Best Short Story in Hindi : सचिन वाझे की दास्तान – पुलिसिया हीरो या साजिश का मोहरा? पढ़ें पूरा सच

Best Short Story in Hindi : मुंबई एटीएस, क्राइम ब्रांच, सीबीआई और एनआईए जैसी 4 सशक्त जांच एजेंसियों की जांच के बाद भी अभी तक पूरा सच सामने नहीं आया है. लेकिन इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि राजनीति और अफसरशाही का गठजोड़ बड़ा गहरा और घातक होता है. वाझे सिर्फ मोहरा था या खिलाड़ी, अभी…

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 20 मार्च को जब आरोप लगाया कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाझे को हर महीने बार, रेस्तरां और दूसरे स्रोतों से 100 करोड़ रुपए उगाहने के निर्देश दिए थे, तो आम लोगों को भले ही खाकी और खादी की ऐसी लूटखसोट पर हैरानी हुई हो, लेकिन राजनीति करने वालों और नौकरशाहों को इस पर कतई आश्चर्य नहीं हुआ था. करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों की आबादी वाले मुंबई महानगर की जान फिल्म इंडस्ट्री तो है ही, साथ ही डेढ़ हजार से ज्यादा बार, रेस्तरां और नाइट क्लब भी हैं. कहा जाता है कि मुंबई कभी नहीं सोती.

यह सच भी है. दुनिया का ऐसा कोई कालासफेद धंधा नहीं है, जो मुंबई में न होता हो. जो मुंबई को समझ गया, उसे मुंबई ने गले लगा लिया और वह मालामाल होता चला गया. शायद इसीलिए मुंबई में अपराधी गिरोह पनपते रहे. संगठित अपराधियों ने बेताज बादशाह बनने के लिए एक से बढ़ कर एक अपराध किए. आजादी के बाद सब से पहले कुख्यात तस्कर के रूप में हाजी मस्तान का नाम उभर कर सामने आया था. बाद में अंडरवर्ल्ड के अपराधियों के आने से गैंगवार और खूनखराबा होने लगा. बड़े उद्योगपतियों, कारोबारियों और फिल्म वालों से वसूली की जाने लगी. यह लगभग 21वीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा.

इस के बाद सरकारों की सख्ती से अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं ने पड़ोसी देशों में अपने ठिकाने बना लिए, लेकिन उन के गुर्गे मुंबई में लोगों को डरातेधमकाते और वही तमाम अपराध करते रहे, जो पहले होते थे. फर्क इतना था कि इन अपराधों में कुछ पुलिस वाले भी शामिल होते चले गए. इस के भयानक रूप कई बार सामने आए हैं. अब एक नया रूप निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे के कारनामों से सामने आया है. सचिन वाझे महाराष्ट्र पुलिस का कोई बहुत बड़ा अफसर नहीं है. वह सहायक पुलिस निरीक्षक है. दूसरे राज्यों में यह पद एक थानेदार के बराबर होता है. एक थानेदार की हैसियत वाला सचिन वाझे मुंबई पुलिस में सब से ज्यादा रुतबेदार और ताकतवर था.

पुलिस महकमे के प्रोटोकाल के हिसाब से उसे अपराध शाखा में अपने वरिष्ठ अधिकारियों एसीपी, डीसीपी, एडिशनल सीपी और जौइंट सीपी को रिपोर्ट करनी चाहिए थी, लेकिन सरकार के वरदहस्त से वह इन अफसरों को कुछ नहीं समझता था. पुलिस में तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह उस के बौस थे और उद्धव सरकार में गृहमंत्री अनिल देशमुख उस के संरक्षक. सचिन वाझे ‘खलनायक’ है या ‘मोहरा’ या फिर ‘सब से बड़ा खिलाड़ी’, यह बात मुंबई पुलिस के अलावा देश की प्रमुख सुरक्षा एजेंसियों एनआईए और सीबीआई की जांच से भी अभी तक साफ नहीं हुई, लेकिन जो परतें खुली हैं, उन से जरूर सामने आ गया है कि वह मंझा हुआ खिलाड़ी है.

वाझे ‘खलनायक’ कैसे बना, यह कहानी बहुत लंबी है. जबकि नई कहानी की शुरुआत इसी साल 25 फरवरी को हुई. अंबानी परिवार था निशाना उस दिन दक्षिण मुंबई के पैडर रोड पर एशिया के सब से अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के 27 मंजिला आवास ‘एंटीलिया’ के सामने लावारिस हालत में एक स्कौर्पियो गाड़ी खड़ी मिली थी. उस गाड़ी के ड्राइवर या मालिक का पता नहीं लगने पर अंबानी के सुरक्षाकर्मियों ने गामदेवी पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने पहुंच कर गाड़ी का एक शीशा तोड़ कर अंदर देखा. गाड़ी के अंदर जिलेटिन की छड़ें थीं. तलाशी ली गई तो उस में जिलेटिन की 2 किलो 600 ग्राम वजन की 20 छड़ें मिलीं.

जिलेटिन की छड़ें विस्फोट करने के काम आती हैं, लेकिन धमाके के लिए इन छड़ों के साथ कोई डेटोनेटर नहीं था. इन छड़ों के साथ पुलिस को कागज का एक पुर्जा भी मिला. टाइप किए हुए इस पुर्जे पर हिंदी में लिखा था, ‘ये तो सिर्फ एक ट्रेलर है. नीता भाभी, मुकेश भैया फैमिली, ये तो सिर्फ एक झलक है. अगली बार ये सामान पूरा हो कर तुम्हारे पास आएगा.’

पुलिस ने स्कौर्पियो सहित जिलेटिन की छड़ें और धमकी भरा पत्र जब्त कर लिया. अंबानी के आवास की सुरक्षा सीआरपीएफ संभालती है. मुकेश अंबानी को जेड प्लस और उन की पत्नी नीता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है. अंबानी की सुरक्षा से जुड़ा मामला होने के कारण आला अफसरों ने इस की जांच मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की इंटेलिजेंस यूनिट के प्रमुख सचिन वाझे को सौंप दी. जांचपड़ताल में उस स्कौर्पियो पर लगी नंबर प्लेट नकली निकली. उस पर लिखा नंबर अंबानी परिवार के सुरक्षा काफिले में शामिल गाडि़यों जैसा था.

दूसरे दिन ही पुलिस को पता लग गया कि स्कौर्पियो का मालिक मनसुख हिरेन है. पुलिस ने हिरेन को तलब किया. उस ने बताया कि 18 फरवरी को उस की गाड़ी चोरी हो गई थी. उस ने पुलिस में इस की शिकायत भी दर्ज करा दी थी. बाद में हिरेन ने वाझे के कहने पर मुंबई पुलिस के आला अफसरों को पत्र लिख कर आरोप लगाया कि पुलिस उसे एंटीलिया मामले में बेवजह परेशान कर रही है, क्योंकि उस की गाड़ी चोरी हो गई थी. इसी दौरान पहली मार्च को सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम के एक चैनल के पोस्ट में अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक रखने के लिए जैश उल हिंद नामक आतंकी संगठन ने खुद को जिम्मेदार बताया. लेकिन इस के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने कहा कि जैश उल हिंद नाम का कोई आतंकी संगठन है ही नहीं.

पुलिस इस मामले की जांच कर ही रही थी कि 4 मार्च को मनसुख हिरेन लापता हो गए. हिरेन घर पर अपनी पत्नी विमला से कह कर गए थे कि तावड़े नाम के किसी पुलिस वाले का फोन आया है, उस ने पूछताछ के लिए बुलाया है. इस के बाद हिरेन वापस घर नहीं लौटे. पत्नी विमला ने रात को उन्हें फोन किया, तो उन का मोबाइल बंद मिला. इस के अगले ही दिन 5 मार्च को हिरेन की लाश उत्तरपश्चिम मुंबई के रेतीबंदर की मुंब्रा खाड़ी में तैरती हुई मिली. उन के हाथ बंधे हुए थे और मुंह में कई रुमाल ठूंसे हुए थे. इसे ले कर ठाणे पुलिस ने दुर्घटना में मौत का मामला दर्ज किया. हिरेन की पत्नी विमला ने अपने पति की हत्या करवाने का आरोप वाझे पर लगाया.

करीब 49 साल के मनसुख हिरेन कार डेकोरेशन का काम करते थे. हिरेन की पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया. हिरेन की हत्या हो जाने से यह मामला और पेचीदा हो गया. इस के बाद महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को सौंप दी. दूसरी ओर, अंबानी परिवार को धमकी देने के मामले में आतंकी संगठन का नाम आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 8 मार्च को इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी. एनआईए और महाराष्ट्र एटीएस की जांच में रोजाना नई बातें सामने आने लगीं. एटीएस ने हिरेन की मौत के मामले में 2 दिन तक वाझे से लगातार पूछताछ की.

वहीं, एनआईए की जांच शुरू होते ही 11 मार्च को गृहमंत्री अनिल देशमुख ने वाझे के मुंबई से बाहर तबादले का ऐलान कर दिया. स्कौर्पियो वाझे ने खड़ी की थी एनआईए को शुरुआती जांच में कई महत्त्वपूर्ण तथ्य और सबूत मिले. एनआईए ने अंबानी के आवास को जानेवाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी, तो पता चला कि 24-25 फरवरी की दरम्यानी रात वाझे वह स्कौर्पियो ले कर अंबानी के आवास के बाहर पहुंचा था. स्कौर्पियो के पीछे मुंबई पुलिस की एक इनोवा चल रही थी. स्कौर्पियो गाड़ी वहां लावारिस छोड़ने के बाद वाझे उस इनोवा कार में बैठ कर चला गया. वाझे को शायद एनआईए और एटीएस की जांच अपने खिलाफ जाने का अहसास हो गया था.

ठाणे की सत्र अदालत से अग्रिम जमानत की अरजी खारिज होने के दूसरे दिन उस ने 13 मार्च को अपना वाट्सऐप स्टेटस अपडेट करते हुए लिखा, ‘दुनिया को अलविदा कहने का समय नजदीक आ रहा है.’ उसी दिन एनआईए ने वाझे को हिरासत में ले कर कई घंटे तक पूछताछ की. फिर 13 मार्च की रात उसे गिरफ्तार कर लिया. एनआईए ने वाझे के मोबाइल और आईपैड अपने कब्जे में ले लिए. उस के औफिस पर भी छापेमारी की गई. सीसीटीवी फुटेज की जांच में सामने आया कि अंबानी के आवास एंटीलिया के सामने मिली मनसुख हिरेन की स्कौर्पियो चोरी नहीं हुई थी, बल्कि यह गाड़ी 18 से 24 फरवरी के बीच कई बार वाझे के आवास की सोसायटी में दिखाई दी थी.

एनआईए की जांच में यह बात भी सामने आई कि वाझे और हिरेन एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित थे. हिरेन ने अपनी हलके हरे रंग की महिंद्रा स्कौर्पियो गाड़ी नवंबर 2020 में वाझे को किसी काम के लिए दी थी. वाझे ने स्कौर्पियो में कोई खराबी आने पर 5 फरवरी, 2021 को यह गाड़ी हिरेन को वापस लौटा दी थी. हिरेन ने रिश्तेदार के पास जाते समय 17 फरवरी को स्टीयरिंग जाम हो जाने पर अपनी स्कौर्पियो विक्रोली में ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर छोड़ दी थी. अगले दिन वह विक्रोली पहुंचा, तो वहां गाड़ी नहीं मिली. तब उस ने विक्रोली थाने में शिकायत दी. पुलिस ने शिकायत दर्ज नहीं की, तो वाझे ने विक्रोली थाने फोन कर शिकायत दर्ज करने को कहा था.

जांच के दौरान एनआईए ने मुंबई पुलिस कमिश्नरेट के पास क्राफोर्ड मार्केट की एक पार्किंग से वाझे की काली मर्सिडीज बरामद की, जिस में 5 लाख रुपए नकद और नोट गिनने की मशीन के अलावा मनसुख हिरेन की उस स्कौर्पियो की असली नंबर प्लेट भी रखी मिली, जिस में अंबानी के आवास के सामने से जिलेटिन की छड़ें बरामद हुई थीं. इस के बाद वाझे के साकेत स्थित मकान से एक और लग्जरी कार लैंड क्रूजर बरामद की गई. इस बीच, महाराष्ट्र सरकार ने 17 मार्च को मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का तबादला होमगार्ड्स में कर दिया. सिंह के तबादले पर गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि परमबीर सिंह को इसलिए हटाया गया, क्योंकि अंबानी मामले की जांच में गंभीर लापरवाहियां पाई गई थीं.

परमबीर सिंह को हटाने पर मुंबई पुलिस कमिश्नरेट के 146 साल के इतिहास में सब से गंभीर संकट पैदा हो गया. तबादले से तिलमिलाए परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया. उन्होंने 20 मार्च को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र में यह सनसनीखेज आरोप लगाया कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने वाझे जैसे पुलिस अधिकारियों को मुंबई के 1750 बार, रेस्तरां और दूसरे स्रोतों से हर महीने सौ करोड़ रुपए की उगाही करने के लिए कहा था. इस सनसनीखेज धमाके से महाराष्ट्र सरकार हिल जरूर गई, लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कोटे वाले गृहमंत्री अनिल देशमुख को अपनी पार्टी के मुखिया शरद पवार से राजनीतिक अभयदान मिल गया.

मुख्यमंत्री की ओर से कोई काररवाई नहीं किए जाने पर परमबीर सिंह ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि एक पूर्व पुलिस कमिश्नर अपने राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई से जांच के लिए सब से बड़ी अदालत पहुंचा था. हिरेन की हत्या में गिरफ्तारी इस से एक दिन पहले 21 मार्च को एटीएस ने हिरेन की मौत की गुत्थी सुलझाने का दावा करते हुए एक पूर्व पुलिस कांस्टेबल विनायक शिंदे और एक क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे को गिरफ्तार कर लिया. एटीएस ने इस मामले में वाझे को मुख्य संदिग्ध बताया. बाद में एनआईए ने अदालत के जरिए हिरेन हत्या मामले की जांच भी अपने हाथ में ले ली.

एनआईए की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ती गई, वैसेवैसे नएनए राज सामने आते गए. इन में एंटीलिया के सामने विस्फोटकों से भरी स्कौर्पियो खड़ी करने और मनसुख हिरेन की हत्या की परतें खुलती गईं. सचिन वाझे 13 मार्च से 27 दिन तक एनआईए की हिरासत में रहा. एनआईए अदालत ने 9 अप्रैल को उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस के बाद वाझे का नया ठिकाना मुंबई की तालोजा जेल की बैरक बन गई. एनआईए की जांच में खुली परतों और सामने आए सबूतों के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सचिन वाझे की ओर से शतरंज की बिसात पर सब से बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए पासा फेंकने की थी, जिस में दांव उलटा पड़ने से वह मात खा गया था.

अपराधियों में खौफ का पर्याय माने जाने वाले मुंबई क्राइम ब्रांच के सब से तेजतर्रार अफसर सचिन वाझे की दोस्ती सभी तरह के लोगों से थी. इन में शरीफ भी थे और बदमाश भी. ठाणे इलाके में कार डेकोरेशन का काम करने वाला मनसुख हिरेन भी वाझे के दोस्तों में था. हिरेन कोई गुंडाबदमाश नहीं था. न ही वह कोई गैरकानूनी काम करता था. वह तो वाझे की दिलेरी का प्रशंसक था. इसीलिए वाझे से उस की दोस्ती थी. वाझे कभीकभार कुछ दिनों के लिए उस की गाड़ी ले लेता था. हिरेन को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था.

वाझे ने 16 साल तक निलंबित रहने के बाद 6 जून, 2020 को ही मुंबई पुलिस में अपनी दूसरी पारी शुरू की थी. वह अपनी पहली पारी में एनकाउंटर स्पैशलिस्ट के रूप में 63 बदमाशों को मौत की नींद सुला चुका था. दोबारा खाकी वर्दी और सरकारी पिस्तौल मिलने पर वाझे ने मुंबई क्राइम ब्रांच की सीआईयू का मुखिया बन कर जल्दी ही अपना खौफ कायम कर लिया. वाझे की एक खासियत यह थी कि वह छोटेमोटे केस में हाथ नहीं डालता था. उसे बड़े अपराधियों, फिल्म वालों और दौलत वालों के केसों की जांच करने में ज्यादा आनंद आता था. दूसरी पारी में वाझे ने जब खाकी वर्दी पहनी, तभी सोच लिया था कि इस बार बड़े काम करेगा.

उस ने दिलीप छाबडि़या और रिपब्लिक भारत टीवी चैनल के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी जैसे बड़े लोगों पर हाथ डाले, तो मुंबई में फिर से उस के चर्चे होने लगे. वाझे इस बार ‘बड़े खेल’ करना चाहता था. इसीलिए उस ने अंबानी परिवार को धमकाने के मकसद से उन के आवास के सामने जिलेटिन की छड़ों से भरी गाड़ी रखने की साजिश रची. इस साजिश में उस ने हिरेन के अलावा अपने महकमे के कुछ नएपुराने लोगों को भी शामिल किया. वाझे ने हिरेन को मोटी रकम देने का वादा किया था. इसी साजिश के तहत 17 फरवरी को हिरेन की स्कौर्पियो चोरी होने का नाटक रचा गया.

जिलेटिन की छड़ें रखने के बाद इस स्कौर्पियो को 24-25 फरवरी की दरम्यानी रात अंबानी के आवास एंटीलिया के बाहर लावारिस हालत में छोड़ दिया गया. अपने उच्चाधिकारियों से कह कर वाझे ने एंटीलिया केस की जांच खुद अपने हाथ में ले ली. उस ने हिरेन और साजिश में शामिल दूसरे लोगों को यह भरोसा दिलाया कि जांच में वह किसी पर भी आंच नहीं आने देगा. लेकिन बाद में यह मामला विपक्ष ने गरमा दिया, जिस से हालात विपरीत होते चले गए. वाझे ने अपने हाथ से बाजी निकलते देखी, तो उसे डर हुआ कि हिरेन उस का भांडा फोड़ सकता है. एंटीलिया मामले की साजिश की सब से कमजोर कड़ी हिरेन ही था. इसलिए वाझे ने एक अपराध पर परदा डालने के लिए दूसरा अपराध करने की साजिश रची.

उस ने हिरेन को ही ठिकाने लगाने का फैसला किया ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी. करा दी हिरेन की हत्या सचिन वाझे ने पूर्व कांस्टेबल विनायक शिंदे और क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे सहित कुछ दूसरे लोगों के सहयोग से 4 मार्च की रात हिरेन की हत्या करवा दी. वाझे के कहने पर शिंदे ने पुलिस अधिकारी तावड़े के नाम से हिरेन को फोन कर के पूछताछ के लिए बुलाया. उसी रात हिरेन को मार कर मुंब्रा खाड़ी में फेंक दिया गया. हिरेन को ठिकाने लगवाने के बाद वाझे जानबूझ कर एक डांस बार की जांच करने गया था. एंटीलिया केस और हिरेन की हत्या के मामले में बाद में एनआईए ने 10 अप्रैल को वाझे के सब से करीबी सहायक पुलिस निरीक्षक रियाजुद्दीन काजी को गिरफ्तार कर लिया.

काजी से एनआईए ने मार्च के महीने में दसियों बार पूछताछ की थी. उस के खिलाफ कई अहम सबूत मिले. उस ने वाझे के आपराधिक सबूतों को नष्ट किया था. उस की सोसायटी में कई बार खड़ी रही वाझे की स्कौर्पियो के फुटेज निकाल कर उसी ने नष्ट किए थे. एनआईए ने वाझे की महिला मित्र मीना जार्ज को भी जांच के दायरे में रख कर कई बार पूछताछ की. कहा जाता है कि वह वाझे की काली कमाई का हिसाबकिताब रखती थी. वाझे एक होटल में बैठ कर अपने काले कारनामों की योजना बनाता था. इसी होटल में वह अपने विश्वस्त लोगों से मिलता भी था.

पता चला कि वाझे 16 से 20 फरवरी के बीच नरीमन पौइंट के सब से आलीशान होटल ट्राइडेंट में रुका था. वाझे ने इस होटल में फरजी आधार कार्ड से बुकिंग कराई थी. महाराष्ट्र एटीएस और एनआईए ने वाझे की 8 लग्जरी कारों के अलावा बैंकों में लाखों रुपए के लेनदेन के सबूत हासिल किए हैं. एक बैंक खाते में डेढ़ करोड़ रुपए जमा होने का पता चला है. उसे सर्विस रिवौल्वर के लिए दी गई 25 गोलियां कम मिलीं, जबकि 62 बेनामी कारतूस मिले. एक डायरी भी बरामद की गई है, जिस में अवैध वसूली और बड़े लोगों को ‘नजराना’ देने का हिसाबकिताब था.

अब इस मामले की जांच में सीबीआई भी जुड़ गई है. बौंबे हाईकोर्ट ने पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की याचिका पर महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई को जांच करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट का आदेश होने पर देशमुख ने 5 अप्रैल को गृहमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. एंटीलिया केस से शुरू हुए मामलों की जांच सीबीआई और एनआईए कर रही है. जबकि महाराष्ट्र एटीएस ने भी अपनी जांच बंद नहीं की है. हिरेन की स्कौर्पियो चोरी के मामले की जांच मुंबई पुलिस अलग से कर रही है. एनआईए की पूछताछ में यह बात भी सामने आई है कि अंबानी के आवास के सामने विस्फोटकों से भरी स्कौर्पियो खड़ी करने के बाद वाझे ने एक बड़े एनकाउंटर की योजना बनाई थी.

इस में वाझे कुछ लोगों का एनकाउंटर कर पूरे मामले को उन के सिर मढ़ने वाला था. इस के लिए औरंगाबाद से चोरी एक मारुति ईको कार का उपयोग किया जाना था. आतंकी संगठन जैश उल हिंद के जिम्मेदारी लेने का मामला भी वाझे की ही चाल थी. वाझे को यह उम्मीद नहीं थी कि एनआईए की एंट्री इतनी जल्दी हो जाएगी. एनआईए की एंट्री के साथ ही वाझे का खेल बिगड़ने लग गया था. इस कहानी में 3 मुख्य किरदार हैं— अनिल देशमुख, परमबीर सिंह और सचिन वाझे. इन में सब से अहम सचिन वाझे और उस की मित्र मंडली है. अब तीनों ही संकट में फंसे हुए हैं और तीनों की ही अलगअलग स्तरों पर जांच चल रही है. वाझे को नौकरी से बर्खास्त करने की प्रक्रिया चल रही है.

सचिन वाझे: मोहरा या बड़ा खिलाड़ी बनने की तमन्ना करीब 2 महीने की जांचपड़ताल के बाद भी इस सवाल का जवाब सामने नहीं आया कि वाझे का अंबानी परिवार को धमकाने का मकसद अवैध रूप से धन वसूली था या कुछ और? माना यही जा रहा है कि वाझे ने यह खेल अवैध वसूली के लिए खेला था. इस खेल के पीछे किसी पुलिस अधिकारी या नेता का हाथ था या फिर वाझे खुद अपने लिए वसूली करना चाहता था, यह पहेली भी नहीं सुलझी है. जांच अभी चल रही है. जांच का ऊंट किस करवट बैठेगा, अभी कहना मुश्किल है. जांच में महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार की सांसें अटकी हुई हैं. पता नहीं, कब चूलें हिल जाएं? भाजपा भी मौके की तलाश में गिद्धदृष्टि जमाए हुए है.

अभी सचिन वाझे ही खलनायक और सब से बड़े खिलाड़ी के रूप में सामने आया है. करीब 52 साल के पतलेदुबले सचिन वाझे को पहली नजर में देख कर कोई यकीन नहीं कर सकता कि इस आदमी ने दाऊद इब्राहिम के 3 दरजन शूटरों को मौत के घाट उतारा होगा. वाझे से दाऊद तो दबता ही था, मुंबई के सट्टेबाज, ड्रग तस्कर, डांस बार मालिक और बड़ेबड़े बिल्डर भी घबराते थे. अपराधियों और पैसे वालों में उस का खौफ था. खौफ का कारण उस का दिमाग, तीन सितारों वाली खाकी वर्दी और हाथ में भरी रहने वाली पिस्तौल थी. इसी खौफ के पीछे वाझे और उस की मंडली की मुठभेड़ों के झूठेसच्चे किस्से भी थे, जो दुर्दांत अपराधियों के चेहरे पर पसीने ला देते थे.

इसी कारण उस ने अपने अफसरों और सरकार में दबदबा बना लिया था. वाझे के पुलिस महकमे में इतना पावरफुल बनने की कहानी काफी लंबी है.महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के एक स्थानीय नेता का बेटा सचिन क्रिकेटर और कालेज टीम का विकेटकीपर था. वह महाराष्ट्र पुलिस में भरती हुए 1990 बैच के पुलिस सबइंसपेक्टरों में से एक था. वाझे की पहली पोस्टिंग गढ़ चिरौली के माओवाद प्रभावित इलाके में हुई थी. 2 साल बाद उसे ठाणे शहर पुलिस में शिफ्ट कर दिया गया. 2000 के दशक में वह सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा के संपर्क में आया. प्रदीप को तब ‘एनकाउंटर स्पैशलिस्ट’ के रूप में जाना जाता था.

ये स्पैशलिस्ट मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट (सीआईयू) के सदस्य थे, जो सीधे पुलिस कमिश्नर और संयुक्त पुलिस कमिश्नर (अपराध) को रिपोर्ट करते थे. सीआईयू को तब अंडरवर्ल्ड की बढ़ती ताकत और उन के अपराधों पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साथ आने के बाद वाझे प्रदीप शर्मा का बेहद करीबी बन गया. प्रदीप की टीम में एक एनकाउंटर स्पैशलिस्ट दया नायक पहले से थे. दया नायक के जीवन पर रामगोपाल वर्मा ने फिल्म ‘अब तक छप्पन’ बनाई थी. मुंबई पुलिस में सब से ज्यादा 113 एनकाउंटर प्रदीप शर्मा ने किए हैं. वाझे और उस की टीम ने 63 से ज्यादा एनकाउंटर किए.

मुन्ना नेपाली जैसे कुख्यात गैंगस्टर को ठिकाने लगाने के बाद वह शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच गया था. सन 2002 में मुंबई के घाटकोपर में बेस्ट की बस में हुए बम विस्फोट मामले के संदिग्ध आरोपी सौफ्टवेयर इंजीनियर ख्वाजा यूनुस की पुलिस हिरासत में हुई मौत को ले कर पुलिस टीम का नेतृत्व करने वाला सचिन वाझे फंस गया था. चर्चा रही कि यूनुस को हिरासत में मार दिया गया और उस की लाश नाले में फेंक दी गई थी. इस मामले में वाझे को 2004 में निलंबित कर दिया गया. उस ने 2006 में इस्तीफा दे दिया लेकिन जांच लंबित होने के कारण इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया.

वाझे ने 2008 में दशहरा रैली के मौके पर बड़ी धूमधाम के साथ शिवसेना का दामन थाम लिया था. तब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने निवास मातोश्री पर उस का स्वागत किया था. वाझे का शिवसेना से नाता वाझे जब पुलिस की नौकरी की पहली पारी खेल रहा था, तभी से उस के महाराष्ट्र की सब से ताकतवर शख्सियत बाला साहेब ठाकरे से अच्छे संबंध थे. इसीलिए वाझे की शिवसेना में एंट्री पर लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ. शिवसेना ने उसे प्रवक्ता बना दिया. वाझे भले ही शिवसेना में शामिल हो गया था, लेकिन सपने बहुत ऊंचे होने के कारण उस का मन पार्टी में नहीं लगा. इसलिए उस ने पार्टी की सदस्यता का नवीनीकरण भी नहीं कराया.

शिवसेना से मोहभंग होने के बाद उस ने किताबें लिखीं और खुद को सौफ्टवेयर का हुनरमंद बनाया. सन 2010 में उस ने एक मराठी सोशल मीडिया ऐप लाइ भारी लौंच किया. इस के अलावा कई सौफ्टवेयर फर्मों की शुरुआत की. ये फर्में कुछ साल में बंद हो गईं. वाझे शिवसेना में सक्रिय नहीं था. इस के बावजूद शिवसेना प्रमुख ठाकरे उस से इतने प्रभावित थे कि जब 2014 में भाजपाशिवसेना ने महाराष्ट्र में सत्ता संभाली, तो ठाकरे ने वाझे को पुलिस में फिर से लेने की सिफारिश की थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एडवोकेट जनरल की सलाह पर ऐसा नहीं करने का फैसला किया था.

उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जून 2020 में वाझे को मुंबई पुलिस में फिर से शामिल कर लिया. उस समय कहा गया था कि मुंबई पुलिस में अफसरों की कमी के कारण वाझे को वापस लिया जा रहा है. मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की अध्यक्षता वाली विशेष समिति की सिफारिश पर वाझे को दोबारा पुलिस में शामिल किया गया. 16 साल बाद सचिन वाझे की मुंबई पुलिस में यह दूसरी पारी थी. उसे पुलिस की हाईप्रोफाइल क्राइम ब्रांच में नियुक्त कर सीआईयू का प्रमुख बना दिया गया. वाझे को सीआईयू का चीफ बनाने पर दबे स्वर में विरोध भी हुआ था. इस का कारण था आमतौर पर इस पद की जिम्मेदारी सीनियर पुलिस इंसपेक्टर को दी जाती है जबकि वाझे सहायक पुलिस इंसपेक्टर था.

वाझे ने अपनी दूसरी पारी में सुर्खियों में आने के लिए उखाड़पछाड़ शुरू कर दी. उस ने दिसंबर 2020 में अवैध रूप से कारें मोडिफाई करने के मामले में सेलेब्रिटी कार डिजायनर दिलीप छाबडि़या को गिरफ्तार किया था. इस से पहले वह नवंबर 2020 में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने गई रायगढ़ पुलिस के साथ पहुंचा था. अर्नब का मामला रायगढ़ पुलिस का था, लेकिन कहा जाता है कि वाझे सरकार के इशारे पर वहां पहुंचा था और अर्नब को गिरफ्तार कर लाते हुए दिखाई दिया था. खास बात यह कि वाझे ने अर्नब गोस्वामी के घर जाने के लिए मनसुख हिरेन की उसी स्कौर्पियो का इस्तेमाल किया था, जिस में इस साल 25 फरवरी को मुकेश अंबानी के आवास के सामने जिलेटिन की छड़ें मिली थीं.

मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में गिरफ्तार पूर्व कांस्टेबल विनायक शिंदे के दामन पर भी कालिख पुती हुई है. शिंदे पर 11 नवंबर, 2006 को रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया की सनसनीखेज हत्या का आरोप था. इस मामले में अदालत ने सन 2013 में 13 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था. इन में शिंदे भी एक था. हालांकि इस मामले में अदालत ने पुलिस टीम के मुखिया प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया था. इस मामले में नवी मुंबई की पुलिस ने दावा किया था कि लखन भैया को वर्सोवा में मुठभेड़ में मारा गया था, लेकिन हकीकत यह थी कि उसे ठाणे जिले के उस के घर से उठाया गया और बाद में मार दिया गया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने दोषी पुलिस वालों को ‘कौन्ट्रैक्ट किलर’ बताया था. जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा शिंदे एक साल से पैरोल पर बाहर था. वह वाझे से मिलताजुलता रहता था. एनकाउंटर स्पैशलिस्ट प्रदीप शर्मा भी 2008 में माफिया से संबंधों और फरजी मुठभेड़ मामले में निलंबित किए गए थे. शर्मा को भी परमबीर सिंह ने 2017 में वापस नौकरी में रखा था. परमबीर सिंह उस समय ठाणे पुलिस कमिश्नर थे. तब प्रदीप को एंटी एक्सटौर्शन सेल में लगाया गया था. मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे परमबीर सिंह के बारे में कई तरह के खुलासे हुए हैं. कहने को और पुलिस महकमे के प्रोटोकाल के हिसाब से वाझे उन के लिए एक अदना सा अधिकारी था, लेकिन वाझे से उन के गहरे ताल्लुक थे.

कहा जाता है कि लगभग रोजाना परमबीर सिंह और वाझे एक बार साथ बैठ कर कौफी पीते थे. पैसा तो परमबीर सिंह ने भी कमाया परमबीर सिंह के पास सरकारी रिकौर्ड के अनुसार, 8 करोड़ 54 लाख रुपए की प्रौपर्टी है. उन के पास हरियाणा में कृषि भूमि है. अभी इस की वैल्यू 22 लाख रुपए बताई है. इस से 51 हजार रुपए की सालाना आय होती है. सन 2003 में उन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में 48.75 लाख का फ्लैट खरीदा था. इस की मौजूदा कीमत 4.64 करोड़ रुपए है. इस से उन्हें 25 लाख रुपए की सालाना आय होती है. जुहू में उन की एक और प्रौपर्टी है. इस की कीमत उन्होंने नहीं बताई है. उन्होंने नवी मुंबई में 2005 में 3.60 करोड़ का एक और फ्लैट खरीदा था. इस की मौजूदा कीमत केवल 2.24 करोड़ रुपए बताई जाती है.

यह फ्लैट पतिपत्नी के नाम है. इस से बतौर किराया 9.60 लाख रुपए की सालाना आय होती है. फरीदाबाद में भी परमबीर सिंह ने 2019 में जमीन खरीदी थी, जिस की वर्तमान कीमत 14 लाख रुपए  है. जबकि उन का मासिक वेतन 2.24 लाख रुपए है. पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले परमबीर सिंह को अब महाराष्ट्र सरकार घेरने की तैयारी में है. वाझे के मामले में सरकार परमबीर सिंह की अलग से जांच करा रही है. इस जांच का जिम्मा परमबीर सिंह के कट्टर विरोधी सीनियर आईपीएस अधिकारी संजय पांडे को सौंपा गया है. सरकार ने संजय पांडे को पुलिस महानिदेशक का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है.

देशमुख सीबीआई की जांच में बचेंगे या फंसेंगे?  पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि एक पूर्व पुलिस आयुक्त अपने राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरापों की सीबीआई से जांच के लिए अदालत पहुंचा था. तब सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी. इस के बाद परमबीर सिंह ने 24 मार्च को बौंबे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने 31 मार्च को परमबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी ने परमबीर सिंह को फटकार लगाई.

उन्होंने कहा कि आप ने गृहमंत्री देशमुख के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन उन्हें ले कर कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई. बिना किसी रिपोर्ट के आखिर उस की सीबीआई जांच कैसे कराई जा सकती है? चीफ जस्टिस ने कहा कि भले ही आप पुलिस कमिश्नर रहे हैं, लेकिन आप कानून से ऊपर नहीं हैं. क्या पुलिस अधिकारी, मंत्री और नेता कानून से ऊपर हैं? खुद को बहुत ऊपर मत समझिए.  जब आप को पता था कि बौस अपराध कर रहा है, तो एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. बाद में 5 अप्रैल को बौंबे हाईकोर्ट ने देशमुख पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए.

अदालत ने कहा कि हम ने इस तरह का मामला पहले कभी नहीं देखा, न ही सुना. एक पुलिस अफसर ने इतने खुले रूप में एक मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. ऐसे हालात में अदालत मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती. मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए. हाईकोर्ट से सीबीआई जांच के आदेश होने के कुछ देर बाद ही देशमुख एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिले. फिर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफे में लिखा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेरा पद पर बने रहना नैतिक रूप से सही नहीं होगा. बाद में उसी दिन एनसीपी के दिलीप वल्से पाटिल को महाराष्ट्र का नया गृहमंत्री बना दिया गया.

हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 6 अप्रैल को देशमुख पर लगे आरोपों की जांच शुरू कर दी. दूसरी ओर, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार और देशमुख ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को उन की अरजी खारिज करते हुए कहा कि यह 2 बड़े पदों पर बैठे लोगों से जुड़ा मामला है. लोगों का भरोसा बना रहे, इसलिए निष्पक्ष जांच जरूरी है. हम हाईकोर्ट के आदेश में दखल नहीं देंगे. मुंबई पुलिस के इंसपेक्टर अनूप डांगे के अनुसार, परमबीर सिंह भी दूध के धुले नहीं हैं. इस बारे में डांगे ने महाराष्ट्र के अतिरिक्त गृह सचिव को एक पत्र भी लिखा था.

पत्र में डांगे ने कहा था 22 नवंबर 2019 की रात जब वह ब्रीच कैंडी इलाके के एक क्लब को बंद कराने पहुंचा, तो उस के मालिक जीतू नवलानी ने धमकी दी और परमबीर सिंह से अपने संपर्कों की बात कही. वहीं पर फिल्म फाइनेंसर भरत शाह के नाती ने एक कांस्टेबल से बदसलूकी की. बाद में फरवरी, 2020 में जब परमबीर सिंह पुलिस कमिश्नर बने, तो उन्होंने नवलानी के खिलाफ आरोपपत्र दायर नहीं करने के आदेश दिए. नवलानी को अंडरवर्ल्ड डौन इकबाल मिर्ची के मनी लांड्रिंग मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था. सचिन वाझे अप्रैल के पहले सप्ताह में जब एनआईए की हिरासत में था, तब उस का एक लिखित बयान मीडिया में सामने आया.

इस में उस ने पूर्व गृहमंत्री देशमुख के साथ शिवसेना के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब पर भी वसूली के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि वसूली मामले की पूरी जानकारी देशमुख के पीए कुंदन को थी. वाझे ने इस बयान में कहा था कि एनसीपी चीफ शरद पवार ने उन की बहाली का विरोध किया था. वह चाहते थे कि वाझे की बहाली रद्द कर दी जाए. पवार ने मुझे दोबारा निलंबित करने के लिए देशमुख से कहा था. मुझे यह बात देशमुख ने ही बताई थी और पवार साहब को मनाने के लिए 2 करोड़ रुपए मांगे थे. इतनी बड़ी रकम देना मेरे लिए मुमकिन नहीं था. इस पर देशमुख ने यह रकम बाद में चुकाने को कहा था. इसी के बाद मुझे सीआईयू में नियुक्ति दी गई थी.

वाझे ने पत्र में कहा कि अनिल परब ने पिछले साल जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और इस साल जनवरी में मुझे बुलाया और कुछ शिकायतों के आधार पर बीएमसी के कौन्ट्रैक्टरों पर दबाव बना कर अवैध वसूली करने को कहा. देशमुख ने इस साल जनवरी में अपने सरकारी बंगले पर बुला कर पब व बार आदि से वसूली करने को कहा. ये सब बातें मैं ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को बता दी थीं और कहा था कि भविष्य में ये लोग मुझे किसी कंट्रोवर्सी में फंसा सकते हैं. इस पर परमबीर सिंह ने मुझे किसी भी तरह की अवैध वसूली करने से मना कर दिया था. वाझे ने पत्र के आखिर में लिखा कि जज साहब, मैं न्याय चाहता हूं, इसलिए ये सब बातें लिख रहा हूं. इस लेटर बम पर भाजपा और शिवसेना ने आरोपप्रत्यारोप लगाए.

महिला मित्र रखती थी हिसाब निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे की एक महिला मित्र है, जिस का नाम मीना जार्ज है. वह ठाणे के मीरा रोड पर एक कौंप्लेक्स के फ्लैट में रहती है. मीना के फ्लैट से एनआईए को वाझे से जुड़े कई दस्तावेज मिले हैं. कहा जाता है कि मीना ब्लैक मनी को वाइट करने में वाझे की मदद करती थी. उस के पास नोट गिनने की कई मशीनें भी मिली हैं. वह वाझे से मिलने के लिए दक्षिण मुंबई के ट्राइडेंट होटल गई थी. इस होटल की सीसीटीवी फुटेज के आधार पर ही एनआईए ने उस की तलाश शुरू की थी. मीना इस होटल में नोट गिनने की मशीन ले कर वाझे से मिलने गई थी.

कहा जा रहा है कि मूलरूप से गुजरात की रहने वाली मीना जार्ज ने आटो पार्ट्स की कई फरजी कंपनियां बना रखी थीं. बैंकों में भी उस के करीब एक दरजन खाते सामने आए हैं. चर्चा है कि वाझे अपनी अवैध वसूली का पैसा मीना को देता था. वह उसे अपनी आटो पार्ट्स कंपनियों की कमाई बता कर बैंकों के सीसी खातों में जमा कराती थी. फिर इन पैसों से शेयर खरीदे जाते थे. चर्चा है कि वाझे ने सरकारी नौकरी की दूसरी पारी शुरू करने के बाद से करोड़ों रुपए शेयर बाजार में निवेश किए. अंदेशा है कि मीना ही वाझे की काली कमाई का हिसाबकिताब रखती थी. मीना जार्ज को वाझे कई सालों से जानता है. 2016 में उस की लग्जरी बाइक से वह एक बार मनाली गया था. यह बाइक एनआईए ने जब्त की है. एनआईए ने मीना से कई बार पूछताछ की है.

वाझे की 3 कंपनियां हैं. इन में मल्टीबिल्ड इंफ्रा प्रोजैक्ट, टकलीगल सोल्यूशंस और डीजी नेक्स्ट मल्टीमीडिया शामिल हैं. शिवसेना के नेता संजय माशेलकर और विजय गवई उन के बिजनैस पार्टनर हैं. वाझे के पास 8 लग्जरी गाडि़यां हैं. इस के अलावा इटालियन बेनेली कंपनी की स्पोर्ट्स बाइक है, जिस की कीमत 7-8 लाख रुपए है. ठाणे में उस के फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपए के आसपास है. जबकि वाझे का मासिक वेतन कुल करीब 70 हजार रुपए है. जांच में पता चला कि वाझे ने अंबानी के घर के सामने स्कौर्पियो में रखने के लिए जिलेटिन के छड़ें खरीदी थीं. उस ने ही क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे के जरिए अहमदाबाद से 11 सिमकार्ड मंगाए थे.

इन सिम का उपयोग शिंदे, नरेश और वाझे आदि ने पूरी साजिश की बातचीत में किया. वाझे के घर से एक अज्ञात व्यक्ति का पासपोर्ट मिला था. आशंका थी कि इस व्यक्ति को फरजी मुठभेड़ में मारा जाना था. अंबानी के घर के सामने स्कौर्पियो में मिला धमकीभरा पत्र शिंदे के घर कंप्यूटर पर टाइप किया गया था, पुलिस ने उस के घर से प्रिंटर बरामद किया. इस पूरे मामले में वाझे का सहयोगी सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश ओवल भी जांच के दायरे में है. उस से भी पूछताछ की गई है. सीबीआई ने पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, उन के पीए कुंदन शिंदे और निजी सचिव संजीव पलांडे सहित परमबीर सिंह और सचिन वाझे से पूछताछ की है. वहीं एनआईए ने भी परमबीर सिंह, वाझे, पूर्व पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा, वकील जयश्री पाटिल और कुछ मौजूदा पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की गई है. Best Short Story in Hindi

 

True Crime Stories : मोबाइल पर आशिक से बात करती पत्नी को देख गुस्साए पति ने कर दी हत्या

True Crime Stories : पत्नी मधु के कहने पर सतीश कुमार श्रीवास्तव ने अपनी तरह उसे भी मैडिकल रिप्रजेंटेटिव बनवा दिया था. उसी दौरान मधु के कदम बहक गए. इस का परिणाम इतना घातक निकला कि…

पतिपत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास पर टिका होता है. कोई आदमी किसी पर सब से अधिक विश्वास करता है तो अपनी पत्नी पर. पत्नी ही तो उस की सब से अच्छी दोस्त और जीवनसाथी होती है. ऐसे में पति उस पर अगाध विश्वास न करे तो भला किस पर करे. सतीश को भी अपनी पत्नी मधु पर अंधविश्वास की सीमा तक विश्वास था. उस का यह यकीन तब दरका, जब एक दिन अचानक तबीयत खराब होने से शाम को वह जल्दी घर लौट आया. दरअसल सतीश मैडिकल रिप्रजेंटेटिव था. वह सुबह 10 बजे घर से निकलता था, फिर रात 9 बजे के आसपास ही उस की वापसी होती थी. लेकिन उस दिन वह जल्दी घर आ गया था.

सतीश कुमार श्रीवास्तव जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचा, अंदर से मधु की खिलखिलाहट सुनाई दी. सतीश के पांव जहां के तहां ठहर गए. सोचने लगा, ‘जब मैं घर में रहता हूं, तब मधु की त्यौरियां चढ़ी होती हैं. कुछ कहता हूं तो चिढ़ जाती है, बोलो मत, मूड खराब है. लेकिन अब वह किस के साथ खिलखिला रही है.’ सतीश ने दिमाग पर जोर दिया, पर उसे याद नहीं आया कि मधु कब उस के सामने इस तरह दिल से खिलखिलाई थी. सतीश के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा, ‘आखिर इस समय घर के अंदर कौन है जिस के साथ वह इस तरह खिलखिला कर बातें कर रही है.’

सतीश ने कदम आगे बढ़ाया, लेकिन फिर खींच लिया. मधु कह रही थी, ‘‘तुम्हारे जोश की तो मैं दीवानी हूं. अरे छोड़ो यार, तुम किस माटी के माधव की बात कर रहे हो. अगर वही रसीला होता तो भला मैं तुम से क्यों दिल लगाती. मैं तो तुम्हारे जोश और तुम्हारी रसीली बातों की दीवानी हूं.’’

एकतरफा संवादों से सतीश ने अनुमान लगा लिया कि कमरे में मधु के अलावा कोई नहीं है. वह फोन पर किसी से रसीली बातें कर रही है. मधु जोश में थी. इसलिए उस की आवाज बुलंद थी. कमरे में की जाने वाली बातें बाहर तक साफ सुनाई दे रही थीं. बातें सुन कर सतीश की खोपड़ी घूम गई, ‘मधु बीवी मेरी और जोश का गुणगान कर रही है किसी दूसरे का.’

सतीश ने गुस्से में दरवाजे पर लात मारी. भीतर से बंद न होने के कारण वह फटाक से खुल गया. सामने ही मधु मोबाइल फोन कान से लगाए टहलटहल कर बातें कर रही थी. पति को देखते ही उस ने हड़बड़ा कर फोन पर चल रही बात डिसकनेक्ट कर दी. इस के बाद वह चेहरे पर मुसकान सजाने की जबरन कोशिश करते हुए बोली, ‘‘अरे तुम, आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गए?’’

सतीश ने मधु को खा जाने वाली नजरों से देखा फिर बोला, ‘‘तू किस के जोश की दीवानी है?’’ गुस्से में की पत्नी की पिटाई सतीश ने लपक कर मधु का हाथ पकड़ लिया और उस का मोबाइल छीनने लगा. लपटा झपटी के बीच मधु ने उस नंबर को डिलीट कर दिया, जिस नंबर पर वह रसीली बातें कर रही थी. सतीश का दिमाग पहले से गरम था, नंबर डिलीट करने से और गरम हो गया. उस ने मधु को लातघूंसों और थप्पड़ों पर रख लिया. हर प्रहार के साथ उस का प्रश्न होता था, ‘‘बता, तू किस के जोश की दीवानी है और यह सब कब से चल रहा है?’’

लेकिन पिटाई के बावजूद मधु ने जुबान बंद रखी. मधु को पीटतेपीटते जब सतीश पस्त पड़ गया तो घर के बाहर चला गया. मधु कमरे में सिसकती रही और अपने भाग्य को कोसती रही. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में बर्रा थाना अंतर्गत एक मोहल्ला जरौली पड़ता है. इसी मोहल्ले के फेस-2 में सतीश कुमार श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मधु के अलावा 2 बेटे आयुष व पीयूष थे. वह मूलरूप से औरैया जिले के दिबियापुर कस्बे का रहने वाला था. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आया था. वह पढ़ालिखा था. हिंदी और अंगरेजी भाषा पर उस की पकड़ थी. अत: उसे बिरहाना रोड स्थित एक आयुर्वेदिक दवा कंपनी में नौकरी मिल गई थी.

बाद में वह मैडिकल रिप्रजेंटेटिव (एमआर) बन गया और उसी कंपनी की दवा आयुर्वेदिक डाक्टरों के यहां सप्लाई करने लगा था. मधु सतीश की दूसरी पत्नी थी. उस की पहली पत्नी श्वेता की मौत हो गई थी. उस की एक बेटी शिवांगी थी, जो अपनी ननिहाल में पलबढ़ रही थी. पहली पत्नी की मौत के बाद सतीश ने मधु से शादी कर ली थी. मधु पढ़ीलिखी व तेजतर्रार थी. सुंदर भी थी, अत: सतीश उसे बहुत चाहता था और उस पर भरोसा करता था. वह उस की हर खुशी का खयाल रखता था. समय बीतता रहा. समय के साथ मधु के बच्चे आयुष व पीयूष बड़े हुए तो उस का खर्च बढ़ गया.

इस खर्चे को पूरा करने के लिए उस ने पति के साथ काम करने का निश्चय किया. मधु ने इस बाबत सतीश से बात की. पहले तो सतीश ने साफ मना कर दिया. लेकिन पत्नी के समझाने पर बाद में मान गया. सतीश अब विजिट के लिए घर से निकलता तो मधु को भी साथ ले जाता. उस ने कानपुर शहर तथा आसपास के कस्बे के दरजनों वैद्यों व डाक्टरों से मधु का परिचय कराया और दवा बेचने के सारे गुर बताए. उस के बाद मधु सतीश के दवा कारोबार में हाथ बटाने लगी. पत्नी के सहयोग से सतीश अच्छी कमाई करने लगा. मधु का बड़ा बेटा आयुष पढ़ने में कमजोर था. उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो मधु ने उसे गोविंदनगर स्थित फार्मा मैडिकल स्टोर में काम पर लगा दिया.

लेकिन छोटा बेटा पीयूष तेज दिमाग का था. मधु उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहती थी. अत: वह उस की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती थी. पढ़ाई के साथ वह कोचिंग भी जाता था. मधु ने कुछ समय तक ही पति के साथ काम किया. उस के बाद वह डाक्टरों के यहां अलग विजिट पर जाने लगी. मधु का मानना था कि अलगअलग जाने से दवा का और्डर ज्यादा मिलता है. यद्यपि मधु का अलग जाना सतीश को पसंद न था. लेकिन मधु के आगे उस की एक न चली. 2 डाक्टरों को फंसा लिया मधु 2 बेटों की मां जरूर थी. लेकिन उस के बनावशृंगार से कोई भांप नहीं पाता था कि वह 2 जवान बेटों की मां है. सतीश का मन भोगविलास से उचट चुका था.

वह दिन भर की भाग दौड़ से इतना थक जाता था कि खाना खाने के बाद चादर तान कर सो जाता था. इस के विपरीत मधु हर रात पति का साथ चाहती थी. लेकिन वह वंचित रहती थी. मधु को जब पति का साथ नहीं मिला तो उस ने घर के बाहर ताकझांक शुरू की. उस के संपर्क में कई डाक्टर ऐसे थे, जो मनचले थे और जिन्हें औरत सुख की चाहत थी. मधु ने ऐसे ही शहर के 2 डाक्टरों को अपने हुस्न के जाल में फंसाया और उन के साथ मौजमस्ती करने लगी. ये दोनों डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते थे. मधु को जब भी मौका मिलता था, वह उन से खूब रसीली बातें करती थी. सतीश पत्नी पर भरोसा करता था. उस ने कभी किसी तरह का उस पर शक नहीं किया. लेकिन उस दिन तबीयत खराब होने पर जब वह समय से पहले घर आया और मधु को मोबाइल फोन पर अश्लील और रसीली बातें करते पाया तो उस का विश्वास डगमगा गया.

शक होने पर उस ने मधु की जम कर धुनाई भी की लेकिन उस ने आशिक का नाम नहीं बताया. बल्कि आशिक का मोबाइल नंबर भी डिलीट कर दिया. शक का बीज बहुत जल्दी पनपता है. सतीश के मन में भी शक था. अत: वह पत्नी पर नजर रखता था. जिस दिन वह मधु को एकांत में बात करते देख लेता, उस दिन पहले तो तूतू मैंमैं होती फिर नौबत मारपीट तक आ जाती. अब एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों को एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. बड़ा बेटा आयुष पिता के पक्ष में रहता था, जबकि छोटा बेटा पीयूष मां के पक्ष में बोलता था. युवक से अश्लील बातें करते देखा 19 मार्च, 2021 को आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनी की दिल्ली में मीटिंग थी, जिस में कानपुर शहर के डीलर व एमआर को मीटिंग में शामिल होने के लिए बुलाया गया था.

सतीश कुमार श्रीवास्तव भी अपनी पत्नी मधु श्रीवास्तव के साथ शामिल होने दिल्ली गया था. मीटिंग समाप्त होने के बाद मधु ने कुछ खरीदारी की फिर शताब्दी बस से दोनों कानपुर को रवाना हो लिए. 21 मार्च, 2021 की सुबह 8 बजे मधु और सतीश अपने जरौली स्थित घर पहुंचे. उस समय घर पर कोई अन्य न था. दोनों बेटे आयुष और पीयूष गीता मौसी के घर पर थे, जो जरौली में ही रहती थी. सतीश को किसी जरूरी काम से अपने पिता के घर दिबियापुर जाना था. उस ने मधु से जल्दी खाना बनाने को कहा. लेकिन मधु ने उस की बात को अनसुना कर दिया और मोबाइल फोन पर वीडियो काल कर बतियाने लगी. वह किसी युवक से अश्लील बातें कर रही थी.

सतीश ने उसे बातें करने से मना किया तो मधु झगड़ने लगी और उसे गाली बकने लगी. इस पर सतीश को गुस्सा आ गया. उस ने फोन छीन कर फेंक दिया और उसे धक्का दे दिया. धक्का लगने से उस का सिर दीवार से टकरा गया. जिस से सिर फट गया और खून बहने लगा. अपने हाथों से घोंटा गला खून देख कर मधु को गुस्सा आ गया और उस ने सतीश के मुंह पर जूता फेंक कर मारा. मुंह पर जूता लगा तो सतीश आपा खो बैठा. उस ने मधु को फर्श पर पटक दिया और बोला, ‘‘हरामजादी, बदचलन, आज तुझे किसी कीमत पर नहीं छोड़ूंगा. तुझे तेरे पापों की सजा दे कर ही दम लूंगा.’’ कहते हुए सतीश ने मधु की साड़ी से उस का गला घोंट दिया.

मधु की हत्या करने के बाद उस ने शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. दिन का वक्त था. सो वह लाश को बाहर कैसे ले जाता. उस ने बड़े बक्से को खाली किया और मधु के शव को बक्से में बंद कर दिया. मोबाइल फोन को भी उस ने बंद कर दिया. शाम को दोनों बेटे घर आए तो सतीश ने बताया कि मधु किसी का फोन आने पर घर से निकली थी. तब से नहीं आई. इस के बाद वह आयुष और पीयूष के साथ मधु की खोज करता रहा. अगली सुबह सतीश ने बड़े बेटे आयुष को गुमशुदगी दर्ज कराने थाना बर्रा भेजा. वहां पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर मधु की तलाश शुरू कर दी. पुलिस को गुमराह करने के लिए सतीश ने मधु का मोबाइल चालू कर सड़क से गुजर रहे एक लोडर में फेंक दिया.

रात में सतीश ने शव को बक्से से निकाला. लेकिन गरमी की वजह से शव फूल चुका था और उस से दुर्गंध आने लगी थी. पीयूष ने बदबू की बात की तो भेद खुलने के भय से सतीश ने उसे गीता मौसी के घर भेज दिया. आधी रात के बाद सतीश ने एक बार फिर शव को ठिकाने लगाने की सोची. वह शव कमरे से घसीट कर गेट तक लाया. लेकिन उस की हिम्मत दगा दे गई. शव उठाते समय बाल व खाल उस के हाथ में आ गए. शव सड़ने लगा था. सवेरा होने से पहले सतीश ने गेट पर ताला लगाया और फरार हो गया. पड़ोसियों ने की पुलिस से शिकायत  23 मार्च, 2021 की सुबह सतीश के पड़ोसियों ने सतीश के घर से भीषण दुर्गंध महसूस की तो उन्होंने थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह टीम के साथ सतीश के घर पहुंचे. ताला तोड़ कर वह घर के अंदर घुसे तो गेट के पास ही उन्हें सड़ीगली महिला की लाश मिली. पड़ोसियों ने तुरंत लाश को पहचाना, उन्होंने बताया कि लाश सतीश की पत्नी मधु श्रीवास्तव की है. थानाप्रभारी की सूचना पर एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. संभवत: उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.

इसी बीच पता चला कि सतीश अपने दोनों बेटों और स्थानीय नेताओं के साथ थाना बर्रा पहुंचा है और पुलिस की नाकामी को ले कर हंगामा कर रहा है. यह सूचना प्राप्त होते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने पहुंचे और सतीश को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने सख्ती से उस से पूछताछ की तो उस ने पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि मधु बदचलन थी. वह आशिक से मोबाइल पर बात कर रही थी. मना किया तो जूता फेंक कर मुंह पर मारा. गुस्से में मैं ने उस का गला घोंट दिया. उस के बेटे निर्दोष हैं. उन्हें हत्या की जानकारी नहीं थी. चूंकि सतीश ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने भादंवि की धारा 302/201 के तहत सतीश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

24 मार्च, 2021 को बर्रा पुलिस ने अभियुक्त सतीश कुमार श्रीवास्तव को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime News : प्रेमी संग साजिश रच कर पत्नी ने हथौड़े से करवाया पति का कत्ल

UP Crime News : 2 बच्चों की मां मधु ससुराल के लोगों से अलग पति धनपाल के साथ गुड़गांव में रह रही थी. मौजमजे के लिए उस ने विवाहित मुकेश से संबंध बना लिए. उस के प्यार में वह इतनी अंधी हो गई कि…

उस दिन अप्रैल 2021 की 3 तारीख थी. पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर के कस्बा थाना तिलहर अंतर्गत गांव राजनपुर के मोड़ पर सड़क किनारे सैंट्रो कार के नीचे एक अज्ञात युवक की लाश दबी पड़ी थी. रात 10 बजे के करीब किसी ने तिलहर थाना पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह बालियान अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. प्रथमदृष्टया मामला ऐक्सीडेंट का लगा. लाश दाईं ओर दोनों पहियों के बीच में पड़ी थी. सिर में काफी चोट थी. कार की तलाशी ली गई तो कार से गिलास, खानेपीने का सामान, 3 मोबाइल फोन और गाड़ी के कागजात बरामद हुए.

इसी बीच रजाकपुर गांव के कुछ लोग वहां पहुंच गए. परमजीत नाम के युवक ने लाश की शिनाख्त अपने बड़े भाई 38 वर्षीय धनपाल गंगवार के रूप में की. पूछताछ में परमजीत ने बताया कि धनपाल पत्नी मधु और 2 बेटों के साथ गुड़गांव में रहता था, होली पर 3 साल बाद अपने घर आया था. वह शाम को पत्नी व बच्चों को तिलहर के बाजार में खरीदारी कराने के लिए ले कर आया था. साढ़े 5 बजे धनपाल ने पत्नी मधु और बच्चों को भाई प्रेमपाल के साथ वापस घर भेज दिया था और खुद तिलहर में रुक गया था. जब काफी रात हो गई, धनपाल नहीं लौटा तो उस की तलाश शुरू की.

इसी बीच कार से मिले मोबाइल पर किसी की काल आ गई. इंसपेक्टर बालियान ने काल रिसीव की. काल कनेक्ट होते ही दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘कहां है तू, तेरा पता ही नहीं रहता.’’

काल करने वाली कोई महिला थी. इंसपेक्टर बालियान ने उन्हें पूरी बात बताई. उस महिला ने कहा कि सैंट्रो कार उस के पति की है, जिसे उस का भाई मुकेश यादव वृंदावन जाने की बात कह कर ले गया था. इस का मतलब यह था कि कार में मुकेश यादव था, जोकि घटना को अंजाम देने के बाद फरार हो गया था. मामला साधारण सड़क दुर्घटना का न हो कर हत्या का लग रहा था, जिसे साजिश के तहत सड़क दुर्घटना दिखाने की कोशिश की गई थी. फिलहाल इंसपेक्टर बालियान ने जरूरी काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और कार को थाने में खड़ा करा दी.

अगले दिन सुबह मृतक धनपाल के छोटे भाई परमजीत गंगवार ने तिलहर थाने पहुंच कर इंसपेक्टर बालियान को तहरीर दी, जिस में उस ने मुकेश यादव पर अपने भाई की हत्या का आरोप लगाया था. उस की तहरीर के आधार पर इंसपेक्टर बालियान ने मुकेश यादव के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. परमजीत ने इंसपेक्टर बालियान से अपनी भाभी मधु पर भी भाई की हत्या में हाथ होने का शक जताया था, लेकिन तहरीर में उस का जिक्र नहीं किया था. पति की मृत्यु के बाद भी मधु के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, जबकि जिस का पति मार दिया जाए, वह महिला रोरो कर आसमान सिर पर उठा लेती है.

इंसपेक्टर बालियान ने परमजीत से मधु का नंबर मांगा तो परमजीत ने अपनी भाभी मधु से उस का नंबर मांगा तो मधु ने साफ कह दिया कि उस के पास कोई नंबर नहीं है. जो मोबाइल उस के पास है, वह उस ने केवल गाना सुनने के लिए ले रखा है. परमजीत को मधु पर विश्वास नहीं हुआ. किसी तरह उस के करीबियों से बात कर के उस का नंबर निकलवाया. मधु पर हुआ शक इंसपेक्टर बालियान ने मधु के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. डिटेल्स से मधु और मुकेश के नंबरों पर हर रोज काफी बार बात करने की पुष्टि हुई. घटना की रात भी दोनों के बीच बात हुई थी.

6 अप्रैल को इंसपेक्टर बालियान ने मधु को उस की ससुराल से गिरफ्तार कर लिया. मधु से पूछताछ के बाद उन्होंने मुकेश यादव को मधु के मायके शाहजहांपुर के कटरा थाना क्षेत्र के कसरक गांव से गिरफ्तार कर लिया. उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के तिलहर थाना क्षेत्र के गांव रजाकपुर में रहता था धनपाल गंगवार. धनपाल के पिता का नाम खलासीराम और माता का नाम शांति देवी था. खलासीराम सेना में कार्यरत थे. रिटायर होने के बाद 1989 में उन की मृत्यु हो गई. उस समय धनपाल बहुत छोटा था. धनपाल कुल 6 भाई थे. 2 बड़े भाई हरपाल और जसपाल व 3 छोटे भाई धर्मपाल, प्रेमपाल और परमजीत थे. हरपाल विवाह के बाद पंजाब चला गया. जसपाल विवाह के बाद गांव में ही रह कर खेती करने लगा.

11 साल पहले धनपाल का रिश्ता शाहजहांपुर के मीरनपुर कटरा थाना क्षेत्र के कसरक गांव निवासी मधु से हुआ था. मधु के पिता रामपाल पेशे से किसान थे. मधु की एक बड़ी बहन और 3 भाई थे. काम के लिए वह गुड़गांव चला गया. वहां उस ने ओरियंट कंपनी में नौकरी कर ली, साथ ही हरीनगर में अनाज मंडी के पास में 4500 रुपए में किराए पर कमरा ले लिया. फिर एक दिन वापस आ कर अपने साथ पत्नी मधु को भी गुड़गांव ले गया. समय बीतता गया. समय के साथ मधु ने 2 बच्चों कृष्णा (9 वर्ष) और क्रश (4 वर्ष) को जन्म दिया. पत्नी से होने लगी खटपट धनपाल सुबह साढ़े 7 बजे घर से कंपनी जाता था और शाम 8 बजे घर में घुसता था.

लगभग 12 घंटे की ड्यूटी करने के बाद वह थकाहारा घर आता था. धनपाल था तो मजबूत कदकाठी का, लेकिन रोज की यह ड्यूटी उस के बदन को तोड़ कर रख देती थी. ऐसे में जो धनपाल अभी तक शराब को हाथ तक नहीं लगाता था, वह शराब पीने भी लगा. शराब पी कर घर जाता तो मधु से उस का झगड़ा होता. झगड़े में वह मधु को पीट भी देता था. वैसे भी मधु धनपाल पर हावी रहने की कोशिश करती थी, लेकिन धनपाल को यह मंजूर नहीं था. शराब पीने के बाद तो इंसान वैसे भी निडर हो जाता है. किसी तरह से दोनों के  झगड़ों के बीच उन की जिंदगी कटती रही. मधु को अब धनपाल भाता नहीं था. उस के साथ रहना मधु की मजबूरी थी. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी.

एक साल पहले धनपाल ने गुड़गांव में ही घर के पास रहने वाले मुकेश यादव को घर पर डीटीएच कनेक्शन के लिए बुलवाया. धनपाल मुकेश को आतेजाते दुकान पर बैठे देखता था. मुकेश डीटीएच का काम करने के साथ ही दूध, दही, मट्ठा और लस्सी का भी काम करता था. मुकेश गुड़गांव के थाना फरूखनगर में खेंटावास में रहता था. वह विवाहित था. उस के एक बेटा भी था. मुकेश काफी स्मार्ट था. अपने व्यवहार से वह किसी को अपना मुरीद बना लेता था. मुकेश डीटीएच का कनेक्शन करने आया तो घर पर केवल मधु थी. उस ने मधु से बात करनी शुरू की तो मधु को ऐसा लगा जैसे वह उस से पहली बार न मिल कर कई बार मिल चुकी हो. मधु को उस की बातों में रस आया तो वह भी उस से बतियाने लगी.

मुकेश से जुड़ा कनेक्शन उस दिन कहने को पहली मुलाकात थी दोनों की, लेकिन उन के बीच काफी बातें हुईं जोकि पहली मुलाकात में नहीं हुआ करतीं. मुकेश डीटीएच का कनेक्शन कर के चला गया, लेकिन मधु की आंखों के सामने अब भी मुकेश का चेहरा घूम रहा था. मुकेश आया तो था डीटीएच का कनेक्शन लगाने, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वह मधु के दिल से अपने दिल का कनेक्शन कर गया था. इस के बाद तो मुकेश जबतब मधु से मिलने आने लगा. घर पर कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. मुकेश जब भी आता तो साथ में दूध, दही, लस्सी में से कुछ न कुछ ले आता और मधु को दे देता. मधु उस के तरीके को भलीभांति समझ रही थी कि वह कैसे उस के दिल तक पहुंचना चाहता है. मधु इस बात से नाराज नहीं हुई, बल्कि खुश होने लगी. उसे नए ठौर की जरूरत थी, वह खुद चल कर उस के पास आ गया था.

मुकेश की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी. उस की पत्नी अकसर मायके में ही रहती थी. यही वजह थी कि मुकेश मधु की तरफ आकर्षित हो गया था. उस के साथ अपनी जिंदगी बिताने का सपना देख रहा था. मधु और मुकेश दोनों ही अपने जीवनसाथी से खुश नहीं थे, इसलिए एकदूसरे के करीब आने में उन्हें देर नहीं लगी. एक दिन मुलाकात के दौरान मुकेश ने मधु से कहा, ‘‘भाभी, लगता है आप अपना ध्यान नहीं रखतीं?’’

‘‘क्यों…अच्छीखासी तो हूं.’’ मधु ने कहा.

‘‘नहीं, तुम्हारा चेहरा मुरझाया सा रहता है, चेहरे पर जो चमक होनी चाहिए, वह गायब रहती है. शरीर भी पहले से काफी कमजोर हो गया है. आप को क्या चिंता है जो अपना यह हाल कर लिया है?’’

इस पर मधु कुछ देर शांत रही, फिर अपना दर्द बयां करते हुए बोली, ‘‘अब तुम ने पूछा है तो बता देती हूं. इस परदेश में दूसरा कोई है नहीं, जिस को अपना दर्द बता सकूं.’’

‘‘क्यों, धनपाल तो है.’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘दर्द देने वाला दर्द ही देगा, दवा नहीं. इसलिए…’’

‘‘ओह.. तो यह बात है. वैसे आप से अलग मेरा मामला भी नहीं है. मैं भी अपनी पत्नी से परेशान हूं.’’ दुखी लहजे में मुकेश ने कहा. दोनों ने किया प्यार का इजहार फिर कुछ देर शांत रहने के बाद मुकेश बोला, ‘‘तो क्यों न भाभी, हम एकदूसरे के दर्द की दवा बन जाएं.’’ उपाय सुझाते हुए मुकेश ने अपने दिल की बात मधु तक पहुंचाने की कोशिश की.

‘‘क्या मतलब..?’’ जान के भी अंजान बनती हुई मधु पूछ बैठी.

‘‘यही कि हम दोनों एकदूसरे का हाथ थाम लें और हमेशा के लिए एक हो जाएं. मैं तो तुम्हें बेइंतहा चाहता हूं, बस तुम एक बार हां कह दो तो मैं सारी खुशियां तुम्हारे कदमों में डाल दूंगा.’’

‘‘तुम ने तो अपने दिल के साथसाथ मेरे दिल की भी बात कह दी. मैं भी तुम्हें चाहती हूं और तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना चाहती हूं. अगर तुम तैयार हो तो…’’

‘‘मैं तो कब से इस पल के इंतजार में था. मैं हर पल तैयार हूं. आई लव यू मधु.’’ उस ने कह दिया.

यह पहला मौका था, जब मुकेश ने उसे भाभी नहीं मधु कह कर पुकारा था. मधु के दिल के तार झनझना उठे. एक नए एहसास से उस का दिल पुलकित हो उठा. वह भी बेसाख्ता बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू मुकेश.’’

मधु के इजहार करते ही मुकेश ने उसे बांहों के घेरे में ले लिया. उस के बाद उन के बीच कोई शारीरिक दूरी न रही. वे एकदूसरे में इस कदर समाए कि अपनी इच्छापूर्ति के बाद ही अलग हुए. इस के बाद तो उन के बीच का यह रिश्ता दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. मगर गलत काम कभी छिपा है जो उन का छिप जाता. धनपाल को दोनों के संबंधों की बात पता चल गई. धनपाल ने मुकेश के घर आने पर रोक लगा दी. लेकिन मुकेश और मधु का चोरीछिपे मिलना जारी रहा. इसे ले कर धनपाल और मधु में रोज झगड़े होने लगे. मुकेश और मधु ने अपने संबंधों के बीच धनपाल को दीवार बनते देखा तो धनपाल नाम की इस दीवार को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. दोनों ने इस के लिए साथ बैठ कर योजना भी बना ली.

धनपाल विवाह के बाद साल-डेढ़ साल में शाहजहांपुर स्थित अपने घर के चक्कर लगा लेता था. लेकिन जब से बेटा स्कूल जाने लगा था, तब से वह 2-3 साल में ही घर का चक्कर लगा पाता था. 3 साल बाद इस बार धनपाल ने होली पर घर आने का फैसला लिया. इस में मधु ने खुद सहमति दी थी. इस से पहले वह ससुराल के नाम से ही बिदक जाती थी. रच ली पूरी साजिश गुड़गांव में पूरी योजना पर कार्य करने के बाद 14 मार्च, 2021 को मधु शाहजहांपुर के मीरनपुर कटरा थाना क्षेत्र के कसरक गांव स्थित अपने मायके आ गई. 27 मार्च को धनपाल रजाकपुर स्थित अपने घर आ गया. 2 अप्रैल को मधु मायके से अपनी ससुराल आ गई.

3 अप्रैल को धनपाल मधु और बच्चों के साथ तिलहर में ईरिक्शा से बाजार गया. ईरिक्शा धनपाल के छोटे भाई प्रेमपाल का था और उसे वही चला कर ले गया. बाजार घूमने के बाद धनपाल ने मधु और बच्चों को प्रेमपाल के साथ वापस घर भेज दिया, वह खुद तिलहर में रुक गया. दरअसल मुकेश ने धनपाल को फोन किया था कि वह उस से मिलने आ रहा है, मिल कर दारू पार्टी करने की बात कही थी. धनपाल ने एक बार भी नहीं सोचा और उसे आने की सहमति दे दी. मुकेश अपने बहनोई की सैंट्रो कार से तिलहर पहुंचा. मुकेश को कार में बैठाने के बाद वह एक सुनसान स्थान पर ले गया. कार में पहले से ही मुकेश ने खानेपीने की चीजें और शराब खरीद कर रख ली थी.

मुकेश ने धनपाल को खूब शराब पिलाई. धनपाल की आंख बचा कर उस की शराब में नींद की गोलियां भी मुकेश ने मिला दीं. जब धनपाल बेहोश हो गया, तब मुकेश उसे कार से राजनपुर गांव के मोड़ पर ले गया. उस समय रात के 9 बज रहे थे. मुकेश ने धनपाल को कार से नीचे उतारा और साथ लाए हथौड़े से उस के सिर पर कई वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. मामले को ऐक्सीडेंट का रूप देने के लिए धनपाल की लाश को कार से कुचलने की कोशिश की. इस कोशिश में उस की कार कच्ची मिट्टी में फंस गई. मुकेश घबरा गया. कोई वहां आ न जाए उसे इस बात का डर भी सता रहा था.

जब कार किसी तरह से नहीं निकल सकी तो कार को वहीं छोड़ कर वह फरार हो गया. मुकेश ने मधु को फोन कर के धनपाल का काम तमाम कर देने की सूचना भी दे दी. जिस के बाद मधु ने अपना दूसरा मोबाइल गुप्त स्थान पर छिपा दिया. देर रात तक धनपाल नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई. परमजीत ने सोचा कि शराब पी कर धनपाल कहीं बेसुध तो नहीं पड़ा. उस ने तिलहर थाने के एक परिचित सिपाही को फोन कर के पूछा कि कहीं कोई बंदा शराब पीए हुए तो नहीं मिला. इस पर सिपाही ने उसे राजनपुर मोड़ पर हादसा होने की जानकारी दी. जो हुलिया बताया, वह धनपाल से मिलता था. इस के बाद परमजीत, उस की मां वहां पहुंच गए. मधु भी वहां पहुंच गई.

मुकेश और मधु का गुनाह छिप न सका और दोनों पुलिस की गिरफ्त में आ गए. मधु को मुकदमे में आईपीसी की धारा 120बी का अभियुक्त बनाया गया. इंसपेक्टर हरपाल सिंह बालियान ने अभियुक्त मुकेश की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा भी बरामद कर लिया. बाकी कार और मोबाइल तो पहले ही बरामद हो गए थे. मधु का मोबाइल नहीं बरामद हो सका. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों व परमजीत से पूछताछ पर आधारि

Rajasthan Crime News : पत्नी ने नौकर संग मिलकर रची साजिश फिर कर दिया पति का कत्ल

Rajasthan Crime News : रुक्मिणी पढ़ीलिखी ही नहीं बल्कि एक सरकारी टीचर प्रेमनारायण मीणा की पत्नी थी. वह एक बेटी की शादी भी कर चुकी थी. 40 साल की उम्र में उस ने घरेलू नौकर जितेंद्र से नजदीकी संबंध बना लिए. यह संबंध उस के लिए इतने घातक सिद्ध हुए कि…

बात 26 मार्च, 2021 की सुबह 7 बजे की है. राजस्थान के बारां जिले के गांव आखाखेड़ी के रहने वाले मास्टर प्रेमनारायण मीणा के यहां उन का भतीजा राजू दूध लेने पहुंचा तो उन के घर का मुख्य गेट भिड़ा हुआ था. दरवाजा धक्का देने पर खुला तो भतीजा घर में चला गया. उस की नजर जैसे ही आंगन में चारपाई पर पड़ी तो वहां का मंजर देख कर वह कांप गया. बिस्तर पर चाचा प्रेमनारायण की खून सनी लाश पड़ी थी. यह देख कर भतीजा चीखनेचिल्लाने लगा. आवाज सुन कर प्रेमनारायण की पत्नी रुक्मिणी (40 वर्ष) अपने कमरे से बाहर आई. बाहर आते समय वह बोली, ‘‘क्यों रो रहे हो राजू, क्या हुआ?’’

मगर जैसे ही रुक्मिणी की नजर चारपाई पर खून से लथपथ पड़े पति पर पड़ी तो वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी. रोने की आवाज मृतक के बच्चों वैभव मीणा और ऋचा मीणा ने भी कमरे में सुनी. वह दरवाजा पीटने लगे कि क्या हुआ. क्यों रो रही हो. दरवाजा खोलो. उन भाईबहनों के दरवाजे के बाहर कुंडी लगी थी. कुंडी खोली तो भाईबहन बाहर आ कर पिता की लाश देख कर रोने लगे. मास्टर प्रेमनारायण के घर से सुबहसवेरे रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी वहां आ गए. थोड़ी देर में पूरे आखाखेड़ी गांव में मास्टर की हत्या की खबर फैल गई. थाना छीपा बड़ौद में किसी ने हत्या के इस मामले की खबर दे दी.

थानाप्रभारी रामस्वरूप मीणा खबर मिलते ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. थानाप्रभारी मीणा ने घटनास्थल का मुआयना किया. रात में अज्ञात लोगों ने घर में सो रहे सरकारी टीचर प्रेमनारायण की धारदार हथियार से गला, मुंह और सिर पर वार कर के हत्या कर दी थी, जिस से काफी मात्रा में खून निकल चुका था. पूछताछ में मृतक की पत्नी रुक्मिणी ने बताया कि वह कमरे में सो रही थी. उस के दोनों बच्चे वैभव और ऋचा अलग कमरे में सो रहे थे. बड़ी बेटी ससुराल में थी. वह (प्रेमनारायण) आंगन में अकेले सो रहे थे, तभी नामालूम किस ने उन्हें मार डाला.

थानाप्रभारी रामस्वरूप मीणा ने घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे दी. एसपी (बारां) विनीत कुमार बंसल ने सीओ (छबड़ा) ओमेंद्र सिंह शेखावत व जयप्रकाश अटल आरपीएस (प्रोबेशनरी) को निर्देश दिए कि वे घटनास्थल पर जा कर मौकामुआयना कर जल्द से हत्याकांड का खुलासा करें. एसपी के निर्देश पर दोनों सीओ ओमेंद्र सिंह और जयप्रकाश अटल घटनास्थल पर पहुंचे और घटना से संबंधित जानकारी ली. पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल एवं डौग स्क्वायड टीम को भी बुला कर साक्ष्य जुटाने के निर्देश दिए. पुलिस अधिकारियों को पता चला कि मृतक प्रेमनारायण मीणा सरकारी स्कूल में टीचर थे.

उन की पोस्टिंग इस समय मध्य प्रदेश के गुना जिले के फतेहगढ़ के सरकारी स्कूल में थी. वह छुट्टी पर घर आए हुए थे. वह 15-20 दिन बाद छुट्टी पर गांव आते थे. पुलिस को पता चला कि मृतक प्रेमनारायण घर के आंगन में सोए थे. उन की बीवी कमरे में अलग सोई थी. उन के 3 बच्चे हैं, जिन में से बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी. वह अपनी ससुराल में थी. जबकि छोटे दोनों बच्चे वैभव व ऋचा अलग कमरे में सो रहे थे. घर के आंगन में हत्यारों ने आ कर हत्या की थी, मगर बीवी व बच्चों ने कुछ नहीं सुना था. बीवी सुबह 7 बजे तब जागी, जब भतीजा राजू दूध लेने आया.

यह बात पुलिस को पच नहीं रही थी. मृतक के मुंह, सिर और गरदन पर लगे गहरे घावों से रिसा खून सूख चुका था. इस का मतलब था कि मृतक की हत्या हुए 6-7 घंटे का समय हो चुका था. एफएसएल टीम ने साक्ष्य एकत्रित किए. तब पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया. पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिरों को सुरागसी के लिए लगा दिया. वहीं मृतक के बच्चों वैभव व ऋचा से एकांत में पूछताछ की. बच्चों ने बताया कि कल रात मम्मी ने हमें धमका कर अलग कमरे में सुला दिया था. मम्मी ने हमें कमरे में बंद कर के बाहर से कुंडी लगा दी थी. मम्मी अलग कमरे में सोई थी. बच्चों ने यह भी बताया कि वह हमेशा मम्मी के कमरे में सोते थे, लेकिन उन्होंने कल हमें दूसरे कमरे में सुला दिया था.

वैभव को पुचकार कर पुलिस अधिकारियों ने कुछ और जानकारी पूछी तो उस ने एक पत्र ला कर पुलिस अधिकारियों को दिया. वैभव ने कहा, ‘‘यह चिट्ठी मेरी बड़ी बहन, जो शादीशुदा है, ने पापा को लिखी थी. यह पत्र हम भाईबहनों को मिला तो हम ने छिपा दिया था.’’

उस पत्र में मृतक की बड़ी बेटी ने पापा प्रेमनारायण को लिखा था कि वह मम्मी को बदनाम नहीं करना चाहती है. नौकर जितेंद्र को अब अपने यहां नहीं रखना चाहिए. पुलिस ने चिट्ठी के आधार पर तथा वारदात से जुड़े अन्य पहलुओं पर जांच करते हुए जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने साइबर एक्सपर्ट सत्येंद्र सिंह की भी मदद ली. बच्चों ने पुलिस अधिकारियों से यहां तक कहा कि पापा की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि मम्मी ने ही नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा (मेघवाल) के साथ मिल कर रात में की है. रात में वैभव कमरे से बाहर आना चाहता था मगर कमरा बाहर से लौक था. इस कारण वह वापस जा कर सो गया था.

इसी दौरान मुखबिरों ने भी पुलिस को जानकारी दी. इन सब तथ्यों पर गौर किया गया तो मृतक की पत्नी का किरदार संदिग्ध नजर आया. पुलिस अधिकारियों ने तब उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस ने रुक्मिणी से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में वह टूट गई. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने अपने प्रेमी व नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा और एक अन्य हंसराज भील के साथ मिल कर पति की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. बस, फिर क्या था, पुलिस ने उसी दिन जितेंद्र और हंसराज भील को भी दबोच लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की.

पूछताछ में उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया.  जितेंद्र ने बताया कि वह पिछले 2 साल से टीचर प्रेमनारायण के घर नौकर था. वह खेतों की रखवाली और खेतीबाड़ी करता था. जितेंद्र को 65 हजार रुपए सालाना तनख्वाह पर रखा हुआ था. प्रेमनारायण ज्यादातर समय अपनी ड्यूटी पर फतेहगढ़, मध्य प्रदेश में रहते थे. वह 15-20 दिन बाद ही अपने गांव आखाखेड़ी आते थे. प्रेमनारायण की अपनी बीवी से नहीं बनती थी. दोनों में मनमुटाव रहता था. इस कारण रुक्मिणी ने पति की गैरमौजूदगी में अपने नौकर से अवैध संबंध बना लिए थे. प्रेमनारायण की बड़ी बेटी ने एक दिन अपनी मम्मी और नौकर जितेंद्र को रंगरलियां मनाते देख लिया था.

इस कारण वह चिट्ठी लिख कर पापा को अपनी मम्मी की करतूत बताना चाहती थी. मगर यह चिट्ठी उस के छोटे भाईबहनों के हाथ लग गई थी. तब उन्होंने चिट्ठी पढ़ कर छिपा ली. 26 मार्च, 2021 को यह चिट्ठी बच्चों ने पुलिस अधिकारियों को सौंपी. तब जा कर इस घटना की परतें खुलनी शुरू हुईं. प्रेमनारायण को किसी तरह बीवी और नौकर के अवैध संबंधों की खबर लग गई थी. इस कारण वह इन दोनों के बीच राह का रोड़ा बन चुके थे. इस रोड़े को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने के लिए रुक्मिणी ने एक योजना बना ली. फिर जितेंद्र ने 31 वर्षीय हंसराज भील को 20 हजार रुपए दे कर योजना में शामिल कर लिया. हंसराज जितेंद्र का दोस्त था. पुलिस ने मात्र 3 घंटे में ही मास्टर प्रेमनारायण मीणा की हत्या का राजफाश कर दिया.

मृतक के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी रोज दोपहर बाद अंतिम संस्कार क र दिया. आखाखेड़ी में मास्टर की मौत से सनसनी फैल गई थी. जिस ने भी बीवी और उस के प्रेमी नौकर की करतूत के बारे में सुना, सन्न रह गया. आरोपी पुलिस हिरासत में थे, जिन से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ की. पूछताछ में जो घटना प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी. प्रेमनारायण मीणा अपनी पत्नी रुक्मिणी और 3 बच्चों के साथ जिला बारां के गांव आखाखेड़ी में रहते थे. वह सरकारी अध्यापक थे. प्रेमनारायण की ड्यूटी इन दिनों मध्य प्रदेश के जिला गुना के फतेहगढ़ में थी. वह महीने में एकाध बार अपने गांव बीवीबच्चों से मिलने आते रहते थे.

प्रेमनारायण जहां शांत स्वभाव के थे तो वहीं उन की बीवी कर्कश स्वभाव की थी. उन की शादी को 20 साल से ज्यादा हो गए थे मगर इतना समय साथ गुजारने के बाद भी मियांबीवी में अकसर झड़प हो जाया करती थी. उन के बच्चे बड़े हो गए थे. मगर दोनों का मनमुटाव कम नहीं हुआ. रुक्मिणी दिनरात काम कर के थक जाने का रोना रोती रहती थी. तब प्रेमनारायण ने वार्षिक तनख्वाह पर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा  को 2 साल पहले घर का नौकर रख लिया. जितेंद्र जहां खेतों पर काम करता, वहीं घर पर भी काम करता था. रुक्मिणी और जितेंद्र का रिश्ता मालकिन और नौकर का था. मगर पति के दूर रहने और मनमुटाव के चलते रुक्मिणी शारीरिक सुख से वंचित थी.

जब उसे जितेंद्र नौकर के रूप में मिला तो वह उसे बिस्तर तक ले आई. रुक्मिणी की उम्र 40 साल थी. इस के बावजूद वह अपने से 8 साल छोटे नौकर के साथ सेज सजाने लगी. उस ने नौकर को प्रेमी बना लिया और उस की बांहों में झूला झूलने लगी. रुक्मिणी की बड़ी बेटी शादी लायक हो गई थी. इस के बावजूद अधेड़ उम्र में उस पर वासना का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह जबतब मौका पा कर नौकर जितेंद्र बैरवा के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगी. एक रोज बेटी ने अपनी मां को नौकर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. अपनी मां का यह रूप देख कर बेटी को उस से नफरत सी हो गई. मां का यह रूप देख कर उसे कई दिन तक कुछ भी अच्छा नहीं लगा.

वह सोचने लगी कि क्या किया जाए. इसी बीच एक दिन फिर उस ने अपनी मां को नौकर जितेंद्र के साथ देख लिया. तब उस ने अपने पापा को लिखे एक पत्र में मम्मी की करतूत और नौकर को हटाने के बारे में लिखा. पत्र पापा के पास पहुंचने से पहले ही वह छोटे भाई वैभव व बहन ऋचा के हाथ लग गया. दोनों बहनभाइयों ने वह पत्र छिपा दिया. उन्हें पता था कि पापा ने यह पत्र देख लिया तो मम्मी की खैर नहीं होगी. बस, उन मासूमों को क्या पता था कि मम्मी को बचाने के चक्कर में वह पापा को एक दिन खो देंगे. पत्र गायब हुआ तो बड़ी बेटी भी चुप्पी लगा गई. एक साल पहले प्रेमनारायण ने बेटी की शादी कर दी. वह अपनी ससुराल चली गई.

कोरोना काल में प्रेमनारायण काफी समय तक घर पर रहे. तब रुक्मिणी को अपने प्रेमी से एकांत में मिलने का मौका नहीं मिला. जब स्कूल खुल गए तब प्रेमनारायण फतेहगढ़ चले गए. पति के जाने के बाद रुक्मिणी और जितेंद्र का खेल फिर से शुरू हो गया. लेकिन छुट्टी पर प्रेमनारायण गांव आते तो बीवी को वह फूटी आंख नहीं सुहाते थे. वह उन से बिना किसी बात के लड़तीझगड़ती रहती. तब वह ड्यूटी पर चले जाते. रुक्मिणी यही तो चाहती थी. इस के बाद वह नौकर के साथ रंगरलियां मनाती. प्रेमनारायण को अपनी बीवी और नौकर जितेंद्र के व्यवहार से ऐसा लगा कि कुछ गड़बड़ है. एकदो बार प्रेमनारायण ने बीवी से इस बारे में पूछा तो वह उलटा उस पर चढ़ दौड़ी.

रुक्मिणी को अंदेशा हो गया कि उस के पति को नौकर के साथ संबंधों का शक हो गया है. तब उस ने नौकर जितेंद्र के साथ साजिश रची कि अब वह प्रेमनारायण को रास्ते से हटा कर अपने हिसाब से जीवन जिएंगे. रुक्मिणी के कहने पर जितेंद्र यह काम करने को राजी हो गया. घटना से 10 दिन पहले प्रेमनारायण छुट्टी पर घर आए थे. होली के बाद उन्हें वापस फतेहगढ़ जाना था. इन 10 दिनों में रुक्मिणी और जितेंद्र को एकांत में मिलने का मौका नहीं मिला. ऐसे में रुक्मिणी और उस के प्रेमी ने तय कर लिया कि अब जल्द ही योजना को अंजाम दिया जाएगा, तभी वह चैन की जिंदगी जी सकेंगे. जितेंद्र ने अपने दोस्त हंसराज को 20 हजार का लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया.

25 मार्च, 2021 की आधी रात को योजना के तहत जितेंद्र और हंसराज तलवार और कुल्हाड़ी ले कर रुक्मिणी के घर के पीछे पहुंचे. रुक्मिणी ने पहली मंजिल पर जा कर मकान के पीछे वाली खिड़की से रस्सा नीचे फेंका. रस्से के सहारे जितेंद्र और हंसराज मकान की पहली मंजिल पर खिड़की से आ गए. इस के बाद घर के आंगन में बरामदे में सो रहे मास्टर प्रेमनारायण पर नींद में ही तलवार और कुल्हाड़ी से हमला कर मार डाला. इस के बाद जिस रास्ते से आए थे, उसी रास्ते से अपने हथियार ले कर चले गए. रुक्मिणी निश्चिंत हो कर कमरे में जा कर सो गई. सुबह जब मृतक का भतीजा राजू दूध लेने आया तो उस की चीखपुकार सुन कर रुक्मिणी आंखें मलती हुई कमरे से बाहर आई. वह नाटक कर के रोनेपीटने लगी. मगर उस की करतूत बच्चों ने चिट्ठी से खोल दी.

पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से रुक्मिणी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. जितेंद्र व हंसराज को 3 दिन के पुलिस रिमांड पर भेजा गया. रिमांड के दौरान आरोपियों से तलवार, कुल्हाड़ी, खून सने कपड़े और मोबाइल बरामद किए गए. रिमांड अवधि खत्म होने पर 30 मार्च, 2021 को फिर से जितेंद्र और हंसराज भील को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Rajasthan Crime News

Agra News : प्रेमिका और मां की चाकू से हत्या कर प्रेमी हुआ फरार

Agra News : किसी के मोहपाश में बंध जाना अलग बात है और उसे अपनी प्रौपर्टी समझ लेना अलग बात. गोविंद ने कामिनी को ले कर यही गलती की. लेकिन क्या मिला उसे…

सभी गहरी नींद में सोए हुए थे. उस समय रात के 3 बज रहे थे. अचानक एक मकान में चीखपुकार मच गई. शोर सुन कर आसपास के लोग जाग गए और उस मकान की ओर दौड़े. उन्होंने देखा कि चीखती हुई कामिनी दरवाजे से बाहर 20 कदम दूर आ गई. बाहर वह एक ही बात बोल रही थी, ‘‘गोविंद ने मार डाला… गोविंद ने मार डाला.’’

कामिनी के पड़ोस में रहने वाले चाचा गणेश, दादी शकुंतला व भाई मनीष भी आ गए.  ग्रामीणों व घर वालों के आने पर हत्यारा गोविंद सब को चाकू दिखा कर धमकाता हुआ भाग गया. जब लोग मकान में पहुंचे तो वहां का वीभत्स दृश्य देख कर सहम गए. कामिनी की मां शारदा देवी घर के फर्श पर तथा रागिनी दरवाजे के पास खून से लथपथ पड़ी हुई थीं. अत्यधिक खून बहने से दोनों की सांसें थम चुकी थीं. लोगों को आया देख डरीसहमी घर की बहू रेखा कमरे की कुंडी खोल कर बाहर आई. वह भी गंभीर रूप से घायल थी. उस ने बताया, ‘‘पड़ोसी गोविंद ने सास और ननद पर चाकू से हमला किया, जब वह उन्हें बचाने आई तो उस पर भी हमला कर घायल कर दिया.

वह किसी तरह जान बचा कर कमरे में भागी और अंदर से कुंडी लगा ली. इसी बीच किसी ने इस घटना की सूचना थाने को दे दी.’’ यह बात 8 मार्च, 2021 की है. डबल मर्डर की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विनोद कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. डबल मर्डर की घटना से कस्बे में सनसनी फैल गई थी. तब तक मकान के बाहर भीड़ जुट गई थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी ने अपने उच्चाधिकारियों को अवगत कराया. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन ही 2 महिलाओं की हत्या होने से हड़कंप मच गया. आननफानन में आईजी (आगरा जोन) ए. सतीश गणेश, एसएसपी बबलू कुमार, एसपी (पूर्वी) अशोक वेंकट, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड के साथ मौके पर पहुंच गए.

आगरा के थाना बाह के कस्बा जरार के मोहल्ला हवेली निवासी उमेश सविता की करीब 15 साल पहले मृत्यु हो चुकी थी. पत्नी शारदा देवी जरार के प्राइमरी स्कूल में रसोइया का काम कर परिवार पाल रही थीं. उन के 5 बेटेबेटियों में राहुल और लक्ष्मी की शादी हो चुकी थी. तीसरे नंबर के बेटे मनीष के विवाह की तैयारियां चल रही थीं. चौथे नंबर की बेटी रागिनी की पिछले साल बीमारी से मौत हो गई थी. सब से छोटी कामिनी का भी रिश्ता तय हो चुका था. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और मांबेटी के कत्ल के दौरान गंभीर रूप से घायल हुई रेखा को उपचार के लिए अस्पताल में भरती कराया. मांबेटी के गले व सीने पर चोट के गहरे निशान थे.

दोनों की हालत देखने से लग रहा था कि हत्या के लिए बेहद क्रूर तरीका अपनाया गया था. मौत से पहले दोनों ने हत्यारे के साथ संघर्ष भी किया था. फोरैंसिक और डौग स्क्वायड टीम ने मौके पर जांच कर सबूत जुटाए. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शवों को मोर्चरी भिजवा दिया. अस्पताल में भरती घटना की चश्मदीद बहू रेखा ने बताया कि उस की सास शारदा देवी व ननद कामिनी बरामदे के टिनशैड में अगलबगल सोई हुई थीं. गोविंद छत से घर के अंदर आया था. सीढि़यों से नीचे आने के बाद उस ने दोनों पर हमला कर दिया.

रेखा अपने 5 महीने के बेटे सार्थक के साथ कमरे में सो रही थी. चीखपुकार सुन कर वह जाग गई और सास व ननद को बचाने दौड़ी. अपनी पहचान होते देख आरोपी गोविंद ने रेखा पर भी चाकू से हमला कर दिया. जान बचाने को रेखा कमरे की ओर दौड़ी और अपने आप को कमरे में बंद कर लिया. घटना के समय घर में कोई पुरुष मौजूद नहीं था. रेखा का पति राहुल काम के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था. जबकि देवर मनीष पड़ोस में रहने वाले अपने चाचा गणेश के यहां सोया हुआ था. घटना की जानकारी होते ही मृतकों के अन्य परिजन भी आ गए. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था.

जांच के दौरान पता चला कि मामला प्रेमप्रसंग का था. आरोपी गोविंद के मृतका कामिनी से प्रेम संबंध थे. कामिनी के घर वाले गोविंद का विरोध करते थे. इस के चलते पहले भी गोविंद व कामिनी के घर वालों में झगड़ा व मारपीट हुई थी. तब मामला रफादफा हो गया था. लेकिन अब अचानक ऐसा क्या हो गया था, जो गोविंद ने अपनी प्रेमिका के अलावा उस की मां की हत्या करने के साथ ही मृतका की भाभी को भी घायल कर दिया था. पुलिस पूछताछ में मृतका के घर वालों ने बताया कि गोविंद पहले भी कामिनी को अकेला देख कर एक दिन घर में घुस आया था. शोर मचाने पर आसपास के लोगों के पहुंचने पर वह भाग गया था. तब घर वालों ने पुलिस में उस की कोई शिकायत नहीं की थी.

ग्रामीणों ने पुलिस को जानकारी दी कि दोनों की दोस्ती से कामिनी का परिवार खुश नहीं था. कुछ दिन पहले दोनों परिवारों में इस बात को ले कर झगड़ा भी हुआ था. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. जब पुलिस हत्यारोपी के घर गई और गोविंद के पिता को घटना के बारे में बताया तो वह बेहोश हो गए. इस बीच पुलिस ने हत्यारोपी के परिवार के कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया. हत्यारे गोविंद के विरुद्ध  मनीष ने भादंवि की धारा 302 व 307 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराया. पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि घटना से 15 दिन पहले गोविंद ने अपने दोस्तों के बीच ऐलान किया था कि वह बड़ा कांड करेगा. उस का कहना था, मुझे पहले कामिनी ने अपने प्यार में फंसाया, जब मुझे गहराई से प्यार हो गया तो वह मुझे छोड़ने की बात कह रही है.

उस की मोहब्बत को ठुकराने का अंजाम क्या होता है, यह हर कोई देखेगा. वह दोस्तों से पूछता था कि जेल में मिलने आओगे या नहीं? दोस्तों ने उस की बात को मजाक में लिया था. किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वह ऐसा खूनी खेल खेलेगा. धारदार हथियार से 50 वर्षीय शारदा  और उन की बेटी 19 वर्षीय कामिनी की नृशंस हत्या करने के बाद हत्यारे के फरार हो जाने और पुलिस द्वारा गिरफ्तार न कर पाने से लोग आक्रोशित थे. सोमवार को गम और गुस्से में जरार का बाजार बंद रहा. घटना की जानकारी होने पर बाह की विधायक पक्षालिका सिंह जरार पहुंचीं. मांबेटी की मौत पर परिजनों का रोना सुन कर वह भी अपने आंसू नहीं रोक सकीं. उन्होंने पुलिस को आरोपी को जल्द गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की 5 टीमें गठित कर इटावा, शिकोहाबाद, फिरोजाबाद, मुरैना और दिल्ली रवाना कर दी गई थीं. सोमवार की रात को ही एसएसपी बबलू कुमार ने हत्यारोपी गोविंद पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था. सोमवार 8 मार्च की सुबह आगरा पुलिस ने शिकोहाबाद के मोहल्ला जैन स्ट्रीट में स्थानीय पुलिस के साथ गोविंद के चचेरे भाई नवीन जैन के यहां दबिश दी. लेकिन पुलिस के आने से पहले सुबह 4 बजे मकान का ताला लगा कर परिवार कहीं चला गया था. पुलिस टीम हत्यारोपी के एक अन्य रिश्तेदार को पूछताछ के लिए अपने साथ बाह ले आई.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि कामिनी के शरीर पर 8 और उस की मां शारदा के शरीर पर 6 घाव आए थे. सभी घाव गरदन और सीने पर थे. पुलिस को पता चला कि हत्यारा गोविंद फिरोजाबाद भागने की फिराक में है. पुलिस ने फिरोजाबाद में भी कई स्थानों पर दबिश दी. लेकिन पुलिस के हाथ निराशा ही लगी. फिर भी पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुटी रही. घटना के दूसरे दिन मंगलवार 9 मार्च, 2021 की सुबह 7 बजे मुखबिर से सूचना मिली कि गोविंद को जरार से 10 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध तीर्थ बटेश्वर में देखा गया है. इस पर तलाश में लगी पुलिस टीम सचेत हो गई. बटेश्वर में पहुंची पुलिस टीम को आरोपी गोविंद बाइक से फिरोजाबाद की ओर जाता दिखाई दिया.

पुलिस ने बटेश्वर में नौरंगी घाट पर गोविंद से रुकने को कहा. पुलिस को देखते ही गोविंद ने यू टर्न लिया और फायरिंग कर दी. पुलिस की जवाबी काररवाई में गोविंद के बाएं पैर में गोली लगी. गोली लगते ही वह गिर गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उस के पास से 315 बोर का एक अवैध तंमचा व 3 कारतूस और बाइक बरामद की. घायल गोविंद को पुलिस ने उपचार के लिए अस्पताल में भरती कराया. पुलिस पूछताछ में दोहरे हत्याकांड के आरोपी गोविंद ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस का कहना था, मैं हर रोज दर्द नहीं सह सकता था. गोविंद से पूछताछ के बाद डबल मर्डर की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

कामिनी और गोविंद बाह के जरार कस्बे के मोहल्ला हवेली में रहते थे. 19 वर्षीय कामिनी जहां 11वीं में पढ़ती थी, वहीं 21 वर्षीय गोविंद बीएससी द्वितीय वर्ष का छात्र था. गोविंद का घर कामिनी के घर से 50 मीटर की दूरी पर था. घटना से एक साल पहले एक दिन कालेज जाते समय दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरा गईं. दोनों ही जवानी की देहरी पर कदम रख चुके थे. गोविंद को कामिनी भा गई वहीं कामिनी को भी गोविंद अच्छा लगा. फिर अकसर जैसा 2 युवाओं के बीच होता है, उन के बीच भी हुआ. दोनों मिले और शुरू हो गया चोरीछिपे मिलनाजुलना और बतियाना. छोटे कस्बे में लड़केलड़की का आपस में मिलना और बात करना आसान नहीं होता.

कामिनी और गोविंद अपने भावी जीवन के सपने देखते. जमाने से बेखबर वे अपने प्यार में मस्त रहते. पर गांवदेहात में प्यारमोहब्बत की बातें ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पातीं. किसी तरह कामिनी के घर वालों को पता चल गया कि उस का गोविंद के साथ चक्कर चल रहा है. लिहाजा मां व भाइयों ने उसे समझाया कि वह उस लड़के से मिलनाजुलना बंद कर दे. फिर भी दोनों की चोरीछिपे मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा. इस की वजह से दोनों परिवारों में तल्खी बढ़ती गई. कामिनी पर जब बंदिश लगाई गई तो घटना से पहले एक दिन वह कामिनी से मिलने घर में घुस आया.

चूंकि गोविंद दूसरी बिरादरी का था, इसलिए कामिनी के घर वालों ने साफ कह दिया कि कामिनी के साथ उस की शादी नहीं हो सकती. गोविंद को समझाया भी. इस के बाद भी कामिनी से बात करते देख लेने पर उन्होंने कई बार गोविंद को पीटा. गोविंद कामिनी के मोहपाश में बंधता चला गया. उसे समाज, बिरादरी की कोई परवाह नहीं थी. उसे तो हर हाल में जीवनसाथी के रूप में कामिनी चाहिए थी. कामिनी के घर वालों ने गोविंद की हरकतों और उस की जिद से मोहल्ले में हो रही उन की बदनामी को देखते हुए कामिनी का रिश्ता 20 दिन पहले ही फिरोजाबाद के कस्बा सिरसागंज के गांव अटारैना में तय कर दिया. अभी शादी की तारीख तय नहीं हुई थी.

इस बात ने आग में घी का काम किया. अपनी प्रेमिका की शादी तय हो जाने से गोविंद मायूस था. इस से बौखला कर उस ने टीवी पर क्राइम सीरियल देख कर एक खौफनाक निर्णय ले लिया. उस ने कामिनी की हत्या की योजना बनाई. इस दुस्साहसिक घटना को अंजाम देने के लिए गोविंद ने रात के तीसरे पहर का समय चुना. उस समय लोग गहरी नींद में होते हैं. उस ने अपने घर में चारपाई पर तकिया  रख कर रजाई से ढक दिया था ताकि लगे कि वह सोया हुआ है. मांबेटी की हत्या करने के लिए गोविंद छत के रास्ते सीढि़यों से शारदा के घर में आ गया. उस ने चाकू से पहला वार सोती हुई शारदा पर किया, मां की चीख सुन कर बगल में सो रही कामिनी की आंखें खुल गईं.

दोनों ने गोविंद से धारदार हथियार छीनने का प्रयास किया,लेकिन सफलता नहीं मिली. मांबेटी लहूलुहान हालत में जान बचाने घर से बाहर भागीं, लेकिन हत्यारे ने उन पर चाकू से लगातार कई वार किए. बुरी तरह से घायल मां फर्श पर गिर गई. वहीं कामिनी चीखती हुई घर के बाहर भागी. कामिनी की भाभी रेखा उन्हें बचाने आई, पहचाने जाने के डर से गोविंद ने रेखा पर भी वार कर घायल कर दिया. वह रेखा की भी हत्या करना चाहता था. घटना को अंजाम देने के बाद वह सब से पहले अपने घर पहुंचा. वहां उस ने कपड़े बदले. 400 रुपए और बाइक ले कर वह बाहर निकल गया. खून से सने कपड़े और चाकू एक पौलीथिन में रख कर जंगल में फेंक दिया और छिप गया.

मंगलवार सुबह वह फिरोजाबाद की ओर भाग रहा था, तभी पुलिस ने उसे दबोच लिया. कातिल गोविंद को न्यायालय में पेश किया गया. कोर्ट के आदेश पर उसे जेल भेज दिया गया. अपने घर की चारदीवारी हर किसी के लिए महफूज मानी जाती है. लेकिन शारदा और उस की बेटी कामिनी के लिए अपना घर भी सुरक्षित नहीं रहा. सिरफिरे आशिक ने प्यार की खातिर इस दुस्साहसिक घटना को अंजाम दे डाला. कामिनी के भाई मनीष की 25 मई को शादी होनी थी. उस के कुछ दिनों बाद जहां कामिनी की घर से डोली उठनी थी, वहां मातम छा गया था. Agra News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Real Crime Story in Hindi : बचपन के दोस्त का बांका से काट डाला गला

Real Crime Story in Hindi : दोस्ती में एक विश्वास होता है, भरोसा होता है. लेकिन शैलेश प्रजापति और अर्श गुप्ता ने पैसे के लिए उस विश्वास की धज्जियां उड़ा दीं, जिस की वजह से विनय…

19 मार्च, 2021 की रात 10 बजे शीला देवी अपने देवर आनंद प्रजापति के साथ जनता नगर चौकी पहुंचीं. उस समय इंचार्ज ए.के. सिंह चौकी पर मौजूद थे. उन्होंने शीला देवी को बदहवास देखा, तो पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम घबराई हुई क्यों हो? कोई गंभीर बात है क्या?’’

‘‘हां सर. हमें किसी अनहोनी की आशंका है.’’

‘‘कैसी अनहोनी? साफसाफ पूरी बात बताओ.’’

‘‘सर, दरअसल बात यह है कि रात 8 बजे मेरा बेटा शैलेश, उस का दोस्त अर्श गुप्ता व विनय घर पर नीचे कमरे में शराब पी रहे थे. कुछ देर बाद कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आईं. फिर वे लोग बाइक से कहीं चले गए.

‘‘उन के जाने के बाद मैं कमरे में गई, तो वहां खून से सनी चादर देखी. अनहोनी की आशंका से मैं घबरा गई. मैं ने इस की जानकारी पड़ोस में रहने वाले अपने देवर आनंद को दी, फिर उन के साथ सूचना देने आप के पास आ गई. आप मेरी मदद करें.’’

शीला देवी की बात सुनकर ए.के. सिंह को लगा कि जरूर कोई अनहोनी घटना घटित हुई है. उन्होंने यह सूचना बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को दी फिर 2 सिपाहियों के साथ शीला देवी के बर्रा भाग 8 स्थित मकान पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के चंद मिनट बाद ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह भी आ गए. हरमीत सिंह ने ए.के. सिंह के साथ कमरे का निरीक्षण किया तो सन्न रह गए. कमरे के फर्श पर खून पड़ा था और पलंग पर बिछी चादर खून से तरबतर थी. कमरे का सामान भी अस्तव्यस्त था. खून की बूंदें कमरे के बाहर गली तक टपकती गई थीं.

निरीक्षण के बाद हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कमरे के अंदर कत्ल जैसी वारदात हुई है या फिर गंभीर रूप से कोई घायल हुआ है. शैलेश और उस का दोस्त या तो लाश को ठिकाने लगाने गए हैं या फिर अस्पताल गए हैं. कहीं भी गए हों, वे लौट कर घर जरूर आएंगे. अत: उन्होंने घर के आसपास पुलिस का पहरा लगा दिया तथा खुद भी निगरानी में लग गए. रात लगभग डेढ़ बजे शैलेश और उस का दोस्त अर्श गुप्ता वापस घर आए तो पुिलस ने उन्हें दबोच लिया और थाना बर्रा ले आए. दोनों के हाथ और कपड़ों पर खून लगा था. इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने पूछा, ‘‘तुम दोनों ने किस का कत्ल किया है और लाश कहां है?’’

शैलेश कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपने बचपन के दोस्त विनय प्रभाकर का कत्ल किया है. वह बर्रा भाग दो के मनोहर नगर में रामजानकी मंदिर के पास रहता था. उस की लाश को मैं ने अर्श की मदद से रिंद नदी में फेंक दिया है. पैट्रोल खत्म हो जाने की वजह से हम ने विनय की मोटरसाइकिल खाड़ेपुर-फत्तेपुर मोड़ पर खड़ा कर दी और वापस लौट आए.’’

‘‘तुम ने अपने दोस्त का कत्ल क्यों किया?’’ थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने शैलेश से पूछा.

इस सवाल पर शैलेश काफी देर तक हरमीत सिंह को गुमराह करता रहा. पहले वह बोला, ‘‘साहब, नशे में गलती हो गई. हम ने उस का कत्ल कर दिया.’’

फिर बताया कि उस के मोबाइल फोन में उस की महिला मित्र की कुछ आपत्तिजनक फोटो थीं. उन फोटो को विनय ने धोखे से अपने मोबाइल फोन में ट्रांसफर कर लिया था. वह उन फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल कर रहा था, इसलिए हम ने उसे मार डाला. लेकिन थानाप्रभारी हरमीत सिंह को उस की इन दोनों बातों पर यकीन नहीं हुआ. सच्चाई उगलवाने के लिए उन्होंने सख्ती की तो दोनों टूट गए.

फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 लाख रुपए की फिरौती मांगने के लिए विनय की हत्या की योजना बनाई थी. कुछ माह पहले संजीत हत्याकांड की तरह शव को ठिकाने लगाने के बाद उसी के मोबाइल फोन से उस के घर वालों को फोन कर फिरौती मांगने की योजना थी. उस ने दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की थी. लेकिन फिरौती मांगने के पहले ही वे पकड़े गए. शैलेश व अर्श की जामातलाशी में उन के पास से 3 मोबाइल फोन मिले, जिस में एक मृतक विनय का था तथा बाकी 2 शैलेश व अर्श के थे. उन के पास एक पर्स भी बरामद हुआ जिस में मृतक का फोटो, आधार कार्ड तथा कुछ रुपए थे. बरामद पर्स मृतक विनय प्रभाकर का था.

शैलेश व अर्श गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल बांका तथा लाश ठिकाने लगाने में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. बांका उस ने अपने कमरे में छिपा दिया था और पैट्रोल खत्म होने से उस ने मोटरसाइकिल खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ी कर दी थी. फिरौती और हत्या के इस मामले में थानाप्रभारी हरमीत सिंह कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे. क्योंकि इस के पहले संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस गच्चा खा चुकी थी. अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम भी ले ली थी और उस की हत्या भी कर दी थी. इस मामले में लापरवाही बरतने में एसपी व डीएसपी सहित 5 पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था. अत: उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.

सूचना पा कर रात 3 बजे एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय थाना बर्रा पहुंच गए. उन्होंने घटना के संबंध में गिरफ्तार किए गए शैलेश व अर्श गुप्ता से विस्तार से पूछताछ की. फिर दोनों को साथ ले कर रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. इस के बाद कातिलों की निशानदेही पर नदी किनारे पड़ा विनय प्रभाकर का शव बरामद कर लिया. विनय की हत्या बड़ी निर्दयतापूर्वक की गई थी. उस का गला धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से सांस की नली कट गई थी और उस की मौत हो गई थी. मृतक विनय की उम्र 26 वर्ष के आसपास थी और उस का शरीर हृष्टपुष्ट था.

20 मार्च की सुबह 5 बजे बर्रा थाने के 2 सिपाही मृतक विनय के घर पहुंचे और उस की हत्या की खबर घर वालों को दी. खबर पाते ही घर व मोहल्ले में सनसनी फैल गई. घर वाले रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. वहां विनय का शव देख कर मां विमला तथा बहन रीता बिलख पड़ीं. पिता रामऔतार प्रभाकर तथा भाई पवन की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली. पुलिस अधिकारियों ने उन्हे धैर्य बंधाया. पवन ने एसपी दीपक भूकर को बताया कल शाम साढ़े 7 बजे किसी का फोन आने पर उस का भाई विनय यह कह कर अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से घर से निकला था कि अपने दोस्त से मिलने जा रहा है. उस के बाद वह घर नहीं लौटा.

रात भर हम लोग उस के घर वापस आने का इंतजार करते रहे. उस का फोन भी बंद था. सुबह 2 सिपाही घर आए. उन्होंने विनय की हत्या की सूचना दी. तब हम लोग यहां आए. लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि विनय की हत्या किस ने और क्यों की?

‘‘तुम्हारे भाई की हत्या किसी और ने नहीं, उस के बचपन के दोस्त शैलेश प्रजापति व उस के साथी अर्श गुप्ता ने की है. वह तुम लोगों से फिरौती के 10 लाख रुपए वसूलना चाहते थे. लेकिन शैलेश की मां ने ही उस का भांडा फोड़ दिया और दोनों पकड़े गए.’’

यह जानकारी पा कर पवन व उस के घर वाले अवाक रह गए. क्योंकि वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि शैलेश ऐसा विश्वासघात कर सकता है.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह शैलेश के उस कमरे में पहुंचे, जहां विनय का कत्ल किया गया था. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी बेंजाडीन टेस्ट कर साक्ष्य जुटाए. चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल बांका भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मृतक के भाई पवन को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 तथा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत शैलेश प्रजापति तथा अर्श गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

उन्हें न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की सनसनीखेज घटना का खुलासा हुआ. कानपुर शहर का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-बर्रा. इस क्षेत्र के बड़ा होने से इसे कई भागों में बांटा गया है. रामऔतार प्रभाकर अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के भाग 2 में मनोहरनगर में जानकी मंदिर के पास रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे पवन कुमार, विनय कुमार तथा बेटी रीता कुमारी थी. रामऔतार प्रभाकर आर्डिनैंस फैक्ट्री में काम करते थे. किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

फैक्ट्री में रामऔतार प्रभाकर के साथ सोमनाथ प्रजापति काम करते थे. सोमनाथ भी बर्रा भाग 8 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शीला देवी के अलावा एकलौता बेटा शैलेश था. सोमनाथ भी रिटायर हो चुके थे. सोमनाथ बीमार रहते थे. उन्हें सुनाई भी कम देता था और दिखाई भी. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. रामऔतार और सोमनाथ इस के पहले अर्मापुर स्थित फैक्ट्री की कालोनी में रहते थे. 3 साल पहले दोनों ने बर्रा क्षेत्र में जमीन खरीद ली थी और अपनेअपने मकान बना कर रहने लगे थे. मकान बदलने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कमी नहीं आई थी. दोनों परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

रामऔतार का बेटा विनय और सोमनाथ का बेटा शैलेश बचपन के दोस्त थे. दोनों एकदूसरे के घर आतेजाते थे. विनय ने हाईस्कूल पास करने के बाद आईटीआई से मशीनिस्ट का कोर्स किया था. वह नौकरी की तलाश में था. जबकि शैलेश ड्राइवर बन गया था. वह बुकिंग की कार चलाता था. शैलेश का एक अन्य दोस्त अर्श गुप्ता था. वह फरनीचर कारीगर था और गुजैनी गांव में रहता था. अर्श और शैलेश शराब के शौकीन थे. अकसर दोनों साथ पीते थे और लंबीलंबी डींग हांकते थे. उन दोनों ने विनय को भी शराब पीना सिखा दिया था. अब हर रविवार को शैलेश के घर शराब पार्टी होती थी. तीनों बारीबारी से पार्टी का खर्चा उठाते थे.

एक शाम खानेपीने के दौरान विनय ने शैलेश व अर्श को बताया कि उस की बहन रीता की शादी तय हो गई है. 27 अप्रैल को बारात आएगी. शादी में लगभग 10-12 लाख रुपया खर्च होगा. पिता व भाई ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. शैलेश व अर्श मामूली कमाने वाले युवक थे. वह शार्टकट से लखपति बनना चाहते थे. इस के लिए शैलेश उरई में पान मसाला का कारोबार करना चाहता था. उरई में वह जगह भी देख आया था. लेकिन कारोबार के लिए उस के पास पैसा नहीं था. पैसा कहां से और कैसे आए, इस के लिए शैलेश और अर्श ने सिर से सिर जोड़ कर विचारविमर्श किया तो उन्हें विनय याद आया. विनय ने बताया था कि उस के यहां बहन की शादी है और घर वालों ने 10-12 लाख रुपए का इंतजाम किया है.

दौलत की चाहत में शैलेश व अर्श ने दोस्त के साथ छल करने और फिरौती के रूप में 10 लाख रुपया वसूलने की योजना बनाई. संजीत हत्याकांड दोनों के जेहन में था. उसी तर्ज पर उन दोनों ने विनय की हत्या कर के उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई. योजना के तहत 19 मार्च, 2021 की रात पौने 8 बजे शैलेश ने अर्श के मोबाइल से विनय प्रभाकर के मोबाइल पर काल की और पार्टी के लिए घर बुलाया. विनय की 5 दिन पहले ही लोहिया फैक्ट्री में नौकरी लगी थी. फैक्ट्री से वह साढ़े 7 बजे घर लौटा था कि 15 मिनट बाद शैलेश का फोन आ गया. पार्टी की बात सुन कर वह शैलेश के घर जाने को राजी हो गया.

रात 8 बजे विनय अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से बर्रा भाग 8 स्थित शैलेश के घर पहुंच गया. उस समय कमरे में शैलेश व अर्श गुप्ता थे और पार्टी का पूरा इंतजाम था. इस के बाद तीनों ने मिल कर खूब शराब पी. विनय जब नशे में हो गया तो योजना के तहत अर्श व शैलेश ने उसे दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे. विनय ने जब खुद को जाल में फंसा देखा तो वह भी भिड़ गया. कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. इसी बीच शैलेश ने कमरे में छिपा कर रखा बांका निकाला और विनय की गरदन पर वार कर दिया. विनय का गला कट गया और वह फर्श पर गिर पड़ा. इस के बाद अर्श ने विनय को दबोचा और शैलेश ने उस की गरदन पर 2-3 वार और किए.

जिस से विनय की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद उन दोनों ने शव को तोड़मरोड़ कर चादर व कंबल में लपेटा और फिर विनय की मोटरसाइकिल पर रख कर रिंद नदी में फेंक आए. वापस लौटते समय उन की बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया, इसलिए उन्होंने बाइक को खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ा कर दिया. फिर पैदल ही घर आ गए. घर पर उन के स्वागत के लिए बर्रा पुलिस खड़ी थी, जिस से वे पकड़े गए. दरअसल, शैलेश की मां शीला ने ही कमरे में खून देख कर पुलिस को सूचना दी थी, जिस से पुलिस आ गई थी. 21 मार्च, 2021 को थाना बर्रा पुलिस ने आरोपी शैलेश प्रजापति व अर्श गुप्ता को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. Real Crime Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

family story in hindi : जेठ के साथ मिलकर पत्नी ने गला घोंट कर पति को मार डाला

family story in hindi : रूपा ने अपने जेठ तपन दास को अपने रूप के जाल में फांस लिया. फिर योजना के अनुसार तपन ने अपने छोटे भाई और रूपा के पति उत्तम को ठिकाने भी लगवा दिया. फिर 4 महीने बाद इस केस का खुलासा इस तरह हुआ कि…

राजस्थान के उदयपुर शहर को झीलों की नगरी के नाम से जाना जाता है. इसी शहर के प्रतापनगर थाने के अंतर्गत उदयसागर झील स्थित है. 17 नवंबर, 2020 को लोगों ने उदयसागर में एक बोरा पानी के ऊपर तैरता देखा. लग रहा था जैसे उस में कोई चीज बंधी हो. किसी ने इस की सूचना प्रतापनगर थाने में फोन द्वारा दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी विवेक सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. उन्होंने झील से बोरा निकलवाया. जब बोरा खोला गया तो उस में किसी अधेड़ उम्र के व्यक्ति का शव पड़ा था. मृतक की उम्र 45 वर्ष के आसपास लग रही थी.

मृतक ने पैंटशर्ट पहनी हुई थी. चेहरे से लग रहा था कि वह असम, मणिपुर इलाके का है. मृतक की जामातलाशी में कुछ नहीं मिला था, जिस से कि मृतक की शिनाख्त हो पाती. शव की शिनाख्त नहीं होने पर कागजी काररवाई कर शव को राजकीय अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. पुलिस ने अज्ञात शव की शिनाख्त कराने की पूरी कोशिश की. मगर किसी ने उस व्यक्ति की शिनाख्त नहीं की. एक सप्ताह तक मृतक की पहचान नहीं हुई तो पुलिस ने शव को लावारिस मान कर मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा कर उस की अंत्येष्टि करा दी.

प्रतापनगर थाने में अज्ञात व्यक्ति का शव मिलने का मामला दर्ज कर लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मृतक को गला दबा कर मारा गया था. यह हत्या का मामला था. मगर जब तक मृतक की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक पुलिस काररवाई करती भी तो कैसे. पुलिस ने खूब हाथपैर मारे कि शव की कोई तो पहचान करे. मगर किसी ने इस व्यक्ति का ेदेखा नहीं था. पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी अज्ञात शव की सुरागसी के लिए लग रखा था. मगर साढ़े 4 महीने तक कुछ पता नहीं चला. मगर अचानक उदयपुर पुलिस की जिला स्पैशल टीम के कांस्टेबल प्रह्लाद पाटीदार को मुखबिर से सूचना मिली कि कुछ लोग एक मृत व्यक्ति का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने की बात कहते हुए कई पंचायतों के चक्कर लगा रहे हैं.

तब प्रह्लाद पाटीदार एवं स्पैशल टीम के इंचार्ज हनुमंत सिह भाटी की टीम ने जब 2 लोगों पर निगरानी रखी तो किसी व्यक्ति की मौत के बाद फरजी मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने की बात सामने आई. टीम ने जब दोनों व्यक्तियों को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने अपने 3 अन्य साथियों के साथ मिल कर असम के उत्तम दास की हत्या करने की बात स्वीकार की. उन्होंने बताया कि उत्तम दास की हत्या उस के बड़े भाई तपन दास ने कराई थी. आरोपियों ने बताया कि तपनदास ने उन्हें इस काम के लिए साढ़े 12 लाख रुपए की सुपारी दी थी.

स्पैशल टीम और प्रतापनगर थाना पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ी तो फरजी मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के मामूली से प्रयास के पीछे अपराध की बड़ी कहानी निकल आई. किसी ने ऐसा सोचा नहीं था. इस खुलासे के बाद न सिर्फ घिनौना अपराध सामने आया बल्कि उदयसागर में 17 नवंबर, 2020 को मिली अज्ञात व्यक्ति की लाश की वह गुत्थी भी सुलझ गई, जो करीब पौने 5 माह से प्रतापनगर थाना पुलिस के लिए सिरदर्द बनी हुई थी. मामला असम के रहने वाले एक परिवार में अवैध संबंधों का निकला, जिस में तपन दास को छोटे भाई उत्तम दास की पत्नी से प्यार हो गया तो आगे चल कर प्यार के इस खेल में एक व्यक्ति बलि का बकरा बन गया और उस की लाश हजारों किलोमीटर दूर उदयपुर की उदयसागर झील में फिंकवा दी.

सुपारी किलर 5 युवकों से पूरी जानकारी एवं मृतक के भाई तपनदास का मोबाइल नंबर पुलिस ने हासिल कर लिया. इस के बाद एक विशेष पुलिस टीम गठित की गई. इस टीम में जिला स्पैशल टीम के कांस्टेबल प्रह्लाद पाटीदार की विशेष भूमिका रही. इस के अलावा जिला स्पैशल टीम में प्रतापनगर थाने के एसआई मांगीलाल, एएसआई गोविंद सिंह, सुखदेव सिंह, विक्रम सिंह, अनिल पूनिया, मोड़ सिंह, कांस्टेबल अचलाराम, विश्वेंद्र सिंह, नंदकिशोर, उमेश, हरिकिशन, नवलराम, फिरोज, साइबर सेल से गजराज सिंह की शामिल किया गया.

फिर एसआई मांगीलाल, कांस्टेबल नंदकिशोर को फ्लाइट से गुवाहाटी भेजा गया. इन्होंने स्थानीय पुलिस की मदद से मुख्य आरोपी तपनदास की तलाश की. तपन दास से पूछताछ के बाद मृतक की पत्नी रूपा दास को भी हिरासत में ले लिया. मृतक के परिजनों से भी पूछताछ की गई. उन लोगों ने बताया कि रूपा ने दिसंबर 2020 के दूसरे हफ्ते बताया कि उदयपुर में उत्तम दास की कोरोना से मृत्यु हो गई है. कोरोना होने के कारण शव की वहीं अंतिम संस्कार की रस्में कर दी गईं. इस के बाद मृतक के पैतृक निवास पर विधिविधान से अंतिम क्रियाएं की गई थीं.

मृतक के परिजन तो उत्तम दास की मौत कोरोना से होने की मान रहे थे, मगर उदयपुर पुलिस ने घर वालों को बता दिया कि उत्तम की मृत्यु कोरोना से नहीं हुई थी, बल्कि बड़े भाई तपन दास ने साढ़े 12 लाख रुपए की सुपारी दे कर उस की हत्या कराई थी. पुलिस से सच जान कर मृतक के परिजन बहू और हत्यारे बेटे तपन दास को कोसने लगे और विलाप करने लगे. पुलिस टीम दोनों आरोपियों रूपा दास और उस के जेठ तपन दास को गिरफ्तार कर उदयपुर ले आई. उदयपुर में थाना प्रतापनगर में सातों आरोपियों से मृतक उत्तम दास की हत्या के संबंध में एसपी डा. राजीव पचार, एएसपी (सिटी) गोपालस्वरूप मेवाड़ा, डीएसपी राजीव जोशी, थानाप्रभारी (प्रतापनगर) विवेक सिंह ने कड़ी पूछताछ की.

पूछताछ में सभी आरोपियों ने उत्तम की हत्या करने का जुर्म कबूल कर के सारी कहानी बयां कर दी. इस के बाद एसपी डा. राजीव पचार ने 9 अप्रैल, 2021 को प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को इस मामले की जानकारी दी. पुलिस पूछताछ में अवैध संबंध हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है. मनमोहन दास जिला कामरूप मेट्रो, असम के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा तपन और छोटा उत्तम. उत्तम ने रूपा से लवमैरिज की थी. रूपा उन महिलाओं की तरह थी, जो कभी एक मर्द के पल्ले से बंध कर नहीं रहतीं. उत्तम से लव मैरिज के बाद रूपा को अहसास हुआ कि उस ने गलत और ठंडे व्यक्ति से शादी की है. रूपा चाहती थी कि उसे पति रात भर बांहों में भर कर मथता रहे. मगर उत्तम में इतना दमखम नहीं था.

ऐसे में जब कई महीनों तक भी रूपा के बदन की आग मंद नहीं पड़ी तब उस के कदम बहक गए. उस ने घर में ही अपने जेठ तपन दास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. तपन उस से उम्र में 10 साल बड़ा था, मगर वह था गबरू. हृष्टपुष्ट तपन ने छोटे भाई की पत्नी रूपा को अपनी तरफ ताकते व मूक आमंत्रण देते देखा तो वह आशय समझ गया. एक रोज घर में जब कोई नहीं था तो तपन ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. रूपा ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं की, तो तपन का हौसला बढ़ गया. वह उसे बिस्तर पर ले गया. तब दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

वैसे तो तपन की बहू लगती थी रूपा. मगर उन दोनों ने जेठ बहू के रिश्ते को कलंकित कर के एक नया रिश्ता बना लिया था, अवैध संबंधों का रिश्ता. एक बार दोनों के बीच की मर्यादा रेखा टूटी तो वे अकसर मौका निकाल कर हसरतें पूरी करते रहे. तपन उदयपुर, राजस्थान में एक कंपनी में नौकरी करता था. वह छुट्टी आने पर रूपा के इर्दगिर्द ही मंडराता रहता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे. मगर कभीकभार उन का मन होने पर भी उत्तम के होने की वजह से संबंध नहीं बना पाते थे. ऐसे में उन्हें उत्तम राह का कांटा दिखने लगा. उत्तम दास वहीं कामरूप में ही काम करता था. कई साल तक रूपा और तपन के बीच यह खेल चोरीछिपे चलता रहा. घरपरिवार में किसी को भनक तक नहीं लगी थी.

तपन की उम्र 50 वर्ष की हो गई थी फिर भी वह बिस्तर का अच्छा खिलाड़ी था. रूपा ने तय कर लिया कि वह उत्तम को रास्ते से हटवा कर उस की पैतृक संपत्ति एवं इंश्योरेंस के पैसे से तपन के साथ ताउम्र मौज करेगी. उस ने अपनी योजना प्रेमी जेठ तपन को बताई तो वह बहुत खुश हुआ. वह भी यही चाहता था. सन 2020 में कोरोना के कारण कामधंधा बंद हो गया था. तपन उदयपुर से अपने घर कामरूप लौट आया. जब कामधंधा शुरू होने वाला था तब तपन ने अपने भाई उत्तम से कहा, ‘‘उत्तम, यहां काम नहीं है. मैं ने तेरे लिए उदयपुर स्थित अपनी कंपनी में बात की है. तुम वहां जा कर साइट देख लो. पसंद आए तो वहीं काम करना.’’

उत्तम को बड़े भाई की बात बात जंच गई. वह अगले दिन ही उदयपुर के लिए निकल पड़ा. तपन ने इस से पहले रूपा के साथ मिल कर उत्तम की कहानी खत्म करने की योजना बना ली थी. रूपा ने तपन को साढ़े 12 लाख रुपए की सुपारी दे कर कहा था कि पति जिंदा नहीं लौटना चाहिए. तपन अपने भाई से मोबाइल के जरिए कांटैक्ट में रहा. तपन ने उदयपुर में अपनी पहचान के राकेश लोहार को फोन कर के कहा, ‘‘एक आदमी जयपुर आ रहा है. उसे गाड़ी में ले जा कर उस का काम तमाम कर देना. तुम्हें साढ़े 12 लाख रुपए दे दूंगा.’’

‘‘ठीक है तपन भाई. उस का मोबाइल नंबर दे दो. मैं मिलता हूं और उस का खेल खत्म कर दूंगा.’’ राकेश लोहार ने भरोसा दिया. राकेश लोहार ने उत्तम का मोबाइल नंबर ले लिया. राकेश ने अपने 4 साथियों सुरेंद्र, संजय, अजय व जयवर्द्धन को पूरी बात बता कर कहा कि एक दिन में 2-2 लाख रुपए मिलेंगे. राकेश ने खुद साढ़े 4 लाख रुपए रखे. सब दोस्त गाड़ी ले कर जयपुर पहुंच गए. मोबाइल पर उत्तम से संपर्क कर उसे गाड़ी में बिठा लिया. उधर तपन भी असम से फ्लाइट पकड़ कर उदयपुर आ गया. ये लोग जयपुर से उदयपुर तक मौका नहीं मिलने के कारण उत्तम को मार नहीं सके. ये लोग उदयपुर आ गए. उन से तपन भी आ मिला.

इस के बाद शराब में नींद की गोलियां डाल कर उत्तम को रास्ते में ही पिला कर नींद की आगोश में पहुंचा दिया. उत्तम के पास से मोबाइल फोन, पर्स व अन्य दस्तावेज आरोपियों ने ले लिए थे, ताकि उस की शिनाख्त न हो सके. इस के बाद राकेश और उस के साथियों ने गला घोंट कर उत्तम को मार कर लाश बोरे में भर कर उदयसागर झील में फेंक दी. उत्तम का काम तमाम कर तपन असम गया और रूपा को उत्तम के मर्डर की बधाई दी. रूपा बहुत खुश हुई. उस ने बधाई में जेठ को अपने साथ सुलाया. वे मौज करने लगे और फिर घर वालों से कह दिया कि कोरोना से उत्तम की मौत राजस्थान में हो गई.

अस्पताल वालों ने उस की लाश नहीं सौंपी तो वहीं पर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. घर वालों को उत्तम की मौत का बड़ा दुख हुआ और उन्होंने विधिविधान से सारे संस्कार किए. रूपा दिखावे के लिए आंसू बहाती रही ताकि परिजनों को लगे कि वह अपने पति के जाने से बहुत दुखी है. वहीं रूपा रात होने पर जेठ तपन के साथ कमरे में बंद हो जाती. सारी रात पति की मौत की खुशी शारीरिक संबंध बना कर व्यक्त करते. रूपा के बूढ़े सासससुर दिन अस्त होते ही घर में कैद हो जाते थे. रूपा और तपन जी भर कर मौज कर रहे थे. मार्च 2021 का आधा महीना बीत गया था. मगर उत्तम की मृत्यु का प्रमाणपत्र नहीं मिलने पर रूपा को अपने पति के एलआईसी इंश्योरेंस एवं अन्य बीमा कंपनियों से रकम नहीं पा रही थी.

साथ ही पति के नाम पैतृक संपत्ति भी रूपा के नाम नहीं हो रही थी. तब रूपा ने अपने जेठ प्रेमी से कहा, ‘‘उत्तम का मृत्यु प्रमाणपत्र कोरोना बीमारी की वजह से बनवाओ. मृत्यु प्रमाणपत्र के बिना एक रुपया भी नहीं मिलेगा. मेरे पास साढ़े 12 लाख रुपए थे वो मैं ने तुम्हें दे दिए हैं. जल्द से जल्द किसी तरह प्रमाणपत्र बनवाओ.’’

सुन कर तपन बोला, ‘‘अभी मैं राकेश को बोलता हूं. तुम चिंता मत करो. राकेश मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा देगा.’’

कह कर तपन ने राकेश को फोन कर उत्तम दास का कोरोना से मौत होने का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने को कहा. राकेश को तपन ने कहा कि जो पैसा लगेगा वह दे देगा. इस के बाद राकेश ने सुरेंद्र को साथ लिया और दोनों लोग पंचायतों के चक्कर काटने लगे. राकेश वगैरह के पास उत्तम के नाम की कोई मैडिकल रिपोर्ट और अन्य कोई प्रमाण नहीं थे. इस कारण मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं बन रहा था. तब वे लोग पैसे दे कर प्रमाणपत्र बनवाने का जुगाड़ भी लगाने लगे थे. ऐसे में ये लोग स्पैशल टीम के कांस्टेबल प्रह्लाद पाटीदार की निगाह में चढ़ गए. प्रह्लाद ने टीम प्रभारी डीएसपी हनुमंत सिंह भाटी को इस बारे में जानकारी दी और फिर निगाह रख कर इन्हें धर दबोच लिया.

इस की जानकारी एक मुखबिर ने स्पैशल टीम के कांस्टेबल प्रह्लाद को दी और फिर सब पकड़ लिए गए. पूछताछ होने पर सातों आरोपियों रूपा, उस के जेठ तपन दास, राकेश लोहार, सुरेंद्र, संजय, अजय और जयवर्द्धन को प्रतापनगर थाना पुलिस ने उदयपुर कोर्ट में 10 अपै्रल, 2021 को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया. family story in hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Rajasthan News : देवर के साथ मिलकर पति की सुपारी देकर कराई हत्या

Rajasthan News : आवारा सन्नी की नजर अपने ताऊ के एकलौते बेटे कृष्णकुमार की करोड़ों रुपए की संपत्ति पर थी, इसलिए उस ने कृष्णकुमार की पत्नी कुसुमलता को अपने प्यार के जाल में फांस लिया. फिर कुसुमलता को अपने विश्वास में ले कर उस ने ऐसी चाल चली कि…

पहली अप्रैल, 2021 को सुबह के करीब पौने 8 बज रहे थे. राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ थाने के थानाप्रभारी विनोद सांखला को फोन पर सूचना मिली कि जखराना बसस्टैंड के पास एक बाइक और स्कौर्पियो गाड़ी की भिड़ंत हो गई है. सूचना मिलते ही विनोद सांखला पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा थी. पुलिस को देखते ही थोड़ा हट गई. पुलिस ने देखा कि वहां एक व्यक्ति की दबीकुचली लाश सड़क पर पड़ी थी. थोड़ी दूरी पर मृतक की मोटरसाइकिल गिरी पड़ी थी. घटनास्थल पर प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि नीमराना की तरफ से स्कौर्पियो गाड़ी आई थी.

स्कौर्पियो में सवार लोगों ने जानबूझ कर मोटरसाइकिल को टक्कर मारी थी. बाइक सवार स्कौर्पियो की टक्कर से उछल कर दूर जा गिरा. तब स्कौर्पियो यूटर्न ले कर आई और बाइक से गिरे युवक को कुचल कर चली गई. गाड़ी के टायर युवक के सिर पर से गुजरे तो सिर का कचूमर निकल गया. जब स्कौर्पियो सवार निश्चिंत हो गए कि बाइक सवार की मौत हो गई है, तब वे वापस उसी रोड से भाग गए. वहां मौजूद लोगों ने थानाप्रभारी विनोद सांखला को बताया कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है. स्कौर्पियो में सवार अज्ञात लोगों ने बाइक सवार को जानबूझ कर टक्कर मार कर हत्या की है.

थानाप्रभारी ने घटना की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी. खबर पा कर बहरोड़ के सीओ और एसडीएम घटनास्थल पर आ गए. बाइक सवार युवक की पहचान कृष्णकुमार यादव निवासी भुंगारका, महेंद्रगढ़, हरियाणा के रूप में हुई. कृष्णकुमार यादव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय जखराना में अपर डिविजन क्लर्क के पद पर कार्यरत था. कृष्णकुमार के एक्सीडेंट होने की खबर पा कर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि कृष्णकुमार यादव अपने पिताजी की औन ड्यूटी मृत्यु होने पर उन की जगह मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पर लगा था.

कृष्णकुमार अपने मांबाप का इकलौता बेटा था. वह अपने गांव भुंगारका से रोजाना बाइक द्वारा ड्यूटी आताजाता था. सीओ देशराज गुर्जर ने भी घटनास्थल का मुआयना किया और उपस्थित लोगों से जानकारी ली. जानकारी में यही सामने आया कि कृष्णकुमार की साजिशन हत्या की गई है. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज निकाले. फुटेज से पता चला कि प्रत्यक्षदर्शियों ने जो बातें बताई थीं, वह सच थीं. हत्यारे कृष्णकुमार की हत्या को दुर्घटना दिखाना चाह रहे थे. मगर लोगों ने यह सब अपनी आंखों से देखा था.

मृतक के परिजनों को भी हत्या की खबर दे दी गई. खबर मिलते ही मृतक के घर वाले एवं रिश्तेदार घटनास्थल पर आ गए. उन से भी पुलिस ने पूछताछ की और शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह परिजनों को सौंप दिया. मृतक के परिजनों की तरफ से कृष्णकुमार की हत्या का मामला बहरोड़ थाने में दर्ज करा दिया गया. बहरोड़ थानाप्रभारी विनोद सांखला, एसआई सुरेंद्र सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों की टीम ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर स्कौर्पियो गाड़ी के नंबरों के आधार पर जांच शुरू की. पुलिस ने स्कौर्पियो गाड़ी का नंबर दे कर सभी थानों से इस नंबर की गाड़ी की जानकारी देने को कहा.

तभी जयपुर पुलिस ने सूचना दी कि इस नंबर की स्कौर्पियोगाड़ी पावटा जयपुर में खड़ी है. पुलिस टीम ने पावटा जयपुर पहुंच कर वहां से स्कौर्पियो गाड़ी सहित 2 युवकों अशोक और पवन को भी हिरासत में ले लिया. गाड़ी के मालिक अजीत निवासी भुंगारका सहित कुछ और संदिग्ध युवकों को भी पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया. थाने में इन सभी से पूछताछ की. अशोक व पवन मेघवाल एक ही रट लगाए थे कि उन की कृष्णकुमार से कोई दुश्मनी नहीं थी. अचानक वह गाड़ी से टकरा गया था. बाइक के एक्सीडेंट के बाद हड़बड़ाहट में गाड़ी घुमाई तो कृष्णकुमार पर गाड़ी चढ़ गई.

उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात का डर लग रहा था कि लोग उन्हें पकड़ कर मार न डालें, इस डर के कारण वे गाड़ी भगा ले गए. मगर आरोपियों की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. भुंगारका निवासी अजीत ने पुलिस को बताया कि उस ने अपनी स्कौर्पियो गाड़ी 1 लाख 80 हजार में सन्नी यादव को बेच दी. सन्नी ने अशोक के नाम पर यह गाड़ी खरीदी थी. अजीत ने पुलिस को सन्नी का नाम बताया. तब तक पुलिस को लग रहा था कि अजीत का इस मामले से कोई संबंध नहीं है.

अशोक और पवन मेघवाल 4 दिन तक पुलिस को एक ही कहानी बताते रहे कि अचानक बाइक से गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था. पुलिस को भी लगने लगा था कि मामला कहीं दुर्घटना का ही तो नहीं. मगर सीसीटीवी फुटेज में जो एक्सीडेंट का दृश्य था, वह बता रहा था कि कृष्णकुमार की साजिश के तहत हत्या की गई थी. हत्या को उन्होंने साजिश के तहत दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की थी. तब पुलिस अधिकारियों ने अपना पुलिसिया रूप दिखाया. बस फिर क्या था. पुलिस का असली रूप देख कर वे टूट गए और स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जानबूझ कर कृष्णकुमार यादव की हत्या की थी, फिर उन्होंने हत्या की कहानी बता दी.

हरियाणा के नांगल चौधरी इलाके के भुंगारका गांव में कृष्णकुमार यादव अपनी पत्नी कुसुमलता (35 वर्ष) के साथ रहता था. कृष्णकुमार की 4 बहनें हैं, जिन की शादी हो चुकी थी. वे सब अपनी ससुराल में हैं. पिता की औनड्यूटी मृत्यु होने के बाद आश्रित कोटे के तहत कृष्णकुमार की क्लर्क पद पर सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई थी. वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. कृष्णकुमार के पड़ोस में उस के चाचा मुकेश यादव रहते थे. उन का बड़ा बेटा सन्नी 10वीं कक्षा में फेल हो गया तो उस ने स्कूल छोड़ दिया. वह कोई कामधंधा नहीं करता था. कृष्णकुमार के परिवार के ठाठबाट देखता तो उसे जलन होती थी. क्योंकि कृष्णकुमार के पास करोड़ों की संपत्ति थी.

कृष्णकुमार के नाम करीब 50 बीघा जमीन थी. जोधपुर, राजस्थान के फलोदी में 17 बीघा जमीन, बहरोड़ में 2 कामर्शियल प्लौट, भुंगारका गांव में 32 बीघा जमीन व आलीशान मकान था. यह सब कृष्णकुमार के नाम था. सन्नी ने योजना बनाई कि अगर कुसुमलता को वह प्यार के जाल में फंसा क र कृष्णकुमार को रास्ते से हटा दे तो वह कुसुमलता से विवाह कर के करोड़ों की प्रौपर्टी का मालिक बन सकता है. आज से 3 सल पहले सन्नी ने कुसुमलता पर डोरे डालने शुरू किए. कुसुमलता रिश्ते में उस की भाभी लगती थी. सन्नी से कुसुमलता उम्र में 10 साल बड़ी थी. मगर वह जायदाद हड़प कर करोड़पति बनने के चक्कर में अपने से 10 साल बड़ी भाभी के आसपास दुम हिलाने लगा.

कृष्णकुमार ड्यूटी पर चला जाता तो कुसुमलता घर में अकेली रह जाती थी. कृष्णकुमार की गैरमौजूदगी में सन्नी उस की बीवी के पास चला आता था. सन्नी कुसुमलता के चाचा ससुर का बेटा था. वह भाभी से हंसीमजाक करतेकरते उसे बांहों में भर कर बिस्तर तक ले आया. कुसुमलता भी जवान देवर की बांहों में खेलने लगी. वह सन्नी की दीवानी हो गई. सन्नी की मजबूत बांहों में कुसुमलता को जो शारीरिक सुख का चस्का लगा, वह दोनों को पतन के रास्ते पर ले जा रहा था. सन्नी ने कुसुमलता को अपने रंग में ऐसा रंगा कि वह उस के लिए पति के प्राण तक लेने पर आमादा हो गई. आज से करीब डेढ़ साल पहले सन्नी ने कुसुमलता से कहा,

‘‘कुसुम, तुम रात में कृष्णकुमार को बिजली के करंट का झटका दे कर मार डालो. इस के बाद हम दोनों के बीच कोई तीसरा नहीं होगा. पति की जगह तुम्हारी नौकरी भी लग जाएगी. मैं तुम से विवाह कर लूंगा और फिर हम मौज की जिंदगी जिएंगे.’’

‘‘ठीक है सन्नी, मैं पति के रास्ते से हटाने का इंतजाम करती हूं.’’ कुसुमलता ने हंसते हुए कहा.

वह देवर के प्यार में पति की हत्या करने करने का मौका तलाशने लगी. एक दिन कृष्णकुमार रात में गहरी नींद में था. तब कुसुमलता ने उसे बिजली का करंट दिया. करंट का कृष्णकुमार को झटका लगा तो वह जाग गया. तब बीवी ने कूलर में करंट आने का बहाना बना दिया. कृष्णकुमार को करंट का झटका लगा जरूर था, मगर वह मरा नहीं.

यह सुन कर सन्नी बोला, ‘‘कुसुम, जल्द से जल्द कृष्ण का खात्मा करना होगा.’’

‘‘तुम ही यह काम किसी से करा दो. मैं तुम्हारे साथ हूं मेरी जान.’’ कुसुमलता बोली.

कुसुमलता और सन्नी जल्द से जल्द कृष्णकुमार को रास्ते से हटाना चाहते थे. कृष्ण के ड्यूटी जाने के बाद वाट्सऐप कालिंग पर दोनों बातचीत करते थे. सन्नी ने अपने छोटे भाई की शादी कर दी थी. खुद शादी नहीं की थी. उस का मकसद कुसुमलता से शादी करना था. सन्नी भाभी से शादी कर के जल्द से जल्द करोड़पति बनना चाहता था. सन्नी और कुसुमलता के संबंधों की जानकारी किसी ने कृष्णकुमार को दे दी. बीवी और चचेरे भाई के संबंधों की बात सुन कर कृष्णकुमार को बहुत गुस्सा आया. उस ने अपनी बीवी से इस बारे में बात की तो वह त्रियाचरित्र दिखाने लगी. आंसू बहाने लगी. मगर कृष्णकुमार के मन में संदेह पैदा हुआ तो वह उन दोनों पर निगाह रखने लगा.

इस के बाद कुसुमलता ने सन्नी को सचेत कर दिया. दोनों छिप कर मिलने लगे. मगर उन्हें हर समय इसी बात का डर लगा रहता कि कृष्णकुमार को कोई बता न दे. कृष्णकुमार ने सन्नी से भी कह दिया था कि वह उस के घर न आए. यह बात कृष्ण, कुसुम और सन्नी के अलावा कोई नहीं जानता था. किसी को पता नहीं था कि कृष्ण अपनी बीवी और सन्नी पर शक करता है. ऐसे में कुसुमलता और सन्नी ने उसे एक्सीडेंट में मारने की योजना बनाई ताकि उन पर कोई शक भी न करे और राह का कांटा भी निकल जाए. सन्नी ने इस काम में कुछ खर्चा होने की बात कही तो कुसुमलता ने खुद के नाम की 4 लाख रुपए की एफडी मार्च 2021 के दूसरे हफ्ते में तुड़वा दी. 4 लाख रुपए कुसुम ने सन्नी को दे दिए.

सन्नी ने 18 मार्च, 2021 को भुंगारका के अजीत से 1 लाख 80 हजार रुपए में एक स्कौर्पियो गाड़ी एग्रीमेंट के तहत अशोक कुमार के नाम से खरीदी. अशोक को उस ने 2 छोटे मोबाइल व सिम दिए. इन्हीं सिम व मोबाइल के जरिए अशोक की बात सन्नी से होती थी. कृष्णकुमार को मारने के लिए सन्नी ने अशोक को डेढ़ लाख रुपए भी दे दिए. उसी स्कौर्पियो गाड़ी से अशोक ने सन्नी के कहने पर कृष्णकुमार का एक्सीडेंट करने की कई बार कोशिश की मगर वह सफल नहीं हुआ. तब 26 मार्च, 2021 को राहुल अपने दोस्त पवन मेघवाल को भुंगारका के हरीश के होटल पर ले आया. यहां अशोक से पवन की जानपहचान कराई. रात में तीनों शराब पी कर खाना खा कर होटल पर रुके और सुबह चले गए.

30 मार्च, 2021 को अशोक ने पवन से कहा कि मुझे स्कौर्पियो से एक आदमी का एक्सीडेंट करना है. तुम मेरे साथ गाड़ी में रहोगे तो मैं तुम्हें 40 हजार रुपए दूंगा. पवन की अशोक से नई दोस्ती हुई थी और वैसे भी पवन को सिर्फ गाड़ी में बैठे रहने के 40 हजार रुपए मिल रहे थे, इसलिए 40 हजार रुपए के लालच में पवन ने हां कर दी. 31 मार्च, 2021 को अशोक और पवन मेघवाल स्कौर्पियो गाड़ी ले कर जखराना आए लेकिन उस दिन कृष्णकुमार ड्यूटी पर नहीं गया. अशोक रोजाना की बात सन्नी को बता देता था. सन्नी अपनी प्रेमिका भाभी कुसुमलता को सारी बात बता देता था.

पहली अप्रैल 2021 को सुबह साढ़े 7 बजे कृष्णकुमार अपने गांव भुंगारका से ड्यूटी पर जखराना निकला. यह जानकारी कुसुमलता ने अपने देवर प्रेमी सन्नी को दी. सन्नी ने अशोक को यह सूचना दे दी. अशोक कुमार गाड़ी में पवन को ले कर जखराना बसस्टैंड पहुंच गया. जैसे ही कृष्णकुमार मोटरसाइकिल से जखराना बसस्टैंड से स्कूल की ओर जाने लगा, अशोक ने गाड़ी से कृष्णकुमार को सीधी टक्कर मार दी. टक्कर लगते ही कृष्णकुमार दूर जा गिरा. इस के बाद अशोक ने गाड़ी को यूटर्न लिया और कृष्ण के ऊपर एक बार चढ़ा दी, जिस के बाद उस की मौके पर ही मौत हो गई.

इस के बाद सूचना पा कर बहरोड़ पुलिस आई. प्रत्यक्षदर्शियों ने इसे हत्या बताया. तब पुलिस ने जांच कर हत्या के इस राज से परदा हटाया. अशोक कुमार और पवन मेघवाल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड में शामिल रहे सन्नी और उस की प्रेमिका कुसुमलता को भी गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी कृष्णकुमार की हत्या में शामिल होने का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद कुसुमलता, सन्नी यादव, अशोक यादव और पवन मेघवाल को बहरोड़ कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. Rajasthan News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

MP News : प्रेमिका की हत्या कर शव को कुत्ते की लाश संग गड्ढे में दबाया

MP News : डा. आशुतोष त्रिपाठी संपन्न परिवार से था. अपनी अटैंडेंट विभा केवट को शादी का झांसा दे कर उस ने इसलिए संबंध बनाए थे, ताकि वह उस के साथ जब चाहे मौजमस्ती कर सके. लेकिन उसे क्या पता था कि उस का यह कदम उसे …

विभा केवट की उम्र 24 साल थी. सामान्य कदकाठी की विभा देखने में सुंदर होने के साथ पढ़नेलिखने में भी होशियार थी. चूंकि उस के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी इसलिए पिछले 2 सालों से वह फैमिली दंत चिकित्सालय में अटेंडेंट की नौकरी कर रही थी. सतना के धावरी स्थित कलैक्ट्रेट रोड पर यह दंत चिकित्सालय डा. आशुतोष त्रिपाठी का था. विभा का घर मल्लाह मोहल्ले में था. वह हर रोज सुबह 8 बजे घर से क्लीनिक के लिए निकल जाती थी और पेशेंट देखने में डा. आशुतोष की मदद करती थी.

दोपहर में वह लंच करने के लिए घर लौटती. लंच के बाद फिर वापस क्लीनिक में लौट आती थी. रात के 8 बजे डा. आशुतोष त्रिपाठी क्लीनिक बंद कर के कार से पहले विभा को उस के घर के पास छोड़ता फिर अपने घर जाता था. यह विभा की रोज की दिनचर्या थी. नौकरी में अपना अधिकतर समय देने के बाद भी विभा पढ़ाई के लिए समय निकाल लेती थी. उस का सपना एलएलबी कर के वकील बनने का था. वह एक प्राइवेट कालेज से एलएलबी कर रही थी. चूंकि घर की हालत सही न होने के कारण वह अपनी पढ़ाई के खर्चों को पूरा करने में असमर्थ थी. इसलिए पिछले 2 सालों से इस क्लीनिक में नौकरी कर रही थी.

वह अपने काम से खुश थी और जिंदगी सामान्य ढर्रे पर चल रही थी. पिछले साल 14 दिसंबर को वह रोज की तरह घर से ड्यूटी पर गई थी. दोपहर के समय वह घर आई और लंच कर के वापस ड्यूटी पर लौट गई. उस रात नौ बजे तक वह घर नहीं लौटी तो उस के पिता रामनरेश केवट और मां रमरतिया की आंखों में परेशानियों के बादल घुमड़ने लगे. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. उन के मन में तरह तरह के बुरे खयाल आ रहे थे. रात भर इंतजार के बाद सुबह भी विभा घर नहीं लौटी तो क्लीनिक खुलने के समय दोनों डाक्टर से मिलने उस के क्लीनिक जा पहुंचे. डा. आशुतोष क्लीनिक में पेशेंट देख रहे थे. बुरी तरह परेशान रामनरेश केवट ने जब डा.

आशुतोष से बेटी के बारे में पूछा तो उस ने विभा के घर नहीं पहुंचने पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि कल शाम विभा ने उस से पगार के छह हजार रुपए लिए और कुछ जरूरी काम से बाहर जाने की बात कह कर चली गई थी. लगता है, उस ने कहीं दूसरी जगह काम पकड़ लिया है. चिंता न करो वह कुछ दिनों में खुद ही घर लौट आएगी. रामनरेश और रमरतिया वहां से घर लौट आए और बारबार विभा के मोबाइल पर काल कर उस से संपर्क साधने का प्रयास करते रहे. लेकिन बीती रात से ही उस का मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहा था. रामनरेश ने अपने सभी रिश्तेदारों से फोन कर पूछा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

बाद में रामनरेश ने फिर डा. आशुतोष त्रिपाठी से विभा के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि विभा ने उस के यहां से नौकरी छोड़ दी है. वह तुम लोगों से नाराज है और किसी दूसरी जगह पर कमरा ले कर रहने लगी है. उस ने अपना फोन नंबर भी बदल लिया है. विभा ने कहां पर कमरा लिया है इस की जानकारी उसे नहीं है. बेटी के अलग रहने की बात रामनरेश और रमरतिया के गले से नहीं उतरी. फिर भी उन्होंने बेटी की तलाश में शहर का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वह उस का पता लगाने में नाकामयाब रहे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया.

दरअसल, विभा के मातापिता को ऐसा लग रहा था जैसे डाक्टर को विभा के बारे में जानकारी है और वह शायद बाद में विभा के बारे उन्हें बता देगा. विभा की तलाश करतेकरते डेढ़ महीने गुजर जाने के बाद भी जब उस का पता नहीं चला तो रमरतिया ने एक फरवरी, 2021 को धवारी की सिटी कोतवाली में बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी और पुलिस अधिकारियों से उसे तलाश करने की गुहार लगाई. सिटी कोतवाली इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने 24 वर्षीय युवती विभा केवट के गायब होने के मामले को गंभीरता से लिया. वह इस की जांच में जुट गईं.

इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने विभा के मातापिता से उस के गायब होने के बारे में विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि 14 दिसंबर की सुबह विभा डा. आशुतोष के क्लीनिक में ड्यूटी पर गई थी. जहां डाक्टर के अनुसार उस ने शाम तक ड्यूटी की. इस के बाद वह डाक्टर से 6 हजार रुपए लेने के बाद कहीं दूसरी जगह रहने चली गई. उस ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने डा. आशुतोष त्रिपाठी को कोतवाली बुला कर उस से विभा केवट के बारे में पूछताछ की. थोड़ी पूछताछ के बाद डा. आशुतोष को घर जाने की इजाजत मिल गई.

लेकिन डाक्टर के बारबार बदले बयानों को ले कर इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी को उस पर संदेह हो गया था. उन्होंने डा. आशुतोष त्रिपाठी और विभा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर देखी तो पता चला कि विभा ने आखिरी बार 14 दिसंबर को डा. आशुतोष त्रिपाठी से 750 सेकंड बातें की थीं. इस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था, जो फिर औन नहीं हुआ था. इस का मतलब था कि विभा के गायब होने का राज डा. आशुतोष को मालूम था. इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने डा. आशुतोष त्रिपाठी को दोबारा थाने बुला कर मनोवैज्ञानिक तरीके से कुरेदना शुरू किया तो वह ज्यादा देर तक नहीं टिक सका.

उस ने विभा के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन कर अर्चना द्विवेदी आश्चर्यचकित रह गईं. उस ने बताया कि दरअसल विभा का कत्ल हो चुका है और उस की लाश एक गड्ढे में दबा दी गई थी. कत्ल की बात पता चलते ही इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी ने डा. आशुतोष को गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना सतना के एसपी (सिटी) विजय प्रताप सिंह को दी. 20 फरवरी, 2021 शनिवार को एसपी (सिटी) विजय प्रताप सिंह, तहसीलदार अनुराधा सिंह, नायब तहसीलदार हिमांशु भलवी, यातायात थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह राजपूत और इंसपेक्टर अर्चना द्विवेदी आरोपी डा. आशुतोष के साथ घटनास्थल पर पहुंचे जहां पर विभा की लाश एक गड्ढे में दबी थी.

मिल गई विभा की लाश डा. आशुतोष की निशानदेही पर नगर निगम के श्रमिकों की मदद से गड्ढे की खुदाई की गई तो कुछ देर खुदाई के बाद उस में से एक कुत्ते की लाश निकली. कुत्ते की लाश को बाहर निकालने के बाद थोड़ी और खुदाई की गई तो वहां एक युवती की लाश दिखाई पड़ी. लाश को बाहर निकाला गया. लाश के गले में एक दुपटटा तथा कमर के नीचे लोअर मौजूद था. रामनरेश केवट और उस की पत्नी रमरतिया को लाश दिखाई गई तो दोनों ने कपड़ों के आधार पर उस की पहचान अपनी बेटी विभा केवट के रूप में की. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. डा. आशुतोष के बयान और पुलिस की तहकीकात के आधार पर विभा केवट हत्याकांड के पीछे एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई—

सतना के धावरी इलाके में चांदमारी रोड, मंगल भवन के पीछे अंग्रेजी के शिक्षक नरेंद्र त्रिपाठी अपने परिवार के साथ रहते थे. वह राजकीय कन्या विद्यालय, धावरी में नौकरी करते हैं. उन के 2 बेटे हैं. बड़ा बेटा अभिषेक त्रिपाठी छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर स्थित एक रियल एस्टेट फर्म में बतौर फाइनेंस मैनेजर कार्यरत है. दूसरा बेटा आशुतोष डेंटिस्ट है. 2 साल पहले आशुतोष को अपने क्लीनिक के लिए एक अटेंडेंट की जरूरत थी. मल्लाह मोहल्ले में रहने वाले रामनरेश केवट की दूसरी बेटी विभा को जब इस नौकरी बारे में पता चला तो उस ने डा. आशुतोष से मिल कर उस के यहां काम करने की इच्छा जाहिर की.

डा. आशुतोष ने विभा को क्लीनिक से संबंधित जरूरी कामकाज के बारे में समझाते हुए जब सैलरी के बारे में उसे बताया तो उस ने वहां काम करने के लिए हामी भर दी. यह बात सन 2018 की थी. डा. आशुतोष ने विभा को क्लीनिक से संबंधित सभी बातों को समझने के बाद यह भी समझा दिया कि वहां आने वाले पेशेंट से किस प्रकार व्यवहार करना है. फिर उसे अपना मोबाइल नंबर देते हुए कहा कि अगर उस की अनुपस्थिति में उसे कोई भी मुश्किल आए तो मुझे कभी भी काल कर सकती हो. उसी समय विभा और डा. आशुतोष ने अपनेअपने मोबाइल में एक दूसरे के नंबर सेव कर लिए. विभा तेजतर्रार युवती थी. थोड़े ही दिनों में वह सारा काम सीख गई. उस की कुशलता देख कर डा. आशुतोष भी खुश हुआ.

विभा यहां काम पा कर पूरी तरह संतुष्ट थी. क्योंकि उस के प्रति डाक्टर का व्यवहार ठीक था. वह वेतन भी टाइम से दे देता था. इस तरह धीरेधीरे समय का पहिया घूमता रहा. सालभर गुजर जाने के बाद डाक्टर आशुतोष और विभा आपस में काफी घुलमिल गए थे. पेशेंट की मौजूदगी में वे दोनों एक दूसरे से सिर्फ काम की ही बातें करते थे. लेकिन जब वहां कोई नहीं होता तो वे हंसीमजाक से ले कर दुनियाजहान की बातें करते थे. बातों बातों में वक्त आसानी से कट जाता था. इसी दौरान डाक्टर आशुतोष ने मन ही मन विभा को पाने की योजना तैयार की और उस पर अमल करना आरंभ कर दिया.

अपनी योजना के तहत शाम को जब वह क्लीनिक बंद करता तो घर जाने से पहले विभा को उस के घर छोड़ने जाने लगा. विभा डा. आशुतोष के इस बदले हुए व्यवहार के पीछे की चाल को नहीं भांप सकी. उस ने सोचा कि डा. आशुतोष खुश हो कर उस की मदद कर रहे हैं. कभीकभार वह विभा को घर छोड़ने से पहले किसी होटल या रेस्टोरेंट में ले जाता जहां खाने के दौरान वह विभा का दिल जीतने की कोशिश करता था. विभा एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी. जल्द ही वह उस की बातों में आ गई. डा. आशुतोष ने जब ताड़ लिया कि विभा उस की इच्छा का विरोध नहीं करेगी तो एक दिन उस ने विभा को शादी करने का झांसा दे कर उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिया.

उस दिन के बाद विभा के प्रति डा. आशुतोष का व्यवहार एकदम बदल गया. विभा को खुश रखने के लिए वह उसे महंगे तोहफे आदि देता रहता था. ताकि उस की जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने में विभा आनाकानी न करे. अलबत्ता एक दिन विभा ने अपनी बड़ी बहन को आशुतोष से अपने अफेयर की बात बता दी और यह भी कहा कि कुछ दिनों के बाद डाक्टर उस से शादी कर लेगा. इस पर उस की बहन ने उसे समझाते हुए कहा भी कि अमीर लोग गरीब घर की लड़की से शादी करने की बात अपना मतलब निकालने के लिए करते हैं. कहीं तुम आगे चलकर ठगी न जाओ, इसलिए जितनी जल्दी हो सके शादी कर लो.

बहन की बात सुन कर विभा ने उसे जवाब दिया कि उस का प्यार इतना कच्चा नहीं है कि डाक्टर उस से शादी का बहाना कर असानी से अपना मुंह फेर ले. उस वक्त कहने के लिए तो विभा ने बड़़े ही आत्मविश्वाश के साथ अपनी बड़ी बहन को जवाब दे दिया. लेकिन उसी दिन उस ने मन में ठान लिया कि वह डाक्टर से जल्द शादी करने को कहेगी. विभा बन गई गले की हड्डी इस के बाद जब भी आशुतोष विभा को शारीरिक संबंध बनाने के लिए राजी करने की कोशिश करता तो वह उस से पहले शादी करने की बात करती. इतना ही नहीं, जब भी दोनों क्लीनिक में अकेले होते वह उस से शादी करने का दबाव डालना शुरू कर देती थी. आशुतोष एक बड़े परिवार से ताल्लुक रखता था. समाज में उस की अपनी अच्छीखासी हैसियत थी.

उस ने तो केवल विभा के साथ मौजमस्ती करने के लिए उस से शादी की बात कही थी. वास्तव में उस ने दिल से कभी विभा से शादी के बारे में सोचा तक नहीं था. इसलिए जब विभा ने उस पर शादी का अधिक दबाव बनाना शुरू किया तो 14 दिसंबर, 2020 को आशुतोष ने बात बढ़ जाने पर विभा की गला घोंट कर हत्या कर दी. उस समय क्लीनिक में उन दोनों के सिवा कोई नहीं था. विभा की हत्या करने के बाद आशुतोष ने उस की लाश एक बोरी में डाल कर क्लीनिक के अंदर ही एक कोने में रख दी. अगले दिन वह क्लीनिक में पेशेंट का इलाज करते हुए मन ही मन विभा की लाश को ठिकाने लगाने की तरकीब सोचता रहा.

दोपहर के बाद उस ने कुछ मजदूरों को बुलाया और क्लीनिक के पीछे बारिश का गंदा पानी जमा करने की बात कह कर एक 6 फुट गहरा गड्ढा खुदवाया. रात को उस ने विभा की लाश गड्ढे में डाल कर उस के उपर नमक डाला फिर उस पर थोड़ी मिट्टी डाल दी. इस के बाद कहीं से उस ने एक कुत्ते की लाश का इंतजाम किया. कुत्ते की लाश को उसी गड्ढे में डालने के बाद उस ने उस के उपर अच्छी तरह मिट्टी भर दी. कुत्ते की लाश गड्ढे में इसलिए डाली गई कि ताकि विभा की लाश की बदबू आसपास फैलने पर अगर लोग बदबू उठने का कारण पूछे तो वह सब को बता सके कि वहां कुत्ते की लाश दबाई गई है.

इस तरह विभा की लाश इस गड्ढे में दबी होने की बात उजागर नहीं होगी. लेकिन पुलिस को विभा की अंतिम काल और उस के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर आशुतोष के ऊपर शक हो गया. जब उस से थोड़ी सख्ती बरती गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. विभा की लाश का डीएनए टेस्ट कराने के लिए सैंपल भी सुरक्षित रख लिया गया ताकि तय हो सके कि लाश विभा की ही थी. विभा की लाश की बरामदगी के बाद इस मामले में हत्या और साजिश की धारा 302, 201, जोड़ दी गई. पुलिस ने आशुतोष त्रिपाठी से पूछताछ करने के बाद उसे गिरफ्तार कर सतना की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. MP News

UP Crime News : युवक के इश्क में बड़ी बहन ने छोटी बहन का गला घोंटा फिर शव तालाब में फेंका

UP Crime News  : 21 वर्षीय सुनीता 2 बच्चों के पिता पवन तोमर से दिल लगा बैठी. वह उसे तलाक दिला कर शादी का दबाव बना रही थी. इस में वह नाकाम रही तो उस ने चस्पा कर दिया अपहरण का खूनी नोटिस…

फिरोजाबाद जिले के थाना शिकोहाबाद का एक गांव है नगला सैंदलाल. इसी गांव में राजमिस्त्री रामभरोसे अपने परिवार के साथ रहता था. रामभरोसे की पहली शादी बिरमा देवी के साथ हुई थी. उस से 2 बेटियां सुनीता, गीता के अलावा एक बेटा विक्रम है. बिरमा देवी की बीमारी से मौत हो जाने के बाद रामभरोसे ने अपनी तीसरे नंबर की साली सोमवती से शादी कर ली. इस से एक बेटा करन व 3 बेटियां विनीता, खुशी और हिमांशी पैदा हुईं. बात 9 मार्च, 2021 की है. सुबह करीब 7 बजे रामभरोसे की सब से छोटी बेटी 6 वर्षीय हिमांशी खेत पर जाते समय रास्ते से अचानक गायब हो गई.

हुआ यह कि रामभरोसे की 21 वर्षीय बड़ी बेटी सुनीता छोटी बहन हिमांशी के साथ घर से खेत के लिए निकली थी. रास्ते में हिमांशी पीछे रह गई और सुनीता खेत पर पहुंच गई. सुनीता हिमांशी के आने का इंतजार करती रही. जब करीब आधा घंटा बीत गया और हिमांशी नहीं आई तो सुनीता को चिंता हुई. उस ने लौट कर मां को बताया कि हिमांशी उस के साथ खेत पर जाने के लिए निकली थी, लेकिन वह रास्ते से कहीं गायब हो गई. इस पर मां ने सोचा कि रास्ते में कहीं खेलती रह गई होगी, आ जाएगी. लेकिन जब लगभग 2 घंटे बाद भी हिमांशी घर नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. पड़ोसियों के साथ ही घर वाले हिमांशी की खोजबीन में जुट गए.

लेकिन हिमांशी का कोई पता नहीं चला. इसी बीच गांव वालों की नजर रामभरोसे के घर के दरवाजे पर चिपके एक पत्र पर गई. पत्र में सब से ऊपर पवन तोमर का नाम लिखा था. पत्र में लिखा था कि यदि सुनीता की शादी पवन से नहीं कराई तो बच्ची को मार दूंगा. हिमांशी के अपहरण की बात पता चलते ही पिता रामभरोसे गांव के कुछ लोगों के साथ थाना शिकोहाबाद पहुंच गया और पुलिस को बेटी के अपहरण होने की पूरी जानकारी दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर अपनी टीम के साथ गांव पहुंच गए. उन्होंने सुनीता से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. अपने स्तर से पुलिस ने गांव में व आसपास के क्षेत्र में हिमांशी की तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

दिनदहाड़े गांव से लड़की के लापता होने से घर वालों के साथ ही गांव वालों की चिंता और आक्रोश बढ़ता जा रहा था. इस पर थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को घटना की जानकारी दी. जानकारी होते ही एसएसपी अजय कुमार पांडेय एसपी (ग्रामीण) अखिलेश नारायण सिंह, सीओ बलदेव सिंह खनेडा, एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह सहित कई थानों की फोर्स व डौग स्क्वायड की टीम के साथ गांव पहुंच गए. अधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल की. खोजी कुत्ते को हिमांशी के पुराने कपड़े सुंघाए गए. इस के बाद उसे छोड़ा गया तो वह घर के पीछे ईंट भट्ठा तक पहुंचा. पुलिस आसपास सुराग खोजती रही, लेकिन बालिका हिमांशी का पता नहीं चला.

पुलिस जांच में सामने आया कि गांव के ही पवन और सुनीता के बीच प्रेमसंबंध थे. रामभरोसे के दरवाजे पर चिपके पत्र में भी लिखा था कि पवन का तलाक करवा कर सुनीता से शादी करवा दो. इस से साफ हो गया कि कहीं न कहीं सुनीता का इस मामले में हाथ हो सकता है. सुनीता या तो हिमांशी के अपहरण में खुद शामिल है या फिर उस ने किसी से यह काम करवाया है. जांच के दौरान कुछ नाम और भी सामने आए. सुनीता से इस संबंध में पूछताछ की गई तो वह पूरे घटनाक्रम से अनभिज्ञता व्यक्त करती रही. वह एक ही बात की रट लगाए जा रही थी कि खेत पर जाते समय हिमांशी पीछे रह गई थी और वह रास्ते से ही गायब हो गई थी.

शादीशुदा पवन से पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन उस ने हिमांशी के संबंध में कुछ भी जानकारी होने से इनकार कर दिया. एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने दीवार पर चस्पा किए गए पत्र की लिखावट को पढ़ा. पवन की हैंडराइटिंग का मिलान कराया गया, लेकिन उस की हैंडराइटिंग अलग थी. इस के बाद सुनीता से पूछताछ की गई.  पत्र की बारीकी से जांच के बाद शक की सुई सुनीता पर टिक गई. तब पुलिस सुनीता और पवन को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. इस बीच एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह के नेतृत्व में उन की टीम गांव में जा कर जांच में जुटी रही.  थाने ला कर पुलिस ने पवन व सुनीता से कड़ाई से पूछताछ की.

पूछताछ पूरी करने के बाद शाम 3 बजे दोनों को ले कर पुलिस अधिकारी गांव पहुंचे. सुनीता को गांव के तालाब पर ले जाया गया. जानकारी मिलते ही बड़ी संख्या में गांव वाले भी तालाब पर पहुंच गए. सुनीता की निशानदेही पर तालाब के एक किनारे से हिमांशी का शव बरामद कर लिया गया. हिमांशी की तलाश के लिए पुलिस की तत्परता देख मां सोमवती को अपनी बेटी के मिलने का भरोसा था, लेकिन उसे यह उम्मीद नहीं थी कि वह मृत अवस्था में मिलेगी. हिमांशी का शव मिलने की जानकारी होते ही वह बुरी तरह फूट पड़ी. अन्य भाईबहन भी तालाब के किनारे पहुंच कर रोनेबिलखने लगे. अपनी लाडली बेटी की हत्या से गमगीन पिता रामभरोसे को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बड़ी बहन घटिया सोच के चलते अपनी छोटी बहन की हत्या कर देगी.

पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. सुनीता पुलिस से यही कहती रही कि पैर फिसलने से हिमांशी तालाब में गिर गई और डूब गई थी. सुनीता का अब भी यह कहना था कि यह बात उस ने डर की वजह से घर वालों को नहीं बताई थी. पुलिस ने उसी दिन शाम को शव का पोस्टमार्टम करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने  दूसरे दिन 10 मार्च, 2021 को हिमांशी हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. शादीशुदा युवक के इश्क में पागल सुनीता ने ही अपनी छोटी बहन हिमांशी का गला घोंट कर हत्या करने के बाद शव को तालाब में फेंक दिया था.

हत्यारोपी सुनीता ने ही घर वालों, पुलिस और गांव वालों को गुमराह करने के लिए दरवाजे के बाहर अपहरण का पत्र चिपकाया था. पुलिस ने पिता द्वारा दर्ज कराए गए अपहरण के मुकदमे को हत्या में तरमीम कर दिया. सुनीता कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. एसओजी टीम ने उस के बैग की कौपियां देखीं तो एक कौपी का पन्ना फटा था, जिस का मिलान पत्र से हो गया. असल में सुनीता ने पत्र लिखने के लिए जो कागज इस्तेमाल किया था, वह उस ने अपनी ही कौपी से फाड़ा था. उसे चिपकाने की लेई भी उस ने खुद बनाई थी. लेई की कटोरी भी घर के अंदर से बरामद कर ली गई.

इस सनसनीखेज कांड का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की. सुनीता से पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि उस ने अपने ही हाथों अपनी मासूम बहन की हत्या कर के अपने प्रेमी पवन को फंसाने की एक गहरी साजिश रची थी. इस केस की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

अपनी मां की मौत के बाद पिता ने उस की मौसी सोमवती से शादी कर ली. सौतेली मां सोमवती के व्यवहार से सुनीता परेशान रहती थी. कुछ समय पहले एक प्लौट पिता ने खरीदा था. उस प्लौट को भी सोमवती ने अपने नाम करा लिया था. सारे दिन सुनीता घर के काम में ही लगी रहती थी. इसलिए उस ने कंप्यूटर सीख कर नौकरी करने का निर्णय लिया. सोमवती इस बात से खुश नहीं थी. वह चाहती थी सुनीता उस के साथ घरगृहस्थी के काम में हाथ बंटाए. सुनीता ने गांव के पवन तोमर जो शिकोहाबाद में मैनपुरी चौराहा पर एक जनसेवा केंद्र चलाता था, के सेंटर पर कंप्यूटर ट्रेनिंग लेने का निर्णय लिया.

वह उस के सेंटर पर जाने लगी. कंप्यूटर ट्रेनिंग के दौरान पवन और सुनीता का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. धीरेधीरे पवन और सुनीता के प्रेमसंबंध हो गए. पवन शादीशुदा था और उस की पत्नी व 2 बेटियां हैं. पवन भी सुनीता को बहुत प्यार करता था. अगर किसी दिन सुनीता सेंटर पर नहीं आती तो वह बेचैन हो जाता था. वे मिलने में पूरी सावधानी बरतते थे. दोनों कंप्यूटर सेंटर पर ही एकदूसरे से मिलते थे. और गांव में तो वे एकदूसरे से बात तक नहीं करते थे. कंप्यूटर सेंटर गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए दोनों के प्रेम संबंधों के बारे में गांव में किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई थी.

सुनीता ने एक दिन पवन से कहा, ‘‘पवन, ऐसा कब तक चलेगा. हम दोनों एकदूसरे को प्यार करते हैं. आखिर हम छिपछिप कर कब तक मिलते रहेंगे? तुम मुझ से शादी कर लो.’’

‘‘सुनीता तुम तो जानती हो कि मेरी पत्नी और 2 बेटियां हैं, ऐसे में मैं तुम से कैसे शादी कर सकता हूं.’’ पवन ने कहा.

सुनीता समझ गई कि पवन के शादीशुदा होने से शादी में पेंच फंस रहा था. वह कुछ क्षण सोचने के बाद बोली, ‘‘पवन, इस का एक उपाय यह है कि तुम अपनी पत्नी को तलाक दे दो और मुझ से शादी कर लो. क्योंकि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती.’’

पवन ने सुनीता को समझाया कि वह उस से प्यार तो करता रहेगा लेकिन शादी नहीं कर सकता. जब सुनीता के लाख समझाने का भी पवन पर कोई असर नहीं हुआ तो उस ने पवन पर दवाब बनाने के लिए एक खौफनाक षडयंत्र रचा. सुबह खेत पर जाते समय सुनीता छोटी बहन हिमांशी को भी साथ ले गई. तालाब के किनारे पेड़ों और झाडि़यों की आड़ में ले जा कर उस ने अपने हाथों से सौतेली बहन हिमांशी की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद उस के शव को तालाब में फेंक दिया. इस के बाद वह घर आ कर हिमांशी के लापता होने का नाटक करने लगी. इसी बीच उस ने पहले से लिखे पत्र को घर के दरवाजे पर लेई से चिपका दिया.

गांव के एक कोने पर घर होने से सुनीता की कारगुजारी को कोई देख नहीं पाया था. 10 मार्च, 2021 को पुलिस ने सुनीता को सौतेली बहन की हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया.  अपराध करने वाला कितना भी शातिर हो, वह अपराध के बाद निशान छोड़ ही जाता है. फिर सुनीता तो अभी 21 साल की ही थी. गेम प्लान सुनीता ने रचा था, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित