कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – भाग 1

पहली अगस्त, 2022 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. रामपुर जिले के गांव जालिफ नगला की रहने वाली आसिफा और उन की बेटी फायजा ही उस समय घर पर थी. उस दिन फायजा का दोस्त हसन भी उस से मिलने आया हुआ था. इसलिए वह उसी के साथ बैठी थी. थोड़ी देर पहले ही उस ने हसन को चायनाश्ता कराया था. हसन अकसर फायजा से मिलने आता रहता था. उसी समय आसिफा को कोई काम याद आया तो वह दूसरी मंजिल पर चली गई.

वहां जाते ही आसिफा अपने काम में लग गई. आसिफा को काम में लगे कोई आधा घंटा हुआ था, तभी नीचे से फायजा के चीखने की आवाज आई. बेटी के चीखने की आवाज सुनते ही आसिफा पागलों की तरह नीचे की ओर दौड़ी. नीचे आने के बाद उस ने जो मंजर देखा, उसे देखते ही उस की भी चीख निकल गई.

हसन के हाथ में चाकू था. वह उसी चाकू से फायजा पर बेरहमी से वार कर रहा था. चाकू के अनगिनत वार से फायजा के सारे कपड़े खून से तरबतर हो गए थे. बेटी की हालत देख आसिफा ने हसन के हाथ से चाकू छीनने की कोशिश की. लेकिन हसन उन्हें धक्का दे कर भाग गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जो हसन उस की बेटी को जी जान से चाहता है, आज वही उस की जान का दुश्मन बन जाएगा.

हसन के घर से भागते ही आसिफा ने फायजा को संभालने की कोशिश की. लेकिन अधिक खून निकल जाने के कारण वह बेहोश हो गई थी. जब आसिफा को लगा कि फायजा की जान खतरे में है तो उस ने घर के बाहर आ कर सहायता के लिए जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया.

अचानक आसिफा के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर पर जमा हो गए थे. आसिफा ने तभी इस की सूचना अपने पति नन्हे को दी. घर पहुंच कर नन्हे ने गांव वालों की सहायता से बेटी को किसी तरह से अस्पताल पहुंचाया.

लेकिन अस्पताल में डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया था. उस के बाद उस के घर वाले शव ले कर घर चले आए थे. फायजा के शव को घर लाते ही गांव वालों ने इस की सूचना थाना मिलक पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में एसएचओ सत्येंद्र कुमार सिंह नन्हे के घर पहुंच गए. पुलिस ने घर वालों से घटना के बारे में पूछताछ की. मृतका फायजा की अब्बू और अम्मी ने पुलिस को बताया कि उत्तराखंड के सितारगंज निवासी हसन के साथ फायजा की गहरी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के कारण हसन अकसर उन के घर फायजा से मिलने आताजाता रहता था.

आज भी वह उस से मिलने आया हुआ था. उसी दौरान उस ने उस की हत्या कर दी. हसन ने फायजा की हत्या क्यों की, यह उन की समझ में भी नहीं आ रहा.

इस से यह तो साफ हो ही गया था कि हत्यारा हसन ही होगा, क्योंकि उस के बाद वह वहां से फरार भी हो गया था. इस के बावजूद भी पुलिस इस हत्याकांड को ले कर जल्दबाजी में कोई ठोस निर्णय नहीं लेना चाहती थी.

क्योंकि ऐसे मामलों में कई बार प्रेम संबंधों के कारण औनर किलिंग का मामला भी निकल आता है. यही सोच कर पुलिस ने फायजा के घर की बारीकी से जांचपड़ताल की. फायजा के शरीर पर चाकुओं के गहरे घाव थे. पुलिस ने नन्हे के घर की हर जगह जांचपड़ताल की. जिस से साफ जानकारी मिली कि हसन

द्वारा हमला करने के दौरान फायजा

अपने बचाव के कारण इधरउधर भागी थी, जिस के कारण पूरे घर में खून पड़ा हुआ था.

फायजा के घर वालों के अनुसार, उन दोनों के बीच काफी समय से प्रेम संबंध चला आ रहा था. दोनों अलगअलग क्षेत्रों में रहते थे. इसी कारण उन के बीच मोबाइल पर भी बात होती होगी. यही सोच कर पुलिस ने फायजा का मोबाइल मांगा तो उस के घर वालों ने बताया कि हत्या के बाद से ही उस का मोबाइल नहीं मिल रहा. इन दोनों के बीच की सच्चाई जानने के लिए मोबाइल का मिलना जरूरी था.

फायजा के घर वालों के साथ पुलिस ने भी उस के मोबाइल को इधरउधर तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं भी न मिल सका.

इस घटना की सूचना पाते ही एडिशनल एसपी डा. संसार सिंह और सीओ धर्म सिंह मार्छाल भी मौके पर पहुंच गए थे. दोनों ने नन्हे के घर पहुंचते ही उन से घटना की सारी जानकारी जुटाई. मृतका के मोबाइल से पुलिस को केस से संबंधित जानकारी मिल सकती थी, इसलिए पुलिस को जब उस का मोबाइल फोन नहीं मिला तो उस नंबर पर काल लगाने की कोशिश की तो वह बंद आ रहा था.

एकबारगी तो पुलिस को शक हुआ कि शायद हसन ही उस का मोबाइल अपने साथ ले गया होगा. लेकिन फिर भी पुलिस ने मोबाइल का पता लगाने के लिए डौग स्क्वायड टीम को मौके पर बुला लिया.

मृतका के शव को सुंघा कर उसे छोड़ा गया तो उस की सहायता से मोबाइल उसी कमरे के एक कोने में पड़े कपड़ों के नीचे मिल गया. फायजा का मोबाइल मिलते ही पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकाली तो उस के मोबाइल पर ऐसे 2 नंबर मिले, जिन पर वह रातदिन कईकई बार  बात करती थी. इन में एक नंबर हसन का था और दूसरा लखनऊ निवासी किसी अन्य युवक का.

तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत ने पहुंचा दिया मौत के पास – भाग 1

24 साल की तनु का रंग हालांकि बहुत साफ नहीं था, लेकिन कुदरत ने उसे कुछ इस तरह गढ़ा था कि जो भी उसे देखता, एक ठंडी आह भरने से खुद को रोक नहीं पाता था. सांवले सौंदर्य की मालकिन तनु के जिस्म की कसावट और फिगर देख मनचले गहरी सांसें लेते हुए फिकरे कसते थे तो खुद को शरीफजादा कहलाने और दिखलाने वाले भी उस की खिलती जवानी का नेत्रपान चोरीछिपी ही सही, करते जरूर थे.

किसी भी लड़की की छवि ऐसी जैसी कि ऊपर बताई गई है, यूं ही नहीं मन जाती, बल्कि इस में खुद उस के स्वभाव का भी बड़ा हाथ होता है. तनु खुले स्वभाव की लगभग उच्छृंखल युवती थी, जो किसी बंधन में नहीं बंधतीं. लेकिन एक ऐसे मजबूत सहारे की जरूरत उसे हमेशा महसूस होती रहती थी, जो उसे दुनियाजहान की दुश्वारियों से महफूज रखे.

आमतौर पर तनु जैसी महत्त्वाकांक्षी युवतियां जो सपने देखती हैं, उन्हें किसी भी शर्त पर या कोई भी जोखिम उठा कर पूरे करना भी जानती हैं. पर इस के लिए जो कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है, वह कभीकभी इतनी भारी पड़ जाती है कि सौदा अंतत: उनके लिए घाटे का साबित होता है. तब उन के पास हाथ मलने और अपनी नादानियों पर पछताने के सिवाय कुछ भी नहीं रह जाता. जिंदगी को कुछ इसी तरह हलके में लेने की कीमत तनु ने कैसे चुकाई, यह जानने से पहले तनु के बारे में जान लेना जरूरी है.

इंदौर के गोयलनगर स्थित अड़ोसपड़ोस अपार्टमेंट में रहने वाली तनु राजौरिया की उम्र तब महज 11 साल थी, जब उस की मां का निधन हो गया था. इस उम्र में लड़कियां शारीरिक और मानसिक बदलावों के दौर से गुजरते हुए तनाव में रहती हैं. ऐसे में मां की कमी उन्हें और असुरक्षित बना देती है. यही तनु के साथ भी हुआ.

तनु के पिता श्याम सिंह राठौर ने दूसरी शादी नहीं की. लेकिन इस बात का अंदाजा उन्हें था कि इस उम्र की बेटी की परवरिश कर पाना उन के लिए आसान नहीं है. लिहाजा उन्होंने उसे अपनी साली यानी तनु की मौसी अनीता के पास भेज दिया. अनीता श्याम सिंह की इस उम्मीद पर खरी उतरीं कि सौतेली मां से बेहतर सगी मौसी होती है.

तनु को पालनेपोसने में अनीता ने न कोई कसर रखी, न भेदभाव किया. लेकिन तनु जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे अपनी मरजी की मालकिन होती गई. अनीता ने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि अपनी दिवंगत बहन की बेटी को बेहतर संस्कार दें, पर जवान होती तनु के सपने आम लड़कियों से कुछ हट कर थे. मौसी के घर कौशल्यापुरी में तनु ने जवानी में कदम रखा तो उस के इर्दगिर्द लड़कों की भीड़ जमा होने लगी.

तनु हर किसी को भले घास नहीं डालती थी, लेकिन उस की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं होने लगे थे. वजह थी एक छरहरी युवती का भरे मांसल बदन का होना, उस की लंबी नाक और बड़ीबड़ी आंखें और पतले होंठों पर पसरी एक शोख मुसकराहट किसी का भी दिल धड़का देने के लिए काफी थी.

हालत यह थी कि मोहल्ले का हर लड़का तनु की नजदीकियां पाने को बेताब रहने लगा. लेकिन कोई भी तनु के तयशुदा पैमानों पर खरा नहीं उतर रहा था. उसे जो बातें अपने सपने के हीरो में चाहिए थीं, वे आखिरकार उसे दिखीं चंदन राजौरिया में.

चंदन कांग्रेस का छोटामोटा नेता और पेशे से प्रौपर्टी ब्रोकर था. वह दबंग भी था, जिस से दूसरे लड़के उस से खौफ खाते थे. 2-4 मुलाकातों में ही तनु ने उसे और उस ने तनु को दिल दे दिया. आजकल की लड़कियों को जैसे लड़के भाते हैं, चंदन ठीक वैसा ही था. माशूका का खयाल रखने वाला, उस पर पैसे लुटाने वाला और सजसंवर कर रहने वाला. लच्छेदार बातों और वादों में भी वह माहिर था.

तनु अब हवा में उड़ने लगी थी, पर उस की शुरू होती प्रेमकथा के किस्से शायद उड़तेउड़ते पिता श्याम सिंह के कानों तक पहुंच गए थे, इसलिए उन्होंने बेटी की शादी अहमदाबाद के एक तेल, गुड़ व्यापारी से न केवल तय कर दी, बल्कि कर भी दी. तनु और चंदन प्यार के रास्ते पर अभी इतने दूर नहीं पहुंचे थे कि वापस न लौट पाएं. तनु शादी कर के अहमदाबाद चली गई तो चंदन अपनी नेतागिरी और प्रौपर्टी डीलिंग के छोटेमोटे कामों में लग गया. पर दोनों ही एकदूसरे को भूल नहीं पाए.

ससुराल में तनु का मन नहीं लगा. वजह जैसी जिंदगी और पति उसे चाहिए था, वह उसे नहीं मिला. दुकानदार पति सुबह दुकान पर चला जाता तो देर रात को लौटता था. अकेली वह खीझ उठती. तनु के लिए शादीशुदा जिंदगी के मायने होटलिंग, शौपिंग और मौजमस्ती भर थे, जो पूरे नहीं हुए तो वह पति से बातबात पर कलह करने लगी. इस से जल्दी ही दांपत्य टूटने की कगार पर आ पहुंचा. यही वह चाहती भी थी, लेकिन इस की वजह कुछ और थी.

वजह था उस का पूर्व प्रेमी चंदन राजौरिया. शादी के बाद पहली बार विदा हो कर तनु मायके इंदौर आई तो चंदन से सामना होने पर दबा प्यार जाग उठा. कहां वह बोर दुकानदार पति और कहां यह बिंदास चंदन.

चालाक चंदन ने जल्दी ही तनु की इस कशमकश भांप ली और उस की गदराई जवानी हासिल करने का उसे यह सुनहरा मौका लगा. लिहाजा पहले तो उस ने तनु की ख्वाहिशों को हवा दी और फिर उन्हें पूरा करने के लिए शादी की पेशकश कर डाली.

तनु के लिए तो यह अंधा क्या चाहे, दो आंखें जैसी बात थी. पर चंदन से शादी करने के लिए जरूरी था पति से तलाक हो, जो आजकल खासतौर से नई पत्नियों के लिए मुश्किल काम नहीं है. तनु दोबारा अहमदाबाद गई तो चंदन के प्यार में महक रही थी. उस ने पति से की जाने वाली कलह की तादाद बढ़ा दी. फलस्वरूप तलाक मांगा तो पति को भी मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि वह तनु की बेहूदा हरकतों और रोजरोज की कलह से आजिज आ चुका था.

तलाक के बाबत तनु ने पति से 5 लाख रुपए मांगे तो उस ने खुशीखुशी दे कर पत्नी से छुटकारा पा लिया. तनु इंदौर वापस आई तो चंदन और उस की मां शादी के लिए तैयार बैठे थे. पति से लिए 5 लाख रुपए उस ने चंदन को दे दिए. कुछ दिनों बाद चंदन ने वादा निभाते हुए उस से शादी कर ली. चंदन की मां राजकुमारी से उस की अच्छी पटरी बैठती थी.

ब्लैकमेलिंग का साइड इफेक्ट

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करती.

मिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं आ गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और आ भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोला.  इस के बाद रजनी अपने घर आ गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी.

ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग

38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी.

उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’

रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात न कहें.

यह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की.

‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है.

रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था.

सुबह होते ही उस का फोन आ गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी.

अपने आप बुलाई मौत

18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है.

गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली.

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित न बच सके.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे.

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में आ गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी.

उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी.

गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया.

दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं. पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

बिखर गई खुशी : जब प्रेमी आया करियर के बीच

15 जुलाई, 2019 की सुबह के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे. महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर के ग्रामीण इलाके के सावली गांव की पुलिस पाटिल (चौकीदार) ज्योति कोसरकर अपने घर पर बैठी थी, तभी उस के पास गांव का एक आदमी आया और उस ने घबराई आवाज में उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चौंक उठी.

वह बिना देर किए उस आदमी को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर स्तब्ध रह गई. पाटुर्णा-नागपुर एक्सप्रैस हाइवे से करीब 25 फीट की दूरी पर गड्ढे में एक युवती का शव पड़ा हुआ था, जिस की उम्र करीब 19-20 साल के आसपास थी. युवती के ब्रांडेड कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी अच्छे घर की रही होगी.

उस की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस का चेहरा एसिड से जला कर विकृत कर दिया गया था. उस का एक हाथ गायब था, जिसे देख कर लग रहा था कि संभवत: उस का हाथ रात में किसी जंगली जानवर ने खा लिया होगा. घटनास्थल को देख कर यह बात साफ हो गई थी कि उस युवती की हत्या कहीं और की गई थी.

पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर लाश को देख ही रही थी कि वहां आसपास के गांवों के काफी लोग एकत्र हो गए.

ज्योति कोसरकर ने वहां मौजूद लोगों से उस युवती के बारे में पूछा तो कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. आखिर ज्योति कोसरकर ने लाश मिलने की खबर स्थानीय ग्रामीण पुलिस थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मद्दामी, एएसआई अनिल दरेकर, कांस्टेबल राजू खेतकर, रवींद्र चपट आदि को साथ ले कर तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर से लाश की जानकारी ली और शव के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

वह युवती कौन और कहां की रहने वाली थी, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. टीआई सुरेश मद्दामी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) राकेश ओला, डीसीपी मोनिका राऊत, एसीपी संजय जोगंदड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए.

फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. कुछ देर बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी वहां पहुंच गई. जांच टीमों ने मौके से सबूत जुटाए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद टीआई सुरेश मद्दामी और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे ने अपनी और उस युवती की शिनाख्त छिपाने की पूरीपूरी कोशिश की है.

जिस तरह उस युवती की हत्या हुई थी, उस में प्यार का ऐंगल नजर आ रहा था. हत्यारा युवती से काफी नाराज था. शव देख कर यह बात साफ हो गई थी कि युवती शहर की रहने वाली थी.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच इस केस की जांच में जुट गईं.

पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह अपनी जांच कहां से शुरू करे. क्योंकि जांच के नाम पर उस के पास कुछ नहीं था. केवल युवती के बाएं हाथ पर लव बर्ड (प्यार के पंछी) और सीने पर क्वीन (दिल की रानी) के टैटू के अलावा कोई पहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने हार नहीं मानी.

पुलिस ने मृतक युवती की शिनाख्त के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो बहुत जल्द सफलता मिल गई. इस से न सिर्फ मृतका की शिनाख्त हुई बल्कि 10 घंटों के अंदर ही क्राइम ब्रांच ने अपने अथक प्रयासों के बाद मामले को सुलझा भी लिया.

पुलिस ने जब मृतका की फोटो सोशल मीडिया पर डाली तो जल्द ही वायरल हो गई. एक से 2, 2 से 3 ग्रुपों से होते हुए मृत युवती का फोटो जब फुटला तालाब परिसर में स्थित एक पान की दुकान पर पहुंचा तो दुकानदार ने फोटो पहचान लिया.

फोटो उभरती हुई मौडल खुशी का था. पान वाले ने खुशी को कई बार एक स्मार्ट युवक के साथ घूमते और धरेरा होटल में आतेजाते देखा था.

यह जानकारी जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार को मिली तो वह और ज्यादा सक्रिय हो गए. उन्होंने उस युवती की सारी जानकारी कुछ ही समय में इकट्ठा कर ली. उन्होंने खुशी के इंस्टाग्राम को खंगाला तो ठीक वैसा ही टैटू खुशी के हाथ और सीने पर मिल गया, जैसा कि मृत युवती के शरीर पर था. इस से यह साबित हो गया कि वह शव खुशी का ही था.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को खुशी के इंस्टाग्राम प्रोफाइल में उस का पूरा नाम और उस के बारे में जानकारी मिल गई. उस का पूरा नाम खुशी परिहार था. वह अपनी मौसी के साथ रहती थी और राय इंगलिश स्कूल और जूनियर कालेज में बी.कौम. अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह पार्टटाइम मुंबई और नागपुर में मौडलिंग करती थी.

खुशी की शिनाख्त से पुलिस और क्राइम ब्रांच का सिरदर्द तो खत्म हो गया था. अब जांच अधिकारियों के आगे खुशी परिहार के हत्यारों तक पहुंचना था. पुलिस ने जब खुशी की मौसी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि खुशी कई महीनों से उन के साथ नहीं है. वह अपने दोस्त अशरफ शेख के साथ लिवइन रिलेशन में वेलकम हाउसिंग सोसायटी, हजारीबाग पहाड़गंज गिट्टी खदान के पास रही थी.

पुलिस ने जब मौसी को खुशी की हत्या की खबर दी तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं और उन्होंने अपना संदेह अशरफ शेख पर जाहिर किया. उन का कहना था कि घटना की रात अशरफ शेख ने उन्हें फोन कर बताया था कि खुशी और उस के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. वह उस से नाराज हो कर अपने गांव चली गई है.

क्राइम ब्रांच टीम को खुशी की मौसी की बातों से यह पता चल गया कि मामले में किसी न किसी रूप में अशरफ शेख की भूमिका जरूर है. अत: क्राइम ब्रांच ने अशरफ शेख का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

इस के अलावा शहर के सभी पुलिस थानों को अशरफ शेख के बारे में जानकारी दे दी गई. इस का नतीजा यह हुआ कि अशरफ शेख को गिट्टी खदान पुलिस की सहायता से कुछ घंटों में दबोच लिया गया.

अशरफ शेख को जब क्राइम ब्रांच औफिस में ला कर उस से पूछताछ की गई तो वह जांच अधिकारियों को भी गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब सख्ती की तो वह फूटफूट कर रोने लगा और अपना गुनाह स्वीकार कर के मौडल खुशी परिहार की हत्या करने की बात मान ली. उस ने मर्डर मिस्ट्री की जो कहानी बताई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी.

21 वर्षीय अशरफ शेख नागपुर के आईबीएम रोड गिट्टी खदान इलाके का रहने वाला था. उस का पिता अफसर शेख ड्रग तस्कर था. अभी हाल ही में उसे नागपुर पुलिस ने करीब 400 किलोग्राम गांजे के साथ गिरफ्तार किया था. अशरफ शेख उस का सब से छोटा बेटा था.

बेटा नशे के धंधे में न पड़े, इसलिए अफसर ने उसे गिट्टी खदान में एक बड़ा सा हेयर कटिंग सैलून खुलवा दिया था. लेकिन उस हेयर कटिंग सैलून में अशरफ शेख का मन नहीं लगता था. वह शानोशौकत के साथ आवारागर्दी करता था. खूबसूरत लड़कियां उस की कमजोरी थीं.

अपने सभी भाइयों में सुंदर अशरफ रंगीनमिजाज युवक था. यही कारण था कि अपने दोस्तों की मार्फत वह शहर की महंगी पार्टियों और फैशन शो वगैरह में जाने लगा था.

इसी के चलते उस की कई मौडल लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. एक फैशन शो में उस ने जब खुशी को देखा तो वह उस का दीवाना हो गया. खुशी से और ज्यादा नजदीकियां बनाने के लिए वह उस की हर पार्टी और फैशन शो में जाने लगा था.

19 वर्षीय खुशी परिहार मध्य प्रदेश के जिला सतना के एक गांव की रहने वाली थी. उस के पिता जगदीश परिहार सर्विस करते थे. वह खुशी को एक अच्छी शिक्षिका बनाना चाहते थे लेकिन खुशी तो कुछ और ही बनना चाहती थी.

खुशी जितनी खूबसूरत और चंचल थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह बचपन से ही टीवी सीरियल्स, फिल्म और मौडलिंग की दीवानी थी. वह जब भी किसी मैगजीन और टीवी पर किसी मौडल, अभिनेत्री को देखती तो उस की आंखों में भी वैसे ही सतरंगी सपने नाचने लगते थे.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण परिवार खुशी को प्यार तो करता था, लेकिन उस के अरमानों को देखसुन कर घर वाले डर जाते थे. क्योंकि उन में बेटी को वहां तक पहुंचाने की ताकत नहीं थी.

यह बड़े शहर में रह कर ही संभव हो सकता था. गांव के स्कूल से खुशी ने कई बार ब्यूटी क्वीन का अवार्ड अपने नाम किए थे लेकिन उस की चमक गांव तक ही सीमित थी.

खुशी बचपन से ही अपनी मौसी के काफी करीब थी. उस की मौसी नागपुर में रहती थीं. वह भी खुशी के शौक से अनजान नहीं थीं. उन्होंने खुशी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और 10वीं पास करने के बाद उसे अपने पास नागपुर बुला लिया.

नागपुर आ कर जब उस ने अपना पोर्टफोलियो विज्ञापन एजेंसियों को भेजा तो उसे इवन फैशन शो कंपनी में जौब मिल गई. जौब मिलने के बाद खुशी ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी. उस ने नागपुर के जानेमाने स्कूल में एडमिशन ले लिया. अब खुशी अपनी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम विज्ञापन कंपनियों और फैशन शो के लिए काम करने लगी.

धीरेधीरे खुशी की पहचान बननी शुरू हुई तो उस के परिचय का दायरा भी बढ़ने लगा. फैशन और मौडलिंग जगत में उस के चर्चे होने लगे. धीरेधीरे सोशल मीडिया पर उस के हजारों फैंस बन गए थे. खुशी भी उन का दिल रखने के लिए उन का मैसेज पढ़ती थी और अपने हिसाब से जवाब भी देती थी. वह अपने नएनए पोजों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी.

इस तरह नागपुर आए उसे 3 साल गुजर गए. अब उस का बी.कौम. का अंतिम वर्ष था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूरी तरह मौडलिंग और टीवी की दुनिया में उतरती, इस के पहले ही उस की जिंदगी में मनचले अशरफ शेख की एंट्री हो गई.

अपने प्रति अशरफ शेख की दीवानगी देख कर खुशी भी धीरेधीरे उस के करीब आ गई. कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अशरफ शेख दिल खोल कर खुशी पर पैसा बहा रहा था. वह उस की हर जरूरत पूरी करता था.

अशरफ शेख और खुशी की दोस्ती की खबर जब खुशी के परिवार वालों और मौसी तक पहुंची तो उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया. उन्होंने उसे समझाया भी. चूंकि अशरफ दूसरे धर्म का था, इसलिए उसे समाज और रिश्तों के विषय में भी बताया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. खुशी अशरफ शेख के प्यार में गले तक डूब चुकी थी.

मौसी और परिवार वालों की बातों पर ध्यान न दे कर वह अशरफ शेख के लिए मौसी का घर छोड़ कर उस के साथ गिट्टी खदान में किराए का मकान ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

अब खुशी पूरी तरह से आजाद थी. कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. अशरफ शेख उस का बराबर ध्यान रखता था. उसे उस के कालेज और फैशन शो में ले कर जाता था.

बाद में खुशी ने तो अपना नाम भी बदल कर जास शेख रख लिया था. प्यार का एहसास दिलाने के लिए उस ने हाथ और दिल पर टैटू भी बनवा लिए थे.

खुशी अशरफ शेख के साथ खुश थी. वह मौडलिंग के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाने में लगी  थी. उस का सपना था कि वह सुपरमौडल बने, जिस से देश भर में उस का नाम हो. लेकिन अशरफ शेख ने जब से खुशी के साथ निकाह करने का फैसला किया था, दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी.

इस की वजह यह थी कि अशरफ नहीं चाहता था कि खुशी बाहरी लोगों से मिले और देर रात तक घर से बाहर रहे. वह अब खुशी के हर फैसले में अपनी टांग अड़ाने लगा था. वह चाहता था कि खुशी अब मौडलिंग वगैरह का चक्कर छोड़े और सारा दिन उस के साथ रहे और मौजमस्ती करे.

लेकिन खुशी को यह सब मंजूर नहीं था. उस का कहना था कि उस ने जो सपना बचपन से देखा है, उसे हर हाल में पूरा करना है. मौडलिंग की दुनिया में वह अपने आप को आकाश में देखना चाहती थी, जो अशरफ को गवारा नहीं था. इसी सब को ले कर अब खुशी और अशरफ के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों में अकसर तकरार और छोटेमोटे झगड़े भी होने लगे थे.

अशरफ को यकीन हो गया था कि खुशी अपने इरादों से पीछे हटने वाली नहीं है. अब तक वह खुशी पर बहुत रुपए खर्च कर चुका था और खुशी उस का अहसान मानने को तैयार नहीं थी. खुशी का मानना था कि प्यार में पैसों का कोई मूल्य नहीं होता.

यह बात अशरफ को चुभ गई थी. उस ने अपने 5 महीनों के प्यार और दोस्ती को ताख पर रख दिया और घटना के 2 दिन पहले 12 जुलाई, 2019 को अपनी कार नंबर एमएच03ए एम4769 से खुशी को ले कर एक लंबी ड्राइव पर निकल गया.

दोनों नागपुर शहर से काफी दूर ग्रामीण इलाके में आ गए थे. कुछ समय वह पाटुर्णानागपुर रोड पर यूं ही कार को दौड़ाता रहा फिर दोनों ने सावली गांव के करीब स्थित कलमेश्वर इलाके के शर्मा ढाबे पर  खाना खाया और जम कर शराब पी.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इलाका सुनसान हो गया था. कार में बैठने के बाद अशरफ शेख ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया, जिस से खुशी नाराज हो गई. खुशी पर भी नशा चढ़ गया था. उस का कहना था कि वह आजाद थी और आजाद रहेगी. वह जिस पेशे में है, उस में उसे हजारों लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है. उन का कहना मानना पड़ता है. अगर तुम्हें मुझ से कोई तकलीफ है तो तुम मुझ से बे्रकअप कर सकते हो.

‘‘मुझे लगता है कि अब तुम्हारा मन मुझ से भर गया है और तुम किसी और की तलाश में हो.’’ अशरफ बोला.

‘‘यह तुम्हारा सिरदर्द है मेरा नहीं. मैं जैसी पहले थी अब भी वैसी ही रहूंगी.’’ खुशी ने कहा तो दोनों की कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई. उसी समय अशरफ अपना आपा खो बैठा और कार के अंदर ही खुशी के सिर पर मार कर उसे बेहोश कर दिया.

खुशी के बेहोश होने के बाद अशरफ इतना डर गया कि वह अपनी कार सावली गांव के इलाके में एक सुनसान जगह पर ले गया और उस ने खुशी को हाइवे किनारे जला दिया.

इस के बाद अपनी और खुशी की पहचान छिपाने के लिए उस ने कार के अंदर से टायर बदलने का जैक निकाल कर उस का चेहरा विकृत किया और उस के ऊपर बैटरी का एसिड डाल दिया.

खुशी का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने खुशी का मोबाइल अपने पास रख लिया, जिसे क्राइम टीम ने बरामद कर लिया था. इस के बाद वह आराम से अपने घर चला गया और खुशी की मौसी को फोन पर बताया कि उस का और खुशी का झगड़ा हो गया है. वह अपने गांव चली गई है.

उस का मानना था कि 2-4 दिनों में खुशी के शव को जानवर खा जाएंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. लेकिन यह उस की भूल थी. वह क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार के हत्थे चढ़ गया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने अशरफ से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे केलवद ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मट्टामी को सौंप दिया. आगे की जांच टीआई सुरेश मट्टामी कर रहे थे. 

प्रेमिका से छुटकारा पाने की शातिर चाल – भाग 3

हेमंत दिमाग से माधुरी के साथ खेल रहा था, जबकि वह दिल की खुशी के चक्कर में अच्छाबुरा सोचे बिना डगमगा गई. वह उसे अपने इशारों पर नचा रहा था. माधुरी उस की हर बात मानती थी और हद दरजे का विश्वास करती थी. हेमंत के कहे अनुसार, माधुरी राहुल के साथ भागी भी और शादी भी कर ली. दोनों पकड़े भी गए. उन्हें पकड़वाने में हेमंत ने ही अहम भूमिका निभाई थी.

उस ने माधुरी से पीछा छुड़ाने की योजना मन ही मन पहले ही तैयार कर ली थी. इतना सब तमाशा होने के बाद वह घर आई तो उस ने हेमंत को शादी की बात याद दिलाई. बदनामी, परिवार की डांटफटकार माधुरी ने सिर्फ हेमंत से शादी करने के लिए सही थी. हेमंत उसे प्यार से समझाबुझा कर पीछा छुड़ाने के बजाए उस के सपनों को और भी ऊंचाई दे कर बरगलाने का काम करता रहा. उस के कहने पर माधुरी राहुल से पिता के मोबाइल से बातें करती रही.

22 दिसंबर को हेमंत ने माधुरी से कहा था कि अगले दिन वह घर से निकल कर गांव के बाहर तय जगह पर पहुंच जाए. उसे लगता था कि माधुरी ऐसा नहीं करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. माधुरी उस के झूठे प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह उस खेत पर पहुंच गई, जहां उस ने पहुंचने को कहा था. माधुरी ने यह बात हेमंत को फोन कर के बता भी दी. वह खेत गांव के किसान डंकारी सिंह का था. हेमंत ने पहले ही तय कर लिया था कि उसे क्या करना है. माधुरी उस के गले की फांस बन चुकी थी. शाम करीब 4 बजे वह खेत पर पहुंचा और माधुरी को कंबल तथा बाजार से ला कर खाना दे आया.

हेमंत ने उसे समझाने के बजाए बरगलाते हुए कहा, ‘‘माधुरी, मैं माहौल देख लूं. पहले तो राहुल को जेल भिजवाना जरूरी है. उस के बाद हम निकल चलेंगे. लेकिन तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा.’’

माधुरी ने इस कड़ाके की ठंड में वह रात अकेली खेतों में बिताई. हेमंत उस के लिए खाना पहुंचाता रहा. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह माधुरी के घर वालों के साथ खड़ा रहा और उन्हें राहुल के खिलाफ भड़काता रहा. 2 दिन बीत गए. अब माधुरी को खेत में रहना मुश्किल लगने लगा. आखिर उस के सब्र का बांध टूट गया.

तीसरे दिन यानी 26 दिसंबर की शाम माधुरी हेमंत से चलने की जिद करने लगी तो प्यार जताने के बहाने उस ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. हेमंत का यह रूप देख कर माधुरी के होश उड़ गए. बचाव के लिए विरोध करते हुए उस ने हाथपैर भी चलाए, लेकिन हेमंत ने गले में लिपटा दुपट्टा पूरी ताकत से कस दिया था, जिस से छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. हत्या कर के हेमंत ने अपने और माधुरी के मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ दिया और घर आ गया. रात को वह बहाने से निकला और गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया. इस के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगा.

लोगों के शक से बचने के लिए वह अपने काम पर भी जाता और माधुरी के पिता के साथ बैठ कर माधुरी को ले कर फिक्र भी जताता. हेमंत को पूरा विश्वास था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा. उसे लगता था कि दबाव में आ कर पुलिस राहुल और उस के दोस्तों को जेल भेज देगी. उस के बाद माधुरी की खोजबीन ठंडे बस्ते में चली जाएगी. इसीलिए उस ने माधुरी के घर वालों को पुलिस अधिकारियों के यहां प्रदर्शन करने के लिए उकसाया था.

यह अलग बात थी कि एसपी सुजाता सिंह की समझ से पुलिस ने किसी दबाव में काम नहीं किया और वह पकड़ में आ गया. यह भी सच है कि अगर पुलिस बारीकी से जांच न करती तो हेमंत कभी पकड़ा न जाता. उस की फरेबी फितरत और हैवानियत ने पूरे गांव को हैरान कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. माधुरी हेमंत जैसे शातिर के झांसे में न आई होती और बिना डगमगाए अपने भविष्य को संवारने में लगी होती तो यह नौबत कभी न आती.

हेमंत जैसे लोग अपनी घिनौनी सोच को पूरी करने के लिए भोलीभाली लड़कियों को फंसाने का काम करते हैं. जरूरत है, लड़कियों को ऐसे लोगों से सावधान रहने की.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अल्हड़पन के दीवानों का हश्र

20 साल की रूबी लखनऊ के आशियाना इलाके में नौकरी करती थी. देखने में वह बहुत सुंदर भले ही नहीं थी, पर उस में चुलबुलापन जरूर था. यानी सांवले रंग में भी तीखापन, जो सहज ही किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. दिल खोल कर बात करने की उस की अदा से सब को लगता था कि रूबी उसे ही दिल दे बैठी है.रूबी अपने गांव से शहर आई थी. उसे अपने हुनर से ही गुजरबसर करने लायक जमीन तैयार करनी थी. वह बहुत सारे लोगों से मिलतीजुलती थी, जिन में से एक आनंद भी था. उम्र में वह रूबी से करीब 10 साल बड़ा था. इस के बाद भी रूबी और आनंद की आपस में गहरी दोस्ती हो गई.

रूबी काम पर जाती तो उसे लाने ले जाने का काम आनंद ही करता था. रूबी को भी इस से सहूलियत होती थी. उसे वक्तबेवक्त आनेजाने में कोई डर नहीं रहता था. एक तरह से रूबी को ड्राइवर और गार्ड दोनों मिल गए थे.

दोस्ती से शुरू हुई यह मुलाकात धीरेधीरे रंग लाने लगी. वक्त के साथ दोनों के संबंध गहराने लगे. आनंद चाहता था कि रूबी केवल उस के साथ ही रहे पर रूबी हर किसी से बातें करती थी. उस के खुलेपन से बातें करने से हर किसी को लगता था कि रूबी उस की खास हो गई है.

आनंद और रूबी का चक्कर चल ही रहा था कि वह इंद्रपाल के संपर्क में आ गई. इंद्रपाल उस के साथ काम करता था. अब रूबी कभीकभी आनंद के बजाय इंद्रपाल के साथ आनेजाने लगी. आनंद और इंद्रपाल में अंतर यह था कि इंद्रपाल रूबी की उम्र का ही था.

सीतापुर जिले का रहने वाला इंद्रपाल नौकरी करने के लिए लखनऊ आया था. आनंद को रूबी और इंद्रपाल का आपस में घुलनामिलना पसंद नहीं आ रहा था. वह सोच रहा था कि किसी दिन रूबी को समझाएगा.

एक दिन रूबी और इंद्रपाल शाम को आशियाना के किला चौराहे पर चाट के ठेले पर खड़े पानीपूरी खा रहे थे. रूबी को पानीपूरी बहुत पसंद थी. इत्तफाक से आनंद ने दोनों को देख लिया तो उसे गुस्सा आ गया.

जब रूबी आनंद से मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम आजकल अपने नए दोस्त से कुछ ज्यादा ही घुलमिल रही हो. यह मुझे पसंद नहीं है. अगर मुझ में कोई कमी हो तो बताओ, लेकिन तुम्हारा इस तरह से किसी और के साथ समय गुजारना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘तुम भी क्याक्या सोचते रहते हो, हम दोनों केवल साथी हैं. कभीकभी उस के साथ घूमने चली जाती हूं, इस से तुम्हारेमेरे संबंधों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम परेशान मत हो.’’

‘‘देखो, तुम्हें फर्क भले न पड़ता हो पर मुझे पड़ता है. मैं इसे सहन नहीं कर सकता. मेरे जानने वाले कहते हैं कि देखो तुम्हारे साथ रहने वाली रूबी अब किसी और के साथ घूम रही है.’’

‘‘लोगों का क्या है, वे तो केवल बातें बनाना जानते हैं. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. तुम मुझ पर यकीन नहीं कर रहे, इसलिए लोगों की बातें सुन रहे हो.’’

‘‘रूबी, मैं ये सब नहीं जानता. बस मुझे तुम्हारा उस लड़के के साथ रहना पसंद नहीं है. जिस तरह से तुम उस के साथ घूमने जाती हो, उस से साफ लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो.’’

रूबी ने आनंद से बहस करना उचित नहीं समझा. वह चुपचाप वहां से चली गई. उसे आनंद का इस तरह से बात करना पसंद नहीं आया. वह मन ही मन सोचने लगी कि आनंद से कैसे पीछा छुड़ाया जाए.

यही बात आनंद भी सोच रहा था. आनंद रूबी के चाचा से मिला और उसे रूबी और इंद्रपाल के बारे में बताया. यह बात उस ने कुछ इस तरह से बताई कि रूबी के चाचा उस पर बहुत नाराज हुए.

जब रूबी ने उन की एक नहीं सुनी तो वह बोले, ‘‘रूबी, अगर तुम्हें मेरी बात नहीं माननी तो नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाओ. इस तरह से बदनामी कराने से कोई फायदा नहीं है.’’

रूबी समझ गई थी कि उस के चाचा भी आनंद की बातों में आ गए हैं. कुछ कहनेसुनने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए वह चुप रही. अगले दिन रूबी ने यह बात इंद्रपाल को बताई. इंद्रपाल ने कहा कि रूबी हम यह दोस्ती नहीं तोड़ सकते. मुझे कोई डर नहीं है, जब तक तुम नहीं चाहोगी, हमें कोई अलग नहीं कर सकता.

रूबी को पता था कि आनंद अपनी बात का पक्का है. वह अपनी जिद को पूरा करने के लिए कोई भी काम कर सकता है. उसे चिंता इस बात की थी कि इंद्रपाल और आनंद के बीच कोई झगड़ा न हो जाए. वह दोनों के बीच कोई गलतफहमी पैदा नहीं करना चाहती थी.

रूबी ने इंद्रपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. यह बात इंद्रपाल को हजम नहीं हो रही थी. एक दिन उस ने रूबी से न मिलने का सबब पूछा तो रूबी ने ठीक से कोई जवाब नहीं दिया.

इस के बाद इंद्रपाल अकसर रूबी से बात करने की कोशिश में जुटा रहा. कई बार उस ने बात करने के लिए जोरजबरदस्ती भी करनी चाही. इस पर रूबी ने कहा, ‘‘मैं यह नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो. बेहतर है, तुम मुझ से दूर ही रहो.’’

रूबी पर निगाह रख रहे आनंद को लगा कि इंद्रपाल उस की राह का कांटा बन गया है. यह बात उस ने रूबी को भी नहीं बताई. आखिर आनंद के मन में इंद्रपाल को रास्ते से हटाने की एक खतरनाक योजना बन गई.

इस योजना के लिए उसे रूबी की मदद की जरूरत थी ताकि वह इंद्रपाल को एकांत में बुला सके. लेकिन रूबी इस के लिए तैयार नहीं थी. इस पर आनंद ने उसे समझाया कि इंद्रपाल को केवल समझाना चाहता है. इस पर रूबी इंद्रपाल को बुलाने के लिए तैयार हो गई.

15 जून, 2018 की बात है. रूबी ने फोन कर के इंद्रपाल को किला चौराहे पर मिलने के लिए बुलाया. इंद्रपाल के लिए रूबी का बुलाना बहुत बड़ी खुशी की बात थी. वह बिना कुछ सोचेसमझे किला चौराहे पर पहुंच गया. इस के बाद रूबी बातचीत करने के बहाने उसे बिजली पासी किला के जंगल ले गई, वहां पहले से ही आनंद, आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर घात लगाए बैठे थे.

इंद्रपाल को अकेला देख कर सब के सब उस पर टूट पड़े. जब मारपीट में इंद्रपाल बेसुध हो गया तो उसे गला दबा कर मार डाला. बाद में शव की पहचान छिपाने के लिए पैट्रोल डाल कर उसे जला भी दिया गया.

अगले दिन उस की लाश थाना आशियाना पुलिस को मिली. पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की छानबीन शुरू की. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रपाल के घर सीतापुर जानकारी दी गई.

उस के पिता राजाराम यादव लखनऊ आए और अपने बेटे का दाहसंस्कार करने के बाद वह पुलिस के साथ अपराधियों की खोज में लग गए. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू की. सीओ (कैंट) तनु उपाध्याय और एसपी (नौर्थ लखनऊ) अनुराग वत्स इस मामले की छानबीन में मदद कर रहे थे.

पुलिस ने इंद्रपाल के मोबाइल फोन की छानबीन की तो फोन में रूबी का नंबर मिला. नंबर की डिटेल्स से पता चला कि दोनों के बीच बहुत ज्यादा बातचीत होती थी. घटना के दिन भी रूबी के फोन से इंद्रपाल के फोन पर बात की गई थी. इस से पुलिस को मामले का सुराग मिलता दिखा.

पुलिस को अपनी छानबीन में यह भी पता चला कि रूबी के चाचा ने उसे इंद्रपाल से मिलने के लिए मना किया था और नौकरी छुड़वा दी थी. एसपी नौर्थ अनुराग वत्स ने बताया कि इंद्रपाल को धोखे से बुलाया गया था. पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाने की कोशिश की गई थी.

सीओ (कैंट) तनु उपाध्याय ने बताया कि जब पुलिस ने पूरी छानबीन कर ली तो रूबी से घटना के बारे में पूछा गया. रूबी ने शुरुआत में तो बहानेबाजी की पर पुलिस ने जब उसे सबूत दिखाए तो उस ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

24 जून, 2018 को कथा लिखे जाने तक आनंद पकड़ से बाहर था. बाकी सभी आरोपी जेल भेजे जा चुके थे. रूबी का अल्हड़पन दोनों पर भारी पड़ा. एक की जान गई और दूसरा फरार है. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि उसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने इस ब्लाइंड मर्डर स्टोरी का परदाफाश करने के लिए सभी पुलिस कर्मचारियों को बधाई दी. पुलिस ने रूबी के साथ आनंद के साथियों आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति की प्रेमिका का खूनी प्यार – भाग 3

पुणे जाने के बाद बृजेश और एकता ने कैटरिंग का काम शुरू किया. शुरूशुरू में उन के लिए यह काम कठिन था लेकिन धीरेधीरे सब ठीक हो गया. उन की और परिवार की मेहनत से थोड़े ही दिनों में उन का यह कारोबार चल निकला. उन्होंने पुणे की कई आईटी कंपनियों में अपनी एक खास जगह बना ली थी.

उन कंपनियों के खाने के डिब्बों की जिम्मेदारी उन के ऊपर आ गई थी. उन के खाने में जो टेस्ट था, वह किसी और के डिब्बों में नहीं था.

काम बढ़ा तो पैसा आया और पैसा आया तो उन के परिवार का रहनसहन बदल गया. उन्होंने पुणे के पौश इलाके की धनदीप बिल्डिंग में 3 फ्लैट किराए पर ले लिए. 2 फ्लैट बिल्डिंग की पहली मंजिल पर थे तो एक दूसरी मंजिल पर था. दूसरी मंजिल के फ्लैट को उन्होंने अपना बैडरूम बनाया. पहली मंजिल का एक फ्लैट उन्होंने अपने दोनों बच्चों और पिता के लिए रखा.

दूसरे फ्लैट को उन्होंने खाने का मेस बना लिया. मेस में काम करने के लिए नौकर और नौकरानी भी रख ली थी, जो खाना बनाने और टिफिन तैयार करने का काम किया करते थे. सुबह की चायनाश्ता पूरा परिवार साथसाथ नीचे वाले फ्लैट में करता था.

बृजेश के शादीशुदा होने की जानकारी जब संध्या पुरी को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि वह बृजेश को दिलोजान से चाहती थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस शख्स पर उस ने अपना तन, मन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया, वह 2 बच्चों का बाप है.

संध्या को इस का बहुत दुख हुआ. वह ऐसे धोखेबाज को सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन वह दिल्ली से फरार हो चुका था.

संध्या हार मानने वालों में से नहीं थी. उस ने निश्चय कर लिया कि वह बृजेश भाटी को ढूंढ कर ही रहेगी. इस के लिए भले ही उस के कितने भी पैसे खर्च हो जाएं. लिहाजा वह अपने स्तर से बृजेश को तलाशने लगी.

उस की कोशिश रंग लाई. उसे फरवरी 2017 में पता चल गया कि बृजेश इस समय पुणे में अपने परिवार के साथ रह रहा है. वह उस के पास पुणे चली गई. वहां वह उस के घर वालों से भी मिली. पहले तो बृजेश ने संध्या को पहचानने से इनकार कर दिया लेकिन जब उस ने अपने तेवर दिखाए तो वह लाइन पर आ गया.

संध्या ने जब शादी की बात कही तो उस ने शादी करने से इनकार कर दिया. उस समय बृजेश की पत्नी एकता ने संध्या को बुरी तरह बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया था.

इस से नाराज और दुखी हो कर संध्या दिल्ली लौट आई. बृजेश को सबक सिखाने के लिए उस के खिलाफ उत्तम नगर थाने में बलात्कार और धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने बृजेश भाटी को पुणे से गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया. करीब डेढ़ महीने जेल में रहने के बाद वह जमानत पर बाहर आ गया तो संध्या पुरी ने उस से अपनी कार और पैसों की मांग शुरू कर दी.

इस पर बृजेश भाटी के परिवार वालों और संध्या पुरी में जम कर तकरार हुई थी. तब संध्या ने धमकी दी कि अगर उस की कार और पैसे वापस नहीं मिले तो पूरे परिवार को नहीं छोड़ेगी. भाटी परिवार ने इसे संध्या पुरी की एक कोरी धमकी समझा था.

बृजेश भाटी से छली जा चुकी संध्या पुरी ने भाटी परिवार को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. वह उसे साकार करने में जुट गई थी. वह जिस तरह तड़प रही थी, उसी तरह धोखेबाज बृजेश को भी तड़पते देखना चाहती थी. इस काम में उस के एक जानपहचान वाले शख्स ने उस की मदद की. उस ने संध्या को आपराधिक प्रवृत्ति वाले शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव से मिलवाया.

पकड़ में आई हत्या कराने वाली प्रेमिका

संध्या पुरी बृजेश भाटी की पत्नी एकता भाटी की हत्या कराना चाहती थी. इस के लिए उस ने शिवलाल उर्फ शिवा को मोटी सुपारी दी. सुपारी लेने के बाद शिवा अपने बेटे मुकेश उर्फ मोंटी राव के साथ पुणे पहुंच गया.

पुणे आ कर दोनों ने पहले बृजेश भाटी के घर की पूरी रेकी की और घटना के दिन उन्होंने पुणे मार्केट से एक मोटरसाइकिल चुरा ली और सुबहसुबह आ कर एकता भाटी को अपना निशाना बना कर वहां से भाग निकले. वे शहर से बाहर निकल जाना चाहते थे. लेकिन पुलिस के सक्रिय होने से वह पुणे में ही रह गए थे.

उन्हें पता था कि पुणे से शाम साढ़े 5 बजे दिल्ली के लिए झेलम एक्सप्रैस जाती है. इसी ट्रेन से उन्होंने दिल्ली भाग जाना उचित समझा, इसलिए शाम 4 बजे तक उन्होंने सारसबाग के एक होटल में समय बिताया.

फिर वे प्लेटफार्म नंबर 3 पर खड़ी झेलम एक्सप्रैस में चढ़ने को हुए तो उन का सामना पुलिस से हो गया. शिवलाल ने शक होने पर गोली चला दी, जिस से इंसपेक्टर गजानंद पवार घायल हो गए.

शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव और मुकेश उर्फ मोंटी राव से पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच की एक टीम संध्या पुरी को गिरफ्तार करने दिल्ली निकल गई. 26 नवंबर, 2018 को दिल्ली में उत्तम नगर पुलिस की सहायता से संध्या पुरी को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस संध्या को पुणे ले गई.

पूछताछ के बाद संध्या पुरी ने पूरी कहानी बता दी.॒पुलिस ने संध्या पुरी, शिवलाल और उस के बेटे मुकेश उर्फ मोंटी को कोर्ट में पेश कर के यरवदा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे. आगे की जांच चंदन नगर थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक कर रहे थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार का आधा-अधूरा सफर – भाग 3

कन्हैयालाल रात भर उलझन में रहे. इस बीच उन्होंने कई बार शिवांगी का फोन मिलाया, लेकिन उस से संपर्क नहीं हो सका. कारण उस का मोबाइल फोन बंद था. सुबह 10 बजे कन्हैयालाल थाना दिबियापुर पहुंचे और नागेंद्र व उस के पिता जितेंद्र यादव के खिलाफ बेटी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया कि उन की बेटी शिवांगी को जल्द से जल्द बरामद किया जाए. साथ ही उसे बहलाफुसला कर भगा ले जाने वालों के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

चूंकि मामला लड़की के अपहरण का था, इसलिए दिबियापुर पुलिस सक्रिय हो गई और शिवांगी को बरामद करने के लिए नागेंद्र के गांव बाला का पुरवा (खागा) में छापा मारा, लेकिन घर पर न तो नागेंद्र शिवांगी थे और न ही नागेंद्र का पिता जितेंद्र. घर पर नागेंद्र की मां माया देवी और चाचा राजेंद्र थे. उन को पुलिस से ही जानकारी मिली कि नागेंद्र शिवांगी को बहलाफुसला कर ले गया है.

राजेंद्र ने अपने बड़े भाई जितेंद्र से मोबाइल पर बात की तो पता चला कि वह ट्रक ले कर कोलकाता आए हैं. राजेंद्र ने उन्हें नागेंद्र की नादानी तथा घर पर पुलिस आने की जानकारी दी तो वह घबरा गए. पुलिस भी पूछताछ कर के वापस चली गई.

जितेंद्र यादव ने मोबाइल पर नागेंद्र से बात की तो पता चला कि वह कानपुर में गडरियनपुरवा स्थित अपने कमरे में है. जितेंद्र ने उसे उस की हरकत पर जम कर लताड़ा, साथ ही बताया कि शिवांगी के पिता ने उन दोनों के खिलाफ दिबियापुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी है. इसलिए वह शिवांगी को उस के घर छोड़ आए.

थाने में रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी नागेंद्र व शिवांगी को मिली तो दोनों घबरा गए. लेकिन पिता के कहने के बावजूद नागेंद्र शिवांगी को उस के घर छोड़ने नहीं गया.

नागेंद्र को डर सताने लगा कि शिवांगी और उस की तलाश में पुलिस कानपुर में उस के कमरे पर भी आ सकती है. इसलिए वह 4 सितंबर को अपने कमरे में ताला लगा कर शिवांगी के साथ वैष्णो देवी दर्शन के लिए कटरा के लिए रवाना हो गया. वैष्णो देवी पहुंच कर दोनों ने देवी के दर्शन किए और दोनों ने साथसाथ जीने मरने की कसम खाई.

दर्शन के बाद दोनों ने देवी की चुनरी के साथ फोटो खिंचवाई. नागेंद्र ने शिवांगी की मांग में सिंदूर भर कर उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. शिवांगी ने बाजार से चूड़ी, बिंदी व अन्य सामान खरीदा. वापस लौट कर दोनों कटरा के एक होटल में रुके. इस होटल में वे मात्र एक दिन रुके. उस के बाद वापस कानपुर के लिए रवाना हो गए.

11 सितंबर, 2019 की रात नागेंद्र और शिवांगी वाया लखनऊ कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंचे. वहां नागेंद्र ने सोचा कि गांव जा कर मां का आशीर्वाद ले आए. यही सोच कर दोनों रामादेवी चौराहा पहुंच गए. यहां से उन्हें खागा के लिए बस पकड़नी थी.

नागेंद्र अभी बस का इंतजार कर ही रहा था कि उस के मोबाइल की घंटी बजी. काल उस के पिता जितेंद्र की थी. नागेंद्र ने काल रिसीव की तो जितेंद्र बोला, ‘‘नागेंद्र, क्या तू मुझे जेल भिजवा कर ही मानेगा. पुलिस घर पर बारबार दबिश दे रही है. तेरी नादानी ने हम सब को मुश्किल में डाल दिया है. समझ में नहीं आता क्या करूं.’’

फोन पर पिता की बात सुन कर नागेंद्र गहरी सोच में डूब गया. उस की हालत देख कर शिवांगी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तुम सोच में क्यों डूब गए? किस का फोन था?’’

‘‘पिताजी का फोन था. शिवांगी समझ में नहीं आता कि क्या करूं. घर जाता हूं तो पुलिस पकड़ लेगी. तुम्हें

तुम्हारे घर छोड़ता हूं तब भी मैं पकड़ा जाऊंगा. तुम तो पिता के घर होगी, लेकिन मैं जेल की सलाखों के पीछे दिन गुजारूंगा.’’ वह बोला.

‘‘नहीं नागेंद्र, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगी. मैं तुम्हें जेल नहीं जाने दूंगी.’’ शिवांगी भावुक हो कर बोली.

‘‘तब तो एक ही उपाय है शिवांगी.’’ उस ने कहा.

‘‘वह क्या?’’ शिवांगी ने पूछा.

‘‘हम एक साथ जी नहीं सकते तो एक साथ मर तो सकते हैं. इस जनम हमारा मिलना नहीं हो सका तो अगले जनम में जरूर होगा.’’ नागेंद्र मायूस हो कर बोला.

‘‘तुम ठीक कहते हो.’’

बातों के बाद दोनों ने रेल पटरी की ओर कदम बढ़ा दिए. वे रामादेवी ओवरब्रिज के नीचे रेल पटरी पर पहुंचे ही थे कि हावड़ा की ओर जाने वाली राजधानी एक्सप्रैस आ गई. ड्राइवर ने दोनों को हाथ डाले देखा तो सीटी बजाई लेकिन वे दोनों नहीं हटे.

रेलगाड़ी उन्हें रौंदती हुई निकल गई. हालांकि ड्राइवर ने आकस्मिक ब्रेक लगाए और गाड़ी भी रुकी लेकिन तब तक दोनों के शरीर टुकड़ों में बंट चुके थे.

12 सितंबर की सुबह लोगों ने रेल पटरी  के किनारे 2 शव पड़े देखे. इस के बाद सूचना पा कर थाना चकेरी पुलिस घटनास्थल पहुंची और शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की.

नागेंद्र व शिवांगी द्वारा आत्महत्या कर लेने की जानकारी जब दिबियापुर पुलिस को लगी तो उस ने चकेरी पुलिस से संपर्क किया. फिर जांच के बाद पुलिस ने उस मुकदमे को खारिज कर दिया, जिस में नागेंद्र व उस के पिता को आरोपी बनाया गया था. थाना चकेरी पुलिस ने भी प्रेमी युगल आत्महत्या प्रकरण को अपने रिकौर्ड में दर्ज किया था लेकिन बाद में फाइल बंद कर दी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नैतिकता से परे : प्यार में लिया बदला – भाग 3

2-4 दिन बाद ही दयावती अपने पति के साथ सिपाहीराम के यहां कमरा देखने पहुंच गई. कमरा पसंद आने पर वह मकान मालिक को किराए का एडवांस दे आई. हालांकि सिपाहीराम रामकिशन से अनजान था, वह उसे कमरा देने में आनाकानी करता रहा. लेकिन जब आलोक ने कहा कि वह रामकिशन को जानता है, इस के बाद ही उस ने उसे कमरा दिया.

दयावती अपने पति के साथ सिपाहीराम के यहां आ कर रहने लगी. चूंकि दयावती आलोक से पहले से काफी घुलीमिली थी, इसलिए उसे नई जगह पर एडजस्ट होने में कोई दिक्कत नहीं हुई. सिपाहीराम ने घर में ही परचून की दुकान खोल रखी थी. मोहल्ले के लोगों को सिपाहीराम की दुकान से रोजमर्रा की जरूरतें आसानी से सुलभ हो जाती थीं. आलोक की जमानत पर सिपाहीराम ने रामकिशन को दुकान का सामान उधार देना शुरू कर दिया था.

सिपाहीराम की इस सहानुभूति से दयावती भी उस में ज्यादा रुचि लेने लगी थी. सिपाहीराम उस की हर परेशानी को दूर करने के लिए तैयार रहता था. दयावती को सिपाहीराम के मकान में रहते 2-3 महीने बीत चुके थे. वह धीरेधीरे सिपाहीराम की तरफ आकर्षित होती गई. दयावती ने सिपाहीराम के मन की खोट पहचान ली थी.

बहकी हुई औरतों को पराए मर्दों की तरफ आकर्षित होते देर नहीं लगती. दयावती को भी सिपाहीराम को आकर्षित करने में ज्यादा समय नहीं लगा.

लेकिन दयावती और आलोक के अंतरंग संबंधों की बात भी सिपाहीराम से छिपी न रह सकीं. समय ने करवट बदली और दयावती व आलोक की मुलाकातें फिर से होने लगीं. वहां रहने के दौरान दोनों एकदूसरे के प्रति पूर्णतया समर्पित रहने लगे.

उधर सिपाहीराम भी दयावती को चाहने लगा था, लेकिन उस के मकान में रह रही महिलाओं की दिन में होने वाली चहलपहल से उसे दयावती से बात करने और मिलने का मौका नहीं मिल पाता था.

एक बार की बात है. आलोक अपने पैतृक गांव फरेंदा जाने की तैयारी कर चुका था. मौका पा कर दयावती ने आलोक को रोकते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे और तुम्हारे भाई रामकिशन के लिए पूड़ीकचौड़ी बना रही हूं. तुम अपने कमरे में जा कर लेटो, मैं खाना बना कर लाती हूं. खाना खा कर तुम गांव चले जाना.’’

आलोक अपने कमरे का दरवाजा बंद कर चुका था. वह वापस आ कर दयावती के कमरे में जा कर लेट गया. कुछ ही देर में दयावती थाली में खाना परोस कर आलोक के सामने आ खड़ी हुई. आलोक उस समय खाना खा रहा था.

एक दूसरी किराएदार महिला ने आलोक को दयावती के कमरे में खाना खाते देखा तो वह सुलग उठी. वह अपनी भड़ास निकालते हुए उस के गैस चूल्हे के पास खड़ी हो कर बोली, ‘‘अब तो गैरमर्दों को भी खाना खिलाने की जरूरत पड़ने लगी. अपना खर्च तो पूरा होता नहीं, गैरमर्दों को घर में बिठा कर खाना खिलाया जाता है.’’

इस के बाद वह महिला सीधी सिपाहीराम के पास गई और कहने लगी, ‘‘दयावती के यहां बाहरी लोगों की खूब आवभगत होती है, कभी तुम्हें एक कप चाय के लिए पूछा है उस ने?’’

यह बात सुन कर सिपाहीराम दयावती के कमरे के सामने जा कर खड़ा हो गया, क्योंकि राजवती के मुंह से यह बात सुन कर सिपाहीराम आगबबूला हो उठा था. सिपाहीराम उम्रदराज बेशक था, लेकिन वह दयावती को चाहता था. उस दिन उस ने दयावती से कहा तो कुछ नहीं, लेकिन उसे इस बात की तसदीक हो गई कि दयावती उसे न चाह कर आलोक को ज्यादा चाहती है.

यही गांठ सिपाहीराम के मन में घर कर गई. सिपाहीराम यह बात भलीभांति समझ गया कि दयावती और आलोक के संबंध पतिपत्नी जैसे हैं.

आलोक और दयावती की निकटता मकान मालिक सिपाहीराम की आंखों में कांटा बन कर खटकने लगी. उस ने कई बार आलोक कुमार को समझाया भी कि वह शरीफ आदमी बन कर रहे. दयावती का चक्कर छोड़ दे. लेकिन आलोक ने उस की बातों पर गौर नहीं किया.

आखिर सिपाहीराम ने उसे रास्ते से हटाने की अपनी क्रूर योजना बना ली. इस योजना में उस ने कनक सिटी के मोनू पांडेय, बबलू प्रजापति और सलेमपुर पतौरा के कल्लू उर्फ हिमांशु गुप्ता, संतोष और अरुण यादव को शामिल कर लिया.

उस दिन 12 अक्तूबर, 2019 को सिपाहीराम ने साढ़े 9 बजे रात को शराब मंगाई और आलोक को भी इस पार्टी में शामिल कर लिया. उस के सभी साथियों ने मिल कर शराब पी.

शराब पीने के बाद योजनानुसार खूब विवाद हुआ. फिर सिपाहीराम के साथियों ने मिल कर उस की दुकान पर ही आलोक को ईंटों से कुचल कर लहूलुहान कर दिया. उस के बाद उन्होंने फोन कर के एंबुलेंस बुला ली.

वे उसे ऐरा अस्पताल की ले गए. एंबुलेंस के ड्राइवर ने कहा कि वह इस घायल आदमी को सरकारी अस्पताल के अलावा और कहीं नहीं ले जाएगा. तब उन्होंने सरकारी अस्पताल के गेट पर एंबुलेंस रुकवा ली और मरणासन्न अवस्था में आलोक को अपनी बाइक से लाद कर मलीहाबाद थाना क्षेत्र की ओर ले गए. दूसरी बाइक पर उस के अन्य साथी भी थे.

इन लोगों ने तिलसुगा गांव के निकट नाले के किनारे जा कर घायल आलोक को फेंक दिया.

वहीं उस की मौत हो गई. इस के बाद मकान मालिक सिपाहीराम ने खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए अपहरण करने की सूचना रूबी के भाई को दे दी.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस फरार आरोपी संतोष सिंह के संभावित स्थानों पर दबिश दी, लेकिन वह फरार था. अंतत: 22 अक्तूबर, 2019 को मुखबिर की सूचना पर आरोपी संतोष सिंह लोधी भी उन के हत्थे चढ़ गया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.