Inspiring Hindi Stories: शमा को लगता था कि कोई आदमी गलत काम करता है तो उस की सजा उस की आने वाली पीढ़ी को भुगतनी पड़ती है. आखिर उस के साथ ऐसा क्या हुआ कि यह बात झूठी साबित हुई. मैं सुरैया खाला के मोहनजोदड़ो जैसे वजूद की खुदाई कर के उस में दबी भावनाओं के उस खजाने को बाहर निकालना चाहती थी, जो किसी सुरक्षित की हुई ममी की तरह उन के अंदर सोई हुई थी. समझ में नहीं आता था कि इतनी सुंदर, समझदार और हुनरमंद खाला अपनी सारी इच्छाओं, भावनाओं और खुशियों को मन के अंधेरे कोने में बंद कर के क्यों बैठी रह गईं? कोई भी अपने जीवन मे ंआने वाले उजाले को रोकने के लिए दीवार नहीं बनाता, तब खाला ने ऐसा क्यों किया? उन का वजूद दीवार नहीं, बल्कि एक चट्टान की तरह था, जिस से टकराटकरा कर जिंदगी की सारी खूबसूरती और खुशियां दम तोड़ गई थीं.

यूं तो खाला अपने लिए अंधेरा और दूसरों के लिए सूरज थीं. उन की मीठीमीठी आवाज, हंसमुख चेहरा और पवित्र मुसकान मुझे ही नहीं, मेरे परिवार के हर आदमी को दीवाना बनाए हुए थी. मैं ने जब से होश संभाला था, कभी भी किसी भी आदमी से उन के लिए बुराई का एक भी शब्द नहीं सुना था. पिताजी उन का बहुत आदर करते थे, मम्मी उन की इस हद तक प्रशंसक थीं कि घर में होने वाले हर अहम काम में उन की राय जरूर लेती थीं. यही हाल परिवार के अन्य लोगों का भी था. खाला ने शादी नहीं की थी. मम्मी से उन के बारे में मुझे यही मालूम हुआ था कि जवानी में वह बहुत सुंदर थीं. अपनी बुद्धिमानी, हाजिर जवाबी और हंसमुख स्वभाव की वजह से अपने समय में वह मोहल्ले की अन्य लड़कियों में अपनी विशिष्ट छाप रखती थीं.

उन के पिताजी के मेरे दादाजी से बहुत अच्छे संबंध थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. खाला मेरी सगी खाला नहीं थीं, वह मम्मी की दूर के रिश्ते से बहन लगती थीं, लेकिन वह मम्मी को सगी बहन की तरह मानती थीं और उन से बड़े प्रेम और आत्मीयता से पेश आती थीं. इस के बावजूद उन्होंने मम्मी को भी कभी नहीं बताया था कि उन्होंने शादी क्यों नहीं की थी? सुना है, शुरूशुरू में उन के विवाह से इनकार को उन का बचपना और जिद समझ कर अहमियत नहीं दी गई थी. लेकिन जब उन के इनकार की वजह से कई अच्छे रिश्ते हाथ से निकल गए तो उन के अम्मीअब्बू को चिंता हुई. बेटी का गौर से जायजा लिया तो उसे एकदम बदली हुई पाया. चंचलता, चपलता और जीवन की उमंग जैसे उन में रह ही नहीं गई थी.

मम्मी का कहना था कि 20-22 साल की उम्र में ही खाला ने स्वयं को गंभीरता, प्रौढ़ता और पवित्रता के एक ऐसे आवरण से ढक लिया था, जिसे उन के अम्मीअब्बू ही नहीं, पूरा परिवार मिल कर भी नहीं हटा सका. उन की दिलचस्पी धर्म की ओर बढ़ गई थी. पांचों वक्त की नमाज पढ़ने के अलावा वह धार्मिक ग्रंथों को पढ़ कर अपना समय बिताया करती थीं. उन के अम्मीअब्बू उन्हें बहुत प्यार करते थे, क्योंकि वह उन की एकलौती बेटी थीं. उन से बड़े 2 भाई थे, जो अपनी एकलौती बहन पर जान छिड़कते थे. इसी प्रेम का नतीजा था कि वे लोग जबरदस्ती अपना कोई निर्णय खाला पर नहीं थोप सके थे. इसी का नतीजा था कि हमेशाहमेशा के लिए वह अकेली रह गईं.

उन का चरित्र इतना पवित्र और साफ था कि कोई उन पर झूठा आरोप भी लगाने का साहस नहीं कर सकता था. सब ने यही मान लिया था कि उन का ध्यान मजहब की ओर हो गया है और वह उसी के सहारे अपना जीवन गुजारना चाहती हैं. इस बात को ध्यान में रख कर घर वालों की गुजारिश कम होती गई. उन के अम्मीअब्बू जब तक जीवित रहे, विवाह के लिए कोशिश करते रहे, लेकिन खाला की ‘ना’ को ‘हां’ नहीं करवा सके. खुद टूट कर मिट्टी में मिल गए. उन के जाने के बाद भाई बहन के लिए छाया बने. भाइयों की भी हार्दिक इच्छा थी कि उन की बहन विदा हो कर अपने घर चली जाए. मगर बहन तैयार नहीं हुई तो उन्होंने भी दबाव नहीं डाला और उन की इच्छा को स्वीकार कर लिया. वैसे तब तक खाला के सिर में चांदी के तार झिलमिलाने लगे थे और रिश्ते आने बंद हो गए थे.

जीवन तरहतरह के रूप बदलबदल कर आगे बढ़ता रहा. परिवार में आने वाली पीढ़ी ने जवान हो कर जिन खाला को देखा, वह 50-55 साल की एक मजहबी औरत थीं. खाला का घर हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं था. समझदार होते ही मैं खाला के घर पढ़ने जाने लगी थी. वह मोहल्ले के बहुत सारे बच्चों को पढ़ाती थीं. उन के दोनों भाई विदेश चले गए थे, लेकिन खाला को खर्च के लिए नियमित पैसे भेजते रहते थे. वैसे भी वह आर्थिक रूप से सुदृढ़ थीं. एक नौकरानी उन के घर काम करने आती थी. उस का नाम रेशमा था. इतनी उम्र होने के बाद भी उन के चेहरे पर कठोरता नहीं थी. बड़ीबड़ी आंखों में हर पल एक सच्चाई, पवित्रता का उजाला चमकता रहता था. सुर्ख व सफेद चेहरे पर इतनी पवित्रता होती थी कि देखने वाले की निगाह अपने आप झुक जाती थी. माथे पर सिजदे का निशान उन की इबादत का गवाह था.

उन का लहजा इतना मीठा था कि अगर कभी वह किसी गलत बात पर डांटती भी थीं तो बुरा नहीं लगता था. मैं ने खाला से बहुत कुछ सीखा था. छोटी थी तो स्कूल से आते ही उन के घर भाग जाती थी. लेकिन मैट्रिक करने के बाद जब मैं ने कालेज जौइन किया तो खाला के घर आनाजाना थोड़ा कम हो गया. फिर भी जब मुझे समय मिलता, मम्मी से पूछ कर खाला के यहां चली जाती थी. मैं जब भी उन के यहां जाती, उन्हें इबादत करते हुए पाती. मुझे देख कर वह अपनी इबादत से उठ कर मुझे अपने पास बिठा लेतीं और मुसकराते हुए शहद जैसे मीठे लहजे में पूछतीं, ‘‘शमा बेटी, मम्मी ठीक हैं?’’

वह हमेशा केवल मम्मी की ही खैरियत पूछती थीं. जवाब में मैं कहती, ‘‘खाला, मम्मी तो ठीक हैं, आप कैसी हैं?’’

वह मीठी आवाज में कहतीं, ‘‘मैं भी ठीक हूं.’’

इस के बाद मैं शुरू हो जाती. कालेज के किस्से, घर की छोटीछोटी बातों से ले कर और न जाने कहांकहां की कितनी बातें कर डालती. मेरी समस्या यह थी कि मम्मीपापा की एकलौती बेटी होने की वजह से घर में कोई बात करने वाला नहीं था. मम्मी मेरी बातों में कोई भी दिलचस्पी नहीं लेती थीं. पापा मम्मी की तुलना में मुझे ज्यादा चाहते थे, इसलिए मेरी बातें वह बड़े ध्यान से सुनते थे. लेकिन उन के पास सिर्फ छुट्टी वाले दिन ही समय होता था. आम दिनों में वह अपने बिजनैस में उलझे रहते थे. यही वजह थी कि मैं खाला के पास जाने के लिए बेचैन रहती थी और उन से खुल कर अपने दिल की हर बात कह डालती थी. जब तक उन से एकएक बात न बता देती, मुझे चैन न मिलता.

मेरी जिंदगी खाला के लिए आईने की तरह थी. उन की भी जिंदगी मेरे सामने खुली किताब की तरह थी. लेकिन मैं उस किताब का वह पन्ना पढ़ना चाहती थी, उस लड़की की कहानी जानना चाहती थी, जिस का नाम सुरैया था और अब उस सुरैया पर खाला का लेबल चिपका दिया गया था. अब बच्चाबूढ़ाजवान हर कोई उन्हें खाला कह कर पुकारने लगा था. अक्सर बात मेरे होंठों तक आतेआते रुक जाती थी. एक अनजाना सा रौब मुझ पर छा जाता और मैं खाला के गुजरे जीवन में झांकतेझांकते लौट आती. मैं सोचती थी कि जो राज खाला ने आज तक किसी पर नहीं खोला, किसी को हवा तक नहीं लगने दी, भला मुझे कल की लड़की को कैसे बता सकती थीं. लेकिन फिर विचार आता कि किसी बात की तह तक पहुंचने के लिए जिस लगन की आवश्यकता होती है, हो सकता है दूसरों में वह लगन न रही हो.

बहरहाल, कारण जो भी रहा हो, मैं दिनरात जब भी खाला से मिलती, मेरे दिल में यही इच्छा होती कि किसी तरह दरवाजा खुल जाए और मैं उस रहस्य को देख लूं, जिस ने उन के जीवन की धारा बदल दी थी. एक दिन बातोंबातों में अचानक मुझे एक बात सूझ गई. मैं ने कहा, ‘‘खाला मैं ने एक कहानी लिखी है.’’

‘‘कैसी कहानी?’’

‘‘वैसी ही कहानी, जैसी होती है. और आप को पता है मेरी वह कहानी एकदम सच्ची है.’’ मैं ने बड़े विश्वास से कहा.

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘शमा बेटा, तुम ने कहानी लिखी है. मगर सुनाने से पहले यह तो बता दो किस की है?’’

‘‘आप की कहानी है खाला.’’ मैं ने दिल कठोर कर के कहा.

खाला ने हैरानी से मुझे देखते हुए कहा, ‘‘मेरी कहानी, तुम क्या जानो मेरी कहानी. मेरी तो कोई कहानी ही नहीं है शमा बेटा. बिलकुल सीधीसादी, आकाश जैसी साफ नजर आने वाली है मेरी जिंदगी.’’

‘‘नहीं खाला, आप की जिंदगी आकाश की तरह जरूर है, लेकिन उस आकाश पर बादल का एक झीना सा टुकड़ा भी है और यह उसी बादल के टुकड़े के पीछे छिपी सच्चाई की कहानी है.’’

उन्होंने कुछ कहना चाहा, लेकिन मैं ने रोक दिया, ‘‘प्लीज खाला एक मिनट, मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए. उस के बाद मुझे जी भर कर डांट लीजिएगा या मार लीजिएगा. लेकिन आज मैं आप से वह बात जरूर कहूंगी, जिसे सोचसोच कर मेरा दिमाग फटने लगता है.

‘‘खाला हर दृश्य के पीछे कोई न कोई भूमिका जरूर होती है. आंसू आंखों में तभी आते हैं, जब दिल को कोई दुख पहुंचता है. हंसी भी होंठों तक बिना कारण नहीं पहुंचती. हर बात, हर काम का कोई न कोई कारण जरूर होता है. इसलिए मैं नहीं मानती कि आप ने जो यह संन्यास लिया है, यह बिना किसी वजह के है. मैं वही कारण जानना चाहती हूं.

‘‘आप से मुझे सिर्फ प्रेम ही नहीं, श्रद्धा भी है. और जब किसी से अत्यधिक श्रद्धा और अत्यंत प्रेम हो तो वह अपना ही रूप नजर आता है, मैं अपने रूप से पूर्ण परिचय प्राप्त करना चाहती हूं. आप ने मुझे बचपन से इतना प्यार दिया है कि कोई मां भी नहीं दे सकती. फिर आखिर आप मुझे वह राज, वह दुख मुझ से क्यों नहीं बांट सकतीं, जो आप अकेली ढो रही हैं?’’ मैं ने खाला के दोनों हाथ थाम कर कहा.

हंसीहंसी में शुरू होने वाली बात अत्यंत गंभीर मोड़ पर आ गई थी. खाला ने बड़ी गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम ने क्या कहानी लिखी है?’’

‘‘मैं ने बहुत सोचविचार कर कहानी लिखी है कि कुछ ऐसा ही हुआ होगा. एक लड़की, जो गुडि़या की तरह सुंदर थी. मां उसे संभालसंभाल कर रखती थीं और उस के लिए किसी प्यारे से गुड्डे की खोज में थीं कि अचानक गुडि़या का दिल एक बहुत सुंदर राजकुमार को देख कर धड़क उठा. वह गुडि़या उसी राजकुमार के स्वप्न देखने लगी. मुलाकातें हुईं. वादे किए गए, वचन दिए गए, कसमें खाई गईं, वह सब हुआ, जो इस जुनून में होता है.

‘‘लेकिन राजकुमार गुडि़या को छोड़ कर दूर देश चला गया, कभी वापस न आने के लिए, सब वादे, कसमें तोड़ कर. इस के बाद गुडि़या ने सब त्याग दिया. अपने दिल के सारे दरवाजे बंद कर के बैठ गई. किसी की भी दस्तक पर दरवाजा नहीं खोला. ऐसा ही हुआ था ना खाला जान.’’

मैं ने डरतेडरते खाला की ओर देखा. उन का चेहरा सफेद पड़ गया था. वह जैसे गहराई से बोलीं, ‘‘हां शमा बेटा, कुछ ऐसा ही हुआ था. मगर अंजाम तुम्हारी सोच से भी ज्यादा भयानक था. बहुत भयानक, बहुत तकलीफदेह.’’

‘‘अंजाम, क्या अंजाम हुआ था. मेरी कहानी पूरी कर दें खाला, प्लीज.’’ मैं ने उत्सुकता से कहा.

‘‘अंजाम यह हुआ था कि एक दिन गुडि़या घर में अकेली थी, अचानक वह आ गया, जिस के लिए गुडि़या के दिल में सब से ऊंचा स्थान था. लेकिन उस दिन वह इंसान नहीं, शैतान बन कर आया था. उस ने गुडि़या की नेकनामी और इज्जत को शोकेस से उतार कर कीचड़ में फेंक दिया. गुडि़या का उजला लिबास, सुंदर बाल और मासूम चेहरा, सब के सब गंदगी में लिथड़ गए.

‘‘वह मर्द था, अत्याचारी और जालिम, जबरदस्ती छीन लेने वाला लुटेरा, जबकि गुडि़या मासूम, कमजोर और अकेली लड़की थी. उस लड़की का सब कुछ छीन कर वह उस की जिंदगी से निकल गया और दूसरी लड़की से शादी कर ली. इस तरह कहानी खत्म हो गई. लड़की ने अपने रौंदे हुए शरीर को समेट कर खुद को तनहाइयों को सौंप दिया. क्योंकि वह धोखेबाज नहीं बनना चाहती थी. धोखा देना और धोखा खाना नहीं चाहती थी.’’

खालाजी खामोश हो गईं. मैं भी गूंगी बनी बैठी थी. थोड़ी देर बाद मैं संभल कर दुखी मन से बोली, ‘‘मुझे क्षमा कर दें खाला, मैं ने बेकार ही जिद कर के आप को दुखी कर दिया.’’

‘‘नहीं बेटी, सब संयोग से होता है. जिस के हिस्से में जितने दुख होते हैं, वे उसे मिल कर रहते हैं.’’ खाला उदास लहजे में बोलीं.

‘‘खाला, वह आदमी भी तो मांबहन वाला होगा, उस की जवान बेटी भी होगी? देख लीजिएगा, जो कुछ उस ने किया है, वही उस की औलाद या बहन के साथ होगा. बड़ेबूढ़े कहते हैं कि भाई या बाप का गुनाह उस की बहन या बेटी के साथ जरूर दोहराया जाता है. आप देख लीजिएगा उस की…’’

‘‘ना… बेटी ना, खाला ने मेरे मुंह पर हाथ रख कर नरमी से कहा, ‘‘पागल, यह सब सिर्फ कहने की बातें हैं. लोग बकवास करते हैं. अरे जो गुनाह करेगा, वही उस की सजा भोगेगा. किसी के गुनाह की सजा दूसरे को कैसे मिलेगी? ऐसा सोचना भी गुनाह है बेटी.’’

मैं उन की बात से सहमत नहीं थी, लेकिन उस समय बहस के मूड में नहीं थी, इसलिए बात बदल कर बोली, ‘‘अच्छा खाला, यह बताइए कि वह व्यक्ति मेरे परिचितों में से है, मेरा मतलब…?’’

खाला ने मुझे डांटते हुए कहा, ‘‘बस, अब इस बारे में कोई बात मत करना, मेरी इबादत का समय हो रहा है. अब तुम उधर बैठ कर किताबें पढ़ो.’’

खाला उठ खड़ी हुईं. मैं सिर झुका कर बुकशेल्फ के पास जा कर बैठ गई. मुझे पता था कि अब अगर मैं ने कुछ और कहा तो वह सचमुच नाराज हो जाएंगी. वैसे भी मेरे दिमाग की फांस निकल चुकी थी. फर्स्ट ईयर का अंतिम पेपर दे कर निकली तो दिमाग काफी हलकाफुलका था. कालेज से लौटते समय मैं घर जाने के बजाय सीधे खाला के घर चली गई, क्योंकि परीक्षा की वजह से लगभग 15-20 दिनों से मैं उन के घर नहीं गई थी. उन के आने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था, क्योंकि वह बहुत मजबूरी में ही घर से निकलती थीं. मैं ने जब से होश संभाला था, कभी उन्हें अपने घर की दहलीज पार करते नहीं देखा था. वह किसी और के यहां भी नहीं जाती थीं, इसलिए कुछ कहनासुनना बेकार था.

मैं खाला के यहां पहुंची तो वह सब्जी बना रही थीं. किताबें मेज पर रख कर मैं ने कहा, ‘‘खाला, मैं एक खुशखबरी लाई हूं.’’

‘‘एक खुशखबरी मेरे पास भी है.’’ खाला ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, फिर जल्दी से सुना दें.’’ मैं ने उन के हाथ से कलछी ले कर कहा.

‘‘पहले तुम सुनाओ.’’ उन्होंने कहा.

‘‘खाला, मेरे पेपर बहुत अच्छे, बल्कि शानदार और जोरदार हुए हैं. अब आप बताइए.’’ मैं ने सब्जी चलाते हुए उन की ओर देखा. वह बहुत खुश थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शमा बेटा, 11 तारीख को राहिल आ रहा है अमेरिका से.’’

‘‘शमीम चाचा का बेटा राहिल?’’ मेरी आंखों के सामने 12-13 साल का राहिल घूम गया. दुबलापतला, बांस की तरह लंबा, बेहद बेवकूफ. वह खाला के बड़े भाई शमीम का बेटा था. उस से छोटी बहन सबीला मेरी सहेली थी. मैं सबीला और राहिल मोहल्ले के दूसरे बच्चों के साथ खाला के बड़े से आंगन में खूब खेलते थे.

खाला की आवाज मुझे गुजरे वक्त से निकाल लाई. उन्होंने कहा, ‘‘शमा बेटा, रेशमा के साथ मेरे बराबर वाला कमरा ठीक करवा दो. उसे आने में 3 दिन ही रह गए हैं, पलक झपकते बीत जाएंगे. अभी परदे भी सीने हैं.’’

मैं उन के गले में बांहें डाल कर लाड से बोली, ‘‘माई स्वीट हार्ट खाला, आप चिंता न करें. मैं यह सब काम बहुत अच्छे से कर लूंगी, परदे भी सिल जाएंगे. कमरा भी ठीक हो जाएगा. हम अपनी प्यारी खाला के भतीजे का स्वागत भव्य तरीके से करेंगे, क्योंकि अब मैं फुरसत में हूं.’’

खाला ने सच ही कहा था, 3 दिन पलक झपकते बीत गए और वह पल आ गया, जब राहिल हमारे सामने बैठा कौफी पी रहा था. वह इतना बदल गया था कि पहचान में ही नहीं आ रहा था. बचपन के दुबलेपतले, लंबे बेवकूफ लड़के ने एक लंबेचौड़े, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्ति का रूप धारण कर लिया था. उस की आंखों में चंचलता और आश्चर्य बसा हुआ था. मुझे देख कर वह बनावटी हैरानी से बोला, ‘‘फूफी, यह रेशमा कौन सा टौनिक पीती रही, जो इतनी सुंदर नजर आ रही है?’’

‘‘अरे बावला हुआ है क्या, यह शमा है, जो तेरे साथ खेला करती थी.’’ खाला ने घूरते हुए कहा.

‘‘अच्छा तो तुम शमा हो?’’ उस ने गौर से मेरी ओर देखते हुए कहा.

‘‘जी हां, मैं शमा हूं. वही शमा जो बचपन में आप की पिटाई किया करती थी.’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

खाला जोर से हंसी.

‘‘यह पिटाई वाली बात तो मुझे याद नहीं है.’’ राहिल सिर खुजाते हुए बोला.

‘‘कोई बात नहीं, यहां रहेंगे तो धीरेधीरे सब याद आ जाएगा.’’ मैं ने धीरे से कहा.

राहिल ने मुसकरा कर कौफी का कप मुंह से लगा लिया.

‘‘अच्छा बच्चों, तुम बातें करो. मैं अभी आती हूं.’’ खाला ने उठते हुए कहा.

राहिल मुझ से और मैं राहिल से बहुत जल्दी घुलमिल गए. उस के आने से खाला के घर में मेरी दिलचस्पी के सामान बढ़ गए थे, क्योंकि अब मैं वहां कार्ड्स, कैरम, लूडो, बैडमिंटन और ऐसे ही छोटेमोटे बहुत से गेम खेल सकती थी. फिल्मों पर लंबीलंबी बहसें कर सकती थी. और सब से बढ़ कर अमेरिका के रहनसहन और समाज के बारे में काफी जानकारी हासिल कर सकती थी. कालेज बंद था, जिस से रातदिन बड़े दिलचस्प अंदाज में गुजर रहे थे. कभी राहिल मेरे घर आ जाता तो कभी मैं खाला के घर चली जाती. जिंदगी अचानक बहुत सुंदर और मजेदार हो गई थी. लेकिन धीरेधीरे राहिल के व्यवहार में बदलाव आने लगा. अब वह अकेले में कुछ रोमांटिक होने की कोशिश करने लगा. लेकिन मैं उस की इस कोशिश को हमेशा मजाक का रंग दे देती थी.

मैं सीरियस नहीं होना चाहती थी, क्योंकि मुझे पता था कि मम्मी कभी यह बात पसंद नहीं करेंगी. भले ही रिश्ता तय नहीं था, लेकिन मम्मी अपनी सहेली के लड़के समीर को बहुत पसंद करती थीं और उन की सहेली भी मुझे बहुत चाहती थीं. समीर की पसंदगी का भी मुझे पता था. वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बाहर गया हुआ था. उस के आने तक मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी. उस के बाद घर वाले हमें एक बंधन में बांध देंगे. यह सब मुझे पता था, इसलिए राहिल की आंखों में झांक कर उस की भावनाओं को पढ़ने की कोशिश मैं क्यों करती? मैं उस से मिलने के लिए केवल समय गुजारने के लिए बेचैन रहती थी. वह एक अच्छा दोस्त था. उस की बातें बड़ी दिलचस्प होती थीं.

वह मिमिक्री करने में भी एक्सपर्ट था. कभीकभी वह अपने अमेरिकी पड़ोसियों की मिमिक्री इस खूबी से करता कि हंसतेहंसते मेरी आंखों में पानी आ जाता. खाला पहले की ही तरह लंबीलंबी इबादतों में लगी रहती थीं. एक दिन मैं खाला के घर गई तो राहिल आम दिनों की अपेक्षा उस दिन कुछ गंभीर नजर आ रहा था. उस ने मेरे सामने बैठ कर कहा, ‘‘ऐ लड़की, तुम्हारे बारे में कुछ सुना है.’’

‘‘क्या सुन लिया मेरे बारे में?’’ मैं ने पूछा. मुझे उस की गंभीरता, बल्कि किसी हद तक दुख भरी शक्ल देखदेख कर हंसी आ रही थी.

‘‘देखो, प्लीज मेरा मजाक मत उड़ाओ. मुझे सचसच बताओ कि क्या तुम्हारा रिश्ता बचपन में ही तय हो गया था?’’ राहिल ने चिंतित हो कर पूछा.

अब मैं भी थोड़ा गंभीर हो गई. मैं ने कहा, ‘‘हां राहिल, तुम ने ठीक सुना है. मेरा रिश्ता बचपन में ही तय हो गया था. समीर पढ़ाई पूरी कर के आ जाए तो शादी भी हो जाएगी.’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम खुश हो इस रिश्ते से?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. अम्मीअब्बू का फैसला बेहतर होता है राहिल.’’ मैं ने सहजता से कहा.

कुछ देर तक वह गूंगा सा मेरे सामने बैठा मुझे देखता रहा, उस के बाद उठा और तेजी से कमरे से निकल गया.

मैं हैरानपरेशान सी अपने घर आ गई. मुझे राहिल की सोच पर गुस्सा भी आ रहा था और दुख भी हो रहा था. ये मर्द भी कितने अजीब होते हैं. अगर दोस्त या भाई समझ कर उन के निकट जाओ तो तुरंत गलत मतलब निकाल लेते हैं. जरूरी नहीं कि जिस से अंडरस्टैंडिंग हो, हंसीमजाक चलता हो, प्रेम भी उसी से किया जाए. मैं ने सोचा था कि छुट्टियों के दिन यूं ही हंसतेबोलते गुजर जाएंगे, लेकिन राहिल ने मूड खराब कर दिया. अगले 2-3 दिनों तक न तो राहिल हमारे घर आया और न ही मैं उस के यहां गई. चौथे दिन खाला ने रेशमा को भेज कर मुझे बुलवाया.

‘‘क्या बात है बेटा, तुम ने आना छोड़ दिया? राहिल भी तुम्हारे यहां नहीं जाता. तुम दोनों में लड़ाई हो गई क्या?’’  खाला ने प्यार से पूछा.

मैं ने सारी बातें उन्हें बता कर कहा, ‘‘अब आप ही बताइए खाला, एक तो मुझ से इस तरह की उलटीसीधी बातें करता है, फिर खुद ही रूठ जाता है.’’

‘‘कोई बात नहीं शमा बेटा, तुम चिंता न करो, मैं उसे समझा दूंगी. मेरा ख्याल है 1-2 दिन में वह खुद ही ठीक हो जाएगा.’’ खाला ने मुसकरा कर मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

न जाने खाला के समझाने का असर था या मेरी साफगोई का कि राहिल एक बार फिर पहले की ही तरह मुझ से मिलने लगा. जिंदगी एक बार फिर दिलचस्प और सुंदर हो गई. समय तेजी से गुजर रहा था. मेरा कालेज खुल गया और राहिल के जाने का दिन भी नजदीक आ गया. उस के जाने में केवल 3 दिन बाकी थे, जब मैं उस दिन शाम को खाला के घर जा पहुंची. उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.

मुझे लगा, खाला नमाज पढ़ रही होंगी और राहिल घर में नहीं होगा. मैं लौटने के बारे में सोच रही थी कि तभी राहिल ने कहा, ‘‘शमा, जरा इधर तो आना.’’

राहिल की आवाज सुन कर मैं पलटी. वह बैड पर अधलेटा कुछ पढ़ रहा था. मेरी ओर देखते हुए उस ने किताब बंद कर के कहा, ‘‘बड़े सही मौके पर आई हो शमा, मैं तुम्हारे ही यहां आने वाला था.’’

‘‘हैरानी हो रही है, तुम्हारे होते हुए यहां इतना सन्नाटा है.’’ मैं ने उस से किताब लेते हुए कहा.

‘‘दिल में भी सन्नाटा उतर आया है न?’’ वह धीरे से बोला.

मैं किताब पलटने लगी. वह अंगे्रजी की रोमांटिक नौवेल थी.

‘‘तुम यह नौवेल मत पढ़ो. अच्छे बच्चे खराब हो जाते हैं ऐसी किताबें पढ़ कर.’’ राहिल ने मेरे हाथ से किताब छीन कर कहा.

‘‘तभी तो तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.’’ मैं कमरे की अव्यवस्था को आलोचनात्मक नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘चलो तुम नहा लो, तब तक मैं तुम्हारा यह कमरा ठीक कर देती हूं.’’

मैं उठ कर किताबें शेल्फ में लगाने लगी. चंद पल खामोशी से गुजर गए. मैं ने पलट कर देखा, राहिल खड़ा था. मैं ने कहा, ‘‘तुम अभी गए नहीं?’’

आगे के शब्द मेरे मुंह में ही अटक गए. क्योंकि राहिल मेरे बगल में खड़ा मुझे विचित्र निगाहों से घूर रहा था. उस के चेहरे पर कोई ऐसी बात थी, जिस से डस्टर मेरे हाथ से गिर गया.

‘‘खुलेखुले बालों में तुम बहुत अच्छी लगती हो.’’ उस ने हाथ बढ़ा कर मेरे बालों को छूते हुए कहा.

‘‘यह क्या बदतमीजी है राहिल?’’ मैं ने उस का हाथ झटक दिया. तभी मेरी निगाह बंद दरवाजे पर पड़ी. जब मैं आई थी, तब दरवाजा खुला था. लेकिन इस समय दोनो पट बंद थे.

‘‘तुम घबरा क्यों रही हो?’’ राहिल मुझे ध्यान से देखते हुए बोला.

वह मेरी ओर बढ़ रहा था. जबकि मैं पीछे नहीं हट सकती थी, क्योंकि पीछे बुकशेल्फ थी.

‘‘हटो मेरे सामने से, मैं खाला के पास जा रही हूं.’’ मैं ने दोनों हाथ बढ़ा कर उसे हटाने की कोशिश की.

लेकिन रहिल ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर आवारगी से हंसते हुए कहा, ‘‘फूफी तो 2 घंटे बाद आएंगी. वह रेशमा के साथ डाक्टर के यहां गई हैं. इस समय घर में केवल मैं और तुम ही हैं. यहां तनहाई भी है.’’

उस की ये बातें सुन कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. मैं रुआंसी हो कर चीखी, ‘‘राहिल, मुझे घर जाने दो, छोड़ो मुझे. खाला, अरे ओ खाला…’’

यह जानते हुए भी कि खाला घर में नहीं हैं, मैं उन्हीं का नाम ले कर चीखने लगी. बेबसी आंसू बन कर मेरी आंखों में चमकने लगी थी. मैं दुआ कर रही थी. शायद दिल की गहराइयों से निकलने वाली दुआ स्वीकार हो गई. अचानक दरवाजा खुला. सामने खाला अपने चिरपरिचित सफेद लिबास में खड़ी थीं. उस क्षण मुझे वह आकाश से उतरने वाली देवी सी लगीं. दरवाजा खुलते ही राहिल की बांहों का घेरा खुद ही टूट गया था. मैं भाग कर खाला के पास गई और उन की छाती पर सिर रख कर सिसकने लगी. उन से लिपट कर यही लग रहा था, जैसे मैं ने किसी मजबूत किले में पनाह ले ली हो.

खाला को पहली बार मैं ने इतने क्रोध में देखा था. वह कांप रही थीं. उन का चेहरा लाल हो रहा था. वह गरज कर बोलीं, ‘‘पापी, थोड़ी देर के लिए तनहाई पाते ही इंसान से शैतान बन गया. अब तो तुझे अपना भतीजा कहते हुए भी मुझे शरम आएगी. मैं तुझे कितना ऊंचा और अच्छे किरदार का लड़का समझती थी, मगर वह भूल थी मेरी. आखिर तू भी तो मर्द है ना, औरत को कमजोर चिडि़या समझ कर झपटने वाला बाज, दूर हो जा मेरी नजरों से. मैं आज के बाद तेरे वजूद से घृणा करूंगी. अब कोई रिश्ता नहीं रहा तेरे और मेरे बीच.’’

राहिल सिर झुकाए कमरे से निकल गया.

‘‘खाला.’’ मेरे होंठ कांपे. हाथ से आंसू साफ करते हुए मैं ने उन की ओर देखा, ‘‘देख लीजिएगा खाला, राहिल ने जैसा मेरे साथ किया है, वैसा ही सबीला के साथ कोई करेगा, तब इसे अहसास होगा कि इज्जत और सम्मान क्या चीज होती है. उस की बहन की जिंदगी में भी ऐसा जरूर होगा.’’

खाला ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘मैं बद्दुआ नहीं देती, मगर यह तो दस्तूर है कि जैसी करनी वैसी भरनी. राहिल जैसा आवारा आदमी जब किसी मासूम लड़की को बरबाद कर सकता है तो उस की बहन या बेटी के आगे भी यह बरबादी जरूर आएगी. जो व्यक्ति किसी दूसरे की बहन या बेटी की इज्जत का ख्याल नहीं करता, उस की अपनी बहन या बेटी कैसे सुरक्षित रह सकती है.’’ मैं जोश में बोली.

‘‘यह सोच बिलकुल गलत है शमा और आज यह बात साबित भी हो गई कि यह सोच गलत है.’’ खाला ने सामने दीवार की ओर देखते हुए धीमे से कहा.

‘‘कैसे साबित हो गया खाला?’’ मैं उन के सामने जा खड़ी हुई. मेरी आंखों में हैरानी थी.

खाला ने मेरी ओर देखा. उन का चेहरा किसी अनदेखी आंच में धीरेधीरे सुलग रहा था और जब वह बोलीं तो उन की आवाज में चिंगारियां भरी हुईं थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शमा, तुम्हें याद होगा कि एक बार पहले भी मैं ने तुम से कहा था कि दुनिया में इतना अन्याय नहीं है कि किसी के पाप की सजा बरसों बाद उस की मासूम औलाद को भुगतना पड़े. आज तुम्हारी इज्जत एक शैतान से बच जाना, उसी का उदाहरण है.’’

मैं हैरान सी खाला को देख रही थी. उन की बात मेरी समझ में नहीं आई. वह चुप थीं, मगर उन के शब्द मेरे दिमाग में गूंज रहे थे. अचानक उन्होंने रहस्य से परदा हटा दिया था. सच्चाई सामने आ गई थी. मुझे उस लड़की की कहानी याद आ गई, जो खाला ने मेरे जोर देने पर सुनाई थी. खाला की बात का मतलब समझते ही मेरा सिर चकराने लगा था, नजरों के सामने अंधेरा छा गया था. मैं खाला की दफन सच्चाइयों को बाहर निकालना चाहती थी, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि वह सच्चाई तमाचे की तरह मेरे अपने चेहरे पर पड़ेगी. घबरा कर मैं ने दीवार का सहारा ले लिया और फटी आंखों से खाला को ताकने लगी, जिन की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे. मैं ने उन आंसुओं में एक छवि उभरते देखी.

सौम्य चेहरा, ममता लुटाती आंखें और सफेद दाढ़ी, ‘पापा.’ मेरे कांपते होंठों पर यह शब्द आ कर थम गया, जम गया. मुझे ऐसा लगा, जैसे इस पवित्र नाम में छिपी पवित्रता दम तोड़ रही है और खाला के आंसुओं में उभरने वाले पवित्र चेहरे पर कालिख भरा हाथ फेर दिया हो. Inspiring Hindi Stories

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...