UP News : गीता हुई भतीजे के प्यार में दीवानी

UP News : 28 वर्षीय गीता का पति प्रकाश कनौजिया मुंबई में था. वह मायके में रहते हुए 2 बच्चों की जिम्मेदारियां संभाले हुए थी. निजी जिंदगी जैसेतैसे तनहाई में गुजर रही थी. हमउम्र भतीजे विकास का जरा सा सहारा क्या मिला, उसी से दिल लगा बैठी. एक तरफ प्रेम की दीवानगी थी, अनैतिक संबंध और वासना का उफान था तो दूसरी तरफ पैसे की तंगी भी थी. फिर जो कुछ हुआ, उस में गेहूं के साथ घुन पिसने की कहावत चरितार्थ हो गई. क्या हुआ, कैसे हुआ, पढ़ें मांबेटी हत्याकांड की पूरी कहानी…

मलीहाबाद में मिर्जागंज बाजार स्थित एक चर्चित कपड़े की दुकान ‘प्रेम वस्त्रालय’ में बैठा विकास बारबार आ रहे फोन काल से परेशान हो गया था. त्यौहार का सीजन था. ग्राहकों की भीड़ थी. 2 दिन बाद ही करवाचौथ आने वाला था. वह ग्राहक को देखे या फिर फोन सुने. तंग आ कर उस ने मोबाइल ही स्विच औफ कर दिया.

दुकान पर जब ग्राहकों की भीड़ कम हुई, तब उस ने लंच करने के लिए अपने टिफिन का थैला उठाया और दुकान के पीछे छोटे से गोदाम में चला गया. लंच बौक्स खोला, साथ ही अपने मोबाइल को औन किया. मोबाइल औन होते ही स्क्रीन पर पर 22 मिस काल और 8 वाट्सऐप मैसेज चमकने लगे. ये सभी मिस्ड काल और मैसेज गीता के थे. कुछ घंटे पहले गीता ही लगातार उसे काल पर काल किए जा रही थी. काल करने के बजाए उस ने मैसेज पढऩा शुरू किया. विकास का मन कड़वा हो गया. सोचा खाना खाने के बाद या दुकान से छुट्टी होने पर गीता को काल कर लेगा. उस ने फटाफट 5-7 मिनट में लंच कर लिया.

लंच बौक्स संभालते वक्त गीता के 2 और वाट्सऐप मैसेज आ गए. मैसेज क्या थे, पूरी शिकायत थी. उस में धमकी भी शामिल थी. लिखा था, ”मैं आ रही हूं दुकान पर, देखती हूं कि तुम मुझे कैसे कपड़े नहीं दिलवाते हो?’’

मैसेज पढ़ कर वह भुनभुनाया, ”कहां से कपड़े दिलवाऊं? वैसे ही दुकान का मालिक पिछला बकाया मांग रहा है…’’

वह झुंझला उठा था. उस के मन में बेचैनी आ गई थी. सिर खुजलाता हुआ किसी तरह खुद को सहज बनाने की कोशिश की और दुकान पर जा बैठा. वहां ग्राहकों की भीड़ लग गई थी. वह जल्दीजल्दी उन्हें निपटाने के लिए अपने सहयोगी सेल्समैन का हाथ बंटाने लगा. अचानक उस की नजर सामने सड़क की ओर गई. उस ने गीता को दुकान में घुसते देखा तो सकपका गया. दुकान के एक किनारे चला गया. तब तक गीता वहां पहुंच गई. आते ही शिकायती लहजे में बोल पड़ी, ”तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया, कितनी बार काल किया.’’

”देख रही हो दुकान पर कितने ग्राहक हैं!’’ विकास बोला.

”तुम ने फोन ही बंद कर दिया, लाओ कहां है मेरी साड़ी?’’ गीता सीधे अपनी बात पर आ गई थी.

विकास रिश्ते में गीता का भतीजा था. वह कपड़े की दुकान में सेल्समैन की नौकरी करता था. उसे उस ने 2 दिन पहले ही करवाचौथ के लिए साड़ी लाने को कहा था. विकास गीता की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाया था.

”अब मुझे टुकुरटुकुर क्या देख रहे हो. साड़ी दो उस में फाल लगवानी है. मैचिंग ब्लाउज भी सिलवाना है. पेटीकोट भी बनवाना है.’’ गीता बोलने लगी.

”गीता, तुम अभी घर जाओ, मैं शाम को साड़ी लेता आऊंगा. पूजा का सामान भी ला दूंगा.’’ विकास बोला.

”यह तो तुम हफ्ते भर से बोल रहे हो, नहीं ले कर आए, तभी तो मुझे यहां आना पड़ा.’’ गीता बोली.

”अभी तुम जाओ, प्लीज तुम यहां से चली जाओ. दुकान पर बहुत काम है!’’ विकास बोला.

”ठीक है, जाती हूं. लेकिन साड़ी, पूजा का सामान ले कर आना और कुछ पैसे भी देना.’’ बोलती हुई गीता वहां से चली गई.

विकास ने राहत की सांस ली. कुछ पल वह मौन बना रहा. फिर काम में लग गया.

दुुकान से निकल कर गीता मायूस थी. वह सोचती हुई जा रही थी, विकास के व्यवहार में कितना बदलाव आ गया है. जो विकास एक समय में उस की हर बात को तुरंत मान लेता था, एक पैर पर खड़े हो कर उस का हर काम करने के लिए तैयार हो जाता था. लेकिन अब वह क्यों बदल गया है. उसे अपनी बदहाल और अभावग्रस्त जिंदगी को ले कर रोना आ रहा था. खुद को कोस रही थी. खुद से बातें करती घर जा रही थी, ‘आखिर वह किस अधिकार से करवाचौथ के लिए उस से साड़ी मांगने गई थी, जबकि उस का पति प्रकाश मुंबई में बैठा था. उस ने त्यौहार के मौके पर छुट्टी नहीं मिलने के कारण घर नहीं आने की खबर कर दी थी. उसी ने विकास से कपड़े आदि खरीदवाने को कहा था. इसी आस में वह विकास से उम्मीद लगा बैठी थी.’

प्रेमी के प्रति गीता के मन में क्यों हुई नफरत

दूसरी तरफ विकास दुकान में अपनी अंगुलियों पर हिसाब लगा रहा था. वह कर्ज के बोझ की चिंता में डूबा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि दुकान के मालिक से कैसे साड़ी और कुछ पैसे उधार देने की मांग करे. उस ने पहले से ही जो कर्ज ले रखा था, उसे चुकाने में कई महीने लग जाएंगे. वह और कर्ज लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. गीता ने करवाचौथ के मौके पर बेमन से आए दिन पहनने वाली साड़ी में ही चावल, बतासे और जल से चंद्रमा को अघ्र्य दे कर छोटीमोटी रस्में पूरी कर लीं. छलनी से पति की तसवीर को निहार लिया. चंद्रमा को प्रणाम किया और व्रत तोडऩे के बाद पास बैठी 6 वर्षीय बेटी दीपिका को प्रसाद खाने के लिए दे दिया.

आधी रात का वक्त होने को आया था. गीता भूखीप्यासी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी. अचानक दरवाजे पर किसी के आने की आहट सुनाई दी. उस ने कमरे के बाहर जा कर देखा. सामने विकास उसे देख कर मुसकरा रहा था. खाली हाथ उसे देख रहा था.

”अब यहां क्या लेने आया है, वह भी आधी रात को, चलो भागो यहां से. जाओ, आज के बाद से मेरे घर में कदम मत रखना. मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है.’’ गीता विकास को देखते ही आंखे तरेर कर बोली.

”गीता, मेरी मजबूरी तो समझो…’’ विकास के आगे बोलने से पहले ही गीता भद्ïदी सी गाली के साथ बोली, ”हरामी कहीं का, जब देखो मुंह उठाए मेरे यहां चला आता है और जब मुझे जरूरत होती है, तब मुंह फेर लेता है.’’

गीता लगातार गालियां दिए जा रही थी और विकास बेशरमी से सुनता रहा. वह अजीबोगरीब स्थिति में था. जबकि गीता उसे बोलने का मौका ही नहीं दे रही थी. वह ऐसे कर रही थी, जैसे उसे चबा ही जाएगी. भूखी शेरनी की तरह गुर्राने के कारण विकास के बोल नहीं निकल पा रहे थे. बोलते हुए उस के शब्द अटक रहे थे. बोलतेबोलते गीता एक झटके से मुड़ी और कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. बाहर विकास कुछ सेकेंड तक ठिठका रहा, फिर वापस अपने घर लौट आया. उधर गीता ने सौगंध ले ली कि वह भविष्य में विकास को यहां कभी आने नहीं देगी और न ही वह उस से कभी मिलेगी.

हुआ भी ऐसा ही. हफ्तों बीत गए, गीता ने विकास से मिलना तो दूर उसे फोन तक करना मुनासिब नहीं समझा. यहां तक कि नए साल की शुभकामनाओं का मैसेज तक नहीं दिया. जबकि विकास गीता को फोन करता था, लेकिन गीता उस का फोन कट कर देती थी. विकास के घर आने पर वह बेरुखी से तुरंत दरवाजा बंद कर लेती थी. विकास जब भी दुकान पर होता, तब उस की बारबार बाहर जाने वाली नजर गीता को तलाशती रहती थी. वह उसे एक बार मिल कर बता देना चाहता था कि उस की  मजबूरियां क्या हैं? वह उसे कितना प्यार करता है. उस पर कितना खर्च करता रहा है और उस कारण वह किस कदर कर्जदार बना हुआ है.

विकास को एक दिन संयोग से गीता बाजार में खरीदारी करती दिख गई. वह अपने पापा सिद्धनाथ, बेटे दीपांशु और बेटी के साथ थी. दरअसल, उस की ससुराल ईशापुर में है. पति प्रकाश मुंबई में प्राइवेट नौकरी करता है. लखनऊ से 6 किलोमीटर की दूरी पर उस का मायका दिलावर नगर है. उस के पापा सिद्धनाथ अकसर गीता की देखरेख करने और जरूरत की चीजें दिलवाने के लिए उस की ससुराल आया करते थे. उस दिन विकास गीता को बाजार में देख कर दुकान से तुरंत उतर कर पीछे से गीता के सामने जा कर खड़ा हो गया. उस वक्त गीता अकेली एक कौस्मेटिक्स की दुकान के सामने खड़ी थी. विकास गीता का हाथ पकड़ कर एक किनारे ले गया.

”क्या इरादा है तुम्हारा? क्यों तुम मेरे हाथों मरना चाहती हो?’’ विकास ने एक सांस में ही गीता को बहुत खरीखोटी सुना दी. उस ने यहां तक कह दिया, ”या तो तुम मेरी जान ले लो या मैं तुम्हारी जान ले लूं!’’ गीता मौके की नजाकत को देख कर विकास की बात को सुनती रही. कुछ देर में विकास खुद शांत हो गया. तब गीता बच्चों को साथ ले कर चुपचाप अपने घर चली गई.

दोहरे मर्डर से सकते में आई पुलिस

बात 17 जनवरी, 2025 की है. मलीहाबाद पुलिस के बीट प्रभारी एसआई अमन श्रीवास्तव को सुबहसुबह ईशापुर गांव में एक महिला और 6 वर्षीय बच्ची की मकान के अंदर हत्या किए जाने की सूचना मिली. उन्होंने इस की सूचना एसएचओ सतीशचंद्र साहू को दे दी. साहू ने भी फौरी काररवाई करते हुए अमन श्रीवास्तव को पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जाने के आदेश दिए.

थोड़ी देर में ही एसीपी अमोल मुरकर और पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. अमन श्रीवास्तव के साथ एसआई अश्वनी कुमार और विवेक कुमार के अलावा सिपाही गौरीशंकर यादव, उत्तम राठी और हैडकांस्टेबल कामरान खान भी ईशापुर पहुंच गए थे. घर के भीतर दोहरे हत्याकांड की मौके पर की गई जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि मृतका की उम्र 28 साल थी और उस का नाम गीता और 6 साल की बच्ची उस की बेटी दीपिका है. दोनों की हत्या धारदार हथियार से की गई थी. मौके पर गीता की गरदन कटी पाई गई.

पुलिस की जांच में रात 2 से 3 बजे के बीच घटना को अंजाम दिए जाने की आशंका जताई गई. पुलिस दल ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने जांच में गीता की ससुराल ईशापुर और मायका दिलावर नगर के बीच 2 केंद्र चिह्निïत किए. हत्यारे का पता लगाने के लिए सर्विलांस टीम और डौग स्क्वायड ने दिन में 12 बजे ईशापुर गांव जा कर जांच की. खोजी कुत्ता घर से 20 मीटर की दूरी तक लखनऊ रेलवे लाइनों के किनारे कुछ दूर गया और ठहर कर वापस लौट आया. पुलिस ने अनुमान लगाया कि रेलवे ट्रैक के सहारे किनारेकिनारे हमलावर आए होंगे और पैदल गीता के घर तक गए होंगे.

पुलिस ने इस हत्याकांड में किसी परिचित के शामिल होने की आशंका जताई. ग्रामीणों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि गीता के घर में ज्यादातर उस के परिवार के लोगों का ही आनाजाना था, जो ससुराल और मायके के होते थे. वैसे इस हत्याकांड की सूचना गीता के पापा सिद्धनाथ कनौजिया को भेज दी गई थी. वह लखनऊ में दिलावर नगर, रहीमाबाद थाने के रहने वाले हैं. उन की तहरीर पर मलीहाबाद थाने में धारा 103(1) बीएनएस के तहत केस दर्ज कर लिया गया.  इस की आगे की जांच के लिए डीसीपी (पश्चिम) विश्वजीत श्रीवास्तव द्वारा पुलिस की टीमों का गठन किया गया.

डीसीपी और एडीसीपी धनंजय कुमार कुशवाहा ने क्राइम टीम के सर्विलांस की टीम को इंसपेक्टर सतीशचंद्र साहू के साथ शामिल कर दिया. पुलिस कमिश्नर कार्यालय के इंसपेक्टर शिवानंद मिश्रा, एसआई आशुतोष पांडेय, शुभम पाराशर और हबीब के अलावा पवन, दिलीप व सूरज सिंह सिपाहियों को ले कर 5 टीमें बनाई गईं.

प्रकाश घर क्यों नहीं आ पाता था पत्नी से मिलन

सभी जांच टीमों की मेहनत ने 12 घंटे में रंग दिखा दिया. गीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स मालूम हो चुकी थी. उस के मुताबिक गीता के मोबाइल फोन पर एक साल के भीतर 1100 काल विकास के द्वारा किए गए थे. फिर क्या था, घटना के अगले दिन ही 17 जनवरी, 2025 को ईशापुर निवासी राजेश के बेटे विकास को मलीहाबाद में हाइवे के किनारे से पकड़ लिया गया.

विकास से थाने में सख्ती से पूछताछ की जाने लगी. जल्द ही उस ने स्वीकार कर लिया कि वह गीता से बहुत प्यार करता था, लेकिन कुछ दिनों से उस की बेरुखी से तंग आ गया था. उस के बाद वारदात की तह में छिपी कहानी इस तरह बताई—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अंतर्गत 24 राजमार्ग के किनारे मलीहाबाद से 3 किलोमीटर की दूरी पर ईशापुर गांव में प्रकाश कनौजिया का परिवार रहता है. प्रकाश के पापा का नाम रामखिलावन था. उस के घर की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. गांव में रह कर गुजरबसर होनी काफी मुश्किल थी. इस कारण रामखिलावन का भाई रामविलास सन 2010 में गांव से मुंबई चला गया था. किसी तरह वहां कामधंधा किया. बाद में उस ने वहां एक लौंड्री की दुकान खोल ली. जल्द ही लौंड्री का व्यवसाय चलने लगा. धंधा जमते ही रामविलास अपने बुजुर्ग मम्मीपापा के गुजरबसर के लिए हर महीने कुछ पैसा भेजने लगा. रामखिलावन ने रामविलास के कहने पर 2014 में प्रकाश का विवाह दिलावर नगर निवासी सिद्धनाथ कनौजिया की बेटी गीता के साथ करवा दिया.

शादी के बाद गीता अपनी ससुराल ईशापुर आ गई. प्रकाश और गीता का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से शुरू हुआ. शादी के एक साल बाद गीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दीपांशु रखा गया. रामविलास के मुंबई जाने के बाद घर के खर्चों की जिम्मेदारी प्रकाश पर आ गई. प्रकाश चाहता था कि वह भी कोई कामधंधा शुरू करे. लेकिन उस के सामने मजबूरी थी. वह पत्नी और मम्मीपापा को अकेला नहीं छोडऩा चाहता था. शादी के 3 साल बाद गीता ने एक बेटी को जन्म दिया. प्रकाश और गीता को अब दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी. गीता प्रकाश पर मुंबई जा कर रामविलास के साथ ही कोई कामधंधा करने के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बारे में गीता ने अपने ससुर से भी बात कर उन्हें राजी कर लिया. साल 2018 की होली के मौके पर रामविलास अपने घर आया, तब गीता ने उस से भी प्रकाश को साथ ले जाने की विनती की. वह खुशीखुशी तैयार हो गया. होली के बाद अप्रैल, 2018 के पहले सप्ताह में प्रकाश भी मुंबई के उपनगर कल्याण पहुंच गया. रामविलास ने उस के लिए एक छोटी खोली किराए पर ले ली और उस की भी लौंड्री की दुकान खुलवा दी. प्रकाश ने खूब मेहनत की और अपने मधुर व्यवहार से धंधा जमा लिया. किंतु इस बीच वह गीता और बच्चों को एकदम से भूल गया. हालांकि वह चाहता था कि कमाई से पैसा जमा करे और दीवाली के मौके पर ढेर सारा पैसा ले कर घर जाए.

हालांकि करीब 6 महीने बाद प्रकाश पैसा देने के लिए एक रात के लिए अपने गांव  आया और अगले दिन ही मुंबई लौट गया. गीता को पति का इस तरह जल्दी में जाना अच्छा नहीं लगा, लेकिन वह उसे चाह कर भी नहीं रोक पाई. धीरेधीरे एक साल बीतने को आया. प्रकाश गांव नहीं आ पाया. साल 2020 के आते ही कोरोना काल आ गया. लौकडाउन लग गया. वह चाह कर भी गांव नहीं जा पाया.

2022 के फरवरी-मार्च में होली पर प्रकाश ने एक बार फिर गांव ईशापुर आने की तैयारी की. लेकिन दोबारा लौकडाउन के चलते वह मुंबई में ही फंसा रहा. पत्नी और बच्चों से मिलने नहीं आ सका. इस का असर उस के धंधे पर भी हुआ. कमाई बहुत कम हो गई.

चाची का विकास पर कैसे आया दिल

गीता को भी घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया. प्रकाश ने उसे जो पैसे भेजे थे, वे सब खर्च हो गए थे. गीता को अपने परिवार के भरणपोषण के लिए परेशान रहने लगी. इसी बीच प्रकाश ने अपने रिश्ते के चचेरे भाई राजेश के बेटे विकास से मदद मांगी. उसे  अपनी चाची गीता और दोनों बच्चों का खयाल रखने का अनुरोध किया. इस बारे में प्रकाश ने गीता को भी फोन पर बता दिया कि वह बेझिझक विकास से किसी भी तरह की मदद ले सकती है. उस के बाद से विकास और गीता का मिलनाजुलना होने लगा था. विकास गीता से मिलने घर पर बेरोकटोक आने लगा था. उन के बीच चाचीभतीजे का रिश्ता था, इस वजह से पासपड़ोस और मायके के लोगों को उन के मिलनेजुलने पर कोई आपत्ति नहीं थी.

चाचा प्रकाश से किए वायदे को विकास अच्छी तरह निभा रहा था. विकास जब भी काम से फुरसत पाता, चाची गीता से मिलने चला आता था. दोनों घंटों साथ बैठ कर बातें करते रहते थे. विकास उसे जरूरत की चीजें भी ला कर दे दिया करता था. गरमी के दिन थे. रात के 9 बज रहे थे. धीरेधीरे रात पैर पसार रही थी. गीता के दोनों बच्चे आंगन में पड़ी चारपाई पर सो रहे थे. सन्नाटे में घर के अंदर दोनों अकेले थे. विकास जब अपने घर को चलने को हुआ तो गीता ने कहा कि आज रात को खाना यहीं खा कर यहीं सो जाओ.

विकास गीता की बात सुन कर कुछ ठिठक सा गया. जेहन में एक विचार कौंध गया. लालटेन की मध्यम रोशनी में वह गौर से गीता के गोरे चेहरे को निहारने लगा. तभी विकास का कुंवारापन जाग उठा था. वह 25 साल का नवयुवक था. काफी देर तक उस का चेहरा निहारने के बाद बोला, ”आज मुझे घर जाने दो. मैं कल शाम को अपनी मां से यहां रुकने के लिए कह कर आऊंगा.’’

विकास की बात सुन कर गीता मुसकराई और बोली, ”कल जरूर आ कर रुकना, तुम्हें मेरी कसम है.’’

गीता के आग्रह के साथ बोलने और कसम देने की बात कहने पर विकास का दिलदिमाग और भी झनझना उठा था. वह उस की चाहत को समझ गया था. जातेजाते बोला, ”यहीं आ कर रात को रुकूंगा और खाना भी यहीं खाऊंगा.’’

विकास मलीहाबाद में एक कपड़े की दुकान में नौकरी करता था और रोजाना की तरह बाजार से शाम को अपने घर वापस लौटते समय अकसर गीता से बातें करने के लिए उस के पास चला जाता था. उस का मन धीरेधीरे उस की आकर्षित होने लगा था.

एक झटके में टूट गई मर्यादा की दीवार

अगले दिन विकास पूरी तैयारी के साथ गीता के पास गया. उस ने नौनवेज खरीदा. इस के अलावा शराब की एक बोतल भी खरीद कर रख ली. ये चीजें दिन में बाइक से गीता के घर जा कर दे आया और रात में आने को बोल गया. रात के 10 बजे विकास गीता के घर पहुंचा. गीता खाना खाने का इंतजार कर रही थी. विकास ने खाना खाने के पहले शराब के 2 पैग लेने की योजना बनाई. जब तक गीता खाना गर्म करने रसोई में गई, तब तक विकास ने शराब के पैग पीने शुरू कर दिए.

जब खाना ले कर गीता आई, तब उस ने नशे की हालत में गीता को भी जबरन 2 पैग शराब पिला दी. उस रात दोनों पर शराब का नशा इस कदर हावी हो गया कि वे आपस में छेड़छाड़ और नोकझोंक करते हुए वासना की आग में तप गए. एक बार जब उन के बीच रिश्ते की पवित्रता पर धूल पड़ी, तब उस के बाद वे इस के लिए अपनी मनमरजी के मालिक बन गए. गीता को पति से यौनसुख नहीं मिल पा रहा था. विकास भी कुंवारा था. इस में गीता ने खुले विचार से विकास का साथ दिया. बदले में विकास उस की जरूरतों को पूरा करने लगा.

प्रकाश का पिछले साल जनवरी के महीने में लखनऊ आना हुआ. एक सप्ताह घर पर रहने के बाद वह मुंबई वापस चला गया. पति के मुंबई चले जाने के बाद गीता अपने मायके में आ कर रहने लगी थी. इस बार अक्तूबर, 2024 से अपने मायके नहीं आई थी. वह ससुराल में अलग से बने बाग के मकान में अपने बच्चों के साथ रहने चली गई थी. वह मकान रामविलास और प्रकाश ने मिल कर बनवाया था. इसी मकान के आगे बाग की सीमा खत्म हो जाती थी और उस से सटी रेलवे लाइन गुजरती थी. गीता और विकास अकसर वहीं मिलने लगे थे.

गीता उस से मोहब्बत करने लगी थी. दिन निकलने के पहले विकास गीता के घर से चला जाता था और झटपट दोपहर का खाना ले कर मलीहाबाद दुकान पर रवाना हो जाता था. वह रोजाना शाम को जब भी अपने गांव वापस लौटता तो वह गीता के पास जा कर के प्यारमोहब्बत की बातों में मशगूल हो जाता था. विकास जब भी बाजार से घर आता तो गीता के बच्चे उस की जेब में हाथ डाल देते थे. गीता के पास बेटी दीपिका ही रहती थी, जबकि बेटा दीपांशु अपने नाना के पास था.

विकास और गीता की मोहब्बत काफी गहरी हो चुकी थी. वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाते थे. विकास गीता की आशनाई में अपनी नौकरी की कमाई उस पर खर्च करने लगा था. जबकि विकास के परिवार में उस के अलावा 2 बहनें और थीं. पूरे परिवार का खर्च उस की नौकरी पर निर्भर था. फेमिली वालों से उस की हरकतें छिपी न रहीं. उन्होंने  विकास को गीता के मकडज़ाल से मुक्त करवाने की योजना बनानी शुरू की. वे उसे लखनऊ से दूर कहीं दूसरे शहर भेजने की योजना बनाने लगे. विकास गीता पर पैसे खर्च करने के चक्कर में कर्जदार बन गया था.

अपने पापा के कहने पर 2023 में वह साढ़े 3 लाख रुपया खर्च कर कुवैत चला गया. इस बीच गीता अकेली रह गई. विकास के कुवैत में नौकरी करते कुल 2 महीने ही बीते थे कि गीता अपने फोन से उसे रोजाना रात को फोन कर देती थी. फोन पर वह अपना दुखड़ा सुनाने लगती थी. उसे ईशापुर लौटने के लिए कहती थी. गीता के लगातार जिद करने पर केवल 2 महीने में ही वह कुवैत से वापस आ गया. कुवैत से लखनऊ वापस आने के कारण विकास लगभग 4 लाख रुपए का कर्जदार हो चुका था. गीता की जिद पर विकास जब अपने गांव वापस आया तो वह कपड़ों के उसी शोरूम पर जा कर फिर से नौकरी करने लगा.

अक्तूबर, 2024 में करवाचौथ से 2 दिन पहले विकास गीता से मिलने गया था. गीता ने त्यौहार पर आने वाले खर्च की फरमाइशें सुना दीं. साथ ही उस ने बताया कि उस के चाचा प्रकाश इस मौके पर भी नहीं आ रहे हैं, इसलिए पूजा का सामान और साड़ी उसे ही ला कर देनी होगी. उस के सारे कपड़े और गहने मायके में ही रखे हैं. इस पर विकास ने आश्वासन दिया, साथ ही पैसा नहीं होने की मजबूरी बताई. उस ने कहा कि वह अभी बहुत कर्ज में डूबा हुआ है. इसी आश्वासन को पा कर गीता करवाचौथ के दिन विकास से रुपया लेने के लिए दुकान पर गई थी.

विकास के व्यवहार से नाराज हो कर गीता ने उस सेे संबंध तोडऩे का मन बना लिया था. वह विकास को फोन करना भी बंद कर चुकी थी. गीता की इस बेरुखी से तंग आ कर विकास दिनरात परेशान रहने लगा था.

एक के चक्कर में ऐसे हुए 2 मर्डर

15 जनवरी, 2025 की रात को विकास ने अपनी प्रेमिका चाची गीता को फोन किया और उस से मिलने के लिए कहा तो गीता ने फोन पर दोटूक उत्तर देते हुए कहा, ”मैं तुम्हारी ब्याहता थोड़े हूं. मेरे यहां अब मत आना, तुम मेरा बोझ नहीं उठा सकते हो तो तुम्हें कोई हक नहीं है. मुझ से अब कोई उम्मीद मत रखो.’’ इतना कह कर गीता ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

विकास फोन पर गीता की बातें सुनने के बाद बुरी तरह तिलमिला कर रह गया. उस ने गीता को सबक सिखाने के लिए योजना बना डाली. रात के करीब एक बजे विकास गीता के घर के पास लगे बिजली के खंभे के सहारे चढ़ कर उस के मकान के अंदर घुस गया. गीता के कमरे के सामने पहुंच कर उस ने गीता से कमरा खोलने के लिए कहा. विकास की आवाज पहचान गई थी, इसलिए उस ने अंदर से ही कहा कि वह वहां से चला जाए. करीब आधा घंटा बीतने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो विकास किचन के अंदर जा कर बरतनों को इधरउधर फेंकने लगा. ऐसा करते हुए उसे एक बड़ा चाकू हाथ लग गया. उस ने उसे अपने पास छिपा लिया.

इसी दौरान गीता बरतनों की आवाज सुन कर बाहर आई और उसे डांटने लगी. पहले से ही तिलमिलाया हुआ विकास गुस्से में बोला,  ”आज मैं अपना और तुम्हारा दुख दूर किए देता हूं.’’

इतना कह कर विकास ने हाथ में लिए डंडे से गीता के सिर पर हमला कर दिया. वह उस पर तब तक हमला करता रहा, जब तक कि वह बुरी तरह बेहोश नहीं हो गई. गीता  के जमीन पर गिरते ही वह अपनी कमर में खोंसे चाकू से उस की गरदन रेतने लगा. इसी बीच गीता की बेटी दीपिका जाग गई. उस ने विकास को इतने गुस्से में पहली बार देखा था. वह तेजी से रोने लगी. विकास ने उसे पकड़ कर चाकू से उस की भी हत्या कर दी. आंगन में रखी बाल्टी में हाथपैर धोने के बाद वह खंभे के सहारे ही मकान से उतर कर बाहर आया और रेलवे लाइन के किनारे होता हुआ फरार हो गया.

विकास ने पुलिस को हत्या में प्रयोग की गई बाइक नंबर यूपी32 जीयू1335, चाकू और कुछ गहने, 760 रुपए नकद बरामद करवा दिए. उस ने पुलिस टीम के सामने स्वीकार किया कि वह गीता से बहुत प्यार करता था और उस के ऊपर गीता की खातिर 4 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उस ने कर्जा उतारने के लिए ही उस ने गीता के गहने चुराने का प्लान भी बनाया था.

विकास से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

 

 

प्रेम प्रतिशोध : गोली पर लिखा प्यार

कैलामऊ गांव के 2 युवक राजू और कमल पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रहे थे. इस के लिए वह रोजाना सुबह के समय दौड़ लगाते थे. 16 अप्रैल को सुबह करीब पौने 5 बजे दोनों दौड़ लगाने घर से निकले तो उन्होंने गांव के बाहर एक खेत में 2 लाशें पड़ी देखीं.

लाशें देखते ही दोनों दौड़ते हुए गांव आए और उन्हें जो भी मिला उसे 2 लाशें पड़ी होने की सूचना दी. इस के बाद गांव के लोग खेत की तरफ दौड़ पड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. गांव वालों ने लाशें देखीं तो तुरंत पहचान गए. दोनों रामकिशोर की बेटियां संध्या और शालू थीं.

किसी ने यह खबर रामकिशोर को दी तो बेटियों की हत्या की खबर सुनते ही रामकिशोर परेशान हो गया. उस के घर में चीखपुकार मच गई. वह जल्दी ही अपनी पत्नी जयदेवी के साथ घटनास्थल पहुंच गया. दोनों बेटियों के शव देख कर मियांबीवी फूटफूट कर रोने लगे. जितेंद्र भी अपनी बहनों की लाशें देख कर दहाड़ मार कर रोने लगा. यह बात 16 अप्रैल प्रात: 5 बजे की है.

सूरज का उजाला फैला तो 2 सगी बहनों की हत्या की खबर कैलामऊ के आसपास के गांवों में भी फैल गई. कुछ ही देर बाद वहां देखने वालों का तांता लग गया. इसी बीच किसी ने फोन द्वारा यह सूचना थाना बसरेहर पुलिस को दे दी. सुबहसुबह डबल मर्डर की खबर पा कर थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को यह सूचना दे दी. फिर वह पुलिस टीम के साथ कैलामऊ गांव पहुंच गए.

उन्होंने घटनास्थल को पीले फीते से कवर किया ताकि साक्ष्यों से छेड़छाड़ न हो सके. उसी समय एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी, एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. भारी भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि दोनों बहनों की हत्या गोली मार कर की गई थी. दोनों के सीने में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. मृतका संध्या की उम्र 18 वर्ष के आस पास थी, जबकि उस की छोटी बहन शालू की उम्र लगभग 15 वर्ष थी. शवों के पास ही शराब की खाली बोतल, तमंचा, 5 जीवित कारतूस, खाली खोखे, टौर्च, चप्पलें और एक मोबाइल पड़ा था.

फोरैंसिक टीम ने शराब की बोतल, तमंचा तथा टौर्च से फिंगरप्रिंट लिए. इस के साथ ही अन्य साक्ष्य भी जुटाए गए. पुलिस ने घटनास्थल पर मिली सभी चीजें बरामद कर लीं. पुलिस अधिकारियों ने मृतक बहनों के पिता रामकिशोर से घटना से संबंध में जानना चाहा तो वह फफक पड़ा.

उस ने बताया कि बीती रात वह फसलों की रखवाली के लिए खेतों पर था. सुबह उस का बेटा जितेंद्र रोतेपीटते आया और बताया कि संध्या व शालू को किसी ने मार डाला है. इस के बाद वह पत्नी को घर से ले कर घटनास्थल पर पहुंचा.

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बेटियों की हत्या किस ने और क्यों की?’’ एसएसपी ने रामकिशोर से पूछा.

‘‘साहब, हम गरीब किसान हैं. हमारी किसी से न तो कोई रंजिश है और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा है. पता नहीं मेरी बच्चियों ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्हें मार डाला.’’

इस के बाद उन्होंने रामकिशोर के बेटे जितेंद्र से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर सोमवार की शाम मैं घर पर ही था. देर शाम संध्या और शालू मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकली थीं. काफी देर तक जब वे घर वापस नहीं आईं तो मैं ने मां से पूछा. मां ने कहा कि पड़ोस में रहने वाले ज्ञान सिंह के यहां तिलक का कार्यक्रम है. शायद दोनों वहीं चली गई होंगी. इस के बाद मैं सो गया. सुबह गांव में हल्ला मचा तो पता चला कि संध्या और शालू की हत्या हो गई है.

प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने जब शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने की काररवाई शुरू की तो लोगों ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल लोगों को शक था कि संध्या और शालू को दरिंदों ने पहले हवस का शिकार बनाया और भेद न खुले इसलिए दोनों को मार डाला. भीड़ ने धमकी भरे लहजे में पुलिस अधिकारियों से कहा कि जब तक क्षेत्रीय विधायक, सांसद या जिलाधिकारी घटनास्थल पर नहीं आते, तब तक दोनों शवों को नहीं उठने देंगे.

पुलिस ने मामले को शांत करने के लिए  सदर विधायक व जिलाधिकारी को पूरे मामले की जानकारी दी और मौके पर आने का अनुरोध किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए सदर विधायक सरिता भदौरिया और पूर्व सांसद रघुराज शाक्य मौके पर पहुंच गए. सरिता भदौरिया ने उत्तेजित लोगों को शांत कराया तथा आश्वासन दिया कि पीडि़त परिवार को जो भी सरकारी मदद संभव होगी दिलवाई जाएगी. एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी ने भी आश्वासन दिया कि हत्यारों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

विधायक सरिता भदौरिया के आश्वासन पर लोग शांत हो गए. इस के बाद एसएसपी ने आननफानन में मृतका संध्या और शालू के शव का पंचनामा भरवाया और दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस, इटावा भिजवा दिया. ऐहतियात के तौर पर उन्होंने गांव में पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

थाना पुलिस ने रामकिशोर की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने कई संदिग्ध अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की.

मृतका संध्या तथा शालू के शवों का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल ने किया. इस पैनल में डा. वीरेंद्र सिंह, डा. पीयूष तिवारी तथा डा. पल्लवी दीक्षित सम्मलित रहीं. उन्होंने रिपोर्ट में बताया कि दोनों बहनों की मौत 16 से 18 घंटे पहले सीने में गोलियां लगने से हुई थी.

दोनों के मरने में 3 से 5 मिनट का अंतर रहा होगा. गोलियां दिल के आरपार हो गई थीं. शरीर और नाजुक अंगों पर चोटों के निशान नहीं पाए गए. किशोरियों और हत्यारों के बीच हाथापाई के निशान भी नहीं मिले. अर्थात उन दोनों के साथ बलात्कार नहीं किया गया था.

एसएसपी अशोक त्रिपाठी ने इस डबल मर्डर के खुलासे के लिए एक सशक्त पुलिस टीम गठित की. इस टीम में 4 तेजतर्रार इंस्पेक्टरों, 6 सबइंसपेक्टरों तथा एक दरजन कांसटेबिलों को सम्मिलित किया गया. सहयेग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगाया गया. एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम ने हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक बहनों के मातापिता व भाई के बयान दर्ज किए. भाई जितेंद्र के बयानों से पुलिस टीम को पता चला कि पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला विनीत उर्फ जीतू आवारा किस्म का युवक है. घटना से लगभग 3 महीने पहले उस ने संध्या से छेड़खानी की थी. विरोध पर उस ने उसे सबक सिखाने की धमकी दी थी.

विनीत उर्फ  जीतू पुलिस टीम के रडार पर आया तो पुलिस ने उसे तलाशना शुरू किया. लेकिन वह घर से फरार था. उस का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया गया था. साथ ही उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से पता चला कि 15 अप्रैल, 2019 की शाम 7 बजे उस ने जिस फोन नंबर पर बात की थी. वह नंबर कैलाशमऊ के आनंद का है.

पुलिस टीम ने आंनद को पकड़ लिया. घटनास्थल से पुलिस को संध्या का जो मोबाइल फोन मिला था, पुलिस ने उसे चैक किया, तो उस में आनंद का नंबर मिला. इस से पुलिस टीम समझ गई कि आनंद ने ही फोन कर संध्या को खेत पर बुलाया था.

पुलिस ने थाने ले जा कर आनंद से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह इस दोहरे हत्याकांड में शामिल था. उस ने बताया कि हत्या का मुख्य किरदार विनीत उर्फ जीतू है. उस ने अपने दोस्त अतिवीर और रंजीत के साथ मिल कर हत्या की योजना बनाई थी. बाद में वह भी उस में शामिल हो गया था.

पुलिस टीम ने आनंद से कहा कि  वह जीतू से फोन पर बात करे, जिस से उस की लोकेशन ट्रेस हो जाए. पुलिस के दबाव में आनंद ने जीतू से बात की तो उस ने बताया कि वह सिविल लाइंस इटावा में है. लेकिन देर रात अपने घर नगरा पहुंच जाएगा. यह पता चलते ही पुलिस टीम ने रात में दबिश दे कर विनीत उर्फ जीतू को पकड़ लिया.

इस के बाद पुलिस ने उस के दोस्त अतिवीर व रंजीत को हिरासत में ले लिया. इन सब का आमना सामना थाने में हुआ तो सभी के चेहरे उतर गए. बाद में सभी ने जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने हत्याओं का परदाफाश कर अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी को दी. त्रिपाठी ने आननफानन में प्रैसवार्ता की और हत्यारों को मीडिया के सामने पेश कर डबल मर्डर के बारे में सब कुछ बता दिया.

चूंकि सभी ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने विनीत उर्फ जीतू आनंद, रंजीत व अतिवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बसरेहर थाना अंतर्गत एक गांव है कैलामऊ. इसी गांव में रामकिशोर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयदेवी के अलावा 3 बेटियां तथा एक बेटा जितेंद्र था.

रामकिशोर के पास थोड़ी सी खेती की जमीन थी. उसी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. रामकिशोर की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी. लेकिन समाज के लोग उस की बहुत इज्जत करते थे. वह बिरादरी की पंचायत का मुखिया था. रामकिशोर अपनी बड़ी बेटी का विवाह औरैया जिले में कर चुका था. रामकिशोर की 3 बेटियों में संध्या मंझली बेटी थी. वह अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह खूबसरत तो थी ही.

संध्या जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और पढ़ने में तेज थी. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के मांबाप ने उसे आगे पढ़ाने से साफ  मना कर दिया था. मजबूरन उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इस के बाद वह मां के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी.

संध्या पर वैसे तो गांव के कई युवक फिदा थे लेकिन पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला 23 वर्षीय विनीत उर्फ  जीतू उस के नजदीक आने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला था. विनीत के पिता धनाढ्य किसान थे. गांव में उन का दबदबा था. विनीत आवारा किस्म का युवक था. वह बाप की कमाई पर ऐश करता था. उस ने गांव के कई हमउम्र लड़कों से दोस्ती गांठ रखी थी.

संध्या के भाई जितेंद्र से भी विनीत उर्फ जीतू की जानपहचान थी. कभीकभी दोनों के बीच गपशप भी हो जाती थी. ऐसे ही एक रोज सुबह को विनीत संध्या के घर आया और घर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

फिर संध्या के भाई जितेंद्र से उस की बातचीत होने लगी. संध्या उस समय चबूतरे पर झाड़ू लगा रही थी. उस की नजरें विनीत से टकरा जातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख संध्या नजरें झुका लेती.

विनीत के मन में आया कि वह उस के सौंदर्य की जी भर कर प्रशंसा करे, मगर संकोच के झीने परदे ने उस के होंठों को हिलने से रोक लिया. हालांकि उस के मनमस्तिष्क में जज्बातों की खुशनुमा हवाएं काफी देर तक हिलोरें लेती रहीं.

विनीत के मनमस्तिष्क में इधर सुखद विचारों का मंथन चल रहा था. उधर संध्या के दिलोदिमाग में एक अलग तरह की हलचल मची हुई थी. उन्हीं विचारों में खोई संध्या भाई के कहने पर किचन में गई और 2 कप चाय बना कर ले आई.

उस रोज संध्या के हाथों की बनी चाय पीते समय विनीत की आंखें लगातार उस के शवाबी जिस्म का जायजा लेती रहीं. दिन के उजाले में ही विनीत की आंखें उस के हुस्न के दरिया में डूब जाने के सपने देखने लगीं.

इस  मुलाकात में संध्या की मोहब्बत की आस में उस पर ऐसी दीवानगी सवार हुई कि वह उसे अपनी आंखों का काजल बना बैठा. कुछ ही दिनों में आंखों से उठ कर संध्या ने विनीत की रूह में आशियाना बना लिया. विनीत जैसा ही हाल संध्या का भी था. रात को वह सोने के लिए लेटती तो विनीत का मुसकराता चेहरा पलकों में आ कर छुप जाता.

संध्या का स्वयं के प्रति रुझान देख कर विनीत की उस के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. जब भी उसे संध्या की याद आती वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच जाता. विनीत को देख कर संध्या का चेहरा खिल उठता. वह उस का दिल खोल कर स्वागत करती.

प्रेम, बंधन में स्वतंत्रता तो देता है, लेकिन सामाजिक वर्जनाएं अप्रत्यक्ष रूप से दीवार की तरह खड़ी होने लगती हैं. जिन्हें प्रेमी युगल अकसर नजरअंदाज कर भावनाओं में बहते रहते हैं. बाद में उस के परिणाम बडे़ भयावह होते है.

वैसे प्यार पाना व देना हर व्यक्ति चाहता है. यह बहार हर व्यक्ति की जिंदगी में जरूर आती है, लेकिन कुछ की जिंदगी में यह आ कर ठहर जाती है. जबकि कुछ की जिंदगी से बिना स्पर्श किए निकल जाती है. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन की जिंदगी इस बहार से गुलजार होती है, ठहरती भी है.

यही हाल संध्या और विनीत की जिंदगी का भी हुआ. जब दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो संध्या के मातापिता को शक हुआ. वह विनीत के घर पर आने का विरोध करने लगे लेकिन संध्या और विनीत ने मिलनाजुलना बंद नहीं किया. अंतत: संध्या की हरकतों से परेशान उस के मातापिता उस से सख्ती से पेश आने लगे.

एक रोज शाम के धुंधलके में संध्या के भाई जितेंद्र ने संध्या व विनीत को गांव के बाहर बगीचे में हंसतेबतियाते देख लिया. उस ने उस समय तो संध्या से कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ देर बाद जब वह घर लौटी तो जितेंद्र ने उस की पिटाई की फिर गुस्से से बोला, ‘‘संध्या, तू क्यों घर की इज्जत नीलाम कर रही है. उस आवारा, गुंडे जीतू से तुझे इश्क फरमाते शरम नहीं आती. कान खोल कर सुन ले, आज के बाद तू उस से नहीं मिलेगी.’’

उस रोज भाई की पिटाई से आहत संध्या काफी देर तक सिसकती रही. उस के बाद मां जयदेवी कमरे में आई और उस के आंसुआें को पोंछते हुए बोली, ‘‘बेटी, तेरा भाई, तेरा दुश्मन नहीं है. उस ने तुझ से जो भी कहा, वह सही है. जीतू आवारा लड़का है. ऐसे लड़कों से दूर रहने में ही भलाई है.’’

भाई की डांटडपट और मां की नसीहत ने संध्या के मन में हलचल पैदा कर दी. वह सोच ने लगी कि शायद मां और भाई सही कह रहे हैं. अत: उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह विनीत के झांसे में नहीं आएगी और उससे दूरी बना कर रखेगी. संध्या ने जो सोचा उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया. अब वह विनीत से कन्नी काटने लगी.

संध्या ने जब विनीत से बातचीत बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने किसी तरह संध्या से मुलाकात की और पूछा कि वह उस से दूर क्यों भाग रही है. इस पर संध्या ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘जीतू, हमारे तुम्हारे विचार मेल नहीं खाते. हमारी तुम्हारी नहीं निभ सकती. इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

संध्या की बात सुन कर विनीत सन्न रह गया. उस के प्रेम संबंधों को संध्या ने एक ही झटके में तोड़ दिया. इस के पहले कि वह गुस्से से बेकाबू होता, संध्या वहां से चली गई. विनीत उसे देखता रह गया.

घर पहुंचने पर विनीत को लगने लगा कि संध्या ने उस के प्रेम को यों ही नहीं ठुकराया, जरूर उस के जीवन में कोई दूसरा आ गया होगा. वह दूसरा कौन है वह इस का पता लगाने में जुट गया. एक रोज संध्या उसे अपने खेत पर दिखी. कुछ देर बाद वह घर वापस जाने लगी तो विनीत ने उस का रास्ता रोक लिया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे जीवन में कोई दूसरा आ गया है?’’

संध्या ने तपाक से कहा, ‘‘हां, आ गया है. तुम्हें क्या करना है?’’ संध्या ने उस से साफ  कह दिया कि अब उस का उस से कोई वास्ता नहीं है. वह उस के रास्ते में न आए.

संध्या के तीखे तेवरों से विनीत पूरी तरह  टूट गया. उस के मन को गहरी चोट लगी. विनीत के 3 जिगरी दोस्त थे आंनद, रंजीत व अतिवीर. ये तीनों कैलामऊ गांव में ही रहते थे.

दोस्तों को जब उस की हालत का पता चला तो उन्होंने विनीत को समझाया कि तेरे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. जीवन में ऐेसे मोड़ तो आते रहते हैं. लेकिन विनीत अपना आत्मविश्वास खोता जा रहा था और प्रतिशोध की आग में जलने लगा था.

विनीत अब जब भी दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता, तो संध्या की वेवफाई की चर्चा जरूर होती थी. बात वेवफाई से शुरू हो कर प्रतिशोध पर खत्म होती थी. चूंकि उस के दोस्तों को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, सो वह विनीत की हां में हां मिलाते थे और उस का साथ देने का वादा करते थे.

जनवरी 2019 के प्रथम सप्ताह में एक रोज विनीत अपने दोस्तों रंजीत, आंनद व अतिवीर के साथ गांव के बाहर बगीचे में बैठा शराब पी रहा था. तभी उसे खेत की तरफ से आती संध्या दिखाई दी. वह खेत से टोकरी में आलू ले कर घर लौट रही थी. संध्या को देख कर विनीत अपने दोस्तों के साथ उस के पास पहुंचा और उस से छेड़खानी करने लगा.

विनीत के साथ 3 दोस्तों को देख कर संध्या घबरा गई. वह आलू की टोकरी फेंक कर सिर पर पैर रख कर घर की ओर भागी. लेकिन उन शैतानों ने उसे पुन: पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों के साथ छेड़खानी करने लगे. संध्या चीखनेचिल्लाने लगी.

उस की चीख सुन कर खेतों पर काम कर रही महिलाएं व पुरुष उस की तरफ  दौडे़ तब वे चारों उसे छोड़ कर भाग निकले.

संध्या आंसू बहाते घर पहुंची और अपने साथ हुई छेड़खानी की बात अपने मांबाप व भाई को बताई. घर वालों ने उन लोगों से झगड़ना उचित नहीं समझा और वे संध्या को ले कर थाना बसरेहर पहुंच गए. उन्होंने संध्या की तरफ  से विनीत व उस के साथियों के विरुद्ध छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए विनीत, रंजीत आनंद व अतिवीर को पकड़ लिया और जेल भेज दिया. एक सप्ताह के अंदर ही उन की जमानत हो गई. इस घटना के बाद संध्या डरी सी रहने लगी. अब वह जहां भी जाती अपनी छोटी बहन शालू को साथ ले जाती थी.

इधर जमानत पर आने के बाद विनीत को पता चला कि संध्या अब गांव के संजय नामक युवक से प्यार करती है. यह पता चलते ही विनीत प्रेम प्रतिशेध के लिए उतावला रहने लगा. उस ने निश्चय किया कि संध्या यदि उस की न हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

उस ने प्रतिशोध की बात दोस्तों से साझा की तो वह विनीत का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद विनीत व उस के दोस्तों ने संध्या की हत्या की योजना बनाई. साथ ही तमंचा व कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

15 अप्रैल, 2019 की शाम योजना के अनुसार विनीत उर्फ  जीतू शराब की बोतल ले कर अपने दोस्त आनंद, रंजीत व अतिवीर के साथ गांव के बाहर खेत पर पहुंचा. विनीत लोडिड तमंचा कमर में खोंसे था. वहां बैठ कर चारों शराब पीने लगे. जब अंधेरा घिरने लगा तब विनीत ने आंनद के फोन से संध्या को फोन कराया.

विनीत ने संध्या को फोन उस समय खरीद कर दिया था जब दोनों का प्रेम संबंध चल रहा था. आनंद ने संध्या से बात की और कहा कि वह और विनीत उस से माफी मांगना चाहते हैं. दोनों छेड़खानी के मुकदमे में उससे समझौता करना चाहते हैं.

संध्या ने पहले तो इनकार कर दिया, लेकिन जब आनंद ने उस से पैर छू कर माफी मांगने की बात कहीं तो वह राजी हो गई. इस के बाद उस ने अपनी छोटी बहन शालू को साथ लिया और मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

अंधेरा घिर आया था, सो उस ने टौर्च भी ले ली थी. छोटी बहन शालू के साथ संध्या गांव के बाहर खेत पर पहुंची. वहां आनंद और विनीत के अलावा रंजीत व अतिवीर भी थे.

खेत पर विनीत व आनंद ने मुकदमे से संबंधित कोई चर्चा नहीं की और न ही माफी मांगी. उलटे विनीत उसे धमकाने लगा कि वह संजय से रिश्ता तोड़ कर उस से रिश्ता जोडे़. इस पर संध्या ने कहा कि वह उस से नफरत करती है. इसलिए इस बारे में उस से बात न करे.

यह सुनते ही विनीत का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने कहा, ‘‘संध्या यदि तू मेरी नहीं हुई तो तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’ कहते हुए विनीत ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और संध्या पर 2 फायर झोंक दिए. गोली संध्या के दिल को चीरती हुई पार निकल गई. संध्या खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर पड़ी और उस ने दम तोड़ दिया.

बड़ी बहन की मौत का मंजर देख कर शालू की घिग्घी बंध गई. फिर भी वह भागी. लेकिन रंजीत और अतिवीर ने उसे यह कह कर दबोच लिया कि यह तो संध्या की हत्या की गवाह है. यह बच गई तो हम सब पकडे़ जाएंगे.

अत: आनंद ने विनीत के हाथ से तमंचा ले कर शालू के सीने पर भी 2 गोलियां दाग दीं. शालू भी खून से लथपथ हो कर संध्या के शव के पास धराशायी हो गई और दम तोड़ दिया. दोनों बहनों की हत्या करने के बाद विनीत तमंचा, कारतूस आदि मौके पर छोड़ कर साथियों सहित भाग गया.

इधर रात में संध्या और शालू के घर वालों ने उन की तलाश नहीं की. इस की वजह यह थी कि पड़ोस में ज्ञान सिंह के यहां तिलक समारोह था. घर वालों ने सोचा कि दोनों बहनें वहीं चली गई होंगी. लेकिन सुबह जब शोर मचा, तब घर वालों को जानकारी हुई. पुलिस ने अभियुक्त विनीत उर्फ  जीतू, रंजीत, आनंद तथा अतिवीर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर में रखी तलवार की धार : वृद्ध दंपति की हत्या

4 अप्रैल की सुलगती दुपहरी में राजस्थान के जिला बूंदी के कलेक्ट्रेट में विजय कुमार पहली बार आया था. उस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास रही होगी. वह सेना में नायब सूबेदार था. फौजी होने के बावजूद कलेक्टर ममता शर्मा के चेंबर में प्रवेश करते ही पता नहीं क्यों उस पर घबराहट हावी होने लगी थी और दिल बैठने लगा था. जिला कलेक्टर के सामने खड़े होते ही उस के पैर कांपने लगे और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया.

आखिरकार हिम्मत जुटा कर अपना परिचय देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, 8 जनवरी, 2018 को मेरे मातापिता की निर्दयता से हत्या कर दी गई. पुलिस न तो आज तक उन के शवों को बरामद कर पाई और न ही इस मामले में निष्पक्षता से जांच की गई.

‘‘मैं पुलिस के बड़े अधिकारियों से भी मिल चुका हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हत्यारे छुट्टे घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, वे इस कदर बेखौफ हैं कि मुझे ओर मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देते हैं.’’ कहतेकहते विजय कुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे.

हिचकियां लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैडम, मेरे सैनिक होने पर धिक्कार है. कानून की बेरुखी और जलालत झेलने से तो अच्छा है कि मैं अपने परिवार समेत आत्महत्या कर लूं. ऐसी जिंदगी से तो मौत भली. हम तो बस अब इच्छामृत्यु की अनुमति चाहते हैं.’’

यह कहते हुए उस ने जिला कलेक्टर की तरफ एक दरख्वास्त बढ़ा दी जो महामहिम राष्ट्रपति को लिखी गई थी. उस दरख्वास्त में विजय कुमार ने परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग की थी.

जिला कलेक्टर ममता शर्मा ने एक बार सरसरी तौर पर सामने खड़े युवक का जायजा लिया. उन की हैरानी का पारावार नहीं था. लेकिन जिस तरह पस्ती की हालत में वह अटपटी मांग कर रहा था, उस के तेवरों ने एक पल को तो उन्हें हिला कर रख दिया था.

वह बोलीं, ‘‘कैसे फौजी हो तुम? जानते हो इच्छामृत्यु की कामना कायर करते हैं, फौजी नहीं. हौसला रखो और पूरा वाकया मुझे एक कागज पर लिख कर दो. याद रखो कानून से ऊपर कोई नहीं है. तफ्तीश में हजार अड़चनें हो सकती हैं. गुत्थी सुलझाने में वक्त लग सकता है. तुम लिख कर दो, मैं इसे देखती हूं.’’

अब तक सामान्य हो चुके विजय कुमार ने सहमति में सिर हिलाया और कलेक्टर के चेंबर से बाहर निकल गया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक फौजी का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा उठ गया और वह अपने परिवार समेत इच्छामृत्यु की मांग करने लगा. सब कुछ जानने के लिए हमें एक साल पहले लौटना होगा.

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      विजय कुमार

विजय कुमार राजस्थान के बूंदी जिले के लाखेरी कस्बे का रहने वाला है. लाखेरी स्टेशन के नजदीक ही उस का पुश्तैनी मकान है. जहां उस के मातापिता हजारीलाल और कैलाशीबाई स्थाई रूप से रहते थे. हजारीलाल के लाखेरी स्थित मकान में नवलकिशोर नामक किराएदार भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की बाजार में किराने की दुकान थी.

हजारीलाल के 2 मकान कोटा में थे. कोटा के रायपुरा स्थित निधि विहार कालोनी में उन के बेटे विजय कुमार का परिवार रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी ममता और 2 छोटे बच्चों के अलावा उस का छोटा भाई हरिओम था.

विजय सेना में नायब सूबेदार था और उस की तैनाती चाइना बौर्डर पर थी. विजय छुट्टियों में ही घर आ पाता था. हजारीलाल का मझला बेटा विनोद इंदौर की किसी इंडस्ट्री में गार्ड लगा हुआ था. हजारीलाल का एक और मकान रायपुरा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर डीसीएम चौराहे पर स्थित था.

इस तिमंजिला मकान में दूसरी मंजिल हजारीलाल ने अपने लिए रख रखी थी. वह अपनी पत्नी के साथ 10-15 दिनों में कोटा आते रहते थे ताकि बेटे के परिवार की खैर खबर ले सकें. अलबत्ता वे रुकते इसी मकान में थे.

उस मकान का नीचे वाला तल उन्होंने बैंक औफ बड़ौदा को किराए पर दिया हुआ था, जहां बैंक का एटीएम भी था. तीसरी मंजिल पर करोली के मानाखोर का घनश्याम मीणा पत्नी राजकुमारी के साथ किराए पर रह रहा था.

हजारीलाल और घनश्याम मीणा का परिवार एकदूसरे से काफी घुलामिला था. घनश्याम पर तो हजारीलाल का अटूट भरोसा था. दंपति जब कोटा में होते थे तो अकसर उन का वक्त बेटे विजय कुमार के परिवार के साथ ही गुजरता था. लेकिन रात को वह अपने डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर पर लौट आते थे.

अलबत्ता दोनों के बीच टेलीफोन द्वारा संपर्क बराबर बना रहता था. हजारीलाल वक्त गुजारने के लिए प्रौपर्टी के धंधे से भी जुडे़ हुए थे. इस धंधे में अंगद नामक युवक उन का मददगार बना हुआ था.

अंगद रायपुरा स्थित विजय कुमार के मकान के पीछे ही रहता था. बिहार का रहने वाला अंगद विजय कुमार का अच्छा वाकिफदार था. ट्यूशन से गुजारा करने वाला अंगद विजय के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था. अंगद प्रौपर्टी के कारोबार के मामले में पारखी था इसलिए हजारीलाल भी उस का लोहा मानते थे.

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               हजारीलाल और उनकी पत्नी कैलाशीबाई

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच अजीबोगरीब घटना ने ठहरे हुए पानी में जैसे हलचल मचा दी. दरअसल हजारीलाल की पत्नी कैलाशीबाई की अलमारी से उन का मंगलसूत्र गायब हो गया. हीराजडि़त मंगलसूत्र काफी कीमती था.

लिहाजा घर के सभी लोग परेशान हो गए. कैलाशीबाई का रोना भी वाजिब था. घर में बाहर का कोई शख्स आया नहीं था औैर किराएदार घनश्याम पर उन्हें इतना भरोसा था कि उस से पूछना भी हजारीलाल दंपति को ओछापन लगा. आखिर मंगलसूत्र की चोरी का गम खाए हजारीलाल दंपति माहौल बदलने के लिए लाखेरी लौट गए.

इस बाबत उन्होंने अपने बेटे विजय कुमार की पत्नी ममता को भी जानकारी दे दी. लेकिन असमंजस में डूबी बहू भी सास को तसल्ली देने के अलावा क्या कर सकती थी. हजारीलाल तो इस सदमे को पचा गए लेकिन कैलाशीबाई के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

एक स्त्री के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र का इस तरह चोेरी चले जाना उन के लिए सब से बड़ा अपशकुन था. उन्होंने एक ही रट लगा रखी थी कि आखिर कौन था जो उन का मंगलसूत्र चुरा ले गया. पत्नी को लाख समझा रहे हजारीलाल की तसल्ली भी कैलाशीबाई के दुख को कम नहीं कर पा रही थी.

5 जनवरी, 2018 को हजारीलाल को अपने किराएदार घनश्याम मीणा का फोन मिला तो उन की आंखें चमक उठीं. उस ने बताया कि करोली के मानाखोर कस्बे में एक भगतजी हैं जिन पर माता की सवारी आती है.

माता की सवारी आने पर भगतजी में अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है और उस समय वह भूत भविष्य के बारे में सब कुछ बता देते हैं. आप का मंगलसूत्र कहां और कैसे गायब हुआ, यह सब भगतजी बता देंगे. आप कहो तो मैं आप को वहां ले चलूंगा ताकि मंगलसूत्र का पता लग सके.

हजारीलाल और उन की पत्नी पुराने विचारों के थे लिहाजा टोनेटोटकों में ज्यादा ही विश्वास करते थे. लिहाजा उन्होंने आननफानन में करोली जाने का प्रोग्राम बना लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी उन्हें ले जाने के लिए लाखेरी पहुंच गए.

हजारीलाल ने तब अपने बड़े बेटे के परिवार को खबर करने और सब से छोटे बेटे हरिओम को भी साथ ले चलने की बात कही तो घनश्याम ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘यह बातें गोपनीय रखनी होती हैं. माता की सवारी पर अविश्वास करोगे तो मातारानी कुपित हो सकती हैं. तब अहित हुआ तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ यह कहते हुए घनश्याम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी सहमति में सिर हिला दिया.

हजारीलाल के मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुलाया लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए वह चुप लगा गए. लेकिन हजारीलाल ने अपने अचानक करोली जाने की बात मौका मिलते ही अपने किराएदार नवलकिशोर को जरूर बता दी. हजारीलाल ने नवलकिशोर को जो कुछ बताया उस ने सुन लिया. इस में उसे एतराज होता भी तो क्यों. घनश्याम को उस ने देखा भी नहीं था तो पूछताछ करता भी तो किस से.’’

लेकिन नवलकिशोर उस वक्त जरूर कुछ अचकचाया, जब सोमवार 8 जनवरी, 2018 को एक शख्स लाखेरी स्थित मकान पर पहुंचा. उस के हाथ में चाबियों का गुच्छा था और वह दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था.

नवलकिशोर को हजारीलाल की गैरमौजूदगी में किसी अजनबी द्वारा मकान का दरवाजा खोलना अटपटा लगा तो उस ने फौरन टोका, ‘‘अरे भाई आप कौन हो और यह क्या कर रहे हो?’’

इतना सुनते ही वह आदमी कुछ हड़बड़ाया फिर बोला, ‘‘मेरा नाम घनश्याम है और मैं हजारीलालजी के डीसीएम चौराहे के पास वाले मकान में रहता हूं. हजारीलालजी के भेजने पर ही मैं यहां आया हूं. दरअसल करोली में भगतजी का भंडारा हो रहा है. हजारीलालजी ने मुझे यहां अपने कपड़े लेने के लिए भेजा है.’’

नवलकिशोर को यह तो मालूम था कि हजारीलाल पत्नी के साथ करौली गए हुए हैं लेकिन उसे घनश्याम की बातों पर तसल्ली इसलिए नहीं हुई कि हजारीलाल किसी को अपने घर की चाबियां भला कैसे सौंप सकते हैं. अपना शक दूर करने के लिए नवलकिशोर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उन से मोबाइल पर मेरी बात करवा दो.’’

घनश्याम ने यह कह कर नवलकिशोर को निरुत्तर कर दिया कि गांव देहात में नेटवर्क काम नहीं करने से उन से बात नहीं हो सकती. नवलकिशोर की शंका दूर नहीं हुई. उस ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है कोटा में हजारीलाल जी के बेटेबेटियां रहते हैं, उन से बात करवा दो?’’

घनश्याम ने यह कह कर टालने की कोशिश की कि उन का बेटा तो चाइना बौर्डर पर तैनात है और कोटा में रह रही उस की पत्नी का मोबाइल नंबर मुझे मालूम नहीं है. लेकिन नवलकिशोर तो जिद ठाने बैठा था. उसे घनश्याम की नानुकर खटक रही थी. वह अपनी शंका दूर करने पर तुला था. उस ने कहा ठीक है उन की पत्नी का नंबर मुझे मालूम है. मैं कर लेता हूं उन से बात.

घनश्याम कोई टोकाटाकी करता, तब तक नवलकिशोर अपने मोबाइल पर विजय कुमार की पत्नी ममता का नंबर मिला चुका था. लेकिन संयोग ही रहा कि ममता का फोन स्विच्ड औफ निकला. आखिर हार कर नवलकिशोर ने घनश्याम से कहा, ‘‘कोटा में हजारीलाल जी के परिवार का कोई तो होगा, जिस का नंबर आप को मालूम हो.’’

‘‘हां, उन की बेटी माया का नंबर मालूम है.’’ घनश्याम ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘ठीक है तो फिर उन्हीं से बात करवा दो?’’ कहते हुए नवलकिशोर ने घनश्याम के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

मोबाइल पर माया इस बात की तसदीक तो नहीं कर सकी कि उस के पिता करोली गए हुए हैं और किसी को उन्होंने कपड़े लाने के लिए भेजा है. अलबत्ता इतना जरूर कह दिया कि घनश्याम हमारे कोटा वाले मकान में किराएदार हैं. मैं इन को जानती हूं. अगर ये मांबाऊजी के कपड़े लेने के लिए आए हैं तो ले जाने देना. लेकिन बाद में चाबी अपने पास ही रख लेना.

नवलकिशोर को अब क्या ऐतराज होना था? घनश्याम रात को वहीं रुक गया और बोला कि सुबह को हजारीलालजी के कपड़े आदि ले कर चला जाएगा. लेकिन अगली सुबह नवलकिशोर की जब आंखें खुलीं तो उस ने देखा कि घनश्याम वहां से जा चुका था.

अब नवलकिशोर के शक का कीड़ा कुलबुलाना लाजिमी था कि  इस तरह घनश्याम का चोरीछिपे जाने का क्या मतलब. नवलकिशोर को ज्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि उसे चाबी सौंप कर जाना चाहिए था. लेकिन वो चाबी भी साथ ले गया.

मंगलसूत्र की गुमशुदगी को ले कर कैलाशीबाई किस हद तक सदमे में थीं, इस बात को उन की बहू ममता अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि उस की अपनी सास से फोन पर बात होती रहती थी. एक दिन ममता ने अपने देवर हरिओम से कहा कि वह लाखेरी जा कर मां को ले आए ताकि बच्चों के बीच रह कर उन का दुख कुछ कम हो सके.

भाभी के कहने पर हरिओम ने 9 जनवरी को पिता हजारीलाल को फोन लगाया. लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ होने के कारण बात नहीं हो सकी. हरिओम सोच कर चुप्पी साध गया कि शायद फोन बंद कर के वह सो रहे होंगे.

ममता भाभी को भी उस ने यह बता दिया. अगले दिन ममता के कहने पर हरिओम ने फिर पिता को फोन लगाया. उस दिन भी उन का फोन बंद मिला. यह सिलसिला लगातार जारी रहा तो न सिर्फ हरिओम के लिए बल्कि ममता के लिए भी यह हैरानी वाली बात थी.

ममता के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ. वह अंदेशा जताते हुए बोली, ‘‘भैया, जरूर अम्माबाऊजी के साथ कोई अनहोनी हो गई है.’’ ममता ने देवर को सहेजते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, नवलकिशोर से बात करो. शायद उसे कुछ मालूम हो.’’

हरिओम ने नवलकिशोर से बात की. उस ने जो कुछ बताया उसे जान कर ममता और हरिओम दोनों सन्न रह गए. नवलकिशोर ने तो यहां तक बताया कि उस ने घनश्याम द्वारा कपड़े ले जाने की बाबत तस्दीक करने के लिए भाभी को फोन भी लगाया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. लेकिन माया ने बात कराने पर उस की शंका दूर हुई थी.

ममता वहीं सिर थाम कर बैठ गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘अम्मा बाऊजी हमें बिना बताए करोली कैसे चले गए. घर की चाबी तो अम्मा किसी को देती ही नहीं थीं. घनश्याम चाबी ले कर लाखेरी वाले घर कैसे पहुंच गया.

इस के बाद तो मंगलसूत्र की चोरी को ले कर भी ममता का शक पुख्ता हो गया. उस ने हरिओम से कहा, ‘‘भैया घर से अम्मा का मंगलसूत्र भी जरूर घनश्याम ने ही चुराया होगा. तुम जरा घनश्याम को फोन तो लगाओ.’’

हरिओम ने फोन किया तो उस के मुंह से अस्फुट स्वर ही निकल पाए, ‘‘भाभी घनश्याम का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मैं उसे डीसीएम चौराहे के घर पर जा कर पकड़ता हूं.’’ कहने के साथ ही हरिओम फुरती से बाहर निकल गया.

करीब एक घंटे बाद हरिओम लौट आया. उस का चेहरा फक पड़ा हुआ था. हरिओम का चेहरा देखते ही ममता माजरा समझ गई. अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘नहीं मिला ना?’’

हरिओम भी वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया, ‘‘भाभी वो तो अपनी पत्नी के साथ सारा सामान ले कर वहां से रफूचक्कर हो चुका है.’’

बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था. जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अब ममता के लिए अपने पति को सब कुछ बताना जरूरी हो गया था. ममता ने फोन से बौर्डर पर तैनात पति को पूरा माजरा बता दिया. विजय उस समय सिर्फ इतना ही कह कर रह गया कि तुम थाने में अम्मा बाऊजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दो. किराएदार घनश्याम की बाबत भी सब कुछ बता देना. फिर मैं छुट्टी ले कर आता हूं.

इस के साथ ही विजय ने इंदौर में रह रहे अपने मंझले भाई विनोद को भी फोन कर पूरी बात बता दी और कहा कि तुम फौरन पहले लाखेरी पहुंचो और पता करो कि उन के साथ क्या हुआ है.

मातापिता जिस तरह रहस्यमय ढंग से लापता हुए, सुन कर विजय अचंभित हुआ. इस से पहले ममता ने उद्योग नगर थाने में अपने ससुर हजारीलाल और सास कैलाशीबाई की गुमशुदगी की सुचना दर्ज करा दी थी.

अपने परिवार समेत करोली के मानाखोर गांव में पहुंचे विजय ने घनश्याम मीणा और कथित भगतजी की तलाश करने की भरपूर कोशिश की ताकि मां बाऊजी का पता चल सके, लेकिन उस के हाथ निराशा ही लगी. छानबीन करने पर उसे पता चला कि भगतजी नामक कोई तांत्रिक वहां था ही नहीं. घनश्याम के बारे में उसे पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी.

विजय ने पुलिस से संपर्क किया उस ने उद्योग नगर पुलिस के जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह से आग्रह किया कि आप एक बार करोली का चक्कर लगा लीजिए. वह वहां गए लेकिन उन की कोशिश निरर्थक रही. फिर जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने काल डिटेल्स का हवाला देते हुए कहा कि मामला लाखेरी का है. इसलिए मामले की रिपोर्ट लाखेरी में ही  करानी होगी.

विनोद भी लाखेरी पहुंच चुका था. उस ने भाई विजय को जो कुछ बताया उस से रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. घर की अलमारियों और संदूक के ताले टूटे पड़े थे. उन में रखे हुए अचल संपत्तियों के दस्तावेज, सोनेचांदी के जेवर और नकदी गायब थी. इस से स्पष्ट था कि कपड़े लेने के बहाने आया घनश्याम सब कुछ बटोर कर ले गया.

27 जनवरी, 2018 को विजय ने लाखेरी थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए घनश्याम मीणा पर ही अपना शक जताया. इस मौके पर विजय के साथ आए उस के भाई विनोद ने चोरी गए सामान का पूरा ब्यौरा पुलिस को दिया. पुलिस ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 365 व 380 और दर्ज कर के जांच एसआई नंदकिशोर के सुपुर्द कर दी. दिन रात की भागदौड़ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा.

एसपी योगेश यादव सीओ नरपत सिंह तथा थानाप्रभारी कौशल्या से जांच की प्रगति का ब्यौरा बराबर पूछ रहे थे. लेकिन कोई उम्मीद जगाने वाली बात सामने नहीं आ रही थी.

इस बीच पुलिस ने गुमशुदा हजारीलाल दंपति के फोटोशुदा ईनामी इश्तहार भी बंटवाए और सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. इस के बाद पुलिस ने घनश्याम मीणा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घनश्याम मीणा की ज्यादातर बातचीत करोली जिले के लांगरा कस्बे के मुखराम मीणा से ही हो रही थी. लक्ष्य सामने आ गया तो पुलिस की बांछें खिल गईं. सीओ सुरेंद्र सिंह ने एसपी योगेश यादव को बताया तो उन्होंने करोली के एसपी अनिल कयाल से जांच में सहयोग करने की मांग की.

नतीजतन सीओ सुरेंद्र सिंह और थानाप्रभारी कौशल्या की अगुवाई में गठित पुलिस टीम ने करोली के लांगरा कस्बे से मुखराम मीणा को दबोच लिया. अखबारी सुर्खियों में ढली इस खबर में करोली एसपी अनिल कयाल ने मुखराम मीणा की 4 फरवरी को गिरफ्तारी की तस्दीक कर दी और कहा कि मुखराम के साथियों और गुमशुदा दंपति को तलाशने में पुलिस टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं.

पुलिस पूछताछ में मुखराम बारबार बयान बदल रहा था. उस ने स्वीकार किया कि घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी के साथ हम हजारीलाल और उस की पत्नी कैलाशीबाई को ले कर टैंपो से साथलपुर के जंगल में पहुंचे थे. वहां उन्होंने दोनों की अंघेरे में हत्या कर दी थी. मुखराम ने बताया कि काम को अंजाम देने के बाद वह साथलपुर गांव चले गए थे.

चूकि पुलिस को उस से और भी पूछताछ करनी थी, इसलिए उसे 5 फरवरी को मुंसिफ न्यायालय लाखेरी में पेश कर 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

मुखराम के बताए स्थान तक लाखेरी पुलिस दल के साथ भरतपुर जिले की लागरा पुलिस के एएसआई राजोली सिंह तथा डौग स्क्वायड टीम के कांस्टेबल देवेंद्र, ओमवीर और हिम्मत सिंह भी थे. मुखराम द्वारा बताई गई हत्या वाली जगह से पुलिस को साड़ी के टुकड़े, खून सने पत्थर और एक हड्डी का टुकड़ा तो मिला लेकिन लाशों का कहीं कोई अतापता नहीं था.

मुखराम अपने उसी बयान पर अड़ा था कि महिला की हत्या तो हम ने यहीं पत्थरों से की थी और शव को भी यहीं गाड़ दिया था. इस के बाद शव कहां गया यह पता नहीं. बरामद चीजों को जब खोजी कुत्ते को सुंघाया तो वो पहले वाली जगह पर जा कर ठिठक गया.

पुलिस ने घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल हुए पत्थर भी जब्त कर लिए. पुलिस की सख्ती के बावजूद मुखराम सवालों का जवाब देने से कतराता रहा.

हत्या में सहयोगी रहे घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी कहां हैं? और हजारीलाल की हत्या कहां की गई? वृद्ध दंपति की हत्या की आखिर क्या वजह थी आदि पूछने पर मुखराम ने बताया कि कोटा में हजारीलाल का तकरीबन 50 लाख रुपए की कीमत का एक प्लौट है. घनश्याम और उस की पत्नी इस पर नजर गड़ाए हुए थे.

उन्होंने हजारीलाल से औनेपौने दामों में इस प्लौट का सौदा करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. उस प्लौट को हड़पने के लिए ही उन के मारने की योजना बनाई थी. उन्होंने मुझे अच्छी रकम देने का वादा कर इस योजना में शामिल किया था.

पुलिस ने आखिर तेवर बदलते तो मुखराम ने मुंह खोलने में देर नहीं की. उस ने बताया कि हजारीलाल की हत्या साथलपुर के पास स्थित धमनिया के जंगल में की थी. धमनियां जंगल में मुखराम की बताई गई जगह पर हजारीलाल के कपड़े और खून सने पत्थर तो मिले लेकिन शव नहीं मिला.

घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि घनश्याम अपनी पत्नी के साथ केरल के कालीघाट में रह रहा है. मुखराम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

घनश्याम मीणा और राजकुमारी को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम कालीघाट रवाना हो गई. इत्तफाक से ये दोनों घर पर ही मिल गए. 8 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस राजस्थान लौट आई.

पूछताछ में घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी ने जो बताया उसे सुन कर तो पुलिस अधिकारियों का मुंह खुला का खुला रह गया. क्योंकि हत्या में ट्यूटर और प्रौपर्टी के बिजनैस में हजारीलाल का विश्वसनीय बना रहने वाला अंगद भी शामिल था. पुलिस इधरउधर खाक छान रही थी और अंगद बिना किसी डर के विजय के पड़ोस में बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा था.

पता चला कि पूरी घटना का सूत्रधार और ताना बाना बुनने वाला अंगद ही था. उस पर हजारीलाल का जितना अटूट भरोसा था, कमोबेश विजय का भी उतना ही था. घर पर बेरोकटोक आनेजाने और मीठी बातों से रिझाने वाले अंगद पर शंका होती भी तो कैसे. जबकि सच्चाई यह थी कि डीसीएम इलाके में हजारीलाल के लगभग 50 लाख के प्लौट पर अंगद की शुरू से ही निगाहें थीं.

विश्वसनीयता की आड़ में अंगद इस प्लौट को किसी तरह फरजी दस्तावेजों के जरिए हड़पने की ताक में था. लेकिन हजारीलाल पर उस का दांव नहीं चल पा रहा था. आखिरकार उसे एक ही रास्ता सूझा कि हजारीलाल दंपति को मौत के घाट उतार कर ही यह प्लौट कब्जाया जा सकता था.

अपनी योजना का तानाबाना बुनते हुए उस ने पहले घनश्याम मीणा को उन के डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर में किराए पर रखवाया. फिर मीणा को उन का विश्वास जीतने में भी मदद की.

आखिरकार जब हजारीलाल का घनश्याम पर अटूट भरोसा हो गया तो पहले उस ने किसी तरह कैलाशीबाई का कीमती मंगलसूत्र चोरी कर लिया. मंगलसूत्र की चोरी से हताश निराश दंपति को जाल में फंसाने के लिए तांत्रिक तक पहुंच बनाने का पासा फेंका.

अंगद ने घनश्याम से कहा कि वह योजना में किसी विश्वसनीय व्यक्ति को मोटे पैसों का लालच दे कर शामिल कर ले. तब घनश्याम ने करोली के रहने वाले अपने एक वाकिफकार मुखराम को योजना में शामिल किया. सारा काम घनश्याम, राजकुमारी और मुखराम ने ही अंजाम दिया. अंगद तो अपनी जगह से हिला भी नहीं.

पुलिस ने कोटा से अंगद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने भले ही हत्या की गुत्थी सुलझा ली. लेकिन लाख सिर पटकने के बाद भी शव बरामद नहीं किए जा सके.

कथा लिखने तक चारों अभियुक्तों की जमानत हो चुकी थी. कानून के जानकारों का कहना है कि जब लाश ही बरामद नहीं होगी तो अभियुक्तों को सजा कैसे मिलेगी. सवाल यह है कि हर तरह से समर्थ पुलिस आखिरकार हजारीलाल दंपति के शव बरामद क्यों नहीं कर सकी.

विजय कुमार तो दोहरे आघात से छटपटा रहा है. एक तो वृद्ध माता पिता की निर्मम हत्या, फिर शवों की बरामदगी तक नहीं हुई. विजय का दुख इन शब्दों में फूट पड़ता है कि कैसा बेटा हूं, मांबाप की हत्या हुई और मैं कुछ नहीं कर पाया. उन की अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी.

विजय मंत्रियों से ले कर उच्च अधिकारियों तक से इंसाफ की दुहाई दे चुका है. लेकिन उस की कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी. एक तरफ तो विश्वास और इंसाफ की हत्या का दर्द तो दूसरी तरफ हत्यारे बेखौफ घूमते हुए उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि क्लेक्टर से गुहार लगाने के बावजूद भी इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई.

—कथा पुलिस और पारिवारिक सूत्रों पर आधारित

वरदीवाला दिलजला : प्रेमिका और उसके मंगेतर की हत्या

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हिंडन नदी किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट सा दिखने वाला युवक वहां पहुंचे.

स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवक युवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसते मुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवक युवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोते बिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.

हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद  वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था.

2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.

इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था.

लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था. यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं.

जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था.

उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर  वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला.

इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था. वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.

प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायज नाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.

गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया. इस समय दोनों हत्यारोपी जेल में बंद हैं.

उधर गाजियाबाद पुलिस के आला अधिकारियों ने इस सनसनीखेज वारदात की गुत्थी सुलझाने वाली टीम का मनोबल बढ़ाते हुए 25 हजार रुपए के पुरस्कार से नवाजा है, पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

सोने की चेन ने बनाया कातिल

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 3

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह पुलिस वालों के साथ वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल हो गए. पुलिस वाले भले ही बाराती बने थे, लेकिन वे वहां आए अन्य लोगों से अलग लग रहे थे. शायद इसीलिए एक आदमी ने अपनी स्थानीय भाषा में पूछा, ‘या कुण (तुम कौन हो)?’

थानाप्रभारी साथी पुलिस वालों को ले कर एक किनारे आ गए, जहां उन पर कोई ध्यान न दे सके. वह वहीं से हरि सिंह पर नजर रखे हुए थे. हरि सिंह लघुशंका के लिए बाहर आया तो शिवपाल सिंह ने उसे दबोच लिया. इस तरह पकड़े जाने से वह घबरा गया.

हरि सिंह शोर मचाता, उस के पहले ही थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने रिवाल्वर सटा कर कहा, ‘‘हम पुलिस वाले हैं. अगर तुम ने शोर मचाया तो तुरंत गोली चल जाएगी. उस के बाद क्या होगा, तुम जानते ही हो.’’

हरि सिंह सन्न रह गया. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो अनिता का मोबाइल उस के पास से मिल गया. पुलिस उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बिठा कर थाना ठीकरी ले आई.

रात होने की वजह से पुलिस का यह काम आसानी से हो गया था. इंदौर ला कर हरि सिंह को अदालत में पेश किया गया, जहां से पूछताछ और लूटा गया सामान तथा हथियार बरामद कराने के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

थाने में की गई पूछताछ में हरि सिंह ने दोनों बहनों की हत्या और लूटपाट का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने उस सामान के बारे में भी बता दिया, जो वह शकुंतला के घर से लूट कर लाया था. इस के बाद थाना पलासिया पुलिस थाना ठीकरी पुलिस के साथ हरि सिंह के घर पहुंची, जहां उस के बेटे की शादी हो रही थी.

पुलिस ने जब उस के घर वालों और गांव वालों को उस के कारनामे बारे में बताया तो सब ने नफरत से उस की ओर से मुंह मोड़ लिया.

हरि सिंह ने दरवाजे के पीछे से एक झोला ला कर दिया, जिस में उस ने शकुंतला और अनिता के घर से चोरी किया गया सामान रख कर छिपा रखा था. सामान बरामद कराते समय हरि सिंह रो पड़ा. क्योंकि अनिता की जिस सोने की चेन को उस ने बेटे को पहनाने के लिए चुराई थी, वह उसे पहना नहीं सका. जिस शौक के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, वह पूरा नहीं हो सका.

पुलिस ने जब उस से उस हथियार के बारे में पूछा, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी तो उस ने बताया कि वह तो इंदौर में है.

इस तरह 6 दिन की मशक्कत के बाद पुलिस ने शकुंतला और अनिता के हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया. हरि सिंह को इंदौर लाया गया तो उस ने बाणगंगा के एक मकान से वह रौड बरामद करा दी, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी. वहां हरि सिंह का एक और राज खुला. जिस मकान से उस ने रौड बरामद कराई थी, उस में एक महिला भी थी. हरि सिंह ने उसे अपनी दूसरी पत्नी बताया था.

हरि सिंह के बताए अनुसार, लगभग 15 साल पहले जब वह अपना गांव छोड़ कर रोजी रोजगार के लिए इंदौर आया था तो वहां वह एक कारखाने में काम करने लगा था. उसी कारखाने में वह औरत भी काम करती थी.

दोनों में जानपहचान हुई और फिर प्यार, उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. शादी के बाद उस ने कारखाने की वह नौकरी छोड़ दी और वेल्डिंग की मशीन खरीद कर साइकिल से घूम घूम कर वेल्डिंग का काम करने लगा. इस काम से वह ठीक ठाक कमा लेता था.

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      हरि सिंह

किसी परिचित के माध्यम से पिछले साल हरि सिंह ने शकुंतला के यहां एक टीन शेड में वेल्डिंग का काम किया था. इसलिए दोनों बहनें उसे पहचानने लगी थीं. उस दिन यानी 1 मई को वह आवाज लगाते हुए बख्तावरनगर में घूम रहा था तो शकुंतला ने उसे कूलर के स्टैंड में वेल्डिंग के लिए बुला लिया था.

कूलर पहली मंजिल पर था. हरि सिंह वहां पहुंचा तो अनिता के गले में मोटी सी सोने की चैन देख कर उस की नीयत खराब हो गई. इस से उसे लगा कि इन के घर में काफी गहने होंगे. उसे यह तो पता ही था कि इस घर में मात्र 2 महिलाएं ही रहती हैं, इसलिए उसे लगा कि यहां वह आसानी से लूटपाट कर सकता है.

अपना रास्ता साफ करने के लिए उस ने पहले वेल्डिंग के दौरान करंट लगने की बात कह कर वहां खेल रही तीनों लड़कियों को हटा दिया. बच्चे चले गए तो अनिता के गहने छीनने के इरादे से उस ने उसे पकड़ना चाहा.

अनिता जवान थी और तेजतर्रार भी. हरि सिंह का इरादा भांप कर उस ने उस का मुंह नोच लिया. तब तक हरि सिंह ने उसे पकड़ लिया था. अनिता शोर न मचा सके, इस के लिए उस ने उस का मुंह दबा दिया. उसी बीच अनिता ने उस के बाल पकड़ कर खींचे तो वह तिलमिला उठा.

हरि सिंह को लगा कि अब मामला बिगड़ने वाला है तो उस ने साथ लाए लोहे के रौड से अनिता के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में अनिता गिर कर बेहोश हो गई. इस के बाद हरि सिंह ने लगातार कई वार कर के अनिता को खत्म कर दिया.

उस समय शकुंतला भूतल पर कोई काम कर रही थी. खटरपटर होते सुन वह ऊपर पहुंची तो हरि सिंह दरवाजे की ओट में छिप गया. जैसे ही वह कमरे में घुसीं, उस ने उसी रौड से उन के ऊपर भी हमला कर दिया.

शकुंतला का भी खेल खत्म हो गया तो उस ने दोनों लाशों को घसीट कर बाथरूम में नीचे ऊपर रख दिया. इस के बाद उस ने जल्दी जल्दी अलमारियां बक्से वगैरह तोड़ कर जो हाथ लगा, उसे कब्जे में किया और अनिता का कीमती मोबाइल ले कर भाग निकला. फिर वही मोबाइल उस की गिरफ्तारी की वजह बना.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 2

इस के बाद पुलिस ने पंफलेट में छपे मोबाइल नंबर और पते के आधार पर कूलर बनाने वाले को पकड़ लिया. वह पास के ही तिलक नगर का रहने वाला था. उस से पूछताछ की गई तो उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. इस के बाद उस की शिनाख्त उन लड़कियों से कराई गई तो उन्होंने भी कहा कि यह वह आदमी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने सामने वाले घर में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. उस में लाल रंग की शर्ट पहने एक आदमी साइकिल ले कर जाता हुआ दिखाई दिया. उस की साइकिल के पीछे एक बाक्स जैसा कुछ बंधा था. लड़कियों ने बताया था कि शकुंतला बुआ के घर आने वाला आदमी लाल रंग की शर्ट पहने था. वह आया भी साइकिल से था और उस की साइकिल में वेल्डिंग करने वाली मशीन बंधी थी.

पुलिस को लगा कि यही आदमी हो सकता है, जो मृतका बहनों के यहां कूलर बनाने आया था. लेकिन फुटेज में उस का चेहरा स्पष्ट नहीं था, इसलिए यह फुटेज पुलिस के किसी काम की नहीं निकली थी. थाना पलासिया पुलिस ने लूट और शकुंतला मिश्रा एवं अनिता दुबे की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिता के गायब मोबाइल को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

पुलिस ने उस मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में आखिरी फोन उन्हीं के विभाग के एक चपरासी को किया गया था. चपरासी को बुला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘मैडम ने ही मुझे फोन कर के बुलाया था. दरअसल मेरी साइकिल चोरी हो गई थी. तब मैडम ने कहा था कि उन के यहां एक पुरानी साइकिल पड़ी है. उसी को देने के लिए उन्होंने बुलाया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उन्होंने मुझे छुट्टी की अर्जी भी दी थी. उन्होंने कहा था कि उन्हें बुखार है, इसलिए वह औफिस नहीं आएंगी.’’

पूछताछ के बाद पुलिस ने चपरासी के बारे में उस के औफिस में पता किया तो पता चला कि वह सच कह रहा था. उस दिन वह पूरे समय औफिस में ही रहा था. छुट्टी के बाद वह घर चला गया था. हत्या की खबर मिलने पर वह आया भी था.

पड़ोसियों के अनुसार दोनों बहनों का व्यवहार बहुत अच्छा था. दोनों ही बहनें सब से हिलमिल कर रहती थीं. कालोनी के सभी बच्चे उन्हें बुआ कहते थे. इस की वजह यह थी कि उन के मायके वाले भी उसी कालोनी में रहते थे. पुलिस ने यह भी पता किया था कि कहीं प्रौपर्टी का कोई झंझट तो नहीं था. लेकिन इस मामले में भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. क्योंकि उन के घर वाले इतने संपन्न थे कि वे उन की संपत्ति से कोई मतलब नहीं रखते थे.

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संयोग से 1 मई को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इंदौर में ही थे. वह मजदूर दिवस के अवसर पर किसी कार्यक्रम में भाग लेने आए थे. इस लूटपाट और 2-2 हत्याओं की सूचना उन्हें मिली तो वह पुलिस अधिकारियों पर काफी नाराज हुए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने के आदेश दिए.

हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने अनिता के मोबाइल फोन का सहारा लिया. उसे तत्काल सर्विलांस पर लगवा दिया गया. वह फोन कभी बंद हो रहा था तो कभी चालू. एक बार फोन की लोकेशन इंदौर के बाणगंगा इलाके की मिली. लेकिन जल्दी ही फोन का स्विच औफ हो गया, इसलिए पुलिस कोई काररवाई नहीं कर पाई. इस के बाद फोन की लोकेशन निमाड़ जिले के ठीकरी कस्बे की मिली.

जब सर्विलांस के माध्यम से हत्यारे तक नहीं पहुंचा जा सका तो पुलिस ने दूसरी तकनीक अपनाई. यह तकनीक थी पीएसटीएन (पब्लिक स्विच्ड टेलीकौम नेटवर्क). पुलिस ने इस तकनीक से पता किया कि उस समय (एक निश्चित समय में) वहां कितने मोबाइल चल रहे थे. सर्विलांस के माध्यम से अनिता के मोबाइल की आखिरी  लोकेशन निमाड़ जिले के थाना ठीकरी की मिली थी.

पुलिस को लगा कि अनिता का मोबाइल ठीकरी के आसपास का ही कोई आदमी ले गया है. और जो भी वह फोन ले गया है, उसी आदमी ने इस वारदात को अंजाम दिया है. उस आदमी के बारे में पता करने के लिए पुलिस ने अनिता के घर के पास घटना के समय संचालित होने वाले मोेबाइल फोनों के नंबर निकलवाए. पता चला कि वारदात के समय यानी 3 घंटे के बीच वहां से 3 लाख फोन संचालित हुए थे.

इस के बाद पुलिस ने ठीकरी के टावर से होने वाले मोबाइल नंबरों को निकलवाए. इस के बाद दोनों सूचियों की स्कैनिंग की गई. इन में अनिता के मोबाइल नंबर के अलावा पुलिस को ऐसा मोबाइल नंबर मिला, जो दोनों सूचियों में था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर ठीकरी के पास घटवा गांव रहने वाले हरि सिंह का था. इस के बाद पुलिस ने हरि सिंह के बारे में पता किया. अब पुलिस को उसे गिरफ्तार करना था. थाना पलासिया की एक टीम उसे गिरफ्तार करने के लिए निमाड़ के लिए रवाना हो गई.

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह ने स्थानीय थाना ठीकरी पुलिस और पटवारी से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वहां वर्दी में जाने पर मामला बिगड़ सकता है. गांव वाले उसे बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. उस स्थिति में उसे पकड़ा नहीं जा सकता. फिर जब उस के यहां विवाह समारोह चल रहा हो तो पुलिसिया काररवाई और भी ज्यादा खतरनाक हो सकती थी.

इस स्थिति में थानाप्रभारी शिवपाल सिंह 4 सिपाहियों के साथ पुलिस वर्दी उतार कर बाराती बन कर गांव घटवा जा पहुंचे. हरि सिंह की पहचान के लिए वे अपने साथ बगल के गांव का एक आदमी ले आए थे.

उस आदमी ने जिस आदमी को हरि सिंह बताया, वह लाल रंग की शर्ट पहने था. कैमरे की फुटेज में पुलिस को साइकिल लिए जो आदमी दिखाई दिया था, वह भी लाल रंग की शर्ट पहने था. बाराती बनी पुलिस उस के पीछे लग गई.

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 1

मध्य प्रदेश के इंदौर का बख्तावर नगर एक ऐसा इलाका है, जहां ज्यादातर धनाढ्य लोग रहते हैं. यहां रहने वाले वे लोग हैं, जो सरकारी नौकरियों में हैं या फिर रिटायर हो चुके हैं. पौश होने की वजह से यह इलाका शांत रहता है. नौकरीपेशा होने की वजह से यहां रहने वाले लोग एकदूसरे की हर तरह से मदद करने को भी तैयार रहते हैं.

1 मई, 2014 की दोपहर के 2 बजे के आसपास दिव्य मिश्रा अपनी बुआ शकुंतला मिश्रा के यहां पहुंचा तो मकान का मुख्य दरवाजा खुला हुआ था. उसे यह देख कर हैरानी हुई, क्योंकि उस की बुआ का घर कभी इस तरह खुला नहीं रहता था. वह दरवाजा तभी खोलती थीं, जब आने वाले को दरवाजे में लगी जाली से देख कर पहचान लेती थीं.

62 वर्षीया शकुंतला मिश्रा उस मकान में अपनी बहन अनिता दुबे के साथ रहती थीं. उन के पति विक्रम मिश्रा की बहुत पहले एक सड़क हादसे में मौत हो चुकी थी. पति की मौत के समय वह गर्भवती थीं. पति की मौत का सदमा उन्हें इतना गहरा था कि गर्भ में पल रही बेटी की भी मौत हो गई थी. इस के बाद उन्हें मृतक आश्रित कोटे से पति की जगह वन विभाग में नौकरी मिल गई थी. अब वह उस से भी रिटायर हो चुकी थीं.

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पति की मौत के बाद उस घर में शकुंतला अपनी मौसेरी बहन अनिता दुबे के साथ रहती थीं. अनिता उन्हीं के साथ रह कर पढ़ीलिखी थी. बाद में उसे नौकरी मिल गई. साथ रहते हुए उसे अपनी मौसेरी बहन से इतना लगाव हो गया था कि उस ने भी शादी नहीं की थी.

अनिता दुबे शिक्षा विभाग में संचालक थीं. दोनों ही बहनों की कोई औलाद नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति एकदूसरे के नाम कर रखी थी. उन के पास पड़ोस वालों से काफी अच्छे संबंध थे. मोहल्ले के सभी बच्चे उन्हें बुआ कहते थे. कभी कोई उन के चरित्र पर अंगुली नहीं उठा सका था, इसलिए सब उन की काफी इज्जत करते थे.

मकान मे उन के साथ कोई मर्द नहीं रहता था, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से वे हमेशा अपना दरवाजा बंद रखती थी. शकुंतला मिश्रा के पिता दूरसंचार विभाग में डाइरैक्टर के पद से रिटायर हुए थे. वह भी परिवार के साथ बख्तावरनगर में ही रहते थे.

दिव्य ने बुआ के घर का बाहरी दरवाजा खुला देखा तो उसे काफी हैरानी हुई थी. वह अंदर पहुंचा तो उसे कोई नहीं दिखाई दिया, किसी की आवाज भी सुनाई नहीं दी. घर में सन्नाटा पसरा था. उस ने आवाज भी दी, तब भी कोई जवाब नहीं मिला. थोड़ी देर वह असमंजस की स्थिति में खड़ा रहा, उस के बाद वह पहली मंजिल की सीढि़यां चढ़ने लगा.

ऊपर पहुंच कर उस ने देखा, कमरे की लकड़ी की अलमारियां खुली पड़ी थीं और उन का सारा सामान बिखरा पड़ा था. किसी अनहोनी से उस का दिल धड़कने लगा. तभी उस की नजर फर्श पर पड़ी तो उसे खून फैला दिखाई दिया. खून देख कर वह घबरा गया. उस ने तुरंत अपने दोस्तों और घर वालों को फोन कर दिया. दोस्त और घर वाले भी वहीं रहते थे, थोड़ी ही देर में सब आ गए.

फर्श पर घसीटने के निशान थे. निशान के अनुसार सभी बाथरूम में पहुंचे तो वहां शकुंतला और अनिता के शव एक दूसरे के ऊपर पड़े थे. स्थिति देख कर लोगों को समझते देर नहीं लगी कि लूटपाट के लिए लुटेरों ने दोनों की हत्या कर दी थी. तुरंत घटना की सूचना थाना पलासिया पुलिस को दी गई.

सूचना देने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. एक तो पौश इलाके का मामला था, दूसरे मृतका ही नहीं, उन के सारे नाते रिश्तेदार उच्च सरकारी पदों पर थे, इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने पुलिस उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी. सुबूत जुटाने के लिए फोरैंसिक एक्स्पर्ट डा. सुधीर शर्मा को भी घटनास्थल पर बुला लिया गया था.

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डा. सुधीर शर्मा ने घटनास्थल एवं लाशों के निरीक्षण में पाया कि मृतका अनिता एवं हत्यारे के बीच जम कर संघर्ष हुआ था. क्योंकि उस के नाखून में हत्यारे की त्वचा एवं सिर के बाल मिले थे. उन्होंने उसे सुरक्षित कर लिया था. हत्यारे ने दोनों के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर के उन्हें मारा था. उन के शरीर के कुछ गहने भी गायब थे. पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों की पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया था.

निरीक्षण में पुलिस ने देखा था कि कूलर खुला पड़ा था. शायद वह रिपेयरिंग के लिए खोला गया था. अलमारियों के सामान के बिखरे होने से साफ था कि मामला लूटपाट का था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पता चला था कि कीमती गहने तो लौकर में रखे थे, रोजाना उपयोग में लाए जाने वाले गहने ही घर में थे. उन में से कितना गया था और उन की कीमत क्या रही होगी, यह कोई नहीं बता सका था. लेकिन इतना जरूर बताया गया था कि शकुंतला का मोबाइल तो है, जबकि अनिता का मोबाइल गायब है.

निरीक्षण में थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने देखा था कि दोनों लाशों के हाथों की अंगूठियां जस की तस थीं. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि लुटेरा पेशेवर नहीं था. घर की सभी अलमारियों, बक्सों और लौकर के ताले टूटे पड़े थे. इस का मतलब लुटेरे के हाथ जो लगा था. उसे ले कर वह भाग निकला था. क्योंकि तलाशी में करीब 50 पर्स पाए गए थे और हर पर्स में कोई न कोई गहना और कुछ नकद रुपए मिले थे.

कूलर रिपेयर करने वाले का एक पंफलेट मिला था, कूलर भी खुला पड़ा था. इस से पुलिस को लगा कि कहीं कूलर बनाने वाले ने ही तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया. पुलिस ने उस पंफलेट को अपने कब्जे में ले लिया. क्योंकि पुलिस का यह अंदाजा सही निकला.

दरअसल पड़ोस की छोटी छोटी 3 लड़कियों ने बताया था कि घटना से पहले वे वहां खेल रही थीं तो कूलर बनाने वाले ने उन्हें यह कह कर घर भेज दिया था कि कहीं करंट न लग जाए. इस बात से पुलिस की आशंका को बल मिला.

कलावती और मलावती का दुखद अंत

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 3

आखिर जयदेव ततमा और अशोक को जिस बात का डर था, वही सब हुआ. विचारों के टकराव और अहं ने पति और पत्नी के बीच इतनी दूरियां बना दीं कि वे एकदूसरे की शक्ल देखने को तैयार नहीं थे. एक छत के नीचे रहते हुए वे एकदूसरे से पराए जैसा व्यवहार करने लगे. रोज ही घर में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे थे.

रोजरोज के झगड़े और कलह से घर की सुखशांति एकदम छिन गई थी. पतियों ने कलावती और मलावती को अपने जीवन से हमेशा के लिए आजाद कर दिया. बाद में दोनों का तलाक हो गया. पते की बात यह थी कि कलावती और मलावती दोनों की जिंदगी की कहानी समान घटनाओं से जुड़ी हुई थी. दुखसुख की जो भी घटनाएं घटती थीं, दोनों के जीवन में समान घटती थीं.

यह बात सच है कि दुनिया अपनों से ही हारी हुई होती है. अशोक भी बहनों की कर्मकथा से हार गया था. पर वह कर भी क्या सकता था. वह उन्हें घर से निकाल भी नहीं सकता था. सामाजिक लिहाज के मारे उस ने बहनों को अपना लिया और सिर छिपाने के लिए जगह दे दी. वे भाई के अहसानों तले दबी हुई थीं, लेकिन दोनों उस पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थीं.

ऐसा नहीं था कि वे दोनों दुखी नहीं थीं. वे बहुत दुखी थीं. अपना दुख किस के साथ बांटें, समझ नहीं पा रही थीं. वे जी तो जरूर रही थीं, लेकिन एक जिंदा लाश बन कर, जिस का कोई वजूद नहीं होता. पति के त्यागे जाने से ज्यादा दुख उन्हें पिता की मौत का था.

कलावती और मलावती ने भाई से साफतौर पर कह दिया था कि वे उस पर बोझ बन कर नहीं जिएंगी. जीने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी. दोनों बहनें फिर से समाजसेवा की डगर पर चल निकलीं. अब उन पर न तो कोई अंकुश लगाने वाला था और न ही टीकाटिप्पणी करने वाला.

वे दोनों घर से सुबह निकलतीं तो देर रात ही घर वापस लौटती थीं. सोशल एक्टिविटीज में दिन भर यहांवहां भटकती फिरती थीं. अशोक बहनों के स्वभाव को जान चुका था. वह भी उन पर निगरानी नहीं रखता था. उसे अपनी बहनों और उन के चरित्र पर पूरा भरोसा था कि वे कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगी, जिस से समाज और बिरादरी में उसे शर्मिंदा होना पड़े.

लेकिन गांव के उस के पड़ोसियों खासकर वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा को कलावती और मलावती के चरित्र पर बिलकुल भरोसा नहीं था.

दोनों बहनों के चरित्र पर लांछन लगाते हुए वे उन्हें पूरे गांव में बदनाम करते थे. वे कहते थे कि ततमा की दोनों बेटियां पेट की आग बुझाने के लिए बाजार में जा कर धंधा करती हैं. धंधे की काली कमाई से दोनों के घरों में चूल्हे जलते हैं. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल चुकी थी. उड़ते उड़ते कुछ दिनों बाद यह बात कलावती और मलावती तक आ पहुंची.

सुन कर दोनों बहनों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. सहसा उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो सुना है, वह सच है. जबकि उन का चरित्र एकदम पाकसाफ था. अपने चरित्र को ले कर दोनों बहनों ने जब गांव वालों की बातें सुनीं, तो वे एकदम से परेशान हो गईं.

वैसे भी किसी चरित्रवान के दामन पर ये दाग किसी गहरे जख्म से कम नहीं थे. दोनों ने फैसला किया कि उन्हें नाहक बदनाम करने वालों को इस की सजा दिलवा कर दम लेंगी, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो. उन्होंने पता लगा लिया कि उन्हें बदनाम करने वाले उन के पड़ोसी वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र थे.

जिद की आग में पकी कलावती और मलावती ने वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा की कुंडली तैयार की. गांव के चारों बाशिंदे ग्रामप्रधान के भरोसेमंद प्यादे थे. प्रधान के रसूख की बदौलत वे कूदते थे.

चारों ही प्रधान की ताकत के बल पर असामाजिक कार्यों को अंजाम देते थे. ये बातें दोनों बहनों को पता चल गई थीं. दोनों ने आरटीआई के माध्यम से ग्राम प्रधान और उन के चारों प्यादों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर के वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के खिलाफ जलालगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

वीरेंद्र और लक्ष्मीदास को जेल भिजवाने के बाद दोनों बहनें शांत नहीं बैठीं. इस के बाद उन्होंने बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को जेल भिजवा दिया. कुछ दिनों बाद वीरेंद्र और लक्ष्मीदास जमानत पर जेल से रिहा हुए तो दोनों बहनों ने फिर से उन के खिलाफ एक नया मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन लोगों को फिर से जेल जाना पड़ा. इंतकाम की आग में जलती कलावती और मलावती ने चारों के खिलाफ ऐसी जमीन तैयार की कि उन के दिन जेल की सलाखों के पीछे बीत रहे थे.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा बारबार जेल जाने से परेशान थे. समझ में नहीं आ रहा था कि कलावती और मलावती नाम की दोनों बहनों से कैसे छुटकारा पाया जाए. वे लोग खतरनाक योजना बनाने लगे. दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा,सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा उन का साथ देने को तैयार हो गए.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास और उस के सहयोगियों ने फैसला कर लिया कि जब तक दोनों बहनें जिंदा रहेंगी, तब तक उन्हें चैन की सांस नहीं लेने देंगी. उन दोनों को मौत के घाट उतारने में ही सब की भलाई थी. घटना से करीब 5 दिन पहले सब ने योजना बना ली.

वीरेंद्र सिंह और उस के साथियों ने कलावती और मलावती के खिलाफ खतरनाक षडयंत्र रच लिया था. उन्होंने उन की रेकी करनी शुरू कर दी.

रेकी करने के बाद उन लोगों ने दोनों बहनों की हत्या करने की रूपरेखा तैयार कर ली. योजना में तय हुआ कि दोनों बहनों की हत्या के बाद उन के सिर धड़ से अलग कर के अलगअलग जगहों पर फेंक दिया जाएगा ताकि पुलिस आसानी से लाशों की शिनाख्त न कर सके.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. बात 23 जून, 2018 के अपराह्न 2 बजे की थी. वीरेंद्र ने अपने सहयोगियों को दोनों बहनों पर नजर रखने के लिए लगा दिया था. दोपहर 2 बजे के करीब कलावती और मलावती घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकलीं.

दोनों ने अपने भतीजे मनोज से बता दिया था कि वे जलालगढ़ बाजार जा रही हैं. वहां से कुछ देर बाद लौट आएंगी. दोनों के घर से निकलते ही इस की सूचना किसी तरह वीरेंद्र सिंह तक पहुंच गई.

वीरेंद्र सिंह ने सहयोगियों को सतर्क कर दिया कि दोनों जलालगढ़ बाजार के लिए घर से निकल चुकी हैं. चक हाट से जलालगढ़ जाने वाले रास्ते में कुछ हिस्सा सुनसान और जंगल से घिरा हुआ था. कलावती और मलावती जब सुनसान रास्ते से जलालगढ़ बाजार की ओर जा रही थीं कि बीच रास्ते में वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा सहित 12 और सहयोगियों ने उन का रास्ता घेर लिया.

वे सभी दोनों बहनों को जबरन उठा कर बिलरिया घाट ले गए. वीरेंद्र और उस के साथियों ने मिल कर दोनों बहनों को तेज धार वाले चाकू से गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद दोनों के सिर धड़ से काट कर अलग कर दिए गए. फिर दोनों के कटे सिर घाट के किनारे जमीन खोद कर दबा दिए. उस के बाद बाकी शरीर को वहां से करीब 500 मीटर दूर ले जा कर झाडि़यों में फेंक कर अपनेअपने घरों को चले गए.

वीरेंद्र और उस के साथियों ने बड़ी चालाकी के साथ घटना को अंजाम दिया, लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा दिनों तक नहीं बच सकता.

एक न एक दिन कानून के लंबे हाथ अपराधी के गिरेहबान तक पहुंच ही जाता है. इसी तरह वे सब भी कानून के हत्थे चढ़ गए. 4 आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने फरार 12 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक गिरफ्तार 16 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था. गिरफ्तार आरोपियों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. वीरेंद्र और उस के साथियों ने अगर सूझबूझ के साथ काम लिया होता तो उन्हें ऐसे दिन देखने को नहीं मिलते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित