UP Crime : बदनामी का खून

UP Crime : नवीन की शादी इसलिए नहीं हो रही थी, क्योंकि उस की दलित प्रेमिका सीमा को उस से बेटा हो गया था. इस से उस की ही नहीं, घर वालों की भी बदनामी हो रही थी. घर वालों ने इस बदनामी से बचने का जो उपाय किया, क्या वह उचित था?

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर थानाकोतवाली बड़हलगंज का एक गांव है तिहामोहम्मद. इसी गांव में रामाश्रय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी केसरी देवी के अलावा 2 बेटे संजय, राकेश कुमार उर्फ हृदय कुमार और 2 बेटियां सीमा तथा आशा थीं. बात 10 नवंबर, 2014 की है. सुबह साढ़े 6 बजे के करीब गांव के ग्रामप्रधान काशी राय टहलने के लिए घर से निकल कर गलियों से होते हुए गांव के बाहर रह रहे दलितों के मोहल्ले से होते हुए चले जा रहे थे कि गली के किनारे बने रामाश्रय के झोपड़ानुमा मकान की खुली दालान में चारपाई पर उन की नजर पड़ी तो उस की हालत देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

दालान में पड़ी उस चारपाई पर एकएक कर के 3 लाशें पड़ी थीं. सब से नीचे रामाश्रय के नाती आशीष उर्फ लालू, उस के ऊपर उस की पत्नी केसरी देवी और सब से ऊपर उस की बेटी सीमा की लाश पड़ी थी. उन्होंने आवाज लगा कर कुछ लोगों को बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद थोड़ी ही देर में घटना की सूचना पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद तो रामाश्रय के घर के सामने भीड़ लग गई. ग्रामप्रधान काशी राय ने घटना की सूचना थानाकोतवाली बड़हलगंज पुलिस को दी तो कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर सुनील कुमार राय एसआई वी.पी. सिंह, देवेंद्र मौर्य, हरिकेष कुमार आर्या, हेडकांस्टेबल रमाकांत पांडेय, कांस्टेबल समतुल्ला खान, सुरेश सिंह, अनिल पाल, शंभू सिंह के साथ गांव तिहामोहम्मद आ पहुंचे.

दिल दहला देने वाली स्थिति देख कर इंसपेक्टर सुनील कुमार राय ने इस बात की जानकारी आईजी सतीश कुमार माथुर, डीआईजी डा. संजीव कुमार, एसएसपी राजकुमार भारद्वाज, एसपी (ग्रामीण) बृजेश सिंह और सीओ अशोक कुमार को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद वह साथियों के साथ घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के लिए दालान में पहुंचे. दालान में पड़ी चारपाई पर तीनों लाशें एक के ऊपर एक पड़ी थीं. चारपाई के पास ही 315 बोर के 5 खोखे और कांच की टूटी चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. वे टुकड़े मृतका सीमा की कलाई की चूडि़यों के थे, इसलिए उन टुकड़ों को देख कर अनुमान लगाया गया कि मृतका सीमा ने खुद या बच्चे और मां को बचाने के लिए हत्यारों से संघर्ष किया होगा.

पुलिस ने गोलियों के खोखे के साथ टूटी चूडि़यों के उन टुकड़ों को भी कब्जे में ले लिया. लाशों के निरीक्षण में पता चला, मृतका सीमा की पीठ और सिर में बाईं ओर केसरी देवी के सिर और कान के ऊपर बाईं ओर तथा सब से नीचे पड़े आशीष उर्फ लालू के सीने में दाहिनी ओर गोली मारी गई थी. स्थिति देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे कम से कम 3-4 रहे होंगे. आसपास वालों से की गई पूछताछ में पता चला कि मृतकों के परिवार में और कोई नहीं है. एक बेटी आशा ससुराल में है और बेटा राकेश मुंबई में है. एक बेटा संजय 18 साल से लापता है. परिवार के मुखिया रामाश्रय की 8-9 साल पहले मौत हो चुकी है. मृतकों के घर में उस समय कोई ऐसा नहीं था, जिस से कुछ जानकारी मिल पाती.

इंसपेक्टर सुनील कुमार राय पूछताछ कर रहे थे कि अन्य पुलिस अधिकारी भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण कर लिया तो ग्रामप्रधान काशी राय की उपस्थिति में घटनास्थल की काररवाई निपटा कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. इस के बाद ग्रामप्रधान काशी राय द्वारा दी गई तहरीर पर थानाकोतवाली बड़हलगंज में अज्ञात लोगों के खिलाफ तीनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार राय ने मामले की जांच शुरू की.

सब से पहले उन्होंने पड़ोसियों से राकेश का फोन नंबर ले कर उसे घटना की सूचना दी. स्थिति को देखते हुए हत्या की वजह रंजिश लग रही थी, क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था. इस से साफ था कि हत्यारे सिर्फ हत्या करने आए थे. घर वालों की हत्या की जानकारी मिलते ही राकेश गोरखपुर के लिए चल पड़ा. 11 नवंबर, 2014 को वह घर पहुंचा और सामान वगैरह रख कर सीधे कोतवाली बड़हलगंज के लिए रवाना हो गया. कोतवाली पहुंच कर उस ने इंसपेक्टर सुनील कुमार राय को एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस में उस ने गांव के हीरा राय और उन के 4 बेटों, परविंद कुमार राय, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की, अरविंद कुमार राय और नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन को अपनी मां, बहन और भांजे की हत्याओं का दोषी ठहराया था.

कोतवाली पुलिस ने राकेश के उस प्रार्थना पत्र के आधार पर अज्ञात की जगह प्रार्थना पत्र में लिखे पांचों को नामजद अभियुक्त बना कर मुकदमे में एससीएसटी ऐक्ट जोड़ दिया. इस के बाद इस मामले की जांच सीओ अशोक कुमार को सौंप दी गई. राकेश द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के अनुसार उस की बहन सीमा के अवैधसंबंध 13-14 सालों से हीरा राय के तीसरे नंबर के बेटे नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन से थे, जिस की वजह से नवीन के घर वाले आए दिन लड़ाईझगड़ा करते रहते थे. मौका मिलने पर उन्होंने ही ये तीनों हत्याएं की हैं. अगर राकेश भी घर में होता तो उस की भी हत्या हो सकती थी.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए हीरा राय के घर छापा मारा, लेकिन घर में सिर्फ महिलाएं मिलीं. सारे के सारे पुरुष घर छोड़ कर भाग गए थे. सीमा का मोबाइल फोन मिल गया था. फोन से पता चला कि घटना वाली रात 12 बजे सीमा के फोन पर एक फोन आया था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो वह नंबर गांव के अरुण का था. इस से साफ हो गया था कि अरुण ने सीमा को फोन कर के स्थिति के बारे में पता किया होगा. इस का मतलब राकेश का शक सही था.

पुलिस को हत्यारों के बारे में पता चल गया, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए, क्योंकि वे सभी के सभी फरार थे. गिरफ्तारी न हो पाने की वजह से 13 नवंबर को एसएसपी औफिस के सामने बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार भारती के नेतृत्व में 6 सूत्रीय मांगें ले कर धरनाप्रदर्शन किया गया. उसी दिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक शारदा देवी, राकेश के गांव तिहामोहम्मद पहुंची और राकेश को ढांढस बंधाया. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार को मुआवजा के लिए पत्र तो भेजा ही, अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भी दबाव बनाया.

इन्हीं दबावों का ही परिणाम था कि 14 नवंबर को नामजद अभियुक्तों में से 3 अभियुक्तों परविंद कुमार, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की और अरविंद कुमार राय को ओझौली गांव के पास से रात डेढ़ बजे गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी बचे 1 अभियुक्त हीरा राय का पता नहीं था, जबकि नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन 2 साल पहले बैंकाक चला गया था और घटना के समय भी वहीं था. इस के बावजूद पुलिस ने हत्या के जुर्म में उसे भी आरोपी बना दिया था. पुलिस परविंद, अरुण और अरविंद को कोतवाली बड़हलगंज कोतवाली ले आई, जहां उन से हत्याओं के बारे में पूछताछ की जाने लगी. तीनों अभियुक्तों ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उन्होंने तीनों हत्याओं की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

दलित बस्ती में रहने वाला रामाश्रय खेती कर के अपने परिवार को पाल रहा था. बड़ा बेटा संजय 15 साल का हुआ तो अपने किसी रिश्तेदार के साथ गुजरात के सूरत शहर चला गया. 6 महीने तो उस ने कमा कर रुपए भेजे, लेकिन उस के बाद अचानक उस ने रुपए भेजने बंद कर दिए. घर वालों ने रिश्तेदार को फोन कर के पूछा तो उस ने बताया कि अब वह उन के पास नहीं रहता. इस के बाद से आज तक उस का कुछ पता नहीं चला है. बेटे के इस तरह लापता हो जाने से रामाश्रय को इतना गहरा आघात पहुंचा कि वह बीमार पड़ गया. कुछ दिनों बाद उस की मौत हो गई तो 2 बेटियों और एक बेटे की जिम्मेदारी केसरी देवी पर आ पड़ी.

केसरी देवी की बड़ी बेटी सीमा कीचड़ में खिले कमल की तरह थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में जो निखार आया, वह गांव के लड़कों को लुभाने लगा. मजे की बात यह थी कि वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. चंचल, चपल और चालाक सीमा अपनी सीमा जानती थी. वह गरीब घर की बेटी थी, जिस की जमापूंजी सिर्फ इज्जत होती है. वह अपनी इज्जत को बचा कर रखना चाहती थी, लेकिन गांव के ही हीरा राय के तीसरे नंबर का बेटा नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन उस का ऐसा दीवाना हुआ कि उस ने कोशिश कर के उसे अपने रंग में ढाल ही लिया. यह 12-13 साल पहले की बात है.

उस समय सीमा की उम्र 19-20 साल रही होगी. नवीन भी उम्र लगभग उतनी ही थी. नवीन गबरू जवान तो था ही, खातेपीते घर का होने के साथसाथ खूबसूरत भी था. शायद उस की खूबसूरती पर ही सीमा भी मर मिटी थी. प्यार हुआ तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे. इस के बाद दोनों के संबंधों की बात गांव में चर्चा का विषय बन गई. सीमा दलित थी, जबकि नवीन भूमिहार यानी सामान्य वर्ग का था. नवीन के घर वालों ने सोचा दलित होने के नाते सीमा के घर वाले क्या कर लेंगे. साल, 2 साल बाद दोनों की शादी हो जाएगी तो संबंध अपने आप खत्म हो जाएंगे.

तिहामोहम्मद गांव के ही रहने वाले हीरा राय साधनसंपन्न आदमी थे. उस की 5 संतानों में 4 बेटे, अरविंद कुमार राय, परविंद कुमार राय उर्फ गुड्डू, नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन, अरुण कुमार राय और एक बेटी संध्या राय थी. उस के 2 बेटे अरविंद और परविंद बैंकाक में रहते थे. इन से छोटा नवीन पढ़ाई के साथसाथ खेती के कामों में पिता की मदद करता था. सब से छोटा अरुण समझदार होते ही बड़े भाइयों के पास बैंकाक चला गया था, जहां वह नौकरी करने लगा था. बैंकाक से आने वाले रुपयों से हीरा राय गांव में जमीनें खरीदते गए, जिस से जल्दी ही उन की गिनती बड़े लोगों में होने लगी. बाद में बड़ा बेटा अरविंद गांव आ गया और यहीं रहने लगा. लेकिन परविंद और अरुण वहीं रह कर नौकरी करते रहे.

नवीन और सीमा के संबंध हद पार करने लगे तो हीरा राय और उन के बड़े बेटे अरविंद को लगा कि आगे चल कर बात बिगड़ सकती है. कहीं बात शादी की आ गई तो वे समाज को कैसे मुंह दिखा पाएंगे. यही सोच कर अरविंद ने केसरी देवी को धमकाया कि वह अपनी बेटी को काबू में रखे. उस ने केसरी देवी को ही नहीं धमकाया, नवीन पर भी सीमा से मिलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. नवीन कोई लड़की नहीं था कि घर वाले उस के पैरों में जंजीर डाल कर उसे कमरे में कैद कर देते. उस ने पिता और भाई के दबाव में भले ही सीमा से मिलने के लिए मना कर दिया था, लेकिन यह दिखावा मात्र था. सीमा उस की धमनियों में खून बन कर बह रही थी. इसलिए वह पिता और भाई को दिए आश्वासन पर अटल नहीं रह सका और चोरीछिपे लगातार सीमा से मिलता रहा.

परिणामस्वरूप  बिना शादी के ही सीमा गर्भवती हो गई. धीरेधीरे गांव में यह बात फैली तो केसरी देवी की बदनामी होने लगी. बदनामी से बचने के लिए उस ने देवरिया जिले के थाना एकौना के गांव छपना के रहने वाले दीपचंद के साथ सीमा की शादी कर दी. सीमा ससुराल चली तो गई, लेकिन उस के गर्भ में पल रहा पाप पति से छिपा नहीं रहा. दीपचंद को जब पता चला कि सीमा की कोख में किसी दूसरे का 2-3 महीने का बच्चा पल रहा है तो उस ने इज्जत के साथ सीमा को उस के मायके पहुंचा दिया और सीमा की सहमति से तलाक ले लिया. यह बात 11-12 साल पहले की है.

इस के बाद सीमा मां और बहनभाई के साथ मायके में ही रहने लगी. समय पर उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आशीष उर्फ लालू रखा. यह सभी को पता था कि सीमा का बेटा आशीष नवीन कुमार राय का बेटा है. नवीन सीमा को अपनाने के लिए तैयार भी था, लेकिन घर वाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे. इस की सब से बड़ी वजह सीमा का दलित होना था. लालू धीरेधीरे बड़ा होने लगा. सीमा ने स्कूल में उस का दाखिला कराते समय पिता के नाम के रूप में नवीन कुमार राय का ही नाम लिखाया था. इस से हीरा राय और उन के बेटों, अरविंद, परविंद और अरुण को इस बात का डर सताने लगा कि बड़ा हो कर लालू उन की संपत्ति में हिस्सा ले सकता है.

जबकि नवीन पर इस बात का कोई असर नहीं था, क्योंकि वह सीमा और लालू को अपनाने को तैयार था. शायद इसीलिए वह कहीं और शादी नहीं कर रहा था. लालू और सीमा को ले कर हीरा राय के परिवार में महाभारत छिड़ा हुआ था. सीमा से छुटकारा पाने का अब एक ही उपाय था कि उस की शादी कहीं और हो जाए. हीरा राय और उस के बेटे इस के लिए कोशिश भी कर रहे थे, लेकिन नवीन ऐसा होने नहीं दे रहा था. इस से घर वालों ने सोचा कि अगर नवीन को गांव से हटा दिया जाए तो यह काम आसानी से हो जाएगा.

नवीन के 2 भाई, परविंद और अरुण बैंकाक में रह ही रहे थे. हीरा और अरविंद ने नवीन का पासपोर्ट और वीजा तैयार करा कर उसे भी बैंकाक भेज दिया. नवीन के हटते ही हीरा राय और अरविंद दिमाग चलाने लगे. योजना के अनुसार नवीन के बैंकाक पहुंचते ही परंविद और अरुण गांव आ गए. अरविंद, परविंद और अरुण रास्ते का कांटा लालू को हटाने की योजना बनाने लगे. लालू की ही वजह से नवीन की भी शादी नहीं हो रही थी, बदनामी अलग से हो रही थी. नवीन भले ही बैंकाक चला गया था, लेकिन फोन से वह बराबर सीमा और उस के बेटे का हालचाल लेता रहता था.

अरुण काफी दबंग किस्म का युवक था. बैंकाक से खूब रुपए कमा कर लाया ही था, इसलिए पैसों की भी गरमी थी. उस का उठनाबैठना भी बदमाशों के बीच था, इसलिए लालू को रास्ते से हटाने के लिए उस ने अपने उन्हीं दोस्तों की मदद से कट्टा और कारतूस का इंतजाम किया हथियारों का इंतजाम हो गया तो एक दिन तीनों भाइयों ने पिता हीरा राय के साथ बैठ कर लालू को खत्म करने की योजना बना डाली. 9/10 नवंबर की रात 12 बजे अरुण ने सीमा के मोबाइल पर फोन कर के पता किया कि वह सो गई है या जाग रही है. वैसे तो सीमा सो रही थी, लेकिन मोबाइल की घंटी ने उसे जगा दिया. 2-4 बातें हुईं, उस के बाद सीमा फोन काट कर सो गई.

सीमा से बात होने के काफी देर बाद अरुण, अरविंद और परविंद 315 बोर के देसी कट्टे और कारतूस ले कर केसरी देवी के घर जा पहुंचे. बिजली न होने की वजह से गांव में अंधेरा था. अरुण को पता था कि लालू अपनी नानी के पास बरामदे में चारपाई पर सोता है, जबकि सीमा अंदर कमरे में सोती है. अरुण को सारी स्थिति का पता था, इसलिए सीमा के घर पहुंचते ही उस ने एक, डेढ मीटर की दूरी से लालू पर निशाना साध कर कट्टे से गोली चला दी. गोली लालू के सीने में दाईं ओर लगी. सोया लालू छटपटा कर हमेशाहमेशा के लिए सो गया.

गोली की आवाज सुन कर केसरी देवी जाग गई. पकड़े जाने के डर से अरुण और अरविंद ने एक साथ केसरी देवी को गोली मार दी. केसरी देवी भी लहरा कर नाती लालू के ऊपर गिर गई. दूसरी ओर गोली की आवाज सुन कर कमरे में सो रही सीमा भी जाग गई थी और उठ कर बाहर आ गई थी. उस ने तीनों भाइयों को पहचान भी लिया था. मां को बचाने के चक्कर में वह अरुण से भिड़ गई थी. उसी दौरान उस की चूडि़यां टूट कर नीचे गिर गई थीं. सीमा ने उन्हें पहचान लिया था, इसलिए उसे भी जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता था. अरुण और अरविंद ने एक साथ गोलियां चला कर उसे भी मार दिया. मां को बचाने के लिए वह चारपाई के पास ही खड़ी थी. इसलिए गोलियां लगने के बाद भी वह मां के ऊपर चारपाई पर गिर पड़ी थी.

इस तरह एक हत्या करने के चक्कर में अरविंद, अरुण और परविंद ने 3 हत्याएं कर डालीं थीं. फिर भी उन्हें न किसी बात की चिंता थी, न किस तरह का पछतावा. वे घर जा कर आराम से सो गए. लेकिन सुबह होते ही हीरा राय और उन के तीनों बेटे अरविंद, परविंद और अरुण घर छोड़ कर भाग गए. 14 नवंबर, 2014 की रात अरविंद, परविंद और अरुण ओझौली गांव से गिरफ्तार हो गए. पुलिस ने अरुण के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 3 खोखे, एक जिंदा कारतूस, अरविंद के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 2 खोखे और 1 जिंदा कारतूस बरामद कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत मे पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

21 नवंबर को पुलिस ने गांव के बाहर हीरा राय को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी जेल भेज दिया है. पुलिस का मानना है कि साजिश रचने में नवीन भी शामिल था, इसलिए धारा 120बी के तहत उसे भी आरोपी बनाया है. लेकिन इस समय वह बैंकाक में है. पुलिस उसे वहां से बुला कर गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. UP Crime

Agra News : बेवफाई या मजबूरी

Agra News : अंजलि सनी का बचपन का प्यार थी, इसलिए वह उसे हर हालत में अपनी बनाना चाहता था, अंजलि भी उस की बनने को तैयार थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि सनी को प्रेमिका अंजलि का हत्यारा बनना पड़ा…

5 नवंबर, 2014 की शाम पौने 7 बजे के आसपास अंधेरा घिरने पर आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद में रेल की पटरियों के किनारे रहने वाले सतीशचंद की बेटी अंजलि किसी काम से पटरियों की ओर गई तो किसी ने उस पर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया. जान बचाने के लिए अंजलि चिल्लाते हुए घर की ओर भागी, लेकिन हमलावर ने उसे गिरा कर गर्दन पर ऐसा वार किया कि उस की गर्दन कट गई और वह तुरंत मर गई. शोर सुन कर आसपास के लोग वहां पहुंच पाते, हमलावर अंजलि को मार कर अंधेरे में गायब हो गया.

शोर सुन कर अंजलि के घर वाले भी आ गए थे. उस की हालत देख कर वे रोने लगे. थोड़ी ही देर में वहां पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस को सूचना दी गई. थाना हरिपर्वत पास में ही था, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह एसएसआई शैलेश कुमार सिंह, एसआई अभय प्रताप सिंह, हाकिम सिंह, सिपाही परेश पाठक और रामपाल सिंह को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी गई थी, इसलिए जिले के पुलिस अधिकारियों को भी घटना की जानकारी हो गई थी. इसलिए थोड़ी ही देर में एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह, मनीषा सिंह, एएसपी शैलेष पांडे भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. हत्यारे ने जिस तरह चाकू से वार कर के मृतका की हत्या की थी, उस से अंदाजा लगाया कि हत्यारा अंजलि से गहरी नफरत करता था.

पुलिस अधिकारियों ने डौग स्क्वायड टीम भी बुलाई थी. लेकिन कुत्ते पुलिस की कोई मदद नहीं कर सके. वे वहीं आसपास घूम कर रह गए थे. इस हत्या से नाराज मोहल्ले वालों ने पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ घोषणा कर दी कि वे लाश तब तक नहीं उठाने देंगे, जब तक हत्यारा पकड़ा नहीं जाता. पुलिस अधिकारियों ने समझायाबुझाया और हत्यारे को जल्द पकड़ने का आश्वासन दिया, तब कहीं जा कर घर और मोहल्ले वालों ने लाश ले जाने की अनुमति दी. पुलिस ने जल्दीजल्दी घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. अब तक सूचना पा कर पड़ोस के मोहल्ले में रहने वाला मृतका का पति सुनील भी आ गया था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस की ससुराल वालों के पड़ोस में रहने वाले उत्तमचंद के बेटे सनी ने की है. इस के बाद सुनील की ओर से थाना हरिपर्वत में अंजलि की हत्या का मुकदमा नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले उत्तम चंद के बेटे सनी के खिलाफ नामजद दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने सनी को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर छापा मारा तो वह घर से गायब मिला. सनी के घर छापा मारने गई पुलिस टीम से घर वालों से कहा कि अंजलि की हत्या उस के पति सुनील ने ही की है. लेकिन पुलिस टीम को उन की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ.

हत्या के इस मामले की जांच थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह ने खुद संभाल रखी थी. पुलिस अधिकारियों की भी नजर इस मामले पर थी. इसलिए सनी को पकड़ने के लिए सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में 3 टीमें बनाई गईं. एसएसपी शलभ माथुर ने तीनों टीमों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि उन्हें किसी भी तरह उसी रात सनी को पकड़ना है. क्योंकि उन्हें पता था कि पोस्टमार्टम के बाद मृतका के घर वाले फिर हंगामा करेंगे. वह नहीं चाहते थे कि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के समय घर वाले किसी तरह का हंगामा करें. सब से बड़ी बात यह थी कि मोहल्ले के पास से रेलवे लाइन गुजरती थी, हंगामा करने वाले लाइन पर बैठ कर गाडि़यों का आवागमन रोक सकते थे.

देर रात सीओ अशोक कुमार सिंह को कहीं से सूचना मिली कि सनी राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली जा सकता है. इसी सूचना के आधार पर इंसपेक्टर हरिमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम राजा मंडी रेलवे स्टेशन पर सनी की तलाश में जा पहुंची. सुबह 6 बजे के आसपास वहां से दिल्ली के लिए इंटरसिटी एक्सप्रेस जाती थी, इसलिए तीनों टीमें पूरी सतर्कता के साथ ट्रेन पर चढ़ने वाली सवारियों पर नजर रखने लगीं. सनी को पहचानने वाला एक आदमी पुलिस टीमों के साथ था. ट्रेन छूटने में 5 मिनट बाकी था, तभी उस आदमी ने एक युवक की ओर इशारा किया. चूंकि पुलिस टीमों के सदस्य वर्दी में नहीं थे, इसलिए सनी को पता नहीं चला कि पुलिस स्टेशन पर उसे तलाश रही है.

सनी निश्ंिचत हो कर ट्रेन पर चढ़ रहा था, इसलिए पुलिस ने आराम से उसे पकड़ लिया. थाना हरिपर्वत ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. वह कोई बहानेबाजी करता, उस के पहले ही पुलिस ने उस के कपड़ों पर लगे खून के छींटों की ओर इशारा किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के अंजलि की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अंजलि आगरा के थाना हरिपर्वत के मोहल्ला नाला बुढ़ान सैयद के रहने वाले सतीशचंद की 6 संतानों में पांचवें नंबर की बेटी थी. शहर के पौश इलाके हरिपर्वत से सटा रेलवे लाइन को किनारे बसा है मोहल्ला नाला बुढान सैयद. यहां रहने वाले लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. कभी यह गरीबों का मोहल्ला था. लेकिन आज यहां लगभग सभी के मकान 3 तीन मंजिल बन चुके हैं.

सतीशचंद के पड़ोस में उत्तमचंद का मकान था. उस के परिवार में पत्नी बेबी के अलावा तीन बेटे, भोलू, बबलू और सनी थे. निम्न मध्यम वर्गीय परिवार होने की वजह से उत्तमचंद के बच्चे पढ़ नहीं सके. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वे छोटेमोटे काम करने लगे. सनी ने भी हाईस्कूल कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. पड़ोसी होने की वजह से सनी और अंजलि साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे और एक ही स्कूल में पढ़े थे. अंजलि ने जहां आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी, वहीं सनी ने हाईस्कूल पास कर के. हमउम्र होने की वजह से दोनों में कुछ ज्यादा ही पटती थी. यही पटरी किशोरावस्था आतेआते प्यार में बदल गया.

अंजलि के मांबाप ने पहले तो दोनों के मेलमिलाप व मुलाकातों पर कोई बंदिश नहीं लगाई, लेकिन जब उन्हें लगा कि बेटी अब सयानी हो गई है तो उन्हें लगा कि जवान बेटी का किसी जवान लड़के से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. बस इस के बाद उन्होंने समझदारी से काम लेते हुए अंजलि को ऊंचनीच का पाठ पढ़ाते हुए उसे सनी से दूर रहने की सलाह दी. अंजलि ने मांबाप को भले ही आश्वासन दिया कि वह सनी से नहीं मिलेगी, लेकिन उस के लिए ऐसा करना आसान नहीं था. सनी अब तक उस के लिए उस की जिस्म की जान बन चुका था, उस के दिल की धड़कन बन चुका था. ऐसे में वह सनी से दूर कैसे रह सकती थी.

अंजलि उस से मिलतीजुलती रही. हां, अब वह उस से मिलने में थोड़ा सावधानी जरूर बरतने लगी थी. लेकिन उस की मुलाकातों की भनक सतीशचंद और विमला देवी को लग ही गई. उन्हें लगा कि अब अंजलि का विवाह कर देना ही ठीक है. उन्होंने आननफानन में लड़का देखा और अंजलि की शादी कर दी. यह 3 साल पहले की बात है. अंजलि का पति सुनील नाला बुढान सैयद से लगे मोहल्ले पीर कल्याणी में रहता था. वह एक जूते की फैक्ट्री में सुपरवाइजर था. नौकरी की वजह से वह सुबह 8 बजे घर से निकल जाता तो देर रात को ही घर लौटता था. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो अंजलि ने सनी से दूरी बनाए रखी, लेकिन कुछ दिनों बाद वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. इसी बीच वह एक बेटे की मां बन गई.

अंजलि का सोचना था कि उस का सनी से मिलनाजुलना किसी को पता नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं था. उस की हरकतों पर ससुराल वालों की नजर थी. वे एकएक बात सुनील से बताते रहते थे. सुनील ने अंजलि की आशनाई का सुबूत जुटाने के लिए उसे एक ऐसा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिस में बातचीत करते समय पूरी बात रिकौैर्ड हो जाती थी. इस तरह अंजलि और सनी की अंतरंग बातें रिकौर्ड कर के सुनील ने सुबूत इकट्ठा कर लिए थे. इस के बाद उस ने अंजलि को समझाना चाहा तो वह बगावत पर उतर आई. नाराज हो कर वह बेटे चीनू को ले कर मायके चली गई.

मायके वाले उसे दोष न दें, इसलिए उस ने अपनी मां से बताया कि सुनील का किसी औरत से संबंध है, जिस की वजह से वह उस से प्यार नहीं करता. इसीलिए दुखी हो कर वह मायके आ गई है. विमला देवी को लगा कि बेटी सच कह रही है. इस की वजह यह थी कि सुनील अंजलि और सासससुर से बहुत कम बातें करता था. अंजलि लगभग 6 महीने तक लगातार मायके में रह गई तो आसपड़ोस वाले सवालजवाब करने लगे. इस के बाद सतीशचंद ने सुनील को घर बुलाया तो सच्चाई का पता चला. तब सतीशचंद और विमला देवी ने बेटीदामाद को समझाबुझा कर अंजलि को सुनील के साथ ससुराल भेज दिया.

सुनील अंजलि को साथ ले तो नहीं जाना चाहता था, लेकिन सासससुर का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह अंजलि को साथ ले आया. 2-3 महीने तक सब ठीकठाक चला. लेकिन इस के बाद जो होने लगा, वह पहले से भी ज्यादा खतरनाक था. सनी पहले तो अंजलि से फोन पर ही बातें करता था, इस बार वह सुनील की अनुपस्थिति में अंजलि से मिलने उस के पीर कल्याणी स्थित घर आने लगा. अंजलि ने ससुराल वालों से उसे दूर का रिश्तेदार बताया था. 6 महीने तक सनी पीर कल्याणी अंजलि से मिलने आताजाता रहा. लेकिन एक दिन दोपहर को सुनील घर आ गया तो उस ने सनी को अंजलि के कमरे में बैठे बातें करते देख लिया.

पहले तो उस की सनी से हाथापाई हुई, इस के बाद सुनील ने उसे तो बेइज्जत कर के भगाया ही, अंजलि को भी उस की मां विमला देवी से सारी हकीकत बता कर मायके छोड़ आया. विमला देवी उस दिन तो सुनील से कुछ नहीं कह सकी, लेकिन बाद में उस पर अंजलि को ले जाने का दबाव बनाने लगी. सुनील अंजलि को ले जाता, उस के पहले ही एक दोपहर अंजलि बेटे को मायके में छोड़ कर सनी के साथ भाग निकली. इस से दोनों ही परिवारों में हड़कंप मच गया. पता चला कि अंजलि बेटे की दवा लेने के बहाने से घर निकली और राजामंडी चौराहे से धौलपुर जाने वाली बस में सवार हो कर सनी के साथ चली गई थी.

धौलपुर में सनी की मौसी रहती थी. सनी अंजलि को ले कर उन के यहां पहुंचा तो उन्होंने फोन द्वारा अपनी बहन बेबी को इस बात की सूचना दे दी. सतीशचंद सनी के पिता उत्तमचंद के साथ धौलपुर जाने की तैयारी कर रहे थे कि बेटे से मिलने के लिए सुनील ससुराल आ पहुंचा. इस तरह उसे भी पत्नी के सनी के साथ भाग जाने की जानकारी हो गई. उसी शाम सुनील ने थाना लोहामंडी जा कर सनी के खिलाफ अपनी पत्नी अंजलि को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस कोई काररवाई करती, उस के पहले ही सुनील विमला देवी, सतीशचंद और बेबी उत्तमचंद के साथ धौलपुर गया और अंजलि को आगरा ले आया. आगरा आ कर उस ने थाना लोहामंडी पुलिस को धौलपुर में जहां सनी ठहरा था, वहां का पता बता दिया.

इस के बाद थाना लोहामंडी पुलिस धौलपुर गई और सनी को पकड़ कर ले आई. इस के बाद पुलिस ने सनी को अदालत में पेश करने के साथ अंजलि का भी बयान दर्ज कराया, जहां उस ने सनी के खिलाफ जम कर जहर उगला. उस ने कहा कि सनी ने उस का जबरन अपहरण किया था और उसे बंधक बना कर उस के साथ दुष्कर्म किया था. अंजलि के इसी बयान की वजह से सनी को हाईकोर्ट से अपनी जमानत करानी पड़ी. सनी के साथ जो हुआ था, इस के लिए उस ने अंजलि को दोषी माना. इसलिए उसे अंजलि से गहरी नफरत हो गई. अब वह उस की हत्या करने के बारे में सोचने लगा. जेल से बाहर आने के बाद 1-2 बार उस ने अंजलि से मिलने और बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन अंजलि ने साफ मना कर दिया.

इस की वजह यह थी कि सुनील ने साफसाफ कह दिया था कि अगर अब उस ने सुन भी लिया कि वह सनी से बातचीत करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. इसलिए अपने और बच्चे के भविष्य को देखते हुए अंजलि ने सनी से दूर रहने का फैसला कर लिया था. कहा जाता है कि अंजलि ने अदालत में सनी के खिलाफ जो बयान दिया था, वह भी सुनील के ही कहने पर दिया था. सुनील का सोचना था कि अंजलि के इस बयान से दोनों के बीच दरार पड़ जाएगी और हुआ भी वही.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद सनी अपने घर आने के बजाय धौलपुर जा कर मौसी के यहां रह रहा था. लेकिन वह अपने दोस्तों से अंजलि के बारे में पता करता रहता था. जैसे ही उसे पता चला कि अंजलि मायके आई है, वह मौसी से मांबाप से मिलने की बात कह कर आगरा आ गया. सनी भले ही घर आ गया था, लेकिन वह ज्यादातर घर में ही रहता था. 4 नवंबर, 2014 की शाम वह छत पर बैठा था, तभी उसे अंजलि रेलवे की पटरियों की ओर जाती दिखाई दी. सनी को लगा कि अपमान का बदला लेने के लिए यह अच्छा मौका है.

वह नीचे उतरा और बाजार जा कर खुद को कसाई बता कर गोश्त काटने वाला छुरा खरीद लाया. अगले दिन यानी 5 नवंबर को अंधेरा होने से पहले ही वह वहां छिप कर बैठ गया, जिधर अंजलि जाती थी. अंधेरा होने पर अंजलि उधर आई तो उस ने उस की हत्या कर के अपनी नफरत की आग बुझा ली. अंजलि की चीख सुन कर जब तक मोहल्ले वाले वहां पहुंचते, सनी उस की हत्या कर के जा चुका था. उस समय कोई नहीं जान सका कि अंजलि को किस ने इतनी बेरहमी से मार दिया. वहां से भाग कर सनी राजामंडी रेलवे स्टेशन पर पहुंचा. उसे लग रहा था कि लोग उसे खोजते हुए वहां आ सकते हैं, इसलिए वह एक खोखे के पीछे छिप गया.

उसे यह भी पता था कि पुलिस उसे खोजते हुए धौलपुर जा सकती है, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का निर्णय लिया. वह दिल्ली जा पाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर रेलवे लाइन के किनारे से पत्थरों के नीचे से वह छुरा बरामद कर लिया था, जिस से उस ने अंजलि की हत्या की थी. सारे सुबुत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. Agra News

कहानी पुलिस सूत्रों व सुनील के बयान

UP Crime : बीवी के बिस्तर का साथी

UP Crime : मुकेश जगदीश को अपना अच्छा दोस्त समझता था, जबकि जगदीश उस का दोस्त नहीं, उस की बीवी के बिस्तर का साथी था…

मीना और जगदीश पहली मुलाकात में ही एकदूजे को अपना दिल दे बैठे थे. मीना को पाने की चाह जगदीश के दिल में हिलोरे मारने लगी थी. इसलिए वह किसी न किसी बहाने से मीना से मिलने उस के घर अकसर आने लगा. घर आने पर मीना उस की आवभगत करती. चायपानी के दौरान जगदीश जानबूझ कर मीना के शरीर को स्पर्श कर लेता तो वह बुरा मानने के बजाय मुसकरा देती. इस से जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई और वह मीना को जल्द से जल्द पाने की कोशिश में लग गया.

एक दिन जगदीश सुमन के घर आया तो सुमन उस समय घर में अकेली आईने के सामने शृंगार करने में मशगूल थी. उस की साड़ी का पल्लू गिरा हुआ था. जगदीश दबे पांव आ कर उस के पीछे चुपचाप खड़ा हो गया. उस की कसी देह आईने में नुमाया हो रही थी. मीना उस की मौजूदगी से अंजान थी. जगदीश कुछ देर तक मंत्रमुग्ध सा आईने में मीना के निखरे सौंदर्य को अपनी आंखों से समेटने की कोशिश करता रहा. इस तरह देख कर उस की चाहत दोगुनी होती जा रही थी.

इसी बीच मीना ने आईने में जगदीश को देखा तो तुरंत पीछे मुड़ी. उसे देख कर जगदीश मुसकराया तो मीना ने अपना आंचल ठीक करने के लिए हाथ बढ़ाया. तभी जगदीश ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मीना, बनाने वाले ने खूबसूरती देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो अपने सामने तुम को कभी आंचल डालने ही न दूं. तुम आंचल से अपनी खूबसूरती को बंद मत करो.’’

‘‘तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है. किसी दिन तुम से बात करते हुए मुसकान के पापा ने देख लिया तो तुम्हारी चोरी पकड़ में आ जाएगी.’’ मीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ, कहीं तुम मीठीमीठी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

‘‘लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. अब तो मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जिस रोज तुम्हें देख नहीं लेता, बेचैनी महसूस होती है. इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न…’’

जगदीश की बात अभी खत्म भी न हो पाई थी कि मीना बोली, ‘‘पागल तो तुम हो चुके हो. तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे ऐसा लग रहा है कि दिल की भाषा को आंखों से पढ़ने में भी तुम अनाड़ी हो.’’

‘‘सच कहा तुम ने. लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ कहते हुए जगदीश ने मीना के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया. मीना ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर जगदीश के सीने पर टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. शराब पीपी कर खोखले हो चुके पति मुकेश के शरीर में वह बात नहीं रह गई थी, जो उसे जगदीश से मिली. इसलिए उस के कदम जगदीश की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का यह खेल चलता रहा.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थानाक्षेत्र में एक गांव है हमजापुर. इसी गांव में 30 वर्षीय मुकेश कुमार. अपनी पत्नी मीना और 2 बच्चों के साथ रहता था. मुकेश के पास 20 बीघा जमीन थी. जमीन मुख्य सड़क के किनारे होने की वजह से बहुत कीमती थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का खर्च चलाता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. खर्च उठाने में उसे कभी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा. मुकेश को शराब पीने की लत थी. मीना ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने पत्नी की बात नहीं मानी. इस के अलावा वह पत्नी की जरूरतों को भी अनदेखा करने लगा. करीब 6 महीने पहले उस ने जगदीश नाम के राजमिस्त्री को बुलाया.

जगदीश मुकेश का परिचित था और उस के गांव से 2 किलोमीटर दूर गांव पैगापुर में रहता था. जगदीश अय्याश प्रवृत्ति का था. 2 बच्चों का बाप होने के बाद भी उस की प्रवृत्ति नहीं बदली थी. जब वह मुकेश के घर गया तो उस की पत्नी मीना को देख कर उस की नीयत बदल गई. चाहत की नजरें मीना के जिस्म पर टिक गईं. उसी पल मीना भी उस की नजरों को भांप गई थी. जगदीश हट्टाकट्टा युवक था. मीना पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते के दिल में उतर गई. मुकेश से बातचीत करते समय उस की नजरें बारबार मीना पर ही टिक जाती थीं. मीना को भी जगदीश अच्छा लगा. जगदीश की भूखी नजरों की चुभन जैसे उस की देह को सुकून पहुंचा रही थी.

मीना को पाने के लालच में जगदीश ने काम के पैसे भी कम बताए थे. अगले दिन से जगदीश ने काम शुरू कर दिया. काम शुरू करते ही जगदीश ने अपनी बातों के जरिए मुकेश से दोस्ती कर ली. जगदीश को जब भी मौका मिलता, वह मीना के सौंदर्य की तारीफ करने लग जाता. मीना को भी उस का व्यवहार अच्छा लगता था. वह जब कभी उसे चाय, पानी देने आती, जानबूझ कर उस के हाथों को छू लेता. इस का मीना ने विरोध नहीं किया तो जगदीश की हिम्मत बढ़ती गई. फिर उस की मीना से होने वाली बातों का दायरा भी बढ़ने लगा. मीना का भी जगदीश की तरफ झुकाव होने लगा था.

जगदीश को पता था कि मुकेश को शराब पीने की लत है. इसी का फायदा उठाने के लिए उस ने शाम को मुकेश के साथ ही शराब पीनी शुरू कर दी. मीना से नजदीकी बनाने के लिए वह मुकेश को ज्यादा शराब पिला कर धुत कर देता था. कहते हैं, जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन जगदीश को मीना के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वे अपने जीवनसाथी के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं.

तन से तन का रिश्ता कायम होने के बाद मीना और जगदीश उसे बारबार दोहराने लगे. जगदीश ने मुकेश के यहां का मरम्मत का काम पूरा कर दिया, इस के बावजूद भी वह वहां आताजाता रहा. मुकेश जैसे ही अपने खेतों पर जाने के लिए निकलता, झट से मीना जगदीश को फोन कर देती. अवैधसंबंधों को कोई भले ही लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. मुकेश जैसे ही अपने खेतों की तरफ निकला, मीना ने अपने प्रेमी जगदीश को फोन कर दिया. मीना जानती थी कि मुकेश सुबह घर से निकलने के बाद शाम को ही घर लौटता है. इस दौरान वह प्रेमी से साथ मौजमस्ती कर लेगी. प्रेमिका का फोन आते ही जगदीश  साइकिल से मीना के घर पहुंच गया.

उस दिन भी आते ही उस ने मीना के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया. तभी मीना इठलाते हुए बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है.’’ कहते हुए जगदीश ने उस का मुंह चूम लिया.

‘‘तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे अपना दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों को. पता है, जब मैं मुकेश के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे समाने होता है.’’ मीना ने इतना कह कर जगदीश के गालों को चूम लिया.

जगदीश से भी रहा नहीं गया, वह मीना को बांहों में उठा कर पलंग पर ले गया. इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही उन के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. मीना ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ मीना हकलाते हुए बोली.

‘‘क्यों… क्या मुझे अपने घर आने के लिए भी किसी की इजाजत लेनी होगी? अब दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी.’’ कहते हुए मुकेश ने मीना को एक ओर किया और अंदर घुसा तो सामने जगदीश को देख कर उस का माथा ठनका.

‘‘अरे, तुम कब आए?’’ मुकेश ने पूछा तो जगदीश ने कहा, ‘‘बस अभीअभी आ रहा हूं.’’

मीना का व्यवहार मुकेश को कुछ अजीब सा लग रहा था, उस ने पत्नी की तरफ देखा. वह घबरा सी रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे, माथे की बिंदिया भी उस के गले पर चिपकी हुई थी. यह सब देख कर शक होना लाजिमी था. जगदीश भी उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. मुकेश उस से कुछ पूछता, उस से पहले ही वह वहां से भाग गया.

उस के जाते ही मुकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह जगदीश यहां क्या करने आया था?’’

‘‘मुझे क्या पता, तुम से मिलने आया होगा.’’ असहज होते हुए मीना बोली.  ‘‘लेकिन मुझ से तो कोई ऐसी

बातें नहीं की.’’

‘‘अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ मीना ने कहा तो मुकेश गुस्से का घूंट पी कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर शक पैदा हो गया. मुकेश ने सख्ती का रुख अख्तियार करते हुए पत्नी पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि जगदीश से वह आइंदा न मिले. वह पत्नी की पिटाई भी करने लगा. पति की सख्ती के बावजूद मीना जगदीश से कई बार मिली. मीना को प्रेमी से चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर जगदीश भी चाहता था कि मीना जीवन भर उस के साथ रहे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उन दोनों ने मुकेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

22-23 सितंबर की रात 8 बजे मुकेश ने रोजाना की तरह खाना खाया. उस से पहले वह जम कर शराब पी चुका था और काफी नशे में था. खाना खाने के बाद मुकेश सोने के लिए पहली मंजिल पर बने कमरे में चला गया. उस के सोते ही मीना ने जगदीश को फोन कर के बुला लिया. सुबह 4 बजे के करीब मीना और जगदीश ने गहरी नींद में सो रहे मुकेश को दबोच लिया और उस के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे जीवित अवस्था में ही उठा कर पड़ोसी ज्ञान सिंह के खाली पड़े मकान के आंगन में छत से फेंक दिया. जमीन पर गिरते ही मुकेश गंभीर रूप से घायल हो गया.

वह दर्द से तड़पने लगा. मुकेश के बेटे कल्लू ने यह सब होते हुए अपनी आंखों से देख लिया, लेकिन डर की वजह से वह चुपचाप आंखें बंद किए बिस्तर पर ही लेटा रहा. इस के बाद जगदीश वहां से चला गया. मुकेश के गिरने की आवाज से ज्ञान सिंह के परिवार वालों की नींद टूट गई. वे उठ कर आंगन की तरफ आए तो रस्सी से बंधे मुकेश को देख कर हतप्रभ रह गए. उन के शोर मचाने पर आसपड़ोस के अन्य लोग भी वहां आ गए. जब तक मीना वहां पहुंची, तब तक मुकेश की आवाज बंद हो चुकी थी. वहां आते ही मीना घडि़याली आंसू बहा कर रोने लगी. मुकेश की हालत गंभीर बनी हुई थी. वह बोल नहीं पा रहा था. उसी हालत में उसे जिला अस्पताल ले जाया गया.

बासप्रिया गांव में मुकेश के मामा हरद्वारी और उस की बहन राजबेटी रहती थी. उन्हें भी घटना की सूचना दी गई तो वे भी जिला अस्पताल पहुंचे. मुकेश की गंभीर हालत को देखते हुए शाहजहांपुर जिला अस्पताल से उसे बरेली रेफर किया गया, लेकिन बरेली पहुंचने से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया. तब मुकेश की लाश को वापस घर ले आया गया. दोपहर बाद करीब 2 बजे किसी ने इस की सूचना निगोही थानापुलिस को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी आशीष शुक्ला पुलिस टीम के साथ तुरंत मुकेश के घर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थानाप्रभारी ने मुकेश की बहन राजबेटी से पूछताछ की तो उस ने अपनी भाभी मीना और जगदीश के अवैधसंबंधों की जानकारी उन्हें देते हुए शक जताया कि उस की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है. उधर मुकेश के बेटे कल्लू ने भी मां की करतूत का खुलासा कर दिया. थानाप्रभारी आशीष शुक्ला ने राजबेटी की तहरीर पर मीना और उस के आशिक जगदीश के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 304 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद उन्हें सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. UP Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Story in Hindi : प्यार का गुलाल

Love Story in Hindi : शराबखोरी की दोस्ती हमेशा घातक होती है, खास कर तब जब शराबी दोस्त की नजर जवान बीवी पर पड़ जाए. संतोष ने सब से बड़ी गलती यही की कि वह अपने दोस्त लक्ष्मण को घर में बुला कर शराब पिलाने लगा. जब लक्ष्मण और संतोष की पत्नी सत्यरूपा के बीच अवैधसंबंध बन गए तो संतोष की शामत आनी ही थी. 4  अक्तूबर की सुबह की बात है. लोगबाग रोजाना की तरह उठ कर अपने दैनिक कार्यों में लग गए थे. तभी खेतों की ओर गए किसी व्यक्ति ने तालाब के किनारे खून से लथपथ

पड़ी लाश देखी. इस के बाद जल्दी ही यह बात आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जहां लाश पड़ी थी, वह क्षेत्र लखनऊ के थाना विभूति खंड मे आता था. तालाब किनारे लाश पड़ी होने की खबर सुन कर विभूति खंड के ही मोहल्ला बड़ा भरवारा में रहने वाली सत्यरूपा भी वहां पहुंच गई. उस का पति संतोष रात से गायब था. लाश देख कर वह दहाड़ मारमार कर रोने लगी. लाश उस के पति संतोष साहू की थी.

इसी बीच किसी ने इस मामले की सूचना थाना विभूति खंड को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक संतोष की उम्र करीब 45 साल थी. उस के पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से कई वार किए गए थे, जिस से पेट में गहरे घाव लगे थे. लाश के पास ही उस की साइकिल पड़ी थी. मृतक की पत्नी के अनुसार उस के पास मोबाइल भी था, लेकिन कपड़ों की तलाशी में उस का मोबाइल नहीं मिला था.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सत्यरूपा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बीती रात संतोष अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने निकला था. मछली खरीद कर संतोष ने राकेश को घर भेज दिया था और खुद कुछ देर में आने की बात कह कर कहीं चला गया था. जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उस ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल बंद मिला. वह पूरी रात उस का नंबर मिलाती रही, लेकिन मोबाइल बराबर बंद ही मिला. सवेरा होते ही उस ने पति की तलाश शुरू की. पड़ोस में ही टिंबर का काम करने वाले सोनू को साथ ले कर जब वह पति को तलाश रही थी, तभी उसे तालाब किनारे एक लाश पड़ी होने की खबर मिली. इस के बाद वह तुरंत तालाब किनारे पहुंच गई.

सत्यरूपा ने बताया था कि संतोष राजगीर था और इन दिनों वह एक डाक्टर के घर पर काम कर रहा था. गत दिवस उसे पैसे मिले थे जिन में से थोड़े उस ने घर में दे दिए, बाकी अपने पास रख लिए थे. सत्यरूपा ने आशंका भी जताई थी कि कहीं लूट का विरोध करने पर उस के पति का कत्ल न कर दिया गया हो? प्राथमिक पूछताछ और काररवाई के बाद थानाप्रभारी दुबे ने संतोष की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया. थाने लौट कर उन्होंने सत्यरूपा की तहरीर के आधार पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने सब से पहले संतोष के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. सीडीआर के मुताबिक संतोष के नंबर पर 3 अक्तूबर यानी घटना वाली रात आखिरी काल लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर निवासी लक्ष्मण साहू ने की थी. पुलिस ने जब लक्ष्मण साहू के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि पेशे से लक्ष्मण भी राजगीर था और संतोष का करीबी दोस्त था. संतोष के घर उस का काफी आनाजाना था. यहां तक कि वह संतोष की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आताजाता था और काफी देर तक रुकता था. इस से अनुमान लगाया गया कि यह मामला अवैधसंबंधों का हो सकता है. संभव है संतोष के विरोध करने पर उस की हत्या की गई हो.

संदेह हुआ तो थानाप्रभारी देवेंद्र दुबे ने 7 अक्तूबर को लक्ष्मण और सत्यरूपा को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. थोड़ी सी सख्ती करने पर उन दोनों ने संतोष की हत्या का जुर्म कुबूल लिया. इतना ही नहीं, लक्ष्मण ने अपने सहयोगियों के नाम भी बता दिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल उर्फ पिंकू निवासी विकासनगर, लखनऊ और अजय चौहान उर्फ मुक्कू निवासी लखनऊ विश्वविद्यालय आवासीय परिसर को भी गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का मूल निवासी संतोष साहू अपने परिवार के साथ लखनऊ के विभूति खंड में बड़ा भरवारा में रहता था. वह राजगिरी का काम करता था.

संतोष का काम ठीक चल रहा था, जिस की वजह से परिवार का भरणपोषण करने में उसे कोई दिक्कत नहीं होती थी. काम के दौरान ही एक दिन संतोष की मुलाकात लखनऊ के थाना गुडंबा के आदिलनगर मोहल्ले में रह रहे लक्ष्मण साहू से हुई. लक्ष्मण भी छत्तीसगढ़ के कमरधा जनपद के गांव पिपरिया थारा का रहने वाला था. वह लखनऊ में आदिलनगर में किराए पर रह कर राजगिरी का काम करता था. वह था तो शादीशुदा, लेकिन अकेला रहता था. उस के बीवीबच्चे कमरधा में ही रह रहे थे.

पहली मुलाकात में ही संतोष और लक्ष्मण कुछ इस तरह घुलमिल गए, मानो पुराने दोस्त हों. पीनेपिलाने वालों के बीच अकसर ऐसा ही होता है. एक ही राज्य से होने और खानेपीने के शौकीन होने की वजह से दोनों में अच्छी पटने लगी. लक्ष्मण ने संतोष को कई अच्छे काम दिलाए. इसी वजह से संतोष उस की दोस्ती पर पूरी तरह कुर्बान था. जब भी खुशी की कोई बात होती, दोनों खूब जश्न मनाते. पीनेपिलाने की महफिल हर बार लक्ष्मण के कमरे पर ही जमती थी.

एक दिन जब एक काफी बड़ा काम मिला तो संतोष बोला, ‘‘लक्ष्मण, आज खुशी का दिन है, इसलिए जश्न होना चाहिए.’’

‘‘जरूर,’’ लक्ष्मण चहका, ‘‘चलो, कमरे पर चलते हैं, वहीं बोतल खाली करेंगे.’’

‘‘तुम्हारे कमरे पर बहुत महफिलें हो चुकीं, आज तुम मेरे घर चलो,’’ संतोष बोला, ‘‘मेरी घर वाली बहुत बढि़या नौनवेज पकाती है. घर में बैठ कर शराब का भी मजा आएगा और मीट का भी.’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो आज रहने दो,’’ लक्ष्मण ने अपनी राय जाहिर की, ‘‘अगले हफ्ते होली है, उस दिन दोहरा जश्न मनाएंगे.’’

‘‘होली का जश्न भी हो जाएगा,’’ संतोष अपनी खुशी नहीं दबा पा रहा था, ‘‘मुझे इतना बड़ा काम मिला है, इसलिए आज भी दावत होनी चाहिए.’’

लक्ष्मण संतोष की खुशी कम नहीं करना चाहता था. उस की बात मान कर वह उस के साथ उस के घर चला गया. घर में संतोष की पत्नी और बच्चे मौजूद थे. संतोष ने लक्ष्मण को उन सब से मिलवाया. चूंकि संतोष अपनी पत्नी सत्यरूपा से अकसर लक्ष्मण की बात किया करता था, इसलिए वह उस से मिल कर खुश हुई. लक्ष्मण सत्यरूपा को देख कर आश्चर्य में रह गया. कई बच्चों की मां हो कर भी उस के रूपलावण्य में कमी नहीं आई थी. न उस की त्वचा की दमक फीकी पड़ी थी और न ही पेट या कूल्हों पर चर्बी की परत जमी थी. उस के चेहरे में कशिश थी और मुसकान कातिलाना.

संतोष बोतल और मीट साथ लाया था. वह मीट वाली थैली सत्यरूपा को देते हुए बोला, ‘‘जल्दी से बढि़या मीट पका. ऐसा कि लक्ष्मण भी अंगुलियां चाटता रह जाए.’’

सत्यरूपा मीट ले कर किचन में चली गई तो संतोष लक्ष्मण के साथ शराब पीने बैठ गया. लक्ष्मण बातें करते हुए शराब तो संतोष के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन सत्यरूपा में उलझा हुआ था और उस की निगाहें लगातार उसी का पीछा कर रही थीं. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में सत्यरूपा नशीली होती गई. शराब का दौर खत्म हुआ तो सत्यरूपा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर लक्ष्मण ने उस की दिल खोल कर तारीफ की. सत्यरूपा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद लक्ष्मण अपने कमरे पर लौट गया.

इस के बाद लक्ष्मण जब भी संतोष से मिलता, उसे होली की दावत की याद दिलाना नहीं भूलता. लक्ष्मण को भी होली का बेसब्री से इंतजार था. उस ने मन ही मन सोच लिया था कि उसे होली में कैसे हुड़दंग मचाना है. उसे संतोष से कम, सत्यरूपा से ज्यादा होली खेलनी थी. सत्यरूपा को छूने, टटोलने और दबाने का इस से बेहतर मौका और कोई नहीं मिल सकता था. भाभी संग होली खेलने की रस्म भी है और दस्तूर भी. कुछ भी कर गुजरो, केवल एक ही जुमले में सारी खताएं माफ, ‘बुरा न मानो होली है.’ लक्ष्मण ने इसी हथियार को आजमाने का फैसला कर लिया था. उसे पूरा यकीन था कि होली में अगर वह मनमानी करेगा तो सत्यरूपा बुरा नहीं मानेगी.

आखिर इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और होली आ गई. होली के दिन 2 बजे तक रंग चला. उस के बाद लक्ष्मण ने नहाधो कर साफसुथरे कपड़े पहने और संतोष के घर पहुंच गया. दोस्त से रंग खेलने के लिए संतोष रंगों से सना बैठा था. लक्ष्मण को साफसुथरा आया देख कर संतोष ने रंग खेलने के बजाय उसे केवल गुलाल लगाया और गुझिया खिलाई. फिर उसे बैठाते हुए बोला, ‘‘मैं जरा नहा लूं, उस के बाद दोनों आराम से बैठ कर पिएंगे.’’

संतोष कपड़े ले कर बाथरूम में जा घुसा. लक्ष्मण को जैसे इसी समय का इंतजार था. उस ने साथ लाए पैकेट से गुलाल निकाला और अंदर पहुंच गया. सत्यरूपा उसे आंगन में मिल गई. वह उसे देखते ही चहका, ‘‘भाभी, होली मुबारक हो.’’ उस ने सत्यरूपा के गाल पर अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया. सत्यरूपा भी उसे होली की बधाई देते हुए बोली, ‘‘भाभी से होली खेलने आए हो तो ढंग से खेलो. यह क्या कि अंगुली से थोड़ा गुलाल लगा दिया.’’

लक्ष्मण ने सत्यरूपा की बात का गलत मतलब निकाला. फलस्वरूप उस की हसरतें जोश में आ गईं. उस की मुट्ठी में गुलाल था ही, अच्छा मौका देख उस ने गुलाल वाला हाथ सत्यरूपा के वर्जित क्षेत्रों तक पहुंचा दिया और उन्हें रंगने लगा. सत्यरूपा उस के गुलाल से सने दोनों हाथ पकड़ कर कसमसाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो, यह क्या पागलपन है?’’

‘‘बुरा न मानो होली है.’’ लक्ष्मण ने कहा और अंगुलियों का खेल जारी रखा. सत्यरूपा किसी तरह उस से अपने आप को छुड़ा कर बोली, ‘‘अभीअभी नहाई थी, अब फिर से नहाना पड़ेगा.’’

‘‘नहा लेना,’’ लक्ष्मण हंसते हुए बोला, ‘‘साल भर में रंगों का त्यौहार एक ही दिन तो आता है.’’

सत्यरूपा के इस व्यवहार से यह बात साफ हो गई कि उस ने लक्ष्मण की इस अमर्यादित हरकत का बुरा नहीं माना था. लक्ष्मण वह नहीं समझ सका कि ऐसा होली की वजह से हुआ था, सत्यरूपा भी उस के जैसा भाव अपने मन में पाले हुए थी. इस हकीकत को जानने के लिए उस ने फिर से उसे बांहों में भर कर रंग लगाना शुरू कर दिया. सत्यरूपा को जिस तरह पुरजोर विरोध करना चाहिए था, उस ने वैसा विरोध नहीं किया. शायद उसे लक्ष्मण की यह हरकत अच्छी लगी थी. शायद वह कुछ देर और यूं ही लक्ष्मण की बांहों में सिमटी रहती, लेकिन तभी उसे संतोष के बाथरूम से बाहर निकलने की आहट सुनाई दी तो उस ने खुद को लक्ष्मण से अलग कर लिया.

जैसे ही संतोष बाथरूम से निकला, सत्यरूपा झट से बाथरूम में घुस गई. उसे डर था कि कहीं संतोष लक्ष्मण की हरकतों के सुर्ख निशान देख न ले. जब तक संतोष ने कपड़े पहने, तब तक लक्ष्मण ने भी गुलाल से सने हाथ धो लिए. इस के बाद वह कमरे में बैठ गया. नहाधो कर संतोष शराब की बोतल, पानी, गिलास और नमकीन ले आया. इस के बाद दोनों ने जाम से जाम लड़ाने शुरू कर दिए. सत्यरूपा भी नहा कर आ चुकी थी. हया से उस के गाल अब भी लाल हो रहे थे. वह दूर खड़ी अजीब सी नजरों से लक्ष्मण को देख रही थी.

सत्यरूपा के इस व्यवहार से लक्ष्मण को लगा कि सत्यरूपा भी उस की तरह ही मिलन को प्यासी है. अगर वह पहल करेगा तो शायद वह इनकार न करे. यही सोच कर उस ने उसी दिन सत्यरूपा पर अपने प्यार का रंग चढ़ाने का निश्चय कर लिया. लक्ष्मण ने मन ही मन योजना बना कर खुद तो कम शराब पी, संतोष को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. लक्ष्मण ने भरपेट खाना खाया, जबकि संतोष चंद निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

लक्ष्मण की मदद से सत्यरूपा ने संतोष को चारपाई पर लिटा दिया. इस के बाद वह हाथ झाड़ते हुए बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’ इस के बाद उस ने लक्ष्मण की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारा भी बिस्तर लगा दूं.’’

लक्ष्मण के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ रहा था. उसे लगा कि सत्यरूपा भी यही चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार की होली खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर यहीं लगा दो.’’

सत्यरूपा ने लक्ष्मण के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया और बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. लक्ष्मण की आंखों में नींद नहीं थी. उसे सत्यरूपा के साथ दिन में बिताए पल बारबार याद आ रहे थे. उस के शारीरिक स्पर्श से वह काफी रोमांचित हुआ था. वह उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए बेकरार था. संतोष की ओर से वह पूरी तरह निश्चिंत था. आखिर फैसला कर के वह दबे पैर चारपाई से उठा और संतोष के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में सत्यरूपा बच्चों के साथ सो रही थी.

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे, जबकि सत्यरूपा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट बंद कर के लक्ष्मण सत्यरूपा के पास जा कर उस के बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने सत्यरूपा को बांहों में भरा वह दबी जुबान में बोली, ‘‘मनमानी कर तो चुके, अब क्या करने आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘उस वक्त तो बनावटी रंग लगाए थे, अब तुम्हें अपने प्यार के असली रंग में सराबोर करने आया हूं. कह कर उस ने सत्यरूपा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो 2 जिस्मों के अरमानों की होड़ सी लग गई. बदन से कपड़े उतरते गए और हसरतें बेलिबास हो गईं. जल्दी ही उन के बीच वह संबंध बन गए, जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होने चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.’’

उस रात के बाद सत्यरूपा और लक्ष्मण एकदूसरे को समर्पित हो गए. सत्यरूपा लक्ष्मण के साथ रंगरलियां मनाने लगी. उस ने लक्ष्मण को अपना सब कुछ मान लिया. यही हाल लक्ष्मण का भी था. सत्यरूपा के साथ मौजमस्ती करने के लिए लक्ष्मण हर दूसरेतीसरे दिन संतोष के घर महफिल जमाने लगा. संतोष को वह नशे में धुत कर के सुला देता और बाद में सत्यरूपा के बिस्तर पर पहुंच जाता. जब लक्ष्मण की रातें अकसर संतोष के घर में गुजरने लगीं तो पड़ोसियों में कानाफूसी शुरू हो गई कि खानेपीने तक तो ठीक है, लेकिन पराए मर्द को घर में सुलाना कैसी दोस्ती है. जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है.

लोगों ने तांकझांक की तो लक्ष्मण और सत्यरूपा के संबंध का भेद खुलने में देर नहीं लगी. इस के बाद तो उन के अवैधसंबंध के चर्चे आम हो गए. आसपड़ोस में फैली बात संतोष के कानों तक पहुंची तो उस ने सत्यरूपा से पूछा. इस पर उस ने कहा कि वह उस का दोस्त है, उस के साथ ही खातापीता, उठताबैठता है. इस में वह क्या कर सकती है, लोगों का तो काम ही दूसरों की गृहस्थी में चिंगारी लगाना होता है.

इस के बाद संतोष ने फिर कभी सत्यरूपा से इस संबंध में कोई बात नहीं की. लेकिन सत्यरूपा और लक्ष्मण के दिमाग में यह बात आ गई कि आखिर कब तक वे इस तरह संतोष और दुनिया वालों की नजरों से बच पाएंगे. इस का कोई न कोई स्थाई हल निकालना ही होगा. दोनों ने इस मुद्दे पर काफी सोच विचार किया तो नतीजा यही निकला कि संतोष को बिना रास्ते से हटाए वे दोनों एकसाथ अपनी जिंदगी की शुरुआत नहीं कर सकते. दोनों की सहमति बनी तो योजना बनते देर नहीं लगी.

इसी योजना के तहत लक्ष्मण ने अपने दोस्तों निखिल उर्फ पिंटू और अजय चौहान उर्फ मुक्कू से संतोष की हत्या करने की बात की तो दोनों ने हत्या के लिए 20 हजार रुपए मांगे. लक्ष्मण खुशी से पैसे देने के लिए तैयार हो गया. पेशगी के तौर पर उस ने दोनों को 5 हजार रुपए दे भी दिए. 3 अक्तूबर की रात लक्ष्मण अपने दोनों साथियों निखिल और अजय के साथ हनीमैन चौराहे पर पहुंचा. उस ने संतोष को काम दिलाने के बहाने वहीं से उस के मोबाइल पर बात की. सुन कर संतोष खुश हुआ तो लक्ष्मण ने उसे साइट दिखाने को कहा. वह आने को तैयार हो गया.

संतोष उस वक्त अपने बेटे राकेश के साथ मछली खरीदने के लिए मछली मंडी आया था. लक्ष्मण का फोन सुनने के बाद उस ने मछली खरीद कर बेटे राकेश को दे दी और कुछ देर में घर आने की बात कह कर उसे घर भेज दिया. इस के बाद संतोष साइकिल से हनीमैन चौराहे पर पहुंच गया. वहां लक्ष्मण उसे अपने 2 साथियों के साथ मिला. चारों ने एक ठेके पर बैठ कर शराब पी. शराब पीने के बाद लक्ष्मण और उस के साथी टहलने का बहाना बना कर उसे रेलवे लाइन के किनारे तालाब के पास ले गए. वहां दूरदूर तक कोई नहीं दिख रहा था.

सुनसान जगह देख कर लक्ष्मण ने निखिल और अजय के साथ मिल कर संतोष को दबोच लिया और उस के पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ कई वार कर दिए, जिस से संतोष जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पा, फिर हमेशा के लिए शांत हो गया. उसे मारने के बाद लक्ष्मण ने फोन कर के सत्यरूपा को उस की हत्या की जानकारी दे दी और तीनों वहां से फरार हो गए. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे उन तक पहुंची तो घटना का खुलासा होने में देर नहीं लगी. सत्यरूपा और लक्ष्मण से पूछताछ के बाद पुलिस ने निखिल और अजय को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटनास्थल के पास की झाडि़यों से हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया.

मुकदमे में चारों आरोपियों के नाम दर्ज करने के बाद पुलिस ने उन्हें उसी दिन सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Love Story in Hindi

— कथा

Crime Kahani : क्यों मारी गई जीत कौर

Crime Kahani : रंगेहाथों पकड़ी जाने पर अमन कौर ने प्रेमी डाक्टर के साथ मिल कर सास जीत कौर की हत्या कुछ इस तरह से की थी कि किसी को जरा भी संदेह नहीं हुआ. लेकिन उस की अलमारी से मिली फाइल ने उस की पोल खोल दी. इस में कोई 2 राय नहीं कि अवैधसंबंध हमेशा बरबादी ही लाते हैं. न जाने कितने परिवार अवैधसंबंधों की बलि चढ़ गए हैं, इस के बावजूद न अवैधसंबंधों में कोई कमी आ रही है और न इस से होने वाले अपराधों में. मजे की बात यह है कि इस के दुष्परिणाम को जानते हुए लोग जानबूझ कर इस आफत को न्यौता देते हैं.

समाज में ऐसे ढेरों किस्से हैं, जो रहस्य के गर्भ में दफन हो कर रह गए हैं. लेकिन यह भी सत्य है कि जिस तरह पानी में गंदगी छिपी नहीं रह सकती है, उसी तरह समाज की इस गंदगी की भी पोल कभी न कभी खुल ही जाती है. यह भी ऐसा ही मामला है. बीबी जीत कौर की हत्या का मामला भी शायद रहस्यों की अंधेरी परतों में दबा रह जाता, अगर उन की रहस्यमयी मौत से उठे चंद सवालों ने उस के बेटे लवप्रीत को यह सोचने के लिए विवश न कर दिया होता कि उस की मां की मौत स्वाभाविक नहीं, सोचीसमझी साजिश के तहत की गई हत्या है.

सरदार जगमोहन सिंह का परिवार पटियाला के घग्गा गांव में रहता था. गांव में उन के पिता हाकम सिंह की काफी उपजाऊ जमीन थी, जिस पर वह भाई के साथ मिल कर खेती करते थे. 32 साल पहले जगमोहन की पंजाब नहर एवं सिंचाई विभाग में नौकरी लग गई तो वह पटियाला आ कर रहने लगे. नौकरी लगने के बाद पिता ने उन की शादी जिला पातड़ा की जीत कौर से कर दी थी. शादी के लगभग 2 सालों बाद जगमोहन सिंह के घर बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उन्होंने लवप्रीत सिंह रखा. लवप्रीत के पैदा होने के 2 सालों बाद ही जगमोहन सिंह के पिता हाकम सिंह की मौत हो गई तो दोनों भाइयों ने जमीन का बंटवारा कर लिया.

बंटवारे में मिली अपने हिस्से की जमीन बेच कर जगमोहन सिंह ने पटियाला के बाहरी क्षेत्र में विकसित हो रही नई कालोनी त्रिपुड़ी में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई और उसी में पत्नी जीत कौर और बेटे लवप्रीत सिंह के साथ रहने लगे. लगभग 10 साल पहले सन 2004 में एक सड़क दुर्घटना में जगमोहन सिंह की मौत हो गई. जीत कौर के लिए यह तोड़ देने वाला दुख था. लेकिन वह खुद टूट जातीं तो बेटे का क्या होता. उन्होंने खुद को संभाला और बेटे लवप्रीत का लालनपालन करने लगीं. उन्होंने उसे उच्च शिक्षा दिलाई, जिस की बदौलत उसे गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में सहायक मैनेजर की नौकरी मिल गई.

नौकरी की वजह से लवप्रीत सिंह गुड़गांव आ गया तो जीत कौर अकेली पड़ गईं. लवप्रीत महीने, 2 महीने में 1-2 दिनों के लिए पटियाला मां से मिलने जाया करता था. ऐसे में अपना समय काटने के लिए जीत कौर कुछ दिनों के लिए देवर के यहां चली जातीं तो कभी अपने मायके पातड़ा. वैसे वह अपना ज्यादातर समय गुरुद्वारों में जा कर भजनकीर्तन में गुजारती थीं. लवप्रीत सिंह के अलावा उन के रिश्तेदारों को भी जीत कौर के अकेली रहने की चिंता सताती थी. इसलिए रिश्तेदार उन पर लवप्रीत की शादी के लिए दबाव बनाने लगे. उन लोगों का कहना था कि घर में बहू आ जाएगी तो उन का अकेलापन भी दूर हो जाएगा, साथ ही उन की सेवासत्कार भी ठीक से होने लगेगी.

लवप्रीत 27-28 साल का गबरू जवान था. उस की उम्र शादी लायक हो गई थी. ठीकठाक नौकरी भी थी, इसलिए उस के लिए लड़कियों की कमी नहीं थी. घर में पहले से ही किसी चीज की कमी नहीं थी. उन का काफी संपन्न परिवार था. लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें दौलत से नहीं खरीदा जा सकता, खासकर सुख या खुशी. जीत कौर की उम्र 60 साल से ज्यादा हो चुकी थी. अपनी उम्र और हालत को देखते हुए वह बेटे की शादी के लिए राजी हो गईं. उन के हामी भरते ही लड़की वालों की लाइन लग गई. काफी देखसुन कर उन्होंने चंडीगढ़ निवासी गुरमेल सिंह की बेटी अमन कौर को लवप्रीत के लिए पसंद कर लिया. बातचीत के बाद शीघ्र ही अमन कौर से लवप्रीत की शादी कर दी. यह शादी मई, 2010 में हुई थी.

अमन कौर नाम के अनुरूप जितनी शांत और सुशील थी, उस से कहीं ज्यादा सुंदर थी. वह पढ़ीलिखी भी काफी थी. इस तरह की सुंदरसुशील और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर जहां लवप्रीत खुश था, वहीं बहू के व्यवहार और अपनेपन से जीत कौर भी निहाल थीं.अमन कौर ने अपने व्यवहार और सेवाभाव से पति और सास का दिल जीत लिया था. शादी पर ली गई छुट्टियां खत्म हो गईं तो लवप्रीत अपनी नौकरी पर गुड़गांव चला गया. जाते समय उस ने अमन कौर से कहा था कि उसे मां का अपनी जान से भी ज्यादा खयाल रखना है. लवप्रीत पहले जहां महीने, 2 महीने में घर आता था, नईनई शादी के बाद वह महीने में कम से कम 2 बार घर आने लगा. घर आने पर जब उसे मां से पता चलता कि उस की सोच से भी कहीं अधिक अमन कौर उस का खयाल रखती है तो उस की नजरों में पत्नी की इज्जत और ज्यादा बढ़ गई.

बहरहाल, अमन कौर के आ जाने से लवप्रीत की चिंता खत्म हो गई थी. वह मां की ओर से पूरी तरह निश्चिंत हो गया था. मां भी खुश थी. बेटे के सामने जीत कौर बहू की तारीफें करते नहीं थकती थीं. एक सुबह जीत कौर उठीं और दैनिक क्रियाओं से निवृत्त हो कर पूजा के कमरे की ओर जाने लगीं तो अचानक फिसल कर गिर गईं. उन की चीख सुन कर अमन कौर दौड़ी आई और सास को सहारा दे कर सोफे पर बिठाया. जीत कौर के पैर में काफी तेज दर्द था, इसलिए उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया. पैर देख कर डाक्टर ने संदेह व्यक्त किया कि शायद पैर में फैक्चर हो गया है, इसलिए इन्हें अस्पताल ले जाना पड़ेगा.

अस्पताल जाने पर पता चला कि सचमुच पैर टूट गया है. उस पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया. इस के बाद डाक्टर ने उन्हें डेढ़ महीने तक बैड से न उतरने की सलाह दी. अमन कौर सास की खूब सेवा कर रही थी. सूचना पा कर लवप्रीत भी घर आया और अमन कौर द्वारा की जा रही मां की सेवासुश्रुषा से संतुष्ट हो कर लौट गया. वैसे तो जीत कौर को अपने खर्च भर के लिए पैंशन मिलती ही थी, लेकिन इस के अलावा भी मां को खर्च के लिए उन के बैंक एकाउंट में लवप्रीत भी समयसमय पर रुपए डालता रहता था. जरूरत पड़ने पर जीत कौर एटीएम कार्ड से रुपए निकाल लाती थीं. पैर टूटने से जीत कौर घर के बाहर जाने लायक नहीं रह गईं तो उन्होंने एटीएम कार्ड अमन कौर को दे दिया, ताकि जरूरत पड़ने पर वह रुपए निकाल लाए.

जीत कौर के बिस्तर पर पड़ने के बाद अमन कौर लगभग आजाद सी हो गई थी. वह जीत कौर को दर्द निवारक के नाम पर इस तरह की दवाएं देती थी, जिसे खा कर वह इस तरह सो जाती थीं कि उन्हें होश ही नहीं रहता था. उन के सोने के बाद घर में क्या होता है, उन्हे पता नहीं चलता था. जब भी उन की आंखें खुलतीं, अमन कौर घर से गायब होती थी. अक्सर वह रात के 8 बजे के बाद ही आती थी. कभीकभी रात के 9, साढ़े नौ भी बज जाते थे. ऐसे में जीत कौर देर से आने की वजह पूछतीं तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. कभी दवा का तो कभी डाक्टर से मिलने का तो कभी किसी सहेली के घर जाने की बात कह कर उन्हें संतुष्ट कर देती.

एकाध दिन की बात होती तो इस तरह की बहानेबाजी चल जाती है, लेकिन अगर ऐसा रोज होने लगे तो संदेह होने लगता है. ऐसा ही कुछ जीत कौर के मामले में हुआ. जीत कौर अनुभवी और सुलझी हुई महिला थीं. अब तक उन्होंने बहुत कुछ देखा, झेला और कठिनाइयों का सामना किया था. बहू की बातों और हरकतों से उन्हें साफ लगने लगा था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है, जिसे अमन कौर बताना नहीं चाहती थी. उन के संदेह को तब बल मिल गया, जब उन के पारिवारिक डाक्टर खन्ना खुद उन के यहां उन्हें देखने आ गए. हुआ यह कि जब कई दिनों से अमन कौर उन के यहां जीत कौर की दवा लेने नहीं गई और न ही पिछले महीने के इलाज एंव दवाओं के पैसे दिए तो डा. खन्ना ने सोचा कि वह खुद जा कर जीत कौर का हालचाल ले लें, साथ ही पैसों के बारे में भी कह दें. जिस समय वह जीत कौर के घर पहुंचे, अमन कौर घर में नहीं थी.

डा. खन्ना ने जब जीत कौर का हालचाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘डा. साहब, पैर तो अब काफी ठीक है, सूजन भी लगभग खत्म हो गई है, दर्द में भी काफी आराम है. लेकिन इन दिनों आप जो दवाएं दे रहे हैं, उसे खाने के बाद नींद बहुत आती है. मैं ऐसा सोती हूं कि होश ही नहीं रहता.’’

‘‘आप यह क्या कह रही हैं बीजी. मैं ने तो ऐसी कोई दवा नहीं दी है. हमारे खयाल से लगभग 20 दिनों से अमन मेरे यहां नहीं आई है. तब दवा…?’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ जीत कौर ने हैरानी से कहा, ‘‘वह तो मुझे रोज बता कर जाती है कि आप के क्लिनिक पर दवा लेने जा रही है और आप कह रहे हैं कि..?’’

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं बीजी. उस ने तो अभी पिछले महीने की दवा के पैसे भी नहीं दिए हैं.’’ दवाओं का बिल देते हुए डा. खन्ना ने कहा.

जीत कौर ने देखा, 26 हजार 470 रुपए डा. खन्ना के बाकी थे. उन का माथा ठनका. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है. अमन तो एटीएम से रुपए निकाल कर ले आई है, फिर रुपए कहां गए? वह इसी विषय पर सोच रही थीं कि अमन कौर आ गई. डा. खन्ना पर नजर पड़ते ही उस का चेहरा सफेद पड़ गया. शायद उसे इस बात का अहसास हो गया था कि उस की चोरी पकड़ी गई है. इस के बावजूद उस ने खुद को संभाल कर डा. खन्ना को सतश्रीअकाल कहा.

जीत कौर ने इधरउधर की बातें करने के बजाय सीधे पूछा, ‘‘अमन, डा. साहब के इतने पैसे क्यों बाकी हैं?’’

‘‘बीजी, मैं आप को बताना भूल गई थी कि मेरी एक सहेली की मां की हार्ट सर्जरी होनी थी. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी. उस ने पैसे मांगे तो मैं ने रुपए निकाल कर उसे दे दिए. 2-4 दिनों में वह रुपए लौटा देगी तो मैं डाक्टर साहब के रुपए दे दूंगी.’’ अमन ने कहा.

जीत कौर जानती थीं कि अमन झूठ बोल रही है. इस के बावजूद उन्होंने डाक्टर के सामने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, तुम्हारी सहेली के कहीं भाग तो नहीं जा रही. तुम ऐसा करो, बैंक से पैसे निकाल कर डा. साहब के पैसे दे दो. वह आगेपीछे पैसे देती रहेगी.’’

डा. खन्ना के चले जाने के बाद अमन कौर घर के काम में लग गई. जीत कौर अपने कमरे में उसी तरह लेटी रहीं. वह अच्छी तरह समझ गई थीं कि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. अमन जरूर कुछ उलटासीधा कर रही है. डा. खन्ना से बातचीत के बाद उन की समझ में आ गया था कि उन्हें दी जाने वाली दवा ठीक नहीं है. इसलिए अगले दिन सुबह जब अमन कौर ने उन्हें दवा खाने के लिए दी तो उन्होंने वह दवा खाई नहीं और इस तरह लेट गईं, जैसे गहरी नींद में सो रही हों. कुछ देर बाद अमन कौर ने उन के कमरे में आ कर पुकारा, ‘‘मांजी.’’

जब जीत कौर ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह समझ गई कि मांजी सो गई हैं यानी उस की दवा काम कर गई है. वह घर से निकल पड़ी. उस के घर से जाते ही जीत कौर उठीं और उस के कमरे में जा कर उस की अलमारी खोल कर देखने लगीं. अलमारी में महंगी सौंदर्य प्रसाधन सामग्री भरी पड़ी थी. उसी के साथ महंगी विदेशी शराब की 2 बोतलें भी रखी थीं. जीत कौर ने अलमारी का लौकर खोला तो उस में करीब 50 हजार रुपए रखे थे. यह सब देख कर जीत कौर हैरान रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि अमन कौर ऐसा कर के कौन सा खेल खेल रही है. उन की नजरों में अमन कौर की जो आदर्श बहू वाली तस्वीर बनी हुई थी, यह सब देख कर धुंधलाने लगी.

अमन कौर के घर लौटने के बाद जीत कौर ने उस से कुछ नहीं पूछा. वह इस तरह बनी रहीं, जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं है. अब तक वह चलनेफिरने लगी थीं. इसलिए अगले दिन जब अमन कौर घर से बाहर निकली तो उन्होंने उस का पीछा किया. अमन कौर जा कर एक मकान में घुस गई तो लगभग 2 घंटे बाद निकली. जीत कौर ने लगातार 3 दिनों तक उस का पीछा किया. तीनों दिन अमन कौर उसी तरह घर से निकली और अलगअलग मकानों में गई, जहां 2-3 घंटे रह कर वापस आ गई. इस के बाद जीत कौर ने उन मकानों में रहने वालों के बारे में पता किया तो पता चला कि उन मकानों में परिवार से अलग रहने वाले वे लड़के रहते हैं, जो यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं या फिर अकेले रह कर नौकरी करते हैं.

अनुभवी जीत कौर ने बहू की सच्चाई जान ली. एक जवान औरत ऐसे लड़कों के पास क्यों जाएगी? मतलब स्पष्ट था. वह समझ गईं, अमन कौर पति की कमाई दोनों हाथों से यारों पर लुटा रही थी. बहू की सच्चाई जान कर जीत कौर परेशान हो उठीं. बहू की शिकायत बेटे से करने से पहले वह उस से बात कर लेना चाहती थीं. क्योंकि कभीकभी आंखों से दिखाई कुछ और देता है, जबकि उस की सच्चाई कुछ और होती है. जीत कौर ने जब अलमारी से मिले रुपए और शराब की बोतल से ले कर अलगअलग मकानों में जाने की बात अमन कौर को बता कर सच्चाई पूछी तो अमन कौर ने तुरंत अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि उन मकानों में रहने वाले कुछ लड़के उस के कालेज के समय के दोस्त हैं. वह उन्हीं से मिलने जाती है. लेकिन जैसा वह सोच रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है.

जीत कौर को अपने अनुभवों से पता था कि अवैधसंबंधों को जब तक आंखों से न देखा जाए, अमन कौर तो क्या कोई भी स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए उन्होंने इस बात पर जोर दे कर बहू को समझाया, ‘‘देखो अमन, अब तक जो भी हुआ, उसे भूल जाओ. तुम एक अच्छे खानदान की बेटी तो हो ही, अब एक अच्छे खानदान की बहू भी हो, यह सब करना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’

‘‘बीजी, मैं वादा करती हूं कि आगे से ऐसी कोई गलती नहीं होगी.’’

अमन कौर के माफी मांग लेने के बाद जीत कौर ने बात यहीं खत्म कर दी. खाना आदि खा कर सासबहू अपनेअपने कमरों में जा कर सो गईं. अगले दिन सुबह अमन कौर चाय बना कर सास को उन के कमरे में देने गईं तो यह देख कर हैरान रह गई कि उतनी देर तक सास के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. अमन कौर ने 2-4 बार आवाज दी, दरवाजा खटखटाया. लेकिन जब भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो अमन कौर जोरजोर से दरवाजा पीटने के साथ चिल्लाने लगी. दरवाजा भड़भड़ाने और अमन कौर के चीखने की आवाजें सुन कर पड़ोस के लोग आ गए.

अमन कौर काफी परेशान और घबराई हुई थी. पड़ोसियों के पूछने पर उस ने कहा कि मांजी न दरवाजा खोल रही हैं और न कोई जवाब दे रही हैं. पड़ोसियों ने कोशिश कर के दरवाजा तोड़ा तो अंदर बैड पर जीत कौर चित पड़ी थीं. देखने से ही लग रहा था कि उन की मौत हो चुकी है. सास को इस हालत में पा कर अमन जोरजोर से रोने लगी. रोरो कर उस का बुरा हाल हो रहा था. पड़ोसी औरतों ने किसी तरह उसे संभाला और इस घटना की सूचना तुरंत जीत कौर के बेटे लवप्रीत सिंह को दे दी गई. दोपहर तक लवप्रीत घर पहुंच गया. अपनी मां की इस तरह अचानक हुई मौत से वह बहुत दुखी भी था और हैरान भी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मां की मौत इस तरह कैसे हो गई कि किसी को पता ही नहीं चला.

वह गंभीर रूप से बीमार भी नहीं थी. शाम को उस की मां से बात भी हुई थी. तब वह पूरी तरह ठीक थीं. बहरहाल, होनी को स्वीकार कर के वह मां के अंतिम संस्कार की तैयारियां करने लगा. जब सभी रिश्तेदार आ गए तो उस ने मां का अंतिम संस्कार कर दिया. इस के बाद मां की आत्मा की शांति के लिए पाठ वगैरह करवाया. सभी क्रियाकर्म से छुट्टी पा कर लगभग दस दिनों बाद लवप्रीत गुड़गांव जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी अलमारी में कुछ ढूंढ़ते समय कपड़ों के बीच से उसे एक फाइल मिली, जिस पर बीबी जीत कौर का नाम लिखा था.

लवप्रीत ने फाइल खोल कर देखी तो उस में जीत कौर की दवाओं की पर्चियों के साथ कई टेस्टों की रिपोर्टें थीं. न जाने क्या सोच कर लवप्रीत ने वह फाइल अपने बैग में रख ली और दोपहर को उसे ले कर अपने फैमिली डाक्टर खन्ना के यहां जा पहुंचा. फाइल देख कर डा. खन्ना ने कहा, ‘‘यह फाइल मेरी बनाई हुई नहीं है. इस में जो दवाएं लिखी हैं, उन्हें भी मैं ने बीजी के लिए नहीं लिखी हैं.’’

‘‘पर डा. साहब, इस फाइल की रिपोर्ट के अनुसार…’’

‘‘ये सारी रिपोर्टें गलत हैं. मेरे नाम से ये गलत रिपोर्टें न जाने किस ने और क्यों बनवाई हैं?’’

‘‘आप यह क्या कह रहे हैं डा. साहब?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं लवप्रीत. मैं ने बीजी के सारे टैस्ट कराए थे, जिन में वह एकदम ठीकठाक थीं. उन्हें  कोई बीमारी नहीं थी. पैर में हलका सा फै्रक्चर होना कोई बीमारी नहीं है. उस के लिए मैं ने पेन किलर दिए थे, जिन्हें तेज दर्द होने पर खाना था. फाइल में रखे पर्चे के अनुसार बीजी को जो दवाएं दी जा रही थीं, वे नशे की थीं. ये दवाएं अमन कौर कहां से लेती थी, यह मुझे नहीं पता. अभी तो बीजी के इलाज के मेरे 22-23 हजार रुपए बाकी हैं. अमन ने कहा था कि तुम्हारे आने पर मेरे रुपए दे देगी.’’

‘‘डा. साहब पिछले महीने 3 बार में मैं ने एक लाख रुपए भेजे थे, फिर भी अमन ने आप के रुपए नहीं दिए.’’ लवप्रीत ने हैरान हो कर कहा.

इस के बाद कुछ देर के लिए खामोशी छा गई. कुछ देर में खामोशी तोड़ते हुए डा. खन्ना ने कहा, ‘‘लवप्रीत, कुछ भी हो, मुझे इस सारे मामले में कोई बड़ी साजिश लग रही है.’’

‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं डा. साहब. मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.’’ कह कर लवप्रीत घर लौट आया.

उसी दिन लवप्रीत गुड़गांव जाने के लिए घर से निकल पड़ा, लेकिन गुड़गांव गया नहीं. घर छोड़ कर वह शहर के एक होस्टल में कमरा ले कर ठहर गया. इस के बाद वह थाना त्रिपुड़ी आ कर मुझ से (इंसपेक्टर दर्शन सिंह) मिला. पूरा घटनाक्रम बता कर उस ने संदेह व्यक्त किया कि उस की मां जीत कौर की मौत स्वाभाविक नहीं है, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत उन की हत्या की गई है. उस ने व्यक्तिगत तौर पर निवेदन किया कि इस रहस्य से परदा उठाने में मैं उस की मदद करूं.

इस के बाद मैं ने लवप्रीत सिंह से एक प्रार्थनापत्र ले कर हत्या का मामला अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज करा दिया. मैं ने उस से जीत कौर का बैंक एकाउंट नंबर ले कर उसी दिन से अपना काम शुरू कर दिया. मैं ने लवप्रीत को कुछ दिशानिर्देश दे कर अमन कौर की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा. कुछ ही दिनों की जांचपड़ताल से स्पष्ट हो गया कि जीत कौर की मौत के पीछे निश्चित रूप से अमन कौर की साजिश थी. दरअसल, जब मैं ने जीत कौर की बैंक स्टेटमैंट निकलवाई तो पता चला कि उन के खाते से लगातार मोटीमोटी रकमें निकाली गईं थीं. ये सारे पैसे एक ही एटीएम से निकाले गए थे. मैं ने उस एटीएम की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी तो अमन कौर जबजब वहां रुपए निकालने आई थी, उस के साथ कोई न कोई लड़का जरूर था.

एटीएम से रुपए निकाल कर अमन कौर अपने साथ आए लड़के को भी रुपए देती थी. दूसरी ओर लवप्रीत ने लगातार अमन कौर का पीछा किया तो पता चला कि सुबह 10-11 बजे अमन कौर घर से निकल कर अपने किसी दोस्त के यहां जाती थी. 3-4 घंटे वहां रुक कर वहां से किसी दूसरे मित्र युवक के यहां चली जाती थी. यह क्रम देर रात तक चलता था. सुबह की निकली अमन कौर रात 10-11 बजे तक घर लौटती थी. इन सब बातों से साफ हो गया था कि जीत कौर की मौत के पीछे अमन कौर का हाथ था. लवप्रीत के प्रार्थनापत्र पर मैं जीत कौर की हत्या का मुकदमा दर्ज ही करा चुका था. अब मुझे अमन कौर के खिलाफ सुबूत जुटा कर यानी उसे रंगेहाथों पकड़ कर गिरफ्तार करना था. इस के लिए मैं ने अपने कुछ होशियार पुलिस वालों को अमन कौर के मकान के पास निगरानी पर लगा दिया.

चूंकि जीत कौर की मौत हो चुकी थी और अमन कौर की जानकारी में लवप्रीत गुड़गांव चला गया था. इसलिए उसे किसी का डर नहीं रह गया था. सो अब वह अपने दोस्तों को घर भी बुलाने लगी थी. इन में उस का एक दोस्त ऐसा था, जिसे वह रात में बुलाती थी, जो पूरी रात उस के साथ रहता था. उस दिन अमन कौर के घर की निगरानी कर रहे एएसआई कुलदीप सिंह ने देखा कि 2 लड़के आए और उस के घर की बैल बजाई. अमन कौर ने दरवाजा खोला तो दोनों लड़के अंदर चलग गए. कुछ देर बाद एक अन्य लड़के ने आ कर बैल बजाई तो इस बार भी अमन कौर ने ही दरवाजा खोला. तीसरा लड़का भी अंदर चला गया.

कुछ देर बाद अमन कौर के घर से तेजतेज आवाजें आने लगीं. ऐसा लग रहा था, जैसे किसी बात को ले कर अंदर झगड़ा हो रहा था. कुलदीप सिंह ने समय बरबाद न करते हुए इस बात की जानकारी मुझे दी तो मैं 4 सिपाहियों को ले कर वहां पहुंच गया. मैं ने अमन कौर के घर का दरवाजा खुलवाया तो सामने पुलिस वालों को देख कर अमन कौर के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मैं ने घर की तलाशी ली तो अंदर वाले कमरे में 3 लड़के छिपे मिले. तीनों लड़कों की उम्र 19 से 22 साल के बीच थी. ये अलगअलग प्रदेशों के थे, जो यहां पटियाला विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे.

मैं अमन कौर और तीनों लड़कों को थाने ले आया. तीनों लड़कों से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि वे अमन कौर के प्रेमी थे. लेकिन जीत कौर की हत्या से उन का कोई संबंध नहीं था. इस के बाद अमन कौर से पूछताछ की गई तो उस ने जीत कौर की मौत के रहस्य से परदा उठाते हुए उन की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पश्चिमी सभ्यता के आकर्षण में बंधी संस्कारविहीन बिगड़ी संतानों के कारनामों का लेखाजोखा निकली. अमन कौर शुरू से ही आजाद खयालों वाली जिद्दी लड़की थी. घर की एकलौती बेटी होने की वजह से वह सब की लाडली थी. अधिक लाडप्यार ने उसे कुछ ज्यादा स्वच्छंद बना दिया था. धनदौलत की कमी न होने की वजह से वह अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रही थी.

स्कूल के दिनों से ही छोटीछोटी बातों पर सहपाठियों से शरतें लगा कर जीतना और पार्टी करना उस की आदत बन गया था. जवान हो कर  कालेज पहुंचतेपहुंचते वह पश्चिमी सभ्यता में इस कदर ढल गई कि क्लबों, डिस्कोथैकों में जाना, बीयरव्हिस्की पीना, पुरुष मित्रों की बांहों में नाचना, उस के लिए आम बात हो गई थी. अपनी बिगड़ी आदतों की वजह से कभी वह किसी एक मित्र से संतुष्ट नहीं होती थी, इसलिए नएनए दोस्त बनाती रहती थी. जब तक वह बेटी रही, तब तक यह सब चलता रहा, लेकिन जब वह बहू बन गई तो उस की आजादी पर रोक लग गई. अब तक वह जो कुछ करती आई थी, ससुराल आने के बाद नहीं कर पा रही थी.

आखिर अमन ने अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जीने का रास्ता खोज निकाला. अपनी योजना के तहत उस ने अपनी सेवा से पति लवप्रीत और सास जीत कौर का दिल जीत लिया. पति बाहर रहता था, घर में केवल सास थी, इसलिए अमन कौर ने उसे पूरी तरह से वश में कर लिया. बीयर या व्हिस्की ला कर उस ने अपनी अलमारी में रख लिया था. मौका निकाल कर 1-2 पैग ले लिया करती थी. इस बीच अमन कौर ने कुछ ऐसे लड़कों से दोस्ती कर ली थी, जो दूसरे प्रदेशों से वहां पढ़ने आए थे. ऐसे लड़कों को हमेशा पैसों की जरूरत रहती है, यह अमन कौर अच्छी तरह जानती थी. इन लड़कों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उस ने इन्हें अपने जाल में फांस लिया. उन की जरूरतें पूरी कर के वह उन के साथ अय्याशी करने लगी.

अमन कौर लड़कों के कमरों पर पार्टी करती और उन्हें खर्च के लिए रुपए देती. इस तरह दोनों हाथों से वह रुपए लुटाने लगी तो उसे अपने खर्च के लिए रुपए कम पड़ने लगे. 2-3 बार वह अपने मायके से रुपए मांग कर लाई, लेकिन मायके से हमेशा तो रुपए मांगे नहीं जा सकते थे. उसी बीच जीत कौर ने महसूस किया कि बहू का बाजार आनाजाना कुछ ज्यादा हो गया है तो उन्होंने टोकना शुरू किया. तब अमन कौर ने सास को काबू में करने के लिए एक योजना बनाई और उसी योजना के तहत एक दिन उस ने पूजा के कमरे में जाने वाले रास्ते में फर्श पर औयल गिरा दिया. सुबह स्नान के बाद जीत कौर पूजा के कमरे में जाने लगीं तो फर्श पर पड़े औयल की वजह से फिसल कर गिर पड़ीं, जिस से उन के पैर में फैक्चर हो गया.

उस समय अमन कौर ने जीत कौर के फैमिली डा. खन्ना को न बुला कर पहले डा. रंजीत को बुलाया. डा. रंजीत खूबसूरत भी था और युवा भी. उस की शादी भी नहीं हुई थी. दरअसल, महीने भर पहले एक डिपार्टमैंटल स्टोर पर अमन कौर की मुलाकात डा. रंजीत से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में वह उस पर मोहित हो गई थी. जीत कौर के इलाज के लिए डा. रंजीत को बुला कर अमन कौर ने एक तीर से 2 निशाने साधे थे. एक तो डा. रंजीत को उस ने अपने रूपजाल में फांस लिया, दूसरे जीत कौर को लंगड़ी बना कर बिस्तर पर बिठा दिया.

बाद में सास के कहने पर फैमिली डा. खन्ना के यहां ले जा कर प्लास्टर चढ़वाया लेकिन दवाएं डा. रंजीत की ही चलती रहीं. जीत कौर उस के किसी मामले में रोकटोक न कर सके, इस के लिए वह उन्हें नींद की दवाएं देती रही. कुछ दिनों तक सब कुछ अमन कौर के मुताबिक चलता रहा. लेकिन यह भी सच है कि पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता ही है. घटना वाली रात लगभग 8 बजे अमन कौर ने जीत कौर को खाना खिला कर नींद की दवा दे कर सुला दिया. लगभग साढ़े 8 बजे उस का प्रेमी डा. रंजीत आया तो वह उसे अपने कमरे में ले कर चली गई.

डा. खन्ना से बातचीत के बाद जीत कौर ने अमन कौर द्वारा दी जाने वाली दवा खानी बंद कर दी थी, इसलिए अमन को भले ही लगा कि जीत कौर सो गई हैं, लेकिन वह जाग रही थीं. इसलिए अमन डा. रंजीत के साथ अपने कमरे में हंसीठिठोली करने लगी तो उस की आवाज जीत कौर तक पहुंच गई. हंसीठिठोली की आवाजें सुन कर जीत कौर अमन कौर के कमरे की ओर गईं तो कमरे में जो हो रहा था, उसे देख कर वह हैरान रह गईं. दूसरी ओर अमन कौर तथा डा. रंजीत भी जीत कौर को सामने देख कर बैड से उछल पडे़ और अपनेअपने कपड़े ठीक करने लगे. जीत कौर ने अमन कौर को बुराभला कहते हुए धमकी दी कि वह अभी बेटे को फोन कर के सारी बातें बताएंगी.

जीत कौर की इस धमकी से अमन कौर डर गई. उस ने लपक कर जीत कौर के पैर पकड़ लिए और माफी मांगने लगी. रंजीत भी सफाई देने लगा. लेकिन जीत कौर ने तय कर लिया था कि अब वह हर हाल में सारी बातें बेटे को बता कर रहेंगी. वैसे भी रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद अमन कौर के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. अमन कौर ने देखा कि जीत कौर अब किसी भी सूरत में उस की बातों पर विश्वास करने को तैयार नहीं है तो उस ने धक्का दे कर उन्हें बैड पर गिरा दिया और बैड पर रखा तकिया उन के मुंह पर रख कर दबा दिया. जीत कौर ने हाथपैर चलाए तो रंजीत ने उन्हें पकड़ लिए. कुछ ही पलों में जीत कौर के प्राणपखेरू उड़ गए.

सास को मौत के घाट उतार कर अमन कौर घबरा गई. उस ने सवालिया नजरों से डा. रंजीत की ओर देखा तो उस ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘घबराने की जरूरत नहीं है. जो होना था सो हो गया. इस हत्या को हम मैडिकली मौत साबित कर देंगे.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘भई सीधी सी बात है. तुम्हारी सास बीमार रहती थीं, यह बात तुम्हारे पति के अलावा पड़ोसी भी जानते हैं. बीमार सास रात को खाना खा कर सोईं और कब मर गईं, किसी को पता नहीं चला.’’ डा. रंजीत ने कहा.

‘‘क्या यह सब इतना असान है?’’

‘‘तुम इस की बिलकुल चिंता मत करो. बस मैं जैसा कहता हूं, तुम करती जाओ.’’ डा. रंजीत ने कहा.

दोनों ने जीत कौर को इस तरह बैड पर लिटा दिया, जैसे वह सो रही हैं. इस के बाद डा. रंजीत ने अमन कौर को कमरे से निकाल कर खुद अंदर से बंद कर लिया और खिड़की से कमरे से बाहर आ गया. कमरे से बाहर आ कर डा. रंजीत ने कहा, ‘‘सुबह उठ कर तुम्हें शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा करना है कि मांजी दरवाजा नहीं खोल रही हैं. पड़ोसी आ कर दरवाजा तोड़ेंगे और समझेंगे कि बीमार जीत कौर सोतेसोते मर गईं. किसी को जरा सा भी शक नहीं होगा कि उन की हत्या की गई है.’’

और सचमुच किसी को शक नहीं हुआ. सब ने वही समझा, जैसा डा. रंजीत और अमन कौर ने सोचा था. लेकिन अमन कौर की अलमारी में रखी फाइल ने सारा भेद खोल दिया. अगर डा. खन्ना न बताते कि अमन कौर ने इलाज के पैसे नहीं दिए हैं और फाइल के पर्चों में जो दवाएं लिखी हैं, उन्हें उन्होंने नहीं लिखी तो शायद लवप्रीत को कभी संदेह न होता और डा. रंजीत और अमन कौर साफ बच जाते. अमन कौर ने अपराध स्वीकार कर लिया तो मैं ने डा. रंजीत के घर छापा मार कर उसे भी गिरफ्तार कर लिया. अमन कौर के घर पकड़े गए तीनों छात्र निर्दोष थे, इसलिए उन्हें गवाह बना कर छोड़ दिया.

इस के बाद मैं ने जीत कौर की हत्या के आरोप में अमन कौर और डा. रंजीत को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. यह स्वच्छंदता का ही नतीजा था कि एक पढ़ीलिखी और अच्छे खानदान की बेटी और बहू आज जेल में है. उस के प्रेमजाल में फंस कर एक डाक्टर भी जेल पहुंच गया है. सच है, अवैध संबंध हमेशा बरबादी ही लाता है. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. Crime Kahani

Love Story in Hindi : गुनाह प्यार, सजा मौत

Love Story in Hindi : आरती का गुनाह यही था कि उस ने नेतराम से प्यार किया और घर वालों के मना करने के बावजूद उस से कोर्टमैरिज कर ली. घर के अन्य लोगों ने इसे एक दुर्घटना माना और सोच लिया कि आरती मर गई. लेकिन राकेश इस बात को भुला नहीं सका और 7 सालों बाद उसे मौत के घाट उतार दिया.

आरती आगरा की डिफेंस कालोनी के रहने वाले लौहरे सिंह चाहर की बेटी थी. उस के अलावा उन की 3 संतानें और थीं, जिन में 2 बेटे प्रवीण, राकेश और एक बेटी बीना थी. लौहरे सिंह सेना से सूबेदार से रिटायर हुए थे. उन का बड़ा बेटा प्रवीण भी पढ़लिख कर सेना में भर्ती हो गया था. नौकरी लगते ही लौहरे सिंह ने उस का विवाह कर दिया था. इस के बाद उस से छोटी बेटी बीना का भी विवाह लौहरे सिंह ने सेना में सिपाही की नौकरी करने वाले कमल सिंह सोलंकी के साथ किया था. वह चाहते थे कि उन का छोटा बेटा भी सेना में जाए. वह अपनी छोटी बेटी आरती की भी शादी सेना में नौकरी करने वाले से करना चाहते थे, लेकिन न तो उन का छोटा बेटा सेना में गया और न ही वह छोटी बेटी आरती की शादी सेना में नौकरी वाले लड़के से कर पाए.

दरअसल, लौहरे सिंह का छोटा बेटा राकेश लाड़प्यार की वजह से बिगड़ गया था. पढ़नेलिखने के बजाय यारदोस्तों की सोहबत उसे कुछ ज्यादा अच्छी लगती थी. दोस्तों के साथ वह जो उलटेसीधे काम करता था, उस की शिकायतें घर आती रहती थीं, जिस से लौहरे सिंह परेशान रहते थे. उन्होंने बड़े बेटे प्रवीण के साथ मिल कर उसे सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन की इस कोशिश का कोई लाभ नहीं हुआ. राकेश को न सुधरना था, न सुधरा. बेटे की वजह से लौहरे सिंह की काफी बदनामी हो रही थी. बेटे को इज्जत की धज्जियां उड़ाते देख उन्होंने सोचा कि उसे किसी रोजगार से लगा दिया जाए तो दोस्तों का साथ अपनेआप छूट जाएगा.

इस के लिए उन्होंने बगल वाले मोहल्ले चावली में आटा चक्की लगवा कर उस पर उसे बैठा दिया. उस की मदद के 15 साल के मुकेश को नौकर रख दिया. मुकेश था तो नौकर, लेकिन राकेश से उस की खूब पटती थी. जबकि मुकेश की उम्र राकेश से काफी काम थी. चक्की पर अकसर आने वाली एक लड़की पर मुकेश का दिल आ गया. मुकेश ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसाने की बहुत कोशिश की, लेकिन लड़की ने उसे भाव नहीं दिया. चूंकि राकेश मुकेश से दोस्त जैसा व्यवहार करता था, इसलिए उस ने लड़की वाली बात राकेश को भी बता दी थी. जब लड़की ने मुकेश को भाव नहीं दिया तो राकेश ने कहा, ‘‘अगर किसी तरह तू उस लड़की से शारीरिक संबंध बना ले तो वह अपनेआप तेरी मुरीद हो जाएगी.’’

इस के बाद मुकेश उस लड़की से शारीरिक संबंध बनाने का मौका ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे मौका तो मिल गया, लेकिन उस में उसे राकेश को भी साझा करना पड़ा. हुआ यह कि लड़की चक्की पर आटा लेने आई तो किसी बहाने से मुकेश उसे चक्की के पीछे बने कमरे में ले गया और उस के साथ जबरदस्ती कर डाली. उस समय राकेश भी वहां मौजूद था, इसलिए इस काम में उसे साझा करना पड़ा. राकेश ने सोचा था कि इज्जत के डर से लड़की कुछ नहीं बोलेगी. लेकिन जब उस ने कहा कि वह उन की करतूत घर वालों से बताएगी तो दोनों डर के मारे उसे चक्की के अंदर बंद कर के भाग गए. बाद में लड़की ने रोते हुए शोर मचाया तो मोहल्ले वालों ने उसे बाहर निकाला.

इस के बाद पीडि़त लड़की के घर वालों ने मुकेश और राकेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करा दिया. चूंकि पीडि़त लड़की नाबालिग थी, इसलिए मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस ने रातदिन एक कर के राकेश और मुकेश को पकड़ कर अदालत में पेश किया, जहां से राकेश को जेल भेज दिया गया तो नाबालिग होने की वजह से मुकेश को बाल सुधार गृह. मुकेश नाबालिग था, इसलिए करीब साढ़े 3 महीने बाद उसे जमानत मिल गई, लेकिन बालिग होने की वजह से राकेश की जमानत की अर्जियां एक के बाद एक खारिज होती गईं, जिस की वजह वह जेल से बाहर नहीं आ सका. यह सन 2006 की बात थी.

बेटे के जेल जाने से लौहरे सिंह की बदनामी तो हुई ही, परेशानी भी बढ़ गई थी. बेटे को जेल से बाहर निकालने के लिए वह काफी भागदौड़ कर रहे थे. इस में उन का समय भी बरबाद हो रहा था और पैसा भी. राकेश की वजह से वह छोटी बेटी आरती पर ध्यान नहीं दे पाए और उस ने भी जो किया, उस से एक बार फिर उन्हें बदनामी का दंश झेलना पड़ा. जिन दिनों राकेश ने यह कारनामा किया था, उन दिनों आरती कंप्यूटर का कोर्स कर रही थी. ग्रेजुएशन उस ने कर ही रखा था, इसलिए कंप्यूटर का कोर्स पूरा होते ही उसे एक प्राइवेट कंप्यूटर सेंटर पर कंप्यूटर सिखाने की नौकरी मिल गई. इस नौकरी में वेतन तो ठीकठाक मिल ही रहा था, इज्जत भी मिल रही थी.

आरती ने जो चाहा था, वह उसे मिल गया था. मांबाप की लाडली होने की वजह वह वैसे भी जिद्दी थी, अब ठीकठाक नौकरी मिल गई तो घर में दबंगई दिखाने लगी. आरती जो चाहती थी, वही होता था. कमाऊ बेटी थी, इसलिए मांबाप भी ज्यादा विरोध नहीं करते थे. जिस कंप्यूटर सेंटर पर आरती नौकरी कर रही थी, उसी में आगरा के थाना तेहरा (सैया) के गांव बेहरा छरई का रहने वाला नेतराम कुशवाह भी नौकरी करता था. वह चंदन सिंह की 9 संतानों में चौथे नंबर पर था. एमए करने के बाद उस ने कंप्यूटर कोर्स किया और उसी कंप्यूटर सेंटर पर शिक्षक की नौकरी करने लगा, जहां आरती नौकरी कर रही थी.

आरती और नेतराम हमउम्र और हमपेशा थे, इसलिए दोनों में दोस्ती हो गई. इस के बाद दोनों साथसाथ बैठ कर चाय भी पीने लगे और लंच भी करने लगे. नेतराम को जब पता चला कि आरती डिफेंस कालोनी में रहती है और उस के पिता लौहरे सिंह चहार सेना से रिटायर सूबेदार हैं. उस का बड़ा भाई ही नहीं, बड़ी बहन का पति भी सेना में है तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘आरती, तब तो तुम्हारी शादी भी किसी फौजी से ही होगी.’’

‘‘हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती. मैं शादी उसी से करूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा. आप को बता दूं, यह जरूरी नहीं कि वह मेरी जाति का ही हो. वह किसी अन्य जाति से भी हो सकता है. तुम भी हो सकते हो.’’

आरती की इस बात से नेतराम हैरान रह गया. चूंकि वह कुंवारा था और आरती उसे पसंद थी. वह उस से शादी भी करना चाहता था, लेकिन जाति अलग होने की वजह से यह बात कहने की वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. जबकि लड़की हो कर आरती ने यह बात कह दी थी. लगातार मिलते रहने और साथसाथ खानापीना होने से आरती और नेतराम का आपसी सामंजस्य बैठता गया और फिर उन की दोस्ती सचमुच प्यार में बदल गई. इस के बाद नेतराम आरती के घर भी आनेजाने लगा. घर वाले उसे आरती का दोस्त मानते थे, इसलिए कभी किसी ने न तो उस के घर आने पर ऐतराज जताया, न उस से मिलनेजुलने पर.

इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि एक तो वह कमाऊ बेटी थी, दूसरे उन्हें विश्वास था कि उन की बेटी ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उन्हें किसी तरह की दिक्कत का सामना करना पड़े. धीरेधीरे आरती और नेतराम का आपसी लगाव बढ़ता गया. उन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वे अलगअलग जाति से हैं. समय के साथ उन के प्यार की गांठ मजबूत होती गई और वे आपस में शादी के बारे में सोचने लगे. जब इस बात की जानकारी चाहर परिवार को हुई तो घर में हंगामा मच गया. एक तो जाट परिवार, दूसरे फौजी, हंगामा तो मचना ही था. लौहरे सिंह और प्रवीण ने आरती पर बंदिशें लगानी चाहीं तो वह बगावत पर उतर आई.

उस ने साफ कह दिया कि यह जिंदगी उस की अपनी है, वह जैसे चाहे जिए. अगर उसे परेशान किया गया या बंदिश लगाई गई तो वह उन की इज्जत का भी खयाल नहीं करेगी. इस के बाद आरती ने नेतराम से कहा कि जो भी करना है, जल्द कर लिया जाए. क्योंकि जितना समय बीतेगा, तनाव बढ़ता ही जाएगा. आरती का बड़ा भाई प्रवीण नौकरी की वजह से ज्यादातर बाहर ही रहता था. छोटा भाई जेल में था. घर में मातापिता थे, वे भी बूढ़े हो चुके थे. बेटे की वजह से वे वैसे ही परेशान थे, इसलिए आरती के बारे में वे वैसे भी ज्यादा नहीं सोच पाते थे.

नेतराम के भी इरादे मजबूत थे. वह जानता था कि पढ़ीलिखी, समझदार आरती के साथ उस की जिंदगी मजे से कटेगी. आरती उस के प्यार में इतना आगे बढ़ चुकी थी कि उस का पीछे लौटना मुश्किल था. जबकि वह जानती थी कि अलग जाति होने की वजह से नेतराम से शादी करना उस के परिवार पर भारी पड़ सकता है. पूरी बिरादरी हायतौबा मचाएगी, लेकिन वह दिल के हाथों मजबूर थी. उसे अपना भविष्य नेतराम में ही दिखाई दे रहा था. यही वजह थी कि न चाहते हुए भी उस ने 12 दिसंबर, 2007 में नेतराम के साथ कोर्टमैरिज कर ली. उस दिन सुबह आरती नौकरी के लिए घर से निकली तो लौट कर नहीं आई. मां ने फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, इसलिए लौहरे सिंह को समझते देर नहीं लगी कि आरती कहां गई होगी. अगले दिन आरती ने फोन कर के अपनी शादी के बारे में बड़ी बहन बीना को बताया तो उन्होंने इस बात की जानकारी मांबाप को दे दी. आखिर वही हुआ, जिस का चाहर परिवार को डर था. बेटी की इस करतूत से घर वालों को गहरा आघात लगा. एक बेटा दुष्कर्म के आरोप में जेल में था, बेटी ने गैर जाति के लड़के से शादी कर ली थी. बदनामी के डर से भले ही उन्होंने कोई काररवाई नहीं की, लेकिन वे उस के इस अपराध को माफ नहीं कर सकते थे. बेटी बालिग थी, वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने यह सोच कर संतोष कर लिया कि वह उन के लिए मर गई. घर के अन्य लोगों ने तो खुद को संभाल लिया, पर आरती की मां खुद को नहीं संभाल पाई और बेटी के इस निर्णय की वजह से उस की मौत हो गई.

आरती ने नेतराम से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ली थी. वह उस के साथ खुश थी. पतिपत्नी दोनों ही नौकरी कर रहे थे. इस के अलावा नेतराम घर से भी संपन्न था, इसलिए उन्हें किसी तरह की कोई कभी नहीं थी. शादी के लगभग डेढ़ साल बाद आरती ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्षित रखा गया. आरती के घर वालों ने शादी के बाद कभी आरती के बारे में कुछ जानने की कोशिश नहीं की तो उस ने भी कभी कुछ नहीं बताया. नेतराम और आरती, दोनों ही पढ़ेलिखे और महत्वाकांक्षी थे. दोनों ठीकठाक कमाते भी थे, इस के अलावा वह घर से भी संपन्न था, इसलिए मजे से जिंदगी कट रही थी.

सन 2009 में नेतराम की मां सुमित्रा देवी का निधन हो गया था. तब तक आरती चाहर ने बीएड भी कर लिया था, इसलिए उस ने नेतराम से अपना एक स्कूल खोलने को कहा. नेतराम के पास पैसे भी थे और जमीन भी, उस ने अपने करीबी कस्बे तेहरा में मां के नाम सुमित्रा देवी कन्या इंटरकालेज खोल दिया. नेतराम खुद स्कूल का मैनेजर बन गया और पत्नी आरती को स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया. उन का यह स्कूल जल्दी ही बढि़या चलने लगा, जिस से कमाई भी बढि़या होने लगी. इस के बाद नेतराम ने आगरा की नई विकसित हो रही कालोनी रचना पैलेस में एक प्लाट ले कर उस में 10 कमरों का बढि़या 2 मंजिला मकान बनवा लिया. इस मकान का नंबर था 93. मकान तैयार हो गया तो नेतराम पत्नी और बच्चों के साथ उसी में रहने लगा. अब तक आरती एक और बेटे की मां बन चुकी थी, जिस का नाम युवराज रखा गया था.

सन 2007 से सन 2014 तक के 7 साल कैसे बीते, पता ही नहीं चला. नेतराम तरक्की के नित नए आयाम स्थापित करते चले गए. अब वह एक टैक्निकल कालेज खोलना चाहते थे. वह अपनी एक संस्था भी चला रहे थे, जिस के अंतर्गत गरीब और असहाय बच्चों को कंप्यूटर सिखाया जाता था. राष्ट्रीय कंप्यूटर शिक्षा मिशन के अंतर्गत चल रही इस संस्था की कई जिलों में शाखाएं खुल गई थीं. इन सभी शाखाओं का कोऔर्डिनेशन नेतराम खुद कर रहे थे. नेतराम दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहे थे. उन्हें अब किसी चीज की कमी नहीं थी. भरपूरा परिवार तो था ही, समाज में अच्छीखासी शोहरत और इज्जत मिलने के साथ पैसे भी खूब आ रहे थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक 20 नवंबर, 2014 को आरती की हत्या हो गई.

हुआ यह कि दिन के डेढ़ बजे नेतराम ने आरती को फोन किया तो फोन नहीं उठा. कई बार फोन करने के बाद जब आरती की ओर से फोन रिसीव नहीं किया गया तो उन्हें हैरानी हुई. इस के बाद उन्होंने ऊपर की मंजिल  में रहने वाले अपने किराएदार को फोन कर के आरती से बात कराने का अनुरोध किया. किराएदार अपना मोबाइल फोन ले कर नीचे आया और ‘भाभीजी… भाभीजी…’ आवाज लगाते हुए घर के अंदर पहुंचा तो बैडरूम का नजारा देख कर उस के होश उड़ गए. उस ने शोर मचा कर पूरी कालोनी तो इकट्ठा कर ही ली, नेतराम से भी तुरंत घर आने को कहा.

5-7 मिनट में ही नेतराम घर आ गए. मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह तेजी से घर के अंदर पहुंचे. उन के साथ कालोनी के कई लोग अंदर आ गए थे. घर के अंदर की स्थिति बड़ी ही खौफनाक थी. आरती की लाश बैड पर एक किनारे पड़ी थी, उस का सिर नीचे की ओर लटका हुआ था. गरदन से बह रहा खून फर्श पर फैल रहा था. आरती की बगल में बैठा युवराज रो रहा था. वह मर चुकी मां को उठाने के चक्कर में खून से सन चुका था. पत्नी की हालत देख कर नेतराम फफकफफक कर रोने लगे. रोते हुए ही उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े युवराज को उठाया और किराएदार को थमा कर उसे नहला कर कपड़े बदल देने का अनुरोध किया.

अब तक उन का बड़ा बेटा हर्षित भी स्कूल से आ चुका था. मां की हालत देख कर वह भी रोने लगा. पड़ोस की औरतों ने उसे संभाला. घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी गई थी. थोड़ी ही देर में पुलिस अधिकारियों की आधा दर्जन गाडि़यां रचना पैलेस में आ कर खड़ी हो गईं. एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, सीओ (सदर) असीम चौधरी थाना ताजगंज के थानाप्रभारी मधुर मिश्रा घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. डौग स्क्वायड, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स और फोटोग्राफर को भी बुला लिया गया था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से मकान और उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में आरती की लाश पड़ी थी. इस मामले में डौग स्क्वायड कोई खास मदद नहीं कर सका. उस ने बैडरूम से ले कर ड्राइंगरूम तक 3-4 चक्कर लगाए और मकान से बाहर आ कर बगल वाले मकान की चारदीवारी के पास रुक गया.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्यारे बैडरूम और ड्राइंगरूम के बीच चहलकदमी करते रहे होंगे. उस के बाद मकान से निकल कर बगल वाले मकान चारदीवारी के पास आए होंगे, जहां उन की मोटरसाइकिल या स्कूटर खड़ी रही होगी. मकान के निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि हत्या के बाद हत्यारों ने बैडरूम के बगल में लगे वाशबेसिन में खून सने हाथ धोए थे. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स ने ड्राइंगरूम में रखे चाय के 2 कपों से फिंगरप्रिंट उठाए. चाय के कप और ट्रे में रखी नमकीन, मिठाई देख कर पुलिस अधिकारी समझ गए कि जिस ने भी यह कत्ल किया है, वह कोई खास परिचित रहा होगा.

अब पुलिस को यह पता करना था कि खास लोगों में ऐसा कौन हो सकता है, जो हत्या कर सकता है. पुलिस ने जब इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि मृतका आरती चाहर ने घर वालों के खिलाफ जा कर अन्य जाति के नेतराम कुशवाह से करीब 7 साल पहले प्रेमविवाह किया था. तब उस के घर वालों ने इस बात को अपना अपमान मान कर खामियाजा भुगतने की धमकी दी थी. पुलिस को जांच आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मिल गया था, लेकिन फिलहाल तो उन्हें घटनास्थल की काररवाई निपटानी थी. आवश्यक काररवाई पूरी कर के पुलिस ने आरती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उसी 7 साल पुरानी धमकी के आधार पर नेतराम ने आरती के भाई राकेश चाहर के खिलाफ आरती की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

चूंकि राकेश का एक साथी लोकेश भी अकसर नेतराम के घर आता रहता था, इसलिए नेतराम को शक था कि हत्या के समय वह भी साथ रहा होगा, इसलिए मुकदमे में उस का नाम भी शामिल करा दिया था. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए राकेश और लोकेश के फोन नंबर ले लिए. इस के बाद उन नंबरों पर फोन किए गए तो वे नंबर बंद पाए गए. हत्या के बाद नंबर बंद होने से पुलिस का संदेह बढ़ गया. इस मामले की जांच थाना ताजगंज का उसी दिन चार्ज संभालने वाले थानाप्रभारी मधुर मिश्रा को सौंपी गई.

उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई प्रमोद कुमार यादव, नरेंद्र कुमार, सिपाही रामन और आशीष कुमार को शामिल किया. चूंकि एक स्कूल प्रिंसिपल की दिनदहाड़े हत्या का मामला था, इसलिए सीओ सिटी असीम चौधरी भी इस मामले पर नजर रखे हुए थे. पुलिस को राकेश की तलाश थी. इसलिए पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो घर में मौजूद उस का बड़ा भाई प्रवीण सिंह फौजी वर्दी की धौंस दिखाते हुए पुलिस से उलझ गया. नाराज पुलिस टीम उसे हिरासत में ले कर थाने आ गई. थाने में उस से पूछताछ चल रही थी कि मुखबिर से पुलिस टीम को राकेश के साथी लोकेश के बारे में पता चल गया.

पुलिस लोकेश को पकड़ कर थाने ले आई. शुरुआती पूछताछ में तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. उस ने एक पान वाले से भी कहलवाया कि उस दोपहर को वह उस की दुकान पर बैठ कर अखबार पढ़ रहा था. पुलिस पान वाले को भी ले आई. इस के बाद जब पुलिस ने अपने ढंग से पूछताछ की तो पान वाले ने बक दिया कि उस ने लोकेश के कहने पर झूठ बोला था. इस के बाद पुलिस ने लोकेश से सच्चाई उगलवा ली. लोकेश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो उस की निशानदेही पर पुलिस ने थाना एत्माद्दौला की ट्रांस यमुना कालोनी के बी ब्लाक के मकान नंबर 3/5 से राकेश को गिरफ्तार कर लिया. सीओ असीम चौधरी दोनों को अपने औफिस ले आए, जहां की गई लगभग एक घंटे की पूछताछ में राकेश ने आरती की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

जिन दिनों आरती ने प्रेमविवाह किया था, उन दिनों राकेश जेल में था. दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत से उसे 10 साल के कैद की सजा हुई थी. घर वालों के खिलाफ आरती की छोटीमोटी बगावतें वह पहले से ही सुनता आ रहा था, लेकिन जब बड़े भाई प्रवीण ने उसे नेतराम से विवाह की खबर सुनाई तो उस का खून खौल उठा. नेतराम कुशवाह से उसे कोई शिकायत नहीं थी, क्योंकि अगर उस की बहन आरती न चाहती तो भला उस की क्या मजाल थी कि वह आरती से जबरदस्ती कोर्टमैरिज कर लेता. उस की नजरों में इस के लिए दोषी उस की बड़ी बहन आरती थी.

राकेश ने अपने घर वालों की इज्जत बचाने के लिए आरती को खत्म करने का फैसला कर लिया. उस ने जेल से ही आरती को धमकी दी कि उस ने जो किया है, इस के लिए वह उसे सबक जरूर सिखाएगा. उसी बीच आरती की वजह से मां की मौत हो गई तो राकेश को आरती से नफरत हो गई. उस ने कसम खा ली कि कुछ भी हो, वह आरती को जीवित नहीं छोड़ेगा. राकेश जेल की जिस बैरक में सजा काट रहा था, उसी में लोकेश नाम का एक लड़का आया. वह पड़ोस के ही मोहल्ले का रहने वाला था, इसलिए राकेश से उस की दोस्ती हो गई. जल्दी ही दोनों के संबंध इतने मधुर हो गए कि वे एक ही थाली में खाना खाने लगे. उन्होंने जीवन भर इस संबंध को निभाने की कसमें भी खाईं.

राकेश और लोकेश हमउम्र थे. दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे, इसलिए राकेश ने अपनी बहन आरती के प्रेमविवाह के बारे में बता कर पूछा कि इस मामले में क्या किया जाना चाहिए? समझदारी दिखाते हुए लोकेश ने सलाह दी कि इस मामले में अभी इंतजार करना चाहिए. आरती को उस के किए की सजा इस तरह दी जाए कि पुलिस भी पता न कर सके कि ऐसा किस ने किया होगा. आरती ने जो किया था, उस से घर के सभी लोग नाराज थे. इसलिए जब कभी कोई जेल में राकेश से मिलने आता तो उस का जिक्र जरूर छिड़ता. राकेश के लिए परेशानी यह थी कि उस के मुकदमे की कोई ठीक से पैरवी करने वाला नहीं था. मां मर चुकी थी, बाप बूढ़ा था, बड़ा भाई और बहनोई फौज में थे. जिस की वजह से वे ज्यादातर बाहर रहते थे. एक बहन थी बीना, वही कभीकभी मिलने आ जाती थी.

राकेश चाहता था कि किसी तरह हाईकोर्ट से उस की जमानत हो जाए. बूढ़े होने की वजह से पिता भागदौड़ नहीं कर पा रहे थे. इसलिए राकेश ने बीना से कहा कि वह आरती से बात कर के उस की जमानत करवा दे. बीना ने आरती को फोन कर के कहा भी कि वह जेल जा कर राकेश से मिल ले और उस की जमानत करा दे. लेकिन आरती न तो राकेश से मिलने जेल गई और न ही उस की जमानत कराई. जबकि राकेश के पिता लौहरे सिंह ने आरती को उस की जमानत कराने के लिए एक लाख रुपए नकद और इतने के गहने भी दिए थे. रुपए और गहने ले कर भी आरती ने राकेश की जमानत के प्रति ध्यान नहीं दिया.

राकेश जेल से बाहर आने के लिए छटपटा रहा था. आरती न तो उस से मिलने गई थी और न उस की जमानत कराई थी. इस से उसे लगा कि बहन उस के बारे में जरा भी नहीं सोच रही है. लगभग 6 महीने पहले हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई. राकेश घर आ गया. बहन के व्यवहार से उस के मन में एक टीस सी उठती थी. लेकिन अभी वह जमानत पर जेल से आया था, इसलिए कोई अपराध नहीं करना चाहता था. इस के बावजूद वह बहन को उस के किए की सजा देना चाहता था. लेकिन वह यह काम इस तरह करना चाहता था कि उस पर आरोप लगने की बात तो दूर, कोई शक भी न कर सके. इस के लिए उस ने आरती से मधुर संबंध बनाने शुरू किए. जल्दी ही उस ने इस तरह संबंध बना लिए, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है.

राकेश के बदले व्यवहार से आरती भी उसे मानने लगी थी. वह जब भी आता था, आरती उसे खूब खिलातीपिलाती थी, जाते समय कुछ न कुछ बांध भी देती थी. जरूरत पड़ने पर रुपएपैसे से भी उस की मदद करती थी. इस के अलावा अगर वह पति और बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने जाती थी तो उसे भी साथ ले जाती. उसी बीच लोकेश भी जेल से बाहर आ गया तो दोनों साथसाथ दिखाई देने लगे. आरती के ठाठबाट और सुखी जीवन से राकेश को ईर्ष्या हो रही थी. वह सोचता था कि अगर आरती चाहती तो बहुत पहले ही वह जेल से बाहर आ जाता. लेकिन उस ने उस की परेशानी को बिलकुल नहीं समझा. आरती भले ही राकेश का खूब खयाल रखती थी, लेकिन सही बात यह थी कि आरती बिलकुल नहीं चाहती कि राकेश उस के घर आए.

इस बात को राकेश समझ गया था, इसलिए वह खुद को अपमानित महसूस करता था. इन सब बातों से उसे लगता था कि इस तरह की बहन को सुख से जीने का कोई अधिकार नहीं है. राकेश के मन में क्या है, शायद आरती ने ताड़ लिया था. इसलिए वह उस की ओर से निश्चिंत नहीं थी. वह नेतराम से कहती भी रहती थी कि उसे राकेश से डर लगता है. जबकि नेतराम का कहना था कि राकेश तो वैसे ही कानून के शिकंजे में है, इसलिए अब वह कोई गैरकानूनी काम कर के अपनी जिंदगी बरबाद नहीं करेगा. एक दिन राकेश लोकेश को साथ ले कर आरती के घर पहुंचा. जब आरती को पता चला कि लोकेश भी जेल से छूट कर आया है तो उसे झटका सा लगा. उस ने राकेश से कहा भी, ‘‘उसे ऐसे लोगों से मेलजोल नहीं रखना चाहिए.’’

राकेश को बहन की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी. उस ने कहा, ‘‘यह मेरा देस्त है. दोस्त कैसा भी हो, दोस्त ही होता है.’’

इस के बाद राकेश आरती के घर से बाहर आया तो लोकेश से बोला, ‘‘दोस्त, मैं अपनी इस बहन को सहन नहीं कर पा रहा हूं. मेरे घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर देखो यह किस तरह सुख और चैन से जी रही है.’’

‘‘उस कालिख को तो इस के खून से ही धोया जा सकता है.’’ लोकेश ने कहा. राकेश भी यही सोच रहा था. साथी मिल गया तो उस का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित हो गया कि परिवार की मर्यादा का उल्लंघन करने वाली बहन को कैसे सबक सिखाया जाए. आरती को भले ही राकेश पर विश्वास नहीं था, लेकिन राकेश बहन और बहनोई का विश्वास जीतने कोशिश कर रहा था. हफ्ते में 2-3 बार वह बहनबहनोई और भांजों से मिलने उन के घर आता था. उस के साथ लोकेश भी होता था. आरती के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए अच्छाअच्छा खिलानेपिलाने के साथ वह छोटे भाई राकेश को पौकेट मनी भी देती थी. इस की वजह यह थी कि आरती और नेतराम राकेश से अपने संबंध मधुर बना लेना चाहते थे.

26 नवंबर, 2014 को वैष्णो देवी जाने के लिए नेतराम ने पूरे परिवार का टिकट कराया था. नेतराम ने साथ ले जाने के लिए राकेश की भी टिकट करा रखी थी. जबकि राकेश बहन को सबक सिखाने का मौका तलाश रहा था. 18 नवंबर को राकेश और लोकेश आरती के यहां बैठे बातें कर रहे थे, तभी बातोंबातों में नेतराम ने कहा कि 20 नवंबर को उसे सजावट का सामान (झूमर झाड़फानूस) लेने फिरोजाबाद जाना है. यह सुन कर राकेश की आंखों में चमक आ गई. थोड़ी देर बाद राकेश लोकेश के साथ बाहर आ गया. इस के बाद उस ने लोकेश के साथ मिल कर आरती की हत्या की योजना बना डाली.

18 नवंबर की बातचीत के अनुसार, 20 नवंबर की सुबह के करीब 11 बजे नेतराम को फिरोजाबाद जाने के लिए घर से निकलना था. लेकिन इस बीच उस का प्रोग्राम बदल गया. उस ने डिजाइन पसंद करने के लिए आरती को भी साथ चलने के लिए तैयार कर लिया था. इस नए प्रोग्राम के अनुसार उसे 2 बजे के आसपास घर से निकलना था. नेतराम का बड़ा बेटा हर्षित स्कूल गया था, जिसे डेढ़ बजे तक घर आना था. आरती चाहती थी कि वह अपने हाथों से उसे खाना खिला कर फिरोजाबाद जाए.

नेतराम के फिरोजाबाद जाने के प्रोग्राम में बदलाव हो चुका है, यह राकेश और लोकेश को पता नहीं था. 20 नवंबर, 2014 दोपहर के बाद नेतराम और आरती को फिरोजाबाद जाना था, इसलिए नेतराम अपने कंप्यूटर सेंटर के काम से 2-3 घंटे में आने के लिए कह कर सेवला स्थित एक साइबर कैफे पर चला गया. आरती घर के कामों में लग गई. नेतराम के जाते ही साढ़े 10 बजे के आसपास राकेश मोटरसाइकिल से लोकेश को साथ ले कर आरती के घर के लिए चल पड़ा. आरती को सबक सिखाने की योजना राकेश ने 18 नवंबर को ही बना डाली थी, इसलिए 19 नवंबर की शाम को उस ने चाकू खरीद लिया था. हत्या करने में किसी तरह की झिझक न हो, इसलिए एकएक क्वार्टर शराब खरीद कर पी लिया.

सवा 11 बजे जब राकेश और लोकेश मोटरसाइकिल से रचना पैलेस कालोनी की ओर जा रहे थे तो उन्हें नेतराम जाता दिखाई दिया. उन्हें लगा कि वह फिरोजाबाद जा रहा है. इस के बाद दोनों एक पान के खोखे के पास खड़े हो गए. आधेपौने घंटे बाद जब उन्हें लगा कि नेतराम शहर से बाहर निकल गया होगा तो दोनों आरती के घर की ओर चल पड़े. योजनानुसार राकेश ने मोटरसाइकिल आरती के घर से कुछ दूरी पर बगल वाले मकान की चारदीवारी के पास खड़ी कर दी और इधरउधर देख कर लोकेश के साथ बहन के घर जा पहुंचा. भाई और उस के दोस्त के आने पर आरती ने फटाफट चाय बनाई और नमकीन एवं मिठाई के साथ उन्हें पीने को दी. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘राकेश, तुम दोनों चाय पियो, तब तक मैं युवराज को नहला देती हूं.’’

यह कह कर आरती युवराज को गोद में ले कर कपड़े उतारने लगी तो राकेश ने कहा, ‘‘दीदी, आप ने कुछ देने को कहा था. लाइए उसे दे दीजिए.’’

आरती ने युवराज को लोकेश को थमाया और खुद किचन में गई. अब तक चाय खत्म हो चुकी थी. इसलिए किचन में जा कर जैसे ही आरती ने फ्रिज खोलना चाहा, पीछे से राकेश पहुंच गया. उस ने आरती के गले में पड़े दुपट्टे की लपेट कर पकड़ लिया और घसीटते हुए बैडरूम ले गया. हक्काबक्का आरती कुछ कहती, युवराज को लोकेश की गोद में देख कर डर गई कि उस के चिल्लाने पर वह उस के बेटे का अनिष्ट न कर दे. इस के बाद राकेश ने आरती को बैड पर गिरा कर चाकू से हमला कर दिया. गला रेत कर उस की हत्या करने के बाद गले की चेन और कान के कुंडल उतार लिए. इस के बाद अलमारी वगैरह खोल कर उस में रखा कीमती सामान ले कर इधरउधर फैला दिया, जिस से लगे कि यह हत्या लूट के लिए की गई है.

आरती की हत्या करने के बाद दोनों घर से निकले और मोटरसाइकिल से आराम से चले गए. लोकेश अपने घर चला गया, जबकि राकेश अपने एक दोस्त के घर जा कर लोकल न्यूज चैनल पर समाचार देखने लगा कि पुलिस की जांच किस दिशा में जा रही है. राकेश पुलिस जांच का पता लगा पाता, पुलिस ने पहले लोकेश को और फिर उस की मदद से उसे पकड़ लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, गहने, मोटरसाइकिल और कपड़े बरामद कर के दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राकेश ने बहन को मौत के घाट उतार कर उस के मासूम बच्चों को अनाथ कर दिया है. लेकिन उसे न तो बहन की हत्या का कोई दुख है, न उस के बच्चों के अनाथ होने का. उस का कहना है कि बहन ने परिवार पर बदनामी का जो दाग लगाया था, उस के खून से उस ने वह दाग धो दिया है. अब उसे चाहे जो भी सजा मिले, उसे उस का कोई दुख नहीं है. Love Story in Hindi

 

UP Crime News : बहन के प्यार का साइड इफेक्ट

UP Crime News : गगन उर्फ गौतम नहीं चाहता था कि उस की सौतेली बहन नंदिनी मोहल्ले के दूसरी बिरादरी के युवक से प्यार करे. लेकिन नंदिनी भी जिद्दी थी. अपनी जिद पूरी करने के लिए उस ने भाई गगन की पूर्व प्रेमिका ममता के साथ मिल कर भाई के खिलाफ ऐसी खूनी साजिश रची कि…

घर में सभी लोगों की लाडली नंदिनी की शादी को ले कर उस के पिता ओमप्रकाश चिंतित रहते थे. उस की शादी की उम्र हो चुकी थी. वह जितनी चंचल, उतनी ही हिम्मती और बातबात पर अड़ जाने वाली थी. जिद्दी इतनी कि एक बार जो मन में ठान लिया, उसे पूरा कर के ही छोड़ती थी. मुरादाबाद की एक एक्सपोर्ट कंपनी में काम करने वाले ओमप्रकाश के खातेपीते सुखीसंपन्न परिवार में पत्नी ओमवती के अलावा बेटी नंदिनी और बेटा गगन था.

मुरादाबाद की लालबाग रामगंगा कालोनी में रहने वाले इस परिवार के सभी सदस्य सौतेलेपन की कुंठा से ग्रसित थे. वहीं सौतेलापन नंदिनी को भी भीतर ही भीतर कुछ ज्यादा ही कुरेदता रहता था. उस की बड़ी बहन पूजा की शादी हो चुकी थी. वह अपने घर में खुश थी, लेकिन नंदिनी को पड़ोस में रहने वाले प्रदीप नाम के युवक से प्यार हो गया. लेकिन वह उस की बिरादरी का नहीं था. इस के अलावा वह बेरोजगार भी था. इसी बात को ले कर गगन उस के प्रेम में रोड़ा बन बैठा था. नंदिनी गगन की भले ही सौतेली बहन थी, लेकिन वह नहीं चाहता था कि नंदिनी प्रदीप से प्यार करे. गगन अपने मातापिता को इस बारे में उकसाता भी रहता था. पिता भी गगन का ही पक्ष लेते थे. सौतेली मां कलावती का निधन भी बीते साल कैंसर से हो चुका था.

घर में नंदिनी की एकमात्र हमदर्द गगन की पत्नी राधा बन सकती थी, लेकिन उस की घर में जरा भी नहीं चलती थी. गगन नंदिनी के साथसाथ उसे भी काफी डांटडपट कर रखता था. कई बार इस वजह से नंदिनी काफी दुखी हो जाती थी और गगन के विरोधी तेवर को अपने दिल पर लेती हुई बिफर भी पड़ती थी. उस के मुंह से निकल पड़ता था, ‘‘गगन उस का दुश्मन है, क्योंकि वह सौतेला भाई जो है, अपना होता तो…’’

अब नंदिनी को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल की बात कहे तो किस से? अपनी समस्या का समाधान निकाले भी तो किस की मदद ले? यही सोच कर वह हमेशा तनाव में रहती थी. प्रेमी प्रदीप के साथ वह ज्यादा समय तक मिलबैठ भी नहीं सकती थी. क्योंकि गगन उस पर हमेशा पहरेदार की तरह तना रहता था. हर बात में मिर्चमसाला लगा कर पिता को बताता था और घर में बात का बतंगड़ बना डालता था. और तो और, उस के प्रेमी को नाकारा निकम्मा कहता हुआ घर में सभी के सामने उसे काफी जलील करता था. इस बात को ले कर नंदिनी परेशान रहने लगी थी. उस के मन में तरहतरह के खयाल आतेजाते रहते थे.

अपनी समस्याओं को ले कर उधेड़बुन में एक बार नंदिनी बाजार से गुजर रही थी. तभी अचानक उस की मुलाकात ममता से हो गई. उसी ने टोका, ‘‘अरे नंदिनी तुम! काफी परेशान दिख रही हो? क्या बात है?’’

‘‘अरे ममता! तुम तो पहचानने में ही नहीं आ रही हो. तुम्हारी शादी होने वाली है क्या? बहुत दिनों बाद मिली… कैसी हो तुम?’’ नंदिनी ने चौंकते हुए उसी की तरह एक साथ कई सवाल दाग दिए.

‘‘मैं तो बस अपने दिल को बहला रही हूं. खुद को दिलासा दे रही हूं. तुम्हारे भाई ने जब से मुझे धोखा दिया है, उस के बाद समझो आज ही मूड फ्रैश करने के लिए थोड़ा बनठन कर निकली हूं… अच्छी लग रही हूं न?’’ ममता ने भी नंदिनी के अंदाज में जवाब दिया.

‘‘बहुत ही अच्छी, ग्लैमरस. तुम्हारी सुंदरता का कोई जवाब नहीं. तुम कुछ भी पहन लो हीरोइन दिखती हो…’’ नंदिनी बोली.

‘‘बसबस, किसी की अधिक तारीफ नहीं करते. उस से उस की मुराद पूरी होने में अड़चन आ जाती है.’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारी मुराद क्या है?’’ नंदिनी तपाक से पूछ बैठी.

‘‘बदला,’’ नंदिनी के लहजे में ममता बोली.

‘‘एेंऽऽ बदला… यह कोई मुराद हुई? मगर किस से?’’ चौंकती हुई नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हारे उसी भाई से, जो मेरी जिंदगी उजाड़ कर तुम्हारी जिंदगी भी बरबाद करने पर तुला है.’’ ममता गुस्से में बोली.

‘‘कह तो तुम बिलकुल सही रही हो, मगर क्या कर सकती हूं, समझ नहीं पा रही हूं.’’ नंदिनी ने कहा.

वह मायूसी के साथ आगे कहने लगी, ‘‘गगन सौतेला भाई है न, इसलिए अपना सौतेलापन खुल कर दिखा रहा है. प्रदीप को मेरा और पूरे परिवार का दुश्मन बताता है. पापा को उस के खिलाफ काफी भड़का दिया है. पापा से बोलता है कि उन की जायदाद पर प्रदीप की नजर है. तुम तो जानती हो उसे, वह ऐसा बिलकुल ही नहीं है. वह मुझे बहुत प्यार करता है. मैं भी उसे बहुत चाहती हूं.’’

‘‘देखो, नंदिनी तुम्हारे चाहने और नहीं चाहने से क्या होता है. गगन कभी नहीं चाहता है कि तुम्हारी प्रदीप के साथ शादी हो. इस के पीछे छिपा हुआ उस का मकसद समझो. वह जानता है कि तुम्हारी प्रदीप से शादी होने पर तुम इसी मोहल्ले में रहने लगोगी… और फिर अपने पिता की संपत्ति पर हक जताने लगोगी. इसलिए वह तुम्हारी शादी कहीं दूर करवाना चाहता है.’’ ममता ने समझाया.

इसी के साथ उस ने यह भी कह दिया कि उन दोनों का एक ही दुश्मन है गगन. गगन की प्रेमिका थी ममता यह बात नंदिनी के दिमाग में घर कर गई. उस वक्त तो ममता और नंदिनी अपनीअपनी उलझनों का बोझ एकदूसरे पर उतार कर विदा हो लिए, लेकन दोनों के दिमाग में गगन के विरोध की ज्वाला धधकने लगी. ऐसा होना भी स्वाभाविक था. नंदिनी को गगन हमेशा कहता रहता था कि प्रदीप उस का हितैषी नहीं दुश्मन है, वह उस के साथ प्रेम का नाटक कर रहा है और उस की मंशा जमीनजायदाद हथियाने की है. एक समय में लालबाग रामगंगा कालोनी निवासी रमेश कुमार की बेटी ममता गगन की प्रेमिका हुआ करती थी. गगन उस पर जान छिड़कता था. गगन भी ममता से बेइंतहा मोहब्बत करता था. उस का दीवाना था.

वह बेहद सुंदर और मांसलता के दैहिक आकर्षण से भरी हुई थी, अपनी खूबसूरती को आधुनिक पहनावे और स्टाइल से और भी ग्लैमर बना देती थी. बौडी लैंग्वेज से ले कर बोलचाल तक से किसी को भी पलक झपकते ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी. उस के स्वच्छंद विचार और आधुनिक पहनावे से निखरे रूपरंग का कई लोग गलत अर्थ भी निकालते थे. दबी जुबान में उसे बदचलन तक कह देते थे. ऐसी धारणा रखने वालों में गगन के पिता ओमप्रकाश भी थे. उन्होंने ममता को ले कर गगन को एक बार खूब डांटा था. उस से दूर रहने की चेतावनी दी. यहां तक कि उन्होंने भी उसे बदचलन करार दे दिया था. दुर्भाग्य से 2018 में गगन की मां कलावती का कैंसर से निधन हो गया.

करीब 25 साल पहले ही ओमप्रकाश ने अमरोहा निवासी विवाहिता कलावती से दूसरा विवाह तब किया था, जब उन की पहली पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया था. विवाह के वक्त कलावती की गोद में 3 साल का गगन भी था. नंदिनी का बचपन उसी सौतेले भाई के साथ गुजरा, जो अब 28 साल का हो चुका था. ओमप्रकाश की पहली पत्नी से उन के 2 बच्चे पूजा और नंदिनी थी. वे पूजा की शादी कर चुके थे और नंदिनी की शादी के प्रयास में थे. कलावती के निधन के बाद ओमप्रकाश घर को संभालने के लिए गगन की शादी की योजना बनाने लगे थे. इसी सिलसिले में ममता के साथ उस के प्रेम संबंध का मामला सामने आ गया था. उन्होंने ममता से शादी करना सिरे से मना कर दिया था.

इस पर गगन न तो पिता का विरोध कर पाया, और न ही ममता की भावनाओं की कद्र. और फिर गगन की शादी 6 जुलाई 2018 को मुरादाबाद में ही बलदेवपुरी थाना कटघर निवासी कुंदन कुमार की बेटी राधा से हो गई. गगन का राधा के साथ शादी होना ममता को अच्छा नहीं लगा. वह खुल कर विरोध नहीं कर पाई, लेकिन भीतर ही भीतर नफरत की आग में जल उठी. इस का जिक्र उस ने कई बार अपने दूसरे दोस्तों से भी किया, वह अकसर महीने-2 महीने के लिए दूसरे शहर चली जाया करती थी और लोगों को कभी बरेली तो कभी लखनऊ में नौकरी लगने की बातें बताती रहती थी.

यहां तक कि वह अपने मातापिता से अलग किराए का कमरा ले कर रहने लगी थी. वह जिगर कालोनी में स्थित एक्सपोर्ट फर्म में काम करती थी. वह प्रदीप को भी ताने मारती थी, जो उस के दूर का रिश्तेदार था. ममता ने प्रदीप को एक बार तो साफसाफ कह दिया था कि जब तक गगन रहेगा तब तक उस की नंदिनी से शादी नहीं हो पाएगी.

यही बात वह नंदिनी को भी ताना देते हुए अकसर कहती थी कि गगन उसे उस के प्रेमी प्रदीप से कभी मिलने नहीं देगा. गगन भले ही उस का सौतेला भाई है, लेकिन उस की पिता की संपत्ति का वारिस वही बनेगा. उस दिन बाजार में ममता ने नंदिनी को एक बार फिर उस के हरे जख्म को कुरेद दिया था. ममता से बात कर के नंदिनी विचलित हो गई थी. गगन चाहता था कि उस की बहन की शादी किसी रोजगारशुदा व्यक्ति से ही हो. इस में उसे सौतेले पिता का भी समर्थन मिला हुआ था. नंदिनी के पिता हमेशा गगन का पक्ष ले कर नंदिनी को समझाते थे कि प्रदीप न तो बिरादरी का है, और न ही बराबरी का. जबकि इस की नंदिनी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. वह मस्ती में रहती हुई अपनी जिद पर अड़ी थी.

कबाड़ी का कारोबार करने वाले गगन का यही सोचना था कि प्रदीप की निगाह उस के पिता की प्रौपर्टी पर टिकी है. ओमप्रकाश एक्सपोर्ट फर्म में काम करते थे. उन के लाड़प्यार में पली नंदिनी ही घर की देखभाल और खर्च की पूरी जिम्मेदारी संभाले हुई थी. बाजार और बैंक आदि का हिसाबकिताब नंदिनी के जिम्मे था. फिर भी घर में गगन की ही मनमानी चलती थी. वह पत्नी राधा को इस से दूर रखता था. नंदिनी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी दूसरे शहर में हो. वह हमेशा पिता के मकान में ही रहना चाहती थी. प्रदीप को ले कर गगन के साथ नंदिनी का हमेशा झगड़ा होता रहता था.

बात जून 2021 की है. जब एक दिन नंदिनी के साथ गगन का झगड़ा काफी बढ़ गया था. इस कारण गगन अपनी ससुराल जा कर रहने लगा था. तब उस की पत्नी राधा भी अपने मायके में ही थी. एक तरफ नंदिनी थी, और दूसरी तरफ ममता. दोनों के दिल में गगन को ले कर विरोध की सुलगती चिंगारी जबतब भड़क उठती थी. नंदिनी अपने प्रेमी से शादी में आई बाधा को ले कर परेशान थी तो ममता को गगन से शादी नहीं हो पाने का मलाल था. कारण ममता ने गगन के साथ कई साल साथ गुजारे थे और विवाह होने के कसमेवादे किए थे. उन पलों को याद करके हुए ममता भावुक हो जाती थी. ममता ने प्रण कर लिया था कि वह गगन को जरूर सबक सिखाएगी. ममता को बस समय का इंतजार था.

नंदिनी से मिलने के बाद ममता ने अपने दिल की भड़ास निकाल दी थी. तभी ममता को मालूम हुआ था कि गगन 2 महीने से अपनी ससुराल बलदेवपुरी में रह रहा है. नंदिनी से मुलाकात से कुछ दिन पहले ही ममता की मुलाकात प्रदीप से भी हुई थी. उस ने नंदिनी की परेशानी के बारे में उसे जानकारी दे दी थी. उस ने भी बदले की आग में जलती ममता और नंदिनी की पीड़ा गहराई से महसूस की. जल्द ही तीनों ने गगन को लक्ष्य बना कर एक मीटिंग की. विशेषकर नंदिनी और ममता ने प्रदीप को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

योजना के मुताबिक प्रदीप ने अपने एक दोस्त वीरू उर्फ हरीश को भी साथ ले लिया. वीरू मुरादाबाद में थाना मझोला के गांव जयंतीपुर का रहने वाला एक बदमाश किस्म का युवक था. तीनों ने वीरू से गगन को ठिकाने लगाने की बात कही. उन्होंने बदले में उसे 50 हजार रुपए दिए. दरअसल, नंदिनी और ममता ने मिल कर प्रदीप के माध्यम से गगन को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की योजना बनाई थी.

योजना के अनुसार नंदिनी ने ममता को गगन का मोबाइल नंबर दिया. ममता ने अपने पूर्व प्रेमी गगन को काल की, ‘‘हैलो गगन.’’

‘‘हां, कौन?’’ गगन ने पूछा

‘‘अरे मुझे पहचाना नहीं, मैं तुम्हारी ममता बोल रही हूं.’’

ममता ने उलझाया मीठी बातों में गगन अचानक ममता की आवाज सुन कर एकदम से भौचक्का रह गया. भले ही ममता से उस की शादी नहीं हुई थी, किंतु उस के दिल में ममता अभी भी बसी हुई थी. न चाहते हुए भी अचरज से बोला, ‘‘चलो, तुम्हें मेरी याद तो आई.’’

‘‘मुझ से मिलोगे नहीं? तुम्हें तो पता ही होगा कि अब मेरा घर वालों से कोई वास्ता नहीं रहा. मैं बंगला गांव में रह रही हूं किराए पर. पास ही जिगर कालोनी में जौब करती हूं, फोन में तुम्हारा नंबर अचानक दिख गया तो तुम्हारी याद आ गई. फिर मैं ने फोन कर लिया.’’ ममता बोली.

गगन अभी कुछ बोलता इस से पहले ही ममता बोली, ‘‘मैं हर्बल पार्क घूमने आई थी. पार्क की सुंदरता देख कर तुम्हारे साथ यहां गुजारे पुराने दिन याद आ गए. आ जाओ यहीं पार्क के रेस्तरां में एक बार फिर मिलते हैं. साथ बैठते हैं…’’

बीते दिनों की कई पुरानी बातें बता कर ममता ने गगन को काफी भावुक कर दिया था. वह ममता की बातें सुन कर पुराने दिनों के हसीन लम्हों में खो गया. ममता गगन का पहला प्यार थी. गगन को ममता के साथ बिताए पल अचानक झिलमिलाने लगे थे. वह ममता से बोला,‘‘तुम बुलाओ और हम न आएं, ऐसा नहीं हो सकता.’’

थोड़ी देर में ही गगन हर्बल पार्क पहुंच गया. ममता जींस टौप पहने बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी. गगन ने आते ही ममता को बाहों में भर लिया. ममता उस से छूटते ही बोली, ‘‘तुम अभी भी वही पुराने वाले गगन, जरा भी नहीं बदले…लेकिन अब तुम शादीशुदा हो आगे से ध्यान रखना हां. …अच्छा चलो पार्क के बाहर झाडि़यों की ओर चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ बातें करेंगे, आराम से.’’

गगन को झाडि़यों में ले गई ममता गगन ने महसूस किया कि ममता में कोई बदलाव नहीं आया है, वही पहले की तरह चंचल अदाएं, कसक और अपनापन….

‘‘ थोड़ा रुको यार, बहुत दिनों बाद मिले हो तुम्हारे लिए कोल्ड ड्रिंक्स और नमकीन लाती हूं. वहीं पार्क में बैठ कर साथसाथ पीएंगे.’’

ममता के बोलने पर गगन बोला, ‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

‘‘ बस मैं कैंटीन गई और अभी आई.’’ बोलती हुई ममता कैंटीन की ओर जाने लगी.

तभी गगन हाथ खींचते हुआ बोला, ‘‘यह काम तुम्हारा नहीं मेरा है.’’

‘‘देखो मैं ने तुम्हें बुलाया है. समझो कि आज तुम हमारे मेहमान हो.’’ ममता कहती हुई गगन से हाथ छुड़ा कर तेजी से कैंटीन की ओर दौड़ी चली गई. गगन उसे देखता रह गया.

ममता यह सब योजना के मुताबिक कर रही थी. ममता की जिद के आगे गगन कुछ नहीं कर पाया. वह केवल ममता के साथ गुजारे पुराने लम्हों को ही याद करता रह गया.

‘‘ आओ चलें…’’ ममता बोली.

गगन एक बार फिर सपनों की दुनिया से बाहर आया. ममता के हाथ से कोल्ड ड्रिंक अपने हाथ में ले ली. ममता डिसपोजल गिलास और नमकीन का पैकेट संभालती हुई झाडि़यों की ओर बढ़ गई. कुछ पल में ही दोनों पार्क के मुख्य मार्ग से नजर नहीं आने वाली झाडि़यों के पीछे थे. गगन टायलेट का इशारा करते हुए उस ओर चला गया. ममता के लिए इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था. उस ने तुरंत दोनों डिसपोजल गिलास निकाले. उन में दोतिहाई कोल्ड ड्रिंक भरा और अपने साथ लाई नशीले पदार्थ की पुडि़या एक गिलास में डाल दी. गगन के आते ही उस ने अपने बाएं हाथ का गिलास उस की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहींनहीं, इस हाथ से नहीं दाएं हाथ वाला दो. तुम्हारी बाएं हाथ से किसी को सामन देने की आदत अभी तक गई नहीं है.’’ गगन बोला.

‘‘क्या करूं गगन, मेरा दायां हाथ चलता ही नहीं है. तुम्हारे साथ शादी हो जाती तब  शायद यह आदत छूट जाती. अच्छा लो इसे पकड़ो.’’ कहती हुई ममता ने अपने दाएं हाथ का कोल्ड ड्रिंक भरा गिलास आगे कर दिया. गगन ने गिलास हाथ में ले लिया. उस से एक घूंट पीने के बाद ममता मंदमंद मुसकराई. उस की मुसकान में कुटिलता छिपी थी, कारण वह अपनी योजना में कामयाब हो रही थी. नशीला पदार्थ मिला कोल्ड ड्रिंक का गिलास गगन के हाथ में था और वह नमकीन के साथसाथ घूंटघूंट कर चुस्की लेने लगा था.

कुछ समय में ही गगन बोला. ‘‘ममता… म… ममता,  मुझे तुम्हारा चेहरा साफ क्यों नहीं दिख रहा.’’ गगन की आवाज में लड़खड़ाहट थी. ममता समझ गई कि उस पर नशा हावी हो रहा है. ममता ने प्रेम भरी हमदर्दी दर्शाते हुए उस का सिर अपनी गोद में ले लिया. उस के बालों में अंगुलियां घुमाने लगी. कुछ पल में ही गगन पूरी तरह से बेहोश हो चुका था. ममता ने तुरंत थोड़ी दूर दूसरी झाड़ी के पीछे छिपे वीरू को इशारा किया. इशारा पाते ही ताक में बैठा वीरू ममता के पास आ गया. ममता वहां से उठती हुई बोली, ‘‘शिकार को संभालो, मैं ने अपना काम कर दिया, आगे का काम तुम्हारा.’’

उस के बाद नंदिनी और प्रदीप को भी इस की जानकारी दे दी कि उस का काम पूरा हो चुका है. हालांकि तब तक गगन के मुंह से केवल एक ही बड़बड़ाने की आवाज निकल रही थी, ‘‘ममता क्या हुआ है मुझे…’’

‘‘कुछ नहीं तुम्हें थोड़ा चक्कर आ गया है, अभी तुम्हें डाक्टर के यहां ले जाने का इंतजाम करवाती हूं.’’ ममता बोली. ममता उसे सहारा देते हुए वीरू के साथ उस की मोटरसाइकिल तक ले गई. वहां प्रदीप पहले से मौजूद था.

गगन को प्रदीप और वीरू ने पकड़ कर मोटरसाइकिल पर बिठा दिया. वीरू मोटरसाइकिल चलाने के लिए बैठ गया, जबकि प्रदीप गगन को गिरने से थामे हुए था. वीरू और प्रदीप गगन को जयंतीपुर ले गए. वहां एक खाली प्लौट में उन दोनों ने गगन को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर गगन के गले में पड़े गमछे से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उन्होंने उस के पैर गमछे से बांध दिए. फिर वीरू जयंतीपुर स्थित अपने घर से एक कंबल ले आया. उस कंबल में उन्होंने गगन की लाश लपेट दी. कंबल में उन्होंने कुछ ईंटें भी रख दी थीं. वह लाश को पास में बह रहे गहरे नाले में डुबोना चाहते थे, इसलिए 2 कट्टों में उन्होंने ईंटें भर कर वे कट्टे कंबल से बांधने के बाद लाश नाले में डाल दी. ईंटों की वजह से लाश नाले में डूब गई. यह बात 13 जुलाई, 2021 की है.

लाश ठिकाने लगाने के बाद वीरू ने रात करीब 10 बजे नंदिनी को फोन कर के गगन की लाश ठिकाने लगाने की जानकारी दी. उस समय गगन की पत्नी राधा तो अपने मायके गई हुई थी. पहली अगस्त को वह अपनी ससुराल  गई. उसे अपने मायके में होने वाले एक कार्यक्रम का निमंत्रण देना था. वहां पति नहीं दिखा तो राधा ने नंदिनी से पूछा. नंदिनी ने उसे बताया कि जब से गगन तुम्हारे घर पर रह रहा था. तब से यहां आया ही नहीं है. राधा ने पति को फोन मिलाया तो उस का फोन भी बंद मिला. उस ने सभी रिश्तेदारियों में फोन कर के पति के बारे में पूछा. लेकिन पता चला कि गगन किसी रिश्तेदारी में गया ही नहीं था.

जब कहीं से जानकारी नहीं मिली तो नंदिनी भी राधा के साथ गगन को ढूंढने का नाटक करती रही. जब गगन कहीं नहीं मिला तो पिता ओमप्रकाश ने मुरादाबाद शहर के थाना मुगलपुरा में गगन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी अमित कुमार ने गगन के लापता होने की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मुरादाबाद का मुसलिम बाहुल्य लालबाग क्षेत्र बहुत संवेदनशील है. क्षेत्र में लापता युवक को ले कर वहां अशांति न हो जाए, इसलिए एसएसपी पवन कुमार ने एएसपी अनिल यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में मुगलपुरा के थानाप्रभारी अमित कुमार, एसआई नितेश सहरावत, ताजवर सिंह, जगजीत सिंह, राजवंदर कौर, कांस्टेबल संगम कसाना, नीरज कुमार, समीर आदि को शामिल किया.

टीम अपने स्तर से केस की छानबीन में जुट गई. इस के अलावा लालबाग क्षेत्र में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स भी तैयार कर दी. पुलिस टीम ने सब से पहले गगन के घर वालों से पूछताछ करने के बाद गगन के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि 13 जुलाई को शाम 5 बजे गगन की एक फोन नंबर पर बात हुई थी. जांच में वह नंबर बंगला गांव मोहल्ले की रहने वाली ममता का निकला. पुलिस ममता के घर पहुंची तो उस का कमरा बंद मिला. पुलिस को पता चला कि ममता जिगर कालोनी स्थित एक एक्सपोर्ट फर्म में नौकरी करती है. पुलिस उस फर्म में पहुंची तो ममता वहां मिल गई. पूछताछ के लिए पुलिस उसे मुगलपुरा थाने ले आई.

पुलिस ने ममता से पूछताछ की तो वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस ने कहा कि गगन से उस के प्रेम संबंध जरूर थे लेकिन जब से गगन की शादी हुई है, वह संबंध खत्म हो गए.

‘‘जब तुम्हारे संबंध खत्म हो गए तो तुम ने 1 जुलाई को गगन को फोन क्यों किया?’’ थानाप्रभारी अमित कुमार ने उस से पूछा.

‘‘सर, उस का नंबर मेरे फोन में सेव था, जो गलती से लग गया.’’ ममता ने बताया.

थानाप्रभारी को लग रहा था कि ममता कुछ छिपा रही है, इसलिए उन्होंने पास में बैठी एसआई राजवेंदर कौर को इशारा किया. राजवेंदर कौन ने ममता से पूछताछ करते हुए एक थप्पड़ उस के गाल पर जड़ा. थप्पड़ लगते ही ममता हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘मुझे मत मारो, मैं सब कुछ बताती हूं.’’

इस के बाद ममता ने गगन से उस का प्यार होने से ले कर अब तक की सारी कहानी बताते हुए कहा कि गगन ने उस की सारी जिंदगी खराब कर दी. उसी का बदला लेने के लिए उस की सौतेली बहन नंदिनी और दीपक के साथ मिल कर उस की हत्या करनी पड़ी. उस ने बताया कि दीपक उस का रिश्तेदार है. अब पुलिस को लाश बरामद करनी थी लिहाजा पुलिस ने 5 घंटे तक गगन की लाश नाले में तलाश कराई, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इसी दौरान पुलिस ने हरीश उर्फ वीरू को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

वीरू ने बताया कि उस की लाश के साथ ईंटें बंधी थीं. उस की निशानदेही पर पुलिस ने 3 अगस्त, 2021 को नाले से गगन की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. उधर पुलिस ने नंदिनी और प्रदीप को तलाशा तो दोनों फरार मिले. उन के फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उन्हें नोएडा से गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने बताया कि उन्होंने 3 अगस्त को ही नोएडा के मंदिर में शादी कर ली थी. उन से भी पूछताछ की गई तो उन्होंने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस ने हत्यारोपी हरीश उर्फ वीरू, प्रदीप, नंदिनी और ममता को गिरफ्तार कर मुरादाबाद की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी अमित कुमार कर रहे थे. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Social Crime : कोख को किया कलंकित

Social Crime : समाज में निस्संतान दंपति को हीनभावना से देखा जाता है. मायाबेन ऐसे दंपति को किराए की कोख उपलबध कराती थी. इन सब के अलावा उस ने कोख को कलंकित करने वाला एक ऐसा धंधा भी शुरू कर दिया, जो…

गुजरात के जिला खेड़ा के इंडस्ट्रियल एरिया नडियाद और आणंद में ऐसे कई अस्पताल हैं, जो निस्संतान दंपतियों को सरोगेसी मदर (किराए की कोख यानी जो दूसरे के बच्चे को अपनी कोख में पालती हैं) की व्यवस्था करते हैं. आणंद के एक ऐसे ही निजी अस्पताल में मायाबेन दाबला काम करती थी. लगातार एक ही अस्पताल में काम करने की वजह से मायाबेन की ऐसी तमाम महिलाओं से जानपहचान हो गई थी, जो अपनी कोख किराए पर देती थीं. इस तरह का काम बहुत गरीब महिलाएं करती हैं, जिन्हें पैसे की बहुत ज्यादा जरूरत होती है या फिर कोई बहुत करीबी रिश्तेदार महिला करती है, जिसे अपने उस रिश्तेदार की बहुत फिक्र होती है.

रिश्तेदार महिला तो अपने रिश्तेदार के लिए इस तरह का काम करती है, पर जो महिलाएं पैसा ले कर किसी अन्य का बच्चा अपनी कोख में पालती हैं, उन के लिए यह एक तरह का धंधा होता है. वे तब तक यह काम करती रहती हैं, जब तक उन का शरीर साथ देता है. निस्संतान दंपतियों को, जो हर तरफ से निराश हो चुके होते हैं, उन्हें इस तरह की औरतों की तलाश रहती है. पर वे किस से कहें कि मेरे लिए तुम अपनी कोख में मेरा बच्चा पाल दो. हर किसी से या किसी अंजान से तो इस तरह की बात कही नहीं जा सकती. इसलिए इस तरह के लोग किसी दलाल के माध्यम से ऐसी महिलाएं तलाशते हैं.

मायाबेन की इस तरह की अनेक महिलाओं से जानपहचान हो गई थी, इसलिए वह निस्संतान दंपतियों और इस तरह की महिलाओं के बीच दलाली का भी काम करने लगी थी. इस के अलावा कभीकभी ऐसा भी होता था कि निस्संतान दंपति खुद अपने साथ अपने गांव की या किसी परिचित के माध्यम से किसी गरीब महिला को पैसे का लालच दे कर सरोगेट मदर के लिए ले कर आते थे. मायाबेन ऐसी महिलाओं से जानपहचान बना कर उन्हें आगे किसी जरूरतमंद के लिए तैयार कर लेती थी. ऐसी ही महिलाओं से सरोगेट मदर के लिए अन्य गरीब महिलाएं भी मिल जाती थीं. इस तरह मायाबेन को नौकरी से जो वेतन मिलता था, वह तो मिलता ही था, इस तरह की दलाली से भी उसे अच्छी कमाई हो जाती थी.

किराए की कोख दिलवाती थी मायाबेन कहते हैं इंसान बड़ा लालची होता है. उसे कहीं से चार पैसे मिलने की उम्मीद होती है तो वह लालच में यह भी नहीं देखता कि वे चार पैसे उसे सही रास्ते से मिल रहे हैं या गलत रास्ते से. उसे तो बस वे पैसे चाहिए. ऐसा ही कुछ मायाबेन के साथ भी हुआ. कुछ कमाई अलग से करने के चक्कर में मायाबेन सरोगेट मदर और निस्संतान दंपतियों के बीच दलाली करतेकरते वह बच्चे बेचने का काम भी करने लगी. वह ऐसे निस्संतान दंपतियों को बच्चे भी बेचने लगी, जो किसी भी रूप में बच्चा पैदा करने लायक नहीं होते थे.

हमारे यहां बच्चा गोद लेना भी आसान नहीं है. जबकि हर कोई अपना वारिस चाहता है. इस के लिए यानी एक संतान के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. मायाबेन ऐसे ही लोगों के लिए मोटी रकम ले कर बच्चे उपलब्ध कराने का काम भी करने लगी थी. क्योंकि उस के पास ऐसी महिलाएं भी थीं, जो पैसे ले कर दूसरे के लिए बच्चा पैदा करने को तैयार थीं. चूंकि यह आसान काम नहीं है, इसलिए मायाबेन इस के लिए काफी पैसे लेती थी. क्योंकि इस के लिए उसे ऐसी महिलाओं को तलाशना पड़ता था, जो अपना बच्चा बेचने के लिए तैयार होती थीं. जबकि कोई भी महिला जल्दी से अपना बच्चा बेचने को तैयार नहीं होती. पर एक सच्चाई यह भी है कि पेट की भूख इंसान से कुछ भी करवा सकती है. इन कामों से उसे मोटी कमाई हो रही थी.

चूंकि ऐसा करना कानूनी रूप से गलत है, इसलिए यह काम वह चोरीछिपे करती थी. पर कोई भी गलत काम लगातार कितना भी चोरीछिपे किया जाए, उस की जानकारी लोगों को हो ही जाती है. ऐसा ही मायाबेन के इस काम के बारे में भी हुआ. जब इस बात की जानकारी कुछ लोगों को हुई तो उन्हीं में से किसी ने यह बात खेड़ा की एसपी अर्पिता पटेल तक पहुंचा दी. चूंकि यह मामला एक तरह से मानव तसकरी से जुड़ा था, इसलिए इस बात का पता चलते ही उन के कान खड़े हो गए. मायाबेन भले ही किसी गरीब महिला का बच्चा किसी धनी निस्संतान दंपति के हाथों बेचवा कर नेकी का काम कर रही थी, पर कानून की नजरों में था तो यह गलत ही.

बच्चा खरीदने वाला बच्चे का न जाने किस तरह उपयोग करता होगा? इसलिए जब बात मानव तसकरी की सामने आई तो एसपी अर्पिता पटेल ने इस मामले की सच्चाई का पता लगाने की जिम्मेदारी खेड़ा की एसओजी टीम को सौंप दी. पुलिस चाहती तो मायाबेन को गिरफ्तार कर के पूछताछ कर सकती थी. पर तब पुलिस को सबूत जुटाना मुश्किल हो जाता. एसपी खेड़ा अर्पिता पटेल इस मामले की तह तक जाने और इस काम में लिप्त महिलाओं को सबूतों के साथ गिरफ्तार करना चाहती थीं. इसीलिए उन्होंने यह काम एसओजी को सौंपा था. एसओजी प्रभारी ने यह जिम्मेदारी विभाग की तेजतर्रार महिला एसआई आर.डी. चौधरी को सौंपी.

महिला एसआई बनी डमी जरूरतमंद आर.डी. चौधरी को पता ही था कि मायाबेन बच्चा बेचती है. इसलिए उन्होंने सोचा कि वह उस से एक जरूरतमंद बन कर मिलें, तभी सच्चाई का पता चल सकता है. इस के लिए उन्होंने अपने साथ 2 महिला सिपाहियों को ले कर बच्चा बेचने वाले रैकेट की मुखिया मायाबेन लालजीभाई दाबला निवासी 104, कर्मवीर सोसायटी, पीजी रोड नडियाद से मिलने की कोशिश शुरू कर दी. उन की यह कोशिश रंग लाई और वह एक जरूरतमंद यानी डमी ग्राहक के रूप में मायाबेन से मिलने में कामयाब हो गईं. तय स्थान शांताराम नगर, नजदीक सब्जी मंडी, नडियाद में वह सहयोगियों के साथ तय समय पर पहुंच गईं. पर साथ आई महिला सिपाही इस तरह अलगअलग खड़ी हो गईं, जैसे वे उन के साथ नहीं हैं.

पर मायाबेन दाबला तय समय पर एसआई आर.डी. चौधरी से मिलने अकेली नहीं आई थी. उस के साथ 2 अन्य महिलाएं मोनिकाबेन महेश शाह निवासी किशन समोसा वाले की गली, बणियावड, नडियाद और पुष्पाबेन संदीप पटेलिया निवासी रामादूधा की चाल, मिल रोड, नडियाद भी थीं. 6 लाख में बेचती थी लड़का

मायाबेन ने पहले तो आर.डी. चौधरी को गौर से देखा, उस के बाद धीरे से बोली, ‘‘बताइए, आप क्या चाहती हैं?’’

‘‘मुझे एक बच्चा चाहिए.’’ आर.डी. चौधरी ने कहा.

‘‘क्यों? अभी तो आप की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं है. आप चाहें तो आप को अपना बच्चा हो सकता है.’’ मायाबेन ने कहा.

‘‘डाक्टर ने कहा है कि मेरी फेलोपियन ट्यूब ब्लौक है, जो औपरेशन के बाद भी ठीक नहीं हो सकती. जबकि मुझे बच्चा चाहिए. बच्चा मुझे कहीं से गोद भी नहीं मिल रहा है. सरोगेट द्वारा बच्चा पाने में पैसा भी खर्च करो और इंतजार भी करो.

इसलिए मेरा सोचना है कि जब पैसा ही खर्च करना है तो बच्चा खरीद ही क्यों न लूं. मुझे पता चला है कि आप पैसे ले कर बच्चा दिला देती हैं, इसलिए मैं आप के पास आई हूं.’’ आर.डी. चौधरी ने एक सांस में अपनी समस्या ऐसे बताई कि मायाबेन तथा उस के साथ आई महिलाओं को उन पर जरा भी शक नहीं हुआ.

‘‘आप को लड़का चाहिए या लड़की?’’ मायाबेन ने पूछा.

‘‘मतलब?’’ डमी ग्राहक बनी एसआई आर.डी. चौधरी ने जवाब देने के बजाय सवाल किया.

‘‘मतलब यह कि लड़का चाहिए तो उस के लिए अधिक पैसे लगेंगे. लड़की कम पैसों में मिल जाएगी.’’

‘‘लड़के के लिए कितने रुपए देने होंगें?’’ आर.डी. चौधरी ने पूछा.

‘‘लड़के के लिए पूरे 6 लाख रुपए देने होंगे. अगर आप को लड़का चाहिए तो आप 6 लाख रुपए की व्यवस्था कीजिए. आप को लड़का अभी मिल जाएगा.’’ मायाबेन ने कहा. डमी ग्राहक बन कर आई आर.डी. चौधरी ने हामी भर दी तो मायाबेन ने कहा, ‘‘ठीक है, आप पैसे की व्यवस्था कीजिए. मैं बच्चा मंगा रही हूं.’’

‘‘मैं ने पैसों की व्यवस्था कर रखी है. आप बच्चा मंगाइए. मैं देखूंगी भी तो. बच्चा पसंद आ गया तो सारे पैसे एकमुश्त दे कर बच्चा ले लूंगी.’’ आर.डी. चौधरी ने कहा.

सब कुछ तय हो जाने के बाद मायाबेन ने फोन किया तो एक महिला एक नवजात बच्चा ले कर आ गई. उस महिला के आते ही आर.डी. चौधरी ने अपनी पूरी टीम बुला ली और चारों महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि वह बच्चा उसी महिला का था. उस का नाम राधिकाबेन राहुल गेडाम था. वह नागपुर की रहने वाली थी. नडियाद में वह किडनी हौस्पिटल के सामने स्थित कंफर्ट होटल में कमरा नंबर 203 में रुकी थी. राधिका से की गई पूछताछ में पता चला कि उसे पैसों की काफी जरूरत थी, इसलिए उस ने मायाबेन और उस के साथ मिल कर यह काम करने वाली मोनिका और पुष्पा से संपर्क किया था.

माया ने उस से उस के बेटे का सौदा डेढ़ लाख रुपए में किया था. जबकि उसी बच्चे का सौदा मायाबेन ने आर.डी. चौधरी से 6 लाख रुपए में किया था. 4 महिलाएं हुईं गिरफ्तार एसओजी द्वारा की गई पूछताछ में पता चला कि मायाबेन और उस के साथ बच्चों का व्यापार करने वाली मोनिका और पुष्पा महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने सूत्रों से इस तरह की गरीब गर्भवती महिलाओं को खोजती थीं. इस के बाद उन से सौदा कर के उन्हें नडियाद ला कर उन की डिलीवरी करा कर उन्हें तय रकम दे कर उन से बच्चा ले लेती थीं. उस के बाद बच्चा चाहने वाले से मोटी रकम ले कर उसे बच्चा सौंप देती थीं.

यह भी पता चला है कि पहले भी मायाबेन ने सरोगेसी द्वारा बच्चे प्राप्त कर के अलगअलग शहरों गोवा, रायपुर और जयपुर में भी बच्चे बेचे हैं. पुलिस के अनुसार बच्चों का सौदा करने वाला यह रैकेट जरूरतमंद की जरूरत और हैसियत देख कर पैसा वसूलता था. प्राथमिक पूछताछ के बाद एसओजी टीम ने चारों महिलाओं को थाना कोतवाली नडियाद पुलिस के हवाले कर दिया, जहां थानाप्रभारी एन.जी. गोस्वामी ने चारों महिलाओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 370, 144, 120बी एवं 511 के तहत मुकदमा दर्ज कर चारों को 8 अगस्त, 2021 को अदालत में पेश किया, जहां से चारों महिलाओं को मामले की विस्तृत जांच के लिए 5 दिनों के रिमांड पर लिया.

इस मामले की गंभीरता का इसी बात से पता चलता है कि जैसे ही इस मामले की जानकारी आईजी रेंज वी. चंद्रशेखर को हुई तो वह भी नडियाद आ पहुंचे. उन्होंने एसपी अर्पिता पटेल और जांच अधिकारी एन.जी. गोस्वामी से मिल कर मामले की पूरी जानकारी ली, साथ ही दिशानिर्देश भी दिए कि आगे क्या करना है. रिमांड के दौरान मायाबेन ने स्वीकार किया कि उसे बेटे की शादी के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए बच्चों को बेचने का यह घिनौना काम उस ने किया. बच्चों का सौदा करने पर उसे जो 6 लाख रुपए मिलते, उस में से ढाई लाख रुपए उसे मिलते. बाकी के साढ़े 3 लाख रुपए में से डेढ़ लाख बच्चे की मां को और एकएक लाख रुपए मोनिका तथा पुष्पा को मिलते.

पुलिस ने उन से उन लोगों के बारे में पता लगाने की कोशिश की, जिनजिन को उन्होंने बच्चे बेचे थे, पर उन से कुछ हासिल नहीं हो सका. पुलिस डीएनए जांच करा कर यह भी पता करेगी कि जिस बच्चे का सौदा किया गया था, वह राधिका का ही है या किसी और का. रिमांड के दौरान जांच में सहयोग न मिलने की वजह से पुलिस इस मामले में और ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाई. रिमांड अवधि खत्म होने पर फिर से चारों महिलाओं को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 12 अगस्त, 2021 को जेल भेज दिया गया. Social Crime

 

Agra Crime News : बंद बोरे का खुला राज

Agra Crime News : अवैध संबंध अकसर अपराध को जन्म देते हैं. इतना सब जानते हुए भी सुनीता उर्फ सुषमा ने पति के रहते हुए मान सिंह से नाजायज संबंध बना लिए. इस के बाद जो हुआ, वह..

8 जून, 2021 की बात है. आगरा के थाना सदर के सेवला में रात के 11 बजे एक आदमी कंधे पर बोरा ले कर जा रहा था. अचानक बोरे के वजन के कारण उस का पैर फिसला और वह बोरे सहित  गिर पड़ा. इस पर वहां से निकल रहे लोगों की नजरें उस आदमी की तरफ गईं. वह किसी तरह उठा और बोरे को उठाने का प्रयास करने लगा. उसी समय बोरा खुल गया और उस में से एक हाथ बाहर निकल आया. यह देखते ही लोग उस की ओर दौड़े और उसे पकड़ लिया. बोरे को खुलवा कर देखा तो उस में एक युवक का शव था जिसे देख कर सभी के होश उड़ गए. बोरे में युवक की लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही थाना सदर के थानाप्रभारी अजय कौशल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां लोग एक व्यक्ति को पकड़े हुए थे. यह माजरा देखते ही उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जानकारी ली. लोगों ने बताया कि यही व्यक्ति कंधे पर बोरे में किसी की लाश ले कर जा रहा था. वजन के कारण वह बोरे सहित गिर गया. बोरा खुलने से लाश के बारे में पता चला. पुलिस ने देखा बोरे में एक युवक की लाश थी. शव की पहचान 40 वर्षीय जूता कारीगर संजय के रूप में हुई. पुलिस ने शव की पहचान होने के बाद उस के घरवालों को सूचना दी. जानकारी होते ही परिवार में कोहराम मच गया.

इस बीच घटना की जानकारी थानाप्रभारी द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को दी गई. सूचना मिलते ही एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे वहां पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. युवक के गले  पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को मोर्चरी भिजवा दिया. प्रेमी हुआ गिरफ्तार पुलिस पकड़े गए युवक मान सिंह को हिरासत में ले कर थाने लाई. थाने पर उस से पूछताछ की गई. जानकारी देने पर पुलिस ने रात में ही मृतक संजय के घर पहुंच कर उस की 35 वर्षीय पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा से पूछताछ की.

सुनीता ने बताया कि वह दवा लेने गई हुई थी. जब लौट कर आई तो पति संजय घर पर नहीं मिले. उस ने सोचा कि कहीं गए होंगे. जब देर हो गई तो उस ने पति की तलाश शुरू की. बाद में पता चला कि उस के जाने के बाद पति की किसी ने हत्या कर दी थी. उधर हिरासत में लिए गए युवक ने बिना कुछ छिपाए पुलिस को सच्चाई बता दी. उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मृतक संजय की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हैं. पति विरोध करता था.  हम दोनों के प्यार के बीच संजय रोड़ा बना हुआ था. वह अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता था. मुझे भी घर आने से मना करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

वह शव को बोरे में बंद कर ठिकाने लगाने ले जा रहा था. लेकिन बोरे के गिर जाने से भेद खुल गया. पुलिस समझ गई कि मृतक की पत्नी सुनीता इस हत्याकांड में शामिल होने के बावजूद अपने को निर्दोष बता रही है. जबकि उस के प्रेमी मान सिंह ने पुलिस को सारी हकीकत बता दी थी. पुलिस ने सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया और फोरैंसिक टीम को बुला लिया. टीम ने मृतक के घर से कई साक्ष्य जुटाए. 9 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस हत्याकांड का खुलासा करते हुए हत्या में शामिल मृतक की पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा व उस के 38 वर्षीय प्रेमी मान सिंह की गिरफ्तारी की जानकारी दी. संजय की हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह 4 प्रेमियों के प्यार के बीच कांटा बनने की इस प्रकार निकली—

मृतक संजय आगरा की एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. वह मूलरूप से निबोहरा के मूसे का पुरा का रहने वाला है. देवरी रोड पर मकान ले कर वह परिवार सहित रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुनीता सुषमा के अलावा 3 बच्चे भी हैं. कुछ समय पहले संजय ने अपना मकान बेच दिया. मकान बेचने के बाद वह सेवला में किराए का मकान ले कर रहने लगा. संजय शराब पीने का शौकीन था. वह शराब पी कर अकसर सुनीता से झगड़ा करता और उस के साथ मारपीट करता था. सुनीता की दोस्ती थाना सदर के ही टुंडपुरा के रहने वाले मान सिंह से थी. दोनों की मुलाकात कुछ महीने पहले हुई थी. दोस्ती गहरी हो गई. एकदूसरे को पसंद करने लगे.

धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुनीता मान सिंह के साथ कई बार पति की गैरमौजूदगी में घूमने जा चुकी थी. संजय को यह जानकारी हो गई. वह पत्नी को भलाबुरा कहता था. उस के पास कोई सबूत नहीं था. इसलिए वह मौके की तलाश में रहता था. जब संजय पत्नी के साथ मारपीट करता तो मानसिंह बीच में पड़ कर मामला शांत करा देता. कई बार उस ने सुनीता को बचाया भी था. संजय शराब पी कर सुनीता से अभद्रता करता था. मान सिंह ने इसी बात का फायदा उठाया. सुनीता के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

पति संजय को पत्नी की मान सिंह से दोस्ती पसंद नहीं थी. वह इस का विरोध करता था. जबकि मान सिंह व सुनीता के बीच प्रेम संबंध दिनप्रतिदिन पुख्ता होते जा रहे थे. दोनों एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे. पति की आदतों से अब सुनीता को वह अपना दुश्मन दिखाई देता था. प्रेमी संग पकड़ी गई सुनीता सुनीता और मान सिंह को जब भी मौका मिलता दोनों तनमन की प्यास बुझा लेते थे. संजय को दोनों पर शक हो गया. एक दिन संजय ने दोनों को घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. इस से मान सिंह तिलमिला कर रह गया. लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए मान सिंह बिना कुछ बोले उस दिन वहां से चला गया. मान सिंह के जाने के बाद संजय ने सुनीता की पिटाई कर दी.

वह दोनों के संबंधों का विरोध करने लगा. सुनीता खून का घूंट पी कर रह गई थी. रंगेहाथों पकड़े जाने से वह विरोध की स्थिति में भी नहीं थी. संजय ने सुनीता को चेतावनी दी कि यदि मान सिंह से उस ने बात करते भी देख लिया तो दोनों को जान से मार देगा. सुनीता ने दूसरे दिन प्रेमी मान सिंह से पति द्वारा की गई पिटाई और धमकी के बारे में मोबाइल पर बताया. यह सुन कर मान सिंह का खून खौलने लगा. तब एक दिन सुनीता और मान सिंह ने अपने प्यार की राह के रोड़े को हटाने की योजना बनाई. सुनीता ने प्रेमी का प्यार पाने के लिए पति की हत्या की साजिश रची.

घटना वाले दिन सोमवार की शाम प्रेमी मान सिंह सुनीता से मिलने उस के घर गया. उस समय संजय भी घर पर मौजूद था. मान सिंह को देखते ही उस ने कहा, ‘‘जब मना कर दिया था फिर भी तू आ गया?’’

इस पर मानसिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की चीज लाया हूं.’’ यह कहते हुए उस ने साथ लाई शराब की बोतल उसे दिखाई. मान सिंह जानता था कि संजय की कमजोरी शराब है. इसलिए वह बेधड़क घर आ गया था. मान सिंह और सुनीता ने  संजय को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो गया तब दोनों ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. दोनों ने गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस से पहले सुनीता ने बच्चों को खाना खिलाया और उन्हें कमरे में टीवी चला कर बैठा दिया. कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी थी. हत्या के बाद दोनों ने शव को बोरे में बंद कर दिया. सुनीता ने प्रेमी मान सिंह से पति की लाश इलाके से दूर ले जा कर किसी तालाब में फेंकने को कहा. ताकि लोगों को लगे कि पानी में डूबने से उस की मौत हुई है.

तब मान सिंह शव को बोरे में भर कर कंधे पर रख उसे फेंकने के लिए रात में ही चल पड़ा. जब वह शव को ठिकाने लगाने जा रहा था तभी रास्ते में पैर फिसलने से बोरा गिर गया और हत्या का भेद खुल गया. प्रेमी मान सिंह द्वारा लाश फेंकने से पहले ही लोगों ने उसे रंगेहाथों दबोच लिया. आशिकी में पत्नी ने पति की हत्या करा दी थी. सुनीता को अपने पति की हत्या का कोई अफसोस नहीं था. अपने प्यार की खातिर प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करने वाली सुनीता के चेहरे पर गिरफ्तारी के बाद भी पछतावे के भाव नहीं दिखाई दिए.

इतना ही नहीं, पति की हत्या के मामले में पकड़े जाने पर बच्चों का क्या होगा? उस ने इस बारे में भी नहीं सोचा. मगर जब उसे पता चला कि अब उस की और प्रेमी दोनों की बाकी जिंदगी जेल में कटेगी तो वह रोने लगी. सुनीता की शादी को 10 साल से अधिक हो गए थे. 3 बच्चों में सब से बड़ा बेटा 9 साल का है. लोगों की सतर्कता के चलते पुलिस ने एक हत्या का परदाफाश घटना के कुछ घंटे बाद ही कर दिया था. पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से फंदा लगाने वाला दुपट्टा, मृतक का मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद कर दोनों को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. Agra Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime News : बेवफा बीवी बरदास्त नहीं

UP Crime News : दीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो कर ही हरेंद्र ने उस से विवाह किया था. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही हरेंद्र को शक हो गया कि पत्नी के अन्य कई लोगों के साथ संबंध हैं. इस की पुष्टि उसे पत्नी के फोन के काल रिकौर्डर की बातों से हो गई. फिर क्या था, उस ने बेवफा पत्नी को बीच सड़क पर ऐसी सजा दी कि…

हरेंद्र और दीक्षा की शादी के 2 साल हो चुके थे, मगर उन के बीच अटूट रिश्ता नहीं बन पाया था. वे पतिपत्नी जरूर थे, लेकिन यह कहना गलत होगा कि वे एकदूसरे को बेइंतहा मोहब्बत करते थे. कारण हरेंद्र की कई आदतें दीक्षा को पसंद नहीं थीं और हरेंद्र को भी दीक्षा का बारबार मायके जाने की जिद करना अच्छा नहीं लगता था. एक तरफ दीक्षा की 17-18 साल की कच्ची उम्र थी तो वहीं दूसरी तरफ कामधंधे से बेफिक्र हरेंद्र को अपनी पुश्तैनी धनसंपत्ति पर बहुत ही गुमान था. रक्षाबंधन के एक सप्ताह पहले से ही दीक्षा मायके जाने की जिद करने लगी थी, जबकि हरेंद्र उस की बात को टालने लगा था. वह दीक्षा के मायके जाने का कारण जान गया था. उस के मोबाइल फोन में रिकौर्ड बातों से उस का संदेह और भी गहरा हो गया था.

‘‘मुझे मायके जाना है तो जाना है… मैं और कोई बहाना नहीं सुनूंगी.’’ दीक्षा अपनी बात पर अड़ती हुई बोली.

‘‘पिछले महीने ही तो तुम मायके गई थी…’’ हरेंद्र ने कहा.

‘‘गई थी, लेकिन 4 दिन बाद रक्षाबंधन है…राखी पर घर जाना है…सभी जाते हैं,’’ दीक्षा विफरती हुई बोली.

‘‘सभी जाते हैं तो क्या हुआ? आनेजाने में खर्च भी तो होगा.’’ हरेंद्र ने कहा.

‘‘तो मैं क्या करूं? कोई काम क्यों नहीं करते हो? कमातेधमाते क्यों नहीं हो?’’ दीक्षा बोली.

‘‘नहीं कमाता हूं तो क्या तुम्हें भूखा रखता हूं? खानेपहनने के लिए नहीं देता हूं? 2 महीने पहले ही तुम्हें 10 हजार रुपए का स्मार्टफोन खरीद कर दिया है.’’

‘‘वो तो तुम्हारा फर्ज बनता है पत्नी को खुश रखना और उस की अच्छी देखभाल करना,’’ दीक्षा बोली.

‘‘तुम हो तो पांचवीं फेल, पर बातें पढ़़ेलिखों जैसी करती हो. मुझे ही अधिकार और फर्ज का पाठ पढ़ा रही हो. तुम्हारा क्या कर्तव्य है, कभी समझा है?’’ हरेंद्र ने जवाबी हमला बोलते हुए ताना मारा.

‘‘तुम ने भी हमारी बात कभी नहीं मानी, जब देखो तब शराब के नशे में धुत रहते हो. बापदादा की कमाई पर गुजारा कर रहे हो, आवारा दोस्तों के साथ घूमतेफिरते रहते हो और कितने ऐब गिनवाऊं, बताओ…’’ दीक्षा लगातार बोलती जा रही थी. उस की एकएक बात हरेंद्र को चुभ रही थी. गुस्से में उस ने हाथ उठाया और एक थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दिया. थप्पड़ खा कर दीक्षा तिलमिला गई. तन कर बोलने लगी, ‘‘ऐंऽऽ तुम ने मुझे थप्पड़ मारा. अब तो मैं यहां एक पल भी रुकने वाली नहीं हूं. अभी के अभी मायके जाऊंगी. देखती हूं कि तुम कैसे रोकते हो मुझे.’’ यह कहती हुई दीक्षा अपने कमरे से बाहर जा कर सूखने के लिए फैले कपड़े समेटने लगी.

हरेंद्र भी गुस्से से कमरे से बाहर निकल आया. बाइक स्टार्ट की और कहीं चला गया. कहां गया, इस की जानकारी केवल उस के यारों को ही थी. 2 घंटे बाद घर लौटा तो देखा, दीक्षा मायके जाने के लिए अपने सामान के साथ तैयार बैठी थी. हरेंद्र के हाथ में एक थैला था. उस का गुस्सा शांत हो चुका था. उस ने थैला उसे देते हुए सौरी बोला. फिर कहा, ‘‘इस में तुम्हारी छोटी बहन शीतल और तुम्हारे लिए सलवारसूट के कपड़े हैं, मायके में सिलवा लेना.’’

इसी के साथ उस के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर अगले दिन सुबहसुबह मायके छोड़ आने का वादा किया. सलवारसूट का कपड़ा देख कर दीक्षा पति का थप्पड़ भूल गई. खुश हो कर बोली, ‘‘बहुत सुंदर है, तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

दीक्षा चली गई मायके अगले रोज वह अपने मायके चली गई. दीक्षा का मायका मुरादाबाद जिले की तहसील बिलारी के गांव मुडि़या राजा का था. वह अरविंद कुमार की बेटी थी. अरविंद कुमार के 2 बेटियों दीक्षा व शीतल के अलावा 2 बेटे अभिषेक व आयुष थे. दीक्षा बड़ी बेटी थी. उन्होंने दीक्षा का विवाह 28 नवंबर, 2019 को पास के ही गांव ढकिया नरू निवासी भागीरथ के बेटे हरेंद्र के साथ किया था. बात 18 अगस्त, 2021 की है. रात के समय करीब साढ़े 9 बजे थे. अरविंद  कुमार के पिता अतर सिंह अपनी पोतियों शीतल और दीक्षा के साथ घर पर थे.

उन दिनों उन का बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ हिमाचल के सोलन में रह रहा था. उस की रोजीरोटी वहीं से चलती थी. और छोटा बेटा राजकुमार अपनी रिश्तेदारी में गया हुआ था और रक्षाबंधन की वजह से उस की पत्नी अपने मायके गई हुई थी. इस तरह से उस समय घर में केवल दीक्षा और उस की छोटी बहन शीतल ही थी. रात को दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर अतर सिंह ने अपनी पोती को आवाज दी, ‘‘शीतल बेटा, देखो तो इस वक्त कौन आया है?’’

शीतल दादा की आवाज सुन कर नीचे गई. दरवाजा खोला. देखा उस के जीजा हरेंद्र थे. शीतल वहीं से बोली, ‘‘दादाजी, जीजाजी आए हैं.’’

हरेंद्र सीढि़यां चढ़ता हुआ सीधे अतर सिंह के कमरे में जा पहुंचा. बोला, ‘‘रामराम बाबा, कैसे हैं?’’

‘‘रामराम बेटा, आओ बैठो. अच्छा हुआ तुम आ गए मैं घर में अकेला बैठा ऊब रहा था.’’ कहते हुए उन्होंने फिर शीतल को आवाज लगाई, ‘‘बेटा शीतल, दीक्षा को बोलो हरेंद्र के लिए पानी और कुछ खाने को ले कर आए.’’

‘‘अरे नहीं बाबाजी, मैं तो बस समझिए आप का हालचाल लेने आया हूं. कल रक्षाबंधन है. सुबहसुबह चला जाऊंगा.’’

अतर सिंह ने हरेंद्र को सम्मान के साथ बैठाया. वैसे भी दीक्षा रक्षाबंधन के त्यौहार की वजह से आई हुई थी. किसी तरह की कोई शिकायत नहीं थी.

‘‘बाइक से आए हो?’’ अतर सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं कार से आया हूं.’’ थोड़ी देर में ही हरेंद्र ने अंग्रेजी शराब का एक अद्धा अपनी जेब से निकालते हुए बोला, ‘‘बाबाजी, गिलास मंगाओ. आज आप के साथ हो जाए एकएक पैग.’’

अतर सिंह हरेंद्र के इस व्यवहार को देख कर हतप्रभ रह गए.

फिर भी शांति से कहा, ‘‘बेटा तुम्हारी शादी को करीब 2 साल होने जा रहे हैं, आज तक तो तुम ने मेरे सामने कभी शराब नहीं पी. तो फिर आज तुम ऐसा कैसे कह रहे हो?’’

‘‘बाबाजी, यूं ही मूड हो आया. सोचा कि अपने दोस्तों के साथ तो पीता ही रहता हूं, क्यों न आप के साथ पी कर कुछ गिलेशिकवे दूर कर लिए जाएं.’’ हरेंद्र बोला.

‘‘लेकिन बेटा मेरी तबीयत ठीक नहीं है. ये देखो मेरी दवाई.’’ अतर सिंह ने जेब से दवाई निकाल कर दिखाते हुए कहा, ‘‘मैं शराब नहीं पीऊंगा.’’

उसी वक्त दीक्षा भी कमरे में पानी का गिलास और खाने की थाली ले कर आ गई. सामने शराब देख कर गुस्से भरी नजरों से हरेंद्र को घूरा. बोली कुछ नहीं. खाने की थाली सामने रखी और गिलास को रख कर तेजी से जाने लगी. गिलास का पानी छलक कर वहीं छोटे से स्टूल पर फैल गया.

‘‘दिखता नहीं है, यहीं मोबाइल रखा हुआ है, गीला हो गया तो..?’’ हरेंद्र की बात पूरी भी नहीं हुई कि उस के मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी. उस ने काल रिसीव की, ‘‘हैलो…’’

उधर से जो आवाज आई, उसे सुन कर दीक्षा को आवाज लगाई, ‘‘…ये लो सुनो, तुम्हारा ही फोन है, मेरे जीजाजी हैं, तुम से ही बात करना चाहते हैं.’’

ननदोई की उस के लिए आई काल जान कर दीक्षा ने तुरंत हरेंद्र के हाथों से फोन ले लिया और नीचे सीढि़यों से उतरने लगी. हरेंद्र भी उस के पीछेपीछे आया और चुपके से दीक्षा और अपने बहनोई के बीच फोन पर हो रही बातों का अनुमान लगाने लगा. हरेंद्र ने दीक्षा को यह कहते हुए सुना, ‘‘मैं ने पहले मना किया है हरेंद्र के फोन पर मेरे लिए फोन नहीं   करें, क्योंकि उसे हम पर अब शक है.’’

वास्तव में हरेंद्र अपनी पत्नी को हमेशा ही शक की निगाह से देखता था. यहां तक कि उस ने दीक्षा को जो मोबाइल दिया था, उस में आटोमैटिक वायस रिकौर्डिंग का ऐप डाउनलोड कर दिया था. दीक्षा की गैरमौजूदगी में वह उस के सभी काल की रिकौर्डिंग सुनता था. उसी से उसे इस बात का पता चल गया था कि उस के कई चाहने वाले हैं. उन्हीं में एक उस का बहनोई भी था. उस की लच्छेदार बातों से हरेंद्र को अनुमान हो गया था कि दीक्षा उस के साथ बेवफाई कर रही है. यही नहीं हरेंद्र को यह भी शक था कि उस के मायके में भी कई प्रेमी हैं. ऐसा होना भी स्वाभाविक था. क्योंकि दीक्षा बला की खूबसूरत थी, उसे देख कर कोई भी उस पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकता था. हरेंद्र भी उस की खूबसूरती को देख कर ही शादी करने के लिए राजी हुआ था.

दूसरी बात दीक्षा के बातें करने का लहजा और मजाक का जवाब मजाक में देने का अंदाज किसी को भी पसंद आ जाता था. वीडियो कालिंग की दीवानी थी. उस के कई वीडियो कालिंग की क्लिपिंग्स हरेंद्र भी देख चुका था. उसे देखते हुए हरेंद्र के सीने पर सांप लोटने लगते थे कि दीक्षा उस के साथ प्रेम से क्यों नहीं पेश आती है? वह उस से हमेशा रूखी बातें क्यों करती है. जबकि दूसरों के साथ वह दिल की बातें उड़ेल कर रख देती  थी. वीडियो कालिंग, फ्लाइंग किस तो ऐसे देती थी जैसै वह प्रेमी नहीं पति हो. यह सब बातें हरेंद्र को भीतर से खाए जा रही थीं. उस के वैवाहिक संबंध में मधुरता कम कड़वाहट अधिक भर गई थी.

ऊपर से दीक्षा द्वारा बारबार शराबीकबाबी कहना, नाकारा, नालायक मर्द कहते हुए ताने मारना हरेंद्र को काफी दुखी कर देता था. बातबात पर उस की दीक्षा से बहस हो जाती थी. ऐसी बहस रक्षाबंधन के कुछ रोज पहले भी हो गई थी. दीक्षा को मारी गोली कुछ समय बाद दीक्षा हरेंद्र के कमरे में आ कर उस का मोबाइल लौटाने आई. खाना स्टूल पर पड़ा देख कर बोली, ‘‘आप ने कुछ खाया नहीं?’’

‘‘अरे बेटी, इसे अपने कमरे में ले जा, वहीं तुम दोनों खाना खा लेना. और हां, शीतल को एक गिलास गर्म दूध ले कर भेज देना. सोने से पहले वाली दवाई खानी है.’’ अतर सिंह बोले.

उस के बाद दीक्षा और हरेंद्र नीचे के अपने कमरे में आ गए. अगले दिन अतर सिंह को जो सूचना मिली उस से पूरा परिवार सदमे में आ गया. बात ही कुछ ऐसी हुई कि अतर सिंह के परिवार से ले कर भागीरथ के परिवार में खलबली मच गई. हरेंद्र भागीरथ का सब से छोटा बेटा था. उन का पुश्तैनी मकान बिलारी से सिरसी जाने वाले मार्ग के किनारे ग्राम ढकिया नरू में है. भागीरथ का परिवार वहीं सालों से रहते आए हैं. सिरसी मार्ग पर सड़क के किनारे उन की अच्छी खेतीबाड़ी भी है. अतर सिंह की नींद सुबह देर से तब खुली, जब नीचे घर में कोई हलचल सुनाई दी. शीतल से कुछ लोग तेज आवाज में बातें कर रहे थे. आवाज सुन कर अतर सिंह भी नीचे गए. घर पर आए एक सिपाही को देख कर वह अचंभित हो गए.

जल्द ही उन्हें मालूम हो गया कि दीक्षा को गोली लगी है. वह मुरादाबाद अस्पताल में है. अतर सिंह अभी पूरा मामला समझ पाते इस से पहले ही सिपाही ने बताया कि दीक्षा की मौत हो चुकी है. वह बेहद घायलावस्था में थाना कुंदरकी क्षेत्र के बाईपास के किनारे पैट्रोलिंग पुलिस को मिली थी. वह खून से लथपथ तड़प रही थी. पुलिस ने इस की सूचना थानाप्रभारी संदीप कुमार को देने के बाद उसे निकट के अस्पताल पहुंचा दिया था. डाक्टर ने उस के सिर में गोली लगने की जानकारी दी और प्राथमिक उपचार के बाद जिला मुख्यालय रेफर कर दिया, परंतु उस ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया.

थाना कुंदरकी पुलिस मृतका की शिनाख्त में जुट गई. अभी वह इस केस की कागजी काररवाई कर ही रहे थे. तभी उन्हें कोतवाली बिलारी से सूचना मिली कि कुंदरकी बाईपास के किनारे घायलावस्था में जो युवती मिली थी, उस के हमलावर ने कोतवाली में सरेंडर कर दिया है. वह हमलावर कोई और नहीं बल्कि दीक्षा का पति हरेंद्र ही था. हरेंद्र ने ही अपनी पत्नी दीक्षा की हत्या की सूचना कोतवाली बिलारी को दे दी थी. बिलारी कोतवाली के प्रभारी आर.पी. सिंह  ने हरेंद्र से मामले की पूछताछ की. हरेंद्र ने अपना अपराध स्वीकारते हुए बताया कि उस का वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण था. विवाह के 2 महीने बाद ही उसे मालूम हो गया था कि उस की पत्नी के और भी प्रेमी हैं. इस कारण वह हमेशा मायके जाती रहती थी.

हरेंद्र ने अपनी मृतक बीवी पर यह भी आरोप लगाया कि वह किसी की चिकनीचुपड़ी बातों में तुरंत आ जाती थी और पति को छोड़ कर उस के ही प्रेम इजहार को महत्त्व देती थी. हरेंद्र का कहना था कि दीक्षा ही प्रेमी को फंसा कर रखती थी. इस कारण वह हमेशा पत्नी से नाराज रहता था. इस की वजह से घर में कलह काफी बढ़ गई थी. घटना के दिन भी रात को उस की ननदोई से फोन पर हुई बात को ले कर काफी बहस हो गई थी. उस रात बात इतनी बिगड़ गई कि जबरन रात को ही घर से बाहर उसे ले कर निकल पड़ा. उसे अपनी गाड़ी में बिठाया और बाईपास पर नीचे उतार कर उस के सिर में गोली मार दी.

उस के बाद कुछ दूर जा कर सोच में पड़ गया कि उसे अब क्या करना चाहिए. हालांकि गोली लगने से दीक्षा तड़पती हुई गिर पड़ी थी. पुलिस के आने तक उस की सांसें चल रही थीं. हरेंद्र के बयानों के आधार पर उस से पूछताछ थाना कुंदरकी में भी हुई. वहां उस ने पुलिस को घटनास्थल पर ले जा कर हत्या में इस्तेमाल तमंचा बरामद करा दिया, जो उस ने जंगल में फेंक दिया था. उस की बताई हुई जगह पर तलाशी के बाद एक बाइक भी कब्जे में ली गई. पुलिस ने दीक्षा के पिता अरविंद कुमार की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर ली. हरेंद्र से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस का कहना है कि घटनास्थल पर मोटरसाइकिल बरामद हुई है. यह सवाल बना रहा कि जब हरेंद्र अपनी ससुराल कार से आया था तब मोटरसाइकिल कहां से आ गई? क्या हत्या में हरेंद्र के साथ कोई और भी शामिल था? इस बारे में पुलिस कोई जवाब नहीं दे सकी थी. बहरहाल, थानाप्रभारी संदीप कुमार चार्जशीट तैयार करने से पहले इस बात की जांच कर रहे हैं कि मृतका के पति हरेंद्र ने पत्नी पर जो आरोप लगाए थे, उन में कितनी सच्चाई है? UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित