Social Crime : मसाज सर्विस के नाम पर कारोबारियो को जाल में फंसाया जाता

Social Crime :  दिल्ली और एनसीआर में मसाज के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा जोरों पर है. नीरज नारंग को भी एक ब्लैकमेलिंग गैंग ने अपना शिकार बना कर कई लाख रुपए ऐंठ लिए थे. शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने गिरोह का परदाफाश किया तो…

नीरज नारंग जिस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी राम गोपाल नाइक के औफिस में पहुंचे तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. क्योंकि वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन के साथ जो हुआ था, उसे डीसीपी को किस तरह बताएं. औफिस में घुसने के बाद उन्होंने जैसे ही डीसीपी का अभिवादन किया तो डीसीपी ने उन्हें सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा किया. नीरज नारंग की तरफ देखने के बाद डीसीपी ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बड़े परेशान लग रहे हो. बताओ क्या समस्या है.’’

‘‘सर, मैं अपनी गलती के कारण कुछ बदमाशों के चक्कर में फंस गया हूं. मुझे उन से बचा लीजिए. वो लोग मुझे ब्लैकमेल कर के मुझ से 3 लाख रुपए ऐंठ चुके हैं और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक ले चुके हैं. अब वो मुझ से फिर एक बड़ी रकम की डिमांड कर रहे हैं. सर, इस तरह से तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ नीरज नारंग ने बताया.

‘‘कौन हैं वो लोग. आप घटना विस्तार से बताइए.’’ डीसीपी ने उन से कहा. इस के बाद नीरज नारंग ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए अपने साथ घटी घटना बता दी. उसे सुन कर डीसीपी राम गोपाल नाइक को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच की शाखा शकरपुर के इंसपेक्टर विनय त्यागी को सौंप दी और उन्होंने पीडि़त नीरज नारंग को शकरपुर क्राइम ब्रांच औफिस भेज दिया. यह बात 19 सितंबर, 2018 की है. नीरज नारंग क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनय त्यागी के औफिस पहुंच गए. उन्होंने उन्हें अपने साथ घटी जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी.

नीरज नारंग दिल्ली के एक बिजनैसमैन हैं. पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में उन की अपनी फैक्ट्री है. एक दिन वह अपने औफिस में लैपटौप पर नेट सर्फिंग कर रहे थे. इस दौरान वह एक गे वेबसाइट देखने लगे. उस साइट को देखने में उन की रुचि बढ़ने लगी. साइट पर उन्होंने एक फोन नंबर देखा. नीरज की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने उसी समय वह नंबर अपने फोन से मिलाया. कुछ देर घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से एक युवक की आवाज आई. उस युवक ने अपना नाम अरमान शर्मा बताया. उस से कुछ देर बात कर ने के बाद नीरज नारंग ने उस से उसी दिन शाम को पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित वीथ्रीएस मौल में मिलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निर्धारित समय पर नीरज नारंग वहां पहुंच गए. कुछ देर में अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया.

वहां स्थित मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट में दोनों की मुलाकात हुई. उस ने नीरज को बताया कि वह आधुनिक तरीके की मसाज सर्विस चलता है. उस के पास अलगअलग कैटेगरी की मसाज करने के पैकेज हैं और यह सुविधा अच्छे होटल में उपलब्ध कराई जाती है. नीरज नारंग एक अलग ही मिजाज वाले थे. इसलिए उन्होंने 8 हजार रुपए के पैकेज का चयन कर लिया. मसाज कराने के लिए वह वैशाली में स्थित एक होटल में पहुंच गए. अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया. अरमान ने जिस तरह से नीरज की मसाज की थी वह तरीका नीरज को बहुत पसंद आया. जिस से उन्होंने होटल के खर्च के अलावा 8 हजार रुपए अरमान को खुशीखुशी दे दिए. अरमान शर्मा ने अपनी कुछ मजबूरियां उन्हें बताईं. फिर अरमान के आग्रह करने पर नीरज नारंग ने उसे 3 हजार रुपए अलग से दे दिए.

इस के 10 दिन बाद नीरज नारंग का मन फिर से मसाज कराने का हुआ. वह अरमान को फोन करने के मूड में थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन स्क्रीन पर जो नंबर उभरा उसे देख कर उन की आंखों में अनोखी चमक उभर आई. यह नंबर अरमान शर्मा का था. अरमान ने उन्हें मसाज के लिए उसी होटल में आने के लिए कहा तो शाम के 5 बजे नीरज नारंग वहां पहुंच गए. करीब आधे घंटे के बाद जब होटल के बंद कमरे में नीरज नारंग निर्वस्त्र हो कर अरमान से मसाज करवा रहे थे तभी कमरे के दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई. दस्तक के बाद अरमान ने नीरज को कपड़े पहनने का मौका दिए बिना झट से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलते ही धड़धड़ाते हुए 2 युवतियां कमरे में घुस गईं. उन में से एक ने सोफे पर रखे नीरज नारंग के सभी कपड़े अपने कब्जे में ले लिए तो दूसरी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो बनाने लगी. अरमान शर्मा जो कुछ देर पहले नीरज नारंग की इच्छा के अनुसार तरहतरह से उन की मसाज कर रहा था. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला और वह भी उन युवतियों के पास जा कर खड़ा हो गया. उन में से एक युवती नीरज नारंग को गालियां बकते हुए उन के नग्न वीडियो को सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देने लगी और कहने लगी कि यदि ऐसा नहीं चाहते तो बदले में 10 लाख रुपए देने होंगे.

कहां तो नीरज नारंग अरमान शर्मा के हाथों से मसाज लेते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और कहां पलक झपकते ही परिस्थितियां उन के विपरीत हो गईं. खुद को इस तरह बेबस पा कर नीरज नारंग सकते में रह गए. उस समय उन के पर्स में एक लाख रुपए थे, जो उन्होंने उस युवती को सौंप दिए और गिड़गिड़ाते हुए अपने कपड़े लौटा देने की गुहार करने लगे. मगर दोनों युवतियां उन्हें प्रताडि़त करते हुए 10 लाख रुपए देने का दबाव बनाती रहीं. उसी समय अरमान ने कमरे में रखी लोहे की रौड से नीरज नारंग को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया.

मरता क्या नहीं करता. बचने का कोई चारा नहीं देख कर नीरज नारंग ने युवती को बताया कि उन की कार पार्किंग में खड़ी है. उन्होंने युवती को कार का नंबर बताते हुए उसे कार की चाबी सौंपी और उस में रखा ब्रीफकेस लाने के लिए कहा. युवती कार की चाबी ले कर होटल की पार्किंग में पहुंची और उस में रखा उन का ब्रीफकेस ले कर कमरे में लौट आई. नीरज नारंग ने उस में रखे 2 लाख रुपए निकाल कर उसे सौंपे तथा साढ़े 4 लाख रुपए के 3 पोस्ट डेटेड चेक उसे दे दिए. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को बताया कि वह लोग अब फिर से पैसों की डिमांड कर रहे हैं.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने बुरी तरह परेशान दिख रहे नीरज नारंग को ढांढस बंधाया फिर उन का मसाज करने वाले अरमान शर्मा और दोनों युवतियों का हुलिया वगैरह पूछ कर अपनी डायरी में दर्ज कर लिया. इस घटना के बारे में पूरी बात जान लेने के बाद उन्होंने उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे कर घर जाने की इजाजत दे दी. इस के बाद नीरज नारंग अपने औफिस की ओर निकल गया. इंसपेक्टर विनय त्यागी ने इस केस के बारे में एसीपी अरविंद कुमार मिश्रा को बताया. एसीपी ने इस रैकेट का परदाफाश करने के लिए इंसपेक्टर विनय त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई बलविंदर, दिनेश, हवा सिंह, अर्जुन, एएसआई रमेश कुमार, सत्यवान, राजकुमार, मो. सलीम, सतीश पाटिल, हैड कांस्टेबल श्यामलाल, शशिकांत, सुनील कुमार, बाबूराम, दिग्विजय, कांस्टेबल कुलदीप, समीर आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर त्यागी ने अपनी टीम के साथ केस के सभी पहलुओं पर विस्तार पूर्वक विचारविमर्श करने के बाद आरोपियों को पकड़ने की एक फूलप्रूफ योजना तैयार की. उन्होंने नीरज नारंग को एक बार फिर अपने औफिस में बुला कर पूरी योजना समझा दी. उन्होंने उन से यह भी कहा कि उन के पास ब्लैकमेलर का जब भी कोई फोन आए तो वह उन्हें सूचित कर दें. इत्तेफाक से अगले ही दिन नीरज नारंग के पास ब्लैकमेलर अरमान शर्मा का फोन आया. उस ने 2 लाख रुपए मांगे थे. उस ने पैसे ले कर दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित सेलेक्ट सिटी वाक मौल में शाम को बुलाया था. ऐसा नहीं करने पर उस ने परिणाम भुगतने को धमकी दी थी. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

नीरज नारंग की बात सुन कर विनय त्यागी ने एसीपी अरविंद मिश्रा को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद वह उन से आगे की योजना पर विचार करने लगे. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर विनय त्यागी ने नीरज नारंग को फोन कर के आगे की पूरी योजना समझा दी. निर्धारित समय पर नीरज नारंग एक बैग में 2 लाख रुपए ले कर साकेत सेलेक्ट वाक सिटी मौल पहुंच गए और अरमान के वहां आने का इंतजार करने गले. थोड़ी देर बाद अरमान अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ नीरज नारंग के पास पहुंच गया. बातचीत होने के बाद नीरज ने उसे पैसों वाला बैग सौंप दिया. जैसे ही अरमान ने नीरज नारंग से पैसों का बैग लिया सादे वेश में वहां मौजूद क्राइम ब्रांच की टीम ने अरमान और उस की गर्लफ्रैंड को अपने काबू में कर लिया.

उन्होंने उन के पास बैग से 2 लाख रुपए भी बरामद कर लिए. इस के बाद क्राइम ब्रांच टीम उन दोनों को ले कर शकरपुर स्थित औफिस लौट आई. यह बात 20 सितंबर, 2018 की है. हिरासत में लिए गए युवक से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का असली नाम अरमान शर्मा नहीं बल्कि शादाब गौहर है. उस के साथ वाली युवती ने अपना नाम मनजीत कौर बताया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना अपराध स्वीकार करते हुए ब्लैकमेलिंग के धंधे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. 25 साल का शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा मूलरूप से श्रीनगर, कश्मीर के कुमो पदशेनी बाग का रहने वाला था. वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उस का रुझान बौडी बिल्डिंग की तरफ हो गया. वह बेहद फैशनेबल युवक था इसलिए खुद के मैनटेन पर बहुत ध्यान देता था.

उस ने जिम जाना शुरू कर दिया. एकदो साल तक तो घर वालों ने उस की बौडी फिटनेस पर पैसे खर्च किए लेकिन बाद में उन्होंने कह दिया कि वह खुद कमाकर अपने ऊपर खर्च करे. शादाब ऐसा कोई काम नहीं जानता था जिस के बूते वह कमाई कर सके. लिहाजा उस ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया. यह काम सीखने के बाद उस ने श्रीनगर में ही मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोल ली. थोड़े ही दिनों में उस का काम चल निकला और इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जेब में पैसे आए तो वह खुद की फिटनैस पर और ज्यादा ध्यान देने लगा. शादाब बहुत खूबसूरत था. अच्छे खानपान और ब्रांडेड कपड़ों के कारण उस की पर्सनैलिटी और भी निखर गई. लेकिन जब कश्मीर के हालात ज्यादा बिगड़े और घाटी में आए दिन उस की दुकान बंद रहने लगी तो वह परेशान हो उठा.

दुकान बंद रहने के कारण उस की आमदनी बंद हो जाती. यानी उसे फिर से रुपयों की किल्लत रहने लगी.  वह परेशान चल रहा था कि एक दिन पत्थरबाजी के दौरान लोगों ने उस की दुकान को आग लगा दी. दुकान के उजड़ जाने के कारण उस की माली हालत बेहद खराब हो गई तो वह काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गया और वहां के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर ली. चंडीगढ़ के जिम में काम करने के दौरान उस की बहुत से ऐसे लड़केलड़कियों से जानपहचान हो गई जो रोजाना वहां एक्सरसाइज के लिए आया करते थे. चूंकि शादाब गौहर एक हैंडसम युवक था इसलिए खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती होते देर नहीं लगती थी. मनजीत कौर नाम की एक युवती से उस की अच्छी दोस्ती थी.

गोरीचिट्टी और आकर्षक मनजीत कौर बेहद खूबसूरत युवती थी. वह मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली थी और उन दिनों चंडीगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रही थी. शादाब मनजीत को अपने साथ चंडीगढ़ के महंगे रेस्टोरेंट में ले जाने लगा. कुछ दिनों में उन के बीच का फासला खत्म हो गया और फिर वह दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे.  शादाब गौहर ने चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. अब मनजीत कौर उस के साथ बतौर उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अभी दोनों को साथ रहते हुए ज्यादा दिन नहीं गुजरे थे कि इसी बीच उन्हें महसूस होने लगा कि केवल जिम की कमाई भर से उन के वे सपने पूरे नहीं हो सकते जिन की ख्वाहिश वे अपने दिलों में पाले हुए थे.

इस के लिए उन्होंने नएनए उपाय खोजने शुरू कर दिए. दोनों यही योजना बनाते कि कम समय में अमीर कैसे हुआ जाए. इसी बीच एक शाम मनजीत कौर की मुलाकात जिम में आने वाली एक अन्य लड़की शीबा से हुई. जो न केवल उस की ही तरह खूबसूरत और आजाद खयालों वाली थी, बल्कि उस की हसरतें भी जल्द अमीर बनने की थीं. बातों के दौरान मनजीत ने शीबा के मन की बात जानी तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई. उस ने शीबा को अपने लिव इन पार्टनर शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा से मिलवाया और अपनी योजनाओं के बारे में बता कर उसे अपने रैकेट में शामिल कर लिया.

अब ये तीनों मुसाफिर एक ही कश्ती में सवार थे. जिस की मंजिल एक थी. जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे. तीनों ने चंडीगढ़ के बजाए दिल्ली चल कर अपनी योजना को अंजाम देने का फैसला किया. 2018 के जुलाई महीने में वे तीनों दिल्ली आ गए और पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के जवाहर पार्क में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगे. यहां के मकान मालिक को शादाब ने बताया कि वे एक इंटरनैशनल काल सेंटर में नौकरी करते हैं. मकान मालिक को अपने किराए से मतलब था. दूसरे इन तीनों की पर्सनेलिटी इतनी प्रभावशाली थी कि उस ने इन से ज्यादा कुछ पूछ ने की जरूरत ही नहीं समझी.

दिल्ली आ कर शादाब गौहर ने एक गे वेबसाइट पर अपना प्रोफाइल अरमान शर्मा के नाम से अपलोड कर के मसाज सर्विस उपलब्ध कराने का विज्ञापन देना शुरू कर दिया. उस की नजर मालदार क्लाइंट पर रहती थी. जिस से वह अधिक से अधिक रुपए ऐंठ सके.  इस के अलावा उस ने अपने रैकेट में 8 कमसिन लड़कों और एक लड़की को भी शामिल कर लिया, जो उस के कहने पर क्लाइंट को मसाज सर्विस देने के लिए दिल्ली और एनसीआर में बताए गए ठिकानों पर जाते थे. ये लड़के अपनेअपने क्लाइंट को मसाज सर्विस दे कर जो भी कमाते थे उन में प्रत्येक सर्विस पर शादाब गौहर अपना कमीशन वसूल करता था. और बीचबीच में मनजीत कौर और शीबा मसाज के दौरान क्लाइंट की वीडियो बना कर उस से मोटी रकम वसूल करती थीं.

सितंबर के पहले हफ्ते में नीरज नारंग वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर फोन कर के शादाब उर्फ अरमान के संपर्क में आए और मसाज करवाने के चक्कर में उस के जाल में फंस गए.  3 लाख रुपए नकद और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक लेने के बावजूद भी शादाब ने नीरज नारंग का पीछा नहीं छोड़ा. वह उन से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. फिर मजबूर हो कर नारंग ने इस की शिकायत क्राइम ब्रांच के डीसीपी से कर दी. शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा और मनजीत कौर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस दौरान दोनों आरोपियों के कब्जे से नीरज नारंग से लिए गए पौने 2 लाख रुपए तथा साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक बरामद कर लिए.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने शादाब गौहर और मनजीत कौर को कोर्ट में पेश किया और वहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गिरोह में शामिल तीसरी शातिर लड़की शीबा कथा लिखे जाने तक फरार थी.

— कथा में दिए गए कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

 

Social Crime : सट्टे का सही नंबर नहीं बताया तो सिर काट डाला

Social Crime :  हाफिज मुबीन ने सट्टेबाजों में झूठमूठ का जो भ्रम फैलाया था कि वह सट्टे का सटीक नंबर बता सकता है, वह उस के भांजे जीशान को बहुत भारी पड़ा. वह तो जान से गया ही…

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद से 15 किलोमीटर दूर हाइवे से सटा एक गांव है चमरौआ. यह गांव थाना मूंडापांडे के अंतर्गत आता है. इसी गांव में हाफिज मुबीन का परिवार रहता था. हाफिज मुबीन गांव की दरगाह पर बैठते थे. दरगाह पर जायरीनों का आनाजाना लगा रहता था. लोग यहां मन्नतें मांगने आते थे. इस के अलावा हाफिज मुबीन गंडाताबीज से लोगों की समस्याएं भी सुलझाते थे, जिस के लिए लोगों का उन के पास आनाजाना लगा रहता था. हाफिज मुबीन का 12 साल का भांजा उन के पास रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह मामा के घर पिछले 2 सालों से रह रहा था. वैसे जीशान मूलरूप से सहसपुर अलीनगर, अमरोहा का निवासी था. सहसपुर अलीनगर भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी का गांव है.

16 अगस्त, 2018 को जीशान मामा के घर के पास खड़ा था, तभी एक युवक मोटरसाइकिल से वहां पहुंचा. उस ने जीशान से उस के मामा हाफिज मुबीन के बारे में पूछा. जीशान ने बताया कि वह दरगाह पर बैठे हैं. इस पर युवक बोला, ‘‘मैं ने दरगाह नहीं देखी, क्या तुम वहां तक मेरे साथ चल सकते हो. मैं तुम्हें वापस यहीं छोड़ दूंगा.’’

‘‘आप 2 मिनट रुकिए, मैं घर में बता कर आता हूं.’’ कह कर 12 साल का जीशान घर में चला गया. उस वक्त घर पर उस की मामी व अन्य महिलाएं थीं. जीशान ने उन से कहा, ‘‘कंजी आंखों वाला एक आदमी मुबीन मामा को पूछ रहा है. उस के पास मोटरसाइकिल है. मैं उसे दरगाह तक छोड़ कर आता हूं.’’

महिलाओं ने सोचा कि कोई जरूरतमंद होगा, इसलिए उन्होंने जीशान से कह दिया कि उसे छोड़ कर जल्द आ जाना.

‘‘ठीक है, अभी आता हूं.’’ कह कर जीशान मोटरसाइकिल वाले के पास आ गया. वह जीशान को बाइक पर बिठा कर वहां से चल दिया. कुछ दूर आगे जा कर जीशान ने दरगाह की ओर जाने वाली सड़क की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘इधर मोड़ लो.’’

लेकिन बाइक  वाले ने कहा कि मेरा एक साथी दलपतपुर पुलिस चौकी के पास इंतजार कर रहा है, उसे भी साथ ले लें. युवक बाइक को दलपतपुर की तरफ ले गया. दलपतपुर पुलिस चौकी से 500 मीटर आगे उस ने अपनी बाइक रोक दी. वहां एक युवक खड़ा मिला. बाइक चलाने वाले ने उस से कहा, ‘‘हाफिज मुबीन दरगाह पर नहीं हैं. वह मुरादाबाद गए हुए हैं.’’

उस का साथी भी उसी बाइक पर बैठ गया. जीशान बीच में बैठा था. वे दोनों जीशान को ले कर मुरादाबाद की तरफ चले गए. उस समय शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. उधर जब जीशान रात 8 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो घर में सब उस की चिंता करने लगे. उन्होंने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन जीशान का कुछ पता नहीं चल पाया. घर वाले रात भर उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटा. सभी घर वालों की आंखों से नींद गायब थी. वे लोग बैठे हुए उसी के बारे में बात कर रहे थे, तभी मुबीन के मोबाइल पर एक काल आई. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘जीशान हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें सट्टे का सही नंबर बताना होगा. नंबर लगते ही हम जीशान को आजाद कर देंगे. और हां, अगर पुलिस को बताया तो बहुत बुरा अंजाम होगा.’’

जीशान मामा के घर ननिहाल में रह रहा था. उस के मांबाप सहसपुर अलीनगर में रहते थे. उस के पिता इश्तेखार अहमद को इस बात की जानकारी मिली तो वह चमरौआ पहुंच गए. मामला गंभीर था, इसलिए घर के सभी लोगों ने इस की सूचना पुलिस को देने का फैसला किया. हाफिज मुबीन इश्तेखार अहमद व गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर थाना मूंडापांडे पहुंच गए. उन्होंने एसओ अजय कुमार गौतम से मुलाकात कर पूरे घटनाक्रम के बारे में बता दिया. लेकिन एसओ ने इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया. इस की जगह पीडि़त पक्ष से कह दिया कि बच्चा है, कहीं चला गया होगा, उसे ढूंढ लें.

जीशान ने अपनी मामी से जाते समय कहा था कि कंजी आंखों वाला कोई आदमी मामा को पूछ रहा है. इस से मुबीन को शक हो गया कि उस के भांजे का अपहरण मुरादाबाद के चक्कर की मिलक में रहने वाले आमिर और मुर्सलीन ने किया होगा, क्योंकि ये दोनों उस के पास सट्टे का नंबर पूछने के लिए आते थे. इन में से एक की आंखें कंजी थीं. 2 दिन बाद 18 अगस्त, 2018 को हाफिज मुबीन और उस का भाई यामीन थाने जा पहुंचे गए. उन्होंने आमिर और मुर्सलीन के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. मुबीन ने बताया कि सट्टे का नंबर पूछने को ले कर उन लोगों से उस का कई बार झगड़ा भी हो चुका था.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब मामला मीडिया में उछला तो पुलिस की नींद उड़ गई. उच्चाधिकारियों के आदेश पर थाना मूंडापांडे के एसओ ने नामजद आरोपियों के घर दबिश दे कर दोनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. थाने ला कर जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने खुद को निर्दोष बताया. उन्होंने कहा कि घटना वाले दिन वे दोनों अपनेअपने घरों पर थे. दोनों ने इतना जरूर बताया कि वे अकसर हाफिज मुबीन से सट्टे का नंबर पूछने जाया करते थे. पुलिस ने उन के मोहल्ले के कुछ लोगों से पूछताछ की तो उन की बात की पुष्टि हो गई. इस से पुलिस को लगा कि ये निर्दोष हैं. अत: उन्हें इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि पुलिस को बिना बताए मुरादाबाद से बाहर न जाएं और पुलिस बुलाए, थाने आ जाएं.

अब पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस नंबर से हाफिज मुबीन के पास काल आई थी. उस डिटेल्स से पता चला कि वह नंबर मुरादाबाद के ही चक्कर की मिलक निवासी इरफान उर्फ राजू का था. इरफान को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. इरफान ने बताया कि 18 दिन पहले उस का मोबाइल गुम हो गया था, जिस की सूचना उस ने थाना सिविललाइंस को दे दी थी. उस ने सूचना की रिसीविंग कौपी भी दिखा दी. उस ने बताया कि वह गुम हुए मोबाइल को बंद करवाना भूल गया था. पुलिस जांच जहां से शुरू हुई थी, घूमफिर कर वहीं आ कर रुक गई. आखिर मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने जीशान अपहरण कांड को सौल्व करने के लिए 2 टीमों का गठन किया.

पहली टीम का नेतृत्व सीओ (हाइवे) राजेश कुमार कर रहे थे. उन के साथ थाना मूंडापांडे के एसओ अजय कुमार थे. जबकि दूसरी टीम में सर्विलांस सेल प्रभारी राजीव कुमार थे. इस टीम का नेतृत्व सीओ सुदेश कुमार गुप्ता को सौंपा गया था. 19 अगस्त, 2018 को रविवार था. उस दिन मुरादाबाद शहर के थाना मुगलपुरा क्षेत्र में आने वाली रामगंगा नदी के किनारे एक बच्चे की सिरकटी लाश मिली. मौके पर एसपी (सिटी) अंकित मित्तल भी आ गए थे. मृत बच्चा नीले रंग की लोअर व टीशर्ट पहने हुए था. पुलिस ने आसपास के लोगों को बुला कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

लाश की शिनाख्त न होने पर पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि बच्चे की हत्या 2-3 दिन पहले की गई थी. 20 अगस्त, 2018 को अखबारों में जब एक बच्चे की सिर कटी लाश मिलने की खबर छपी तो जीशान के पिता इश्तेखार अहमद और मामा यामीन पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. कपड़ों और कदकाठी के आधार पर उन्होंने लाश की पहचान जीशान के रूप में की. बकरा ईद से पहले जीशान की मौत की खबर से उस की ननिहाल और पैतृक गांव सहसपुर अलीनगर में मातम सा छा गया था. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. शिनाख्त हो जाने के बाद बच्चे का सिर ढूंढना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. अब तक यह मामला आईजी विनोद कुमार और एडीजी प्रेम प्रकाश के संज्ञान में आ चुका था.

बकरा ईद का त्यौहार आने वाला था. मुरादाबाद जिला वैसे भी अति संवेदनशील की श्रेणी में आता है. त्यौहार पर कोई बवाल न हो जाए, इसलिए एडीजी प्रेम प्रकाश ने मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ को निर्देश दिए थे कि जीशान के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए. जांच में पहले से जुटी दोनों टीमों ने जांच और तेज कर दी. अपहर्त्ताओं ने जिस फोन नंबर से हाफिज मुबीन को फोन किया था, वह स्विच्ड औफ आ रहा था और उस की अंतिम लोकेशन मुरादाबाद के रामगंगा पुल, जामा मसजिद के पास की आ रही थी. पुलिस ने इस नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि इस नंबर से और भी कई जगह काल की गई थीं.

इस फोन पर आई काल वाले नंबरों की जांच के बाद पुलिस ने मुरादाबाद के जामा मसजिद, चामुंडा वाली गली में दबिश दे कर रशीद और उस के बेटे सुहैल को गिरफ्तार कर लिया. पहले तो वे खुद को निर्दोष बताते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे वे टूट गए. उन से पूछताछ के बाद उन के 2 सहयोगियों फैजान निवासी मुगलों वाली मसजिद, मुरादाबाद, फराज खान निवासी वारसी नगर (हाथी वाला मंदिर) को भी गिरफ्तार कर लिया गया. चारों अभियुक्तों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही जीशान का अपहरण कर के उस का गला रेता था. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 24 अगस्त की रात को थाना गलशहीद के कब्रिस्तान से जीशान का सिर बरामद कर लिया.

पुलिस ने जीशान के सिर का पोस्टमार्टम करवा कर उसे उस के परिवार वालों के सुपुर्द कर दिया और चारों अभियुक्तों रशीद, सुहैल, फैजान और फराज खान से पूछताछ की तो जीशान की हत्या की कहानी कुछ इस तरह पता चली—

जिला मुरादाबाद के चमरौआ गांव निवासी हाफिज मुबीन गांव की एक दरगाह पर बैठते हैं. ये चारों आरोपी पिछले 3 सालों से उन के पास सट्टे का नंबर पूछने आते रहते थे. शुरूशुरू में हाफिज मुबीन ने उन्हें सट्टे के जो नंबर बताए, वे इत्तफाक से सही निकले, जिस से इन लोगों ने अच्छा पैसा कमाया. उन पैसों में से इन्होंने हाफिज मुबीन को भी अच्छी दक्षिणा दी. इस के बाद हाफिज मुबीन इस इलाके में मशहूर हो गए. लोग कहने लगे कि हाफिज मुबीन के बताए नंबर पर ही सट्टा खुलता है. इस से मुबीन के पास दूरदूर से सट्टेबाज आने लगे. मुबीन की भी अच्छी कमाई होने लगी. आरोपियों ने बताया कि कुछ दिन तक हाफिज मुबीन द्वारा बताए गए सट्टे के नंबर सही निकले, लेकिन उस के बाद हाफिज मुबीन ने जो नंबर दिए, उन पर सट्टा नहीं खुला.

उन्होंने सट्टे से जो कुछ कमाया, वह तो गंवा ही दिया साथ ही अपनी जमापूंजी भी गंवा दी. इस के अलावा उन्होंने अपना गंवाया हुआ पैसा पाने के चक्कर में लोगों से उधार लेले कर भी सट्टे में लगा दिया. यह बात उन्होंने हाफिज मुबीन से कही तो उस ने टका सा जवाब दे दिया कि अगर मेरे बताए नंबर से आप लोग संतुष्ट नहीं हैं तो किसी दूसरे तांत्रिक को ढूंढो. विश्वास नहीं है तो मेरे पास मत आना. इस के बाद हाफिज मुबीन ने इन चारों को भाव देना बंद कर दिया था. इस की एक वजह यह भी थी कि उन के पास सट्टे का नंबर जानने के लिए लोग लग्जरी गाडि़यों से आने लगे थे, जो मोटी रकम दे कर जाते थे.

हाफिज मुबीन ने इन चारों से बात करनी भी बंद कर दी थी. जब ये लोग ज्यादा जिद करने लगे तो वह फिर आने की बात कह कर टाल देते थे. बरबाद हो चुके ये चारों लोग बहुत परेशानी में थे. आखिर चारों ने मिल कर योजना बनाई कि क्यों न हाफिज मुबीन के भांजे जीशान का अपहरण कर लिया जाए. जीशान भी खाली समय में मामा के साथ दरगाह पर बैठता था. फिरौती के बदले उस से सट्टे का नंबर मालूम करेंगे. भांजे की वजह से हाफिज सट्टे का सही नंबर बता देगा. योजना के अनुसार, रशीद का बेटा मोहम्मद सुहैल, फराज के साथ 16 अगस्त, 2018 को अपनी बाइक से हाफिज मुबीन के गांव चमरौआ पहुंचा. योजना के अनुसार, फराज चमरौआ से पहले दलपतपुर पुलिस चौकी के पास बाइक से उतर गया था.

दिन के करीब सवा 4 बजे अभियुक्त सुहैल बाइक से चमरौआ गांव पहुंचा. उस समय हाफिज मुबीन दरगाह पर नहीं था. सुहैल ने हाफिज मुबीन के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि वह किसी काम से मुरादाबाद गए हैं. उस के बाद सुहैल हाफिज मुबीन के घर पहुंचा. घर के बाहर जीशान मिला. सुहैल ने जीशान से पूछा कि हाफिज जी हैं तो जीशान ने बताया कि वह दरगाह पर गए हुए हैं. सुहैल ने जीशान से कहा कि मुझे दरगाह तक छोड़ दो, मैं ने दरगाह नहीं देखी. मैं फिर तुम्हें यहीं छोड़ जाऊंगा. जीशान घर पर मौजूद महिलाओं से पूछ कर उस की बाइक पर बैठ कर चला गया. सुहैल को दरगाह जाना ही नहीं था. उस ने अपने साथियों के साथ पहले से जो योजना बना रखी थी, उस योजना को अंजाम देना था, इसलिए दरगाह के बजाए सुहैल किसी बहाने से हाइवे की तरफ मुड़ कर दलपतपुर की तरफ ले गया. क्योंकि वहां पहले से ही उस का साथी फराज उस का इंतजार कर रहा था.

वह जीशान को फराज के पास ले गया. फराज ने जीशान से कहा कि हाफिज जी चंदर के ढाबे पर हैं, तो वहीं बुला रहे हैं. चंदर का ढाबा भी वहां से करीब एक किलोमीटर दूर था. इलाके में वह ढाबा मशहूर था, जीशान भी कई बार वहां जा चुका था. सुहैल बाइक चला रहा था. बीच में जीशान बैठा था, उस के पीछे फराज बैठा था. वे बाइक को मुरादाबाद की तरफ ले गए. जब चंदर का ढाबा निकला तो जीशान ने कहा कि ढाबा तो पीछे छूट गया. उसी समय फराज ने जानवर काटने वाली छुरी निकाल कर जीशान को दिखाते हुए कहा कि चुपचाप बैठा रह, नहीं तो एक ही बार में गरदन अलग हो जाएगी. तू हमारे साथ चल. हमें तेरे मामू से सट्टे का नंबर पूछना है. उस के बाद तुझे छोड़ देंगे.

सुहैल और फराज जीशान को रामपुर तिराहे से हो कर रामगंगा नदी पुल पार कर के जामा मसजिद के पास बरबलान चामुंडा वाली गली में ले गए. वहीं पर सुहैल का घर था. जीशान के हाथपैर बांध कर सुहैल के घर में डाल दिया गया. 16 अगस्त, 2018 की रात 9 बजे सुहैल के पिता रशीद ने हाफिज मुबीन को फोन कर के बताया कि तेरा भांजा जीशान हमारे पास है. तू पैसे वाले और लोगों को सट्टे का ठीक नंबर बताता है और हमें गलत नंबर बता कर तूने हमें बरबाद कर दिया है. अगर अपने भांजे को सहीसलामत देखना चाहता है, तो सट्टे का सटीक नंबर बता दे. हम इंतजार कर रहे हैं.

फोन आने के बाद हाफिज मुबीन व उन का परिवार सकते में आ गया. हाफिज मुबीन ने फोन करने वालों को समझाया कि अब मैं सट्टे का नंबर नहीं दे सकता क्योंकि मैं दरगाह से घर आ गया हूं. कल बता दूंगा. जीशान के अपहरण की बात सुन कर मुबीन के परिवार में रोनाधोना शुरू हो गया. पूरे गांव में जीशान के अपहरण की खबर फैल चुकी थी. उधर अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंसे जीशान का बुरा हाल था. वह कह रहा था कि अगर आप ने मेरे मामा से सट्टे का नंबर पूछ लिया हो तो मुझे गांव छोड़ दो. अपहर्त्ताओं ने उसे बताया कि अभी तेरे मामा ने सट्टे का नंबर नहीं बताया है. जीशान का धैर्य जवाब दे रहा था. उस ने रशीद से कहा कि अंकल मैं आप को पहचानता हूं, आप कई बार दरगाह पर सट्टे का नंबर लेने आते रहे हैं. मैं ने आप का क्या बिगाड़ा है? मैं आप के बारे में हाफिज जी को बता दूंगा कि आप मुझे पकड़ कर ले यहां आए हैं.

इस के बाद उन चारों ने आपस में सलाह किया कि अगर जीशान ने मुंह खोल दिया तो सभी सलाखों के पीछे होंगे. उसी समय उन्होंने फैसला कर लिया कि इस का काम तमाम कर देना चाहिए. फिर 16 अगस्त की रात करीब 10 बजे रशीद घर में रखी मांस काटने वाली छुरी ले आया. उस के आते ही सुहैल, फराज और फैजान ने जीशान के हाथपैर, बाल पकड़े और रशीद ने छुरे से उस का गला रेत दिया. रशीद जीशान के गले पर तब तक छुरी चलाता रहा, जब तक सिर शरीर से अलग नहीं हो गया था. फिर चारों जीशान का धड़ बोरे में रख कर पास बह रही रामगंगा नदी के किनारे डाल आए. उस के बाद सुहैल ने हाफिज मुबीन को फिर फोन किया और सट्टे का सही नंबर मांगा.

19 अगस्त, 2018 को थाना मुगलपुरा की पुलिस ने रामगंगा नदी के किनारे एक बोरे में सिरकटी लाश बरामद की, जिस की उस दिन शिनाख्त नहीं हो सकी. पुलिस ने अभियुक्तों के पास से जीशान के जूते, घड़ी, वारदात में इस्तेमाल की गई छुरी और बाइक बरामद कर ली. चारों मुलजिमों को 26 अगस्त, 2018 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Uttar Pradesh Crime : कामोत्तेजक दवा खा कर बहन के साथ रेप किया और ईट से कुचल डाला

Uttar Pradesh Crime : इरफान और सादिया अपने 3 बच्चों के साथ चैन की जिंदगी गुजार रहे थे. तभी जहरीली हवा का झोंका आया, जिस ने इरफान के घर में 3 लाशें बिछा दीं. पुलिस जांच में पता चला कि जहरीली हवा का वह झोंका नसीरुद्दीन का हमराही बन कर आया था…

उस दिन नवंबर, 2019 की 25 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. आजमगढ़ के गांव इब्राहीमपुर भलवारिया का रहने वाला अनीस अहमद गांव के बाहर अपने खेतों पर पहुंचा. फसल व ट्यूबवेल पर नजर डालने के बाद वह खेत के नजदीक ही मछलियां पकड़ने तालाब पर जा पहुंचा. उस ने तालाब में जाल डाला ही था कि उसे अपने दोस्त इरफान की याद आ गई. उस के खेत के पास ही इरफान का घर था. वह अकसर इरफान के साथ ही मछलियां पकड़ता था. अत: उस ने इरफान को बुलाने के लिए फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं हुई. बारबार रिडायल करने पर भी जब इरफान ने उस की काल रिसीव नहीं की तो अनीस का माथा ठनका.

उस ने तालाब से जाल निकाल कर वहीं किनारे पर रख दिया और तेज कदम बढ़ाता हुआ इरफान के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने इरफान को कई आवाज लगाईं पर कोई जवाब नहीं मिला. इस से अनीस की धड़कनें तेज हो गईं. वह सोचने लगा कि इरफान जवाब क्यों नहीं दे रहा, अनीस ने उस के मकान के चारों तरफ बनी बाउंड्री से झांक कर देखा तो कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला था. वहीं से उसे दरवाजे के पास जमीन पर पड़ी इरफान की पत्नी सादिया का हाथ दिखा. किसी अनहोनी की आशंका भांप कर अनीस ने इस मामले की जानकारी गांव के प्रधान सलाहुद्दीन तथा इरफान के भाइयों को दे दी. सूचना मिलते ही प्रधान सलाहुद्दीन इरफान के घर आ गए. उन के साथ इरफान के भाई इमरान, इरशाद तथा इकबाल भी थे.

तीनों भाई घर के अंदर जा कर हकीकत जानना चाहते थे लेकिन प्रधान ने उन्हें रोक दिया और उसी समय मोबाइल से थाना मुबारकपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा पुलिस टीम के साथ इब्राहीमपुर भलवारिया गांव पहुंच गए. इरफान का घर गांव के बाहर खेत पर था. तब तक वहां काफी भीड़ जुट गई थी. मिश्रा पुलिसकर्मियों के साथ घर के अंदर गए तो वहां का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 3 लाशें पड़ी थीं. एक मासूम बालक और बालिका घायल अवस्था में पडे़ थे. पूछताछ से पता चला कि मरने वालों में घर का मुखिया इरफान, उस की पत्नी सादिया तथा 4 माह की मासूम बेटी नूर थी. घायलों में इरफान का 5 वर्षीय बेटा अमन तथा 10 वर्षीया बेटी अमायरा थी.

दोनों को किसी भारी वस्तु से सिर व माथे पर प्रहार कर चोट पहुंचाई गई थी. दोनों घायल बच्चे इस हालत में नहीं थे कि पुलिस को कुछ बता सकें. उन्हें तत्काल इलाज के लिए मुबारकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया. थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने घटना स्थल का निरीक्षण शुरु किया. सादिया की लाश दरवाजे के पास नग्नावस्था में पड़ी थी. उस के सिर व चेहरे पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. उस की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी और ऐसा लग रहा था जैसे उस के साथ बलात्कार किया गया हो. क्योंकि शव के पास ही प्रयोग में लाया गया कंडोम भी पड़ा था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर उस कंडोम को सुरक्षित कर लिया.

एक साथ 3 कत्ल सादिया के पति इरफान का शव उस के बगल में जमीन पर पड़ा था. उस का सिर फटा हुआ था जिस से खून रिसा हुआ था. उस की मौत हो चुकी थी. इरफान की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. इरफान की 4 माह की बेटी नूर का शव चारपाई पर पड़ा था. उस के शरीर पर चोट का निशान नहीं था. उस की मौत संभवत: दम घुटने से हुई थी. इस तिहरे हत्याकांड की खबर जंगल की आग की तरह आसपास के गांवों में फैली तो सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. भीड़ बढ़ती देख थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी और मौके पर अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

कुछ ही देर बाद आजमगढ़ के एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह, एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय तथा सीओ (सदर) अकमल खां पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह ने मौकाएवारदात पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटना स्थल का बारीकी से निरीक्षण कर मृतक के भाइयों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. डौग स्क्वायड टीम ने खोजी कुत्ते श्वान फैंटम को घटनास्थल पर छोड़ा गया तो वह वहां की गंध सूंघ कर मकान के आसपास चक्कर लगाते हुए भीड़ में मौजूद एक युवक की ओर लपका. डर की वजह से वह युवक गांव की ओर भाग गया. वह गांव का ही था. पुलिस ने उस की पहचान तो कर ली, पर बिना किसी ठोस सबूत के उसे गिरफ्तार नहीं किया.

लोग हो गए आक्रोशित घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारी जब तीनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस भेजने की तैयारी करने लगे तो वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित हो उठी. भीड़ ने मांग की कि जब तक आईजी (जोन), डीआईजी या क्षेत्रीय प्रतिनिधि आ कर काररवाई का आश्वासन नहीं देते तब तक शवों को नहीं उठने देंगे. इस पर एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय तथा सीओ (सदर) अकमल खां ने भीड़ को काफी समझाया. पुलिस अधिकारियों के समझाने का उत्तेजित लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा. वह अपनी मांग पर डंटे रहे. कानूनव्यवस्था न बिगड़ जाए, इसलिए एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय ने डीआईजी तथा क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली से फोन पर बात की और वस्तुस्तिथि से अवगत कराया.

कुछ देर बाद डीआईजी मनोज तिवारी तथा क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली घटनास्थल आ गए. डीआईजी मनोज तिवारी ने उत्तेजित लोगों को समझाया कि आप का गुस्सा जायज है, हम आप की भावनाओं की कद्र करते हैं. लेकिन आप लोग पुलिस की काररवाई में बाधा न पहुंचाएं. हम आप को आश्वासन देते हैं कि हत्यारा भले ही जमीन में छिपा हो, उसे खोज निकालेंगे और इस जघन्य हत्याकांड के लिए उसे कड़ी से कड़ी सजा दिलाएंगे. क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली ने मृतक के घरवालों को भरोसा दिया कि जो भी मदद संभव होगी वह मृतक के परिजनों को दिलाएंगे. साथ ही मृतक के बच्चों के पालनपोषण व पढ़ाई का खर्चा वह स्वयं उठाएंगे. विधायक के आश्वासन का भी लोगों ने स्वागत किया.

डीआईजी व विधायक के आश्वासन के बाद उत्तेजित लोग शांत हो गए. इस के बाद पुलिस ने तीनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए. चूंकि पुलिस अधिकारियों को उपद्रव की आशंका थी. इसलिए उन्होंने गांव में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स तैनात कर दी. रात में ही पोस्टमार्टम करा कर शव उन के भाइयों को सौप दिए गए. शवों को भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दफन करा दिया गया. एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह के सेवा काल का यह जघन्यतम हत्याकांड था. उन्होंने इस तिहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम को एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय की निगरानी में काम करना था. टीम में मुबारकपुर थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा, एसआई ए.के. सिंह, सीओ (सदर) अकमल खां और सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

गठित टीम ने सब से पहले घटना स्थल का निरीक्षण किया, फिर तीनों मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक सादिया की मौत सिर में घातक चोट लगने व ज्यादा खून बहने से हुई थी. उस के साथ दुष्कर्म भी किया गया था. जबकि उस के पति इरफान की मौत सिर तथा दिमाग की नशें फटने  से हुई थी. 4 माह की नूर की मौत दम घुटने से हुई थी.सोचविचार के बाद पुलिस टीम को लगा कि मामला अवैध रिश्तों का है. अत: टीम ने इस बाबत मृतक इरफान के भाई इरशाद व इमरान से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सादिया मिलनसार थी. उस के घर किसी बाहरी व्यक्ति का आनाजाना नहीं था. वह अपने शौहर के अलावा किसी और को पसंद नहीं करती थी.

भाइयों के बयान से साफ  हो गया कि सादिया पाकसाफ औरत थी. उस के किसी गैर मर्द के साथ नाजायज ताल्लुकात नहीं थे. इस से लगने लगा कि किसी वहशी दरिंदे ने सादिया को अपनी हवस का शिकार बनाया और विरोध करने पर मार डाला. यह दरिंदा कौन हो सकता है? इस विषय पर जब टीम के सदस्यों ने मृतक के भाइयों से पूछताछ की तो इमरान ने बताया कि नटबस्ती का एक युवक ऐसा कुकृत्य कर सकता है. शक के आधार पर पुलिस टीम ने नटबस्ती के उस युवक को हिरासत में ले लिया और उस से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन उस ने जुर्म कबूल नहीं किया. उस ने कहा कि उसे रंजिशन फंसाया जा रहा है. वह बेकसूर है. पुलिस टीम किसी निर्दोष को नहीं फंसाना चाहती थी. चूंकि वह शक के दायरे में था इसलिए उसे छोड़ा भी नहीं गया.

अब तक अस्पताल में भरती मासूम अमन और अमायरा के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया था. वह बयान दर्ज कराने की स्थिति में थे. पुलिस उन दोनों का बयान दर्ज करने स्वास्थ्य केंद्र पहुंची. उन का इलाज कर रहे डा. प्रदीप ने पुलिस को बताया कि दोनों के सिर पर चोट थी, जो अब काफी हद तक ठीक है. डाक्टर ने एक चौंकाने वाली बात यह बताई कि 10 वर्षीया अमायरा के साथ कुकर्म किया गया है. यह जान कर पुलिस सोच में पड़ गई. पुलिस ने दोनों बच्चों से पूछताछ की तो अमायरा ने बताया कि उस रात कोई चोर घर में घुसा था. वह उठी और मां से पानी मांगा तो उसे चोर ने दबोच लिया. उस ने माथे पर ईंट से प्रहार किया, जिस से वह बेहोश सी हो गई. इस के बाद चोर ने उस के साथ गंदा काम किया.

वह चीखी तो भाई अमन रोने लगा. तब उस ने उस के माथे पर भी ईंट से चोट पहुंचाई, जिस से दोनों बेहोश हो गए.

‘‘अगर उस चोर को तुम्हारे सामने लाया जाए तो तुम उसे पहचान लोगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां, पहचान लूंगी.’’ अमायरा ने जवाब दिया.

पुलिस हिरासत में लिए गए नट बस्ती के संदिग्ध युवक की पहचान कराने अस्पताल लाई. अमायरा ने उसे गौर से देखा फिर कुछ देर मौन रहने के बाद बोली, ‘‘शायद यही था.’’ पहचान होने पर पुलिस ने उस युवक से फिर सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह नहीं टूटा. उस ने कहा, ‘‘बच्ची के पहचानने में चूक हुई होगी. मैं निर्दोष हूं.’’ पुलिस टीम को भी लगा कि शायद वह निर्दोष है, इसलिए उसे जाने दिया. पुलिस टीम ने अब अपनी जांच की दिशा बदल दी. सर्विलांस टीम ने घटना वाली रात इलाके में लगे मोबाइल टावर के संपर्क में आए डंप फोन नंबरों में से एक ऐेसे मोबाइल नंबर का पता लगाया जो वारदात के समय वहां 3 घंटे तक मौजूद रहा था. इस मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह मोबाइल नंबर नसीरुद्दीन उर्फ अउवापउवा का था, जो इब्राहीमपुर भलवारियां गांव का रहने वाला था.

नसीरुद्दीन था वह हैवान नसीरुद्दीन शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने उस के पीछे महिला मुखबिर लगा दी, जो उस के परिवार की ही थी. उस ने पुलिस को 2 रोज बाद चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि नसीरुद्दीन दिन में तो घर में पड़ा रहता है लेकिन रात को वह घर से निकलता है. घर से वह सीधे कब्रिस्तान जाता है, जहां सादिया, उस के शौहर और बेटी की कब्र के पास बैठ कर रोता है और अपने गुनाहों की तौबा करता है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने 2 दिसंबर, 2019 को नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा को सुबह 5 बजे उस के घर से हिरासत में ले लिया और शिनाख्त हेतु अस्पताल ले गई, जहां मासूम अमन और अमायरा का इलाज चल रहा था.

नसीरुद्दीन को देखते ही अमायरा चीख पड़ी, ‘‘यही, वह चोर है जिस ने मेरे साथ गंदा काम किया था और ईंट मार कर घायल कर दिया था. इसे छोड़ना नहीं. इसे फांसी पर लटका देना.’’

पुलिस टीम नसीरुद्दीन को साथ ले कर थाना मुबारकपुर आ गई. थाने पर जब उस से तिहरे हत्याकांड के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने अपराध कबूल कर लिया. इस के बाद उस ने हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. पुलिस ने तिहरे हत्याकांड का खुलासा करने तथा हत्यारे को पकड़ने की जानकारी एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह को दी. जानकारी मिलते ही त्रिवेणी सिंह थाना मुबारकपुर आ गए. उन्होंने प्रैसवार्ता में कातिल को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. उन्होंने केस का खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई और 25 हजार रुपए नकद पुरस्कार की घोषणा की.

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के थाना मुबारकपुर के अंतर्गत एक गांव है इब्राहीमपुर भलवारिया. मुसलिम बाहुल्य इस गांव में अब्दुल कय्यूम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के 4 बेटे इमरान, इरशाद, इकबाल तथा इरफान थे. इन सभी के विवाह हो चुके थे. उन्होंने चारों बेटों में घर जमीन का बंटवारा कर दिया था. उन के 3 बेटे इमरान, इरशाद और इकबाल बीवीबच्चों के साथ गांव में पैतृक मकान में रहते थे लेकिन सब से छोटे बेटे इरफान ने इब्राहीमपुर भलवरिया गांव के बाहर अपने खेत में टिन शेड वाला मकान बनवा लिया था. वह बीवीबच्चों के साथ वहीं रहता था. लगभग 10 साल पहले इरफान की शादी इसी गांव की सादिया से हुई थी. दरअसल, सादिया एक गरीब परिवार की खूबसूरत बेटी थी. इरफान का सादिया के घर आनाजाना था. आतेजाते इरफान की नजर सादिया पर पड़ी.

पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल बैठे. दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी तो घरवालों को जानकारी हुई. दोनों के परिवार वालों ने आपस में विचारविमर्श कर सादिया और इरफान का निकाह कर दिया. सादिया जैसी खूबसूरत और नेक दिल वाली बीवी पा कर इरफान खुश था. पतिपत्नी के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे. हंसतेबतियाते शादी के 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इन 5 सालों में सादिया ने बेटी अमायरा और बेटे अमन को जन्म दिया. बेटीबेटा के जन्म से उन की खुशियां दोगुनी हो गईं.

वक्त बीतता गया. वक्त के साथ सादिया के बच्चे बड़े हुए तो गांव के ही मदरसे में तालीम हासिल करने जाने लगे. इरफान खेतीकिसानी के साथसाथ दरी बुनाई का काम भी करता था, ताकि अतिरिक्त आमदनी हो.  अमन के जन्म के 4 साल बाद सादिया ने एक बेटी नूर को जन्म दिया. नन्हीं सी नूर इरफान और सादिया की आंखों की नूर बन गई थी. इरफान अपने बीवीबच्चों के साथ खुश था. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. दरअसल इरफान के गांव में ही अजीज अहमद रहते थे. उन के 2 बेटे अजरुद्दीन और नसीरुद्दीन थे. अजरुद्दीन तो सीधासादा और व्यावहारिक था. वह पिता के साथ किसानी करता था. उस की शादी भी हो चुकी थी. लेकिन छोटा बेटा नसीरुद्दीन झगड़ालू और बददिमाग था.

वह गांव के आवारा लड़कों के साथ घूमता, बातबेबात लोगों से उलझता और उन के साथ मारपीट करता. वह आवारा लड़कों के साथ शराब पीता और गांव की लड़कियों से छेड़खानी करता था. नौकरी छोड़ कर लौट आया घर नसीरुद्दीन के कारनामों की शिकायत जब अजीज अहमद के पास आने लगी तो उन्होंने उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं सुधरा. बल्कि ज्यादा शराब पी कर सड़क, नाली में गिरता रहता था, जिस से गांव के लोगों ने उस का नाम अउवापउवा रख दिया था. बिगडै़ल बेटे को सुधारने के लिए अजीज के पास एक ही उपाय बचा था कि उस की शादी कर दी जाए. लेकिन आवारा लड़के से कोई भी अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं था. काफी दौड़धूप के बाद उन्होंने एक गरीब परिवार की रेहाना से उस की शादी कर दी.

रेहाना कम पढ़ीलिखी साधारण रंगरूप की युवती थी. उस ने शौहर को अपने प्रेम बंधन में बांधने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह असफल रही. नसीरुद्दीन की आवारागर्दी से तंग आ कर रेहाना ने उसे कई बार फटकारा और जलील भी किया. साथ ही परिवार का बोझ उठाने के लिए उसे कुछ कामधंधा करने की सलाह भी दी. नसीरुद्दीन ने पहले तो बीवी की बात को अनसुना कर दिया पर जब रेहाना आए दिन उस से झगड़ा करने लगी तो उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया. नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा के कुछ दोस्त फरीदाबाद (हरियाणा) में रहते थे और मशीनों के पार्ट्स बनाने वाली किसी कंपनी में काम करते थे. उस ने अपने दोस्तों से बात की और गांव छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

दोस्तों ने उस के रहने का बंदोबस्त कर उस की वहां नौकरी लगवा दी. नसीरुद्दीन के हाथ में पैसे आने लगे तो वह शराब के साथसाथ दूसरे नशे भी करने लगा. यही नहीं वह अय्याशी के लिए दिल्ली के रेडलाइट एरिया में भी जाने लगा. नसीरुद्दीन कमाता जरूर था, पर वह सारा पैसा नशे और अय्याशी में खर्च कर देता था. वह 3-4 महीने में जब भी घर आता, खाली हाथ ही आता. रेहाना, शौहर से अपने खर्च को पैसा मांगती तो वह उसे दुत्कार देता था. वह रेहाना के शरीर को रौंदता तो था पर उस की चाहत को वह पूरा नहीं कर पाता था. इतना ही नहीं रेहाना को वह अपने साथ भी नहीं रखना चाहता था.

नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा जून 2019 में नौकरी छोड़ कर गांव आ गया. इस के बाद वह जलालपुर स्थित एक बुनाई कारखाने में काम करने लगा. रेहाना की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इस के 2 कारण थे. एक तो वह कमाई का एकचौथाई हिस्सा भी उस के हाथ पर नहीं रखता था. दूसरे वह कामवर्धक दवाओं का प्रयोग कर उस के साथ संबंध बनाता था. झगड़ा तब ज्यादा होता था जब वह उस के ऊपर अप्राकृतिक संसर्ग के लिए दबाव बनाता था. धीरेधीरे झगड़ा बढ़ता गया और रेहाना, शौहर की गंदी हरकतों से आजिज आ कर अक्तूबर में अपने मायके चली गई.

रेहाना रूठ कर मायके चली गई तो अय्यास नसीरुद्दीन उर्फ अउवापउवा सेक्स के लिए परेशान रहने लगा. उस का दिन तो कामधाम में कट जाता, लेकिन रात में औरत की कमी सताने लगती. उस के मन में अपनी भाभी जुनैदा के प्रति भी खोट था, पर भाई के डर से वह उस की तरफ कदम नहीं बढ़ा पा रहा था. यद्यपि वह भाभी के साथ हंसीमजाक तथा अश्लील हरकतें कर देता था. जुनैदा उसे डांटफटकार देती थी. एक रोज अपने काम पर जाते समय नसीरुद्दीन की नजर इरफान की खूबसूरत पत्नी सादिया पर पड़ी. 30 वर्ष की उम्र पार कर चुकी 3 बच्चों की मां सादिया की खूबसूरती में कमी नहीं आई थी. नसीरुद्दीन ने उसे अपनी हवस का शिकार बनाने का निश्चय कर लिया.

उस ने सोचा कि सादिया अपने शौहर और बच्चों के साथ गांव के बाहर खेत पर बने मकान पर रहती है, इसलिए उसे आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. अगर उस ने शोर मचाया भी तो उस की चीखपुकार गांव तक सुनाई नहीं देगी. जिस से उसे कोई बचाने भी नहीं आएगा. सादिया पर जम गईं निगाहें इस के बाद वह सादिया व उस के शौहर की रेकी करने लगा. 20 नवंबर, 2019 को वह रात 9 बजे सादिया के दरवाजे पर पहुंचा. उसने बाउंड्री से झांका तो सादिया मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी. अत: वह वापस घर आ गया. नसीरुद्दीन वापस जरूर आ गया था पर उस की सेक्स की भूख बढ़ गई थी. वह सादिया के शरीर से हर हाल में खिलवाड़ करना चाहता था.

24 नवंबर, 2019 की शाम नसीरुद्दीन अपने गांव के मैडिकल स्टोर से कामोत्तेजक दवा तथा कंडोम खरीद लाया. दवा खाने के बाद उस ने निश्चय कर लिया था कि चाहे जो भी हो, वह आज सादिया के साथ संबंध बना कर ही रहेगा. रात 10 बजे वह घर से निकला और घूमतेफिरते रात साढ़े 10 बजे इरफान के घर जा पहुंचा. उस ने बाउंड्री से झांक कर देखा तो पूरा परिवार टिन शेड के नीचे सो रहा था. दरवाजे में अंदर से कुंडी नहीं लगी थी. बांस का डंडा लगा था, जो दरवाजे को खुलने से रोके हुए था. नसीरुद्दीन ने आहिस्ता से डंडे को सरकाया और दरवाजे को अंदर की ओर धकेला, इस से दरवाजा खुल गया. लेकिन इसी बीच डंडा जमीन पर गिर पड़ा. डंडे के गिरने की आवाज से इरफान की आंखें खुल गईं.

वह जैसे ही उठ कर खड़ा हुआ, नसीरुद्दीन ने लपक कर बाउंड्री से ईंट उठाई और इरफान के सिर पर भरपूर प्रहार किया. इरफान का सिर फट गया. खून की धार बह निकली और वह कराहता हुआ जमीन पर धराशायी हो गया. शौहर के कराहने की आवाज सुन कर तख्त पर अपनी 4 महीने की बच्ची नूर के साथ लेटी सादिया की आंखें खुल गईं. वह उठने को हुई तो नसीरुद्दीन ने उस के सिर पर भी ईंट का प्रहार कर दिया. सादिया का सिर फट गया. वह तड़पने लगी. नसीरुद्दीन को इस सब से कोई लेनादेना नहीं था. उस ने सादिया को दबोच लिया और उस के शरीर से एकएक कपड़ा उतार फेंका. इस के बाद उस ने सादिया के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए. सादिया विरोध करती रही और नसीरुद्दीन उस के जिस्म को रौंदता रहा. इसी बीच वह बेहोश हो गई.

इसी दौरान दूसरी चारपाई पर अपने 5 वर्षीय भाई अमन के साथ लेटी 10 वर्षीया अमायरा की आंखें खुल गईं. उस ने मां से पानी मांगा. तभी नसीरुद्दीन अमायरा के पास जा पहुंचा. उसे देख कर अमायरा को लगा कि घर में चोर घुस आया है. वह शोर मचाने लगी. नसीरुद्दीन ने उस के माथे पर ईंट से प्रहार कर दिया. अमायरा अर्द्धबेहोश हो गई. नसीरुद्दीन कामोत्तेजक दवा खा कर आया था, वह दरिंदा बना हुआ था. उस ने अपने साथ लाए कंडोम का उपयोग किया और मासूम अमायरा को दबोच कर उस के साथ अप्राकृतिक मैथुन किया. इस दौरान वह बच्ची असहनीय दर्द से छटपटाती रही. पर उस दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई. उसी समय मासूम अमन भी जाग गया. वह रोने लगा तो वहशी अउवापउवा ने उस के माथे पर ईंट से प्रहार कर दिया. वह डर व भय से कांपने लगा और फिर बेहोश हो गया.

अब तक नसीरुद्दीन पस्त पड़ गया था. वह कुछ देर सुस्ताता रहा तभी नग्नावस्था में पड़ी सादिया के कराहने की आवाज उस के कानों में पड़ी. उस के नग्न शरीर को देख कर एक बार फिर उस की कामेच्छा भड़क उठी. उस ने फिर सादिया के जिस्म को रौंदा, साथ ही उस ने अपने मोबाइल से वीडियो भी बनाया. सादिया की 4 माह की मासूम बेटी नूर कंबल से ढंकी उस के साथ ही लेटी थी. संबंध बनाने के दौरान वह दब गई और उस का दम घुट गया. संबंध बनाने के बाद नसीरुद्दीन ने सादिया का चेहरा ईंट से कुचल दिया, जिस से उस की मौत हो गई. उस का शौहर पहले ही दम तोड़ चुका था. नसीरुद्दीन ने 3 घंटे तक वहशी खेल खेला फिर सादिया का मोबाइल ले कर वापस घर आ गया.

जुनैदा के कहने पर फेंके मोबाइल सुबह को उस ने अपनी भाभी जुनैदा को सादिया की अश्लील वीडियो दिखाई. जिसे देख कर जुनैदा भड़क गई और बोली, ‘‘पउवा तू ने यह क्या कुकर्म कर डाला. तू ने जिस सादिया को हवस का शिकार बनाया है वह इसी गांव की बेटी है और रिश्ते में तेरी बहन थी. तू ने जो गुनाह किया है उस के लिए कोई भी तुझे माफ नहीं करेगा. तू अभी जा और इस मोबाइल को किसी नदीनाले में फेंक आ.’’

भाभी की बात सुन कर नसीरुद्दीन को पछतावा हुआ. वह गांव के बाहर गया और नदी में दोनों मोबाइल फोन फेंक दिए. घर आ कर कमरे में पड़ गया. रात को मृतकों की कब्र पर जा कर शांत कब्रों से वह अपने गुनाहों की माफी मांगता. बाद में जब पुलिस ने जुनैदा को अपना गवाह बना लिया तो उस ने सारी बातें सचसच बता दीं. इधर सुबह 10 बजे घटना का खुलासा तब हुआ, जब अनीस अहमद अपने खेत पर गया और मछली पकड़ने के लिए इरफान को बुलाना चाहा. पुलिस की अथक मेहनत पर आरोपी एक सप्ताह बाद पकड़ा गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट एक खेत से बरामद कर ली. मोबाइल फोन बरामद करने के लिए पुलिस ने गोताखोरों को तालाब में उतारा, लेकिन फोन बरामद नहीं हो सके.

हत्यारोपी नसीरुद्दीन से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी ने 3 दिसंबर, 2019 को उसे आजमगढ़ कोर्ट में पेश किया. जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. मृतक के मासूम बच्चों अमन और अमायरा की जिम्मेदारी बड़े भाई इमरान ने ले ली थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, अमन व अमायरा परिवर्तित नाम है

 

Crime news : लेडी डाक्टर के साथ गैंगरेप किया और जला डाला

Crime news : दुर्दांत दरिंदों के जाल में फंस कर जान गंवा चुकी दिल्ली की निर्भया के गुनहगारों को सजा मिलने से पहले, हैदराबाद में भी एक लेडी डाक्टर के साथ बर्बरतापूर्ण ऐसी ही दरिंदगी हुई. फर्क बस इतना रहा कि दिल्ली के गुनहगारों को सजा नहीं मिली पर हैदराबाद के दरिंदों ने अपनी सजा खुद चुन ली…

अगर कोई युवती या महिला शिक्षित होने के साथसाथ खूबसूरत, हंसमुख, मृदुभाषी, शालीन और आत्मनिर्भर हो तो उसे सर्वगुण संपन्न माना जाता है. हैदराबाद की 27 वर्षीय डा. प्रियांशी रेड्डी ऐसी ही युवती थी. पेशे से पशु चिकित्सक प्रियांशी रेड्डी 27 नवंबर, 2019  को औफिस जाने के लिए सुबह 8 बजे घर से निकली. उस का औफिस घर से काफी दूर था, इसलिए उसे घर से जल्दी निकलना पड़ता था. वह शमशाबाद स्थित टोल प्लाजा के नजदीक एक जगह अपनी स्कूटी पार्क करती थी और फिर कैब से कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय जाती थी. छुट्टियों को छोड़ कर डा. प्रियांशी का यह रोजमर्रा का काम था. शाम को औफिस से लौटते वक्त वह पार्किंग से स्कूटी ले कर घर आती थी.

27 नवंबर, 2019 को हौस्पिटल से घर लौटने में उसे थोड़ी देर हो गई थी. साढ़े 7 बजे जब वह टोल प्लाजा पार्किंग पहुंची तो देखा उस की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर था. रात का अंधेरा गहरा चुका था. प्रियांशी यह सोच कर परेशान हो गई कि घर कैसे जाएगी. इतनी रात गए पंक्चर लगना मुश्किल था. दूरदूर तक पंक्चर बनाने वाला कोई नहीं था. स्कूटी को ले कर प्रियांशी काफी परेशान हुई. पार्किंग में जहां स्कूटी खड़ी थी, उस के पास ही एक लोडेड ट्रक खड़ा था. जैसेजैसे रात गहरा रही थी, प्रियांशी की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. परेशानी स्वाभाविक ही थी. वजह यह कि एक तो वह अकेली महिला थी, ऊपर से सुनसान इलाका. वैसे भी वहां सब अजनबी थे.

वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में खडे़ 4 लोगों की आंखें प्रियांशी पर जमी थीं. उस की परेशानी को समझ कर वे खुश थे. जब उन्हें लगा कि वह कुछ ज्यादा ही परेशान है तो वे प्रियांशी के पास आए. उन 4 अजनबियों को देख वह और ज्यादा डर गई. उन चारों में से एक हट्टाकट्टा युवक बोला, ‘‘काफी देर से देख रहे हैं कि आप काफी परेशान हैं. क्या हम आप की कोई मदद कर सकते हैं?’’

प्रियका ने सहम कर उन चारों को देखा और कुछ सोच कर दबी जुबान में बोली, ‘‘पता नहीं कैसे मेरी स्कूटी का पहिया पंक्चर हो गया. आसपास कोई दुकान भी नहीं दिख रही, जहां इसे ठीक करा लूं.’’

‘‘इस में परेशानी की क्या बात है मैडम?’’ वह युवक उतावला हो कर बोला, ‘‘आप कहें तो हम आप की परेशानी दूर कर सकते हैं. मैं एक पंक्चर बनाने वाले को जानता हूं, जो देर रात तक पंक्चर बनाता है.’’

‘‘प्लीज, आप मेरी मदद कीजिए, किसी भी तरह मेरी स्कूटी ठीक करा दीजिए. आप लोगों का बहुत अहसान होगा मुझ पर.’’

‘‘अरे मैडम, इस में अहसान की क्या बात है. हम भी तो इंसान हैं. इंसान एकदूसरे के काम न आए तो धिक्कार है इंसानियत पर.’’ उस युवक की भावनात्मक बातें सुन कर प्रियांशी का डर थोड़ा कम हुआ. उस ने चारों युवकों को स्कूटी ठीक कराने को कह दिया. प्रियांशी की स्वीकृति मिलते ही चारों युवकों ने स्कूटी का पिछला पहिया खोल कर निकाल लिया और पंक्चर बनवाने के लिए वहां से चले गए. युवकों के वहां से जाने के बाद प्रियांशी ने अपनी छोटी बहन रुचिका को फोन कर के सारी स्थिति बता दी. साथ ही कहा कि उसे घर पहुंचने में देर हो सकती है. स्कूटी ठीक होते ही वह घर के लिए निकल जाएगी. दोनों बहनों के बीच करीब 15 मिनट तक बातें होती रहीं. आखिर में प्रियांशी ने थोड़ी देर बाद बात करने के लिए कहा. प्रियांशी ने जब अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट किया, तब 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे.

कहीं नहीं मिली प्रियांशी कुछ देर रुक कर रुचिका ने यह जानने के लिए प्रियांशी को फोन किया कि स्कूटी ठीक हुई या नहीं. लेकिन दूसरी ओर से फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस के बाद रुचिका प्रियांशी का नंबर लगातार मिलाती रही, लेकिन उस का फोन बंद ही मिला. इस से रुचिका परेशान हो गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जिस नंबर पर उस ने थोड़ी देर पहले बात की थी, वह बंद कैसे हो गया. घबराहट के मारे उस की धड़कनें बढ़ गईं. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. रुचिका ने जब यह बात मातापिता को बताई तो वे भी घबरा गए. उस के पिता पी.एस. रेड्डी बगैर समय गंवाए रुचिका और बेटे समीर को साथ ले कर प्रियांशी की तलाश में टोल प्लाजा जा पहुंचे, जहां प्रियांशी ने अपनी मौजूदगी बताई थी.

पी.एस. रेड्डी और उन के दोनों बच्चों ने आसपास सब जगह छान मारीं, लेकिन न तो प्रियांशी कहीं दिखी और न ही उस की स्कूटी. टोल प्लाजा के पास लोडेड ट्रक खड़ा था. यह देख कर वे लोग और भी ज्यादा परेशान हुए. प्रियांशी ने फोन पर रुचिका को वहीं होने की बात कही थी. जब प्रियांशी कहीं नहीं मिली तो वह यह सोच कर डर गए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई है. ऐसे में पी.एस. रेड्डी के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे. वह मन ही मन फरियाद करने लगे कि उन की बेटी जहां भी हो, सहीसलामत और सुरक्षित हो. रेड्डी के मन में खयाल आ रहा था कि क्यों न घर फोन कर के पत्नी से पूछ लें कि बेटी कहीं घर तो नहीं पहुंच गई.

रेड्डी ने पत्नी को फोन कर के बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रियांशी अभी घर नहीं पहुंची है. जवाब सुन कर रेड्डी और भी ज्यादा परेशान हो गए. परेशानी के आलम में रात गहराती जा रही थी. जब कुछ भी समझ में नहीं आया तो रुचिका, पिता और भाई को ले कर साइबराबाद थाने पहुंच गई. उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. थाने पहुंच कर उस ने दीवान को अपनी परेशानी बताई और आवश्यक काररवाई करने के लिए बहन की गुमशुदगी की तहरीर दी. साइबराबाद पुलिस ने काररवाई करने के बजाए कहा कि यह मामला उन के थाना क्षेत्र का नहीं है. वहां की पुलिस ने उन्हें थाना शमशाबाद भेज दिया. जिस जगह से प्रियांशी गुम हुई थी, वह इलाका थाना शमशाबाद में आता था.

शमशाबाद पुलिस ने उन की बात सुनी और प्रियांशी की तलाश में रेड्डी परिवार के साथ कई सिपाही लगा दिए. रेड्डी परिवार और पुलिस ने मिल कर सुबह 4 बजे तक तलाशी अभियान चलाया, लेकिन प्रियांशी का कहीं पता नहीं चला. उस के अचानक गुम हो जाने से रेड्डी परिवार के अड़ोसपड़ोस वाले भी हैरानपरेशान थे. प्रियांशी को तलाश करतेकरते सुबह हो गई थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. परिवार वालों ने अपने परिचितों और नातेरिश्तेदारों को भी फोन कर के पता किया लेकिन प्रियांशी का कोई पता नहीं चला. उस की गुमशुदगी से नातेरिश्तेदार भी परेशान थे. रेड्डी परिवार समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे.

परेशान हो कर रेड्डी बच्चों के साथ घर लौट आए. तब तक सुबह के 7 बज गए थे. थकेहारे रेड्डी अपने बरामदे में चिंतातुर कुरसी पर बैठे थे. तभी करीब 8 बजे उन के मोबाइल पर फोन आया, फोन शमशाबाद थाने से आया था. उन्हें तत्काल शमशाबाद थाने पहुंचने को कहा गया था. फोन पर आई काल सुनते ही पी.एस. रेड्डी का कलेजा धक से रह गया. रुचिका और समीर को साथ ले कर वह थाना शमशाबाद पहुंच गए. थाने पर उन्हें बताया गया कि करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे पर चत्तनपल्ली पुलिया के नीचे एक महिला की जली हुई लाश मिली है, आप हमारे साथ चल कर शिनाख्त कर लें.

लाश बरामद होने की बात सुन कर भाईबहन और पिता सन्न रह गए. रेड्डी साहब को तो ऐसा झटका लगा कि वह घुटनों में सिर रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गए. रुचिका ने पिता को संभाला और उन्हें पुलिस के साथ ले कर घटनास्थल जा पहुंची. हैदराबाद-बेंगलुरु राष्ट्रीय राजमार्ग की पुलिया के नीचे एक युवती की बुरी तरह जली लाश पड़ी थी. लाश इतनी ज्यादा जल गई थी कि पहचानना मुश्किल था. उत्सुकतावश रुचिका लाश के पास पहुंची और ध्यान से देखने लगी. लाश के गले में लौकेट पड़ा था. प्रियांशी ऐसा ही लौकेट पहनती थी. गले में पड़े लौकेट को देख रुचिका दहाड़ मार कर रोने लगी.

इस से यह बात साफ हो गई कि लाश डा. प्रियांशी रेड्डी की थी. यह देख पुलिस समझ गई कि मृतका डा. प्रियांशी रेड्डी ही है. वही प्रियांशी जो कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय में बतौर डाक्टर तैनात थी. डा. प्रियांशी रेड्डी की लाश बरामद होते ही यह मामला हाईप्रोफाइल बन गया. यह खबर तेजी से फैली. प्रियांशी की हत्या की सूचना मिलते ही लोग उग्र और आक्रोशित हो गए. शहरी नागरिकों के आक्रोश को देख पुलिस के हाथपांव फूल गए. शहर के लोगों में इस बात को ले कर आक्रोश था कि हत्यारों ने प्रियांशी की हत्या क्यों की और हत्या के बाद उसे जलाया क्यों?

जिले की कानूनव्यवस्था गड़बड़ाती, इस से पहले ही पुलिस सक्रिय हो गई. पुलिस फोर्स को यहांवहां मुस्तैदी से तैनात कर दिया गया. बात बढ़े, इस से पहले ही पुलिस ने चतुराई से लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. 29 नवंबर, 2019 को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस के हाथपांव फूल गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले मृतका के साथ बलात्कार किया गया और बाद में उस का गला घोंटा गया. मतलब मामला बलात्कार और कत्ल का था. प्रियांशी के साथ बलात्कार के बाद हत्या की पुष्टि होेते ही हाहाकार मच गया. न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबर देश भर में फैल गई.

इस घटना को ले कर देश भर में गुस्सा फूटने लगा. सोशल मीडिया से ले कर आम नागरिक तक सड़क पर उतर आए. लोग दरिंदों के लिए फांसी की मांग कर रहे थे. इस घटना ने करीब 7 साल पहले दिल्ली के धौला कुआं में निर्भया के साथ घटी घटना की यादें ताजा कर दी थीं. दरिंदों ने निर्भया के साथ हद दरजे की दरिंदगी की थी. दरिंदगी और बर्बरता की वजह से निर्भया की मौत हो गई थी. प्रियांशी का परिवार ही नहीं देश भर के लोग सरकार से दुष्कर्मियों को मार डालने की गुहार लगा रहे थे. डा. प्रियांशी रेड्डी के रेप और हत्या की हर तबके, हर धर्म के लोगों ने न केवल निंदा की बल्कि हत्यारों को तुरंत फांसी पर चढ़ाने को कहा. घटना में पुलिस की घोर लापरवाही को ले कर लोग उस पर तमाम तरह के आरोप लगा रहे थे.

जब देश भर में बेंगलुरु पुलिस की किरकिरी होने लगी तो प्रदेश के पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. डीजीपी का आदेश मिलते ही साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन के आदेश पर पुलिस गुनहगारों की सघन तलाशी में जुट गई. सज्जनार के आदेश पर पुलिस ने जांच वहीं से शुरू की, जहां से डा. प्रियांशी गुम हुई थी. सज्जनार ने सब से पहले खुद टोल प्लाजा के आसपास के सीसीटीवी फुटेज देखे. सीसीटीवी ही ऐसा चश्मदीद हो सकता था, जो पुलिस को बलात्कारी हत्यारों तक पहुंचा सकता था.

टोल प्लाजा पर पूछताछ करने पर पता चला था कि बीती रात एक लोडेड ट्रक वहां रुका था, जिस में केवल 4 युवक सवार थे. टोल प्लाजा के पास एक कैमरे में 4 युवक, जिन की उम्र 22 से 27 साल के बीच थी, चहलकदमी करते हुए दिखाई दिए. पहनावे से वे चारों ड्राइवर जैसे दिख रहे थे. पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने टोल प्लाजा के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो उन से भी यही पता चला कि काफी देर तक खड़ी रहे लोडेड ट्रक के आसपास 4 युवक देखे गए थे. सीसीटीवी फुटेज में चारों युवक संदिग्ध दिख रहे थे. सीसीटीवी कैमरे और लोगों से की गई पूछताछ से यह बात तय हो गई थी कि संदिग्ध दिखने वाले चारों युवक ही दोषी थे.

ट्रक वाले युवक आए संदेह के दायरे में पूछताछ में पुलिस ने जैसेतैसे चारों युवकों के नाम खोज निकाले. उन में से एक का नाम मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू उर्फ चेन्ना था. इन में से 26 साल का पाशा और 20 साल का जोलू शिवा लौरी ड्राइवर थे, जबकि 23 वर्षीय जोलू नवीन और 20 साल का चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू क्लीनर थे. यह बात सज्जनार के लिए काफी काम की साबित हुई. निर्दयी हत्यारों तक पहुंचने के लिए शादनगर पुलिस और शमशाबाद पुलिस को साथ काम करने को कहा गया. पुलिस ने चारों हत्यारों तक पहुंचने के लिए मुखबिरों का जाल बिछा दिया. जांचपड़ताल में मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ के बारे में जानकारी मिली. वह महबूबनगर जिले के नारायणपेट का रहने वाला था.

पाशा के बारे में सूचना मिलते ही पुलिस ने उसे उस के घर से धर दबोचा. पुलिस उसे थाना शादनगर ले आई. कमिश्नर सज्जनार की देखरेख में थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने जुबान खोल दी. पाशा ने प्रियांशी की स्कूटी से ले कर उसे जलाने तक की कहानी बता दी. उस ने कमिश्नर के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने 3 साथियों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना के साथ मिल कर प्रियांशी रेड्डी के साथ बलात्कार किया था. राज छिपाने के लिए बाद में चारों ने मिल कर उस की हत्या कर दी थी और लाश को जला दिया था. उस ने इस से आगे की सारी बातें विस्तार से बता दीं कि क्याक्या और कैसे हुआ था. पाशा का बयान दिल दहलाने वाला था.

खैर, सज्जनार ने काफी समझदारी से काम लेते हुए पाशा उर्फ आरिफ की निशानदेही पर तीनों दरिंदों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. ये तीनों भी महबूबनगर के नारायणपेट के रहने वाले थे, जिन में नवीन और शिवा सगे भाई थे. इन तीनों ने भी अपनाअपना जुर्म कबूल कर लिया. 30 नवंबर, 2019 को डा. प्रियांशी रेड्डी केस के चारों मुलजिमों की गिरफ्तारी की खबर लगते ही स्थानीय लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने शादनगर थाने पर धावा बोल दिया. लोगों का कहना था कि चारों दरिंदों को उन के हवाले कर दिया जाए. जिस तरह इन दरिंदों ने मिल कर प्रियांशी के साथ बर्बरता की, उसी तरह उन के साथ भी किया जाएगा.

काफी मशक्कत के बाद जैसतैसे सज्जनार ने स्थिति को संभाला और भीड़ को भरोसा दिया कि प्रियांशी का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. उस के चारों गुनहगारों को कड़ी सजा दिलाने में वह पीछे नहीं रहेंगे. उन के आश्वासन पर लोगों का आक्रोश शांत हुआ. लोगों के आक्रोश को देख कर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने पहली बार कहा कि प्रियांशी के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए मुकदमा फास्टट्रैक कोर्ट में चलेगा और मुलजिमों को 6 महीने के अंदर कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी. इस के बाद पुलिस कमिश्नर सज्जनार ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. उन से की गई पूछताछ के बाद दुष्कर्म, हत्या और वहशत से जुड़ी दुर्दांत हत्यारों की हकीकत पता चली.

27 वर्षीय प्रियांशी रेड्डी मूलरूप से हैदराबाद के साइबराबाद की रहने वाली थी. पी.एस. रेड्डी की 3 संतानों में प्रियांशी बड़ी थी. जबकि भाई समीर और रुचिता छोटे थे. प्रियांशी अपनी मेहनत के बूते पर पशु चिकित्सक बनी थी. प्रियांशी रेड्डी का औफिस घर से करीब 30-35 किलोमीटर दूर नवाबपेट मंडल के कोल्लुर में था. ड्यूटी के लिए वह रोजाना सुबह लगभग 8 बजे अपनी स्कूटी से घर से निकलती थी. स्कूटी को वह शमशाबाद टोल प्लाजा के नजदीक पार्क कर के वहां से कैब ले कर कोल्लुर जाती थी. फिर शाम 5 बजे के करीब वह कोल्लुर से कैब ले कर टोल प्लाजा आती और वहां से अपनी स्कूटी ले कर घर पहुंच जाती थी.

घटना से कुछ दिनों पहले उसी टोल प्लाजा पर महबूबनगर के नारायणपेट का रहने वाला मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा अपनी लौरी ट्रक ले कर रुका था. उस की लौरी में हेल्पर के रूप में उसी के गांव के 3 युवक जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू सवार थे. आरिफ जब भी लौरी ले कर बाहर निकलता था, ये तीनों उस के साथ रहते थे. मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा शादीशुदा था. उस की पत्नी ससुराल में पति और सासससुर के साथ रहती थी. आरिफ अपने गांव और घर में किसी से कोई खास मेलजोल नहीं रखता था. वह अपने काम से काम रखता था, जबकि जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना खुराफाती दिमाग के थे.

गांव में हमेशा सब से झगड़ा करते थे, झगड़ालू प्रवृत्ति के तीनों युवकों से गांव वाले अलगथलग रहते थे, ताकि अपना सम्मान बचाए रखें. कम पढ़ेलिखे तीनों युवक बातबात पर भद्दीभद्दी गालियां देने से भी नहीं चूकते थे. कैसे आई प्रियांशी हैवानों के निशाने पर बहरहाल, जिस समय आरिफ लौरी ले कर टोल प्लाजा पर रुका था, उसी समय प्रियांशी भी टोल प्लाजा अपनी स्कूटी लेने पहुंची थी. प्रियांशी की खूबसूरती देख कर आरिफ के मन में पाप जाग उठा. वह तब तक प्रियांशी को देखता रहा, जब तक उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. प्रियांशी के जाने के बाद आरिफ होंठों ही होंठों में बुदबुदाया, ‘‘क्या माल है यार.’’

आरिफ को बुदबुदाता देख जोलू पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है पाशा उस्ताद, किस की बात कर रहे हो?’’

आरिफ ने जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही कह रहा था. कोई बात नहीं है. चलो, चायशाय पीते हैं. फिर अपनी धन्नो को आगे बढ़ाएंगे.’’

आरिफ ने जोलू की बात टाल दी और चाय की दुकान की ओर बढ़ गया. चारों चाय पी कर लौरी से आगे चले गए. आरिफ माल की डिलिवरी दे कर जब 2 दिनों बाद शाम को उसी रास्ते पर लौटा तो उस ने टोल प्लाजा पर फिर अपनी लौरी रोक दी. उसे चाय की जोरों से तलब लगी थी. जब उस ने लौरी सड़क किनारे लगाई, तभी उस की नजर प्रियांशी पर पड़ी. प्रियांशी पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाल रही थी. वह उसे तब तक खा जाने वाली नजरों से घूरता रहा, जब तक वह दिखती रही. डा प्रियांशी रेड्डी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया और वह अपनी स्कूटी ले कर घर चली गई.

उस दिन के बाद आरिफ जब भी लौरी ले कर माल की डिलिवरी करने जाता, टोल प्लाजा के पास अपनी लौरी खड़ी कर के चाय की चुस्की लेने के बहाने प्रियांशी की स्कूटी देखता और चाय पी कर चला जाता. उसे यकीन हो गया था कि प्रियांशी रोज अपनी स्कूटी यहीं खड़ी करती है और फिर कहीं जाती है. आरिफ को बस इतना पता था कि उस के दिमाग में कुछ हलचल सी हुई है. उस के जिस्म में अय्याशी के कीड़े कुलबुलाने लगे. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर एक खरतनाक योजना बना ली थी और उस दिन के बाद वह प्रियांशी पर नजर रखने लगा था. वह सही मौके की तलाश में जुट गया. आखिरकार वह मौका उसे 27 सितंबर, 2019 को मिल ही गया.

उस दिन शाम करीब 5 बजे आरिफ लौरी ट्रक ले कर टोल प्लाजा पहुंचा और लौरी को एक ओर खड़ी कर के चाय की दुकान पर चाय पीने चला गया. उस के साथ तीनों हेल्पर जोलू शिवा, जोलू नवीन और चेन्ना भी थे. आरिफ को पता था कि प्रियांशी के आने का समय हो रहा है. चाय पीने के बाद उस ने अपने साथियों को वहां से उठने का इशारा किया. योजनानुसार प्रियांशी को किसी भी तरह रात 9 बजे तक रोकना था. इस के लिए आरिफ ने नुकीली कील से प्रियांशी की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर कर दिया और चारों वहां से थोड़ी दूर हट कर उस पर नजर रखने लगे. रात करीब 7 बजे प्रियांशी टोल प्लाजा पहुंची. वहां से वह पार्किंग में गई, जहां उस ने अपनी स्कूटी पार्क की थी. स्कूटी पंक्चर देख कर उस का माथा चकरा गया कि वह घर कैसे पहुंचेगी? स्कूटी को ले कर वह परेशान हो गई.

योजना के अनुसार, तभी आरिफ तीनों साथियों के साथ प्रियांशी के पास पहुंचा और परेशानी का सबब पूछा तो उस ने बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है और इतनी रात गए कहीं पंक्चर लग नहीं सकता. आरिफ और उस के तीनों साथी मन ही मन खुश हुए. शिकार जाल में फंस गया था. बस चोट करने की देरी थी. तभी आरिफ ने उस के सामने पंक्चर लगवा देने की पेशकश की तो प्रियांशी ने सकुचाते हुए हां कर दी. प्रियांशी की ओर से हरी झंडी मिलते ही आरिफ ने पिछला पहिया खोल कर जोलू शिवा को सौंप दिया कि वह पंक्चर लगवा कर ले आए. इसी बीच प्रियांशी ने छोटी बहन रुचिका को फोन कर के बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है. कुछ लोग उस की मदद के लिए तैयार हैं. लेकिन पता नहीं क्यों उसे डर सा लग रहा है. उस ने आगे कहा कि वह तब तक बात करती रहे, जब तक कि पंक्चर लग कर आ न जाए.

प्रियांशी की आखिरी फोन काल इस पर रुचिका ने उसे सलाह दी कि डर लग रहा है तो पुलिस को फोन कर दे या आसपास कोई ओर हो तो उस की मदद ले ले. या फिर स्कूटी वहीं छोड़ कर कैब ले कर घर चली आए. उस समय रात के 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे और चारों ओर सन्नाटा फैल चुका था. रात के सन्नाटे में प्रियांशी तीनों लड़कों के बीच अकेली डरीसहमी खड़ी थी. छोटी बहन से बात करने के बाद प्रियांशी को उस की बात जंच गई और कैब ले कर घर जाने का मन बना लिया. उसी समय आरिफ ने देखा कि शिकार उस के हाथ से निकल रहा है. फिर क्या था, अचानक आरिफ, चेन्ना और नवीन फुरती से प्रियांशी पर झपट पड़े और उसे अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया.

सब से पहले आरिफ ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ किया ताकि वह किसी से बात न कर पाए. उस के बाद तीनों उस का मुंह दबा कर घसीटते हुए पीछे खेत में ले गए. तीनों ने बारीबारी से अपनी हवस मिटाई. उसी समय पंक्चर लगवा कर जोलू शिवा भी वहां पहुंचा. बाद में उस ने भी अपनी जिस्मानी भूख मिटाई. अंत में एक बार फिर आरिफ ने प्रियांशी के साथ मुंह काला किया. उस समय उस के मजबूत हाथ की पकड़ प्रियांशी के मुंह और नाक पर बनी रही, जिस से दम घुटने से उस की मौत हो गई. प्रियांशी की मौत होते ही चारों के सिर से हवस का जुनून उतर गया. डर के मारे वे चारों थरथर कांपने लगे थे. आरिफ ने सुझाया कि लाश यहां छोड़ी तो पकड़े जाएंगे.

इसे ठिकाने लगाना होगा. उस के बाद चारों ने पहले प्रियांशी की लाश लौरी में लादी फिर उस की स्कूटी. उस के बाद उस ने शिवा को एक कैन दे कर पैट्रोल पंप से पैट्रोल मंगवाया. पैट्रोल लेते शिवा की तसवीर पैट्रोल पंप के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. शिवा पैट्रोल ले कर आया और चारों वहां से लौरी ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे के चत्तनपल्ली पहुंचे. इन लोगों ने हाइवे के नीचे स्थित पुलिया के अंदर लौरी खड़ी कर दी. फिर चारों ने मिल कर लौरी से प्रियांशी की डेडबौडी और स्कूटी नीचे उतारी. स्कूटी एक ओर खड़ी कर दी. फिर उस की लाश पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद चारों वहां से अपनेअपने घर पहुंच गए.

वहीं मिली सजा, जहां प्रियांशी की लाश जलाई गई रात 2 बजे के करीब आरिफ अपने घर पहुंचा तो उस की मां ने उस से इतनी देर से आने का कारण पूछा. वह कुछ बोला नहीं बस इतना ही कहा कि मुझे सोने दो, सुबह बात करेंगे. फिर वह अपने कमरे में चला गया. उस समय वह बुरी तरह घबराया हुआ था. उस की मां भी उससे कुछ पूछ नहीं पाई थी. इधर प्रियांशी के घर वाले उस से बात न होने और मोबाइल स्विच्ड औफ आने के बाद टोल प्लाजा पहुंचे तो वहां न तो प्रियांशी दिखाई दी और न ही उस की स्कूटी. वह दिखाई तो तब देती जब वह वहां होती. दरिंदे तो उस का काम तमाम कर के वहां से भाग चुके थे. घर वाले रात भर उस की तलाश में मारेमारे यहांवहां फिरते रहे. अगली सुबह जब उस की जली हुई लाश बरामद हुई तो उस की तपिश से पूरा देश धधक उठा. फिर क्या हुआ, कहानी में ऊपर वर्णित है.

बहरहाल, गिरफ्तार किए गए चारों आरोपियों मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को 5 दिसंबर, 2019 को पुलिस ने अदालत से रिमांड पर लिया. उन्हें ले कर पुलिस क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए उसी घटनास्थल पर पहुंची, जहां डा. प्रियांशी को जलाया था. उसी दौरान अंधेरे का लाभ उठा कर अभियुक्तों ने पुलिस के हथियार छीन कर उलटे पुलिस पर ही हमला बोल दिया और भागने की कोशिश की. इस का नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने चारों मार गिराए. हैदराबाद के चारों हैवानों के किस्से 10 दिनों में ही खत्म हो गए.

कुछ सफेदपोशों ने इसे जानबूझ कर बदले की भावना में की गई हत्या करार दिया. उस के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मामले की जांच के लिए मैजिस्ट्रियल जांच बैठा दी गई. अब सच्चाई जो भी निकले, लेकिन देश का हर तबका उन के मारे जाने पर खुश हुआ.

—कथा में मृतका और उस के परिजनों के नाम  परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

 

Police Story : SP सुरेंद्र दास ने आत्महत्या करने के लिए जहर क्यों खाया

Police Story : सुरेंद्र कुमार दास कानपुर के एसपी पद पर थे. उन के जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं था. इस के बावजूद भी ऐसी क्या वजह रही जो उन्हें खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’

पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दीपुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया. पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था. स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी. यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी

रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गएमुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.

जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी. सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे. नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थीवैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं थावह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थेकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी .के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था. अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी. इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना हैरवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते. एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया. रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया. बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.    

Rajasthan Crime : ठेकदारों को पैसा नहीं दिया तो कर लिया अपहरण

Rajasthan Crime : नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को बाड़मेर के गांव उत्तरलाई में सोलर प्लांट लगाना था. इस के लिए नैचुरल पावर कंपनी ने बंगलुरु की सबलेट कंपनी को ठेका दिया, जो काम अधूरा छोड़ कर भाग गई. प्लांट की स्थिति जानने के लिए जब हैदराबाद से कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी अपने दोस्त सुरेश रेड्डी के साथ बाड़मेर आए तो…    

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था. बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गएतेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई. स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिलेश्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थेचूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगेअपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो.

इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया. श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थेश्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता थाश्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके. बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे. उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलायाएसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थीबस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थींएसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए. वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गयापुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ कीश्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया. सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगेनैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया. मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिलेउन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया. पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी. तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थेसबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया. मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना लीइन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगेसभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

Social crime : धोखेबाज तांत्रिक की खोंफनाक चाल

Social crime :  जो लोग अपनी किसी परेशानी के चलते तंत्रमंत्र और तांत्रिकों, मौलवियों या ऐसे ही दूसरे धंधेबाजों के जाल में फंस जाते हैं, उन का हित कभी नहीं हो पाता. हां, अहित उन्हें अपने डैनों में जकड़ लेता है. कभीकभी तो जान तक चली जाती है. कुलदीप सिंह और उन के परिवार के साथ भी…

28 अगस्त, 2018 को मोहाली स्थित सीबीआई के माननीय जज एन.एस. गिल की विशेष अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. उस दिन एक ऐसे मामले का फैसला होना था, जिस में आरोपी ने कोई एकदो नहीं बल्कि 10 लोगों की हत्या की थी.  न्याय पाने के लिए पीडि़त परिवार ने न केवल लंबी लड़ाई लड़ी थी बल्कि इस लड़ाई में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था. तब कहीं जा कर आज का दिन देखना नसीब हुआ था. 2 परिवारों के 10 लोगों की हत्या करने के बाद कातिल ने जब हत्याएं करने का मकसद बताया तो अदालत में मौजूद लोगों के होश उड़ गए.

सुहावी गांव के खुशविंदर सिंह उर्फ खुशी ने 14 साल पहले जून 2004 में पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में एक ही परिवार के 4 सदस्यों की हत्या की थी. यह केस लंबी अवधि तक चलता रहा. आखिर सीबीआई की विशेष अदालत ने 28 अगस्त, 2018 को खुशविंदर को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई. अदालत इस दोषी को पहले भी एक ही परिवार के 6 लोगों की हत्या करने के मामले में मौत की सजा सुना चुकी थी. आरोपी ने इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दया की अपील डाल रखी थी. जज एन.एस. गिल ने अपने फैसले में लिखा कि यह अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी का है. दोषी ने एक साथ परिवार के 4 सदस्यों को मौत के घाट उतारा है, जिस में 2 बच्चे भी शामिल थे, जिन्हें अभी दुनिया देखनी थी. ऐसी स्थिति में दोषी पर किसी भी कीमत पर रहम नहीं किया जा सकता.

10 हत्याओं का घटनाक्रम कुछ इस तरह था. पंजाब के फतेहगढ़ साहिब के बसी पठाना क्षेत्र में कुलवंत सिंह का परिवार रहता था. उन के परिवार में 40 वर्षीय पत्नी हरजीत कौर, 17 वर्षीय बेटी रमनदीप कौर और 14 वर्षीय बेटा अरविंदर सिंह थे. कुलवंत सिंह मेहनती दयालु और सज्जन पुरुष थे. उन का परिवार भी नेकदिल था. अपने गांव में उन की काफी इज्जत थी. सुहावी निवासी खुशविंदर सिंह उर्फ खुशो का भाई कुलविंदर सिंह बसी पठाना में रहता था, वह कुलवंत सिंह के पास मुंशी का काम करता था. वह अपने काम के प्रति पूरी तरह ईमानदार था. कुलवंत सिंह को उस से कोई शिकायत नहीं थी. उस की ईमानदारी को देखते हुए वह उस पर विश्वास करते थे और एक तरह से उसे अपना पारिवारिक सदस्य मानने लगे थे.

धीरेधीरे मुंशी कुलविंदर सिंह और कुलवंत सिंह के परिवारों में आनाजाना होने लगा. इसी दौरान कुलवंत सिंह की मुलाकात मुंशी कुलविंदर सिंह के भाई खुशविंदर सिंह उर्फ खुशी से हुई. कुलविंदर सिंह और खुशी का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था. उस के पास खेती की जमीन तो थी, लेकिन काफी कम. इतनी जमीन में घर का खर्च चलाना मुश्किल था. मुंशी होने के नाते कुलवंत सिंह यदाकदा उस की मदद कर दिया करते थे. एक दिन खुशी ने कुलवंत सिंह से फतेहगढ़ साहिब कोर्ट के बाहर फोटोस्टेट की मशीन लगाने के लिए मदद मांगी तो वह झट से तैयार हो गए और उन्होंने खुशी के लिए फोटोस्टेट मशीन लगवा दी. इस बीच खुशी काफी हद तक कुलवंत सिंह और उन के परिवार से घुलमिल गया था. ये सभी बातें सन 2004 की हैं.

मई 2004 में कुलवंत सिंह ने अपनी कुछ जमीन बेची थी, जिस के बदले उन्हें करीब 12 लाख रुपए मिले थे. यह बात जब खुशी को पता चली तो उस के मन में लालच आ गया. उन रुपयों को हथियाने के लिए उस ने एक जबरदस्त साजिश रच डाली. कुलदीप को अपनी बातों के जाल में फंसा कर एक दिन उस ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह ख्वाजा पीर का भक्त है और उस के पास और भी कई प्रकार की सिद्ध शक्तियां हैं. उस ने कुलदीप से कहा, ‘‘आप ने मेरी इतनी मदद की है, मुझे फोटोस्टेट मशीन लगवा दी. इसलिए मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं भी आप की कुछ सेवा कर अपना कर्ज उतार दूं. आप के पास जितनी भी रकम है. वह मैं अपनी सिद्धियों के जरिए दोगुनी कर सकता हूं.’’

पंजाब में अधिकांश लोग ख्वाजा पीर को मानते हैं. हालांकि कुलवंत सिंह ने इनकार करते हुए कहा कि उन के पास जो है वह वाहेगुरु जी का दिया है. लेकिन खुशी ने अपनी दलीलों से उन्हें संतुष्ट करते हुए भरोसा दिलाया कि वह जो पूजा करेगा, उस के बाद रकम दोगुनी हो जाएगी. कुलवंत सिंह को भी लालच आ गया. तब खुशी ने उन्हें बताया कि पूजा नहर किनारे पूरे परिवार के साथ अलसुबह होगी. खुशी ने इस बात की भी सख्त हिदायत दी थी कि इस बात का जिक्र किसी से नहीं करना है अन्यथा परिवार में कुछ अनिष्ट हो जाएगा. यह बात 2 जून, 2004 की है.

अगली सुबह दिनांक 3 जून को रात करीब ढाई बजे कुलवंत सिंह अपनी पत्नी हरजीत कौर, बेटी रमनदीप कौर और बेटे अरविंदर सिंह के साथ 12 लाख रुपए ले कर फतेहगढ़ नहर किनारे पहुंच गए. खुशी वहां पहले से ही मौजूद था. उस ने परिवार के चारों सदस्यों की आंखों पर पट्टी बांध कर उन्हें नहर किनारे खड़ा कर दिया. इस के बाद उस ने पूजा शुरू कर दी. खुशी की योजना से अनभिज्ञ वे चारों आंखों पर पट्टी बांधे नहर किनारे खड़े थे. कुछ देर पूजा का ड्रामा करने के बाद खुशी ने एकएक कर के सब को नहर में धक्का दे दिया और 12 लाख रुपए ले कर अपने घर चला गया. नहर में पानी का बहाव बहुत तेज था, इसलिए कुलवंत सिंह के परिवार के किसी भी सदस्य की लाशें नहीं मिलीं. कोई नहीं जान सका कि वे चारों कहां गए. इस के बाद मृतक के साले कुलतार सिंह के बयानों पर थाना बस्सी पठाना में 5 जून को केस दर्ज हुआ था.

घटना के बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गई. इस बात का पता नहीं चल सका कि एक ही घर के सभी सदस्य आखिर कहां गायब हो गए. पुलिस ने संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा, पर उन का पता पता नहीं चल सका. फिर 7 जून, 2004 को रमनदीप कौर और 9 जून को कुलवंत सिंह का शव नहर में मिला. जबकि हरजीत कौर व उस के बेटे अरविंदर सिंह के शव आज तक बरामद नहीं हुए. कुलवंत सिंह के परिवार का अध्याय यहीं समाप्त हो गया था. इस मामले में फतेहगढ़ पुलिस ने काफी मेहनत की थी पर खुशविंदर सिंह उर्फ खुशी ने यह काम इतनी सफाई से किया था कि पूरी कोशिशों के बाद भी पुलिस आरोपी तक नहीं पहुंच पाई थी. इस के बाद सन 2005 में फतेहगढ़ साहिब पुलिस ने इस मामले में अपनी क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी.

यह केस अनसुलझा ही रह गया था. इस के बाद कुलतार सिंह के भाई की प्रार्थना पर यह केस राज्य की क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर हो गया था. काफी माथापच्ची के बाद भी क्राइम ब्रांच के हाथ कुछ नहीं लगा था और 3 अगस्त, 2006 में क्राइम ब्रांच ने भी इस मामले में अपनी क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी. पर कुलतार सिंह इस से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने सन 2007 में पंजाब ऐंड हरियाणा हाईकोर्ट की शरण ली. 16 मार्च, 2007 में अदालत के आदेश पर यह केस सीबीआई को दे दिया गया था. सीबीआई भी आरोपी तक नहीं पहुंच पाई. इस के बाद सन 2009 में सीबीआई ने भी इस मामले में अपने हाथ खड़े करते हुए अपनी रिपोर्ट फाइल कर के मामला बंद कर दिया. कुलवंत के परिजनों की हत्याओं का रहस्य एक रहस्य ही बन कर रह गया था.

इस के 8 साल बाद जून 2012 में खुशविंदर उर्फ खुशी ने अपनी पत्नी के मामा के परिवार को निशाना बनाया और उस परिवार के 6 लोगों की नहर में फेंक कर हत्या कर दी थी. इन में पंजाब पुलिस का रिटायर्ड कांस्टेबल गुरमेल सिंह, उस की पत्नी परमजीत कौर, बेटा गुरिंदर सिंह, बेटी जैसमीन, रुपिंदर सिंह व प्रभसिमरन कौर शामिल थे. लेकिन किसी वजह से जैसमीन कौर नहर में फंस गई थी, जिस से वह बच गई.  जैसमीन कौर की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी खुशी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से 36 लाख रुपए की बरामदगी भी की थी. 6 लोगों की हत्या के आरोप में पकड़े गए आरोपी खुशविंदर ने पुलिस के सामने कबूल किया कि फतेहगढ़ साहिब में सन 2004 में एक ही परिवार के 4 लोगों की हत्या भी उसी ने की थी. यह सब उस ने 12 लाख रुपए के लालच में किया था. उस के कबूलनामे के बाद फतेहगढ़ साहिब वाला केस भी दोबारा खोला गया.

शिकायतकर्ता कुलतार सिंह इस मामले की तह तक जा कर आरोपी को सजा करवाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया. उन के अनुरोध पर यह केस सीबीआई की मोहाली ब्रांच को सौंप दिया. सीबीआई के डीएसपी एन.आर. मीणा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि खुशविंदर सिंह तांत्रिक बन कर लोगों को अपने जाल में फंसाता था. फिर उन्हें वह नहर पर ले जाता और अपने शिकार की आंखों पर पट्टी बांध कर किनारे खड़े हो कर नमस्कार करने के लिए कहता था. फिर मौका मिलते ही एकएक कर सभी को नहर में धक्का दे देता था. जब आरोपी को फतेहगढ़ साहिब पुलिस ने पकड़ा था तो उस ने पुलिस के आगे खुलासा किया था कि उस का अगला निशाना उस की अपनी पत्नी थी. वह 2 बार अपनी पत्नी को नहर पर ले जा चुका था. दोषी खुशी ने बताया था कि वह पत्नी को मारने की तैयारी में जुटा था.

वह उसे भी उस जगह पर ले कर गया था, जहां भाखड़ा नहर में फेंक कर उस ने 2 लोगों को मारा था. हालांकि इस बात का अभी तक कोई पता नहीं चला कि वह 2 आदमी कौन थे. बाद में उस ने अपनी पत्नी को मारने का इरादा त्याग दिया था और पत्नी की मामी के परिवार वालों को मारने का प्लान बनाया था. इस के बाद आगे की काररवाई की थी. खास बात यह थी कि इतनी हत्याओं के बाद भी उसे कुछ दुख नहीं था. दूसरे लोगों की तरह वह साधारण जिंदगी जी रहा था. खुशी अपनी पत्नी की हत्या कर के अपनी छोटी साली से शादी करने की योजना बना रहा था. वह डल्ला गांव स्थित अपनी ससुराल की सारी जमीन हड़पना चाहता था. उसे लगता था कि इस के बाद उस का इलाके में अच्छा रसूख हो जाएगा.

बहरहाल, 28 अगस्त, 2018 की सुबह 10 बजे भारी सुरक्षा के बीच दोषी को सीबीआई की विशेष अदालत में लाया गया था. इस के पहले अदालत की सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी थीं और माननीय जज एन.एस. गिल ने पिछली तारीख पर ही उसे दोषी करार दे दिया था. 28 अगस्त को तो केवल फैसला सुनाना था. सुनवाई के दौरान दोषी खुशविंदर उर्फ खुशी ने सभी हत्याएं करने की बात कबूली थीं. सीबीआई के प्रौसीक्यूटर कुमार रजत इस पूरे प्रकरण को सबूतों सहित अदालत के सामने रख चुके थे और यह भी बता चुके थे कि 6 लोगों की हत्याओं के मामले में अदालत पहले भी खुशी को फांसी की सजा सुना चुकी है, जिस के लिए दोषी की ओर से दया याचिका पर सुनवाई होनी है. माननीय जज एन.एस. गिल की अदालत ने इस मामले में दोपहर बाद अपना फैसला सुनाया.

अदालत ने उसे भादंसं की धारा 302, हत्या करने के लिए सजा ए मौत और 10 हजार रुपए जुरमाना, धारा 364 हत्या की नीयत से किडनैपिंग में उम्रकैद और 5 हजार रुपए जुरमाना तथा धारा 201 सबूतों को नष्ट करने के तहत 5 साल की सजा और 5 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई है. जुरमाना न चुकाने की स्थिति में दोषी को एक साल और जेल में रहना होगा. अपने फैसले में जज साहब ने यह भी कहा कि यह अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी में आता है. दोषी ने एक साथ परिवार के 4 सदस्यों को मौत के घाट उतारा था, जिस में 2 बच्चे भी शामिल थे. ऐसे में दोषी पर किसी भी कीमत पर रहम नहीं किया जा सकता.

सीबीआई की अदालत पटियाला से मोहाली शिफ्ट होने के बाद यह पहला मामला है, जिस में किसी दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है. पीडि़त परिवार के सदस्यों ने इस फैसले पर खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि लंबे समय बाद उन्हें न्याय मिला है. जज ने अपना यह फैसला एक मिनट में सुना दिया. जज साहब द्वारा फैसला सुनाए जाने के दौरान दोषी के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. इस के बाद पुलिस दोषी को पीछे ले कर चली गई. हालांकि इस दौरान उस के चेहरे पर किसी भी तरह का कोई दुख नहीं दिखाई दे रहा था. वह पहले की तरह खामोश था. इस दौरान उस का कोई पारिवारिक सदस्य तक वहां नहीं आया हुआ था.

दोषी की पत्नी मंजीत कौर सुहावी गांव में अपनी बेटी और बेटे के साथ रहती है. मंजीत कौर के भाई की सन 2006 में उन की शादी के एक महीने के बाद नहर में गिरने से मौत हो गई थी, तब वह नैनादेवी से लौट कर आ रहे थे. मंजीत कौर की माता की मौत उस की शादी से पहले ही हो गई थी.

 

Kanpur Crime : सामाजिक संस्था की आड़ में चलता जिस्मफरोशी का धंधा

Kanpur Crime : कुछ लड़कियां अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते, तो कुछ मजबूरी में बरखा उर्फ लवली जैसी धंधेबाज औरतों के जाल में फंस जाती हैं. देह व्यापार की पुरानी खिलाड़ी महिलाएं उन्हें ऐसी दलदल में उतारती हैं, जहां से…

कानपुर (साउथ) की एसपी रवीना त्यागी को एक मुखबिर ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ, पर इसे अविश्सनीय समझना भी ठीक नहीं था. अत: उन्होंने फोन द्वारा तत्काल सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह को अपने कार्यालय आने को कहा. कुछ देर बाद ही गीतांजलि सिंह एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय पहुंच गईं. रवीना त्यागी ने गीतांजलि की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘गीतांजलि, नजीराबाद थाना क्षेत्र के लाजपत नगर के मकान नंबर 120/18 में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चलने की जानकारी मुझे मिली है.

रैकेट की संचालिका लवली चक्रवर्ती उर्फ बरखा मिश्रा है, जो सामाजिक संस्था की आड़ में यह धंधा करती है. यह भी पता चला है कि नजीराबाद थाना और चौकी के कुछ पुलिसकर्मी भी कालगर्ल्स को संरक्षण दे कर उन की मदद कर रहे हैं. आप इस मामले में जल्द से जल्द काररवाई करो. इस बात का खयाल रखना कि यह खबर लीक न हो.’’

आगे की काररवाई के लिए एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने एक टीम का भी गठन कर दिया. टीम में सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) मनोज कुमार अग्रवाल, इंसपेक्टर मनोज रघुवंशी, महिला थानाप्रभारी अर्चना गौतम, महिला सिपाही कविता, पूजा, सरिता आदि को शामिल किया गया. 24 नवंबर, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम लाजपत नगर पहुंची और मकान नंबर 120/18 का दरवाजा खटखटाया. चंद मिनट बाद एक खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला. सामने पुलिस को देख कर वह बोली, ‘‘कहिए, आप लोगों का कैसे आना हुआ?’’

‘‘क्या आप का नाम लवली उर्फ बरखा मिश्रा है?’’ सीओ गीतांजलि सिंह ने पूछा.

‘‘जी हां, कहिए क्या बात है?’’ वह महिला बोली.

‘‘मैडम, पता चला है कि इस मकान में जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा है.’’ सीओ गीतांजलि ने कहा.

यह सुन कर भी लवली उर्फ बरखा मिश्रा न डरी और न सहमी, बल्कि वह मुसकरा कर बोली, ‘‘आप जिस लवली या बरखा की तलाश में आई हैं, मैं वह नहीं हूं. मैं तो समाजसेविका हूं. भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी की मैं वाइस प्रेसीडेंट हूं.’’ कहते हुए उस ने कमेटी का परिचयपत्र सीओ को दिखाया. लवली उर्फ बरखा मिश्रा ने सीओ साहिबा को झांसे में लेने की पूरी कोशिश की लेकिन वह उस के दबाव में नहीं आईं. साथ आए पुलिसकर्मियों को साथ ले कर मकान के अंदर पहुंचीं तो वहां का नजारा कुछ और था.

पहले ही कमरे में एक युवक एक युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में था. दूसरे कमरे में 3 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. वे या तो ग्राहकों के इंतजार में थीं या फिर किसी होटल में ग्राहकों के लिए जाने वाली थीं. सीओ गीतांजलि सिंह ने महिला पुलिसकर्मियों के सहयोग से संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा सहित चारों युवतियों को कस्टडी में ले लिया. जबकि इंसपेक्टर मनोज रघुवंशी ने युवक को दबोच लिया. पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो वहां से 50 हजार रुपए नकद, शक्तिवर्द्धक दवाएं, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद हुईं. संचालिका बरखा मिश्रा के पास से प्रैस कार्ड, भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी का कार्ड तथा आधार कार्ड व पैन कार्ड बरामद हुए. पुलिस बरामद सामान के साथ हिरासत में लिए गए युवक व युवतियों को थाना नजीराबाद ले आई.

सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ होने की जानकारी मिलने पर एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी भी नजीराबाद आ गईं. पुलिस अधिकारियों के समक्ष जब आरोपियों से पूछताछ की गई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. देह व्यापार में लिप्त युवतियों में से एक ने अपना नाम सविता उर्फ विनीता, निवासी आर्यनगर, थाना स्वरूपनगर कानपुर बताया. दूसरी युवती ने अपना नाम नीतू चौधरी, मूल निवासी अमृतसर, पंजाब और वर्तमान पता दिल्ली बताया. तीसरी युवती ने अपना नाम पूजा कर्मकार निवासी करनाल (हरियाणा) बताया. चौथी युवती ने अपना नाम प्रीति आचार्य, मूल निवासी कोलकाता तथा वर्तमान पता लक्ष्मी नगर, दिल्ली बताया.

संचालिका लवली चक्रवर्ती उर्फ बरख मिश्रा ने अपना मूल निवास 14-बी, मधुर मिलन, ए-2 खार, मुंबई तथा वर्तमान पता 120/18 लाजपत नगर, नजीराबाद, कानपुर बताया. अय्याशी करते पकड़े गए युवक ने अपना नाम सलमान, निवासी आजाद पार्क, चकेरी कानपुर नगर बताया. चमड़े का व्यवसाय करने वाले सलमान को रिहा कराने के लिए कई व्यापारियों, नेताओं व रसूखदार लोगों ने अपने स्तर से पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाया लेकिन वे नाकाम रहे. संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा भी देर रात तक मामले को निपटाने की डील करती रही लेकिन मामला वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में था,इसलिए यह डील नहीं हो सकी.

गीतांजलि सिंह ने हिरासत में ली गई सविता उर्फ विनीता, नीतू चौधरी, पूजा कर्मकार, प्रीति आचार्य, लवली उर्फ बरखा मिश्रा तथा सलमान के विरुद्ध अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. एसीपी ने इस केस की जांच सीओ (बाबूपुरवा) मनोज कुमार अग्रवाल को सौंप दी. सीओ मनोज कुमार ने आरोपियों से पूछताछ की तो सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. सैक्स रैकेट की संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा व अन्य आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो चौंकाने वाली बातें उजागर हुईं. बरखा मिश्रा का पूरा नेटवर्क औनलाइन चल रहा था.

उस ने कई वेबसाइट पर युवतियों की फोटो व मोबाइल नंबर अपलोड किए थे, जिन के जरिए ग्राहक संपर्क करते थे. यही नहीं, वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो व मैसेज भेज कर संपर्क किया जाता था. कानपुर नगर ही नहीं दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस, दिल्ली व मुंबई के दलालों के जरिए वह ग्राहकों की डिमांड पर रशियन व नेपाली युवतियों को भी मंगाती थी. जिस के लिए वह युवतियों को अच्छाखासा पैसा चुकाती थी. बरखा को संरक्षण देने में कुछ मीडियाकर्मी, रसूखदार व प्रशासनिक अधिकारी भी लिप्त थे. समाजसेवा का लबादा ओढ़े कुछ सफेदपोश भी बरखा मिश्रा को संरक्षण देते थे तथा खुद भी रंगरलियां मनाते थे.

सैक्स रैकेट की संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा बचपन से ही बेहद खूबसूरत थी. साधारण परिवार में पली बरखा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. जब वह बनसंवर कर कालेज जाती तो मनचले युवक उस पर फब्तियां कसते. उस ने उन में से कुछ बौयफ्रैंड बना लिए थे, जो कालेज के छात्र थे. वह उन के साथ घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. बरखा के जवान होने पर मांबाप ने उस की शादी कर दी. ससुराल में बरखा कुछ समय तक तो बहू बन कर रही, उस के बाद वह खुलने लगी. दरअसल बरखा ने जैसे सजीले युवक से शादी का सपना देखा था, उस का पति वैसा नहीं था. उस का पति दुकानदार था और उस की सीमित आमदनी थी. वह न तो पति से खुश थी और न उस की आमदनी से उस की जरूरतें पूरी होती थीं. जिस से घर में आए दिन कलह होने लगी.

पति चाहता था कि बरखा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन बरखा को बंधन मंजूर नहीं था. वह तो चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका और कठोर बंधन में रहना पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर पति व बरखा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. पति का साथ छोड़ने के बाद बरखा मिश्रा कौशलपुरी में किराए पर रहने लगी. वह पढ़ीलिखी व खूबसूरत थी. उसे विश्वास था कि जल्द ही उसे कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयावन मजे से होने लगेगा.

इसी दिशा में उस ने कदम बढ़ाया और नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती, वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. उस ने सोचा कि जब शरीर ही बेचना है तो वह नौकरी क्यों करे. वह खूबसूरत और जवान थी. उसे ग्राहकों की कोई कमी की. शुरूशुरू में तो उसे इस धंधे में झिझक हुई, लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई. उस ने अपने जाल में कई लड़कियां फंसा लीं और सैक्स रैकेट चलाने लगी. इस धंधे से उसे आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह किराए पर फ्लैट लेती और नई उम्र की लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाती और देह धंधे में उतार देती. वह स्कूलकालेज की ऐसी लड़कियों को ज्यादा फंसाती थी, जो अभावों की जिंदगी गुजार रही होतीं.

बरखा खूबसूरत होने के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्द प्रभावित कर लेती थी. इसी का फायदा उठा कर उस ने समाजसेवी नेताओं, मीडिया वालों व पुलिसकर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बना लिए. इन्हीं की मदद से वह बड़े मंच साझा करने लगी. पुलिस थानों में पंचायत करने लगी तथा शासनप्रशासन के कार्यों में भी दखल देने लगी. यही नहीं उस ने एक मीडियाकर्मी को ब्लैकमेल कर उस से प्रैस कार्ड भी बनवा लिया था. साथ ही कई सामाजिक संस्थाओं में पद भी हासिल कर लिए थे. लवली उर्फ बरखा मिश्रा को देहव्यापार से कमाई हुई तो उस ने अपना दायरा और अधिक बढ़ा लिया. दिल्ली, मुंबई, आगरा व बनारस के कई बड़े दलालों से उस का संपर्क बन गया.

इन्हीं दलालों की मार्फत वह लड़कियों को शहर के बाहर भेजने लगी तथा डिमांड पर दलालों के जरिए विदेशी लड़कियों को शहर में बुला लेती थी. रशियन व नेपाली बालाओं की उस के यहां ज्यादा डिमांड रहती थी. ये बालाएं हवाईजहाज से आतीं फिर हफ्ता भर रुक कर वापस चली जाती थीं. बरखा के अड्डे पर 5 से 50 हजार रुपए तक लड़की बुक होती थी. होटल व खानपान का खर्च अलग से. बरखा मिश्रा देह व्यापार का पूरा नेटवर्क औनलाइन चलाने लगी थी. वाट्सऐप ग्रुप के अलावा उस ने लोकांटो नाम की एक वेबसाइट भी बना रखी थी. वेबसाइट पर उस ने अपने नंबर का प्रचार करते हुए लड़कियों की सप्लाई का विज्ञापन डाल रखा था. वहीं वाट्सऐप पर कई दलालों के अलावा कालगर्ल्स को भी जोड़ रखा था. वहां वे फोटो और लड़कियों की डिटेल्स क्लायंट को भेजी जाती थी.

बरखा इस धंधे में कोर्ड वर्ड का प्रयोग करती थी. एजेंट को वह चार्ली नाम से बुलाती थी और कालगर्ल को चिली नाम देती थी. किसी युवती को भेजने के लिए वाट्सऐप पर भी चार्ली टाइप करती थी. वापस मैसेज में भी वह इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करती थी. चार्ली नाम के उस के दरजनों एजेंट थे, जो युवतियों को सप्लाई करते थे. एजेंट से जब उसे लड़की मंगानी होती तो वह कहती, ‘‘हैलो चार्ली, चिली को पास करो.’’

बरखा मिश्रा एक क्षेत्र में कुछ महीने ही धंधा करती थी. जैसे ही धंधे की सुगबुगाहट दूसरे लोगों को होने लगती तो वह क्षेत्र बदल देती. पहले वह गुमटी क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और स्वरूपनगर क्षेत्र में धंधा करने लगी. उस ने स्वरूपनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट लिया था. इस के बाद उस ने फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर स्थित सूर्या अपार्टमेंट में ग्राउंड फ्लोर पर एक फ्लैट किराए पर लिया. यह फ्लैट किसी वकील का था. उस ने वकील से कहा कि वह पत्रकार है. समाचार पत्र के लिए कार्यालय खोलना है. उस ने यह भी कहा कि वैसे वह वर्तमान में आजादनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में रहती है.

दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने ही बरखाको सुझाव दिया था कि वह समाचार पत्र का कार्यालय खोल ले. इस से पुलिस तथा फ्लैटों में रहने वाले लोग दबाव में रहेंगे. मीडियाकर्मी का सुझाव उसे पसंद आया और इसी बहाने उस ने फ्लैट किराए पर ले लिया और सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस ने फ्लैट के बाहर समाचार पत्र का बोर्ड लगा दिया. यही नहीं, उस ने फ्लैट पर धंधा करने आने वाली लड़कियों से कहा कि अगर कोई उन से यहां आने का मकसद पूछे तो बता देना कि वे प्रैस कार्यालय में काम करती हैं. देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई 19 वर्षीय सविता उर्फ सबी उर्फ विनीता सक्सेना आर्यनगर में रहती थी. मध्यम परिवार में पलीबढ़ी विनीता बेहद खूबसूरत थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद जब उस ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो वह रंगीन सपनों में खोने लगी.

उस की कई सहेलियां ऐसी थीं, जो रईस घरानों की थीं. वे महंगे कपड़े पहनतीं और ठाटबाट से रहतीं. महंगे मोबाइल से बात करतीं. रेस्टोरेंट जातीं और खूब सैरसपाटा करतीं. विनीता

जब उन्हें देखती तो सोचती, ‘काश!

ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.’

एक रोज एक संस्था के मंच पर विनीता की मुलाकात बरखा मिश्रा से हुई. उस ने विनीता को बताया कि वह समाजसेविका है. राजनेताओं, समाजसेवियों, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस की अच्छी पैठ है. बरखा मिश्रा की बातों से विनीता प्रभावित हुई, फिर वह उस से मिलने उस के घर जाने लगी. घर आतेजाते बरखा ने विनीता को रिझाना शुरू कर दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. बरखा समझ गई कि विनीता महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में फंस सकती है.

इस के बाद विनीता जब भी उस के घर आती, बरखा उस से प्यार भरी बातें करती. उस के अद्वितीय सौंदर्य की तारीफ करती तथा उस की जवानी को जगाने का प्रयास करती. धीरेधीरे बरखा ने विनीता को अपने जाल में फंसा कर देह व्यापार में उतार दिया. विनीता जवान और खूबसूरत थी, सो उस के लिए आसानी से ग्राहक मिल जाते. सैक्स रैकेट चलते अभी एक महीना ही बीता था कि किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस ने सैक्स रैकेट का परदाफाश कर लवली उर्फ बरखा मिश्रा को जेल भेज दिया. लवली उर्फ बरखा लगभग 6 महीने जेल में रही, उस के बाद जुलाई, 2018 में उसे जमानत मिल गई.

कानपुर जेल से छूटने के बाद लवली उर्फ बरखा मिश्रा मुंबई चली गई. वहां उस ने अपने दलाल के मार्फत 14बी रोड मधुर मिलन ए-2 खार में एक कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रहने लगी. इस बीच उस ने कई कालगर्ल्स संचालिकाओं से संबंध बना लिए. वहां भी वह धंधा करने लगी. लवली उर्फ बरखा मिश्रा कानपुर शहर में एक बार फिर पैर जमाना चाहती थी, क्योंकि यह उस का जानासमझा शहर था. अनेक सफेदपोश नेताओं, कथित मीडियाकर्मियों व पुलिस से उस के अच्छे संबंध थे. अगस्त 2019 में लवली उर्फ बरखा मिश्रा वापस कानपुर आ गई. यहां उस ने पौश कालोनी लाजपत नगर में सुजैन सचान नाम की महिला का मकान 20 हजार रुपए प्रतिमाह के किराए पर ले लिया और हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चलाने लगी.

सैक्स रैकेट चलाते अभी 2 महीने ही बीते थे कि किसी ने इस की सूचना एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को दे दी. रवीना त्यागी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और एक टीम गठित की. इस टीम ने छापा मारा और लवली को बंदी बना लिया. उस के अड्डे से 4 युवतियां और एक युवक को रंगेहाथों पकड़ लिया. सैक्स रैकेट में पकड़ी गई 25 वर्षीय नीतू चौधरी मूलरूप से भटिंडा, पंजाब की रहने वाली थी. बीमार मातापिता की मौत के बाद वह एक करीबी रिश्तेदार के माध्यम से अपनी छोटी बहन के साथ दिल्ली आ गई. वह पढ़ीलिखी थी, अत: प्राइवेट नौकरी करने लगी.

नीतू अपनी छोटी बहन को पढ़ालिखा कर योग्य बनाना चाहती थी ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके. लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में प्राइवेट नौकरी से मकान का किराया, घर तथा बहन की पढ़ाई का खर्च जुटाना संभव नहीं था. अत: वह कमाने के लालच में दलाल के मार्फत सैक्स रैकेट से जुड़ गई और देह का धंधा करने लगी. नीतू चौधरी ने बताया कि दलाल के मार्फत वह कानपुर की देह संचालिका लवली उर्फ बरखा के संपर्क में आई. बरखा ने उसे यह कह कर कानपुर बुलाया था कि एक होटल में बैचलर पार्टी है. एक रात का 20 हजार रुपए मिलेगा. सौदा तय होने पर वह कानपुर आ गई. घटना वाली रात वह सजसंवर कर होटल जाने वाली थी, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ी गई.

पुलिस द्वारा पकड़ी गई पूजा कर्मकार करनाल (हरियाणा) की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. बीकौम करने के बाद पूजा ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. इस के बाद वह नौकरी करने लगी. पूजा का भाई बीमार रहता था. उस की किडनी खराब हो गई थी. किडनी बदलवाने के लिए पूजा को 10 लाख रुपए चाहिए थे, इतनी बड़ी रकम वह प्राइवेट नौकरी से नहीं जुटा सकती थी. पूजा परेशान थी, तभी उस की मुलाकात एक दलाल से हो गई. उस दलाल ने पूजा को रकम जुटाने के लिए देह बेचने का रास्ता सुझाया.

पूजा कई दिनों तक पसोपेश में पड़ी रही. फिर उस ने देह का धंधा अपना लिया. दलाल के जरिए वह दिल्ली, मुंबई, बनारस तथा विदेश तक जाने लगी. पूजा शरीर से हृष्टपुष्ट व जवान थी. अत: उस की खूब डिमांड होने लगी. पूजा कर्मकार ने बताया कि दलाल के मार्फत ही वह कानपुर की देह संचालिका लवली उर्फ बरखा के संपर्क में आई थी. बरखा ने उसे 20 हजार रुपए में बुक किया था. लाजपत नगर स्थित लवली के अड्डे पर वह 24 नवंबर की दोपहर पहुंची थी. उस समय वहां 3 अन्य युवतियां मौजूद थीं. सभी को किसी होटल की बैचलर पार्टी में जाना था. लेकिन होटल जाने के पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई.

पूजा ने बताया कि उस की अगली बुकिंग कनाडा के एक होटल के लिए हो चुकी थी. उस के साथ दिल्ली की 2 अन्य युवतियों को भी जाना था. फ्लाइट पकड़ कर उसे मंगलवार को दिल्ली पहुंचना था. कनाडा में उसे एक हफ्ते के 6 लाख रुपए मिलने वाले थे. कानपुर में वह महज 20 हजार रुपए में आई थी. जिस्मफरोशी के धंधे में पकड़ी गई 30 वर्षीया युवती प्रीति आचार्य मूलरूप से कोलकाता की रहने वाली थी. उस का पति अभिजीत आचार्य दिल्ली के लक्ष्मीनगर में रहता था, पांडव नगर स्थित मदर डेयरी में कामकरता था. प्रीति का पति शराबी था. वह जो कमाता, सब शराब में उड़ा देता था. प्रीति रोकती तो उसे मारतापीटता था.

परेशान हो कर आखिर उस ने पति का साथ छोड़ दिया और नौकरी करने लगी. लेकिन जिस्म के भूखे लोगों ने नौकरी के बजाय उस के जिस्म को ज्यादा तवज्जो दी. प्रीति ने सोचा जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे. प्रीति के साथ काम करने वाली एक युवती जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. उस युवती ने प्रीति को देह के दलाल से मिलवा दिया. दलाल के माध्यम से प्रीति देह का धंधा करने लगी. दलाल के मार्फत ही उस की बुकिंग 10 हजार रुपए में कानपुर के लिए हुई थी. वह शाम 4 बजे लाजपत नगर स्थित लवली के अड्डे पर पहुंची थी. लवली उसे तथा एक अन्य युवती को गुमटी नंबर- 5 स्थित एक ब्यूटीपार्लर ले गई थी.

उसे बताया गया था कि एक होटल में पार्टी में जाना है. वह सजसंवर कर आई ही थी कि पुलिस का छापा पड़ा और वह भी अन्य युवतियों के साथ पकड़ी गई. सैक्स रैकेट के अड्डे से पकड़ा गया सलमान आजाद पार्क चकेरी में रहता था. वह चमड़े का व्यवसाय करता था और अय्याश प्रवृत्ति का था. घटना वाले दिन वह दलाल के मार्फत लाजपत नगर स्थित लवली के अड्डे पर पहुंचा था. लवली ने उसे सविता उर्फ विनीता को दिखा कर पूरी रात का 10 हजार रुपए में सौदा किया था. सलमान पूजा के साथ कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में था, तभी पुलिस का छापा पड़ा और कालगर्ल के साथ वह भी पकड़ा गया.

25 नवंबर, 2019 को थाना नजीराबाद पुलिस ने आरोपी लवली उर्फ बरखा मिश्रा, सविता उर्फ विनीता, नीतू चौधरी, पूजा कर्मकार तथा अभियुक्त सलमान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट आर.के. शर्मा की अदालत में पेश किया, जहां से उन सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

 

Superstition : माहिलाओं को नशे की गोलियां देकर तांत्रिक करता था दुष्‍कर्म

Superstition : हर जगह तमाम ऐसे लोग हैं, जो तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. इतना ही नहीं, ये लोग महिलाओं से दुष्कर्म भी करते हैं. हरिराम भी ऐसा ही तांत्रिक था, जो…

आ ज के युग को भले ही वैज्ञानिक युग कहा जाता है, लेकिन समाज में आज भी ऐसे
लोगों की कमी नहीं है, जो अंधविश्वास के चक्कर में अपनी सुखी जिंदगी को और खुशहाल बनाने के लिए तथाकथित चमत्कारी ढोंगी तांत्रिकों, पाखंडी बाबाओं की शरण में जाते हैं और अपनी जिंदगी को नरक बना लेते हैं. पैसा खर्च होता है अलग से. अंधविश्वासी लोगों के सहारे ही तांत्रिकों और पाखंडी बाबाओं की दुकानें चलती हैं.

जिस तांत्रिक की बात हम कर रहे हैं, वह भी ऐसा ही था. गांव शरीफ नगर, जिला मुरादाबाद निवासी राजेंद्र सिंह का बेटा बाबू काफी समय से बीमार चल रहा था. दिनबदिन राजेंद्र की माली हालत खराब होती जा रही थी. बाबू की बिगड़ती हालत को देखते हुए गांव के एक व्यक्ति ने राजेंद्र को सलाह दी कि वह उसे राजपुर गांव के तांत्रिक हरिराम के पास ले जाए. उसी व्यक्ति ने बताया कि तांत्रिक हरिराम के पास ऐसी सिद्धि है कि वह बाबू को कुछ ही दिन में ठीक कर देगा. अपने बेटे की हालत देख कर राजेंद्र ने यह बात अपनी बीवी आरती को बताई. अगले ही दिन यानी 17 जुलाई, 2018 को राजेंद्र अपनी पत्नी आरती और बेटे बाबू को साथ ले कर गांव राजपुर के तांत्रिक हरिराम के पास जा पहुंचा.

हरिराम घर पर ही मिल गया. घर आए ग्राहकों को देख वह खुश हुआ. आगंतुकों को जलपान कराने के बाद हरिराम ने राजेंद्र से आने का कारण पूछा. वैसे हरिराम बाबू का चेहरा देखते ही समझ गया था कि उन के बेटे को कोई परेशानी है. राजेंद्र कुछ बताता, इस से पहले ही आरती ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘बाबा, हमारा बेटा बाबू काफी दिनों से परेशान है. इस के चक्कर में हम भी परेशान रहते हैं. ये न तो ठीक से कुछ खातापीता है और न ही रात में ठीक से सो पाता है. ये अजीबअजीब सी हरकतें करता है. आप देख कर बताओ, इसे क्या परेशानी है.’’

आरती की बात खत्म होते ही हरिराम ने बाबू को अपने सामने बिठा कर उस का हाथ अपने हाथों में थाम लिया और उस के हाथ की नब्ज टटोलने लगा. इस दौरान उस की आंखें बाबू के चेहरे पर गड़ी रहीं. कुछ देर देखने के बाद वह अपने निर्णय पर पहुंच गया. हरिराम ने परेशानी भरी आवाज में कहा, ‘‘इस में तुम्हारे बच्चे का कोई दोष नहीं है. दोष उस का है जो इस के शरीर में समाया हुआ है. साफ कहूं तो तुम्हारे बेटे पर बहुत खतरनाक प्रेतात्मा का साया है. जिसे भगाने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेना होगा. अगर ऐसा न किया गया तो यह साया बच्चे को जीने नहीं देगा. ढील देने से लड़के की जान भी जा सकती है.’’

तांत्रिक हरिराम की बात सुन कर आरती का चेहरा उतर गया. ऐसे मामलों में महिलाएं कुछ ज्यादा ही भावुक हो जाती हैं. अपने बेटे के बारे में सुन कर आरती हरिराम की सारी बातें मानने को तैयार हो गई.
आरती देखनेभालने में ठीकठाक थी. हरिराम ने उस के मन की सारी कमजोरी पढ़ ली थी. वह समझ गया था कि उसे शीशे में उतारना मुश्किल नहीं है. भले ही उसे बाबू का इलाज करना था, लेकिन आरती को देख कर वह खुद दिल का मरीज बन गया था.

हरिराम काफी दिनों से तंत्रमंत्र की दुकान चला रहा था. उसे इस सब का इतना तजुर्बा था कि वह रोगी को देख कर षडयंत्र रच डालता था. आरती को देखतेदेखते ही वह उस के बेटे की परेशानी भूल गया और मां के साथ भोगविलास की योजना बना डाली. हरिराम ज्यादातर अपने घर पर ही छोटीमोटी झाड़फूंक किया करता था. लेकिन जब किसी औरत को देख कर उस का मन मैला हो जाता था तो वह दूसरा रास्ता खोजता था. ऐसे मामले वह सब कुछ मरीज के घर पर ही करना ठीक समझता था. वह समझता था कि मरीज का घर ज्यादा सुरक्षित जगह है.

आरती को देखने के बाद उस ने उस के बेटे का इलाज उसी के घर पर करने की बात कही. हरिराम ने आरती को समझाते हुए कहा कि बाबू के ऊपर खतरनाक भूत का साया है जो तुम्हारे घर में ही मौजूद है. उसे भगाने के लिए मुझे तुम्हारे घर आ कर तंत्र विद्या करनी होगी. आरती और राजेंद्र को यह सुविधाजनक लगा, इसलिए उन्होंने हां कर दी. विचारविमर्श के बाद अनुष्ठान करने के लिए 23 जुलाई सोमवार का दिन तय किया गया. हरिराम ने उन्हें यह भी बता दिया कि इस अनुष्ठान के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने होंगे. साथ ही यह भी कि तंत्रमंत्र का अनुष्ठान देर रात में होगा.

अनुष्ठान के लिए जिसजिस सामान की जरूरत थी, हरिराम ने उस की एक लिस्ट बना कर दे दी. घर लौट कर राजेंद्र और आरती ने हरिराम द्वारा दी गई लिस्ट के हिसाब से सामान खरीद कर रख दिया.
23 जुलाई, 2018 को पूर्व योजनानुसार हरिराम तांत्रिक देर रात आरती के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर हरिराम ने घर वालों को एक साथ बिठा कर समझा दिया, जिस से अनुष्ठान में किसी तरह का विघ्न न आए. हरिराम ने उन लोगों को बताया कि तंत्रमंत्र का कार्यक्रम देर रात तक चलेगा. इस दौरान किसी भी बाहरी व्यक्ति का घर के आसपास या पूजास्थल पर आना वर्जित रहेगा. अगर किसी ने भी उस की बात नहीं मानी तो परिणाम उलटे भी हो सकते हैं.

घर के सदस्यों को जरूरी बातें बता कर हरिराम ने अनुष्ठान में काम आने वाला सामान जिस में कुछ हड्डियां, लोबान, धूप, गरुड़ का पंजा, नींबू, चाकू और हवन सामग्री वगैरह निकाल कर फर्श पर रख दिया. पूरी तैयारी कर के हरिराम ने लोहे के एक तसले को हवन कुंड बना कर मंत्रोच्चार शुरू कर दिया. उस ने आरती और उस के पति राजेंद्र व उन के बेटे बाबू को अपने पास बैठा लिया.

अनुष्ठान में हरिराम तांत्रिक ने मिट्टी की हांडी रखते हुए उस की पूजा की, फिर हांडी बापबेटे को थमाते हुए कहा, ‘‘आप दोनों इस हांडी को ले कर श्मशान जाओ और वहां से इस में किसी ठंडी पड़ी चिता की राख भर कर ले आओ. लेकिन ध्यान रखना कि वापसी में इस बरतन को कोई व्यक्ति देखने न पाए. एक बात ध्यान रखना कि मुझे अनुष्ठान करने में डेढ़-2 घंटे लग सकते हैं. अनुष्ठान खत्म होने से पहले हांडी को ले कर घर में मत घुसना. ऐसा किया तो मेरा अनुष्ठान तो व्यर्थ जाएगा ही, प्रेतात्मा तुम्हारे घर का अनिष्ट भी कर सकती है.’’

तांत्रिक की बात सुन कर डर के मारे राजेंद्र के पैर कांपने लगे. पहले तो उसे लगा कि वह इस काम को नहीं कर पाएगा लेकिन सवाल बेटे की जिंदगी का था. राजेंद्र ने हांडी को एक थैले में छिपाया और अपने बेटे को साथ ले कर सब की नजरों से बचतेबचाते श्मशान की ओर बढ़ गया. श्मशान में पहुंच कर डरतेडरते राजेंद्र ने जैसेतैसे श्मशान में ठंडी पड़ी एक चिता की राख हांडी में भर ली और बिना देर लगाए श्मशान की हद से बाहर निकल आया. बाहर आ कर उस ने हांडी को पूरी तरह से पैक कर के थैले में रख लिया फिर मोबाइल निकाल कर टाइम देखा.

पता चला कि अभी उसे घर से निकले मात्र पौना घंटा हुआ था. जबकि तांत्रिक ने उसे 2 घंटे बाद आने को कहा था. वक्त के हिसाब से अभी उन्हें करीब सवा घंटा घर से बाहर रहना था. राजेंद्र ने जैसेतैसे मुश्किल से आधा घंटा बाहर गुजारा और फिर आरती के मोबाइल पर फोन मिला दिया. लेकिन कई बार घंटी जाने के बाद भी मोबाइल नहीं उठाया गया तो राजेंद्र परेशान हो उठा. उस ने फिर से आरती का नंबर मिलाया तो बारबार काल आने से हरिराम समझ गया कि काल राजेंद्र की ही होगी. उस ने काल रिसीव कर के फोन कान से लगाया. राजेंद्र समझ गया कि लाइन पर हरिराम है. उस ने हरिराम से पूछा, ‘‘बाबा, आप की पूजा में कितना वक्त लगेगा?’’

हरिराम ने बताया कि सब कुछ ठीकठाक निपट गया. एक पूजा पूरी हो चुकी है, अभी एक और बाकी है. मैं उसी की तैयारी में लगा हूं. तुम अभी आधे घंटे बाद आना. राजेंद्र को फोन लगाए मुश्किल से 20 मिनट ही गुजरे थे कि हरिराम का फोन आ गया. राजेंद्र ने फुरती से काल रिसीव कर के पूछा, ‘‘हां बाबाजी, हम आ जाएं क्या?’’

जवाब में हरिराम ने कहा, ‘‘जल्दी आओ, मैं ने तुम्हारे घर की प्रेतात्मा अपने कब्जे में कर ली है. तुम्हारे आते ही प्रेतात्मा तुम्हारे घर से हमेशाहमेशा के लिए चली जाएगी.’’

हरिराम की बात सुन कर राजेंद्र हांडी को छिपाते हुए बेटे के साथ घर पहुंच गया. घर पहुंच कर राजेंद्र ने पूजास्थल पर नजर दौड़ाई तो उस के होश उड़ गए. अनुष्ठान की जगह के पास उस की बीवी आरती और उस के भाई की बीवी बेहोशी की हालत में पड़ी थीं. उन दोनों को जमीन पर पड़े देख राजेंद्र घबरा गया.
उस ने इस बारे में हरिराम से पूछा तो वह बोला, ‘‘तुम्हें जरा भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे बेटे की बीमारी पूरी तरह खत्म हो गई. इस पर जो प्रेतात्मा सवार थी, बहुत ही खतरनाक थी. जातेजाते भी तुम्हारी बीवी और संगीता को जबरदस्त झटका दे गई, जिस की वजह से दोनों मूर्छित हो गईं. लेकिन तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. दोनों जल्दी ही होशोहवास में आ जाएंगी.’’

इस के बाद हरिराम ने उसे और उस के बेटे को अनुष्ठान की जगह बैठने के लिए इशारा किया. दोनों बैठ गए तो हरिराम ने उन के माथे पर रोली और चावल का तिलक लगाया. साथ ही उस ने दोनों से हवनकुंड की ओर झुकने का इशारा किया. हरिराम ने सामने रखी हांडी की ओर इशारा कर के बताया कि तुम्हारे घर की बुरी आत्मा अब मेरे कब्जे में है, उसे मैं ने इस हांडी में कैद कर लिया है. छोटी सी वह हांडी मिट्टी के ढक्कन से ढकी हुई थी. हरिराम ने हांडी को लाल कपड़े से टाइट कर के बांधा हुआ था. उस ने बताया कि प्रेतात्मा को मुझे इसी वक्त श्मशान में ले जा कर गाड़ना होगा. यह काम मेरा है. तुम किसी भी तरह परेशान मत होना. तुम्हारी बीवी और तुम्हारे भाई की पत्नी कुछ समय बाद होश में आ जाएंगी.

राजेंद्र को समझाने के बाद हरिराम ने अपना सारा सामान झोले में डाला और रात में ही अपने घर चला गया. आरती और उस की देवरानी संगीता बाकी रात बेहोशी की हालत में पड़ी रहीं. अगली सुबह करीब 5 बजे दोनों को होश आया. उन के होश में आते ही राजेंद्र ने उन से बेहोशी का कारण पूछा तो आरती ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान बाबा ने उसे खाने के लिए प्रसाद और जल दिया था, जिसे खाते ही उसे चक्कर आने लगा था. फिर वह बेहोश हो गई. उस के बाद उस के साथ क्या हुआ, उसे नहीं मालूम.
उसी समय संगीता की भी बेहोशी टूटी. जब दोनों सामान्य स्थिति में आईं तो घर वालों ने उन से विस्तार से पूरी बात बताने को कहा.

इस पर संगीता ने बताया कि जिस वक्त वह तंत्रमंत्र क्रिया देखने उस कमरे में गई तो आरती बेहोश पड़ी हुई थी. उस के सारे कपड़े भी अस्तव्यस्त थे. उस की हालत देखते ही उस ने आरती के कपड़े ठीक किए और बाबा से उस के बेहोश होने के बारे में पूछा. बाबा ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान मैं ने आरती से प्रसाद लेने को कहा तो उस ने आनाकानी की, जिस की वजह से उस की यह हालत हुई. अगर वह मेरी बात मान कर प्रसाद ले लेती तो उस की यह हालत नहीं होती. यह प्रेतात्माओं का प्रसाद है, अगर कोई इस प्रसाद को खाने में आनाकानी करेगा तो उस का यही हश्र होगा.

संगीता हिम्मत कर के अनुष्ठान स्थल पर चली तो आई थी लेकिन बाबा की बात सुन कर और आरती की हालत देख कर बुरी तरह घबरा गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह वहां से चली जाए या वहीं रुके. सोचविचार कर उस ने वहां से चुपचाप खिसकने की सोची और पीछे मुड़ने लगी. उसे पीछे मुड़ते देख तांत्रिक हरिराम जोर से चीखा, ‘‘तुम भी वही गलती दोहराने जा रही हो, आगे कदम मत बढ़ाना वरना तुम्हारा भी वही हश्र होगा जो तुम्हारी जेठानी का हुआ है.’’

तांत्रिक की बात सुन कर उस के आगे बढ़े कदम ठिठक गए. संगीता फुरती से पीछे मुड़ी और हवनकुंड के सामने जा कर बैठ गई. हरिराम समझ गया कि उस की युक्ति कामयाब रही. संगीता के बैठते ही हरिराम ने उसे भी वही प्रसाद खाने के लिए दिया जो उस ने आरती को खिलाया था. प्रसाद ग्रहण करते ही संगीता की आंखें भी नींद से भारी होने लगीं. प्रसाद खाने के कुछ पल बाद वह भी वहीं लुढ़क गई. उस के बाद उस के साथ क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं था.

पूरी तरह होश में आने के बाद दोनों ने अपने अंगवस्त्र देखे तो उन्हें पता चल गया कि तंत्रमंत्र के नाम पर तांत्रिक हरिराम ने उन के साथ कुकर्म किया था. हकीकत का अहसास होते ही आरती और संगीता खुद को ठगा सा महसूस करने लगीं. जब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि तांत्रिक ने उन की इज्जत लूट ली है, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया.

आरती ने अपने पति राजेंद्र को हकीकत बता कर हरिराम को सबक सिखाने को कहा. सोचविचार कर इस बात को पूरी तरह गुप्त रखने का निर्णय लिया गया. आरती और उस के घर वाले जान चुके थे कि तांत्रिक हरिराम को पैसे और भोग के लिए कभी भी बुलाया जा सकता है. आरती, उस की देवरानी संगीता और राजेंद्र ने तांत्रिक को अपने जाल में फंसाने का फैसला ले लिया. तय हुआ कि तांत्रिक हरिराम के सामने इस बात का जिक्र नहीं आना चाहिए.

योजना के तहत 2 दिन बाद यह दिखाने के लिए कि दोनों महिलाओं को अपने साथ हुए दुराचार का पता नहीं लगा, आरती ने तांत्रिक के मोबाइल पर फोन कर के उस की खैरखबर पूछी. आरती ने हरिराम को खुश करने के लिए उसे बताया कि उस का तंत्रमंत्र अनुष्ठान काम कर गया है. बाबू की हालत पहले से बहुत अच्छी है. आरती की बात सुन कर तांत्रिक हरिराम फूला नहीं समाया. उस के दिल में बैठा डर पूरी तरह खत्म हो गया. दरअसल, उस रात के अपनेकुकर्म को ले कर वह काफी परेशान था. उसे डर था कि दोनों महिलाओं ने उस के कुकर्म की कहानी अगर अपने घर वालों को बता दी तो उस की शामत आ जाएगी. लेकिन आरती की बातों से उस के मन का डर पूरी तरह खत्म हो गया.

आरती की बात सुन कर हरिराम ने कहा कि तुम लोग परेशान न हो. तुम्हारे घर पर जो प्रेतात्मा थी, उसे मैं ने श्मशान में दफना दिया है. तुम्हारे घर पर इस तरह की कोई भी परेशानी नहीं आएगी. हरिराम की बात सुन आरती ने कहा कि बाबा हम चाहते हैं कि लगे हाथों तंत्रमंत्र अनुष्ठान एक बार फिर से करा लें, जिस से भविष्य में हमारे बेटे या परिवार के किसी भी सदस्य पर प्रेतात्मा का साया न पड़े. आरती की बात सुन कर हरिराम खुश हो गया. उस ने कहा कि अनुष्ठान का दिन बता दें, मैं आ जाऊंगा.

उसी दिन शाम को आरती ने हरिराम के मोबाइल पर काल कर के उसे जानकारी दी कि हम इसी 26 तारीख को पहले की तरह अनुष्ठान कराना चाहते हैं. आरती ने यह भी कहा कि वह आ कर अनुष्ठान के सामान के लिए पैसे ले जाए. बाकी सामान हम बाजार से खरीद लेंगे. आरती से हुई बात के अनुसार हरिराम 26 जुलाई को दिन में ही रुपए लेने पहुंच गया. तांत्रिक के घर आने तक घर में किसी को भी इस बात की भनक नहीं लगने दी गई. जब तांत्रिक को विश्वास हो गया कि सब कुछ ठीकठाक है, तो उस ने बाबू को अपने पास बुला कर उस के हाथ की नब्ज टटोली.

तभी योजनानुसार उस के घर वालों ने तांत्रिक को पकड़ लिया. पासपड़ोस वाले भी एकत्र हो गए थे. आरती ने उन्हें बताया कि यह ढोंगी तांत्रिक है और इस ने हमारी इज्जत से खेलने की कोशिश की थी.
यह सुनते ही आरती के घर पर लोगों का मजमा लग गया. आरती ने सब के सामने हरिराम तांत्रिक की करतूत रखते हुए अपनी इज्जत लूटने वाली बात बताई तो लोगों के माथे पर बल पड़ गए.

इस के बावजूद हरिराम अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था. हरिराम ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि राजेंद्र के परिवार पर बहुत खतरनाक प्रेतात्मा थी, जिसे उस ने तंत्रमंत्र से भगाया. आप लोग मुझे ठीक से नहीं जानते. मैं ने कई महीने तक तंत्रमंत्र से भूत भगाने की साधना की है. अगर आप लोग मुझ से भिड़े तो अपनी तंत्र विद्या से सब का अहित कर दूंगा. हरिराम की बातें सुन कर वहां मौजूद लोगों ने हरिराम की पिटाई करनी शुरू कर दी. जब हरिराम को लगने लगा कि अब उस की खैर नहीं तो वह लाइन पर आ गया. उस ने अपनी गलती के लिए सब के सामने हाथ जोड़ कर माफी मांगी.

जब पिटतेपिटते उस की हालत खस्ता हो गई तो गांव के बुजुर्गों ने जैसेतैसे गांव वालों को समझाया. लोगों ने उस की पिटाई बंद कर दी. इसी दौरान किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. लेकिन पुलिस वहां पर पहुंच पाती, इस से पहले ही गांव वालों ने उसे कोतवाली ठाकुरद्वारा की पुलिस के हवाले कर दिया. कोतवाली प्रभारी रवींद्र प्रताप ने हरिराम को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की. लेकिन हरिराम ने अपना मुंह बंद ही रखा. जब उसे लगा कि मुंह खोलना ही पड़ेगा तो वह टूट गया. पुलिस पूछताछ में उस ने जो बताया, वह हैरतअंगेज था.

पता चला कि हरिराम तंत्रमंत्र विद्या की एबीसीडी तक नहीं जानता था. फिर भी उस की तंत्रमंत्र की दुकान काफी समय से चल रही थी. वह न तो कोई खास पढ़ालिखा था और न ही उस ने तंत्रमंत्र की कोई शिक्षा ली थी. जिला ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड के थाना जसपुर से पश्चिम की ओर एक गांव है महुआडाबरा. इस के पास ही गांव है राजपुर नादेही. यही हरिराम का पुश्तैनी गांव है. हरिराम अपने 3 भाइयों में तीसरे नंबर का था. हरिराम के बड़े भाई रूपचंद ने 2 शादियां की थीं. उस की दोनों पत्नियों में से एक ही मां बन पाई, वह भी लड़की की.

रूपचंद की माली हालत को देख उस की एक बीवी उसे छोड़ कर चली गई थी. पहली बीवी के चले जाने के बाद किसी ने रूपचंद की हत्या कर दी. तब तक हरिराम शादी लायक हो चुका था. रूपचंद की बीवी जवानी में ही विधवा हो गई थी, उस के घर वालों ने हरिराम को समझाबुझा कर रूपचंद की बीवी को उस के गले बांध दिया. भाभी से शादी के बाद हरिराम की जिम्मेदारी बढ़ गई. बड़े भाई की बेटी भी अब उसे ही पालनी थी.

हरिराम शुरू से ही निकम्मा था. लेकिन जब वह गृहस्थी से बंध गया तो कामकाज देखना उस की मजबूरी बन गई. उस ने रोजीरोटी चलाने के लिए साइकिल से गांवगांव जा कर छोले बेचने का काम शुरू कर दिया. भागदौड़ कर के हरिराम इतना कमाने लगा था कि उस के छोटे से परिवार की गुजरबसर हो सके. छोले बेचने की वजह से क्षेत्र में उस की अच्छी जानपहचान बन गई थी. उसी दौरान हरिराम एक दिन एक मजार के सामने से गुजर रहा था. मजार पर काफी भीड़ थी. वहां बैठा एक मौलवी बारीबारी से लोगों को अपने पास बुलाता और उन की परेशानी सुन कर हल बताता. हर व्यक्ति को वह राख की पुडि़या थमा देता था. किसी को भूतप्रेत का साया बता कर वह ताबीज भी बना कर देता था.

हरिराम ने देखा कि थोड़ी ही देर में मौलवी के सामने रुपयों का ढेर लग गया. हरिराम ने सोचा कि वह सारे दिन भागदौड़ कर के भी रोजीरोटी लायक ही कमा पाता है और यह मौलवी मजार के नाम पर बैठेबिठाए हजारों रुपए कमा रहा है. मौलवी की कमाई देख उस का मन बदलने लगा. उस ने सोचा कि जब मौलवी बैठेबिठाए इतने रुपए कमा सकता है तो वह क्यों नहीं कमा सकता. इस के पहले हरिराम भी अपनी परेशानी ले कर कई बाबाओं से मिल चुका था. लेकिन अपनी समस्या के हल की जगह उसे पैसा ही गंवाना पड़ा था. उसी दिन हरिराम ने ठान लिया कि वह भी यही काम करेगा. फिर एक दिन हरिराम बिना कुछ बताए घर और गांव

से गायब हो गया. घर वालों ने उसे ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल सका. उधर हरिराम घर से निकल कर हरिद्वार पहुंच गया था. वहां वह किसी ऐसे बाबा की खोज में लग गया, जिस की दुकानदारी ठीक से चलती हो. साथ ही वह तंत्रमंत्र भी जानता हो. इसी खोज में उस की मुलाकात एक बाबा से हुई. उस बाबा के पास काफी लोगों का आनाजाना था. हरिराम ने बाबा को अपनी परेशानी बता कर उस की सेवा करनी शुरू कर दी. महीनों बाद जब वह अपने घर लौटा तो उस के चेहरे पर लंबी दाढ़ी थी और वेशभूषा भी तांत्रिकों जैसी थी. उस के घर वालों और गांव के लोगों ने उस के गायब होने की बात जाननी चाही तो उस ने बताया कि वह हरिद्वार में एक पहुंचे हुए तांत्रिक की शागिर्दी कर रहा था. वहीं रह कर उस ने तंत्रमंत्र साधना और तंत्र विद्या सीखी.

उस वक्त हरिराम ने गांव में प्रचारित किया कि वह अपनी सिद्धि से किसी की भी बड़ी से बड़ी समस्या को पलभर में हल कर सकता है. धीरेधीरे यह बात गांव से निकल कर क्षेत्र में फैल गई. परिणामस्वरूप आसपास के गांवों के भोलेभाले, अनपढ़, अंधविश्वासी लोग अपनी समस्याएं ले कर हरिराम के पास आने लगे. उन की समस्या के समाधान के लिए हरिराम गंडे ताबीज, टोनेटोटके के नाम पर अच्छे पैसे वसूलने लगा था.

घर पर ही तंत्रमंत्र की दुकान चलते देख हरिराम ने अपने घर के सामने लिखवा दिया, ‘यहां हर तरह की परेशानी, बंधन से मुक्ति, फोटो से वशीकरण, सम्मोहन, प्रेमीप्रेमिका की शादी रोकने तोड़ने का उपाय, अपने दुश्मन को सबक सिखाने, अपने खोए हुए प्यार को पाने जैसी हर परेशानी का इलाज किया जाता है.’

अंधविश्वासी लोगों के सहारे उस की दुकानदारी चल निकली. धीरेधीरे कई औरतें भी उस के पास अपने पतियों की समस्याओं को ले कर आने लगी थीं, जिन की बातें सुन कर वह समझ जाता था कि उन के मर्द उन की तन की पीड़ा समझने में असमर्थ हैं. वह ऐसी महिलाओं के पतियों का इलाज करने के बहाने उन के घर पहुंच जाता था. उन के घर पर तंत्रमंत्र का ढोंग कर के वह ऐसी महिलाओं के साथ कामपिपासा शांत करने के बाद वहां से निकल लेता था. उन महिलाओं में अधिकांश ऐसी होती थीं जो मानमर्यादा की वजह से उन के साथ क्या हुआ, को भूल कर अपना मुंह बंद रखने में ही भलाई समझती थीं.

हरिराम का काम अच्छे से चल निकला. पैसे कमाने के साथसाथ वह मौजमस्ती भी करने लगा था. हरिराम ने पुलिस पूछताछ में कबूला कि उस ने इस से पहले अलगअलग गांवों में 18 महिलाओं के साथ कुकर्म किया था. लेकिन लोकलाज की वजह से किसी भी महिला ने उस के खिलाफ अपना मुंह नहीं खोला था. हालांकि हरिराम इस वक्त लगभग 45-50 की उम्र से गुजर रहा था, फिर भी वह इतना भोगविलासी था कि जो महिला उस की नजरों में चढ़ जाती थी, वह उस के साथ अपनी कामवासना शांत कर के ही दम लेता था.

उम्र के इस पड़ाव तक आतेआते हर इंसान की कामवासना शांत हो जाती है. हरिराम ने जो धंधा कर रखा था, उसे वह किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहता था. उम्र के हिसाब से उसे सैक्स की कुछ कमजोरी महसूस हुई तो उस ने मैडिकल स्टोर पर जा कर उस का हल भी निकाल लिया. इस के बाद हरिराम मैडिकल स्टोर से गोलियां ले कर अपना काम चलाने लगा. हरिराम को जब किसी के यहां तंत्र साधना करनी होती थी तो वह अनुष्ठान का ढोंग करने से पहले ही एक गोली खा लेता और मौका पाते ही घर में मौजूद औरतों को प्रसाद के रूप में नशे की गोलियां दे देता था. उस के बाद बेहोश होते ही उन की इज्जत लूट लेता था.

तांत्रिक हरिराम के गिरफ्तार होने की सूचना पर उस के घर वाले ठाकुरद्वारा कोतवाली जा पहुंचे. वे लोग हरिराम को निर्दोष बता कर उसे रिहा करने की मांग करते हुए हंगामा करने लगे. उन का कहना था कि हरिराम के जेल चले जाने से उस का परिवार सड़क पर आ जाएगा.

हकीकत पता लगने के बाद ठाकुरद्वारा पुलिस ने हरिराम के खिलाफ नशीला पदार्थ खिला कर महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में भादंवि की धारा 328, 376 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही आरोपी को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.
—कथा में आरोपी तांत्रिक हरिराम को छोड़ कर सभी पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

Crime story : नौकरानी ने बिजनैसमैन को फंसाकर लूटा पैसा

Crime story : बडे़ बिजनैसमैन (businessman) रंजीत मल्होत्रा सभ्य शरीफ और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, लेकिन उन की नौकरानी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि वह बुरी तरह फंस गए. उस जाल में वह कैसे फंसे और कैसे निकले, पढि़ए इस दिलचस्प कहानी में…

रंजीत को जिस तरह साजिश रच कर ठगा गया था, उस से वह हैरान तो थे ही उन्हें गुस्सा भी बहुत आया था. उस गुस्से में उन का शरीर कांपने लगा था. कंपकंपी को छिपाने के लिए उन्होंने दोनों हाथों की मुट्ठियां कस लीं, लेकिन बढ़ी हुई धड़कनों पर वह काबू नहीं कर पा रहे थे. उन्हें डर था कि अगर रसोई में काम कर रही ममता आ गई तो उन की हालत देख कर पूछ सकती है कि क्या हुआ जो आप इतने परेशान हैं. एक बार तो उन के मन में आया कि सारी बात पुलिस को बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दें लेकिन तुरंत ही उन की समझ में आ गया कि गलती उन की भी थी. सच्चाई खुल गई तो वह भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

पत्नी के डर से उन्होंने मेज पर पड़ी अपनी मैडिकल रिपोर्ट अखबारों के नीचे छिपा दी थी. मोबाइल उठा कर उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को प्लौट का सौदा रद्द करने के लिए कह दिया. उस की कोई भी बात सुने बगैर रंजीत ने फोन काट दिया था. हमेशा शांत रहने वाले रंजीत मल्होत्रा जितना परेशान और बेचैन थे, इतना परेशान या बेचैन वह तब भी नहीं हुए थे, जब उन्हें साजिश का शिकार बनाया गया था. फिर भी वह यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे थे कि वह जरा भी परेशान या विचलित नहीं हैं.

रंजीत मल्होत्रा एक इज्जतदार आदमी थे. शहर के मुख्य बाजार में उन का ब्रांडेड कपड़ों का शोरूम तो था ही, वह साडि़यों के थोक विक्रेता भी थे. कपड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष होने के नाते व्यापारियों में उन की प्रतिष्ठा थी. उन के मन में कोई गलत काम करने का विचार तक नहीं आया था. उन के पास पैसा और शोहरत दोनों थे. इस के बावजूद उन में जरा भी घमंड नहीं था. वह अकेले थे, लेकिन हर तरह से सफल थे.  उन की तरक्की से कई लोग ईर्ष्या करते थे. इतना सब कुछ होते हुए भी उन्हें हमेशा इस बात का दुख सालता था कि शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन सके थे. उन की पत्नी ममता की गोद अभी तक सूनी थी.

रंजीत और ममता की शादी के बाद की जिंदगी किसी परीकथा से कम नहीं थी. हंसीखुशी से दिन कट रहे थे. जब उन की शादी हुई थी तो ममता की खूबसूरती को देख कर उन के दोस्त जलभुन उठे थे. उन्होंने कहा था, ‘‘भई आप तो बड़े भाग्यशाली हो, हीरोइन जैसी भाभी मिली है.’’

ममता थी ही ऐसी. शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी उन की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी. शरीर अभी भी वैसा ही गठा हुआ था. पिछले 10 सालों से रंजीत के यहां देवी नाम की लड़की काम कर रही थी. जब वह 10-11 साल की थी, तभी से उन के यहां काम कर रही थी. देवी हंसमुख और चंचल तो थी ही, काम भी जल्दी और साफसुथरा करती थी. इसलिए पतिपत्नी उस से खुश रहते थे. अपने काम और बातव्यवहार से वह दोनों की लाडली बनी हुई थी.

घर में कोई बालबच्चा था नहीं, इसलिए पतिपत्नी उसे बच्चे की तरह प्यार करते थे. जहां तक हो सकता था, देवी भी ममता को कोई काम नहीं करने देती थी. हालांकि वह इस घर की सदस्य नहीं थी, फिर भी अपने बातव्यवहार और काम की वजह से घर के सदस्य जैसी हो गई थी. पतिपत्नी उसे मानते भी उसी तरह थे. जब उस की शादी हुई तो ममता पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन रंजीत पूरी तरह बदल गए थे. देवी की शादी रंजीत के लिए किसी कड़वे घूंट से कम नहीं थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. इन 2 सालों में रंजीत के जीवन में कितना कुछ बदल गया था, जिंदगी में कितने ही व्यवधान आए थे. शादी के 10 साल बीत जाने पर गोद सूनी होने की वजह से ममता काफी हताश और निराश रहने लगी थी.

वह हर वक्त खुद को कोसती रहती थी. ईश्वर में जरा भी विश्वास न करने वाली ममता पूरी तरह आस्तिक हो गई थी. किसी तरह उस की गोद भर जाए, इस के लिए उस ने तमाम प्रयास किए थे. इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला तो ममता शांत हो कर बैठ गई. शादी के 4 सालों बाद दोनों को लगा कि अब उन्हें बच्चे के लिए प्रयास करना चाहिए. इस के बाद उन्होंने प्रेग्नेंसी रोकने के उपाय बंद कर दिए. बच्चे के लिए उन्हें जो करना चाहिए था, किया. दोनों को पूरा विश्वास था कि उन का प्रयास सफल होगा. उन्हें अपने बारे में जरा भी शंका नहीं थी, क्योंकि दोनों ही नौरमल और स्वस्थ थे.

इस तरह उम्मीदों में समय बीतने लगा. आशा और निराशा के बीच कोशिश चलती रही. रंजीत ममता को भरोसा देते कि जो होना होगा, वही होगा. उन्होंने डाक्टरों से भी सलाह ली और तमाम अन्य उपाय भी किए. पर कोई लाभ नहीं हुआ. पति समझाता कि चिंता मत करो. हम दोनों आराम से रहेंगे लेकिन पति के जाते ही अकेली ममता हताश और निराश हो जाती. रंजीत का पूरा दिन तो कारोबार में बीत जाता था, लेकिन वह अपना दिन कैसे बिताती. सारे प्रयासों को असफल होते देख डाक्टर ने रंजीत से अपनी जांच कराने को कहा. अभी तक रंजीत ने अपनी जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं की थी. वह दवाएं भी कम ही खाते थे. रंजीत ऊपर से भले ही निश्चिंत लगते थे, लेकिन संतान के लिए वह भी परेशान थे.

चिंता की वजह से रंजीत का किसी काम में मन भी नहीं लगता था. चिंता में वह शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे थे. काम करते हुए उन्हें थकान होने लगी थी. खुद पर से विश्वास भी उठ सा गया था. शांत और धीरगंभीर रहने वाले रंजीत अब चिड़चिड़े हो गए थे. बातबात पर उन्हें गुस्सा आने लगा था. घर में तो वह किसी तरह खुद पर काबू रखते थे, पर शोरूम पर वह कर्मचारियों से ही नहीं, ग्राहकों से भी उलझ जाते थे. घर में भी ममता से तो वह कुछ नहीं कहते थे, पर जरा सी भी गलती पर नौकरानी देवी पर खीझ उठते थे. देवी भी अब जवान हो चुकी थी, इसलिए उन के खीझने पर ममता उन्हें समझाती, ‘‘पराई लड़की है. अब जवान भी हो गई है, उस पर इस तरह गुस्सा करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम ने ही इसे सिर चढ़ा रखा है, इसीलिए इस के जो मन में आता है, वह करती है.’’ रंजीत कह देते.

बात आईगई हो जाती. जबकि देवी पर इस सब का कोई असर नहीं पड़ता था. वह उन के यहां इस तरह रहती और मस्ती से काम करती थी, जैसे उसी का घर है. ममता भले ही देवी का पक्ष लेती थी, लेकिन वह भी महसूस कर रही थी कि अब वह काफी बदल गई है. कभी किसी चीज को हाथ न लगाने वाली देवी कितनी ही बार रंजीत की जेब से पैसे निकाल चुकी थी. उसे पैसे निकालते देख लेने पर भी रंजीत और ममता अनजान बने रहते थे. वे सोचते थे कि कोई जरूरत रही होगी. देवी चोरी भी होशियारी से करती थी. वह पूरे पैसे कभी नहीं निकालती थी. इधर एक लड़का, जिस का नाम बलबीर था, अकसर रंजीत की कोठी के बाहर खड़ा दिखाई देने लगा था.

ममता ने जब उसे देवी को इशारा करते देखा तो देवी को तो टोका ही, उसे भी खूब डांटाफटकारा. इस से उस का उधर आनाजाना कम तो हो गया था, लेकिन बंद नहीं हुआ था. एक रात रंजीत वाशरूम जाने के लिए उठे तो उन्हें बाहर बरामदे से खुसरफुसर की कुछ आवाज आती सुनाई दी. खुसरफुसर करने वाले कौन हैं, जानने के लिए वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. उन के बाहर आते ही कोई अंधेरे का लाभ उठा कर दीवार कूद कर भाग गया. उन्होंने लाइट जलाई तो देवी को कपड़े ठीक करते हुए पीछे की ओर जाते देखा.

यह सब देख कर रंजीत को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने सारी बात ममता को बताई तो उन्होंने देवी को खूब डांटा, साथ ही हिदायत भी दी कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए. इस के बाद देवी का व्यवहार एकदम से बदल गया. वह रंजीत और ममता से कटीकटी तो रहने ही लगी, दोनों की उपेक्षा भी करने लगी. देवी के इस व्यवहार से रंजीत और ममता को उस की चिंता होने लगी थी. शायद इसी वजह से उन्होंने देवी के मातापिता से उस की शादी कर देने को कह दिया था. अचानक देवी का व्यवहार फिर बदल गया. ममता के साथ तो वह पहले जैसा ही व्यवहार करती रही, पर रंजीत से वह हंसहंस कर इस तरह बातें करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं था.

रंजीत ने गौर किया, वह जब भी अकेली होती, उदास रहती. कभीकभी वह फोन करते हुए रो देती. उस से वजह पूछी जाती तो कोई बहाना बना कर टाल देती. एक दिन तो उस ने हद कर दी. रोज की तरह उस दिन भी ममता मंदिर गई थी. रंजीत शोरूम पर जाने की तैयारी कर रहे थे. एकदम से देवी रंजीत के पास आई और उन के गाल को चुटकी में भर कर बोली, ‘‘आप कितने स्मार्ट हैं, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.’’

पहले तो रंजीत की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. जब समझ में आया तो हैरान रह गए. वह कुछ कहे बगैर नहाने चले गए. आज पहली बार उन्हें लगा था कि देवी अब बच्ची नहीं रही, जवान हो गई है. अगले दिन जैसे ही ममता मंदिर के लिए निकली, देवी दरवाजा बंद कर के सोफे पर बैठे रंजीत के बगल में आ कर बैठ गई. उस ने अपना हाथ रंजीत की जांघ पर रखा तो उन का तनमन झनझना उठा. उन्होंने तुरंत मन को काबू में किया और उठ कर अपने कमरे में चले गए. वह दिन कुछ अलग तरह से बीता. पूरे दिन देवी ही उन के खयालों में घूमती रही. आखिर वह चाहती क्या है. एक विचार आता कि यह ठीक नहीं. देवी तो नादान है जबकि वह समझदार हैं. कोई ऊंचनीच हो गई तो लोग उन्हीं पर थूकेंगे. जबकि दूसरा विचार आता कि जो हो रहा है, होने दो. वह तो अपनी तरफ से कुछ कर नहीं रहे हैं, जो कर रही है वही कर रही है.

अगले दिन सवेरा होते ही रंजीत के दिल का एक हिस्सा ममता के मंदिर जाने का इंतजार कर रहा था, जबकि दूसरा हिस्सा सचेत कर रहा था कि वह जो करने की सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है. ममता के मंदिर जाने पर देवी दरवाजा बंद कर रही थी, तभी वह नहाने के बहाने बाथरूम में घुस गए. दिल उन्हें बाहर निकलने के लिए उकसा रहा था. रोकने वाली आवाज काफी कमजोर थी. शायद इसीलिए वह नहाधो कर जल्दी से बाहर आ गए. देवी रसोई में काम कर रही थी. उस के चेहरे से ही लग रहा था कि वह नाराज है. रंजीत सोफे पर बैठ कर उस का इंतजार करने लगे. लेकिन वह नहीं आई. पानी देने के बहाने उन्होंने बुलाया. पानी का गिलास मेज पर रख कर जाते हुए उस ने धीरे से कहा, ‘‘नपुंसक.’’

रंजीत अवाक रह गए. देवी के इस एक शब्द ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. डाक्टर के कहने पर उन के मन में अपने लिए जो संदेह था, देवी के कहने पर उसे बल मिला. उन का चेहरा उतर गया. उसी समय ममता मंदिर से वापस आ गईं. पति का चेहरा उतरा देख कर उस से पूछा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

रंजीत क्या जवाब देते. अगले दिन उन्होंने नहाने जाने में जल्दी नहीं की. दरवाजा बंद कर के देवी उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. जैसे ही रंजीत ने उस की ओर देखा, उस ने झट से कहा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत सुंदर.’’ रंजीत ने कहा. लेकिन यह बात उन के दिल से नहीं, गले से निकली थी. देवी रंजीत की गोद में बैठ गई. वह कुछ कहते, उस के पहले ही उन का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘मैं आप को अच्छी नहीं लगती क्या?’’

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है.’’ रंजीत ने कहा.

इस के आगे क्या कहें, यह उन की समझ में नहीं आया तो ममता के आने की बात कह कर उसे उठाया और जल्दी से बाथरूम में घुस गए. इसी तरह 2-3 दिन चलता रहा. रंजीत अब पत्नी के मंदिर जाने का इंतजार करने लगे. अब देवी की हरकतें उन्हें अच्छी लगने लगी थीं. क्योंकि 40 के करीब पहुंच रहे रंजीत पर एक 18 साल की लड़की मर रही थी. यही अनुभूति रंजीत को पतन की राह की ओर उतरने के लिए उकसा रही थी. उन का पुरुष होने का अहं बढ़ता जा रहा था. खुद पर विश्वास बढ़ने लगा था. इस के बावजूद वह खुद को आगे बढ़ने से रोके हुए थे. पर एक सुबह वह दिल के आगे हार गए. जैसे ही देवी आ कर बगल में बैठी, वह होश खो बैठे.

नहाने गए तो उन के ऊपर जो आनंद छाया था, वह अपराधबोध से घिरा था. पूरे दिन वह सहीगलत की गंगा में डूबतेउतराते रहे. अगले दिन वह ममता के मंदिर जाने से पहले ही तैयार हो गए. ममता हैरान थी, जबकि देवी उन्हें अजीब निगाहों से ताक रही थी. रंजीत उस की ओर आकर्षित हो रहे थे. लेकिन आज दिमाग उन पर हावी था. दिमाग कह रहा था, ‘लड़की तो नासमझ है, उस की भी बुद्धि घास चरने चली गई है, जो अच्छाबुरा नहीं सोच पा रहा है. उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं है.’ अब उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था.

यह पछतावा तब ज्वालामुखी बन कर फूट पड़ा, जब ममता के मंदिर जाने पर देवी ने रंजीत को बताया कि इस महीने उसे महीना नहीं हुआ. अब वह क्या करे? यह सुन कर रंजीत पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था. धरती भी नहीं फटने वाली थी कि वह उस में समा जाते. उन्हें खुद से घृणा हो गई. उन्होंने एक लड़की की जिंदगी बरबाद की थी. इस अपराधबोध से उन का रोमरोम सुलग रहा था. लेकिन अब पछताने से कुछ होने वाला नहीं था. अब तो समाधान ढूंढना था. उन्होंने देवी से कहा, ‘‘तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो, उस के पहले ही कुछ करना होगा. मैं दवा की व्यवस्था करता हूं. तुम दवा खा लो, सब ठीक हो जाएगा.’’

लेकिन देवी ने कोई भी दवा खाने से साफ मना कर दिया. रंजीत उसे मनाते रहे, पर वह जिद पर अड़ी थी. रंजीत की अंतरात्मा कचोट रही थी कि उन्होंने कितना घोर पाप किया है. आज तक उन्होंने जो भी भलाई के काम किए थे, इस एक काम ने सारे कामों पर पानी फेर दिया था. वह पापी हैं. चिंता और अपराधबोध से ग्रस्त रंजीत को देवी ने दूसरा झटका यह कह कर दिया कि उस के पापा उन से मिलना चाहते हैं. जो न सुनना चाहिए, वह सुनने की तैयारी के साथ रंजीत देवी के घर पहुंचे. उस दिन ड्राइवर की नौकरी करने वाले देवी के बाप रामप्रसाद का अलग ही रूप था.

हमेशा रंजीत के सामने हाथ जोड़ कर सिर झुकाए खड़े रहने वाले रामप्रसाद ने उन पर हाथ भले ही नहीं उठाया, पर लानतमलामत खूब की. रंजीत सिर झुकाए अपनी गलती स्वीकार करते रहे और रामप्रसाद से कोई रास्ता निकालने की विनती करते रहे. अंत में रामप्रसाद ने रास्ता निकाला कि वह देवी की शादी और अन्य खर्चों के लिए पैसा दे दें.

‘‘हां…हां, जितने पैसे की जरूरत पड़ेगी, मैं दे दूंगा.’’ राहत महसूस करते हुए रंजीत ने कहा, ‘‘कब करनी है शादी?’’

‘‘अगले सप्ताह. बलबीर का कहना है, ऐसे में देर करना ठीक नहीं है.’’

‘‘बलबीर? वही जो आवारा लड़कों की तरह घूमता रहता है. तुम्हें वही नालायक मिला है ब्याह के लिए?’’

‘‘वह नालायक…आप से तो अच्छा है जो इस हालत में भी शादी के लिए तैयार है.’’

बलबीर का नाम सुन कर रंजीत हैरान थे, लेकिन वह कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थे. देवी की शादी और अन्य खर्च के लिए रंजीत को 10 लाख रुपए देने पड़े. इस के अलावा उपहार के रूप में कुछ गहने भी. शादी के बाद रहने की बात आई तो रंजीत ने अपना बंद पड़ा फ्लैट खोल दिया. ऐसा उन्होंने खुशीखुशी नहीं किया था बल्कि यह काम दबाव डाल कर करवाया गया था. इज्जत बचाने के लिए वह रामप्रसाद के हाथों का खिलौना बने हुए थे. फ्लैट के लिए ममता ने ऐतराज किया तो उन्होंने उसे यह कह कर चुप करा दिया कि देवी अपने ही घर पलीबढ़ी है. शादी के बाद कुछ दिन सुकून से रह सके, इसलिए हमें इतना तो करना ही चाहिए.

देवी की शादी के 7 महीने ही बीते थे कि ममता ने रंजीत को बताया कि देवी को बेटा हुआ है. रंजीत मन ही मन गिनती करते रहे, पर वह हिसाब नहीं लगा सके. ममता ने कहा, ‘‘हमें देवी का बच्चा देखने जाना चाहिए.’’

ममता के कहने पर रंजीत मना नहीं कर सके. वह पत्नी के साथ देवी के यहां पहुंचे तो बलबीर बच्चा उन की गोद में डालते हुए बोला, ‘‘एकदम बाप पर गया है.’’

रंजीत कांप उठे. ममता ने कहा, ‘‘देखो न, बच्चे के नाकनक्श बलबीर जैसे ही हैं.’’

अगले दिन बलबीर ने शोरूम पर जा कर रंजीत से कहा, ‘‘आप अपना बच्चा गोद ले लीजिए.’’

‘‘इस में कोई बुराई तो नहीं है, पर ममता से पूछना पड़ेगा.’’

रंजीत को बलबीर का प्रस्ताव उचित ही लगा था. लेकिन बलबीर ने शर्त रखी थी कि जिस फ्लैट में वह रहता है, वह फ्लैट उस के नाम कराने के अलावा कामधंधा शुरू करने के लिए कम से कम 25 लाख रुपए देने होंगे. सब कुछ रंजीत की समझ में आ गया था. उन्होंने पैसा कम करने को कहा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. कारोबारी रंजीत समझ गए कि अब खींचने से कोई फायदा नहीं है. उन्होंने ममता से बात की. थोड़ा समझाने बुझाने पर वह देवी का बच्चा गोद लेने को राजी हो गई. बच्चे को गोद लेने के साथसाथ अपने वकील को उन्होंने फ्लैट देवी के नाम कराने के कागज तैयार करने के लिए कह दिया. 25 लाख देने के लिए रंजीत को प्लौट का सौदा करना था. इस के लिए उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को सहेज दिया था.

इतना सब होने के बावजूद ममता का मन अभी पराया बच्चा गोद लेने का नहीं हो रहा था. इसलिए उस ने रंजीत से कहा, ‘‘बच्चा गोद लेने से पहले आप एक बार अपनी जांच करा लीजिए.’’

रंजीत ने सोचा, उन का टैस्ट तो हो चुका है. उन्हीं के पुरुषत्व का नतीजा है देवी का बच्चा. फिर भी पत्नी का मन रखने के लिए उन्होंने अपनी जांच करा ली. इस जांच की जो रिपोर्ट आई, उसे देख कर रंजीत के होश उड़ गए. वह खड़े नहीं रह सके तो सोफे पर बैठ गए. तभी उन्हें एक दिन देवी की फोन पर हो रही बात समझ में आ गई, जिसे वह उन पर डोरे डालते समय किसी से कर रही थी. देवी ने जब पहली बार रंजीत का हाथ पकड़ा था, तब उन्होंने उसे कोई भाव नहीं दिया था. इस के बाद उस ने फोन पर किसी से कहा था, ‘‘तुम्हारे कहे अनुसार कोशिश तो कर रही हूं. प्लीज थोड़ा समय दो. तब तक वह वीडियो…’’

तभी रंजीत वहां आ गए. उन्हें देख कर देवी सन्न रह गई थी. उसे परेशान देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

देवी ने बहाना बनाया कि वह किसी सहेली से वीडियो देखने की बात कर रही थी. अब रंजीत की समझ में आया कि उस समय देवी की बलबीर से बात हो रही थी. देवी का कोई वीडियो उस के पास था, जिस की बदौलत वह देवी से उसे फंसाने के लिए दबाव डाल रहा था. रिपोर्ट देख कर साफ हो गया था कि देवी का बच्चा बलबीर का था. उन्हें अपनी मूर्खता पर शरम आई. लेकिन उन्होंने जो गलती की थी, उस की सजा तो उन्हें भोगनी ही थी. रंजीत ने वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन कर के प्लौट का सौदा और फ्लैट के पेपर बनाने से रोक दिया. अब न उन्हें बच्चा गोद लेना था, न फ्लैट देवी के नाम करना था. अब उन्हें प्लौट भी नहीं बेचना था. वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन करने के बाद उन्होंने ममता को बुला कर कहा, ‘‘ममता मैडिकल रिपोर्ट आ गई.

रिपोर्ट के अनुसार मेरे अंदर बाप बनने की क्षमता नहीं है. मैं संतान पैदा करने में सक्षम नहीं हूं.’’

ममता की समझ में नहीं आया कि उस का पति अपने नपुंसक होने की बात इतना खुश हो कर क्यों बता रहा है.