UP Crime News : कैंची से कत्ल – दूसरे प्रेमी से करवाया पहले का मर्डर

UP Crime News : सोनू जानती थी कि अमीन के पद पर कार्यरत आशीष शुक्ला शादीशुदा ही नहीं बल्कि 2 बच्चों का पिता है. इस के बावजूद लालची सोनू ने उसे अपने प्यार के जाल में फांस लिया. इसी दौरान महत्त्वाकांक्षी सोनू ने ऐसी चाल चली कि…

नवंबर 2020 माह की 28 तारीख थी. जनपद अंबेडकरनगर के मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर किसी अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी हुई थी. सुबहसवेरे घाट पर पहुंचे लोगों ने लाश देखी तो कुछ देर में वहां देखने वालों का तांता लग गया. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना मालीपुर थाने में फोन कर के दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश पौलिथिन में लिपटी हुई थी. मृतक की उम्र लगभग 43-44 साल थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए जाने के निशान मौजूद थे. आसपास का निरीक्षण करने पर कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. अनुमान लगाया गया कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां फेंकी गई है.

वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी वर्मा ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की है. थाने आ कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने जिले के समस्त थानों में दर्ज गुमशुदगी के बारे में पता किया तो अकबरपुर थाने में 45 वर्षीय आशीष शुक्ला नाम के व्यक्ति की गुमशुदगी दर्ज होने की बात पता चली. गुमशुदगी आशीष के साथ लिवइन में रहने वाली सोनू नाम की युवती ने दर्ज कराई थी. सोनू को बुला कर लाश की शिनाख्त कराई गई तो उस ने उस की शिनाख्त आशीष के रूप में की. सोनू ने पूछताछ में बताया कि एक दिन पहले देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद आशीष घर से चले गए थे. आज उन की लाश मिली.

पता चला कि आशीष लखीमपुर जिले की कोतवाली सदर अंतर्गत कनौजिया कालोनी में रहता था. आशीष अंबेडकरनगर में अमीन पद पर कार्यरत था और कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. उस के साथ उस की कथित पत्नी सोनू शुक्ला रहती थी. लखीमपुर में आशीष की पत्नी राखी और बच्चे रहते थे. राखी को पति की लाश मिलने की सूचना मिली तो वह तुरंत अंबेडकरनगर पहुंच गई. मालीपुर थाने में उस ने दी तहरीर में पति की हत्या का आरोप सोनू शुक्ला और उस के 3 साथियों विवेक, विकास पर लगाया. राखी की तहरीर के आधार पर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने सोनू और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

30 नवंबर को थानाप्रभारी ने सोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती करने पर वह टूट गई और आशीष की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि आशीष की हत्या में उस के प्रेमी आनंद तिवारी, उस के साथी मूलसजीवन पांडेय और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन आनंद और मूल सजीवन को गिरफ्तार कर लिया गया.  उन सभी से पूछताछ के बाद आशीष की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

आशीष शुक्ला लखीमपुर खीरी क्षेत्र में एलआरपी रोड पर स्थित कनौजिया कालोनी में रहते थे. 18 वर्ष पहले उन का विवाह राखी से हुआ था. राखी काफी सरल स्वभाव की थी. उस ने आते ही आशीष की जिंदगी को महका दिया था. आशीष भी सरल स्वभाव की राखी को हमसफर के रूप में पा कर काफी खुश हुआ. कालांतर में राखी ने एक बेटे आयुष (17 वर्ष) और बेटी अर्चिता (12 वर्ष) को जन्म दे दिया. आयुष के जन्म के बाद 2006 में आशीष की नौकरी अमीन के पद पर लग गई. वह अंबेडकरनगर में ही कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर रह रहा था. जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, कभीकभी तभी अचानक से जिंदगी में ऐसा खतरनाक मोड़ आ जाता है कि इंसान न संभले तो सब कुछ तहसनहस हो जाता है.

आशीष की जिंदगी में भी सब कुछ अच्छा चल रहा था कि जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उस की जिंदगी दूसरे रास्ते पर चल पड़ी. वह रास्ता उस के और उस के परिवार के लिए कितना खतरनाक होने वाला था, आशीष को इस का बिलकुल आभास नहीं था. अंबेडकरनगर में काम के दौरान उस की मुलाकात सोनू नाम की युवती से हुई. 27 वर्षीय सोनू इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र के बड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता विजय कुमार तिवारी की मृत्यु हो चुकी थी. सोनू 2 भाई व 3 बहनें थीं. सोनू काफी महत्त्वाकांक्षी थी. पिता के न रहने पर उस के विवाह होने में भी अड़चन आ रही थी. इसलिए उस ने अपने लिए खुद ही अच्छा हमसफर तलाश करने की ठान ली. इसी तलाश ने उसे आशीष शुक्ला तक पहुंचा दिया. आशीष एक तो सरकारी नौकरी करता था, साथ ही काफी स्मार्ट भी था.

सोनू ने उस की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. सोनू ने आशीष के बारे में पूरी जानकारी जुटा ली. उसे यह भी पता था कि आशीष शादीशुदा है और 2 बच्चों का पिता है. लेकिन सोनू के लिए अच्छी बात यह थी कि उस की पत्नी और बच्चे लखीमपुर में रहते थे. आशीष को सोनू ने अपने रूपजाल में फांसना शुरू कर दिया. आशीष के साथ वह अधिक से अधिक समय बिताने लगी. उस के लिए खाना बना देती. घर में बना उस के हाथ का खाना खा कर आशीष को बड़ा अच्छा लगता था. वैसे आशीष कभी खुद खाना बना लेता था या होटल पर खा लेता था. सोनू अच्छी तरह जानती थी कि किसी भी मर्द के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. भरपेट मनपसंद खाना मिलता तो आशीष सोनू की जम कर तारीफ करता. समय के साथ दोनों काफी नजदीक आने लगे.

आशीष अपनी पत्नी राखी को धोखा नहीं देना चाहता था, लेकिन सोनू का साथ पा कर वह दिल के हाथों ऐसा मजबूर हुआ कि वह अपने आप को रोक नहीं पाया और अपनी जिंदगी को दूसरे रास्ते पर ले गया. उस रास्ते पर सोनू बांहें फैलाए उस का इंतजार कर रही थी. अब सोनू हर दूसरेतीसरे दिन आशीष के कमरे पर ही रुकने लगी. रुकती तो खाना बनाने के साथ ही बाकी काम भी वह कर देती थी. सोनू उस के साथ ऐसा व्यवहार करती जैसे उस की पत्नी हो. आशीष को यह सब काफी अच्छा लगता. एक रात जब दोनों बैठे बातें कर रहे थे तो आशीष ने उस से कह दिया, ‘‘सोनू तुम मेरा बहुत खयाल रखती हो. इतना खयाल तो सिर्फ पत्नी ही रख सकती है. तुम मेरी पत्नी न होते हुए भी पत्नी जैसा खयाल रख रही हो.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया जनाब. आप को इस बात का पता तो चला कि मैं आप का कितना खयाल रखती हूं. मैं तो अभी तक यही सोचती थी कि न जाने कब आप को पता चलेगा और कब मैं अपने दिल का हाल बयां कर पाऊंगी.’’ कह कर सोनू ने अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘क्या मतलब…’’ आशीष ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘अब इतने भी अंजान नहीं हो तुम कि इस का क्या मतलब ही न जानते हो. जो मैं तुम्हारा हर समय हरदम खयाल रखती हूं, वह भी एक पत्नी की तरह, तो क्यों रखती हूं.’’

‘‘तो तुम ही खुल कर बता दो कि तुम्हें मेरा इतना खयाल क्यों है.’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम को पसंद करती हूं तुम से प्यार करती हूं, इसीलिए मुझे तुम्हारा इतना खयाल रहता है. मुझे तुम्हारा साथ पसंद है इसीलिए हमेशा तुम्हारे पास ही बनी रहती हूं, लेकिन तुम हो कि मेरे जज्बातों की फिक्र ही नहीं है.’’ सोनू ने यह कह कर एक बार फिर अपनी नजरें झुका लीं और मायूसी का लबादा ओढ़ लिया. आशीष उस की बात पर मंदमंद मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं जानता था लेकिन जानबूझ कर अंजान बना था. तुम्हारे इतना सब करने पर कोई मूर्ख व्यक्ति भी समझ जाएगा कि तुम्हारे दिल में क्या है तो मैं तो पढ़ालिखा हूं. तुम्हारी जुबां से सुनना चाहता था, इसलिए अंजान बनने का नाटक कर रहा था.’’

यह सुनते ही सोनू की खुशी का पारावार न रहा, ‘‘मतलब मुझे इतने दिनों से बना रहे थे कि कुछ नहीं जानते हो. मुझे बता तो देते मैं तो वैसे भी तुम पर वारी जा रही थी.’’ कह कर सोनू आशीष के सीने से लग गई. उस की आंखों में अपनी जीत की खुशी चमक रही थी.

‘‘तुम पत्नी जैसे सब काम कर रही थीं लेकिन एक काम छोड़ कर…’’ शरारती अंदाज में तिरछी नजरों से आशीष ने सोनू को देख कर कहा. सोनू ने एक पल के लिए दिमाग पर जोर दे कर सोचा, फिर अगले ही पल आशीष की बात का मतलब समझते ही वह शरमा गई और उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया. आशीष और सोनू के बीच उम्र में 18 साल का अंतर था. सोनू 27 साल की थी तो आशीष 45 वर्ष का. सोनू आशीष के साथ उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अपने नाम के आगे शुक्ला लगाने लगी. जिस से भी मिलती, बातें करती तो अपने आप को आशीष की पत्नी ही बताती. समय के साथ ब्याहता राखी को पता चल गया कि उस का पति आशीष सोनू नाम की किसी महिला के साथ रह रहा है.

पति आशीष से राखी ने बात की तो उस ने कह दिया कि जैसा वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं है. काम के सिलसिले में वह उस के पास रह रही है. आशीष के साथ रहते सोनू उसे अपने वश में करने की पूरी कोशिश करती थी. मसलन किसी भी कागज/दस्तावेज में पत्नी के नाम की जगह आशीष उस का ही नाम डाले. कोई संपत्ति खरीदे तो उस के नाम से ही खरीदे. इस के लिए वह आशीष पर दबाव बनाती थी. आशीष उस की बात को नजरअंदाज कर देता था. सोनू के कहने पर ऐसा वह कर भी नहीं सकता था. लेकिन आशीष को अपनी बात न मानते देख कर सोनू नाराज हो जाती थी. अब उन दोनों में अकसर विवाद होने लगा. सोनू अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. आशीष से उस ने जिस वजह से रिश्ता बनाया, वह वजह उसे पूरी होती नहीं दिख रही थी.

आशीष का एक दोस्त था 23 वर्षीय आनंद तिवारी. आनंद अकबरपुर थाना क्षेत्र के सिंहमई कारीरात गांव में रहता था. उस के पिता रमेश तिवारी किसान थे. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था और अविवाहित था. आनंद तिवारी आशीष से मिलने उस के कमरे पर आता रहता था. आनंद भी काफी स्मार्ट और जवान था. सोनू से 4 साल छोटा था. आशीष तो दोनों से उम्र में काफी बड़ा था. आनंद से कुछ छिपा नहीं था, वह जानता था कि सोनू आशीष की पत्नी नहीं है, उसे केवल अपने पास रखे हुए है. उस से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है. ऐसे में वह भी सोनू के नजदीक आने की जुगत में लग गया.

सोनू आशीष के द्वारा बात न मानने पर तनाव में रहती थी. ऐसे में आनंद उस के पास आता, उस से बातें करता, बातों के दौरान ही हलकाफुलका मजाक भी कर देता तो सोनू का मन बहल जाता. कुछ समय के लिए वह अपना सारा तनाव भूल जाती थी. सोनू भी उस से घुलनेमिलने लगी. दोनों एकदूसरे की चाहत को अपने प्रति समझ रहे थे. चाहत दिल में पैदा हुई तो अधिक समय साथ बिताने लगे. एक दिन आनंद आया तो सोनू चाय बनाने लगी. आनंद को शरारत सूझी तो वह चुपके से सोनू के पीछे पहुंच गया और अचानक चिल्ला दिया. सोनू हड़बड़ा गई. हड़बड़ाहट में वह पीछे मुड़ी तो आनंद को खडे़ पाया, वह मुसकरा रहा था.

सोनू उस की शरारत समझ गई. वह उसे मारने दौड़ी तो वह वापस हुआ तो आगे पलंग था. वह उस से टकराने से बचने के लिए रुका तो पीछे भागी सोनू उस से टकरा गई. दोनों आपस में टकराए तो एक साथ पलंग पर गिर गए. दोनों की सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकरा रही थी तो दिल भी आपस में मिल गए. उस समय दोनों के दिल की धड़कनें काफी तेज थीं. तन सटे होने के कारण एकदूसरे के दिल की तेज धड़कनों को दोनों ही महसूस कर रहे थे. दोनों जुबां से तो कुछ नहीं कह रहे थे लेकिन आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. आनंद सोनू को इतने नजदीक पा कर खुशी से भर उठा और बेसाख्ता बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू, सोनू.’’

आनंद के इन मीठे बोलों ने सोनू के कानों को सुखद अनुभूति कराई. उस ने आंखें बंद कीं तो होंठ थिरक उठे, ‘‘आई लव यू टू आनंद.’’

इस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. सोनू को आनंद के साथ आनंद का सुखद एहसास हुआ. उस दिन के बाद उन के बीच संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. अब सोनू आनंद के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि आशीष से अब उसे किसी प्रकार की उम्मीद नहीं रह गई थी. लेकिन आशीष की सरकारी नौकरी और संपत्ति का लालच उसे जरूर था. आनंद के साथ जिंदगी बिताने के लिए उसे आशीष की नौकरी और संपत्ति की जरूरत थी. वैसे भी इन चीजों को पाने के लिए सोनू ने काफी प्रयास किया था और समय भी बर्बाद किया था. वह ऐसे आसानी से सब छोड़ नहीं छोड़ सकती थी.

इसलिए उस ने आनंद से बात की तो आनंद के मन में भी लालच पैदा हो गया. सरकारी नौकरी और संपत्ति तभी हाथ लग सकती थी, जब आशीष जिंदा न रहे. इसलिए दोनों ने आशीष की हत्या करने का फैसला कर लिया. आशीष की हत्या में साथ देने के लिए आनंद तिवारी ने अपने 2 साथियों मूलसजीवन पांडेय निवासी गांव गंगापुर भुलिया जिला सुलतानपुर और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू निवासी गांव भारीडीहा अंबेडकरनगर को तैयार कर लिया. मूलसजीवन और राजू दोनों ही अकबरपुर के आरडी लौज में काम करते थे और इस समय वहीं रह रहे थे.  27 नवंबर की रात 11 बजे के करीब सोनू और आशीष का विवाद हुआ. विवाद के बाद आशीष सो गया. सोनू ने आनंद को उस के साथियों के साथ बुला लिया.

आनंद अपनी बजाज पल्सर बाइक से दोनों साथियों को ले कर आशीष के कमरे पर पहुंचा. उन लोगों को आया देख कर सोनू ने धीरे से दरवाजा खोल दिया. तीनों अंदर आ गए. सोते समय आशीष के गले पर तेज धारदार चाकू व कैंची से कई प्रहार किए गए. आशीष चीख भी न सका और उस की सांसों की डोर टूट गई. आशीष को मारने के बाद उन्होंने उस की लाश एक पौलिथिन में लपेट कर उस की ही हुंडई इयान इरा कार में डाल दी और उसे मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर फेंक आए. आने के बाद कार सुलतानपुर के दोस्तपुर थाना क्षेत्र में लावारिस हालत में छोड़ दी. अगले दिन सोनू ने अकबरपुर थाने जा कर आशीष की गुमशुदगी लिखाई.

लेकिन चारों का गुनाह छिप न सका. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कैंची, 5 मोबाइल फोन, पल्सर बाइक और आशीष की इयान कार बरामद कर ली. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक 23 दिसंबर को थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने चौथे अभियुक्त राजीव तिवारी उर्फ राजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

MP News : पत्नी ने पति के पैर पकड़े, प्रेमी छाती पर बैठा और रेता गला

MP News : अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सोनू सिंह पत्नी नीतू को गांव से ले जा कर जबलपुर शहर में रहने लगा था. शहर आ कर उस के हालात सुधरने लगे थे. इसी बीच 2 बच्चों की मां नीतू को रौंग काल के जरिए राजू नाम के युवक से प्यार हो गया. यह प्यार बाद में इतना परवान चढ़ा कि…

मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर का उपनगरीय इलाका रांझी रक्षा मंत्रालय की फैक्ट्रियों के लिए जाना जाता है. यहां पर गन कैरेज, आर्डिनैंस, व्हीकल और ग्रे आयरन फाउंडी में सेना के उपयोग में आने वाले गोलाबारूद, टैंक और भारी वाहन बनाए जाते हैं. ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास ही रांझी के रिछाई अखाड़ा मोहल्ले में 40 साल का सोनू ठाकुर अपनी 28 साल की पत्नी नीतू और 2 बेटियों के साथ रहता था. मूलरूप से दामोह जिले के हिनौता गांव का रहने वाला सोनू परिवार में 4 भाईबहनों में सब से बड़ा था. शादी के पहले सोनू अपने खर्च के लिए अपने मातापिता की कमाई पर आश्रित था. लेकिन शादी होते ही उसे अहसास हो गया था कि उसे जल्द ही कोई कामधंधा शुरू कर देना चाहिए.

अपनी और पत्नी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वह गांव में मेहनतमजदूरी का काम करने लगा, मगर गांव में मिलने वाले मेहनताने से वह पत्नी को खुश नहीं रख पा रहा था. गांव में एक छोटे से घर में उस का पूरा परिवार रहता था. जहां पर वे एकदूसरे से ढंग से बात भी नहीं कर पाते थे. रात को एक छोटी सी कोठरी में सोते समय दोनों अपने मन की बातें एकदूजे से नहीं कर पाते थे. यह बात नीतू को बहुत अखरती थी. रात को जब घर के सभी लोग सो जाते, तब उन्हें एकदूसरे का साथ मिलता था. इस बात का उलाहना दे कर अकसर ही नीतू सोनू से कहती थी कि वह कहीं अलग घर ले कर क्यों नहीं रहते. तब सोनू उसे समझा देता कि अभी हमारी नईनई शादी हुई है. अभी परिवार से अलग रहेंगे तो घर वालों को अच्छा नहीं लगेगा. कुछ महीनों के बाद वह अपना कामधंधा जमा कर अलग रहने लगेगा. जब शादी को साल भर का समय हो गया तो एक रात नीतू ने ही सोनू को सलाह देते हुए कहा, ‘‘क्यों न हम लोग गांव से दूर शहर जा कर कुछ कामधंधा कर लें.’’

सोनू को पत्नी की सलाह पसंद आई. सोनू भी सोचने लगा कि घर के लोगों की कमाई से कब तक अपना और बीवी का पेट भरेगा. जबलपुर शहर में हिनौता गांव के कुछ लड़के काम करते थे. सोनू ने उन के घर वालों से मोबाइल नंबर ले कर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उसे भी जबलपुर में आसानी से काम मिल जाएगा. शादी होने के साल भर बाद ही सोनू बीवी के साथ काम की तलाश में जबलपुर आ गया था. रांझी के अखाड़ा मोहल्ले में वे एक किराए की कोठरी में रहने लगे. नीतू सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी और सोनू को यहां के बड़ा फुहारा में घमंडी चौक पर एक कपड़े की दुकान में सेल्समैन का काम मिल गया. जबलपुर आए हुए सोनू को करीब 5 साल हो गए थे. उन्होंने धीरेधीरे तिनकातिनका जोड़ कर एक छोटा सा घर बना लिया था.

इन सालों में नीतू 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. सोनू और नीतू की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी पटरी पर चल रही थी, मगर एक रौंग नंबर की काल ने उन के जीवन में जहर घोल दिया. 2020 के जनवरी महीने की बात है. दोपहर का वक्त था. घर के कामकाज से फुरसत पा कर नीतू मोबाइल फोन में यूट्यूब पर वीडियो देख रही थी. तभी उस के मोबाइल फोन की रिंग बज उठी. नीतू ने जैसे ही काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हैलो, मैं राजू बोल रहा हूं.’’

‘‘कौन राजू? मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘जी, मैं गाजीपुर से राजू राजभर बोल रहा हूं. कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता हूं. क्या मेरी बात निशा वर्मा से हो रही है?’’

‘‘जी नहीं, आप ने गलत नंबर लगाया है.’’ नीतू ने बेतकल्लुफी से जबाब देते हुए कहा.

‘‘जी सौरी, मुझे निशा वर्मा के घर प्रिंटर भिजवाना था. गलती से आप का नंबर लग गया. वैसे आप कहां से बोल रही हैं?’’ राजू ने विनम्रता के साथ पूछा.

‘‘मैं तो जबलपुर से बोल रही हूं.’’

‘‘आप की आवाज तो बड़ी प्यारी है. क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह बोला.

‘‘मेरा नाम नीतू ठाकुर है.’’ नीतू ने कहा.

‘‘नीतूजी, आप से बात कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

इतना कह कर नीतू ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया, मगर नीतू को भी राजू नाम के इस लड़के का इस तरह से बात करना अच्छा लगा. कुछ ही दिनों के बाद राजू नीतू के मोबाइल पर काल करने लगा. रौंग नंबर से शुरू हुआ बातचीत का सिललिला धीरेधीरे दोस्ती में बदल गया. अब तो नीतू भी हर दिन राजू के फोन आने का इंतजार करने लगी. एकदूसरे को वीडियो काल कर के घंटों उन की बातचीत होने लगी. तीखे नैननक्श वाली नीतू ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई की थी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने का उसे बड़ा शौक था. उस ने शादी के पहले जो रंगीन ख्वाब देखे थे, वे सोनू से शादी कर के बिखर चुके थे. थोड़ी सी पगार में घरगृहस्थी चलाने वाला उस का पति सोनू दिन भर काम में लगा रहता और नीतू घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गई थी.

यही वजह रही कि नीतू हर समय मोबाइल फोन की दुनिया में अपने सपनों की उड़ान भरती रहती. पति के काम पर जाने के बाद अकसर वह खाली समय में मोबाइल में सोशल मीडिया साइट पर व्यस्त रहती थी. मोबाइल फोन के जरिए राजू और नीतू का प्यार जब परवान चढ़ने लगा तो वे दोनों एकदूसरे से मिलने को बेताब रहने लगे. नीतू राजू के प्यार में इस कदर खो चुकी थी कि बारबार राजू से जबलपुर आ कर मिलने की बात करती. प्यार की आग राजू के सीने में भी धधक रही थी. राजू नीतू को भरोसा दिलाता कि वह जल्द ही जबलपुर आ कर उस से मिलेगा. इसी बीच मार्च महीने में कोरोना महामारी के कारण 25 मार्च को लौकडाउन लग गया. लौकडाउन में भी मोबाइल फोन पर नीतू और राजू की बातें होती रहीं.

नीतू का पति सोनू घर के बाहर गली में जब भी टहलने जाता, नीतू राजू को काल कर लेती. जैसेजैसे लौकडाउन में ढील मिल रही थी, राजू जबलपुर जाने की प्लानिंग करने लगा था. राजू जिस कंपनी के लिए कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता था, उस का कारोबार जबलपुर शहर में भी था. किसी तरह कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से बात कर के उस ने जबलपुर की कंपनी में काम करने का जुगाड़ कर लिया. जैसे ही कंपनी की तरफ से उसे जबलपुर में काम करने का मौका मिला तो उस के मन की मुराद पूरी हो गई. एक ही शहर में कामधंधा और प्यार उसे आम के आम और गुठलियों के दाम जैसे लगा. इसी हसरत में 25 साल का कुंवारा राजू नीतू की चाहत में सितंबर 2020 में अपने गांव जफरपुर, गाजीपुर से जबलपुर आ गया .

जिस दिन राजू जबलपुर आ कर नीतू से मिला तो नीतू की खुशी का ठिकाना न रहा. राजू ने जैसे ही नीतू को करीब से देखा तो बस देखता ही रह गया.

‘‘वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो,’’ जैसे ही राजू ने नीतू से कहा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘मेरी तारीफ बाद में करना. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर नीतू राजू के लिए चाय बनाने जैसे ही किचन में गई, राजू अपने आप को रोक नहीं सका. पीछे से वह भी किचन में पहुंच गया और नीतू को अपनी बांहों में भर लिया. उस के गालों पर चुंबन देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें पाने को कितना इंतजार करना पड़ा.’’

नीतू ने अपने आप को छुड़ाते हुए नखरे दिखा कर कहा, ‘‘थोड़ा सब्र और करो, धीरज का फल मीठा होता है.’’

नीतू राजू को चाय का कप पकड़ा कर बाहर आ गई. उस ने बाहर आ कर देखा उस की दोनों बेटियां आंगन में किसी खेल में मस्त थीं. इसी मौके का फायदा उठा कर नीतू ने राजू के पास जा कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और राजू के सीने से लग गई. राजू ने नीतू की कमर में हाथ डाला और उसे बिस्तर पर ले गया. 8 महीने से मोबाइल पर चल रहे उन के प्यार के हसीन ख्वाब साकार हो रहे थे. उस दिन दिल खोल कर दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. नीतू ने उस की खूब खातिरदारी कर ढेर सारी बातें कीं. राजू ने जब उसे बताया कि उस ने अपना ट्रांसफर जबलपुर करा लिया है. इसलिए अब यहीं रहेगा. तब नीतू बड़ी खुश हुई.

इतना ही नहीं, उस ने राजू को अपना रिश्तेदार बताते हुए अपने मोहल्ले में रहने वाले एक मकान मालिक के खाली कमरे को भाड़े पर उसे दिला दिया. उस के खानेपीने की जिम्मेदारी वह खुद ही करने लगी. नीतू ने राजू से मिलने का एक तरीका खोज लिया था. उस ने पति सोनू से बात कर उसे इस बात के लिए राजी कर लिया था कि ढाई हजार रुपए महीने में राजू को दोनों टाइम खाना बना कर देगी. सोनू ने यह सोच कर हामी भर दी कि थोड़ी सी मेहनत से बैठे ठाले ढाई हजार रुपए महीने की आमदनी बढ़ जाएगी, जो उस की बेटियों की पढ़ाईलिखाई के काम आएगी. सोनू का यही निर्णय उस के लिए घातक साबित हुआ. नीतू को तो बस अपने प्रेमी से मिलने का बहाना चाहिए था. अब वह बेरोकटोक राजू के लिए खाने का टिफिन देने के बहाने उस से मिलनेजुलने लगी थी.

सोनू सुबह 9 बजे ही घर से निकल जाता और दिन भर कपड़े की दुकान में काम कर के थकाहारा रात 9 बजे के बाद ही अपने घर पहुंचता था. नीतू और उस के पति सोनू की उम्र में 12 साल का फासला था. शायद यही वजह थी कि नीतू की शारीरिक जरूरतों को वह पूरा नहीं कर पाता था. इसी का फायदा उठाते हुए नीतू अपने से कम उम्र के गठीले नौजवान राजू के प्यार में पागल हो गई. दोनों का प्यार जिस्मानी तौर पर भी एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगा था. सोनू की गैरमौजूदगी में राजू नीतू को घुमानेफिराने, रेस्टोरेंट ले जा कर खूब पैसा लुटाता था. जब भी राजू को मौका मिलता वह नीतू के घर भी आ धमकता. नीतू भी अपनी बेटियों तनु और गुड्डी को काम के बहाने घर से बाहर भेज देती और दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते.

पति के होते गैरमर्द से संबंध बनाने वाली नीतू को न तो अपनी बेटियों और पति की सुध थी और न ही समाज का डर. प्यार और वासना का यह खेल रोज ही खेला जाने लगा था. कभी राजू के घर तो कभी नीतू के घर. 29 नवंबर, 2020 की सुबह के साढ़े 7 बजे का समय था. जबलपुर के रांझी थाने में फोन पर सूचना मिली कि ग्रे आयरन फाउंडी जीआईएफ के गेट नंबर 2 के पास की नाली में कंबल में लिपटी एक लाश पड़ी है. खबर मिलते ही टीआई आर.के. मालवीय ने पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दी और वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर आसपास के लोगों की भीड़ मौजूद थी. लोगों ने लाश की शिनाख्त कर बताया कि यह पास में ही रहने वाले सोनू ठाकुर की है.

सोनू की गरदन और बाएं हाथ की नस कटी हुई थी. घटनास्थल के पास ही सोनू की पत्नी अपनी दोनों बेटियों को सीने से चिपकाए चीखचीख कर रो रही थी. जब पुलिस ने सोनू के बारे में नीतू से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात को साढ़े 10 बजे यह घर से घूमने की बात कह कर निकले थे. जब देर रात तक नहीं लौटे तो इन्हें फोन किया. फोन स्विच्ड औफ बता रहा था. नीतू से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दी और आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ कर मामले की जांच शुरू कर दी. जांच के दौरान पुलिस टीम के ट्रेनी आईपीएस सिटी अमित कुमार, टीआई आर.के. मालवीय और फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया और पाया कि जीआईएफ गेट नंबर 2 के पास की जिस नाली में सोनू की लाश मिली थी, वहां खून के धब्बों के निशान थे.

सड़क पर मिले खून के निशान का मुआयना करतेकरते पुलिस नाले से ले कर सोनू के घर तक पहुंच गई. जांच टीम को सोनू के घर में भी खून के धब्बे मिले. जबकि नीतू सोनू के रात साढ़े 10 बजे घर से बाहर जाने की बात कर रही थी. पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि नीतू के मोहल्ले में रहने वाले एक युवक राजू से संबंध थे. पुलिस के इसी संदेह की सुई नीतू की तरफ घूमी तो पुलिस ने नीतू को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. पहले नीतू पुलिस को गोलमोल जबाब दे कर पल्ला झाड़ती रही. लेकिन जब पुलिस टीम की महिला आरक्षक ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो जल्द ही उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

नीतू के बयान के आधार पर रांझी पुलिस ने राजू को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. पुलिस पूछताछ में नीतू और राजू ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह नाजायज संबंधों की ऐसी कहानी निकली जो दोनों को गुनाह के रास्ते पर ले जाने को मजबूर कर गई. कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. रौंग नंबर फोन काल से शुरू हुए नीतू और राजू के प्रेम संबंधों की जानकारी धीरेधीरे पूरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बन चुकी थी. नीतू के द्वारा फोन पर की जाने वाली लंबी बातें सोनू के मन में शक की जड़ें जमा चुकी थीं. मगर उसे यह उम्मीद नहीं थी कि जिस्मानी भूख मिटाने के लिए उस की बीवी नीतू किसी गैरमर्द से नाजायज संबधों की कहानी लिख रही थी.

शक होने पर सोनू नीतू पर नजर रखने लगा. एक दिन सोनू ने नीतू को मोबाइल फोन पर किसी से अमर्यादित बातें करते हुए देख लिया तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. अपनी कमजोरी छिपाने के लिए अकसर नीतू रोनेधोने का नाटक करने लगती और सोनू से कहती कि वह उस के चरित्र पर शक कर रहा है. कहते हैं कि चालाक औरतों के आंसू भी किसी हथियार से कम नहीं होते. सोनू नीतू के आंसुओं के आगे हार मान जाता था. राजू नीतू को रोजरोज पैसे और तोहफे ला कर देता और सोनू की गैरमौजूदगी में उसे और उस की बच्चियों को घुमाने ले जाता. नीतू और राजू के नाजायज संबंधों का यह खेल ज्यादा दिनों तक समाज की नजरों से छिप नहीं सका.

दोनों के प्रेम संबंधों की चर्चा मोहल्ले में खुलेआम होने लगी थी. मोहल्ले के कुछ लोगों ने भी सोनू को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में राजू अकसर उस के घर आताजाता है. सोनू को अब इस बात का पक्का यकीन हो गया था कि पत्नी उस के साथ बेवफाई कर रही है. इस बात से सोनू मानसिक रूप से परेशान रहने लगा था. पतिपत्नी के रिश्ते में विश्वासरूपी डोर टूट जाए तो जिंदगी नरक बन जाती है. एक दिन सोनू को अपनी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए अपने सेठ से बोल कर वह दोपहर के वक्त अपने घर आ गया. उस की बेटियां खिलौनों के साथ खेल रही थीं. उस ने कमरे के पास जा कर धीरे से जैसे ही दरवाजा खोला, अंदर का दृश्य देखते ही उस के होश उड़ गए. बिस्तर पर नीतू अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां मना रही थी.

यह देखते ही उस की आंखों में खून सवार हो गया. वह जोर से पत्नी पर चीखा, ‘‘हरामजादी, मेरी गैरमौजूदगी में आशिक के साथ ये गुल खिला रही है.’’

सोनू की चीख सुन कर दोनों हड़बड़ा कर कर अलग हो गए. राजू अपने कपड़े समेट कर भाग खड़ा हुआ और नीतू अपराधबोध से नजरें नीची किए खड़ी थी. उस ने पति से माफी मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का वादा किया. सोनू ने भी उसे माफ कर दिया. नीतू कुछ दिन तो ठीक रही, लेकिन उस से प्रेमी की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. कहा जाता है कि आंखों देखी मक्खी खाई नहीं जाती मगर सोनू सब कुछ जान कर भी पत्नी की वेवफाई को बरदाश्त कर रहा था. कई बार उस के मन में विचार आता कि वेवफा पत्नी को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर कहीं चला जाए, परंतु अपनी मासूम बेटियों के भविष्य की खातिर वह चुप हो कर बैठ जाता.

नीतू भी अपने पति की चुप्पी और मजबूरियों का जम कर फायदा उठा रही थी. सोनू नीतू को जितना समझाता, उतना ही वह राजू से दूरियां बनाने की बजाय नजदीकियां बढ़ा रही थी. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच रोज ही विवाद होने लगा था. रोजरोज पत्नी से विवाद होने पर सोनू को कुछ नहीं सूझ रहा था. वैसे तो सोनू ने जीआईएफ गेट नंबर 2 के सामने खुद का घर बना लिया था. मगर नीतू के बहके कदमों को रोकने के लिए सोनू ने बहुत सोचविचार के बाद यह फैसला कर लिया था कि इसी रविवार कुछ दिनों के लिए वह बीवीबच्चों को ले कर अपने गांव चला जाएगा और गांव में ही कुछ कामधंधा करेगा. उसे भरोसा था कि कुछ दिन नीतू राजू से दूर रहेगी तो प्यार का यह रोग भी दूर हो जाएगा. और नीतू अपनी बेटियों की परवरिश में सब कुछ भूल कर सही रास्ते पर आ जाएगी. वापस गांव लौटने के अपने इस फैसले की जानकारी उस ने नीतू को भी दे दी थी.

इधर नीतू सोनू के गांव लौटने के फैसले से परेशान रहने लगी थी. नीतू को लगने लगा था कि यदि गांव चले गए तो फिर अपने प्रेमी राजू से मिलने को तरस जाएगी. जब नीतू ने राजू से परिवार सहित गांव वापस लौटने की बात कही तो राजू के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं. उसे लगा कि जिस नीतू की खातिर वह अपने गांव से इतनी दूर आ गया, वही अब उस की नजरों से दूर चली जाएगी. राजू की प्लानिंग नीतू के साथ शादी कर के घर बसाने की थी और राजू के इस निर्णय में नीतू की भी सहमति थी. पहले दोनों के मन में विचार आया कि घर से भाग कर शादी कर लें और सुकून से अपनी जिंदगी गुजारें, मगर अपनी मासूम बेटियों की खातिर नीतू कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाई.

राजू का भी जबलपुर शहर में कामधंधा ठीकठाक चल रहा था. उसे पता था कि नई जगह कामधंधा जमाने में कितनी मुश्किल होती है. वह अपने गांव भी नहीं लौटना चाहता था, क्योंकि उसे पता था घर वाले बालबच्चों वाली विवाहिता नीतू को इतनी आसानी से नहीं अपनाएंगे. जैसेजैसे रविवार का दिन नजदीक आ रहा था, नीतू और राजू की चिंता बढ़ती जा रही थी. राजू को पता था कि रविवार के पहले यदि इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो सोनू नीतू को ले कर अपने गांव चला जाएगा. राजू नीतू को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. सोनू उन के प्यार के रास्ते में कांटा बन कर चुभ रहा था. इसी ऊहापोह में दोनों ने सोनू को अपने प्यार की राह से दूर करने का निर्णय ले लिया था.

एकदूसरे के लिए मर मिटने की कसमें खाने वाला यह प्रेमी जोड़ा जुदा होने से बचने के लिए कुछ भी कर गुजरने पर आमादा हो गया था. वासना के इस घिनौने खेल में अंधे हो चुके ये प्रेमी अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बड़ी से बड़ी कुरबानी देने का मन बना चुके थे. आखिरकार उन्होंने तय कर लिया कि अपनी राह के कांटे को वे निकाल फेंकेंगे. राजू और नीतू ने सोनू को हमेशा के लिए उन की जिंदगी से दूर करने का खौफनाक प्लान तैयार कर लिया था. उन्होंने सोच लिया लिया था कि किसी भी तरह सोनू को जान से मार कर सदासदा के लिए एकदूसरे के हो जाएंगे. घटना के दिन सोनू दिन भर घर से बाहर नहीं निकला. वह सोनू की हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाता रहा.

नीतू पूरे दिन सब्जी काटने वाले चाकू की धार तेज करने में लगी रही. नीतू ने तेज धार वाले चाकू को अपने तकिए के नीचे छिपा कर रख लिया था. 28 नवंबर, 2020 की रात रोज की तरह सोनू अपने घर आया तो उस ने दूसरे दिन बस से अपने गांव वापस लौटने की चर्चा नीतू से की तो नीतू ने भी हामी भर दी. यह देख कर सोनू खुश हो गया. उसे लगा कि नीतू को अपने किए पर पछतावा है और गांव चल कर उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी. खाना खाने के बाद कुछ समय वह अपने बेटियों को दुलारता रहा और उस के बाद टहलने के लिए घर से बाहर आ गया. साढ़े 10 बजे वापस आ कर वह बिस्तर पर लेटेलेटे नीतू से प्यारभरी बातें करता रहा.

अपनी दोनों बेटियों को सुलाने के बाद नीतू भी सोनू के बिस्तर पर आ कर प्यार का नाटक करने लगी. दोनों एकदूसरे के आगोश में समा गए और जैसे ही सोनू निढाल हो कर सो गया नीतू आगे की योजना बनाने में लग गई. नीतू की आंखों से उस रात नींद कोसों दूर थी. उस के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उस ने रात करीब एक बजे राजू को फोन कर के अपने घर बुला लिया. राजू के आते ही योजना के मुताबिक नीतू ने गहरी नींद सो रहे सोनू के दोनों पैर पकड़ लिए और राजू ने उस की छाती पर बैठ कर चाकू से उस का गला रेत दिया और एक हाथ की कलाई भी काट दी. कुछ देर छटपटाने के बाद सोनू निढाल हो कर एक तरफ लुढ़क गया. अब दोनों ही सोनू की लाश को ठिकाने लगाने की सोचने लगे. उन्होंने बिस्तर पर गिरे खून के दागधब्बों को पोंछा. फिर लाश एक कंबल में लपेट ली.

इसी बीच नीतू ने घर का दरवाजा खोल कर बाहर का मुआयना किया और मौका देखते ही वे दोनों लाश को ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास बनी नाली में फेंक आए. लाश को ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए और अपने कपड़ों पर लगे खून के दाग साफ करते रहे. दूसरे दिन सुबह नीतू ने घर पर रोनापीटना शुरू कर दिया. चीखपुकार सुन कर मोहल्ले के लोग उस के घर जमा होने लगे तो नीतू ने बताया कि उस के पति रात से घर नहीं लौटे हैं और उन का मोबाइल भी बंद है. सोनू के गायब होने की बात सुन कर मोहल्ले के लोग उस की खोज में लगे हुए थे, तभी किसी ने आ कर बताया कि ग्रे आयरन फाउंडी गेट नंबर 2 के पास सोनू की लाश एक कंबल में लिपटी पड़ी है.

मोहल्ले के लोगों के साथ नीतू भी नाले के पास पहुंच गई. सोनू की लाश देख कर चीखचीख कर घडि़याली आंसू बहाने लगी थी. सोनू की लाश मिलने की खबर से नीतू का प्रेमी राजू भी वहां आ गया था. सोनू की मौत को लेकर मोहल्ले के लोग नीतू के प्रेमी राजू पर भी शक कर रहे थे. इसी बीच वहां पर रांझी थाने की पुलिस ने आ कर कुछ ही घंटों में हत्या की गुत्थी सुलझा दी. रांझी थाना पुलिस ने 24 घंटे में ही सेल्समैन सोनू सिंह हत्याकांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा और ट्रेनी आईपीएस अमित कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर मामले का खुलासा किया. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, मृतक सोनू और आरोपी नीतू और राजू के 3 मोबाइल, एटीएम कार्ड आदि जब्त कर लिए गए.

मृतक सोनू के घर वालों के जबलपुर पहुंचने से पहले नीतू हवालात के अंदर थी, इस वजह से दोनों बेटियों तनु और गुड्डी को पड़ोसियों की देखरेख में रखवाया गया. बाद में गांव से उस के परिजनों के आते ही उन के सुपुर्द किया गया. कथा लिखे जाने तक नीतू और उस का प्रेमी राजू जेल में थे. अपने पति से वेवफाई कर मौजमस्ती की खातिर बनाए गए नाजायज संबंधों की वजह से नीतू ने अपनी जिंदगी के साथ मासूम बेटियों की जिंदगी भी बेनूर कर दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : प्रेमी से कराई पति की हत्या, वजह सुनकर उड़ जाएंगे होश

Extramarital Affair : अलगअलग धर्मों के होने के बावजूद भी संजय और रेशमा ने प्रेम विवाह किया था. शादी के 11 साल बाद 3 बच्चों की मां रेशमा के पैर बहक गए. इस के बाद रेशमा ने प्रेमी सचिन के साथ मिल कर ऐसा खेल खेला कि…

संजय उर्फ कल्लू शाहजहांपुर के सदर बाजार क्षेत्र के मोहल्ला महमंद जलालनगर में रहता था. उस के पिता अनिल प्राइवेट नौकरी करते थे. मां रमा देवी गृहिणी थीं. संजय का एक छोटा भाई दीपक भी था. करीब 11 साल पहले संजय ने रेशमा नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था, वह दूसरे धर्म की थी. कालांतर में रेशमा ने 2 बेटों अंशू (10 वर्ष), अजय (4 वर्ष) और एक बेटी चांदनी (डेढ़ वर्ष) को जन्म दिया. संजय मैडिकल कालेज में प्राइवेट तौर पर लगी बोलेरो को चलाता था. संजय चूंकि संयुक्त परिवार में रहता था, इसलिए रेशमा की आजादी पर बंदिशें थीं. उस ने संजय से कहना शुरू कर दिया,

‘‘आखिर कब तक तुम अपने पिता के बताए रास्ते पर चल कर दिन भर की गाढ़ी कमाई उन के हाथों में थमाते रहोगे. अब हमारा भी तो परिवार है, क्या हम अपने परिवार के लिए कुछ भी जमा कर के नहीं रखेंगे? तुम कहीं और मकान देख लो, अब हम यहां नहीं रह सकते.’’

रेशमा की बातों को एकाध बार तो संजय ने नजरअंदाज कर दिया और रेशमा को समझाया भी लेकिन वह नहीं मानी और बारबार उस पर अलग होने का दबाव बनाने लगी. आखिर संजय ने रेशमा की इच्छा के सामने घुटने टेक दिए. इस के बाद संजय रेशमा और तीनों बच्चों के साथ कांशीराम कालोनी में रहने चला गया. यहां वे सब मजे से रहने लगे. कालोनी की जिस बिल्डिंग में संजय रहता था, उसी बिल्डिंग में भूतल पर सचिन नाम का एक 19 वर्षीय युवक रहता था. सचिन शहर के ही अजीजगंज मोहल्ले में रहने वाले सुमित कुमार का बेटा था. कांशीराम कालोनी में भी उसे आवास आवंटित हो गया था. सचिन का परिवार अजीजगंज में तो सचिन कांशीराम कालोनी में रहता था. सचिन ईरिक्शा चलाता था. वह अविवाहित था.

सचिन कम पढ़ालिखा था, लेकिन उस के व्यक्तित्व और बात करने के अंदाज से कभी यह नहीं लगता था कि वह अधिक पढ़ा नहीं है. देखने में भी काफी सुंदर था. उस का मन होता तो ईरिक्शा ले कर काम पर चला जाता, मन नहीं होता तो घर पर ही पड़ा रहता. एक ही बिल्डिंग में होने के कारण सचिन की नजर रेशमा पर पड़ गई थी. रेशमा भी सचिन के सामने आने पर एकटक उसे निहारती रहती थी. निगाहें मिलतीं तो दोनों के होंठ मुसकराने लगते. उन के बीच परिचय हुआ तो बातें भी होने लगीं. सचिन के पास एक कुत्ता था जो रेशमा को बहुत अच्छा लगता था. उसी कुत्ते की वजह से ही सचिन और रेशमा में परिचय और बातें होनी शुरू हुई थीं. रेशमा के नजदीक बने रहने के लिए सचिन को कुत्ते से बढि़या कोई तरीका नहीं लगा.

सचिन ने संजय से भी दोस्ती कर ली. रेशमा ने संजय से सचिन का कुत्ता मांग लेने की जिद की तो संजय ने उसे कई बार समझाया लेकिन रेशमा नहीं मानी. रेशमा की जिद के आगे संजय को झुकना पड़ा. एक दिन संजय ने सचिन से बात की कि अगर उसे बुरा न लगे तो वह उस का कुत्ता लेना चाहता है. इस पर सचिन ने अपना कुत्ता उसे दे दिया. सचिन ने उस से इस की कोई कीमत भी नहीं ली. संजय के दिमाग में यह कभी नहीं आया कि यह भेंट उस पर कितनी भारी पड़ेगी. जिस फ्लोर पर संजय रहता था, वहां तक पानी आसानी से नहीं पहुंचता था. इसलिए संजय ने सचिन से कह दिया कि वह अपनी मोटर से पाइप लगा कर पानी भरवा दिया करे. सचिन ने हामी भर दी.

सचिन काफी खुश था, वह जानता था कि संजय सुबह का निकला शाम को ही घर में घुसता था, पूरे दिन उस की पत्नी रेशमा घर में अकेली रहती थी. बच्चे तो उस के छोटे थे. ऐसे में रेशमा को अपने रंग में रंगने का उसे अच्छा मौका मिला था. जब से उस ने रेशमा को देखा था, उस का सौंदर्य उस की आंखों में रचबस गया था. संजय तो उस के सामने पानी भरता था, मतलब लंगूर के हाथ हूर लग गई थी. अब हर रोज किसी भी समय पानी खत्म हो जाता तो रेशमा आवाज दे कर सचिन को पानी का पाइप लगाने को कह देती. पहले कुत्ते के बहाने से और अब पानी भरवाने के बहाने से सचिन रेशमा के पास उस के कमरे में जाने लगा. इस के बाद उन के बीच बातचीत का सिलसिला और तेजी से बढ़ने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. उन के बीच हंसीमजाक भी शुरू हो गया.

दिन भर अकेले रहने के कारण रेशमा का मन नहीं लगता था. लेकिन जब से सचिन ने उस के यहां आनाजाना शुरू किया था, तब से उस का अकेलापन दूर हो गया था. वह अब दिन भर हंसतीमुसकराती रहती थी. उस के खिले चेहरे को देख कर सचिन को भी अच्छा लगता था. रेशमा सचिन से 12 साल बड़ी थी. रेशमा की उम्र 31 साल थी तो सचिन की 19 साल. सर्दी का समय था. घना कोहरा छाया था. ऐसे में सचिन ने रेशमा के घर का पानी भरवाया तो उस में वह भीग गया, जिस से वह सर्दी से और कांपने लगा. उस ने जा कर कपड़े चेंज किए और रेशमा के पास उस के कमरे में पहुंच गया. उसे सर्दी से कंपकंपाते हुए रेशमा ने देखा तो उस से कहा, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’ कह कर रेशमा रसोई में चाय बनाने चली गई. सचिन भी उस के साथ पीछेपीछे रसोई में पहुंच गया.

‘‘अरे तुम क्यों आ गए, वहीं कुरसी पर बैठते. और कुछ खाना हो तो बताओ?’’

‘‘जो चाहो, खिला दो. मैं तो तुम्हारे इन कोमलकोमल हाथों से जहर खाने के लिए भी तैयार हूं.’’ कह कर सचिन ने रेशमा का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया.

‘‘हाय राम, ये क्या कर रहे हो.’’ रेशमा ने झट से अपना हाथ छुड़ा लिया.

‘‘क्यों, कुछ गलत कर दिया क्या? तुम भी तो मुझे प्यार करती हो, मैं यह अच्छी तरह से जानता हूं.’’ सचिन ने कहा.

‘‘किस ने कहा?’’ रेशमा इठलाते हुए बोली.

‘‘तुम्हारी आंखों ने…क्यों सच कह रही हैं न तुम्हारी आंखें?’’ सचिन ने रेशमा की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘तुम बड़े बेशर्म हो.’’ रेशमा ने इतरा कर बोली..

‘‘वह कैसे?’’

‘‘इतना भी नहीं जानते कि दरवाजा खुला है और इस बीच कोई आ गया तो आफत आ जाएगी.’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘अरे हां, मैं तो भूल ही गया था. क्या करूं, तुम्हारा रूप ही ऐसा है कि देखते ही सब भूल जाता हूं. संजय भाई की तो पांचों अंगुलियां घी में तैरती हैं.’’

रेशमा ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘उन की छोड़ो वह जैसे हैं वैसे ही रहेंगे जिंदगी भर. तुम अपनी बताओ कि तुम्हारे दिल में क्या है मेरे रूप का नशा तुम पर किस हद तक चढ़ा है.’’ रेशमा ने कहा. रेशमा की बात सुन कर सचिन को इस बात का एहसास हो गया कि रेशमा को भी उस से लगाव हो गया है. वह भी उस के सान्निध्य में आना चाहती है. उस ने देर न करते हुए रेशमा को बांहों में भर लिया. रेशमा ने कोई विरोध नहीं किया, बल्कि मंदमंद मुसकराने लगी. क्योंकि वह भी यही चाहती थी. दरअसल, जब से उस ने सचिन को देखा था तब से वह उस के मन को भा गया था. संजय से मिलने वाले सुख की उसे कमी नहीं थी, लेकिन वह उतना उसे पसंद नहीं था जितना सचिन. सचिन के आगे संजय कहीं नहीं ठहरता था.

जब आंखें किसी को देखना पसंद करने लगें तो दिल भी उसे चाहने लगता है. दिल की चाहत में वह बहकती चली गई और सचिन ने भी अपना हाथ बढ़ा कर उसे पाना चाहा तो वह उस के आगोश में जाने से अपने आप को रोक न सकी. सचिन ने उसे गोद में उठा कर बैड पर लिटाया और उस के दिल के अरमानों को हवा देनी शुरू कर दी. थोड़ी ही देर में दोनों के निर्वस्त्र शरीर एकदूसरे से गुंथे हुए थे. उस दिन रेशमा ने मानमर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ कर नाजायज रिश्तों के दलदल में पैर डाले तो उस में धंसती चली गई. अब हर रोज संजय की गैरमौजूदगी में सचिन उस के घर में ही पड़ा रहता और रेशमा भी उस की बांहों का हार बनी रहती.

इस की जानकारी कालोनी के लोगों को भी हो गई. वे तरहतरह की बातें करने लगे. जल्द ही यह बात संजय के कानों तक भी पहुंच गई. संजय ने जब रेशमा से इस बारे में बात की तो वह संजय से बोली कि सचिन के साथ भाईबहन के रिश्ते के अलावा कोई रिश्ता नहीं है. संजय को पत्नी रेशमा की बात पर यकीन करना ही पड़ा. लेकिन उस के मन से शक का बीज नहीं निकला. फिर एक दिन उस ने अचानक घर पहुंच कर दोनों को रंगेहाथ पकड़ा तो उस ने रेशमा की जम कर पिटाई की.  रेशमा नाराज हो कर अपने मायके चली गई. बाद में संजय उसे मायके से बुला कर ले आया. पर रेशमा के दिल से सचिन के लिए मोहब्बत कम न हुई.

3/4 दिसंबर, 2020 की रात चौक कोतवाली की अजीजगंज चौकी के इंचार्ज जितेंद्र प्रताप सिंह रात्रि गश्त पर निकले. रात करीब साढ़े 12 बजे आवास विकास कालोनी पावर हाउस के सामने एक बोलेरो खड़ी मिली, जिस में ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति था जो बाईं ओर लुड़का हुआ था. जब पास जा कर जांच की तो उस व्यक्ति की कनपटी के पीछे गोली लगने का निशान था. गोली कनपटी से लग कर माथे के पास से निकल गई थी. चौकी इंचार्ज सिंह घायल व्यक्ति को तुरंत जिला अस्पताल ले गए. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. मृत व्यक्ति की जेब से मिले मोबाइल फोन में सेव नंबरों पर पुलिस ने बात की तो उन्हीं नंबरों में उस की पत्नी रेशमा का फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने रेशमा को जिला अस्पताल बुलाया. लाश देख कर रेशमा ने इस की शिनाख्त अपने पति संजय के रूप में की.

चौक थानाप्रभारी प्रवेश सिंह को चौकी इंजार्ज जितेंद्र प्रताप सिंह ने सूचना दे दी थी. सूचना पा कर वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. बोलेरो का निरीक्षण किया तो बाईं ओर खिड़की के पास पायदान पर हत्या में प्रयुक्त गोली पड़ी मिली, जिसे उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया. ड्राइविंग सीट के पास वाली सीट पर खून फैला हुआ था. इस का मतलब यह था कि किसी ने दाईं ओर से ड्राइविंग सीट पर बैठे संजय को गोली मारी थी और गोली काफी नजदीक से मारी गई थी. हत्यारा संजय का परिचित था, जिस के कहने पर या उसे देख कर संजय ने गाड़ी रोक ली होगी. गाड़ी रुकते ही हत्यारे ने तमंचे से संजय पर फायर कर दिया होगा.

इस के बाद जिला अस्पताल जा कर उन्होंने संजय की लाश का निरीक्षण किया. निरीक्षण कर डाक्टरों से बात करने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. रेशमा से थानाप्रभारी ने पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात साढ़े 11 बजे पति के मोबाइल पर किसी का फोन आया था, जिस के बाद वह बोलेरो ले कर घर से निकल गए थे. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ नहीं पता. कोतवाली आ कर इंसपेक्टर प्रवेश सिंह ने रेशमा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. संजय के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो रात साढे़ 11 बजे गुड्डू नाम के व्यक्ति द्वारा काल करने की बात पता चली. गुड््डू संजय का दोस्त था. इंसपेक्टर सिंह ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि एक काम के सिलसिले में उस ने संजय को बुलाया था.

संजय के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में पूछने पर गुड्डू ने बताया कि 2 महीने पहले तक कांशीराम कालोनी की उसी बिल्डिंग में रहने वाले सचिन का संजय के घर काफी आनाजाना था. संजय की पत्नी रेशमा से सचिन के अवैध संबंध थे. लेकिन संजय ने उसे रंगेहाथों पकड़ा, तब से वह अपने अजीजगंज के पुराने घर में रहने लगा था. यह जानकारी पुलिस के लिए बड़े काम की थी. इंसपेक्टर सिंह ने रेशमा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की सचिन से रोज घंटों बातें होने की बात पता चली. यह भी पता चला कि संजय के घर से निकलने के समय पर ही रेशमा ने सचिन को काल भी की थी, शायद संजय के घर से बाहर निकलने की बात बताने के लिए. उस ने सचिन को फोन किया होगा. साक्ष्य मिले तो इंसपेक्टर सिंह ने सचिन के घर पर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार मिला.

9 दिसंबर, 2020 को दोपहर लगभग 2 बजे इंसपेक्टर प्रवेश सिंह ने चांदापुर तिराहे से सचिन को गिरफ्तार कर लिया. उस के बाद रेशमा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. कोतवाली में जब उन दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी. घटना से 2 महीने पहले रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद से रेशमा और संजय में अकसर विवाद होने लगा. यहां तक कि संजय ने रेशमा का मोबाइल भी तोड़ दिया था. इस पर सचिन ने उसे बात करने के लिए दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया था. सचिन अब कांशीराम कालोनी में नहीं रहता था, लेकिन वहां रोज आताजाता था.

अपने बीच संजय को आया देख कर रेशमा बौखला उठी. वह पति को छोड़ कर सचिन से शादी कर के उस के साथ रहना चाहती थी. इस के लिए रेशमा ने सचिन पर दबाव बनाया कि वह संजय की हत्या कर दे. उस के बाद वह शादी कर के उस के साथ रहने लगेगी. संजय के जीवित रहते यह  संभव नहीं होगा. प्रेमिका की सलाह पर अमल करने के लिए सचिन तैयार हो गया. इस के बाद उस ने तमंचे व कारतूस का इंतजाम किया. उस ने एकदो नहीं 4 बार संजय को मारने की कोशिश की थी, लेकिन तमंचा चलाने की उस की हिम्मत नहीं हुई. इस पर रेशमा ने सचिन को धमकी दी कि यदि उस में यह थोड़ा सा काम करने की हिम्मत नहीं है तो वह उसे छोड़ देगी. इस से सचिन ने अगली बार हर हाल में संजय को मारने का वादा किया.

3 दिसंबर को रात साढ़े 11 बजे जब गुड्डू का फोन आया तो संजय बोलेरो से उस से मिलने के लिए निकला. संजय के घर से निकलते ही रेशमा ने सचिन को फोन किया और संजय के घर से निकलने की बात बताई. सचिन उस समय कांशीराम कालोनी में ही था. सचिन के पास बजाज पल्सर बाइक थी. सचिन संजय को ओवरटेक करते हुए आगे निकला और गोल चक्कर से मुड़ कर वापस आते हुए संजय को रुकने का इशारा किया. उस के इशारे को समझ कर संजय ने गाड़ी रोक दी. संजय ने जैसे ही कार का शीशा नीचे किया. सचिन ने साथ लाए तमंचे से संजय पर फायर कर दिया. गोली संजय की कनपटी के पास लग कर माथे से निकल गई. गोली लगते ही संजय बाईं ओर लुढ़क गया और उस की मौत हो गई.

गोली मारने के बाद सचिन ने तमंचा और 2 कारतूस गर्रा नदी के किनारे फेंक दिए. इस के बाद रेशमा को संजय का काम तमाम होने की बात पता चली तो उस ने भी अपना मोबाइल तोड़ दिया. लेकिन दोनों के गुनाह छिप न सके और पकड़े गए. इंसपेक्टर सिंह ने सचिन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा, 2 जिंदा कारतूस, पल्सर बाइक नंबर यूपी27यू1043, सचिन का मोबाइल 2 सिम सहित और रेशमा का टूटा मोबाइल एक सिम सहित बरामद कर लिया. मुकदमे में रेशमा को धारा 120बी का अभियुक्त बना दिया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

UP Crime News : ताबीज से खुला रहस्य

UP Crime News : अर्जुन से शादी हो जाने के बाद कीर्ति को अपने प्रेमी सौरभ से दूरी बना लेनी चाहिए थी. लेकिन उस ने ऐसा करने के बजाए प्रेमी को अपनी ससुराल में बुलाना शुरू कर दिया. बाद में इस का जो नतीजा निकला वह…

उत्तर प्रदेश का एक जिला है मैनपुरी. इसी जिले के गांव भहलोई में रहते थे सौरभ और मूर्ति देवी. वह जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इस उम्र में युवकयुवतियों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है. इन दोनों के साथ भी यही हुआ. दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंधते चले गए. दोनों को एकदूसरे से कब प्यार हो गया, इस का उन्हें एहसास ही नहीं हुआ. बाद में उन की स्थिति ऐसी हो गई कि जब तक वह एकदूसरे को देख नहीं लेते थे, उन्हें चैन नहीं मिलता था. मूर्ति के पिता जीतपाल सिंह किसान थे. उन के 4 बच्चों में ऋषि, मूर्ति, सुषमा व सब से छोटा बेटा सोनू था.

मूर्ति और सौरभ का प्यार परवान चढ़ रहा था. धीरेधीरे उन के प्यार के चर्चे गांव में होने लगे. यह खबर जब मूर्ति के पिता जीतपाल के कानों तक पहुंची तो बेटी की बदनामी को ले कर वह परेशान हो गए. इस से बचने के लिए उन्होंने मूर्ति की शादी करने का फैसला लिया. वह उस के लिए उचित लड़का ढूंढने लगे. उन की कोशिश रंग लाई और उन्होंने 19 वर्षीय बेटी मूर्ति की शादी फिरोजाबाद जिले के कस्बा शिकोहाबाद के गांव मोहिनीपुर के रहने वाले श्याम सिंह के बेटे अर्जुन सिंह के साथ 30 अप्रैल, 2018 को कर दी. श्याम सिंह भी खेतीकिसानी करते थे. प्रेमिका की शादी हो जाने के बाद सौरभ मायूस हो गया. अब मूर्ति के बिना उसे गांव में अच्छा नहीं लगता था. वह मूर्ति से मिलने के लिए बेचैन हो उठा. मूर्ति से मिलने की खातिर उस ने अर्जुन के भाई उदयवीर से किसी तरह दोस्ती कर ली.

अब सौरभ कभीकभी मोहिनीपुर मूर्ति की ससुराल आने लगा. ससुराल वालों के सामने वह मूर्ति से बातचीत भी कर लेता था. धीरेधीरे सौरभ का आनाजाना बढ़ गया. वह बेहिचक घर आता और मूर्ति से घंटों हंसीठिठोली करता. ससुराल वालों को यह पता नहीं था कि सौरभ और मूर्ति का पहले से कोई चक्कर है. लिहाजा उन्होंने उन के मिलने की बात को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में अर्जुन को सौरभ का बारबार उस के घर के चक्कर लगाना अच्छा नहीं लगा तो अर्जुन ने सौरभ को अपने घर आने से साफ मना कर दिया. सौरभ भी बेशरम था. वह नहीं माना और मना करने के बावजूद वह मूर्ति से मिलने पहुंच जाता. तब अर्जुन और उस के घर वाले उसे बेइज्जत कर के भगा देते थे.

7 सितंबर, 2019 को सौरभ फिर अर्जुन के घर पहुंच गया. घर वालों के विरोध पर गांव के लोगों ने उसे पकड़ लिया और उस की पिटाई कर दी. इस के बाद उसे गांव में दोबारा न आने की नसीहत देते हुए भगा दिया. इस पूरे मामले की जानकारी अर्जुन ने अपनी सास मोहरश्री व बड़े साले ऋषि कुमार को दी. सूचना मिलने पर दोनों 9 सितंबर को मोहिनीपुर आ गए. ससुराल वालों ने शिकायत करते हुए सौरभ के घर आने और मूर्ति से बात करने का विरोध जताया. तब मोहरश्री और उस के बेटे ने मूर्ति को समझाया कि वह सौरभ से बात न किया करे. मूर्ति को समझा कर वे दोनों रात को मूर्ति की ससुराल में ही रुके. मूर्ति ने मां और अपने भाई से वादा तो कर लिया था कि वह आइंदा सौरभ से बात नहीं करेगी लेकिन उस के मन में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी.

वह सौरभ को हरगिज छोड़ना नहीं चाहती थी. और उसी रात को वह ससुराल से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई. 10 सितंबर की सुबह जब घर वालों की अांखें खुलीं तो इस घटना का पता चला. घर वालों ने मूर्ति की तलाश भी की, लेकिन वह नहीं मिली. अर्जुन सिंह ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर अपनी पत्नी के भाग जाने की खबर दी. कुछ ही देर में शिकोहाबाद थाने की पुलिस गांव पहुंच गई. पुलिस ने इस संबंध में अर्जुन सिंह की तरफ से सौरभ के खिलाफ पत्नी मूर्ति को आभूषण व 50 हजार की नकदी सहित बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने सौरभ और मूर्ति को ढूंढने में दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि उस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

मूर्ति के घर वाले ही उसे सरगर्मी से तलाश करते रहे लेकिन दोनों का कोई सुराग नहीं मिला. फिरोजाबाद जिले का एक थाना है सिरसागंज. इस थाने का गांव भदेसरा निवासी चौकीदार रमेशचंद्र है. उस ने 20 सितंबर, 2019 की सुबह थाने में आ कर सूचना दी कि गांव में बचान सिंह के खेत में खड़ी बाजरे की फसल के बीच एक अधजली लाश पड़ी है. जो देखने में एक महिला की प्रतीत हो रही है. तत्कालीन थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने विस्तार से चौकीदार से पूछताछ की. चौकीदार ने बताया कि वह सुबह खेतों की तरफ गया था. वहां बचान सिंह के बाजरे के खेत से एक कुत्ता एक व्यक्ति की टांग का कुछ हिस्सा ले कर बाहर निकला. इस पर जिज्ञासावश वह खेत में कुछ अंदर की तरफ गया. वहां का जो दृश्य देखा तो वह परेशान हो गया.

वहां एक महिला के सिर के टुकड़े, बाल, दांत व एक पैर गली हुई अवस्था में पड़ा था. इस के साथ ही पसलियों की हड्डियां व कंकाल भी खेत में पड़ा था. इस सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदेसरा गांव में स्थित बाजरे के खेत में पहुंच गए. यह गांव थाने से लगभग 6 किलोमीटर दूर था. पुलिस जब वहां पहुंची तो बाजरे के खेत के बीचोंबीच एक जली हुई लाश क्षतविक्षत कंकाल के रूप में पड़ी थी. कुछ अधजले कपड़े आदि भी पुलिस ने खेत से बरामद किए. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. इस के बाद बिना किसी देरी के अवशेषों को एकत्र कर उन्हें मोर्चरी भेज कर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस को घटनास्थल के निरीक्षण से पता चला कि लाश को कई दिन पूर्व रात के समय खेत के बीचोंबीच ले जा कर जलाया गया था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि महिला की हत्या के बाद उस के शव को यहां चोरीछिपे ला कर हत्यारों ने किसी ज्वलनशील पदार्थ की मदद से जलाया था. लाश किस महिला की है, इस का पता लगाया जाना बहुत जरूरी था, लिहाजा पुलिस ने लाश के अस्थिपंजरों के फोटो सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से खूब प्रसारित किए. लेकिन पुलिस को इस में कोई सफलता नहीं मिली. मृतका की पहचान न हो पाने तथा हत्यारे का भी पता न चलने के कारण इस मामले के विवेचक ने सुरागरसी जारी रखते हुए 8 मार्च, 2020 को मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

सितंबर, 2020 में एसएसपी (फिरोजाबाद) सचिंद्र पटेल थाना शिकोहाबाद में निरीक्षण कर रहे थे. इस दौरान उन की जानकारी में एक मामला आया. मामला यह था कि मोहिनीपुर के रहने वाले अर्जुन सिंह ने शिकोहाबाद में 10 सितंबर, 2019 को एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस में कहा गया था कि उस की पत्नी मूर्ति देवी सौरभ नाम के अपने प्रेमी के साथ घर से कुछ नकदी व आभूषण ले कर भाग गई है. मामले के विवेचक ने इस संबंध में कोई काररवाई नहीं की थी. एसएसपी ने इस केस को खोलने के लिए एएसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई. उन्होंने इस काम में एसओजी व सर्विलांस सैल को भी लगा दिया. जिम्मेदारी मिलने के तुरंत बाद एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान की टीम ने अपना काम शुरू कर दिया.

टीम ने जिले के विभिन्न थानों से इस संबंध में लापता महिलाओं की जानकारी जुटानी शुरू कर दी. जांच में पता चला कि अर्जुन सिंह द्वारा शिकोहाबाद थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के 10 दिन बाद ही सिरसागंज थाना पुलिस ने एक महिला का बाजरे के खेत से कंकाल बरामद किया था. इस जानकारी के बाद पुलिस टीम थाना सिरसागंज पहुंची. टीम ने महिला के कंकाल के साथ ही मिले अन्य सामान को देखा. इस सामान में कंकाल से प्राप्त ताबीज, एक रुपए का छेद वाला सिक्का व अन्य सामान भी था. पुलिस ने लापता मूर्ति देवी के पिता जीतपाल सिंह निवासी मैनपुरी को बुला कर वह सारा सामान दिखाया.

जीतपाल ने ताबीज व सिक्के को देखते ही बता दिया कि यह सारा सामान उन की बेटी मूर्ति का ही है. वह हमेशा अपने गले में यह ताबीज व एक रुपए का सिक्का काले धागे में पहनती थी. इसी के आधार पर उन्होंने बताया कि खेत में मिला कंकाल उन की बेटी मूर्ति का ही था. मृतका की शिनाख्त होने पर एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान व थाना सिरसागंज के थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम को लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है. टीम ने इस मामले में संदिग्ध लग रहे लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि अर्जुन ने सौरभ के खिलाफ पत्नी को भगा कर ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, इसलिए पुलिस भहलोई गांव में स्थित उस के घर गई. सौरभ घर से गायब मिला. इस के बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए मृतका के ससुराल वालों को कई बार बुलाया.

कई बार बुलाए जाने के बाद भी मृतका के ससुरालीजन यहां तक कि मृतका का पति अर्जुन भी पुलिस के सामने नहीं आया. इस से पुलिस का संदेह और मजबूत हो गया. उधर सर्विलांस टीम ने बताया कि पता चला कि जिस जगह पर कीर्ति के अस्थिपंजर मिले थे, वहां पर घटना वाले दिन कीर्ति के पति अर्जुन और जेठ उदयवीर के फोन की लोकेशन भी वहीं की मिली. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 30 नवंबर,2020 को सुबह करीब सवा 8 बजे सोथरा चौराहा फ्लाईओवर से मृतका मूर्ति देवी के पति अर्जुन व जेठ उदयवीर को हिरासत में ले लिया. पुलिस दोनों को थाना सिरसागंज ले कर आई. थाने में दोनों से गहनता से पूछताछ की. दोनों भाइयों ने स्वीकार कर लिया कि मूर्ति की हत्या उन्होंने ही की थी. इस के बाद उन्होंने उस की लाश ठिकाने लगाई.

केस का खुलासा होने के बाद एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. इस हत्याकांड के पीछे प्रेम संबंधों की चौंकाने वाली कहानी सामने आई. मूर्ति देवी की शादी के कुछ महीने बाद ही उस के पति अर्जुन को पता चल गया था कि शादी से पहले से ही मूर्ति के संबंध गांव के ही सौरभ से हैं. उस ने यह बात अपने बड़े भाई उदयवीर को बताई. दूसरे युवक से प्यार करने की बात ने अर्जुन के कलेजे को चीर कर रख दिया था. यह बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. नफरत की आग उस के सीने में सुलग रही थी. उस ने भाई उदयवीर के साथ मिल कर मूर्ति देवी को रास्ते से हटाने और बाद में दूसरी शादी करने का निर्णय लिया.

अर्जुन के बड़े भाई उदयवीर की दोस्ती मूर्ति के प्रेमी सौरभ से थी. योजना के अनुसार उन्होंने 9 सितंबर, 2019 को मूर्ति को सौरभ के साथ जाने दिया. सौरभ प्रेमिका मूर्ति को इटावा ले गया. सुबह होने पर अर्जुन ने यह बात फैला दी कि मूर्ति घर से भाग गई है. चूंकि उस के संबंध सौरभ से थे, इसलिए अर्जुन ने सौरभ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. कुछ दिनों बाद अर्जुन व उदयवीर ने षडयंत्र के तहत मूर्ति को सौरभ के पास से ले आए और रात में उस के गले में गमछा (अंगौछा) डाल कर उस का गला दबा दिया. जिस से उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए अर्जुन और उस के भाई उदयवीर ने लाश को पड़ोसी से मांगी गई मोटरसाइकिल पर बीच में इस प्रकार बैठाया मानो वह किसी बीमार को ले जा रहे हों.

हत्या के बाद शव को करीब 6 किलोमीटर दूर गांव भदेसरा में एक बाजरा के खेत में ले जा कर पैट्रोल छिड़क कर जला दिया था. पूछताछ के दौरान आरोपी उदयवीर ने बताया था कि मूर्ति की हत्या में सौरभ भी शामिल था. लेकिन पुलिस का मानना है कि ऐसा केवल सौरभ को फंसाने के लिए वह कह रहा है. हत्या दोनों भाइयों ने ही प्रेमी सौरभ से चलते प्रेम संबंधों को ले कर की थी. मृतका के पिता जीतपाल के अनुसार उन की बेटी मूर्ति गर्भवती थी. हत्यारों ने उस पर जरा भी रहम नहीं किया और उस की गर्भवती बेटी को मार डाला. घटना को अंजाम देने के बाद दोनों भाई वापस अपने गांव आ गए थे. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त गमछा तथा मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

पूछताछ के बाद गिरफ्तार दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. घटना का परदाफाश करने वाली टीम में थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम, एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान, एसआई रनवीर सिंह के अलावा कांस्टेबल (एसओजी) राहुल यादव, रविंद्र कुमार, भगत सिंह, नदीम खान व थाना सिरसागंज के कांस्टेबल विजय कुमार व कुलदीप सिंह आशीष शुक्ला व मुकेश कुमार शामिल थे. एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस घटना का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए का ईनाम दिया.

हत्यारे निश्चिंत थे कि वह अपनी योजना में पूरी तरह सफल हो गए हैं लेकिन 14 महीने बाद पुलिस ने ताबीज के जरिए इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा कर आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Mainpuri News : बहन को गोली मारी और गड्ढा खोदकर दफनाया

Mainpuri News : चांदनी की गलती यह थी कि उस ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ दूसरी जाति के युवक से प्रेम विवाह कर लिया था. इस गलती की उसे इतनी खतरनाक सजा मिलेगी, ऐसा चांदनी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था…

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद के थाना किशनी अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है फिरंजी. इस गांव के कश्यप नगर मोहल्ले में उदयवीर कश्यप अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुखरानी के अलावा 5 बेटे सुधीर, सुनील, समीर, सुशील, सुमित तथा बेटी चांदनी थी. उदयवीर किसान था. खेती से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. उस के 2 बेटे सुधीर व सुनील तो उस के साथ खेती के काम में हाथ बंटाते थे. जबकि 3 बेटे शहर में रह कर प्राइवेट नौकरी करते थे. उदयवीर गांव का दबंग व्यक्ति था. उदयवीर की बेटी चांदनी 5 भाइयों के बीच इकलौती थी, सो वह सब की दुलारी थी. इसी लाड़प्यार की वजह से वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सकी थी और मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी थी.

चांदनी अपने घर में सब से अधिक सुंदर थी. उस की उम्र तो 16 वर्ष की थी. लेकिन शारीरिक रूप से वह 18 वर्ष से कम की नहीं लगती थी. मोहल्ले के कई युवक उस पर नजर रखते थे, किंतु वह किसी को अपने पास फटकने नहीं देती थी. चांदनी की बुआ कमला देश की राजधानी दिल्ली शहर के त्रिलोकपुरी क्षेत्र में रहती थी. एक बार कमला गांव फिरंजी आई तो उस ने चांदनी को अपने साथ दिल्ली ले जाने की इच्छा प्रकट की. बुआ के साथ भतीजी को भेजने में सुखरानी को कोई ऐतराज न था, इसलिए उस ने इजाजत दे दी. चांदनी ने भी दिल्ली की चकाचौंध के बारे में सुन रखा था, सो वह खुद भी दिल्ली जाने को लालायित थी.

चांदनी बुआ के साथ दिल्ली आई तो वह वहां की चकाचौंध में खो गई. उसे दिल्ली इतनी पसंद आई कि वह गांव में कम और दिल्ली में बुआ के साथ ज्यादा रहने लगी. बुआभतीजी में खूब पटती थी. कमला चांदनी का हर तरह से खयाल रखती थी. कमला त्रिलोकपुरी स्थित जिस मकान में किराए पर रहती थी, उसी मकान के ठीक सामने अर्जुन नाम का एक युवक रहता था. हंसमुख व मिलनसार अर्जुन का कमला के घर आनाजाना था. आतेजाते अर्जुन कमला के परिवार से घुलमिल सा गया था. कमला अर्जुन को बहुत मानती थी. अर्जुन भी कमला का बहुत आदर करता था. कोई भी छोटामोटा काम होता, तो वह बिना झिझक कर देता था.

अर्जुन मूलरूप से प्रतापगढ़ जिले के टोडरपुर गांव का रहने वाला था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. पिता मेवाराम खेतीकिसानी करते थे. अर्जुन का मन गांव में नहीं लगा तो वह नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गया था. कुछ माह भटकने के बाद उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई. उस के बाद वह त्रिलोकपुरी में किराए के मकान में रहने लगा. बातचीत के दौरान अर्जुन व कमला को पता चला कि वे दोनों उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. इसी के बाद दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध बन गए और अर्जुन का कमला के घर बेरोकटोक आनाजाना होने लगा. कमला के घर आतेजाते अर्जुन की नजर उस की भतीजी चांदनी पर पड़ी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा. अर्जुन जब घर आता, तो चांदनी उस से तरहतरह की बातें कर लेती थी. बीचबीच में हंसीठिठोली भी हो जाती थी.

धीरेधीरे अर्जुन के साथ मेलजोल के चलते चांदनी और अर्जुन के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हो गया. अब अर्जुन चांदनी के प्यार में रंगने लगा. वह चांदनी के होंठों की मुसकान देखने के लिए लालायित रहने लगा. प्रेम की डोर में बंधी चांदनी का मन भी अर्जुन को देख उमंग से भर उठता था. अर्जुन अब जब भी घर आता तो वह चांदनी के लिए साजशृंगार की चीजें ले आता. अर्जुन के इस तरह के बर्ताव से चांदनी अर्जुन को बहुत मानती. वह उसे बगैर चायनाश्ता के न जाने देती. भले ही अर्जुन चायनाश्ता के लिए नानुकुर करता. चांदनी की बुआ कमला भी चांदनी का पक्ष ले कर ही अर्जुन को चाय पीने को मजबूर करती.

समय बीत रहा था, लेकिन अर्जुन अपने दिल की बात चांदनी से कहने में संकोच कर रहा था. उसे डर था कि कहीं वह बुरा तो नहीं मान जाएगी. कई दिनों तक अर्जुन के मन में चांदनी का रूपलावण्य, चालढाल के अलावा तमाम बातें कौंधती रहीं. किसीकिसी दिन तो वह चांदनी को सपने में भी देखता. उस का दिल चांदनी को पाने के लिए मचल रहा था. एक दिन दृढ़ निश्चय कर के अर्जुन घर से निकला कि वह जरूर आज अपने दिल की बात चांदनी से कह देगा. अर्जुन चांदनी के घर पहुंचा. उस समय चांदनी घर में अकेली थी. दरवाजे पर आहट पाते ही फौरन ही वह घर से निकल कर बाहर आ गई और बोली, ‘‘अच्छा जी, आप हैं.’’

‘‘बुआजी कहां हैं?’’ अर्जुन ने चांदनी के चेहरे पर नजर डालते हुए पूछा.

‘‘वह अभीअभी बाजार गई हैं.’’ चांदनी मीठी आवाज में बोली.

अर्जुन के लिए अपनी बात कहने का यह सुनहरा अवसर था. कई बार वह अपने मन की बात जुबान तक लाता, लेकिन चांदनी से कहने की हिम्मत न जुटा पाता.

‘‘क्या बात है, तुम कुछ कहना चाहते हो, लेकिन अटक जाते हो.’’ चांदनी ने अर्जुन से कहा.

‘‘कुछ नहीं चांदनी.’’ अर्जुन ने झूठ बोला.

‘‘नही, कुछ तो है…’’ चांदनी ने अर्जुन की कलाई पकड़ते हुए कहा, ‘‘अब तुम को बताना ही होगा.’’

‘‘मुझे डर लग रहा है, इसलिए मत पूछो चांदनी.’’

‘‘नहीं, मैं आज पूछ कर ही मानूंगी. आखिर बात क्या है?’’

चांदनी के इन शब्दों को सुन कर अर्जुन सकपका सा गया. वह क्षण भर सोचने लगा कि यदि वह चांदनी से प्यार का इजहार करता है, तो संभव है चांदनी उस के प्यार को ठोकर मार कर कहीं अपनी बुआ को न बता दे, जिस से उसे बेइज्जत होना पड़े. अर्जुन थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा. फिर अपने मन को मजबूत करते हुए उस ने चांदनी से कहा, ‘‘मैं तुम से एक बात कहना चाह रहा हूं चांदनी. लेकिन मैं अपनी बात को कह नहीं पा रहा हूं.’’

‘‘बताओ न.’’ चांदनी ने अर्जुन को उकसाया.

‘‘चांदनी, हम दोनो अलग जातिबिरादरी के भले ही हों, लेकिन इस से क्या फर्क पड़ता है. प्यार में जाति कोई मायने नहीं रखती. मैं तुम्हारा प्यार चाहता हूं.’’

‘‘यह प्यारव्यार क्या होता है, मैं नहीं जानती.’’ चांदनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि मेरा मन तुम से मिलने के लिए बेचैन रहता है अर्जुन, तुम्हें देखे बगैर चैन नहीं मिलता.’’

‘‘सच चांदनी.’’ कहते हुए अर्जुन ने चांदनी को अपने आगोश में ले लिया.

‘‘छोड़ो न.’’ चांदनी ने अपने आप को छुड़ाते हुए कहा, ‘‘बुआ आती होंगी. यदि तुम्हारी इस हरकत को किसी ने देख लिया, तो जानते हो क्या होगा.’’

चांदनी ने हालांकि घर वालों से डरने की बात कही थी, लेकिन अर्जुन की मुराद पूरी हो गई थी. उस दिन से अर्जुन और चांदनी के बीच प्रेम की बेल बढ़ने लगी थी. चांदनी भावनाओं में बहने वाली युवती थी. वह अर्जुन को अपनी पूरी बातें बता देती थी. अर्जुन के प्यार का जादू चांदनी के ऊपर पूरी तरह से चल चुका था. वह उस के प्यार के चंगुल में पूरी तरह फंस चुकी थी, लेकिन चांदनी की बुआ कमला को आभास तक नहीं था कि उस की भतीजी दूसरी बिरादरी के लड़के अर्जुन के साथ प्यार करने लगी है. उसे चांदनी पर भरोसा था. क्योंकि चांदनी होशियार लड़की थी. वह अपना अच्छाबुरा अच्छी तरह समझ सकती थी.

अर्जुन और चांदनी के प्यार के चर्चे जब गलीमोहल्ले में होने लगे तो यह बात कमला के घर तक भी पहुंची. इस के बाद तो घर में खलबली मच गई. कमला ने अर्जुन को इसलिए घर में आने जाने की छूट दी थी कि वह उन की मदद करता था. लेकिन उन्हें क्या पता था कि अर्जुन उन के साथ विश्वासघात करेगा और उन की इज्जत पर हाथ डालेगा. सच्चाई जानने के बाद कमला ने चांदनी और अर्जुन दोनों को डांटाफटकारा और अर्जुन का अपने घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया. यही नहीं कमला ने चांदनी के बहकते कदमों की जानकारी उस के मातापिता तथा भाई सुधीर व सुनील को दी. साथ ही कहा कि वे चांदनी को जल्द से जल्द आ कर गांव ले जाएं.

चूंकि मामला बेटी की इज्जत का था, सो सुखरानी अपने बेटे सुधीर व सुनील के साथ अपनी ननद कमला के घर त्रिलोकपुरी आ गई. यहां कमला ने चांदनी के दूसरी बिरादरी के लड़के से प्यार करने की बात बताई तो उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. मां और भाइयों ने चांदनी को पहले तो खूब डांटाफटकारा फिर मां सुखरानी ने चांदनी को प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, कुंवारी लड़की की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से ही यदि इस पर धब्बा लग जाए, तो यह जीवन भर नहीं धुल सकता. इसलिए अब भी वक्त है, तुम अर्जुन को भूल जाओ और उस से नाता तोड़ दो.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं अर्जुन को. मैं उस से प्यार करती हूं और वह भी मुझे चाहता है. हम दोनों शादी करने का फैसला कर चुके हैं.’’

‘‘यह सब बकवास है. अर्जुन हमारी जाति का लड़का नहीं है. इसलिए तुम्हारा अर्जुन के साथ रिश्ता नहीं हो सकता. फिर तुम्हारे अन्य भाई हैं. तुम ने यदि दूसरी बिरादरी के लड़के से शादी कर ली तो हमारी समाज में नाक कट जाएगी. फिर भला तुम्हारे भाइयों का रिश्ता कैसे होगा?’’

सुखरानी ने चांदनी को बहुत समझाया, लेकिन चांदनी को मां की नसीहत कतई अच्छी नहीं लगी. क्योंकि उस पर तो अर्जुन के प्यार का भूत सवार था. सुधीर व सुनील ने चांदनी से गांव चलने को कहा तो उस ने गांव जाने से मना कर दिया. सुधीर ने जबरदस्ती ले जाने की बात कही तो चांदनी ने पुलिस को फोन करने की धमकी दे दी. पुलिस की बात सुन कर कमला डर गई. वह घर में पुलिस का दखल नहीं चाहती थी. सो उस ने सुखरानी व सुधीर को समझाया कि अब वह स्वयं चांदनी पर नजर रखेगी. वे निश्चिंत हो कर गांव लौट जाएं. कमला के आश्वासन पर वे गांव लौट आए. चांदनी ने अर्जुन से रिश्ता खत्म नहीं किया. वह पहले की तरह ही उस से मिलती रही. हां, इतना जरूर हुआ कि अब दोनों खुलेआम नहीं, चोरीछिपे मिलते थे. एक रोज चांदनी अर्जुन की बांहों में मचलते हुए बोली, ‘‘अर्जुन, आखिर हम कब तक छिपछिप कर मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘शादी के लिए मैं तो तैयार हूं. पर तुम्हारे घर वाले ही राजी नही हैं.’’

‘‘तुम उन की चिंता मत करो. वे राजी न हों तो क्या हुआ. हम भाग कर ब्याह कर लेंगे.’’ वह बोली.

‘‘तब ठीक है, चांदनी. जब तुम तैयार हो तो हम जल्द शादी कर लेंगे.’’ अर्जुन बोला.

इस के बाद अर्जुन गुपचुप तरीके से चांदनी से शादी करने की तैयारी करने लगा. इस बीच वह अपने गांव भी गया और अपने मातापिता को बताया कि वह चांदनी नाम की एक लड़की से शादी करना चाहता है. बेटे की खुशी की खातिर मातापिता भी शादी को राजी हो गए. फिर 12 जून, 2020 को चांदनी अपनी बुआ के घर से अर्जुन के साथ भाग गई. अर्जुन उसे प्रतापगढ़ जिले में स्थित अपने घर ले गया और प्रतापगढ़ स्थित दुर्गा माता के मंदिर में जा कर चांदनी के साथ शादी कर ली. उधर चांदनी के भाग जाने की खबर कमला ने अपने भाई उदयवीर और भाभी सुखरानी को दे दी. बेटी के भाग जाने का उन्हें भी बड़ा दुख हुआ. लेकिन अब उन्होंने न तो उसे ढूंढने की कोशिश की और न ही पुलिस से शिकायत की बल्कि उन्होंने उसे उस के हाल पर ही छोड़ दिया.

2 दिन अपने गांव टोडरपुर रहने के बाद अर्जुन वापस दिल्ली लौट आया और त्रिलोकपुरी में ही कमरा किराए पर ले कर चांदनी के साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगा. शादी के पूर्व ही उस ने पुराना वाला कमरा खाली कर दिया था. उधर सुखरानी के बेटे सुधीर व सुनील बहन के इस गलत कदम से बौखला गए. उन्हें मन ही मन इस बात का मलाल था कि 5 भाइयों की इकलौती बहन एक दूसरी बिरादरी के लड़के अर्जुन के साथ भाग गई और वे कुछ नहीं कर पाए. चांदनी के प्रति दोनों भाइयों के दिलों में नफरत पैदा हो गई. वे उसे सबक सिखाना चाहते थे. लेकिन उन्हें त्रिलोकपुरी में उस का पताठिकाना मालूम न था. इधर शादी के 2 महीने ही बीते थे कि चांदनी को अपने भाई सुनील की याद आने लगी. क्योंकि सुनील चांदनी को बेहद प्यार करता था.

चांदनी भी भाई को बहुत प्यार करती थी. रक्षाबंधन वाले दिन जब चांदनी को भाई की सूनी कलाई की याद आई तो उस का धैर्य जवाब दे गया और उस ने भाई सुनील को फोन किया, ‘‘भैया, मैं चांदनी बोल रही हूं. आज रक्षाबंधन है न. तुम्हारी याद सता रही है.’’

बहन की आवाज फोन पर सुन कर सुनील भी भावुक हो उठा, ‘‘कहां हो बहना. मुझे भी तुम्हारी याद सता रही है. अम्मा व दादा भी तुम्हारी चिंता में डूबे रहते हैं. बहना, तुम्हारे गलत कदम से हम सब दुखी हैं. लेकिन अब हम सब ने दिल पर पत्थर रख लिया है और तुम्हारे फैसले को स्वीकार कर लिया है. अब ऐसा करो कि तुम अर्जुन के साथ गांव आ कर घूम जाओ.’’

चांदनी और सुनील के बीच मोबाइल फोन पर बातचीत शुरू हुई तो फिर आए दिन होने लगी. एक दिन बातचीत के दौरान सुनील ने चांदनी से कहा कि घर के सब लोग चाहते हैं कि तुम जल्द ही एक बार गांव आ कर घूम जाओ. इस पर चांदनी ने गांव आने की हामी भर ली. शाम को अर्जुन जब फैक्ट्री से घर आया तो चांदनी ने 2-4 दिन के लिए अपने मायके जाने की इच्छा जाहिर की. अर्जुन ने पहले तो साफ मना कर दिया लेकिन बाद में मान गया. 17 नवंबर, 2020 को चांदनी त्रिलोकपुरी (दिल्ली) से अपने मांबाप के घर फिरंजी अकेली आ गई. चांदनी के मन में था कि घर पहुंचते ही उसे सब हाथोंहाथ लेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. घर का माहौल बदला हुआ था. सब उसे नफरत की दृष्टि से देख रहे थे. बड़ा भाई सुधीर व मां सुखरानी कुछ ज्यादा ही नाराज थी. पिता उदयवीर की भी नजर टेढ़ी थी.

दूसरे रोज सुधीर, सुनील, उदयवीर व सुखरानी ने एक कमरे में आपस में मंत्रणा की फिर चांदनी पर दबाव डाला कि वह अर्जुन का साथ छोड़ दे. यदि वह ऐसा करेगी तो वह उस का विवाह धूमधाम से अपनी ही जाति के युवक से कर देंगे. लेकिन चांदनी राजी नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि उस ने अर्जुन से शादी कर ली है. वह अर्जुन का साथ किसी कीमत पर नहीं छोड़ेगी. चांदनी की बात सुधीर को नागवार लगी. गुस्से में उस ने तमंचा निकाल लिया और चांदनी के सीने में गोली दाग दी. चांदनी नीचे गिर गई और कुछ देर तड़पने के बाद उस ने दम तोड़ दिया. चांदनी की हत्या के बाद सभी ने एक राय हो कर उस की लाश ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

इस के लिए सुधीर और सुनील ने गांव के बाहर बंजर भूमि पर गहरा गड्ढा खोदा और फिर सब ने मिल कर उस गड्ढे में चांदनी के शव को दफन कर दिया. इधर अर्जुन परेशान था. चांदनी जब से अपने मायके गई थी, उस की बात उस से नहीं हो पा रही थी. क्योंकि उस का मोबाइल फोन बंद था. परेशान हो कर अर्जुन अपने गांव पहुंचा और सारी बात अपने मातापिता को बताई. उस ने आशंका जताई कि चांदनी के घर वालों ने उसे कैद कर लिया है. फिर 23 नवंबर, 2020 को अर्जुन अपने मातापिता के साथ फिरंजी गांव पहुंचा और चांदनी के घर वालों से अपनी पत्नी चांदनी के बारे में पूछताछ की. इस पर सुधीर व सुनील ने बताया कि चांदनी गांव आई जरूर थी. लेकिन 2 दिन बाद ही वह दिल्ली वापस चली गई थी.

अर्जुन तब त्रिलोकपुरी (दिल्ली) लौट आया. यहां वह कई रोज तक पत्नी की तलाश में जुटा रहा, जब वह नहीं मिली तो वह थाना मयूर विहार जा पहुंचा. उस ने सारी बात थानाप्रभारी कैलाश चंद्र को बताई और फिर पत्नी चांदनी के अपहरण की रिपोर्ट उस के भाई सुधीर व सुनील के खिलाफ दर्ज करा दी. जांच सौंपी गई एसआई मनोज कुमार तोमर को. 9 दिसंबर, 2020 को थाना मयूर विहार के एसआई मनोज कुमार तोमर अर्जुन के साथ मैनपुरी जिले के थाना किशनी पहुंचे. उन के साथ एसआई राकेश सिंह, हैडकांसटेबल उपेंद्र व विजय भी थे. एसआई तोमर ने किशनी थानाप्रभारी अजीत सिंह को पूरी बात बताई.

किशनी पुलिस की मदद से मनोज कुमार तोमर ने रात 10 बजे गांव फिरंजी में उदयवीर के घर छापा मारा और उस के 2 बेटों सुधीर व सुनील को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि चांदनी वापस दिल्ली चली गई थी. लेकिन पुलिस को उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने जब सख्त रुख अपनाया तो सुधीर व सुनील टूट गए. उन्होंने चौंकाने वाला खुलासा किया कि चांदनी की हत्या कर दी गई है और शव को गांव के बाहर बंजर भूमि में दफना दिया है. शव बरामद करने के लिए किशनी थानाप्रभारी अजीत सिंह, एसपी (मैनपुरी) अविनाश पांडेय, मयूर विहार दिल्ली थाने के एसआई मनोज कुमार तोमर व उन के सहयोगी फिरंजी गांव पहुंचे. पुलिस ने खुदाई के लिए जेसीबी मशीन भी मंगवा ली.

चूंकि मामला एक युवती के शव बरामदगी का था सो पुलिस अधिकारियों ने मौके पर नायब तहसीलदार अनुभव चंद्रा तथा एसडीएम रामसकल को भी बुलवा लिया. पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में सुधीर व सुनील की निशानदेही पर जेसीबी से खुदाई शुरू हुई. लेकिन दिन भर मशक्कत के बाद भी शव बरामद नहीं हुआ. 11 दिसंबर को जब सुखरानी की निशानदेही पर खुदाई की गई तो 8 फीट नीचे गड्ढे से चांदनी का शव बरामद हो गया. पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मैनपुरी के जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने सुधीर व सुनील को तो बंदी बना लिया था, लेकिन इस बीच सुखरानी अपने पति उदयवीर के साथ फरार हो गई. पुलिस ने दोनों को पकड़ने का प्रयास किया किंतु वे दोनों नहीं मिले.

12 दिसंबर, 2020 को किशनी पुलिस ने अभियुक्त सुधीर व सुनील को मैनपुरी की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन दोनों को जेल भेज दिया. मयूर विहार (दिल्ली) पुलिस ने अपहरण के इस मामले में हत्या व षडयंत्र रचने की धारा 302/120बी जोड़ दी. कथा लिखने तक दिल्ली पुलिस आरोपी सुधीर व सुनील को रिमांड पर लेने की काररवाई कर रही थी. पुलिस फरार आरोपी उदयवीर व सुखरानी को भी गिरफ्तार कर उन से पूछताछ करेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बीवी का गुस्सा : पहले कनपटी पर मारी गोली फिर चाकू से कई बार गोदा

Crime News : सुरजीत कौर अपने पति जसवंत से इसलिए खुश नहीं थी क्योंकि शादी के कई साल बाद भी वह मां नहीं बन सकी थी. इस के बाद सुरजीत की जिंदगी में रणजीत आया. रणजीत ने सुरजीत को मां तो बना दिया लेकिन…

दीपावली का पूजन करने के बाद जसवंत ने अपने बच्चों के साथ आतिशबाजी का लुत्फ उठाया. फिर खाना खाने के बाद अपने बच्चों को ले कर घर के बरामदे में सो गया. उस की चारपाई के पास ही पत्नी सुरजीत कौर दूसरी चारपाई पर सोई हुई थी. दोनों ही चारपाइयों पर एक ही मच्छरदानी लगी हुई थी. सुबह करीब साढ़े 4 बजे सुरजीत कौर के पेट में दर्द की शिकायत हुई तो उस ने पति जसवंत को उठाने की कोशिश की. लेकिन वह नहीं उठा. उस के बाद सुरजीत कौर ने पति के मोबाइल फोन की टौर्च जलाई तो जसवंत का चेहरा रक्तरंजित दिखाई दिया.

पति के चेहरे को देखते ही सुरजीत कौर के मुंह से जोरों की चीख निकली. उस ने जसवंत को फिर से उठाने की कोशिश की, लेकिन उठना तो दूर वह हिलडुल तक नहीं सका. सुरजीत की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए. लोगों ने देखा कि किसी ने उस की कनपटी पर सटा कर गोली चलाई थी. जिस के कारण उस की मौत हो गई थी. मृतक की पत्नी उसी की चारपाई के पास दूसरी चारपाई पर सोई हुई थी, लेकिन उसे गोली की भनक तक नहीं लगी, यह बात लोगों के लिए हैरत वाली थी.

परिवार वालों ने इसी बात को ले कर सुरजीत कौर से जवाब तलब किया तो उस ने बताया कि देर रात उस के चेहरे पर किसी का हाथ लगा. जिस के लगते ही उसे गहरी नींद आ गई. उस के बाद उसे बिलकुल होश नहीं रहा. शायद किसी ने उसे नशा सुंघा दिया था. वैसे भी चारों तरफ आतिशबाजी हो रही थी. आतिशबाजी के कारण उसे पता ही नहीं चला कि कौन कब आ कर उस के पति को मौत के घाट उतार कर चला गया. इस घटना की जानकारी केलाखेड़ा थाने में दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी प्रभात कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे. घटनास्थल पर पहुंच कर प्रभात कुमार ने स्थिति का जायजा लिया और इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दी.

सूचना पाते ही रुद्रपुर के एसएसपी डी.एस. कुंवर, एएसपी राजेश भट्ट, एसपी (क्राइम) प्रमोद कुमार और सीओ दीपशिखा अग्रवाल ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल की. मृतक के शरीर पर चाकुओं के निशान भी पाए गए. जिस से साफ था कि किसी ने उसे गोली मारने के बाद बुरी तरह से चाकुओं से गोदा था ताकि वह जिंदा न बच सके. उस के पास ही एक विशेष समुदाय की सफेद टोपी और एक धमकी भरा पत्र भी मिला मिला. मतलब किसी ने जसवंत से पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिए उस की हत्या की थी. पुलिस ने मृतक जसवंत की पत्नी और उस के परिवार वालों से इस मामले में जानकारी ली. लेकिन सभी जैसे अंजान बने हुए थे. जसवंत के परिवार वालों ने बताया कि वह बहुत सीधे स्वभाव का व्यक्ति था.

उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. घटनास्थल से सभी तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. कनपटी पर मारी थी गोली पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि जसवंत की मौत गोली लगने से हुई थी. इस मामले में पुलिस का सीधा शक उस की पत्नी सुरजीत कौर की ओर ही जा रहा था. लेकिन उस ने साफ कहा था कि आतिशबाजी की गड़गड़ाहट में वह समझ नही पाई कि गोली चली या फिर आतिशबाजी. उस की हत्या किस ने की, उसे भनक तक नहीं लगी. इस के बावजूद पुलिस ने सुरजीत कौर को अपने साथ लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आई. थाने ला कर सुरजीत कौर से कड़ी पूछताछ की गई.

पहले तो उस ने हर एंगल से खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश की,लेकिन पुलिस की सख्ती देख वह जल्दी टूट गई. उस ने स्वीकार किया कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी रणजीत सिंह के साथ मिल कर की है. इस हत्याकांड का खुलासा होने के बाद जो सच्चाई सामने आई, वह इस प्रकार थी. उत्तराखंड रुद्रपुर-काशीपुर हाइवे के किनारे बसा है एक कस्बा केलाखेड़ा. केलाखेड़ा से कोई 4 किलोमीटर दक्षिण की ओर पड़ता है रंपुरा काजी नाम का गांव. इसी गांव के पूर्वी छोर पर रहता था जसवंत सिंह का परिवार. परिवार के साथ उस का छोटा भाई मलकीत सिंह भी रहता था. लगभग 14 साल पहले जसवंत की शादी नानकमत्ता के गांव सरदारों की टुकड़ी निवासी दरबारा सिंह की बेटी सुरजीत कौर से हुई थी.

उस के कुछ दिनों बाद ही सुरजीत की बहन गुरमीत कौर की शादी जसवंत के छोटे भाई मलकीत से हुई. जसवंत सिंह और उस का छोटा भाई नौकरी कर के परिवार का पेट पालते थे. उन के पास न तो जुतासे की जमीन थी और न ही अन्य कोई कारोबार. 2 बेटियों की शादी के कुछ समय बाद सुरजीत कौर के पिता दरबारा सिंह की किसी बीमारी के चलते मृत्यु हो गई थी. उन की मौत के बाद सुरजीत कौर की मां और छोटी बहन की जिम्मेदारी भी जसवंत को ही उठानी पड़ी, जिस से वह और अधिक परेशान रहने लगा था. कई साल बाद भी नहीं बनी मां जसवंत की शादी के कुछ सालों तक तो सब कुछ ठीकठाक चला. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी सुरजीत कौर मां न बन सकी.

यह बात उस के मन को कचोटने लगी थी. सुरजीत कौर समझती थी कि उस का पति जसवंत कुछ ढीले किस्म का है, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि वह औलाद पैदा करने में भी असमर्थ है. सुरजीत कौर ने कई बार उसे किसी डाक्टर को दिखा कर कर इलाज कराने की सलाह दी. लेकिन जसवंत किसी डाक्टर के पास जाने को तैयार नहीं था. वह हर साल नौकरी के लिए पंजाब जाता था. बीवी को घर पर अकेला छोड़ कर वह कईकई महीने वहीं पर रहता था. सुरजीत कौर घर पर अकेली रहती थी. घर पर कामकाज कोई था नहीं. वह भी अपना समय काटने के लिए अपने मायके चली जाती थी. मायके में रहते उस की मुलाकात रणजीत से हुई. रणजीत जसपुर भोगपुर डैम में रहता था.

उस की शादी भी सुरजीत कौर के मायके गांव सरदारों की टुकड़ी में हुई थी. इसलिए दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे. शादी के कुछ समय बाद रणजीत का  किसी वजह से अपनी पत्नी से तलाक हो गया था. बीवी से तलाक होने के कारण रणजीत का अपनी ससुराल जाना बंद हो गया था. तलाक के साल भर बाद जसपुर में एक शादी समारोह में संयोग से रणजीत की मुलाकात सुरजीत कौर से हुई. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे का हालचाल पूछा, तो रणजीत ने अपनी बीवी की कहानी उसे सुना कर अपना दुखड़ा रोया. पुरानी जानपहचान होने के नाते दोनों ही भावनाओं में बह गए. दोनों का दर्द एक ही था. एक अपने पति से परेशान थी तो दूसरे की बीवी ने उसे तंग कर दिया था.

सुरजीत कौर देखनेभालने में खूबसूरत थी. उस का दर्द सुन कर उस पर रणजीत का मन रीझ गया. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. मुलाकात के दौरान बातचीत हुई तो दोनों दूर के रिश्तेदार भी निकल आए. एक बार जानपहचान बढ़ी तो रणजीत सुरजीत कौर के साथ उस के घर तक आ पहुंचा. हालांकि रणजीत शरीर से इतना हृष्टपुष्ट नहीं था. लेकिन बात करने में इतना तेज था कि किसी भी व्यक्ति से वह किसी भी तरह जानपहचान निकाल कर रिश्तेदारी तक बना लेता था. शादी के कई साल बाद तक बीवी को कोई बच्चा नहीं हुआ तो जसवंत ने अपनी बहन के बेटे प्रदीप को गोद ले लिया.

उस की बीवी उसे ही अपना बेटा मान कर उस की परवरिश करने लगी थी. उसी के सहारे उस का समय भी कटने लगा था. एक दिन रणजीत जसवंत के घर जा पहुंचा. रणजीत को घर आया देख कर सुरजीत का दिल बागबाग हो उठा. रणजीत ने भी बहुत दिनों बाद सुरजीत को नजदीक से देखा तो देखता ही रह गया. सुरजीत घर में बनठन कर रहती थी. देखनेभालने में तो वह ठीकठाक थी ही. रणजीत ने दिल में बना ली जगह सुरजीत कौर को देख कर रणजीत का मन मचल उठा. सुरजीत के दिल का भी कुछ यही हाल था. वह काफी समय से काम वासना से वंचित थी. उस रात सुरजीत कौर ने रणजीत को अपने घर पर ही रोक लिया.

सुरजीत ने रणजीत की काफी खातिरदारी की. उस ने उसे शराब पिलाई और उस के साथ ही 1-2 पैग खुद भी लगा लिए. जसवंत के घर में एक ही कमरा था. उस कमरे के आगे बरामदा था. खाना खाने के बाद सुरजीत ने कमरे में दूसरी चारपाई डाली और उस पर रणजीत को सुला दिया और स्वयं प्रदीप को ले कर दूसरी चारपाई पर लेट गई. प्रदीप थोड़ी देर में सो गया. सुरजीत और रणजीत देर रात तक बातें करते रहे. उस वक्त दोनों के दिलों का बुरा हाल था. लेकिन पहल कौन करे, दोनों की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी. सुरजीत कौर को शराब का सुरूर चढ़ना शुरू हुआ तो उस ने रणजीत के सामने अपने पति की सारी पोल खोल दी.

सुरजीत ने शराब के नशे में कई बार कहा कि ऐसे मर्द से क्या फायदा जो बीवी को गर्म कर के ठंडा ही न कर पाए. सुरजीत कौर जब पूरी तरह से रणजीत के सामने खुल गई तो वह पीछे कहां हटने वाला था. उस के लिए यह अच्छा मौका था. सुरजीत की बात सुनतेसुनते जब उस का मनमस्तिष्क कामातुर हो गया तो वह देर लगाए बिना उस की चारपाई पर जा पहुंचा. उस रात दोनों के बीच जो हुआ उस से दोनों ही संतुष्ट थे. उस रात दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हुए तो दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए. फिर यह सिलसिला अनवरत चलता रहा. जसवंत अपनी रोजीरोटी कमाने के चक्कर में लगा रहता, उस की बीवी उस की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर रणजीत के साथ मौजमस्ती करती. लेकिन इन दोनों की हरकतों की जसवंत को कानोंकान खबर तक नही हुई.

रणजीत और सुरजीत के बीच प्रेम परवान चढ़ता गया. जब भी जसवंत काम करने बाहर जाता तो सुरजीत फोन कर के रणजीत को अपने घर बुला लेती और फिर उस के साथ खुल कर अय्याशी करती. जसवंत चाहे कितना सीधा था लेकिन वह अपनी पत्नी के चरित्र को जान गया था. यह अलग बात है कि बीवी के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था. वह स्वयं भी अपने आप पर शर्मिंदा होता रहता था. रणजीत के वक्तबेवक्त उस के घर आने से उस के परिवार वालों के साथ ही मोहल्ले वाले भी परेशान हो चुके थे. कई बार उस के भाई मलकीत ने ही जसवंत से शिकायत की कि वह भाभी को समझाए. इस तरह से गैरमर्द को घर में बुलाना अच्छा नहीं. लेकिन जसवंत में इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि वह सुरजीत को कुछ कह पाता.

सुरजीत कौर बनी मां कुछ महीनों बाद सुरजीत ने जसवंत को खुशखबरी देते हुए बताया कि वह मां बनने वाली है. यह सुन कर जसवंत खुशी से पागल हो गया. उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि शादी के इतने साल बाद वह अपने बच्चे का बाप बनेगा. जसवंत ने पहले ही अपनी बहन के बेटे को गोद ले रखा था. यह बात पूरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बनी रही कि इतने सालों तक तो उस के कोई औलाद हुई नहीं, फिर सुरजीत कौर अचानक गर्भवती कैसे हो गई. यह बात उस के परिवार वालों के साथसाथ मोहल्ले वाले भी जानते थे कि उस के पेट में पल रहा बच्चा जसवंत का नहीं हो सकता. लेकिन जसवंत खुश था कि उस के घर उस की अपनी औलाद पैदा होने वाली थी.

समय पर सुरजीत ने एक बेटे को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया सुखदेव. सुरजीत कौर जानती थी कि सुखदेव में जसवंत का खून नहीं है. वह पहले से ही उसे रणजीत का मान कर चल रही थी. लेकिन जसवंत घर में आई खुशियों से गदगद था. उसे अब समाज के सामने नीचा देखने की जरूरत नहीं थी. घर में नन्हा मेहमान आने से उस के घर के खर्चों में बढ़ोत्तरी हो गई थी. घर के खर्च पूरे करने के लिए जसवंत दिनरात एक कर के पैसा कमाने में जुट गया. सुरजीत कौर ने हकीकत रणजीत को बताते हुए खुशखबरी सुनाई कि सुखदेव जसवंत का नहीं, बल्कि तुम्हारा ही बेटा है. यह बात सुन कर रणजीत भी खुश हुआ.

उस ने अपने बेटे सुखदेव के ठीक प्रकार से लालनपालन करने के लिए सुरजीत कौर को खर्चा भी देना शुरू कर दिया था. अब सुरजीत रणजीत को और भी अधिक प्यार करने लगी थी. हालांकि जसवंत जो भी कमा कर लाता था वह सब सुरजीत के हाथ पर रख देता था. लेकिन सुरजीत को उस सब से खुशी कहां मिलने वाली थी. वह रणजीत को ही प्यार करती थी और उसे ही अपना पति मानने लगी थी. जसवंत के साथ तो उस के केवल अनचाहे रिश्ते रह गए थे, जिसे अब वह बरदाश्त भी नहीं कर पा रही थी.

रणजीत भी काफी समय से यही समझाता आ रहा था कि जब तेरा आदमी तेरे लायक ही नहीं है तो उस के घर में रह कर तू अपनी जिंदगी क्यों बरबाद कर रही है. रणजीत ने सुरजीत से कई बार घर से भाग चलने के लिए भी कहा, लेकिन सुरजीत गलत कदम उठाने को तैयार नहीं थी. उस ने रणजीत से कह दिया था कि जैसे चल रहा है, वैसे ही चलने दो. जसवंत की तरफ से चिंता मत करो, वह तुम्हें कुछ भी नहीं कहेगा इस के बावजूद रणजीत सुरजीत के प्यार में इस कदर पागल हो चुका था कि उसे एक पल के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था. वह आए दिन सुरजीत पर साथ चलने के लिए दबाव बनाने लगा था.

सुरजीत ने लिया खौफनाक फैसला सुरजीत रणजीत की जिद के आगे हार मान बैठी और उस ने फिर जिंदगी का आखिरी निर्णय लेते हुए अपनी मांग के सिंदूर को ही मिटाने की योजना बना डाली. सुरजीत ने जसवंत को कई बार मौत के घाट उतारने की योजना बनाई, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पाई. फिर उस ने रणजीत से साफ शब्दों में कह दिया कि अपने पति को मौत की नींद सुलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी. अब जो भी करना है आप ही करो. दीपावली का त्यौहार आने से कुछ दिन पहले रणजीत ने जसवंत को मौत की नींद सुलाने के लिए एक योजना बनाई. उसी योजना के तहत दोनों ने दीपावली का दिन चुना, ताकि दीपावली के शोरशराबे में वे अपनी योजना को आराम से अंजाम दे सकें. जिस वक्त दोनों ने जसवंत को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई उस वक्त वह पंजाब गया हुआ था.

दीपावली का त्यौहार नजदीक आया तो जसवंत 3 नवंबर, 2020 को अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर वह दीवाली की तैयारी में लग गया था. लेकिन सुरजीत के दिमाग में एक ही शैतान चढ़ा हुआ था कि कब दीपावली आएगी और कब उसे जसवंत से छुटकारा मिलेगा. 13 नवंबर, 2020 को रणजीत ने सुरजीत को अपनी पूर्वनियोजित योजना समझा दी. उसी दिन उस ने अपने 13 वर्षीय भतीजे से जसवंत के नाम एक धमकी भरा पत्र लिखवाया ताकि उस की हत्या के बाद पुलिस उस के हत्यारों के लिए इधरउधर भटकती रहे. पुलिस को गुमराह करने के लिए उस ने अन्य वर्ग की एक टोपी भी खरीद ली थी.

14 नवंबर, 2020 को सुबह से ही जसवंत त्यौहार की तैयारियों में जुटा था. शाम होने पर उस ने घर में पूजापाठ करने के बाद दीए जलाए और फिर बच्चों के साथ आतिशबाजी का मजा भी लिया. जसवंत को शराब पीने की लत थी. उस ने शराब का सेवन किया और फिर खाना खा कर परिवार के साथ सो गया. अपनी पूर्व योजना के अनुसार रणजीत देर रात जसवंत के घर पहुंचा. उस समय तक अधिकांश लोग सो चुके थे. लेकिन पटाखों की आवाज अभी भी गूंज रही थी. सुरजीत ने पहले ही घर की सारी लाइटें बंद कर दी थीं. लोगों की नजरों से छिपतेछिपाते रणजीत जैसेतैसे जसवंत के घर तक पहुंच गया.

खुद ही मिटाया सिंदूर रणजीत को आया देख सुरजीत ने उसे अंदर कमरे में बिठा दिया और फिर जसवंत को देखा. वह खर्राटे मार रहा था. फिर वह सीधे कमरे में गई और दोनों ने अपनी निर्धारित योजना को अंजाम देने के लिए आखिरी खाका तैयार किया. रणजीत पहले ही एक गोली से लोडेड चमंचा ले कर आया था. बाहर चारपाई पर सोते जसवंत को देख रणजीत के अंदर शैतान जाग उठा. जसवंत गहरी नींद में था. उसे सोता देख रणजीत ने उस की कनपटी पर चमंचा रख कर गोली चला दी. कनपटी पर गोली लगते ही उस के प्राणपखेरू उड़ गए. इस के बाद भी रणजीत की हैवानियत खत्म नहीं हुई. उस ने सोचा कि कहीं वह जिंदा न बच जाए, सो उस ने उस के शरीर पर चाकू से कई वार किए. कुछ ही पल में जसवंत का शरीर एक लाश बन कर रह गया.

पति की हत्या कराने के बाद सुरजीत कौर ने रणजीत को वहां से यह कह कर भगा दिया कि आगे का काम वह खुद संभाल लेगी. उस के बाद सुरजीत कौर अपने बच्चों को साथ ले कर दूसरी चारपाई पर लेट गई. सुबह होते ही उस ने नौटंकी करते हुए रोनाधोना शुरू किया, जिसे सुन कर गांव वाले उस के घर पर इकट्ठा हो गए थे. इस केस के खुलते ही पुलिस ने सुरजीत के प्रेमी रणजीत को उस के गांव भोगपुर डैम गुरुद्वारा तीरथनगर पतरामपुर (जसपुर) से गिरफ्तार कर लिया. रणजीत की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल तमंचा, एक खोखा और धमकी भरे पत्र का पन्ना बरामद कर लिया था. पुलिस ने जसवंत के छोटे भाई मलकीत की तहरीर पर भादंवि की धारा 320/120 बी व 25 आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर रणजीत और उस की प्रेमिका सुरजीत कौर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया.

 

Agra News Crime : टॉयलेट के बहाने जंगल में ले जाकर प्रेमी से कराया पति का कत्ल

Agra News Crime : 2 शादियां करने के बावजूद भी पूनम अपने मायके के प्रेमी संदीप को नहीं भुला सकी थी. पति शिवकुमार से छुटकारा पाने और प्रेमी के साथ जिंदगी बिताने की पूनम ने ऐसी खूनी साजिश रची कि…

16 दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के यमुना एक्सप्रेसवे से मथुरा के राया कस्बे में उतरने वाले रास्ते के किनारे लोगों ने झाडि़यों में खून से लथपथ एक युवक का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में वहां राहगीर भी जुटने लगे. उसी दौरान किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि यह क्षेत्र थाना राया के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा वायरलैस मैसेज दे कर घटना से अवगत करा दिया. रातभर की ड्यूटी के बाद सुबह इतनी जल्दी उठना पुलिस के लिए थोड़ा मुश्किल जरूर होता है. लेकिन स्थानीय राया थाने के प्रभारी निरीक्षक सूरज प्रकाश शर्मा को जैसे ही उन के मुंशी ने आ कर हत्या के बारे में बताया तो उन का आलस्य काफूर हो गया.

थानाप्रभारी एस.पी. शर्मा तत्काल तैयार हुए. एसआई मोहनलाल यादव, राजकुमार, कांस्टेबल यशपाल, आशुतोष कुमार व प्रदीप कुमार को साथ ले कर वह उस स्थान पर पहुंच गए, जहां खून से लथपथ शव पड़े होने की सूचना मिली थी. लाश को देखते ही इंसपेक्टर शर्मा समझ गए कि यह दुर्घटना का नहीं बल्कि हत्या का मामला है. क्योंकि पास में ही एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था, जिस पर लगा खून इस बात की गवाही दे रहा था कि उसी पत्थर से मृतक के सिर पर प्रहार कर के उस की हत्या की गई थी. इसी के कारण मृतक का सिर व चेहरा खून से सराबोर हो चुके थे. चेहरे पर बहते ताजा खून को देख कर वे समझ गए कि हत्या हुए ज्यादा वक्त नहीं बीता है. मृतक के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी जो खून से सराबोर थी.

थानाप्रभारी ने एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर तथा सीओ आरती सिंह को राया मोड़ पर मिले शव के बारे में सूचना दे दी. एसएसपी व सीओ सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक की टीम का दस्ता भी मौके पर पहुंच गया. घटनास्थल के मुआयने के बाद मृतक की कदकाठी व सूरत से अनुमान लगा कि उस की उम्र 26 साल के आसपास रही होगी. मृतक के शरीर पर जींस और जैकेट के साथ पैरों के जूतों से अनुमान लग रहा था कि वह कोई राहगीर था, जिस से या तो लूटपाट के लिए उस की हत्या की गई थी या किसी ने रंजिशन यहां ला कर मार दिया था.

मृतक के जेबों की तलाशी ली गई तो जेब से ऐसी कोई चीज बरामद नहीं हो सकी, जिस से उस की पहचान की जा सकती थी. इंसपेक्टर शर्मा शव का मुआयना कर रहे थे, तभी उन की नजर लाश से कुछ दूरी पर पड़े एक बैग पड़ी. लेकिन वह बैग पूरी तरह खाली था मगर तलाशी लेने पर उस में कागज का एक लिफाफा पड़ा मिला, जिस में एक फोटो थी. फोटो ताजमहल के सामने खिंचवाई गई थी. फोटो में मृतक के साथ एक महिला भी खड़ी थी. फोटो इस तरह खिंचवाई गई थी जिस तरह नवदंपति खिंचवाते हैं. इस फोटो से 2 बातें साफ हो रही थीं. एक तो यह कि जिस अंदाज में ये फोटो खिंचवाई गई थी आमतौर पर वैसे लोग अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचवाते हैं.

दूसरी ये बात भी साफ हो गई कि ये फोटो बहुत पुरानी नहीं थी, क्योंकि मृतक के शरीर पर जो कपड़े थे, फोटो में भी उस ने वही कपड़े पहने हुए थे. इस का मतलब साफ था कि मृतक ताजमहल घूम कर लौटा था. लेकिन सवाल यह था कि अगर फोटो में उस के साथ खड़ी महिला उस की पत्नी थी तो वह कहां है? अचानक इंसपेक्टर एस.पी. शर्मा के मन में सवाल कौंधा कि कहीं पत्नी ने ही तो उस का काम तमाम नहीं कर दिया. लेकिन ये तमाम सवाल तब तक कयास ही थे, जब तक मृतक की शिनाख्त नहीं हो जाती. ताजमहल देख कर राया के इस रास्ते पर उतरने से इस बात की भी संभावना थी कि मृतक आसपास के ही किसी गांव का रहने वाला हो सकता है.

इसी उम्मीद में इंसपेक्टर सूरज प्रकाश शर्मा ने उस इलाके में 5 किलोमीटर तक पड़ने वाले सभी गांवों में अपनी पुलिस टीम से कह कर ऐसे जिम्मेदार लोगों को मौके पर बुलवाया, जो अपने गांव के अधिकांश लोगों को जानते थे. कई घंटे मशक्कत की गई, लेकिन काफी लोगों को दिखाने के बाद भी मृतक की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस अधिकारी घटनास्थल से थाने लौट आए. पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने जांच की जिम्मेदारी राया थाने के प्रभारी निरीक्षक सूरज प्रकाश शर्मा को ही सौंप दी. साथ ही उन्होंने सीओ आरती सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी के अलावा एसआई मोहनलाल यादव, राजकुमार, कांस्टेबल यशपाल, आशुतोष कुमार, प्रदीप तथा इंसपेक्टर (सर्विलांस) जसवीर सिंह तथा उन की टीम के कांस्टेबल राघवेंद्र सिंह, समुनेश, योगेश कुमार, गोपाल सिंह को भी शामिल किया गया. एसएसपी ने इस हत्याकांड का जल्द से जल्द खुलासा कर आरोपियों को पकड़ने के निर्देश टीम को दिए. पुलिस के पास मृतक की पहचान करने व वारदात का खुलासा करने के लिए केवल एक ही लीड थी और वह थी घटनास्थल से बरामद हुआ फोटो. थानाप्रभारी एस.पी. शर्मा खुद पुलिस टीम ले कर आगरा पहुंच गए. उन्होंने आगरा पहुंच कर वहां ताजमहल के आसपास फोटो खींचने वाले फोटोग्राफरों को मृतक के पास से मिले फोटो दिखा कर जानकारी हासिल करनी चाही. लेकिन इस प्रयास में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली.

क्योंकि वहां सैकड़ों फोटोग्राफर थे और सभी से संपर्क होना बेहद मुश्किल था. अचानक उन्होंने उस साइट का निरीक्षण किया, जहां खड़े हो कर मृतक ने फोटो खिंचवाई थी. इस से एक बात स्पष्ट हो गई कि मृतक ने ताजमहल के भीतर जा कर फोटो खिंचवाई थी. इंसपेक्टर शर्मा ने ताजमहल प्रशासन की मदद से ताजमहल के भीतर प्रवेश करने वाले गेट की पिछले 2 दिनों की सीसीटीवी फुटेज देखी तो 15 दिसंबर को मृतक एक महिला के साथ ताजमहल में प्रवेश करते हुए दिखाई पड़ गया. इस से एक बात तो साफ हो गई कि मृतक आगरा से घूम कर ही मथुरा गया था, जहां उस की हत्या हो गई.

आगे का काम पुलिस के लिए बेहद आसान हो गया. पुलिस ने ताजमहल प्रशासन की मदद से 15 दिसंबर को ताजमहल देखने वालों के टिकट की छानबीन शुरू कर दी. दरअसल ताजमहल देखने के लिए जाने वालों को अपना नाम, पता और मोबाइल नंबर की जानकारी भरनी होती है. छानबीन करने के दौरान पुलिस टीम को आखिर एक ऐसा टिकट मिल गया, जो 2 लोगों के लिए बना था. उस में जो आईडी प्रूफ लगा था, वह हरियाणा के पलवल जिले के थाना होडल क्षेत्र के गांव सेवली में रहने वाले शिवकुमार का था. साथ में उस की पत्नी पूनम का नाम लिखा था.

पुलिस टीम ने ताजमहल प्रशासन की मदद से सीसीटीवी फुटेज और एंट्री टिकट का रिकौर्ड वहां से अपने कब्जे में ले लिया. इंसपेक्टर शर्मा अपनी टीम के साथ 16 दिसंबर की रात को ही मथुरा वापस लौट आए. इंसपेक्टर शर्मा ने एक सिपाही को पलवल के सेवली गांव भेजा. जहां से वह अगली सुबह शिवकुमार के चाचा लक्ष्मण सिंह व अन्य परिजनों को अपने साथ राया थाने लिवा लाया. सब से पहले लक्ष्मण व अन्य परिजनों को पोस्टमार्टम हाउस में प्रिजर्व कर के रखा गया शव दिखाया तो उन्होंने देखते ही उस की पहचान शिवकुमार के रूप में कर दी.

लक्ष्मण सिंह ने कपड़ों को देख कर भी साफ कर दिया कि उस ने जो कपड़े पहने थे, वह घर से पहन कर गया था. साथ ही उन्होंने मृतक शिवकुमार के शव के पास मिली फोटो को देख कर स्पष्ट कर दिया कि वह फोटो शिवकुमार तथ उस की पत्नी पूनम की है. पूछताछ करने पर लक्ष्मण ने बताया कि 14 दिसंबर को शिवकुमार अपनी पत्नी पूनम के साथ ताजमहल जाने की बात कह कर बस से गया था. दोपहर अपने मामा ओंकार सिंह से मुलाकात करने के लिए भरतपुर गेट मथुरा जाने की कह कर आया था. उन्होंने बताया कि शिवकुमार की शादी इसी साल 29 जून को अलीगढ़ जिले के गांव गोरोला निवासी पूनम से हुई थी. लक्ष्मण ने बताया कि उन के बेटे सूरज की शादी भी इसी गांव में हुई थी और उस के सुझाव पर उन के भाई भरत सिंह ने बेटे शिवकुमार का विवाह पूनम से किया था.

चूंकि शादी के बाद से कोरोना की महामारी के कारण शिवकुमार अपनी पत्नी को कहीं भी घूमने के लिए ले कर नहीं गया था, इसीलिए उस ने पहली बार पत्नी को घुमाने का प्लान बनाया था और ताजमहल घुमाने के लिए ले कर गया था. शिवकुमार की हत्या और उस की पत्नी पूनम के लापता होने की गुत्थी को लक्ष्मण सिंह भी नहीं समझ पा रहे थे. इंसपेक्टर शर्मा को लग रहा था कि हो न हो शिवकुमार की हत्या और उस की पत्नी के लापता होने में कोई राज जरूर है. शिवकुमार तथा उस की पत्नी पूनम के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. शिवकुमार की काल डिटेल्स से तो पुलिस को कुछ खास मदद नहीं मिली. लेकिन पूनम की काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि पिछले कुछ महीनों से पूनम की एक खास नंबर पर लंबीलंबी बातें दिन में कई बार होती थीं.

16 दिसंबर की सुबह जब पुलिस ने शिवकुमार का शव बरामद किया था, उस दिन तथा उस से पहले 3-4 दिन में उसी नंबर पर पूनम की कई बार लंबी बातचीत हुई थी. पुलिस ने जब उस नंबर की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि वह पूनम के ही गांव गोरोला में रहने वाले किसी संदीप के नाम है. जांच जैसेजैसे आगे बढ़ रही थी, धीरेधीरे पूरा माजरा भी पुलिस की समझ में आ रहा था. क्योंकि जब पूनम व संदीप के फोन की लोकेशन ट्रेस की गई तो 15 दिसंबर की शाम से ले कर अभी तक दोनों के फोन की लोकेशन अलीगढ़ व मथुरा के बौर्डर एरिया में एक साथ मिल रही थी. साफ था कि पूनम व संदीप एक साथ हैं. पुलिस की एक टीम पूनम की तलाश में उस के मायके पहुंची, लेकिन वहां उस का कोई पता नहीं चल सका.

पुलिस ने लोकेशन के आधार पर कई टीमें बना कर अलीगढ़ में अलगअलग छापेमारी शुरू कर दी. आखिरकार पुलिस ने पूनम व संदीप को मथुरा व अलीगढ़ बौर्डर के गांव नगला गंजू से उस के एक दोस्त के घर से गिरफ्तार कर लिया. दोनों को राया थाने में ला कर पूछताछ शुरू की गई तो पुलिस को शिवकुमार की हत्या का राज खुलवाने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. पूनम पति से बेवफाई और अपनी निजी जिंदगी का एकएक राज खोलती चली गई. 24 साल की पूनम ने जब से जवानी की दहलीज पर कदम रखा था, तब से संदीप को ही अपना सब कुछ माना था. दोनों एक ही बिरादरी के थे, इसलिए पूनम ने कभी सोचा ही नहीं था कि संदीप को पति के रूप में देखने का उस का सपना कभी पूरा नहीं होगा.

पलवल के सेवली गांव के रहने वाले चंद्रपाल सिंह के 4 बच्चों में पूनम सब से बड़ी थी. उस से छोटी एक बहन व 2 भाई थे. गांव में खेतीकिसानी करने वाले पिता को जब एक साल पहले पता चला कि बड़ी बेटी पूनम गांव में ही रहने वाले महावीर के छोटे बेटे संदीप से प्यार करती है तो उन का गुस्सा फूट पडा. दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी एक ही गांव में रहने वाले युवकयुवतियों को आपस में भाईबहन मानने की प्रथा है. इसलिए चंद्रपाल सिंह ने पूनम से साफ कह दिया कि वे मर जाएंगे, लेकिन संदीप से उस की शादी नहीं करेंगे. पूनम ने पिता से साफ कहा कि वह संदीप से 3 सालों से प्यार करती है और उस के बिना जीने की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की है. अगर उन्होंने उस की शादी कहीं कर भी दी तो वह खुश नहीं रह पाएगी. क्योंकि वह तन मन से संदीप को ही अपना पति मान चुकी है.

चंद्रपाल सिंह ने बेटी को ऊंचनीच और समाज का वास्ता दे कर उस वक्त शांत तो कर दिया लेकिन उन्हें लगा कि अगर जल्द ही बेटी के हाथ पीले नहीं किए तो वह समाज में उसे रुसवा कर सकती है. गांव में बिरादरी के ही एक दोस्त की बेटी की शादी पलवल के सूरज से हुई थी. सूरज के परिवार और खानदान के बारे में उन्हें पता था कि निहायत शरीफ और अच्छे परिवार का लड़का है. चंद्रपाल ने दोस्त से कह कर पूनम के लिए अपने घरपरिवार में कोई लड़का देखने की बात कही तो सूरज ने उसे बताया कि उस के चाचा का लड़का शिवकुमार भी शादी के लायक है.

शिवकुमार भाइयों में सब से बड़ा था. हालांकि घर में थोड़ीबहुत जमीन थी, जिस पर परिवार के लोग खेती करते थे. लेकिन इस के अलावा भी शिवकुमार पलवल में एक कारखाने में नौकरी करता था. जब खेती का काम ज्यादा होता तो नौकरी छोड़ देता था. कुल मिला कर जिंदगी की गुजरबसर ठीक तरह से हो रही थी. सूरज ने जब अपने चाचा और पिता को अपनी ससुराल में रहने वाले चंद्रपाल की लड़की पूनम का जिक्र किया तो परिवार को लगा कि अच्छा ही देखाभाला परिवार है दोनों भाइयों की ससुराल एक ही गांव में होगी तो अच्छा रहेगा. एक दिन सूरज ने शिवकुमार को अपनी ससुराल में ले जा कर चोरी से उसे पूनम को दिखा भी दिया. शिवकुमार को पूनम पहली ही नजर में भा गई.

गांव की सीधीसादी और मासूम सी पूनम को देख कर शिवकुमार ने घर वालों से पूनम से शादी करने की हां भर दी. इस के बाद दोनों परिवारों में बात हुई और कोरोना के कारण दोनों परिवारों ने सादगी के साथ शादी संपन्न करा दी. शादी के बाद पूनम शिवकुमार की दुलहन बन कर उस के गांव सेवली आ गई. दोनों का वक्त धीरेधीरे प्यार के बीच गुजरने लगा. लेकिन शादी के बाद एक भी दिन पूनम अपने दिल से संदीप का प्यार व उस की यादों को निकाल नहीं सकी थी. वक्त जैसेजैसे गुजर रहा था, संदीप के लिए उस की तड़प और ज्यादा बढ़ती जा रही थी. वह जब भी मायके जाती तो चोरीछिपे संदीप से जरूर मिलती और किसी तरह शिवकुमार से छुटकारा दिला कर अपनी बनाने का दबाव उस पर डालती.

संदीप भी पूनम के बिना खुद को अधूरा समझता था. उस ने पूनम को भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह उस के लिए कुछ करेगा. 9 दिसंबर को पूनम के भाई की शादी हुई थी. इस में शिवकुमार अपनी पत्नी के साथ गया था. 3 दिन तक वह वहीं रहा. उसी दौरान पूनम को संदीप के साथ कई बार मिलने का मौका मिला. संदीप ने उस से कहा कि शिवकुमार से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि उस की हत्या कर दी जाए. उस के बाद जब वह विधवा हो जाएगी तो परिवार वाले एक गांव का होने के बावजूद उन की शादी करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.

बात पूनम की समझ में आ गई. उस ने शिवकुमार की हत्या करने के लिए हामी भर दी. लेकिन शिवकुमार को कैसे मारा जाए कि उन पर कोई अंगुली भी न उठे. इस के लिए 2-3 मुलाकातों में ही पूनम ने संदीप से मिल कर हत्या की पूरी साजिश तैयार कर ली. शादी के बाद पूनम पति शिवकुमार के साथ वापस आ गई. पूनम व संदीप के पास मोबाइल फोन थे, जिस के माध्यम से वे शादी के बाद से एकदूसरे से बातचीत किया करते थे और वाट्सऐप कालिंग करते रहते थे. लेकिन भाई की शादी से लौटने के बाद पूनम का संदीप से फोन पर बातचीत करने का सिलसिला ज्यादा बढ़ गया. क्योंकि उन्हें अपनी उस योजना को अंजाम देना था, जिस के साथ शिवकुमार को रास्ते से हटाना था.

संदीप ने पूनम से कहा था कि अगले एकदो दिन में वह अपने पति को आगरा घूमने के लिए राजी कर ले और उसे अपने साथ आगरा ले आए. पूनम ने ऐसा ही किया. उस ने शिवकुमार से कहा कि शादी के बाद वह उसे कहीं घुमाने नहीं ले गया. कम से कम आगरा में प्यार की निशानी आगरा का ताजमहल तो दिखा दें. फरमाइश कोई ज्यादा बड़ी और नाजायज भी नहीं थी, लिहाजा शिवकुमार परिवार वालों से इजाजत ले कर 14 दिसंबर को पूनम को ताजमहल दिखाने के लिए बस से आगरा ले आया. 14 दिसंबर को पूनम और शिवकुमार आगरा ताजमहल घूमते रहे. रात को एक होटल में रुके. अगले दिन सुबह यानी 15 दिसंबर को उन्होंने ताजमहल देखा और शाम को वहीं रुके.

अगली सुबह 6 बजे आगरा से बस द्वारा घर के लिए निकल पड़े. हालांकि शिवकुमार का प्लान यह था कि पहले मथुरा जा कर कृष्ण जन्मभूमि व प्रेम मंदिर देखेंगे उस के बाद मथुरा में अपने मामा से मिलेगा और बाद में घर जाएगा. लेकिन बस में बैठते समय पूनम ने अनुरोध कर के उस का प्लान बदलवा दिया. दरअसल, पूनम ने कहा था कि राया के पास उस के रिश्ते के एक मौसा रहते हैं. उन्होंने कई बार उस से पति के साथ घर आने के लिए कहा है. थोड़ी देर के लिए उन से मिलने के बहाने वह शिवकुमार को ले कर राया के पास एक्सप्रेसवे के यमुना कट पर ही उतर गई. दरअसल, शिवकुमार पत्नी से इतना प्यार करता था और भले स्वभाव का था कि उसे पता ही नहीं था कि पूनम एक साजिश के तहत उसे राया लाई है. हकीकत यह थी कि वहां उस का कोई मौसा नहीं रहता था.

इस दौरान संदीप से लगातार उस की बात चल रही थी. उस वक्त सुबह के करीब 7 बजे थे. एक्सप्रेसवे पर बस से उतरने के बाद पूनम ने चाय पीने की इच्छा जताई तो उन्होंने एक स्टाल पर रुक कर चाय पी. इस के बाद पूनम ने साजिश के तहत शिवकुमार से टौयलेट जाने की बात कही तो वह असमंजस में पड़ गया. क्योंकि एक्सप्रेसवे पर सब जगह टायलेट तो होते नहीं हैं. लेकिन पत्नी को इमरजेंसी थी, लिहाजा सब से उचित जगह सड़क के नीचे दिख रहा जंगल ही था. लिहाजा शिवकुमार पूनम को ले कर नीचे जंगल की ओर उसे टौयलेट कराने के लिए ले गया. लेकिन उसे क्या पता था कि मौत पहले से वहां उस का इंतजार कर रही है. संदीप वहां पहले ही झाडि़यों में छिपा था.

जैसे ही शिवकुमार उस की तरफ पीठ कर के खड़ा हुआ, संदीप ने दबेपांव पीछे से जा कर शिवकुमार के सिर पर भारीभरकम पत्थर दे मारा. इस के बाद संदीप और पूनम ने शिवकुमार के सिर पर पत्थर से कई प्रहार किए. शिवकुमार वहीं निढाल हो कर गिर पड़ा. शिवकुमार के पास 2 बैग थे. एक बैग में पूनम के कपडे़ थे, दूसरे में शिवकुमार के कपड़े. शिवकुमार के बैग से पूनम ने सारा सामान निकाल कर अपने बैग में रख लिया ताकि बैग में ऐसी कोई चीज न मिले, जिस से शिवकुमार की पहचान हो सके. लेकिन गलती से शिवकुमार और पूनम का ताजमहल पर खिंचवाया गया फोटो वाला लिफाफा थैले में ही रह गया था. इसी आधार पर पुलिस ने मृतक की शिनाख्त की थी.

दरअसल, हत्या का ये पूरा प्लान संदीप ने ही तैयार किया था. शिवकुमार की हत्या करने के बाद वे दोनों वहां से टैंपो कर के मथुरा की ओर भाग आए थे. इस के बाद वे इधर से उधर भागते रहे. पूनम एक दिन बाद ससुराल जाने का मन बना रही थी. उस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूनम की हालत ऐसी हो गई न तो सनम मिला ना ही विसाले सनम. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को 10 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है. पुलिस ने पूनम व संदीप से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर सक्षम न्यायालय में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों तथा पीडि़त परिवार के बयान पर आधारित

 

Hindi Story : पत्नी ने साजिश रचकर पति को पहाड़ी से धक्का दिया

Hindi Story : एक मामूली परिवार की होते हुए भी अनल ने शीतल से न केवल शादी की, बल्कि उसे अपने करोड़ों का व्यवसाय संभालने के काबिल भी बना दिया. लेकिन शीतल ने अनल के साथ जो खतरनाक खेल खेला, उस से उस का सब कुछ छिन गया. लेकिन उस ने भी शीतल से…

‘‘मे रे दिल ने जो मांगा मिल गया, जो कुछ भी चाहा मिला.’’ शीतल उस हिल स्टेशन के होटल के कमरे में खुदबखुद गुनगुना रही थी.

‘‘क्या बात है शीतू, बहुत खुश नजर आ रही हो.’’ अनल उस के पास आ कर कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला.

‘‘हां अनल, मैं आज बहुत खुश हूं. तुम मुझे मेरे मनपसंद के हिल स्टेशन पर जो ले आए हो. मेरे लिए तो यह सब एक सपने के जैसा था.

‘‘पिताजी एक फैक्ट्री में छोटामोटा काम करते थे. ऊपर से हम 6 भाईबहन. ना खाने का अतापता होता था ना पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे. किसी तरह सरकारी स्कूल में इंटर तक पढ़ पाई. हम लोगों को स्कूल में वजीफे के पैसे मिल जाते थे, उन्हीं पैसों से कपड़े वगैरह खरीद लेते थे.

‘‘एक बार पिताजी कोई सामान लाए थे, जिस कागज में सामान था, उसी में इस पर्वतीय स्थल के बारे में लिखा था. तभी से यहां आने की दिली इच्छा थी मेरी. और आज यहां पर आ गई.’’ शीतल होटल के कमरे की बड़ी सी खिड़की के कांच से बाहर बनते बादलों को देखते हुए बोली.

‘‘क्यों पिछली बातों को याद कर के अपने दिल को छोटा करती हो शीतू. जो बीत गया वह भूत था. आज के बारे में सोचो और भविष्य की योजना बनाओ. वर्तमान में जियो.’’ अनल शीतल के गालों को थपथपाते हुए बोला.

‘‘बिलकुल ठीक है अनल. हमारी शादी को 9 महीने हो गए हैं. और इन 9 महीनों में तुम ने अपने बिजनैस के बारे में इतना सिखापढ़ा दिया है कि मैं तुम्हारे मैनेजर्स से सारी रिपोर्ट्स भी लेती हूं और उन्हें इंसट्रक्शंस भी देती हूं. हिसाबकिताब भी देख लेती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘हां शीतू यह सब तो तुम्हें संभालना ही था. 5 साल पहले मां की मौत के बाद पिताजी इतने टूट गए कि उन्हें पैरालिसिस हो गया. कंपनी से जुड़े सौ परिवारों को सहारा देने वाले खुद दूसरे के सहारे के मोहताज हो गए.

‘‘नौकरों के भरोसे पिताजी की सेहत गिरती ही जा रही थी. तुम नई थीं, इसीलिए पिताजी का बोझ तुम पर न डाल कर तुम्हें बिजनैस में ट्रेंड करना ज्यादा उचित समझा. पिताजी के साथ मेरे लगातार रहने के कारण उन की सेहत भी काफी अच्छी हो गई है. हालांकि बोल अब भी नहीं पाते हैं.

‘‘मैं चाहता हूं कि इस हिल स्टेशन से हम एक निशानी ले कर जाएं जो हमारे अपने लिए और उस के दादाजी के लिए जीने का सहारा बने.’’ अनल शीतल के पीछे खड़ा था. वह दोनों हाथों का हार बना कर गले में डालते हुए बोला.

‘‘वह सब बातें बाद में करेंगे. अभी तो सफर में बहुत थक गए हैं. खाना और्डर करो, खा कर आराम से सो जाएंगे. अभी तो 7 दिन हैं, खूब मौके मिलेंगे.’’ शीतल बोली.

‘‘वाह क्या नजारा है इस हिल स्टेशन का. कितना सुंदर लग रहा है उगता हुआ सुरज  होटल की इस 5वीं मंजिल से.’’ सुबह उठ कर उसी खिड़की के पास खड़ी हो कर शीतल बोली.

‘‘रात तो तुम बहुत जल्दी बहुत गहरी नींद सो गई थीं. मैं तुम्हें जगाने की कोशिशें ही करता रह गया.’’ अनल शीतल के साथ खड़े होते हुए बोला.

‘‘मैं बहुत थक गई थी. बिस्तर पर गिरते ही गहरी नींद आ गई.’’

‘‘चलो कोई बात नहीं, आज पूरा मजा उठा लेंगे. देखो, आज 5 विजिटिंग पौइंट्स पर चलना है. 9 बजे टैक्सी आ जाएगी. हम यहां से नाश्ता कर के निकलते हैं. लंच किसी सूटेबल पौइंट पर ले लेंगे.’’ अनल बोला.

‘‘हां, मैं तैयार होती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘सर, आप की टैक्सी आ गई है.’’ नाश्ते के बाद होटल के रिसैप्शन से फोन आया.

‘‘ठीक है हम नीचे पहुंचते हैं.’’ अनल बोला.

‘‘क्यों भैया, 7 दिन आप हमारे साथ रह सकोगे? हम चाहते हैं, पूरा हिल स्टेशन हमें आप ही घुमाओ.’’ शीतल टैक्सी में बैठते हुए बोली.

‘‘जी मैडम, मैं आप को सारी जगह दिखाऊंगा.’’ ड्राइवर बड़े अदब से बोला.

‘‘देखो भैया, सब जगह आराम से और अच्छे से घुमाना. आप की मनमाफिक बख्शीश दे कर जाऊंगी.’’ शीतल चहकते हुए बोली.

‘‘जी मैडम, टूरिस्ट की खुशी ही हमारे लिए सब से बड़ा ईनाम है.’’

‘‘आज तो तुम ने खूब अच्छा घुमाया.’’ शाम को टैक्सी से उतरते हुए अनल बोला.

‘‘घुमाया तो खूब, पर पैदल कितना चला दिया. पर्वतों पर हर स्पौट पर आधा किलोमीटर चढ़ना और उतरना अपने आप में बेहद थकाऊ काम है.’’ शीतल अनल के कंधे का सहारा ले कर टैक्सी से निकलते हुए बोली.

‘‘वैसे चलने का अपना ही मजा है.’’ अनल ने कहा.

‘‘जी साहब. मैं चलता हूं. सुबह जल्दी आ जाऊंगा, आप तैयार रहें.’’ कहते हुए ड्राइवर चला गया.

‘‘अनल, जब हम घूम कर लौट रहे थे तब उस संकरे रास्ते पर क्या एक्सीडेंट हो गया था? सारा ट्रैफिक जाम था. तुम देखने भी तो उतरे थे.’’ होटल के कमरे में घुसते हुए शीतल ने पूछा.

‘‘एक टैक्सी वाले से एक बुजुर्ग को हलकी सी टक्कर लग गई. बस उसी का झगड़ा चल रहा था. बुजुर्ग इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. इसीलिए पूरा रास्ता जाम था.’’ अनल ने बताया. ‘‘ऐसा ही एक एक्सीडेंट हमारी जिंदगी में भी हुआ था, जिस से हमारी जिंदगी ही बदल गई.’’ अनल ने आगे जोड़ा.

‘‘हां मुझे याद है. उस दिन पापा मेरे रिश्ते की बात करने कहीं जा रहे थे. तभी सड़क पार करते समय तुम्हारे खास दोस्त वीर की स्पीड से आती हुई कार ने उन्हें टक्कर मार दी. जिस से उन के पैर की हड्डी टूट गई और वह चलने से लाचार हो गए.’’ शीतल बोली.

‘‘हां, और तुम्हारे पिताजी ने हरजाने के तौर पर तुम्हारी शादी वीर से करने की मांग रखी. इस से कम पर वह और कोई समझौता नहीं चाहते थे.’’

‘‘मेरा रिश्ते टूटने की सारी जवाबदारी वीर की ही थी. इसलिए हरजाना तो उसी को देना था ना.’’ शीतल अपने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए बोली.

‘‘वीर तो बेचारा पहले से ही शादीशुदा था, वह कैसे शादी कर सकता था? मेरी मम्मी की मौत के बाद वीर की मां ने मुझे बहुत संभाला और पिताजी को पैरालिसिस होने के बाद तो वह मेरे लिए मां से भी बढ़ कर हो गईं.

‘‘कई मौकों पर उन्होंने मुझे वीर से भी ज्यादा प्राथमिकता दी. उस परिवार को मुसीबत से बचाने के लिए ही मैं ने तुम से शादी की. क्योंकि एक बिजनैसमैन के लिए बिना वजह कोर्टकचहरी के चक्कर लगाना संभव नहीं था.

‘‘मेरे बिजनैस की पोजीशन को देखते हुए कोई भी पैसे वाली लड़की मुझे मिल जाती. मगर मेरे मन में यह संदेह हमेशा से था कि शायद वह पिताजी की देखभाल उस तरह से न कर पाए जैसा मैं चाहता हूं. मैं खुद किसी गरीब घर की लड़की से शादी करने के पक्ष में था.

‘‘वीर के परिवार का एहसान तो मैं ताजिंदगी नहीं उतार सकता था. मगर तुम से शादी कर के उस का बोझ कुछ कम जरूर कर सकता था.’’ अनल बोला.

‘‘मतलब तुम्हें एक नौकरानी चाहिए थी जो बीवी की तरह रह सके.‘‘शीतल के स्वर में कुछ कड़वापन था.

‘‘बड़े सयानों के मुंह से सुना था जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं. मगर हमारी जोड़ी सड़क पर बनी. यू आर जस्ट ऐन एक्सीडेंटल वाइफ. लेकिन मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं हैं. मैं ने पिछले 9 महीनों में एक नई शीतल गढ़ दी है, जो मेरा बिजनैस हैंडल कर सकती है. बस एक ही ख्वाहिश और है जिसे तुम पूरा कर सकती हो.’’ अनल हसरतभरी निगाहों से शीतल की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘अनल, पहाड़ों पर चढ़नेउतरने के कारण बदन दर्द से टूट रहा है. कोई पेनकिलर ले कर आराम से सोते हैं. वैसे भी सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा सनराइज पौइंट जाने के लिए. यहां सूर्योदय साढ़े 5 बजे तक हो ही जाता है.’’ शीतल सपाट मगर चुभने वाले लहजे में बोली.

अनल अपना सा मुंह ले कर बिस्तर में दुबक गया.

‘‘वाह क्या सुंदर सीन है सनराइज का, मजा आ गया.’’ अनल सनराइज देख कर चहकता हुआ बोला. दरअसल वह माहौल को हलका करना चाहता था.

‘‘हां सचमुच ऐसा लगता है, जैसे कुदरत ने सिंदूरी रंग की कलाकारी कर शानदार पेंटिंग बनाई है.’’ ऐसा लगा शीतल भी रात की बातों को भुला कर आगे की यात्रा सुखद बनाना  चाहती थी.

‘‘वाह, ड्राइवर भैया धन्यवाद. इस सनराइज ने तो जिंदगी को अवस्मरणीय दृश्य दे दिया.’’ शीतल अपनी ही रौ में बोलती चली गई. आज ऐसी जगह ले चलो जो एकदम से अलग सा एहसास देती हो.’’

‘‘जी मैडम, यहां से 20 किलोमीटर दूर है. इस टूरिस्ट प्लेस की सब से ऊंची जगह. वहां से आप सारा शहर देख सकती हैं, करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

‘‘वहां पर आप टेंट लगा कर कैंपिंग भी कर सकते है. यहां टेंट में रात को रुकने का अपना ही रोमांच है. वहां आप को डिस्टर्ब करने के लिए कोई नहीं होगा.’’ ड्राइवर ने उस जगह के बारे में बताया.

‘‘चलो ना अनल वहां पर. कितना मजा आएगा पहाड़ की सब से ऊंची चोटी पर हम अकेले एक टेंट में. कभी न भूल पाने वाला अनुभव होगा यह.’’ शीतल जिद करते हुए बोली.

‘‘और लोग भी तो होते होंगे वहां पर?’’ अनल ने पूछा.

‘‘सामान्यत: भीड़ वाले समय में 2 टेंटों के बीच लगभग सौ मीटर की दूरी रखी जाती है. लेकिन इस समय भीड़ कम है. चढ़ाई करते समय आप बोल देंगे तो वहां के लोग आप की इच्छानुसार आप का टेंट नो डिस्टर्ब वाले जोन में लगा देंगे. आप उन वादियों का अकेले में लुत्फ उठा पाएंगे.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो ना अनल. ऐसी जगह पर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘चलो भैया आज उसी टेंट में रुकते हैं.’’ अनल खुश होते हुए बोला.

लगभग एक घंटे के बाद वह लोग उस जगह पर पहुंच गए.

‘‘साहब, यहां से लगभग एक किलोमीटर आप को संकरे रास्ते से चढ़ाई करनी है.’’ ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए बोला.

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. आप रात में कैंप फायर अवश्य जलाएं, इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो शीतू ऊपर चढ़ते हैं.’’ अनल बोला.

‘‘कितना सुंदर लग रहा है. ऊपर की तो बात ही कुछ और होगी. यहां से जो निशानी ले कर जाएंगे, वह बेमिसाल होगी.’’ शीतल कनखियों से अनल की तरफ देखते हुए शरारत से बोली. जाते समय दोनों ने टेंट वाले को नो डिस्टर्ब जोन में टेंट लगाने के निर्देश दे दिए. दोपहर और रात के खाने के और्डर भी दे दिए. लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अरे भाई अब तो बस करो कुछ शाम के लिए भी तो छोड़ दो.’’ अनल ने शीतल से अनुरोध किया.

‘‘बस, एक और शानदार मर्दाना फोटो हो जाए. अब तुम उस आखिरी सिरे पर रखे उस बड़े से पत्थर पर अपना पैर रखो. और मुसकराओ. वाह मजा आ गया एकदम से मौडल जैसे दिख रहे हो.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए. तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. दूसरा टेंट लगभग 5 सौ मीटर दूर लगा था. वह सहायता के लिए उधर भागी. मगर उस टेंट वाले शायद पहले ही छोड़ कर जा चुके थे. टेंट वाले का नंबर उस के पास नहीं था. मगर उस के पास ड्राइवर का नंबर जरूर था. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

‘‘आप वहीं रुकिए, मैं नीचे आती हूं फिर पुलिस के पास चलते हैं.’’ शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, इस में काफी टाइम लग जाएगा. आप वहीं रुकिए, मैं पुलिस को ले कर वहीं आता हूं इस से जल्दी मदद मिल जाएगी.’’ ड्राइवर बोला. लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद किसी के भी बचने की संभावनाएं शून्य रहती हैं. हमें आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है, इस खाई के बाद एक बस्ती है, जिस में जंगली आदिवासी रहते हैं, जो लोगों को देखते ही उन पर आक्रमण कर उन्हें मार डालते हैं.

‘‘इस खाई के अंतिम छोर तक तो किसी भी आदमी का पहुंचना नामुमकिन है. फिर भी हम जिस ऊंचाई तक आदमी के जीवित होने की संभावना होती है उतनी ऊंचाई तक रस्सों की मदद से अपनी सहायता टीम को पहुंचाते हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जल्दी कीजिए सर, यहां पर सूर्यास्त भी जल्दी होता है.’’ लगातार रोती हुई शीतल ने अनुरोध किया.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल बोली.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘मुझे उन का नंबर दीजिए, मैं उन से बात करता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

शीतल ने मोबाइल स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले कर के इंसपेक्टर को दे दिया.

‘‘हैलो, मिस्टर वीर,’’ कहते हुए इंसपेक्टर दूर निकल गया.

‘‘सर लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर पहुंच गया. बोला, ‘‘सर मेरा नाम वीर है. मुझे आप का फोन मिला था, अनल के एक्सीडेंट के बारे में.’’ वीर ने इंसपेक्टर साहब को अपना परिचय दिया.

‘‘जी मिस्टर वीर, मैं ने ही आप को फोन किया था. हमारे थाने में आप के दोस्त अनल की पहाड़ी से गिरने की रिपोर्ट दर्ज हुई है. फ्रैंकली स्पीकिंग इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद जिंदा रहने की संभावना कम है. अगर कोई चमत्कार हो जाए तो अलग बात है.

‘‘हम ने 2 बार एप्रोचेबल फाल तक सर्च टीमें भेजी हैं, मगर अब तक कुछ पता नहीं चला.’’ इंसपेक्टर ने बता कर पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘मतलब उन के बीच सब कुछ सामान्य था और अनल कम से कम आत्महत्या नहीं कर सकता था.’’ इंसपेक्टर ने निष्कर्ष निकाला.

‘‘जी, अनल किसी भी कीमत पर आत्महत्या नहीं कर सकता था. उस का बिजनैस 2 साल के बाद एक बार फिर काफी अच्छा चलने लगा था. सब से बड़ी बात वह इस का श्रेय अपने लेडी लक मतलब शीतल को दिया करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. अनल की इच्छानुसार शादी के मात्र 9 महीने के अंदर ही उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. उन की त्वरित निर्णय क्षमता के तो सब मुरीद हैं. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘आप के कहने का आशय यह है कि हत्या या आत्महत्या का कोई कारण नहीं बनता. यह एक महज दुर्घटना ही है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी मेरे खयाल से ऐसा ही है.’’ वीर ने अपने विचार व्यक्त किए.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है. उम्मीद है, आप सहयोग करेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए, उत्तर कार्य के सभी काम वैसे ही होंगे जैसा कि आप चाहती हैं.’’ वीर शोक सभा में उपस्थित लोगों के सामने बोला, ‘‘अनल न सिर्फ मेरा दोस्त था बल्कि मेरे भाई से भी बढ़ कर था. मुझे बचाने के लिए उस ने जो बलिदान दिया, उसे मैं भूला नहीं हूं.’’

‘‘आज अनल के उत्तर कार्य भी पूरे हो गए भाभीजी. मैं आप को एक बात बताना चाहता था. दरअसल, करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी. उस पौलिसी की शर्तों के अनुसार अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’ वीर विवरण देते हुए बोला.

‘‘वीर भाई साहब, अनल इतना अच्छा और चलता हुआ बिजनैस छोड़ गए हैं. उसी से काफी अच्छी आय हो जाती है. और आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

‘‘जी बहुत अच्छा. फिर भी कोई जरूरत पड़े तो मुझे बोलिएगा.’’ वीर चलतेचलते बोला. शीतल ने बताया कि पिताजी की देखभाल करने वाला नौकर अपने काम पर ठीक से ध्यान नहीं दे रहा है. पिताजी को न समय पर खाना देता है न दवाइयां. उन की हालत गिरती जा रही है. ऐसे में वह महीने 2 महीने से ज्यादा जीवित रह पाएंगे. इसलिए वह चाहती है कि अंतिम समय में पिताजी की देखभाल खुद करे. शीतल ने यह बात कार्यक्रम के लगभग 10 दिन बाद वीर से कही जो पिताजी की कुशलक्षेम पूछने आया था.

‘‘मैं चाहती हूं कि पिताजी के अंतिम समय में मैं ही उन की देखभाल करूं.’’ शीतल ने आंखों में आंसू लिए भावनात्मक संवाद जोड़ा.

‘‘मगर भाभीजी नौकर पिछले 5 सालों से अंकलजी की बहुत अच्छे से सेवा कर रहा है.’’ वीर ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां, पर परिवार वाले होते हुए एक नौकर सेवा करे, यह तो उचित नहीं होगा ना.’’ शीतल ने तर्क दिया.

‘‘ठीक है भाभीजी, जैसा आप उचित समझें.’’

‘‘और भाईसाहब, आप अनल की बीमा पौलिसी के बारे में बता रहे थे, उस के क्लेम के लिए क्या कंडीशन रहेगी?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘भाभीजी, चूंकि अभी तक अनल की बौडी नहीं मिली है, अत: कानूनी प्रक्रिया के अनुसार हमें कुछ समय इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 2 साल. उस के बाद उस पर्वतीय क्षेत्र के थाने से केस समाप्त होने के प्रमाणपत्र के बाद ही हम क्लेम कर पाएंगे.’’ वीर ने अपनी जानकारी के हिसाब से बताया.

‘‘ओह किसी गरीब के साथ ऐसी दुर्घटना घट जाए तो बेचारा बिना सहायता के ही मर जाए. आप बीमा कंपनी में जा कर कुछ लेदे कर क्लेम सेटल करवाइए न.’’ शीतल ने वीर से अनुरोध किया.

‘‘जी ठीक है, मैं कोशिश करता हूं.’’ वीर ने जवाब दिया.

‘‘और आप उस नौकर को समझा कर हटा दीजिए.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘ठीक है, आप उसे मेरे घर पर भेज दीजिए. मैं वहीं उस का हिसाब कर दूंगा.’’ वीर ने जवाब दिया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे. इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी. शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. अनल के साथ हफ्ते दस दिन में मनोरंजन क्लब जाने वाली शीतल अब समय काटने के लिए नियमित क्लब जाने लगी थी. उस ने कई किटी क्लब भी इसी उद्देश्य के साथ जौइन कर लिए थे.

ऐसे ही एक दिन क्लब से वह रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था. शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था. उस ने खुद अपनी आंखों से उस व्यक्ति को देखा था, जो बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था. इतनी जल्दी कोई कैसे गायब हो सकता है. उसे ऊपर आते समय रास्ते में कोई मिला भी नहीं, क्योंकि आनेजाने के लिए सिर्फ एक ही सीढियां थीं. इस के साथ ही बैडरूम उसी तरह से लौक था जैसे वह छोड़ गई थी. फिर कैसे कोई गैलरी तक आ सकता है? उस ने चौकीदार को आवाज दी.

‘‘ऊपर कौन आया था?’’ चौकीदार से पूछा.

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया. सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई. वह तुरंत उठ कर गैलरी में गई. उस ने अनुमान लगाया गैलरी में 2 संभावित रास्तों से आया जा सकता है. एक या तो नीचे से कोई अतिरिक्त सीढ़ी लगाए या छत पर से रस्सा डाल कर कोई नीचे आए. अगर कोई सीढि़यां लगा कर ऊपर आया, तो गैलरी के नीचे की कच्ची जमीन पर उस के निशान जरूर आए होंगे. और अगर छत के द्वारा नीचे आया है तब भी रस्से के कुछ सबूत मौजूद होंगे. शीतल उठ कर दोनों प्रमाण ढूंढने गई. मगर उसे निराशा ही हाथ लगी.

उस ने क्लब में उतनी ही ड्रिंक ली थी जितना वह रोज लेती थी. हो सकता है ड्रिंक की स्ट्रौंगनैस कुछ ज्यादा रही हो और इसी वजह से उसे कुछ अतिरिक्त खुमार हो गया हो और उसी कारण यह गलतफहमी हुई हो. इस तरह की बातें सोच कर वह अपने रोज के कामों में लग गई और मैनेजर्स से रिपोर्ट लेने लगी. शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी. लौटने में उसे कल जितना ही समय हो गया. हालांकि वह जल्दी लौटना चाहती थी, लेकिन फ्रैंड्स के अनुरोध के कारण उसे देरी हो गई. उस ने ड्रिंक भी आज रोजाना की अपेक्षा कम ही ली.

आज क्लब से निकलते समय उसे न जाने क्यों अंदर ही अंदर एक अनजाना सा डर लग रहा था. उस का दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था. मगर ऊपर से वह कुछ भी जाहिर न होने देने का प्रयास कर रही थी. कार से उतरते ही उस ने नजरें उठा कर अपने बैडरूम की गैलरी में देखा. पर आज वहां कोई नहीं था. ओह तो कल सचमुच वह मेरा वहम था. सोच कर वह मन ही मन मुसकराते हुए बंगले के अंदर घुसी. वह आगे कदम बढ़ा ही रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी. कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगती. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ. झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से सोना चाहती थी. शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. नहीं यह होटल वाले की नहीं, बल्कि निकाले गए किसी नौकर की शरारत है. उस ने निश्चय किया कि वह सुबह उठ कर पुलिस में शिकायत करेगी. मगर प्रश्न यह है कि होटल में अनल के सामने बोली गईं पंक्तियां किसी नौकर को कैसे पता चलीं. फोन रख कर वह सोच ही रही थी की एक बार फिर लैंडलाइन की कर्कश घंटी बजी. उसी का फोन होगा और यह रात भर इसी तरह परेशान करेगा, सोच कर उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया. फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई.

शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था. वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

दरअसल, शीतल इतना डर चुकी थी कि वह वापस अपने बैडरूम में जाना नहीं चाहती थी.

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘अरे भैया, अचानक बिना सूचना के इस समय…’’ ड्राइंगरूम में प्रवेश करते हुए शीतल बोली.

‘‘नमस्ते भाभीजी. क्या बात है आप की तबीयत ठीक नहीं है क्या? मैं आप को फोन लगा रहा था, मगर आप का फोन बंद आ रहा था. आप का हाल जानने चला आया.’’ वीर बिना किसी औपचारिकता के बोला.

‘‘ओह शायद रात में उस की बैटरी खत्म हो गई हो.’’ शीतल बैठते हुए बोली.

उसे याद आया कि मोबाइल तो उस ने स्वयं ही बंद किया हुआ है. मगर वह असली बात वीर को बताना नहीं चाहती थी.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं. यही हमारे केस सेटलमेंट का सब से बड़ा आधार होगा, जो यह सिद्ध करेगा कि बौडी मिलने की संभावनाएं नहीं है.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल. फिर भी कह नहीं सकते उस समय इस कंपनी के अधिकारियों की पोजीशन क्या रहे. सब कुछ खोने से बेहतर है, थोड़ा कुछ दे कर ज्यादा पा लिया जाए.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री देंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी. उस चैक की फोटोकौपी देख कर हम अधिकारियों को बाकी अमाउंट का बेयरर चैक जारी करेंगे और हमारे अकाउंट में इंश्योरेंस कंपनी का चैक डिपोजिट होने के बाद हम उन्हें नगद पैसा दे कर अपना चैक वापस ले लेंगे.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला. शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी. बहुत ही कमीना है. शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुए बोली. उस ने तत्काल पुलिस से शिकायत करने का इरादा त्याग दिया. रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी. अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. और भटकने वाली आत्मा भी किसी अपने की ही रहती है. जितनी परेशानी हमें होती है, उतनी ही परेशानी उन्हें भी होती है. अत: उन को भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था. क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

‘‘क्या सचमुच तुम को कोई आदमी, कोई बाइक दिखाई नहीं दी.’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मैडम, मैं सच कह रहा हूं.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से? क्या वह उस के माध्यम से अपनी अपूरित इच्छा पूरी करना चाहता है? या यह काम वीर ही उस की दौलत हथियाने के लिए कर रहा है. लेकिन वीर को उस होटल वाली पंक्तियों के बारे में कैसे पता चला? शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी. ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे. वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई.

रात के समय चौकीदार मेन गेट का ताला अंदर से लगा देता है. ऐसे में यदि किसी को बंगले में प्रवेश करना हो तो उसे डोरबेल बजा कर गेट खुलवाना पड़ता था. शीतल के तो बंगले का माहौल तो वैसे ही डरावना था, उस का डरना और चौंकना स्वाभाविक था. कुछ सामान्य हुआ दिल फिर से जोरों से धड़कने लगा. बदन में सनसनी की एक लहर दौड़ गई. वह किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी. शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वैसे भी अनहोनी की आशंका से उस की हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी.

चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा. इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था. ड्राइवर अनल के दिखाई न देने की बात का झूठ बोल सकता है, मगर चौकीदार तो इस घटना के बारे में कुछ जानता ही नहीं था. उसे भी अनल दिखाई नहीं पड़ा. मतलब अनल सचमुच भूत…ओह नो.

शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा. क्योंकि पुलिस तो जिंदा लोगों को पकड़ सकती है. भूतप्रेत और आत्माओं को नहीं. शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई इनकमिंग काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. बदन एक बार फिर पसीने से नहा गया. वह जानती थी की इस समय फोन करने वाला कौन होगा.

उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी. लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि तुम अपनी इच्छा पूरी होने के बाद चले जाओगे, मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाओगे.’’ शीतल ने अपनी बात रखी.

‘‘मैं वादा करता हूं शीतू…कि मुझे जो चाहिए वह मिल जाएगा तो तुम्हारी जिंदगी से सदासदा के लिए चला जाऊंगा.’’ अनल ने शीतल को आश्वस्त किया.

‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली, ‘‘लेकिन वादा करो आज की रात मुझे चैन से सोने दोगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं.’’ उधर से आवाज आई. शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, ब्लैकमेलर हुआ तो? तभी उसे याद आया अनल के पास एक लाइसेंसी रिवौल्वर है. अनल ने उसे चलाने का तरीका भी बताया था. उसी रिवौल्वर को मैं अपनी आत्मरक्षा के लिए साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया. आज शीतल भरपूर गहरी नींद सोई.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही उस ने अपनी भौतिक सुरक्षा के लिए रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली. ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. नाम के अनुरूप जगह वाकई सुनसान थी. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला, ‘‘आखिर हूं तो आत्मा ही न?’’

अनल के इस जवाब से शीतल के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों और खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स में से रिवौल्वर निकाल ली. और हां तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली. शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर बोला, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें पुलिस थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, तुम ने अपनी योजना को बखूबी अंजाम दिया, मगर तुम से एक गलती हो गई. तेजी से नीचे गिरने के लिए जितने प्रेशर की जरूरत पड़ती है, लड़की होने के कारण तुम उतना प्रेशर लगा नहीं पाई. इस का परिणाम यह निकला कि मुझे जिस तेजी से नीचे गिरना चाहिए था, मैं गिरा नहीं.

‘‘बस ढलान होने के कारण लेटी कंडीशन में लुढ़कता रहा. और लगभग 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया .

‘‘दूसरी चालाकी या मूर्खता तुम ने यह की कि तुम ने मुझे जिस स्थान से धक्का दिया था, उस से लगभग 100 मीटर दूर तुम ने पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग के लिए 6 सर्चिंग पार्टियां लगा दीं. उन्हें मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘वीर के बयानों के आधार पर और पिताजी की जवाबदारी देखते हुए तुम्हें वहां से जाने दिया गया. लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती. मुझे इस बात की तो खुशी होगी कि मैं जेल में कम से कम उन  अभावों में तो नहीं रहूंगी, जिन अभावों से मैं बचपन से गुजरी हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

 

UP News : परेशान प्रेमिका ने प्रेमी के सिर पर सिलेंडर मारकर की हत्या

UP News : सीमा की शादी हो जाने के बाद नीरज को उस से दूरी बना लेनी चाहिए थी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया बल्कि वह उस की ससुराल तक जाने लगा. एक दिन उस ने सीमा के साथ जोरजबरदस्ती करने की कोशिश की तो सीमा भी विकराल हो गई. इस के बाद…

नीरज बनसंवर कर घर से जाने लगा, तो उस के भाई धीरज ने उसे टोका, ‘‘नीरज इतनी रात को तुम कहां जा रहे हो? क्या कोई जरूरी काम है या फिर किसी की शादी में जा रहे हो?’’

‘‘भैया, मेरे दोस्त के घर भगवती जागरण है. मैं वहीं जा रहा हूं.’’ नीरज बोला.

फिर नीरज ने कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘भैया, अभी रात के साढ़े 9 बजे हैं. मैं 12 बजे तक लौट आऊंगा.’’ कहते हुए नीरज घर से बाहर चला गया. नीरज उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर शहर की सुरेखापुरम कालोनी में रहता था. धीरज और उस की पत्नी नीरज के इंतजार में रात 12 बजे तक जागते रहे. जब वह घर नहीं आया तो उन्हें चिंता हुई. वे दोनों घर के अंदरबाहर कुछ देर चहलकदमी करते रहे, फिर धीरज ने अपने मोबाइल फोन से नीरज को फोन किया. पर उस का फोन बंद था. धीरज ने कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद ही मिला. रात 2 बजे तक वह नीरज के इंतजार में जागता रहा. उस के बाद उस की आंख लग गई.

अभी सुबह का उजाला ठीक से फैला भी नहीं था कि धीरज का दरवाजा किसी ने जोरजोर से पीटना शुरू किया. अलसाई आंखों से धीरज ने दरवाजा खोला तो सामने एक अनजान व्यक्ति खड़ा था. धीरज ने उस से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और दरवाजा क्यों पीट रहे हैं?’’

उस अनजान व्यक्ति ने अपना परिचय तो नहीं दिया. लेकिन यह जरूर बताया कि उस का भाई नीरज डंगहर मोहल्ले में मीना किन्नर के घर के पास गंभीर हालत में पड़ा है. उस ने घर का पता बताया था और खबर देने का अनुरोध किया था, सो वह चला आया. भाई के घायल होने की जानकारी पा कर धीरज घबरा गया. उस ने अड़ोसपड़ोस के लोगों को जानकारी दी और फिर उन को साथ ले कर डंगहर मोहल्ले में मीना किन्नर के घर के पास पहुंच गया. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. धीरज ने अपने भाई नीरज को मरणासन्न स्थिति में देखा तो वह घबरा गया. उस का सिर फटा हुआ था, जिस से वह लहूलुहान था. लग रहा था जैसे उस के सिर पर किसी ने भारी चीज से हमला किया था.

उस ने थाना कटरा पुलिस को इस की जानकारी दी फिर सहयोगियों के साथ नीरज को इलाज के लिए निजी डाक्टर के पास ले गया. लेकिन डाक्टर ने हाथ खड़े कर लिए और पुलिस केस बता कर सदर अस्पताल ले जाने की सलाह दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की सुबह 8 बजे की है. जीवित होने की आस में धीरज अपने भाई नीरज को सदर अस्पताल मिर्जापुर ले गया. डाक्टरों ने नीरज को देखते ही मृत घोषित कर दिया. भाई की मृत्यु की बात सुन कर धीरज फफक कर रोने लगा. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने सूचना थाना कटरा पुलिस को दी. सूचना पाते ही प्रभारी निरीक्षक रमेश यादव पुलिस बल के साथ सदर अस्पताल आ गए. उन्होंने धीरज को धैर्य बंधाया और घटना के संबंध में पूछताछ की.

धीरज ने बताया कि वह सुरेखापुरम कालोनी में रहता है. उस का भाई नीरज बीती रात साढ़े 9 बजे यह कह कर घर से निकला था कि वह दोस्त के घर जागरण में जा रहा है. लेकिन सुबह उसे उस के घायल होने की जानकारी मिली. तब उस ने उसे सदर अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे भाई पर कातिलाना हमला किस ने किया है?’’ श्री यादव ने पूछा.

‘‘सर, मुझे कुछ भी पता नहीं है.’’ धीरज ने जवाब दिया.

पूछताछ के बाद श्री यादव ने नीरज के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. नीरज की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी. उस के सिर पर किसी ठोस वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से उस का सिर फट गया था. संभवत: सिर में गहरी चोट लगने के कारण ही उस की मौत हो गई थी. शरीर के अन्य भागों पर भी चोट के निशान थे. निरीक्षण के बाद उन्होंने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इधर नीरज की हत्या की खबर सुरेखापुरम कालोनी पहुंची तो कालोनी में सनसनी फैल गई. धीरज के घर लोगों की भीड़ जमा हो गई. लोगों में जवान नीरज की हत्या को ले कर गुस्सा था. गुस्साई भीड़ ने मिर्जापुर नगर के बथुआ के पास मिर्जापुर-रीवा मार्ग जाम कर दिया तथा पुलिस विरोधी नारे लगाने शुरू कर दिए.

सड़क जाम की सूचना कटरा कोतवाल रमेश यादव को हुई तो वह पुलिस बल के साथ वहां पहुंचे. उन्होंने भीड़ को समझाने का प्रयास किया तो भीड़ और उत्तेजित हो गई. लोगों की शर्त थी कि जब तक पुलिस अधिकारी नहीं आएंगे, तब तक वह सड़क पर बैठे रहेंगे. इस पर श्री यादव ने जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. उन्होंने अधिकारियों को यह भी बताया कि भीड़ बढ़ती जा रही है तथा स्थिति बिगड़ती जा रही है. हत्या के विरोध में सड़क जाम की सूचना पा कर एसपी अजय कुमार सिंह, एडीशनल एसपी (सिटी) संजय कुमार तथा सीओ अजय राय मौके पर पहुंचे. उन्होंने मृतक के घर वालों एवं उत्तेजित लोगों को समझाया तथा आश्वासन दिया कि नीरज के कातिलों को जल्द ही पकड़ा जाएगा. पुलिस अधिकारियों के इस आश्वासन पर भीड़ ने सड़क खाली कर दी.

एसपी अजय कुमार सिंह ने नीरज की हत्या को चुनौती के रूप में लिया. अत: हत्या का खुलासा करने के लिए उन्होंने एक विशेष टीम का गठन एएसपी (सिटी) संजय कुमार व सीओ अजय राय की देख रेख में गठित कर दी. इस टीम में प्रभारी निरीक्षक रमेश चंद्र यादव, चौकी इंचार्ज अजय कुमार श्रीवास्तव, हैडकांस्टेबल भोलानाथ, दारा सिंह, अरविंद सिंह, महिला कांस्टेबल रिचा तथा पूजा मौर्या को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. उस के बाद मृतक नीरज के भाई धीरज का बयान दर्ज किया. पुलिस टीम ने अपनी जांच किन्नर मीना के घर के आसपास से शुरू की और दरजनों लोगों से पूछताछ की.

इस का परिणाम भी सार्थक निकला. पूछताछ से पता चला कि मृतक का आनाजाना डंगहर मोहल्ला निवासी विशाल यादव के घर था. विशाल की पत्नी सीमा (परिवर्तित नाम) और मृतक नीरज के बीच दोस्ती थी. लेकिन विशाल को नीरज का घर आना पसंद नहीं था. पुलिस टीम ने अपनी जांच आगे बढ़ाई और विशाल यादव के पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि बीती रात 12 बजे के आसपास विशाल यादव के घर झगड़ा हो रहा था. मारपीट और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. फिर कुछ देर बाद खामोशी छा गई थी. पर झगड़ा किस से और क्यों हो रहा था, यह बात पता नहीं है.

विशाल यादव और उस की पत्नी सीमा पुलिस टीम की रडार पर आए तो टीम ने दोनों को हिरासत में ले कर पूछताछ करने की योजना बनाई. योजना के तहत पुलिस टीम रात 10 बजे विशाल यादव के घर पहुंची और विशाल को हिरासत में ले लिया. महिला कांस्टेबल रिचा और पूजा मौर्या ने विशाल की पत्नी सीमा को अपनी कस्टडी में ले लिया. दोनों को थाना कटरा लाया गया. थाने पर जब उन से नीरज की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो विशाल व उस की पत्नी सीमा ने सहज ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. विशाल यादव ने बताया कि वह मंजू रिटेलर टायर बरौंधा में काम करता है. उस की ड्यूटी रात में लगती है. बीती रात साढ़े 11 बजे नीरज उस के घर में घुस आया था और उस की पत्नी सीमा के साथ शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा था. उस ने जब सीमा के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो उस ने इस का विरोध किया.

इसी बात को ले कर सीमा और नीरज में विवाद होने लगा. उस की पत्नी सीमा ने अपने बचाव में घर में रखे एक छोटे सिलेंडर से नीरज के सिर पर प्रहार कर दिया. जिस से उस के सिर में गंभीर चोट आ गई. इसी बीच विशाल भी घर आ गया, सच्चाई पता चली तो उसे भी गुस्सा आ गया, उस ने भी नीरज को मारापीटा और घर से भगा दिया. शायद गंभीर चोट लगने से उस की मौत हो गई. जुर्म कबूलने के बाद विशाल यादव ने आलाकत्ल छोटा सिलेंडर तथा ईंट अपने घर से पुलिस टीम को बरामद करा दी. पुलिस टीम ने नीरज हत्याकांड का परदाफाश करने तथा आलाकत्ल सहित उस के कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अजय कुमार सिंह को दी तो उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर नीरज हत्याकांड का खुलासा किया.

यही नहीं उन्होंने हत्याकांड का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए पुरस्कार देने की भी घोषणा की. चूंकि हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी रमेश यादव ने मृतक के भाई धीरज की तरफ से धारा 304 आईपीसी के तहत विशाल यादव व उस की पत्नी सीमा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक औरत और उस के जुर्म की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर शहर के सुरेखापुरम कालोनी में 2 भाई धीरज व नीरज श्रीवास्तव रहते थे. यह कालोनी थाना कटरा के अंतर्गत आती है. धीरज की शादी हो चुकी थी जबकि नीरज अविवाहित था.

उन के पिता रमेशचंद्र श्रीवास्तव की मौत हो चुकी थी. धीरज की बथुआ में मोबाइल फोन और एसेसरीज की दुकान थी, जबकि उस का छोटा भाई नीरज मोबाइल पार्ट्स की सप्लाई करता था. दोनों भाई खूब कमाते थे और मिलजुल कर रहते थे. एक रोज नीरज सुरेखापुरम कालोनी स्थित एक मोबाइल की दुकान पर कुछ मोबाइल पार्ट्स देने पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात एक खूबसूरत युवती से हुई. उस समय वह वहां अपना मोबाइल फोन ठीक कराने आई थी. युवती और नीरज की आंखें एकदूसरे से मिलीं तो पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे को भा गए. दोनों में बातचीत शुरू हुई तो युवती ने अपना नाम सीमा बताया. वह भी सुरेखापुरम कालोनी में ही रहती थी. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया. फिर दोनों में अकसर मोबाइल फोन पर बातें होने लगीं. बातों का दायरा बढ़ता गया. फिर वे प्यारमोहब्बत की बातें करने लगे.

दरअसल सीमा विवाहित थी. उस के पिता ने उस की शादी एक सजातीय युवक के साथ की थी. सीमा दुलहन बन कर ससुराल तो गई लेकिन उसे वहां का वातावरण बिलकुल रास नहीं आया. ऊंचे ख्वाब सजाने वाली स्वच्छंद युवती को ससुराल की मानमर्यादा की सीमाओं में बंध कर रहना भला कैसे भाता. सुहागरात में तो उस के सारे अरमान धूल धूसरित हो कर रह गए. उस का पति उस की इच्छापूर्ति की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया. सीमा को ससुराल बंद पिंजरे की तरह लगने लगी थी, जहां वह किसी परिंदे की तरह फड़फड़ाने लगी थी. स्वच्छंदता पर सामाजिक मानमर्यादा की बंदिशें लग चुकी थीं. मन की तरंगे घूंघट के भीतर कैद हो कर रह गई थीं. ससुराल में उस का एकएक दिन मुश्किल में बीतने लगा.

सीमा ने एक दिन निश्चय कर लिया कि एक बार यहां से निकलने के बाद वह कभी अपनी ससुराल नहीं आएगी. आखिर एक दिन उस के घर वाले उसे बुलाने आ गए तो वह अपनी ससुराल को हमेशा के लिए अलविदा कह कर अपने मायके आ गई. मायके आ कर सीमा सजसंवर कर स्वच्छंद हो कर घूमने लगी. एक रोज उस का फोन खराब हो गया तो वह उसे ठीक कराने के लिए पास के ही एक मोबाइल शौप पर गई तो वहां उस की मुलाकात एक सजीले युवक नीरज से हुई. उस के बाद दोनों अकसर मिलने लगे. बाद में सीमा नीरज के साथ घूमने भी जाने लगी. कुछ ही दिनों में दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच अंतरंग संबंध बन गए. अवैध रिश्तों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एकदूसरे की बांहों में समा जाते.

लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपती कहां हैं. धीरेधीरे पूरे मोहल्ले में नीरज और सीमा के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी. जवान बेटी ससुराल छोड़ कर बाप की छाती पर मूंग दले, इस से बड़ा कष्ट बाप के लिए और क्या हो सकता है. ऊपर से जब उस के नाजायज रिश्तों की बात पता चले तो उस के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात होती है. सीमा के बाप का धैर्य टूटा तो उस ने उस पर लगाम कसनी शुरू की और उस के योग्य कोई लड़का खोजना शुरू कर दिया. इस बीच प्रतिबंध लग जाने से सीमा और नीरज का मिलना कुछ कम हो गया. काफी दौड़धूप के बाद घर वालों ने सीमा का दूसरा विवाह विशाल यादव के साथ वर्ष 2019 में कर दिया. विशाल यादव के पिता कल्लू यादव की मृत्यु हो चुकी थी. विशाल मिर्जापुर शहर के कटरा थाना अंतर्गत डंगहर मोहल्ले में रहता था और मंजू रिटेलर टायर बरौंधा कचार में काम करता था.

विशाल यादव से विवाह करने के बाद सीमा हंसीखुशी से ससुराल में रहने लगी. यहां उसे कोई बंधन न था. न घर में सास थी न ससुर. पति भी सीधासादा था. वह पति से जिस भी चीज की मांग करती, वह उसे पूरा कर देता था. क्योंकि पत्नी की खुशी में ही अपनी खुशी समझता था. उस की मांग पर उस ने उसे नया मोबाइल फोन भी ला कर दे दिया था. होना यह चाहिए था कि जब सीमा ने दूसरी शादी कर ली तो नीरज को उस की ससुराल नहीं जाना चाहिए था. लेकिन नीरज नहीं माना. वह शारीरिक सुख पाने के लिए सीमा के घर जाने लगा. सीमा कभी तो उसे लिफ्ट दे देती, तो कभी उसे दुत्कार भी देती. सीमा नाराज हो जाती तो नीरज उसे उपहार दे कर या फिर आर्थिक मदद कर उस की नाराजगी दूर करता.

सीमा के पति विशाल की ड्यूटी रात में रहती थी. उस के जाने के बाद ही नीरज सीमा से मिलने आता था. फिर घंटा, 2 घंटा उस के साथ बिताने के बाद वापस चला जाता था. पड़ोसियों ने पहले तो गौर नहीं किया, लेकिन जब नीरज अकसर वहां आने लगा तो उन के कान खड़े हो गए. उन्होंने विशाल को हकीकत बताई तो उस के मन में शंका का बीज उपज आया. विशाल ने इस बाबत सीमा से जवाब तलब किया तो वह उसे बरगलाने की कोशिश करने लगी. विशाल ने सख्ती की तो सीमा ने सच्चाई बयां कर दी और यह कहते हुए माफी मांग ली कि आज के बाद वह नीरज से कोई वास्ता नहीं रखेगी.

विशाल ने घर टूटने के खौफ से सीमा को माफ कर दिया. इस के बाद सीमा ने सख्त रुख अख्तियार करना शुरू कर दिया. अब नीरज जब भी उस के घर आता, सीमा उसे दुत्कार कर भगा देती, लेकिन नीरज दुत्कारने के बावजूद सीमा से मिलने पहुंच जाता. वह सीमा को मनाने की भी कोशिश करता. 27 नवंबर, 2020 की रात साढ़े 9 बजे नीरज बनसंवर कर घर से निकला. उस ने अपने भाई धीरज से झूठ बोला कि वह दोस्त के घर जागरण में जा रहा है. घर से निकल कर वह कुछ देर इधरउधर घूमता रहा फिर रात साढ़े 11 बजे वह डंगहर स्थित सीमा के घर जा पहुंचा. सीमा ने उसे दुत्कारा और घर से निकल जाने को कहा.

लेकिन नीरज नहीं माना. उस ने सीमा को धकेल कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और सीमा से जोरजबरदस्ती करने लगा. सीमा ने विरोध किया तो वह जबरदस्ती उसे अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करने लगा. सीमा बचाव में हाथपैर चलाने लगी. इसी बीच उस की निगाह छोटे गैस सिलेंडर पर पड़ी. उस ने लपक कर सिलेंडर उठाया और नीरज के सिर पर दे मारा. नीरज का सिर फट गया और वह जमीन पर गिर पड़ा. इसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया. सीमा ने दरवाजा खोला तो सामने उस का पति विशाल था. वह पति के सीने से लिपट गई और बोली, ‘‘नीरज जबरदस्ती घर में घुस आया था और उसे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था.’’

सीमा की बात सुन कर विशाल का गुस्सा बढ़ गया. उस ने ईंट से उसे पीटना शुरू कर दिया. नीरज तब चीखनेचिल्लाने लगा और माफी भी मांगने लगा. बुरी तरह पीटने के बाद विशाल ने नीरज को घर के बाहर धकेल दिया. नीरज घायल अवस्था में कुछ दूर तक गया फिर मीना किन्नर के घर के सामने गिर पड़ा. रात भर ठंड में वह वहीं पड़ा रहा. सुबह कुछ लोग घर से टहलने निकले तो उन्होंने नीरज को गंभीर हालत में देखा. उधर से गुजरने वाले एक व्यक्ति को अपने घर का पता देते हुए खबर देने का अनुरोध किया. जब उस व्यक्ति ने नीरज के घर खबर की तो उस का भाई धीरज आया. धीरज ने उसे अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

विशाल यादव और सीमा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 29 नवंबर, 2020 को दोनों अभियुक्तों को मिर्जापुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सीमा नाम परिवर्तित है.

 

पत्नी ने रचाई साजिश : 5 लाख की सुपारी देकर कराया पति का खौफनाक कत्ल

Crime News : मौडर्न और महत्त्वाकांक्षी विनीता ने प्रवक्ता पति के होते 2-2 प्रेमी बना लिए थे. जब वह चेन मार्केटिंग कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ने के बाद तो वह अवधेश को 2 कौड़ी का समझने लगी थी. आखिर उस ने अपने मन की करने के लिए…

42 वर्षीय अवधेश सिंह जादौन फिरोजाबाद जिले के भीतरी गांव के निवासी थे. वह बरेली जिले के सहोड़ा में स्थित कुंवर ढाकनलाल इंटर कालेज में हिंदी लेक्चरर के पद पर तैनात थे. नौकरी के चलते ढाई वर्ष पहले उन्होंने बरेली के कर्मचारीनगर की निर्मल रेजीडेंसी में अपना निजी मकान ले लिया था, जिस में वह अपनी पत्नी विनीता और 6 वर्षीय बेटे अंश के साथ रहते थे. 12 अक्तूबर, 2020 को अवधेश से फोन पर गांव में रह रही उन की मां अन्नपूर्णा देवी ने बात की थी. अवधेश उस समय काफी परेशान थे. मां ने उन्हें दिलासा दी कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा. इस के बाद उन्होंने अवधेश से बात करनी चाही, लेकिन बात न हो सकी. उन का मोबाइल बराबर स्विच्ड औफ आ रहा था. अन्नपूर्णा को चिंता हुई तो वह 16 अक्तूबर को बरेली पहुंच गईं. जब वह बेटे के मकान पर पहुंची, तो वहां मेनगेट पर ताला लगा मिला.

पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि 12 अक्तूबर, 2020 को कुछ लोग कार से अवधेश के मकान में आए थे. तब से उन्हें नहीं देखा. अन्नपूर्णा का दिल किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा. वह वहां से स्थानीय थाना इज्जतनगर पहुंच गईं और थाने के इंसपेक्टर के.के. वर्मा को पूरी बात बताई. यह भी बताया कि अवधेश को अपने ससुरालीजनों से खतरा था. यह बात अवधेश ने 12 अक्तूबर को फोन पर बात करते समय मां को बताई थी. उस की पत्नी विनीता भी अपने बच्चे के साथ गायब थी. इस पर अन्नपूर्णा से लिखित तहरीर ले कर इंसपेक्टर वर्मा ने थाने में अवधेश सिंह जादौन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.  फिरोजाबाद के फरिहा में 4/5 दिसंबर, 2019 की रात एक ज्वैलर्स की दुकान में हुई चोरी के मामले में पुलिस के एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह ने नारखी थाना क्षेत्र के धौकल गांव निवासी हिस्ट्रीशीटर शेर सिंह उर्फ चीकू को पकड़ा.

25 अक्तूबर, 2020 की शाम शेर सिंह को उठा कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरेली के हिंदी प्रवक्ता अवधेश सिंह की हत्या करना स्वीकार किया. अवधेश की पत्नी विनीता ने अवधेश की हत्या के लिए उसे 5 लाख की सुपारी दी थी. इस में विनीता के पिता थाना नारखी के खेरिया खुर्द गांव निवासी रिटायर्ड फौजी अनिल जादौन, भाई प्रदीप जादौन, बहन ज्योति, विनीता का आगरा निवासी प्रेमी अंकित और शेर सिंह के 2 साथी भोला और एटा निवासी पप्पू जाटव शामिल थे. हत्या में कुल 8 लोग इस शामिल थे. शेर सिंह ने बताया कि बरेली में हत्या करने के बाद लाश को सभी लोग फिरोजाबाद ले कर आए और यहां नारखी में रामदास नाम के व्यक्ति के खेत में गड्ढा खोद कर दफना दिया था.

अवधेश मिला पर जीवित नहीं इस खुलासे के बाद फिरोजाबाद पुलिस ने बरेली की इज्जतनगर पुलिस को सूचना दी. अवधेश की मां अन्नपूर्णा को बुला कर 26 अक्तूबर, 2020 को फिरोजाबाद पुलिस ने तहसीलदार की उपस्थिति में उस खेत में बताई गई जगह पर खुदाई करवाई तो वहां से अवधेश की लाश मिल गई. चेहरा बुरी तरह जला हुआ था. शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. अवधेश की लाश मिलने के बाद उसी दिन इज्जतनगर थाने में विनीता, ज्योति, अनिल जादौन, प्रदीप जादौन, अंकित, शेर सिंह उर्फ चीकू, भोला सिंह और पप्पू जाटव के विरुद्ध भादंवि की धारा 147/302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद हत्याभियुक्तों की तलाश में ताबड़तोड़ दबिश दी गई, लेकिन सभी अपने घरों से लापता थे.

उन सब के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए गए. सभी के मोबाइल बंद थे. बीच में किसी से बात करने के लिए कुछ देर के लिए खुलते तो फिर बंद हो जाते. उन की लोकेशन जिस शहर की पता चलती, वहां पुलिस टीम भेज दी जाती. लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही हत्यारे वहां से निकल जाते थे. 31 अक्तूबर, 2020 को एक हत्यारोपी पप्पू जाटव उर्फ अखंड प्रताप को इंसपेक्टर के.के. वर्मा ने गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी बयान में वहीं कहा, जो शेर सिंह ने कहा था. इस बीच 5 नवंबर को इज्जतनगर पुलिस ने सभी आरोपियों के गैरजमानती वारंट हासिल कर लिए. अगले ही दिन इस से डर कर अवधेश की पत्नी विनीता ने अपने वकील के माध्यम से थाने में आत्मसमर्पण कर दिया.

पूछताछ में वह अपने मृतक पति अवधेश को ही गलत साबित करने पर तुल गई. जबकि उस की सारी हकीकत सब के सामने आ गई. जब उस से क्रौस क्वेशचनिंग की गई. कई सवालों पर वह चुप्पी साध गई. अनिल जादौन परिवार के साथ फिरोजाबाद के गांव खेरिया खुर्द में रहते थे. वह सेना से रिटायर थे. परिवार में पत्नी रेखा और 3 बेटियां विनीता, नीतू और ज्योति व एक बेटा प्रदीप था. अनिल के पास पर्याप्त कृषियोग्य भूमि थी. तीनों बेटियां काफी खूबसूरत थीं और सभी ने स्नातक तक पढ़ाई पूरी कर ली थी. 2010 में नीतू का अफेयर गांव के ही पूर्व प्रधान के बेटे के साथ हो गया. जिस पर काफी बवाल हुआ. इस पर अनिल ने जल्द से जल्द अपनी बेटियों का विवाह करने का फैसला कर लिया. नारखी थाना क्षेत्र के ही गांव भीतरी में बाबू सिंह का परिवार रहता था.

परिवार में पत्नी अन्नपूर्णा और 2 बेटे रमेश और अवधेश थे. रमेश का विवाह हो चुका था और वह परिवार के साथ जयपुर में रह कर नौकरी कर रहा था. अविवाहित अवधेश हिंदी प्रवक्ता के पद पर नौकरी कर रहा था. नौकरी के चक्कर में उस की उम्र अधिक हो गई थी. अवधेश विनीता से 12 साल बड़ा था. फिर भी अनिल विनीता की शादी उस से करने को तैयार हो गए. अनिल ने विनीता से बात की तो वह मना करने लगी कि 12 साल बड़े लड़के से शादी नहीं करेगी. अनिल ने जब समझाया कि वह सरकारी नौकरी में है, उस के पास पैसों की कमी नहीं है तो वह शादी के लिए तैयार हो गई. 2011 में अवधेश का विनीता से विवाह हो गया. उसी दिन ज्योति का भी विवाह हुआ. विनीता मायके से ससुराल आ गई. विनीता पढ़ीलिखी आजाद खयालों वाली युवती थी. जबकि अवधेश सीधेसादे सरल स्वभाव का था. दोनों एक बंधन में तो बंध गए थे लेकिन उन के विचार, उन की सोच बिलकुल एकदूसरे से अलग थी.

पति सीधा था पत्नी मौडर्न विनीता को ठाठबाट से रहना पसंद था. जबकि अवधेश को साधारण तरीके से जीवन जीना अच्छा लगता था. दोनों की सोच और खयाल एक नहीं थे तो उन में आए दिन मनमुटाव और विवाद होने लगा. विनीता की अपनी सास अन्नपूर्णा से भी नहीं बनती थी. अवधेश अपनी मां की बात मानता था. विनीता इस बात को ले कर भी चिढ़ती थी. दोनों के बीच विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहे थे. 6 साल पहले विनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंश रखा. ढाई वर्ष पहले बरेली के इज्जतनगर थाना क्षेत्र के कर्मचारी नगर की निर्मल रेजीडेंसी में अवधेश ने अपना निजी मकान ले लिया. पहले वह मकान विनीता के नाम लेना चाहता था.

लेकिन उस की बातें और हरकतों से उस का मन बदल गया. वह विनीता व बेटे के साथ अपने नए मकान में आ कर रहने लगा. बढ़ते आपसी विवादों में विनीता अवधेश से नफरत करने लगी थी. उस ने शादी से पहले सोचा था कि अवधेश उस के कहे में चलेगा, उस की अंगुलियों के इशारे पर नाचेगा, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. पैसों के लिए उसे अवधेश का मुंह देखना पड़ता था. अवधेश अपनी सैलरी से विनीता को उस के खर्च के लिए 3 हजार रुपए महीने देता था. उस में विनीता का गुजारा नहीं होता था. अपने खर्चे को देखते हुए विनीता ने घर में ही ‘रिलैक्स जोन’ नाम से एक ब्यूटीपार्लर खोल लिया. विनीता अपनी छोटी बहन ज्योति की ससुराल जाती थी. वहीं पर उस की मुलाकात सिपाही अंकित यादव से हो गई.

अंकित यादव बिजनौर का रहने वाला था. उस समय उस की पोस्टिंग मैनपुरी में थी. अंकित अविवाहित था और काफी स्मार्ट था. विनीता से उस की बात हुई तो वह उस के रूपजाल में उलझ कर रह गया. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे. एक दिन अंकित विनीता से मिलने बरेली आया. दोनों एक होटल में मिले. उस दिन से दोनों के बीच प्रेम संबंध बन गए. विनीता से मिलने वह अकसर बरेली आने लगा. विनीता का भाई प्रदीप एक मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी में नौकरी करता था. उस ने विनीता से कहा कि वह मल्टीलेवल मार्केटिंग से जुड़ी कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ जाए. इस में कम समय में ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिलता है. चेन मार्केटिंग कंपनियां कंपनी से जुड़ने वाले लोगों को बड़ेबडे़ सपने दिखाती हैं.

विनीता ने भी कंपनी से जुड़ने का फैसला कर लिया. वह कई मीटिंग में गई और मीटिंग में जाने के बाद उस पर चेन मार्केटिंग के जरिए जल्द से जल्द पैसा कमा कर रईस बनने का नशा सवार हो गया. इस के लिए उस ने इसी साल की शुरुआत में कंपनी जौइन कर ली. इस के लिए विनीता ने किसी बड़ी महिला अधिकारी की तरह अपनी वेशभूषा बनाई. शानदार सूटबूट में चश्मा लगा कर जब वह इंग्लिश में बड़े विश्वास के साथ अपनी बात किसी भी व्यक्ति के सामने रखती तो वह उस का मुरीद हो जाता और उस के कहने पर कंपनी जौइन कर लेता. भाई प्रदीप की लाल टीयूवी कार विनीता अपने पास रखने लगी. वह इसी कार से लोगों से मिलने जाती थी.

लग्जरी कार से सूटेडबूटेड महिला को उतरता देख कर लोगों पर इस का काफी गहरा प्रभाव पड़ता. घर की चारदीवारी से विनीता बाहर निकली तो उस ने अपने लिए पैसों का इंतजाम करना शुरू कर दिया. अब लोग विनीता से मिलने घर पर भी आने लगे. विनीता की चल पड़ी दुकान अवधेश तो दिन में कालेज में होता था और शाम को ही लौटता था. उसे पड़ोसियों से पता चलता तो अवधेश और विनीता में विवाद होता. विनीता पहले जब अवधेश से नहीं डरीदबी तो अब तो वह खुद का काम कर रही थी. ऐसे में अवधेश को ही शांत होना पड़ता था. दोनों  के बीच की दूरियां गहरी खाई में तब्दील होती जा रही थीं. दूसरी ओर विनीता की बहन ज्योति का अपनी ससुरालवालों से मनमुटाव हो गया था. वह काफी समय से मायके में रह रही थी. विनीता ने उसे अपने पास रहने के लिए बुला लिया. इस से भी अवधेश खफा था.

लौकडाउन के दौरान फेसबुक पर विनीता की दोस्ती अमित सिसोदिया उर्फ अंकित से हुई. अमित आगरा का रहने वाला था और वेस्टीज कंपनी से ही जुड़ा था, जिस से विनीता जुड़ी थी. अमित विवाहित था और एक बेटे का पिता भी था. दोनों की फेसबुक पर बातें हुईं तो पता चला कि अमित विनीता के भाई प्रदीप का दोस्त है. इस के बाद दोनों खुल कर बातें करने लगे और मिलने भी लगे. दोनों अलगअलग शहरों में होने वाले कंपनी के सेमिनार में भी साथ जाने लगे. अमित और विनीता की सोच और विचार काफी मिलते थे. एक साथ रहने के दौरान विनीता को यह बात महसूस हो गई थी. दोनों ही जिंदगी में खूब पैसा कमाना चाहते थे. दोनों साथ बैठते तो कल्पनाओं की ऊंची उड़ान भरते. एक दिन अमित ने विनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘विनीता, हम दोनों बिलकुल एक जैसे है.

एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा काम करते है और एक ही उद्देश्य है, एकदूसरे का साथ भी हमें भाता है. क्यों न हम हमेशा के लिए एक हो जाएं.’’

विनीता पहले हलके से मुसकराई, फिर गंभीर मुद्रा में बोली, ‘‘हां अमित, मैं भी ऐसा ही सोच रही थी. यह भी सोच रही थी कि तुम मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए, आ जाते तो मुझे कष्टों से न गुजरना पड़ता.’’ कुछ पलों के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘खैर अब भी हम एक हो सकते हैं ठान लें तो.’’

विनीता की स्वीकृति मिलते ही अमित खुश हो गया, ‘‘तुम ने कह दिया तो अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’ कह कर अमित ने विनीता को बांहों में भर लिया. विनीता भी उस से लिपट गई. अमित को पा कर जैसे विनीता ने राहत की सांस ली. उसे ऐसे ही युवक की तलाश थी जो उस के जैसा हो, उसे समझता हो और उस के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. दूसरी ओर वह अंकित यादव से भी संबंध बनाए हुए थी. विनीता दिनरात एक कर के अपने मार्केटिंग के बिजनैस में सफल होना चाहती थी. इसलिए वह इस में लगी रही. कुछ महीनों में ही उस ने अपने अंडर में एक हजार लोगों की टीम खड़ी कर दी. कंपनी ने उसे कंपनी का ‘सिलवर डायरेक्टर’ घोषित कर दिया.

विनीता खुशी से फूली नहीं समाई. कंपनी ने उसे एक स्कूटी भी इनाम में दी. विनीता अपनी कंपनी के कार्यक्रमों और उस के रिकौर्डेड संदेशों को अपने फेसबुक अकाउंट पर डालती रहती थी. कंपनी से जुड़ने के लिए लोगों से अपील भी करती थी कि उस के पास बिजनैस करने का एक अनोखा आइडिया है, जिस में महीने में 5 से 50 हजार तक कमा सकते हैं. जो कमाना चाहते हैं, उस से मिलें. विनीता की जिंदगी में सब कुछ अब अच्छा ही अच्छा हो रहा था. बस खटकता था तो अवधेश. उस के साथ होने वाली कलह. अब विनीता अवधेश से छुटकारा पाने की सोचने लगी थी. उस की जिंदगी में अमित आ चुका था, वह उस के साथ जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. अमित भी उस से कई बार कह चुका था कि वह कहे तो अवधेश को ठिकाने लगा दिया जाए. वह ही मना कर देती थी.

अवधेश के मरने से उसे हमेशा के लिए छुटकारा तो मिलता ही साथ ही अवधेश का मकान और सरकारी नौकरी भी मिल जाती. यही सोच कर उस ने आगे की योजना बनानी शुरू कर दी. इस में उस ने अपने पिता व भाई से साफ कह दिया कि वह अवधेश के साथ नहीं रहना चाहती. उसे मारने से उसे मकान और उस की सरकारी नौकरी भी मिलेगी. विनीता के पिता अनिल ने एक बार कहा भी कि वह अपना बसा हुआ घर न उजाड़े, लेकिन विनीता नहीं मानी. विनीता की जिद और लालच के लिए वे सभी उस का साथ देने को तैयार हो गए. विनीता का एक मुंहबोला चाचा था शेर सिंह उर्फ चीकू. वह उस के पिता अनिल का खास दोस्त था. शेर सिंह नारखी थाने का हिस्ट्रीशीटर था, उस पर वर्तमान में 16 मुकदमे दर्ज थे.

विनीता ने शेर सिंह से कहा कि उसे उस के पति अवधेश की हत्या करनी है. शेर सिंह ने उस से 5 लाख रुपए का इंतजाम करने को कहा तो विनीता ने हामी भर दी. अवधेश ने कार खरीदने के लिए घर में रुपए ला कर रखे थे. सोचा था कि नवरात्र में बुकिंग करा देगा और धनतेरस पर गाड़ी खरीद लेगा. उन पैसों पर विनीता की नजर पड़ गई. उन रुपयों में से 70 हजार रुपए निकाल कर विनीता ने शेर सिंह को दे दिए, बाकी पैसा बाद में देने को कहा. इस के बाद शेर सिंह ने अपने गांव के ही भोला सिंह और एटा के पप्पू जाटव को हत्या में साथ देने के लिए तैयार कर लिया. शेर सिंह ने विनीता, विनीता के पिता अनिल, भाई प्रदीप और प्रेमी अमित सिसोदिया के साथ मिल कर अवधेश की हत्या की योजना बनाई. विनीता ने बाद में ज्योति को इस बारे में बता कर उसे भी अपने साथ शामिल कर लिया.

12 अक्तूबर, 2020 की रात अवधेश रोज की तरह टहलने के लिए निकले. उस के जाने के बाद विनीता ने हत्या के उद्देश्य से पहुंचे शेर सिंह, भोला, पप्पू जाटव, अनिल, प्रदीप और अमित को घर के अंदर बुला लिया. सभी घर में छिप कर बैठ गए. कुछ देर बाद जब अवधेश लौटे तो घर में घुसते ही सब ने मिल कर उसे दबोच लिया. विनीता अपने बेटे अंश को ले कर ऊपरी मंजिल पर चली गई. नीचे सभी ने अवधेश को पकड़ कर उस का गला घोंट दिया. अवधेश के मरने के बाद विनीता नीचे उतर कर आई. अवधेश की लाश को बड़ी नफरत से देख कर गाली देते हुए उस में कस के पैर की ठोकर मार दी. देर रात अमित ने लाश को सभी के सहयोग से अपनी आल्टो कार में डाल लिया. इस के बाद प्रदीप की टीयूवी कार जो विनीता के पास रहती थी, सब उस में सवार हो गए.

प्रदीप कार चला रहा था. उस के पीछे थोड़ी दूरी पर अंकित चल रहा था. लगभग साढ़े 3 घंटे का सफर तय कर के अवधेश की लाश को ले कर वे फिरोजाबाद में नारखी पहुंचे. लेकिन तब तक उजाला हो चुका था. इसलिए लाश को कहीं दफना नहीं सकते थे. इन लोगों ने पूरा दिन ऐसे ही निकाला. इस बीच लाश को जलाने के लिए बाजार से तेजाब खरीद कर लाया गया. अंधेरा होने पर नारखी में रामदास के खेत में गड्ढा खोद कर अवधेश की लाश को उस में डाल दिया गया. फिर लाश पर तेजाब डाल दिया गया, जिस से लाश का चेहरा व कई हिस्से जल गए. लाश को दफनाने के बाद सभी वहां से लौट आए. विनीता बराबर वीडियो काल के जरिए उन लोगों के संपर्क में थी. 14 अक्तूबर, 2020 को वह भी बेटे अंश को ले कर घर से भाग गई.

शेर सिंह पकड़ा गया तो घटना का खुलासा हुआ. उस ने विनीता के प्रेमी अंकित का नाम लिया. घटना की खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं तो विनीता के प्रेमी सिपाही अंकित यादव ने देखा. अंकित ने अपना नाम समझा. उसे लगा कि पुलिस को विनीता की काल डिटेल्स से उस के बारे में पता लग गया है. अब वह भी इस हत्याकांड की जांच में फंस जाएगा. दूसरी ओर अंकित नाम आने पर विनीता के शातिर दिमाग ने खेल खेला. अपने प्रेमी अमित सिसोदिया को बचाने के लिए वह अंकित को ही फंसाने में लग गई. 26 अक्तूबर, 2020 को वह अंकित यादव से मिलने संभल गई. 2 महीने से अंकित संभल की हयातनगर चौकी पर तैनात था. वहां वह उस से मिली. कुछ सिपाहियों ने उसे उस के साथ देखा भी. विनीता उस से मिल कर चली गई. अंकित भयंकर तनाव में आ गया.

27 अक्तूबर, 2020 को उस ने अपने साथी सिपाही की राइफल ले कर उस से खुद को गोली मार ली. अंकित के आत्महत्या कर लेने की बात विनीता को पता चल गई थी. इसलिए जब उस ने आत्मसमर्पण किया तो वह सारा दोष अंकित यादव पर डालती रही. वह अपने प्रेमी अमित सिसोदिया उर्फ अंकित को बचाना चाहती थी. समर्पण से पहले विनीता ने अपना मोबाइल भी तोड़ दिया था, ताकि पुलिस उस मोबाइल से कोई सुराग हासिल न कर सके. गैरजमानती वारंट जारी होने के बाद से सभी आरोपियों में इस बात का खौफ है कि पुलिस उन की संपत्तियों को तोड़फोड़ सकती है, कुर्क कर सकती है. इसलिए बारीबारी से सभी आत्मसमर्पण करने की तैयारी में लग गए.

फिलहाल कथा लिखे जाने तक पुलिस शेष आरोपियों की तलाश में जुटी हुई थी. शेर सिंह की रिमांड 20 नवंबर को मिलनी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया में छपी रिपोर्टों के आधा