Love Crime : मामा के प्यार में बेटी ने फावड़े से काटी मां और पापा की गर्दन

Love Crime : पिछले कुछ समय से करीबी रिश्तेदार ही अपनों के दुश्मन साबित हो रहे हैं. ऐसे में अपने स्वार्थों के चलते अगर घर का कोई सदस्य उन का साथ दे तो परिणाम बहुत घातक होते हैं. प्रवींद्र और संगीता सगे मामाभांजी थे, लेकिन जब उन्होंने मर्यादाएं लांघी तो अपने ही परिवार पर इतने भारी पड़े कि…

झा उस दिन जनवरी, 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह अपने कक्ष में मौजूद थे. तभी उन के कक्ष में सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने प्रवेश किया. शैलेंद्र सिंह के अचानक आने पर वह समझ गए कि जरूर कोई खास बात है. उन्होंने पूछा, ‘‘शैलेंद्र सिंह, कोई विशेष बात?’’

‘‘हां सर, खास बात पता चली है, सूचना देने आप के पास आया हूं.’’ शैलेंद्र सिंह ने कहा.

‘‘बताओ, क्या बात है?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘सर, 3 महीने पहले थाना गुरसहायगंज के गौरैयापुर गांव में जो डबल मर्डर हुआ था, उस के आरोपियों की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर में मिल रही है. अगर पुलिस टीम वहां भेजी जाए तो उन की गिरफ्तारी संभव है.’’ शैलेंद्र सिंह ने बताया. शैलेंद्र सिंह की बात सुन कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह चौंक गए. इस की वजह यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड ने उन की नींद उड़ा रखी थी. लोग पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहे थे. कानूनव्यवस्था को ले कर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही थीं. दरअसल, गौरैयापुर गांव में रमेशचंद्र दोहरे और उन की पत्नी ऊषा की हत्या कर दी गई थी. उन की युवा बेटी संगीता घर से लापता थी. घर में लूटपाट होने के भी सबूत मिले थे. इसलिए यही आशंका जताई गई थी कि बदमाशों ने लूटपाट के दौरान दंपति की हत्या कर दी और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया.

लेकिन बाद में जांच से पता चला कि संगीता के अपने ममेरे भाई प्रवींद्र से नाजायज संबंध थे. इस से यह आशंका हुई कि कहीं इन दोनों ने ही तो इस हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया. पुलिस उन की तलाश में जुटी थी और पुलिस ने उन दोनों की सही जानकारी देने वाले को 25-25 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था. उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगे थे, जिन की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर की मिल रही थी. सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह से यह सूचना मिलने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्काल एएसपी के.सी. गोस्वामी को कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने उन्हें दोहरे हत्याकांड के आरोपियों के बारे में जानकारी दी. फिर उन के निर्देशन में एसपी ने एक पुलिस टीम गठित कर दी.

टीम में गुरसहायगंज के थानाप्रभारी नागेंद्र पाठक, इंसपेक्टर विजय बहादुर वर्मा, टी.पी. वर्मा, दरोगा मुकेश राणा, सिपाही रामबालक तथा महिला सिपाही कविता को सम्मिलित किया गया. यह टीम संगीता और प्रवींद्र की तलाश में पश्चिम बंगाल के हुगली शहर के लिए रवाना हो गई. 4 जनवरी को पुलिस टीम पश्चिम बंगाल के हुगली शहर पहुंच गई और स्थानीय थाना भद्रेश्वर पुलिस से संपर्क कर अपने आने का मकसद बताया. दरअसल, प्रवींद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उस समय भद्रेश्वर थाने के आरबीएस रोड की मिल रही थी, जो झोपड़पट्टी वाला क्षेत्र था. झोपड़पट्टी में ज्यादातर मजदूर लोग रह रहे थे. पुलिस टीम ने थाना भद्रेश्वर पुलिस की मदद से छापा मारा और एक झोपड़ी से संगीता और प्रवींद्र को हिरासत में ले लिया. जिस झोपड़ी से उन दोनों को हिरासत में लिया था, वह झोपड़ी नगमा नाम की महिला की थी.

पकड़ में आए प्रवींद्र और संगीता नगमा ने पुलिस को बताया कि करीब ढाई महीने पहले प्रवींद्र और संगीता ने झोपड़ी किराए पर ली थी. प्रवींद्र ने संगीता को अपनी पत्नी बताया था. दोनों मजदूरी कर अपना भरणपोषण करते थे. नगमा को जब पता चला कि दोनों हत्यारोपी हैं तो वह अवाक रह गई. पुलिस टीम ने संगीता और प्रवींद्र को हुगली की जिला अदालत में पेश किया. अदालत से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस दोनों को कन्नौज ले आई. एएसपी गोस्वामी तथा एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने संगीता और प्रवींद्र से एक घंटे तक पूछताछ की. पूछताछ में दोनों ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. हत्या का जुर्म कबूल करने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद ने प्रैसवार्ता कर दोहरे हत्याकांड का खुलासा किया.

प्रवींद्र और संगीता से की गई पूछताछ में मामाभांजी के कलंकित रिश्ते की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई—

उत्तर प्रदेश के कन्नौज का बड़ी आबादी वाला एक व्यापारिक कस्बा गुरसहायगंज है. यहां बड़े पैमाने पर आलू तथा तंबाकू का व्यवसाय होता है. बीड़ी के कारखानों में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. गुरसहायगंज कस्बा पहले फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत आता था लेकिन जब कन्नौज नया जिला बना तो यह कस्बा कन्नौज जिले का हिस्सा बन गया. इसी गुरसहायगंज कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर सौरिख रोड पर बसा है एक गांव गौरैयापुर. कोतवाली गुरसहायगंज के अंतर्गत आने वाले इसी गांव में रमेशचंद्र दोहरे का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा एक बेटी संगीता थी. रमेशचंद्र के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. उसी की उपज से वह परिवार का भरणपोषण करता था.

संगीता सुंदर थी. जब उस ने 17वां बसंत पार किया तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया, बातें भी बड़ी मनभावन करती थी. लेकिन पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. जिस के चलते वह 8वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकी. इस के बाद वह घर के रोजमर्रा के काम में मां का हाथ बंटाने लगी. संगीता जिद्दी स्वभाव की थी. वह जिस चीज की जिद करती, उसे हासिल कर के ही दम लेती थी. संगीता के घर प्रवींद्र का आनाजाना लगा रहता था. वह संगीता की मां ऊषा देवी का सगा छोटा भाई था यानी संगीता का सगा मामा. वह हरदोई जिले के कतन्नापुर गांव का रहने वाला था और अकसर अपनी बहन ऊषा के ही घर पड़ा रहता था. जब भी आता हफ्तेदस दिन रुकता था. ऊषा का पति रमेशचंद्र इसलिए कुछ नहीं बोलता था क्योंकि वह उस का साला था.

संगीता और प्रवींद्र हमउम्र थे. प्रवींद्र उस से 2 साल बड़ा था. हमउम्र होने के कारण दोनों में खूब पटती थी. प्रवींद्र बातूनी था, इसलिए संगीता उस की बातों में रुचि लेती थी. ऊषा समझती थी कि प्रवींद्र को उस से लगाव है, इसलिए वह उस के घर आता है. लेकिन सच यह था कि प्रवींद्र की लालची नजर अपनी भांजी संगीता पर थी. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए आता था. प्रवींद्र ने अपने व्यवहार से बहन और बहनोई के दिल में ऐसी जगह बना ली थी कि वे उसे अपना हमदर्द समझने लगे थे. वे लोग उस से सुखदुख की बातें भी साझा करते थे. दरअसल, रमेशचंद्र उसे इसलिए वफादार समझने लगे थे क्योंकि प्रवींद्र उन के खेती के कामों में भी हाथ बंटाने लगा था. खाद बीज लाने की जिम्मेदारी भी वही उठाता था. इन्हीं सब कारणों से प्रवींद्र रमेश की आंखों का तारा बन गया था.

हमारे समाज में युवा हो रही लड़कियों के लिए तमाम बंदिशें होती हैं. वह किसी बाहरी लड़के से हंसबोल लें तो उन्हें डांट पड़ती है. यह उम्र जिज्ञासाओं की होती है. मन हवा में उड़ान भरने को मचलता है. पारिवारिक और सामाजिक वर्जनाओं की वजह से आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां अपने रिश्ते के करीबी युवक से ज्यादा घुल जाती हैं. वह उन का मामा, जीजा, चचेरा या मौसेरा या ममेरा भाई कोई भी हो सकता है. वे उसे ही अपना दोस्त बना लेती हैं. संगीता के सब से नजदीक मामा प्रवींद्र ही था, अत: उन दोनों में भी ऐसा ही रिश्ता था. प्रवींद्र की नजर थी खूबसूरत भांजी पर शुरुआती दिनों में जब प्रवींद्र ने बहन ऊषा के घर आना शुरू किया था, तब उस के मन में संगीता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी. रिश्ते में वह उस की भांजी थी. किंतु भावनाओं में तूफान आते और रिश्ता बदलते कितनी देर लगती है.

संगीता से मेलमिलाप की वजह से प्रवींद्र की भावनाओं में भी तूफान आ गया और मामाभांजी के पवित्र रिश्ते पर कालिख लगनी शुरू हो गई. हुआ यह कि एक दिन प्रवींद्र ऊषा के घर पहुंचा तो वह परिवार सहित गांव में एक परिचित के घर समारोह में जाने को तैयार थी. संगीता भी खूब बनीसंवरी थी. उस ने गुलाबी सलवारसूट पहना था और खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे. उस समय संगीता बेहद खूबसूरत दिख रही थी. संगीता का वह रूप प्रवींद्र की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. प्रवींद्र के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनाते को ढक लिया. वह भूल गया कि संगीता उस की भांजी है. प्रवींद्र का मन चाह रहा था कि संगीता उस के सामने रहे और वह उसे अपलक देखता रहे, लेकिन ऐसा कहां संभव था. वे लोग तो समारोह में जाने को तैयार थे. प्रवींद्र को घर की तालाकुंजी दे कर वे सब चले गए. प्रवींद्र की नजरें तब तक संगीता का पीछा करती रहीं जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उन के जाने के बाद प्रवींद्र खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस की आंखों में संगीता का अक्स बसा था और जेहन में उसी के खयाल उथलपुथल मचा रहे थे. कई बार प्रवींद्र की अंतरात्मा ने उसे झिंझोड़ा, ‘संगीता तुम्हारी भांजी है, उस के बारे में गंदे विचार तक मन में लाना पाप है. संगीता के बारे में गलत सोचना बंद कर दो.’  प्रवींद्र ने हर बार यह सोच कर अंतरात्मा की आवाज को दबा दिया कि हर लड़की किसी न किसी की भांजी होती है. अगर लोग मामाभांजी का ही रिश्ता निभाते रहे तो चल गई दुनिया. कहते हैं कि बुरे विचार अच्छे विचारों को जल्दी ही दबा देते हैं. प्रवींद्र की अच्छाई पर बुराई हावी हो गई.

इधर ऊषा और रमेश रात को काफी देर से लौटे. सुबह वे जल्दी उठ कर अपनेअपने काम से लग गए. रमेशचंद्र और ऊषा खेत पर चले गए थे, जबकि संगीता घरेलू कामों में व्यस्त थी. प्रवींद्र की आंखें खुलीं तो उस की नजर आंगन में काम कर रही संगीता पर पड़ी. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन टकटकी लगाए संगीता को देखने लगा. प्रवींद्र को इस तरह अपनी ओर ताकते देख संगीता ने टोका, ‘‘क्या बात है मामा, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे. बस टकटकी लगा कर मुझे ही देखे जा रहे हो.’’

‘‘इसलिए देख रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत हो. जी चाहता है कि तुम सामने खड़ी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं. यह कमबख्त नजरें तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं.’’ वह बोला. संगीता मामा के मन का मैल न समझ कर उन्मुक्त हंसी हंसने लगी. हंसी पर विराम लगा तो बोली, ‘‘यह कौन सी नई बात है. गांव में भी सब कहते हैं कि संगीता तुम खूबसूरत हो.’’

फिर वह शरारत से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘कैसे मामा हो जिसे आज पता चला कि मैं खूबसूरत हूं.’’

‘‘आज नहीं, मैं ने कल जाना कि तुम खूबसूरत हो.’’ प्रवींद्र के मन की बात उस की जुबान पर आ गई, ‘‘गुलाबी रंग का सलवारसूट तुम्हारे गोरे बदन पर बेहद फब रहा था. ऊपर से तुम्हारा मेकअप तो मेरे दिल पर बिजली गिरा गया. किसी दुलहन से कम नहीं लग रही थी तुम…’’

संगीता अपने सौंदर्य की तारीफ सुन कर गदगद हो गई, उस ने शरम से नजरें झुका लीं. साथ ही उस के मन में कांटा सा चुभा. वह सोचने लगी कि क्या मामा के दिल में खोट आ गया है, जो ऐसी बातें उस से कर रहे हैं. वह अभी ऐसा सोच ही रही थी कि तभी प्रवींद्र 2 कदम आगे बढ़ कर संगीता की कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘संगीता, तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

संगीता काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि उस के मामा प्रवींद्र के मन में उस के लिए बेपनाह प्यार है. सच तो यह था कि संगीता भी मन ही मन मामा प्रवींद्र को चाहती थी. यही कारण था कि जब प्रवींद्र ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया तो संगीता ने फौरन इकरार करते हुए कह दिया, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहती हूं.’’

मोहब्बत को मिली जुबान खामोश मोहब्बत को जुबान मिली तो संगीता और प्रवींद्र की आशिकी के रंग निखरने लगे. प्रवींद्र का पहले से ही घर में आनाजाना था. रमेशचंद्र दोहरे भी उसे बेटे की तरह मानते थे, इसलिए संगीता से उस के मिलनेजुलने या एकांत में बातचीत करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं थी. प्रवींद्र जब अपने गांव कतरतन्ना में होता तब वे दोनों मोबाइल फोन पर देर तक बातें करते थे. संगीता उसे अपना हालेदिल सुनाया करती. बहन के घर जाने में भाई को बहाने की जरूरत नहीं होती. संगीता के बुलाने पर वह उस के यहां आ जाता. सब उसे देख कर खुश होते कि देखो भाईबहन में कितना प्यार है. लेकिन यह तो केवल संगीता जानती थी कि प्रवींद्र किसलिए आता है. ज्योंज्यों दिन गुजरते गए, संगीता और प्रवींद्र की मोहब्बत के तकाजे भी बढ़ते गए. उन की चाहत तनहाई और खुफिया मुलाकात की मांग करने लगी. यह तकाजा पूरा करने के लिए उन दोनों ने किसी तरह की कोताही नहीं की.

रात को जब सब लोग सो जाते, तब संगीता और प्रवींद्र चुपके से उठ कर छत पर चले जाते और वहां एकदूजे की बांहों में खो जाते. तनहाई और रात के सन्नाटे में 2 जिस्म मिले तो जज्बात भड़कते ही हैं. संगीता और प्रवींद्र भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा सके. पे्रमोन्माद में वे एकदूसरे को समर्पित हो गए. समय बीतता रहा. किसी को अब तक नहीं खबर नहीं थी कि संगीता और प्रवींद्र एकदूसरे से प्यार करते हैं. मन से ही नहीं, दोनों तन से भी एक हो चुके हैं. प्रवींद्र और संगीता के इश्क का खेल 2 सालों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन एक रोज उन का भांडा फूट ही गया. उस दिन शाम को प्रवींद्र आया तो पता चला रमेश जीजा रिश्तेदारी में उन्नाव गए हैं. वह 3 दिन बाद घर लौटेंगे. ऊषा आंगन में अकेली बैठी थी और संगीता रसोई में खाना बना रही थी. ज्यों ही प्रवींद्र ऊषा के पास आ कर बैठा, उस ने वहीं से रसोई की ओर मुंह कर आवाज दी, ‘‘बेटी संगीता, मामा आए हैं, इन के लिए भी खाना बना लेना.’’

प्रवींद्र चारपाई पर पसर गया और हंस कर बोला, ‘‘हां दीदी, मैं खाना भी खाऊंगा और रुकूंगा भी. जीजा बाहर गए हैं न इसलिए घर और तुम दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज है. वैसे भी दीदी तुम मुझे फोन पर बता देती तो मैं दौड़ा चला आता.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ ऊषा भी हंसने लगी, ‘‘मैं खुद तुझ से यहीं रुकने को कहने वाली थी. लेकिन तूने मेरे मुंह की बात छीन ली.’’

संगीता को पता चला कि मामा आए हैं तो उस का शरीर रोमांच से भर गया. वह जान गई कि आज की रात रंगीन होने वाली है. उस ने खाना बना कर तैयार किया फिर मां और मामा को खिलाया. उस के बाद खुद खाना खा कर घर की साफसफाई की. प्रवींद्र छत पर सोने चला गया और संगीता मां के साथ नीचे कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद ऊषा तो सो गई लेकिन संगीता की आंखों में नींद नहीं थी. ऊषा जब गहरी नींद सो गई तो संगीता दबेपांव उठी और प्रवींद्र के पास छत पर जा पहुंची. प्रवींद्र भी उस के आने का ही इंतजार कर रहा था. संगीता के पहुंचते ही उस ने उसे बांहों में भर लिया.

इधर आधी रात को ऊषा की आंखें खुलीं तो उस ने संगीता को चारपाई से नदारद पाया. वह उसे खोजते हुए आंगन में आई तो उसे छत पर खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी. वह जीने की ओर बढ़ी, तभी संगीता जीने से नीचे उतरी. शायद उसे मां के जागने का आभास हो गया था. कमरे में पहुंचते ही ऊषा ने पूछा, ‘‘संगीता, तू आधी रात को छत पर क्यों गई थी?’’

‘‘मामा उल्टियां कर रहे थे. उन्हें पानी देने गई थी.’’ संगीता ने बहाना बना दिया. ऊषा ने संगीता की बात पर विश्वास तो कर लिया किंतु उस के मन में शक का बीज अंकुरित होने लगा. अब वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगीं. संगीता और प्रवींद्र कड़ी निगरानी के कारण सतर्कता बरतने लगे थे, लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात ऊषा ने संगीता और प्रवींद्र को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रात ऊषा ने संगीता की जम कर फटकार लगाई और उस की पिटाई भी कर दी. उस ने छोटे भाई प्रवींद्र को भी भलाबुरा कहा और रिश्ते को कलंकित करने का दोषी ठहराया. इज्जत के नाम पर दबा दी बात अपराधबोध के कारण प्रवींद्र ने सिर झुका लिया. फिर जब ऊषा का गुस्सा ठंडा पड़ गया तो प्रवींद्र ने बहन के पैर पकड़ लिए, ‘‘दीदी, जवानी के जोश में हम और संगीता बहक गए थे. इस बार माफ कर दो. आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.’’

चूंकि बेटी का मामला था. ज्यादा शोर मचाने से उसी की बदनामी होती, इसलिए ऊषा ने हिदायत दे कर प्रवींद्र को माफ कर दिया. प्रवींद्र अपने घर चला गया. इस के बाद करीब 3 महीने तक प्रवींद्र बहन के घर नहीं आया. हां, इतना जरूर था कि संगीता और प्रवींद्र जबतब मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे और अपने दिल की लगी बुझा लेते थे. 3 माह बाद जब प्रवींद्र को संगीता की ज्यादा याद सताने लगी तो वह एक रोज बहन के घर आ पहुंचा. ऊषा ने प्रवींद्र के आने पर ऐतराज तो नहीं जताया, लेकिन संगीता से दूर रहने की हिदायत दी. प्रवींद्र अब ऊषा के सामने ही संगीता से बात करता तथा रात को घर के अंदर के बजाए घर के बाहर सोता. इस तरह प्रवींद्र का आनाजाना फिर से शुरू हो गया.

कहावत है कि आग और फूस एक साथ होंगे तो धुआं तो उठेगा ही और जलेंगे भी. संगीता और प्रवींद्र भी आगफूस की तरह थे. कुछ दिनों तक तो वे दोनों सुलगते रहे. आखिर में जब नहीं रहा गया तो वे पुन: सतर्कता के साथ मिलने लगे. ऊषा और रमेश दोनों ही संगीता व प्रवींद्र पर नजर रखते थे, परंतु वे उन की पकड़ में नहीं आए. संगीता अब तक 20 साल की उम्र पार करचुकी थी और उस के कदम भी बहक गए थे. इसलिए ऊषा और रमेश चाहते थे कि जितना जल्दी हो, उस के हाथ पीले कर दिए जाएं. संगीता का विवाह करने के लिए दोनों ने उपयुक्त घरवर की तलाश भी शुरू कर दी. संगीता को शादी वाली बात पता चली तो वह प्रवींद्र की छाती से मुंह छिपा कर बिलख पड़ी, ‘‘कुछ करो मामा, किसी दूसरे से मेरी शादी हो गई तो मैं जहर खा कर मर जाऊंगी.’’

प्रवींद्र की आंखें भी बरसने लगीं, ‘‘तुम्हारे बगैर मैं भी कहां जिंदा रह सकता हूं. तुम ने जहर खाया तो मैं भी जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगा.’’

‘‘हमारी आशिकी का जनाजा निकलने में देर नहीं है, इसलिए कह रही हूं कि जल्दी ही कुछ करो.’’

‘‘करना तो चाहता हूं पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं.’’ प्रवींद्र उलझन में पड़ा हुआ था, ‘‘हम दोनों की शादी हो नहीं सकती और हमेशा के लिए तुम्हें अपना बनाने का रास्ता सूझ नहीं रहा है.’’

‘‘प्रवींद्र, मुझे एक तरकीब सूझी है,’’ संगीता अचानक उल्लास से भर गई, ‘‘अगर तुम उस पर अमल करने को राजी हो जाओ तो हम हमेशा के लिए एक हो सकते हैं.’’

‘‘कैसी तरकीब?’’ प्रवींद्र ने पूछा.

‘‘चलो हम भाग चलें,’’ संगीता ने राह सुझाई, ‘‘दिल्ली, मुंबई जैसे शहर में हम अपने प्यार की अलग दुनिया बसाएंगे. वहां इतनी भीड़ रहती है कि कोई भी हमें ढूंढ नहीं सकेगा.’’

प्रवींद्र कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘संगीता, तुम्हारी तरकीब तो सही है लेकिन मुझे डर सता रहा है.’’

‘‘कैसा डर?’’ संगीता ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि मैं तुम्हें ले कर भागा तो तुम्हारे घर वाले मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगे. फिर पुलिस हमें पकड़ेगी. उस के बाद तुम अपने मातापिता के सुपुर्द कर दी जाओगी. और मैं जेल जाऊंगा. जब तक मैं जेल से बाहर आऊंगा, तब तक पता चलेगा कि घर वालों ने तुम्हें समझाबुझा कर किसी दूसरे से तुम्हारी शादी कर दी है. ऐसे मामलों में अकसर यही होता है.’’ प्रवींद्र बोला. प्रवींद्र की बात सुन कर संगीता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. अपनी बात का असर पड़ता देख प्रवींद्र आगे बोला, ‘‘दूसरी बात यह है कि घर से भाग कर दूसरे शहर में बसना आसान नहीं. उस के लिए पैसे चाहिए. और पैसे हमारे पास हैं नहीं.’’

संगीता कुछ देर सोच में डूबी रही. उस के बाद बोली, ‘‘प्रवींद्र, मुझे मातापिता का विरोध और तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हम हर हाल में अपना घर बसाना चाहते हैं. इस के लिए तुम कुछ भी करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

‘‘तो सुनो, एक तरकीब है मेरे पास. लेकिन उस के लिए तुम्हें अपना कलेजा मजबूत करना होगा. उस तरकीब से हमारी सारी समस्या हल हो जाएगी और धन भी मिल जाएगा.’’ प्रवींद्र ने कहा.

‘‘ऐसी कौन सी तरकीब है?’’ संगीता ने विस्मय से पूछा.

‘‘मुझे अपने बहनबहनोई और तुम्हें अपने मातापिता को मौत की नींद सुलाना होगा. फिर घर से नकदी और गहने ले कर फरार हो जाएंगे. इस तरकीब से किसी को हम पर शक भी नहीं होगा. लोग समझेंगे कि बदमाशों ने घर में लूट की और विरोध पर दोनों की हत्या कर दी और लड़की का अपहरण कर लिया.’’

बन गई खून बहाने की योजना संगीता, प्रवींद्र के प्यार में अंधी हो चुकी थी, इसलिए वह खूनी मांग सजाने को तैयार हो गई. उस ने प्रेमी मामा प्रवींद्र की तरकीब को मान लिया और अपनों का खून बहाने को राजी हो गई. इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने रमेशचंद्र और ऊषा के कत्ल की योजना बनाई. योजना के तहत प्रवींद्र अपने गांव चला गया ताकि बहन के पड़ोसियों को उस पर शक न हो. गांव में रहने के दौरान वह संगीता के संपर्क में बना रहा. 8 अक्तूबर, 2019 की सुबह प्रवींद्र ने संगीता से मोबाइल पर बात की और रात में घटना को अंजाम दे कर फरार होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि वह रात 10 बजे उस के घर पहुंचेगा, दरवाजा खुला रखे. प्रेमी मामा से बात होने के बाद संगीता घर से भागने की तैयारी में जुट गई.

उस ने मां से चोरीछिपे बैग में अपने कपड़े तथा जरूरी सामान रख लिया. बैग को उस ने कमरे में रखे बड़े संदूक में छिपा दिया. अन्य दिनों के अपेक्षा उस शाम संगीता ने कुछ जल्दी खाना बना कर मांबाप को खिला दिया. खाना खा कर ऊषा और रमेश कमरे में पड़े तख्त पर जा कर लेट गए. कुछ देर बाद दोनों गहरी नींद सो गए. इधर रात 10 बजे प्रवींद्र संगीता के दरवाजे पर पहुंचा. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो संगीता ने दरवाजा खोल कर उसे घर के अंदर कर लिया. वह बेसब्री से उसी का इंतजार कर रही थी. संगीता प्रवींद्र को कमरे में ले गई. एकांत पा कर प्रवींद्र का मन मचल उठा और वह संगीता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.

उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’

इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई. उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया. 2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.

दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी. सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी. दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.

शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.

जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे. प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के  आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए. नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.

8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP News : 4 साल बाद खुला प्रेमिका की हत्या का राज

UP News : सलमान ने जिस रचना को कभी दिल से प्यार किया था, उसे ही गाजरमूली की तरह काट कर फेंक दिया. वह भी इसलिए क्योंकि रचना उस की चाहत पूरी नहीं कर सकी. बेवकूफ थी रचना जो एक बार पीछा छूटने के बाद फिर उसी सलमान से…

इलाहाबाद (प्रयागराज) के वेणीमाधव मंदिर के आसपास का इलाका धनाढ्य लोगों का है. इसी इलाके की वेणीमाधव मंदिर वाली गली में उमा शुक्ला का परिवार रहता था. उन के 3 बच्चे थे, एक बेटा भोला और 2 बेटियां निशा और रचना. पति की मृत्यु के बाद परिवार को संभालने की जिम्मेदारी उमा ने ही उठाई. जब बेटा भोला बड़ा हो गया तो उमा शुक्ला को थोड़ी राहत मिली. रचना उमा शुक्ला की छोटी बेटी थी, थोड़े जिद्दी स्वभाव की. उस दिन साल 2016 के अप्रैल की 16 तारीख थी. समय सुबह के 10 बजे. रचना जींस और टौप पहन कर कहीं जाने की तैयारी कर रही थी. मां ने पूछा तो बोली, ‘‘थोड़ी देर के लिए जाना है, जल्दी लौट आऊंगी.’’

उमा शुक्ला कुछ पूछना चाहती थीं, लेकिन रचना बिना मौका दिए अपनी स्कूटी ले कर बाहर निकल गई. बड़ी बेटी निशा पहले ही कालेज जा चुकी थी. थोड़ी देर में लौटने को कह कर रचना जब 2 घंटे तक नहीं लौटी तो उमा शुक्ला को चिंता हुई. उन्होंने फोन लगाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद तो उमा का फोन बारबार रिडायल होने लगा. उन्होंने रचना के कालेज फ्रैंड्स को भी फोन किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. शाम होतेहोते जब बेटा भोला शुक्ला और बेटी निशा लौट आए तो उन्होंने सुबह गई रचना के अभी तक नहीं लौटने की बात बताई. निशा और भोला ने भी रचना का फोन ट्राई किया, उस के दोस्तों से भी पता किया लेकिन रचना का पता नहीं चला.

रचना को इस तरह लापता देख भोला ने थाना दारागंज में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी. मां, बेटा और बहन निशा रात भर इस उम्मीद में जागते रहे कि क्या पता रचना आ जाए. अगले दिन 17 अप्रैल को अखबारों में एक खबर प्रमुखता से छपी कि प्रतापगढ़-वाराणसी मार्ग पर हथीगहां के पास एक लड़की की अधजली लाश मिली है. लाश का जो हुलिया बताया गया था, वह काफी हद तक रचना से मिलता था. यह खबर पढ़सुन कर उमा शुक्ला का कलेजा दहल गया. फिर भी मन में कहीं थोड़ी सी उम्मीद थी कि संभव है, लाश किसी और की हो. कई बार निगाहें धोखा खा जाती हैं. इसी के मद्देनजर भोला अलगअलग 4-5 अखबार खरीद लाया था ताकि खबरों और फोटो को ठीक से जांचापरखा जा सके.

अखबारों में छपी खबर और फोटो में कोई फर्क नहीं था. इस से उमा शुक्ला और भोला इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि लाश रचना की है. इस पर मांबेटे सारे अखबार ले कर थाना दारागंज जा पहुंचे और तत्कालीन थानेदार विक्रम सिंह से मिले. उमा शुक्ला ने जोर दे कर विक्रम सिंह को बताया कि लाश उन की बेटी रचना की है और उस का हत्यारा है सलमान. उन्होंने यह भी कहा कि अगर सलमान को पकड़ कर ठीक से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन विक्रम सिंह हत्या के मामले में पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे, वह यह मान कर चल रहे थे कि रचना जिंदा भी तो हो सकती है. उन्होंने उन दोनों को समझा दिया कि हथिगहां में मिली लाश रचना की नहीं है. वह जिंदा होगी और लौट आएगी.

विक्रम सिंह ने उमा शुक्ला से एक लिखित शिकायत ले ली और मांबेटी को समझा कर घर भेज दिया. लेकिन आरोपी का नाम बताने के बावजूद पुलिस ने अगले 2-3 दिन तक रचना के मामले में कोई रुचि नहीं ली. इस पर उमा शुक्ला और भोला एसपी (सिटी) बृजेश श्रीवास्तव से मिले. दोनों ने उन्हें पूरी बात बताई तो बृजेश श्रीवास्तव ने थानाप्रभारी विक्रम सिंह को इस मामले में तुरंत काररवाई करने को कहा. इस का लाभ यह हुआ कि पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धाराओं 363, 366 में तरमीम कर के सलमान व अन्य को आरोपी बना दिया.

पुलिस का ढुलमुल रवैया मुकदमा तो दर्ज हो गया, लेकिन पुलिस ने किया कुछ नहीं. आरोपी सलमान की गिरफ्तारी तो दूर पुलिस ने उस से पूछताछ तक नहीं की. इस की वजह भी थी. सलमान इलाहाबाद के रईस व्यवसायी साजिद अली उर्फ लल्लन का एकलौता बेटा था. पुलिस और नेताओं तक पहुंच रखने वाले लल्लन मियां अपने परिवार के साथ थाना दारागंज क्षेत्र के मोहल्ला बक्शी खुर्द में रहते हैं. उन के पास पैसा भी था और ऊपर तक पहुंच भी. बात 2015 की है. जब भी रचना किसी काम से घर से बाहर निकलती थी, तो इत्तफाकन कहिए या जानबूझ कर सलमान उस के सामने पड़ जाता था. जब भी वह खूबसूरत रचना को देखता तो उस पर फब्तियां कसता, छेड़छाड़ करता. उस समय उस के साथ कई दोस्त होते थे. यह सब देखसुन कर रचना चुपचाप निकल जाती थी.

सलमान के खास दोस्तों में मीरा गली का रहने वाला लकी पांडेय और सलमान का ममेरा भाई अंजफ थे. अंजफ पहले सलमान के पड़ोस में रहता था. बाद में उस का परिवार कर्नलगंज थाना क्षेत्र के बेलीरोड, जगराम चौराहा के पास रहने लगा था. तीनों हमप्याला, हमनिवाला थे. तीनों साथसाथ घूमते थे. लकी पांडेय और अंजफ सलमान के पैसों पर ऐश करते थे. रचना सलमान की आए दिन छेड़छाड़ से तंग आ गई थी. एक दिन उस ने मां को सलमान द्वारा छेड़ने की बात बता दी. किसी तरह यह बात भोला के कानों तक पहुंच गई. यह सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने बहन को परेशान करने वाले सलमान को सबक सिखाने की ठान ली. एक दिन भोला ने सलमान को रास्ते में रोक कर उग्रता से समझाया, ‘‘जिस लड़की को तुम जातेआते छेड़ते हो, वो मेरी छोटी बहन है. अपनी आदत सुधार लो सलमान, तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा रहेगा. मैं तुम्हें पहली और आखिरी बार समझा रहा हूं.’’

सलमान को किसी ने पहली बार उसी के इलाके में धमकाया था. वह ऐसी धमकियों की चिंता नहीं करता था. भोला के चेताने पर भी सलमान पर कोई असर नहीं हुआ. अब राह में जातीआती रचना को वह पहले से ज्यादा तंग करने लगा. जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो रचना से सहन नहीं हुआ. उस ने सलमान के खिलाफ थाना दारागंज में छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन सलमान के पिता साजिद अली की पहुंच की वजह से पुलिस उस पर हाथ डालने से कतराती रही. भोला के कहनेसुनने पर पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करा दिया. समझौते के बाद भोला और उस की मां उमा शुक्ला ने बेटी की इज्जत की खातिर पिछली बातों को भुला दिया. लेकिन घमंडी सलमान इसे आसानी से भूलने वाला नहीं था. उस के मन में अपमान की चिंगारी सुलग रही थी.

बहरहाल, मार्च 2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो उमा शुक्ला को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उम्मीद की इसी किरण के सहारे उमा शुक्ला ने योगी आदित्यनाथ को एक शिकायती पत्र भेजा. योगीजी ने उस पत्र का संज्ञान लिया और रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच स्पैशल टास्क फोर्स से कराने के आदेश दे दिए. थाना पुलिस ने रचना शुक्ला कांड की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी थी. एसटीएफ ने रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच शुरू तो की, लेकिन बहुत धीमी गति से. फलस्वरूप नतीजा वही रहा ढाक के तीन पात. एसटीएफ भी यह पता नहीं लगा सकी कि रचना जिंदा है या मर चुकी. अगर जिंदा है तो 3 साल से कहां है या आरोपी ने उसे कहां छिपा रखा है.

एसटीएफ की जांच की गति देख कर उमा शुक्ला का इस जांच से भी भरोसा उठ गया. अब उन के लिए न्यायालय ही एक आखिरी आस बची थी. उमा शुक्ला ने दिसंबर, 2019 के दूसरे सप्ताह में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में उन्होंने लिखा कि उन की बेटी का अपहरण हुए 4 साल होने वाले हैं. पुलिस अब तक बेटी के बारे में पता नहीं लगा सकी. आरोपी समाज में छुट्टे घूम रहे हैं. हाईकोर्ट पहुंची उमा शुक्ला हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया और 6 जनवरी, 2020 को एसएसपी एसटीएफ राजीव नारायण मिश्र और वर्तमान थानाप्रभारी दारागंज आशुतोष तिवारी को फटकार लगाई. साथ ही 15 दिनों के अंदर रचना शुक्ला के बारे में कारगर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया.

हाईकोर्ट के आदेश के बाद एसएसपी राजीव नारायण मिश्र ने एएसपी नीरज पांडेय को आड़े हाथों लिया और काररवाई कर के जल्द से जल्द रिपोर्ट देने का सख्त आदेश दिया. कप्तान के सख्त रवैए से पुलिस ने रचना शुक्ला कांड से संबंधित पत्रावलियों का एक बार फिर से अध्ययन किया. जांचपड़ताल में उन्होंने सलमान और उस के दोस्त लकी पांडेय को संदिग्ध पाया. अंतत: पुलिस ने 19 जनवरी, 2020 की सुबह सलमान और लकी पांडेय को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दोनों को गुप्त स्थान ले जा कर पूछताछ की गई. शुरू में सलमान एएसपी नीरज पांडेय पर अपनी ऊंची पहुंच का रौब झाड़ने लगा, लेकिन उन के एक थप्पड़ में उसे दिन में तारे नजर आने लगे. सलमान उन के पैरों में गिर गया. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा, ‘‘सर, हमें माफ कर दीजिए.

हम से बड़ी भूल हो गई. करीब 4 साल पहले मैं ने, लकी और अपने ममेरे भाई अंजफ के साथ मिल कर रचना की गला रेत कर हत्या कर दी थी. 4 साल पहले हथिगहां में मिली लाश रचना की ही थी.’’

इस के बाद सलमान परतदरपरत हत्या के राज से परदा उठाता चला गया. करीब 4 सालों से राज बनी रचना शुक्ला की हत्या हो चुकी थी. पता चला सलमान और रचना एकदूसरे को प्यार करते थे. सलमान ने अपनी इस तथाकथित प्रेमिका को मौत के घाट उतार दिया था. रचना शुक्ला के अपहरण और हत्या से परदा उठते ही एसएसपी एसटीएफ राजीव नारायण मिश्र ने अगले दिन यानी 20 जनवरी को पुलिस लाइंस में पत्रकारवार्ता आयोजित की. प्रैस वार्ता में उन्होंने पत्रकारों के सामने रचना शुक्ला के अपहरण और हत्या के आरोपियों सलमान और उस के दोस्त लकी पांडे को पेश किया. पत्रकारों के सामने सलमान और लकी पांडेय ने अपना जुर्म कबूल किया. साथ ही पूरी घटना भी बताई और वजह भी. रचना की हत्या क्यों और कैसे की गई थी, उस ने इस का भी खुलासा किया. रचना की हत्या की यह कहानी कुछ यूं सामने आई.

19 वर्षीय रचना शुक्ला भाईबहनों में सब से छोटी थी. रचना खूबसूरत युवती थी. जितनी देर तक वह घर में रहती, उस का ज्यादातर समय आइना देखने में बीतता था. बक्शी खुर्द मोहल्ले के रहने वाले सलमान ने जब दूधिया रंगत वाली खूबसूरत रचना को जातेआते देखा तो वह उस पर मर मिटा. यह बात सन 2014 की है, तब रचना इंटरमीडिएट की छात्रा थी और उम्र थी 19 साल. रचना उम्र के जिस पड़ाव को पार कर रही थी, वह ऐसी उम्र होती है, जब सहीगलत या अच्छेबुरे की जानकारी नहीं होती. रचना के लिए सलमान का प्यार शारीरिक आकर्षण से ज्यादा कुछ नहीं था. सलमान एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था. उस के लिए पैसा कोई मायने नहीं रखता था. जब भी वह घर से बाहर निकलता, राह में कई चाटुकार दोस्त मिल जाते. उन की संगत में वह पैसे खर्च करता तो वे उसी का गुणगान करते.

रसिक सलमान की दिली डायरी में कई ऐसी लड़कियों के नाम थे, जिन के साथ वह मौजमस्ती करता था. इस के बावजूद वह मुकम्मल प्यार की तलाश में था, जहां उस की जिंदगी स्थिर हो जाए. एक ठहराव हो. रचना को देखने के बाद सलमान को अपना सपना पूरा होता लगा. उसे जिस प्यार की तलाश थी, वह रचना पर आ कर खत्म हो गई. सलमान का प्यार एकतरफा था, क्योंकि इस के लिए रचना ने अपनी ओर से हरी झंडी नहीं दी थी. बाद में जब उस ने सलमान की आंखों में अपने लिए प्यार देखा तो उस का दिल पसीज गया. सलमान घंटों उस के घर के पास खड़ा उस के दीदार के लिए बेताब रहता. रचना चुपकेचुपके सब देखती थी, आखिरकार उस का दिल भी सलमान पर आ गया और उस ने सलमान से इस बात का इजहार भी कर लिया.

पंछी की तरह फंस गई जाल में फलस्वरूप दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों ने प्यार में जीनेमरने की कसमें खाईं. सलमान तो निश्चिंत था, लेकिन रचना को यह चिंता सता रही थी कि घर वाले उन दोनों के प्यार को स्वीकार करेंगे या नहीं, क्योंकि दोनों की जाति ही नहीं धर्म भी अलगअलग थे. रचना की मां उमा शुक्ला कट्टर हिंदू थीं. वह बेटी के इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करतीं. रचना ने सलमान को अपने मन की आशंका बता दी थी. वैसे भी बहुत कम लोग ऐसे हैं जो बेटे या बेटी की शादी दूसरे मजहब के लड़के या लड़की से करना चाहें. खैर, सलमान ने रचना को समझाया और सब कुछ वक्त पर छोड़ देने को कहा. साथ ही कहा कि हम जिएंगे भी एक साथ और मरेंगे भी एक साथ. सलमान की भावनात्मक बातें सुन कर रचना मन ही मन खुश हुई. इतनी खुश कि उस ने सलमान का गाल चूम लिया. सलमान कैसे पीछे रहता, उस ने रचना को बांहों में भर लिया.

सलमान से रचना सच्चे दिल से प्यार करती थी, लेकिन सलमान के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. जिस दिन से उस ने रचना को अपनी बांहों में भरा था, उसी दिन से उस के मन में प्यार नहीं बल्कि वासना की आग धधकने लगी थी. रचना ने सलमान की आंखों में दहकती वासना को महसूस कर लिया था. उस ने उस से कह भी दिया था कि जो तुम मुझ से चाहते हो, वह शादी के पहले संभव नहीं है. मुझे ऐसी लड़की मत समझना, जो दौलत के लिए सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाती हैं. जब से यह बात हुई थी, तब से रचना सलमान से थोड़ा बच कर रहने लगी थी. उस ने मिलना भी कम कर दिया था. सलमान यह सब सह नहीं पा रहा था. इस पर सलमान ने एक दांव खेला. उस ने अपने नाम पर एक स्कूटी खरीदी और रचना को गिफ्ट कर दी. यह देख रचना बहुत खुश हुई.

रचना स्कूटी ले कर घर पहुंची तो घर वाले यह सोच कर हैरान हुए कि उस के पास स्कूटी कहां से आई. घर वालों ने रचना से स्कूटी के बारे में पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया कि एक दोस्त की है. कुछ दिनों के लिए वह शहर से बाहर गई है. उस ने स्कूटी मुझे चलाने के लिए दी है. जब वापस लौट आएगी, मैं उसे लौटा दूंगी. बात वहीं की वहीं रह गई. सलमान ने जो सोच कर रचना को स्कूटी दी थी, वह संभव नहीं हो पाया. स्कूटी हड्डी बन कर उस के गले में अटकी रह गई. महीनों बाद रचना ने प्यार का दम भरने वाले सलमान के सामने एक प्रस्ताव रखा. उस ने स्कूटी को अपने नाम पर स्थानांतरित कराने के लिए कहा तो सलमान उसे घुमाते हुए बोला, ‘‘जब हम दोनों एक होने वाले हैं तो स्कूटी चाहे तुम्हारे नाम हो या मेरे, क्या फर्क पड़ता है. वक्त आने दो स्कूटी तुम्हारे नाम करा दूंगा. चिंता क्यों करती हो.’’

सलमान की यह बात रचना की समझ में नहीं आई. वह अपनी मांग पर अड़ी रही. सलमान इस के लिए तैयार नहीं हुआ. साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाले सलमान का नकली चेहरा सामने आ गया था. जिस वासना की चाहत में उस ने रचना को स्कूटी दी थी, उस रचना ने उस की आंखों में वासना की आग देख ठेंगा दिखा दिया. इस बात को ले कर दोनों के बीच विवाद भी हुआ. सलमान ने रचना को भलाबुरा कहा तो रचना भी पीछे नहीं रही. उस ने सलमान को उस के दोस्तों के सामने ही जलील किया. रचना यहीं चुप नहीं बैठी, उस ने सलमान के खिलाफ दारागंज थाने में छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद रचना और सलमान के बीच दूरियां बढ़ गईं. दोनों ने एकदूसरे से मिलना बात करना बंद कर दिया.

रचना ने अपने घर वालों को बता दिया कि सलमान नाम का लड़का उसे छेड़ता है. बहन की बात सुन कर भाई भोला का खून खौल उठा. उस ने सलमान को धमका कर बहन की तरफ न देखने और उस से दूर रहने की हिदायत दे दी. इंतकाम की आग रचना ने सलमान के साथ जो किया, वह उसे काफी नागवार लगा. वह अपमान की आग में झुलस रहा था. उस ने यह कभी नहीं सोचा था, रचना उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत भी कर सकती है. तभी उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि जब तक वह रचना से अपने अपमान का बदला नहीं ले लेगा, तब तक उस के इंतकाम की आग ठंडी नहीं होगी. लेकिन सवाल यह था कि वह रचना से दोबारा कैसे मिले ताकि फिर से दोस्ती हो जाए और वह उसे विश्वास में ले कर अपना इंतकाम ले सके.

जैसेतैसे सलमान ने रचना तक अपना संदेश भिजवाया कि वह एक बार आ कर मिल ले. वह उस से मिल कर माफी मांगना चाहता है. रचना सलमान की बात मान गई और उसे माफ कर दिया. यही नहीं दोनों फिर से पहले की तरह मिलने लगे. सलमान यही चाहता भी था. उस ने रचना को अपने खतरनाक इरादों की भनक तक नहीं लगने दी. इस बीच 3-4 महीने बीत गए. रचना पर फिर से सलमान के इश्क का जादू चल गया. सलमान को इसी का इंतजार था. सलमान ने अपने दोस्तों लकी पांडेय और ममेरे भाई अंजफ से बात कर के रचना को रास्ते से हटाने की बात की. लकी और अंजफ उस का साथ देने को तैयार हो गए.

तीनों ने मिल कर योजना बनाई कि रचना को किसी तरह सलमान के घर बुलाया जाए और उस का काम तमाम कर के लाश नदी में फेंक दी जाए. इस से किसी को पता भी नहीं चलेगा और वे लोग पुलिस से भी बचे रहेंगे. योजना बन जाने के बाद सलमान ने 16 अप्रैल, 2016 की अलसुबह रचना को फोन कर के सुबह 10 बजे रेलवे स्टेशन पर मिलने के लिए कहा. अपनी स्कूटी ले कर रचना ठीक 10 बजे सलमान से मिलने स्टेशन पहुंच गई. सलमान वहां मौजूद मिला. उस ने रचना की स्कूटी प्रयागराज स्टेशन के स्टैंड पर खड़ी कर दी और उसे अपनी बाइक पर बैठा कर बक्शी खुर्द स्थित अपने घर ले गया. उस के घर में बेसमेंट था. सलमान रचना को बेसमेंट में ले गया. वहां लकी और अंजफ पहले से मौजूद थे. उन्हें देख रचना खतरे को भांप गई.

उस ने वहां से भागने की कोशिश की लेकिन उन तीनों ने उसे दौड़ कर पकड़ लिया और उस के हाथपांव रस्सी से बांध दिए. फिर सलमान ने चाकू से उस का गला रेत कर हत्या कर दी. लाश ठिकाने लगाने के लिए सलमान ने अपने मामा शरीफ को फोन किया. शरीफ फौर्च्युनर ले आया. चारों ने मिल कर लाश जूट के बोरे में भर दी. इस के बाद कपड़े से कमरे में फैला खून साफ कर दिया. रचना की लाश जूट की बोरी में भर कर फौर्च्युनर में लाद दी गई. सलमान और उस के मामा शरीफ सहित चारों लोग पहले नैनी की तरफ गए. इरादा था लाश को यमुना में फेंकने का, लेकिन 5 घंटे तक भटकने के बाद भी उन्हें मौका नहीं मिला. इस के बाद ये लोग नवाबगंज की तरफ निकल गए. लेकिन वहां भी लाश को गंगा में फेंकने का मौका नहीं मिला. इन लोगों ने प्रयागराज की सीमा के पास प्रतापगढ़, वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर रचना की लाश हथिगहां के पास सड़क किनारे फेंक दी और सब लौट आए.

इस के बाद सलमान बाइक से फिर वहां गया. उस के पास एक बोतल पैट्रोल था. उस ने रचना की लाश पर पैट्रोल डाला और आग लगा दी, ताकि लाश पहचानी न जा सके, लौट कर उस ने रचना की स्कूटी सोरांव के एक परिचित के गैराज में खड़ी कर दी. बाद में जो हुआ, जगजाहिर है. सलमान और उस के पिता ने पैसों के बल पर पुलिस को अपने पक्ष में कर लिया. रचना के केस की पैरवी कर रहे उस के भाई भोला को साल 2018 में सामूहिक दुष्कर्म के आरोप में फंसा कर जेल भिजवा दिया गया था. इस पर भी रचना के घर वालों ने हार नहीं मानी. रचना की छोटी बहन निशा शुक्ला ने पैरवी करनी शुरू की. आखिरकार हाईकोर्ट की चाबुक से पुलिस की नींद टूटी और आरोपियों को जेल जाना पड़ा.

सलमान और लकी के गिरफ्तार होने के 3 दिनों बाद थाना दारागंज के थानेदार आशुतोष तिवारी ने अंजफ को और 20 दिनों बाद मामा शरीफ को दारागंज से गिरफ्तार कर लिया. करीब 4 सालों से जिस रचना शुक्ला की हत्या रहस्य बनी थी, आरोपियों की गिरफ्तारी से सामने आ गई.अगर पुलिस पीडि़ता उमा शुक्ला की बातों पर विश्वास कर लेती तो घटना के दूसरे दिन ही चारों आरोपी गिरफ्तार हो जाते और इस समय अपने गुनाह की सजा काट रहे होते. बहरहाल, देर से ही सही आरोपी जेल की सलाखों के पीछे चले गए.

UP News : प्रेमिका की गला दबाकर हत्या की और लाश को कूड़े में दबाया

UP News : दो नावों की सवारी हमेशा ही खतरनाक होती है. सब कुछ जानते हुए भी धर्मवीर ऐसा ही कर रहा था. जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो तब तक बहुत देर हो चुकी थी. और वह पहुंच गया जेल. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के पटवाई थानाक्षेत्र में पृथ्वीराज सपरिवार रहते थे.परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा संजय था. पृथ्वीराज के पास जो कुछ खेती की जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का पेट पालते थे.

बड़ी बेटी की वह शादी कर चुके थे. दूसरे नंबर की प्राची ने हाईस्कूल करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. प्राची खूबसूरत थी. उम्र के 16 बसंत पार करते ही प्राची के रूपलावण्य में जो निखार आया था, वह देखते ही बनता था. वह गांव की गलियों से गुजरती तो मनचलों के सीने पर सांप लोट जाया करते थे. प्राची को भी इस बात का अहसास था कि उस में कुछ बात तो है, तभी तो लोग उसे टकटकी लगा कर देखते हैं. वह उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रही थी, जहां लड़कियों के दिल की जवान होती उमंगें मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा सोचे उड़ जाना चाहती हैं. ऐसी ही उमंगें प्राची के दिल में कुलांचे भरने लगी थीं. उम्र के इसी पायदान पर खड़ी प्राची ने कब अपना दिल धर्मवीर के हवाले कर दिया, इस का उसे पता भी नहीं लगा था.

धर्मवीर प्राची के घर के पड़ोस में ही रहता था. हाईस्कूल करने के बाद वह अपना पुश्तैनी खेतीबाड़ी का काम करने लगा. आसपड़ोस में घर होने के कारण अकसर प्राची और धर्मवीर का आमनासामना हो जाता था. जब भी प्राची धर्मवीर के सामने पड़ती तो धर्मवीर एकटक उसे देखता रहता था. पहले तो प्राची को यह बात बहुत खली लेकिन धीरेधीरे उसे भी धर्मवीर में रुचि आने लगी. इसी के चलते दोनों चुपकेचुपके एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. एक रोज शाम का समय था. गांव के बाहर एकांत में दोनों एकदूसरे के सामने पड़े तो धर्मवीर को लगा कि अपने दिल की बात कह देने का यही सब से उपयुक्त मौका है. वह प्राची से बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहिए…’’ प्राची ने सीधे तौर पर पूछ लिया तो धर्मवीर झेंप गया.

फिर धर्मवीर हिम्मत कर के बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. लगता है कि अब तुम्हारे बिना मेरा जीना मुश्किल है. क्या तुम मेरी मोहब्बत कबूल करोगी?’’

यह सुन कर प्राची का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह धीरे से बोली, ‘‘चाहती तो मैं भी तुम्हें हूं, लेकिन डर लगता है.’’

‘‘डर…कैसा डर?’’ धर्मवीर ने प्राची से पूछा.

‘‘कहीं हमारी मोहब्बत रुसवा हो गई तो?’’

‘‘मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूं कि मैं मर जाऊंगा लेकिन तुम्हें रुसवा नहीं होने दूंगा. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा है, तभी तो जनाब से इश्क करने की जुर्रत की है.’’ कह कर अब तक संजीदा प्राची के चेहरे पर शरारती मुसकान आ गई. धर्मवीर ने उसे अपनी बांहों में ले कर घेरा और तंग कर दिया, जिस पर प्राची कसमसा कर रह गई. धर्मवीर ने आगे बढ़ कर प्राची के होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया.

‘‘उई मां, बड़े बेशर्म हो तुम.’’ कहते हुए प्राची ने धर्मवीर को परे हटा कर खुद को उस की कैद से आजाद किया और हंसती हुई वहां से चली गई.

धर्मवीर प्राची का प्यार पा कर झूम उठा. उसे लगा कि सारे जहां की खुशियां उस की झोली में सिमट आई हैं. कुछ यही हाल प्राची का भी था. धर्मवीर की हरकतों ने उस के बदन में अजीब सी मादकता भर दी थी. इस तरह धर्मवीर व प्राची की प्रेम कहानी शुरू हो गई. दोनों को जैसे ही मौका मिलता, उन के बीच प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. उस समय दोनों को दीनदुनिया की खबर ही न रहती. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. जैसेजैसे समय बीतता रहा, उन का इश्क परवान चढ़ता रहा. प्राची व धर्मवीर ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का किसी को पता न चले, लेकिन इश्क की खुशबू भला कौन रोक पाया है.

प्राची के रंगढंग देख कर उस के पिता पृथ्वीराज को शक हुआ तो उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए अपनी पत्नी ऊषा को कह दिया. ऊषा ने उस पर नजर रखी तो उस ने प्राची को धर्मवीर से इश्क करते देख लिया. जब पृथ्वीराज को पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस समय प्राची घर पर ही थी. उस ने प्राची को आवाज दे कर बुलाया, जब वह उस के पास आ गई तो वह बोला, ‘‘क्यों री, यह मैं क्या सुन रहा हूं कि तू धर्मवीर से इश्क लड़ाती घूम रही है.’’

पिता के मुंह से यह बात सुन कर प्राची चौंक गई. वह समझ गई कि किसी ने उस के पिता से उस की व धर्मवीर की चुगली कर दी है. फिर भी पिता से झूठ बोलना प्राची के बस में नहीं था, इसलिए वह पिता से बोली, ‘‘हां पापा, बात यह है कि हम दोनों आपस में मोहब्बत करते हैं और अगर आप की इजाजत हो तो विवाह करना चाहते हैं.’’

प्राची ने यह कहा तो मानो पूरे घर में भूचाल आ गया. पृथ्वीराज प्राची पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने प्राची की खूब पिटाई की और उसे हिदायत दी कि अगर उस ने दोबारा धर्मवीर से मिलनेजुलने की कोशिश की तो उस का परिणाम अच्छा नहीं होगा. प्राची की मां ऊषा ने भी समाजबिरादरी का हवाला दे कर प्राची को समझाया. उधर प्राची व धर्मवीर के इश्क की बात धर्मवीर के घर वालों को पता चली तो उन्होंने भी धर्मवीर को प्राची से नाता तोड़ लेने का फरमान सुना दिया. प्राची व धर्मवीर पर सख्त पाबंदियां लगा दी गईं. वे जल बिन मछली की तरह तड़प उठे. दरअसल, प्राची धर्मवीर के दिलोदिमाग पर नशा बन कर छा चुकी थी. उस के सौंदर्य ने धर्मवीर पर जादू सा कर दिया था.

उधर प्राची का भी यही हाल था, उस के खयालों में धर्मवीर के अलावा और कुछ आता ही नहीं था. हर समय वह धर्मवीर से मिलने को बेकरार रहती थी. कहते हैं कि प्रेम में जितनी लंबी जुदाई होती है, प्यार उतना ही गहरा होता है. घर वालों की बंदिशें धर्मवीर व प्राची के प्यार को कम नहीं कर सकीं. जब उन की प्रेम अगन बढ़ती चली गई तो उन्होंने मिलने का एक अनोखा रास्ता खोज लिया. एक दिन धर्मवीर ने प्राची को संदेश भिजवाया कि वह दिन छिपने के बाद उस से जंगल में आ कर मिले. धर्मवीर का संदेश पा कर प्राची उस जगह दौड़ी चली गई, जहां धर्मवीर ने मिलने के लिए बुलाया था. दोनों ने गले मिल कर अपने गिलेशिकवे दूर किए. इस के बाद दोनों यही क्रम दोहराने लगे.

एक बार फिर से दोनों का मिलन बदस्तूर शुरू हो गया. इधर प्राची ने घर में धर्मवीर का नाम लेना तक बंद कर दिया था, जिस के चलते पृथ्वीराज ने सोच लिया कि बेटी के सिर से इश्क का भूत शायद उतर गया है. धर्मवीर के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे तब धर्मवीर और प्राची को इस का पता चला तो उन के होश उड़ गए. धर्मवीर के घर वाले भी किसी कीमत पर प्राची को अपने घर की बहू स्वीकारने को तैयार नहीं थे. प्राची के पिता पृथ्वीराज ने भी साफसाफ कह दिया कि वह अपनी बेटी को कुएं में धक्का दे देगा लेकिन उस का हाथ धर्मवीर के हाथ में नहीं देगा.

अगले दिन प्राची जब धर्मवीर से मिली तो बोली, ‘‘कुछ करो धर्मवीर, अगर हम यूं ही खामोश बैठे रहे तो एकदूसरे से जुदा कर दिए जाएंगे और मैं तुम से जुदा हो कर जिंदा नहीं रहना चाहती. अगर तुम मुझे नहीं मिले तो मैं जहर खा कर जान दे दूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते प्राची, हम ने पाक मोहब्बत की है. हमारी मोहब्बत जरूर कामयाब होगी.’’ धर्मवीर प्राची के हाथ को अपने हाथ में ले कर बोला तो प्राची के मन को तसल्ली हुई.

9 दिसंबर, 2019 की सुबह लगभग साढ़े 8 बजे प्राची घर का कूड़ा गांव के बाहर घूरे पर डालने गई. काफी समय बीत गया, वह नहीं लौटी तो उस के मातापिता ने उसे पूरे गांव में तलाशा, लेकिन उस का कोई पता नहीं लगा. काफी तलाशने के बाद भी जब प्राची का नहीं मिली तो 10 दिसंबर को पृथ्वीराज ने थाना पटवाई में बेटी के लापता होने की सूचना दी. साथ ही उन्होंने गांव के ही धर्मवीर पर शक जताया. इस सूचना पर थानाप्रभारी इंद्र कुमार ने थाने में प्राची की गुमशुदगी की सूचना लिखा दी. थानाप्रभारी ने धर्मवीर के बारे में पता करवाया तो वह भी घर से गायब मिला. उस की सुरागरसी के लिए उन्होंने अपने मुखबिरों को लगा दिया. 15 दिसंबर को पटवाई चौराहे से थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने धर्मवीर को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब धर्मवीर से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने प्राची की हत्या कर लाश छिपाने का जुर्म स्वीकार कर लिया. इतना ही नहीं पुलिस ने धर्मवीर की निशानदेही पर गांव के बाहर घूरे में दबी सीमा की लाश भी बरामद करा दी. प्राची की लाश क्षतविक्षत हालत में थी. उस का एक हाथ गायब था. अनुमान लगाया कि शायद कुत्तों ने उस की लाश को नोंच खाया होगा. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस धर्मवीर को ले कर थाने आ गई. इस के बाद प्राची के पिता पृथ्वीराज की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पूछताछ में हत्या की जो वजह निकल कर आई, वह कुछ इस तरह थी—

धर्मवीर और प्राची के घरवाले जब उन की शादी के लिए तैयार नहीं हुए तो इस प्रेमी युगल की चिंता बढ़ गई. तब धर्मवीर ने प्राची से वादा किया, ‘‘प्राची मैं घर वालों के कहने पर दूसरी लड़की से विवाह तो कर लूंगा लेकिन मैं सच्चे दिल से तुम्हारा ही रहूंगा. हमारा रिश्ता भले ही दुनिया की नजर में अलग हो जाए, लेकिन हम हमेशा एक रहेंगे. विवाह के बाद भी मैं तुम्हारा ही बना रहूंगा.’’

धर्मवीर के इस वादे पर प्राची को पूरा भरोसा था. इस के अलावा उन के पास अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए कोई रास्ता ही नहीं बचा था. धर्मवीर के लिए जो रिश्ते आ रहे थे, उन में से धर्मवीर के परिजनों को एक रिश्ता भा गया. वह था रामपुर के मिलक थाना क्षेत्र के ऊंचा खाला निवासी नीलम का. नीलम अब अपने परिवार के साथ मुरादाबाद में रह रही थी. बात आगे बढ़ी तो दोनों का रिश्ता पक्का कर दिया गया. 19 अप्रैल, 2019 को धर्मवीर और नीलम का विवाह संपन्न हो गया. नीलम काफी सुंदर, शिक्षित व गुणवती थी. उस ने धर्मवीर के परिवार में आते ही अपनी बातों व कार्यों से सब का दिल जीत लिया.

उस में धर्मवीर भी था. नीलम के आने से धर्मवीर के दिलोदिमाग से प्राची के इश्क का भूत उतरने लगा था. लेकिन उस ने प्राची से संबंध खत्म नहीं किए थे. एक तरह से वह दो नावों की सवारी कर रहा था. ऐसे में उस का डूबना निश्चित था. नीलम को कुछ ही दिनों में पति की हकीकत पता लग गई कि वह कैसे उसे धोखा दे रहा है. कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन शौहर का बंटवारा बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकती. बीवी के रहते पति पराई औरत से इश्क लड़ाए, यह बात नीलम को पसंद नहीं थी. लिहाजा वह घर छोड़ कर मायके चली गई. धर्मवीर ने नीलम को काफी मनाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी.

इधर प्राची को पता चला तो वह धर्मवीर पर खुद से विवाह करने का दबाव बनाने लगी. इस से धर्मवीर परेशान हो गया. वह नीलम को हर हाल में घर वापस लाना चाहता था. इसी बीच 3 दिसंबर, 2019 को नीलम ने मुरादाबाद के महिला थाने में धर्मवीर के खिलाफ उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया. 8 दिसंबर को मुरादाबाद पुलिस धर्मवीर के घर आई, वह घर पर नहीं था. मुरादाबाद पुलिस पूछताछ कर के वापस लौट गई. सब कुछ धर्मवीर की बरदाश्त के बाहर हो गया. उस ने प्राची से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. 9 दिसंबर की सुबह उस ने प्राची को मिलने के लिए गांव के बाहर बुलाया. प्राची घर का कूड़ा घूरे पर फेंकने के बहाने घर से निकली.

घूरे के पास धर्मवीर उसे खड़ा मिल गया. प्राची के आते ही धर्मवीर ने उसे दबोच लिया और हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस की लाश घूरे में दबा दी और वहां से फरार हो गया. लेकिन वह कानून की गिरफ्त से अपने आप को न बचा सका. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इंसपेक्टर इंद्र कुमार ने उसे सीजेएम कोर्ट में पेश किया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

प्राची परिवर्तित नाम है.

Love Crime Stories : प्रेमिका को सिंदूर भरने के बहाने बाग में ले गया और पैट्रोल डालकर जिंदा जलाया

Love Crime Stories : वंशिका गुप्ता और अतुल गुप्ता के परिवार की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. लेकिन लालची स्वभाव के अतुल के पिता पारसनाथ गुप्ता ने अतुल की शादी वंशिका के बजाय किसी और लड़की से तय कर दी. इस के बाद जो हुआ वो…

दिलीप गुप्ता बहुत बेचैन थे. उन की नजरें बारबार कलाई घड़ी की ओर चली जाती थीं, समय देखते तो उन की बेचैनी बढ़ जाती. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वंशिका ने आने में इतनी देर कैसे कर दी. बेटी के बारे में सोचसोच कर उन के माथे की सिलवटें और भी गहरी होती जा रही थीं. उन की 21 वर्षीया बेटी वंशिका महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी (तृतीय वर्ष) की छात्रा थी. 1 फरवरी, 2020 को वह सुबह 10 बजे कालेज जाने के लिए घर से निकली थी. उसे हर हाल में 3 बजे तक वापस घर आ जाना चाहिए था, लेकिन अब शाम के 5 बज चुके थे, वह घर नहीं लौटी थी. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. दिलीप गुप्ता इसलिए बेचैन थे.

दिलीप गुप्ता की परेशानी तब और बढ़ गई, जब शाम 6 बजे उन के मोबाइल पर किसी अनजान फोन नंबर से एक एसएमएस आया. मैसेज में लिखा था, ‘अंकल, वंशिका का अपहरण हो गया है.’ मैसेज पढ़ कर दिलीप गुप्ता घबरा गए. उन की पत्नी रजनी ने तो रोना शुरू कर दिया. वह बारबार कह रही थी कि वंशिका जरूरी काम से कालेज गई थी. वह अपहर्त्ताओं के चक्कर में कैसे फंस गई. दिलीप गुप्ता ने मैसेज भेजने वाले मोबाइल फोन पर काल लगाई, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से पतिपत्नी की धड़कनें बढ़ गईं. वंशिका की वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. ऐसे समय में उस का अपहरण हो जाने से अतुल गुप्ता का परिवार स्तब्ध रह गया.

दिलीप गुप्ता की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी, इसलिए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उन की बेटी का फिरौती के लिए अपहरण हुआ है. इसी अविश्वास की वजह से वह अपने परिजनों के साथ बेटी की खोज में जुट गए. बछरावां कस्बे में वंशिका की कई सहेलियां थीं. वह उन के घर गए. कई से मोबाइल फोन पर जानकारी जुटाई. इस के अलावा उन्होंने बसअड्डे व नातेरिश्तेदारों के यहां वंशिका की खोज की, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. गुप्ता पूरी रात बेटी की खोज में जुटे रहे. 2 फरवरी की सुबह 8 बजे दिलीप गुप्ता बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बछरावां जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन की नजर अखबार में छपी एक खबर पर पड़ी. खबर पढ़ कर उन का दिल कांप उठा, मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

खबर के मुताबिक, रायबरेली के हरचंदपुर थाना क्षेत्र के शोरा गांव स्थित एक ढाबे के पीछे यूकेलिप्टस के बाग में पुलिस को एक युवती की अधजली लाश मिली थी, जिस की पहचान नहीं हो पाई थी. खबर में कुछ पहचान वाली बातें भी छपी थीं. दिलीप गुप्ता को शक हुआ कि कहीं लाश उन की बेटी की तो नहीं. इस जानकारी के बाद वह पत्नी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ थाना हरचंदपुर जा पहुंचे. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह उस समय थाने में ही थे और सहयोगी पुलिसकर्मियों से अज्ञात लाश के बारे में चर्चा कर रहे थे. दिलीप गुप्ता ने उन्हें परिचय दिया और बेटी की गुमशुदगी की जानकारी दे कर बरामद शव को देखने की इच्छा जताई.

शिनाख्त हेतु युवती के शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया था. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह दिलीप गुप्ता व उन के घर वालों को पोस्टमार्टम हाउस ले गए. युवती का अधजला शरीर सामने आया तो घर वाले चीख पड़े. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने उन्हें सांत्वना दे कर लाश की पहचान कराई. परिवार के लोगों ने चेहरे से शिनाख्त करने में असमर्थता जताई. फिर उस के कपड़ों और पहनावे से अंदाजा लगाया. पैरों की नेल पौलिश, कान में सोने की बाली, जूड़ा बांधने का तरीका, नाक में छोटी नथुनी, जींस के कपड़े और जूतों से मातापिता ने लाश पहचान ली. मृतका उन की बेटी वंशिका ही थी.

अनिल कुमार सिंह मृतका के पिता दिलीप गुप्ता और मां रजनी गुप्ता को थाना हरचंदपुर ले आए. सब से पहले उन्होंने लाश की शिनाख्त हो जाने की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी. सूचना पाते ही वह थाने आ गए. उन्होंने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से विस्तृत पूछताछ की. दिलीप गुप्ता ने बताया कि उन्हें एक रिश्तेदार अतुल गुप्ता पर शक है, जो उन की बेटी वंशिका को परेशान करता था. कुछ दिन पहले उस ने वंशिका के कालेज में उस के साथ मारपीट भी की थी, साथ ही धमकी भी दी थी. यह मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही अतुल व उस के घर वालों ने माफी मांग कर मामले को रफादफा कर दिया था.

अतुल उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के शिवरतनगंज थाने के अहोरवा भवानी का रहने वाला था. वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी पारसनाथ का बेटा है. शक है कि रंजिशन अतुल गुप्ता ने अपने अन्य साथियों के साथ मिल कर वंशिका की हत्या की है. दिलीप गुप्ता ने दूसरा शक वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव पर जताया. उन्होंने बताया कि वंशिका उस के साथ खूब हिलीमिली थी. कल भी वह वंशिका के साथ ही कालेज गई थी. उस ने ही कल उस के मोबाइल पर वंशिका के अपहरण का मैसेज भेजा था. फिर उस ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था. अंजलि श्रीवास्तव बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां के साथ रहती थी. उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.

3 फरवरी की सुबह लोगों ने अखबारों में बीएससी की छात्रा वंशिका को पैट्रोल छिड़क कर जिंदा जलाने की खबर अखबारों में पढ़ी तो बछरावां की जनता सड़कों पर उतर आई. सामाजिक संगठन, कालेज की छात्राएं, स्कूल छात्राएं और व्यापारी घटना के विरोध में धरनाप्रदर्शन करने लगे. मासूम बच्चों ने जहां रैली निकाल कर वंशिका के लिए न्याय की गुहार लगाई, जबकि कालेज की छात्राओं ने वंशिका के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. सामाजिक संगठन की महिलाओं ने भी सड़क पर जोरदार प्रदर्शन किया.

बछरावां की जनता और व्यापारियों ने तो राष्ट्रीय राजमार्ग-30 को जाम कर दिया. लोग सड़क पर लेट कर प्रदर्शन करने लगे. लोगों को सरकार और पुलिस पर गुस्सा था. वे नारे लगा रहे थे, ‘बिटिया हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं. पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद मुर्दाबाद.’ वे लोग जल्द से जल्द हत्यारों को गिरफ्तार कर के उन्हें फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे. जाम तथा बड़े प्रदर्शन से पुलिस के हाथपांव फूल गए. इंसपेक्टर पंकज तिवारी भारीभरकम फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने उग्र प्रदर्शन की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी तो वह मौके पर आ गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाने का प्रयास किया.

उन्होंने आश्वासन दिया कि हत्या से जुड़े कुछ लोगों के नाम सामने आए हैं. हत्या का जल्द खुलासा होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मारपीट या रेप की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन की बात पर भरोसा नहीं किया. लगभग 3 घंटे की जद्दोजेहद के बाद क्षेत्रीय भाजपा विधायक रामनरेश रावत को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाया कि सरकार की ओर से मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी. साथ ही यह भी कि वंशिका के कातिल जल्द पकड़े जाएंगे. विधायक के आश्वासन पर प्रदर्शन समाप्त हो गया.

चूंकि वंशिका हत्याकांड ने पुलिसप्रशासन की नींद हराम कर दी थी, इसलिए एसपी स्वप्निल ममगाई ने मामले को गंभीरता और चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने वंशिका हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थाना हरचंदपुर इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह, थाना बछरावां इंसपेक्टर पंकज तिवारी, थाना शिवगढ़ इंसपेक्टर राकेश सिंह, महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी, सीओ (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (महराजगंज) राघवेंद्र चतुर्वेदी और सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास को शामिल किया गया. पुलिस टीम की कमान एएसपी नित्यानंद राय को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास ने पहली फरवरी को घटनास्थल पर सक्रिय 2 नंबरों को संदिग्ध पाया. इन नंबरों की जानकारी जुटाई गई तो इन में एक नंबर अतुल गुप्ता का था और दूसरा ललित गुप्ता का. दोनों अमेठी के कस्बा अहोरवा भवानी, थाना शिवरतनगंज के रहने वाले थे. अतुल गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि घटना वाले दिन अतुल एक नंबर पर कई घंटे संपर्क में रहा. इस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो वह नंबर अंजलि श्रीवास्तव, शांतिनगर, बछरावां (रायबरेली) के नाम था.

पुलिस टीम ने अंजलि श्रीवास्तव और अतुल के संबंध में मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अंजलि श्रीवास्तव उन की बेटी की फ्रैंड है और अतुल गुप्ता उन का रिश्तेदार. अतुल बेटी को परेशान करता था और अंजलि भी विश्वसनीय नहीं है. उन दोनों पर उन्हें शक है. अंजलि और अतुल पुलिस की रडार पर आए तो पुलिस टीम ने दोनों को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाना हरचंदपुर ले आई. पुलिस टीम में शामिल महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी अंजलि श्रीवास्तव  को पूछताछ वाले कमरे में ले गईं और बोली, ‘‘अंजलि, सचसच बताओ, वंशिका को किस ने जला कर मारा. मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हें सब मालूम है.’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम. कालेज में वह मिली जरूरी थी, पर उस का अपहरण किस ने किया या उसे किस ने जला कर मारा, मुझे पता नहीं.’’

‘‘चालाक मत बनो अंजलि, अतुल के मोबाइल से यह बात पता चल गई है कि तुम उस के संपर्क में थी और तुम्हें सब पता है.’’

यह सुन कर अजलि का चेहरा फक पड़ गया. वह सिर झुका कर बोली, ‘‘मैडम, मैं अतुल के संपर्क में जरूर रही, पर जो किया अतुल ने किया. वह वंशिका की मांग में सिंदूर भरने के बहाने उसे कार में बिठा कर ले गया था.’’

अंजलि के टूटने के बाद अब बारी अतुल की थी. पुलिस टीम अतुल को पूछताछ कक्ष में ले गई. उस से पूछा गया, ‘‘अतुल, तुम ने वंशिका की हत्या क्यों की? तुम्हारे साथ और कौन था? वैसे तो अंजलि ने सब कुछ बता दिया है, लेकिन हम तुम्हारे मुंह से जानना चाहते हैं.’’

पहले तो अतुल गुप्ता अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से मुकरता रहा, लेकिन पुलिस टीम ने जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अतुल ने बताया कि वंशिका उस पर शादी करने का दबाव बना रही थी, जबकि उस की शादी 25 फरवरी, 2020 को किसी दूसरी लड़की से होनी तय हो गई थी. वंशिका जब उसे समाज में बदनाम करने तथा जिंदगी तबाह करने की धमकी देने लगी तो उस ने वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में उस ने वंशिका की खास सहेली अंजलि श्रीवास्तव व अपने चचेरे भाई ललित गुप्ता, ममेरे भाई कृष्णचंद गुप्ता उर्फ धीरू को भी शामिल कर लिया. धीरू महाराजगंज थाने के गांव डेपार मऊ का रहने वाला है.

4 फरवरी की रात पुलिस टीम ने अहोरवा भवानी स्थित ललित गुप्ता के घर छापा मारा. पुलिस को देख कर ललित कंबल ओढ़ कर तख्त के नीचे छिप गया लेकिन वह पुलिस की निगाह से नहीं बच सका. ललित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने सुबह 4 बजे महाराजगंज थाने के गांव डेपारमऊ में धीरू के घर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. धीरू के न मिलने पर पुलिस टीम थाना हरचंदपुर लौट आई. थाने में ललित ने अतुल को हवालात में देखा तो उस का चेहरा मुरझा गया. पूछताछ में ललित ने पहले तो गुनाह से इनकार किया, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. धीरू को पुलिस काफी प्रयास के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पाई.

अभियुक्त अतुल गुप्ता और ललित गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस टीम ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस पर झांसा दे कर वंशिका को ले जाया गया था. यह कार दुर्गेश के नाम रजिस्टर्ड थी, जो अतुल का रिश्तेदार था. वह घूमने जाने का बहाना कर कार लाया था. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल रस्सी, पैट्रोल की 5 लीटर की खाली कैन, क्लोरोफार्म की खाली शीशी व सिंदूर की डब्बी भी कार से बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने आरोपियों के पास से 4 मोबाइल फोन भी बरामद किए. पुलिस टीम ने वंशिका गुप्ता हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. यह खबर मिलते ही एसपी स्वप्निल ममगाई व एएसपी नित्यानंद राय थाना हरचंदपुर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ की फिर खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई, साथ ही टीम को 25 हजार रुपया पुरस्कार देने की घोषणा की. इस के बाद एसपी स्वप्निल ममगाई ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया. चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थाना हरचंदपुर प्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता, कृष्णचंद उर्फ धीरू गुप्ता और अंजलि श्रीवास्तव के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. इन में अतुल, ललित तथा अंजलि श्रीवास्तव को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक दिलजले प्रेमी की हैवानियत की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर दूर लखनऊ-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर है कस्बा बछरावां. यह रायबरेली जिले का औद्योगिक कस्बा है. इसी बछरावां कस्बे के सब्जीमंडी में दिलीप कुमार गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी रजनी गुप्ता के अलावा 4 संतानों में से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इन में वंशिका सब से बड़ी थी. दिलीप की पान की दुकान है. दुकान से होने वाली आय से ही परिवार का भरणपोषण करते थे. समाज में उन की अच्छी पैठ थी. दिलीप गुप्ता की बेटी वंशिका अपने अन्य भाईबहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह दिखने में सुंदर थी. उस का दूधिया गोरा रंग, नैननक्श, इकहरा बदन और लंबा कद सभी को आकर्षित करता था. उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से उसे सभी पसंद करते थे.

दिलीप गुप्ता व उन की पत्नी रजनी, वंशिका को बहुत चाहते थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही अच्छी नहीं थी, लेकिन वह वंशिका की हर फरमाइश पूरी करते थे. वंशिका ने भी अपने मांबाप को कभी निराश नहीं किया था. वह पढ़ने में मेधावी थी. इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मांबाप की इजाजत के बाद वंशिका ने बछरावां से 15 किलोमीटर दूर महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी में प्रवेश ले लिया था. आवागमन के साधन होने की वजह से वंशिका को महाविद्यालय पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के साथ कस्बे की अनेक लड़कियां पढ़ने जाती थीं.

वंशिका गुप्ता की वैसे तो कई फ्रैंड थीं, लेकिन उसी की क्लास में पढ़ने वाली अंजलि श्रीवास्तव ज्यादा घनिष्ठ थी. अंजलि बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां व छोटी बहन के साथ किराए के मकान में रहती थी, उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे. वंशिका व अंजलि हमउम्र थीं. दोनों घर से ले कर पढ़ाईलिखाई तक की बातें एकदूसरे से शेयर करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.  वंशिका ने बीएससी की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास कर के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. वह प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करना चाहती थी, सो वह खूब मना लगा कर पढ़ने लगी. उस ने कालेज जाना कम कर दिया था और घर में ही पढ़ाई करने लगी थी. उस ने कस्बे के कोचिंग में पढ़ना भी शुरू कर दिया था.

उन्हीं दिनों एक शादी समारोह में वंशिका की मुलाकात अतुल गुप्ता से हुई. वंशिका अपने मातापिता के साथ अमेठी के थाना शिवरतनगंज क्षेत्र के कस्बा अहोरवां भवानी निवासी रिश्तेदार के घर शदी में आई थी. अतुल गुप्ता भी शादी में आया था. वह अहोरवां भवानी का ही रहने वाला था. वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. अतुल गुप्ता की नजर वंशिका पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस के दिल में उतर गई. वह उस से बात करना चाहता था. जब उसे मौका मिला तो वह वंशिका की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘आप अहोरवां भवानी की तो नहीं हैं, कहीं बाहर से आई हैं क्या?’’

‘‘मैं बछरावां की रहने वाली हूं. नाम है वंशिका. मैं अपने मातापिता के साथ शादी में शामिल होने आई हूं.’’ जब अतुल ने वंशिका का परिचय पूछा तो औपचारिक रूप से उस ने भी पूछ लिया, ‘‘आप ने तो मेरा परिचय जान लिया, लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’

अतुल गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं अहोरवां भवानी का ही रहने वाला हूं. नाम है अतुल गुप्ता. पिता का नाम पारसनाथ गुप्ता. कपड़े के व्यवसायी हैं. मैं भी दुकान पर बैठता हूं.’’

ऐसी ही हलकीफुलकी बातों के बीच अतुल और वंशिका का परिचय हुआ, जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में अतुल वंशिका के मोबाइल पर फोन कर के उस से बातें करने लगा. वंशिका को भी अतुल का स्वभाव अच्छा लगा, वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अतुल गुप्ता ने इन नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाया. वह वंशिका के कालेज पहुंचने लगा. कभीकभी वह उसे अपने साथ घुमाने के लिए बाहर भी ले जाने लगा. दोनों घूमने जाते तो अच्छे दोस्तों की तरह खुल कर दिल की बातें करते.

कुछ ही मुलाकातों में वंशिका को लगने लगा कि अतुल ही उस का भावी जीवनसाथी बनेगा. परिणामस्वरूप दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. अब तक वंशिका बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा पास कर अंतिम वर्ष में पहुंच गई थी. एक दिन वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव ने उसे किसी युवक के साथ हंसतेबतियाते देखा तो बाद में उस ने पूछा, ‘‘वंशिका, वह लड़का कौन था, जिस से तुम हंसहंस कर बातें कर रही थी?’’

वंशिका हौले से मुरा कर बोली, ‘‘अंजलि, तू मेरी सब से अच्छी फ्रैंड है. तुझ से मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस का नाम अतुल गुप्ता है, धनाढ्य कपड़ा व्यापारी का बेटा है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. मुझे लगता है अतुल ही मेरा भावी जीवनसाथी होगा.’’

बाद में वंशिका ने अतुल गुप्ता से अंजलि का भी परिचय करा दिया. अंजलि दोनों के प्यार की राजदार बनी तो वह उन दोनों का सहयोग करने लगी. वंशिका और अतुल का प्यार दिन पर दिन बढ़ने लगा. वंशिका को अतुल से बात किए बिना सकून नहीं मिलता था. अतुल का भी यही हाल था. वंशिका के मातापिता को जब दोनों के बढ़ते प्यार की जानकारी हुई तो उन्हें ताज्जुब हुआ कि वंशिका ने इस बारे में उन्हें बताया क्यों नहीं. पूछने पर वंशिका ने साफ कह दिया कि वह अतुल से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी. दिलीप गुप्ता ने बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, ठीक है कि अतुल अच्छा लड़का है. हमारा दूर का रिश्तेदार भी है. लेकिन हमारी और उन लोगों की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर है. मेरी पान की छोटी सी दुकान है और वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी.

मुझे डर है कि कहीं वह तुम्हें मंझधार में न छोड़ दे.’’ रजनी ने भी वंशिका को समझाया, लेकिन अतुल के प्यार में अंधी हो चुकी वंशिका को मांबाप की बात समझ में नहीं आई. दूसरी ओर पारसनाथ गुप्ता को जब पता चला कि उन का बेटा अतुल बछरावां के साधारण पान विक्रेता दिलीप गुप्ता की बेटी के प्यार में है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘बेटा, रिश्ता बराबरी का अच्छा होता है. तुम्हारी और उस की हैसियत में बड़ा अंतर है. हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है. तुम उसे भूल जाओ, इसी में सब की भलाई है.’’

अतुल ने पिता की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उसे लगा कि वह ठीक कह रहे हैं. अत: उस ने वंशिका से दोस्ती खत्म करने का निश्चय कर लिया और उस से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वंशिका जब भी फोन करती तो वह रिसीव नहीं करता था. बारबार फोन करने पर वह रिसीव करता और वंशिका उलाहना देती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता. पारसनाथ गुप्ता ने अतुल में परिवर्तन पाया तो उन्होंने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया. 25 फरवरी, 2020 की शादी की तारीख भी तय कर दी गई. अतुल ने इस रिश्ते का कोई विरोध नहीं किया बल्कि मौन स्वीकृति दे दी.

नवंबर, 2019 में वंशिका को पता चला कि अतुल के मांबाप ने उस की शादी तय कर दी है और 25 फरवरी की शादी की तारीख भी तय हो गई है. यह पता चलते ही वंशिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे अपना सपना टूटता नजर आया तो उस ने अतुल से मुलाकात की और पूछा, ‘‘अतुल, जो बात मैं ने सुनी है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां वंशिका, तुम ने जो सुना, वह सच है. मातापिता ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो क्या?’’ उस की बात सुन कर वंशिका तीखे स्वर में बोली, ‘‘अगर यह सच है तो फिर मेरे साथ घंटों प्यार भी बातें करना, दिनदिन भर मेरे साथ घूमनाफिरना क्या था?’’

‘‘वह दोस्ती थी. तुम चाहो तो यह दोस्ती मेरी शादी के बाद भी जारी रख सकती है.’’

‘‘अतुल, तुम्हारे लिए यह दोस्ती भर होगी, मैं तो तुम से प्यार करती हूं. मैं शादी करूंगी तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारी बैठी रहूंगी. तुम भी कान खोल कर सुन लो, अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं तुम्हें समाज में बदनाम कर दूंगी. झूठे मामलों में फंसा दूंगी, समझे.’’

अतुल ने वंशिका से उलझना ठीक नहीं समझा. वह घर वापस आ गया. इस के बाद वह वंशिका की धमकी से परेशान रहने लगा. दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं और उन का प्यार नफरत में बदलने लगा. जनवरी, 2020 में पहले हफ्ते में एक रोज वंशिका ने अतुल को फोन कर धमकी दी कि अगर उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया तो वह उसे भी दूल्हा नहीं बनने देगी, शादी में हंगामा कर शादी तुड़वा देगी. उस रोज अतुल पहले से ही तनाव में था. गुस्से में वह वंशिका के कालेज पहुंचा. वहां वादविवाद हुआ तो उस ने वंशिका के गाल पर 2 थप्पड़ जड़ दिए. कालेज में सार्वजनिक अपमान से वंशिका तिलमिला उठी. उस ने घर आ कर यह जानकारी मांबाप को दी. दिलीप गुप्ता इस बारे में बात करने अतुल के घर पहुंचे और उस के पिता पारसनाथ गुप्ता से बेटी को प्रताडि़त करने की शिकायत की.

बेटे की गलती पर पारसनाथ गुप्ता ने दिलीप के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. उन्होंने अतुल को भी माफी मांगने पर विवश कर दिया. इस के बाद मामला रफादफा हो गया. अतुल ने माफी मांग कर मामला रफादफा जरूर कर दिया था, लेकिन उस का तनाव कम नहीं हुआ था. वह जानता था कि वंशिका को समझाना आसान नहीं है. इसलिए वह वंशिका से निजात पाने की सोचने लगा. पिता द्वारा हाथ जोड़ कर माफी मांगना भी उस के क्रोध को बढ़ा रहा था. अतुल की अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई कृष्णचंद उर्फ धीरू से खूब पटती थी. अतुल ने जब यह बात उन्हें बताई तो तीनों ने मिल कर खूब सोचा कि वंशिका से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अंतत: तय हुआ कि वंशिका को ही मिटा दिया जाए.

इस के बाद तीनों ने मिल कर वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव को भी आर्थिक प्रलोभन दे कर शामिल किया गया. अंजलि को वंशिका की सुरागरसी का काम सौंपा गया ताकि वह उस की गतिविधियों की जानकारी देती रहे. पहली फरवरी, 2020 की सुबह 9 बजे अंजलि श्रीवास्तव ने अतुल को मैसेज किया कि वंशिका और वह महावीर सिंह महाविद्यालय जा रही हैं. वहीं से वह वंशिका को ले कर गंगागंज आएगी. वह वहीं आ जाए. अंजलि का मैसेज मिलते ही अतुल सक्रिय हो गया. वह घूमने जाने का बहाना कर अपने रिश्तेदार दुर्गेश की कार ले आया. फिर वह अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई धीरू के साथ अहोरा भवानी से कार से निकल पड़ा.

इन लोगों ने मैडिकल स्टोर से क्लोरोफार्म की शीशी तथा बाजार से रस्सी व सिंदूर की डब्बी खरीदी, साथ ही रतापुर स्थित पैट्रोलपंप से कैन में 5 लीटर पैट्रोल भरवा लिया. उस के बाद तीनों गंगागंज आ गए. वहां तीनों वंशिका और अंजलि का इंतजार करने लगे. दूसरी ओर वंशिका और अंजलि बछरावां से सुबह 10 बजे निकलीं और 11 बजे कालेज पहुंचीं. दोनों एक घंटा कालेज में रुकीं. दोनों 12 बजे कालेज से निकलीं. अंजलि घूमने के बहाने वंशिका को गंगागंज ले आई. इस बीच अंजलि फोन पर अतुल के संपर्क में रही और मैसेज भेजती रही. गंगागंज पहुंचने पर अंजलि ने अतुल को मैसेज किया तो वह उस के बताए होटल पर पहुंच गया. उस समय दोनों समोसा खा रही थीं.

अतुल को देख कर अंजलि बोली, ‘‘वंशिका, वह देखो अतुल कार में बैठा है. चलो उस से मिल लेते हैं.’’

वंशिका ने पहले तो मना किया फिर अंजलि के समझाने पर वह कार के पास जा पहुंची. वंशिका पहुंची तो अतुल बोला, ‘‘वंशिका, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं चाहता हूं कि आज ही तुम्हारी मांग भरूं. देखो, सिंदूर की डब्बी भी साथ लाया हूं. तुम मेरे साथ मंदिर चलो.’’

अतुल की बात पर वंशिका को विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन सिंदूर देख कर उस का प्यार उमड़ पड़ा और वह उस की कार में बैठ गई. वंशिका के बैठते ही कार चल पड़ी. कार को ललित चला रहा था और वंशिका अतुल तथा धीरू पीछे की सीट पर बैठे थे. छलिया प्रेमी के खतरनाक इरादों से अनजान वंशिका जैसे ही अतुल के सीने से लगी, तभी उस की हैवानियत शुरू हो गई. उस ने क्लोरोफार्म की शीशी निकाली और वंशिका को सुंघा दी. कुछ क्षण बाद ही वंशिका बेहोश हो गई. इस के बाद अतुल और धीरू ने मिल कर वंशिका के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. ललित ने गंगागंज से लगभग 3 किलोमीटर दूर शेरागांव के पास गोपाल ढाबे के पीछे सुनसान जगह पर कार रोकी.

सामने यूकेलिप्टस का बाग था. अतुल और धीरू हाथपैर बंधी बेहोश वंशिका को कार से उठा कर बाग में ले गए और पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया. बेहोशी के कारण वंशिका चिल्ला भी न सकी. घटना को अंजाम देने के बाद तीनों फरार हो गए. वंशिका की सहेली अंजलि गंगागंज से ही वापस अपने घर चली गई थी. शाम 4 बजे के लगभग शेरागांव के लोगों ने बाग में अधजली लाश देखी तो थाना हरचंदपुर को सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह पहुंचे तो युवती की अधजली लाश देख कर उन की रूह कांप उठी. सूचना पा कर एसपी स्वप्निल ममगाई, एएसपी नित्यानंद राय तथा सीओ गोपीनाथ सोनी भी घटनास्थल पर गए. शव की शिनाख्त न हो पाने पर शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.

दूसरे रोज पोस्टमार्टम हाउस में बछरावां निवासी पान विक्रेता दिलीप गुप्ता ने शव की पहचान अपनी 21 वर्षीया बेटी वंशिका के रूप में कर दी. उस के बाद तो हड़कंप मच गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो प्यार के प्रतिशोध में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए. 6 फरवरी, 2020 को थाना हरचंदपुर पुलिस ने अभियुक्त अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता तथा दगाबाज सहेली अंजलि श्रीवास्तव को रायबरेली की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Mumbai Crime : तौलिए से घोंट डाला प्रेमिका का गला

Mumbai Crime : ऐसे शादीशुदा युवकों की कमी नहीं है जो शहरों में जा कर नौकरी करते हैं और खुद को कुंवारा बताते समझते हैं. मिल जाए तो ऐसे लोग गर्लफ्रेंड से बीवी का काम चलाने लगते हैं. स्वप्न रोहिदास भी ऐसा ही युवक था. उस ने बार बाला रोजीना उर्फ रोशनी को पत्नी की तरह इस्तेमाल किया और जब उस ने अपने हक की बात की तो…

स्वप्न रोहिदास के लिए महानगर मुंबई एक अच्छा शहर था. खुले विचारों आधुनिकता और ग्लैमर के आवरण में लिपटा शहर. मुंबई आ कर उसे आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाने वाली एक कंपनी में काम मिल गया था. वहां काम करतेकरते वह ज्वैलरी बनाने का अच्छा कारीगर बन गया था. इस कंपनी की डिजाइन की गई ज्वैलरी फिल्म और सीरियल बनाने वाली प्रोडक्शन कंपनियों के लिए भी सप्लाई की जाती थी. स्वप्न को अच्छी सैलरी मिल रही थी, जिस से वह खुश रहता था. स्वप्न के मातापिता पश्चिम बंगाल स्थित गांव में रहते थे. स्वप्न हर महीने अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा उन्हें भेज देता था. बाकी बचे पैसे वह अपने ऊपर खर्च करता था. वह पैसे खानेपीने और अपनी मौजमस्ती पर खर्च करता था.

स्वप्न दिन भर काम करने के बाद शाम को जब अपने आवास पर आता तो फ्रैश हो कर अमूमन घूमने के लिए निकल जाता था उस की मंजिल ज्यादातर बीयर बार होती थी. देर रात तक बीयर बार में बैठना जैसे उस की दिनचर्या बन चुकी थी. उस का पसंदीदा बार संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट था. यह बीयर बार उसे इसलिए पसंद था क्योंकि वहां कई महिला वेटर बंगाल की थीं. एक रात स्वप्न रोहिदास बीयर बार में बैठा बीयर पी रहा था, तभी अचानक उस की निगाह एक खूबसूरत और कमसिन बाला पर गई, जो बंगाली थी और बार में बैठे कस्टमर को मुसकरा कर बीयर सर्व कर रही थी. उस के कपड़े आधुनिक और ग्लैमर से भरपूर थे.

वह स्वप्न की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. जब तक वह बीयर बार में रहा, उस की निगाहें उस बाला का ही पीछा करती रहीं. जब वह बार से लौटा तो घर में उसे चैन नहीं मिला. उस रात चाह कर भी वह सो नहीं सका. रात भर उस की आंखों के सामने वही बार बाला घूमती रही. वह यह भी भूल गया था कि उस की शादी हो चुकी है और वह एक बेटी का पिता है. अगले दिन वह थोड़ा जल्दी संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट पहुंच गया और उसी टेबल पर जा कर बैठा, जिसे वह लड़की अटेंड करती थी. स्वप्न के बैठते ही वह लड़की उस के पास आई और अपनी चिरपरिचित मुसकान के साथ उस के सामने मेन्यू कार्ड रख कर और्डर देने का आग्रह किया.

उस की मीठी आवाज सुन कर एक मिनट के लिए स्वप्न को कुछ नहीं सूझा फिर अपने आप को संभाल कर उस ने अपनी मनपसंद व्हिस्की के साथसाथ खाने का भी और्डर दे दिया. खानेपीने के बाद स्वप्न ने उस लड़की को अच्छी टिप दी और घर लौट आया. घर लौट कर वह बिस्तर पर लेटा तो जरूर, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. नशे की हालत में भी उस बाला का मुसकराता हुआ चेहरा सामने आ जाता था. वह उस की नजरों से एक मिनट के लिए भी ओझल नहीं हो पा रही थी. रात तो रात उसे दिन में भी चैन नहीं आया. काम के दौरान बारबार उस की छवि उस के सामने आ जाती थी. स्वप्न रोजाना बार में जा कर उसी टेबल पर जा कर बैठता और मौका मिलने पर उस बारबाला से बात करने की कोशिश करता.

उस बाला से परिचय हुआ तो पता चला उस का नाम रोजीना शेख उर्फ रोशनी है और वह उसी प्रांत और जिले की रहने वाली है, जहां का स्वप्न रोहिदास था. जानकारी के बाद तो उस का दिल बल्लियों उछलने लगा. वह अपने आप को रोक नहीं पाया, उस ने भी रोजीना शेख को अपना परिचय दे दिया. इतना ही नहीं उस ने रोशनी के सामने दोस्ती का प्रस्ताव भी रख दिया. स्वप्न रोहिदास रोजीना शेख की नजर में अच्छा युवक था. हैंडसम होने के साथ वह अच्छा पैसा भी कमाता था, इसलिए उस के साथ दोस्ती करने में उसे कोई संकोच नहीं हुआ. उस ने मुसकराते हुए स्वप्न का दोस्ती का आमंत्रण स्वीकार कर लिया. रोजीना शेख उर्फ रोशनी ने सोचा भी नहीं था कि अचानक उस की जिंदगी में कोई युवक आएगा और उस के दिलोदिमाग पर छा जाएगा.

उस दिन के बाद रोजीना और स्वप्न अकसर रोज मिलनेजुलने लगे. पहले तो उन का मिलने का ठिकाना संदेश बीयर बार ही था. दोनों रेस्टोरेंट चालू होने के पहले ही पहुंच जाते थे और मौका मिलने पर वहीं बातें हो जाती थीं. जब रोजीना की ड्यूटी खत्म हो जाती तो स्वप्न उसे उस के घर छोड़ कर आता था. जिस दिन रोजीना की छुट्टी होती, उस दिन स्वप्न उस के साथ ही रहता था. वह उसे रेस्टोरेंट, मौल ले जा कर उस पर खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. इस के अलावा उसे महंगे उपहार देता. यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा. रोजाना  ने देखा एक सपना रोजीना उसे अपना एक सच्चा दोस्त मानती थी, इसलिए वह दिन प्रतिदिन उस के करीब आती गई. वह स्वप्न के इतना करीब आ गई कि उस के साथ अपनी गृहस्थी बसाने के सपने देखने लगी.

एक दिन अपने दिल की यह बात उस ने स्वप्न को बताई तो उस का अस्तित्व डगमगा गया, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा था. वह रोजीना के साथ टाइम पास और मौजमस्ती के लिए जाता था. इस के अलावा उस का और कोई मकसद नहीं था. इसलिए वह रोजीना की बात को बड़ी सफाई से टाल गया, जिस से रोजीना के सारे सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए. उसे गहरा झटका तब लगा, जब उसे पता चला कि उस का प्रेमी शादीशुदा ही नहीं, बल्कि एक बच्ची का पिता भी है. इस के बाद रोजीना ने स्वप्न से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वह बार में स्वप्न का उतना ही सहयोग करती थी, जितना वह अपने अन्य ग्राहकों का करती थी.

चूंकि स्वप्न ने रोजीना के साथ खूब मौजमस्ती की थी, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह स्वप्न से इस का हरजाना वसूल करेगी. वह स्वप्न रोहिदास को धमकी देने लगी कि वह उस की पत्नी और परिवार वालों को अपने प्रेम और अवैध संबंधों की बात बता देगी. 32 वर्षीय स्वप्न रोहिदास पश्चिम बंगाल के जिला हावड़ा के तालुका शहापुर आमरदाहा गांव के रहने वाले परेश रोहिदास का बेटा था. उन का पूरा परिवार खेती पर निर्भर था. लेकिन महत्त्वाकांक्षी स्वप्न रोहिदास को खेती का काम पसंद नहीं था. वह ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था लेकिन आकांक्षाएं ऊंची थीं. वह शहर में रह कर नौकरी करना चाहता था. उस के गांव के कई दोस्त मुंबई में रहते थे. उन से बात कर के वह मुंबई आ गया था.

दोस्तों ने उस की मदद की और आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाने वाली एक कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. वहां काम करतेकरते वह ज्वैलरी डिजाइन का काम सीख कर कुशल कारीगर बन गया. उसे वहां से अच्छी तनख्वाह मिलने लगी. रहने के लिए उस ने दहिसर रावलपाडा में किराए का कमरा ले लिया था. स्वप्न जब ठीकठाक कमाने लगा तो घर वालों ने अपने इलाके की एक लड़की से उस की शादी कर दी. खूबसूरत पत्नी को पा कर स्वप्न खुश था. शादी के महीना भर बाद वह मुंबई चला गया क्योंकि उसे नौकरी भी करनी थी. लेकिन वह महीने 2 महीने में अपने घर आता रहता था. इसी तरह कई साल बीत गए और वह एक बेटी का पिता भी बन गया.

अकेले रहने का फायदा उठाया स्वप्न ने  स्वप्न मुंबई में अकेला रहता था. दिन में तो वह काम पर चला जाता था, लेकिन उस के लिए रात मुश्किल हो जाती थी. वह परिवार, पत्नी और बच्ची से दूर था. रंगीन तबीयत का होने की वजह से उसे अकसर पत्नी की याद सताती थी. जवान खून था, ऊपर से कमाई भी अच्छी थी उस ने जल्द ही मन बहलाने का रास्ता खोज लिया. काम से छूटने के बाद वह घर आता और फ्रैश हो कर मन बहलाने के लिए बीयर बारों के चक्कर लगाता. जल्द ही वह दिन भी आ गया, जब बीयर बार स्वप्न को मौजमस्ती के लिए अच्छी जगह लगने लगे. वहां जा कर वह 2-4 पैग ले कर खाना खाता और घर आ कर के सो जाता. उसी दौरान उस की दोस्ती रोजीना शेख उर्फ रोशनी से हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई.

मुसलिम समुदाय की खूबसूरत रोजीना शेख उर्फ रोशनी भी पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की रहने वाली थी. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां के अलावा उस की एक छोटी बहन थी. पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारियां उस की मां के कंधो पर आ गई थीं. मां ने मेहनतमजदूरी कर जैसेतैसे दोनों बेटियों को पाला. बालिग होने के बाद रोजीना अपनी एक सहेली रुबिका के साथ मुंबई आ गई थी. जिस सहेली के साथ वह आई थी, वह मुंबई के दहिसर में रह कर बीयर बारों में काम करती थी. पहले तो रोजीना शेख को बीयर बार के कामों में रुचि नहीं थी,लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए वह बीयर बारों में अपना नाम बदल कर नौकरी करने लगी.

इधरउधर कई बारों में काम करने के बाद वह दहिसर के संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट में आ गई, जहां उस की अच्छी कमाई हो जाती थी. अपनी कमाई का आधा हिस्सा वह अपनी मां के पास भेज देती थी. दहिसर की जनकल्याण सोसायटी में उस ने 7 हजार रुपए महीना किराए पर एक कमरा ले लिया था. उस दिन रविवार था, स्वप्न रोहिदास की छुट्टी का दिन. उस ने रोजीना को फोन किया लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की. कई बार फोन करने के बाद जब रोजीना ने फोन उठाया तो स्वप्न ने उसे तय जगह पर मिलने के लिए बुलाया, पर वह नहीं आई. इस पर स्वप्न को गुस्सा आ गया. हार गई रोशनी शाम को स्वप्न ने दहिसर की एक शराब की दुकान से बीयर की एक बोतल खरीदी और रोजीना शेख उर्फ रोशनी के घर पहुंच गया.

उस ने वहीं बैठ कर बीयर पी. फिर उस ने रोजीना से उस के बुलाने पर न आने का कारण पूछा तो रोजीना ने उसे दोटूक जवाब दिया, ‘‘मेरा मूड ठीक नहीं था. गांव से मां का फोन आया था. मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. बताओ, क्या तुम मेरी मांग पूरी कर सकते हो?’’

‘‘तुम ने मुझे क्या बैंक समझ रखा है, जब देखो तुम पैसों की मांग करती रहती हो?’’ स्वप्न के दिमाग पर बीयर का सुरूर चढ़ चुका था. उस की यह बात सुन कर रोजीना ने भी उस की ही भाषा में जवाब दिया, ‘‘तो तुम ने क्या मुझे अपनी बीवी समझ रखा है कि मैं तुम्हारी हर बात मानूं?’’

इन बातों को ले कर बात इतनी बढ़ी कि स्वप्न अपना विवेक खो बैठा और पास रखी तौलिया उठा रोजीना के गले में डाल कर कस दी. थोड़ी देर में दम घुटने से रोजीना की मृत्यु हो गई. रोजीना उर्फ रोशनी की हत्या के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के हाथपैर फूल गए. हाथ में हथकड़ी और कानून के डर से वह बुरी तरह घबरा गया. पुलिस से बचने और कानून को गुमराह करने के लिए उस ने घटना का रुख चोरी की तरफ मोड़ने की कोशिश की. उस ने कमरे की अलमारी खोल कर सारा सामान इधरउधर डाल दिया और उस में रखे कीमती गहने, पौने 2 लाख नगदी के अलावा कमरे में रखे 2 मोबाइल फोन अपने पास रख लिए और वहां से भाग कर अपने कमरे पर जा पहुंचा. फिर वहां से वह पश्चिम बंगाल स्थित अपने गांव चला गया.

29 दिसंबर, 2019 को रोजीना ने अपना रूम नहीं खोला तो उस की नौकरानी को दाल में कुछ काला नजर आया. वह 2 बार रोशनी के घर पर आ कर लौट गई थी. तीसरी बार जब वह आई, तब भी रोजीना का फ्लैट बंद पा कर उस ने यह बात पड़ोसियों और फ्लैट मालिक सुनील सखाराम को बताई. फ्लैट मालिक सुनील सखाराम ने डुप्लीकेट चाबी से जब घर का दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य देख हैरान रह गया. पड़ोसियों के भी होश फाख्ता हो गए. मामला गंभीर था, अत: उन्होंने इस की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ थाने को भी दे दी. वह इलाका दहिसर पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. थाने की ड्यूटी पर तैनात एसआई सिद्धार्थ दुधमल ने तुरंत मामले की जानकारी इंसपेक्टर मराठे, असिस्टेंट इंसपेक्टर जगदाले को दे दी और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने कमरे का सरसरी निगाहों से निरीक्षण किया.

एसआई सिद्धार्थ ने पूछताछ की प्रक्रिया अभी शुरू ही की थी कि मामले की जानकारी पा कर थानाप्रभारी एम.एम. मुजावर, इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े (क्राइम) घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के साथसाथ मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दिलीप सावंत, डीसीपी डा. डी.एस. स्वामी और एसीपी सुहास पाटिल के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौकाएवारदात पर पहुंच गई. अधिकारियों ने घटनास्थल का फौरी तौर पर निरीक्षण कर थानाप्रभारी एम.एम. मुजावर को आवश्यक दिशानिर्देश दिए. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मामले की तफ्तीश की जिम्मेदारी इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े को सौंपी गई.

अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े ने अपनी जांच टीम का गठन किया, जिस में असिस्टेंट इंसपेक्टर डा. चंद्रकांत धार्गे, ओम टोटावर, विराज जगदाले, एसआई सिद्धार्थ दुधमल, कांस्टेबल परब, जगताप, नाइक, तटकरे आदि को शामिल किया गया. टीम ने सरगरमी से मामले की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने रोजीना उर्फ रोशनी के मोबाइल  फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही कमरे में मिली बीयर की बोतल के बैच नंबर के आधार पर उस शराब की दुकान का पता लगा लिया, जहां से वह बोतल खरीदी गई थी. इस के बाद घटनास्थल और शराब की दुकान के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से पता चल गया कि रोशनी की हत्या स्वप्न रोहिदास ने की थी.

फोन कंपनी से उस के पश्चिम बंगाल स्थित घर का पता लग गया था. लिहाजा पुलिस टीम फ्लाइट से उस के गांव पहुंच गई. वह अपने घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस मुंबई लौट आई. दहिसर पुलिस की गिरफ्त में आए स्वप्न रोहिदास ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. जांच अधिकारी इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े ने उस से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

 

Mirzapur Crime : पत्नी ने 21 साल बाद लिया अपहरण का बदला

Mirzapur Crime : कोई महिला 21 साल तक किसी की पत्नी बन कर रहे, उस के 2 बच्चों की मां बने और फिर इसलिए पति की हत्या करवा दे, क्योंकि 21 साल पहले उस के पति ने न केवल उस का अपहरण किया था, बल्कि उस के भाई की हत्या भी कर दी थी. सुनने में यह असंभव सी बात लगती है, लेकिन कंचन और प्रमोद के मामले में ऐसा ही हुआ. कैसे…

4 फरवरी, 2020 की सुबह मीरजापुर के थाना विंध्याचल की पुलिस को सूचना मिली कि गोसाईंपुरवा स्थित कालीन के कारखाने में रहने वाले प्रमोद की रात में किसी ने हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने भादंवि की धारा 302, 452 के तहत प्रमोद की हत्या का मुकदमा  दर्ज कराया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो प्रमोद की लाश चारपाई पर पड़ी थी. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास रही होगी, उस का सिर किसी भारी चीज से कुचला गया था. मृतक के शरीर से जो खून बहा था, वह सूख कर काला पड़ चुका था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या आधी रात के पहले यानी 9-10 बजे के आसपास की गई थी. ठंड का मौसम था, इसलिए खून पूरी तरह नहीं सूखा था.

थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने साथियों की मदद से घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. उन्होंने आसपास उस भारी चीज की भी तलाश की, जिस से हत्या की गई थी. पर काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को कुछ नहीं मिला. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम बुला ली. टीम ने वहां से जरूरी साक्ष्य जुटाए. सारी काररवाई पूरी कर उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. सारी काररवाई निपटा कर वेदप्रकाश राय ने हत्यारे का पता लगाने के लिए कारखाने में काम करने वाले प्रमोद के साथियों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि प्रमोद कहीं बाहर का रहने वाला था. वह काफी दिनों से यहीं रह रहा था. वह कहां का रहने वाला था, यह बात कोई नहीं बता सका.

बस इतना ही पता चला कि उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. पत्नी जिला कौशांबी में होमगार्ड में थी. बेटी अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही थी, जबकि बेटा दिल्ली में रह कर कोई प्राइवेट नौकरी करता था, साथ ही उस ने राजस्थान इंटर कालेज से प्राइवेट फार्म भी भर रखा था. प्रमोद मीरजापुर में कालीन बुनाई का काम करता था, जबकि पत्नी कंचनलता कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर थी. इस का मतलब दोनों अलगअलग रहते थे. पूछताछ में प्रमोद के साथियों ने यह भी बताया था कि पतिपत्नी में पटती नहीं थी. प्रमोद पत्नी से अकसर मारपीट करता था. उस की इस मारपीट से आजिज कंचनलता मीरजापुर कम ही आती थी.

थानाप्रभारी राय को जब पतिपत्नी के बीच तनाव की बात पता चली तो उन्हें लगा कि कहीं प्रमोद की हत्या इसी तनाव के कारण तो नहीं हुई. पूछताछ में उन्हें यह भी पता चला कि उस कारखाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. इस से उन्हें उम्मीद जगी कि सीसीटीवी फुटेज से हत्यारे का अवश्य पता चल जाएगा. उन्होंने उस रात की सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उन की उम्मीद पूरी तरह से खरी उतरी. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि प्रमोद की हत्या एक पुरुष और एक महिला ने मिल कर की थी. थानाप्रभारी को लगा कि वह औरत कोई और नहीं, मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही होगी.

राय ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज प्रमोद के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को दिखाई तो उस महिला की ही नहीं, बल्कि उस के साथ हत्या में शामिल पुरुष की भी पहचान कर दी. वह औरत मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही थी. उस के साथ जो पुरुष था, वह उस का भाई अंबरीश था. प्रमोद की हत्या बहनभाई ने मिल कर की थी. प्रमोद के हत्यारों को पता चल गया था, अब उन्हें गिरफ्तार करना था. लेकिन उन्हें गिरफ्तार करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय जानते थे कि अब तक कंचनलता फरार हो चुकी होगी. हत्या के बाद उन्होंने उसे बुला कर पूछताछ भी की थी, तब उस ने स्वयं को निर्दोष बताया था.

फिर भी एक पुलिस टीम कौशांबी गई. जैसी पुलिस को आशंका थी, वैसा ही हुआ. कंचनलता वहां नहीं मिली. उस का मोबाइल नंबर उन के पास था ही. पुलिस ने यह बात एसपी डा. धर्मवीर सिंह को बताई तो उन्होंने कंचनलता का नंबर सर्विलांस टीम को दे कर उस के बारे में पता करने का आदेश दिया. यही नहीं, उन्होंने सर्विलांस टीम के अलावा एसआईटी और स्वाट को भी कंचनलता व उस के भाई अंबरीश को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. इसी के साथ उन्होंने दोनों भाईबहन को गिरफ्तार करने वाली टीम को 25 हजार रुपए बतौर ईनाम देने की घोषणा भी की.

अब थाना पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, एसआईटी और स्वाट भी कंचनलता और अंबरीश के पीछे लग गईं. थाना पुलिस ने अपने मुखबिरों को दोनों के बारे में पता करने के लिए लगा दिया था. इन कोशिशों से फायदा यह निकला कि 22 फरवरी यानी हत्या के 19 दिनों बाद मुखबिर ने सटीक जानकारी दी. मुखबिर ने काले रंग की उस प्लेटिना मोटरसाइकिल यूपी53सी जेड1559 के बारे में भी बताया, जिस पर सवार हो कर भाईबहन गोसाईंपुरवा से अमरावती चौराहे की ओर जा रहे थे. मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीमों ने रात लगभग सवा 10 बजे कालीखोह मेनरोड गेट के पास से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों उसी मोटरसाइकिल पर सवार थे, जिस के बारे में मुखबिर ने सूचना दी थी. दोनों को गिरफ्तार करने के बाद थाने लाया गया.

कंचन और अंबरीश की गिरफ्तारी की सूचना अधिकारियों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर एसपी भी थाना विंध्याचल आ गए. उन की उपस्थिति में कंचन और अंबरीश से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का अपराध स्वीकार करने के साथ प्रमोद की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

इस कहानी की शुरुआत सन 1999 में तब हुई, जब अंबरीश नाबालिग था. वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना सहजनवां के गांव बेलवाडांडी के रहने वाले सोहरत सिंह (गौड़) का सब से छोटा बेटा था. उस से बड़ा एक भाई धर्मवीर और 2 बहनें शशिकिरन तथा कंचनलता थीं. शशिकिरन शादी लायक हुई तो सोहरत सिंह ने उस की शादी जिला संत कबीर नगर के रहने वाले दशरथ सिंह से कर दी. इस के बाद उन्हें दूसरी बेटी कंचनलता की शादी करनी थी. क्योंकि वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. सोहरत सिंह उस के लिए घरवर की तलाश में लगे थे. लेकिन वह उस की शादी कर पाते, उस के पहले ही उस के साथ एक दुर्घटना घट गई.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी कंचनलता काफी सुंदर थी. सुंदर होने की वजह से गांव के लड़कों की नजरें उस पर जम गई थीं. ज्यादातर लड़के तो उसे सिर्फ देख कर ही संतोष कर लेते थे, पर उन्हीं में एक प्रमोद था, जो उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया था. कंचन को एक नजर देखने के लिए वह दिन भर उस के घर के आसपास घूमता रहता था. उस की हरकतों से कंचन को उस के इरादों का पता चल गया. कंचन उस तरह की लड़की नहीं थी, उसे खुद की और मातापिता की इज्जत का खयाल था, वह जानती थी कि अगर एक बार बदनामी का दाग लग गया तो जीवन भर नहीं छूटेगा.

यही सब सोच कर एक दिन उस ने प्रमोद को डांट दिया. प्रमोद दब्बू किस्म का लड़का नहीं था. वह कंचन से प्यार करता था, इसलिए डांट का भी जवाब प्यार से ही दिया. उस ने कहा, ‘‘कंचन, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम मेरे दिल में बसी हो, मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा.’’

कंचन तो वैसे ही गुस्से में थी. उस ने प्रमोद को दुत्कारने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शक्ल देखी है अपनी, जो मुझे रानी बनाने चला है. तेरे जैसे 36 लड़के मेरे पीछे पड़े हैं. पर मैं ने किसी को राह में नहीं आने दिया तो तू किस खेत की मूली है.’’

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.

उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था. इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’

कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी. उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए. इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया. गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी. 27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई. कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में. गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का. घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला. सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया. उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था. उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी. पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है. नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.

दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा. गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है. धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे. यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता. कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था. मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.

अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी. करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था. कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.

अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था. अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा. अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है.

उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा. दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे. रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई. अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था.

उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया. अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.  उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया. अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.

उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई. दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी. इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.

 

Ujjain Crime : चार्जर के वायर से घोंटा दोस्त का गला

Ujjain Crime : नितेश और राजेश साथसाथ काम करते थे और अच्छे दोस्त थे. जब राजेश ने दोस्ती की आड़ में नितेश की रिश्ते की बहन से प्यार की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं तो नितेश विरोध पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि राजेश ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर…

नितेश चौहान के घर वाले उज्जैन के नागदा सिटी थाने के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो चुके थे. लेकिन पुलिस नितेश के हत्यारों का पता नहीं लगा पा रही थी. दरअसल, किसी ने नितेश (19 साल) की हत्या कर दी थी. 10 जून, 2018 को उस का शव नागदा-जावरा रोड पर स्थित पार्क में मिला था. तत्कालीन टीआई अजय वर्मा ने केस की जांच की. वह इस केस को नहीं खोल पाए तो उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जांच साइबर सेल को सौंप दी गई, लेकिन साइबर सेल भी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. कहने का तात्पर्य यह है कि हत्या के 16 महीने बाद भी पुलिस इस केस को खोलने में नाकाम रही. उधर बेटे के हत्यारों का पता न चलने पर नितेश के मातापिता परेशान थे. वे लोग थाने से ले कर एसपी औफिस तक चक्कर काटतेकाटते थकहार चुके थे.

टीआई अजय वर्मा के स्थानांतरण के बाद टीआई श्यामचंद्र शर्मा ने नागदा सिटी थाने का पदभार संभाला तो बेटे की मौत के गम में डूबे नितेश के पिता ने श्यामचंद्र शर्मा से मुलाकात कर अपना दुखड़ा रोया. टीआई ने नितेश हत्याकांड की फाइल निकलवा कर उस का अध्ययन किया. उन्होंने इस संबंध में सीएसपी मनोज रत्नाकर से दिशानिर्देश ले कर फिर से केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में टीआई श्यामचंद्र शर्मा के हाथ कुछ ऐसे क्लू लगे, जिन के आधार पर वह नितेश चौहान के हत्यारों का पता लगाने में सफल हो गए. इतना ही नहीं उन्होंने 5 अक्तूबर, 2019 को आरोपी जगदीश और राजेश को नागदा स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों आरोपियों से थाने में पूछताछ की गई तो 19 वर्षीय नितेश चौहान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

19 वर्षीय नितेश नागदा के ब्लौक 58 में रहने वाले गोविंद चौहान का बेटा था. गोविंद चौहान आटोरिक्शा चालक था. बड़े बेटे नितेश के अलावा गोविंद चौहान की 2 बेटियां थीं. बीकौम पास करने के बाद नितेश चंबल ब्रिज के पास स्थित सहारा अस्पताल में कंपाउंडर की नौकरी कर रहा था. इस पार्टटाइम नौकरी के अलावा वह उज्जैन के एक अस्पताल में नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था. 19 जून, 2018 को नितेश सहारा अस्पताल से घर जाने के लिए निकला. जब वह रास्ते में था, तभी उस की मां सुनीता ने उसे फोन कर के कहा कि वह घर आते समय दूध की एक थैली लेता आए. नितेश को नर्सिंग की ट्रेनिंग करते अभी 25 दिन ही हुए थे.

चूंकि वह नर्सिंग का काम जानता था, इसलिए वह वहां पूरी जिम्मेदारी से काम कर रहा था. अस्पताल में काम करने वाले सभी लोग उस से खुश थे. उस की योग्यता व लगन को देखते हुए अस्पताल के प्रबंधक ने उसे सम्मानित करने की घोषणा भी कर दी थी. नितेश ने अपनी मां से कहा कि वह कुछ ही देर में घर पहुंच जाएगा, लेकिन आधी रात से ज्यादा हो गई, वह घर नहीं आया. तब नितेश के पिता गोविंद चौहान ने बेटे के मोबाइल पर फोन किया. किसी ने फोन रिसीव तो किया लेकिन कोई बात नहीं हुई. फोन पर बाइक के चलने की आवाज आ रही थी. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि शायद वह बाइक चला रहा होगा. कुछ देर में घर आ जाएगा.

लेकिन 2 घंटे बाद भी नितेश घर नहीं पहुंचा तो उन्होंने छत पर जा कर पड़ोस में रहने वाले नितेश के खास दोस्त ताहिर को आवाज लगाई. जवाब में ताहिर के घर से कोई आवाज नहीं आई तो वह घर में बैठ कर बेटे का इंतजार करते रहे. धीरेधीरे पूरी रात बीत गई लेकिन नितेश घर नहीं आया और न ही उस की कोई खबर आई. अब नितेश का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हो गया था. दूसरे दिन सुबह लगभग साढ़े 6 बजे कुछ लोगों ने नागदा जावरा रोड पर स्थित अटल निसर्ग उद्यान में एक संदिग्ध बोरा पड़ा देखा. किसी ने यह सूचना नागदा सिटी थाने के तत्कालीन टीआई अजय वर्मा को दे दी. टीआई कुछ देर में अटल निसर्ग उद्यान पहुंच गए. पुलिस ने जब पार्क में पड़ा मिला वह बोरा खोल कर देखा तो उस में लगभग 19-20 साल के एक युवक की लाश मिली.

कुछ ही देर में पूरे नागदा में युवक की लाश मिलने की खबर फैल गई. चूंकि नितेश भी बीती रात से घर नहीं पहुंचा था, इसलिए गोविंद चौहान भी सूचना पा कर उस पार्क में पहुंच गए. लाश देखते ही गोविंद चौहान की चीख निकल गई, क्योंकि वह लाश उन के बेटे नितेश की ही थी. टीआई अजय वर्मा ने लाश मिलने की सूचना तत्कालीन एसपी (उज्जैन) सचिन अतुलकर को दे दी. खबर पा कर एसपी सचिन अतुलकर भी मौके पर पहुंच गए. एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर शव की जांच की. नितेश के शरीर पर चोटों के निशानों के अलावा गले पर भी निशान था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या किसी तार या पतली रस्सी से गला घोंट कर की गई है.

जांच के दौरान बोरे के ऊपर किसी महिला के सिर का बाल भी चिपका मिला. इस से पुलिस को औनर किलिंग की आशंका हुई. क्योंकि एक रोज पहले ही पास के गांव रूई में लगभग इसी उम्र की एक युवती का जला हुआ शव मिला था. इसलिए पुलिस नितेश की हत्या को उस युवती के शव के साथ जोड़ कर देख रही थी. पुलिस ने नितेश के दोस्तों से पूछताछ की, जिस में उस के एक खास दोस्त ने बताया कि नितेश का किल्लीपुरा की रहने वाली एक लड़की से प्रेम प्रसंग चल रहा था. जिस के चलते करीब 3 साल पहले उस के साथ मारपीट भी की गई थी. कुछ रोज पहले उस लड़की को ले कर रितेश का विवाद हुआ था. इस से पुलिस को यकीन हो गया कि मामला औनर किलिंग का ही हो सकता है.

संभावना थी कि रूई गांव में मिला शव नितेश की प्रेमिका का रहा होगा, इसलिए पुलिस ने नितेश की प्रेमिका की खोज शुरू कर दी, लेकिन प्रेमिका अपने घर में सुरक्षित मिली. पुलिस ने उस के बयान दर्ज कर उस की अंगुलियों के निशान भी मिलान के लिए ले लिए. 3 दिन बीत जाने पर भी पुलिस के खाली हाथ देख लोगों में गुस्सा बढ़ने लगा, जिस से पुलिस पर काम का दबाव बढ़ गया. पुलिस ने नितेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकालने के अलावा सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. फुटेज में नितेश 3 दोस्तों के साथ सड़क पर मस्ती करते हुए दिखाई तो दिया लेकिन उन लड़कों का चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था.

नितेश जिस अस्पताल में पार्टटाइम काम करता था, वहां के लोगों को जब वह फुटेज दिखाई गई तो उन दोनों लड़कों की पहचान हो गई. वे दोनों उस के साथ अस्पताल में ही काम करने वाले राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी थे. पुलिस ने राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वे उस के साथ थे जरूर, लेकिन कुछ देर में वे आ गए थे. रात लगभग साढ़े 8 बजे नितेश घर जाने को बोल कर चला गया था. पुलिस को यह भी पता चला कि कुछ दिन पहले नितेश के साथ ट्रेनिंग ले रही एक युवती के कारण उज्जैन में भी उस का एक युवक से विवाद हुआ था. इसलिए पुलिस ने उज्जैन जा कर भी मामले को हल करने की कोशिश की, लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा. इस के बाद पुलिस ने नितेश की बहनों को केंद्र में रख कर जांच की, लेकिन इस दिशा में काम करने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली रहे.

जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो एसपी सचिन अतुलकर ने जांच थाना पुलिस से ले कर उज्जैन की साइबर सेल को सौंप दी. साइबर सेल की टीम ने शुरुआत से जांच की. टीम ने लगभग डेढ़ लाख फोन काल की जांच की. कई नंबरों को विशेष तौर पर जांच में लिया. इस जांच में नागदा के 3 युवक ताहिर, अशफाक और अजहर शक के दायरे में आए. पुलिस टीम ने उन से गहन पूछताछ की, लेकिन पुलिस को ऐसा कोई सिरा नहीं मिला, जिसे पकड़ कर वह नितेश के हत्यारों तक पहुंच पाती. कुल मिला कर साइबर सेल भी केस का खुलासा नहीं कर सकी तो समय के साथ मामला ठंडा पड़ता गया और धीरेधीरे लोग नितेश हत्याकांड को भूलने लगे. लेकिन पुलिस नहीं भूली थी, वह अपनी गति से मामले की जांच में जुटी थी.

इस केस में निर्णायक मोड़ नागदा सिटी थाने के नए टीआई श्यामचंद्र शर्मा के पदभार संभालने के बाद आया. उन्होंने इस हत्याकांड को एक चैलेंज के रूप में लिया. इस केस की फाइल का अध्ययन करने के दौरान जिन संदिग्ध लोगों के बयान पर उन्हें शक हुआ, उन्हें फिर से थाने बुला कर पूछताछ की गई. साथ ही नितेश के प्रेम प्रसंग को भी खंगाला गया. किल्लीपुरा में रहने वाली नितेश की प्रेमिका से भी कई बार फिर से पूछताछ की गई. इस के साथसाथ सीएसपी मनोज रत्नाकर के निर्देशन में टीआई श्यामचंद्र शर्मा ने एक बार फिर वे तमाम सीसीटीवी फुटेज खंगालने का काम शुरू कर दिया, जिन्हें पहले भी पुलिस कई बार खंगाल चुकी थी. विशेषकर सहारा  अस्पताल के फुटेज बारबार चैक किए गए क्योंकि नितेश वहां पार्टटाइम नौकरी करता था.

सहारा अस्पताल के फुटेज चैक करते हुए टीआई उस समय चौंके, जब उन्होंने देखा कि घटना वाली रात में 9 बज कर 34 मिनट के बाद एक मिनट कुछ सैकेंड की फुटेज गायब थी. जाहिर है या तो उस वक्त लाइट चली गई होगी या फिर कैमरा बंद किया गया होगा. नितेश भी लगभग इसी समय गायब हुआ था, इसलिए टीआई समझ गए कि नितेश हत्याकांड के तार कहीं और नहीं बल्कि उसी सहारा अस्पताल से जुड़े हैं, जहां वह नौकरी करता था. इस से टीआई शर्मा ने अस्पताल में नितेश के साथ काम करने वाले राजेश और जगदीश को बुला कर कई बार पूछताछ की, लेकिन उन के बयानों में ऐसा कुछ भी संदिग्ध नजर नहीं आया, जिस से उन दोनों को घेरा जा सके. इस के बावजूद टीआई शर्मा को पूरा भरोसा था कि नितेश हत्याकांड की पूरी कहानी अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरे के मिसिंग फुटेज में ही छिपी है.

इसलिए सीएसपी मनोज रत्नाकर और टीआई शर्मा मिल कर अस्पताल की फुटेज की बारीकी से जांच करते रहे, जिस के चलते नितेश की हत्या के 16 महीने बाद एक ऐसा क्लू मिल गया जो उन्हें नितेश के हत्यारों तक ले गया. हुआ यह कि दोनों अधिकारी बारबार अस्पताल के कैमरे के उन फुटेज को देख रहे थे, जो रात में कैमरा बंद होने से पहले और बाद में रिकौर्ड हुए थे. इस दौरान अचानक उन की नजर अस्पताल की टेबल पर एक फाइल के ऊपर रखी दूध की थैली पर पड़ी. यह दूध की थैली उस वक्त फाइल पर नहीं थी, जब कैमरा बंद किया गया था. कैमरा वापस चालू होने पर थैली वहां रखी मिली.

घटना की रात नितेश भी दूध की थैली ले कर घर जाने वाला था. डेयरी वाले ने भी बताया कि उस रात नितेश ने उस से दूध की थैली खरीदी थी. मतलब साफ था कि अस्पताल से घर के लिए निकलने के बाद नितेश ने दूध की थैली खरीदी थी. इस के बाद वह दूध की थैली ले कर घर जाने से पहले एक बार फिर अस्पताल लौटा था, जिस के बाद अगले दिन उस की लाश ही मिली. टीआई ने अब अपना पूरा ध्यान सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पर लगा दिया, जिस में उन्होंने पाया कि रात में कैमरे फिर से चालू होने के लगभग 20 मिनट बाद 9 बज कर 59 मिनट पर फिर बंद कर दिए गए थे. इस के बाद जब अगले दिन सुबह जगदीश और राजेश ने अस्पताल खोला तो कैमरे फिर चालू किए गए.

सुबह 7 बजे जब कैमरे चालू किए गए, उस वक्त भी दूध की थैली टेबल के ऊपर ही रखी थी, जो बाद में राजेश ने वहां से हटा दी थी. मतलब साफ था कि नितेश दूध ले कर अस्पताल गया था और उस के बाद वह वहां से निकला तो इस स्थिति में नहीं था कि अपने साथ दूध की थैली ले जा सके. यानी उस की हत्या अस्पताल के अंदर ही की गई थी. इस पूरे मामले पर सीएसपी मनोज रत्नाकर ने उज्जैन एसपी सचिन अतुलकर से लंबी चर्चा की. इस के बाद उन्होंने एक बार फिर राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी को थाने बुला कर पूछताछ की. पूछताछ में दोनों अपने पुराने बयान ही दोहराते रहे.

जब टीआई ने देखा कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकल सकता तो उन्होंने दोनों से सख्ती से पूछताछ की. जिस से कुछ ही देर में राजेश ने नितेश की हत्या की बात स्वीकार कर पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार है—

साथसाथ काम करते हुए नितेश और राजेश गहलोत के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई थी. पास के एक शहर में नितेश के एक नजदीकी रिश्तेदार थे, जिन की बेटी नताशा थी. करीब 2 साल पहले नितेश काम के सिलसिले में नताशा के घर गया तो संयोग से राजेश भी उस के साथ था. वहां नितेश ने अपने रिश्ते की बहन नताशा से राजेश का परिचय करवाया था. उस रोज राजेश नितेश के साथ वापस नागदा तो आ गया, लेकिन अपना दिल नताशा के पास ही छोड़ आया था. उसे नताशा से प्यार हो गया था. नागदा आने के कुछ दिन बाद राजेश ने फेसबुक पर नताशा को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी, जो उस ने स्वीकार कर ली. इस के बाद फेसबुक के माध्यम से दोनों की दोस्ती बढ़ती गई. राजेश और नताशा में प्रेम संबंध बन गए. समय के साथ दोनों का प्रेम इतना आगे बढ़ गया कि राजेश नितेश से छिप कर नताशा से मिलने उस के शहर जाने लगा. इस दौरान राजेश नताशा को ले कर होटल में जाता था.

लेकिन कुछ दिनों बाद दोनों के प्रेम संबंधों की खबर उस के परिवार वालों को लग गई. उन्हें इस बात की जानकारी भी हो गई कि नताशा का प्रेमी युवक नितेश का दोस्त है और नितेश ने ही उस से नताशा को मिलवाया था. जबकि सच्चाई यह थी कि नितेश को नताशा और राजेश की प्रेम कहानी के बारे में कुछ पता नहीं था. घटना से कुछ रोज पहले राजेश अपनी प्रेमिका नताशा से एकांत में मिलने उस के शहर पहुंचा तो नताशा की बड़ी बहन को इस की जानकारी हो गई. बताते हैं कि बड़ी बहन ने नताशा को राजेश के साथ देख लिया तो उस ने वहीं खड़े हो कर नितेश को फोन कर दिया और उसे राजेश की हरकत के बारे में बताया.

इस पर नितेश ने राजेश को फोन कर तुरंत नागदा आने को कहा. नागदा पहुंच कर वह नितेश से मिला तो दोनों के बीच कुछ विवाद भी हुआ, लेकिन बाद में राजेश ने माफी मांगते हुए नताशा से न मिलने का वादा कर बात खत्म कर दी. राजेश और नताशा प्यार की डगर पर काफी आगे तक निकल चुके थे, लेकिन अब दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था. दरअसल, राजेश कभी नागदा से बाहर जाता तो नितेश यह खबर नताशा की बड़ी बहन को कर देता था, जिस से वह नताशा पर नजर रखे. इस से धीरेधीरे राजेश और नताशा के मिलने पर पूरी तरह से रोक लग गई.

नितेश की जासूसी की बात राजेश को पता चली तो वह उस से रंजिश रखने लगा. साथ में काम करने वाले जगदीश को पहले से ही राजेश और नताशा की प्रेम कहानी की जानकारी थी. इसलिए जब राजेश नताशा से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा तो दोनों ने मिल कर नितेश को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली. क्योंकि वही उन दोनों के रास्ते का कांटा था. 10 जून, 2018 को नितेश शाम को अस्पताल से घर के लिए निकला. तभी राजेश ने उसे फोन कर सिगरेट पीने के बहाने से वापस बुलाया. राजेश के बुलाने पर नितेश अस्पताल में आया, जहां राजेश और जगदीश ने मोबाइल चार्जर के वायर से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस का शव बोरे में भर कर जावरा रोड पर स्थित पार्क में फेंक दिया.

अगले दिन जब पार्क में शव मिलने पर लोग जमा हुए तो दोनों हत्यारोपी भी नितेश के घर जा कर शोक में शामिल भी हो गए. घटना के बाद लंबा समय लग जाने पर भी पुलिस दोनों आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी, जिस से उन्हें भरोसा हो गया था कि अब पुलिस उन्हें कभी नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन टेबल पर रखी दूध की थैली ने दोनों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नताशा परिवर्तित नाम है.

 

Love Crime Story : सगाई वाले दिन ही प्रेमिका का किया मर्डर

Love Crime Story : शादीशुदा युवराज उर्फ जुगराज सिंह ने हरप्रीत को प्यार के जाल में फांस तो लिया, लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो वह परेशान हो गया. गले में अटकी इस हड्डी को निकालने के लिए युवराज ने अपने दोस्तों सुखचैन सिंह व सुखविंदर के साथ ऐसी योजना बनाई कि…

कानपुर के जवाहर नगर निवासी सरदार गुरुवचन सिंह की 22 वर्षीय बेटी हरप्रीत कौर श्रमशक्ति एक्सप्रेस से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे घर से निकली. रात 10 बजे कानपुर सेंट्रल पहुंचने पर हरप्रीत ने अपनी मां गुरप्रीत को फोन पर बताया कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है, उसे आसानी से सीट मिल जाएगी. बेटी की बात से संतुष्ट हो कर गुरप्रीत कौर निश्चिंत हो गई. दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था. इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी. सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए.

उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे. गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी.

गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया. 11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया. इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई.

फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई. गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे. गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया. इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया. 13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं. वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए. सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए. गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए. पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना. एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी. वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी. गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची.

कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी. इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे. पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए. युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई. रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई. इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी. अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था. युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी.

सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया. सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था.

हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी. दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया. चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं. गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था. भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी.

उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था. हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी. हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे. युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी. युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई. चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया. किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली. हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी. युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी. उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी. अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी. 9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा.

हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया. इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई. कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया. चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया. लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Social Crime : बुजुर्ग से की शादी, माल समेटा और हो गई फरार

Social Crime : सोमेश्वर, राजकुमार शर्मा और सोनी तीनों वृद्ध थे, पैसे और प्रोपर्टी वाले, लेकिन विधुर. तीनों को सहारे के लिए जीवनसाथी की जरूरत थी, सो तीनों ने अखबार में अलगअलग विज्ञापन दे कर शादी की. लेकिन एक महिला और पुरुष ने तीनों को ऐसा चूना लगाया कि…

भोपाल के कोलार इलाके में रहने वाले 72 वर्षीय सोमेश्वर के पास सब कुछ था. दौलत, इज्जत, अपना बड़ा सा घर और वह सब कुछ जिस की जरूरत सुकून, सहूलियत और शान से जीने के लिए होती है. पेशे से इंजीनियर रहे सोमेश्वर की पत्नी की करीब एक साल पहले मृत्यु हो गई थी, तब से वह खुद को काफी तन्हा महसूस करने लगे थे, जो कुदरती बात भी थी. रोमांटिक और शौकीनमिजाज सोमेश्वर ने एक दिन अखबार में इश्तहार दिया कि उन की देखरेख के लिए एक स्वस्थ और जवान औरत की जरूरत है, जिस से वह शादी भी करेंगे.

जल्द ही उन की यह जरूरत पूरी करने वाला एक फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम शंकर दूबे बताते हुए कहा कि वह पन्ना जिले के भीतरवार गांव से बोल रहा है. उस की जानपहचान की एक जवान औरत काफी गरीब है, जिस के पेट में गाय ने सींग मार दिया था, इसलिए उस ने शादी नहीं की क्योंकि वह मां नहीं बन सकती थी. सोमेश्वर के लिए यह सोने पे सुहागा वाली बात थी, क्योंकि इस उम्र में वे न तो औलाद पैदा कर सकते थे और न ही बालबच्चों वाली बीवी चाहते थे, जो उन के लिए झंझट वाली बातें थीं. बात आगे बढ़ी तो उन्होंने शंकर को उस औरत के साथ भोपाल आने का न्यौता दे दिया.

चट मंगनी पट ब्याह शंकर जब रानी को ले कर उन के घर आया तो सोमेश्वर उसे देख सुधबुध खो बैठे. इस में उन की कोई गलती थी भी नहीं, भरेपूरे बदन की 35 वर्षीय रानी को देख कर कोई भी उस की मासूमियत और भोलेपन पर पहली नजर में मर मिटता. देखने में भी वह कुंवारी सी ही लग रही थी, लिहाजा सोमेश्वर के मन में रानी को देखते ही लड्डू फूटने लगे और उन्होंने तुरंत शादी के लिए हां कर दी. इस उम्र और हालत में कोई बूढ़ा भला बैंडबाजा बारात के साथ धूमधाम से तो शादी करता नहीं, इसलिए बीती 20 फरवरी को उन्होंने रानी से घर में ही सादगी से शादी कर ली और घर के पास के मंदिर में जा कर उस की मांग में सिंदूर भर कर अपनी पत्नी मान लिया.

‘जिस का मुझे था इंतजार, वो घड़ी आ गई…’ की तर्ज पर सुहागरात के वक्त सोमेश्वर ने अपनी पहली पत्नी के कोई 15 तोले के जेवरात जिन की कीमत करीब 6 लाख रुपए थी, रानी को उस की मांग पर दे दिए और सुहागरात मनाई. उन की तन्हा जिंदगी में जो वसंत इस साल आया था, उस से वह खुद को बांका जवान महसूस कर रहे थे. रानी को पत्नी का दरजा और दिल वह दे ही चुके थे, इसलिए ये सोना, चांदी, हीरे, मोती उन के किस काम के थे. ये सब तो रानी पर ही फब रहे थे. लेकिन रानी ने दिल के बदले में उन्हें दिल नहीं दिया था, यह बात जब उन की समझ आई तब तक चिडि़या खेत चुग कर फुर्र हो चुकी थी. साथ में उस का शंकर नाम का चिड़वा भी था.

जगहंसाई से बचने के लिए सोमेश्वर ने अपनी इस शादी की खबर किसी को नहीं दी थी. यहां तक कि कोलकाता में नौकरी कर रहे एकलौते बेटे को भी इस बात की हवा नहीं लगने दी थी कि पापा उस के लिए उस की बराबरी की उम्र वाली मम्मी ले आए हैं. यूं खत्म हुआ खेल सोमेश्वर की सुहागरात की खुमारी अभी पूरी तरह उतरी भी नहीं थी कि दूसरे ही दिन शंकर ने घर आ कर यह मनहूस खबर सुनाई की रानी की मां की मौत हो गई है, इसलिए उसे तुरंत गांव जाना पड़ेगा. रोकने की कोई वजह नहीं थी, इसलिए सोमेश्वर ने उसे जाने दिया और मांगने पर रानी को 10 हजार रुपए भी दे दिए जो उन के लिए मामूली रकम थी. पर गैरमामूली बात यह रही कि जल्दबाजी में रानी रात को पहने हुए गहने उतारना भूल गई. उन्होंने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

2 दिन बाद शंकर फिर उन के घर आया और उन्हें बताया कि रानी अब मां की तेरहवीं के बाद ही आ पाएगी और उस के लिए 40 हजार रुपए और चाहिए. सोमेश्वर ने अभी पैसे दे कर उसे चलता ही किया था कि उन के पास राजस्थान के कोटा से एक फोन आया. यह फोन राजकुमार शर्मा नाम के शख्स का था, जिस की बातें सुन उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. 63 वर्षीय राजकुमार ने उन्हें बताया कि कुछ दिन पहले ही उन की शादी रानी से हुई थी, जोकि उस के रिश्तेदार शंकर ने करवाई थी. लेकिन दूसरे ही दिन रानी की मां की मौत हो गई थी, इसलिए वे दोनों गांव चले गए थे. इस के बाद से उन दोनों का कहीं अतापता नहीं है.

रानी और शंकर भारी नगदी ले गए हैं और लाखों के जेवरात भी. राजकुमार को सोमेश्वर का नंबर रानी की काल डिटेल्स खंगालने पर मिला था. दोनों ने खुल कर बात की और वाट्सऐप पर रानी के फोटो साझा किए तो इस बात की तसल्ली हो गई कि दोनों को कुछ दिनों के अंतराल में एक ही तरीके से बेवकूफ बना कर ठगा गया था. कल तक अपनी शादी की बात दुनिया से छिपाने वाले सोमेश्वर ने झिझकते हुए अपने बेटे को कोलकाता फोन कर आपबीती सुनाई तो उस पर क्या गुजरी होगी, यह तो वही जाने लेकिन समझदारी दिखाते हुए उस ने भोपाल पुलिस को सारी हकीकत बता दी.

जांच हुई तो चौंका देने वाली बात यह उजागर हुई कि इन दोनों ने सोमेश्वर और राजकुमार को ही नहीं, बल्कि जबलपुर के सोनी नाम के एक और अधेड़ व्यक्ति को भी इसी तर्ज पर चूना लगाया था, जो सरकारी मुलाजिम थे. भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने फुरती दिखाते हुए दोनों को दबोच लिया तो रानी का असली नाम सुनीता शुक्ला निवासी सतना और शंकर का असली नाम रामफल शुक्ला निकला. हिरासत में इन्होंने तीनों बूढ़ों को ठगना कबूल किया. पुलिस ने दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया. बन गए बंटी और बबली दरअसल, सुनीता रामफल की दूसरी पत्नी थी. सतना का रहने वाला रामफल सेना में नौकरी करता था, लेकिन तबीयत खराब रहने के चलते उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी. पहली पत्नी के रहते ही उस ने सुनीता से शादी कर ली थी.

दोनों बीवियों में पटरी नहीं बैठी और वे आए दिन बिल्लियों की तरह लड़ने लगीं. इस पर रामफल ने सुनीता को छोड़ दिया. कुछ दिन अलग रहने के बाद सुनीता को समझ आ गया कि बिना मर्द के सहारे और पैसों के इज्जत तो क्या बेइज्जती से भी गुजर करना आसान नहीं है. यही सोच कर वह रामफल के पास वापस आ गई और अखबारों के वैवाहिक विज्ञापनों के बूढ़ों के बारे में उसे अपनी स्कीम बताई तो रामफल को भी लगा कि धंधा चोखा है. एक के बाद एक इन्होंने 3 बूढ़ों को चूना लगाया. हालांकि पुलिस को शक है कि इन्होंने कई और लोगों को भी ठगा होगा. अभी तो इस हसीन रानी के 3 राजा ही सामने आए हैं, मुमकिन है कि कई दूसरों ने शरमोहया के चलते रिपोर्ट ही दर्ज न कराई हो.

लुटेरी दुलहनों द्वारा यूं ठगा जाना कोई नई बात नहीं है, बल्कि अब तो यह सब आम बात होती जा रही है. सोमेश्वर, राजकुमार और सोनी जैसे बूढ़े जिस्मानी जरूरत और सहारे के लिए शादी करें, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है इन की हड़बड़ाहट और बेसब्री, जो इन के ठगे जाने की बड़ी वजह बनते हैं.

—कथा में सोमेश्वर परिवर्तित नाम है

 

Love Crime : शादीशुदा प्रेमिका के लिए जल्लाद बना विधायक

Love Crime :  पद और पैसों के घमंड में कई लोग इतने अंधे हो जाते हैं कि गलत कदम तक उठा लेते हैं. सत्ता के गुरूर में चूर हो कर पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ने अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी की नृशंस हत्या तो कर दी, लेकिन यह कदम उस के लिए कितना घातक होगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ओडिशा के झारसुगड़ा स्थित होटल मेघदूत में अपनी प्रेमिका कल्पना दास के साथ ठहरा था. कल्पना के साथ उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती दास भी थी. कल्पना और अनूप कुमार के बीच एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी. कमरे में बैठे अनूप कुमार साय ने पास बैठी कल्पना दास की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कल्पना, हम छत्तीसगढ़ के शहर रायगढ़ चलते हैं. वहीं पर हमीरपुर में एक साईं मंदिर है. उसी मंदिर में हम शादी कर लेंगे, वहां मेरे कुछ रिश्तेदार भी हैं. कुछ दिनों वहीं रह लेंगे. यह बताओ कि अब तो तुम खुश हो न?’’

कल्पना दास ने उचटतीउचटती निगाह अनूप कुमार साय पर डाली और बोली, ‘‘देखो, अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. कितने साल बीत गए, तुम तो बस हम मांबेटी का खून पीते रहे हो. पता नहीं वह दिन कब आएगा, जब मुझे शांति मिलेगी.’’

कल्पना के रूखे स्वर से अनूप कुमार साय के तनबदन में आग लग गई. वह अपने ड्राइवर बर्मन टोप्पो की ओर देख कर बोला, ‘‘बर्मन, चलना है रायगढ़.’’

मालिक का आदेश सुन कर बर्मन टोप्पो मुस्तैद खड़ा हो गया. वह अनूप कुमार साय का सालों से ड्राइवर था. यानी एक तरह से उस का विश्वासपात्र मुलाजिम था. उस ने विनम्रता से कहा, ‘‘साहब, मैं नीचे इंतजार करता हूं.’’

इतना कह कर वह वहां से चला गया. माहौल थोड़ा सामान्य हुआ तो अनूप साय ने बड़े प्यार से कल्पना को समझाया, ‘‘देखो कल्पना, मैं वादा करता हूं कि बस यह आखिरी मौका है. इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी नाराज होने का मौका नहीं दूंगा.’’

अनूप साय की बात पर कल्पना शांत हो गई और बेटी के साथ जाने के लिए उस की बोलेरो में बैठ गई. झारसुगुडा से रायगढ़ लगभग 85 किलोमीटर दूर है. बोलेरो रायगढ़ की तरफ रवाना हो गई. यह 6 मई, 2016 की बात है. 3 बार विधायक रहा अनूप कुमार साय वर्तमान में ओडिशा के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन था. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खासमखास लोगों में से एक. मुख्यमंत्री से अनूप कुमार के नजदीकी संबंधों की ही एक नजीर यह थी कि मई 2019 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी उसे मुख्यमंत्री का वरदहस्त प्राप्त था. राजनीतिक रसूख के कारण ही उसे कारपोरेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया था.

यह कथा है पूर्व विधायक अनूप कुमार साय की जो सन 1999, 2004 एवं 2009 में ओडिशा के ब्रजराजनगर विधानसभा से विधायक चुना गया. अनूप कुमार साय ने कल्पना दास के साथ प्रेम की पींगे भरीं. फिर देखते ही देखते वह अपराध के दलदल में चला गया. राजनीति की उजलीकाली रोशनी में कोई राजनेता जब स्वयं को स्वयंभू समझने लगता है तो उस का पतन उस का समूल अस्तित्व नष्ट कर जेल के सींखचों में पहुंचा देता है. यही सब अनूप कुमार साय के साथ भी हुआ. 6 मई, 2016 की सुबह के समय अनूप कुमार साय अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी को अपनी बोलेरो कार में बिठा कर रायगढ़ की तरफ रवाना हो गया. करीब 2 घंटे बाद वह छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया. इस बीच दोनों आपस में बातें करते रहे.

बातोंबातों में एक बार फिर से उन के स्वर तल्ख होते जा रहे थे. कल्पना ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे साथ मेरा जीवन तो बरबाद हो ही गया, अब मैं प्रवती की जिंदगी कतई बरबाद नहीं होने दूंगी.’’

अनूप कुमार साय का स्वर तल्खीभरा हो चला था, ‘‘अच्छा, मेरी वजह से तुम्हारा जीवन बरबाद हो गया? तुम ने कभी यह सोचा कि पहले क्या थीं, क्या बन गई हो और कहां से कहां पहुंच गई हो. अहसानफरामोशी इसी को कहते हैं. तुम अपने दिल से पूछो कि क्या नहीं किया है मैं ने तुम्हारे और प्रवती के लिए. तुम लोगों की खातिर मैं ने अपना राजनीतिक जीवन तक दांव पर लगा दिया. बदनाम हो गया, मेरी विधायकी चली गई. यहां तक कि अपनी विवाहिता पत्नी, बच्चों तक से संबंध तोड़ बैठा हूं.’’

‘‘झूठ…बिलकुल झूठ.’’ कल्पना दास का स्वर स्पष्ट रूप से कठोर था, ‘‘जब तक तुम मुझे मेरा अधिकार नहीं दोगे, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘देखो, मैं भी तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं कि जिद छोड़ दो, सब कुछ तो तुम्हारा ही है. सिर्फ लिख कर दे दूंगा तो क्या होगा? अरे पगली, मन जीतना सीखो. अगर मेरा मन तुम्हारे साथ है तो मैं जो भी लिखूंगा, नहीं लिखूंगा सब तुम्हारा है.’’ अनूप ने समझाया.

‘‘मुझे बातों में मत उलझाओ. 12 साल हो गए देखते हुए. मैं अब सब्र नहीं कर सकती. अब तो तुम्हें मुझ से शादी करनी ही होगी और तुम्हारी संपत्ति में भी मुझे हिस्सा चाहिए.’’ कल्पना ने स्पष्ट कह दिया.

‘‘तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?’’ अनूप कुमार बिफर पड़ा.

‘‘हां, यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कल्पना दास के स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘तो ठीक है, फिर…’’ कहते हुए अनूप कुमार साय ने ड्राइवर टोप्पो से गाड़ी रोकने का इशारा किया. ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी रोक दी.अनूप कुमार साय ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘आओ, आओ बाहर आओ.’’

उस के स्वर में बेहद रोष था. कल्पना दास जब तक बाहर आती, अनूप कुमार साय जल्दी से गाड़ी के पीछे गया और पीछे रखी लोहे की एक मोटी रौड ले कर सामने खड़ा हो गया. कल्पना बाहर निकली तो उस ने रौड से कल्पना दास पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. लोहे की रौड जब कल्पना के सिर पर पड़ी तो वह चीख कर वहीं गिर पड़ी. मां के चीखने की आवाज सुनते ही बेटी प्रवती घबरा गई. मां को घायल देख घबरा कर वह बाहर आई तो अनूप कुमार ने उस के सिर पर भी उसी रौड से प्रहार कर दिया. उस का भी सिर फट गया और खून की धार फूट निकली. वह भी वहीं धराशाई हो कर गिर पड़ी. मांबेटी घायल पड़ी थीं. उन के सिर से खून बह रहा था. दोनों को घायलावस्था में देख अनूप कुमार उन्हें गालियां देते हुए चिल्ला रहा था, ‘‘मुझ से शादी करोगी, मेरी संपत्ति पर नजर लगा रखी है, मार डालूंगा.’’

कहते हुए उस ने रौड से उन पर कई वार किए, जिस से कुछ ही देर में उन दोनों की मौत हो गई. उन्हें मौत के घाट उतार कर उस ने लहूलुहान लोहे की रौड बोलेरो में रख ली. इस के बाद उस ने ड्राइवर बर्मन टोप्पो से कहा, ‘‘इन दोनों का हश्र ऐसा करो कि कोई पहचान भी न पाए. गाड़ी से दोनों का सिर कुचल डालो.’’

बर्मन टोप्पो ने मालिक के कहने पर बोलेरो स्टार्ट कर के कल्पना और उस की बेटी पर कई बार चढ़ाई. वह पहिया चढ़ा कर उन के चेहरे बिगाड़ने लगा ताकि कोई पहचान न पाए. अनूप ने यह वारदात छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में मां शाकुंभरी फैक्ट्री के सुनसान रास्ते पर की थी. घटनास्थल थाना चक्रधर नगर के अंतर्गत आता था. अनूप कुमार साय अपनी बरसों से प्रेयसी रही कल्पना दास और उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती की नृशंस हत्या कर उसी बोलेरो में बैठ कर बृजराजनगर, ओडिशा की ओर चला गया. यह बात 6 मई, 2016 की है. आइए जानें कि कल्पना दास कौन थी और वह पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के चक्कर में कैसे फंसी?

कल्पना दास ब्रजराज नगर के रहने वाले रुद्राक्ष दास की बेटी थी. रुद्राक्ष दास की बेटी के अलावा 2 बेटे भी थे. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाई. पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को कालेज में ही अपने साथ पढ़ने वाले सुनील श्रीवास्तव से प्यार हो गया था. सुनील भी ब्रजराज नगर में रहता था. उन का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया था कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया था. कल्पना ने जब अपने प्यार के बारे में घर वालों को बताया तो उन्होंने उसे सुनील के साथ शादी करने की अनुमति नहीं दी. लेकिन कल्पना ने अपने घर वालों की बात नहीं मानी. लिहाजा एक दिन सुनील श्रीवास्तव और कल्पना दास ने घर वालों को बिना बताए एक मंदिर में शादी कर ली. यह सन 2000 की बात है.

सुनील से शादी करने के बाद कल्पना ने अपने पिता का घर छोड़ दिया. इस के बाद सुनील ने भी इलैक्ट्रौनिक की एक दुकान खोल ली, जिस से गुजारे लायक आमदनी होने लगी. शादी के बाद भी कल्पना ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी दौरान सन 2002 में उस ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम प्रवती रखा. इसी बीच कल्पना ने अपनी वकालत की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी. कल्पना सुनील के साथ खुश थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही जब उस के सिर से प्यार का नशा उतरा तो उसे पति में कई कमियां नजर आने लगीं. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि उसे खर्चे के लिए तंगी होती थी, क्योंकि सुनील की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं थी. कम आय में कल्पना की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाती थीं.

कल्पना जब कभी किसी पर्यटक स्थल पर घूमने को कहती तो सुनील पैसों का रोना रोने लगता था. न ही वह कल्पना को रेस्टोरेंट वगैरह में खाना खिलाने ले जाता था. एक बार कल्पना ने उस से गोवा घूमने की जिद की तो सुनील ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अरे भई, ये सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. हम साधारण लोग क्या गोवा घूमने जाएंगे.’’

सुनील कल्पना को समझाता मगर कल्पना की काल्पनिक उड़ान बहुत ऊंची थी. वह जीवन में उल्लास और ऐश्वर्य चाहती थी. वह सुनील के साथ घुट कर जीने से आजिज आ चुकी थी. एक दिन कल्पना ने पति से कहा, ‘‘मैं ने वकालत की डिग्री हासिल की है. क्यों न वकालत कर के पैसे और नाम दोनों ही अर्जित करूं. इस से हमारे सपने भी पूरे होंगे और मेरा मन भी लगा रहेगा.’’

सुनील को कल्पना की यह सलाह पसंद आई. कल्पना ने बृजराज नगर में वकालत करनी शुरू कर दी. इसी दौरान कल्पना ने अपने मांबाप से बातचीत करना शुरू कर दिया था. वह मायके भी आनेजाने लगी थी. कल्पना ने वकालत जरूर शुरू कर दी थी लेकिन पेशे के पेंच समझे बिना कैसे पैसा कमाती. फिर भी किसी तरह धीरेधीरे गाड़ी चल निकली. कल्पना के अपने मायके वालों से संबंध सामान्य हो चुके थे. पिता रुद्राक्ष दास ने भी सुनील और कल्पना को माफ कर दिया था. एक दिन कल्पना ने पिता रुद्राक्ष दास से जब अपने वकालत के पेशे में आ रही दिक्कतों के बारे में चर्चा की तो वे बोले, ‘‘वकालत का पेशा गहराई मांगता है. यह संबंधों का खेल है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ कल्पना ने भोलेपन से पूछा.

‘‘बेटी, जिन के संबंध जितने गहरे यानी दूर तक फैले होते हैं, वकालत में उसे ही ज्यादा काम मिलता है. मैं तुम्हें यहां के कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता अनूप कुमार साय से मिला दूंगा. वह मेरे अच्छे परिचित हैं. वह तुम्हारी मदद जरूर करेंगे. रोजाना उन से सैकड़ों लोग मिलने आते हैं. देखना, उन के सहयोग से तुम्हारी वकालत को कैसे रवानगी मिलती है.’’

‘‘पापा, वह तो क्षेत्र के विधायक हैं न?’’ कल्पना ने आश्चर्य से पिता की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हांहां, हमारे एमएलए हैं अनूप कुमार साय.’’ रुद्राक्ष दास ने बेटी की बात की पुष्टि करते हुए कहा.

कल्पना बहुत खुश हुई. दूसरे दिन पिता के साथ वह स्थानीय कांग्रेस नेता व विधायक अनूप कुमार साय के आवास पर पहुंची, जहां उस के पिता ने उसे विधायक अनूप कुमार से मिलाया. एमएलए ने उस की भरपूर मदद करने का आश्वासन दिया. कल्पना उस समय 24 साल की थी, प्रवती 4 वर्ष की बालिका थी. कल्पना को देख कर विधायक पहली ही नजर में उस का मुरीद हो गया. अब कल्पना रोजाना ही नेताजी के घर-औफिस आ जाती और उस का काम संभालती. दोनों जल्द ही एक रंग में रंग गए तो सुनील श्रीवास्तव का बसाबसाया घर टूट गया. एमएलए से बन गए संबंध इस की वजह यह थी कि 2006 आतेआते कल्पना अनूप कुमार साय की हमसाया बन चुकी थी. फिर एक दिन उस ने पति सुनील श्रीवास्तव से संबंध विच्छेद कर लिया.

सन 2009 में अनूप कुमार तीसरी बार विधायक बना तो उस ने कल्पना के लिए 24, सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में एक आवासीय भूखंड खरीदा और वहां 2 मंजिला मकान बनवा कर दे दिया. मकान के ऊपर वाले भाग में कल्पना दास अपनी एकलौती बेटी के साथ ठसक से रहने लगी. विधायक ने मकान के नीचे का हिस्सा एक ठेकेदार शरद साहू को दे दिया जो मकान की देखरेख करता था. विधायक अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक तरह से दूसरी पत्नी के रूप में रखा हुआ था. उस की सारी जरूरतें वही पूरी करता था. प्रवती दास को विधायक ने अपना नाम दे कर उस का दाखिला नामीगिरामी सेंट जेवियर्स इंग्लिश स्कूल में करा दिया था.

कल्पना हंसीखुशी से रहने लगी. विधायक के रूप में अनूप कुमार साय की क्षेत्र में बड़ी प्रतिष्ठा थी. वह कांग्रेस पार्टी का एक तरह से सर्वेसर्वा था. राज्य में बीजू जनता दल की सरकार होने के बावजूद वह बारबार कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हो रहा था और अंचल में उस का खासा रुतबा और दबदबा बढ़ता रहा. विधायक अनूप व कल्पना प्रेम से रहते रहे. दोनों बच्ची प्रवती को साथ ले कर कभी गोवा, कभी हैदराबाद और कभी विशाखापट्टनम सहित देश भर के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर घूमने जाते. मगर धीरेधीरे कल्पना को यह लगने लगा था कि वह दूसरी औरत है. उस की अपनी कोई हैसियत नहीं है इसलिए वह अनूप से शादी की जिद करने लगी. जिस की परिणति 6 मई, 2016 को उस की और बेटी प्रवती की हत्या के साथ पूरी हुई.

7 मई, 2016 को शाकुंभरी फैक्ट्री के निकट लोगों ने एक महिला और एक लड़की का शव देखा. यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो वहां लोगों का हुजूम जुट गया. किसी ने इस की सूचना चक्रधर नगर थाने में दी तो तत्कालीन टीआई अमित पाटले तुरंत घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल पर वह 10 मिनट में ही पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने घटनास्थल का सूक्ष्य निरीक्षण किया. वहां पर एक महिला और एक लड़की की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. दोनों लाशें किसी गाड़ी के टायरों से कुचली हुई दिख रही थीं. टायरों के निशान भी साफ दिख रहे थे. मीडिया में उछला मामला इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि किसी ने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है. घटना के बारे में उच्चाधिकारियों को जानकारी देने के बाद टीआई ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मीडिया में जब यह घटना प्रमुखता से आई तो पुलिस अधिकारी भी हरकत में आ गए. अगले दिन तत्कालीन आईजी पवन देव, एसपी संजीव शुक्ला सहित कई अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने अंदेशा जताया कि ये कालगर्ल्स से जुड़ा मामला हो सकता है. इस केस की जांच के लिए उन्होंने एक जांच टीम बनाई, जिस में टीआई अमित पाटले, राकेश मिश्रा (प्रभारी क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने जिले के सभी थानों को घटना की जानकारी देते हुए गुमशुदा हुए लोगों के संदर्भ में जानकारी मांगी.

जब पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो रायगढ़ पुलिस आईजी के निर्देश पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तक जांच के लिए पहुंच गई. इन राज्यों के पुलिस कप्तानों के पास दोनों लाशों से संबंधित पैंफ्लेट भी छपवा कर भेज दिए ताकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो सके. ओडिशा के बरगढ़ थाने में कांस्टेबल के पद पर तैनात सरोज दास ने जब पैंफ्लेट पढ़ा तो वह परेशानी में पड़ गया. क्योंकि उन लाशों का हुलिया उस की बहन कल्पना दास और भांजी प्रवती दास से मिलताजुलता था. दोनों ही कुछ दिनों से लापता भी थीं.

सरोज दास ने उसी समय पैंफ्लेट में क्राइम ब्रांच प्रभारी राकेश मिश्रा के दिए गए फोन नंबर पर संपर्क किया. उस ने उन्हें बताया कि उस की बहन कल्पना दास एक वकील थी. उस का विवाह सुनील श्रीवास्तव नाम के शख्स से हुआ था. फिलहाल वह सुनील से अलग रह रही थी. उस ने उन्हें सुनील श्रीवास्तव का फोन नंबर भी दे दिया. यह जानकारी मिलने के बाद जांच टीम को केस के खुलने के आसार नजर आने लगे. पुलिस ने सुनील श्रीवास्तव को चक्रधर थाने बुलवा लिया ताकि उस से विस्तार से बात की जा सके. पुलिस ने सुनील को दोनों लाशों के फोटो दिखाए तो फोटो देखते ही वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने महिला की लाश की शिनाख्त कल्पना दास के रूप में की. लेकिन वह लड़की को नहीं पहचान सका.

उस ने बताया कि पिछले 10 साल से वह पत्नी व बच्ची से अलग रहता है. कल्पना से उस का सन 2011 में तलाक हो चुका है, इसलिए वह उसे एक तरह से भूल चुका था. सुनील ने बताया कि कल्पना पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के साथ रहती थी. तलाक होने से पहले वह पत्नी और बेटी से मिलने जाता था तो विधायक उसे बेटी व पत्नी से मिलने नहीं देता था. एमएलए से की पूछताछ पुलिस के सामने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय का नाम आया, तो इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर जांच टीम ने इस मामले की गहराई से जांच की. इस जांच में यह तथ्य सामने आ गया कि कल्पना और अनूप कुमार साय की 6 मई, 2016 को मोबाइल पर बातचीत हुई थी.

पुलिस ने कल्पना व प्रवती दोनों का डीएनए टेस्ट करा लिया था, अब पूर्व विधायक अनूप कुमार साय से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए उस का बयान लेने के लिए पुलिस ने उसे नोटिस जारी किया. लेकिन व्यस्तता का बहाना बना कर वह पुलिस से बचने की कोशिश करता रहा. एसपी के दबाव पर एक दिन वह चक्रधर नगर थाने पहुंचा तो उस ने बड़ी ही विनम्रता से घटना के बारे में अनभिज्ञता जाहिर कर दी. उस ने बयान में कहा कि वह कल्पना दास और प्रवती दास से वाकिफ तो है मगर घटना के संदर्भ में कुछ नहीं जानता. विधायक अनूप कुमार साय के साफसाफ कन्नी काट जाने के बाद और राजनीतिक दखलंदाजी बढ़ने पर पुलिस जांच की गति धीमी पड़ने लगी.

समय के साथ परिस्थितियां बदलीं. अनूप कुमार साय ने कांग्रेस पार्टी से अचानक इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के समक्ष बीजू जनता दल का दामन थाम लिया. सत्तासीन पार्टी में होने के कारण अनूप कुमार साय राजनीतिक रूप से दबंग हो गया था. चूंकि ओडिशा राज्य में बीजू जनता दल और छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार थी और दोनों में अच्छा समन्वय था, सो इस का असर इस दोहरे हत्याकांड की जांच पर पड़ा. फलस्वरूप जांच ठंडे बस्ते में चली गई. अनूप कुमार साय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का खासमखास बन चुका था. नवीन पटनायक 2014 के विधानसभा चुनाव में आस्का विधानसभा के अलावा बरगढ़ की बिजेपुर से चुनाव लड़े थे. जबकि अनूप कुमार को किसी भी विधानसभा से टिकट नहीं मिला था. तब नवीन पटनायक ने अनूप कुमार साय को चुनाव संचालक बना दिया था.

यहां से जब मुख्यमंत्री भारी मतों से चुनाव जीत गए तो उपहारस्वरूप उन्होंने अनूप कुमार साय को ओडिशा प्रदेश के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन बना दिया. इस से अनूप का राजनीतिक रसूख और ज्यादा बढ़ गया. इधर छत्तीसगढ़ में भाजपा 2018 के चुनावों में बुरी तरह पराजित हो गई और कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आ गई. मामला जब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंचा तो उन्होंने रायगढ़ पुलिस को निष्पक्ष तरीके से केस की जांच करने के आदेश दिए. उस समय संतोष सिंह ने एसपी (रायगढ़) का पदभार संभाला था. एसपी ने अपने निर्देशन में इस दोहरे हत्याकांड की जांच करानी प्रारंभ कर दी.

दोबारा शुरू हुई जांच चूंकि कल्पना दास और उस की बेटी प्रवती की बड़ी ही बेदर्दी से सिर कुचल कर हत्या की गई थी, इसलिए यह हत्याकांड पुलिस के लिए एक चुनौती था. पुलिस ने अनूप कुमार साय के एकएक कदम की निगरानी करनी शुरू कर दी. 6 महीने निगरानी करने के बाद पुलिस को तमाम सबूत मिल गए. पुलिस को पता चल गया था कि अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक मकान 24 सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में दे रखा था. प्रवती को वह एक महंगे और प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ा रहा था और उन्हें ले कर गोवा, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, दिल्ली आदि जगहों घूमने के लिए गया था. पुलिस ने कई पुख्ता सबूत इकट्ठा कर लिए, जिन्हें वह झुठला नहीं सकता था.

इस के बाद 13 फरवरी, 2020 को आधी रात रायगढ़ पुलिस ने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के ब्रजराज नगर स्थित आवास पर दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया. अनूप कुमार साय अपने बचाव के लिए खूब राजनीतिक दांवपेंच खेलता रहा. मगर पुलिस ने उस की एक न सुनी और थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की तो अंतत: वह टूट गया और उस ने स्वीकार कर लिया कि 6 मई, 2016 को उस ने लिवइन रिलेशनशिप में रह रही कल्पना दास व उस की बेटी प्रवती की हत्या लोहे की रौड से की थी. इस के बाद उस के आदेश पर उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो ने दोनों की लाशें बोलेरो गाड़ी से कुचल दी थीं.

अनूप कुमार साय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने ब्रजराज नगर से उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी अंतत: कल्पना व प्रवती मर्डर केस में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने घटना का सीन रीक्रिएट किया ताकि पता चल सके कि हत्याकांड को किस तरह अंजाम दिया गया था. अनूप कुमार साय के गिरफ्तार होने की खबर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक पहुंची तो उन्होंने जरा भी देर किए बिना अनूप कुमार साय को वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के चेयरमैन पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बरखास्त कर दिया.

रायगढ़ पुलिस ने हत्या के आरोपी 59 वर्षीय अनूप कुमार साय और उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर रायगढ़ के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित