UP News : पैसे और प्रेमी के चक्कर में मां ने खुद ही करवाया बेटे का अपहरण

UP News : पात्र जुड़ते रहे, कहानी बनती गई. बिना किसी मिर्चमसाले के इतनी रोचक कि आदमी सोचने को मजबूर हो जाए कि यह हकीकत है या कल्पना. वाकई न तो शिखा जैसी मां ढूंढे मिलेगी, जिस ने प्रेमी के भविष्य के लिए मासूम बेटे का अपहरण करा दिया और न ऐसा प्रेमी जो प्रेमिका शिखा के इशारे पर अपराध का भागीदार बनने तेलंगाना से मुरादाबाद चला आया. मजेदार बात यह कि कहानी पति गौरव ने शुरू कराई और समाप्त भी उसी पर हुई.

5 वर्षीय धु्रव बहुत शरारती था, शरारती के साथ जिद्दी भी. वजह यह कि घर में एकलौता बेटा  था, सभी का दुलारा, घर के लोग उस की शरारतों को नजरअंदाज कर देते थे. धु्रव मुरादाबाद शहर के लाइनपार क्षेत्र में रहने वाले गौरव कुमार का बेटा था. उस के अलावा गौरव की 8 वर्ष की एक बेटी थी सादगी. 7 अगस्त, 2020 की बात है. ध्रुव अपनी पसंद के बिस्कुट खाने की जिद कर रहा था. उस की मां शिखा ने उसे पैसे देते हुए घर के पास की दुकान से बिस्कुट लेने भेज दिया. उस वक्त दोपहर का डेढ़ बजने को था. बिस्कुट ला कर खाने के कुछ देर बाद ध्रुव घर से बाहर खेलने चला गया.

धु्रव को घर से निकले काफी देर हो गई, लेकिन वह घर नहीं लौटा. मां शिखा को चिंता हुई तो वह उसे ढूंढने निकल पड़ी. शिखा ने धु्रव को इधरउधर ढूंढा लेकिन वह कहीं नहीं दिखा तो शिखा परेशान हो कर घर लौट आई. उस ने यह बात अपनी सास सुधा को बताई. पोते के न मिलने से सुधा चिंतित हुई. फिर सासबहू दोनों धु्रव को ढूंढने निकल गईं.

दोनों कुछ दूर स्थित रामलीला मैदान में भी गईं. वहां मोहल्ले के बच्चे खेल रहे थे. उन्होंने बच्चों से धु्रव के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उस के बारे में नहीं बता पाया. इधरउधर तलाशने के बाद भी जब उन का लाडला नहीं मिला तो दोनों उदास मन से घर लौट आईं. कुछ देर पहले धु्रव खेलने गया था, ऐसे कहां गायब हो गया, यही सोचसोच कर सास बहू परेशान हो रही थीं. सुधा का पति गौरव एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करता था. उस समय वह अपनी ड्यूटी पर था. शिखा ने बेटे के गायब होने की सूचना गौरव को दी तो वह कुछ ही देर में घर पहुंच गया. शिखा ने पति को बेटे के गायब होने की बात विस्तार से बताई.

हालांकि गौरव की पत्नी और मां धु्रव को पहले ही सब जगह ढूंढ चुकी थीं, इस के बावजूद गौरव का मन नहीं माना. वह बाइक ले कर बेटे को ढूंढने के लिए निकल गया. उस ने सभी संभावित जगहों पर बेटे को ढूंढा, लेकिन कुछ पता नहीं लगा. गौरव के दोस्तों ने भी धु्रव को लाइन पार के नाले के किनारे जा कर देखा कि कहीं खेलतेखेलते नाले में न गिर गया हो, पर वहां भी कुछ दिखाई नहीं दिया . धु्रव के गायब होने की खबर मिलने पर मोहल्ले वाले गौरव के घर पर एकत्र होने लगे. सभी आश्चर्य में थे कि आखिर 5 साल का बच्चा कहां चला गया. लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे. बेटे की चिंता में शिखा की आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. गौरव की समझ में भी नहीं आ रहा था कि वह बेटे को अब कहां तलाश करे.

शाम के 4 बजे थे. गौरव अपने घर वालों के साथ घर में बैठा हुआ था. तभी उस के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. गौरव ने जैसे ही काल रिसीव की, तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तुम्हारा बेटा धु्रव अब हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो 30 लाख रुपए का इंतजाम कर लो वरना उस की लाश भी नहीं मिल पाएगी.’’

‘‘नहीं, आप मेरे बेटे को कुछ नहीं करना, जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगा.’’ गौरव गिड़गिड़ाते हुए बोला.

‘‘ठीक है, तुम पैसों का इंतजाम कर लो. मैं बाद में फोन करूंगा. और हां, एक बात भेजे में डाल लो, पुलिस के पास जाने की कोशिश भी की तो नुकसान तुम्हारा ही होगा.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने काल डिसकनेक्ट कर दी. 30 लाख रुपए नहीं थे गौरव के पास गौरव समझ चुका था कि उस के बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया है और अपहर्त्ता 30 लाख रुपए की फिरौती मांग रहा है. गौरव ने अपहर्त्ता से कह तो दिया था कि वह सब करने को तैयार है लेकिन समस्या यह थी कि 30 लाख रुपए का इंतजाम कहां से करे. धु्रव के अपहरण की बात सुन कर घर के सभी लोगों की चिंताएं बढ़ गई थीं.

चूंकि स्थिति गंभीर थी, इसलिए रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों ने गौरव को सलाह दी कि यह जानकारी पुलिस को देना जरूरी है. वही मदद कर सकती है. गौरव को भी यह सलाह सही लगी और वह पत्नी शिखा और 2-3 लोगों के साथ एसएसपी प्रभाकर चौधरी के निवास पर पहुंच गया. उस ने चौधरी को बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने और 30 लाख की फिरौती मांगे जाने की बात बता दी. जिस फोन नंबर से गौरव के पास फिरौती की काल आई थी, एसएसपी ने उस के फोन में वह नंबर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह नंबर 13 अंकों का था. यानी वह काल किसी सिमकार्ड से नहीं बल्कि इंटरनेट से की गई थी. इस से वह समझ गए कि अपहर्त्ता बेहद शातिर है.

उन्होंने अपहरण के इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उसी समय एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद को अपने पास बुला कर इस मामले में त्वरित काररवाई करने को कहा. पुलिस कप्तान के निर्देश पर थाना मझोला के थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने अज्ञात के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया. केस को सुलझाने के लिए एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एएसपी कुलदीप सिंह गुलावत, थानाप्रभारी (मझोला) राकेश कुमार सिंह, एसओजी प्रभारी इंसपेक्टर सत्येंद्र सिंह, एसआई राजेंद्र सिंह, पंकज कुमार, मोहित, कांस्टेबल अंकुल, आलोक त्यागी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने गौरव कुमार और उस के घर वालों से पूछताछ करने के बाद जांच शुरू कर दी. गौरव के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच की गई. एक फुटेज में धु्रव पास ही स्थित दुकान तक जाता दिखा और वहां से बिस्कुट का पैकेट लाते हुए भी दिखाई दिया. इस के बाद जब वह दोबारा खेलने के लिए घर से निकला तो फुटेज में नजर नहीं आया. इस के बाद वह सीसीटीवी कैमरे की जद से बाहर हो गया, जिस से पता नहीं चल पाया कि वह कहां गया. पुलिस ने उस दुकानदार से भी पूछताछ की, इस के अलावा अन्य लोगों से भी धु्रव के बारे में पूछा लेकिन पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के सहारे जांच आगे बढ़ सकती.

एसपी (सिटी) ने ध्रुव के घर वालों से पूछा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं है, इस पर शिखा ने कहा, ‘‘सर, वैसे तो हमारी किसी से दुश्मनी नहीं है, पर हमारा प्रौपर्टी को ले कर विवाद जरूर चल रहा है.’’

‘‘किस से?’’ एसपी (सिटी) ने पूछा. तभी गौरव बोला, ‘‘सर, हमारे मामा सतीश से प्रौपर्टी को ले कर विवाद चल रहा है.’’

इस बारे में एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद ने उस से विस्तार से पूछताछ की तो पता चला कि गौरव जिस मकान में रहता है, वह उस के नाना कुंवर सैन का है. कुंवर सैन रेलवे विभाग में नौकरी करते थे. उन की 3 बेटियां सुधा, रेखा, सरोज के अलावा 2 बेटे सतीश और सुशील थे. वह अपने सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. उन के एक बेटे सुशील की मौत हो चुकी थी. जिस का परिवार मेरठ में रहता था, जबकि 2 बेटियां रेखा और सरोज अपने परिवार के साथ सम्राट अशोक नगर में रहती थीं. संदेह था मामला प्रौपर्टी विवाद से न जुड़ा हो कुंवर सैन का मुरादाबाद के लाइनपार क्षेत्र में जो दोमंजिला मकान था, उस की कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए थी. सुधा के बेटे गौरव को कुंवर सैन बहुत प्यार करते थे, इसलिए गौरव अपने बीवीबच्चों और मां सुधा के साथ इसी मकान में रहता था. यहीं पर कुंवर सैन का बेटा सतीश भी अपने परिवार के साथ रह रहा था.

सतीश झगड़ालू किस्म का था, वह पिता के साथ मारपिटाई करता रहता था, इसलिए कुंवर सैन ने उसे अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया था. लेकिन वह जबरदस्ती वहां रह रहा था. गौरव और सतीश का उसी प्रौपर्टी को ले कर विवाद चल रहा था. विवाद की वजह पता लग जाने के बाद एसपी (सिटी) को भी सतीश पर ही शक हुआ, इसलिए उन्होंने सतीश, उस की पत्नी और बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पुलिस टीम ने उन तीनों से ध्रुव के बारे में कई तरह से पूछताछ की. लेकिन वे तीनों खुद को बेकुसूर बताते रहे. उधर पुलिस ने गौरव से कह दिया था कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए तो वह उन से प्यार से बात करें. इस के बाद गौरव रात में भी अपहर्त्ताओं के फोन काल का इंतजार करता रहा.

रात डेढ़ बजे अपहर्त्ता ने गौरव के फोन पर काल कर के पूछा कि पैसों का इंतजाम हुआ या नहीं. गौरव ने कह दिया कि वह इंतजाम कर रहा है. इस के बाद फोन कट गया. गौरव ने यह जानकारी पुलिस को दे दी. शिखा बारबार इस बात पर ही जोर देती रही कि उस के बेटे के अपहरण के पीछे सतीश मामा का हाथ है. पुलिस रात भर सतीश व उस के बेटे से पूछताछ करती रही, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस ने गौरव और उस की पत्नी शिखा के फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था. एसएसपी सारी जानकारी से आईजी रमित शर्मा को बराबर अवगत करा रहे थे. 8 अगस्त को सुबह गौरव के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने फोन कर के कहा, ‘‘कल पैसों का इंतजाम कर लो. जैसे ही पैसे मिलेंगे, धु्रव को बस में बिठा कर भेज देंगे.’’

इस बार भी काल इंटरनेट से की गई थी. जिस ऐप से काल की गई थी, वह एक चीनी ऐप था. इस संबंध में प्रदेश स्तर के पुलिस अधिकारी ने चीनी कंपनी से उस ईमेल आईडी की जानकारी मांगी जो उस ऐप को इंस्टाल करते समय उपभोक्ता को देनी होती है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंचने का रास्ता तैयार कर सकती थी. अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के अलावा पुलिस की प्राथमिता धु्रव को सकुशल बरामद करने की भी थी. इस काम में 300 पुलिसकर्मी अलगअलग तरीके से जांच कार्य में जुटे थे. 8 अगस्त को ही सुबह करीब 9 बजे गौरव के मोबाइल पर ऐसी काल आई, जिस ने गौरव  की हताशा में आशा का दीप जला दिया.

फोन करने वाले ने कहा, ‘‘भाई, मैं बस का कंडक्टर दीपक सिंह बोल रहा हूं. बस चलने वाली है और आप का बेटा धु्रव बस में बैठा रो रहा है. आप जल्दी आ जाइए.’’

यह सुन कर गौरव चौंकते हुए बोला, ‘‘भाईसाहब, मैं तो मुरादाबाद में हूं. आप मेरे बेटे से वीडियो काल कराइए.’’

ड्राइवर कंडक्टर की समझदारी कंडक्टर ने गौरव को वीडियो काल कर के बस की सीट पर बैठे धु्रव को दिखाया. धु्रव ने गौरव को बताया कि एक अंकल उसे बस में बिठा कर कहीं चले गए. धु्रव को सकुशल देख कर गौरव की आंखों में आंसू छलक आए. गौरव ने कंडक्टर को बताया कि 7 अगस्त को धु्रव का किसी ने अपहरण कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी. जानकारी मिलने के बाद कंडक्टर ने धु्रव को अपनी सुरक्षा में ले लिया. वह बस गाजियाबाद के कौशांबी से मुरादाबाद जाने वाली थी. बस में उस समय 18 सवारियां बैठी थीं. मामला बहुत ही संवेदनशील था, इसलिए कंडक्टर दीपक सिंह और ड्राइवर विकल भाटी बस को करीब 100 मीटर दूर महाराजपुर पुलिस चौकी ले गए.

यह पुलिस चौकी गाजियाबाद के लिंक थाना के अंतर्गत आती है. उन्होंने धु्रव को पुलिस को सौंपते हुए उस के अपहरण होने की जानकारी दे दी. अपहर्त्ता धु्रव की जेब में एक परची रख गए थे, जिस पर धु्रव लिखा था. साथ ही 2 फोन नंबर भी लिखे थे. उन में से पहले फोन नंबर पर बस कंडक्टर ने बात की तो वह धु्रव के पिता गौरव का निकला. एसएसपी प्रभाकर चौधरी को अपहृत धु्रव के सकुशल बरामद होने की जानकारी मिल गई थी. उन्होंने बच्चे को लाने के लिए एक पुलिस टीम गाजियाबाद रवाना कर दी. इस के अलावा कौशांबी डिपो की जिस बस संख्या यूपी78 एफएन4762 को चालक विकल भाटी और परिचालक दीपक सिंह मुरादाबाद ला रहे थे, वह बस उन्होंने मुरादाबाद के थाना पाकबड़ा के बाहर ही रुकवा ली.

एनएच-24 पर स्थित थाना पाकबड़ा में बस के कंडक्टर और ड्राइवर से विस्तार से पूछताछ की गई. दोनों कर्मचारियों ने पुलिस को सारी बात बता दी. बस में बैठी सवारियों ने पुलिस को बताया कि मास्क बांधे एक युवक बच्चे को बस में बिठा कर गया था. उधर मुरादाबाद से गाजियाबाद गई पुलिस टीम धु्रव को सकुशल वहां से ले आई. अपने लाडले को देख कर शिखा खुशी से उछल पड़ी. एसएसपी ने 8 अगस्त को ही एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर बताया कि उन्होंने बच्चे की बरामदगी के लिए चारों तरफ पुलिसकर्मी तैनात कर दिए थे. पुलिस का बढ़ता दबाव देख कर अपहर्त्ता धु्रव को बस में बिठा कर फरार हो गए. यह पुलिस की बड़ी उपलब्धि थी.

धु्रव उस समय सहमा हुआ था. जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि एक लंबे से अंकल मुझे मोटरसाइकिल पर बिठा कर ले गए थे. इस के बाद वह एक कार से एक होटल में ले गए. वहां उन्होंने खाना खिलाया फिर कार से बहुत दूर ले गए. अपहर्त्ता की पहचान के लिए मुरादाबाद पुलिस ने कौशांबी बस डिपो में लगे सीसीटीवी की फुटेज देखी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सारी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने धु्रव को उस के मांबाप के हवाले कर दिया. बेटे के सहीसलामत मिलने पर गौरव के घर में त्यौहार जैसा माहौल था. गौरव और शिखा ने इस खुशी में मोहल्ले में हलवापूरी बंटवाई.

बच्चे के बरामद होने के बाद पुलिस का अगला मकसद अपहर्त्ताओं तक पहुंचना था. इस के लिए एक ही जरिया था, इंटरनेट काल का 13 अंकों का वह नंबर, जिस से फिरौती की काल की गई थी. आईजी रमित शर्मा ने इस बारे में डीजीपी हितेश अवस्थी से बात की. डीजीपी ने संबंधित कंपनियों से इस संबंध में संपर्क किया. इधर सर्विलांस टीम अपने काम में जुटी हुई थी. टीम ऐसे फोन नंबरों की जांच में जुट गई जो 7 अगस्त को मुरादाबाद के लाइन पार क्षेत्र में स्थित मोबाइल टावर के संपर्क में आए थे. ये नंबर हजारों की संख्या में थे. इसे डंप डाटा कहा जाता है. पुलिस ने इस डंप डाटा की जांच की. कई दिनों की जांच के बाद कई फोन नंबर पुलिस टीम की रडार पर चढ़ गए.

उन फोन नंबरों को सर्विलांस टीम ने फिल्टर किया तो एक फोन नंबर 9100263333 शक के दायरे में आ गया. जांच में पता चला कि यह फोन नंबर मोहम्मद अशफाक पुत्र मोहम्मद उस्मान, गांव जलालपुर, थाना वर्नी, जिला निजामाबाद, तेलंगाना के नाम पर लिया गया था. एसएसपी ने एक पुलिस टीम तेलंगाना रवाना कर दी. टीम ने थाना वर्नी पुलिस के सहयोग से मोहम्मद अशफाक के घर दबिश दी तो अशफाक घर पर ही मिल गया. थाना वर्नी में पुलिस ने अशफाक से सख्ती के साथ पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही धु्रव का अपहरण किया था. लेकिन उस ने यह काम अपनी प्रेमिका और धु्रव की मम्मी शिखा के कहने पर किया था.

यह सुन कर पुलिस चौंकी. यह सवाल छोटा नहीं था कि क्या एक मां खुद अपने एकलौते बेटे का अपहरण करा सकती है. अशफाक ने यह भी बताया कि बच्चे का अपहरण करने के लिए वह निजामाबाद से ही टाटा टिगोर गाड़ी नंबर एमएच26बीसी 4145 किराए पर ले कर मुरादाबाद गया था. गाड़ी को यहीं का ड्राइवर इमरान खान चला कर ले गया था. पुलिस टीम ने अशफाक की निशानदेही पर ड्राइवर इमरान खान को भी हिरासत में ले लिया और टाटा टिगोर गाड़ी भी बरामद कर ली. अब केस पूरी तरह खुल चुका था. चूंकि इस मामले में अपहृत हुए बच्चे की मां शिखा के भी शामिल होने की बात सामने आ चुकी थी, इसलिए तेलंगाना में मौजूद मुरादाबाद पुलिस ने यह बात मुरादाबाद के कप्तान प्रभाकर चौधरी को बता दी.

उन्होंने एसपी (सिटी) को शिखा को हिरासत में लेने के निर्देश दिए ताकि वह फरार न हो सके. आरोपी अशफाक और इमरान को निजामाबाद की कोर्ट से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस टीम तेलंगाना से मुरादाबाद के लिए रवाना हो गई. 18 अगस्त को दोनों आरोपियों को स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद एसएसपी के पास ले जाया गया. वहां शिखा पहले से मौजूद थी. मोहम्मद अशफाक को अपने सामने देख कर वह सकपका गई. तीनों आरोपी एकदूसरे के सामने थे, इसलिए अब झूठ बोलने का तो सवाल ही नहीं था. कोई सोच भी नहीं सकता था पुलिस टीम ने उन से पूछताछ की तो एक ऐसी मां की प्रेमकहानी और साजिश सामने आई, जिस ने अपने प्यार और पैसे की खातिर खुद प्रेमी के हाथों अपने एकलौते बेटे का अपहरण कराया.

इतना ही नहीं, उस मां ने प्रेमी के साथ मिल कर इस से आगे की कहानी का जो तानाबाना बुना था, वह ऐसा था कि पुलिस भी गच्चा खा जाए. गौरव और शिखा की शादी 2011 में हुई थी. गौरव एक फाइनैंस कंपनी में कलेक्शन एजेंट था. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उस से उस की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. समय अपनी गति से गुजरता रहा और शिखा 2 बच्चों की मां बन गई. उस की बेटी 8 साल की है और बेटा धु्रव 5 साल का. गौरव सोशल साइट्स पर भी सक्रिय रहता था. कई साल पहले फेसबुक पर उस की दोस्ती निशा परवीन से हुई थी. उस से वह खूब चैटिंग करता था. दोनों की यह दोस्ती इतनी बढ़ी कि जब तक दोनों चैटिंग नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं मिलता था.

पति के अकसर फोन पर व्यस्त रहने के बारे में एक दिन शिखा ने पूछा तो गौरव ने उसे सब कुछ बता दिया कि वह तेलंगाना की रहने वाली निशा परवीन नाम की दोस्त से फेसबुक पर चैटिंग करता है. पति की इस साफगोई से शिखा प्रभावित हुई. गौरव ने निशा परवीन को भी अपनी बीवी के बारे में सब कुछ बता दिया. तब शिखा ने भी निशा से चैटिंग शुरू कर की. शिखा को निशा परवीन की बातें और विचार अच्छे लगे. लिहाजा गौरव के ड्यूटी पर चले जाने के बाद शिखा अपने फोन द्वारा निशा परवीन से चैटिंग करती थी. शिखा ने अपनी फेसबुक आईडी रानी के नाम से बनाई थी. इस तरह शिखा और निशा भी गहरी दोस्त बन गईं.

एक दिन निशा परवीन ने शिखा को अपने बारे में जो कुछ बताया, उसे सुन कर शिखा हैरान रह गई. उस ने बताया कि वह कोई लड़की नहीं बल्कि लड़का है और उस का असली नाम मोहम्मद अशफाक है. उस ने केवल लड़की के नाम से फेसबुक आईडी बनाई है. यह सुन कर शिखा और ज्यादा खुश हुई क्योंकि वह एक युवक था. विपरीत लिंगी के साथ वैसे भी आकर्षण बढ़ जाता है. इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए. शिखा ने मोहम्मद अशफाक का नंबर मौसी के नाम से अपने फोन में सेव कर लिया था. अशफाक बहुत बातूनी था, शिखा को उस की बातें बहुत अच्छी लगती थीं. धीरेधीरे उन की बातों का दायरा बढ़ता गया और वे एकदूसरे को चाहने लगे. फोन पर उन्होंने अपनी चाहत का इजहार भी कर दिया था.

दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटा और धीरेधीरे बड़ा होने लगा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां शिखा को 11 सौ किलोमीटर दूर तेलंगाना में बैठा अशफाक अपने पति से ज्यादा प्यारा लगने लगा था. दूर बैठे बातें करने के बजाए उस का मन करता कि या तो वह उस के पास पहुंच जाए या फिर उस का प्रेमी उड़ कर उस के पास आ जाए, जिस से वह उस से रूबरू हो सके. दूर बैठे दोनों प्रेमी तड़प रहे थे. ऐसी तड़प में प्यार और ज्यादा मजबूत होता है. यही हाल शिखा और अशफाक का था. शिखा अपने प्रेमी से मिलने के उपाय खोजने लगी. करीब एक साल पहले शिखा ने इस की तरकीब खोज निकाली. उस ने अशफाक को फोन कर के मेरठ आने को कहा और वहां होटल में मिलना तय कर लिया.

फिर एक दिन शिखा मौसी के घर जाने के बहाने मेरठ चली गई. योजना के अनुसार, अशफाक तेलंगाना से मेरठ पहुंच गया. वहीं पर दोनों एक होटल में ठहरे. पहली मुलाकात में वे एक दूसरे से बहुत प्रभावित हुए. करीब एक साल से उन के दिलों में प्यार की जो अग्नि भभक रही थी, दोनों ने उसे शांत किया. शिखा को अशफाक पहली मुलाकात में ही इतना भा गया था कि उस के लिए पति तक को छोड़ने को तैयार हो गई. अशफाक ने उसे अपने बारे में बताया कि वह अविवाहित है और आईटीआई करने के बाद एक इलैक्ट्रौनिक्स कंपनी में बतौर मोटर वाइंडर काम करता है. इस काम को छोड़ कर वह अपना एक जिम खोलेगा. शिखा ने भी कह दिया कि वह उस के लिए अपना सब कुछ छोड़ने को तैयार है.

बातोंबातों में हो गई प्रेमी की एक रात होटल में बिताने के बाद अशफाक अपने घर लौट गया और शिखा मौसी के यहां चली गई. 2-4 दिन बाद शिखा मौसी के घर से मुरादाबाद लौट आई. घर लौटने के बाद उस के जेहन में प्रेमी का प्यार छाया रहा. वह अपनी घरगृहस्थी में लगी जरूर रही लेकिन उस का मन प्रेमी के पास ही रहता था. गौरव को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस की ब्याहता तन और मन से अब किसी और की हो चुकी है. उस ने अशफाक का फोन नंबर मौसी के नाम से सेव कर रखा था, इसलिए वह गौरव के सामने भी उस से बात करती रहती थी. कुछ महीनों बाद शिखा की बेताबी बढ़ने लगी तो उस ने अशफाक को तेलंगाना से मुरादाबाद बुला लिया. उस ने शिखा के घर के नजदीक ही किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा लेते वक्त उस ने अपना नाम मयंक बताया था. प्रेमी के नजदीक रहने पर शिखा को बड़ी खुशी हुई.

पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद वह फोन कर के प्रेमी को अपने घर बुला लेती फिर दोनों हसरतें पूरी करते. बाद में अशफाक गौरव के सामने भी उस के घर आने लगा. शिखा ने उस का परिचय अपने मौसेरे भाई मयंक के रूप में कराया था. अशफाक उर्फ मयंक एक तरह से शिखा के घर का सदस्य बन गया. वह उस के बच्चों को स्कूल भी छोड़ कर आता और छुट्टी होने पर लाता भी. एक बार शिखा की सास सुधा की तबीयत खराब हो गई. उस समय गौरव अपनी ड्यूटी पर था तो अशफाक ही सुधा को अस्पताल ले गया था. एक बार शिखा रिश्तेदार के यहां जाने के बहाने घर से निकली और प्रेमी के साथ रामनगर घूमने चली गई. वहां एक रात वे

होटल में ठहरे. वहां से दोनों एक दिन बाद वापस लौटे. अशफाक को मुरादाबाद में रहते हुए करीब 15 दिन बीत गए थे. हालांकि उस का खर्चा शिखा ही उठा रही थी लेकिन अशफाक को अपनी नौकरी भी करनी थी, इसलिए वह तेलंगाना लौट गया. प्रेमी के चले जाने के बाद शिखा फिर से बेचैन रहने लगी. गौरव जिस मकान में रहता था, वह उस के नाना कुंवर सैन का था. इसी मकान में ऊपर की मंजिल पर गौरव के मामा सतीश अपने परिवार के साथ रहते थे. सतीश की गलत हरकतों की वजह से कुंवर सैन ने अपने बेटे सतीश को अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया था. कुंवर सैन अपने नाती गौरव को बहुत चाहते थे. इसलिए गौरव और शिखा को उम्मीद थी कि वह मरने से पहले उन्हें कुछ न कुछ प्रौपर्टी जरूर दे कर जाएंगे.

लेकिन कोरोना महामारी की वजह से लगे लौकडाउन के समय कुंवर सैन का निधन हो गया. इस के बाद जब वसीयत सामने आई तो पता चला कि कुंवर सैन ने गौरव और उस के बच्चों के नाम कोई प्रौपर्टी नहीं छोड़ी. सारी प्रौपर्टी उन्होंने अपनी बेटी रेखा के नाम कर दी थी. यह पता चलते ही शिखा के होश उड़ गए. शिखा की मौसेरी सास रेखा पहले से ही संपन्न थी. वह शिखा के बेटे धु्रव को बहुत चाहती थीं. रेखा ने पिछले दिनों 18 लाख रुपए की एक प्रौपर्टी बेची थी. बन गई एक घिनौनी योजना शिखा अब अपने स्वार्थ का जाल बुनने में जुट गई कि किस तरह उस के मंसूबे पूरे हों. यह सारी बातें उस ने अपने प्रेमी अशफाक से भी साझा कीं. फिर शिखा ने अपने ही बेटे धु्रव के अपहरण का प्लान बनाया.

इस काम के लिए उस ने प्रेमी अशफाक को भी राजी कर लिया. शिखा का मानना था कि अगर धु्रव का अपहरण हो जाएगा तो गौरव की मां और मौसी फिरौती की रकम दे देंगी. फिरौती के जो 30-35 लाख रुपए मिलेंगे, उस से प्रेमी को वह अच्छा बिजनैस शुरू करा देगी. फिर पति को छोड़ कर वह उस के साथ रहने के लिए तेलंगाना चली जाएगी. पूरी योजना बनाने के बाद अशफाक ने निजामाबाद से 2 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर टाटा टिगोर कार ली. तय हुआ कि गाड़ी में तेल अशफाक को डलवाना होगा. अशफाक ड्राइवर इमरान खान के साथ 5 अगस्त को कार ले कर मुरादाबाद के लिए चल दिया. 7 अगस्त को तड़के 3 बजे वह मुरादाबाद के लाइनपार स्थित रामलीला मैदान पहुंच गया.

उसी समय उस ने औनलाइन मुरादाबाद के होटल मिलन में एक कमरा बुक करा दिया. मुरादाबाद पहुंचने की जानकारी उस ने शिखा को दे दी थी. सुबह 4 बजे मौर्निंग वाक के बहाने शिखा अपने प्रेमी से मिलने के लिए निकली. उस के लिए वह चाय और नाश्ते का सामान भी ले आई थी. जब वह अशफाक के पास पहुंची तो उस ने कार के ड्राइवर इमरान को वहां से जाने का इशारा किया. इमरान रामलीला मैदान की सीढि़यों पर जा कर सो गया. शिखा प्रेमी के साथ कार में बैठ गई. चायनाश्ता लेने के बाद अशफाक ने कार में ही उस के साथ हसरतें पूरी कीं. चलते समय शिखा ने उसे 18 हजार रुपए भी दिए. प्रेमिका से मिलने के बाद अशफाक ड्राइवर को ले कर होटल मिलन चला गया. वहां दोपहर तक दोनों ने आराम किया. इस बीच उस की शिखा से बातचीत होती रही.

फिर योजना के अनुसार, दोपहर करीब एक बजे अशफाक कार ले कर रामलीला मैदान के पास पहुंच गया. योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए शिखा बेचैन थी. रोजाना की तरह गौरव उस दिन भी अपनी ड्यूटी पर जा चुका था. दोपहर डेढ़ बजे के करीब जब धु्रव दुकान से बिस्कुट ले कर लौटा तो शिखा उसे खुद ले कर अशफाक की कार के पास गई. वह उन रास्तों से गई, जहां सीसीटीवी नहीं लगे थे. शिखा ने बेटे से कह दिया कि अंकल के साथ घूमने चले जाना, यह तुम्हें बहुत सारी चीजें दिलाएंगे. वैसे धु्रव अशफाक को पहले से जानता था, लेकिन उस ने उस समय मास्क लगा रखा था, इसलिए पहचान नहीं पाया. अपने जिगर के टुकड़े को प्रेमी के हवाले करने के बाद शिखा उन्हीं रास्तों से घर लौट आई, जहां सीसीटीवी नहीं लगे थे.

अशफाक धु्रव को ले कर होटल में पहुंचा. धु्रव न रोए, इस के लिए उस ने उसे चौकलेट व अन्य कई तरह की खाने की चीजें दिला दी थीं. शाम के समय उस ने धु्रव को एक होटल में खाना भी खिलाया. इस बीच मौका मिलने पर उसने धु्रव के पिता गौरव को इंटरनेट से काल कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी. धु्रव के अपहरण की सूचना पर घर के सभी लोग परेशान थे. शिखा को तो पहले से ही सब पता था. परंतु वह दिखावा करने के लिए रो रही थी. मुरादाबाद पुलिस ने सक्रिय हो कर इस मामले में तेजी से काररवाई शुरू कर दी थी. फंस गया अशफाक अशफाक बच्चे को ले कर रात में ही दिल्ली की तरफ निकल गया था. दिल्ली बौर्डर के नजदीक जब वह कौशांबी पहुंचा तो धु्रव रोने लगा.

तब कार रुकवा कर वह धु्रव को कोल्डड्रिंक दिलाने ले गया. इस से कार के ड्राइवर इमरान को शक हो गया कि बच्चे का अपहरण किया जा रहा है, इसलिए कार से उतर कर उस ने कार मालिक को तेलंगाना फोन कर इस बारे में बताया. कार मालिक ने इमरान से कहा कि वह किसी तरह अशफाक को वहीं छोड़ कर अकेला तेलंगाना चला आए. इमरान ने ऐसा ही किया. वह वहां से अकेला ही लौट गया. उसी दौरान अशफाक ने फिर से गौरव को फिरौती की काल की. जब अशफाक काल कर के आया तो उसे वहां पर न तो कार दिखी और न ही ड्राइवर. काफी तलाश करने के बाद जब अशफाक को कार ड्राइवर नहीं मिला तो उस ने इमरान को फोन किया. उस का फोन स्विच्ड औफ मिलने से अशफाक घबरा गया.

यह जानकारी उस ने शिखा को दी तो उस ने कहा कि पुलिस बहुत तेजी से काररवाई कर रही है, इसलिए वह बच्चे को मुरादाबाद आने वाली किसी बस में बिठा दे. उस की जेब में वह नाम व फोन नंबर लिखी परची भी डाल दे ताकि कोई उसे यहां तक पहुंचा सके. अशफाक धु्रव को ले कर कौशांबी बस डिपो पर पहुंचा. वहां ग्रेटर नोएडा डिपो की एक बस नोएडा जाने के लिए तैयार खड़ी थी. उस ने धु्रव को उसी बस में कंडक्टर वाली सीट पर बैठा दिया और उस की जेब में नाम और फोन नंबर लिखी परची डाल दी. जब बस वहां से चलने को तैयार हुई और कंडक्टर दीपक सिंह अपनी सीट पर बैठा तो उस ने सवारियों से उस बच्चे के बारे में पूछा. बच्चा रो रहा था.

कंडक्टर ने उस की जेब की तलाशी ली तो जेब में परची मिली. उस परची पर लिखा फोन नंबर मिलाने पर उस की बात बच्चे के पिता गौरव से हुई. तब कंडक्टर को पता चला कि इस बच्चे का एक दिन पहले अपहरण हुआ था. यह जानकारी मिलने के बाद कंडक्टर दीपक सिंह ने धु्रव को महाराजपुर पुलिस चौकी पहुंचा दिया. उधर अपहृत धु्रव को बस में बैठाने के बाद मोहम्मद अशफाक तेलंगाना लौट गया. उसे विश्वास था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन उस की सोच गलत साबित हुई और वह प्रेमिका के साथ हवालात पहुंच गया. आरोपी अशफाक, शिखा और इमरान खान से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

गिरफ्तार होने के बाद भी अशफाक का कहना है कि वह शिखा के बिना नहीं रह सकता. जेल से छूटने के बाद वह उस के साथ ही शादी करेगा, वहीं शिखा ने भी कहा कि वह अशफाक के साथ ही तेलंगाना में रहेगी. गौरव ने बताया कि वह अपने बच्चों को शिखा से दूर रख कर उन की अच्छी तरह देखभाल करेगा.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त परविर से की गई बातचीत पर आधारित

 

Jodhpur Crime : सालियों ने इलेक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन से जीजा के किए 6 टुकड़े

Jodhpur Crime : सीमा, प्रियंका और बबीता सगी बहनें थीं. तीनों की जिंदगी भी मजे से गुजर रही थी, इन की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि भी नहीं थी. लेकिन तीनों बहनों ने जो जघन्य अपराध किया उसे जान कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाते. और वजह सिर्फ यह थी कि तीनों बहनों में से एक बहन सीमा गौना कर के ससुराल जा पाए…  

सी 11 अगस्त की बात है. सुबह के करीब 9 बजे थे. सूर्यनगरी के नाम से विख्यात राजस्थान के जोधपुर शहर में नांदड़ी गोशाला के पीछे नगर निगम की एक टीम सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की हौदी की सफाई कर रही थी. सफाई करते समय टीम को कचरे की एक थैली मिली. इस थैली में इंसान के कटे हुए 2 हाथ और 2 पैर थे. कटे हाथपैर मिलने से वहां काम कर रहे सफाई कर्मचारियों में दहशत फैल गई. सफाई कर्मियों ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. सूचना मिलते ही बनाड़ थाना पुलिस वहां पहुंच गई. वहां प्लांट सुपरवाइजर पूनमचंद बाल्मीकि और औपरेटर पप्पू मंडल ने बताया कि प्लांट में जाने वाली हौदी की सफाई करते समय कपड़े की एक थैली निकली

थैली में किसी इंसान के कटे हुए 2 हाथ और 2 पैर हैं. सफेदलाल रंग इस थैली पर भाग्य लक्ष्मी टेक्सटाइल, कपड़े के व्यापारी, आनंदपुर कालू, जिला पाली छपा हुआ है. इंसान के कटे हाथपैर मिलने का मामला गंभीर था. पुलिस टीम ने संबंधित जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. इस पर जोधपुर के डीसीपी (ईस्ट) धर्मेंद्र सिंह यादव, एडीसीपी (ईस्ट) भागचंद, मंडोर एसीपी राजेंद्र दिवाकर, बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजना मौके पर पहुंच गए. कटे हाथपैरों का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंग किसी पुरुष के हैं, जिन्हें किसी धारदार कटर मशीन से काटा गया है. निस्संदेह किसी व्यक्ति की निर्दयता से हत्या कर उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर फेंके गए थे.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि मृतक का सिर और धड़ कहां है? क्योंकि केवल हाथपैरों से उस की शिनाख्त मुश्किल थी और बिना शिनाख्त के केस आगे नहीं बढ़ सकता था. इसलिए अधिकारियों ने डौग स्क्वायड और एफएसएल टीम को मौके पर बुला लिया, लेकिन पुलिस को तत्काल ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से मृतक या कातिल के बारे में कुछ पता चल पाता. पुलिस ने कटे हुए हाथपैर एमजीएच अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिए. सब से पहले मृतक का सिर और धड़ मिलना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने आसपास के इलाकों और ट्रीटमेंट प्लांट हौदी से जुड़ी सीवरेज पाइप लाइनों में जेट मशीनों से धड़ सिर की तलाश शुरू कराई.

इस के अलावा आसपास के जिलों में वायरलैस संदेश भेज कर गुमशुदा लोगों की जानकारी भी मांगी गई. पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी कि उसी दिन शाम करीब 4 बजे सूचना मिली कि ट्रीटमेंट प्लांट की सीवरेज लाइन में एक और थैली मिली है, जिस में कटा हुआ सिर है. इस पर पुलिस अधिकारी दोबारा प्लांट पर पहुंचे. जिस थैली में सिर मिला, उस पर नागौर जिले के मेड़ता सिटी की एक दुकान का पता छपा थाजरूरी जांच पड़ताल के बाद कटा सिर भी अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया गया. बनाड़ पुलिस थाने में एएसआई गोरधन राम की रिपोर्ट पर अज्ञात मुलजिमों के खिलाफ अज्ञात व्यक्ति की हत्या कर सबूत नष्ट करने का केस दर्ज कर लिया गया.

अपराध की गंभीरता को देखते हुए जांच पड़ताल के लिए पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर एडीसीपी भागचंद के नेतृत्व में एसीपी राजेंद्र दिवाकर, बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजना और डांगियावास थानाधिकारी लीलाराम की टीम गठित की गई. धड़ की तलाश जरूरी थी. इस के लिए अधिकारियों ने सीवरेज प्लांट में आने वाले नाले में आधुनिक तकनीकी मशीनों से धड़ की तलाश शुरू कराई. उसी दिन रात को जोधपुर पुलिस को नागौर जिले से सूचना मिली कि चरणसिंह उर्फ सुशील चौधरी 10 अगस्त से लापता है. उस की गुमशुदगी का मामला मेड़ता सिटी थाने में दर्ज है. जोधपुर पुलिस ने चरणसिंह के फोटो मंगा कर सीवरेज लाइन में मिले कटे सिर के फोटो से मिलान किया, तो दोनों में समानता पाई गई.

  जोधपुर पुलिस ने मेड़ता सिटी थाना पुलिस को सूचना भेज कर चरणसिंह के परिजनों को बुलाया. दूसरे दिन यानी 12 अगस्त को मिले कटे अंगों की शिनाख्त मेड़ता के खाखड़की गांव निवासी 27 वर्षीय चरणसिंह उर्फ सुशील जाट के रूप में हो गई. चरणसिंह के मामा के बेटे राजेंद्र गोलिया ने की. राजेंद्र गोलिया ने जोधपुर पुलिस को बताया कि 2 महीने पहले ही चरणसिंह राजस्थान सरकार के कृषि विभाग में सहायक कृषि अधिकारी के रूप में नियुक्त हुआ था. उस की पोस्टिंग नागौर जिले के डेगाना तहसील के खुडि़याला गांव में थी. चरणसिंह 10 अगस्त को घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. मिलने लगे सुराग कटे हुए अंगों की शिनाख्त हो जाने से पुलिस को तहकीकात में कुछ मदद मिली. पुलिस ने चरणसिंह के परिजनों से जरूरी पूछताछ की ताकि कत्ल के कारण और कातिलों का पता लगाया जा सके.

पूछताछ में पता चला कि 2013 में चरणसिंह की शादी बोरूंदा निवासी पोकर राम जाट की बेटी सीमा से हुई थी, लेकिन अभी गौना (शादी के बाद की एक रस्म) नहीं हुआ था. इन दिनों उस के गौने की बात चल रही थी. यह भी सामने आया कि चरणसिंह के परिवार और उस की ससुराल वालों के बीच बोरूंदा स्थित एक चूना भट्ठे को ले कर कुछ विवाद था. दरअसल, चरणसिंह के पिता नेमाराम कई सालों से बोरूंदा में पोकर राम के चूना भट्ठे पर काम करते थे. बाद में चरणसिंह की शादी पोकरराम की बेटी सीमा से हो गई. कुछ साल पहले पोकर राम को लकवा गया था, तब नेमाराम ने चूना भट्ठे का सारा काम संभाल लिया थाबाद में इस भट्टे के मालिकाना हक को ले कर नेमाराम और पोकर राम के बीच विवाद हो गया.

नेमाराम अपने बेटे चरणसिंह का गौना करवाना चाहते थे, जबकि पोकर राम के परिवार वाले पहले भट्ठे का विवाद सुलझाना चाहते थे. एक तरफ पुलिस मामले की गहराई में जा कर हत्या के कारणों और हत्यारों की तलाश में जुटी थी, वहीं दूसरी तरफ सीवरेज प्लांट से जुड़े नालों और पाइप लाइनों में चरणसिंह के धड़ की तलाश की जा रही थी. इस बीच, जोधपुर पुलिस को सूचना मिली कि मेड़ता सिटी में पब्लिक पार्क के पास एक लावारिस मोटरसाइकिल खड़ी मिली है, जो चरणसिंह की है. पुलिस ने इस पब्लिक पार्क के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इन फुटेज में 10 अगस्त की शाम करीब 4:50 बजे सलवारसूट पहने 2 युवतियां मोटर साइकिल खड़ी करती नजर आईं.

चरणसिंह की बाइक पर सवार हो कर आई 2 युवतियों से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्या की कडि़यां उस की ससुराल से जुड़ी हो सकती हैं. अब पुलिस ने अपनी जांच का फोकस मानव अंग मिलने वाले जोधपुर के नांदड़ी इलाके के साथसाथ मेड़ता और बोरूंदा पर केंद्रिंत कर दिया. इस में साइबर टीम के जरिए तकनीकी जानकारियां भी जुटाई गईं. 3 सगी बहनों के नाम आए सामने पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए चरणसिंह की पत्नी के अलावा 2 सालियों, एक साले और चूना भट्टे से जुड़े कई लोगों से पूछताछ कीगहन पूछताछ और जांच पड़ताल कर जरूरी सबूत जुटाने के बाद जोधपुर पुलिस ने 13 अगस्त को सहायक कृषि अधिकारी चरणसिंह उर्फ सुशील चौधरी की हत्या के मामले में उस की 23 वर्षीय पत्नी सीमा के अलावा 2 बड़ी सालियों 25 वर्षीया प्रियंका और 27 वर्षीया बबीता के साथ प्रियंका के बौयफ्रैंड भींयाराम जाट को गिरफ्तार कर लिया

भींया राम खींवसर थाना इलाके के गांव कांटिया का रहने वाला था जबकि तीनों बहनें सीमा, प्रियंका और बबीता बोरूंदा के डांगों की ढाणियों की रहने वाली थी. ये तीनों बहनें शादीशुदा थीं. पोकर राम जाट की इन तीनों बेटियों में सीमा का अभी गौना नहीं हुआ था. तीनों बहनों और भींयाराम की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन शाम को मंडोर 9 मील इलाके में नाले की तलाशी करवाकर चरणसिंह का धड़ भी बरामद कर लिया. पुलिस की पूछताछ में चरणसिंह की नृशंस हत्या के लिए राक्षसी बनीं तीनों सगी बहनों की सामने आई कहानी में फिल्मों की तरह थ्रिल भी था और सस्पेंस भी. इस में प्यार भी था और नफरत भी. कुल जमा 5 किरदारों की कहानी थी यह. ये किरदार थे पति चरणसिंह, उस की पत्नी सीमा, साली प्रियंका और बबीता. साथ ही प्रियंका से 15 साल बड़ा उस का बौयफ्रैंड भींयाराम.

इसे कथा कहानी पटकथा कुछ भी कहें, इस में आजाद ख्याल तीनों बहनों की महत्वाकांक्षाएं शामिल थीं. अपनी इच्छा से आजाद जीवन जीने के लिए तीनों बहनों ने ऐसा खूनी खेल खेला, जिस के बारे में चरणसिंह तो क्या कोई भी सोच तक नहीं सकता था कि उस की पत्नी और सालियां ऐसी नृशंसता करेंगी. हत्या की आरोपी तीनों बहनों और भींयाराम से पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है

बोरूंदा के डांगों के रहने वाले पोकर राम की 7 बेटियां हैं और एक बेटा. पोकर राम का बोरूंदा में चूना भट्टा था. इस से उस की ठीकठाक कमाई हो जाती थी. इसी कमाई से उस ने एकएक कर 7 बेटियों की शादी कर दी थी. इन में 4 बेटियां अपने ससुराल में पति और बच्चों के साथ सुखी हैं. बाकी रह गई 3 बेटियां सीमा, प्रियंका और बबीता. इन तीनों की भी शादी हो चुकी थी. इन में बबीता और प्रियंका ने अपनेअपने पति को छोड़ दिया था. सीमा सब से छोटी थी. उस की शादी 2013 में नागौर जिले के मेड़ता सिटी निवासी नेमाराम जाट के बेटे चरणसिंह उर्फ सुशील से हुई थी, लेकिन गौना नहीं होने के कारण सीमा अभी तक ससुराल नहीं गई थी.

तीनों बहनें पढ़ीलिखी थीं. सीमा वेटनरी (पशुपालन) सहायक थी. बबीता ने एएनएम (नर्सिंग) का कोर्स कर रखा था, लेकिन अभी उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली थी. वह पटवारी भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही थी. प्रियंका भी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. वह एक मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनी से जुड़ी हुई थी और सौंदर्य स्वास्थ्य संबंधी प्रसाधन सामग्री औनलाइन मंगा कर बेचने का काम करती थी. नागौर जिले के खींवसर थाना इलाके के कांटिया गांव का रहने वाला भींयाराम प्रियंका के साथ काम करता था. इसीलिए प्रियंका और भींयाराम की दोस्ती थी. भींयाराम पूर्व फौजी था. हालांकि वह प्रियंका से 15 साल बड़ा था, फिर भी दोनों में दोस्ती थी. प्रियंका और बबीता पतियों से अलग होने के बाद जोधपुर शहर के नांदड़ी इलाके में किराए पर रहती थीं. हालांकि इस बीच बबीता का रिश्ता दूसरी जगह तय हो गया था.

अगर चरणसिंह की बात करें तो वह प्रतिभाशाली युवक था. 10वीं और 12वीं की परीक्षा में मेरिट हासिल करने के बाद उस ने बीएससी की पढ़ाई की थी. इसी दौरान उस की शादी सीमा से हो गई थी. बाद में चरणसिंह ने जोधपुर के मंडोर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में एसआरएफ के रूप में काम किया. इसी दौरान चरणसिंह अच्छी नौकरी हासिल करने के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं देता रहा. इसी के चलते उस का चयन बैंक अधिकारी के रूप में हो गया. उसे पहली नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अयोध्या में मिली. करीब 10-12 महीने काम करने के दौरान चरणसिंह का चयन राजस्थान के कृषि विभाग में सहायक कृषि अधिकारी के रूप में हो गया. इसी साल 23 मई को उस ने नौकरी ज्वाइन की थी.

चरणसिंह की शादी हुए 7 साल हो चुके थे. उस की उम्र भी 27 साल हो गई थी. साथ ही अच्छी सरकारी नौकरी भी मिल गई थी, लेकिन विवाहित होने के बावजूद वह पत्नी सुख से वंचित था. चरणसिंह के परिवार वाले काफी दिनों से सीमा का गौना कराने का दबाव डाल रहे थे, लेकिन सीमा के कहने पर उस के परिजन हर बार टाल जाते थे जबकि सीमा भी 23 साल की हो चुकी थी. चूंकि सीमा पत्नी थी, इसलिए चरणसिंह कई बार उस से मोबाइल पर बात कर लेता था. सीमा वैसे तो हंसहंस कर प्यार की बातें करती थी, लेकिन गौने के नाम पर भड़क जाती थीचरणसिंह हंसमुख, स्मार्ट, सरकारी अधिकारी था, फिर भी पता नहीं किन कारणों से सीमा उसे पसंद नहीं करती थी. कहा जाता है कि वह समलैंगिंक थी. उस के किसी महिला से संबंध थे. वह पुरुषों से दूर रहना पसंद करती थी. इसीलिए वह गौना करा कर ससुराल नहीं जाना चाहती थी.

आरोप है कि सीमा के व्यवहार से परेशान चरणसिंह अपनी बड़ी साली प्रियंका से फ्लर्ट करता था. प्रियंका जीजासाली के रिश्ते को देखते हुए इस का विरोध नहीं कर पाती थी, लेकिन वह चरणसिंह की बातों से परेशान जरूर हो जाती थी. षडयंत्र ऐसा कि पुलिस भी चकरा गई. कुछ दिन पहले जब चरणसिंह के परिवार की ओर से गौने का ज्यादा दबाव पड़ा, तो सीमा ने अपनी दोनों बड़ी बहनों प्रियंका और बबीता से कहा कि वह आत्महत्या कर लेगी लेकिन चरणसिंह के साथ नहीं जाएगी. इस पर बबीता और प्रियंका ने उस से कहा कि उसे आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है, हम मिल कर उसे ही निपटा देंगे, जिस से तू परेशान है.

इस के बाद तीनों बहनें चरणसिंह की हत्या की साजिश रचने लगी. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने अपनी योजना को अंतिम रूप दे दिया. चरणसिंह की हत्या को अंजाम देने के लिए उन्होंने बाजार से इलैक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन खरीदी. यह मशीन जोधपुर में प्रियंका बबीता के मकान पर रख दी गई. योजना के तहत सीमा ने फोन कर चरणसिंह को 10 अगस्त को जोधपुर बुलाया. चरणसिंह उसी दिन अपनी मोटर साइकिल से जोधपुर पहुंच गया. सीमा उसे इंतजार करती मिली. वह चरणसिंह की मोटर साइकिल पर बैठ कर उसे अपनी दोनों बहनों के मकान पर नांदड़ी ले गई. वहां सीमा, प्रियंका बबीता ने कुछ देर तो इधरउधर की बातें की, फिर चरणसिंह को शराब पिलाई. बाद में कोल्डड्रिंक में नींद की गोलियां मिला कर उसे पिला दी गईं.

कुछ ही देर में चरणसिंह अचेत हो गया, तो उसे एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया गया ताकि उस के होश में आने की कोई गुंजाइश ही रहे. बाद में तीनों बहनों ने उसे गला दबा कर उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया. इस के बाद तीनों ने इलैक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन से चरणसिंह के शव को 6 टुकड़ों में काटा. इन टुकड़ों को 3 थैलियों में भर दिया गया. शव के टुकड़े करने के दौरान फर्श पर फैले खून को साफ करने के लिए पूरे घर को धो दिया गया. इस सब के बाद तीनों बहनें मकान पर ताला लगा कर चरणसिंह की मोटर साइकिल से बोरूंदा पहुंची. वहां सीमा को उतार दिया गया. फिर प्रियंका और बबीता उसी मोटर साइकिल से मेड़ता सिटी गईं. वहां इन दोनों ने पब्लिक पार्क के बाहर चरणसिंह की मोटर साइकिल खड़ी कर दी.

मेड़ता सिटी से दोनों बहनें बस से जोधपुर गईं. इन बहनों के पास केवल एक स्कूटी थी. जिस पर शव के टुकड़ों को ले जा कर ठिकाने लगाना जोखिम भरा काम था. इसलिए प्रियंका ने अपने बौयफ्रैंड भींयाराम को फोन कर के जरूरी काम होने की बात कह कर बुलाया. भींयाराम 10 अगस्त की रात कार ले कर उन के मकान पर पहुंचा, तो प्रियंका और बबीता ने उसे चरणसिंह की हत्या कर टुकड़े थैलियों में भर कर रखने की बात बताई. साथ ही उस से उन्हें ठिकाने लगाने में मदद मांगी. भींयाराम ने इस काम में उन का साथ देने से इनकार कर दिया, तो प्रियंका बबीता ने कहा कि अगर वह साथ नहीं देगा, तो तीनों बहनें सुसाइड कर लेंगी और सुसाइड नोट में मौत का जिम्मेदार उसे बता देंगी.

डरासहमा भींयाराम आखिर उन का साथ देने को राजी हो गया. उस ने तीनो थैलियां अपनी कार की पिछली सीट पर रखीं. दोनों बहनें आगे की सीट पर बैठ गईं. इन्होंने चरणसिंह के कटे हाथपैर और सिर वाली 2 थैलियां नांदड़ी में अपने घर से करीब 100 मीटर दूर सीवरेज लाइन में डाल दीं. धड़ वाली तीसरी थैली इन्होंने रातानाड़ा पुलिस लाइन के पीछे नाले में डालने की सोची, लेकिन वहां पुलिस का नाका देख कर वे लोग नागौर रोड़ की तरफ निकल गए, वहां नाले में तीसरी थैली फेंक दी. इस के बाद तीनों नांदड़ी गए. प्रियंका ने रात को डर लगने की बात कह कर भीयाराम को रोकने की कोशश की, लेकिन उस ने रुकने से इनकार कर दिया और अपने घर चला गया.

हाथपैर सिर वाली 2 थैलियां 11 अगस्त को नांदड़ी गोशाला के पीछे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की हौदी की सफाई के दौरान मिली थी. चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद 13 अगस्त को उन की निशानदेही पर धड़ वाली थैली बरामद की गई. पुलिस ने 14 अगस्त को जोधपुर के एमजीएच अस्पताल में 5 डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से शव के 6 टुकड़ों का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों की टीम ने शव के सभी 6 टुकड़ों के डीएनए सैंपल लिए ताकि पुष्टि हो सके कि ये एक ही व्यक्ति के थे. तीनों बहनें इतनी शातिर निकली कि जब चरणसिंह के लापता होने और मेड़ता सिटी थाने में गुमशुदगी दर्ज होने की खबरें सोशल मीडिया पर चलने लगीं, तो उन्होंने चरणसिंह के रिश्तेदारों को फोन कर पूछा कि वे कहां गायब हो गए?

पुलिस ने 12 अगस्त को जब तीनों बहनों से अलगअलग पूछताछ की, तो वे पूरे आत्मविश्वास से पुलिस को छकाती रहीं और चरणसिंह की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार करती रहींबाद में पुलिस ने भींयाराम को भी हिरासत में ले लिया और सीसीटीवी फुटेज सहित अन्य कई सबूत उन के सामने रख कर पूछताछ की, तो वे टूट गईं और चरणसिंह की हत्या कर उस के शव के टुकड़े कर सीवरेज के नालों में फेंकने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद 13 अगस्त को चारों को गिरफ्तार कर लिया गया. पति चरणसिंह से नफरत करने वाली सीमा ने अपनी आजादी और शौक पूरे करने के लिए उसे मौत के घाट उतार कर खुद के साथ अपनी 2 बड़ी बहनों और एक बहन के दोस्त का जीवन बरबाद कर दिया. अपने पतियों की ना हो सकी तीनों बहनों ने पिता पोकर राम को बुढ़ापे में ऐसा दर्द दिया है कि वह जीते जी उसे सालता रहेगा.

(कहानी पुलिस सूत्रों और विभिन्न रिपोर्ट्स  पर आधारित)

 नोटपुलिस ने सीमा के समलैंगिक संबंधों की पुष्टि की है, समाचार पत्रों में भी सीमा के समलैंगिक होने की बात छपी है.

                              

Family Dispute : सौतन को सीने में मारी 6 गोलियां

Family Dispute : शबाना ने आलिया नाम की औरत का सरेराह कत्ल किया था, उस ने आलिया के सीने पर बैठ कर पूरी मैग्जीन खाली कर दी थी, आखिर क्यों…

नाम शबाना. हां, यही नाम है उस का. लेकिन 2 बार क्यों? क्योंकि उस ने भले ही अपराध किया, लेकिन खुलेआम किया. भरे चौराहे पर किया, बिना डरे किया. अपराध कर के भागी भी नहीं. इंतजार करती रही पुलिस का. चौराहे पर एक लाश पड़ी थी, आलिया की लाश. कुछ ही देर पहले शबाना ने आलिया के सीने पर चढ़ कर पूरी पिस्तौल खाली कर दी थी. उस की लहूलुहान लाश सड़क पर पड़ी थी और शबाना पिस्तौल लहराती लाश के इर्दगिर्द घूम रही थी. गुस्से में उस के होंठों से गाली या जो भी शब्द निकल रहे थे, वे सब आलिया के लिए थे. यह घटना बीते 9 जून की है.

आखिर आलिया थी कौन, जिस से शबाना इतनी नाराज थी कि पिस्तौल की सारी गोलियां उस के सीने में उतार दीं. यह जानते हुए भी कि उसे जेल जाना पड़ेगा. सच तो यह है कि उस का क्रोध, उस की नफरत किसी भी सोच पर भारी पड़ गए थे. इतने भारी कि आलिया को मार कर उसे खुद भी मरना पड़ता तो वह खुशीखुशी मर जाती. अपने अंदर की इस नफरत को शबाना ने एकडेढ़ साल बड़ी शिद्दत से पाला था. यहां तक कि अपने पति और बच्चों तक को पता नहीं चलने दिया. शबाना घरेलू महिला थी. 5 बच्चों की मां. स्वाभाविक सा सवाल यह है कि उस के पास पिस्तौल कहां से आई और उस ने उसे चलाना कैसे सीखा? इस की भी एक अलग कहानी है. शबाना का पति मोहम्मद जफर ट्रांसपोर्टर था. कभीकभी वह खुद भी ट्रक ले कर बाहर चला जाता था.

घटना से 8-9 महीने पहले एक बार जब वह कई दिन बाद घर लौटा तो शबाना ने उसे बताया कि रात में चोरी करने की कोशिश की गई थी, 3-4 लोग थे हथियारों से लैस. मैं तो बुरी तरह डर गई थी. मुझे डर अपना नहीं बच्चों का था. गनीमत रही कि मुझे जागता देख वे लोग भाग गए.

‘‘थाने में रिपोर्ट लिखाई?’’ जफर ने पूछा तो शबाना बोली, ‘‘रिपोर्ट तो तब लिखाती जब कुछ चोरी गया होता. पुलिस वाले उलटा मुझ से ही दसों तरह के सवाल पूछते.’’

शबाना ने पहले जफर के दिमाग में यह बात बैठाई कि उस के पीछे वह और बच्चे असुरक्षित रहते हैं. फिर रास्ता भी बता दिया, ‘‘कब क्या हो जाए, कोई भरोसा नहीं. अपने बचाव के लिए घर में कोई हथियार होना चाहिए. बेहतर होगा कोई हथियार खरीद कर घर में रख लो. वक्त जरूरत में काम आएगा. मैं ने अखबारों में पढ़ा है, देसी पिस्तौल चोरीछिपे खूब बिकती हैं.’’

बात जफर के दिमाग में बैठ गई. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘जरूरत पड़ने पर चलाएगा कौन?’’

‘‘मैं चलाऊंगी और कौन चलाएगा.’’ शबाना ने पूरे आत्मविश्वास से कहा.

‘‘सीखोगी कहां?’’

‘‘ये मेरा सिरदर्द है. क्या सारे काम आदमी ही कर सकता है, औरत नहीं?’’ शबाना के तेवर बदलते देख जफर सहज भाव में बोला, ‘‘मुझे तुम्हारी चिंता रहती है, इसलिए पूछा.’’

‘‘अगर मैं कहूं, मुझे पिस्तौल चलाना आता है तो पूछोगे कैसे सीखा, इसलिए मैं पहले ही बता देती हूं. मैं ने फेसबुक से सीखा है.’’ शबाना ने यह रहस्य भी खोल दिया.

जफर में इतनी हिम्मत नहीं थी कि शबाना से पंगा लेता, सो उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, मैं कर दूंगा इंतजाम.’’

‘‘कर तो दोेगे,’’ शबाना थोड़ी सी तल्ख हो कर बोली, ‘‘पर पहले यह पूछ तो लेते, मुझे चाहिए क्या?’’

‘‘तुम ने हथियार की बात की है. मैं हथियार लाने को कह रहा हूं.’’ जफर ने कहा तो शबाना उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोली, ‘‘मुझे तमंचा नहीं, पिस्तौल चाहिए. जिस में 5-6 दाने (कारतूस) भरे जाते हैं. साथ में 10-15 दाने भी.’’

मोहम्मद जफर शबाना से बहस करने की स्थिति में नहीं था, इसलिए उसने पत्नी की बात मान ली. इस के कुछ दिनों बाद जफर को ट्रक ले कर मुंगेर जाना पड़ा. वहां कुछ लोग उस के परिचित थे. उन की मदद से उस ने 25 हजार में .32 बोर की पिस्तौल और कारतूस खरीद लिए. वापस लौट कर उस ने पिस्तौल और कारतूस शबाना के हवाले कर दिए. शबाना बहुत खुश हुई. मऊ हरथला निवासी मोहम्मद जफर और शबाना का निकाह करीब 20 साल पहले हुआ था. वक्त के साथ दोनों के 5 बच्चे हुए. 2 बेटे और 3 बेटियां. उन का बड़ा बेटा हौस्टल में रह कर नैनीताल के एक जानेमाने स्कूल में पढ़ रहा था. बाकी की पढ़ाई मुरादाबाद में ही चल रही थी.

जफर पहले ट्रक ड्राइवर था. धीरेधीरे उस ने ट्रांसपोर्ट कंपनी बना ली थी. जफर और शबाना की गृहस्थी ठीक चल रही थी. घर में न पैसे की कमी थी, न सुख के साधनों की. पैसा आया तो जफर ने कुछ प्रौपर्टी भी खरीद ली थी. पति ने ला कर दी पिस्तौल बहरहाल, कह सकते हैं कि जफर का परिवार सुखी और संपन्न था. हां, शबाना जरूर विचलित थी. उस के मन को तब शांति मिली थी, जब उस के हाथों में पिस्तौल और कारतूस आ गए. शबाना ने यूट्यूब पर कुछ पहले देखा था, कुछ पिस्तौल आने पर सीख लिया. उसे बस इतना ही चाहिए था कि दुश्मन को मार सके. और उस की दुश्मन थी आलिया. 8 जून की शाम को शबाना हड़बड़ाई सी साप्ताहिक बाजार से घर लौटी और बुरका पहन कर जल्दबाजी में बाहर जाने लगी तो बच्चों ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हो अम्मी?’’

शबाना ने जाते हुए जल्दबाजी में जवाब दिया, ‘‘दुकानदार के पास पैसे रह गए हैं, ले कर आती हूं.’’

साप्ताहिक बाजार शबाना के घर से ज्यादा दूर नहीं था. शबाना बुरके में छिपा कर फुल लोडेड पिस्तौल लाई थी. आलिया 7 महीने की गर्भवती थी. हरथला बाजार में उसे रूटीन चैकअप के लिए डाक्टर के पास जाना था. वह पड़ोस में रहने वाली मुसकान को साथ ले कर घर से निकली. साथ में उस की 4 साल की बेटी जिया भी थी. चैकअप के बाद सवा 7 बजे आलिया जब मुसकान के साथ घर लौट रही थी, तब शबाना दीवार की ओट में खड़ी उसी का इंतजार कर रही थी. पास आते ही शबाना ने सब से पहले वहां खेल रहे बच्चों को हटाया और आलिया पर गोली दाग दी. उस की चलाई गोली आलिया को न लग कर मुसकान की बगल से निकल गई. आलिया को पता था कि उस की जान को खतरा है, इसी के मद्देनजर वह जमीन पर गिर गई. उसे गिरा देख मुसकान उस की बेटी जिया को ले कर वहां से भाग निकली.

आलिया के गिरने से शबाना को मौका मिल गया. वह पिस्तौल ले कर उस के सीने पर चढ़ गई और उस पर पूरी मैगजीन खाली कर दी. यह देख कर कुछ लोग वहां जमा हो गए. शबाना के पास जाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. कुछ अपनी छतों से यह दृश्य देख रहे थे. जब शबाना को यकीन हो गया कि आलिया मर चुकी है तो वह पिस्तौल हवा में लहराते हुए लाश के आसपास घूमने लगी. शबाना का घर वहां से ज्यादा दूर नहीं था. किसी जानने वाले ने यह खबर उस के 17 वर्षीय बेटे को दे दी. वह जल्दी से स्कूटी ले कर घटनास्थल पर पहुंचा. उस ने मां से कहा, ‘‘अम्मी, घर चलो, मैं आप को लेने आया हूं.’’

लेकिन शबाना ने जाने से इनकार कर दिया और बेटे को घर जाने को कहा. इसी बीच किसी ने थाना सिविललाइंस को सूचना दे दी थी. इस सनसनीखेज घटना की खबर मिलते ही थानाप्रभारी नवल मारवाह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मुरादाबाद के इतिहास की शायद यह पहली घटना थी, जब एक औरत ने दूसरी औरत का कत्ल किया था, वह भी किसी माफिया डौन की तरह. कहानी में कहानी  घटना की खबर मिलते ही एएसपी दीपक भूखर, एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और एसएसपी अमित पाठक भी वारदात की जगह पहुंच गए. इंसपेक्टर नवल मारवाह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो शबाना ने अपनी पिस्तौल यह कह कर उन के हवाले कर दी, ‘‘मैं आप का ही इंतजार कर रही थी.’’

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में मौके की जांचपड़ताल और लिखापढ़ी कर के आलिया की लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी गई. शबाना को साथ ले कर पुलिस थाना सिविललाइंस लौट आई. सब के सामने पूछताछ की जानी थी, इसलिए एसएसपी, एसपी (सिटी) और एएसपी भी थाने आ गए. शबाना ने आलिया को सरेराह क्यों मारा, आलिया को ले कर उस के मन में इतना गुस्सा क्यों था और आलिया कौन थी, यह जानने के लिए हमें एक और कहानी की दुम पकड़ कर थोड़ा दाएंबाएं घूमना होगा. हां, तो एक थी मानसी शर्मा. बीए की डिग्रीधारक. जिला बिजनौर के थाना धामपुर थानाक्षेत्र के गांव चक्करपुर में पलीबढ़ी और धामपुर में पढ़ी.

12 साल पहले मानसी का विवाह राजू शर्मा से हुआ, जो कस्बा नूरपुर के निकटवर्ती गांव कुंडा बलदान का रहने वाला था. दोनों का एक बेटा भी हुआ, तनिष्क.  शादी के बाद राजू कभीकभी शराब पी कर आता था तो मानसी उसे डांटती भी और समझाती भी कि यही हाल रहा तो मेरी और बेटे की जिम्मेदारी कैसे उठाओगे. कभीकभी राजू मानसी की बात मान भी लेता था. लेकिन जैसेजैसे दोनों का रिश्ता पुराना होता गया, वैसेवैसे राजू की शराब पीने की लत बढ़ती गई. एक वक्त ऐसा भी आया, जब राजू पूरा पियक्कड़ बन गया, ऊपर से मानसी के साथ मारपीट भी करता था. वह बीवीबच्चे के बिना रह सकता था, पर शराब के बिना नहीं. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मानसी ने राजू से साफसाफ कह दिया कि उसे दोनों में से किसी एक को चुनना होगा.

यह बात भी मानसी के विपरीत ही गई. कोई रास्ता नहीं बचा तो मानसी ससुराल को तिलांजलि दे कर बेटे तनिष्क के साथ अपनी बुआ के पास मुरादाबाद आ गई. मायके चक्करपुर जाने से कोई फायदा नहीं था. मानसी ग्रैजुएट तो थी ही सुंदर भी थी. उसे उम्मीद थी कि कोशिश करने पर कोई न कोई ऐसी नौकरी जरूर मिल जाएगी, जिस से अपना और बेटे का पेट पाल सके. उस ने कोशिश की तो उसे दिल्ली रोड स्थित एक बड़े डेंटल

मैडिकल कालेज में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई. इस से उस का और तनिष्क का ठीकठीक गुजारा होने लगा. मानसी अपनी वैवाहिक जिंदगी और पति को भूल गई. पति राजू तो उसे पहले ही भूल चुका था. आलिया को 6 गोलियां लगी थीं. 4 घंटे चले पोस्टमार्टम में पता चला कि उसे 4 गोलियां मारी गई थीं, जो शरीर के आरपार हो गई थीं. जबकि शबाना का कहना था कि उस ने आलिया को 6 गोली मारी थी. जब 2 गोलियों की जानकारी नहीं मिली तो आलिया के शव को एक्सरे के लिए भेजा गया. एक्सरे में शरीर के अंदर फंसी गोलियां नजर आ रही थीं. डाक्टरों की टीम ने फिर गोलियां तलाशीं, लेकिन सफलता नहीं मिली.

पुलिस की परेशानी अत: शव को एक बार फिर एक्सरे के लिए भेजा गया. इस एक्सरे में भी छाती में फंसी 2 गोलियां नजर आईं. डाक्टरों ने दोनों गोलियां निकाल दीं. गोलियां लगने से आलिया का लीवर और दोनों फेफड़े छलनी हो गए थे, उस की मौत ज्यादा खून बहने से हुई थी. उस के पेट में जो 7 महीने का गर्भ था, वह भी नष्ट हो गया था. मानसी के मातापिता का निधन हो चुका था. उस के पैतृक गांव चक्करपुर में उस का भाई सूरज शर्मा, बहन पूनम शर्मा और छोटा भाई पिंटू शर्मा रहते थे. पूनम की शादी हो चुकी थी. मानसी मायके इसलिए नहीं गई थी, क्योंकि वह भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. थाने में शबाना से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 6-7 महीने पहले भी वह थाने आई थी. अगर तभी उसे आलिया का पता बता दिया गया होता तो शायद आज उस की हत्या न करनी पड़ती.

शबाना ने बताया कि 7-8 महीने पहले आलिया गौर ग्रेसियस में किराए के फ्लैट में रह रही थी, तो वह उस से मिलने गई थी. लेकिन वहां गार्डों ने उसे अंदर नहीं जाने दिया था. वजह यह कि उसे आलिया का फ्लैट या फोन नंबर मालूम नहीं था. उस ने जिद की तो गार्डों ने कहा कि थाने जा कर ले ले पता, वहां दर्ज होता है. वहां से वह थाने आई तो वहां भी आलिया के बारे में नहीं बताया.

‘‘जिस का तुम ने मर्डर किया, उस से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’ पूछने पर शबाना का दर्द छलक आया. वह गुस्से भरी रोआंसी आवाज में बोली, ‘‘वह मेरी सौतन थी, मेरे पति की दूसरी बीवी. उस ने धर्म बदल कर निकाह किया था मेरे मर्द से. उस का नाम मानसी शर्मा था, जिसे बदल कर वह आलिया बनी थी.’’

‘‘तुम ने अपने पति को क्यों नहीं रोका इस सब से?’’ एसएसपी अमित पाठक ने पूछा तो शबाना बोली, ‘‘मेरे पति पर जादू कर रखा था, मेरी नहीं उस की सुनता था वह. आलिया मुझे ताना देती थी, तेरे पति की जो भी जमीनजायदाद है, तू रख, लेकिन उस का दिल मेरा ही रहेगा.’’

शबाना ने बताया कि उस का पति जफर बाहर ट्रक ले जाने के बहाने घर से जाता था और कईकई दिन आलिया के पास पड़ा रहता था. उस का पूरा खर्च भी वही उठाता था. जफर से आलिया की 4 साल की एक लड़की भी है जिया, जबकि दूसरा बच्चा उस के पेट में था. शबाना के अनुसार, जफर और आलिया के संबंधों और धर्म बदल कर निकाह करने की बात उसे डेढ़ साल पहले पता चली थी. जबकि दोनों के संबंध 5 साल से थे. जानकारी होने के बाद शबाना ने जासूसी शुरू की, पति की भी और पता लगा कर मानसी उर्फ आलिया की भी. शबाना ने जब जफर पर दबाव डाला तो उसे पता चला कि उस ने मानसी का धर्म परिवर्तन करा कर उस से निकाह कर लिया है. इस बात से उसे धक्का लगा. वह कुछ कहती, उस से पहले ही जफर ने उसे समझाया, ‘‘इसलाम में 2 शादी जायज है, वैसे भी वह अलग रहती है, तुम्हें परेशानी क्या है?’’

शबाना उस वक्त चुप हो गई, लेकिन उस के मन में गुबार भर गया. वह सोचने लगी कि आलिया को पति की जिंदगी से कैसे बाहर करे. अत: उस ने आलिया की खोज शुरू कर दी. छली गई थी मानसी मानसी जिस डेंटल कालेज में नौकरी करती थी, वहां मोहम्मद जफर का ट्रांसपोर्ट का ठेका था. एंबुलेंस, सामान लाने ले जाने वाली छोटी गाड़ी या ट्रक वही मुहैया कराता था. एक दिन जफर ने मानसी को देखा तो उस के सौंदर्य पर रीझ गया. उस ने मानसी के बारे में पता लगाया तो पता चला कि उस ने पति को छोड़ दिया है और 5-6 साल के बेटे के साथ रहती है. जफर को लगा कि मानसी को पटाना मुश्किल नहीं है. वह समीर बन कर मानसी से मिला. मानसी को जफर अच्छा लगा. वैसे भी वह बुआ पर बोझ बनी हुई थी, उसे एक पुरुष के सहारे की जरूरत थी.

फलस्वरूप जफर और मानसी पास आते गए. मानसी ने समीर (जफर) को अपने बारे में सब कुछ बता दिया. लेकिन जफर ने अपने बारे में कुछ भी सच नहीं बताया. 2015 में समीर ने मानसी को मुगलपुरा में एक कमरा किराए पर दिला दिया. तब मानसी अपने बेटे तनिष्क के साथ वहीं रहने लगी. समीर (जफर) वहां आ जाता था. मांबेटे का पूरा खर्च और कमरे का किराया वही देता था. मानसी और जफर के आंतरिक संबंध पहले ही बन चुके थे. वहीं रहते मानसी प्रैग्नेंट हो गई और जफर की बेटी को जन्म दिया. दोनों ने उस का नाम रखा जिया. अगले 3 सालों तक मानसी को पता ही नहीं चला कि समीर हिंदू नहीं मुसलमान है और उस का नाम मोहम्मद जफर है.

हकीकत सामने आई तो उस ने जफर को खूब लताड़ा. कहा कि उस ने उसे छला है. इस पर जफर ने मानसी को समझाया, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करने लगा था. सच बोल कर तुम्हें खोना नहीं चाहता था. मेरे प्यार की जो सजा दो, मैं भोगने को तैयार हूं.’’

मानसी के पास कोई भी विकल्प नहीं था, इसलिए वह शांत हो गई. वैसे भी उस के गर्भ में जफर का अंश था. दोनों की अपनीअपनी मजबूरियां थीं. समय पर मानसी ने बेटी को जन्म दिया. बाद में जब मानसी ने दबाव डाला तो जफर ने मानसी का धर्म परिवर्तन करा कर उस से शादी कर ली. मानसी का नाम बदल कर आलिया हो गया. दोनों की शादी को 2-3 साल हो गए थे कि यह बात शबाना को पता चल गई. उसने आलिया का पता ढूंढा और उस के कमरे पर जा कर खूब उलटीसीधी सुनाई. यह बात थाना मुगलपुरा तक पहुंची. शबाना और आलिया को पुलिस थाने ले गई. वहां जफर को भी बुलाया गया. जफर ने पुलिस के सामने वादा किया कि वह मानसी उर्फ आलिया से नहीं मिलेगा.

जफर आलिया को प्यार करता था. उस  ने उस ने निकाह भी किया था, फिर उसे ऐसे कैसे छोड़ सकता था. उस ने आलिया उर्फ मानसी व उस के बच्चों के लिए कांठ रोड पर गौर ग्रेसियस सिटी में किराए का एक फ्लैट ले लिया. वहां वह भी आताजाता था. गौर ग्रसियस ऐसी सोसायटी थी, जहां बिना पते और फोन नंबर के कोई नहीं जा सकता था. इस बीच सामान्य रहते हुए शबाना ने जफर से पिस्तौल मंगवा ली थी और उसे चलाना भी सीख लिया था. पता लगा कर वह गौर ग्रेसियस सोसायटी के गेट तक गई भी लेकिन गार्डों ने उसे अंदर नहीं जाने दिया. जब यह बात जफर को पता चली तो उस ने मानसी से कहा कि कुछ दिन के लिए वह मायके चली जाए, तब तक वह दूसरा मकान ढूंढ लेगा. मानसी अपने गांव चक्करपुर चली गई, जहां वह लौकडाउन में फंसी रही.

वह लौट कर आई तो जफर ने आलिया के लिए हरथला विद्यानगर में मकान ले लिया और मानसी उर्फ आलिया को मुरादाबाद बुला लिया. यह मकान शबाना के घर से 6-7 सौ गज दूर था. घटना वाले दिन शबाना साप्ताहिक बाजार गई थी. वहां अचानक उस की नजर आलिया पर पड़ गई. उसे देखते ही वह घर की ओर भागी और पिस्तौल ले कर लौट आई और शबाना ने आलिया को मार डाला. पूछताछ के बाद शबाना को जेल भेज दिया गया. उसे अपने किए पर कोई पश्चाताप नहीं था.

Delhi News : प्रेमी की गला दबाकर हत्या, प्रेमिका का भाई बना वारदात में साझेदार

Delhi News : मां के मना करने के बावजूद साहिल ने वर्षा से कोर्टमैरिज तो कर ली, लेकिन वह उसे अपने घर नहीं ले जा सका. वर्षा द्वारा घरले जाने की जिद को वह टाल देता था. वर्षा की जिद को हर बार टालना साहिल को इतना भारी पड़ा कि…

11 सितंबर, 2020 की सुबह उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद थाने में एक राहगीर से सूचना मिली कि अमीना मसजिद के पास एक लाश पड़ी है. इस सूचना पर थाने से एसआई अशोक कुमार मसजिद के पास पहुंचे तो वास्तव में सड़क के किनारे एक युवक की लाश पड़ी थी. उस युवक की उम्र 25 साल के करीब लग रही थी. उस के गले पर हलके खरोंच के निशान थे. उस समय सुबह का वक्त था. कुछ लोग सड़क पर आजा रहे थे. उन्होंने कुछ लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. चूंकि यह मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था, इसलिए एसआई अशोक कुमार ने थानाप्रभारी पी.सी. यादव को घटना के बारे में सूचना दे दी.

थानाप्रभारी पी.सी. यादव थाने में मौजूद एएसआई प्रदीप, हैड कांस्टेबल कैलाश और कांस्टेबल अजय को साथ ले कर थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का बारीकी से मुआयना किया. मृतक ने नारंगी रंग की टीशर्ट और स्लेटी रंग की पैंट पहन रखी थी. थानाप्रभारी ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया, जिस ने लाश की कई कोण से फोटो खींची. मृतक के गले पर खरोंच के निशान के अलावा शरीर पर जख्म के निशान दिखाई नहीं दे रहे थे.

2 घंटे तक वहां के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. इस के बावजूद भी जब मृतक की पहचान नहीं हो सकी तो उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी मोर्चरी भेज दिया गया. मोर्चरी में लाश पर चोटों के निशान देखने के लिए उस के कपड़े उतारे गए तो पता चला कि मृतक युवक मुसलिम है. उसी दिन थानाप्रभारी पी.सी. यादव के निर्देश पर मृतक की फोटो वजीराबाद के कई वाट्सऐप ग्रुप में भेज कर उन से लाश की शिनाख्त करने की अपील की गई. दोपहर में फोटो की पहचान वजीराबाद की गली नंबर 9 में रहने वाले साहिल उर्फ राजा के रूप में हो गई. उस के घर पहुंचने पर मृतक की मां मिली. उस ने मोबाइल पर लाश की फोटो देख कर उस की पुष्टि अपने बेटे साहिल के रूप के कर ली.

पूछताछ के दौरान उन्होंने थानाप्रभारी पी.सी. यादव को बताया कि कल रात साहिल ने उसे फोन कर बताया था कि वह अभी वर्षा के घर जा रहा है, इसलिए उस का इंतजार न करें. मां ने साहिल की हत्या का शक वर्षा पर जताया. 13 सितंबर को पुलिस ने साहिल की मां की शिकायत पर वर्षा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और इस केस की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता को सौंप दी गई. अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता ने साहिल की मां से वर्षा के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वर्षा अपने भाई आकाश के साथ दिल्ली के ही शास्त्रीनगर में रहती है.

वर्षा के ठिकाने का पता लगते ही वह पुलिस टीम के साथ शास्त्रीनगर स्थित वर्षा के मकान पर पहुंचे. लेकिन उस के मकान पर ताला लटका हुआ था. उस के मकान मालिक का पता लगा कर उस से वर्षा के बारे में पूछताछ की, लेकिन मकान मालिक को भी वर्षा के मूल निवास स्थान की जानकारी मालूम नहीं थी. लेकिन उस ने पुलिस टीम को वर्षा के छोटे भाई आकाश का मोबाइल नंबर बता दिया, जिसे अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता ने अपनी डायरी में नोट कर लिया. वर्षा के घर से गायब रहने के कारण जांच अधिकारी के मन में साहिल की हत्या में उस का हाथ होने का शक और पुख्ता हो गया.

इस के बाद उन्होंने साहिल के दोस्त साजिद से पूछताछ की तो साजिद ने बताया कि कल रात वह और साहिल औफिस से साथ निकले थे. बातचीत के दौरान साहिल ने उस से कहा भी था कि वह वर्षा के घर जा रहा है. उस ने भी वर्षा पर ही साहिल की हत्या का शक जाहिर किया. वहां से लौट कर गुलशन गुप्ता घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां से 50 मीटर की दूरी पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा देखा, जिस का फोकस उसी तरफ था, जहां पर साहिल का शव मिला था. उन्होंने फौरन उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवा कर बीरीकी से इस की जांचपड़ताल करनी शुरू की तो देखा सुबह सवा 6 बजे के समय वहां पर एक आटो आ कर रुका, जिस से 3 औरतें बाहर निकलीं.

उन्होंने एक बेहोश से आदमी को आटो से बाहर निकाला और इस के बाद आटो वहां से चला गया. आटो के जाने के बाद तीनों उस आदमी को वहां से थोड़ी दूर घसीट कर ले गईं. फिर एक सुनसान सी जगह पर उसे लिटा कर फरार हो गईं. सीसीटीवी फुटेज को कई वार रिवर्स कर के देखने से आटो के पीछे लिखा ‘अंशुल दी गड्डी’ और आटो की नंबर प्लेट पढ़ कर उसे अपनी डायरी पर नोट कर लिया. करीब 200 आटो की खोजबीन करने के बाद वह आटो मिल गया, जिस के पीछे कवर पर अंशुल दी गड्डी लिखा था. आटो की नंबर प्लेट से उस के मालिक रविंद्र तथा ड्राइवर मुकेश का पता लगा लिया.

मुकेश से पूछताछ करने पर पता चला कि घटना वाली रात को तड़के 4 बजे वह अपने आटो के साथ कश्मीरी गेट बसअड्डे पर किसी सवारी का इंतजार कर रहा था. एक युवती उस के पास आई थी और अपने दोस्त के गहरे नशे में होने की बात कह कर उसे शास्त्री पार्क स्थित अपने कमरे पर ले गई. वहां से अपने बेहोश साथी को ले कर जगप्रवेश अस्पताल गई. उस के साथ 2 युवतियां और थीं. वहां किसी कारण इलाज नहीं होने पर उसे वजीराबाद ला कर वहां छोड़ दिया, जहां पर पुलिस ने सुबह लाश बरामद की थी. मुकेश का बयान दर्ज करने के बाद पुलिस टीम जगप्रवेश अस्पताल पहुंची और वहां के सीसीटीवी फुटेज की जांचपड़ताल की. उस में आटो और तीनों औरतें साफ दिख गईं.

अब तक की जांचपड़ताल से इतना पता चल गया था साहिल की हत्या में उन्हीं 3 औरतों का हाथ है. आकाश के मोबाइल नंबर की लोकेशन से पता चला कि वह इस समय उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में है. 13 सितंबर, 2020 को दिल्ली से एक पुलिस टीम वर्षा और उस के साथियों की तलाश में शाहजहांपुर पहुंची और वहां पर अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपे वर्षा और उस के भाई आकाश को गिरफ्तार कर लिया. उन से पूछताछ करने पर तीसरे साथी अलका उर्फ अली हसन को भी उस के रिश्तेदार के यहां से गिरफ्तार कर लिया. तीनोें को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम वजीराबाद थाने लौट आई.

वर्षा से पूछताछ की. पहले तो उस ने साहिल की हत्या करने से इनकार किया, लेकिन जब उसे सीसीटीवी फुटेज दिखाया गया तो वर्षा का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने साहिल की हत्या की बात स्वीकार करते हुए अपने इकबालिया बयान में जो बात बताई, वह हैरतअंगेज कर देने वाली थी. वर्षा से पूछताछ के बाद साहिल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी. 23 वर्षीय साहिल उर्फ राजा अपनी अम्मी के साथ उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद में रहता था. कई साल पहले उस के अब्बा का इंतकाल एक लंबी बीमारी के दौरान हो गया था.

कोई 4 साल पहले की बात है. तब साहिल ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर चुका था. अब्बा की मौत के बाद से ही घर में मुश्किलों का दौर शुरू हो गया था, जो अब तक कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. अम्मी जैसेतैसे घर का गुजारा चला रही थी. उस ने अपने लिए नौकरी की तलाश शुरू की. काफी भागदौड़ करने के बाद किसी तरह उसे शास्त्री पार्क स्थित एक स्थानीय अखबार के औफिस में नौकरी मिल गई. जहां वह रिपोर्टिंग के साथ अखबार के लिए विज्ञापन लाने का काम करता था. इस काम में उसे तनख्वाह और कमीशन मिलता था. उस से घर का गुजारा चलने लगा.

साहिल को अभी यह काम करते हुए कुछ महीने गुजरे थे कि एक दिन उस की मुलाकात वर्षा से हुई. 19 वर्षीय वर्षा देखने में काफी सुंदर होने के अलावा हंसमुख स्वभाव की थी. साहिल को वर्षा की बातें अच्छी लगीं. वर्षा ने साहिल को बताया कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गांव हसनपुर, हरदोई की रहने वाली है. गांव में उसे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में अपने भाई के साथ दिल्ली आ गई. इस समय वह अपने छोटे भाई आकाश के साथ शास्त्री पार्क में रहती है. साहिल ने वर्षा से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. वर्षा ने भी साहिल का मोबाइल नंबर सेव कर लिया. इस घटना के बाद साहिल और वर्षा हमेशा एकदूसरे के संपर्क में रहने लगे.

जब भी साहिल को काम से फुरसत मिलती वह वर्षा को बुला क र उस के साथ कहीं घूमने निकल जाता था. वर्षा भी साहिल को प्यार करती थी, इसलिए वह हमेशा उसे खुश रखने की कोशिश करती थी. चूंकि इश्क की आग दोनों तरफ बराबर लगी थी, सो जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. बाद में वर्षा साहिल से शादी करने की जिद करने लगी तो पहले साहिल ने उस से शादी करने में कुछ आनाकानी की, लेकिन जब वर्षा ने साहिल से कहा कि बिना शादी के वह इस रिलेशन को नहीं रखना चाहती है तो साहिल ने वर्षा की जिद देखते हुए उस के साथ कोर्टमैरिज तो कर लिया, मगर उसे अपने घर नहीं ले गया.

उस ने वर्षा को समझाते हुए कहा कि उस की अम्मी अभी इस कोर्टमैरिज को स्वीकार नहीं करेंगी. जब उस की अम्मी उसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हो जाएंगी तो वह उसे अपनी बेगम बना कर घर ले जाएगा. वर्षा ने साहिल की बात पर यकीन कर लिया. इस के बाद साहिल ने वर्षा के रहने के लिए शास्त्री पार्क में एक मकान किराए पर ले लिया, जिस में एक कमरा ग्राउंड फ्लोर पर और दूसरा कमरा ऊपरी मंजिल पर बना था. साहिल दिन में औफिस में काम करता था और रात में वर्षा के पास रुक जाता था. रात के समय में दोनों ऊपरी कमरे में सोते थे, जबकि वर्षा का भाई आकाश नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सोता था.

आकाश को वर्षा और साहिल के रिश्ते की शुरू से जानकारी थी. उसे इस पर कोई ऐतराज नहीं था. वर्षा और आकाश के साथ उस के ही गांव हसनपुर का एक लड़का अली हसन उर्फ अलका भी रहता था. आकाश और अली हसन दिन के समय लड़कियों के कपड़े पहन कर हिजड़ों का रूप धारण कर लेते थे और शादीब्याह वाले घरों या जिस किसी के घर में बच्चे का जन्म होता, उस के घर जा कर बधाइयां गाने का काम करते थे. इस काम में उसे थोड़ी देर नाचनेगाने में ही अच्छीखासी रकम हाथ लग जाती थी. उन्हें मजदूरी करना काफी मेहनत का काम लगता था, इसलिए दोनों इसे नहीं करना चाहते थे. जबकि नकली हिजड़ा बन कर नाचगा कर मांगने का काम आकाश और अली हसन को आसान लगता था.

कुछ दिनों के बाद साहिल और वर्षा के रिश्ते की जानकारी साहिल की अम्मी को हो गई. दरअसल, साहिल अब रात में घर न पहुंच कर वर्षा के घर शास्त्री पार्क में अपनी रातें गुजारने लगा था. जब उस की अम्मी ने साहिल से इस का कारण पूछा तो उस ने अम्मी को वर्षा और अपने रिलेशनशिप के बारे में सब कुछ बता दिया. इस के बाद अम्मी ने साहिल का विरोध नहीं किया. सालों पहले शौहर की मौत हो जाने के बाद से वह एक बेवा की जिंदगी गुजार रही थी. अब बेटे को नाराज कर वह उसे खोना नहीं चाहती थी. इसी प्रकार साहिल और वर्षा के रिश्ते को 4 साल हो गए. वर्षा के रहनेखाने का सारा खर्च साहिल ही उठाता था, लेकिन वह उसे अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं था. वर्षा जब भी साहिल को अपने घर ले चलने की बात कहती, साहिल कोई न कोई बहाना बना कर उस की बात को टाल जाता था.

पिछले 2 सालों से साहिल द्वारा लगातार टाले जाने से परेशान वर्षा के सब्र का बांध अब टूटने के कगार पर था. उस ने गंभीर हो कर यह बात अपने छोटे भाई आकाश को बताई तो वह भी बहन की परेशानी को समझ कर सोच में डूब गया. काफी सोचविचार के बाद यह तय हुआ कि आज वह साहिल से दोटूक बात करेगी. साहिल को हर हाल में उसे अपनाना ही पड़ेगा. आकाश और अली हसन दोनों ने वर्षा की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज इस बात का फैसला हो कर ही रहेगा.’’

10 सितंबर, 2020 की रात लगभग 10 बजे साहिल जब वर्षा के घर पहुंचा तो वहां सब उस के आने का इंतजार कर रहे थे. किसी ने खाना नहीं खाया था. साहिल मार्केट जा कर सब के लिए खाना और शराब की बोतल ले आया. सब ने एक साथ मिल कर शराब पी और खाना भी खाया. इस के बाद साहिल रोमांटिक मूड में वर्षा को अपनी तरफ खींचते हुए ऊपर वाले कमरे में चलने के लिए कहने लगा तो वह उस की बांहों से छिटक कर अलग हो गई और बोली, ‘‘तुम रोज मेरे जिस्म से खेलते हो और जब मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा कर बीवी बन कर रहने की बात करती हूं तो बहाना बना कर टाल जाते हो. आज तुम साफसाफ बताओ कि तुम्हारे मन में क्या है?’’

वर्षा के इस बदले हुए तेवर को देख कर भी साहिल पर इस का जरा भी असर नहीं हुआ. उस ने समझा कि वर्षा थोड़ी नानुकुर करने के बाद उस की बात मान कर ऊपर के कमरे में चली जाएगी. लेकिन वह नहीं गई. वर्षा साहिल के बारबार टालने से काफी तंग आ चुकी थी, इसलिए वह साहिल के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए तैयार नहीं हुई. वर्षा ने साहिल की इच्छा का विरोध करना शुरू कर दिया. इसी बात पर उन के बीच हाथापाई शुरू हो गई, जिस पर साहिल ने गुस्से में वर्षा के ऊपर हाथ उठा दिया. इस पर वर्षा ने अपने भाई आकाश और अली हसन के साथ मिल कर साहिल को फर्श पर पटक कर उस का गला घोंट दिया.

जब साहिल का बेजान जिस्म एक ओर लुढ़क गया तो उस की लाश देख कर उन तीनों के हाथपांव फूल गए. काफी देर तक आपस में विचार करने के बाद उन्हें लगा कि अगर साहिल को अस्पताल ले जाया जाए तो शायद उस की जान बच सकती है. ऐसा सोच कर उन्होंने कश्मीरी गेट बसअड्डे से आटो बुलाया और उसे आटो में ले कर जगप्रवेश अस्पताल पहुंचे, जहां डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. डाक्टर की बात सुन कर तीनों एकदम बदहवास हो गए. साहिल के बेजान जिस्म को उसी आटो में लाद कर वे वजीराबाद पहुंचे और उस की लाश वहां उतार कर आटो वाले को वापस भेज दिया.

आटो के नजर से ओझल होते ही उन तीनों ने लाश थोड़ी दूर खींच कर एक साइड में डाल दी और वहां से फरार हो गए. सुबह पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए तीनों शास्त्री पार्क स्थित मकान पर ताला लगा कर वहां से फरार हो गए. इसी दौरान उन्होंने यमुना नदी में साहिल का पर्स और मोबाइल फोन फेंक दिया. इस के बाद वे आनंद विहार पहुंचे और वहां से बस पकड़ कर हरदोई पहुंच गए. वहां भी जब उन्हें लगा कि पुलिस उन की तलाश में यहां भी पहुंच सकती है तो वे शाहजहांपुर स्थित अपने रिश्तेदार के यहां जा कर छिप गए.

लेकिन उन की चालाकी काम नहीं आई और दिल्ली पुलिस ने 13 सितंबर, 2020 को उन्हें दबोच लिया. 14 सितंबर को साहिल उर्फ राजा की हत्या के आरोप में उस की प्रेमिका वर्षा उस के भाई आकाश और अली हसन को तीसहजारी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

 

Extramarital Affair : प्रेमी संग मिलकर पत्नी ने सोते पति को मारी गोली

Extramarital Affair : पति रामऔतार की आंखों में धूल झोंक कर नन्ही पति के दोस्त नरेंद्र के साथ हसरतें पूरी करती रही. उसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि नन्ही ने प्रेमी नरेंद्र के साथ मिल कर खुद अपना ही सिंदूर मिटा दिया…

उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के गांव पचैमी की रहने वाली नन्ही रामऔतार की पत्नी थी. उस का विवाह रामऔतार से करीब 15 साल पहले हुआ था. उस के 6 बच्चे थे. रामऔतार का गांव के ही इतवारी और उस के 2 बेटों से जमीन को ले कर विवाद हुआ तो वह पत्नी व बच्चों के साथ बदायूं के कलौरा गांव में परिवार के साथ आ कर रहने लगा. यहां वह एक ईंट भट्ठे पर काम करने लगा. काम करते रामऔतार की दोस्ती कलौरा गांव के ही नरेंद्र से हो गई. नरेंद्र भी उस के साथ ही काम करता था. 35 वर्षीय नरेंद्र अविवाहित था. वह अपने भाइयों में सब से बड़ा था. उस के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस पर वह खेती करता था. खेती करने से बचे समय में वह ईंट भट्ठे पर काम करता था.

रामऔतार और नरेंद्र में दोस्ती करीब 2 साल पहले हुई थी. दोस्ती हुई तो नरेंद्र का रामऔतार के घर आनाजाना शुरू हो गया. आनेजाने के दौरान ही कुंवारे नरेंद्र को नन्ही का रूपरंग भा गया था. रामऔतार की गैरमौजूदगी में भी वह नन्ही का हालचाल जानने के बहाने उस के घर चला आता था. नन्ही उस की खूब आवभगत करती थी. नरेंद्र मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपना हर कदम आगे बढ़ा रहा था. जब भी वह रामऔतार के घर जाता, उस की नजरें नन्ही के इर्दगिर्द ही घूमा करती थीं. वह उस पर दिलोजान से लट्टू था. 6 बच्चों की मां बनने के बाद भी नन्ही में आकर्षण था. उस के इकहरे बदन में मादकता का बसेरा था.

नरेंद्र दोस्त की गैरमौजूदगी में नन्ही को कभीकभी तोहफा दे आता तो कभी रुपए दे कर खुश कर देता. उस के इस आत्मीय व्यवहार से नन्ही उस का खूब सत्कार करती और उस से खुल कर बातें करती थी. एक दिन दोपहर को जब नन्ही घर में अकेली थी, अचानक नरेंद्र उस के यहां पहुंच गया. हमेशा की तरह नन्ही ने उस का स्वागत किया और चाय बना कर दी. फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आज आप की दोस्त से मुलाकात नहीं हो पाएगी. क्योंकि वह काम से बाहर गए हैं.’’

नरेंद्र के होंठों के कोनों पर शैतानी मुसकान आ बैठी, ‘‘कोई बात नहीं भाभी, असल में आज मैं तुम से ही मिलने आया था.’’

‘‘ऐसी क्या बात है कि आप को खास मुझ से मिलने की जरूरत आ पड़ी. बताओ, मैं किस काम आ सकती हूं.’’ वह बोली.

नन्ही का मन टटोलने के लिए नरेंद्र बोला, ‘‘वक्तबेवक्त अपनों का फर्ज बनता है कि अपनों की मदद करें. तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे लिए कभी अपना हाथ नहीं खींचा. आज उसी मदद का प्रतिदान मांगने आया हूं.’’

नरेंद्र ने बढ़ाया कदम नन्ही समझ नहीं पाई कि नरेंद्र कहना क्या चाहता है. वह बस इतना कह पाई, ‘‘आप कहिए तो, मैं आप के किस काम आ सकती हूं.’’

जवाब में नरेंद्र ने उस का हाथ पकड़ कर उसे अपनी बगल में बैठा लिया. फिर उस की जांघ पर हाथ रखते हुए उस के कान में बोला, ‘‘मैं ने मन से तुम्हारी मदद की, अब तुम तन से मेरी मदद कर दो.’’ कहने के साथ ही उस ने हाथ नन्ही की कमर में डाल कर उसे खुद से सटा लिया और उसे चूमते हुए बोला, ‘‘सच कहता हूं, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम्हें कसम है मेरे प्यार की, इनकार मत करना.’’

नन्ही हतप्रभ रह गई. उस ने नरेंद्र से हटने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूं. वह तुम पर बहुत विश्वास करते हैं. यह विश्वास टूटा तो दिल टूट जाएगा.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति के विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा. यकीन करो, हमारे बीच जो होगा, उसे मैं छिपा कर रखूंगा.’’ नरेंद्र ने कहा.

नन्ही के होंठ एक बार फिर बुदबुदाए, ‘‘कल जब यह भेद खुलेगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे.’’

‘‘भेद खुलेगा कैसे? मैं तुम्हें अपना समझता हूं. अब न मत करो.’’ उस के बाद नरेंद्र के हाथ नन्ही के बदन पर रेंगने लगे.

उस की हरकतों से नन्ही के विवेक पर भी परदा पड़ गया. नन्ही भी सारी मानमर्यादा भूल कर नरेंद्र के साथ अनैतिक रिश्ता बना बैठी. अपने स्त्री धर्म पर दाग लगा चुकी नन्ही को यह सब करने का पछतावा इसलिए अधिक नहीं हुआ क्योंकि अविवाहित नरेंद्र का साथ उसे बहुत अच्छा लगा था. औरत एक बार जब फिसलती है तो फिर फिसलन की राह पर जाने से अपने कदमों को रोक नहीं पाती. फिर नरेंद्र जैसा बहकाने वाला मर्द हो तो नन्ही जैसी औरतें कहां खुद को रोक पाती हैं. लिहाजा नन्ही और नरेंद्र के संबंधों का सिलसिला चल निकला.

नरेंद्र नन्ही को तोहफेऔर पैसे दे कर खुश रखता तो बदले में वह भी उसे खुश रखती. लेकिन अवैध संबंध कायम रखने में चाहे कितनी सावधानी क्यों न बरती जाए, एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. इन दोनों का राज भी खुल गया. दरअसल, एक दिन रामऔतार अपने काम से जल्दी लौट आया, उसे कुछ अपनी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. घर का मेनगेट खुला होने के कारण वह सीधा अंदर चला आया. उस ने अंदर का जो दृश्य देखा, वह जड़वत खड़ा रह गया. उस की बीवी नरेंद्र की बांहों में झूल रही थी. यह देखते ही रामऔतार की आंखों में खून उतर आया. वह चीखा तो दोनों हड़बड़ा कर अलग हो गए.

नरेंद्र तो तुरंत वहां से भाग खड़ा हुआ, नन्ही भला कहां भागती. वह अपराधबोध से नजरें झुकाए सामने खड़ी थी. रामऔतार ने लातघूंसों से उस की पिटाई करनी शुरू कर दी, ‘‘हरामजादी, मैं तेरी सुखसुविधाओं के लिए बाहर खट रहा हूं और तू गैरमर्द के साथ घर में गुलछर्रे उड़ा रही है. तूने एक बार मर्यादा के बारे में नहीं सोचा. कल जब तेरा कलंक गलीमोहल्ले वालों को पता लगेगा तो मैं सिर उठाने लायक रह पाऊंगा?’’

पति को गुस्से में जलता देख नन्ही ने त्रियाचरित्र दिखाया, ‘‘मैं ने बहुत विरोध किया लेकिन तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारा दोस्त मेरे साथ जबरदस्ती पर आमादा हो गया था. घर में मुझे अकेला पा कर उस के हौसले और भी बढ़ गए. मोहल्ले वालों की मदद इसलिए नहीं ली कि बात गांव में फैलती तो और बदनामी हो जाती. मैं कसम खा कर कहती हूं कि मैं मजबूर थी.’’

नन्ही ने चालाकी से अपने आप को बचा लिया. उस दिन के बाद से नरेंद्र काफी दिनों तक रामऔतार के सामने नहीं पड़ा और न ही उस के घर गया. लेकिन जिस्म की आग भला कहां चैन लेने देती है. फिर से नरेंद्र रामऔतार के घर उस की गैरमौजूदगी में जाने लगा. लेकिन अब दोनों ही सावधानी बरतने लगे थे. 20 अगस्त, 2020 की रात रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में सो रही थी. रात सवा 11 बजे कुछ लोगों ने घर में घुस कर रामऔतार को गोली मार दी. रामऔतार की हुई हत्या गोली की आवाज सुन कर गांव के लोग घरों से जब तक बाहर निकलते, तब तक हमलावार वहां से भाग गए.

गोली की आवाज सुन कर नन्ही कमरे से बाहर निकली और छत की तरफ देखा तो उसे अनहोनी की आशंका हुई. वह सीढि़यां चढ़ कर छत पर गई तो अपने पति रामऔतार को मृत पाया. वह रोनेचिल्लाने लगी. गोली की आवाज सुन कर घर से निकले आसपड़ोस के लोगों ने रामऔतार के घर से रोने की आवाजें सुनीं तो वहां पहुंच गए. छत पर खून से लथपथ रामऔतार की लाश पड़ी हुई थी, वहीं पास बैठी नन्ही रो रही थी. उसी दौरान किसी ने 112 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल दातागंज थाने में आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से इस की सूचना दातागंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. रामऔतार के सीने में गोली लगने का घाव था. छत व आसपास की लोकेशन को देखने के बाद उन्होंने नन्ही से पूछताछ की. नन्ही ने बताया कि वह नीचे कमरे में सो रही थी. गोली चलने की आवाज सुन कर बाहर आई तो यहां कोई नहीं था, न किसी को उस ने वहां से भागते देखा. छत पर आई तो पति की लाश पड़ी मिली. किसी पर शक होने के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह अपने पति के साथ बरेली के फरीदपुर के पचैमी गांव में रहती थी. वहां गांव के ही इतवारी और उस के बेटों कलट्टर और अर्जुन से उस के पति का जमीनी विवाद चल रहा था.

उस विवाद की वजह से ही वह पति के साथ यहां आ कर रह रही थी. नन्ही ने आरोप लगाया कि उन तीनों ने ही उस के पति को मारा है. आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जो केस खोलने के काम आए. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने लाश मोर्चरी भेज दी. फिर नन्ही को सुबह थाने आने को कह कर वापस थाने लौट गए. सुबह थाने पहुंच कर नन्ही ने इतवारी, कलट्टर और अर्जुन के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी सिंह ने जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने तीनों नामजद लोगों के बारे में पता किया. उन के फोन नंबर ले कर घटना की रात की लोकेशन की जांच की तो घटनास्थल तो क्या दूरदूर तक उन की लोकेशन नहीं मिली. इस से थानाप्रभारी को लगा कि दुश्मनी की आड़ में कोई और ही काम को अंजाम दे गया है.

थानाप्रभारी अजीत सिंह की सोच यह थी कि गांव के या आसपास के ही किसी परिचित ने इस घटना को अंजाम दिया होगा. इसलिए थानाप्रभारी सिंह ने रामऔतार के दोस्तों और उस के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि गांव के नरेंद्र नाम के युवक से रामऔतार की अच्छी दोस्ती थी. वह दिन में उस के घर के कई चक्कर लगाता था. आरोपियों ने स्वीकारा अपराध यह जानकारी मिली तो उन्होंने 26 अगस्त को नरेंद्र को शक के आधार पर हिरासत में ले लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या में साथ देने वालों के नाम भी बता दिए.

हत्या में उस का साथ मृतक की पत्नी नन्ही, नरेंद्र के सगे भाई मुकेश, मौसेरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास और मुकेश ने दिया था. पुलिस ने उसी दिन नन्ही और रामनिवास व मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी से पूछताछ करने पर पता चला कि नन्ही और नरेंद्र रामऔतार की गैरमौजूदगी में सावधानी से मिल तो रहे थे लेकिन कई बार पकड़े जाने से बालबाल बचे थे. अब पकड़े जाने पर उन्हें रामऔतार की ओर से कोई खतरनाक कदम उठाए जाने का भी अंदेशा था. वैसे भी जब से रामऔतार ने नन्ही को नरेंद्र के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा था, तब से वह वक्तबेवक्त घर आ धमकता था. उस के घर आने का खौफ दोनों के दिमाग पर हावी रहने लगा. ऐसे में वे दोनों ठीक से मिल भी नहीं पाते थे. इसलिए रामऔतार नाम के खौफ को हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से मिटाने का उन दोनों ने फैसला कर लिया.

रामऔतार की हत्या में साथ देने के लिए नरेंद्र ने अपने सगे भाई मुकेश, मौसरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास निवासी गांव मलौथी थाना दातागंज और दोस्त मुकेश निवासी गांव छेदापट्टी, जिला शाहजहांपुर को तैयार कर लिया. सब के साथ मिल कर नरेंद्र ने हत्या की योजना बनाई. योजना बना कर नन्ही को नरेंद्र ने पूरी योजना के बारे में बता दिया. 20 अगस्त की रात जब रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में जागी हुई उस का इंतजार कर रही थी. रात सवा 11 बजे नरेंद्र अपने साथियों के साथ रामऔतार के घर पहुंच गया और नन्ही द्वारा रामऔतार के छत पर सोने की बात बताने पर सभी छत पर पहुंच गए और सोते हुए रामऔतार के सीने पर गोली मार दी.

गोली लगते ही रामऔतार ने दम तोड़ दिया. इस से पहले कि कोई वहां आए, वे लोग वहां से फरार हो गए. नन्ही योजना के अनुसार कुछ देर बाद छत पर जा कर रोनेचिल्लाने लगी. वे हत्या करने की अपनी योजना में तो सफल हो गए, लेकिन अपने आप को बचाने में सफल नहीं हो पाए और पकड़े गए. थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने मुकदमे में धारा 120बी और बढ़ा दी. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त तमंचे के साथ एक और तमंचा बरामद कर लिया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद चारों अभियुक्तों नन्ही, नरेंद्र, रामनिवास और मुकेश को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक नरेंद्र का भाई मुकेश और मौसेरा भाई रिंकू फरार थे, पुलिस सरगर्मी से उन की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime : भतीजे ने चाची को गड़ासे से 14 टुकड़े किए फिर जमीन में दबा दिया

UP Crime : अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, उस के किए गुनाह की लकीर के सहारे पुलिस उस तक पहुंच ही जाती है. खेत में मिले नरमुंड ने सर्वेश और संतोष के संगीन गुनाहों की ऐसी फेहरिस्त खोली कि…

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बरुआ नद्दी. शाम के समय कुछ लोग खेतों से गांव की ओर आ रहे थे. तभी उन की नजर एक खेत के किनारे कुत्तों के झुंड पर पड़ी. कुत्ते एक नरमुंड को ले कर खींचतान कर रहे थे. लोगों ने कुत्तों को भगा दिया और नजदीक आए. वहां एक नरमुंड पड़ा था. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. गांव भर में सनसनी फैल गई. इसी बीच किसी ने थाना किशनी में सूचना दे दी. थानाप्रभारी अजीत सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और उच्च अधिकारियों को घटना से अवगत कराया. सूचना पर कुछ ही देर में एसपी अजय कुमार पांडेय, एएसपी मधुबन कुमार भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, इस के साथ ही आसपास के लोगों से बातचीत कर जानकारी ली.

एसपी ने पूरा कंकाल होने की आशंका के चलते आसपास के खेतों में तलाशी अभियान चलाया. काफी देर तलाश के बाद भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. नरमुंड पुरुष का है या महिला का, इस के लिए एसपी ने अधीनस्थों को डीएनए जांच कराने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद नरमुंड को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. यह घटना 10 अक्तूबर,2020 की है. पुलिस ने दूसरे दिन घटनास्थल के आसपास के गांव वालों से फिर से पूछताछ की. लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.

नरमुंड मिलने की जानकारी मिलने के 2 दिन बाद जनपद इटावा के थाना चौबिया के गांव टोरपुर का निवासी मिथिलेश कुमार थाना किशनी पहुंचा. उस ने बताया कि उस की 35 वर्षीय भाभी पूती देवी 20 सितंबर, 2020 से लापता हैं. इस संबंध में उस ने थाना भरथना में गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. लेकिन अभी तक उन का कोई पता नहीं चला. गांव बरुआ नद्दी के खेत में मिला नरमुंड उस की भाभी पूती देवी का हो सकता था. वह नरमुंड पूती देवी का है या नहीं, इस बात की पुष्टि डीएनए जांच के बाद ही हो सकती थी. लिहाजा पुलिस ने मिथिलेश कुमार से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उस की भाभी पूती देवी के बारे में जांच शुरू कर दी.

पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि 35 वर्षीय पूती देवी की ससुराल इटावा जिले के थाना चौबिया में है. उस के पति दिलासा राम की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. बच्चों को पढ़ाने के लिए पूती देवी अपने दोनों बच्चों सहित भरथना के मोहल्ला कृष्णानगर में रहने लगी थी. गांव बरुआ नद्दी निवासी सर्वेश कुमार यादव और उस के मामा संतोष कुमार, जो औरेया जिले के नगला परशादी का रहने वाला है, ने पूती देवी को आवास व अन्य सरकारी सहायता दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसा लिया था. वे लोग उसे 20 सितंबर, 2020 को अपने साथ ले गए थे. इस के बाद से उस का कोई पता नहीं चला.

मिथिलेश का आरोप था कि उन लोगों ने भाभी का अपहरण करने के बाद उन की हत्या कर दी है. मिथलेश के इस दावे के बाद सर्वेश और उस के मामा संतोष के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस को जांच में पता चला कि देवर मिथिलेश ने इस मामले में भरथना पुलिस से जो शिकायत की थी, उस पर कोई जांच व काररवाई नहीं की गई थी. अब सवाल यह था कि यदि नरमुंड पूती देवी का नहीं था तो पूती इस समय कहां थी? आरोपी भी लापता थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि आरोपी व उस का मामा महिला को आशनाई के लिए ले कर फरार हो गए होंगे. मुकदमा दर्ज होने के बाद एसपी अजय कुमार पांडेय ने इस घटना के राजफाश के लिए स्वाट टीम, सर्विलांस टीम सहित 5 पुलिस टीमें गठित कीं.

गहराई से पड़ताल में जुटी पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 26 अक्तूबर, 2020 को रात के समय आरोपी सर्वेश यादव और उस के मामा संतोष को गांव में सर्वेश के खेत में बने मकान से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को देखते ही आरोपियों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी थी. लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर दोनों को दबोच लिया. आरोपियों के कब्जे से तंमचा व कारतूस बरामद किए गए. थाने ला कर दोनों से पूती देवी हत्याकांड के बारे में कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों आरोपियों ने पूती देवी की हत्या करने का जुर्म कबूल करते हुए सनसनीखेज हत्याकांड का रहस्योद्घाटन किया. उन्होंने बताया कि हत्या के बाद उन्होंने पूती देवी के शव के गड़ासे से 14 टुकड़े कर उन्हें अलगअलग स्थानों पर जमीन में दबा दिया था.

पुलिस लाइन सभागार में 27 अक्तूबर को आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी अजय कुमार पांडेय ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. हत्याकांड के पीछे महिला का धन लूटना था. सर्वेश भोलीभाली, गरीब, बेसहारा, विधवा महिलाओं को सरकारी आवास और रुपए दिलाने का झांसा दे कर अपने जाल में फंसाता था. वह न सिर्फ महिलाओं से पैसे ऐंठता था बल्कि घर से दूर सुनसान इलाके में ले जा कर हत्या कर उन के आभूषण ले लेता था. शव के टुकड़े कर के जमीन में जगहजगह गड्ढा खोद कर गाड़ देता था. इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड के पीछे हत्यारोपी सर्वेश की पूती देवी की शादी अपने मामा संतोष से कराने की योजना थी. लेकिन जब पूती देवी ने शादी करने से मना कर दिया तो उस ने उस की हत्या कर दी.

इस षडयंत्र में सर्वेश का मामा संतोष भी शामिल था. दोनों ही आरोपी आपराधिक प्रवृत्ति के थे. उन के विरुद्ध कन्नौज के थाना सौरिख में हत्या, हत्या के प्रयास सहित कई संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज थे. सर्वेश मामा के साथ मिल कर अब तक कई आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे चुका था. इस हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

पूती देवी का मायका गांव बरुआ नद्दी का था. वह सर्वेश की दूर के रिश्ते की चाची लगती थी, जिस की वजह से वह सर्वेश को जानती थी. पूती देवी के पति दिलासा राम की 6 साल पहले मौत हो गई थी. वह पिछले 3 साल से भरथना में अपने बच्चों को पढ़ानेलिखाने के मकसद से किराए का मकान ले कर रह रही थी. यह बात सर्वेश को पता थी कि वह गरीब है, उसे रुपयों और मकान की जरूरत है. सर्वेश के 45 वर्षीय मामा संतोष की पत्नी की 3 साल पहले मौत हो चुकी थी. सर्वेश अपने मामा संतोष की शादी पूती देवी के साथ कराना चाहता था. इसी योजना के तहत 20 सितंबर, 2020 को सर्वेश पूती देवी के पास पहुंचा और उसे सरकारी आवास दिलाने के बहाने से 4 हजार रुपए, आधार कार्ड, व फोटो ले कर विकास भवन चलने को कहा.

सर्वेश पूती देवी को झांसा दे कर अपनी बाइक पर बिठा कर अपने गांव ले आया. मामा भी उस के साथ था. सर्वेश और संतोष पूती देवी को ले कर गांव बरुआ नद्दी आ गए. जब पूती देवी ने यह देखा तो वह भड़क गई. उस ने विरोध करते हुए कहा कि तुम लोग तो विकास भवन चलने की बात कह रहे थे. मुझे यहां कहां ले कर आए हो? तब सर्वेश ने कहा, ‘‘चाची तुम बच्चों के साथ अकेली रहती हो. घर में कोई आदमी भी बच्चों की देखभाल के लिए नहीं है. यह मेरे मामा संतोष हैं. 3 साल पहले इन की पत्नी की मौत हो चुकी है. तुम इन के साथ शादी कर लो, जिस से दोनों का घर बस जाएगा.’’

पूती देवी ने सर्वेश की बात का न सिर्फ विरोध किया, बल्कि पुलिस में उस की शिकायत करने की धमकी भी दी. काफी समझाने पर भी जब पूती देवी उस की बात मानने को तैयार नहीं हुई, तो सर्वेश को गुस्सा आ गया. अपना राज खुलने के डर से उस ने मामा के साथ मिल कर पूती देवी की गला दबा कर उसी दिन हत्या कर दी. वहां सुनसान इलाके में पूती देवी की चीख भी कोई नहीं सुन सका. हत्या करने के बाद उस की लाश ठिकाने लगाने के लिए उन्होंने उस के 14 टुकड़े किए और अलगअलग जगह गाड़ दिए. 10 अक्तूबर को आवारा कुत्तों द्वारा नरमुंड को खोद कर निकालने के बाद किशनी पुलिस हरकत में आई और 26 अक्तूबर की रात आरोपितों को मुठभेड़ में गिरफ्तार कर लिया.

पूती देवी के मर्डर की परतें खुलने के साथ ही पता चला कि सर्वेश साइकोकिलर है. वह इस से पहले 4 अन्य महिलाओं का भी मर्डर कर चुका था. सर्वेश भोलीभाली, गरीब, बेसहारा, विधवा महिलाओं को सरकारी आवास, पेंशन और रुपए दिलाने का झांसा दे कर अपने जाल में फंसाता था. वह न सिर्फ महिलाओं से पैसे ऐंठता था, बल्कि उन्हें सुनसान जगह पर ले जा कर उन की हत्या कर देता था. उन के आभूषण लेने के बाद शव के टुकड़े कर जमीन में जगहजगह गड्ढा खोद कर गाड़ देता था. 26 महीने बाद मार्च, 2020 में सर्वेश जेल से जमानत पर छूट कर घर आया था. वह कोर्ट में तारीख पर भी नहीं जाता था. इसलिए उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो गए थे.

सर्वेश ने बीती 3 मई, 2020 को अपनी वृद्ध मां को भी जला कर मार डाला था. इस हत्याकांड पर सौरिख पुलिस ने उस पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया था. इस के चलते सर्वेश फरार हो गया था. इस दौरान वह चोरीछिपे गांव में आता था. फरारी के दौरान भी उसने अपराध करना जारी रखा था. सर्वेश की हरकतों और सनकीपन से परिवार के लोग बहुत परेशान थे. उस पर अनेक आपराधिक मामले दर्ज थे. वहीं वह आए दिन कुछ न कुछ उत्पात करता था. गांव की बात करें तो सर्वेश का गांव में इतना खौफ था कि सूरज ढलने के बाद गांव की महिलाएं अपने घरों से बाहर खेतों की तरफ नहीं जाती थीं.

सर्वेश ने गांव के मकान के अलावा अपने खेत पर एक झोपड़ी बना ली थी. सुनसान जगह पर झोपड़ी बना कर वह उसी में रहता था ताकि आसानी से अपराध को अंजाम दे सके. गांव के लोग न तो इस साइकोकिलर से बात करते थे न ही उसे किसी आयोजन आदि में बुलाते थे. सर्वेश के पास 25 बीघा जमीन थी. उसे गांजा पीने की लत लग गई थी. इसी लत के चलते वह अपनी 15 बीघा जमीन भी बेच चुका था. लगभग 2 महीने पहले अपनी गांजे की लत पूरी करने के लिए उस ने गेहूं बेच दिए थे. इस बात पर उस के दोनों बेटों पुष्पेंद्र और प्रवेश ने उस की पिटाई की थी. उस के इसी व्यवहार से परेशान हो कर पत्नी व बच्चों ने भी उस से रिश्ता तोड़ लिया था.

पुलिस गांव में सर्वेश की तलाश में आने लगी तो पत्नी ममता दोनों बेटों को ले कर अपने मायके आ कर रहने लगी थी. 40 वर्षीय सर्वेश के खिलाफ 3 हत्याओं सहित 11 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. वह पिछले 19 साल से अपराध की दुनिया में सक्रिय था. जब वह 19 साल का था, तब गुजरात से एक लड़की को ले कर आया था. बाद में उस ने उस की हत्या कर शव के टुकड़े करने के बाद दफना दिए थे. सनकी सर्वेश ने सन 2012 में जिला कन्नौज के सौरिख थाना क्षेत्र में एक महिला की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी थी. पुलिस के अनुसार सर्वेश व मामा संतोष ने कई महिलाओं की हत्या करने की बात भी स्वीकार की. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों सर्वेश व संतोष को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

जेल भेजने से पहले दोनों आरोपियों ने स्वीकार किया कि पूती देवी के शव के टुकड़े अपने खेत में अलगअलग स्थानों पर दबा दिए थे. जेल भेजने के दूसरे दिन 29 अक्तूबर को एसपी अजय कुमार पांडेय की मौजूदगी में पुलिस ने खेत की जेसीबी से खुदाई कराई तो एक स्थान पर कुछ हड्डियां, सिर के बाल और ब्लाउज का टुकड़ा बरामद हुआ. इस पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. पुलिस ने बरामद हड्डियों का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. देवर मिथिलेश के अलावा सर्वेश के दोनों बेटों को भी बुला लिया गया. उन्होंने बरामद ब्लाउज के टुकड़े को पूती देवी का बताया. इस आधार पर पुलिस ने पंचनामा भरा.

साइकोकिलर व उस के मामा को जेल भेजने के बाद पुलिस ने अन्य हड्डियां, ब्लाउज का शेष हिस्सा, आलाकत्ल, बाइक बरामद करने के लिए हत्यारोपी सर्वेश को 3 दिन की पुलिस रिमांड पर दिए जाने की मांग की. पुलिस की इस मांग के समर्थन में अभियोजन के संयुक्त निदेशक डी.के. मिश्रा के निर्देशन में एपीओ शशिकांत ने कोर्ट में अभियोजन का पक्ष प्रस्तुत किया. सुनवाई के बाद 2 नवंबर को न्यायालय द्वारा पुलिस का आवेदन स्वीकार कर लिया गया. आरोपित सर्वेश को 3 नवंबर सुबह 8 बजे से 5 नवंबर की शाम 5 बजे तक पुलिस रिमांड पर देने का आदेश दिया गया.

पुलिस उसे गांव बरुआ नद्दी ले गई. वहां उस ने एक स्थान पर शव के टुकड़े दफनाने की बात कही. सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने खुदाई कराई तो वहां पूती देवी की कुछ हड्डियां बरामद हुईं. आरोपी ने अपने घर की छत से हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी व गांव मईखेड़ा निवासी अपने बहनोई आदेश के यहां से बाइक बरामद कराई. वह पूती देवी को इसी बाइक पर बिठा कर लाया था. गिरफ्तारी के समय आरोपी सर्वेश ने पूती देवी की गड़ासे से टुकड़े करने की बात पुलिस को बताई थी. जबकि रिमांड के दौरान कुल्हाड़ी से टुकड़े करने की बात बताई. पूती देवी हत्याकांड से जुड़े आलाकत्ल व अन्य सबूत हाथ लगने के बाद पुलिस ने उसी दिन सर्वेश को जेल भेज दिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पूती देवी का मोबाइल फोन, कंगन व आधार कार्ड भी बरामद कर लिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम में शामिल थानाप्रभारी अजीत सिंह, थानाप्रभारी (एलाऊ) सुरेशचंद्र शर्मा, सर्विलांस प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट प्रभारी रामनरेश, जैकब फर्नांडिज, धर्मेंद्र मलिक, अमित चौहान, रोबिन, संदीप कुमार, हरेंद्र सिंह, सोनू शर्मा, रामबाबू को 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.

इंसान गुनाह कर के उस पर परदा डाल देता है. सर्वेश और संतोष ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने सोचा था कि उन का यह गुनाह उन के अन्य गुनाहों की तरह हमेशा के लिए जमीन में दफन हो जाएगा. लेकिन उन की सोच गलत साबित हुई और एक नरमुंड ने उन के सारे गुनाह उजागर कर दिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : दोस्तों के संग मिल प्रेमिका को मारा फिर लाश खाड़ी में फेंकी

Love Crime : प्रशांत गायकवाड़ पैसे वाले बाप का बेटा था. उसे लगता था कि वह कुछ भी कर सकता है. पैसे से ही उस ने प्रिया को जाल में फंसाया था. लेकिन नतीजा अपहरण और हत्या के रूप में सामने आया. आखिर प्रशांत गायकवाड़…

25 सितंबर, 2020 की रात की बात है. रात 12 बजे 24 वर्षीय रेशमा शीलवंत चव्हाण अपनी मां के साथ देहू रोड पुलिस थाने पहुंची. रेखा शीलवंत मुंबई से 105 किलोमीटर दूर पूना शहर की रहने वाली थी. उन का घर आदर्श कालोनी में था. उन की कालोनी थाना देहू क्षेत्र में आता था. थाने की ड्यूटी पर मौजूद सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप ने उन्हें सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया और उन के आने का कारण पूछा. रेशमा चव्हाण ने अपने आने का जो कुछ कारण उन्हें बताया उसे सुन कर अशोक जगताप के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने बताया कि आधा घंटे पहले प्रशांत अपने 2 साथियों के साथ उन के घर आया था और उस ने उन की छोटी बहन प्रिया चव्हाण को अपने साथ चलने के लिए कहा.

प्रिया के मना करने पर वह उसे जबरन अपने साथ ले गया. सर, कुछ कीजिए. मुझे प्रशांत गायकवाड़ पर जरा भी भरोसा नहीं है. वह मेरी बहन प्रिया के साथ कुछ भी कर सकता है. उस की 2 माह की बेटी का रोरो कर बुरा हाल है. मामला काफी संगीन था. सबइंसपेक्टर अशोक जगताप ने रेशमा चव्हाण की तहरीर पर प्रिया चव्हाण के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर इंसपेक्टर क्राइम पाडूरंग गोकणे, सबइंसपेक्टर छाया बोरकर के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी और रेशमा चव्हाण और उस की मां को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द से जल्द प्रिया को ढूंढ़ने की कोशिश करेगी.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप ने अपने सहायकों के साथ अपनी तफ्तीश की रूपरेखा तैयार की और प्रिया चव्हाण अपहरण की तफ्तीश शुरू कर दी. प्रशांत गायकवाड़ के मिलने की जहांजहां संभावना थी वहांवहां छापा मारा गया, लेकिन वह उन के हाथ नहीं लगा. देहूरोड पुलिस अधिकारियों को मामले की तफ्तीश शुरू किए अभी 12 घंटे भी नहीं हुए थे कि पुलिस कंट्रोल रूम से उन्हें एक बुरी खबर मिली. 26 सितंबर, 2020 को दोपहर कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि आदर्शनगर कालोनी की खाड़ी के पानी में एक महिला का शव तैर रहा है. आदर्श नगर इलाका देहूरोड पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. इसलिए मामले की जानकारी देहूरोड पुलिस थाने को दे दी गई थी.

सूचना मिलते ही देहू रोड पुलिस थाने के सबइंसपेक्टर अशोक जगताप अपने सहायकों के साथ तुरंत घटना स्थल पर पहुंच गए. चूंकि रेशमा चव्हाण ने अपनी बहन प्रिया के अपहरण की शिकायत पहले ही थाने में दर्ज करवा रखी थी, इसलिए पुलिस टीम ने रेशमा चव्हाण को सूचना दे कर शिनाख्त के लिए घटनास्थल पर बुला लिया. शव को देखते ही रेशमा चव्हाण दहाड़ मार कर रोने लगी. इस से पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि खाड़ी में पड़ा शव प्रिया चव्हाण का ही है. रेशमा चव्हाण को सांत्वना देने के बाद प्रिया के शव को बाहर निकलवा कर उस का निरीक्षण किया गया.

सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप अभी शव का निरीक्षण और वहां एकत्र भीड़ से पूछताछ कर ही रहे थे कि मामले की जानकारी पा कर थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर, इंसपेक्टर पांडुरंग गोकणे, महिला सबइंसपेक्टर छाया वारेक के साथ मौका ए वारदात पहुंच गए थे. उन के साथ फौरेंसिक टीम भी आ गई थी. शव की फौरेंसिक जांच के बाद थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर ने अपने सहायकों के साथ शव का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. फिर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय सिविल अस्पताल भेज कर थाने लौट आए.

मामला अब और गंभीर हो गया था. प्रशांत गायकवाड़ पर अब तक प्रिया चव्हाण के अपहरण तक का ही आरोप था. अब उस के विरूद्ध हत्या का भी मामला दर्ज कर लिया गया. थाने के वरिष्ठ अधिकारियों ने विचार कर मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर पांडुरंग गोकणे और सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप को सौंप दी. सबइंसपेक्टर अशोक जगताप इस की तफ्तीश पहले ही कर रहे थे. लेकिन प्रशांत गायकवाड़ उन के हाथ नहीं आया था. फिर भी वह निराश नहीं थे. उन्हें अपने मुखबिरों पर पूरा भरोसा था. 27 सितंबर, 2020 को उन के एक मुखबिर ने बताया कि प्रशांत गायकवाड़ आज रात 3 बजे के आसपास पूना थरगांव के डांगे चौक पर अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने के लिए आने वाला है.

सबइंसपेक्टर अशोक जगताप ने इस बात की जानकारी अपने वरीष्ठ अधिकारियों को दी और अपना जाल बिछा कर प्रशांत गायकवाड़ को हिरासत में ले लिया. पुलिस हिरासत में प्रशांत गायकवाड़ प्रिया अपहरण और हत्या के मामले में अपने आप को निर्दोष बता कर पुलिस को गुमराह करता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के बाद वह ज्यादा देर न टिक सका. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए प्रिया के अपहरण और हत्या के बारे में जो बताया वह काफी हैरान कर देने वाला था. सूर्यकांत गायकवाड़ की गिनती पूना शहर के एक प्रतिष्ठित और संपन्न किसानों में होती थी. पूना शहर के देहूरोड पर शानदार बंगला और शहर के बाहर उन का एक फार्महाउस था.

जहां उन की अच्छीखासी काश्तकारी थी. बंगले में सुखसुविधाओं की सारी चीजे मौजूद थीं. उन का बेटा प्रशांत बंगले में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था. 35 वर्षीय प्रशांत गायकवाड़ स्वस्थ सुंदर और महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह सूर्यकांत गायकवाड़ का एकलौता और लाड़ला बेटा था. उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. प्रशांत की शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने थरगांव डांगे चौक पर रहने वाले अपने एक रिश्तेदार की बेटी से उस की शादी कर दी थी. समय के साथ वह 2 बच्चों का पिता बन गया.

घर में सुंदर सुशील पत्नी होने के बावजूद जब वह किसी शादी प्रोग्राम था पार्टी में किसी संजीसंवरी युवती को देखता तो उस के मुंह में पानी आ जाता था और वह उसे पाने के लिए आतुर हो उठता था. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. 20 वर्षीय प्रिय शीलवंत चव्हाण जितनी सुंदर और खूबसूरत थी उतनी ही चंचल आधुनिक सभ्य समाज की युवती थी. वह किसी से भी बेझिझक बातें तो करती थी लेकिन अपनी मर्यादा में रहती थी. उस की बातें हर किसी को मोह लेती थीं. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. परिवार संपन्न था, वह अपनी बड़ी बहन रेशमा और मां के साथ रहती थी.

सजीसंवरी प्रिया को प्रशांत गायकवाड ने अपने एक दोस्त की शादी के समारोह में देखा था. प्रिया की खूबसूरती देख कर प्रशांत गायकवाड़ उस का दीवाना हो गया. प्रिया शादी समारोह में जब तक रही प्रशांत गायकवाड़ की निगाहें उस का पीछा करती रहीं. प्रिया और उस के परिवार से प्रशांत गायकवाड़ का परिचय उस के दोस्त ने करवाया तो प्रशांत प्रिया के करीब आने की कोशिश करने लगा. शादी समारोह खत्म होने के बाद प्रशांत ने प्रिया और उस की मां बहन को अपनी कार में लिफ्ट दे कर उन के घर छोड़ दिया. रास्ते में प्रिया चव्हाण उस की मां और बहन रेशमा चव्हाण प्रशांत गायकवाड़ की बातों और व्यवहार से इस तरह प्रभावित हुईं कि उसे अपने घर चायनाश्ते पर बुला लिया.

प्रिया और उस के परिवार वालों के इस प्रस्ताव पर प्रशांत गायकवाड़ के मन में लड्डू फूटने लगे. प्रशांत गायकवाड़ यही चाहता था. वह दूसरे दिन ही प्रिया से मिलने उस के घर पहुंच जाना चाहता था. लेकिन किसी तरह अपने मन को काबू कर वह एक सप्ताह बाद प्रिया के घर पहुंचा. यह संयोग ही था कि उस समय प्रिया घर में अकेली थी. प्रशांत गायकवाड़ के लिए यह समय सोने पर सुहागा था. उसे ऐसे ही मौके की तो तलाश थी. प्रशांत ने प्रिया से अधिकतर इधरउधर की बातें की और अपने आप को अनमैरिड बता कर प्रिया का मोबाइल नंबर ले लिया.

प्रिया का मोबाइल नंबर लेने के बाद प्रशांत प्रिया को अक्सर फोन करने लगा. नतीजा यह हुआ कि प्रशांत गायकवाड़ की मीठी लुभावनी बातें प्रिया के मन में धीरेधीरे घर करने लगीं और वह उस की तरफ आकर्षित हो गईं. प्रशांत गायकवाड़ यही चाहता भी था. वह मौका देख कर प्रिया को अपनी कार में बैठा कर लंबे सफर पर ले जाता. दोनों मौल में जा कर शौपिंग करते. प्रिया को वह अच्छेअच्छे उपहार देता था. प्रिया इस बात से अनभिज्ञ थी कि प्रशांत गायकवाड़ सिर्फ उस के शरीर का भूखा है. प्रशांत ने कई बार मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार करने की कोशिश की, लेकिन प्रिया ने उसे रोक दिया.

जब प्रशांत गायकवाड़ यह बात अच्छी तरह समझ गया कि प्रिया अपनी लक्ष्मण रेखा लांघने वाली नहीं है तो उस ने एक योजना के तहत अपनी पत्नी और बच्चों को उन के ननिहाल भेज कर प्रिया को जरूरी बात के लिए अपने बंगले पर बुलाया और नशे का शरबत पिला कर उस के साथ संबंध बनाए. जब यह बात प्रिया को पता चली तो उसे नागवार लगा. बाद में जब यह बात प्रिया को मालूम हुई की प्रशांत गायकवाड़ शादीशुदा ही नहीं बल्कि 2 बच्चों का पिता भी है तो वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और देहूरोड़ पुलिस थाने जा कर उस के विरूद्ध धोखा और बलात्कार की शिकायत दर्ज करवा दी. जिस से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. यह मामला 2016 का था.

2 साल तक चले इस प्रकरण में जब प्रशांत गायकवाड़ को एहसास हो गया कि वह सजा के बिना नहीं बच सकता तो उस ने प्रिया से मेलमिलाप में ही अपनी भलाई समझी और प्रिया के घर जा कर उस से और उस की मांबहन से अपने किए की माफी मांगी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी पत्नी को तलाक दे कर प्रिया से शादी करने का भी वादा किया. साथ ही उस ने मामले को वापस लेने की विनती भी की. प्रशांत के अनुरोध पर प्रिया ने अपना भविष्य देखते हुए केश वापस ले कर प्रशांत गायकवाड़ को माफ कर दिया. वह पहले की तरह प्रशांत गायकवाड़ से मिलनेजुलने लगी. बीचबीच में जब प्रिया शादी की बात करती तो प्रशांत अपनी पत्नी से तलाक लेने का बहाना कर उसे टाल देता.

समय अपनी गति से चलता रहा. प्रिया प्रशांत के बहकावे में आ कर अपने आप को भूल गई और गर्भवती हो गई. समय आने पर उस ने एक बच्ची को जन्म दिया. बच्ची के जन्म के 2 माह बाद प्रिया ने जब अपनी शादी और बच्ची के भविष्य के लिए प्रशांत गायकवाड़ से बात की तो प्रशांत टालमटोल करता रहा. जिस से प्रिया और उस के परिवार वालों को उस की नीयत का पता चल गया. प्रिया की शादी और उस की बच्ची के हक का दबाव बनाने के लिए प्रिया की मां और बहन ने महिला संगठन का सहारा लिया. घटना के दिन जिस समय महिला संगठन प्रशांत गायकवाड़ के बंगले पर पहुंचा, उस समय प्रशांत घर पर नहीं था. उन का सामना उस की पत्नी और बच्चों को करना पड़ा. संगठन की महिलाओं ने उसे जम कर लताड़ा.

बंगले की खिड़की और बंगले में खड़ी कार के सारे शीशे तोड़ डाले और उस की पत्नी को चेतावनी दे कर निकल गईं कि अगर प्रशांत गायकवाड़ ने प्रिया से शादी नहीं की और बच्ची को पिता का नाम नहीं दिया तो दोबारा फिर आएंगी और अंजाम बुरा होगा. पति प्रशांत के चरित्र और महिला संगठन की चेतावनी से उस की पत्नी बुरी तरह डर गई. उसे पति से नफरत हो गई. वह अपना सारा सामान और बच्चों को ले कर मायके जाने के लिए तैयार हो गई. शाम को प्रशांत गायकवाड़ घर आया तो घर की स्थित देख कर हैरान रह गया. पत्नी ने उसे आडे़ हाथों लेते हुए काफी खरीखोटी सुनाई और अपने दोनों बच्चों को ले कर उसी समय घर छोड़ कर मायके चली गई.

पत्नी के मायके जाने और अपने अपमान को वह सह नहीं सका. उस का खून खौल उठा और उस ने प्रिया चव्हाण के प्रति खतरनाक फैसला ले लिया. उस का मानना था कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. रोजरोज की किटकिट खत्म हो जाएगी. अपने फैसले के अनुसार, प्रशांत गायकवाड़ ने अपने दो दोस्तों विक्रम रोकड़े और अभिजीत दड़े को अपनी मदद के लिए बुलाया और उन्हें अपने साथ ले कर रात को प्रिया चव्हाण के घर जा पहुंचा. दोस्तों के साथ वह प्रिया को उठा कर आदर्श नगर कालोनी की खाड़ी के पास ले गया. उस ने प्रिया चव्हाण का गला दबा कर पहले उस की हत्या की और पहचान मिटाने के लिए वहां पड़े पत्थरों से उस के चेहरे को विकृत कर के खाड़ी के पानी में फेंक दिया.

इस के बाद वह फरार हो गया. प्रशांत सूर्यकांत गायकवाड़ से विस्तृत पूछताछ करने के बाद जांच अधिकारी अशोक जगताप ने उस के खिलाफ अपहरण के मुकदमे में धारा 302/201 और  364 और जोड़ दी. बाद में उन्होंने उस की निशानदेही पर उस के दोस्त के ठिकानों पर छापा मार कर विक्रम रोकड़े को तो अपनी गिरफ्त में ले लिया. लेकिन अभिजीत दड़े पुलिस टीम के पहुंचने के पहले ही फरार हो गया. प्रशांत सूर्यकांत गायकवाड़ और विक्रम रोकड़े को पूना के मैट्रोपोलिटन मजिस्टै्रट के सामने पेश कर के यरवदा जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त जेल में हैं.

Maharashtra Crime News : प्रेमिका की हत्या कर शव को पेड़ पर लटकाया फिर पर्स और मोबाइल लेकर हुआ फरार

Maharashtra Crime News : आटो से ड्यूटी आनेजाने के दौरान किरण की दीपक रूपवते से दोस्ती हो गई. शादीशुदा होने के बावजूद दीपक विवाहिता किरण को चाहने लगा. किरण ने जब उस से शादी करने से  इनकार किया तो…

महाराष्ट्र के जिला सतारा का रहने वाला 30 वर्षीय आकाश सावले पिछले 2-3 सालों से मुंबई से सटे थाणे जिले के वाड़ेघर गांव में अपनी पत्नी किरण के साथ रहता था. दोनों ने लवमैरिज की थी. प्रेमिका से पत्नी बनी किरण को किसी प्रकार की कोई तकलीफ न हो, इस के लिए आकाश रातदिन मेहनत करता था. वह एक व्यवहारकुशल युवक था. इसलिए वह जल्दी ही बस्ती के लोगों से घुलमिल गया था. आकाश सावले जो कमाता था, सारे पैसे किरण के हाथों पर रख देता था. पति की इस ईमानदारी पर किरण काफी खुश थी. उसे ऐसा लगता था कि उस ने अपने जीवन के प्रति जो फैसला किया था, वह सही था. लेकिन उस की यह सोच कुछ दिनों बाद ही गलत साबित हो गई.

आकाश सावले जब अपने काम पर चला जाता तो घर का सारा काम निपटाने के बाद घर में अकेली किरण का मन ऊब जाता था. उस का टाइम पास नहीं होता था. वह चाहती थी कि वह भी कहीं नौकरी करे. इस से टाइम भी पास हो जाएगा और चार पैसे भी घर आएंगे. इस बारे में उस ने पति आकाश से कहा कि दोनों काम करेंगे तो उन की आय भी बढ़ेगी और उन के सारे सपने भी पूरे हो जाएंगे. किरण की यह बात आकाश सावले को ठीक लगी. यही नहीं, उस ने अपने एक परिचित के सहयोग से पत्नी को भिवंडी के एक कारखाने में काम पर भी लगवा दिया.

रविवार, 9 अगस्त, 2020 की शाम 5 बजे किरण सब्जी लेने के लिए जब घर से निकली तो फिर वापस लौट कर नहीं आई. आकाश सावले को किरण की चिंता सता रही थी. जैसेजैसे अंधेरा घना होता जा रहा था, वैसेवैसे आकाश के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. रात किसी तरह से बीत गई. किरण का मोबाइल भी स्विच्ड औफ था. सुबह होते ही बस्ती के लोगों के साथ उस ने किरण की तलाश शुरू कर दी. पूरा दिन उस ने अपने नातेरिश्तेदारों से किरण के बारे में पूछताछ की, लेकिन कहीं से भी उस की जानकारी नहीं मिल सकी.

पूरे 24 घंटों तक आकाश सावले अपने दोस्तों, जानपहचान वालों के साथ किरण की तलाश कर के जब थक गया और किरण का कहीं पता नहीं चला तो वह पुलिस को पत्नी के गुम होने की सूचना देने का फैसला किया. आकाश ने थाना कोनगांव जा कर वहां के ड्यूटी अफसर एसआई जीवन शेरखाने को सारी बातें बताईं और किरण सावले के गायब होने की सूचना दर्ज करवा दी. पुलिस ने किरण की गुमशुदगी दर्ज कर उस के हुलिया और फोटो के आधार पर अपनी जांच शुरू कर दी. शिकायत दर्ज हुए अभी 12 घंटे भी नहीं हुए थे कि कोनगांव पुलिस को एक चौंकाने वाली खबर मिली.

12 अगस्त, 2020 की सुबह लगभग 9 बजे पुलिस कंट्रोल रूम से यह खबर आई कि मुंबई-नासिक हाइवे रंजनोली नाका भिवंडी में स्थित टाटा आमंत्रा बिल्डिंग के पीछे पेड़ पर किसी युवती का शव लटका हुआ है. शायद आत्महत्या का मामला है. चूंकि यह क्षेत्र थाना कोनगांव के अंतर्गत आता था, इसलिए कोनगांव थाने के एसआई जीवन शेरखाने तुरंत अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने प्रारंभिक काररवाई कर शव पेड़ से नीचे उतरवाया और शिनाख्त के लिए आकाश सावले को बुला लिया. मामला काफी जटिल और सनसनीखेज था. पुलिस ने इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ थानाप्रभारी आर.टी. काटकर को भी दे दी.

एसआई जीवन शेरखाने अभी अपने सहयोगियों के साथ मामले की जांच कर ही रहे थे कि सूचना पा कर थाणे के डीसीपी अंकित गोयल और थानाप्रभारी आर.टी. काटकर भी मौकाएवारदात पर आ पहुंचे थे. डीसीपी अंकित गोयल ने युवती के शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी आर.टी. काटकर को कुछ दिशानिर्देश दे कर अपने औफिस लौट गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी आर.टी. काटकर ने मामले की औपचारिकताएं पूरी कर युवती के शव को पोस्टमार्टम के  लिए भिवंडी के सिविल अस्पताल भेज दिया और थाने लौट आए.

थाने आ कर आत्महत्या का मामला दर्ज कर उन्होंने जांच शुरू कर दी. इस से पहले कि पुलिस टीम उस युवती की आत्महत्या की कडि़यां जोड़ पाती, मामले में एक नया मोड़ आ गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने मामले को उलझा दिया था. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने इस बात का खुलासा किया कि युवती की मौत आत्महत्या न हो कर एक साजिश के तहत हत्या थी, जिसे हत्यारे ने बड़ी होशियारी से अंजाम दिया था. हत्यारे ने 21-22 साल की किरण सावले की हत्या कर उस के शव को पेड़ से लटका दिया था. हत्यारे ने यह काम 3 दिन पहले किया था.

इस से स्पष्ट हो गया कि किरण की मौत आत्महत्या न हो कर एक सोचीसमझी साजिश के तहत की गई हत्या थी, यह जानकारी मिलने पर क्राइम ब्रांच भी सतर्क हो गई. क्राइम ब्रांच के डीसीपी प्रवीण पवार ने मामले की गंभीरता को समझा और जांच क्राइम ब्रांच यूनिट 3 के इंसपेक्टर संजू जौन को सौंप दी.  इंसपेक्टर संजू जौन ने एक टीम का गठन किया, जिस में उन्होंने असिस्टेंट इंसपेक्टर भूषण दामया, एसआई नितिन मुदगुन, हैडकांस्टेबल दत्ताराम भोसले, राजेंद्र धोलप, मंगेश शिरके, अजीत राजपूत आदि को शामिल कर कोनगांव पुलिस के साथ मामले की समानांतर जांच शुरू कर दी. साथ ही अपने मुखबिरों को भी जिम्मेदारी सौंप दी.

क्राइम ब्रांच के मुखबिरों ने 24 घंटे के अंदर ही इंसपेक्टर संजू जौन को यह खबर दे दी कि इस घटना का मुख्य अभियुक्त दीपक रूपवते डोंबिवली (पश्चिम) इलाके में घूम रहा है. खबर महत्त्वपूर्ण थी. इंसपेक्टर संजू जौन ने इस खबर को तुरंत कोनगांव पुलिस थाने से साझा किया और पूरे डोंबिवली पश्चिम में अपना सर्च औपरेशन शुरू कर दिया. नतीजा जल्दी सामने आ गया. क्राइम ब्रांच टीम और कोनगांव थाना पुलिस ने संयुक्त अभियान में दीपक रूपवते को कोपर ब्रिज के पास से दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम दीपक जगन्नाथ रूपवते बताया.

उस से क्राइम ब्रांच औफिस में पूछताछ की गई तो दीपक रूपवते अपना गुनाह स्वीकार करने में आनाकानी करता रहा, लेकिन जब सख्त रुख अपनाया गया तो वह तोते की तरह बोलने लगा. उस ने किरण सावले की हत्या का पूरा राज खोल दिया. 31 वर्षीय दीपक जगन्नाथ रूपवते अच्छी कदकाठी का युवक था. उस के पिता का नाम जगन्नाथ रूपवते था. जगन्नाथ रूपवते मूलरूप से महाराष्ट्र के लातूर जिले के रहने वाले थे. सालों पहले वह अपने परिवार के साथ कल्याण के गोविंद नगर इलाके में आ कर बस गए थे. रोजीरोटी के लिए उन्होंने मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.

दीपक रूपवते उन का एकलौता बेटा था, जिसे घर के सभी लोग प्यार करते थे. जगन्नाथ रूपवते और उन की पत्नी चाहती थी कि उन का बेटा पढ़लिख कर काबिल बन जाए. इस के लिए वह उस की सारी जरूरतें पूरी करते थे. लेकिन नतीजा उलटा ही निकला. पढ़ाईलिखाई में उस की कोई रुचि नहीं थी. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की. अच्छी शिक्षादीक्षा न होने के कारण उसे कोई अच्छा काम भी नहीं मिल सका. जिस जगह दीपक रूपवते रहता था, उस जगह के आटो ड्राइवरों से उस की अच्छी दोस्ती थी. लिहाजा दीपक ने भी तय कर लिया कि वह भी आटोरिक्शा चलाएगा. दोस्तों की मदद से उस ने अपना लाइसैंस भी बनवा लिया.

लेकिन उस के मातापिता को उस का आटोचालक बनना पसंद नहीं था. वह चाहते थे कि उन का बेटा ड्राइवर बनने के बजाय किसी अच्छी नौकरी में जाए लेकिन उन के सपने सच नहीं हुए. दीपक ने मातापिता की एक नहीं सुनी और आटो चलाने लगा. आटोचालक बनने के बाद उस के मातापिता ने उस के योग्य लड़की की तलाश की तो उन की यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. गांव के ही एक रिश्ते की लड़की उन्हें पसंद आ गई. करीब 5 साल पहले दीपक की शादी पूरे रस्मोरिवाज के साथ हो गई थी. शादी के शुरुआती दिनों में दीपक रूपवते पत्नी के प्यार में आकंठ डूबा रहता था. लेकिन जैसेजैसे समय गुजरता गया, दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर किचकिच शुरू हो गई. यह तब और बढ़ गई, जब वह 2 बच्चों का पिता बन गया.

दीपक चाहता था कि उस की पत्नी बच्चों को संभालने के साथसाथ पहले जैसी ही बनसंवर कर रहे. लेकिन गांव के परिवेश में पलीबढ़ी उस की पत्नी चाह कर भी उस के हिसाब से रह नहीं पाती थी. जिस की वजह से वह दीपक के दिल में अपनी जगह नहीं बना पा रही थी. दीपक रूपवते के दिल में अपने लिए बेरुखी देख कर पत्नी ने उस का दिल जीतने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रही. वह जब आटो चला कर आता, तब वह उस की मनपसंद की साड़ी पहनती, सजतीसंवरती, उस की पसंद का खाना बनाती, मीठीमीठी बातें कर उस का दिल जीतने की कोशिश करती. इस के बावजूद भी दीपक उस से दूरी ही बनाए रखता था.

दरअसल, रंगीनमिजाज दीपक अपनी पत्नी में वही छवि देखना चाहता था, जिस तरह की सुंदर, हसीन युवतियां उस के आटो में बैठती थीं. शादी के पहले दीपक ऐसी ही युवती की कल्पना किया करता था, जो उसे अपनी पत्नी में नहीं दिखाई देती थी. ऐसा रिश्ता भला कितने दिन चलता, रोजरोज की जलीकटी सुनने के बजाए एक दिन उस की पत्नी ने उस से और बच्चों से अपना रिश्ता खत्म कर उस का घर छोड़ दिया. 8-10 महीने अकेले रहने के बाद दीपक की जिंदगी में किरण सावले आई. किरण सावले और दीपक का मिलना एक संयोग था. किरण हमेशा अपने काम पर जाने के लिए बसस्टौप पर आती थी. अगर कभी उस की बस समय पर नहीं आती थी तो मजबूरी में उसे आटो से जाना पड़ता था.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ. संयोग से उस दिन किरण के पास आटो का पूरा किराया नहीं था. ऐसे में दीपक ने उस की मदद की. दूसरे दिन जब किरण ने उसे बाकी किराया देने की कोशिश की तो दीपक ने लेने से मना कर दिया. बस यहीं से दीपक और किरण एकदूसरे के करीब आ गए. किरण ने दीपक का फोन नंबर भी ले लिया. अब जब भी किरण को समय पर बस नहीं मिलती, तो वह दीपक को फोन कर के बुला लेती. दीपक उसे उस के कारखाने पहुंचा आता था. 2-4 बार दीपक के आटो में आनेजाने पर दोनों की झिझक भी दूर हो गई. दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करने लगे.

दोनों ने एकदूसरे के सामने अपनेअपने जीवन के सारे पन्ने खोल कर रख दिए. दीपक ने अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में ऐसा कुछ बताया कि किरण को उस से हमदर्दी हो गई, जिसे दीपक ने किरण का प्रेम समझ लिया. अब दीपक अकसर किरण से मिलता, उस की राह देखता. उसे अपने आटो से काम पर छोड़ता और ड्यूटी पूरी होने के बाद आटो से उस के घर के पास छोड़ देता. दोनों की घनिष्ठता बढ़ी तो दोनों फोन पर घंटों बातें करने लगे. इतना ही नहीं, वे समय निकाल कर मूवी देखते, मौल में घूमते, शौपिंग करते. आखिरकार एक दिन वह समय भी आ गया, जब दीपक ने किरण से शादी का प्रस्ताव रखा तो किरण ने उसे हंसी में टाल दिया.

कहा, ‘‘मुझे तुम से शादी कर के खुशी होगी, लेकिन मैं यह नहीं कर सकती. क्योंकि मेरा पति मुझे बहुत प्यार करता है. इस के अलावा हमारा एक समाज है, हम एक दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे.’’

लेकिन दीपक इस से संतुष्ट नहीं था. वह किरण से प्यार करने लगा था. उसे अपना जीवनसाथी बना कर अपना घर बसाना चाहता था. उस ने किरण को कई बार शादी के लिए प्रपोज किया था, लेकिन अपने मनमुताबिक जवाब न पा कर वह उस से नाराज रहने लगा और उस ने किरण के प्रति एक क्रूर फैसला कर लिया था. घटना के दिन रात 8 बजे दीपक ने किरण को घुमाने के बहाने से अपने आटो में बिठाया. फिर वह कल्याण से भिवंडी रंजनोली नाका टाटा आमंत्रा बिल्डिंग के पीछे स्थित झाडि़यों के पीछे ले गया. वहां उस ने एक बार फिर किरण से शादी करने का आग्रह किया, लेकिन किरण ने इनकार कर दिया.

इस से गुस्सा हो कर दीपक ने किरण की ओढ़नी उस के गले में डाल कर उस की हत्या कर दी. पुलिस को गुमराह करने के लिए उस ने वारदात को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की. इस के लिए उस ने उसी ओढ़नी का फंदा बना कर शव को वहां एक पेड़ पर लटका दिया. फिर उस का पर्स और मोबाइल फोन ले कर फरार हो गया. दीपक जगन्नाथ रूपवते से विस्तृत पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे कोनगांव थाना पुलिस के हवाले कर दिया. कोनगांव पुलिस ने उसे भिवंडी कोर्ट में पेश कर 7 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया. विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दीपक को फिर से भिवंडी कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

 

UP News : एकतरफा प्यार बना मौत की वजह

UP News : इशिका और शिवम का प्यार परवान चढ़ रहा था. इसी बीच इशिका का पड़ोसी भरत इशिका पर डोरे डालने लगा. जब भरत समझाने पर भी नहीं माना तो इशिका ने प्रेमी शिवम के साथ मिल कर उसे ऐसा सबक सिखाया कि…

बाराबंकी जिले के थाना कोतवाली नगर अंतर्गत मोहल्ला नई बस्ती पीरबटान में रहता था 28 वर्षीय भरत वर्मा. वह अपने घर में बिजली से संबंधित उपकरणों इनवर्टर और स्टेबलाइजर बनाने का काम करता था.  उस के पिता पुजारीलाल वर्मा ने एक नामी माचिस कंपनी और एक बीड़ी कंपनी की एजेंसी ले रखी थी, जिस से उन्हें अच्छी कमाई होती थी. संपन्न होने के कारण उन्होंने अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की थी. सन 2000 में पुजारीलाल की मृत्यु हो गई. भरत की 3 बहनें और 3 भाई थे. बहनें विवाह के बाद अपनी ससुराल में रह रही थीं. भरत से 2 बडे़ भाई थे राम, लक्ष्मण और एक छोटा भाई था शत्रोहन.

बड़े भाई राम की भी सन 2009 में कैंसर के कारण मृत्यु हो गई थी. भरत को छोड़ कर दोनों भाई विवाहित थे. जवान बेटे राम की मृत्यु के बाद मां अन्नपूर्णा भी बीमार रहने लगीं और सन 2016 में उन का भी देहांत हो गया था. तीनों भाई अपनेअपने कामधंधे में व्यस्त थे. 22 अक्तूबर, 2020 को भरत घर पर था. किसी का फोन आया तो रात साढ़े 8 बजे वह घर से निकल गया. शत्रोहन और लक्ष्मण घर लौटे तो भरत घर पर नहीं था. घर के सदस्यों से पूछा तो पता चला कि किसी का फोन आया था, उस के बाद भरत चला गया था. लक्ष्मण ने भरत का फोन मिलाया तो वह बंद था.

23 अक्तूबर की सुबह यंग स्ट्रीम स्कूल के पीछे नाले के किनारे एक युवक की लाश पड़ी मिली. वहां पहुंचे राहगीरों ने लाश देखी तो किसी ने नगर कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी. इंसपेक्टर पंकज सिंह अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 28-30 वर्ष थी. उस के सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. गला आधा कटा हुआ था. इंसपेक्टर सिंह इस से पहले कि लाश की शिनाख्त कराते, मृतक के घरवाले वहां पहुंच गए. वह लाश भरत वर्मा की थी, जिस की शिनाख्त मौके पर पहुंचे उस के छोटे भाई शत्रोहन ने की.

इंसपेक्टर सिंह ने उस से आवश्यक पूछताछ की. शत्रोहन ने किसी पर शक नहीं जताया. उस ने कहा कि भरत शराब पीता था. शराब के नशे में किसी से विवाद हो गया होगा, जिस की वजह से यह घटना हुई होगी. फिलहाल इंसपेक्टर सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और शत्रोहन को साथ ले कर कोतवाली आ गए. शत्रोहन की तहरीर पर इंसपेक्टर सिंह ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद उन्होंने भरत वर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में घटना से पहले जिस नंबर से काल आई थी, वह नंबर भी था.

उस नंबर की पड़ताल की गई तो नंबर कोतवाली नगर के ही आनंद नगर, लखपेड़ाबाग निवासी शिवम उर्फ शंभूनाथ शुक्ला का निकला. शिवम का पुलिस रिकौर्ड भी था. वह वाहन चोरी के मामले में कई बार जेल जा चुका था. इंसपेक्टर पंकज सिंह ने 24 अक्तूबर, 2020 को शिवम को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद उस की प्रेमिका इशिका कश्यप उर्फ नैंसी को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. इशिका भरत के घर के पास ही रहती थी. दोनों से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के नगर कोतवाली क्षेत्र की नई बस्ती पीरबटान मोहल्ले में प्रेमा कश्यप रहती थीं. वह नगर पालिका में नौकरी करती थीं. उन के 4 बेटे थे अशोक, संतोष, राजेश व नन्हकू और एक बेटी थी पिंकी. सभी विवाहित थे. करीब 25 साल पहले पिंकी का विवाह ब्रजेश कश्यप से हुआ था. दोनों की एक बेटी थी पिंकी. घर में उसे सब नैंसी नाम से बुलाते थे. इशिका के जन्म के बाद पतिपत्नी में कुछ विवाद हुआ. यह विवाद इस नतीजे पर पहुंचा कि पिंकी पति का घर छोड़ कर अपनी मां प्रेमा के घर आ गई.

समय के साथ पिंकी की बेटी इशिका जवान हो गई. यौवन की दहलीज पर कदम रखा तो उस की काया में काफी खूबसूरत बदलाव आ गए, जिन की वजह से वह काफी सुंदर दिखती थी. विवाह योग्य होने पर पिंकी ने उस का विवाह फतेहपुर के गांव फय्याजपुरवा निवासी सुमित कश्यप से कर दिया. लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इशिका भी अपनी मां की तरह पति को छोड़ कर हमेशा के लिए मायके में आ कर रहने लगी थी. बाराबंकी के मोहल्ला आनंदनगर, लखपेड़ाबाग में शिवम उर्फ शंभूनाथ शुक्ला रहता था. 28 वर्षीय शिवम अविवाहित था. उस के पिता का नाम गंगाचरण शुक्ला था. शिवम के 4 भाई थे, वह सब से बड़ा था.

शिवम आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस पर वाहन चोरी के कई मामले दर्ज थे. ऐसे ही एक मामले में वह इसी साल लौकडाउन के बाद जेल से छूट कर आया था. एक दिन शिवम अपने एक परिचित के यहां गया हुआ था, वहीं इशिका भी आई हुई थी. परिचित ने दोनों का परिचय कराया. परिचय हुआ तो दोनों में बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे से बात कर के काफी अच्छा लगा. बात करने के बाद इशिका फिर मिलने के वादे के साथ वहां से चली गई. इशिका के तीखे नैननक्श और बात करने के अंदाज ने शिवम का चैन छीन लिया था. इशिका से मिलने के बाद उस के दिमाग में हर समय इशिका के ही खयाल उमड़उमड़ कर आ रहे थे.

वह बारबार सिर झटकता, दिमाग से कुछ और सोचने की कोशिश करता, लेकिन सब व्यर्थ ही जाता. इशिका उस के दिलोदिमाग पर इस कदर छा गई थी कि लाख जतन के बाद भी वह उस का खयाल दिमाग से नहीं निकाल पा रहा था. दूसरी ओर इशिका को भी शिवम पसंद आ गया था. वह स्मार्ट तो था ही, साथ ही अपनी बातों से किसी का भी दिल जीत सकता था. उस की इसी खासियत के कारण इशिका भी उसे दिल दे बैठी थी. वह जितनी बार उस के बारे में सोचती, उतनी ही बार चेहरे पर हया के बादल छा जाते और होंठों पर मुसकान सज जाती थी. जल्द ही दोनों ने एक रेस्टोरेंट में मुलाकात की. फिर अनगिनत मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे के नजदीक आने लगे. मुलाकातों के दौरान दोनों को एकदूसरे को समझने का मौका मिला.

एक दिन मौका देख कर शिवम ने इशिका से अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. दोनों एकदूसरे की आंखों में झांक कर दिल का हाल जान चुके थे, देर थी तो बस जुबां से इजहार करने की. एक मुलाकात के दौरान शिवम ने इशिका का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘इशिका, हम दोनों काफी समय से मिल रहे हैं. एकदूसरे को ठीक से जान गए हैं. हमारी सोच और विचार भी बहुत मिलते हैं. हम दोनों को एकदूसरे का साथ भी बहुत पसंद है. हमारी आंखों में भी एकदूसरे के लिए प्यार दिखता है. चुपकेचुपके प्यार करने से क्या फायदा, जब प्यार करते है तो जुबां पर लाएं भी. आज मैं तुम से प्यार का इजहार करता हूं. आई लव यू… आई लव यू इशिका.’’ कह कर शिवम बडे़ प्यार से इशिका की तरफ देखने लगा.

इशिका उस के इजहार से काफी खुश हुई और बोली, ‘‘आई लव यू टू शिवम. मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. लेकिन इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. आज तुम ने मुझे बहुत बड़ी खुशी दी है.’’ कह कर इशिका शिवम के सीने से लग गई. शिवम ने भी उसे अपनी बांहों में भर लिया. इस तरह दोनों के बीच प्यार की शुरुआत हो गई. शिवम अकसर इशिका के घर से कुछ दूरी पर आ कर उसे फोन करता और इशिका उस से मिलने चली आती. इशिका के घर के पास ही भरत रहता था. वह इशिका की खूबसूरती पर मर मिटा था. उसे इशिका बेहद पसंद थी. वह उस के आगेपीछे मंडराता रहता था. लेकिन इशिका उसे पसंद नहीं करती थी. फिर भी भरत उस के पीछे पड़ा था.

एक दिन भरत ने रास्ते में रोक कर इशिका को फूल दे कर अपने प्यार का इजहार किया, ‘‘इशिका, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम मेरा प्यार स्वीकार कर लो, मैं तुम्हें जीवन भर खुश रखूंगा, किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो तुम. मैं तुम्हें पसंद नहीं करती, प्यार करना तो दूर की बात है. मेरे रास्ते में भी न आया करो, न आगेपीछे घूमा करो. मैं किसी और को चाहती हूं, उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताऊंगी.’’ कह कर इशिका वहां से चल दी. इशिका को जाते देख कर भरत बड़बड़ाया, ‘‘मैं भी देखता हूं कि तुम मुझे ठुकरा कर किसी और को कैसे अपनाती हो.’’

इस के बाद वह इशिका पर नजर रखने लगा. जब भी इशिका शिवम से मिलने घर के पास जाती तो भरत वहां पहुंच जाता और किसी बात पर शिवम से झगड़ने लगता. इशिका ने भरत द्वारा बदतमीजी किए जाने की बात भरत के घरवालों को बताई. इस पर भरत ने दोबारा ऐसी हरकत न करने का वादा लिया. लेकिन भरत इशिका को दूसरे की होते हुए भी नहीं देखना चाहता था. इसलिए वह शिवम से भिड़ जाता था. जब भरत बारबार परेशान करने लगा तो इशिका ने शिवम से कहा कि भरत को रास्ते से हटा दो. भरत उस के साथ पहले भी बदतमीजी कर चुका है. शिवम तो वैसे भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस ने इशिका की बात सहर्ष मान ली.

22 अक्तूबर, 2020 की रात करीब साढ़े 8 बजे शिवम ने भरत को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया. भरत उस से मिलने यंग स्ट्रीम स्कूल के पीछे पहुंच गया. शिवम ने भरत को फिर से समझाया कि वह इशिका पर गलत नजर न रखे, इसी में उस की भलाई है. भरत भी तेवर दिखाते हुए बोला, ‘‘इशिका क्या तेरी बहन लगती है जो तू उस का इतना पक्ष ले रहा है.’’

इस बात पर शिवम को गुस्सा आ गया और उन दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. तभी शिवम ने पास रखे लोहे के चापड़ से भरत के सिर व गले पर ताबड़तोड़ कई वार कर किए, जिस से भरत की मौत हो गई. इस के बाद शिवम ने लोहे का चापड़ और भरत का मोबाइल फोन कुछ दूरी पर नाले के किनारे फेंक दिया. जिस बजाज सुपर स्कूटर पर बैठ कर वह वहां आया था, उसी से वापस चला गया. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर पंकज सिंह ने शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे की चापड़ और स्कूटर नंबर यूपी32जे 6395 बरामद कर लिया. गिरफ्तारी के समय शिवम के पास से 315 बोर का एक तमंचा और एक कारतूस भी बरामद हुआ.

आवश्यक कानूनी कागजात तैयार करने के बाद पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

Love Crime : शादीशुदा प्रेमिका को ईंट मार कर उतारा मौत के घाट

Love Crime : पति से विश्वासघात कर प्रियंका प्रेमी देवेंद्र के साथ रहने लगी. लेकिन जब उस ने देवेंद्र को धोखा देने की कोशिश की तो देवेंद्र ने एक दिन…

उस दिन अक्तूबर, 2020 की 6 तारीख थी. शाम के 5 बज रहे थे. कानपुर के बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह गश्त पर निकलने वाले थे, तभी उन्हें मोबाइल फोन पर किसी अज्ञात व्यक्ति ने सूचना दी कि जरौली फेस-1 के मकान नंबर 34 में एक महिला की हत्या हो गई है. मामला हत्या का था, अत: उन्होंने सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी फिर मातहतों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटाते हुए थानाप्रभारी कमरे में पहुंचे, जहां महिला का शव अर्धनग्न अवस्था में पड़ा था. उस की हत्या ईंट से सिर कूंच कर की गई थी.

पूछने से पता चला कि मृतका का नाम प्रियंका बाजपेई है. वह 2 साल से अपने बच्चों के साथ किराए के मकान में रह रही थी. मृतका की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. कमरे के अंदर खून फैला था और खून सनी ईंट शव के पास पड़ी थी. पुलिस ने ईंट साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर ली. थानाप्रभारी हरमीत सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह तथा एसपी (साउथ) दीपक भूकर भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में जानकारी जुटाई. मृतका का 10 वर्षीय बेटा अमर शव के पास सुबक रहा था. एसपी दीपक भूकर ने उस से सहानुभूतिपूर्वक पूछताछ की.

उस ने बताया कि घटना के समय वह घर पर नहीं था. कुछ देर बाद जब वह घर पर आया तो मां कमरे में मृत पड़ी थी. उन के सिर से खून बह रहा था. वह घबरा गया और शोर मचाता हुआ घर के बाहर आया. फिर पड़ोसियों को जानकारी दी. मृतका की मासूम बेटी आशा तथा 5 वर्षीय बेटा प्रतीक घटना के समय घर पर थे. प्रतीक ने बताया कि मां का झगड़ा लोहा अंकल से हुआ था. उन्होंने मां के सिर पर ईंट मारी और फिर चले गए. हम मां को बुलाते रहे, वह बोल नहीं रही थी. पुलिस अधिकारी बच्चों से जानकारी जुटा ही रहे थे कि मृतका का पति मनोज बाजपेई आ गया.

उस ने दीपक भूकर को बताया कि उस की पत्नी प्रियंका बाजपेई के नाजायज संबंध देवेंद्र सिंह यादव उर्फ लोहा सिंह से थे, जो कानपुर देहात के ग्रहणपुर गांव का रहने वाला है. वह शहर में आटो चलाता है. नाजायज रिश्तों का विरोध करने पर प्रियंका उस से लड़झगड़ कर बच्चों के साथ जरौली फेस-1 में छात्र नेता विमलेश पांडे के मकान में किराए पर रहने लगी थी. यहां उस के प्रेमी लोहा सिंह का आनाजाना था. प्रियंका मनचली औरत थी. लोहा सिंह को शक था कि उस के अन्य किसी युवक से भी संबंध हैं. इसी कारण उस ने प्रियंका को मौत के घाट उतार दिया और फरार हो गया.

चूंकि पुलिस अधिकरियों को प्रियंका बाजपेई की हत्या और उस के कातिल का पता चल चुका था, अत: उन्होंने थानाप्रभारी हरमीत सिंह को आदेश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजें तथा कातिल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. आदेश पा कर हरमीत सिंह ने मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया. फिर मृतका के पति मनोज बाजपेई की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत देवेंद्र सिंह यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और उसे गिरफ्तार करने की कोशिश में जुट गए. हरमीत सिंह ने अपनी टीम के साथ सब से पहले नौबस्ता स्थित उस के किराए के मकान पर पहुंचे. लेकिन वह वहां से फरार था. फिर उन्होंने उस के गांव ग्रहणपुर में दबिश डाली. लेकिन वह वहां भी नहीं मिला.

उस के बाद टीम गजनेर, घाटमपुर तथा अकबरपुर में उस के संभावित ठिकानों पर गई. लेकिन वह चकमा दे गया. पुलिस हताश हो कर लौट आई. इस के बाद थानाप्रभारी ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. 15 अक्तूबर को पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर हत्यारोपी देवेंद्र सिंह को बर्रा बाइपास पुल के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से प्रियंका की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस पर सख्ती की गई तो वह टूट गया और उस ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक ऐसी मनचली औरत की कहानी सामने आई, जिस ने पति और प्रेमी दोनों से विश्वासघात किया था.

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले का एक कस्बा है जहानाबाद. इसी कस्बे में मनोज बाजपेई रहता था. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था. लगभग 14 साल पहले उस का विवाह हमीरपुर के मौदहा निवासी जगदीश तिवारी की बेटी प्रियंका के साथ हुआ था. मनोज ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. वह छिटपुट काम कर के अपना गुजारा करता था. शादी के 3 साल बाद प्रियंका ने बेटे अमर को जन्म दिया. परिवार बढ़ा तो घर के खर्च बढ़ गए. हाड़तोड़ मशक्कत करने के बावजूद मनोज उतना पैसा नहीं कमा पाता था, जितने की उसे जरूरत थी. मनोज का एक दोस्त संतोष कानपुर में आवासविकास, नौबस्ता में रहता था और हार्डवेयर की दुकान पर करता था.

पत्नी के कहने पर एक दिन मनोज ने संतोष को फोन किया, ‘‘संतोष भाई यहां कस्बे में काम ज्यादा करना पड़ता है और आमदनी बहुत कम है. ऐसा करो मेरे लायक कानपुर में कोई काम तलाश कर दो.’’

मनोज संतोष का पक्का दोस्त था, अत: उस ने बोल दिया, ‘‘तुम बेझिझक कानपुर आ जाओ. यहां काम की कमी नहीं है और पैसा भी अच्छा मिलता है. तुम आ जाओगे तो कहीं न कहीं काम मिल ही जाएगा.’’

दोस्त के बुलावे पर मनोज कानपुर पहुंच गया. संतोष ने उसे अपने ही घर ठहराया और खानेपीने की व्यवस्था की. उस के बाद दौड़धूप कर हार्डवेयर की एक दुकान पर उसे काम दिलवा दिया. मनोज ठीकठाक कमाने लगा तो उस ने दामोदर नगर में एक कमरा किराए पर ले लिया. उस के बाद वह पत्नी प्रियंका व बच्चे को भी ले आया. मनोज की गृहस्थी की गाड़ी ठीक से चलने लगी. हालांकि नौकरी में उसे ज्यादा पैसा नहीं मिलता था. लेकिन इतना जरूर मिल जाता था कि अभावों में जीना न पड़े. कानपुर में रहते प्रियंका ने एक और बेटे को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया राहुल.

तब तक प्रियंका को शहर की हवा लग चुकी थी. वह अभावों में नहीं बल्कि मौज की जिंदगी जीना चाहती थी. प्रियंका चाहती थी कि उस के भी शरीर पर कीमती कपड़े हों और हाथ में महंगा मोबाइल फोन. गहनों की भी कमी न हो, पर्स नोटों से हमेशा भरा रहे. बड़े होते बच्चों के साथ घर के खर्च लगातार बढ़ रहे थे. बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी सिर पर आ गया था, जबकि मनोज की आय सीमित थी. अत: वह अपनी इच्छाएं कैसे पूरी करती. प्रियंका के शौक तभी पूरे हो सकते थे, जब आमदनी बढ़ती. अत: उस ने आमदनी बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार करना शुरू कर दिया.

इसी दौरान प्रियंका की मुलाकात मोहल्ले की कुछ महिलाओं से हुई, जो दादानगर की बिसकुट कंपनी में काम करती थीं. उन महिलाओं को खासा वेतन मिलता था. प्रियंका को उन से यह भी मालूम पड़ा कि बिसकुट फैक्ट्री में पैकिंग का काम आसानी से मिल जाएगा. उस ने अपने मन की बात पति से कही तो थोड़ी नानुकुर के बाद उस ने काम करने की इजाजत दे दी. उस के बाद वह अन्य महिलाओं के साथ काम पर जाने लगी. इस के बाद तो उस की दिनचर्या ही बदल गई. वह सुबह उठ कर खाना बनाती, शाम को वापस आती तो फिर चूल्हाचौका करती. प्रियंका खुद कमाने लगी तो निश्चिंतता भी आ गई. इस से उस का रूप निखर आया, वह खूब बनसंवर कर रहने लगी. उस ने अपने लिए एक मोबाइल फोन भी खरीद लिया.

इस के बाद प्रियंका की सोच में बदलाव आने लगा, वह सोचती, ‘मैं किसी की मोहताज नही हूं. घर खर्च में पति की कमाई से ज्यादा मेरा पैसा लगता है, तो मैं क्यों किसी की गुलामी करूं. मेरी किस्मत फूटी थी, जो मनोज जैसे निठल्ले आदमी से शादी हुई.’ प्रियंका के ये विचार विषबेल की तरह बढ़ते गए. नतीजतन मनोज उस के मन से उतर गया. सुबहशाम वह जब भी उसे देखती, कुढ़ जाती, ‘पति ऐसे होते हैं. यह तो बीवी की कमाई के सहारे जिंदा रहने वाला आदमी है. 2 बेटे क्या पैदा कर दिए, खुद को मर्द समझने लगा. अरे, मर्द तो वे होते हैं, जो बीवी की जिंदगी और जरूरतों का बोझ उठाएं.’

इस के बाद प्रियंका के मन में वही एक बात शोर मचाने लगती, ‘मेरी किस्मत फूटी थी, जो मनोज से शादी हुई.’

अब तक प्रियंका तीसरे बेटे प्रतीक की भी मां बन चुकी थी. बीतते समय के साथ प्रियंका के मन में मनोज के लिए कोई जगह नहीं रह गई. हसरतों को दुलहन बनाने के लिए उस ने किसी नए और मनपसंद साथी की तलाश शुरू कर दी. इसी बीच एक दिन काम से घर लौटते हुए प्रियंका की मुलाकात देवेंद्र सिंह उर्फ लोहा सिंह से हुई. वह मूलरूप से कानपुर देहात जिले के गांव ग्रहणपुर का रहने वाला था और कानपुर में किराए पर आटो चलाता था. वह शादीशुदा और एक बेटे का बाप था. पत्नी सरला के साथ वह नौबस्ता में किराए के मकान में रहता था. पहली मुलाकात ही दोनों के दिलों में प्यार का जादू जगा गई. लिहाजा उन्होंने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए. मोबाइल फोन पर बातें करने के अलावा वे मिलने भी लगे. इन्हीं मेलमुलाकातों में प्यार का इजहार हुआ और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

लोहा सिंह मनोज की गैरमौजूदगी में उस के घर भी आने लगा. न लोहा सिंह को अपनी पत्नी सरला की फिक्र रह गई, न प्रियंका को पति व बच्चों के प्रति अपना धर्म याद रहा. देवेंद्र उर्फ लोहा सिंह का मनोज की गैरमौजूदगी में प्रियंका के घर आना आसपड़ोस के लोगों में शक पैदा करने लगा. वह जान गए कि प्रियंका काम करने के बहाने घर से बाहर जा कर कैसे गुलछर्रे उड़ाती है. घर में भी दरवाजा बंद कर गुल खिलाती है. पड़ोसियों से प्रियंका की आशनाई की खबर मनोज को हुई, तो उस ने जवाबतलब किया. प्रियंका ने पति की आंखों में आंखें डाल कर सब बोल दिया, ‘‘तुम हो किस लायक, जो मैं तुम्हारी वफादार बनी रहती. न तुम्हें बीवी रखने का शऊर है, न उस के जज्बात छूना आता है.

औरत का दिल कैसे जीता जाता है, यह भी तुम नहीं जानते. इंसान की 2 भूख होती है, एक जिस्म की और दूसरे रुह की. यह दोनों ही भूख तुम कभी नहीं मिटा पाए. इसलिए मेरा हक बनता था कि किसी दूसरे से अपनी जरूरत पूरी करूं और मैं ने साथी ढूंढ भी लिया और जरूरत भी पूरी कर ली.’’

पत्नी की बात सुन कर मनोज सन्न रह गया. कुछ देर बाद हवास बहाल हुए तो उस ने प्रियंका को समझाया कि वह जो कर रही है, सरासर गलत है. उसे अपनी आशिकी से बाज आना चाहिए. लेकिन प्रियंका किसी भी कीमत पर देवेंद्र उर्फ लोहा सिंह से नाता तोड़ने को राजी नहीं हुई. इन्हीं दिनों प्रियंका ने बेटी आशा को जन्म दिया. मनोज ने आशा को अपनी बेटी मानने से इनकार कर दिया. उस ने प्रियंका से साफ कह दिया कि यह उस के पे्रमी लोहा सिंह की निशानी है. इस के बाद तो आशा को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. झगड़ा ज्यादा बढ़ा तो प्रियंका ने पति का घर छोड़ दिया और चारों बच्चों के साथ जरौली फेस-1 में किराए के मकान में रहने लगी. यह बात मार्च, 2018 की है.

पत्नी के विश्वासघात से मनोज आहत तो हुआ. लेकिन विचलित नहीं हुआ. न प्रियंका ने घर वापसी की पहल की न मनोज उसे मनाने आया. हां, इतना जरूर था कि मनोज जबतब बच्चों से मिलने आ जाता था और बच्चों को घर के बाहर बुला कर उन से मिल कर चला जाता था. बच्चों को वह खानेपीने का सामान भी दे जाता था. मनोज ने अब दामोदर नगर वाला किराए का मकान खाली कर दिया था और आवासविकास नौबस्ता में दोस्त संतोष के साथ रहने लगा था. प्रियंका पति से अलग रहने लगी तो देवेंद्र उर्फ लोहा सिंह का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया. प्रियंका ने अड़ोसपड़ोस वालों को बताया था कि लोहा सिंह उस का पति है.

प्रियंका को अब कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था, सो वह खुल कर रंगरलियां मनाने लगी थी. लोहा सिंह अपनी कमाई प्रियंका व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा था. इधर जब लोहा सिंह रात को भी घर से गायब रहने लगा, तो उस की पत्नी सरला को उस पर शक हुआ. उस ने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो उसे जल्द ही प्रियंका और लोहा सिंह की रासलीला का पता चल गया. कोई भी औरत भूख और गरीबी तो सहन कर सकती है, लेकिन पति को पराई बांहों में नहीं सहन कर सकती. सरला को भी सहन नहीं हुआ. अत: एक रोज वह प्रियंका के घर जा पहुंची. सरला ने उसे अपना परिचय दिया फिर आंखें तरेरते हुए बोली, ‘‘तुम क्यों मेरा घर बरबाद करने पर तुली हो. मेरे पति को अपने चंगुल से मुक्त कर दो.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति को बुलाने नहीं जाती,’’ प्रियंका बेहयाई से बोली, ‘‘जैसे मक्खी गुड़ पर मंडराती है, लोहा सिंह भी मेरे पीछे मंडराता है. मेरे पास क्यों आईं, उसे रोको.’’

प्रियंका की दोटूक बात सुन कर सरला चली गई. उस ने पति को बहुत समझाया, जान तक देने की धमकी दी. लेकिन लोहा सिंह नहीं माना. उस ने प्रियंका का साथ नहीं छोड़ा. वह उस के साथ रंगरलियां मनाता रहा. दोनों के अवैध रिश्तों की सभी को जानकारी हो गई थी. इधर कुछ समय से देवेंद्र सिंह उर्फ लोहा सिंह महसूस कर रहा था कि प्रियंका उसे कम लिफ्ट दे रही है. वह जब भी मिलन की इच्छा जताता, वह मना कर देती. बात भी ठीक से नहीं करती और रूखा व्यवहार करती. उस ने प्रियंका के इस रूखे व्यवहार के बारे में गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि प्रियंका के घर 2 युवक आते हैं, जिन के साथ वह हंसीठिठोली करती है और घूमने भी जाती है.

लोहा सिंह समझ गया कि प्रियंका ने उन के साथ अवैध रिश्ते बना लिए हैं. जिस से वह उस से दूर भागने लगी है. उस ने प्रियंका को सबक सिखाने की ठान ली. 6 अक्तूबर, 2020 की शाम 4 बजे देवेंद्र उर्फ लोहा सिंह प्रियंका के घर पहुंचा. उस समय प्रियंका का बड़ा बेटा अमर व राहुल घर पर नहीं थे. दोनों सब्जी लेने गए थे. 2 वर्षीय आशा और 5 वर्षीय प्रतीक कमरे में खेल रहे थे. लोहा सिंह ने आते ही प्रणय निवेदन किया, जिसे प्रियंका ने ठुकरा दिया. तब लोहा सिंह उस के साथ जबरदस्ती करने लगा. लेकिन प्रियंका विरोध पर उतर आई.

इस पर लोहा सिंह बोला, ‘‘बदचलन औरत, तूने पहले पति के साथ विश्वासघात किया और अब मुझ से विश्वासघात कर किसी और की बांहों में खेलने लगी. विश्वासघातिनी, आज मैं तुझे सबक सिखा कर ही रहूंगा.’’

कह कर लोहा सिंह ने प्रियंका को दबोच लिया. दोनों में झगड़ा होने लगा. इसी बीच लोहा सिंह की निगाह पास पड़ी ईंट पर पड़ी. उस ने लपक कर ईंट उठाई और प्रियंका के सिर पर कई प्रहार किए. प्रियंका का सिर फट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. कुछ देर बाद प्रियंका ने दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद लोहा सिंह फरार हो गया. इधर सब्जी ले कर अमर घर आया तो उस ने कमरे में मां की लाश देखी. वह शोर मचाता घर से बाहर आया और पड़ोसियों को मां की हत्या की जानकारी दी. तब किसी ने हत्या की सूचना थाना बर्रा पुलिस को दे दी.

सूचना पाते ही इंसपेक्टर हरमीत सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़ा गया. 16 अक्तूबर, 2020 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्त देवेंद्र सिंह उर्फ लोहा सिंह को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. प्रियंका के बच्चे अब पिता मनोज के संरक्षण में रह रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित