UP Crime News: ईंट से लगातार प्रहार कर ली पत्नी की जान

UP Crime News: घरपरिवार और समाज की बंदिशें तोड़ कर बबलू ने शादीशुदा रूबी से प्रेमविवाह किया था. 2 बच्चों के मांबाप दोनों के बीच ऐसी कौन सी वजह पैदा हो गई कि बबलू को पत्नी का हत्यारा बनना पड़ा…

थाना बर्रा के रहने वाले विशाल रफूगर ने सीटीआई नहर के करीब से बहने वाले नाले में बोरे में भरी एक युवती की लाश देखी, जिस का सिर बाहर निकल गया था. उस का क्षतविक्षत चेहरा साफ दिखाई दे रहा था, जिसे चीलकौए नोचनोच कर खा रहे थे. विशाल ने शोर मचाया तो देखतेदेखते वहां भीड़ एकत्र हो गई. किसी राहगीर ने सीटीआई के पास वाले नाले में एक महिला की लाश पड़ी होने की सूचना 100 नंबर पर दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना गोविंदनगर को दी गई. थाना गोविंदनगर की पुलिस आई जरूर लेकिन शव थाना बर्रा क्षेत्र में पड़े होने की बात कह कर लौट गई. नतीजतन 2 घंटे तक लाश नाले में पड़ी रही.

मामला पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी में आया तो एसपी (पूर्वी) हरीशचंदर, सीओ (गोविंदनगर) ओमप्रकाश सिंह थाना बर्रा पुलिस के साथ मौके पर पहुंचे. पुलिस ने साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरेंसिक टीम को भी फोन कर के मौके पर बुला लिया था. पुलिस ने लाश वाले बोरे को नाले से बाहर निकाला. बोरे से लाश निकलवा कर निरीक्षण शुरू हुआ. मृतका की उम्र 30-35 साल रही होगी. वह नीले रंग की सलवार, हरे रंग की लैगिग, लाल कुरता, गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. उस के पैर की अंगुलियों में बिछिया थीं. दाएं हाथ पर बबलू और ॐ गुदा हुआ था. कपड़ों और रूपरंग से लग रहा था कि मृतका किसी अच्छे परिवार से रही होगी.

शव देख कर ही लग रहा था कि किसी धारदार हथियार से उस की गरदन काटी गई थी. पहचान छिपाने के लिए मृतका का चेहरा बुरी तरह कुचला गया था. यही नहीं, उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया था. हत्यारों ने मृतका के स्तन और अन्य कोमल अंगों पर भी गंभीर चोटें पहुंचाई थीं. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि महिला की हत्या घृणा एवं क्रोध में की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने के बाद थाना बर्रा के प्रभारी रामबाबू सिंह उसे अज्ञात महिला के शव की शिनाख्त कराने में जुट गए. आननफानन में शहर के सभी थानों से गुमशुदा महिलाओं की दर्ज सूचनाएं एकत्र कराई गईं. लेकिन शहर के थानों में दर्ज अज्ञात महिलाओं की गुमशुदगी की जानकारियों से मृतका का कोई सुराग नहीं मिल सका.  6 फरवरी को अचानक किसी ने पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि 3 फरवरी, 2015 को सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश कानपुर के सीसामऊ के रहने वाले बबलू की पत्नी रूबी की है. उस की हत्या में उस के पति बबलू की मुख्य भूमिका है. इसीलिए उस ने थाने में अपनी पत्नी रूबी की गुमशुदगी दर्ज नहीं करवाई.

इस सूचना की पुष्टि करने के लिए थानाप्रभारी रामबाबू सिंह पुलिस टीम के साथ सीसामऊ स्थित बबलू के घर जा पहुंचे. लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. मामले की तह तक पहुंचने के लिए उन्होंने बबलू के पड़ोसियों से पूछताछ की. मोहल्ले वालों ने बताया कि जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू किसी बैंक में चपरासी है. उस की पत्नी रूबी का चालचलन ठीक नहीं था. बबलू की गैरमौजूदगी में उस के घर कई लोग आतेजाते थे. एक बार बबलू ने रूबी को एक युवक के साथ घर में रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था. जिस के बाद मारपीट हुई थी और मामला थाने तक जा पहुंचा था. लेकिन रूबी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी. बबलू से उसे बच्चे थे, जिन के मोह की वजह से वह रूबी को छोड़ना नहीं चाहता था और उसे समझाबुझा कर लाइन पर लाना चाहता था.

लेकिन रूबी पर बबलू की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था. वह बबलू के पीछे खुल कर रंगरलियां मनाती थी, जिस से वह काफी परेशान था. अचानक 31 जनवरी की रात को पता नहीं क्या हुआ कि रूबी और उस के बच्चे गायब हो गए. बबलू भी अपने घर पर ताला डाल कर कहीं चला गया. अब उस ने सिर मुड़वा लिया है और कभीकभी चोरीछिपे अपने घर आता है. मोहल्ले वालों से पूछताछ में यह बात भी सामने आई थी कि रूबी के हाथ पर बबलू का नाम और ‘ॐ’ गुदा हुआ था. इस से यह बात साफ हो गई कि सीटीआई नहर के पास नाले में मिली लाश रूबी की ही थी. मोहल्ले वालों से मिली जानकारी से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि रूबी की हत्या उस के पति बबलू ने ही करवाई है.

मोहल्ले वालों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस लाश की शिनाख्त करवाने के लिए वनखंडेश्वर मंदिर, पीरोड पहुंची. वहां से पुलिस मंदिर के पुरोहित गणेशशंकर जोशी को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आई. थाने ला कर गणेशशंकर जोशी को मृतका की लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए. सारी चीजें देखने के बाद बबलू के पिता गणेशशंकर ने पुलिस को बताया कि लाश उस की बहू रूबी की ही है. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने गणेशशंकर जोशी से रूबी की हत्या की सच्चाई जानने का प्रयास किया.

जोशी ने बताया कि उस के 2 बेटे हैं, बबलू और धर्मेंद्र. बबलू बैंक औफ बड़ौदा, पनकी में चपरासी था. उस के 2 बच्चे थे 11 वर्षीय बेटा शिवा और 9 साल की बेटी प्रियंका. वह स्वयं वनखंडेश्वर मंदिर, थाना बजरिया से पुरोहितगीरी करते थे और वहीं एक कमरे में रहते थे. करीब 12 वर्ष पहले जितेंद्र उर्फ बबलू ने रूबी से प्रेमविवाह किया था. इसलिए उस ने उस के साथ अपने संबंध तोड़ लिए थे. बबलू अपनी पत्नी रूबी को ले कर 104/313 बड़ा चौराहा, सीसामऊ में रहता था. उस का घर आनाजाना बहुत कम था. 31 जनवरी को बबलू रात 10 बजे के लगभग अपने दोनों बच्चों को ले कर उस के पास आया था और यह कह कर उन्हें रखने को कहा था कि उस के ऊपर एक बड़ी मुसीबत आ पड़ी है.

उस ने बताया कि रूबी बैंक से रुपए निकाल कर घरगृहस्थी का सामान खरीदने के लिए शाम 4 बजे सीसामऊ बाजार के लिए निकली थी. लेकिन इतनी रात होने पर भी वह वापस नहीं आई थी.  उस ने पूरे कानपुर में छानबीन कर डाली, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. शायद वह चेन्नई चली गई हो. वह अपने छोटे भाई धर्मेंद्र को ले कर उसे ढूंढने चेन्नई गया है. इस के अलावा रूबी की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

गणेशशंकर से पुलिस को जो भी जानकारी मिली, उस से पुलिस को पक्का विश्वास हो गया कि बबलू रूबी की हत्या के बारे में अच्छी तरह जानता है. यह भी संभव था कि वह खुद भी हत्या में शामिल हो या फिर उस ने हत्या अन्य लोगों से करवाई हो? इसी कारण बबलू पुलिस के सामने आने में डर रहा है. पुलिस मृतका के पति जितेंद्र उर्फ बबलू की तलाश में जगहजगह दबिश देने लगी. पुलिस ने हत्या का खुलासा जल्द से जल्द करने के लिए बबलू के मिलने के संभावित स्थानों पर छापे डाले, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आया. मजबूर हो कर पुलिस ने बजरिया थाना क्षेत्र में अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया.

9 फरवरी, 2015 की सुबह पुलिस को सूचना मिली कि रूबी का पति बबलू शास्त्री चौक के पास किसी के इंतजार में खड़ा है. सूचना मिलते ही थान बर्रा पुलिस ने बबलू को घेर कर पकड़ लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से पूछताछ शुरू हुई तो वह काफी देर तक पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, वह इस तरह था.

जितेंद्र उर्फ बबलू 104/312 बड़ा चौराहा, सीसामऊ, थाना बजरिया, कानपुर में रहता था. वह बैंक औफ बड़ौदा में चपरासी था. करीब 12 साल पहले चंद मुलाकातों में ही उसे विजयनगर, कानपुर निवासी छोटे की पत्नी रूबी से प्यार हो गया था. धीरेधीरे जितेंद्र उर्फ बबलू और रूबी का प्यार ऐसे मुकाम पर पहुंच गया कि दोनों को एकदूसरे की दूरी खलने लगी. फलस्वरूप बबलू और रूबी ने घरपरिवार और सामाजिक मानमर्यादाओं को ताक पर रख कर घर से भाग कर प्रेमविवाह कर लिया. कुछ महीने लुकछिप कर रहने के बाद दोनों सीसामऊ मोहल्ले में खुल कर पतिपत्नी बन कर रहने लगे. कालांतर में दोनों के शिवा और प्रियंका 2 बच्चे हुए.

कुछ सालों तक रूबी ईमानदारी से जीवन जीती रही. उस के बाद उस के कदम बहकने लगे. उस ने पति की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर मोहल्ले के कुछ युवकों से अवैध संबंध बना लिए और घर में रंगरलियां मनाने लगी. इस से मोहल्ले में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब पत्नी की चरित्रहीनता और नएनए लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाने की खबर बबलू को हुई तो सच्चाई जानने के लिए एक दिन वह अपनी बैंक ड्यूटी छोड़ कर घर आ गया. घर में उस ने रूबी को मोहल्ले के एक युवक के साथ रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस दिन उस ने रूबी को जम कर मारापीटा और भविष्य में ऐसी कोई हरकत न करने की सख्त हिदायत दी, लेकिन इस से रूबी के चालचलन में कोई बदलाव नहीं आया. यह देख कर बबलू को रूबी से नफरत हो गई. बच्चों का भविष्य बरबाद न हो, यह सोच कर बबलू रूबी को हर तरह से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने का प्रयास किया कि वह ईमानदारी भरा जीवन गुजारे, लेकिन रूबी पर इस का कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन घरपरिवार और रिश्तेदारों के बीच बबलू की बदनामी होने लगी. दूसरी ओर रूबी स्वयं पर अंकुश लगाने को ले कर सख्त होने लगी और पति को मुंह पर जवाब देने लगी, जिस के चलते बबलू और रूबी में 2 बार जम कर मारपीट हुई.

रूबी ने इस की शिकायत थाने में की. लेकिन पुलिस ने इसे पतिपत्नी का मामला मान कर दोनों को समझाबुझा कर लौटा दिया. तीसरी बार बबलू ने बाहरी लड़कों को घर में बैठाने को ले कर रूबी को जम कर पीटा. इस बार भी पुलिस ने रूबी का पक्ष लिया और सही न्याय करने के बजाय दोनों का समझौता करा दिया. इस समझौते में तय हुआ कि रूबी अपने बच्चों के साथ अलग रहेगी और बबलू उसे 4 हजार रुपए महीने खर्च देगा. इस के बाद रूबी बबलू से 4 हजार रुपए प्रति माह लेती रही. इस के बाद रूबी ने बबलू को अपने पास रहने के लिए मजबूर कर दिया. इस तरह रूबी हर महीने बंधीबंधाई रकम ले कर पत्नी की तरह बबलू के साथ रहती भी रही और उसे पुलिस का डर दिखा कर पूरी तरह अपने कब्जे में किए रही. जरा भी कोई बात होती तो वह उसे जेल भिजवाने की धमकी दे देती.

इस सब के चलते बबलू गहरे तनाव में रहने लगा. इस स्थिति का फायदा उठा कर रूबी खुल कर मनमानी करने लगी. इतना ही नहीं, अब वह अपने चाहने वालों से पति के सामने ही मिलनेजुलने लगी. बबलू से जब पत्नी की हरकतें सही नहीं गईं तो उस ने रूबी को अपनी जिंदगी से हटाने का इरादा बना लिया. जितेंद्र शुक्ला उर्फ बबलू ने गोविंदनगर निवासी अपने खास दोस्त राधेश तिवारी से अपनी पत्नी रूबी की अय्याशी के बारे में पूरी बात बता कर कहा कि अब उस से रूबी की हरकतें बरदाश्त नहीं होतीं. घर में मेरी स्थित एक भड़ुए जैसी हो गई है. उस के कारनामे मुझ से देखे नहीं जा रहे हैं. मैं उस से अपना पिंड छुड़ाना चाहता हूं. वह उसे बातबात में जेल भिजवाने की धमकी देती है, अब वह उस की हत्या कर के ही जेल जाना चाहता है. बबलू की बात सुन कर राधेश तिवारी उस की मदद के लिए तैयार हो गया.

राधेश तिवारी समाचार पत्र विके्रता था. उस की काफी दूरदूर तक अच्छी जानपहचान थी. राधेश तिवारी ने गोविंदनगर में रहने वाले पेशेवर हत्यारे शुभम मौर्य से जितेंद्र जोशी उर्फ बबलू की मुलाकात करवा कर बातचीत करवाई. शुभम मौर्य से रूबी की हत्या का सौदा 30 हजार रुपए में तय हो गया. बबलू ने शुभम मौर्य को रूबी की हत्या के लिए 25 हजार रुपए एडवांस दे दिए. शेष 5 हजार रुपए रूबी की हत्या के बाद देना तय हुआ. योजना के मुताबिक, 31 जनवरी, 2015 की रात 10 बजे के लगभग राधेश तिवारी, शुभम मौर्य व उस का साथी विजय उर्फ पुच्ची बबलू के घर आ गए.

चारों ने घर पर ही देर रात तक शराब पी. उसी दौरान शुभम मौर्य के इशारे पर बबलू अपने बेटे शिवा और बेटी प्रियंका को यह कह कर घर के बाहर ले कर चला गया कि ‘आप लोग बैठो, मैं बच्चों को बाजार से नाश्ता दिलवा कर जल्द वापस आता हूं. जैसे ही बबलू बच्चों को ले कर घर से बाहर गया, शुभम मौर्य, राधेश तिवारी और विजय कमरे में बैठी रूबी के पास पहुंच गए और उसे दबोच कर उस का मुंह दबा लिया. विजय उस के सिर पर ईंट से वार करने लगा. विजय रूबी के सिर पर तब तक ईंट मारता रहा, जब तक वह मरणासन्न नहीं हो गई. इस के बाद विजय ने सूजे से रूबी के गले को बुरी तरह से गोद दिया.

बबलू बच्चों को पिता के घर छोड़ कर पुन: लौट आया. तब तक रूबी मर चुकी थी. योजना के मुताबिक रूबी की लाश की शिनाख्त मिटाने के लिए उस के चेहरे पर ईंटें मारमार कर बुरी तरह से कुचल दिया गया. चेहरे की शिनाख्त किसी परिस्थितियों में न हो सके, इस के लिए उस के चेहरे पर तेजाब भी डाला गया. इस के बाद रूबी के क्षतविक्षत शव को आननफानन में वाटरपू्रफ बोरे में भर कर अच्छी तरह सिल दिया गया. लाश को ठिकाने लगाने के लिए रात के अंधेरे में शुभम मौर्य फरजी नंबर की अपनी स्कूटी पर रूबी के लाश वाले बोरे को लाद कर विजय के साथ चला गया और उस बोरे को सीटीआई नहर के पास नाले में फेंक कर अपने घर चला गया.

जितेंद्र उर्फ बबलू ने पुलिस को बताया कि वह रूबी के मोहल्ले के लड़कों के साथ अवैधसंबंधों से त्रस्त था. रूबी तृप्ति इतनी कामांध हो गई थी कि समझाने के बाद भी वह नहीं मानती थी. इसलिए उस के सामने उस की हत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए 30 हजार रुपए की सुपारी दे कर उस ने उस की हत्या करवा दी थी. पुलिस बबलू को अपने साथ गोविंदनगर के ब्लाक नंबर 10 ले गई. उस की निशानदेही पर राधेश तिवारी, विजय उर्फ पुच्ची, शुभम मौर्य को गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही लाश को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई स्कूटी, मृतका और उस के पति बबलू के मोबाइल भी बरामद कर लिए गए.

पूछताछ के बाद जांच अधिकारी ने उपर्युक्त चारों अभियुक्तों को भादंवि. की धारा 302, 201, 120बी के अंतर्गत चालान तैयार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस तरह रूबी की बदचलनी की वजह से एक परिवार बरबाद हो गया. UP Crime News

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News: रिश्तों की कच्ची डोर

UP News: घर वालों ने मनोज की शादी कर के सोचा था कि पत्नी के आने पर वह अपनी भाभी के प्रेमजाल से निकल जाएगा. लेकिन क्या ऐसा हो पाया? त्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के कस्बा मोदीनगर के निकट गांव सीकरी खुर्द में हर साल चैत महीने की नवरात्र में एक विशाल मेला लगता है. इस मेले में आसपास के लोग तो आते ही हैं, अगलबगल के जिलों के भी काफी लोग आते हैं. उसी मेले में मेरठ के थाना रसूखपुर जाहिद का रहने वाला मनोज भी पत्नी संगीता और बेटी अनुष्का के साथ मेला देखने जाना चाहता था. इसलिए उस ने संगीता से कहा, ‘‘संगीता, कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हम सीकरी का मेला देखने चलेंगे.’’

मनोज संगीता से अकसर लड़नेझगड़ने के साथ मारपीट करता रहता था, इसलिए संगीता ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना है, मैं ऐसे ही ठीक हूं. मुझे मेलाठेला देखने का शौक नहीं है.’’

‘‘तुम भी जराजरा सी बात का बतंगड़ बना देती हो. अरे रात गई बात गई. रात में जो हुआ, उसे भूल जाओ. एक ओर तो कहती हो कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करता नहीं, तुम्हें कहीं ले नहीं जाता. अब चलने को कह रहा हूं तो नखरे दिखा रही हो.’’ मनोज ने संगीता की खुशामद करते हुए कहा. संगीता कुछ कहती, उस के पहले ही मनोज की मां यानी संगीता की सास शकुंतला ने कहा, ‘‘अरे इतने प्यार से कह रहा है तो चली जा , मेला ही दिखाने तो ले जा रहा है. कुएं में धकेलने थोड़े ही ले जा रहा है.’’

‘‘इन का क्या भरोसा. मेला दिखाने के बहाने ले जा कर कहीं कुएं में ही धकेल दें. लेकिन आप कह रही हैं, इसलिए चली जाती हूं. कितने बजे निकलना है?’’ संगीता ने पूछा.

  ‘‘9 बजे तक निकलेंगे. नहाधो कर आराम से तैयार हो जाना.’’ मनोज ने कहा.

 अगले दिन रविवार था. संगीता ने बेटी अनुष्का को भी तैयार किया और खुद भी तैयार हो गई. मनोज तैयार ही बैठा था. पत्नी और बेटी को ले कर वह बस से मोदीनगर के लिए रवाना हो गया. मोदीनगर के सीकरी खुर्द पहुंच कर दिन भर वह संगीता के साथ मेले में घूमता रहा. इस बीच मनोरंजन के साथसाथ घर के लिए कुछ खरीदारी भी की. छुट्टी का दिन होने की वजह से मेले में भीड़भाड़ ज्यादा थी, डेढ़ साल की बेटी अनुष्का को मनोज खुद ही लिए था. अंधेरा होने लगा तो मनोज घर लौटने की तैयारी करने लगा. उस ने संगीता से मेले से बाहर चलने को कहा. वह तो बेटी को ले कर मेले के बाहर गया, लेकिन संगीता नहीं पाई.

कुछ देर बाहर खड़े हो कर मनोज ने संगीता का इंतजार किया. जब काफी देर तक संगीता नहीं आई तो वह उसे तलाशने के लिए फिर मेले में घुस गया. काफी देर तक वह उसे ढूंढ़ता रहा. जब रात ज्यादा होने लगी तो उस ने इस बात की जानकारी घर वालों के साथ ससुराल वालों को दी. रात ज्यादा हो गई थी और बेटी रो रही थी, इसलिए वह पत्नी के मेले में खो जाने की सूचना थाना पुलिस को दिए बगैर ही घर गया. लेकिन अगले दिन सवेरा होते ही वह थाना मोदीनगर पहुंचा और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मनोज ने संगीता के मेले में खो जाने की जानकारी ससुराल वालों को भी दे दी थी. इसलिए अगले दिन संगीता के पिता जयपाल सिंह भी थाना मोदीनगर पहुंच गए थे. लेकिन उन के पहुंचने तक मनोज संगीता की गुमशुदगी दर्ज करा कर जा चुका था. जयपाल सिंह ने थानाप्रभारी दीपक शर्मा से मिल कर बेटी के गायब होने का आरोप उस की ससुराल वालों पर लगाते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस के आधार पर थानाप्रभारी ने संगीता के पति मनोज सिंह तथा उस के घर वालों के खिलाफ अपराध संख्या 237/2014 पर भादंवि की धाराओं 498, 420 एवं 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर रोशन सिंह को सौंप दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए सबइंसपेक्टर रोशन सिंह ने मनोज के घर छापा मारा.

शायद रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी मनोज और उस के घर वालों को हो गई थी, इसलिए घर पर कोई नहीं मिला. पूरा परिवार भूमिगत हो गया था. फिर भी कोशिश कर के किसी तरह उन्होंने मनोज को हिरासत में ले ही लिया. उसे थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो मनोज यही कहता रहा कि संगीता मेले में कहीं खो गई है. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती के साथ सवालों की झड़ी लगा दी तो पुलिस के सवालों के जाल में फंसे मनोज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने संगीता की हत्या कर के उस की लाश नहर में फेंक दी है. इस के बाद उस ने संगीता की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना सरूरपुर खुर्द के गांव रसूखपुर जाहिद में रहते थे देवकरण सिंह. उन के पास मात्र 5 बीघा खेती की जमीन थी, जिस पर वह परिवार की मदद से मेहनत से खेती करते थे. यही खेती उन की आजीविका का साधन थी. इसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर होता था. देवकरण सिंह के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे, सुरेश और मनोज थे. सुरेश ज्यादा पढ़लिख नहीं सका तो पिता के साथ खेती के कामों में मदद करने लगा. पढ़ालिखा तो मनोज भी ज्यादा नहीं था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगा. उस ने भी पढ़ाईलिखाई छोड़ दी तो देवकरण सिंह ने उसे गांव में ही जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी, जिसे वह अकेला ही संभालता था.

 देवकरण सिंह ने मरने से पहले अपने बड़े बेटे सुरेश की शादी बुलंदशहर के कस्बा स्यान के रहने वाले क्षेत्रपाल सिंह की बेटी शशि से कर दी थी. शशि तीखे नैननक्श वाली खूबसूरत लड़की थी. इसलिए आते ही उस ने ससुराल के सभी लोगों का मन मोह लिया था. वह व्यवहारकुशल के साथसाथ घर के कामों में भी निपुण थी, इसलिए घर का हर आदमी उस से खुश रहने लगा था. इस के बाद जल्दी ही गांव में उस के रूप और गुण की चर्चा होने लगी.

शशि के आगे उस का पति सुरेश कहीं नहीं ठहरता था. सुरेश को भी इस बात का अहसास था. शशि और सुरेश को देख कर कोई अंधा भी कह सकता था कि लंगूर के हाथ अंगूर लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. शशि को अपनी सुंदरता पर गुमान था, इसलिए अपनी उसी सुंदरता के बल पर वह पति सुरेश पर पहले ही दिन से हावी हो गई थी. शशि को सुरेश बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती थी. घर वालों ने ब्याह दिया था, इसलिए तकदीर मान कर उस ने उसे गले लगा लिया था. उस ने जैसेतैसे उस के साथ निर्वाह करने का मन बना लिया था. जिस दिन उस ने ससुराल में कदम रखा था, उसी दिन से वह देख रही थी कि उस का देवर मनोज उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

वह जब भी घर में अकेली होती, मनोज उसे चाहत भरी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे नाचता रहता. शुरुआत में तो शशि को लगा कि वह नईनई आई है, इसलिए आकर्षणवश मनोज उस के आगेपीछे घूमता है. लेकिन जब मौका मिलने पर मनोज उस से छेड़छाड़ करने लगा तो शशि को समझते देर नहीं लगा कि उस का प्यारा देवर क्या चाहता है. क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही थी कि मनोज के दिल की बात समझती.

सच भी है, जो बातें जुबान नहीं कह पाती, आंखें उन्हें इशारोंइशारों में कह देती हैं. मनोज भी भले ही दिल की बात मुंह से नहीं कह सका था, लेकिन आंखों ने इशारोंइशारों में कह दिया था. शशि को भी मनोज अच्छा लगता था, क्योंकि वह बड़े भाई सुरेश से काफी ठीकठाक था. लेकिन वह मन की बात देवर से कह नहीं सकती थी. इसलिए वह चाहती थी कि पहल देवर ही करे. इस के लिए वह मनोज को देख कर अकसर मुसकराती तो रहती ही थी, उस की हंसीमजाक और छेड़छाड़ का जवाब भी उसी के अंदाज में देती थी.

समझदार के लिए इशारा काफी होता है. मनोज भी जवान हो चुका था. स्त्रीसुख के लिए बेचैन भी रहता था. इसलिए भाभी की ओर से इशारा मिला तो एक दिन दोपहर में जब घर में शशि और उस के अलावा कोई और नहीं था तो उचित मौका देख कर वह शशि के कमरे में घुस गया. उसे अपने कमरे में देख कर शशि ने कहा, ‘‘इस समय तो तुम्हें दुकान पर होना चाहिए, यहां मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?’’

‘‘तुम से एक बात कहनी थी, इसलिए दुकान छोड़ कर चला आया.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ शशि ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

‘‘सिर्फ अच्छी लगती हूं, और कुछ नहीं?’’

शशि ने यह कहा तो मनोज का हौसला बढ़ा. उस ने कहा, ‘‘भाभी, अच्छा लगने का मतलब है कि मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘तो करो प्यार, मना किस ने किया है. मैं तो कब से तुम्हारे मुंह से यह बात सुनने का इंतजार कर रही हूं. क्योंकि मुझे तो बहुत पहले ही तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था. मैं इशारे भी कर रही थी. इस के बावजूद तुम ने यह बात कहने में इतने दिन लगा दिए.’’

‘‘तुम्हारे इशारों की वजह से ही तो हिम्मत कर सका हूं. नहीं तो किसी की पत्नी से भला यह कहने की हिम्मत कहां थी.’’ कह कर मनोज ने शशि का हाथ पकड़ा तो वह उस की बांहों में समा गई.

 मनोज ने शशि को बांहों में भर लिया. इस के बाद देवरभाभी का पवित्र रिश्ता कलंकित होने से कैसे बच सकता था. रिश्तों की परिभाषा बदली तो आयाम भी बदल गए. एक ही घर में रहने की वजह से मर्यादा तोड़ने में दिक्कत भी नहीं होती थी. घर वालों के खेतों पर जाते ही देवरभाभी पतिपत्नी बन जाते. यह ऐसा काम है, जिसे लोग करते तो बहुत चोरीछिपे हैं, इस के बावजूद लोगों की नजरों में ही जाता है. मनोज और शशि के मामले में भी ऐसा ही हुआ. घर वालों को जब मनोज और शशि के बदले संबंधों की जानकारी हुई तो दोनों को रोकने की कोशिश शुरू कर दी गई. इसी के मद्देनजर फैसला लिया गया कि अब जितनी जल्दी हो सके, मनोज की शादी कर दी जाए. पत्नी के आने से वह शशि से संबंध तोड़ लेगा.

शादी की बात रिश्तेदारों के बीच पहुंची तो दौराला के गांव पनवाड़ी के रहने वाले जयपाल सिंह बड़ी बेटी संगीता का रिश्ता ले कर उस के यहां पहुंच गए. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. 25 जनवरी, 2012 को मनोज और संतीगा का विवाह भी हो गया. संगीता दुलहन बन कर रसूलपुर गई. मनोज की शादी पर शशि ने खूब हंगामा किया. लेकिन मनोज ने कहा था कि कुछ ही दिनों की तो बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा तो वह मान गई थी. संगीता के ससुराल आने के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक रहा, लेकिन अचानक मनोज संगीता में कमियां निकालने लगा. यही नहीं, कम दहेज लाने के ताने मार कर उस के साथ मारपीट भी करने लगा. इस बात में घर वाले भी उस का साथ दे रहे थे, खासकर शशि.

शुरूशुरू में तो संगीता की समझ में नहीं आया कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया कि उस में उसे इतनी सारी कमियां नजर आने लगीं. लेकिन जैसे घर वालों को देवरभाभी के रिश्ते की जानकारी हो गई थी, उसी तरह कुछ दिनों में संगीता को भी पति की असलियत का पता चल गया था. दरअसल एक दिन उस ने पति को भाभी के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया था. संयोग से अब तक संगीता एक बेटी अनुष्का की मां बन चुकी थी. उसे लग रहा था कि बेटी का मुंह देख कर ही शायद मनोज का व्यवहार बदल जाए, लेकिन जब उस ने देवरभाभी को रंगेहाथों पकड़ लिया तो समझ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता.

 मनोज लगातार संगीता पर मायके से 50 हजार रुपए नगद, अंगूठी और फ्रिज लाने की बात कह कर जुल्म ढा रहा था. 1 मार्च, 2013 को मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को मायके भेज दिया और साफसाफ कह दिया कि जितना कहा जा रहा है, उतना सामान और रुपए ले कर ही वह ससुराल आएं, तभी उसे रहने दिया जाएगा. जयपाल ने पंचायत में गुहार लगाई. 24 जून, 2013 को गांव में हुई पंचायत ने फैसला किया कि भविष्य में मनोज के घर वाले कोई दानदहेज नहीं मांगेगे और संगीता को ठीक से रखेंगे. उसे परेशान नहीं करेंगे. समझौते के बाद 2-3 महीने तक तो मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को कुछ नहीं कहा. उस के बाद वे अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आए.

संगीता मायके वालों से शिकायत करती और वे कुछ करते, उस के पहले ही 6 अप्रैल, 2014 को मनोज ने ससुर जयपाल सिंह को फोन कर के बताया कि संगीता सीकरी के मेले से गायब हो गई है. हैरानपरेशान जयपाल सिंह बेटों के साथ थाना मोदीनगर पहुंचे और मनोज तथा उस के घर वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, अपहरण और हत्या का आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना मोदीनगर पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनोज ने बताया कि पहले से बनाई गई योजना के तहत मेला दिखाने के बहाने वह संगीता को सीकरी खुर्द ले गया. पूरे दिन मेला देखते हुए वह खरीदारी करता रहा. शाम का धुंधलका हो गया तो वह उसे साथ ले कर गंगनहर के चित्तौड़ा पुल की ओर चल पड़ा. तब संगीता ने उस से पूछा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो, हमारा घर तो उस ओर है.’’

‘‘यहीं पास के गांव में मेरा एक दोस्त रहता है, इधर आया हूं तो चलो उस से भी मिल लेते हैं.’’ मनोज ने कहा.

इस के बाद संगीता ने कोई सवाल नहीं किया और उस के साथ चल पड़ी. जब संगीता पुल पर पहुंची तो उस ने गोद में ली बेटी को उतार कर खड़ी कर दिया और लापरवाह खड़ी संगीता को एकदम से गिरा दिया. संगीता कुछ कह पाती, उस के पहले ही उस के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कस दिया. संगीता छटपटा कर मर गई. संगीता की हत्या कर मनोज ने उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया और वापस गया. उस ने फोन कर के संगीता के गायब होने की सूचना ससुराल वालों को भी दे दी थी और अगले दिन थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी थी. लेकिन उस की चालाकी चली नहीं और पकड़ा गया.

अगले दिन मनोज को गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश कर के लाश बरामद करने के लिए 3 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया. घटनास्थल पर मनोज को ले जा कर पुलिस ने संगीता की लाश बरामद करने की बहुत कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. रिमांड अवधि खत्म होने पर मनोज को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने मनोज के घर वालों को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. UP News

Hindi Stories Love : प्रेम में दुश्मन बनते भाई

Hindi Stories Love : लड़की के प्यार का जुनून और भाई की जिद में भाईबहन का प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल रहा है, जो कभीकभी जान पर भी भारी पड़ जाता है. वे एक ही छत के नीचे साथसाथ रह कर, खेलकूद कर, पढ़लिख कर बड़े होते हैं, इस के

बावजूद उम्र के नाजुक पायदान पर कदम पड़ने पर जब कोई लड़की दिल की उमंगों से अपने अंदाज में बेहतर जिंदगी की ख्वाहिश में मोहब्बत का तराना गुनगुनाती है तो उस के खून के रिश्ते का भाई ही उस के प्यार के बीच दीवार बन कर खड़ा हो जाता है. लड़की की मोहब्बत के जुनून और भाई की जिद में प्यार और खून का रिश्ता दुश्मनी में बदल जाता है. यही दुश्मनी एक दिन जान पर भारी पड़ जाती है और सगे भाई ही बहनों का कत्ल कर देते हैं.

मोहब्बत और कत्ल का यह सिलसिला चलता ही रहता है. कानून तो अपना काम करता है, लेकिन समाज खामोशी से देखता रहता है. ऐसा करने वाले यूं तो सलाखों के पीछे होते हैं, लेकिन उन्हें इस का जरा भी मलाल नहीं होता. बात अगर गैरमजहबी युवक से मोहब्बत की हो तो अंजाम और भी दिल दहला देने वाले होते हैं. हापुड़ जनपद के स्याना रोड निवासी इंसाफ अली की 20 साल की बेटी दानिश्ता ने जमाने में देखा, फिल्मों में देखा और कानून की यह बात भी पता चली कि लड़कालड़की बालिग हो जाएं तो अपनी मरजी से जिंदगी जीने के लिए आजाद हैं.

वक्त की बदलती चाल ने दानिश्ता के दिलोदिमाग पर छाप छोड़ी तो वह दूसरे मजहब के सोनू के साथ मोहब्बत का तराना गुनगुनाने लगी. उम्र की दहलीज पर उस ने अपनों से नाफरमानी कर दी. मोहब्बत का जुनून ही था कि उस ने अंजाम की परवाह किए बगैर खूबसूरत भविष्य का ख्वाब संजोया. लेकिन उस के ख्वाबों के महल तब बिखर गए, जब न सिर्फ उस के सगे भाई खलनायक बन कर उभरे, बल्कि परिवार भी उस के खिलाफ हो गया.

29 नवंबर, 2014 की सुबह का वक्त था. दानिश्ता का प्रेमी सोनू किसी काम से जा रहा था कि दानिश्ता के भाइयों तालिब, आसिफ और तसलीम ने उसे घेर लिया और उस के साथ बेरहमी से मारपीट शुरू कर दी. दानिश्ता ने अपनी मोहब्बत को दम तोड़ते देखा तो वह बचाव के लिए आगे बढ़ी और घर वालों से भिड़ गई. इस पर दानिश्ता और उस के प्रेमी सोनू को धारदार हथियारों से बेरहमी से काट कर मौत की नींद सुला दिया गया.

भाइयों में गुस्सा इस कदर था कि कोई उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका. हत्याओं में भाइयों का साथ उन के दोस्तों और मां नूरजहां खातून ने भी दिया. हत्याएं करने के बाद तालिब और नूरजहां खुद ही थाने पहुंच गए और आत्मसमर्पण कर दिया. दानिश्ता और सोनू का प्रेमसंबंध काफी समय से चल रहा था. उन के प्रेमसंबंधों की जानकारी दानिश्ता के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि वह गैरमजहबी लड़के से कोई रिश्ता न रखे. लेकिन प्यार करने वाले ऐसे किसी बंधन को कहां मानते हैं. वे तो जातिधर्म, ऊंचीनीच की दीवारों को गिराने का दम भरते हैं. प्यार के लिए वे जमाने से भी टकराने को तैयार रहते हैं. वे जानते हैं कि प्रेम में ऐसी बाधाएं आएंगी और उन्हें उन का सामना करना पड़ेगा.

लेकिन उन्हें यह उम्मीद होती है कि एक दिन जीत उन के प्यार की ही होगी. यह बात अलग है कि बड़े शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में हर कोई ऐसा खुशनसीब नहीं होता. दानिश्ता और सोनू की सोच भी यही थी कि एक दिन उन का प्यार जीत जाएगा. वे विवाह कर के जीवन भर साथ रहने का निर्णय ले चुके थे. जबकि दानिश्ता के भाई इस के लिए तैयार नहीं थे. वह जब भी सोनू से विवाह की बात घर में करती, उस के साथ मारपीट की जाती. दानिश्ता और सोनू दोनों ही समझ गए कि घर वालों की मरजी से वे कभी शादी नहीं कर पाएंगे.

दोनों ने कानून का सहारा लिया और गुपचुप कोर्टमैरिज कर ली. यह बात दोनों ने ही घर वालों से छिपाए रखी और अपनेअपने घर यह सोच कर रहते रहे कि अच्छे वक्त पर घर वालों को मना कर एक हो जाएंगे. जब इस बात का खुलासा हुआ तो हंगामा मच गया. दानिश्ता की शामत आ गई. इस मुद्दे पर हत्या से एक दिन पहले स्थानीय पंचायत भी हुई. दानिश्ता के भाइयों ने ऐलान कर दिया कि वे बहन की मोहब्बत को कुबूल नहीं करेंगे. पंचायत में कथित समाज के ठेकेदारों का भी फरमान था कि दोनों हमेशा अलग ही रहेंगे. जबकि यह फरमान न दानिश्ता को मंजूर था और न सोनू को. नतीजतन मौका पा कर उन की हत्या कर दी गई.

पुलिस गिरफ्त में हत्यारोपी भाई का कहना था, ‘‘बिरादरी में हमारी बदनामी हो रही थी. हमारा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था. अब घर वाले समाज में सिर उठा कर जी सकेंगे, क्योंकि हम ने अपनी इज्जत बचा ली है.’’

नूरजहां का बयान भी कुछ ऐसा ही था. उसे भी बेटी की मौत का कोई अफसोस नहीं था. इस दोहरे हत्याकांड के बाद पुलिस ने ऐसे प्रेमी युगलों की सूची बनाई, जिन्होंने अपनी मरजी से विवाह किए थे. पुलिस अधीक्षक आर.पी. पांडे ने कहा, ‘‘हम प्रेमियों को सुरक्षा देने के लिए तत्पर हैं. हमारी कोशिश है कि घृणित कृत्य करने वालों को सख्त सजा मिले.’’

औनर किलिंग की यह पहली वारदात नहीं थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अकसर भाईबहन की मोहब्बत के दुश्मन बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि अपनों के खून से हाथ रंगने वालों को अपने किए पर अफसोस नहीं होता. शान के लिए लड़कियों और उन के प्रेमियों की हत्या कर दी जाती है. मेरठ की रहने वाली फुरकानी ने भी गैरमजहब के लड़के रविंद्र से मोहब्बत करने का गुनाह किया था. प्रेमसंबंध की जानकारी होने पर जम कर हंगामा हुआ. उस के इस कदम से घर वाले गुस्से में आ गए. दूसरे संप्रदाय के लड़के ने उन की बेटी को दुलहन बना लिया था. उस ने प्रेमी के लिए धर्म ही नहीं, नाम भी बदल लिया था. उस ने अपना नाम निशू रख लिया था.

फुरकानी के घर वालों ने इस बात को आन का सवाल बना लिया. टकराव को टालने के लिए दोनों शहर जा कर रहने लगे. काफी दिनों बाद वे दोनों गांव आ कर रहने लगे तो फुरकानी के घर वाले खफा हो गए. 25 नवंबर को फुरकानी के भाई निजाम और फुरकान उस के घर पहुंचे और उस के सिर में गोली मार कर फरार हो गए.  समय पर उपचार मिलने से निशू की जान तो बच गई, लेकिन उस की एक आंख हमेशा के लिए चली गई. उस के भाइयों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन निशू के भाई निजाम को उस के जिंदा बच जाने का बहुत अफसोस है.

उस का कहना है कि अगर उसे पता होता कि बहन जिंदा बच जाएगी तो वह उसे एक और गोली मार देता. जब तक वह मरेगी नहीं, उसे चैन नहीं मिलेगा. गैरसमुदाय के लड़के से शादी कर के उस ने उस के परिवार की बहुत बदनामी कराई है, इसलिए उस ने उसे गोली मारी थी. मुजफ्फरनगर के लोई गांव के रहने वाले इलियास की बेटी शाइमा का 2 साल से गांव के ही एक लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था. जब घर वालों को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने उस पर बंदिशें लगा दीं. शाइमा लड़के से विवाह करने की जिद पर अड़ गई. बंदिशों को तोड़ कर एक दिन वह घर से भाग गई. शाइमा की इस हरकत से घर वाले आगबबूला हो गए.

कुछ दिनों बाद शाइमा को उन्होंने ढूंढ निकाला और घर ला कर उस के भाई इंतजार ने उसे गोली मार दी. अमित को भी अपनी बहन मोना का प्यार मंजूर नहीं था. वह किसी लड़के से मोबाइल फोन पर बातें किया करती थी. अमित इस बात से बेहद नाराज रहता था. उसे लगता था कि इस से एक दिन परिवार की इज्जत चली जाएगी. एक दिन उस ने बहन को फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उस ने उसे गोली मार दी. मोना किसी तरह बच गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सामाजिक परिवेश ऐसा है, जहां प्रेमिल रिश्तों का खुलेआम विरोध है. इस के बावजूद चोरीछिपे रिश्ते पनपते हैं. तेजी से होते शिक्षा और आर्थिक विकास के बीच यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

प्रेमसंबंधों को आन से जोड़ कर देखा जाता है. घर की बेटी प्रेम संबंध में अपनी मरजी से विवाह जैसा कदम उठाए, यह किसी भी दशा में मंजूर नहीं होता और अपने ही मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. समाज की टीका टिप्पणियां आग में घी डालने का काम करती हैं. जिस परिवार की लड़की को ले कर इस तरह के मामले सामने आते हैं, उन्हें तरहतरह के ताने दिए जाते हैं. ऐसे में नौजवानों को यह बरदाश्त नहीं होता. मानसिकता ऐसी होती है कि उन्हें लगता है कि हत्या कर देने से उन की इज्जत बच जाएगी और वह शान की जिंदगी जी सकेंगे.

ऐसा करने वाले प्रेम करने वाली लड़की को अपने परिवार के लिए कलंक मानते हैं. कातिल मानते हैं कि सामाजिक तानों व बेइज्जती से बचने के लिए अब यही करना आवश्यक हो गया है. दुखद यह है कि ऐसा कर के भी उन की इज्जत नहीं बचती. समाज भी खुले तौर पर ऐसी हत्याओं का विरोध नहीं करता. कानून का काम लाशों के पंचनामे और हत्यारों की गिरफ्तारी तक सिमट कर रह जाता है. Hindi Stories Love

Stories in Hindi Love : प्यार नहीं, स्वार्थ का रिश्ता

Stories in Hindi Love : पत्नी की कमाई पर पलने वाले पतियों की सोच इतनी गंदी क्यों हो जाती है कि वे उसी के दुश्मन बन जाते हैं. अपनी बैंक मैनेजर पत्नी को मार कर आखिर पवन को क्या मिला? क्या इस मामले में रितु ने प्रेम के नाम पर पवन से शादी कर के बड़ी भूल नहीं की थी?

पवन और रितु की मुलाकात तब हुई थी, जब 2006 में दोनों कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में पढ़ रहे थे. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. पवन रितु का हर तरह से ख्याल रखता था. जब कभी घर जाने के लिए कोई साधन नहीं होता था तो वह उसे उस के घर तक छोड़ने जाता था. रितु पढ़ाई में तेज थी, उस ने बैंकिंग की परीक्षा दी तो पास हो गई. फलस्वरूप जल्दी ही उसे नैनीताल बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर नौकरी मिल गई. रितु सेक्टर ए, एलडीए कालोनी, कानपुर रोड, लखनऊ में अपने पिता के साथ रहती थी. कुछ समय पहले उस की मां सुषमा का देहांत हो चुका था, जिस की वजह से उस के पिता श्यामबिहारी श्रीवास्तव परेशान रहते थे.

रितु अपनी बहनों में सब से छोटी थी. उस की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और वह अपने पति के साथ लखनऊ के ही मडि़यांव इलाके रहती थी. रितु और पवन के प्यार के बारे में हालांकि सब को पता था. लेकिन उस के पिता श्यामबिहारी चाहते थे कि बेटी ऐसे आदमी से शादी करे, जो समाज में उस की तरह ही अपनी हैसियत रखता हो. पवन किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था, लेकिन काफी भागदौड़ के बाद भी उसे प्राइवेट नौकरी ही मिल पाई थी.

श्यामबिहारी बूढ़े हो चले थे, उन की तबीयत भी खराब रहती थी. पत्नी की मौत के बाद वह बेटी रितु और बेटे साहिल को ले कर चिंतित रहते थे. वैसे उन्हें पूरा भरोसा था कि रितु हर हाल में अपने भाई का ख्याल रखेगी. बीमारी के चलते ही सन 2009 में उन की मौत हो गई. पिता की मौत के बाद रितु पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ गई. ऐसे में अपने लिए कुछ सोचना बहुत मुश्किल था. उस का छोटा भाई साहिल उस के साथ ही रहता था. रितु उसे भाई नहीं, बल्कि बेटे की तरह पाल रही थी. रितु के पिता की मौत के बाद पवन ने उस पर शादी करने के लिए दबाव डालना शुरू किया तो रितु ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘पवन इस बारे में सोचती तो मैं भी हूं, लेकिन साहिल की चिंता है. वह हाईस्कूल में पहुंच जाए तो मैं उसे आगे की पढ़ाई के लिए हौस्टल भेज दूंगी और तुम से शादी कर लूंगी.’’

‘‘देखो रितु, प्राइवेट ही सही, मुझे भी नौकरी मिल गई है. अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अब नहीं तो क्या हम बुढ़ापे में शादी करेंगे?’’

‘‘ठीक है बाबा, इस बारे में मैं जल्द ही कोई फैसला कर लूंगी.’’ रितु ने पवन को टालने के लिए शादी की हामी भर दी.

सोचविचार कर रितु ने अपनी बहन और भाई ने पवन के साथ शादी करने के बारे में बात की. रीतू के भाई और बहन दोनों का मानना था कि न तो पवन अच्छे स्वभाव का है और न ही वह कहीं अच्छी नौकरी करता है. दरअसल उन दोनों की नजर में पवन में सब से बड़ी बुराई यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. भाईबहन की बात सुन कर रितू बोली, ‘‘तुम लोगों की बात अपनी जगह सही है. मैं उस की इस बुराई के बारे में जानती हूं. पर क्या करूं, समझ नहीं पा रही हूं? उस के साथ इतने दिनों की दोस्ती है, उसे भूल कर किसी और से शादी करना मुझे थोड़ा मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘दीदी, आप ठीक कह रही हैं, पर हमारा मन इस के लिए तैयार नहीं है.’’ भाईबहन ने दो टूक कहा. इस के बावजूद रितु का खुद का मन शादी टालने का नहीं हो रहा था.

इसी के चलते उस ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर नवंबर, 2013 में पवन से शादी कर ली. शादी के 2-3 महीने ठीक से गुजरे. इस बीच रितु अपनी ससुराल के बजाय अपने मायके में ही रहती रही. पवन को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी. रितु के पास मायके की काफी जायदाद तो थी ही, साथ ही वह बैंक में अच्छे पद पर नौकरी भी करती थी. घर में सुखसुविधा के सारे साधन मौजूद थे. उसे केवल चिंता थी तो अपने छोटे भाई की. एक दिन पवन घर पहुंचा तो बहुत उदास था. रितु ने उसे देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है, उदास क्यों हो?’’

‘‘रितु, आज मेरी कंपनी ने कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया है, मेरी भी नौकरी चली गई.’’ पवन ने दुखी हो कर कहा.

‘‘कोई बात नहीं, प्राइवेट नौकरियों में तो यह होता ही रहता है. कहीं और नौकरी तलाश करो.’’ रितु ने पवन को समझाया. पवन को अपना खर्च चलाने के लिए पैसों की ज्यादा जरूरत नहीं थी, क्योंकि उस की पत्नी तो नौकरी कर ही रही थी. उसे पैसों की जरूरत केवल अपने शौक पूरे करने के लिए थी. उसे यह पता था कि रितु को सब से अधिक नफरत उस के शराब पीने से है. इस के लिए वह उसे पैसा देने को तैयार नहीं थी. उस की बात सही भी थी. निठल्ले बैठे पति को शराब के लिए कौन पत्नी अपनी कमाई का पैसा देगी?

इसी बात को ले कर दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. कहासुनी से शुरू होने वाले विवाद धीरेधीरे लड़ाईझगड़े तक पहुंचने लगे. रितु जब भी पवन को समझाने की कोशिश करती, वह उस की बात को गलत तरह से लेता. उसे लगने लगा कि रितु यह सब अपनी नौकरी की धौंस दिखाने के लिए करती है. रितु ने 35 लाख में अपने पिता की एक प्रौपर्टी बेच दी थी ताकि कोई नई जमीन खरीद कर मकान बनवा सके. दरअसल उसे लग रहा था कि मकान बन जाएगा तो वह ठीक से रह सकेगी. इस के लिए उस ने मकान बनाने के लिए एक जमीन पसंद भी कर ली थी.

उस जमीन को खरीदने के लिए 2 लाख रुपए एडवांस देने थे. उस ने यह रकम पवन को दे दी, ताकि वह प्रौपर्टी डीलर को दे दे. लेकिन पवन ने वे पैसे प्रौपर्टी डीलर को देने के बजाय अपने भाई को दे दिए. यह बात जब रितु को पता चली तो वह गुस्से में बोली, ‘‘पवन, पैसे की कीमत को समझो. पैसा डाल पर नहीं लगता कि हाथ बढ़ाया और तोड़ लिया. बहुत मेहनत करनी पड़ती है पैसा कमाने के लिए. हमें नए मकान के लिए पैसे की जरूरत है और तुम पैसे कहीं और दे आए.’’

लेकिन पवन ने रितु की बात को गंभीरता से न ले कर कड़वाहट से जवाब दिया, ‘‘तुम पैसे को ले कर बहुत झगड़ा करने लगी हो. मैं नौकरी नहीं करता, इसलिए तुम मुझे ताना मारती हो. तुम्हें पैसे का बहुत घमंड हो गया है.’’

‘‘तुम से बात करना ही बेकार है, तुम किसी बात को समझना ही नहीं चाहते.’’ कह कर रितु बैंक चली गई.

रितु ने बाकी बची 33 लाख की रकम अपने बैंक खाते में जमा कर दी थी. इस खाते में उस ने अपने भाई साहिल को नौमिनी बनाया था न कि पति को. इस के बाद पैसे और जायदाद को ले कर पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा और बढ़ गया. प्यारमोहब्बत के बीच पैसा विलेन बन चुका था. इस बीच रितु 6 माह की गर्भवती हो गई थी. इस से वह काफी खुश थी. उसे लग रहा था कि बच्चे के आ जाने के बाद शायद पवन में बदलाव आ जाए.

19 दिसंबर, 2014 की बात है. नादान महल रोड, लखनऊ स्थित नैनीताल बैंक की शाखा में बैंक के लौकर नहीं खुल पाए थे. वजह यह थी कि बैंक के लौकर की चाबी सहायक प्रबंधक रितु के पास रहती थी. जबकि वह बैंक नहीं आई थी. बैंक के मैनेजर दयाशंकर मलकानी ने रितु के मोबाइल फोन पर संपर्क किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. दयाशंकर ने परेशान हो कर चौक थाने को सूचना दी. इसी बीच रितु के पति पवन का फोन नंबर मिल गया तो उसे फोन किया गया. बातचीत में उस ने बताया कि रितु कल से लापता है. इस जानकारी के बाद थाना चौक पुलिस ने यह बात कैंट थाने की पुलिस को बताई. पुलिस ने पवन के घर जा कर वहां बाहर खड़ी इंडिका कार की तलाशी ली तो उस में बैंक लौकर की चाबियां मिल गईं.

इस के बाद कैंट थाने की पुलिस रितु को तलाशने में जुट गई. एक महिला बैंक अधिकारी के गायब होने का मामला था. पूरे शहर में खलबली मच गई. लखनऊ में नए एसएसपी यशस्वी यादव ने पद संभाला था. तभी पुलिस के लिए यह घटना बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ गई थी. एसएसपी के आदेश पर कैंट क्षेत्र की सीओ बबिता सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अपनी पुलिस टीम को रितु का पता लगाने में लगा दिया. इसी बीच एसओ कैंट सुरेश यादव को सूचना मिली कि कैंट क्षेत्र स्थित फायरिंग रेंज के पास झडि़यों में किसी महिला का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही सुरेश यादव अपनी टीम के साथ वहां पहुंच गए. सूचना सही थी. लाश की शिनाख्त होने में भी देर नहीं लगी.

लाश बैंक मैनेजर रितु की ही थी. घटनास्थल पर पुलिस को कोई भी ऐसा सुबूत नहीं मिला, जिस से यह लगता कि रितु के साथ कोई जोरजबरदस्ती की गई थी. उस के शरीर के कपड़े भी सही सलामत थे. किसी प्रकार की कोई लूट भी नहीं हुई थी, क्योंकि मृतका के कानों के आभूषण भी सुरक्षित थे और हाथों की चूडि़यां भी. अलबत्ता उस का पर्स और मोबाइल जरूर गायब था. इस से पुलिस को संदेह हुआ कि इस घटना में रितु का कोई अपना ही शामिल हो सकता है. पुलिस ने इस बारे में पहले रितु के भाई साहिल से बात की और फिर उस के पति पवन से. दोनों की बातों से पुलिस का शक पवन पर गहरा गया. पुलिस ने काल डिटेल्स हासिल कर के रितु के फोन नंबर और पवन के फोन नंबर की जांच की तो पता चला कि रितु से अंतिम बार पवन ने ही बात की थी.

इस के बाद पुलिस ने पवन को हिरासत में ले कर पूछताछ की. इस पूछताछ में जो बात सामने आई, वह यह थी कि रितु और पवन के बीच दौलत विलेन बन गई थी. पैसे के लिए पवन इतना अंधा हो गया था कि रितु को मौत के घाट उतारते वक्त उसे उस की कोख में पल रहे अपने बच्चे का भी खयाल नहीं आया. 18 दिसंबर, 2014 को रितु अपनी बैंक की ड्यूटी पूरी करने के बाद औटो से चारबाग पहुंची. वहां से उसे दूसरा औटो ले कर अपने घर पहुंचना था. रितु जैसे ही औटो से उतरी, उस ने देखा कि पवन अपने बहनोई की कार लिए उस का इंतजार कर रहा है. यह देख कर उस ने चौंक कर पूछा, ‘‘तुम यहां, यह कार क्यों लाए?’’

‘‘मैं अपने बीमार भाई से मिलने देहरादून जा रहा हूं, आज ही रात को. उन की तबीयत ज्यादा खराब है.’’ पवन ने कहा.

‘‘मुझे लगा कि तुम मुझे लेने आए हो? तुम्हें तो अपने कामों से ही फुरसत नहीं है. तुम जाओ मैं औटो ले कर घर चली जाऊंगी.’’ अभी रितु ने कहा ही था कि उस के मोबाइल पर उस के भाई साहिल का फोन आ गया. वह उस से घर पहुंचने के बारे में पूछ रहा था. भाई से बात करते हुए रितु ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जीजाजी के साथ हूं, अभी थोड़ी देर में आती हूं.’’

उस वक्त शाम के करीब पौने 7 बजे थे. रितु के फोन बंद करते ही पवन बोला, ‘‘ऐसे नाराज मत हो. चलो, पहले कहीं घूम आते हैं. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’ पवन ने मिन्नत की तो रितु उस की कार में बैठ गई. मानमनुहार कर के रितु को मनाने के बाद पवन कार ले कर शहीद पथ की ओर बढ़ गया. रितु को लगा कि वह उस से झगड़ा खत्म करने के लिए ऐसा कर रहा है. सुलतानपुर रोड पर अर्जुनगंज ओवर ब्रिज के पास पवन ने कार कच्चे रास्ते पर उतार कर खड़ी कर दी और बहाना कर के नीचे उतरा. रितु उस के मन की बात को समझ पाती, उस के पहले ही वह रितु की गरदन में रस्सी का फंदा डाल कर उसे कसने लगा. इस के लिए वह रस्सी पहले ही साथ लाया था.

इस के अलावा उस ने रितु को मारने के लिए उस के सिर पर 3 वार भी किए. इस का नतीजा यह हुआ कि रितु तत्काल मर गई. गर्भवती पत्नी की हत्या करने के बाद पवन ने उस का मोबाइल बंद कर के उस के पर्स में रखा और पर्स वहीं नाले में फेंक दिया. इस के बाद वह कार ले कर सुनसान जगह की तलाश में आगे बढ़ गया. आगे जा कर उस ने फायरिंग रेंज के पास रितु की लाश जंगल में फेंक दी. वापस लौट कर कार उस ने अपने घर के सामने खड़ी कर दी और सोने की कोशिश करने लगा. देर रात तक जब रितु घर नहीं पहुंची तो साहिल ने करीब 8 बजे के बाद उसे फोन करना शुरू किया. रितु का फोन बंद था. इस से परेशान हो कर साहिल ने अपने जीजा पवन को फोन किया. उधर से पवन ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी दीदी को छोड़ कर देहरादून जा रहा हूं. तुम परेशान मत हो.’’

साहिल ने कई बार पवन के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने बताया कि वह लखनऊ में ही है. पुलिस ने रितु की लाश मिलने के बाद जब साहिल से पूछताछ की थी तो उस ने यह बात सीओ कैंट बबिता सिंह को बता दी थी. इसी से वह संदेह के दायरे में आया था. इस से बबिता सिंह को लगा कि जब पवन देहरादून गया नहीं तो उस ने साहिल से झूठ क्यों बोला? दूसरे पवन के फोन की लोकेशन रितु के फोन के साथ मिली थी. संदेह हुआ तो पुलिस ने पवन को गिरफ्तार कर के उस से सख्ती से पूछताछ की. इस से पवन टूट गया और उस ने पुलिस को रितु की हत्या की पूरी जानकारी दे दी थी. शुरू में पवन रितु की हत्या को आत्महत्या साबित करना चाहता था. इस के लिए उस ने एक सुसाइड नोट भी तैयार किया था. लेकिन वह ऐसा कर नहीं सका.

दरअसल पवन के मन में गुस्सा इस बात को ले कर था कि रितु उस से झगड़ा करती है. उस ने अपने बैंक खाते में भी उस की जगह पर भाई को नौमिनी बनाया था. रितु और पवन के बीच मोहब्बत का दौर जरूर लंबा खिंचा, पर शादी के कुछ दिनों के बाद ही उन के बीच अनबन शुरू हो गई थी. इस की वजह थी पवन का नशा करना. जिस समय उस ने रितु का कत्ल किया था, उस समय भी उस ने शराब पी रखी थी. इसीलिए वह यह भी नहीं समझ पाया कि वह केवल अपनी पत्नी की ही हत्या नहीं कर रहा है, बल्कि उस की कोख में पल रहे अपने बच्चे को भी मार रहा है. Stories in Hindi Love

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Crime Stories : कत्ल एक दिलदार का

Crime Stories : कबड्डी खेलते समय नासिर ने चौधरी आफताब की जो बेइज्जती की थी, उस का बदला लेने के लिए उस नेहैदर अली के साथ मिल कर नासिर के साथ ऐसा क्या किया कि उसे और हैदर अली को पछताना पड़ा. उन दिनों मैं जिला छंग के एक देहाती थाने में तैनात था. वह जगह दरिया के करीब थी. मई का महीना होने की वजह से अच्छीभली गरमी पड़ रही थी. अचानक एक दिन पास के गांव से एक वारदात की खबर आई. कांस्टेबल सिकंदर अली ने बताया कि गुलाबपुर में एक गबरू जवान का बड़ी बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया है, जिस की लाश खेतों में पड़ी है. गुलाबपुर मेरे थाने से करीब एक मील दूर था.

वहां से फैय्याज और यूनुस खबर ले कर आए थे. वे दोनों खबर दे कर वापस जा चुके थे. मैं ने पूछा, ‘‘मरने वाला कौन है?’’

‘‘उस का नाम नासिर है, वह कबड्डी का बहुत अच्छा और माहिर खिलाड़ी था.’’ सिकंदर अली ने बताया.

मैं 2 सिपाहियों के साथ गुलाबपुर रवाना हो गया. हमारे घोड़े खेतों के बीच आड़ीतिरछी पगडंडी पर चल रहे थे. जिस खेत में लाश पड़ी थी, वह गांव से एक फर्लांग के फासले पर था. कुछ लोग हमें वहां तक ले गए. वहां एक अधूरा बना कमरा था, न दीवारें न छत. जरूर कभी वहां कोई इमारत रही होगी. नासिर की लाश कमरे के सामने पड़ी थी. लाश के पास 8-9 लोग खड़े थे, जो हमें देख कर पीछे हट गए थे. मैं उकड़ूं बैठ कर बारीकी से लाश की जांच करने लगा. बेशक वह एक खूबसूरत गबरू जवान था. उस की उम्र 23-24 साल रही होगी. वह मजबूत और पहलवानी बदन का मालिक था, रंग गोरा और बाल घुंघराले.

लाश देख कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस पर तेजधार हथियार या छुरे से हमला हुआ होगा. मारने वाले एक से ज्यादा लोग रहे होंगे. उस के हाथों के जख्म देख कर लगता था कि उस ने अपने बचाव की भरपूर कोशिश की थी. नासिर कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, इसलिए गुलाबपुर के लोग उसे गांव की शान समझते थे. लाश पर चादर डाल कर मैं लोगों से पूछताछ करने लगा. नासिर का 60 साल का बाप वहीं था, उस की हालत बड़ी खराब थी, आंखें आंसुओं से भरी हुईं. उस का नाम बशीर था. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे तसल्ली दी, ‘‘चाचा, आप फिकर न करो, आप के बेटे का कातिल पकड़ा जाएगा.’’

उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा बेटा तो चला गया. कातिल के पकड़े जाने से मेरा बेटा लौट कर तो नहीं आएगा.’’

बेटे के गम ने उस की सोचनेसमझने की ताकत खत्म कर दी थी. उसे बस एक ही बात याद थी कि उस का जवान बेटा कत्ल हो चुका है. मुझे उस पर बड़ा तरस आया. मैं ने उसे एक जगह बिठा दिया और अपनी काररवाई करने लगा. सब से पहले मैं ने घटनास्थल का नक्शा तैयार किया. वहां मुझे कत्ल का कोई सुराग नहीं मिला. यहां तक कि वह हथियार भी नहीं, जिस से उस का कत्ल किया गया था.n मैं ने वारदात की जगह पर मौजूद लोगों के बयान लिए. लेकिन सिवाय नासिर की तारीफ सुनने के कोई जानकारी नहीं मिली. मैं ने नासिर की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि इतनी रात को नासिर इस सुनसान जगह पर क्या कर रहा था. मेरे अंदाज से कत्ल रात को हुआ था. मैं ने मौजूद लोगों से घुमाफिरा कर कई सवाल किए, पर काम की कोई बात पता नहीं चली. मैं ने यूनुस और फैयाज से भी पूछताछ की. पर वे कुछ खास नहीं बता सके. इलियास जिस ने सब से पहले लाश देखी थी, मैं ने उस से भी पूछा, ‘‘इलियास, तुम सुबहसुबह कहां जा रहे थे?’’

‘‘साहबजी, मैं कुम्हार हूं. मैं मिट्टी के बरतन बनाता हूं. मैं रोजाना सुबह मिट्टी लाने के लिए घर से निकलता हूं. मेरा कुत्ता मोती भी मेरे साथ होता है. वह मुझे इस तरफ ले आया, तभी लाश पर मेरी नजर पड़ी. लाश देख कर मैं ने ऊंची आवाज में चीखना शुरू कर दिया. उस वक्त खेतों में लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. कुछ लोग जमा हो गए. मौजूद लोगों से पता चला कि बशीर लोहार के बेटे नासिर का किसी ने कत्ल कर दिया है.’’

बशीर लोहार का घर गांव के बीच में था. उस का छोटा सा परिवार था. घर में नासिर के मांबाप के अलावा एक बहन थी. बशीर ने अपने घर के बरामदे में भट्ठी लगा रखी थी. वहीं पर वह लोहे का काम करता था. जब मैं उस के घर पहुंचा तो वह मुझे घर के अंदर ले गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा बशीर, जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ, बहुत अफसोसनाक है. मैं तुम्हारे गम में बराबर का शरीक हूं. मेरी पूरी कोशिश होगी कि जैसे भी हो, कातिल को कानून के हवाले करूं. लेकिन तुम्हें मेरी मदद करनी होगी. हर बात साफसाफ और खुल कर बतानी होगी.’’

उस की बीवी जुबैदा बोल उठी, ‘‘साहब, आप से कुछ भी नहीं छिपाएंगे. हमारी दुनिया तो अंधेरी हो ही गई है, लेकिन जिस जालिम ने मेरे बच्चे को मारा है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप दोनों को किसी पर शक है?’’

‘‘साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. मेरा बेटा तो पूरे गांव की आंख का तारा था. अभी पिछले महीने ही उस ने कबड्डी का टूर्नामेंट जीता था. इस मुकाबले में 4 गांवों की टीमों ने हिस्सा लिया था. गुलाबपुर की टीम में अगर नासिर न होता तो यह जीत नजीराबाद के हिस्से में जाती. सुल्तानपुर और चकब्यासी पहले दौर में आउट हो गए थे. असल मुकाबला गुलाबपुर और नजीराबाद में था. जीतने पर गांव वाले उसे कंधे पर उठाए घूमते रहे. बताइए, मैं किस पर शक करूं?’’ बशीर ने तफ्सील से बताया.

‘‘नासिर कबड्डी का इतना अच्छा खिलाड़ी था, जहां 10 दोस्त थे, वहां एकाध दुश्मन भी हो सकता है.’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं साहब, पर मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है.’’ बशीर ने बेबसी जाहिर की.

‘‘मुझे उस दसवें आदमी की तलाश है, जिस ने नासिर का बेदर्दी से कत्ल किया है. जरूर यह किसी दुश्मन का काम है. हो सकता है, गांव के बाहर का कोई दुश्मन हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बाहर का भी कोई दुश्मन नहीं है साहब.’’ उस की बीवी जुबैदा ने कहा तो मैं सोच में पड़ गया. अचानक बशीर बोल उठा, ‘‘वह तो सारा दिन मेरे साथ काम में लगा रहता था. शाम को अखाड़े में कसरत वगैरह करता था.’’

‘‘यह अखाड़ा कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अखाड़ा ट्यूबवेल के पास है. उस टूटीफूटी इमारत के करीब, जहां यह वारदात हुई.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘मेरे अंदाज से कत्ल देर रात को हुआ है, इतनी रात को वह अखाड़े में क्या कर रहा था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह बात हमारी भी समझ में नहीं आ रही है.’’ जुबैदा बोली.

‘‘रात को क्या वह रोजाना की तरह समय पर सोया था?’’

‘‘सोया तो रोजाना की तरह ही था.’’ कहतेकहते जुबैदा रुक गई.

‘‘मुझे खुल कर बताओ, क्या बात है?’’ मैं ने कहा तो वह बोली, ‘‘आप हमारे साथ ऊपर छत पर चलिए. आप खुद समझ जाएंगे.’’

हम छत पर पहुंचे तो जुबैदा कहने लगी, ‘‘मैं रोजाना नासिर को उठाने छत पर आती थी और वह 2 पुकार में उठ जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ. मैं ने आगे बढ़ कर चादर उठाई तो उस के नीचे एक तकिया रखा हुआ था, जिस पर चादर ओढ़ाई हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कोई सो रहा है.’’

मैं खामोश खड़ा रहा तो जुबैदा ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि पिछली रात नासिर अपनी मरजी से घर से निकला था. वह नहीं चाहता था कि किसी को उस के जाने के बारे में पता चले.’’ जुबैदा बोली.

‘‘नहीं जुबैदा, ऐसा नहीं है. वह पहले भी जाता रहा होगा, पर सुबह होने से पहले आ जाता होगा. इसलिए तुम्हें पता नहीं चला. तुम्हारा बेटा रात के अंधेरे में कहीं जाता था और जल्द लौट आता होगा, इसलिए तुम्हें खबर नहीं मिल सकी. मुझे तो किसी लड़की का चक्कर लगता है.’’ मैं ने कहा तो वे दोनों बेयकीनी से मुझे देखने लगे, ‘‘लड़की का चक्कर…’’

बशीर ने कहा, ‘‘साहब, नासिर ऐसा लड़का नहीं था. वह तो गुलाबपुर की लड़कियों और औरतों को मांबहनें समझता था. वह कभी किसी की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.’’

‘‘मैं नहीं मान सकता कि लड़की का चक्कर नहीं था. पिछली रात वह किसी लड़की से मुलाकात करने ही खेत में पहुंचा था. अगर आप लोग लड़की का नाम बता दो तो केस जल्द हल हो जाएगा. मैं कातिलों तक पहुंच जाऊंगा, क्योंकि वही लड़की बता सकती है कि खेत में क्या हुआ था?’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जनाब, हम कसम खा कर कह रहे हैं कि हम ऐसी किसी लड़की को नहीं जानते.’’ दोनों ने एक साथ कहा.

‘‘मैं आप की बात का यकीन करता हूं, पर इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. मैं कहीं न कहीं से इस का सुराग लगा ही लूंगा. आप यह बताएं कि गुलाबपुर में नासिर का सब से करीबी दोस्त कौन है?’’

‘‘जमील से उस की गहरी दोस्ती थी.’’ बशीर ने कहा.

‘‘ठीक है, अब मैं पता कर लूंगा. दोस्त दोस्त का राज जानते हैं. मुझे जमील से मिलना है. तुम उसे यहां बुला लो?’’ मैं ने कहा.

‘‘उस का घर पड़ोस में है, मैं अभी बुलाता हूं.’’ कहते हुए बशीर बाहर निकल गया.

उस ने वापस लौट कर बताया कि जमील 2 दिनों से टोबा टेक सिंह गया हुआ है.

‘‘ठीक है, कल वह वापस आएगा तो उस से पूछ लूंगा. अभी उस के घर वालों से बात कर लेता हूं.’’ मैं ने कहा.

सामने ही उस की परचून की दुकान थी. उस का बाप वहीं मिल गया. मैं ने करीब 15 मिनट तक उस से बात की, पर कोई काम की बात पता नहीं चल सकी. वह भी कबड्डी की वजह से नासिर का बड़ा फैन था. उसे उस की मौत का बहुत गम था. मेरा दिमाग गहरी सोच में था. मुझे पक्का यकीन था कि जरूर लड़की का चक्कर है. जहां लाश मिली थी, वहां एक अधूरा कमरा था. रात में मुलाकात के लिए वह बेहतरीन जगह थी. मुझे ऐसी लड़की की तलाश थी, जो नासिर से मोहब्बत करती थी और नासिर उस के इश्क में पागल था.

वह जगह गुलाबपुर के करीब ही थी, इसलिए लड़की भी वहीं की होनी चाहिए थी. मेरी सोच के हिसाब से कातिल इस राज से वाकिफ था कि लड़की और नासिर वहां छिपछिप कर मिलते हैं. उसे इस बात का भी यकीन रहा होगा कि नासिर वहां जरूर आएगा. निस्संदेह कातिल उन दोनों की मोहब्बत और मिलन से सख्त नाराज रहा होगा. उस ने वक्त और मौका देख कर नासिर को मौत के घाट उतार दिया होगा. मुझे उस लड़की को तलाश करना था.

दोपहर के बाद मैं ने हमीदा को थाने बुलाया. वह कस्बे में घरघर जा कर क्रीमपाउडर और परांदे वगैरह बेचा करती थी. हर घर की लड़कियों को वह खूब जानती थी और कई की राजदार भी थी. पहले भी वह मेरे कई काम कर चुकी थी. मैं उसे कुछ पैसे दे देता था तो वह खुश हो जाती थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘हमीदा, तुम गुलाबपुर के हर घर से वाकिफ हो. मुझे नासिर के बारे में जानकारी चाहिए. तुम जो जानती हो, बताओ.’’

‘‘साहब, वह तो गुलाबपुर का हीरो था. बच्चाबच्चा उस पर जान देता था.’’ उस ने दुखी हो कर कहा.

‘‘मुझे गुलाबपुर की उस हसीना का नाम बताओ, जो उस पर जान देती थी और नासिर भी उस का आशिक रहा हो.’’ मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘‘ओह, तो कत्ल की इस वारदात का ताल्लुक नासिर की मोहब्बत की कहानी से जुड़ा हुआ है.’’ उस ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘सौ फीसदी, उस के इश्क में ही कत्ल का राज छिपा है.’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

हमीदा कुछ सोचती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘सच क्या है, यह तो नहीं कह सकती. पर मैं ने उड़तीउड़ती खबर सुनी थी कि रेशमा से उस का कुछ चक्कर चल रहा था. रेशमा शकूर जुलाहे की बेटी है.’’

मैं ने हमीदा को इनाम दे कर विदा किया. मैं पहले भी उस से मुखबिरी का काम ले चुका था. उस की खबरें पक्की हुआ करती थीं. अगले दिन गरमी कुछ कम थी. मैं खाने और नमाज से फारिग हो कर बैठा था कि जमील अपने बाप के साथ आ गया. मैं ने उस के बाप को वापस भेज कर जमील को सामने बिठा लिया. वह गोराचिट्टा, मजबूत जिस्म का जवान था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘जमील, तुम्हें नासिर के साथ हुए हादसे का पता चल गया होगा?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखें भीग गईं. वह दुखी लहजे में बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपना सब से प्यारा दोस्त खो दिया है. पता नहीं किस जालिम ने उसे कत्ल कर दिया.’’

‘‘तुम उस जालिम को सजा दिलवाना चाहते हो?’’

‘‘जरूर, साहब मैं दिल से यही चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी मदद मुझे कातिल तक पहुंचा सकती है. जमील मुझे यकीन है कि बिस्तर पर तकिया रख कर वह पहली बार रात को घर से बाहर नहीं गया होगा. जरूर वह पहले भी जाता रहा होगा. यह खेल काफी दिनों से चल रहा था. तुम उस के दोस्त हो, राजदार हो, तुम्हें सब पता होगा. मैं सारी हकीकत समझ चुका हूं, पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

कुछ देर सोचने के बाद वह बोला, ‘‘आप का अंदाजा सही है, इस मामले में एक लड़की का चक्कर है.’’

‘‘रेशमा नाम है न उस का?’’ मैं ने बात पूरी की तो वह हैरानी से मुझे देखने लगा. फिर बोला, ‘‘साहब, उस का नाम रेशमा ही है. दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. धीरेधीरे उन की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया था. मैं उन का राजदार था या यूं कहिए मेरी वजह से ही ये मुलाकातें मुमकिन थीं. रेशमा हमारी दुकान पर सामान लेने आती थी. उसे पता था कि मैं कब दुकान पर रहता हूं. मैं ही रेशमा को बताया करता था कि उसे कब खेतों में पहुंचना है. नासिर उस की राह देखेगा, अगर वह आने को हां कह देती थी तो मैं नासिर को बता देता था. फिर वह उस जगह पहुंच जाता था. इस तरह उन दोनों की मुलाकात हो जाती थी.’’

‘‘क्या मुलाकात के वक्त तुम भी आसपास होते थे?’’

‘‘नहीं साहब, मैं कभी उस तरफ नहीं गया. हां, दूसरे दिन नासिर मुझे सब बता दिया करता था.’’

‘‘दोनों के बीच बात किस हद तक आगे बढ़ चुकी थी?’’

‘‘दोनों की मोहब्बत शादी तक पहुंच गई थी. रेशमा जल्दी शादी करने का इसरार कर रही थी. नासिर भी शादी करना चाहता था, लेकिन उसे इतनी जल्दी नहीं थी. जबकि रेशमा जल्दी रिश्ता तय करने की बात कर रही थी.’’

‘‘रेशमा की जल्दी के पीछे भी कोई वजह रही होगी?’’

‘‘हां, दरअसल रेशमा की मां सरदारा बी उस का रिश्ता अपनी बहन के लड़के से करना चाहती थी और उस का बाप उस का रिश्ता अपने भाई के लड़के से करना चाहता था. पर बात सरदारा बी की ही चलनी थी, क्योंकि वह काफी तेज है. वही सब फैसले करती है. रिश्ता खाला के बेटे से न तय हो जाए, इस डर से रेशमा नासिर को जल्दी रिश्ता लाने को कह रही थी.’’ जमील ने तफ्सील से बताया.

‘‘एक बात समझ में नहीं आई जमील, तुम्हारे मुताबिक उन की मुलाकातों के तुम अकेले राजदार थे. जबकि कत्ल वाले दिन के पहले से तुम गांव से बाहर थे. फिर उस दिन दोनों की मुलाकात किस ने तय कराई थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘साहब, जिस दिन मैं टोबा टेक सिंह गया था, उसी दिन मैं ने उन की दूसरे दिन की मुलाकात तय करा दी थी. नासिर ने दूसरे दिन मिलने को कहा था. मैं ने यह बात रेशमा को बता दी थी. उस के हां कहने पर मैं ने नासिर को भी प्रोग्राम पक्का होने के बारे में बता दिया था.’’

‘‘इस का मतलब प्रोग्राम के मुताबिक ही नासिर अगली रात रेशमा से मिलने खेतों में पहुंचा था. यकीनन वादे के मुताबिक रेशमा भी वहां आई होगी और उस रात नासिर के साथ जो खौफनाक हादसा हुआ, वह उस ने भी देखा होगा. उस का बयान कातिल तक पहुंचने में मदद कर सकता है. मुझे रेशमा का बयान लेना होगा.’’ मैं ने कहा.

‘‘साहब, मामला बहुत नाजुक है. नासिर तो अब मर चुका है, आप रेशमा से इस तरह मिलें कि बात फैले नहीं. नहीं तो बेवजह वह मासूम बदनाम हो जाएगी.’’

‘‘तुम इस की चिंता न करो, मैं उस से बहुत सोचसमझ कर इस तरह मिलूंगा कि किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया जनाब, आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

‘‘जमील, तुम एक बात का खयाल रखना, जो बातें हमारे बीच हुई हैं, उन का किसी से जिक्र मत करना.’’

जब मैं नासिर की लाश ले कर गुलाबपुर पहुंचा तो बशीर लोहार के घर तमाम लोग जमा थे. लाश देख कर एक बार फिर रोनापीटना शुरू हो गया. मौका देख कर मैं ने शकूर को एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘शकूर, मुझे नासिर के कत्ल के सिलसिले में तुम से कुछ पूछना है. यहां खड़े हो कर बात करने से बेहतर है तुम्हारे घर बैठ कर बात की जाए.’’

उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं उस के साथ उस के घर चला आया और उस की बैठक में बैठ गया. उस की एक बेटी थी रेशमा और एक बेटा शमशाद. बेटा 12-13 साल का रहा होगा, जो उस वक्त बाहर खेल रहा था. अभी थोड़ी ही बातचीत हुई थी कि सरदारा बी चाय की ट्रे ले कर आ गई. शकूर ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, चाय पीएं और सवाल भी पूछते रहें. ये मेरी बीवी सरदारा बी है, इस से भी जो पूछना है पूछ लें.’’

उन की बातचीत से मैं ने अंदाजा लगाया कि उन्हें रेशमा के इश्क के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मैं ने उन से नासिर के बारे में कुछ सवाल पूछे, उन दोनों ने उस की बहुत तारीफें कीं. बातचीत के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप की बेटी रेशमा कहां है?’’

‘‘वह घर में ही है जनाब, कल से उसे तेज बुखार है. हकीमजी से दवा ला कर दी, पर उस का कुछ असर नहीं हुआ.’’ सरदारा बी ने कहा.

‘‘रेशमा का बुखार हकीमजी की दवा से कम नहीं होगा. यह दूसरी तरह का बुखार है.’’ मैं ने कहा तो शकूर ने चौंक कर मेरी ओर देखा. मैं ने आगे कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, यह इश्क का बुखार है. नासिर की मौत ने रेशमा के दिलोदिमाग को झिंझोड़ कर रख दिया है.’’

दोनों उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगे, ‘‘हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. यह सब क्या है?’’

‘‘मैं समझाता हूं. यही सच्चाई है. रेशमा और नासिर एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे. दोनों रातों को मिलते भी थे. रेशमा को उस की मौत से बहुत दुख पहुंचा है.’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘मुझे बिलकुल यकीन नहीं आ रहा है.’’ सरदारा बी बोली.

हकीकत जान कर वे दोनों परेशान थे. मैं ने कहा, ‘‘परेशान न हों, आप के घर की बात इस चारदीवारी से बाहर नहीं जाएगी. रेशमा मेरी बेटी की तरह है और बिलकुल बेगुनाह है. मुझे उस की इज्जत का पूरा खयाल है. आप मुझे उस के पास ले चलो, मैं उस से कुछ बातें करूंगा. इस बात की कानोंकान किसी को खबर नहीं हो पाएगी. आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’

उन्होंने मुझे रेशमा के पास पहुंचा दिया. मैं ने उन दोनों को बाहर भेज दिया. वे दरवाजे के पीछे जा कर खड़े हो गए. मैं ने रेशमा से नरम लहजे में कहा, ‘‘रेशमा, मैं तुम से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. दरअसल मैं तुम से नासिर के बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूं. वैसे तो मैं सब जानता हूं, फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना जरूरी है.’’

‘‘मैं जो जानती हूं, सब बताऊंगी.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘कत्ल की रात तुम खेतों में नासिर से मिलने गई थीं, मुझे यह बताओ कि उस पर हमला किस ने किया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं उस रात नासिर से मिलने नहीं गई थी.’’ वह मजबूती से बोली. उस के लहजे में विश्वास और यकीन साफ झलक रहा था.nमैं ने अगला सवाल किया, ‘‘जमील ने मुझे बताया है कि तुम्हारी और नासिर की मुलाकात पहले से तय थी. यह बात इस से भी साबित होती है, क्योंकि नासिर तुम से मिलने खेतों में गया था.’’

‘‘यही बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है कि नासिर वहां क्यों गया था? जबकि उस ने खुद ही प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था.’’ उस ने उलझन भरे लहजे में कहा.

‘‘प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था, यह तुम क्या कह रही हो?’’ उस की बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रही हूं थानेदार साहब, मुझे नहीं पता प्रोग्राम कैंसिल करने के बाद नासिर वहां क्यों गया था. कल से मैं यही बात सोच रही हूं.’’ रेशमा ने सोचते हुए कहा.

‘‘एक मिनट, तुम दोनों के बीच खबर का आदानप्रदान जमील ही करता था न, पर जमील पिछले 2 दिनों से गुलाबपुर में नहीं था. फिर प्रोग्राम कैंसिल होने की खबर तुम्हें किस ने दी?’’ मैं ने उसे देखते हुए पूछा.

‘‘इम्तियाज ने.’’ उस ने एकदम से कहा.

‘‘इम्तियाज कौन है?’’

‘‘माजिद चाचा का बेटा.’’

‘‘क्या इम्तियाज को भी तुम दोनों की मोहब्बत की खबर थी?’’

‘‘नहीं जी, वह तो 8 साल का बच्चा है. हमारे पड़ोस में ही रहता है.’’

‘‘इम्तियाज ने तुम से क्या कहा था?’’

‘‘मुझे तो यह जान कर ही बड़ी हैरानी हुई थी कि नासिर ने इम्तियाज के हाथ यह पैगाम क्यों भिजवाया था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैं ने चेक करने के लिए उस से पूछा, ‘कहां नहीं जाना है.’ इस पर उस ने कहा था कि वह इस से ज्यादा कुछ नहीं जानता. नासिर भाई ने कहा है कि रेशमा को कह दो कि आज नहीं आना है. कुछ जरूरी काम है.’’ उस ने रुकरुक कर आगे कहा, ‘‘मैं जमील की दुकान पर जा कर पता कर लेती, पर वह टोबा टेक सिंह चला गया था. इम्तियाज से कुछ पूछना बेकार था. बहरहाल मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं नासिर से मिलने नहीं जाऊंगी.’’

‘‘इस का मतलब है कि नासिर को पूरी मंसूबाबंदी से साजिश के तहत कत्ल किया गया है. मुझे यकीन है कि इम्तियाज उस आदमी को पहचानता होगा, जिस ने नासिर के हवाले से तुम्हारे लिए संदेश भेजा था.’’ मैं ने सोचते हुए कहा.

‘‘आप यह बात इम्तियाज से पूछें. मेरी तबीयत बहुत बिगड़ रही है. चक्कर आ रहे हैं.’’ वह कमजोर लहजे में बोली.

‘‘तुम आराम करो रेशमा, पर इन बातों का किसी से जिक्र मत करना और परेशान मत होना.’’ मैं ने उसे समझाया.

जब मैं कमरे से निकला तो उस के मांबाप ने मुझे घेर कर पूछा, ‘‘थानेदार साहब, कुछ पता चला?’’

‘‘कुछ नहीं, बल्कि सब कुछ पता चल गया है.’’

‘‘हमें भी तो कुछ बताइए न?’’ शकूर ने कहा.

‘‘पहले आप पड़ोस से इम्तियाज को बुलाएं.’’

थोड़ी देर में सरदारा बी इम्तियाज को बैठक में ले आई. वह 8 साल का मासूम सा बच्चा था. मैं ने उसे प्यार से अपने पास बिठा कर पूछा, ‘‘बेटा इम्तियाज, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’

‘‘हां, आप पुलिस हैं.’’ वह मुझे गौर से देखते हुए बोला.

इधरउधर की एकदो बातें करने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम स्कूल जाते हो, एक अच्छे बच्चे हो, सच बोलने वाले. यह बताओ, परसों शाम को तुम ने रेशमा बाजी से कहा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैं ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ था न?’’

‘‘हां, ऐसा हुआ था साहब.’’ इम्तियाज बोला.

‘‘तुम बहुत अच्छे बच्चे हो. मैं तुम्हें टाफियां दूंगा. अब यह भी बता दो कि तुम ने रेशमा बाजी को कहां जाने से मना किया था?’’

‘‘यह मुझे नहीं पता.’’ वह मासूमियत से बोला, ‘‘आप को यकीन नहीं आ रहा है तो रब की कसम खाता हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, कसम खाने की जरूरत नहीं है. मुझे तुम पर भरोसा है. तुम ने तो रेशमा बाजी से वही कहा था, जो नासिर भाई ने तुम से कहलवाया था, है न?’’

‘‘नहीं जी.’’ वह उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगा.

‘‘क्या नहीं?’’

‘‘यह बात मुझे नासिर भाई ने नहीं कही थी.’’

उस ने कहा तो मैं ने तपाक से सवाल किया, ‘‘फिर किस ने कही थी?’’

‘‘हैदर भाई ने.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है हैदर अली? सरदारा बी का भांजा हैदर अली, जुलेखा का बेटा.’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी, जी वही हैदर भाई.’’ उस ने जल्दी से कहा.

सरदारा बी की बहन जुलेखा का घर भी गुलाबपुर में ही था. हैदर अली उसी का बेटा था और वह इसी हैदर से रेशमा की शादी करना चाहती थी. यह भी सुनने में आया था कि हैदर का दावा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. मैं सोचने लगा कि जब उसे रेशमा और नासिर की मोहब्बत का पता चला होगा तो उस ने अपने प्रतिद्वंदी को रास्ते से हटाने की कोशिश की होगी. मुझे लगा कि अब केस हल हो जाएगा. जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा, उसे डराधमका कर मैं उस की जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाऊंगा. पर ऐसा नहीं हुआ.

जब मैं जुलेखा के घर पहुंचा तो हैदर अली घर पर नहीं था. मैं ने जुलेखा से पूछा, ‘‘हैदर अली कहां गया है?’’

‘‘मुझे तो पता नहीं, बता कर नहीं गया है जी. वैसे आप हैदर को क्यों ढूंढ रहे हैं?’’ वह परेशान हो कर बोली.

उस की परेशानी स्वाभाविक थी. अगर पुलिस किसी के दरवाजे पर आए तो घर के लोग चिंता में पड़ जाते हैं. मैं जुलेखा को अंधेरे में नहीं रखना चाहता था. मैं ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें यह पता है न कि गुलाबपुर में एक लड़के का कत्ल हो गया है?’’

‘‘जी…जी मालूम है, बशीर लोहार के जवान बेटे का कत्ल हो गया है. किसी जालिम ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा है.’’ उस ने कहा.

‘‘किसी ने नहीं, एक खास बंदे ने जिस की तलाश में मैं यहां आया हूं. तुम्हारा लाडला हैदर अली.’’

‘‘नहींऽऽ.’’ उस ने एक चीख सी मारी, ‘‘मेरा बेटा कातिल नहीं हो सकता. आप को कोई गलतफहमी हुई है थानेदार साहब.’’ वह रोनी आवाज में बोली.

‘‘हर मां का यही खयाल होता है कि उस का बेटा मासूम है. पर मैं तफ्तीश कर के पक्के सुबूत के साथ यहां आया हूं.’’

‘‘कैसा सुबूत साहब?’’ वह परेशान हो कर बोली.

‘‘हैदर अली को मेरे हाथ लगने दो, उसी के मुंह से सुबूत भी जान लेना.’’ मैं ने तीखे लहजे में कहा.

काफी देर राह देखने के बाद मैं ने गांव में अपने 2 लोग उस की तलाश में भेजे. पर वह कहीं नहीं मिला. इस का मतलब था, वह गांव छोड़ कर कहीं भाग गया था. गुलाबपुर में भी किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं था. हैदर अली के गांव से गायब होने से पक्का यकीन हो गया कि वारदात में उसी का हाथ था. मैं काफी देर तक गुलाबपुर में रुका रहा. फिर जुलेखा से कहा, ‘‘जैसे ही हैदर घर आए, उसे थाने भेज देना.’’

एक बंदे को टोह में लगा कर मैं थाने लौट आया. अगले रोज मैं सुबह की नमाज पढ़ कर उठा ही था कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो सामने कांस्टेबल न्याजू खड़ा था. पूछने पर बोला, ‘‘साहब, जिस सिपाही को हैदर पर नजर रखने के लिए गांव में छोड़ कर आए थे, उस ने खबर भेजी है कि वह देर रात घर लौट आया है.’’

‘‘न्याजू, तुम और हवलदार समद फौरन गुलाबपुर रवाना हो जाओ और हैदर अली को साथ ले कर आओ.’’ मैं ने उसे आदेश दिया.

तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा तो थोड़ी देर बाद हवलदार समद हैदर को गिरफ्तार कर के ले आया. उस के साथ रोती, फरियाद करती जुलेखा भी थी. मैं ने कहा, ‘‘देखो, रोनेधोने की जरूरत नहीं है. यह थाना है शोर मत करो.’’

‘‘साहब, आप मेरे जवान बेटे को पकड़ कर ले आए हैं, मैं फरियाद भी न करूं.’’ वह रोते हुए बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुलाया है, फांसी पर चढ़ाने के लिए नहीं. अगर वह बेकुसूर है तो अभी थोड़ी देर में छूट जाएगा. यह मेरा वादा है तुम से.’’

‘‘अल्लाह करे, मेरा बेटा बेगुनाह निकले.’’

‘‘मेरी सलाह है, तुम घर चली जाओ. अगर हैदर बेकुसूर है तो शाम तक घर आ जाएगा.’’

हैदर को मैं ने अपने कमरे में बुलाया. हवलदार समद भी साथ था. मैं ने उसे गहरी नजर से देख कर तीखे लहजे में कहा, ‘‘हैदर, इसी कमरे में तुम्हारी जुबान खुल जाएगी या तुम्हें ड्राइंगरूम की सैर कराई जाए.’’

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उतर गया. वह गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, मैं ने ऐसा क्या किया है?’’

‘‘क्या के बच्चे, मैं बताता हूं तेरी काली करतूत. तूने नासिर का कत्ल किया है.’’

‘‘नहीं जी, मैं ने किसी का कत्ल नहीं किया.’’ वह घबरा उठा.

‘‘फिर नासिर का कातिल कौन है?’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘मुझे कुछ पता नहीं थानेदार साहब.’’ वह हकलाया.

‘‘तुम्हें यह तो पता है न कि रेशमा तुम्हारी बचपन की मंगेतर है.’’ मैं ने टटोलने वाले अंदाज में कहा.

‘‘जी, जी हां, यह सही है.’’ उस ने कहा.

‘‘और यह भी तुम्हें मालूम होगा कि मकतूल नासिर और तुम्हारी मंगेतर रेशमा में पिछले कुछ अरसे से इश्क का चक्कर चल रहा था?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं थानेदार साहब?’’ उस ने नकली हैरत दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं जो कह रहा हूं, तुम अच्छी तरह समझ चुके हो. सीधी तरह से सच्चाई बता दो, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रहा हूं, मैं ने नासिर का कत्ल नहीं किया.’’ वह नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘नासिर के कत्ल वाली बात पहले हो चुकी है. अभी मेरे इस सवाल का जवाब दो कि तुम्हें रेशमा और नसिर के इश्क की खबर थी या नहीं? सच बोलो.’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था.’’

‘‘तो क्या तुम इम्तियाज को भी नहीं जानते?’’

‘‘कौन इम्तियाज?’’ वह टूटी हुई आवाज में बोला.

‘‘माजिद का बेटा, रेशमा का पड़ोसी बच्चा. याद आया कि नहीं?’’ मैं ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, आप उस बच्चे की बात कर रहे हैं.’’

‘‘हां…हां, वही बच्चा, जिस के हाथ तुम ने रेशमा के लिए संदेश भेजा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैंने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा तो वह हैरानी से बोला, ‘‘मैं ने? मैं ने तो ऐसी कोई बात नहीं की…’’

‘‘तुम्हारे इस कारनामे के 2 गवाह मौजूद हैं. एक तो इम्तियाज, जिस के हाथ तुम ने संदेश भेजा था, दूसरी रेशमा, जिस के लिए तुम ने यह पैगाम भेजा था. अब बताओ, क्या कहते हो?’’

मेरी बात सुन कर वह हड़बड़ा गया. हवलदार समद ने कहा, ‘‘आप इस नालायक को मेरे हवाले कर दें, एक घंटे में फटाफट बोलने लगेगा.’’

मैं ने हैदर अली को हवलदार के हवाले कर दिया. थोड़ी देर में उस की चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. एक घंटे के पहले ही हवलदार ने खुशखबरी सुनाई.

‘‘हैदर अली ने जुर्म कुबूल लिया है. आप इस का बयान ले लें.’’

‘‘मतलब यह कि उस ने नासिर के कत्ल की बात मान ली है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी नहीं, बात कुछ और ही है, आप उसी से सुनिए.’’

हैदर अली ने नासिर का कत्ल सीधेसीधे नहीं किया था. अलबत्ता वह एक अलग तरह से इस कत्ल से जुड़ा था. यह भी सच था कि नन्हे इम्तियाज से रेशमा को पैगाम उसी ने भिजवाया था. यह पैगाम उस ने चौधरी आफताब के कहने पर रेशमा को भिजवाया था, ताकि रेशमा वारदात की रात मुलाकात की जगह न पहुंच सके और नासिर को ठिकाने लगाने में किसी मुश्किल का सामना न करना पड़े. चौधरी आफताब नजीराबाद के चौधरी का बेटा था. वह भी कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था. हाल ही में खेले गए टूर्नामेंट में वह नजीराबाद से खेल रहा था. फाइनल मैच में नजीराबाद की बुरी तरह से हार हुई थी. कप और इनाम गुलाबपुर के हिस्से में आए. ढेरों तारीफ व जीत की खुशी भी नासिर के नाम लिखी गई.

एक कबड्डी का दांव नासिर और आफताब के बीच पड़ा था, जिस में नासिर ने चौधरी आफताब को इतनी बुरी तरह से रगड़ा था कि उस की नाक और मुंह से खून बहने लगा था. एक तो गांव की हार, ऊपर से अपनी दुर्गति पर उस का दिल गुस्से और बदले की आग से जलने लगा था. उस का वश चलता तो वह वहीं नासिर का सिर फोड़ देता. उस ने मन ही मन इरादा कर लिया कि नासिर से बदला जरूर लेगा. इस तरह उस का अपने सब से बड़े प्रतिद्वंदी से भी पीछा छूट जाएगा. आफताब से हैदर ने कह रखा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. किसी तरह उसे यह भी पता चल गया था कि नासिर और रेशमा के बीच मोहब्बत और मुलाकात का सिलसिला चल रहा है. इसलिए उस ने एक तीर से दो शिकार करने का खतरनाक मंसूबा बना लिया.

हैदर अली को रेशमा और नासिर के संबंध का शक तो था ही, पर जब आफताब ने इस बारे में उसे शर्मसार किया तो वह आपे से बाहर हो गया. चौधरी आफताब ने उसे समझाया कि जोश के बजाय होश और तरीके से काम लिया जाए तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी सलामत रहेगी. हैदर अली ने चौधरी आफताब का साथ देने का फैसला कर लिया. हैदर अली ने अपने हाथों से नासिर का कत्ल नहीं किया था, पर वह इस साजिश का एक हिस्सा था. जिस में चौधरी के भेजे हुए दो लोगों ने तेजधार चाकू की मदद से नासिर का बेदर्दी से कत्ल कर दिया था. जब कातिल उसे मौत के घाट उतार रहे थे तो हैदर अली थोड़ी दूर अंधेरे में खड़ा यह खूनी तमाशा देख रहा था.

हैदर अली के इकबालेजुर्म और गवाही पर मैं ने उसी रोज खुद नजीराबाद जा कर नासिर के कत्ल के सिलसिले में चौधरी आफताब को भी गिरफ्तार कर लिया था. आफताब गांव के चौधरी का बेटा था, इसलिए उस की गिरफ्तारी को रोकने के लिए मुझ पर काफी दबाव डाला गया था, पर मैं ने उस के असर व पैसे की परवाह न करते हुए चौधरी आफताब और उस की निशानदेही पर उन दोनों कातिलों को भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था. अपनी हर कोशिश नाकाम होते देख चौधरी ने मुझे धमकी दी थी, ‘‘मलिक साहब, आप को मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है. मैं अपने बेटे को अदालत से छुड़वा लूंगा.’’

मैं ने विश्वास से कहा, ‘‘चौधरी साहब, मैं सिर्फ खुदा की ताकत और कानून से डरता हूं. आप को जितना जोर लगाना है, लगा लो. आप का होनहार बेटा अदालत से सीधा जेल जाएगा.’’

मैं ने हैदर अली, चौधरी आफताब और नासिर के दोनों कातिलों के खिलाफ बहुत सख्त रिपोर्ट बनाई और उन्हें अदालत के हवाले कर दिया. दोनों कातिल अपने जुर्म का इकबाल कर चुके थे, इसलिए उन की बाकी जिंदगी जेल में ही गुजरनी थी. Crime Stories

 

Stories in Hindi Love : दिल के मरीज डौक्टर की हैवानियत – बेरहम एकतरफा प्यार

Stories in Hindi Love : बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई. मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी. डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है.

कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी. पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी.

डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी. डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था.

नहीं सुनी पुलिस ने

पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया. डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी. थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो.

मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े. शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की.

आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी. जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था. आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी.

प्रतिभावान डाक्टर थी योगिता

योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया.

योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा. इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था. डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे.

कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी.

इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी. दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा. 18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली. उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया.

डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक

इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया. बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी.

बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था.  इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं.

सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी. डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया.

बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली. Stories in Hindi Love

MP Crime News : दो दीवानों की एक हसीना

MP Crime News : लीला की हत्या कर हत्यारों ने सारे सुबूत मिटा दिए, जिस से पुलिस उन तक पहुंच न पाए. पुलिस सचमुच उन तक पहुंच भी नहीं पाई. आखिर 3 सालों बाद एडिशनल एसपी दिलीप सोनी के हाथ ऐसा कौन सा सुबूत लग गया कि उन्होंने लीला के हत्यारों को खोज निकाला. हवा के साथ आने वाली दुर्गंध ने हाईवे पर बने जसपाल ढाबा के कर्मचारियों और ग्राहकों को कुछ ज्यादा ही परेशान कर दिया तो ढाबे के नौकर यह पता करने को मजबूर हो गए कि आखिर यह दुर्गंध आ कहां से रही है? क्योंकि वह दुर्गंध किसी लाश के सड़ने जैसी थी.

ढाबे के नौकर दुर्गंध के बारे में पता करने उस ओर गए, जिस ओर से दुर्गंध आ रही थी तो ढाबे से थोड़ी दूरी पर कच्ची सड़क के किनारे एक टीवी का कार्टन रखा दिखाई दिया. नजदीक जाने पर पता चला कि दुर्गंध उसी से आ रही थी. इस का मतलब उसी में लाश रख कर कोई फेंक गया था. ढाबे के नौकरों ने यह बात मालिक को बताई तो उन्होंने इस बात की सूचना क्षेत्रीय थाना खजराना पुलिस को दे दी. कार्टन में रखी लाश की सूचना मिलते ही तत्कालीन थानाप्रभारी पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. कार्टन खुलवाया गया तो उस में डबलबैड की चादर में लिपटी एक लड़की की लाश निकली.

लाश बाहर निकलवाई गई. लाश सड़ चुकी थी, लेकिन उस का चेहरा ऐसा था कि उसे पहचान जा सकता था. थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी अधिकारियों को दे कर एफएसएल जांच के लिए डा. सुधीर शर्मा को बुला लिया. मृतका की उम्र 24-25 साल रही होगी. वह सलवारकुरता पहने थी. लाश डबलबैड की चादर में लपेट कर कार्टन में रख कर वहां फेंकी गई थी. वह वीरान इलाका था. दूरदूर इक्कादुक्का मकान बने थे. स्थितियां बता रही थीं कि लाश बाहर से ला कर फेंकी गई थी. वहां लाश की शिनाख्त होने का कोई चांस नहीं था, इसलिए पुलिस ने लाश के फोटो करा कर उस के कपड़े, कार्टन और चादर जब्त कर के घटनास्थल की अन्य काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए एम.वाय. अस्पताल भिजवा दिया. यह 27 जून, 2011 की बात थी.

चूंकि लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी, इसलिए उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने पहले तो यह पता किया कि इंदौर या आसपास के जिलों के किसी थाने में किसी लड़की की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब पता चला कि इंदौर या आसपास के जिलों के किसी थाने में इस तरह की महिला की कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं है तो पुलिस ने उस के फोटो अखबार में छपवाए. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मिल गई तो पुलिस ने शिनाख्त होने तक उसे सुरक्षित रखवा दिया. लाश की शिनाख्त जरूरी थी, क्योंकि लाश की शिनाख्त के बिना पुलिस के लिए जांच आगे बढ़ाना नामुमकिन था.

जब कहीं से कोई गुमशुदगी की सूचना दर्ज होने की जानकारी नहीं मिली तो थाना खजराना पुलिस ने लाश के फोटो तो अखबारों में छपवाए ही थे, बाद में उस के पैंफ्लेट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए कि शायद कोई आनेजाने वाला उसे पहचान ले. लेकिन पुलिस की यह युक्ति भी काम नहीं आई. जब न लाश की शिनाख्त हुई और न ही कोई उसे लेने आया तो थाना खजराना पुलिस ने लावारिस के रूप में उस का अंतिम संस्कार करा दिया. अब तक पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल चुकी थी. रिपोर्ट के अनुसार मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी. इस का मतलब उसे गला दबा कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या करने के बाद मृतका से दुष्कर्म भी किया गया था. थाना खजराना पुलिस ने मृतका की शिनाख्त कराने की बहुत कोशिश की, लेकिन किसी भी तरह शिनाख्त नहीं हो सकी. बिना शिनाख्त के जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. मजबूर हो कर खजराना पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी. नवंबर, 2014 में सीएसपी के.के. शर्मा ऐसे मामलों की फाइलें देख रहे थे, जिन्हें थाना पुलिस बंद कर चुकी थी. उन की नजर थाना खजराना के इस मामले की फाइल पर पड़ी तो उन्होंने इसे निकाल लिया. फाइल का अध्ययन करने के बाद उन्होंने कुछ दिशानिर्देशों के साथ इस मामले की फाइल को क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एडिशनल एसपी दिलीप सोनी को सौंप दी.

दिलीप सोनी ने फाइल का गहनता से अध्ययन किया. पहले की जांच में ऐसा कुछ नहीं था, जिस से उन्हें जांच को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता मिलता. उन्होंने जब्त सामान की सूची पढ़ी तो उस में उन्हें एक ऐसा सामान नजर में आया, जिस की मदद से वह अपनी जांच को आगे बढ़ा सकते थे. वह सामान कुछ और नहीं, टीवी का वह कार्टन था, जिस में भर कर लाश फेंकी गई थी. थाना खजराना जा कर दिलीप सोनी ने वह कार्टन निकलवाया. वह कार्टन सनसुई टीवी का था. कार्टन देख कर एडिशनल एसपी दिलीप सोनी के चेहरे पर चमक आ गई. क्योंकि उस की मदद से वह अपनी जांच को आगे बढ़ा सकते थे. घटना भले ही 3 साल पुरानी हो चुकी थी, लेकिन कार्टन पूरी तरह सुरक्षित था.

उन्होंने कार्टन से सीरियल नंबर नोट किया और सीधे इंदौर के एमटीएच कंपाउंड स्थित सनसुई के डीलर के यहां जा पहुंचे. कार्टन पर लिखे सीरियल नंबर से उन्हें उस दुकान का पता मिल गया, जहां उस सीरियल नंबर का टीवी भेजा गया था. दिलीप सोनी ने दुकान के माध्यम से उस आदमी का पता लगा लिया, जिस ने उस कार्टन वाला टीवी खरीदा था. दुकानदार से पता चला कि उस टीवी को इंदौर के रोशननगर के रहने वाले मंसूर के बेटे इमरान ने खरीदा था. दिलीप सोनी ने टीम के साथ इमरान के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस टीम उसे हिरासत में ले कर क्राइम ब्रांच के औफिस ले आई. वहां उस से हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो एकदम भोला बन कर उस ने कहा,

‘‘सर, आप को गलतफहमी हुई है, मैं ने किसी की हत्या नहीं की. मेरी किसी से क्या दुश्मनी थी, जो मैं किसी की हत्या करूंगा.’’

इस के बाद दिलीप सोनी ने इमरान को वह कार्टन दिखा कर कहा, ‘‘तुम ने 3 साल पहले एक महिला की हत्या की थी और इसी कार्टन में उस महिला की लाश भर कर हाईवे के पास मैदान में फेंकी थी.’’

श्री सोनी की इस बात से इमरान थोड़ा घबराया जरूर, लेकिन बहुत जल्दी खुद को संभाल कर बोला, ‘‘साहब, जब मैं उस महिला को ही नहीं जानता तो टीवी के इस डिब्बे में लाश कैसे भर कर फेकूंगा?’’

‘‘तुम उस महिला को अवश्य जानते हो, क्योंकि यह कार्टन तुम्हारा है.’’

‘‘साहब, इस का क्या सुबूत कि टीवी का यह डिब्बा मेरा ही है? कोई और भी तो टीवी के इस डिब्बे में लाश भर कर फेंक सकता है.’’

‘‘इस का भी मेरे पास सुबूत है. इस पर जो सीरियल नंबर पड़ा है, उस से मैं ने पता कर लिया है. इस सीरियल नंबर की रसीद तुम्हारे ही नाम कटी है और इस पर जो सीरियल नंबर पड़ा है, वही सीरियल नंबर तुम्हारे टीवी का भी है, जिसे मैं ने तुम्हारे घर से जब्त किया है.’’ दिलीप सोनी ने कहा. इस के बावजूद इमरान यह बात मानने को तैयार नहीं था कि डिब्बे में मिली लाश वाली महिला की हत्या उस ने की है. मजबूरन पुलिस को थोड़ी सख्ती करनी पड़ी, तब कहीं जा कर उस ने सच्चाई उगली. इस के बाद उस ने मृतका का नाम ही नहीं बताया, बल्कि उस की हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

पता चला कि उस हत्या में उस का एक दोस्त अफगान भी शामिल था. इस के बाद पुलिस ने छापा मार कर उस के घर से उसे भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने उस महिला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी. मृतका का नाम लीला कीर था. वह मध्य प्रदेश के इंदौर के रालामंडल मोहल्ले की रहने वाली थी. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. उस का कोई भाईबहन भी नहीं था. उस का जो कुछ थी, सिर्फ मां थी. मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह मां ने पालापोसा और जब वह शादी लायक हुई तो मां ने उस की शादी जिला देवास के गांव बरोठ के रहने वाले राम सिंह कीर से कर दी. दुर्भाग्य से शादी के कुछ महीने बाद ही लीला के पति की मौत हो गई. ससुराल में सहारा न मिलने पर वह फिर मां के पास इंदौर आ गई.

बूढ़ी होने की वजह से मां अब पहले की तरह कामधाम नहीं कर पाती थी, इसलिए अब उसे बेटी बोझ लगने लगी थी. वह उस का खर्च नहीं उठा सकती थी, इसलिए उस ने बेटी से कोई काम करने को कहा. काम की तलाश में लीला निकली तो उसे पुलिस पत्रिका में काम मिल गया. लीला घर से औफिस तक टाटा मैजिक से आतीजाती थी. उसे नौकरी पर आनेजाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. एक दिन औफिस जाते समय उस ने अपनी परेशानी टाटा मैजिक चलाने वाले इमरान को बताई तो उस ने उसे इंदौर के मोहल्ला खजराना में एक कमरा दिलवा दिया. इस के बाद इमरान अकसर लीला से मिलने उस के कमरे पर जाने लगा और जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी करने लगा.

इमरान ने लीला से खुद को कुंवारा बताया था. इसलिए इमरान के एहसानों तले दबी लीला उस की ओर आकर्षित होने लगी. वैसे भी लीला अकेली थी, इसलिए उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत थी. क्योंकि मां का घर छोड़ने के बाद मां ने उस की कोई सुध नहीं ली थी. उस ने कभी यह भी नहीं पता किया कि जवान बेटी कहां है और क्या कर रही है? इस की वजह शायद यह थी कि वह खुद ही बूढ़ी थी और उस का कोई सहारा नहीं था.

इमरान जवान भी था और ठीकठाक कमाता भी था. इसलिए लीला ने उसे अपना सहारा बनाने का निर्णय ही नहीं कर लिया, बल्कि खुद को उस के हाथों में सौंप भी दिया. इस के बाद इमरान उसी के साथ पति की हैसियत से रहने लगा और उस के सारे खर्च उठाने लगा. लेकिन दोनों ने शादी नहीं की. यह एक तरह से समझौता का संबंध था. कुछ दिन तो सब ठीकठाक चला, लेकिन कुछ दिनों बाद इमरान अकसर रात को गायब रहने लगा. पूरीपूरी रात इमरान के गायब रहने से लीला को शंका होने लगी. पति की मौत के बाद लीला जब से इस नौकरी में आई थी, काफी अनुभवी हो गई थी.

उसे इमरान पर संदेह हुआ तो वह पता करने लगी कि आखिर आए दिन इमरान जाता कहां है? सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने एक दिन उस का पीछा किया तो इमरान की असलियत सामने आ गई. वह इंदौर के ही रोशननगर जाता था, जहां उस की पत्नी और बेटा रहता था. जब लीला को पता चला कि इमरान शादीशुदा ही नहीं, बल्कि एक बेटे का बाप भी है तो उस ने उसे आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘मैं ने तुम पर विश्वास कर के अपना सब कुछ सौंप दिया, जबकि तुम ने मेरे साथ धोखा किया. तुम शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे के बाप भी हो. इस के बावजूद तुम मुझे शादी का झांसा देते रहे.’’

‘‘मैं ने तुम्हें झांसा नहीं दिया, बल्कि मैं तुम से शादी के लिए तैयार हूं. तुम्हें पता होना चाहिए कि हम मुसलमान हैं. हम 4 शादियां कर सकते हैं. जिस दिन तुम कहो, उस दिन मैं तुम से निकाह के लिए तैयार हूं. निकाह कर के तुम मेरे साथ ही रहना.’’ इमरान ने लीला को समझाते हुए कहा.

लेकिन यह लीला को मंजूर नहीं था. वह साझे का पति नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मुझ से शादी करने से पहले तुम्हें अपनी पत्नी को तलाक देना होगा.’’

इमरान ने लीला को बहुत समझाया, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें जो भी फैसला लेना है, अभी लो, वरना मैं जहर खा लूंगी और तुम्हें फंसा दूंगी.’’

परेशान इमरान ने कहा, ‘‘लीला, मुझे कुछ दिनों की मोहलत दो. मैं सोचविचार कर बताता हूं.’’

इस पर लीला भड़क उठी, ‘‘इस में सोचनाविचारना क्या है. तुम अपनी बीवी को तलाक दो और मुझ से शादी करो. इस के अलावा और कुछ नहीं हो सकता.’’

इमरान चाहता था कि लीला उस की पत्नी और बच्चे के साथ रहे. इस के लिए वह लीला को समझाता रहा. लेकिन लीला इस के लिए तैयार नहीं थी. जब लीला ने देखा कि इमरान अपनी बीवी को तलाक देने को तैयार नहीं है तो उस ने सचमुच में जहर खा लिया. लीला की इस हरकत से इमरान घबरा गया. वह फंस सकता था. उसे बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने भी जहर खा लिया. इत्तफाक से उसी समय इमरान का दोस्त अफगान उर्फ बादशाह शेख वहां आ गया. इमरान और लीला फर्श पर पड़े थे. उन के मुंह से झाग निकल रहा था. उन की हालत देख कर उसे समझते देर नहीं लगी कि इन्होंने जहर खा लिया है. दोनों की हालत देख कर अफगान घबरा तो गया, लेकिन उस ने होश नहीं खोया. जल्दी से एक वैन ले आया और दोनों को अस्पताल पहुंचाया.

डाक्टरों के अथक प्रयास से इमरान और लीला बच गए. दोनों ने जहर खाया था, इसलिए मामला पुलिस तक पहुंचा. लेकिन दोनों ने पुलिस पूछताछ में बयान दिया कि उन्होंने गलती से जहरीली चीज खा ली थी. अपने इस बयान से दोनों कानूनी शिकंजें में फंसने से बच गए. दोनों स्वस्थ हो गए तो अस्पताल से छुट्टी मिल गई. लेकिन लीला ने इमरान के साथ जाने से मना कर दिया. अस्पताल में इलाज के दौरान अफगान ने जिस तरह लीला और इमरान की सेवा की थी, उस से लीला को उस पर काफी विश्वास हो गया था. इसलिए जब इमरान के साथ जाने से मना किया तो अफगान ने कहा कि जब तक सब ठीक नहीं हो जाता, तब तक वह उस के घर चल कर रहे.

लीला उस के घर जाने को तैयार हो गई. अफगान के साथ जाने में उसे इसलिए भी किसी तरह का डर नहीं था, क्योंकि अफगान शादीशुदा था. लेकिन यह बात इमरान को खलने लगी. वह लीला को अपने घर चल कर रहने को कहता रहा, लेकिन लीला अब उस के घर अपनी शर्त पर ही जाना चाहती थी. यही नहीं, वह उस पर पत्नी को तलाक दे कर शादी के लिए दबाव भी डाल रही थी. इमरान ने अफगान से लीला को मनाने को कहा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि यह उन दोनों का व्यक्तिगत मामला है, इस में वह कुछ नहीं कर सकता.

दोस्त अफगान की इस बात से इमरान को लगा कि शायद अफगान भी नहीं चाहता कि उस का लीला से समझौता हो जाए. इस बात को ले कर इमरान अफगान से नाराज हो गया और उन के रिश्ते में दरार आ गई. उस ने अफगान से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लीला से उस का मिलनाजुलना पहले ही बंद हो चुका था. अफगान उर्फ बादशाह खान फिरदौसनगर में रहता था. वह प्रौपर्टी का काम करता था. उस की कमाई इमरान से बहुत ज्यादा थी. इसलिए लीला को उस के यहां रहने में कोई तकलीफ नहीं थी. वह आराम से अफगान के यहां रह रही थी. लेकिन लीला के लगातार साथ रहने से अफगान की नीयत उस पर खराब होने लगी. जबरदस्ती वह कर नहीं सकता था, क्योंकि घर में पत्नी थी. वह लीला पर डोरे डालने लगा.

लीला ने उस के मन की बात भांप ली, लेकिन उस ने उसे लिफ्ट नहीं दी. क्योंकि वह सचमुच इमरान से प्यार करती थी. मौका मिलने पर उस से मिलती भी थी और मन की बात उस से कहती भी रहती थी. इमरान भी उसे रखना चाहता था, लेकिन वह पत्नी की वजह से साथ रहने को तैयार नहीं थी. जब अफगान को लगा कि उस की दाल गलने वाली नहीं है यानी लीला से उस की इच्छा नहीं पूरी हो सकती तो वह इमरान से मिला और कहा कि उसे जो भी करना है, जल्दी करे और लीला को ले जाए.

इमरान अफगान से काफी नाराज था और उस के घर बिलकुल नहीं जाना चाहता था. लेकिन अफगान खुद चल कर उस के पास आया था, इसलिए उस की नाराजगी कम हो गई थी. अफगान के घर जा कर इमरान ने लीला से अपने साथ चलने को कहा तो उस ने अपनी वही पुरानी शर्त रख दी. इसलिए कोई फैसला नहीं हो सका. तब इमरान लीला को आशवासन दे कर चला आया. अफगान की नीयत लीला पर खराब हो चुकी थी. अब वह मौके की तलाश में था. आखिर उसे तब मौका मिल गया, जब पत्नी बच्चे को ले कर कुछ दिनों के लिए मायके चली गई. घर में लीला को अकेली पा कर अफगान ने उसे दबोच लिया. लीला ने विरोध किया तो अफगान तिलमिला उठा. लीला ने शोर मचाने की बात कही तो उस ने उस का मुंह दबा दिया.

लीला को बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने अफगान के हाथ में दांतों से काट लिया. दर्द से तिलमिलाए अफगान ने अपना हाथ छुड़ाने के लिए दूसरा हाथ उस के गले पर रख कर दबा दिया, फिर अफगान का हाथ तभी छूटा, जब लीला अचेत हो गई. हाथ छूटने पर अफगान ने गौर से देखा तो पता चला कि लीला मर चुकी है. लीला की मौत पर अफगान का गुस्सा शांत हो गया. लेकिन वह घबराया नहीं. उस हालत में भी वह अपनी वासना को दबा नहीं पाया और लीला की लाश के साथ अपनी वासना को शांत की. वासना शांत करने के बाद उस ने लीला की लाश को चादर में लपेट कर पलंग के नीचे खिसका दिया.

इस के बाद वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. तभी उस के दिमाग में आया कि कल इमरान को इस बारे में पता चलेगा तो वह बखेड़ा खड़ा करेगा और वह पकड़ा जाएगा. इसलिए इस मामले में उस ने इमरान को भी शामिल करने का विचार किया. उस ने इमरान को फोन कर के तुरंत अपने घर बुलाया. इमरान के आने पर अफगान ने कहा, ‘‘देख भाई, मैं ने जो किया है, उसे सुन कर तू चौंकेगा जरूर, लेकिन उस में फायदा तेरा ही है. तू लीला को ले कर परेशान था न? मैं ने उसे खत्म कर दिया. अब तू उस की लाश ठिकाने लगाने में मेरी मदद कर.’’

‘‘क्या, तू ने उसे मार डाला?’’ इमरान ने हैरानी से पूछा.

‘‘मारता न तो क्या करता उस को. वह हमारे बीच दरार पैदा कर रही थी. इसलिए उसे मार कर मैं ने अपने बीच की उस बला को खत्म कर दिया. वह तेरे लिए भी परेशानी बनी हुई थी. अब तू बीवी के साथ आराम से रह. क्योंकि तुझे तेरी बीवी से अलग कराने वाली खत्म हो गई.’’ अफगान ने कहा.

जो होना था, वह हो चुका था. इमरान लीला से प्यार तो करता था, लेकिन इधर उस ने उसे परेशान कर दिया था, इसलिए वह भी उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा था. शायद यही सोच कर कि चलो किसी तरह पीछा छूटा, वह लाश ठिकाने लगवाने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि लाश को कैसे और कहां ठिकाने लगाया जाए.

काफी सोचविचार कर इमरान ने कहा, ‘‘मेरे पास टीवी का एक बहुत बड़ा डिब्बा रखा है. लाश को उसी में भर कर मौका मिलने पर आधी रात के बाद कहीं फेंक आएंगे.’’

‘‘तो क्या मौका मिलने तक इस लाश को घर में ही रखना होगा?’’ अफगान ने पूछा.

‘‘वह तो करना ही होगा. जल्दबाजी में कहीं पकड़े गए तो..?’’ इमरान ने कहा.

‘‘मौके की तलाश में लाश सड़ने लगी तो इस की बदबू से पोल खुल जाएगी.’’ अफगान ने कहा.

इस बात ने इमरान को चिंता में डाल दिया. अगले दिन कुछ करने का आश्वासन दे कर इमरान अपने घर चला गया. रात भर वह इसी बात पर विचार करता रहा.

अगले दिन उस ने घर से टीवी का कार्टन लिया और बाजार जा कर तेज खुशबू वाला इत्र खरीदा. इस के बाद अफगान के घर पहुंचा. अफगान की मदद से उस ने चादर में लिपटी लाश कार्टन में भरी और उस पर साथ लाया इत्र छिड़क कर कार्टन को इस तरह पैक कर दिया कि अंदर की बदबू बाहर न निकल सके.

अगले दिन रात 12 बजे के बाद जब सन्नाटा पसर गया तो इमरान अपनी टाटा मैजिक ले कर आया और लाश वाले कार्टन को उस पर रख कर बाईपास रोड पर पहुंच गया. अफगान साथ था ही, उस की मदद से उस ने लाश वाले कार्टन को वहां खाली पड़ी जगह में उतार दिया और घर आ गया. लीला की लाश को ठिकाने लगा कर दोनों निश्चिंत हो गए. वे रोज अखबार पढ़ते थे कि इस मामले में पुलिस क्या काररवाई कर रही है. पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर पाई तो वे निश्चिंत हो गए. जब उन्हें पता चला कि पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी है तो दोनों ने इत्मीनान की सांस ली. उन्हें विश्वास हो गया कि अब वे बच गए.

लेकिन 3 सालों बाद जब इस मामले की फाइल क्राइम ब्रांच के एडिशनल एसपी दिलीप सोनी के सामने आई तो उन्होंने उस कार्टन की मदद से, जिस में लाश भर कर फेंकी गई थी, इमरान और अफगान को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने हत्यारों को पकड़ लिया और उन से हत्या की पूरी कहानी भी जान ली. लेकिन इतने से काम नहीं चल सकता था. उन्हें एक ऐसा गवाह चाहिए था, जो मृतका की शिनाख्त कर सके और उस के संबंध इमरान से थे, यह साबित कर सके. मृतका इमरान के संपर्क में आने से पहले पुलिस पत्रिका में काम करती थी. दिलीप सोनी ने उस के औफिस को खोज निकाला. उस का औफिस इमली बाजार में था. पुलिस पत्रिका औफिस में काम करने वाली माया ने बताया,

‘‘लीला मेरे साथ ही काम करती थी. वह इमरान और अफगान के संपर्क में थी. इमरान सभी से उसे अपनी बहन बताता था तो अफगान खुद को उस का जीजा बताता था. जबकि दोनों का लीला से प्रेमसंबंध था. इस तरह तीनों ही अपने परिचितों को गुमराह करते हुए अपने अवैध संबंध छिपा रहे थे. वहां से नौकरी छोड़ कर जाने के बाद लीला से मेरी मुलाकात नहीं हुई.’’

इस के बाद पुलिस इमरान और अफगान को माया के सामने ले आई तो उस ने दोनों को  पहचान लिया. पूछताछ और सारे सुबूत जुटा कर पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. MP Crime News

—कथा पुलिस स

UP Crime News : गलती खुद की सजा किसी और को

UP Crime News : राजकुमार पढ़ालिखा ही नहीं था, सरकारी नौकरी में भी था. उस की पत्नी आशा भी पढ़ीलिखी होने के साथसाथ खूबसूरत भी थी. दोनों की अच्छी जोड़ी थी. अचानक राजकुमार के मन में ऐसा क्या आया कि वह बीवी का हत्या करने को मजबूर हो गया. उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के नंदगांव का रहने वाला सुनहरीलाल इलाहाबाद में किसी सरकारी विभाग में नौकरी करता था. उस के परिवार में पत्नी शारदा के अलावा बेटी आशा और बेटा राजकुमार उर्फ राजू था. चूंकि सुनहरीलाल इलाहाबाद में परिवार के साथ रहता था, इसलिए आशा और राजकुमार ने वहीं पढ़ाई की थी.

आशा एमए कर के कोई नौकरी कर पाती, सुनहरीलाल रिटायर हो कर गांव आ गया था. आशा की पढ़ाई पूरी हो गई थी और वह शादी लायक हो गई थी, इसलिए सुनहरीलाल को उस की शादी की चिंता हुई. वह लड़के की तलाश में भागदौड़ करने लगे. भागदौड़ का सुखद परिणाम भी निकला. एटा के थाना सकीट के गांव नौरंगाबाद निवासी रौशनलाल बघेल का छोटा बेटा राजकुमार उन्हें आशा के लिए पसंद आ गया तो उन्होंने बेटी की शादी उस के साथ तय कर दी. आशा पढ़ीलिखी तो थी ही, खूबसूरत भी थी, इसलिए लड़के वालों के मना करने का सवाल ही नहीं था. राजकुमार भी कम खूबसूरत नहीं था. एकदम आशा के जोड़ का था. लेकिन वह आशा से कम पढ़ा था.

आशा एमए पास थी, जबकि वह बीए तक ही पढ़ा था. लेकिन उसे शीतलपुर विकास खंड में सफाईकर्मी की नौकरी मिल गई थी. बीए पास राजकुमार ने यह नौकरी मजबूरी में की थी. क्योंकि काफी भागदौड़ और मेहनत के बाद भी उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली थी. संयोग से मायावती शासनकाल में सफाईकर्मियों की भरती की गई तो उसे यह नौकरी मिल गई थी. राजकुमार सरकारी नौकरी में था. स्मार्ट होने के साथसाथ व्यवहारकुशल भी था. इसलिए उस से झाड़ू लगवाने के बजाय विकास खंड अधिकारी औफिस का काम कराने लगे थे. वह मेहनत और लगन से काम करता था, इसलिए औफिस के लोग उसे पसंद करते थे. यही सब देख कर सुनहरीलाल ने आशा के लिए राजकुमार को पसंद किया था.

आशा की शादी हो गई और वह दुलहन बन कर पिया राजकुमार के घर आ गई. पढ़ीलिखी और सुंदर पत्नी पा कर राजकुमार तो खुश था ही, घर वाले भी फूले नहीं समा रहे थे. क्योंकि गांव में उन्हीं की बहू सब से ज्यादा पढ़ीलिखी थी. राजकुमार को शीतलपुर विकास खंड परिसर में आवास भी मिला था, इसलिए शादी के बाद वह आशा को भी वहीं ले आया. आते ही आशा ने पति की पूरी गृहस्थी संभाल ली. दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. आशा पढ़ीलिखी थी, इसलिए वह भी चाहती थी कि कोई नौकरी मिल जाए, जिस से गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल सके. वह नौकरी तलाश रही थी कि तभी पता चला वह गर्भवती हो चुकी है. अब बच्चा होने तक कुछ नहीं हो सकता था.

शादी के साल भर बाद आशा ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अनंत रखा गया. बेटे के जन्म के बाद खुशियां दोगुनी हो गईं. अनंत थोड़ा बड़ा हुआ तो आशा की नौकरी करने वाली लालसा फिर जाग उठी. आशा पढ़ीलिखी थी, लेकिन उस के पास कोई प्रोफेशनल डिग्री नहीं थी. इस के लिए उस ने राजकुमार से कंप्यूटर सीखने की इच्छा जाहिर की. तब राजकुमार ने कहा कि अभी अनंत इस लायक नहीं है कि उसे घर में अकेला छोड़ा जा सके. उसे थोड़ा बड़ा हो जाने दो. फिर अभी कहां उस की उम्र निकली जा रही है.

‘‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं अनंत के कुछ और बड़े होने तक इंतजार कर लेती हूं.’’ आशा ने कहा.

इस के बाद आशा ने महसूस किया कि राजकुमार अब मोबाइल फोन से कुछ ज्यादा ही चिपका रहने लगा है. वह हंसहंस कर इस तरह फुसुरफुसुर बातें करता है, जैसे उस से कुछ छिपाना चाहता है. वह जिस तरह बातें कर रहा था, उस तरह तो किसी लड़की से ही बातें की जाती हैं. यह शंका होने पर आशा ने राजकुमार से पूछा भी, लेकिन कुछ बताने के बजाय वह टाल गया, जिस से आशा का संदेह बढ़ गया. उस का यह संदेह तब विश्वास में बदल गया, जब वह दिवाली पर ससुराल गई. उस ने देखा कि पड़ोस में रहने वाली सुनीता राजकुमार से हंसहंस कर बातें करती थी. औरत होने के नाते उस ने सुनीता की नजरों से ही जान लिया कि मामला गड़बड़ है.

उस ने इस बारे में जानकारी जुटाई तो उसे पता चला कि सुनीता और राजकुमार का प्रेमसंबंध शादी से पहले से चल रहा है. यह जानने के बाद आशा से रहा नहीं गया और उस ने राजकुमार से पूछ लिया, ‘‘मुझे पता चला है कि सुनीता से तुम्हारा अफेयर था? अगर ऐसा था तो तुम ने मुझ से शादी क्यों की? परेशानी की बात यह है कि तुम अभी भी उसे भूल नहीं पाए हो और उस से फोन पर बातें करते हो.’’

यह सुन कर राजकुमार के चेहरे का रंग उड़ गया, क्योंकि उस की चोरी पकड़ी गई थी. उस ने खुद को संभाल कर आशा को आश्वस्त करने के लिए कहा, ‘‘शादी के पहले क्या था, अब यह सोचनेविचारने की जरूरत नहीं है. अब मैं सिर्फ तुम्हारा हूं और वादा करता हूं कि आज से तुम्हें शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा.’’

राजकुमार ने भले ही आशा से वादा किया था कि अब उसे शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा, लेकिन आशा को अब पति पर भरोसा नहीं रह गया था. उसे अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. उसे लगने लगा था कि अब उस का और बेटे का भविष्य तभी सुरक्षित हो सकता है, जब वह नौकरी कर ले. आशा ने कंप्यूटर का कोर्स करने के लिए ब्रज कंप्यूटर सेंटर में दाखिला ले लिया. घर के बाहर निकलने से आशा का मनोबल थोड़ा बढ़ा. परिणामस्वरूप कभीकभी बातचीत में वह राजकुमार को ताना मार देती कि उस की सफाईकर्मी वाली नौकरी उसे बिलकुल पसंद नहीं है. पत्नी के इस ताने से राजकुमार के मन में हीनभावना पैदा होने लगी.

उस की पत्नी सुंदर तो थी ही, उस से ज्यादा पढ़ीलिखी भी थी. यह बात उसे खटकने लगी. हीनभावना से ग्रस्त राजकुमार के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. वह खुद को आशा से हीन समझने लगा था, इसलिए आशा को किसी आदमी से बातचीत करते देख लेता तो जरूर पूछ लेता, ‘‘क्या बातें हो रही थीं, तुम्हें किसी पराए मर्द से बातें करते शरम नहीं आती?’’

शुरू में तो आशा ने राजकुमार की इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब राजकुमार कुछ ज्यादा ही टोकाटाकी करने लगा तो आशा उसे परेशान करने के लिए लोगों से कुछ ज्यादा ही बातें करने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि राजकुमार भी उसे परेशान करने के लिए फिर से सुनीता से फोन पर बातें करने लगा. अब आशा को इस बात की चिंता सताने लगी कि पति की इन हरकतों का असर उस की गृहस्थी पर न पड़े. अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए आशा ने सारी बात मांबाप और भाई को बताई. उस ने पिता से कहा कि उस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. एक तो राजकुमार के गांव की एक लड़की से नाजायज संबंध हैं, दूसरे वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता. उस की समझ में नहीं आता कि वह क्या करे.

बेटी की जिंदगी का सवाल था, इसलिए सुनहरीलाल को ये बातें परेशान करने लगीं. मांबाप को जैसा करना चाहिए, उसी तरह पतिपत्नी ने आशा को समझाया कि जैसे भी हो, वह खुद को संभाले और राजकुमार को प्यार से समझाए, जिस से उस की गृहस्थी में दरार न आए. पढ़ीलिखी होने की वजह से आशा काफी समझदार थी. इसी वजह से राजकुमार के व्यवहार से वह परेशान रहती थी. क्योंकि वह उस की जासूसी करने लगा था. आशा उस की अनुपस्थिति में भी पड़ोस में किसी के घर चली जाती या किसी से बातचीत कर लेती तो घर आ कर वह उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, मारपीट भी करता. कोई पड़ोसी भी उस से बात कर लेता तो पिटाई उसी की होती.

यही नहीं, कंप्यूटर सीखने जाते समय राजकुमार उस के पीछेपीछे जाता. शायद उसे लगने लगा था कि आशा उस से ज्यादा पढ़ीलिखी है, खूबसूरत है, जबकि वह मात्र बीए पास है और सफाईकर्मी की नौकरी करता है, इसलिए दूसरे तो आशा को ताकतेझांकते ही हैं, आशा भी उसे पसंद नहीं करती. इसीलिए उस का भी मन बहक रहा है. ऐसे में कभी औफिस में कोई आशा की तारीफ कर देता तो घर आ कर वह इस का बदला आशा से लेता. मांबाप के इस लड़ाईझगड़े से परेशानी 4 साल के अनंत को भी होती थी. वह सहमासहमा रहता था. आशा बेटे का हवाला दे कर राजकुमार को समझाती भी थी कि उसे अपने इस व्यवहार में बदलाव लाना चाहिए, वरना घर तो बरबाद होगा ही, बेटे का भी भविष्य बरबाद हो जाएगा.

लेकिन राजकुमार की शंका बढ़ती जा रही थी. एक दिन आशा कंप्यूटर सीख कर निकल रही थी तो उस के किसी साथी ने उस से कुछ पूछ लिया. राजकुमार उस पर नजर रख ही रहा था. उस ने आशा को लड़के से बात करते देख लिया तो घर आ कर पूछा, ‘‘वह लड़का कौन था, जिस से तुम बातें कर रही थी?’’

‘‘वह भी मेरे साथ कंप्यूटर सीख रहा है. नईनई जानकारियों के लिए आपस में बात करनी ही पड़ती है. उस ने मुझ से कुछ पूछ लिया तो इस में परेशानी क्या है?’’ आशा ने कहा.

‘‘मुझे लगता है कि तुम वहां कंप्यूटर सीखने नहीं, गुलछर्रे उड़ाने जाती हो.’’

पति के इस आरोप से आशा तड़प उठी, ‘‘तुम मुझे भी अपनी तरह समझते हो क्या? पहले खुद को देखो, उस के बाद किसी को कुछ कहो.’’

आशा का इतना कहना था कि राजकुमार ने उसे 3-4 तमाचे जड़ दिए. पति की इस हरकत से आशा तिलमिला कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं. आज के बाद फिर कभी हाथ उठाया तो जेल भिजवा दूंगी. नौकरी तो जाएगी ही, जेल में पड़े सड़ते रहोगे.’’

आशा की इस धमकी से राजकुमार डर गया. उसे लगा कि उस की पत्नी को बाहर की हवा लग गई है. कंप्यूटर सीख रही है तो इस का यह हाल है, नौकरी लग जाएगी तब तो यह उसे छोड़ ही देगी. यही हाल आशा का भी था. पति की हरकतों से उसे अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. आखिर वह कब तक मारपीट सह कर इस शादी को बचा सकती है? अगर पति ने छोड़ दिया तो वह बेटे को ले कर कहां जाएगी. राजकुमार के दुर्व्यवहार से त्रस्त आशा उस से कटीकटी रहने लगी थी. परेशान आशा जब देखो, तब मायके चली जाती थी. इस से राजकुमार को लगने लगा कि आशा का मायके में किसी से संबंध है, जिस की वजह से वह उस की उपेक्षा कर के मायके जाने लगी है. यह बात मन में आते ही राजकुमार और क्रूर हो गया.

आशा ने कंप्यूटर सीख लिया तो नौकरी ढूंढने लगी. वह सोच रही थी कि नौकरी लगने पर वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो राजकुमार से अलग हो जाएगी. क्योंकि अगर ऐसे में अलग हो जाती है तो मायके वालों पर वह बोझ बन जाएगी. नौकरी से रिटायर हो चुके पिता पर वह बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए पति की मारपीट झेल रही थी. एक दिन आशा का भाई शीतलपुर उस से मिलने आया तो उस ने रोरो कर कहा कि राजकुमार ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अब जिंदा रहना मुश्किल हो गया है. उस ने उस की जिंदगी को नरक बना दिया है.

बहन की परेशानी जान कर राजू परेशान हो उठा. उस ने राजकुमार से बात करने का निश्चय किया. शाम को जब राजकुमार घर आया तो उस ने कहा, ‘‘जीजाजी, आखिर आप चाहते क्या हैं, जो मेरी बहन का जीना हराम कर दिया है?’’

‘‘भई, आप रिश्तेदार हैं, रिश्तेदार बन कर रहिए. हमारा पतिपत्नी का मामला है, आप को बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है.’’ राजकुमार ने कहा.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने से पहले वह मेरी बहन है और मैं अपनी बहन को कभी दुखी एवं परेशान नहीं देख सकता. अच्छा होगा कि तुम अपनी हद में रहो. अपनी गृहस्थी को संभालो, वरना सब बरबाद हो जाएगा.’’

‘‘इसी तरह की धमकी कुछ दिनों पहले तुम्हारी बहन ने भी दी थी, अब तुम दे रहे हो. एक बात याद रखना, तुम ने अगर कुछ ऐसावैसा किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’ राजकुमार ने भी धमकाया. इस के बाद राजू ने राजकुमार से कुछ कहने के बजाय आशा से कहा, ‘‘दीदी, मैं घर जा कर पापा से बात करूंगा. अब कोई न कोई ठोस निर्णय लेना ही होगा.’’

बातचीत कर के राजू चला गया. इतना सब होने के बाद भी राजकुमार की समझ में बात नहीं आई. उस ने आशा की जम कर पिटाई की. पिटाई करते हुए उस के दिमाग में आया कि अब अगर यह मायके गई तो उसे बिलकुल नहीं छोड़ेगी. निश्चित दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कर देगी. उस के बाद तो उस की जमानत भी नहीं हो पाएगी. इसलिए इसे मार देना ही ठीक है. राजकुमार ने आशा को मारने का निर्णय लिया तो इस बात पर विचार करने लगा कि उसे मारे कैसे. चाकूछुरे से वह उस की हत्या कर नहीं सकता था. इसलिए देसी तमंचा और कारतूस खरीद लाया.

दोनों चीजें घर में छिपा दीं. इस के बाद वह मौके की तलाश में लग गया. वह आशा की हत्या इस तरह करना चाहता था कि पुलिस उसे पकड़ न सके, क्योंकि पकड़े जाने पर नौकरी तो जाती ही, पूरी जिंदगी जेल में कटती. दूसरी ओर राजू ने घर जा कर पूरी बात सुनहरीलाल को बताई तो उन्होंने तुरंत आशा को फोन किया. बेटी को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं जल्दी ही आ कर तुम्हें ले आता हूं. उस के बाद राजकुमार के खिलाफ मारपीट और दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दूंगा.’’

संयोग से आशा जब पिता सुनहरीलाल से ये बातें कर रही थी, राजकुमार घर आ चुका था. उसे फोन पर बातें करते देख वह दरवाजे की ओट में खड़ा हो कर उस की बातें सुनने लगा. सुनहरीलाल की बातें तो वह नहीं सुन सका, लेकिन आशा की बातों से उसे ससुर के इरादे का पता चल गया कि वह आशा को ले जा कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने का मन बना चुके हैं. वह वहीं से बाहर निकल गया तो रात 9 बजे लौटा. तब तक आशा अनंत को सुला चुकी थी. उस ने उठ कर राजकुमार को खाना दिया तो वह खाना खा कर बाहर टहलने चला गया. इस के बाद रात 11 बजे के बाद लौटा तो किसी से फोन पर बातें करते हुए अंदर आया.

उस समय तक आशा सो गई थी. लेकिन उस की बातचीत से आशा जाग गई. राजकुमार को फोन पर हंसहंस कर बातें करते देख वह समझ गई कि बातचीत सुनीता से हो रही है. उसे गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘तुम सुनीता से बातें कर रहे हो न, कल पापा आएंगे, मैं उन के साथ चली जाऊंगी. उस के बाद तुम सुनीता से खूब बातें करना. मन हो तो उसे ला कर साथ रख लेना.’’

राजकुमार ने फोन काट कर कहा, ‘‘क्या, कल तुम सचमुच जा रही हो?’’

‘‘हां, कल पापा आ रहे हैं, मैं उन के साथ जा रही हूं. बहुत जुल्म सह लिया मैं ने, अब सहने की हिम्मत नहीं रह गई है. अब मैं तुम से छुटकारा चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता.’’ राजकुमार ने कहा और अलमारी में रखा तमंचा निकाल लिया. राजकुमार के हाथ में तमंचा देख कर आशा डर गई. वह चीखती, उस के पहले ही राजकुमार ने गोली चला दी. शायद उस ने आशा को मारने की पहले से ही तैयारी कर रखी थी, क्योंकि तमंचे में उस ने पहले से गोली भर रखी थी. गोली लगने से जहां आशा पलंग पर ढेर हो गई, वहीं उस की आवाज सुन कर अगलबगल रहने वाले जाग गए. गोली चलाने के साथ राजकुमार चिल्लाने लगा था, ‘बचाओ… बचाओ…बदमाश आ गए.’

पड़ोस में रहने वाले उमेश और कप्तान सिंह राजकुमार के घर पहुंचे तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. वे दरवाजा खुलवा कर अंदर आए तो देखा पलंग पर खून से लथपथ आशा की लाश पड़ी थी. राजकुमार बेटे को गोद में लिए रो रहा था और कह रहा था, ‘‘बदमाश आए थे. वे आशा को गोली मार कर चले गए.’’

पड़ोसियों ने देखा था कि दरवाजा अंदर से बंद था, खिड़की भी बंद थी. फिर बदमाश घर के अंदर कैसे घुसे? अगर आ ही गए तो उन्होंने आशा को ही क्यों गोली मारी? जबकि बदमाश अकसर गोली घर के मर्द को मारते हैं. पड़ोसियों ने कोतवाली सकीट पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी दिनेश कुमार दुबे और सीओ अंबेशचंद्र त्यागी पुलिस बल के साथ विकास खंड परिसर में आ पहुंचे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने राजकुमार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कुछ बदमाश घर में घुस आए और आशा को गोली मार दी. गोली क्यों मारी, यह पूछने पर वह कोई जवाब नहीं दे सका.

पुलिस को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. क्योंकि एक तो खिड़की-दरवाजा अंदर से बंद था, दूसरे बदमाशों ने उसे क्यों छोड़ दिया था, बदमाश मारते तो पहले उसे ही मारते. सीओ अंबेशचंद्र त्यागी ने देखा कि राजकुमार पलंग के इर्दगिर्द नाच रहा है. उन्होंने काररवाई करवा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. इस के बाद पुलिसकर्मियों को बारीकी से तलाशी लेने को कहा. लूटपाट का कोई निशान पहले ही नहीं नजर आ रहा था. लूटपाट हुई भी नहीं थी. तलाशी के दौरान पलंग पर बिछे गद्दे को पलटा गया तो वहां तमंचा मिल गया, जिस से राजकुमार ने आशा की हत्या की थी.

पुलिस ने जब उस से उस तमंचे के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इसे उस ने अपनी सुरक्षा के लिए रखा था. लेकिन जब पुलिस ने उस की नाल चैक की तो पता चला कि उस से गोली चलाई गई थी. पुलिस ने आशा के घर वालों को उस की हत्या की सूचना दे दी और राजकुमार को ले कर कोतवाली आ गई. सूचना पाते ही सुनहरीलाल बेटे राजू के साथ सुबह ही कोतवाली सकीट पहुंच गया. बापबेटे ने पूरी बात पुलिस अधिकारियों को बताई तो साफ हो गया कि आशा की हत्या राजकुमार ने ही की थी.

7 अक्तूबर, 2014 को सुनहरीलाल की ओर से आशा की हत्या का मुकदमा राजकुमार के खिलाफ दर्ज कर के पूछताछ की गई तो उस ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. हथियार पुलिस ने पहले ही बरामद कर लिया था. सारी काररवाई निपटा कर उसी दिन राजकुमार को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : देह सुख के लिए

Extramarital Affair : संजय और कंचन की गृहस्थी बढि़या चल रही थी. दोनों 2 प्यारेप्यारे बच्चों के मांबाप भी थे. इस के बावजूद संजय में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि कंचन को पड़ोसी मनीष ज्यादा भाने लगा.15  दिसंबर, 2014 की सुबह करीब 10 बजे थाना बरौर के थानाप्रभारी संजय कुमार अपने कक्ष में बीती रात पकड़े गए 2 अपराधियों से पूछताछ कर रहे थे कि तभी एक अधेड़ उन के पास आया. थानाप्रभारी ने एक सरसरी नजर उस पर डाली. वह बेहद घबराया हुआ लग रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘कहां से आए हो? क्या काम है?’’

‘‘साब, मैं बसहरा गांव से आया हूं. मेरा नाम गोपीचंद है. बीती रात हमारे भतीजे संजय की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ थानाप्रभारी संजय कुमार ने गोपीचंद्र के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा.

‘‘यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि उसे कोई बीमारी नहीं थी. देर शाम तक वह मुझ से बतियाता रहा था, उस के बाद घर जा कर सो गया था. मुझे सुबह जानकारी मिली कि उस की मौत हो गई है. मुझे शक है कि उस की मौत स्वाभाविक नहीं है, मुझे लगता है उस की हत्या की गई है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘जी साब,’’

‘‘किस पर?’’

‘‘साब, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन मुझे बहू कंचन पर शक है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मुझे कंचन पर इसलिए शक है, क्योंकि पड़ोस का एक लड़का मनीष उस के यहां आता रहता है. उसे ले कर संजय और कंचन के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था. इसीलिए मैं यह बात कह रहा हूं.’’

गोपीचंद की बात सुन कर थानाप्रभारी संजय कुमार सबइंसपेक्टर आर.के. शुक्ला, कांस्टेबल अमर सिंह, शिवप्रताप तथा नीलेश कुमार को साथ ले कर बसहरा गांव की तरफ रवाना हो गए. बसहरा गांव थाने से 5 किलोमीटर दूर औरैया रोड पर है. इसलिए 10-15 मिनट में वह वहां पहुंच गए. गोपीचंद थानाप्रभारी को उस कमरे में ले गया, जहां उस के भतीजे संजय की लाश पड़ी थी. पुलिस को देख कर एक औरत छाती पीटपीट कर रोने लगी. पता चला कि वह मृतक की पत्नी कंचन थी. वहां गांव के और लोग भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने लाश की जांच की तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया. गले में खरोंच का निशान तथा हलकी सूजन जरूर थी.

मरने वाले की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. जामा तलाशी में उस की पैंट की जेब से 70 रुपए, पान मसाला के 2 पाउच तथा एक डायरी मिली, जिस में घरगृहस्थी का हिसाब तथा कुछ नातेरिश्तेदारों के नामपते लिखे थे. निरीक्षण के बाद थानाप्रभारी ने मृतक संजय के शव का पंचनामा भरा और सीलमोहर कर के माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. मृतक की पत्नी कंचन का रोनाधोना अब तक बंद हो गया था. थानाप्रभारी ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का पति संजय देर रात घर आया और खाना खा कर कमरे में सो गया. सुबह जब वह 8 बजे तक नहीं उठा तो वह उस के कमरे में गई. रजाई हटा कर देखा तो उस की धड़कनें बंद थीं.

वह घबरा गई और जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी. उस की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए.

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि संजय की मौत कैसे हुई होगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या संजय नशा भी करता था?’’

‘‘सर, वह शराब, गांजा, अफीम जैसी नशीली चीजों का सेवन करते थे. उन की मौत या तो हार्टअटैक से हुई है या फिर ज्यादा नशा करने से.’’ कंचन ने जवाब में कहा. कंचन से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी को उस पर शक हुआ, क्योंकि जैसा दुख पति की मौत पर एक जवान औरत के चेहरे पर झलकना चाहिए, वैसा कंचन के चेहरे पर नहीं था. रोनेधोने का भी उस ने नाटक ही किया था, आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. पुलिस और मौजूद लोगों की गतिविधियों पर भी वह विशेष नजर रख रही थी. चचिया ससुर गोपीचंद को वह नफरत से घूर रही थी. चूंकि कंचन के खिलाफ उन के पास कोई सुबूत नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

अगले दिन थानाप्रभारी को संजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो रिपोर्ट पढ़ कर वह चौंके. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि उस की मौत गला कसने से हुई थी. उस ने शराब नहीं पी थी और उस ने मृत्यु से पूर्व खाना भी नहीं खाया था. हत्या की पुष्टि होने पर थानाप्रभारी ने कंचन को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. महिला दरोगा सरला यादव ने कंचन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने पति की हत्या की सारी सच्चाई बयां कर दी. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी मनीष के साथ मिल कर की थी. हत्या में मनीष का नाम आने पर पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह फरार हो गया था. तब पुलिस ने उस के घर वालों पर दबाव बनाया.

घर वालों के सहयोग से पुलिस ने मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में एक ऐसी नारी की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने पति की आहुति दे दी थी. उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के पुखरायां कस्बे में रामगोपाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे थे. कंचन उसी की छोटी बेटी थी. रामगोपाल की कस्बे में ही लकड़ी की टाल थी. उसी की कमाई से पूरे परिवार का भरणपोषण होता था. कंचन ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूपरंग में और निखार आ गया. रामगोपाल दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर चुका था.

छोटी बेटी कंचन के जवान होने पर उसे उस के विवाह की चिंता सताने लगी थी. वह उस के लिए योग्य वर खोजने लगा. काफी भागदौड़ के बाद रामगोपाल को कंचन के लिए संजय पसंद आ गया. संजय कानपुर देहात के ही बरौर बसहरा गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा था. वह अपनी खेतीकिसानी करता था. रीतिरिवाज से कंचन का विवाह संजय के साथ कर दिया गया. संजय सीधासादा था, जबकि कंचन तेजतर्रार व चंचल स्वभाव की थी. वह न तो अपने ससुर से परदा करती थी और न ही चचिया ससुर से. गांव में भी वह हमेशा बनसंवर कर रहती थी. कंचन की ये आदतें उस की सास को अच्छी नहीं लगती थीं.

कंचन को ससुराल में रहते 2 साल भी नहीं बीते थे कि चचिया सास लक्ष्मी से उस का मनमुटाव हो गया. गोपीचंद्र उस समय अपने बड़े भाई रामचंद्र के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. कंचन और लक्ष्मी में जब रोजरोज झगड़ा होने लगा तो लक्ष्मी अपने पति गोपीचंद के साथ अलग रहने लगी. इस के बाद जमीन तथा मकान का भी बंटवारा हो गया. रामचंद्र नहीं चाहता था कि उस का भाई उस से अलग रहे. इस बंटवारे से वह इतना दुखी हुआ कि घर छोड़ कर चला गया और संन्यासी बन गया. उस के घर छोड़ने के एक साल के अंदर ही उस की पत्नी की भी मौत हो गई. अब घर में कंचन और उस का पति संजय ही रह गया. कंचन को अब कोई रोकनेटोकने वाला तो था नहीं, इसलिए वह पूरी तरह स्वच्छंद हो गई.

कुछ समय यूं ही बीत चला. इस दरम्यान कंचन 2 बार गर्भवती हुई. पर किसी वजह से उस का दोनों ही बार गर्भ गिर गया. कंचन को लगा कि कोई व्याधा उस का गर्भ गिरा देती है. अत: वह तांत्रिकों के पास जाने लगी. उन के पास जाने के बाद कंचन ने 2 बच्चों के जन्म दिया, जिन में एक बेटा और एक बेटी हुई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कंचन के शरीर में कसाव था, ऊपर से वह बनसंवर कर रहती थी. वह चाहती थी कि पति उसे बहुत प्यार करे, लेकिन संजय उस की भावना को नहीं समझता था. वह दिन भर खेतीबाड़ी के काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्द ही सो जाता. पति की बेरुखी से कंचन ने देहरी लांघने का फैसला कर लिया. अब उस का मन आसपास रहने वाले ऐसे मर्द की तलाश करने लगा, जो उसे भरपूर प्यार दे सके.

उसी समय उस का ध्यान पड़ोस में रहने वाले 24-25 वर्षीय मनीष की तरफ गया. पढ़नेलिखने में तेज मनीष बीए पास कर चुका था और सरकारी नौकरी पाने की कोशिश में लगा था. वह अकसर उस के यहां आताजाता भी रहता था. वह उसे भाभी कहता था. इस नाते दोनों के बीच हलकाफुलका मजाक भी होता रहता था. मनीष, कंचन से 8-10 साल छोटा जरूर था, लेकिन उस का गठीला बदन कंचन को भा गया था. धीरेधीरे कंचन ने उस पर अपने रूप का जादू चलाना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में मनीष को उस ने अपने रूप और बातों के जाल में फांस लिया. मनीष भी इतना नासमझ नहीं था, जो कंचन के हावभाव का मतलब न समझता. दोनों ही धीरेधीरे अपनी हदें लांघने लगे और एक दिन ऐसा भी आ गया, जब उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अपने से छोटे युवक का प्यार पा कर कंचन फूली नहीं समा रही थी.

इस के बाद एक साल तक उन का यह खेल बेरोकटोक चलता रहा. संजय को इन संबंधों की भनक तक नहीं लगी. वह रोज सुबह खेतों पर निकल जाता और अंधेरा होने पर घर लौटता. उसे क्या पता था कि पत्नी क्या गुल खिला रही है. लेकिन मनीष का जब कंचन के यहां आनाजाना ज्यादा बढ़ गया तो पासपड़ोस की औरतों तथा चचिया सास लक्ष्मी को उन दोनों के रिश्तों पर शक होने लगा. बाद में संजय को पत्नी के संबंधों की जानकारी हुई तो उसे बड़ा दुख हुआ. सच्चाई अपनी आंखों से देखने के लिए संजय अब कंचन व मनीष पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को अपने यहां रंगेहाथ पकड़ लिया. पति को सामने देख कर कंचन घबरा गई. मनीष तो सिर पर पैर रख कर भाग गया.

संजय का सारा गुस्सा कंचन पर फूटा. उस ने उस की खूब पिटाई की. तब कंचन ने माफी मांगते हुए वादा किया कि अब वह मनीष से कभी नहीं मिलेगी. लेकिन कहते हैं कि औरत एक बार बहक जाए तो उस का संभलना मुश्किल होता है. कंचन अपने जेहन से मनीष की यादों को निकाल नहीं पा रही थी. बहरहाल उस ने मनीष से मिलनाजुलना फिर से शुरू कर दिया. लेकिन अब वह पहले से ज्यादा सावधानी बरतने लगी थी. कंचन भले ही पति की नजरों से बच कर रंगरलियां मना रही थी, लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों को वह कैसे धोखा दे सकती थी. यानी मोहल्ले में कंचन और मनीष के संबंधों को ले कर फिर चर्चाएं होने लगीं.

पत्नी की बदचलनी के कारण संजय का गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया था. लोग उस पर फब्तियां कसने लगे थे. जिस से वह तिलमिला उठता था. घर आ कर वह सारा गुस्सा कंचन पर उतारता था.  घर में रोजरोज की कलह से तंग आ कर संजय शराब पीने लगा. जिस दिन शराब नहीं मिलती, उस दिन वह चरस, गांजा आदि पीता. इस नशाखोरी के कारण संजय की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. नशा के लिए उस ने कंचन के गहने तक बेच डाले. कंचन विरोध करती तो वह उसे जलील करता और पीट देता. पति की पिटाई से कंचन परेशान रहने लगी. कलह के कारण उस ने दोनों बच्चों को अपने मायके भेज दिया.

पिटाई के बावजूद कंचन अपने प्रेमी मनीष को नहीं भुला पाई. एक रोज वह मनीष से बोली, ‘‘मनीष, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती. अब मुझे हमेशा के लिए तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘संजय भैया के रहते यह संभव नहीं है. वह हम दोनों के मिलन में दीवार बने हैं.’’

‘‘तो उस दीवार को ढहा क्यों नहीं देते. वैसे भी नशेड़ीगंजेड़ी पति से मैं नफरत करती हूं. कंचन ने अपनी मंशा जाहिर की.’’

‘‘तो ठीक है, जिस दिन मौका मिलेगा, उस दिन यह काम कर दूंगा.’’ मनीष ने वादा किया.

14 दिसंबर, 2014 की रात गांव के प्रधान नरेश पांडेय के घर कीर्तन का आयोजन था. संजय भी कीर्तन सुनने वहां गया था. कंचन को उम्मीद थी कि वह अब आधी रात से पहले घर नहीं लौटेगा. इसलिए मौका देख कर उस ने मनीष को फोन कर के अपने यहां बुला लिया. इस के बाद दोनों जिस्म का खेल खेलने में व्यस्त हो गए. संजय का मन कीर्तन में नहीं लगा तो वह घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे चाचा गोपीचंद्र मिल गए. वह उन से कुछ देर बतियाता रहा, फिर घर पहुंचा. उस ने घर की कुंडी खटखटाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. संजय ने सोचा कि शायद कंचन सो गई होगी. अत: वह पिछवाड़े की दीवार फांद कर घर में दाखिल हुआ. दबे पांव वह कमरे में पहुंचा तो वहां का दृश्य देख कर उस का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस की पत्नी और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे.

संजय को देखते ही वे दोनों उठ गए और कपड़े पहनने लगे. लेकिन दोनों ही बेहद घबरा रहे थे. संजय ने गुस्से में कंचन के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए. इस के बाद वह मनीष से भिड़ गया. मनीष ने उसे धक्का दिया तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उसी समय कंचन ने प्रेमी को उकसाया, ‘‘देखते क्या हो मनीष, आज इस बाधा को दूर ही कर दो. आखिर मैं कब तक इस के जुल्म सहती रहूंगी.’’

यह सुनते ही मनीष संजय की छाती पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबाने लगा. संजय हाथपैर पटकने लगा तो कंचन ने उस के पैर दबोच लिए. कुछ ही देर में संजय की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद दोनों ने कमरा दुरुस्त किया और संजय की लाश को चारपाई पर लिटा कर रजाई से ढंक दिया. मनीष व कंचन संजय के शव को गांव के बाहर झाडि़यों में फेंकना चाहते थे, लेकिन गांव में कीर्तन होने के कारण चहलपहल थी, इसलिए वे हिम्मत नहीं जुटा सके. मनीष तो रात के अंतिम पहर में वहां से फरार हो गया और कंचन सवेरा होते ही त्रियाचरित्र का नाटक कर रोनेचीखने लगी.

उस की चीखपुकार सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए. उन सब को कंचन ने बताया कि पता नहीं कैसे रात में संजय की मौत हो गई. गोपीचंद को जब भतीजे संजय की मौत का पता चला तो उन्हें शक हुआ. अत: वह रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बरौर पहुंच गए. पुलिस ने मनीष और कंचन को संजय की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. Extramarital Affair

—कथा पुलिस सूत्रो

Bareilly News : बॉयफ्रेंड बना काल

Bareilly News : इमरान प्रियांगी उर्फ प्रिया को प्यार ही नहीं करता था, बल्कि धर्मांतरण करा कर उस से शादी करना चाहता था. इतना गहरा प्रेम होने के बावजूद दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि इमरान को प्रियांगी उर्फ प्रिया के खून से हाथ रंगने पड़े. बरेली के थाना प्रेमनगर की शास्त्रीनगर कालोनी के रहने वाले राजेश गंगवार थे तो इंजीनियर, लेकिन जब उन्हें नौकरी रास नहीं आई तो वह समाजसेवा में जुट गए. दिल्ली के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म कांड के विरोध में 17 दिनों तक चले आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया था. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 2 बच्चे थे, बेटी प्रियांगी उर्फ प्रिया और बेटा प्रियांश.

प्रिया बीटेक करने के बाद मेरठ के साईं कालेज से बीएड कर रही थी, जबकि बेटा प्रियांश एनआईटी, कालीकट, केरल से बीटेक कर रहा था. नवंबर, 2014 के पहले हफ्ते में प्रिया अपने घर बरेली आई थी. उसे आंखों में तकलीफ थी, इसलिए 5 नवंबर की दोपहर को 2 बजे वह अपनी स्कूटी से डा. भृमरेश शर्मा के आई क्लीनिक जाने के लिए घर से निकली. उन का क्लीनिक धर्मकांटा के पास था. प्रिया को घर से निकले एक घंटे से ज्यादा हो गया था. अब तक उसे घर लौट आना चाहिए था, लेकिन जब वह घर नहीं लौटी तो पिता राजेश ने उसे फोन किया. फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. प्रिया कभी फोन बंद नहीं करती थी, इसलिए राजेश को थोड़ी चिंता हुई.

थोड़ीथोड़ी देर में वह बेटी को फोन करते रहे, लेकिन हर बार फोन बंद मिला. जब प्रिया का फोन नहीं मिला तो वह डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक जा पहुंचे. वहां पता चला कि प्रिया ढाई बजे के करीब दवा ले कर चली गई थी. दवा ले कर प्रिया को घर जाना चाहिए था. घर जाने के बजाय बिना बताए वह कहां चली गई? इस बात को ले कर राजेश गंगवार परेशान हो उठे. घर आ कर उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो वह भी परेशान हो गईं. संभावित जगहों पर उन्होंने उस की तलाश शुरू की, लेकिन कहीं भी उस का पता नहीं चला. बेटी को ढूंढ़तेढूंढ़ते काफी रात हो गई तो वह घर आ गए.

जवान लड़कियों के गायब होने पर पहले यही सोचा जाता है कि कहीं वह अपने प्रेमी के साथ भाग तो नहीं गईं? लेकिन राजेश और पुष्पा की नजरों में प्रिया ऐसी लड़की नहीं थी. वह उन से कोई बात नहीं छिपाती थी. इसलिए उन्हें उस के किसी के साथ भाग जाने की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घट गई है. बेटी की चिंता में रात भर पतिपत्नी को नींद नहीं आई.  सुबह होते ही राजेश गंगवार ने फिर बेटी की तलाश शुरू कर दी. प्रिया की एक सहेली थी शालिनी, जो डीडीपुरम में रहती थी. उस ने और प्रिया ने साथसाथ बीटेक किया था. जब उसे प्रिया के गायब होने की जानकारी हुई तो वह उस के घर आ पहुंची.

उस ने प्रिया की मां पुष्पा को बताया कि कल दोपहर को वह प्रिया के साथ राजेंद्रनगर स्थित इमरान के औफिस गई थी. प्रिया और इमरान में किसी बात को ले कर जोरजोर से झगड़ा होने लगा तो उन्हें झगड़ते देख वहां से अपने घर चली गई थी. घर आने के बाद देर रात को इमरान ने उसे फोन कर के धमकाया था कि अगर उस ने प्रिया के साथ उस के औफिस आने वाली बात किसी को बताई तो उस के लिए अच्छा नहीं होगा. इस से वह तो फंसेगा ही, साथ ही वह भी फंस जाएगी. पुष्पा ने यह बात पति को बताई. राजेश गंगवार इमरान को जानते थे. पत्नी की बात सुन कर राजेश को इमरान पर शक हुआ. वह तुरंत थाना प्रेमनगर पहुंचे और इंसपेक्टर अशोक सिंह को पूरी बताई.

उन्होंने सीबीगंज थाना क्षेत्र के तिलियापुर गांव के रहने वाले इमरान पर बेटी के गायब करने का शक जताया था. उन के इसी शक के आधार पर थानाप्रभारी अशोक सिंह ने प्रियांगी उर्फ प्रिया की गुमशुदगी दर्ज कर ली थी. प्रिया की गुमशुदगी दर्ज किए 3 दिन बीत गए, लेकिन थाना प्रेमनगर पुलिस ने इमरान को पूछताछ तक के लिए थाने नहीं बुलाया. इस के बाद 10 नवंबर को राजेश गंगवार एडीशनल एसपी राजीव मल्होत्रा से मिले. उस समय सीओ (प्रथम) असित श्रीवास्तव भी वहां मौजूद थे. एडीशनल एसपी ने असित श्रीवास्तव से कहा कि तुरंत प्रियांगी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराएं और इस मामले में क्या हो सकता है, इसे देखें.

रिपोर्ट दर्ज करने के लिए सीओ ने राजेश गंगवार को थाने भेज दिया. राजेश गंगवार थाना प्रेमनगर पहुंचे तो इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एडीशनल एसपी के आदेश के बावजूद प्रियांगी के अपहरण का मुकदमा दर्ज नहीं किया. हां, इमरान रजा खान को पूछताछ के लिए थाने जरूर बुलवा लिया. उन्होंने उस से प्रियांगी के बारे में पूछा तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. लेकिन जब अशोक सिंह ने थोड़ी सख्ती की तो इमरान ने उन्हें जो बताया उस के अनुसार, उस की और प्रिया की दोस्ती करीब 2 साल से थी. 5 नवंबर, 2014 को वह उस के राजेंद्रनगर स्थित स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के औफिस आई थी. औफिस की 3 चाबियां थीं, एक उस के पास रहती थी, दूसरी प्रिया के पास और तीसरी उस के यहां काम करने वाली एक अन्य लड़की अनुपम के पास.

प्रिया के उस पर 6 हजार रुपए निकल रहे थे. उस दिन वह अपने 6 हजार रुपए ले कर चली गई थी. रात साढे़ 8 बजे उस ने प्रिया को फोन किया तो उस ने फोन नहीं उठाया. उसी समय वह औफिस पहुंचा तो वहां प्रिया की लाश पंखे से लटकी मिली. प्रिया को उस हालत में देख कर वह डर गया. पुलिस के लफड़े से बचने के लिए उस ने उस की लाश उतार कर एक बोरी में भरी और उसे ठिकाने लगाने के लिए अपनी बाइक से नैनीताल रोड स्थित बिलवा पुल के आगे सड़क किनारे एक गड्ढे में फेंक आया. अगले दिन वह प्रिया की स्कूटी से वहां गया और फावड़े से लाश पर मिट्टी डाल कर वहां से कुछ दूरी पर उस की स्कूटी खड़ी कर के अपने औफिस आ गया.

इस पूछताछ से पुलिस को पता चल गया था कि प्रिया की मौत हो चुकी है. इसलिए उस की लाश बरामद करने के लिए पुलिस इमरान को उस जगह पर ले गई, जहां उस ने लाश दफन करने की बात बताई थी. राजेश गंगवार की मौजूदगी में इमरान द्वारा बताई जगह पर पुलिस ने खुदाई कराई तो वहां औंधे मुंह बैग में पड़ी एक लड़की की लाश मिली. उसे सीधा किया गया तो वह लाश प्रिया की ही थी. उसे देखते ही राजेश गंगवार रोने लगे. उसे दफनाए कई दिन बीत चुके थे, इसलिए लाश काफी सड़गल गई थी. प्रिया के कपड़े फटे हुए थे. पैरों में चप्पलें थीं, लेकिन उस के गले की सोने की चेन नहीं थी. उस का मोबाइल भी नहीं था और न ही वे 6 हजार रुपए मिले, जो उस ने इमरान से लिए थे.

उस की लाश से कुछ दूरी पर एक खेत में प्रिया की स्कूटी अलगअलग पार्ट्स में खुली मिली. मौके पर जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने प्रिया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इमरान ने जिस तरह प्रिया की लाश को आननफानन में चोरीछिपे ठिकाने लगाया था, उस से पुलिस को लगा कि यह मामला आत्महत्या का नहीं हो सकता. इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो इमरान टूट गया. उस ने बताया कि प्रिया ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस ने तिलियापुर के रहने वाले अपने दोस्त गुड्डू के साथ मिल कर उस की हत्या की थी. हत्या की वजह उस ने यह बताई कि अपने पैसे मांगते समय प्रिया ने उसे बेइज्जत किया था.

उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने उसे मार डाला. पूछताछ के बाद पुलिस ने इमरान को 17 नवंबर, 2014 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने आननफानन में इमरान को जेल तो भेज दिया, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि अकेला इमरान लाश को मोटरसाइकिल पर रख कर कैसे ले गया था? लाश को ठिकाने लगाने में निश्चित उस के साथ और लोग रहे होंगे. इंसपेक्टर अशोक सिंह ने एक बार फिर इमरान के औफिस से लाश ठिकाने लगाने वाली जगह तक का बारीकी से मुआयना किया.

उस रास्ते में उन्हें कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे दिखाई दिए. उन्होंने उन सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई. एक फुटेज में एक औटो में कुछ युवक बैठे दिखाई दिए. उस औटो को इमरान चला रहा था और उस में एक बड़ा सा बैग भी रखा नजर आ रहा था. औटो में एक लंबा व्यक्ति भी बैठा था. इस के बाद उन्होंने इमरान के फोन नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई. इंसपेक्टर अशोक सिंह इस से आगे की जांच करते, उस से पहले उन का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह पर इंसपेक्टर विद्याराम दिवाकर नए थानाप्रभारी आए. जाते समय इंसपेक्टर अशोक सिंह ने विद्याराम दिवाकर को इस मामले की पूरी जानकारी दे दी थी. चार्ज लेने के बाद इंसपेक्टर विद्याराम ने आगे की जांच शुरू की.

समाजसेवी राजेश गंगवार की बेटी की हत्या के विरोध में कई सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर शहर वालों ने कैंडिल मार्च निकाला. अन्य अभियुक्तों को जल्द गिरफ्तार कर के उन के खिलाफ सख्त काररवाई करने की मांग को ले कर राजेश गंगवार 16 नवंबर से अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठ गए. कई सामाजिक संगठनों ने उन का साथ दिया. 11 दिनों बाद पुलिस प्रशासन की नींद टूटी. जिले के पुलिस अधिकारी 26 नवंबर को उन के पास पहुंचे और उन की मांगे मानते हुए अनशन समाप्त कराया. दूसरी ओर लाश के सड़ जाने की वजह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रिया की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो सका. दुष्कर्म की आशंका को देखते हुए डाक्टर ने गुप्तांग को प्रिजर्व करने के साथ स्लाइड भी बनवा ली थी.

इस के अलावा उस के विसरा और गले को भी जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेज दिया गया था. हत्या के राज उगलवाने, प्रिया का सामान बरामद करने और अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए इमरान से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए इंसपेक्टर विद्याराम ने 25 नवंबर को अदालत में प्रार्थनापत्र दे कर इमरान को 36 घंटे के पुलिस रिमांड पर देने की अपील की. अदालत ने उन की अर्जी को मंजूर करते हुए इमरान को 36 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

पुलिस ने इमरान को उस से औटो में रखे बडे़ बैग के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस बैग में प्रिया की लाश थी. उस ने कहा कि गुड्डू ने केवल हत्या करने में उस की मदद की थी, जबकि लाश ठिकाने लगाने में उस का भाई सलमान और भांजा मोहम्मद अहमद औटो में उस के साथ थे. उस ने बताया कि प्रिया की सोने की चेन उस की स्कूटी के पार्ट्स के पास ही फेंक दी थी. पुलिस ने इमरान की निशानदेही पर बिलवा पुल के पास स्थित वीरपुर उर्फ कासिमपुर गांव के पास हनीफ के खेत से प्रिया की चेन और स्कूटी के खुले हुए पार्ट्स बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने इमरान को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अन्य आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. मुखबिर की सूचना पर 27 नवंबर को इमरान के दोस्त गुड्डू को मिली बाईपास से गिरफ्तार कर लिया था. अगले दिन इमरान का भाई सलमान भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भी न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. इमरान से हुई पूछताछ व केस की तफ्तीश के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी. इमरान रजा खान बिलकुल अपने पिता बुंदन खान के नक्शे कदम पर चल रहा था. बुंदन खान भी एक वहशी दरिंदा था. बुंदन ने 1980 में पढ़ाई के दौरान छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था. हाथ उठा कर मतदान कराने के दौरान तब उस के क्लास की 6 लड़कियों ने उसे वोट नहीं दिया था.

इस से बौखलाए बुंदन ने उन से बदला लेने के लिए साजिश रची और चुनाव के कुछ दिनों बाद सभी लड़कियों के साथ क्लास में ही हैवानियत की. उन लड़कियों की हालत बिगड़ गई. कमरा बंद करने पहुंचे चौकीदार ने उन की हालत देख कर कालेज प्रबंधन को इस घटना की सूचना दी. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को बुलाया गया. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने सभी पीडि़त लड़कियों को अस्पताल पहुंचाया. घटना की खबर फैलते ही पूरे शहर में बवाल मच गया. उस समय शांति की अपील के लिए खुद मदर टेरेसा बरेली आई थीं. उस के बाद ही शहर का माहौल सामान्य हुआ था. बुंदन खान पर पहले से ही दुष्कर्म आदि के दरजन भर से अधिक मुकदमे चल रहे थे.

पुलिस ने इस मामले में बुंदन खान को गिरफ्तार कर के उस पर गुंडा ऐक्ट तथा गैंगस्टर लगाने के साथ उस की हिस्ट्रीशीट खोल दी थी. कई वर्षों बाद जब वह जेल से जमानत पर बाहर आया तो जुर्म की दुनिया में उस के कदम दलदल की तरह धंसते गए. 2 हत्याओं के अलावा उस पर 22 दुष्कर्म के मुकदमे दर्ज हुए थे. उस की मौत होने के बाद उस के मुकदमों की फाइल अपने आप बंद हो गई थी. अपनी आपराधिक वारदातों से चर्चित रहे बुंदन खान का बेटा इमरान भी अपने पिता की ही तरह अपराधों में लिप्त रहा. उस पर भी 3 दुष्कर्म और एक हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था.  4 भाइयों में तीसरे नंबर का इमरान शातिर दिमाग था. पिता की ही तरह उस का दिमाग भी अच्छे कामों के बजाय गलत कामों में ज्यादा चलता था. वह गलत कामों से पैसा कमाने में लग गया.

उस ने दिल्ली जा कर एक फाइनेंस कंपनी खोली और प्रौपर्टी ब्रोकर का भी काम करने लगा. फाइनेंस कंपनी के नाम पर वह लोगों को ठगने लगा. औफिस में काम करने वाली एक युवती की हत्या में वह फंस गया तो दिल्ली से भाग कर बरेली आ गया. इस के बाद उस ने उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी और चंपावत में रियल एस्टेट कंपनी के औफिस खोले और लोगों को ठगना शुरू कर दिया. मौजमस्ती करने के लिए वह अपने औफिस में केवल लड़कियों को ही नौकरी पर रखता था. उस के औफिस में अर्शी उर्फ रूबी नाम की एक लड़की काम करती थी. वह बेहद खूबसूरत थी.

वह अर्शी की खूबसूरती और अदाओं के जाल में उलझ गया. इमरान लड़कियों से अपने संबंध मौजमस्ती तक ही सीमित रखता था, लेकिन अर्शी को देख कर उस ने उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का फैसला किया. जल्द ही उस ने अर्शी को प्यार के जाल में फांस लिया. उन का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ता गया. अर्शी के मांबाप को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. अर्शी के मांबाप का दबाव बढ़ने पर इमरान अर्शी को ले कर बरेली आ गया और उस से निकाह कर लिया. यह 6 साल पहले की बात है. बाद में अर्शी ने एक बेटे और एक बेटी को जन्म दिया.

बरेली आने के बाद इमरान ने इज्जतनगर क्षेत्र में स्पीड स्काई रियल एस्टेट इंडिया लिमिटेड और बी.के. जनसेवा समिति के नाम से औफिस खोल कर अपना गोरखधंधा शुरू किया. वह लोगों से हर महीने 1,600 रुपए जमा करा कर प्लाट देने का वादा करता था. इस के अलावा वह रुहेलखंड ऐक्शन फ्रंट नाम से एक संस्था चलाता था. इस के जरिए वह सरकारी सस्ते गल्ले के डीलरों और प्रधानों की शिकायतें करता था और बाद में उन्हें ब्लैकमेल करता था. उस का यह धंधा खूब फलफूल रहा था.

2010 में इमरान ने पुराना औफिस बंद कर के बरेली की पौश कालोनी राजेंद्रनगर में नया औफिस स्पीड ग्रुप औफ कंपनीज के नाम से खोला. यह औफिस उस ने एक्सिस कोचिंग चलाने वाले डब्ल्यू.एच. सिद्दीकी की कोठी का पिछला हिस्सा किराए पर ले कर खोला था. स्टाफ की नियुक्ति के लिए उस ने कई अखबारों में विज्ञापन दिए थे. इसी विज्ञापन को देख कर प्रियांगी उर्फ प्रिया इमरान से उस के औफिस में मिली थी. इमरान ने उसे औफिस में कंप्यूटर औपरेटर के पद पर रख लिया था.

औफिस में काम के दौरान ही इमरान और प्रिया में अच्छी दोस्ती हो गई. इमरान उस का पूरा ध्यान रखता था. उसे अपने साथ घुमाने ले जाता. दोनों एकदूसरे से काफी घुलमिल गए. धीरेधीरे उन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आ गया, जब दोनों एकदूसरे के प्यार में डूब गए. उसी दौरान प्रिया बीएड करने मेरठ चली गई. वहां के हौस्टल में रह कर वह साईं कालेज से बीएड करने लगी. भले ही वह इमरान से दूर जा चुकी थी, लेकिन इमरान उस के दिल में बसा था. हफ्ते, 2 हफ्ते में जब भी उसे बरेली अपने घर आना होता तो इमरान ही उसे मेरठ लेने जाता था और मेरठ छोड़ने भी उस के साथ जाता था. वह प्रिया के ऊपर काफी पैसे खर्च कर रहा था. अचानक जरूरत पड़ने पर वह प्रिया से पैसे उधार भी ले लेता था.

जब इमरान की इस प्रेम कहानी का पता उस की पत्नी अर्शी को चला तो वह परेशान हो उठी. अर्शी को रोज डायरी लिखने का शौक था. उस ने डायरी में इमरान और अर्शी के प्रेमसंबंधों का जिक्र कर के अपनी जिंदगी तबाह होने का अंदेशा व्यक्त किया था. क्योंकि उस के मांबाप का देहांत हो चुका था. उन के बाद इमरान ही उस का सब कुछ था. ऐसे में अगर इमरान उस से दूर चला गया तो उस की जिंदगी बर्बाद हो जाती. इमरान ने प्रिया के धर्मांतरण के लिए नवंबर, 2013 में कुछ मौलवियों से बात भी की थी. उस का धर्म बदलवा कर वह उस से निकाह करना चाहता था. इस बात का अर्शी को पता लग गया था. उस ने डायरी में 20 नवंबर, 2013 के पेज पर इस बात का जिक्र भी किया था. करीब 2 महीने पहले प्रिया को जानकारी मिली कि इमरान के अन्य लड़कियों से भी संबंध हैं.

सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने अपने स्तर से छानबीन की तो उसे पता चला कि इमरान के सचमुच अनेक लड़कियों से अवैधसंबंध हैं. हकीकत पता चलने पर प्रिया को अपने आप पर खीझ होने लगी कि उस ने ऐसे गंदे इंसान से प्यार क्यों किया. इस के बाद प्रिया ने तय कर लिया कि वह इमरान से कोई संबंध नहीं रखेगी. उस ने उस से दूरी भी बनानी शुरू कर दी. उस ने इमरान को 6 हजार रुपए उधार दे रखे थे. उस ने कई बार उस से अपने पैसों का तकादा किया, लेकिन कोई न कोई बहाना बना कर इमरान उसे टालता रहा. अब वह मेरठ से जब भी घर आती, अकेली ही आती और अकेली ही जाती थी. प्रिया में आए इस बदलाव को इमरान समझ नहीं पाया. वह उस से बात करने की कोशिश करता तो प्रिया उसे कोई महत्त्व नहीं देती.

प्रिया जब भी मेरठ से बरेली आती, इमरान से अपने पैसे मांगने उस के औफिस पहुंच जाती और उस से झगड़ा करने लगती. एक बार तो उस ने इमरान को स्टाफ के सामने ही थप्पड़ मार दिया था, जिस से इमरान को काफी बेइज्जती महसूस हुई थी. प्रिया के रोजरोज के झगड़ों से वह काफी तंग आ चुका था. 5 नवंबर, 2014 को प्रिया अपनी आंखों की दवा लेने के लिए स्कूटी से धर्मकांटा के पास स्थित डा. भृमरेश शर्मा के क्लीनिक पर पहुंची. वहां से दवा ले कर वह अपनी सहेली शालिनी से मिली और उस से कहा कि वह आज अपने पैसे इमरान से ले कर ही आएगी.

शालिनी को साथ ले कर वह इमरान के औफिस पहुंच गई. वहां इमरान और प्रिया में पैसों को ले कर झगड़ा होने लगा. उन का झगड़ा खत्म न होता देख लगभग 25 मिनट बाद शालिनी वहां से चली गई. प्रिया ने गुस्से में औफिस में चीखना शुरू कर दिया. इमरान उसे समझाने की कोशिश करते हुए औफिस से सटे कमरे में ले गया. उसी कमरे में इमरान लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता था. कमरे में उस समय उसी के गांव का रहने वाला उस का दोस्त गुड्डू भी था. कमरे में इमरान ने प्रिया के मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप कराने की कोशिश की. वह नहीं मानी तो उस ने बगल में खड़े गुड्डू को इशारा किया.

इस के बाद दोनों ने प्रिया की नाक व मुंह दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस के गले में पड़ी सोने की चेन, मोबाइल फोन और रुपए निकाल लिए. इमरान ने गुड्डू की मदद से प्रिया की लाश को एक क्रिकेट बैग में भरा और उसे वहीं छोड़ कर औफिस बंद कर के चला गया. वहां से गुड्डू के साथ सीधे अपने गांव तिलियापुर पहुंचा. गांव पहुंचते ही गुड्डू इमरान को छोड़ कर चला गया. इमरान ने उसे बुलाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह वापस नहीं आया. लाश ठिकाने लगाने के लिए इमरान को एक आदमी की जरूरत थी. उस ने गांव के ही बबलू से कहा कि वह उसे बरेली जंक्शन पर छोड़ आए. बबलू उस के साथ स्टेशन तक गया. वहां से इमरान किसी बहाने उसे अपने औफिस ले गया.

जिस बैग में प्रिया की लाश रखी थी, वह बैग उठाने में उस ने बबलू से मदद करने को कहा. बबलू को पता नहीं था कि बैग में क्या है. उस ने बैग उठाना चाहा तो वह बहुत भारी लगा. उसे शक हो गया. उस ने बैग खोल कर देखा तो उस में लाश रखी थी. लाश देख कर वह डर के मारे भाग गया. इमरान ने उसे दौड़ कर पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वह पकड़ में नहीं आया. इमरान लाश को ठिकाने लगाने के लिए काफी परेशान था. वह अपने गांव आ गया और गांव के ही आजाद का औटो रेलवे स्टेशन तक जाने के बहाने ले लिया. अपने भाई सलमान और भांजे मोहम्मद अहमद को साथ ले कर वह आधी रात को अपने औफिस पहुंचा.

उन के सहयोग से उस ने प्रिया की लाश वाले क्रिकेट बैग को औटो में रखा. सलमान और मोहम्मद अहमद पिछली सीट पर बैग के साथ बैठ गए तो वह औटो चला कर नैनीताल रोड पर स्थित बिलवा पुल के पास ले गया. वहां पानी से कट कर जमीन में एक गड्ढा बन गया था. इमरान ने अपने भाई व भांजे की मदद से प्रिया की लाश वाले बैग को उसी गड्ढे में डाल दिया. इस के बाद तीनों गांव लौट आए. 6 नवंबर, 2014 को इमरान औफिस के बाहर खड़ी प्रिया की स्कूटी से वहां पहुंचा, जहां प्रिया की लाश फेंकी थी. अपने साथ वह एक फावड़ा भी ले आया था. फावड़े की मदद से उस ने प्रिया की लाश वाले बैग पर मिट्टी डाल दी. इस के बाद वह वहां से कुछ दूरी पर स्थित हनीफ के खेत में प्रिया की स्कूटी के पार्ट्स खोल कर छिपा दिए. प्रिया का मोबाइल उस ने किला नदी में फेंक दिया.

इमरान जानता था कि प्रिया अपनी सहेली शालिनी के साथ उस के यहां आई थी, इसलिए उस ने शालिनी को धमकी दी कि वह प्रिया के उस के औफिस आने की बात किसी को नहीं बताएगी, वरना दोनों फंस सकते हैं. इमरान ने सोचा था कि शालिनी खुद के फंस जाने के डर से किसी को कुछ नहीं बताएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. शालिनी ने प्रिया की मां पुष्पा को सब कुछ बता दिया था. इमरान से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुड्डू, सलमान और मोहम्मद अहमद के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 404 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. सलमान की निशानदेही पर पुलिस ने अभियुक्त गुड्डू और सलमान को भी गिरफ्तार कर लिया था. जबकि मोहम्मद अहमद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका.

इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त औटो भी तिलियापुर गांव से बरामद कर लिया था. गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया था. Bareilly News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, शालिनी परिवर्तित नाम है.