UP Crime story : बुआ के दिल ने जब भतीजे को छुआ

वेदराम बेहद सीधासादा और मेहनती युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के एक चूड़ी कारखाने में काम करता था, जबकि उस के बीवीबच्चे कासगंज जिले के नगला लालजीतगंज में रहते थे. यह वेदराम का पैतृक गांव था. वहीं पर उस का भाई मिट्ठूलाल भी परिवार के साथ रहता था. जिला कासगंज के ही थाना सहावर का एक गांव है बीनपुर कलां. यहीं के रहने वाले आलम सिंह का बेटा नेकसे अकसर नगला लालजीतगंज में अपनी बुआ के घर आताजाता रहता था. उस की बुआ की शादी वेदराम के भाई मिट्ठूलाल के साथ हुई थी.

वेदराम की पत्नी सुनीता पति की गैरमौजूदगी में भी घर की जिम्मेदारी  ठीकठाक निभा रही थी. वह अपनी बड़ी बेटी की शादी कर चुकी थी. जिंदगी ने कब करवट ले ली, वेदराम को पता ही नहीं चला. पिछले कुछ समय से वेदराम जब भी छुट्टी पर घर जाता था, उसे पत्नी सुनीता के मिजाज में बदलाव देखने को मिलता था. उसे अकसर अपने घर में नेकसे भी बैठा मिलता था.

नेकसे हालांकि उस के भाई मिट्ठूलाल की पत्नी का भतीजा था, फिर भी वह यही सोचता था कि आखिर यह उस के घर में क्यों डेरा डाले रहता है. उस ने एकदो बार नेकसे को टोका भी कि बुआ के घर पड़े रहने से अच्छा है वह कोई कामकाज देखे. सुनीता ने भी नेकसे पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, लेकिन वह जब भी आता था, वह उस की खूब मेहमाननवाजी करती थी. नेकसे के मन में क्या था, यह सुनीता को पता नहीं था. एक दिन नेकसे दोपहर में उस के घर आया और चारपाई पर बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगा. अचानक वह उस के पास आ कर बोला, ‘‘बुआ, तुम जानती हो कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

नेकसे की इस बात पर पहले तो सुनीता चौंकी, उस के बाद हंसती हुई बोली, ‘‘मजाक अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘नहीं बुआ, ये मजाक नहीं है. तुम मुझे सचमुच बहुत अच्छी लगती हो. तुम्हें देखने को दिल चाहता है, तभी तो मैं तुम्हारे यहां आता हूं.’’ नेकसे ने हंसते हुए कहा.

नेकसे की बातें सुन कर सुनीता के माथे पर बल पड़ गए. उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो, क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘कुछ नहीं बुआ, तुम बैठो और यह बताओ कि फूफाजी कब आएंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन्हें छुट्टी कहां मिलती है. तुम सब कुछ जानते तो हो, फिर भी पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने थोड़ा रोष में कहा.

‘‘तुम्हारे ऊपर दया आती है बुआ, फूफाजी को तो तुम्हारी फिक्र ही नहीं है. अगर उन्हें फिक्र होती तो इतने दिनों बाद घर न आते. वह चाहते तो गांव में ही कोई काम कर सकते थे.’’ यह कह कर नेकसे ने जैसे सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था.

इस के बाद सुनीता के करीब आ कर वह उस का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘बुआ, अब तुम चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

इतना कह कर नेकसे तो चला गया, लेकिन सुनीता के मन में कई सवाल छोड़ गया. वह सोचने लगी कि आखिर नेकसे का उस के यहां आनेजाने का मकसद क्या है? 28 साल का नेकसे देखने में ठीकठाक था. वह अविवाहित था. और अपने गांव के एक ईंट भट्ठे पर काम करता था. तनख्वाह तो ज्यादा नहीं थी, पर वहां उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. बुआ के यहां आतेआते उस का दिल बुआ की देवरानी सुनीता पर आ गया था.

सुनीता पति की दूरी से बहुत परेशान थी. इसी का बहाना बना कर उस ने उस के दिल में जगह बनानी शुरू कर दी थी. रिश्ते की नजदीकियां रास्ते में बाधक थीं. नेकसे को इस बात का भी डर लग रहा था कि अगर सुनीता को बुरा लग गया तो परिवार में तूफान आ जाएगा. उस दिन नेकसे के जाने के बाद सुनीता देर तक उसी के बारे में सोचती रही कि आखिर नेकसे चाहता क्या है. उस रात सुनीता को देर तक नींद नहीं आई. नेकसे की बातचीत का अंदाज मन मोहने वाला था, लेकिन सुनीता उम्र और रिश्ते में नेकसे से बड़ी थी. मन में पति के प्रति गुस्सा भी आया, क्योंकि पति से दूरी के कारण ही उस का मन डगमगा रहा था.

उस ने तय कर लिया कि इस बार जब पति घर आएगा तो वह उस से कहेगी कि या तो वह गांव में रह कर कोई काम करे या फिर उसे भी अपने साथ ले चले. कुछ दिनों बाद वेदराम छुट्टी पर आया तो सुनीता ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे बिना मेरा यहां बिलकुल भी मन नहीं लगता. या तो तुम यहीं कोई काम कर लो या फिर मैं भी बच्चों को ले कर फिरोजाबाद चल कर तुम्हारे साथ रहूंगी.’’

पत्नी की बात सुन कर वेदराम बोला, ‘‘लगता है, तुम पगला गई हो. तुम अपनी उम्र तो देखो. बच्चे बड़े हो रहे हैं और तुम्हें रोमांस सूझ रहा है.’’

‘‘तो क्या अब मैं बूढ़ी हो गई हूं?’’ सुनीता ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसा नहीं है. पर सुनीता यह मेरी मजबूरी है. मेरी तनख्वाह इतनी नहीं कि वहां किराए पर कमरा ले कर तुम्हें साथ रख सकूं. और तुम क्या सोच रही हो कि वहां मैं खुश हूं. नहीं, तुम्हारे बिना मैं भी कम परेशान नहीं हूं.’’

पति के जवाब पर सुनीता कुछ नहीं बोली. वेदराम 3 दिनों तक घर पर रहा, तब तक सुनीता काफी खुश रही. पर पति के जाने के बाद उस के जिस्म की भूख फिर सिर उठाने लगी. वह उदास हो गई. तब उस के दिलोदिमाग में नेकसे घूमने लगा. वह उस से मिलने को उतावली हो उठी. इतना ही नहीं, वह अपनी जेठानी के घर जा कर बोली, ‘‘दीदी, नेकसे आया नहीं क्या?’’

जेठानी ने कहा, ‘‘आया तो था, पर जल्दी में था. क्यों, कोई काम है क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने तो यूं ही पूछ लिया.’’ उदास मन से सुनीता वापस आने को हुई, तभी जेठानी ने कहा, ‘‘शायद वह कल आएगा.’’

जेठानी की बात सुन कर सुनीता का दिल बल्लियों उछलने लगा. उसे लग रहा था कि नेकसे उस से नाराज है, तभी तो वह उस के घर नहीं आया. अगले दिन अचानक उस के दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला, सामने नेकसे खड़ा था.

‘‘तुम?’’ उसे देख कर सुनीता हैरानी से बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं बुआ, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना हैरान क्यों हो? बड़ी बुआ ने बताया कि तुम मुझे याद कर रही थीं, सो मैं आ गया. अब बताओ, क्या कहना है?’’ नेकसे ने घर में दाखिल होते हुए कहा.

सुनीता ने मुख्यद्वार बंद किया और अंदर आ कर नेकसे से बातें करने लगी. कुछ देर में सुनीता 2 गिलासों में चाय ले कर आई तो नेकसे ने पूछा, ‘‘फूफा आए थे क्या?’’

‘‘हां, आए तो थे, लेकिन 3 दिन रह कर चले गए.’’ सुनीता बेमन से बोली.

नेकसे को लगा कि वह फूफा से खुश नहीं है. उस ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ‘‘बुआ, मैं कुछ कहना चाहता हूं, पर डर लगता है कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘बुआ, सच तो यह है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो और मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’ नेकसे ने एक ही झटके में मन की बात कह दी.

नेकसे की बात पर सुनीता भड़क उठी, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? और हां, प्यार का मतलब जानते हो? अपनी और मेरी उम्र में फर्क देखा है. मैं रिश्ते में तुम्हारी बुआ लगती हूं.’’

‘‘हां, लेकिन इस दिल का क्या करूं, जो तुम पर आ गया है. अब तो दिलोदिमाग पर हमेशा तुम ही छाई रहती हो.’’ नेकसे ने कहा.

‘‘लगता है, तुम पागल हो गए हो. जरा सोचो, अगर घर वालों को यह सब पता चल गया तो मेरा क्या हाल होगा?’’ सुनीता ने कहा.

नेकसे चारपाई से उठा और सुनीता के पास जा कर उस के गले में बांहें डाल दीं. सुनीता ने इस का कोई विरोध नहीं किया. इस से नेकसे की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सुनीता भी खुद को नहीं रोक सकी तो मर्यादा भंग हो गई. जोश उतरने पर जब होश आया तो दोनों में से किसी के भी मन में पछतावा नहीं था.

सुनीता को अपना मोबाइल नंबर दे कर और फिर आने का वादा कर के नेकसे चला गया. उस दिन के बाद सुनीता की तो जैसे दुनिया ही बदल गई. पर कभीकभी उसे डर भी लगता था कि अगर भेद खुल गया तो क्या होगा. अब नेकसे का आनाजाना लगा रहने लगा. इसी बीच एक दिन वेदराम अचानक घर आ गया. उस की तबीयत खराब थी. पर उस समय घर पर नेकसे नहीं था. सुनीता डर गई कि कहीं पति की मौजूदगी में नेकसे न आ जाए, इसलिए उस ने नेकसे को फोन कर के सतर्क कर दिया. हफ्ते भर बाद वेदराम चला तो गया, पर सुनीता के मन में डर सा समा गया.

पड़ोसियों को सुनीता के घर नेकसे का आनाजाना अखरने लगा था. आखिर एक दिन पड़ोसन ने सुनीता को टोक ही दिया, ‘‘जवान लड़के का इस तरह घर आनाजाना ठीक नहीं है. अपनी जवान बेटी का कुछ तो खयाल करो.’’

सुनीता तमक कर बोली, ‘‘अपने घर का खयाल मैं खुद रख लूंगी. तुम हमारी फिक्र मत करो.’’

नेकसे उस के यहां बेखौफ और बिना रोकटोक आताजाता था. पड़ोसियों के मन में भी शक के बीज पड़ चुके थे. एक दिन जब वेदराम घर आया तो एक पड़ोसी ने कहा, ‘‘नेकसे तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारे घर अकसर आता है. तुम्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए.’’

इस बात से वेदराम को लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने सुनीता से पूछा, ‘‘यह नेकसे का क्या चक्कर है?’’

पति की बात सुन कर सुनीता की धड़कनें बढ़ गईं, ‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, तुम्हारा रिश्तेदार है. कभीकभी यहां आ जाता है. इस में गलत क्या है?’’

‘‘घर में जवान बच्ची है. तुम उसे यहां आने के लिए मना कर दो.’’ वेदराम ने कहा.

‘‘अपनी बेटी की देखरेख मैं खुद कर सकती हूं, पर कभी सोचा है कि तुम्हारे बिना मैं कैसे रहती हूं.’’

‘‘तुम लोगों के लिए ही तो मैं बाहर रहता हूं. जरा सोचो क्या तुम्हारे बिना मुझे वहां अच्छा लगता है क्या?’’

वेदराम को सुनीता की इस बात से विश्वास होने लगा कि पड़ोसियों ने उसे उस की पत्नी और नेकसे के बारे में जो खबर दी है, वह सही है. वेदराम 2-4 दिन रुक कर अपने काम पर फिरोजाबाद चला गया. पर इस बार उस का काम में मन नहीं लगा. उसे लगता था, जैसे उस की गृहस्थी की नींव हिल रही है. एक दिन अचानक वह छुट्टी ले कर बिना बताए घर से आ गया. उस ने घर में कदम रखा तो घर में कोई बच्चा दिखाई नहीं दिया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो सन्न रह गया. उस की पत्नी नेकसे की बांहों में थी. गुस्से में वेदराम ने डंडा उठाया और सुनीता की खूब पिटाई की. जबकि नेकसे भाग गया.

पिटने के बाद भी सुनीता के चेहरे पर डर नहीं था. वह गुर्रा कर बोली, ‘‘इस सब में मेरी नहीं, बल्कि तुम्हारी गलती है. मैं ने कहा था न कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, पर तुम ने मेरी भावनाओं का खयाल कहां रखा.’’

वेदराम का गुस्सा बढ़ गया. वह हैरान था कि सुनीता ने रिश्तों का भी खयाल नहीं रखा. नेकसे तो उस के बेटे की तरह है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अब मैं आ गया हूं, सब संभाल लूंगा.’’

‘‘मैं आ गया हूं, से क्या मतलब है तुम्हारा?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘अब मैं नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए आ गया हूं. यहीं खेतीबाड़ी करूंगा. फिर देखूंगा तुझे.’’ वेदराम ने कहा.

पति के नौकरी छोड़ने की बात सुन कर सुनीता परेशान हो उठी. क्योंकि अब उसे नेकसे से मिलने का मौका नहीं मिल सकता था. उस ने नेकसे को सारी बात बता कर सतर्क रहने को कहा. अब वह किसी भी कीमत पर नेकसे को छोड़ने को तैयार नहीं थी. उस के मन में पति के प्रति नफरत पैदा हो गई.

वेदराम को अब इस बात का डर लगा रहता था कि सुनीता नेकसे के साथ भाग न जाए. अगर ऐसा हो गया तो समाज में उस की नाक ही कट जाएगी. लिहाजा उसे अपनी दुराचारी पत्नी से नफरत हो गई. बेटी भी जवान थी पर वह मां की ही तरफ से बोलती थी. उसे इस बात का भी डर था कि कहीं बेटी भी गुमराह न हो जाए.

वेदराम की चौकसी के बावजूद सुनीता और नेकसे मौका पा कर घर से बाहर मिलने लगे. यह बात भी वेदराम से ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने सुनीता को एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी. वेदराम समझ गया कि अब कोई बड़ा कदम उठाना ही पड़ेगा, वरना उस की गृहस्थी डूब जाएगी. घर का वातावरण काफी तनावपूर्ण रहने लगा था. नेकसे वेदराम की खुशियों के रास्ते में बाधा बन गया था. काफी सोचनेविचारने के बाद वेदराम को लगा कि इस समस्या का अब एक ही हल है कि रास्ते के कांटे को जड़ से निकाल दिया जाए.

दूसरी ओर रोजरोज पिटने से सुनीता को लगने लगा था कि अब वह पति के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकती. वह खुल कर नेकसे के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

वेदराम धीरेधीरे अपने इरादे को मजबूत कर रहा था. बेशक यह काम उस के लिए कठिन था. पर एक ओर चरित्रहीन पत्नी थी तो दूसरी ओर बेलगाम भतीजा. दोनों उस केगुस्से को हवा दे रहे थे. योजना के अनुसार, वेदराम उसी ईंट भट्ठे पर काम करने लगा, जहां नेकसे करता था. वेदराम जानता था कि नेकसे रात में भट्ठे पर ही सोता है. उसे लगा कि वह वहीं पर अपना काम आसानी से कर सकता है. वह भी भट्ठे पर ही सोने लगा और मौके की तलाश में लग गया.

नेकसे अपने फूफा वेदराम के इरादे से बेखबर था. जबकि वेदराम ने तय कर लिया था कि अपनी इज्जत पर हाथ डालने वाले को वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. अपनी नौकरी के तीसरे दिन 5 दिसंबर, 2016 को वेदराम को मौका मिल गया. उस ने देखा, नेकसे अकेला सो रहा था. वह अपनी जगह से उठा और फावड़े से नेकसे पर प्रहार कर दिया. चोट नेकसे के कंधे पर लगी तो वह चीख कर उठा और भागने की कोशिश की. लेकिन वेदराम ने उस पर ताबड़तोड़ प्रहार कर दिए, जिस से वह वहीं पर मर गया.

नेकसे की हत्या करने के बाद वेदराम ने राहत की सांस ली, पर उस की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. वह फावड़ा ले कर सीधे थाना सहावर पहुंचा और पुलिस को सारी बात बता दी. थानाप्रभारी रफत मजीद वेदराम से पूछताछ कर के उसे उस जगह ले गए, जहां उस ने नेकसे की हत्या की थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पुलिस ने वेदराम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. थानाप्रभारी रफत मजीद केस की तफ्तीश कर रहे थे. UP Crime story

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

Crime Story in Hindi: देह व्यापार में प्यार की कोई जगह नहीं

Crime Story in Hindi: 10 नवंबर, 2016 को दोपहर के करीब 2 बजे राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना केवला की पुलिस को सूचना मिली कि उदयपुर से गोमती जाने वाले फोरलेन नेशनल हाईवे के किनारे पड़ासली भैरूंघाटी के पास एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी भरत योगी अधिकारियों को घटना के बारे में बता कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए थे. उन के पहुंचतेपहुंचते एसपी डा. विष्णुकांत भी मौके पर पहुंच गए थे.

लाश सड़क से 2 सौ मीटर की दूरी पर एक खाई में पड़ी थी. वह एक औरत की लाश थी, जो टीशर्ट और लैगिंग पहने हुए थी. मृतका का रंग गोरा, कद ठिगना तथा शरीर थोड़ा मोटा था. हाथ की अंगुलियों पर टैटू बने थे और नाखूनों पर नेलपौलिश लगी थी. बालों का रंग भूरा था, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बालों पर कलर किया गया होगा. एक कान में बाली थी. गले पर गहरे जख्म थे. मृतका की उम्र 30-35 साल के बीच थी. लाश के पास बीयर की बोतलें पड़ी थीं. देख कर ही लग रहा था कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां ला कर फेंकी गई थी. पहनावे से मृतका मेवाड़ क्षेत्र की नहीं लग रही थी.

अनुमान लगाया गया कि मृतका किसी बड़े शहर की रहने वाली थी. आसपास बड़ा शहर उदयपुर था. गुजरात की सीमा भी नजदीक थी. पुलिस ने घटनास्थल से मिले सबूतों को जुटा कर आसपास के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए केवला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मुर्दाघर में रखवा दिया. लाश देख कर डाक्टरों ने बताया कि मृतका की हत्या 10 से 15 घंटे पहले गला घोंट कर की गई थी. बाद में लाश को राजसमंद के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया था. इसी के साथ लाश की शिनाख्त होने के बाद ही पोस्टमार्टम कराने का निर्णय लिया गया.

पुलिस के सामने समस्या मृतका की शिनाख्त की थी. इस के लिए पुलिस ने लाश के फोटो व वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिए. इस के अलावा उदयपुर, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर के सभी थानों को लाश के फोटो भेज कर कहा गया कि मृतका का पता लगाने की कोशिश करें. हो सकता है कहीं उस महिला की गुमशुदगी दर्ज हो. इसी के साथ ही हाईवे पर स्थित नेगडि़या और मांडावाड़ा टोल प्लाजा की सीसीटीवी फुटेज भी खंगाली गईं.

मृतका की लाश के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से पुलिस को सूचनाएं मिलीं कि मृतका उदयपुर की हो सकती है. इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस ने उदयपुर जा कर स्थानीय पुलिस की मदद ली. लाश मिलने के तीसरे दिन यानी 12 नवंबर को पता चला कि वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की थी, जो मुंबई की रहने वाली थी. उदयपुर में रोमा जिस्मफरोशी करती थी. पुलिस ने जिस्मफरोशी करने वाली महिलाओं के संपर्क में रहने वाले कुछ लोगों से पता किया तो उन से रोमा का फोन नंबर मिल गया. उस नंबर को वाट्सऐप वाले दूसरे फोन पर डाला गया तो उस की डीपी में मृतका की तसवीर आ गई. वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की ही थी.

इस के बाद पुलिस को यह भी पता चल गया कि रोमा उदयपुर में रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा के लिए काम करती थी. रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा का नाम उदयपुर पुलिस के लिए नया नहीं था. सैक्स रैकेट के मामले में वह उदयपुर की जानीमानी हस्ती थी. रोमा की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस ने उसे 12 नवंबर को हिरासत में लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के बडे़ बेटे अनिल और ड्राइवर धनराज मीणा को भी हिरासत में ले लिया.

उदयपुर पुलिस ने तीनों को राजसमंद की थाना केवला पुलिस को सौंप दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को 13 नवंबर को रोमा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इस पूछताछ में रोमा के मुंबई से उदयपुर आने और जिस्मफरोशी के धंधे की सरगना रेखा के बेटे से प्रेम करने से ले कर हत्या तक की कहानी सामने आ गई. उदयपुर राजस्थान का पर्यटनस्थल है. यहां रोजाना तमाम देशीविदेशी सैलानी आते हैं. अन्य महानगरों की तरह यहां भी जिस्मफरोशी का कारोबार धड़ल्ले से होता है. उदयपुर की हिरणमगरी कालोनी के सेक्टर-9 की रहने वाली रेखा उर्फ पूजा काफी समय से सैक्स रैकेट चला रही थी.

उस के खिलाफ थाना हिरणमगरी में पीटा के 7 मामले दर्ज हैं. इस के अलावा वह शांतिभंग के मामलों में भी कई बार गिरफ्तार हो चुकी थी. रेखा की उम्र 50 साल के आसपास है. उस की शादी ललित छाबड़ा से हुई थी, जिस से उस के 2 बेटे हुए, बड़ा अनिल और छोटा मनीष. रेखा पहले उदयपुर की हिरणमगरी के सेक्टर-5 में रहती थी. अभी भी वहां उस का मकान है, जिस में वह लड़कियों से जिस्मफरोशी कराती थी. इसी धंधे की बदौलत उस के संपर्क मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की लड़कियों से हो गए थे. उदयपुर के कई नामीगिरामी होटलों के अलावा हाईवे पर स्थित फार्महाउसों व गेस्टहाउसों के संचालकों से उस के संपर्क थे.

जिस्म के शौकीनों के लिए वह मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से लड़कियां बुलाती थी. रेखा लड़कियों की खूबसूरती और देह के आधार पर ग्राहकों से रकम वसूलती थी. बाहर से आई लड़कियां कुछ दिन उदयपुर में रह कर लौट जाती थीं. ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से रेखा फोन कर के लड़कियां बुला लेती थी. इस धंधे से उस ने करोड़ों की दौलत कमाई. इसी कमाई से उस ने उदयपुर के हिरणमगरी के सेक्टर-9 में 3 हजार वर्गमीटर का भूखंड खरीद कर आलीशान कोठी बनवाई. कोठी के बेसमेंट में अनैतिक गतिविधियों के लिए ठिकाने बनवाए. उस ने कोठी में चारों तरफ कैमरे लगवाए, ताकि बाहर की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. कहा जाता है कि जब रेखा ने यह मकान बनवाना शुरू किया था, उस के कारनामों की वजह से मोहल्ले वालों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उस ने आपराधिक लोगों की मदद से सब को चुप करा दिया था. इस मकान की कीमत इस समय करीब 5 करोड़ रुपए है.

रोमा उर्फ रेशमा भी रेखा के बुलाने पर जिस्मफरोशी के लिए मुंबई से उदयपुर आई थी. कहा जाता है कि रोमा मूलरूप से बांग्लादेश की रहने वाली थी. वह गरीबी की वजह से इस दलदल में फंस गई थी. कुछ दिनों वह कोलकाता में रही, फिर वहां से मुंबई चली गई. अन्य कालगर्ल्स की तरह वह भी बुलाने पर मुंबई से दूसरे शहरों में जाने लगी. इसी तरह रेखा के बुलाने पर वह उदयपुर आई थी. रोमा को उदयपुर अच्छा लगा, इसलिए वह रेखा के साथ रह कर जिस्मफरोशी करने लगी. शुरू में तो उस के चाहने वाले काफी थे, लेकिन धीरेधीरे उस का शरीर और उम्र बढ़ी तो चाहने वालों की संख्या घटने लगी.

यह सच्चाई भी है कि उम्र बढ़ने के साथ कालगर्ल्स के चहेतों की तादाद कम होने लगती है. रोमा की उम्र जरूर ज्यादा हो गई थी, लेकिन जब वह टाइट वेस्टर्न ड्रैस पहनती थी तो उस के उभार चाहने वालों को आकर्षित करते थे. बालों को भी वह कलर करने लगी थी. फिर भी उस का धंधा टूटता जा रहा था. इस के अलावा जिस्म बेचने के बाद भी उसे पूरा पैसा नहीं मिलता था. उस की कमाई का अधिकांश हिस्सा रेखा रख लेती थी. इसलिए अब उसे इस धंधे में अपना भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा था.

रोमा के जो भी आशिक थे, वे सिर्फ उस के जिस्म से मतलब रखते थे. उन में से किसी की नजरों में उसे अपनापन नजर नहीं आता था. रोमा जब से उदयपुर आई थी, रेखा के साथ उसी के घर में रह रही थी. वह उस की आंटी भी थी और मालकिन भी. साथ रहने की वजह से रोमा का आमनासामना रोजाना रेखा के छोटे बेटे मनीष से होता था. कभीकभी रोमा अपने छोटेमोटे काम भी मनीष से करा लेती थी. मनीष को पता ही था कि उस की मां रेखा देहव्यापार कराती है. उस के घर एक से एक खूबसूरत और हर उम्र की लड़कियां आतीजाती रहती थीं.

मनीष करीब 28 साल का युवा था. उस की अपनी शारीरिक जरूरतें थीं. अगर वह चाहता तो घर आने वाली किसी भी कालगर्ल्स से अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकता था, लेकिन रोमा उस के दिल में जगह बनाने लगी थी. अपनी जरूरतों के हिसाब से वह भी मनीष से प्यार करने लगी थी. कब दोनों एकदूसरे के प्यार में खो गए, पता ही नहीं चला.

रोमा और मनीष के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. ये संबंध लगातर चलते रहे, जिस से रेखा को उन के संबंधों की जानकारी हो गई. रेखा इस धंधे की खेलीखाई और घाघ औरत थी. उसे पता था कि इस तरह के संबंधों का क्या हश्र होता है. भविष्य के बारे में सोच कर रोमा रेखा की चिंता किए बगैर मनीष के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. मनीष से रोमा को गर्भ भी ठहर गया. अब वह मनीष से शादी की बात करने लगी. उसे पता था कि मनीष से शादी करने के बाद वह रेखा की करोड़ों की जायदाद में आधे की हिस्सेदार हो जाएगी. इस के लिए ही वह मनीष पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बात की भनक रेखा को लगी तो उसे मामला गड़बड़ नजर आने लगा. वह कतई नहीं चाहती थी कि उस का बेटा कालगर्ल्स से शादी करे और उस की जायदाद में हिस्सा मांगे. पहले उसे लगता था कि इस मामले को वह अपने स्तर से निपटा देगी. लेकिन उस की चिंता तब बढ़ गई, जब उस का अपना बेटा मनीष भी रोमा की भाषा बोलने लगा. रोमा को ले कर घर में लगभग रोज ही झगड़े होने लगे. इस से रेखा परेशान रहने लगी. अब वह रोमा से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगी. काफी सोचविचार कर उस ने फैसला किया कि इस झगड़े की जड़ रोमा है, इसलिए उसे ही मनीष के रास्ते से हटा दिया जाए.

रेखा ने काफी सोचविचार कर साजिश रची. उसी साजिश के तहत उस ने मनीष को तलवारबाजी के एक झगड़े में पुलिस से गिरफ्तार करवा कर जेल भिजवा दिया. मनीष के जेल जाते ही रेखा ने अपने ड्राइवर धनराज मीणा और बड़े बेटे अनिल से बात की. इस के बाद योजना के अनुसार, 9 नवंबर की शाम को धनराज ने रोमा को इतनी शराब पिलाई कि वह सुधबुध खो बैठी. उसी हालत में धनराज और रेखा ने सलवार के नाड़े से रोमा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. अधिक नशा होने की वजह से वह विरोध भी नहीं कर सकी.

रेखा को पूरा विश्वास हो गया कि रोमा की मौत हो चुकी है तो उस ने अनिल और धनराज से कहा कि वे लाश को गाड़ी से ले जा कर कहीं फेंक आएं. अनिल और धनराज हुंडई आई10 कार की पिछली सीट पर लाश रख कर निकल पड़े. कार धनराज चला रहा था. दोनों नेगडि़या टोलनाका, नाथद्वारा, राजनगर, केवला होते हुए मांडावाड़ा टोलनाके से हो कर पड़ासली के पास पहुंचे. वहीं हाईवे पर सुनसान जगह देख कर धनराज ने सड़क के किनारे कार रोक दी. फिर अनिल की मदद से कार की पिछली सीट पर पड़ी रोमा की लाश को निकाल कर हाईवे से करीब 2 सौ मीटर दूर ले जा कर खाई में फेंक दिया. इस तरह लाश को ठिकाने लगा कर दोनों उसी कार और उसी रास्ते से रात में ही घर आ गए.

रोमा की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस ने सबूत जुटाने के लिए नेगडि़या टोलनाका व मांडावाड़ा टोलनाका की सीसीटीवी फुटेज की फिर से जांच की तो उन की कार आतीजाती दिखाई दे गई. पुलिस ने दोनों की उस रात की मोबाइल की लोकेशन और काल डिटेल्स भी सबूत के तौर पर जुटाए. कथा लिखे जाने तक पुलिस यह पता करने की कोशिश कर रही थी कि रोमा कौन थी, वह कहां की रहने वाली थी, उस के परिवार में कोई है या नहीं? अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने रोमा की लाश का पोस्टमार्टम करा कर अंतिम संस्कार करा दिया था.

बहरहाल, देहव्यापार करने वाली रोमा ने कभी नहीं सोचा होगा कि प्यार करने की उसे ऐसी सजा मिलेगी. रोमा के साथ जो हुआ, उस से एक बार फिर साबित हो गया है कि इस तरह की औरतों का कोई भविष्य नहीं होता. Crime Story in Hindi

UP Crime Story: वाराणसी की पौश कालोनी में सजता देह बाजार

UP Crime Story: कोरोना कर्फ्यू का वीकेंड यानी शनिवार का दिन था. चेतगंज की थानाप्रभारी इंसपेक्टर संध्या सिंह लौकडाउन के दौरान सुबहसुबह साढ़े 6 बजे के करीब चाय की चुस्कियों के साथ इलाके का एक बार मुआयना करने की योजना बना रही थीं. तभी अचानक 4 लोग थाने  में आए.

उन्हें देख कर वह बोलीं, ‘‘जी, बताइए मैं आप लोगों की क्या मदद कर सकती हूं?’’

एक आगंतुक दाएंबाएं देखता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, हम लोग पिशाचमोचन क्षेत्र के रहने वाले हैं. हमारे मोहल्ले के एक मकान में इन दिनों तरहतरह के लोगों का आनाजाना होने लगा है.’’

‘‘तरहतरह के लोगों से आप का क्या मतलब है?’’ संध्या सिंह ने पूछा.

‘‘हमें संदेह है कि मकान में कोई गलत काम होता है. क्योंकि वहां हमेशा नएनए लोग आतेजाते देखे गए हैं. प्लीज, आप वहां की जांच कीजिए, अपने आप पता चल जाएगा कि बात क्या है.’’

उस व्यक्ति की बात पूरी होते ही साथ में आया दूसरा व्यक्ति बोल पड़ा, ‘‘जी मैडम, वहां की संदिग्ध गतिविधियों का खुलासा हो जाएगा.’’

‘‘वे किस तरह के लोग होते  हैं?’’ संध्या को अधिक जानने की जिज्ञासा हुई.

‘‘मैडमजी, आनेजाने वाले लोग दिखने में संभ्रांत लगते हैं, वे 40-45 की उम्र के दिखते हैं. उन के हाथों में रैपर में लिपटा कोई न कोई गिफ्ट पैकेट भी होता है.’’ एक अन्य व्यक्ति बोला.

मोहल्ले के लोगों की बातों को गौर से सुनने के बाद संध्या सिंह ने शिकायत करने वालों के नाम और कौन्टैक्ट के लिए मोबाइल नंबर के साथ कुछ पौइंट नोट कर लिए और छानबीन करने का आश्वासन दे कर उन्हें जाने को कहा.

पिशाचमोचन मोहल्ले के नागरिकों द्वारा बताई गई बातों पर गौर करते हुए उन्होंने तुरंत एसीपी (चेतगंज) नितेश प्रताप सिंह को भी अवगत करवा दिया. उन्हें शिकायत संबंधी पूरी जानकारी दी. मामला उत्तर प्रदेश के पौराणिक शहर वाराणसी का था. ऊपर से यह देश के प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है. इसे देखते हुए पुलिस ने संदिग्ध मकान में छापेमारी की योजना बना ली. संध्या सिंह सहित पुलिस टीम में कुछ और महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

सूचना के आधार पर एक पुलिसकर्मी ने पिशाचमोचन स्थित मकान नंबर सी 21/24 के मुख्य गेट पर दस्तक दी. उस की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. कई बार आवाज लगाने और गेट पीटने के बाद तो एक उम्रदराज व्यक्ति ने मुख्य गेट का चैनल खोल कर बाहर की ओर झांकते हुए तेज आवाज में पूछा, ‘‘कौन है?’’

बाहर पुलिस टीम को देख कर उस की आवाज धीमी पड़ गई. वह धीमे से बोला, ‘‘क्या बात है भई, आप लोग यहां?’’

उस का कोई जवाब दिए बगैर पुलिस टीम गेट को एक झटके में बाहर की ओर खोलते हुए मकान के भीतर धड़धड़ाती हुई घुस गई. कुछ पल में ही पूरी पुलिस टीम एक कमरे में थी. सभी पुलिसकर्मी संदिग्ध निगाहों से कमरे में इधरउधर देखने लगे. संध्या सिंह की पैनी निगाहें कुछ तलाशने की स्थिति में थीं. पुलिस की निगाह कमरे से जुड़े एक दरवाजे की तरफ गई. वहां का परदा हटाते ही एक महिला पुलिसकर्मी अनायास बोल पड़ी, ‘‘मैडमजी, इधर देखिए… ये दुष्ट लोग.’’

जब संध्या ने उस कमरे में जा कर देखा तो उन की आंखें भी फटी की फटी रह गईं. अंदर का नजारा देख कर महिला पुलिसकर्मी शर्म से आंखें झुकाए तुरंत बाहर आ गई. जबकि एसीपी चेतगंज ने फौरन कड़क आवाज में सभी को कपड़े पहन कर बाहर आने को कहा.

एसीपी ने कमरे से बाहर आ कर पूछा, ‘‘मकान का मालिक कौन है?’’

वहीं पास खड़े व्यक्ति ने कहा, ‘‘जी मैं हूं.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ एसीपी बोले.

‘‘सुरेश कुमार,’’ वह व्यक्ति बोला.

‘‘ये सब यहां क्या है? कौन हैं  ये लोग?’’

तब तक कई लड़कियां और लड़के अंदर के कमरे से बाहर आ चुके थे. उन की ओर ऊंगली उठाते हुए एसपी ने पूछा.

अब सुरेश को काटो तो खून नहीं. वह हक्काबक्का डरी जुबान में बोला, ‘‘साहब, मैं इन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता, केवल इतना जानता हूं कि ये लोग किसी कंपनी में काम करते हैं.’’

मकान मालिक की बात पूरी होने वाली ही थी कि तभी इंसपेक्टर संध्या सिंह एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारे मकान में कोई इस प्रकार से रह रहा है और तुम्हें कोई जानकारी नहीं. वह भी एकदो नहीं कई लोग.’’

‘‘…जी…जी साहब, मैं सच कह रहा हूं, मुझे कुछ नहीं पता.’’

इतना कहने पर उस के गाल पर दूसरा जोरदार तमाचा पड़ा. लेडी पुलिस से कई लोगों के सामने तमाचा खा कर वह शर्मसार हो गया.

संध्या सिंह बोलीं, ‘‘जब तुम्हें इन लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी तो फिर उन्हें कमरा किराए पर कैसे दे दिया था?’’ इस का जवाब देने के बजाय वह सिर झुकाए खड़ा रहा. पुलिस सभी को थाने ले आई. उन से अलगअलग गहन पूछताछ की जाने लगी.  इस दौरान कालोनी के कई लोग भी काफी संख्या में जमा हो गए. हर कोई जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहा था. पूछताछ में कई बातें खुल कर सामने आईं. पुलिस टीम को मौके पर 2 युवतियां व 3 युवक बिलकुल आपत्तिजनक स्थिति में मिले थे. कमरे की तलाशी लेने के दौरान आपत्तिजनक सामग्रियों में कंडोम के पैकेट, 4 मोबाइल फोन व नशीली दवाएं बरामद हुईं.

इस तरह से शहर की पौश कालोनी में सैक्स रैकेट गिरोह का परदाफाश हो चुका था. थोड़े समय में इस की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. जिस का असर यह हुआ था कि मीडिया के लोग और कुछ समाजसेवी संगठन भी थाने पहुंच गए. कुछ मानवाधिकार संगठन के लोगों ने चेतगंज थाने जा कर मामले की तह में जाने का दबाव बनाया. इस की सूचना काशी जोन के डीसीपी अमित कुमार को भी दी गई. वे भी चेतगंज थाने पहुंच गए.

पूछताछ के दौरान पकड़ी गई 20 से 25 साल के बीच की उम्र वाली दोनों लड़कियों ने बताया, ‘‘उन्होंने नौकरी करने वाली बता कर कमरा किराए पर लिया था.’’

वह जानबूझ कर ऐशोआराम और मौजमस्ती की जिंदगी के लिए इस धंधे में उतरी थी. उसे अपनी शानोशौकत वाली जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अत्यधिक पैसे की लालसा थी. पुलिस के अनुसार पढ़ाई के साथसाथ वे अन्य कामों के बहाने देह व्यापार के धंधे में उतर आई थीं. पूछताछ के दौरान 25 वर्षीय पारो (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह इस धंधे में पिछले 2 सालों से है. मोबाइल फोन की मदद से वह अपने इस धंधे को अंजाम देती है. इस के लिए उस ने अपना कोडवर्ड बना रखा है. उस के कोडवर्ड को ग्राहक ही समझ पाते हैं.

पारो ने अपने धंधे के बारे में आगे बताया कि उन के इस धंधे में कई लोगों का हिस्सा होता है. उन का वह नाम नहीं जानती है. हां, चेहरा देखने पर जरूर पहचान लेगी. पकड़े गए युवकों में एक रमेश 28 वर्ष, सुमित कुमार 29 वर्ष एवं राठौर 30 वर्ष ने बताया कि वे सभी वाराणसी शहर के ही निवासी हैं. पुलिस हिरासत में आने के बाद वे बारबार अपने बयानों को पलटते हुए अपना सही पताठिकाना बताने से कतराते रहे. उन का कहना था कि उन्हें वहां धोखे से लाया गया था, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तब उन्होंने इस धंधे में शामिल होना स्वीकार कर लिया.

इसी प्रकार पुलिस टीम ने पकड़ी गई दूसरी लड़कियों और लड़कों से अलगअलग कमरों में पूछताछ के बाद पांचों के खिलाफ 29 मई, 2021 को देह व्यापार अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. उन की डाक्टरी जांच करवाई गई. बाद में उन्हें न्यायालय में पेश कर न्यायिकहिरासत में भेज दिया गया. कथा के लिखे जाने तक किसी भी आरोपी को जमानत नहीं मिल पाई थी.

सैक्स कारोबार का गढ़ बनता जा रहा है मड़ुआडीह 

वाराणसी में सैक्स अपराध का धंधा कोई नया नहीं है. दिल्ली के जीबी रोड, इलाहाबाद, मेरठ इत्यादि शहरों की तरह वाराणसी का मड़ुआडीह इलाका सैक्स बाजार के रूप में कुख्यात बताया गया है. जानकारों की मानें तो वाराणसी में पड़ोसी देश नेपाल से ले कर देश के कई राज्यों मसलन असम, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र इत्यादि से कम उम्र की लड़कियां बुलाई जाती हैं. उन से सैक्स के लिए मोबाइल फोन से संपर्क साधा जाता है. उन का अपना नेटवर्क बना हुआ है.

हाल के महीनों में जिस तेजी के साथ वाराणसी में एक पर एक कई जगहों पर सैक्स रैकेट का पुलिस ने खुलासा किया है, उसे देख कर इस बात को बल मिलने लगा है कि इस गिरोह की जड़ें वाराणसी में काफी गहरी हो चुकी हैं. वाराणसी के पौश इलाकों में से जगतगंज के कैलगढ़ कालोनी में 31 मई, 2021 को एक सैक्स रैकेट का खुलासा हुआ था. तब पुलिस ने एक मकान के फर्स्ट फ्लोर पर चल रहे रैकेट का खुलासा करते हुए 3 युवतियों समेत 6 लोगों को पकड़ा था. पुलिस के अनुसार सैक्स रैकेट के लिए लड़कियां फोन द्वारा बुलाई जाती थीं. फोन पर ही ग्राहकों से सौदा तय हो जाता था.

गिरफ्तार युवतियों में एक प्रयागराज की और 2 वाराणसी की थीं. गिरफ्तार युवकों में शिवपुर के लक्ष्मणपुर निवासी सोनू पटेल, चोलापुर के अतुल सिंह और रोहनिया के राजेश सिंह शामिल थे. सैक्स रैकेट की सूचना मिलने पर रात में छापेमारी की गई थी. इस मामले में मकान मालिक ने बगैर पुलिस सत्यापन के मकान किराए पर उठा लिया गया था. एक अन्य मामला वाराणसी के नाटी इमली मोहल्ले के नई बस्ती का भी सामने आया. वहां के रिहायशी इलाके के एक मकान में जब 30 मई, 2021 को छापेमारी की गई तब सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हुआ.  मौके से मकान मालकिन और 2 युवतियों की गिरफ्तारी हुई. पुलिस की काररवाई के दौरान 2 युवक चकमा दे कर भाग गए.

पुलिस ने मकान से छापे के दौरान कई आपत्तिजनक सामान भी बरामद किए. महिला और दोनों युवतियों के खिलाफ जैतपुरा थाने में मुकदमा दर्ज किया गया. मौके से भागे खोजवां निवासी राकेश गुप्ता सहित 2 युवकों की तलाश में पुलिस की टीमें लगाई गईं. नाटी इमली क्षेत्र की नई बस्ती स्थित इस मकान में सैक्स रैकेट चलाए जाने की सूचना पा कर जैतपुरा थाने की पुलिस ने एसीपी (चेतगंज) नितेश प्रताप सिंह के निर्देशानुसार इंसपेक्टर (जैतपुरा) शशिभूषण राय के साथ चिह्नित मकान में छापा मारा था. मकान मालकिन और दोनों युवतियों के खिलाफ देह व्यापार अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए.

इस तरह से एक सप्ताह के भीतर ही वाराणसी पुलिस ने कई सैक्स ठिकानों पर की छापेमारी की. इस में वाराणसी के चेतगंज थाना की पुलिस ने 29 मई को पिशाचमोचन स्थित कालोनी में किराए के मकान में छापेमारी के अलावा 31 मई को चेतगंज थाने की पुलिस ने लहुराबीर क्षेत्र के कैलगढ़ कालोनी स्थित अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में छापेमारी कर 3 युवतियों और 3 युवकों को गिरफ्तार कर लिया. इस के पहले भी वाराणसी की घनी आबादी वाले रिहायशी इलाके में देह व्यापार का धंधा बीते कुछ महीनों में काफी फलफूल गया था.

जैतपुरा, लालपुर, पांडेयपुर, और चेतगंज थाना क्षेत्रों में जो भी सैक्स रैकेट पकड़े गए, वह घनी आबादी वाले रिहायशी इलाकों में स्थित किराए के मकानों में संचालित हो रहे थे. इस संबंध में डीसीपी काशी जोन अमित कुमार ने सभी थानाप्रभारियों को किराएदारों के सत्यापन करवाने का निर्देश दिया है. UP Crime Story

—कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक एवं पुलिस सूत्रों व समाचार पत्रों पर आधारित है

Hindi Stories: जिस्म का स्वाद

Hindi Stories: हलकीहलकी बरसात से मौसम ठंडा हो चला था. हवा तेज नहीं थी. शाम गहराती जा रही थी. दिल्ली से पंजाब जाने वाली बसें एकएक कर के रवाना हो रही थीं. दिल्ली बसअड्डे पर आज भीड़ नहीं थी. दिल्ली से संगरूर जाने वाली बस आधी ही भरी थी. पौने 7 बज चुके थे. सूरज डूब चुका था. बस की रवानगी का समय हो चला था. 10 मिनट और इंतजार करने के बाद बस कंडक्टर ने सीटी बजाई. ड्राइवर ने इंजन स्टार्ट किया. गियर लगते ही बस लहरा कर भीड़ काटते हुए बसअड्डे का गेट पार कर बाहर आई और रिंग रोड की चौड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ने लगी.

बस की रफ्तार बढ़ने के साथसाथ हलकीहलकी बरसात भी तेज बरसात में बदल गई. बस के सामने के शीशों पर लगे वाइपर भी तेजी से चलने लगे. पीरागढ़ी चौक तक आतेआते साढ़े 7 बज चुके थे. वहां पर आधा मिनट के लिए बस रुकी. 4-5 सवारियां भी चढ़ीं, पर बस अभी भी पूरी तरह से नहीं भरी थी. बस आगे बढ़ी. नांगलोई, फिर बहादुरगढ़ और फिर रोहतक. बरसात बदस्तूर जारी थी. हवा भी तेज होती जा रही थी. रोहतक बसस्टैंड पर बस 5 मिनट के लिए रुकी. भारी बरसात के चलते बसस्टैंड सुनसान था.

रोहतक पार होतेहोते बरसात भयंकर तूफान में बदल गई. 20 मिनट बाद बस लाखनमाजरा नामक गांव के पास पहुंची. वहां बड़ेबड़े ओले गिरने लगे थे. साथ ही, आंधी भी चलने लगी थी. सड़क के दोनों किनारे खड़े कमजोर पेड़ हवा के जोर से तड़तड़ कर टूटे और सड़क पर गिरने लगे. बस का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था. सारा रास्ता जो बंद हो गया था. ड्राइवर ने बस रोक दी और इंजन भी बंद कर दिया. जल्दी ही बस के पीछे तमाम दूसरी गाडि़यों की कतार भी लग गई. अब भीषण बरसात तूफान में बदल गई. क्या करें? कहां जाएं? दिल्ली से संगरूर का महज 6 घंटे का सफर था. ज्यादातर मुसाफिर यही सोच कर चले थे कि रात के 12 बजे तक वे अपनेअपने घर पहुंच जाएंगे, इसलिए उन्होंने खाना भी नहीं खाया था. अब तो यहीं रात के 12 बज गए थे और उन के पेट भूख से बिलबिला रहे थे.

सब ने मोबाइल फोन से अपनेअपने परिवार वालों को कहा कि वे खराब मौसम के चलते रास्ते में फंसे हुए हैं. मगर, बस के मुसाफिर कब तक सब्र करते. खाने का इंतजाम नहीं था. पानी के लिए सब का गला सूख रहा था. लाखनमाजरा गांव था. खराब मौसम के चलते वहां रात को कोई दुकान नहीं खुली थी. कहीं कोई हैंडपंप, प्याऊ वगैरह भी नजर नहीं आ रहा था.

‘‘यहां एक गुरुद्वारा है. इस में कभी गुरु तेग बहादुर ठहरे थे. गुरुद्वारे में हमें जगह मिल जाएगी,’’ एक मुसाफिर ने कहा. बस की सवारियों का जत्था गुरुद्वारे के मेन फाटक पर पहुंचा. मगर फाटक खटकाने के बाद जब सेवादार बाहर आया तो उस ने टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘रात के 11 बजे के बाद गुरुद्वारे का फाटक नहीं खुलता है. नियमों को मानने के लिए गुरुद्वारा कमेटी द्वारा सख्त हिदायत दी गई है.’’

सब मुसाफिर बस में आ कर बैठ गए. बस में सत्यानंद नामक संगरूर का एक कारोबारी भी मौजूद था. वह अपने 4-5 कारोबारी साथियों के साथ दिल्ली माल लेने के लिए आया था. हर समस्या का समाधान होता है. इस बात पर यकीन रखते हुए सत्यानंद बस से उतरा और सुनसान पड़े गांव के बंद बाजार में घूमने लगा. 2 शराबी शराब पीने का लुत्फ उठाते हुए एक खाली तख्त पर बैठे उलटीसीधी बक रहे थे.

‘‘क्यों भाई, यहां कोई ढाबा या होटल है?’’ सत्यानंद ने थोड़ी हिम्मत कर के पूछा.

‘‘क्या कोई इमर्जैंसी है?’’ नशे में धुत्त एक शराबी ने सवाल किया.

‘‘तूफान में हमारी बस फंस गई है. हम शाम को दिल्ली से चले थे. अब यहीं आधी रात हो गई है. कुछ खाने को मिल जाता तो…’’ सत्यानंद ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘यह ढाबा है. इसे एक औरत चलाती है. मैं उसे जगाता हूं,’’ वह शराबी बोला.

‘‘साहब, इस समय रोटी, अचार और कच्चे प्याज के सिवा कुछ नहीं मिलेगा,’’ थोड़ी देर में एक जवान औरत ने बिजली का बल्ब जलाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप रोटी और अचार ही दे दें.’’

थोड़ी देर में बस के सभी मुसाफिरों ने रोटी, अचार और प्याज का लुत्फ उठाया. अपने पैसे देने के बाद सत्यानंद ने पूछा, ‘‘चाय मिलेगी क्या?’’

‘‘जरूर मिलेगी,’’ उस औरत ने कहा.

तब तक दूसरे मुसाफिर बस में चले गए थे.

चाय सुड़कते हुए सत्यानंद ने उस औरत की तरफ देखा. वह कड़क जवान देहाती औरत थी.

‘‘साहब, कुछ और चाहिए क्या?’’ उस औरत ने अजीब सी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘क्या मतलब…’’

‘‘आप आराम करना चाहो तो अंदर बिस्तर लगा है,’’ दुकान के पिछवाड़े की ओर इशारा करते हुए उस औरत ने कहा.

सत्यानंद अधेड़ उम्र का था. उसे अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा ‘न्योता’ नहीं मिला था.

एक घंटा ‘आराम’ करने के बाद उन्होंने उस औरत से पूछा, ‘‘क्या दूं?’’

‘‘जो आप की मरजी,’’ उस औरत ने कपड़े पहनते हुए कहा.

100 रुपए का एक नोट उसे थमा कर सत्यानंद बस में आ बैठा. इतनी देर बाद लौटने पर दूसरे मुसाफिर उसे गौर से देखने लगे. सुबह होने के बाद ही बस आगे बढ़ी. सत्यानंद ने संगरूर बसस्टैंड से घर के लिए रिकशा किया. भाड़ा चुकाने के लिए जब उस ने अपनी कमीज की जेब में हाथ डाला तो जेब में कुछ भी नहीं था. पैंट की जेब में से पर्स निकाला, पर वह भी खाली था. हाथ में बंधी घड़ी भी नदारद थी. सत्यानंद ने पत्नी से पैसे ले कर रिकशे का भाड़ा चुकाया. उस भोलीभाली दिखती देहाती औरत ने पता नहीं कब सब पर हाथ साफ कर दिया था. जेब में 500 रुपए थे. पर्स में 7,000 रुपए और 5,000 रुपए की घड़ी थी. कड़क रोटियों के साथसाथ उस कड़क औरत के जिस्म का स्वाद सत्यानंद जिंदगी में कभी भूल नहीं पाएगा. Hindi Stories

Hindi Stories: अनोखा सबक – टीकाचंद के किस बात से दारोगाजी हैरान रह गए

Hindi Stories: सिपाही टीकाचंद बड़ी बेचैनी से दारोगाजी का इंतजार कर रहा था. वह कभी अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखता, तो कभी थाने से बाहर आ कर दूर तक नजर दौड़ाता, लेकिन दारोगाजी का कहीं कोई अतापता न था. वे शाम के 6 बजे वापस आने की कह कर शहर में किसी सेठ की दावत में गए थे, लेकिन 7 बजने के बाद भी वापस नहीं आए थे. ‘शायद कहीं और बैठे अपना रंग जमा रहे होंगे,’ ऐसा सोच कर सिपाही टीकाचंद दारोगाजी की तरफ से निश्चिंत हो कर कुरसी पर आराम से बैठ गया.

आज टीकाचंद बहुत खुश था, क्योंकि उस के हाथ एक बहुत अच्छा ‘माल’ लगा था. उस दिन के मुकाबले आज उस की आमदनी यानी वसूली भी बहुत अच्छी हो गई थी. आज उस ने सारा दिन रेहड़ी वालों, ट्रक वालों और खटारा बस वालों से हफ्ता वसूला था, जिस से उस के पास अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उन पैसों में से टीकाचंद आधे पैसे दारोगाजी को देता था और आधे खुद रखता था.

सिपाही टीकाचंद का रोज का यही काम था. ड्यूटी कम करना और वसूली करना… जनता की सेवा कम, जनता को परेशान ज्यादा करना. सिपाही टीकाचंद सोच रहा था कि इस आमदनी में से वह दारोगाजी को आधा हिस्सा नहीं देगा, क्योंकि आज उस ने दारोगाजी को खुश करने के लिए अलग से शबाब का इंतजाम कर लिया है.

जिस दिन वह दारोगाजी के लिए शबाब का इंतजाम करता था, उस दिन दारोगाजी खुश हो कर उस से अपना आधा हिस्सा नहीं लेते थे, बल्कि उस दिन का पूरा हिस्सा उसे ही दे देते थे. रात के तकरीबन 8 बजे तेज आवाज करती जीप थाने के बाहर आ कर रुकी. सिपाही टीकाचंद फौरन कुरसी छोड़ कर खड़ा हो गया और बाहर की तरफ भागा.

नशे में चूर दारोगाजी जीप से उतरे. उन के कदम लड़खड़ा रहे थे. आंखें नशे से बुझीबुझी सी थीं. उन की हालत से तो ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने शराब पी रखी हो, क्योंकि चलते समय उन के पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे. उन के होंठों पर पुरानी फिल्म का एक गाना था, जिसे वे बड़े रोमांटिक अंदाज में गुनगुना रहे थे. दारोगाजी गुनगुनाते हुए अंदर आ कर कुरसी पर ऐसे धंसे, जैसे पता नहीं वे कितना लंबा सफर तय कर के आए हों.

सिपाही टीकाचंद ने चापलूसी करते हुए दारोगाजी के जूते उतारे. दारोगाजी ने सामने रखी मेज पर अपने दोनों पैर रख दिए और फिर पैरों को ऐसे अंदाज में हिलाने लगे, जैसे वे थाने में नहीं, बल्कि अपने घर के ड्राइंगरूम में बैठे हों. दारोगाजी ने अपनी पैंट की जेब में से एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला और फिल्मी अंदाज में सिगरेट को अपने होंठों के बीच दबाया, तो सिपाही टीकाचंद ने अपने लाइटर से दारोगाजी की सिगरेट जला दी.

‘‘साहबजी, आज आप ने बड़ी देर लगा दी?’’ सिपाही टीकाचंद अपनी जेब में लाइटर रखते हुए बोला. दारोगाजी सिगरेट का लंबा कश खींच कर धुआं बाहर छोड़ते हुए बोले, ‘‘टीकाचंद, आज माहेश्वरी सेठ की दावत में मजा आ गया. दावत में शहर के बड़ेबड़े लोग आए थे. मेरा तो वहां से उठने का मन ही नहीं कर रहा था, लेकिन मजबूरी में आना पड़ा.

‘‘अच्छा, यह बता टीकाचंद, आज का काम कैसा रहा?’’ दारोगाजी ने बात का रुख बदलते हुए पूछा. ‘‘आज का काम तो बस ठीक ही रहा, लेकिन आज मैं ने आप को खुश करने का बहुत अच्छा इंतजाम किया है,’’ सिपाही टीकाचंद ने धीरे से मुसकराते हुए कहा, तो दारोगाजी के कान खड़े हो गए.

‘‘कैसा इंतजाम किया है आज?’’ दारोगाजी बोले. ‘‘साहबजी, आज मेरे हाथ बहुत अच्छा माल लगा है. माल का मतलब छोकरी से है साहबजी, छोकरी क्या है, बस ये समझ लीजिए एकदम पटाखा है, पटाखा. आप उसे देखोगे, तो बस देखते ही रह जाओगे. मुझे तो वह छोकरी बिगड़ी हुई अमीरजादी लगती है,’’ सिपाही टीकाचंद ने कहा.

उस की बात सुन कर दारोगाजी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. ‘‘टीकाचंद, तुम्हारे हाथ वह कहां से लग गई?’’ दारोगाजी अपनी मूंछों पर ताव देते हुए बोले.

दारोगाजी के पूछने पर सिपाही टीकाचंद ने बताया, ‘‘साहबजी, आज मैं दुर्गा चौक से गुजर रहा था. वहां मैं ने एक लड़की को अकेले खड़े देखा, तो मुझे उस पर कुछ शक हुआ. ‘‘जिस बस स्टैंड पर वह खड़ी थी, वहां कोई भला आदमी खड़ा होना भी पसंद नहीं करता है. वह पूरा इलाका चोरबदमाशों से भरा हुआ है.

‘‘उस को देख कर मैं फौरन समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है. उस के आसपास 2-4 लफंगे किस्म के गुंडे भी मंडरा रहे थे. ‘‘मैं ने सोचा कि क्यों न आज आप को खुश करने के लिए उस को थाने ले चलूं. ऐसा सोच कर मैं फौरन उस के पास जा पहुंचा.

‘‘मुझे देख कर वहां मौजूद आवारा लड़के फौरन वहां से भाग लिए. मैं ने उस लड़की का गौर से मुआयना किया. ‘‘फिर मैं ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘कौन हो तुम? और यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह मुझे घूरते हुए बोली, ‘यहां अकेले खड़ा होना क्या जुर्म है?’ ‘‘उस का यह जवाब सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है और आसानी से कब्जे में आने वाली नहीं.

‘‘मैं ने नाम पूछा, तो वह कहने लगी, ‘मेरे नाम वारंट है क्या?’ ‘‘वह बड़ी निडर छोकरी है साहब. मैं जो भी बात कहता, उसे फौरन काट देती थी.

‘‘मैं ने उसे अपने जाल में फंसाना चाहा, लेकिन वह फंसने को तैयार ही नहीं थी. ‘‘आसानी से बात न बनते देख उस पर मैं ने अपना पुलिसिया रोब झाड़ना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से उस पर मेरे रोब का असर हुआ. मैं ने उस पर 2-4 उलटेसीधे आरोप लगा दिए और थाने चलने को कहा, लेकिन थाने चलने को वह तैयार ही नहीं हुई. ‘‘मैं ने कहा, ‘थाने तो तुम्हें जरूर चलना पड़ेगा. वहां तुम से पूछताछ की जाएगी. हो सकता है कि तुम अपने दोस्त के साथ घर से भाग कर यहां आई हो.’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह बौखला गई और मुझे धमकी देते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे थाने ले जा कर तुम बहुत पछताओगे, मेरी पहुंच ऊपर तक है.’ ‘‘छोकरी की इस धमकी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसी धमकी सुनने की हमें आदत सी पड़ गई है…

‘‘पता नहीं, आजकल जनता पुलिस को क्या समझती है? हर कोई पुलिस को अपनी ऊंची पहुंच की धमकी दे देता है, जबकि असल में उस की पहुंच एक चपरासी तक भी नहीं होती. ‘‘मैं धमकियों की परवाह किए बिना उसे थाने ले आया और यह कह कर लौकअप में बंद कर दिया कि थोड़ी देर में दारोगाजी आएंगे. पूछताछ के बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा.

‘‘जाइए, उस से पूछताछ कीजिए, बेचारी बहुत देर से आप का इंतजार कर रही है,’’ सिपाही टीकाचंद ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा. दारोगाजी के होंठों पर मुसकान तैर गई. उन की मुसकराहट में खोट भरा था. उन्होंने टीकाचंद को इशारा किया, तो वह तुरंत अलमारी से विदेशी शराब की बोतल निकाल लाया और पैग बना कर दारोगाजी को दे दिया.

दारोगाजी ने कई पैग अपने हलक से नीचे उतार दिए. ज्यादा शराब पीने से उन का चेहरा खूंख्वार हो गया था. उन की आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं. वह लुंगीबनियान पहन लड़खड़ाते कदमों से लौकअप में चले गए. सिपाही टीकाचंद ने फुरती से दरवाजा बंद कर दिया और वह बैठ कर बोतल में बची हुई शराब खुद पीने लगा.

दारोगाजी को कमरे में घुसे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि उन के चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. सिपाही टीकाचंद ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला, तो दारोगाजी उस के ऊपर गिर पड़े. उन का हुलिया बिगड़ा हुआ था.

थोड़ी देर पहले तक सहीसलामत दारोगाजी से अब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. उन का सारा मुंह सूजा हुआ था. इस से पहले कि सिपाही टीकाचंद कुछ समझ पाता, उस के सामने वही लड़की आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘देख ली अपने दारोगाजी की हालत?’’ ‘‘शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को. सरकार तुम्हें यह वरदी जनता की हिफाजत करने के लिए देती है, लेकिन तुम लोग इस वरदी का नाजायज फायदा उठाते हो,’’ लड़की चिल्लाते हुए बोली.

लड़की एक पल के लिए रुकी और सिपाही टीकाचंद को घूरते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बदतमीजी का मजा मैं तुम्हें वहीं चखा सकती थी, लेकिन उस समय तुम ने वरदी पहन रखी थी और मैं तुम पर हाथ उठा कर वरदी का अपमान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि यह वरदी हमारे देश की शान है और हमें इस का अपमान करने का कोई हक नहीं. पता नहीं, क्यों सरकार तुम जैसों को यह वरदी पहना देती है?’’ लड़की की इस बात से सिपाही टीकाचंद कांप उठा.

‘‘जातेजाते मैं तुम्हें अपनी पहुंच के बारे में बता दूं, मैं यहां के विधायक की बेटी हूं,’’ कह कर लड़की तुरंत थाने से बाहर निकल गई. सिपाही टीकाचंद आंखें फाड़े खड़ा लड़की को जाते हुए देखता रहा.

दारोगाजी जमीन पर बैठे दर्द से कराह रहे थे. उन्होंने लड़की को परखने में भूल की थी, क्योंकि वह जूडोकराटे में माहिर थी. उस ने दारोगाजी की जो धुनाई की थी, वह सबक दारोगाजी के लिए अनोखा था.

Love Story: अंधेरे में डूबी जिंदगी

   लेखक – अशोक कुमार प्रजापति, Love Story:  मिताली ने मेरी मंगेतर होते हुए भी मेरे लिए वह कुछ किया था, जो मांबाप भी नहीं कर सकते थे. लेकिन सूर्यबाला के चक्कर में मैं ने उसे इतना बड़ा धोखा दिया कि मेरी जिंदगी ही मेरे लिए धोखा बन गई. बात उन दिनों की है जब मैं भी लाखों युवकों की तरह बेरोजगार था और एक अदद नौकरी की तलाश में दिल्ली की सड़क से ले कर गलियों तक की खाक छान रहा था. नवंबर के शुरुआती दिन थे. खाड़ी देश से मिताली के भेजे रुपए लगभग खत्म हो चुके थे. मतलब जल्दी ही मेरे फाकाकशी के दिन शुरू होने वाले थे. थकहार कर कनाट प्लेस के पालिका बाजार की कछुए की पीठ जैसी उथली पश्चिमी ढलान पर बैठ कर सितारों भरे आसमान को देखना मेरी कई फालतू आदतों में शुमार था. यह काम मैं बिना नागा करता था.

भीड़भाड़ से थोड़ा अलग इन चमकते आकाशीय पिंडों से बातें करना मुझे अनोखा सुकून देता था. मुझे दिन की अपेक्षा रातें कुछ ज्यादा लुभाती थीं. कभीकभी मैं सोचता कि रातें तो तारे गिनने के लिए होती हैं, जबकि लोग इस बढि़या काम से विमुख हो कर अपनेअपने दड़बों में बंद हो कर विभिन्न कामों में वक्त जाया करते हैं.

खैर, मैं ही कौन सा तुर्रम खां था कि तारे गिन डाले हों. मैं न तो कोई ‘एस्ट्रोलोजर’ था और न ही मुझे ऐसे बेढब आकाशीय पिंडों की खोज करनी थी, जो निकट भविष्य में धरती को नेस्तनाबूद करने के लिए इस की ओर भागे आ रहे हों. यह काम तो खगोलवेत्ताओं का है, जो आकाश पर आंख जमाए रातदिन ब्रह्मांड में टकटकी लगाए रहते हैं. बहरहाल, उस सुहानी शाम को भूखे पेट मैं सिर्फ यही कामना कर रहा था कि चांद अपने ही शक्ल की बेहिसाब रोटियां धरती पर फेंके या फिर पास की चमचमाती सड़क पर खनखनाते हुए चांदी के सिक्के बरस पड़े या तारे पिघल कर हीरेमोती में तब्दील हो जाएं और महुए की तरह टपकने लगें. मैं खाहमख्वाह नामुमकिन ख्यालों में खोया था. वैसे खुली आंखों से ख्वाब देखने के लिए वह जगह बुरी नहीं थी.

शाम के धुंधलके में पेड़ों की छाया और झाडि़यों के पीछे रूपसियों की रूमानी हरकतें शुरू हो गई थीं. लोहे के पाइपों पर लगे रोशनी के गोलाकार लैंप जल उठे थे. लोग अपनेअपने भावशून्य चेहरे संभाले कठपुतलियों की तरह इधरउधर आजा रहे थे. पार्क धीरेधीरे खाली होता जा रहा था, सिर्फ मुझ जैसे चंद निखट्टू मिट्टी के लोंदे की तरह जहांतहां पसरे पड़े थे. मेरी नजरें नीली जींस और झकाझक सफेद टौप पहने एक युवती पर जमी थीं. वह भी रहरह कर तिरछी निगाहों से मुझे देख लेती थी. लग रहा था जैसे शाम की ठंडाती हवा को अपनी बांहों में समेटे वह किसी की प्रतीक्षा में खड़ी हो.

अचानक आइस्क्रीम पार्लर से शंकुनुमा आइस्क्रीम खरीद कर खाते हुए वह लापरवाही से पालिका बाजार की ओर चली आई. मैं चारों ओर से खुद को समेटे जेब में पड़े सिर्फ 5 सौ रुपए के नोट को खर्चने के अर्थशास्त्र से जूझने लगा. अगले हफ्ते तक मिताली ने अगर खाते में 8-9 हजार रुपए न डाले तो मकानमालिक मेरा सामान सड़क पर फेंक देगा. इस के बाद बेटिकट यात्रा कर के गांव पहुंचने के अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं रहेगा. मेरा संघर्ष अंतहीन होता जा रहा था.

मिताली मेरी मंगेतर थी. वह बगदाद के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी. वह एक साल के अनुबंध पर वहां गई थी. लौट कर आने पर हमारी शादी होने वाली थी. उसी की सलाह पर मैं नौकरी की तलाश में दिल्ली आया था. मैं सायकोलौजी से पोस्टग्रेजुएट था, वह भी यूनिवर्सिटी टौपर गोल्ड मेडलिस्ट. लेकिन यह सब किसी काम का साबित नहीं हो रहा था. रोटी के लिए मेडल बेचने की नौबत आती दिख रही थी. मेडल का कोई बाजार भाव था या वह भी फालतू चीज थी, बाजार से ही पता चल सकता था.

‘‘दिल्ली में बहुत गरमी पड़ती है?’’ पीछे से खनकती आवाज आई तो मैं ने पलट कर देखा. आइस्क्रीम ले कर जाने वाली वही लड़की मेरे पीछे खड़ी थी.

‘‘हां, यह तो है, लेकिन दिल्ली में गरमी से राहत देने वाली चीजें भी खूब मिलती हैं.’’ मैं ने उस की बात के जवाब में कहा.

‘‘आप तो बड़े दिलचस्प आदमी लगते हैं.’’ अजीब सी नजरों से घूरते हुए वह मेरे बगल में बैठ गई.

‘‘और आप उतनी ही दिल्लगी पसंद भद्र युवती.’’

‘‘यह जगह है ही बड़ी रोमांटिक, आप का क्या ख्याल है?’’

‘‘हां, है तो, शायद आप की खूबसूरती से ही यहां की रूमानियत जिंदा है.’’ मैं कुछ गलत तो नहीं कह रहा?’’

मेरी इस बात पर वह लड़की शरमा कर झेंप गई. ऐसी ही बातों में हम ने लगभग घंटा समय गुजार दिया. इस बीच हमारे बीच तमाम तरह की बातें हुईं, परिचय भी. मुझे वह बड़े जटिल चरित्र की लड़की लग रही थी.

‘‘रात बहुत हो गई है, अब हमें ‘रोटी’ रेस्टोरेंट चलना चाहिए, कुछ खानापीना हो जाए न.’’ वह एकाएक इस तरह बोली जैसे घंटे भर की रोमांटिक बातों से मेरा जी बहलाने के बदले अपना मेहनताना मांग रही हो.

उस की इस चौंकाने वाली सलाह पर मेरे ऊपर बज्रपात सा हुआ. ‘रोटी’ जाने का मतलब था 7-8 सौ रुपए खर्च होना. जबकि मेरी जेब में सिर्फ 5 सौ रुपए का एक नोट था. 30-40 रुपए फुटकर भी रहे होंगे. मुझे आनंद विहार जाने वाली अंतिम मैट्रो भी पकड़नी थी.

‘‘मैं रोटी नहीं खाता. हमारे यहां लोग सुबहशाम भात खाते हैं. वैसे भी मैं ने पिज्जा खा लिया है, इसलिए अब कुछ खाने का मन नहीं है.’’ मैं ने उस बला से छुटकारा पाने की कोशिश में कहा.

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. दिल्ली में बेरोजगारों को बहुत भूख लगती है, वह भी कई तरह की. तुम ने अभीअभी बताया है कि तुम बेरोजगार हो.’’

‘‘केवल बेरोजगार ही नहीं, बिना किसी ठौरठिकाने का भी. मुझे रातें यहीं कहीं फुटपाथ पर गुजारनी है, सो कहीं जाने की जल्दी नहीं है. इसलिए कृपया आप जाइए, आप को देर हो रही होगी. देर रात तक लड़कियों का घर से बाहर रहना वैसे भी सुरक्षित नहीं है.’’ मैं ने पिंड छुड़ाने की गरज से बहाना बनाते हुए कहा.

‘‘लड़कियों जैसे नखरे मत दिखाओ. मुझे भूख लगी है, सो तुम्हें चलना ही पड़ेगा. आखिर हम घंटे भर पुराने दोस्त हैं, मेरी खातिर इतना भी नहीं कर सकते? अब इस पर भी नहीं माने तो मैं शोर मचा दूंगी कि तुम मेरे साथ छेड़खानी कर रहे हो. तुम जानते ही हो कि रेप कांड को ले कर दिल्ली सहित पूरे देश में लोग किस तरह उबल रहे हैं.’’ उस ने कुटिलता से मुसकराते हुए मेरी चेतना को झकझोर दिया.

‘‘बात यह है मिस कि मेरी जेब में सिर्फ 5 सौ रुपए ही हैं और इसी से न जाने कब तक मुझे काम चलाना पड़े. ऐसे में मैं किसी होटल रेस्टोरेंट की गद्दीदार कुर्सी पर बैठ कर गुलछर्रे उड़ाने की बिलकुल नहीं सोच सकता. और ‘रोटीबोटी’ खाने के बाद होटल वालों के जूते खाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है. 5 सौ का नोट ले कर मजनुओं के इस टीले पर दिल्ली के रंगीन नजारों का लुत्फ उठाने के लिए आ कर बैठ गए हो. कोई बात नहीं. मेरे पास पैसे हैं, आज तुम्हें मेरा साथ देना ही होगा. लाखों की आबादी वाली इस बेदिल दिल्ली में मैं निहायत अकेली हूं. तनहाई काटने को दौड़ती है. तुम मेरी मजबूरी समझते क्यों नहीं?’’ उदासी से उस ने कहा, ‘‘और हां, मैं रेडलाइट वाली पंछी नहीं हूं, जैसे कि तुम्हारे दिल में खयाल आ रहे होंगे.’’

कुछ मिनट बाद मैं ऊहापोह की स्थिति में उस की तलहथी की मुलायमियत का अनुभव करते हुए धीरेधीरे ‘रोटी’ की ओर चला जा रहा था. सड़क के दोनों ओर अंगे्रजों के जमाने की बनी इमारतों के बुर्ज में कबूतर आशियाना बनाए दुबके बैठे थे. इन पुरानी इमारतों में अजीब तरह की जर्जर भव्यता व्याप्त थी, जो अब इन की विशिष्ट पहचान बन चुकी थी.

‘‘रात गहरा चुकी है. मैं अकेली हूं, तुम चाहो तो मेरे फ्लैट पर रात बिता सकते हो, इतनी रात गए वैसे भी उतनी दूर जाना ठीक नहीं है. दिल्ली में इन दिनों कुछ भी सुरक्षित नहीं है.’’ रोटी रेस्टोरेंट से निकलते ही उस ने बड़ी साफगोई से कहा.

थोड़ी नानुकुर के बाद मैं उस के साथ औटो में बैठ गया. इस के बाद हम दोनों की खूब जम गई. नतीजतन मेरी कई रातें सूर्यबाला के फ्लैट पर गुजरीं. जल्दी उस का एक जोड़ी नाइट सूट मेरे र्क्वाटर पर भी रखा रहने लगा. इसी सब के चलते एक व्यस्त दोपहर को मिताली ने फोन द्वारा सूचना दी कि उस की एक सहेली का कांट्रैक्ट पूरा हो गया है. वह इंडिया जा रही है. उस के हाथों वह मेरे लिए एक उपहार और कुछ सूखे मेवे भेज रही है, दिल्ली रेलवे स्टेशन से ‘कलेक्ट’ कर लूं. मैं ने ऐसा ही किया. मिताली का भेजा गिफ्ट मुझे मिल गया. कमरे पर आ कर मैं ने पैकेट खोला तो उस में एक कीमती मोबाइल फोन था, जिस में ढेर सारे नए फीचर मौजूद थे. नेट और फेसबुक के साथसाथ फोटो भेजने वाली सुविधा भी थी. मिताली ने मेरे लिए एक पत्र भी भेजा था. जिस में उस ने लिखा था कि उस ने गुड़गांव में 70 लाख का एक फ्लैट बुक करा लिया है. उस की किस्तें भी कटने लगी हैं. लेकिन उसे दूसरे तरीके से इस की कीमत चुकानी पड़ेगी.

दरअसल, इस के लिए उस ने 2 साल के लिए अपना कांट्रैक्ट बढ़वा लिया था, जिस से कर्ज अधिक से अधिक भरा जा सके. वह शादी के बाद नए फ्लैट में रहने का अरमान पाले हुए थी. मुझे ‘नेट’ की तैयारी करने की सख्त हिदायत के साथ उस ने आश्वस्त किया था कि जरूरत पड़े तो मैं कोचिंग ज्वाइन कर लूं, पैसे वह भेज देगी. सूर्यबाला को मैं ने ये बातें जानबूझ कर नहीं बताईं. मैं अपने रोमांस और रोमांच भरे आनंदमय जीवन का इतनी जल्दी अंत नहीं करना चाहता था. सूर्यबाला के भी दिन अच्छे नहीं चल रहे थे. वह अपनी प्यारी अम्मा की दयादृष्टि पर दिल्ली में रह रही थी. सूर्यबाला के 27वें जन्मदिन पर मैं ने अपनी मंगेतर द्वारा भेजा गया फोन उसे भेंट कर दिया. मेरे लिए वह किसी काम का था भी नहीं. उसे रिचार्ज कराने के लिए मेरे पास पैसे ही नहीं होते थे.

सूर्यबाला के 27वें जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए मैं ने उसे साथ ले कर नवंबर की उस सुबह काठगोदाम जाने वाली गाड़ी पकड़ ली और नैनीताल पहुंच गया. हमारा तीन दिन का प्रोग्राम था. वहां एक ठंडी शाम में हम नैनी झील के किनारे नैना देवी मंदिर की एक संगमरमरी बेंच पर बैठे पहाड़ से सूर्य का लुढ़कना देख रहे थे. उस के पहाड़ के पीछे छिपने के बाद भी घाटी आलोकित रही, हवा के झोंके झील को स्पर्श करते हुए मल्लीताल की ओर चले जा रहे थे.

‘‘एक बात बताओ सूर्यबाला, तुम ने ऐसी कौन सी गलती कर दी कि तुम्हारे पिता ने एकाएक तुम्हें पैसे देने बंद कर दिए?’’

‘‘पापा मुझे सिविल सेवा में भेजना चाहते थे. मैं पढ़ाई में साधारण थी, इस के बावजूद बोर्ड में जुगाड़ से मेरे अच्छे नंबर आ गए थे. लेकिन नंबरों का प्रतिशत कम होने की वजह से मेरा एडमीशन किसी नामी गिरामी कालेज में नहीं हो सका. परिणामस्वरूप मुझे डीयू के नार्थ ब्लाक के एक साधारण से कालेज में एडमीशन ले कर पढ़ाई करनी पड़ी.

‘‘ग्रैजुएशन के बाद मैं महत्त्वाकांक्षी बाप के दबाव में सिविल सर्विस की तैयारी करने लगी. लाख कोशिश के बाद भी मैं प्रारंभिक परीक्षा तक नहीं पास कर सकी. मेरी असफलता से नाराज हो कर पापा ने एक अरबपति सांसद के बेटे से मेरी शादी तय कर दी. शादी का यह सौदा 3 करोड़ में तय हुआ था.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात थी. बाप अरबपति था तो लड़का भी कम से कम करोड़पति तो रहा ही होगा. स्विस बैंक में भी कुछ जमा होंगे. इतना होने के बावजूद समस्या क्या थी? तुम तो वहां ऐश करतीं.’’

‘‘ऐश क्या करती, लड़के पर 3-3 हत्याओं और 2 दुष्कर्म के केस दर्ज थे. उस का एक पैर जेल में तो दूसरा कोर्ट में रहता था. क्या तुम ऐसे लड़के के साथ शादी की सलाह दे सकते हो?’’

‘‘कदापि नहीं, लेकिन यहां मामला कुछ अलग है. ऐसे लोगों के लिए यह अपराध नहीं है. उन के लिए यह राजनीतिक जीवन की योग्यता है. ऐसे लोगों के खिलाफ कभी गवाहसबूत नहीं मिलते, सो सजा भी नहीं होती. अगर सजा हो भी गई तो तुम्हारे ऊपर क्या फर्क पड़ता, उस की दौलत की मालकिन तो तुम ही होती न, इस दुनिया में मर्दों की कमी तो है नहीं?’’

‘‘बात यहीं खत्म नहीं हुई थी सुशांत. मेरे पिता ने मेरे बौयफ्रैंड के हाथपैर तुड़वा दिए थे. वह बेचारा आज तक लापता है. पता नहीं जीवित भी है या नहीं? मैं इस घटना के बाद डिप्रेस हो गई थी और शादी से साफ मना कर दिया था. बस उस के बाद उन्होंने मुझे खर्च देना बंद कर दिया था. मम्मी चोरीछिपे कुछ पैसे भेज देती हैं.’’

तुम्हारी कहानी तो बड़ी ही दुखद है सूर्यबाला. खैर, तुम्हारा एक अंतिम चांस बचा है, तुम तैयारी शुरू कर लो. जनरल और औप्शनल पेपर की कोचिंग कर लो. सायकोलौजी मैं तैयार करा दूंगा.’’

‘‘क्या मास्टर डिग्री में तुम्हारा सब्जेक्ट सायकालौजी रहा है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, मैं यूनिवर्सिटी टौपर हूं और गोल्डमेडलिस्ट भी. मेरे पास अच्छे नोट्स हैं.’’

‘‘अरे, पहले कभी नहीं बताया?’’ वह प्यार से मेरे सीने पर मुक्का जमा कर बोली.

‘‘लेकिन कोचिंग के लिए 78 हजार रुपए कहां से आएंगे?’’

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. उस का इंतजाम मैं कर लूंगा.’’

‘‘तो ठीक है, मैं एक कोशिश और करती हूं. तुम्हारे साथ होने से शायद सफलता मिल ही जाएं.’’

मैं ने मिताली से नेट की तैयारी के लिए कोचिंग करने की इच्छा जताई तो अगले सप्ताह ही उस ने मेरे खाते में 90 हजार रुपए डलवा दिए. मैं ने पैसे सूर्यबाला को दे दिए. इस के बाद उस ने कोचिंग ज्वाइन कर ली और मैं शिक्षा व्यवस्था को कोसता घर पर ही तैयारी करने लगा. इस बीच मैं ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली थी. 15 हजार हर महीने वेतन का एग्रीमेंट हुआ था. लेकिन बेईमान स्कूल प्रबंधन सिर्फ 12 हजार रुपए ही देता था. जो कुछ मिल रहा था, कम से कम इस से मेरी बेरोजगारी कुछ हद तक दूर हो गई थी, साथ ही मेरी मटरगश्ती पर बे्रक भी लग गई थी. तारों की गिनती भूल गया था और चांद भी मेरे आकाश से कब का गायब हो गया था.

परीक्षा समाप्त होने पर सूर्यबाला मेरे साथ रहने लगी. मैं स्कूल से लौटता तो वह युवाओं के आजकल के खिलौने से खेलती मिलती. वह उस में इस तरह डूबी रहती कि मेरे कदमों की आहट तक उसे सुनाई न देती. खाते समय या बिस्तर पर वह बताती रहती कि उस ने आज कहांकहां, कितनों को एड किया, उस की पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया. उस के लाइक करने वालों की संख्या 25 हजार के ऊपर हो चुकी थी और उस के डेढ़ हजार फालोवर थे. दुनिया का शायद ही कोई देश बचा हो, जहां उस के स्त्रीपुरुष मित्र न रहे हों. उन दिनों वह उसी में खोई रहती थी. मैं रोजाना उस में आने वाले बदलावों को समझने की नाकाम कोशिश कर रहा था. हमारे बीच का शारीरिक आकर्षण और यौन आवेश लगभग ठंडा पड़ चुका था. उपहार में उसे मोबाइल देना मुझ पर भारी पड़ता जा रहा था.

गरमी की छुट्टियां चल रही थीं. मेरा अधिकतर समय घर पर ही बीत रहा था. उन्हीं दिनों इराक में शिया अलगावादियों ने अपने ही देश के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. कई शहर और तेल कुओं पर उन का कब्जा हो गया था. वे तेजी से बगदाद की ओर बढ़ रहे थे. सारे संपर्क लगभग टूट चुके थे. कई दिनों की लगातार कोशिश के बाद मिताली से कुछ मिनट के लिए संपर्क हुआ. मैं ने उसे सब कुछ छोड़ कर जितनी जल्दी हो सके, किसी तरह घर लौट आने की सलाह दी. लेकिन उधर से सिर्फ उस की गहरी सिसकियां सुनाई देती रहीं.

कुछ मिनट बाद संपर्क फिर से टूट गया. अगले दिन अखबार में खबर आई कि जिस अस्पताल में वह नौकरी करती थी, उस के बाहर भारी गोलाबारी हो रही थी. नर्सें बेसमेंट में छिपी थी. 2 दिनों बाद पता चला कि नर्सों को विद्रोही अगवा कर के कहीं दूसरी जगह ले जा रहे थे. चिंता के मारे मेरी रातों की नींद उड़ गई थी. मैं अपना यह दुख सूर्यबाला से शेयर भी नहीं कर सकता था. मुझे उदास देख कर वह भी उदास हो जाती थी. लेकिन उस ने मेरी उदासी का कारण नहीं पूछा.

चंद दिनों बाद एक अखबार ने रहस्योद्घाटन किया कि कुछ नर्सें इसलिए वापस नहीं आना चाहतीं, क्योंकि उन्होंने बड़े शहरों में फ्लैट के लिए भारी कर्ज ले रखा है और गल्फ कंट्री की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी के बगैर उन का कर्ज अदा करना संभव नहीं है. गोलीबारी में 2 नर्सें मारी भी गई थीं. घायल तो कई नर्सें हुई थीं. अपने घर वालों के दबाव में ज्यादातर नर्सें लौटना चाहती थीं. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की नीति के अनुसार, इराकी सरकार की मदद के लिए फौज भेजने के निर्णय के बाद तो स्थिति और भी विस्फोटक हो गई, हालात बिगड़ने लगे थे.

इसी बीच भारत सरकार की मदद से तमाम लोग वापस भी आ गए थे. उन से भी कोई पक्की खबर नहीं मिल सकी थी. वहां के समाचार के लिए हम पूरी तरह से मीडिया के मोहताज थे. मिताली और मेरे परिवार वाले भी परेशान थे. लोग सरकार से लगातार नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए गुहार लगा रहे थे. इस से अधिक वे लोग कर भी क्या सकते थे? मेरे दिन उदासी में कट रहे थे. उसी बीच एक दिन सूर्यबाला ने खुशखबरी सुनाई कि वह प्रारंभिक परीक्षा में पास हो गई थी. उस दिन हमारे सपनों को पंख लग गए थे. हालांकि वे पंख इतने मजबूत नहीं थे कि मैं उन की बदौलत आकाश की असीम ऊंचाइयों तक उड़ान भर सकूं. हम ने यादगार बनाने के लिए वह शाम एक पांचसितारा होटल में बिताई. एग्जाम की कौपी जांचने के मानदेय रूप में मिले 8 हजार रुपए वहां हवा हो गए.

4 दिनों बाद खबर छपी कि अगवा भारतीय नर्सों का उपयोग विद्रोही ढाल के रूप में कर रहे हैं. उन्होंने धमकी दी थी कि अगर उन पर अमेरिकी या पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य कारवाई की गई तो वे उन्हें मार डालेंगे. यह खबर पढ़ कर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. परिवार वालों के होश फाख्ता हो गए. नर्सों को न जाने कितनी मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जा रही होंगी. मैं उस दिन को कोसने लगा, जब मंगनी के 2 दिनों बाद ही मिताली बगदाद जाने की जिद करने लगी थी. मेरे लाख मना करने के बावजूद कसमोंवादों की घुट्टी पिला कर वह अपनी महत्वाकांक्षा की भारी भरकम गठरी लिए दूर देश चली गई थी. जैसेतैसे दिन तनावपूर्ण वातावरण में कट रहे थे. नर्सों की वापसी की उम्मीद धूमिल पड़ती जा रही थी. मैं भीषण मानसिक द्वंद्व में जी रहा था, साथ ही बड़ी निर्लज्जता से सोच रहा था कि मिताली का जो भी होना हो, जरा जल्दी हो जाए.

उन दिनों मेरा सारा ध्यान सूर्यबाला पर केंद्रित होता जा रहा था. हालांकि एक अनजान डर दिल में बसा था. सूर्यबाला की बोल्डनेस और एकदम खुले विचार पर मैं मुग्ध था. उस की अत्याधुनिक पश्चिमी सोच का कोई भी कायल हो सकता था. संकीर्णता उस के दिमाग में रत्ती भर भी नहीं दिखाई देती थी. उस की मुसकराहट ऐसी थी कि दुश्मन भी फिदा हो जाए. नेट क्वाईलीफाई करते ही मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर जा पहुंचा. फटाफट मैं ने 6-7 जगहों पर प्रवक्ता के लिए आवेदन कर दिया था. सूर्य बाला मुख्य परीक्षा की तैयारी में लगी थी. उस के हिस्से की घरेलू जिम्मेदारी मैं ने अपने जिम्मे ले ली थी. खाना बनाने से ले कर उस के कपड़े तक मैं धोता था. मैं चाहता था कि अंतिम चांस में वह निश्चित रूप से सफलता हासिल कर ले.

वक्त अपनी गति से बीत रहा था. जाड़ा, गरमी और बरसात अपनेअपने तामझाम के साथ आतेजाते रहे. बगदाद से किसी भी तरह की खबर मिलनी बंद हो चुकी थी. मीडिया वाले ऊब चुके थे. हम पर निराशा के बादल गहराते जा रहे थे. सूर्यबाला का अधिकतर समय बाहर घूमनेफिरने या नेट पर चैट में गुजरता था. धीरेधीरे हमारे बिस्तर अलग हो गए. हम मशीनी जिंदगी से ऊब से गए थे. एक शाम लंबे अंतराल के बाद हम दोनों आमनेसामने बैठे थे. उस ने अपने हाथों को कैंची की तरह बांध रखा था. उस के खुले चमकीले रेशमी बाल लहरा रहे थे. उस के चेहरे पर एक बेबसी भरी लाचारी छाई थी.

मैं ने बात शुरू करने की गरज से कहा, ‘‘आज रात की हवा में ठंडक है, अक्तूबर बीता जा रहा है.’’ मैं सोचता हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए या यह कहें कि अपने रिश्ते को नाम दे दिया जाए.

‘‘आज यह बचकाना विचार तुम्हारे दिमाग में कहां से आ गया.’’ उस ने कहा.

‘‘देखो सूर्यबाला, हमारे बीच अब किसी तरह की दूरी नहीं बची है. फिर शादी तो हमें एक न एक दिन करनी ही है इसलिए जितनी जल्दी हो सके, हमें विवाह कर लेना चाहिए. क्योंकि इस में सब से बड़ी मुश्किल यह है कि हम अलगअलग जाति से हैं, इसलिए तमाम रुकावटें आएंगी.’’

‘‘यह सच है कि हमारे बीच शारीरिक संबंध हैं, लेकिन यह एक तरह की भूख है. किसी भी तरह की भूख को शांत करने के लिए जातिधर्म की बातें एकदम बेमानी हैं. हम ने एक दूसरे को भोगा है और एक जैसा आनंद प्राप्त किया है, सो हिसाबकिताब बराबर रहा. हमारे पास अब खोनेपाने को कुछ नहीं बचा. इस तरह के संबंधों पर हायतौबा मचाना बेकार है. शाम होने को है, घर में सब्जी का एक टुकड़ा नहीं है. इन अर्थहीन बातों में समय गंवाने के बजाय बाजार से सामान लाना ज्यादा महत्वपूर्ण है.’’ सूर्यबाला ने बेरुखी से कहा.

‘‘आई एम सीरियस सूर्यबाला, जबकि तुम मेरी बात का मजाक उड़ा रही हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं. जिस मोड़ पर हम पहुंच चुके हैं, वहां से पीछे लौटना संभव नहीं है.’’ मैं ने मन की बात कह दी.

‘‘लेकिन मैं ऐसी बेतुकी बातों को सीरियसली नहीं लेती. हुंह… प्रेम, हमबिस्तर होने का मतलब कब से प्रेम हो गया? हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है. शारीरिक, आर्थिक या बौद्धिक आकर्षण और स्वार्थ सिद्धि के दांवपेंच को प्रेम कहना उस की तौहीन है. हमारातुम्हारा प्रेम सिर्फ ढोंग है, एक्साइटिंग फन, एक साथ मल्टीपल एंड प्लांड रोमांसभोग का खूब मजेदार और उत्तेजनापूर्ण गेम. इस में थ्रिल भी है और सस्पेंस भी. हमारा रोमांटिक सफर यहीं तक था. इस मोड़ से आगे 2 रास्ते हैं, जिन पर हम अलगअलग चलते हुए अपना सफर जारी रख सकते हैं.’’ उस ने बेबाकी से कहा.

‘‘तुम कल की प्रशासक हो. तुम्हें तो कम से कम ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. ईमानदारी और सचरित्रता एक अच्छे प्रशासक की पहली शर्त है. देश की सेवा का व्रत लेने वाले का चरित्र अनुकरणीय होना चाहिए.’’

‘‘कोई सेवावेवा के लिए सिविल सर्विस में नहीं जाता, मि. सुशांत. उन के दिमाग में दंभपूर्ण और दूर का शातिराना लक्ष्य होता है, पावर और पैसा. सेवा भावना सिर्फ नैतिक पाखंड है, कंप्लीट हिपोक्रेसी. वैसे अपवाद तो सब जगह होते हैं.’’

‘‘तुम सही हो सकती हो, लेकिन वह अलग मसला है. हमारे बीच लंबे समय से शारीरिक संबंध रहे हैं. इसलिए विवाह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बन गई है.’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. तुम भी मेरी तरह कपटपूर्ण जीवन जी रहे हो. आज के अधिकतर युवा गलाकाट प्रतियोगिता में तनावग्रस्त हैं. वे इस से मुक्ति के लिए शराब, सिगरेट और मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो अंततोगत्वा उन्हें बरबाद कर देता है.

‘‘मैं ने शारीरिक संबंध को तनाव दूर करने के लिए खुराक के रूप में प्रयोग किया है और इस काम में बराबर का साथ देने के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देती हूं. इस से अधिक कुछ नहीं है. और तुम यौन संबंध और विवाह को एकदूसरे का पूरक मान बैठे हो. लेकिन इन दोनों में दूरदूर तक कोई संबंध नहीं है.

‘‘जिस्मानी संबंध स्थापित करना एक बात है और उसी पार्टनर से विवाह करना बिलकुल अलग बात होती है. एक का संबंध शारीरिक भूख से है, जबकि दूसरा अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है. भूख की आंच में घृणा, आस्था, विश्वासअंधविश्वास, मानसम्मान सब जल कर खाक हो जाते हैं. विवाह के लिए कई सामाजिक शर्तें होती हैं, जिसे हमतुम पूरा नहीं करते. हम अलगअलग जाति से ताल्लुक रखते हैं. मैं विजातीय विवाह कर के जीवन में किसी तरह का टंटाबखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहती. इसलिए तुम भी इस तरफ सोचना बंद कर दो.’’

इतना कह कर वह सब्जी लाने के लिए थैला ढूंढ़ने किचन में चली गई.

‘‘तो मैं इतने दिनों तक नाहक ही पैसे और वक्त बरबाद करता रहा?’’ उस के वापस आने पर मैं ने पूछा.

‘‘बरबाद करना मत कहो, इंजौय करना कहना उपयुक्त होगा.’’ थैला उठाते हुए उस ने कहा. मानो यह सब उस के प्लान के अनुसार हो रहा था. सूर्यबाला की 2 टूक बातों से मैं भौंचक रह गया था. मेरे दिमाग में जैसे भूसा भर गया था. वह अकेली ही बाजार चली गई. मेरे मन में सूर्यबाला की महीनों से बनी छवि एकबारगी ध्वस्त हो गई. मैं अचानक आकाश से जमीन पर आ गिरा और मिताली के प्रति विश्वासघात के दर्द से कराह उठा. सूर्यबाला के जाल में फंस कर मैं मिताली को लगभग भूल चुका था. अचानक बेतरह उस की यादें सताने लगीं. सूर्यबाला बेहद खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन उस के बदन की स्त्रैण खुशबू अद्वितीय थी, जिस के जादू से मैं बच नहीं सका था. मेरी वह रात जैसेतैसे करवट बदलते गुजरी.

अगले दिन स्कूल से लौटा तो सूर्यबाला घर में नहीं थी. वह अपना सामान पैक कर के जा चुकी थी. उस का मोबाइल भी बंद था. दिल तो टूटने के लिए ही बना है और वह टूट चुका था. मैं कई दिनों तक ऊहापोह की स्थिति में जीता रहा.  इसी तरह कई महीने बीत गए. जब नहीं रहा गया तो एक दोपहर को अंतिम उम्मीद ले कर मैं उस के बदरपुर स्थित फ्लैट पर पहुंच गया. संयोग से वह फ्लैट पर ही थी. मुझे सामने पा कर वह चौंकी और देर तक मुझे चुपचाप घूरती रही.

‘‘कैसी हो? अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ मैं ने ढिठाई से कहा.

‘‘ठीक है, आ जाओ. लेकिन मुझे जरूरी काम से कहीं जाना है, इसलिए जो कुछ भी कहना है, जरा जल्दी कहो.’’ उस ने चाय का पानी इंडक्शन चूल्हे पर चढ़ाते हुए कहा.

मैं ने कमरे में इधरउधर नजर डाली. खूंटी पर 3-4 मर्दाना कपड़े टंगे थे, जहां कभी मेरे टंगे होते थे. मेज पर सुनहरे फ्रेम में जड़ी एक नवयुवक की तस्वीर रखी थी.

‘‘तुम्हारे सिविल सर्विस के रिजल्ट का क्या हुआ?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘होना क्या था, नहीं हुआ.’’ शीशे की तिपाई पर चाय रखते हुए बिना किसी लागलपेट के उस ने कहा.

‘‘अब आगे क्या करोगी?’’

‘‘अभी कुछ सोचा नहीं. वर्षों की थकी हूं, कुछ दिन आराम करूंगी. उस के बाद डिसाइड करूंगी कि क्या करना है. और तुम?’’

‘‘अभी कहीं से काललेटर नहीं आया है. प्रतीक्षा कर रहा हूं. और अब यह नया शिकार कौन है?’’ मैं ने फोटो की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘यह मेरा दूर का रिश्तेदार है. अब हम ‘लिवइन रिलेशन’ में हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं. एमएनसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है, 7 लाख का पैकेज है. यह तुम्हारे मोबाइल का ही कमाल है, उसी ने हमें मिलाया है, तुम्हें कैसा लगा?

‘‘देखने में तो ठीकठाक है, बिस्तर पर कैसा व्यवहार करता है, यह तो तुम जानो.’’ मैं ने इर्ष्यावश उसे चिढ़ाने की नीयत से कहा.

अंतिम कोशिश का विकल्प समाप्त हो चुका था. अब वहां एक पल के लिए भी रुकना मुश्किल हो रहा था. चाय के लिए थैंक्स बोल कर मैं सीढि़यां उतरने लगा. मैं ने अपने पीछे खटाक से दरवाजा बंद होने की कर्कश आवाज सुनी. वह गुस्से में थी. मैं तेजतेज कदमों से 3-4 पतली गलियों को पार कर के सड़क पर आ गया. कनेर की छांव में पल भर रुक कर गहरीगहरी सांसें लीं, सिर उठा कर ढलते सूरज को देखा और उस के अस्त होने की दिशा में चल पड़ा.

वक्त रुका नहीं था. रूस ने अंतरिक्ष में 5 सितारा होटल बना लिया, पश्चिमी वैज्ञानिकों ने कमजोर दिल को मजबूत करने वाली कोशिकाएं विकसित कर लीं. उधर अमेरिका ने अपने हथियारों के जखीरे में चंद महाघातक हथियार और शामिल कर लिए. भारत में कुछ करोड़ और बच्चे पैदा हो गए. यही नहीं भारत ने मंगल की ओर कदम बढ़ा दिए. समाज में मल्टीपल लिवइनरिलेशन का आगाज हो चुका था.

मैं एक मौकापरस्त युवती की चालाकी से आहत अपनी बेवकूफी पर लज्जित था. अपने मिथ्या प्रेम की अप्रत्याशित परिणति पर उतना ही हैरान भी. स्कूल में होली की लंबी छुट्टियां चल रही थीं. लगभग साल भर के अंतराल के बाद एक शाम मैं ने अपने गांव जाने वाली ट्रेन पकड़ ली. घर पर किसी ने उत्साह से मेरा स्वागत नहीं किया. मां के चेहरे पर मेरे लिए अतिरिक्त सहानुभूति थी और पिता 2 दिनों बाद पहला वाक्य बोले, ‘‘कब लौटना है?’’

दिल्ली के मेरे कृत्यों की जानकारी सब को हो चुकी थी. होली के 3 दिनों बाद निर्लज्जता की सफेद खाल ओढ़ कर मैं ने एक बार मंगेतर के गांव जाने का निश्चय ही नहीं किया बल्कि अगले दिन 3 घंटे की बस यात्रा कर के वहां पहुंच भी गया. मुझे अपने दरवाजे पर देख कर मेरी भावी सास रोनेपीटने लगी. मैं समझ रहा था कि शायद मिताली को कुछ हो गया है, सो मेरी सूरत रोनी हो गई.

‘‘युद्ध के खत्म होते ही वह लौट आई थी, पर अब वह पहले वाली मिताली नहीं रही. तुम चाहो तो एक बार मिल सकते हो, लेकिन मुझे लगता है कि कोई फायदा नहीं होने वाला. वह तुम्हारे बारे में सब कुछ जान चुकी है.’’ सिगरेट की खाली डिबिया पर भद्दे अक्षरों में लिखा पता थमाते हुए मिताली के बूढ़े पिता बोले और लाठी उठा कर खेतों की ओर चले गए. 2-4 कदम जा कर वह पलट कर बोले, ‘‘और हां, अब तुम्हें मेरे यहां आने की जरूरत नहीं है. समाज में मेरी भी कुछ मानमर्यादा है.’’

दरवाजे के पीछे से मिताली की छोटी बहन रुआंसा चेहरा लिए सब देखसुन रही थी. मैं तकरीबन 20 मिनट से खड़ा था, पर किसी ने बैठने तक को नहीं कहा. अपनी निरर्थक उपस्थिति को समेट कर मैं ने एक नजर उस छोटी लड़की पर डाली और चुपचाप स्टेशन जाने वाली राह पर चल पड़ा. दिल्ली पहुंचने के तीसरे दिन डाकिया 2 नियुक्ति पत्र दे गया. एक जेएनयू से था और दूसरा पटना स्थित एक बी ग्रेड कालेज का. मुझे थोड़ी खुशी हुई, पर जल्दी ही इन में से एक का चुनाव करना था. मेरे पास 2 ही सप्ताह का समय था. मैं ने जेएनयू का औफर स्वीकार कर लिया. देखतेदेखते लंबा समय गुजर गया.

साल भर बाद अप्रैल की पहली तारीख को मैं ने स्कूल के प्रिंसिपल को अपना इस्तीफा सौंप दिया और अपना हिसाबकिताब कर के दिल्ली से सदा के लिए विदा लेने का फैसला कर लिया. लेकिन जाने से पहले भीषण मानसिक कशमकश और ऊहापोह की स्थित में मैं ने एक बार अपनी मंगेतर से मिलने का फैसला किया. उस का पता मेरे पास था ही. गरमी तेज हो चुकी थी, इसलिए सुबह जल्दी ही उस के फ्लैट पर पहुंच गया और घंटी बजा कर दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगा. दरवाजा खुला तो मैं ने कहा, ‘‘कैसी हो, अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘मैं तुम्हें अंदर आने को क्यों कहूं? कोई वजह बची है क्या?’’ नाराज हो कर उस ने कहा.

‘‘क्यों, हमारी मंगनी हो चुकी है. यह वजह कम है क्या?’’ मैं ने अपने होंठों पर मुसकान लाने की कोशिश करते हुए बेशरमी से कहा.

‘‘अरे वाह, निर्लज्जता की किस मिट्टी के बने हो तुम? अगर तुम मेरे मंगेतर हो तो मंगेतर का मोबाइल तो दिखाओ.’’ हाथ कंगन को आरसी क्या वाली कहावत के अंदाज में उस ने हाथ नचाते हुए कहा.

‘‘वह दूसरी कहानी है, वही तो बताने आया हूं.’’

‘‘अच्छा. आओ अंदर आ जाओ. मैं भी तो सुनूं तुम्हारी वह दर्द भरी कहानी. लेकिन मुझ से किसी स्वागतसत्कार की आशा मत करना. और अगर यहां कुछ लेने आए हो तो निराश ही होना पड़ेगा. समझ गए न? मैं पहले ही काफी बेवकूफी कर चुकी हूं. अब कोई बेवकूफी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं समझता हूं कि जो कुछ कहनेसुनने आया था, वह सब तुम्हें पहले से ही पता है. अब कुछ भी कहना बेकार है. मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे विश्वास पर खरा नहीं उतर सका. इस के लिए पूरी तरह से मैं ही जिम्मेदार हूं.

‘‘तुम्हारा वह बेशकीमती मोबाइल फोन तुम तक पहुंच गया है. तुम ने उस के अंदर स्वर्णाक्षरों में अपना नामपता लिखवा रखा था, यह सब सूर्यबाला ने मुझे बता दिया था. मैं उस के बारे में कुछ भी कहने की बेशर्मी नहीं कर सकता. मुझे खेद है कि मैं तुम्हारे विश्वास का कत्ल कर के तुम्हारे खूनपसीने की कमाई एक धूर्त और मक्कार लड़की पर लुटाता रहा, उसे बदचलन नहीं कहूंगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि मंगनी के बाद डेढ़ साल की प्रतीक्षा किसी लड़के के लिए बेसब्र कर देने वाली होती है. इसे मेरा इजहार मत समझना.’’

हम टेबल के आरपार बैठे थे और हमारे बीच लंबी असहजता पसरी थी. सड़क किनारे नंगे शीशम पर एक अबाबील चिडि़या बैठी अपने पर खुजला रही थी. हम एकदूसरे के दिल में अभी भी जिंदा थे. मैं ने कहा, ‘‘मंगनी के बाद तुम ने अपने दिल के दरवाजे बंद कर लिए, पर मैं वैसा नहीं कर सका. खैर, अब वक्त काफी पीछे रह गया है. मेरी वजह से तुम्हें जो पीड़ा पहुंची है, उस के लिए माफी ही मांग सकता हूं. अब इस के सिवा मैं और कुछ कर भी तो नहीं सकता.’’

वह उठ कर अंदर चली गई. किचन से बर्तन के खनकने की उदास आवाज आती रही. कुछ मिनट बाद वह एक प्याली चाय बना लाई और चुपचाप मेरे सामने रख दी. निश्चित रूप से वह एक दयालु युवती थी. वह कुछ देर पहले कही अपनी ही कठोर बातों पर अडिग नहीं रह सकी. उस के चेहरे से अब तक मेरे प्रति उपजी घृणा तिरोहित हो चुकी थी और उस की जगह गंभीर औपचारिकता और शांति ने ले ली थी.

‘‘इराक युद्ध में तबाही के सिवा उस देश को कुछ भी हासिल नहीं हुआ, लेकिन उस की बड़ी कीमत मुझे चुकानी पड़ी.’’ उस की आवाज लगभग फुसफुसाहट जैसी थी.

मैं चाय की चुस्की के लिए प्याले को होंठों से कुछ दूरी पर थामे रहा. रोकने की लाख कोशिश के बावजूद मेरी आंखों से दो बूंद आंसू प्याले में टपक पड़े. मैं ने प्याला टेबल पर वहीं रख दिया, जहां से उठाया था और नि:शब्द बैठा रहा. मेरे होंठ कांप रहे थे. मिताली निहायत उदासी में डूबी मुझे पढ़ने की कोशिश में लगी थी. मैं ने उठते हुए कहा, ‘‘चाय के लिए धन्यवाद, पर मुझे अफसोस है कि अपनी ही वजहों से मैं तुम्हारे अनुपम और अंतिम उपहार को भी संभाल न सका. अच्छा, अब मैं चलूं प्रिय, धूप तेज हो रही है?’’

‘‘क्या कहा… प्रिय?’’ वह जरा तल्खी से बोली.

‘‘हां, और शायद अंतिम बार. मुझे जेएनयू और पटना के कालेज में प्रवक्ता की नौकरी का औफर मिला है. न मालूम क्यों, मैं दिल्ली छोड़ रहा हूं. पटना का औफर स्वीकार कर लिया है. मेरे मातापिता बूढ़े हो चले हैं. मैं उन के पास रहना चाहता हूं. कुछ सामान पैक करना है, भारीभरकम वस्तुएं बेच दूंगा. और ये रुपए रख लो. तुम ने बड़े कठिन समय में मेरी सहायता की थी, 75 हजार हैं. मंगनी की अंगूठी और बाकी रुपए बाद में भेज दूंगा.’’

रुपयों से भरा लिफाफा मेज पर रख कर मैं ने अलविदा के लिए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हो सके तो मेरी नादानियों को माफ कर देना.’’

मिताली बिना कुछ बोले आंचल में मुंह दबा कर तेजी से बेडरूम की ओर भागी, जहां से उस के सुबकने की आवाज आ रही थी. मैं आहिस्ता से फ्लैट से बाहर आया, दरवाजा भेड़ा और मुख्य सड़क पर निकल आ गया. मैं ने एक बार पलट कर उस तिमंजिले भवन की ओर देखा, बालकनी में मिताली खड़ी थी. क्रोटन की सुनहरी पत्तियों और बेला के सफेद फूलों के बीच से उस का उदास चेहरा अंतिम बार देख रहा था.

औटो पर सवार हो कर मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘‘आनंद विहार.’’ Love Story

 

UP News: मोहब्बत की बुनियाद पर रची साजिश

UP News: सना ने प्यार की बुनियाद रखी तो थी प्रेमी सौरभ सक्सेना के साथ, लेकिन महत्त्वाकांक्षाओं ने उस के कदम खुरशीद आलम की तरफ मोड़ दिए. फिर सना ने सौरभ को रास्ते से हटाने के लिए खुरशीद के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि…

मुरादाबाद शहर की रामगंगा विहार फेज-2 कालोनी का रहने वाला सौरभ सक्सेना रोज की तरह 6 फरवरी, 2015 को भी सुबह साढ़े 6 बजे मौर्निंग वौक के लिए घर से निकला. वह घूमटहल कर घंटे-2 घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह 2-3 घंटे तक नहीं लौटा तो पिता के.सी. सक्सेना  ने यह जानने के लिए उसे फोन लगाया कि वह कहां है और अब तक घर क्यों नहीं लौटा? लेकिन उस का फोन बंद था. घर वालों ने सौरभ के दोस्तों को फोन किया तो पता चला कि वह उन के पास भी नहीं गया. उस का कहीं पता न चलने पर घर वाले परेशान हो गए.

सौरभ ने कुछ दिनों पहले ही आशियाना मोहल्ले में स्थित बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जिम जाना शुरू किया था. यह बात उस के बड़े भाई गौरव को पता थी. सौरभ जिम गया था या नहीं, यह जानने के लिए वह वहां गया तो उस के गेट पर ताला लटका मिला. वहां से वह निराश हो कर घर लौट आया. दोपहर के समय के.सी. सक्सेना के फोन पर सौरभ का फोन आया तो वह खुश हुए कि बेटे का फोन आ गया. उन्होंने जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘पापा, मैं इस समय नवीननगर में हूं.’’

इस के बाद दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया. के.सी. सक्सेना उस आवाज को सुन कर हैरान थे, क्योंकि वह आवाज सौरभ की नहीं थी. वह सोच में पड़ गए कि आखिर कौन है, जो सौरभ बन कर बात कर रहा है. उसी दिन सौरभ के फोन से हिमांशु के फोन पर भी फोन आया था कि उस के पास पापा का फोन तो नहीं आया था? हिमांशु सौरभ का दोस्त था. वह आवाज सुन कर हिमांशु भी चौंका था, क्योंकि वह आवाज सौरभ की नहीं थी. हिमांशु ने यह बात सौरभ के पिता के.सी. सक्सेना को बता दी थी. के.सी. सक्सेना अब और ज्यादा परेशान हो गए कि उन का जवान बेटा न जाने कहां है और उस के फोन से न जाने कौन बात कर रहा है? वह अपने परिचितों को ले कर थाना सिविल लाइंस पहुंचे और बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

सौरभ की चिंता में उस के घर वाले रात भर परेशान रहे. अगले दिन के.सी. सक्सेना एसएसपी लव कुमार से मिले. मामले की गंभीरता को समझते हुए एसएसपी ने उसी समय एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता को अपने औफिस में बुलवाया और इस मामले में आवश्यक काररवाई करने को कहा. के.सी. सक्सेना ने एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता को विस्तार से पूरी बात बता कर कहा कि जिस शख्स ने सौरभ के फोन से बात की थी, वह उस शख्स को नहीं जानते. उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह भी नहीं है. जिस समय के.सी. सक्सेना के फोन पर सौरभ के फोन से बात की गई थी, उस समय उस की लोकेशन कहां थी, यह जानने के लिए एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता ने सौरभ के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

एसपी (सिटी) के निर्देश पर सिविल लाइंस के सीओ मोहम्मद इमरान ने सौरभ की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि 6 फरवरी को उस के फोन से दोपहर एक बजे के करीब मुरादाबाद शहर के ही पीली कोठी इलाके से बात की गई थी. इसी के साथ एक फोन नंबर ऐसा भी मिल गया, जिस से सौरभ के मोबाइल पर 6 फरवरी को सुबह 6 बज कर 25 मिनट पर बात की गई थी. उसी नंबर से 26 जनवरी, 2015 से 7 फरवरी, 2015 तक सौरभ के मोबाइल पर 6 बार बात हुई थी. यह फोन नंबर यूनिनार कंपनी का था.

यूनिनार कंपनी का यह फोन नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. मोहम्मद इमरान ने यूनिनार कंपनी के इस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. इस में पुलिस को चौंकाने वाली यह जानकारी मिली कि इस नंबर से केवल सौरभ के मोबाइल पर ही बातें की गई थीं. इस से पुलिस को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह नंबर केवल सौरभ से बात करने के लिए ही लिया गया था. अब पुलिस यह जानने में लग गई कि यूनिनार कंपनी का यह नंबर किस के नाम से लिया गया था. पुलिस को यूनिनार कंपनी से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि वह नंबर रेलवे हरथला कालोनी के दुकानदार मुन्ना पहाड़ी से खरीदा गया था. नंबर लेते समय 2-2 आईडी प्रूफ लगे थे.

ताज्जुब की बात यह थी कि दोनों आईडी पर अलगअलग लोगों के फोटो लगे थे. एक आईडी संभल के किसी आदमी की थी तो दूसरी मुरादाबाद के आदमी की थी. दोनों ही पतों पर पुलिस टीमें भेजी गईं, लेकिन दोनों पते फरजी निकले. इस से पुलिस की जांच जहां की तहां रुक गई. कहीं से कोई सुराग मिले, इस के लिए पुलिस टीम फिर से यूनिनार के उस फोन नंबर की काल डिटेल्स खंगालने लगी. पता चला कि इस नंबर की 3 दिन पहले की लोकेशन आशियाना इलाके की थी. सीओ मोहम्मद इमरान ने के.सी. सक्सेना से पूछा कि आशियाना इलाके में सौरभ का कोई परिचित तो नहीं रहता? इस पर उन्होंने बताया कि आशियाना इलाके के बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम के जिम में सौरभ जाता था.

सौरभ के गायब होने का राज कहीं इस जिम में तो नहीं छिपा, यह जानने के लिए मोहम्मद इमरान बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम के उस जिम में पहुंचे. वहां जिम संचालक खुरशीद आलम और जिम की रिसैप्शनिस्ट सना उर्फ सदफ मिली. उन्होंने दोनों से सौरभ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सौरभ उन के जिम में आता तो था, लेकिन 6 फरवरी से वह जिम नहीं आ रहा है. उन से बात करने के बाद सीओ साहब अपने औफिस लौट आए. कई दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. उस का मोबाइल फोन बंद था. सौरभ अगवानपुर के एक इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहा था. मोहल्ले में और कालेज में उस के जो भी नकदीकी दोस्त थे, पुलिस ने उन सब से पूछताछ की. उन से भी सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

11 फरवरी, 2015 को मुरादाबाद के ही थाना मझोला के अंतर्गत आने वाले भोला सिंह की मिलक के पास नाले में एक ड्रम देखा गया. ड्रम का आधा भाग पानी में डूबा था और आधा पानी के ऊपर दिखाई दे रहा था. शक होने पर किसी ने इस की सूचना थाना मझोला पुलिस को दे दी. मझोला पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उस ड्रम को नाले से निकलवाया तो उस में से प्लास्टिक के बोरे में बंद एक युवक की लाश निकली. वह युवक ट्रैक सूट और स्पोर्ट्स शूज पहने था. मझोला पुलिस ने लाश का हुलिया बताते हुए इस बात की सूचना वायरलैस द्वारा जिला पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी.

सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ने वायरलैस की यह सूचना सुनी तो वह चौंके, क्योंकि लाश का जो हुलिया बताया गया था, वही हुलिया उन के क्षेत्र के गायब युवक सौरभ सक्सेना का था. थानाप्रभारी ने फोन कर के तुरंत सौरभ के पिता को थाने बुलाया और उन्हें ले कर भोला सिंह की मिलक के पास उस जगह पहुंच गए, जहां ड्रम में लाश मिली थी. जैसे ही के.सी. सक्सेना ने लाश देखी, वह दहाड़ें मार कर रोने लगे. क्योंकि वह लाश उन के 19 वर्षीय बेटे सौरभ की ही थी. उस का सिर फूटा हुआ था. उस के मुंह में एक लंगोट ठूंसा हुआ था और दूसरे लंगोट से उस की नाकमुंह को कवर करते हुए गले को बांधा गया था. देख कर ही लग रहा था किसी भारी चीज से उस के सिर पर कई वार किए गए थे. सौरभ की हत्या की खबर मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के लोग और संबंधी रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंच गए.

सूचना मिलने के बाद एसएसपी लव कुमार और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए थे. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. 11 फरवरी की शाम को ही डाक्टरों के एक पैनल ने सौरभ सक्सेना की लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार सौरभ की हत्या करीब 5 दिनों पहले की गई थी यानी जिस दिन वह गायब हुआ था, उस के कुछ घंटे बाद ही उसे मार दिया गया था. हत्यारों ने लोहे की रौड जैसी किसी भारी चीज से उस के सिर पर 18 वार किए थे. वार इतनी ताकत से किए गए थे कि उस के सिर की हड्डियां तक टूट गई थीं. इस के बाद सिर को बुरी तरह कुचला गया था. डाक्टरों ने मौत की वजह हेड इंजरी बताया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने सौरभ के मुंह में लंगोट ठूंस कर दूसरे लंगोट से जिस तरह उस की नाक और मुंह को बांधा था, हत्या करने वालों की संख्या 2 से अधिक रही होगी. ऐसा उन्होंने इसलिए किया होगा, ताकि उस की चीख न निकल सके. यह सब किस ने किया था, यह पता लगाना पुलिस के लिए आसान नहीं था. लाश के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक जल्दी पहुंचा जा सके. लंगोट और ड्रम के सहारे पुलिस ने जांच आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू की. सब से पहले पुलिस ने के.सी. सक्सेना से पूछा कि सौरभ लंगोट बांधता था क्या?

‘‘नहीं, वह घर पर कभी लंगोट नहीं बांधता था. हो सकता है कि जिम में एक्सरसाइज करते समय लंगोट बांधता रहा हो.’’ के.सी. सक्सेना ने बताया तो सीओ मोहम्मद इमरान के नेतृत्व में एक पुलिस टीम एक बार फिर आशियाना कालोनी स्थित जिम बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी पहुंची. उस जिम के बाईं ओर रेड सफायर नाम का बैंक्वेट हाल था. उस के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जिम के दाईं ओर एक अस्पताल था, उस के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे थे. 6 फरवरी को सौरभ जिम में आया था या नहीं, यह बात सीसीटीवी फुटेज से पता लग सकती थी. पुलिस ने बैंक्वेट हाल और अस्पताल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो उस में 6 फरवरी की सुबह सौरभ एक लड़की के साथ जिम की तरफ आता दिखाई दिया.

सौरभ के भाई गौरव ने उस लड़की को तुरंत पहचान कर बताया कि यह लड़की उस के घर में काम करने वाली नौकरानी की बेटी सना उर्फ सदफ है. यह बौडी फ्यूल फिटनेस जिम में नौकरी करती है. फुटेज देखने के बाद पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि जिम संचालक खुरशीद आलम और सना ने उस से यह झूठ क्यों बोला कि 6 फरवरी को सौरभ जिम नहीं आया था. जबकि फुटेज में वह सना के साथ जिम में जाता दिखाई दिया था. पुलिस टीम खुरशीद आलम के जिम पहुंची. सीओ मोहम्मद इमरान को देखते ही खुरशीद घबरा गया. उस से बात किए बिना ही पुलिस ने जिम की तलाशी ली तो वहां उसी तरह के लंगोट टंगे हुए मिले, जिस तरह के मृतक सौरभ के मुंह और गरदन पर बंधे मिले थे. उसी दौरान खुरशीद ने मोहम्मद इमरान से पूछा, ‘‘सर, सौरभ के हत्यारों का कुछ पता चला?’’

‘‘देखो, अभी पता चल जाएगा,’’ कह कर उन्होंने एक थप्पड़ खुरशीद आलम के गाल पर जड़ दिया.

खुरशीद को ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह हक्काबक्का रह गया. उस के मुंह से कोई जवाब नहीं निकला. सीओ ने पूछा, ‘‘तुम लोगों ने सौरभ को क्यों मारा?’’

रिसैप्शनिस्ट सना उर्फ सदफ यह देख कर घबरा गई. सीओ के निर्देश पर महिला पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. दोनों को हिरासत में ले कर इमरान मोहम्मद ने उन से सौरभ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि सौरभ की हत्या उन्होंने ही इसी जिम में की थी. उन्होंने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी. मुरादाबाद महानगर के सिविल लाइंस में है एक कालोनी रामगंगा विहार फेज-2. इसी कालोनी में के.सी. सक्सेना अपनी पत्नी अलका सक्सेना और 3 बच्चों के साथ रहते थे. बच्चों में बेटा गौरव, सौरभ और बेटी साक्षी थी. के.सी. सक्सेना प्रथमा बैंक में शाखा प्रबंधक थे और उन की पोस्टिंग महानगर से 10 किलोमीटर दूर पाकबड़ा शाखा में थी. अपने छोटे परिवार के साथ वह हंसीखुशी से रह रहे थे.

पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़ा बेटा गौरव सक्सेना चड्ढा ग्रुप के मुरादाबाद स्थित वेब मौल में नौकरी करने लगा था, जबकि सौरभ अभी अगवानपुर के एक कालेज से 12वीं की पढाई कर रहा था. के.सी. सक्सेना के यहां किसी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. लेकिन वह शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे. वह हार्ट पेशेंट थे. उन की 2 बार हार्ट सर्जरी हो चुकी थी. उन के साथसाथ उन की पत्नी अलका भी अकसर बीमार रहती थीं. जिस से उन्हें घर के काम करने और खाना बनाने में परेशानी होती थी. घर के काम करने और खाना बनाने के लिए उन्होंने शबनम को रख लिया था.

शबनम रामगंगा विहार की ही ईडब्ल्यूएस कालोनी में रहने वाले मोहम्मद इमरान की पत्नी थी. मोहम्मद इमरान टूव्हीलर मैकेनिक था और उस की 2 बीवियां थीं. शबनम उस की दूसरी बीवी थी. कभीकभी शबनम अपनी बेटी सना उर्फ सदफ को भी ले आती थी. सना के.सी. सक्सेना की बेटी साक्षी की ही उम्र की थी, इसलिए उन दोनों में दोस्ती हो गई थी. सना भी पढ़ाई कर रही थी. कभी शबनम को के.सी. सक्सेना के यहां आने में देर हो जाती तो सौरभ बाइक से उस के घर पहुंच जाता और उसे बाइक पर बैठा कर ले आता. शबनम की बेटी सना जवान और सुंदर थी. वह महानगर के ही दयानंद डिग्री कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही थी.

घर आनेजाने की वजह से सौरभ और सना के बीच दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यही दोस्ती प्यार में बदल गई. प्यार जब परवान चढ़ा तो उन के बीच जिस्मानी संबंध भी बन गए. हालांकि दोनों के सामाजिक स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. इस के अलावा वे अलगअलग धर्मों से भी थे, फिर भी उन्होंने शादी कर के जिंदगी भर साथ रहने की कसमें खाईं. काफी दिनों तक उन के संबंधों की भनक किसी को नहीं लगी. सना सौरभ पर शादी के लिए दबाव डालने लगी तो वह बोला, ‘‘सना, हमारे और तुम्हारे बीच सब से बड़ी बाधा धर्म की है. तुम मुसलिम हो और मैं हिंदू.’’

सौरभ की बात पूरी होने से पहले ही सना ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो सौरभ? यह बात तो तुम्हें पहले सोचनी चाहिए थी.’’

‘‘सना, तुम नाराज मत होओ. देखो, जब तक बड़े भाई गौरव की शादी नहीं हो जाती, तब तक इस बारे में घर वालों से बात करना बेकार है. गौरव की शादी के बाद मैं घर वालों को समझाने की कोशिश करूंगा.’’ सौरभ ने सना को सममझाया.

झूठी दिलासा के सहारे 3 साल गुजर गए. सना मन ही मन यही सपना संजोए बैठी थी कि सौरभ से शादी करने के बाद वह ऐश की जिंदगी जिएगी. लेकिन प्रेमी के झूठे वादों से उसे अपने सपने धूमिल होते नजर आ रहे थे. इसलिए उस ने सौरभ से दूरी बनानी शुरू कर दी.

सना पढ़ीलिखी खूबसूरत युवती थी. उसे अब अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए उस ने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी. कोशिश करने पर उसे महानगर में कांठ रोड पर स्थित एक जिम में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. बाद में वह उसी जिम में ट्रेनर हो गई. वहां नौकरी पर लगे उसे कुछ ही दिन हुए थे कि उसे पता चला कि आशियाना कालोनी में बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम का एक नया जिम खुला है और वहां रिसैप्शनिस्ट की जगह खाली है. यह खबर मिलते ही वह नौकरी के लिए उस जिम में पहुंच गई, ताकि वहां उसे ज्यादा तनख्वाह मिल सके. वहां उस की बात बन गई. यानी बौडी फ्यूल जिम में उसे रिसैप्शनिस्ट व महिला ट्रेनर की नौकरी मिल गई. यह जिम हरथला कालोनी के रहने वाले खुरशीद आलम का था.

जब लोगों को पता चला कि जिम में महिला ट्रेनर भी है तो वहां महिलाओं ने भी आना शुरू कर दिया, जिस से जिम की आमदनी बढ़ने लगी. दिन भर जिम में साथ रहने की वजह से सना और खुरशीद एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. खुरशीद की बांहों में जाने के बाद सना सौरभ को भूल चुकी थी. वह खुरशीद के साथ ही बाइक पर घूमती. चूंकि दोनों एक ही धर्म के थे, इसलिए खुरशीद ने सना से शादी का वादा किया. उधर जब सौरभ को सना और खुरशीद के संबंधों के बारे में पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने इस बारे में सना से फोन पर बात करनी चाही, लेकिन सना ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. जबकि इस से पहले उस की सना से फोन पर कभीकभार बात हो जाया करती थी.

तब सौरभ उस से मिलने के लिए बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जिम जाने लगा. इतना ही नहीं, वह सना पर जिम की नौकरी छोड़ने के लिए दबाव भी बनाने लगा. लेकिन सना ऐसा करने को तैयार नहीं थी. सौरभ के बारबार जिम जाने पर खुरशीद को शक हो गया. खुरशीद ने सना से सौरभ के बारे में पूछा. तब सना ने खुरशीद को सौरभ के साथ रहे अपने संबंधों के बारे में बता दिया. उस ने यह भी बता दिया कि सौरभ उस पर जिम से नौकरी छोड़ने को कह रहा है. सना ने सौरभ से जिम आने से मना करते हुए कहा कि बेहतर यही होगा कि वह उसे भूल जाए. पर सौरभ उसे भूलने को तैयार नहीं था. उस ने कहा कि वह उस के बिना जिंदा नहीं रह सकता. इतना ही नहीं, उस ने सना को धमकी भी दे दी कि अगर उस ने खुरशीद से शादी कर ली तो वह उस के अश्लील फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

इस धमकी से सना डर गई. उस ने फोटो वाली बात खुरशीद को बता कर इस का कोई वाजिब हल निकालने को कहा. खुरशीद सना के प्यार में पागल था. वह उस पर अंधाधुंध पैसे खर्च कर रहा था. अकसर सना के साथ घूमनेफिरने से उस के धंधे पर भी असर पड़ना शुरू हो गया था. उस का लगातार नुकसान हो रहा था, जिस से वह लोगों का कर्जदार भी हो गया था. पिछले 2 महीने से उस ने सना की तनख्वाह और बिल्डिंग का किराया भी नहीं दिया था. लगातार हो रहे घाटे से वह परेशान रहने लगा था. खुरशीद ने एक दिन अपनी परेशानी सना को बताई और कहा कि वह कोई ऐसा काम करना चाहता है, जिस में एक ही झटके में लाखों रुपए आ सकें.

सना ने सौरभ के घरपरिवार के बारे में खुरशीद को पहले ही बता दिया था. इसलिए दोनों ने प्लान बनाया कि अगर सौरभ का अपहरण कर लिया जाए तो उस के घर वालों से लाखों रुपए की फिरौती मिल सकती है. क्योंकि उस के पिता बैंक में मैनेजर हैं. खुरशीद का बचपन का एक दोस्त था निहाल जैदी. निहाल जैदी के पिता सैयद अली आजम जैदी व खुरशीद के पिता निजामुद्दीन अंसारी दोनों ही रेलवे में टीटीई थे और एक साथ मुरादाबाद मंडल में रह चुके थे. दोनों के घर वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. इसीलिए खुरशीद और निहाल जैदी में गहरी दोस्ती थी.

सैयद अली आजम जैदी मूलरूप से मुफ्तीगंज लखनऊ के रहने वाले थे. रिटायर होने के बाद वह लखनऊ चले गए थे. निहाल जैदी आवारा किस्म का था, इसलिए घर वालों ने उसे घर से निकाल दिया था. लखनऊ से वह अपने दोस्त खुरशीद के पास चला आया और उसी के साथ ही रह रहा था. निहाल जैदी भी जिम का काम देखता था. सना और खुरशीद ने निहाल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया था. तीनों ने योजना बनाई थी कि सौरभ का अपहरण कर उस के घर वालों से 10 लाख रुपए की फिरौती वसूल कर उसे ठिकाने लगा देंगे. योजना को सुरक्षित ढंग से अंजाम देने के लिए खुरशीद ने फरजी आईडी पर एक सिम खरीदा. यह सिम उस ने महानगर की ही रेलवे हरथला कालोनी के दुकानदार मुन्ना पहाड़ी से खरीदा था. उस सिम को उस ने अपने फोन में डालने के बजाय इस के लिए एक चाइनीज फोन खरीदा.

इस के बाद सौरभ को झांसे में लेने की जिम्मेदारी सना को सौंप दी गई. सना ने 26 जनवरी, 2015 से इसी नए नंबर से सौरभ से बात करनी शुरू कर दी. सौरभ ने फिर उस से नौकरी छोड़ने की बात कही. 26 जनवरी को सना ने सौरभ को फोन कर के कहा था, ‘‘सौरभ, मैं काम छोड़ने को तैयार हूं, लेकिन खुरशीद ने 2 महीने से मेरी तनख्वाह नहीं दी है. ऐसा करो, तुम भी जिम जौइन कर लो. हम यहीं पर मिलते रहेंगे और जैसे ही मेरी तनख्वाह मिल जाएगी, मैं नौकरी छोड़ दूंगी.’’

यह बात सौरभ की समझ में आ गई और उस ने बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जौइन कर ली. यह बात घटना से 4 दिन पहले की थी. जिम जाने की बात उस ने अपने बड़े भाई गौरव को बता दी थी. 6 फरवरी, 2015 को सुबहसुबह सौरभ के मोबाइल पर सना का फोन आया, ‘‘सौरभ, तुम अभी तक जिम नहीं आए. जल्दी आ जाओ. इस समय यहां कोई नहीं है.’’

‘‘बस, मैं थोड़ी देर में पहुंच रहा हूं.’’ सौरभ ने कहा.

सौरभ मौर्निंग वौक के लिए निकलता था. इस के बाद वह उधर से ही जिम चला जाता था. लेकिन उस दिन उस का फोन आने पर वह सीधा जिम चला गया था. जिम के पास सना उस का पहले से ही इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही सौरभ खुश हो गया. सना ने गर्मजोशी से उस का स्वागत किया और उसे अपने साथ जिम ले गई. जिम में पहुंच कर सना ने कहा, ‘‘सौरभ, तुम चेंजिंग रूम में कपड़े बदल लो, मैं यहीं बैठी हूं. सौरभ चेंजिंग रूम में गया तो वहां पहले से ही खुरशीद और निहाल जैदी मौजूद थे. दोनों ने उस की पिटाई शुरू कर दी. सौरभ चीखने लगा तो उन्होंने जिम में रखा एक लंगोट उस के मुंह में ठूंस दिया और दूसरा उस के मुंह और नाक में लपेट कर गले में बांध दिया.

इस के बाद भी वह हाथपैर चलाने लगा तो खुरशीद ने लोहे की रौड से उस के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस का सिर फट गया और खून बहने लगा. इस के बाद सौरभ उन का मुकाबला नहीं कर सका और जमीन पर गिर गया. उधर सना ने डेक बजा कर उस की आवाज तेज कर दी थी, जिस से सौरभ चीखचिल्लाहट की आवाज बाहर किसी को सुनाई नहीं दी. खुरशीद और निहाल ने देखा कि सौरभ मर गया है तो उन्होंने सना को बुला लिया. सना ने कहा कि किसी भी हालत में अब यह जिंदा नहीं बचना चाहिए. वह एक सीरिंज में बाथरूम में रखा तेजाब भर लाई और तेजाब का इंजेक्शन उस के सीने में लगा दिया.

तीनों को लगा कि सौरभ मर गया है तो उन्होंने उस की लाश पहले से ला कर रखे पौलीथिन के एक बैग में भर दी. अब उन के सामने समस्या यह थी कि वह लाश को ठिकाने लगाने के लिए बाहर कैसे ले जाएं. हरथला में ही खुरशीद के बहनोई नदीम रहते थे. उन का वहीं पर एक कौनवेंट स्कूल था. उन्होंने ही खुरशीद को यशवीर चौधरी का बड़ा हौल किराए पर दिलवाया था, जिस का किराया 20 हजार रुपए महीना था. लाश ठिकाने लगाने के लिए तीनों ने एक प्लान तैयार कर लिया. प्लान के अनुसार खुरशीद अकेला जिम से चला गया और अपने एक परिचित की माल ढोने वाली छोटी टाटा मैजिक गाड़ी ले आया.

जिम के बराबर वाली इमारत में यशवीर चौधरी का प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस था. उन्होंने जिम के बाहर माल ढोने वाली टाटा मैजिक गाड़ी देखी तो उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि खुरशीद उन का किराया दिए बिना हौल खाली कर के जा रहा है. क्योंकि खुरशीद ने उन का 2 महीने का किराया नहीं दिया था, इसलिए जब उन्होंने जिम के सामने गाड़ी खड़ी देखी तो खुरशीद से पूछा. तब खुरशीद ने बताया कि दौड़ने वाली मशीन खराब हो गई है, उसे ठीक कराने ले जाना है. खुरशीद, सना और निहाल ने मिल कर एक इलैक्ट्रौनिक मशीन जिम से निकाल कर उस गाड़ी में रख दी. उसे खुरशीद व निहाल ले कर चले गए.

करीब आधे घंटे बाद खुरशीद और निहाल जैदी उस मशीन को ले कर वापस आ गए. वह अपने साथ एक ड्रम भी ले आए थे. वह ड्रम एक निर्माणाधीन इमारत से लाए थे. मशीन और ड्रम को वह जिम में ले गए. उस ड्रम में उन्होंने सौरभ की लाश डाल दी. फिर उस ड्रम को उसी टाटा मैजिक गाड़ी में रख लिया. पुन: गाड़ी देख कर मकान मालिक यशवीर चौधरी ने खुरशीद से ड्रम के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कुछ मशीनों के पार्ट्स खराब हो गए हैं. इस ड्रम में वही खराब पार्ट्स हैं, जिन्हें सही करा कर लाना है. यशवीर चौधरी को उस पर विश्वास नहीं हुआ तो उस ने खुरशीद के बहनोई नदीम को फोन किया, जिन की जमानत पर चौधरी ने उसे कमरा किराए पर दिया था.

नदीम ने भी उसे यही बताया कि उस की कुछ मशीनें खराब हो गई हैं. नदीम के कहने पर यशवीर चौधरी को विश्वास हो गया. वह अपने औफिस में बैठ कर पार्टी से बात करने लगे. खुरशीद, सना और निहाल लाश वाला ड्रम गाड़ी में रख कर निकल गए और जिम में ताला लगा दिया. वहां से खुरशीद सीधे हरथला स्थित अपने बहनोई के स्कूल पहुंचा. स्कूल के कंप्यूटर लैब में उस ने लाश वाला ड्रम रखवा दिया. बहनोई को भी उस ने यही बताया कि ड्रम में मशीनों के पुरजे हैं. अगले दिन 7 फरवरी, 2015 की रात को वह टाटा मैजिक गाड़ी से वह उस ड्रम को ले कर निकल गया और उसे भोला सिंह की मिलक के पास नाले में फेंक आया. लाश ठिकाने लगा कर वह अपने घर चला गया. डर की वजह से उन्होंने घर वालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया.

सना और खुरशीद से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे अभियुक्त निहाल जैदी की तलाश शुरू कर दी. पता चला कि वह लखनऊ भाग गया है. एक पुलिस टीम निहाल जैदी की तलाश में लखनऊ भेजी गई, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. पुलिस ने सना और खुरशीद को मुरादाबाद के एसीजेएम प्रथम की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीसरा अभियुक्त निहाल जैदी गिरफ्तार नहीं हो सका था. UP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Romantic Story: खिड़की मोहब्बत वाली

लेखक – सलोनी खान, Romantic Story: नीचे खड़े हो कर फरजान रोजाना बारबार मेरे बेडरूम की खिड़की की ओर देखा करता था. धीरेधीरे मैं उसे प्यार करने लगी. लेकिन मेरी मनोदशा भांप कर जब पापा ने उस से बात की तो पता चला कि वह मुझे नहीं देखता था बल्कि मेरे घर में लगे वाईफाई से अपने फोन की कनेक्टिविटी मिलाया करता था. फिर भी जो हुआ, अच्छा ही हुआ.  शा म का समय था. मैं ने देखा कि एक लड़का मेरे घर के सामने खड़ा था. मैं खिड़की के पास गई, बाहर झांक  कर देखा. वह ऊपर खिड़की की ओर ही देख रहा था. मैं वहां से हट गई. अगले दिन से उस लड़के की यह

रोजाना की आदत सी बन गई. वह वहां आता और घंटों खड़ा रहता. कभीकभी वह मुंह उठा कर मेरे बैडरूम की खिड़की की ओर देख लेता तो कभी अपने मोबाइल पर लगा रहता. मुझे लगता कि शायद वह मुझे फोन करने की कोशिश कर रहा है. मैं नहीं जानती थी कि उस के पास मेरा फोन नंबर है भी या नहीं वह बहुत ही सुंदर सजीला जवान था. मुझे लगता था कि उस का संबंध किसी बहुत अच्छे परिवार से रहा होगा. 10 दिन तक ऐसा ही चलता रहा.

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कुछ भी नहीं. मैं जानना चाहती थी कि आखिर यह मामला क्या है. सच कहूं तो उसे ले कर मेरे दिल में कुछ भावनाएं उभर रही थीं. मैं मन ही मन सोचती थी कि कहीं मुझे उस से प्यार तो नहीं हो गया है?

‘हां…हां…, मुझे उस से प्यार हो गया है.’ मेरे दिल से आवाज उठती.

‘लेकिन क्या वह भी मुझ से प्यार करता है? शायद नहीं…’ मेरे अंदर कई तरह के अंदेशे जन्म लेते.

यही सब सोचतेसोचते मेरे मन में कई तरह की आशंकाएं पैदा हो जातीं.

अपनी सोच, अपने अस्तित्व को समेट कर मैं ने साहस बटोरा और फैसला किया कि इस बारे में मुझे अपनी मां से बात करनी चाहिए. और मैं ने ऐसा ही किया भी.

‘‘अम्मी…अम्मी… आप कहां हैं? जरा जल्दी से यहां आइए. मैं आप को एक बहुत मजेदार दृश्य दिखाना चाहती हूं. सच में बहुत मजेदार.’’ एक दिन उसे बाहर खड़ा देख कर मैं ने बेसब्री से अपनी मां को पुकारा.

‘‘अच्छा, मैं आ रही हूं.’’ कहते हुए कुछ मिनट में ही मां मेरे पास आ गईं. आते ही मां ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या दिखाना चाह रही थी तुम मुझे?’’

मैं अपनी अम्मी को खिड़की के पास ले गई और उन्हें बाहर नीचे खड़े लड़के को दिखाया. मैं ने अपनी अम्मी को सारा किस्सा सुनाया कि वह लड़का कैसे घंटों यहां खड़ा रहता है और ऊपर खिड़की की ओर देखता रहता है.

मां ने मेरी आंखों में झांका. फिर मुसकराकर कहा, ‘‘तो, इस में खास बात क्या है?’’ मम्मी की मुसकराहट में एक रहस्य सा छिपा था.

‘‘अम्मी, मैं यही आप को दिखाना चाहती थी. अब सोचें और बताएं कि हमें क्या करना चाहिए?’’ मैं ने अपने दिल की बात उन के सामने रखी.

अम्मी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘इस में करना क्या है?’’ बड़ी लापरवाही से अपनी बात कह कर वह चली गईं. अगली सुबह सूरज में कुछ तेजी थी, खिड़की से धूप आ रही थी. पेड़ों पर चिडि़या चहचहा रही थीं. मैं बिस्तर पर बैठी थी और मेरे हाथ में कौफी का मग था. मेरे बाल खुले हुए थे. अचानक अम्मी ने मुझे आवाज दी. वह मुझे बुला रही थीं. नीचे जाने से पहले मैं ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा कि वह लड़का वहां खड़ा है या नहीं? वह वहीं खड़ा था. मुझे शर्म सी आ गई और मैं नीचे भाग गई. मुझे लगता था कि मैं उस के प्यार में गिरफ्तार हो चुकी हूं.

मेरी अम्मी और पापा नीचे ड्राइंगरूम में खड़े थे और उन के चेहरों पर मुसकराहट फैली थी, रहस्यमय मुसकराहट.

‘‘हां अम्मी, बोलो क्या हुआ? मुझे क्यों बुलाया?’’  मैं ने पूछा.

‘‘हां बेटी,’’ अम्मी बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हें एक जरूरी काम से बुलाया है.’’

‘‘तो बताइए?’’

‘‘दरअसल, मैं ने तुम्हारे पापा से उस लड़के का जिक्र किया था, इसलिए आज सुबह वह बाहर जा कर उस से मिले. उस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की. कुछ बातें कहीं भी.’’

‘‘क्या?’’ मैं बहुत जोर से बोल पड़ी.

‘‘हां, यह सही है मेरी बच्ची. उस का नाम फरजान है और वह एक बहुत ही अच्छे परिवार से संबंध रखता है. उस के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और इस वक्त वह नौकरी की तलाश में है. फरजान तुम्हारे लिए बहुत ही सही लड़का है.’’ पापा ने गंभीरता से कहा.

शादी के मुद्दे पर मेरे दिल में तुरंत यह बात आई कि मैं उस लड़के से प्यार करने लगी हूं. मैं मन ही मन सोचने लगी कि या खुदा अब मुझे क्या करना चाहिए.

‘‘मैं बाहर जा कर उसे अंदर बुला लाता हूं. उस के साथ बैठ कर कौफी पिएंगे. तब ही बातोंबातों में हम उस से अपनी बेटी की शादी के बारे मे ंबात कर लेंगे.’’ कह कर पापा बाहर चले गए. मैं शांत खड़ी देखती रही. थोड़ी देर बाद पापा उसे अंदर ले आए. उस ने हम सब को बड़े अदब के साथ सलाम किया. पापा ने उसे ड्राइंगरूम में बैठा कर अम्मी से कौफी लाने को कहा. वे दोनों मुसकराते हुए बातें कर रहे थे. घर में सेल फोन पर वाईफाई लगा हुआ था. कुछ देर बाद उस के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून महसूस होने लगा. वहां बैठेबैठे भी वह मोबाइल पर लगा रहा. साथ ही कौफी पीतेपीते बातें भी करता रहा. लेकिन जल्दी ही उस के चेहरे पर जाने की बेचैनी नजर आने लगी. वह ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था, जैसे कि वह बहुत व्यस्त हो और उसे टे्रन पकड़ने की जल्दी हो.

उस ने जल्दीजल्दी कौफी के घूंट लेने शुरू किए.

‘‘कौफी के लिए धन्यवाद अंकल.’’ फरजान ने कहा.

‘‘धन्यवाद किस लिए?’’ पापा ने पूछा.

‘‘आप ने मुझे घर के अंदर बुलाया, क्योंकि…’’ फरजान बोला.

‘‘यह भी कोई बात है.’’ हम सब हंसने लगे.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि हम तुम्हारी अम्मी से इस बारे में बात कर सकते हैं?’’ पापा ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए पूछा.

‘‘किस बारे में?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम रोज हमारे घर के सामने आ कर खड़े होते हो और लैला को देखते हो इसलिए…’’ पापा के चेहरे पर कुछ चिंता सी झलकने लगी थी.

फरजान के हाथ में कौफी का मग कांपा और उस की कौफी छलक पड़ी. वह घबरा कर जल्दी से उठ खड़ा हुआ.

‘‘नहीं, नहीं प्लीज, मेरी अम्मी से कुछ मत कहना अंकल,’’ उस ने डरते हुए कहा.

‘‘लेकिन क्यों बेटा?’’

‘‘वह मुझ पर नाराज होंगी.’’

‘‘वह क्यों नाराज होंगी? उन्हें तो यह सुन कर बहुत खुशी होगी कि उन के बेटे ने शादी के लिए लड़की पसंद कर ली है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, क्या तुम्हें मेरी बेटी पसंद नहीं है? मैं लैला की बात कर रहा हूं. यह मेरी बेटी लैला.’’ पापा ने मेरी ओर इशारा कर के कहा.

‘‘क्या मजाक कर रहे हैं अंकल. मैं लैला नाम की किसी लड़की को नहीं जानता. आप की बेटी को भी नहीं, न यह कि इन का नाम लैला है.’’

‘‘क्या?’’ पापा भी आश्चर्य से उछल पडे़.

‘‘हां, यही सच है. मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है.’’ फरजान ने जोर दे कर कहा.

‘‘तो फिर मेरे घर के पास आ कर क्या करते थे और ऊपर लैला की खिड़की में क्या देखते रहते थे?’’

फरजान कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘ओह! अब समझ में आया. मैं आप को सच बताता हूं. दरअसल, बात यह है कि मैं वहां खड़े हो कर वाईफाई कनेक्शन का इस्तेमाल करता था और जब भी मेरा फोन हिलता था, कनेक्टीविटी टूट जाती थी. तब स्थिति ठीक करने के लिए मैं ऊपर की ओर देखता था. कभीकभी कनेक्टीविटी आती थी और कभीकभी गायब हो जाती थी. इसी चक्कर में मैं ऊपर देखा करता था. लेकिन लैला की खिड़की की ओर नहीं, यहां खड़े हो कर मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना सीवी भेजता था.’’ फरजान ने विस्तार से अपनी बात बताई.

‘‘तो फिर मेरे बुलाने पर तुम अंदर क्यों आ गए और यहां आ कर तुम ने धन्यवाद भी किया?’’ मेरे पापा ने एक और सवाल दाग दिया.

‘‘दरअसल, आज मुझे सही तरह से कनेक्टीविटी नहीं मिल रही थी. मैं परेशान था और उसी समय आप ने मुझे घर के अंदर आने को कहा तो मुझे बहुत खुशी हुई. क्योंकि यहां अंदर मुझे बेहतर कनेक्टीविटी मिल सकती थी.’’

‘‘और तुम यहां पर बैठ कर अपना सीवी भेजने में व्यस्त थे, क्यों क्या मैं सही कह रहा हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘ओह! मेरे खुदाया.’’ हम में से हर एक के मुंह से बस यही निकला.

इतनी देर में इतने उतारचढ़ाव आ गए थे. हम पता नहीं कहां से कहां तक की सोचने लगे थे.

‘‘तो… अंकल, अब मैं जाऊं? मेरी मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी.’’

‘‘हां, हां बेटा, क्यों नहीं.’’

मैं अभी भी आश्चर्यचकित थी. मुझे बहुत गहरी चोट पहुंची थी, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मैं ने उसे प्यार करना शुरू कर दिया था. मैं सोचती थी कि शायद वह भी मुझ से प्यार करता है. लेकिन वह मेरे लिए नहीं, बल्कि केवल वाईफाई कनेक्टीविटी उपयोग करने के लिए मेरी खिड़की के पास आता था. उस की इस हरकत ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए थे. लगभग 6 महीने बाद एक महिला हमारे घर आई और हमें आश्चर्य में डालते हुए उस ने अपना परिचय फरजान की मां के रूप में दिया. फरजान को एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी और वह उस दिन की बात नहीं भूल पाया था.

उस ने अपने दिल के किसी कोने में मुझे भी जगह दे दी थी. हां, यह सच है कि उसे भी मुझ से प्यार हो गया था. और अब हम दोनों की शादी हो चुकी है और हम एक सुखद और सुंदर जीवन गुजार रहे हैं. मैं जब भी जिंदगी के उस नाटकीय मोड़ को याद करती हूं तो सोचती हूं कि कोई जरूरी नहीं कि दिल के अरमान दिल में ही घुट कर रह जाएं. Romantic Story

Lucknow Crime Story: कलंक का टीका

Lucknow Crime Story: नारायण शरण और प्रियंका उर्फ चंदा ने समाज के विरुद्ध जा कर प्रेम विवाह किया था. नारायण ने मेहनत और लगन से न केवल अपने विवाह को सफल बनाया बल्कि पैसा कमा कर परिवार भी बसा लिया. लेकिन पति के इस प्रेम को भूल कर प्रियंका एक ऐसी दुनिया में रम गई जो उस के लिए नहीं थी. छोटे भाई नारायण शरण ने फोन कर के बुलाया तो हरिशंकर सहाय आधी रात को ही जानकीपुरम स्थित उस के घर जा पहुंचा. लेकिन वहां की स्थिति देख कर उस के होश उड़ गए. नारायण की पत्नी प्रियंका खून से लथपथ फर्श पर बेहोश पड़ी थी, जबकि नारायण घर से गायब था.

हरिशंकर ने घायल प्रियंका को पड़ोसियों की मदद से गाड़ी में डाल कर अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उस की नब्ज देख कर उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन ने प्रियंका की मौत की सूचना पुलिस को दे दी, क्योंकि मृतका की हालत देख कर ही पता चल रहा था कि उस की हत्या हुई है. अस्पताल से सूचना मिलने पर थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह अपनी टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए और प्रियंका की लाश को कब्जे में ले लिया. लाश की फोटो आदि करा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी आर.बी. सिंह पुलिस टीम के साथ नारायण के घर पहुंचे.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मृतका के जेठ हरिशंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि आधी रात को नारायण ने फोन कर के सिर्फ इतना कहा था कि प्रियंका की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, उसे तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ेगा. नारायण की बात सुन कर वह उसी समय उस के घर पहुंच गया. वहां उस के तीनों बच्चे मां की हालत देख कर बुरी तरह रो रहे थे, जबकि नारायण का कुछ अतापता नहीं था. उस ने पड़ोसियों की मदद से प्रियंका को तुरंत अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह हरिशंकर को साथ ले कर थाना जानकीपुरम लौट आए और उस से एक तहरीर ले कर प्रियंका की हत्या का मुकदमा मृतका के पति नारायण शरण श्रीवास्तव के खिलाफ दर्ज करा दिया. नारायण फरार था. अब पुलिस को किसी भी तरह उसे गिरफ्तार करना था. थानाप्रभारी आर.बी. सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया. मुखबिरों की ही बदौलत हत्या के 6 दिनों बाद 27 सितंबर, 2014 को नारायण को गिरफ्तार कर लिया.

थाने में की गई पूछताछ में नारायण शरण ने प्रियंका की हत्या का अपराध तो स्वीकार किया ही, वह चाकू भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने प्रियंका की हत्या की थी. पूछताछ में नारायण ने प्रियंका की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी. नारायण शरण श्रीवास्तव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच के कस्बा जरवल में अपने मातापिता के साथ रहता था. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एक डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा. जब उस ने इंजेक्शन वगैरह लगाना सीख लिया तो अपने घर में क्लीनिक खोल कर वह खुद डाक्टर बन गया.

एक तो वह सस्ता इलाज करता था, दूसरे लोगों को फायदा भी हो जाता था, इसलिए कुछ ही दिनों में उस की डाक्टरी की दुकान चल निकली. एक दिन उस के क्लीनिक में इलाज के लिए एक लड़की आई. उस का नाम चंदा था. नारायण ने उसे दवाएं दीं, जिसे खाने के बाद वह ठीक होने लगी. इस से उसे लगा कि नारायण बहुत अच्छा डाक्टर है. वह अकसर उस के यहां दवा लेने आने लगी. एक तरफ नारायण की दवाओं से चंदा ठीक हो रही थी तो दूसरी तरफ उस की खूबसूरती और मासूम अदाओं ने तथाकथित डाक्टर नारायण के दिल में हलचल मचा दी थी. नारायण भी कदकाठी से ठीकठाक था, इसलिए वह भी चंदा को अच्छा लगता था.

चंदा जब भी उस के यहां दवा लेने आती, घंटों बैठ कर उस से बातें करती रहती. शायद यह उम्र का असर था, क्योंकि दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े थे. इस का नतीजा यह हुआ कि चंदा नारायण से दवा लेने के बहाने लगभग रोज उस के यहां आने लगी. चंदा पड़ोस के गांव के रहने वाले मुश्ताक की बेटी थी. जब उस के मांबाप को बेटी के रोजरोज डा. नारायण से मिलने की जानकारी हुई तो उन्होंने चंदा को ऊंचनीच और परिवार की इज्जत का वास्ता दे कर रोकने की कोशिश की. लेकिन चंदा पर जितनी बंदिशें लगाई गईं, उस के मन में नारायण से मिलने की ललक उतनी ही बढ़ती गई.

चूंकि नारायण और चंदा अलगअलग जाति के ही नहीं, अलगअलग धर्म से भी ताल्लुक रखते थे, इसलिए दोनों के घरवालों ने ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों ने उन के मिलने में रुकावटें डालनी शुरू कर दीं. लेकिन न चंदा को कोई रोक पाया, न नारायण को. जब नारायण और चंदा ने देखा कि उन के मिलने का विरोध कुछ ज्यादा ही हो रहा है तो उन के हाथ जो लगा, उसे ले कर दोनों अपनाअपना घरपरिवार छोड़ कर भाग गए. नारायण चंदा को ले कर दिल्ली आ गया. नारायण पढ़ालिखा समझदार लड़का था. दिल्ली में उस ने रहने की व्यवस्था तो कर ही ली, आमदनी का भी जरिया बना लिय.

धीरेधीरे वह खुद को व्यवस्थित करने की कोशिश कर ही रहा था कि न जाने कैसे चंदा के घर वालों को उस के ठिकाने का पता चल गया. लेकिन चंदा के पिता मुश्ताक उन दोनों तक पहुंचते, उस के पहले ही अपने ऊपर मंडराते खतरे को भांप कर नारायण वहां से चंदा को ले कर मुंबई चला गया. नारायण पढ़ालिखा व होशियार लड़का था. इसलिए वहां भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई. कुछ न कुछ कर के वह इतना कमाने लगा कि दोनों की गुजरबसर आराम से हो सके. 1997 में नारायण चंदा को ले कर हरिद्वार आ गया. यहां उस ने चंदा का नाम बदल कर प्रियंका रख लिया और बकायदा उस से शादी कर ली. शादी करने के बाद नारायण और प्रियंका बाराबंकी आ गए, जहां दोनों ने एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया. जनरल स्टोर में ही वह छोटीमोटी बीमारियों का इलाज भी करने लगा था. इस से उस की कमाई दोहरी हो जाती थी.

ठीकठाक कमाई होने लगी तो घर की स्थिति में काफी सुधार आया. जल्दी ही उस ने घर में सुखसुविधा के तमाम साधन जुटा लिए. समय के साथ प्रियंका एकएक कर के 3 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 बेटे शिवम तथा हर्ष और एक बेटी श्रेया उर्फ गुनगुन थी. दोनों बेटे स्कूल जाने लगे थे, जबकि गुनगुन अभी छोटी थी. बच्चों की वजह से घर का माहौल खुशनुमा हो गया. बच्चों के साथ हंसतेखेलते प्रियंका और नारायण का समय आराम से कट रहा था. बच्चे ठीकठाक स्कूल में पढ़ रहे थे. सब कुछ ठीकठाक था. इस के बावजूद नारायण ने बाराबंकी छोड़ कर लखनऊ में रहने का विचार बनाया. लखनऊ में उस ने जानकीपुरम थानाक्षेत्र स्थित जानकी विहार कालोनी में राजकिशोर का मकान किराए पर लिया और परिवार के साथ रहने लगा. लखनऊ आने के बाद नारायण एलएलबी की पढ़ाई करने के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करने लगा.

एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो रजिस्ट्रेशन करा कर नारायण वकालत करने लगा. साथ में उस का प्रौपर्टी डीलिंग का काम चल ही रहा था. घर आए मरीजों को वह दवा भी दे देता था. इस तरह पैसा कमाने के लिए वह एक साथ 3-3 काम कर रहा था. इस के लिए उसे मेहनत तो करनी पड़ रही थी, लेकिन कमाई खूब हो रही थी. इस कमाई से जल्दी ही उस का और प्रियंका का रहनसहन भी स्तरीय हो गया. नारायण ठाठ से रहने लगा तो प्रियंका भी बनठन कर रहने लगी. नारायण शरण का पूरा दिन दौड़धूप में बीतता था जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. जबकि प्रियंका चाहती थी कि वह भी कालोनी की अन्य महिलाओं की तरह अपने पति के साथ बांहों में बांहें डाल कर लखनऊ के बाजारों में घूमे. लेकिन पति की व्यस्तता की वजह से ऐसा हो नहीं पाता था.

नारायण के 3-3 बच्चे थे. उन का भविष्य संवारने के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. इसलिए उस का ध्यान सिर्फ पैसा कमाने में लगा था. पैसा कमाने के चक्कर में वह यह भूल गया कि घरपरिवार की जरूरतों के अलावा पत्नी की भी कुछ इच्छाएं होती हैं. पति होने के नाते उन्हें पूरा करना उस का फर्ज है. जिस मकान में नारायण परिवार के साथ रहता था, उसी के बगल में किराए के मकान में अवधेश मिश्रा रहता था. 20 वर्षीय अवधेश काफी तेजतर्रार और आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था. वह मूलरूप से जिला सीतापुर के थाना बिसवां के गांव लश्कर का रहने वाला था. लखनऊ में वह छोटीमोटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम कर रहा था. लेकिन उस की उम्र चूंकि काफी कम थी इसलिए लोग उस पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.

नौजवान होने की वजह से काम में उस का मन भी कम लगता था. वह दिनभर बनसंवर कर घूमा करता था. नारायण शरण भी प्रौपर्टी काम करता था और पड़ोस में ही रहता था. इसलिए अवधेश का उस के यहां भी आनाजाना था. वह नारायण की पत्नी प्रियंका को भाभी कहता था. कभीकभी वह अवधेश नारायण की अनुपस्थिति में भी उस के घर आ जाता था. उस स्थिति में वह प्रियंका से बातें करते हुए बच्चों के साथ खेलता रहता. प्रियंका को चूंकि वह भाभी कहता था, इसलिए कभीकभार उस से थोड़ीबहुत हंसीमजाक भी कर लेता था. जबकि प्रियंका अवधेश से खुल कर हंसीमजाक करती थी. अवधेश को प्रियंका का स्वभाव और बातें बहुत अच्छी लगती थीं, इसलिए नारायण के काम पर चले जाने के बाद जब वह घर में अकेली रह जाती तो अवधेश अपना ज्यादातर समय उसी के यहां बिताता.

दिन में प्रियंका के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे तो वह घर में अकेली रह जाती थी. जब वह बोर होने लगती तो बातें करने के लिए या तो खुद ही अवधेश को अपने घर बुला लेती या फिर उसी के कमरे पर चली जाती. एक दिन अवधेश बातचीत करते हुए प्रियंका से हंसीमजाक कर रहा था. बातोंबातों में वह प्रियंका की खूबसूरती के कसीदे काढ़ने लगा. यह देख प्रियंका ने मजाक में अवधेश की बेचैन आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘अवधेश, क्या सचमुच मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं? कहीं तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी झूठी तारीफें तो नहीं कर रहे?’’

अवधेश ने प्रियंका को चाहत भरी नजरों से देखा. वह गहरी नजरों से उसे अपलक निहार रही थी. उस ने महसूस किया कि उस के दिल में जो बातें काफी दिनों से होंठों पर आने के लिए मचल रही हैं, उसे जुबां पर लाने का यह सुनहरा मौका है. दोपहर का वक्त था. प्रियंका के दोनों बेटे स्कूल गए थे और छोटी बेटी गहरी नींद सो रही थी. वह प्रियंका के करीब आया तो प्रियंका ने उसे कमरे का दरवाजा बंद करने का इशारा किया. प्रियंका के इशारे से वह समझ गया कि उस के दिल में उस के लिए भी वही भावना है, जो उस के दिल में प्रियंका के लिए है. अवधेश ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और प्रियंका को बांहों में ले कर उस के खूबसूरत चेहरे को बेतहाशा चूमने लगा.

अवधेश की इस हरकत से प्रियंका मदहोश हो गई और उस की आंखें बंद हो गईं. अवधेश ने जल्दीजल्दी प्रियंका के कपड़े उतारे और खुद भी उसी अवस्था में आ कर उस से लिपट गया. कुछ देर बाद वासना का तूफान शांत हुआ तो दोनों के चेहरों पर तृप्ति के भाव थे. अवधेश ने शरारत से मुसकराते हुए प्रियंका की ओर देखा तो कुछ पल पहले एकसाथ गुजारे हुए पलों की याद आते ही प्रियंका की नजरें नीचे झुक गईं. उस ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और अवधेश को अपने कमरे पर जाने को कहा. अवधेश के मन की मुराद पूरी हो चुकी थी. वह कपड़े पहन कर अपने कमरे पर चला गया.

उस दिन के बाद दोनों को मिलन के मौके का इंतजार रहने लगा. जब भी उन्हें मौका मिलता वे दुनिया की नजरों से छिप कर अपने जिस्म की प्यास बुझा लेते. जब से प्रियंका और अवधेश के संबंध बने थे, उन के रंगढंग काफी बदल गए थे. अब प्रियंका अवधेश का ज्यादा और नारायण का खयाल कम रखती थी. कुछ महीनों तक तो किसी को उन के बीच चल रहे अवैधसंबंधों की जानकारी नहीं हुई, लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. कुछ लोगों ने नारायण तथा बच्चों की अनुपस्थिति में अवधेश को प्रियंका के यहां बारबार आतेजाते देखा तो उन का माथा ठनका.

एक शादीशुदा औरत का एक जवान लड़के से भला क्या रिश्ता हो सकता है? लोगों ने इस बात पर गौर किया कि अवधेश प्रियंका से मिलने तभी जाता है, जब उस का पति नारायण शरण घर के बाहर रहता था. यह बात एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंची. प्रियंका और अवधेश के अवैध संबंधों की चर्चा गर्म होतेहोते एक दिन नारायण शरण के कानों तक भी जा पहुंची. अवधेश के अपने घर में घंटों गुजारने का पता चला तो उसे प्रियंका पर बहुत गुस्सा आया. उस ने प्रियंका से अवधेश के बारबार घर आने और घंटों बैठने का कारण पूछा तो प्रियंका त्रियाचरित्र दिखाते हुए तमक कर बोली, ‘‘अवधेश अच्छे स्वभाव का लड़का है. वह कभीकभार बच्चों के साथ खेलने हमारे घर आ जाता है तो इस में बुराई क्या है?’’

अपनी बीवी को एक गैर युवक की तरफदारी करते देख नारायण शरण के मन में यह बात बैठ गई कि लोग उस की पत्नी और अवधेश के बारे में ऐसीवैसी बातें यूं ही नहीं करते. आग वहीं लगती है, जहां धुआं उठता है. अपने मन में उठ रहे भावों पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘अवधेश तेरा सगा भाई तो है नहीं कि जब चाहे मुंह उठाए हमारे घर में चला आए. जमाना बहुत खराब है. लोग उसे ले कर तुम्हारे बारे में तरहतरह की बातें करते हैं. हम लोग यहां के प्रतिष्ठित लोगों में हैं. तुम्हें अपनी और मेरी प्रतिष्ठा का खयाल रखना चाहिए.चलो मान लिया कि उसे मुझ से कोई काम है तो उसे मेरा मोबाइल नंबर दे कर मुझ से बात करने को कह दो. मैं नहीं चाहता कि मोहल्ले में कोई उसे ले कर तुम्हारे बारे में ऐसीवैसी बातें करे. आज तुम्हें अच्छी तरह समझा देता हूं. मेरी बात का ध्यान रखना, वरना ठीक नहीं होगा.’’

पति के नाराज होने पर प्रियंका ने बात को दबा देने में ही अपनी भलाई समझी, सो उस ने पति के सामने कह दिया कि आज के बाद अवधेश यहां नहीं आएगा. प्रियंका को अच्छी तरह समझाने के बाद नारायण शरण शांत हो गया. लेकिन पति के मना करने के बाद भी प्रियंका नहीं सुधरी. नारायण शरण सुबह काम पर चला जाता, उस के बाद दोनों बच्चे स्कूल चले जाते. उन के जाने के बाद प्रियंका अवधेश को अपने घर बुला लेती. नारायण के धमकाने के बाद प्रियंका थोड़ी सावधानी बरतने लगी थी. पति का गुस्सा शांत होने तक उस ने अवधेश को घर आने से मना जरूर कर दिया था. मगर दोनों ज्यादा दिनों तक एकदूसरे से मिले बिना नहीं रह पाए. जब नारायण शरण कोर्ट के काम से घर से बाहर होता, तो अवधेश प्रियंका से मिलने उस के घर आ जाता.

प्रियंका पर अवधेश का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. इसलिए थोड़े दिनों के बाद जब नारायण शरण का ध्यान उन की ओर से हट गया तो प्रियंका ने अवधेश को खुश करने के लिए पति की गाढ़ी कमाई से सोने की चेन बनवा कर दी. यही नहीं, जब अवधेश ने देखा कि प्रियंका उस पर पूरी तरह मेहरबान है तो उस ने प्रियंका से कहा कि उसे काम पर आनेजाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, अगर वह उसे एक मोटरसाइकल खरीद दे तो उस की काफी मुश्किलें आसान हो जाएंगी. उन दिनों नारायण शरण का काम अच्छा चल रहा था, इसलिए घर में पैसों की कमी नहीं थी. अवधेश मिश्रा के प्यार में पागल प्रियंका ने मन ही मन सोचा कि अगर वह पति की नजरें बचा कर अवधेश को मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपए दे देती है तो उसे पता तक नहीं चलेगा.

फलस्वरूप उस ने अवधेश को मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपए दे दिए. कुछ दिनों बाद नारायण ने जब अवधेश को अपने घर के सामने से नई मोटरसाइकिल पर जाते देखा तो उसे लगा कि आजकल उसे अच्छी कमाई होने लगी है. लेकिन कुछ दिनों बाद जब नारायण ने घर में रखे रुपए गिने तो उस में काफी रुपए कम थे. उस ने इस बारे में प्रियंका से पूछा तो उस ने कहा कि उस के रखे रुपयों में उस ने हाथ तक नहीं लगाया. प्रियंका की बात सुन कर नारायण चुप रह गया. लेकिन उसे यकीन हो गया कि प्रियंका ने उसी के रुपयों से अपने प्रेमी को नई मोटरसाइकिल तथा सोने की चेन दिलाई है. इसी बात को ले कर नारायण ने प्रियंका से सवालजवाब किए तो वह नाराज हो कर मकान में चली गई.

दरअसल, कुछ दिन पहले ही नारायण ने अपना नया मकान बनवाया था जो बन कर तैयार हो गया था. वे लोग कुछ ही दिनों में उस में शिफ्ट होने वाले थे. गुस्से में नारायण ने पूरे दिन प्रियंका को वापस नहीं बुलाया. वह बिना खाएपिए ही वहां पड़ी रही. शाम ढलने पर नारायण यह सोच कर प्रियंका को बुलाने चला गया कि लोगों को उन के झगड़े का पता चलेगा तो उसी की बेइज्जती होगी. पति के द्वारा बुलाए जाने को प्रियंका ने अपनी जीत समझी. घटना वाले दिन नारायण किसी काम से बाहर गया था. देर रात को जब वह घर लौटा तो उस ने देखा कि उस के तीनों बच्चे बाहर सोए थे और घर का दरवाजा अंदर से बंद था.

उस का माथा ठनका. बच्चों को बाहर सुला कर प्रियंका घर में क्या कर रही है? मन में ऐसा विचार आते ही उस ने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी. दरवाजा नहीं खुला तो आवाज दे कर जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अवधेश निकल कर वह अपने कमरे की ओर भागा. बीवी के यार को सामने से भागता देख कर नारायण की आंखों में खून उतर आया. वह अवधेश को मारने के लिए उस के पीछे लपका लेकिन उस की किस्मत अच्छी थी, इसलिए काफी दूर तक पीछा किए जाने के बाद भी वह नारायण के हाथ नहीं लगा.

अवधेश से बच कर निकल जाने से नारायण गुस्से से तमतमाया घर लौटा और प्रियंका के ऊपर बरस पड़ा. प्रियंका उस के चुभते सवालों का जवाब भले नहीं दे सकी, लेकिन बदहवासी में उस ने नारायण के गाल पर तमाचा जड़ दिया. बदचलन बीवी की हिम्मत देख कर वह क्षणभर के लिए अवाक रह गया. लेकिन अगले ही पल उस का धैर्य जवाब दे गया. उस ने पास रखा चाकू उठाया और पूरी ताकत से 2 वार प्रियंका के गले पर और एक वार गाल पर कर दिया. बुरी तरह घायल प्रियंका वहीं फर्श पर गिर कर तड़पने लगी. प्रियंका को तड़पते देख नारायण को होश आया कि मां के बिना उस के तीनों बच्चे तो अनाथ हो जाएंगे.

उस ने तुरंत छठामील पर रहने वाले अपने बड़े भाई हरिशंकर सहाय को फोन किया कि प्रियंका की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा. हरिशंकर जानकीपुरम स्थित नारायण के घर पहुंचे तो नारायण चाकू सहित गायब था. जानकीपुरम के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह ने जरूरी काररवाई के बाद प्रियंका उर्फ चंदा की हत्या के आरोप में उस के पति नारायण शरण को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जेल में बंद नारायण के तीनों बच्चे छठामील स्थित अपने ताऊ के घर रह रहे थे. Lucknow Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Crime : अवैध संबंधों में ली बेटी की जान

Family Crime : दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजनी चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए. उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

पंजाब के अमृतसर के गांव रामपुराफूल से 15 मई, 2023 की रात 10 बजे अमृतसर पुलिस को सूचना मिली कि उन के गांव की 7 साल की अभिरोजप्रीत कौर, जो गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 की छात्रा थी, 15 मई, 2023 की शाम 4 बजे ट्यूशन पढऩे घर से निकली थी, लेकिन वह अपनी ट्यूशन टीचर के पास नहीं पहुंची. वह रास्ते में ही गायब हो गई थी. जब रात के 10 बजे तक भी उस का कोई पता नहीं चला तो उस के घर वालों ने थाने में आ कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज हो जाने के बाद पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस ने गांव में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में एक नया ऐंगल सामने आया. पुलिस को पता चला कि एक आदमी बाइक चला रहा था. बीच में एक बच्ची बैठी थी और बच्ची के पीछे एक औरत थी, जिस ने बच्ची को पकड़ रखा था.

इस बीच पुलिस ने अगवा हुई बच्ची के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू की तो पता चला कि अगवा हुई बच्ची अभिरोजप्रीत कौर के पिता का नाम अजीत सिंह था. अजीत सिंह ने 2 विवाह किए थे. उन का पहला विवाह हरजीत कौर से हुआ था. उन की एक बेटी हुई, जिस का नाम अभिजोतप्रीत कौर रखा गया था. शादी के 2 साल के बाद दोनों में आपस में मनमुटाव होने लगा. दिन प्रतिदिन दोनों के आपसी संबंध बद से बदतर होते जा रहे थे. तब दोनों ने आपसी रजामंदी से संबंध विच्छेद कर दिए. अजीत सिंह ने अपनी पहली पत्नी हरजीत कौर को तलाक दे दिया और बेटी अपने पास रख ली.

उस के बाद अजीत सिंह के घर वालों ने अजीत का दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर दिया. सब ने यही सोचा था कि बेटी अभिजोतप्रीत कौर को एक नई मां मिल जाएगी और अजीत सिंह का जीवन पटरी पर आ जाएगा. ज्योति की एक बेटी हुई जो अभी 3 माह की थी.

मां पर हुआ बेटी की हत्या का शक

पुलिस छानबीन में जब सीसीटीवी फुटेज में एक आदमी और औरत के बीच एक छोटी बच्ची दिखाई दी तो सभी का शक अजीत सिंह की पहली पत्नी हरजीत कौर पर गया, क्योंकि अभिजीतप्रीत कौर उस की बेटी थी. पुलिस पूछताछ में यह सामने आया कि जब से अभिजोतप्रीत कौर घर से गायब हुई थी, इस की खबर उस की सगी मां को मिली थी तो वह भी बहुत चिंतित थी. पुलिस ने हरजीत कौर से पूछताछ की तो वह निर्दोष पाई गई.

इधर 7 वर्षीय अभिजोतप्रीत कौर के अचानक गायब होने के बाद यह मामला सोशल मीडिया में सुर्खियों में छाता जा रहा था. अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां बार बार मीडिया से अपनी बेटी को खोजने की रोरो कर गुहार लगा रही थी. ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की ओर से पुलिस पर दबाव बनाया जा रहा था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जाने लगे थे.

इस के बाद पुलिस इस केस में पूरी मुस्तैदी से जुट गई और अपने मुखबिरों को भी काम पर लगा दिया. इधर अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां ज्योति उस की फोटो मीडिया के सामने प्रस्तुत कर के रोरो कर अपनी बेटी को तलाशने का गुहार लगा रही थी.

सीसीटीवी कैमरे से पुलिस के हाथ लगा एक अहम सुराग

पुलिस ने पूरे गांव को सील कर के घरघर सघन तलाशी का अभियान चलाया. पूरे शहर भर में अभिजोत प्रीत कौर को ढूंढा गया, मगर पुलिस के पास हाथ अब तक कोई भी सुराग नहीं लग पाया था. लेकिन बाद में पुलिस के हाथ एक अहम सुराग लग गया. ज्योति के घर के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे में सौतेली मां ज्योति एक बाल्टी में बच्ची के शव को ले जाते हुए दिखाई दी. उस के करीब 20 मिनट बाद वह खाली बाल्टी ले कर अपने घर पर आती दिखाई दी. सीसीटीवी फुटेज देखने के के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अभिजोतप्रीत कौर के गायब होने में उस की सौतेली मां की भूमिका है.

कत्ल का सबूत हाथ में आते ही अमृतसर पुलिस ने हत्यारी मां ज्योति को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की तो सारा मामला उजागर हो गया. उस ने अभिजोतप्रीत कौर की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उस की निशानदेही पर गांव के स्कूल के पास से बच्ची की लाश बरामद कर ली. इस के बाद एसएसपी सतिंदर सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को अभिजोतप्रीत की हत्या का खुलासा कर दिया.

सौतेली मां देती थी यातनाएं

मृतका अभिरोजप्रीत कौर की नृशंस हत्या की खबर जब लोगों के सामने आई तो लोगों के दिल दहल उठे थे. इस संबंध में जानकारी देते हुए मृतका अभिरोजप्रीत कौर की ट्यूशन टीचर जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर 15 मई को उस के पास ट्ïयूशन के लिए नहीं आई थी. वह गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ती थी. पढ़ाई में वह काफी होशियार थी और स्कूल की हर गतिविधि में हमेशा सब से आगे रहती थी.

जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर की सगी मां उसे छोड़ कर चली गई तो उस के पिता अजीत सिंह ने दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर लिया था. इस के बाद तो उस मासूम बच्ची के ऊपर दुखों और यातनाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा था. सौतेली मां ज्योति उसे यातनाएं दिया करती थी. इस के बारे में जब अभिरोजप्रीत कौर की दादी को पता चला तो वह हर रोज उसे स्कूल में छोडऩे और छुट्टी के वक्त घर लाया करती थीं. दादी का उस के प्रति काफी लगाव था. दादी स्कूल में दिन में भी उसे देखने आती रहती थी. उस की हर बात का, उस के हर सामान, कौपीकिताब, ड्रेस, खानेपीने का दादी विशेष ख्याल रखती थीं.

इस बीच दादी की तबीयत काफी खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. क्योंकि उन के स्टेंट पडऩे थे, इसलिए वह पिछले 10 दिनों से आईसीयू में वेंटिलेटर पर थीं. इसी बात का फायदा उठाते हुए सौतेली मां ज्योति ने अभिरोजप्रीत कौर की हत्या कर डाली. बेटी की मौत पर गमगीन पिता अजीत सिंह को गहरा सदमा लगा. उन्होंने बताया कि यह सोच कर ज्योति से विवाह किया था कि बेटी को भी एक मां मिल जाएगी, जो उस का सही तरह से लालनपालन कर सकेगी. लेकिन ज्योति ने शुरू से ही अभिरोजप्रीत को सच्चा प्यार नहीं दिया. बातबात पर उस से वह नाराज हो जाया करती थी. हर समय वह उसे डांटतीफटकारती रहती थी, इसलिए मेरी बेटी अपनी दादी के कमरे में ही सोया करती थी. दादी उसे बहुत प्यार करती थीं.

मां अवैध संबंधों पर डालना चाहती थी परदा

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि ज्योति की मौसी की बेटी प्रिया (काल्पनिक नाम) गांव के किसी युवक के साथ प्रेम करती थी. उन दोनों प्रेमियों को अभिरोजप्रीत ने एक दिन आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. तब बहन ने यह बात ज्योति को बता दी थी. इस पर ज्योति अभिरोज को यह बात किसी को न बताने की हर समय चेतावनी देती रहती थी. बाद में ज्योति ने यह सोचा कि कहीं अभिरोजप्रीत ने अवैध संबंधों की यह बात घर वालों या गांव के किसी व्यक्ति को बता दी तो उस की बहन और उस के परिवार की सारे गांव में बदनामी हो सकती है. इसलिए उस ने अभिरोजप्रीत कौर का मर्डर करने का फैसला कर लिया.

पता चला कि दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजन चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए. उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

ज्योति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पश कर जेल भेज दिया. ज्योति की मौसेरी बहन का हत्या में कोई सहयोग था या नहीं, इस बारे में पुलिस की जांच की जारी थी. Family Crime

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.