Suicide Case : प्रेमी जोड़े ने मिठाइयों में जहरीला पदार्थ खाकर की आत्महत्या

Suicide Case : 11जुलाई, 2014 को सुबह साढ़े 10 बजे इंदौर के स्काई होटल के मालिक दर्शन पारिख ने अपने कर्मचारी को होटल के कमरा नंबर 202 में ठहरे व्यक्ति से 500 रुपए लाने को कहा. एक दिन पहले इस कमरे में रोहित सिंह अपनी छोटी बहन के साथ ठहरा था. कमरा बुक कराते समय उस ने कहा था कि वह कमरे में पहुंच कर फ्रैश होने के बाद पैसे दे देगा.

पैसे लेने के लिए कर्मचारी कमरा नंबर 202 पर पहुंचा तो उसे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. उस ने कालबेल का बटन दबाया. बटन दबाते ही कमरे के अंदर लगी घंटी के बजने की आवाज उस के कानों तक आई तो वह दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दोबारा घंटी बजाई. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला और न ही अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं पड़ी. फिर उस ने दरवाजा थपथपाया. इस के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो वह कर्मचारी अपने मालिक दर्शन पारिख के पास पहुंचा और उन्हें दरवाजा न खोलने की बात बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि कई बार घंटी बजाने के बाद भी कमरे में कोई हलचल नहीं हुई.

उस की बात सुन कर दर्शन पारिख खुद रूम नंबर 202 पर पहुंच गया और उस ने भी कई बार दरवाजा थपथपाया. उसे भी कमरे से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. उसे शंका हुई कि कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं है. उस ने उसी समय थाना खजराना फोन कर के इस बात की सूचना दे दी.

ऐसी कंडीशन में ज्यादातर कमरे के अंदर लाश मिलने की संभावना होती है. इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सी.बी. सिंह एसआई पी.सी. डाबर और 2 सिपाहियों को ले कर बाईपास रोड पर बने नवनिर्मित होटल स्काई पहुंच गए. उन्होंने भी रूम नंबर 202 के दरवाजे को जोरजोर से खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस ने दर्शन पारिख से दूसरी चाबी ले कर दरवाजा खोला. अंदर फर्श पर एक लड़का और लड़की आलिंगनबद्ध मिले.

उन की सांसों को चैक किया तो लगा कि उन की सांसें टूट चुकी हैं. दर्शन पारिख ने उन दोनों को पहचानते हुए कहा कि कल जब यह लड़का आया था तो इस ने इस लड़की को अपनी बहन बताया था और इस समय ये इस हालत में पड़े हैं. कहीं उन की सांसें बहुत धीरेधीरे न चल रही हों, यह सोच कर पुलिस ने उन्हें अस्पताल भेजा. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद पुलिस ने होटल के उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी बुला लिया गया. कमरे में मिठाई का एक डिब्बा, केक, जलेबी आदि खुले पड़े थे.  जिस जगह लाशें पड़ी थीं, वहीं पास में एक पुडि़या में पाउडर रखा था. उसे देख कर डा. सुधीर शर्मा ने बताया कि यह हाई ब्रोस्वोनिक नाम का जहरीला पदार्थ हो सकता है. इन्होंने मिठाई वगैरह में इस पाउडर को मिला कर खाया होगा. जिस की वजह से इन की मौत हो गई.

एसआई पी.सी. डाबर ने सामान की तलाशी ली तो उस में जो कागजात मिले, उन से पता चला कि उन के नाम रोहित सिंह और मीनाक्षी हैं. वहीं 20 पेज का एक सुसाइड नोट भी मिला. उस से पता चला कि वे मौसेरे भाईबहन के अलावा प्रेमी युगल भी थे. पुलिस ने कमरे में मिले सुबूत कब्जे में ले लिए.

कागजात की जांच से पता चला कि लड़की का नाम मीनाक्षी था. वह खंडवा जिले के नेहरू चौक सुरगांव के रहने वाले महेंद्र सिंह की बेटी थी, जबकि लड़के का नाम रोहित था. वह हरदा के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह का बेटा था. पुलिस ने दोनों के घरवालों को खबर कर दी तो वे रोतेबिलखते हुए अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाशों की पहचान रोहित और मीनाक्षी के रूप में कर दी. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें उन के परिजनों को सौंप दी गईं.

दोनों के घर वालों से की गई बातचीत और सुसाइड नोट के बाद पुलिस जान गई कि रोहित और मीनाक्षी के बीच प्रेमसंबंध थे. उन के प्रेमप्रसंग से ले कर सुसाइड करने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के हरदा शहर के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रोहित सिंह उन का दूसरे नंबर का बेटा था. बेटी को पढ़ानेलिखाने के बाद वह उस की शादी कर चुके थे. रोहित इंटरमीडिएट पास कर चुका था. उस की तमन्ना कृषि वैज्ञानिक बनने की थी, इसलिए पिता ने भी उस से कह दिया था कि उस की पढ़ाई में वह किसी तरह की रुकावट नहीं आने देंगे.

करीब 3 साल पहले की बात है. रोहित अपने परिजनों के साथ इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर अपनी मौसेरी बहन की शादी में गया था. उस शादी में रोहित की दूसरी मौसी की बेटी मीनाक्षी भी अपने घर वालों के साथ आई हुई थी.

मीनाक्षी बेहद खूबसूरत और हंसमुख थी. वह जीवन के 22 बसंत पार कर चुकी थी. मजबूत कदकाठी का 17 वर्षीय रोहित भी बहुत हैंडसम था. पूरी शादी में मीनाक्षी रोहित के साथ रही थी, दोनों ने शादी में काफी मस्ती भी की. मीनाक्षी की रोहित के प्रति दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. चूंकि वे मौसेरे भाईबहन थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर किसी को कोई शक वगैरह नहीं हुआ.

शादी के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. घर जाने के बाद मीनाक्षी के मन में उथलपुथल होती रही. शादी में रोहित के साथ की गई मस्ती के वह पल उस के दिमाग में घूम रहे थे. समझदार होने के बाद इतने ज्यादा समय तक मोहित उस के साथ पहली बार रहा था. मौसेरा भाई होने के बावजूद मीनाक्षी का उस की तरफ झुकाव हो गया. दोनों के पास एकदूसरे के फोन नंबर थे. समय मिलने पर वे फोन पर बात करते और एसएमएस भेजते रहते.

मीनाक्षी उसे अपने प्रेमी के रूप में देखने लगी. एक दिन उस ने फोन पर ही रोहित से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रोहित भी जवानी की हवा में उड़े जा रहा था. उस ने उस का प्रस्ताव मंजूर कर लिया. उस समय वे यह भूल गए कि आपस में मौसेरे भाईबहन हैं. फिर क्या था, दोनों के बीच फोन पर ही प्यार भरी बातें होने लगीं. बातचीत, मेलमुलाकातों के साथ करीब 3 साल तक प्यार का सिलसिला चलता रहा. इस दौरान उन के बीच की दूरियां भी मिट चुकी थीं.

कहते हैं कि प्यार को चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, वह छिप नहीं पाता, लेकिन मीनाक्षी और रोहित के संबंधों पर घर वालों को जल्दी से इसलिए शक नहीं हुआ था, क्योंकि वे आपस में मौसेरे भाईबहन थे.

भाईबहन का रिश्ता होते हुए भी घर वालों ने जब उन्हें सीमाओं को लांघते देखा तो उन्हें शक हो गया. फिर क्या था, उन के संबंधों को ले कर घर में चर्चा होने लगी. पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन उन की हरकतें ऐसी थीं कि संदेह पैदा हो रहा था. इस के बावजूद घर वाले लापरवाह बने रहे.

उधर मीनाक्षी और रोहित का इश्क परवान चढ़ता जा रहा था. अब मीनाक्षी 25 साल की हो चुकी थी और रोहित 20 साल का. वह रोहित से 5 साल बड़ी थी. इस के बावजूद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.  दोनों ने शादी का फैसला तो कर लिया, लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि अपनी बात घर वालों से कहें कैसे.

सच्चे प्रेमियों को अपने प्यार के आगे सभी चीजें बौनी नजर आती हैं. वे अपना मुकाम हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. हालांकि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उन के घर वाले उन की बात मानेंगे, लेकिन वे यह बात कह कर घर वालों को यह बता देना चाहते थे कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं. मौका पा कर रोहित और मीनाक्षी ने अपनेअपने घर वालों से साफसाफ कह दिया कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं.

यह सुन कर घर वाले सन्न रह गए कि ये आपस में सगे मौसेरे भाईबहन हैं और किस तरह की बात कर रहे हैं? ऐसा होना असंभव था. घर वालों ने उन्हें बहुत लताड़ा और समझाया भी कि सगेसंबंधियों में ऐसा नहीं होता. मोहल्ले वाले और रिश्तेदार जिंदगी भर ताने देते रहेंगे. लेकिन रोहित और मीनाक्षी ने उन की एक न सुनी. उन्होंने आपस में मिलनाजुलना नहीं छोड़ा. घर वालों को जब लगा कि ये ऐसे नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन पर सख्ती करनी शुरू कर दी.

मीनाक्षी और रोहित बालिग थे. उन्होंने अपनी गृहस्थी बसाने की योजना पहले ही बना ली थी. फिर योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 15 जून, 2014 को वे अपने घरों से भाग कर इंदौर पहुंच गए. घर से भागने से पहले रोहित अपने दादा के पैसे चुरा कर लाया था तो वहीं मीनाक्षी भी घर से पैसे व जरूरी कपड़े आदि बैग में रख कर लाई थी. वे इंदौर आए और 3 दिनों तक एक होटल में रहे. इस के बाद उन्होंने राज मोहल्ला में एक मकान किराए पर ले लिया.

मीनाक्षी के अचानक गायब होने पर घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने सब से पहले उस का फोन मिलाया. वह बंद आ रहा था. फिर उन्होंने अपने खास लोगों को फोन कर के उस के बारे में पता किया. मामला जवान बेटी के गायब होने का था, इसलिए बदनामी को ध्यान में रखते हुए वे अपने स्तर से ही उसे ढूंढते रहे. बाद में जब उन्हें पता चला कि रोहित भी घर पर नहीं है तो उन्हें बात समझते देर नहीं लगी. फिर मीनाक्षी के पिता महेंद्र सिंह ने बेटी के लापता होने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

घर से भाग कर गृहस्थी चलाना कोई आसान काम नहीं होता. खास कर तब जब आमदनी का कोई स्रोत न हो. वे दोनों घर से जो पैसे लाए थे, वे धीरेधीरे खर्च हो चुके थे. अब पैसे कहां से आएं, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. एक दिन रोहित ने मीनाक्षी से कहा, ‘‘मैं घर जा कर किसी तरह पैसा लाता हूं. वहां से लौटने के बाद हमें गुजरबसर के लिए कुछ करना होगा.’’

मीनाक्षी को इंदौर में ही छोड़ कर रोहित अपने गांव चला गया. वह खंडवा रेलवे स्टेशन पर पहुंचा था कि तभी इत्तफाक से मीनाक्षी के भाई ने उसे देख लिया. उस ने उसे वहीं पर पकड़ लिया. वहां भीड़ जमा हो गई. भीड़ में उस के कुछ परिचित भी थे. उन्होंने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा, लेकिन रोहित ने कुछ नहीं बताया तो वह अपने परिचितों के सहयोग से उसे पकड़ कर थाने ले गया.

पुलिस ने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि वह इंदौर में है. पुलिस उसे ले कर इंदौर के राज मोहल्ले में पहुंची. इस से पहले कि वह उस के कमरे पर पहुंच पाती, रोहित पुलिस को झांसा दे कर रफूचक्कर हो गया. पुलिस से छूट कर वह तुरंत अपने कमरे पर पहुंचा और वहां से मीनाक्षी को ले कर खिसक गया. कमरा छोड़ कर वे इंदौर के रेडिसन चौराहे के पास स्थित स्काई होटल पहुंचे.

उन के पास अब ज्यादा पैसे नहीं थे. होटल मालिक दर्शन पारिख से मीनाक्षी ने रोहित को अपना छोटा भाई बताया था. दर्शन पारिख ने जब कमरे का एडवांस किराया 500 रुपए जमा करने को कहा तो उस ने कह दिया कि पैसा हम सुबह दे देंगे, अभी जरा थोड़ा आराम कर लें.

कमरे में सामान रखने के बाद वे खाना खाने बाहर गए. वापस आते समय कुछ मिठाइयां आदि ले कर आए और सुबह होटल के कमरे में उन की लाशें मिलीं. अब संभावना यह जताई जा रही है कि उन्होंने मिठाइयों में वही जहरीला पदार्थ मिला कर खाया होगा, जो घटनास्थल पर मिला था.

कमरे से 20 पेज का जो सुसाइड नोट मिला है, उस में दोनों ने 5-5 पेज अपनेअपने घर वालों को लिखे हैं. रोहित ने लिखा है कि पापा मेरी आखिरी इच्छा है कि आप शराब पीना छोड़ दें. गांव में जा कर दादादादी के साथ रहें. मम्मी के लिए उस ने लिखा कि आप पापा, दादादादी, भैया का खयाल रखना. तुम मुझ से सब से ज्यादा प्यार करती हो, अब मैं यहां से जा रहा हूं.

मीनाक्षी ने भी अपने पिता को लिखा था कि पापा, मैं जो कुछ कह रही हूं, जो कुछ किया है, वह शायद किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि मौसी के लड़के से प्यार करती हूं. आप के और रोहित के साथ रहना चाहती थी, लेकिन आप ने अनुमति नहीं दी, इसीलिए मैं ने यह कदम उठाया है. आप अपनी सेहत का ख्याल रखना और कमर दर्द की दवा बराबर लेते रहना. उस ने मां के लिए लिखा था कि आप पापा से झगड़ा मत करना.

उन्होंने सामूहिक सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे पत्र के साथ हमारे फोटो भी हैं. आत्महत्या का समाचार हमारे फोटो के साथ अखबारों में छापा जाए.

रोहित और मीनाक्षी की मौत के बाद उन के घर वाले सकते में हैं. सुसाइड नोट के बाद यह बात साबित हो गई थी कि वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. यह बात जगजाहिर होने के बाद दोनों के घर वालों का समाज के सामने सिर झुक गया. क्योंकि रोहित और मीनाक्षी के बीच जो संबंध थे, उसे हमारा समाज मान्यता नहीं देता.

बहरहाल, रोहित के पिता सोहन सिंह का बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाने का सपना धराशाई तो हो ही गया, साथ ही बेटा भी हमेशा के लिए उन से जुदा हो गया. इस के अलावा महेंद्र सिंह को भी इस बात का पछतावा हो रहा है कि जैसे ही उन्होंने मीनाक्षी और रोहित के बीच चक्कर चलने की बात सुनी थी, उसी दौरान वह उस की शादी कहीं और कर देते तो शायद यह दुखद समाचार सुनने को नहीं मिलता. Suicide Case

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

Love Crime : गर्लफ्रेड ने ली बॉयफ़्रेंड की जान

Love Crime :  एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था. 26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया. एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता. सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी. अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी. सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया. अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है. दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं. इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा. सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया. Love Crime

Love Crime : एकतरफा प्रेमी ने ली प्रेमिका की सहेली की जान

Love Crime : 10 जुलाई, 2023 को रात के लगभग 8 बजे का वक्त रहा होगा, दिव्या रोज की तरह अपनी सहेली अक्षया यादव की स्कूटी पर बैठ कर कोचिंग से घर वापस लौट रही थी. उन दोनों सहेलियों में से किसी को जरा भी अनुमान नहीं था कि मौत दबे पांव उन की ओर बढ़ी आ रही है.

उसी समय अक्षया की स्कूटी के नजदीक से एक बाइक गुजरी. उस पर 4 नवयुवक सवार थे. बाइक पर सवार उन युवकों में से 2 के हाथ में देशी पिस्टल थी. उन चारों में से 2 को पहचानने में अक्षया और उस की सहेली दिव्या ने भूल नहीं की. वे दोनों आर्मी की बजरिया में रहने वाले सुमित रावत और उपदेश रावत थे.

एक नजर चारों तरफ देखने के बाद सुमित नाम के युवक ने रुकने का इशारा कर के अक्षया को बेटी बचाओ चौराहा (मैस्काट चिकित्सालय) के पास रोक लिया.

सडक़ पर ही सुमित और दिव्या में होने लगी नोंकझोंक

अक्षया के स्कूटी रोकते ही सुमित दिव्या से बात करने लगा. कुछ ही पल की बातचीत में दिव्या और सुमित में नोंकझोंक शुरू हो गई. दोनों के बीच सडक़ पर नोंकझोंक होती देख उधर से गुजर रहे कुछ राहगीरों ने महज शिष्टाचार निभाते हुए रुक कर सुमित को समझाने का प्रयास किया, लेकिन सुमित ने लोगों से दोटूक शब्दों में कह दिया कि अगर कोई भी हम दोनों के बीच में आया तो उसे सीधे यमलोक पहुंचा दूंगा.

इतना ही नहीं, सुमित और उस के साथ बाइक पर सवार हो कर आए अपराधी किस्म के साथी तमंचा दिखा कर राहगीरों को बिना किसी हिचकिचाहट के धमकाने लगे. सुमित को समझाने की कोशिश में लगे राहगीर उन युवकों के हाथों में तमंचा देख डर कर दूर हट गए.

राहगीरों के दूर हटते ही सुमित दिव्या को धमकाने लगा, “सोनाक्षी, मैं तुम्हें हमेशा के लिए भूल जाऊं, ये कभी नहीं हो सकता. और मेरे रहते किसी भी सूरत में तुम्हें अपने से मुंह नहीं फेरने दूंगा. अब अपनी जान की खैरियत चाहती हो तो चुपचाप जैसा में कहूं वैसा करो, वरना तुम्हारी लाश ही यहां से जाएगी.

अपनी आगे की जिंदगी का निर्णय खुद तुम्हें लेना है, मेरे साथ दोस्ती रखना चाहती हो याा नहीं? तुम और तुम्हारी मां ने मुकदमा दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवा कर मेरी जिंदगी को तबाह कर के रख दिया है. अब बचा ही क्या है मेरी जिंदगी में.”

“सुमित, तुम कान खोल कर सुन लो, सिर्फ मेरी मां ही नहीं मैं भी तुम से नफरत करती हूं. मैं अपने जीते जी तुम जैसे घटिया इंसान से कभी भी दोस्ती नहीं रखूंगी, ये मेरा आखिरी निर्णय है.” दिव्या ने भी उसे साफ बता दिया.

दिव्या का यह फैसला सुन कर सुमित की त्यौरियां चढ़ गईं. उस ने दिव्या को भद्दी सी गाली देते हुए कहा, “साली, तू और तेरी मां अपने आप को समझती क्या है?”

दिव्या की जान खतरे में देख कर सडक़ चल रहे किसी राहगीर ने समूचे घटनाक्रम की सूचना माधोगंज थाने को दे दी.

दिव्या पर चली गोली से अक्षया की गई जान

इस से पहले कि पुलिस घटनास्थल पर पहुंच पाती, सुमित ने बिना एक पल गंवाए देशी कट्टे का रुख दिव्या की ओर कर गोली दाग दी, लेकिन दुर्भाग्यवश गोली दिव्या को न लग कर उस की सहेली अक्षया के सीने में जा धंसी. उस के शरीर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. इस के बाद वे सभी युवक वहां से फरार हो गए. मदद के लिए आगे आए राहगीर अक्षया को बगैर वक्त गंवाए आटोरिक्शा में डाल कर जेएएच अस्पताल ले गए.

यह खबर समूचे शहर में आग की तरह फैल गई. देखते ही देखते घटनास्थल पर लोगों का जमघट लग गया. मृतका स्व. मेजर गोपाल सिंह व पूर्व डीजीपी सुरेंद्र सिंह यादव की नातिन थी और घटनास्थल के करीब ही सिकंदर कंपू में रहती थी.

इसी दौरान किसी परिचित ने फोन से इस घटना की खबर अक्षया के पापा शैलेंद्र सिंह को दे दी. शैलेंद्र सिंह को जैसे ही अपनी एकलौती बेटी के गोली लगने की खबर लगी, वह और उन की पत्नी विक्रांती देवी हैरत में पड़ गए. क्योंकि वह काफी विनम्र स्वभाव की थी तो किसी ने उसे गोली क्यों मार दी? अक्षया को गोली मारे जाने की खबर से समूचे सिकंदर कंपू इलाके में सनसनी फैल गई.

सरेराह बेटी को गोली मारे जाने की सूचना मिलने के बाद शैलेंद्र सिंह कार से पत्नी विक्रांती देवी को साथ ले कर अस्पताल के लिए निकले, लेकिन रास्ते में उन की कार सडक़ खुदी होने से फंस कर रह गई. इस के बाद वे अपने दोस्त की गाड़ी से अस्पताल पहुंचे, लेकिन बेटी का इलाज शुरू होने से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया.

हत्यारे अपना काम करके हथियार लहराते हुए मौकाएवारदात से चले गए. तब माधोगंज थाने के एसएचओ महेश शर्मा पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंचे. वहां पहुंचने के बाद उन्होंने आसपास के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की. घटनास्थल पर 2 पुलिसकर्मियों को छोड़ कर वह जेएएच अस्पताल की ओर चल पड़े. वारदात की सूचना उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

खबर पा कर एसपी राजेश सिंह चंदेल, एसपी (सिटी पूर्व, अपराध) राजेश दंडोतिया, एसपी (सिटी पश्चिम) गजेंद्र सिंह वर्धमान, सीएसपी विजय सिंह भदौरिया सहित क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अमर सिंह सिकरवार भी अस्पताल पहुंच गए. वहां मौजूद मृतका के मम्मीपापा को ढांढस दिलाते हुए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें बताया कि हत्यारों पर ईनाम घोषित कर दिया गया है. सभी आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

उधर डाक्टरों के द्वारा अक्षया को मृत घोषित करते ही एसएचओ महेश शर्मा ने जरुरी काररवाई निपटाने के बाद अक्षया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मृतका की 16 वर्षीया सहेली दिव्या शर्मा निवासी बारह बीघा सिकंदर कंपू की तहरीर पर सुमित रावत, उस के बड़े भाई उपदेश रावत सहित 2 अज्ञात युवकों के खिलाफ भादंवि की धारा 307,34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपियों को पकडऩे के लिए तत्काल संभावित स्थानों पर दबिश देनी शुरू कर दी थी, लेकिन हत्यारे हाथ नहीं लगे. क्योंकि आरोपी घर छोड़ कर फरार हो चुके थे. अनेक स्थानों पर असफलता मिलने के बावजूद पुलिस टीम हताश नहीं हुई.

पुलिस आरोपियों की तलाश बड़ी ही सरगर्मी से कई टीमों में बंट कर कर रही थी, लेकिन शहर के बहुचर्चित अक्षया हत्याकांड के हत्यारे पता नहीं किस बिल में जा कर छिप गए थे. अक्षया की हत्या हुए तकरीबन 24 घंटे होने को थे, लेकिन उस के हत्यारों को पकडऩे की बात तो दूर, पुलिस को उन का कोई सुराग तक नहीं मिला था.

12 जुलाई, 2023 की सुबह का समय था, तभी एक मुखबिर ने पुलिस को बताया कि अक्षया के जिन हत्यारों को वह तलाश रही है, उन में से एक आरोपी उपदेश रावत कोट की सराय डबरा हाईवे पर अपनी ससुराल में छिपा हुआ है. यह खबर मिलते ही क्राइम ब्रांच व थाना माधोगंज की टीम ने मुखबिर के द्वारा बताई जगह पर छापा मार कर मुख्य आरोपी सुमित रावत के बड़े भाई उपदेश रावत को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अलगअलग राज्यों से किए 7 आरोपी गिरफ्तार

10 हजार रुपए के ईनामी उपदेश को पुलिस टीम ने थाने ला कर उस से अक्षया यादव की हत्या के संदर्भ में पूछताछ शुरू की. पहले तो उपदेश अपने आप को निर्दोष बता कर पुलिस टीम को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया.

उस ने पूछताछ में खुलासा किया कि इस हत्याकांड में 7 लोग शामिल थे. उक्त वारदात को अंजाम देने से पहले हत्या का षडयंत्रकारी सुमित रावत 6 जुलाई को अपने दोस्तों के साथ कंपू स्थित होटल में रुका था. होटल में 7 जुलाई को विवाद होने पर वह अपने दोस्तों के साथ लाज में ठहरने चला गया था. इस वारदात से पहले तक लाज में ही ठहरा था.

यहीं पर हिस्ट्रीशीटर बाला सुबे के साथ बैठ कर दिव्या और उस की मां करुणा की हत्या की उस ने योजना बनाई थी. इन दोनों की हत्या के लिए हथियारों का इंतजाम भी बाला सुबे ने ही कराया था.

पूछताछ में यह भी पता चला कि हत्या वाले दिन से ठीक एक दिन पहले इस हत्याकांड में उस का नाम न आए, इसलिए शातिरदिमाग बाला सुबे एक दिन पहले ही महाराष्ट्र के धुले में अपने रिश्तेदार के यहां चला गया था. धुले में सुमित रावत व उस के सहयोगी विशाल शाक्य की फरारी की व्यवस्था बाला सुबे ने ही कर रखी थी.

योजनानुसार उपदेश और उस के छोटे भाई सुमित अपने 2 साथियों विशाल शाक्य व मनोज तोमर एक बाइक पर तथा दूसरी बाइक पर राकेश सिकरवार और अशोक गुर्जर ने सवार हो कर मृतका व उस की सहेली की रेकी की थी.

आरोपियों के नामों का खुलासा होने पर पुलिस ने बिना देरी किए सातों आरोपियों की कुंडली खंगाली और सभी आरोपियों सुमित रावत, उपदेश रावत,विशाल शाक्य, मनोज तोमर, राकेश सिकरवार, अशोक गुर्जर सहित बाला सुबे को अलगअलग राज्यों से हिरासत में ले लिया. मुख्य आरोपी सुमित रावत से की पूछताछ के बाद अक्षया हत्याकांड की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

16 वर्षीय दिव्या ग्वालियर शहर के बारह बीघा सिकंदर कंपू के रहने वाले विवेक शर्मा की बेटी थी. दिव्या एक होनहार छात्रा थी. इन दिनों वह ग्यारहवीं की तैयारी कर रही थी. उस ने सुमित के बारे में अपनी मां से कुछ भी नहीं छिपाया था.

सुमित उस का 3 साल पुराना फेसबुक फ्रैंड अवश्य था, लेकिन अपराधी प्रवृत्ति का था. जैसे ही उसे सुमित की हकीकत पता चली तो उस ने उसे ब्लौक कर दिया. ब्लौक किए जाने के बाद सुमित दिव्या को फोन ही नहीं करने लगा, बल्कि उस ने प्यार का इजहार भी कर दिया.

सिरफिरा आशिक निकला सुमित रावत

दिव्या के लिए तो यह परेशानी वाली बात थी. वह उस से इसलिए नाराज थी कि पहले तो उस ने शरीफ युवक बन कर उस से दोस्ती की और जैसे ही सारी हकीकत सामने आई तो फोन पर प्यार का इजहार करने लगा. सुमित के इस दुस्साहस से नाराज दिव्या ने उसे जम कर लताड़ा और आइंदा कभी फोन न करने की हिदायत दी.

लेकिन सुमित नहीं माना. दिव्या द्वारा उस की काल रिसीव न करने पर वह उसे मैसेज करने लगा. इस से दिव्या और उस की मां करुणा को लगा कि सुमित अव्वल दरजे का बेशर्म और सिरफिरा लडक़ा है, यह मानने वाला नहीं है, इसलिए उन दोनों ने उस पर गौर करना बंद कर दिया और दिव्या अपनी पढ़ाई में मन लगाने लगी.

जब दिव्या सुमित की फोन काल और मैसेज की अनदेखी करने लगी तो सुमित उस की मम्मी करुणा शर्मा को फोन कर दिव्या से बात कराने की हठ करने लगा. करुणा शर्मा ने सख्ती दिखाते हुए बात कराने से उसे मना कर दिया तो कभी वह करुणा शर्मा के गुढ़ा स्थित सेंट जोसेफ स्कूल पहुंच कर हडक़ाने लगता था.

करुणा शर्मा पेशे से शिक्षक हैं, पति का निधन हो जाने के बाद से वह प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर अपने बेटेबेटी का पालनपोषण कर रही हैं. उन के दिव्या के अलावा एक 12 वर्षीय बेटा है.

दिव्या काफी होशियार और समझदार लडक़ी थी. उस का पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई और कैरियर पर रहता था. अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए उस ने अपनी सहेली के साथ लक्ष्मीबाई कालोनी में कोचिंग जौइन कर रखी थी और बारह बीघा सिकंदर कंपू क्षेत्र में सुकून के साथ अपनी मां और छोटे भाई के साथ रह रही थी.

दिव्या के साथ उस की मम्मी को भी धमकाना शुरू कर दिया सुमित ने

बेहद हंसमुख और खूबसूरत दिव्या का अधिकांश समय पढ़ाईलिखाई में बीतता था. दिन में फुरसत के वक्त वह सोशल मीडिया फेसबुक पर बिता देती थी. फेसबुक का उपयोग करते वक्त क्याक्या ऐहतियात बरतनी चाहिए, उस के बारे में भी उसे जानकारी थी. इसलिए अंजान लोगों और खासकर लडक़ों से वह दोस्ती नहीं करती थी. लेकिन सुमित के मामले में वह भूल कर बैठी, जिसे वक्त रहते उस ने सुधार लिया था.

हालांकि सुमित से चैटिंग के दौरान दिव्या ने अंतरंग बातें कर ली थीं, जो स्वाभाविक भी थी, क्योंकि वह तो उसे बेहद शरीफ समझ रही थी. उसे इस बात का कतई अहसास नहीं था कि इस मासूम से चेहरे के पीछे हैवानियत और वहशीपन छिपा है, लेकिन जैसे ही दिव्या ने सुमित से दूरी बनानी शुरू की तो उस ने उस की मम्मी के साथ बदसलूकी और उन्हें धमकाना शुरू कर दिया. तब दिव्या को अपनी ग़लती का अहसास हुआ.

सुमित दिव्या शर्मा के पीछे इस कदर हाथ धो कर पड़ा था कि उस की कारगुजारियों का खुल कर विरोध करने वाली करुणा शर्मा को भी उस ने नहीं छोड़ा था. सुमित ने उन के साथ भी सरेराह उसी रास्ते पर कट्टा अड़ा कर छेड़छाड़ की थी, जहां दिव्या की सहेली अक्षया यादव की हत्या को अंजाम दिया था.

तब अंत में दिव्या ने कंपू थाने में सुमित रावत के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. उस की शिकायत पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात 18 नवंबर, 2022 की है. रोज की तरह सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका करुणा शर्मा अपने नाबालिग बेटे के साथ सुबह के समय स्कूल जा रही थीं. वह जैसे ही कंपू थाना क्षेत्र स्थित हनुमान सिनेमा तिराहे के निकट पहुंची ही थी कि तभी अचानक सुमित रावत आ धमका. उस ने उन का रास्ता रोक कर सरेराह बिना किसी संकोच के उन के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी.

मां के साथ सुमित रावत द्वारा की जा रही छेड़छाड़ को देख कर बेटा बुरी तरह से खौफजदा हो गया था. करुणा ने सुमित की इस हरकत का खुल कर विरोध किया तो वह बौखला गया. उस ने कट्टा निकाल कर करुणा के सीने से लगा दिया. सुमित खुलेआम कट्टे की नोंक पर राहगीरों के सामने करुणा के साथ छेड़छाड़ करता रहा, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया.

सुमित जान से मारने की धमकी दे कर कट्टा लहराते हुए भाग गया. इस घटना के बाद करुणा ने थाने पहुंच कर सुमित के खिलाफ भादंवि की धारा 341, 354, 345, 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस ने सुमित को दबोच कर जेल भेज दिया था. करुणा शर्मा अभी तक उस घटना को नहीं भूल सकी हैं.

उधर अक्षया यादव हत्याकांड में संलिप्त सातों आरोपियों को अलगअलग जगहों से गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 2 देशी कट्टे और बाइक बरामद करने के बाद मुख्य अभियुक्त सुमित रावत , उपदेश रावत, विशाल शाक्य सहित बाला सुबे को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया, जबकि अन्य तीन आरोपियों के नाबालिग होने की वजह से बाल न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन तीनों को बाल सुधार गृह भेज दिया गया है.

गौरतलब बात है कि सुमित रावत पर पुलिस के मुताबिक 2 हत्या सहित आधा दरजन प्रकरण दर्ज हैं. इसी क्रम में बाला सुबे पर 27 आपराधिक मामले, उपदेश रावत पर मारपीट और गोली चलाने के 7 मामले, विशाल शाक्य पर गोली चलाने का एक प्रकरण दर्ज है.

72 घंटे में पुलिस की आधा दरजन टीमों के द्वारा महाराष्ट्र, दिल्ली और धौलपुर से अक्षया यादव हत्याकांड में शामिल सातों आरोपियों को दबोचे जाने के बाद एडिशनल डीजीपी डी. श्रीनिवास वर्मा, एसपी राजेश सिंह चंदेल व एडिशनल एसपी राजेश डंडोतिया ने संयुक्त रूप से प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारो को अपराधियों के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि मुख्य आरोपी सुमित रावत को जब पुलिस की टीम ग्वालियर ले कर आ रही थी, तभी उस ने घाटीगांव पनिहार के बीच लघुशंका के बहाने पुलिस का वाहन रुकवाया और वाहन से उतरते ही भागने का प्रयास किया. इस प्रयास में गिर जाने से उस के पैर में फ्रैक्चर हो गया था, अत: उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 17 जुलाई को अस्पताल ने उसे डिस्चार्ज कर दिया तो न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया है.

हकीकत यह थी कि सुमित दिव्या से एकतरफा प्यार करने लगा था और उस के इंकार करने से बुरी तरह बौखला गया था. फेसबुक की दोस्ती में ऐसे अपराध वर्तमान दौर में आम हो चले हैं, जिन का शिकार दिव्या जैसी भोलीभाली लड़कियां हो रही है. ऐसे में उन्हें और ज्यादा संभल कर रहने की जरूरत है.

दिव्या उस का पहला प्यार था और उस के ठुकरा देने से वह उस से नफरत करने लगा था. उस की इसी नफरत की आग ने बेकुसूर छात्रा अक्षया यादव की जान ले ली. हालांकि अक्षया की हत्या के बाद उस के मातापिता की शेष जिंदगी तो अब दर्द में ही निकलेगी.

ताउम्र ये सवाल चुभेगा कि हमारी लाडली बिटिया ही क्यों? लेकिन पुलिस के लिए यह सिर्फ एक केस नंबर रहेगा. कुछ समय बाद ये नंबर भी शायद ही किसी को याद रहे. बेटी के बदमाशों के हाथों मारे जाने के गम का बोझ तो मातापिता को ही उठाना होगा. Love Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मनोज तोमर, राकेश सिकरवार और अशोक गुर्जर परिवर्तित नाम हैं.

MP Crime News : दगाबाज प्यार

MP Crime News : शादीशुदा 25 वर्षीय कविता गुप्ता के कदम पड़ोसी 25 वर्षीय नमन विश्वकर्मा की तरफ बहक गए. इस के बाद वह कविता को अपनी बाइक पर न सिर्फ घुमाता, बल्कि उस पर दिल खोल कर पैसे भी खर्च करने लगा. वह कविता पर शादी का दबाव बनाने लगा, लेकिन कविता इस के लिए तैयार नहीं थी. इसी जिद में नमन एक दिन ऐसा कांड कर बैठा कि उसे जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा. आखिर क्या किया नमन ने?

25 मई, 2025 शाम का वक्त था, जब जबलपुर में बरगी डैम के किनारे बसे गांव बरबटी के लोगों ने डैम की तरफ से किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनी. पहले तो लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब बच्चे के रोने की आवाज लगातार आती रही तो कुछ लोग डैम की तरफ यह देखने चले गए कि पता नहीं कोई बच्चा इतनी देर से क्यों रो रहा है.

जब गांव वाले वहां पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर चौंक गए. डैम के किनारे एक युवती पड़ी थी. वह खून से लथपथ थी. उस घायल युवती के पास खड़ी 3-4 साल की बच्ची रो रही थी. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना बरगी चौकी में फोन द्वारा दे दी. सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज एसआई सरिता पटेल मौके पर पहुंच गईं. उन्होंने देखा कि वहां लगभग 25 साल की निहायत ही खूबसूरत युवती गंभीर रूप से घायल पड़ी थी. जिस के पास खड़ी कोई 3-4 साल की एक बच्ची लगातार ‘मम्मी…मम्मी’ कहते हुए रोए जा रही थी.

एसआई पटेल ने बिना वक्त जाया किए घायल युवती को इलाज के लिए मैडिकल कालेज, जबलपुर भेज दिया. डाक्टरों ने तुरंत उस का इलाज शुरू कर दिया, लेकिन 27 मई को 2 दिन के उपचार के बाद घायल युवती ने दम तोड़ दिया. दम तोडऩे से पहले पुलिस को युवती अपना नाम कविता गुप्ता निवासी बलदेव बाग, जबलपुर बता चुकी थी. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि उस के ऊपर हमला उस के पड़ोस में रहने वाले युवक नमन विश्वकर्मा ने किया था.

कविता गुप्ता की मौत के बाद पुलिस ने बलदेव बाग के ही रहने वाले नमन विश्वकर्मा के खिलाफ हत्या का मामला बीएनएस की धारा 109, 109 (1) के तहत दर्ज कर लिया. नमन आपराधिक प्रवृत्ति का युवक था. उस के खिलाफ थाने में कई मामले दर्ज थे. आरोपी नमन को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (जबलपुर) संपत उपाध्याय ने एडिशनल एसपी (ग्रामीण) समर वर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसपी (सिटी) अंजुल अयंक मिश्रा, थाना बरगी के एसएचओ कमलेश चौरिया, बरगी नगर चौकी इंचार्ज सरिता पटेल, एसआई मुनेश लाल कोल, एएसआई भैयालाल वर्मा, हैडकांस्टेबल उदय प्रताप सिंह, कांस्टेबल अरविंद सनोडिया, मिथलेश जायसवाल, शेर सिंह बघेल, सतन मरावी, राजेश वरकडे, सत्येंद्र मरावी, सुखदेव अहाके, रवि शर्मा आदि को शामिल किया गया.

पुलिस के पास आरोपी का मोबाइल नंबर पहले से मौजूद था. उस घटना के बाद से वह बंद था, इसलिए पुलिस मुखबिरों की मदद से नमन की तलाश में जुटी थी. हफ्ते भर बाद पहली जून को पुलिस को खबर मिली कि नमन घटनास्थल के पास जंगल में छिपा कर रखी अपनी बाइक लेने बरगी डैम आया है. इस सूचना पर पुलिस ने घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस चौकी में 25 वर्षीय नमन विश्वकर्मा से पूछताछ की तो वह कविता गुप्ता की हत्या में अपना हाथ होने से इंकार करता रहा, लेकिन पुलिस ने उस के मोबाइल की लोकेशन और घटना वाले दिन के कुछ सीसीटीवी फुटेज उस के सामने रखे, जिन में वह कविता गुप्ता को बाइक पर बैठा कर बरगी डैम की तरफ आता दिखाई दे रहा था. ये सारे सबूत देख कर उस ने कविता की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने हत्या के पीछे की सारी कहानी पुलिस के सामने बयां कर दी. पुलिस ने आरोपी नमन विश्वकर्मा के पास से हत्या में प्रयुक्त चाकू और बाइक बरामद कर ली.

मध्य प्रदेश के जिला जबलपुर के कोतवाली थाना इलाके में स्थित संगम कालोनी, बलदेव बाग में रहने वाली कविता गुप्ता का पति पुनीत गुप्ता सिविक सेंटर चौपाटी पर पावभाजी का ठेला लगाता था. पति का सुबह का समय दुकान के लिए माल तैयार करने में निकल जाता था, जिस के बाद शाम को वह अपना ठेला ले कर सिविक सेंटर निकल जाता था. उस के बाद वह देर रात वापस आता था. कविता गुप्ता पढ़ीलिखी और खूबसूरत होने के अलावा माडर्न खयालों की युवती थी. वह जब जींसटौप पहन कर बाजार में निकलती तो न तो कोई उसे शादीशुदा कह सकता था और न किसी खोमचे वाले की पत्नी.

पति खूब प्यार करता था, कमाता भी अच्छा था, इसलिए कविता गुप्ता को पति से केवल एक ही शिकायत थी कि वह उस के लिए उतना समय नहीं निकाल पाता था, जितना वह चाहती थी. शहर में मनाए जाने वाले त्यौहार, उत्सव और दूसरे ऐसे मौकों पर जब लोग परिवार को ले कर घरों से बाहर निकलते थे, तब कविता गुप्ता को अकेले ही बेटी को ले कर उसे शहर की रौनक दिखाने जाना पड़ता था, क्योंकि ऐसे मौकों पर पति का धंधा ज्यादा चलने के कारण वह फ्री होने के बजाए और ज्यादा बिजी रहता था.

कोई 2 साल पुरानी बात है. एक रोज कविता गुप्ता अपनी बेटी को ले कर ग्वारी घाट जाने के लिए निकली, तभी पीछे से बाइक ले कर उस के पड़ोस में रहने वाला युवक नमन विश्वकर्मा आ कर उस से नमस्ते करते हुए बोला, ”भाभीजी, कहां जा रही हैं आप?’’

कविता गुप्ता उसे जानती थी. इसलिए उस ने छोटा सा जबाव दिया, ”ग्वारी घाट.’’

”मैं उसी तरफ जा रहा हूं. चलिए, मैं छोड़ देता हूं आप को.’’

कविता गुप्ता को नमन के साथ बाइक पर बैठने में कोई बुराई नजर नहीं आई, इसलिए अपनी 3 वर्षीय बेटी को गोद में लिए हुए वह नमन के साथ बाइक पर बैठ गई. ग्वारी घाट पर उतर कर उस ने नमन को धन्यवाद दिया. नमन बोला, ”अभी अपना धन्यवाद बचा कर रखिए. मैं 2 घंटे बाद इसी जगह मिलूंगा. आप को वापस ले चलूंगा, तभी धन्यवाद दे देना.’’ कहते हुए वह कविता गुप्ता का जवाब सुने बिना वहां से चला गया.

फिर 2 घंटे बाद नमन वहां आया तो कविता बेटी के साथ वहीं मिली. नमन ने उसे बाइक पर बिठाया और उसे वापस घर छोड़ दिया. उसी समय उस ने कविता को अपना फोन नंबर देते हुए कहा, ”जब भी कहीं जाना हो फोन कर दीजिए, आप की मदद कर के मुझे खुशी होगी.’’

कविता गुप्ता ने उस का नंबर घर जा कर मोबाइल में सेव कर लिया. लेकिन यह बात उसे परेशान कर रही थी कि आखिर नमन उस का इतना ध्यान क्यों रखना चाहता है. इसलिए घंटे भर बाद ही उस ने नमन को फोन लगा कर उस रोज की मदद के लिए धन्यवाद देते हुए उस की इस मेहरबानी का कारण भी पूछा.

नमन बोला, ”अरे, कोई खास कारण नहीं है भाभीजी. मैं जानता हूं कि भैया बिजी रहते हैं, इसलिए आप को अकेले परेशान होते देख कर मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

कविता गुप्ता हाजिरजवाब थी, सो तुरंत बोली, ”इस अच्छा न लगने का कारण?’’

”कारण तो कई हो सकते हैं. वक्त आने पर बता भी दूंगा, लेकिन फिलहाल तो इसे पड़ोसी धर्म मान लो.’’

कविता गुप्ता को नमन का जवाब अच्छा लगा, जिस से दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. इसी बीच कविता गुप्ता को मालूम चला कि नमन के खिलाफ मारपीट आदि के कई मामले थाने में दर्ज हैं. इस से उस ने सोच लिया कि वह नमन को समझाबुझा कर सही रास्ते पर चलने को प्रेरित करेगी. उसे भरोसा था कि नमन उस की बात नहीं टाल सकता.

इस के बाद एक रोज कविता गुप्ता ने उस से कहा, ”नमन, मैं ने सुना है कि तुम्हारे खिलाफ थाने में कुछ मामले दर्ज हैं. क्यों लड़तेझगड़ते हो? मेरी बात सुनो, आज से तुम अच्छे आदमी बनोगे.’’

”भाभीजी, मैं किस के लिए अच्छा बनूं, कोई तो ऐसा नहीं, जिस के लिए मैं खुद को बदलूं.’’

”मेरे लिए बदल लो खुद को, यह समझो कि आज से मैं तुम्हारी दोस्त हूं.’’

”ठीक है, इस बात पर भाभीजी आप को मेरे साथ कौफी पीने भेड़ाघाट चलना होगा.’’ नमन ने कहा.

कविता गुप्ता ने नमन की बात मान ली. जिस के बाद दोनों शाम तक भेड़ाघाट में घूमते रहे, फिर नमन ने उसे घर छोड़ दिया.

वास्तव में कविता गुप्ता उस रोज काफी खुश थी क्योंकि कोई था, जो उस के घूमनेफिरने का शौक पूरा करवाने को तैयार था. लेकिन रोजरोज नमन के साथ घूमने जाने का नतीजा यह हुआ कि दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए. पहली मुलाकात के 2 माह बीततेबीतते उन के बीच पनपा प्यार यहां तक पहुंच गया कि उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए. कविता गुप्ता के लिए यह कोई प्लानिंग का हिस्सा नहीं था, बल्कि बस सब कुछ यूं ही अचानक होता गया. फिर जैसा कि होता है, वक्त के साथ यह रिश्ता उस के मन को भाने भी लगा, जिस से वह नमन के साथ लगभग रोज ही एकांत में समय बिताने लगी.

बीचबीच में वह नमन को लड़ाईझगड़े से दूर रहने की हिदायत भी देती रहती, लेकिन वक्त के साथ नमन कविता गुप्ता के साथ शादी करने के सपने देखने लगा था. इसलिए साल भर के प्यार के बाद एक रोज नमन ने कविता के सामने प्रस्ताव रखा कि वह पति को छोड़ कर उस से शादी कर ले. यह सुन कर कविता गुप्ता चौंक गई. उस ने नमन को टालने के लिए बोल दिया कि ठीक है, मुझे सोचने का समय दो.

इसी बीच एक रोज वह शादी समारोह में शामिल होने गई थी. इसी दौरान नमन ने उसे फोन किया, लेकिन समारोह में शोरगुल होने की वजह से वह उस की काल रिसीव नहीं कर पाई तो नमन उस के घर आ धमका, जहां कविता का पति पुनीत गुप्ता मिला. नमन ने पुनीत से कविता के बारे में पूछा. इसी बात को ले कर उस का पुनीत से झगड़ा हो गया. तब नमन ने उस के पति के साथ मारपीट की और घर में तोडफ़ोड़ कर दी. कविता जब घर लौटी तो पुनीत ने उसे सारी बात बता दी कि यह सब नमन विश्वकर्मा ने किया है. इस घटना के बाद कविता गुप्ता समझ गई कि कितना भी घी गुड़ के साथ नीम खाओ वह कभी मीठा नहीं हो सकता, इसलिए उस ने नमन से फोन पर बात करना पूरी तरह बंद कर दी.

इस से नमन चिढ़ गया और कविता गुप्ता से आरपार का फैसला करने की बात सोच वह 25 मई, 2025 को उस के घर जा पहुंचा. उस समय पुनीत गुप्ता घर पर नहीं था. आखिरी बार बैठ कर बात करने की बात कह कर वह कविता गुप्ता को ले कर पल्सर बाइक से बरगी डैम पर बरबटी गांव के पास पहुंचा. उस ने कविता गुप्ता से शादी करने वाली बात दोहराई और उस से साथ में भाग चलने को कहा, लेकिन कविता गुप्ता ने साफ मना कर दिया कि वह पति को छोड़ कर नहीं जा सकती.

तब नमन उस से झगडऩे लगा और उस ने बटन वाला चाकू निकाल कर उस के ऊपर लगातार कई वार किए. उसे मरा जान कर वह वहां से भाग गया. जाते समय उस ने अपनी बाइक रमनपुर घाटी के पास जंगल में छिपा दी और कपड़े बदल कर बस से सिवनी, फिर रायपुर चला गया. 2 दिन बाद वह अपनी छिपाई हुई बाइक लेने आया, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरोपी नमन विश्वकर्मा की निशानदेही पर कत्ल में प्रयुक्त चाकू, खून सने कपड़े, बाइक बरामद करने के बाद उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. MP Crime News

 

 

MP News : विधायक के भाई की पत्नी भी शिकार

MP News : शादीशुदा महिलाओं को प्रताडि़त करने के मामले केवल मध्यमवर्गीय परिवारों तक ही सीमित नहीं है. पढ़ेलिखे हाईप्रोफाइल सोसायटी में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक के भाई की पत्नी काम्या भी इस प्रताडऩा की शिकार हुई है.

उस समय काम्या दुबे 27 साल की थी और भोपाल के रातीबड़ इलाके में अपने मम्मीपापा के साथ रहती थी. वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, मगर पेरेंट्स उस के विवाह के लिए चिंतित थे. काम्या के दूर के चाचा ने शीतल नाम की लड़की से लव मैरिज की थी. शीतल मध्य प्रदेश के धार जिले के कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल की बहन थी. शीतल का काम्या के घर आनाजाना रहता था. एक दिन शीतल किसी काम से आई तो काम्या की मम्मी ने शीतल से कहा, ”शीतल, काम्या के लिए कोई अच्छा लड़का तेरी नजर में हो तो बता. इस के हाथ पीले कर हम भी गंगा नहाना चाहते हैं.’’

”अरे भाभी, लड़का तो मेरी नजर में है, मगर आप मेरी मानेंगी नहीं.’’ शीतल बोली.

”अरे बता तो सही, आखिर कौन है वह लड़का?’’ काम्या की मम्मी ने उत्सुकता से पूछा.

”मेरा भाई देवेंद्र सिंह लाखों में एक है भाभी, आप तैयार हो तो सुरेंद्र भैया से बात कर के रिश्ता पक्का करवा दूंगी.’’ शीतल बोली.

”अरे पगली, तूने दूसरी जाति के लड़के से लव मैरिज कर ली, मगर काम्या के बाबूजी हरगिज तैयार नहीं होंगे.’’

”अरे आजकल सब चल रहा है, पढ़ेलिखे लोग जातियों के चक्कर में नहीं पड़ रहे. लड़कालड़की एकदूसरे को पसंद करें तो शादी पक्की हो जाती है.’’ शीतल समझाते हुए बोली.

शीतल ने बातों के दौरान बताया कि उस के भाई ने एमबीए किया है और अंगरेजी में थ्रोआउट बातचीत करता है. परिवार के सभी तरह के कारोबार वही संभालता है.

इसी दौरान शीतल ने काम्या को देवेंद्र से मिलवाया. देवेंद्र देखने में स्मार्ट था और उस के बातचीत के लहजे से झलकता था कि वह खानदानी रईस है और उस के बड़े भाई सुरेंद्र सिंह के एमएलए होने से काम्या बहुत प्रभावित हो गई. यही वजह रही कि काम्या ने पेरेंट्स की इच्छा के खिलाफ देवेंद्र से शादी करने की सहमति दे दी. काम्या की खुशियों की खातिर पेरेंट्स को भी राजी होना पड़ा. काम्या की देवेंद्र से शादी 8 फरवरी, 2018 धूमधाम से हुई. मध्य प्रदेश के धार जिले के रहने वाले देवेंद्र की बहन शीतल की लव मैरिज काम्या के चाचा से होने के चलते देवेंद्र के परिवार को पहले से जानते थे. देवेंद्र के भाई सुरेंद्र काम्या के घर रिश्ता ले कर आए थे, मगर काम्या के पापा इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि दोनों अलगअलग जातियों से आते हैं.

जब रिश्तेदारों ने काम्या के पेरेंट्स से कहा कि लड़का अच्छे परिवार से है, पढ़ालिखा है, उस का भाई राजनीति में सक्रिय है और पूरा कारोबार देवेंद्र ही संभालता है तो काम्या के फेमिली वाले शादी के लिए तैयार हो गए. शादी से पहले काम्या की देवेंद्र से ज्यादा बातचीत नहीं होती थी. जब कभी भी बात होती थी, वह अधिकतर यही कहता कि मीटिंग में है, बाद में बात करेंगे. काम्या को लगा इतना बड़ा कारोबार है तो बिजी रहते होंगे. शादी के बाद ही काम्या पति देवेंद्र और सास पीथमपुर में रहने लगे. शादी से पहले काम्या को तो यही बताया गया था कि देवेंद्र ने इंदौर के एक प्रतिष्ठित स्कूल से पढ़ाई की है. उस के बाद उस ने एमबीए किया है और वह बहुत अच्छी अंगरेजी बोलता है.

देवेंद्र रोज सुबह अच्छे से तैयार हो कर टिफिन बौक्स ले कर ठीक 9 बजे घर से यह कह कर निकल जाता था कि ‘औफिस जा रहा है.’ काम्या यही समझती कि उस के पति बघेल फिलिंग्स नाम के पेट्रोल पंप पर जाते हैं. शादी के कुछ ही दिनों बाद घर में काम करने वाले एक नौकर ने एक दिन काम्या से पूछा, ”भाभीजी, क्या आप को पता है, भैया कहां जाते हैं?’’

तो काम्या ने गर्व से जवाब दिया, ”हां, वो पेट्रोल पंप पर जाते हैं.’’

तब नौकर ने कहा, ”भाभीजी, यही तो आप की भूल है, भैया पंप पर नहीं जाते.’’

”तो फिर कहां जाते हैं, मुझे भी तो बताओ?’’ काम्या ने उत्सुकता से पूछा.

”भाभी, हम आप को बता तो देंगे कि वे कहां जाते हैं, पर आप हमारा नाम मत बताइएगा.’’ नौकर ने कहा.

”हां, भरोसा रखो मैं किसी से नहीं कहूंगी, लेकिन मुझे सच बता दो आज.’’ काम्या ने उस नौकर को भरोसे में लेते हुए कहा.

काम्या की ससुराल में काम करने वाले नौकर ने काम्या से कहा, ”देवेंद्र भैया रोज सुबह पीथमपुर से इंदौर वाले फ्लैट पर शराब पीने जाते हैं और पूरा दिन वहीं

रहते हैं.’’

यह सुन कर काम्या के पैरों तले से जमीन खिसक गई. काम्या के सामने अपने पति का चिट्ठा खुल चुका था. काम्या ने जब भी देवेंद्र से यह पूछा कि क्या वह शराब पीते हैं? तो वह उसे डांट कर चुप करा देता था और अकसर यही कहता कि तुम बेवजह मुझ पर शक करती हो. काम्या को नौकरों से ही यह पता चला कि वो घर में भी पानी की बोतल में देसी शराब भर कर रखते हैं. जब कभी काम्या उस की पानी की बोतल उठाने की कोशिश करती तो वह कह देता कि मेरी बोतल को हाथ मत लगाना, उस में फिल्टर्ड पानी है. आखिर एक दिन काम्या ने उसे रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस के बाद दोनों में तीखी बहस हुई, जिस पर देवेंद्र ने काम्या को गंदीगंदी गालियां भी दी थीं. पति का व्यवहार देख कर काम्या के सपने जल्द ही बिखरने लगे थे, उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि इस तरह एक प्रतिष्ठित परिवार के लोग उस के साथ धोखा दे कर प्रताडि़त भी करेंगे. शादी को 2-3 महीने हो चुके थे. इस परिवार की असलियत काम्या के सामने आने लगी थी. कुछ दिनों के बाद जब देवेंद्र ने इंदौर जाना बंद कर दिया तो काम्या ने कहा,   ”आजकल आप पेट्रोल पंप पर नहीं जाते, आखिर इस की वजह क्या है?’’

जब देवेंद्र की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो काम्या बोली, ”अगर वहां नहीं जाना तो कहीं और नौकरी कर लो.’’

तब  गुस्से में आ कर देवेंद्र ने कहा, ”आठवीं फेल को नौकरी कौन देगा.’’

यह सुन कर काम्या को लगा कि पति ने यह बात गुस्से में कही है. एक दिन यह बात काम्या ने अपने जेठ सुरेंद्र सिंह बघेल को बताई तो जेठ ने कहा, ”सच तो कह रहा है कि वो आठवीं फेल है, मगर इस से क्या फर्क पड़ता है. वह इतनी अच्छी अंगरेजी बोलता है, पढ़ाईलिखाई कोई मायने नहीं रखती. मेरा भाई इंटेलिजेंट है.’’

पति की शराब की लत के चलते काम्या का जीवन नर्क बन चुका था. दिसंबर, 2018 में जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और दादा (हनी बघेल) मंत्री बने, तब उन्होंने कुछ दिन बाद अपने छोटे भाई देवेंद्र और उस की पत्नी काम्या को भोपाल बुला लिया. उन्होंने काम्या से कहा, ”तुम लोग यहां आ कर रहोगे तो मैं देवेंद्र पर ध्यान दे पाऊंगा.’’

इस के बाद काम्या का परिवार भी भोपाल आ कर विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल के सरकारी बंगले के ही पास रहने लगा. भोपाल आने के बाद भी आए दिन देवेंद्र शराब पी कर काम्या को मारा करता था. जब किसी दिन अति हो जाती थी, तब काम्या दादा को फोन कर शिकायत करती थी, पर वह देवेंद्र से कुछ कहने के बजाय काम्या को ही डांटा करते थे. एक दिन तो हद हो गई, जब पति ने काम्या को बेरहमी से बहुत मारा तो जान बचाने के लिए वह दूसरे दरवाजे से भाग गई. आसपास के लोगों ने भी इस मारपीट की शिकायत सुरेंद्र बघेल से की.

आईवीएफ से हुई जुड़वा बेटियां

काम्या के फेमिली वालों को देवेंद्र के योग्य पति होने पर संदेह नहीं था, क्योंकि वह अकसर उन से अंगरेजी में बात करता था. काम्या ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया है कि शादी से पहले देवेंद्र के दूसरी महिलाओं से अवैध संबंध थे, जो उन की 2 बेटियों के जन्म के बाद भी जारी रहे. जब उस के फेमिली वालों ने इस मामले को देवेंद्र के परिवार के सामने उठाया तो उन्होंने जवाब दिया कि उन की बेटी इस से बेहतर की हकदार नहीं है.

पति और ससुराल वालों की प्रताडऩा का एक कारण बच्चे न होना भी था. हालांकि परिस्थितियों के लिहाज से काम्या नहीं चाहती थी कि घर में कोई बच्चा आए और जिम्मेदारियां बढ़ाए. जब शादी के बाद लंबे समय तक काम्या को कोई संतान नहीं हुई तो ससुराल वालों ने काम्या को ताना देना शुरू कर दिया. पति और उस के परिवार के लोगों ने साफतौर पर यह कह दिया कि काम्या गर्भधारण करने में सक्षम नहीं है. इस के बाद उन्होंने कुछ मैडिकल टेस्ट करवाए, जिस में पता चला कि देवेंद्र बच्चा पैदा करने के लिए ‘चिकित्सकीय रूप से फिट’ नहीं है. जबकि काम्या की सारी रिपोर्ट नारमल थीं.

ससुराल वालों को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने काम्या से कहा कि यह बात किसी को मत बताना. उस के बाद ससुराल वालों ने उसे आईवीएफ ट्रीटमेंट की सलाह दी. काम्या के पापा डाक्टर थे, जब काम्या ने इस संबंध में उन से बातचीत की तो उन्होंने आईवीएफ के लिए मना कर दिया, लेकिन काम्या ने पापा की बात न मान कर ससुराल वालों की बात मान कर आईवीएफ ट्रीटमेंट ले लिया. पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान पति और ससुराल वालों ने कोई साथ नहीं दिया. काम्या का आरोप है कि पति ने गर्भावस्था के 7वें महीने में ही काम्या को धक्का दे दिया, जिस के कारण प्रीमैच्योर डिलीवरी करानी पड़ी. हौस्पिटल में उस के साथ केवल मायके के लोग ही मौजूद थे. काम्या ने 2 जुड़वा बेटियों को जन्म दिया.

बेटियों के जन्म पर ससुराल वालों ने खुशियां मनाने के बजाय यह सलाह दे डाली कि अब दोबारा आईवीएफ ट्रीटमेंट कराओ तो पहले सोनोग्राफी से जांच करा लेना कि बेटा है या बेटी. दोनों बेटियों की इसी माहौल में परवरिश होने लगी. पापा को देख कर बेटियां डर जाती थीं. बड़ी वाली तो खुद को वाशरूम में बंद कर लेती थी, क्योंकि उन्होंने कई बार मम्मी के साथ मारपीट देखी थी. काम्या ने परिवार के सम्मान में सुरेंद्र बघेल की सलाह पर इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) थेरेपी का विकल्प चुनने का फैसला किया, लेकिन जब अस्पताल के बिलों का भुगतान करने की बात आई तो बघेल परिवार गायब हो गया और उस के पापा ने सारा खर्च उठाया.

अचानक घर से गायब हो गए पति

2018 से पति और उस के परिवार की प्रताडऩा सहतेसहते काम्या बहुत परेशान हो चुकी थी. इसी बीच 23 फरवरी, 2025 को काम्या का पति देवेंद्र अचानक घर से गायब हो गया और उस ने अपना फोन स्विच औफ कर दिया. जब काम्या ने सास को यह बताया तो उन्होंने सामान्य रूप से रिएक्ट किया. उस दिन देवेंद्र सिंह बघेल को कुछ लोगों के माध्यम से भोपाल से इंदौर बुलवाया गया, इस के बाद से ही वह गायब हो गया और उस की कोई जानकारी काम्या को नहीं मिल रही थी. इस के बाद काम्या ने भोपाल के रातीबड़ थाने में शिकायत दर्ज कराई.

काम्या ने बताया कि जब उस ने अपने पति के बारे में जानकारी लेने के लिए जेठ सुरेंद्र सिंह बघेल, जेठानी और सास को काल किया तो किसी ने भी उस का फोन रिसीव नहीं किया, यहां तक कि कुछ रिश्तेदारों ने तो उस का नंबर ब्लौक तक कर दिया. काम्या सिंह ने मीडिया से बातचीत के दौरान एक औडियो क्लिप भी साझा की. उस के अनुसार, विधायक हनी बघेल खुद यह स्वीकार कर रहे हैं कि घर के खर्चे उन के पिता लंबे समय से उठा रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि जब उन का मन होता है, तब पैसे भेजते हैं और जब नहीं होता, खर्चापानी बंद कर देते हैं.

काम्या ने यह भी कहा कि उस के पति ने कई बार उस पर हाथ उठाया और जेठ पति को सिखाते थे कि एक औरत तक नहीं संभाल पा रहा है. काम्या ने आरोप लगाया कि उसे डर है कि उस के पति को मानसिक रूप से अस्वस्थ साबित कर पागलखाने भेजने की साजिश की जा रही है, ताकि पैतृक संपत्ति पर कब्जा किया जा सके. उस ने मांग की कि उस के खर्चों और आरोपों की जांच की जाए और प्रमाण मांगे जाएं. काम्या का यह भी कहना है कि उस के पति शराब के नशे की वजह से मनोरोगी हो चुके हैं.

काम्या ने एक वीडियो जारी कर जेठ पर पति को गायब कराने का आरोप लगाया. सोशल मीडिया पर काम्या ने कहा था, ”जेठ ने मेरे पति को गायब कर दिया है. बाद में मुझे पता चला कि वे पीथमपुर में हैं, वहीं पर गिर गए हैं, जिस के कारण उन की हिप सर्जरी हुई है.’’

 

देवेंद्र ने नोटिस भेज कर काम्या पर आरोप मढ़ दिया कि पत्नी ने उसे सीढ़ी से धक्का दे कर गिराया है, जबकि वह उस दौरान भोपाल में नहीं था. पीथमपुर के ही पास एक अस्पताल में एडमिट था. शराब के लिए पैसे न मिलने पर देवेंद्र किसी से भी उधार ले कर अपने शौक पूरे करता था. शराब के लिए उस ने दूधवाले, प्रेस वाले और  ड्राइवर से भी उधार ले रखा था.

पैसा लेते समय देवेंद्र हर किसी को यह बोल देता था कि मेरी पत्नी से पैसे ले लेना. अब हालात यह है कि यही लोग उधारी के पैसे काम्या से मांग रहे हैं. काम्या अपनी दोनों जुड़वां बच्चियों की स्कूल की फीस भरने के लिए जब भी परिवार के लोगों से पैसे मांगती है तो उसे यह कह कर चुप करा दिया जाता है कि बच्चों का सरकारी स्कूल में एडमिशन करा दो.

13 मई को महिला थाने में हुई एफआईआर

काम्या ने बताया कि वह पिछले कुछ सालों से ससुराल वालों की प्रताडऩा सहन कर रही थी, परंतु जब उस के सब्र का बांध टूटा तो 13 मई, 2025 को वह सीधे महिला पुलिस थाने पहुंची, जहां पर एसीपी निधि सक्सेना और एसएचओ अंजना दुबे को अपने साथ हुए अत्याचार की जानकारी देते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई. काम्या सिंह ने शिकायत में कहा है कि उस की शादी झूठी जानकारी दे कर कराई गई थी. बताया गया कि देवेंद्र सिंह बघेल एमबीए पास है और अच्छा बिजनैस संभाले हुए है, लेकिन शादी के बाद पता चला कि वह केवल 8वीं पास है और शराब का आदी है. परिवार के कारोबार से उसे दूर रखा गया है.

काम्या का आरोप है कि जब सच्चाई सामने आने पर उस ने आपत्ति जताई तो ससुराल वालों ने मारपीट शुरू कर दी और उसे धमकाया जाने लगा. स्कौर्पियो कार की मांग की गई और जब उस ने मना किया तो उसे घर से निकाल दिया गया. बच्चों की स्कूल फीस भी बंद कर दी गई. इतना ही नहीं, पति तलाक के कागजों पर जबरन साइन करवाना चाहते थे और जब काम्या ने इंकार कर दिया तो उसे  एससी/एसटी एक्ट में फंसाने की धमकी दी गई.

काम्या का आरोप है कि उसे जानबूझ कर झूठ बोल कर विवाह में फंसाया गया और बाद में दहेज में लग्जरी कार की मांग, शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा और जान से मारने की धमकियां दी गईं. काम्या के पापा ने वैसे तो एक क्रेटा कार और गृहस्थी का पूरा सामान दहेज में दिया था. काम्या ने इस बात का उल्लेख भी शिकायत में किया है कि विधायक हनी बघेल ने खुद एमएलए रेस्ट हाउस में बुला कर उस के साथ मारपीट की. जब काम्या ने प्रताडऩा का विरोध किया तो उन के फेमिली वालों ने उसे धमकाना शुरू कर दिया. पति देवेंद्र ने तेजाब फेंकने और जान से मारने की धमकी भी दी.

भोपाल महिला थाना पुलिस ने इस मामले में कांग्रेस विधायक सुरेंद्र बघेल, उन की पत्नी शिल्पा सिंह बघेल, भाई देवेंद्र सिंह बघेल, मम्मी चंद्र कुमारी और बहन शीतल सिंह बघेल के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 85, 351(2), 3(5) और दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धाराओं 3 और 4 के तहत मामला दर्ज कर लिया है.

कौन हैं विधायक हनी सिंह बघेल

सुरेंद्र सिंह बघेल, जिन को हनी बघेल के नाम से जाना जाता है, वह अनुसूचित जनजाति वर्ग से आते हैं. मध्य प्रदेश के धार जिले की कुक्षी विधानसभा सीट से वह वर्तमान में विधायक हैं. साल 2013 में उन्होंने पहली बार विधानसभा चुनाव जीता और मध्य प्रदेश सरकार में पर्यटन और नर्मदा घाटी विकास विभाग के मंत्री बने.

हालांकि 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोडऩे के बाद उन की राजनीति में उतारचढ़ाव आए, लेकिन फिर कांग्रेस में वापसी कर 2023 का विधानसभा चुनाव जीता. वह कमल नाथ के बेहद करीबी माने जाते हैं. हनी बघेल को उन के मीठे बोलने, देखभाल करने वाले और विनम्र स्वभाव के लिए जाना जाता है. धार जिले की कुक्षी सीट से कांग्रेस की वरिष्ठ नेता जमुना देवी ने कई बार यहां चुनाव लड़ा है और जीत कर 1998 से 2003 तक मध्य प्रदेश सरकार की उपमुख्यमंत्री भी रही थीं. उन के अलावा कांग्रेस के दूसरे नेता सुरेंद्र बघेल के पिता प्रताप सिंह बघेल भी इस क्षेत्र से चुनाव जीत कर मध्य प्रदेश के सिंचाई और पंचायती राज मंत्री बने थे. बघेल तीसरी बार इस क्षेत्र से विधायक हैं.

इधर पूरे मामले पर कांग्रेस विधायक हनी सिंह बघेल ने मीडिया के सामने सफाई दी. उन का कहना है कि अपने भाई के साथ कोई संपत्ति विवाद नहीं है और उन के पिता के जीवनकाल में ही पारिवारिक संपत्ति का विधिवत बंटवारा हो चुका है. बघेल ने दावा किया कि काम्या सिंह की वजह से ही देवेंद्र मानसिक तनाव में चला गया है और उस का इलाज इंदौर में कराया जा रहा है. विधायक ने यह भी कहा कि काम्या की तरफ से लगाए गए सभी आरोप निराधार हैं और सच्चाई जल्द सामने आ जाएगी.  MP News

 

 

MP News : सोसाइटी के द्वारा ठगे 10 हजार करोड़

MP News : समीर अग्रवाल ऐसा शातिर व्यक्ति था कि उस ने अपने सागा ग्रुप के अंतर्गत केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय से 7 सोसाइटियों के रजिस्ट्रैशन कराए. इस के बाद उस ने देश के विभिन्न शहरों में दफ्तर खोल कर विभिन्न आकर्षक योजनाओं में लोगों के 10 हजार करोड़ रुपए जमा कराए. लालच में फंसे लोगों को अपने ठगे जाने का अहसास तब हुआ, जब…

मध्य प्रदेश के भिंड जिले के दबोह कस्बे के रहने वाले गोटीराम राठौर उस दिन अपने खेत में लगी गेहूं की फसल में पानी दे कर अपने घर कुछ समय पहले ही आए थे. पत्नी खाना परोसने की तैयारी कर रही थी कि एक परिचित व्यक्ति ने उन के घर पर दस्तक देते हुए कहा, ”भाईजी नमस्कार, मैं एलजेसीसी (लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड) का एजेंट हूं. सोसाइटी बैंकिंग का काम भी करती है. ग्राहकों के लिए सोसाइटी बहुत सी बचत की स्कीम चला रही है, जिस में रुपए जमा करने पर भरपूर फायदा मिलता है. सोसायटी की कुछ स्कीम के बारे में जानकारी देने आया हूं.’’

”हां जी, बताइए कौन सी स्कीम है आप की सोसायटी की.’’ सामने पड़े लकड़ी के तख्त पर बैठने का इशारा करते हुए गोटीराम ने कहा.

”हमारी सोसायटी की स्कीम के तहत आप का जमा रुपया 5 साल में दोगुना हो जाता है. बैंकों से ज्यादा ब्याज हमारी सोसायटी ग्राहकों को देती है, कम समय में रकम दोगुना करने की स्कीम और किसी भी बैंक में नहीं है.’’ एजेंट बोला.

”इस सोसायटी का औफिस वगैरह कहां है. हमारा जमा पैसा सुरक्षित तो रहेगा न?’’ आशंका जाहिर करते हुए गोटीराम बोले.

”हां जी, सौ फीसदी सेफ. यह सोसायटी भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में रजिस्टर्ड है और भिंड शहर में ही सोसाइटी की ब्रांच है. फिर मैं हूं न.’’ एजेंट बोला.

”कितने रुपए जमा करने होंगे थोड़ा जानकारी दीजिएगा.’’ गोटीराम ने जिज्ञासा दिखाते हुए कहा.

”कम से कम 5 हजार और अधिकतम जितना आप जमा कर सकें.’’ एजेंट बोला.

”हमें जमीन के मुआवजे के तौर पर साढ़े 5 लाख रुपए मिले हैं, क्या पूरी रकम जमा कर सकते हैं?’’ गोटीराम ने पूछा.

”हां, जरूर कर सकते हैं, 5 साल में सोसाइटी आप को 11 लाख रुपए वापस कर देगी.’’ एजेंट ने भरोसा दिलाते हुए कहा.

तभी गोटीराम की पत्नी एजेंट को चाय बना कर ले आई. चाय पीने के बाद गोटीराम ने एजेंट से पूछा, ”इस के लिए कौन से दस्तावेज की जरूरत पड़ेगी और रुपए चैक से देने होंगे या नकद?’’

”भाईजी, बस आप का आधार कार्ड, एक फोटो आप को देनी होगी और नकद रुपए जमा करने पड़ेंगे.’’ एजेंट बोला.

”ठीक है, 2 दिन बाद आ जाइए, मैं बैंक से पैसा निकाल कर ले आऊंगा.’’ गोटीराम ने सहमति देते हुए कहा. गोटीराम राठौर की खेती की जमीन को सरकार ने हाईवे बनाने के लिए अधिगृहीत किया था, इस के एवज में उन्हें साढ़े 5 लाख रुपए का मुआवजा मिला था. गोटीराम ने सोचा यह रकम 5 साल में दोगुनी हो जाएगी यानी 11 लाख रुपए मिलेंगे. फायदे का सौदा देख गोटीराम ने पूरी रकम एजेंट के जरिए सोसाइटी में जमा कर दी. यह बात 2019 की है.

5 साल पूरे होने पर गोटीराम अपने दोगुने रुपए पाने का इंतजार कर रहे थे कि उन्हें पता चला कि यह सोसाइटी बहुत से लोगों का पैसा ले कर चंपत हो गई. आज हालात ये हैं कि सोसाइटी के दफ्तरों में ताले पड़े हुए हैं. गोटीराम राठौर की एक गलती की वजह से उन की जमीन भी चली गई और लालच में पैसा भी गंवा बैठे. एकांत में बैठ कर वे खुद को बारबार अभी भी कोसते हैं. यह कहानी अकेले गोटीराम की नहीं है. भिंड जिले के अलगअलग कस्बों के लोगों के साथ इसी तरह का फ्रौड हुआ है, जिस में लोगों की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपए डूब चुके हैं.

टीकमगढ़ में ठेले पर सैंडविच बेचने वाले  अनूप रैकवार ने भी आज से 3 साल पहले एलजेसीसी में हर दिन 500 रुपए जमा किए थे. उसे बताया गया था कि 3 साल में 5 लाख 40 हजार रुपए जमा होंगे और मैच्योरिटी पूरी होने पर 7 लाख रुपए वापस मिलेंगे. अनूप दिन भर जीतोड़ मेहनत कर अपने बच्चों के भविष्य के लिए यह बचत कर रहा था. अब कंपनी भाग गई है. जिस एजेंट ने उस से पैसा जमा करवाया था, उस ने भी पैसा देने से हाथ खड़े कर दिए तो अनूप के सारे सपने बिखर गए.

इसी तरह गंजबासौदा में फेरी लगा कर सामान बेचने वाले सचिन गोयल जेएलसीसी में रोज 100 रुपए जमा करता था. उस ने इस तरह 36 हजार रुपए जमा किए. एक साल में उसे 38 हजार रुपए देने का लालच दिया गया था. अब ब्रांच में ताला लग चुका है तो सचिन अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है.

समीर ने किया 10 हजार करोड़ का फ्रौड

जब इस पूरे मामले की पड़ताल की गई तो पता चला कि एलजेसीसी सोसाइटी ने न केवल भिंड में बल्कि मध्य प्रदेश के 16 जिलों के लोगों के साथ करीब 10 हजार करोड़ का फ्रौड किया है. फ्रौड के शिकार हुए लोग अब पुलिस थानों के चक्कर काट रहे हैं. फ्रौड करने वाली इस सोसाइटी का संबंध सागा ग्रुप से है, जिस ने पिछले 15 सालों में देश के 16 राज्यों के एक हजार शहरों व कस्बों में अलगअलग नाम की कंपनी और फिर सोसाइटियों के दफ्तर खोल रखे थे. एमपी के टीकमगढ़, विदिशा, भिंड, सागर, छतरपुर, दमोह, सागर, कटनी, सीहोर आदि शहरों में जनवरी 2024 से कंपनी ने मैच्योरिटी की राशि का भुगतान करना बंद कर दिया था.

पहले लोगों को लोकसभा चुनाव का हवाला दिया गया, इस के बाद अलगअलग बहाने बनाए गए. जब पैसा नहीं मिला तो लोगों ने थाने पहुंच कर शिकायतें करनी शुरू कीं. अगस्त 2024 में ललितपुर और टीकमगढ़ में एक साथ पुलिस ने पहली बार पीडि़तों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की. अगस्त 2024 में टीकमगढ़  शहर के कई निवेशकों ने एसपी औफिस आ कर शिकायती पत्र देते हुए बताया था कि टीकमगढ़ शहर के चकरा तिराहे स्थित एलजेसीसी औफिस बंद कर के भाग गई है और लोगों का करोड़ों रुपए वापस नहीं कर रहे हैं. टीकमगढ़ के तत्कालीन एसपी रोहित काशवानी के पास सागा ग्रुप की सोसाइटी के खिलाफ 100 लोगों की शिकायतें आईं.

शिकायत मिलने के बाद टीकमगढ़ पुलिस कोतवाली में लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के खिलाफ 5 एफआईआर दर्ज कीं और इस मामले की जांच के लिए एडिशनल एसपी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया. टीकमगढ़ शहर में ब्रांच मैनेजर रहे सुबोध रावत सहित 5 लोगों को हिरासत में ले कर जब पूछताछ की गई तो इस पूरी चिट फंड कंपनी और लोगों से ठगी करने वाले गिरोह का परदाफाश हुआ. इस सोसाइटी में काम करने वाले लोगों ने करोड़ों रुपए की ठगी कर के अपनी संपत्ति बनाई. इस कंपनी का सीएमडी समीर अग्रवाल दुबई में रहता है, उस के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया.

एसपी ने बताया कि वर्ष 2012 से ले कर 2024 तक 12 वर्षों के दौरान इस कंपनी ने टीकमगढ़ जिले के निवेशकों से करोड़ों रुपए की राशि फरजी तरीके से हड़प कर के बैंक प्रबंधन में काम करने वाले कर्मचारियों ने जमीन, मकान, वाहन और सरकारी बैंकों में एफडीआर बना लिए और अंत में सोसाइटी को बंद कर के फरार हो गए. इन में से सोसाइटी के टीकमगढ़ हैड सुबोध रावत समेत 11 आरोपियों को पुलिस ने उसी समय गिरफ्तार कर लिया था. साथ ही आरोपियों की 4 करोड़ रुपए कीमत की प्रौपर्टी भी जब्त की थी, जिस में वाहन और जमीनें शामिल थीं.

चिटफंड कंपनी के नाम पर करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले 5 आरोपियों ब्रांच मैनेजर सुबोध रावत, अजय तिवारी, विजय कुमार शुक्ला, राहुल यादव और जियालाल राय को गिरफ्तार कर  इन सभी आरोपियों पर बीएनएस की धारा 111, 318, 61(2) के तहत गिरफ्तारी की गई.

मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भी सोसाइटी द्वारा कई हजार करोड़ की ठगी सिंडिकेट बना कर की गई. ललितपुर के एसपी मोहम्मद मुश्ताक के मुताबिक, अभी तक 13 एफआईआर दर्ज की हैं. इस मामले में ललितपुर के मास्टरमाइंड रवि तिवारी और आलोक जैन को गिरफ्तार किया है. उन के खातों में जमा 54 लाख रुपए फ्रीज कराया गया है. ईडी भी इस मामले की जांच कर रही है. उत्तराखंड पुलिस भी 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है. दुबई के अबूधाबी में बैठे मास्टरमाइंड समीर अग्रवाल की गिरफ्तारी के लिए लुकआउट नोटिस भी जारी किया गया है.

शुरुआत में सागा ग्रुप ने अपना खूब प्रचारप्रसार करते हुए दावा किया कि उन की कंपनी विदेशों में सोने, कोयले की खदान, तेल कुआं और रियल एस्टेट का काम करती है. कंपनी का सीएमडी समीर अग्रवाल इतना शातिरदिमाग है कि उस ने पिछले 15 साल से अलगअलग नाम की कंपनी और सोसाइटियों के जरिए लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी को अंजाम दिया.

सब से पहले साल 2009 में एडवांटेज ट्रेड काम नाम से ग्वालियर में कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया. उस समय यह कंपनी टूर पैकेज बेचने का काम करती थी. इस में 7,500 रुपए एक ग्राहक से लिए जाते थे. टूर देश के ही अलगअलग हिस्सों में कराया जाता था. 3 साल के इस प्लान में यदि कोई ग्राहक टूर नहीं करता था तो उसे डबल रकम के तौर पर 15,000 रुपए भुगतान का लालच दिया जाता था.

साल 2012 में औप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का ग्वालियर में औफिस खोल लिया और इस कंपनी में एडवांटेज ट्रेड के ग्राहकों को मर्ज कर दिया गया. इस का हैड औफिस इंदौर में खोला गया. कंपनी तब बांड बेचती थी, इस में 5 साल में लोगों की रकम डबल करने का झांसा दे कर लाखों रुपए जमा कराए गए. साल 2016 में कंपनी बंद कर के समीर अग्रवाल ने कृषि मंत्रालय में अलगअलग नामों से 7 सोसाइटियां रजिस्टर्ड करा लीं. मध्य प्रदेश में श्री स्वामी विवेकानंद मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी (एसएसवी) ने औप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का स्थान लिया.

जब भोपाल में एसएसवी के खिलाफ शिकायतें और एफआईआर दर्ज होने पर सेबी ने इस के कामकाज पर रोक लगा दी तो साल 2019 में एसएसवी सोसाइटी बंद कर लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (एलजेसीसी) खोल ली. एमपी में इस सोसाइटी ने काम शुरू किया तो एसएसवी के सभी ग्राहकों को इस में मर्ज कर दिया गया, लेकिन सारा काम पुरानी सोसाइटी की तरह ही होता रहा. सागा ग्रुप ने एमपी में उन जगहों को टारगेट किया, जहां लोगों को सरकारी मुआवजे के तौर पर पैसा मिला था.

एमपी और यूपी के बुंदेलखंड रीजन में पिछले सालों में सरकार के कई बड़े प्रोजेक्ट आए थे. ललितपुर में 2012 में बजाज पावर प्लांट की स्थापना हुई, मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में बानसजारा बांध बना. सरकार ने लोगों की जमीनें अधिगृहीत कर उन्हें मुआवजा दिया. किसानों के पास आए इस पैसे पर सागा ग्रुप ने नजर जमा कर सोसाइटियों के जरिए यह पैसा अपनी स्कीम्स में निवेश करा लिया.

लोगों को प्रलोभन देने के लिए कंपनी ने तरहतरह की स्कीमें चला रखी थीं. इस काम के लिए कंपनी ने एजेंट बना रखे थे. कंपनी ने एजेंटों को भी लुभावने औफर दे कर अपने जाल में फंसा लिया था. कंपनी द्वारा चलाए गए मासिक पेंशन प्लान में 500 से 25 हजार का लगातार 78 महीने तक निवेश करने पर हर महीने 450 रुपए से ले कर 90 हजार रुपए देने का वादा किया गया. धन पेटी स्कीम में एक हजार से 25 हजार रुपए 78 महीने तक इनवैस्टमेंट करने पर 21 साल बाद 3.75 लाख से 93.80 लाख रुपए देने का औफर ग्राहकों को दिया गया था.

सोसाइटी एजुकेशन प्लान के अंतर्गत कहा गया था कि एक से 10 हजार रुपए 7 साल तक हर महीने जमा करने पर 14 साल 6 महीने बाद मैच्योरिटी होने पर 2.50 लाख से ले कर 25 लाख रुपए मिलेंगे. दिवाली औफर के नाम पर शुरू की गई योजना में हर महीने 200 रुपए 3 साल तक जमा करने पर मैच्योरिटी होने पर 9,440 रुपए देने को कहा गया. कंपनी स्कीमों के लिए पासबुक से ले कर बांड देती थी, जिस में पूरा ब्योरा दर्ज होता था.

शातिरों ने कैसे फैलाया ठगी का नेटवर्क

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में  सागा ग्रुप ने साल 2012-13 के बीच कुल 7 सोसाइटियों का रजिस्ट्रैशन कृषि मंत्रालय में कराया, इन में से 2 सोसाइटियों के दफ्तर मध्य प्रदेश में खोले गए. लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड का रजिस्ट्रेशन 24 जनवरी 2013 को हुआ, जिस में समीर अग्रवाल सीएमडी, अनुराग बंसल चेयरमैन, आर.के. शेट्टी वित्तीय सलाहकार, संजय मुदगिल ट्रेनर, सुतीक्ष्ण सक्सेना और पंकज अग्रवाल पार्टनर के तौर पर जुड़े. सागा ग्रुप ने सोसाइटी का रजिस्ट्रैशन लोन देने के लिए किया था.

कंपनी 2016 से बैंकिंग, क्रेडिट, एफडी, आरडी, एमआईएस, सुकन्या, धन पेटी, एजुकेशन प्लान, पेंशन प्लान, आयुष्मान जैसी स्कीम में देश के 6 राज्यों में 7 सोसाइटियों के जरिए लोगों से पैसा इनवेस्ट कराने लगी.  सोसाइटियों के रजिस्ट्रैशन के बाद देशभर में तहसील और ब्लौक स्तर पर एक हजार ब्रांच खोल कर करीब एक लाख एजेंट्स बनाए गए. कुछ को सैलरी पर रखा, बाकियों को इनवैस्टमेंट लाने पर 4 से 12 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता था. मध्य प्रदेश के 16 जिलों में 40 ब्रांच औफिस खोले गए. यूपी के ललितपुर समेत 22 जिलों में भी जगहजगह ब्रांच औफिस खोले गए.

ये सोसाइटी लुभावनी स्कीम लांच कर लोगों के पैसे जमा कराती थी, इन में मंथली इनकम सहित एफडी, आरडी, एमआईएस की रसीद दे कर मैच्योरिटी की तारीख तय कर देती थी. नकद लेनदेन पर ज्यादा जोर था. इस में प्रतिदिन के हिसाब से भी लोगों से पैसे जमा कराए जाते थे. सभी सातों सोसाइटियों में एक तरह के निवेश प्लान लांच किए गए थे, इन में एक साल से ले कर 21 साल तक के प्लान शामिल थे. एक हजार रुपए एक साल में जमा करने वाले को 1,172 रुपए दिए जाते थे. वहीं, 5 साल की एफडी पर यह रकम दोगुना करने का दावा करते थे.

इस के अलावा रोजाना और महीने के अनुसार आरडी का भी प्लान था. इस में 200 रुपए महीने जमा करने पर एक साल की मैच्योरिटी पर 2,560 रुपए मिलते थे. आरडी 200 से 5,000 रुपए के बीच कोई भी खोल सकता था, इस में भी एक साल से ले कर 7 साल तक का प्लान पेश किया गया था. लोगों को आकर्षित करने के लिए सागा ग्रुप ने वेबसाइट और ऐप बना रखे थे. सभी एजेंटों को ऐप के जरिए ही लोगों के पैसे जमा कराने होते थे. इस का लौगिन और पासवर्ड होता था. इस में ग्राहक की पौलिसी नंबर के आधार पर एजेंटों को उस की मैच्योरिटी देखने की सुविधा मिलती थी.

एजेंट जोडऩे का चेन सिस्टम था. एजेंट जो भी पैसे निवेश कराते थे, उस के ऊपर वाले एजेंट को भी उस में से कुछ प्रतिशत कमीशन मिलता था. ये चेन सिस्टम सीएमडी समीर अग्रवाल तक बना हुआ था. इसी ऐप में एजेंट्स का कमीशन भी आता था, जो पौइंट्स के रूप में दिखता था. इसे कैश करने का एक ही तरीका था कि उतनी राशि वो किसी ग्राहक से निवेश कराए और उसे खुद रख कर पौइंट के रूप में मिले कमीशन से उस का भुगतान कर दे. एजेंटों को उन के कमीशन पर सोसाइटी जीएसटी भी काटती थी.

एजेंटों को हर महीने ट्रेनिंग के लिए झांसी, सागर, लखनऊ, भोपाल आदि शहरों में बुलाया जाता था, जहां उन के रुकने से ले कर खानेपीने की सारी व्यवस्था सोसाइटी ही करती थी. समयसमय पर एजेंट को औनलाइन ट्रेनिंग कराई जाती थी. ट्रेनर के तौर पर संजय मूट्रिल जुड़ता था, वो एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मिलने वाले औफर्स को इतने लुभावने तरीके से पेश करता था कि एजेंट उसे पूरा करने के लिए जीजान लगा देते थे.

एलजेसीसी सहित सभी सोसाइटी अपने एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मुंबई, गोवा आदि शहरों के साथ बैंकाक, थाईलैंड और दुबई जैसे देशों की सैर भी कराती थी. देश के बड़ेबड़े शहरों जैसे मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नै आदि जगहों पर सेमिनार करती थी. इन में एजेंटों को सम्मानित किया जाता था. साथ ही टारगेट पूरा करने वाले एजेंट्स को बड़ी और महंगी गाडिय़ां गिफ्ट में दी जाती थीं. किसे कौन सी गाड़ी मिलेगी, यह उस के हर महीने के इनवैस्टमेंट पर डिपेंड करता था. न्यूनतम राशि के साथ कंपनी गाड़ी खरीद कर देती थी. बाकी पैसा बैंक से फाइनैंस कराया जाता था, जिस की किस्त एजेंट अपने टारगेट पूरे कर भरता था.

हाईकोर्ट तक कैसे पहुंचा ठगी का मामला

भोपाल की चिटफंड कंपनी सागा ग्रुप  और उस से जुड़ी सहकारी सोसाइटी में 10 हजार करोड़ की धोखाधड़ी, हजारों निवेशकों के साथ ठगी के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच में 2 सितंबर, 2024 को सुनवाई हुई. हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा एवं जस्टिस विनय सराफ की डबल बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार सहित संबंधितों को नोटिस जारी किया है. अदालत ने स्टेटस रिपोर्ट अगली सुनवाई से पहले कोर्ट में पेश करने के भी निर्देश दिए हैं.

याचिका में इस धोखाधड़ी की जांच निष्पक्ष एजेंसी या सीबीआई से कराने की मांग की गई थी. याचिका में डीजीपी, प्रमुख सचिव गृह विभाग, एसपी भोपाल, कोऔपरेटिव सोसाइटी और उन के पदाधिकारियों सहित अन्य को अनावेदक बनाया गया है. भोपाल के पिपलानी की तरह सागर के रहली थाने में 15 सितंबर, 2024 को पुष्पेंद्र राठौर ने अशोक राज, संजय मिश्रा और सुषमा मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. पुष्पेंद्र ने शिकायत में बताया था कि वह 2022 में कंपनी से एजेंट के तौर पर जुड़ा था. उस ने लोगों से 14 लाख रुपए जमा कराए थे. साल 2024 में 35 लोगों की मैच्योरिटी पूरी हुई तो उस ने भुगतान के लिए ब्रांच से संपर्क किया.

ब्रांच के लोग कुछ समय तक अलगअलग बहाने बनाते रहे. फिर कहा गया कि रहली की इस ब्रांच को मकरोनिया में मर्ज कर दिया गया है, वहां से भुगतान होगा. किसी तरह 5 लाख रुपए के लगभग भुगतान तो कर दिया  गया, लेकिन अभी 10 लाख रुपए का भुगतान नहीं किया गया है. इस मामले में बीएनएस की धारा में प्रकरण दर्ज कर रहली पुलिस ने इस मामले में 9 नवंबर, 2024 को ब्रांच मैनेजर अशोक राज को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद आरोपी की ओर से शिकायतकर्ता से समझौता कर लिया गया. शिकायतकर्ता पुष्पेंद्र राठौर ने बताया कि उस के द्वारा कराए गए निवेश की राशि लौटा दी गई है. इस की वजह से उस ने शिकायत वापस ले ली.

निवेशकों को चूना लगाने में उत्तर प्रदेश के एक जीजासाले की जोड़ी की अहम भूमिका रही है. आलोक की ममेरी बहन शैलजा बजाज से रवि तिवारी की शादी हुई थी. इस तरह से दोनों रिश्ते में जीजासाले लगते हैं. ललितपुर के रहने वाले आलोक जैन और रवि तिवारी दोनों ने एक साथ समीर अग्रवाल की कंपनी जौइन की थी. कंपनी से जुडऩे से पहले आलोक ललितपुर मंडी में जूट के बोरे बेचने का काम करता था. आलोक को समीर अग्रवाल ने यूपी और उत्तराखंड का हैड बनाया था. उस ने एमपी में कंपनी के ब्रांच औफिस खोलने में अहम भूमिका निभाई थी. आलोक ने अकेले समीर अग्रवाल की जेएलसीसी और यूएलसीसी सोसाइटियों में 1800 करोड़ रुपए का निवेश कराया था.

आलोक ने ललितपुर, भोपाल, इंदौर में काफी प्रौपर्टी बनाई है. ललितपुर में वह कई कालोनियों में पार्टनर भी है. उस ने हैदराबाद में भी प्रौपर्टी खरीदी है. ललितपुर पुलिस के मुताबिक आलोक जैन के पास 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है. उत्तर प्रदेश के ललितपुर के रहने वाले रवि तिवारी के पिता तिलकराम होमगार्ड जवान थे. 3 भाइयों में सब से बड़ा रवि साल 2008-09 में पिता के साथ ललितपुर में चाट फुलकी का ठेला लगाता था. साल 2009 में समीर अग्रवाल ने झांसी में एडवांटेज ट्रेड काम कंपनी का एक कार्यक्रम आयोजित किया था. रवि अपने रिश्तेदार आलोक के साथ इस कार्यक्रम में पहुंचा था. दोनों ने बतौर एजेंट एडवांटेज ट्रेड काम कंपनी जौइन की. उस समय दोनों की उम्र मुश्किल से 17-18 साल रही होगी.

दोनों ने बेहद कम समय में कंपनी को करोड़ों का इनवैस्टमेंट दिलाया तो सीएमडी समीर अग्रवाल के चहेते बन गए. समीर ने उन के काम से खुश हो कर आलोक को यूपी और उत्तराखंड का, जबकि रवि को एमपी का हैड बना दिया. रवि तिवारी ने निवेशकों की जमा रकम से भोपाल, इंदौर, ललितपुर, टीकमगढ़, झांसी में कई प्लौट, खेती की जमीन, फार्महाउस बनाए हैं. उस का परिवार भोपाल के अयोध्या बाइपास के पास नीत ग्रीन कालोनी में रहता है. करोद में उस ने पिता तिलकराम के नाम से एक होटल एंड रेस्टोरेंट खोला है. इस होटल में वह कई रसूखदार लोगों को बुलाता है और सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करता है.

रवि तिवारी के जरिए एलजेसीसी कंपनी में 600 करोड़ रुपए का इनवैस्टमेंट हुआ था. ललितपुर में पीडि़तों की शिकायत के बाद पुलिस ने रवि और उस के भाई विनोद को अगस्त 2024 में गिरफ्तार कर लिया और दोनों फिलहाल ललितपुर जेल में हैं.

और भी अनेक लोग हैं इस गिरोह में शामिल

लोगों की मेहनत की कमाई डकारने वाली इस सोसायटी में समीर अग्रवाल, रवि तिवारी, आलोक जैन के अलावा अंगद कुशवाहा, सुबोध रावत और सुतीक्ष्ण सक्सेना जैसे लोगों का रोल भी रहा है. टीकमगढ़ पुलिस 50 करोड़ रुपए की आसामी सुबोध रावत को गिरफ्तार कर चुकी है. रावत ने पुलिस को अपने बयान में बताया कि 2012 में उस की मुलाकात ललितपुर में अजय तिवारी से हुई थी. तब आप्शन वन नाम से कंपनी का संचालन किया जा रहा था इस के मालिक समीर व पंकज अग्रवाल थे.

अजय के माध्यम से उस की मुलाकात ललितपुर में आलोक जैन, रवि तिवारी और सुरेंद्र पाल सिंह से हुई. उन के कहने पर वह इस कंपनी से जुड़ा. वह निवेशकों के पैसे आलोक, रवि व सुरेंद्रपाल को भेजता था. इस के बाद इस रकम को झांसी चेस्ट में भेज दिया जाता था, वहां से यह रकम हवाला के जरिए समीर के पास विदेश भेजी जाती थी. साल 2020 में जब समीर अग्रवाल की श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी बंद हुई तो सुतीक्ष्ण सक्सेना की पार्टनरशिप में एलजेसीसी सोसाइटी शुरू की गई. सुतीक्ष्ण ने इनवेस्टर्स के पैसों से टीकमगढ़ में 26 लाख रुपए में 2 हजार वर्गफीट का प्लौट, 900 वर्गफीट का एक डुप्लैक्स भी खरीदा था.

भोपाल के अयोध्या बाइपास पर 50 लाख रुपए में 2 हजार वर्गफीट जमीन, रायसेन-भोपाल रोड पर 4 लाख रुपए में 1200 वर्गफीट के प्लौट के अलावा उस के पास 16 लाख रुपए कीमत की एसयूवी है. उस के एक्सिस बैंक अकाउंट में 50 हजार रुपए जमा मिला. पत्नी प्रीति के नाम पर उस ने एलजेसीसी सोसाइटी में 50 लाख रुपए का इनवैस्टमेंट भी किया है. ठगी के इस कारोबार में शामिल अंगद कुशवाहा मध्य प्रदेश के गंजबासौदा का रहने वाला था, जो मंडी में हम्माल का काम करता था. साल 2015-16 में वह समीर अग्रवाल की कंपनी एसएसवी (श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी) से एजेंट बन कर जुड़ा था. जब भोपाल के पिपलानी थाने में एसएसवी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई तो समीर अग्रवाल ने इसे बंद कर एलजेसीसी सोसाइटी शुरू कर दी थी

अंगद को एलजेसीसी में गंजबासौदा ब्रांच का हैड बना दिया गया. लोगों द्वारा जमा किए गए रुपयों से अंगद ने प्रौपर्टी खरीदी, बाद में वह भोपाल में प्लौट काटने का काम करने लगा. गंजबासौदा पुलिस को अंगद के खिलाफ 25 से ज्यादा शिकायतें मिलीं. कंपनी का दफ्तर बंद होने के बाद से वह फरार है. एलजेसीसी कंपनी ने गंजबासौदा में सुनील जैन की ही बिल्डिंग में 15 हजार रुपए महीने के किराए पर औफिस खोला था. अब कंपनी भाग गई है. लोग अभी भी यहां पैसा लेने आते हैं. मैनेजर अंगद कुशवाहा भी फरार है.

टीकमगढ़ का रहने वाला सूरज रैकवार एलजेसीसी में कैशियर के तौर पर काम करता था. उसे हर महीने 12 हजार रुपए सैलरी थी, लेकिन वह लग्जरी लाइफ जीता था और उस के पास करीब 20 करोड़ की प्रौपर्टी है. उस की भोपाल में 5-5 हजार वर्गफीट के 2 प्लौट, बानपुर में 10 एकड़ खेती की जमीन, टीकमगढ़ के सुभाषपुरा में 2 प्लौट, 7 दुकानें हैं. इस के अलावा वह 4 गाडिय़ों का मालिक है. उस ने टीकमगढ़ में जो आलीशान मकान बनाया है, उस की कीमत ही 5 करोड़ रुपए है. मकान में विदेशी मार्बल लगा हुआ है. कथा लिखे जाने तक सूरज रैकवार फरार था और उस पर पुलिस ने 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर रखा है.

एलजेसीसी की ओर से मुंबई, हैदराबाद, गोवा, लखनऊ, झांसी, भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में कार्यक्रम कराए जाते थे. इस में कंपनी की ग्रोथ और एजेंट्स की लग्जरी लाइफ को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जाता था. जेएलसीसी कंपनी के कार्यक्रमों में फिल्मी ऐक्टर श्रेयस तलपड़े से ले कर सुखविंदर सिंह जैसे नामी गायक को बुलाया जाता था. ऐसे कार्यक्रमों के जरिए भीड़ इकट्ठी हो जाती थी और कंपनी अपनी स्कीम का प्रमोशन करती थी. इस वजह से लोग आसानी से कंपनी पर भरोसा करने लगते थे.

ललितपुर पुलिस ने ऐक्टर श्रेयस तलपड़े को भी एक एफआईआर में आरोपी बनाया है. एसपी (ललितपुर) मोहम्मद मुश्ताक के  मुताबिक फिल्मी ऐक्टर ने लोगों को कंपनी में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया था, इस कारण उसे भी आरोपी बनाया गया है और  उस के मुंबई पते पर नोटिस भेजा गया है. बताया जा रहा है कि समीर अग्रवाल  ने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल एक छोटे से देश सेंट क्रिस्टोफर और नेविस की नागरिकता ले ली है. इस देश का उस का नया पासपोर्ट भी बन चुका है, उस की पत्नी, मम्मी और दोनों बेटियां नवी मुंबई में रहते हैं. कुछ लोग बताते हैं कि दिखावे के तौर पर उस ने पत्नी से तलाक लिया है. पिछले 16 सालों में समीर ने सागा ग्रुप के जरिए करोड़ों रुपए कमाए हैं.

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के टेंट्रा गांव का रहने वाला समीर का परिवार 2 पीढ़ी पहले इंदौर शिफ्ट हो गया था. समीर के पिता राजेंद्र अग्रवाल एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, समीर उन का इकलौता बेटा है. कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, यही हाल समीर अग्रवाल का रहा है. साल 2008 में उस ने ग्रैजुएशन किया, पढ़ाई के दौरान ही वह मुंबई से औपरेट होने वाले मटका सट्टा से जुड़ा और इंदौर में उस का बुकी बन गया. उस समय चिटफंड कंपनियों की देश में बाढ़ सी आई हुई थी तो समीर ने भी 2009 में पहली चिटफंड कंपनी खोली और उस के बाद से लगातार फरजी कंपनियां बना कर लोगों से पैसा ऐंठता रहा.

दुबई में छिपा है ठगों का सरगना

साल 2012 के बाद समीर इंदौर छोड़ कर नवी मुंबई शिफ्ट हो गया. समीर ने 2012 में ‘आप्शन वन’ नामक कंपनी शुरू की लेकिन, 2016 में सरकारी काररवाई का अंदेशा होते ही 2016 में इस का नाम बदल कर ‘श्री स्वामी विवेकानंद’ कर दिया. 2014 में देश में भाजपा की सरकार बन चुकी थी और हिंदुत्व का राग अलाप रहे लोगों को हिंदू संगठनों से जोडऩे के मकसद से समीर ने इस नाम का उपयोग किया था. समीर अग्रवाल सागा ग्रुप की सालगिरह पर आलीशान होटल में भव्य कार्यक्रम का आयोजन करता था. 2018 में सागा ग्रुप की 10वीं सालगिरह पर भी उस ने कार्यक्रम का आयोजन किया,

जिस में फिल्मी सितारों को भी बुलाया था. सागा ग्रुप की सातों सोसाइटियों की लुभावनी स्कीम्स को देख कर लोग निवेश कर रहे थे. साल 2019 में उसे पहला झटका तब लगा जब उस की एक सोसाइटी श्री स्वामी विवेकानंद मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के कामकाज पर सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया) ने रोक लगा दी. इसी के बाद समीर अग्रवाल मुंबई से दुबई शिफ्ट हो गया.

2020 में भोपाल के पिपलानी थाने में इसी सोसाइटी के खिलाफ अंकित मालवीय ने शिकायत दर्ज कर दी. पुलिस ने समीर अग्रवाल समेत सोसाइटी अध्यक्ष चंदन गुप्ता, आर.के. शेट्टी, एमपी हेड रविशंकर तिवारी उस के भाई विनोद तिवारी और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की और पुलिस ने विनोद तिवारी, शशांक श्रीवास्तव और अंगद कुशवाहा को गिरफ्तार कर लिया. इस काररवाई के बाद श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी की सभी ब्रांचों पर ताला लगा दिया था.

मध्य प्रदेश समेत 10 राज्यों में 10 हजार करोड़ रुपए ठगने वाले समीर अग्रवाल ने इस रकम को अबुधाबी में रियल एस्टेट में निवेश किया है. इसी के बदौलत उस ने 28 नवंबर 2023 को संयुक्त अरब अमीरात की नागरिकता भी ली है. जानकारों के मुताबिक अमीरात एक टैक्स हैवन कंट्री है यानी करदाताओं के लिए स्वर्ग है. यहां इनकम पर कोई टैक्स नहीं लगता साथ ही कमाई और निवेश को ले कर ज्यादा पूछताछ नहीं होती है.

यूएई ने उसे एक साल के लिए नागरिकता दी थी. 27 नवंबर, 2024 को इस की वैधता खत्म हो चुकी है. जानकारों के मुताबिक यूएई की नागरिकता नियम की पहली शर्त है कि वह किसी को भी दोहरी नागरिकता नहीं दे सकता है. एक देश की नागरिकता छोडऩे के बाद ही कोई व्यक्ति वहां की नागरिकता ले सकता है. समीर ने नागरिकता हासिल करने के लिए या तो दस्तावेजों में फरजीवाड़ा किया होगा या फिर किसी और तरीके से नागरिकता हासिल की होगी. यह भी पता चला है कि वहां उस ने दुबई के एक शेख के पार्टनरशिप में हाई एंड सिटी मैनेजमेंट सर्विस एलएलसी नाम की कंपनी बनाई है.

सीएमडी समीर अग्रवाल की गिरफ्तारी पर एमपी और यूपी पुलिस ने 50-50 हजार रुपए इनाम घोषित किया है. सीबीआई ने भी उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है. मध्य प्रदेश समेत 10 राज्यों में सागा ग्रुप द्वारा लाखों लोगों के साथ करोड़ों रुपए की ठगी हो गई और सरकारी नुमाइंदे घोड़े बेच कर सोते रहे. सागा ग्रुप की एफआईआर रफादफा करवाने के बाद भोपाल के एक समाजसेवी सौरभ गुप्ता की ओर से साल 2021 में एक जनहित याचिका दायर की गई.

हाईकोर्ट ने एफआईआर निरस्त करने पर पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए थे. याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में बताया गया कि कंपनी पर काररवाई नहीं हुई तो देश भर के लाखों निवेशकों का पैसा डूब जाएगा. हाईकोर्ट ने भारत सरकार और प्रदेश सरकार से सागा ग्रुप कंपनी के लोगों के बारे में जानकारी मांगी और कहा कि इतना बड़ा फरजीवाड़ा अंजाम दिया गया, सरकारें क्या कर रही थीं?

कोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील रविंद्र गुप्ता बताते हैं कि 8 नवंबर 2021 को राज्य के महाधिवक्ता ने जवाब देने के लिए समय मांगा था, परंतु साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है, लेकिन जवाब अब तक पेश नहीं किया. इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में हुई थी. अभी मामला न्यायालय में चल रहा है. MP News

 

 

Hindi Crime Story : हनीमून में बीवी लाई मौत

Hindi Crime Story : 21 वर्षीय राज कुशवाहा इंदौर में स्थित सोनम रघुवंशी (24 वर्ष) के भाई की प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी करता था. वहीं पर सोनम को राज कुशवाहा से प्यार हो गया. दोनों ने जीवन भर साथ रहने का वादा कर लिया. इसी दौरान फेमिली वालों ने सोनम की शादी राजा रघुवंशी से कर दी. फिर प्रेमी राज कुशवाहा के साथ मिल कर सोनम ने हनीमून के बहाने पति राजा रघुवंशी को ठिकाने लगाने की ऐसी योजना बनाई, जिस की गूंज पूरे देश में फैल गई.

सोनम रघुवंशी नहीं चाहती थी कि उस की शादी उस के प्रेमी राज कुशवाहा के अलावा किसी और के साथ हो, लेकिन उस के न चाहते हुए भी पेरेंट्स ने उस की शादी राजा रघुवंशी के साथ तय कर दी थी. शादी तय हो जाने के बाद वह बहुत परेशान थी, क्योंकि तनमन से वह प्रेमी राज की थी. इसलिए वह ताउम्र उसी के साथ रहना चाहती थी. उस ने प्रेमी को फोन कर कहा, ”राज, पापा ने मेरी शादी तय कर दी है. और मालूम है शादी की तारीख क्या है, 11 मई 2025.’’

”शादी से क्या होता है सोनम, कागज के एक टुकड़े और कुछ मंत्र पढ़ देने से कोई रिश्ता नहीं बनता.’’ राज ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.

”राज, मैं किसी और की नहीं हो सकती. मैं सिर्फ तुम्हारी हूं और अगर तुम ने मुझे नहीं अपनाया तो मैं सच कह रही हूं, मैं मर जाऊंगी. आज वो जो लड़का मुझे देखने आया था राजा रघुवंशी, वो मुझे देख कर मुसकरा रहा था. जिसे देख कर मेरे अंदर ऐसी आग लग रही थी कि एक घूंसा मार कर उस की वो मुसकान वहीं दबा दूं. पर पापा वहीं थे, इसलिए कुछ कर नहीं पाई. लेकिन मेरी बात ध्यान से सुन लो राज, अगर तुम ने मेरा साथ नहीं दिया तो मैं दुनिया में ऐसा तूफान ला दूंगी कि लोग मेरे नाम से भी डरेंगे. मैं सब कुछ जला दूंगी खुद को, इस दुनिया को और हर रिश्ते को.’’

”तुम मेरी थी, मेरी हो और मेरी ही रहोगी सोनम,’’ राज ने कहा.

”मैं सिर्फ तुम्हारे लिए बनी हूं राज, किसी और के लिए नहीं.’’

”चिंता मत करो और विश्वास रखो सोनम, अगर उस की परछाई भी तुम्हें छुएगी तो मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

”मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी हूं, पापा हार्ट के पेशेंट हैं. मैं ऐसा कोई भी कदम नहीं उठा सकती, जिस का उन की सेहत पर असर हो. घर से भाग कर कहीं और जा कर रहने का खयाल तो दिल से निकाल दो.’’

”फिर तुम ही कुछ बताओ कि क्या किया जाए?’’

”मेरा आइडिया यह है कि मेरी कदकाठी की कोई लड़की तलाश की जाए. उस की हत्या कर के जला दिया जाए. मेरी स्कूटी में भी वहीं आग लगा दी जाए. यह काम किसी ऐसी सुनसान जगह पर किया जाए, जिस से कि कोई देख न सके. तब यह साबित हो जाएगा कि सोनम मर गई. फिर हम दोनों किसी और शहर में जा कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.’’

सोनम ने कहा कि घरों में काम करने वाली किसी लड़की की तलाश आसानी से हो सकती है. लेकिन काफी तलाश के बाद भी घर में साफसफाई चौकाबरतन करने के लिए ऐसी कोई लड़की हाथ नहीं लगी, जिस की कदकाठी सोनम जैसी हो. इस से राज ने राहत की सांस ली. इस की वजह यह थी कि इस से राज और उस के परिवार की जिंदगी ही तबाह हो जाती. घर में आर्थिक साधन जुटाने के लिए वह अकेला ही था. घर का खर्च उस के वेतन में मुश्किल से चल पाता था. सोनम अगर अपने घर वालों के लिए मर गई होती तो नई परेशानी ही खड़ी हो जाती. यदि वह घर से 30 या 40 लाख रुपए ले कर भी आ जाती तो भी कब तक उस से गुजारा होता.

सेफ गेम खेलना चाहता था राज कुशवाहा

दूसरी जगह दोनों को नौकरी मिलना भी आसान नहीं था. कोई बिजनैस करने के लिए बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता. इस तरह राज भी अपने परिवार के लिए एक तरह से मर ही चुका होता. राज कुशवाहा ने सोनम को समझाया कि इस तरह की दुर्घटना से तुम्हारे पापा तुम्हारी मौत का सदमा शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. अगर हार्टअटैक से बच भी जाएं तो जीते जी भी उन की मौत हो जाएगी. उस की पहली योजना घर से भागने की भी मेरी समझ से परे थी, क्योंकि उस का अंजाम भी वही होता. आर्थिक संकट से राज का परिवार ही नहीं, बल्कि राज और सोनम भी जूझ रहे होते.

यह सोच कर राज ने उस की दोनों ही योजनाओं को फेल करने में पूरा दिमाग लगा दिया. वह चाहता था कि सोनम से शादी कर के फैक्ट्री का मालिक बन जाएगा, जिस में अब तक नौकरी करता था. वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता था, जिस से कि सोने के अंडे देती मुरगी उस के हाथ से निकल जाए.

सोनम की शादी की तारीख करीब आ चुकी थी. उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. सोनम की चिंता दूर करने के लिए राज ने एक ऐसा प्लान तैयार किया, जिसे सुन कर सोनम खुशी से उछल पड़ी. उस ने कहा, ”इस का मतलब यह है कि मैं विधवा हो जाऊंगी और बिरादरी का कोई व्यक्ति विधवा से शादी करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगा. फिर विधवा से शादी किसी और बिरादरी के युवक से करने के लिए मेरे पापा भी राजी हो जाएंगे. यानी हम दोनों पतिपत्नी के रूप में जिंदगी बिता कर अपने सपनों को साकार कर सकेंगे. बहुत बढिय़ा.’’

”लेकिन एक वादा करो,’’ राज ने कहा.

”क्या?’’

”शादी के बाद उस दुष्ट को सुहागरात की रस्म अदा करने नहीं दोगी.’’

”इस का मतलब यह कि मुझे सुहागन बनते ही यानी सुहागरात मनाने से पहले विधवा करना चाहते हो.’’ सोनम ने मुसकराते हुए कहा, ”यह पक्का वादा है, मुझे चाहे जो भी जतन करना पड़े, मैं उसे सुहागरात को हाथ नहीं लगाने दूंगी.’’

इंदौर मध्य प्रदेश का सब से बड़ा और सब से व्यस्त शहर है. यह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और व्यावसायिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. यह शहर एक तरफ अपने गौरवशाली अतीत की गवाही देता है तो दूसरी ओर आधुनिकता और प्रगति का प्रतीक भी है. इस शहर का नाम इंद्रेश्वर महादेव मंदिर से लिया गया है, जो अब भी शहर के मध्य में स्थित है.

राजवाड़ा, इंदौर की 7 मंजिला ऐतिहासिक इमारत मराठा, मुगल और फ्रांसीसी वास्तुकला का अद्भुत संगम है. यह शहर के दिल में स्थित है. यह महल होलकर शासकों की विलासिता और कलात्मक रुचि का प्रतीक है. यूरोपीय शैली में बना यह महल अपने भव्य फरनीचर, दीवारों पर सुंदर चित्रों और विशाल गार्डन के लिए प्रसिद्ध है. इंदौर केवल एक शहर नहीं, बल्कि अनुभवों का संगम है, जहां इतिहास बोलता है, स्वाद महकता है, शिक्षा ऊंचाइयां छूती है और स्वच्छता संस्कृति बन जाती है.

इतनी खूबियों वाले इसी शहर में देवी सिंह नाम के एक व्यक्ति निवास करते हैं. उन का एक बेटा गोविंद रघुवंशी और बेटी सोनम रघुवंशी है. उन की पत्नी संगीता रघुवंशी घरेलू काम संभालती हैं. दरअसल, सोनम रघुवंशी का मूल निवास गुना जिला है. सोनम अपने भाई गोविंद से उम्र में छोटी है. गोविंद की शादी करीब 8 साल पहले विदिशा से हुई थी और उस के 2 बच्चे हैं. सोनम का परिवार पिछले कुछ सालों से इंदौर में रह रहा है. बताया जाता है कि उन्होंने गुना से इंदौर आने का फैसला उस वक्त लिया, जब गोविंद ने व्यापार में कदम रखा. शुरुआत में गोविंद एक निजी कंपनी में नौकरी करता था. लेकिन साल 2020 के आसपास उस ने माइका (सनमाइका) के व्यापार में कदम रखा और खुद की कंपनी खड़ी की.

शुरुआत में गोविंद केवल तैयार माल खरीद कर बेचने का काम करता था, लेकिन बाद में उस ने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने का फैसला लिया. अब उस की एक माइका मैन्युफैक्चरिंग यूनिट गुजरात में स्थापित है, जहां से वह माल तैयार कर विभिन्न शहरों में सप्लाई करता है. सोनम के परिवार का बिजनैस अग्रणी कारोबार में से एक था. परिवार की इंदौर में एक सनमाइका बनाने की यूनिट है. देवी सिंह को पैरालाइसिस का अटैक हुआ था, जिस के कारण वह फैक्ट्री में सक्रिय भूमिका नहीं निभा पाते. सोनम रघुवंशी और गोविंद रघुवंशी दोनों भाईबहन मिल कर कारोबार संभालते हैं. सोनम अपने ही पिता की कंपनी में बतौर एचआर काम करती थी.

इसी शहर में अशोक रघुवंशी का एक परिवार है. इन के 3 बेटे और एक बेटी है. एक बेटे का नाम सचिन रघुवंशी, दूसरे का विपिन रघुवंशी, तीसरा सब से छोटा 28 वर्षीय बेटा राजा रघुवंशी और बेटी सृष्टि है. उन का ट्रांसपोर्ट का प्रमुख व्यवसाय है. राजा रघुवंशी व 2 बड़े भाई सचिन और विपिन भी संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं.  ‘रघुवंशी ट्रांसपोर्ट’ नामक कंपनी परिवार के सभी लोग 2007 से संयुक्त रूप से चलाते थे. इस कंपनी का मुख्य काम स्कूलों और कोचिंग संस्थानों को किराए पर बसें उपलब्ध कराना है. सोनम रघुवंशी और राजा रघुवंशी दोनों के परिवार का आपस में कोई रिश्ता नहीं था. इन में से कोई एकदूसरे को जानता तक नहीं था. दोनों परिवारों की मुलाकात बहुत ही रोचक तरीके से हुई.

पहली अक्तूबर, 2024 को हर साल की तरह रामनवमी के दिन रघुवंशी समाज का सामूहिक भंडारा आयोजित हुआ था. यह कार्यक्रम इंदौर के रघुवंशी बिरादरी के लिए अपनेअपने बच्चे के लिए अपने ही समाज में लड़का और लड़की के विवाह के लिए रिश्ता तलाशने का एक बेहतरीन माध्यम है.

सामाजिक रीतिरिवाज से हुई शादी

रघुवंशी समाज के लोग रामनवमी के दिन एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और यहां पर अपनेअपने बच्चों की जानकारी एक परची में लिख कर रख दिया करते हैं. इस में लड़के या लड़की का नाम, उम्र, पढ़ाई और काम के बारे में जानकारी लिखी होती है. एक तरह से इसे बायोडाटा कहा जा सकता है. रघुवंशी संस्थान बायोडाटा के आधार पर रजिस्ट्रैशन कर लेता है. इस डाटा को व्यवस्थित कर के रघुवंशी समाज की एक पत्रिका जारी की जाती है, जिस में रघुवंशी परिवारों द्वारा रजिस्ट्रैशन में दी गई जानकारी को प्रकाशित किया जाता है. इस पत्रिका में जिसे लड़की की तलाश है तो वो लड़की का बायोडाटा देखता है और जिसे लड़के की तलाश है, वो लड़के का.

यहां सोनम और राजा रघुवंशी के परिवार के लोगों ने भी इन दोनों का रजिस्ट्रैशन कराया था. यहीं से ही इन दोनों का परिवार आपस में मिला. दोनों के परिवार वालों को सब सही लगा. दोनों ही मांगलिक थे. कुंडली भी मिल गई, इसलिए बात शादी तक जा पहुंची. राजा रघुवंशी का एक संपन्न परिवार है. घर में सब से छोटा होने के कारण राजा रघुवंशी की शादी का सब को बहुत अरमान था. शादी समारोह को भव्य बनाने के लिए काफी तैयारी की गई. जम कर पैसा खर्च किया गया.

उधर सोनम का परिवार राजा की टक्कर का परिवार था. सोनम की शादी के भी उस के परिवारजनों को बहुत अरमान थे, लेकिन खर्च करने में काफी कंजूसी की गई और वह उत्साह सोनम की शादी में नजर नहीं आया, जिस की अपेक्षाएं की जा रही थीं. बहरहाल, 11 मई को एक भव्य शादी समारोह हुआ. सात फेरे हुए. सभी सामाजिक और धार्मिक रस्में पूरी की गईं. 12 मई, 2025 को सोनम दुलहन बन कर राजा रघुवंशी के घर आ गई. दोनों परिवार और पतिपत्नी सभी खुश थे. किसी तरह का कोई भी विवाद नहीं था. राजा रघुवंशी की ओर से दहेज की कोई मांग की ही नहीं गई थी.

सोनम 4 दिन ससुराल में रहने के बाद मायके चली गई. मायके से ही सोनम रघुवंशी ने हनीमून का कार्यक्रम भी अचानक बना लिया. सोनम ने अपने पति राजा रघुवंशी को इस बात के लिए राजी किया कि शारीरिक संबंधों के जरिए शादी को परिपूर्ण करने से पहले उन्हें कामाख्या देवी मंदिर में पूजाअर्चना करनी चाहिए. पहले तय हुआ कि दोनों असम के कामाख्या देवी मंदिर जाएंगे. फिर वहीं से कश्मीर के लिए निकल जाएंगे. सोनम अपने मातापिता के घर से सीधे एयरपोर्ट गई, जबकि राजा रघुवंशी अपने घर से 10 लाख रुपए से अधिक के गहने पहन कर निकला था. इस में एक हीरे की अंगूठी, एक चेन और एक ब्रेसलेट शामिल था.

दोनों 20 मई को पहले असम के कामाख्या देवी मंदिर पहुंचे. यह असम के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है. कामाख्या मंदिर से उन्होंने कश्मीर की जगह मेघालय जाने का प्रोग्राम बनाया. 20 मई, 2025 को ही दोनों मेघालय पहुंचे. 21 मई को राजा और सोनम रघुवंशी शिलांग पहुंचे थे और एक होमस्टे में रुके थे. 22 मई को उन्होंने एक स्कूटी किराए पर ली और सोहरारिम चले गए. शाम तक वे मावलखियात पहुंचे और एक गाइड लिया. गाइड की मदद से वे शिप्रा होमस्टे में रुके. इस के बाद गाइड को उन्होंने छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 23 मई को सोनम और राजा रघुवंशी से उन के फेमिली वालों का कांटेक्ट बंद हो गया. दोनों के परिजन चिंतित हो गए और उन के लापता होने की खबरें आम हो गईं. सोनम का भाई गोविंद रघुवंशी और राजा का भाई विपिन रघुवंशी लापता पतिपत्नी की तलाश करने मेघालय पहुंचे. उन्होंने शिलांग की पुलिस से कांटेक्ट किया. उम्मीद के मुताबिक रिस्पौंस न मिलने पर दोनों वापस इंदौर लौट आए. इंदौर के एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया से शिकायत की और बात मुख्यमंत्री तक भी पहुंच गई. यहां की सरकार ने मेघालय की सरकार से संपर्क साधा. इस बीच मामला बहुत तूल पड़ चुका था.

मेघालय सरकार की बदनामी होने लगी. यहां की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत पर्यटकों से है. इस घटना से पर्यटकों में दहशत का माहौल हो गया. पर्यटक देर शाम अपने होटल के कमरों से निकलने में डरने लगे. अफवाह यह थी कि कपल का अपहरण कर के बांग्लादेश ले जाया गया है और उन के सारे पैसे और ज्वैलरी लूट ली गई है. मध्य प्रदेश सरकार ने तो केंद्र सरकार को पत्र लिख कर मामले की सीबीआई जांच करने की सिफारिश भी कर दी. 2 जून, 2025 को फिर राजा रघुवंशी का शव वेईसावडांग झरने के पास गहरी खाई में मिला. शव बुरी तरह सड़ चुका था. राजा के भाई विपिन ने ही शव की पहचान की. वह भी उन के हाथ पर बने ‘राजा’ टैटू से. लेकिन सोनम नहीं मिली.

शुरुआत में लगा कि दोनों का एक्सीडेंट हुआ होगा, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि राजा की हत्या धारदार हथियार से की गई थी. इंदौर शहर के हर घर में इस घटना को ले कर अफसोस जताया जा रहा था, सब लोग सोनम के जिंदा मिल जाने की कामना कर रहे थे. मेघालय पुलिस सोनम को बरामद करने और मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए औपरेशन चला रही थी, जिस का नाम ‘औपरेशन हनीमून’ रखा गया. मेघालय सरकार ने एसआईटी गठित कर पुलिस की कई टीमें मामले का राज फाश करने के लिए लगा दीं.

पुलिस को जांच में पता चला कि 22 मई को राजा और सोनम शिलांग के मावलखियात गांव पहुंचे और वहां से नोंग्रियाट गांव में मशहूर ‘लिविंग रूट ब्रिज’ देखने गए. दोनों ने रात एक होमस्टे में बिताई. 23 मई की सुबह 6 बजे दोनों होटल से बाहर निकल आए. किराए की स्कूटी पर सैर के लिए निकले. इस के बाद दोनों रहस्यमय ढंग से लापता हो गए.

टूर गाइडों से मिली खास जानकारी

24 मई की रात को उन की स्कूटी ओसारा हिल्स की पार्किंग में लावारिस हालत में मिली, जो होमस्टे से 25 किलोमीटर दूर थी. 28 मई को जंगल में 2 बैग मिले. मावलाखियात से नोंग्रियात तक की यात्रा पर उन्हें ले जाने वाले गाइड भकुपर वानशाई थे. पुलिस को उन से महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ लगे. गाइड ने पुलिस को बताया कि कपल ने 22 मई को फोन किया. उस समय शाम के करीब साढ़े 3 बजे थे, लेकिन मैं ने मना नहीं किया और उन्हें नोंग्रियात तक गाइड करने का फैसला किया. उन्हें शिपारा होमस्टे पर छोडऩे के बाद हम वहां से निकल पड़े.

एक अन्य गाइड अल्बर्ट पीडी भी उन के साथ थे. गाइड ने यह भी बताया कि 3 व्यक्ति इस कपल के साथ और थे. वे तीनों हिंदी में बात कर रहे थे. वह हिंदी कम जानता है, इसलिए समझ नहीं पाया. वानशाई ने कहा कि हम ने अगले दिन (23 मई) के लिए अपनी सेवा की पेशकश की, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें रास्ता पता है. वानशाई ने अपने पुलिस बयान में कहा कि सोनम ने उन से ज्यादातर बातचीत अंगरेजी में की. केस को खोलने के लिए पुलिस पर बहुत दबाव था, पुलिस की टीमें अपना काम कर रही थीं. वह हत्यारों तक पहुंच गई थी. हत्या के 3 आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया था. इस से पहले 8 मई की रात करीब 11 बजे मेघालय पुलिस पूरे लावलश्कर के साथ कोतवाली महरौनी के ग्राम चौकी पहुंची थी.

यहां राजा रघुवंशी हत्याकांड का आरोपी आकाश कमरे में सोते हुए मिला था. मेघालय पुलिस ने आकाश से पूछा कि सोनम रघुवंशी कहां है? उसे कहां छिपाया है. आकाश ने सोनम के बारे में कोई जानकारी होने से मना कर दिया था. तब परिजनों से सोनम के बारे में पूछताछ की. उन्होंने भी इंकार कर दिया था.  आकाश राजपूत (19 वर्ष) और उस के परिजन के इंकार करने के बाद भी मेघालय और जनपद की पुलिस ने मकान का चप्पाचप्पा छाना. यहां तक कि मकान के टपरे में रखे भूसे के ढेर के अंदर तक सोनम को तलाशा था.

पुलिस की यह काररवाई करीब एक घंटे तक चलती रही. जब पुलिस को यकीन हुआ कि सोनम यहां नहीं है, तब वह आकाश राजपूत और उस के 3 साथियों को अपने साथ ले गई थी. मध्य प्रदेश की पुलिस के सहयोग से मेघालय पुलिस ने इस हत्या में शामिल 3 हमलावरों आकाश राजपूत (19 वर्ष) के बाद विशाल सिंह चौहान (22 वर्ष) और राज सिंह कुशवाह (21 वर्ष) को भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद ही नाटकीय ढंग से सोनम ने सरेंडर किया. आधी रात के बाद सोनम उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में स्थित काशी चाय जायका होटल पर पहुंची. यह होटल रात भर खुलता है.

गाजीपुर के नंदगंज थाने के अंतर्गत आता है. होटल संचालक साहिल यादव उस समय मौजूद थे. साहिल यादव से उस ने मोबाइल मांगा. अपने भाई को फोन मिलाया, लेकिन रोती रही बात नहीं कर पाई. साहिल यादव ने सोनम के भाई गोविंद से बात की, उस ने इस होटल का पता बताया. आधे घंटे के भीतर नंदगंज थाना पुलिस वहां पहुंच गई. सोनम को हिरासत में ले लिया गया. मध्य प्रदेश और मेघालय पुलिस को इस की सूचना दी गई. सोनम ने दावा किया कि उसे अगवा करने के बाद उस के साथ क्या हुआ, इस बारे में उसे कुछ याद नहीं है. उस ने कहा कि उसे अंधेरे कमरे में रखा गया था, बाहर की दुनिया से उस का कोई संपर्क नहीं था. वह जैसेतैसे वहां से निकली.

सोनम से पूछताछ के बाद पुलिस ने आनंद कुर्मी को भी पकडऩे में सफलता हासिल की. आरोपी आनंद कुर्मी (23) खिमलासा थाना क्षेत्र के बसाहरी गांव में अपने चाचा भगवानदास कुर्मी के घर में छिपा हुआ था. मेघालय से आई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से आरोपी को पकड़ा. डीएसपी एस.ए. संगमा के नेतृत्व में आई टीम ने आगासौद, खिमलासा और बीना थाना पुलिस के साथ मिल कर घेराबंदी की. आरोपी को पकडऩे के बाद खिमलासा थाने में पूछताछ की गई. एसडीओपी नितेश पटेल ने बताया कि आरोपी का पिता दौलतराम कुर्मी करीब 20-22 साल पहले परिवार के साथ इंदौर चला गया था. आनंद वहां जियोमार्ट में काम करता था. वह मुख्य आरोपी राज कुशवाहा के संपर्क में था. आनंद मूलरूप से भानगढ़ थाना क्षेत्र के मिर्जापुर गांव का रहने वाला है.

पूछताछ में पता चला कि उस के पिता 4 भाई हैं. बड़े भाई हरिशंकर कुर्मी मिर्जापुर में रहते हैं. वहां 5 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं. देवाराम और दौलतराम इंदौर चले गए थे. भगवानदास अपनी ससुराल बसाहरी में रह रहे थे. मेघालय पुलिस यहां से कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पांचों को मेघालय ले गई. शिलांग में ही एफआईआर दर्ज कराई गई. इंदौर से शुरू हो कर शिलांग और फिर गाजीपुर तक राजा रघुवंशी हत्या कांड फैल गया. शिलांग की अदालत से आरोपियों का 8 दिन का रिमांड मिल गया तो फिर प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत मामला खुलता गया.

सोनम और राजा रघंवुशी चेरापूंजी में झरना देखने जा रहे थे. वक्त बीतने के साथ ही सोनम की बेचैनी बढऩे लगी, योजना के अनुसार वह जल्द से जल्द राजा को ठिकाने लगाना चाहती थी, लेकिन सही जगह नहीं मिल पा रही थी. दोपहर 12 बजते ही पीछे से तेजी से आए तीनों किलर्स राजा से अच्छे से बातचीत करने लगे, ऐसे में राजा को भी कोई शक नहीं हुआ. दोपहर करीब डेढ़ बजे सोनम ने राजा की हत्या के लिए अपना प्लान ऐक्टिव किया. इस के तहत उस ने सब से पहले अपनी सास यानी कि राजा की मम्मी को फोन लगाया. उन के साथ मीठीमीठी बातें कीं. इस का मकसद यही था कि वह परिवार को भरोसा दिला रही थी कि सब कुछ ठीक है.

फोन पर बातचीत के दौरान सोनम ने अपने उपवास की भी चर्चा की. सास के कहने पर उन के बेटे राजा से भी कुछ देर बाद बात कराई. चेरापूंजी की करीब 10 किलोमीटर ऊंची चढ़ाई पर एक सेल्फी स्पौट बना था. उस से पहले पार्किंग स्थल था, सोनम राजा एक स्कूटी से गए थे. तीनों किलर्स ने 2 दुपहिया वाहन किराए पर लिए थे. तीनों गाडिय़ां पार्किंग में खड़ी की गई थीं. उस के बाद किलर्स राजा के पीछे चल दिए. वहां पहुंच कर पतिपत्नी मौसम का नजारा कर रहे थे. तभी सोनम ने मौका पाते ही किलर्स को इशारा किया और अपने पति राजा रघुवंशी को सेल्फी के लिए तैयार करने लगी. इतने में पीछे से एक किलर ने कुल्हाड़ीनुमा एक तेज धार वाले हथियार से पूरी ताकत से राजा पर वार कर दिया. राजा नीचे गिर गया. राजा ने उठने की कोशिश की. तभी दूसरे ने दूसरे हथियार से सामने से उस के सिर पर जोरदार वार किया.

योजना के अनुसार की थी राजा की हत्या

राजा वहीं ढेर हो गया, उस के बाद भी मिनी कुल्हाड़ी से एक वार उस पर और किया गया. उस का काम तमाम हो जाने पर और शरीर का सारा खून निकल जाने पर तीनों ने सेल्फी पौइंट पर उसे उठा कर रखा. वहां  करीब 3 फीट ऊंची ग्रिल लगी हुई थी. राजा की लाश को उठा कर नीचे गहरी खाई में फेंकने की तीनों ने कोशिश की, मगर सफलता नहीं मिली. तब सोनम ने आगे बढ़ कर लाश को ऊपर उठा कर खाई में फेंकने के लिए मदद की. ऐसा करने से उन के कपड़ों पर खून लग गया तो उन्होंने खून में सने कपड़े उतार कर वहीं फेंक दिए. उस के बाद तीनों पार्किंग स्थल पर पहुंचे. वहां से तीनों किलर्स वाली 2 स्कूटियों पर बैठ कर चारों निकल लिए.

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि एक बुरका, जो विशाल ले कर आया था, सोनम को दिया. सोनम वह बुरका पहन कर अकेले वहां से निकली, ताकि बीच में जो टोल आते हैं या सीसीटीवी में उस का चेहरा  कैद न होने पाए. उस के बाद सोनम वहां से गुवाहाटी पहुंची. वहां के आईएसबीटी से वह बस ले कर पटना के लिए और फिर पटना से वह आरा पहुंच गई. आरा से वह लखनऊ पहुंची और लखनऊ से 26 तारीख को इंदौर पहुंच गई. इंदौर में राज कुशवाहा से उस की मुलाकात हुई. देवास नाके के पास एक किराए के फ्लैट में वह 8 जून तक इंदौर में रही. इस बीच राज कुशवाहा ने सोनम की सहूलियत का पूरा खयाल रखा था.

4 जून, 2025 को राजा के शव को इंदौर लाया गया. सोनम ने अपने पति राजा की अर्थी के लिए कफन और फूल मालाओं का इंतजाम कर के अपने प्रेमी राज के हाथ अपनी ससुराल भिजवाया. राजा के परिवार में सब से ज्यादा उस की मम्मी और बहन सृष्टि का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे इंदौर में रघुवंशी समाज में रोष व्याप्त था. शोक की लहर दौड़ गई थी. इस के लिए एक दिन कैंडल मार्च का आयोजन हुआ. इस में बड़ी संख्या में समाज के लोग उपस्थित हुए.

शिलांग के एसपी विवेक सिएम ने प्रैस कौन्फ्रेंस कर कहा कि पहले राजा के कत्ल करने का प्लान गुवाहाटी में था, लेकिन यह प्लान फेल होने पर शिलांग में राजा रघुवंशी मारा गया. 3 बार कत्ल करने का प्रयास किया गया, लेकिन किलर्स असफल हो गए और चौथी बार में हत्या कर पाए. उन्होंने बताया कि राजा मर्डर केस का मास्टरमाइंड राज कुशवाहा है, सोनम ने उस का साथ दिया. पहले दिन की पूछताछ में आरोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. तीनों आरोपी राज कुशवाहा और सोनम के दोस्त हैं, जिस में एक राज का चचेरा भाई था. दोस्ती के कारण तीनों आरोपी हत्या में शामिल हुए. शिलांग एसपी विवेक सिएम ने आगे कहा कि यह मामला सुपारी का नहीं है. तीनों आरोपी भी 19 मई को गुवाहाटी आ गए थे.

पुलिस की जांच में यह भी पता चला कि सोनम रघुवंशी और राज कुशवाहा राजा रघुवंशी की हर हालत में हत्या करना चाहते थे. उन्होंने इस के लिए एक पिस्टल खरीदी थी. यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो सोनम सेल्फी देने के बहाने राजा को सेल्फी पौइंट से नीचे गहरी खाई में जिंदा ही धकेल देती. पुलिस को यह भी पता चला कि राज और सोनम ने हीराबाग के फ्लैट में एक बैग छिपाया था. इस बैग में कपड़ों के बीच देसी पिस्टल, 5 लाख रुपए, सोने की चेन, अंगूठी और राजा की हत्या से संबंधित कुछ अन्य सबूत वाली चीजें थीं. मेघालय पुलिस ने पांचों अपराधियों से पूछताछ कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

अभी इंदौर में मेघालय पुलिस की टीम एक बैग की तलाश कर रही है. यह ट्रौली बैग मेघालय से विशाल चौहान ने देवास नाका के उस फ्लैट पर पहुंचाया था, जहां पर सोनम हत्या के बाद रुकी थी. अब एक प्रौपर्टी डीलर, जिस का नाम है सिलोन जेम्स, की गिरफ्तारी हुई है. यह वही प्रौपर्टी डीलर है, जिस ने सोनम को राजा रघुवंशी की हत्या के बाद जब सोनम इंदौर लौटी थी तो इंदौर में रेंट पर फ्लैट दिलाया था. गुना का एक सिक्योरिटी गार्ड भी अब शिलांग पुलिस के शक के घेरे में है. पुलिस सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा गार्ड बलबीर अहिरवार उर्फ बल्लू को गिरफ्तार कर लिया गया है. इसी मामले में आठवें आरोपी की भी गिरफ्तारी हुई है.

प्रौपर्टी डीलर ने पुलिस को बताया कि किसी स्थान पर बैग जला दिया है. पुलिस ने  उस स्थान की भी जांच की. कुछ नमूने लिए हैं. पुलिस ने उसे मेघालय ले जा कर अदालत में पेश किया. आठवें आरोपी ग्वालियर निवासी लोकेंद्र सिंह तोमर को मेघालय पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जो उस फ्लैट का मालिक है जिस में हत्या के बाद फरार हुई सोनम रघुवंशी इंदौर में छिपी थी.

सोनम की फैक्ट्री में एंप्लाई था राज

राज कुशवाहा गाजीपुर थाना क्षेत्र के रामपुर गांव का निवासी है. राज कुशवाहा के पापा 3 भाई थे. 2 भाई रामपुर सुकेति गांव में अभी भी रहते हैं. 15 साल पहले राज कुशवाहा के पिता की स्थिति अच्छी नहीं थी. वह इंदौर चले गए थे. वहां फल की दुकान लगाने लगे. परिवार की हालत सुधरने पर करीब 10 साल पहले परिवार को वहीं बुला लिया. राज कुशवाहा की मम्मी चुन्नीबाई, बड़ी बहन सुहानी और छोटी बहन प्रिया और राज कुशवाहा अपने पापा के पास इंदौर चले आए. कोरोना काल में उस के पापा परिवार के साथ गांव आ गए. उस समय राज कुशवाहा भी आ गया.

कोरोना काल में ही राज के पापा की मौत हो गई. राज कुशवाहा परिवार के साथ फिर इंदौर आ गया. यहां राज कुशवाहा  प्लाईवुड की एक कंपनी में काम करने लगा. यह कंपनी सोनम रघुवंशी की थी. सोनम के यहां पर राज प्लाईवुड का काम करता था. उस ने ज्यादा तो नहीं, लेकिन हाईस्कूल परीक्षा पास कर रखी थी. इस कंपनी में उसे अकाउंट के काम पर लगा लिया गया. एक दिन राज कुशवाहा सोनम रघुवंशी के केबिन में पहुंचा. उसे देखते ही सोनम रघुवंशी ने पूछा, ”हां बताओ, कैसे आना हुआ?’’

”मैडम, मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है.’’

सोनम मलिकाना तेवर में बोली, ”अभी एक हफ्ता पहले ही तो वेतन मिला है. अभी से एडवांस लेने आ गए.’’

कुछ और खरीखोटी सुनाई. राज कुशवाहा बड़ा निराश हुआ, उस की आंखें डबडबा गईं. औफिस से बाहर जाने के लिए राज कुशवाहा जैसे ही मुड़ा, सोनम की आवाज आई, ”रुपए किस काम के लिए चाहिए?’’

राज कुशवाहा ने कहा, ”मम्मी की तबीयत खराब है. उन के इलाज के लिए जरूरत है.’’ मासूम चेहरे पर बड़ीबड़ी आंखों में छलकते आंसू देख कर सोनम का दिल पसीज गया. सोनम ने दराज से 5 हजार रुपए निकाल कर राज को दे दिए. सोनम के अहसान के बोझ को सिर पर लिए डगमगाते कदमों से राज औफिस से बाहर आ गया. यहीं से उम्र में करीब 5 साल छोटे अपने कर्मचारी राज के लिए सोनम के दिल में हमदर्दी का बीज अंकुरित हो गया. दूसरे दिन फैक्ट्री की साप्ताहिक छुट्टी थी.

अगले दिन राज अपनी ड्यूटी पर समय से फैक्ट्री आ गया और अपने काम में जुट गया. अचानक कदमों की आहट उसे सुनाई दी. उस के टेबल के पास तक कोई आया. इस से पहले कि वह सिर उठा कर देखता, तभी उस के कानों में एक मधुर आवाज सुनाई दी, ”ये लो एक हजार रुपए. यह एडवांस में नहीं जुड़ेंगे. यह मेरी तरफ से अपनी मम्मी की दवाई में खर्च कर लेना. और हां, अब उन की तबीयत कैसी है?’’

इतना सुन कर राज अपनी सीट से उठ कर खड़ा हो गया. नजरें नीची रहीं. अपनी मम्मी की तबीयत के बारे में जानकारी दी. राज ने कहा, ”मैम, आप का दिल कितना बड़ा है, आप जैसे लोग समाज में अब कम ही मिलते हैं. यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता.’’

एक दिन इंदौर के खूबसूरत मार्केट में राज गया था, तभी अचानक किसी ने उसे आवाज दी. उस ने मुड़ कर देखा तो सोनम स्कूटी रोके खड़ी थी. उस ने पास की ही एक कौफी हाउस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यहां आओ, मैं भी पहुंच रही हूं.

उस दिन फैक्ट्री का साप्ताहिक अवकाश था. कौफी हाउस पहुंच कर दोनों आमनेसामने की सीट पर बैठे. सोनम ने कोई बात नहीं की, बल्कि अपने मोबाइल में मगन रही. वेटर 2 कौफी टेबल पर रख गया. राज नजरें नीचे किए हुए बैठा था. राज को सोनम की उस बात का इंतजार था, जिस के लिए उसे यहां कौफी हाउस में बुलाया था.

अचानक सोनम ने कहा, ”हां राज, बताओ मम्मी की कैसी तबीयत है?’’

सिर झुकाए बैठे राज ने कहा, ”अब तो काफी ठीक है.’’

”चलो, कौफी पियो!’’

राज ने कौफी का कप उठाया. उस की नजर सोनम की तरफ गई तो उस के हाथ कांप गए. बड़ी मुश्किल से कप को गिरने से रोक पाया. फिर भी थोड़ी सी कौफी छलक कर गिरी. सोनम की नजरें उस पर गड़ी थीं, उस प्यार भरी नजरों को कोई भी आसानी से समझ सकता था. कातिलाना नजरें और जादुई मुसकराहट उस के दिल में उतर गई. राज ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला. इस तरह हमदर्दी के साथ प्रेम के बीज की भी बुवाई हो गई.

रातें अब ख्वाबों में और दिन उस की यादों में गुजरने लगे. प्रेम का ये अंकुर धीरेधीरे एक विशाल वृक्ष बनने को बेताब था. उस की बातें जैसे ठंडी हवा की तरह गर्म दुपहरी में सुकून दे रही हों. आंखों ही आंखों में जो बातें होतीं, वो लफ्जों से परे थीं. राज का दिल अब हर धड़कन में उस का नाम लेने लगा. वह साथ हो या न हो, उस की मौजूदगी हर पल महसूस होती. राज को अब समझ आने लगा कि ये सिर्फ आकर्षण नहीं, कुछ गहरा ताल्लुक है.

इस तरह हमदर्दी से शुरू हुआ रिश्ता अब इश्क की दहलीज पर दस्तक दे रहा था. राज के दिन अब मस्ती में गुजरने लगे. आर्थिक संकट भी दूर हो गया था, क्योंकि 20 हजार रुपए महीने की नौकरी में उस के परिवार का गुजारा करना मुश्किल होता था. अब तो ठाट ही ठाट थे. दिन गुजरते गए, प्यार की पींगें बढ़ती रहीं और फिर 2 जिस्म एक जान हो गए. साथ जीनेमरने की कसमें खाई गईं और एकदूसरे का साथ न छोडऩे का वादा किया गया.

राजा रघुवंशी हत्याकांड खुल जाने के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा ने  कहा कि जिन लोगों ने मेघालय को बदनाम किया है, उन्हें माफी मांगनी चाहिए, नहीं तो उन के खिलाफ काररवाई की जाएगी. मेघालय के गृहमंत्री बोले, ”हमारी पुलिस को बेवजह बदनाम किया गया.’’

पुलिस के गले की फांस बन गया था यह केस

मेघालय के गृहमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग ने अपने बयान में कहा कि मेघालय पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए. ये बात शुरू से हजम नहीं हो रही थी कि यहां के स्थानीय लोग लूटपाट के लिए किसी पर्यटक की हत्या कर दें. अब हमारी पुलिस ने सब दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. इस केस में जल्दी से जल्दी तसवीर साफ होना इसलिए भी जरूरी था कि मेघालय में हर साल 11 लाख टूरिस्ट आते हैं. उन के भरोसे के लिए भी ये जरूरी था कि जल्द से जल्द इस केस का खुलासा हो. उधर सोनम रघुवंशी अपने प्रेमी राज कुशवाहा और अन्य लोगों के पकड़े जाने पर इंदौर से गाजीपुर कैसे गई, उस रहस्य का भी पुलिस ने परदाफाश कर दिया. जिस टैक्सी से सोनम इंदौर से उत्तर प्रदेश रवाना हुई थी, उस के ड्राइवर पीयूष तक भी पुलिस पहुंच गई है.

टैक्सी ड्राइवर पीयूष से भी एक घंटे तक क्राइम ब्रांच थाने में पूछताछ की गई. उधर उजाला यादव ने यह दावा किया था सोनम मुझे वाराणसी कैंट स्टेशन पर मिली थी. एक ड्राइवर और एक व्यक्ति उसे वहां तक छोडऩे आए थे. तुरंत ट्रेन न होने पर सोनम वाराणसी के बस अड्डे पर आई और उसी बस में बैठ गई, जिस में वह बैठी थी. उजाला ने बताया कि वह गोरखपुर जाने के लिए कह रही थी. उस ने एक लड़के से फोन करने के लिए मोबाइल मांगा. उस ने नहीं दिया. मुझ से भी उस ने मोबाइल मांगा, मैं ने दिया. एक नंबर डायल कर के डिलीट कर दिया. काल नहीं की.

ऐसा हो सकता है कि उस के पास कोई मोबाइल होगा. कहीं बीच में उस के पास काल आई होगी कि सभी लोग पकड़े गए हैं. गाजीपुर ही उतर जाए. गाजीपुर उतर कर उस ने वह छोटा मोबाइल नष्ट कर दिया होगा. तभी वह रात के 2 बजे चाय की दुकान पर पहुंच गई. वरना राज और सोनम का इरादा गोरखपुर से नेपाल भाग जाने का था. राज इतना शातिरदिमाग होगा, यह अंदाजा किसी को नहीं था.  ऐसा प्लान पेशेवर अपराधी भी नहीं बना पाते. यदि मामला हाईप्रोफाइल नहीं बनता तो सोनम और राज अपनी योजना में सफल हो जाते. वह तो मेघालय की पुलिस ने ड्रोन कैमरे से रघुवंशी की डेडबौडी तलाश कर ली थी.

एक तरफ राजा की मम्मी हैं, जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को खोया है, उन पर क्या बीत रही होगी. दूसरी तरफ सोनम की मम्मी का दर्द है, जिसे मर्डर की मास्टरमाइंड बताया जा रहा है. तीसरी मां उस आरोपी राज की है, जिसे सोनम का बौयफ्रेंड बताया जा रहा है. तीनों मां का अपना अलगअलग दर्द है. राज कुशवाह की मम्मी चुन्नीबाई, बड़ी बहन सुहानी और छोटी बहन प्रिया मानने को तैयार नहीं हैं कि राज कुशवाहा राजा रघुवंशी की हत्या कर सकता है. सुहानी ने कहा, ”मेरा भाई ऐसा कर ही नहीं सकता. वह तो सोनम को दीदी कहता था.’’

जहां मृतक राजा की बहन सृष्टि अपने भाई के खोने का दर्द बयां कर रही है, वहीं आरोपी सोनम के प्रेमी राज कुशवाहा की बहन अपने भाई को बेगुनाह बताते हुए साजिश का आरोप लगा रही है. दोनों बहनों का दर्द, एक भाई की हत्या और दूसरे की गिरफ्तारी ने इस हनीमून मर्डर को और मार्मिक बना दिया है. Hindi Crime Story

 

 

Family Dispute : संपत्ति पाने की लालच में देवर ने भाभी की गोली मार कर दी हत्या

Family Dispute :  घर वालों के विरोध के बावजूद फौजी चंद्रशेखर ने अपनी ममेरी बहन वर्षा से शादी कर ली थी. कुछ दिनों बाद संदिग्ध परिस्थितियों में चंद्रशेखर की मृत्यु हो गई तो वर्षा के साथ ऐसी घटना घटी कि…

वर्षा से शादी के बाद से ही खफा चल रहे उस के देवर कृष्णकांत को जब यह पता चला की वर्षा किसी और के साथ लिवइन में रह रही है तो यह उस से सहा नहीं गया. बड़े भाई चंद्रशेखर की मौत के बाद उस का सारा पैसा भी उस की भाभी वर्षा ही ले गई थी. भाई के बदले वह सेना में नौकरी चाह रहा था. यह मामला भी कोर्ट की दहलीज पर पहुंच चुका था. भाभी के लिवइन में रहने की खबर के बाद कृष्णकांत को लगा कि भाभी उस के भाई की ही संपत्ति और पैसे पर ऐश कर रही है. तब कृष्णकांत ने अपनी भाभी को सदा के लिए मौत की नींद सुला देने का भयानक निर्णय ले लिया.

मध्य प्रदेश के जिला बैतूल से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर बसा है आमला कस्बा. आदिवासी बाहुल्य यह कस्बा ज्यादा बड़ा तो नहीं है पर आसपास के गांव वाले यहां खरीदारी करने आया करते हैं. लिहाजा शाम तक यहां के बाजार भीड़ से भरे होते हैं. ऐसे में पुलिस को भी कानूनव्यवस्था के लिए चुस्त रहना पड़ता है. 6 फरवरी, 2021 को रात करीब 9 बजे का वक्त रहा होगा. आमला के टीआई सुनील लाटा शहर में भ्रमण पर थे. इसी बीच उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि कनौजिया गांव में गोली चली है, इस में एक महिला गंभीर रूप से घायल है.

सूचना मिलते ही टीआई कनौजिया गांव पहुंचे, इस इलाके में गोली चलने की वारदात अमूमन कम ही होती है. बरहाल, टीआई ने इस घटना की जानकारी एसपी सिमाला प्रसाद को दी. साथ ही एसडीपीओ मुलताई नम्रता सोंधिया समेत फोरैंसिक टीम के सदस्यों को दी और वह तत्काल कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. आमला से कनौजिया की दूरी करीब 5 किलोमीटर है, लिहाजा पुलिस को यहां पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तब तक भीड़ काफी जमा हो चुकी थी. कनौजिया गांव के जिस मकान में गोली चलने की घटना हुई थी, वहां करीब 4-5 कमरे थे.

पहले कमरे में बैड पर खून से लथपथ एक 27-28 वर्षीय युवती का शव पड़ा था. पास में ही उस का मोबाइल पड़ा था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना के समय युवती मोबाइल पर बात कर रही होगी. टीआई सुनील लाटा अभी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि इतने में एसडीपीओ (मुलताई) नम्रता सोंधिया भी मौके पर आ गईं. इस के बाद एसपी सिमाला प्रसाद भी वहां पहुंच गईं. पूछताछ में पता चला कि मृतका का नाम वर्षा नागपुरे है और वह बोखड़ी कस्बे की रहने वाली थी. सुबह ही वह अपनी मां के पास कनोजिया आई थी. पुलिस ने यहां लोगों से प्रारंभिक पूछताछ भी की, पर वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे.

उन का कहना था कि कौन आया, किस ने वर्षा को गोली मारी, पता ही नहीं चला. वे तो गोली चलने की आवाज के बाद अपने घरों से बाहर आए थे. वर्षा की हत्या की वजह पुलिस को भी समझ नहीं आ रही थी. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि मायके में आने के बाद उस की हत्या किस ने की? एफएसएल टीम द्वारा जांच करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने इस के बाद वर्षा के मायके वालों से पूछताछ की तो वर्षा के भाई कृष्णा पवार ने बहन वर्षा की हत्या का संदेह उस के देवर कृष्णकांत नागपुरे और महेश नागपुरे निवासी बोडखी पर व्यक्त किया था.

इधर पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि वर्षा किसी के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. बहरहाल, सारी जानकारी जुटाने के बाद टीआई सुनील लाटा आमला लौट आए. उन के सामने जिन लोगों के नाम संदेह के तौर पर सामने आए थे, उन पर नजर रखने के लिए उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को लगा दिया. पुलिस को अपनी जांच में यह भी पता चला कि अपनी ससुराल वालों से वर्षा के रिश्ते ठीक नहीं थे, लिहाजा उन्होंने जांच का रुख ससुराल वालों की तरफ मोड़ लिया. इस बीच टीआई सुनील लाटा को खबर मिली कि वर्षा का देवर कृष्णकांत घटना से कुछ दिनों से गांव बोडखी में ही देखा गया था.

पर घटना के बाद से वह गायब है. पुलिस ने अब अपना ध्यान कृष्णकांत की ओर लगा दिया. पुलिस की जांच आगे बढ़ी तो यह भी पता चला कि कृष्णकांत का अपनी भाभी वर्षा से काफी समय से विवाद चल रहा था. जब से उस ने कृष्णकांत के बड़े भाई चंद्रशेखर नागपुरे से लवमैरिज की थी, तभी से ससुराल वाले उस से नाराज चल रहे थे. जिस से वह शादी के बाद से ही ससुराल वालों से अलग पति के साथ रह रही थी. वह भी उस से खुश नहीं थे. पुलिस ने वर्षा की सास और जेठ से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वर्षा उन से अलग रहती थी. लिहाजा उन्होंने भी उस से रिश्ता लगभग खत्म कर रखा था. इस मामले में पता चला कि कीर्ति नाम की युवती से मृतका के देवर की मित्रता थी.

पुलिस ने कीर्ति के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस का कृष्णकांत से मिलनाजुलना था. पुलिस ने कीर्ति से पूछताछ की और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन कई बार उस की कृष्णकांत से बात भी हुई थी. कीर्ति से जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कृष्णकांत अकसर उस से वर्षा के बारे में पूछता रहता था. तब वह उसे वर्षा की लोकेशन बता देती थी. कीर्ति ने पुलिस को बताया कि अब कृष्णकांत कहां है, इस बारे में उसे कुछ भी पता नहीं है. कृष्णकांत का मोबाइल फोन भी बंद था. पुलिस ने अपने मुखबिरों को लगातार इस मामले में नजर रखने को कहा था. इस का परिणाम यह हुआ की पुलिस को जानकरी मिली कि कृष्णकांत भोपाल में है.

पुलिस को यह भी पता चला कि वह कोर्ट के काम से आमला आने वाला है. लिहाजा पुलिस मुस्तैद हो कर उस के आने का इंतजार करने लगी. अगले दिन जैसे ही वह आमला आया, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने थाने ले जा कर जब कृष्णकांत से पूछताछ की तो वह खुद को बेगुनाह बताने लगा. उस ने बताया कि घटना वाली तारीख को वह भोपाल में था. पुलिस ने जब उसे बताया कि घटना की रात उस का मोबाइल देर रात तक आमला के आसपास ही लोकेशन दिखा रहा था. उसे उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स दिखाई तो वह टूट गया. उस ने कबूल कर लिया कि उस ने अपनी दोस्त कीर्ति की मदद से अपनी भाभी वर्षा की हत्या की है.

वर्षा ने हालात ही ऐसे बना दिए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. कृष्णकांत ने पुलिस को जो बताया उस के अनुसार कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई—

बैतूल जिले के आमला गांव के समीप बोडखी में रहने वाले आर.के. नागपुरे के 3 बेटों में सब से बड़ा चंद्रशेखर नागपुरे था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद चंद्रशेखर सेना में भरती हो गया. नौकरी से छुट्टी मिलने पर जब वह घर आता तो कनोजिया में रहने वाले अपने मामा के यहां भी जाता था. उस के मामा की बेटी वर्षा उस समय जवानी की दहलीज पर कदम रख ही रही थी और महज 16 साल की थी. इधर चंद्रशेखर 27 की उम्र छू रहा था. पर सेना में होने के कारण उस का बदन गठीला था और सेना में होने का रौब तो उस पर था ही. उसी दौरान वर्षा से उसे प्यार हो गया. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे.

रिश्ते मे वर्षा चंद्रशेखर की ममेरी बहन थी, पर इस के बाद भी दोनों रिश्तों की मर्यादा भूल गए और प्यार की पींगे बढ़ाने लगे. जब इस बात की भनक चंद्रशेखर के घर वालों को लगी तो वे उस पर नाराज हुए. उन को कतई गवारा नहीं था कि उन का बेटा ऐसी युवती से प्रेम करे, जो उस के सगे रिश्ते में आती हो. वे चंद्रशेखर का रिश्ता कहीं दूसरी जगह करने की योजना बना रहे थे. उन्होंने चंद्रशेखर को काफी समझाया पर वह नहीं माना. चंद्रशेखर ने घर वालों के विरोध की परवाह नहीं की ओर वर्षा से मिलना जारी रखा. वर्षा भी उस के प्यार में दीवानी थी. लिहाजा उस ने नजदीकी रिश्ते से ज्यादा अपने प्यार को अहमियत दी.

नतीजा यह हुआ कि घर वालों के विरोध के बावजूद चंद्रशेखर और वर्षा ने शादी का फैसला कर लिया और घर वालों के विरोध के बावजूद उन्होंने शादी कर ली. शादी चूंकि चंद्रशेखर ने घर वालों के विरोध के बावजूद की थी, लिहाजा शादी के बाद वह घर से अलग हो गया और बोखड़ी में ही अलग मकान ले कर रहने लगा. समय अपनी गति से बीतता रहा. कुछ समय बाद वर्षा एक बेटे की मां भी बन गई. बात 2013 के आसपास की है. चंद्रशेखर की जहर खाने से संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. उस ने जहर कैसे खाया, इस बात का खुलासा तो नहीं हो पाया, पर कहा यह जाता है कि चंद्रशेखर अपने घर वालों के व्यवहार से दुखी था और घर वालों द्वारा उसे स्वीकार नहीं किया तो उस ने यह कदम उठा लिया.

हालांकि उस ने जहर खाया था या उसे दिया गया था, यह भी एक रहस्य था. चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद उस की सारी संपत्ति की वारिस उस की पत्नी वर्षा बन गई. चंद्रशेखर के घर वाले वर्षा को पहले ही नापसंद करते थे. उन्होंने इस शादी को भी मान्यता नहीं दी थी, लिहाजा वे इस के खिलाफ हो गए कि वर्षा को उस की संपत्ति में से कुछ मिले. पर उन के चाहने से कुछ नहीं हुआ. सेना ने वर्षा को उस की पत्नी मानते हुए उस की मौत के बाद उस के सारे देय दे दिए. बताया जाता है कि वर्षा को चंद्रशेखर की मौत के बाद करीब 30 लाख रुपए मिले थे. चंद्रशेखर का भाई कृष्णकांत इसे अपनी संपत्ति मान रहा था और उस का मानना था कि इस से उस के घर वालों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

उस ने सेना मुख्यालय में भी पत्र लिख कर इस धनराशि में अपना अधिकार बताया. कृष्णकांत ने कहा कि चंद्रशेखर का वर्षा के साथ कभी विवाह हुआ ही नहीं था. दोनों भाईबहन थे, लिहाजा उस की संपत्ति पर घर वालों का अधिकार है. उस ने चंद्रशेखर की मौत के बाद खुद को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की मांग भी सेना से की थी. जब यह बात नहीं बनी तो वह कोर्ट चला गया. कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अभी जारी थी. अब बात करते हैं हत्या के कारणों की. बड़े भाई चंद्रशेखर की मौत के बाद कृष्णकांत भोपाल आ गया और यहां एक कंपनी में मोटरसाइकिल राइडर बन गया. वह कंपनी के निर्देश पर लोगों को लाने ओर छोड़ने का काम करने लगा.

इस दौरान वह जब भी गांव जाता तो वर्षा के शानोशौकत भरे खर्चे देख कर उसे बेहद पीड़ा होती थी. उसे लगता था कि उस का परिवार आर्थिक दिक्कत झेल रहा है और वर्षा उस के भाई की मौत के बाद मिले पैसों से ऐश कर रही है. कुछ दिनों बाद कृष्णकांत को पता चला की वर्षा किसी और व्यक्ति के साथ लिवइन में रहने लगी है तो उसे और बुरा लगा. उसे लगा कि अब तो वर्षा की संपत्ति उसे कभी नहीं मिलेगी. लाखों के लालच में उस ने वर्षा को मारने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने कीर्ति को अपने विश्वास में लिया और उस से दोस्ती कर ली. कीर्ति को उस ने यह जिम्मेदारी दी कि वर्षा की हर गतिविधि पर नजर रखे और उस की हर गतिविधि की उसे फोन द्वारा जानकारी देती रहे.

6 फरवरी, 2021 को वर्षा अपनी मां के यहां आई थी. कीर्ति ने इस की जानकारी फोन पर कृष्णकांत को दी. कृष्णकांत को लगा कि अच्छा मौका है. शाम के समय वैसे भी गांव में अंधेरा छा जाता है और अधिकांश लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं. ऐसे मे वर्षा की हत्या करना कृष्णकांत को आसान लगा. उस ने अपने एक मित्र से एक तमंचे का जुगाड़ किया और शाम को मोटरसाइकिल से सीधा कनौजिया गांव पहुंचा और वर्षा के घर के सामने जा कर खड़ा हो गया. वहां उस समय कुछ लोग उसे दिखे और घर का दरवाजा भी बाहर से बंद था. लिहाजा वह घर के पीछे गया. वहां वर्षा की दादी बरतन साफ कर रही थीं. बूढ़ी होने के कारण उन्हें कम दिखाई और कम सुनाई देता था.

उन्हें चकमा दे कर वह पीछे के दरवाजे से अंदर घुस गया. वर्षा कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. कृष्णकांत ने बिना समय गंवाए उस पर गोली चला दी. गोली लगते ही वर्षा ढेर हो गई. उधर अपना काम करने के बाद कृष्णकांत पीछे के दरवाजे से फरार हो गया. उसी रात वह मोटरसाइकिल से भोपाल आ गया. कोर्ट के काम से उसे फिर आमला जाना पड़ा. हालांकि वह 2 दिन में निश्चिंत हो चुका था कि उसे किसी ने नहीं देखा होगा. इस कारण वह पकड़ा नहीं जाएगा.

लेकिन कहते हैं न कि जुर्म कहीं न कहीं अपने निशान छोड़ ही जाता है. कृष्णकांत के साथ भी यही हुआ. पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ी तो उस का जुर्म सामने आ गया. पुलिस ने कृष्णकांत और कीर्ति से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Family Dispute

Love Stories in Hindi Short : आशिकी में गई एसएचओ की जान

Love Stories in Hindi Short  : छतरपुर के 48 वर्षीय तेजतर्रार एसएचओ अरविंद कुजूर ने 21 वर्षीय कमसिन आशी राजा से दिल तो लगा लिया था, लेकिन उन्होंने न अपनी अधेड़ावस्था का खयाल रखा और न ही अपने पुलिसिया रुतबे का. प्रेमिका आशी राजा पर महंगे तोहफे लुटातेलुटाते वह उस की ब्लैकमेल की गिरफ्त में ऐसे आ फंसे कि चाह कर भी निकल नहीं पा रहे थे. उस के सामने उन के पुलिसिया रौब की भी हवा निकल गई. फिर इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. 

मध्य प्रदेश के शहर छतरपुर की कोतवाली के एसएचओ (टीआई) अरविंद कुजूर 5 मार्च, 2025 को सुबह के 10 बजे अपने सरकारी क्वार्टर में थे. दिनचर्या से निपटे ही थे कि उन के केयर टेकर प्रदीप अहिरवार ने किसी के आने सूचना दी. आने वाले का नाम सुन कर कुजूर की भौंहें तन गईं. वह बुदबुदाए, ‘सुबहसुबह क्यों चली आई!’

‘‘साहब, साथ में एक लडक़ा भी है.’’

‘‘लडक़ा? उसे पहचानते हो!’’ कुजूर ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, उसे पहली बार देखा है. आप ने ही कहा था उस मैडम के बारे में… मैं ने उन्हें बाहर बरामदे में सोफे पर बैठा दिया है.’’

‘‘तुम ने उस से क्या बोला?’’

‘‘साहब, वाशरूम में हैं!’’ प्रदीप बोला.

‘‘उन्हें बाहर ही चाय पिला दो. जब मैं कहूं तभी अंदर हाल में बुलाना.’’ कुजूर ने प्रदीप को समझाया.

‘‘जी साहब!’’ कहता हुआ प्रदीप पहले 2 गिलास पानी ले कर बाहर गया, फिर रसोई में आ कर चाय बनाने लगा. जबकि कुजूर अपने बैडरूम चले गए.

करीब आधे घंटे के बाद कुजूर ने प्रदीप को आवाज लगाई, जो उस वक्त रसोई में सुबह का नाश्ता बना रहा था. बाहर बरामदे में आगंतुक युवती और युवक बैठे आपस में बातें कर रहे थे. तभी युवती ने भी प्रदीप को आवाज लगाई, ‘‘साहब रेडी हो गए हों तो उन्हें बता दो, आशी कब से उन का इंतजार कर रही है.’’

‘‘उन को भी बोल दो अंदर आ जाएं…और हां! प्रदीप, उन के लिए भी नाश्ता बना लेना.’’ कुजूर बैडरूम से ही बोले.

थोड़े समय में डायनिंग टेबल पर कुजूर के सामने दोनों युवक और युवती बैठे थे. उन लोगों के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही थी. वहां की शांति को भंग करती हुई बरतनों की आवाजों के सिवाय और कुछ नहीं था. प्रदीप उन के लिए नाश्ता लगा रहा था. प्लेट, चम्मच और गिलास की आवाजों के बीच कुजूर बोले, ‘‘हां आशी, तुम आज सुबहसुबह… कैसे आना हुआ?’’

‘‘कई दिन हो गए थे…इसलिए!’’

‘‘यूं ही या कुछ खास बात है?’’

‘‘समझो ऐसा ही…’’

‘‘तुम्हारे साथ ये कौन है? इसे मैं पहली बार देख रहा हूं.’’

‘‘हां, यह सोनू है, सोनू ठाकुर!’’ आशी अपने साथ आए युवक के नाम पर जोर दे कर बोली.

‘‘रेंट का पैसा तो मिल गया होगा!’’

‘‘हां, लेकिन खर्च का नहीं मिला, अभी तक!’’ आशी बोली.

‘‘सोनू क्या करता है? मेरा मतलब है, पढ़ाई या कोई काम वगैरह!’’ अचानक कुजूर बात बदलते हुए पूछ बैठे.

आशी भी उसी तरह से अलसाए अंदाज में बोली, ‘‘क्या करेगा? बेरोजगार है…नौकरी ढूंढ रहा है?’’

‘‘कहीं अप्लाई किया है या यूं ही हाथपांव मार रहा है.’’ कुजूर बोले.

‘‘बात बदल रहे हो.’’ आशी बोली.

‘‘क्यों? जिस से पहली बार मिलूं, उस के बारे में जानना जरूरी नहीं. वह भी डायनिंग टेबल पर!’’ कुजूर तहकीकात के अंदाज में बोले.

‘‘आखिर तुम हो तो पुलिस वाले ही न! सोनू मेरा क्लासमेट रह चुका है. मुझ से मदद मांगी, सो यहां साथ ले आई. लेकिन मेरे काम का क्या हुआ?’’ आशी की आवाज बोलतेबोलते तीखी होने लगी थी.

‘‘नाराज क्यों होती हो, समय पर सब कुछ हो जाएगा. मुझे थोड़ा वक्त चाहिए.’’

‘‘कैसे नाराज नहीं होना, कब से बोल रहे हो काम हो जाएगा…हुआ तो नहीं अभी तक.’’ आशी बोली और साथ बैठे सोनू की ओर इशारा किया.

वह वहीं अपना लैपटाप खोले हुए था. एक हाथ से नाश्ता करते हुए बीचबीच में कीबोर्ड पर अंगुलियां चला रहा था.

‘‘वह क्या कर रहा है लैपटाप पर?’’ कुजूर बोले.

‘‘बायोडेटा निकाल रहा है.’’

‘‘किस का?’’

‘‘देखोगे तब मालूम पड़ जाएगा.’’ यह कहते हुए उस ने लैपटाप की स्क्रीन उन की ओर घुमा दी. स्क्रीन पर कुछ तसवीरें थीं, जिन्हें देखते ही कुजूर के माथे पर पसीना आ गया.

‘‘क्या हुआ… यह तो ट्रेलर है. पूरी पिक्चर दिखाऊं क्या?’’ आशी बोली.

‘‘यह सब कब लिया? क्यों लिया?…क्यों किया यह सब तुम ने…’’ कुजूर बोलतेबोलते हांफने लगे थे.

‘‘बीपी की दवाई खा लो, फिर सभी सवालों का जवाब देती हूं.’’ आशी का यह कहना था कि कुजूर करीबकरीब चीख कर बोले, ‘‘लाओ, इधर लैपटाप!’’

उन की तेज आवाज प्रदीप ने भी सुनी और भागता हुआ आया, ‘‘क्या लाऊं साहब!’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हें नहीं बुलाया.’’

‘‘साहब जो दवाई खाते हैं, वह मांग रहे हैं.’’ कुजूर के कुछ बोलने से पहले 21 वर्षीय आशी राजा ही बोल पड़ी.

प्रदीप अपने साहब की ओर देखता हुआ बोला, ‘‘साहब, वह दवाई खत्म हो गई है, बाजार से लानी होगी. आप कहो तो अभी खरीद लाऊं?’’

‘‘हां, जाओ. पहले हम सभी के लिए जूस ले आओ.’’ कुजूर बोले.

थोड़ी देर तक हाल में पहले की तरह शांति छा गई. तीनों नाश्ता करने लगे. डायनिंग टेबल पर जूस के 3 गिलास भी आ चुके थे.

प्रदीप दवाई लाने के लिए बाजार चला गया था. जल्द ही वह वापस लौट आया. अपने साहब को दवाई दी और घर के बिखरे काम को निपटाने में जुट गया. इस बीच उस ने महसूस किया कि उस के साहब तनाव में हैं. वे हाल में ही सोफे पर बैठे दोनों अतिथियों से बातें कर रहे हैं. प्रदीप उन की बातों का कोई मतलब नहीं निकाल पाया. वह औफिस की बात समझ कर अपने काम में लगा रहा. वहां आने वालों को उस ने पहले कभी नहीं देखा था, लेकिन इतना समझ गया था कि साहब से उन का खास संबंध है.

‘‘ठीक है… आप लोग यहीं ठहरो, मैं प्रदीप को बोल देता हूं. लंच यहीं करो… और मैं ने जो कहा है, वह पूरा करो! फिर मैं भी तुम्हारा काम कर दूंगा.’’ कुजूर आशी और सोनू से बोलते हुए खड़े हो गए. बैडरूम की तरफ जाने लगे. जातेजाते प्रदीप को आवाज दी. उसे दोनों के लिए दोपहर का खाना बनाने का आदेश दिया.

‘‘कब तक लौटोगे?’’ आशी ने पूछा.

‘‘जल्द लौट आऊंगा…एक तहकीकात के सिलसिले में जाना है… लेकिन हां, काम खत्म हो जाना चाहिए.’’

‘‘मेरे लिए तो चुटकी भर का काम है…तुम ही मुकर रहे हो?’’

कुछ देर में कुजूर वहां से चले गए. क्वार्टर में प्रदीप के अलावा आशी ओर सोनू थे. दोनों लैपटाप पर क्या कर रहे थे, प्रदीप की समझ से बाहर था, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा था कि हाईटेक खूबसूरत युवती खुद से दुगनी उम्र के उस के साहब से तुमतुम कर के क्यों बातें कर रही थी?…और वह बातबात पर नाराज क्यों हो जाती थी?

एसएचओ ने कमरे में कर लिया सुसाइड

अरविंद कुजूर मध्य प्रदेश के जिला छतरपुर के थाना कोतवाली के एसएचओ (टीआई) थे. उन की उम्र 48 वर्ष थी. उन की थाने से ले कर पूरे इलाके तक में धाक थी. उन की ताकत और कानूनव्यवस्था को लोग अगस्त 2023 में देख चुके थे. तब उन्होंने स्थानीय भीड़ द्वारा की गई पत्थरबाजी को अपने साहस से काबू में करने में सफलता पाई थी, जिस में घायल तक हो गए थे. उन की कर्तव्यनिष्ठा की चर्चा पूरे पुलिस महकमे में होती थी. वह छतरपुर की ही पेप्टेक कालोनी में रहते थे.

परिवार साथ नहीं रहता था. उन की पत्नी 12 और 8 साल की बेटियों के साथ सागर में रहती थी. उन्होंने एक केयरटेकर के तौर पर प्रदीप अहिरवार को रखा हुआ था. थाना कोतवाली में शाम लगभग पौने 7 बजे टीआई अरविंद कुजूर के बारे जो सूचना मिली, उस से थाने में हडक़ंप मच गया. जिस ने भी सुना अवाक रह गया, ‘‘यह क्या हो गया?’’

महिला पुलिसकर्मी बोल पड़ी, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता! जरूर किसी ने मजाक किया है?’’

‘‘सूचना सच है, उन के केयरटेकर ने ही काल कर के बताया है. उन के बंद कमरे से गोली चलने की आवाज आई है.’’

थाना कोतवाली की पुलिस टीम तुरंत अरविंद कुजूर के पेप्टेक कालोनी में स्थित आवास पर पहुंच गई. कुजूर के कमरे का दरवाजा भीतर से बंद था. कमरे के बाहर मौजूद प्रदीप अहिरवार ने बताया कि भीतर कमरे में सिर्फ गोली चलने की आवाज आई. उस के बाद से एकदम शांति है. उस ने कई बार दरवाजे को थपथपाया. कुंडी खटकाई. उस के साहब कुछ नहीं बोल रहे हैं.

वहां आई पुलिस ने दरवाजा तोड़ दिया. कमरे में टीआई कुजूर की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उन का आधा शरीर बैड पर और पैर जमीन पर था. उन का सर्विस रिवौल्वर उन के दाहिने हाथ के पास था. दाहिनी कनपटी पर गोली का निशान था.

पुलिस टीम को समझने में देर नहीं लगी कि कुजूर ने आत्महत्या कर ली है. कमरे की तलाशी ली गई. अमूमन आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सुसाइड नोट छोड़ जाता है, लेकिन कुजूर का लिखा कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. इस वारदात की सूचना तुरंत एसपी अगम जैन के अलावा कुजूर के भाई, रिश्तेदार और उन की पत्नी को भेज दी गई, जो दूसरे शहरों में रहते थे. मौके की जांच करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. तहकीकात और पूछताछ की शुरुआत केयर टेकर प्रदीप अहिरवार से हुई. प्रदीप ने बताया कि उस ने अपने साहब को 5 मार्च, 2025 की सुबह से ही परेशान पाया था. वे आशी राजा मैडम और सोनू ठाकुर के आने के बाद से और भी ज्यादा परेशान दिखे थे.

पहले तो उन्होंने दोनों को बाहर से ही बहाना बना कर चलता करने को कहा था. फिर उन के मन में न जाने क्या आया, जो उन को घर के भीतर बुलाया, नाश्ता करवाया, लंच और डिनर साथ में किया. दोनों उन के घर में 6 मार्च को करीब 4 बजे तक रहे. उस के बाद वह खुद बाजार चला गया था. टीआई कुजूर के साथ किस तरह की बातें होती रहीं? वे करीब 30 घंटे तक कुजूर के घर पर क्यों रुके रहे? इस बारे में प्रदीप कुछ नहीं बता पाया, लेकिन इतना जरूर बताया कि दोनों के जाने के बाद उस के साहब बहुत परेशान दिख रहे थे. दोनों से बातोंबातों में वह बारबार ‘ब्लैकमेल…ब्लैकमेल’ बोल रहे थे.

केयरटेकर ने यह भी बताया कि उस रोज साहब बहुत ही गुस्से में थे और उन दोनों के जाने के बाद भी फोन पर गुस्से में बातें कर रहे थे. घटनास्थल पर पहुंचे डीआईजी ललित शाक्यवार, एसपी अगम जैन, एएसपी विक्रम सिंह सहित जिले के तमाम बड़े अधिकारियों ने वारदात की जांचपड़ताल की. वहां पहुंचने वालों में कलेक्टर पार्थ जायसवाल, एसडीएम अखिल राठौर, तहसीलदार संदीप तिवारी के साथ ही विधायक ललिता यादव भी थीं. फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड ने गहन जांच की. आगे तहकीकात के लिए पुलिस टीम ने इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज का सहारा लिया.

आशी राजा और सोनू ठाकुर की तसवीरों के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया गया, किंतु पुलिस उन तक पहुंच नहीं पाई. पड़ताल में यह पता चला कि टीआई अरविंद कुजूर एबीवीपी की नेता आशी राजा के संपर्क में थे. वह फरार हो चुकी थी. उन तक पहुंचने के लिए एसपी अगम जैन ने 3 टीमें बनाईं. पुलिस टीमों ने उन की तलाश शुरू की. यह घटना ओरछा रोड थाना इलाके में हुई थी. पुलिस ने शहर के 15 से ज्यादा लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया, जिस में कई लड़कियां भी शामिल थीं. इन्हीं में एक युवती और उस का प्रेमी सोनू ठाकुर बुंदेला था. वे पन्ना जिले से गिरफ्तार किए गए.

पुलिस को कई सूत्रों से जो जानकारी मिली उस से पता चला कि टीआई साहब और आशी राजा के बीच चक्कर चल रहा था. टीआई कुजूर अपनी प्रेमिका पर इस कदर फिदा थे कि अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उस पर खर्च करते थे. शहर के कई नेताओं और अधिकारियों से भी उस का मिलनाजुलना होता था. इस आधार पर पुलिस ने उन की मौत को हनीट्रैप का मामला समझा.

21 साल की आशी से थे एसएचओ के संबंध

पुलिस को यह आशंका हुई कि कुजूर एक ऐसे गिरोह की गिरफ्त में आ गए होंगे, जिस में कुछ युवक और युवतियां भी शामिल होंगी. उन के जरिए कुजूर के अंतरंग पलों के वीडियो बनाए गए होंगे. फिर उन के जरिए उन को ब्लैकमेल किया गया होगा. जांच का सिलसिला जैसेजैसे आगे बढ़ा, कुजूर और आशी की कहानी सामने आने लगी. टीआई कुजूर कोई दूध के धुले नहीं थे, बल्कि उन्होंने भी काली कमाई की थी और अय्याश किस्म के इंसान थे. तभी तो उन का 21 वर्षीय आशी राजा के साथ अफेयर चल रहा था.

खुद को गोली मार कर आत्महत्या करने वाले टीआई कुजूर की मौत सनसनीखेज और पूरे शहर को स्तब्ध करने वाली थी. आत्महत्या के कारणों को ले कर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था. हर कोई इस का कारण जानने को उत्सुक था. अरविंद कुजूर पुत्र विलियम कुजूर मूलरूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे. वह पिछले 10 सालों से छतरपुर और पन्ना जिले के विभिन्न थानों में तैनात रहे. करीब 2 साल पहले वह सिटी कोतवाली छतरपुर के टीआई बनाए गए थे. उन की पत्नी सागर के पौलिटेक्निक कालेज में प्रोफेसर हैं. वह 12 और 8 साल की 2 बेटियों के साथ सागर में ही रहती हैं. कुजूर ने शहर में अमनचैन बहाल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कोतवाली में हुए बहुचर्चित पत्थर कांड के समय अरविंद कुजूर ही टीआई थे और उन्होंने कोतवाली पर हमला करने की जुर्रत करने वाले सभी नामजद सहित अनेक आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. बताते हैं कि कुजूर अपनी खुदकुशी से 2 दिन पहले बाहर थे. जांच का सिलसिला जैसेजैसे आगे बढ़ा, वैसेवैसे आशी राजा का नाम केंद्र में आता चला गया. पुलिस ने पाया कि कुजूर उस पर काफी मेहरबान थे. वह उस के साथ शादी भी करना चाहते थे. इतना ही नहीं, उन्होंने आशी को रेंट पर एक मकान भी दिलवाया हुआ था.

आशी राजा महज 21 साल की बेहद खूबसूरत कमसिन बाला थी. उस की सुंदरता और अदाओं पर कुजूर का दिल आ गया था. बदले में उस पर महंगे तोहफे और सोनेचांदी की ज्वैलरी लुटाते रहते थे. यहां तक कि गाड़ी, मकान और प्लौट तक खरीद कर दिए थे. इन तोहफों की कीमत लाखों में थी. इस में डायमंड नेकलेस से ले कर महंगी गाडिय़ां तक शामिल हैं. आत्महत्या के 5 दिन बाद इस मामले में ओरछा थाने में आशी राजा और सोनू ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. जिस में खुलासा हुआ है कि आशी राजा और उस का बौयफ्रेंड सोनू ठाकुर टीआई अरविंद को काफी समय से ब्लैकमेल कर रहे थे.

आरोप लगा कि यह लडक़ी डायमंड का नेकलेस और जमीन जैसी महंगी चीजों की मांग कर रही थी. जब टीआई अरविंद ने उन की मांगें पूरी नहीं कीं तो उन्हें बेनकाब करने की धमकी दी गई. आशी और सोनू की गिरफ्तारी होने के बाद पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया और एक दिन की रिमांड मंजूर हो गई.  पुलिस ने उन से पूछताछ की. पूछताछ में ब्लैकमेलिंग के चौंकाने वाले कई खुलासे हुए. ब्लैकमेलिंग के पैसों से उन्होंने काफी प्रौपर्टी बना ली थी.

कुजूर की गिनती छतरपुर पुलिस में तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों में होती थी. उन की जहां ड्यूटी होती थी, वहां उन का बोलबाला रहता था, लेकिन यह कम लोगों को पता था कि जिस 21 साल की हसीना को वह पुलिस की मुखबिर बता कर लोगों से मिलवाते थे, वह उन की प्रेमिका थी. आशी टीआई कुजूर को नोट छापने की मशीन समझती थी. अपने प्रेमी के साथ मिल कर वह टीआई की भावनाओं से खेलने लगी. आशी राजा ने टीआई अरविंद कुजूर को बुरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया था. बताते हैं कि मौका देख कर उस ने अंतरंग संबंधों के वीडियो भी बना लिए थे. कुजूर आशी की हर मांग को पूरा करने को मजबूर थे.

घटना के दिन ही आशी ने उस से सोनू ठाकुर को मिलवाया, जो उस का बौयफ्रेंड है. फिर दोनों मिल कर टीआई को ब्लैकमेल करने लगे. साथ ही अधिक रुपए और नई गाड़ी की मांग की. यहां तक कि वे एक प्लौट अपने नाम करवाने की जिद कर रहे थे. आशी राजा और सोनू ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद टीआई अरविंद कुजूर के मामले में और कई सवाल उठने लगे कि उन के पास महंगे तोहफे दिलाने के लिए इतने रुपए कहां से आए. हालांकि इस पर कथा लिखे जाने तक जांच शुरू नहीं हुई थी. पूरी जांच उन की खुदकुशी पर टिकी हुई थी.

इस जांच में आशी राजा के पास से गुच्ची ब्रांड का डेढ़ लाख रुपए का बैग, डायमंड का नेकलेस, आईफोन, सोने के झुमके, 2 प्लौट के कागज और एक कार बरामद हुई. जबकि सोनू के पास से एक सफारी कार और आईफोन मिला. पुलिस को कुजूर और आशी के बीच वाट्सऐप चैट भी मिले, जिन से पता चल गया कि वे पन्ना रोड पर एक घर खरीदने की योजना बना रहे थे. शायद यही उन की ब्लैकमेलिंग और विवाद की आखिरी वजह बनी. Love Stories in Hindi Short

Social Stories in Hindi : फरजी हार्ट स्पैशलिस्ट औपरेशन दनादन 7 मौतें

Social Stories in Hindi : गांवदेहात की गलीमोहल्ले में दुकान खोल कर बैठे झोलाछाप डाक्टरों के बारे में आप ने सुना होगा, लेकिन मध्य प्रदेश के जानेमाने मिशन अस्पताल में एक ऐसा फरजी कार्डियोलौजिस्ट पकड़ में आया है, जो न केवल हार्ट के मरीजों का इलाज कर रहा था, बल्कि दनादन सर्जरी भी करता था. जिला प्रशासन की नींद तब टूटी, जब इस की वजह से 7 मरीजों की मौत हो गई. आखिर कैसे चल रहा था इस का गोरखधंधा? 

13 जनवरी, 2025 की शाम को नवी कुरैशी की अम्मी रहीसा बेगम के सीने में दर्द उठा तो आननफानन में उन्हें मध्य प्रदेश के दमोह में स्थित सरकारी अस्पताल ले जाया गया. हालत सीरियस होने पर वहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार कर उन्हें किसी प्राइवेट अस्पताल में हार्ट स्पैशलिस्ट को दिखाने की सलाह दे कर रेफर कर दिया. हार्ट का मामला था, लिहाजा नवी अपनी अम्मी को ले कर शहर के मिशन अस्पताल पहुंच गए. वहां ड्यूटी पर तैनात जो डाक्टर थे, उन्होंने शुरुआती जांच कर नवी से कहा, ”देखिए, पेशेंट को हार्ट अटैक आया है, इन्हें 72 घंटे इनवैस्टीगेशन में रखना होगा.’’

डाक्टर की बात सुन कर नवी घबरा गए. नवी कुरैशी को पता था कि एक साल पहले भी अम्मी को अटैक आया था, पर वह इलाज से ठीक हो गई थीं. ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने एक परची पर जांच लिखते हुए 50 हजार रुपए काउंटर पर जमा करवाने के निर्देश दिए. दूसरे दिन 14 जनवरी को उन की एंजियोग्राफी की गई तथा ईको की जांच के बाद डाक्टर ने नवी से कहा, ”मामला सीरियस है, पेशेंट की 2 नसें ब्लौक हो गई हैं, एक 92 परसेंट तो दूसरी 80 परसेंट तक. इन की सर्जरी करनी पड़ेगी, पैसों का इंतजाम कर लीजिए.’’

नवी ने जब डाक्टर से ईको की जांच रिपोर्ट मांगी तो उन्होंने नहीं दी. 2 दिन पैसों के इंतजाम में चक्कर काटने के बाद हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर से मिले तो उन्होंने कहा कि ब्लौकेज है और इस का हल केवल औपरेशन है. 2 दिन बाद यानी 16 जनवरी को रहीसा  की एंजियोप्लास्टी हुई, जिस के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. मिशन अस्पताल में डा. एन. जौन कैम के द्वारा किए गए औपरेशन के दौरान नवी की अम्मी रहीसा की मौत हो गई. मिशन अस्पताल द्वारा दी गई डिस्चार्ज स्लिप पर 63 साल की रहीसा बेगम की मौत हार्टअटैक से होनी बताई गई थी.

यही वजह थी कि नवी के फेमिली वालों ने डैडबौडी का पोस्टमार्टम भी नहीं करवाया और डैडबौडी ले कर घर आ गए. इसी तरह दमोह के पटेरा में रहने वाले 68 साल के मंगल सिंह राजपूत को 3 फरवरी, 2025 की सुबह 6 बजे सीने में दर्द हुआ था. उन का छोटा बेटा जितेंद्र तुरंत उन्हें मिशन अस्पताल ले कर पहुंचा तो डाक्टर ने सामान्य चैकअप के बाद जितेंद्र से कहा, ”इन्हें मेजर अटैक आया है, तुरंत हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी. पैसों का बंदोबस्त कर लीजिए.’’

”लेकिन डाक्टर साहब, अभी तो हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है.’’ घबराते हुए जितेंद्र बोला.

”इन का आयुष्मान कार्ड है क्या? यदि हो तो केवल जांच का पैसा लगेगा और  औपरेशन हो जाएगा.’’ डाक्टर ने कहा.

”हां साहब, आयुष्मान कार्ड तो है, मंगा लेते हैं घर से. आप औपरेशन की तैयारी कर लीजिए.’’ जितेंद्र ने इतना कह कर अपने बड़े भाई धर्मेंद्र को फोन कर के बता दिया कि पापा की हार्ट सर्जरी होनी है, आप तुरंत आयुष्मान कार्ड ले कर अस्पताल आ जाओ. इस के बाद सुबह करीब 11 बजे धर्मेंद्र आयुष्मान कार्ड ले कर अस्पताल पहुंचे, तब तक मंगल सिंह की सर्जरी हो चुकी थी. उस समय वह होश में थे, उन्होंने आंखें खोल कर हम से इशारे से बातचीत की, इसी दौरान अचानक वे तड़पने लगे तो डाक्टर और मौजूद स्टाफ ने घर वालों को वार्ड से बाहर कर दिया.

मंगल सिंह के दोनों बेटे और भतीजे शीशे से अंदर झांक रहे थे. अस्पताल का स्टाफ उन का सीना दबा रहा था. डाक्टरों ने बाहर से दवा मंगवाई, कुछ देर बाद स्टाफ ने कोरे कागज पर दस्तखत करवाते हुए कहा कि मरीज को वेंटिलेटर पर रखना है. अस्पताल में शाम 4 बजे तक वेंटिलेटर पर रख कर मरीज का इलाज चलता रहा. जब मंगल सिंह के बेटों ने वहां मौजूद कर्मचारियों से पूछा, तब उन्होंने बताया कि आप के मरीज की तो मौत हो चुकी है. इस के बाद कागजात तैयार कर अस्पताल प्रबंधन ने मंगल सिंह की डैडबौडी घर वालों के सुपुर्द कर दी.

 

 

इसी तरह सत्येंद्र सिंह राठौर निवासी लाडनबाग, हथना (दमोह), इजराइल खान, निवासी डा. पसारी के पास (दमोह), बुधा अहिरवाल निवासी बरतलाई, पटेरा (दमोह) भी मिशन अस्पताल में जा कर मौत का शिकार हुए. दमोह के मिशन अस्पताल में हार्ट सर्जरी को ले कर हुए एक बड़े खुलासे में एक युवक की हिम्मत काम आई. यदि युवक पहल नहीं करता तो शायद यह फरजी डाक्टर और भी कई लोगों की जान ले सकता था. मामले का खुलासा तब हुआ, जब दमोह जिले के बरी गांव का रहने वाला कृष्ण कुमार पटेल अपने दादा आशाराम पटेल को सीने में दर्द के इलाज के लिए 29 जनवरी, 2025 को मिशन अस्पताल ले कर पहुंचा

वहां पहुंचने पर उसे बताया गया कि 50 हजार रुपए जमा करो, उस के बाद ही डाक्टर आ कर मरीज की जांच करेंगे. इस के बाद फेमिली वालों ने तुरंत ही अस्पताल में पैसे जमा कराए. तब कहीं डा. एन. जौन केम ने दादाजी का चैकअप किया और एंजियोग्राफी करने के बाद बताया गया कि आशाराम पटेल को मेजर ब्लौकेज है और उन की सर्जरी करनी पड़ेगी. जब कृष्ण कुमार ने रिपोर्ट और जांच के वीडियो मांगे तो डाक्टर से उन की बहस हो गई. डाक्टर ने कोई भी रिपोर्ट और वीडियो देने से मना कर दिया. इस के बाद कृष्ण कुमार को संदेह हुआ कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. लेकिन उस समय उस ने दादाजी को वहां से डिस्चार्ज करा कर जबलपुर ले जाना उचित समझा.

जबलपुर में एक निजी अस्पताल में उन की जांच कराई तो पता चला कि इतने ब्लौकेज नहीं हैं, जितने दमोह में बताए जा रहे थे. वहां पर एंजियोप्लास्टी कराने के बाद वह दमोह आ गए. फिर उस ने बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एडवोकेट दीपक तिवारी से मुलाकात की तथा पूरे साक्ष्य एकत्र करने के बाद उन्होंने मानव अधिकार आयोग, एसपी तथा डीएम साहब से मामले की शिकायत की. लेकिन पुलिस ने समय पर न तो मामला दर्ज किया और न ही आरोपी डाक्टर के खिलाफ कोई जांच की. पुलिस जांच करती या आरोपी डाक्टर पर कोई केस दर्ज करती, इस के पहले ही डाक्टर अस्पताल छोड़ कर फरार हो गया.

इसी बीच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने जब प्रशासन को नोटिस जारी किए तब आननफानन में सीएमएचओ डा. मुकेश जैन ने कथित डाक्टर के खिलाफ कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई.

प्रयागराज में पकड़ा गया फरजी डाक्टर

इस पूरे मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मुकेश जैन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. बताया जाता है कि डा. मुकेश जैन पहले नरसिंहपुर जिले में सिविल सर्जन के पद पर पदस्थ रह चुके हैं. उस दौरान फरजी डा. एन. जौन केम ने वहां पर अपनी प्रैक्टिस चालू की थी. वहीं पर दोनों का परिचय हुआ था. शायद इसी वजह से सीएमएचओ ने समय पर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई. लेकिन जैसे ही मानव अधिकार आयोग ने नोटिस जारी किया तो मजबूरन सीएमएचओ को फरजी डाक्टर के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज कराना पड़ा.

दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक के 3 महीने में मिशन असपताल में हुई 7 मौतों के मामले में जब डाक्टर पर एफआईआर दर्ज हुई तो दमोह जिले के एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने डाक्टर को पकडऩे के लिए एक टीम गठित कर साइबर टीम की मदद ली. फरजी डाक्टर की मोबाइल लोकेशन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मिली. 7 अप्रैल की शाम करीब 4 बजे टीम प्रयागराज पहुंची तो आरोपी का मोबाइल बंद मिला. इधर, दमोह साइबर टीम के राकेश अठया और सौरभ टंडन लगातार डाक्टर की लोकेशन ट्रैस कर रहे थे. लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम प्रयागराज पहुंच गई और स्थानीय पुलिस की मदद से औद्योगिक थाना क्षेत्र इलाके में ओमेक्स अदनानी बिल्डिंग के एक फ्लैट में छिपे डा. एन. जौन कैम को गिरफ्तार कर लिया.

दमोह ले जा कर एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने उस से सघन पूछताछ की. नरेंद्र विक्रमादित्य उर्फ डा. नरेंद्र जौन केम को पुलिस रिमांड पर ले कर उस के गृह निवास कानपुर पहुंची, जहां से कई चौंकाने वाले सच निकल कर सामने आए. एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने बताया, ”नरेंद्र जौन केम के निवास से कई फरजी दस्तावेज मिले हैं, जिस में आधार कार्ड, कई तरह की स्टैंप और कई तरह के फरजी डाक्यूमेंट्स शामिल थे. हालांकि उस के पिता के मुताबिक आरोपी डाक्टर का संपर्क ज्यादातर उस के परिवार से नहीं रहा. वह अपने घर बहुत कम आताजाता था.’’

डाक्टर के दस्तावेजों से पता चला कि उस ने दार्जिलिंग मैडिकल कालेज से  एमबीबीएस की पढ़ाई की थी और पहले ही अटेंप्ट में उस का पीएमटी निकल गया था. इस के बाद उस ने पहली बार नोएडा में प्रैक्टिस शुरू की थी. लेकिन 2013 में उस के द्वारा उपचार में कोताही और फरजीवाड़ा सामने आने के बाद इंडियन मैडिकल एसोसिएशन ने 2014 से 2019 तक उस का रजिस्ट्रैशन कैंसिल कर दिया था. इस अवधि में उस ने हैदराबाद तथा कई अन्य जगहों पर भी अलगअलग नाम से प्रैक्टिस की थी. उस के पिता ने पुलिस को बताया कि नरेंद्र पढऩे में शुरू से ही बहुत होशियार था और लंदन की जार्जिस यूनिवर्सिटी के डा. एन. जौन केम से काफी प्रभावित था. वह उन्हें अपना आदर्श मानता था, इसलिए उन के नाम पर इस ने अपना नाम नरेंद्र जौन केम रख लिया.

पुलिस को उस के घर से कई रिसर्च पेपर भी बरामद हुए. उस के घर में एक पूरी की पूरी लैब बनी हुई थी. वहां से पुलिस ने कई सारी फरजी डिग्रियां और दस्तावेज बरामद किए. जो रिसर्च पेपर बरामद किए गए, उस में इस ने संपादन भी किया. घर से जो चीजें बरामद हुईं, वे फरजी पाई गईं. उस ने पूछताछ में भी यह बात कबूल की. नरेंद्र विक्रमादित्य 2004 से ले कर 2009 तक यूएस में रहा और वहां से इस ने एमडी की डिग्री करने की बात कही है. वह अभी भी इस बात पर कायम है कि उस की सभी डिग्रियां असली हैं. लेकिन अभी तक की जांच में इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है. इस संबंध में पुलिस संबंधित यूनिवर्सिटीज और मैडिकल कालेज से संपर्क कर कर रही है.

पुलिस को जांच में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिस से कि पता चल सके कि इस ने बाहर के मैडिकल कालेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की हो. इस ने केवल एमबीबीएस किया है. उस के बाद की इस की सभी डिग्रियां फरजी हैं. सीएमएचओ मुकेश जैन ने फरवरी माह में मिशन अस्पताल में हुई सभी सर्जरी और डाक्टर्स की जानकारी अस्पताल मैनेजमेंट से मांगी थी, लेकिन अस्पताल मैनेजमेंट ने डा. नरेंद्र जौन केम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. इस की रिपोर्ट 5 मार्च, 2025 को दमोह कलेक्टर सुधीर कोचर को दी गई थी.

दूसरी बार फिर मिशन अस्पताल से डाक्टर के डाक्यूमेंट मांगे गए, तब जो डाक्यूमेंट दिए, उस में बताया गया कि आरोपी डाक्टर ने कोलकाता यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमडी की डिग्री की है और कार्डियोलौजी की डिग्री पुडुचेरी से की है. सभी डाक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सागर मैडिकल कालेज को पत्र लिखा, लेकिन उन का जवाब आया कि वहां कार्डियोलौजिस्ट नहीं है. इसलिए जबलपुर मैडिकल कालेज से जांच की मांग कीजिए. इस के बाद 4 अप्रैल, 2025 को जबलपुर मैडिकल कालेज टीम को जांच के लिए पत्र लिखा गया.

सीएमएचओ मुकेश जैन ने बताया, मैडिकल कालेज जबलपुर की टीम ने जब डाक्टर की डिग्री की जांच की तो उस में पुडुचेरी विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हस्ताक्षर थे. इस बात का सत्यापन करने के लिए जब टीम ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी के हस्ताक्षर चैक किए तो डिग्री में मौजूद हस्ताक्षर और ओरिजिनल हस्ताक्षर में अंतर मिला. इस से स्पष्ट हो गया कि आरोपी डाक्टर की कार्डियोलौजिस्ट की डिग्री फरजी है.

अस्पताल पर ऐसे कसा शिकंजा

नियमानुसार मध्य प्रदेश में प्रैक्टिस करने के लिए डाक्टर को एमपी सरकार के स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रैशन कराना आवश्यक होता है, लेकिन एमपी में डा. कैम रजिस्टर्ड नहीं है. उस के जो दस्तावेज मिले हैं, उस में उस ने आंध्र प्रदेश का रजिस्ट्रैशन लगाया है, लेकिन आंध्र प्रदेश के मैडिकल बोर्ड में भी उस के रजिस्ट्रैशन संबंधी कोई दस्तावेज नहीं पाए गए हैं. मध्य प्रदेश के दमोह में फरजी डाक्टर द्वारा की गई हार्ट सर्जरी और उस से जुड़ी 7 मौतों के मामले में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  के सदस्य प्रियांक कानूनगो 16 अप्रैल, 2025 को दमोह पहुंचे. आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने मृतकों के फेमिली वालों से मुलाकात कर जिला प्रशासन और खासतौर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए.

उन्होंने कहा कि जो तथ्य सामने आए हैं, उन में सीएमएचओ डा. मुकेश जैन की लापरवाही स्पष्ट रूप से उजागर हो रही है. इस फरजी डाक्टर ने दिसंबर 2024 को दमोह के मिशन अस्पताल में फरजी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति पाई. इस दौरान अस्पताल ने उसे ठीक से जांच किए बिना 8 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन देने का कौन्ट्रैक्ट भी किया. चौंकाने वाली बात यह है कि यह अस्पताल सरकार की आयुष्मान भारत स्कीम के तहत गरीबों का इलाज भी करता था. ऐसे में फरजी डाक्टर ने सार्वजनिक फंड्स का लंबे समय तक नुकसान किया और अस्पताल प्रशासन को इस की भनक तक नहीं लगी.

आरोपित डाक्टर ने लंदन के कार्डियोलौजिस्ट डा. एन. जौन कैम के नाम पर ढाई महीने में 15 हार्ट औपरेशन किए. साल 2024 के दिसंबर महीने से फरवरी 2025 के बीच हुए इन औपरेशनों में 7 मरीजों की मौत हो गई.  इस बात का खुलासा तब हुआ, जब एक मरीज के फेमिली वालों को शक हुआ, फिर उन्होंने शिकायत की. इस के बाद मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुंचा.

कौन हैं असली प्रोफेसर जौन कैम?

बीते कई दिनों से देश की सुर्खियों में रहने वाला दमोह का मिशन अस्पताल दरअसल ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित है. इसी अस्पताल के प्रबंधन ने बिना किसी जांचपड़ताल के एक हार्ट स्पैशलिस्ट की सेवाएं लेनी शुरू कर दीं. प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के सख्त निर्देश के बाद हुई काररवाई को अंजाम देते हुए स्वास्थ्य विभाग ने मिशन अस्प्ताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया है. जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मुकेश जैन ने बताया कि मिशन अस्पताल के लाइसेंस की अवधि 31 मार्च 2025 तक थी.

नियमानुसार अस्पताल को लाइसेंस रिन्यूवल के लिए पोर्टल पर अप्लाई करना था, मिशन अस्प्ताल ने अप्लाई भी किया था, लेकिन उस मेंकमियां पाई गईं, जिस वजह से अस्पताल का लाइसेंस निलंबित किया गया है. डा. जैन के मुताबिक अस्पताल प्रबंधन को निर्देश दिए गए हैं कि 3 दिनों के भीतर वो यहां एडमिट मरीजों को डिस्चार्ज कर दे और यदि गंभीर मरीज हैं तो उन्हें जिला अस्पताल में दाखिल कराएं. दमोह में 7 मरीजों की जान का दुश्मन बना नरेंद्र विक्रमादित्य यादव एक फरजी डाक्टर ही नहीं है, बल्कि वह बड़ा शातिर बदमाश भी है. उस ने जिस विदेशी डाक्टर की पहचान चुराई, वह असल में प्रोफेसर जौन कैम हैं.

जौन कैम लंदन के सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल कार्डियोलौजी के एमेरिटस प्रोफेसर हैं. फरजी एन जौन कैम (नरेंद्र विक्रमादित्य यादव) की सच्चाई सामने आने के बाद फैक्ट चेक वेबसाइट बूम ने असली जौन कैम से मामले को ले कर बात की तो उन्होंने कहा, ”नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उन की पहचान का दुरुपयोग कर रहा था.’’ वह उन के njohncamm.com नाम से एक वेबसाइट भी चलाता था और @njohncamm नाम से उस का एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल भी था. हालांकि, अब इसे सस्पेंड कर दिया गया है.

फरजी डा. एन जौन कैम जो वेबसाइट चलाता था, उस पर कई बड़े दावे किए गए हैं. वेबसाइट के अनुसार उस ने एमबीबीएस और एमडी की डिग्री भारत से की है. वहीं, 2001 में सेंट जौर्ज हौस्पिटल लंदन (यूके) से एमआरसीपी (Member, Royal College of Physicians) की डिग्री पूरी की. 2002 में सेंट जार्जेस हौस्पिटल, लंदन में इंटरवेंशनल कार्डियोलौजिस्ट के रूप में जौइन किया और प्रशिक्षण लिया. इस के बाद ब्रिटिश हार्ट एसोसिएशन की सदस्यता मिली और फिर उसे ब्रिटिश मैडिकल जर्नल में समीक्षा बोर्ड का संपादक नियुक्त किया गया. 2004 में आरएफयूएमएस नार्थ शिकागो में डा. जेफरी बी लैकियर के अंडर में फेलोशिप भी पूरी की. साथ ही अब तक प्राइमरी एंजियोप्लास्टी समेत 18 हजार से अधिक जटिल कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी की हैं.

करीब 5 साल पहले एक ट्विटर अकाउंट के जरिए यह पहचान चोरी सामने आई थी, जिस में आरोपी ने खुद को डा. जौन कैम बता कर कई विवादास्पद राजनीतिक बयान दिए थे. मिशन अस्पताल में हुई 7 मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि फरजी दस्तावेजों के जरिए कैथलैब का अवैध रूप से संचालन हो रहा था. इस आधार पर पुलिस ने 9 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. दमोह के एएसपी संदीप मिश्रा ने  बताया, ”मिशन अस्पताल में जिस कैथलैब को सील किया गया था, जब उस की जांच मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा गठित टीम ने की तो पाया कि कैथलैब का अवैध रूप से संचालन हो रहा था.

जिला अस्पताल में पदस्थ डा. अखिलेश दुबे के फरजी हस्ताक्षर कर के कैथलैब संचालन की अनुमति बनाई गई थी. जिस में कुछ मरीजों की एंजियोग्राफी एवं एंजियोप्लास्टी करना पाया गया.’’

स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई शिकायत के आधार पर कोतवाली में बीएनएस की धारा 318 (4), 336 (2), 340 (2), 105, 3, 5 मध्य प्रदेश उपचार एवं रूजोपचार अधिनियम रजिस्ट्रीकरण एवं अधिज्ञापन अधिनियम 1973 एवं नियम 1997 2021 की धारा 12 के तहत केस दर्ज किया गया. जिन 9 लोगों को मामले में आरोपी बनाया गया है, उन में असीम, फ्रैंक हैरिसन, इंदु, जीवन, रोशन, कदीर यूसुफ, डा. अजय लाल, संजीव लैंबर्ट तथा विजय लैंबर्ट के नाम शामिल हैं. मिशन अस्पताल में फरजी डिग्री के सहारे कार्डियोलौजिस्ट बन कर मरीजों की जान से खेलने वाले डा. नरेंद्र यादव को 7 अप्रैल, 2025 को प्रयागराज से गिरफ्तार करने के बाद 18 अप्रैल की दोपहर जिला कोर्ट में पेश किया गया.

इस दौरान डाक्टर के वकील सचिन नायक ने आरोपी के जब्त मोबाइल के लिए कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा कि मेरे मुवक्किल का फोन वापस दिलाया जाए, ताकि वह वकील की फीस दे सके. इस पर सहायक लोक अभियोजक एडीपीओ संजय रावत ने कहा कि मोबाइल की अभी फोरैंसिक जांच होनी है. इस के बाद कोर्ट ने यह मांग खारिज कर दी और आरोपी डाक्टर को 5 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया. उसे पहले 5 दिन और फिर 4 दिन की रिमांड पर लिया. कथा लिखने तक आरोपी तथाकथित डा. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डा. एन जौन कैम से पुलिस पूछताछ कर रही थी.

दिल्ली में पकड़ी गई 12वीं पास फरजी डाक्टर

देश के फरजी झोलाछाप डाक्टर केवल गांवकस्बों में ही नहीं हैं, महानगर भी इन से अछूते नहीं हैं. अप्रैल 2025 में देश की राजधानी दिल्ली में एक फरजी महिला डाक्टर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. फरजी डाक्टर दिल्ली की संगम विहार कालोनी में रहने वाली किरण श्रीवास्तव है, जिस की उम्र 48 साल है. जांच में पाया गया कि महिला डाक्टर सिर्फ 12वीं पास है और उस ने मैडिकल दस्तावेजों में जालसाजी कर के फरजी बीएएमएस डिग्री बिहार से हासिल की दिखाई. उस के आधार पर क्लीनिक खोल लिया.

दिल्ली क्राइम ब्रांच के डीसीपी आदित्य गौतम ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि विकास नगर रणहौला में रहने वाले रमेश कुमार ने इस फरजी डाक्टर के खिलाफ केस दर्ज कराया था. शिकायत में कहा गया कि 2009 में रमेश की गर्भवती पत्नी को पेट दर्द की समस्या थी, जिस के कारण उस ने महिला डाक्टर के पास उसे क्लीनिक में भरती कराया था. फरजी डाक्टर ने पत्नी को क्लीनिक में भरती कर इलाज किया और डिस्चार्ज कर दिया, लेकिन पेट दर्द से छुटकारा नहीं मिल सका. रमेश ने अपनी पत्नी को दोबारा क्लीनिक में भरती कराया तो डाक्टर ने कहा कि महिला की सर्जरी करानी होगी.

उक्त महिला डाक्टर ने पत्नी की सर्जरी की और उसे घर भेज दिया. कुछ दिनों बाद पत्नी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और इलाज के दौरान उस ने दम तोड़ दिया. रमेश ने इस की शिकायत पुलिस में कर दी. जांच में पता चला कि महिला के पास किसी तरह की वैध डिग्री नहीं थी. उस ने बीएएमएस की जाली डिग्री बनवाई थी और उसी के आधार पर क्लीनिक खोला था. पुलिस ने इस मामले में तथाकथित महिला डा. किरण श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर लिया. कुछ दिनों में उसे जमानत भी मिल गई. जमानत मिलने के बाद फरजी महिला डाक्टर कोर्ट में हाजिर नहीं हुई तो 2016 में अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया.

दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया. सूचना के आधार पर पुलिस ने ग्रेटर कैलाश-2 में छापेमारी कर आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में किरण श्रीवास्तव ने बताया कि साल 2005-06 में वह दिल्ली के उत्तम नगर इलाके में एक डाक्टर के पास असिस्टेंट के रूप में काम करती थी. उस क्लीनिक में उस ने बेसिक इलाज करना सीख लिया था. इस के बाद उस ने बीएएमएस की फरजी डिग्री ले कर अपना क्लीनिक रणहौला में खोल लिया, जहां वो स्त्रीरोग संबंधी रोगों का इलाज किया करती थी.

ओटी टेक्नीशियन कराता था महिलाओं की डिलीवरी

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ओटी टेक्नीशियन ने खुद को डाक्टर बता कर 14 महिलाओं की सीजेरियन डिलीवरी कर डाली. 15वें औपरेशन में महिला की मौत हो गई, तब उस की असलियत सामने आई. इस का पता चलते ही टेक्नीशियन और अस्पताल संचालक पतिपत्नी फरार हो गए. गुस्साए फेमिली वालों ने अस्पताल में हंगामा किया. शुरुआती जांच में पता चला कि अस्पताल संचालक पतिपत्नी नारमल डिलीवरी को जटिल बता कर पेशेंट को डराते थे. कहते थे कि पेट में बच्चा टेढ़ा है, फिर सर्जन के नाम पर ओटी टेक्नीशियन को बुला कर औपरेशन करवा कर पैसे भी वसूल करते थे.

चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि अस्पताल भी बिना लाइसेंस के चल रहा था. यहां कोई भी डिग्रीधारी डाक्टर नहीं था. बांसगांव गोहली बसंत निवासी 28 साल की रेनू की दूसरी डिलीवरी होनी थी. 27 अप्रैल, 2025 की शाम को उसे प्रसव पीड़ा हुई तो रेनू के पति दिनेश कुमार ने इस की सूचना गांव की आशा कार्यकर्ता गंगोत्री से मिला. आशा दीदी ने सरकारी एंबुलेंस की मदद से रविवार शाम करीब 4 बजे सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में उसे भरती कराया. 2 घंटे लगातार इलाज होने के बाद डिलीवरी नहीं हुई तो सरकारी अस्पताल के डाक्टर ने उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया.

मगर आशा दीदी गंगोत्री ने रेनू को जिला अस्पताल न ले जा कर बघराई में स्थित श्री गोविंद हौस्पिटल में ले जा कर भरती करा दिया. यहां पर बघराई गांव निवासी अस्पताल संचालक अमरीश राय और उस की पत्नी ने फेमिली वालों को डराया. कहा कि पेट में बच्चा टेढ़ा है, जल्द से जल्द डिलीवरी करानी पड़ेगी. यह सुन कर फेमिली वाले डर गए और औपरेशन के लिए राजी हो गए. पतिपत्नी ने रात 9 बजे ओटी टेक्नीशियन पन्नालाल को बुलाया और मरीज के घर वालों से कहा, ”यही हमारे अस्पताल के सर्जन हैं.’’

इस के बाद ओटी टेक्नीशियन ने औपरेशन किया, महिला ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन इस के बाद उस की तबीयत बिगडऩे लगी. प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगीं. दूसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह हौस्पिटल का वही टेक्नीशियन मरीज को कार से ले कर दूसरे अस्पताल में भरती कराने निकल गया. इस बीच ज्यादा खून बहने से रास्ते में ही रेनू ने दम तोड़ दिया. यह खबर मिलते ही टेक्नीशियन और अस्पताल संचालक पतिपत्नी फरार हो गए. मामला उजागर होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने श्री गोविंद हौस्पिटल पर काररवाई के बाद खजनी इलाके के अवैध तरीके से संचालित श्री हरि मैडिकल सेंटर को भी सील कर दिया.

वहीं लापरवाही से औपरेशन कर प्रसूता की मौत के मामले में 3 आरोपियों गगहा जगरनाथपुर निवासी कथित डा. पन्नालाल दास, उस के बेटे नीरज और गोहली बसंत की आशा कार्यकर्ता गंगोत्री देवी को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया है. Social Stories in Hindi