UP Crime News : सौतेली बेटी की साजिश

UP Crime News : सीमा की हरकतों से तंग आ कर पति ने ही नहीं, पालनेपोसने वाले दादादादी ने भी साथ रखने से मना कर दिया था. इस के बाद उसे सहारा दिया सौतेले पिता गुलाब खान ने. लेकिन वह उन की भी न हो सकी और उस ने जो किया, आज सलाखों के पीछे है. मामला एक रिटायर्ड अग्निशमन कर्मचारी गुलाब खान की बेरहमी से हत्या का था, इसलिए सूचना मिलते ही संबंधित थाना जगदीशपुरा के थानाप्रभारी अजयपाल सिंह के अलावा अन्य कई थानों की पुलिस के साथ एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) समीर सौरभ, एएसपी शैलेश कुमार पांडेय भी घटनास्थल पर आ गए थे.

शव के निरीक्षण से पता चला कि पहले सिर पर किसी भारी चीज से मार कर बेहोश किया गया था, उस के बाद गले में रस्सी लपेट कर गला घोंट दिया गया था. गुलाब खान की मौत गला घोंटने से हुई थी या सिर पर गंभीर चोट लगने से, यह पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकता था. जिस मकान में हत्या की गई थी, वह उन का अपना मकान था, लेकिन उसे देख कर ही लग रहा था कि उस मकान में कोई रहता नहीं था. फर्श पर जमी धूल से साफ लग रहा था कि वहां महीनों से कोई नहीं आया था. इस बात ने पुलिस वालों को यह सोचने को मजबूर कर दिया था कि उस दिन गुलाब खान इस मकान में क्या करने आए थे?

मकान में 2 दरवाजे थे, एक दरवाजा बगल में बनी मसजिद के बराबर में खुलता था, जबकि दूसरा दरवाजा एक ऐसी सुनसान गली में खुलता था, जिस का उपयोग महिलाएं सिर्फ दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के लिए करती थीं. निरीक्षण में एसएसपी शलभ माथुर ने देखा कि उस दिन मकान का सुनसान गली की ओर खुलने वाला दरवाजा खोला गया था. क्योंकि फर्श पर जमी धूल में उस ओर 3-4 तरह के जूतों के आनेजाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. निशान भी ताजे थे, जिन में जूतों की तल्ले की डिजाइन तक साफ नजर आ रही थी. पूछताछ में पता चला कि मृतक गुलाब खान बेर का नगला में काफी सालों से रह रहे थे. उन के 2 छोटे भाई भी वहीं पास में ही रहते थे. मोहल्ले में उन के 2 मकान थे.

एक मकान में वह अपनी पत्नी और बेटी सीमा के साथ रहते थे, जबकि यह दूसरा मकान पुराना और जर्जर होने की वजह से खाली पड़ा था. इसे वह तुड़वा कर दोबारा बनवाने के बारे में सोच रहे थे. गुलाब खान के परिवार में पत्नी और 2 बेटे थे. दोनों ही बेटे अपनेअपने परिवारों के साथ अलगअलग मकानों में रह रहे थे. एसएसपी शलभ माथुर जब उन के दोनों बेटों, सलीम और इमरान से पूछताछ की तो उन्हें पता चला कि मृतक गुलाब खान ने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी से गुलाब खान को 2 बेटे, सलीम और इमरान थे, जबकि दूसरी पत्नी शाहीन से उन की अपनी कोई संतान नहीं थी. सीमा जो इस समय उन के साथ रह रही थी, वह शाहीन के पहले पति की बेटी थी.

कई महीने पहले सीमा अपने पति से लड़झगड़ कर यहां आ गई थी और तब से यहां सौतेले पिता और मां के साथ रह रही थी. पुलिस ने जब उस से बात करनी चाही तो पता चला कि वह गायब है. उस का मोबाइल भी बंद था. गुलाब खान भले ही सीमा के सौतेले पिता थे, लेकिन वह उन्हीं के साथ रह रही थी, इसलिए हत्या के बाद उस के इस तरह अचानक गायब हो जाने और मोबाइल फोन बंद होने से पुलिस हत्या के तार उस से जोड़ने लगी. एसएसपी शलभ माथुर ने थाना जगदीशपुरा के थानाप्रभारी अजयपाल सिंह से सीमा का पता लगाने को कहा.

पुलिस ने डौग स्क्वायड भी बुलवा लिया था. वह भी उसी सुनसान गली वाले दरवाजे से बाहर निकला था, इसलिए अनुमान लगाया गया कि हत्यारे उसी गली से आए थे और हत्या कर के उधर से ही निकल गए थे. गुलाब खान के घर वालों ने बताया था कि 11 बजे के करीब वह केबल ठीक कराने की बात कह कर घर से निकले थे. उस के बाद लौट कर नहीं आए. रात 9 बजे शाहीन बेगम ने इमरान को बुला कर उन के घर न लौटने की बात बताई तो पिता को ढूंढ़ते हुए वह बेर का नगला स्थित पुराने घर पर पहुंचा तो उसे पिता की हत्या के बारे में पता चला. इस के बाद उस ने पुलिस को सूचना दी.

थानाप्रभारी अजयपाल सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए एसएम मैडिकल कालेज भिजवा दिया. सौतेली बहन सीमा के इस तरह अचानक गायब हो जाने से इमरान को लग रहा था कि हत्या उसी ने की है, इसलिए उस ने पिता की हत्या का मुकदमा सीमा और उस के अज्ञात साथियों के खिलाफ दर्ज करा दिया. एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले की जांच थानाप्रभारी अजयपाल सिंह को सौंप दी. हत्या की यह घटना ताजनगरी आगरा के थाना जगदीशपुरा के मोहल्ला बेर का नगला में 9 सितंबर, 2014 को घटी थी.

मामला पुलिस के ही सहयोगी अग्निशमन विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी की हत्या का था, इसलिए पुलिस इस मामले के खुलासे के लिए तत्परता से जुट गई थी. सीमा की तलाश में थानाप्रभारी अजयपाल सिंह जगहजगह छापे मार रहे थे. सर्विलांस टीम की भी मदद ली जा रही थी, लेकिन सीमा का फोन लगातार बंद आ रहा था. दूसरी ओर मृतक की पत्नी शाहीन बेगम बेटी सीमा की तलाश के लिए पुलिस पर दबाव बनाए हुए थी. उस ने बेटी को तलाश के लिए आगरा जोन के आईजी, डीआईजी और एसएसपी शलभ माथुर को भी प्रार्थना पत्र दिए थे.

सीमा आगरा पुलिस के लिए पहेली बनती जा रही थी. वह पिता की हत्या कर के लापता है या किसी हादसे का शिकार हो गई है, यह उस के मिलने पर ही पता चल सकता था. एकएक कर के दिन गुजरते जा रहे थे, लेकिन न गुलाब खान के हत्यारे का पता चल रहा था, न सीमा के बारे में कोई जानकारी मिल रही थी. एएसपी शैलेश कुमार पांडेय ने देखा कि थाना पुलिस इतनी मेहनत करने के बाद भी खाली हाथ है तो उन्होंने खुद मामले से जुड़े सारे पहलुओं पर गहनता से विचार किया और इस के बाद मृतक गुलाब खान की पत्नी शाहीन बेगम का मोबाइल सर्विलांस पर लगवाने के साथ अपने कुछ मुखबिर भी सीमा के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिए थे.

उन के इस उपाय का उन्हें फायदा भी मिला. सर्विलांस से जहां सीमा के ठिकाने का पता चल गया, वहीं मुखबिरों से सीमा के ऐसे 4 दोस्तों के बारे में पता चला, जो उस के बहुत खास थे. सीमा के इस तरह छिपने से साफ हो गया था कि गुलाब खान की हत्या में किसी न किसी रूप में उस का हाथ जरूर है. इस के बाद जहां थानाप्रभारी अजयपाल सिंह ने सहयोगियों की मदद से सीमा को गिरफ्तार कर लिया, वहीं दूसरी ओर एएसपी शैलेश कुमार पांडेय ने मुखबिर की सूचना पर आवास विकास कालोनी के सेक्टर-8 में रहने वाले 2 सगे भाई नितिन सक्सेना, दीपक सक्सेना, इन के दोस्त मोनू जादौन और श्रीनगर कालोनी के रहने वाले इन के एक अन्य दोस्त अक्षय गौड़ को थाने बुलवा लिया.

पुलिस इन सभी को पूछताछ के लिए एक ऐसे कमरे में ले गई, जहां इन्हें जूते उतार कर जाना पड़ा. शैलेश कुमार पांडेय ने कमरे के बाहर एक प्रिंट एक्सपर्ट बैठा रखा था. लड़कों के अंदर जाते ही उस ने जूतों के तल्ले की डिजाइन घटनास्थल पर मिले जूतों के तल्ले की डिजाइन से मिलाया तो दोनों की डिजाइन मिल गई. प्रिंट एक्सपर्ट ने जैसे ही यह बात एएसपी शैलेश कुमार पांडेय को बताई, उन्होंने चारों लड़कों पर शिकंजा कस दिया. अभी तक उन लड़कों का कहना था कि उन का इस हत्या से कोई लेनादेना नहीं है. जो भी किया है सीमा ने किया है.

लेकिन जूतों के तल्लों के निशानों के मिल जाने के अलावा उन के मोबाइल फोन की लोकेशन भी वहां की मिली थी, इसलिए जब लड़कों को पता चला कि पुलिस ने उन के खिलाफ सारे सुबूत जुटा लिए हैं तो वे फूटफूट कर रोने लगे. इस के बाद सीमा तथा चारों लड़कों को आमनेसामने बिठा कर जब गुलाब खान की हत्या के बारे पूछताछ शुरू हुई तो सीमा और उस के उन चारों दोस्तों ने हत्याकांड की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

नौकरी के दौरान जिन दिनों गुलाब खान शाहजहांपुर में तैनात थे, उन्हीं दिनों अचानक बीमारी से उन की पत्नी नफीसा बेगम की मौत हो गई थी. वह अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे. नफीसा बेगम से उन्हें 2 बेटे सलीम और इमरान थे, उस समय जिन की उम्र 10-11 साल थी. नौकरी के साथसाथ 2 नाबालिग बेटों को संभालना गुलाब खान के लिए काफी मुश्किल हो रहा था, इसलिए जब उन के दोस्त वकीलुद्दीन उन के लिए दूसरी शादी का प्रस्ताव लाए तो वह मना नहीं कर सके.

वकीलुद्दीन की दूर के रिश्ते की एक बहन थी शाहीन बेगम. दोस्त होने के नाते वकीलुद्दीन को पता था कि गुलाब खान के पास पैसे की कमी नहीं है. इसलिए वह अपनी बेटी की शादी उन के बेटे सलीम से करना चाहते थे. वह इस के लिए मना न कर सके, यही सोच कर वकीलुद्दीन उन की शादी करा कर उन पर एहसान करना चाहता था. इस में वह कामयाब भी हो गया. नफीसा बेगम की मौत के मात्र 3 महीने बाद ही वकीलुद्दीन ने शाहीन बेगम का निकाह गुलाब खान से करा दिया था.

गुलाब खान ने जिस शाहीन बेगम से निकाह किया था, उस का पहले भी निकाह हो चुका था. 2 बेटियों के पैदा होने के बाद उस के पति की मौत हो गई थी. गुलाब खान से शादी की बात चली तो शाहीन बेगम की पहले पति की दोनों बेटियां इस में रोड़ा बनने लगीं. लेकिन बड़ेबूढ़ों ने इस मसले को बैठ कर हल कर दिया. तय हुआ कि शाहीन की बड़ी बेटी सीमा अपने दादादादी के पास रहेगी और छोटी बेटी रीना मां के साथ, जिस की सारी जिम्मेदारी गुलाब खान को उठानी पड़ेगी.

गुलाब खान की भी जरूरत थी, इसलिए उन्होंने इस शर्त को स्वीकार कर लिया. लगभग साल भर बाद उन का तबादला मैनपुरी हो गया तो वह शाहीन बेगम, उस की बेटी रीना और अपने दोनों बेटों को ले कर वहां चले गए. गुलाब खान के दोनों बेटे अपनी सौतेली बहन रीना को सगी बहन की तरह मानते थे, इसलिए रीना भी उन्हें उसी तरह मानती थी. इस की वजह यह थी कि शाहीन बेगम सलीम और इमरान को सगी मां जैसा प्यार कर रही थी.

समय का पंछी अपने हिसाब से उड़ता रहा. गुलाब खान का तबादला आगरा हुआ तो उन्होंने आगरा में स्थाई रूप से बसने का फैसला कर लिया और वहां के थाना जगदीशपुरा के मोहल्ला बेर का नगला में अपना मकान बनवा लिया. अब तक उन्होंने बेटों सलीम खान और इमरान खान की शादियां कर दी थीं. दूसरी ओर शाहीन बेगम की बड़ी बेटी सीमा की भी शादी उस के दादादादी ने उस के चचेरे भाई नफीस के साथ कर दी थी.

सीमा मांबाप के साथ नहीं रहती थी. दादादादी का उस पर उतना दबाव नहीं था, जितना एक बच्चे को अपनी जिंदगी संवारने के लिए होना चाहिए, इसलिए वह उच्छृंखल स्वभाव की हो गई थी. जवानी में कदम रखते ही वह बेलगाम घोड़ी की तरह दौड़ने लगी तो शादी के बाद उस का पति नफीस भी उस पर लगाम नहीं लगा सका. एक बच्चे की मां बन जाने के बाद भी जब सीमा की आदत में कोई सुधार नहीं आया तो नफीस उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा.

चूंकि सीमा नफीस की चचेरी बहन थी, इसलिए नफीस उसे छोड़ना नहीं चाहता था. लेकिन सीमा के घर के बाहर इतने यारदोस्त बन गए थे कि उस के पास पति और बच्चे के लिए समय ही नहीं रहता था. नफीस ने उसे बहुत समझाया, पर वह अपनी आदत सुधारने को राजी नहीं थी. तब आजिज आ कर नफीस ने उसे सदासदा के लिए छोड़ दिया. सीमा की बदचलनी से दादादादी भी तंग आ चुके थे, इसलिए उन्होंने भी उसे साथ रखने से मना कर दिया. नफीस ने सीमा से पैदा हुए 6 साल के बेटे शान मोहम्मद को अपने पास रख लिया था. यह लगभग साल भर पहले की बात है

दोनों बेटों की शादी करने के बाद गुलाब खान ने शाहीन बेगम की बेटी रीना की भी अच्छे घर में शादी कर दी थी. रिटायर होने के बाद गुलाब खान को जो पैसे मिले थे, उसे उन्होंने दोनों बेटों सलीम और इमरान में बांट दिए थे. तब शाहीन बेगम ने उन के इस फैसले का विरोध किया था, लेकिन पति के आगे उस की एक नहीं चली थी. गुलाब खान ने यह कह कर उस का मुंह बंद कर दिया था कि जब तक वे जिंदा हैं, उन के खर्च भर के लिए पेंशन तो मिलती ही रहेगी, जिस से आराम से उन की जिंदगी गुजर जाएगी. इमरान और सलीम के अपनेअपने परिवार थे. उन्होंने मकान खरीद लिए थे और अपनेअपने परिवार के साथ अपनेअपने मकान में रहते थे.

इमरान का मकान आवास विकास कालोनी के सेक्टर-11 में था, जो बेर का नगला से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वह मांबाप का हालचाल लेता रहता था. गुलाब खान अपने सगे बेटों की जो मदद कर  रहे थे, वह शाहीन बेगम को अच्छा नहीं लगता था. दूसरी ओर शाहीन बेगम की बड़ी बेटी सीमा अपनी हरकतों से बसीबसाई गृहस्थी तो बरबाद कर ही चुकी थी, दादादादी ने भी साथ रखने से मना कर दिया था, इसलिए अब उस के पास अपना कोई ठिकाना नहीं रह गया था. चूंकि उस के तमाम दोस्त उस का खर्च उठा रहे थे, इसलिए वह एक होटल में कमरा ले कर रहने लगी थी.

होटल में रहते हुए वह पढ़ेलिखे बेरोजगारों को सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर ठगने लगी. सरकारी नौकरी के नाम पर किसी से 10-5 लाख रुपए ऐंठ लेना कोई मुश्किल काम नहीं है. थोड़ीबहुत जो मुश्किल होती है, उसे आसान करने के लिए सीमा ने अपने पास रेलवे के अधिकारियों के लैटर पैड, उन की मुहरें, रेलवे भरती के पेपर्स आदि साथ लिए रहती थी. धीरेधीरे उस ने अपना जाल लखनऊ और इलाहाबाद तक फैला दिया था. लखनऊ के चार बाग रेलवे स्टेशन के एक कर्मचारी के साथ मिल कर उस ने कई लोगों के लाखों रुपए हड़प लिए थे. सीमा ने रेलवे के उस कर्मचारी के साथ मिल कर लोगों को ठगने का जो उपाय खोज निकाला था, वह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. एक समय ऐसा भी आ गया, जब उसे शाहजहांपुर छोड़ कर भागना पड़ा.

क्योंकि नौकरी लगवाने के लिए जिन लोगों से उस ने रुपए लिए थे, काम न होने पर वे अपने रुपए वापस मांगने लगे थे. इस से उसे लगा कि अब अगर वह वहां रही तो वे उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर देंगे. इसी डर से उस ने अपना सारा सामान बटोरा और मां शाहीन बेगम के पास आगरा आ गई. मां और सौतेले पिता के साथ रहने के लिए भी सीमा ने बहुत बढि़या चाल चली थी. आगरा आने से पहले उस ने पिता और भाइयों को फोन किया था कि आगरा में शिक्षा विभाग में उसे नौकरी मिल गई है, जिस की वजह से वह वहां आ रही है. इस के बाद वह आगरा आ गई और मांबाप के साथ रहने लगी थी. वे उसे बोझ न समझें, इस के लिए एक दिन उस ने शाहीन बेगम से कहा था, ‘‘मां मैं अपने लिए किराए का मकान देख रही हूं. मकान मिलते ही यहां से चली जाऊंगी.’’

शाहीन ने लगभग डांटते हुए कहा था, ‘‘सीमा, तू कैसी बातें कर रही है. इतना बड़ा घर है, जिस में हम 2 ही लोग तो रहते हैं. पूरा घर खाली ही पड़ा रहता है, तू साथ रहेगी तो हमें सहारा ही मिलेगा.’’

गुलाब खान ने भी पत्नी की हां में हां मिलाई. इस तरह छलकपट से सीमा ने गुलाब खान के घर में अड्डा जमा लिया. नौकरी पर जाने की बात कह कर वह रोज सुबह घर से निकलती थी तो शाम को 6 बजे के बाद ही लौटती थी. इसी तरह लगभग 6 महीने बीत गए. लेकिन एक दिन सीमा की पोल खुल गई. हुआ यह कि किसी चीज का सर्वेक्षण करने उसी औफिस के कुछ कर्मचारी बेर का नगला आए, जहां सीमा ने नौकरी करने की बात गुलाब खान को बता रखी थी. लेकिन उन कर्मचारियों ने सीमा को पहचानने से इनकार करते हुए कहा कि इस नाम की कोई औरत उन के यहां नौकरी नहीं करती.

सीमा की इस हरकत का गुलाब खान को बहुत आफसोस हुआ. एक जवान औरत का इस तरह घर से पूरे दिन गायब रहना कोई अच्छे लक्षण नहीं थे. इसलिए उन्होंने कहा कि वह अपनी हरकतों पर लगाम लगाए, वरना उन का घर छोड़ कर शाहजहांपुर चली जाए. शाहजहांपुर तो वह वैसे भी नहीं जा सकती थी, इसलिए अपनी इस गलती के लिए उस ने क्षमा मांगते हुए वादा किया कि अब आगे से वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगी. शाहीन बेगम ने भी पति को समझाया कि आगे से वह ऐसा नहीं करेगी. अपना ठिकाना छिनने के डर से सीमा ने बेशरमी वाली अपनी हरकतों पर कुछ दिनों के लिए रोक लगा ली. लेकिन कुछ दिनों बाद कंप्यूटर सीखने के बहाने वह फिर घर से बाहर जाने लगी और अपने यारदोस्तों से मिलने लगी.

आगरा आने के बाद सीमा को अपनी मां से यह तो पता चल गया था कि गुलाब खान ने अपनी सारी जमापूंजी अपने दोनों बेटों के नाम कर दी है. मां के हिस्से में अब केवल पेंशन आती है. जिस मकान में वे रहते हैं, वह और मसजिद के किनारे वाला मकान अभी गुलाब खान के नाम थे. गुलाब खान के साथ सीमा को रहते करीब 10 महीने हो चुके थे. अब तक उस के बारे में गुलाब खान सब कुछ जान चुके थे. इसी के साथ उन्होंने यह भी गौर किया था कि सीमा के आने के बाद शाहीन बेगम के व्यवहार में जबरदस्त बदलाव आ गया था, जिस से उन्हें लगने लगा कि मांबेटी उन की संपत्ति हड़पने की साजिश रच रही हैं.

यह संदेह होने पर उन्होंने करीब डेढ़ महीने पहले अपने दोनों मकानों की रजिस्ट्री अपने दोनों बेटों, सलीम और इमरान के नाम करा दी थी. गुलाब खान ने यह काम शाहीन और उस की शातिर बेटी सीमा से छिपा कर किया था, लेकिन न जाने कैसे दोनों को इस बात की जानकारी हो गई. सीमा ने मां को भड़काने की कोशिश की. शाहीन भड़की तो नहीं, लेकिन उसे बुरा जरूर लगा. उस ने भले ही पति से कुछ नहीं कहा, लेकिन सीमा ने मां को उस का हक दिलाने की ठान ली. उस ने इस बारे में अपने दोस्तों से बात की तो उन्होंने जो सलाह दी, वह काफी भयानक थी. सीमा ने दोस्तों की मदद से गुलाब खान की हत्या की योजना बना डाली. क्योंकि उसे लगता था कि पिता के पास जो बचा है, उन के मरने के बाद वह मां के नाम हो जाएगा. अब उसे उचित समय का इंतजार था.

9 सितंबर, 2014 को 11 बजे के आसपास गुलाब खान टीवी का केबल ठीक कराने के लिए केबल वाले के यहां जाने की बात कह कर घर से निकले. सीमा मौका ढूंढ़ ही रही थी. इसलिए उन के घर से निकलते ही वह भी उन के पीछे लग गई. वह मसजिद के बगल वाला मकान दिखाने की जिद कर के उन्हें वहां ले गई. चाबी वह साथ ले कर आई थी. गुलाब खान को भला इस में क्या ऐतराज हो सकता था. वह जैसे ही राजी हुए सीमा ने अपने दोस्तों अक्षय गौड़, मोनू जादौन, नितिन सक्सेना और दीपक सक्सेना को फोन कर के मकान के पीछे वाले दरवाजे पर बुला लिया.

गुलाब खान सीमा को ले कर वहां पहुंचे तो सीमा ने मुख्य दरवाजा बंद कर के जा कर पीछे वाला दरवाजा खोल दिया. अंदर आ कर चारों ने गुलाब खान को दबोच लिया और उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद सीमा ने वहीं पड़ी एक ईंट उठाई और पूरी ताकत से सिर पर दे मारी. चोट इतनी तेज थी कि उसी एक वार में गुलाब खान होश गंवा बैठे. इस के बाद सभी गुलाब खान को घसीट कर किचन में ले गए और रस्सी से गला घोंट कर मार डाला. गुलाब खान को खत्म कर के सीमा के चारों साथी जिस तरह पीछे के दरवाजे से आए थे, उसी तरह पीछे के ही दरवाजे से चले गए. जाते समय वे वह ईंट भी साथ लेते गए, जिस से पिता के सिर पर चोट पहुंचा कर सीमा ने बेहोश किया था.

उस ईंट को जाते समय उन्होंने रास्ते में फेंक दिया था. अक्षय, मोनू, दीपक और नितिन के जाने के बाद सीमा पीछे वाले दरवाजे पर ताला लगा कर बाहर आई और बाहर से ताला बंद कर के घर आ गई. सीमा अपने इन्हीं चारों दोस्तों की मदद से अपने पिता की लाश को एक वैन से रात में ले जा कर शहर की सीमा से बाहर फेंकना चाहती थी. इस के लिए उस ने पूरी तैयारी भी कर रखी थी. वह लाश को ठिकाने लगा पाती, उस के पहले ही शाहीन बेगम ने सीमा को बताए बगैर इमरान को फोन कर दिया कि सुबह 11 बजे के निकले उस के अब्बू अभी तक घर नहीं आए हैं.

सौतेली मां के इस फोन ने इमरान को परेशान कर दिया. वह तुरंत मां के पास पहुंचा और उस से बातचीत कर के पिता को ढूंढ़ने निकल पड़ा. जब वह वहां पहुंचा था, सीमा घर में ही थी. जब इमरान ने मां से पुराने घर की चाबी मांगी तो उसे लगा कि अब उस की पोल खुल सकती है, इसलिए इमरान के पीछे वह भी घर से निकल गई थी. रात में ही सीमा अपने एक दोस्त के यहां मैनपुरी चली गई थी. उस के इस तरह बिना किसी को बताए गायब हो जाने से लोगों को उस पर शक हो गया था. उस ने पुलिस को परेशान तो किया, लेकिन अंतत: पकड़ी गई. पूछताछ के बाद थाना जगदीशपुर पुलिस ने सीमा और उस के चारों दोस्तों अक्षय, मोनू, नितिन और दीपक को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

सीमा के पकड़े जाने के बाद उस के चचेरे भाइयों ने उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई है कि नौकरी दिलाने के नाम पर उस ने उन से 40 हजार रुपए लिए थे. लेकिन उन्हें न नौकरी मिली है, न रुपए. UP Crime News

 

 

True Crime Stories : पछतावा

True Crime Stories : कबड्डी खेलते समय नासिर ने चौधरी आफताब की जो बेइज्जती की थी, उस का बदला लेने के लिए उस ने हैदर अली के साथ मिल कर नासिर के साथ ऐसा क्या किया कि उसे और हैदर अली को पछताना पड़ा. उन दिनों मैं जिला छंग के एक देहाती थाने में तैनात था. वह जगह दरिया के करीब थी. मई का महीना होने की वजह से अच्छीभली गरमी पड़ रही थी. अचानक एक दिन पास के गांव से एक वारदात की खबर आई.

कांस्टेबल सिकंदर अली ने बताया कि गुलाबपुर में एक गबरू जवान का बड़ी बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया है, जिस की लाश खेतों में पड़ी है. गुलाबपुर मेरे थाने से करीब एक मील दूर था. वहां से फैय्याज और यूनुस खबर ले कर आए थे. वे दोनों खबर दे कर वापस जा चुके थे.

मैं ने पूछा, ‘‘मरने वाला कौन है?’’

‘‘उस का नाम नासिर है, वह कबड्डी का बहुत अच्छा और माहिर खिलाड़ी था.’’ सिकंदर अली ने बताया. मैं 2 सिपाहियों के साथ गुलाबपुर रवाना हो गया. हमारे घोड़े खेतों के बीच आड़ीतिरछी पगडंडी पर चल रहे थे. जिस खेत में लाश पड़ी थी, वह गांव से एक फर्लांग के फासले पर था. कुछ लोग हमें वहां तक ले गए. वहां एक अधूरा बना कमरा था, न दीवारें न छत. जरूर कभी वहां कोई इमारत रही होगी. नासिर की लाश कमरे के सामने पड़ी थी. लाश के पास 8-9 लोग खड़े थे, जो हमें देख कर पीछे हट गए थे.

मैं उकड़ूं बैठ कर बारीकी से लाश की जांच करने लगा. बेशक वह एक खूबसूरत गबरू जवान था. उस की उम्र 23-24 साल रही होगी. वह मजबूत और पहलवानी बदन का मालिक था, रंग गोरा था और बाल घुंघराले. लाश देख कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस पर तेजधार हथियार या छुरे से हमला हुआ होगा. मारने वाले एक से ज्यादा लोग रहे होंगे. उस के हाथों के जख्म देख कर लगता था कि उस ने अपने बचाव की भरपूर कोशिश की थी. नासिर कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, इसलिए गुलाबपुर के लोग उसे गांव की शान समझते थे. लाश पर चादर डाल कर मैं लोगों से पूछताछ करने लगा.

नासिर का 60 साल का बाप वहीं था, उस की हालत बड़ी खराब थी, आंखें आंसुओं से भरी थीं. उस का नाम बशीर था. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे तसल्ली दी, ‘‘चाचा, आप फिकर न करो, आप के बेटे का कातिल पकड़ा जाएगा.’’

उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा बेटा तो चला गया. कातिल के पकड़े जाने से मेरा बेटा लौट कर तो नहीं आएगा.’’

बेटे के गम ने उस की सोचनेसमझने की ताकत खत्म कर दी थी. उसे बस एक ही बात याद थी कि उस का जवान बेटा कत्ल हो चुका है. मुझे उस पर बड़ा तरस आया. मैं ने उसे एक जगह बिठा दिया और अपनी काररवाई करने लगा. सब से पहले मैं ने घटनास्थल का नक्शा तैयार किया. इस कत्ल का मुझे कोई सुराग नहीं मिला था. यहां तक कि वह हथियार भी नहीं, जिस से उस का कत्ल किया गया था.  मैं ने वारदात की जगह पर मौजूद लोगों के बयान लिए. लेकिन सिवाय नासिर की तारीफ सुनने के कोई जानकारी नहीं मिली. मैं ने नासिर की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि इतनी रात को नासिर इस सुनसान जगह पर क्या कर रहा था. मेरे अंदाज से कत्ल रात को हुआ था. मैं ने मौजूद लोगों से घुमाफिरा कर कई सवाल किए, पर काम की कोई बात पता नहीं चली. मैं ने यूनुस और फैयाज से भी पूछताछ की. पर कुछ खास पता नहीं चला. इलियास जिस ने सब से पहले लाश देखी थी, उस से भी पूछा, ‘‘इलियास, तुम सुबहसुबह कहां जा रहे थे?’’

‘‘साहबजी, मैं कुम्हार हूं. मैं मिट्टी के बरतन बनाता हूं. मैं रोजाना सुबह मिट्टी के लिए घर से निकलता हूं. मेरा कुत्ता मोती भी मेरे साथ होता है. वह मुझे इस तरफ ले आया, तभी लाश पर मेरी नजर पड़ी. लाश देख कर मैं ने ऊंची आवाज में चीखना शुरू कर दिया. उस वक्त खेतों में लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. कुछ लोग जमा हो गए. मौजूद लोगों से पता चला कि बशीर लोहार के बेटे नासिर का किसी ने कत्ल कर दिया है.’’

बशीर लोहार का घर गांव के बीच में था. उस का छोटा सा परिवार था. घर में नासिर के मांबाप के अलावा एक बहन थी. बशीर ने अपने घर के बरामदे में भट्ठी लगा रखी थी. वहीं पर वह लोहे का काम करता था. जब मैं उस के घर पहुंचा तो वह मुझे घर के अंदर ले गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा बशीर, जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ, बहुत अफसोसनाक है. मैं तुम्हारे गम में बराबर का शरीक हूं. मेरी पूरी कोशिश होगी कि जैसे भी हो, कातिल को कानून के हवाले करूं. लेकिन तुम्हें मेरी मदद करनी होगी. हर बात साफसाफ और खुल कर बतानी होगी.’’

उस की बीवी जुबैदा बोल उठी, ‘‘साहब, आप से कुछ भी नहीं छिपाएंगे. हमारी दुनिया तो अंधेरी हो ही गई है, लेकिन जिस जालिम ने मेरे बच्चे को मारा है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप दोनों को किसी पर शक है?’’

‘‘साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. मेरा बेटा तो पूरे गांव की आंख का तारा था. अभी पिछले महीने ही उस ने कबड्डी का टूर्नामेंट जीता था. इस मुकाबले में 4 गांवों की टीमों ने हिस्सा लिया था. गुलाबपुर की टीम में अगर नासिर न होता तो यह जीत नजीराबाद के हिस्से में जाती. सुल्तानपुर और चकब्यासी पहले दौर में आउट हो गए थे. असल मुकाबला गुलाबपुर ओर नजीराबाद में था. जीतने पर गांव वाले उसे कंधे पर उठाए घूमते रहे. बताइए, मैं किस पर शक करूं?’’ बशीर ने तफ्सील से बताया.

‘‘नासिर कबड्डी का इतना अच्छा खिलाड़ी था, जहां 10 दोस्त थे, वहां एकाध दुश्मन भी हो सकता है.’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं साहब, पर मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है.’’ बशीर ने बेबसी जाहिर की.

‘‘मुझे उस दसवें आदमी की तलाश है, जिस ने नासिर का बेदर्दी से कत्ल किया है. जरूर यह किसी दुश्मन का काम है. हो सकता है, गांव के बाहर का कोई दुश्मन हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बाहर का भी कोई दुश्मन नहीं है साहब.’’ उस की बीवी जुबैदा ने कहा तो मैं सोच में पड़ गया. अचानक बशीर बोल उठा, ‘‘वह तो सारा दिन मेरे साथ काम में लगा रहता था. शाम को अखाड़े में कसरत वगैरह करता था.’’

‘‘यह अखाड़ा कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अखाड़ा ट्यूबवेल के पास है. उस टूटीफूटी इमारत के करीब, जहां यह वारदात हुई.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘मेरे अंदाज से कत्ल देर रात को हुआ है, इतनी रात को वह अखाड़े में क्या कर रहा था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह बात हमारी भी समझ में नहीं आ रही है.’’ जुबैदा बोली.

‘‘रात को क्या वह रोजाना की तरह समय पर सोया था?’’

‘‘सोया तो रोजाना की तरह ही था.’’ कहतेकहते जुबैदा रुक गई.

‘‘मुझे खुल कर बताओ, क्या बात है?’’ मैं ने कहा तो वह बोली, ‘‘आप हमारे साथ ऊपर छत पर चलिए. आप खुद समझ जाएंगे.’’

हम छत पर पहुंचे तो जुबैदा कहने लगी, ‘‘मैं रोजाना नासिर को उठाने छत पर आती थी और वह 2 पुकार में उठ जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ. मैं ने आगे बढ़ कर चादर उठाई तो उस के नीचे एक तकिया रखा हुआ था, जिस पर चादर ओढ़ाई हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कोई सो रहा है.’’

मैं खामोश खड़ा रहा तो जुबैदा ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि पिछली रात नासिर अपनी मरजी से घर से निकला था. वह नहीं चाहता था कि किसी को उस के जाने के बारे में पता चले.’’ जुबैदा बोली.

‘‘नहीं जुबैदा, ऐसा नहीं है. वह पहले भी जाता रहा होगा, पर सुबह होने से पहले आ जाता रहा होगा. इसलिए तुम्हें पता नहीं चला. तुम्हारा बेटा रात के अंधेरे में कहीं जाता था और जल्द लौट आता रहा होगा, इसलिए तुम्हें खबर नहीं मिल सकी. मुझे तो किसी लड़की का चक्कर लगता है.’’ मैं ने कहा तो वे दोनों बेयकीनी से मुझे देखने लगे, ‘‘लड़की का चक्कर…’’

बशीर ने कहा, ‘‘साहब, नासिर ऐसा लड़का नहीं था. वह तो गुलाबपुर की लड़कियों और औरतों को बहनें समझता था. वह कभी किसी की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.’’

‘‘मैं मान नहीं सकता कि लड़की का चक्कर नहीं था. पिछली रात वह लड़की से मुलाकात करने ही खेत में पहुंचा था. अगर आप लोग लड़की का नाम बता दो तो केस जल्द हल हो जाएगा. मैं कातिलों तक पहुंच जाऊंगा, क्योंकि वही लड़की बता सकती है कि खेत में क्या हुआ था?’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जनाब, हम बड़ी से बड़ी कसम खा कर कह रहे हैं कि हम ऐसी किसी लड़की को नहीं जानते.’’ दोनों ने एक साथ कहा.

‘‘मैं आप की बात का यकीन करता हूं, पर इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. मैं कहीं न कहीं से इस का सुराग लगा ही लूंगा. आप यह बताएं कि गुलाबपुर में नासिर का सब से करीबी दोस्त कौन है?’’

‘‘जमील से उस की गहरी दोस्ती थी.’’ बशीर ने कहा.

‘‘ठीक है, अब मैं पता कर लूंगा. दोस्त दोस्त का राज जानते हैं. मुझे जमील से मिलना है. तुम उसे यहां बुला लो?’’ मैं ने कहा.

‘‘उस का घर पड़ोस में है, मैं अभी बुलाता हूं.’’ बशीर ने कहा. उस ने वापस लौट कर बताया कि जमील 2 दिनों से टोबा टेक सिंह गया हुआ है.

‘‘ठीक है, कल वह वापस आएगा तो उस से पूछ लूंगा. अभी उस के घर वालों से बात कर लेता हूं.’’ मैं ने कहा.

सामने ही उस की परचून की दुकान थी. उस का बाप वहीं मिल गया. मैं ने करीब 15 मिनट तक उस से बात की, पर कोई काम की बात पता नहीं चल सकी. वह भी कबड्डी की वजह से नासिर का बड़ा फैन था. उसे उस की मौत का बहुत गम था. मेरा दिमाग गहरी सोच में था. मुझे पक्का यकीन था कि जरूर लड़की का चक्कर है. जहां लाश मिली थी, वहां एक अधूरा कमरा था. रात में मुलाकात के लिए वह बेहतरीन जगह थी. मुझे ऐसी लड़की की तलाश थी, जो नासिर से मोहब्बत करती थी और नासिर उस के इश्क में पागल था.  वह जगह गुलाबपुर के करीब ही थी, इसलिए लड़की भी वहीं की होनी चाहिए थी.

मेरी सोच के हिसाब से कातिल इस राज से वाकिफ था कि लड़की और नासिर वहां छिपछिप कर मिलते हैं. उसे इस बात का भी यकीन रहा होगा कि नासिर वहां जरूर आएगा. निस्संदेह कातिल उन दोनों की मोहब्बत और मिलन से सख्त नाराज रहा होगा. उस ने वक्त और मौका देख कर नासिर को मौत के घाट उतार दिया होगा. मुझे उस लड़की को तलाश करना था. दोपहर के बाद मैं ने हमीदा को थाने बुलाया. वह कस्बे में घरघर जा कर क्रीमपाउडर और परांदे वगैरह बेचा करती थी. हर घर की लड़कियों को वह खूब जानती थी और कई की राजदार भी थी. पहले भी वह मेरे कई काम करा चुकी थी.

मैं उसे कुछ पैसे दे देता था तो वह खुश हो जाती थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘हमीदा, तुम गुलाबपुर के हर घर से वाकिफ हो. मुझे नासिर के बारे में जानकारी चाहिए. तुम जो जानती हो, बताओ.’’

‘‘साहब, वह तो गुलाबपुर का हीरो था. बच्चाबच्चा उस पर जान देता था.’’ उस ने दुखी हो कर कहा.

‘‘मुझे गुलाबपुर की उस हसीना का नाम बताओ, जो उस पर जान देती थी और नासिर भी उस का आशिक रहा हो.’’ मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘‘ओह, तो कत्ल की इस वारदात का ताल्लुक नासिर की मोहब्बत की कहानी से जुड़ा हुआ है.’’ उस ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘सौ फीसदी, उस के इश्क में ही कत्ल का राज छिपा है.’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

हमीदा कुछ सोचती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘सच क्या है, यह तो नहीं कह सकती. पर मैं ने उड़तीउड़ती खबर सुनी थी कि रेशमा से उस का कुछ चक्कर चल रहा था. रेशमा शकूर जुलाहे की बेटी है.’’

मैं ने हमीदा को इनाम दे कर विदा किया. मैं पहले भी उस से मुखबिरी का काम ले चुका था. उस की खबरें पक्की हुआ करती थीं. अगले दिन गरमी कुछ कम थी. मैं खाने और नमाज से फारिग हो कर बैठा था कि जमील अपने बाप के साथ आ गया. मैं ने उस के बाप को वापस भेज कर जमील को सामने बिठा लिया. वह गोराचिट्टा, मजबूत जिस्म का जवान था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘जमील, तुम्हें नासिर के साथ हुए हादसे का पता चल गया होगा?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखें भीग गईं. वह दुखी लहजे में बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपना सब से प्यारा दोस्त खो दिया है. पता नहीं किस जालिम ने उसे कत्ल कर दिया.’’

‘‘तुम उस जालिम को सजा दिलवाना चाहते हो?’’

‘‘जरूर, साहब मैं दिल से यही चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी मदद मुझे कातिल तक पहुंचा सकती है. जमील मुझे यकीन है कि बिस्तर पर तकिया रख कर वह पहली बार रात को घर से बाहर नहीं गया होगा. जरूर वह पहले भी जाता रहा होगा. यह खेल काफी दिनों से चल रहा था. तुम उस के दोस्त हो, राजदार हो, तुम्हें सब पता होगा. मैं सारी हकीकत समझ चुका हूं, पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

कुछ देर सोचने के बाद वह बोला, ‘‘आप का अंदाजा सही है, इस में एक लड़की है.’’

‘‘रेशमा नाम है न उस का?’’ मैं ने बात पूरी की तो वह हैरानी से मुझे देखने लगा. फिर बोला, ‘‘साहब, उस का नाम रेशमा ही है. दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. धीरेधीरे उन की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया था. मैं उन का राजदार था या यूं कहिए मेरी वजह से ही ये मुलाकातें मुमकिन थीं. रेशमा हमारी दुकान पर सामान लेने आती थी. उसे पता था कि मैं कब दुकान पर रहता हूं. मैं ही रेशमा को बताया करता था कि उसे कब खेतों में पहुंचना है. नासिर उस की राह देखेगा, अगर वह आने को हां कह देती थी तो मैं नासिर को बता देता था. फिर वह उस जगह पहुंच जाता था. इस तरह उन दोनों की मुलाकात हो जाती थी.’’

‘‘क्या मुलाकात के वक्त तुम भी आसपास होते थे?’’

‘‘नहीं साहब, मैं कभी उस तरफ नहीं गया. हां, दूसरे दिन नासिर मुझे सब बता दिया करता था.’’

‘‘दोनों के बीच बात किस हद तक आगे बढ़ चुकी थी?’’

‘‘दोनों की मोहब्बत शादी तक पहुंच गई थी. रेशमा जल्दी शादी करने का इसरार कर रही थी. नासिर भी शादी करना चाहता था, लेकिन उसे इतनी जल्दी नहीं थी. जबकि रेशमा जल्दी रिश्ता तय करने की बात कर रही थी.’’

‘‘रेशमा की जल्दी के पीछे भी कोई वजह रही होगी?’’

‘‘हां, दरअसल रेशमा की मां सरदारा बी उस का रिश्ता अपनी बहन के लड़के से करना चाहती थी और उस का बाप उस का रिश्ता अपने भाई के लड़के से करना चाहता था. पर बात सरदारा बी की ही चलनी थी, क्योंकि वह काफी तेज है. वही सब फैसले करती है. रिश्ता खाला के बेटे से न तय हो जाए, इस डर से रेशमा नासिर को जल्दी रिश्ता लाने को कह रही थी.’’ जमील ने तफ्सील से बताया.

‘‘एक बात समझ में नहीं आई जमील, तुम्हारे मुताबिक उन की मुलाकातों के तुम अकेले राजदार थे. जबकि कत्ल वाले दिन के पहले से तुम गांव से बाहर थे. फिर उस दिन दोनों की मुलाकात किस ने तय कराई थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘साहब, जिस दिन मैं टोबा टेक सिंह गया था, उसी दिन मैं ने उन की दूसरे दिन की मुलाकात तय करा दी थी. नासिर ने दूसरे दिन मिलने को कहा था. मैं ने यह बात रेशमा को बता दी थी. उस के हां कहने पर मैं ने नासिर को भी प्रोग्राम पक्का होने के बारे में बता दिया था.’’

‘‘इस का मतलब प्रोग्राम के मुताबिक ही नासिर अगली रात रेशमा से मिलने खेतों में पहुंचा था. यकीनन वादे के मुताबिक रेशमा भी वहां आई होगी और उस रात नासिर के साथ जो खौफनाक हादसा हुआ, वह उस ने भी देखा होगा. उस का बयान कातिल तक पहुंचने में मदद कर सकता है. मुझे रेशमा का बयान लेना होगा.’’ मैं ने कहा.

‘‘साहब, मामला बहुत नाजुक है. नासिर तो अब मर चुका है, आप रेशमा से इस तरह मिलें कि बात फैले नहीं. नहीं तो बेवजह वह मासूम बदनाम हो जाएगी.’’

‘‘तुम इस की चिंता न करो, मैं उस से बहुत सोचसमझ कर इस तरह मिलूंगा कि किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया जनाब, आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

‘‘जमील, तुम एक बात का खयाल रखना, जो बातें हमारे बीच हुई हैं, उन का किसी से जिक्र मत करना.’’

जब मैं नासिर की लाश ले कर गुलाबपुर पहुंचा तो बशीर लोहार के घर तमाम लोग जमा थे. लाश देख कर एक बार फिर रोनापीटना शुरू हो गया. मौका देख कर मैं ने शकूर को एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘शकूर, मुझे नासिर के कत्ल के सिलसिले में तुम से कुछ पूछना है. यहां खड़े हो कर बात करने से बेहतर है तुम्हारे घर बैठ कर बात की जाए.’’

उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं उस के साथ उस के घर चला आया. उस की बैठक में बैठा. उस की एक बेटी थी रेशमा और एक बेटा शमशाद. बेटा 12-13 साल का रहा होगा, जो उस वक्त बाहर खेल रहा था. थोड़ी बातचीत हुई थी कि सरदारा बी चाय की ट्रे ले कर आ गई. शकूर ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, चाय पीएं और सवाल भी पूछते रहें. ये मेरी बीवी सरदारा बी है, इस से भी जो पूछना है पूछ लें.’’

उन की बातचीत से मैं ने अंदाजा लगाया कि उन्हें रेशमा के इश्क के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मैं ने उन से नासिर के बारे में कुछ सवाल पूछे, उन दोनों ने उस की बहुत तारीफें कीं. बातचीत के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप की बेटी रेशमा कहां है?’’

‘‘वह घर में ही है जनाब, कल से उसे तेज बुखार है. हकीमजी से दवा ला कर दी, पर उस का कुछ असर नहीं हुआ.’’ सरदारा बी ने कहा.

‘‘रेखमा का बुखार हकीमजी की दवा से कम नहीं होगा. यह दूसरी तरह का बुखार है.’’ मैं ने कहा तो शकूर ने चौंक कर मेरी ओर देखा. मैं ने आगे कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, यह इश्क का बुखार है. नासिर की मौत ने रेशमा के दिलोदिमाग को झिंझोड़ कर रख दिया है.’’

दोनों उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगे, ‘‘हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. यह सब क्या है?’’

‘‘मैं समझाता हूं. यही सच्चाई है. रेशमा और नासिर एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे. दोनों रातों को मिलते भी थे. रेशमा को उस की मौत से बहुत दुख पहुंचा है.’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘मुझे बिलकुल यकीन नहीं आ रहा है.’’ सरदारा बी बोली.

हकीकत जान कर वे दोनों परेशान थे. मैं ने कहा, ‘‘परेशान न हों, आप के घर की बात इस चारदीवारी से बाहर नहीं जाएगी. रेशमा मेरी बेटी की तरह है और बिलकुल बेगुनाह है. मुझे उस की इज्जत का पूरा खयाल है. आप मुझे उस के पास ले चलो, मैं उस से कुछ बातें करूंगा. इस बात की कानोंकान किसी को खबर नहीं हो पाएगी. आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’

उन्होंने मुझे रेशमा के पास पहुंचा दिया. मैं ने उन दोनों को बाहर भेज दिया. वे दरवाजे के पीछे जा कर खड़े हो गए. मैं ने रेशमा से नरम लहजे में कहा, ‘‘रेशमा, मैं तुम से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. दरअसल मैं तुम से नासिर के बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूं. वैसे मैं सब जानता हूं, फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

‘‘मैं जो जानती हूं, सब बताऊंगी.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘कत्ल की रात तुम खेतों में नासिर से मिलने गई थीं, मुझे यह बताओ कि उस पर हमला किस ने किया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं उस रात नासिर से मिलने नहीं गई थी.’’ वह मजबूती से बोली. उस के लहजे में विश्वास और यकीन साफ झलक रहा था.

‘‘जमील ने मुझे बताया है कि तुम्हारी और नासिर की मुलाकात पहले से तय थी. यह बात इस से भी साबित होती है, क्योंकि नासिर तुम से मिलने खेतों में गया था.’’

‘‘यही बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है कि नासिर वहां क्यों गया था? जबकि उस ने खुद ही प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था.’’ उस ने उलझन भरे लहजे में कहा.

‘‘प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था, यह तुम क्या कह रही हो?’’ उस की बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रही हूं थानेदार साहब, मुझे नहीं पता प्रोग्राम कैंसिल करने के बाद नासिर वहां क्यों गया था. कल से मैं यही बात सोच रही हूं.’’ रेशमा ने सोचते हुए कहा.

‘‘एक मिनट, तुम दोनों के बीच खबर का आदानप्रदान जमील ही करता था न, पर जमील पिछले 2 दिनों से गुलाबपुर में नहीं था. फिर प्रोग्राम कैंसिल होने की खबर तुम्हें किस ने दी?’’ मैं ने उसे देखते हुए पूछा.

‘‘इम्तियाज ने.’’ उस ने एकदम से कहा.

‘‘इम्तियाज कौन है?’’

‘‘माजिद चाचा का बेटा.’’

‘‘क्या इम्तियाज को भी तुम दोनों के मोहब्बत की खबर थी?’’

‘‘नहीं जी, वह तो 8 साल का बच्चा है. हमारे पड़ोस में ही रहता है.’’

‘‘इम्तियाज ने तुम से क्या कहा था?’’

‘‘मुझे तो यह जान कर ही बड़ी हैरानी हुई थी कि नासिर ने इम्तियाज के हाथ यह पैगाम क्यों भिजवाया था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैं ने चेक करने के लिए उस से पूछा, कहां नहीं जाना है. इस पर उस ने कहा था कि वह इस से ज्यादा कुछ नहीं जानता. नासिर भाई ने कहा है कि रेशमा को कह दो कि आज नहीं आना है. कुछ जरूरी काम है.’’ उस ने रुकरुक कर आगे कहा, ‘‘मैं जमील की दुकान पर जा कर पता कर लेती, पर वह टोबा टेक सिंह चला गया था. इम्तियाज से कुछ पूछना बेकार था. बहरहाल मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं नासिर से मिलने नहीं जाऊंगी.’’

‘‘इस का मतलब है कि नासिर को पूरी मंसूबाबंदी से साजिश के तहत कत्ल किया गया है. मुझे यकीन है कि इम्तियाज उस आदमी को पहचानता होगा, जिस ने नासिर के हवाले से तुम्हारे लिए संदेश भेजा था.’’ मैं ने सोचते हुए कहा.

‘‘आप यह बात इम्तियाज से पूछें. मेरी तबीयत बहुत बिगड़ रही है. चक्कर आ रहे हैं.’’ वह कमजोर लहजे में बोली.

‘‘तुम आराम करो रेशमा, पर इन बातों का किसी से जिक्र मत करना और परेशान मत होना.’’ मैं ने उसे समझाया. जब मैं कमरे से निकला तो उस के मांबाप ने मुझे घेर कर पूछा, ‘‘थानेदार साहब, कुछ पता चला?’’

‘‘कुछ नहीं, बल्कि सब कुछ पता चल गया है.’’

‘‘हमें भी तो कुछ बताइए न?’’ शकूर ने कहा.

‘‘पहले आप पड़ोस से इम्तियाज को बुलाएं.’’

थोड़ी देर में सरदारा बी इम्तियाज को बैठक में ले आई. वह 8 साल का मासूम सा बच्चा था. मैं ने उसे प्यार से अपने पास बिठा कर पूछा, ‘‘बेटा इम्तियाज, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’

‘‘हां, आप पुलिस हैं.’’ वह मुझे गौर से देखते हुए बोला.

इधरउधर की एकदो बातें करने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम स्कूल जाते हो, एक अच्छे बच्चे हो, सच बोलने वाले. यह बताओ, परसों शाम को तुम ने रेशमा बाजी से कहा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैं ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ था न?’’

‘‘हां, ऐसा हुआ था साहब.’’ इम्तियाज बोला.

‘‘तुम बहुत अच्छे बच्चे हो. मैं तुम्हें टाफियां दूंगा. अब यह भी बता दो कि तुम ने रेशमा बाजी को कहां जाने से मना किया था?’’

‘‘यह मुझे नहीं पता.’’ वह मासूमियत से बोला, ‘‘आप को यकीन नहीं आ रहा है तो रब की कसम खाता हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, कसम खाने की जरूरत नहीं है. मुझे तुम पर भरोसा है. तुम ने तो रेशमा बाजी से वही कहा था, जो नासिर भाई ने तुम से कहलवाया था, है न?’’

‘‘नहीं जी.’’ वह उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगा.

‘‘क्या नहीं?’’

‘‘यह बात मुझे नासिर भाई ने नहीं कही थी.’’

उस ने कहा तो मैं ने तपाक से सवाल किया, ‘‘फिर किस ने कही थी?’’

‘‘हैदर भाई ने.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है हैदर अली? सरदारा बी का भांजा हैदर अली जुलेखा का बेटा.’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी, जी वही हैदर भाई.’’ उस ने जल्दी से कहा.

सरदारा बी की बहन जुलेखा का घर भी गुलाबपुर में ही था. हैदर अली उसी का बेटा था और वह इसी हैदर से रेशमा की शादी करना चाहती थी. यह भी सुनने में आया था कि हैदर का दावा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. मैं सोचने लगा कि जब उसे रेशमा और नासिर की मोहब्बत का पता चला होगा तो उस ने अपने प्रतिद्वंदी को रास्ते से हटाने की कोशिश की होगी. मुझे लगा कि अब केस हल हो जाएगा. जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा, उसे डराधमका कर मैं उस की जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाऊंगा. पर ऐसा नहीं हुआ.

जब मैं जुलेखा के घर पहुंचा तो हैदर अली घर पर नहीं था. मैं ने जुलेखा से पूछा, ‘‘हैदर अली कहां गया है?’’

‘‘मुझे तो पता नहीं, बता कर नहीं गया है जी. वैसे आप हैदर को क्यों ढूंढ रहे हैं?’’ वह परेशान हो कर बोली.

उस की परेशानी स्वाभाविक थी. अगर पुलिस किसी के दरवाजे पर आए तो घर के लोग चिंता में पड़ जाते हैं. मैं जुलेखा को अंधेरे में नहीं रखना चाहता था. मैं ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें यह पता है न कि गुलाबपुर में एक लड़के का कत्ल हो गया है?’’

‘‘जी…जी मालूम है, बशीर लोहार के जवान बेटे का कत्ल हो गया है. किसी जालिम ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा है.’’ उस ने कहा.

‘‘किसी ने नहीं, एक खास बंदे ने जिस की तलाश में मैं यहां आया हूं. तुम्हारा लाडला हैदर अली.’’

‘‘नहींऽऽ.’’ उस ने एक चीख सी मारी, ‘‘मेरा बेटा कातिल नहीं हो सकता. आप को कोई गलतफहमी हुई है थानेदार साहब.’’ वह रोनी आवाज में बोली.

‘‘हर मां का यही खयाल होता है कि उस का बेटा मासूम है. पर मैं तफ्तीश कर के पक्के सुबूत के साथ यहां आया हूं.’’

‘‘कैसा सुबूत साहब?’’ वह परेशान हो कर बोली.

‘‘हैदर अली को मेरे हाथ लगने दो, उसी के मुंह से सुबूत भी जान लेना.’’ मैं ने तीखे लहजे में कहा.

काफी देर राह देखने के बाद मैं ने गांव में अपने 2 लोग उस की तलाश में भेजे. पर वह कहीं नहीं मिला. इस का मतलब था, वह गांव छोड़ कर कहीं भाग गया था. गुलाबपुर में भी किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं था. हैदर अली के गांव से गायब होने से पक्का यकीन हो गया कि वारदात में उसी का हाथ था. मैं काफी देर तक गुलाबपुर में रुका रहा. फिर जुलेखा से कहा, ‘‘जैसे ही हैदर घर आए, उसे थाने भेज देना.’’

एक बंदे को उस की टोह में लगा कर मैं थाने लौट आया. अगले रोज मैं सुबह की नमाज पढ़ कर उठा ही था कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो सामने कांस्टेबल न्याजू खड़ा था. पूछने पर बोला, ‘‘साहब, जिस सिपाही को हैदर के लिए गांव में छोड़ कर आए थे, उस ने खबर भेजी है कि वह देर रात घर लौट आया है.’’

‘‘न्याजू, तुम और हवलदार समद फौरन गुलाबपुर रवाना हो जाओ और हैदर अली को साथ ले कर आओ.’’ मैं ने उसे आदेश दिया.

तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा तो थोड़ी देर बाद हवलदार समद हैदर को गिरफ्तार कर के ले आया. उस के साथ रोती, फरियाद करती जुलेखा भी थी. मैं ने कहा, ‘‘देखो जुलेखा, रोनेधोने की जरूरत नहीं है. यह थाना है शोर मत करो.’’

‘‘साहब, आप मेरे जवान बेटे को पकड़ कर ले आए हैं, मैं फरियाद भी न करूं.’’ वह रोते हुए बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुलाया है, फांसी पर चढ़ाने के लिए नहीं. अगर वह बेकुसूर है तो अभी थोड़ी देर में छूट जाएगा. यह मेरा वादा है तुम से.’’

‘‘अल्लाह करे, मेरा बेटा बेगुनाह निकले.’’

‘‘मेरी सलाह है, तुम घर चली जाओ. अगर हैदर बेकुसूर है तो शाम तक घर आ जाएगा.’’

हैदर को मैं ने अपने कमरे में बुलाया. हवलदार समद भी साथ था. मैं ने उसे गहरी नजर से देखा और तीखे लहजे में कहा, ‘‘हैदर, इसी कमरे में तुम्हारी जुबान खुल जाएगी या तुम्हें ड्राइंगरूम की सैर कराई जाए.’’

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उतर गया. वह गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, मैं ने ऐसा क्या किया है?’’

‘‘क्या के बच्चे, मैं बताता हूं तेरी काली करतूत. तूने नासिर का कत्ल किया है.’’

‘‘नहीं जी, मैं ने किसी का कत्ल नहीं किया.’’ वह घबरा उठा.

‘‘फिर नासिर का कातिल कौन है?’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘मुझे कुछ पता नहीं थानेदार साहब.’’ वह हकलाया.

‘‘तुम्हें यह तो पता है न कि रेशमा तुम्हारी बचपन की मंगेतर है.’’ मैं ने टटोलने वाले अंदाज में कहा.

‘‘जी, जी हां, यह सही है.’’ उस ने कहा.

‘‘और यह भी तुम्हें मालूम होगा कि मकतूल नासिर और तुम्हारी मंगेतर रेशमा में पिछले कुछ अरसे से इश्क का चक्कर चल रहा था?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं थानेदार साहब?’’ उस ने नकली हैरत दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं जो कह रहा हूं, तुम अच्छी तरह समझ चुके हो. सीधी तरह से सच्चाई बता दो, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रहा हूं, मैं ने नासिर का कत्ल नहीं किया.’’ वह नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘नासिर के कत्ल वाली बात पहले हो चुकी है. अभी मेरे इस सवाल का जवाब दो कि तुम्हें रेशमा और नसिर के इश्क की खबर थी या नहीं? सच बोलो.’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था.’’

‘‘तो क्या तुम इम्तियाज को भी नहीं जानते?’’

‘‘कौन इम्तियाज?’’ वह टूटी हुई आवाज में बोला.

‘‘माजिल का बेटा, रेशमा का पड़ोसी बच्चा. याद आया कि नहीं?’’ मैं ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, आप उस बच्चे की बात कर रहे हैं.’’

‘‘हां…हां, वही बच्चा, जिस के हाथ तुम ने रेशमा के लिए संदेह भेजा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैंने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा तो वह हैरानी से बोला, ‘‘मैं ने? मैं ने तो ऐसी कोई बात नहीं की…’’

‘‘तुम्हारे इस कारनामे के 2 गवाह मौजूद हैं. एक तो इम्तियाज, जिस के हाथ तुम ने संदेश भेजा था, दूसरी रेशमा, जिस के लिए तुम ने यह पैगाम भेजा था. अब बताओ, क्या कहते हो?’’

मेरी बात सुन कर वह हड़बड़ा गया. हवलदार समद ने कहा, ‘‘आप इस नालायक को मेरे हवाले कर दें, एक घंटे में फटाफट बोलने लगेगा.’’

मैं ने हैदर अली को हवलदार के हवाले कर दिया. थोड़ी देर में उस की चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. एक घंटे के पहले ही हवलदार ने खुशखबरी सुनाई.

‘‘हैदर अली ने जुर्म कुबूल लिया है. आप इस का बयान ले लें.’’

‘‘मतलब यह कि उस ने नासिर के कत्ल की बात मान ली है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी नहीं, बात कुछ और ही है, आप उसी से सुनिए.’’

हैदर अली ने नासिर का कत्ल सीधेसीधे नहीं किया था. अलबत्ता वह एक अलग तरह से इस कत्ल से जुड़ा था. यह भी सच था कि नन्हे इम्तियाज से रेशमा को पैगाम उसी ने भिजवाया था. यह पैगाम उस ने चौधरी आफताब के कहने पर रेशमा को भिजवाया था, ताकि रेशमा वारदात की रात मुलाकात की जगह न पहुंच सके और नासिर को ठिकाने लगाने में किसी मुश्किल का सामना न करना पड़े. चौधरी आफताब नजीराबाद के चौधरी का बेटा था. वह भी कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था. हाल ही में खेले गए टूर्नामेंट में वह नजीराबाद से खेल रहा था. फाइनल मैच में नजीराबाद की बुरी तरह से हार हुई थी. कप और इनाम गुलाबपुर के हिस्से में आए. ढेरों तारीफ व जीत की खुशी भी नासिर के नाम लिखी गई.

एक कबड्डी का दांव नासिर और आफताब के बीच पड़ा था, जिस में नासिर ने चौधरी आफताब को इतनी बुरी तरह से रगड़ा था कि उस की नाक और मुंह से खून बहने लगा था. एक तो गांव की हार, ऊपर से अपनी दुर्गति पर उस का दिल गुस्से और बदले की आग से जलने लगा था. उस का वश चलता तो वह वहीं नासिर का सिर फोड़ देता. उस ने मन ही मन इरादा कर लिया कि नासिर से बदला जरूर लेगा. इस तरह उस का अपने सब से बड़े प्रतिद्वंदी से भी पीछा छूट जाएगा. आफताब से हैदर ने कह रखा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. किसी तरह उसे यह भी पता चल गया था कि नासिर और रेशमा के बीच मोहब्बत और मुलाकात का सिलसिला चल रहा है. इसलिए उस ने एक तीर से दो शिकार करने का खतरनाक मंसूबा बना लिया.

हैदर अली को रेशमा और नासिर के संबंध का शक तो था ही, पर जब आफताब ने इस बारे में उसे शर्मसार किया तो वह आपे से बाहर हो गया. चौधरी आफताब ने उसे समझाया कि जोश के बजाय होश और तरीके से काम लिया जाए तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी सलामत रहेगी. हैदर अली ने चौधरी आफताब का साथ देने का फैसला कर लिया. हैदर अली ने अपने हाथों से नासिर का कत्ल नहीं किया था, पर वह इस साजिश का एक हिस्सा था. जिस में चौधरी के भेजे हुए दो लोगों ने तेजधार चाकू की मदद से नासिर का बेदर्दी से कत्ल कर दिया था. जब कातिल उसे मौत के घाट उतार रहे थे तो हैदर अली थोड़ी दूर अंधेरे में खड़ा यह खूनी तमाशा देख रहा था.

हैदर अली के इकबालेजुर्म और गवाही पर मैं ने उसी रोज खुद नजीराबाद जा कर नासिर के कत्ल के सिलसिले में चौधरी आफताब को भी गिरफ्तार कर लिया था. आफताब गांव के चौधरी का बेटा था, इसलिए उस की गिरफ्तारी को रोकने के लिए मुझ पर काफी दबाव डाला गया था, पर मैं ने उस के असर व पैसे की परवाह न करते हुए चौधरी आफताब और उस की निशानदेही पर उन दोनों कातिलों को भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था. अपनी हर कोशिश नाकाम होते देख चौधरी ने मुझे धमकी दी थी, ‘‘मलिक साहब, आप को मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है. मैं अपने बेटे को अदालत से छुड़वा लूंगा.’’

मैं ने विश्वास से कहा, ‘‘चौधरी साहब, मैं सिर्फ खुदा की ताकत और कानून से डरता हूं. आप को जितना जोर लगाना है, लगा लो. आप का होनहार बेटा अदालत से सीधा जेल जाएगा.’’

मैं ने हैदर अली, चौधरी आफताब और नासिर के दोनों कातिलों के खिलाफ बहुत सख्त रिपोर्ट बनाई और उन्हें अदालत के हवाले कर दिया. दोनों कातिल अपने जुर्म का इकबाल कर चुके थे, इसलिए उन की बाकी जिंदगी जेल में ही गुजरनी थी. True Crime Stories

 

Crime News : 2 रूपए के लिए हैवान बना नौकर

Crime News : होटल मालकिन सुशीला ने अगर अपने नौकर नंदू को 2 रुपए दे दिए होते तो शायद हत्या जैसा यह जघन्य अपराध न होता. नौकरों पर इलजाम लगा देना बड़ा आसान होता है, पर उन के दबेकुचले मन के आक्रोश को समझना बहुत मुश्किल. नंदू के मामले में भी शायद ऐसा ही था. तारीख थी 5 नवंबर, 2014. सुबह के 8 बज रहे थे. उत्तराखंड के हरिद्वार की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक स्वीटी अग्रवाल उस समय हर की पौड़ी पुलिस चौकी पर अपने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को ड्यूटी के बारे में निर्देशित कर रही थीं, क्योंकि अगले दिन कार्तिक पूर्णिमा को होने वाले महास्नान के कारण वहां जिलेभर की पुलिस की तमाम टीमें मौजूद थीं.

उसी बीच वहां मौजूद हर की पौड़ी पुलिस चौकी के प्रभारी मोहन सिंह के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली और मोबाइल का स्विच औन कर के ‘हैलो’ कहा तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘क्या पौड़ी पुलिस चौकी इंचार्ज से बात हो सकती है?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं. बताइए क्या बात है?’’ मोहन सिंह ने कहा.

‘‘सर, आप को एक मर्डर की खबर देनी थी.’’ फोनकर्ता बोला.

‘‘भई मर्डर कहां और किस का हुआ है?’’ मोहन सिंह ने चौंक कर पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मर्डर जाह्नवी मार्केट के निकट होटल शेरेपंजाब की मालकिन सुशीला शर्मा का हुआ है. सुशीला रात को प्रतिदिन की तरह होटल में सोई थीं. आज सुबह उन की बर्फ तोड़ने वाले सुए से गोदी हुई लाश बेड पर पड़ी मिली है.’’

‘‘सुशीला शर्मा के घर वाले क्या वहां मौजूद हैं?’’ मोहन सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं सर, वहां पर सुशीला शर्मा का कोई घर वाला नहीं है. दरअसल वह पिछले कई महीने होटल में ही रात को सोती थीं. उन का होटल मैनेजर राहुल भी अक्सर होटल में ही सोता था.’’ फोन करने वाले ने बताया.

‘‘क्या राहुल वहां मौजूद है.’’ मोहन सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं सर, अभी मौके पर न तो राहुल है और न ही सुशीला का कोई घर वाला,’’ फोन करने वाले ने आगे बताया, ‘‘रोजाना की तरह आधे घंटे पहले होटल के नौकर दिलवर सिंह और संतराम भट्ट होटल पहुंचे थे. वहां उन्हें होटल का आधा शटर खुला मिला. वे दोनों अपने साथ होटल के बाहर सोने वाले नौकर सहदेव के साथ अंदर गए तो उन्होंने वहां का जो नजारा देखा, उसे देख कर तीनों के होश उड़ गए.’’

‘‘क्या सुशीला की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी गई है?’’ मोहन सिंह ने पूछा तो फोन करने वाले ने बताया, ‘‘हां सर, होटल के पड़ोसी दुकानदारों ने फोन कर के सुशीला की हत्या की जानकारी गुरदासपुर में रहने वाले उन के पति सुरेश शर्मा और दिल्ली में रह रही उन की बेटी को दे दी है. प्लीज आप जल्दी आ जाइए.’’

‘‘आप कौन साहब बोल रहे हैं?’’ मोहन सिंह ने पूछा तो फोनकर्त्ता ने कहा, ‘‘देखिए सर, मैं ने आप को इस मर्डर की खबर दे कर एक जिम्मेदार नागरिक होने का दायित्व निभया है. आप मेरे बारे में जानकारी करने के बजाय घटनास्थल पर पहुंचे और अपनी जिम्मेदारी निभाएं.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. मामला चूंकि चौकी क्षेत्र की होटल संचालिका की हत्या का था, इसलिए मोहन सिंह ने इस मामले की सूचना कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर पी.सी. मठपाल, सीओ चंद्रमोहन नेगी, एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार और एसएसपी स्वीटी अग्रवाल को दे दी. थोड़ी देर में सभी अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक शेरेपंजाब होटल के बाहर स्थानीय दुकानदारों, नेताओं और हर की पौड़ी पर आए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी.

पुलिस ने सब से पहले वहां खड़ी भीड़ को हटाया और उस के बाद मौके का गहनता से निरीक्षण करने लगी. एसएसपी स्वीटी अग्रवाल और सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने अंदर जा कर सब से पहले लहूलुहान पड़े सुशीला के शव को देखा. शव के चेहरे, गरदन व शरीर के अन्य भागों पर सुए से निर्ममता से गोदे जाने के दरजनों घाव थे. मृतका की सलवार उतरी हुई थी. जिसे देख कर पुलिस को कुछ संदेह हुआ. इसी के मद्देनजर हर की पौड़ी पुलिस चौकी से एक महिला कांस्टेबल को बुला कर सुशीला के सारे शरीर का निरीक्षण कराया गया. पता चला कि मृतका के शरीर के सभी जेवर गायब थे. लाश को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे उस का गला भी दबाया गया हो.

घटनास्थल से बर्फ तोड़ने वाला वह सुआ मिल गया था, जिस से सुशीला की हत्या की गई थी. पुलिस ने उसे जब्त कर लिया. घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद सबइंसपेक्टर मोहन सिंह मृतका सुशीला की लाश का पंचनाम बनाने लगे और एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने होटल मैनेजर राहुल तथा नौकरों दिलवर, संतराम व सहदेव से पूछताछ करनी शुरू कर दी. हालांकि घटनाक्रम के हिसाब से शक की सुई लापता नौकर नंदकिशोर उर्फ नंदू पर जा रही थी, लेकिन इस केस में बड़ा पेंच यह फंस गया था कि किसी को यह मालूम नहीं था कि नंदू कहां का रहने वाला था और वह कहां से यहां आया था? हत्या के बाद नंदू के गायब होने से सुशीला की हत्या की गुत्थी और उलझ गई थी. घटनास्थल से मृतका के 2 मोबाइल फोन भी गायब थे.

बहरहाल, सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने सुशीला की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय हरमिलाप अस्पताल भिजवा दिया और राहुल, संतराम, दिलवर व सहदेव को ले कर कोतवाली हरिद्वार लौट आए. कोतवाली में सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने उन चारों से हत्या की तह में जाने के लिए गहन पूछताछ की. तत्पश्चात पुलिस ने नौकर संतराम, निवासी गांव भटवाडा, जिला टिहरी गढ़वाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही गवाहों सहदेव, दिलवर और राहुल के बयानों के आधार पर जांच शुरू कर दी. जांच की जिम्मेदारी मोहन सिंह को सौंपी गई थी. पुलिस पूछताछ में सुशीला की हत्या की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.

सुशीला शर्मा के पति सुरेश शर्मा मूलत: हापुड़, गाजियाबाद के रहने वाले थे. उन के फूफा देवीराम का हरिद्वार में होटल था. उन की कोई संतान नहीं थी. उन्होंने सुरेश को गोद ले लिया था. बाद में सुरेश हरिद्वार आ कर होटल चलाने लगे थे. सुरेश ने काफी मेहनत की और पैसा कमा कर किराए के होटल की इमारत अपनी पत्नी सुशीला के नाम से खरीद ली. इस बीच उन के 2 बेटियां और एक बेटा हुआ. बच्चों के बड़े होने के बाद सुशीला ने कांगे्रस पार्टी ज्वाइन कर ली और कांगे्रस के कार्यक्रमों में भाग लेने लगी. सन 2000 में सुशीला महिला कांगे्रस की प्रदेश सचिव बन गईं. सुशीला का दिन भर घर से बाहर रहना सुरेश को पसंद नहीं था, इसलिए दोनों में आपसी तनाव रहने लगा.

जब तनाव बढ़ता गया तो सन 2006 में सुरेश अपनी पत्नी सुशीला, दोनों बेटियों और बेटे को छोड़ कर गुरदासपुर, पंजाब चला गया और एक होटल में काम करने लगा. इस के बाद सुशीला ने अपनी दोनों बेटियों और बेटे की शादियां कर दीं. 3 साल पहले सुशीला के बेटे अंकुर की छत से गिर कर मौत हो गई. उस वक्त अंकुर की मौत को आत्महत्या माना गया था. पिछले 7 महीने से सुशीला घर छोड़ कर होटल में ही रहने लगी थी. होटल का मैनेजर राहुल निवासी हाथीखाना, हरिद्वार भी रात को अकसर होटल में ही सोता था. लेकिन पिछले 7 दिनों से वह होटल में नहीं सो रहा था. यह भी पता चला कि सुशीला का अपने नौकरों के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था. वह नौकरों को अक्सर डांटतीफटकारती रहती थी. इतना ही नहीं, उन्हें वेतन देने में भी परेशान करती रही थी.

इसी वजह से उस के होटल में नौकर बदलते रहते थे. जब पुलिस सुशीला से अपने नौकरों के सत्यापन के लिए कहती तो वह उन के फोटो देने और उन के सत्यापन कराने में आनाकानी करती. उस की इस आनाकानी की वजह से एक बार हरिद्वार पुलिस उस पर उत्तराखंड पुलिस अधिनियम-2007 के तहत जुर्माना भी कर चुकी थी. पता चला सुशीला फरार नौकर नंदू पर अपने मैनेजर राहुल से ज्यादा भरोसा करती थी. जांचअधिकारी मोहन सिंह के सामने परेशानी यह थी कि उस के पास न तो सुशीला के नौकर नंदू का कोई फोटो था और न ही उस के बारे में किसी को कोई जानकारी थी. नंदू के बारे में पुलिस को केवल इतनी ही जानकारी मिल सकी थी कि वह खुद को राजस्थान का रहने वाला और लावारिस बताता था.

सुशीला उसे 2 महीने पहले गंगाघाट से पकड़ कर अपने होटल में काम करवाने के लिए लाई थी. इस से पहले भी वह उस के होटल में काम कर चुका था. अभी 2 माह पहले ही नंदू दोबारा उस के होटल में काम करने आया था. इस के अलावा पुलिस के लिए सुशील की हत्या की वजह पता लगाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था. सुशीला की हत्या उस के नौकर नंदू ने ही की थी या हत्यारा कोई और था, क्योंकि प्रौपर्टी विवाद या किसी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते भी ऐसा हो सकता था. सुशीला की लाश आपत्तिजनक हालत में मिली थी, उस के शरीर के निचले हिस्से पर कपड़े नहीं थे, इस से संभावना दुष्कर्म की भी थी. यह बात मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही पता चल सकती थी. पुलिस को उसी का इंतजार था.

सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने सुशीला के नौकर नंदू को पकड़ने के लिए अपने कुछ खास मुखबिरों को उस का हुलिया बता कर उस का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी. इस के अलावा उन्होंने सुशीला के दोनों मोबाइल नंबरों को भी सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन की लोकेशन पता चल सके. अगले दिन मोहन सिंह को मृतका सुशीला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सुए से हुए प्रहारों के कारण अधिक रक्त बह जाना और गला दबाना बताया गया. इसी तरह 3 दिन बीत गए, लेकिन पुलिस को नौकर नंदू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. 9 नवंबर को मोहन सिंह को सर्विलांस के माध्यम से जानकारी मिली कि सुशीला शर्मा के एक मोबाइल से एक नंबर पर काल की गई थी.

जिस नंबर पर काल की गई थी, उस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो पता चला कि वह नंबर दुकानदार अंकुर अग्रवाल, निवासी निंबाड़ा, जिला चित्तौड़गढ़, राजस्थान का था. मोहन सिंह तुरंत सिपाहियों गुलशन, दिनेश चौधरी और आशीष बिष्ट को साथ ले कर निंबाड़ा जा पहुंचे और अंकुर से नंदू के बारे में पूछताछ की. उत्तराखंड पुलिस को देख कर अंकुर घबरा गया. अंकुर ने मोहन सिंह को बताया कि 2 वर्ष पूर्व नंदकिशोर उर्फ नंदू उस की दुकान पर नौकरी करता था. वह गांव रानीखेड़ा, थाना निंबाड़ा निवासी गोपाल लोहार का बेटा था.

अंकुर से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम नंदू के घर पहुंची. वहां नंदू के पिता गोपाल लोहार ने पुलिस टीम को निंबाड़ा थाने में दर्ज गुमशुदगी की रिपोर्ट दिखाते हुए बताया कि नंदू घर से 2 वर्ष से लापता है. उसे नहीं मालूम कि इस वक्त वह कहां है. मोहन सिंह ने नंदू के घर से उस की फोटो ली और लोगों को अजमेर, निंबाडा, चित्तौड़गढ़ तथा श्रीगंगानगर के बसस्टैंडों व रेलवे स्टेशनों पर दिखा कर नंदू का पता लगाने की कोशिश की. जब उस का कोई पता नहीं चला तो वह अपनी टीम के साथ हरिद्वार लौट आए.

13 नवंबर, 2014 को मोहन सिंह को पता चला कि सुशीला के मोबाइल के हिसाब से नंदू की लोकेशन चित्तौड़गढ़ की आ रही है. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी थी. मोहन सिंह तुरंत अपनी टीम को ले कर चित्तौड़गढ़ के लिए निकल गए. नंदू को पहचानने वाला एक नौकर उन के साथ था. उस की निशानदेही पर नंदू को रेलवे स्टेशन पर घूमते हुए पकड़ लिया गया. उसे गिरफ्तार कर के पुलिस हरिद्वार ले आई. पूछताछ में नंदू ने सुशीला की हत्या करने की बात कुबूलते हुए जो कुछ बताया, वह कुछ इस तरह था.

नंदू के अनुसार, उस का बाप गोपाल लोहार नशे में बचपन से ही उसे खूब पीटता आया था. बाप की पिटाई से वह काफी परेशान रहता था. इसी चक्कर में उस ने घर छोड़ दिया और 2 साल तक निंबाड़ा के दुकानदार अंकुर अग्रवाल की दुकान पर नौकरी की. जब वहां से उस का मन उचट गया तो वह भाग कर ट्रेन से हरिद्वार आ गया और भिखारियों के साथ रह कर भीख मांग कर अपना पेट भरने लगा. तभी एक दिन उस पर सुशीला की नजर पड़ी. उसे वह भिखारी नहीं लगा. नंदू से बातचीत के बाद सुशीला शर्मा उसे अपने होटल शेरेपंजाब ले गई और काम पर रख लिया. कई महीने काम करने के बाद भी जब सुशीला ने उसे वेतन नहीं दिया तो वह वहां से काम छोड़ कर चला गया. इस के बाद उस ने अन्य 2-3 दुकानों पर काम किया.

2 महीने पहले हरिद्वार में ही सुशीला और नंदू का आमनासामना हो गया. सुशीला ने नंदू को समझायाबुझाया और 3 हजार रुपए महीना नियमित वेतन देने की बात तय कर के उसे अपने होटल ले आई. नंदू ठीक से अपना काम करने लगा. लेकिन जब वेतन देने की बात आई तो सुशीला पहले की ही तरह उसे वेतन देने में आनाकानी करने लगी. यहां तक कि वह सुलभ शौचालय में जाने के लिए उसे 2 रुपए तक नहीं देती थी. इस सब से वह बहुत परेशान था. घटना वाले दिन यानी 4 नवंबर को चाकू लगने से नंदू का हाथ कट गया. जब उस ने घाव पर बैंडैड लगाने के लिए सुशीला से 2 रुपए मांगे तो उस ने 2 रुपए भी देने से मना कर दिया. इस बात को ले कर उस ने 2-4 बातें कहीं तो सुशीला चिढ़ गई.

शाम को सुशीला और होटल मैनेजर राहुल ने उसे चिढ़ाते हुए उस का खाना भी फेंक दिया. इस से नंदू रात को बहुत गुस्से में था. जब उस ने सुशीला से छुट्टी मांगी तो उस ने छुट्टी देने से भी मना कर दिया. रात को डेढ़ बजे जब सुशीला होटल के अंदर सो रही थी तो नंदू ने वहीं रखी अलमारी से बर्फ तोड़ने वाला सुआ निकाला और गुस्से में उस के चेहरे, गले व शरीर पर कई ताबड़तोड़ वार कर दिए. जब सुशीला ने चिल्लाने का प्रयास किया तो नंदू ने उस का गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने मृत सुशीला के कपड़े उतारे और उस के साथ दुराचार किया. इस के बाद उस ने सुशीला की चेन, अंगूठी, 2 मोबाइल व 6 हजार रुपए उठाए और हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां वह दिल्ली जा रही एक ट्रेन में बैठ गया.

दिल्ली होता हुआ नंदू चित्तौड़गढ़ पहुंचा. चित्तौड़गढ़ के बाद वह अजमेर और निंबाड़ा आदि जगहों पर घूमता रहा. यह सब वह पुलिस से छिपने के लिए कर रहा था. इसी के चलते जब वह चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पर घूम रहा था, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. जांच अधिकारी मोहन सिंह ने नंदू के बयान दर्ज कर लिए और उस की निशानदेही पर सुशीला के गहने, मोबाइल और कुछ नगदी बरामद कर ली. 14 नवंबर को एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने आरोपी नंदू को प्रैसवार्ता के दौरान मीडिया के सामने पेश किया. इस के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नंदू जेल में था और मोहन सिंह इस मामले की चार्जशीट बनाने में जुटे थे.

हो सकता है नंदू के बयानों में सच्चाई न हो. यह बात अदालत में ही साबित होगी. लेकिन छोटी सी यह अपराध कथा उन लोगों के लिए प्रेरणा साबित हो सकती है, जो अपने नौकरों को इंसान नहीं समझते. यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि सालों से मन में दबा आक्रोश जब फूट कर निकलता है तो उस का अंजाम अच्छा नहीं होता. आक्रोश न चाहते हुए भी इंसान को अपराधी बना दे. Crime News

Honey Trap : खिलाड़ियों का शिकार

Honey Trap : विनोद दीक्षित उस मीटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन के पास 32-33 साल का एक युवक शिकायत ले कर आया. उस ने टीआई साहब को शिकायती पत्र दिया. उसे पढ़ कर टीआई विनोद दीक्षित चौंके. क्योंकि मामला हनीट्रैप का था. हनीट्रैप का एक मामला वैसे भी पूरे प्रदेश में हलचल मचाए हुए था. यह मामला भी कहीं चर्चित न हो जाए, इसलिए टीआई ने उस युवक की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

एसएसपी के आदेश पर टीआई ने शिकायतकर्ता राजेश गहलोत की तहरीर पर आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर इस की जांच एसआई दिलीप देवड़ा को सौंप दी. एसआई दिलीप देवड़ा ने जब राजेश सोलंकी ने बताया कि इंदौर की द्वारिकापुरी सोसाइटी निवासी दुर्गेश सेन और उस की लिवइन पार्टनर गायत्री सिसोदिया ने पहले उसे धोखे से अपने देहजाल में फंसाया और फिर चोरीछिपे उस की अश्लील वीडियो बना ली.

उसी वीडियो से ब्लैकमेल कर के वह उस से 45 हजार रुपए वसूल चुके हैं. लेकिन इस के बाद भी उन की पैसों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. राजेश गहलोत ने ब्लैकमेल करने के कुछ सबूत भी जांच अधिकारी को सौंपे. एसआई दिलीप देवड़ा ने सबूतों का अध्ययन कर के राजेश गहलोत से बात करने के बाद सारी जानकारी टीआई विनोद दीक्षित व सीएसपी पुनीत गहलोत को दे दी. इस के बाद उन्होंने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनानी शुरू कर दी. अगले दिन पुलिस टीम ने द्वारिकापुरी सोसाइटी से दुर्गेश को गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में दुर्गेश के पास एक भरा हुआ पिस्तौल ओर 3 जिंदा कारतूस भी मिले.

दुर्गेश से पूछताछ की गई तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. इतना ही नहीं उस ने राजेश गहलोत को पहचानने से भी इनकार कर दिया. लेकिन जब एसआई देवड़ा ने गहलोत द्वारा उपलब्ध कराए सबूत उस के सामने रखे तो दुर्गेश की बोलती बंद हो गई. अब उस के बोलने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी. लिहाजा उसे सच्चाई बताने के लिए मजबूर होना पड़ा. एसआई देवड़ा ने उस से जानकारी ले कर तत्काल जवाहर नगर देवास में दबिश दी और गायत्री सिसोदिया को भी गिरफ्तार कर लिया. गायत्री ने भी नाटकबाजी करते हुए राजेश गहलोत को पहचानने से इनकार कर दिया.

जांच अधिकारी ने गायत्री सिसोदिया का मोबाइल जब्त कर उस की जांच की तो राजेश के साथ ही नहीं बल्कि कई अन्य युवकों के साथ भी उस की अश्लील वीडियो मिलीं. इस से साफ हो गया कि गायत्री दुर्गेश के साथ मिल कर पैसे वाले युवकों को अपने जिस्म के जाल में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल करने का काम कर रही थी. चूंकि उन के खिलाफ सुबूत मिल चुके थे और उन्होंने अपना अपराध भी स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर दुर्गेश को रिमांड पर ले लिया जबकि कोर्ट के आदेश पर गायत्री को जेल भेज दिया गया. इस के बाद हनीट्रैप की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के जनपद देवास के रहने वाले राजेश गहलोत का टूव्हीलर

शोरूम था. जिस मोहल्ले में राजेश रहते थे, उसी मोहल्ले में दुर्गेश नाम का एक शख्स रहता था जो एक निजी कंपनी की बस में ड्राइवर था. दुर्गेश चालाक इंसान था. उस ने नरसिंहपुर में रहने वाली गायत्री नाम की युवती से अच्छी दोस्ती कर ली थी. यह दोस्ती उन्हें अवैध संबंधों तक ले गई. दरअसल गायत्री इंदौर के एक कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. वह अकसर दुर्गेश की बस से कालेज जाती थी. उसी समय उन दोनों की दोस्ती हो गई थी. बाद में दुर्गेश उस की आर्थिक मदद भी करने लगा था. उन के संबंध इतने गहरे हो गए थे कि दुर्गेश ने द्वारिकापुरी में किराए पर एक फ्लैट ले लिया और उस के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

इस के पीछे गायत्री की यह सोच थी कि उसे पढ़ाई का खर्च तो घर से मिलता रहेगा, बाकी ऐश के लिए दुर्गेश उस का खर्च उठाएगा. लेकिन एक बस ड्राइवर अपनी प्रेमिका पर कितना खर्च कर सकता था. सो जल्द ही गायत्री को लगने लगा कि ऐश करने के लिए उसे ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा. इस बीच उस ने देखा कि उस के कालेज की कई लड़कियां जो बाहर के शहरों से पढ़ने के लिए इंदौर में आ कर अकेली रहती हैं, अपने ऊपरी खर्च निकालने के लिए एक साथ कई लड़कों को अपना प्रेमी बनाए हुए हैं.

लेकिन उन में और गायत्री में अंतर था. दूसरी लड़कियों को रोकटोक करने वाला कोई नहीं था, जबकि दुर्गेश गायत्री पर नजर रखता था. इसलिए काफी सोचसमझ कर गायत्री ने एक दिन दुर्गेश को जल्द अमीर होने की योजना बताई. उस ने कहा कि क्यों न वे युवकों को हनीट्रैप में फंसा कर उन से मोटी कमाई करें. दुर्गेश को गायत्री की यह योजना पसंद आ गई. दुर्गेश खुद भी गायत्री के साथ यही कर रहा था. वह उसे अन्य युवकों के साथ सुलाने के लिए तैयार हो गया. इस योजना में दुर्गेश ने अपने दोस्त राकेश सोलंकी को भी शामिल कर लिया.

गायत्री ने सब से पहले युवकों को फंसाने की शुरुआत अपने कालेज से की. वहां से वह युवकों को अपने जाल में फंसा कर कमरे पर लाती, जहां दुर्गेश चोरीछिपे उन की अश्लील फिल्म बनाने के बाद गायत्री और राकेश की मदद से ब्लैकमेल करता. लेकिन जल्द ही इन दोनें की समझ में आ गया कि कालेज बौय को फंसाने में 10-15 हजार से ज्यादा की रकम नहीं मिल पाती. इसलिए वह मालदार आसानी को शिकार बनाने की फिराक में रहने लगे. इस बीच गायत्री ने कालेज में ऐसी लड़कियां तलाश कर लीं, जिन की न केवल कई युवकों से दोस्ती थी बल्कि किसी भी युवक के साथ एकदो दिन के लिए इंदौर से बाहर घूमने के लिए जाने को तैयार रहती थीं.

गायत्री ने ऐसी लड़कियों से दोस्ती कर एक वाट्सऐप ग्रुप बना कर सब को साथ जोड़ लिया. इस के बाद उस ने इन में से काम की कुछ लड़कियों का चयन कर उन्हें अपने सांचे में ढाल लिया. इस काम में दुर्गेश भी उस की मदद कर रहा था. अब उस के ग्रुप की लड़कियां किसी मालदार युवक को अपने रूपजाल में फंसा कर गायत्री के कमरे में लातीं जहां गायत्री और दुर्गेश मिल कर युवती के साथ युवक का अश्लील वीडियो बनाने के बाद उस से बड़ी रकम झटक लेते. इस काम के लिए गायत्री के गिरोह की लड़कियों ने कई कोड वर्ड भी तैयार कर लिए थे. जैसे कि लड़की बोलती कि एक फोटो फ्रेम कर ली है तो इस का मतलब होता था कि एक युवक जाल में फंस चुका है.

जांच में सामने आया कि गायत्री राकेश और दुर्गेश ने कई युवकों को इस तरह से ब्लैकमेल कर उन से बड़ी रकम लूटी. पुलिस ने गायत्री के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ी कुछ लड़कियों के भी बयान दर्ज किए, जिन में उन्होंने स्वीकार किया कि गायत्री उन से लड़कों को फंसा कर अपने घर पर लाने का दबाव डालती थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था.

देवास निवासी राजेश गहलोत गायत्री के जाल में कैसे फंसा इस की कहानी भी काफी रोचक है. हुआ यह कि राजेश को देवास स्थित अपने टूव्हीलर शोरूम पर एकाउंट का काम संभालने के लिए किसी स्मार्ट लड़की की जरूरत थी. इस बारे में राजेश ने दुर्गेश की मौजूदगी में अपने दोस्त से बात की तो दुर्गेश का दिमाग चल गया. राजेश के पास काफी पैसा है यह बात दुर्गेश जानता था.

उस ने सोचा कि अगर गायत्री से राजेश को मिलवा दिया जाए तो लाखों रुपए हाथ आ जाएंगे, यह सोच कर उस ने राजेश से कहा, ‘‘इंदौर में मेरी परिचित एक युवती है. स्मार्ट भी है उसे काम की जरूरत है. तुम कहो तो इंटरव्यू के लिए मैं उसे बुला देता हूं. अगर समझ में आए तो देख लेना. मुझे लगता है कि वो काफी सुलझी हुई लड़की है, जो तुम्हारा सारा शोरूम संभाल सकती है.’’

‘‘ठीक है, उसे 2 दिन बाद बुला लो, क्योंकि कल मुझे एक जरूरी काम से इंदौर जाना है.’’ राजेश बोले.

‘‘ठीक है न, वो इंदौर में ही रहती है. तुम कहो तो वहीं तुम्हारी मुलाकात उस से करवा दूंगा.’’ दुर्गेश ने राजेश से कहा तो राजेश इस के लिए तैयार हो गया.

दूसरे दिन दुर्गेश अपनी ड्यूटी पर नहीं गया और इंदौर में बैठ कर गायत्री के साथ राजेश को सांचे में उतारने की तैयारी में जुट गया. राजेश चूंकि दुर्गेश की नजर में काफी मोटी आसामी था, इसलिए राजेश से मिलने से पहले उस ने गायत्री को ब्यूटीपार्लर भेज कर तैयार करवाया. इस के बाद उस ने राजेश को फोन लगाया. राजेश ने कहा कि अभी वह व्यस्त है. उस ने युवती को 2 दिन बाद देवास भेजने को कह दिया. लेकिन जब दुर्गेश ने उस पर दबाव डाला तो वह काम से फ्री होने के बाद युवती का इंटरव्यू लेने को राजी हो गया. फिर शाम के समय दुर्गेश राजेश को ले कर गायत्री के पास आ गया. राजेश को गायत्री के साथ फ्लैट में छोड़ कर वह किसी काम के बहाने वहां से चला गया.

राजेश ने सजीधजी गायत्री को देखा तो वह उसे कहीं से भी नौकरी की तलबगार नहीं लगी. उस ने गायत्री से पूछा, ‘‘आप ने इस के पहले कहीं काम किया है?’’

‘‘जी नहीं, आप पहले हैं, जिन के साथ मैं काम करूंगी.’’ गायत्री ने मुसकरा कर जवाब दिया.

ऐसा कहते हुए गायत्री ने ‘काम’ शब्द पर जिस तरह जोर दिया उस से राजेश को लगने लगा कि गायत्री का इरादा ठीक नहीं है. एक बार तो राजेश का मन हुआ कि वहां से उठ कर चला जाए लेकिन फिर उसे लगा कि शायद उस का ऐसा सोचना गलत है. संभव है कि लड़की का वह मतलब न हो, जो वह समझ रहा है. जबकि गायत्री का मतलब सचमुच वही था. यह बात उस की समझ में तब आई जब कुछ देर बाद गायत्री के साथ उस के कपड़े भी कमरे के फर्श पर पड़े थे.

कमरे में आया सांसों का तूफान थम चुका था. ऐसा कर के राजेश खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था इसलिए अपनी शर्म छिपाने के लिए उस ने गायत्री से कहा, ‘‘ठीक है, तुम पहली तारीख से काम पर आ जाना.’’

इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. इस के 2 दिन बाद गायत्री राजेश के शोरूम पर आई. राजेश ने नजरें चुराते हुए उसे काम समझाया. लेकिन गायत्री बोली, ‘‘लेकिन अब मुझे काम की कोई जरूरत ही नहीं है.’’

‘‘क्यों’’ राजेश ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि आप मुझे जितना वेतन साल दो साल में देते वो तो अब आप मुझे ऐसे ही 2 मिनट में दे देंगे.’’ गायत्री ने गरदन टेढ़ी कर कहा.

‘‘यह देखिए हमारे प्यार की फिल्म.’’  कहते हुए गायत्री ने उसे वह वीडियो दिखा दी जो उस ने राजेश के साथ हकीकत में किया था.

वीडियो देख कर राजेश को पसीना आ गया. लेकिन गायत्री ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘क्या सैक्सी ऐक्ट करते हो यार. बाजार में इस वीडियो को बेच दूं तो लाख दो लाख तो यूं ही मिल जाएंगे.’’

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम.’’ राजेश थूक गटकते हुए बोला.

‘‘यही कि इस वीडियो को आप खरीदना पसंद करोगे या फिर किसी और को बेचूं?’’ वह शब्दों पर जोर देते हुए बोली.

‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘तुम ने भी तो यही किया. नौकरी देने के नाम पर मेरी इज्जत लूट ली.’’

‘‘पहल तो तुम ने ही की थी.’’

‘‘लेकिन पुलिस इस बात को नहीं मानेगी, न कानून मानेगा. छोड़ो इसे कानून गया तेल लेने. मैं अपने बनाए कानून से चलती हूं. मेरी अदालत में गवाह भी मैं हूं और जज भी मैं. सीधी बात करो. 2 लाख दो और अपनी इज्जत बचा लो.’’ गायत्री ने सौदेबाजी की.

राजेश रोयागिड़गिड़ाया लेकिन गायत्री को दया नहीं आई. इसलिए राजेश ने अपने पर्स में रखे 25 हजार रुपए उसे दिए और उस से अपनी जान छुड़ाई. राजेश समझ गया कि राकेश और दुर्गेश भी इस पूरे खेल में शामिल हैं, लेकिन अपनी इज्जत के डर से वह चुप रहा. इधर दूसरे दिन ही गायत्री ने उस से और पैसों की मांग की तो राजेश ने उसे 15 हजार रुपए और दे दिए, जबकि गायत्री 2 लाख पर अड़ी रही. इतना ही नहीं जब राजेश ने आनाकानी की तो एक दिन राजेश के शोरूम पर आ कर वह तकरीबन 70 हजार रुपए की एक नई गाड़ी ले कर चली गई. राजेश ने सोचा कि अब शायद गायत्री उस का पीछा छोड़ देगी. लेकिन कुछ दिनों बाद गायत्री के साथ दुर्गेश भी उसे पैसा देने के लिए धमकाने लगा.

संयोग से इसी बीच राजेश की मुलाकात इंदौर निवासी अपने एक पत्रकार मित्र से हो गई. राजेश को परेशान देख कर उस ने कारण पूछा तो राजेश ने उसे सारी बात सुना दी. इस पर पत्रकार दोस्त ने उसे पुलिस की मदद लेने की सलाह दी. साथ ही उस ने पुलिस के पास जाने से पहले कुछ पुख्ता सबूत जमा कर लेने को कहा. जिस के चलते 15 नवंबर के आसपास जब गायत्री ने फोन कर और पैसों की मांग की तो राजेश ने कहा कि ठीक है कल शाम को फूटी कोठी के पास मिलो, वहां मैं तुम्हें पैसा दे दूंगा. गायत्री आई तो राजेश उसे पहले से तैयार रखे गए एक मकान में ले गया, जहां उस ने गायत्री के साथ हुई पैसों के लेनदेन की बात रिकौर्ड कर ली. इस के बाद कुछ देर में एटीएम से पैसा निकालने की बोल कर वह वहां से वापस आ गया और वह सीधे पुलिस के पास पहुंच गया.

टीआई विनोद दीक्षित के नेतृत्व में मामले की जांच कर रहे एसआई दिलीप देवड़ा ने 24 घंटे में ही दोनों आरोपियों दुर्गेश और बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा गायत्री को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. जबकि राकेश फरार था. पुलिस जांच में पूर्व विधायक के एक नजदीकी व्यक्ति व ओम प्रकाश साखला का नाम भी सामने आया. पुलिस ने पूछताछ करने के लिए दोनों के घर में दबिश डालीं, लेकिन ये फरार मिले. कथा लिखने तक पुलिस फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी. Honey Trap

True Crime Stories : बेरहम बेटी ने प्रेमी के लिए कर डाली पिता की हत्या

True Crime Stories : कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे. जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.

जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे. उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.

पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’

वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए. दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.

कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया. आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.

बेटी का बयान  मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.

मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.

पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी. डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.

पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.

पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली. डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए. हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे. कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.

राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी. मौडल बनने की चाह  अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.

महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी. पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया. जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे. पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी. इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली. जालिम बेटी  राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.  संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था. इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी. हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था. इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.  राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी. जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता. बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता. True Crime Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Stories in Hindi Love : प्रेम ने किया रिश्तों का अंत

Stories in Hindi Love : उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर के सिविल लाइंस इलाके में एक स्कूल है होली चाइल्ड. निशा इसी स्कूल में पढ़ाती थी. उस का पति राजकुमार पादरी था और उस की पोस्टिंग बदायूं जिला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर वजीरगंज की एक चर्च में थी. चर्च में जब ज्यादा काम रहता था तो राजकुमार रात में वहीं रुक जाता था.

निशा को स्कूल की बिल्डिंग में ही रहने के लिए कमरा मिला हुआ था, जहां पर वह पति राजकुमार और 2 बेटियों रागिनी व तमन्ना के साथ रहती थी. राजकुमार और निशा की मुलाकात लखनऊ में पादरी के काम की ट्रेनिंग के दौरान हुई थी, जोकि वीसीसीआई संस्था द्वारा अपने धर्म प्रचारकों को दी जाती है. कुछ मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

निशा मूलरूप से गोरखपुर जिले की रहने वाली थी. उस के पिता दयाशंकर पादरी थे. निशा की बड़ी बहन शारदा की शादी बरेली निवासी रघुवीर मसीह के बेटे दिलीप के साथ हुई थी. इसी के चलते बहन के देवर राजकुमार से निशा की नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों जानते थे कि घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा, अत: दोनों ने अपनी पसंद की बात अपने परिवार वालों को बता दी थी. राजकुमार ने लखनऊ में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली लेकिन किन्हीं कारणों से निशा को ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देनी पड़ी. राजकुमार बरेली निवासी रघुवीर मसीह का बेटा था. रघुवीर मसीह पुलिस विभाग में वायरलैस मैसेंजर के पद पर बदायूं में तैनात था.

सन 2014 में पारिवारिक सहमति से राजकुमार और निशा का विवाह हो गया. रघुवीर मसीह के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा रवि था, जिस की शादी बाराबंकी निवासी अनुराधा से हुई थी. दूसरा दिलीप था, जिस की शादी निशा की बड़ी बहन शारदा से हुई थी. उस से छोटा राजकुमार था और सब से छोटा राहुल. राजकुमार की पहली पोस्टिंग कासगंज जिले के सोरों कस्बे में नवनिर्मित चर्च में हुई थी. इसी बीच राजकुमार की शादी हो गई और रघुवीर मसीह ने कोशिश कर के राजकुमार का तबादला कासगंज से वजीरगंज करवा दिया.

शादी के बाद कुछ समय तो अच्छा कटा. राजकुमार की मां आशा मसीह ने नवविवाहिता बहू निशा को हाथोंहाथ लिया, पर निशा को राजकुमार के घर का माहौल रास नहीं आया. इसलिए उस ने पति से कहा कि वह घर में बैठ कर वक्त बरबाद नहीं करना चाहती. निशा इंटरमीडिएट पास थी और उस की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह सोचती थी कि किसी भी इंग्लिश स्कूल में उसे नौकरी मिल सकती है. नौकरी करने वाली बात निशा ने पति और सासससुर से बताई तो उन्हें इस पर कोई ऐतराज नहीं हुआ. निशा को इजाजत मिल गई और थोड़ी कोशिश से निशा को होली चाइल्ड स्कूल में नौकरी मिल गई.

कालांतर में निशा 2 बेटियों की मां बनी, जिन के नाम रागिनी और तमन्ना रखे गए. अब उन का छोटा सा खुशहाल परिवार था. वे स्कूल परिसर में स्थित कमरे में रहते थे. राजकुमार और निशा का दांपत्य जीवन काफी सुखद था. किन्हीं खास मौकों पर वे लोग बरेली चले जाते थे. बदलने लगी निशा की सोच  सब कुछ ठीक चल रहा था, पर वक्त कब करवट ले लेगा, इस का आभास किसी को नहीं था. स्कूल की नौकरी करतेकरते निशा को लगने लगा था कि राजकुमार से शादी करना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. वह अच्छाखासा कमा लेती है. अगर उस ने शादी की जल्दबाजी न की होती तो उसे कोई पढ़ालिखा अच्छा पति मिलता और वह ऐश करती.

ऐसे विचार मन में आते ही उस का दिल बेचैन होने लगा. जितना उसे मिला था, उस से उसे संतोष नहीं था. उस की कुछ ज्यादा पाने की चाहत बढ़ रही थी.  कहते हैं, अकसर ज्यादा पाने की चाह में लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं. निशा का भी यही हाल था. अब धीरेधीरे राजकुमार और निशा के जीवन में तल्खियां बढ़ने लगीं. निशा छोटीछोटी बातों को ले कर मीनमेख निकालती और उस से झगड़ा करने की कोशिश करती. सीधेसादे राजकुमार को हैरानी होती थी कि निशा को आखिर हो क्या गया है. एक दिन निशा ने कहा, ‘‘तुम क्या थोड़ी और पढ़ाई नहीं कर सकते थे? कम से कम मेरी तरह इंटर तो पास कर लेते. पढ़ेलिखे होते तो तुम्हारा दिमाग भी खुला होता.’’

‘‘मैं ज्यादा पढ़ालिखा न सही, पर अपने काम में तो परफैक्ट हूं. लोगों को अपने धर्म का ज्ञान बेहतर तरीके से देता हूं. हालांकि मैं केवल हाईस्कूल पास हूं लेकिन मैं ने यह ठान लिया है कि अपनी बेटियों को खूब पढ़ाऊंगा.’’ राजकुमार बोला.

‘‘बेटियों की फिक्र तुम छोड़ो. यह सब मुझे सोचना है कि उन के लिए क्या करना है.’’ निशा ने पति की बात काटते हुए कहा. राजकुमार तर्क कर के बात बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए वह पत्नी के पास से उठ गया. दोनों बेटियों को साथ ले कर वह यह सोच कर घर से बाहर निकल गया कि थोड़ी देर में निशा का गुस्सा शांत हो जाएगा.

थोड़ी देर बाद जब वह घर पहुंचा तो निशा नार्मल हो चुकी थी. राजकुमार ने राहत की सांस ली. निशा ने राजकुमार का खाना लगा दिया, तभी स्कूल का चपरासी 20 वर्षीय अर्जुन आया और वह निशा को चाबियां देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मैं ने बाकी ताले बंद कर दिए हैं. आप केवल बाहरी गेट का ताला लगा लेना, मैं घर जा रहा हूं.’’

‘‘अर्जुन, बैठो, चाय पी कर जाना.’’ निशा ने कहा.  निशा के कई बार कहने पर अर्जुन कुरसी पर बैठ गया. अर्जुन बाबा कालोनी निवासी ओमेंद्र सिंह का बेटा था. वह स्कूल में चपरासी था और उस का छोटा भाई किरनेश स्कूल के प्रिंसिपल के घर का नौकर था.

कुछ देर में निशा चाय बना कर ले आई. चाय पी कर अर्जुन चला गया. लेकिन राजकुमार के दिल में कुछ खटकने लगा. उस ने निशा से कहा, ‘‘मुझे इस अर्जुन की आदतें कुछ अच्छी नहीं लगतीं. वैसे भी ये स्कूल का चपरासी है और तुम टीचर, तुम्हें अपने स्टैंडर्ड का ध्यान रखना चाहिए.’’

निशा ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मेरे स्टैंडर्ड को कुरेद रहे हो.’’

राजकुमार ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बात को बढ़ाना नहीं चाहता था. लेकिन उस दिन के बाद निशा का ध्यान अर्जुन पर टिक गया. जब वह अकेली होती तो अचानक अर्जुन उस के जेहन में आ बैठता.

निशा के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी अर्जुन ने  कुछ दिनों बाद राजकुमार की तबीयत खराब हो गई. वह कभीकभी 2 दिन तक चर्च में ही रुक जाता और बदायूं नहीं आ पाता था. इस अकेलेपन ने निशा को गुमराह कर दिया. अर्जुन एक स्वस्थ और स्मार्ट युवक था. वैसे भी निशा के साथ वह घुलनेमिलने लगा था. अब राजकुमार की गैरमौजूदगी में वह निशा के कमरे में आ जाता और उस की बेटियों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता था. निशा के मन में अर्जुन अपनी जगह बनाने लगा था. निशा भी अर्जुन के बारे में सोचती रहती थी. वह उस की मजबूत बांहों में समाने के लिए बेताब रहने लगी थी. उधर अर्जुन निशा को चाहता तो था लेकिन निशा के पति की वजह से पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

कहा जाता है कि फिसलन की ओर बढ़ने वाले कदम आसानी से दलदल तक पहुंच जाते हैं. यही निशा के साथ हुआ. एक दिन शाम को निशा के पास राजकुमार का फोन आया. उस ने कहा कि वह आज रात को घर नहीं आ पाएगा. इस फोन काल ने निशा के दिल में हलचल मचा दी. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. निशा के दिमाग में अर्जुन घूम रहा था. उस ने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो उस समय अर्जुन स्कूल के अपने काम निपटा कर घर जाने की तैयारी कर रहा था. तभी निशा ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘अर्जुन, तुम कमरे में आओ, कुछ बात करनी है.’’

अर्जुन कमरे में आ गया. निशा उस के लिए चाय बना कर ले आई. निशा ने चाय का प्याला उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अर्जुन, आज रात राजकुमार घर नहीं आएगा. अकेले में मुझे डर लगेगा, तुम आज रात यहीं रुक जाओ, जिस से मेरा भी मन लगा रहेगा.’’

अर्जुन ने गहरी नजर से निशा को देखा. उसे निशा का अंदाज कुछ अजीब सा लगा. उस की चुप्पी देख कर निशा ने पूछा, ‘‘कुछ परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं सोच रहा हूं कि अगर साहब को पता चला तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे, वह तो वैसे भी मुझे पसंद नहीं करते.’’

‘‘तुम उन की चिंता मत करो. तुम्हें मैं तो पसंद करती हूं न.’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा तो अर्जुन की भावनाओं में जैसे तूफान उठने लगा. उस ने उसी समय जेब से मोबाइल निकाला और अपने घर फोन कर के बता दिया कि स्कूल में कुछ काम होने की वजह से वह आज घर नहीं आ पाएगा. इस के बाद अर्जुन उस के कमरे में बैठ गया. निशा ने खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी. तब तक अर्जुन उस के दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा. खाना बनने के बाद निशा ने बच्चों को पहले खाना खिलाया और उन्हें सुला दिया.

फिर निशा ने अपना और अर्जुन का खाना लगाया. खाना खातेखाते अर्जुन उस के खाने की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘खाना बनाना ही नहीं, मैं बहुत से काम बहुत अच्छे से करती हूं.’’ कह कर निशा हंसने लगी. फिर उस ने एक प्रश्न किया, ‘‘अर्जुन, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

अर्जुन निशा को गौर से देखते हुए बोला, ‘‘रिश्ते तो कई आए थे मैडम, लेकिन जब से आप को देखा है मेरा इरादा बदल गया है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मतलब यह कि मुझे आप जैसी स्मार्ट जीवनसाथी की जरूरत है.’’

निशा की चाहत बन गया अर्जुन  अर्जुन की बात सुन कर निशा मन ही मन खुश हुई कि इस का मतलब वह उसे पहले से ही चाहता है. निशा कुछ नहीं बोली बल्कि मुसकराने लगी. खाना खाते हुए दोनों इसी तरह की बातें करते रहे. खाना खाने के बाद निशा ने अर्जुन का बिस्तर जमीन पर लगाते हुए कहा कि वह यहां आराम कर सकता है. इस के बाद रसोई का काम खत्म कर के वह भी आ गई. उस ने चटाई बिछा कर अपना बिस्तर भी जमीन पर लगा लिया. धीरेधीरे रात गहराती जा रही थी और वहां भी कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी के लिए बरबादी ला सकता था.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने अर्जुन की तरफ देखा तो वह भी करवटें बदल रहा था. उस ने पूछा, ‘‘अर्जुन, नींद नहीं आ रही क्या?’’  ‘‘हां, नींद नहीं आ रही. पर सोच रहा हूं कि आप के पति तो अकसर वजीरगंज में ही रुक जाते हैं, फिर आप ने आज मुझे यहां क्यों रोका है?’’

निशा ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम क्या सचमुच अनाड़ी हो या अनजान बनने का नाटक कर रहे हो. मैं ने तुम्हारी आंखों में कुछ खास देखा था, वही पिछले कई दिनों से मुझे परेशान कर रहा है. अर्जुन भूख अकसर 2 लोगों को एकदूसरे के करीब ले आती है.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’ अर्जुन बोला.  ‘‘ठीक ही कह रही हूं. मैं तुम से प्यार करने लगी हूं अर्जुन.’’

अर्जुन को जैसे करंट सा लगा, पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. निशा ने आगे बढ़ कर अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘डरो मत अर्जुन, मैं सचमुच तुम्हें चाहती हूं और यह कोई गुनाह नहीं है. मैं अपने पति से तंग आ चुकी हूं.’’

अर्जुन फिसलन की कगार पर खड़ा था. निशा के स्पर्श से वह दलदल में जा गिरा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां ने उसे एक ऐसे दलदल में खींच लिया, जिस के अंदर जाना तो आसान था पर बाहर आने का कोई रास्ता नहीं था. उस दिन के बाद रिश्तों की दिशा और दशा ही बदल गई. अपनी तबाही से बेखबर राजकुमार अगले दिन घर आ गया. राजकुमार की बरबादी की नींव रखी जा चुकी थी. बीवी ने बेवफाई करने के लिए कमर कस ली थी. अब आए दिन वह पति से झगड़ने लगी. राजकुमार भी महसूस कर रहा था कि स्कूल का चपरासी अर्जुन अब पहले की तरह उस की इज्जत नहीं करता.

एक दिन वह जब वजीरगंज से लौटा तो उस ने अर्जुन को कमरे में चारपाई पर पसरा हुआ देखा. यह देख कर राजकुमार का माथा गरम हो गया. वह बोला, ‘‘अर्जुन, तुम यहां क्या कर रहे हो? लगता है, तुम अपनी औकात भूल रहे हो. मेरी गैरमौजूदगी में तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

उस समय तो अर्जुन वहां से चला गया. उस ने खुद को अपमानित महसूस किया और तय किया कि राजकुमार को सबक सिखाएगा.  राजकुमार के तेवर देख कर निशा भी डर गई थी. राजकुमार ने कहा, ‘‘निशा, यह अर्जुन मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. तुम इस से दूर ही रहो. देखो, मैं सोच रहा हूं कि अपना तबादला बरेली में ही करा लूं. पापा भी रिटायर हो गए हैं, अपना मकान भी उन्होंने बना लिया है. फिर तुम्हें भी बरेली में कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘देखो, अर्जुन इसी स्कूल में काम करता है. तुम्हारे जाने के बाद वह मार्केट से घर की जरूरत का सामान भी ला देता है. तुम खामख्वाह उस पर गरम हो रहे थे. देखो, हमें यहां कमरा मिला हुआ है. यहां कोई परेशानी भी नहीं है. और फिर यह बात तुम जानते हो कि मैं जौइंट फैमिली में नहीं रह सकती.’’ निशा ने पति को समझाया.

‘‘इस मामले में मैं घर वालों से बात करूंगा.’’ कह कर राजकुमार बाथरूम चला गया.

राजकुमार अनभिज्ञ था पत्नी के संबंधों से राजकुमार को अभी तक यह पता नहीं था कि अर्जुन और उस की पत्नी निशा के बीच किस तरह के संबंध हैं. पिछले 6 महीने से वह महसूस कर रहा था कि निशा बदल रही है.  कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. निशा और अर्जुन के संबंधों की असलियत भी सामने आ ही गई. उस दिन अर्जुन घर जाने ही वाला था कि राजकुमार का पत्नी के पास फोन आ गया कि वह आज रात को घर नहीं आएगा. यह खबर सुन कर निशा खुश हुई. उस ने अर्जुन को बुला कर कहा, ‘‘आज रात फिर अपनी ही है क्योंकि राजकुमार आज भी नहीं आएगा. ऐसा करो कि तुम नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

निशा ने गैस पर चाय चढ़ा दी. अर्जुन भी फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. फ्रैश होने के बाद वह निशा के साथसाथ चाय पीने लगा. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह बोला, ‘‘ऐसा आखिर कब तक चलेगा, हमें कुछ करना ही होगा.’’

‘‘हां करेंगे.’’ कहते हुए निशा ने कहा, ‘‘अभी तो इन पलों को जिओ, जो हमें मिल रहे हैं.’’  इस के बाद दोनों मौजमस्ती में लीन हो गए. अर्जुन इस बात से बेखबर था कि उस ने बाहरी गेट बंद नहीं किया था. तभी अचानक दबेपांव राजकुमार वहां आ गया. बीवी को अर्जुन की बाहों में देख कर वह आगबबूला हो गया. उस ने अर्जुन की टांग पकड़ कर खींची और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

किसी तरह अर्जुन उस के चंगुल से निकल कर भाग गया. तभी राजकुमार ने कहा कि वह इस की शिकायत स्कूल से करेगा.

अर्जुन के चले जाने के बाद राजकुमार ने निशा को जम कर लताड़ा. निशा उस के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांगने लगी, पर राजकुमार के तेवर सख्त थे. उस ने  कह दिया कि अब हम यहां नहीं रहेंगे. राजकुमार ने पिता को फोन पर सारी बातें बता दीं और कहा कि अब हम बरेली में नेकपुर स्थित अपने घर में रहेंगे. पति का फैसला सुन कर निशा परेशान हो गई. वह किसी भी हालत में बदायूं को छोड़ना नहीं चाहती थी. अत: उस ने तय कर लिया कि वह पति नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से उखाड़ फेंकेगी.

अगले दिन राजकुमार वजीरगंज चला गया. निशा ने मौका मिलते ही अर्जुन को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘अगर मुझे चाहते हो तो तुम्हें राजकुमार को रास्ते से हटाना होगा.’’

अर्जुन का दिल तेजी से धड़कने लगा क्योंकि ऐसा तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.  उसे चुप देख निशा बोली, ‘‘हां, मैं ठीक ही कह रही हूं. आज राजकुमार जब घर आएगा तो तुम घर आ कर उस से अपनी गलती की माफी मांगना और उस का विश्वास जीतना. इस के आगे क्या करना है, मैं बाद में बताऊंगी.’’

अर्जुन ने ऐसा ही किया. राजकुमार जब घर पहुंचा तो अर्जुन उस के घर चला गया. उसे देखते ही राजकुमार उस पर भड़का तो अर्जुन ने उस से अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए माफी मांग ली. सीधेसादे राजकुमार ने उसे माफ कर दिया और कहा कि अब वैसे भी हमें यहां नहीं रहना है. माफी मांग कर काट दी जीवन की डोर  पर अर्जुन के दिल में राजकुमार के प्रति क्या था, यह बात राजकुमार नहीं जानता था. राजकुमार मौत की दस्तक को सुन ही नहीं पाया था. 15 जून, 2019 को अपनी योजना के मुताबिक अर्जुन अपनी बाइक पर आया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘चलिए, मछली लेने चलते हैं.’’

राजकुमार भी माहौल का तनाव कम करना चाहता था. वह अर्जुन को माफ कर चुका था.  साजिश से अनजान राजकुमार अर्जुन के साथ बाइक पर बैठ गया. अर्जुन बाइक को इधरउधर घुमाता रहा. फिर बाइक मझिया गांव के सुनसान इलाके में ले गया और बोला, ‘‘अब बाइक आप चलाओ, मैं पीछे बैठता हूं.’’

राजकुमार ने ड्राइविंग सीट संभाली. दोनों शर्की रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर पहुंचे थे कि बाइक पर पीछे बैठे अर्जुन ने जेब से तमंचा निकाला और राजकुमार के सिर पर गोली मार दी. राजकुमार का बैलेंस बिगड़ा और वह बाइक समेत जमीन पर गिर गया. राजकुमार खून से लथपथ था. अब योजना के मुताबिक राजकुमार को रेलवे ट्रैक पर डालना था ताकि उस की मौत ट्रेन एक्सीडेंट लगे.

अर्जुन चाहता था ट्रेन एक्सीडेंट समझा जाए  खून से लथपथ राजकुमार को अर्जुन ने रेलवे ट्रैक पर डाल दिया. उस के कपडे़ भी खून से लथपथ थे. रेलवे लाइन पर पड़ा राजकुमार तड़प रहा था. वह अभी जिंदा था पर अर्जुन ने जो सोचा था, हो नहीं सका. कासगंज से बरेली जाने वाली ट्रेन तब तक गुजर गई थी. अब सुबह 5 बजे से पहले वहां से कोई गाड़ी निकलने वाली नहीं थी. अर्जुन ने बाइक स्टार्ट की और घर आ गया. उस ने खून सने कपड़े उतारे. कपड़ों पर लगा खून देख कर घर वाले सन्न रह गए. उन्होंने अर्जुन से जब सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि अर्जुन ने राजकुमार का कत्ल कर दिया है.

अर्जुन ने अपने कपड़े धो डाले और घर वालों से सख्त लहजे में कहा कि कोई भी अपना मुंह नहीं खोलेगा. उस ने निशा को काम हो जाने की खबर फोन पर दे दी. रात जैसेतैसे गुजर गई. सुबह मार्निंग वाक पर निकले लोगों ने रेलवे ट्रैक पर लाश देखी तो किसी ने इस की सूचना रेलवे पुलिस को दे दी. पुलिस वहां आ गई और लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. पर उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. सिविल लाइंस थाने की पुलिस भी वहां पहुंच गई.

उधर राजकुमार को 15 जून को बरेली जाना था, यह बात उस ने फोन पर अपने पिता रघुवीर को बता दी थी, लेकिन वह रात में घर नहीं पहुंचा तो घर वाले परेशान हो गए.  इधर थाना सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ओ.पी. गौतम, सीओ राघवेंद्र सिंह राठौर और एसपी (सिटी) जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंच गए थे. फोरैंसिक टीम भी जांच के लिए पहुंच गई थी. जांच में पुलिस को मृतक की जेब से 100 रुपए का एक नोट और एक परची मिली. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.  17 जून को लाश का फोटो अखबारों में छपा तो रघुवीर के एक रिश्तेदार जे.पी. मसीह ने उन्हें फोन कर के पूछा कि राजकुमार कहां है? रघुवीर ने कहा कि राजकुमार को बरेली आना था, पर आया नहीं है.

सब जगह फोन कर लिया, पर उस का कुछ पता नहीं है. तब जे.पी. मसीह अखबार ले कर रघुवीर के घर पहुंच गए और उन्हें अखबार दिखाया. अखबार में अपने बेटे की लाश का फोटो देख कर रघुवीर की आंखों से आंसू निकल आए. वह परेशान हो गए तभी उन के पास पुलिस कंट्रोल रूम से भी फोन आ गया. रघुवीर अपने रिश्तेदारों के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए और लाश की शिनाख्त बेटे राजकुमार के रूप में कर दी. निशा भी किसी से खबर पा कर घडि़याली आंसू बहाती हुई पोस्टमार्टम हाउस पहुंची. वह वहां इस तरह से रो रही थी, जैसे उस का सब कुछ लुट गया हो.

पोस्टमार्टम के बाद लाश बरेली ला कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. निशा के हावभाव देख कर रघुवीर की समझ में कुछकुछ आ रहा था. उन्हें शक था कि उन के बेटे की हत्या निशा ने कराई होगी. क्योंकि उसे रंगेहाथ पकड़ने पर राजकुमार ने उस की शिकायत अपने पिता से कर दी थी. रघुवीर ने जांच अधिकारी के सामने अपनी पुत्रवधू और अर्जुन के नाजायज संबंधों का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने अर्जुन को हिरासत में ले लिया. अर्जुन ने अपने हाथ पर ब्लेड से निशा का नाम लिख रखा था.

पुलिस ने निशा और अर्जुन को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों एकदूसरे पर इलजाम लगाने लगे. उन की दीवानेपन आशिकी की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने ही अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अब दोनों को जेल जाने का डर सता रहा था. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहम मुकदमा दर्ज कर के उन से विस्तार से पूछताछ की और कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.  रागिनी और तमन्ना ने मांबाप दोनों को खो दिया था. राजकुमार की मां आशा मसीह ने कहा कि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन की बहू उन के सीधेसादे बेटे को मरवा सकती है. अब इस उम्र में उन्हें अपने बेटे की बच्चियों की परवरिश के लिए जीना होगा.

निशा के पिता दयाशंकर और मां गीता को बेटी के इस गुनाह पर अफसोस होता है. उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि निशा ऐसा भी कर सकती है. काश, राजकुमार मौत की दस्तक को सुन पाता तो उसे अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता. Stories in Hindi Love

Hindi Short Stories : स्वामी जी के चंगुल से कैसे निकली सुचित्रा

Hindi Short Stories : रात के 2 बज गए थे. बहुत कोशिश के बाद भी प्रोफेसर मुकुल बनर्जी को नींद नहीं आई. पत्नी सुचित्रा नींद के आगोश में थी. मुकुल ने उसे नींद से जगा कर फिर से अनुनयविनय करने का विचार किया. उन्हें लग रहा था कि जब तक संबंध नहीं बनाएंगे, नींद नहीं आएगी. इस के लिए वह शाम से ही बेकल थे.

सोने से पहले उसे अपनी भावना से अवगत भी कराया था. लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था.  बोली, ‘‘बहुत थकी हूं. आप को तो पता है कल कंपनी के काम से 10 दिन के लिए इटली जा रही हूं. सुबह 6 बजे तक नहीं उठूंगी तो फ्लाइट नहीं पकड़ पाऊंगी. प्लीज सोने दीजिए.’’

उन्होंने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. वह सो गई. बाद में उन्होंने भी सोने की कोशिश की किंतु नींद नहीं आई.  26 वर्ष पहले जब उन्होंने सुचित्रा से विवाह किया था तो वह 24 वर्ष की थी. उन से 2 साल छोटी. तब वह ऐसी न थी. जब भी अपनी इच्छा बताते थे, झट से राजी हो जाती थी. उत्साह से साथ भी देती थी. उस के साथ हंसतेखेलते कैसे वर्षों गुजर गए, पता ही नहीं चला. इस बीच उन की जिंदगी में बेटा गौरांग और बेटी काकुली आए.

गौरांग 2 साल पहले पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया था. 4 साल का कोर्स था. काकुली उस से 4 वर्ष छोटी थी. मां को छोड़ कर कहीं नहीं गई, वह कोलकाता में ही पढ़ रही थी. सुचित्रा में बदलाव साल भर पहले से शुरू हुआ था. तब तक वह कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट बन चुकी थी. वाइस प्रेसीडेंट बनने से पहले औफिस से शाम के 6 बजे तक घर आ जाती थी. अब रात के 10 बजे से पहले शायद ही कभी आई हो.  कपड़े चेंज करने के बाद बिस्तर पर ऐसे गिर पड़ती थी जैसे सारा रक्त निचुड़ गया हो.

ऐसी बात नहीं थी कि वह उसे सिर्फ रात में ही मनाने की कोशिश करते थे. छुट्टियों में दिन में भी राजी करने की कोशिश करते थे, पर वह बहाने बना कर बात खत्म कर देती थी. कभी बेटी का भय दिखाती तो कभी नौकरानी का. कभीकभी कोई और बहाना बना देती थी.  ऐसे में कभीकभी उन्हें शक होता था कि उस ने कहीं औफिस में कोई सैक्स पार्टनर तो नहीं बना लिया है. ऐसे विचार पर घिन भी आती थी. क्योंकि उस पर उन का पूरा भरोसा था.  कई बार यह खयाल भी आया कि सुचित्रा उन की पत्नी है. उस के साथ जबरदस्ती कर सकते हैं, लेकिन कभी ऐसा किया नहीं.

लेकिन आज उन की बेकरारी इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने सीमा लांघ जाने का मन बना लिया.  उन्होंने सोचा, ‘एक बार फिर से मनाने की कोशिश करता हूं. इस बार भी राजी नहीं हुई तो जबरदस्ती पर उतर जाऊंगा.’

उन्होंने नींद में गाफिल सुचित्रा को झकझोर कर उठाया और कहा, ‘‘नींद नहीं आ रही है. प्लीज मान जाओ.’’  सुचित्रा को गुस्सा आया. दोचार सुनाने का मन किया. पर ऐसा करना ठीक नहीं लगा. उस ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘दिल पर काबू रखने की आदत डाल लीजिए, प्रोफेसर साहब. जबतब दिल का मचलना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मेरा दिल हर पल उतावला रहता है तो मैं क्या करूं? ऐसा लगता है कि अब तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता…’’   ‘‘यह आप का भ्रम है. सच यह है कि औफिस से आतेआते बुरी तरह थक जाती हूं.’’

‘‘रात के 10 बजे घर आओगी तो थकोगी ही. पहले की तरह शाम के 6 बजे तक क्यों नहीं आ जातीं?’’

‘‘आप समझते हैं कि मैं अपनी मरजी से देर से आती हूं. बात यह है कि पहले वाइस प्रेसीडेंट नहीं थी. इसलिए काम कम था. जब से यह जिम्मेदारी मिली है, काम बढ़ गया है.’’

‘‘जिंदगी भर ऐसा चलता रहेगा तो मैं कहां जाऊंगा. मेरे बारे में तो तुम्हें सोचना ही होगा.’’ उन की आवाज में झल्लाहट थी.

स्थिति खराब होते देख सुचित्रा ने झट से उन का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से कहा, ‘‘नाराज मत होइए. वादा करती हूं कि इटली से लौट कर आऊंगी तो पहले आप की सुनूंगी, फिर औफिस जाऊंगी. फिलहाल आप सोने दीजिए.’’

सुचित्रा फिर सो गई. वह झुंझलाते हुए करवटें बदलने लगे. चाह कर भी जबरदस्ती न कर सके. जबरदस्ती करना उन के खून में था ही नहीं. तन की ज्वाला शांत हुए बिना मन शांत होने वाला नहीं था. इसलिए उन्होंने सुचित्रा से बेवफाई करने का मन बना लिया.  वह समझ गए थे कि कारण जो भी हो, सुचित्रा अब पहले की तरह साथ नहीं देगी. कुछ न कुछ बहाना बनाती रहेगी. उन्होंने जब ऐसी स्त्रियों को याद किया जो बिना शर्त, बिना हिचक संबंध बना सकती थी तो पहला नाम रूना का आया. उस से पहली मुलाकात शादी समारोह में हुई थी. 4 महीना पहले सुचित्रा की सहेली की बेटी की शादी थी. वह उस के साथ समारोह में गए थे.

पार्टी में काफी भीड़ थी. 10-15 मिनट बाद सुचित्रा बिछड़ गई. उस के बिना मन नहीं लगा तो बेचैन हो कर उसे ढूंढने लगे. 20-25 मिनट बाद मिली तो उन्होंने उलाहना दिया, ‘‘कहां चली गई थीं? ढूंढढूंढ कर परेशान हो गया हूं.’’

उस के साथ एक महिला भी थी. उस की परवाह किए बिना उन्हें झिड़कते हुए बोली, ‘‘मैं क्या 18-20 की हूं कि किसी के डोरे डालने पर उस के साथ चली जाऊंगी. आप भी अब 53 के हो गए हैं. इस उम्र में 18-20 वाली बेताबी मत दिखाइए, नहीं तो लोग हंसेंगे.’’

उस के बाद वह उस महिला के साथ चली गई. वह ठगे से खड़े रह गए. सुचित्रा ने उन के वजूद को उस ने पूरी तरह नकार दिया था. अपनी बेइज्जती महसूस की तो वह भीड़ से अलग अकेले में जा कर बैठ गए. पत्नी से अपमानित होने के दर्द ने मन को भिगो दिया, आंखों से आंसू छलक आए.  आंसू पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकालने की सोच ही रहे थे कि अचानक एक युवती अपना रुमाल बढ़ाती हुई बोली, ‘‘आंसू पोंछ लीजिए, प्रोफेसर साहब.’’

युवती की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. सलवार सूट से सुसज्जित लंबी कदकाठी थी. सुंदरता कूटकूट कर भरी थी.  उन्होंने कहा, ‘‘आप को तो मैं जानता तक नहीं. रुमाल कैसे ले लूं?’’

‘‘पहली बात यह कि मुझे आप मत कहिए. आप से छोटी हूं. दूसरी बात यह कि यह सच है कि आप मुझे नहीं जानते, पर मैं आप को खूब अच्छी तरह से जानती हूं.’’

युवती ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आप की पत्नी ने कुछ देर पहले आप के साथ जो व्यवहार किया था, वह किसी भी तरह से ठीक नहीं था. इस से पता चल गया कि प्यार तो दूर, वह आप की इज्जत भी नहीं करती.’’  उन्हें लगा कि वह 50 हजार के सूटबूट, 1 लाख की हीरे की अंगूठी, गले में सोने की कीमती चेन और विदेशी कलाई घड़ी से अवश्य सुसज्जित हैं, पर उस युवती की सूक्ष्म दृष्टि ने भांप लिया है कि वजूद का तमाम हिस्सा जहांतहां से रफू किया हुआ है. युवती से किसी भी तरह की घनिष्ठता नहीं करना चाहते थे. इसलिए झटके से उठ कर खड़े हो गए.

भीड़ की तरफ बढ़ने को उद्यत ही हुए थे कि युवती ने हाथ पकड़ कर फिर से बैठा दिया और कहा, ‘‘आप का दर्द समझती हूं. पत्नी को बहुत प्यार करते हैं, इसीलिए उस की बुराई नहीं सुनना चाहते. पर सच तो सच होता है. देरसबेर सामना करना ही पड़ता है.’’

युवती की छुअन से 53 साल की उम्र में भी उन के दिल की घंटी बज उठी. युवती खुद उन से आकर्षित थी, अत: उस का दिल तोड़ना ठीक नहीं लगा. न चाहते हुए भी उन्होंने उस का परिचय पूछ ही लिया. उस ने अपना नाम रूना बताया. मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती थी. ग्रैजुएट थी. अब तक अविवाहित थी.  मातापिता, भाईबहन गांव में रहते थे. शहर में अकेली रहती थी. पार्कस्ट्रीट में 2 कमरे का फ्लैट ले रखा था. रूना ने बताया, ‘‘पहली बार आप को पार्क में मार्निंग वाक करते देखा था. आप की पर्सनैलिटी पर मुग्ध हुए बिना न रह सकी थी. लगा था कि आप अधिक से अधिक 40 के होंगे. आप की पत्नी ने आज आप को उम्र का अहसास कराया तो पता चला कि 53 के हैं. पर देखने में आप 40 से अधिक के नहीं लगते.’’

रूना आगे बोली, ‘‘रोजाना पार्क में वाक के लिए जाती थी, उस दिन के बाद आप को छिपछिप कर देखने लगी थी. आप से बात करने का मन होता था पर हिम्मत नहीं होती थी.  ‘‘एक दिन पार्क में आप को कोई परिचित मिल गया था. उस के साथ आप की जो बात हुई, उस से पता चला कि आप प्रोफेसर हैं. शादीशुदा तो हैं ही, 2 बड़ेबड़े बच्चों के पिता भी हैं.

‘‘किस कालेज में पढ़ाते हैं और कहां रहते हैं, इस का पता भी चल गया था. इस के बावजूद आप के प्रति मेरा झुकाव कम नहीं हुआ.  ‘‘आज इस पार्टी देने वाले की कृपा से आप से बात करने का मौका मिला है.यहां आते ही आप पर मेरी नजर पड़ी थी. मिलूं या न मिलूं, इसी उधेड़बुन में थी कि पत्नी से अपमानित हो कर आप इधर आ गए.

‘‘दुख में आप का साथ देना मुनासिब समझा और आप के पीछे आ गई. मेरी दोस्ती कबूल करें या न करें, पर जीवन भर आप को याद रखूंगी’’  उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रूना उन के शानदार व्यक्तित्व की कायल है. इसी तरह कालेज लाइफ में भी कई लड़कियां उन पर घायल थीं. कुछ ने शादी का प्रस्ताव भी दिया था. लेकिन उन्होंने किसी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. उस समय कैरियर ही सब कुछ था.

शिक्षा क्षेत्र में जाना चाहते थे, इसीलिए एमए के बाद पीएचडी की. फिर थोड़े से प्रयास के बाद कालेज में नियुक्ति हो गई.  एक वर्ष बाद शादी की सोची तो सुचित्रा  से परिचय हुआ. शादी का प्रस्ताव उसी ने दिया था. वह उन से बहुत प्रभावित थी. काफी सोचने के बाद सुचित्रा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. कारण यह कि वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी थी. उस के पिता शहर के नामी अमीरों में थे. उन का कई तरह का बिजनैस था. उस का बड़ा भाई राजनीति में था, बहुत रुतबे वाला. उस के परिवार के सामने उन की कोई हैसियत नहीं थी.

उन का परिवार सामान्य था. पिता शिक्षक थे. मां हाउसवाइफ थी. कुछ दिन पहले ही कुछ अंतराल पर दोनों का देहांत हुआ था.  संपत्ति के नाम पर पार्कस्ट्रीट पर 6 कट्ठा में बना 4 मंजिला मकान था. दूसरी मंजिल उन के पास थी. बाकी किराए पर दे रखा था. अच्छाखासा किराया आता था. कुछ बैंक बैलेंस भी था. सुचित्रा सुंदर थी और स्मार्ट भी. सीए के बाद भी उस ने कई डिग्रियां हासिल की थीं. उस के घर वाले भी उन से प्रभावित थे. फलस्वरूप जल्दी ही धूमधाम से दोनों की शादी हो गई.

उन के मना करने पर भी सुचित्रा के पापा ने दोनों के नाम एक आलीशान मकान खरीद दिया तो उन्होंने अपना घर किराए पर दे दिया और सुचित्रा के साथ नए मकान में आ गए. सुचित्रा के पिता के पास बाकुड़ा और मिदनापुर में 3 फार्महाउस थे. मिदनापुर वाला फार्महाउस 20 एकड़ का था. उसे उन्होंने सुचित्रा को दे दिया था. जबकि सुचित्रा कोलकाता में ही रह कर जौब करना चाहती थी. इसलिए फार्महाउस में मैनेजर रख दिया गया. शादी के कुछ महीने बाद सुचित्रा ने जौब करने की बात कही तो उन्होंने इजाजत दे दी. वह होनहार थी ही. जल्दी ही एक बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर जौब मिल गया.

एकदूसरे की मोहब्बत से लबरेज जिंदगी समय की धारा के साथ दौड़ती चली गई. उन्हें लगा था कि सुचित्रा जीवन भर अपने प्यार के झूले पर झुलाती रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. पिछले एक साल से न जाने क्यों वह उन से कतराने लगी थी. कभी पराई स्त्री से संबंध बनाने के बारे में सोचना पड़ेगा, उन्होंने सोचा तक नहीं था. लेकिन सुचित्रा की अवहेलना से वह ऐसा करने पर मजबूर हो गए थे. रूना से दोस्ती करने के बाद उस से बराबर मिलते रहे. उस के साथ मौल में 2 बार रोमांटिक मूवी भी देख आए थे. कालेज से छुट्टी ले कर पिकनिक भी मना चुके थे.

एक बार रूना उन्हें घर ले गई थी. बातोंबातों में वह अचानक उन से लिपट गई और बोली, ‘‘यदि आप की पत्नी नहीं होती तो आप से शादी कर लेती. आप को प्यार जो करने लगी हूं.’’

उन्होंने भी रूना को एकाएक बांहों में कस लिया था. सीमाएं लांघ पाते, उस से पहले ही उन का विवेक लौट आया. रूना को अपने से अलग कर के उन्होंने कहा, ‘‘दोस्ती की एक सीमा होती है. मैं हमेशा तुम्हें दोस्त बनाए रखना चाहता हूं.’’

फिर रूना के कुछ कहने से पहले ही वहां से चले गए थे.  इस के बावजूद रूना ने उन से मिलना बंद नहीं किया था. वह नियमित मिलती रही थी. इस तरह 4 महीने में ही रूना ने उन के वजूद को कोहरे की चादर की तरह ढंक लिया था. इसीलिए सुचित्रा से बेवफाई करने का मन हुआ तो उस से ही संबंध बनाने का फैसला किया.  अगले दिन सुचित्रा सुबह 8 बजे एयरपोर्ट चली गई तो उन्होंने रूना को फोन किया. वह चहकती हुई बोली, ‘‘सुबहसुबह कैसे याद किया प्रोफेसर साहब? सब खैरियत है न?’’

‘‘खैरियत नहीं है. अकेला हूं और तनहाई में तुम्हारा साथ चाहता हूं.’’

‘‘मतलब?’’ रूना ने चौंक कर पूछा.   ‘‘एक बार मैं ने मना कर दिया था. पर अब मैं तुम्हें पाने के लिए बेचैन हूं. तुम मिलोगी न?’’ उन्होंने बगैर कोई संकोच के अपने मन की बात कह दी.

‘‘आप को इतना प्यार करती हूं कि जान भी दे सकती हूं. शाम को कालेज से छुट्टी होते ही मेरे घर आ जाइए. पलकें बिछा कर आप की प्रतीक्षा करूंगी.’’

वह खुशी से झूम उठे. सारा दिन कैसे बीता, पता ही नहीं चला. रूना से मिलने की कल्पना से पुलकित होते रहे थे.  छुट्टी हुई तो बिना देर किए उस के घर चले गए. रूना ने उन का भरपूर स्वागत किया. रात के 11 बजे अपने घर वापस लौट रहे थे तो जैसे हवा में उड़ रहे थे. पहली बार महसूस किया कि कभीकभी अपनों से अधिक परायों से सुख मिलता है. रूना से उन्होंने भरपूर सुख महसूस किया था. अचानक मोबाइल पर रूना का मैसेज आया, ‘‘आप को मैं अच्छी लगी तो जब जी चाहे, आ सकते हैं. आप मेरे रोमरोम में बस गए हैं. आप को नजरअंदाज कर जी नहीं सकती.’’

रूना का प्यार देख कर मन मयूर नाच उठा. फिर उन्होंने भी मैसेज किया, ‘‘तुम मेरी धड़कन बन चुकी हो. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’  अगले दिन से ही वह प्रतिदिन बेटी से कोई न कोई बहाना बना कर रूना के घर जाने लगे. कहावत है कि सच्चाई जानते हुए भी आंखें मूंद लेने में दिल को बहुत सुकून मिलता है. उन्होंने भी ऐसा ही किया.  वह अच्छी तरह जानते थे कि जो हो रहा है, वह मृगतृष्णा है, जहां रेत को पानी समझ कर मीलों दौड़ते रहना पड़ता है. इस के बावजूद शबनम की बूंदों सी बरसती प्यार की तपिश को महसूस करने के लिए उन्होंने शतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना मुंह छिपा लिया था.  जिस दिन सुचित्रा इटली से लौट कर आई, उस दिन वह रूना के घर नहीं गए. कुछ दिनों तक उस से न मिलने का फैसला लिया था.

मुकुल रूना को अपना फैसला फोन पर बताने की सोच ही रहे थे कि उस का ही फोन आ गया, बोली, ‘‘जानती हूं, आप की पत्नी इटली से वापस आ गई है. अब आप नहीं आ पाएंगे. आएंगे भी तो कभीकभी. कोई बात नहीं. आप आएं या न आएं, मैं तो सदैव आप को याद रखूंगी.

‘‘आप भी मुझे हमेशा याद रखेंगे. इस के लिए कुछ उपाय मैं ने किए हैं. फोन पर भेज रही हूं. अच्छे से देख लीजिए और सोचसमझ कर कदम उठाइए.’’

फिर मोबाइल पर रूना के मैसेज पर मैसेज आने लगे. उन्होंने मैसेज खोलना शुरू किया तो दिल की धड़कन बेतरह बढ़ गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया. मैसेज में कई एक फोटो थे. सारे के सारे रूना और उन के अंतरंग क्षणों के थे. जाहिर था रूना ने कैमरा लगा रखा था या फिर उस के किसी साथी ने छिप कर फोटो खींचे थे. उन की समझ में आ गया कि सारा कुछ सुनियोजित था. उन के हाथपैर कांपने लगे. घबराहट में भय से रुलाई छूट गई. ऐसे फोटो देखने के बाद समाज में उन की इज्जत राईरत्ती भी नहीं रहती. पत्नी की नजर में भी सदैव के लिए गिर जाते. वह उन्हें तलाक भी दे सकती थी.

कुछ देर बाद अपने आप को काबू में कर रूना को फोन किया, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? तुम तो मुझे प्यार करती थी.’’  ‘‘प्यार तो अब भी करती हूं प्रोफेसर साहब, पर प्यार से पेट थोड़े भरता है. इस के लिए रुपए की जरूरत होती है. मांगने से तो देते नहीं, इसीलिए ऐसा करना पड़ा.

‘‘लेकिन आप डरिए मत. बेफिक्र हो कर मेरे घर आ जाइए. मेरी बात मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’ अगले दिन वह रूना के घर गए तो उस का रूप देख कर दंग रह गए. पहले तो उस ने 30 करोड़ रुपए मांगे. उन के गिड़गिड़ाने पर 25 करोड़ पर रुक गई, जबकि वह उसे 5 लाख से अधिक नहीं देना चाहते थे.

दोनों में बहुत देर तक गरमागरम बहस हुई. कोई समझौता नहीं हुआ तो रूना बोली, ‘‘आज एक सच बताती हूं. वह यह कि मैं किसी कंपनी में जौब नहीं करती. एक आश्रम के लिए काम करती हूं.

‘‘उस आश्रम के मालिक स्वामी सच्चिदानंद हैं. उन के कहने पर ही आप को अपने जाल में फंसा कर फोटो और वीडियो बनाया था. अंतिम फैसला स्वामीजी ही करेंगे.’’

उन्होंने आश्रम में जा कर स्वामीजी से बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह 30 करोड़ से कम पर राजी नहीं हुए.

उन्होंने कैश न होने की बात की तो स्वामीजी ने कहा, ‘‘आप के पास कैश है कि नहीं, मैं नहीं जानता. पर इतना जानता हूं कि आप के पास एक पुश्तैनी मकान है जो आज की तारीख में 30-35 करोड़ का है. उसे आश्रम के नाम कर दीजिए. बात खत्म हो जाएगी.’’

वह समझ गए कि रोनेगिड़गिड़ाने से कोई फायदा नहीं होगा. इस के लिए कोई योजना बना कर उन के जाल से निकलना होगा. सोचनेसमझने के नाम पर उन्होंने स्वामीजी  से 10 दिन का समय मांग लिया और घर आ कर उन्हें कानूनी चंगुल में फंसाने की योजना बनाई. 2 दिन बाद उन्होंने रूना को फोन पर कहा, ‘‘तुम से एक समझौता करना चाहता हूं, जिस में तुम्हें बहुत बड़ा फायदा होगा.’’

रूना ने अपने घर बुला लिया तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘मुझे अपना मकान किसी को देना ही है तो स्वामीजी को क्यों दूं? तुम्हें क्यों न दूं? सुख तो मुझे तुम से मिला है.   ‘‘इस के बदले में तुम्हें मेरे मोबाइल में स्वामीजी के खिलाफ अपना बयान रिकौर्ड करा देना है. तुम्हें कुछ नहीं होगा, स्वामीजी जेल चले जाएंगे.’’

‘‘स्वामीजी को कानून के जाल में फंसाना इतना आसान नहीं है. आप मेरे बयान पर पुलिस की मदद लेंगे तो वह आप की पत्नी को अपना हथियार बना कर आप को सरेंडर करने पर मजबूर कर देंगे.’’

उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. मेरे और स्वामीजी के बीच मेरी पत्नी कहां से आ गई?’’

‘‘बात यह है कि आप की पत्नी स्वामीजी पर फिदा है. वह साल भर से उन की गुलामी कर रही है. स्वामीजी ने आप की पत्नी की कई तरह की पोर्न फिल्में बना रखी हैं.‘‘आप समझते हैं कि रात के 9 बजे तक वह औफिस में रहती है इसीलिए रात 10 बजे घर आती है. जबकि सच्चाई यह नहीं है. सच्चाई यह है कि रोज औफिस से शाम 5 बजे फ्री हो जाती है. फिर स्वामीजी के आश्रम जा कर स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करती है, फिर घर जाती है.

‘‘10 दिनों के लिए आप की पत्नी कंपनी के काम से इटली नहीं गई थी. वह स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करने इटली गई थी.’’

प्रमाणस्वरूप रूना ने अपने मोबाइल में उन की पत्नी और स्वामीजी का अंतरंग क्षणों का वीडियो दिखा कर कहा, ‘‘इसे मैं ने स्वामीजी से छिप कर इसलिए शूट किया था ताकि जरूरत पड़ने पर उन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकूं.’’

सुन कर वह सकते में आ गए. जिस पत्नी को वह चरित्रवान समझ रहे थे, वह बदचलन निकली. बहुत देर बाद उन्होंने अपने आप को समझाया. रूना से रिक्वेस्ट कर के उन्होंने अपने मोबाइल में वीडियो सेंड करवाया और यह कह कर चले गए कि 2-3 दिन में अच्छी योजना के साथ उस से मिलेंगे. उन्होंने उसे यह भी कहा कि वह हर हाल में अपना मकान उसे ही देंगे. 3 दिन बाद जबरदस्त योजना ले कर वह रूना के घर आ भी गए. योजना सुन कर वह खुशी से उछल पड़ी. वाकई जबरदस्त योजना थी.  ‘‘मेरी जान भले चली जाए, लेकिन मैं आप की योजना सफल बना कर रहूंगी. मगर आप अपना मकान मेरे नाम कब करेंगे?’’ रूना ने पूछा.

‘‘मैं मकान के पेपर तैयार कर के साथ लाया हूं. योजना सफल होते ही उस पर दस्तखत कर दूंगा. इतना ही नहीं, मैं ने तुम से शादी करने का भी फैसला किया है.’’  ‘‘यह कैसे होगा? आप की पत्नी जो है?’’

‘‘अब मैं उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता. वह भी मुझे तलाक देने के लिए राजी है.’’

रूना खुशी के मारे उन से लिपट गई.  रूना को हर तरह से खुश करने के बाद उन्होंने सब से पहले पूरे कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगाए. उस के बाद स्वामीजी के खिलाफ रूना का बयान अपने मोबाइल में रिकौर्ड किया.  जरूरी काम कर के स्वामीजी को फोन किया, ‘‘आप के आश्रम के नाम मैं ने मकान के पेपर बनवा लिए हैं. शाम के 6 बजे रूना के घर आ जाइए. पेपर पर आप दोनों के सामने दस्तखत कर दूंगा.’’

स्वामीजी ने उन्हें पेपर ले कर आश्रम आने के लिए कहा. वह आश्रम में जाने के लिए राजी नहीं हुए तो स्वामी साढे़ 6 बजे अपने 2 सहयोगी के साथ रूना के घर आ गया. आते ही स्वामी ने मकान के पेपर मांगे तो उन्होंने कहा, ‘‘पेपर तो दूंगा ही. पहले आप यह बताइए कि मेरी पत्नी पर आप ने कौन सा जादू कर रखा है कि आप की गुलाम बन गई है. खुशीखुशी अपना सर्वस्व तक सौंप देती है? उस से आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मेरी शिष्या नमिता जिस कंपनी में चेयरमैन है, उसी में आप की पत्नी है. नमिता से ही पता चला कि आप की पत्नी के पास एक फार्महाउस है और आप के पास पुश्तैनी मकान है.

‘‘नमिता को आप की पत्नी के पीछे लगा दिया. वह वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, सो मेरे इशारे पर चलने लगी. बाद में मैं ने रूना को आप के पीछे लगा दिया था.’’  स्वामीजी आगे कुछ कहते, उस से पहले दरवाजे की घंटी बजी. रूना ने दरवाजा खोला तो सुचित्रा थी.

वह कुछ कहती, उससे पहले सुचित्रा यह कहते हुए अंदर आ गई, ‘‘मैं जानती हूं, स्वामीजी और मेरे पति अंदर हैं. मुझे तुम लोगों के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है. स्वामीजी से बात कर के चली जाऊंगी.’’ रूना दरवाजा बंद करने लगी तो सुचित्रा ने मना कर दिया. कहा, ‘‘2 मिनट में लौट जाऊंगी. दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है.’’

सुचित्रा के आ जाने से सभी सकते में थे. रूना भी परेशान हो गई थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए. सुचित्रा स्वामीजी से बोली, ‘‘आप को एक सच बताने आई हूं.’’ ‘‘क्या?’’ स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मेरे पति रूना को प्यार करते हैं. मुझे तलाक दे कर उस से शादी करना चाहते हैं. अपना मकान भी उसी को देना चाहते हैं. इसलिए मैं ने भी अपना फार्महाउस आप के आश्रम को दे कर अपनी शेष जिंदगी आप के साथ बिताने का फैसला किया है.’’

सुचित्रा के चुप होते ही स्वामीजी दहाड़ उठे, ‘‘तुम तो अपनी संपत्ति दोगी ही. तुम्हारे पति को भी देनी होगी. अपनी संपत्ति रूना को देने वाला वह कौन होता है. यदि वह मेरी बात नहीं मानेगा तो मेरे लोग यहीं पर उस का कत्ल कर देंगे.’’

स्वामीजी प्रोफेसर साहब से कुछ कहते, उस से पहले खुले दरवाजे से पुलिस आ गई.  स्वामीजी और उन के दोनों सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया. रूना को भी गिरफ्तार कर लिया. इंसपेक्टर ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप पर बहुत दिनों से पुलिस की नजर थी. सबूत के अभाव में गिरफ्तार नहीं कर पा रहे थे. आज पक्का सबूत मिल गया. कमरे में आप लोगों के बीच जो बातें हुई हैं, वे सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हो चुकी हैं.’’

बात यह थी कि प्रोफेसर साहब को जब रूना से यह पता चला कि उन की पत्नी सुचित्रा दुश्चरित्र है, स्वामीजी के साथ उस का अवैध संबंध है तो उन का दिल टूट गया. पहले तो उन्होंने उस से शादी तोड़ लेने का विचार किया. पर तुरंत अपने विचार को दरकिनार कर उसे एक मौका देने का फैसला कर लिया. वह वाकई पत्नी को बहुत प्यार करते थे.

उन्होंने सुचित्रा से स्वामीजी के बाबत पूछा तो वह फफकफफक कर रोने लगी. उन्होंने उसे आश्वस्त किया तो बोली, ‘‘आप को सब कुछ बताना चाह रही थी, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब आप को सब कुछ पता चल ही गया है तो मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.’’

फिर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया.  दरअसल, सुचित्रा कंपनी का चेयरमैन बनना चाहती थी, पर वह बन नहीं सकी. उस से 2 साल जूनियर नमिता भट्टाचार्य चेयरमैन बन गई. वह किसी की सिफारिश पर बनी थी.

इस से वह दुखी थी और जौब से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था.  त्यागपत्र देती उस से पहले नमिता भट्टाचार्य ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं, तुम चेयरमैन नहीं बन सकी इसलिए दुखी हो. तुम त्यागपत्र मत दो. मुझ पर भरोसा रखो. जल्दी ही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’   ‘‘तुम्हारे जूनियर रहते हुए भी जिस ने मुझे अपने पावर से चेयरमैन बनवाया है, वही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा देंगे. 3-4 महीने बाद वाइस चेयरमैन का पद खाली होने वाला है.’’

‘‘कौन है वह?’’ सुचित्रा ने पूछा.  ‘‘2 दिन बाद उन के पास ले चलूंगी. सब कुछ जान जाओगी.’’

वाइस चेयरमैन का पद सुचित्रा को खराब नहीं लगा. 2 दिन बाद नमिता भट्टाचार्य उसे एक आश्रम में ले गई. स्वामीजी से पहली बार उस का परिचय हुआ. वहीं पर उसे पता चला कि वह सर्वशक्तिमान हैं. कुछ भी कर सकते हैं.

स्वामीजी 40-45 साल के थे. बड़े ही हैंडसम और स्मार्ट. वाकपटुता में दक्ष थे. सुचित्रा उन से बहुत प्रभावित हुई.

स्वामीजी ने उसे कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं तुम्हें हर हाल में वाइस चेयरमैन बना दूंगा. पर याद रखना किसी को कभी भी बताना मत कि तुम्हें किस ने वाइस चेयरमैन बनवाया है. दूसरी बात यह कि इस के लिए तुम्हें 3 महीने तक रोज आश्रम में आ कर साधना करनी होगी. पर घर वालों को इस के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

सुचित्रा उन की बात मान गई. अगले दिन औफिस से छुट्टी होते ही आश्रम जा कर साधना करने लगी. इस के लिए उसे घर में तरहतरह के बहाने बनाने पड़ते थे. 2 महीने में ही वह स्वामीजी से घुलमिल गई. स्वामी उसे अच्छा और सच्चा इंसान लगा. लेकिन उन की सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई.  हुआ यह कि एक दिन स्वामीजी ने चरणामृत के नाम पर उसे कुछ ऐसी चीज पिलाई कि अचेत हो गई.

एक घंटे बाद होश आया तो अपने आप को स्वामीजी के बिस्तर पर पाया.  वह चिंता में पड़ गई. सोचने लगी कि स्वामीजी ने कहीं उस की इज्जत तो नहीं लूट ली?  तभी स्वामीजी बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. तुम्हारी इज्जत सलामत है. हालांकि चाहता तो आराम से सब कुछ कर सकता था. लेकिन जो आनंद स्वेच्छा में है, वह जबरदस्ती या धोखे में नहीं.

‘‘यह सच है कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं लेकिन तुम्हें राजी कर के, जबरदस्ती नहीं. मैं तुम्हारा काम करूंगा तो क्या तुम मुझे खुश नहीं कर सकतीं? बेहतर यही है कि तुम मुझे खुश कर दो. वैसे भी ताली दोनों हाथों से बजती है.’’

वह हर हाल में वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, अत: पतिव्रता धर्म को दरकिनार कर यह सोच कर अपने आप को स्वामीजी के हवाले कर दिया कि सिर्फ एक दिन की बात है. पति से बेवफाई करते समय उसे बहुत बुरा लगा था. लेकिन स्वामीजी से अथाह सुख पा कर बेवफाई की भावना को मन से निकाल फेंका.  वैसा सुख उसे पति से कभी नहीं मिला था. इसलिए चाह कर भी स्वामीजी से नफरत नहीं कर सकी. उन के द्वारा दिए गए जिस्मानी सुख को दिल से लगा बैठी.

इसी कारण 2 दिन बाद स्वामीजी ने उसे फिर से बांहों में भरा तो सुचित्रा ने कोई विरोध नहीं किया. फिर तो सिलसिला बन गया.  स्वामीजी खिलाड़ी थे, औरतों के रसिया. उन्हें ऐसी मुद्राएं आती थीं, जिन्हें समझ पाना और अमल में लाना आम आदमी के वश की बात नहीं थी. उन की इस कला से औरतें खुश रहती थीं.  स्वामीजी से तरहतरह का सुख पा कर सुचित्रा आत्मविभोर हो उठती थी. इसी वजह से पति से विमुख हो कर उस ने पूरा ध्यान स्वामीजी पर केंद्रित कर दिया था. वाइस चेयरमैन बनने के बाद स्वामीजी की सलाह पर वह प्रतिदिन औफिस से छूटते ही आश्रम में जा कर उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

स्वामीजी से उस का भ्रम तब टूटा जब उन के साथ इटली में 10 दिनों तक भरपूर आनंद लेने के बाद कोलकाता आई. बातोंबातों में उस ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो कुएं का मेंढक ही बनी रहती. पता ही नहीं चलता कि समुद्र क्या होता है. उस की लहरें क्या होती हैं. लहरों से कितना सुख मिलता है. मैं आप को कभी नहीं भूल सकती. जरूरत पड़ी तो आप पर अपनी जान भी न्यौछावर कर दूंगी.’’

ठीक मौका देख कर स्वामीजी ने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो यह बताओ, अगर मैं कुछ मांगू तो दोगी?’’

‘‘क्यों नहीं दूंगी? मांग कर देखिए.’’  ‘‘तुम्हारा फार्महाउस चाहिए. उस पर एक नया आश्रम बनाना चाहता हूं.’’

अब स्वामीजी की चाल उस की समझ में आ गई. इस में कोई शक नहीं था कि उसे उन से अथाह सुख मिला था. आगे भी मिलने रहने की संभावना थी. परंतु इस के लिए बच्चों का अधिकार किसी और को देना उसे मुनासिब नहीं लगा. नतीजतन उस ने स्वामीजी को फार्महाउस देने से मना कर दिया. स्वामीजी ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी. तब उन्होंने अपने मोबाइल में ऐसा फोटो दिखाया कि उस के होश उड़ गए.  उस ने अब तक पति के अलावा सिर्फ स्वामीजी से संबंध बनाया था, जबकि फोटो में उसे अलगअलग 4 अजनबियों से 4 लोकेशन में संबंध बनाते हुए दिखाया गया था.

उसे समझते देर नहीं लगी कि स्वामीजी ने यह सब उस का फार्महाउस लेने के लिए षडयंत्र के तहत किया था. वह उन के षडयंत्र में बुरी तरह फंस गई थी. वह बहुत रोईगिड़गिड़ाई. लेकिन स्वामीजी पर कोई असर नहीं हुआ. अंतत: उस ने सोचने के लिए कुछ दिन का समय ले लिया. 4 दिन बीत गए, लेकिन उसे स्वामीजी के चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो उस ने सब कुछ पति को बता देने का निश्चय किया. पति पर उसे भरोसा था कि माफ कर देंगे और स्वामीजी के चंगुल से निकलने का कोई रास्ता भी निकाल लेंगे.  सुचित्रा से सच जानने के बाद उन्होंने भी अपनी और रूना की बात बता कर माफी मांगी.

एकदूसरे को माफ करने के बाद दोनों ने मिल कर स्वामीजी और रूना को जेल भेजने की योजना बनाई. सुचित्रा की सहेली का पति पुलिस में उच्च अधिकारी था. उन्हें सच्चाई बता कर मदद की गुहार की तो पुलिस की तरफ से भरपूर मदद मिल गई. सादे लिबास में कुछ पुलिस वालों को रूना के घर के बाहर तैनात कर दिया गया. उन्हें बता दिया गया था कि घर के अंदर क्या होने वाला है और उन्हें अंदर कब आना है.

स्वामीजी और रूना को पुलिस गिरफ्तार कर ले गई तो पतिपत्नी दोनों अपनी योजना की सफलता पर खुश हो कर एकदूसरे से लिपट गए.  अपनों को छोड़ कर दूसरों में सुख ढूंढने के अंजाम से दोनों वाकिफ हो गए थे.

Love Story in Hindi : भांजी के प्यार में बना बलि का बकरा

Love Story in Hindi : 12 अगस्त, 2013 की बात है. नेहा तय समय पर कुछ कपड़े और सामान ले कर चुपचाप घर के  बाहर निकल गई. उस ने और महेंद्र ने पहले ही घर से भागने की योजना बना ली थी. गांव से निकल कर नेहा रायबरेली लालगंज जाने वाली सड़क पर पहुंच गई. वहां उस का प्रेमी महेंद्र पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

दोनों ने वहां से फटाफट बस पकड़ी और कानपुर चले गए. कानपुर के एक मंदिर में दोनों ने पहले शादी की, फिर वहां से दिल्ली चले गए. दिल्ली में महेंद्र का एक दोस्त रहता था. उस की मार्फत दिल्ली में उस की नौकरी लग गई. बाद में उस ने किराए पर एक कमरा ले लिया. किराए के उस कमरे में वह नेहा के साथ रहने लगा. इधर महेंद्र और नेहा के फरार होने के बाद उन के गांव बीजेमऊ में हंगामा मच गया. नेहा नाबालिग थी, ऐसे में उस के मांबाप ने 15 अगस्त को महेंद्र के खिलाफ खीरो थाने में भादंवि की धारा 363, 366 और 376 के तहत अपहरण और बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया.

खीरो थाने के एसआई राकेश कुमार पांडेय नेहा और महेंद्र की खोज में जुट गए. हफ्ता भर कोशिश करने के बाद उन्होंने दोनों को आखिर ढूंढ लिया. राकेश कुमार ने महेंद्र और नेहा को बरामद कर के 24 अगस्त को न्यायालय में पेश किया. महेंद्र और नेहा ने कोर्ट में सफाई दी कि उन्होंने शादी कर ली है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी शादी के फोटो भी कोर्ट में पेश किए लेकिन नेहा के नाबालिग होने की वजह से अदालत ने महेंद्र को जेल भेज दिया और नेहा को उस की मां के हवाले करने का आदेश दिया.

पुलिस ने इस मामले की जांच पूरी करने के बाद 27 अगस्त, 2013 को अदालत में चार्जशीट पेश कर दी. पुलिस की जांच से पता चला कि महेंद्र और नेहा का प्यार 2 साल पहले शुरू हुआ था. नेहा और महेंद्र के प्यार की शुरुआत की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली की रहने वाली नेहा की मां की दोस्ती रेखा गुप्ता नाम की एक महिला से थी. रेखा के पति श्यामू गुप्ता की करीब 8 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उन से 3 बेटियां कोमल, करिश्मा और खुशबू थीं. पति की मौत के बाद रेखा किसी तरह परिवार पाल रही थी, उसी दौरान उस की मुलाकात सर्वेश यादव से हुई.

सर्वेश यादव मूल रूप से कन्नौज जिले के मुंडला थाना क्षेत्र के गांव ताल का रहने वाला था. उस के पिता मोहर सिंह किसान थे. सर्वेश काम की तलाश में गांव से रायबरेली आया तो फिर वहीं का हो कर रह गया.   रेखा से मुलाकात होने के बाद उस की उस से दोस्ती हो गई. यह दोस्ती दोनों को इतना करीब ले आई कि रेखा और सर्वेश ने शादी कर ली. सर्वेश से शादी करने के बाद रेखा 2 और बच्चों की मां बनी. बाद में सर्वेश ने रेखा की बड़ी बेटी कोमल की शादी अपने भांजे सुमित से करा दी थी.

सहेली होने के नाते नेहा की मां विनीता अपने घरपरिवार की सारी परेशानी रेखा और सर्वेश से कहती रहती थी. विनीता और सर्वेश एक ही जाति के थे, इसलिए वह विनीता को बहन कहता था. दोनों में बहुत छनती थी. रेखा का घर विनीता के घर से कुछ दूरी पर था. जब भी मौका मिलता था, वह उस के पास चली आती थी. नेहा के भागने के बाद विनीता गांव में खुद को अपमानित महसूस करती थी. वह रेखा के अलावा किसी के घर नहीं जाती थी.

एक बार रेखा और विनीता आपस में बातचीत कर रही थीं तभी वहां मौजूद सर्वेश ने विनीता से कहा, ‘‘बहन, तुम्हारी बेटी नेहा तुम्हारे कहने में नहीं है. अभी तो वह नाबालिग थी तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. बालिग होने के बाद अगर वह किसी के साथ चली जाएगी तो पुलिस भी कोई मदद नहीं करेगी.’’

‘‘भैया, तुम्हारी बात तो सही है. पर क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं उसे बहुत समझाने की कोशिश करती हूं लेकिन उस के ऊपर महेंद्र का भूत सवार है.’’ विनीता बोली.

‘‘बहन, तुम चिंता मत करो. मैं अपने गांव में नेहा की शादी की बात करता हूं. वहां के लोगों को नेहा के बारे में कोई बात पता नहीं है. इसलिए शादी होने में कोई परेशानी नहीं आएगी. शादी होने के बाद सब ठीक हो जाता है.’’

सर्वेश का एक भतीजा था जोगिंदर. उस की शादी नहीं हुई थी. सर्वेश ने सोचा कि अगर नेहा और जोगिंदर की शादी हो जाए तो दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी. रायबरेली और कन्नौज के बीच करीब 160 किलोमीटर की दूरी है. ऐसे में नेहा जल्द मायके भी नहीं आजा सकेगी और महेंद्र को भूल कर अपनी गृहस्थी में रचबस जाएगी. विनीता चाहती थी कि महेंद्र के जेल से बाहर आने से पहले नेहा की शादी हो जाए तो अच्छा रहेगा. इसलिए उस ने सर्वेश से कहा कि जितनी जल्दी हो सके, वह इस काम को करवा दे.

सर्वेश ने ऐसा ही किया. जोगिंदर और उस के घरवालों से बात करने के बाद आननफानन में जोगिंदर और नेहा की शादी कर दी गई. शादी के बाद नेहा कन्नौज चली गई. बेटी की शादी हो जाने के बाद विनीता ने राहत की सांस ली. लगभग 3 महीने जेल में रहने के बाद नवंबर, 2013 में महेंद्र जमानत पर घर आ गया. जेल में रहने के बाद भी वह नेहा को भूल नहीं पाया था.  उस ने अपने घरवालों से नेहा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि नेहा के घर वालों ने उस की शादी दूसरी जगह कर दी है. यह सुन कर उसे बहुत बड़ा धक्का लगा.

बाद में महेंद्र ने पता लगा लिया कि नेहा की शादी कराने में सब से बड़ी भूमिका सर्वेश यादव की रही थी. इसलिए उस ने सर्वेश के पास जा कर उसे धमकी दी, ‘‘नेहा मुझे प्यार करती थी और मेरे साथ रहना चाहती थी. तुम सब ने मुझे जेल भिजवा कर उस की शादी कर दी. तुम ने सोचा होगा कि इस से हम दूर हो जाएंगे. लेकिन मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि यह तुम लोगों की गलतफहमी है. मैं नेहा को दोबारा हासिल कर के रहूंगा. जिस ने भी नेहा को मुझ से अलग करने का काम किया है, मैं उसे सबक सिखा कर रहूंगा.’’

सर्वेश ने महेंद्र से उलझना ठीक नहीं समझा. उस के जाने के बाद वह अपने काम में लग गया. उधर महेंद्र इस कोशिश में लग गया कि किसी तरह उस की एक बार नेहा से बात हो जाए. वह उस से जानना चाहता था कि शादी के बाद भी वह उस के साथ रहना चाहती है या नहीं. यदि वह उसे अब भी चाहती है तो वह उसे ले कर कहीं दूर चला  जाएगा. महेंद्र यह बात अच्छी तरह जानता था कि अब तक नेहा बालिग हो चुकी है. ऐसे में अब अगर वह अपनी मरजी से उस के साथ जाएगी तो पुलिस भी उसे फिर से जेल नहीं भेज पाएगी.

कुछ समय बाद महेंद्र को किसी तरह नेहा का मोबाइल नंबर मिल गया. उस ने नेहा से बात की. महेंद्र के जेल से आने की बात सुन कर नेहा खुश हो गई.  आपसी गिलेशिकवे दूर करने के बाद नेहा ने उसे बताया, ‘‘घरवालों ने मेरी शादी जबरन कराई है. मैं अब भी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं लेकिन अब इतनी दूर हूं कि मिलना भी संभव नहीं है.’’

प्रेमिका की बात सुन कर महेंद्र का दिल बागबाग हो गया. इस के बाद दोनों ने आगे की रणनीति बनाई.

8 फरवरी, 2014 को नेहा के चचेरे भाई पवन की शादी थी. नेहा ने महेंद्र से कहा कि मैं उस की शादी में शामिल होने के लिए गांव आऊंगी. तब तुम से मिलूंगी.

‘‘बस नेहा एक बार तुम मेरे पास आ जाओ, इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी दूर नहीं जाने दूंगा. तुम्हें ले कर इतनी दूर चला जाऊंगा कि किसी को पता तक नहीं चलेगा.’’ महेंद्र ने कहा.

महेंद्र की बातों में आ कर नेहा एक बार फिर से उस के साथ भागने को तैयार हो गई तो महेंद्र ने यह बात अपने कुछ दोस्तों को भी बता दी. फिर क्या था, यह जानकारी सर्वेश को भी मिल गई. महेंद्र के जेल से छूट कर आने के बाद उस ने जब से सर्वेश को धमकी दी थी, तब से वह उस की हर हरकत पर नजर रख रहा था.

सर्वेश को महेंद्र की योजना का पता चल ही गया था. उस की योजना को फेल करने के लिए सर्वेश ने अपने भतीजे जोगिंदर को फोन कर के कहा, ‘‘जोगिंदर पवन की शादी में तुम नेहा को ले कर उस के गांव मत आना. यहां आ कर वह परेशान हो जाती है. अपनी मां, घरपरिवार के मोह में वह यहां आना चाहती है.’’

भतीजे से बात करने के बाद सर्वेश को लगा कि जब नेहा यहां आएगी ही नहीं तो महेंद्र कुछ नहीं कर सकेगा. यही नहीं सर्वेश ने जोगिंदर से कह कर नेहा का मोबाइल नंबर भी बदलवा दिया, ताकि महेंद्र उस से दोबारा बात न कर सके. यह बात जब महेंद्र को पता चली तो उसे शक हो गया कि यह सब सर्वेश ने ही कराया होगा. वह सर्वेश के पास पहुंच गया और आगबबूला होते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि तुम मेरे बीच में मत आओ लेकिन तुम नहीं माने. अब इस का खामियाजा भुगतने को तैयार रहो.’’

27 मार्च, 2014 की रात को सर्वेश अपने घर के बाहर दरवाजे पर सो रहा था. आधी रात को अचानक उस के चीखने की आवाजें आने लगीं. आवाज सुन कर उस की पत्नी रेखा भाग कर बाहर आई तो सर्वेश का गला कटा हुआ था.  पति की हालत देख कर वह जोरजोर से रोने लगी. उस की आवाज सुन कर गांव के दूसरे लोग भी वहां आ गए. लोगों को इस बात की हैरानी हो रही थी कि इस तरह गला रेत कर सर्वेश की हत्या किस ने कर दी?

सूचना मिलने पर थाना खीरो की पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस रेखा और अन्य लोगों से पूछताछ करने लगी. पुलिस को लोगों से तो कुछ पता नहीं चला लेकिन वह इतना जरूर समझ गई कि हत्यारे की सर्वेश से गहरी दुश्मनी रही होगी. पुलिस ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने रेखा की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के तहकीकात शुरू कर दी. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने खीरो के थानाप्रभारी विद्यासागर पाल को जल्द से जल्द इस मामले का परदाफाश करने के आदेश दिए.

थानाप्रभारी ने रेखा से बात की तो उस ने बताया कि उन की वैसे तो किसी से भी कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी लेकिन महेंद्र कई बार दरवाजे पर आ कर धमकी दे गया था. चूंकि पुलिस अधीक्षक सीधे इस केस की काररवाई पर नजर रखे हुए थे इसलिए थानाप्रभारी ने रेखा द्वारा कही गई बात उन्हें बताई तो उन्होंने महेंद्र के खिलाफ सुबूत जुटाने को कहा.

थानाप्रभारी ने सर्वेश के घर वालों के अलावा मोहल्ले के अन्य लोगों से बात की तो पता चला कि महेंद्र का विनीता की बेटी नेहा से चक्कर चल रहा था. अपने और नेहा के बीच में वह सर्वेश को रोढ़ा मानता था. लोगों से की गई बात के बाद थानाप्रभारी को भी महेंद्र पर शक होने लगा.

एसपी के आदेश पर खीरो थाने की पुलिस महेंद्र के पीछे लग गई. घटना के 3 दिन बाद 31 मार्च, 2014 को मुखबिर की सूचना पर एसआई राकेश कुमार पांडेय, कांस्टेबल सुरेश चंद्र सोनकर, गोबिंद और कमरूज्जमा अंसारी ने महेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने ही सर्वेश की हत्या की थी. महेंद्र ने पुलिस को बताया कि वह नेहा से बहुत प्यार करता था. उस के लिए वह जेल भी गया था. इस बीच नेहा की शादी जोगिंदर से हो जरूर गई थी, लेकिन उस के जेल से लौटने के बाद भी नेहा पति को छोड़ उस के साथ ही रहना चाहती थी. सर्वेश उस की और नेहा की राह में रोड़ा बन कर बारबार आ रहा था. तब मजबूरी में उस ने सर्वेश को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

वह सर्वेश को मारने का मौका ढूंढता रहा. जाड़े के दिनों में वह घर में सोता था इसलिए उसे मौका नहीं मिला. जाडे़ का मौसम गुजर जाने के बाद सर्वेश घर के बाहर सोने लगा. महेंद्र मौके की तलाश में रात में रोजाना उस के घर की तरफ जाता था. 27 मार्च को भी वह मौके की फिराक में था. रात साढ़े 12 बजे जब सन्नाटा हो गया तो उस ने सर्वेश का मुंह दबा कर उस का गला चाकू से काट दिया.

सर्वेश जोर से चिल्लाने लगा तो उस ने उस पर चाकू से कई वार किए. इस बीच उस की पत्नी रेखा दरवाजा खोल कर आती दिखी तो वह भाग निकला. हत्या के समय खून के छींटे महेंद्र की शर्ट पर भी आए थे. उस ने चाकू और खून लगी शर्ट महारानीगंज, सिधौर मार्ग पर बने मंदिर के बगल वाली पुलिया के नीचे छिपा दी थी. फिर वह घर चला गया था.

महेंद्र को जब पता चला कि पुलिस ज्यादा एक्टिव हो गई है तो उस ने घर से कानपुर के रास्ते दिल्ली भागने की योजना बना ली. इस से पहले कि वह वहां से भाग पाता पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे समेरी चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. महेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने चाकू और खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली. 1 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने महेंद्र को रायबरेली के जिला न्यायालय में पेश किया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.  महेंद्र ने अपने और अपनी प्रेमिका के बीच सर्वेश के आने पर प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त हो कर उस की हत्या कर दी. भले ही वह अपना प्रतिशोध लेने में सफल हो गया हो पर यह उस के लिए बहुत महंगा साबित हुआ. अब वह हत्या के आरोप में जेल में बंद है. उसे न तो प्रेमिका मिल सकी और न उस का साथ.

प्रतिशोध की भावना लोगों को अंधा कर देती है. ऐसे में यह दिखाई नहीं देता कि प्रतिशोध का अंजाम जीवन बरबाद करने वाला होता है. महेंद्र को यह कदम उठाने से पहले सोच लेना चाहिए था. वह खुद तो तिलतिल मर कर जेल में अपनी जिंदगी गुजार ही रहा होगा लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं होगा कि उस का परिवार उस से भी अधिक मुसीबत में है.

उस के परिवार वाले अपनी जमीनजायदाद बेच कर मुकदमा लड़ने के लिए वकील की फीस चुका रहे हैं. इस सब के बाद भी अदालत इस मामले में जो फैसला सुनाएगी, वह जरूरी नहीं कि महेंद्र के पक्ष में ही आए.

कुल मिला कर बात यहीं आ कर ठहरती है कि महेंद्र ने गुस्से में जो कदम उठाया उस से उस का परिवार ही मुसीबत में नहीं फंसा बल्कि सर्वेश यादव की हत्या के बाद उस की पत्नी और परिवार का जीवन भी अंधकारमय हो गया है. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

UP Crime News : चाहत बनी आफत

UP Crime News : उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर के थाना संदना का एक गांव है हरिहरपुर. रामप्रसाद का परिवार इसी गांव में रहता था. खेती किसानी करने वाले रामप्रसाद के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. उन में संगीता सब से बड़ी थी. सांवले रंग की संगीता का कद थोड़ा लंबा था. संगीता जवान हुई तो रामप्रसाद ने उस की शादी अपने ही इलाके के गांव रसूलपुर निवासी मुन्नीलाल के बेटे परमेश्वर के साथ कर दी. यह 6 साल पहले की बात थी.

परमेश्वर के पास 7 बीघा जमीन थी, जिस पर वह खेतीबाड़ी करता था. समय के साथ संगीता 3 बच्चों रजनी, मंजू और रजनीश की मां बनी. शादी के कुछ दिनों बाद ही परमेश्वर अपने घर वालों से अलग रहने लगा, इसलिए पत्नी और बच्चों के भरणपोषण और खेतीबाड़ी की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. परमेश्वर खेतों पर जी तोड़ मेहनत करता तो संगीता बच्चों और घर की जिम्मेदारी संभालती. घरगृहस्थी के चक्रव्यूह में फंस कर परमेश्वर यह भी भूल गया कि उस की पत्नी अभी जवान है और उस की कुछ भी हैं.

यह मानव स्वभाव में है कि जब उस की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं होतीं तो उस में चिड़चिड़ापन आ जाता है. ऐसा ही कुछ संगीता के साथ भी था. वह परमेश्वर से अपने मन की चाह के बारे में भले ही खुल कर बता नहीं पाती थी, लेकिन चिड़चिड़ेपन की वजह से लड़ जरूर लेती थी. इस तरह दोनों के बीच कहासुनी होना आम बात हो गई थी.

गांव में ही बाबूराम का भी परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटियां और 4 बेटे थे. इन में छोटू को छोड़ कर बाकी सभी भाईबहनों की शादियां हो चुकी थीं.19 वर्षीय छोटू वैवाहिक समारोहों में स्टेज बनाने का काम करता था. जब काम न होता तो वह गांव में खाली घूमता रहता था. छोटू परमेश्वर को बड़े भाई की तरह मानता था, इसलिए उस का काफी सम्मान करता था.

एक दिन परमेश्वर खेत पर काम कर रहा था तो छोटू वहां पहुंच गया. उसे वहां आया देख परमेश्वर ने उसे अपने घर से खाना लाने भेज दिया. छोटू परमेश्वर के घर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात संगीता से हुई. संगीता उसे नहीं जानती थी. उस ने अपने बारे में बता कर संगीता से खाने का टिफिन लगा कर देने को कहा तो संगीता टिफिन में खाना लगाने लगी.

छोटू जवान हो चुका था. इस मुकाम पर महिलाओं के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है. वह चोर निगाहों से संगीता के यौवन का जायजा लेने लगा. छोटू कुंवारा था, इसलिए नारी तन उस के लिए कौतूहल का विषय था. संगीता के यौवन को देख कर छोटू के तन में कामवासना की आग जलने लगी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर संगीता का खूबसूरत बदन उस की बांहों में आ जाए तो मजा आ जाए.

संगीता का भी यही हाल था. उसे परमेश्वर से वह सब कुछ हासिल नहीं हो रहा था, जिस की उसे चाह थी. छोटू के बारे में ही सोचतेसोचते उस ने टिफिन में खाना लगा कर उसे थमा दिया. जब छोटू खाना ले कर जाने लगा तो संगीता भी ठीक वैसा ही सोचने लगी, जैसा थोड़ी देर पहले छोटू सोच रहा था. छोटू शारीरिक रूप से हट्टाकट्टा नौजवान ही नहीं था, बल्कि कुंवारा भी था. पहली ही नजर में वह संगीता को भा गया था.

दूसरी ओर छोटू का भी वही हाल था. वह दूसरे दिन का इंतजार करने लगा. परमेश्वर ने जब दूसरे दिन भी उस से खाना लाने को कहा तो वह तुरंत परमेश्वर के घर के लिए रवाना हो गया. वह उस के घर पहुंचा तो संगीता घर के बाहर ही बैठी थी. छोटू को देखते ही संगीता खुश हो गई. वह उसे प्यार से अंदर ले गई. जवान छोटू उसे एकटक निहार रहा था.

छोटू को अपनी ओर एकटक देखते पा कर संगीता ने उस का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘ऐसे एकटक क्या देख रहे हो, कभी जवान औरत को नहीं देखा क्या?’’

छोटू तपाक से बोला, ‘‘देखा तो है, पर तुम्हारी जैसी नहीं देखी.’’

संगीता शरमाने का नाटक करती हुई अंदर चली गई और वहीं से उस ने छोटू को आवाज लगाई, ‘‘अंदर आ जाओ, आज खाना लगाने में थोड़ी देर लगेगी.’’

उस के आदेश का पालन करते हुए छोटू अंदर आ गया. दोनों बैठ कर बातें करते हुए एकदूसरे के प्रति आकर्षित होते रहे. अब यही रोज का क्रम बन गया. स्त्रीपुरुष एकदूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं तो मतलब की बातों का सिलसिला खुदबखुद जुड़ जाता है. मौका देख एक दिन छोटू ने संगीता की दुखती रग को छेड़ दिया, ‘‘भाभी, तुम खुश नहीं लग रही हो. लगता है, भैया तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखते?’’

‘‘खुश होने की वजह भी तो होनी चाहिए. तुम्हारे भैया तो सिर्फ खेतों के हो कर रह गए हैं, घर में जवान बीवी है, इस की उन्हें कोई परवाह ही नहीं है.’’

‘‘भैया से इस बारे में बात करतीं तो तुम्हारी समस्या जरूर दूर हो जाती.’’

‘‘मैं ने कई बार उन्हें इस बात का अहसास दिलाया, लेकिन वह अपनी इस जिम्मेदारी को समझने को तैयार ही नहीं हैं. उन्हें पूरे घर की जिम्मेदारी तो दिखती है, लेकिन मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं दिखती.’’ संगीता ने बड़े ही निराश भाव से कहा. मौका देख कर छोटू ने अपने मन की बात उस के सामने रख दी, ‘‘भाभी, निराश मत हों. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें वह खुशियां दे सकता हूं, जो परमेश्वर भैया नहीं दे पा रहे हैं.’’

अपनी बात कह कर छोटू ने संगीता को चाहत भरी नजरों से देखा तो संगीता ने भी उस की आंखों में आंखें डाल दीं. उस की आंखों में जो जुनून था, वह उस की सुलगती कामनाओं को ठंडा करने के लिए काफी था. संगीता ने उस के हाथों में अपना हाथ दे दिया. छोटू उस की सहमति पा कर खुशी से झूम उठा. इस के बाद संगीता ने अपने तन की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

एक बार दोनों ने अपने नाजायज रिश्ते की इबारत लिखी तो वह बारबार दोहराई जाने लगी. इसी के साथ उन के रिश्ते में गहराई भी आती गई. रसूलपुर में ही प्रमोद नाम का एक युवक रहता था. उस के पिता हरनाम भी खेतीकिसानी करते थे. 23 वर्षीय प्रमोद अविवाहित था. वह भी परमेश्वर की पत्नी संगीता पर फिदा था और उसे अपने जाल में फांसने का प्रयास करता रहता था.

एक दिन मौका देख कर उस ने संगीता से अपने दिल की बात कह दी. लेकिन संगीता ने उस से संबंध बनाने से साफ इनकार कर दिया. प्रमोद इस से निराश नहीं हुआ. उस ने अपनी तरफ से कोशिश जारी रखी. इसी बीच उसे संगीता के छोटू से बने नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया. प्रमोद को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई कि संगीता उस के अलावा किसी और से संबंध रखे. उस ने परमेश्वर के सामने उन दोनों के नाजायज रिश्ते की पोल खोल दी. परमेश्वर को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन मन में शक जरूर पैदा हो गया.

अगले ही दिन परमेश्वर रोज की तरह छोटू से खाना लाने को कहा. छोटू खाना लाने चला गया तो परमेश्वर भी छिपतेछिपाते उस के पीछे घर की तरफ चल दिया. छोटू घर में जा कर संगीता के साथ रंगरलियां मनाने लगा. चूंकि दोपहर का समय था और किसी के आने का अंदेशा नहीं था, इसलिए दोनों बिना दरवाजा बंद किए ही एकदूसरे से गुंथ गए.

अभी कुछ पल ही बीते थे कि किसी ने भड़ाक से दरवाजा खोल दिया. अचानक दोनों ने घबरा कर दरवाजे की तरफ देखा तो सामने परमेश्वर खड़ा था. उस की आंखों से चिंगारियां फूट रही थीं. उस ने पास पड़ा डंडा उठाया तो छोटू वहां से भागा. लेकिन भागते समय परमेश्वर का डंडा उस की कमर पर पड़ गया. दर्द की एक तेज लहर उस के बदन में दौड़ गई, लेकिन वह रुका नहीं.

उस के जाने के बाद परमेश्वर ने संगीता की जम कर पिटाई की. संगीता ने परमेश्वर से किए की माफी मांग ली और आगे से कभी दोबारा ऐसा कदम न उठाने की कसम खाई. लेकिन एक बार विश्वास की दीवार में दरार आ जाए तो उसे किसी भी तरह भरा नहीं जा सकता.

ऐसे में परमेश्वर भला संगीता पर कैसे विश्वास करता? छोटू ने उस के परिवार की इज्जत से खेलने की जो हिमाकत की थी, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. इस आग में घी डालने का काम किया प्रमोद ने. वह परमेश्वर को छोटू से बदला लेने के लिए उकसाने लगा.

दरअसल प्रमोद यह सब सोचीसमझी साजिश के तहत कर रहा था. उस ने सोचा था कि परमेश्वर छोटू की हत्या कर देगा तो वह छोटू के परिजनों से मिल कर परमेश्वर को जेल भिजवा देगा. इस से छोटू और परमेश्वर नाम के दोनों कांटे उस के रास्ते से हट जाएंगे. फिर संगीता को पाने से उसे कोई नहीं रोक पाएगा.

आखिर प्रमोद ने परमेश्वर को छोटू को मार कर बदला लेने के लिए मना ही लिया. परमेश्वर के कहने पर इस साजिश में वह भी शामिल हो गया. परमेश्वर के कहने पर संगीता को भी इस साजिश में शामिल होना पड़ा. क्योंकि इस के अलावा उस के सामने कोई चारा नहीं था.

24 मार्च की रात परमेश्वर ने संगीता से कह कर छोटू को अपने घर बुलाया. परमेश्वर और प्रमोद घर में ही छिप कर बैठे थे. छोटू घर आया तो संगीता उस के पास बैठ कर मीठीमीठी बातें करने लगी. देर रात होने पर परमेश्वर और प्रमोद चुपचाप बाहर निकले और पीछे से छोटू के गले में अंगौछे का फंदा बना कर डाल कर पूरी ताकत से कसने लगे.

छोटू छूटने के लिए छटपटाने लगा. इस से वह जमीन पर गिर पड़ा. छोटू के जमीन पर गिरते ही संगीता ने उस के पैर कस कर पकड़ लिए तो परमेश्वर व प्रमोद ने पूरी ताकत से अंगौछे से छोटू का गला कस दिया. कुछ ही देर में उस का शरीर शांत हो गया. उस की मौत हो गई.

प्रमोद ने छोटू की जेब से उस का मोबाइल निकाल लिया. इस के बाद परमेश्वर और प्रमोद लाश को एक बोरी में भर कर पास के गांव मेदपुर में मुन्ना सिंह के खेत में ले जा कर डाल आए. बोरी को उन्होंने सरकंडे और घासफूस से ढक दिया था. दूसरे दिन छोटू दिखाई नहीं दिया तो घर वालों ने उस की तलाश शुरू की. लेकिन जब काफी कोशिशों के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चला तो 26 मार्च, 2014 को उस के पिता बाबूराम ने थाना संदना में उस की गुमशुदगी लिखा दी.

28 मार्च को मेदपुर में गांव के कुछ लोगों ने मुन्ना सिंह के खेत में एक लाश पड़ी देखी तो यह खबर आसपास के गांवों तक फैल गई. बाबूराम को पता चला तो वह भी अपने घर वालों के साथ वहां पहुंच गया. वहां पड़ी लाश देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. लोगों द्वारा सांत्वना देने के बाद सभी किसी तरह शांत हुए तो लाश की सूचना थाना संदना पुलिस को दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी राजकुमार सरोज पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. मृतक छोटू के गले में अगौंछा पड़ा हुआ था. गले में उस के कसे जाने के निशान भी मौजूद थे. इस से यही लगा कि उसी अंगौछे से उस की गला घोंट कर हत्या की गई थी. प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय सीतापुर भिजवा दिया.

थाने लौट कर थानाप्रभारी राजकुमार सरोज ने बाबूराम की लिखित तहरीर पर परमेश्वर और संगीता के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. दूसरी ओर इस की भनक लगते ही पकड़े जाने के डर से परमेश्वर संगीता के साथ फरार हो गया.

30 मार्च की सुबह 8 बजे थानाप्रभारी राजकुमार सरोज ने एक मुखबिर की सूचना पर संदना-मिसरिख रोड पर भरौना पुलिया के पास से परमेश्वर और संगीता को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब पूछताछ की गई तो दोनों ने छोटू की हत्या की पूरी कहानी बयां कर दी.

31 मार्च को सुबह साढ़े 7 बजे पुलिस ने प्रमोद को भी गोपालपुर चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया.

दरअसल, प्रमोद छोटू की हत्या करवाने के बाद छोटू के घर वालों से जा कर मिल गया था. उसी ने ही उन्हें बताया था कि छोटू और संगीता के नाजायज संबंध थे, जिस के बारे में परमेश्वर को पता चल गया था. इसी वजह से परमेश्वर ने संगीता के साथ मिल कर छोटू की हत्या की थी. प्रमोद ही लाश मिलने की जगह भी बाबूराम को ले गया था. बाबूराम ने उसी की बातों के आधार पर परमेश्वर और संगीता के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई थी. इतनी चालाकी के बावजूद भी प्रमोद खुद को कानून के शिकंजे से नहीं बचा सका और पकड़ा गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News : बदले की आग

Crime News : लखनऊ के थाना मडि़यांव के थानाप्रभारी रघुवीर सिंह को सुबहसुबह किसी ने फोन कर के सूचना दी कि ककौली में बड़ी खदान के पास एक कार में आग लगी है. सूचना मिलते ही रघुवीर सिंह ककौली की तरफ रवाना हो गए. थोड़ी ही देर में वह ककौली की बड़ी खदान के पास पहुंच गए. उन्होंने एक जगह भीड़ देखी तो समझ गए कि घटना वहीं घटी है. जब तक पुलिस वहां पहुंची, कार की आग बुझ चुकी थी. पुलिस ने देखा, कार के अंदर कोई भी सामान सलामत नहीं बचा था.

यहां तक कि कार की नंबर प्लेट का नंबर भी नहीं दिखाई दे रहा था. इसी से अंदाजा लगाया गया कि आग कितनी भीषण रही होगी. जली हुई कार के अंदर कुछ हड्डियां और 2 भागों में बंटी इंसान की एक खोपड़ी पड़ी थी. उन्हें देख कर थानाप्रभारी चौंके. हड्डियों और खोपड़ी से साफ लग रहा था कि कार के अंदर कोई इंसान भी जल गया था.

थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी थी. इस के बाद थोड़ी ही देर में क्षेत्राधिकारी (अलीगंज) अखिलेश नारायण सिंह फोरेंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. कार के अंदर जली अवस्था में एक छोटा गैस सिलेंडर और शराब की खाली बोतल भी पड़ी थी. फोरेंसिक टीम ने अपना काम निपटा लिया तो पुलिस ने अपनी जांच शुरू की.

कार की स्थिति देख कर पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि साजिशन इसे अंजाम दिया गया है. कार एक खुले मैदान में थी. आबादी वहां से कुछ दूरी पर थी. इसलिए हत्यारों ने वारदात को आसानी से अंजाम दे दिया था. यह 4 दिसंबर, 2013 की बात है.

कार में कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से जल कर खाक हो चुके व्यक्ति की शिनाख्त हो पाती. इसलिए पुलिस ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर बरामद हड्डियों और खोपड़ी को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया, जहां से हड्डियों को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया.

अब तक इस घटना की खबर जंगल की आग की तरह आसपास फैल चुकी थी. ककौली के ही रहने वाले सुरजीत यादव का छोटा भाई रंजीत यादव 3 दिसंबर को कार से कटरा पलटन छावनी एरिया में किसी शादी समारोह में शामिल होने के लिए घर से निकला था. उसे उसी रात को लौट आना था. लेकिन वह नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता हुई. यही वजह थी कि यह खबर सुनते ही सुरजीत बड़ी खदान की तरफ चल पड़ा. वहां पहुंच कर कार देखते ही वह समझ गया कि यह कार उसी की है.

सुरजीत ने थानाप्रभारी रघुवीर सिंह को अपने भाई के गायब होने की पूरी बात बता कर आशंका जताई कि कार में जल कर जो व्यक्ति मरा है, वह उस का भाई रंजीत हो सकता है. इस के बाद सुरजीत की तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रंजीत की हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुरजीत से बातचीत के बाद थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने तहकीकात शुरू की तो पता चला कि रंजीत शादी समारोह में जाने के लिए घर से निकला तो था, लेकिन समारोह में पहुंचा नहीं था. अब सोचने वाली बात यह थी कि वह शादी समारोह में नहीं पहुंचा तो गया कहां था. यह जानने के लिए उन्होंने मुखबिर लगा दिए. एक मुखबिर ने बताया कि 3 दिसंबर की शाम रंजीत को देशराज और अजय के साथ देखा गया था. देशराज हरिओमनगर में रह कर सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था. रंजीत उसी की सिक्योरिटी एजेंसी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था.

देशराज से पूछताछ के बाद ही सच्चाई का पता चल सकता था, इसलिए पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. 5 दिसंबर, 2013 को सुबह 5 बजे के करीब उसे रोशनाबाद चौराहे के पास से गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर जब देशराज से पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद उस ने रंजीत यादव को जिंदा जलाने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी.

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला देशराज लखनऊ के हरिओमनगर में एक सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था. वहीं पर उस ने एक मकान किराए पर ले रखा था. वह लखनऊ में अकेला रहता था, जबकि उस की पत्नी और बच्चे सीतापुर में रहते थे. समय मिलने पर वह अपने परिवार से मिलने सीतापुर जाता रहता था. उस की एजेंसी अच्छी चल रही थी. जिस से उसे हर महीने अच्छी आमदनी होती थी. कहते हैं, जब किसी के पास उस की सोच से ज्यादा पैसा आना शुरू हो जाता है तो कुछ लोगों में नएनए शौक पनप उठते हैं. देशराज के साथ भी यही हुआ. वह शराब और शबाब का शौकीन हो गया था.

वह पास के ही ककौली गांव भी आताजाता रहता था. वहीं पर एक दिन उस की नजर रानी नाम की एक औरत पर पड़ी तो वह उस पर मर मिटा.

रानी की अजीब ही कहानी थी. उस का विवाह उस उम्र में हुआ था, जब वह विवाह का मतलब ही नहीं जानती थी. नाबालिग अवस्था में ही वह 2 बेटों अजय, संजय और एक बेटी सीमा की मां बन गई थी. उसी बीच किसी वजह से उस के पति की मौत हो गई. पति का साया हटने से उस के ऊपर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब कमाने वाला ही न रहा तो उस के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया. मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे वह दो जून की रोटी का इंतजाम करने लगी.

देशराज ने उस की भोली सूरत देखी तो उसे लगा कि वह उसे जल्द ही पटा लेगा. रानी से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा. रानी देशराज के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी. बस इतना ही जानती थी कि वह पैसे वाला है. एक पड़ोसन से रानी ने देशराज के बारे में काफी कुछ जान लिया था. इस के बाद धीरेधीरे उस का झुकाव भी उस की तरफ होता गया.

एक दिन देशराज रानी के घर के सामने से जा रहा था तो वह घर की चौखट पर ही बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. मौका अच्छा देख कर देशराज बोल पड़ा, ‘‘रानी, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘आप के बारे में मैं ने जो कुछ सुन रखा था, आप उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हैं, जो दूसरों के दुख को बांटने की हिम्मत रखते हैं. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है?’’

‘‘रानी, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरे घर का कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, आप ने मेरे बारे में इतना सोचा है तो मैं भी आप के बारे में सोचूंगी. मैं आप के घर के काम कर दिया करूंगी.’’

इतना कह कर देशराज ने रानी के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो रानी ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. देशराज ने मौके का पूरा फायदा उठाया और रानी के हाथ पर 500 रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इस की जरूरत है. मेरी तरफ से इसे एडवांस समझ लेना.’’

रानी तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने देशराज द्वारा दिए गए पैसे अपने हाथ में दबा लिए. इस से देशराज की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज रानी से मिलने उस के घर पहुंचने लगा. वह जब भी उस के यहां जाता, रानी के बच्चों के लिए खानेपीने की कोई चीज जरूर ले जाता. कभीकभी वह रानी को पैसे भी देता. इस तरह वह रानी का खैरख्वाह बन गया.

रानी हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का कोई मांझी नहीं था. इसलिए देशराज के एहसान वह अपने ऊपर लादती चली गई. पैसे की वजह से उस की बेटी सीमा भी स्कूल नहीं जा रही थी. देशराज ने उस का दाखिला ही नहीं कराया, बल्कि उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने का वादा किया.

स्वार्थ की दीवार पर एहसान की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी. अब रानी भी देशराज का पूरा खयाल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना जाने नहीं देती थी. लेकिन देशराज के मन में तो रानी की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘रानी, अब तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर रानी उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. देशराज समझ गया कि वह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं रानी, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से रानी के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई. देशराज के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरतें पूरी कर के ही माने.

देशराज ने वर्षों बाद रानी की सोई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह के सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को अंगूठा दिखा दिया. अब वह देशराज की बन कर रहने का ख्वाब देखने लगी. देशराज और रानी के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे. रानी को देशराज के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसों की मांग करने लगी.

देशराज चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा रहा था, इसलिए उसे पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ रानी की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ देशराज उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. वर्षों बाद अब रानी की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

ककौली गांव में ही भल्लू का परिवार रहता था. पेशे से किसान भल्लू के 2 बेटे रंजीत, सुरजीत और 2 बेटियां कमला, विमला थीं. चारों में से अभी किसी की भी शादी नहीं हुई थी.

24 वर्षीय रंजीत और 22 वर्षीय सुरजीत, दोनों ही भाई देशराज की सिक्योरिटी एजेंसी में काम करते थे. रंजीत और देशराज की उम्र में काफी लंबा फासला था. देशराज की जवानी साथ छोड़ रही थी, जबकि रंजीत की जवानी पूरे चरम पर थी. वैसे भी वह कुंवारा था. देशराज और रंजीत के बीच बहुत अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

एक दिन शराब के नशे में देशराज ने रंजीत को अपने और रानी के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर रंजीत चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरे वाली बात थी. उसी के गांव की रानी अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह किसी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. रानी की हकीकत पता चलने के बाद जैसे उसे अपनी मुराद पूरी होती नजर आने लगी.

रंजीत के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब देशराज रानी के साथ रातें रंगीन कर सकता है, तो वह क्यों नहीं? वह देशराज की ब्याहता तो है नहीं.  अगले दिन रंजीत देशराज से मिला तो बोला, ‘‘रानी की देह में मुझे भी हिस्सा चाहिए, नहीं तो मैं तुम दोनों के संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

देशराज को रानी से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में उसे कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी रंजीत का मुंह बंद करना जरूरी था. इसलिए उस ने रानी को रंजीत की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो रानी, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

रानी के लिए जैसा देशराज था, वैसा ही रंजीत भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद देशराज ने यह बात रंजीत को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को रानी के घर पहुंच गया. एक ही गांव का होने की वजह से दोनों न केवल एकदूसरे को जानते थे, बल्कि उन में बातें भी होती थीं. रंजीत उसे भाभी कह कर बुलाता था.

सारी बातें चूंकि पहले ही तय थीं, सो दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने तो रानी को एक अलग ही तरह की सुखद अनूभूति हुई. रंजीत के कुंवारे बदन का जोश देशराज पर भारी पड़ने लगा. उस दिन के बाद तो वह अधिकतर रंजीत की बांहों में कैद होने लगी. रंजीत भी रानी की देह का दीवाना हो चुका था. इसलिए वह भी उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. रंजीत ने मारुति आल्टो कार ले रखी थी, जो उस के भाई सुरजीत के नाम पर थी. रंजीत रानी को अपनी कार में बैठा कर घुमाने ले जाने लगा. वह उसे रेस्टोरेंट वगैरह में ले जा कर खिलातापिलाता और गिफ्ट भी देता.

रानी की जिंदगी में रंजीत आया तो वह देशराज को भी और उस के एहसानों को भूलने लगी. रंजीत उस के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि उस ने देशराज से मिलनाजुलना तक छोड़ दिया. इस से देशराज को समझते देर नहीं लगी कि रानी रंजीत की वजह से उस से दूरी बना रही है. उसे यह बात अखरने लगी. रानी को फंसाने में सारी मेहनत उस ने की थी, जबकि रंजीत बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था.

इसी बात को ले कर रंजीत और देशराज में मनमुटाव रहने लगा. देशराज ने रंजीत से उस की कुछ जमीन खरीदी थी, जिस का करीब 5 लाख रुपया बाकी था. रंजीत जबतब देशराज से अपने पैसे मांगता रहता था. इस बात को ले कर रंजीत कई बार उसे जलील तक कर चुका था.

एक तरफ रंजीत ने देशराज की मौजमस्ती का साधन छीन लिया था तो दूसरी ओर उसे 5 लाख रुपए भी देने थे. इसलिए सोचविचार कर उस ने रंजीत को अपने रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने अपने यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे अजय पांडेय को भी लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया. अजय सीतापुर के कमलापुर थानाक्षेत्र के गांव रूदा का रहने वाला था.

3 दिसंबर की शाम को रंजीत को कटरा पलटन छावनी में एक वैवाहिक समारोह में जाना था. यह बात देशराज को पता थी. उस ने उसी दिन अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में सोचा. उस दिन देर शाम रंजीत घर से तैयार हो कर कार से कटरा पलटन जाने के लिए निकला. रास्ते में एक जगह उसे देशराज और अजय पांडेय मिल गए. वहां से वे हाइवे पर ट्रामा सेंटर के पास गए और शराब खरीद कर बड़ी खदान के पास आ गए.

तीनों ने कार के अंदर बैठ कर शराब पी. देशराज और अजय ने खुद कम शराब पी, जबकि रंजीत को ज्यादा पिलाई. जब रंजीत नशे में धुत हो गया तो दोनों ने उसे पिछली सीट पर लिटा दिया. कार में एक छोटा गैस सिलेंडर भरा रखा था, जिसे रंजीत घर से गैस भराने के लिए लाया था. साथ ही कार में एक बोतल पेट्रोल भी रखा था. देशराज ने कार के सभी शीशे चढ़ा कर गैस सिलेंडर की नौब खोल दी, जिस से तेजी से गैस रिसने लगी.

देशराज पेट्रोल की बोतल उठा कर कार से बाहर आ गया और कार के सभी दरवाजे बंद कर दिए. इस के बाद उस ने कार के ऊपर सारा पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. चूंकि कार के अंदर गैस भरी थी, इसलिए आग की लपटें तेजी से बाहर निकलीं. देशराज का चेहरा और हाथ जल गए. गैस और पेट्रोल की वजह से कार धूधू कर के जलने लगी. नशे में धुत अंदर लेटे रंजीत ने बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन वह नाकामयाब रहा. अपना काम कर के देशराज और अजय वहां से भाग खडे़ हुए.

देशराज मौके से तो भाग गया, लेकिन कानून से नहीं बच सका. इंसपेक्टर रघुवीर सिंह ने रानी से भी पूछताछ की. हत्या के इस मामले में उस की कोई भूमिका नहीं थी. अलबत्ता जब गांव वालों को यह पता चला कि हत्या की वजह रानी थी तो लोगों ने उस के साथ भी मारपीट की.

पुलिस ने देशराज को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा संकलन तक पुलिस अजय पांडेय को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.v Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित