Chhattisgarh के अरबपति को किडनैप करके मांगी 50 करोड़ की फिरौती

Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh) के अरबपति प्रवीण सोमानी का अपहरण पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. अपहर्त्ताओं ने जिस तरह योजनाबद्ध ढंग से प्रवीण से 50 करोड़ रुपए की फिरौती वसूलने के लिए उन का अपहरण किया था, पुलिस ने भी उसी तरह योजनाबद्ध तरीके से अपहर्त्ताओं का पीछा किया. आखिर कैसे…

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के उपनगर सिलतरा में लोहे, स्टील, सीमेंट के अनेक कारखाने हैं. यहीं पर सोमानी प्रोसेसर लिमिटेड नाम की स्टील की बड़ी फैक्ट्री है, जिस के मालिक हैं प्रवीण सोमानी. 8 जनवरी, 2020 की शाम प्रवीण सोमानी अपनी लाल रंग की रेंज रोवर कार नंबर सीजी10ए एल9637 द्वारा फैक्ट्री से घर आ रहे थे. कार वह स्वयं चला रहे थे. रास्ते में परसुलीडीह के बीच अचानक एक गाड़ी ने ओवरटेक कर के उन की कार के सामने इस तरह से कार लगा दी कि वह रुकने को विवश हो गए. प्रवीण सोमानी अभी संभले ही थे कि 2-3 लोगों ने उन की गाड़ी को घेर लिया. प्रवीण ने शीशा नीचे किया और उन की तरफ उत्सुक भाव से देखा.

तभी एक शख्स बोला, ‘‘मिस्टर… हमें तुम्हारी तलाश थी. आई एम इनकम टैक्स सीनियर औफिसर.’’

प्रवीण भौचक उन की ओर देखते रह गए. जब तक वह संभलते, तब तक 3-4 लोग और आ गए. उन में से एक शख्स ने कहा, ‘‘मिस्टर राजन!’’

यह सुनते ही प्रवीण बोले, ‘‘मगर सर, मैं राजन नहीं हूं. मैं प्रवीण सोमानी हूं. सोमानी इंडस्ट्रीज का मालिक.’’

‘‘ओह…’’ एक शख्स ने आश्चर्य से उन की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अपनी आईडेंटिटी कार्ड दिखाओ.’’

प्रवीण सोमानी ने तत्काल जेब से अपना आइडेंटिटी कार्ड निकाल कर उस व्यक्ति को दिखाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं प्रवीण सोमानी ही हूं, यह रहा मेरा कार्ड.’’

प्रवीण सोमानी को घेर कर खड़े लोग एकदूसरे को ऐसे देख रहे थे, जैसे कुछ गलत हो गया हो.

तभी सहसा एक शख्स ने उन की कार का पिछला गेट खोल कर कार में बैठते हुए कहा, ‘‘हमें तुम्हारी भी तलाश है… तुम्हारा नाम भी हमारी लिस्ट में है.’’

और देखते ही देखते 3-4 लोग उन की गाड़ी में सवार हो गए. प्रवीण सोमानी कुछ संभलते समझते, इस से पहले वे सब उन पर हावी हो चुके थे. एक ने कहा, ‘‘तुम, गाड़ी धीरेधीरे आगे बढ़ाओ और डरो मत, हम कुछ पूछताछ कर के तुम्हें छोड़ देंगे.’’

जनवरी की सर्द रात में भी प्रवीण सोमानी के चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. उन्होंने विवश हो कर अपनी लाल रंग की रेंज रोवर कार आगे बढ़ाई. उन के पीछेपीछे 2 गाडि़यां और चल रही थीं. 46 वर्षीय प्रवीण सोमानी के साथ गाड़ी में बैठे लोगों ने उन से पूछताछ शुरू कर दी. थोड़ी देर में जब वे धरसींवा से सिमगा, फिर बेमेतरा जिले की ओर बढ़े, तभी उन में से एक ने उन्हें रिवौल्वर के बल पर काबू कर बताया. ‘‘तुम हमारे कब्जे में हो, तुम्हारा अपहरण कर लिया गया है.’’

इस से प्रवीण सोमानी समझ गए कि ये लोग इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नहीं हैं, बल्कि वह इन के किसी गहरे षडयंत्र में फंस चुके हैं. उन लोगों ने सोमानी को पूरी तरह कब्जे में ले लिया था. उन का मोबाइल फोन भी छीन लिया गया था. प्रवीण पूरी शिद्दत के साथ दिमाग पर जोर डाल रहे थे कि उन के चंगुल से कैसे बच सकते हैं. मगर जब तक वे कोई फैसला ले पाते, उन में से एक युवक ने उन्हें बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उन पर बेहोशी सी छाने लगी. तभी एक युवक ने ड्राइविंग सीट पर कब्जा कर लिया. प्रवीण सोमानी को पीछे की सीट पर डाल दिया गया. अपहर्त्ता प्रवीण को ले कर कवर्धा (छत्तीसगढ़) से कटनी (मध्य प्रदेश) और आगे इलाहाबाद होते हुए दूसरे दिन फैजाबाद पहुंचे.

आधी रात को मचा हड़कंप इधर जब रात 9 बजे तक प्रवीण सोमानी घर नहीं पहुंचे तो परिजन चिंतित हो उठे. पत्नी रश्मि ने फैक्ट्री फोन लगाया तो पता चला, साहब शाम तकरीबन 6 बजे ही घर के लिए फैक्ट्री से रवाना हो गए थे. प्रवीण सोमानी आमतौर पर 7 बजे तक घर आ जाया करते थे. रश्मि ने जहां भी मोबाइल खड़काया उन्हें निराशा ही मिली. अंतत: उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए प्रवीण सोमानी के चचेरे भाई ललित सोमानी को यह जानकारी दे दी. इस के बाद उन की खोजबीन और तेज हो गई. जब उन के सभी मित्रों से पता कर लिया गया, तब ललित सोमानी ने धरसींवा थाने पहुंच कर टीआई बृजेश तिवारी को मामले की जानकारी दी.

प्रवीण सोमानी कोई मामूली इंसान नहीं थे बल्कि वह एक बड़े उद्योगपति थे, इसलिए उन के गायब होने की बात सुन कर टीआई भी चौंके. उन्होंने उसी समय उच्चाधिकारियों से बात करने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. यह मामला काफी गंभीर लग रहा था. यही कारण था कि जैसेजैसे रात गहराती गई, वैसेवैसे प्रवीण सोमानी के गायब होने की खबर जंगल की आग की तरह फैलती चली गई. घटना बहुत बड़ी थी, जिस का असर देर रात को ही देखने को मिला. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर छत्तीसगढ़ के डीजीपी डी.एम. अवस्थी ने आईजी (रायपुर रेंज) आनंद छाबड़ा और डीआईजी व एसएसपी आरिफ शेख को ले कर अपने नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया, ताकि अपहृत कारोबारी को छुड़ाने और अपहर्ताओं को गिरफ्तार करने का काम जल्दी और जिम्मेदारी से किया जा सके.

एसएसपी आरिफ शेख ने त्वरित काररवाई करते हुए एडिशनल एसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा, एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल, उरला के एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी, एसपी (सिटी) आजाद चौक नसर सिद्दीकी को सम्मिलित कर के तेजतर्रार 60 पुलिसकर्मियों की विशेष टीम बनाई. छत्तीसगढ़ के नामचीन उद्योगपति प्रवीण सोमानी की खोज में लगी विशेष टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद इस विशेष टीम को 8 टीमों में विभाजित कर के हर एक टीम को अलगअलग काम सौंपे गए. पुलिस टीमें सीसीटीवी फुटेज संग्रहण, तकनीकी विश्लेषण, कारोबारी के संबंध में स्थानीय जानकारी एकत्रित करने के कामों में लग गईं.

सीसीटीवी फुटेज की जांच में लगी टीम को घटनास्थल पर 2 संदिग्ध वाहनों की फुटेज मिली. वाहनों का रूट निर्धारण कर के जांच बिलासपुर की ओर से शुरू की गई. टीम ने उस रोड पर 1500 किलोमीटर से अधिक दूरी तक लगे सीसीटीवी फुटेज एकत्र किए. उन फुटेज की जांच से पता चला कि संदिग्ध वाहन उत्तर प्रदेश के शहर प्रतापगढ़ तक गए थे. लिहाजा एक पुलिस टीम उत्तर प्रदेश रवाना की गई. तकनीकी विश्लेषण में लगी टीम को कुछ संदिग्ध फोन नंबर मिले, जिस के बाद एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल और उरला के एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी के नेतृत्व में 2 टीमें बिहार भेजी गईं. साथ ही एक टीम एसपी (सिटी) आजाद चौक नसर सिद्दीकी के नेतृत्व में गुजरात और एक टीम ओडिशा के लिए रवाना कर दी गई.

सभी टीमें प्राप्त सूचना व जानकारी के आधार पर अलगअलग राज्यों में काम कर रही थीं. जिस की मौनिटरिंग एसएसपी (रायपुर) आरिफ शेख खुद कर रहे थे. वह सभी टीमों को आवश्यक दिशानिर्देश दे रहे थे. तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर टीम द्वारा दोंदेकला निवासी अनिल चौधरी, जोकि मूलत: बिहार का निवासी है, को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी गई. चंदन गिरोह का नाम आया सामने अनिल चौधरी से मिली जानकारी और तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर बिहार भेजी गई पुलिस टीम को गौरव कुमार उर्फ पप्पू चौधरी के बारे में कुछ जानकारी मिली. वह हिंगोरा अपहरण कांड का आरोपी भी था और चंदन सोनार गिरोह से संबंधित था. पुलिस टीम ने उस के संबंध में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

टीम को जानकारी मिली कि पप्पू चौधरी वैशाली जिले के बीहड़ क्षेत्र में गंगा नदी के किनारे स्थित गांव मथुरा गोकुला का निवासी है. उस पर बिहार पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा है. पता चला कि उस ने ही गिरोह के सदस्यों के साथ मिल कर प्रवीण सोमानी का अपहरण किया है. यह जानकारी मिलते ही एसएसपी आरिफ शेख खुद पटना पहुंच गए. उन्होंने बिहार पुलिस की एसटीएफ के साथ मिल कर दीयरा बीहड़ क्षेत्र में सर्च औपरेशन शुरू किया. संयुक्त टीमों ने दीयरा के 100 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में सर्च की, लेकिन गिरोह का सरगना पप्पू चौधरी वहां से फरार हो चुका था.

टीम को गिरोह के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली तो बिहार वाली टीम को तुरंत उत्तर प्रदेश भेजा गया. इस के अलावा एक अन्य टीम को ओडिशा के गंजम शहर के लिए रवाना किया गया. उत्तर प्रदेश गई पुलिस टीम से मिली जानकारी के आधार पर ओडिशा गई पुलिस टीम ने गंजम निवासी मुन्ना नायक को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की. उस से मिली जानकारी के आधार पर उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले के अलगअलग गांवों में छापेमारी कर के उस स्थान की पहचान सुनिश्चित की गई, जहां अपहृत सोमानी को रखा गया. देर रात उक्त स्थान पर दबिश दी गई. पता चला कि रेड करने से कुछ समय पहले ही आरोपी प्रवीण सोमानी को ले कर वहां से निकल गए थे.

इस पर टीम ने उन का पीछा करना शुरू कर दिया. अपहर्त्ताओं को जानकारी मिल चुकी थी कि पुलिस उन के पीछे पड़ी है. ऐसे में गिरोह के लोग प्रवीण सोमानी को सुनसान जगह पर छोड़ कर फरार हो गए. पुलिस टीम ने 22 जनवरी, 2020 को अपहृत प्रवीण सोमानी को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. 500 करोड़ रुपए की वसूली पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि छत्तीसगढ़ के उद्योगपति प्रवीण सोमानी का अपहरण करने वाला चंदन सोनार और उस के गिरोह का टौप कारकुन पप्पू चौधरी कोई साधारण अपराधी नहीं हैं. बिहार, झारखंड के साथसाथ पश्चिम बंगाल और अब छत्तीसगढ़ पुलिस की नाक में दम कर देने वाले चंदन और पप्पू दोनों मूलत: हाजीपुर के ही रहने वाले हैं. यह गैंग अब तक 40 से ज्यादा अपहरण की वारदातों में शामिल रहा है. इन लोगों ने अब तक केवल अपहरण से ही 500 करोड़ रुपए की बड़ी वसूली की है.

चंदन हाजीपुर सदर थाना क्षेत्र के सेंदुआरी का रहने वाला है, जबकि पप्पू चौधरी बिदुपुर का है. दोनों बदमाशों पर बिहार में पुलिस ने भारी ईनाम रख रखा है. यह गिरोह सूरत के हीरा व्यापारी के बेटे सोहैल हिंगोरा समेत कई लोगों का अपहरण कर उन से करोड़ों रुपए की फिरौती वसूल चुका है. इस गिरोह की खासियत यह है कि अपहरण की वारदात को अंजाम देने के लिए चंदन स्थानीय लड़कों का इस्तेमाल करता रहा था. गिरोह को जहां भी अपहरण करना होता था, वहां के स्थानीय लड़कों को गिरोह में शामिल कर लिया जाता था. ऐसा ही छत्तीसगढ़ में भी किया गया. साल 2017 में चंदन पटना पुलिस के हत्थे चढ़ा, लेकिन वर्ष 2018 में जमानत पर छूटने के बाद वह फरार हो गया था.

चंदन सोनार का लंबा आपराधिक इतिहास रहा है. कभी रेलवे क्षेत्र में अपराध करने वालों के बीच उस की तूती बोलती थी. जीआरपी के द्वारा जब उसे गिरफ्तार कर हाजीपुर जेल भेजा गया तो वहां उस की दोस्ती कई शातिर अपराधियों से हुई. इस के बाद अंडरवर्ल्ड में उस की पहचान तेजी से फैली. उस के खिलाफ वैशाली जिले के कई थानों में अपराध दर्ज हैं. चंदन सोनार ज्यादातर किडनैपिंग प्लान को पप्पू चौधरी के ही माध्यम से क्रियान्वित करता था. झारखंड के भाजपा नेता मदन सिंह के बेटे और 2 रिश्तेदारों के अपहरण के लिए भी उस ने प्रवीण सोमानी वाला ही तरीका अपनाया था. झारखंड में चंदन सोनार का पहला शिकार गोमिया के व्यवसायी महावीर जैन बने थे.

करीब 12 साल पहले, 2008 में गिरोह ने महावीर जैन का अपहरण किया था. इस के बाद रांची के ज्वैलर्स परेश मुखर्जी और लव भाटिया के अपहरण में भी उस की संलिप्तता सामने आई. खास बात यह है कि गुजरात के हीरा कारोबारी के बेटे सुहैल हिंगोरा को भी चंदन गिरोह ने 25 करोड़ की फिरौती लेने के बाद ही छोड़ा था. इस अपहरण में भी केंद्रीय भूमिका पप्पू ने निभाई थी. दक्षिण गुजरात के उद्यमी हनीफ हिंगोरा के बेटे सुहैल को साल 2013 में केंद्र शासित प्रदेश दमन से अगवा किया गया था. एक महीने बाद फिरौती चुका कर सुहैल के परिवार ने उसे मुक्त करवाया था.

छत्तीसगढ़ के कई उद्योगपति थे निशाने पर  वैशाली जिले के कई थानों में चंदन सोनार के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं. बिहार के वैशाली जिले के कुख्यात बदमाश पप्पू चौधरी ने पूरी तैयारी कर के रायपुर के उद्योगपति प्रवीण सोमानी ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के 5 बड़े कारोबारियों का अपहरण कर करोड़ों की फिरौती वसूलने की योजना सूरत जेल में बनाई थी. पप्पू ने तय कर लिया था कि जेल से बाहर निकलने के बाद अपहरण करना है. करीब 5 महीने पहले पप्पू जब जेल से बाहर आया तो उस ने गूगल पर सर्च कर छत्तीसगढ़ के 5 उद्योगपतियों की प्रोफाइल खंगाली. चूंकि रायपुर में उस का रिश्तेदार अनिल चौधरी पहले से ही था, इसलिए उस ने पहले स्टील कारोबारी प्रवीण सोमानी को ही उठाने का फैसला किया. यह खुलासा पूछताछ में मूलत: बिहार निवासी और मौजूदा रायपुर के दोंदेकला में सपरिवार रह रहे सरगना पप्पू के रिश्तेदार अनिल चौधरी ने किया.

अनिल के अनुसार पप्पू के कहने पर उस ने 3 महीने तक दैनिक मजदूर बन कर सोमानी समेत 5 बड़े कारोबारियों की रेकी की थी. घर से ले कर औफिस तक हर बात की जानकारी जुटाई. इस के बाद 8 जनवरी को पप्पू ने ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के बदमाशों के साथ ईडी अफसर बन कर प्रवीण का अपहरण किया. हालांकि पुलिस ने उन कारोबारियों के नामों को गुप्त रखा है, गिरोह जिनजिन का अपहरण करने वाला था. कैसे मिली सफलता 8 जनवरी, बुधवार की रात तकरीबन 2 बजे प्रवीण के गायब होने की सूचना मिलते ही पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. 9 जनवरी की शाम तक पुलिस को प्रवीण सोमानी की फैक्ट्री के बाहर लगे कैमरे से 2 सफेद कारों के धुंधले फुटेज मिले थे. फुटेज में एक कार लंबी और दूसरी क्रेटा टाइप थी जो ठीक प्रवीण की गाड़ी के पीछे नजर आ रही थीं.

उन्हीं कारों की फुटेज परसूलीडीह, राम कुटीर में जहां प्रवीण की कार मिली थी, वहां के कैमरे से मिली. बस इसी क्लू से पुलिस आगे बढ़ी. एक फुटेज में एक कार का नंबर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की सीरीज सीजी-10 था. उसी संदिग्ध कार की तलाश में बिलासपुर और कवर्धा टीम भेजी गई.  जिला बेमेतरा के पास एक कैमरे में वही कार नजर आई. इस से पुलिस को यह पता चल गया कि वह सही दिशा में आगे बढ़ रही है. आगे बढ़ने पर कवर्धा के टोल प्लाजा में फिर वही कार दिखी. टीम फिर आगे बढ़ी. रास्ते भर रोड और टोल प्लाजा के कैमरे खंगालने पर इलाहाबाद में उसी कार का नंबर नजर आया. इलाहाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर सोमानी की कार की फुटेज मिली. उस के बाद 3 रास्ते थे. तीनों रास्तों में कई किलोमीटर तक फुटेज खंगाले गए, लेकिन कार नजर नहीं आई. इस से पुलिस की जांच एक तरह से वहीं ठहर गई.

उस के बाद पुलिस टीम ने करीब 5 लाख मोबाइल नंबरों को खंगाला. बस, ट्रेन और एयरपोर्ट के एकएक यात्री का टिकट चैक करवाया. 2 महीने पहले तक का रिकौर्ड खंगाला गया. दोनों कारों पर जो नंबर थे, जांच में गलत पाए गए. एक गाड़ी का नंबर बिलासपुर का था, जबकि दूसरा रायपुर का था, लेकिन वह किसी ट्रेवल एजेंसी की कार थीं. इस बीच मोबाइल नंबरों को खंगालने से 2 संदिग्ध नंबर मिले. इस कवायद में प्रवीण सोमानी अपहरण का एक संदिग्ध अनिल चौधरी पुलिस के हाथ आ गया. पुलिस ने उस के परिवार वालों तक को पता नहीं लगने दिया कि पप्पू का रिश्तेदार उस के कब्जे में है. उसी से पूछताछ में गैंग के सदस्यों के नाम पता चल गए.

12 जनवरी, रविवार की रात ओडिशा में गैंग का सब से अहम सदस्य मन्नू पकड़ में आ गया. उसे ले कर पुलिस फैजाबाद पहुंची और 22 जनवरी बुधवार को सुबह 4 बजे पुलिस प्रवीण को अपहर्ताओं से छुड़ाने में सफल हो गई. प्रवीण उस समय अर्धबेहोशी की हालत में थे. उन्हें पता भी नहीं था कि वह पुलिस के कब्जे में हैं. उन्हें काफी देर बाद होश आया. खुद को पुलिस के संरक्षण में देख कर प्रवीण की जान में जान आई. पुलिस जब प्रवीण को ले कर लखनऊ जा रही थी, तब पप्पू के गैंग के लोग प्रवीण के परिवार वालों को धमकी भरे फोन कर पैसे मांग रहे थे.

खौफ में गुजरे थे दिन प्रवीण सोमानी के अनुसार अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें बहुत टार्चर किया गया था. 13 दिनों तक लगभग दिन भर आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी. फिरौती की रकम के लिए उन के सामने ही बारबार उन के परिजनों से पैसों की मांग की जाती रही. उन के साथ बड़ी अमानवीयता का व्यवहार होता था. अचानक एक दिन अपहर्ता उन्हें छोड़ कर चले गए. उन के जाते ही वहां सन्नाटा छा गया. आंखों पर पट्टी बंधी होने से कुछ सूझ नहीं रहा था. काफी देर बाद उन्होंने आंखों की पट्टी हटाई. कमरे में हलकी रोशनी थी, आसपास कोई नहीं था. दिल तेजी से धड़कने लगा. काफी देर तक समझ नहीं आया कि क्या करें?

काफी देर तक वह वहां वैसे ही बैठे रहे, फिर कुछ तेज कदमों की आवाजों से दिल बैठने लगा. एकाएक कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया. यह देख प्रवीण की घबराहट बढ़ गई. फिर किसी ने उन के कंधे पर हाथ रख

का कहा, ‘‘डरो नहीं, हम छत्तीसगढ़ पुलिस से हैं.’’

यह सुनते ही ऐसा महसूस हुआ जैसे वह अपनों के बीच पहुंच गए हैं. उस के बाद उन्हें गाड़ी में बिठा कर सीधे दिल्ली लाया गया. प्रवीण ने बताया कि अपहर्त्ता भोजन देते समय ही आंखों से पट्टी खोलते थे. फिर पूरे दिन आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी. प्रवीण सोमानी ने पुलिस को बताया कि किडनैपर्स ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. बाथरूम भी अकेले नहीं जाने देते थे. उन्हें आवाज से ही आभास होता था कि कमरे में कितने लोग हैं. आवाज बदलने से अहसास होता कि आज नए लोग आए हैं. वे आपस में बात करते समय एक दूसरे को विराट, धोनी, कोहली आदि कह कर पुकारते थे.

अपहरण किसी और का होना था, पर…

पहले लगा कि ये उन के नाम होंगे, फिर अहसास हुआ कि पहचान छिपाने के लिए एकदूसरे को गलत नाम से पुकार रहे हैं. किडनैप करने के बाद वे उन से बदतमीजी से बात करते थे. लेकिन धीरेधीरे उन का बात करने का अंदाज बदलने लगा, भाषा भी बदलती जा रही थी. वे बारबार कहने लगे थे कि आप की छत्तीसगढ़ पुलिस तो पीछे ही पड़ गई. क्या वो तुम को छुड़ा कर ही दम लेगी? अंत में 2 दिन तो वे भीतर से डरे हुए लगने लगे थे. वे कहने लगे थे कि अगर हम ने तुम्हें छोड़ दिया तो पुलिस से कहना कि हमारे परिवार वालों को परेशान न करे. जिस दिन उन्हें छोड़ा गया, उस दिन जातेजाते कुछ पैसे दे कर कहा, ‘‘तुम्हें यहां से बस मिल जाएगी.’’

अपहर्त्ता पप्पू चौधरी गैंग का टारगेट प्रवीण नहीं, बल्कि प्रदेश के एक बड़े उद्योगपति का बेटा था. वे उसी का अपहरण करने के लिए आए थे. उन की एक फैक्ट्री भी उसी रोड पर है. उद्योगपति का बेटा जिस कार से चलता था, उसी ब्रांड और हूबहू उसी रंग की कार प्रवीण के पास थी. इसलिए अपहर्त्ता धोखा खा गए और प्रवीण को उठा कर ले गए. 9 जनवरी, 2020 को उत्तर प्रदेश पहुंचने के बाद अपहर्त्ताओं को पता चला कि उन से गलती हो गई है. इस के बावजूद उन्होंने प्रवीण के परिजनों से 50 करोड़ की फिरौती मांग ली. पुलिस ने प्रवीण के गायब होने के तीसरे दिन परसूलीडीह की झाडि़यों से उन का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. उस में एक सिम था. हालांकि अपहर्त्ताओं ने मोबाइल फेंकने के पहले उस का सिम निकाल लिया था. लेकिन एक सिम उस में इनबिल्ट था. अपहर्त्ताओं का ध्यान उस की ओर नहीं गया था.

उद्योगपति प्रवीण सोमानी के अपहरण के 5 दिन पहले 3 जनवरी को गैंग लीडर पप्पू चौधरी बिहार से पूरी तैयारी के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी आ गया था. रायपुर पहुंच कर उस ने अपने रिश्तेदार और रेत सप्लायर अरुण चौधरी को बुलाया. दोनों उसी गाड़ी से शहर में कई जगह घूमते हुए पंडरी बस स्टैंड के सामने एक फाइनैंस कंपनी के दफ्तर पहुंचे. चेन गिरवी रखने के बहाने वहां की रेकी की, लेकिन वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में उन की फुटेज आ गई थी. यही वह फुटेज थी, जिस से अरुण को पुलिस ने चौथे दिन ही गिरफ्तार कर लिया. अरुण ने पप्पू और उस के गैंग के बाकी सदस्यों की पूरी कुंडली बताई और इस तरह मामले का भंडाफोड़ हो गया.

प्रवीण सोमानी 8 जनवरी को गायब हुए थे. पुलिस को आधी रात करीब 2 बजे इस की सूचना मिली. पुलिस ने उसी समय खोजबीन तो शुरू की लेकिन असल जांच 9 जनवरी, 2020 को दोपहर 12 बजे के बाद शुरू हुई. शाम होतेहोते पुलिस को प्रवीण के पीछे लगी 2 संदिग्ध गाडि़यों के फुटेज मिल गए. पुलिस ने धुंधले फुटेज से उस का नंबर निकाल लिया. पुलिस की एक टीम फुटेज के आधार पर गाड़ी के पीछे चलते हुए उत्तर प्रदेश पहुंच गई. दूसरी टीम ने शहर के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज खंगालने शुरू किए. इस दौरान पंडरी खालसा स्कूल के सीसीटीवी कैमरे में उसी क्रेटा कार का फुटेज मिल गया. पुलिस को गाड़ी के आने का फुटेज तो मिल गया था, लेकिन जाते हुए नजर नहीं आ रही थी.

पुलिस अफसरों की टीम ने पहले ये पता लगाया कि फुटेज कहां की है. जगह की पहचान होने के बाद पुलिस अफसर वहां पहुंचे. इस दौरान गाड़ी जहां से गायब हुई, वहां जूते का एक बड़ा शोरूम है. पुलिस की टीम ने उस शोरूम के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. उसी कैमरे में 2 युवक नजर आए, जो उसी क्रेटा कार से उतरे थे. वहां पता चला कि जूतों के शोरूम के ऊपर एक फाइनैंस कंपनी का औफिस है. पुलिस ने वहां के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज देखे. उस में पप्पू चौधरी और अरुण चौधरी के साफसाफ फुटेज मिल गए. पुलिस की टीम ने फाइनैंस कंपनी को फुटेज दिखा कर पूछताछ की तो पता चला कि अरुण ने 50 हजार रुपए में अपनी और पप्पू की चेन गिरवी रखी है.

पुलिस को वहां पप्पू और अरुण का सीसीटीवी फुटेज मिल गया. उसी रात यानी अपहरण के चौथे दिन पुलिस अरुण चौधरी के घर पहुंच गई. वारदात के चौथे दिन रात में अरुण को उठा लिया गया. पूछताछ में उस ने अपहरणकांड की पूरी साजिश उजागर कर दी. अपहरण का किंगपिन पप्पू चौधरी पहले चंदन सोनार का गुर्गा था. चंदन के साथ मिल कर उस ने गुजरात के सोहैल हिंगोरा का अपहरण किया था. कहते हैं करोड़ों रुपए ले कर गिरोह ने हिंगोरा को हाजीपुर में रिहा किया था. बाद में पप्पू चौधरी गिरफ्तार हो गया और उसे गुजरात के सूरत जेल भेज दिया गया. इस के बाद वह चंदन सोनार की तरह अपहरण की योजना बनाने लगा.

नाम बदल बनवाया आधार कार्ड मूलरूप से वैशाली के बिदुपुर, मजलिसपुर पंचायत के गोपालुपुर घाट निवासी पप्पू चौधरी का एक और नाम गौरव कुमार भी है. उस ने अपने आधार कार्ड से ले कर अन्य सभी पहचान से जुड़े कागजात गौरव नाम से तैयार कराए थे. सोहैल हिंगोरा अपहरण कांड में पप्पू भी चंदन सोनार के साथ था. पप्पू पहले अपने पिता के साथ ताड़ी बेचता था. हिंगोरा अपहरण कांड के बाद पप्पू के हिस्से में भी फिरौती की रकम आई थी. इस के बाद उस ने बिदुपुर में आलीशान मकान बनवाया. पप्पू के जेल जाने के बाद उस के पिता ने ताड़ी बेचनी बंद कर दी और हाजीपुर महनार रोड पर खुद की सीमेंट, बालू और सरिया की दुकान खोल ली.

उद्योगपति प्रवीण सोमानी के अपहरण का सरगना भले ही पप्पू चौधरी रहा हो, लेकिन अपहर्त्ताओं की कई टीमें इस में शामिल थीं. गाडि़यों का बंदोबस्त करना, सोमानी को छिपाने की जगह ढूंढना और फिरौती के लिए फोन करने जैसे काम गिरोह के अलगअलग सदस्य करते थे. ये सभी अपहरण के बाद से ही एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. तभी सोमानी के छुड़ाए जाने के लिए भी फिरौती के लिए काल आते रहे. अपहरण कांड में ओडिशा के शिशिर व कालिया गुंजाम, नालंदा के सुमन कुमार, अनिल चौधरी व बाबू प्रदीप, अंबेडकर नगर के अजमल व आफताब, बेंगलुरु का अंकित और ओडिशा का मुन्ना नायक शामिल था. पुलिस इस में मुन्ना नायक, अनिल चौधरी, शिशिर, तूफान और बाबू को गिरफ्तार कर चुकी है.

पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ थाना धरसींवा में भादंवि की धारा 365, 120बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया. इस अपहरण कांड के महत्त्वपूर्ण तथ्य भी सामने आ चुके हैं कि अपहर्त्ताओं ने एक तरह से पुलिस के डर से प्रवीण सोमानी को बिना फिरौती लिए रिहा कर दिया. दूसरी तरफ यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसे शातिर अपहर्त्ताओं के चंगुल से बिना फिरौती प्रवीण सोमानी को कैसे छोड़ सकते हैं?

कुल मिला कर संशय का विषय बना हुआ है कि आखिर सच क्या है. बहरहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रवीण सोमानी अपहरण कांड की जांच में जुटी और सफल रही पुलिस टीम को पुरस्कृत कर उस की हौसलाअफजाई की है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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Madhya Pradesh Crime : अमितेश गर्लफ्रैंड के लिए अपने 2 बच्चों की मां और पत्नी को मारना चाहता था. इस के लिए उस ने काफी जतन से शिवानी की हत्या कर भी दी, लेकिन हत्या के लिए कोबरा इस्तेमाल करना उसे भारी पड़ गया. जब उस की हकीकत…

1 दिसंबर, 2019 की शाम की बात है. इंदौर के मोहल्ला संचार नगर एक्सटेंशन का रहने वाला अमितेश एकदम से चिल्लाया, ‘‘निखिल, ओ निखिल, शिवानी को सांप ने काट लिया है. जल्दी आओ, वह बेहोश हो गई है. मेरी मदद करो, इसे अस्पताल ले जाना है.’’

शिवानी अमितेश की पत्नी थी. निखिल कुमार खत्री उस का किराए था. जिस समय अमितेश ने उसे आवाज लगाई, वह रात का खाना बना रहा था. उस ने झट से गैस बंद की और सब कुछ जस का तस छोड़ कर अमितेश के बैडरूम में जा पहुंचा. क्योंकि शिवानी उस समय बैडरूम में ही थी. उस ने देखा शिवानी बैड पर पड़ी थी. उसी के पास बैड पर एक काला कोबरा सांप मरा पड़ा था. अमितेश काफी घबराया हुआ था. शिवानी के पास पड़े सांप को देख कर निखिल को समझते देर नहीं लगी कि इसी सांप ने शिवानी को काटा है. उस के आते ही अमितेश ने कहा, ‘‘निखिल, जल्दी करो, इसे अस्पताल ले चलते हैं. जल्दी इलाज मिलने से शायद बच जाए. देर होने पर सांप का जहर पूरे शरीर में फैल सकता है.’’

दोनों शिवानी को उठा कर बाहर ले आए. बाहर अमितेश की कार खड़ी थी. उसे कार में लिटा कर अमितेश अंदर जाने लगा तो निखिल ने सोचा, चाबी लेने जा रहा होगा. पर जब वह लौटा तो उस के हाथ में एक बरनी थी, जिस में वही मरा हुआ सांप था, जिस ने शिवानी को काटा था. उसे देख कर निखिल ने पूछा, ‘‘इसे कहां ले जा रहे हो?’’

‘‘डाक्टर को दिखा कर बताएंगे कि इसी सांप ने काटा है.’’ अमितेश ने कहा और बरनी को पीछे की सीट पर शिवानी के पास रख कर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. बगल वाली सीट पर निखिल के बैठते ही कार आगे बढ़ गई. शिवानी को वह इंदौर के जानेमाने अस्पताल एमवाईएच अस्पताल ले गया. अमितेश ने डाक्टरों को बताया कि इसे सांप ने काटा है. शिवानी को देखते ही डाक्टर समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. अमितेश के अनुसार शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई थी. लेकिन जब डाक्टरों ने शिवानी को ध्यान से देखा तो उन्हें मामला गड़बड़ लगा. शिवानी के हाथ पर 3 काले गहरे नीले निशान थे, जो सांप के काटने के हो सकते थे, पर साथ ही उस के शरीर पर चोट के भी निशान थे.

अमितेश कह रहा था कि शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई है. सांप के काटने के निशान भी उस के बाएं हाथ पर थे. यही नहीं, उस ने डाक्टरों को वह सांप भी दिखाया, जिस ने शिवानी को काटा था. डाक्टरों ने देखा कि जहां सांप ने काटा था, वहां तो नीले निशान थे, पर बाकी शरीर सफेद पड़ गया था, जबकि सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है. किसी को विश्वास नहीं हुआ अमितेश की बात पर डाक्टरों का संदेह जब विश्वास में बदल गया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है तो उन्होंने हत्या का शक होने की सूचना अस्पताल प्रशासन को दे दी. अमितेश थाना कनाडिया क्षेत्र में रहता था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की जानकारी थाना कनाडिया पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना कनाडिया के थानाप्रभारी अनिल सिंह, एसआई अविनाश नागर, 2 सिपाही महेश और मीना सुरवीर को साथ ले कर एमवाईएच अस्पताल पहुंच गए. पुलिस को देख कर अमितेश घबराया जरूर, पर वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि शिवानी की मौत सांप के काटने से ही हुई है. अमितेश भले ही अपनी बात पर अड़ा था, पर पुलिस ने शिवानी के शव का निरीक्षण किया तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अमितेश झूठ बोल रहा है. इस की वजहें भी थीं. सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है, जबकि शिवानी का शरीर सफेद था. इस के अलावा उस की बाईं आंख के नीचे चोट का निशान भी था. दोनों पैरों के पंजे नीचे की ओर खिंचे हुए थे. हाथों की मुट्ठियां बंद थीं और नाक के बाहरी किनारों की चमड़ी छिली थी, जैसे किसी चीज से रगड़ी गई हो.

अमितेश जिस डेजर्ट कोबरा सांप को बरनी में भर कर लाया था, वह कोबरा मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता था. इस के अलावा जिस तरह सांप का सिर कुचला हुआ था, उस तरह सांप का सिर कुचलना आसान नहीं है. क्योंकि कोबरा बहुत फुर्तीला होता है. पुलिस को लग रहा था कि सांप को पकड़ कर मारा गया है. इस सब के अलावा अहम बात यह भी थी कि घटना बरसात के मौसम की होती तो एक बार मान भी लिया जाता कि सांप कहीं से आ गया होगा. पर ठंड के मौसम में शहर के बीचोबीच इस तरह बैडरूम में जा कर सांप के काटने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर अनिल सिंह ने शिवानी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद घटनास्थल के निरीक्षण के लिए अमितेश और निखिल को साथ ले कर संचार नगर एक्सटेंशन स्थित अमितेश के घर आ गए. पुलिस ने बैडरूम का निरीक्षण किया. बैड पर बिछी चादर इस तरह अस्तव्यस्त थी, जैसे उस पर लेटने वाला खूब छटपटाया हो. बैड पर 2 तकिए थे. उन में से एक तकिए के कवर पर लार का निशान था. पुलिस ने तकियों के कवर और बैडशीट को फोरैंसिक जांच के लिए भिजवा दिया. अनिल सिंह ने अब तक की जांच में जो पाया था और जो काररवाई की थी, उसे अपने अधिकारियों को बता दिया. निखिल और अमितेश से पूछताछ शुरू करने से पहले उन्होंने शिवानी की मौत की सूचना उस के मायके वालों को देना जरूरी समझा.

अमितेश से फोन नंबर ले कर उन्होंने शिवानी की मौत की बात उस के पिता को बताई, तो उन्होंने सीधा आरोप लगाया, ‘शिवानी की मौत सांप के काटने से नहीं हुई, उस की हत्या की गई है.’ अनिल सिंह ने उन से इंदौर आने को कहा और निखिल कुमार खत्री से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में निखिल ने जो देखा था, सचसच बता दिया. अमितेश से घर वालों के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, दोनों बच्चों बेटी वैदिका और बेटे वैदिक को ले कर राऊ में रहने वाली उस की बहन रिचा चतुर्वेदी के यहां गए हैं. पुलिस ने फोन कर के उन्हें भी शिवानी की मौत की सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.

अगले दिन सब लोग इंदौर आ गए. ललितपुर से शिवानी के पिता और भाई भी आ गए थे. पुलिस ने एक बार फिर अमितेश कुमार पटेरिया, पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी, किराएदार निखिल कुमार खत्री से विस्तारपूर्वक पूछताछ की. इस पूछताछ में सभी के बयान अलगअलग पाए गए. इस से पुलिस का शक विश्वास में बदल गया, लेकिन पुलिस को सबूत चाहिए था. दूसरी ओर शिवानी के पिता और भाई का कहना था कि अमितेश का नोएडा में रहने वाली किसी युवती से प्रेमसंबंध है. वह युवती नोएडा में उस के साथ लिवइन में रहती थी, इसीलिए वह शिवानी को साथ नहीं रखता था. उस ने शिवानी से तलाक के लिए मुकदमा भी दायर किया था, लेकिन बाद में खुद ही मुकदमा वापस ले लिया था. उस युवती को ले कर शिवानी और अमितेश में अकसर लड़ाई झगड़ा होता था.

पतिपत्नी के बीच विवाद की बात अमितेश और उस के घर वालों ने भी स्वीकार की. पुलिस चाहती तो अमितेश को गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन वह किसी साधारण परिवार से नहीं था इसलिए पुलिस को अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरैंसिक रिपोर्ट का इंतजार था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पोल तीसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, शिवानी की मौत अस्पताल लाने से 8 घंटे पहले सांप के काटने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. फोरैंसिक रिपोर्ट से भी साबित हो गया था कि शिवानी की हत्या की गई थी. पुलिस ने अमितेश के बैडरूम से जो तकिए के कवर जब्त किए गए थे, उन में से एक तकिए के कवर पर शिवानी की लार के धब्बे पाए गए थे.

शक विश्वास में बदल गया था, पुलिस ने अमितेश को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शिवानी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि उसी ने पिता ओमप्रकाश एवं बहन रिचा की मदद से शिवानी की हत्या सोते समय मुंह पर तकिया रख कर की थी. अमितेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया और बहन रिचा चतुर्वेदी को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन दोनों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूरी पूछताछ में शिवानी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

 

जल संसाधन विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पद से रिटायर 73 वर्षीय ओमप्रकाश पटेरिया परिवार के साथ मध्य प्रदेश, इंदौर के थाना कनाडिया क्षेत्र में पड़ने वाले संचार नगर एक्सटेंशन में रहते थे. उन के परिवार में बेटा अमितेश कुमार और बेटी रिचा पटेरिया थी. पत्नी की मौत हो गई थी. बेटी बड़ी थी और बेटा छोटा. बेटी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

बेटा अमितेश कुमार पटेरिया पढ़लिख कर एक्सिस बैंक में मैनेजर के पद पर तैनात हो गया था. करीब 13 साल पहले ओमप्रकाश ने उस की शादी ललितपुर की शिवानी के साथ कर दी थी. अमितेश बैंक में अधिकारी था. पिता भी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर था, घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ अमितेश एक बेटी और एक बेटे का पिता बना. बेटी वैदिका इस समय 8 साल की है तो बेटा वैदिक 4 साल का. सब मिलजुल कर रह रहे थे, इसलिए घर में खुशी ही खुशी थी. घर में परेशानी तब शुरू हुई, जब करीब 5 साल पहले अमितेश का तबादला इंदौर से नोएडा हो गया.

पिता सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए वह घर पर ही रहते थे. पत्नी और बच्चों को पिता के भरोसे इंदौर में छोड़ कर अमितेश नोएडा आ गया था. उस ने पत्नी से वादा किया था कि बच्चों की परीक्षा हो जाने के बाद वह उन्हें साथ ले जाएगा. लेकिन अमितेश अपने इस वादे पर कायम नहीं रहा.

बच्चों की परीक्षा खत्म हो गई तो शिवानी ने पति के साथ चलने की जिद की. तब उस ने पिता के अकेले होने की बात कह कर उसे इंदौर में ही रहने को कहा. उस का कहना था कि उस के नोएडा जाने पर पिता परेशान तो होंगे ही, उन की देखभाल भी नहीं हो पाएगी.

शिवानी जबरदस्ती नहीं कर सकती थी, क्योंकि अमितेश ने बहाना ही ऐसा बनाया था. मजबूर हो कर शिवानी को ससुर के पास इंदौर में ही रुकना पड़ा. जबकि सही बात यह थी कि अमितेश ने पिता की देखभाल का सिर्फ बहाना बनाया था. क्योंकि उस का नोएडा की एक युवती मोना सिंह से प्रेम संबंध बन गया था. इसी वजह से वह शिवानी को नोएडा नहीं लाना चाहता था.

मोना से उस की मुलाकात बैंक में ही हुई थी. वह किसी काम से बैंक आई थी. उस का वह काम बिना मैनेजर के नहीं हो सकता था. मोना अमितेश से मिली तो उस ने उस की जिस तरह मदद की, उस से वह काफी प्रभावित हुई. फिर तो वह जब भी बैंक आती, अमितेश से जरूर मिलती. धीरेधीरे ये मुलाकातें दोस्ती में बदल गईं तो दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर ले लिए.

मोना आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. किसी भी मर्द से बातें करने में उसे जरा भी परहेज नहीं था. यही वजह थी कि वह अमितेश से फोन पर बातें करने लगी. धीरेधीरे बातों का यह सिलसिला बढ़ता गया और समय भी. इसी के साथ बातें करने का विषय भी बदलता गया. दुनियादारी की बातों के साथ प्रेम की बातें भी होने लगीं.

गर्लफ्रैंड लगी पत्नी से प्यारी अमितेश शादीशुदा था. साथ ही 2 बच्चों का बाप भी. उस की उम्र बताती थी कि वह शादीशुदा होगा, मोना को यह बात पता भी थी. फिर भी अमितेश से दोस्ती और प्यार में उसे कोई आपत्ति नहीं थी. शायद वह मौके का फायदा उठाने वाली युवती थी. अमितेश घर और पत्नी से दूर नोएडा में अकेला रह रहा था. उसे प्यार और पत्नी के साथ की जरूरत भी महसूस होती थी. पर पत्नी बच्चों की परीक्षा की वजह से साथ नहीं आ पाई थी. इसी का फायदा मोना सिंह ने उठाया. पत्नी साथ होती तो शायद अमितेश का झुकाव मोना सिंह की ओर नहीं होता. पत्नी के प्यार को तरस रहे अमितेश ने अपनी यह जरूरत मोना सिंह से पूरी करने की कोशिश की. वह बैंक के बाहर भी उस से मिलने लगा.

मोना मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने वाली युवती थी. तभी तो उस ने अमितेश जैसे कमाऊ आदमी को अपने प्रेमजाल में फांसा था. मोना अमितेश को अकसर अट्टा बाजार में मिलने के लिए बुलाती. नोएडा में अट्टा बाजार ही एक ऐसी जगह है, जहां आदमी की हर जरूरत का सामान मिल जाता है. प्रेमियों के मिलने का उचित स्थान भी वही है. क्योंकि वहां इतनी भीड़ होती है कि कोई एकदूसरे को नहीं देखता. बैठने की जगहें भी हैं तो घूमने और खरीदारी के लिए दुकानें और मौल भी हैं. आधुनिक फैशन की हर चीज वहां मिलती है तो खाने के अच्छे रेस्टोरेंट भी हैं. अब तक मोना और अमितेश की बातें ही नहीं मुलाकातें भी लंबी हो गई थीं. दोनों लगभग रोज ही अट्टा बाजार में मिलने लगे थे. इस से मन नहीं भरता तो छुट्टी के दिन भी पूरा पूरा दिन साथ बिताते.

एक कहावत है, आदमी को अगर बैठने की जगह मिल जाए तो वह लेटने की सोचने लगता है. ऐसा ही कुछ अमितेश के साथ भी हुआ. मोना से दोस्ती के बाद प्यार हुआ, फिर दोनों साथसाथ घूमने लगे. शादीशुदा अमितेश का मन मोना से एकांत में मिलने का होने लगा. वह उस पर पैसे भी जम कर खर्च कर रहा था. ऐसे में भला फायदा क्यों न उठाता. लेकिन इस के लिए मोना को अपने फ्लैट पर लाना जरूरी था, क्योंकि उस से बढि़या एकांत जगह कहां हो सकती थी. मोना भी बेवकूफ नहीं थी. वह अच्छी तरह जानती थी कि अमितेश उस पर पैसा क्यों लुटा रहा है. वह तो उस की हर इच्छा पूरी कर उसे पूरी तरह अपना बनाना चाहती थी, क्योंकि अब तक उसे अमितेश के बारे में सब कुछ पता चल चुका था. उस की हैसियत का भी उसे पता था. वह बैंक में मैनेजर था, अगर ऐसा आदमी इस तरह मिल जाए तो भला कौन नहीं पाना चाहेगा. मोना उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी.

वैसा ही हाल अमितेश का भी था. वह भी मोना को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. क्योंकि उस के आगे अब पत्नी बेकार लगने लगी थी. वैसे भी उसे पत्नी से एकांत में मिलने वाला प्यार नहीं मिल रहा था. उस के लिए वह तड़प रहा था. इंदौर इतना नजदीक भी नहीं था कि उस का जब मन होता, पत्नी से मिलने चला जाता. इसलिए मोना से नजदीकी बनने के बाद वह उस से उस प्यार की अपेक्षा करने लगा, क्योंकि वह प्यार उस की जरूरत भी बन चुका था.

मोना का हाथ हाथ में ले कर अमितेश घूमता ही था. ऐसे में ही एक दिन उस ने कहा, ‘‘मोना, तुम मेरे फ्लैट पर मिलने क्यों नहीं आती?’’

‘‘मैं तो तैयार हूं, तुम्हीं नहीं बुलाते.’’ मोना ने कहा.

‘‘मेरे कमरे पर आने की तुम्हारी हिम्मत है?’’ अमितेश ने पूछा.

‘‘मेरी तो आने की हिम्मत है, तुम अपनी हिम्मत की बात करो.’’

‘‘मैं तो तुम्हारे बारे में सोच रहा था कि कहीं तुम मना न कर दो.’’ अमितेश ने कहा.

‘‘मैं जब तुम्हारे साथ घूम सकती हूं, तुम जहां बुलाते हो, वहां आ सकती हूं तो भला मैं तुम्हारे फ्लैट पर क्यों नहीं आ सकती. तुम बुलाने की हिम्मत तो करो.’’ मोना ने अमितेश की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘फ्लैट पर आने का मतलब समझती हो?’’ अमितेश ने कहा.

‘‘खूब अच्छी तरह समझती हूं, इसीलिए तो हिम्मत की बात कही है. कमरे पर आने का मतलब है, तुम्हारी इच्छा पूरी करना. मैं उस के लिए भी तैयार हूं. अब तुम सोचो कि तुम उस के लिए तैयार हो कि नहीं?’’

‘‘मैं तैयार हूं, तभी तो तुम से फ्लैट पर चलने को कह रहा हूं.’’

‘‘तैयार तो मैं भी हूं पर अगर तुम पत्नी वाला प्यार चाहते हो तो मुझे तुम्हें पत्नी का दर्जा भी देना होगा.’’ मोना ने मन की बात स्पष्ट बता दी.

 

पत्नी की जगह लेने को तैयार हुई गर्लफ्रैंड मोना की इस बात पर अमितेश सोच में पड़ गया. उसे सोच में डूबा देख कर मोना ने कहा, ‘‘किस सोच में डूब गए. पत्नी वाला प्यार चाहिए तो दर्जा तो पत्नी वाला ही देना होगा. जिम्मेदारियां तो उठानी ही पड़ेंगी न?’’

अमितेश को मोना बहुत अच्छी लगती थी. उस ने पत्नी और मोना में जोड़ लगाना शुरू किया. उस की पत्नी शिवानी घरेलू, पुराने विचारों वाली, घरपरिवार में ही सुख तलाशने वाली महिला थी. उस ने ससुराल में साड़ी के अलावा कभी कुछ नहीं पहना था. उस की शक्लसूरत भी साधारण थी. उस में नाजनखरे नहीं थे, अपने बच्चों में ही उलझी रहती थी. उस के लिए बच्चे पहले थे, पति बाद में. अमितेश को इस सब की आदत भी पड़ चुकी थी, लेकिन मोना से मिलने के बाद शिवानी उसे बेकार लगने लगी थी. उसे अब मोना ही मोना दिखाई देती थी. मोना जींसटौप तो पहनती ही थी, अमितेश उसे जो भी कपड़े खरीद कर देता, वह उन सभी को पहनती थी. बाजार में खुलेआम उस का हाथ पकड़ कर चलती थी. नाजनखरे करने भी खूब आते थे. भला इस उम्र में इस तरह की प्रेम करने वाली मिले तो कौन नहीं, उस की हर शर्त मान लेगा.

अमितेश ने भी मोना की हर शर्त मान ली. फिर तो मोना अमितेश के फ्लैट पर आने की कौन कहे, अपना सामान ले कर हमेशाहमेशा के लिए आ गई. वह बिना शादी के ही अमितेश के साथ रहने लगी. इस तरह किसी मर्द के साथ रहने को आजकल लिवइन कहा जाता है. महानगरों में इस तरह रहना नई पीढ़ी के लिए एक तरह का फैशन बन गया है. अमितेश मोना के प्रेमजाल में पूरी तरह फंस चुका था, उस के आगे शिवानी बेकार लगने लगी थी. उस की हर जरूरत मोना से पूरी होने लगी तो वह शिवानी को भूलने लगा. उस की उपेक्षा करने लगा. शुरूशुरू में घरपरिवार में व्यस्त रहने वाली शिवानी ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया, पर बात जब कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो उस ने अमितेश को उलाहना देना शुरू किया. ऐसे में अमितेश काम का बहाना बना कर खुद को बचाने की कोशिश करता.

लेकिन कोई भी गलत काम कितने दिन छिपा रह सकता है. उस ने शिवानी को बच्चों की परीक्षा के बाद नोएडा लाने को कहा था. बच्चों की परीक्षा हो गई तो शिवानी बच्चों को ले कर नोएडा आने की तैयारी करने लगी. क्योंकि नोएडा में बच्चों के दाखिले भी कराने थे. लेकिन उन्हें नोएडा लाने के बजाय अमितेश बहाने बनाने लगा. क्योंकि अब तक वह पूरी तरह मोना का हो चुका था. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, वह मोना के नजदीक आता जा रहा था और शिवानी से दूर होता जा रहा था.

अभी तक अमितेश पूरी तरह मोना का नहीं हुआ था. वह भले ही उस के साथ लिवइन में रहती थी, लेकिन उस पर पूरा हक शादी के बाद ही हो सकता था. क्योंकि कुछ भी हो, कोई कितना भी प्यार करता हो, पहला और ज्यादा हक तो उस की ब्याहता पत्नी का ही बनता है. लिवइन में रहने वाली महिला पत्नी के सामने रखैल से ज्यादा कुछ नहीं होती. अमितेश की एक शादी हो चुकी थी. उस पत्नी से उसे 2 बच्चे भी थे, इसलिए दूसरी शादी के लिए उसे पहली पत्नी से तलाक लेना जरूरी था. मोना के लिए वह शिवानी से तलाक लेने को भी तैयार था, पर उसे तलाक की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी. क्योंकि शिवानी सीधीसादी गृहस्थ महिला थी. अभी ससुराल वाले भी उसी के पक्ष में थे. इस के लिए अमितेश को पिता और बहन को भी अपने पक्ष में करना था.

घर वाले उस के पक्ष में तभी आते, जब शिवानी से उन्हें परेशानी होती. इस के लिए उस ने चाल चलनी शुरू कर दी. वह जम कर शिवानी की उपेक्षा करने लगा, जिस से शिवानी तिलमिला उठी और यह सोचने पर मजबूर हो गई कि अमितेश उस के साथ ऐसा क्यों कर रहा है. जल्दी ही उसे अपनी उपेक्षा की वजह पता चल गई. पता चला कि उस के पति को बीवी जैसा सुख देने वाली कोई और मिल गई है, इसीलिए वह उस की उपेक्षा कर रहा है. विवाद बढ़ा तो पिता और बहन ने अमितेश का ही लिया पक्ष मोना से अमितेश के संबंध होने की बात पता चलते ही पतिपत्नी में विवाद होने लगा. विवाद बढ़ा तो इस का असर घरपरिवार पर भी पड़ने लगा, जिस से घर में परेशानी होने लगी. पिता और बहन को जितना लगाव अमितेश से था, उतना शिवानी से नहीं था. होता भी कहां से अमितेश उन का अपना खून था, शिवानी गैर घर से आई थी.

घर वालों को शिवानी का अमितेश से लड़ना अच्छा नहीं लगता था. उन्हें लगता था कि शिवानी उसे परेशान करती है इसलिए वे शिवानी का पक्ष लेने के बजाए अमितेश का ही पक्ष लेते थे. इस से शिवानी घर में अकेली पड़ गई. उस के ससुर और ननद दोष उसे ही देते थे. उन का कहना था कि उसी की वजह से अमितेश ने इंदौर आना छोड़ दिया. वह अपनी बात कहती तो उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता था. पिता और बहन अमितेश के पक्ष में आ गए तो उस ने शिवानी को तलाक देने की तैयारी कर ली. क्योंकि मोना तलाक के लिए उस पर लगातार दबाव डाल रही थी. शिवानी अमितेश से लड़ाईझगड़ा करती थी, उस ने इसे ही आधार बना कर तलाक की अर्जी तो लगा दी पर बाद में उसे लगा पतिपत्नी में लड़ाईझगड़े का आधार तलाक के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उस ने तलाक की अर्जी वापस ले कर शिवानी से समझौता कर लिया.

उस ने तलाक की अर्जी भले ही वापस ले ली थी, पर वह शिवानी से किसी भी तरह छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि अब वह मोना के बगैर नहीं रह सकता था. जब उस ने विचार करना शुरू किया कि किस तरह शिवानी से पूरी तरह मुक्ति मिल सकती है तो उस के दिमाग में एक ही बात आई, उस की हत्या. लेकिन यह काम आसान नहीं था. अगर वह हत्या के आरोप में पकड़ा जाता तो पूरी जिंदगी जेल में बीतती, मोना भी उसे नहीं मिल पाती. लेकिन हत्या के अलावा अमितेश को दूसरा कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था. वह इस बात पर विचार करने लगा कि शिवानी की हत्या किस तरह करे कि वह मर जाए और उस पर शक न जाए. काफी सोचविचार के बाद भी जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने टीवी पर आने वाले अपराध आधारित शो देखने शुरू किए. इन्हीं में से किसी धारावाहिक के एपिसोड में उस ने देखा कि एक आदमी ने जहरीले सांप से कटवा कर पत्नी की हत्या कर दी.

अमितेश को यह उपाय अच्छा लगा. उस ने इसी तरह की योजना बनानी शुरू कर दी. वह पता लगाने लगा कि भारत में सब से जहरीला सांप कौन सा होता है. उसे पता चला कि भारत में सब से अधिक जहरीला सांप डेजर्ट कोबरा है. पर वह मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता. आजकल गूगल पर किसी भी बात के बारे में जाना जा सकता है. उस ने गूगल पर सर्च किया तो पता चला यह सांप राजस्थान में पाया जाता है. सारी जानकारी जुटा कर अमितेश नवंबर 2019 में नौकरी से इस्तीफा दे कर इंदौर स्थित अपने घर आ गया. घर आ कर उस ने शिवानी से कहा, ‘‘लो अब मैं हमेशाहमेशा के लिए तुम्हारे पास आ गया. अब तो तुम्हें विश्वास हो जाना चाहिए कि मैं केवल तुम्हारा हूं.’’

‘‘कहीं इस में भी तुम्हारी कोई चाल न हो?’’ शिवानी ने कहा.

‘‘तुम्हें तो अब मेरी हर बात में चाल ही नजर आती है. अरे मैं तुम्हारे पास रह कर कौन सी चाल चलूंगा.’’ शिवानी को विश्वास दिलाने की गरज से अमितेश ने कहा, ‘‘तुम मेरी पत्नी ही नहीं, मेरे बच्चों की मां भी हो. मैं तुम्हें छोड़ कर भला कहां जा सकता हूं.’’

शिवानी को पति की बातों पर विश्वास करना ही पड़ा. उस के पास इस के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था क्योंकि उसे रहना तो वहीं था. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां यह मान लिया जाता है कि शादी के बाद बेटी का घर ससुराल ही होता है. भले ही ससुराल में उसे कितनी भी तकलीफ झेलनी पड़े, शादी के बाद बेटी मांबाप के लिए बोझ बन जाती है. ऐसा ही शिवानी के साथ भी था. फिर अब वह अकेली भी नहीं थी. उस के 2 बच्चे भी थे. उन्हें साथ ले कर वह मायके नहीं जा सकती थी.

योजना पर अमल के लिए इंदौर पहुंच कर अमितेश ने शिवानी से छुटकारा पाने वाली बात पिता ओमप्रकाश पटेरिया को बता कर उन से मदद मांगी. अमितेश उन का एकलौता बेटा था, बुढ़ापे की लाठी. वह भला उस का साथ क्यों न देते. क्योंकि उस ने उन से साफ कह दिया था कि मोना के बगैर वह नहीं रह सकता. अगर वह उस का साथ नहीं देते तो वह या तो हमेशाहमेशा के लिए घर छोड़ देता या मौत को गले लगा लेता. ऐसा ही कुछ कह कर उस ने बहन को भी शिवानी की हत्या में साथ देने के लिए राजी कर लिया. जब पिता और बहन राजी हो गए तो अमितेश 19 नवंबर को राजस्थान के जिला अलवर गया और वहां रहने वाले किसी संपेरे से 5 हजार रुपए में डेजर्ट कोबरा खरीद लाया. सांप को उस ने एक बरनी में बंद कर के अलमारी में छिपा दिया और मौके का इंतजार करने लगा.

वह हर रात शिवानी के सो जाने पर उसे जहरीले सांप से कटवाने की कोशिश करता पर सांप को हाथ से पकड़ कर शिवानी को कटवाने की वह हिम्मत नहीं कर पाता. इस तरह एकएक कर के 11 रातें गुजर गईं. सांप से कटवाने में उसे एक बात का डर और सता रहा था कि कहीं शिवानी जाग गई और उस के हाथ में सांप देख लिया तो शोर मचा देगी. उस के बाद वह पकड़ा जाएगा और हत्या की कोशिश में उसे सजा हो जाएगी. जब अमितेश ने देखा कि वह जीते जी शिवानी को सांप से नहीं कटवा पा रहा है तो उस ने पिता और बहन की मदद ली. जब वे दोनों मदद के लिए राजी हो गए तो पहली दिसंबर की सुबह पिता और बहन की मदद से अमितेश ने सो रही शिवानी के मुंह को तकिए से दबा कर मार डाला.

शिवानी की हत्या के बाद उस के पिता और बहन बच्चों को ले कर साऊ चले गए तो अमितेश अपनी अगली योजना पर काम करने लगा. अब वह मृत शिवानी को सांप से कटवाना चाहता था. इस कोशिश में उसे काफी समय लग गया, क्योंकि वह खुद भी डर रहा था कि कहीं सांप उसे ही न काट ले. आखिरकार दोपहर बाद वह चिमटे से सांप को पकड़ कर शिवानी को कटवाने में सफल हो गया. शिवानी तो पहले ही मर चुकी थी लेकिन अमितेश को तो यह दिखाना था कि शिवानी सांप के काटने से मरी है, इसलिए उस ने क्रिकेट खेलने वाले बैट से सांप को मार कर शिवानी के पास बैड पर रख दिया. इस के बाद सारी तैयारी कर के उस ने किराएदार निखिल को आवाज लगाई कि शिवानी को सांप ने काट लिया है. वह निखिल को गवाह बनाना चाहता था कि उस ने शिवानी के पास उस सांप को देखा है, जिस के काटने से उस की मौत हुई है.

निखिल गवाह तो बना पर अमितेश को बचाने का नहीं बल्कि फंसाने का. उसी ने पुलिस को बताया था कि पतिपत्नी में नहीं पटती थी. उस की इस बात से अमितेश शक के घेरे में आ गया था. सभी से विस्तारपूर्वक की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने अमितेश, उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी के खिलाफ शिवानी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें बाकायदा गिरफ्तार कर लिया. इस के अलावा अमितेश ने यह भी स्वीकार किया कि उस ने डेजर्ट कोबरा की हत्या क्रिकेट बैट से की थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 51 के तहत भी केस दर्ज किया.

इस धारा में कम से कम 3 साल और ज्यादा से ज्यादा 7 साल की सजा का प्रावधान है. इस के अलावा 10 हजार रुपए का जुरमाना भी देना होता है. सारी काररवाई पूरी कर पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. जिस मोना के लिए आज अमितेश जेल में है, क्या वह उस का इंतजार करेगी? कतई नहीं, मोना अपनी जवानी उस के इंतजार में क्यों गंवाएगी. अब वह अमितेश जैसा ही कोई और ढूंढ लेगी.

 

 

Love Crime : शादी के लिए गर्लफ्रेंड नहीं मानी, तो मार डाला

Love Crime : ससुरालियों से खटपट हो जाने के बाद आराधना अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके आ गई. फिर एकाउंटेंट की नौकरी करने के दौरान उसे प्रवीण कुमार से प्यार हो गया. इस से पहले कि प्रवीण उस से शादी कर पाता, आराधना का झुकाव शोएब की तरफ हो गया. आराधना की यह गुस्ताखी प्रवीण को इतनी नागवार लगी कि…

उस दिन दिसंबर 2019 की 16 तारीख थी, रात के 9 बज रहे थे. रामप्रकाश गौतम बेहद परेशान थे. वह घर के अंदर चहलकदमी कर रहे थे. कभी उन की निगाह कमरे की दीवार घड़ी पर टिक जाती तो कभी दरवाजे की ओर. दरअसल वह अपनी बेटी के लिए परेशान हो रहे थे. उन की 35 वर्षीय बेटी आराधना गौतम किदवई नगर स्थित जैन ट्रेडिंग कंपनी में एकाउंटेंट थी. वह हर हाल में 8 बजे तक घर आ जाती थी, किंतु उस दिन तो रात के 9 बज गए, उस का कुछ अतापता नहीं था. वह उस के मोबाइल फोन पर कई बार काल कर चुके थे. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, लेकिन वह रिसीव नहीं कर रही थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों रामप्रकाश गौतम की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर जब उन के सब्र का बांध टूट गया तो रात 10 बजे उन्होंने अपने साले रामकुमार तथा भाई रमन गौतम को घर बुला लिया. उन्होंने उन्हें आराधना के घर वापस न आने के बारे में बताया तो वह भी चिंतित हो उठे. आपस में विचारविमर्श कर के रामप्रकाश ने पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद पुलिस तातियागंज, कानपुर स्थित उन के घर पहुंच गई. रामप्रकाश ने पुलिस को बेटी के संबंध में जानकारी दी तो पुलिसकर्मियों ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि मामला किदवई नगर थाना क्षेत्र का है. अत: किदवई नगर थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराएं.

इस पर रात 11 बजे रामप्रकाश गौतम अपने भाई रमन तथा साले रामकुमार के साथ थाना किदवईनगर पहुंचे. थानाप्रभारी राजेश पाठक उस समय थाने पर ही मौजूद थे. उन्होंने थानाप्रभारी को अपनी बेटी के अभी तक घर न लौटने की जानकारी दी. चूंकि मामला एक महिला एकाउंटेंट के लापता होने का था, अत: थानाप्रभारी राजेश पाठक ने आराधना गौतम की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की खोज में जुट गए. उन्होंने रामप्रकाश से आराधना का फोन नंबर लिया फिर उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. डिटेल्स में उस के फोन की अंतिम लोकेशन कल्याणपुर थाना क्षेत्र के शताब्दी नगर की मिली. राजेश पाठक आराधना के घर वालों के साथ रात में ही कल्याणपुर पहुंचे और आराधना के संबंध में वहां के थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय को जानकारी दी.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी राजेश पाठक तथा थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय फोर्स के साथ शताब्दी नगर पहुंचे और उन्होंने वहां स्थित मोबाइल टावर के 500 मीटर की परिधि में आराधना की खोजबीन शुरू की. लेकिन उस का पता नहीं चला. दरअसल, उस समय आराधना के मोबाइल फोन का इंटरनेट बंद था, जिस से पुलिस को उस के फोन की वास्तविक लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. इंसपेक्टर राजेश पाठक ने कई बार आराधना का नंबर अपने मोबाइल फोन से मिलाया तो उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, लेकिन रिसीव नहीं हो रहा था. पुलिस ने उस के परिजनों के संग सुबह 4 बजे तक आराधना की तलाश की लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस लौट गई.

सुबह 5 बजे रामप्रकाश गौतम भाई रमन के साथ घर पहुंचे तो उन की पत्नी रमा गौतम परिवार की अन्य महिलाओं के साथ दरवाजे पर ही बैठी थीं. उन्होंने पूरी रात आराधना के इंतजार में ही गुजार दी थी. रामप्रकाश को देखते ही रमा गौतम ने पूछा, ‘‘मेरी बेटी का कुछ पता चला?’’

जवाब में नहीं सुनते ही वह फफक पड़ीं. रामप्रकाश ने उन्हें धैर्य बंधाया कि बेटी का पता जल्द ही लग जाएगा. इधर सुबह 10 बजे के लगभग कुछ लोग शताब्दी नगर स्थित जवाहरपुरम पार्क पहुंचे तो उन्होंने पार्क के अंदर झाडि़यों के बीच एक महिला का शव पड़ा देखा. उन्हीं लोगों में से किसी ने इस की सूचना उसी समय थाना कल्याणपुर को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय जवाहरपुरम पार्क पहुंच गए. उन्होंने एक महिला का शव पाए जाने की खबर पहले अधिकारियों को दी फिर थाना किदवई नगर पुलिस को भी सूचित कर दिया. क्योंकि उन के थाना क्षेत्र से आराधना गौतम नाम की युवती भी लापता थी.

सूचना पाते ही एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार तथा किदवई नगर थानाप्रभारी राजेश पाठक आराधना के पिता रामप्रकाश गौतम को साथ ले कर घटनास्थल पर आ गए. रामप्रकाश गौतम ने झाडि़यों में पड़े शव को देखा तो वह शव देखते ही फफक पडे़ और बोले, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी आराधना का है. पता नहीं इसे किस ने बेरहमी से मार डाला.’’ इस के बाद तो रामप्रकाश के घर में कोहराम मच गया. पुलिस अधिकारियों ने रामप्रकाश गौतम को धैर्य बंधाया फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के गले पर खरोंच का निशान था, जिस से स्पष्ट था कि उस की हत्या रस्सी या तार से गला कस कर की गई थी.

शव से कुछ दूरी पर मृतका के कान की एक बाली पड़ी थी तथा दूसरी उस के कान में ही थी. कुछ चूडि़यां भी टूटी हुई थीं तथा उस का पर्स भी पार्क में पड़ा था. निरीक्षण में पार्क की घास से साफ दिखाई दे रहा था कि शव घसीट कर झाडि़यों तक ले जाया गया है. मौकामुआयना करने से यही लग रहा था कि आराधना ने मृत्यु से पहले हत्यारे से संघर्ष किया होगा. पुलिस अधिकारियों ने यह भी अनुमान लगाया कि हत्यारा मृतका का अति करीबी रहा होगा, जिस के साथ वह यहां तक आई. उस करीबी का इरादा सिर्फ आराधना की हत्या का ही रहा. क्योंकि उस ने उस के आभूषणों पर हाथ नहीं लगाया था. पुलिस ने मौके से सबूत अपने कब्जे में ले लिए. इस के बाद जरूरी काररवाई कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने महिला एकाउंटेंट आराधना गौतम की हत्या के मामले को बेहद गंभीरता से लिया और खुलासे की जिम्मेदारी किदवई नगर थानाप्रभारी राजेश पाठक को सौंपी. उन्होंने स्वयं भी किदवई नगर थाने में डेरा डाल दिया. श्री पाठक ने आराधना की गुमशुदगी भादंवि की धारा 302 में तरमीम कर दी. फिर वह जांच में जुट गए. उन्होंने सब से पहले जैन ट्रेडर्स के कर्मचारियों को जांच के दायरे में लिया, जहां आराधना गौतम काम करती थी. श्री पाठक ने मालिक से ले कर कर्मचारियों तक से पूछताछ की, जिस से पता चला कि आराधना गौतम पिछले 3 साल से यहां काम कर रही थी. वह समय से काम पर आती थी और समय से घर जाती थी. कंपनी के किसी कर्मचारी से उस की कहासुनी तक नहीं हुई थी.

जैन टे्रडर्स के यहां जांचपड़ताल के दौरान 2 बातें चौंकाने वाली सामने आईं. एक तो यह कि 16 दिसंबर को आराधना गौतम किसी का फोन आने के बाद शाम सवा 6 बजे औफिस से निकली थी. दूसरा यह कि पिछले कुछ दिनों से आराधना का झुकाव फर्म के कर्मचारी शोएब की ओर बढ़ गया था. इस बाबत थानाप्रभारी ने शोएब से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि दोनों के बीच दोस्ती तो थी, लेकिन हत्या से उस का कोई वास्ता नहीं है. फर्म में पूछताछ के बाद थानाप्रभारी राजेश पाठक ने मृतका के पिता रामप्रकाश गौतम को थाना किदवई नगर बुलाया और उन का बयान दर्ज किया. रामप्रकाश ने बताया कि उन्होंने आराधना का विवाह दौलतपुर (कानपुर देहात) गांव निवासी धर्मेंद्र गौतम के साथ किया था.

धर्मेंद्र केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का जवान था. वह आराधना को दहेज के लिए मारतापीटता था, जिस से आराधना अपने 2 बच्चों के साथ मायके में आ कर रहने लगी थी. उस ने पति पर दहेज उत्पीड़न तथा भरणपोषण का मामला दर्ज करवाया था. धर्मेंद्र गौतम इस समय छत्तीसगढ़ में तैनात है. उस ने पत्नी के रहते दूसरी शादी भी रचा ली. आराधना उस के वैवाहिक जीवन में बाधा न बने तथा मुकदमे से छुटकारा मिल जाए, इसलिए धर्मेंद्र ने ही अपने मामा प्रकाश व जयशंकर के साथ मिल कर आराधना की हत्या की है. रामप्रकाश के बयान के आधार पर थानाप्रभारी राजेश पाठक ने जांच आगे बढ़ाई और आराधना के पति धर्मेंद्र गौतम से संपर्क साधने का प्रयास किया लेकिन न तो धर्मेंद्र से संपर्क हो सका और न उस के मामा प्रकाश व जयशंकर से, क्योंकि दोनों फरार थे.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मृतका के पर्स की जामातलाशी कराई. उस के पर्स में 2 मोबाइल फोन, कुछ नकदी, चाबी तथा साजशृंगार का सामान मिला. उन में से एक मोबाइल चालू हालत में था. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स में एक संदिग्ध नंबर मिला. उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि वह नंबर राजेंद्र का है. थानाप्रभारी राजेश पाठक ने राजेंद्र को उस के घर से दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाना किदवई नगर ले आए. थाने आतेआते राजेंद्र कांपने लगा था. उस ने सहज ही बता दिया कि उस के मोबाइल फोन से उस के दोस्त प्रवीण ने किसी महिला को फोन किया था. प्रवीण तातियागंज (चौबेपुर) थाना क्षेत्र के मालौगांव में रहता है और बस ड्राइवर है. वह उस के बारे में और कुछ ज्यादा नहीं जानता.

थानाप्रभारी राजेश पाठक ने प्रवीण को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर मालौगांव छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. पुलिस ने तब उस के कई खास रिश्तेदारों के घर दबिश दी, पर प्रवीण हाथ नहीं आया. तब पुलिस ने उस की टोह में एक खास मुखबिर लगा दिया. 18 दिसंबर, 2019 को इस खास मुखबिर ने थानाप्रभारी राजेश पाठक को जानकारी दी कि प्रवीण कुमार इस समय गौशाला (जुही) टैंपों स्टैंड पर मौजूद है. चूंकि मुखबिर की सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ गौशाला टैंपो स्टैंड पहुंच गए. पुलिस जीप रुकते ही वहां खड़ा एक युवक मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. तभी पुलिस ने उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम प्रवीण कुमार बताया. पुलिस उसे थाने ले आई.

पुलिस ने जब प्रवीण से आराधना गौतम की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने मोटरसाइकिल के बैग से वह रस्सी भी बरामद करा दी, जिस से उस ने आराधना का गला घोंटा था. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मोटरसाइकिल तथा रस्सी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस पूछताछ में प्रवीण ने बताया कि वह आराधना से प्रेम करता था और उस से शादी करना चाहता था. आराधना भी राजी हो गई थी, लेकिन जब उस का एक्सीडेंट हो गया तो वह उस से कतराने लगी. इतना ही नहीं, उस ने फोन पर बात करनी भी बंद कर दी, तब उसे आराधना पर शक हुआ. उस ने गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह किसी और से प्यार करने लगी है. यही बात उसे चुभ गई.

इस के बाद उस ने निश्चय कर लिया कि यदि आराधना उस की नहीं होगी तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. फाइनल बात करने को उस ने घटना वाली शाम दोस्त राजेंद्र के फोन से बात कर आराधना को बुलाया. फिर मोटरसाइकिल पर बिठा कर उसे जवाहरपुरम पार्क ले गया. वहां शादी को ले कर दोनों के बीच झगड़ा हुआ. वह शादी को राजी नहीं हुई तो उस ने गला घोंट कर आराधना को मार दिया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने भी प्रवीण कुमार से पूछताछ की, फिर आननफानन में थाना किदवई नगर में ही प्रैसवार्ता आयोजित कर प्रवीण को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि प्रवीण कुमार ने आराधना गौतम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद करा दी थी, अत: थानाप्रभारी राजेश पाठक ने प्रवीण कुमार को आराधना की हत्या के जुर्म में भादंवि की धारा 302 के तहत विधिसम्मत बंदी बना लिया. प्रवीण के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा मंधना पड़ता है. इसी से सटा हुआ तातियागंज है. तातियागंज पहले गांव था, लेकिन जैसेजैसे मंधना का विकास होता गया, यह गांव कस्बा के समीप आता गया. इस तातियागंज में लिपस्टिक तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कई फैक्ट्रियां हैं, जहां ज्यादातर महिलाएं काम करती हैं.

तातियागंज में ही रामप्रकाश गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रमा गौतम के अलावा 3 बच्चे थे, जिस में बेटी आराधना सब से छोटी थी. रामप्रकाश गौतम ट्रांसपोर्टर हैं. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत है. रामप्रकाश गौतम की बेटी आराधना बीकौम करने के बाद नौकरी के लिए प्रयासरत थी. वहीं उस के पिता रामप्रकाश गौतम उस के योग्य वर खोज रहे थे. रामप्रकाश की तमन्ना थी कि वह अपनी लाडली तथा खूबसूरत बेटी की शादी किसी संपन्न परिवार में ही करेंगे, ताकि उसे किसी प्रकार की कमी महसूस न हो. ऐसा संपन्न घरवर खोजने में रामप्रकाश को 3 साल लग गए. तब कहीं जा कर वह बेटी के योग्य लड़के की खोज कर पाए. लड़के का नाम था धर्मेंद्र गौतम उर्फ लालजी.

धर्मेंद्र के पिता दयाराम गौतम कानपुर देहात जिले के मैथा ब्लौक के गांव दौलतपुर के रहने वाले थे. उन के 4 बच्चों में धर्मेंद्र सब से छोटा था. धर्मेंद्र उर्फ लालजी पढ़ालिखा युवक था. वह सीआरपीएफ का जवान था. दयाराम गौतम के पास 10 बीघा खेती की जमीन थी, जिस में अच्छी उपज होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. रामप्रकाश गौतम को घरवर पसंद आया तो वह आराधना की शादी धर्मेंद्र से करने को राजी हो गए. इस के बाद 6 अप्रैल, 2003 को आराधना की शादी धर्मेंद्र गौतम उर्फ लालजी के साथ धूमधाम से कर दी.

आराधना के मुकाबले धर्मेंद्र उम्र में बड़ा था. ऊपर से वह सांवला भी था. धर्मेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इतनी सुंदर बीवी मिलेगी. उस से शादी कर के वह बहुत खुश था. आराधना ने अपनी समझदारी और काम से पति ही नहीं बल्कि सासससुर का मन भी जीत लिया था. हंसीखुशी से उस की गृहस्थी को 7 साल बीत गए. इन 7 सालों में आराधना एक बेटा अभय तथा एक बेटी सुप्रिया की मां बन चुकी थी. बच्चों के जन्म से परिवार की खुशियां दूनी हो गई थीं. धर्मेंद्र गौतम की ड्यूटी एक राज्य से दूसरे राज्य में लगती रहती थी. उसे जब छुट्टी मिलती थी, तभी घर आ पाता था. लेकिन छुट्टियां खत्म होने के बाद जब वह अपनी ड्यूटी पर चला जाता तो आराधना को अपनी जिंदगी नीरस लगने लगती थी. उस का दिन तो बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात बैरन बन जाती थी.

इन्हीं दिनों पति, सास व ससुर का व्यवहार भी आराधना के प्रति बदल गया, जिस से वह और भी परेशान रहने लगी. सासससुर उसे बातबेबात प्रताडि़त करते थे. मकान के निर्माण हेतु उस पर मायके से पैसा लाने का दबाव बनाते. उसे दहेज कम लाने के ताने भी दिए जाने लगे. मायके से रुपए न लाने पर आराधना को प्रताडि़त किया जाने लगा. आखिर जब आराधना आजिज आ गई तो उस ने पति का घर त्याग दिया और अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर पिता के घर रहने लगी. आराधना को विश्वास था कि पति धर्मेंद्र बच्चों की खातिर उसे मनाने आएगा और अपने साथ ले जाएगा. लेकिन धर्मेंद्र ने ऐसा नहीं किया. वह आराधना को मनाने नहीं आया.

पति के इस रूखे व्यवहार से आराधना को गहरी ठेस पहुंची. उस ने पति व सासससुर को सबक सिखाने के लिए उन के खिलाफ कानपुर कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दहेज उत्पीडन तथा भरणपोषण का मुकदमा कायम करा दिया. मुकदमा दर्ज कराने की जानकारी धर्मेंद्र को हुई तो आराधना के प्रति उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने आराधना से समझौता करने के बजाए मुकदमा लड़ने का निश्चय किया. आराधना ने 3 साल तक इंतजार किया कि शायद धर्मेंद्र समझौते का प्रस्ताव लाएगा और उसे तथा बच्चों को साथ ले जाएगा. लेकिन धर्मेंद्र नहीं आया. तब आराधना ने बच्चों को पढ़ाने तथा उन के भविष्य को बनाने के लिए नौकरी करने का निश्चय किया. हालांकि आराधना तथा उस के बच्चों को पिता रामप्रकाश के घर पर हर प्रकार की सुविधा थी, फिर भी वह पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. वह कोई नौकरी करना चाहती थी.

आराधना पढ़ीलिखी युवती थी. उस ने बीकौम कर रखी थी. एकाउंट की ट्रेनिंग भी उस ने की थी, अत: उसे नौकरी हासिल करने में ज्यादा समय नहीं गंवाना पड़ा. सन 2016 में उसे किदवई नगर स्थित जैन ट्रेडिंग नामक फर्म में एकाउंटेंट की नौकरी मिल गई. आराधना ने अपने कुशल व्यवहार व अच्छे काम से कुछ महीने में ही मालिक व कर्मचारियों का दिल जीत लिया और सब की चहेती बन गई. आराधना के हाथ पर सैलरी का पैसा आने लगा तो वह अपनी तथा बच्चों की जरूरतें उचित तरीके से पूरी करने लगी. अब उसे पिता का मुंह नहीं ताकना पड़ता था. आराधना पहले दिन भर घर में बैठे बोर हुआ करती थी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद उस के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे थे. रामप्रकाश को भी सकून मिला था कि आराधना अब खुश रहने लगी है.

आराधना तातियागंज से औफिस बस व टैंपो से आतीजाती थी. वह मंधना से झकरकटी बस द्वारा फिर झकरकटी से किदवईनगर औफिस टैंपो द्वारा पहुंचती थी. वह सुबह 10 बजे औफिस पहुंचती थी और शाम सवा 6 बजे औफिस छोड़ देती थी. वह हर हाल में रात 8 बजे तक अपने घर पहुंच जाती थी. हां, यह बात दीगर थी कि जब औफिस में किसी दिन काम ज्यादा होता तो उसे घर पहुंचने में देर हो जाती थी. ऐसी हालत में वह फोन द्वारा पिता को बता देती थी. आराधना जिस बस से औफिस आतीजाती थी, उस बस का ड्राइवर प्रवीण कुमार था. वह चौबेपुर थाने के मालौगांव का रहने वाला था. प्रवीण एक ट्रैवल कंपनी की बस चलाता था. उस का रूट मंधना से जाजमऊ तक था. प्रवीण की बस से आतेजाते आराधना और प्रवीण में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई.

रविवार को आराधना की छुट्टी रहती थी. प्रवीण भी रविवार को छुट्टी करता था, अत: उस दिन दोनों कभी मोतीझील तो कभी साईंमंदिर में मिलते थे. यहां दोनों घंटों बतियाते थे और खूब हंसीठिठोली करते थे. आराधना अपने दोनों बच्चों को भी साथ लाती थी. प्रवीण उन्हें खूब खिलातापिलाता था. दोनों बच्चे प्रवीण से खूब घुलमिल गए थे. आराधना के प्यार में आकंठ डूबा प्रवीण सारी कमाई आराधना व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा था. आराधना भले ही 2 बच्चों की मां थी, लेकिन उस के सौंदर्य और जिस्मानी कसाव में जरा भी कमी नहीं आई थी. स्वभाव से आराधना मजाकिया तथा खुले विचारों की थी. प्रवीण से हंसीमजाक तथा नयनों के तीर भी चला देती थी. इस से प्रवीण उसे पाने के सपने देखने लगा था. प्रवीण आराधना से 8-10 साल छोटा था.

एक दिन प्रवीण ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘आराधना, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारा साथ जीवन भर चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

आराधना प्रवीण की बात सुन कर गहरी सोच में पड़ गई. फिर कुछ देर बाद बोली, ‘‘प्रवीण, मैं शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं. पति से मेरा तलाक भी नहीं हुआ है. ऐसी हालत में मैं तुम से कैसे शादी कर सकती हूं. रही बात प्यारमोहब्बत की तो वह मैं तुम से करती हूं और करती रहूंगी.’’

आराधना के जवाब से प्रवीण कुछ मायूस जरूर हुआ, लेकिन उसे लगा कि जब आराधना उस से प्यार करती है तो आज नहीं तो कल शादी भी उसी से करेगी. इसलिए वह उस का दीवाना बना रहा. उस ने अपनी और आराधना की मोहब्बत की जानकारी अपने परिवार वालों को भी दे दी. इस पर उस के मातापिता ने उसे समझाया और एक शादीशुदा महिला से रिश्ता तोड़ने को कहा. लेकिन प्रवीण ने घर वालों की बात नहीं मानी. आराधना और प्रवीण रिश्ते में बंध पाते, उस से पहले ही प्रवीण का एक्सीडेंट हो गया. उस की नौकरी छूट गई और उस की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. प्रवीण को यकीन था कि आराधना एक्सीडेंट की जानकारी पा कर उस से मिलने आएगी और उस की हरसंभव मदद करेगी.

लेकिन महीनों बीत गए, आराधना न तो उस से मिलने आई और न ही उस की कोई आर्थिक मदद की. और तो और उस ने मोबाइल पर प्रवीण से बतियाना भी बंद कर दिया. आराधना में आए इस अकस्मात बदलाव से प्रवीण बेचैन हो उठा. उस ने गुप्तरूप से आराधना के संबंध में जानकारी जुटाई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उसे पता चला कि आराधना औफिस के ही एक कर्मचारी शोएब की मोहब्बत में बंधी है. वह उस के साथ ही सैरसपाटा करती है. उस ने इस का विरोध आराधना से किया तो उस ने दोटूक जवाब दे दिया कि वह उस की जिंदगी में दखल देने वाला होता कौन है. वह कुछ बन कर दिखाए, तब उस से बात करे.

आराधना के जवाब से प्रवीण का दिल घायल हो गया. आराधना के प्रति वह नफरत से भर उठा. फिर भी वह आराधना को दिल से निकाल नहीं सका. आराधना ने अब उस से फोन पर बात करनी भी बंद कर दी थी. वह काल पर काल करता, तब कहीं जा कर उस की काल रिसीव करती और जवाब दे कर अपना फोन बंद कर लेती. प्रवीण तब खिसिया कर रह जाता था. 10 दिसंबर, 2019 को प्रवीण आराधना के औफिस के पास पहुंचा. कुछ देर बाद आराधना औफिस से बाहर निकली और सहकर्मी शोएब की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. प्रवीण ने उस का पीछा किया. वह उस के साथ घंटाघर गई. शौपिंग की, फिर उसी के साथ घर गई. इस बीच प्रवीण ने आराधना को फोन कर पूछा कि वह कहां है तो उस ने कहा कि वह अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में शामिल होने आई है.

उस के इस झूठ से प्रवीण बौखला गया. उस ने आराधना की हत्या का फैसला कर लिया. 16 दिसंबर, 2019 की शाम 6 बजे प्रवीण ने अपने दोस्त राजेंद्र के मोबाइल से आराधना से बात की और मिलने का अनुरोध किया. आराधना ने पहले तो साफ मना कर दिया लेकिन प्रवीण के विशेष अनुरोध पर वह मान गई. इस के बाद प्रवीण मोटरसाइकिल से आराधना के औफिस पहुंच गया. शाम सवा 6 बजे आराधना औफिस से बाहर निकली. प्रवीण ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा लिया. रास्ते में शोएब को ले कर दोनों के बीच झगड़ा हुआ.

लड़तेझगड़ते प्रवीण आराधना को शताब्दी नगर स्थित जवाहरपुरम पार्क ले आया. अब तक रात के 8 बज चुके थे. भीषण सर्दी पड़ने के कारण पार्क में सन्नाटा था. पार्क में प्रवीण ने उस से सीधे पूछा, ‘‘आराधना, तुम मुझ से शादी करोगी या नहीं?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

इतना सुनते ही प्रवीण भड़क उठा.

दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. इसी झगड़े में आराधना की चूडि़यां टूट गईं और कान की एक बाली पार्क में गिर गया. झगड़े के दौरान ही प्रवीण ने आराधना का पर्स पार्क में फेंक दिया और उसे दबोच लिया. फिर उस के गले में रस्सी का फंदा कसते हुए बोला, ‘‘आराधना, तू मेरी नहीं हुई तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’

उस के बाद उस ने फंदा तभी गले से निकाला, जब उस के प्राणपखेरू उड़ गए. हत्या करने के बाद प्रवीण ने आराधना के शव को घसीट कर झाडि़यों में छिपाया और फिर मोटरसाइकिल से फरार हो गया. हत्यारोपी प्रवीण कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 19 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट महेंद्र कुमार गर्ग की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. आराधना के दोनों बच्चे नाना रामप्रकाश गौतम के संरक्षण में पल रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Chhattisgarh Crime : गमछे से घोंटा प्रेमिका का गला

Chhattisgarh Crime : जवानी की दहलीज पर चढ़ते ही मंजू ने शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ से न सिर्फ दोस्ती की बल्कि कोर्ट में शादी भी कर ली. बाद में जब मंजू ने सैफ से किनारा करना चाहा तो उस ने न सिर्फ मंजू को बल्कि उस की बहन मनीषा को अपने गुस्से का शिकार बना डाला…

नए साल के पहले दिन मंजू अपनी बहन मनीषा के साथ मूवी देखने रायगढ़ के मल्टीप्लैक्स पहुंची तो वहां शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ उस का बड़ी बेताबी से इंतजार कर रहा था. मंजू सिदार सैफ से पहली दफा मिलने वाली थी. लगभग एक साल से दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर ही बातें करते रहे थे. उन की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी. धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती गई. उन्होंने तय किया कि पहली जनवरी को वे एक साथ पिक्चर देखने चलेंगे. जब मंजू सिदार और सैफ ने एकदूसरे को देखा तो दोनों बहुत खुश हुए. शोएब अहमद अंसारी ने मंजू को बताया कि उस ने टिकट ले ली है और मूवी शुरू होने में अभी थोड़ा समय है. क्यों न पास के रेस्टोरेंट में बैठ कर कुछ बातें कर लें.

मंजू की स्वीकृति के बाद दोनों रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. एकदूसरे को निकटता से समझने के प्रयास में मंजू और सैफ बातों में डूब गए. सैफ मंजू को पहली बार देख कर उस का दीवाना ही हो गया. मंजू की बातों से सैफ मंत्रमुग्ध सा हो गया. उस दिन उस ने मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पिक्चर देखने के बाद तीनों एक गार्डन में बैठ गए, जहां दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सैफ ने तो यहां तक कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो तुम से ही करूंगा. मंजू पहली ही मुलाकात में सैफ के व्यवहार से प्रभावित हो गई. वह बोली, ‘‘सैफ, मैं तुम्हें पसंद करती हूं. मगर शादी के लिए इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. अभी हम एकदूसरे को और समझ लें. वैसे भी अभी मेरी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी नहीं हुई है. मैं रायपुर जा कर पढ़ाई पूरी कर लूं.’’

‘‘ठीक है, तुम सोच लो, मैं तो तुम्हारा हो गया. समझ लो, मैं तुम्हारी इच्छा का गुलाम हूं. जब तुम कहोगी, तब शादी कर लेंगे.’’ सैफ ने कहा.

यह सुन मंजू हंसते हुए बोली, ‘‘तुम मुसलिम हो न, मुझे जाने क्यों मुसलिम बहुत अच्छे लगते हैं. मैं शादी करूंगी, मगर थोड़ा समय दो.’’

मंजू के मुसलमान वाले फिकरे को सुन कर सैफ के कान खड़े हो गए. वह सोचने लगा कि मंजू कहीं उस के मुसलिम होने की वजह से उस से निकाह नहीं करना चाहती या और कोई बात है. सैफ ने मंजू की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा, ‘‘मंजू, अगर तुम्हें आपत्ति है तो मैं तुम्हारी खातिर अपना धर्म बदलने को तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम्हें धर्म बदलने की कोई जरूरत नहीं है. न तुम धर्म बदलो और न मैं बदलूंगी. यह तय है.’’ मंजू बोली.

मंजू की बात सुन कर सैफ खुश हुआ. मंजू ने उस से कहा, ‘‘सैफ, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं. मेरे जीवन का उद्देश्य पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना है. मैं नर्स बनना चाहती हूं. बस तुम मुझे थोड़ा समय दो.’’

सैफ ने उस की बातों पर अपनी स्वीकृति दे दी. इस घटनाचक्र के बाद मंजू सिदार और सैफ अकसर मिलते और साथसाथ समय बिताते. उन की दोस्ती ने रंग लाना शुरू कर दिया. उन का प्यार बढ़ता गया. शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ रायगढ़ के बोइरदादर कस्बे का रहने वाला था. रायगढ़ में उस की मोबाइल फोन और एक्सेसरीज की दुकान थी. एक दिन जब दोनों मिले तो मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं अगले हफ्ते रायपुर जाऊंगी, क्योंकि वहीं रह कर मुझे पढ़ाई पूरी करनी है.’’

अब मंजू को पढ़ाई के लिए 2 साल रायपुर में रहना था. त्यौहार आदि पर वह साल में 1-2 बार ही रायगढ़ आ सकती थी. मंजू की बातें सुन कर सैफ निराश हुआ. उसे निराश होते देख मंजू चहकी, ‘‘तुम इतने दुखी क्यों हो गए?’’

‘‘मैं क्या कहूं,’’ सैफ ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो तुम्हारा गुलाम हूं, जो कहोगी सुनूंगा, करूंगा.’’

मंजू ने हंस कर कहा, ‘‘मगर एक खुशी की खबर है.’’

‘‘क्या?’’ सैफ उत्सुक हुआ.

‘‘उस से पहले हम शादी कर सकते हैं, अगर तुम चाहो तो…’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? अंधे से पूछ रही हो कि आंखें चाहिए, मैं तैयार हूं.’’ वह खुश हो कर बोला.

इस के बाद फैसला कर दोनों ने 21 मार्च, 2019 को रायगढ़ से नोटरी पब्लिक शपथ पत्र बनवा लिया और कोर्ट में औपचारिक रूप से विवाह कर लिया. इस विवाह के साक्षी दोनों के नजदीकी मित्र बने. दोनों ने तय किया कि कुछ समय दोनों अलगअलग ही रहेंगे, मगर जल्द ही एकदूसरे के हो जाएंगे. मंजू छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ के विनीतानगर वार्ड में रहने वाले गजाधर सिदार की बेटी थी. गजाधर रायगढ़ तहसील में पटवारी हैं. उन की 2 बेटियां थीं मंजू और मनीषा. दोनों बेटियों को वह उन के मनमुताबिक पढ़ा रहे थे. दोनों बहनों में आपस में बहुत प्यार था. मंजू सिदार की छोटी बहन मनीषा कहने को तो उस की बहन थी, लेकिन वह उस की दोस्त भी थी. वह भी मंजू और सैफ के विवाह की गवाह थी. एक दिन उस ने अपनी मां प्रभावती को बातों ही बातों में बता दिया कि मंजू दीदी ने शादी कर ली है.

यह बात जब मां प्रभावती और पिता गजाधर सिदार को पता चली तो दोनों मंजू से बेहद नाराज हुए. मां प्रभावती तो मानो टूट ही गईं. उस ने मंजू को प्यार से समझाया. साथ ही दुहाई दे कर कहा कि तुम गलत दिशा में जा रही हो. तुम ने जो कदम उठाया है, उस से तुम्हारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मां की सलाह से धीरेधीरे मंजू के विचार बदल गए. उसे समझ में आने लगा कि उस ने जीवन की बहुत बड़ी भूल की है. सैफ और उस के रास्ते बिलकुल अलग हैं. जब मंजू को यह बात समझ में आई तो धीरेधीरे उस ने सैफ से कन्नी काटनी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने सैफ से बातचीत भी बहुत कम कर दी. सैफ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मंजू उसे इग्नोर क्यों कर रही है.

एक दिन दोनों की मुलाकात हुई तो सैफ ने बहुत सारे गिफ्ट, जरूरी सामान और पैसे मंजू को देने चाहे. मगर मंजू ने लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘सैफ, तुम्हारे और मेरे रास्ते अब जुदाजुदा हैं.’’

सैफ मानो आसमान से जमीन पर गिर पड़ा. वह अचंभित सा मंजू को देखता रह गया. मंजू ने आगे कहा, ‘‘सैफ, अच्छा तो यही रहेगा कि अब तुम मुझे भूल जाओ.’’ इस पर सैफ बोला, ‘‘मंजू, तुम ने मेरे साथ ब्याह किया है, कोर्ट मैरिज. और अब कहती हो भूल जाऊं. यह भला कैसे हो सकता है. मंजू अगर ऐसी बात थी तो तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है.’’

‘‘नहींनहीं, यह धोखा नहीं बल्कि हमारा बचपना था. मुझ से भूल हुई. बिना मांबाप, परिवार की सहमति के भला विवाह कैसे हो सकता है?’’ वह बोली.

‘‘हम ने कोर्टमैरिज की है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उन कागजों को जला दो.’’ मंजू ने सपाट स्वर में कहा.

मंजू की कठोरता देख शोएब अंसारी उर्फ सैफ का दिल टूट गया. उस की आंखों के आगे जैसे अंधेरा घिर आया. उस ने कातर स्वर में कहा, ‘‘मंजू, तुम चाहे जो सोचो, जो कहो, मगर मैं साफसाफ कहता हूं मैं ने सच्चे दिल से तुम्हें चाहा है और सदैव चाहता रहूंगा. मैं तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर चुका हूं.’’

मंजू सैफ की आंखों में देखती रही. उसे लगा सैफ उसे सचमुच दिल से चाहता है, उस का सिर घूम गया. फिर वह अपने घर चली गई. 10 दिसंबर, 2019 को मंगलवार था. उस दिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टिकरापारा के गोदावरी नगर स्थित फ्लैट के बाहर शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ अपने 2 साथियों गुलाम मुस्तफा (18 वर्ष) और रामलाल (15 वर्ष) के साथ खड़ा था. मंजू वहीं फ्लैट में रह कर अपनी पढ़ाई कर रही थी. उस समय उस की छोटी बहन मनीषा भी उस के पास आई हुई थी. सैफ ने मुस्तफा से कहा, ‘‘देखो, मंजू ने मेरे साथ जो धोखा किया है, उसे मैं अब और बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मंजू मेरे साथ ऐसा करेगी, मैं ने कभी सोचा नहीं था. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि ऐसी धोखेबाज को सबक जरूर सिखाना है. यानी उस का काम तमाम करना है.

अगर तुम मेरा यह काम कर दोगे, तो मैं तुम्हें 7 लाख रुपए दूंगा.’’ कहतेकहते उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. सैफ की बात सुन गुलाम मुस्तफा बोला, ‘‘देख यार सैफ, तू गुस्सा न हो. तू उस से बात कर. हो सकता है अभी भी वह तेरी हो जाए. मगर सुन ले हमारे पैसे तुम्हें दोनों ही हालत में देने होंगे.’’

‘‘मेरा वादा है, पैसे जरूर दूंगा. बस मेरा काम हो जाए.’’ सैफ ने कहा.

‘‘आओ, फिर हम अपना काम करें.’’ गुलाम मुस्तफा ने कहा. मंजू घर में है या नहीं, पता लगाने के लिए सैफ ने उस के मोबाइल पर फोन कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से आखिरी बार कुछ बात करना चाहता हूं. उस के बाद तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा.’’

मंजू सुबह का नाश्ता बना कर नर्सिंग कालेज जाने के लिए तैयार थी. उसे वहां 12 बजे पहुंचना था. उस ने सैफ को फ्लैट पर बुला लिया. सैफ और मुस्तफा फ्लैट में चले गए और रामलाल फ्लैट के बाहर ही खड़ा रहा. फ्लैट में प्रवेश करते ही सैफ ने देखा मंजू उस समय अपनी छोटी बहन मनीषा के साथ नाश्ता कर रही थी.  सैफ पास पहुंच कर बोला, ‘‘मंजू, मैं आखिरी बार तुम्हारे पास आया हूं, क्योंकि मैं रोजरोज की बातों से आजिज आ चुका हूं. बताओ, तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो?’’

यह सुनते ही मंजू और मनीषा नाश्ता छोड़ उस की ओर देखने लगीं. तभी मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं तो तुम्हें पहले ही बोल चुकी हूं कि अब तुम मुझे भूल जाओ. जो हुआ, वह भी भूल जाओ.’’

मंजू की तल्ख बातें सुन कर सैफ आपे में नहीं रहा. वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम ने रमन के साथ टिकटौक पर वीडियो क्यों डाला? क्या यह वीडियो अपलोड करना तुम्हारी फितरत को बयां नहीं करता?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘सीधी सी बात है, तुम ने मुझे बरबाद किया अब रमन को बरबाद करोगी. पहले मेरे साथ कोर्टमैरिज की, अब उसे फंसा रही हो.’’

‘‘नहीं, मेरी रमन के साथ शादी होने जा रही है.’’ मंजू ने एकाएक जैसे बड़े रहस्य से परदा उठा दिया.

‘‘मुझे छोड़ कर तुम किसी और के साथ शादी नहीं कर सकती.’’ सैफ तल्ख हो गया.

मंजू भी आगबबूला हो गई. दोनों में कहासुनी बढ़ती गई.

तभी सैफ ने वहीं रखा फ्राइंग पैन उठा कर मंजू के सिर पर दे मारा. जिस से मंजू की चीख निकल गई और उस के सिर से खून बहने लगा. वह वहीं ढेर हो गई. बहन की गंभीर हालत देख कर मनीषा सैफ पर हमलावर हो उठी तो उस ने उसी फ्राइंग पैन से कई वार कर के मनीषा को भी मरणासन्न कर डाला. इस बीच गुलाम मुस्तफा उस का बराबर साथ दे रहा था. वह अपना गमछा ले कर मंजू के पास पहुंचा और गमछे से मंजू का गला घोंट दिया. फिर उसी गमछे से मनीषा का भी गला घोंट दिया, जिस से दोनों की ही मौत हो गई.

सैफ और गुलाम मुस्तफा दोनों ने उन के मोबाइल उठा कर अपने पास रख लिए. अपना काम निपटा कर जब वह घर से बाहर भागने को हुए तो घर के बाहर से किसी की आवाज सुनाई दी. आवाज सुन कर वे घबरा गए, जिस से जल्दबाजी में गुलाम मुस्तफा का एक जूता किसी चीज में फंस कर वहीं रह गया. वह दरवाजा खोल भाग खड़ा हुआ. इस दरमियान उस फ्लैट के बाहर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में वे सब कैद हो गए. मंजू और मनीषा की चीखें सुन कर आसपड़ोस वाले भी वहां आ गए. उन्होंने फ्लैट की खिड़की से झांक कर देखा तो दोनों लड़कियों को लहूलुहान देख कर वह माजरा समझ गए.

उन्होंने सूचना फ्लैट मालिक इंद्रजीत सिंह को दे दी. इंद्रजीत फ्लैट पर पहुंचे तो वहां रहने वाली मंजू और उस की बहन को लहूलुहान हालत में देख कर वह घबरा गए. उन्होंने तुरंत फोन कर के थाना तिकरापारा पुलिस को सूचना दी. सूचना पा कर टीआई कय्यूम मेमन पुलिस मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले दोनों बहनों को रायपुर के अंबेडकर हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल में 2 पुलिसकर्मियों को छोड़ कर टीआई कय्यूम मेमन घटनास्थल पर पहुंचे. सूचना पा कर एसपी आरिफ एच. शेख और एएसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा भी घटनास्थल पर पहुंचे. स्थिति का मुआयना कर उन्होंने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं. टीआई ने मंजू के घर भी फोन कर सूचना दे दी.

कुछ देर बाद मंजू के मातापिता और अन्य लोग अंबेडकर अस्पताल की मोर्चरी पहुंच गए. दोनों बेटियों के शव देख कर वे फूटफूट कर रोने लगे. पिता गजाधर सिदार से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने रायगढ़ के ही रहने वाले शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ पर अपना शक जताया. उन्होंने बताया कि उस ने उन की बेटी मंजू से कथित रूप से विवाह कर लिया था. मंजू जब रावतपुरा नर्सिंग कालेज, रायपुर में पढ़ाई कर रही थी, तब सैफ लगातार फोन कर के उसे परेशान किया करता था. उन्होंने यह भी बताया कि सैफ ने उन की बेटी के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे. तब उन्होंने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. जिस पर पुलिस ने उसे पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा था.

गजाधर सिदार से यह जानकारी मिलने के बाद टीआई कय्यूम मेमन ने एक पुलिस टीम रायगढ़ के बोइरदादर भेजी, जहां का सैफ रहने वाला था. मगर पुलिस को जानकारी मिली कि वह पिछले 2 दिनों से गायब है. पुलिस ने उस के मोबाइल को ट्रेस करना शुरू किया और सूत्रों से उस की जानकारी लेनी आरंभ की तो खबर मिली कि सैफ बिलासपुर से पेंड्रा के शहडोल मैहर होता हुआ रीवा पहुंच चुका है. रायपुर पुलिस ने 11 दिसंबर, 2019 को रीवा (मध्य प्रदेश) पुलिस की सहायता से तोपखाना के निकट छिप कर रह रहे सैफ को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सैफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुलाम मुस्तफा को रायगढ़ से और नाबालिग रामलाल को जिला चांपा जांजगीर से अपनी गिरफ्त में ले लिया.

उन्होंने इकबालिया बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने मंजू और मनीषा की हत्या में सैफ की मदद की थी. सैफ ने बताया कि मंजू ने अपनी मरजी से उस के साथ कोर्टमैरिज की थी. मगर उस के बाद मंजू अपना रंग दिखाने लगी, जिस से वह बहुत निराश हो गया था. मगर जब एक लड़के के साथ उस ने टिकटौक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया तो उस के तनबदन में आग लग गई और उस ने उसी दिन निर्णय लिया कि अब मंजू को मार डालेगा. इस बारे में उस ने अपने दोस्तों गुलाम मुस्तफा और रामलाल के साथ प्लानिंग की. उस की मंशा सिर्फ मंजू की हत्या करने की थी, लेकिन घटना के समय मनीषा ने जिस तरह विरोध करना शुरू किया तो गुस्से में उन्होंने उस की भी हत्या कर दी.

पुलिस ने हत्यारोपी शोएब अहमद अंसारी, गुलाम मुस्तफा और रामलाल को भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, रायपुर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में रामलाल परिवर्तित नाम है.

 

Uttar Pradesh Crime : प्रेमिका के भाई को मारा फिर बोरी में बंद कर रेत में दफना डाला

Uttar Pradesh Crime : आजकल के ज्यादातर युवा तो प्यार को जानते हैं और जानना चाहते हैं. उन के लिए शारीरिक आकर्षण ही प्यार होता है. इसी आकर्षण को प्यार समझ कर वे ऐसीऐसी कंदराओं में खो जाते हैं, जो अपने अंदर का अंधेरा उन के जीवन में भर देती हैं. ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ. आखिर…  

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी. विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक लगाती तो जमीन पर गिर जाती. साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी. 15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था. अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं. वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगालेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर गया

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगीविकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके. 11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था. 12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में बता दे. इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए. मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई. इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली. इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

          

 

 

  

Love crime story : गर्लफ्रेंड को मार कर खुद भी खा लिया पॉइजन

Love crime story : प्यार में जान देने की बात करना या कसम खाना मामूली बातें हैं. जब बात वाकई जान देने की आती है तो डर लगने लगता है. यही वजह थी कि जब गौरी पीछे हटी तो हेत सिंह ने वादा निभाने के लिए उसे मार दिया, लेकिन खुद…

आगरा के थाना खेरागढ़ क्षेत्र में एक गांव है खां का गढ़. गांव का एक युवक नेहनू गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित पुराने प्राइमरी स्कूल की खंडहर इमारत के पास से गुजर रहा था. नया स्कूल बन जाने के बाद पुराने स्कूल की इमारत लगभग खंडहर हो गई थी. नेहनू की नजर स्कूल के एक कमरे की ओर गई तो वहां का दृश्य देख कर नेहनू को सर्दी में भी पसीना आ गया. स्कूल के एक कमरे में 16-17 साल की युवती की लाश पड़ी थी. उस के चारों ओर खून फैला हुआ था, जिसे देखते ही नेहनू के मुंह से चीख निकल गई. वह गांव की ओर भागा. रास्ते में कुछ लोग अलाव ताप रहे थे. उस ने इस बात की जानकारी उन्हें दे दी. खां का गढ़ के लोगों को किसी मृत लड़की की खबर मिली तो लोग स्कूल की ओर दौड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

यह 30 नवंबर, 2019 की सुबह की बात है. ग्रामीणों ने पास जा कर देखा तो युवती उन्हीं के गांव के हरिओम की 17 वर्षीय बेटी गौरी थी. गौरी के घर वालों को भी घटना से अवगत करा दिया गया. खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. गौरी के घर वाले भी गांव के लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सूचना मिलने के लगभग एक घंटे बाद खेरागढ़ के थानाप्रभारी शेर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. युवती की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी, जिस से वहां देखने वालों की भीड़ एकत्र हो गई. लाश देख कर लोग आक्रोशित थे और हंगामा कर रहे थे. पुलिस ने जब मृतका की लाश कब्जे में लेनी चाही तो लोगों ने विरोध किया. वे आरोपी को पकड़ने की मांग कर रहे थे. भीड़ बढ़ती देख किसी अनहोनी की आशंका के डर से थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया.

सूचना मिलने पर एसएसपी बबलू कुमार, एसपी (ग्रामीण) रवि कुमार, सीओ (खेरागढ़) प्रदीप कुमार के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. एसएसपी के आदेश पर फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड और आसपास के थानों की फोर्स भी वहां पहुंच गई. उच्चाधिकारियों ने युवती के शव का निरीक्षण किया. स्कूल के कमरे में मृतका गौरी का लहूलुहान शव पड़ा था. उस का गला किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था. गले पर कट के 2 निशान थे, एक हलका था और दूसरा गहरा. सिर में भी पीछे की ओर चोट थी.  फोरैंसिक टीम को तलाशी के दौरान मृतका के कपड़ों से एक सामान्य सा मोबाइल भी मिला, जो स्विच्ड औफ था. इस से जाहिर हो रहा था कि हत्यारे ने हत्या के बाद मोबाइल स्विच औफ कर मृतका के कपड़ों में रख दिया होगा. पानी से भरा लोटा भी शव के पास रखा था.

पुलिस को नहीं मिला कोई सुराग पुलिस ने मृतका के परिवार वालों से बात की. उन्होंने बताया कि गौरी आज तड़के 5 बजे अपने घर से शौच के लिए निकली थी. लेकिन जब वह 2 घटे तक वापस नहीं आई तो घर वाले उस की तलाश में जुट गए. इसी बीच उन्हें उस की हत्या की खबर मिली. अधिकारियों ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी या रंजिश तो नहीं है तो गौरी के पिता हरिओम ने बताया कि गांव में उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. इस बीच फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. पुलिस का खोजी कुत्ता भी घटनास्थल से लगभग 400 मीटर तक खेतों में गया. इस पर पुलिस ने खेतों में तलाशी की, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिल सका, जिस से कातिल का सुराग मिलता.

कई घंटे तक जांच करने के बाद जब पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव को उठाना चाहा तो ग्रामीणों ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि हत्या की गुत्थी सुलझने के बाद ही शव उठने दिया जाएगा. एसएसपी बबलू कुमार ने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर हत्यारों का पता लगाया जाएगा. उन्होंने आश्वासन दिया कि पुलिस शीघ्र ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लेगी. उन के इस आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हो गए. पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एसएसपी ने जानकारी दी कि गौरी के शव का पोस्टमार्टम पैनल से कराया जाएगा. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जांच की दिशा तय होगी. मृतका के पिता हरिओम सिंह की तहरीर पर थाना खेरागढ के थानाप्रभारी शेर सिंह ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसएसपी ने इस केस की जांच में कई टीमें लगा दीं. पुलिस ने सब से पहले मृतका गौरी के पास मिले फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. गौरी के मोबाइल में जिस का भी नंबर मिला, उसे ही पुलिस ने पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. इन में 3 युवकों पर शक हुआ. उन तीनों से 2 दिन तक पूछताछ चली. इस के बाद 25 और संदिग्धों से पूछताछ की गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिल सका. काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर बारबार बात की गई थी. पुलिस को उसी नंबर पर सब से ज्यादा शक था, लेकिन वह नंबर बंद था. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला वह नंबर 21 वर्षीय हेत सिंह तोमर उर्फ छोटू उर्फ कमल, निवासी गांव छिछावली, थाना मुरैना, मध्य प्रदेश का है. पुलिस ने जब इस पते पर दबिश दी तो हेत सिंह घर पर नहीं मिला. पुलिस ने उस के परिजनों से कह दिया कि वह आए तो उसे खेरागढ़ थाने भेज दें.

2 दिसंबर की शाम को पुलिस ने 2 युवक थाने बुलाए. पुलिस उन दोनों से पूछताछ कर रही थी. इसी बीच रात लगभग 8 बजे हेत सिंह थाने में पहुंचा. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के हाथ में पानी की एक बोतल थी. वह बारबार बोतल से पानी पी रहा था. थाने में दरोगा और सिपाहियों को देखते ही हेत सिंह ने कहा, ‘‘अब मैं बचूंगा नहीं. दरोगाजी, मैं ने अपने प्यार को मार डाला. मैं ही गौरी का हत्यारा हूं. मेरे मांबाप को परेशान मत करो, जो सजा देनी है मुझे दो. मैं ने जहर खा लिया है. मैं भी उस के पास जाना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही थाने में हड़कंप मच गया. हेत सिंह के हाथ से बोतल छीन ली गई. एक सिपाही उस का वीडियो बनाने लगा. इस के बाद पूछताछ के लिए लाए गए सभी लोग थाने से छोड़ दिए गए. हेत सिंह को तुरंत गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. उस की हालत खराब होने पर उसे आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज ले जाया गया. सूचना मिलने पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी अस्पताल पहुंच गए. अधिकारियों द्वारा हेत सिंह से गौरी की हत्या के संबंध में विस्तार से पूछताछ की गई. लेकिन उपचार के दौरान ही उस की मौत हो गई. इस बीच उस ने गौरी की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

थाना खेरागढ़ के अंतर्गत स्थित खां का गढ़ गांव में हेत सिंह की बहन की ससुराल है. उस का बहन के यहां आनाजाना लगा रहता था. एक बार पड़ोस में रहने वाली गौरी जब उस की बहन के यहां आई तो हेत सिंह की नजर उस पर पड़ी. गौरी सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उस से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया. गौरी की प्रेम कहानी हेत सिंह टकटकी लगाए उसे निहारता रहा. गौरी को भी इस बात का अहसास हो गया कि हेत सिंह उसे देख रहा है. हेत सिंह कसी हुई कदकाठी का जवान था. जवानी की दहलीज पर पहुंची गौरी का दिल भी उस पर रीझ गया. उसे देख गौरी का दिल तेजी से धड़कने लगा था. वहीं पर दोनों में परिचय हुआ.

गौरी खां का गढ़ के रहने वाले हरिओम सिंह की बेटी थी. गौरी के अलावा हरिओम सिंह का एक बेटा था. हरिओम की पत्नी को कैंसर था, जिस का कुछ दिन पहले ही औपरेशन हुआ था. मां की बीमारी की वजह से घर के काम गौरी ही करती थी, जिस से वह इंटरमीडिएट से आगे की पढ़ाई नहीं कर सकी थी. इंटरमीडिएट भी उस ने प्राइवेट किया था. गौरी और हेत सिंह की यह मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. फिर दोनों चोरीचोरी गांव के बाहर मिलने लगे. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे, जिस से फोन पर भी उन की बातें होने लगीं. इस के बाद उन का प्यार और गहराता गया. उन के प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी.

पुलिस को हेत सिंह ने बताया कि वह गौरी को बेइंतहा प्यार करता था. वह भी उसे बहुत चाहती थी. उस के लिए गौरी ही सब कुछ थी. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसम खाई थी. लेकिन उन की शादी नहीं हो पा रही थी. इसलिए उन्होंने तय किया कि जब वे एक साथ रह नहीं सकते तो साथसाथ जान तो दे ही सकते हैं. अत: उन्होंने एक साथ जान देने का निर्णय ले लिया. योजना के अनुसार हेत सिंह अपने घर से 28 नवंबर, 2019 को ही गांव खां का गढ़ आ गया था. उस ने शनिवार को फोन कर गौरी को पुराने स्कूल में बुला लिया. गौरी वहां आ तो गई लेकिन वह अपने वायदे से मुकर गई.

पिछले कुछ दिनों से उस का व्यवहार भी बदल गया था. इस से हेत सिंह को शक हो गया कि गौरी की जिंदगी में शायद कोई और आ गया है. उसे डर था कि उस की मोहब्बत उस से छिन न जाए. इसलिए गौरी उस के साथ मरने को मना कर रही है. हेत सिंह नहीं चाहता था कि उस की गौरी किसी और की हो जाए. लिहाजा उस ने गौरी को उसी समय सजा देने की ठान ली. खुद डर गया मौत से उस ने गौरी को धक्का दे कर गिरा दिया. उस के गिरते ही हेत सिंह ने अपने साथ लाए चाकू से उस का गला काटना चाहा, लेकिन गौरी के विरोध के चलते उस के गले पर हलका कट लगा. किसी तरह उस ने गौरी को काबू कर चाकू से उस का गला रेत दिया. हेत सिंह ने गौरी के मोबाइल को स्विच्ड औफ कर के उस के कपड़ों में रख दिया.

इस के बाद उस ने हत्या में इस्तेमाल चाकू स्कूल के पास स्थित तालाब में फेंक दिया और वहां से फरार हो गया. गौरी की हत्या करने के बाद हेत सिंह अपने घर गया. जब उस ने घर वालों को एक युवती की हत्या की बात बताई तो पूरा परिवार सन्न रह गया. पुलिस से बचने के लिए हेत सिंह वहां से मथुरा स्थित अपनी रिश्तेदारी में चला गया. दूसरे दिन उसे पता चला कि पुलिस उस के घर दबिश देने आई थी. उस ने मथुरा से जहर खरीदा और खेरागढ़ आ कर एक जगह पर जहर का सेवन किया. इस के बाद वह थाना खेरागढ़ पहुंच गया. पोस्टमार्टम गृह पर आए हेत सिंह के भाई राहुल ने पुलिस को बताया कि हेत सिंह टैक्सी चलाता था. वह दिन भर घर नहीं आता था. परिवार वालों से उस का संपर्क कम ही हो पाता था.

घटना को अंजाम देने के बाद जब पुलिस घर आई, तब उस की करतूत का पता चला. घर वालों ने उस से कहा, ‘‘तुम मर जाओ या फिर थाने जा कर गुनाह कबूल करो. हम से कोई संबंध नहीं है.’’

घर वालों ने एक तरह से हेत सिंह से पल्ला झाड़ लिया था. परिचितों ने उस पर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने का दबाव बनाया था. गौरी के प्यार में पागल हुआ हेत सिंह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था. गुस्से में उस ने गौरी की हत्या तो कर दी थी, लेकिन अब वह पछता रहा था. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. ऐसी स्थिति में उस ने आत्महत्या करने का निर्णय लिया. परिजनों ने हेत सिंह के शव को मुरैना ले जा कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Andhra Pradesh Crime : सगाई की खबर से भड़का प्रेमी, रची खौफनाक साजिश

आंध्र प्रदेश से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहां एक प्रेमी अपनी प्रेमिका की सगाई की खबर सुन कर बौखला गया और गुस्से में आ कर दिल दहला देने वाली साजिश रच डाली. आइए, जानते हैं इस घटना की पूरी स्टोरी :

सिरफिरा प्रेमी

घटना आंध्र प्रदेश के अन्नमय्या जिले की है, जिस में एक सिरफिरे प्रेमी ने 22 साल की अपनी प्रेमिका पर चाकुओं से ताबड़तोड़ वार कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया.

घटना के दिन प्रेमिका के मातापिता मवेशियों की देखभाल करने के लिए घर से बाहर थे. मौका देख कर सिरफिरा प्रेमी घर में घुस आया और प्रेमिका पर ताबड़तोड़ चाकू से हमला कर दिया. इतना ही नहीं उस ने बाथरूम साफ करने वाले एसिड से प्रेमिका को झुलसा भी दिया.

एसपी बी. कृष्णा राव ने बताया है कि 24 वर्षीय गणेश के साथ पीड़िता का प्रेमसंबंध चल रहा था. हालांकि कुछ समय बाद युवती की सगाई किसी और से हो गई, जिस के बाद प्रेमिका ने गणेश से कह दिया कि अब मैं इस रिश्ते को आगे नहीं रखना चाहती.

बात करने के बहाने बुला कर किया हमला

प्रेमिका ने प्रेमी को आखिरी बार बात करने के लिए अपने घर बुलाया, लेकिन बातचीत के दौरान दोनों में कहासुनी हो गई. इस के बाद गणेश गुस्से में आ गया और प्रेमिका पर चाकू से हमला कर दिया. हमला करने के बाद वह बाथरूम से एसिड ले आया और प्रेमिका के ऊपर डाल दिया, जिस से वह बुरी तरह झुलस गई.

आरोपी फरार, तलाश में जुटी पुलिस

प्रेमिका पर हमला करने के बाद आरोपी गणेश मौके से फरार हो गया. उसे अरेस्ट करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया गया है. टीम उस के छिपने के स्थान पर छापेमारी कर रही है.
वहीं घायल युवती को स्थानीय अस्पताल में प्राथमिक उपचार देने के बाद उसे बैंगलुरु रेफर कर दिया गया है. डाक्टरों का कहना है कि युवती के शरीर पर गहरे चाकू के गहरे घाव हैं और एसिड से झुलसने के कारण उस की हालत गंभीर बनी हुई है.

मुख्यमंत्री ने दिए शख्स पर काररवाई के आदेश

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने इस हमले की कठोर निंदा करते हुए आरोपी के खिलाफ सख्त काररवाई करने का निर्देश दिया है और यह आश्वासन दिया है कि राज्य सरकार पीड़िता और उस के परिवार के साथ खड़ी है. मगर, सवाल यह है कि सिर्फ इतना भर कह देने से पीड़िता का परिवार संतुष्ट हो जाएगा?

Family Crime : बीवी को मारने के बदले में किया कार देने का वादा

Family Crime :  नाविया अपने शौहर जमील को बहुत प्यार करती थी. लेकिन जब 3 साल बाद उस की महबूबा समीरा दुबई से लौट आई तो उस का पुराना प्यार जाग उठा. समीरा को बीवी बनाने के लिए उस ने नाविया को रास्ते से हटाने का कुचक्र रचा, लेकिन नाविया नहले पर दहला साबित हुई. आइए, जानें कैसे…

शाम के 6 बज रहे थे. अक्तूबर का महीना था. नाविया ने अपना सूटकेस बंद करते हुए सोचा कि कहीं कोई जरूरी चीज छूट तो नहीं गई. अपने भाई की शादी में वह ट्रेन से मायके के लिए रवाना हो रही थी. उस के शौहर जमील ने उस का टिकट बुक करा दिया था. जमील और नाविया की शादी को एक साल हो गया था. अभी तक उन की कोई औलाद नहीं थी. नाविया जमील का बहुत खयाल रखती थी. इस से पहले जमील और समीरा 3 साल तक अच्छे दोस्त रहे थे. दोस्ती मोहब्बत में बदल गई. दोनों ने शादी का फैसला भी कर लिया था. तभी अचानक तीसरे साल समीरा अपने बाप के साथ दुबई चली गई. कुछ अरसे तक दोनों का ताल्लुक फोन के जरिए बहाल रहा, फिर उस के बाद यह सिलसिला भी खत्म हो गया.

इसी दौरान जमील के वालिदैन ने उस की शादी नाविया से तय कर दी. जमील कुछ नहीं बोल सका. फिर जमील को यह मालूम भी नहीं था कि समीरा दुबई से आएगी भी या नहीं. समीरा का भाई भी बहुत सख्त था. वह चाहता था कि समीरा की शादी उस के दोस्त के साथ हो जाए. उस ने समीरा पर कड़ा पहरा लगा दिया था. उस के बाद जमील की जिंदगी में नाविया आ गई. नाविया अमीर मांबाप की एकलौती बेटी थी. जमील के इनकार न करने की एक वजह यह भी थी कि नाविया के वालिद जमील को अपनी बेटी के लिए एक खूबसूरत बंगला दे रहे थे. जमील को सलामी में एक महंगी कार मिलने वाली थी. इसी लालच में जमील ने नाविया से शादी कर ली और उन का एक साल खुशीखुशी गुजर गया. तभी अचानक समीरा दुबई से वापस आ गई थी. आते ही वह सब से पहले जमील से मिली. जब उसे मालूम हुआ कि जमील ने शादी कर ली है तो वह फूटफूट कर रोई.

समीरा को देख कर जमील के दिल में भी पुरानी मोहब्बत जाग उठी, पर वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी हालत में वह क्या करे. एक दिन जमील अपने औफिस में बैठा काम कर रहा था कि अचानक समीरा वहां आ गई. अचानक उसे आया देख जमील चौंका. बात करने के लिए वह उसे औफिस से बाहर ले आया. समीरा ने कहा, ‘‘जमील, मेरे भाई ने मुझ से मोबाइल छीन लिया था, इसलिए मैं तुम से ताल्लुक न रख सकी. खैर, जो भी हुआ भूल जाओ. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि हम दोनों शादी करेंगे.’’

जमील समीरा को खोना नहीं चाहता था. पुरानी मोहब्बत जोर पकड़ रही थी. उस ने कहा, ‘‘मुझे मंजूर है. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं तुम से शादी करूंगा, यह मेरा वादा है.’’

‘‘हां, ठीक है. हम शादी को गुप्त रखेंगे. फिर बाद में तुम अपनी बीवी को बता देना. मैं भी अपने पैरेंट्स को बता दूंगी. मेरा भाई इस समय दुबई में ही है, इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है.’’ समीरा बोली.

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं. 17 तारीख को 7 बजे मेरी बीवी अपने भाई की शादी में मायके जा रही है. मेरा भी उस के साथ जाने का प्रोग्राम था. लेकिन कोई बहाना बना कर मैं उसे अकेले ही रवाना कर दूंगा. उसी दिन हम निकाह कर लेंगे.’’

‘‘जमील, तुम अपनी बात से मुकर तो नहीं जाओगे? 17 तारीख को निकाह पक्का है.’’ समीरा ने पूछा.

‘‘हां, उसी रात हम निकाह कर लेंगे.’’ जमील ने विश्वास दिलाया.

फिर दोनों ने बैठ कर 17 तारीख को निकाह का प्रोग्राम तय कर लिया. जमील ने पत्नी को ट्रेन का टिकट देते हुए बहाना बनाया, ‘‘नाविया, औफिस में जरूरी मीटिंग है. मैं कल तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा. और अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ अभी चला चलता हूं. लेकिन इस से नुकसान बहुत हो जाएगा.’’

नाविया नहीं चाहती थी कि पति का कोई नुकसान हो, इसलिए वह बोली, ‘‘नहींनहीं, आप मीटिंग अटेंड कर के आइएगा. पर टाइम से आ जाना. मैं आप का इंतजार करूंगी.’’

इस के बाद दोनों घर से स्टेशन के लिए रवाना हो गए. जमील के दिल में लड्डू फूट रहे थे. स्टेशन पहुंच कर नाविया वहां खड़ी ट्रेन में अपनी सीट पर जा कर बैठ गई. ट्रेन चलने में 20 मिनट बाकी थे. जमील उस के सामने बैठा. प्यारमोहब्बत की बातें कर रहा था. अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने देखा, समीरा का फोन था. फोन को कान से लगा कर वह ट्रेन से उतर गया. डिब्बे से जरा हटा कर वह दूसरी तरफ मुंह कर के समीरा से बातें करने लगा.

‘‘तुम्हारी बीवी चली गई?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘ट्रेन में बैठी है. अभी ट्रेन चलने में कुछ टाइम है.’’ जमील ने कहा.

‘‘मेरे भाई दुबई तो चले गए हैं लेकिन भाभी को मेरे पीछे लगा कर गए हैं. भाभी की निगाहें पूरे वक्त मुझ पर ही जमी रहती हैं. तुम बताओ, तुम्हारी बीवी को कोई शकवक तो नहीं हुआ?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘नहीं, बेकार का वहम कर रही हो तुम. वह आराम से ट्रेन में बैठी है.’’

तभी अचानक ट्रेन ने सीटी बजाई. जमील ट्रेन की तरफ घूमा. लेकिन अपनी सीट पर नाविया मौजूद नहीं थी. जमील परेशान हो गया. उसी वक्त नाविया आ कर सीट पर बैठ गई. जमील डिब्बे में सवार हुआ और उस के पास जा कर पूछा, ‘‘तुम कहां चली गई थी?’’

‘‘मैं टायलेट तक गई थी.’’

ट्रेन ने दूसरी सीटी दी तो जमील ट्रेन से उतरते हुए बोला, ‘‘नाविया, अपना खयाल रखना और घर पहुंचते ही फोन कर देना.’’

ट्रेन ने रेंगना शुरू किया. जमील स्टेशन से बाहर की तरफ लपका. कार की ड्राइविंग सीट संभालते ही उस ने समीरा को फोन कर कहा, ‘‘वह चली गई है. अब मैं तुम्हारी तरफ आ रहा हूं.’’

‘‘हां, तुम आ जाओ. घर के पास वाले पार्क में मेरा इंतजार करना. भाभी की नजर बचा कर मैं भी जल्द पहुंच जाऊंगी.’’ समीरा ने कहा. जमील पार्क में पहुंच गया. वहीं से उस ने समीरा को खबर दे दी. इस पर समीरा बोली, ‘‘अभी भाभी मेरे पास ही बैठी हैं. मुझे आने में कुछ देर लगेगी. मैं तुम्हें फोन करने बालकनी में आई हूं. थोड़ा इंतजार करो.’’

10 मिनट बाद फिर समीरा का मैसेज आया, ‘‘भाभी अभी भी बैठी हैं. ऐसा करो, तुम गाड़ी में बैठो मैं भी निकलती हूं.’’

जमील मैसेज पढ़ रहा था तभी अचानक उस की पीठ पर किसी ने हाथ रखा. अंधेरे में जमील पहचान नहीं सका कि कौन है. वह घबरा गया. उस ने सोचा, शायद कोई लुटेरा है. इसलिए जमील ने जोर से एक हाथ उस पर जमा दिया, जिस से वह शख्स दीवार से टकरा कर झाडि़यों में गिर गया. जमील बिना पीछे मुड़े तेजी से भागा और कार अंधेरे से निकाल कर रोशनी में खड़ी कर दी. जमील के हाथ में कीमती मोबाइल फोन था. उस ने शुक्र अदा किया कि वह लुटने से बच गया. वह कार में बैठा था. दूसरी तरफ कोई नहीं आया, इस का मतलब था कि वह जो कोई भी था, उस जगह से उठ कर भाग खड़ा हुआ था. पर उस जगह खड़े रहना जमील की मजबूरी थी क्योंकि वह समीरा का इंतजार कर रहा था. उस की आंखें बेचैनी से चारों तरफ घूम रही थीं.

जमील को बैठेबैठे करीब एक घंटा गुजर गया. इस बीच समीरा के फोन आते रहे कि वह आ रही है. जमील की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अचानक फोन बज उठा. नाविया के भाई जफर का फोन था. वह परेशानी में बोला, ‘‘जमील भाई, ट्रेन आ गई है लेकिन नाविया ट्रेन से नहीं उतरी. मैं ने पूरी ट्रेन छान मारी. अभी तक स्टेशन पर उसे ही तलाश रहा हूं.’’

‘‘मैं ने खुद उसे ट्रेन में चढ़ाया था. कहां चली गई? यह तो परेशानी की बात है.’’ जमील ने कहा.

‘‘पर नाविया तो यहां नहीं पहुंची. हम सब बहुत परेशान हैं.’’ वह बोला.

‘‘आप ने उसे फोन किया?’’ जमील ने पूछा.

‘‘हां, कई बार किया. उस का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘आप उसे देखें. मैं भी रेलवे स्टेशन जा रहा हूं.’’

जमील परेशान भी था और उसे गुस्सा भी आ रहा था कि निकाह लेट हो जाएगा. जमील अभी सोच ही रहा था कि अचानक उस की कार का दरवाजा खुला और समीरा उस के बराबर में बैठ गई. जमील ने उस की तरफ चौंक कर देखा तो वह बोली, ‘‘जल्दी निकलो जमील. बड़ी मुश्किल से भाभी से नजर बचा कर आई हूं.’’

‘‘यहां एक मसला हो गया है समीरा. नाविया अपने भाई के पास अभी तक नहीं पहुंची.’’ जमील ने कहा.

उस की बात सुन कर समीरा ने जमील की तरफ देखा और गुस्से से बोली, ‘‘वह कोई बच्ची नहीं है कि गुम जाएगी. जल्दी निकलो यहां से, मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘इस परेशानी में यहां से निकल कर क्या करूंगा. उस का भाई रेलवे स्टेशन पर खड़ा बारबार मुझे फोन कर रहा है. मैं पहले स्टेशन जा कर उसे देखूंगा. हो सकता है कि किसी वजह से वह नीचे उतरी हो और ट्रेन चल पड़ी हो.’’

‘‘तुम रेलवे स्टेशन गए थे. उसे बैठा कर आए. ट्रेन चल भी पड़ी थी, फिर ऐसे कैसे हो सकता है.’’ समीरा ने कहा, ‘‘दोबारा फोन आए तो कह देना कि मैं उसे तलाश कर रहा हूं. इस दौरान हम निकाह कर लेंगे. बाद की बाद में देखी जाएगी. पहले यहां से फटाफट निकलो. मुझे इस बात का डर है कि मेरी भाभी न चली आए.’’

अभी वे लोग कुछ ही दूर गए थे कि नाविया के भाई का फोन आ गया. अबकी बार फोन पर नाविया का बाप था, ‘‘जमील बेटा, नाविया का कुछ पता चला क्या? हम सब बहुत परेशान हैं. आखिर वह कहां रह गई?’’

जमील जल्दी से बोला, ‘‘जी अब्बू, मैं स्टेशन पर उसे ही तलाश कर रहा हूं.’’

जमील ने समीरा से कहा, ‘‘इस परेशानी में मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है.’’

एकाएक उस ने कार रोक दी. समीरा ने गुस्से से उसे देखा. जमील ने कहा, ‘‘तुम को मैं अभी अपने दोस्त के यहां छोड़ कर एक बार स्टेशन जा कर आता हूं.’’

‘‘ठीक है, जो तुम्हें करना है, करो पर जल्दी लौट आना. निकाह टाइम से होना चाहिए.’’ समीरा ने उकता कर कहा. जमील ने समीरा को अपने दोस्त के घर छोड़ा. वहीं उन का निकाह होना था. फिर वह रेलवे स्टेशन चला गया. उस वक्त वहां कोई ट्रेन नहीं थी. प्लेटफार्म खाली पड़ा था. उस ने दूरदूर तक देखा. नाविया कहीं नहीं दिखी. उसे निकाह की पड़ी थी, यहां मसला ही हल नहीं हो रहा था. वह दरवाजा खोल कर कार में बैठा था कि दूसरा दरवाजा खोल कर कोई उस के बगल में बैठ गया. जमील ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं कोई भी हूं, क्या तुम्हें तुम्हारी बीवी के बारे में कोई जानकारी चाहिए?’’ वह शख्स बोला.

‘‘हां, कहां है वह? जल्दी बताओ.’’

‘‘आराम से भाई, पहले एक कप चाय पिलाओ फिर बताता हूं. पुलिस को खबर करने की मत सोचना. मैं साफ मुकर जाऊंगा.’’ वह बोला.

‘‘तुम ने मेरी बीवी को किडनैप किया है?’’

‘‘नहीं, किडनैप नहीं किया है, बल्कि मैं ने तुम्हारी बीवी की मदद की है वरना आप ने तो उसे मार ही दिया था. मुझे चाय पी लेने दो फिर सब बताता हूं.’’

चाय पी कर वह बोला, ‘‘मेरा नाम शानी है. मेरी बात गौर से सुनो. जिस वक्त तुम अपनी महबूबा से पार्क में बातें कर रहे थे, किसी ने अचानक तुम्हारे कंधे पर जो हाथ रखा था, जानते हो वह कौन था?’’

जमील ने जल्दी से पूछा, ‘‘कौन था?’’

‘‘वह तुम्हारी बीवी नाविया थी.’’ वह आगे बोला, ‘‘जब तुम्हारी बीवी रेल के डिब्बे में बैठी थी और तुम दूसरी तरफ मुंह कर के अपनी महबूबा से निकाह का प्रोग्राम तय कर रहे थे, इसी दौरान नाविया किसी काम से तुम्हारे पास आई थी. उस ने तुम्हारे पीछे खडे़ हो कर तुम्हारी बातें सुन लीं.

‘‘जब तुम ने चेहरा घुमाया वह अपनी सीट पर आ कर बैठी. उस ने टौयलेट जाने का बहाना कर दिया था. जब ट्रेन चलने लगी, तुम बाहर निकले तभी वह भी रेंगती हुई ट्रेन से उतर गई थी और तुम्हारे पीछे चल दी. वह टैक्सी में बैठ कर तुम्हारा पीछा कर रही थी.

‘‘जब तुम पार्क में अपनी महबूबा से बातें कर रहे थे, उस ने ही तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा. तुम ने उसे जोर से हाथ मारा और बाहर दौड़ पड़े. वह दीवार से टकरा कर जख्मी हो गई. मैं और मेरा दोस्त अंधेरे में किसी शिकार के लिए घात लगाए बैठे थे कि हमें नाविया मिल गई. मेरा दोस्त उसे उठा कर अस्पताल ले गया और मैं साए की तरह तुम्हारे पीछे लग गया.’’

जमील ने जल्दी से पूछा, ‘‘तो क्या नाविया तुम्हारे पास है?’’

‘‘हां, वह मेरे पास है. उसे होश आ गया है. उस ने सारी बातें बता दी हैं, जो मेरे दोस्त मोबाइल में रिकौर्ड कर लीं. तुम्हारी बीवी बहुत सीधी है. वह चाहती है कि तुम्हारी बेवफाई की बातें वह अपने घर वालों को बताए और तुम से छुटकारा पा ले. उस की एक ही रट है कि उसे घर पहुंचा दिया जाए. उस के सिर पर गहरी चोट लगी है. वह एक बार फिर बेहोश हो चुकी है.’’

सब कुछ सुन कर जमील के पसीने छूट गए. शानी ने जो भी बताया था वह सच था. क्योंकि सब ऐसे ही घटा था. अगर नाविया सब कुछ अपने घर वालों को बता देगी तो उस का सब कुछ छिन जाएगा. क्योंकि उस का घर, कारोबार और गाड़ी सब कुछ उस के ससुराल का दिया हुआ था. उसी वक्त फिर नाविया के भाई का फोन आ गया. वह बोला, ‘‘नाविया का कुछ पता चला भाई?’’

जमील ने घबरा कर कहा, ‘‘नहीं, अभी कुछ पता नहीं चला.’’

‘‘आप पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दें.’’ भाई ने कहा.

‘‘अभी मैं उसे तलाश रहा हूं. नहीं मिली तो थोड़ी देर में दर्ज करा दूंगा.’’ जमील से मारे घबराहट के कुछ नहीं बोला जा रहा था.

शानी ने कहा, ‘‘तुम्हारी बीवी का फोन मेरे पास है. आगे तुम्हें कोई बात करनी हो तो कर सकते हो.’’

जमील झल्ला कर बोला, ‘‘आखिर तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘मैं सौदा करना चाहता हूं. तुम्हारी बीवी के इलाज पर जो खर्च हुआ, वह रकम और बाकी बाद में बताऊंगा.’’

जमील जल्दी से बोला, ‘‘कितना खर्च हुआ बताओ? मैं दे दूंगा. मेरी बीवी कहां है, यह बता दो.’’

‘‘मिस्टर जमील, सौदा मेरी शर्तों पर होगा. ऐसे कैसे बता दूं.’’ शानी ने कार का दरवाजा खोला और उतरते हुए बोला, ‘‘जरा सोच लो. बीवी अगर जिंदा मिली तो सब कुछ अपने घर वालों को बता देगी. फिर तो न तुम घर के रहोगे न घाट के. यह कारोबार, बंगला सब कुछ छिन जाएगा.

‘‘तुम अपनी महबूबा के साथ बैठ कर तबला बजाना. मैं तो यह कह रहा हूं कि अभी भी वक्त है, सोच लो कि तुम्हें क्या करना है. क्यों न हम यह सौदा करें कि तुम्हारी बीवी को खामोशी से निपटा दें तो सारा झंझट ही खत्म.’’

उसे सोचता हुआ छोड़ कर वह नीचे उतर गया. जमील ने सोचा कि कह तो वह ठीक रहा है. अगर उस की बीवी जिंदा रही तो सब कुछ घर पर बता देगी और वह ससुराल की दी हुई हर चीज से हाथ धो बैठेगा. अगर वह नाविया को मरवा दे तो इस का राज राज रहेगा और सब कुछ उस के पास रहेगा. फिर उस ने समीरा को फोन किया और सारी बात बता दी. समीरा ने उलझ कर कहा, ‘‘अब तुम क्या करना चाहते हो?’’

‘‘सोच रहा हूं कि इस राज को इसी जगह दबा दूं और नाविया की मौत का सौदा कर लूं.’’ जमील ने बेदर्दी से कहा. उस का फैसला सुन कर समीरा खुश हो कर बोली, ‘‘अगर फैसला कर ही लिया है तो फिर देर किस बात की है. फौरन इस का काम तमाम करवाओ.’’

‘‘इस काम के पैसे भी तो लेगा. न जाने कितनी रकम मांग ले.’’ जमील ने कहा.

‘‘जो भी मांगेगा, दे देंगे. वरना हम एक नहीं हो सकेंगे. कुछ भी करने के पहले यह तसल्ली कर लेना कि नाविया इसी के पास है. कहीं वह ड्रामा तो नहीं कर रहा है.’’ समीरा ने मशविरा दिया.

फिर जमील ने शानी को फोन किया. शानी ने छूटते ही पूछा, ‘‘क्या फैसला किया आप ने?’’

‘‘पहले मैं यह तसल्ली करना चाहता हूं कि नाविया तुम्हारे पास है भी या नहीं.’’ जमील बोला.

‘‘मैं ने जितनी बातें तुम्हें बताईं, सच हैं. मेरा यकीन करो नाविया मेरे पास ही है. तभी तो मैं यह सौदा कर रहा हूं.’’ शानी ने कहा.

जमील सोचते हुए बोला, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘जिस जगह तुम्हारी कार खड़ी है, मैं उसी के पास हूं. अभी पहुंचता हूं.’’ शानी ने पहुंचते ही कहा, ‘‘बताओ, क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपने राज को दफन करना चाहता हूं. कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता.’’ जमील ने सोचते हुए कहा.

‘‘तुम्हारा राज तुम्हारी बीवी के साथ ही दफन हो जाएगा. इस की मौत को ऐसी शक्ल दूंगा कि हादसा लगे. उसे रेलवे लाइन पर डाल दूंगा, लगेगा जैसे ट्रेन से गिर कर मर गई हो.’’ शानी ने समझा कर कहा.

‘‘इस काम का क्या लोगे?’’ जमील ने पूछा.

‘‘यह मैं तुम्हें थोड़ी देर बात बताऊंगा.’’ शानी ने कहा.

‘‘पर याद रहे यह काम रात के रात ही हो जाना चाहिए.’’

‘‘यह काम रात को ही होगा. अभी बहुत रात पड़ी है. पैसों के बारे में मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा. अपना फोन खुला रखना.’’ कह कर वह नीचे उतर गया. जमील ने अपनी बीवी को खत्म करने को कह तो दिया पर वह बुरी तरह से कांप रहा था. इस के साथ ही वह समीरा को भी नहीं छोड़ना चाहता था. जमील ने कांपते हाथों से गाड़ी आगे बढ़ाई. एक बार फिर जफर की काल आ गई. वह बेहद परेशान था. जमील ने उसे बताया कि वह नाविया की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने जा रहा है. वैसे उस का इरादा नहीं था, फिर उस ने सोचा कि रिपोर्ट दर्ज कराने से कोई उस पर शक नहीं करेगा.

जमील पुलिस स्टेशन पहुंच गया. वहां उस ने ट्रेन का वाकया बताते हुए पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. वह थाने से बाहर निकला तो शानी का फोन आ गया, ‘‘तुम्हारा काम हो जाएगा. एक घंटे के बाद मेरी बताई हुई जगह पर अपनी बीवी की लाश तलाश कर लेना.’’

‘‘काम ठीक से हो जाएगा न. मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता. तुम ने अपने पैसे नहीं बताए.’’

‘‘इस के बदले में तुम्हें यह गाड़ी मुझे देनी होगी, जिस में तुम बैठे हो.’’

‘‘तुम इस गाड़ी के बजाए कैश पेमेंट ले लो.’’

‘‘कैश तुम्हारे एकाउंट में नहीं होता, सब नाविया के एकाउंट में है. इसलिए तुम से वही चीज मांगी, जो तुम्हारे पास है. यह बात तुम्हारी बीवी ने बताई थी कि कारोबार और पैसे उस के खाते में रहते हैं. तुम्हारे नाम पर बस यही कार है. वही मैं तुम से मांग रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, कार और उस के कागजात मैं तुम्हें दे दूंगा.’’ जमील ने कहा.

‘‘वैसे एक बात पूछूं, सारा कैश तो तुम्हारी बीवी के नाम है, उस के मरने के बाद तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं उस के एकाउंट से पैसे निकलवा लूंगा. कई तरीके हैं. तुम फिक्र न करो. बस तुम अपना काम पक्का करो.’’

‘‘तुम मुझे गाड़ी के कागजात दो और एक घंटे के बाद उस की लाश ले लो.’’ शानी ने कहा.

‘‘एक घंटे के बाद कहां मिलोगे?’’

‘‘तुम मुझे गाड़ी के कागजात आधे घंटे में दोगे. आधे घंटे के बाद मैं खुद तुम्हें फोन करूंगा.’’ यह कह कर उस ने फोन बंद कर दिया.

फौरन ही जमील ने डैशबोर्ड खोल कर कार के कागजात निकाले, अच्छे से चैक कर के दोबारा वहीं रख दिए. उस ने सोचा गाड़ी के कागजात देने के बाद बीवी दूसरी दुनिया में पहुंच जाएगी. किस्सा खत्म. जमील जालिम और खुदगर्ज हो गया था. वह नई शादी के बारे में सोच कर खुश था. जमील ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ी. बैडरूम की अलमारी खोल कर नाविया की चैकबुक तलाशने लगा. उसे एक भी चैकबुक नहीं मिली. उस ने सारे दराज खंगाल डाले, कहीं कुछ नहीं था. पता नहीं कहां रखी थीं. उसी वक्त शानी का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारा काम करने के लिए मैं तुम्हारी बीवी को ले कर जा रहा हूं. तुम ऐसा करो कि डाकखाने के गेट के पास गाड़ी खड़ी कर के बाहर के बौक्स में कागज डाल दो. मैं निकाल लूंगा. फिर तुम उस जगह पहुंच जाना, जहां तुम्हारी बीवी की लाश पड़ी होगी.’’

‘‘ओके.’’

जमील ने कांपती आवाज में कहा और डाकखाने रवाना हो गया. वहां पहुंच कर कार खड़ी की और सोचा जो कुछ वह कर रहा है, वह ठीक है. उस ने खुद को तसल्ली दी. इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. जमील कार से बाहर निकला. काम कर के वह उस दोस्त के घर चला गया, जहां उस ने समीरा को छोड़ा था. वह कुछ दूर ही गया था कि उसे कार स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने देखा कोई उस की कार स्टार्ट कर के ले जा रहा था. जमील चल पड़ा. उस के दोस्त के घर समीरा मौजूद थी. वह उस के सामने बैठ गया, जैसे बहुत बड़ा जुआ खेल कर आया हो.

‘‘क्या हुआ?’’ समीरा ने बेचैनी से पूछा.

‘‘कार के बदले मैं अपनी बीवी का सौदा कर आया. कुछ देर में वो उस का काम तमाम कर देंगे और मुझे फोन पर खबर मिल जाएगी कि रेल की पटरी पर उस की लाश पड़ी है. लाश देख कर आने के बाद हम निकाह कर लेंगे ताकि तुम्हारे भाईभाभी की बोलती बंद हो जाए.’’ जमील ने बताया.

‘‘फिर उस के बाद क्या होगा?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘तुम अभी तो अपने घर चली जाना. मैं किसी और नाम से पुलिस को लाश की खबर दे दूंगा. मैं ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाते वक्त उस की फोटो भी वहां दे दी थी. पुलिस मुझे बुला कर पूछताछ करेगी. मैं अपनी कहानी पर डटा रहूंगा. कुछ दिनों में मामला ठीक हो जाएगा, फिर हम एक साथ रहना शुरू कर देंगे.’’ जमील ने बताया. समीरा गहरी सोच में डूब गई. वह अपनी जगह से उठी, पर्स उठाया और सख्ती से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं.’’

जमील हैरान हुआ, ‘‘तुम कहां जा रही हो?’’

‘‘मैं तुम से निकाह नहीं करूंगी, चाहे कुछ हो जाए.’’ समीरा ने दो टूक कहा. जमील भौचक्का रह गया, ‘‘तुम यह क्या कह रही हो. तुम मुझ से निकाह क्यों नहीं करोगी? तुम्हें एकाएक क्या हो गया?’’

समीरा उस की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘तुम जालिम इंसान हो. कल को क्या पता, तुम मेरा भी ऐसा ही सौदा कर दो.’’ कहती हुई समीरा तेजी से बाहर निकल गई.

जमील घबरा कर उस के पीछे भागा, ‘‘मेरी बात तो सुनो समीरा.’’

‘‘मैं कोई बात नहीं सुनना चाहती. मैं तुम से मोहब्बत करती हूं, यह सच है. पर अब मुझे तुम से डर लग रहा है.’’ समीरा तेजी से बाहर निकल गई. बिना पीछे देखे आगे बढ़ गई. जमील ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि समीरा उसे इस तरह छोड़ कर चली जाएगी. फिर अचानक जमील को खयाल आया कि वह कम से कम अपनी पत्नी नाविया की जान बचा ले. ताकि उस से माफी मांग कर सब कुछ पहले जैसा कर ले, जिस के लिए उस ने नाविया की जान की भी परवाह नहीं की. उसे अहसास हुआ कि उसे पत्नी को जान से मरवाने वाली बात समीरा को नहीं बतानी चाहिए थी. यदि वह ऐसा करता तो शायद समीरा उसे छोड़ कर नहीं जाती.

खैर, अब तीर कमान से निकल चुका था. उस की समझ में बेहतर हल यही आ रहा था कि नाविया की जान बचा कर उस से माफी मांग ली जाए. वह बहुत सीधी है, जरूर माफ कर देगी. उस ने जेब से मोबाइल निकाला और शानी को फोन लगाने लगा. लेकिन इस से पहले ही शानी का फोन आ गया.

‘‘मैं ने आप का काम कर दिया है. रेलवे प्लेटफार्म से कुछ ही आगे पटरी पर आप की बीवी की लाश पड़ी मिल जाएगी. देख लीजिए, मुझे अब काल मत करना. मैं यह फोन बंद कर के इसे फेंकने जा रहा हूं.’’ कह कर शानी ने फोन बंद कर दिया. जमील को जैसे बड़ा झटका लगा. फिर जब उसे जरा होश आया तो वह टैक्सी कर के सीधे रेलवे स्टेशन पहुंच गया. वह एक तरफ चला, प्लेटफार्म पर 2-4 पैसेंजर ही थे. वह पटरी देखते हुए आगे बढ़ने लगा. पटरी पर कुछ भी दिखाई नहीं दिया. वह एक तरफ खड़ा हो कर दूर तक देखने लगा. अचानक उस के पीछे आहट हुई और साथ ही नाविया की आवाज उस के कानों से टकराई.

‘‘जमील, तुम मेरी लाश ढूंढ रहे हो?’’

जमील ने चौंक कर उस की तरफ देखा. वह नाविया ही थी. जमील की आंखों में देख रही थी. उस के माथे पर चोट का निशान था.

‘‘तुम जिंदा हो?’’ जमील के मुंह से निकला.

‘‘मुझे जिंदा देख कर तुम्हें हैरत और परेशानी हो रही है. तुम ने मुझे जान से मार देने का सौदा किया था. यह भी नहीं सोचा कि अपनी उस बीवी को जान से मरवाना चाहते हो जो तुम्हें बेहद प्यार करती है. शानी भाई ने जो कुछ तुम्हें बताया, वह बिलकुल सच था.

‘‘मैं ने तुम्हारी बातें सुन ली थीं. तुम्हारे पलटते ही मैं ट्रेन से उतर गई थी. मैं ने फौरन भाई को फोन किया और उन्होंने इस जगह फोन कर के अपने दोस्त शानी को भिजवा दिया, जहां तुम अपनी महबूबा के इंतजार में खड़े थे और उस से बातें कर रहे थे.

‘‘तुम ने चोरउचक्का समझ कर मेरे मुंह पर जोर का घूंसा मारा, जिस से दीवार से टकरा कर मुझे यह चोट लग गई. इस के बाद शानी भाई ने खुद ही सारा मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने फैसला कर लिया था कि मैं एक जालिम बेवफा आदमी के साथ किसी कीमत पर जिंदगी नहीं गुजार सकती.’’ नाविया ने कहा.

‘‘मैं मानता हूं, मुझ से बड़ी गलती हुई. मैं तुम से माफी मांगता हूं.’’ जमील ने गिड़गिड़ा कर कहा.

‘‘जब महबूबा चली गई तो तुम्हें माफी मांगने का खयाल आया. वरना तुम तो मेरी लाश चाहते थे. अपने जिस दोस्त के घर तुम अपनी महबूबा को छोड़ आए थे, उसी ने मुझे फोन कर के बताया कि तुम निकाह कर रहे हो. यह अलग बात है कि उस का जमीर जरा देर से जागा.’’ नाविया बोली.

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. अब ऐसा नहीं होगा.’’ वह बेबसी से बोला.

‘‘अब भरोसा टूट गया है. अब कोई माफी नहीं. घर और कारोबार सब मेरा था. शानी भाई ने इस जगह अपने आदमी बैठा दिए हैं. बस एक गाड़ी तुम्हारे नाम थी, वह भी मैं ने तुम से अपनी मौत का सौदा कर के वापस ले ली. तुम्हें तलाक के लिए जल्दी ही अदालत से नोटिस मिल जाएगा.’’ नाविया ने बेदर्दी से कहा और जमील को शौक्ड छोड़ कर आगे बढ़ गई.

 

Family Crime : 2 लाख रुपए की सुपारी देकर कराई पत्नी की हत्या

Family Crime :  आसिफ सिद्दीकी का जमाजमाया बिजनैस था और उस की घरगृहस्थी भी अच्छी चली रही थी. लेकिन उस की ऐसी मति मारी गई कि खूबसूरत पत्नी समरीन के होते हुए उस ने अपनी साली फातिमा को अपने जाल में फांस लिया. बाद में आसिफ इस जाल में ऐसा फंसा कि…

दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में लोनी बौर्डर थाना एकदम दिल्ली की सीमा से सटा है. यूपी और दिल्ली की सीमा से सटा होने के कारण लोनी बौर्डर थाने की पुलिस अपराधियों पर नजर रखने के लिए 24 घंटे सतर्क रहती है. आमतौर पर इस थाने के इंचार्ज भी रातरात भर जाग कर क्षेत्र में गश्त करते रहते हैं. 11 और 12 जनवरी, 2020 की रात को लोनी बौर्डर थाने के एसएचओ इंसपेक्टर शैलेंद्र प्रताप सिंह अदालत में एक जरूरी एविडेंस के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. थाने के एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह थानाप्रभारी की जिम्मेदारी उठा रहे थे.

रात के करीब 4 बजे का वक्त था जब राजेंद्र पाल सिंह सरकारी जीप में अपने हमराहियों के साथ पूरे क्षेत्र में गश्त कर के थाने की तरफ लौट रहे थे कि उन्हें पुलिस नियंत्रण कक्ष से वायरलैस पर सूचना मिली कि 3-4 बदमाशों ने बेहटा हाजीपुर में मेवाती चौक पर रहने वाले कारोबारी आसिफ अली सिद्दीकी के घर में घुस कर डाका डाला है और लूटपाट का विरोध करने पर व्यापारी की पत्नी समरीन का गला दबा दिया है. वायरलैस से मिली सूचना इतनी ही थी, लेकिन इतनी गंभीर थी कि राजेंद्र पाल सिंह ने थाने न जा कर घटनास्थल पर पहुंचने को प्राथमिकता दी. वहां से मेवाती चौक की दूरी करीब 4 किलोमीटर थी, वहां तक पहुंचने में उन्हें महज 10 मिनट का वक्त लगा.

मेवाती चौक पर आसिफ अली सिद्दीकी का घर मुख्य सड़क पर ही था. वहां आसपड़ोस के काफी लोगों की भीड़ घर के बाहर जमा थी. घर में रोनेपीटने की आवाजें आ रही थीं. वहां पहुंचने पर पता चला कि आसिफ अली सिद्दीकी कुछ लोगों के साथ अपनी पत्नी समरीन को जीटीबी अस्पताल ले गया है, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया है. वारदात के बारे में ज्यादा जानकारी तो कोई नहीं दे सका, लेकिन यह जरूर पता चल गया कि पुलिस नियंत्रण कक्ष को वारदात की सूचना पड़ोस में रहने वाले रईसुद्दीन ने दी थी. रईसुद्दीन ने एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बताया कि रात करीब पौने 4 बजे आसिफ ने अपनी छत पर चढ़ कर ‘‘बचाओ… बचाओ.. डकैत.. डकैत’’ कह कर चिल्लाना शुरू किया था.

जिस के बाद आसपड़ोस में रहने वाले वहां एकत्र हो गए थे. पड़ोसियों ने आसिफ के घर के मुख्यद्वार के बाहर से लगी कुंडी खोली थी, जिसे बदमाश भागते समय बाहर से लगा गए थे. चूंकि समरीन की हत्या आपराधिक वारदात के दौरान हुई थी, इसलिए उस का पोस्टमार्टम कराने की काररवाई पुलिस को ही करनी थी. इसलिए राजेंद्र पाल सिंह ने अपने सहयोगी एसआई विपिन कुमार को स्टाफ के साथ जीटीबी अस्पताल रवाना कर दिया. विपिन कुमार ने जीटीबी अस्पताल पहुंच कर इमरजेंसी में मौजूद डाक्टरों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि समरीन को जब लाया गया था, उस से पहले ही उस की मृत्यु हो चुकी थी.

विपिन कुमार ने डाक्टरों से बातचीत कर उन के बयान दर्ज किए और शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लिखापढ़ी की औपचारिकताओं को पूरी करने में सुबह के करीब 6 बज चुके थे. आसिफ का रोरो कर बुरा हाल था. विपिन कुमार ने आसिफ को ढांढस बंधाया और उसे अपने साथ ले कर उस के घर मेवाती चौक पहुंच गए. इस दौरान एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह ने घटना की सूचना से लोनी के सीओ राजकुमार पांडे, एसपी (देहात) नीरज जादौन और एसएसपी कलानिधि नैथानी को अवगत करा दिया था. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एक दिन पहले ही गाजियाबाद में एसएसपी का पद संभाला था. उन के आते ही जिले में गंभीर अपराध की ये पहली घटना थी.

सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी कुछ ही देर बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. सीओ राजकुमार पांडे ने डौग स्क्वायड की टीम के साथ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और क्राइम टीम को भी मौके पर बुला लिया था. इन सभी टीमों ने घटनास्थल पर पहुंच कर अपना अपना काम शुरू कर दिया. यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसआई विपिन कुमार आसिफ को ले कर उस के घर पहुंच गए. इस के बाद आसिफ से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. उस ने अपने साथ हुई घटना का ब्यौरा देना शुरू कर दिया.

आसिफ ने सुनाया वाकया आसिफ ने बताया कि शनिवार रात को वह मकान की पहली मंजिल पर अपनी पत्नी समरीन (32) व 2 बच्चों के साथ सो रहा था. रात करीब एक बजे कमरे में आहट हुई. वह उठा तो सामने मुंह पर कपड़ा बांधे 2 बदमाश खड़े थे. जब तक वह कुछ समझ पाता, बदमाशों ने उस पर तमंचा तान दिया और शोर मचाने पर गोली मारने की धमकी दी. इस बीच एक बदमाश ने साथ में सो रहे डेढ़ वर्षीय बेटे तैमूर और पत्नी की गरदन पर छुरा रख दिया. इस के बाद बदमाशों ने उस के और पत्नी के हाथ बांध दिए. बदमाशों ने उन से मारपीट करते हुए पूछा कि 5 लाख रुपए कहां हैं.

‘‘कैसे रुपए, कौन से रुपए…’’ उस ने बदमाशों से पूछा. उस ने बदमाशों को बता दिया कि वह छोटा सा कारोबार करता है, उस के घर में इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी. जब आसिफ ने रुपए न होने की बात कही तो एक बदमाश ने धमकी दी कि तुम्हारी गरदन काट देंगे. यह सुन कर उस की पत्नी समरीन की चीख निकल गई. इस से घबराए एक बदमाश ने रजाई से समरीन का मुंह दबा दिया. इस के बाद एक बदमाश ने अलमारियों की चाबी ले कर अंदर रखे एक लाख 30 हजार रुपए कैश व करीब 70 हजार रुपए के गहने निकाल लिए. आसिफ ने यह भी बताया कि ये गहने उस ने अपनी साली की शादी में देने के लिए बनवाए थे, जिस की मार्च में शादी है.

आसिफ ने बताया कि इस बीच एक बदमाश बाहर गया और जीने पर खड़े अपने साथी से बात करने लगा, जीने पर खड़ा बदमाश अंदर नहीं आना चाह रहा था. घर से बाहर गए बदमाश ने उस से कहा कि 5 लाख रुपए नहीं मिल रहे, इस पर बाहर खड़े बदमाश ने कहा कि 5 लाख रुपए घर में ही हैं. ऊपर वाले कमरे में जा कर देखो. आसिफ ने बताया कि गहने व कैश निकालने के बाद एक बदमाश आसिफ को गनपौइंट पर मकान की तीसरी मंजिल पर ले गया, जबकि दूसरा बदमाश समरीन का मुंह रजाई से दबाए वहीं खड़ा रहा. तीसरी मंजिल पर उन का साला जुनैद (15 साल), बेटी उजमा (12 साल) और बेटा आतिफ (9 साल) सो रहे थे. वहां पहुंच कर बदमाशों ने जुनैद को उठाया और उस के हाथ पैर बांध दिए. उन्होंने जुनैद से 5 लाख रुपए के बारे में पूछा और मारपीट की.

इस बीच पहली मंजिल पर समरीन का मुंह दबाने वाला बदमाश उस के डेढ़ साल के बेटे तैमूर को ऊपर ले कर आया और उस की गरदन पर छुरा रख कर 5 लाख रुपए मांगे. आसिफ का कहना था कि यह देख वह रोते हुए बदमाशों के पैरों मे गिर पड़ा और उसे छोड़ने के लिए कहा. इस पर बदमाशों ने बच्चे को छोड़ दिया और उन सभी को कमरे में बंद कर के धमकी दी कि यदि आधे घंटे से पहले कमरे से बाहर निकले तो सभी को मार डालेंगे. इस के बाद वे फरार हो गए. जाने से पहले वे घर के मुख्यद्वार की कुंडी भी बाहर से लगा गए. बदमाशों के जाने के बाद मचाया शोर आसिफ के साले का कहना था कि डर की वजह से वे लोग 20 मिनट तक चुप रहे. इस के बाद आसिफ ने किसी तरह हाथ की रस्सी खोली और खिड़की के पास जा कर पड़ोसी राशिद को आवाज लगाई.

पड़ोसियों ने पहले मुख्यद्वार की कुंडी खोली फिर मकान के भीतर आ कर कमरे को बाहर से खोला.  वह वहां से पहली मंजिल पर पत्नी को देखने गया तो वह बेहोश मिली. पड़ोसियों की मदद से वह पत्नी को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. आसिफ के मुंह से पूरी वारदात की कहानी सुनने के बाद एसएसपी ने एसपी (देहात) को इस वारदात का जल्द से जल्द  खुलासा करने की हिदायत दी. जिस के बाद सीओ राजकुमार पांडे के निर्देश पर लोनी बौर्डर थाने में 12 जनवरी की सुबह धारा 452/394/302/34/120बी/ भादंवि के तहत मुकदमा पंजीकृत करा लिया गया. इस केस की जांच का काम एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को सौंपा गया.

घटना का खुलासा करने के लिए सीओ राजकुमार पांडे ने राजेंद्र पाल सिंह के अधीन एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया, जिस में एसआई विपिन कुमार, हैड कांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल विपिन कुमार, मनोज और दीपक को शामिल किया गया. उसी दोपहर पुलिस ने समरीन के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया. परिजनों ने उसी शाम गमगीन महौल में समरीन के शव को सुपुर्दे खाक कर दिया. आसिफ अली सिद्दीकी मूलरूप से मेरठ के जानी कलां गांव का रहने वाला है. उस के पिता अफसर अली गांव में खेतीबाड़ी का काम करते हैं. अफसर अली की 6 संतानों में 5 लड़के और एक लड़की है. आसिफ (43) भाइयों में तीसरे नंबर पर है. सभी भाईबहनों की शादी हो चुकी है.

आसिफ अली ने युवावस्था में बैटरी की प्लेट बनाने का काम सीखा था. सन 2006 में उस की शादी जानी कलां के रहने वाले तनसीन की बेटी समरीन से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए, 2 बेटे और एक बेटी. बड़ा बेटा आतिफ (9) साल का है जबकि सब से छोटा तैमूर अभी डेढ़ साल का है. बेटी उजमा तीनों बच्चों में सब से बड़ी है. तनसीन अली बेटी समरीन की शादी से कई साल पहले गांव छोड़ कर लोनी के बेहटा की उत्तरांचल विहार कालोनी में आ बसे थे. उन्होंने छोटा सा प्लौट खरीद कर अपना घर बना लिया था. तनसीन फैक्ट्रियों से माल खरीद कर किराने की दुकानों पर सप्लाई करते थे, जिस से उन के परिवार की गुजरबसर ठीकठाक हो रही थी. बेटी समरीन के निकाह में भी उन्होंने अच्छा पैसा खर्च किया था. शादी के बाद समरीन गांव में पति आसिफ के साथ हंसीखुशी जीवन बिता रही थी.

आसिफ भी खूबसूरत पत्नी को बेइंतहा प्यार करता था. वक्त तेजी से गुजर रहा था. समरीन एक के बाद 2 बच्चों की मां बन गई. पहले उजमा का जन्म हुआ फिर आतिफ पैदा हुआ. 2 बच्चे हो गए तो घर के खर्च भी बढ़ गए, लेकिन कमाई कम थी. इसलिए आसिफ ने गांव छोड़ कर शहर में बसने का फैसला किया.  आसिफ ने लोनी में बढ़ाया अपना धंधा सन 2014 में सासससुर की सलाह पर आसिफ लोनी के बेहटा आ कर किराए के मकान में रहने लगा. यहीं पर उस ने अपना बैटरी की प्लेट बनाने का कारोबार बढ़ाना शुरू किया. एक साल के भीतर ही उस ने अपने पिता और ससुर की मदद से मेवाती चौक के पास 50 गज का एक प्लौट ले कर उस में तीनमंजिला मकान बना लिया.

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था. आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे. आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई. विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था. बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी. सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे. पीडि़तों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा. आसिफ से की पूछताछ अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है. उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था. चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों. आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था. अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.  न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था. वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी. चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

कुछ दिन बाद फातिमा वापस घर चली गई. हालांकि घर इतनी दूर भी नहीं था कि आनाजाना न हो सके. इस घटना के बाद फातिमा अकसर किसी बहाने से बहन के घर आनेजाने लगी. इसी बीच डेढ़ साल बाद समरीन गर्भवती हुई तो फातिमा एक बार फिर बहन की तीमारदारी के लिए महीने भर उस के घर आ कर रही. इस दौरान फिर से दोनों के बीच नाजायज रिश्तों  का अध्याय लिखा जाने लिखा. साली को घरवाली बनाने की थी योजना समरीन ने छोटे बेटे तैमूर को जन्म  दिया. लेकिन तब तक आसिफ और फातिमा के बीच नाजायज रिश्ते की भनक न तो समरीन को लगी थी न ही फातिमा के परिवार वालों को. लेकिन फातिमा के शरीर की गंध पाने के बाद आसिफ को अपनी पत्नी समरीन से लगाव कम होने लगा था.

अचानक आसिफ के मन में फातिमा को अपना बनाने की लालसा तेज होने लगी. उस ने सोचा कि अगर समरीन मर जाए तो वह अपने बच्चों की देखभाल के लिए ससुराल वालों को मौसी को उन की मां बनाने के लिए तैयार कर सकता है. लेकिल सवाल था कि हट्टीकट्टी और जवान समरीन मरेगी कैसे. आसिफ के मन में उसी समय यह खयाल आया कि क्यों न समरीन को किसी ऐसे तरीके से मार दिया जाए कि उस की मौत सब को स्वाभाविक लगे. बस ये खयाल मन में आते ही उस के दिमाग में साजिश के कीडे़ रेंगने लगे. आसिफ का एक दोस्त था रविंद्र जो गोविंद टाउन, बेहटा हाजीपुर में रहता था और वहीं पर जनकल्याण क्लीनिक चलाता था.

वैसे तो रविंद्र झोलाछाप डाक्टर था, लेकिन आसिफ के साथ खानेपीने के कारण उस की दोस्ती हो गई थी. आसिफ अपने बच्चोें को उसी से दवा वगैरह दिलवाता था. उस ने अपने मन की बात एक दिन रविंद्र को बताई. उस ने कहा कि इलाज के बहाने वह समरीन को ऐसा इंजेक्शन लगा दे कि उस की मौत हो जाए.  रविंद्र इस काम के लिए राजी तो हो गया लेकिन उस ने इस काम के लिए पैसे मांगे. आसिफ ने कह दिया कि वह काम कर दे, इस के बदले वह उसे मोटी रकम देगा. लिहाजा डा. रविंद्र ने उसे एक ऐसी दवा दे दी जिस को खाने के बाद समरीन पर रिएक्शन होना था. लेकिन संयोग से उस दवा को खाने के बाद जो थोड़ाबहुत असर हुआ, उसे समरीन ने घरेलू उपचार कर के ठीक कर लिया.

पहली साजिश फेल हो गई तो डा. रविंद्र ने कहा, ‘‘चलो तुम्हें एक और डाक्टर संदीप से मिलाता हूं, जो  लोनी मे श्री साईं क्लीनिक चलाते हैं.’’

रविंद्र ने संदीप से आसिफ की मुलाकात कराई और उस का मकसद बताया. आसिफ का काम करने के लिए संदीप ने पैसे की मांग की तो आसिफ ने दोनों को 30 हजार रुपए दे दिए. डा. संदीप ने एक दिन बुखार के इलाज के बहाने आसिफ के साथ उस के घर जा कर समरीन को एक जहरीला इंजेक्शन भी दिया, लेकिन कई दिन इंतजार के बाद भी समरीन की मौत नहीं हुई तो आसिफ निराश हो गया. इस दौरान संदीप और रविंद्र आसिफ से मिले पैसे से मौजमस्ती करने के लिए मंसूरी चले गए. जब वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि इंजेक्शन से भी समरीन की मृत्यु नहीं हुई है. इसलिए आसिफ उन से पैसे वापस मांगने लगा.

तब संदीप ने कहा कि वह एक आदमी के जरिए इस काम को सफाई से करवा सकता है लेकिन इस काम में थोड़ी ज्यादा रकम लगेगी. आसिफ इस के लिए भी तैयार हो गया. लेकिन इस दौरान आसिफ की साली फातिमा का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया समरीन ने देखा की फातिमा उसे छोड़ कर अपने जीजा के आसपास कुछ ज्यादा मंडराती है, तो उसे शक हुआ. उस ने दोनों के ऊपर निगाहें रखनी शुरू कर दीं. शक यकीन में तब बदल गया, जब एक दिन फातिमा चाय देने के बहाने नीचे वर्कशाप में आसिफ के पास पहुंची और आसिफ ने लपक कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

संयोग से शक की पुष्टि के लिए समरीन पीछे से आ गई और सबकुछ अपनी आंखों से देख लिया. उस दिन खूब हंगामा हुआ. उस दिन समरीन ने छोटी बहन को खूब डांटा और आसिफ से उस की जम कर लड़ाई हुई. समरीन ने अपने मातापिता को तो बहन के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन परिवार वालों पर जोर देना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द  फातिमा के लिए अच्छा सा लड़का देख कर उस का निकाह कर दें. परिवार वालों ने उस के लिए लड़का देख लिया और 7 मार्च, 2020 निकाह की तारीख तय कर दी. इस बीच फातिमा के निकाह को ले कर समरीन और आसिफ में अकसर झगड़ा होने लगा. आसिफ समरीन से कहता था कि 2 बहनें एक साथ एक ही पति की बेगम बन कर भी तो रह सकती हैं. पता नहीं जिस से फातिमा की शादी हो वो लोग कैसे हों, उसे सुख दे सकें या नहीं. बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा इस कदर बढ़ता कि मारपीट तक हो जाती.

दोनों के बीच मारपीट की बात समरीन के मातापिता तक पहुंची, लेकिन समरीन ने उन्हें कभी हकीकत का पता नहीं लगने दिया. जब आसिफ ने देखा कि समरीन उस के और फातिमा के रास्ते का कांटा बन चुकी है तो उस ने आखिरकार उस की हत्या के लिए आखिरी साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. आसिफ ने डा. संदीप से कहा कि अब वह जल्द  से जल्द समरीन की हत्या वाला काम करवा दे. बदमाश सुनील शर्मा से किया संपर्क इस के बाद संदीप आसिफ को अपने साले के साले के साले सुनील शर्मा निवासी भीमपुर, थाना बहजोई, जिला मुरादाबाद के पास ले गया, जो इन दिनों लोनी की पुश्ता कालोनी में रहता था. आसिफ को जब पता चला कि सुनील शर्मा आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और पहले उत्तराखंड जेल में भी रह चुका है तो उसे यकीन हो गया कि यह आदमी उस का काम कर देगा.  जहरीला इंजेक्शन

आसिफ ने सुनील से 2 लाख रुपए मे समरीन की हत्या का सौदा पक्का कर लिया, जिस में से लगभग 90 हजार रुपए आसिफ ने सुनील को 2-3 बार में दे दिए. लेकिन जैसेजैसे फातिमा की शादी नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे आसिफ को समरीन की हत्या की जल्दी होने लगी थी. 9 जनवरी, 2020 को आसिफ ने सुनील से बेहटा हाजीपुर में उत्तरांचल सोसाइटी के पास मुलाकात की और बताया कि 11-12 जनवरी की रात को उसे यह काम पूरा करना है. उस ने सुनील को पूरा प्लान भी समझा दिया. इस काम में सुनील ने अपने 2 अपराधी दोस्तों को भी शामिल कर लिया था. प्लान के मुताबिक 11 जनवरी, 2020 की रात सुनील अपने दोनों साथियों के साथ मेवाती चौक पर आसिफ के घर के बाहर पहुंचा. योजना के मुताबिक आसिफ दरवाजा खोल कर काम कर रहा था. उस ने नीचे वाले कमरे में सुनील व उस के दोनों साथियों को बैठा दिया और खुद सोने के लिए ऊपर चला गया.

आधे घंटे में खाना खाने के बाद उस ने अपने साले और बेटे, जो मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, से मोबाइल ले कर बंद कर दिए और जल्दी से सोने को कहा, ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके. उस ने जीने की तरफ आने वाले गेट की कुंडी नहीं लगाई थी ताकि सुनील व उस के साथी आसानी से दरवाजा खोल कर ऊपर आ सकें. आसिफ हत्या में खुद भी रहा शामिल प्लान के मुताबिक रात 1 से 3 बजे के बीच में सुनील अपने दोनों साथियों के साथ उस कमरे में आया, जहां आासिफ व उस की बीवी सो रहे थे. आसिफ ने उन तीनों के साथ मिल कर पहले अपनी पत्नी समरीन की गला घोंट कर हत्या करवा दी. फिर अपने हाथपैर बंधवा कर ऊपरी मंजिल पर ले जाने के लिए कहा. ताकि ऊपर सो रहे साले व लड़के को लगे कि वास्तव में बदमाशों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है.

हत्या हो जाने के बाद आसिफ ने बदमाशों से कहा कि 23 हजार रुपए और लगभग 70 से 75 हजार रुपए का हार अलमारी में रखा है, जिसे तुम अपने शेष एक लाख रुपए के रूप में ले लो. वारदात के दौरान उस ने अपने हाथ थोड़ा ढीले बंधवाए ताकि उन के जाने के कुछ देर बाद वह हाथ खोल कर शोर मचा सके.  किसी को शक न हो इसलिए उस ने ही बदमाशों को ऊपर के कमरे में सब को बंद कर के कुंडी बाहर से बंद करने और जाते समय मकान के मुख्यद्वार को बाहर से बंद करने का आइडिया दिया था. आसिफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम झोलाछाप डाक्टर रविंद्र और संदीप को भी समरीन की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

आसिफ ने जो प्लान तैयार किया था, उस में उस ने एक गलती कर दी थी. उसेये ध्यान ही नहीं रहा कि जब पूरे घर में घुसने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो बिना जबरदस्ती किए बदमाश घर के अंदर दाखिल कैसे हो गए. इस बात का वह क्या जवाब देगा. बस यहीं से पुलिस को उस पर शक होना शुरू हो गया. गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी आसिफ और उस के दोनों सहयोगियों रविंद्र और संदीप को आवश्यक पूछताछ के बाद जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. बाकी 3 फरार आरोपियों में से सुनील शर्मा को पुलिस ने 17 जनवरी, 2020 को लोनी क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सुनील ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस के दोनों साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं.

मात्र 72 घंटे में ब्लाइंड मर्डर व डकैती केस को सुलझाने के लिए एसएसपी गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने विवेचक और लोनी बौर्डर थाने की पुलिस टीम को 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों से हुई पूछताछ पर आधारित. फातिमा परिवर्तित नाम है.

 

 

Mumbai Crime : बेटी के शव के 3 टुकड़े किए फिर काले बैग में भर कर फेंका

Mumbai Crime : महिला के धड़ का हिस्सा आटोरिक्शा वालों के लिए भी रहस्य था और पुलिस वालों के लिए भी. लेकिन सीसीटीवी फुटेज से पुलिस ने अपनी ही बेटी के हत्यारे अरविंद तिवारी को भी खोज निकाला और हत्या का रहस्य भी ढूंढ लिया…

उस दिन दिसंबर 2019 की 8 तारीख थी. समय था सुबह के साढ़े 5 बजे. मुंबई के कल्याण स्टेशन पर  अच्छीखासी भीड़ थी. स्टेशन के बाहर दरजनों आटोरिक्शा खड़े थे. सलीम भी सवारी के इंतजार में अपना आटोरिक्शा लिए खड़ा था. तभी एक व्यक्ति बड़ा सा काला बैग लिए उस के आटो के पास आया और बैग को आटोरिक्शा में रखते हुए बोला, ‘‘भिवंडी के गोवानाका पर छोड़ दो, थोड़ी जल्दी है.’’

ऐसी कम ही सवारी होती हैं, जो बिना पूछे रिक्शा में बैठ जाएं. क्योंकि इस से पहले यह जानना भी जरूरी होता है कि आटोचालक वहां जाएगा भी या नहीं, जहां सवारी को जाना है. थोड़ा अजीब लगा तो सलीम ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा. तभी उसे अजीब सी बदबू आई जो उस के काले बैग से आ रही थी. उस के बैठने से पहले ड्राइवर ने पूछा, ‘‘इस बैग में क्या है, कहीं लाश तो नहीं?’’

अनूप की बात सुनते ही वह आदमी काले बैग को रिक्शा में छोड़ कर स्टेशन के अंदर की ओर भाग गया. अनूप ने काला बैग रिक्शा से निकाल कर बाहर रखा और यह बात अपने साथी आटो रिक्शा चालकों को बताई. जरा सी देर में सारे आटो चालक एकत्र हो गए. भीड़ बढ़ी तो आतेजाते लोग भी रुकने लगे. सब का एक ही कहना था कि काले बैग में लाश हो सकती है. सभी ने राय दी कि बैग के बारे में पुलिस को बताना चाहिए. कल्याण रेलवे स्टेशन के बाहर ही महात्मा फुले चौक पुलिस थाना है. कई आटो रिक्शा ड्राइवर थाने में गए और यह बात पुलिस को बता दी. उस वक्त मंगेश डोइफोड और सिपाही सोंगाल ड्यूटी पर थे. रिक्शा वाले उन्हें स्टेशन के बाहर उस जगह ले गए जहां काला बैग रखा था.

बदबू से उन्हें भी लगा कि बैग में जरूर किसी की लाश है. दोनों पुलिस वालों ने इस की सूचना थाने के सीनियर इंसपेक्टर प्रकाश लोंढे और इंसपेक्टर (क्राइम) संभाजी जाधव को दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अफसर आटोरिक्शा स्टैंड पर पहुंच गए. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों में से 2 को गवाह बना कर काले बैग को खुलवाया. जैसी कि पहले ही उम्मीद थी, काले बैग में एक गठरी में बंधा महिला का कमर से नीचे का हिस्सा नजर आया. करीब 25-26 साल की मृतका पीले रंग की लेगिंग पहने थी, रंग गोरा था. बिना सिर और धड़ के मृतका को पहचानना संभव नहीं था. हत्यारा कौन था, यह तो दूर की बात थी, यह पता लगाना भी आसान नहीं था कि मृतका के धड़ को वहां तक लाने वाला कौन था.

इंसपेक्टर प्रकाश लोंढे ने इस घटना के बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों डीसीपी विवेक पानसरे और एसीपी अनिल पवार को बताया. सूचना मिलते ही दोनों अधिकारी कल्याण स्टेशन पहुंच गए. वहां आटो स्टैंड के पास काफी भीड़ जमा थी. पुलिस ने आटो रिक्शा वाले से काला बैग ले कर आने वाले व्यक्ति का पूरा हुलिया पूछा.  उस ने बताया कि काला बैग लाने वाला कल्याण स्टेशन के अंदर भाग गया था. आटोरिक्शा चालक ने यह भी बताया कि वह लाल रंग की शर्ट पहने हुए था. महिला की लाश का हिस्सा मिलने की सूचना क्राइम ब्रांच की यूनिट नंबर 1 और 3 को भी दे दी गई थी.

खबर मिलते ही दोनों ब्रांचों के वरिष्ठ पुलिस इंसपेक्टर नितिन ठाकरे और संजू जैन भी अपनीअपनी टीम के साथ कल्याण स्टेशन पहुंच गए. बताते चलें कि मुंबई में किसी भी अपराध की जांच थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच साथसाथ करती हैं. सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग पुलिस और क्राइम ब्रांच ने साथ जांच शुरू करने से पहले महिला के शरीर के हिस्से को पोस्टमार्टम के लिए रुक्मिणीबाई अस्पताल भेज दिया, प्राथमिक कररवाई के बाद सब से पहले कल्याण स्टेशन के बाहर वाले सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी गई. फुटेज में लाल रंग की शर्ट वाला व्यक्ति कंधे पर काला थैला लटकाए स्टेशन के बाहर आता दिखाई दिया. कुछ देर बाद वह भाग कर स्टेशन के अंदर भी जाता दिखाई दिया. पुलिस ने सीसीटीवी की वह फुटेज आटोरिक्शा वाले को दिखाई तो उस ने उसे पहचान लिया.

इस हत्या के संदर्भ में पुलिस ने थाना महात्मा फुले चौक में भादवि की धारा 302, 201 के तहत  केस दर्ज कर लिया. इस केस का जांच अधिकारी क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर संभाजी को नियुक्त किया गया. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि थैले और लाल शर्ट वाला व्यक्ति ट्रेन में चढ़ा किस स्टेशन से था. काफी खोजबीन के बाद पता चला कि वह व्यक्ति कल्याण स्टेशन से 15 किलोमीटर दूर टिटवाला स्टेशन से चढ़ा था. वहां के सीसीटीवी में वह काला थैला लिए स्टेशन के अंदर आता दिखाई दिया. इस का मतलब वह किसी आटो से वहां तक आया होगा. आटोरिक्शा चालक उसे पहचान सकते थे. उन से यह भी पता चल सकता था कि उस ने आटोरिक्शा में काला बैग कहां से रखा था. टिटवाला इलाके में उस व्यक्ति का पता लगाने की जिम्मेदारी सब इंसपेक्टर संजय बाबर को सौंपी गई.

संजय बाबर और उन की पुलिस टीम ने टिटवाला रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े रहने वाले आटोरिक्शा चालकों को फोटो दिखा कर काले बैग वाले के बारे में पूछताछ की. मेहनत तो करनी पड़ी, लेकिन कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया. एक व्यक्ति ने बताया कि वह टिटवाला के मांडा रोड़ पर रहता है. मांडा रोड़ पर पूछताछ की गई तो पता चला वह इंदिरा नगर की किसी चाल में रहता है. पुलिस टीम ने इंदिरा नगर में पूछताछ की तो पता चला उस का नाम अरविंद तिवारी है और वह साईनाथ नगर की चाल में रहता है. पुलिस टीम साईनाथ नगर की चाल पहुंची, वहां अरविंद की चाल तो मिल गई लेकिन वह घर पर नहीं था. अलबत्ता उस की चाल में बदबू जरूर आ रही थी. इस से पुलिस टीम समझ गई कि वहां कुछ बहुत बुरा हुआ था. टीम लीडर संजय बाबर ने यह बात अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बता दी.

पुलिस ने आसपास रहने वालों से अरविंद तिवारी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह मुंबई मलाड की पवन हंस लौजिस्टिक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. यह भी पता चला कि अरविंद तिवारी वहां अपनी बेटी प्रिंसी के साथ रहता है. यह जानकारी क्राइम ब्रांच को दी गई तो पुलिस ने उसे ट्रांसपोर्ट कंपनी से गिरफ्तार कर लिया. बाद में क्राइम ब्रांच ने उसे थाना महात्मा फुले चौक की पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने अरविंद तिवारी से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि उस ने अपनी बेटी प्रिंसी का मर्डर किया था. हत्या का कारण उस ने बताया कि प्रिंसी अंतरजातीय विवाह करना चाहती थी, जो उसे मंजूर नहीं था.

अरविंद तिवारी ने आगे बताया कि उस ने बेटी का धड़ और सिर गठरी में बांध कर कल्याण के दुर्गाडी किले की खाड़ी में फेंक दिए थे. पुलिस ने दमकल विभाग, मछुआरों और उस क्षेत्र में आने जाने वालों की मदद से 2 दिन की मेहनत के बाद शरीर के दोनों हिस्से बरमद कर लिए. इधर आटो चालकों मोहम्मद खालिद और सलीम बाबू ने अरविंद तिवारी को पहचान लिया, काले बैग में शरीर का नीचे का हिस्सा भर कर वही कल्याण स्टेशन पर उतरा था और आटो से कहीं जाना चाहता था. अरविंद तिवारी उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर का रहने वाला था. उस की 4 बेटियां थीं, जो गांव में मां के साथ रहती थीं. सालों पहले अरविंद कामकाज की तलाश में मुंबई चला आया था.

मुंबई से सटे थाणे की तहसील टिटवाला के इंदिरा नगर स्थित साईनाथ नगर में उस ने किराए पर एक चाल ले ली और वहीं रहने लगा. जल्दी ही उसे मलाड की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. इस तरह अरविंद तिवारी थाणे में रह कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा. 6-6 महीने के अंतराल पर वह घर चला जाता था. मां के साथ रह कर उस की तीन बेटियां पढ़ रही थीं. उस की बड़ी बेटी प्रिंसी की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. दकियानूसी सोच ने बनाया हत्यारा प्रिंसी ने अपने पिता अरविंद से कहा कि वह थाणे में उस के पास रह कर नौकरी करना चाहती है. अरविंद को यह बात अच्छी लगी, क्योंकि प्रिंसी के नौकरी करने से घर में 2 कमाने वाले हो जाते. इसी के मद्देनजर वह प्रिंसी को थाणे ले आया. अरविंद काम पर चला जाता तो प्रिंसी अपने लिए नौकरी ढूढ़ती. जल्दी ही उसे कालसेंटर में नौकरी मिल गई.

प्रिंसी को थाणे आए एक साल से ज्यादा हो गया था. बापबेटी चैन से रह रहे थे. तभी अरविंद ने महसूस किया कि प्रिंसी में बदलाव आने लगा है. वह काम से आती भी देर से थी. दुनिया देख चुका अरविंद समझ गया कि जरूर कोई चक्कर है. उस ने जब इस बारे में पता लगाया तो पता चला प्रिंसी का एक युवक से चक्कर चल रहा है. वह युवक भी उसी कालसेंटर में काम करता था. अरविंद को यह जानकारी भी मिली कि प्रिंसी उस युवक के हाथों में हाथ डाल कर बेखौफ घूमती है. अरविंद ने इस बारे में प्रिंसी से प्यार से पूछा, लेकिन वह बहाना बना कर टाल गई. बेटी की बातें सुन कर अरविंद चुप रह गया. उस की समस्या यह थी कि वह जल्दी काम पर जाता था और देर शाम लौटता था.

बाप से बातचीत के बाद भी प्रिंसी की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आया. अरविंद ने उसे कई बार फोन पर देर तक बातें करते भी देखा. अब अरविंद को लगने लगा कि प्रिंसी उस से झूठ बोलती है. वह किसी दिन परिवार की इज्जत को पलीता लगा कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाएगी. दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव कस्बों के तमाम लोग मुंबई और उस से जुड़े थाणे व अन्य जगहों पर रहते हैं. ये लोग मुंबई में पैसा कमा कर घर भेजते हैं. पैसा कमाने के लिए मुंबई में रहने वाले ऐसे लोग न तो मुंबई को अपना बना सके और न ही गांव के रहे. इस के बावजूद ऐसे लोगों में घर परिवार और इज्जत की हनक गांव वाली ही रहती है. ये लोग बच्चों की शादियां और दूसरे समारोह गांवबिरादरी में ही करते हैं. अरविंद तिवारी भी ऐसा ही था.

जब प्रिंसी में कोई बदलाव नहीं आया तो अरविंद तिवारी ने उसे समझाया, ऊंचनीच की बातें बताईं. परिवार की इज्जत का रोना रोया. यह दांव न चलता देख अरविंद तिवारी ने एक नई चाल चली. उस ने प्रिंसी से कहा कि गांव में उस के लिए लड़का देख लिया गया है. सगाई और शादी के लिए उसे गांव जाना होगा. सच्चाई खोद निकाली पुलिस ने इस पर प्रिंसी की हकीकत सामने आ गई. उस ने पिता से दोटूक कह दिया, ‘‘मैं कालसेंटर में काम करने वाले एक लड़के से प्यार करती हूं और उस से शादी करूंगी’’

अरविंद ने बेटी को समझाने की लाख कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. इस की जगह वह विद्रोह पर उतर आई. प्रिंसी के तेवर देख अरविंद उस के बारे में गहराई से सोचने लगा. उसे यह बात खाए जा रही थी कि जब गांव के लोग प्रिंसी के बारे में पूछेंगे तो क्या जवाब देगा. प्रिंसी की जिद को ले कर उस के मन में गुस्सा भरा था. ऐसी ही मनोस्थिति में उस ने प्रिंसी को मौत के घाट उतारने का फैसला कर लिया. अपनी सोच को परिणाम तक पहुंचाने के लिए अरविंद तिवारी कल्याण से तेजधार वाला एक चाकू खरीद लाया, जिसे उस ने घर में छुपा कर रख दिया था. 5 दिसंबर, 2019 की शाम को प्रिंसी ने खाना बनाया, बापबेटी ने साथ बैठ कर खाना खाया.

इस के बाद प्रिंसी सोने के लिए अपने कमरे में चली गई. करीब आधी रात को जब प्रिंसी गहरी नींद में सोई थी, अरविंद चाकू ले कर उस के कमरे में पहुंचा और उस का गला रेत दिया. प्रिंसी मर गई तो अरविंद ने उस के शरीर के 3 हिस्से किए ताकि उन्हें अलगअलग जगहों पर फेंक सके. इन तीनों हिस्सों को उस ने पहले ही खरीद कर लाए पौलीथिन के काले रंग के बड़े से थैलों में अलगअलग भर दिया. इन में से सिर और धड़  वाले थैले वह रिक्शा में रख कर दुर्गाडी पुल पर ले गया. वहां से रिक्शा वापस लौटा कर उस ने दोनों थैले घाटी में फेंक दिए. अब प्रिंसी का धड़ से नीचे का हिस्सा बाकी बचा था. दुर्भाग्य से वह उसे 3 दिन तक नहीं फेंक सका और उस में से दुर्गंध आने लगी.

ऐसे में पासपड़ोस वालों को शक हो सकता था. इसलिए 8 दिसंबर को वह शेष बचा तीसरा थैला ले कर घर से निकला और टिटवाला से कल्याण की ट्रेन पकड़ ली. लेकिन दुर्भाग्य से वह जिस आटो में बैठने जा रहा था, उस के चालक ने बदबू महसूस कर के पूछ लिया, ‘‘थैले में लाश तो नहीं है?’’

अरविंद के मन में चोर था, इसलिए वह भाग निकला. फिर भी पुलिस उस तक पहुंच ही गई. अरविंद से विस्तृत पूछताछ के बाद उस की निशानदेही पर प्रिंसी का धड़ और सिर बरामद हो गया और वह चाकू भी, जिस से उस ने प्रिंसी का कत्ल किया था. सारी पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.