जीजा साली के खेल में मारा गया डाक्टर

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.

लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करने की खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोते बिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.

पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा.

संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा.

इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग.

इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

ड्रग माफिया की कठपुतली बनी शिवानी की कहानी

मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला कभी डकैतों की पनाहगाह हुआ करता था, जो ग्वालियर, भिंड और मुरैना जिलों से घिरा हुआ है. लेकिन अब वही शिवपुरी बदनाम है देह व्यापार और ड्रग्स के कारोबार के लिए. उड़ता पंजाब की तर्ज पर शिवपुरी को लोग उड़ता शिवपुरी कहने लगे हैं, क्योंकि यहां के गांव देहातों तक में जिस्म के बाद जो चीज आसानी से जरूरतमंदों के लिए मिल जाती है, वह है ड्रग.

17 वर्षीय शिवानी शर्मा बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी, जिस पर नजर डालने के बाद लोग पलक झपकाना भूल जाते थे. भरेपूरे और गदराए जिस्म की मालकिन इस युवती की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. जब वह बहुत छोटी थी, तब उस के पिता का निधन हो गया था. विधवा हो जाने के बाद उस की युवा मां को समझ आ गया था कि एक नन्ही बच्ची के साथ स्वाभिमान और और सम्मानपूर्वक तरीके से रह पाना किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं है.

फिर एक दिन वह अपने जिगर के टुकड़े को सास की गोदी में डाल कर चली गई. कहां गई, इस का ठीकठाक पता किसी को नहीं, लेकिन कुछ दिन बाद उड़ती उड़ती खबर यह आई कि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

इस तरह शिवानी अपनी दादी लक्ष्मीबाई की गोद में पलीबढ़ी, जिन के पास नाम के मुताबिक लक्ष्मी कहने भर को भी नहीं थी. क्योंकि अपनी और नन्ही पोती की गुजर के लिए उन्हें दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, तब कहीं जा कर दो वक्त की रोटी नसीब होती थी.

अभावों में पलती शिवानी बड़ी होती गई, लेकिन इन 17 सालों में जो कई बातें उसे समझ आई थीं, उन में अहम यह थी कि गरीबी दुनिया का सब से बड़ा अभिशाप है. लक्ष्मीबाई ने अपनी तरफ से उस की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. उस ने शिवानी को शिवपुरी के सरस्वती स्कूल में दाखिला दिला दिया था. पढ़ाई में औसत रही शिवानी को यह भी समझ आ गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, उस की दरिद्रता दूर नहीं होने वाली है.

अपने मांबाप की कहानी उस ने दादी और कुछ रिश्तेदारों के मुंह से सुनी थी, जो कभीकभार दिखावे के लिए आ जाते थे. नहीं तो किसी को न तो उन से मतलब था और न ही फुरसत थी. बड़ी होती शिवानी को कभी किसी ने अपनी बाहों में झुला कर अपनी प्रिंसेस बिटिया या नन्ही परी नहीं कहा था. वह तो बस हैरानी से अपने आसपास की दुनिया देखते हुए बड़ी होती गई थी.

बूढ़ी दादी की आंखों से शिवानी की मनोदशा छिपी नहीं थी, लेकिन इस के बाद भी उन्हें उम्मीद थी कि पोती सुंदर है, एक न एक दिन उस के भी दिन फिरेंगे और कोई अच्छे खाते पीते घर का लड़का उसे ब्याह कर ले जाएगा.

ड्रग्स से कर ली सगाई

ऐसा कुछ हुआ नहीं, उलटे लक्ष्मीबाई कुछ महीनों पहले उस वक्त सन्न रह गई, जब उन्हें यह अहसास हुआ कि शिवानी ड्रग्स का नशा करने लगी है. उन्हें अपने सपने टूटते नजर आए. लेकिन इस के आगे क्याक्या होना है, इस का अंदाजा वे नहीं लगा पाईं और अगर लगा भी लिया होगा तो बेबसी के चलते कसमसा कर रह जातीं.

दरअसल, ड्रग्स तो शिवानी कई दिनों से ले रही थी लेकिन लत उसे अभीअभी लगी थी और इस तरह लगी थी कि स्मैक की एक पुडि़या के लिए वह अपना जिस्म तक परोसने के लिए तैयार रहने लगी थी.

हकीकत यह थी कि जवानी की सीढि़यों पर पहला कदम रखते ही शिवानी एक ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस गई थी, जो षडयंत्रपूर्वक उन लड़कियों को फंसाता था, जिन पर कोई पारिवारिक नियंत्रण नहीं होता था. शिवानी इस काम के लिए ड्रग माफिया को बहुत सौफ्ट टारगेट लगी थी.

कुछ दिन पहले ही शिवानी के यहां एक युवक का आनाजाना शुरू हुआ था, जिस का नाम चिक्की पाठक था. ब्राह्मण होने के नाते दादी ने चिक्की के आनेजाने को असहज ढंग से नहीं लिया. दादी के पास बैठ कर उन से घंटों बतियाने वाला चिक्की असल में मोहरा था, जिसे शिवानी को फंसाने के लिए भेजा गया था.

उम्मीद के मुताबिक शिवानी जल्द ही चिक्की के प्रेमजाल में फंस गई. फिर वह उस के साथ बाहर घूमने फिरने जाने लगी. आने वाली जिंदगी को ले कर वह सुनहरे सपने देखने लगी. चिक्की भी उस के सपनों को हवा देता रहा.

धीरेधीरे चिक्की उसे अपनी 2 परिचितों जूली भार्गव और रूबी जाटव के यहां ले जाने लगा. इन दोनों के घर और आजाद जिंदगी देख कर शिवानी भी ऐसी ही जिंदगी के ख्वाब देखने लगी, जिस में उस का अपना घर है, चिक्की है और रोमांस ही रोमांस है.

भोलीभाली शिवानी तब इन सब की हकीकत नहीं जानती थी. जब भी वह चिक्की के साथ इन के यहां जाती थी तो जूली और रूबी उन दोनों को एकांत में छोड़ देती थीं. आग और बारूद आमने सामने होंगे तो वर्जनाएं टूटने में देर नहीं लगती. यही शिवानी के साथ हुआ. धीरेधीरे ही सही, चिक्की ने कब उसे पूरी तरह अपना बना लिया, इस का उसे अहसास ही नहीं हुआ.

कच्चे उम्र की शिवानी ज्यादा दिनों तक खुद को रोके नहीं रख पाई और एक दिन पूरी तरह चिक्की की हो गई. फिर यह सुख रोजरोज नएनए तरीके से उसे मिलने लगा तो वह इसकी आदी हो गई. शिवानी नाम की अनछुई कली देखते ही देखते खिला हुआ फूल बन गई.

सेक्स की लत के बाद चरणबद्ध तरीके से चिक्की, रूबी और जूली ने उसे शराब और सिगरेट पिलानी शुरू कर दी. शिवानी ने महसूस किया कि ये दोनों चीजें न केवल रोमांस और सैक्स का बल्कि जिंदगी का भी असली लुत्फ देती हैं. लिहाजा वह बेहिचक शराब पीने लगी.

घर में कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था और जो बूढ़ी दादी थीं, शिवानी के लिए उन के वहां होने न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. वह तो एक ऐसी दुनिया में जा पहुंची थी, जहां प्यार, रोमांस और सैक्स के अलावा कुछ नहीं होता था.

इसी दौरान चिक्की ने उस का परिचय अपने और दोस्तों यानी गिरोह के सदस्यों रजक, विकास, गोलू और परमार से भी करवा दिया था. ये चारों भी उसे रूबी और जूली की तरह भले लगे. फिर एक दिन उसे दुनिया के सब से हसीन नशे स्मैक की खुराक दी गई.

शिवानी को लगा कि यह नशा बड़ा अद्भुत है, जिसे ले कर आदमी अपने सारे रंजोगम और परेशानियां भूल जाता है. एक ऐसा नशा जिस की तलब उतरने के बाद से ही लगने लगती है.

धीरेधीरे ग्रुप बना कर ये सभी लोग यह नशा करने लगे, जिस में कोई बंदिश नहीं थी. थी तो सिर्फ एक ऐसी आजादी जो हर युवा का सपना होती है. एक बार इन ड्रग्स की लत शिवानी को लगी तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने बूढ़ी दादी के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, जिस ने अपना बुढ़ापा जला कर उसे बड़ा किया था.

आ गई देह व्यापार में ऐसा नहीं कि अनुभवी लक्ष्मीबाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन शिवानी की हालत अब उस उफनती बरसाती नदी की तरह हो गई थी, जिसे बांधे रखने में कम से कम कोई जर्जर बांध तो कतई कामयाब नहीं होता.

जवान बेटे को खो चुकी लक्ष्मीबाई अब जवान होती पोती का हाल देख रही थीं. लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थीं, क्योंकि बेटे की तरह वह उस की अमानत को नहीं खोना चाहती थीं.

जिस मकसद से शिवानी को चिक्की ने फंसाया था वह पूरा हो चुका था. बिना ड्रग्स के अब वह एक दिन भी नहीं रह पाती थी और तलब लगने पर खुद उस के या दूसरे साथियों की तरफ खिंची चली आती थी.

यह सब इतने जल्दीजल्दी और सुनियोजित तरीके से हुआ था कि शिवानी को कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था और कभी मिला भी होगा तो उसे यह भी समझ आ गया होगा कि अब कुछ नहीं हो सकता.

जो एक बार ड्रग्स के नशे की राह पर चल पड़ता है, वह चाह कर भी वापस नहीं लौट सकता. यही हाल शिवानी का था. फिर एक दिन उसे बताया गया कि जिस मौजमस्ती की लत उसे पड़ चुकी है, वह मुफ्त नहीं मिलती है, इस के लिए दाम भी चुकाना पड़ता है.

दाम चुकाने के लिए शिवानी के पास फूटा धेला भी नहीं था, लेकिन इन्हीं लोगों ने उसे बताया कि उस के पास जो है, वह करोड़ोंअरबों का है. अगर वह चाहे तो दौलत पैरों में लोटने लगेगी.

चूंकि चिक्की को इस पर कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए मजबूरी की मारी शिवानी देहव्यापार के लिए भी तैयार हो गई. और सचमुच शिवानी की देह पैसा उगलने लगी. वह अब पूरी तरह कालगर्ल बन चुकी थी, जो पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए हर उस शख्स यानी ग्राहक का बिस्तर गर्म करने को तैयार रहती थी, जिस के पास उस के गिरोह के सदस्य ले जाते थे.

देखते ही देखते शिवानी के रंगढंग बदल गए. वह महंगी ड्रेस पहनने लगी. हाथ में 30 हजार रुपए का मोबाइल आ गया और सब से बड़ी बात ड्रग्स के लिए पैसों का जुगाड़ सहूलियत से होने लगा. इस धंधे में पूरी तरह उतरने के बाद उसे पता चला कि कई पुलिस वाले भी इस गिरोह के साथ हैं, जिन में से वह कुछ का बिस्तर गर्म भी कर चुकी थी.

अब शिवानी की जिंदगी में कुछ नहीं रह गया था. वह अपनी जवानी कैश करा रही थी तो सिर्फ नशे की खुराक के लिए, जिस के बगैर उस का दिमाग सनसनाने लगता था, शरीर सुन्न पड़ने लगता था. घबराहट और उलटियां भी होने लगती थीं. अब तो वह कई कई दिन बाहर रहने लगी थी.

फिर एक दिन… देवानंद अभिनीत और निर्देशित 70 के दशक की चर्चित और हिट फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की जीनत अमान बन चुकी शिवानी ने अपने रोल से समझौता कर लिया था कि वह सिर्फ नशे और मौजमस्ती के लिए पैदा हुई है, इस से आगे दुनिया में कोई सच नहीं है.

यह और बात है कि फिल्म की तरह उस का कोई भाई उसे गिरोह और नशे की दलदल से वापस निकालने नहीं आया क्योंकि यह हकीकत थी, फिल्म नहीं.

पूरी तरह गिरोह का हिस्सा बन जाने के बाद औरों की तरह शिवानी को भी पता नहीं चल पाया कि आखिरकार इस का कर्ताधर्ता कौन है. वह तो एक ऐसी कठपुतली बन गई थी, जो चिक्की के इशारों पर नाचती थी. उस के लिए सुकून देने वाली इकलौती बात यही थी कि चिक्की अब भी उसे चाहता था और शादी करने को भी तैयार था.

खुद फंसने के बाद उसे यह जरूर समझ आ गया था कि ये लोग कितनी चालाकी से शिकार चुनते हैं, फिर उसे फांसते हैं और उस से पैसा कमाते हैं. नशे की दुनिया के कारोबार के इस गोरखधंधे का उद्गम स्थल कहां है, यह भी उसे नहीं मालूम था और यह सब जानने की जरूरत या इजाजत उसे भी नहीं थी. उस की दुनिया तो एक खुराक में सिमट कर रह गई थी.

चिक्की खुद भी नशेड़ी था और एक बार इलाज के लिए उसे ग्वालियर के नशा मुक्ति केंद्र भी भेजा गया था, लेकिन वहां से वह भाग आया था और फिर नशे की दुनिया का हिस्सा बन गया था.

उस के पिता धर्मेंद्र पाठक शिवपुरी की जानीमानी शख्सियत हैं. जूली के बारे में उसे पता चला था कि जूली अपने पति को छोड़ चुकी है और रूबी हालांकि अपने परिवार के साथ रहती है, लेकिन यह रहना ठीक वैसा ही है, जैसा उस का दादी के साथ रहना.

इसी दौरान शिवानी को यह भी पता चला था कि ड्रग्स शिवपुरी की गलीगली में मिलती है और कई जगह तो बाकायदा इन की किट बिकती है, जिन में नशे के इंजेक्शन के साथ सीरींज वगैरह भी होती है. यह और ऐसे कई गिरोह खासतौर से युवाओं को कैसे फांसते हैं, इस की बेहतर मिसाल तो वह खुद ही थी.

पुलिस से की शिकायत लक्ष्मीबाई की बूढ़ी आंखों से अब कुछ छिपा नहीं रह गया था. वह रूबी, जूली, चिक्की और गिरोह के बारे में काफी कुछ जान चुकी थीं कि इन्होंने ही उन की पोती को फंसा कर उस की जिंदगी नर्क बना दी है.

लिहाजा वह अपनी एक नजदीकी रिश्तेदार को ले कर एक दिन थाने जा पहुंचीं और फरियाद लगाई, जिस की कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्हें समझ आ गया कि इस गिरोह में पुलिस वाले भी शामिल हैं.

इधर ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ गाने की धुन पर झूमती शिवानी बीती 5 जुलाई को घर आई तो दादी को लगा कि वह रुकेगी, लेकिन शिवानी अपना आधार कार्ड और कुछ कपड़े ले कर वापस चली गई. तब उस के साथ जूली और रूबी के अलावा एक पुलिस वाला भी था. वह बेबसी से पोती को जाते देखती रहीं.

5 जुलाई, 2019 को कोई खास बात थी, जो शिवानी खूब सजीसंवरी थी. शाम होने तक वह नशे की 2 खुराक ले चुकी थी. दरअसल इस गिरोह के हाथ एक डील के तहत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी, जिस के लिए शिवानी को कई सफेदपोश लोगों को खुश करना था. शिवानी कहीं बीच में कुछ ऐसावैसा न बोल दे, इसलिए उसे तीसरी खुराक भी दे दी गई थी.

रंगीन रात परवान चढ़ पाती, इस के पहले ही ड्रग्स के ओवरडोज के चलते शिवानी की हालत बिगड़ने लगी तो बाकी लोग घबरा उठे. उन्होंने पहले तो उस के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए तो उन्हें लगा कि शिवानी का बचना अब मुश्किल है.

6 जुलाई, 2019 की सुबह जब शिवपुरी की कृष्णापुरम कालोनी में लोग बाहर आए तो यह देख सन्न रह गए कि नामी कारोबारी जगदीश मंगल के चबूतरे पर एक जवान लड़की पड़ी है. लड़की ने जींस और गुलाबी रंग का टौप पहन रखा था. उस का एक हाथ चबूतरे के नीचे हवा में झूल रहा था और मुंह से झाग निकल रहा था.

साफ समझ आ रहा था कि वह युवती जिंदा नहीं, बल्कि लाश है. जमा भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर पुलिस को खबर कर दी तो सिटी कोतवाली के टीआई बादाम सिंह यादव टीम सहित घटनास्थल पर जा पहुंचे. आग की तरह युवती की संदिग्ध मौत की खबर शहर भर में फैली तो कुछ ही देर में एएसपी गजेंद्र सिंह कंवर भी पहुंच गए.

सामने आई सच्चाई इसी बीच भीड़ में से ही किसी ने युवती की शिनाख्त भी कर दी कि वह नवाब साहब रोड  पर रहने वाली शिवानी शर्मा है. इस के बाद पुलिस को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि जिस चबूतरे पर लाश पड़ी थी, उस घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इन कैमरों की रिकौर्डिंग देख पता चला कि पिछली रात कोई डेढ़ बजे एक आटोरिक्शा जगदीश मंगल के घर के सामने रुका था. थोड़ी देर खड़ा रहने के बाद उस में से एकएक कर 4 युवक उतरे और इधरउधर देखने के बाद उन्होंने आटोरिक्शा की पिछली सीट के पायदान से एक युवती को बाहर निकाल कर चबूतरे पर लिटा दिया और वापस चले गए.

इधर जैसे ही लक्ष्मीबाई को पोती की मौत की खबर लगी तो उन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. हुआ वही, जिस का उन्हें अंदेशा था. रोरो कर उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछले कुछ दिनों से शिवानी नशेडि़यों की संगत में पड़ गई थी. वह कुछ ऐसी लड़कियों के चंगुल में फंसी थी, जो ड्रग्स का कारोबार करती थीं. उन्होंने जूली उर्फ अपर्णा भार्गव और रूबी जाटव के नाम भी बताए.

लक्ष्मीबाई ने यह भी बताया कि शिवानी का प्रेम प्रसंग चिक्की पाठक से चल रहा था और दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चिक्की के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. इस के बाद भी दोनों ने छिप कर शादी कर ली थी. शिवानी पहली जुलाई को ही घर छोड़ कर चली गई थी और 5 जुलाई को थोड़ी देर के लिए घर आई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि शिवानी की हत्या इन्हीं लोगों ने की है.

चूंकि सीसीटीवी से सच बाहर आ चुका था, इसलिए पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120बी और 34 का मामला दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने खबर दी कि आरोपी शिवपुरी से भागने की फिराक में हैं और फतेहपुर रोड पर पुलिया के पास खड़े हैं.

मुखबिर की सूचना पर तुरंत दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. विकास सोनी, परमार सिंह, रूबी जाटव, गोलू रजक और जूली ने बताया कि शिवानी की मौत नशे के ओवरडोज के चलते हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी इस की पुष्टि हुई.

इस कांड से शिवपुरी में फैलते नशे और देह व्यापार के कारोबार की जम कर चर्चा हुई. कुछ पुलिस वालों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, जिन्हें सस्पेंड कर दिया गया. चिक्की फरार हो चुका था, लेकिन 11 जुलाई, 2019 को एक पैट्रोल पंप के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

इस तरह शिवानी की जिंदगी और कहानी दोनों खत्म हुए, लेकिन एक सबक छोड़ गई कि लोग अपने बच्चों को नशे के इन सौदागारों से बचा कर रखें, नहीं तो उन का अंजाम भी शिवानी जैसा हो सकता है.  तमाम हंगामों के बाद भी पुलिस इस गिरोह के सरगनाओं के गिरेहबानों तक नहीं पहुंच पाई तो साफ दिख रहा है कि प्यादे फंसे हैं वजीर और बादशाह तो बेखौफ और बदस्तूर अपने धंधे में लगे हैं और नए शिकार ढूंढ रहे हैं.

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 पैरों में सिमटी कहानी

औरत का दिल अगर किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे मर्द पर भी आ जाए तो वह अपना सब कुछ यहां तक कि शरीर भी उसे सौंप देने में लिहाज नहीं करती. लेकिन उलट इस के यह बात भी सौ फीसदी सच है कि अगर वह जिद पर उतारू हो आए तो कोई मर्द लाख मिन्नतों और जबरदस्ती के बाद भी उस का जिस्म हासिल नहीं कर सकता, भले ही उसे अपनी जान क्यों न देनी पड़ जाए.

यही रुखसार के साथ हुआ था लेकिन उसे नशे की झोंक में आखिरी सांस तक इस बात पर हैरत कम अफसोस ज्यादा रहा होगा कि कभी उस के शौहर रहे सादिक ने ही अपने पेशे कसाईगिरी के मुताबिक उस के उस जिस्म, जिस के लिए तलाक के बाद भी वह उस के इर्द गिर्द मंडराता रहा था, की बेरहमी से बोटी बोटी कर डाली.

हादसा मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के नजदीक महू नाम के कस्बे का है जो सैन्य छावनी और संविधान निर्माता व देश के पहले कानून मंत्री डा. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली होने के चलते देश भर में मशहूर है.

बीती 2 अक्तूबर को पूरे देश की तरह महू में भी समारोह कर के जगहजगह गांधी जयंती मनाई गई थी. उस दिन छुट्टी के चलते इस कस्बे के बच्चे खेलकूद में व्यस्त थे. महू का एक मोहल्ला है पत्तीपुरा जहां खेल रहे कुछ बच्चों की नजर नजदीक की गली के पास से बहते सुरखी नाले पर पड़ी तो वे हैरान हो उठे.

नाले में किसी मानव के बहते कटे पैर पड़े थे. उन्होंने यह बात दौड़ कर बड़ों को बताई तो थोड़ी देर में नाले के पास खासी भीड़ जमा हो गई. जल्द ही पूरे महू में यह बात जंगल की आग की तरह फैली और मौजूद भीड़ में से किसी ने पुलिस को भी इस की खबर कर दी.

खबर पाते ही टीआई योगेश तोमर टीम सहित मौके पर पहुंचे तो उन्होंने नाले से एक जोड़ी कटे पैर बरामद किए जो घुटनों के नीचे का हिस्सा था. पैर बरामद करने के बाद पुलिस ने इस उम्मीद के साथ आसपास के इलाके में खोजबीन की कि शायद दूसरे अंग भी मिल जाएं, जिस से पता चले कि माजरा क्या है, हालांकि यह पहली ही नजर में सभी को समझ आ गया था कि किसी की हत्या कर लाश के टुकड़े कर उसे बहाया गया है, लेकिन केस के लिए जरूरी था कि शरीर के बाकी हिस्से भी मिले.

देर रात तक पुलिस आसपास खाक छानती रही. जब कोई और अंग बरामद नहीं हुआ तो मामला उलझता हुआ नजर आया. कस्बे में फैली सनसनी, आशंकाओं और अफवाहों, चर्चाओं के दौरान इंचार्ज एसपी कृष्णा वेणी देसावत और एएसपी धर्मराज मीणा भी घटना स्थल पर पहुंच गए. चूंकि कटे पैरों के नाखून पर नेल पालिश लगा था इसलिए स्वभाविक अंदाजा यह लगाया गया कि पैर किसी महिला के होने चाहिए.

उस दिन तो पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लगा लेकिन दूसरे दिन की खोजबीन रंग लाई और शरीर के कुछ और हिस्से बरामद हुए. महू की मीटर गेज लाइन कस्बे का बाहरी इलाका है जहां की खान कालोनी में लाश का सिर और एक कटा हाथ मिला. थोड़ी और मशक्कत के बाद दूसरा कीचड़ से सना हाथ भी बरामद हो गया.

इस नृशंस हत्याकांड की चर्चा अब तक प्रदेश भर में होने लगी थी, लिहाजा पुलिस के लिए यह जरूरी हो चला था कि वह जल्द से जल्द इस हत्याकांड से परदा उठाए. इस बाबत एसएसपी रुचिवर्धन मिश्रा खुद इंदौर से महू आईं. उन्होंने मामले की जांच के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं.

3 जगहों से बरामद अंगों के मिलने के बाद भी पुलिस के लिए लाश की पहचान करना कोई आसान काम नहीं था लेकिन लाश के दाएं हाथ पर एक टैटू बना मिला, जिस में अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों से हरदीप लिखा हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि मृतका सिख समुदाय की हो सकती है क्योंकि हरदीप नाम आमतौर पर सिखों में ही होता है.

इस बाबत पुलिस ने सिख समाज के लोगों से पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई जानकारी पुलिस के हाथ नहीं लगी जो टुक ड़ेटुकड़े लाश की शिनाख्त में कोई मदद कर पाती. अब तक यह जरूर पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि लाश महिला की ही है और उसे बेहद नृशंस तरीके से मारा गया है.

इस दौरान पुलिस ने कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ भी की लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली. इस से एक ही बात उसे समझ आई कि वारदात में किसी आदतन या पेशेवर अपराधी का हाथ नहीं है, फिर भी टुकड़े टुकड़े मिली यह लाश पहेली बन कर के सामने आई थी.

जल्द ही मुखबिरों के जरिए पुलिस को पता चला कि कोई 2 साल पहले पीथमपुरा थाने में एक मामला दर्ज हुआ था जिस में एक महिला पकड़ी गई थी, जिस के हाथ पर अंग्रेजी में हरदीप गुदा हुआ था. तुरंत ही पुलिस की एक टीम पीथमपुरा थाने रवाना हो गई. पुरानी फाइलें खंगालने पर 2017 के एक मामले से पता चला कि पकड़ी गई महिला का असली नाम रुखसार था.

पुलिस के लिए इतना काफी था. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि 29 वर्षीय रुखसार के और भी कई नाम हैं मसलन जेबा, पूजा और सोनू, इतनी कामयाबी मिलते ही पुलिस ने इंदौर से रुखसार की बहनों और मां को बुला भेजा, जिन्होंने लाश देखते ही उस की शिनाख्त रुखसार के रूप में कर दी.

इसी पूछताछ में पता चला कि मूलत: इंदौर के चंदू वाला रोड के चंदन नगर इलाके में रहने वाली रुखसार की शादी कोई 8 साल पहले महू के सादिक से हुई थी. उस के पिता का नाम मोहम्मद आमीन है.

भरेपूरे बदन की रुखसार बेइंतहा खूबसूरत थी, उस के तीखे नैननक्श और मासूमियत की चर्चा उस के जवान होते ही शुरु हो गई थी. खूबसूरत बेटी किसी गरीब के घर पैदा हो तो किसी मुसीबत से कम नहीं होती. यही मोहम्मद आमीन के साथ हो रहा था जिन की आमदनी से खींचतान कर घरबार चल पाता था.

पिता को उम्मीद थी कि खूबसूरत रुखसार को किसी खाते पीते घरपरिवार का लडक़ा ब्याह ले जाएगा. लेकिन रुखसार जितनी खूबसूरत थी उस की तकदीर उतनी ही बदसूरत निकली. जब किसी मनपसंद और अच्छी जगह उस का रिश्ता तय नहीं हो पाया तो अब्बा ने बेटी का हाथ सादिक के हाथों में सौंप दिया जो पेशे से कसाई था.

सादिक का एक पैर खराब था, जिस की वजह से वह लंगड़ाकर चलता था लिहाजा लोग उसे सादिक लंगड़ा के नाम से पुकारते थे. रुखसार जब उस की शरीक ए हयात बनकर आई तो वह अपनी इस कमजोरी को भूलने लगा.

इतनी खूबसूरत बीवी पा कर किसी का भी इतराना कुदरती बात होती है लेकिन शायद पैर की कमजोरी के चलते रुखसार उसे मन से नहीं अपना पाई. हालांकि सादिक शारीरिक तौर पर किसी सामान्य पुरुष से उन्नीस नहीं था.

रुखसार की जवानी के समंदर में सादिक ऐसा डूबा कि उस ने अपने काम धाम पर ध्यान देना छोड़ दिया और दिन रात बीवी के साथ बिस्तर में पड़ा जवानी और जिंदगी का लुत्फ उठाते भूल गया कि घर चलाने के लिए पैसा भी उतना ही जरूरी है जितना कि सेक्स.

जब जवानी की खुमारी पर भूख और जरूरतें भारी पड़ने लगीं तो सादिक जल्द और ज्यादा पैसे कमाने की गरज से गलत राह पर चल पड़ा. वह नशे का कारोबार करने लगा. जो लोग नशे के आइटम यानि ड्रग्स का धंधा और स्मगलिंग करते हैं आमतौर पर उन्हें भी इस की लत लग जाती है यही सादिक के साथ हुआ. वह ड्रग्स बेचतेबेचते उस का नशा भी करने लगा था.

पति की हरकतों से परेशान रुखसार को भी नशे की लत लग गई. वह खुद तो नशा करने ही लगी, शौहर के साथ नशे का कारोबार भी मिल कर करने लगी. उस के दिल में एक कसक हमेशा बनी रही कि उसे वैसा शौहर नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था.

यह कसक कुंठा में बदलने लगी

जिस का अहसास कम पढ़ीलिखी रुखसार को था या नहीं, यह तो वही जाने पर बाहर की हवा लग जाने से उसे महसूस हुआ कि सादिक और घर के अलावा भी एक जिंदगी और है, जिस में कुछ और हो न हो लेकिन पैसा ठीकठाक है.

सादिक को भी इस बात का अहसास था कि वह अपनी बीवी की दिली पसंद और चाहत नहीं बल्कि मजबूरी है इसलिए धीरेधीरे वह आक्रामक होने लगा. इस दौरान दोनों का एक बेटा भी हुआ.

अब पैसा तो ठीकठाक आ रहा था लेकिन रुखसार की सादिक के लंगड़ेपन को ले कर असंतुष्टि सर उठाने लगी थी. वह सीधे तो सादिक से कुछ नहीं कहती थी लेकिन जब भी सादिक नशे में बिस्तर पर आता तो उसे उस की हरकतें नागवार गुजरने लगी. एक पुरानी कहावत है जिस का सार यह है कि औरत पति से 2 चीजें ही चाहती है पहली यह कि वह खाने पीने की कमी न होने दे और दूसरी यह कि सैक्स में संतुष्टि देता रहे.

रुखसार के साथ तीसरी वजह भी जुड़ गई थी जो शादी के वक्त से उस के मन में सादिक की कमजोरी को ले कर थी. लिहाजा उस का मुंह शौहर के सामने खुलने लगा. सादिक ने इस से ज्यादा कुछ नहीं सोचा समझा कि यह सब उस की पैर की कमजोरी के चलते रुखसार जानबूझ कर उसे जलील करने के लिए करती है.

लिहाजा दोनों में रोज रोज कलह होने लगी और एक दिन तो इतनी हुई कि सादिक ने गुस्से में आ कर 3 बार ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रुखसार की मुराद पूरी कर दी. वह आम औरतों की तरह पति के सामने रोई गिड़गिड़ाई नहीं बल्कि अपना सामान समेट कर उस का घर ही छोड़ दिया.

घर छोड़ने के बाद वह मायके इंदौर नहीं गई बल्कि महू में ही अलग किराए का मकान लेकर रहने लगी. ये कुछ दिन उस ने सुकून से गुजारे जहां सादिक की जोर जबरदस्ती और कलह नहीं थी, थी तो एक आजाद जिंदगी जिसे वह अपनी मरजी से जी रही थी.

रुखसार को तलाक दे कर सादिक को अहसास हुआ कि उस के बिना जिंदगी में काफी कुछ अधूरा है. दोनों अब अलगअलग अपने नशे की दुकान चला रहे थे और खुद भी नशा कर रहे थे.

रुखसार को भी मर्द की तलब लगने लगी थी. इसी दरम्यान उस की जानपहचान हरदीप नाम के नौजवान से हुई जो रंगीनमिजाज और आवारा होने के साथ बेरोजगार भी था. उसे भी नशे की लत थी, जिस के चलते उस की जानपहचान रुखसार से हुई थी और उस के हुस्न में फंसने से खुद को रोक नहीं पाया था.

इस हवसनुमा प्यार का नया अहसास रुखसार को उस जिंदगी में ले गया जिस के सपने वह शादी के पहले देखा करती थी. अब दोनों बिस्तर साझा करने लगे. प्यार की झोंक में ही रुखसार ने अपने दाहिने हाथ पर हरप्रीत के नाम का टैटू गुदवा लिया.

लेकिन हरदीप चालूपुर्जा निकला. कुछ महीनों में ही उस का रुखसार से जी भर गया तो वह उस से कन्नी काटने लगा. रुखसार अब दुनियादारी का ककहरा समझने लगी थी लिहाजा उस ने पैसों के लिए छोटीमोटी लूटपाट का भी धंधा शुरु कर दिया. इसी के चलते एक बार वह गिरफ्तार भी हुई और पीथमपुरा थाने में भी रही जिस का जिक्र पहले किया गया है.

हरदीप भी एक आपराधिक मामले में फंस कर जेल जा चुका था, लेकिन वह लौट कर दोबारा रुखसार के पास नहीं आया. उस के यूं मुंह मोड़ लेने से रुखसार की जिस्मानी जरूरतें सर उठाने लगी थीं लेकिन इन्हें पूरा करना उसे जोखिम भरा काम लग रहा था.

यही हालत सादिक की भी थी, लिहाजा हिम्मत कर एक दिन वह रुखसार के पास जा पहुंचा और उस से सुलह की बात कही लेकिन रुखसार अब मुड़ कर देखना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने उस की दोबारा शादी की पेशकश ठुकरा दी.

इस से सादिक का दिल दोबारा तो टूटा लेकिन एक अच्छी बात यह रही कि रुखसार इस बात पर राजी हो गई कि कभी कभार वह उसे शरीर सुख दे देगी. ऐसा होने भी लगा. जब सादिक को जरूरत पड़ती थी तो वह रुखसार के घर जा कर अपनी भूख मिटा लेता था और जब यही जरूरत रुखसार को महसूस होती थी तो वह सादिक के घर चली जाती थी.

दोनों अब एक समझौते के तहत जिंदगी जी रहे थे, जिस में किसी की कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. सौदा मरजी का था, जिस से दोनों खुश थे. सादिक का खून हालांकि यह जान कर खौला जरूर था कि तलाक के बाद रुखसार ने हरदीप से संबंध बनाए थे. लेकिन चूंकि अब वह उस की बीवी नहीं रही थी, इसलिए वह कोई ऐतराज नहीं जता पाया. वैसे भी जो सुख उसे रुखसार से चाहिए था वह मिल रहा था इसलिए खामोश रहने में ही उस ने भलाई समझी.

आजकल के डिजिटल युग में महू के पत्तीपुरा में ठेला लगा कर देवी देवताओं और फिल्मी नायिकाओं के पोस्टर बेचने वाले अधेड़ अनूप माहेश्वरी की दोस्ती सादिक से थी. अनूप भी नशेड़ी था और दिल फेक भी, इसी के चलते पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी.

3 साल पहले एक बार वह अपने ही घर में एक कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते गिरफ्तार भी हुआ था, जिस से समाज में उस की खासी बदनामी हुई थी और वह एक तरह से बहिष्कृत जिंदगी जी रहा था.

सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.

सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सुख लेता है.

यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.

अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.

इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.

सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.

अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.

लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.

इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.

इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.

योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.

जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.

हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.

थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.

रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.

अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.

वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…

लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.

रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’

ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी की लाश के टुकड़े टुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.

पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.

इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.

सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.

पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.

अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.

ये कैसा बदला : सुनीता ने क्यों की एक मासूम की हत्या?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था. विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला. उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

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वरुण 

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरह तरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

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अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोना कोना देख लिया जाए.

इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

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                           रोती बिलखती वरुण मीणा की मां तृप्ति 

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाश पाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहने सुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरह तरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

सगे भतीजे की नृशंस हत्या करने वाला चाचा

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में चरगवां पुलिस थाने के अंतर्गत एक छोटा सा गांव है सगड़ा. इस गांव की आबादी बमुश्किल 700-800 होगी. गांव के अधिकांश लोग खेतीबाड़ी का काम करते हैं. सगड़ा गांव में उत्तम गिरि का 6 भाइयों का परिवार रहता है. उत्तम गिरि और सब से बड़े भाई सतमन गिरि एक साथ रहते हैं. जबकि 4 अन्य भाई घर से कुछ दूरी पर बने मकान में रहते हैं. मूलत: किसानी करने वाले इस परिवार के पास लगभग 40 एकड़ खेती की जमीन है.

8 अप्रैल, 2019 की बात है. उत्तम गिरि की पत्नी ममता परिवार के लिए खाना बना रही थी. ममता का 10 साल का बेटा बादल खेलने की बात कह कर घर से बाहर चला गया था, जबकि 5 साल की बेटी मानवी घर पर ही खेल रही थी.

ममता खाना बना कर रसोई के सारे काम निपटा चुकी थी. तब तक दोपहर के 12 बज गए थे. लेकिन उस का बेटा बादल खेल कर नहीं लौटा था. वह बुदबुदाई, ‘‘खेल में इतना डूब जाता है कि खानेपीने का भी खयाल नहीं रहता.’’

उसी समय ममता का पति उत्तम गिरि भी खेत से घर आ गया. जब उसे पता चला कि बादल बाहर खेलने गया है तो उस ने उसे बुलाने के लिए बेटी मानसी को भेजा ताकि वह भी सब के साथ खाना खा ले.

कुछ देर बाद मानसी अकेली ही लौट आई. उस ने बताया कि बादल बाहर नहीं है. यह सुन कर उत्तम गिरि खुद बेटे को खोजने के लिए निकल गया. आसपड़ोस में रहने वाले लोगों ने उत्तम को बताया कि बादल खेलने आया तो था. सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास वह मोहल्ले में ही साहबलाल के घर के सामने खेल रहा था.

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              बादल

चूंकि साहबलाल का बेटा भी बादल के साथ स्कूल में पढ़ता था, इसलिए दोनों प्राय: रोज ही साथ खेलते रहते थे. उन्होंने साहबलाल के घर जा कर बेटे के बारे में पूछा तो उस के बेटे ने बताया कि आज वह खेलने के लिए घर से निकला ही नहीं है. इस के बाद बादल की मम्मी, पापा के अलावा उस के बड़े पापा (ताऊ) सतमन गिरि की चिंता बढ़ गई.

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जैसे ही गांव बालों को उत्तम के 10 वर्षीय बेटे बादल के गुम होने की जानकारी मिली तो उत्तम के घर लोगों की भीड़ जुटने लगी. जब शाम तक बादल का पता नहीं चला तो उत्तम गिरि के बड़े भाई सतमन गिरि ने शाम को चरगवां थाने पहुंच कर बादल के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि फरवरी माह में मध्य प्रदेश के चित्रकूट में 2 बच्चों के अपहरण के बाद हत्या करने की घटना हो चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने इस मामले को गंभीरता लिया. उन्होंने इस की सूचना पुलिस कप्तान निमिष अग्रवाल को भी दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले में त्वरित काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी के निर्देश पर एसपी (ग्रामीण) रायसिंह नरवरिया थाना चरगवां प्रभारी नितिन कमल के साथ सगड़ा गांव पहुंच गए.

पुलिस ने बादल के मातापिता को भरोसा दिया कि पुलिस बहुत जल्द बादल का पता लगा लेगी. लेकिन अगले दिन सोशल मीडिया और स्थानीय अखबारों में घटना की खबर प्रकाशित होते ही पुलिस की नींद उड़ गई.

एसपी के निर्देश पर पुलिस टीम ने 2 दिन और 2 रात गांव सगड़ा में कैंप कर गांव में घर घर जा कर करीब 100 से अधिक महिलाओं, पुरुषों व बादल के हमउम्र बच्चों से सघन पूछताछ की, लेकिन बादल का कहीं कोई सुराग नहीं मिला.

घटना को ले कर गांव में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. कोई कहता कि बादल का अपहरण हो गया है तो कोई नवरात्रि में किसी तांत्रिक क्रिया के लिए देवी मां को बलि चढ़ाने की बात कहता. पुलिस किसी से जाती दुश्मनी और अन्य पहलुओं पर भी छानबीन कर रही थी. उसे यह भी शक था कि कहीं किसी ने बादल के साथ कुकर्म कर हत्या न कर दी हो.

10 अप्रैल की रात गांव में पुलिस बल की मौजूदगी में बादल के परिजनों और गांव के प्रमुख लोगों ने रात 2 बजे तक बादल की खोजबीन की, लेकिन उस का कोई अता पता नहीं लग सका. बादल के गायब होने की गुत्थी पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. इस बीच एसपी साहब ने बादल की सूचना देने वाले को 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा कर दी.

उधर बादल की मां ममता का रोरो कर बुरा हाल था. किसी अज्ञात आशंका के डर से उस का कलेजा रहरह कर कांप उठता.

गुरुवार 11 अप्रैल, 2019 की सुबह साढ़े 8 बजे के लगभग गांव के कुछ लोगों को पास में बने एक खाली मकान से अजीब सी बदबू आती महसूस हुई. जब उत्तम और गांव के लोग उस मकान के अंदर पहुंचे तो उन्हें एक जर्जर कमरे में प्लास्टिक की बोरी नजर आई. तत्काल बोरी खोल कर देखी गई तो उस के अंदर बादल की लाश मिली. उस के दोनों हाथ और पैर तार से बंधे हुए थे. बौडी गल चुकी थी.

जिस मकान में बादल की लाश मिली, वह मकान रामजी नाम के व्यक्ति का था, जो कुछ साल से पास के गांव कमतिया में रह रहा था. उस का यह घर खाली पड़ा रहता था. रामजी के 3 भाइयों का परिवार गांव में रहता था.

कमरे के अंदर गोबर से लिपाई की गई जगह पर एक कोने में पत्थर पर उकेरी गई देवी की मूर्ति रखी थी. मूर्ति के पास ही त्रिशूल, मोर पंख, बुझे हुए दीपक के साथ 2 नारियल भी थे. घर के आंगन और पिछले दरवाजे तक खून के धब्बे मिले. पिछले दरवाजे में बाहर की ओर से ताला लगा हुआ था, लेकिन रामजी और गांव वालों ने बताया कि पिछले दरवाजे में सिर्फ सांकल लगी रहती थी.

गांव वालों ने आशंका प्रकट की कि शायद लाश को छिपाने वाले बाहर से ताला लगा कर गए होंगे. बादल के गायब होने के बाद से उत्तम गिरि के परिवार के लोग रामजी के इस घर में कई बार बच्चे को ढूंढने पहुंचे थे, लेकिन उस समय वहां कुछ नहीं मिला था.

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बादल की लाश मिलते ही उस के परिजनों के साथ गांव के लोग आक्रोशित हो गए. इसलिए रामजी के भाइयों के परिवार को गांव वालों ने घेर लिया. सुबह साढ़े 8 बजे रामजी के भतीजे मुकेश ने फोन पर अपने चाचा रामजी को बताया कि उन के घर में बादल की लाश मिली है, जिस के कारण गोस्वामी परिवार के लोग उन सभी को परेशान कर रहे हैं.

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यह जानकारी मिलते ही रामजी भी सगड़ा पहुंच गया. उधर गोस्वामी परिवार के साथ गांव के कई युवकों ने गांव की घेराबंदी कर रखी थी. इस बीच किसी ने पुलिस को खबर की तो चरगवां थाने की पुलिस वहां पहुंच गई.

गांव में उस समय तनाव जैसा माहौल था. तनाव की स्थिति को देख एसपी निमिष अग्रवाल, एएसपी (ग्रामीण) रायसिंह नरवरिया के साथ पुलिस के सभी अधिकारी भारी फोर्स ले कर गांव पहुंच गए और एफएसएल टीम ने लाश मिलने वाली जगह का निरीक्षण कर सबूत इकट्ठा किए.

एसपी ने मौके पर मौजूद थानाप्रभारी (चरगवां) नितिन कमल, थानाप्रभारी (ओमती) नीरज वर्मा और थानाप्रभारी (शहपुरा) घनश्याम सिंह मर्सकोले एवं एफएसएल, साइबर सेल, क्राइम ब्रांच के साथ जवानों की टीमें बनाईं और गांव के एकएक घर की तलाशी लेने के निर्देश दिए. इस तलाशी अभियान के बाद भी हत्यारों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

चरगवां थानाप्रभारी नितिन कमल द्वारा की गई जांच एवं पूछताछ में एक बात तो तय मानी जा रही थी कि बादल के अपहरण एवं हत्या में किसी करीबी का हाथ है. विवेचना के दौरान गांव की महिलाओं एवं पुरुषों और बच्चों से लगातार सघन पूछताछ की गई. पूछताछ के आधार पर संदेह की सुई मुकेश श्रीपाल के इर्दगिर्द घूमने लगी.

बादल का शव जिस मकान में मिला, उस के मालिक रामजी के भतीजे मुकेश श्रीपाल के बारबार बयान बदलने से पुलिस को संदेह हुआ. पुलिस ने जब मुकेश के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि मुकेश अपने पुराने साथी गुड्डू उर्फ मनोहरलाल तिवारी और अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी के साथ रहता है.

अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी मृतक बादल का ताऊ यानी उस के पिता का बड़ा भाई था. तीनों जुआ खेलने के आदी थे और उन पर लाखों रुपयों का कर्ज था. मुकेश के साथ रहने वाला गुड्डू तिवारी भेड़ाघाट में हुई एक हत्या का आरोपी भी है.

पुलिस टीम ने जब मुकेश से पूछताछ की तो वह इस मामले में खुद पाकसाफ बताता रहा लेकिन पुलिस की सख्ती पर वह टूट गया. मुकेश ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह दिल दहला देने वाली थी. पता चला कि मासूम बादल के अपहरण और हत्या की साजिश में बादल का सगा ताऊ अनिल गोस्वामी उर्फ अन्नू और उस का दोस्त मनोहर तिवारी शामिल थे.

जुए, सट्टे की गलत आदत के चलते लाखों रुपए के कर्ज में डूबे इन दरिंदों ने पैसे के लिए मासूम बादल का कत्ल किया था. मुकेश की निशानदेही पर पुलिस ने अनिल और गुड्डू तिवारी को भी हिरासत में ले कर उन से सघन पूछताछ की.

पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार गांव सगड़ा निवासी मुकेश श्रीपाल, गुड्डू उर्फ मनोहरलाल तिवारी और अनिल गिरि को जुआ खेलने और शराब पीने की लत थी. कुछ दिन पहले ही तीनों नरसिंहपुर जिले की सीमा से सटे नगर गोटेगांव में जुआ खेलने गए थे.

वहां बड़ी रकम हारने के कारण तीनों पर लाखों रुपए का कर्ज हो गया था. जब कर्जदारों ने उन्हें धमकाना शुरू किया तो तीनों परेशान रहने लगे. कर्ज से मुक्ति पाने के लिए तीनों लूट, डकैती और अपहरण की योजना बनाने लगे.

तीनों को जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो इस के लिए अनिल उर्फ अन्नू ने सुझाव दिया कि उस के छोटे भाई उत्तम के बेटे बादल का अपहरण कर लिया जाए तो 10-12 लाख की फिरौती मिल सकती है. उत्तम कुछ भी कर के रुपए दे देगा. यह सुन कर मुकेश, गुड्डू और अन्नू ने योजना बनानी शुरू कर दी. इस के बाद वे तीनों बादल के अकेले घर से निकलने का इंतजार करने लगे.

8 अप्रैल, 2019 की सुबह लगभग पौने 11 बजे गुड्डू, मुकेश और अन्नू गांव में खाली पड़ी दलान पर जुआ खेल रहे थे. तभी उन की नजर अकेले घर जाते हुए बादल पर पड़ी तो उन्होंने जुआ खेलना बंद कर दिया और अनिल गिरि उर्फ अन्नू बादल के पास पहुंच गया. उस ने बड़े प्यार से बादल से घूमने चलने को कहा तो वह ताऊ की बात नहीं टाल सका.

जैसे ही बादल को ले कर अनिल वहां से जाने लगा तो लोगों से नजर चुरा कर मुकेश और गुड्डू तिवारी भी उस के पीछेपीछे चलने लगे. गांव से बाहर निकलते ही तीनों बादल से मीठीमीठी बातें करने लगे. बादल इन तीनों को पहले से जानता था, इसलिए वह बातें करता रहा.

तीनों बड़ी सफाई और चालाकी से उसे गांव के बाहर खेत में बने सूने मकान में ले गए. यह मकान लखन गौड़ का था, जिस में कोई नहीं रहता था. काफी देर तक वहां रहने के बाद जब बादल ने घर जाने की जिद की तो तीनों ने पास में पड़े बिजली के तार से उस के हाथपैर बांध कर मुंह पर कपड़ा बांध दिया ताकि उस की आवाज न निकल सके.

बादल को वहीं छोड़ कर तीनों गांव आ कर यह योजना बनाने लगे कि उत्तम गिरि से कैसे फिरौती मांगी जाए. गांव में जब पुलिस बादल की तलाश करने पहुंची तो बादल के परिजनों और गांव वालों के साथ तीनों लोग भी बादल की खोज के बहाने पुलिस और परिवार की गतिविधियों पर नजर रखने लगे.

पुलिस के साथ बादल के पिता उत्तम और परिजन बादल की तलाश करने लगे. यह देख कर तीनों अपहर्त्ता डर गए. माहौल देख कर उन्हें लगने लगा कि उत्तम से फिरौती की रकम वसूलना अब मुश्किल है.

तीनों अपहर्त्ता एक बार फिर से खेत में बने मकान में आ गए. उन्हें भय लगा कि अगर बादल को छोड़ दिया तो वे पकड़े जाएंगे. क्योंकि बादल तीनों को पहचानता था. हाथपैर और मुंह बंधा बादल हाथपैर पटक कर छूटने का प्रयास कर रहा था कि उसी समय गुड्डू तिवारी ने बादल की गला दबा कर हत्या कर दी.

गुड्डू शातिर अपराधी था. पहले भी वह एक युवक की हत्या कर के शव को नदी में फेंकने के आरोप में जेल की हवा खा चुका था. गुड्डू ने कहा कि अगर बादल की लाश नहीं मिली तो वे सभी बच जाएंगे. इस के बाद तीनों आरोपियों ने बादल के शव को बोरी में भर कर नर्मदा नदी में फेंकने की योजना बनाई.

8 और 9 अप्रैल को पुलिस और गांव वालों ने बादल को सभी जगह तलाशा, जिस से कारण तीनों को लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला. 10 अप्रैल की रात वे तीनों लखन गौड़ के सूने मकान में पहुंचे और बादल के शव को बोरी में भर कर बाइक से नदी में फेंकने के लिए ले जाने लगे.

तीनों गांव के बाहरी रास्ते से जा रहे थे, तभी खेत की ओर से किसी ने बाइक पर तीनों को जाते देख कर टौर्च जलाई, जिसे देख कर तीनों डर गए और शव को ले कर गांव के अंदर सुनसान जगह में घुस गए. इस के बाद शव वाली बोरी को एक मकान में रख कर बैठ गए. इस दौरान कुछ खून बोरी से इधरउधर टपक गया.

तीनों ने कुछ लोगों को आते देखा तो जल्दबाजी में शव की बोरी को मुकेश श्रीपाल के घर के पास उस के चाचा रामजी के खंडहरनुमा मकान में छिपा दिया. इस के बाद  तीनों वहां से भाग कर अपनेअपने घर आ गए.

गांव के चप्पेचप्पे पर पुलिस बल की मौजूदगी और सर्चिंग के कारण मुकेश लाश की बोरी को ठिकाने नहीं लगा पाया और 11 अप्रैल की सुबह साढ़े 8 बजे रामजी के मकान से बदबू आने के कारण गोस्वामी परिवार को प्लास्टिक की बोरी में बादल का शव मिल गया.

जब पुलिस ने गांव में उत्तम गोस्वामी, सतमन गोस्वामी और उस के अन्य भाइयों को अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी के बारे में बताया तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि उन का भाई बादल का अपहरण और कत्ल कर सकता है. इस के बाद पुलिस ने सभी भाइयों से एक कमरे में अनिल से बातचीत करने के लिए कहा तो बातचीत में अनिल ने हत्या करना स्वीकार कर लिया, जिसे सुन कर उत्तम और अन्य भाई सहम गए.

उत्तम और उस के अन्य भाइयों को यह तो मालूम था कि अनिल कर्ज में डूबा है, जिसे चुकाने के लिए वे सभी उसे रुपए भी दे चुके थे. साथ ही दूसरी फसल पर रुपए देने का वादा किया था, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि कर्ज चुकाने के लिए वह उन के कलेजे के टुकड़े का ही कत्ल कर देगा.

अनिल के जुर्म कबूलने के बाद गोस्वामी परिवार के लोग मायूस हो कर कमरे से बाहर निकल आए और पुलिस से उसे गिरफ्तार कर सख्त काररवाई करने को कहा.

जबलपुर जिले के एसपी निमिष अग्रवाल ने 18 अप्रैल, 2019 को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि चरगवां थाना अंतर्गत 10 वर्षीय बादल की हुई नृशंस हत्या के हत्यारे मोहनलाल उर्फ गुड्डू तिवारी, मुकेश श्रीपाल, अनिल उर्फ अन्नू गोस्वामी को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर उन के पहने हुए कपड़े मोटरसाइकिल और घटनास्थल से मिले तार के टुकड़ों को जब्त कर लिया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को भादंवि की धारा 363, 364, 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

साइबर ठगी का नया तरीका – औनलाइन अरेस्टिंग

रिटायर्ड प्रोफेसर आशा (Retired Professor Asha Bhatnagar) के पास 14 मार्च, 2024 की दोपहर एक वीडियो काल आई. उन्होंने जैसे ही काल अटेंड की तो काल करने वाली एक महिला थी.

उस ने आशा से कहा, ”मैं मुंबई क्राइम ब्रांच से सुनीता बोली रही हूं. आप के नाम के डाक्यूमेंट्स का उपयोग कर कुछ सिमकार्ड लिए गए हैं और इन सिमकार्डों के जरिए लड़कियों को अश्लील मैसेज भेजे जा रहे हैं. आप के खिलाफ अब तक 24 एफआईआर मुंबई में दर्ज हो चुकी हैं.’’

इतना सुनते ही 72 साल की आशा घबराते हुए बोलीं, ”लेकिन मैं ने तो किसी को अपने डाक्यूमेंट्स दिए ही नहीं, फिर सिमकार्ड कैसे कोई यूज कर रहा है?’’

”आप को जो भी कुछ कहना है, मुंबई आ कर कहिए मैडम, आप के खिलाफ जो कंपलेंट हैं, उस में हमें आप को गिरफ्तार करना पड़ेगा.’’ काल करने वाली महिला ने आशा को धमकाते हुए कहा.

”लेकिन मैं मुंबई नहीं आ सकती, घर में अकेली रहती हूं. उम्र और बीमारी की वजह से चलना फिरना कम होता है.’’ आशा ने अपनी परेशानी बताई.

”आप मुंबई नहीं आ सकतीं तो आप को वीडियो कालिंग पर अपने बयान दर्ज करवाने होंगे.’’ उस ने आशा से कहा.

”मैं  पहले अपने बेटे और  बेटियों से इस संबंध में बात करना चाहती हूं.’’ आशा ने निवेदन करते हुए कहा.

”देखिए जब तक इनवैस्टीगेशन पूरी नहीं हो जाती, आप को किसी से भी बात करने की परमिशन नहीं है.’’ डपटते हुए वह महिला बोली. आशा काफी डर गई थीं, इसलिए वीडियो काल पर बयान देने को तैयार हो गईं.

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्वालियर (Gwalior) के मुरार थाना (Murar Thana) क्षेत्र में रहने वाली 72 साल की आशा भटनागर रिटायर्ड प्रोफेसर हैं. उन की 2 विवाहित बेटियां पुणे में रहती हैं और एक बेटा अमेरिका में जौब करता है. आशा के पति की 2017 में मौत हो चुकी है.

वह अब घर में अकेली रहती हैं. वीडियो कालिंग के जरिए 2 घंटे तक आशा से बातचीत कर उस महिला ने औनलाइन ही घर की पूरी तलाशी ली.

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                 पीड़ित आशा भटनागर

इस दौरान एक महिला पुलिसकर्मी ने बुजुर्ग आशा को मुंबई पुलिस के अफसर से वीडियो कालिंग के जरिए बात करने को कहा. इसी दौरान पुलिस की वरदी में एक व्यक्ति महिला को दिखाई दिया और उस ने रौबदार अंदाज में उस महिला पुलिसकर्मी से कहा, ”इन को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?’’

यह सुन कर आशा डर गईं. देश विदेश की यात्रा कर चुकी आशा भटनागर के दिमाग को साइबर ठगों ने पूरी तरह से अपने बस में कर लिया था.

उस अफसर ने आशा से कहा, ”आप को मालूम नहीं कि आप का नाम चाइल्ड पोर्नोग्राफी के केस में नामजद है, गंभीर  मामला है.’’

फिर उस ने अपने दूसरे साथी को अधिकारी बता कर बात कराई. इन लोगों ने घर के अंदर ही वीडियो काल पर पूर्व प्रोफेसर को औनलाइन अरेस्ट (Online Arrest)  कर लिया.

अपने को किसी केस में फंसा हुआ जान आशा इतनी परेशान हो गईं कि दूसरे दिन उन्होंने बैंक जा कर अपनी 51 लाख रुपए की एफडी तुड़वा कर क्राइम ब्रांच के अफसरों के बताए श्रीनगर की पंजाब नैशनल बैंक व राजकोट की फेडरल बैंक के अकाउंट नंबरों पर वो रुपए जमा करवा दिए.

ठगों का दुबई से निकला संबंध

अगले दिन आशा ने अपने परिवार वालों को पैसे डालने के बारे में बताया, तब समझ आया कि उन के साथ फ्रौड हुआ है. फिर इस मामले में पुलिस से शिकायत की गई.

क्राइम ब्रांच में एफआईआर दर्ज हुई तो ग्वालियर के एसपी धर्मवीर सिंह (ACP Dharmveer Singh) ने एएसपी सियाज के.एम., क्राइम ब्रांच प्रभारी अजय पवार और एसआइ धर्मेंद्र शर्मा को पड़ताल में लगाया. क्राइम ब्रांच थाने की पुलिस ने तकनीकी आधार पर साइबर एक्सपर्ट की टीम बना कर इनवैस्टीगेशन शुरू की.

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  ग्वालियर के एसपी धर्मवीर सिंह

जांच में पता चला कि जिन नंबरों से आशा भटनागर के पास काल किए गए, वे नंबर ऐप के माध्यम से प्रदर्शित कराए गए हैं. जिन खातों में रुपए ट्रांसफर किए गए थे, वे खाते जम्मू कश्मीर व गुजरात के निकले.

इन दोनों खातों से रुपए अलगअलग कई खातों में ट्रांसफर हुए तथा उन खातों से कुछ राशि संयुक्त अरब अमीरात (दुबई) के एक खाते में ट्रांसफर की गई थी.

साइबर क्राइम विंग (Cyber Crime Wing) ने दुबई पुलिस से जब इस की जानकारी मंगाई तो इस में सामने आया कि खाता दुबई की किसी कंपनी का है, जिस का धारक छत्तीसगढ़ के भिलाई में रहता है.

मास्टरमाइंड का पता चलने के बाद ग्वालियर पुलिस की साइबर क्राइम टीम (Cyber Crime Team) को भिलाई भेजा गया और आरोपी कुणाल जायसवाल (Accused Kunal Jaiswal) के यहां दबिश दे कर उसे उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया.

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   आरोपी कुणाल जायसवाल

जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह एमसीए किया हुआ है व एमटेक (आईटी) है. पुलिस को पूछताछ में पता चला कि आरोपी अपने यहां काम करने वाले लोगों के खाते खुलवा कर उन खातों को स्वयं संचालित करता था और उन खातों में साइबर ठगी (Cyber Thagi) की राशि ले कर आगे यूएई के खाते में ट्रांसफर करता था.

कुणाल ने आशा के पैसे 3 और बैंक खातों में ट्रांसफर किए थे, ये खाते भी भिलाई के निकले. जब उस के घर की तलाशी ली तो उस के घर से दरजनों आधार कार्ड, एटीएम कार्ड, लैपटाप, पासबुक, चैकबुक, मोबाइल फोन, आईपैड व अन्य दस्तावेज बरामद किए गए. जिन खातों में रकम ट्रांसफर हुई, उन खातों की पासबुक भी उस के यहां से पुलिस को मिली. कुणाल ने पुणे में सिंबायोसिस यूनिवर्सिटी से एमसीए की पढ़ाई की थी. इस के बाद उस ने काफी पैसा कमाया और नेहरू नगर में बड़ा बंगला, लग्जरी गाडिय़ां खरीदीं.

53 घंटे तक किया औनलाइन अरेस्ट (Online Arrest) 

मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में क्राइम ब्रांच के पास राऊ इलाके में रहने वाले एक डाक्टर दंपति भी इस तरह के फ्रौड का शिकार हुए. डाक्टर दंपति ने थाने में शिकायत दर्ज कराते हुए बताया कि सीबीआई मुंबई स्काइप आईडी से उन्हें वीडियो काल आई और ठगों ने उन से 53 घंटे तक बात की और डिजिटल हाउस अरेस्ट में रखा. इस के बाद उन से साइबर ठगों ने 8 लाख 50 हजार रुपए का ट्रांजैक्शन करवा कर ठगी को अंजाम दिया है.

7 अप्रैल, 2024 की दोपहर को उन के पास मुंबई के एक नंबर से काल आई. काल रिसीव करते ही डाक्टर दंपति को बताया कि थाईलैंड में फाइनैंस इंटरनेशनल कुरिअर सर्विस के जरिए जो पार्सल आप के द्वारा भेजा गया था, उस में एमडीएम ड्रग्स मौजूद है और कई महत्त्वपूर्ण दस्तावेज भी मिले हैं, जिस में ह्यूमन ट्रैफिकिंग, छोटे बच्चों के आर्गन तस्करी जैसे गंभीर अपराधों में आप को फंसाया जा रहा है, इसलिए आप को सीबीआई मुंबई औफिस आना होगा.

डाक्टर दंपति ने जब मुंबई जाने से मना कर दिया तो उन्हें बताया गया कि यदि वह चाहे तो वीडियो काल पर उन के बयान दर्ज कर लिए  जाएंगे. ठगों ने कहा कि सीबीआई मुंबई से आप के पास वीडियो काल आएगी.

इस के बाद डाक्टर दंपति को स्काइप आईडी से एक वीडियो काल आई, जहां पर वरदी में मौजूद एक सीबीआई अफसर और दूसरे अफसर वीडियो काल पर दिखाई दे रहे थे. दोनों तथाकथित अफसरों द्वारा 53 घंटे तक औनलाइन हाउस अरेस्ट (Online House Arrest) रख कर डाक्टर दंपति को अलगअलग गंभीर धाराओं में फंसाने को ले कर डराया गया.

वहीं कई तरह के टैक्स और चार्ज के नाम पर पैसों की मांग की गई. इस के बाद साइबर ठग (Cyber Thag) यहीं नहीं रुके, बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई के भी एक अधिकारी से इनवैस्टीगेशन के नाम पर एक अलग से वीडियो काल कराई गई. इस से घबराए डाक्टर दंपति ने 8 लाख 50 हजार रुपए साइबर ठगों के खातों में ट्रांसफर कर दिए.

इस के बाद भी साइबर ठगों द्वारा डाक्टर दंपति से और पैसों की मांग की गई. डाक्टर दंपति ने आखिरकार जब अपने मित्रों से जानकारी ली तो पता चला कि उन्हें ठगी का शिकार बनाया जा रहा है. इस के बाद डाक्टर दंपति ने पुलिस को पूरी घटना की जानकारी दी.

टीचर से कैसे ठगे 55 लाख

देश के लगभग सभी राज्यों में इस तरह के साइबर फ्रौड (Cyber Fraud) के मामले पुलिस के पास आए दिन आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में सिगरा थाना क्षेत्र की रहने वाली एक रिटायर्ड शिक्षिका शंपा रक्षित ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि 8 मार्च, 2024 को अनजान नंबर से उन के पास काल आई.

फोन करने वाले ने खुद को टेलिकाम रेगुलेटरी अथौर्टी का अधिकारी बताते हुए उन से कहा, ”मैं महाराष्ट्र के विले पार्ले पुलिस स्टेशन से विनय चौबे बोल रहा हूं. आप ने घाटकोपर से यह सिमकार्ड लिया है, यह पूरी तरह से अवैध है. आप के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट है.’’

इतना सुनते ही शंपा डर गई.

काल करने वाले विनय चौबे ने उन्हें गिरफ्तारी की धमकी दे कर घर पर ही रहने और किसी को कुछ न बताने के लिए कहा. इस के बाद बैंक खाते का पूरा ब्यौरा उन से ले लिया और कहा कि ये पैसा आरबीआई को ट्रांसफर करना पड़ेगा. जांच के बाद पैसा लौटा दिया जाएगा. इस पर उन्होंने बताए गए खाते में पहले 3 करोड़ और फिर 55 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. बाद में पता चला कि उन के साथ तो ठगी हुई है. इस के बाद उन्होंने पुलिस को इस की सूचना दी.

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 डीसीपी (क्राइम) चंद्रकांत मीणा

रिटायर्ड शिक्षिका शंपा रक्षित की शिकायत को वाराणसी के डीसीपी (क्राइम) चंद्रकांत मीणा (DCP Chandrakant Meena) ने गंभीरता से लेते हुए क्राइम ब्रांच की टीम को लगा दिया. क्राइम ब्रांच ने काररवाई करते हुए इस मामले में 15 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. बाद में 3 अभियुक्त राजस्थान के केकड़ी जिला से गिरफ्तार किए. इन में मुख्य अभियुक्त टाइगर (हिमांशु वर्मा), वकील अनंत जैन और दीपक वासवानी शामिल थे.

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             वाराणसी पुलिस टीम की गिरफ्त में साइबर अपराधी

साइबर ठगी करने वाले इन ठगों के पास से 18 मोबाइल फोन, 20 सिमकार्ड, 32 एटीएम कार्ड, कई चेकबुक और एक लाख 20 हजार नगद व एक कार जिस की अनुमानित कीमत 20 लाख रुपए है, बरामद की गई. पुलिस पूछताछ में पता चला कि गैंग के सदस्य पहचान छिपा कर साइबर अपराध को अंजाम देते थे.

महिला वकील को कैसे किया औनलाइन अरेस्ट

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में रहने वाली सुप्रिया के साथ साइबर क्राइम का यह मामला 3 अप्रैल, 2024 का है. 29 साल की सुप्रिया (बदला हुआ नाम) पेशे से वकील हैं और बेंगलुरु में रहती हैं. उस दिन दोपहर करीब 2 बजे का वक्त था. सुप्रिया घर पर ही कोर्ट केस की कुछ फाइलें देख रही थीं, तभी उन के मोबाइल पर एक फोन आया.

फाइलों से ध्यान हटा जैसे ही सुप्रिया ने काल रिसीव की तो फोन करने वाले शख्स ने कहा, ”हैलो, मैं इंटरनैशनल कुरिअर कंपनी फेडेक्स के कस्टमर केयर से बोल रहा हूं. आप के नाम से एक पार्सल था, जो वापस आ गया है.’’

सुप्रिया कुछ समझ पातीं और कहना  चाहती थीं कि कौन सा पार्सल. इस से पहले ही उस ने यह काल एक दूसरे शख्स को  ट्रांसफर करते हुए कहा, ”लीजिए, सर से बात कर लीजिए.’’

दूसरे शख्स ने सुप्रिया से कहा, ”आप के नाम पर एक पार्सल मुंबई से थाईलैंड के लिए भेजा गया था, लेकिन यह वापस आ गया है. इस पार्सल में 5 पासपोर्ट, 3 क्रेडिट कार्ड  और 140 सिंथेटिक नशीली गोलियां हैं.’’

इतना सुनते ही सुप्रिया का माथा ठनका, क्योंकि न तो उन्होंने यह पार्सल भेजा था और न ही मुंबई या थाईलैंड से उन का कोई कनेक्शन था. फोन करने वाले शख्स ने कड़क आवाज में कहा, ”पार्सल में ड्रग्स मिला है, इसलिए इसे रोक दिया गया.’’

”लेकिन मैं ने ऐसा कोई पार्सल नहीं भेजा.’’ सुप्रिया ने घबरा कर कहा.

”इस में भेजने वाले का नाम और पता तो आप का ही है. अगर इस तरह का कोई पार्सल आप ने नहीं भेजा तो इस की शिकायत दर्ज कराने के लिए उन्हें इस बारे में मुंबई क्राइम ब्रांच से बात करनी होगी.’’ काल करने वाले ने कहा.

इस के बाद सुप्रिया को सोचने समझने का मौका दिए बिना उस ने काल को एक दूसरे नंबर पर ट्रांसफर करते हुए कहा, ”साइबर क्राइम ब्रांच के अफसर से आप खुद बात कर लीजिए.’’

उस तरफ से बात करने वाले उस अफसर ने सुप्रिया से कहा, ”अपने मोबाइल पर आप पहले स्काइप ऐप डाउनलोड करें और अपनी ईमेल आईडी डाल कर उन से अभी चैट करें.’’

इस के बाद उस टीम ने सुप्रिया से कुछ पूछताछ की और उन से उन का आधार नंबर मांग लिया. सुप्रिया से बात कर रहे उस शख्स ने कहा, ”मैं अपने सीनियर अधिकारियों से इस बारे में बात कर रहा हूं. अब आप को जो भी कहना है स्काइप पर चैट बौक्स में लिखें.’’

कुछ देर बाद वह शख्स स्काइप चैट पर वापस लौटा और सुप्रिया से कहा कि आप का आधार नंबर मानव तस्करी और नशीली दवाओं (एमडीएमए) की स्मगलिंग से जुड़े मामलों में पहले से ही हाई अलर्ट पर है.

इतना सुनते ही सुप्रिया बुरी तरह डर गईं. शख्स ने सुप्रिया से कहा कि आप को इस बारे में सीबीआई के अधिकारियों से बात करनी होगी. इस के बाद उस ने अभिषेक चौहान नाम के एक दूसरे शख्स को सीबीआई अधिकारी बता कर स्काइप काल उस के पास ट्रांसफर कर दी.

अभिषेक चौहान ने सुप्रिया से वीडियो काल के लिए मोबाइल का कैमरा औन करने को कहा. जैसे ही सुप्रिया ने कैमरा औन किया तो अभिषेक बोला, ”ये मामला बहुत गंभीर है. यह केस मानव तस्करी, मनी लौंड्रिंग और आधार कार्ड की डिटेल चोरी से जुड़ा हुआ है.’’

वीडियो काल के जरिए वह सुप्रिया से उन की सारी बैंक डिटेल्स मांगने लगा. बैंक में कितना बैलेंस है, सालाना सीटीसी और इनकम से ले कर इनवैस्टमेंट तक सब कुछ उस ने सुप्रिया से पूछा और डरीसहमी वह वकील सब कुछ बताती रही.

अभिषेक चौहान नाम के उस शख्स ने सुप्रिया से जो जो करने को कहा, वह चुपचाप करती गईं. अभिषेक चौहान ने सुप्रिया को धमकाते हुए यह भी कहा, ”जब तक यह काम पूरा नहीं होता, वह किसी को इस बारे में कुछ नहीं बताएंगी.’’

सेंसिटिव केस का हवाला देते हुए उसे हर वक्त कैमरा औन कर औनलाइन रहने को  कहा गया, ताकि वो जान सकें कि मैं ने किसी से फोन पर बात तो नहीं की है. इस तरह डर के साए में पूरा दिन बीत गया. अपने मांबाप से दूर रहने वाली सुप्रिया उस दिन बिना खाए पिए जब सोने के लिए जाने लगी, तब भी उसे कैमरा औन रखने के लिए कहा गया.

डर और तनाव के कारण उन्हें रात भर नींद नहीं आई. अगले दिन 4 अप्रैल को अभिषेक चौहान ने सुप्रिया से कहा कि उन के ट्रांजैक्शन को वेरिफाई करना होगा. इस के लिए उस ने सुप्रिया से अपने बैंक अकाउंट से निथिन जोसेफ नाम के अकाउंट में 10,78,993 रुपए ट्रांसफर करने को कहा.

मरता क्या न करता, पहले से काफी घबराई हुई सुप्रिया ने बताए गए अकाउंट में रुपए ट्रांसफर कर दिए. केस की जांच और वेरिफिकेशन के नाम पर उस शख्स ने सुप्रिया को पूरे दिन औनलाइन रखा.

इस के बाद उस शख्स ने सुप्रिया से अमेजन पर 2.04 लाख और 1.74 लाख रुपए के 2 अलगअलग ट्रांजैक्शन भी कराए. इस के बाद अभिषेक ने सुप्रिया से कहा, ”पूरे केस में ड्रग्स का मामला शामिल है, इसलिए हमें तुम्हारा नारकोटिक्स टेस्ट कराना होगा. मैं जैसा कहता हूं, चुपचाप वैसा करती जाओ, यदि हमें कोआपरेट नहीं किया तो मजबूरन हमें तुम्हारे मांबाप को भी अरेस्ट करना होगा.’’

सुप्रिया ने न्यूज में नारकोटिक्स टेस्ट के बारे में सुना जरूर था, मगर ज्यादा जानकारी उन्हें नहीं थी. ऊपर से मातापिता के अरेस्ट होने के डर से चुपचाप वह अभिषेक के निर्देशों का पालन करने लगीं. अभिषेक ने पहले सुप्रिया से अपने कपड़े उतार कर कैमरे के सामने खड़ी होने को कहा. सुप्रिया को जो भी करने को कहा गया, वह करती गईं.

सुप्रिया का दूसरा दिन भी एक अज्ञात आशंका के साए में गुजरा. रात में वह सोने का असफल प्रयास कर रही थीं, तभी रात के करीब एक बजे अभिषेक ने सुप्रिया को ब्लैकमेल करना शुरू किया. उस ने चेतावनी देते हुए कहा, ”अगर कल दोपहर 3 बजे तक तुम ने मुझे 10 लाख रुपए नहीं दिए तो तुम्हारा न्यूड वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा.’’

यहां तक कि उस ने वीडियो को डार्क वेब पर डालने की धमकी भी दे दी. इतना सब कुछ होने के बाद सुप्रिया अब समझ चुकी थीं कि वीडियो अरेस्ट कर उन के साथ साइबर धोखाधड़ी की गई है. सुप्रिया ने 5 अप्रैल, 2024 को बेंगलुरु (ईस्ट) डिवीजन साइबर क्राइम थाने में एफआईआर दर्ज कराई.

कुरिअर या पार्सल के नाम से ठगी का बेंगलुरु का मामला कोई इकलौता मामला नहीं है. साइबर अपराधी नएनए तरीके अपना रहे हैं. दिल्ली के अशोक विहार इलाके में रहने वाले एक कारोबारी अशोक कोहली (परिवर्तित नाम) के साथ भी कुछ इसी तरह का फ्रौड हुआ है. अशोक अपने परिवार के साथ सत्यवती कालोनी में रहते हैं.

पहली अप्रैल, 2024 को उन के फोन पर एक कुरिअर कंपनी के नाम से काल आई. फोन करने वाले व्यक्ति ने कहा, ”27 मार्च, 2024 को आप की तरफ से ताइवान के लिए एक पार्सल बुक किया गया था. पार्सल को मुंबई कस्टम ने अपने कब्जे में ले लिया है, जिस में 5 पासपोर्ट, 4 क्रेडिट कार्ड, 200 ग्राम एमडीएमए ड्रग, एक लैपटौप और कपड़े हैं.’’

अशोक असमंजस में पड़ गए. तभी फोन करने वाले ने मुंबई क्राइम ब्रांच के कथित अफसर से बात करवा दी. अपने आप को क्राइम ब्रांच का अफसर बताने वाले उस शख्स ने अशोक को धमकाते हुए  कहा, ”आप के आधार नंबर से मुंबई में बैंक खाते खुले हैं, जिन के जरिए मनी लौंड्रिंग का काम चल रहा है. आप सीबीआई, ईडी और एनसीबी के रेडार पर हैं.’’

इस के बाद फिर उन्होंने स्काइप आईडी पर आने के लिए कहा. उस अफसर ने कहा कि मामले में डिजिटल और विजुअल सबूत के रूप में औनलाइन इन कैमरा आप से पूछताछ की जाएगी. इसी दौरान उस ने अपने सीनियर अधिकारी डीसीपी जौर्ज मैथ्यूज से मिलाया.

स्काइप काल के जरिए ही जौर्ज ने अशोक के बैंक खातों और कंपनी के बैंक खातों की जानकारी ली और धमकी दी कि जब तक यह पूछताछ पूरी नहीं हो जाती, यह बात किसी को न बताएं.

अगर उन के खाते में अवैध धन पाया गया तो जेल हो जाएगी, जिस में पूरा परिवार कानूनी शिकंजे में आ जाएगा. इस के बाद उन्होंने बाकायदा सीबीआई के लेटर हैड पर एक लेटर और अपने आईकार्ड भी सेंड कर दिए, जिसे देख कर अशोक को यकीन भी हो गया.

जौर्ज मैथ्यूज ने अशोक को अकाउंट सीज करने का भी डर दिखाते हुए कहा, ”अगर जांच के बारे में किसी को भी बताया और भनक भी पड़ गई तो सभी प्रौपर्टी और बैंक खाते सीज कर दिए जाएंगे और पासपोर्ट भी सस्पेंड कर दिया जाएगा. साथ ही जांच पूरी होने तक विदेश यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. कई साल की जेल होगी और पत्नी, पिता भी जांच के दायरे में होंगे.’’

अशोक बुरी तरह से डर गए और उन के निर्देशों का पालन करने लगे. उन दोनों अफसरों ने अशोक के पूरे खाते की जांच करने के लिए 15 लाख 12 हजार रुपए पीएनबी से दूसरे बैंक खाते में जमा करवा लिए. बाद में 15 लाख रुपए और जमा करवा लिए.

4 अप्रैल, 2024 को उन्होंने फिर से फोन पर कहा, ”पूछताछ पूरी हो गई है और आप का खाता सही है. शाम तक 25 लाख रुपए और 5 अप्रैल की सुबह तक बाकी 5 लाख 12 हजार रुपए वापस आप के बैंक अकाउंट में भेज दिए जाएंगे.’’

4 अप्रैल की शाम तक जब पैसे अकाउंट में नहीं आए तो अशोक स्काइप चैट पर गए, वहां जा कर पता चला कि स्काइप चैट से कथित सीबीआई पत्र और आईडी कार्ड हटा दिए गए हैं, तब जा कर उन्हें ठगी का अहसास हुआ और उन्होंने साइबर क्राइम ब्रांच में अपनी एफआईआर दर्ज कराई.

हरियाणा में हुए फ्रौड का निकला कंबोडिया कनेक्शन

हरियाणा पुलिस की क्राइम ब्रांच में दर्ज किए गए 2 मामलों पर नजर डालें तो इन में भी काफी समानता है और ठगी के लिए एक ही तरह का तरीका अपनाया गया है. यहां भी जनवरी और मार्च के महीने में अलगअलग दर्ज हुए इन मामलों पर गौर करना इसलिए जरूरी है कि यहां भी कुरिअर पार्सल में संदिग्ध सामान बता कर ठगी की गई थी.

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एसीपी साइबर प्रियांशु दीवान

10 जनवरी, 2024 को एक युवक को सीबीआई अधिकारी बन कर संदिग्ध पार्सल के केस से बचाने के नाम पर 10 लाख 90 हजार रुपए का फ्रौड किया गया. साइबर फ्रौड (Cyebr Fraud) का शिकार हुए युवक ने एसीपी साइबर प्रियांशु दीवान (ACP Priyanshu Deewan) को बताया कि कुरियर कंपनी के कर्मचारी बन ठगों ने उसे बताया कि आप के नाम से बुक पार्सल में कुछ संदिग्ध सामान है, जो कंबोडिया भेजा जा रहा था, इसे जब्त कर लिया गया है.

काल करने वाले ने बताया कि उस पर ड्रग्स पार्सल करने का केस चलेगा. युवक डर गया तो युवक को बचाने के नाम पर 10 लाख 90 हजार रुपए ट्रांसफर करा लिए गए.

इसी तरह पहली मार्च, 2024 को गुरुग्राम की एक युवती से कस्टम में पार्सल पकड़े जाने को कह कर उस से 2 लाख 85 हजार रुपए ठग लिए गए. युवती को काल कर ठगों ने कहा कि आप के नाम से बुक हुए पार्सल को कस्टम विभाग की टीम ने पकड़ लिया है और इस में कुछ संदिग्ध सामान होने का शक है.

कस्टम क्लियरेंस के नाम पर आरोपियों ने अलगअलग शुल्क बता कर युवती से 2 लाख 85 हजार रुपए ट्रांसफर करा लिए. फोन करने वाले ने सीबीआई अधिकारी को केस ट्रांसफर करते हुए युवक की उन से बात भी कराई.

इस मामले में साइबर क्राइम थाने में एफआईआर दर्ज की गई. जब इस मामले की जांच गुरुग्राम पुलिस द्वारा की गई तो पता चला कि काल करने वाले का आईपी एड्रेस कंबोडिया का था.

एसीपी (साइबर क्राइम) प्रियांशु दीवान ने बताया कि पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि दक्षिण भारत के कई राज्यों से लोगों को कंबोडिया में नौकरी दिलाने के बहाने भेजा जा रहा है. इस काम के लिए कई एजेंसियां और उन के एजेंट काम कर रहे हैं. एजेंसी वाले बेरोजगार नौजवानों को कंबोडिया भेज रहे हैं. इस के लिए एजेंट इन लोगों से रुपए भी लेते हैं.

कंबोडिया पहुंचते ही कंपनी के कर्मचारी बताने वाले लोग इन्हें रिसीव कर अपने ठिकाने पर ले जाते हैं, वहां जाते ही इन के पासपोर्ट जब्त कर लेते हैं तथा इन्हें बिल्डिंग में ही बंधक बना कर गुलामों की तरह रखा जाता है.

उन के मुताबिक काम न करने पर इन से मारपीट की जाती है और फिर साइबर ठगी की इन्हें ट्रेनिंग दे कर ठगी की वारदात अंजाम देने में लगा देते हैं. हाल ही में 3 युवक वहां से भाग कर देश लौट सके हैं. उन्होंने साइबर पुलिस टीम को बताया कि उन से साइबर ठगी के लिए काल कराई जाती थी. यदि किसी दिन कोई टारगेट नहीं मिलता तो उन से क्रूर व्यवहार किया जाता था.

क्या होता है औनलाइन अरेस्टिंग (What Is Online Arresting) 

कानूनी तौर पर औनलाइन अरेस्ट नाम का कोई शब्द पुलिस की डिक्शनरी में नहीं है. यह एक फ्रौड करने का तरीका है, जो साइबर ठग अपना रहे हैं. इस का सीधा मतलब होता है ब्लैकमेलिंग, जिस के जरिए ठग अपने टारगेट को ब्लैकमेल करता है. औनलाइन अरेस्ट में कोई आप को वीडियो कालिंग के जरिए आप के ही घर में बंधक बना लेता है. वह आप पर हर वक्त नजर रख रहा होता है.

औनलाइन अरेस्ट के मामलों में ठग कोई सरकारी एजेंसी के अफसर या पुलिस अफसर बन कर आप को वीडियो काल करते हैं. ठगी करने वाले ये लोग फर्राटेदार अंगरेजी में बात करते हैं, इसलिए किसी को भी यह शक नहीं होता कि ये लोग फरजी अफसर हैं.

इस तरह के मामलों में फ्रौड करने वाले इतने शातिर तरीके से आप को अपने जाल में फंसा कर बातों में उलझाए रखते हैं कि आप को सोचने समझने का मौका ही नहीं मिलता.

इस के बाद ठग आप को कहते हैं कि आप का आधार कार्ड, सिमकार्ड या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किसी गैरकानूनी गतिविधि के लिए हुआ है. ऐसे मामलों में वह आप को फरजी गिरफ्तारी का डर दिखा कर आप के घर में ही कैद कर देते हैं और वह झूठे आरोप लगाते हैं और जमानत की बातें कह कर पैसे ऐंठ लेते हैं.

शातिर ठग इस दौरान आप को वीडियो काल से हटने भी नहीं देते हैं और न ही किसी को काल करने देते हैं. औनलाइन अरेस्ट के इस तरह के कई मामले अब तक अलगअलग स्थानों पर सामने आ चुके हैं.

ऐसे साइबर ठग तकनीकी रूप से मजबूत होते हैं और जानते हैं कि अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करना है और उन की मेहनत की कमाई को कैसे खत्म करना है.

—कथा मीडिया रिपोर्ट और पुलिस सूत्रों पर आधारित

डाक्टर कामदेव : भोपाल का नर्स यौन शोषण केस

बात 26 अक्तूबर, 2018 की है. भोपाल (Bhopal) के शाहपुरा (Shahpura) के टीआई जितेंद्र वर्मा अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी 29- 30 साल की एक महिला उन के पास आई. उस महिला ने अपना नाम अल्पना बताया. उस ने बताया कि वह मूलरूप से केरल की रहने वाली है और पिछले 4 महीनों से शाहपुरा के लाहोटी हौस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर ( Lahoti Hospital And Research Center) में नर्स के रूप में काम कर रही है. इतना कह कर वह चुप हो गई और इधरउधर देखने लगी.

टीआई वर्मा समझ गए कि अल्पना को परेशानी क्या है, इसलिए उन्होंने महिला आरक्षक सुनीता को बुलाया. उन्होंने सुनीता से कह दिया कि वह अल्पना की पूरी समस्या सुने. सुनीता अल्पना को अपने साथ दूसरे कमरे में ले गईं.

इस के बाद अल्पना ने आरक्षक सुनीता को बताया कि डा. कपिल लाहोटी (Dr. Kapil Lahoti) उस का यौन शोषण कर रहे थे. उस के इस कृत्य से वह गर्भवती हो गई तो डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा लाहोटी ने साजिश कर के उस का गर्भपात करवा दिया.

अल्पना ने बताया कि संबंध बनाने से ले कर गर्भ गिराने तक डा. कपिल ने उसे बड़े बड़े सपने दिखाए थे. यहां तक कि गर्भ गिराने के लिए उन्होंने दिखावे के लिए क्षेत्र के आर्यसमाज मंदिर में उस के साथ शादी भी रचा ली थी. उस की बातों में आ कर जैसे ही उस ने गर्भपात कराया तो डा. कपिल और उस की पत्नी सीमा के तेवर बदल गए.

डा. सीमा लाहोटी, जो कल तक उसे अपनी छोटी बहन कहती थी, अब उसे डायन, वेश्या आदि कहने लगी है. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे जल्द से जल्द भोपाल छोड़ने की धमकी भी दी है.

आरक्षक सुनीता ने अल्पना की पूरी बात सुनने के बाद सारी जानकारी टीआई जितेंद्र वर्मा को दे दी, जिस पर उन्होंने अल्पना का मैडिकल करवाने के बाद एसपी (पश्चिम) राहुल कुमार लोढ़ा और सीएसपी दिशेष अग्रवाल को भी मामले की जानकारी दे दी. इस के बाद लाहोटी अस्पताल के संचालक डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा लाहोटी के खिलाफ बलात्कार सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जांच एसआई जयपाल सिंह बिल्लोरे को सौंप दी.

डा. कपिल का कृत्य आया सामने

दौलत का नशा भी किसी दूसरे नशे से कम नहीं होता, इसलिए चेहरों पर बेफिक्री लिए थाने आए डा. कपिल और डा. सीमा पहले तो खुद को मेहमान के तौर पर पेश करते रहे. लेकिन खुद को निर्दोष बताने वाले दंपति से जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो परत दर परत दोनों के कारनामे सामने आते गए. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने भी पतिपत्नी को उसी दिन शाम को गिरफ्तार कर लिया. दूसरे दिन सुबह डा. कपिल और उस की पत्नी की गिरफ्तारी की खबर लोगों में फैली तो लाहोटी क्लीनिक में काम कर चुकी कई पूर्व नर्सों ने राहत की सांस ली. क्योंकि अल्पना से पहले वह कई नर्सों के साथ संबंध बना चुका था. इस काम में उस की पत्नी डा. सीमा भी पति की मदद करती थी.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने डा. लाहोटी के अस्पताल में छापेमारी कर उस के केबिन से कई आपत्तिजनक चीजें बरामद कीं. डाक्टर दंपति से पूछताछ के बाद नर्स अल्पना का यौनशोषण, फरजी शादी करने आदि की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

अल्पना मूलरूप से केरल की रहने वाली थी. इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद वह करीब 5 साल पहले भोपाल आई थी. चूंकि केरल की अनेक युवतियां भोपाल स्थित तमाम नर्सिंग होम्स व अस्पतालों में नौकरी कर रही हैं, इसलिए भोपाल में उसे कोई परेशानी नहीं हुई.

दक्षिण भारतीय होने के कारण उस का रंग जरूर सांवला था, लेकिन उस के काले घने बाल और मोटी मोटी झील सी आंखों के अलावा उस का शरीर संतुलित और आकर्षक था. इस के अलावा वह दयावान भी थी. भोपाल में नर्स का कोर्स पूरा करने के बाद करीब 5 महीने पहले अपनी नौकरी के सिलसिले में वह लाहोटी अस्पताल के संचालक डा. कपिल लाहोटी के पास पहुंची थी.

डा. कपिल ने अल्पना को जब पहली बार देखा तो उस की आकर्षक नैननक्श और कदकाठी को देखता ही रह गया. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देख रहा था तो उस की तीर जैसी नजरें अल्पना को अपने सीने में उतरती सी महसूस हुईं. डा. कपिल का इशारा पा कर उस ने सीट पर बैठने से पहले अपना दुपट्टा संभाला और नजरें झुका कर बैठ गई.

‘‘केरल से हो?’’ डा. कपिल लाहोटी ने उस से पहला प्रश्न किया.

‘‘यस.’’ अल्पना बोली.

‘‘बताओ, मैं ने कैसे जाना?’’ डा. कपिल ने बात को लंबी खींचने के मकसद से पूछा.

‘‘आई डोंट नो सर, मैं कैसे कह सकती हूं.’’ वह बोली.

‘‘अरे भाई, तुम्हारे घने काले बाल, बड़ीबड़ी आंखें और ये भरा हुआ बदन देख कर कोई भी कह सकता है कि तुम केरल में पैदा हुई होगी.’’ ऐसा कहते हुए डा. कपिल की नजरें लगातार अल्पना के चेहरे पर ही टिकी हुई थीं. इस से अल्पना अपने अंदर एक अजीब सी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. यह बात डा. लाहोटी भांप कर बोले, ‘‘काफी शरमीली हो. लेकिन तुम जानती हो कि हमारे इस प्रोफेशन में शर्म वाला काम नहीं होता.’’

‘‘यस सर, जानती हूं.’’

‘‘गुड. कल से काम पर आ जाओ. शुरू में तुम्हारी ड्यूटी मौर्निंग में होगी. पर बाद में हम दोनों अपने हिसाब से तुम्हारी शिफ्ट फिक्स कर लेंगे.’’ कहते हुए डा. लाहोटी ने उसे नौकरी मिलने की बधाई देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो अल्पना ने भी औपचारिकतावश उस से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया, जिसे लाहोटी काफी देर तक थामे रहा.

फंस गई मछली जाल में

दूसरे दिन से अल्पना लाहोटी अस्पताल में मन लगा कर अपना काम करने लगी. इस दौरान उसे पता चला कि डा. कपिल लाहोटी मूलरूप से पास के शहर विदिशा का निवासी है. उस ने मुंबई से एमबीबीएस की पढ़ाई की थी, उस की पत्नी डा. सीमा भी महाराष्ट्र की रहने वाली है. लोगों से अल्पना को यह भी पता चला कि डा. सीमा कपिल की क्लासमेट थी और दोनों ने लवमैरिज की थी.

इन सब बातों से अल्पना को कोई मतलब नहीं था. वह अपने काम से काम रखती थी. डा. सीमा का व्यवहार उस के प्रति सामान्य था लेकिन कपिल उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान दिखाई देता था. हर काम में उस की तारीफ करता था और जल्द ही अस्पताल में उसे बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कहता था. लेकिन अल्पना को डा. कपिल के सामने जाने में डर लगता था क्योंकि वह जब भी उस के सामने खड़ी होती, कपिल उस के सीने पर अपनी नजरें जमाए रहता था.

यह सब देख कर अल्पना दूसरे अस्पताल में नौकरी खोजने की सोचने लगी थी, लेकिन कपिल ने उसे इतना मौका नहीं दिया. अल्पना को नौकरी करते हुए एक महीना ही हुआ था.  इस दौरान एक रोज त्यौहार होने के कारण अस्पताल में मरीजों की भीड़ काफी कम थी. इस के अलावा अस्पताल का ज्यादातर स्टाफ भी छुट्टी पर था.

उस रोज अस्पताल आने के बाद डा. कपिल ने उसे अपने केबिन में बुलाया और काम के बहाने परदे के पीछे वहां ले गया, जहां वह मरीजों की जांच करता था. वहां पर डा. कपिल ने उसे दबोच लिया और पागलों की तरह उसे प्यार करने लगा. अल्पना ने बचने की काफी कोशिश की लेकिन उस ने अल्पना को मरीज की जांच करने वाली टेबल पर गिरा कर उस के साथ बलात्कार कर दिया.

अल्पना के अनुसार इस घटना के बाद उस ने उसे धमकी दी कि तुम भोपाल में अकेली रहती हो. इस बात की जानकारी किसी को दी तो तुम्हें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि राजनीति में उस के ऊपर तक संबंध हैं, पुलिस भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकती.

इस घटना के कुछ समय बाद ही सीमा अस्पताल आई और उस रोज उस ने जिस तरह से अल्पना की तरफ मुसकरा कर देखा, उस से वह समझ गई कि सीमा को पहले ही इस बात की जानकारी थी कि आज उस के साथ क्या होने वाला है.

इस घटना से अल्पना बुरी तरह डर गई थी. वह नौकरी छोड़ना चाहती थी, लेकिन कपिल उसे धमकी देने लगा कि वह अपने अस्पताल के अलावा भोपाल में कहीं और काम नहीं करने देगा. इस दौरान वह उस का लगातार बलात्कार करता रहा. उसे जब भी मौका मिलता, वह उसे अपने केबिन में बुला लेता, जिस के चलते 2 महीने बाद वह गर्भवती हो गई.

डा. कपिल ने चली नई चाल

अल्पना ने यह बात कपिल को बताई तो वह कुछ देर तक चुप रहा फिर बोला, ‘‘गुड, मैं खुद यही चाहता था. क्योंकि सीमा को मैं तलाक दे चुका हूं, वह केवल दिखावे के लिए मेरे साथ रहती है. अब तुम मेरी पत्नी और इस अस्पताल की मालकिन बनोगी.’’

अल्पना को उस की बातों पर भरोसा नहीं था. लेकिन उस वक्त भरोसा करना पड़ा, जब 13 सितंबर, 2018 को डा. कपिल ने आर्यसमाज मंदिर में उस के साथ शादी कर ली. अल्पना को भरोसा था कि शादी के बाद कपिल उसे अपने घर ले जाएगा. लेकिन उस ने कुछ दिन तक अलग रहने की बात कह कर उसे दानिश कुंज स्थित उस के कमरे पर ही छोड़ दिया और रात में आ कर सुहागरात मनाने की बात कही.

अल्पना ने पुलिस को बताया कि कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा. लेकिन इस के बाद सीमा का उस के प्रति बदला व्यवहार देख कर वह समझ गई कि उस से शादी करना सीमा और कपिल की चाल थी. यह बात उस समय साफ हो गई जब कुछ दिन बाद ही कपिल उस का गर्भ गिराने के लिए कहने लगा. लेकिन जब उस ने मना किया तो 1-2 बार सीमा ने उस से इशारे में कपिल की बात मान लेने को कहा. इस से वह समझ गई कि उस के साथ शादी भी एक धोखा थी, जिस में सीमा बराबर की शरीक रही.

पत्नी भी बनी पाप की भागीदार

इस दौरान अल्पना को इस बात की जानकारी भी लग चुकी थी कि उस से पहले भी कपिल अपने अस्पताल में काम करने वाली कुछ महिला कर्मचारियों का शोषण इसी तरह कर चुका था. इसलिए अल्पना कपिल के चंगुल से निकलने के लिए छटपटाने लगी.

यह बात कपिल और सीमा समझ गए, जिस के चलते 9 अक्तूबर को कपिल और सीमा लाहोटी उस के कमरे पर आए और डराधमका कर उसे गर्भपात की दवा खिला दी, जिस से उस का गर्भपात हो गया. कुछ देर बाद अल्पना की हालत बिगड़ी तो वे लोग पहले उस का इलाज अपने अस्पताल में करते रहे. जब उस की हालत में सुधार नहीं हुआ तो वे उसे अपने जानने वाले किसी दूसरे अस्पताल में ले गए.

वहां भरती रह कर उस का इलाज चला. स्वस्थ हो कर जब अल्पना वापस अपने कमरे पर आई तो कपिल और सीमा दोनों उस पर दबाव डालने लगे कि वह हमेशा के लिए भोपाल छोड़ कर चली जाए. दोनों ने ऐसा न करने पर उसे अगवा कर हत्या करवाने के बाद जंगल में शव फेंक देने की धमकी भी दी.

जांच अधिकारी एसआई जयपाल सिंह बिल्लोरे के अनुसार, इस मामले में डा. कपिल के अपराध में उस की पत्नी डा. सीमा बराबर की शरीक थी.

दोनों को उम्मीद थी कि उन की धमकी से डर कर अल्पना भोपाल छोड़ कर हमेशा के लिए कहीं और चली जाएगी. लेकिन अल्पना ने अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ कानून का दरवाजा खटखटाया, जिस के चलते आरोपियों के खिलाफ काररवाई की गई. पुलिस ने डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अल्पना परिवर्तित नाम है

खुद का पाला सांप : मौसी के प्यार में भाई की हत्या

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

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पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबह सुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरते डरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

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उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

लड़की से लड़का क्यों बनी स्वाति?

यह कहानी स्वाति से शिवाय बने (Swati to Shivaay) 35 साल के एक सौफ्टवेयर इंजीनियर की है, जिन्होंने 3 साल की लंबी मशक्कत के बाद अपना जेंडर फीमेल (Gender Change) से बदल कर मेल करवा लिया.

स्वाति का फ्रस्ट्रेशन तब और बढ़ गया, जब आठवीं क्लास में आते ही उसे पीरियड शुरू हो गए. वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगी. उसे अपने शरीर से ही नफरत होने लगी थी. हायर सेकेंडरी पास होते ही, घर वालों ने उस की शादी के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया.

एकदो रिश्ते आए भी, मगर उस की हेयर स्टाइल और कपड़े देख कर वे हैरान रह जाते.  एक दिन उस की मम्मी उर्मिला ने उसे पास बिठाया और उस के सिर पर हाथ रखते हुएकहा, ”देख स्वाति, अब तो तू बड़ी हो रही है. अपने बाल बढ़ा ले और लड़के वाले कपड़े पहनना छोड़ दे.’’

मगर स्वाति इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने मम्मी से दोटूक कह दिया, ”देखो मम्मी, मुझे बारबार टोका मत करो, मैं तो लड़के के रूप में ही अच्छी हूं.’’

घर में सब से लाडली होने के कारण कोई भी उस से कुछ भी कहने के बजाय खामोश हो जाता. मगर आसपास रहने वाले लोग स्वाति के घर वालों को ताना देने लगे थे, इस से स्वाति का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

बचपन से ही स्वाति शरीर से भले ही लड़की थी, मगर उसे अपना वह शरीर कतई पसंद नहीं था. उस के बाल, कपड़े इस तरह के थे कि कोई अनजान व्यक्ति उसे लड़का ही समझता था. लड़कियों के स्कूल में पढऩे जाने पर जब उसे यूनिफार्म में सलवार कमीज पहनने को मजबूर किया जाता तो वह स्कूल से बंक मारने लगी.

स्वाति ने बताया कि उस की आत्मा यही कहती थी कि ‘मैं वह नहीं हूं, जो दिखाई देती हूं. मेरा दिमाग और शरीर एकदूसरे से मेल नहीं खाते थे. कभीकभी मुझे अपने ही शरीर से चिढ़ सी होने लगी थी.’

आखिरकार एक दिन खुद को मजबूत करते हुए स्वाति ने घर वालों से बात की. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया, ”तुम मुझे भले ही लड़की समझते हो, मगर मुझे फीलिंग लड़कों वाली आती है. मैं तो अपना जेंडर चेंज करा कर लड़का बनना चाहता हूं.’’

इतना सुन कर घर वालों की स्थिति और खराब हो गई. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस लड़की के साथ क्या किया जाए. स्वाति के रंगढंग देख उस के पापा पवन ने पत्नी उर्मिला से कहा, ”देखो, ये लड़की समाज में हमारी बदनामी करने पर तुली हुई है.’’

उर्मिला यह कह कर अपने पति को समझा देती कि ‘स्वाति अभी नादान है. उम्र के साथ सब कुछ समझ जाएगी.’

ताप्ती नदी के किनारे बसे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल (Baitul) में संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी और पत्नी उर्मिला सूर्यवंशी की 4 बेटियों और एक बेटे में स्वाति सब से छोटी थी.

बैतूल (Baitul) के सिविल लाइंस इलाके की संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी मसाले और सब्जी का बिजनैस करते थे. एक सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने के बाद घर की जिम्मेदारी पत्नी उर्मिला पर आ गई. उर्मिला ने अपने बेटे बेटियों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. आज उन की 2 बड़ी बेटियां श्रद्धा और संगीता हौस्पिटल में एकाउंटेंट हैं, जबकि छोटी बेटी बबीता एक नर्स है. बड़ा बेटा कृष्णा सरकारी स्कूल में टीचर है.

स्वाति स्कूल में भी पहनती थी लड़कों के कपड़े

स्वाति का जन्म 6 मार्च, 1988 को हुआ था. उस की स्कूली शिक्षा बैतूल के गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी. पहले तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, स्वाति को अपने शरीर को ले कर अजीब सी फीलिंग आने लगी. 8वीं पास होतेहोते एक दिन लगा कि उसे शरीर लड़की का जरूर दे दिया है, लेकिन वह लड़की नहीं है. क्योंकि उसे भगवान ने मुझे गलत बौडी दे दी. हर काम लड़कों वाले करना पसंद थे.

मसलन लड़कों जैसे रहना, कपड़े पहनना अच्छा लगता था. गेम भी लड़कों वाले ही खेलती थी. यहां तक कि यदि उसे कोई लड़कियों की तरह संबोधन से बुलाता तो उसे बहुत बुरा लगता था. पवन सूर्यवंशी का पूरा परिवार धार्मिक विचारों वाला था. इस वजह से घर के सभी लोगों ने उसे शिवाय कहना शुरू कर दिया. उस के बाद तो सभी उसे शिवाय के नाम से ही पुकारने लगे.

घर वालों ने जब स्वाति का एडमिशन 9वीं क्लास में गल्र्स स्कूल में करा दिया तो वहां ड्रेस के रूप में सलवारकमीज चलती थी. उसे यह पहनना पसंद नहीं था. यही वजह थी कि वह स्कूल जाना पसंद नहीं करती थी. जिस दिन ड्रेस चेंज होती थी, सिर्फ उसी दिन स्कूल जाती थी. इसी जद्दोजहद में दिन बीतते गए और स्वाति 12वीं में पहुंच गई.

रहनसहन, कपड़े और लड़कों के साथ खेलने की वजह से घर वालों का दबाव बढऩे लगा था जोकि स्वाति को कतई पसंद नहीं था. अब स्वाति में लड़कियों के शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन भी होने लगे थे.

पीरियड की शुरुआत और अपनी छाती पर आए उभार देख कर उसे अच्छा नहीं लगता था. इस कारण उस का फ्रस्ट्रेशन और बढऩे लगा था. उसे अपने शरीर से चिढ़ होने लगी थी. स्वाति को यह सब रास नहीं आ रहा था और वह इस से डिप्रेशन में जाने लगी थी.

स्वाति का रुझान बचपन से ही बास्केट बाल खेल के प्रति रहा था. ऐसे में स्कूल में पढ़ते समय जब स्वाति लड़कियों के साथ बास्केट बाल खेलती तो उसे अजीब सा लगता था. तब उन के कोच रविंद्र गोटे स्वाति को लड़कों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे.

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बास्केट बाल गेम लड़कियों के ज्यादा खेलने की वजह से स्वाति उर्फ शिवाय बाद में फुटबाल खेलने लगी. बड़ी होने पर स्वाति को पुलिस में रहे कोच संजय ठाकुर ने काफी प्रोत्साहित किया. संजय ठाकुर उसे लड़कों जैसी फिटनैस रखने और सभी खेलों में भाग लेने के लिए कहते थे.

कोच संजय ठाकुर उस के खेल से प्रभावित हो कर अकसर यही कहते थे, ”स्वाति, तुझे तो लड़का होना चाहिए था, कुदरत ने तुझे लड़की क्यों बना दिया.’’  बस यही बात उस समय स्वाति को कचोटने लगी थी.

2006 में गवर्नमेंट गल्र्स स्कूल बैतूल से हायर सेकेंडरी परीक्षा पास करने के बाद स्वाति ने भोपाल के कालेज से 2010 में बीसीए पास कर लिया. बीसीए की पढ़ाई के दौरान उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. उस समय स्वाति से यह सब सहन नहीं हो रहा था, इसलिए उस ने फैसला किया कि वह अपना जेंडर जरूर चेंज कराएगी.

उस ने इस के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का सहारा लिया. इंटरनेट पर उस ने  खूब सर्च किया और बहुत सारी जानकारी हासिल की. वह जेंडर चेंज के लिए 2010 से 2015 तक लगातार कई तरह की जानकारियां जुटाती रही.

बौडी बिल्डर आर्यन पाशा से हुई प्रभावित

स्वाति ने यूट्यूब पर आर्यन पाशा का एक वीडियो देखा था, जिसे देख कर उसे मालूम हुआ कि आर्यन पाशा का जन्म 1991 में नायला नाम की एक लड़की के रूप में हुआ था. आर्यन पाशा की मां को सब से पहले पता चला कि वह एक महिला शरीर में फंसा हुआ लड़का था.

जब वह 16 वर्ष का था तो पाशा की मां ने उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी(Gender Change Surgery) के बारे में बताया. 2011 में जब पाशा सिर्फ 19 साल का था, तब उस ने दिल्ली एनसीआर के एक अस्पताल में सर्जरी के द्वारा अपना जेंडर चेंज कराया.

इस बदलाव के बाद उस ने 12वीं कक्षा में अपने स्कूल में टौप किया, फिर उस ने अपने सभी दस्तावेजों में खुद को ‘पुरुष’ के रूप में पहचाना और यहां तक कि अपने लिए एक नया नाम आर्यन भी लिया.

स्नातक पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में प्रवेश से इनकार करने के बाद अंतत: उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई की. आर्यन बाद में बौडी बिल्डर बना और पुरुष वर्ग में बौडी बिल्डिंग इवेंट मसल मेनिया में प्रतिस्पर्धा करने वाला पहला भारतीय ट्रांसमैन बन गया. वह पोडियम पर दूसरे स्थान पर रहा.

इस के बाद स्वाति एक्सपर्ट डाक्टर से भी मिली और डाक्टर से बात कर यह जाना कि इस की सर्जरी की क्या प्रक्रिया है. जब सारी बातें साफ हो गईं तो उस ने उन लोगों से भी मुलाकात की, जिन्होंने अपना जेंडर चेंज करवाया था.

स्वाति ने इस के लिए आर्यन पाशा और राजवीर सिंह जैसे जेंडर चेंज करने वाले लोगों से मुलाकात की. इस के बाद अपने इरादे मजबूत कर लिए तो एक दिन सारी बातें घर वालों के सामने रख दीं और उन्हें जेंडर चेंज करवाने के लिए मनाना शुरू किया.

पहले तो घर वालों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. उस के पीछे आर्थिक स्थिति का कमजोर होना तो था ही, समाज में नकारात्मक सोच का डर भी घर वालों को था. यही वजह रही कि घर वालों ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी. उस वक्त स्वाति के लिए शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए थे.

3 साल का वक्त लगा जेंडर बदलने में

यह बात उस के तनाव को और बढ़ा रही थी. उस ने घर वालों को काफी मनाया समझाया और कुछ ऐसे लोगों से घर वालों की मुलाकात कराई, जो जेंडर चेंज कराने के बाद अपना पारिवारिक जीवन बेहतर ढंग से जी रहे थे.

राजवीर सिंह से मुलाकात और काफी कोशिशों के बाद मम्मीपापा के सोचने का नजरिया बदला. इस काम में स्वाति की 3 बहनों ने भी काफी सपोर्ट किया. आखिरकार लंबी मशक्कत के बाद घर वाले  जेंडर चेंज करवाने के लिए राजी हुए.

शिवाय को बाइक चलाने का भी शौक है. अब जेंडर चेंज सर्जरी करा कर स्वाति से शिवाय सूर्यवंशी बन गया है. जेंडर चेंज के बारे में जब हम ने शिवाय से बातचीत की तो खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज नजर आया.

लंबी बातचीत में शिवाय (स्वाति) ने बताया कि एक बार यूट्यूब पर आर्यन पाशा को देखा था, आर्यन लड़की से लड़का बना और फिर बौडी बिल्डर बन गया. यह वीडियो मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहा और इस के बाद मैं ने भी लड़का बनने की ठान ली.

जेंडर चेंज सर्जरी की शुरुआत 2020 में हुई थी. दिल्ली के एक निजी हौस्पिटल में उस ने 3 स्टेप में सर्जरी कराई है. जानेमाने सर्जन डा. नरेंद्र कौशिक ने उस की सर्जरी की थी.

पहली सर्जरी 2020 में जब शुरू हुई तो साइकोलौजिस्ट डा. राजीव ने मानसिक टेस्ट किया और डा. अरविंद कुमार ने हारमोंस थैरेपी की थी, जिस में हारमोंस चेंज होते हैं. इस थैरेपी के कुछ दिनों बाद ही वाइस चेंज होने लगी थी और चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं.

वहीं दूसरी टौप सर्जरी में शिवाय के दोनों ब्रेस्ट को बौडी से रिमूव किया गया था. थर्ड सर्जरी में बौटम पार्ट की सर्जरी की गई थी. इस सर्जरी के दौरान यूट्रस निकाला गया और सब से लास्ट में पेनिस डेवलप किया गया था. हर सर्जरी के बाद 3 माह का आराम करना होता था. शिवाय ने हर सर्जरी के बाद 5 से 6 महीने का गैप लिया.

अभी कुछ महीने पहले ही शिवाय की चौथी सर्जरी हुई थी, जिस में स्किन टाइट करवाई गई है. इस के बाद आराम किया और अब नवंबर 2023 से इंदौर में रह कर फिर से अपना जौब शुरू कर दिया है. पूरी सर्जरी में लगभग 10 लाख रुपए खर्च हुए थे.

शिवाय ने बताया कि वह पहले ही सर्जरी कराना चाहता था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से सर्जरी नहीं करा पाया.

शिवाय सूर्यवंशी ने बताया, ”सर्जरी करवा कर मैं बहुत खुश हूं. अब लगता है कि मुझे जो शरीर चाहिए था, वह मिल गया है.’’

दस्तावेजों में लिंग बदलवाना नहीं था आसान

शिवाय के परिवार में भी लोग खुश हैं.  शिवाय के बड़े भाई कृष्णा सूर्यवंशी ने बताया, ”पहले जरूर हम ने इस का विरोध किया था, लेकिन बाद में पूरे परिवार ने सहयोग किया.  अब उन्हें एक भाई और मिल गया है, जिस से उन्हें काफी मदद मिल रही है. हम पहले 5 भाईबहन थे. स्वाति सब से छोटी बहन थी. अब स्वाति के शिवाय बनने से 3 बहन और 2 भाई हो गए हैं.’’

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जेंडर चेंज करवाने के बाद सब से चुनौतीपूर्ण काम पहचान दस्तावेजों में नाम व जेंडर बदलने का था. इस के लिए स्वाति से शिवाय बन कर सब से पहले बैतूल कलेक्टर के समक्ष उपस्थित हो कर आवेदन किया.

कलेक्टर औफिस से जारी किए गए पत्र के साथ शिवाय सूर्यवंशी ने बोर्ड औफ सेकेंडरी एजुकेशन, भोपाल के साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल जहां से बीसीए किया और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर जहां से एमबीए किया था, वहां आवेदन किया. आवेदन के साथ उस ने जेंडर चेंज सर्जरी के समस्त डाक्यूमेंट्स भी पेश किए.

इस आधार पर हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल परीक्षा की मार्कशीट जो स्वाति नाम से बनी है, वहीं अब स्वाति का नाम परिवर्तित हो कर शिवाय हो गया है. जेंडर फीमेल से मेल हो गया है. इसी तरह बीसीए, एमबीए की मार्कशीट के साथ आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक पासबुक और वोटर आईडी कार्ड में भी उस का नाम बदल कर अब शिवाय सूर्यवंशी हो गया है.

शिवाय के सभी दस्तावेज पहले स्वाति सूर्यवंशी नाम से थे, लेकिन सर्जरी के बाद उस के सभी दस्तावेजों में भी नाम बदल चुका है. शिवाय ने अब ऐसे लोगों को, जो जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराना चाहते हैं, उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया है. शिवाय एमपी वाला चैनल बनाया है. बहुत सारे लोग इस संबंध में पूछताछ करते हैं शिवाय ने बताया कि अधिकांश लोग लड़का से लड़की बनना पसंद करते हैं.

जेंडर चेंज करने वाले माहिर डाक्टर बताते हैं कि जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस प्रकार का औपरेशन कराते हैं. इस बीमारी में लड़का, लड़की की तरह और लड़की, लड़के की तरह जीना चाहती है. एक का लड़के से लड़की बनना और दूसरे का लड़की से लड़का बनना जिसे मैडिकल टर्म में ‘जेंडर डिस्फोरिया’ या बौडी वर्सेस सोल कहते हैं. यानी शरीर और आत्मा की लड़ाई.

आसान नहीं होता जेंडर चेंज कराना

कई लड़के और लड़कियों में 12 से 16 साल के बीच जेंडर डायसफोरिया के लक्षण शुरू हो जाते हैं, लेकिन समाज के डर की वजह से ये अपने मातापिता को इन बदलावों के बारे में बताने से डरते हैं.

आज भी समाज में कई ऐसे लड़केलड़कियां हैं, जो इस समस्या के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन इस बात को किसी से बताने से डरते हैं. लेकिन जो हिम्मत जुटा कर कदम उठाते हैं. वे जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराने का फैसला लेते हैं.

हालांकि जेंडर चेंज कराने वालों को समाज में एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है और उन से लोग कई तरह के सवालजवाब भी करते हैं.

सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी या फिर जेंडर चेंज सर्जरी कराना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है. इस का खर्च भी लाखों रुपए में है और इस सर्जरी को कराने से पहले मानसिक तौर पर भी तैयार रहना पड़ता है. यह सर्जरी हर जगह उपलब्ध भी नहीं है. कुछ मैट्रो सिटी के अस्पतालों में ही ऐसे सर्जन मौजद हैं, जो सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी को कर सकते हैं.

सैक्स चेंज कराने के इस औपरेशन के कई लेवल होते हैं. यह प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है. फीमेल से मेल बनने के लिए करीब 32 तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. मेल से फीमेल बनने में 18 चरण होते हैं.

सर्जरी को करने से पहले डाक्टर यह भी देखते हैं कि लड़का और लड़की इस के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं. इस के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सहायता ली जाती है. इस के साथ ही यह भी देखा जाता है कि शरीर में कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है.

जेंडर चेंज कराने की प्रक्रिया में सब से पहले डाक्टर एक मानसिक टेस्ट करते हैं. मानसिक टेस्ट में फिट होने के बाद इलाज के लिए हारमोंस थेरेपी शुरू की जाती है. यानी जिस लड़के को लड़की वाले हारमोंस की जरूरत है, वो इंजेक्शन और दवाओं के जरिए उस के शरीर में पहुंचाए जाते हैं.

इस इंजेक्शन के करीब 3 से 4 डोज देने के बाद बौडी में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं. फिर इस का प्रोसीजर शुरू किया जाता है.

दूसरे चरण में पुरुष या महिला के प्राइवेट पार्ट और चेहरे की शेप को बदला जाता है. महिला से पुरुष बनने वाले में पहले ब्रेस्ट को हटाया जाता है और पुरुष का प्राइवेट पार्ट डेवलप किया जाता है.

पुरुष से महिला बनने वाले व्यक्ति में उस के शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बना दिए जाते हैं. इस में ब्रेस्ट और प्राइवेट पार्ट शामिल होता है. ब्रेस्ट के लिए अलग से 3 से 4 घंटे की सर्जरी करनी पड़ती है. यह सर्जरी 4 से 5 महीने के गैप के बाद ही की जाती है.

जेंडर चेंड सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में कई डाक्टर शामिल होते हैं. इस में मनोरोग विशेषज्ञ, सर्जन, गायनेकोलौजिस्ट और एक न्यूरो सर्जन भी मौजूद रहता है. डाक्टर बताते हैं कि यह सर्जरी 21 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही की जाती है. इस से कम उम्र में मातापिता की ओर से लिखित में सहमति लेने के बाद ही औपरेशन किया जाता है.

डाक्टर से होने वाली है शिवाय की शादी

जिस स्वाति के लिए घर वाले शादी के लिए लड़का देख रहे थे, जेंडर बदलने के बाद सौफ्टवेयर इंजीनियर शिवाय सूर्यवंशी अब एक डाक्टर से शादी करने जा रहा है. जेंडर चेंज करवाने के दौरान ही शिवाय की मुलाकात इंदौर की रहने वाली एक लड़की से हौस्पिटल में हुई थी, जो बीएएमएस का कोर्स कंपलीट कर चुकी है और उस का खुद का क्लीनिक भी है.

सर्जरी के दौरान शिवाय को अपनी मंगेतर से काफी सपोर्ट मिला था. दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से काफी खुश हैं. शिवाय की यह अरेंज कम लव मैरिज होगी. कुछ ही दिनों बाद शिवाय मंगेतर के साथ परिणय सूत्र में बंधने जा रहा है. शिवाय ने बाद में महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी से एमएससी (आईटी) पास करने के साथ सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का कोर्स किया  है. फिलहाल वह विदेशी कंपनियों के कुछ प्रोजैक्ट को फ्रीलांस के तौर पर कर रहा है. इस के अलावा शिवाय आलमाइटी सोल्यूशन सौफ्टवेयर कंपनी को भी अपनी सेवाएं दे रहा है.

शिवाय के पास हर दिन उन लोगों के फोन आते हैं, जो जेंडर चेंज तकनीक की जानकारी हासिल करना चाहते हैं. शिवाय ऐसे लोगों से खुशमिजाज हो कर बात करता है और लोगों की जेंडर सर्जरी संबधी जिज्ञासाओं का समाधान भी करता है.

यूट्यूब चैनल से दिया जा रहा है संदेश

एक छोटे से नगर में रह कर जेंडर चेंज कराने वाले शिवाय ने बताया कि उस के पास रोज ही ऐसे नौजवानों के फोन काल आते हैं, जो इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. शिवाय ऐसे युवाओं को फोन पर ही मार्गदर्शन करता है.

अपने चैनल के माध्यम से शिवाय जेंडर चेंज सर्जरी के साथ ही दस्तावेजों में नामपता बदलने की जानकारी भी विस्तार से देता है. उस के चैनल को बड़ी संख्या में युवा फालो भी कर रहे हैं.

शिवाय ने बताया कि इस तरह की समस्याओं से परेशान युवक युवतियां घुटघुट कर जीते हैं. घर वाले उन की फीलिंग्स को नहीं समझते और निराश हो कर युवक युवतियां आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं.

शिवाय का कहना है कि इस तरह की समस्या का सामना करने वाले नौजवान युवकयुवतियां डरने के बजाय अपना आत्मविश्वास जगाएं और बिना संकोच किए अपने घर वालों से बातचीत कर अपना जेंडर चेंज करा सकते हैं. आजकल तो सरकार की आयुष्मान योजना का लाभ उठा कर भी जेंडर चेंज सर्जरी कराई जा सकती है.

—कथा शिवाय सूर्यवंशी से की गई लंबी बातचीत पर आधारित