जंगल में जोड़ियों की अश्लील वीडियो बनाकर करता था Blackmail

Blackmail अपनी प्रेमिका के साथ जो युवक नेवरी पहाड़ी के जंगल में मौजमस्ती करते, अरुण त्रिपाठी पेड़ की आड़ में छिप कर उन की वीडियो बना लेता था. फिर उन युवकों को ब्लैकमेल कर उन से मोटी रकम वसूलता था. संजू और ऋतिक के भी उस ने उन की प्रेमिकाओं के साथ अश्लील फोटो खींच लिए. ये फोटो उस की जान पर ऐसी मुसीबत बन कर आए कि...

3 अक्तूबर, 2024 को शरद नवरात्र का पहला दिन था. रीवा जिले के नारसाखुर्द गांव में दुर्गा पंडाल में संजू

और ऋतिक की मुलाकात कृष्णा लखेरा व अन्य दोस्तों से हुई. वहीं पर संजू और ऋतिक ने उन्हें बताया, ”यार, इस समय हम दोनों बड़ी मुसीबत में फंसे हुए हैं. समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए?’’

”कैसी मुसीबत बताओ?’’ कृष्णा लखेरा ने पूछा.

”बात दरअसल यह है कि हम दोनों जंगल में अपनीअपनी गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती कर रहे थे, तभी अरुण त्रिपाठी ने छिप कर हमारी वीडियो बना ली. वो हम से अब 10 हजार रुपए मांग रहा था. हम ने 2 हजार तो उसे दे दिए, लेकिन 8 हजार और मांग रहा है. इस के बाद ही वो वीडियो डिलीट करेगा. हमारी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें?’’

”बस, इतनी सी बात पर तुम लोग परेशान हो रहे हो. ऐसा करो, तुम लोग पैसे देने के बहाने उसे उसी जंगल में बुला लेना. हम अपने दोस्तों को ले कर वहां पहुंच जाएंगे, फिर उस से जबरदस्ती उस का फोन छीन कर वीडियो डिलीट कर उस का फोन लौटा देंगे.’’ कृष्णा ने कहा.

”हां, यह ठीक रहेगा.’’ संजू और ऋतिक एक साथ बोले.

उसी समय साजन उर्फ संजू साकेत, ऋतिक साकेत, अमित साकेत, कृष्णा लखेरा आदि 9 दोस्त 3 बाइकों पर सवार हो कर अरुण के खेत पर पहुंचे. वहीं से संजू और ऋतिक ने अरुण को पैसे देने के बहाने फोन कर बुला लिया. अरुण को फोन करते ही बाकी सभी दोस्त इधरउधर छिप गए थे. अरुण के वहां पर पहुंचते ही सारे दोस्त उस के सामने आ खड़े हुए. अपने सामने 9 युवकों को खड़ा देख अरुण की थोड़ी हिम्मत टूटी भी, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. जैसे ही सभी ने उस से उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की, अरुण अपने डंडे से गुप्ती निकालने लगा.

तभी संजू और ऋतिक ने उस के हाथ से वह गुप्ती छीन ली. फिर भी अरुण उस डंडे से उन पर वार करने लगा. तभी संजू ने गुप्ती से उसे डराने की कोशिश की. उसी विवाद के बढ़ते गुप्ती अरुण के सीने में घुस गई, जिस के कुछ समय बाद ही अरुण ने दम तोड़ दिया. अरुण के खत्म होते ही संजू ने उस का मोबाइल और उस की गुप्ती अपने पास रखी और सभी दोस्तों के साथ अपने गांव आ गया था.

इस घटना से एक दिन पहले 2 अक्तूबर, 2024 को अरुण त्रिपाठी अपने घर में काफी खुश था. उस दिन उस का ध्यान पूरी तरह से मोबाइल पर ही टिका हुआ था. कई बार वह अपने परिवार की नजरों से बच कर मोबाइल खोलता, फिर वह उस में पड़ी वीडियो को देखने लगता था. जिस को देख कर उस के चेहरे की आभा और भी बढ़ जाती थी. उस के हावभाव को देख कर उस की पत्नी सुमन समझ चुकी थी कि आज अरुण ने फिर से किसी नए जोड़े को अपने चंगुल में फंसा लिया है, जिस के कारण वह काफी खुश नजर आ रहा था.

उस शाम अरुण की पत्नी सुमन ने जल्दी खाना तैयार कर लिया था. फिर सभी को खाना खिला कर अपना काम भी खत्म कर लिया था. रात होते ही उस के बच्चे खाना खापी कर अपनेअपने कमरों में आराम करने चले गए थे. अपने काम से छुटकारा पाने के बाद सुमन जिस वक्त अपने कमरे में पहुंची, अरुण अपने मोबाइल में किसी वीडियो को देखने में मस्त था.

”लगता है, आज फिर कोई नई पोर्न वीडियो लौंच हो गई,’’ सुमन ने हंसते हुए पति की तरफ देखते हुए कहा.

”हां, आओ मेरी रानी, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था. वीडियो लौंच भी हो गई और 10 हजार रुपए में बिक भी गई. यह लो उस के 2 हजार एडवांस.’’ कहते ही अरुण ने खुशी से पत्नी को अपनी बाहों में भर लिया. उस के बाद अरुण ने अपने मोबाइल में पड़ी फोटो और वीडियो एकएक कर पत्नी को दिखानी शुरू की, जो उस ने उसी दिन बनाई थीं. उस दिन अरुण ने एक साथ 2 प्रेमी जोड़ों के कुछ फोटो और वीडियो बनाई थीं, जिस में दोनों ही जोड़े अलगअलग जगहों पर निर्वस्त्र हो कर दुनियादारी से बेखबर हो कर काम वासना में लिप्त थे.

अरुण ने बहुत ही चालाकी से छिपतेछिपाते दोनों की अश्लील फोटो Blackmail और वीडियो अपने मोबाइल में कैद कर ली थीं, जिन के माध्यम से दोनों जोड़ों को ब्लैकमेल किया जा सके. अरुण का यह कोई पहला काम नहीं था. इस से पहले भी वह न जाने कितने प्रेमी जोड़ों की वीडियो व फोटोग्राफी कर चुका था. उन्हीं फोटो व वीडियो के सहारे वह कितने लोगों को ब्लैकमेल कर उन से मोटी रकम ऐंठ चुका था. अरुण हर रोज नेवरी पहाड़ी के जंगलों में मौजमस्ती करने वालों की चोरी से फोटो खींचता, फिर उन्हें दिखा कर उन को वायरल करने की धमकी दे कर उन से काफी मोटी कमाई करता आ रहा था.

अरुण लोगों से मोटी रकम वसूल कर उन्हें विश्वास दिलाने के लिए कुछ फोटो व वीडियो अपने मोबाइल से डिलीट भी कर देता, लेकिन उस से पहले ही उन को किसी दूसरे ऐप में सेव कर लेता था. ताकि वह आगे भी उन को दिखा कर उन से फिर से मोटी रकम ऐंठ सके. यह सिलसिला काफी समय से चला आ रहा था. अरुण त्रिपाठी हमेशा ही अपनी बाइक में एक ठोस बांस का मोटा डंडा बांध कर रखता था, जिस के एक छोर पर उस ने गुप्ती (दोनों तरफ तेज धार वाला लंबा चाकू) फिट करा रखी थी. इसी को दिखा कर वह उस से उलझने वालों को डराधमका लेता था. वह मजबूत कदकाठी का व्यक्ति था, जिस के कारण कोई भी ऐसावैसा व्यक्ति उस से भिडऩे की हिम्मत नहीं कर पाता था.

ब्लैकमेल करना अरुण को क्यों पड़ा भारी

Blackmail 3 अक्तूबर, 2024 को सुबह से ही अरुण का ध्यान पूरी तरह से मोबाइल पर ही लगा हुआ था. उस के मन में एक उल्लास भरी खुशी थी कि कब वे लोग उसे फोन करें और वह 8 हजार रुपए ले कर घर वापस आए. तब तक दोपहर हो चली थी. लेकिन उन लोगों का कोई फोन नहीं आया. फोन काल का इंतजार करतेकरते अरुण खाना खाने बैठ गया. वह अभी पूरी तरह से खाना खा भी नहीं पाया था, तभी उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया.

फोन सुनते ही उस के चेहरे पर मुसकान उभर आई. उस ने तुरंत ही खाना खाना बीच में ही छोड़ दिया. उस के तुरंत बाद ही उस ने अपनी बाइक स्टार्ट की और पीछे अपने बड़े बेटे को बिठा कर अपने खेतों की तरफ निकल गया. अपने बेटे को खेतों पर छोड़ कर वह बाइक से जंगल की तरफ चला गया. जाते समय बेटे से वह कह गया था कि थोड़ी देर में लौट कर आता है. जंगल में उसे संजू और उस के साथी मिले. संजू और उस के दोस्तों ने उस से मोबाइल से वीडियो डिलीट करने को कहा तो इसी बात पर दोनों में गरमागरमी हो गई. इसी बीच अरुण की गुप्ती से ही अरुण की मौत हो गई.

उधर काफी देर तक अरुण नहीं लौटा तो उस के बेटे ने फोन किया, जो बंद आ रहा था. फिर बेटा भी घर लौट आया. मध्य प्रदेश के जिला सतना के सभापुर थानांतर्गत एक गांव पड़ता है मचखेड़ा. 40 वर्षीय अरुण त्रिपाठी इसी गांव का रहने वाला था. गांव से कुछ ही दूरी पर नेवरी मचखेड़ा की पहाडिय़ों पर फैले घने जंगलों के किनारे अरुण त्रिपाठी का खेत था. वह खेती करने के साथ ही इसी इलाके में बंद पड़ी एक फैक्ट्री में चौकीदारी का काम भी करता था. फिर भी इन दोनों कामों से उस की आय सीमित ही थी. लेकिन जिस तरह से वह खुले हाथों से खर्च करता था, लोग उस से जलते थे. आखिर वह इतना पैसा लाता कहां से है.

उस वक्त दिन के कोई ढाई बजे का समय था. थाना सभापुर के टीआई रविंद्र द्विवेदी को स्थानीय लोगों ने मोबाइल पर सूचना दी कि सतीक्षण आश्रम के पास नेवरी में सड़क के किनारे एक युवक का शव पड़ा हुआ है. सूचना पाते ही टीआई रविंद्र द्विवेदी तुरंत ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. मृतक युवक औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उस के आसपास काफी खून पड़ा हुआ था. घटनास्थल से कोई 50 मीटर दूर एक बाइक पड़ी हुई थी. पुलिस टीम ने उस युवक की जांचपड़ताल की तो उस के चेहरे पर काफी घाव होने के साथसाथ उस के सीने पर गोली मारे जाने जैसा घाव बना हुआ था.

मोबाइल में छिपा मिला अरुण की हत्या का राज

यह सब जानकारी जुटाने के बाद रविंद्र द्विवेदी ने इस घटना की जानकारी एएसपी विक्रम सिंह कुशवाह और एसपी (सतना) आशुतोष गुप्ता को दी. तब तक मौके पर जमा लोगों ने उस युवक की पहचान मचखेड़ा निवासी अरुण त्रिपाठी के रूप में कर दी थी. उसी समय घटनास्थल के पास कुछ चरवाहे मवेशी चरा रहे थे. पुलिस ने उन से भी इस मामले में पूछताछ की, लेकिन उन से भी हत्या से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला.

जिस के तुरंत बाद ही पुलिस ने उस के परिवार को भी सूचित कर दिया था. सूचना पाते ही उस के परिवार वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने इस मामले में उस के घर वालों के साथसाथ गांव वालों से भी गहन पूछताछ की, जिस से पता चला कि इन के परिवार में जमीन को ले कर विवाद चल रहा था. अरुण त्रिपाठी की जमीन के बीचोबीच उस की भाभी की जमीन थी, जो कुछ समय पहले उस ने वह जमीन किसी रिटायर फौजी को बेच दी थी. जिस पर जाने के लिए उस की फौजी से आए दिन तकरार होती रहती थी.

गांव वालों को शक था कि शायद उसी फौजी ने अरुण की हत्या करा थी. लेकिन पुलिस इस मामले में कोई भी कदम जल्दबाजी में नहीं उठाना चाहती थी. मृतक के घर वालों ने पुलिस को बताया कि किसी का फोन आने पर अरुण बाइक से घर से निकला था, जिस का राज उस के मोबाइल में ही कैद था. जो इस वक्त बंद आ रहा था. उस के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए अरुण की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि अरुण के सीने पर गोली मारे जाने का निशान नहीं, बल्कि गुप्ती जैसे हथियार का गहरा घाव था. जिस के लगने से ही उस की मौत हुई थी. तभी उस के घर वालों ने पुलिस को जानकारी दी कि वह एक गुप्ती हमेशा ही अपने साथ रखता था, जो घटना के बाद से गायब थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि उस की गुप्ती ही उस की मौत का कारण बन गई थी. उस के बाद पुलिस को यह भी लगा कि उस की हत्या में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे.

अरुण की हत्या खेतों पर की गई थी, जहां पर आसपास कोई सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा था. जिस के कारण यह केस पुलिस के लिए एक चुनौती बन गया था. इस हत्याकांड के खुलासे के लिए एसपी आशुतोष गुप्ता ने कई थानों के स्टाफ की टीमें बनाईं, जिस में एडिशनल एसपी (देहात) विक्रम सिंह कुशवाह, एसडीओपी (चित्रकूट) रोहित राठौर, वैज्ञानिक अधिकारी डा. महेंद्र सिंह, सभापुर के टीआई रविंद्र द्विवेदी, इंसपेक्टर उमेश प्रताप सिंह, विजय सिंह, एसआई अजीत सिंह व अन्य पुलिसकर्मी शामिल थे.

इतना ही नहीं, एसपी (सतना) आशुतोष गुप्ता ने इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए 10 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया था. पुलिस ने अपनी जांचपड़ताल शुरू करते ही उस जंगल से घिरे ग्रामीण इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाले. जिस में घटना के समय 3 बाइकें दौड़ती नजर आईं. तीनों बाइकों पर 9 लोग सवार थे. लेकिन उन कैमरों से न तो उन लोगों की पहचान ही हो पा रही थी और न ही गाडिय़ों के नंबर साफ नजर आ रहे थे.

उस के बाद पुलिस टीम आगे बढ़ी तो बीरसिंहपुर चौराहे पर लगे कैमरे चैक किए. जहां पर उन तीनों बाइकों के नंबर भी ट्रेस हो गए. साथ ही उन 9 लोगों में से 3 की पहचान भी हो गई. इन में से 2 युवक ऋतिक साकेत और साजन उर्फ संजू साकेत रीवा जिले के सुरसाखुर्द गांव के रहने वाले थे. पुलिस ने अगले ही दिन सुबहसुबह उन के घरों की घेराबंदी करते हुए दोनों को उठा लिया. दोनों युवकों से कड़ी पूछताछ की तो उन्होंने अरुण की हत्या वाली बात स्वीकार भी कर ली. उस के साथ ही अपने अन्य 7 साथियों के नाम भी बता दिए थे.

पुलिस ने तुरंत ही थाना कर्चुलियान जिला रीवा से अमित साकेत, कृष्णा लखेरा के अलावा 4 माइनर्स को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मृतक की गुप्ती, मृतक का टूटा हुआ मोबाइल फोन व हत्या में प्रयुक्त बाइकें भी बरामद कर ली थीं. हालांकि जिस तरह से सुनसान पहाड़ी इलाके में इस हत्या को अंजाम दिया गया था, इस केस की तह तक जाना पुलिस के लिए बहुत ही सिरदर्दी भरा काम था. लेकिन सीसीटीवी कैमरों से मिले सुराग से पुलिस ने 24 घंटे में आरोपियों तक पहुंचने में सफलता हासिल कर ली थी.

हालांकि इस हत्याकांड को अंजाम देने में 9 व्यक्ति शामिल थे. लेकिन इस हत्याकांड की मुख्य भूमिका में संजू सब से बड़ा सूत्रधार था. संजू से पुलिस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

अय्याशी के गर्त में कैसे पहुंचा संजू

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के कर्चुलियान थाना इलाके के सरसाखुर्द गांव निवासी साजन उर्फ संजू किशोर उम्र से ही गलत संगत में पड़ गया था. संजू के पापा कामता प्रसाद के पास गांव में ही कुछ जुतासे की जमीन थी. कामता प्रसाद ने संजू के भविष्य को देखते ही उसे गांव के स्कूल में पढऩे भेज दिया था. संजू जन्म से कामचोर किस्म का था. पढ़ाई में उस का बिलकुल भी मन नहीं लगता था. वह स्कूल में लड़कियों से दोस्ती करने का ज्यादा शौकीन था. यही कारण था कि हर वक्त वह पढ़ाई पर ध्यान न दे कर सुंदर लड़कियों के पीछे पड़ा रहता था.

जब उस की हरकतों का उस के पापा को पता चला तो उन्होंने उस की पढ़ाई बंद कर उसे अपने साथ खेतीबाड़ी के काम में लगा लिया था. लेकिन उस का खेतीबाड़ी में पहले से ही मन नहीं लगता था. पढ़ाई छोडऩे के बाद खेतों पर जाना उस की मजबूरी बन गई थी. संजू ने जैसे ही खेतों पर जाना शुरू किया तो उसे पता चला कि उस के खेतों पर कई महिलाएं काम करने आती थीं. उसी दौरान एक दिन उस की नजर एक खूबसूरत लड़की पर पड़ी जिस का नाम अंजलि था. वह अपनी मां के साथ खेतों पर काम करने आती थी.

अंजलि को देखते ही उस का मन उसे पाने के लिए मचल उठा. फिर वह उस का सान्निध्य पाने के लिए नएनए प्लान बनाने लगा. जब तक अंजलि उस के खेतों पर काम करती, उस की निगाहें उसी पर जमी रहती थीं. अंजलि भी उस की निगाहों से उस के मन की बात भांप चुकी थी. वह उस वक्त कोई 12-13 साल की रही होगी, तभी उसी बाली उम्र में उस के एक नजदीकी रिश्तेदार ने उस का यौनशोषण कर डाला था. जिस के बाद उस के परिवार में काफी हलचल पैदा हो गई थी. तभी से उस की मां उसे हर वक्त अपने साथ ही रखती थी.

यही कारण रहा कि अंजलि को अपने जाल में फंसाने के लिए संजू को कोई ज्यादा हाथपांव नहीं मारने पड़े. अंजलि जल्दी की उस के संपर्क में आ गई और फिर दोनों ने एक दिन हसरतें भी पूरी कर लीं. संजू अंजलि पर आए दिन पैसा लुटाने लगा. उस से संपर्क बनाए रखने के लिए उस ने उसे एक मोबाइल भी खरीद कर दे दिया था, जिस के माध्यम से दोनों के बीच हर वक्त संपर्क बना रहता था.

लगभग एक साल पहले की बात है. संजू और अंजलि गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर निर्वस्त्र हो कर कामवासना में लिप्त थे. उसी वक्त ऋतिक की नजर उन दोनों पर पड़ी. ऋतिक संजू के गांव का उस का जिगरी दोस्त था. अंजलि ने उसे देख लिया था. ऋतिक को देखते ही संजू को हटा कर अंजलि ने फटाफट अपने कपड़े पहन लिए. लेकिन संजू की हवस नहीं मिटी. वह फिर भी उस के साथ जोरजबरदस्ती करने लगा. सामने ऋतिक को देख कर संजू सब माजरा समझ गया. उस के बाद अंजलि वहां से चली गई.

उसी शाम संजू की मुलाकात ऋतिक से हुई तो वह भी अंजलि के साथ संबंध बनाने के लिए उस पर दबाव बनाने लगा. संजू जानता था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह पूरे गांव में हल्ला मचा देगा. संजू ने अंजलि से ऋतिक के बारे में उस से बात की तो उस ने उस के साथ संबंध बनाने से पूरी तरह से इंकार कर दिया था. लेकिन अंजलि ने संजू को एक रास्ता सुझाया. अंजलि ने बताया कि उस की गांव की एक सहेली सोनिया है. अगर वह चाहे तो वह उस की दोस्ती उस से करा सकती है. संजू ने ऋतिक से इस बारे में बात की तो वह आसानी से मान गया. अगले ही दिन अंजलि अपने साथ अपनी सहेली सोनिया को ले कर संजू और ऋतिक से मिली. उस दिन के बाद दोनों दोस्त अपनीअपनी प्रेमिकाओं के साथ मौजमस्ती करने लगे थे.

फोन में किस ने कैद कर ली संजू की अय्याशी

2 अक्तूबर, 2024 को दोनों दोस्त अपनी प्रेमिकाओं को बाइक पर बिठा कर मौजमस्ती के मकसद से मचखेड़ा गांव के पास नेवरी की पहाड़ी पर स्थित घने जंगलों में जा पहुंचे. वहां पहुंचते ही दोनों ने सड़क के किनारे अपनी बाइकें खड़ी कर दीं. उस के बाद दोनों जोड़े घने जंगल में मौजमस्ती करने के लिए चले गए. तभी अरुण की नजर उन चारों पर पड़ी तो वह उन्हें अपना शिकार बनाने के लिए उन के पीछे लग गया. फिर वह पेड़ों के पीछे छिप कर उन की हरकतों पर नजर रखने लगा. कुछ ही देर बाद दोनों प्रेमी जोड़े निर्वस्त्र हो कर काम वासना में लिप्त हो गए. तभी मौका पाते ही अरुण ने उन दोनों जोड़ों की अश्लील फोटो खीचने के साथसाथ उन की वीडियो Blackmail भी बना ली थी.

अपना काम पूरा करने के बाद अरुण उन के सामने जा खड़ा हुआ. इस तरह अचानक अरुण को अपने सामने देख कर चारों बुरी तरह से घबरा गए. उस के बाद संजू और ऋतिक ने अरुण से माफी मांगी और उस के पैर तक पकड़े. फिर इन चारों ने वहां से जाने की कोशिश की तो अरुण ने कहा, ”जाना चाहते हो तो शौक से जाओ, मैं आप को क्यों रोकूंगा. लेकिन जाने से पहले अपनी यह फोटो और वीडियो देखते जाओ. शायद यह भविष्य में किसी के देखने के काम आए. ये सब वायरल करने के बाद न जाने कहांकहां तक देखी जाएंगी. हो सकता है कि ये सब आप के परिवार वालों के सामने भी जा पहुंचे.’’

अपनी अश्लील फोटो और वीडियो देखते ही चारों बुरी तरह से डर गए. उसी दौरान अरुण ने अपने मोबाइल में रीवा और सतना के कुछ जोड़ों की और वीडियो दिखाते हुए कहा, ”इन सब ने भी पहले पैसा देने से आनाकानी की थी. लेकिन बाद में वे मुझे मेरी फीस चुकता कर के चले गए. उस के बाद भी ये लोग जब कभी भी आते हैं तो मैं इन सब की पूरी सुरक्षा करता हूं. तुम भी मुझे मेरी 10 हजार रुपए फीस दे कर चले जाओ. उस के बाद कभी भी मौजमस्ती करने आओ, मैं तुम लोगों की पूरी सुरक्षा करूंगा.’’

ऋतिक थोड़ा गर्म स्वभाव का था. अरुण की बात सुनते ही वह आगबबूला हो उठा. उस ने एक पैसा भी देने से मना किया तो अरुण ने तुरंत ही अपने डंडे से गुप्ती निकाल कर धमकाने की कोशिश की. चूंकि दोनों के साथ 2 युवतियां भी थीं, इसीलिए विवाद से बचने के लिए संजू और रितिक ने अपने पास से 2 हजार रुपए अरुण को देते हुए मोबाइल से वीडियो और फोटो डिलीट करने को कहा. उस के बाद अरुण ने कहा कि ठीक है यह आप के 2 हजार रुपए मेरे पास एडवांस जमा हैं. कल बाकी 8 हजार रुपए ले कर आ जाना. आप की वीडियो कल ही आप के सामने डिलीट कर दूंगा. फिर चारों अपनी बाइक से अपने घर चले गए. अरुण भी अपने घर चला गया.

संजू और उस के दोस्तों को विश्वास था कि अरुण की हत्या करने के बाद उस का मोबाइल साथ लाने से हत्या का राज खुल ही नहीं पाएगा. लेकिन सीसीटीवी से मिले सुरागों से पुलिस ने 24 घंटे में सभी को गिरफ्तार कर इस मामले का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने सभी बालिग आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें जेल और चारों नाबालिगों को बाल सुधार गृह भेज दिया. एसपी आशुतोष गुप्ता ने इस केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए दे कर सम्मानित किया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अंजलि और सोनिया परिवर्तित नाम हैं.

 

नकली Police बनकर प्रेमी और प्रेमिका ने गांव वालो को ठगा

भगवानदास और ज्योति ने नकली पुलिस बन कर कमाई का रास्ता तो निकाल लिया था, पर वे ये नहीं सोच सके कि नकली और असली का फर्क पता चल ही जाता है. आखिर…

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर एक गांव है कुम्हड़ी. आदिवासी बहुल इस छोटे से गांव में रहने वाले उम्मेद ठाकुर की 24 वर्षीय बेटी ज्योति की पुलिस में सिपाही की नौकरी लगने की जानकारी से गांव के लोग बहुत खुश थे.  गांव के युवक जब ज्योति को पुलिस की वरदी में देखते तो उन की आंखों में भी पुलिसिया रौब वाली इस नौकरी को पाने के सपने सजने लगते थे. ज्योति के पिता उम्मेद ठाकुर गांव वालों को बताते थे कि उन का दामाद सूरज धुर्वे पुलिस में दरोगा है, उस की पुलिस अधिकारियों से अच्छी जानपहचान है.

इसी जानपहचान की बदौलत उस ने ज्योति की सिपाही के पद पर नौकरी लगवा दी. गांव वाले उम्मेद ठाकुर की ही नहीं बल्कि उस की बेटी ज्योति की भी बहुत तारीफ करते और ज्योति से पुलिस में भरती होने के उपाय पूछते थे. तब ज्योति उन्हें कड़ी मेहनत करने और खूब पढ़ाई करने की सलाह देती थी. पिछले करीब एक महीने से गांव वाले देख रहे थे कि रात के समय उम्मेद ठाकुर के घर रोज पुलिस की नेमप्लेट लगी एक बोलेरो गाड़ी आती थी. सब लोग समझते थे कि उम्मेद ठाकुर की लड़की ज्योति पुलिस में है, ड्यूटी के बाद पुलिस की गाड़ी उसे छोड़ने आती होगी. नीली बत्ती लगी हूटर बजाती हुई वह बोलेरो गाड़ी जब उम्मेद के घर की तरफ आती तो उसे देखने के लिए अन्य लोगों के अलावा पढ़ेलिखे नवयुवक भी आ जाते.

गाड़ी से पुलिस की वरदी पहने एक साधारण कदकाठी और करीब 25 साल के युवक के साथ ज्योति नीचे उतरती तो गांव वाले उन्हें नमस्कार के साथ खूब सम्मान देते थे. पुलिस की वरदी पहने युवक के कंधे पर 2 स्टार लगे थे. सामने शर्ट की जेब के ऊपर लगी नेमप्लेट पर उस का नाम सूरज कुमार धुर्वे एसआई लिखा हुआ था. पुलिस बेल्ट में रिवौल्वर और सिर पर पुलिस कैप लगी रहती. गांव में बारबार आने वाले पुलिस दरोगा सूरज धुर्वे गांव के लोगों को पुलिसिया धौंस के साथ यह प्रलोभन भी देने लगे थे कि कुछ पैसे खर्च करो तो हम आप के बेटेबेटियों की पुलिस में भरती करवा देंगे. वह यह भी बताता कि उस की पुलिस मुख्यालय (भोपाल) में ऊंची पहुंच है, जिस के बूते पर उस ने ज्योति को पुलिस में भरती करा दिया है.

इसी साल के जुलाई महीने में यह गाड़ी ग्रामीण इलाकों में कुछ ज्यादा ही घूमने लगी थी. दरोगा सूरज धुर्वे गांव के कुछ युवाओं से पुलिस में नौकरी लगवाने के नाम पर खुलेआम पैसों की मांग करता था. एक दिन तो दरोगा सूरज एक मामले में ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक का वारंट ले कर आया. उस के साथ ज्योति भी थी. इन दोनों ने रोजगार सहायक से 10 हजार रुपए ऐंठ लिए. आए दिन ये लोग क्षेत्र की किसी भी सड़क पर वाहन चैकिंग करने लगते. फिर गाड़ी के कागजों में कोई कमी निकाल कर या हेलमेट न पहनने के नाम पर वसूली करते थे. इस से लोगों में इन के प्रति नाराजगी भी दिखने लगी थी. पुलिस के इन दोनों कर्मचारियों की गतिविधियों की चर्चा जिला मुख्यालय नरसिंहपुर में भी होने लगी थी. इस के बाद तो लोग इन की कदकाठी और गतिविधियों को ले कर शंकित भी रहने लगे थे.

जब कुछ ग्रामीणों को इन की गतिविधियों पर शक हुआ तो कुम्हड़ी गांव के ही कालूराम मल्लाह और गंजन लोधी ने इस की सूचना थानाप्रभारी आर.के. गौतम को दी. थानाप्रभारी ने जब अपने स्तर से दरोगा सूरज धुर्वे और आरक्षक ज्योति की जांच की तो चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. पता चला कि इस जिले में इस नाम का व्यक्ति पुलिस महकमे में पदस्थ नहीं है. थानाप्रभारी ने पुलिस अधीक्षक डी.एस. भदौरिया और एसडीपीओ राकेश पेंड्रो को इस मामले की सूचना दे दी. इस के बाद एसपी डी.एस. भदौरिया ने उन तथाकथित पुलिस वालों को गिरफ्तार करने के लिए एसडीपीओ के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई. टीम ने मुखबिरों को बता दिया कि जैसे ही सूरज धुर्वे और ज्योति पुलिस वरदी में दिखे, उन्हें सूचित कर दें.

19 जुलाई, 2018 की शाम को जैसे ही सूरज धुर्वे और ज्योति हूटर बजाती हुई गाड़ी में कुम्हड़ी गांव पहुंचे तो मुखबिर ने थानाप्रभारी आर.के. गौतम को इत्तला दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस टीम कुम्हड़ी गांव पहुंच गई. टीम ने ग्रामीणों को ठगी का शिकार बना रहे तथाकथित दरोगा सूरज कुमार धुर्वे, आरक्षक ज्योति ठाकुर और वाहन चालक बृजेश मेहरा को धर दबोचा. पुलिस ने इन के पास से पुलिस को नकली आईडी कार्ड, एमपी49 टी1054 नंबर की बोलेरो गाड़ी जब्त की, जिस में हूटर और वायरलैस सेट लगा था. ग्रामीणों ने फिल्मों में नकली पुलिस की भूमिका निभाते ऐसे कई किरदार देखे थे परंतु नरसिंहपुर जिले में असल जिंदगी में भी नकली पुलिस बन कर ठगी करने वाला यह मामला पहली बार सामने आया था.

जिले के आला पुलिस अफसरों को जब इस की जानकारी मिली तो उन के होश उड़ गए. आरोपियों को पुलिस अभिरक्षा में ले कर की गई पूछताछ में पुलिस को जो जानकारी मिली, वह काफी चौंकाने वाली थी. प्रैसवार्ता का आयोजन कर एसडीपीओ आर.के. पेंड्रो ने बताया कि मूलरूप से सिंगरौली जिले के देवसर गांव का रहने वाला युवक भगवान दास, एसआई सूरज धुर्वे बन कर घूम रहा था. उस ने पुलिस का फरजी आईकार्ड भी बना रखा था. वहीं उस के साथ रह रही कुम्हड़ी गांव के उम्मेद ठाकुर की बेटी ज्योति ठाकुर फरजी महिला आरक्षी बन कर घूमती थी. दोनों करीब 7 महीने पहले जबलपुर रेलवे स्टेशन पर पहली बार एकदूसरे से मिले थे.

पहली ही मुलाकात में दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ गई थीं. महज नौवीं कक्षा तक पढ़े ये दोनों युवकयुवती प्यार की दुनिया में खो कर सुनहरे सपने तो सजा रहे थे लेकिन इन के बीच बेरोजगारी दीवार बन कर खड़ी थी. पैसों की तंगी से परेशान दोनों ने पैसा कमाने के लिए नकली पुलिस बनने की योजना बनाई थी.

पुलिस की वरदी इन्होंने जबलपुर के किसी टेलर से तैयार कराई थी. पुलिस वरदी में उपयोग होने वाली नेमप्लेट, स्टार, नकली रिवौल्वर, हूटर भी जबलपुर से खरीदे थे. आरोपी भगवानदास उर्फ सूरज कुमार खुद को डीजी पुलिस का करीबी बता कर लोगों से काम कराने के नाम पर वसूली करता था. वह और ज्योति पतिपत्नी के रूप में रह रहे थे. दोनों ने गांव नंदवारा निवासी राजेश की उक्त नंबर की बोलेरो जीप 22 हजार महीना किराए पर ले रखी थी. उस कार को उन्होंने पुलिस वाहन की तरह तैयार करवा लिया था, जिस में 2 जगह अंगरेजी में पुलिस लिखा हुआ था. इस वाहन में पुलिस वाहन की तरह ही एंप्लीफायर व हूटर भी लगे हुए थे. इसे राजेश का चचेरा भाई 32 वर्षीय ब्रजेश चलाता था.

ब्रजेश मेहरा का कहना था कि वह तो केवल ड्राइवर की नौकरी कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि ये नकली पुलिस वाले हैं. ये लोग जिस जगह के लिए गाड़ी ले कर चलने को कहते थे, वह चल देता था. फिल्म बंटी बबली की तर्ज पर सामने आए इस मामले ने क्षेत्र में गहमागहमी बढ़ा दी थी. जिले में नकली पुलिस के पकड़े जाने की घटना सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई थी. बहरहाल, पुलिस ने ज्योति ठाकुर, भगवानदास उर्फ सूरज धुर्वे और बोलेरो चालक ब्रजेश मेहरा के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 471 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर और जनचर्चा पर आधारित

मंडप से पहले श्मशान पहुंची काजल

ब्यूटी पार्लर में मेकअप करा रही 22 वर्षीय काजल अहिरवार के दिलोदिमाग में तरहतरह के विचार घूम रहे थे, क्योंकि कुछ घंटों बाद उस की शादी होने जा रही थी. दुलहन की पोशाक में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. इसी दौरान ब्यूटी पार्लर में पहुंचे एक युवक ने काजल की गोली मार कर हत्या कर दी. इस के बाद तो मंडप स्थल पर मातम छा गया. आखिर गोली मारने वाला वह युवक कौन था और उस ने काजल को गोली क्यों मारी?

जैसेजैसे 22 वर्षीय काजल के विवाह की तारीख नजदीक आ रही थी, दीपक अहिरवार की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. दीपक की बेचैनी को उस के घर वाले भी समझ रहे थे, इसलिए उन्होंने दीपक को बहुत समझाने की कोशिश की, परंतु दीपक पर उन की समझाइश का कोई असर नहीं हुआ. काफी सोचविचार के बाद दीपक ने एक फैसला कर लिया. उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए कहीं से .315 बोर के एक तमंचा व गोलियों का इंतजाम कर लिया.

23 जून, 2024 को काजल की बारात आने वाली थी. झांसी के खोडन में स्थित निशा गार्डन में विवाह की सारी तैयारियां चल रही थीं. भव्य समारोह स्थल पर मेहमानों का आना जारी थी. वधू पक्ष के लोग सारी व्यवस्थाओं में जुटे हुए थे. शादी के मंडप में खूब चहलपहल थी. लोग खानेपीने और नाचगाने में लगे थे. उसी दिन शाम 5 बजे काजल अपनी चचेरी बहनों नेहा, मुसकान, वंदना और अनुष्का के साथ विवाहस्थल से करीब 200 मीटर दूर स्थित वेलनैस ब्यूटी पार्लर में मेहंदी लगवाने और मेकअप कराने के लिए गई थी. दीपक को इस बात की जानकारी थी कि काजल मेकअप के लिए वेलनैस ब्यूटी पार्लर जा चुकी है. वह भी रात करीब 10 बजे वहां पहुंच गया. उस समय वह बहुत गुस्से में था.

वह पार्लर का दरवाजा खोल कर सीधे अंदर आ गया, जहां पर काजल का मेकअप हो रहा था. कमरे के अंदर घुसते ही उस ने काजल को अपने साथ चलने के लिए कहा, मगर जब काजल ने उस के साथ जाने से साफसाफ इंकार कर दिया तो वह काजल के साथ बहस करने लगा. तभी वहां पर मौजूद ब्यूटी पार्लर की संचालिका जाह्नïवी और काजल की बहनों ने दीपक को यह कहते हुए ब्यूटी पार्लर से बाहर कर दिया कि यहां पर मर्दों का आना मना है. उस के बाद दीपक बाहर चला गया.

पार्लर से निकलने के बाद दीपक अहिरवार कुछ देर तक बाहर खड़ा रहा. फिर उसे न जाने कैसा जुनून सा सवार हो गया कि उस ने अपने मुंह पर रुमाल बांधा और बाहर से ब्यूटी पार्लर का दरवाजा जोर से खींचा और दनदनाते हुए एक बार फिर पार्लर के उसी कमरे में पहुंच गया, जहां पर काजल का मेकअप हो रहा था. इस बार उस ने अपने दिमाग में एक खूनी मंसूबा बना लिया था. वहां पहुंच कर उस ने चीखते हुए सुर्ख जोड़े में दुलहन बनी काजल से कहा, ”काजल, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. तुम ने मेरे साथ कुछ भी ठीक नहीं किया है.’’ 

उस के बाद उस ने धमकी देते हुए कहा, ”काजल, तुम मेरी आखिरी बात ध्यान से सुन लो, यदि तुम अभी भी मेरे साथ नहीं चलोगी तो तुम्हें किसी और का भी नहीं होने दूंगा.’’ इस धमकी के बावजूद भी जब काजल उस के साथ जाने को तैयार नहीं हुई तो उस ने अचानक अपनी कमर से तमंचा निकाला और काजल की छाती से सटा कर गोली मार दी. गोली लगते ही काजल जमीन पर गिर कर वहीं ढेर हो गई. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी दौड़े, लेकिन तब तक पलक झपकते ही दीपक तमंचा लहराता हुआ वहां से भाग गया था.

घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही झांसी के एसएसपी राजेश एस., एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह शिप्री बाजार थाने के एसएचओ  घटनास्थल पर पहुंच गए.

और मंडप में छा गया मातम

दुलहन काजल को गोली मारने की खबर जैसे ही शादी के हाल में पहुंची तो वहां पर सब अचंभित हो कर रह गए थे. घर वाले तुरंत ब्यूटी पार्लर पहुंचे. पता चला कि उसे मैडिकल कालेज ले जाया गया है तो वह भी वहां पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें काजल की मौत की जानकारी मिली. घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया, फिर शव को घर वालों को सौंप दिया. जिस दुलहन की शादी होने वाली थी, उस की अब अर्थी सज रही थी. राज जाटव नाम का जो युवक बाजेबारातियों के साथ आया था, उसे भी मायूस हो कर बिना दुलहन के लौटना पड़ा. पूछताछ में पुलिस को यह जानकारी मिल चुकी थी कि आरोपी दीपक मृतका काजल के पड़ोस में ही रहता था.

बेटी की मौत की खबर मिलते ही काजल की मां रानी का रोरो कर बेहाल हो गया था. पुलिस ने इस मामले की जांच की तो पता चला कि दतिया जिले के बरगांव के रहने वाले राजकुमार अहिरवार के परिवार में पत्नी रानी के अलावा 2 बेटे विकास व विशाल और बेटी काजल थी. 5 सदस्यों के इस परिवार की जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. राजकुमार खेतीकिसानी कर के परिवार का गुजरबसर कर रहा था.

राजकुमार के पड़ोस में ही धनीराम अहिरवार रहता था. पड़ोसी होने की वजह से धनीराम की पत्नी ऊषा अहिरवार और बच्चों का भी राजकुमार के घर आनाजाना था. धनीराम का बेटा दीपक अहिरवार बहुत होनहार था. उसे सब लोग किताबी कीड़ा कहते थे. उस का सपना संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर के आईएएस अफसर बनना था. दीपक अहिरवार और काजल अहिरवार हमउम्र थे. दोनों में अच्छी दोस्ती थी. समय के अनुसार यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. फिर उन्होंने जनमजनम तक साथ निभाने की कसमें भी खा लीं. दोनों बालिग थे, इसलिए उन्होंने अपने घर वालों को प्यार का हवाला देते हुए शादी करने की इच्छा जताई.

बताते हैं कि दोनों की शादी के लिए काजल के पापा राजकुमार के अलावा सभी की सहमति बन गई, लेकिन राजकुमार तैयार नहीं हो रहा था. फिर दीपक ग्वालियर में रह कर सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी के लिए चला गया. वह वहां कई साल रहा, लेकिन उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह वापस घर लौट आया. दीपक और काजल का प्यार पहले की तरह ही मजबूत था. वे प्यार की खातिर कुछ भी करने को तैयार थे. अपने रिश्ते को ले कर दोनों ही गंभीर थे.

योजना बना कर 9 जून, 2024 को दीपक और काजल घर से चले गए थे. काजल ने अपने घर वालों के लिए घर छोड़ते समय एक चिट्ठी भी छोड़ी थी, जिस में लिखा था, ‘मम्मीपापा, आप की बेटी काजल अपनी मरजी से दीपक के संग जा रही है. आप से मेरी बस एक विनती है कि आप की पसंद मेरी पसंद नहीं हो सकती, इसलिए मुझे, मेरे होने वाले पति दीपक और उस के घरवालों को परेशान नहीं करना. क्योंकि मेरी खुशी दीपक में है और किसी में नहीं.’

उस ने आगे यह भी लिखा था, ‘मैं और दीपक अपनी मरजी से शादी करेंगे. आप कृपा कर के हमें खुश रहने दो, नहीं तो हम दोनों आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे. आप मुझे और मेरे होने वाले पति दीपक को माफ कर देना.’ काजल 22 साल की थी. दोनों बालिग होने के कारण कोर्ट मैरिज करने ग्वालियर पहुंचे थे, लेकिन उस दिन रविवार होने के कारण छुट्टी थी, इसलिए वे दोनों शादी नहीं कर पाए थे. उस के बाद काजल के पापा पुलिस की मदद से उसे ग्वालियर से अपने साथ घर ले आया.

आननफानन में क्यों हो रही थी काजल की शादी

राजकुमार अहिरवार उस समय काजल को अपने गांव ले कर नहीं गया. किसी तरह काजल को राजी कर के वह झांसी में रहने वाले काजल के मामा के घर ले गया. जिस लड़के राज जाटव से झांसी में काजल की शादी हो रही थी, वह झांसी के चिरगांव थाना क्षेत्र के सिमथरी गांव का निवासी था. राज जाटव से साल भर पहले काजल की सगाई तय हो चुकी थी. 

काजल दीपक को पसंद करती थी, चाहती थी, इसलिए काजल ने राज जाटव से शादी करने के लिए साफ मना कर दिया था. इस कारण काजल के घर वालों को उस समय रिश्ते को तोड़ देना पड़ा था. राजकुमार को लग रहा था कि काजल दीपक का साथ नहीं छोड़ेगी, इसलिए उस ने उसी लड़के राज जाटव से काजल की बात चलाई और आननफानन में शादी की तारीख भी निकाल दी और शादी के कार्ड भी छपवा दिए.  काजल की शादी की बात का पता जब दीपक को लगा तो वह बुरी तरह से टूट गया था. उसी दिन से उस ने खानापीना भी छोड़ दिया. वह हमेशा गुमसुम सा रहने लगा था. वह काजल को चाह कर भी भुला नहीं पा रहा था.  दीपक ने मम्मी ऊषा से कहा कि मम्मीजी भले ही काजल के पापा उस की शादी किसी से भी करा दें, लेकिन मैं उसे किसी और की नहीं होने दूंगा. 

इस बारे में ऊषा ने भी उसे काफी समझाया और उसे काजल को भूल जाने की सलाह भी दी, लाख समझाने के बाद भी वह काजल को भूलने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था. केवल दीपक ही नहीं बल्कि काजल भी दीपक से बहुत प्यार करती थी. वह अकसर कहती थी कि न मैं दीपक के बगैर रह सकती हूं, न वह मेरे बगैर जीवित रह सकता है.

काजल ने मंगेतर से साझा किया अपना दर्द

काजल ने अपनी हत्या से 24 घंटे पहले अपने मंगेतर राज जाटव से फोन पर अपना दर्द साझा किया था. राज जाटव ने पुलिस को बताया कि बारात से एक दिन पहले काजल ने उसे फोन कर के बताया था कि उस के पड़ोस में रहने वाला दीपक उसे और उस के घर वालों को धमका रहा है. उस की धमकी के कारण ही वे लोग झांसी आ कर शादी कर रहे हैं. राज जाटव के मुताबिक काजल के पिता राजकुमार अहिरवार ने आखिर तक यह असली बात मुझ से और मेरे घर वालों से छिपाए रखी. 

राजकुमार अहिरवार ने सिर्फ पड़ोसी से विवाद की बात हमें बताई थी, लेकिन किस बात को ले कर विवाद था, यह बात हमें कभी भी नहीं बताई गई. झांसी के पीतांबरा पीठ में राज और काजल के परिजनों ने मिलने के बाद आननफानन में शादी की तारीख भी तय कर दी थी. इस के बाद काजल अपने गांव नहीं गई. उसे सीधे उस के मामा के घर झांसी भेज दिया गया था. 

काजल की शादी की बात उस के पापा राजकुमार ने अपने गांव में किसी को नहीं बताई थी. लेकिन किसी तरह काजल की शादी की भनक उस के प्रेमी दीपक को लग चुकी थी. 21 जून को राजकुमार ने फलदान किया था. 22 जून, 2024 को सिमथरी में वरपक्ष की ओर से खाना चल रहा था. उसी दौरान काजल ने मंगेतर राज जाटव को फोन पर पूरी बात बताई थी. सगाई तय होने के बाद राजकुमार अहिरवार ने अपना खेत बेच अपने होने वाले दामाद को कार दी थी. यह बात दीपक को नागवार गुजरी और वह अपने अंतिम फैसले के साथ शादी वाले दिन झांसी पहुंच गया और उस ने काजल की हत्या कर दी.

अब पुलिस काजल की हत्या के आरोपी दीपक अहिरवार की खोज में जुट गई. एसएसपी (झांसी) राजेश एस. ने आननफानन में 5 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. पुलिस ने ब्यूटीपार्लर के आसपास गली के सीसीटीवी कैमरे खंगाले, उन में दीपक नजर आ रहा था. उस के साथ 2 युवक भी दिखाई दिए, हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि इन 2 युवकों को वह अपने साथ ले कर आया था अथवा ये दोनों युवक झांसी के ही रहने वाले थे. पुलिस टीम हत्यारे के साथ दिखे युवकों को भी तलाशने में जुट गई थी.

उत्तर प्रदेश पुलिस की 2 पुलिस टीमें दीपक को गिरफ्तार करने के लिए दतिया (मध्य प्रदेश) भेज दी गई थीं. पुलिस की एक टीम हत्या वाले दिन से ही सीसीटीवी कैमरे खंगालने में जुट गई थी. कैमरों की मदद से हत्यारे को ट्रैस करने की कोशिश की जा रही थी. इस के अतिरिक्त पुलिस इस बात का भी पता लगाने में जुटी थी कि इस वारदात में हत्यारे दीपक के साथ कौनकौन लोग शामिल थे. सोमवार 24 जून, 2024 को पुलिस की टीमें फरार हत्यारे की तलाश में दबिश देने में जुटी रहीं. दीपक की तलाश में सोमवार देर रात पुलिस ने दतिया स्थित उस के गांव में दबिश दी. लेकिन उस का सुराग नहीं लग सका. उस के घर वाले भी घर में ताला बंद कर के भाग निकले थे. घर वालों के मोबाइल नंबर भी बंद आ रहे थे.

इधर झांसी में रहने वाले दीपक के रिश्तेदारों के घरों पर भी पुलिस ने दबिश दी लेकिन रिश्तेदार इस बारे में कुछ नहीं बता पाए. इस संबंध में पुलिस ने 5 लोगों को हिरासत में भी ले लिया था. 23 जून रविवार के दिन दीपक ने अपनी प्रेमिका काजल की गोली मार कर हत्या कर दी थी और वहां से फरार हो गया था. सोमवार पूरा दिन वह कहां रहा, यह किसी को पता नहीं चला. उस के बाद दीपक 25 जून मंगलवार की सुबह ही मुरैना पहुंचा. 

सुबह 5 बज कर 30 मिनट पर उस ने मुरैना के स्टेशन रोड स्थित स्टेट बैंक औफइंडिया के एटीएम से 1000 रुपए निकाले. एटीएम से रुपए निकालते ही पुलिस को उस की लोकेशन मिल गई. उत्तर प्रदेश की 2 पुलिस टीमें अभी दतिया जिले में ही उस की खोज कर रही थीं. उत्तर प्रदेश पुलिस की टीम ने इस संबंध में मध्य प्रदेश पुलिस से संपर्क कर आरोपी की डिटेल्स और लोकेशन मध्य प्रदेश पुलिस के साथ साझा की और यूपी पुलिस की दोनों टीमें अब दतिया से मुरैना की ओर चल पड़ी थीं.

एटीएम से रुपए निकालने के बाद दीपक मुरैना में स्टेशन के पास काशीबाई धर्मशाला में पहुंचा. वहां पर उस ने अपना आधार कार्ड और मोबाइल नंबर दे कर एक कमरा बुक करा लिया. कमरा लेते वक्त उस ने धर्मशाला के मैनेजर को बताया कि वह आगरा से ग्वालियर जा रहा है, लेकिन सफर के दौरान वह काफी थक गया, इसलिए अब मुरैना में आराम करेगा. धर्मशाला में रुकने के लिए दीपक ने 600 रुपए एडवांस भी जमा किए थे. दीपक को पहले रूम नं. 7 अलौट किया गया, मगर उसे एसी वाला रूम चाहिए था, इसलिए उस का रूम बदल कर उसे फिर एसी वाला रूम नंबर 5 अलौट कर दिया गया.

कमरे में जाने के बाद दीपक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था. कमरे से दोपहर के खाने का और्डर नहीं आया तो धर्मशाला के कर्मचारियों ने उस के कमरे का दरवाजा बाहर से खटखटाया. काफी देर तक जब दरवाजा खटखटाने के बाद भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो धर्मशाला के कर्मचारियों ने कमरे के पीछे की खिड़की से झांक कर देखा तो दीपक पंखे से लटका हुआ था. दीपक ने पंखे पर गमछे से फंदा बनाया था. धर्मशाला के कर्मचारियों ने तुरंत मुरैना पुलिस को फोन किया. इस बीच आरोपी का पता लगाते हुए झांसी पुलिस की टीम भी काशीबाई धर्मशाला पहुंच चुकी थी. झांसी पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस को इस संबंध में सूचना दी. 

दोनों पुलिस टीमों ने जब मृत व्यक्ति की शिनाख्त की तो वह शव दीपक अहिरवार का ही निकला. दीपक के शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया. इस की जानकारी एसपी (मुरैना) डा. अरविंद ठाकुर ने पत्रकारों को दी. 26 जून, 2024 को दीपक अहिरवार का शव पोस्टमार्टम के बाद दतिया जिले के अंतर्गत बरगांव पहुंचा तो अपने बेटे का शव देख मां ऊषा अहिरवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. हत्या और फिर आत्महत्या के इस सनसनीखेज केस के बारे में झांसी के एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि हत्यारे दीपक के आत्महत्या कर लेने के बाद यह केस एक तरह से क्लोज ही हो गया है. अब तक की जांच में सामने आया है कि दीपक उस रात अकेले ही ब्यूटी पार्लर गया था, दीपक के सुसाइड के बाद हत्या में प्रयुक्त हथियार को खोजना अब काफी मुश्किल काम है. हालांकि जांचपड़ताल अभी भी चल रही है. 

लोगों के गले से एक बात नहीं उतर रही है कि काजल की हत्या के बाद हत्यारा दीपक अहिरवार उत्तर प्रदेश पुलिस से बच कर दिल्ली तक भाग गया था, लेकिन फिर रात में ही वह वापस मुरैना आ गया. पुलिस को अब तक भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि आखिर सुसाइड करने के लिए उस ने मुरैना को ही क्यों चुनासंभावना जताई जा रही है कि किसी भावनात्मक लगाव की वजह से दीपक ने मुरैना आ कर अपनी जान दी. 

पुलिस को अब तक इस बात का भी जबाब नहीं मिला कि काजल के ब्यूटी पार्लर जाने की सटीक जानकारी दीपक को आखिर किस ने दी? हत्या में इस्तेमाल किया गया तमंचा भी पुलिस बरामद करने में कामयाब नहीं हो सकी. इस सनसनीखेज वारदात में एक इश्क ने न केवल एक युवती की जान ले ली बल्कि युवक भी जान की बाजी खुद भी हार गया. साथ ही दूल्हा राज जाटव, जिस ने काजल के साथ जिंदगी गुजारने की आस में, बारात ले कर आया था और शादी के सुनहरे सपने पाल रखे थे, वह भी केवल खाली हाथ मलता रह गया. 

जिस दुलहन (काजल) के ऊपर फूलमालाओं की बरसात होने वाली थी, जिसे लोग आशीर्वाद और बधाइयां देने वाले थे. बस इस के पहले ही सारा खेल खराब हो गया. इस सनकी आशिक ने 2 परिवारों की खुशियां उजाड़ीं और वहां से फरार हो गया. इस से भी ज्यादा हैरानी की बात तो यह थी कि उस ने खुद अपनी भी जीवनलीला समाप्त कर दी. यानी कि एक सनकी आशिक ने 3 घरों को पूरी तरह से बरबाद कर दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

प्रेमिका क्यों बनी कातिल

मुकेश ने खेत में देखा तो हैरान रह गया. वहां भारी मात्रा में खून फैला हुआ था. यह देखते ही वह वहां से तुरंत उल्टे पैर भागा और सीधे  गांव के मास्टर हरिराम के घर पहुंचा.

मास्टर हरिराम ने जब यह बात सुनी तो वह भी हैरान रह गए. उन्होंने फोन कर के गांव के पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर को भी बुला लिया. तीनों उसी जगह पर पहुंचे तो जहां खून पड़ा था, वहां घसीटने के भी निशान थे. उसी घसीटती हुई फसल का पीछा करते करते वह 100-200 मीटर भी नहीं पहुंचे थे कि तीनों के कदम ठहर गए. क्योंकि उन के सामने औंधे मुंह एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी.

वह जिस व्यक्ति की लाश थी, उसे पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर जानते थे. लाश गांव की ही मौजूदा सरपंच फूलबाई कुशवाह के बेटे विशाल कुशवाहा की थी. पूर्व सरपंच ने देरी न करते हुए बैरसिया थाने के एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते को फोन कर के सूचना दे दी.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के देहात क्षेत्र में स्थित बैरसिया थाना है. इस में गांव दामखेड़ा पड़ता है. यह गांव थाने से करीब 15-16 किलोमीटर दूर है. इसी गांव में मास्टर हरिनारायण सक्सेना भी रहते हैं. उन्हें पूरा गांव मास्साब के नाम से ही जानता है. उन के ही खेत में एक टपरा है, जिस में उन का बेलदार मुकेश रहता था.

वह 10 मार्च की सुबह जल्दी उठा. क्योंकि उस दिन अमावस्या थी, इसलिए उसे गांव में स्थित हनुमान मंदिर में जल चढ़ाने जाना था. वह उठा और मंदिर में सुबह लगभग 7 बजे चला गया. मंदिर में जल चढ़ा कर वह आ रहा था, तब उसे दूर से मास्साब के खेत में लगी फसल का कुछ हिस्सा बिखरा नजर आया.

मुकेश को लगा कि कोई फसल काट ले गया है. इसलिए वह तुरंत तेज कदमों से वहां पहुंचा था.

एएसपी डा. नीरज चौरसिया

लाश मिलने की सूचना पाते ही एसएचओ तुरंत घटनास्थल के लिए निकल पड़े. रास्ते में ही एसएचओ ने एसपी प्रमोद कुमार सिन्हा, एएसपी डा. नीरज चौरसिया और प्रभारी एसडीओपी मंजू चौहान को यह जानकारी साझा कर दी.

एसडीओपी मंजू चौहान

एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते मौके पर जा रहे थे, तभी उन के पास बैरसिया के एसडीओपी आनंद कलादगी की भी काल आ गई. वह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और इस वक्त बैरसिया (देहात) में एसडीओपी का चार्ज देख रहे थे. हालांकि जब यह घटना हुई तो वह अवकाश पर पुश्तैनी गांव कर्नाटक गए हुए थे. एसएचओ ने उन्हें सारी जानकारी दे दी. शव पड़े होने की जानकारी देते हुए एसएचओ ने बताया कि वह मौके पर पहुंच रहे हैं.

इस के बाद घटनास्थल पर फिंगरप्रिंट के अधिकारियों और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया था. इस के अलावा उन्होंने लललिया चौकी के प्रभारी एसआई शंभू सिंह सेंगर और थाने में तैनात एसआई रिंकू जाटव को भी मौके पर बुला लिया.

ये 2 बातें मौके पर हो चुकी थीं तय

थानाप्रभारी नरेंद्र कुलस्ते हरिनारायण सक्सेना के खेत पर पहुंचते, उस से पहले ही उन्हें गोलू साहू के खेत पर भारी भीड़ नजर आई. उन्होंने वहां मौजूद भीड़ को नगर रक्षा समिति के सदस्य इजरायल की मदद से हटाया.

उस के बाद शव और जहां खून फैला था, उस जगह को सुरक्षित कराया. वहां धीरेधीरे कर के सारे अफसर आना शुरू हो गए. खबर मीडिया तक पहुंच गई थी तो पत्रकारों का भी वहां जुटना शुरू हो गया.

उसी समय वहां सरपंच फूलबाई कुशवाहा के पति रमेश कुशवाहा भी कुछ लोगों के साथ पहुंच गए. अपने 25 वर्षीय बेटे विशाल कुशवाहा की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगे. उस की कुछ महीने पहले ही शादी भी हुई थी. वह नौजवान और हैंडसम युवक था. इस के अलावा सरपंच का बेटा होने के कारण उस का गांव में जलवा था.

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मृतक विशाल कुशवाहा

वह गांव में उगने वाली फसल को अपने लोडिंग वाहन में लोड कर के विदिशा जिले में लगने वाली मंडी में बेचने जाया करता था. जिस ग्रामीण को फसल उसे देनी होती थी, वह उसे पहले बता दिया करता था. इस कारण गांव के कई घरों में विशाल कुशवाहा का सीधा संपर्क था.

सबूत जुटाने में जुटे एसएचओ समेत तीनों अफसर नरेंद्र कुलस्ते, रिंकू जाटव और शंभू सिंह सेंगर मौके पर ही रणनीतियां बना रहे थे. इस दौरान हर स्तर का अफसर मौके पर आ कर एक नया टास्क टीम को दे कर जा रहा था.

एसएचओ मृतक विशाल कुशवाहा के शरीर में आए घावों को देख चुके थे. उस के बाएं कान के ऊपर भारी वस्तु से किए गए प्रहार के कारण सिर के भीतर दबा हिस्सा दिख रहा था. इस के अलावा सिर के पीछे और माथे पर धारदार हथियार के वार थे.

यह सभी अलगअलग तरह के थे. इसलिए यह तो साफ हो गया था कि उस की कई लोगों ने मिल कर हत्या की है. गरदन रेती गई थी, वह भी पेशेवर तरीके से. यानी यह भी साफ हो गया था कि वारदात करने वाला पेशेवर अपराधी है. गले को जिस जगह धारदार हथियार से रेता गया था, उस नाजुक जगह की जानकारी हर कोई नहीं रखता.

गांव से भागी महिला और उस के पति पर गया शक

घटनास्थल की बारबार तफ्तीश करने और विशाल कुशवाहा के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद एसएचओ को सरकारी अस्पताल के 4 कंडोम मिले, इसलिए यह भी यकीन हो गया कि मामला अवैध संबंध से जुड़ा हो सकता है.

तभी एसएचओ का दिमाग ठनका और उन्होंने वहां मौजूद विशाल कुशवाहा के छोटे भाई मिथुन कुशवाहा से बातचीत शुरू की. क्योंकि वह उस वक्त होश में था.

उस ने बताया कि वह 2 भाई और 3 बहनें हैं, जिस में एक बहन की शादी हो गई है. मिथुन कुशवाहा से बातचीत में पता चला कि उन के गांव में चाची चली गई थी. वह गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा के साथ गई थी. उस से जरूर कुछ महीनों पहले विवाद की स्थिति बनी थी. लेकिन चाची और अर्जुन कुशवाहा घर छोड़ कर दूसरे गांव में रहने चले गए थे.

पुलिस ने उस की लोकेशन खंगाली तो वह संदेह के दायरे से बाहर हो गया. फिर आखिरी वक्त में कौन उस के साथ था, वह पता लगाया गया. तब मालूम हुआ कि गांव में रहने वाला बबलू कुशवाहा मृतक के पास आखिरी वक्त में था.

वह विशाल कुशवाहा की फसल और अपनी गाजर बेचने विदिशा गया हुआ था. उसे पुलिस ने काल करने की बजाय ग्रामीणों से काल लगा कर मौके पर बुलाया. उस को सीधे थाने ले जाया गया, जहां उस से पूछताछ अलग से की गई.

पड़ताल में मालूम हुआ कि बबलू कुशवाहा और विशाल कुशवाहा साथ में थे. जिस दिन लाश मिली, उस से एक दिन पहले रात 11 बजे लोडिंग वाहन उस के हवाले कर के वह चला गया था. लोडिंग वाहन में ही बबलू कुशवाहा को नींद की झपकी लग गई. बबलू कुशवाहा की नींद रात लगभग एक बजे खुली तो उस ने कई बार विशाल को फोन किया.

जब विशाल ने फोन नहीं उठाया तो बबलू ने उस के पापा रमेश कुशवाहा को फोन लगा कर बताया. उस ने बताया कि विशाल कुशवाहा ने सब्जी लोडिंग आटो में लोड कर ली थी. वह सुबह तक मंडी नहीं पहुंचाई तो खराब हो जाएगी. इस कारण रमेश कुशवाहा ने बबलू कुशवाहा के साथ दूसरे को भेज दिया.

यह बात पता चलने के बाद पुलिस ने बबलू कुशवाहा के अलावा विशाल कुशवाहा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकालने का काम शुरू कर दिया.

प्रेमिका के कांफिडेंस को देख कर थानाप्रभारी का हौसला हुआ पस्त

एसएचओ ने मिथुन कुशवाहा से पूछा, ”तुम्हारे भाई के किसी महिला से संबंध थे?’’

यह सुन कर वह बोला, ”हां, कुछ साल पहले तक उस के नीतू शाक्य के साथ रिश्ते थे. दोनों शादी भी करना चाहते थे. लेकिन पिता दूसरी जाति होने के कारण इस रिश्ते को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे.’’

यह पता चलने के बाद उन्होंने विशाल कुशवाहा का रिश्ता विदिशा जिले के गंजबासौदा में स्थित गांव सलोई में रहने वाली हरीबाई से तय कर दिया गया. यह पता चलने के बाद नीतू शाक्य ने विशाल को फोन भी किया था. उस ने कहा था कि वह शादी करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

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आरोपी नीतू शाक्य

इस धमकी को घर वालों ने नजरअंदाज कर के शादी कर दी थीं. यह सुनने के बाद एसएचओ ने देर नहीं की और वह महिला कांस्टेबल शीला दांगी के साथ नीतू शाक्य के घर पहुंच गए और पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए.

सरपंच के बेटे का दोस्त थाने पहुंच कर क्यों गिड़गिड़ाया

अब एसएचओ के सामने इस अंधे कत्ल को सुलझाने के लिए कई रास्ते थे. वह किन रास्तों पर जाएं, तय नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि उन के सामने दामखेड़ा गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा की कहानी थी तो वहीं बबलू कुशवाहा भी था, जो घटना से कुछ देर पहले तक मृतक के साथ था. तीसरी नीतू शाक्य जो कुछ महीने पहले तक मृतक विशाल कुशवाहा की प्रेमिका थी.

इन सभी बातों के बीच एसएचओ ने मौके पर मिले कंडोमों के आधार पर तय किया कि वह नीतू शाक्य को फोकस करेंगे. इसी बीच उन्हें विशाल कुशवाहा के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. जांच में पता चला कि मृतक की आखिरी बातचीत अजय नामदेव के साथ हुई थी. वह विदिशा जिले का रहने वाला था.

पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस ने बताया कि यह सिम उस ने खरीद कर विशाल कुशवाहा को दी जरूर थी, लेकिन इस का इस्तेमाल वह नहीं करता था.

इस के बाद पुलिस ने अजय नामदेव के ही मोबाइल में हो रहे एक अन्य नंबर से बातचीत वाले को तलब किया. क्योंकि उस ने अजय नामदेव को उसी दिन कई बार फोन लगाया था.

उस का नाम आमीन मंसूरी था, जो दामखेड़ा गांव के नजदीक दूसरे गांव बबचिया का रहने वाला था. उस से पूछताछ का जिम्मा ललरिया चौकी में बैठे एसआई शंभु सिंह सेंगर को दिया गया. इधर, नीतू शाक्य पुलिस को कोई सहयोग नहीं कर रही थी. कई बार पुलिस पूछताछ की नाव गोते खा कर पलट रही थी.

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थाने में एकमात्र महिला कांस्टेबल नीतू शाक्य से पूछताछ करने में कमजोर साबित हो रही थी. उधर, आमीन मंसूरी ने भी कम परेशान नहीं किया. उस के रिश्तेदार भी हत्याकांड में उसे घेरे जाने का पता चलने पर एकएक कर के थाने के बाहर जमा होने लगे. इस के बावजूद एसआई शंभु सिंह सेंगर की टीम ने सख्ती बरती तो वह टूट गया.

उस ने हत्याकांड को करना कुबूल लिया, जिस में नीतू शाक्य की सीधी भूमिका थी. उस ने यह भी बताया कि वह हत्या करने के लिए राजी नहीं था. लेकिन नीतू शाक्य ने उस को प्यार का हवाला दे कर हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया था.

शारीरिक संबंध बनाने से पहले नीतू ने रखी थी कौन सी शर्त

आमीन मंसूरी (18 वर्ष) द्वारा गुनाह कुबूल कर लेने के बाद नीतू ने भी रट्टू तोते की तरह सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि वह विशाल कुशवाहा की बेवफाई से काफी आहत हो गई थी. इसलिए उस ने तय कर लिया था कि वह उस की हत्या करेगी.

आरोपी आमीन मंसूरी

इस के लिए उस ने गांव के ही कई युवकों के साथ दोस्ती भी की थी. उन के साथ रिश्ते बनाने से पहले यह शर्त थी कि उन्हें विशाल कुशवाहा को निपटाना होगा.

नीतू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी युवकों को थाने बुलाया. पता चला कि आमीन मंसूरी मटनचिकन की दुकान में काम भी करता था. उस के साथ 3 महीने पहले ही नीतू शाक्य ने दोस्ती की थी. एसएचओ इस बात को ले कर परेशान थे कि उस के पास विशाल कुशवाहा के दोस्त अजय नामदेव की मोबाइल सिम कैसे मिली. तब उस ने बताया कि वह मोबाइल और सिम उस को विशाल कुशवाहा ने ही खरीद कर बातचीत करने के लिए दी थी. शादी से पहले उसी मोबाइल के जरिए बातचीत होती थी.

हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीतू शाक्य ने विशाल कुशवाहा को फोन लगा कर हनुमान मंदिर के पास बुलाया था. लेकिन उस दिन घर में उस की मौसी आ गई थी. इस कारण वह रात 11 बजे उस के पास पहुंची थी. हालांकि इस से पहले 9 बजे मुलाकात होनी थी.

मर्डर करने के बाद लाश क्यों जलाना चाहती थी नीतू

उधर, आमीन मंसूरी ने बताया कि हत्याकांड में उस का दोस्त मनोज वंशकार भी शामिल था. 20 वर्षीय मनोज बबचिया गांव का रहने वाला था. लेकिन भोपाल के कोलार रोड स्थित ललिता नगर में रहने वाले भाई बलराम वंशकार और भाभी सुनीता वंशकार के साथ वह रहता था.

आरोपी मनोज वंशकार

आमीन मंसूरी ने बताया कि उस ने हत्या तो नहीं की थी, लेकिन उस की बाइक से वह मौके पर पहुंचा था. वह यह जानता था कि मैं अपनी प्रेमिका नीतू शाक्य के दुश्मन को मारने वाला हूं.

आमीन मंसूरी की कहानी और नीतू शाक्य की पटकथा मेल खाने लगी. यह देख कर पुलिस ने नीतू शाक्य को संदेही मान कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इधर, बैरसिया स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हुए विशाल कुशवाहा के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ चुकी थी.

रिपोर्ट में आईं इन चोटों को ले कर नीतू शाक्य ने राज उजागर किया. उस ने बताया कि उसे पता था कि मृतक के साथ बबलू कुशवाहा है, इसलिए उसे अकेले नीतू ने बुलाया था.

विशाल को लगा कि आज वह एक बार फिर पुरानी यादों को नीतू के साथ शारीरिक संबंध बना कर ताजा करेगा. इस कारण वह अपने साथ 4 कंडोम ले कर पहुंचा था. वह नीतू को देख कर अपने अरमानों को रोक नहीं पा रहा था. विशाल यह नहीं जानता था कि नीतू आज प्रेमिका नहीं, बल्कि बदला लेने वाली दुश्मन है.

वह योजना के तहत पीछे की तरफ जा रही थी. जबकि विशाल उसे आलिंगन करने के लिए बढ़ रहा था. तभी नीतू ने विरोध करते हुए बोला कि वह उस का फोन क्यों नहीं उठाता. विशाल बोला कि अब वह शादीशुदा है. पत्नी को पता चलता है तो घर में बवाल होता है.

यह बोलते हुए वह नीतू को दबोचने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन नीतू पीछे हुई, तभी उस के पैर से पत्थर टकराया जो उस ने कब उठाया, यह विशाल समझ ही नहीं पाया. विशाल ने जैसे ही कमर के पीछे से दोनों हाथ डाल कर दबोचना चाहा. तभी उस ने विशाल के कान के बाएं तरफ जोरदार पत्थर का वार किया.

लाश को छिपाने में दोस्त ने क्यों नहीं की मदद

विशाल कुशवाहा को जैसे ही बाएं कान की तरफ पत्थर लगा तो वह चीख पड़ा. उसी वक्त पीछे से आ कर आमीन मंसूरी ने छुरी से विशाल के सिर पर वार किया और उसे दबोच लिया. यह देख कर वह समझ गया कि उस के साथ क्या होने वाला है. उस ने तुरंत ही मास्टर हरिनारायण सक्सेना के खेत में रहने वाले बेलदार को नाम ले कर बचाने के लिए पुकारा.

उस की आवाज सुन कर नीतू बोली, ”आमीन, इस का मुंह बंद करो नहीं तो पूरे गांव वाले जाग जाएंगे.’’

यह बोलने के साथ ही उस ने अपना दुपट्टा भी उसे दिया. दुपट्टे से आमीन मंसूरी ने उस का मुंह बंद किया और चाकू से विशाल कुशवाहा का गला रेत दिया. इस काम में आमीन मंसूरी काफी एक्सपर्ट था. क्योंकि वह मीट की दुकान में काम करता था.

गला रेतने के बाद खून का फव्वारा छूट पड़ा था. इसलिए खेत में चारों तरफ खून ही खून फैल गया. फिर तय किया गया कि उसे दूसरी जगह ले जा कर जला देते हैं, ताकि उस का शव पहचान में नहीं आ सके.

सिरहाने की तरफ से आमीन मंसूरी ने पकड़ा. वहीं पैर की तरफ से नीतू शाक्य पकड़ कर खींचने लगी, लेकिन मरने के बाद विशाल का शरीर भारी हो गया था.

बदले की आग जब शांत हुई तो नीतू खून से सने विशाल को देख कर घबरा गई. लाश खींचने के दौरान मृतक की पैंट नीतू के हाथों में खिंच आई और वह गिर गई.

यह देख कर आमीन ने अपने दोस्त मनोज वंशकार को बुलाया. आमीन ने उस से कहा कि वह लाश को घसीटने में मदद करे, ताकि उसे जला कर उस की पहचान मिटा सकें. लेकिन ऐसा करने के लिए मनोज वंशकार राजी नहीं हुआ.

नतीजतन दोनों गोलू कुशवाहा के खेत तक ही लाश को ले जा सके. उसे वहीं पटक कर तीनों मौके से भाग गए.

सारी रात कैसे मिटाए सबूत

नीतू शाक्य की योजना यह थी कि विशाल कुशवाहा की हत्या में उस का दोस्त अजय नामदेव फंसे. इसलिए उस के नाम पर खरीदे गए मोबाइल और सिम का इस्तेमाल नीतू ने किया था. लेकिन सब कुछ उलटा हो गया तो रणनीतियां बदली जाने लगीं.

हत्याकांड के बाद आरोपी आमीन मंसूरी मृतक का मोबाइल और पर्स ले कर भाग गया. ताकि लाश देखने के बाद पुलिस को यह लगे कि उस की लूट के इरादे से हत्या की गई है. आमीन मंसूरी ने बबचिया गांव के नाले में उस का मोबाइल फेंक दिया.

खून से सना दुपट्टा और कपड़े उतार कर नीतू शाक्य ने घर की छत पर एक कोने में छिपा दिए. उन्हें अगले दिन जलाने की योजना थी. लेकिन उस से पहले ही पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई थी.

पुलिस ने पहले आमीन मंसूरी और उस की प्रेमिका नीतू शाक्य को गिरफ्तार किया. उस के अगले दिन मनोज वंशकार को भी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने हत्याकांड में इस्तेमाल की गई मनोज वंशकार की बाइक भी जब्त कर ली. नीतू शाक्य ने मोबाइल की सिम तोड़ दी थी. लेकिन अजय नामदेव के नाम पर खरीदा गया मोबाइल उस के घर से बरामद किया गया.

पुलिस ने हत्या करने और सबूत मिटाने का मामला दर्ज करने के बाद आम्र्स एक्ट, लूट, साजिश रचने समेत कई अन्य धाराएं भी बढ़ा दीं. आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजा साली के खेल में मारा गया डाक्टर

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.

लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करने की खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोते बिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.

पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा.

संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा.

इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग.

इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

ड्रग माफिया की कठपुतली बनी शिवानी की कहानी

मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला कभी डकैतों की पनाहगाह हुआ करता था, जो ग्वालियर, भिंड और मुरैना जिलों से घिरा हुआ है. लेकिन अब वही शिवपुरी बदनाम है देह व्यापार और ड्रग्स के कारोबार के लिए. उड़ता पंजाब की तर्ज पर शिवपुरी को लोग उड़ता शिवपुरी कहने लगे हैं, क्योंकि यहां के गांव देहातों तक में जिस्म के बाद जो चीज आसानी से जरूरतमंदों के लिए मिल जाती है, वह है ड्रग.

17 वर्षीय शिवानी शर्मा बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी, जिस पर नजर डालने के बाद लोग पलक झपकाना भूल जाते थे. भरेपूरे और गदराए जिस्म की मालकिन इस युवती की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. जब वह बहुत छोटी थी, तब उस के पिता का निधन हो गया था. विधवा हो जाने के बाद उस की युवा मां को समझ आ गया था कि एक नन्ही बच्ची के साथ स्वाभिमान और और सम्मानपूर्वक तरीके से रह पाना किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं है.

फिर एक दिन वह अपने जिगर के टुकड़े को सास की गोदी में डाल कर चली गई. कहां गई, इस का ठीकठाक पता किसी को नहीं, लेकिन कुछ दिन बाद उड़ती उड़ती खबर यह आई कि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

इस तरह शिवानी अपनी दादी लक्ष्मीबाई की गोद में पलीबढ़ी, जिन के पास नाम के मुताबिक लक्ष्मी कहने भर को भी नहीं थी. क्योंकि अपनी और नन्ही पोती की गुजर के लिए उन्हें दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, तब कहीं जा कर दो वक्त की रोटी नसीब होती थी.

अभावों में पलती शिवानी बड़ी होती गई, लेकिन इन 17 सालों में जो कई बातें उसे समझ आई थीं, उन में अहम यह थी कि गरीबी दुनिया का सब से बड़ा अभिशाप है. लक्ष्मीबाई ने अपनी तरफ से उस की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. उस ने शिवानी को शिवपुरी के सरस्वती स्कूल में दाखिला दिला दिया था. पढ़ाई में औसत रही शिवानी को यह भी समझ आ गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, उस की दरिद्रता दूर नहीं होने वाली है.

अपने मांबाप की कहानी उस ने दादी और कुछ रिश्तेदारों के मुंह से सुनी थी, जो कभीकभार दिखावे के लिए आ जाते थे. नहीं तो किसी को न तो उन से मतलब था और न ही फुरसत थी. बड़ी होती शिवानी को कभी किसी ने अपनी बाहों में झुला कर अपनी प्रिंसेस बिटिया या नन्ही परी नहीं कहा था. वह तो बस हैरानी से अपने आसपास की दुनिया देखते हुए बड़ी होती गई थी.

बूढ़ी दादी की आंखों से शिवानी की मनोदशा छिपी नहीं थी, लेकिन इस के बाद भी उन्हें उम्मीद थी कि पोती सुंदर है, एक न एक दिन उस के भी दिन फिरेंगे और कोई अच्छे खाते पीते घर का लड़का उसे ब्याह कर ले जाएगा.

ड्रग्स से कर ली सगाई

ऐसा कुछ हुआ नहीं, उलटे लक्ष्मीबाई कुछ महीनों पहले उस वक्त सन्न रह गई, जब उन्हें यह अहसास हुआ कि शिवानी ड्रग्स का नशा करने लगी है. उन्हें अपने सपने टूटते नजर आए. लेकिन इस के आगे क्याक्या होना है, इस का अंदाजा वे नहीं लगा पाईं और अगर लगा भी लिया होगा तो बेबसी के चलते कसमसा कर रह जातीं.

दरअसल, ड्रग्स तो शिवानी कई दिनों से ले रही थी लेकिन लत उसे अभीअभी लगी थी और इस तरह लगी थी कि स्मैक की एक पुडि़या के लिए वह अपना जिस्म तक परोसने के लिए तैयार रहने लगी थी.

हकीकत यह थी कि जवानी की सीढि़यों पर पहला कदम रखते ही शिवानी एक ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस गई थी, जो षडयंत्रपूर्वक उन लड़कियों को फंसाता था, जिन पर कोई पारिवारिक नियंत्रण नहीं होता था. शिवानी इस काम के लिए ड्रग माफिया को बहुत सौफ्ट टारगेट लगी थी.

कुछ दिन पहले ही शिवानी के यहां एक युवक का आनाजाना शुरू हुआ था, जिस का नाम चिक्की पाठक था. ब्राह्मण होने के नाते दादी ने चिक्की के आनेजाने को असहज ढंग से नहीं लिया. दादी के पास बैठ कर उन से घंटों बतियाने वाला चिक्की असल में मोहरा था, जिसे शिवानी को फंसाने के लिए भेजा गया था.

उम्मीद के मुताबिक शिवानी जल्द ही चिक्की के प्रेमजाल में फंस गई. फिर वह उस के साथ बाहर घूमने फिरने जाने लगी. आने वाली जिंदगी को ले कर वह सुनहरे सपने देखने लगी. चिक्की भी उस के सपनों को हवा देता रहा.

धीरेधीरे चिक्की उसे अपनी 2 परिचितों जूली भार्गव और रूबी जाटव के यहां ले जाने लगा. इन दोनों के घर और आजाद जिंदगी देख कर शिवानी भी ऐसी ही जिंदगी के ख्वाब देखने लगी, जिस में उस का अपना घर है, चिक्की है और रोमांस ही रोमांस है.

भोलीभाली शिवानी तब इन सब की हकीकत नहीं जानती थी. जब भी वह चिक्की के साथ इन के यहां जाती थी तो जूली और रूबी उन दोनों को एकांत में छोड़ देती थीं. आग और बारूद आमने सामने होंगे तो वर्जनाएं टूटने में देर नहीं लगती. यही शिवानी के साथ हुआ. धीरेधीरे ही सही, चिक्की ने कब उसे पूरी तरह अपना बना लिया, इस का उसे अहसास ही नहीं हुआ.

कच्चे उम्र की शिवानी ज्यादा दिनों तक खुद को रोके नहीं रख पाई और एक दिन पूरी तरह चिक्की की हो गई. फिर यह सुख रोजरोज नएनए तरीके से उसे मिलने लगा तो वह इसकी आदी हो गई. शिवानी नाम की अनछुई कली देखते ही देखते खिला हुआ फूल बन गई.

सेक्स की लत के बाद चरणबद्ध तरीके से चिक्की, रूबी और जूली ने उसे शराब और सिगरेट पिलानी शुरू कर दी. शिवानी ने महसूस किया कि ये दोनों चीजें न केवल रोमांस और सैक्स का बल्कि जिंदगी का भी असली लुत्फ देती हैं. लिहाजा वह बेहिचक शराब पीने लगी.

घर में कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था और जो बूढ़ी दादी थीं, शिवानी के लिए उन के वहां होने न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. वह तो एक ऐसी दुनिया में जा पहुंची थी, जहां प्यार, रोमांस और सैक्स के अलावा कुछ नहीं होता था.

इसी दौरान चिक्की ने उस का परिचय अपने और दोस्तों यानी गिरोह के सदस्यों रजक, विकास, गोलू और परमार से भी करवा दिया था. ये चारों भी उसे रूबी और जूली की तरह भले लगे. फिर एक दिन उसे दुनिया के सब से हसीन नशे स्मैक की खुराक दी गई.

शिवानी को लगा कि यह नशा बड़ा अद्भुत है, जिसे ले कर आदमी अपने सारे रंजोगम और परेशानियां भूल जाता है. एक ऐसा नशा जिस की तलब उतरने के बाद से ही लगने लगती है.

धीरेधीरे ग्रुप बना कर ये सभी लोग यह नशा करने लगे, जिस में कोई बंदिश नहीं थी. थी तो सिर्फ एक ऐसी आजादी जो हर युवा का सपना होती है. एक बार इन ड्रग्स की लत शिवानी को लगी तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने बूढ़ी दादी के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, जिस ने अपना बुढ़ापा जला कर उसे बड़ा किया था.

आ गई देह व्यापार में ऐसा नहीं कि अनुभवी लक्ष्मीबाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन शिवानी की हालत अब उस उफनती बरसाती नदी की तरह हो गई थी, जिसे बांधे रखने में कम से कम कोई जर्जर बांध तो कतई कामयाब नहीं होता.

जवान बेटे को खो चुकी लक्ष्मीबाई अब जवान होती पोती का हाल देख रही थीं. लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थीं, क्योंकि बेटे की तरह वह उस की अमानत को नहीं खोना चाहती थीं.

जिस मकसद से शिवानी को चिक्की ने फंसाया था वह पूरा हो चुका था. बिना ड्रग्स के अब वह एक दिन भी नहीं रह पाती थी और तलब लगने पर खुद उस के या दूसरे साथियों की तरफ खिंची चली आती थी.

यह सब इतने जल्दीजल्दी और सुनियोजित तरीके से हुआ था कि शिवानी को कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था और कभी मिला भी होगा तो उसे यह भी समझ आ गया होगा कि अब कुछ नहीं हो सकता.

जो एक बार ड्रग्स के नशे की राह पर चल पड़ता है, वह चाह कर भी वापस नहीं लौट सकता. यही हाल शिवानी का था. फिर एक दिन उसे बताया गया कि जिस मौजमस्ती की लत उसे पड़ चुकी है, वह मुफ्त नहीं मिलती है, इस के लिए दाम भी चुकाना पड़ता है.

दाम चुकाने के लिए शिवानी के पास फूटा धेला भी नहीं था, लेकिन इन्हीं लोगों ने उसे बताया कि उस के पास जो है, वह करोड़ोंअरबों का है. अगर वह चाहे तो दौलत पैरों में लोटने लगेगी.

चूंकि चिक्की को इस पर कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए मजबूरी की मारी शिवानी देहव्यापार के लिए भी तैयार हो गई. और सचमुच शिवानी की देह पैसा उगलने लगी. वह अब पूरी तरह कालगर्ल बन चुकी थी, जो पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए हर उस शख्स यानी ग्राहक का बिस्तर गर्म करने को तैयार रहती थी, जिस के पास उस के गिरोह के सदस्य ले जाते थे.

देखते ही देखते शिवानी के रंगढंग बदल गए. वह महंगी ड्रेस पहनने लगी. हाथ में 30 हजार रुपए का मोबाइल आ गया और सब से बड़ी बात ड्रग्स के लिए पैसों का जुगाड़ सहूलियत से होने लगा. इस धंधे में पूरी तरह उतरने के बाद उसे पता चला कि कई पुलिस वाले भी इस गिरोह के साथ हैं, जिन में से वह कुछ का बिस्तर गर्म भी कर चुकी थी.

अब शिवानी की जिंदगी में कुछ नहीं रह गया था. वह अपनी जवानी कैश करा रही थी तो सिर्फ नशे की खुराक के लिए, जिस के बगैर उस का दिमाग सनसनाने लगता था, शरीर सुन्न पड़ने लगता था. घबराहट और उलटियां भी होने लगती थीं. अब तो वह कई कई दिन बाहर रहने लगी थी.

फिर एक दिन… देवानंद अभिनीत और निर्देशित 70 के दशक की चर्चित और हिट फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की जीनत अमान बन चुकी शिवानी ने अपने रोल से समझौता कर लिया था कि वह सिर्फ नशे और मौजमस्ती के लिए पैदा हुई है, इस से आगे दुनिया में कोई सच नहीं है.

यह और बात है कि फिल्म की तरह उस का कोई भाई उसे गिरोह और नशे की दलदल से वापस निकालने नहीं आया क्योंकि यह हकीकत थी, फिल्म नहीं.

पूरी तरह गिरोह का हिस्सा बन जाने के बाद औरों की तरह शिवानी को भी पता नहीं चल पाया कि आखिरकार इस का कर्ताधर्ता कौन है. वह तो एक ऐसी कठपुतली बन गई थी, जो चिक्की के इशारों पर नाचती थी. उस के लिए सुकून देने वाली इकलौती बात यही थी कि चिक्की अब भी उसे चाहता था और शादी करने को भी तैयार था.

खुद फंसने के बाद उसे यह जरूर समझ आ गया था कि ये लोग कितनी चालाकी से शिकार चुनते हैं, फिर उसे फांसते हैं और उस से पैसा कमाते हैं. नशे की दुनिया के कारोबार के इस गोरखधंधे का उद्गम स्थल कहां है, यह भी उसे नहीं मालूम था और यह सब जानने की जरूरत या इजाजत उसे भी नहीं थी. उस की दुनिया तो एक खुराक में सिमट कर रह गई थी.

चिक्की खुद भी नशेड़ी था और एक बार इलाज के लिए उसे ग्वालियर के नशा मुक्ति केंद्र भी भेजा गया था, लेकिन वहां से वह भाग आया था और फिर नशे की दुनिया का हिस्सा बन गया था.

उस के पिता धर्मेंद्र पाठक शिवपुरी की जानीमानी शख्सियत हैं. जूली के बारे में उसे पता चला था कि जूली अपने पति को छोड़ चुकी है और रूबी हालांकि अपने परिवार के साथ रहती है, लेकिन यह रहना ठीक वैसा ही है, जैसा उस का दादी के साथ रहना.

इसी दौरान शिवानी को यह भी पता चला था कि ड्रग्स शिवपुरी की गलीगली में मिलती है और कई जगह तो बाकायदा इन की किट बिकती है, जिन में नशे के इंजेक्शन के साथ सीरींज वगैरह भी होती है. यह और ऐसे कई गिरोह खासतौर से युवाओं को कैसे फांसते हैं, इस की बेहतर मिसाल तो वह खुद ही थी.

पुलिस से की शिकायत लक्ष्मीबाई की बूढ़ी आंखों से अब कुछ छिपा नहीं रह गया था. वह रूबी, जूली, चिक्की और गिरोह के बारे में काफी कुछ जान चुकी थीं कि इन्होंने ही उन की पोती को फंसा कर उस की जिंदगी नर्क बना दी है.

लिहाजा वह अपनी एक नजदीकी रिश्तेदार को ले कर एक दिन थाने जा पहुंचीं और फरियाद लगाई, जिस की कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्हें समझ आ गया कि इस गिरोह में पुलिस वाले भी शामिल हैं.

इधर ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ गाने की धुन पर झूमती शिवानी बीती 5 जुलाई को घर आई तो दादी को लगा कि वह रुकेगी, लेकिन शिवानी अपना आधार कार्ड और कुछ कपड़े ले कर वापस चली गई. तब उस के साथ जूली और रूबी के अलावा एक पुलिस वाला भी था. वह बेबसी से पोती को जाते देखती रहीं.

5 जुलाई, 2019 को कोई खास बात थी, जो शिवानी खूब सजीसंवरी थी. शाम होने तक वह नशे की 2 खुराक ले चुकी थी. दरअसल इस गिरोह के हाथ एक डील के तहत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी, जिस के लिए शिवानी को कई सफेदपोश लोगों को खुश करना था. शिवानी कहीं बीच में कुछ ऐसावैसा न बोल दे, इसलिए उसे तीसरी खुराक भी दे दी गई थी.

रंगीन रात परवान चढ़ पाती, इस के पहले ही ड्रग्स के ओवरडोज के चलते शिवानी की हालत बिगड़ने लगी तो बाकी लोग घबरा उठे. उन्होंने पहले तो उस के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए तो उन्हें लगा कि शिवानी का बचना अब मुश्किल है.

6 जुलाई, 2019 की सुबह जब शिवपुरी की कृष्णापुरम कालोनी में लोग बाहर आए तो यह देख सन्न रह गए कि नामी कारोबारी जगदीश मंगल के चबूतरे पर एक जवान लड़की पड़ी है. लड़की ने जींस और गुलाबी रंग का टौप पहन रखा था. उस का एक हाथ चबूतरे के नीचे हवा में झूल रहा था और मुंह से झाग निकल रहा था.

साफ समझ आ रहा था कि वह युवती जिंदा नहीं, बल्कि लाश है. जमा भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर पुलिस को खबर कर दी तो सिटी कोतवाली के टीआई बादाम सिंह यादव टीम सहित घटनास्थल पर जा पहुंचे. आग की तरह युवती की संदिग्ध मौत की खबर शहर भर में फैली तो कुछ ही देर में एएसपी गजेंद्र सिंह कंवर भी पहुंच गए.

सामने आई सच्चाई इसी बीच भीड़ में से ही किसी ने युवती की शिनाख्त भी कर दी कि वह नवाब साहब रोड  पर रहने वाली शिवानी शर्मा है. इस के बाद पुलिस को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि जिस चबूतरे पर लाश पड़ी थी, उस घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इन कैमरों की रिकौर्डिंग देख पता चला कि पिछली रात कोई डेढ़ बजे एक आटोरिक्शा जगदीश मंगल के घर के सामने रुका था. थोड़ी देर खड़ा रहने के बाद उस में से एकएक कर 4 युवक उतरे और इधरउधर देखने के बाद उन्होंने आटोरिक्शा की पिछली सीट के पायदान से एक युवती को बाहर निकाल कर चबूतरे पर लिटा दिया और वापस चले गए.

इधर जैसे ही लक्ष्मीबाई को पोती की मौत की खबर लगी तो उन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. हुआ वही, जिस का उन्हें अंदेशा था. रोरो कर उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछले कुछ दिनों से शिवानी नशेडि़यों की संगत में पड़ गई थी. वह कुछ ऐसी लड़कियों के चंगुल में फंसी थी, जो ड्रग्स का कारोबार करती थीं. उन्होंने जूली उर्फ अपर्णा भार्गव और रूबी जाटव के नाम भी बताए.

लक्ष्मीबाई ने यह भी बताया कि शिवानी का प्रेम प्रसंग चिक्की पाठक से चल रहा था और दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चिक्की के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. इस के बाद भी दोनों ने छिप कर शादी कर ली थी. शिवानी पहली जुलाई को ही घर छोड़ कर चली गई थी और 5 जुलाई को थोड़ी देर के लिए घर आई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि शिवानी की हत्या इन्हीं लोगों ने की है.

चूंकि सीसीटीवी से सच बाहर आ चुका था, इसलिए पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120बी और 34 का मामला दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने खबर दी कि आरोपी शिवपुरी से भागने की फिराक में हैं और फतेहपुर रोड पर पुलिया के पास खड़े हैं.

मुखबिर की सूचना पर तुरंत दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. विकास सोनी, परमार सिंह, रूबी जाटव, गोलू रजक और जूली ने बताया कि शिवानी की मौत नशे के ओवरडोज के चलते हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी इस की पुष्टि हुई.

इस कांड से शिवपुरी में फैलते नशे और देह व्यापार के कारोबार की जम कर चर्चा हुई. कुछ पुलिस वालों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, जिन्हें सस्पेंड कर दिया गया. चिक्की फरार हो चुका था, लेकिन 11 जुलाई, 2019 को एक पैट्रोल पंप के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

इस तरह शिवानी की जिंदगी और कहानी दोनों खत्म हुए, लेकिन एक सबक छोड़ गई कि लोग अपने बच्चों को नशे के इन सौदागारों से बचा कर रखें, नहीं तो उन का अंजाम भी शिवानी जैसा हो सकता है.  तमाम हंगामों के बाद भी पुलिस इस गिरोह के सरगनाओं के गिरेहबानों तक नहीं पहुंच पाई तो साफ दिख रहा है कि प्यादे फंसे हैं वजीर और बादशाह तो बेखौफ और बदस्तूर अपने धंधे में लगे हैं और नए शिकार ढूंढ रहे हैं.

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 पैरों में सिमटी कहानी

औरत का दिल अगर किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे मर्द पर भी आ जाए तो वह अपना सब कुछ यहां तक कि शरीर भी उसे सौंप देने में लिहाज नहीं करती. लेकिन उलट इस के यह बात भी सौ फीसदी सच है कि अगर वह जिद पर उतारू हो आए तो कोई मर्द लाख मिन्नतों और जबरदस्ती के बाद भी उस का जिस्म हासिल नहीं कर सकता, भले ही उसे अपनी जान क्यों न देनी पड़ जाए.

यही रुखसार के साथ हुआ था लेकिन उसे नशे की झोंक में आखिरी सांस तक इस बात पर हैरत कम अफसोस ज्यादा रहा होगा कि कभी उस के शौहर रहे सादिक ने ही अपने पेशे कसाईगिरी के मुताबिक उस के उस जिस्म, जिस के लिए तलाक के बाद भी वह उस के इर्द गिर्द मंडराता रहा था, की बेरहमी से बोटी बोटी कर डाली.

हादसा मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के नजदीक महू नाम के कस्बे का है जो सैन्य छावनी और संविधान निर्माता व देश के पहले कानून मंत्री डा. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली होने के चलते देश भर में मशहूर है.

बीती 2 अक्तूबर को पूरे देश की तरह महू में भी समारोह कर के जगहजगह गांधी जयंती मनाई गई थी. उस दिन छुट्टी के चलते इस कस्बे के बच्चे खेलकूद में व्यस्त थे. महू का एक मोहल्ला है पत्तीपुरा जहां खेल रहे कुछ बच्चों की नजर नजदीक की गली के पास से बहते सुरखी नाले पर पड़ी तो वे हैरान हो उठे.

नाले में किसी मानव के बहते कटे पैर पड़े थे. उन्होंने यह बात दौड़ कर बड़ों को बताई तो थोड़ी देर में नाले के पास खासी भीड़ जमा हो गई. जल्द ही पूरे महू में यह बात जंगल की आग की तरह फैली और मौजूद भीड़ में से किसी ने पुलिस को भी इस की खबर कर दी.

खबर पाते ही टीआई योगेश तोमर टीम सहित मौके पर पहुंचे तो उन्होंने नाले से एक जोड़ी कटे पैर बरामद किए जो घुटनों के नीचे का हिस्सा था. पैर बरामद करने के बाद पुलिस ने इस उम्मीद के साथ आसपास के इलाके में खोजबीन की कि शायद दूसरे अंग भी मिल जाएं, जिस से पता चले कि माजरा क्या है, हालांकि यह पहली ही नजर में सभी को समझ आ गया था कि किसी की हत्या कर लाश के टुकड़े कर उसे बहाया गया है, लेकिन केस के लिए जरूरी था कि शरीर के बाकी हिस्से भी मिले.

देर रात तक पुलिस आसपास खाक छानती रही. जब कोई और अंग बरामद नहीं हुआ तो मामला उलझता हुआ नजर आया. कस्बे में फैली सनसनी, आशंकाओं और अफवाहों, चर्चाओं के दौरान इंचार्ज एसपी कृष्णा वेणी देसावत और एएसपी धर्मराज मीणा भी घटना स्थल पर पहुंच गए. चूंकि कटे पैरों के नाखून पर नेल पालिश लगा था इसलिए स्वभाविक अंदाजा यह लगाया गया कि पैर किसी महिला के होने चाहिए.

उस दिन तो पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लगा लेकिन दूसरे दिन की खोजबीन रंग लाई और शरीर के कुछ और हिस्से बरामद हुए. महू की मीटर गेज लाइन कस्बे का बाहरी इलाका है जहां की खान कालोनी में लाश का सिर और एक कटा हाथ मिला. थोड़ी और मशक्कत के बाद दूसरा कीचड़ से सना हाथ भी बरामद हो गया.

इस नृशंस हत्याकांड की चर्चा अब तक प्रदेश भर में होने लगी थी, लिहाजा पुलिस के लिए यह जरूरी हो चला था कि वह जल्द से जल्द इस हत्याकांड से परदा उठाए. इस बाबत एसएसपी रुचिवर्धन मिश्रा खुद इंदौर से महू आईं. उन्होंने मामले की जांच के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं.

3 जगहों से बरामद अंगों के मिलने के बाद भी पुलिस के लिए लाश की पहचान करना कोई आसान काम नहीं था लेकिन लाश के दाएं हाथ पर एक टैटू बना मिला, जिस में अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों से हरदीप लिखा हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि मृतका सिख समुदाय की हो सकती है क्योंकि हरदीप नाम आमतौर पर सिखों में ही होता है.

इस बाबत पुलिस ने सिख समाज के लोगों से पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई जानकारी पुलिस के हाथ नहीं लगी जो टुक ड़ेटुकड़े लाश की शिनाख्त में कोई मदद कर पाती. अब तक यह जरूर पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि लाश महिला की ही है और उसे बेहद नृशंस तरीके से मारा गया है.

इस दौरान पुलिस ने कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ भी की लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली. इस से एक ही बात उसे समझ आई कि वारदात में किसी आदतन या पेशेवर अपराधी का हाथ नहीं है, फिर भी टुकड़े टुकड़े मिली यह लाश पहेली बन कर के सामने आई थी.

जल्द ही मुखबिरों के जरिए पुलिस को पता चला कि कोई 2 साल पहले पीथमपुरा थाने में एक मामला दर्ज हुआ था जिस में एक महिला पकड़ी गई थी, जिस के हाथ पर अंग्रेजी में हरदीप गुदा हुआ था. तुरंत ही पुलिस की एक टीम पीथमपुरा थाने रवाना हो गई. पुरानी फाइलें खंगालने पर 2017 के एक मामले से पता चला कि पकड़ी गई महिला का असली नाम रुखसार था.

पुलिस के लिए इतना काफी था. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि 29 वर्षीय रुखसार के और भी कई नाम हैं मसलन जेबा, पूजा और सोनू, इतनी कामयाबी मिलते ही पुलिस ने इंदौर से रुखसार की बहनों और मां को बुला भेजा, जिन्होंने लाश देखते ही उस की शिनाख्त रुखसार के रूप में कर दी.

इसी पूछताछ में पता चला कि मूलत: इंदौर के चंदू वाला रोड के चंदन नगर इलाके में रहने वाली रुखसार की शादी कोई 8 साल पहले महू के सादिक से हुई थी. उस के पिता का नाम मोहम्मद आमीन है.

भरेपूरे बदन की रुखसार बेइंतहा खूबसूरत थी, उस के तीखे नैननक्श और मासूमियत की चर्चा उस के जवान होते ही शुरु हो गई थी. खूबसूरत बेटी किसी गरीब के घर पैदा हो तो किसी मुसीबत से कम नहीं होती. यही मोहम्मद आमीन के साथ हो रहा था जिन की आमदनी से खींचतान कर घरबार चल पाता था.

पिता को उम्मीद थी कि खूबसूरत रुखसार को किसी खाते पीते घरपरिवार का लडक़ा ब्याह ले जाएगा. लेकिन रुखसार जितनी खूबसूरत थी उस की तकदीर उतनी ही बदसूरत निकली. जब किसी मनपसंद और अच्छी जगह उस का रिश्ता तय नहीं हो पाया तो अब्बा ने बेटी का हाथ सादिक के हाथों में सौंप दिया जो पेशे से कसाई था.

सादिक का एक पैर खराब था, जिस की वजह से वह लंगड़ाकर चलता था लिहाजा लोग उसे सादिक लंगड़ा के नाम से पुकारते थे. रुखसार जब उस की शरीक ए हयात बनकर आई तो वह अपनी इस कमजोरी को भूलने लगा.

इतनी खूबसूरत बीवी पा कर किसी का भी इतराना कुदरती बात होती है लेकिन शायद पैर की कमजोरी के चलते रुखसार उसे मन से नहीं अपना पाई. हालांकि सादिक शारीरिक तौर पर किसी सामान्य पुरुष से उन्नीस नहीं था.

रुखसार की जवानी के समंदर में सादिक ऐसा डूबा कि उस ने अपने काम धाम पर ध्यान देना छोड़ दिया और दिन रात बीवी के साथ बिस्तर में पड़ा जवानी और जिंदगी का लुत्फ उठाते भूल गया कि घर चलाने के लिए पैसा भी उतना ही जरूरी है जितना कि सेक्स.

जब जवानी की खुमारी पर भूख और जरूरतें भारी पड़ने लगीं तो सादिक जल्द और ज्यादा पैसे कमाने की गरज से गलत राह पर चल पड़ा. वह नशे का कारोबार करने लगा. जो लोग नशे के आइटम यानि ड्रग्स का धंधा और स्मगलिंग करते हैं आमतौर पर उन्हें भी इस की लत लग जाती है यही सादिक के साथ हुआ. वह ड्रग्स बेचतेबेचते उस का नशा भी करने लगा था.

पति की हरकतों से परेशान रुखसार को भी नशे की लत लग गई. वह खुद तो नशा करने ही लगी, शौहर के साथ नशे का कारोबार भी मिल कर करने लगी. उस के दिल में एक कसक हमेशा बनी रही कि उसे वैसा शौहर नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था.

यह कसक कुंठा में बदलने लगी

जिस का अहसास कम पढ़ीलिखी रुखसार को था या नहीं, यह तो वही जाने पर बाहर की हवा लग जाने से उसे महसूस हुआ कि सादिक और घर के अलावा भी एक जिंदगी और है, जिस में कुछ और हो न हो लेकिन पैसा ठीकठाक है.

सादिक को भी इस बात का अहसास था कि वह अपनी बीवी की दिली पसंद और चाहत नहीं बल्कि मजबूरी है इसलिए धीरेधीरे वह आक्रामक होने लगा. इस दौरान दोनों का एक बेटा भी हुआ.

अब पैसा तो ठीकठाक आ रहा था लेकिन रुखसार की सादिक के लंगड़ेपन को ले कर असंतुष्टि सर उठाने लगी थी. वह सीधे तो सादिक से कुछ नहीं कहती थी लेकिन जब भी सादिक नशे में बिस्तर पर आता तो उसे उस की हरकतें नागवार गुजरने लगी. एक पुरानी कहावत है जिस का सार यह है कि औरत पति से 2 चीजें ही चाहती है पहली यह कि वह खाने पीने की कमी न होने दे और दूसरी यह कि सैक्स में संतुष्टि देता रहे.

रुखसार के साथ तीसरी वजह भी जुड़ गई थी जो शादी के वक्त से उस के मन में सादिक की कमजोरी को ले कर थी. लिहाजा उस का मुंह शौहर के सामने खुलने लगा. सादिक ने इस से ज्यादा कुछ नहीं सोचा समझा कि यह सब उस की पैर की कमजोरी के चलते रुखसार जानबूझ कर उसे जलील करने के लिए करती है.

लिहाजा दोनों में रोज रोज कलह होने लगी और एक दिन तो इतनी हुई कि सादिक ने गुस्से में आ कर 3 बार ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रुखसार की मुराद पूरी कर दी. वह आम औरतों की तरह पति के सामने रोई गिड़गिड़ाई नहीं बल्कि अपना सामान समेट कर उस का घर ही छोड़ दिया.

घर छोड़ने के बाद वह मायके इंदौर नहीं गई बल्कि महू में ही अलग किराए का मकान लेकर रहने लगी. ये कुछ दिन उस ने सुकून से गुजारे जहां सादिक की जोर जबरदस्ती और कलह नहीं थी, थी तो एक आजाद जिंदगी जिसे वह अपनी मरजी से जी रही थी.

रुखसार को तलाक दे कर सादिक को अहसास हुआ कि उस के बिना जिंदगी में काफी कुछ अधूरा है. दोनों अब अलगअलग अपने नशे की दुकान चला रहे थे और खुद भी नशा कर रहे थे.

रुखसार को भी मर्द की तलब लगने लगी थी. इसी दरम्यान उस की जानपहचान हरदीप नाम के नौजवान से हुई जो रंगीनमिजाज और आवारा होने के साथ बेरोजगार भी था. उसे भी नशे की लत थी, जिस के चलते उस की जानपहचान रुखसार से हुई थी और उस के हुस्न में फंसने से खुद को रोक नहीं पाया था.

इस हवसनुमा प्यार का नया अहसास रुखसार को उस जिंदगी में ले गया जिस के सपने वह शादी के पहले देखा करती थी. अब दोनों बिस्तर साझा करने लगे. प्यार की झोंक में ही रुखसार ने अपने दाहिने हाथ पर हरप्रीत के नाम का टैटू गुदवा लिया.

लेकिन हरदीप चालूपुर्जा निकला. कुछ महीनों में ही उस का रुखसार से जी भर गया तो वह उस से कन्नी काटने लगा. रुखसार अब दुनियादारी का ककहरा समझने लगी थी लिहाजा उस ने पैसों के लिए छोटीमोटी लूटपाट का भी धंधा शुरु कर दिया. इसी के चलते एक बार वह गिरफ्तार भी हुई और पीथमपुरा थाने में भी रही जिस का जिक्र पहले किया गया है.

हरदीप भी एक आपराधिक मामले में फंस कर जेल जा चुका था, लेकिन वह लौट कर दोबारा रुखसार के पास नहीं आया. उस के यूं मुंह मोड़ लेने से रुखसार की जिस्मानी जरूरतें सर उठाने लगी थीं लेकिन इन्हें पूरा करना उसे जोखिम भरा काम लग रहा था.

यही हालत सादिक की भी थी, लिहाजा हिम्मत कर एक दिन वह रुखसार के पास जा पहुंचा और उस से सुलह की बात कही लेकिन रुखसार अब मुड़ कर देखना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने उस की दोबारा शादी की पेशकश ठुकरा दी.

इस से सादिक का दिल दोबारा तो टूटा लेकिन एक अच्छी बात यह रही कि रुखसार इस बात पर राजी हो गई कि कभी कभार वह उसे शरीर सुख दे देगी. ऐसा होने भी लगा. जब सादिक को जरूरत पड़ती थी तो वह रुखसार के घर जा कर अपनी भूख मिटा लेता था और जब यही जरूरत रुखसार को महसूस होती थी तो वह सादिक के घर चली जाती थी.

दोनों अब एक समझौते के तहत जिंदगी जी रहे थे, जिस में किसी की कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. सौदा मरजी का था, जिस से दोनों खुश थे. सादिक का खून हालांकि यह जान कर खौला जरूर था कि तलाक के बाद रुखसार ने हरदीप से संबंध बनाए थे. लेकिन चूंकि अब वह उस की बीवी नहीं रही थी, इसलिए वह कोई ऐतराज नहीं जता पाया. वैसे भी जो सुख उसे रुखसार से चाहिए था वह मिल रहा था इसलिए खामोश रहने में ही उस ने भलाई समझी.

आजकल के डिजिटल युग में महू के पत्तीपुरा में ठेला लगा कर देवी देवताओं और फिल्मी नायिकाओं के पोस्टर बेचने वाले अधेड़ अनूप माहेश्वरी की दोस्ती सादिक से थी. अनूप भी नशेड़ी था और दिल फेक भी, इसी के चलते पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी.

3 साल पहले एक बार वह अपने ही घर में एक कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते गिरफ्तार भी हुआ था, जिस से समाज में उस की खासी बदनामी हुई थी और वह एक तरह से बहिष्कृत जिंदगी जी रहा था.

सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.

सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सुख लेता है.

यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.

अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.

इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.

सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.

अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.

लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.

इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.

इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.

योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.

जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.

हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.

थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.

रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.

अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.

वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…

लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.

रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’

ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी की लाश के टुकड़े टुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.

पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.

इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.

सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.

पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.

अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.

ये कैसा बदला : सुनीता ने क्यों की एक मासूम की हत्या?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था. विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला. उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

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वरुण 

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरह तरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

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अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोना कोना देख लिया जाए.

इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

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                           रोती बिलखती वरुण मीणा की मां तृप्ति 

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाश पाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहने सुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरह तरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.