Extramarital Affair : पत्नी के प्रेमी की हत्या कर लाश संदूक में छिपाई

Extramarital Affair : रौंग काल से पैदा हुआ प्यार शादीशुदा नरगिस और महबूब को उस मुकाम तक ले गया जिस की दोनों ने कल्पना तक नहीं की थी. फिर एक दिन ऐसा क्या हुआ कि नरगिस के घर संदूक में महबूब की लाश मिली…

18 सितंबर, 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया. यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी. नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे. जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया. मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी. थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था. पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था. नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था. दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था. जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए. पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया. आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं. जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं. पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था. इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे. महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंडिग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी. लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था. उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली. एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया. महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा. इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था. महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे. नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे. महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा. 15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था. भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था. गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया. दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था. उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था. घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई. इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया. हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : प्रेमिका के पहले प्रेमी ने दूसरे प्रेमी को बेरहमी से मार डाला

UP Crime : उस का नाम था मायरा बानो, लेकिन उस की सूरत और सीरत की वजह से सब उसे चांदनी कहने लगे थे. चांदनी का पहला प्यार था इमरान और इमरान का पहला प्यार थी चांदनी. डाक्टर संजय भदौरिया ने जब चांदनी पर नजर डाली तो…

पेशे से डाक्टर संजय सिंह भदौरिया बरेली के धनेटा-शीशगढ़ मार्ग से सटे आनंदपुर गांव में रहते थे. उन के पिता राजेंद्र सिंह गांव के संपन्न किसान थे. परिवार में मां और पिता के अलावा एक छोटा भाई हरिओम और एक बहन पूनम थी. पूनम का विवाह हो चुका था. संजय डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1999 में बरेली के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देने लगे. सन 2000 में नीलम से उन का विवाह हो गया. लेकिन काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला. छोटे भाई हरिओम का विवाह बाद में हुआ. हरिओम के 3 बेटे हुए. संजय ने उन्हीं में से एक बेटे को गोद ले लिया था. कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के बाद डा. संजय ने अपना अस्पताल खोलने का निश्चय किया.

5 साल पहले उन्होने गौरीशंकर गौडि़या में किराए पर एक इमारत ले कर अस्पताल खोला. उन्होंने अस्पताल का नाम रखा ‘आनंद जीवन हौस्पिटल’. अस्पताल अच्छा चलने लगा. लेकिन घर से काफी दूर होने के कारण आनेजाने में दिक्कत होती थी. इसलिए डा. संजय कहीं घर के नजदीक अस्पताल खोलने पर विचार करने लगे. 6 महीने तक गौडि़या में अस्पताल चलाने के बाद संजय ने अपने गांव आनंदपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विकसित गांव दुनका में एक इमारत किराए पर ले ली. इमारत दुनका गांव निवासी नत्थूलाल की थी, जिसे संजय ने 8 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था. संजय ने इमारत में बने हाल को 2 हिस्सों में बांट दिया.

एक हिस्से में बैठ कर वह मरीजों को देखते थे. जबकि दूसरा हिस्सा एडमिट किए गए मरीजों के लिए था. मरीजों को दवा भी वहीं दी जाती थी, जबकि यह काम उन के छोटे भाई हरिओम सिंह भदौरिया करते थे. हरिओम बड़े भाई के अन्य कामों में भी सहयोग करते थे. संजय और हरिओम के मामा नत्थू सिंह भी उन के साथ लगे रहते थे. संजय कई सालों से हिंदू युवा वाहिनी से भी जुडे़ थे. पिछले 5 सालों में संजय का अस्पताल अच्छा चल निकला था. रात में वह अधिकतर अस्पताल में ही रुकते थे. घर जाते तो कुछ ही देर में वापस लौट आते थे. रात में वह अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते थे. इमारत के बाहर लोहे का एक बड़ा सा गेट था, जो दिन में खुला रहता था लेकिन रात में बंद कर दिया जाता था. रात में कोई मरीज आता तो गेट खोल दिया जाता था.

16/17 सितंबर की रात डा. संजय अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सो गए. उन के भाई हरिओम अस्पताल के अंदर मामा नत्थू सिंह के साथ सोए थे. 17 सितंबर की सुबह 6 बजे हरिओम उठ कर बाहर आए तो बड़े भाई संजय को मृत पाया. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन की हत्या कर दी थी. हरिओम के मुंह से चीख निकल गई. चीख की आवाज सुन कर मामा नत्थू सिंह भी वहां आ गए. भांजे को मरा पाया तो वह भी सकते में आ गए. हरिओम ने अपने घर वालों को सूचना देने के बाद शाही थाना पुलिस को घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में शाही थाना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

हत्यारा इमरान था हिंदू युवा वाहिनी के तहसील अध्यक्ष डा. संजय भदौरिया की हत्या की खबर फैलते देर नहीं लगी. हिंदू नेता की हत्या से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. कई थानों की पुलिस और फील्ड यूनिट के साथ एसएसपी रोहित सिंह सजवान स्वयं मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले, चेहरे, पेट व आंख पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. हत्या इतनी बेदर्दी से की गई थी जैसे हत्यारे को मृतक से बेइंतहा नफरत रही हो. अस्पताल की इमारत के मालिक दुनका में रहने वाले नत्थूलाल थे. पीछे की ओर उन के भाई की दुकानों के टीन शेड में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उन कैमरों की रिकौर्डिंग की जांच की.

रिकार्डिंग में रात साढ़े 3 बजे के करीब एक युवक अस्पताल में खड़ी टाटा मैजिक के पीछे से निकलते दिखा. वह संजय की चारपाई के नजदीक आया. फिर उस ने मच्छरदानी हटाते ही धारदार छुरे से संजय पर वार करने शुरू कर दिए. एक मिनट के अंदर उस ने संजय का काम तमाम कर दिया और जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापस लौट गया. हत्यारे युवक को हरिओम ने पहचान लिया. वह दुनका का ही रहने वाला इमरान था. हत्यारे की पहचान होते ही पुलिस अधिकरियों ने उस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. पुलिस की कई टीमें इमरान की तलाश में लग गईं. इंसपेक्टर वीरेंद्र राणा की टीम ने दोपहर पौने एक बजे इमरान को रतनपुरा के जंगल में खोज निकाला. पुलिस को आया देख इमरान ने 315 बोर के तमंचे से पुलिस पर फायर कर दिया, जिस से कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ.

जवाब में पुलिस ने उस के पैर को निशाना बना कर गोली चला दी, जो सीधे इमरान के पैर में लगी. गोली लगते ही इमरान के हाथ से तमंचा छूट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इमरान के पास से पुलिस ने एक तमंचा, एक खोखा कारतूस, 2 जिंदा कारतूस और आलाकत्ल छुरा बरामद कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो पूरा मामला आइने की तरह साफ हो गया. इमरान शाही थाना क्षेत्र के गांव दुनका में रहता था. वह भाड़े पर टाटा मैजिक चलाता था. इस से पहले वह संजय के अस्पताल के मालिक नत्थूलाल के यहां ड्राइवर था. इमरान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. उस के पिता छोटे तांगा चलाते थे. इमरान 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

इमरान के घर से कुछ दूरी पर चांदनी उर्फ मायरा बानो (परिवर्तित नाम) रहती थी. नाम के अनुसार उस के रूप की चांदनी भी लोगों को लुभाती थी. उम्र के 18वें बसंत में चांदनी का यौवन अपने चरम पर था. खूबसूरत देहयष्टि वाली चांदनी युवकों से बात करने में हिचकती थी, वह बातबात में शरमा जाती थी. यौवन द्वार पर आते ही उस में कई परिवर्तन आ गए थे, शारीरिक रूप से भी और सोच में भी. कई युवक उस के आगेपीछे मंडराते थे, लेकिन चांदनी इमरान को पसंद करती थी. इमरान काफी स्मार्ट था, वह उस की नजरों से हो कर दिल में उतर गया था. इमरान भी उस के आगेपीछे मंडराता था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. घर वाले भी एकदूसरे के घर आतेजाते थे.

ऐसे में उन के बीच बातचीत होती रहती थी. लेकिन जब से उन के बीच प्यार के अंकुर फूटने लगे थे, तब से उन के बीच संकोच की दीवार सी खड़ी हो गई थी. जब भी इमरान उस की आंखों के सामने होता तो उस की निगाहें उसी पर जमी रहतीं. चेहरे पर इस की खुशी साफ झलकती थी. इमरान को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल तो वैसे भी चांदनी के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों से एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. दोनों इस बात को महसूस भी करते थे, लेकिन बात जुबां पर नहीं आ पाती थी. शुरू हो गई प्रेम कहानी एक दिन चांदनी जब इमरान के घर गई तो उस समय वह घर में अकेला था. चांदनी को देखते ही इमरान का दिल तेजी से धड़कने लगा.

उसे लगा कि दिल की बात कहने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. इमरान ने उसे कमरे में बैठाया और फटाफट 2 कप चाय बना लाया. चाय का घूंट भर कर चांदनी उस से दिल्लगी करती हुई बोली, ‘‘चाय तो बहुत अच्छी बनी है. बेहतर होगा कहीं चाय की दुकान खोल लो. खूब बिक्री होगी.’’

‘‘अगर तुम रोजाना दुकान पर आ कर चाय पीने का वादा करो तो मैं दुकान भी खोल लूंगा.’’ इमरान ने चांदनी की बात का जवाब उसी अंदाज में दिया तो चांदनी लाजवाब हो गई.

दोनों इसी बात पर काफी देर हंसते रहे, फिर इमरान गंभीर हो कर बोला, ‘‘चांदनी, मुझे तुम से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां, कहो न.’’

‘‘सोचता हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं कि बात क्या है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि अच्छा मानना है कि बुरा.’’

‘‘चांदनी, मैं तुम से दिलोजान से प्यार करता हूं. ये प्यार आज का नहीं बरसों का है जो आज जुबां पर आया है. ये आंखें तो बस तुम्हें ही देखना पसंद करती हैं, तुम्हारे पास रहने से दिल को करार आता है. तुम्हारे प्यार में मैं इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

इमरान के दिल की बात जुबां पर आ गई. सुन कर चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पलकें झुक गईं, होंठों ने कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां ने साथ नहीं दिया. चांदनी की यह हालत देख कर इमरान बोला, ‘‘कुछ तो कहो चांदनी. क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम से प्यार कर के तुम्हारा साथ पा सकूं.’’

‘‘क्या कहना ही जरूरी है, तुम अपने आप को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. सच पूछो तो जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया था. पर डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’ चांदनी ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया तो इमरान खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे सारी दुनिया की दौलत चांदनी के रूप में उस की झोली में आ समाई हो. एक बार दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो फिर उन के मिलनेजुलने का सिलसिला बढ़ गया. अब दोनों रोज गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर मिलने लगे. वहां दोनों एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते. जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई.

इसी बीच चांदनी को पेट दर्द की समस्या हुई तो उस ने इमरान को बताया. इमरान डा. संजय भदौरिया से परिचित था. इसलिए वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के अस्पताल में ले आया. डा. संजय ने चांदनी का चैकअप किया, फिर कुछ दवाइयां लिख दीं, जोकि उन के हौस्पिटल के मैडिकल स्टोर में उपलब्ध थीं, हरिओम ने पर्चे में लिखी दवाइयां दे दीं. चांदनी को देखते और उसे छूते समय संजय को एक सुखद अनूभूति हुई थी. चांदनी की खूबसूरती को देख संजय की आंखें चुंधिया गई थीं, दिल में भी उमंगें उठने लगी थीं. उस दिन के बाद चांदनी संजय के पास दवा लेने के लिए अकेले ही आने लगी. संजय उसे अकेले में देखता और उस से खूब बातें करता. बातोंबातों में उस ने चांदनी को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया. उस ने चांदनी से दवा के पैसे लेना भी बंद कर दिया था.

डा. संजय ने छीना इमरान का प्यार चांदनी भी संजय से खुल कर बातें करती थी. एक दिन संजय ने उस से कहा, ‘‘चांदनी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. लगता है मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.’’

यह कह कर संजय ने चांदनी के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. यह सुन कर चांदनी पल भर के लिए चौंकी, फिर बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में बहुत बड़े हैं और शादीशुदा भी. ऐसे में प्यार मुझ से…’’

‘‘पगली, प्यार उम्र और बंधन को कहां देखता है, जिस से होना होता है, हो जाता है. तुम मुझे अब मिली हो, अगर पहले मिल जाती तो मैं तुम से ही शादी करता. खैर अब वह तो हो नहीं सकता, उस की क्या बात करें. मैं तुम्हारा पूरा ख्याल रखूंगा, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं इमरान से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘इमरान से प्यार कर के तुम्हें क्या मिलेगा? वह एक मामूली इंसान है. तुम्हारी खुशियों का खयाल नहीं रख पाएगा. मेरे पास पैसा है, शोहरत है. मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. हर तरह से…’’

‘‘आप की बात तो सही है लेकिन…’’ दुविधा में पड़ी चांदनी इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई.

‘‘सोच लो, विचार कर लो, वैसे भी जिंदगी के अहम फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. कोई जल्दी नहीं, आराम से सोच कर बता देना.’’

इस के बाद चांदनी अस्पताल से घर लौट आई. उस के दिमाग में तरहतरह के विचार घुमड़घुमड़ रहे थे. इमरान उस का प्यार था लेकिन उस के सिर्फ प्यार से अच्छी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी. अच्छी जिंदगी के लिए पैसों की जरूरत होती है, वह जरूरत संजय से पूरी हो सकती थी. संजय के प्यार को स्वीकार कर के वह अच्छी जिंदगी गुजार सकती थी. आगे चल कर वह उसे शादी के लिए भी मना सकती थी, नहीं तो वह उस की दूसरी बीवी की तरह ताउम्र गुजार सकती थी. चांदनी का मन बदल गया और उस का फैसला संजय के हक में गया था. अगले ही दिन चांदनी संजय के अस्पताल पहुंच कर उस से मिली. उस के चेहरे की खुशी देख कर संजय जान गया था कि चांदनी ने उस का होने का फैसला कर लिया है. फिर भी अंजान बनते हुए उस ने चांदनी से पूछ लिया, ‘‘तो चांदनी, तुम ने क्या सोचा…इमरान या मैं?’’

‘‘जाहिर है आप, आप को न चुनती तो मैं यहां वापस आती भी नहीं.’’ चांदनी ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा. संजय उस का फैसला सुन कर खुश हो गया. उस दिन के बाद से संजय और चांदनी का मिलनाजुलना बढ़ गया. दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. इन नजदीकियों के बाद चांदनी ने इमरान से दूरी बनानी शुरू कर दी. चांदनी का अपने प्रति रूखा व्यवहार देख कर इमरान को उस पर शक हो गया. वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे सारी सच्चाई पता चल गई. इमरान ने बदले की ठान ली  इस बात को ले कर वह चांदनी से तो झगड़ा ही, संजय से भी लड़ा. संजय ने उसे डांटडपट कर वहां से भगा दिया. अपनी प्रेमिका को अपने से दूर जाते देख कर इमरान बौखला गया. वह उस दिन को कोसने लगा जब वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के पास ले गया था.

संजय ने उस की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए उस ने संजय की जिंदगी छीन लेने का फैसला कर लिया. 16/17 सितंबर की रात साढ़े 3 बजे के करीब वह संजय के अस्पताल में घुसा. उस ने संजय को बाहर चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते देखा. वह चारपाई के नजदीक पहुंचा और मच्छरदानी हटा कर साथ लाए छुरे से संजय पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. सोता हुआ संजय चीख तक न सका और उस की मौत हो गई. संजय को मौत के घाट उतारने के बाद इमरान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से अस्पताल से बाहर निकल गया. वहां से जाने के बाद वह रतनपुरा के जंगल में जा कर छिप गया. लेकिन उस का गुनाह तीसरी आंख में कैद हो गया था, जिस के बाद पुलिस को उस तक पहुंचने में देर नहीं लगी.

इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा ने हरिओम को वादी बना कर इमरान के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के अलावा मुठभेड़ के दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करने पर भी उस के खिलाफ धारा 307 का भी मुकदमा दर्ज किया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद इमरान को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

UP Crime News : पति का गला काट रहा था प्रेमी, पत्नी मोबाइल देखकर हंसती रही

UP Crime News : 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी कुसुम की हसरतें उफान पर थीं. ऐसे में उस के पैर बहक गए और उस का झुकाव कलंदर नाम के युवक की ओर हो गया. इस बात का गांव, समाज में विरोध हुआ तो कुसुम ने पति मुकेश को रास्ते से हटाने की ऐसी चाल चली कि…

उस रोज सुबह से ही कुसुम का मन उल्लास से भरा हुआ था. उस की एक खास वजह थी. उस सुबह नाश्ता करने के बाद मुकेश आंगन में हाथ धोने, कुल्ला करने के बाद रोज की तरह सीधे काम पर नहीं गया था. बल्कि अंगोछे से हाथमुंह पोंछते हुए वह रसोई में चला आया था. पास में पति के आते ही रोटी बेल रही कुसुम के हाथ रुक गए. सिर उठा कर उस ने पति को देखा, फिर पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’

मुकेश कुसुम के पास बैठ गया. वह इतनी धीमी आवाज में बोला कि कोई तीसरा न सुन सके, ‘‘हां चाहिए, लेकिन अभी नहीं रात को.’’

इस के बाद वह सीधा खड़ा हुआ, मुसकरा कर दाहिनी आंख दबाई और चला गया. पति की यह शरारत देख कर कुसुम के मन की कलियां खिल गईं. किसी भी पत्नी के लिए समझना बहुत आसान होता है कि रात को पति उस से क्या चाहता है. कुसुम का दिल बागबाग हो गया कि देर से ही सही, पतिदेव की कामनाएं तो जागीं. पूरे दिन कुसुम प्रफुल्लित रही. दौड़दौड़ कर उत्साह से सारे काम करती रही. पड़ोसन ने उस का यह जोश देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है कुसुम, आज बहुत जोश में हो और तुम्हारी खुशी भी छलक रही है.’’

नहाधो कर कुसुम ने सुर्ख साड़ी पहनी, फिर शृंगार किया. उस के बाद शाम होने पर आंगन में बैठ कर अपने पति के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर में मुकेश आ गया. पानी गरम हो गया तो मुकेश नहा लिया. इस के बाद कुसुम ने उसे खाना परोस कर दिया. खाना खाने के बाद मुकेश ने अपनी मासूम बेटी दीक्षा को गोद में उठाया और अपने कमरे में चला गया. कुसुम ने निखरे हुए अपने रूप का बहाने से पति के सामने प्रदर्शन भी किया लेकिन मुकेश के मुख से तारीफ के दो मीठे बोल भी न निकले. खैर, कुसुम ने झटपट जूठे बरतन मांजे और कमरे में पहुंच गई. आजमगढ़ जिले का एक गांव है असाढ़ा. यहीं रहता था मुक्खू. उस के परिवार में पत्नी सुखवती देवी के अलावा 4 बेटियां और इकलौता बेटा मुकेश था.

मुक्खू ने अपनी सभी बेटियों का विवाह कर दिया था, वे सभी अपनी ससुराल में हंसीखुशी से रह रही थीं. इस के बाद इकलौते बेटे मुकेश के विवाह की बारी आई. तो 14 साल पहले करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गोढाव गांव निवासी सुभाष की बेटी कुसुम से मुकेश का विवाह हो गया. कुसुम मायके से ससुराल आ गई. कालांतर में कुसुम ने 3 बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया. परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़े. खेती के नाम पर मुकेश के पास केवल 4 विसवा जमीन थी, उस से कुछ होने वाला नहीं था. मुकेश बढ़ईगिरी का काम भी करता था. लेकिन उसे रोजरोज काम नहीं मिलता था तो वह मनरेगा में मजदूरी का काम करने लगा. काम में व्यस्तता अधिक होने के कारण अगले 2-3 साल में हाल यह हो गया कि थकान और जीवन की एकरसता ने मुकेश को उत्साहहीन कर दिया.

रासरंग में भी उस की रुचि नहीं रह गई. खाना खाने के कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद में सो जाता. कुसुम की ख्वाहिशें मचलती रह जातीं. कामनाओं को काबू में रख पाना कठिन हो जाता. देर रात तक वह गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती. कुसुम असंतोष भरा जीवन जीने लगी थी. कुसुम की उमंगों को एक बार फिर तब पर लगे, जब उस दिन नाश्ता करने के बाद मुकेश रसोई में उस के पास आया था. कुसुम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने सोचा कि वह आज पिछली कसर भी पूरी कर लेगी. उमंगों के हिंडोले में झूलती कुसुम कमरे में पहुंची तो पिताबेटी को सोते हुए देखा. उस रात पति को सोया देख कर कुसुम को झुंझलाहट नहीं हुई बल्कि होंठों पर मुसकान खेलने लगी कि बेटी परेशान न करे, इसलिए उसे सुलातेसुलाते वह खुद भी सो गए. बाकी बच्चे भी दूसरे कमरे में सो चुके थे.

कुसुम ने पति के पास सो रही बेटी को उठा कर अलग सुला दिया. इस के बाद वह स्वयं मुकेश की बगल में आ कर लेट गई और उसे जगाने के लिए प्यार से छेड़ने लगी. मुकेश कच्ची नींद में था. वह कुनमुनाया, ‘‘क्या है…?’’

‘‘और क्या होना है,’’ कुसुम धीमी आवाज में बोली, ‘‘आज रतजगा है.’’

मुकेश ने आंखें खोल कर पत्नी की ओर देखा, उस के बाद फिर से आंखें बंद कर लीं. कुसुम ने हलके से उसे फिर हिलाया, ‘‘मुझे ठीक से देख कर बताओ, कैसी लग रही हूं.’’

‘‘जब से शादी हुई है, तब से देख ही तो रहा हूं.’’

‘‘पहले की छोड़ो, आज की बात करो,’’ कुसुम अपनी सांसों से पति के चेहरे को गरमाने लगी, ‘‘आज मैं ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से शृंगार किया है. देख कर बताओ न कि मैं कैसी लग रही हूं.’’

मुकेश ने ऐसे हावभाव से आंखें खोलीं, मानो कोई आफत टूट पड़ी हो. कुसुम को देखा, फिर टालने के अंदाज में बोला, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

‘‘अच्छी लग रही हूं तो सो क्यों रहे हो,’’ कुसुम ने उसे उकसाया, ‘‘नींद भगाओ और तुम भी कुछ अच्छा करो. इतना अच्छा कि मुझे भी फौरन नींद आ जाए.’’

‘‘क्या करूं…’’

‘‘वही, जो सुबह नाश्ता करने के बाद रात को करने को कह गए थे.’’

‘‘यार, सुबह मन था, अब नहीं है. बहुत थका हूं, मैं सोना चाहता हूं. आज का प्रोग्राम फिर कर लेंगे. तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो.’’

‘‘रात होने का मैं ने भी पूरा इंतजार किया है, इसलिए कैसे सो जाऊं,’’ कुसुम शरारत पर उतारू हो गई. वह उसे बेतहाशा चूमने लगी. मुकेश के तेवर तीखे हो गए. उस ने झल्ला कर पत्नी को कुछ गालियां दीं और उस की ओर पीठ कर ली. पति के व्यवहार से कुसुम की हसरतों पर तो मानो बर्फ पड़ गई. उस ने भी पति की ओर पीठ कर ली. उस रात कुसुम का विश्वास मजबूत हो गया कि वास्तव में उस की किस्मत फूट गई थी. उसी रात कुसुम के विद्रोही मन ने फैसला कर लिया कि यदि उसे यौवन का सुख पाना है तो मुकेश के भरोसे नहीं रहा जा सकता. खुद ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.

अतृप्ति एवं असंतोष के पलों में कुसुम ने जो निर्णय लिया, रात बीतने के बाद उसे भूली नहीं. सुबह होते ही उस की आंखों ने ऐसे साथी को तलाशना आरंभ कर दिया जो उस की हसरतें पूरी कर सके. नियति ने कुसुम को यह अवसर भी दे दिया. असाढ़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर गांव उबारसेपुर है. इसी गांव में 30 वर्षीय कलंदर रहता था. वह अविवाहित था और आटो चलाता था. कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना था. एक दिन चबूतरे पर बैठ कर कलंदर मुकेश से बातें कर रहा था. कुसुम को न जाने क्या सूझा कि खिड़की के पास खड़े हो कर वह उन दोनों की बातें सुनने लगी. खिड़की की ओर मुकेश और कलंदर की पीठ थी. इसलिए दोनों को पता नहीं था कि कुसुम उन की बातें सुन रही है. वे दोनों रसीली बातें कर रहे थे.

कुसुम का यह सोच कर जी जल गया कि रात होते ही मुकेश रूखाफीका हो जाता है और बाहर रसीली बातें करता है, लानत है ऐसे पति पर. बातोंबातों में कलंदर मुकेश से बोला, ‘‘मुकेश, सच कहूं तो तुम मुकद्दर के सिकंदर हो. क्या पटाखा बीवी पाई है, जो देखे देखता रह जाए.’’

यह सुन कर कुसुम का दिमाग कलंदर में उलझ गया. वह सोचने लगी कि निश्चित रूप से कलंदर उस पर दिल रखता होगा, इसीलिए तो वह उसे पटाखा नजर आती है. उस दिन हंसीमजाक में कलंदर का पटाखा कहना कुसुम के मन में एक नई सोच को जन्म दे गया. कुसुम को भी कलंदर अच्छा लगता था. कलंदर कुसुम को भाभी कह कर बुलाता था. देवरभाभी का रिश्ता बनने के कारण कुसुम से हंसीमजाक भी कर लेता था. अलबत्ता उस का दिल कुसुम के लिए बेईमान हो गया. कलंदर को ले कर कुसुम की सोच बदली तो उस के हावभाव भी बदल गए. वह चुपकेचुपके कलंदर से आंखें लड़ाने लगी. कलंदर को कुसुम अपनी तरफ आकर्षित होती हुई महसूस हुई तो वह ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब कुसुम घर में अकेली हो.

एक दिन अश्लील मजाक करतेकरते एकाएक कलंदर ने कुसुम की कलाई पकड़ ली, ‘‘भाभी बहुत तरसा चुकीं, अब तो रहम करो.’’

कुसुम ने नारीसुलभ नखरा किया, ‘‘कलंदर, यह पाप है. इस पाप में न खुद गिरो और न मुझे गिराओ.’’

‘‘भाभी, मुझे आज मत रोको.’’ कहते हुए उस ने कुसुम को बांहों में समेट कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. अपेछा के अनुरूप कुसुम ने मामूली विरोध किया, कुछ नखरे दिखाए. फिर मन का काम होते देख उस ने विरोध और नखरे छोड़ दिए. कलंदर के बाजुओं में कसमसाते हुए बोली, ‘‘जरा ठहरो, दरवाजा तो बंद कर लूं.’’

‘‘तुम्हें छोड़ दिया तो फिर हाथ नहीं आने वाली.’’

‘‘विश्वास करो मैं कहीं भागूंगी नहीं, लौट कर तुम्हारे पास आऊंगी.’’

कलंदर ने कुसुम को बांहों के बंधन से मुक्त कर दिया. कुसुम ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और कलंदर के पास लौट आई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. एक बार सीमाएं टूटीं फिर तो उन का यह रोज का यह नियम बन गया. कुसुम के दिल और तन पर कलंदर के जोश की ऐसी छाप पड़ी कि कलंदर के आगे वह सब कुछ भूल गई. अब जो कुछ था उस के लिए कलंदर ही था. वह भी कुसुम की भावनाओं का पूरा खयाल रखता था. किसी चीज की जरूरत होती तो वह झट से ला देता. कलंदर के लिए दिल में प्यार बढ़ रहा था तो मुकेश के लिए मन में नफरत. 7 मई, 2020 की शाम को कुसुम ने मुकेश से सब्जी लाने को कहा तो मुकेश सब्जी लेने चला गया. लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी मुकेश घर नहीं लौटा तो कुसुम को चिंता हुई. उस ने गांव के प्रधान को सूचना दी. मुकेश को तलाशा गया लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

अगले दिन 8 मई को कुसुम सरायमीर थाने गई और इंसपेक्टर अनिल सिंह को अपने पति के गायब होने की सूचना दी. उस ने पति के गायब होने का आरोप गांव के कुछ लोगों पर लगाया. साथ ही पति के गायब होने की सूचना मीडिया को भी दे दी. मीडिया में मामला तूल पकड़ा तो पुलिस भी सक्रिय हो कर मुकेश को तलाशने लगी. 9 मई को लोगों ने मुकेश की लाश नरईपुर पुल के पास पड़ी देखी. कुसुम को इस की सूचना दे दी गई. प्रधान मौके पर पहुंचा तो उस ने घटना की सूचना सरायमीर थाने को दे दी. सूचना पर इंसपेक्टर अनिल सिंह दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश झाडि़यों में औंधे मुंह पड़ी थी. मृतक की गरदन पर तेज धारदार हथियार से काटने के निशान मौजूद थे. डौग स्क्वायड को मौके पर बुलाया गया. इंसपेक्टर सिंह ने कुसुम और मृतक की मां सुखवती से जरूरी पूछताछ की.

इस के बाद उन्होने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और सुखवती की ओर से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम से पूछताछ की तो उस ने गांव के कुछ लोगों पर आरोप लगाया कि वे लोग उस के पति से दुश्मनी मानते थे. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह ने गांव के लोगों व प्रधान से पूछताछ की तो केस की गुत्थी सुलझने लगी. इंसपेक्टर अनिल सिंह को पता चला कि कुसुम के उबारसेपुर गांव के कलंदर के साथ अवैध संबंध थे. यह भी पता चला कि इस मामले को ले कर गांव में पंचायत भी हुई थी. गांव के जिन लोगों ने पंचायत में कुसुम और कलंदर का विरोध किया था, कुसुम ने उन पर ही मुकेश की हत्या का आरोप लगाया था. इस का मतलब यह था कि सारा रचारचाया खेल कुसम और कलंदर का है, मुकेश की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है.

इस के बाद इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम और कलंदर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में दोनों की रोज घंटों बात करने के साक्ष्य मिले. घटना की रात भी कलंदर के नंबर से कुसुम के नंबर पर काल की गई थी. जिस समय कलंदर ने काल की थी उस के नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल की थी. पुख्ता साक्ष्य मिलते ही इंसपेक्टर अनिल सिंह ने 11 मई को कुसुम और कलंदर को गिरफ्तार कर लिया. थाने में ला कर जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए घटना में शामिल साथियों के नाम भी बता दिए. घटना में साथ देने वालों में कलंदर की बहन शकुंतला, रविंद्र उर्फ छोटू, बिरेंद्र उर्फ करिया व धीरेंद्र निवासी गांव ऊदपुर और मिथिलेश उर्फ पप्पू निवासी महराजपुर थे.

इन सभी को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद मुकेश की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार निकली—

कुसुम से संबंध बन गए तो कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना भी बढ़ गया. इस से उन के संबंध गांव वालों से छिपे न रह सके. गांव वालों ने इस का विरोध करना शुरू कर दिया. इतने पर भी ये दोनों नहीं माने तो गांव में इस को ले कर पंचायत बुलाई गई. पंचायत में कलंदर के गांव आने पर पाबंदी लगा दी गई. इस से कुसुम बिफर पड़ी. मुकेश ने उस की लानतमलानत की तो उस की नफरत ने विद्रोह का रूप ले लिया. कुसुम वैसे भी कलंदर की हो चुकी थी और शादी कर के उस के साथ घर बसाना चाहती थी. ऐसे में कुसुम और कलंदर ने मुकेश की हत्या करने का फैसला कर लिया.

4 फरवरी, 2020 को कुसुम के मायके में शादी थी. वहां पर कलंदर और कलंदर की बहन शकुंतला भी मौजूद थी, वहीं पर मुकेश को मारने का प्लान बना. इस के बाद शकुंतला के घर पर कुसुम और कलंदर बैठे. वहीं पर शकुंतला ने अपने देवरों रविंद्र, वीरेंद्र, धीरेंद्र और उन के साथी मिथलेश को बुला लिया. ये सभी कुछ पैसों के लालच में उन का साथ देने को तैयार हो गए थे. सभी ने साथ बैठ कर यह समझा कि प्लान को कैसे अमल में लाना है. 5 मई को मुकेश की हत्या करने के इरादे से सभी निकले लेकिन अचानक आंधीबारिश आने के कारण प्लान टल गया. फिर 7 मई की शाम को प्लान के मुताबिक कुसुम ने मुकेश को सब्जी लाने के लिए भेज दिया.

शाम साढ़े 6 बजे मुकेश पोखरा पहुंचा तो वहां कलंदर, शकुंतला और उस के साथी एक टैंपो में पहले से बैठे थे. कलंदर ने तेरही खाने के लिए चलने की बात कह कर मुकेश को टैंपो में बैठा लिया. मुकेश को सभी के साथ ले कर छित्तेपुर गया. वहां शराब खरीद कर मुकेश को पिलाई और खुद पी. सभी अंधेरा होने का इंतजार कर रहे थे. योजना के मुताबिक सभी लोग अपने मोबाइल अपने घरों में ही रख कर आए थे, केवल कलंदर ही अपना मोबाइल साथ लाया था. अपने मोबाइल से वह कुसुम को लगातार काल कर रहा था. कुसुम अपने पति को मौत के मुंह में भेजने को बहुत आतुर थी. वह कलंदर के साथ में तो नहीं थी. लेकिन उस से फोन पर पलपल की जानकारी ले रही थी. उन के बीच क्या बात हो रही है, यह भी कुसुम सुन रही थी. एक बीवी अपने ही पति के मर्डर का लाइव ब्राडकास्ट सुन रही थी.

रात साढे़ 8 बजे सभी मुकेश को टैंपो से ले कर तेजपुर में मघई नदी पर नरईपुर पुल के पास पहुंचे. मुकेश को नीचे उतारा और मुकेश की गले में गमछा डाल कर दबाने में सभी टूट पड़े. नशे की हालत में मुकेश की आंखें बंद हो गईं और वह बेसुध हो गया. सभी उसे मरा हुआ समझ कर झाडि़यों में छिपा आए. इस के बाद कलंदर ने कुसुम से बात की तो कुसुम ने कहा कि वह मुकेश का चाकू से गला काटे, जिस से वह उस के चीखने की आवाजें सुन सके. इस पर वापस पहुंच कर कलंदर ने जैसे ही मुकेश की गरदन पर चाकू रखा. मुकेश चिल्ला उठा. सभी ने उस को दबोचा तो कलंदर कसाई की तरह मुकेश का गला चाकू से रेतने लगा, इस से मुकेश की चीखें निकलने लगीं, जिसे मोबाइल पर सुन कर कुसुम ठहाके मार कर हंसती रही.

मुकेश को मौत के घाट उतारने के बाद कलंदर ने मुकेश का मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल लिया और उसे ले कर काफी देर तक इधरउधर घूमता रहा. इस के बाद कुसुम अपने मोबाइल से बात न हो पाने का बहाना बना कर आसपड़ोस के लोगों से मोबाइल ले कर मुकेश के मोबाइल पर फोन मिलाती, दूसरी ओर से कलंदर मुकेश बन कर उस से बात करता. बात करने के बाद कुसुम उन्हें मोबाइल वापस कर देती और कह देती कि मेरे पति कह रहे हैं कि कुछ देर में वापस आ जाएंगे. कुसुम पड़ोसियों को दिखाने के लिए यह नाटक कर रही थी. देर रात योजनानुसार कुसुम प्रधान के पास गई और पति के गायब होने की सूचना दी. अगले दिन थाने जा कर उस ने पति की गुमशुदगी लिखाई लाश मिलने पर वह बराबर पंचायत में कलंदर और उस का विरोध करने वालों पर मुकेश की हत्या का आरोप लगाती रही.

वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहती थी. मुकेश को रास्ते से हटाने के बाद उस की हत्या करने के आरोप में अपने विरोधियों को जेल भेजना चाहती थी. लेकिन उस की चाल धरी की धरी रह गई. पति की हत्या के समय चीखें सुनना उसे भारी पड़ गया. इंसपेक्टर अनिल सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू व टैंपो और कुसुम, कलंदर और मुकेश का मोबाइल बरामद कर लिए. मुकदमे में धारा 147/404/34 और बढ़ा दी गईं. सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सातों अभियुक्तों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.द

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttarakhand Crime : प्रेमी संग मिलकर पत्नी ने किया पति का कत्ल, बताया जिन्न का साया था वजह

Uttarakhand Crime : लोकडाउन के दौरान कत्ल के कई ऐसे मामले आए जिन में आरोपियों ने कोरोना का बहाना बना कर हत्या के आरोप से बचने की कोशिश की. बबली ने इस से भी चार कदम आगे निकल कर बताया कि उस के पति बालेश पर रात में जिन्न आता था, जो उस की और बेटे अरुण की पिटाई करता था. उन दोनों ने मिल कर जिन्न की…

उस दिन अगस्त 2020 की 20 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. हरिद्वार जिले के थाना भगवानपुर के थानाप्रभारी संजीव थपलियाल थाना स्थित अपने आवास में थे और औफिस आने के लिए तैयार हो रहे थे. तभी थाने के संतरी ने आ कर सूचना दी कि गांव खुब्वनपुर की लाव्वा रोड पर एक आदमी का कत्ल हो गया है. उस की लाश सब्जी के एक खेत में पड़ी है. सुबहसुबह कत्ल की सूचना पा कर थपलियाल का मन कसैला हो गया. वह तुरंत थाने आए पुलिस टीम को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस कत्ल की सूचना सीओ अभय प्रताप सिंह, एसपी (देहात) एस.के. सिंह और एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को दे दी. इस के बाद थपलियाल अपने साथ खुब्वनपुर क्षेत्र के इंचार्ज थानेदार मनोज ममगई सहित मौके पर पहुंच गए.

थपलियाल मौके पर पहुंचे तो वहां ग्रामीणों की भीड़ जमा थी. पुलिस को देख कर भीड़ तितरबितर हो गई. थपलियाल ने शव पर नजर डाली. वह 47-48 साल का अधेड़ व्यक्ति था, जिस का गला 2 जगह से कटा हुआ था. उस के कपड़े खून से सने थे. वहां मौजूद लोगों में से एक ग्रामीण ने मृतक की शिनाख्त कर दी थी. उस ने बताया कि मृतक ग्राम खुब्वनपुर के पूर्व प्रधान ब्रह्मपाल का भाई बालेश है. पुलिस ने तुरंत ब्रह्मपाल के घर सूचना भिजवा दी. इस के बाद थपलियाल ने वहां खड़े ग्रामीणों से बालेश के बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. जब वे जानकारी ले रहे थे, तभी वहां सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने भी थपलियाल व ग्रामीणों से बालेश की हत्या की बाबत जानकारी ली और थपलियाल को आवश्यक निर्देश दे कर चले गए.

थपलियाल ने थानेदार मनोज ममगई को बालेश के शव का पंचनामा भरने को कहा और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की एक टीम बालेश के घर भेजी दी. प्राथमिक काररवाई कर के पुलिस ने बालेश का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस खुब्वनपुर स्थित बालेश के घर पहुंची और उस की पत्नी बबली व उस के बेटे अरुण से पूछताछ की. बबली ने बताया कि बालेश बीती रात खाना खा कर बीड़ी पीने के लिए पड़ोस में गया था, इस के बाद वह वापस नहीं लौटा. वह रात भर उस का इंतजार करती रही थी. बबली ने बताया कि पिछले 2 सालों में बालेश पर 2 बार हमला हो चुका था.

पुलिस ने उस समय जब इन हमलों की जांच की थी, तो मामला पारिवारिक निकला था. पूछताछ के दौरान थपलियाल ने पाया कि बबली व अरुण के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. लगता था, वे पुलिस से कुछ छिपा रहे हैं. इस के बाद पुलिस ने बालेश की हत्या का मामला धारा 302 के तहज दर्ज कर के जांच शुरू की दी. सब से पहले थपलियाल ने बालेश के परिवार की सुरागरसी व पतारसी करने के लिए सादे कपड़ों में 2 पुलिसकर्मी खुब्वनपुर में तैनात कर दिए. अगले दिन उन दोनों ने जो जानकारी थपलियाल को दी, उसे सुन कर वह चौंके. जानकारी यह थी कि 25 साल पहले बालेश की शादी पास के ही गांव भक्तोवाली निवासी बबली से हुई थी. जिस से उसे 6 संतान हुईं. बालेश व बबली का बड़ा बेटा अरुण है. बालेश के पास मात्र 7 बीघा खेती की जमीन थी. घर का खर्च चलाने के लिए बबली नौकरी ढूढने लगी.

3 साल पहले बबली को घर से 3 किलोमीटर दूर सिकंदरपुर स्थित मां दुर्गा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई थी. दूसरी ओर बालेश अकसर नशा कर के बबली व अपने बेटे अरुण से मारपीट करता रहता था. इसी बीच बबली की दोस्ती फैक्ट्री के एक सहकर्मी लाल सिंह से हो गई थी. बबली अपने पति बालेश से खासी परेशान थी. कुछ समय बाद लाल सिंह और बबली के बीच अवैध संबंध बन गए थे. लालसिंह अकसर बालेश के घर आने जाने लगा था. जब लालसिंह का ज्यादा आनाजाना बढ़ गया, तो इस की चर्चा गांव में आम हो गई. पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तो थी कि बालेश अपनी बीबी बबली व बेटे अरुण की अकसर रात में मारपीट करता है,

मगर जब पड़ोसियों को इस बात की जानकारी हुई कि बबली के साथ फैक्ट्री में काम करने वाले लाल सिंह के उस से अवैध संबंध है तो गांव में कानाफूसी होने लगी. कुछ समय बाद दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी बालेश को भी हो गई थी. एक दिन बालेश ने अपने घर पर आए लाल सिंह को घर आने के लिए मना कर दिया और बबली को भी फटकारा. इस के बाद लाल सिंह के घर न आने से बबली खोईखोई सी रहने लगी थी. एक दिन लाल सिंह व बबली फैक्ट्री के बाहर मिले और उन्होंने अपने रास्ते के रोड़े बालेश को हटाने की योजना बनानी शुरू कर दी. योजना के तहत बबली ने गांव में यह कहना शुरू कर दिया था कि उस के पति बालेश पर जिन्न का साया है और जिन्न रात को आता है.

जिन्न के सवार होने पर बालेश उसे व उस के बेटे को मारतापीटता है. इस के बाद अरुण को भी अपने बाप बालेश पर संदेह होने लगा था कि सचमुच उस के बाप पर जिन्न का ही साया है. अरुण पास ही एक दूसरी फैक्ट्री में कर्मचारी था. वह भी मां के कहने पर विश्वास करने लगा था और उसे बाप से नफरत हो गई थी. गांव खुब्वनपुर के गांव वालों को यह संदेह था कि बालेश की हत्या के तार बबली व लाल सिंह से कहीं न कहीं जुडे़ हुए हैं. इस बारे में थानाप्रभारी संजीव थपलियाल को सटीक सूचना मिली थी, अत: उन्होंने बालेश की हत्या के मामले में उस की पत्नी बबली को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पूछताछ के दौरान बबली पुलिस को इतना ही बता पाई कि बालेश घटना वाले दिन खाना खा कर बीड़ी पीने के लिए पड़ोस में गया था और रात भर वापस नहीं लौटा था. उसे सुबह पुलिस द्वारा उस की हत्या की सूचना मिली थी.

बालेश की हत्या के बारे में बबली से कोई सूत्र न मिलने पर सीओ अभय प्रताप सिंह ने थपलियाल को लाल सिंह व बबली के मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाने को कहा. जब दोनों के मोबाइलों की लोकेशन व कालडिटेल्स पुलिस को मिली, तो पुलिस को यकीन हो गया कि बालेश की हत्या में दोनों शामिल हैं. इस के बाद थपलियाल ने लाल सिंह निवासी ग्राम बढेड़ी थाना भगवानपुर को बालेश की हत्या के बारे में पूछताछ के लिए बुलवाया और उस से पूछताछ करने लगे. पहले तो लाल सिंह पुलिस को गच्चा देने का प्रयास करता रहा, मगर जब थपलियाल ने उस से बालेश की हत्या वाले दिन उस की मौजूदगी के सवाल पूछे, तो वह टूट गया. उस ने पुलिस के सामने बालेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

लाल सिंह द्वारा बालेश की हत्या की कबूल करने की सूचना पा कर बालेश का पूर्व प्रधान भाई ब्रह्मपाल, सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी थाना भगवानपुर पहुंच गए थे. पूछताछ के दौरान लाल सिंह ने पुलिस को बताया कि कई सालों से वह और बबली फैक्ट्री में साथसाथ काम करते थे. उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. बबली अकसर मुझ से कहती रहती थी कि मेरा पति बालेश मुझ से तथा मेरे बच्चों से मारपीट करता है. मुझ पर शक करते हुए घर का खर्च भी नहीं देता है. इस के बाद मैं और बबली बालेश की हत्या की योजना बनाने लगे. 19 अगस्त, 2020 को मैं ने एक स्थानीय मैडिकल स्टोर से नींद की 20 गोलियों की स्ट्रिप खरीदी थी, जो बबली को दे दिया था.

उसी रात को बबली ने मुझे मोबाइल पर बताया कि उस ने बालेश को नींद की 10 गोलियां खाने में डाल कर खिला दी हैं और वह घर में बेहोश पड़ा है. फिर मैं तुरंत बाइक से बबली के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर मैं ने व बबली ने कमरे में बेहोश पड़े बालेश का गला घोंट कर मार डाला. बालेश की हत्या करने के बाद बबली व उस के बेटे अरुण के सहयोग से मैं ने बालेश की लाश को एक बोरे में डाल दिया. लाश वाले बोरे को ले कर वह और अरुण लाव्वा रोड पर एक सब्जी के खेत में फेंक कर अपनेअपने घर चले गए. पुलिस ने लालसिंह के बयान दर्ज कर लिए थे. तभी पुलिस बबली व उस के बेटे अरुण को भी थाने ले आई. बबली व अरुण ने जब हवालात में बंद लालसिंह को देखा, तो सारा माजरा समझ गए. उन दोनों ने अपने बयानों में लालसिंह के ही बयानों का समर्थन करते हुए बालेश की हत्या का सच पुलिस को बता दिया.

बबली ने पुलिस को जानकारी दी कि वह रोजरोज की मारपीट से परेशान थी. उस के मन में बालेश के प्रति नफरत पैदा हो गई थी.

जब लाल सिंह व अरुण बालेश के शव को सब्जी के खेत में फेंक कर वापस आ गए थे, तो भी मुझे चैन नहीं था. इस के बाद मैं खुद अपने बेटे अरुण के साथ दरांती ले कर उस जगह पर गई, जहां बालेश की लाश पड़ी थी. वहां पहुंच कर मैं ने ही दरांती से बालेश का गला रेता था. अपने बेटे को बता रखा था कि बालेश पर जिन्न का साया है, जिस की वजह से वह हम लोगों से मारपीट करता है. मैं ने अपनी इस योजना में अरुण को भी शामिल कर लिया था. बबली के बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी संजीव थपलियाल ने लाल सिंह, बबली व अरुण को बालेश की हत्या के आरोप में भादंवि की धाराओं 302, 201 व 34 के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. ने कोतवाली सिविललाइन रुड़की में प्रैसवार्ता के दौरान बालेश हत्याकांड का परदाफाश किया और तीनों आरोपियों कोे मीडिया के सामने पेश किया. पति पर जिन्न का सांया है इसलिए पत्नी ने कराई पति की हत्या

प्रैसवार्ता में एसएसपी द्वारा 24 घंटे में बालेश हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की. पुलिस ने हत्याकांड के आरोपियों लाल सिंह, बबली व अरुण का मैडिकल कराने के बाद उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. तीनों आरोपी अपने बुने जाल में फंस गए. इन तीनों की प्लानिंग थी कि बालेश को नींद की गोलियां खिला कर उस का गला दबा कर हत्या कर देंगे. बालेश की हत्या के बाद समाज के लोगों से कह देंगे कि वह बुखार से पीडि़त था, हो सकता है कोरोना वायरस से पीडि़त रहा होगा. कुछ समय बाद लोग बालेश की मौत को भूल जाएंगे. पुलिस ने बालेश की हत्या में इस्तेमाल बाइक, नींद की गोलियों का रैपर तथा बालेश के शव को ले जाने वाले बोरे को बरामद कर लिया. बालेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत कारण गला घोंटा जाना तथा धारदार हथियार से गला कटने से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Suicide : प्रेमी संग मिलकर पुलिस की गाड़ी में विवाहिता ने खाई कीटनाशक की चार गोलियां

Suicide : पारुल और विकास का अपने जीवनसाथियों से मोहभंग हो गया था, इसलिए दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. उन्हें क्या पता था कि उन का प्यार इतना जहरीला है कि उस का जहर…

पारुल और विकास के बीच नईनई जानपहचान हुई थी. दोनों ही ठाकुरगंज के होम्योपैथी अस्पताल में साफसफाई का काम करते थे. वैसे तो दोनों की मुलाकात कम ही होती थी, क्योंकि दोनों के काम करने का समय अलगअलग था. जब से दोनों के बीच एकदूसरे के प्रति लगाव बढ़ा था, समय निकाल कर दोनों मिलने और बातचीत करने की कोशिश करते थे. पारुल ने विकास को अपने बारे में सच बता दिया था. विकास के साथ उस का ऐसा लगाव था कि वह उस से कोई बात छिपाना नहीं चाहती थी. एक दिन पारुल अपने बारे में बता रही थी और विकास उस की बातें सुन रहा था. पारुल बोली, ‘‘मेरी शादी को 14 साल हो गए. कम उम्र में शादी हो गई थी. मेरे 3 बच्चे भी हैं. मैं सोचती हूं कि जब हम दोस्ती कर रहे हैं तो एकदूसरे की हर बात को समझ लें.

‘‘मेरे पति तो जेल में हैं. ससुराल वालों से मेरा कोई संपर्क नहीं रह गया है. मैं अपने 3 बच्चों का पालनपोषण अपनी मां के पास रह कर करती हूं.’’

शाम का समय था. विकास और पारुल ठाकुरगंज से कुछ दूर गुलालाघाट के पास गोमती के किनारे बैठे थे. दोनों ही एकदूसरे से बहुत सारी बातें करने के मूड में थे. दोनों को कई दिनों बाद आपस में बात करने का मौका मिला था.

‘‘तुम्हारी शादी हो चुकी है तो मैं भी कुंवारा नहीं हूं. मैं बरेली से यहां नौकरी करने आया था. मेरी शादी 8-9 महीने पहले हुई है. शादी के कुछ महीने बाद से ही पत्नी के साथ मेरे संबंध ठीक नहीं रहे. मैं 5 महीने से अलग रह रहा हूं.

‘‘मेरी पत्नी की भी मेरे साथ रहने की कोई इच्छा नहीं है. ऐसे में मैं उस के साथ रहूं या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता.’’ पारुल की बातें सुन कर विकास ने कहा.

‘‘आप की शादी तो पिछले साल ही हुई है, फिर भी आप पत्नी को छोड़ मुझे पसंद करते हैं. ऐसा क्यों?’’ पारुल ने विकास से पूछा.

‘‘शादी के बाद से ही पत्नी से मेरे आत्मिक संबंध नहीं रह सके. पतिपत्नी होते हुए भी ऐसा लगता था जैसे हम एकदूसरे से अनजान हैं. जब से आप मिलीं, आप से अपनापन लगने लगा. मैं अपनी पत्नी के साथ खुश नहीं हूं. हम दोनों ही अलग हो जाना चाहते हैं.’’ विकास ने पारुल की बात का जबाव दिया. विकास बरेली जिले के प्रेम नगर का रहने वाला था. वह नौकरी करने लखनऊ आया था. रश्मि के साथ उस की शादी 2018 के जून में हुई थी. 4-5 महीने दोनों साथ रहे, पर इस के बाद वह पत्नी से अलग रहने लगा. पारुल और विकास की मुलाकात साल 2019 के जून में हुई थी. शुरुआती कई महीनों तक दोनों में बातचीत नहीं होती थी. दोनों बस एकदूसरे को देखते रहते थे.

जब बातचीत होने लगी और एकदूसरे की पंसद नापसंद पर बात हुई तो पहले पारुल ने खुद को शादीशुदा बताया. तब विकास ने हंसते हुए कहा, ‘‘शादीशुदा तो मैं भी हूं. लेकिन बच्चे नहीं हैं. हमारी शादी पिछले साल हुई थी.’’

जब पता चला कि दोनों ही शादीशुदा हैं तो वे निकट आने लगे. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के साथ खुश नहीं थे. पारुल का पति रिंकू आटोरिक्शा चलाता था. शादी के 7 साल बाद परिवार में हुई हत्या में रिंकू को जेल हो गई. उस समय तक पारुल के 3 बच्चे मुसकान, पवन और गगन हो चुके थे. पति के जेल जाने के बाद उस की सुसराल वालों ने उस से संबंध नहीं रखे. पारुल अपने बच्चों को ले कर अपनी मां सुषमा के साथ रहने लगी. वहीं पर पारुल ने अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा दिया. अब पारुल पर मां का दबाव रहता था. वह उस की एकएक गतिविधि पर पूरी नजर रखती थी. इधर धीरेधीरे पारुल और विकास के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. सही मायनों में दोनों ही एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगे थे. एकदूसरे के साथ दोनों का पूरी तरह से तालमेल बैठ गया था. कभी साथ घूमने जाते तो कभी एक साथ फिल्म देखते.

जब पारुल की मां को जानकारी मिली तो उस ने पारुल को समझाया और ऐसे संबंधों से दूर रहने को कहा. पर पारुल मानने को तैयार नहीं थी.  कुछ दिन बाद दोनों फिर मिलने लगे. पारुल की मां सुषमा को लग रहा था कि विकास उन की बेटी को बहका कर अपने साथ रखता है. पारुल और विकास के संबंधों को ले कर मोहल्ले के लोगों और नातेरिश्तेदारों में भी चर्चा होने लगी थी. दूसरी ओर पारुल को विकास के साथ संबंधों की लत लग चुकी थी. वह किसी भी स्थिति में विकास से दूर नहीं रहना चाहती थी. विकास भी पूरी तरह पारुल का दीवाना हो चुका था. जब पारुल की मां और करीबी रिश्तेदारों का दबाव पड़ने लगा तो दोनों ने लखनऊ छोड़ने का फैसला कर लिया.

पारुल के सामने सब से बड़ी परेशानी उस के बच्चे थे. प्यार के लिए पारुल ने उन का मोह भी छोड़ दिया. उस ने विकास से कहा, ‘‘अब हम साथ रहेंगे. हमारे बच्चे भी हमारे बीच में नहीं आएंगे. हम लोग यहां से कहीं दूर चलेंगे. बच्चे यहीं रहेंगे. जब समय ठीक होगा, तब हम वापस आ कर बच्चों को अपने साथ रख लेंगे.’’

विकास ने फैसला किया कि वह पारुल को ले कर अपने घर बरेली चला जाएगा. दिसंबर, 2019 की बात है. पारुल और विकास लखनऊ छोड़ कर बरेली चले आए. यहां दोनों साथ रहने लगे. पारुल के लखनऊ छोड़ने का सारा ठीकरा उस की मां सुषमा ने विकास के ऊपर फोड़ दिया. सुषमा ने लखनऊ की कृष्णानगर कोतवाली में जा कर एक प्रार्थनापत्र दिया और विकास पर अपनी बेटी पारुल को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया. पुलिस ने प्रार्थनापत्र रख लिया. पुलिस ने रिपोर्ट लिखने की जगह एनसीआर दर्ज की. पुलिस का मानना था कि पारुल बालिग है, 3 बच्चों की मां है और अपना भलाबुरा समझती है. वह जहां भी गई होगी, अपनी मरजी से गई होगी.

कई माह बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो पारुल की मां सुषमा ने कोर्ट की शरण ली. 14 अगस्त, 2020 को कोर्ट ने पुलिस को धारा 498 और 506 के तहत मुकदमा कायम करने का आदेश दिया. पुलिस ऐसे मामलों की विवेचना 155 (2) के तहत करती है. इस में किसी तरह का कोई वारंट जारी नहीं होता. पुलिस दोनों को कोर्ट के सामने पेश करती है, जहां दोनों कोर्ट के सामने बयान देते हैं. कोर्ट अपने विवेक से फैसला देती है. 20 सितंबर, 2020 की रात लखनऊ के थाना कृष्णानगर के दरोगा भरत पाठक एक सिपाही और विकास व पारुल के 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर बरेली गए. पुलिस रात में ही पारुल और विकास को कार से ले कर लखनऊ वापस लौटने लगी.

पुलिस द्वारा लखनऊ लाए जाने की बात पारुल और विकास को पता चल चुकी थी. उन के मन में भय था कि लखनऊ ले जा कर पुलिस दोनों को अलग कर देगी, जेल भी भेज सकती है. पारुल ने अपने पति को देखा था. हत्या के आरोप में 8 साल बाद भी वह जेल से बाहर नहीं आ सका था. विकास सीधासादा था, उसे भी पुलिस, जेल और कचहरी के चक्कर से डर लग रहा था. ऐसे में दोनों ने फैसला किया कि वे साथ रह नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं. रात के समय जब पुलिस ने लखनऊ चलने के लिए कहा तो दोनों ने तैयार होने का समय मांगा. पारुल ने अपने पास कीटनाशक दवा की 4 गोली वाला पैकेट रख रखा था. दोनों कपड़े पहन कर वापस आए तो पुलिस ने पारुल की तलाशी नहीं ली.

पुलिस की दिक्कत यह थी कि वह अपने साथ कोई महिला सिपाही ले कर नहीं आई थी, जिस से उस की तलाशी नहीं ली जा सकी. पुलिस ने पारुल विकास को अर्टिगा गाड़ी में बैठाया और बरेली से लखनऊ के लिए निकल गई. आगे की सीट पर दारोगा भरत पाठक और एक सिपाही बैठा था. पीछे वाली सीट पर विकास और पारुल को बैठाया गया था, जबकि बीच की सीट पर दोनों के रिश्तेदार बैठे थे. गाड़ी बरेली से चली तो रात का समय था. ड्राइवर को छोड़ कर सभी लोग सो गए. अपनी योजना के मुताबिक पारुल और विकास ने कीटनाशक की 2-2 गोलियां खा लीं. कुछ ही देर में दोनों को उल्टी होने लगी. पुलिस वालों को लगा कि गाड़ी में बैठ कर अकसर कई लोगों को उल्टी होेने लगती है, शायद वैसा ही कुछ होगा.

जब गाड़ी सीतापुर पहुंची तो सो रहे लोगों की नींद खुली. पीछे की सीट से उल्टी की बदबू आ रही थी. आगे की सीट पर बैठे लोगों ने पारुल और विकास को आवाज दी, पर दोनों में से कोई नहीं बोला. पास से देखने पर पता चला दोनों बेसुध हैं. दोनों की तलाशी ली गई. उन के पास कीटनाशक दवा का एक पैकेट मिला, जिस में 2 गोलियां शेष बची थीं. इस से पता चल गया कि दोनों ने वही दवा खाई है. लखनऊ पहुंच कर पुलिस दोनों को ले कर लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंची, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. दो प्रेमियों के आत्महत्या करने का मसला पूरे लखनऊ में चर्चा का विषय बन गया. शुरुआत में विकास और पारुल के घर वालों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया. बाद में उन्हें भी लगा कि पुलिस, कचहरी और कानून के डर से पारुल और विकास ने आत्महत्या की है.

विकास और पारुल दोनों ही बालिग थे. अपना भलाबुरा समझते थे. परिवार वालों ने अगर आपसी सहमति से समझाबुझा कर फैसला लिया होता तो दोनों को यह कदम नहीं उठाना पड़ता. इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की प्रताड़ना प्रेमीजनों के मन में भय पैदा कर देती है. पुलिस, समाज और कचहरी के भय से प्रेमी युगल ऐसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में समाज और कानून दोनों को संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Crime : दामाद ने संपत्ति हड़पने के लिए सास, ससुर और सालियों की डंडे से पीट कर की हत्या

Family Crime : नरेंद्र गंगवार बेहद शातिर इंसान था. सब से पहले उस ने हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती को फांस कर उस से लवमैरिज की. फिर ससुर की संपत्ति हड़पने के लिए ससुराल के सभी लोगों की हत्या कर उन्हें घर में ही दफना दिया. 15 महीने बाद जब इस सनसनीखेज राज से परदा…

25 अगस्त, 2020 को नरेंद्र गंगवार अपने ससुर हीरालाल के पैतृक गांव पैगानगरी पहुंचा. यह गांव बरेली जिले की तहसील मीरगंज के अंतर्गत आता है. गांव पहुंचते ही वह हीरालाल के नाती दुर्गा प्रसाद से मिला. उस ने दुर्गा प्रसाद को बताया कि वह अपने ससुर की जमीन की पैदावार की बंटाई का हिस्सा लेने आया है. दरअसल, इस गांव में हीरालाल की 16 बीघा जमीन थी जो उन्होंने बंटाई पर दे रखी थी. वह खेती की पैदावार का हिस्सा लेने गांव आते रहते थे. दुर्गा प्रसाद नरेंद्र को अच्छी तरह जानते थे. हीरालाल दुर्गा प्रसाद के रिश्ते के नाना लगते थे. नरेंद्र कई बार अपने ससुर के साथ गांव आया था. दुर्गा प्रसाद ने उस से नाना की कुशलक्षेम पूछी.

इस पर नरेंद्र ने कहा, ‘‘दुर्गा प्रसादजी, बहुत ही दुखद खबर है. आप के नाना हीरालालजी अब इस दुनिया में नहीं रहे. 22 अप्रैल, 2020 को उन की मंझली बेटी दुर्गा और हीरालालजी ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लौकडाउन के चलते हम किसी को उन की मृत्यु की खबर तक नहीं दे पाए. कोरोना महामारी के चलते मैं ने अपनी बीवी लीलावती, किराएदार विजय व कुछ अन्य लोगों के सहयोग से नारायण नंगला किचा नदी में उन का दाहसंस्कार करा दिया था. पति के वियोग में उन की पत्नी हेमवती भी अपनी बेटी पार्वती को ले कर अचानक कहीं चली गईं. मैं ने और लीलावती ने उन्हें सब जगह ढूंढा, लेकिन उन का भी कहीं पता न चल सका.’’

हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर दुर्गा प्रसाद को झटका लगा. वहां बैठे गांव के कई लोग भी हैरत में पड़ गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो इंसान अपनी औलाद के सुनहरे भविष्य का सपना ले कर गांव छोड़ शहर जा बसा था, उस का परिवार इस तरह टूट कर बिखर जाएगा. हीरालाल के मरने की खबर सुन कर गांव के लोग तरहतरह की बातें करने लगे. दुर्गा प्रसाद को बहुत दुख हुआ. लेकिन एक बात उन की समझ में नहीं आ रही थी कि जब पति और बेटी खत्म हो गए तो हेमवती को अपनी बेटी को साथ ले कर कहीं चली गई. अगर उसे वहां से जाना था तो गांव में उस के पति की 16 बीघा जमीन पड़ी थी, जिस के सहारे हीरालाल के घर का खर्च चलता था. गांव में उस का मकान भी था. वह गांव आ कर रह सकती थी.

उसी समय नरेंद्र ने दुर्गाप्रसाद को बताया कि ससुर के घर के पास ही मेरा भी मकान है. जिस पर एकमात्र बची बेटी लीलावती का मालिकाना हक कराने के लिए मुझे हीरालालजी के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत है. आप लोग उन के परिवार के लोग हो, यह काम आप ही करा सकते हो. दुर्गा प्रसाद को विश्वास नहीं हुआ नरेंद्र की बात सुनते ही दुर्गा प्रसाद का दिमाग घूम गया. उन्हें उस की बात में कुछ झोल नजर आया. दुर्गा प्रसाद ने यह बात हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन के घर जा कर उन्हें बताई. साथ ही नरेंद्र की बातों पर कुछ शक भी जाहिर किया. यह बात सुन कर कुंवर सैन ने उसे बंटाई का हिस्सा देने से भी साफ मना कर दिया तो नरेंद्र वापस अपने घर चला आया.

नरेंद्र की बातों पर शक हुआ तो 27 अगस्त, 2020 को दुर्गा प्रसाद हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन को साथ ले कर उन की मौत की सच्चाई जानने के लिए रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप पहुंचे. हीरालाल के घर पर ताला लगा हुआ था. यह देख कर उन्होंने पड़ोसियों से उन के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पता चला कि हीरालाल के घर पर पिछले 15 महीने से ताला लटका हुआ है. इस दौरान उन्होंने कभी भी हीरालाल और उन के परिवार वालों को यहां आतेजाते नहीं देखा. यह बात सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन को हैरानी हुई, क्योंकि नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि हीरालाल ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लेकिन उस के पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तक नहीं थी.

नरेंद्र का झूठ सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन समझ गए कि हीरालाल की संपत्ति हड़पने की मंशा से उन के दामाद नरेंद्र ने कोई चक्रव्यूह रच कर उन्हें मौत Family Crime के घाट उतार दिया. हीरालाल के परिवार के साथ किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन उसी दिन ट्रांजिट कैंप थाने पहुंच गए. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी को बताई. मामला एक ही परिवार के 4 लोगों के लापता होने का था, इसलिए उन्होंने इसे गंभीरता से लिया. दुर्गाप्रसाद और कुंवर सैन से जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्हें घर भेज दिया गया. फिर थानाप्रभारी जोशी ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए गुप्तरूप से जांचपड़ताल करानी शुरू की. सादे वेश में जा कर पुलिस ने नरेंद्र गंगवार को अपने कब्जे में लिया, ताकि वह फरार न हो सके.

थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी ने नरेंद्र से हीरालाल और उन के परिवार के सदस्यों के बारे में कड़ी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरेंद्र शुरू में तो इधरउधर की कहानी गढ़ता रहा. लेकिन जैसे ही पुलिस की सख्ती बढ़ी तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस के बाद उस ने अपने ससुराल वालों की हत्या अपने किराएदार विजय के सहयोग से करने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान नरेंद्र गंगवार ने बताया कि 20 अप्रैल, 2019 को सुबह साढ़े 5 बजे उस ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर सासससुर और 2 सालियों को डंडे से पीट कर मौत के घाट उतारा. फिर उन की लाशों को उन्हीं के मकान में गड्ढा खोद कर दफन कर दिया.

नरेंद्र द्वारा 4 लोगों की हत्या कर घर में ही दफनाने वाली बात सामने आते ही थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने इस बात की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दी. थानाप्रभारी ने आननफानन में तत्परता से नरेंद्र के सहयोगी रहे उस के किराएदार विजय को भी हिरासत में ले लिया. यह जानकारी मिलते ही ट्रांजिट कैंप के साथसाथ थाना पंतनगर, थाना रुद्रपुर और थाना किच्छा से भी पुलिस टीमें हीरालाल के मकान पर पहुंच गईं. देखते ही देखते आजादनगर की मुख्य सड़क पुलिस छावनी में तब्दील हो गई. आजादनगर के आसपास यह नजारा देख लोग हैरत में पड़ गए. घटना की जानकारी मिलते ही एसएसपी दिलीप सिंह व आईजी (कुमाऊं) अजय कुमार रौतेला भी घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस द्वारा हीरालाल के घर का दरवाजा खोलने से पहले ही वहां तमाशबीनों का जमावड़ा लग गया. पुलिस ने नरेंद्र की निशानदेही पर मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में दिन के 3 बजे 4 मजदूरों को लगा कर खुदाई शुरू कराई. लगभग 2 घंटे के अथक प्रयास के बाद पुलिस लाशों तक पहुंची. लगभग साढ़े 4 फीट की गहराई में एक के ऊपर एक 4 लाशें पड़ी मिलीं, जो प्लास्टिक की थैलियों में पैक थीं. इस हृदयविदारक दृश्य को देख कर लोगों के होश उड़ गए. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने है वह सच है या सपना. पुलिस ने थैलियों को खोल कर लाशों की जांचपड़ताल की. लाशों को देख कर पुलिस हैरान थी कि सभी लाशें अभी तक अच्छी हालत में थीं. पुलिस को उम्मीद थी कि 15 महीनों के लंबे अंतराल के दौरान लाशें कंकाल में बदल चुकी होंगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. उसी गड्ढे से पुलिस ने लकड़ी के डंडे के आकार की एक फंटी बरामद की. नरेंद्र ने उसी फंटी से चारों को मारने की बात स्वीकार की थी.

घटनास्थल पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने सैंपल एकत्र किए. फिर उन्हें जांच के लिए सुरक्षित रख लिया. पुलिस ने चारों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं और इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 4 डाक्टरों के पैनल द्वारा वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमार्टम कराया. यह कुमाऊं का पहला ऐसा सनसनीखेज  मामला था, जिस ने तहलका मचा दिया था. हीरालाल का अपना कोई बेटा नहीं था तो उन्होंने बेटियों का ही पालनपोषण अच्छे से किया था. बड़ी बेटी लीलावती ने गलत कदम उठाया तो उसे भी सहन करते हुए उन्होंने उस के पति नरेंद्र को बेटे का दरजा दे कर उसे अपने घर में शरण दी. इस के बावजूद उस ने ऐसा कदम उठाया कि ससुराल का वजूद ही खत्म कर डाला. यह कहानी जितनी सनसनीखेज थी, उस से कहीं ज्यादा हृदयविदारक भी थी.

हीरालाल का परिवार उत्तर प्रदेश के जिला बरेली, तहसील मीरगंज के गांव पैगानगरी में रहता था गांव में उन का परिवार सुखीसंपन्न माना जाता था. गांव में उन की जुतासे की करीब 60 बीघा जमीन थी. औलाद के नाम पर 3 बेटियां थीं लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. उन की पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. घर में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. हीरालाल की बस एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था. जो घर धनधान्य से भरपूर हो और घर में उस का कोई वारिस न हो तो चिंतित रहना स्वभाविक ही है. हीरालाल ने बेटे की चाह के चलते इधरउधर काफी हाथपांव मारे. कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले लेकिन उन की बेटे की इच्छा पूरी न हो सकी.

बाद में इस सोच को बदल कर उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. समय के साथ बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अपनी बेटियों को गांव के माहौल से बचा कर शहर में अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. जिस से वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. इसी सोच के चलते हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर हीरालाल अपने परिवार के साथ गांव से रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप थानांतर्गत राजा कालोनी में आ कर रहने लगे. उन्होेंने अपना मकान बना लिया था. रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अपनी तीनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया था.

बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसे से ही उन्होंने आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए थे. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई. राहु बन कर कुंडली में बैठा नरेंद्र नरेंद्र गंगवार रामपुर जिले के थाना ऐरो बिलासपुर के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. नरेंद्र गंगवार सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जताई. इस पर हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. उस ने हीरालाल से वह प्लौट खरीद कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली.

प्लौट के चक्कर में नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हुई तो वह उन के संपर्क में रहने लगा था. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा था. घर आनेजाने के दौरान ही नरेंद्र की नजर हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीलावती देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ भी रही थी. उस की सुंदरता को देखते ही नरेंद्र उसे पाने के लिए लालायित हो उठा. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें उसी पर टिकी रहती थीं. लीलावती नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई.

दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्यार उमड़ा तो वे प्रेम की राह पर बढ़ चले.  लीलावती स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों तक उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठाते हुए वह घर से बाहर ही उस से मुलाकात करने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी. कुछ ही समय बाद दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची. अपनी बेटी की करतूत सुन कर हीरालाल को बहुत दुख हुआ. वह अपनी बेटियों को बेटा समझ पढ़ालिखा रहे थे, ताकि वे किसी काबिल बन जाएं. लेकिन बड़ी बेटी की करतूत सुन कर उसे गहरा सदमा पहुंचा. यह जानकारी मिलने पर उस ने लीलावती को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस पर दोनों मोबाइल पर बात कर अपने दिल की पीड़ा एकदूसरे से साझा करने लगे.

इस प्रेम कहानी के चलते लीलावती ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. शादी के बाद लीलावती उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी. लीलावती की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को जबरदस्त आघात पहुंचा. बेटी के कारण मियांबीवी मोहल्ले में सिर उठा कर चलने लायक नहीं रहे. इसी वजह से हीरालाल ने अपनी बेटी लीलावती से संबंध खत्म कर दिए. लेकिन हेमवती मां थी. मां का दिल तो वैसे भी बहुत कोमल होता है. भले ही लीलावती ने नरेंद्र के साथ शादी कर अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब बेटी के बिना उस से नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.

हेमवती जब कभी घर में कुछ अच्छा बनाती, चुपके से लीलावती को पहुंचा आती. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. धीरेधीरे यह बात हीरालाल को भी पता चल गई. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर इंसान थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया. नरेंद्र बना घरजंवाई शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया और बेटीदामाद दोनों को घर ले आए. नरेंद्र घरजंवाई की हैसियत से ससुर हीरालाल के मकान में ही रहने लगा. उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. हीरालाल का गांव में मकान था, जो खाली पड़ा था.

साथ ही उन की बची हुई 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. इस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की गुजरबसर ठीक चल रही थी. वह प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था. ससुर के साथ रह कर नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में उतारने लगा. मम्मीपापा के घर पर रहते हुए ही लीलावती 4 बच्चों, 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी. हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी करने के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च भी हीरालाल स्वयं ही वहन कर रहे थे. इस के बावजूद नरेंद्र अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.

हीरालाल की अभी 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह समय से उन की शादी करना चाहते थे. लेकिन जब से नरेंद्र इस घर में आया था, अपनी सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. नरेंद्र तेजतर्रार और चालाक था. लीलावती से शादी करने के बाद उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी. जिसे देख वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खोया रहता था. उसी दौरान उस ने हीरालाल पर उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम कराने का दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन हीरालाल का कहना था कि जब तक उन की दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी किसी भी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे. हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो उठे तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. बाद में नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.

हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर में जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने के कारण उस के बीवीबच्चे हीरालाल के घर पर ही पड़े रहते थे. बच्चों के सहारे आ कर वह फिर से बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे. उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के थाना देवरनियां के गांव दमखोदा का रहने वाला था. विजय गंगवार से नरेंद्र पहले से ही परिचित था. दोनों में खूब पटती थी. विजय गंगवार अभी कुंवारा था. नरेंद्र ने विजय गंगवार के सामने अपने ससुर की सारी संपत्ति की पोल खोल कर दी, जिस की वजह से उस के मन में भी लालच जाग उठा. उस ने भी नरेंद्र की तरह हीरालाल की मंझली बेटी पार्वती पर निगाहें गड़ा दीं. लेकिन पार्वती समझदार थी. विजय के लाख कोशिश करने के बाद भी वह उस के प्रेम जाल में नहीं फंसी.

जम गई नजर ससुर की संपत्ति पर मन में संपत्ति का लालच आते ही वह अपने ससुर के साथसाथ बाकी लोगों को भी मौत के घाट उतारने के लिए षडयंत्र रचने लगा. लेकिन वह अपनी किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. नरेंद्र को यह भी पता लग गया था कि विजय उस की साली के पीछे पड़ा है. तभी उस के दिमाग में एक आइडिया आया. उस ने वह बात विजय को बताते हुए धमकाया कि जो वह कर रहा है वह ठीक नहीं है. अगर इस बात का पता उस के ससुर को चल गया तो परिणाम बहुत गलत होगा. नरेंद्र की बात सुन कर विजय घबरा गया. इस के बाद विजय नरेंद्र की हां में हां मिलाने लगा. फिर आए दिन नरेंद्र अपने घर पर विजय की दावत करने लगा. उस समय तक हीरालाल का परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. लेकिन नरेंद्र को उन के परिवार की खुशियां कचोटती थीं.

वह मन ही मन अपने ससुराल वालों से खार खाने लगा था. उसी दौरान उस ने विजय को अपने ससुर की संपत्ति Family Crime से कुछ हिस्सा देने की बात कहते हुए अपनी षडयंत्रकारी योजना में शामिल कर लिया. फिर 17 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर ससुराल वालों की हत्या की योजना को अंतिम रूप दे दिया. इस योजना के बनते ही नरेंद्र ने अपने बीवीबच्चों को देवरनियां बरेली में अपने फूफा के घर भेज दिया ताकि उन्हें उस की साजिश का पता न चल सके. बीवीबच्चों को बरेली भेजने के बाद वह विजय के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में लग गया. लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. नरेंद्र और विजय को यह भी डर था कि अगर इस योजना में वे किसी तरह से फेल हो गए तो न घर के रहेंगे न घाट के.

नरेंद्र जानता था कि उस की सास सुबह दूध लेने जाती है. उस वक्त उस का ससुर और दोनों सालियां सोई रहती हैं. घर का गेट खुला रहता है. उस वक्त तक पड़ोसी भी सोए होते हैं. घटना को अंजाम देने के लिए नरेंद्र को यह समय सही लगा. 20 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार सुबह जल्दी उठ गए थे. दोनों हेमवती के दूध लेने जाने का इंतजार करने लगे. हेमवती उस दिन सुबह के साढ़े 5 बजे अपनी बेटी पार्वती को साथ ले कर दूध लाने के लिए घर से निकली. उन के घर से निकलते ही नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर हीरालाल के घर में घुस गया. उस समय तक हीरालाल सो कर उठ गए थे. सुबहसुबह दोनों को अपने घर में आया देख हीरालाल ने नरेंद्र से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि आज मैं आखिरी बार आप से पूछने आया हूं कि आप मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे देते हो या नहीं.

पूरे परिवार की हत्या सुबहसुबह दामाद के मुंह से इस तरह की बात सुन हीरालाल का पारा चढ़ गया. दोनों के बीच विवाद बढ़ा तो पूर्व योजनानुसार नरेंद्र ने वहां रखी लकड़ी की फंटी से पीटपीट कर बड़ी ही बेरहमी से हीरालाल की हत्या कर दी. अपने पापा के चीखने की आवाज सुन कर बेटी दुर्गा उन के बचाव में आई तो दोनों ने उसे भी फंटी से पीटपीट कर मार डाला. दोनों को मौत की नींद सुलाने के बाद नरेंद्र और विजय हेमवती और पार्वती के आने का इंतजार करने लगे. जैसे ही उन दोनों ने घर में प्रवेश किया दरवाजे के पीछे खड़े नरेंद्र और विजय ने उन्हें भी पीटपीट कर मार डाला. सासससुर और दोनों सालियों को खत्म करने के बाद नरेंद्र और विजय ने चारों को घसीट कर एक कमरे में ले जा कर डाल दिया.

कमरे में ले जाने के बाद भी नरेंद्र और विजय को उन की मौत पर विश्वास नहीं हुआ तो दोनों ने एकएक कर सब की नब्ज चैक की. जब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि चारों मौत की नींद सो चुके हैं, तो दोनों ने मकान में फैले खून को धो कर साफ किया और घर के बाहर ताला लगा कर अपने घर आ गए. इस खूनी वारदात को अमलीजामा पहनाने के बाद दोनों ने उन लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नरेंद्र जानता था कि उन की लाश को घर से बाहर ले जा कर ठिकाने लगाना उन के लिए खतरे से खाली नहीं है. इसलिए दोनों ने तय किया कि बाजार से प्लास्टिक शीट ला कर लाशों को उस में लपेटा घर में ही गड्ढा खोद कर दफन कर दिया जाए. लाशों पर प्लास्टिक शीट लिपटी होने के कारण उन के सड़ने के बाद भी बदबू बाहर नहीं निकल पाएगी.

20 अप्रैल, 2019 को ही नरेंद्र बाजार से प्लास्टिक शीट खरीद लाया. उसी रात दोनों ने ससुर हीरालाल के मकान में जा कर चारों लाशों को प्लास्टिक शीट में पैक कर दिया. अगले दिन 21 अप्रैल, 2019 की सुबह नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर के घर में गया. फिर दोनों ने अपनी योजना के मुताबिक जीने के नीचे गड्ढा खोदना शुरू किया. कुछ पड़ोसियों ने नरेंद्र से हीरालाल के घर में अचानक काम कराने के बारे में पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि वह मकान बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए. घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है. वैसे भी उस मोहल्ले में नरेंद्र से कोई ज्यादा मतलब नहीं रखता था. यही कारण था कि हीरालाल के परिवार के बारे में किसी ने भी नरेंद्र से ज्यादा पूछताछ नहीं की. नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर लगभग 6 घंटे में एक गहरा गड्ढा खोदा. उस के बाद दोनों ने प्लास्टिक में पैक चारों लाशें गड्ढे में डाल दीं.

चारों लाशों को गड्ढे में दफन कर के उन्होंने वहां पर पक्का फर्श बना दिया. चारों लाशों को ठिकाने लगाने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला डाल दिया. घर के अंदर कब्रिस्तान हीरालाल के घर पर अचानक ताला देख लोगों को हैरत तो जरूर हुई. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि हीरालाल रात ही रात में अपने परिवार को ले कर अचानक कहां गायब हो गए. लेकिन नरेंद्र से किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं की. ससुराल वालों को ठिकाने लगा कर नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को बरेली से घर ले आया. घर आते ही लीलावती की नजर पिता के मकान की ओर गई, जहां पर ताला लगा था.

लीलावती ने उन के बारे में पति से पूछा, तो उस ने बताया कि उस के पापा अपना मकान बेच कर हल्द्वानी चले गए हैं. उन्होंने वहां पर ही अपना प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया है. यह सुन कर लीलावती चुप हो गई. इस के आगे उसे नरेंद्र से ज्यादा पूछने की हिम्मत नहीं थी. उसे पता था कि उस के पिता और नरेंद्र की आपस में नहीं बनती है. नरेंद्र ने हीरालाल के पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया था, इस के बाद भी उस के मन में किसी तरह का खौफ नहीं था. इस घटना को अंजाम देने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के मकान को किराए पर उठा दिया. लेकिन कुछ समय बाद किराएदार मकान छोड़ कर चला गया तो उस ने मकान पर फिर से ताला लगा दिया.

उस दिन के बाद उस ने कभी भी उस मकान का ताला नहीं खोला था. अगर नरेंद्र संपत्ति हड़पने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में जल्दबाजी न करता तो यह राज शायद राज ही बन कर रह जाता. इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार को भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. चारों शवों के पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव उन के रिश्तेदार दुर्गा प्रसाद को सौंप दिए थे. उन का दाह संस्कार बरेली के मीरगंज गांव पैगानगरी के पास भाखड़ा नदी किनारे किया गया. नरेंद्र गंगवार इतना शातिर इंसान था कि उस ने दुर्गा प्रसाद को इस केस में फंसाने की कोशिश की. लेकिन सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

हालांकि इस केस की रिपोर्ट दुर्गा प्रसाद की ओर से ही दर्ज कराई गई थी. फिर भी इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस दुर्गा प्रसाद और अन्य के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच में जुटी थी. पुलिस ने लीलावती से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया था. वह नरेंद्र के फूफा के साथ बहेड़ी चली गई थी. केस की जांच थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Gujarat News : सहेली की गला दबाकर हत्या की, फिर शव को कंबल में लपेटकर लाइटर से जला दिया

Gujarat News : थाइलैंड की रहने वाली सहेलियां आईडा और वनिडा बुसोन सूरत के अलगअलग स्पा सेंटरों में नौकरी करती थीं. भारत के स्पा और मसाज सेंटरों में थाई लड़कियों की अच्छी डिमांड रहती है. जिस से दोनों सहेलियां अच्छी कमाई कर रही थीं. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आईडा ने वनिडा बुसोन के खून से अपने हाथ रंग लिए…

गुजरात का सूरत शहर साडि़यों और हीरों के काम के लिए दुनियाभर में मशहूर है. इसी शहर के मगदल्ला गांव में 6 सितंबर 2020 को सुबह करीब 7 बजे एक मकान में किराए पर रहने वाली थाईलैंड की युवती वनिडा बुर्सोन उर्फ मिम्मी के कमरे से धुआं निकलता हुआ दिखाई दिया. धुआं देख कर आसपास के लोग वहां एकत्र हो गए. कमरे के बाहर ताला लगा हुआ था. लोगों ने समझा कि कमरा बंद है, तो वनिडा कहीं गई होगी. उस के पीछे से कमरे में  किसी कारण से आग लग गई है. लोग कयास लगाने लगे कि आग कैसे लग गई? आग किसी भी कारण से लग सकती है. या तो शौर्ट सर्किट हो गया होगा या फिर वनिडा रसोई गैस खुली छोड़ गई होगी.

वहां मौजूद लोग आपस में आग लगने के कारणों पर कयास लगा रहे थे. इतनी देर में एक पड़ोसी ने मकान मालिक नगीन भाई प्रभुभाई पटेल को फोन कर के आग लगने की सूचना दे दी. कुछ ही देर में मकान मालिक का दामाद हितेश भाई वहां पहुंच गया. हितेश ने लोगों से वनिडा के बारे में पूछा, लेकिन किसी को कुछ पता होता तो वह बताता. तब हितेश ने जल्द ही कमरे का ताला तोड़ दिया. कमरे के अंदर धुआं भरा हुआ था. जमीन पर पड़े गद्दे पर आग जल रही थी. उस ने आसपड़ोस से पानी मंगा कर आग पर फेंका. जलते हुए गद्दे पर एक चादर भी जलती हुई नजर आई. हितेश ने चादर खींची, तो उस के नीचे किसी इंसान के पैर नजर आए.

जलते हुए गद्दे पर किसी इंसान के पैर होने की बात सुन कर वहां मौजूद लोगों में दहशत फैल गई. दहशत इसलिए भी फैली कि कमरे के बाहर से ताला लगा हुआ था. वनिडा अगर कमरे में थी, तो बाहर ताला कैसे लगा हुआ था. डरेसहमे लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दी. कुछ ही देर में उमरा थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस जिस समय उस कमरे में घुसी, उस समय भी गद्दा जल रहा था. पुलिस ने पानी डाल कर आग बुझाई. गद्दे पर देखा, तो एक युवती की लाश थी. लाश पूरी तरह जल चुकी थी. चेहरा भी जल गया था. फिर भी आसपड़ोस के लोगों ने कदकाठी और बाकी चीजों से उस की शिनाख्त कर बताया कि लाश वनिडा की है.

जली हालत में मिली लाश पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि थाईलैंड की रहने वाली वनिडा किराए के इस कमरे में 3-4 महीने पहले ही आई थी. उस के साथ थाईलैंड की ही रहने वाली एक और सहेली रूंघटीथा म्याऊ भी रहती थी, लेकिन उस समय वह गुजरात के ही भरूच शहर गई हुई थी. पुलिस को मौके पर वनिडा के मोबाइल भी नहीं मिले, जबकि वह 2-3 कीमती मोबाइल रखती थी. घटनास्थल पर ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से वनिडा की मौत के कारणों का पता चल पाता. मोबाइल नहीं मिलने पर पुलिस ने यह माना कि शायद वह आग में जल गए होंगे, लेकिन उन के अवशेष भी नहीं मिले थे.

घर में कोई भी सामान बिखरा हुआ नहीं मिला. इसलिए लूटपाट या चोरी का संदेह भी नहीं हुआ. मौके पर खानेपीने का कुछ सामान, शराब की बोतलें, गिलास और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें जरूर मिली. पड़ोसियों ने बताया कि वनिडा सूरत के इस्कान मौल में एक स्पा में काम करती थी. वह पिछली रात को करीब साढ़े 8 बजे आटोरिक्शा से घर आई थी. रात को उस के कमरे पर उस की सहेली मिलने आई थी. रात को संभवत: सहेली के साथ वनिडा ने पार्टी की थी, क्योंकि पहले उन की मौजमस्ती की सी आवाजें आ रही थीं. बाद में वनिडा के कमरे से झगड़ा होने की आवाज भी आई थी. कुछ लोगों ने बताया कि रात को एक कार में वनिडा के 3 बौयफ्रैंड भी आए थे. रात में एक बाइक पर भी अज्ञात युवक घूमता हुआ देखा गया था. कुछ लोगों ने वनिडा के पूर्व प्रेमी लालू पर शक जताया.

ताज्जुब की बात यह थी कि वनिडा की मौत जलने से हुई थी, लेकिन किसी ने उस की चीखपुकार नहीं सुनी. मैडिकल साइंस में माना जाता है कि होशोहवास वाला कोई भी व्यक्ति जलता है, तो चीखताचिल्लाता जरूर है. ऐसा भी कारण सामने नहीं आया कि वनिडा ने खुदकुशी करने के मकसद से खुद को आग के हवाले किया हो. मामला बड़ा संदेहास्पद था. यह साफ नहीं हो रहा था कि वनिडा की हत्या हुई है या यह कोई हादसा है. उमरा थाना प्रभारी ने उच्चाधिकारियों को सूचना दे कर एफएसएल की टीम और क्राइम ब्रांच की टीम को मौके पर बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम और क्राइम ब्रांच की टीम ने मौके से कुछ साक्ष्य एकत्र किए. फोरैंसिक टीम के विशेषज्ञों ने हत्या की आशंका जताते हुए कुछ सैंपल भी लिए.

उमरा थाना पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर एक्सीडेंटल डैथ मानते हुए मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. सूरत के गांव मगदल्ला और आसपास के इलाकों में थाईलैंड की कई युवतियां अकेली और अन्य परिवार भी रहते हैं. पुलिस ने उन से भी वनिडा के बारे में पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से कि उस की मौत का राज खुल पाता. शादीशुदा वनिडा सूरत में अकेली रहती थी. उस का पति व बेटा थाईलैंड में रहते हैं. पुलिस ने लोगों से वनिडा का थाईलैंड का पता हासिल किया ताकि दूतावास के जरिए उस के परिजनों को सूचना भेजी जा सके. बाद में पुलिस ने थाईलैंड हाई कमीशन को मामले की सूचना दे दी.

पूछताछ में कोई सुराग नहीं मिलने पर पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों के फुटेज के सहारे जांच आगे बढ़ाने का फैसला किया. आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के बाद पुलिस हालांकि किसी नतीजे पर तो नहीं पहुंची, लेकिन कुछ लोगों को चिन्हित कर उन से पूछताछ करने का निर्णय लिया. इस के लिए दूसरे दिन 7 सितंबर को पुलिस की स्पेशल जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया गया. डीसीपी विधि चौधरी के नेतृत्व में इस टीम में उमरा थाने के इंसपेक्टर के अलावा क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया. एसआईटी के अधिकारियों ने मौकामुआयना करने वाली फोरैंसिक टीम से राय ली. फोरैंसिक विशेषज्ञों ने कहा कि शव को देखने के बाद ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह आकस्मिक मौत है. अगर घर में शार्ट सर्किट भी होता तो शव इतना नहीं जलता. शव फर्श पर पड़ा था. आग लगने के बाद आदमी छटपटाता है. इधरउधर भाग कर आग बुझाने की कोशिश करता है.

फोरैंसिक विशेषज्ञों ने कहा कि मौके के हालात से लगता है कि इस में कोई और शामिल हो सकता है, जिस ने युवती को जलाया. युवती ने खुद ऐसा नहीं किया होगा. जलाने में संभवत: ज्वलनशील पदार्थ का इस्तेमाल किया गया होगा. शव को जलने में 2 से 3 घंटे का समय भी लगा होगा. वनिडा का शव जिस गद्दे पर मिला, वह रुई का था. आग केवल गद्दे तक ही लगी थी, पूरे कमरे में नहीं फैली थी. फोरैंसिक एक्सपर्ट ने दी चौंकाने वाली रिपोर्ट कमरे के बाहर से ताला लगा होना भी संदेह पैदा कर रहा था. कोई भी व्यक्ति बाहर से ताला लगा कर केवल तभी सोता है, जब या तो उस का कोई साथी उसी के सामने बाहर गया हो और उसे वापस आना हो.

अथवा ऐसा तब होता है जब अंदर वाले को किसी से डर या खतरा हो, तब वह किसी से बाहर का ताला लगवा सकता है. लेकिन पुलिस को ऐसा भी कोई आदमी नहीं मिला, जिस से वनिडा ने कमरे का बाहर का ताला लगवाया हो. विशेषज्ञों ने माना कि जलते समय युवती होश में नहीं थी. संभवत: वह गहरे नशे में रही होगी. इसीलिए वह जलने पर न तो चीखीचिल्लाई और न किसी ने उस की कोई आवाज सुनी थी. फोरैंसिक विशेषज्ञ हत्या की आशंका जताते हुए अपने तर्क दे रहे थे, लेकिन हत्या का मामला दर्ज करने से पहले पुलिस सबूत जुटाना चाहती थी. इसलिए पुलिस ने दक्षिण गुजरात विज कंपनी लिमिटेड (डीजीवीसीएल) के बिजली अधिकारियों से भी मौका निरीक्षण कराया, ताकि पता चल सके कि शार्ट सर्किट तो नहीं हुआ था. जांच पड़ताल के बाद बिजली अधिकारियों ने साफ कर दिया कि कमरे में शार्ट सर्किट नहीं हुआ था.

शव मिलने के तीसरे दिन पुलिस ने 16 लोगों से अलगअलग पूछताछ की. इन में वनिडा की रूममेट, उसे घर और स्पा ले जाने वाले आटो चालक, सहेलियों और सीसीटीवी फुटेज में नजर आए संदिग्ध लोग शामिल थे. पुलिस ने वनिडा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. इस बीच, पुलिस ने वनिडा के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद अंतिम संस्कार कर दिया. पुलिस ने विसरा और अन्य सैंपल जांच के लिए एफएसएल भिजवा दिए. पुलिस की जांचपड़ताल में पता चला कि करीब 27 साल की वनिडा एक साल पहले टूरिस्ट वीजा पर सूरत आई थी. वह 3-4 महीने से नगीन भाई पटेल के मकान में किराए के कमरे में रहती थी. उस के साथ थाईलैंड की ही निवासी रूंघटीथा म्याऊ नाम की युवती भी रहती थी.

फोरैंसिक विभाग ने प्राथमिक जांच रिपोर्ट पुलिस को दी. इस में मौत का कारण तो नहीं बताया गया, लेकिन यह जरूर कहा गया कि जलाते समय युवती जीवित थी. उस की श्वास नली में कार्बन मिला है. कोई व्यक्ति जिंदा जलता है, तो उस की सांस की नली में कार्बन पाया जाता है. यह हो सकता है कि युवती को बेहोश कर या कोई मादक पदार्थ पिला कर जलाया गया हो. मामला विदेशी युवती की मौत का था. इसलिए पुलिस सभी एंगल से मामले की जांच कर रही थी. लोगों से पूछताछ में पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं, जिस से पुलिस ने माना कि वनिडा की हत्या हुई होगी. हत्या के एंगल से जांच की गई, तो यह माना गया कि कातिल बहुत शातिर है.

उस ने वनिडा को जलाने के लिए पैट्रोल या केरोसिन के बजाय शराब, नेल पेंट, डिओड्रेंट या किसी अन्य बिना गंध वाले ज्वलनशील पदार्थ का इस्तेमाल किया होगा, क्योंकि पैट्रोल व केरोसिन की गंध दूर तक फैलती है. 11 सितंबर को उमरा थाना पुलिस ने अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ वनिडा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. हत्या का मामला एफएसएल की प्राथमिक रिपोर्ट व डीजीवीसीएल के बिजली अधिकारियों की रिपोर्ट और अन्य सबूतों के आधार पर दर्ज किया गया. 80 से ज्यादा लोगों से की पूछताछ लगभग 80 से ज्यादा लोगों से की गई पूछताछ और 50 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने के बाद पुलिस ने 2 लोगों पर शक की सुई टिका दी. इन में एक आईडा थी और दूसरा चेतन. थाईलैंड की ही रहने वाली आईडा मृतका वनिडा की अच्छी दोस्त थी.

वह भी वनिडा की ही तरह एक स्पा सैंटर में काम करती थी. वहीं, चेतन वनिडा के मकान के पास ही रहता था. चेतन ने ही वनिडा को 5 सितंबर को आखिरी काल की थी. चेतन सूरत के ही एक स्पा में मैनेजर की नौकरी करता है. पुलिस ने अपने मुखबिर लगाए और इन दोनों की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी. निगरानी रखने के बाद पुलिस ने चेतन को शक के दायरे से बाहर कर आईडा पर सारा ध्यान केंद्रित कर दिया. पुलिस की ओर से जरूरी सबूत जुटाने के बाद सूरत के पुलिस कमिश्नर अजय तोमर ने 14 सितंबर, 2020 को वनिडा की हत्या का खुलासा कर दिया. पुलिस ने आईडा को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की जांचपड़ताल और आईडा से की गई पूछताछ में वनिडा की हत्या की जो कहानी उभरकर सामने आई, वह इस प्रकार है—

थाईलैंड की रहने वाली वनिडा और आईडा अच्छी दोस्त थीं. दोनों लगभग हमउम्र थीं. दोनों की ही शादी हो चुकी थी. वनिडा का एक बेटा है. पति और बेटा थाईलैंड में रहते हैं. वनिडा पैसा कमाने के मकसद से टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी. वह स्पा का काम जानती थी. भारत में स्पा सेंटरों में विदेशी युवतियों की सब से ज्यादा मांग रहती है. परिचित थाई युवतियों के माध्यम से वह सूरत आ गई. सूरत में उसे एक स्पा सेंटर में काम मिल गया. स्पा में वह अच्छा पैसा कमा रही थी. उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी. आईडा भी थाईलैंड से टूरिस्ट वीजा पर सूरत आई थी. वह भी शादीशुदा थी लेकिन वह करीब एक साल से अपने पति से अलग रहती थी. उस का पति थाईलैंड में रहता है.

एक देश की होने और एक ही काम करने के कारण वनिडा और आईडा में अच्छी दोस्ती हो गई. आईडा भी मगदल्ला गांव में ही किराए के मकान में थी. वनिडा व आईडा के मकान के बीच 10 मिनट का पैदल का रास्ता है. दोनों सहेलियों को एकदूसरे की सारी बातें पता थीं. वे कभीकभी अपने कमरे पर पार्टी कर लेती थीं. थाईलैंड के खानपान के लिहाज और स्पा मसाज के पेशे से जुड़ी होने के कारण सिगरेट पीना, वोदका, बीयर, और शराब पीने के अलावा हुक्के के कश लगाना तथा झींगा मछली वगैरह खाना इन का शौक था. इन की पार्टी करीब 11-12 बजे शुरू हो कर भोर होने तक चलती थी. सहेली आईडा को आया लालच आईडा का टूरिस्ट वीजा 26 सितंबर को खत्म हो रहा था.

उसे वीजा की अवधि बढ़वानी थी. इस के लिए उस ने किसी एजेंट से भी बात कर ली थी. वीजा बढ़वाने के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. इस के अलावा थाईलैंड के बानपाको में रहने वाले उस के भाई ने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया था. उस की गाड़ी पुलिस ने जब्त कर ली. भाई की गाड़ी छुड़वाने के लिए भी आईडा को पैसे चाहिए थे. आईडा ने अपने 2-4 परिचितों से पैसे उधार मांगे, लेकिन उसे कहीं से मदद नहीं मिली. उसे पता था कि वनिडा अच्छा पैसा कमाती है. वह ठाठ से रहती और खूब खर्च करती है. थाईलैंड में अपने घर भी पैसा भेजती है. उसे पता था कि वनिडा का वीजा 20 सितंबर को खत्म हो रहा है और वह वापस थाईलैंड जाना चाहती है. इस से आईडा को अनुमान था कि वनिडा के पास अभी काफी पैसा होगा. इसलिए उस ने वनिडा को शराब पिला कर उसे लूटने की योजना बनाई.

आईडा ने वनिडा से 5 सितंबर की रात को पार्टी करने की बात तय कर ली. योजना के तहत आईडा रात करीब साढ़े 9 बजे वनिडा के घर पहुंची. दोनों ने शराब व वोदका पी. नशीले पदार्थ वाले हुक्के के भी कश लगाए. इस बीच वे मछली वगैरह भी खाती रहीं. आईडा ने जानबूझ कर वनिडा को ज्यादा शराब पिलाई. वनिडा जब बेसुध हो गई, तो आईडा वनिडा का कीमती माल तलाश करने लगी. इस बीच, उसे खयाल आया कि अगर वनिडा को होश आ गया, तो वह चिल्लाएगी. इस से वह पकड़ी जाएगी. अगर उसे अभी होश नहीं आया, तो सुबह कीमती सामान नहीं मिलने पर वह सीधा उस पर चोरी का आरोप लगाएगी. इस से बचने के लिए आईडा ने वनिडा का काम तमाम करने का फैसला किया.

उस ने कमरे में गद्दे पर बेसुध पड़ी वनिडा का कंबल से गला दबा दिया. इस के बाद उस पर टिश्यू पेपर और नायलोन का कंबल डाल कर लाइटर से आग लगा दी. ज्यादा नशे में होने से बेसुध होने के कारण वनिडा चीखपुकार भी नहीं सकी. वह जिंदा ही जल गई. वनिडा को जला कर आईडा ने उस के 3 आईफोन और सोने की चेन सहित करीब 2 लाख रुपए का कीमती सामान बटोरा और तड़के अपने कमरे पर आ गई. अपने कमरे में उस ने वनिडा की सोने की चेन चावल के डब्बे में छिपा कर रख दी. आईडा इतनी शातिर थी कि 6 सितंबर को सुबह जब कमरे में वनिडा का जला हुआ शव मिला, तो पुलिस की काररवाई के दौरान वह थाईलैंड की अन्य महिलाओं के साथ मृतका को श्रद्धांजलि देने के लिए हाथ जोड़े वहां कई घंटे तक खड़ी रही. इस दौरान उस ने किसी को भी शक नहीं होने दिया.

वनिडा की मर्डर मिस्ट्री का रहस्य उस की रूममेट रूंघटीथा म्याऊ से पूछताछ के बाद सुलझा. म्याऊ ने पुलिस को बताया कि वह वनिडा की मृत्यु के बाद भरूच से सूरत आई थी. भरूच से वह काफी सामान लाई थी. वनिडा के कमरे में आग लगने के कारण वहां सामान नहीं रख सकी, तो वह आईडा के कमरे पर सामान रखने गई. आईडा के मकान मालिक ने ज्यादा सामान कमरे में रखने से मना कर दिया. आईडा ने स्वीकारा अपराध इस पर म्याऊ ने अपना कुछ गैरजरूरी सामान अपने आटोचालक को दे दिया. इस दौरान आईडा ने भी आटो चालक को एक बैग दे कर कहा कि वह बाद में ले लेगी. आटोचालक ने आईडा का दिया बैग और म्याऊ का दिया सामान ला कर अपने घर पर रख दिया.

स्पा में काम करने वाली थाईलैंड की युवतियों ने अपने आटोचालक तय कर रखे हैं. उन्हें जब भी कहीं आनाजाना होता है, तो फोन कर के उन्हें बुला लेती हैं. म्याऊ ने पुलिस को यह भी बताया कि वनिडा के पास 3 मोबाइल फोन और सोने की चेन थी, जो गायब हैं. रुपएपैसे और अन्य कीमती सामान के बारे में म्याऊ को ज्यादा पता नहीं था. म्याऊ से पूछताछ के बाद पुलिस ने आटो चालक से पूछताछ की. उस ने म्याऊ और आईडा की ओर से दिए गए सामान के बारे में बता दिया. पुलिस ने उस के घर जा कर सामान चेक किया, तो उस बैग में वनिडा का मोबाइल मिला, जो आईडा ने उसे दिया था. पहले से ही शक के दायरे में चल रही आईडा पर पुलिस का संदेह पुख्ता हो गया. पुलिस को आईडा से पूछताछ में काफी पापड़ बेलने पड़े. उस ने हिंदी, गुजराती या अंग्रेजी भाषा समझने से इनकार कर दिया. वह केवल थाई भाषा ही बोलती रही.

उस से पूछताछ के लिए दुभाषिए की मदद लेनी पड़ी. वह बारबार वनिडा की हत्या से साफ इनकार करते हुए पुलिस से सबूत बताने की बात कहती रही. विदेशी युवती का मामला होने के कारण पुलिस उस से सख्ती भी नहीं कर पा रही थी. पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली, तो चावल के डब्बे से वनिडा की सोने की चेन बरामद हो गई. कुछ अन्य सामान भी मिल गया. पुलिस ने उसे रात साढ़े 9 बजे वनिडा के घर आने और तड़के करीब साढ़े 4 बजे मुंह ढक कर जाने के सीसीटीवी फुटेज दिखाए. इस के बाद उस ने वनिडा की हत्या करने की बात कबूल कर ली. आईडा से उस ताले की चाबी भी बरामद हो गई, जो वह वनिडा की हत्या के बाद उस के कमरे के बाहर लगा कर आई थी.

पुलिस ने आईडा को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को अन्य लोगों से पता चला कि आईडा के खिलाफ मलेशिया और जापान में जुआ का अड्डा चलाने के आपराधिक मामले दर्ज हैं. पुलिस इन मामलों का पता लगाने का प्रयास कर रही है. बहरहाल, आईडा ने छोटे से लालच में अपनी ही सहेली का खून कर दिया. पैसे कमाने आई आईडा को अब भारत में अपने किए की सजा भुगतनी होगी.

 

Love Crime : प्रेमी जोड़े का गला घोंटा, चेहरे पर तेजाब डाला फिर लाशों को लटका दिया

Love Crime : बंटी और सुखदेवी चचेरेतहेरे भाईबहन जरूर थे लेकिन वे एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे. दोनों के घर वालों ने शादी करने से मना कर दिया तो अपनी शादी से एक दिन पहले दोनों घर से भाग गए. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं. उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.  हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी.

बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है. बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था.

रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.

बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी. वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.

पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी. लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा.

उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है. उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.

उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया. सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था.

एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता. परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी.

शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई. शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं.

गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए. सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था.

फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला. जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए.

कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था. कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची.

गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया. उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला.

इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया. इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए.

वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए. वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया.

और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime News : पति को टुकड़े कर सीमेंट से ड्रम में जमाया

UP Crime News : सौरभ राजपूत मर्डर केस के बाद प्लास्टिक का नीला ड्रम चर्चा में गया है. 27 वर्षीय मुसकान रस्तोगी ने प्रेमी साहिल शुक्ला के साथ सिर्फ विदेश में नौकरी करने वाले पति सौरभ राजपूत की क्रूरतम तरीके से हत्या की, बल्कि उस की लाश के टुकड़े कर ड्रम में डाल कर ऊपर से सीमेंट कंक्रीट का घोल भर दिया. जिस सौरभ के साथ उस ने घर से भाग कर शादी की थी, आखिर उसी के प्रति इतनी क्रूर कैसे हो गई मुसकानï? पढ़ें, लव क्राइम की यह चौंकाने वाली कहानी.

”साहिल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे प्यार की जानकारी पति सौरभ को हो चुकी है.

वह लगातार निगरानी कर रहा है. उस ने एक बार पहले तो किसी तरह तलाक का केस वापस ले लिया था, लेकिन इस बार वह लंदन से लौटने के बाद क्या गुल खिलाएगा, कुछ पता नहीं. मुझे तो लग रहा है कि उस के रहते हमारी प्रेम कहानी अधूरी रह जाएगी या फिर यह कोई ऐसा मोड़ न ले ले, जिस से हमारी जिंदगी नरक बन जाए. इस से बेहतर तो यही है कि सौरभ को ही ठिकाने लगा दिया जाए क्योंकि इस के अलावा अब हमारे सामने कोई रास्ता नहीं है.’’ मुसकान ने प्रेमी से कहा.

”किस तरह ठिकाने लगाया जाए?’’ साहिल ने सवाल दाग दिया.

”अरे, किसी सुपारी किलर से बात करो.’’

”मेरठ में इस तरह का कोई गैंग मेरी जानकारी में नहीं है और भाड़े के हत्यारे रकम भी बहुत मांगते हैं.’’ साहिल बोला, ”इतने हाईप्रोफाइल मर्डर के पता नहीं 10 लाख की डिमांड करें या 20 लाख की.’’

”जानू, फिर तुम्हीं कोई रास्ता बताओ. यह काम क्या तुम नहीं कर सकते?’’

साहिल शुक्ला ने इस पर चुप्पी साध ली.

”बोलते क्यों नहीं? बुजदिल हो क्या? मैं तुम्हारे लिए सब कुछ छोडऩे को तैयार हूं और तुम डर रहे हो. सौरभ लंदन से घर आने वाला है, इसलिए यह काम जल्द करना होगा.’’

यह बात नवंबर 2024 की है. मुसकान रस्तोगी इसी तरह प्रेमी साहिल शुक्ला के साथ पति सौरभ की हत्या की प्लानिंग कर रही थी कि उस की हत्या भी हो जाए और कोई उन पर शक भी न करे. उसी दौरान सौरभ राजपूत का नवंबर 2024 में लंदन से भारत आने का कार्यक्रम स्थगित हो गया. सौरभ ने सोचा कि फरवरी 2025 में ही अपने घर जाएगा, क्योंकि इसी महीने उस की पत्नी मुसकान और बेटी का जन्मदिन था. सौरभ का घर लौटने का कार्यक्रम स्थगित हो जाने पर दोनों प्रेमी युगल बहुत उदास हुए. जैसेतैसे दोनों मौजमस्ती करते रहे. साथ जीने की कसमें दोहराते रहे.

इस तरह साल 2024 गुजर गया. फिर अचानक फोन पर सौरभ राजपूत ने पत्नी मुसकान रस्तोगी को बताया, ”जानू, मैं फरवरी, 2025 में निश्चित रूप से मेरठ आ रहा है. तुम्हारा जन्मदिन भी सेलिब्रेट होगा और हम दोनों के प्यार की निशानी बेटी के जन्मदिन पर भी पार्टी करेंगे.’’

यह खबर मिलने पर फिर से मुसकान और साहिल सौरभ कुमार की हत्या करने की साजिश बुनने में सक्रिय हो गए. इस के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह सौरभ की हत्या किसी किलर से नहीं कराएंगे, क्योंकि किसी बाहरी व्यक्ति से हत्या कराने का राज कुछ दिनों में खुल ही जाता है. इसलिए उन्होंने खुद ही उस की हत्या करने का प्लान बनाया, जिस से उस की हत्या राज ही बन कर रह जाए. मुसकान और साहिल ने ये प्लान बनाया कि हत्या के बाद या तो लाश के टुकड़े कर के अलगअलग जगहों पर फेंक देंगे या फिर लाश को कहीं सुनसान जगह पर दबा देंगे. ऐसी सुनसान जगह भी वह खोजने लगे.

साहिल शुक्ला ऐसी जगह तलाशने लगा, जहां हिंदू मृतक बच्चों या मृत पशुओं को दफनाते हों. दोनों ने शव को दफनाने के लिए एक जगह की तलाश की. वे एक गांव पहुंचे, जहां मृत जानवरों को दफनाया जाता था. सौरभ के शव को ठिकाने लगाने के लिए उन्हें यही जगह सही नजर आई.

मुसकान ने कैसे बनाया हत्या का प्लान

अपनी योजना के अनुसार 22 फरवरी, 2025 को मुसकान मेरठ के शारदा रोड पर एक डाक्टर के पास गई. यहां उस ने डाक्टर को बताया कि वह डिप्रेशन का शिकार है. रात को उसे नींद नहीं आती, सिर मैं दर्द रहता है. डाक्टर ने परची पर दवाइयां लिख दीं. डाक्टर की लिखी हुई दवाइयों से वह संतुष्ट नहीं हुई. इस के बाद उस ने गूगल का सहारा लिया. उस ने नींद की दवा और नशीली दवाओं के बारे में जानकारी हासिल की. इस के बाद उस ने डाक्टर की लिखी हुई परची पर ही उसी की राइटिंग से मेल खाती राइटिंग में अतिरिक्त दवाओं के नाम भी जोड़ दिए.

इस के बाद वह और साहिल खैरनगर गए. योजनानुसार वहां उन्होंने नींद की गोलियों के अलावा कुछ और भी दवाइयां खरीदीं. दोनों ने इस के बाद 800 रुपए की कीमत वाले 2 ऐसे चाकू खरीदे, जो चाकू पशु वध करने वाले कसाई प्रयोग करते हैं. दुकानदार ने पूछा किस काम के लिए छुरा चाहिए तब मुसकान ने बताया कि कभीकभी मुरगा काटने के लिए काम में लेना है. ब्लीचिंग पाउडर, परफ्यूम और पौलीथिन कट्टा खरीदा. 2 मजबूत किस्म के टूरिस्ट बैग भी खरीदे गए. साहिल ने कहा कि सौरभ को शराब पीने का शौक है. उसे शराब में नशे की गोलियां मिला कर दे देना. फिर मुझे फोन करना, मैं आ जाऊंगा. दोनों मिल कर सौरभ की गरदन काट कर हत्या कर देंगे. लाश के टुकड़े कर के इन बैगों में भर लेंगे और उन्हें इस गांव में गड्ïढा खोद कर दबा देंगे.

25 फरवरी, 2025 की रात को मुसकान का जन्मदिन था. इसलिए 24 फरवरी, 2025 को सौरभ लंदन से मेरठ अपने घर आ गया. 25 फरवरी को पतिपत्नी और बेटी ने मिल कर मुसकान के जन्मदिन को सादा तरीके से ही सेलिब्रेट किया, क्योंकि 28 फरवरी को बेटी का छठा जन्मदिन था. उस के जन्मदिन को बड़े उत्साह और जोशोखरोश के साथ मनाए जाने की लालसा के साथ सौरभ राजपूत मेरठ स्थित अपने घर आया था. दूसरे यह कि उस के पासपोर्ट की डेट भी एक्सपायर होने जा रही थी, उस का रिन्यूअल भी कराना था. बेटी का जन्मदिन उन्होंने बड़े उत्साह के साथ मनाया. पतिपत्नी और बेटी ने जम कर डांस भी किया, यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. अच्छे होटल से मनपसंद खाने का और्डर किया गया.

सब कुछ टेबल पर सजा दिया गया था. केक काटने के बाद सब से पहले बेटी को केक खिला कर जन्मदिन सेलिब्रेट किया गया. तीनों खाने की टेबल पर पहुंचे, तभी मुसकान ने अंगरेजी शराब का क्र्वाटर ला कर टेबल पर रख दिया. यह उच्च क्वालिटी की शराब  सौरभ लंदन से ही शौकिया इस्तेमाल करने के लिए लाया था. गिलास में नशीली गोलियां पीस कर डाल रखी थीं, जिस में शराब डाल कर सौरभ को दी जानी थी. लेकिन शराब का क्वार्टर देख कर ही सौरभ ने शराब पीने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि तबीयत ठीक नहीं है.

यह सुन कर मुसकान को गहरा धक्का लगा. इस से मुसकान रस्तोगी को लगा कि शायद सौरभ को उस पर कोई शक हो गया है. उस ने जल्दी से किचन में जा कर गिलास को धोया. 3 गिलास पानी ला कर टेबल पर रख दिए. उधर साहिल शुक्ला मुसकान का फोन न आने से बेचैन था. रात भर वह प्रेमिका मुसकान रस्तोगी के फोन का इंतजार करता रहा. नींद आंखों से कोसों दूर थी. अपनी तरफ से वह फोन कर नहीं सकता था, न ही कोई मैसेज भेज सकता था. वह जानता था, यदि सौरभ कुमार बेहोश नहीं हुआ होगा और उस ने फोन कर दिया तो सारी प्लानिंग फेल हो जाएगी. इधर मुसकान रस्तोगी की रात भी करवट बदलबदल कर ही कटी. फरवरी का महीना 28 दिन का था.

पहली मार्च को पतिपत्नी और बेटी ने शौपिंग की. घर पर मौजमस्ती की. रात को खाना होटल से ही मंगाया और खाना खा कर सो गए. 2 मार्च, 2025 को दोनों में तनातनी की बातें होने लगीं, लेकिन मुसकान ने उसे बहुत खूबसूरत अंदाज में टाल दिया. कहने लगी कि जानू, पुरानी बातों को भूल जाओ. मेरा इस संसार में तुम्हारे अलावा कोई नहीं है. मैं जिंदगी भर सिर्फ तुम्हारी ही बन कर रहूंगी. हम दोनों के बीच कभी कोई तीसरा नहीं आएगा. ऐसी प्यार भरी बातें सुन कर सौरभ राजपूत का दिल पिघल गया. उस ने आगे कोई मनमुटाव वाली बात नहीं की. मुसकान के दिमाग में तो अपनी योजना को पूरी करने का खाका घूम रहा था.

2 मार्च, 2025 का दिन मुसकान ने अपने पति से प्यार का नाटक कर के गुजार दिया. 3 मार्च को मुसकान ने कहा कि मैं मायके जा रही हूं. बेटी को भी मम्मी के पास छोड़ आऊंगी. फिर हम दोनों ही जवानी के इन खूबसूरत पलों का आनंद लेंगे. सौरभ इनकार नहीं कर सका. बात में कोई झोल भी नहीं थी. कोई साजिश भी नजर नहीं आ रही थी. यह बात 3 मार्च को दोपहर के खाना खाने के बाद की है.

सीने पर बैठ कर गोदा पति को

कुछ देर घर रुकने के बाद सौरभ राजपूत ने भी सोचा कि वह भी अपनी मम्मी के घर घूम आए. यहां उस की मम्मी बेचैनी से उस का इंतजार कर रही थी. क्योंकि करीब 2 साल बाद उन का बेटा लंदन से वापस मेरठ आया था. सौरभ को देखते ही मम्मी की आंखें भर आईं. मम्मी ने उस की पसंदीदा सब्जी लौकी के कोफ्ते बनाए. काफी शाम हो चुकी थी. उस की मम्मी बोली, ”खाना खा ले बेटा!’’

सौरभ कहने लगा, ”मम्मी, आप ऐसा करो कि लौकी के कोफ्ते की सब्जी मुसकान को भी बहुत पसंद है. आप पैक कर दो. हम दोनों साथ ही खा लेंगे.’’

उधर मुसकान ने प्रेमी से कह दिया कि हमारी योजना आज अंजाम तक पहुंच जाएगी. तुम तैयार रहना, मैं ने बेटी को भी अपनी मम्मी के घर छोड़ दिया है. कोशिश करूंगी कि आज रात को खाने में उस को नींद की गोलियां मिला कर दे दूं. सौरभ राजपूत अपनी मां के घर से लौकी के कोफ्ते पैक करा कर लाया था, मुसकान ने उस की सब्जी में नींद की गोलियां मिला कर उसे खिला दीं. इस तरह मुसकान ने अपने पति को बेहोश कर दिया. रात लगभग 11 बजे सौरभ गहरी नींद में सो गया. लगभग 12 बजे मुसकान ने प्रेमी साहिल शुक्ला को मुसकान ने फोन किया. साहिल करीब साढ़े 12 बजे मुसकान के घर पहुंच गया. साहिल शुक्ला ने भी चैक कर के देखा कि सौरभ राजपूत बेहोश है या नहीं.

पूरा यकीन हो जाने पर साहिल शुक्ला ने मुसकान को इशारा किया. इशारा पाते ही मुसकान सौरभ के सीने पर आ कर बैठ गई. तभी बाजार से लाया गया छुरा पति के सीने में घुसेड़ दिया. सौरभ की तेज चीख निकली, लेकिन नींद में होने की वजह से वह कोई विरोध नहीं कर सका. दूसरे साहिल ने उस के पैर दबोच रखे थे. इस के बाद जिस ने पैर पकड़े हुए थे, उस ने उस छुरे को पकड़ लिया और जिस ने छुरा पकड़ा हुआ था, उस ने पैरों को पकड़ लिया. फिर साहिल ने एक के बाद एक छुरे से सीने पर वार किए. सौरभ रो रहा था. गिड़गिड़ा रहा था. कह रहा था कि जैसा तुम कहोगे, मैं वैसा करूंगा. मुझे माफ कर दो, मुझे छोड़ दो. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मैं तुम से बहुत दूर चला जाऊंगा. तुम्हारी जिंदगी में कभी लौट कर नहीं आऊंगा. वह इस तरह से गिड़गिड़ाता चला गया, लेकिन दोनों पर इन बातों का कोई असर नहीं पड़ रहा था.

यह आवाज, दवाओं के नशे में दबी उस की चीखपुकार दोनों कातिलों के कानों तक पहुंच तो रही थी. मगर उस की चीख और उस की इल्तेजा का दोनों पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. वह अपना काम बड़े इत्मीनान से बहुत आराम से कर रहे थे. आखिरकार लगभग 25 से 30 मिनट तक वह व्यक्ति ऐसे ही दर्द से तड़पता रहा और फिर दम तोड़ दिया. उस की नब्ज को टटोल कर देखने के बाद सौरभ राजपूत की लाश को दोनों खींच कर बाथरूम में ले गए. उस के हाथों को काट दिया गया. गरदन धड़ से अलग कर दी गई. ब्लीचिंग पाउडर से सब धो कर साफ किया गया.

उस के बाद साहिल शुक्ला जो बैग खरीद कर लाया था, उस में गरदन और हाथों को रख कर ठिकाने लगाने के लिए अपने साथ अपने घर ले गया. मुसकान कटे हुए शरीर के शेष भाग को डबल बैड में डाल कर उसी बैड पर लेटी रही. साहिल शुक्ला बैग ले कर वापस मुसकान के पास आया 4 मार्च की बात है. उस ने कहा कि कहीं दूर ले जा कर फेंकने का मौका नहीं लगा, इसलिए इसे ठिकाने लगाने का कोई और तरीका सोचते हैं. नई योजना के तहत दोनों ने घंटाघर से प्लास्टिक का एक बड़ा नीला ड्रम और स्थानीय बाजार से सीमेंट खरीदा.

हत्या के बाद शादी कर मनाया हनीमून

मुसकान के घर लौट कर उन्होंने धड़ को ड्रम में डाल दिया. उस के बाद साहिल ने सिर और हाथ निकाल कर सीमेंट और कंक्रीट का घोल ड्रम में डाल दिया. सीमेंट और कंक्रीट के घोल से उन्होंने ड्रम को सील कर दिया. इस तरह सौरभ के क्षतविक्षत शरीर को कंक्रीट की कब्र में दफना दिया गया. हत्या के बाद हिल स्टेशन घूमने का प्रोग्राम बनाया. साहिल ने एक ट्रैवल एजेंसी से हिमाचल के 15 दिनों के टूर के लिए 54 हजार रुपए में एक टैक्सी बुक की. ट्रैवल एजेंसी को सािहल ने अपना नाम विकास बताया था. मुसकान ने पड़ोसियों को बताया था कि वह कई दिन के टूर पर हिमाचल घूमने जा रही है.

4 मार्च, 2025 को टैक्सी ड्राइवर अजब सिंह की स्वीट डिजायर कार से मुसकान और टूर पर निकल गए. वह सब से पहले शिमला पहुंचे. वहां पर दोनों ने एक मंदिर में शादी की. उस के बाद हनीमून मनाने के लिए मनाली चले गए. शिमला के एक होटल में साहिल का जन्मदिन मनाने की मुसकान ने प्लानिंग की. मुसकान ने ड्राइवर अजब सिंह से एक केक मंगाया. उस से कहा गया कि इस बात को गुप्त रखना, क्योंकि वह साहिल को सरप्राइस देना चाहती थी. साहिल का जन्मदिन मनाया गया. इस दौरान उन्होंने केक काटा और डांस किया. केक काटते और किस करते दोनों का एक वीडियो भी वायरल हुआ है.

दोनों ने कसोल में होटल पूर्णिमा में 10 मार्च को चैकइन करने के बाद 16 मार्च तक वहां रहे. 6 दिनों तक ठहरने के दौरान उन्होंने ज्यादातर समय कमरे में ही बिताया. ड्राइवर को जितना भी पेमेंट किया, मुसकान ने ही अपने यूपीआई से किया था. साहिल ने पेमेंट कभी नहीं किया. कुल मिला कर टोटल जितने दिन वे टूर पर रहे, सभी पेमेंट मुसकान के मोबाइल से औनलाइन ही किया गया. सौरभ का मोबाइल भी मुसकान के पास ही था. वह लगातार उसी के मोबाइल से अपनी बेटी और अपने मम्मीपापा से भी कांटेक्ट कर रही थी और सौरभ के घर वालों से भी कांटेक्ट में थी. दोनों परिवारों को उस ने फोन से गुमराह किया.

शिमला की हसीन वादियों की तसवीर और वीडियो देख कर ये लोग समझते रहे कि सौरभ अपनी पत्नी मुसकान के साथ शिमला की वादियों में मौजमस्ती कर रहा है. 17 मार्च को रात के 10 -11 बजे के करीब शिमला से लौटे, तब मुसकान और साहिल एक साथ ही मुसकान के कमरे पर रुके. उन्हें अब तो किसी तरह का खौफ नहीं था. मुसकान का पति सौरभ अब ड्रम में कैद था. वह भी इस तरह से जो बाहर न निकल सके.

पेरेंट्स ने किया बेटी को पुलिस के हवाले

दोनों ने ड्रम का मुआयना किया. ड्रम इतना भारी था कि उन से खिसक नहीं रहा था. इस में से हलकीहलकी बदबू भी आ रही थी. सुबह उठ कर साहिल ने 3-4 मजदूरों की व्यवस्था की, जिस से ड्रम को कहीं ठिकाने लगाया जा सके. मजदूर इस मकान के दूसरे गेट से बुलाए गए, जोकि कभी प्रयोग में नहीं आता था. यह रास्ता एक पतली गली में खुलता है. मजदूरों ने ड्रम को निकालने की कोशिश की, लेकिन बहुत भारी होने तथा बदबू आने के कारण वे ड्रम को घर से बाहर नहीं निकाल सके. सो वे वापस चले गए. इस से मुसकान और साहिल दोनों घबरा गए. दोनों ने काफी  चिंतन किया कि अब क्या किया जाए. तो मुसकान ने कहा कि मैं अब अपने मम्मीपापा से सलाह करती हूं. उस के बाद सोचेंगे कि क्या करना है.

यह कह कर मुसकान ने अपनी मम्मी को फोन किया. फिर उस के बाद मायके पहुंची. मुसकान ने मम्मीपापा को पति सौरभ की हत्या करने की बात बताई. प्रमोद रस्तोगी और उन की पत्नी कविता रस्तोगी 18 मार्च, 2025 को मुसकान रस्तोगी उर्फ शोभी (27 साल) को साथ ले कर मेरठ के थाना ब्रह्मïपुरी पहुंच गए. वहां मौजूद एसएचओ रमाकांत पचेरी को उन्होंने बताया कि इस लड़की ने मेरे दामाद सौरभ राजपूत को बहुत बुरी तरह से मार दिया है. इस को गिरफ्तार कर के जेल भेज दो. उस के बाद इसे फांसी चढ़ा दो. हम अपनी इस बेटी को कभी देखना नहीं चाहते.

एसएचओ ने जैसे ही ये बात सुनी, उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. वह सोचने पर मजबूर हो गए कि शायद ये भारत के पहले ऐसे मांबाप होंगे जो अपनी ही बेटी को फांसी चढ़ते हुए देखना चाहते हैं और ये पहले ही ऐसे मांबाप होंगे, जो अपनी बेटी का हाथ पकड़ कर थाने लाए हैं. एसएचओ रमाकांत पचेरी ने शुरुआती पूछताछ के बाद मामले की जानकारी उच्च अधिकारियों को दी. एसएचओ पुलिस फोर्स ले कर उस स्थान पर पहुंचे, जहां पर मुसकान रस्तोगी ने अपने प्रेमी साहिल शुक्ला के ठहरे होने का पता बताया था.

साहिल शुक्ला उस स्थान पर आराम से बेखौफ बैठा था. किसी तरह की घबराहट व शिकन उस के चेहरे पर नहीं थी. 2 सिपाहियों ने आगे बढ़ कर उसे हिरासत में ले लिया. आराम से बिना किसी झंझट के पुलिस साहिल शुक्ला को पकड़ कर थाने ले आई. साहिल शुक्ला ने भागने की भी कोई कोशिश नहीं की. उच्च अधिकारी भी सक्रिय हो गए. फिर दोनों से पूछताछ शुरू की गई. मैराथन पूछताछ के बाद एक नए तरह की हत्या का मामला सामने आया. किसी की हत्या कर के तंदूर, फ्रिज, सूटकेस, ईंट भट्ठा, डबल बैड, सेफ्टी टैंक आदि में लाश छिपाने के अनेक मामले देश में चर्चित हो चुके हैं. अब यह मामला सीमेंट ड्रम किलर के नाम से जाना जाएगा. दोनों ने पहले तो पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन अलगअलग पूछताछ हुई तो उन्होंने पूरा सच उगल दिया.

हत्या के इस खुलासे ने मेरठ ही नहीं, पूरे प्रदेश और देश के लोगों की दिमाग की चूलें हिला दीं. पुलिस का अनुमान है कि यह तरीका शायद फिल्म देख कर दोनों को आया होगा. इतनी जानकारी मिलने पर पुलिस ने छापा मार कर ड्रम बरामद किया. उस में से  शव निकालने की कोशिश की. लेकिन कामयाबी नहीं मिली. पंचनामा भर कर उसे ऐसे ही पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया. ड्रम मेरठ के एक सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर पहुंचा. ड्रम जरूरत से ज्यादा भारी था, न यह ड्रम खुल पा रहा था, न ही इसे तोड़ा जा सका था. लिहाजा पुलिस ने तय किया कि इस ड्रम को मशीन से काटा जाए. कुछ देर में ही मशीन और मैकेनिक मुर्दाघर में बुला लिए गए. अब बारी ड्रम को काटने की थी.

बड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार ड्रम को काटने में कामयाबी मिली. दरअसल, इस ड्रम के अंदर सीमेंट कंक्रीट का घोल भर दिया गया था, जिस की वजह से वह जम कर पत्थर की तरह सख्त हो चुका था. अब ड्रम काटने के बाद उस के अंदर जमे हुए सीमेंट के टुकड़ों को भी मशीन से काटने का काम शुरू हो गया. थोड़ी देर बाद सारे टुकड़े अलग हो गए. फिर उन्हीं टुकड़ों में से 4 टुकड़ों में बिखरी सौरभ राजपूत की लाश निकली. ड्रम में टुकड़ों में बंद होने के पूरे 14 दिन बाद काली पौलीथिन में सौरभ की लाश के 4 टुकड़े निकले. डाक्टरों की एक टीम द्वारा पोस्टमार्टम किया गया.

सीएमओ अशोक कटारिया ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा कि शव की हालत काफी खराब थी. बौडी को गलाने के लिए सीमेंट से प्लास्टर किया गया था. दांत हिल रहे थे. स्किन ढीली पड़ गई थी. गरदन के चारों तरफ घाव थे. दाएं कान से 7 सेंटीमीटर नीचे घाव मिला. जबड़े के दाईं ओर 4 सेंटीमीटर का घाव मिला. ठोड़ी से 6 सेंटीमीटर नीचे जख्म था. बाएं कान से 8 सेंटीमीटर नीचे और जबड़े के बाएं कोने से 4 सेंटीमीटर नीचे जख्म मिले. 3 जख्म बाईं छाती पर मिले. एक जख्म 6 सेंटीमीटर गहरा था. छुरी दिल को चीरते हुए निकल गई थी. सौरभ के पैर धड़ की तरफ मुड़े थे, जिन्हें सीधा करना मुश्किल हो गया था.

इस तरह दोनों शातिर कातिलों की गिरफ्तारी होने के बाद सौरभ हत्याकांड का खुलासा हुआ. इस सनसनीखेज मामले ने मेरठ को ही नहीं, बल्कि देश भर के लोगों को सन्न कर दिया. यह कहानी प्यार, धोखे और अपराध की एक दुखद मिसाल है, जहां एक प्रेम प्रसंग ने एक निर्दोष की जान ले ली. मुसकान उत्तर प्रदेश के महानगर मेरठ की मास्टर कालोनी, ब्रह्मपुरी क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के परिवार में पेरेंट्स के अलावा एक छोटा भाई है. मुसकान के पापा प्रमोद रस्तोगी मेरठ में किराने की दुकान चलाते थे. मम्मी कविता रस्तोगी एक गृहिणी थीं, जो परिवार की देखभाल करती थीं. परिवार की आर्थिक स्थिति औसत है, न ज्यादा अमीर न ही गरीब.

मुसकान ने सौरभ से भाग कर की थी शादी

मुसकान अपने परिवार में सब से बड़ी संतान थी और शुरू में उसे घर में काफी लाड़प्यार मिला. पड़ोसियों के अनुसार, वह बचपन में शांत और आज्ञाकारी थी, लेकिन किशोरावस्था में आते ही उस का व्यवहार बदलने लगा. उस की पढ़ाई मेरठ के विवेकानंद स्कूल से शुरू हुई. मुसकान के नाना ज्योतिषी थे और सौरभ के परिवार के लोग मुसकान के घर जाते थे. इस दौरान दोनों में प्रेम प्रसंग हुआ. 2015 में जब मुसकान की सौरभ से दोस्ती हुई. दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटा और देखते ही देखते विशाल वृक्ष के रूप में फैल गया.

मुसकान की सुंदरता, बौडी लैंग्वेज व फिगर किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं थी. सौरभ के शरीर से भी उस का यौवन छलक रहा था. इन के प्रेम प्रसंग की बात दोनों के परिवारों को पता लगी. अब दोनों ही ने अपनेअपने बच्चों को इस संबंध को खत्म करने की सलाह दी, लेकिन इन दोनों पर तो प्यार का भूत सवार हो चुका था. इन्होंने अपने घर वालों की कोई बात नहीं मानी और विवाह के लिए दबाव बनाने लगे. सौरभ एक राजपूत परिवार से था, जबकि मुसकान रस्तोगी थी. इस अंतरजातीय विवाह को ले कर दोनों परिवारों में असहमति थी. प्यार की खातिर मुसकान और सौरभ ने अपनेअपने परिजनों से बगावत कर दी और दोनों घर छोड़ कर फरार हो गए.

दोनों ही अपने घर वालों के लिए बहुत ही दुलारे और प्यारे थे. इसलिए दोनों को तलाश कर के घर बुला लिया गया. सौरभ राजपूत और मुसकान रस्तोगी के बीच प्रेम प्रसंग चलता रहा. सौरभ के घर वाले किसी भी कीमत पर मुसकान से विवाह करने के लिए राजी नहीं थे. अंजाम यह हुआ कि दोनों ने खुद निर्णय लेते हुए सन 2016 में प्रेम विवाह कर लिया. हालांकि मुसकान की जिद के आगे उस के पेरेंट्स को झुकना पड़ा. लेकिन सौरभ के परिवार ने इस शादी को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया था.

शादी के बाद मुसकान सौरभ के साथ इंदिरानगर फेज वन में किराए के मकान में रहने लगी. शादी के समय सौरभ मर्चेंट नेवी में दुबई में नौकरी कर रहा था. हालांकि शादी के एक साल बाद ही नौकरी छोड़ कर सौरभ राजपूत मेरठ वापस आ गया और यहीं दिल्ली रोड पर एक प्लाईवुड कंपनी में नौकरी करने लगा. अब उस की माली हालत पहले जैसी नहीं रही. दुबई में नेवी की नौकरी में खूब पैसा मिलता था. दुबई के रुपए की वैल्यू भी अथिक थी, जिस से भारतीय रुपए काफी मिल जाते थे. आर्थिक तंगी से जूझ रहे सौरभ ने अपने पेरेंट्स से संबंध नौरमल किए. समय के साथ स्थिति सामान्य हो गई. सौरभ के फेमिली वाले भी धीरेधीरे सामान्य हो गए, क्योंकि सौरभ अपनी मां से मिलने अकसर जाता रहता था. इस तरह मुसकान को ले कर अपने घर वापस आ गया.

2019 में उन की एक बेटी हुई. शुरुआती सालों में उन की गृहस्थी ठीक चली, लेकिन बाद में रिश्तों में दरारें आने लगीं. बेटी की पैदाइश के बाद मुसकान ने घर में कोहराम मचाना शुरू कर दिया. आए दिन सासससुर से झगड़ा होने लगा. सौरभ की स्थिति गले में हड्ïडी अटकने जैसी हो गई, जिसे न उगल सकता था न निगल सकता था. मुसकान को समझाने के सभी प्रयास विफल हो गए. तंग आ कर उस के मम्मीपापा ने दोनों को घर से निकालने की चेतावनी दे दी. मुसकान यही चाहती थी. इसी बात को ले कर झगड़ा और कोहराम मचाया करती थी.

सौरभ राजपूत के पिता का नाम मुन्नालाल राजपूत है. सौरभ का एक भाई राहुल उर्फ बबलू है. मां रेणु देवी हैं. परिवार मेरठ के ही ब्रह्मपुरी में रहता है. सौरभ के घर वालों ने मुसकान रस्तोगी के पेरेंट्स पर भी सौरभ हत्याकांड में शामिल होने का आरोप लगाया है. इन का कहना है कि जब उस की शादी हुई, हमारे घर में आ कर वो 2 साल तक बहुत अच्छे से रही. घर में हर चीज उसे हम ने उपलब्ध कराई. उस की दुबई में जौब थी. मुसकान का जैसे ही अपने मायके आनाजाना शुरू हुआ तो उस के तेवर बदलने लगे.

सौरभ दुबई चला गया था. उस के बाद मुसकान ने घर में बातबात पर लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया. कहने लगी कि तुम्हारे घर में भूत हैं, बलाएं हैं. हम उसे हमेशा टाल देते थे. मम्मी को बहुत परेशान करती थी. कभी भी रात में उठ जाती थी, सारे बरतन फेंकने लग जाती थी. 6 महीने की बेटी को भी जमीन पर रख कर धमकी देती थी कि मैं इसे फेंक दूंगी. उस की एक ही रट थी, मैं घर छोड़ कर जाऊंगी. मुझे जाने दो. तभी उस ने ये लाइन बोली थी कि मैं तुम्हें तुम्हारे लड़के का मुंह नहीं देखने दूंगी.

सौरभ अपनी पत्नी मुसकान के साथ मेरठ के इंदिरा नगर में किराए पर रहने लगा. मुसकान के महंगे शौक थे, जिस के चलते उस ने परिवार से दूरी बना ली. एक बार की बात है. करीब एक साल की उस की बच्ची लगातार रो रही थी. रोतेरोते काफी देर हो गई. उस के रोने की आवाजें मकान मालिक तक पहुंचीं. मकान मालिक जब उस बच्ची के पास पहुंचा तो उस ने उस की मम्मी को ढूंढना शुरू किया. उसे मुसकान एक पुरुष के साथ आपत्तिजनक स्थिति में मिली. मकान मालिक को उसे बहुत बुरा लगा. हालांकि मुसकान को भी यह बात पता चल गई थी कि मकान मालिक ने उसे इस हालत में देख लिया है.

बाद में उस ने मकान मालिक को शांत करने की कोशिश की. उस के हाथपैर जोड़े, लेकिन मकान मालिक शांत नहीं हुआ. बल्कि उस ने सीधे सौरभ को फोन मिलाया और कहा कि तुम्हारी पत्नी को मैं ने किसी दूसरे मर्द के साथ आपत्तिजनक हालत में देखा है. तुम अपना घर बिगडऩे से बचा सकते हो तो बचा लो. सौरभ ने अपनी पत्नी को डांटाफटकारा. मुसकान ने भी कसम खाई कि ऐसी गलती कभी दोबारा नहीं करेगी. यह बात आईगई हो गई.

पेरेंट्स के प्यार से अछूता रहा साहिल

साहिल शुक्ला मेरठ के ब्रह्मपुरी इलाके का रहने वाला था. उस की पारिवारिक स्थिति काफी अस्थिर रही. साहिल की नानी सरोजनी शुक्ला के बयान के अनुसार, उस की मम्मी ज्योति का निधन 18 साल पहले हो चुका था, जब वह काफी छोटा था. उस के पापा नोएडा में काम करते थे. उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी. इस तरह साहिल का बचपन मम्मी की गैरमौजूदगी और पिता की कम मौजूदगी के बीच बीता, जिस ने शायद उस के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डाला. वह अपने नानानानी के साथ रहता था. साहिल की नानी सरोजिनी शुक्ला ने बताया कि साहिल ऊपर के कमरे में रहता था. लैपटाप पर कुछ काम करता रहता था. उन्हें उस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उस की पढ़ाई का खर्चा उस के पापा कभीकभी भेज दिया करते थे.

साहिल और मुसकान की दोस्ती स्कूल के दिनों से शुरू हुई थी. दोनों मेरठ के विवेकानंद स्कूल में आठवीं कक्षा तक साथ पढ़े थे. इस के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए. लेकिन सालों बाद विवेकानंद स्कूल में आठवीं तक साथ पढऩे वाले स्टूडेंट्स ने एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया. साहिल और मुसकान भी उस ग्रुप में मेंबर बने थे. यहां से दोनों की फिर से बातचीत शुरू हुई. मुसकान की शिक्षा ज्यादा आगे नहीं बढ़ी. वह आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुकी थी. वहीं साहिल ने अपनी पढ़ाई जारी रखी.

साहिल के कमरे में पुलिस को शराब की बोतलें, बिखरे कपड़े और दीवारों पर तंत्रमंत्र से जुड़ी अजीबोगरीब तसवीरें मिलीं. कमरे में भगवान शिव की तसवीरों के साथसाथ साधना और तंत्र से जुड़े चित्र मिले, जो उस ने खुद बनाए थे. मुसकान ने इस कमजोरी का फायदा उठाया और स्नैपचैट पर फरजी आईडी बना कर साहिल को यह विश्वास दिलाया कि उस की मृत मम्मी की आत्मा उस से बात कर रही है और सौरभ की हत्या का आदेश दे रही है.

साहिल इस बहकावे में आ गया, जो उस की आसानी से प्रभावित होने वाली मानसिकता को दिखाता है. पुलिस का मानना है कि वह इस बहाने खुद को कानूनी सजा से बचाने की कोशिश भी कर रहा है. पुलिस ने साहिल शुक्ला और मुसकान उर्फ शोभी से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. सीमेंट ड्रम किलर की पूरी कमान एसपी (सिटी) मेरठ आयुष विक्रम सिंह संभाले हुए हैं. पूरे मामले की हर पहलू से जांच कराई जा रही है. मुसकान रस्तोगी और साहिल शुक्ला जेल में बंद हैं. अभी तक कोई भी दोनों के परिवार में से जेल में उन से मुलाकात करने नहीं गया.

बेटी इस समय अपनी नानी के घर है. क्योंकि सौरभ राजपूत के अपने घर वालों से संबंध ज्यादा अच्छे नहीं थे. पापा ने तो अपनी चलअचल संपत्ति से भी सौरभ राजपूत को बेदखल कर दिया था. घटना की खबर भाई को भी लाश मिलने के बाद हुई थी. भाई राहुल की तहरीर पर ही मुकदमा दर्ज किया गया था. UP Crime News

Love Crime : इश्क में अंधी बेटी ने प्रेमी के संग मिलकर मां को डंडे से पीट कर मार डाला

Love Crime : जावेद से शादी हो जाने के बाद भी सबीना ने शादी से पहले के प्रेमी मोइन से संबंध बनाए रखे. यही उस की सब से बड़ी भूल साबित हुई. फिर एक दिन…

10 अगस्त, 2020 की सुबह. जिला कौशांबी के गांव चपहुआ के लोग अपने खेतों की ओर जा रहे थे. तभी कुछ लोगों की नजर नाले के पास उगी झाडि़यों की तरफ गई. वहां कुछ था. उन लोगों ने करीब जा कर देखा तो किसी महिला की लाश पड़ी थी. ध्यान से देखने पर पता चला कि लाश उन के गांव की रहने वाली 45 वर्षीय गुडि़या की है. गुडि़या बब्बू हसन की पत्नी थी, जो पिछले 2 दिनों से घर से गायब थी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का पता नहीं चल पाया था तो बब्बू के साले यानी गुडि़या के भाई आफताब ने चरवा कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुडि़या की गुमशुदगी दर्ज होते ही चरवा थाने की पुलिस उस की खोजबीन में जुट गई थी. पुलिस तो उस का पता नहीं लगा पाई, लेकिन 10 अगस्त को नाले के पास झाडि़यों में उस की लाश मिल गई. लाश मिलने की सूचना किसी ने चरवा थाने को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतशरण सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और इस बात से एएसपी समरबहादुर को भी अवगत करा दिया. थानाप्रभारी ने लाश की बारीकी से जांचपड़ताल की तो पाया कि मृतका के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर उसे मौत के घाट उतारा गया था. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने गुडि़या की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के भाई आफताब की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मृतका गुडि़या की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एएसपी समरबहादुर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी संतशरण सिंह, एसआई शिवशरण, हेडकांस्टेबल शिवसागर, कांस्टेबल श्रवण कुमार, छाया शर्मा आदि को शामिल किया गया. इंसपेक्टर संतशरण सिंह ने सब से पहले मृतका की शादीशुदा बेटी सबीना से पूछताछ की, लेकिन उस का रोरो कर बुरा हाल था.  वह ठीक से कुछ नहीं बता पाई.पता चला कि सबीना अपनी बहनों रुबीना, गुलिस्ता और छोटे भाई हसनैन में दूसरे नंबर की थी.

करीब 4 साल पहले उस की शादी कौशांबी के ही दारानगर निवासी जावेद अहमद से हुई थी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन हत्या को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका. एएसपी समरबहादुर मामले की प्रगति की बराबर रिपोर्ट ले रहे थे. थानाप्रभारी संतशरण सिंह ने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि सबीना अपने पति को छोड़ कर मायके में क्यों रह रही थी, जबकि उस का अपने पति से तलाक भी नहीं हुआ था. पता चला कि सबीना का पति जावेद उम्रदराज था, जिसे वह पसंद नहीं करती थी, इसी वजह से वह अपने बच्चों को ले कर मायके में मां के पास रहती थी.

मुखबिरों का जाल बिछाया गया तो परतें खुलने लगीं, जिस में पुलिस को सबीना संदिग्ध नजर आई. पता चला कि सबीना का आए दिन अपनी मां गुडि़या के साथ विवाद होता था. मांबेटी के बीच विवाद की क्या वजह थी, इस दिशा में पड़ताल की गई तो जानकारी मिली कि शादी के बाद भी सबीना का अपने ही गांव के मोइन से इश्क चल रहा था. अपनी मां की आंखों में धूल झोंक कर वह मोइन से खेतों में मिला करती थी. पुलिस के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. चूंकि सबीना शुरू से ही संदेह के दायरे में थी, इसलिए आगे की काररवाई के लिए सबीना और उस के प्रेमी मोइन को पूछताछ के लिए थाने लाया गया और दोनों से पूछताछ की गई.

संदेह पर पुलिस की नजर पूछताछ के दौरान शुरू में सबीना और उस का प्रेमी मोइन अपने आप को निर्दोष बताते रहे. मोइन ने तो यहां तक कहा कि हम दोनों एक ही गांव के रहने वाले हैं, इस लिहाज से हमारा रिश्ता भाईबहन जैसा है. हां, पड़ोसी होने के नाते मेरा इस के घर में शुरू से ही आनाजाना था. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह मेरी माशूका है. मैं इसे अपनी बहन मानता हूं. किसी ने आप को गलत सूचना दे कर हमें फंसाने और बदनाम करने की साजिश की है. सबीना भी पीछे रहने वाली नहीं थी. उस ने भी मोइन की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मृतका मेरी सौतेली नहीं, सगी मां थी, जिस ने मुझे जन्म दिया था. मैं भला अपनी मां की हत्यारिन कैसे हो सकती हूं.’’

सबीना आवाज में थोड़ा तीखापन लाते हुए आगे बोली, ‘‘मोइन भाई से मेरा कोई ऐसावैसा संबंध नहीं है. आप लोग सुनीसुनाई बातों में आ कर नाहक हमें रुसवा करने पर तुले हैं. मैं आप की इस हरकत की शिकायत बड़े अधिकारियों से करूंगी.’’

थाने के अंदर मोइन और सबीना का यह ड्रामा काफी देर तक चला. लेकिन पुलिस के पास दोनों के अवैध संबंधों की पुख्ता जानकारी थी. इसलिए पुलिस ने जब अपना हथकंडा अपनाया तो दोनों थोड़ी ही देर में टूट गए और अपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गुडि़या की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सबीना मोइन को चाहने लगी थी, मोइन उस का हमउम्र और पड़ोसी था. प्यार की छलांग में दोनों काफी आगे निकल चुके थे. उन्हें किसी की परवाह नहीं थी न गांव वालों की और न ही अपनेअपने घर वालों की. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, उन का प्यार आंखों की बेकरारी से उतर कर शारीरिक संबंधों तक पहुंच गया था.

जिस की जानकारी सबीना की मां गुडि़या को हुई तो उस ने बेटी को काफी समझाया पर सबीना कहां मानने वाली थी. उस पर तो मोइन के प्यार का नशा चढ़ा था, जिस की वह कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थी. जब वह नहीं मानी तो घर वालों ने उस की शादी कौशांबी जिले के दारानगर निवासी जावेद से तय कर दी. जावेद उम्र में उस से काफी बड़ा था. सबीना ने इस शादी का विरोध किया लेकिन मांबाप, बहनोंबहनोइयों, नातेरिश्तेदारों के आगे उस की एक न चली और आननफानन में जावेद अहमद के साथ उस का निकाह हो गया. सबीना के सारे अरमान धरे रह गए. समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. देखतेदेखते सबीना 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन उस के दिल को मोइन की मोहब्बत और साथ हमेशा सालता रहा.

अब उसे पति जावेद बूढ़ा नजर आने लगा था. किसी न किसी बात पर सबीना उस से झगड़ती रहती थी. फिर एक दिन वह भी आया जब पति से उस की कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गई. वह पति से नाराज हो कर अपने मायके आ गई. करीब साल भर से वह मायके में ही रह रही थी. सबीना के मायके लौट आने से मोइन की तो जैसे लाटरी लग गई. फिर से दोनों का मिलन होने लगा. अब दोनों बेखौफ हो कर एकदूसरे से मिलते, सबीना की मां गुडि़या इस का पुरजोर विरोध करती थी. लेकिन सबीना के आगे उस की एक नहीं चलती थी. सबीना मां को सफाई दे कर मोइन के साथ मौजमस्ती करती रही.

एक दिन गुडि़या ने सबीना को मोइन के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. खेतों से लौट कर उस ने सबीना को अपने पति के पास लौट जाने को कहा, लेकिन सबीना मोइन के प्रेम में दीवानी थी. उस पर मां की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उलटे वह मां से लड़नेझगड़ने लगी.

फिर तो आए दिन मांबेटी के बीच झगड़ा होने लगा. मां उसे बारबार अपनी ससुराल जाने को कहती लेकिन वह ससुराल जाने से मना कर देती थी. हत्या की योजना आखिरकार रोजरोज की चिकचिक से आजिज सबीना ने एक कठोर निर्णय ले लिया. मोइन के प्यार में पागल, दीवानी बेटी ने अपनी मां की हत्या की साजिश रच डाली. उसे प्रेमी का प्रेम या हवस के आगे मां सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी. सबीना ने मां गुडि़या की हत्या की योजना प्रेमी मोइन को बता दी. पहले तो उस ने ऐसा करने से मना किया, लेकिन बाद में हत्या की योजना में शामिल हो गया. सबीना की तरह प्यार में अंधा मोइन प्रेमिका के लिए कुछ भी करने को तैयार था. मोइन ने अपनी योजना में अपने दोस्तों मोनू और मोहम्मद सद्दाम से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए थे.

तय योजना के अनुसार 8 अगस्त, 2020 को मोइन और उस के साथियों मोनू और मोहम्मद सद्दाम ने मिल कर गुडि़या को उस समय मौत के घाट उतार दिया, जब वह घूमने के लिए खेतों की तरफ निकली थी, उस की हत्या डंडे से पीटपीट कर की गई थी. सिर में भी डंडा मारा गया था जो जानलेवा साबित हुआ. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या के लिए प्रयुक्त डंडा, मृतका की एक जोड़ी चप्पलें बरामद कीं. गुडि़या की हत्या के आरोप में उस की बेटी सबीना, उस के आशिक मोइन मोनू उर्फ निहाल और मोहम्मद सद्दाम को जिला न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.