पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 1

जब अखिल मनमानी करने लगा तो सरिता का माथा ठनका. शराब के नशे में जब एक रोज उस ने सरिता का हाथ पकड़ा और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा तो सरिता ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया और उसे घर के बाहर खदेड़ दिया. अपमानित हो कर अखिल वहां से चला गया.

एक शाम सरिता कमरे में अकेली थी और अपनी बेटी अनिका को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश कर रही थी. तभी भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने अखिल व रंजीत खड़े थे. उन दोनों की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. सरिता को उन दोनों ने दबोचना चाहा तो वह भाग कर रसोई में जा पहुंची. वे दोनों वहां भी आ पहुंचे.

बचाव के लिए सरिता ने रसोई में रखा चाकू उठा लिया और बोली, “चले जाओ वरना पेट में चाकू घुसेड़ दूंगी. भूल जाऊंगी कि तुम मेरे पति के दोस्त हो.’’

इस पर रमन ने सरिता को फिर पीटा और बोला, “साली, हरामजादी, कुतिया तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे दोस्तों से भिड़ने की. हम तीनों एक प्याला, एक निवाला हैं. हर चीज मिलबांट कर खाते हैं. तुझे उन की बात मान लेनी चाहिए थी.’’

सरिता का पति रमन सिर से पांव तक कर्ज में डूबा था. इस कर्ज को उतारने के लिए वह सरिता को गलत रास्ते पर ढकेलने की कोशिश कर रहा था. सरिता उस की बात मानने को राजी नहीं थी. जिस से वह उसे आए दिन शराब पी कर पीटता था.

कानपुर देहात जिले के थाना शिवली के एसएचओ एस.एन. सिंह को सूचना मिली कि केशरी निवादा गांव के पास से सरिता नाम की विवाहित युवती का कुछ बदमाशों ने अपहरण कर लिया है और उसे जंगल की ओर ले गए हैं. यह सूचना 5 सितंबर, 2023 की रात 8 बजे सरिता के पति रमन पाल ने फोन के जरिए दी थी.

चूंकि खबर किडनैपिंग की थी, इसलिए इंसपेेक्टर एस.एन. सिंह पुलिस टीम के साथ जल्द ही घटनास्थल पहुंच गए. उस समय गांव के बाहर नहर की पक्की सड़क पर कुछ ग्रामीण मौजूद थे. उन ग्रामीणों में से एक व्यक्ति बदहवास हालत में निकल कर आया और एसएचओ से बोला, “साहब, मेरा नाम रमन पाल है, मेरी पत्नी सरिता का बदमाशों ने अपहरण कर लिया है. उसे जल्द ढूंढने की कोशिश करें. कहीं ऐसा न हो कि उस के साथ कोई अनहोनी हो जाए.’’ इतना कह कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने रमन पाल को धैर्य बंधाया, फिर पूरी घटना विस्तार से बताने को कहा. तब रमन पाल ने बताया कि वह चौबेपुर थाने के पनऊ पुरवा गांव का रहने वाला है. उस की ससुराल गहलों गांव में है.

आज वह पत्नी सरिता को लेने ससुराल गया था. वह सरिता व मासूम बेटी अनिका को बाइक पर बिठा कर अपने गांव की ओर शाम 7 बजे रवाना हुआ. जब वह केशरी निवादा गांव के पास मैथा नहर रोड पर गगनी देवी मंदिर के नजदीक पहुंचा, तभी 3 बदमाशों ने उस की बाइक रोकी और सरिता से छेड़खानी करने लगे. विरोध करने पर वे उस से उलझ गए और चाकू से हमला किया, जिस से उस का हाथ जख्मी हो गया और खून बहने लगा.

इस के बाद वे सरिता को उठा कर जंगल की ओर ले गए. कुछ देर तक वह समझ नहीं पाया कि क्या करे. थोड़ी देर बाद उस ने पहले ससुर कमलेश पाल को फिर पुलिस को सूचना दी. रमन पाल की बात पर विश्वास कर पुलिस ने सर्च औपरेशन शुरू कर दिया, लेकिन कोशिश बेकार रही. न तो सरिता का कुछ पता चला और न ही बदमाशों का. रात का गहरा अंधेरा भी छा गया था, अत: हताश हो कर पुलिस वापस थाने आ गई.

रमन पाल घायल था. उस के हाथ से खून बह रहा था. इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिवली में रमन पाल के हाथ की मरहमपट्टी कराई, फिर उसे थाने ले आए. बेटी सरिता के अपहरण की सूचना पा कर सुबह कमलेश पाल भी थाना शिवली पहुंच गया. वह बेहद दुखी था.

एसएचओ एस.एन. सिंह ने उस से पूछताछ की तो कमलेश पाल ने बताया कि उस का दामाद रमन पाल बेहद कमीना व नीच इंसान है. वह जुुआरी व शराबी भी है. मेरी बेटी को वह जानवरों की तरह पीटता है और भूखाप्यासा रखता है. वह इंसान नहीं, हैवान है. सरिता के अपहरण की वह नौटंकी कर रहा है. उस ने या तो सरिता को बेच दिया है या फिर उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. सारा रहस्य रमन पाल के ही सीने में छिपा है.

कमलेश पाल की बात एसएचओ को भी सच लगी. क्योंकि घटनास्थल पर उन्हें अपहरण का कोई सबूत नहीं मिला था, न ही लूट की बात सच थी. क्योंकि सरिता के शरीर पर न तो आभूषण थे और न ही उन दोनों के पास नकदी थी. घटना का ऐसा गवाह भी नहीं था, जिस ने यह सब देखा हो. मासूम अनिका डरीसहमी थी. वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी.

एसएचओ एस.एन. सिंह को लगा कि रमन पाल कुछ छिपा रहा है. अत: उन्होंने उस से एक बार फिर पूछताछ शुरू की. लेकिन वह यही कहता रहा कि उस की पत्नी सरिता का बदमाशों ने अपहरण किया है. वह उसे कहां ले गए, क्या किया, उसे कुछ भी मालूम नहीं है.

सुबह 10 बजे शिवली थाने की पुलिस फिर से सरिता की खोज में घटनास्थल पहुंची. साथ में सरिता का पिता कमलेश व पति रमन पाल भी था. इस बार पुलिस ने बड़ी सावधानी से नहर के किनारे झाड़ियों व जंगल में सरिता को ढूंढना शुरू किया. डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंच कर झाड़ियों में सरिता की खोज शुरू कर दी.

खोजी कुत्ते से टीम को सफलता नहीं मिली, लेकिन खोज में जुटा शिवली थाने का सिपाही रामवीर हांफतादौड़ता हुआ आया और इंसपेक्टर एस.एन. सिंह से बोला, “सर, बबूल के पेड़ के नीचे एक युवती की लाश पड़ी है. आप वहां जल्दी चलिए.’’

इंस्पेक्टर एस.एन. सिंह पुलिसकर्मियों के साथ बबूल के पेड़ के पास पहुंचे. पेड़ के नीचे एक महिला का शव पड़ा था. उस के गले में पीला दुपट्टा लिपटा था. देख कर लग रहा था कि दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. कुछ पुराने जख्म भी थे. शव के पास ही चप्पल व टूटी चूड़ियां पड़ी थीं. देखने से ऐसा लग रहा था कि महिला का मृत्यु से पहले हत्यारों से संघर्ष हुआ था. महिला की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी.

महिला के शव को जब कमलेश पाल ने देखा तो वह फफक पड़ा और इंसपेक्टर एस.एन. सिंह से बोला, “साहब, यह लाश मेरी बेटी सरिता की है.’’

रमन पाल ने भी लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी सरिता के रूप में की और वह रोने धोने लगा. इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने उन दोनों को धैर्य बंधाया और जल्दी ही सरिता के हत्यारों को गिरफ्तार करने की तसल्ली दी.

एस.एन. सिंह ने सरिता की अपहरण के बाद हत्या किए जाने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद ही एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी राजेश कुमार पांडेय तथा डीएसपी तनु उपाध्याय घटनास्थल पर आ गईं.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में एसएचओ एस.एन. सिंह से जानकारी हासिल की. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल माती भिजवा दिया.

एक ही घुड़की में उगल डाला राज

मृतका सरिता के पिता कमलेश पाल तथा पति रमन पाल को थाने लाया गया. यहां डीएसपी तनु उपाध्याय ने कमलेश पाल से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस की बेटी का हत्यारा कोई और नहीं, उस का दामाद रमन पाल ही है. वह बेटी सरिता को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था. रक्षाबंधन वाले दिन भी उस ने सरिता को खूब पीटा था. उस के बाद वह मायके आ गई थी. रमन पाल ने ही षडयंत्र रच कर अपने साथियों के साथ मेरी बेटी को मार डाला और पुलिस से बचने के लिए उस ने उस के अपहरण की झूठी कहानी गढ़ दी.

क्या रमन ने ही सरिता की हत्या की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 4

सुजित के दोस्त सुरेश पर कसा शिकंजा

आखिर कुछ दिनों बाद एक छोटा सा सुराग टौम के हाथ लग गया. सुजित के दोस्तों के बारे में पता करते करते उन के सामने एक नाम आया सुरेश का. वह सुजित का खास दोस्त था. वह आटो चलाता था. पता चला था कि जिन दिनों शकुंतला गुम हुई थीं, उन दिनों वह शकुंतला के घर 2-3 बार दिखाई दिया था. एक बार तो रात 2 बजे वह शकुंतला के घर के पास आटो ले कर जाते हुए दिखाई दिया था और उस समय उस के आटो में कोई बड़ा सामान भी था.

टौम के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. उन्होंने तत्काल सुरेश को उठा लिया और थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी, “सुरेश, तुम सुजित को पहचानते थे?”

“जी, वह मेरा दोस्त था. बहुत भला आदमी था. बेचारा चला गया.” सुरेश ने जवाब में कहा.

“वह भला था या बुरा, यह मैं तय कर लूंगा. तुम सिर्फ उसी बात का जवाब दो, जो मैं पूछूं और दूसरी बात यह कि अब सुजित जीवित नहीं है, इसलिए उस के सभी गुनाहों की सजा तुझे अकेले ही भोगनी है, यह सोच कर जवाब देना. सच बोलोगे तो सजा कम हो सकती है, वरना भोगोगे.”

सुरेश को पसीना आ गया. टौम ने पूछा, “तुम शकुंतला को जानते थे?”

“नहीं. कौन शकुंतला?” सुरेश ने कहा.

इसी के साथ उस के बाएं गाल पर 2 तमाचे पड़े. तमाचे इतने जोरदार थे कि उस की आंखों के सामने सितारे नाचने लगे तो कानों में भंवरे गुनगुनाने लगे. टौम ने कहा, “अभी तो सिर्फ भंवरे ही गुनगुना रहे हैं. सच नहीं बोला तो शेर और बाघ की गर्जना सुनाई देगी. मैं उस शकुंतला की बात कर रहा हूं, तुम आटो ले कर जिस के घर के चक्कर लगा रहे थे. जिसे तुम ने और सुजित ने मिल कर मार डाला. उस के बाद सीमेंट और कंक्रीट के साथ भर कर सरोवर में फेंक दिया. याद आया… हत्यारा कहीं का.”

टौम की आवाज डराने वाली थी. सुरेश घबरा गया. उस ने कहा, “साहब, हत्या मैं ने नहीं की है. हत्या सुजित ने की है.”

टौम नीचे बैठ कर बोले, “ठीक है, जो भी है सचसच और विस्तार से बताओ.”

इस के बाद सुरेश ने जो बताया, वह इस प्रकार था.

सुजित अस्वती को धोखा दे रहा था. वह शादीशुदा था, फिर भी खुद को कुंवारा बता कर अस्वती के घर में उस के साथ रह रहा था. शकुंतला को इस बात की जानकारी हो गई थी. पर यह बात वह बेटी को बता कर उस का दिल नहीं तोडऩा चाहती थी. इसलिए उस ने सुजित को समझाया कि वह उस की बेटी के जीवन से चला जाए, पर सुजित नहीं माना.

सुरेश ने उगल दिया सारा राज

शकुंतला को लगा कि सुजित सीधे नहीं मानने वाला तो उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने अस्वती को नहीं छोड़ा तो वह सारी हकीकत अस्वती को बता देगी. शकुंतला की इस धमकी से सुजित घबरा गया. उस ने अस्वती को मां के खिलाफ भडक़ाना शुरू कर दिया, दूसरी ओर साथ ही साथ शकुंतला की हत्या की योजना भी बनाता रहा.

एक्सीडेंट के बाद शकुंतला को चिकन पौक्स हो गया. अस्वती बच्चों को ले कर लौज में रहने चली गई तो सुजित को शकुंतला की हत्या करने के मौका मिल गया. उस ने सुरेश से बात कर के मदद मांगी. सुरेश ने हत्या करने के अलावा दूसरी अन्य मदद का आश्वासन दिया.

इस के बाद 22 सितंबर, 2016 को दोनों बाजार से एक ड्रम, सीमेंट, कंक्रीट, रस्सी आदि खरीद कर ले आए. यह सारा सामान सुरेश शकुंतला के घर पहुंचा कर चला गया. यह सारा सामान देख कर शकुंतला ने उस से पूछा भी, पर बिना कुछ बोले ही वह चला गया था. उसी रात सुजित शकुंतला के घर गया और गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद लाश को ड्रम में डाल कर ऊपर से सीमेंट और कंक्रीट भर कर पैक कर दिया. इस के बाद रात को सुरेश को फोन किया.

सुरेश आटो ले कर शकुंतला के घर आया तो ड्रम को आटो में रख कर दोनों पनंगद सरोवर पर ले गए और ड्रम को पानी के अंदर डुबो कर अपनेअपने घर चले गए.

इतनी बात बता कर सुरेश ने कहा, “साहब, इतनी भर बात है. इस के आगे मैं कुछ नहीं जानता. मैं ने हत्या करने में कोई मदद नहीं की थी.”

टौम ने कहा, “हत्या में मदद नहीं की, पर अपराध को छिपाने और लाश को ठिकाने लगाने का तो अपराध किया है.” कह कर मार्च 2023 में सुरेश को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद उस का वह आटो भी जब्त कर लिया गया, जिस से उस ने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे सबूत जुटाने के बाद सुरेश को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

आखिर इंसपेक्टर सी.बी. टौम ने एक ऐसा केस हल कर दिया था, जिस में न मरने वाले का पता था, न कोई सबूत था, फिर भी अपराधी पकड़ा गया था. इस तरह का काम सी.बी. टौम जैसे होशियार पुलिस वाले ही कर सकते हैं.

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 3

सर्वेश के घर के आसपास ज्यादा मकान तो थे नहीं, इसलिए नेत्रपाल को उस के यहां आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. साप्ताहिक छुट्टी के दिन तो पाकेश के ड्यूटी पर चले जाने के बाद नेत्रपाल पूरा दिन उसी के यहां पड़ा रहता. इस तरह यह सिलसिला काफी दिनों तक बिना किसी रोकटोक के चलता रहा.

एक दिन शाम को किसी वजह से पाकेश जल्दी घर आ गया. संयोग से नेत्रपाल उस समय उस के घर पर ही मौजूद था. तब सर्वेश ने पाकेश से उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह नेत्रपाल हैं. हमारी कंपनी में सुपरवाइजर हैं. यह भी यहीं आसपास प्लौट खरीदना चाहते हैं. इन्हें मैं ने ही यह बगल वाला प्लौट दिखाने के लिए बुलाया था.’’

सर्वेश ने ऐसी चाल चली थी कि पाकेश को नेत्रपाल पर जरा भी शक नहीं हुआ. पाकेश शराब का आदी था. वह ड्यूटी से छूटने के बाद अकसर रास्ते में पड़ने वाले ठेके से शराब पी कर घर आता था. उस शाम सर्वेश ने नेत्रपाल से उस का परिचय कराया तो वह उस के लिए भी ठेके से शराब ले आया. दोनों ने साथसाथ बैठ कर शराब पी तो उन में दोस्ती हो गई.

पाकेश पहले से ही शराब पिए था, नेत्रपाल के साथ भी पी तो उसे इतना नशा हो गया कि वह बिना खाना खाए ही सो गया. बच्चे पहले ही सो चुके थे. जेठ मंदबुद्धि ही था, वह खाना खा कर बाहर निकल गया तो नेत्रपाल और सर्वेश ने इस मौके का लाभ अच्छी तरह उठाया.

उस रात नेत्रपाल समझ गया कि पाकेश को पत्नी से भी ज्यादा शराब से प्रेम है. इस के बाद उसे जब भी सर्वेश से एकांत में मिलना होता, वह शराब की बोतल ले कर पाकेश के घर पहुंच जाता. पाकेश शराब पी कर लुढ़क जाता तो उसे सर्वेश से एकांत में मिलने का मौका आराम से मिल जाता.

लेकिन एक दिन पाकेश ने नेत्रपाल को सर्वेश की छाती पर हाथ लगाते देख लिया तो नशे में होने की वजह से उसे एकदम से गुस्सा आ गया. वह नेत्रपाल और सर्वेश को भद्दीभद्दी गालियां देने लगा. नेत्रपाल समझ गया कि अब यहां रुकना ठीक नहीं है, इसलिए वह तुरंत चला गया.

इस के बाद नेत्रपाल ने पाकेश के रहते सर्वेश के घर आना बंद कर दिया. लेकिन एक दिन पाकेश ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. तब पाकेश ने शराब पी कर सर्वेश की जम कर पिटाई की और इस के बाद उसे उस की मां के घर भेज दिया.

सर्वेश ने नेत्रपाल के सामने अपना दुखड़ा रोया तो उस ने हर हालत में उस का साथ देने का आश्वासन दिया. इसी के बाद दोनों ने अपने संबंधों के बीच रोड़ा बन रहे पाकेश को हटाने की योजना बना डाली. इस के लिए उन्होंने रक्षाबंधन वाला दिन तय किया. दोनों ने सलाह की कि उस दिन किसी भी कीमत पर पाकेश को ठिकाने लगा देना है.

योजना के अनुसार, सर्वेश ने पाकेश से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने के लिए गांव चलने को कहा. पाकेश जाना तो नहीं चाहता था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे जाना ही पड़ा. जेठ को भी वह गांव ले गई. रक्षाबंधन का त्यौहार मना कर वह पाकेश और बेटी को ले कर काशीपुर आ गई. घर वालों से उस ने बहाना बनाया कि रात को घर खाली छोड़ना ठीक नहीं है. जेठ और बेटे को उस ने गांव में ही छोड़ दिया था.

काशीपुर आने के बाद वह खाना बनाने को ले कर पाकेश से उलझ गई. उस ने कहा कि वह बुरी तरह से थकी है, इसलिए खाना नहीं बना सकती. पाकेश से उलझना भी उस की योजना में शामिल था. सर्वेश ने खाना बनाने से मना किया तो पाकेश उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए घर से निकल गया. उस के जाते ही उस ने नेत्रपाल को फोन कर दिया.

योजना के अनुसार, उस दिन नेत्रपाल काशीपुर में ही रुका था. सर्वेश का संदेश मिलते ही वह उस के घर पहुंच गया. घर से निकल कर पाकेश सीधे ठेके पर गया और घर लौटा तो नशे में धुत था. पाकेश को देख कर नेत्रपाल दूसरे कमरे में छिप गया.

पाकेश के जाने के बाद सर्वेश ने जल्दीजल्दी रोटियां बना ली थीं. वापस आने पर सर्वेश ने उसे रोटियां खाने को दीं तो वह उसे गालियां देते हुए मारपीट करने लगा.

सर्वेश की पिटाई होते देख नेत्रपाल को गुस्सा आ गया. वह निकल कर बाहर आ गया और पाकेश को समझाने लगा. लेकिन नेत्रपाल को देख कर पाकेश का गुस्सा और बढ़ गया. वह सर्वेश को छोड़ कर नेत्रपाल को गालियां देने लगा. वह उसे मारने के लिए कोई औजार ढूंढ रहा था, तभी पहले से छिपा कर रखी लोहे की रौड उठा कर सर्वेश ने नेत्रपाल को थमा दी.

नेत्रपाल को लोहे की रौड थमा कर सर्वेश ने पाकेश को बांहों में दबोच लिया. नेत्रपाल ने इस मौके का लाभ उठाते हुए उस के सिर पर लोहे की रौड का जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में वह जमीन पर गिर पड़ा. उस ने दूसरा वार किया तो पाकेश के गिरने की वजह से वह सर्वेश के सिर में लग गया. उस के सिर से भी खून रिसने लगा. लेकिन उस ने अपनी चोट पर ध्यान न दे कर बेहोश पड़े पाकेश को दबोच लिया तो नेत्रपाल ने उस का गला दबा दिया.

थोड़ी देर छटपटा कर पाकेश हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया. इस के बाद बचाव का तरीका समझा कर नेत्रपाल चला गया. सर्वेश सवेरा होने का इंतजार करने लगी.

वह पूरी रात यही सोचती रही कि यह बात वह घर वालों को कैसे बताएगी? सुबह उस ने फोन कर के जेठानी को किसी तरह सूचना भी दे दी और बचाव के लिए गढ़ी गई कहानी भी सुना दी, लेकिन वह खुद को पुलिस की नजरों से बचा नहीं सकी.

सर्वेश के बयान के बाद पुलिस ने नेत्रपाल को भी उस के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार करने के बाद वही पूरी कहानी दोहरा दी, जो सर्वेश सुना चुकी थी. नेत्रपाल और सर्वेश के अनुसार पाकेश को खत्म कर के दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन उन का यह सपना पूरा नहीं हो सका.

पूछताछ के बाद कोतवाली पुलिस ने नेत्रपाल और सर्वेश को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. मजे की बात यह थी कि इतना बड़ा अपराध कर के भी सर्वेश को जरा भी पछतावा नहीं था. जेल जाते समय उस ने मां से भी बात नहीं की थी. अब उस के दोनों बच्चे सलेमपुर में ब्याही उस की बहन मुन्नी के पास हैं. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी की सुपारी का राज

लेडी कांस्टेबल मर्डर का कालगर्ल कनेक्शन – भाग 3

सुरेंद्र ने मोनिका की उस पड़ोसी लडक़ी को अपना फोन नंबर दे कर यह अनुरोध किया कि मोनिका पीजी आएगी तो फोन कर के बता देना. हैरानपरेशान वह पीजी की सीढिय़ां उतरा. नीचे आ कर उस ने तपस्या को फोन मिलाया, “दीदी, मोनिका कल दोपहर से ही कमरे पर नहीं लौटी है.”

“कहां चली गई वो?” परेशानी भरी आवाज थी तपस्या की, “सुरेंद्र, कल मोनिका से तुम्हारी मुलाकात हुई होगी?”

“नहीं दीदी, कल मैं रेस्ट पर था. मैं अलीपुर गया था किसी काम से. कल मैं ने दोपहर को मोनिका से बात की थी और आज उस के साथ बडख़ल झील घूमने का मन बनाया था. मैं ने मोनिका से कहा था कि वह तैयार रहे, लेकिन मैं उस के पीजी गया तो मोनिका के कमरे पर ताला लटका पाया. उस के पड़ोस में रहने वाली लडक़ी का कहना है कि मोनिका कल दोपहर में तैयार हो कर और बैग ले कर कहीं गई थी. अभी तक वापस नहीं लौटी है.”

“मेरा दिल घबरा रहा है सुरेंद्र. मोनिका एकएक बात मुझ से शेयर करती है, वह बैग ले कर कहां गई होगी. मैं ने अपनी रिश्तेदारी में मालूम कर लिया है, वह किसी के यहां नहीं है.”

“फिर मोनिका कहां गई?” सुरेंद्र परेशान हो कर बोला, “दीदी, आप दिल्ली आ जाओ. हम थाने में उस के गुम होने की रिपोर्ट लिखवा देते हैं.”

“मैं शाम तक दिल्ली पहुंच रही हूं सुरेंद्र,” तपस्या ने कहा और फोन काट दिया.

सुरेंद्र अपनी ड्यूटी के लिए थाना मुखर्जी नगर की ओर रवाना हो गया.

मोनिका की दर्ज कराई गुमशुदगी

मोनिका की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने के लिए तपस्या और उस की मां शकुंतला उत्तरपश्चिम दिल्ली के मुखर्जी नगर थाने पहुंचीं. उन्होंने 20 अक्तूबर, 2021 को मोनिका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. सुरेंद्र राणा उस वक्त उन के साथ ही था. सुरेंद्र राणा ने तपस्या और उस की मां की मुखर्जी नगर में मोनिका की पीजी में रहने की व्यवस्था कर दी. वहां उन्हें मोनिका के 8 सितंबर को कमरे से जाने की बात पता चली.

दूसरे दिन से सुरेंद्र तपस्या के साथ मोनिका को हर संभावित स्थान में तलाश करता रहा, लेकिन मोनिका का कुछ पता नहीं चला. मुखर्जी नगर थाने के एसएचओ किशोर कुमार भी पुलिस टीम के साथ मोनिका की तलाश में लगे थे, लेकिन मोनिका का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

एसएचओ ने मोनिका के पीजी वाले कमरे की तलाशी ले कर यह मालूम करने की कोशिश की कि मोनिका का कोई इश्कविश्क का चक्कर तो नहीं चल रहा और वह उस बौयफ्रेंड के साथ कहीं चली गई हो, मगर कमरे में ऐसा कुछ नहीं मिला, जो यह सिद्ध करता कि मोनिका का किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा था.

तफ्तीश जारी थी. पांचवें. दिन तपस्या के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से काल आई. यह काल देहरादून के एक होटल से की गई थी वहां के मैनेजर ने बताया कि मोनिका उन के होटल में आ कर ठहरी थी. जाते वक्त वह अपने कुछ जरूरी डाक्यूमेंट्स होटल में भूल गई है, उन पर गुलावठी का पता और एक फोन नंबर लिखा था. मैं उसी नंबर को मिला कर बात कर रहा हूं. आप आ कर मोनिका के डाक्यूमेंट ले जाएं.”

“मोनिका आप के होटल में किस के साथ आई थी?” तपस्या ने पूछा.

“उस का पति था अरविंद कुमार.”

“ओह!” तपस्या हैरान हो गई. कुछ क्षण वह खामोश रही, फिर मैनेजर से बोली, “हम आज ही देहरादून आ रहे हैं वह डाक्यूमेंट लेने.”

तपस्या ने यह बात मुखर्जी नगर थाने के एसएचओ को बताई तो उन्होंने सुरेंद्र राणा को उन के साथ जा कर हकीकत पता लगाने के लिए कह दिया.

दूसरे प्रेमी अरविंद के साथ भागने की मिली खबर

सुरेंद्र राणा तपस्या को ले कर उसी दिन बस द्वारा देहरादून चला गया. रात को वह उस होटल में पहुंच गया, जहां से मैनेजर ने फोन किया था. मैनेजर ने तपस्या को जो डाक्यूमेंट सौंपे, उन में मोनिका का आधार कार्ड, पैन कार्ड और दिल्ली पुलिस में नौकरी करते वक्त का आईडीकार्ड था.

रजिस्टर में उस की अरविंद के साथ एंट्री भी दर्ज थी. सुरेंद्र ने सभी चीजें देख कर गहरी सांस छोड़ी, “दीदी, मोनिका ने मेरे साथ धोखा किया है. ये सब चीजें मोनिका की हैं, इस से यह साबित हो गया कि वह किसी अरविंद नाम के युवक के साथ भागी है? उन्होंने शादी कर ली है और यहां से अब कहीं और घूमने चले गए हैं.”

“मुझे विश्वास नहीं हो रहा है सुरेंद्र. मोनिका तुम्हें चाहती थी, यदि उस का अरविंद नाम के किसी व्यक्ति से कोई चक्कर चल रहा था तो मुझ से क्यों छिपाया. चोरी से वह क्यों भागी और शादी भी की.”

“दीदी, सब कुछ आप के सामने है. मोनिका ने मुझे धोखा दिया, इस का मुझे दुख है, लेकिन खुशी है कि वह ठीक है और उस ने शादी कर ली है. उस की खुशी अब मेरी खुशी है. दीदी आप से एक प्रार्थना है.”

“कहो.”

“अब किसी के आगे यह मत कहना कि मोनिका और मैं प्यार करते थे और जल्दी शादी भी करने वाले थे. इस से मेरी थाने में बेइज्जती होगी.”

“मैं किसी से नहीं कहूंगी,” तपस्या ने कहा और सुरेंद्र के साथ दिल्ली आने के लिए बसअड्डे के लिए रिक्शा पकड़ लिया.

मुखर्जी नगर थाने में जब सुरेंद्र राणा ने देहरादून के होटल से मोनिका का आईडीकार्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड मिलने और उस की अपने पति के साथ होटल में 2 दिन रुकने की बात बताई तो मोनिका की गुमशुदगी की रिपोर्ट रद्द कर के फाइल बंद कर दी गई.

तपस्या को नहीं हुआ विश्वास

तपस्या मोनिका की मौजूदगी की बात पता चलने के बाद भी उहापोह की स्थिति में थी. उस का कहना था, “मोनिका यदि जीवित है और उस का कोई अहित नहीं हुआ है तो वह परिवार के सामने क्यों नहीं आ रही है.”

सुरेंद्र राणा उसे समझाने के लिए कहता, “दीदी, ऐसा भी तो हो सकता है कि मोनिका शरम के कारण सामने नहीं आ रही है. वह जहां है खुश है तो उसे भुला देना ही ठीक रहेगा.”

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 3

सुजित अच्छा आदमी नहीं था. उस ने अस्वती को धोखा दिया था. सागिर नाम की लडक़ी के साथ उस का विवाह हो गया था और उस से उसे एक बच्चा भी था, लेकिन अस्वती को उस ने यह सब नहीं बताया था. उसे बेवकूफ बना कर उस से प्यार कर लिया था और खुद को कुंवारा बता कर उस के साथ रह रहा था.

उस ने अस्वती से कहा था कि कुछ दिनों में अपने मांबाप से बात कर के वह उस से विवाह कर लेगा. तब तक वह अपनी मां के घर में उसे रहने दे. अस्वती मान गई थी. शकुंतला के न चाहते हुए भी अस्वती और सुजित घर में पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे. सुजित सप्ताह में 3 दिन अस्वती के साथ रात में रुकता था और घर के सदस्य की तरह रहता था.

इस के बाद फिर अस्वती से पूछताछ हुई. इस बार इंसपेक्टर टौम ने थोड़ी सख्त आवाज में कहा, “अस्वती, अब हमारे पास समय कम है, इसलिए मेरा टेंपरेचर हाई हो रहा है. तुम ने पहले भी हम से बहुत कुछ छिपाया है. लेकिन इस बार सब कुछ सचसच बताओ. और हां, एक बात बता दूं. तुम्हारी मां शकुंतला का मर्डर हो गया है और उस ड्रम में जो हड्डियां मिली थीं, वे तुम्हारी मां की थीं.”

अस्वती के प्रेम प्रसंग से खुले नए राज

टौम के रुख से अस्वती को लगा कि अब अगर उस ने सही जवाब नहीं दिया तो पुलिस सख्ती कर सकती है. इसलिए उस ने कहा, “साहब, हत्या वत्या के बारे में तो मैं कुछ नहीं जानती, पर अंतिम दिनों में जो हुआ था, वह मैं बताए देती हूं. मैं अपने प्रेमी सुजित के साथ अपनी मां के घर में रहती थी. वह सप्ताह में 3 दिन मेरे साथ रहता था, उस के बाद अपने मांबाप के पास चला जाता था. मेरे बच्चों का भी वह खूब खयाल रखता था.

“उसी बीच पहली सितंबर, 2016 को मां का एक्सीडेंट हो गया तो उन्हें वीकेएम अस्पताल में भरती कराया. बाएं पैर में फ्रैक्चर होने की वजह से स्क्रू लगाना पड़ा. 15 दिनों तक उन्हें अस्पताल में रहना पड़ा. 15 सितंबर, 2016 को अस्पताल से छुट्टी होने के बाद वह घर आईं. इस के बाद हम सभी मां के घर में ही रहते रहे. 19 सितंबर, 2016 को मां को चिकन पौक्स हो गया. इस के अलावा भी अन्य इंफेक्शन थे, जिस की वजह से मैं बच्चों को ले कर एक स्थानीय लौज में रहने चली गई थी और सुजित अपने मांबाप के पास चला गया था.”

थोड़ी देर रुक कर अस्वती ने आगे कहा, “एक सप्ताह बाद 26 सितंबर, 2016 को मैं मां के घर वापस आई तो सुजित वहीं था. मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ तो मैं ने उस से पूछा. उस ने कहा कि वह अपना कुछ सामान भूल गया था, उसे लेने आया था. उस ने यह भी बताया कि वह 2 दिन पहले यहां आया था. तब मेरी मां शकुंतला किसी मिशनरी की नर्स के साथ दिल्ली चली गई हैं और वह यह कह कर गई हैं कि अब वह उसी के साथ वहीं रहेंगी.”

इतना कह कर अस्वती रुकी. उस ने इंसपेक्टर टौम की ओर देखा और एक लंबी सांस ले कर आगे कहा, “साहब, आप को लग रहा होगा कि मैं ने उस की बात पर विश्वास कैसे कर लिया? सच कहूं साहब, मेरी मां मेरे और सुजित के संबंधों को ले कर बहुत किचकिच करती थीं. इसलिए वह चली गईं, यह जान कर मैं बहुत खुश हुई. मैं ने सुजित से ज्यादा पूछताछ नहीं की और न ही पुलिस में केस किया.”

“तुम्हें पता नहीं है अस्वती कि तुम्हारी मां किचकिच क्यों करती थी?” टौम ने कहा, “क्योंकि सुजित तुम्हें धोखा दे रहा था. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी ही नहीं, एक बच्चा भी था. वह तुम्हें छोड़ कर बाकी के दिनों में मांबाप के पास नहीं, पत्नी के पास रहता था.”

अस्वती के प्रेमी सुजित के सुसाइड से उलझी गुत्थी

इंसपेक्टर टौम के इस खुलासे से अस्वती के पैरों तले से जमीन खिसक गई. टौम ने हंसते हुए कहा, “अब मैं जो कहने जा रहा हूं अस्वती, उसे सुन कर तुम्हें बहुत बड़ा सदमा लगेगा. तुम्हारी मां की हत्या किसी और ने नहीं, सुजित ने ही की है. कुछ समय बाद मैं सारे सबूत के साथ फिर आऊंगा.”

इतना कह कर केरल के शरलौक होम्स इंसपेक्टर टौम चले गए. टौम को पूरा शक था कि सुजित ने ही शकुंतला को मारा है. पर किस तरह और क्यों मारा, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. इस मामले में सब से बड़ी दिक्कत यह थी कि सुजित मर चुका था. 7 जनवरी, 2018 को सीमेंट और कंक्रीट से भरे ड्रम से शकुंतला की हड्डियां, 5 सौ और सौ के नोट के साथ कुछ अन्य सामान मिला था. उस के 2 दिन बाद ही 9 जनवरी, 2018 को सुजित ने आत्महत्या कर ली थी.

जिस पर शक था, वह मर चुका था और जिस की हत्या हुई थी, उस की लाश भी नहीं मिली थी. टौम को शक था कि शायद ड्रम मिल गया था, इसलिए अपनी पोल खुल जाने के डर से सुजित ने भी मौत को गले लगा लिया था, पर टौम मामले की सच्चाई तक पहुंचना चाहते थे. इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि सुजित भले जीवित नहीं है, पर उस ने ही शकुंतला की हत्या की है, यह बात वह साबित कर के रहेंगे. उन्होंने फिर से पूरे तनमन से इनवैस्टीगेशन शुरू कर दी.

commissioner MP Dinesh

अस्वती 19 सितंबर, 2016 को शकुंतला को छोड़ कर लौज में रहने गई थी और 26 सितंबर को वापस आई तो मां नहीं थी. सुजित था और उसी ने बताया था कि मां दिल्ली चली गई हैं और अब वह वहीं रहेंगी. इस से टौम को लगा कि जो कुछ भी हुआ है, वह 19 सितंबर और 25 सितंबर के बीच हुआ है.

शक की सुई सुजित पर टिकी थी. इसलिए इंसपेक्टर टौम ने जांच की शुरुआत वहां से की, जहां सुजित नौकरी करता था और उस के दोस्तों से. पूछताछ का दौर चल पड़ा. सुजित के दोस्तों और पड़ोसियों के बारे में पता किया गया, साथ ही यह भी पता किया जा रहा था कि जिस ड्रम से हड्डियां मिली थीं, वह कहां से खरीदा गया था.

आशा की चाह में टूटा सपना

दिलजलों का खूनी प्रतिशोध

लेडी कांस्टेबल मर्डर का कालगर्ल कनेक्शन – भाग 2

सुरेंद्र मोनिका से नजदीकी बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहा था. उस की बांछें तब खिलीं, जब मोनिका की ड्यूटी उस के साथ ही पीसीआर वैन में लगा दी गई. फिर तो सुरेंद्र की इस दोस्ती में अब इंद्रधनुषी रंग भरने का वक्त आ गया था.

सुरेंद्र राणा अब सारा दिन पीसीआर वैन में साथ रहने वाली मोनिका को अपने दिल के करीब ला सकता था, उस के दिल में प्यार के फूल खिला सकता था. वह मोनिका को रिझाने के लिए उसे कोई महंगा तोहफा देना चाहता था. शाम को वह कनाट प्लेस गया और पालिका बाजार से लाल रंग का खूबसूरत लेडीज पर्स खरीद लाया.

दूसरे दिन मोनिका जब ड्यूटी पर आई तो सुरेंद्र राणा ने बगैर किसी भूमिका के अखबार में लिपटा पर्स मोनिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “लो मोनिका, यह मैं तुम्हारे लिए लाया हूं.”

“क्या है इस अखबार में?”

“खोल कर देख लो.”

मोनिका ने अखबार हटाया तो खूबसूरत पर्स देख कर हैरान हो गई, “आप यह पर्स मेरे लिए लाए हैं.”

“मोनिका, मेरे घर में मेरी बूढ़ी मां के अलावा कोई नहीं है तो जाहिर सी बात है कि यह पर्स मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा है.” सुरेंद्र झूठ बोला.

“अरे!” मोनिका इस बार चौंक कर सुरेंद्र का चेहरा देखने लगी.

“ऐसे क्यों देख रही हो मोनिका?”

“आप कह रहे हैं, घर में बूढ़ी मां है. आप की पत्नी कहां गई है?”

“मेरी शादी नहीं हुई है मोनिका.” सुरेंद्र राणा ने सफेद झूठ बोला, “मैं अभी तक कुंवारा हूं.”

“कमाल है! आप की शादी की उम्र तो निकल गई, आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?” मोनिका ने हैरानी से पूछा.

“कोई लडक़ी मुझे आज से पहले पसंद ही नहीं आई थी, लेकिन अब एक लडक़ी मुझे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए जंच रही है.” सुरेंद्र राणा ने मोनिका की आंखों की गहराई में उतरते हुए बेहिचक कह डाला, “क्या तुम मुझ से शादी करोगी मोनिका?”

“म… मैं?” मोनिका हड़बड़ा कर बोली, “आप को ले कर मेरे मन में कभी यह विचार नहीं आया. आप की और मेरी उम्र में जमीनआसमान का अंतर है.”

“शादी किसी की उम्र देख कर नहीं, उस की हैसियत देख कर करनी चाहिए मोनिका. मैं दिल्ली पुलिस में हूं. आज कांस्टेबल हूं, कल ऊंची पोस्ट पर भी पहुंचूंगा. मेरे पास कई एकड़ जमीन है, अलीपुर में बहुत आलीशान घर है. लाखों रुपया बैंक में है. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा मोनिका. तुम पुलिस की नौकरी में रहना चाहोगी तो मैं रुकावट नहीं बनूंगा.”

“मैं आप को अपना अच्छा दोस्त मानती आई हूं.” मोनिका ने कहा.

“इस दोस्ती को प्यार भरे शादी के रिश्ते में भी बदला जा सकता है मोनिका. प्लीज हां कह दो, मैं तुम्हेंबहुत प्यार करता हूं.”

सुरेंद्र गिड़गिड़ाया.

मोनिका से कुछ कहते नहीं बना. उस के मन में अजीब सी उथलपुथल होने लगी.

“हां, बोल दो मोनिका. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.” सुरेंद्र राणा गिड़गिड़ाने लगा, “मैं अब तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता.”

“मैं सोचूंगी…” मोनिका ने बात खत्म करने के इरादे से कहा.

“कब जवाब दोगी?”

“कल.” मोनिका ने कहा और काम का बहाना बना कर वह रिक्शा स्टैंड की तरफ बढ़ गई.

सुरेंद्र के होंठों पर कुटिल मुसकान उभर आई. उस ने अपना शानदार अभिनय कर के मोनिका पर प्रेम जाल फेंक दिया था. उसे पूरी उम्मीद थी कि मोनिका इस प्रेम जाल में अवश्य ही फंस जाएगी. उसे अब कल का इंतजार था.

रहस्यमय तरीके से लापता हुई मोनिका

मोनिका पूरी रात इसी उलझन में फंसी रही कि वह सुरेंद्र को क्या जवाब दे. सुरेंद्र को उस ने 2-3 साल में अच्छी तरह पहचान और समझ लिया था. उस की उम्र जरूर 42 साल की हो गई थी, लेकिन उस में बच्चों जैसी मासूमियत और भोलापन था. युवकों की तरह वह फुरतीला, जोशीला और जांबाज था तो उस में चंचल, शोख और मस्तानापन भी था.

सुरेंद्र नरमगरम स्वभाव का व्यक्ति था. प्यार के लिए गिड़गिड़ाना भी उसे आता था. ऐसे व्यक्ति से शादी का इजहार करने में कोई बुराई नहीं हो सकती थी. शादी के बाद सुरेंद्र उसे रानी बना कर रखने वाला था और उस के द्वारा पुलिस की नौकरी करने में भी उसे कोई आपत्ति नहीं थी. मोनिका ने अच्छी तरह सोच कर फैसला ले लिया कि वह सुरेंद्र को शादी के लिए ‘हां’ बोल देगी.

लेकिन इस के लिए वह अपने घर वालों से बात करेगी. सुरेंद्र को भी परिवार के लोगों से मिलवाएगी. सब कुछ प्लान कर के रात के अंतिम पहर में इत्मीनान से सो गई.

9 सितंबर, 2021 की सुबह सुरेंद्र राणा काफी खुश नजर आ रहा था. पिछले महीने मोनिका यादव ने उस से शादी के लिए हां भी कह दी थी और सुरेंद्र को गुलावठी ले जा कर अपने घर वालों से भी मिला कर ले आई थी. परिवार में उस ने अपनी बहन तपस्या के कान में यह बात डाल दी थी कि वह सुरेंद्र के साथ शादी करने जा रही है. सुरेंद्र मोनिका को दुलहन बना लेने के लिए आतुर था.

उस दिन वह मोनिका को फरीदाबाद के बडख़ल झील घुमाने का मन बना कर मुखर्जी नगर में उस के पेइंग गेस्ट जा रहा था, जहां पर मोनिका रहती थी. वहां से उसे मोनिका को साथ लेना था.

अभी सुरेंद्र राणा रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल की घंटी बजने जगी. बाइक सडक़ किनारे रोक कर सुरेंद्र राणा ने मोबाइल जेब से निकाला. नंबर देखा तो उस पर तपस्या का नाम फ्लैश होता दिखाई दिया.

“तपस्या दीदी.” वह हैरानी से बड़बड़ाया.

उस ने काल रिसीव की, “गुडमार्निंग तपस्या दीदी, कैसी हैं आप?”

“मैं अच्छी हूं सुरेंद्र, जरा पीजी जा कर मोनिका से मेरी बात करवाना. मैं कल रात से उस का फोन ट्राई कर रही हूं, लेकिन फोन लग ही नहीं रहा है.”

“आप बेफिक्र रहिए दीदी. मैं पीजी ही जा रहा हूं. अभी वहां पहुंच कर आप की मोनिका से बात करवाता हूं.” सुरेंद्र ने कह कर फोन काट दिया और बाइक को आगे बढ़ा दिया.

वह पीजी पहुंचा और मोनिका के कमरे पर आया तो वहां ताला बंद था.

“कमाल है! सुबहसुबह कहां चली गई मोनिका?” सुरेंद्र राणा हैरानी में बुदबुदाया.

उस ने मोबाइल निकाल कर मोनिका को फोन लगाया. दूसरी ओर से फोन स्विच्ड औफ होने का संदेश बजा. सुरेंद्र ने 2-3 बार ट्राई किया, लेकिन मोनिका का फोन बंद होने का ही संदेश सुनने को मिला. सुरेंद्र ने मोनिका के आसपड़ोस में रहने वाली दूसरी लड़कियों से मोनिका के विषय में पूछा.

एक लडक़ी ने बताया, “मोनिका तैयार हो कर कल दोपहर को कहीं गई थी. रात को वापस नहीं लौटी, शायद आज वापस आएगी.”

‘कहां चली गई मोनिका, वह गुलावठी भी नहीं गई है, अगर वहां गई होती तो उस की बड़ी बहन तपस्या उस के लिए परेशान हो कर उसे नहीं कहती कि पीजी जा कर उस से बात करवाओ.