से बातें करते शरम नहीं आती?’’

शुरू में तो आशा ने राजकुमार की इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब राजकुमार कुछ ज्यादा ही टोकाटाकी करने लगा तो आशा उसे परेशान करने के लिए लोगों से कुछ ज्यादा ही बातें करने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि राजकुमार भी उसे परेशान करने के लिए फिर से सुनीता से फोन पर बातें करने लगा. अब आशा को इस बात की चिंता सताने लगी कि पति की इन हरकतों का असर उस की गृहस्थी पर न पड़े. अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए आशा ने सारी बात मांबाप और भाई को बताई. उस ने पिता से कहा कि उस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. एक तो राजकुमार के गांव की एक लड़की से नाजायज संबंध हैं, दूसरे वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता. उस की समझ में नहीं आता कि वह क्या करे.

बेटी की जिंदगी का सवाल था, इसलिए सुनहरीलाल को ये बातें परेशान करने लगीं. मांबाप को जैसा करना चाहिए, उसी तरह पतिपत्नी ने आशा को समझाया कि जैसे भी हो, वह खुद को संभाले और राजकुमार को प्यार से समझाए, जिस से उस की गृहस्थी में दरार न आए. पढ़ीलिखी होने की वजह से आशा काफी समझदार थी. इसी वजह से राजकुमार के व्यवहार से वह परेशान रहती थी. क्योंकि वह उस की जासूसी करने लगा था. आशा उस की अनुपस्थिति में भी पड़ोस में किसी के घर चली जाती या किसी से बातचीत कर लेती तो घर आ कर वह उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, मारपीट भी करता. कोई पड़ोसी भी उस से बात कर लेता तो पिटाई उसी की होती.

यही नहीं, कंप्यूटर सीखने जाते समय राजकुमार उस के पीछेपीछे जाता. शायद उसे लगने लगा था कि आशा उस से ज्यादा पढ़ीलिखी है, खूबसूरत है, जबकि वह मात्र बीए पास है और सफाईकर्मी की नौकरी करता है, इसलिए दूसरे तो आशा को ताकतेझांकते ही हैं, आशा भी उसे पसंद नहीं करती. इसीलिए उस का भी मन बहक रहा है. ऐसे में कभी औफिस में कोई आशा की तारीफ कर देता तो घर आ कर वह इस का बदला आशा से लेता. मांबाप के इस लड़ाईझगड़े से परेशानी 4 साल के अनंत को भी होती थी. वह सहमासहमा रहता था. आशा बेटे का हवाला दे कर राजकुमार को समझाती भी थी कि उसे अपने इस व्यवहार में बदलाव लाना चाहिए, वरना घर तो बरबाद होगा ही, बेटे का भी भविष्य बरबाद हो जाएगा.

लेकिन राजकुमार की शंका बढ़ती जा रही थी. एक दिन आशा कंप्यूटर सीख कर निकल रही थी तो उस के किसी साथी ने उस से कुछ पूछ लिया. राजकुमार उस पर नजर रख ही रहा था. उस ने आशा को लड़के से बात करते देख लिया तो घर आ कर पूछा, ‘‘वह लड़का कौन था, जिस से तुम बातें कर रही थी?’’

‘‘वह भी मेरे साथ कंप्यूटर सीख रहा है. नईनई जानकारियों के लिए आपस में बात करनी ही पड़ती है. उस ने मुझ से कुछ पूछ लिया तो इस में परेशानी क्या है?’’ आशा ने कहा.

‘‘मुझे लगता है कि तुम वहां कंप्यूटर सीखने नहीं, गुलछर्रे उड़ाने जाती हो.’’

पति के इस आरोप से आशा तड़प उठी, ‘‘तुम मुझे भी अपनी तरह समझते हो क्या? पहले खुद को देखो, उस के बाद किसी को कुछ कहो.’’

आशा का इतना कहना था कि राजकुमार ने उसे 3-4 तमाचे जड़ दिए. पति की इस हरकत से आशा तिलमिला कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं. आज के बाद फिर कभी हाथ उठाया तो जेल भिजवा दूंगी. नौकरी तो जाएगी ही, जेल में पड़े सड़ते रहोगे.’’

आशा की इस धमकी से राजकुमार डर गया. उसे लगा कि उस की पत्नी को बाहर की हवा लग गई है. कंप्यूटर सीख रही है तो इस का यह हाल है, नौकरी लग जाएगी तब तो यह उसे छोड़ ही देगी. यही हाल आशा का भी था. पति की हरकतों से उसे अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. आखिर वह कब तक मारपीट सह कर इस शादी को बचा सकती है? अगर पति ने छोड़ दिया तो वह बेटे को ले कर कहां जाएगी. राजकुमार के दुर्व्यवहार से त्रस्त आशा उस से कटीकटी रहने लगी थी. परेशान आशा जब देखो, तब मायके चली जाती थी. इस से राजकुमार को लगने लगा कि आशा का मायके में किसी से संबंध है, जिस की वजह से वह उस की उपेक्षा कर के मायके जाने लगी है. यह बात मन में आते ही राजकुमार और क्रूर हो गया.

आशा ने कंप्यूटर सीख लिया तो नौकरी ढूंढने लगी. वह सोच रही थी कि नौकरी लगने पर वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो राजकुमार से अलग हो जाएगी. क्योंकि अगर ऐसे में अलग हो जाती है तो मायके वालों पर वह बोझ बन जाएगी. नौकरी से रिटायर हो चुके पिता पर वह बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए पति की मारपीट झेल रही थी. एक दिन आशा का भाई शीतलपुर उस से मिलने आया तो उस ने रोरो कर कहा कि राजकुमार ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अब जिंदा रहना मुश्किल हो गया है. उस ने उस की जिंदगी को नरक बना दिया है.

बहन की परेशानी जान कर राजू परेशान हो उठा. उस ने राजकुमार से बात करने का निश्चय किया. शाम को जब राजकुमार घर आया तो उस ने कहा, ‘‘जीजाजी, आखिर आप चाहते क्या हैं, जो मेरी बहन का जीना हराम कर दिया है?’’

‘‘भई, आप रिश्तेदार हैं, रिश्तेदार बन कर रहिए. हमारा पतिपत्नी का मामला है, आप को बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है.’’ राजकुमार ने कहा.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने से पहले वह मेरी बहन है और मैं अपनी बहन को कभी दुखी एवं परेशान नहीं देख सकता. अच्छा होगा कि तुम अपनी हद में रहो. अपनी गृहस्थी को संभालो, वरना सब बरबाद हो जाएगा.’’

‘‘इसी तरह की धमकी कुछ दिनों पहले तुम्हारी बहन ने भी दी थी, अब तुम दे रहे हो. एक बात याद रखना, तुम ने अगर कुछ ऐसावैसा किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’ राजकुमार ने भी धमकाया. इस के बाद राजू ने राजकुमार से कुछ कहने के बजाय आशा से कहा, ‘‘दीदी, मैं घर जा कर पापा से बात करूंगा. अब कोई न कोई ठोस निर्णय लेना ही होगा.’’

बातचीत कर के राजू चला गया. इतना सब होने के बाद भी राजकुमार की समझ में बात नहीं आई. उस ने आशा की जम कर पिटाई की. पिटाई करते हुए उस के दिमाग में आया कि अब अगर यह मायके गई तो उसे बिलकुल नहीं छोड़ेगी. निश्चित दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कर देगी. उस के बाद तो उस की जमानत भी नहीं हो पाएगी. इसलिए इसे मार देना ही ठीक है. राजकुमार ने आशा को मारने का निर्णय लिया तो इस बात पर विचार करने लगा कि उसे मारे कैसे. चाकूछुरे से वह उस की हत्या कर नहीं सकता था. इसलिए देसी तमंचा और कारतूस खरीद लाया.

दोनों चीजें घर में छिपा दीं. इस के बाद वह मौके की तलाश में लग गया. वह आशा की हत्या इस तरह करना चाहता था कि पुलिस उसे पकड़ न सके, क्योंकि पकड़े जाने पर नौकरी तो जाती ही, पूरी जिंदगी जेल में कटती. दूसरी ओर राजू ने घर जा कर पूरी बात सुनहरीलाल को बताई तो उन्होंने तुरंत आशा को फोन किया. बेटी को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं जल्दी ही आ कर तुम्हें ले आता हूं. उस के बाद राजकुमार के खिलाफ मारपीट और दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दूंगा.’’

संयोग से आशा जब पिता सुनहरीलाल से ये बातें कर रही थी, राजकुमार घर आ चुका था. उसे फोन पर बातें करते देख वह दरवाजे की ओट में खड़ा हो कर उस की बातें सुनने लगा. सुनहरीलाल की बातें तो वह नहीं सुन सका, लेकिन आशा की बातों से उसे ससुर के इरादे का पता चल गया कि वह आशा को ले जा कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने का मन बना चुके हैं. वह वहीं से बाहर निकल गया तो रात 9 बजे लौटा. तब तक आशा अनंत को सुला चुकी थी. उस ने उठ कर राजकुमार को खाना दिया तो वह खाना खा कर बाहर टहलने चला गया. इस के बाद रात 11 बजे के बाद लौटा तो किसी से फोन पर बातें करते हुए अंदर आया.

उस समय तक आशा सो गई थी. लेकिन उस की बातचीत से आशा जाग गई. राजकुमार को फोन पर हंसहंस कर बातें करते देख वह समझ गई कि बातचीत सुनीता से हो रही है. उसे गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘तुम सुनीता से बातें कर रहे हो न, कल पापा आएंगे, मैं उन के साथ चली जाऊंगी. उस के बाद तुम सुनीता से खूब बातें करना. मन हो तो उसे ला कर साथ रख लेना.’’

राजकुमार ने फोन काट कर कहा, ‘‘क्या, कल तुम सचमुच जा रही हो?’’

‘‘हां, कल पापा आ रहे हैं, मैं उन के साथ जा रही हूं. बहुत जुल्म सह लिया मैं ने, अब सहने की हिम्मत नहीं रह गई है. अब मैं तुम से छुटकारा चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता.’’ राजकुमार ने कहा और अलमारी में रखा तमंचा निकाल लिया. राजकुमार के हाथ में तमंचा देख कर आशा डर गई. वह चीखती, उस के पहले ही राजकुमार ने गोली चला दी. शायद उस ने आशा को मारने की पहले से ही तैयारी कर रखी थी, क्योंकि तमंचे में उस ने पहले से गोली भर रखी थी. गोली लगने से जहां आशा पलंग पर ढेर हो गई, वहीं उस की आवाज सुन कर अगलबगल रहने वाले जाग गए. गोली चलाने के साथ राजकुमार चिल्लाने लगा था, ‘बचाओ… बचाओ…बदमाश आ गए.’

पड़ोस में रहने वाले उमेश और कप्तान सिंह राजकुमार के घर पहुंचे तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. वे दरवाजा खुलवा कर अंदर आए तो देखा पलंग पर खून से लथपथ आशा की लाश पड़ी थी. राजकुमार बेटे को गोद में लिए रो रहा था और कह रहा था, ‘‘बदमाश आए थे. वे आशा को गोली मार कर चले गए.’’

पड़ोसियों ने देखा था कि दरवाजा अंदर से बंद था, खिड़की भी बंद थी. फिर बदमाश घर के अंदर कैसे घुसे? अगर आ ही गए तो उन्होंने आशा को ही क्यों गोली मारी? जबकि बदमाश अकसर गोली घर के मर्द को मारते हैं. पड़ोसियों ने कोतवाली सकीट पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी दिनेश कुमार दुबे और सीओ अंबेशचंद्र त्यागी पुलिस बल के साथ विकास खंड परिसर में आ पहुंचे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने राजकुमार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कुछ बदमाश घर में घुस आए और आशा को गोली मार दी. गोली क्यों मारी, यह पूछने पर वह कोई जवाब नहीं दे सका.

पुलिस को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. क्योंकि एक तो खिड़की-दरवाजा अंदर से बंद था, दूसरे बदमाशों ने उसे क्यों छोड़ दिया था, बदमाश मारते तो पहले उसे ही मारते. सीओ अंबेशचंद्र त्यागी ने देखा कि राजकुमार पलंग के इर्दगिर्द नाच रहा है. उन्होंने काररवाई करवा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. इस के बाद पुलिसकर्मियों को बारीकी से तलाशी लेने को कहा. लूटपाट का कोई निशान पहले ही नहीं नजर आ रहा था. लूटपाट हुई भी नहीं थी. तलाशी के दौरान पलंग पर बिछे गद्दे को पलटा गया तो वहां तमंचा मिल गया, जिस से राजकुमार ने आशा की हत्या की थी.

पुलिस ने जब उस से उस तमंचे के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इसे उस ने अपनी सुरक्षा के लिए रखा था. लेकिन जब पुलिस ने उस की नाल चैक की तो पता चला कि उस से गोली चलाई गई थी. पुलिस ने आशा के घर वालों को उस की हत्या की सूचना दे दी और राजकुमार को ले कर कोतवाली आ गई. सूचना पाते ही सुनहरीलाल बेटे राजू के साथ सुबह ही कोतवाली सकीट पहुंच गया. बापबेटे ने पूरी बात पुलिस अधिकारियों को बताई तो साफ हो गया कि आशा की हत्या राजकुमार ने ही की थी.

7 अक्तूबर, 2014 को सुनहरीलाल की ओर से आशा की हत्या का मुकदमा राजकुमार के खिलाफ दर्ज कर के पूछताछ की गई तो उस ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. हथियार पुलिस ने पहले ही बरामद कर लिया था. सारी काररवाई निपटा कर उसी दिन राजकुमार को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : देह सुख के लिए

Extramarital Affair : संजय और कंचन की गृहस्थी बढि़या चल रही थी. दोनों 2 प्यारेप्यारे बच्चों के मांबाप भी थे. इस के बावजूद संजय में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि कंचन को पड़ोसी मनीष ज्यादा भाने लगा.15  दिसंबर, 2014 की सुबह करीब 10 बजे थाना बरौर के थानाप्रभारी संजय कुमार अपने कक्ष में बीती रात पकड़े गए 2 अपराधियों से पूछताछ कर रहे थे कि तभी एक अधेड़ उन के पास आया. थानाप्रभारी ने एक सरसरी नजर उस पर डाली. वह बेहद घबराया हुआ लग रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘कहां से आए हो? क्या काम है?’’

‘‘साब, मैं बसहरा गांव से आया हूं. मेरा नाम गोपीचंद है. बीती रात हमारे भतीजे संजय की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ थानाप्रभारी संजय कुमार ने गोपीचंद्र के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा.

‘‘यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि उसे कोई बीमारी नहीं थी. देर शाम तक वह मुझ से बतियाता रहा था, उस के बाद घर जा कर सो गया था. मुझे सुबह जानकारी मिली कि उस की मौत हो गई है. मुझे शक है कि उस की मौत स्वाभाविक नहीं है, मुझे लगता है उस की हत्या की गई है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘जी साब,’’

‘‘किस पर?’’

‘‘साब, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन मुझे बहू कंचन पर शक है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मुझे कंचन पर इसलिए शक है, क्योंकि पड़ोस का एक लड़का मनीष उस के यहां आता रहता है. उसे ले कर संजय और कंचन के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था. इसीलिए मैं यह बात कह रहा हूं.’’

गोपीचंद की बात सुन कर थानाप्रभारी संजय कुमार सबइंसपेक्टर आर.के. शुक्ला, कांस्टेबल अमर सिंह, शिवप्रताप तथा नीलेश कुमार को साथ ले कर बसहरा गांव की तरफ रवाना हो गए. बसहरा गांव थाने से 5 किलोमीटर दूर औरैया रोड पर है. इसलिए 10-15 मिनट में वह वहां पहुंच गए. गोपीचंद थानाप्रभारी को उस कमरे में ले गया, जहां उस के भतीजे संजय की लाश पड़ी थी. पुलिस को देख कर एक औरत छाती पीटपीट कर रोने लगी. पता चला कि वह मृतक की पत्नी कंचन थी. वहां गांव के और लोग भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने लाश की जांच की तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया. गले में खरोंच का निशान तथा हलकी सूजन जरूर थी.

मरने वाले की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. जामा तलाशी में उस की पैंट की जेब से 70 रुपए, पान मसाला के 2 पाउच तथा एक डायरी मिली, जिस में घरगृहस्थी का हिसाब तथा कुछ नातेरिश्तेदारों के नामपते लिखे थे. निरीक्षण के बाद थानाप्रभारी ने मृतक संजय के शव का पंचनामा भरा और सीलमोहर कर के माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. मृतक की पत्नी कंचन का रोनाधोना अब तक बंद हो गया था. थानाप्रभारी ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का पति संजय देर रात घर आया और खाना खा कर कमरे में सो गया. सुबह जब वह 8 बजे तक नहीं उठा तो वह उस के कमरे में गई. रजाई हटा कर देखा तो उस की धड़कनें बंद थीं.

वह घबरा गई और जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी. उस की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए.

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि संजय की मौत कैसे हुई होगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या संजय नशा भी करता था?’’

‘‘सर, वह शराब, गांजा, अफीम जैसी नशीली चीजों का सेवन करते थे. उन की मौत या तो हार्टअटैक से हुई है या फिर ज्यादा नशा करने से.’’ कंचन ने जवाब में कहा. कंचन से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी को उस पर शक हुआ, क्योंकि जैसा दुख पति की मौत पर एक जवान औरत के चेहरे पर झलकना चाहिए, वैसा कंचन के चेहरे पर नहीं था. रोनेधोने का भी उस ने नाटक ही किया था, आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. पुलिस और मौजूद लोगों की गतिविधियों पर भी वह विशेष नजर रख रही थी. चचिया ससुर गोपीचंद को वह नफरत से घूर रही थी. चूंकि कंचन के खिलाफ उन के पास कोई सुबूत नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

अगले दिन थानाप्रभारी को संजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो रिपोर्ट पढ़ कर वह चौंके. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि उस की मौत गला कसने से हुई थी. उस ने शराब नहीं पी थी और उस ने मृत्यु से पूर्व खाना भी नहीं खाया था. हत्या की पुष्टि होने पर थानाप्रभारी ने कंचन को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. महिला दरोगा सरला यादव ने कंचन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने पति की हत्या की सारी सच्चाई बयां कर दी. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी मनीष के साथ मिल कर की थी. हत्या में मनीष का नाम आने पर पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह फरार हो गया था. तब पुलिस ने उस के घर वालों पर दबाव बनाया.

घर वालों के सहयोग से पुलिस ने मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में एक ऐसी नारी की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने पति की आहुति दे दी थी. उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के पुखरायां कस्बे में रामगोपाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे थे. कंचन उसी की छोटी बेटी थी. रामगोपाल की कस्बे में ही लकड़ी की टाल थी. उसी की कमाई से पूरे परिवार का भरणपोषण होता था. कंचन ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूपरंग में और निखार आ गया. रामगोपाल दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर चुका था.

छोटी बेटी कंचन के जवान होने पर उसे उस के विवाह की चिंता सताने लगी थी. वह उस के लिए योग्य वर खोजने लगा. काफी भागदौड़ के बाद रामगोपाल को कंचन के लिए संजय पसंद आ गया. संजय कानपुर देहात के ही बरौर बसहरा गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा था. वह अपनी खेतीकिसानी करता था. रीतिरिवाज से कंचन का विवाह संजय के साथ कर दिया गया. संजय सीधासादा था, जबकि कंचन तेजतर्रार व चंचल स्वभाव की थी. वह न तो अपने ससुर से परदा करती थी और न ही चचिया ससुर से. गांव में भी वह हमेशा बनसंवर कर रहती थी. कंचन की ये आदतें उस की सास को अच्छी नहीं लगती थीं.

कंचन को ससुराल में रहते 2 साल भी नहीं बीते थे कि चचिया सास लक्ष्मी से उस का मनमुटाव हो गया. गोपीचंद्र उस समय अपने बड़े भाई रामचंद्र के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. कंचन और लक्ष्मी में जब रोजरोज झगड़ा होने लगा तो लक्ष्मी अपने पति गोपीचंद के साथ अलग रहने लगी. इस के बाद जमीन तथा मकान का भी बंटवारा हो गया. रामचंद्र नहीं चाहता था कि उस का भाई उस से अलग रहे. इस बंटवारे से वह इतना दुखी हुआ कि घर छोड़ कर चला गया और संन्यासी बन गया. उस के घर छोड़ने के एक साल के अंदर ही उस की पत्नी की भी मौत हो गई. अब घर में कंचन और उस का पति संजय ही रह गया. कंचन को अब कोई रोकनेटोकने वाला तो था नहीं, इसलिए वह पूरी तरह स्वच्छंद हो गई.

कुछ समय यूं ही बीत चला. इस दरम्यान कंचन 2 बार गर्भवती हुई. पर किसी वजह से उस का दोनों ही बार गर्भ गिर गया. कंचन को लगा कि कोई व्याधा उस का गर्भ गिरा देती है. अत: वह तांत्रिकों के पास जाने लगी. उन के पास जाने के बाद कंचन ने 2 बच्चों के जन्म दिया, जिन में एक बेटा और एक बेटी हुई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कंचन के शरीर में कसाव था, ऊपर से वह बनसंवर कर रहती थी. वह चाहती थी कि पति उसे बहुत प्यार करे, लेकिन संजय उस की भावना को नहीं समझता था. वह दिन भर खेतीबाड़ी के काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्द ही सो जाता. पति की बेरुखी से कंचन ने देहरी लांघने का फैसला कर लिया. अब उस का मन आसपास रहने वाले ऐसे मर्द की तलाश करने लगा, जो उसे भरपूर प्यार दे सके.

उसी समय उस का ध्यान पड़ोस में रहने वाले 24-25 वर्षीय मनीष की तरफ गया. पढ़नेलिखने में तेज मनीष बीए पास कर चुका था और सरकारी नौकरी पाने की कोशिश में लगा था. वह अकसर उस के यहां आताजाता भी रहता था. वह उसे भाभी कहता था. इस नाते दोनों के बीच हलकाफुलका मजाक भी होता रहता था. मनीष, कंचन से 8-10 साल छोटा जरूर था, लेकिन उस का गठीला बदन कंचन को भा गया था. धीरेधीरे कंचन ने उस पर अपने रूप का जादू चलाना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में मनीष को उस ने अपने रूप और बातों के जाल में फांस लिया. मनीष भी इतना नासमझ नहीं था, जो कंचन के हावभाव का मतलब न समझता. दोनों ही धीरेधीरे अपनी हदें लांघने लगे और एक दिन ऐसा भी आ गया, जब उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अपने से छोटे युवक का प्यार पा कर कंचन फूली नहीं समा रही थी.

इस के बाद एक साल तक उन का यह खेल बेरोकटोक चलता रहा. संजय को इन संबंधों की भनक तक नहीं लगी. वह रोज सुबह खेतों पर निकल जाता और अंधेरा होने पर घर लौटता. उसे क्या पता था कि पत्नी क्या गुल खिला रही है. लेकिन मनीष का जब कंचन के यहां आनाजाना ज्यादा बढ़ गया तो पासपड़ोस की औरतों तथा चचिया सास लक्ष्मी को उन दोनों के रिश्तों पर शक होने लगा. बाद में संजय को पत्नी के संबंधों की जानकारी हुई तो उसे बड़ा दुख हुआ. सच्चाई अपनी आंखों से देखने के लिए संजय अब कंचन व मनीष पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को अपने यहां रंगेहाथ पकड़ लिया. पति को सामने देख कर कंचन घबरा गई. मनीष तो सिर पर पैर रख कर भाग गया.

संजय का सारा गुस्सा कंचन पर फूटा. उस ने उस की खूब पिटाई की. तब कंचन ने माफी मांगते हुए वादा किया कि अब वह मनीष से कभी नहीं मिलेगी. लेकिन कहते हैं कि औरत एक बार बहक जाए तो उस का संभलना मुश्किल होता है. कंचन अपने जेहन से मनीष की यादों को निकाल नहीं पा रही थी. बहरहाल उस ने मनीष से मिलनाजुलना फिर से शुरू कर दिया. लेकिन अब वह पहले से ज्यादा सावधानी बरतने लगी थी. कंचन भले ही पति की नजरों से बच कर रंगरलियां मना रही थी, लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों को वह कैसे धोखा दे सकती थी. यानी मोहल्ले में कंचन और मनीष के संबंधों को ले कर फिर चर्चाएं होने लगीं.

पत्नी की बदचलनी के कारण संजय का गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया था. लोग उस पर फब्तियां कसने लगे थे. जिस से वह तिलमिला उठता था. घर आ कर वह सारा गुस्सा कंचन पर उतारता था.  घर में रोजरोज की कलह से तंग आ कर संजय शराब पीने लगा. जिस दिन शराब नहीं मिलती, उस दिन वह चरस, गांजा आदि पीता. इस नशाखोरी के कारण संजय की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. नशा के लिए उस ने कंचन के गहने तक बेच डाले. कंचन विरोध करती तो वह उसे जलील करता और पीट देता. पति की पिटाई से कंचन परेशान रहने लगी. कलह के कारण उस ने दोनों बच्चों को अपने मायके भेज दिया.

पिटाई के बावजूद कंचन अपने प्रेमी मनीष को नहीं भुला पाई. एक रोज वह मनीष से बोली, ‘‘मनीष, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती. अब मुझे हमेशा के लिए तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘संजय भैया के रहते यह संभव नहीं है. वह हम दोनों के मिलन में दीवार बने हैं.’’

‘‘तो उस दीवार को ढहा क्यों नहीं देते. वैसे भी नशेड़ीगंजेड़ी पति से मैं नफरत करती हूं. कंचन ने अपनी मंशा जाहिर की.’’

‘‘तो ठीक है, जिस दिन मौका मिलेगा, उस दिन यह काम कर दूंगा.’’ मनीष ने वादा किया.

14 दिसंबर, 2014 की रात गांव के प्रधान नरेश पांडेय के घर कीर्तन का आयोजन था. संजय भी कीर्तन सुनने वहां गया था. कंचन को उम्मीद थी कि वह अब आधी रात से पहले घर नहीं लौटेगा. इसलिए मौका देख कर उस ने मनीष को फोन कर के अपने यहां बुला लिया. इस के बाद दोनों जिस्म का खेल खेलने में व्यस्त हो गए. संजय का मन कीर्तन में नहीं लगा तो वह घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे चाचा गोपीचंद्र मिल गए. वह उन से कुछ देर बतियाता रहा, फिर घर पहुंचा. उस ने घर की कुंडी खटखटाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. संजय ने सोचा कि शायद कंचन सो गई होगी. अत: वह पिछवाड़े की दीवार फांद कर घर में दाखिल हुआ. दबे पांव वह कमरे में पहुंचा तो वहां का दृश्य देख कर उस का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस की पत्नी और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे.

संजय को देखते ही वे दोनों उठ गए और कपड़े पहनने लगे. लेकिन दोनों ही बेहद घबरा रहे थे. संजय ने गुस्से में कंचन के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए. इस के बाद वह मनीष से भिड़ गया. मनीष ने उसे धक्का दिया तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उसी समय कंचन ने प्रेमी को उकसाया, ‘‘देखते क्या हो मनीष, आज इस बाधा को दूर ही कर दो. आखिर मैं कब तक इस के जुल्म सहती रहूंगी.’’

यह सुनते ही मनीष संजय की छाती पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबाने लगा. संजय हाथपैर पटकने लगा तो कंचन ने उस के पैर दबोच लिए. कुछ ही देर में संजय की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद दोनों ने कमरा दुरुस्त किया और संजय की लाश को चारपाई पर लिटा कर रजाई से ढंक दिया. मनीष व कंचन संजय के शव को गांव के बाहर झाडि़यों में फेंकना चाहते थे, लेकिन गांव में कीर्तन होने के कारण चहलपहल थी, इसलिए वे हिम्मत नहीं जुटा सके. मनीष तो रात के अंतिम पहर में वहां से फरार हो गया और कंचन सवेरा होते ही त्रियाचरित्र का नाटक कर रोनेचीखने लगी.

उस की चीखपुकार सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए. उन सब को कंचन ने बताया कि पता नहीं कैसे रात में संजय की मौत हो गई. गोपीचंद को जब भतीजे संजय की मौत का पता चला तो उन्हें शक हुआ. अत: वह रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बरौर पहुंच गए. पुलिस ने मनीष और कंचन को संजय की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. Extramarital Affair

—कथा पुलिस सूत्रो

Bareilly News : बॉयफ्रेंड बना काल

Bareilly News : इमरान प्रियांगी उर्फ प्रिया को प्यार ही नहीं करता था, बल्कि धर्मांतरण करा कर उस से शादी करना चाहता था. इतना गहरा प्रेम होने के बावजूद दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि इमरान को प्रियांगी उर्फ प्रिया के खून से हाथ रंगने पड़े. बरेली के थाना प्रेमनगर की शास्त्रीनगर कालोनी के रहने वाले राजेश गंगवार थे तो इंजीनियर, लेकिन जब उन्हें नौकरी रास नहीं आई तो वह समाजसेवा में जुट गए. दिल्ली के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म कांड के विरोध में 17 दिनों तक चले आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया था. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 2 बच्चे थे, बेटी प्रियांगी उर्फ प्रिया और बेटा प्रियांश.

प्रिया बीटेक करने के बाद मेरठ के साईं कालेज से बीएड कर रही थी, जबकि बेटा प्रियांश एनआईटी, कालीकट, केरल से बीटेक कर रहा था. नवंबर, 2014 के पहले हफ्ते में प्रिया अपने घर बरेली आई थी. उसे आंखों में तकलीफ थी, इसलिए 5 नवंबर की दोपहर को 2 बजे वह अपनी स्कूटी से डा. भृमरेश शर्मा के आई क्लीनिक जाने के लिए घर से निकली. उन का क्लीनिक धर्मकांटा के पास था. प्रिया को घर से निकले एक घंटे से ज्यादा हो गया था. अब तक उसे घर लौट आना चाहिए था, लेकिन जब वह घर नहीं लौटी तो पिता राजेश ने उसे फोन किया. फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. प्रिया कभी फोन बंद नहीं करती थी, इसलिए राजेश को थोड़ी चिंता हुई.

थोड़ीथोड़ी देर में वह बेटी को फोन करते रहे, लेकिन हर बार फोन बंद मिला. जब प्रिया का फोन नहीं मिला तो वह डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक जा पहुंचे. वहां पता चला कि प्रिया ढाई बजे के करीब दवा ले कर चली गई थी. दवा ले कर प्रिया को घर जाना चाहिए था. घर जाने के बजाय बिना बताए वह कहां चली गई? इस बात को ले कर राजेश गंगवार परेशान हो उठे. घर आ कर उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो वह भी परेशान हो गईं. संभावित जगहों पर उन्होंने उस की तलाश शुरू की, लेकिन कहीं भी उस का पता नहीं चला. बेटी को ढूंढ़तेढूंढ़ते काफी रात हो गई तो वह घर आ गए.

जवान लड़कियों के गायब होने पर पहले यही सोचा जाता है कि कहीं वह अपने प्रेमी के साथ भाग तो नहीं गईं? लेकिन राजेश और पुष्पा की नजरों में प्रिया ऐसी लड़की नहीं थी. वह उन से कोई बात नहीं छिपाती थी. इसलिए उन्हें उस के किसी के साथ भाग जाने की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घट गई है. बेटी की चिंता में रात भर पतिपत्नी को नींद नहीं आई.  सुबह होते ही राजेश गंगवार ने फिर बेटी की तलाश शुरू कर दी. प्रिया की एक सहेली थी शालिनी, जो डीडीपुरम में रहती थी. उस ने और प्रिया ने साथसाथ बीटेक किया था. जब उसे प्रिया के गायब होने की जानकारी हुई तो वह उस के घर आ पहुंची.

उस ने प्रिया की मां पुष्पा को बताया कि कल दोपहर को वह प्रिया के साथ राजेंद्रनगर स्थित इमरान के औफिस गई थी. प्रिया और इमरान में किसी बात को ले कर जोरजोर से झगड़ा होने लगा तो उन्हें झगड़ते देख वहां से अपने घर चली गई थी. घर आने के बाद देर रात को इमरान ने उसे फोन कर के धमकाया था कि अगर उस ने प्रिया के साथ उस के औफिस आने वाली बात किसी को बताई तो उस के लिए अच्छा नहीं होगा. इस से वह तो फंसेगा ही, साथ ही वह भी फंस जाएगी. पुष्पा ने यह बात पति को बताई. राजेश गंगवार इमरान को जानते थे. पत्नी की बात सुन कर राजेश को इमरान पर शक हुआ. वह तुरंत थाना प्रेमनगर पहुंचे और इंसपेक्टर अशोक सिंह को पूरी बताई.

उन्होंने सीबीगंज थाना क्षेत्र के तिलियापुर गांव के रहने वाले इमरान पर बेटी के गायब करने का शक जताया था. उन के इसी शक के आधार पर थानाप्रभारी अशोक सिंह ने प्रियांगी उर्फ प्रिया की गुमशुदगी दर्ज कर ली थी. प्रिया की गुमशुदगी दर्ज किए 3 दिन बीत गए, लेकिन थाना प्रेमनगर पुलिस ने इमरान को पूछताछ तक के लिए थाने नहीं बुलाया. इस के बाद 10 नवंबर को राजेश गंगवार एडीशनल एसपी राजीव मल्होत्रा से मिले. उस समय सीओ (प्रथम) असित श्रीवास्तव भी वहां मौजूद थे. एडीशनल एसपी ने असित श्रीवास्तव से कहा कि तुरंत प्रियांगी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराएं और इस मामले में क्या हो सकता है, इसे देखें.

रिपोर्ट दर्ज करने के लिए सीओ ने राजेश गंगवार को थाने भेज दिया. राजेश गंगवार थाना प्रेमनगर पहुंचे तो इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एडीशनल एसपी के आदेश के बावजूद प्रियांगी के अपहरण का मुकदमा दर्ज नहीं किया. हां, इमरान रजा खान को पूछताछ के लिए थाने जरूर बुलवा लिया. उन्होंने उस से प्रियांगी के बारे में पूछा तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. लेकिन जब अशोक सिंह ने थोड़ी सख्ती की तो इमरान ने उन्हें जो बताया उस के अनुसार, उस की और प्रिया की दोस्ती करीब 2 साल से थी. 5 नवंबर, 2014 को वह उस के राजेंद्रनगर स्थित स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के औफिस आई थी. औफिस की 3 चाबियां थीं, एक उस के पास रहती थी, दूसरी प्रिया के पास और तीसरी उस के यहां काम करने वाली एक अन्य लड़की अनुपम के पास.

प्रिया के उस पर 6 हजार रुपए निकल रहे थे. उस दिन वह अपने 6 हजार रुपए ले कर चली गई थी. रात साढे़ 8 बजे उस ने प्रिया को फोन किया तो उस ने फोन नहीं उठाया. उसी समय वह औफिस पहुंचा तो वहां प्रिया की लाश पंखे से लटकी मिली. प्रिया को उस हालत में देख कर वह डर गया. पुलिस के लफड़े से बचने के लिए उस ने उस की लाश उतार कर एक बोरी में भरी और उसे ठिकाने लगाने के लिए अपनी बाइक से नैनीताल रोड स्थित बिलवा पुल के आगे सड़क किनारे एक गड्ढे में फेंक आया. अगले दिन वह प्रिया की स्कूटी से वहां गया और फावड़े से लाश पर मिट्टी डाल कर वहां से कुछ दूरी पर उस की स्कूटी खड़ी कर के अपने औफिस आ गया.

इस पूछताछ से पुलिस को पता चल गया था कि प्रिया की मौत हो चुकी है. इसलिए उस की लाश बरामद करने के लिए पुलिस इमरान को उस जगह पर ले गई, जहां उस ने लाश दफन करने की बात बताई थी. राजेश गंगवार की मौजूदगी में इमरान द्वारा बताई जगह पर पुलिस ने खुदाई कराई तो वहां औंधे मुंह बैग में पड़ी एक लड़की की लाश मिली. उसे सीधा किया गया तो वह लाश प्रिया की ही थी. उसे देखते ही राजेश गंगवार रोने लगे. उसे दफनाए कई दिन बीत चुके थे, इसलिए लाश काफी सड़गल गई थी. प्रिया के कपड़े फटे हुए थे. पैरों में चप्पलें थीं, लेकिन उस के गले की सोने की चेन नहीं थी. उस का मोबाइल भी नहीं था और न ही वे 6 हजार रुपए मिले, जो उस ने इमरान से लिए थे.

उस की लाश से कुछ दूरी पर एक खेत में प्रिया की स्कूटी अलगअलग पार्ट्स में खुली मिली. मौके पर जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने प्रिया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इमरान ने जिस तरह प्रिया की लाश को आननफानन में चोरीछिपे ठिकाने लगाया था, उस से पुलिस को लगा कि यह मामला आत्महत्या का नहीं हो सकता. इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो इमरान टूट गया. उस ने बताया कि प्रिया ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस ने तिलियापुर के रहने वाले अपने दोस्त गुड्डू के साथ मिल कर उस की हत्या की थी. हत्या की वजह उस ने यह बताई कि अपने पैसे मांगते समय प्रिया ने उसे बेइज्जत किया था.

उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने उसे मार डाला. पूछताछ के बाद पुलिस ने इमरान को 17 नवंबर, 2014 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने आननफानन में इमरान को जेल तो भेज दिया, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि अकेला इमरान लाश को मोटरसाइकिल पर रख कर कैसे ले गया था? लाश को ठिकाने लगाने में निश्चित उस के साथ और लोग रहे होंगे. इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एक बार फिर इमरान के औफिस से लाश ठिकाने लगाने वाली जगह तक का बारीकी से मुआयना किया.

उस रास्ते में उन्हें कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे दिखाई दिए. उन्होंने उन सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई. एक फुटेज में एक औटो में कुछ युवक बैठे दिखाई दिए. उस औटो को इमरान चला रहा था और उस में एक बड़ा सा बैग भी रखा नजर आ रहा था. औटो में एक लंबा व्यक्ति भी बैठा था. इस के बाद उन्होंने इमरान के फोन नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई. इंसपेक्टर अशोक सिंह इस से आगे की जांच करते, उस से पहले उन का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह पर इंसपेक्टर विद्याराम दिवाकर नए थानाप्रभारी आए. जाते समय इंसपेक्टर अशोक सिंह ने विद्याराम दिवाकर को इस मामले की पूरी जानकारी दे दी थी. चार्ज लेने के बाद इंसपेक्टर विद्याराम ने आगे की जांच शुरू की.

समाजसेवी राजेश गंगवार की बेटी की हत्या के विरोध में कई सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर शहर वालों ने कैंडिल मार्च निकाला. अन्य अभियुक्तों को जल्द गिरफ्तार कर के उन के खिलाफ सख्त काररवाई करने की मांग को ले कर राजेश गंगवार 16 नवंबर से अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठ गए. कई सामाजिक संगठनों ने उन का साथ दिया. 11 दिनों बाद पुलिस प्रशासन की नींद टूटी. जिले के पुलिस अधिकारी 26 नवंबर को उन के पास पहुंचे और उन की मांगे मानते हुए अनशन समाप्त कराया. दूसरी ओर लाश के सड़ जाने की वजह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रिया की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो सका. दुष्कर्म की आशंका को देखते हुए डाक्टर ने गुप्तांग को प्रिजर्व करने के साथ स्लाइड भी बनवा ली थी.

इस के अलावा उस के विसरा और गले को भी जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेज दिया गया था. हत्या के राज उगलवाने, प्रिया का सामान बरामद करने और अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए इमरान से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए इंसपेक्टर विद्याराम ने 25 नवंबर को अदालत में प्रार्थनापत्र दे कर इमरान को 36 घंटे के पुलिस रिमांड पर देने की अपील की. अदालत ने उन की अर्जी को मंजूर करते हुए इमरान को 36 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

पुलिस ने इमरान को उस से औटो में रखे बडे़ बैग के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस बैग में प्रिया की लाश थी. उस ने कहा कि गुड्डू ने केवल हत्या करने में उस की मदद की थी, जबकि लाश ठिकाने लगाने में उस का भाई सलमान और भांजा मोहम्मद अहमद औटो में उस के साथ थे. उस ने बताया कि प्रिया की सोने की चेन उस की स्कूटी के पार्ट्स के पास ही फेंक दी थी. पुलिस ने इमरान की निशानदेही पर बिलवा पुल के पास स्थित वीरपुर उर्फ कासिमपुर गांव के पास हनीफ के खेत से प्रिया की चेन और स्कूटी के खुले हुए पार्ट्स बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने इमरान को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अन्य आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. मुखबिर की सूचना पर 27 नवंबर को इमरान के दोस्त गुड्डू को मिली बाईपास से गिरफ्तार कर लिया था. अगले दिन इमरान का भाई सलमान भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भी न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. इमरान से हुई पूछताछ व केस की तफ्तीश के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी. इमरान रजा खान बिलकुल अपने पिता बुंदन खान के नक्शे कदम पर चल रहा था. बुंदन खान भी एक वहशी दरिंदा था. बुंदन ने 1980 में पढ़ाई के दौरान छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था. हाथ उठा कर मतदान कराने के दौरान तब उस के क्लास की 6 लड़कियों ने उसे वोट नहीं दिया था.

इस से बौखलाए बुंदन ने उन से बदला लेने के लिए साजिश रची और चुनाव के कुछ दिनों बाद सभी लड़कियों के साथ क्लास में ही हैवानियत की. उन लड़कियों की हालत बिगड़ गई. कमरा बंद करने पहुंचे चौकीदार ने उन की हालत देख कर कालेज प्रबंधन को इस घटना की सूचना दी. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को बुलाया गया. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने सभी पीडि़त लड़कियों को अस्पताल पहुंचाया. घटना की खबर फैलते ही पूरे शहर में बवाल मच गया. उस समय शांति की अपील के लिए खुद मदर टेरेसा बरेली आई थीं. उस के बाद ही शहर का माहौल सामान्य हुआ था. बुंदन खान पर पहले से ही दुष्कर्म आदि के दरजन भर से अधिक मुकदमे चल रहे थे.

पुलिस ने इस मामले में बुंदन खान को गिरफ्तार कर के उस पर गुंडा ऐक्ट तथा गैंगस्टर लगाने के साथ उस की हिस्ट्रीशीट खोल दी थी. कई वर्षों बाद जब वह जेल से जमानत पर बाहर आया तो जुर्म की दुनिया में उस के कदम दलदल की तरह धंसते गए. 2 हत्याओं के अलावा उस पर 22 दुष्कर्म के मुकदमे दर्ज हुए थे. उस की मौत होने के बाद उस के मुकदमों की फाइल अपने आप बंद हो गई थी. अपनी आपराधिक वारदातों से चर्चित रहे बुंदन खान का बेटा इमरान भी अपने पिता की ही तरह अपराधों में लिप्त रहा. उस पर भी 3 दुष्कर्म और एक हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था.  4 भाइयों में तीसरे नंबर का इमरान शातिर दिमाग था. पिता की ही तरह उस का दिमाग भी अच्छे कामों के बजाय गलत कामों में ज्यादा चलता था. वह गलत कामों से पैसा कमाने में लग गया.

उस ने दिल्ली जा कर एक फाइनेंस कंपनी खोली और प्रौपर्टी ब्रोकर का भी काम करने लगा. फाइनेंस कंपनी के नाम पर वह लोगों को ठगने लगा. औफिस में काम करने वाली एक युवती की हत्या में वह फंस गया तो दिल्ली से भाग कर बरेली आ गया. इस के बाद उस ने उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी और चंपावत में रियल एस्टेट कंपनी के औफिस खोले और लोगों को ठगना शुरू कर दिया. मौजमस्ती करने के लिए वह अपने औफिस में केवल लड़कियों को ही नौकरी पर रखता था. उस के औफिस में अर्शी उर्फ रूबी नाम की एक लड़की काम करती थी. वह बेहद खूबसूरत थी.

वह अर्शी की खूबसूरती और अदाओं के जाल में उलझ गया. इमरान लड़कियों से अपने संबंध मौजमस्ती तक ही सीमित रखता था, लेकिन अर्शी को देख कर उस ने उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का फैसला किया. जल्द ही उस ने अर्शी को प्यार के जाल में फांस लिया. उन का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ता गया. अर्शी के मांबाप को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. अर्शी के मांबाप का दबाव बढ़ने पर इमरान अर्शी को ले कर बरेली आ गया और उस से निकाह कर लिया. यह 6 साल पहले की बात है. बाद में अर्शी ने एक बेटे और एक बेटी को जन्म दिया.

बरेली आने के बाद इमरान ने इज्जतनगर क्षेत्र में स्पीड स्काई रियल एस्टेट इंडिया लिमिटेड और बी.के. जनसेवा समिति के नाम से औफिस खोल कर अपना गोरखधंधा शुरू किया. वह लोगों से हर महीने 1,600 रुपए जमा करा कर प्लाट देने का वादा करता था. इस के अलावा वह रुहेलखंड ऐक्शन फ्रंट नाम से एक संस्था चलाता था. इस के जरिए वह सरकारी सस्ते गल्ले के डीलरों और प्रधानों की शिकायतें करता था और बाद में उन्हें ब्लैकमेल करता था. उस का यह धंधा खूब फलफूल रहा था.

2010 में इमरान ने पुराना औफिस बंद कर के बरेली की पौश कालोनी राजेंद्रनगर में नया औफिस स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के नाम से खोला. यह औफिस उस ने एक्सिस कोचिंग चलाने वाले डब्ल्यू.एच. सिद्दीकी की कोठी का पिछला हिस्सा किराए पर ले कर खोला था. स्टाफ की नियुक्ति के लिए उस ने कई अखबारों में विज्ञापन दिए थे. इसी विज्ञापन को देख कर प्रियांगी उर्फ प्रिया इमरान से उस के औफिस में मिली थी. इमरान ने उसे औफिस में कंप्यूटर औपरेटर के पद पर रख लिया था.

औफिस में काम के दौरान ही इमरान और प्रिया में अच्छी दोस्ती हो गई. इमरान उस का पूरा ध्यान रखता था. उसे अपने साथ घुमाने ले जाता. दोनों एकदूसरे से काफी घुलमिल गए. धीरेधीरे उन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आ गया, जब दोनों एकदूसरे के प्यार में डूब गए. उसी दौरान प्रिया बीएड करने मेरठ चली गई. वहां के हौस्टल में रह कर वह साईं कालेज से बीएड करने लगी. भले ही वह इमरान से दूर जा चुकी थी, लेकिन इमरान उस के दिल में बसा था. हफ्ते, 2 हफ्ते में जब भी उसे बरेली अपने घर आना होता तो इमरान ही उसे मेरठ लेने जाता था और मेरठ छोड़ने भी उस के साथ जाता था. वह प्रिया के ऊपर काफी पैसे खर्च कर रहा था. अचानक जरूरत पड़ने पर वह प्रिया से पैसे उधार भी ले लेता था.

जब इमरान की इस प्रेम कहानी का पता उस की पत्नी अर्शी को चला तो वह परेशान हो उठी. अर्शी को रोज डायरी लिखने का शौक था. उस ने डायरी में इमरान और अर्शी के प्रेमसंबंधों का जिक्र कर के अपनी जिंदगी तबाह होने का अंदेशा व्यक्त किया था. क्योंकि उस के मांबाप का देहांत हो चुका था. उन के बाद इमरान ही उस का सब कुछ था. ऐसे में अगर इमरान उस से दूर चला गया तो उस की जिंदगी बर्बाद हो जाती. इमरान ने प्रिया के धर्मांतरण के लिए नवंबर, 2013 में कुछ मौलवियों से बात भी की थी. उस का धर्म बदलवा कर वह उस से निकाह करना चाहता था. इस बात का अर्शी को पता लग गया था. उस ने डायरी में 20 नवंबर, 2013 के पेज पर इस बात का जिक्र भी किया था. करीब 2 महीने पहले प्रिया को जानकारी मिली कि इमरान के अन्य लड़कियों से भी संबंध हैं.

सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने अपने स्तर से छानबीन की तो उसे पता चला कि इमरान के सचमुच अनेक लड़कियों से अवैधसंबंध हैं. हकीकत पता चलने पर प्रिया को अपने आप पर खीझ होने लगी कि उस ने ऐसे गंदे इंसान से प्यार क्यों किया. इस के बाद प्रिया ने तय कर लिया कि वह इमरान से कोई संबंध नहीं रखेगी. उस ने उस से दूरी भी बनानी शुरू कर दी. उस ने इमरान को 6 हजार रुपए उधार दे रखे थे. उस ने कई बार उस से अपने पैसों का तकादा किया, लेकिन कोई न कोई बहाना बना कर इमरान उसे टालता रहा. अब वह मेरठ से जब भी घर आती, अकेली ही आती और अकेली ही जाती थी. प्रिया में आए इस बदलाव को इमरान समझ नहीं पाया. वह उस से बात करने की कोशिश करता तो प्रिया उसे कोई महत्त्व नहीं देती.

प्रिया जब भी मेरठ से बरेली आती, इमरान से अपने पैसे मांगने उस के औफिस पहुंच जाती और उस से झगड़ा करने लगती. एक बार तो उस ने इमरान को स्टाफ के सामने ही थप्पड़ मार दिया था, जिस से इमरान को काफी बेइज्जती महसूस हुई थी. प्रिया के रोजरोज के झगड़ों से वह काफी तंग आ चुका था. 5 नवंबर, 2014 को प्रिया अपनी आंखों की दवा लेने के लिए स्कूटी से धर्मकांटा के पास स्थित डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक पर पहुंची. वहां से दवा ले कर वह अपनी सहेली शालिनी से मिली और उस से कहा कि वह आज अपने पैसे इमरान से ले कर ही आएगी.

शालिनी को साथ ले कर वह इमरान के औफिस पहुंच गई. वहां इमरान और प्रिया में पैसों को ले कर झगड़ा होने लगा. उन का झगड़ा खत्म न होता देख लगभग 25 मिनट बाद शालिनी वहां से चली गई. प्रिया ने गुस्से में औफिस में चीखना शुरू कर दिया. इमरान उसे समझाने की कोशिश करते हुए औफिस से सटे कमरे में ले गया. उसी कमरे में इमरान लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता था. कमरे में उस समय उसी के गांव का रहने वाला उस का दोस्त गुड्डू भी था. कमरे में इमरान ने प्रिया के मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप कराने की कोशिश की. वह नहीं मानी तो उस ने बगल में खड़े गुड्डू को इशारा किया.

इस के बाद दोनों ने प्रिया की नाक व मुंह दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस के गले में पड़ी सोने की चेन, मोबाइल फोन और रुपए निकाल लिए. इमरान ने गुड्डू की मदद से प्रिया की लाश को एक क्रिकेट बैग में भरा और उसे वहीं छोड़ कर औफिस बंद कर के चला गया. वहां से गुड्डू के साथ सीधे अपने गांव तिलियापुर पहुंचा. गांव पहुंचते ही गुड्डू इमरान को छोड़ कर चला गया. इमरान ने उसे बुलाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह वापस नहीं आया. लाश ठिकाने लगाने के लिए इमरान को एक आदमी की जरूरत थी. उस ने गांव के ही बबलू से कहा कि वह उसे बरेली जंक्शन पर छोड़ आए. बबलू उस के साथ स्टेशन तक गया. वहां से इमरान किसी बहाने उसे अपने औफिस ले गया.

जिस बैग में प्रिया की लाश रखी थी, वह बैग उठाने में उस ने बबलू से मदद करने को कहा. बबलू को पता नहीं था कि बैग में क्या है. उस ने बैग उठाना चाहा तो वह बहुत भारी लगा. उसे शक हो गया. उस ने बैग खोल कर देखा तो उस में लाश रखी थी. लाश देख कर वह डर के मारे भाग गया. इमरान ने उसे दौड़ कर पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वह पकड़ में नहीं आया. इमरान लाश को ठिकाने लगाने के लिए काफी परेशान था. वह अपने गांव आ गया और गांव के ही आजाद का औटो रेलवे स्टेशन तक जाने के बहाने ले लिया. अपने भाई सलमान और भांजे मोहम्मद अहमद को साथ ले कर वह आधी रात को अपने औफिस पहुंचा.

उन के सहयोग से उस ने प्रिया की लाश वाले क्रिकेट बैग को औटो में रखा. सलमान और मोहम्मद अहमद पिछली सीट पर बैग के साथ बैठ गए तो वह औटो चला कर नैनीताल रोड पर स्थित बिलवा पुल के पास ले गया. वहां पानी से कट कर जमीन में एक गड्ढा बन गया था. इमरान ने अपने भाई व भांजे की मदद से प्रिया की लाश वाले बैग को उसी गड्ढे में डाल दिया. इस के बाद तीनों गांव लौट आए. 6 नवंबर, 2014 को इमरान औफिस के बाहर खड़ी प्रिया की स्कूटी से वहां पहुंचा, जहां प्रिया की लाश फेंकी थी. अपने साथ वह एक फावड़ा भी ले आया था. फावड़े की मदद से उस ने प्रिया की लाश वाले बैग पर मिट्टी डाल दी. इस के बाद वह वहां से कुछ दूरी पर स्थित हनीफ के खेत में प्रिया की स्कूटी के पार्ट्स खोल कर छिपा दिए. प्रिया का मोबाइल उस ने किला नदी में फेंक दिया.

इमरान जानता था कि प्रिया अपनी सहेली शालिनी के साथ उस के यहां आई थी, इसलिए उस ने शालिनी को धमकी दी कि वह प्रिया के उस के औफिस आने की बात किसी को नहीं बताएगी, वरना दोनों फंस सकते हैं. इमरान ने सोचा था कि शालिनी खुद के फंस जाने के डर से किसी को कुछ नहीं बताएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. शालिनी ने प्रिया की मां पुष्पा को सब कुछ बता दिया था. इमरान से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुड्डू, सलमान और मोहम्मद अहमद के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 404 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. सलमान की निशानदेही पर पुलिस ने अभियुक्त गुड्डू और सलमान को भी गिरफ्तार कर लिया था. जबकि मोहम्मद अहमद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका.

इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त औटो भी तिलियापुर गांव से बरामद कर लिया था. गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया था. Bareilly News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, शालिनी परिवर्तित नाम है.

 

UP Crime : बदनामी का खून

UP Crime : नवीन की शादी इसलिए नहीं हो रही थी, क्योंकि उस की दलित प्रेमिका सीमा को उस से बेटा हो गया था. इस से उस की ही नहीं, घर वालों की भी बदनामी हो रही थी. घर वालों ने इस बदनामी से बचने का जो उपाय किया, क्या वह उचित था?

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर थानाकोतवाली बड़हलगंज का एक गांव है तिहामोहम्मद. इसी गांव में रामाश्रय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी केसरी देवी के अलावा 2 बेटे संजय, राकेश कुमार उर्फ हृदय कुमार और 2 बेटियां सीमा तथा आशा थीं. बात 10 नवंबर, 2014 की है. सुबह साढ़े 6 बजे के करीब गांव के ग्रामप्रधान काशी राय टहलने के लिए घर से निकल कर गलियों से होते हुए गांव के बाहर रह रहे दलितों के मोहल्ले से होते हुए चले जा रहे थे कि गली के किनारे बने रामाश्रय के झोपड़ानुमा मकान की खुली दालान में चारपाई पर उन की नजर पड़ी तो उस की हालत देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

दालान में पड़ी उस चारपाई पर एकएक कर के 3 लाशें पड़ी थीं. सब से नीचे रामाश्रय के नाती आशीष उर्फ लालू, उस के ऊपर उस की पत्नी केसरी देवी और सब से ऊपर उस की बेटी सीमा की लाश पड़ी थी. उन्होंने आवाज लगा कर कुछ लोगों को बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद थोड़ी ही देर में घटना की सूचना पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद तो रामाश्रय के घर के सामने भीड़ लग गई. ग्रामप्रधान काशी राय ने घटना की सूचना थानाकोतवाली बड़हलगंज पुलिस को दी तो कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर सुनील कुमार राय एसआई वी.पी. सिंह, देवेंद्र मौर्य, हरिकेष कुमार आर्या, हेडकांस्टेबल रमाकांत पांडेय, कांस्टेबल समतुल्ला खान, सुरेश सिंह, अनिल पाल, शंभू सिंह के साथ गांव तिहामोहम्मद आ पहुंचे.

दिल दहला देने वाली स्थिति देख कर इंसपेक्टर सुनील कुमार राय ने इस बात की जानकारी आईजी सतीश कुमार माथुर, डीआईजी डा. संजीव कुमार, एसएसपी राजकुमार भारद्वाज, एसपी (ग्रामीण) बृजेश सिंह और सीओ अशोक कुमार को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद वह साथियों के साथ घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के लिए दालान में पहुंचे. दालान में पड़ी चारपाई पर तीनों लाशें एक के ऊपर एक पड़ी थीं. चारपाई के पास ही 315 बोर के 5 खोखे और कांच की टूटी चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. वे टुकड़े मृतका सीमा की कलाई की चूडि़यों के थे, इसलिए उन टुकड़ों को देख कर अनुमान लगाया गया कि मृतका सीमा ने खुद या बच्चे और मां को बचाने के लिए हत्यारों से संघर्ष किया होगा.

पुलिस ने गोलियों के खोखे के साथ टूटी चूडि़यों के उन टुकड़ों को भी कब्जे में ले लिया. लाशों के निरीक्षण में पता चला, मृतका सीमा की पीठ और सिर में बाईं ओर केसरी देवी के सिर और कान के ऊपर बाईं ओर तथा सब से नीचे पड़े आशीष उर्फ लालू के सीने में दाहिनी ओर गोली मारी गई थी. स्थिति देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे कम से कम 3-4 रहे होंगे. आसपास वालों से की गई पूछताछ में पता चला कि मृतकों के परिवार में और कोई नहीं है. एक बेटी आशा ससुराल में है और बेटा राकेश मुंबई में है. एक बेटा संजय 18 साल से लापता है. परिवार के मुखिया रामाश्रय की 8-9 साल पहले मौत हो चुकी है. मृतकों के घर में उस समय कोई ऐसा नहीं था, जिस से कुछ जानकारी मिल पाती.

इंसपेक्टर सुनील कुमार राय पूछताछ कर रहे थे कि अन्य पुलिस अधिकारी भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण कर लिया तो ग्रामप्रधान काशी राय की उपस्थिति में घटनास्थल की काररवाई निपटा कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. इस के बाद ग्रामप्रधान काशी राय द्वारा दी गई तहरीर पर थानाकोतवाली बड़हलगंज में अज्ञात लोगों के खिलाफ तीनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार राय ने मामले की जांच शुरू की.

सब से पहले उन्होंने पड़ोसियों से राकेश का फोन नंबर ले कर उसे घटना की सूचना दी. स्थिति को देखते हुए हत्या की वजह रंजिश लग रही थी, क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था. इस से साफ था कि हत्यारे सिर्फ हत्या करने आए थे. घर वालों की हत्या की जानकारी मिलते ही राकेश गोरखपुर के लिए चल पड़ा. 11 नवंबर, 2014 को वह घर पहुंचा और सामान वगैरह रख कर सीधे कोतवाली बड़हलगंज के लिए रवाना हो गया. कोतवाली पहुंच कर उस ने इंसपेक्टर सुनील कुमार राय को एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस में उस ने गांव के हीरा राय और उन के 4 बेटों, परविंद कुमार राय, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की, अरविंद कुमार राय और नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन को अपनी मां, बहन और भांजे की हत्याओं का दोषी ठहराया था.

कोतवाली पुलिस ने राकेश के उस प्रार्थना पत्र के आधार पर अज्ञात की जगह प्रार्थना पत्र में लिखे पांचों को नामजद अभियुक्त बना कर मुकदमे में एससीएसटी ऐक्ट जोड़ दिया. इस के बाद इस मामले की जांच सीओ अशोक कुमार को सौंप दी गई. राकेश द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के अनुसार उस की बहन सीमा के अवैधसंबंध 13-14 सालों से हीरा राय के तीसरे नंबर के बेटे नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन से थे, जिस की वजह से नवीन के घर वाले आए दिन लड़ाईझगड़ा करते रहते थे. मौका मिलने पर उन्होंने ही ये तीनों हत्याएं की हैं. अगर राकेश भी घर में होता तो उस की भी हत्या हो सकती थी.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए हीरा राय के घर छापा मारा, लेकिन घर में सिर्फ महिलाएं मिलीं. सारे के सारे पुरुष घर छोड़ कर भाग गए थे. सीमा का मोबाइल फोन मिल गया था. फोन से पता चला कि घटना वाली रात 12 बजे सीमा के फोन पर एक फोन आया था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो वह नंबर गांव के अरुण का था. इस से साफ हो गया था कि अरुण ने सीमा को फोन कर के स्थिति के बारे में पता किया होगा. इस का मतलब राकेश का शक सही था.

पुलिस को हत्यारों के बारे में पता चल गया, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए, क्योंकि वे सभी के सभी फरार थे. गिरफ्तारी न हो पाने की वजह से 13 नवंबर को एसएसपी औफिस के सामने बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार भारती के नेतृत्व में 6 सूत्रीय मांगें ले कर धरनाप्रदर्शन किया गया. उसी दिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक शारदा देवी, राकेश के गांव तिहामोहम्मद पहुंची और राकेश को ढांढस बंधाया. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार को मुआवजा के लिए पत्र तो भेजा ही, अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भी दबाव बनाया.

इन्हीं दबावों का ही परिणाम था कि 14 नवंबर को नामजद अभियुक्तों में से 3 अभियुक्तों परविंद कुमार, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की और अरविंद कुमार राय को ओझौली गांव के पास से रात डेढ़ बजे गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी बचे 1 अभियुक्त हीरा राय का पता नहीं था, जबकि नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन 2 साल पहले बैंकाक चला गया था और घटना के समय भी वहीं था. इस के बावजूद पुलिस ने हत्या के जुर्म में उसे भी आरोपी बना दिया था. पुलिस परविंद, अरुण और अरविंद को कोतवाली बड़हलगंज कोतवाली ले आई, जहां उन से हत्याओं के बारे में पूछताछ की जाने लगी. तीनों अभियुक्तों ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उन्होंने तीनों हत्याओं की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

दलित बस्ती में रहने वाला रामाश्रय खेती कर के अपने परिवार को पाल रहा था. बड़ा बेटा संजय 15 साल का हुआ तो अपने किसी रिश्तेदार के साथ गुजरात के सूरत शहर चला गया. 6 महीने तो उस ने कमा कर रुपए भेजे, लेकिन उस के बाद अचानक उस ने रुपए भेजने बंद कर दिए. घर वालों ने रिश्तेदार को फोन कर के पूछा तो उस ने बताया कि अब वह उन के पास नहीं रहता. इस के बाद से आज तक उस का कुछ पता नहीं चला है. बेटे के इस तरह लापता हो जाने से रामाश्रय को इतना गहरा आघात पहुंचा कि वह बीमार पड़ गया. कुछ दिनों बाद उस की मौत हो गई तो 2 बेटियों और एक बेटे की जिम्मेदारी केसरी देवी पर आ पड़ी.

केसरी देवी की बड़ी बेटी सीमा कीचड़ में खिले कमल की तरह थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में जो निखार आया, वह गांव के लड़कों को लुभाने लगा. मजे की बात यह थी कि वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. चंचल, चपल और चालाक सीमा अपनी सीमा जानती थी. वह गरीब घर की बेटी थी, जिस की जमापूंजी सिर्फ इज्जत होती है. वह अपनी इज्जत को बचा कर रखना चाहती थी, लेकिन गांव के ही हीरा राय के तीसरे नंबर का बेटा नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन उस का ऐसा दीवाना हुआ कि उस ने कोशिश कर के उसे अपने रंग में ढाल ही लिया. यह 12-13 साल पहले की बात है.

उस समय सीमा की उम्र 19-20 साल रही होगी. नवीन भी उम्र लगभग उतनी ही थी. नवीन गबरू जवान तो था ही, खातेपीते घर का होने के साथसाथ खूबसूरत भी था. शायद उस की खूबसूरती पर ही सीमा भी मर मिटी थी. प्यार हुआ तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे. इस के बाद दोनों के संबंधों की बात गांव में चर्चा का विषय बन गई. सीमा दलित थी, जबकि नवीन भूमिहार यानी सामान्य वर्ग का था. नवीन के घर वालों ने सोचा दलित होने के नाते सीमा के घर वाले क्या कर लेंगे. साल, 2 साल बाद दोनों की शादी हो जाएगी तो संबंध अपने आप खत्म हो जाएंगे.

तिहामोहम्मद गांव के ही रहने वाले हीरा राय साधनसंपन्न आदमी थे. उस की 5 संतानों में 4 बेटे, अरविंद कुमार राय, परविंद कुमार राय उर्फ गुड्डू, नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन, अरुण कुमार राय और एक बेटी संध्या राय थी. उस के 2 बेटे अरविंद और परविंद बैंकाक में रहते थे. इन से छोटा नवीन पढ़ाई के साथसाथ खेती के कामों में पिता की मदद करता था. सब से छोटा अरुण समझदार होते ही बड़े भाइयों के पास बैंकाक चला गया था, जहां वह नौकरी करने लगा था. बैंकाक से आने वाले रुपयों से हीरा राय गांव में जमीनें खरीदते गए, जिस से जल्दी ही उन की गिनती बड़े लोगों में होने लगी. बाद में बड़ा बेटा अरविंद गांव आ गया और यहीं रहने लगा. लेकिन परविंद और अरुण वहीं रह कर नौकरी करते रहे.

नवीन और सीमा के संबंध हद पार करने लगे तो हीरा राय और उन के बड़े बेटे अरविंद को लगा कि आगे चल कर बात बिगड़ सकती है. कहीं बात शादी की आ गई तो वे समाज को कैसे मुंह दिखा पाएंगे. यही सोच कर अरविंद ने केसरी देवी को धमकाया कि वह अपनी बेटी को काबू में रखे. उस ने केसरी देवी को ही नहीं धमकाया, नवीन पर भी सीमा से मिलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. नवीन कोई लड़की नहीं था कि घर वाले उस के पैरों में जंजीर डाल कर उसे कमरे में कैद कर देते. उस ने पिता और भाई के दबाव में भले ही सीमा से मिलने के लिए मना कर दिया था, लेकिन यह दिखावा मात्र था. सीमा उस की धमनियों में खून बन कर बह रही थी. इसलिए वह पिता और भाई को दिए आश्वासन पर अटल नहीं रह सका और चोरीछिपे लगातार सीमा से मिलता रहा.

परिणामस्वरूप  बिना शादी के ही सीमा गर्भवती हो गई. धीरेधीरे गांव में यह बात फैली तो केसरी देवी की बदनामी होने लगी. बदनामी से बचने के लिए उस ने देवरिया जिले के थाना एकौना के गांव छपना के रहने वाले दीपचंद के साथ सीमा की शादी कर दी. सीमा ससुराल चली तो गई, लेकिन उस के गर्भ में पल रहा पाप पति से छिपा नहीं रहा. दीपचंद को जब पता चला कि सीमा की कोख में किसी दूसरे का 2-3 महीने का बच्चा पल रहा है तो उस ने इज्जत के साथ सीमा को उस के मायके पहुंचा दिया और सीमा की सहमति से तलाक ले लिया. यह बात 11-12 साल पहले की है.

इस के बाद सीमा मां और बहनभाई के साथ मायके में ही रहने लगी. समय पर उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आशीष उर्फ लालू रखा. यह सभी को पता था कि सीमा का बेटा आशीष नवीन कुमार राय का बेटा है. नवीन सीमा को अपनाने के लिए तैयार भी था, लेकिन घर वाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे. इस की सब से बड़ी वजह सीमा का दलित होना था. लालू धीरेधीरे बड़ा होने लगा. सीमा ने स्कूल में उस का दाखिला कराते समय पिता के नाम के रूप में नवीन कुमार राय का ही नाम लिखाया था. इस से हीरा राय और उन के बेटों, अरविंद, परविंद और अरुण को इस बात का डर सताने लगा कि बड़ा हो कर लालू उन की संपत्ति में हिस्सा ले सकता है.

जबकि नवीन पर इस बात का कोई असर नहीं था, क्योंकि वह सीमा और लालू को अपनाने को तैयार था. शायद इसीलिए वह कहीं और शादी नहीं कर रहा था. लालू और सीमा को ले कर हीरा राय के परिवार में महाभारत छिड़ा हुआ था. सीमा से छुटकारा पाने का अब एक ही उपाय था कि उस की शादी कहीं और हो जाए. हीरा राय और उस के बेटे इस के लिए कोशिश भी कर रहे थे, लेकिन नवीन ऐसा होने नहीं दे रहा था. इस से घर वालों ने सोचा कि अगर नवीन को गांव से हटा दिया जाए तो यह काम आसानी से हो जाएगा.

नवीन के 2 भाई, परविंद और अरुण बैंकाक में रह ही रहे थे. हीरा और अरविंद ने नवीन का पासपोर्ट और वीजा तैयार करा कर उसे भी बैंकाक भेज दिया. नवीन के हटते ही हीरा राय और अरविंद दिमाग चलाने लगे. योजना के अनुसार नवीन के बैंकाक पहुंचते ही परंविद और अरुण गांव आ गए. अरविंद, परविंद और अरुण रास्ते का कांटा लालू को हटाने की योजना बनाने लगे. लालू की ही वजह से नवीन की भी शादी नहीं हो रही थी, बदनामी अलग से हो रही थी. नवीन भले ही बैंकाक चला गया था, लेकिन फोन से वह बराबर सीमा और उस के बेटे का हालचाल लेता रहता था.

अरुण काफी दबंग किस्म का युवक था. बैंकाक से खूब रुपए कमा कर लाया ही था, इसलिए पैसों की भी गरमी थी. उस का उठनाबैठना भी बदमाशों के बीच था, इसलिए लालू को रास्ते से हटाने के लिए उस ने अपने उन्हीं दोस्तों की मदद से कट्टा और कारतूस का इंतजाम किया हथियारों का इंतजाम हो गया तो एक दिन तीनों भाइयों ने पिता हीरा राय के साथ बैठ कर लालू को खत्म करने की योजना बना डाली. 9/10 नवंबर की रात 12 बजे अरुण ने सीमा के मोबाइल पर फोन कर के पता किया कि वह सो गई है या जाग रही है. वैसे तो सीमा सो रही थी, लेकिन मोबाइल की घंटी ने उसे जगा दिया. 2-4 बातें हुईं, उस के बाद सीमा फोन काट कर सो गई.

सीमा से बात होने के काफी देर बाद अरुण, अरविंद और परविंद 315 बोर के देसी कट्टे और कारतूस ले कर केसरी देवी के घर जा पहुंचे. बिजली न होने की वजह से गांव में अंधेरा था. अरुण को पता था कि लालू अपनी नानी के पास बरामदे में चारपाई पर सोता है, जबकि सीमा अंदर कमरे में सोती है. अरुण को सारी स्थिति का पता था, इसलिए सीमा के घर पहुंचते ही उस ने एक, डेढ मीटर की दूरी से लालू पर निशाना साध कर कट्टे से गोली चला दी. गोली लालू के सीने में दाईं ओर लगी. सोया लालू छटपटा कर हमेशाहमेशा के लिए सो गया.

गोली की आवाज सुन कर केसरी देवी जाग गई. पकड़े जाने के डर से अरुण और अरविंद ने एक साथ केसरी देवी को गोली मार दी. केसरी देवी भी लहरा कर नाती लालू के ऊपर गिर गई. दूसरी ओर गोली की आवाज सुन कर कमरे में सो रही सीमा भी जाग गई थी और उठ कर बाहर आ गई थी. उस ने तीनों भाइयों को पहचान भी लिया था. मां को बचाने के चक्कर में वह अरुण से भिड़ गई थी. उसी दौरान उस की चूडि़यां टूट कर नीचे गिर गई थीं. सीमा ने उन्हें पहचान लिया था, इसलिए उसे भी जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता था. अरुण और अरविंद ने एक साथ गोलियां चला कर उसे भी मार दिया. मां को बचाने के लिए वह चारपाई के पास ही खड़ी थी. इसलिए गोलियां लगने के बाद भी वह मां के ऊपर चारपाई पर गिर पड़ी थी.

इस तरह एक हत्या करने के चक्कर में अरविंद, अरुण और परविंद ने 3 हत्याएं कर डालीं थीं. फिर भी उन्हें न किसी बात की चिंता थी, न किस तरह का पछतावा. वे घर जा कर आराम से सो गए. लेकिन सुबह होते ही हीरा राय और उन के तीनों बेटे अरविंद, परविंद और अरुण घर छोड़ कर भाग गए. 14 नवंबर, 2014 की रात अरविंद, परविंद और अरुण ओझौली गांव से गिरफ्तार हो गए. पुलिस ने अरुण के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 3 खोखे, एक जिंदा कारतूस, अरविंद के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 2 खोखे और 1 जिंदा कारतूस बरामद कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत मे पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

21 नवंबर को पुलिस ने गांव के बाहर हीरा राय को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी जेल भेज दिया है. पुलिस का मानना है कि साजिश रचने में नवीन भी शामिल था, इसलिए धारा 120बी के तहत उसे भी आरोपी बनाया है. लेकिन इस समय वह बैंकाक में है. पुलिस उसे वहां से बुला कर गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. UP Crime

Agra News : बेवफाई या मजबूरी

Agra News : अंजलि सनी का बचपन का प्यार थी, इसलिए वह उसे हर हालत में अपनी बनाना चाहता था, अंजलि भी उस की बनने को तैयार थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि सनी को प्रेमिका अंजलि का हत्यारा बनना पड़ा…

5 नवंबर, 2014 की शाम पौने 7 बजे के आसपास अंधेरा घिरने पर आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद में रेल की पटरियों के किनारे रहने वाले सतीशचंद की बेटी अंजलि किसी काम से पटरियों की ओर गई तो किसी ने उस पर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया. जान बचाने के लिए अंजलि चिल्लाते हुए घर की ओर भागी, लेकिन हमलावर ने उसे गिरा कर गर्दन पर ऐसा वार किया कि उस की गर्दन कट गई और वह तुरंत मर गई. शोर सुन कर आसपास के लोग वहां पहुंच पाते, हमलावर अंजलि को मार कर अंधेरे में गायब हो गया.

शोर सुन कर अंजलि के घर वाले भी आ गए थे. उस की हालत देख कर वे रोने लगे. थोड़ी ही देर में वहां पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस को सूचना दी गई. थाना हरिपर्वत पास में ही था, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह एसएसआई शैलेश कुमार सिंह, एसआई अभय प्रताप सिंह, हाकिम सिंह, सिपाही परेश पाठक और रामपाल सिंह को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी गई थी, इसलिए जिले के पुलिस अधिकारियों को भी घटना की जानकारी हो गई थी. इसलिए थोड़ी ही देर में एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह, मनीषा सिंह, एएसपी शैलेष पांडे भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. हत्यारे ने जिस तरह चाकू से वार कर के मृतका की हत्या की थी, उस से अंदाजा लगाया कि हत्यारा अंजलि से गहरी नफरत करता था.

पुलिस अधिकारियों ने डौग स्क्वायड टीम भी बुलाई थी. लेकिन कुत्ते पुलिस की कोई मदद नहीं कर सके. वे वहीं आसपास घूम कर रह गए थे. इस हत्या से नाराज मोहल्ले वालों ने पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ घोषणा कर दी कि वे लाश तब तक नहीं उठाने देंगे, जब तक हत्यारा पकड़ा नहीं जाता. पुलिस अधिकारियों ने समझायाबुझाया और हत्यारे को जल्द पकड़ने का आश्वासन दिया, तब कहीं जा कर घर और मोहल्ले वालों ने लाश ले जाने की अनुमति दी. पुलिस ने जल्दीजल्दी घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. अब तक सूचना पा कर पड़ोस के मोहल्ले में रहने वाला मृतका का पति सुनील भी आ गया था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस की ससुराल वालों के पड़ोस में रहने वाले उत्तमचंद के बेटे सनी ने की है. इस के बाद सुनील की ओर से थाना हरिपर्वत में अंजलि की हत्या का मुकदमा नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले उत्तम चंद के बेटे सनी के खिलाफ नामजद दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने सनी को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर छापा मारा तो वह घर से गायब मिला. सनी के घर छापा मारने गई पुलिस टीम से घर वालों से कहा कि अंजलि की हत्या उस के पति सुनील ने ही की है. लेकिन पुलिस टीम को उन की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ.

हत्या के इस मामले की जांच थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह ने खुद संभाल रखी थी. पुलिस अधिकारियों की भी नजर इस मामले पर थी. इसलिए सनी को पकड़ने के लिए सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में 3 टीमें बनाई गईं. एसएसपी शलभ माथुर ने तीनों टीमों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि उन्हें किसी भी तरह उसी रात सनी को पकड़ना है. क्योंकि उन्हें पता था कि पोस्टमार्टम के बाद मृतका के घर वाले फिर हंगामा करेंगे. वह नहीं चाहते थे कि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के समय घर वाले किसी तरह का हंगामा करें. सब से बड़ी बात यह थी कि मोहल्ले के पास से रेलवे लाइन गुजरती थी, हंगामा करने वाले लाइन पर बैठ कर गाडि़यों का आवागमन रोक सकते थे.

देर रात सीओ अशोक कुमार सिंह को कहीं से सूचना मिली कि सनी राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली जा सकता है. इसी सूचना के आधार पर इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम राजा मंडी रेलवे स्टेशन पर सनी की तलाश में जा पहुंची. सुबह 6 बजे के आसपास वहां से दिल्ली के लिए इंटरसिटी एक्सप्रेस जाती थी, इसलिए तीनों टीमें पूरी सतर्कता के साथ ट्रेन पर चढ़ने वाली सवारियों पर नजर रखने लगीं. सनी को पहचानने वाला एक आदमी पुलिस टीमों के साथ था. ट्रेन छूटने में 5 मिनट बाकी था, तभी उस आदमी ने एक युवक की ओर इशारा किया. चूंकि पुलिस टीमों के सदस्य वर्दी में नहीं थे, इसलिए सनी को पता नहीं चला कि पुलिस स्टेशन पर उसे तलाश रही है.

सनी निश्ंिचत हो कर ट्रेन पर चढ़ रहा था, इसलिए पुलिस ने आराम से उसे पकड़ लिया. थाना हरिपर्वत ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. वह कोई बहानेबाजी करता, उस के पहले ही पुलिस ने उस के कपड़ों पर लगे खून के छींटों की ओर इशारा किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के अंजलि की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अंजलि आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले सतीशचंद की 6 संतानों में पांचवें नंबर की बेटी थी. शहर के पौश इलाके हरिपर्वत से सटा रेलवे लाइन को किनारे बसा है मोहल्ला नाला बुढान सैयद. यहां रहने वाले लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. कभी यह गरीबों का मोहल्ला था. लेकिन आज यहां लगभग सभी के मकान 3 तीन मंजिल बन चुके हैं.

सतीशचंद के पड़ोस में उत्तमचंद का मकान था. उस के परिवार में पत्नी बेबी के अलावा तीन बेटे, भोलू, बबलू और सनी थे. निम्न मध्यम वर्गीय परिवार होने की वजह से उत्तमचंद के बच्चे पढ़ नहीं सके. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वे छोटेमोटे काम करने लगे. सनी ने भी हाईस्कूल कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. पड़ोसी होने की वजह से सनी और अंजलि साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे और एक ही स्कूल में पढ़े थे. अंजलि ने जहां आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी, वहीं सनी ने हाईस्कूल पास कर के. हमउम्र होने की वजह से दोनों में कुछ ज्यादा ही पटती थी. यही पटरी किशोरावस्था आतेआते प्यार में बदल गया.

अंजलि के मांबाप ने पहले तो दोनों के मेलमिलाप व मुलाकातों पर कोई बंदिश नहीं लगाई, लेकिन जब उन्हें लगा कि बेटी अब सयानी हो गई है तो उन्हें लगा कि जवान बेटी का किसी जवान लड़के से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. बस इस के बाद उन्होंने समझदारी से काम लेते हुए अंजलि को ऊंचनीच का पाठ पढ़ाते हुए उसे सनी से दूर रहने की सलाह दी. अंजलि ने मांबाप को भले ही आश्वासन दिया कि वह सनी से नहीं मिलेगी, लेकिन उस के लिए ऐसा करना आसान नहीं था. सनी अब तक उस के लिए उस की जिस्म की जान बन चुका था, उस के दिल की धड़कन बन चुका था. ऐसे में वह सनी से दूर कैसे रह सकती थी.

अंजलि उस से मिलतीजुलती रही. हां, अब वह उस से मिलने में थोड़ा सावधानी जरूर बरतने लगी थी. लेकिन उस की मुलाकातों की भनक सतीशचंद और विमला देवी को लग ही गई. उन्हें लगा कि अब अंजलि का विवाह कर देना ही ठीक है. उन्होंने आननफानन में लड़का देखा और अंजलि की शादी कर दी. यह 3 साल पहले की बात है. अंजलि का पति सुनील नाला बुढान सैयद से लगे मोहल्ले पीर कल्याणी में रहता था. वह एक जूते की फैक्ट्री में सुपरवाइजर था. नौकरी की वजह से वह सुबह 8 बजे घर से निकल जाता तो देर रात को ही घर लौटता था. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो अंजलि ने सनी से दूरी बनाए रखी, लेकिन कुछ दिनों बाद वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. इसी बीच वह एक बेटे की मां बन गई.

अंजलि का सोचना था कि उस का सनी से मिलनाजुलना किसी को पता नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं था. उस की हरकतों पर ससुराल वालों की नजर थी. वे एकएक बात सुनील से बताते रहते थे. सुनील ने अंजलि की आशनाई का सुबूत जुटाने के लिए उसे एक ऐसा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिस में बातचीत करते समय पूरी बात रिकौैर्ड हो जाती थी. इस तरह अंजलि और सनी की अंतरंग बातें रिकौर्ड कर के सुनील ने सुबूत इकट्ठा कर लिए थे. इस के बाद उस ने अंजलि को समझाना चाहा तो वह बगावत पर उतर आई. नाराज हो कर वह बेटे चीनू को ले कर मायके चली गई.

मायके वाले उसे दोष न दें, इसलिए उस ने अपनी मां से बताया कि सुनील का किसी औरत से संबंध है, जिस की वजह से वह उस से प्यार नहीं करता. इसीलिए दुखी हो कर वह मायके आ गई है. विमला देवी को लगा कि बेटी सच कह रही है. इस की वजह यह थी कि सुनील अंजलि और सासससुर से बहुत कम बातें करता था. अंजलि लगभग 6 महीने तक लगातार मायके में रह गई तो आसपड़ोस वाले सवालजवाब करने लगे. इस के बाद सतीशचंद ने सुनील को घर बुलाया तो सच्चाई का पता चला. तब सतीशचंद और विमला देवी ने बेटीदामाद को समझाबुझा कर अंजलि को सुनील के साथ ससुराल भेज दिया.

सुनील अंजलि को साथ ले तो नहीं जाना चाहता था, लेकिन सासससुर का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह अंजलि को साथ ले आया. 2-3 महीने तक सब ठीकठाक चला. लेकिन इस के बाद जो होने लगा, वह पहले से भी ज्यादा खतरनाक था. सनी पहले तो अंजलि से फोन पर ही बातें करता था, इस बार वह सुनील की अनुपस्थिति में अंजलि से मिलने उस के पीर कल्याणी स्थित घर आने लगा. अंजलि ने ससुराल वालों से उसे दूर का रिश्तेदार बताया था. 6 महीने तक सनी पीर कल्याणी अंजलि से मिलने आताजाता रहा. लेकिन एक दिन दोपहर को सुनील घर आ गया तो उस ने सनी को अंजलि के कमरे में बैठे बातें करते देख लिया.

पहले तो उस की सनी से हाथापाई हुई, इस के बाद सुनील ने उसे तो बेइज्जत कर के भगाया ही, अंजलि को भी उस की मां विमला देवी से सारी हकीकत बता कर मायके छोड़ आया. विमला देवी उस दिन तो सुनील से कुछ नहीं कह सकी, लेकिन बाद में उस पर अंजलि को ले जाने का दबाव बनाने लगी. सुनील अंजलि को ले जाता, उस के पहले ही एक दोपहर अंजलि बेटे को मायके में छोड़ कर सनी के साथ भाग निकली. इस से दोनों ही परिवारों में हड़कंप मच गया. पता चला कि अंजलि बेटे की दवा लेने के बहाने से घर निकली और राजामंडी चौराहे से धौलपुर जाने वाली बस में सवार हो कर सनी के साथ चली गई थी.

धौलपुर में सनी की मौसी रहती थी. सनी अंजलि को ले कर उन के यहां पहुंचा तो उन्होंने फोन द्वारा अपनी बहन बेबी को इस बात की सूचना दे दी. सतीशचंद सनी के पिता उत्तमचंद के साथ धौलपुर जाने की तैयारी कर रहे थे कि बेटे से मिलने के लिए सुनील ससुराल आ पहुंचा. इस तरह उसे भी पत्नी के सनी के साथ भाग जाने की जानकारी हो गई. उसी शाम सुनील ने थाना लोहामंडी जा कर सनी के खिलाफ अपनी पत्नी अंजलि को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस कोई काररवाई करती, उस के पहले ही सुनील विमला देवी, सतीशचंद और बेबी उत्तमचंद के साथ धौलपुर गया और अंजलि को आगरा ले आया. आगरा आ कर उस ने थाना लोहामंडी पुलिस को धौलपुर में जहां सनी ठहरा था, वहां का पता बता दिया.

इस के बाद थाना लोहामंडी पुलिस धौलपुर गई और सनी को पकड़ कर ले आई. इस के बाद पुलिस ने सनी को अदालत में पेश करने के साथ अंजलि का भी बयान दर्ज कराया, जहां उस ने सनी के खिलाफ जम कर जहर उगला. उस ने कहा कि सनी ने उस का जबरन अपहरण किया था और उसे बंधक बना कर उस के साथ दुष्कर्म किया था. अंजलि के इसी बयान की वजह से सनी को हाईकोर्ट से अपनी जमानत करानी पड़ी. सनी के साथ जो हुआ था, इस के लिए उस ने अंजलि को दोषी माना. इसलिए उसे अंजलि से गहरी नफरत हो गई. अब वह उस की हत्या करने के बारे में सोचने लगा. जेल से बाहर आने के बाद 1-2 बार उस ने अंजलि से मिलने और बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन अंजलि ने साफ मना कर दिया.

इस की वजह यह थी कि सुनील ने साफसाफ कह दिया था कि अगर अब उस ने सुन भी लिया कि वह सनी से बातचीत करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. इसलिए अपने और बच्चे के भविष्य को देखते हुए अंजलि ने सनी से दूर रहने का फैसला कर लिया था. कहा जाता है कि अंजलि ने अदालत में सनी के खिलाफ जो बयान दिया था, वह भी सुनील के ही कहने पर दिया था. सुनील का सोचना था कि अंजलि के इस बयान से दोनों के बीच दरार पड़ जाएगी और हुआ भी वही.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद सनी अपने घर आने के बजाय धौलपुर जा कर मौसी के यहां रह रहा था. लेकिन वह अपने दोस्तों से अंजलि के बारे में पता करता रहता था. जैसे ही उसे पता चला कि अंजलि मायके आई है, वह मौसी से मांबाप से मिलने की बात कह कर आगरा आ गया. सनी भले ही घर आ गया था, लेकिन वह ज्यादातर घर में ही रहता था. 4 नवंबर, 2014 की शाम वह छत पर बैठा था, तभी उसे अंजलि रेलवे की पटरियों की ओर जाती दिखाई दी. सनी को लगा कि अपमान का बदला लेने के लिए यह अच्छा मौका है.

वह नीचे उतरा और बाजार जा कर खुद को कसाई बता कर गोश्त काटने वाला छुरा खरीद लाया. अगले दिन यानी 5 नवंबर को अंधेरा होने से पहले ही वह वहां छिप कर बैठ गया, जिधर अंजलि जाती थी. अंधेरा होने पर अंजलि उधर आई तो उस ने उस की हत्या कर के अपनी नफरत की आग बुझा ली. अंजलि की चीख सुन कर जब तक मोहल्ले वाले वहां पहुंचते, सनी उस की हत्या कर के जा चुका था. उस समय कोई नहीं जान सका कि अंजलि को किस ने इतनी बेरहमी से मार दिया. वहां से भाग कर सनी राजामंडी रेलवे स्टेशन पर पहुंचा. उसे लग रहा था कि लोग उसे खोजते हुए वहां आ सकते हैं, इसलिए वह एक खोखे के पीछे छिप गया.

उसे यह भी पता था कि पुलिस उसे खोजते हुए धौलपुर जा सकती है, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का निर्णय लिया. वह दिल्ली जा पाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर रेलवे लाइन के किनारे से पत्थरों के नीचे से वह छुरा बरामद कर लिया था, जिस से उस ने अंजलि की हत्या की थी. सारे सुबुत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. Agra News

कहानी पुलिस सूत्रों व सुनील के बयान

UP Crime : बीवी के बिस्तर का साथी

UP Crime : मुकेश जगदीश को अपना अच्छा दोस्त समझता था, जबकि जगदीश उस का दोस्त नहीं, उस की बीवी के बिस्तर का साथी था…

मीना और जगदीश पहली मुलाकात में ही एकदूजे को अपना दिल दे बैठे थे. मीना को पाने की चाह जगदीश के दिल में हिलोरे मारने लगी थी. इसलिए वह किसी न किसी बहाने से मीना से मिलने उस के घर अकसर आने लगा. घर आने पर मीना उस की आवभगत करती. चायपानी के दौरान जगदीश जानबूझ कर मीना के शरीर को स्पर्श कर लेता तो वह बुरा मानने के बजाय मुसकरा देती. इस से जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई और वह मीना को जल्द से जल्द पाने की कोशिश में लग गया.

एक दिन जगदीश सुमन के घर आया तो सुमन उस समय घर में अकेली आईने के सामने शृंगार करने में मशगूल थी. उस की साड़ी का पल्लू गिरा हुआ था. जगदीश दबे पांव आ कर उस के पीछे चुपचाप खड़ा हो गया. उस की कसी देह आईने में नुमाया हो रही थी. मीना उस की मौजूदगी से अंजान थी. जगदीश कुछ देर तक मंत्रमुग्ध सा आईने में मीना के निखरे सौंदर्य को अपनी आंखों से समेटने की कोशिश करता रहा. इस तरह देख कर उस की चाहत दोगुनी होती जा रही थी.

इसी बीच मीना ने आईने में जगदीश को देखा तो तुरंत पीछे मुड़ी. उसे देख कर जगदीश मुसकराया तो मीना ने अपना आंचल ठीक करने के लिए हाथ बढ़ाया. तभी जगदीश ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मीना, बनाने वाले ने खूबसूरती देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो अपने सामने तुम को कभी आंचल डालने ही न दूं. तुम आंचल से अपनी खूबसूरती को बंद मत करो.’’

‘‘तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है. किसी दिन तुम से बात करते हुए मुसकान के पापा ने देख लिया तो तुम्हारी चोरी पकड़ में आ जाएगी.’’ मीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ, कहीं तुम मीठीमीठी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

‘‘लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. अब तो मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जिस रोज तुम्हें देख नहीं लेता, बेचैनी महसूस होती है. इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न…’’

जगदीश की बात अभी खत्म भी न हो पाई थी कि मीना बोली, ‘‘पागल तो तुम हो चुके हो. तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे ऐसा लग रहा है कि दिल की भाषा को आंखों से पढ़ने में भी तुम अनाड़ी हो.’’

‘‘सच कहा तुम ने. लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ कहते हुए जगदीश ने मीना के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया. मीना ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर जगदीश के सीने पर टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. शराब पीपी कर खोखले हो चुके पति मुकेश के शरीर में वह बात नहीं रह गई थी, जो उसे जगदीश से मिली. इसलिए उस के कदम जगदीश की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का यह खेल चलता रहा.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थानाक्षेत्र में एक गांव है हमजापुर. इसी गांव में 30 वर्षीय मुकेश कुमार. अपनी पत्नी मीना और 2 बच्चों के साथ रहता था. मुकेश के पास 20 बीघा जमीन थी. जमीन मुख्य सड़क के किनारे होने की वजह से बहुत कीमती थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का खर्च चलाता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. खर्च उठाने में उसे कभी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा. मुकेश को शराब पीने की लत थी. मीना ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने पत्नी की बात नहीं मानी. इस के अलावा वह पत्नी की जरूरतों को भी अनदेखा करने लगा. करीब 6 महीने पहले उस ने जगदीश नाम के राजमिस्त्री को बुलाया.

जगदीश मुकेश का परिचित था और उस के गांव से 2 किलोमीटर दूर गांव पैगापुर में रहता था. जगदीश अय्याश प्रवृत्ति का था. 2 बच्चों का बाप होने के बाद भी उस की प्रवृत्ति नहीं बदली थी. जब वह मुकेश के घर गया तो उस की पत्नी मीना को देख कर उस की नीयत बदल गई. चाहत की नजरें मीना के जिस्म पर टिक गईं. उसी पल मीना भी उस की नजरों को भांप गई थी. जगदीश हट्टाकट्टा युवक था. मीना पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते के दिल में उतर गई. मुकेश से बातचीत करते समय उस की नजरें बारबार मीना पर ही टिक जाती थीं. मीना को भी जगदीश अच्छा लगा. जगदीश की भूखी नजरों की चुभन जैसे उस की देह को सुकून पहुंचा रही थी.

मीना को पाने के लालच में जगदीश ने काम के पैसे भी कम बताए थे. अगले दिन से जगदीश ने काम शुरू कर दिया. काम शुरू करते ही जगदीश ने अपनी बातों के जरिए मुकेश से दोस्ती कर ली. जगदीश को जब भी मौका मिलता, वह मीना के सौंदर्य की तारीफ करने लग जाता. मीना को भी उस का व्यवहार अच्छा लगता था. वह जब कभी उसे चाय, पानी देने आती, जानबूझ कर उस के हाथों को छू लेता. इस का मीना ने विरोध नहीं किया तो जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई. फिर उस की मीना से होने वाली बातों का दायरा भी बढ़ने लगा. मीना का भी जगदीश की तरफ झुकाव होने लगा था.

जगदीश को पता था कि मुकेश को शराब पीने की लत है. इसी का फायदा उठाने के लिए उस ने शाम को मुकेश के साथ ही शराब पीनी शुरू कर दी. मीना से नजदीकी बनाने के लिए वह मुकेश को ज्यादा शराब पिला कर धुत कर देता था. कहते हैं, जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन जगदीश को मीना के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वे अपने जीवनसाथी के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं.

तन से तन का रिश्ता कायम होने के बाद मीना और जगदीश उसे बारबार दोहराने लगे. जगदीश ने मुकेश के यहां का मरम्मत का काम पूरा कर दिया, इस के बावजूद भी वह वहां आताजाता रहा. मुकेश जैसे ही अपने खेतों पर जाने के लिए निकलता, झट से मीना जगदीश को फोन कर देती. अवैधसंबंधों को कोई भले ही लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. मुकेश जैसे ही अपने खेतों की तरफ निकला, मीना ने अपने प्रेमी जगदीश को फोन कर दिया. मीना जानती थी कि मुकेश सुबह घर से निकलने के बाद शाम को ही घर लौटता है. इस दौरान वह प्रेमी से साथ मौजमस्ती कर लेगी. प्रेमिका का फोन आते ही जगदीश  साइकिल से मीना के घर पहुंच गया.

उस दिन भी आते ही उस ने मीना के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया. तभी मीना इठलाते हुए बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है.’’ कहते हुए जगदीश ने उस का मुंह चूम लिया.

‘‘तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे अपना दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों को. पता है, जब मैं मुकेश के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे समाने होता है.’’ मीना ने इतना कह कर जगदीश के गालों को चूम लिया.

जगदीश से भी रहा नहीं गया, वह मीना को बांहों में उठा कर पलंग पर ले गया. इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही उन के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. मीना ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ मीना हकलाते हुए बोली.

‘‘क्यों… क्या मुझे अपने घर आने के लिए भी किसी की इजाजत लेनी होगी? अब दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी.’’ कहते हुए मुकेश ने मीना को एक ओर किया और अंदर घुसा तो सामने जगदीश को देख कर उस का माथा ठनका.

‘‘अरे, तुम कब आए?’’ मुकेश ने पूछा तो जगदीश ने कहा, ‘‘बस अभीअभी आ रहा हूं.’’

मीना का व्यवहार मुकेश को कुछ अजीब सा लग रहा था, उस ने पत्नी की तरफ देखा. वह घबरा सी रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे, माथे की बिंदिया भी उस के गले पर चिपकी हुई थी. यह सब देख कर शक होना लाजिमी था. जगदीश भी उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. मुकेश उस से कुछ पूछता, उस से पहले ही वह वहां से भाग गया.

उस के जाते ही मुकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह जगदीश यहां क्या करने आया था?’’

‘‘मुझे क्या पता, तुम से मिलने आया होगा.’’ असहज होते हुए मीना बोली.  ‘‘लेकिन मुझ से तो कोई ऐसी

बातें नहीं की.’’

‘‘अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ मीना ने कहा तो मुकेश गुस्से का घूंट पी कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर शक पैदा हो गया. मुकेश ने सख्ती का रुख अख्तियार करते हुए पत्नी पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि जगदीश से वह आइंदा न मिले. वह पत्नी की पिटाई भी करने लगा. पति की सख्ती के बावजूद मीना जगदीश से कई बार मिली. मीना को प्रेमी से चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर जगदीश भी चाहता था कि मीना जीवन भर उस के साथ रहे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उन दोनों ने मुकेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

22-23 सितंबर की रात 8 बजे मुकेश ने रोजाना की तरह खाना खाया. उस से पहले वह जम कर शराब पी चुका था और काफी नशे में था. खाना खाने के बाद मुकेश सोने के लिए पहली मंजिल पर बने कमरे में चला गया. उस के सोते ही मीना ने जगदीश को फोन कर के बुला लिया. सुबह 4 बजे के करीब मीना और जगदीश ने गहरी नींद में सो रहे मुकेश को दबोच लिया और उस के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे जीवित अवस्था में ही उठा कर पड़ोसी ज्ञान सिंह के खाली पड़े मकान के आंगन में छत से फेंक दिया. जमीन पर गिरते ही मुकेश गंभीर रूप से घायल हो गया.

वह दर्द से तड़पने लगा. मुकेश के बेटे कल्लू ने यह सब होते हुए अपनी आंखों से देख लिया, लेकिन डर की वजह से वह चुपचाप आंखें बंद किए बिस्तर पर ही लेटा रहा. इस के बाद जगदीश वहां से चला गया. मुकेश के गिरने की आवाज से ज्ञान सिंह के परिवार वालों की नींद टूट गई. वे उठ कर आंगन की तरफ आए तो रस्सी से बंधे मुकेश को देख कर हतप्रभ रह गए. उन के शोर मचाने पर आसपड़ोस के अन्य लोग भी वहां आ गए. जब तक मीना वहां पहुंची, तब तक मुकेश की आवाज बंद हो चुकी थी. वहां आते ही मीना घडि़याली आंसू बहा कर रोने लगी. मुकेश की हालत गंभीर बनी हुई थी. वह बोल नहीं पा रहा था. उसी हालत में उसे जिला अस्पताल ले जाया गया.

बासप्रिया गांव में मुकेश के मामा हरद्वारी और उस की बहन राजबेटी रहती थी. उन्हें भी घटना की सूचना दी गई तो वे भी जिला अस्पताल पहुंचे. मुकेश की गंभीर हालत को देखते हुए शाहजहांपुर जिला अस्पताल से उसे बरेली रेफर किया गया, लेकिन बरेली पहुंचने से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया. तब मुकेश की लाश को वापस घर ले आया गया. दोपहर बाद करीब 2 बजे किसी ने इस की सूचना निगोही थानापुलिस को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी आशीष शुक्ला पुलिस टीम के साथ तुरंत मुकेश के घर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थानाप्रभारी ने मुकेश की बहन राजबेटी से पूछताछ की तो उस ने अपनी भाभी मीना और जगदीश के अवैधसंबंधों की जानकारी उन्हें देते हुए शक जताया कि उस की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है. उधर मुकेश के बेटे कल्लू ने भी मां की करतूत का खुलासा कर दिया. थानाप्रभारी आशीष शुक्ला ने राजबेटी की तहरीर पर मीना और उस के आशिक जगदीश के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 304 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद उन्हें सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. UP Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Story in Hindi : प्यार का गुलाल

Love Story in Hindi : शराबखोरी की दोस्ती हमेशा घातक होती है, खास कर तब जब शराबी दोस्त की नजर जवान बीवी पर पड़ जाए. संतोष ने सब से बड़ी गलती यही की कि वह अपने दोस्त लक्ष्मण को घर में बुला कर शराब पिलाने लगा. जब लक्ष्मण और संतोष की पत्नी सत्यरूपा के बीच अवैधसंबंध बन गए तो संतोष की शामत आनी ही थी. 4  अक्तूबर की सुबह की बात है. लोगबाग रोजाना की तरह उठ कर अपने दैनिक कार्यों में लग गए थे. तभी खेतों की ओर गए किसी व्यक्ति ने तालाब के किनारे खून से लथपथ

पड़ी लाश देखी. इस के बाद जल्दी ही यह बात आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जहां लाश पड़ी थी, वह क्षेत्र लखनऊ के थाना विभूति खंड मे आता था. तालाब किनारे लाश पड़ी होने की खबर सुन कर विभूति खंड के ही मोहल्ला बड़ा भरवारा में रहने वाली सत्यरूपा भी वहां पहुंच गई. उस का पति संतोष रात से गायब था. लाश देख कर वह दहाड़ मारमार कर रोने लगी. लाश उस के पति संतोष साहू की थी.

इसी बीच किसी ने इस मामले की सूचना थाना विभूति खंड को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक संतोष की उम्र करीब 45 साल थी. उस के पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से कई वार किए गए थे, जिस से पेट में गहरे घाव लगे थे. लाश के पास ही उस की साइकिल पड़ी थी. मृतक की पत्नी के अनुसार उस के पास मोबाइल भी था, लेकिन कपड़ों की तलाशी में उस का मोबाइल नहीं मिला था.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सत्यरूपा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बीती रात संतोष अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने निकला था. मछली खरीद कर संतोष ने राकेश को घर भेज दिया था और खुद कुछ देर में आने की बात कह कर कहीं चला गया था. जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उस ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल बंद मिला. वह पूरी रात उस का नंबर मिलाती रही, लेकिन मोबाइल बराबर बंद ही मिला. सवेरा होते ही उस ने पति की तलाश शुरू की. पड़ोस में ही टिंबर का काम करने वाले सोनू को साथ ले कर जब वह पति को तलाश रही थी, तभी उसे तालाब किनारे एक लाश पड़ी होने की खबर मिली. इस के बाद वह तुरंत तालाब किनारे पहुंच गई.

सत्यरूपा ने बताया था कि संतोष राजगीर था और इन दिनों वह एक डाक्टर के घर पर काम कर रहा था. गत दिवस उसे पैसे मिले थे जिन में से थोड़े उस ने घर में दे दिए, बाकी अपने पास रख लिए थे. सत्यरूपा ने आशंका भी जताई थी कि कहीं लूट का विरोध करने पर उस के पति का कत्ल न कर दिया गया हो? प्राथमिक पूछताछ और काररवाई के बाद थानाप्रभारी दुबे ने संतोष की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया. थाने लौट कर उन्होंने सत्यरूपा की तहरीर के आधार पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सब से पहले संतोष के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. सीडीआर के मुताबिक संतोष के नंबर पर 3 अक्तूबर यानी घटना वाली रात आखिरी काल लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर निवासी लक्ष्मण साहू ने की थी. पुलिस ने जब लक्ष्मण साहू के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि पेशे से लक्ष्मण भी राजगीर था और संतोष का करीबी दोस्त था. संतोष के घर उस का काफी आनाजाना था. यहां तक कि वह संतोष की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आताजाता था और काफी देर तक रुकता था. इस से अनुमान लगाया गया कि यह मामला अवैधसंबंधों का हो सकता है. संभव है संतोष के विरोध करने पर उस की हत्या की गई हो.

संदेह हुआ तो थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने 7 अक्तूबर को लक्ष्मण और सत्यरूपा को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. थोड़ी सी सख्ती करने पर उन दोनों ने संतोष की हत्या का जुर्म कुबूल लिया. इतना ही नहीं, लक्ष्मण ने अपने सहयोगियों के नाम भी बता दिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल उर्फ पिंकू निवासी विकासनगर, लखनऊ और अजय चौहान उर्फ मुक्कू निवासी लखनऊ विश्वविद्यालय आवासीय परिसर को भी गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का मूल निवासी संतोष साहू अपने परिवार के साथ लखनऊ के विभूति खंड में बड़ा भरवारा में रहता था. वह राजगिरी का काम करता था.

संतोष का काम ठीक चल रहा था, जिस की वजह से परिवार का भरणपोषण करने में उसे कोई दिक्कत नहीं होती थी. काम के दौरान ही एक दिन संतोष की मुलाकात लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर मोहल्ले में रह रहे लक्ष्मण साहू से हुई. लक्ष्मण भी छत्तीसगढ़ के कमरधा जनपद के गांव पिपरिया थारा का रहने वाला था. वह लखनऊ में आदिलनगर में किराए पर रह कर राजगिरी का काम करता था. वह था तो शादीशुदा, लेकिन अकेला रहता था. उस के बीवीबच्चे कमरधा में ही रह रहे थे.

पहली मुलाकात में ही संतोष और लक्ष्मण कुछ इस तरह घुलमिल गए, मानो पुराने दोस्त हों. पीनेपिलाने वालों के बीच अकसर ऐसा ही होता है. एक ही राज्य से होने और खानेपीने के शौकीन होने की वजह से दोनों में अच्छी पटने लगी. लक्ष्मण ने संतोष को कई अच्छे काम दिलाए. इसी वजह से संतोष उस की दोस्ती पर पूरी तरह कुर्बान था. जब भी खुशी की कोई बात होती, दोनों खूब जश्न मनाते. पीनेपिलाने की महफिल हर बार लक्ष्मण के कमरे पर ही जमती थी.

एक दिन जब एक काफी बड़ा काम मिला तो संतोष बोला, ‘‘लक्ष्मण, आज खुशी का दिन है, इसलिए जश्न होना चाहिए.’’

‘‘जरूर,’’ लक्ष्मण चहका, ‘‘चलो, कमरे पर चलते हैं, वहीं बोतल खाली करेंगे.’’

‘‘तुम्हारे कमरे पर बहुत महफिलें हो चुकीं, आज तुम मेरे घर चलो,’’ संतोष बोला, ‘‘मेरी घर वाली बहुत बढि़या नौनवेज पकाती है. घर में बैठ कर शराब का भी मजा आएगा और मीट का भी.’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो आज रहने दो,’’ लक्ष्मण ने अपनी राय जाहिर की, ‘‘अगले हफ्ते होली है, उस दिन दोहरा जश्न मनाएंगे.’’

‘‘होली का जश्न भी हो जाएगा,’’ संतोष अपनी खुशी नहीं दबा पा रहा था, ‘‘मुझे इतना बड़ा काम मिला है, इसलिए आज भी दावत होनी चाहिए.’’

लक्ष्मण संतोष की खुशी कम नहीं करना चाहता था. उस की बात मान कर वह उस के साथ उस के घर चला गया. घर में संतोष की पत्नी और बच्चे मौजूद थे. संतोष ने लक्ष्मण को उन सब से मिलवाया. चूंकि संतोष अपनी पत्नी सत्यरूपा से अकसर लक्ष्मण की बात किया करता था, इसलिए वह उस से मिल कर खुश हुई. लक्ष्मण सत्यरूपा को देख कर आश्चर्य में रह गया. कई बच्चों की मां हो कर भी उस के रूपलावण्य में कमी नहीं आई थी. न उस की त्वचा की दमक फीकी पड़ी थी और न ही पेट या कूल्हों पर चर्बी की परत जमी थी. उस के चेहरे में कशिश थी और मुसकान कातिलाना.

संतोष बोतल और मीट साथ लाया था. वह मीट वाली थैली सत्यरूपा को देते हुए बोला, ‘‘जल्दी से बढि़या मीट पका. ऐसा कि लक्ष्मण भी अंगुलियां चाटता रह जाए.’’

सत्यरूपा मीट ले कर किचन में चली गई तो संतोष लक्ष्मण के साथ शराब पीने बैठ गया. लक्ष्मण बातें करते हुए शराब तो संतोष के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन सत्यरूपा में उलझा हुआ था और उस की निगाहें लगातार उसी का पीछा कर रही थीं. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में सत्यरूपा नशीली होती गई. शराब का दौर खत्म हुआ तो सत्यरूपा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर लक्ष्मण ने उस की दिल खोल कर तारीफ की. सत्यरूपा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद लक्ष्मण अपने कमरे पर लौट गया.

इस के बाद लक्ष्मण जब भी संतोष से मिलता, उसे होली की दावत की याद दिलाना नहीं भूलता. लक्ष्मण को भी होली का बेसब्री से इंतजार था. उस ने मन ही मन सोच लिया था कि उसे होली में कैसे हुड़दंग मचाना है. उसे संतोष से कम, सत्यरूपा से ज्यादा होली खेलनी थी. सत्यरूपा को छूने, टटोलने और दबाने का इस से बेहतर मौका और कोई नहीं मिल सकता था. भाभी संग होली खेलने की रस्म भी है और दस्तूर भी. कुछ भी कर गुजरो, केवल एक ही जुमले में सारी खताएं माफ, ‘बुरा न मानो होली है.’ लक्ष्मण ने इसी हथियार को आजमाने का फैसला कर लिया था. उसे पूरा यकीन था कि होली में अगर वह मनमानी करेगा तो सत्यरूपा बुरा नहीं मानेगी.

आखिर इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और होली आ गई. होली के दिन 2 बजे तक रंग चला. उस के बाद लक्ष्मण ने नहाधो कर साफसुथरे कपड़े पहने और संतोष के घर पहुंच गया. दोस्त से रंग खेलने के लिए संतोष रंगों से सना बैठा था. लक्ष्मण को साफसुथरा आया देख कर संतोष ने रंग खेलने के बजाय उसे केवल गुलाल लगाया और गुझिया खिलाई. फिर उसे बैठाते हुए बोला, ‘‘मैं जरा नहा लूं, उस के बाद दोनों आराम से बैठ कर पिएंगे.’’

संतोष कपड़े ले कर बाथरूम में जा घुसा. लक्ष्मण को जैसे इसी समय का इंतजार था. उस ने साथ लाए पैकेट से गुलाल निकाला और अंदर पहुंच गया. सत्यरूपा उसे आंगन में मिल गई. वह उसे देखते ही चहका, ‘‘भाभी, होली मुबारक हो.’’ उस ने सत्यरूपा के गाल पर अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया. सत्यरूपा भी उसे होली की बधाई देते हुए बोली, ‘‘भाभी से होली खेलने आए हो तो ढंग से खेलो. यह क्या कि अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया.’’

लक्ष्मण ने सत्यरूपा की बात का गलत मतलब निकाला. फलस्वरूप उस की हसरतें जोश में आ गईं. उस की मुट्ठी में गुलाल था ही, अच्छा मौका देख उस ने गुलाल वाला हाथ सत्यरूपा के वर्जित क्षेत्रों तक पहुंचा दिया और उन्हें रंगने लगा. सत्यरूपा उस के गुलाल से सने दोनों हाथ पकड़ कर कसमसाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो, यह क्या पागलपन है?’’

‘‘बुरा न मानो होली है.’’ लक्ष्मण ने कहा और अंगुलियों का खेल जारी रखा. सत्यरूपा किसी तरह उस से अपने आप को छुड़ा कर बोली, ‘‘अभीअभी नहाई थी, अब फिर से नहाना पड़ेगा.’’

‘‘नहा लेना,’’ लक्ष्मण हंसते हुए बोला, ‘‘साल भर में रंगों का त्यौहार एक ही दिन तो आता है.’’

सत्यरूपा के इस व्यवहार से यह बात साफ हो गई कि उस ने लक्ष्मण की इस अमर्यादित हरकत का बुरा नहीं माना था. लक्ष्मण वह नहीं समझ सका कि ऐसा होली की वजह से हुआ था, सत्यरूपा भी उस के जैसा भाव अपने मन में पाले हुए थी. इस हकीकत को जानने के लिए उस ने फिर से उसे बांहों में भर कर रंग लगाना शुरू कर दिया. सत्यरूपा को जिस तरह पुरजोर विरोध करना चाहिए था, उस ने वैसा विरोध नहीं किया. शायद उसे लक्ष्मण की यह हरकत अच्छी लगी थी. शायद वह कुछ देर और यूं ही लक्ष्मण की बांहों में सिमटी रहती, लेकिन तभी उसे संतोष के बाथरूम से बाहर निकलने की आहट सुनाई दी तो उस ने खुद को लक्ष्मण से अलग कर लिया.

जैसे ही संतोष बाथरूम से निकला, सत्यरूपा झट से बाथरूम में घुस गई. उसे डर था कि कहीं संतोष लक्ष्मण की हरकतों के सुर्ख निशान देख न ले. जब तक संतोष ने कपड़े पहने, तब तक लक्ष्मण ने भी गुलाल से सने हाथ धो लिए. इस के बाद वह कमरे में बैठ गया. नहाधो कर संतोष शराब की बोतल, पानी, गिलास और नमकीन ले आया. इस के बाद दोनों ने जाम से जाम लड़ाने शुरू कर दिए. सत्यरूपा भी नहा कर आ चुकी थी. हया से उस के गाल अब भी लाल हो रहे थे. वह दूर खड़ी अजीब सी नजरों से लक्ष्मण को देख रही थी.

सत्यरूपा के इस व्यवहार से लक्ष्मण को लगा कि सत्यरूपा भी उस की तरह ही मिलन को प्यासी है. अगर वह पहल करेगा तो शायद वह इनकार न करे. यही सोच कर उस ने उसी दिन सत्यरूपा पर अपने प्यार का रंग चढ़ाने का निश्चय कर लिया. लक्ष्मण ने मन ही मन योजना बना कर खुद तो कम शराब पी, संतोष को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. लक्ष्मण ने भरपेट खाना खाया, जबकि संतोष चंद निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

लक्ष्मण की मदद से सत्यरूपा ने संतोष को चारपाई पर लिटा दिया. इस के बाद वह हाथ झाड़ते हुए बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’ इस के बाद उस ने लक्ष्मण की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारा भी बिस्तर लगा दूं.’’

लक्ष्मण के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ रहा था. उसे लगा कि सत्यरूपा भी यही चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार की होली खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर यहीं लगा दो.’’

सत्यरूपा ने लक्ष्मण के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया और बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. लक्ष्मण की आंखों में नींद नहीं थी. उसे सत्यरूपा के साथ दिन में बिताए पल बारबार याद आ रहे थे. उस के शारीरिक स्पर्श से वह काफी रोमांचित हुआ था. वह उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए बेकरार था. संतोष की ओर से वह पूरी तरह निश्चिंत था. आखिर फैसला कर के वह दबे पैर चारपाई से उठा और संतोष के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में सत्यरूपा बच्चों के साथ सो रही थी.

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे, जबकि सत्यरूपा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट बंद कर के लक्ष्मण सत्यरूपा के पास जा कर उस के बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने सत्यरूपा को बांहों में भरा वह दबी जुबान में बोली, ‘‘मनमानी कर तो चुके, अब क्या करने आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘उस वक्त तो बनावटी रंग लगाए थे, अब तुम्हें अपने प्यार के असली रंग में सराबोर करने आया हूं. कह कर उस ने सत्यरूपा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो 2 जिस्मों के अरमानों की होड़ सी लग गई. बदन से कपड़े उतरते गए और हसरतें बेलिबास हो गईं. जल्दी ही उन के बीच वह संबंध बन गए, जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होने चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.’’

उस रात के बाद सत्यरूपा और लक्ष्मण एकदूसरे को समर्पित हो गए. सत्यरूपा लक्ष्मण के साथ रंगरलियां मनाने लगी. उस ने लक्ष्मण को अपना सब कुछ मान लिया. यही हाल लक्ष्मण का भी था. सत्यरूपा के साथ मौजमस्ती करने के लिए लक्ष्मण हर दूसरेतीसरे दिन संतोष के घर महफिल जमाने लगा. संतोष को वह नशे में धुत कर के सुला देता और बाद में सत्यरूपा के बिस्तर पर पहुंच जाता. जब लक्ष्मण की रातें अकसर संतोष के घर में गुजरने लगीं तो पड़ोसियों में कानाफूसी शुरू हो गई कि खानेपीने तक तो ठीक है, लेकिन पराए मर्द को घर में सुलाना कैसी दोस्ती है. जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है.

लोगों ने तांकझांक की तो लक्ष्मण और सत्यरूपा के संबंध का भेद खुलने में देर नहीं लगी. इस के बाद तो उन के अवैधसंबंध के चर्चे आम हो गए. आसपड़ोस में फैली बात संतोष के कानों तक पहुंची तो उस ने सत्यरूपा से पूछा. इस पर उस ने कहा कि वह उस का दोस्त है, उस के साथ ही खातापीता, उठताबैठता है. इस में वह क्या कर सकती है, लोगों का तो काम ही दूसरों की गृहस्थी में चिंगारी लगाना होता है.

इस के बाद संतोष ने फिर कभी सत्यरूपा से इस संबंध में कोई बात नहीं की. लेकिन सत्यरूपा और लक्ष्मण के दिमाग में यह बात आ गई कि आखिर कब तक वे इस तरह संतोष और दुनिया वालों की नजरों से बच पाएंगे. इस का कोई न कोई स्थाई हल निकालना ही होगा. दोनों ने इस मुद्दे पर काफी सोच विचार किया तो नतीजा यही निकला कि संतोष को बिना रास्ते से हटाए वे दोनों एकसाथ अपनी जिंदगी की शुरुआत नहीं कर सकते. दोनों की सहमति बनी तो योजना बनते देर नहीं लगी.

इसी योजना के तहत लक्ष्मण ने अपने दोस्तों निखिल उर्फ पिंटू और अजय चौहान उर्फ मुक्कू से संतोष की हत्या करने की बात की तो दोनों ने हत्या के लिए 20 हजार रुपए मांगे. लक्ष्मण खुशी से पैसे देने के लिए तैयार हो गया. पेशगी के तौर पर उस ने दोनों को 5 हजार रुपए दे भी दिए. 3 अक्तूबर की रात लक्ष्मण अपने दोनों साथियों निखिल और अजय के साथ हनीमैन चौराहे पर पहुंचा. उस ने संतोष को काम दिलाने के बहाने वहीं से उस के मोबाइल पर बात की. सुन कर संतोष खुश हुआ तो लक्ष्मण ने उसे साइट दिखाने को कहा. वह आने को तैयार हो गया.

संतोष उस वक्त अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने के लिए मछली मंडी आया था. लक्ष्मण का फोन सुनने के बाद उस ने मछली खरीद कर बेटे राकेश को दे दी और कुछ देर में घर आने की बात कह कर उसे घर भेज दिया. इस के बाद संतोष साइकिल से हनीमैन चौराहे पर पहुंच गया. वहां लक्ष्मण उसे अपने 2 साथियों के साथ मिला. चारों ने एक ठेके पर बैठ कर शराब पी. शराब पीने के बाद लक्ष्मण और उस के साथी टहलने का बहाना बना कर उसे रेलवे लाइन के किनारे तालाब के पास ले गए. वहां दूरदूर तक कोई नहीं दिख रहा था.

सुनसान जगह देख कर लक्ष्मण ने निखिल और अजय के साथ मिल कर संतोष को दबोच लिया और उस के पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ कई वार कर दिए, जिस से संतोष जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पा, फिर हमेशा के लिए शांत हो गया. उसे मारने के बाद लक्ष्मण ने फोन कर के सत्यरूपा को उस की हत्या की जानकारी दे दी और तीनों वहां से फरार हो गए. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे उन तक पहुंची तो घटना का खुलासा होने में देर नहीं लगी. सत्यरूपा और लक्ष्मण से पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल और अजय को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटनास्थल के पास की झाडि़यों से हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया.

मुकदमे में चारों आरोपियों के नाम दर्ज करने के बाद पुलिस ने उन्हें उसी दिन सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Love Story in Hindi

— कथा

Crime Kahani : क्यों मारी गई जीत कौर

Crime Kahani : रंगेहाथों पकड़ी जाने पर अमन कौर ने प्रेमी डाक्टर के साथ मिल कर सास जीत कौर की हत्या कुछ इस तरह से की थी कि किसी को जरा भी संदेह नहीं हुआ. लेकिन उस की अलमारी से मिली फाइल ने उस की पोल खोल दी. इस में कोई 2 राय नहीं कि अवैधसंबंध हमेशा बरबादी ही लाते हैं. न जाने कितने परिवार अवैधसंबंधों की बलि चढ़ गए हैं, इस के बावजूद न अवैधसंबंधों में कोई कमी आ रही है और न इस से होने वाले अपराधों में. मजे की बात यह है कि इस के दुष्परिणाम को जानते हुए लोग जानबूझ कर इस आफत को न्यौता देते हैं.

समाज में ऐसे ढेरों किस्से हैं, जो रहस्य के गर्भ में दफन हो कर रह गए हैं. लेकिन यह भी सत्य है कि जिस तरह पानी में गंदगी छिपी नहीं रह सकती है, उसी तरह समाज की इस गंदगी की भी पोल कभी न कभी खुल ही जाती है. यह भी ऐसा ही मामला है. बीबी जीत कौर की हत्या का मामला भी शायद रहस्यों की अंधेरी परतों में दबा रह जाता, अगर उन की रहस्यमयी मौत से उठे चंद सवालों ने उस के बेटे लवप्रीत को यह सोचने के लिए विवश न कर दिया होता कि उस की मां की मौत स्वाभाविक नहीं, सोचीसमझी साजिश के तहत की गई हत्या है.

सरदार जगमोहन सिंह का परिवार पटियाला के घग्गा गांव में रहता था. गांव में उन के पिता हाकम सिंह की काफी उपजाऊ जमीन थी, जिस पर वह भाई के साथ मिल कर खेती करते थे. 32 साल पहले जगमोहन की पंजाब नहर एवं सिंचाई विभाग में नौकरी लग गई तो वह पटियाला आ कर रहने लगे. नौकरी लगने के बाद पिता ने उन की शादी जिला पातड़ा की जीत कौर से कर दी थी. शादी के लगभग 2 सालों बाद जगमोहन सिंह के घर बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उन्होंने लवप्रीत सिंह रखा. लवप्रीत के पैदा होने के 2 सालों बाद ही जगमोहन सिंह के पिता हाकम सिंह की मौत हो गई तो दोनों भाइयों ने जमीन का बंटवारा कर लिया.

बंटवारे में मिली अपने हिस्से की जमीन बेच कर जगमोहन सिंह ने पटियाला के बाहरी क्षेत्र में विकसित हो रही नई कालोनी त्रिपुड़ी में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई और उसी में पत्नी जीत कौर और बेटे लवप्रीत सिंह के साथ रहने लगे. लगभग 10 साल पहले सन 2004 में एक सड़क दुर्घटना में जगमोहन सिंह की मौत हो गई. जीत कौर के लिए यह तोड़ देने वाला दुख था. लेकिन वह खुद टूट जातीं तो बेटे का क्या होता. उन्होंने खुद को संभाला और बेटे लवप्रीत का लालनपालन करने लगीं. उन्होंने उसे उच्च शिक्षा दिलाई, जिस की बदौलत उसे गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में सहायक मैनेजर की नौकरी मिल गई.

नौकरी की वजह से लवप्रीत सिंह गुड़गांव आ गया तो जीत कौर अकेली पड़ गईं. लवप्रीत महीने, 2 महीने में 1-2 दिनों के लिए पटियाला मां से मिलने जाया करता था. ऐसे में अपना समय काटने के लिए जीत कौर कुछ दिनों के लिए देवर के यहां चली जातीं तो कभी अपने मायके पातड़ा. वैसे वह अपना ज्यादातर समय गुरुद्वारों में जा कर भजनकीर्तन में गुजारती थीं. लवप्रीत सिंह के अलावा उन के रिश्तेदारों को भी जीत कौर के अकेली रहने की चिंता सताती थी. इसलिए रिश्तेदार उन पर लवप्रीत की शादी के लिए दबाव बनाने लगे. उन लोगों का कहना था कि घर में बहू आ जाएगी तो उन का अकेलापन भी दूर हो जाएगा, साथ ही उन की सेवासत्कार भी ठीक से होने लगेगी.

लवप्रीत 27-28 साल का गबरू जवान था. उस की उम्र शादी लायक हो गई थी. ठीकठाक नौकरी भी थी, इसलिए उस के लिए लड़कियों की कमी नहीं थी. घर में पहले से ही किसी चीज की कमी नहीं थी. उन का काफी संपन्न परिवार था. लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें दौलत से नहीं खरीदा जा सकता, खासकर सुख या खुशी. जीत कौर की उम्र 60 साल से ज्यादा हो चुकी थी. अपनी उम्र और हालत को देखते हुए वह बेटे की शादी के लिए राजी हो गईं. उन के हामी भरते ही लड़की वालों की लाइन लग गई. काफी देखसुन कर उन्होंने चंडीगढ़ निवासी गुरमेल सिंह की बेटी अमन कौर को लवप्रीत के लिए पसंद कर लिया. बातचीत के बाद शीघ्र ही अमन कौर से लवप्रीत की शादी कर दी. यह शादी मई, 2010 में हुई थी.

अमन कौर नाम के अनुरूप जितनी शांत और सुशील थी, उस से कहीं ज्यादा सुंदर थी. वह पढ़ीलिखी भी काफी थी. इस तरह की सुंदरसुशील और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर जहां लवप्रीत खुश था, वहीं बहू के व्यवहार और अपनेपन से जीत कौर भी निहाल थीं.अमन कौर ने अपने व्यवहार और सेवाभाव से पति और सास का दिल जीत लिया था. शादी पर ली गई छुट्टियां खत्म हो गईं तो लवप्रीत अपनी नौकरी पर गुड़गांव चला गया. जाते समय उस ने अमन कौर से कहा था कि उसे मां का अपनी जान से भी ज्यादा खयाल रखना है. लवप्रीत पहले जहां महीने, 2 महीने में घर आता था, नईनई शादी के बाद वह महीने में कम से कम 2 बार घर आने लगा. घर आने पर जब उसे मां से पता चलता कि उस की सोच से भी कहीं अधिक अमन कौर उस का खयाल रखती है तो उस की नजरों में पत्नी की इज्जत और ज्यादा बढ़ गई.

बहरहाल, अमन कौर के आ जाने से लवप्रीत की चिंता खत्म हो गई थी. वह मां की ओर से पूरी तरह निश्चिंत हो गया था. मां भी खुश थी. बेटे के सामने जीत कौर बहू की तारीफें करते नहीं थकती थीं. एक सुबह जीत कौर उठीं और दैनिक क्रियाओं से निवृत्त हो कर पूजा के कमरे की ओर जाने लगीं तो अचानक फिसल कर गिर गईं. उन की चीख सुन कर अमन कौर दौड़ी आई और सास को सहारा दे कर सोफे पर बिठाया. जीत कौर के पैर में काफी तेज दर्द था, इसलिए उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया. पैर देख कर डाक्टर ने संदेह व्यक्त किया कि शायद पैर में फैक्चर हो गया है, इसलिए इन्हें अस्पताल ले जाना पड़ेगा.

अस्पताल जाने पर पता चला कि सचमुच पैर टूट गया है. उस पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया. इस के बाद डाक्टर ने उन्हें डेढ़ महीने तक बैड से न उतरने की सलाह दी. अमन कौर सास की खूब सेवा कर रही थी. सूचना पा कर लवप्रीत भी घर आया और अमन कौर द्वारा की जा रही मां की सेवासुश्रुषा से संतुष्ट हो कर लौट गया. वैसे तो जीत कौर को अपने खर्च भर के लिए पैंशन मिलती ही थी, लेकिन इस के अलावा भी मां को खर्च के लिए उन के बैंक एकाउंट में लवप्रीत भी समयसमय पर रुपए डालता रहता था. जरूरत पड़ने पर जीत कौर एटीएम कार्ड से रुपए निकाल लाती थीं. पैर टूटने से जीत कौर घर के बाहर जाने लायक नहीं रह गईं तो उन्होंने एटीएम कार्ड अमन कौर को दे दिया, ताकि जरूरत पड़ने पर वह रुपए निकाल लाए.

जीत कौर के बिस्तर पर पड़ने के बाद अमन कौर लगभग आजाद सी हो गई थी. वह जीत कौर को दर्द निवारक के नाम पर इस तरह की दवाएं देती थी, जिसे खा कर वह इस तरह सो जाती थीं कि उन्हें होश ही नहीं रहता था. उन के सोने के बाद घर में क्या होता है, उन्हे पता नहीं चलता था. जब भी उन की आंखें खुलतीं, अमन कौर घर से गायब होती थी. अक्सर वह रात के 8 बजे के बाद ही आती थी. कभीकभी रात के 9, साढ़े नौ भी बज जाते थे. ऐसे में जीत कौर देर से आने की वजह पूछतीं तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. कभी दवा का तो कभी डाक्टर से मिलने का तो कभी किसी सहेली के घर जाने की बात कह कर उन्हें संतुष्ट कर देती.

एकाध दिन की बात होती तो इस तरह की बहानेबाजी चल जाती है, लेकिन अगर ऐसा रोज होने लगे तो संदेह होने लगता है. ऐसा ही कुछ जीत कौर के मामले में हुआ. जीत कौर अनुभवी और सुलझी हुई महिला थीं. अब तक उन्होंने बहुत कुछ देखा, झेला और कठिनाइयों का सामना किया था. बहू की बातों और हरकतों से उन्हें साफ लगने लगा था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है, जिसे अमन कौर बताना नहीं चाहती थी. उन के संदेह को तब बल मिल गया, जब उन के पारिवारिक डाक्टर खन्ना खुद उन के यहां उन्हें देखने आ गए. हुआ यह कि जब कई दिनों से अमन कौर उन के यहां जीत कौर की दवा लेने नहीं गई और न ही पिछले महीने के इलाज एंव दवाओं के पैसे दिए तो डा. खन्ना ने सोचा कि वह खुद जा कर जीत कौर का हालचाल ले लें, साथ ही पैसों के बारे में भी कह दें. जिस समय वह जीत कौर के घर पहुंचे, अमन कौर घर में नहीं थी.

डा. खन्ना ने जब जीत कौर का हालचाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘डा. साहब, पैर तो अब काफी ठीक है, सूजन भी लगभग खत्म हो गई है, दर्द में भी काफी आराम है. लेकिन इन दिनों आप जो दवाएं दे रहे हैं, उसे खाने के बाद नींद बहुत आती है. मैं ऐसा सोती हूं कि होश ही नहीं रहता.’’

‘‘आप यह क्या कह रही हैं बीजी. मैं ने तो ऐसी कोई दवा नहीं दी है. हमारे खयाल से लगभग 20 दिनों से अमन मेरे यहां नहीं आई है. तब दवा…?’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ जीत कौर ने हैरानी से कहा, ‘‘वह तो मुझे रोज बता कर जाती है कि आप के क्लिनिक पर दवा लेने जा रही है और आप कह रहे हैं कि..?’’

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं बीजी. उस ने तो अभी पिछले महीने की दवा के पैसे भी नहीं दिए हैं.’’ दवाओं का बिल देते हुए डा. खन्ना ने कहा.

जीत कौर ने देखा, 26 हजार 470 रुपए डा. खन्ना के बाकी थे. उन का माथा ठनका. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है. अमन तो एटीएम से रुपए निकाल कर ले आई है, फिर रुपए कहां गए? वह इसी विषय पर सोच रही थीं कि अमन कौर आ गई. डा. खन्ना पर नजर पड़ते ही उस का चेहरा सफेद पड़ गया. शायद उसे इस बात का अहसास हो गया था कि उस की चोरी पकड़ी गई है. इस के बावजूद उस ने खुद को संभाल कर डा. खन्ना को सतश्रीअकाल कहा.

जीत कौर ने इधरउधर की बातें करने के बजाय सीधे पूछा, ‘‘अमन, डा. साहब के इतने पैसे क्यों बाकी हैं?’’

‘‘बीजी, मैं आप को बताना भूल गई थी कि मेरी एक सहेली की मां की हार्ट सर्जरी होनी थी. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी. उस ने पैसे मांगे तो मैं ने रुपए निकाल कर उसे दे दिए. 2-4 दिनों में वह रुपए लौटा देगी तो मैं डाक्टर साहब के रुपए दे दूंगी.’’ अमन ने कहा.

जीत कौर जानती थीं कि अमन झूठ बोल रही है. इस के बावजूद उन्होंने डाक्टर के सामने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, तुम्हारी सहेली के कहीं भाग तो नहीं जा रही. तुम ऐसा करो, बैंक से पैसे निकाल कर डा. साहब के पैसे दे दो. वह आगेपीछे पैसे देती रहेगी.’’

डा. खन्ना के चले जाने के बाद अमन कौर घर के काम में लग गई. जीत कौर अपने कमरे में उसी तरह लेटी रहीं. वह अच्छी तरह समझ गई थीं कि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. अमन जरूर कुछ उलटासीधा कर रही है. डा. खन्ना से बातचीत के बाद उन की समझ में आ गया था कि उन्हें दी जाने वाली दवा ठीक नहीं है. इसलिए अगले दिन सुबह जब अमन कौर ने उन्हें दवा खाने के लिए दी तो उन्होंने वह दवा खाई नहीं और इस तरह लेट गईं, जैसे गहरी नींद में सो रही हों. कुछ देर बाद अमन कौर ने उन के कमरे में आ कर पुकारा, ‘‘मांजी.’’

जब जीत कौर ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह समझ गई कि मांजी सो गई हैं यानी उस की दवा काम कर गई है. वह घर से निकल पड़ी. उस के घर से जाते ही जीत कौर उठीं और उस के कमरे में जा कर उस की अलमारी खोल कर देखने लगीं. अलमारी में महंगी सौंदर्य प्रसाधन सामग्री भरी पड़ी थी. उसी के साथ महंगी विदेशी शराब की 2 बोतलें भी रखी थीं. जीत कौर ने अलमारी का लौकर खोला तो उस में करीब 50 हजार रुपए रखे थे. यह सब देख कर जीत कौर हैरान रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि अमन कौर ऐसा कर के कौन सा खेल खेल रही है. उन की नजरों में अमन कौर की जो आदर्श बहू वाली तस्वीर बनी हुई थी, यह सब देख कर धुंधलाने लगी.

अमन कौर के घर लौटने के बाद जीत कौर ने उस से कुछ नहीं पूछा. वह इस तरह बनी रहीं, जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं है. अब तक वह चलनेफिरने लगी थीं. इसलिए अगले दिन जब अमन कौर घर से बाहर निकली तो उन्होंने उस का पीछा किया. अमन कौर जा कर एक मकान में घुस गई तो लगभग 2 घंटे बाद निकली. जीत कौर ने लगातार 3 दिनों तक उस का पीछा किया. तीनों दिन अमन कौर उसी तरह घर से निकली और अलगअलग मकानों में गई, जहां 2-3 घंटे रह कर वापस आ गई. इस के बाद जीत कौर ने उन मकानों में रहने वालों के बारे में पता किया तो पता चला कि उन मकानों में परिवार से अलग रहने वाले वे लड़के रहते हैं, जो यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं या फिर अकेले रह कर नौकरी करते हैं.

अनुभवी जीत कौर ने बहू की सच्चाई जान ली. एक जवान औरत ऐसे लड़कों के पास क्यों जाएगी? मतलब स्पष्ट था. वह समझ गईं, अमन कौर पति की कमाई दोनों हाथों से यारों पर लुटा रही थी. बहू की सच्चाई जान कर जीत कौर परेशान हो उठीं. बहू की शिकायत बेटे से करने से पहले वह उस से बात कर लेना चाहती थीं. क्योंकि कभीकभी आंखों से दिखाई कुछ और देता है, जबकि उस की सच्चाई कुछ और होती है. जीत कौर ने जब अलमारी से मिले रुपए और शराब की बोतल से ले कर अलगअलग मकानों में जाने की बात अमन कौर को बता कर सच्चाई पूछी तो अमन कौर ने तुरंत अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि उन मकानों में रहने वाले कुछ लड़के उस के कालेज के समय के दोस्त हैं. वह उन्हीं से मिलने जाती है. लेकिन जैसा वह सोच रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है.

जीत कौर को अपने अनुभवों से पता था कि अवैधसंबंधों को जब तक आंखों से न देखा जाए, अमन कौर तो क्या कोई भी स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए उन्होंने इस बात पर जोर दे कर बहू को समझाया, ‘‘देखो अमन, अब तक जो भी हुआ, उसे भूल जाओ. तुम एक अच्छे खानदान की बेटी तो हो ही, अब एक अच्छे खानदान की बहू भी हो, यह सब करना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’

‘‘बीजी, मैं वादा करती हूं कि आगे से ऐसी कोई गलती नहीं होगी.’’

अमन कौर के माफी मांग लेने के बाद जीत कौर ने बात यहीं खत्म कर दी. खाना आदि खा कर सासबहू अपनेअपने कमरों में जा कर सो गईं. अगले दिन सुबह अमन कौर चाय बना कर सास को उन के कमरे में देने गईं तो यह देख कर हैरान रह गई कि उतनी देर तक सास के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. अमन कौर ने 2-4 बार आवाज दी, दरवाजा खटखटाया. लेकिन जब भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो अमन कौर जोरजोर से दरवाजा पीटने के साथ चिल्लाने लगी. दरवाजा भड़भड़ाने और अमन कौर के चीखने की आवाजें सुन कर पड़ोस के लोग आ गए.

अमन कौर काफी परेशान और घबराई हुई थी. पड़ोसियों के पूछने पर उस ने कहा कि मांजी न दरवाजा खोल रही हैं और न कोई जवाब दे रही हैं. पड़ोसियों ने कोशिश कर के दरवाजा तोड़ा तो अंदर बैड पर जीत कौर चित पड़ी थीं. देखने से ही लग रहा था कि उन की मौत हो चुकी है. सास को इस हालत में पा कर अमन जोरजोर से रोने लगी. रोरो कर उस का बुरा हाल हो रहा था. पड़ोसी औरतों ने किसी तरह उसे संभाला और इस घटना की सूचना तुरंत जीत कौर के बेटे लवप्रीत सिंह को दे दी गई. दोपहर तक लवप्रीत घर पहुंच गया. अपनी मां की इस तरह अचानक हुई मौत से वह बहुत दुखी भी था और हैरान भी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मां की मौत इस तरह कैसे हो गई कि किसी को पता ही नहीं चला.

वह गंभीर रूप से बीमार भी नहीं थी. शाम को उस की मां से बात भी हुई थी. तब वह पूरी तरह ठीक थीं. बहरहाल, होनी को स्वीकार कर के वह मां के अंतिम संस्कार की तैयारियां करने लगा. जब सभी रिश्तेदार आ गए तो उस ने मां का अंतिम संस्कार कर दिया. इस के बाद मां की आत्मा की शांति के लिए पाठ वगैरह करवाया. सभी क्रियाकर्म से छुट्टी पा कर लगभग दस दिनों बाद लवप्रीत गुड़गांव जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी अलमारी में कुछ ढूंढ़ते समय कपड़ों के बीच से उसे एक फाइल मिली, जिस पर बीबी जीत कौर का नाम लिखा था.

लवप्रीत ने फाइल खोल कर देखी तो उस में जीत कौर की दवाओं की पर्चियों के साथ कई टेस्टों की रिपोर्टें थीं. न जाने क्या सोच कर लवप्रीत ने वह फाइल अपने बैग में रख ली और दोपहर को उसे ले कर अपने फैमिली डाक्टर खन्ना के यहां जा पहुंचा. फाइल देख कर डा. खन्ना ने कहा, ‘‘यह फाइल मेरी बनाई हुई नहीं है. इस में जो दवाएं लिखी हैं, उन्हें भी मैं ने बीजी के लिए नहीं लिखी हैं.’’

‘‘पर डा. साहब, इस फाइल की रिपोर्ट के अनुसार…’’

‘‘ये सारी रिपोर्टें गलत हैं. मेरे नाम से ये गलत रिपोर्टें न जाने किस ने और क्यों बनवाई हैं?’’

‘‘आप यह क्या कह रहे हैं डा. साहब?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं लवप्रीत. मैं ने बीजी के सारे टैस्ट कराए थे, जिन में वह एकदम ठीकठाक थीं. उन्हें  कोई बीमारी नहीं थी. पैर में हलका सा फै्रक्चर होना कोई बीमारी नहीं है. उस के लिए मैं ने पेन किलर दिए थे, जिन्हें तेज दर्द होने पर खाना था. फाइल में रखे पर्चे के अनुसार बीजी को जो दवाएं दी जा रही थीं, वे नशे की थीं. ये दवाएं अमन कौर कहां से लेती थी, यह मुझे नहीं पता. अभी तो बीजी के इलाज के मेरे 22-23 हजार रुपए बाकी हैं. अमन ने कहा था कि तुम्हारे आने पर मेरे रुपए दे देगी.’’

‘‘डा. साहब पिछले महीने 3 बार में मैं ने एक लाख रुपए भेजे थे, फिर भी अमन ने आप के रुपए नहीं दिए.’’ लवप्रीत ने हैरान हो कर कहा.

इस के बाद कुछ देर के लिए खामोशी छा गई. कुछ देर में खामोशी तोड़ते हुए डा. खन्ना ने कहा, ‘‘लवप्रीत, कुछ भी हो, मुझे इस सारे मामले में कोई बड़ी साजिश लग रही है.’’

‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं डा. साहब. मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.’’ कह कर लवप्रीत घर लौट आया.

उसी दिन लवप्रीत गुड़गांव जाने के लिए घर से निकल पड़ा, लेकिन गुड़गांव गया नहीं. घर छोड़ कर वह शहर के एक होस्टल में कमरा ले कर ठहर गया. इस के बाद वह थाना त्रिपुड़ी आ कर मुझ से (इंसपेक्टर दर्शन सिंह) मिला. पूरा घटनाक्रम बता कर उस ने संदेह व्यक्त किया कि उस की मां जीत कौर की मौत स्वाभाविक नहीं है, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत उन की हत्या की गई है. उस ने व्यक्तिगत तौर पर निवेदन किया कि इस रहस्य से परदा उठाने में मैं उस की मदद करूं.

इस के बाद मैं ने लवप्रीत सिंह से एक प्रार्थनापत्र ले कर हत्या का मामला अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज करा दिया. मैं ने उस से जीत कौर का बैंक एकाउंट नंबर ले कर उसी दिन से अपना काम शुरू कर दिया. मैं ने लवप्रीत को कुछ दिशानिर्देश दे कर अमन कौर की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा. कुछ ही दिनों की जांचपड़ताल से स्पष्ट हो गया कि जीत कौर की मौत के पीछे निश्चित रूप से अमन कौर की साजिश थी. दरअसल, जब मैं ने जीत कौर की बैंक स्टेटमैंट निकलवाई तो पता चला कि उन के खाते से लगातार मोटीमोटी रकमें निकाली गईं थीं. ये सारे पैसे एक ही एटीएम से निकाले गए थे. मैं ने उस एटीएम की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी तो अमन कौर जबजब वहां रुपए निकालने आई थी, उस के साथ कोई न कोई लड़का जरूर था.

एटीएम से रुपए निकाल कर अमन कौर अपने साथ आए लड़के को भी रुपए देती थी. दूसरी ओर लवप्रीत ने लगातार अमन कौर का पीछा किया तो पता चला कि सुबह 10-11 बजे अमन कौर घर से निकल कर अपने किसी दोस्त के यहां जाती थी. 3-4 घंटे वहां रुक कर वहां से किसी दूसरे मित्र युवक के यहां चली जाती थी. यह क्रम देर रात तक चलता था. सुबह की निकली अमन कौर रात 10-11 बजे तक घर लौटती थी. इन सब बातों से साफ हो गया था कि जीत कौर की मौत के पीछे अमन कौर का हाथ था. लवप्रीत के प्रार्थनापत्र पर मैं जीत कौर की हत्या का मुकदमा दर्ज ही करा चुका था. अब मुझे अमन कौर के खिलाफ सुबूत जुटा कर यानी उसे रंगेहाथों पकड़ कर गिरफ्तार करना था. इस के लिए मैं ने अपने कुछ होशियार पुलिस वालों को अमन कौर के मकान के पास निगरानी पर लगा दिया.

चूंकि जीत कौर की मौत हो चुकी थी और अमन कौर की जानकारी में लवप्रीत गुड़गांव चला गया था. इसलिए उसे किसी का डर नहीं रह गया था. सो अब वह अपने दोस्तों को घर भी बुलाने लगी थी. इन में उस का एक दोस्त ऐसा था, जिसे वह रात में बुलाती थी, जो पूरी रात उस के साथ रहता था. उस दिन अमन कौर के घर की निगरानी कर रहे एएसआई कुलदीप सिंह ने देखा कि 2 लड़के आए और उस के घर की बैल बजाई. अमन कौर ने दरवाजा खोला तो दोनों लड़के अंदर चलग गए. कुछ देर बाद एक अन्य लड़के ने आ कर बैल बजाई तो इस बार भी अमन कौर ने ही दरवाजा खोला. तीसरा लड़का भी अंदर चला गया.

कुछ देर बाद अमन कौर के घर से तेजतेज आवाजें आने लगीं. ऐसा लग रहा था, जैसे किसी बात को ले कर अंदर झगड़ा हो रहा था. कुलदीप सिंह ने समय बरबाद न करते हुए इस बात की जानकारी मुझे दी तो मैं 4 सिपाहियों को ले कर वहां पहुंच गया. मैं ने अमन कौर के घर का दरवाजा खुलवाया तो सामने पुलिस वालों को देख कर अमन कौर के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मैं ने घर की तलाशी ली तो अंदर वाले कमरे में 3 लड़के छिपे मिले. तीनों लड़कों की उम्र 19 से 22 साल के बीच थी. ये अलगअलग प्रदेशों के थे, जो यहां पटियाला विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे.

मैं अमन कौर और तीनों लड़कों को थाने ले आया. तीनों लड़कों से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि वे अमन कौर के प्रेमी थे. लेकिन जीत कौर की हत्या से उन का कोई संबंध नहीं था. इस के बाद अमन कौर से पूछताछ की गई तो उस ने जीत कौर की मौत के रहस्य से परदा उठाते हुए उन की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पश्चिमी सभ्यता के आकर्षण में बंधी संस्कारविहीन बिगड़ी संतानों के कारनामों का लेखाजोखा निकली. अमन कौर शुरू से ही आजाद खयालों वाली जिद्दी लड़की थी. घर की एकलौती बेटी होने की वजह से वह सब की लाडली थी. अधिक लाडप्यार ने उसे कुछ ज्यादा स्वच्छंद बना दिया था. धनदौलत की कमी न होने की वजह से वह अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रही थी.

स्कूल के दिनों से ही छोटीछोटी बातों पर सहपाठियों से शरतें लगा कर जीतना और पार्टी करना उस की आदत बन गया था. जवान हो कर  कालेज पहुंचतेपहुंचते वह पश्चिमी सभ्यता में इस कदर ढल गई कि क्लबों, डिस्कोथैकों में जाना, बीयरव्हिस्की पीना, पुरुष मित्रों की बांहों में नाचना, उस के लिए आम बात हो गई थी. अपनी बिगड़ी आदतों की वजह से कभी वह किसी एक मित्र से संतुष्ट नहीं होती थी, इसलिए नएनए दोस्त बनाती रहती थी. जब तक वह बेटी रही, तब तक यह सब चलता रहा, लेकिन जब वह बहू बन गई तो उस की आजादी पर रोक लग गई. अब तक वह जो कुछ करती आई थी, ससुराल आने के बाद नहीं कर पा रही थी.

आखिर अमन ने अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जीने का रास्ता खोज निकाला. अपनी योजना के तहत उस ने अपनी सेवा से पति लवप्रीत और सास जीत कौर का दिल जीत लिया. पति बाहर रहता था, घर में केवल सास थी, इसलिए अमन कौर ने उसे पूरी तरह से वश में कर लिया. बीयर या व्हिस्की ला कर उस ने अपनी अलमारी में रख लिया था. मौका निकाल कर 1-2 पैग ले लिया करती थी. इस बीच अमन कौर ने कुछ ऐसे लड़कों से दोस्ती कर ली थी, जो दूसरे प्रदेशों से वहां पढ़ने आए थे. ऐसे लड़कों को हमेशा पैसों की जरूरत रहती है, यह अमन कौर अच्छी तरह जानती थी. इन लड़कों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उस ने इन्हें अपने जाल में फांस लिया. उन की जरूरतें पूरी कर के वह उन के साथ अय्याशी करने लगी.

अमन कौर लड़कों के कमरों पर पार्टी करती और उन्हें खर्च के लिए रुपए देती. इस तरह दोनों हाथों से वह रुपए लुटाने लगी तो उसे अपने खर्च के लिए रुपए कम पड़ने लगे. 2-3 बार वह अपने मायके से रुपए मांग कर लाई, लेकिन मायके से हमेशा तो रुपए मांगे नहीं जा सकते थे. उसी बीच जीत कौर ने महसूस किया कि बहू का बाजार आनाजाना कुछ ज्यादा हो गया है तो उन्होंने टोकना शुरू किया. तब अमन कौर ने सास को काबू में करने के लिए एक योजना बनाई और उसी योजना के तहत एक दिन उस ने पूजा के कमरे में जाने वाले रास्ते में फर्श पर औयल गिरा दिया. सुबह स्नान के बाद जीत कौर पूजा के कमरे में जाने लगीं तो फर्श पर पड़े औयल की वजह से फिसल कर गिर पड़ीं, जिस से उन के पैर में फैक्चर हो गया.

उस समय अमन कौर ने जीत कौर के फैमिली डा. खन्ना को न बुला कर पहले डा. रंजीत को बुलाया. डा. रंजीत खूबसूरत भी था और युवा भी. उस की शादी भी नहीं हुई थी. दरअसल, महीने भर पहले एक डिपार्टमैंटल स्टोर पर अमन कौर की मुलाकात डा. रंजीत से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में वह उस पर मोहित हो गई थी. जीत कौर के इलाज के लिए डा. रंजीत को बुला कर अमन कौर ने एक तीर से 2 निशाने साधे थे. एक तो डा. रंजीत को उस ने अपने रूपजाल में फांस लिया, दूसरे जीत कौर को लंगड़ी बना कर बिस्तर पर बिठा दिया.

बाद में सास के कहने पर फैमिली डा. खन्ना के यहां ले जा कर प्लास्टर चढ़वाया लेकिन दवाएं डा. रंजीत की ही चलती रहीं. जीत कौर उस के किसी मामले में रोकटोक न कर सके, इस के लिए वह उन्हें नींद की दवाएं देती रही. कुछ दिनों तक सब कुछ अमन कौर के मुताबिक चलता रहा. लेकिन यह भी सच है कि पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता ही है. घटना वाली रात लगभग 8 बजे अमन कौर ने जीत कौर को खाना खिला कर नींद की दवा दे कर सुला दिया. लगभग साढ़े 8 बजे उस का प्रेमी डा. रंजीत आया तो वह उसे अपने कमरे में ले कर चली गई.

डा. खन्ना से बातचीत के बाद जीत कौर ने अमन कौर द्वारा दी जाने वाली दवा खानी बंद कर दी थी, इसलिए अमन को भले ही लगा कि जीत कौर सो गई हैं, लेकिन वह जाग रही थीं. इसलिए अमन डा. रंजीत के साथ अपने कमरे में हंसीठिठोली करने लगी तो उस की आवाज जीत कौर तक पहुंच गई. हंसीठिठोली की आवाजें सुन कर जीत कौर अमन कौर के कमरे की ओर गईं तो कमरे में जो हो रहा था, उसे देख कर वह हैरान रह गईं. दूसरी ओर अमन कौर तथा डा. रंजीत भी जीत कौर को सामने देख कर बैड से उछल पडे़ और अपनेअपने कपड़े ठीक करने लगे. जीत कौर ने अमन कौर को बुराभला कहते हुए धमकी दी कि वह अभी बेटे को फोन कर के सारी बातें बताएंगी.

जीत कौर की इस धमकी से अमन कौर डर गई. उस ने लपक कर जीत कौर के पैर पकड़ लिए और माफी मांगने लगी. रंजीत भी सफाई देने लगा. लेकिन जीत कौर ने तय कर लिया था कि अब वह हर हाल में सारी बातें बेटे को बता कर रहेंगी. वैसे भी रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद अमन कौर के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. अमन कौर ने देखा कि जीत कौर अब किसी भी सूरत में उस की बातों पर विश्वास करने को तैयार नहीं है तो उस ने धक्का दे कर उन्हें बैड पर गिरा दिया और बैड पर रखा तकिया उन के मुंह पर रख कर दबा दिया. जीत कौर ने हाथपैर चलाए तो रंजीत ने उन्हें पकड़ लिए. कुछ ही पलों में जीत कौर के प्राणपखेरू उड़ गए.

सास को मौत के घाट उतार कर अमन कौर घबरा गई. उस ने सवालिया नजरों से डा. रंजीत की ओर देखा तो उस ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘घबराने की जरूरत नहीं है. जो होना था सो हो गया. इस हत्या को हम मैडिकली मौत साबित कर देंगे.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘भई सीधी सी बात है. तुम्हारी सास बीमार रहती थीं, यह बात तुम्हारे पति के अलावा पड़ोसी भी जानते हैं. बीमार सास रात को खाना खा कर सोईं और कब मर गईं, किसी को पता नहीं चला.’’ डा. रंजीत ने कहा.

‘‘क्या यह सब इतना असान है?’’

‘‘तुम इस की बिलकुल चिंता मत करो. बस मैं जैसा कहता हूं, तुम करती जाओ.’’ डा. रंजीत ने कहा.

दोनों ने जीत कौर को इस तरह बैड पर लिटा दिया, जैसे वह सो रही हैं. इस के बाद डा. रंजीत ने अमन कौर को कमरे से निकाल कर खुद अंदर से बंद कर लिया और खिड़की से कमरे से बाहर आ गया. कमरे से बाहर आ कर डा. रंजीत ने कहा, ‘‘सुबह उठ कर तुम्हें शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा करना है कि मांजी दरवाजा नहीं खोल रही हैं. पड़ोसी आ कर दरवाजा तोड़ेंगे और समझेंगे कि बीमार जीत कौर सोतेसोते मर गईं. किसी को जरा सा भी शक नहीं होगा कि उन की हत्या की गई है.’’

और सचमुच किसी को शक नहीं हुआ. सब ने वही समझा, जैसा डा. रंजीत और अमन कौर ने सोचा था. लेकिन अमन कौर की अलमारी में रखी फाइल ने सारा भेद खोल दिया. अगर डा. खन्ना न बताते कि अमन कौर ने इलाज के पैसे नहीं दिए हैं और फाइल के पर्चों में जो दवाएं लिखी हैं, उन्हें उन्होंने नहीं लिखी तो शायद लवप्रीत को कभी संदेह न होता और डा. रंजीत और अमन कौर साफ बच जाते. अमन कौर ने अपराध स्वीकार कर लिया तो मैं ने डा. रंजीत के घर छापा मार कर उसे भी गिरफ्तार कर लिया. अमन कौर के घर पकड़े गए तीनों छात्र निर्दोष थे, इसलिए उन्हें गवाह बना कर छोड़ दिया.

इस के बाद मैं ने जीत कौर की हत्या के आरोप में अमन कौर और डा. रंजीत को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. यह स्वच्छंदता का ही नतीजा था कि एक पढ़ीलिखी और अच्छे खानदान की बेटी और बहू आज जेल में है. उस के प्रेमजाल में फंस कर एक डाक्टर भी जेल पहुंच गया है. सच है, अवैध संबंध हमेशा बरबादी ही लाता है. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. Crime Kahani