Maharashtra Crime Story: पिता और भाई ने की प्रेमी की हत्या, लड़की ने लाश से की शादी

Maharashtra Crime Story: एक ऐसी शर्मनाक घटना सामने आई है, जिस ने प्यार को पूरी तरह तारतार कर दिया है. महाराष्ट्र में भाई और पिता ने जाति के विरोध में बेटी आंचल के प्रेमी सक्षम की बेरहमी से हत्या कर दी. आरोप है कि पिता और भाई ने पहले सक्षम को बुरी तरह पीटा फिर उसे गोली मारी और पत्थर से कुचलकर मार डाला.

इस के बाद आंचल प्रेमी की मौत की खबर सुनकर उस के घर पहुंची और लाश के सामने ही सिर में सिंदूर भरकर शादी की रस्म पूरी कर दी. पूरा मामला जानना जरूरी है ताकि ऐसे अपराधों से लोग सचेत और सावधान रहें.  महाराष्ट्र के नांदेड़ के इटवारा से सामने आई यह घटना सभी को हैरान कर रही है. आंचल और सक्षम पिछले 3 साल से प्रेम संबंध में थे और शादी करना चाहते थे, लेकिन सक्षम दूसरी जाति का था, इसलिए आंचल के फेमिली वाले इस रिश्ते को मंज़ूर नहीं करते थे.वे उस पर सक्षम से दूरी बनाने का दबाव डाल रहे थे.

फेमिली वालों द्वारा साथ रहने की मनाही के बाद दोनों ने लव मैरिज का फैसला किया, लेकिन जब पिता गजानन मामीडवार और भाइयों को इस की जानकारी मिली तो उन्होंने सक्षम को बहाने से बुलाया. इस के बाद उन्होंने उसे जमकर पीटा, उस के सीने में गोली मारी और फिर सिर पत्थर से कुचल दिया. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद जब सक्षम का शव घर लाया गया तो आंचल भी वहां पहुंच गई. अपने प्रेमी की लाश देखते ही वह फूटफूट कर रोई और उसी के साथ विवाह की सारी रस्में निभाईं. उस ने सक्षम के हाथों से अपनी मांग भरी.

आंचल ने कहा, “मेरे भाई और पिता ने हमें अलग करना चाहा और सक्षम को मार दिया, लेकिन वे हार गए. मेरा प्रेमी मरकर भी जीत गया.” आंचल ने स्पष्ट कहा है कि वह पिता और भाई को सख़्त सज़ा दिलाना चाहती है. डीएसपी प्रशांत शिंदे के अनुसार, आरोपी पिता और भाई को गिरफ्तार कर लिया गया है. गजानन मामीडवार और साहिल मामीडवार ने अपराध कुबूल भी कर लिया है. नांदेड के डीएसपी प्रशांत शिंदे ने बताया कि सक्षम की पीटपीट कर हत्या की गई. पूरा मामला पुलिस जांच के अधीन है.

आपकी क्या राय है, पिता और भाई द्वारा सक्षम की हत्या सही है या गलत ? अगर आंचल सक्षम को सच में प्यार करती थी तो पिता को उस की पसंद का सम्मान करना चाहिए था. कब तक समाज जाति के नाम पर निर्दोष लोगों की जान लेता रहेगा? प्यार करने वाले कपल कब तक अपने ही परिवारों से लड़ते रहेंगे? समाज में रोज नए बदलाव हो रहे हैं और अगर बदलाव बेहतरी के लिए है, तो बदलने में कोई हर्ज नहीं है. सक्षम के मामले में ही अगर पेरेंट्स ने रिश्ता स्वीकार कर लिया होता तो बेटी खुश होती, समाज का एक धड़ा उनकी सोच का स्वागत करता, उन्हें कानूनी पचड़ें में नहीं पड़ना पड़ता, जेल कचहरी और वकीलों के चक्कर में पैसे नहीं गंवाने पड़ते.  Maharashtra Crime Story

Crime Stories: अपमान और नफरत की साजिश

Crime Stories: पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया. Crime Stories

Crime Stories: एक और निर्भया

लेखक – कस्तूरी रंगाचारी    

Crime Stories: बलात्कार अक्षम्य अपराध है, लेकिन कभीकभी हकीकत जानने के बाद भी लोग इसे छिपाने की कोशिश करते हैं. इस से बलात्कारियों के हौसले बढ़ते हैं. विद्या के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था, लेकिन…

कालेज से आते ही मैं ने और भइया ने मम्मी को परेशान करना शुरू कर दिया था. हम ने उन से गरमगरम पकौड़े बनाने के लिए कहा था. मम्मी पकौड़े बनाने की तैयारी कर रही थीं, तभी नीचे से तेजतेज आती आवाजें सुनाईं दीं.

‘‘ये कैसी आवाजें आ रही हैं?’’ कहते हुए रमेश भइया बालकनी की ओर भागे. उन के पीछेपीछे मैं और मम्मी भी बालकनी में आ गए. हम ने देखा, हमारी बिल्डिंग के नीचे एक जीप खड़ी थी, जिस से 4 लोग आए थे. वे स्वाति दीदी के फ्लैट के बाहर खड़े उन्हें धमका रहे थे. वे शक्लसूरत से ही गुंडेमवाली लग रहे थे. दरवाजा बंद था. इस का मतलब वह अंदर थीं, क्योंकि अब तक उन के औफिस से आने का समय हो गया था. यह बात पक्की थी कि वह उन गुंडों की धमकी को सुन रही थीं. कुछ देर तक नीचे से धमकाने के बाद भी जब दीदी बाहर नहीं आईं तो उन्हें लगा कि अब उन्हें उन के सामने आ कर धमकाना चाहिए. वे सीढि़यां चढ़ने लगे. उन के जूतों की आवाज स्वाति दीदी के दरवाजे की ओर बढ़ रही थी.

रमेश दरवाजे की ओर बढ़ तो मैं भी उस के पीछेपीछे चल पड़ी. मैं ने पीछे से पुकारा, ‘‘तुम दोनों कहां जा रहे हो?’’

‘‘वे सभी स्वाति दीदी के फ्लैट के सामने आ गए हैं,’’ रमेश ने हैरानी से कहा, ‘‘वह घर में अकेली होंगी. हमें उन की मदद के लिए जाना चाहिए, पता नहीं वे लोग क्या चाहते हैं? उन की बातों से साफ लग रहा है कि वे किसी अच्छे काम के लिए नहीं आए हैं.’’

‘‘तो क्या तुम दोनों उन गुंडेमवालियों से निपट लोगे?’’ मम्मी ने कहा.

‘‘भले ही निपट न पाएं, पर इन स्थितियों में कुछ तो करना ही होगा. हम घर में बैठ कर तमाशा तो नहीं देख सकते.’’ रमेश ने कहा.

मम्मी हमें रोक पातीं, इस से पहले ही हम दोनों दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. जीप से आए चारों आदमी स्वाति दीदी के दरवाजे के सामने खड़े हो कर दरवाजा खोलने के लिए कह रहे थे. उन का सरगना दरवाजे पर ठोकर मारते हुए कह रहा था. ‘‘जल्दी दरवाजा खोल कर बाहर आओ, वरना हम दरवाजा तोड़ देंगे.’’

‘‘हमारे नेता को बदनाम करने का अंजाम तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा.’’ उस के पीछे खड़े दूसरे आदमी ने कहा.

अब तक मैं और रमेश वहां पहुंच चुके थे. रमेश ने कहा, ‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, क्यों इतना शोर मचा रखा है?’’

उन में से एक आदमी ने पलट कर रमेश को घूरते हुए कहा, ‘‘तू अपना काम कर न, क्यों बेकार में बीच में पड़ रहा है.’’

रमेश भइया कुछ कहते, तब तक स्वाति दीदी का दरवाजा खुल गया. मैं ने उन की ओर देखा सलवार सूट पहने वह आराम से दरवाजे पर खड़ी थी. उस स्थिति में भी उन के चेहरे पर शांति झलक रही थी, साफ लग रहा था कि उन्हें इन लोगों से जरा भी डर नहीं लग रहा है. वह उन गुंडों की ओर देखते हुए मुसकरा रही थी. दरवाजे पर दीदी को देख कर उन चारों में से एक आदमी ने आगे आ कर कहा, ‘‘आप ने हमारे नेता का अपमान किया है, सरेआम उन की खिल्ली उड़ाई है. अब उस का अंजाम तो तुम्हें भुगतना ही होगा.’’

स्वाति दीदी उसी तरह खामोशी से खड़ी उन्हें देख रही थीं. उस आदमी की बात पूरी  होते ही उन्होंने पूछा, ‘‘कौन हैं तुम्हारे नेताजी, जिन का मैं ने अपमान कर दिया है?’’

‘‘मूलचंदजी, जिन्होंने कल रेप वाले मामले में बयान दिया था.’’

रेप की बात सुन कर मुझे लगा, जैसे किसी ने गरम सलाख मेरे शरीर पर रख दी हो. मन किया, यहां से चली जाऊं, लेकिन उस समय स्वाति दीदी उन चारों से घिरी थीं, इसलिए मजबूरन मुझे रुकना पड़ा. स्वाति दीदी ने बहुत ही ठंडे स्वर में कहा, ‘‘अच्छा तो तुम लोग मूलचंद के आदमी हो.’’

‘‘जी. अब तुम्हें उन से माफी मांगनी होगी.’’

‘‘माफी किस बात की?’’

‘‘जब हमारे नेताजी ने कहा कि जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ, वह खुद इस के लिए जिम्मेदार थी, तो तुम ने हमारे नेताजी को गलत बताया. उस के बाद से सारे चैनल तुम्हारी इसी बात को बारबार दोहरा रहे हैं, जिस से हमारे नेताजी झूठे साबित हो रहे हैं. अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा है.’’

‘‘उन्होंने जो कहा, वह गलत था, इसलिए मैं ने विरोध किया है.’’

‘‘उन के खिलाफ मीडिया में बयान दे कर तुम ने हमारे नेता का अपमान नहीं किया?’’

‘‘मैं ने उन का अपमान नहीं किया, बल्कि उन्हें सही राह दिखाई है. 15 साल की लड़की के साथ बलात्कार हुआ है, जो दसवीं में पढ़ रही थी. उस समय वह ट्यूशन पढ़ कर घर आ रही थी. शाम के 5 बज रहे थे, दिनदहाड़े उन लोगों ने उस का अपहरण कर लिया और सुनसान में ले जा कर उस के साथ बलात्कार किया. ऐसे में उस बच्ची की गलती कैसे कही जा सकती है?’’

एक 15 साल की लड़की, जो स्कूल में पढ़ रही थी, उस के साथ बलात्कार हुआ था. वह मुझ से केवल एक साल छोटी थी. मुझे लगा, एक बार फिर वह गरम सलाखें मेरे शरीर पर रख दी गईं. मेरे मुंह से कुछ निकलने वाला था कि मैं ने मुंह पर अपना हाथ रख लिया. स्वाति दीदी ने हैरानी से मेरी ओर देखा, ‘‘बेटा, क्या बात है?’’

मैं ने एक आदमी को हटाते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं दीदी, मुझे घर जाना चािहए.’’

मैं अपने फ्लैट की ओर बढ़ी. मैं दरवाजे के पास पहुंची ही थी कि मैं ने सुना, स्वाति दीदी कह रही थीं, ‘‘क्या तुम्हारी कोई बहन स्कूल नहीं जाती है? उस के साथ ऐसा हो जाए तो? वैसे मैं तुम्हें बता दूं कि मैं ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया है.’’

मैं घर आई तो मम्मी काफी शांत थीं. मुझे पता था कि पापा आएंगे तो वह हमारी शिकायत जरूर करेंगी कि हम लोगों ने उन की बात नहीं मानी और उन के मना करने के बाद भी हम स्वाति दीदी की मदद करने चले गए. जबकि वे गुंडे थे. मैं उन की ओर ध्यान दिए बगैर अपने कमरे में चली गई. रमेश मेरे आने के एक घंटे बाद आया. उस के आते ही मैं ने पूछा, ‘‘पुलिस आ गई थी?’’

‘‘नहीं, पुलिस नहीं आई. स्वाति दीदी ने पुलिस बुलाई ही कहां थी. वह तो उन्होंने गुंडों को सिर्फ डराने के लिए कहा था.’’ रमेश ने स्वाति दीदी की बुद्धि की सराहना करते हुए कहा, ‘‘जैसे ही उन्होंने पुलिस का नाम लिया, चारों गुंडे तुरंत भाग निकले थे.’’

रमेश ने बताया कि उन गुंडों के जाने के बाद स्वाति दीदी उसे अपने फ्लैट में ले गई थीं.

खूबसूरत और शांत स्वभाव की स्वाति दीदी 2 महीने पहले ही हमारे पड़ोस वाले फ्लैट में रहने आई थीं. रमेश उन से बहुत प्रभावित था, मुझे भी वह पसंद थीं. बातचीत से ही वह पढ़ीलिखी और बुद्धिमान लगती थीं. रमेश अपने और स्वाति दीदी के बीच हुई बातचीत बताने को बेचैन था. उस ने कहा, ‘‘जानती हो वह वकील और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह एक ऐसी सामाजिक संस्था की सदस्य हैं, जो रेप की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है. इस के अलावा वह रेप की शिकार मासूमों को समाज में उन का स्थान दिलाने में भी मदद करती हैं. उन की संस्था का नाम है ए सेकेंड लाइफ यानी एएसएल.’’

थोड़ी खामोशी के बाद उस ने कहा, ‘‘रेप महिलाओं के साथ होने वाला सब से खतरनाक अपराध है. लेकिन इस बात को समझ कर रेप की शिकार मासूमों की काउंसलिंग करा कर उन में आत्मविश्वास वापस लाने में मदद करने के बजाय हम उन के बारे में अफवाहें फैला कर उन्हें बदनाम करते हैं.’’

‘‘रमेश, मुझे तुम्हारी इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’ कह कर मैं ने उसे चुप कराना चाहा, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वह रेप के बारे में बातें करे. लेकिन रमेश ने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘एएसएल के सदस्य पीडि़त के साथ खड़े हो कर उस के जीवन को फिर से सामान्य बनाने की कोशिश करते हैं. हम सभी को भी यह काम करना चाहिए.’’

रमेश क्षण भर के लिए रुका. उसी बीच मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं ने कहा न, इन बातों में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है. रेप कितने शर्म की बात है.’’

रमेश ने जैसे मेरी बात सुनी ही नही. उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी एएसएल का सदस्य बनने की सोच रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी रेप पीडि़तों की मदद करना चाहते हो? लगता है स्वाति दीदी से तुम्हें कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया है?’’ मैं ने कहा, ‘‘ओह माई गौड! रमेश, वह उम्र में तुम से काफी बड़ी हैं. तुम उन्हें दीदी कहने के बजाय उन का नाम ले रहे हो. मालूम है न, वह तुम से कम से कम 8 या 9 साल बड़ी होंगी?’’

‘‘उम्र का इस मामले से क्या संबंध?’’ रमेश जोर से हंसा, ‘‘उम्र तो एक गिनती है.’’

इस तरह मैं ने बात का रुख स्वाति दीदी की ओर मोड़ दिया और रेप की बात समाप्त करने में कामयाब हो गई. लेकिन अपने मन से इस बात को नहीं निकाल सकी कि जब पापा को इस बारे में पता चलेगा तो वह हमें डाटेंगे जरूर, क्योंकि हम ने ऐसे मामले में टांग अड़ाई थी, जिस का संबंध हम लोगों से बिलकुल नहीं था. हम ने खुद को खतरे में डाला था लेकिन न जाने क्या सोच कर मम्मी ने इस मामले में हम बहनभाई को बचा लिया था. मुझे रमेश पर खतरा मंडराता दिखाई देर रहा था. अब वह अक्सर स्वाति दीदी के घर जाने लगा था. वह उन के घर घंटों बैठा रहता. एएसएल की बैठकों में भी जाने लगा था. उस की इन हरकतों का मम्मीपापा में से किसी को पता नहीं था.

कभी आने में देर हो जाती तो वह कोई न कोई कहानी सुना देता, कभी कहता कि वह अपने किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी में चला गया था तो कभी किसी सहपाठी की बीमारी का बहाना बना देता. उस के इन बहानों पर मुझे यह सोच कर कोफ्त होती कि बच्चे मातापिता को कितनी आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं. मांबाप को लगता है कि वे अपने बच्चों के बारे में सब कुछ जानते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वे अपने बच्चों की असलियत के नजदीक तक नहीं पहुंच पाते. वे अपने असली बच्चों की आदतों, रुचियों, हरकतों के बारे में नहीं जान पाते. एक दिन सारे के सारे न्यूज चैनलों पर एक ही खबर दिखाई जा रही थी कि एक लड़की देर रात जब काम से घर लौट रही थी तो 4 लड़कों ने बस अड्डे से उस का पीछा किया. जब वह सुनसान जगह पर पहुंची तो वे उसे झाडि़यों में खींच ले गए और उस का मुंह बंद कर के उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया.

लेकिन वह बहादुर लड़की निर्भया की तरह थी. इतनी तकलीफ और दर्द में भी उस ने होश नहीं खोया. उस स्थिति में भी उस ने हर एक बलात्कारी की सूरत अपने दिमाग में बैठा लीथी. उस ने यह भी याद रखा कि वे क्या बातें कर रहे थे. उन में से किसी ने अपने साथी को चिंटू कहा तो दूसरे ने उसे डांट कर चुप करा दिया. उन में से एक के गाल पर लंबे घाव का निशान था, जबकि 2 लोगों ने अपने चेहरों पर उस के सामने ही कपड़ा बांधा था, लेकिन उस ने उन का चेहरा अच्छी तरह से देख लिया था. उन लफंगों की मनमरजी से लड़की की हालत बहुत खराब हो गई थी, जब उन्हें लगा कि लड़की बेहोश हो गई है या मर चुकी है, तब उन्होंने किसी जगह का नाम लिया था. उस जगह पर वे तब तक छिपे रहने की बात कर रहे थे, जब तक यह मामला ठंडा नहीं पड़ जाता.

चारों लड़कों के जाने के बाद, लड़की ने हिम्मत बटोरी और लड़खड़ाती हुई किसी तरह पास के एक मकान तक पहुंच गई. उस की हालत देख कर लोगों ने पुलिस बुलाई, जिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया. लड़की ने अपने ऊपर हुए जुल्म की पूरी कहानी विस्तार से सुना दी. साथ ही उन चारों लड़कों के हुलिए बता कर उन की आपस की बातचीत भी बता दी. इस के बाद पुलिस उन चारों की तलाश में लग गई. ऐसा लग रहा था जैसे समाचार चैनल और अखबार वालों के पास दूसरा कोई समाचार ही नहीं था. हर जगह बस उसी लड़की को ले कर हायतौबा मची थी. हर कोई सिर्फ रेप के बारे में ही बातें कर रहा था. स्टूडेंट्स और औरतें प्रदर्शन कर रही थीं, सभाएं कर रही थीं, कैंडल लाइट मार्च निकाले जा रहे थे. बहसें हो रही थीं कि औरतें कैसे सुरक्षित रह सकती हैं.

लोग इस बारे में भी चर्चा कर रहे थे कि क्या रेप करने वालों को फांसी की सजा देनी चाहिए, जिस से इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकें. जैसे ही कोई अभियुक्त पकड़ा जाता, शोरशराबा मचता. धीरेधीरे चारों अभियुक्त पकड़े गए. जैसेजैसे उस लड़की के बारे में टीवी और अखबारों में खबरें आ रही थीं, मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. हर कोई इतनी बेशर्मी से क्यों बातें कर रहा था, मेरी समझ में नहीं आ रहा था. स्वाति दीदी की संस्था भी इस मामले में लगी थी. दीदी और रमेश भी लगे हुए थे. एएसएल के सदस्य जुलूस निकाल रहे थे, मीडिया के माध्यम से बयान जारी किए जा रहे थे. अब तक रमेश को लगने लगा था कि वह अपनी हरकतों को मम्मीपापा से छिपा नहीं सकता, इसलिए एक दिन उस ने पापा को बता दिया कि वह एएसएल से जुड़ गया है और उस के कार्यक्रमों में भाग ले रहा है.

पापा ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘यह तो अच्छी बात है. सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना ही चाहिए. तुम भी विरोध में भाग लो. इस बुराई के खिलाफ लड़ो और ऐसा बुरा काम करने वालों को सजा दिलवाओ.’’

मैं चुप बैठी रही. पापा को शायद मेरी इस चुप्पी पर हैरानी हुई कि मैं ने यह क्यों नहीं कहा कि रमेश के साथ जाऊंगी. इस की वजह यह थी कि रेप की बात सुन कर मेरा दिमाग घूम जाता था. अगले कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा. यही लग रहा था कि शहर में रेप के अलावा और कोई मुद्दा नहीं है. मैं इस सब से बहुत दूर रहती थी क्योंकि ‘रेप’ शब्द मुझे बीमार सा कर देता था, इसलिए मैं ने अखबार पढ़ना और टीवी देखना भी बंद कर दिया था. मैं उस जगह से हट जाती थी, जहां लोग रेप के बारे में बातें कर रहे होते थे. मैं उस दिन स्कूल भी नहीं गई थी, जिस दिन पुलिस यह बताने आने वाली थी कि लड़कियों को अपनी सुरक्षा कैसे करनी चाहिए. मम्मी से मैं ने कह दिया था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है.

एक शनिवार को रमेश ने मेरे कमरे में आ कर कहा, ‘‘वृंदा जल्दी तैयार हो जा. आज एएसएल एक सेमिनार करवा रहा है और हमें उस में अधिक से संख्या में पहुंचना चाहिए. इसलिए तुम भी चलो.’’

‘‘मैं नहीं जा सकती.’’ मैं ने बड़ी बेरुखी से कहा.

‘‘क्यों नहीं जा सकती भई? मैं देख रहा हूं इधर तुम कुछ बदलीबदली सी रहती हो. पहले तो तुम ऐसे कामों में मेरे साथ बड़े जोशोखरोश से भाग लेती थीं, अब ऐसा क्या हो गया, जो जाने से मना कर रही हो? जबकि यह लड़कियों का ही कार्यक्रम है.’’

‘‘मुझे पढ़ना है.’’

‘‘मुझ से बहाना बनाने की जरूरत नहीं है, तुम आलसी और स्वार्थी हो गई हो. तुम घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहती. किसी के दुख तकलीफ में उस का साथ नहीं देना चाहती.’’

‘‘तुम्हें जो सोचना है सोचते रहो, मुझे नहीं जाना तो नहीं जाना.’’

रमेश मुझे घूरता हुआ गुस्से में तेजी से मेरे कमरे से चला गया. उस पूरे दिन वह घर से बाहर ही रहा. मैं अपने कमरे में अकेली पड़ी रही, अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए सोचा चलो पड़ोस में रहने वाली सहेली के यहां चली जाऊं. जैसे ही मैं दरवाजे से बाहर निकली एक आवाज ने मुझे रोक लिया. स्वाति दीदी अपने दरवाजे पर खड़ी थीं. मैं अपने चेहरे पर मुसकान लाते हुए उन की ओर मुड़ी. उन्होंने कहा, ‘‘वृंदा यहां आओ.’’

‘‘मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’

‘‘दीदी, अभी मैं अपनी एक दोस्त से मिलने जा रही हूं.’’ मैं ने उन से बचने के लिए कहा.

‘‘चली जाना, पहले इधर आओ. आज तुम्हारे सकूल की छुट्टी है ना?’’

मैं मना नहीं कर सकी और चेहरे पर झूठी मुसकान लिए बोझिल कदमों से स्वाति दीदी के घर की ओर बढ़ी. वह बड़े प्यार से मुझे अंदर ले गई. अंदर पहुंच कर उन्होंने कहा, ‘‘तुम से बात किए हुए काफी समय हो गया. सुनाओ, आजकल क्या चल रहा है, तुम क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं, आजकल आप बहुत व्यस्त हैं न, इसलिए मैं आप के यहां नहीं आई.’’ मैं ने कहा.

लेकिन तुरंत ही मुझे अपने इन शब्दों पर अफसोस हुआ, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वह रेप के बारे में बातें करें, पर मैं जो गलती कर गई थी, उस से तय था कि वह उस बात का उल्लेख जरूर करेंगी.

‘‘हां, आजकल मैं थोड़ा व्यस्त हूं. दरअसल वह भयानक रेप था,’’ स्वाति दीदी ने मुझ पर नजरें गड़ा कर कहा, ‘‘लेकिन तुम रेप के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में भाग क्यों नहीं लेती, क्या बात है वृंदा?’’ रमेश कह रहा कि तुम उस दिन स्कूल भी नहीं गई थीं, जिस दिन पुलिस तुम्हारे स्कूल में यह बताने आई थी कि लड़कियों को अपनी सुरक्षा कैसे करनी चाहिए?’’

‘‘हां, नहीं गई थी.’’

‘‘क्यों? पुलिस ने जो बातें बताई थीं वे लड़कियों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थीं. उस से लड़कियों को अपनी सुरक्षा करने में मदद मिलेगी.’’

अब मैं चुप नहीं रह सकी. मैं ने कहा, ‘‘सच दीदी, क्या ऐसा हो सकता है? लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं लगता. अगर किसी इंसान या लड़के के अंदर छिपा वहशी जानवर किसी औरत या लड़की को नुकसान पहुंचाना चाहे तो ऐसा करने से क्या उसे रोका जा सकता है, क्या वह ऐसा नहीं करेगा?’’

स्वाति दीदी ने मेरी ओर हैरानी से देखा. उस के बाद एकएक शब्द पर जोर देते हुए बोलीं, ‘‘यह सच है कि शारीरिक रूप से पुरुष औरत से अधिक मजबूत होते हैं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि लड़कियां मजबूर और बेबस हैं. वह यह तो सीख ही सकती हैं कि अपनी सुरक्षा कैसे की जाए? अगर उन में लगन और इच्छाशक्ति है तो वह खुद को वहशी जानवरों से जरूर बचा सकती हैं.’’

‘‘नहीं बचा सकती दीदी. बहादुर से बहादुर और मजबूत से मजबूत लड़की भी ऐसा नहीं कर सकती. कोई और भी कुछ नहीं कर सकता. क्योंकि हर कोई उसे अपने नीचे दबाना चाहता है.’’

मेरी इन बातों से मेरा डर बाहर आ गया. मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मैं ने जल्दी से खुद पर काबू पाने की कोशिश की, क्योंकि मुझे पता था कि अगर मैं चुप नहीं हुई तो दीदी को पता चल जाएगा कि मेरे साथ कुछ बुरा हो रहा है. लेकिन न मैं खुद पर काबू रख पाई और न दीदी को मूर्ख बना पाई, क्योंकि ये दोनों ही काम मेरे लिए बहुत मुश्किल थे. मेरी हालत देख कर वह जल्दी से उठ कर मेरे पास आईं और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है वृंदा, मुझे बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ? अगर तुम मुझे सब बता दोगी तो तुम्हारे दिल और दिमाग से बोझ हट जाएगा. उस के बाद तुम काफी आराम महसूस करोगी.’’

‘‘नहीं दीदी, मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं ने सिसकते हुए कहा, ‘‘मैं तो किसी दूसरे के बारे में सोचसोच कर परेशान हूं.’’

‘‘यह सच नहीं है.’’ दीदी ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जरूर कुछ हुआ है, जिसे तुम छिपा रही हो. तुम्हारे साथ, जरूर यौन हिंसा जैसा कुछ हुआ है. वृंदा, मुझे बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ है?’’

मैं कुछ बोल नहीं सकी, क्योंकि हिचकियां लेले कर रोने से मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. दीदी ने खींच कर मुझे सीने से लगा लिया. वह धीरेधीरे मेरी पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘मुझे बताओ न वृंदा, क्या बात है? अपनी बात कह कर तुम बहुत शांति महसूस करोगी.’’

मैं ने खड़ी हो कर घबराई आवाज में कहा, ‘‘मुझे अब जाना चाहिए.’’

मैं दरवाजे की ओर बढ़ी, लेकिन आंखों में आंसू होने के कारण मुझे रास्ता दिखाई नहीं दिया, जिस से मैं लड़खड़ा गई. दीदी ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया और मुझे सोफे पर बैठा कर गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे साथ भी बलात्कार जैसा कुछ हुआ है क्या?’’

अब मैं चुप नहीं रह सकती थी. मैं ने कहा, ‘‘नहीं दीदी, मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. लेकिन मेरी सब से अच्छी सहेली विद्या, जो मेरी क्लासमेट भी है. उस के साथ रेप हुआ है. एक नहीं, 2 लड़कों ने उस के साथ जबरदस्ती की है.’’

दीदी ने एक लंबी सांस ले कर जल्दी से पूछा, ‘‘कब और कैसे हुआ यह सब?’’

दीदी की प्रतिक्रिया से मुझे डर सा लग रहा था, मैं जल्दी से थूक गटक कर बोली, ‘‘दीदी, यह तीन महीने पहले की बात है. वह दोनों लड़कों में से एक लड़के, जिस का नाम महेश है को जानती थी. वह उस के पड़ोस के फ्लैट में ही रहता था. महेश उस का पड़ोसी ही नहीं था, उस के पिता विद्या के पिता के साथ भागीदारी में कारोबार करते हैं. वह उसे अक्सर छेड़ा करता था. लेकिन इस बात को न महेश के मातापिता जानते थे और न ही विद्या के.’’

‘‘विद्या ने कभी किसी से उस की शिकायत भी नहीं की?’’

‘‘नहीं, उस की चुप्पी ने महेश को हिम्मत बढ़ा दी और एक दिन मौका मिलने पर महेश ने दोस्त के साथ मिल कर उस के साथ जबरदस्ती कर डाली.’’

‘‘यह सब कैसे हुआ?’’ स्वाति दीदी ने पूछा.

अब तक मेरी आंखों के आंसू थम गए थे. मैं उन्हें सब बता देना चाहती थी, जो मेरे अंदर दबा था, वह भी जो अपराधबोध महसूस कर रही थी. मैं ने कहना शुरू किया, ‘‘उस दिन वह स्कूल से घर आई तो उस के घर में ताला लगा था. उसे इस बात पर कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि कभीकभी ऐसा होता रहता था. उस की मम्मी कहीं जाती थी, तो ताला लगा कर चाबी महेश के घर छोड़ जाती थीं. विद्या ने चाबी लेने के लिए महेश के घर की डोरबेल बजा दी, क्योंकि उस समय महेश कालेज में होता था. घर में सिर्फ उस की मां ही होती थी.’’

‘‘लेकिन जब महेश ने दरवाजा खोला तो विद्या को झटका सा लगा. तभी महेश ने पलट कर कहा, ‘मम्मी, विद्या आई है चाबी लेने.’

विद्या को उस की मम्मी की आवाज सुनाई नहीं दी, इस के बावजूद किसी तरह का संदेह नहीं हुआ. महेश अंदर गया और वहीं से बोला, ‘‘विद्या तुम्हें मम्मी बुला रही हैं.’’

विद्या जैसे ही अंदर हौल में आई, महेश ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा बंद करने की आवाज सुन कर विद्या पलटी. लेकिन अब वह फंस चुकी थी. उस के दिमाग में खतरे की घंटियां बजने लगीं. वह कुछ कर पाती या कहती, इस से पहले ही महेश उस के पास आया और उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘तुम मूर्ख की मूर्ख ही रहीं. तुम्हें बता दूं कि मेरी और तुम्हारी मम्मी दिनभर के लिए बाहर गई हैं. इस वक्त मैं अपने दोस्त के साथ घर में अकेला हूं. तुम उस से मिलोगी? सचिन, जरा यहां तो आना.’’

महेश के मुंह से शराब की बदबू आ रही थी. विद्या ने चीखना चाहा, लेकिन दूसरे लड़के को देख कर उस की चीख गले में घुट कर रह गई. वह हाथ में बीयर की बोतल लिए था यानी वह भी पिए हुए था.  मैं थोड़ी देर के लिए चुप हुई. उस के बाद फिर कहना शुरू किया, ‘‘दोनों लड़कों ने उसी हाल में विद्या के साथ मनमानी की. उस के बाद वे सलाह करने लगे कि अब उन्हें क्या करना चाहिए. सलाहमशविरे के बाद उन्होंने विद्या के फ्लैट का दरवाजा खोला और उसे अपने फ्लैट से उठा कर उस के फ्लैट में पहुंचा दिया. इस बीच सचिन बाहर खड़ा निगरानी करता रहा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. बिल्डिंग में हर मंजिल पर 2 ही फ्लैट हैं, इसलिए वे अपने उद्देश्य में आसानी से सफल हो गए.

‘‘विद्या को उस के फ्लैट में छोड़ कर जाने से पहले महेश ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो उसी की बदनामी होगी. पापा का साझे का जो कारोबार है वह भी बंद हो जाएगा. इसलिए उस ने किसी से कुछ नहीं कहा.’’ मैं ने स्वाति दीदी को पूरी बात बता दी.

‘‘जब उस ने तुम्हें यह बात बताई तो तुम ने उसे क्यों नहीं समझाया कि उसे यह बात अपने मातापिता को बता देनी चाहिए?’’ दीदी ने उत्तेजित लहजे में कहा, ‘‘जानती हो, उस के चुप रहने से महेश और सचिन मौका मिलने पर फिर वैसा कर सकते हैं.’’

मैं खामोश बैठी रही. दीदी ने कुछ देर तक मेरे बोलने का इंतजार किया, जब मैं नहीं बोली तो उन्होंने पूछा, ‘‘अब विद्या कैसी है, वह इस सदमे से उबर गई है या अभी उस पर उस का असर है?’’

मैं ने उन के सवाल का जवाब नहीं दिया तो दीदी ने जोर डालते हुए पूछा, ‘‘वृंदा, मुझे बताओ न इस घटना का उस पर क्या असर पड़ा है. वह पहले की तरह पढ़लिख और खेलकूद रही है?’’

मुझे अपना दम घुटता हुआ सा महसूस हुआ. मेरा सिर घूमने लगा और फिर से मेरी आंखों में आंसू बहने लगे. मैं ने आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘पहले के मुकाबले अब वह काफी चुपचुप रहती है, पढ़ाई में भी उस का ध्यान नहीं लगता. दरअसल, उस दोपहर उस के साथ जो हुआ, उस ने उस के बारे में मुझे बता तो दिया लेकिन साथ ही कहा कि इस बारे में मैं किसी को कुछ न बताऊं. इसलिए मैं ने किसी को कुछ नहीं बताया.’’

‘‘और तुम चुप रह गईं,’’ दीदी ने ताना सा मारा, ‘‘तुम ने अपने दोस्त की मदद करने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘मैं उस के साथ होने वाली जबरदस्ती के बारे में किसी से कैसे बता सकती थी? सचमुच मैं ने उसे पूरी तरह से बर्बाद होने दिया? मैं ने उस समय भी कुछ नहीं किया, जब मेरे सामने ही उस के साथ दोनों जुर्म ढा रहे थे. मदद करने के बजाय मैं ने शर्म से अपना चेहरा दोनों हाथों से छिपा लिया था. मदद के लिए गुहार लगाने के बजाय रो रही थी.’’

इस के बाद मैं ने दीदी को आगे की वह शर्मनाक घटना भी सुना दी, ‘‘उस दिन एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए मैं स्कूल से सीधे विद्या के घर गई. उस के दरवाजे का ताला बंद था. वह चाबी लेने बराबर वाले फ्लैट में अंदर गई. मैं बाहर खड़ी हो कर इंतजार करने लगी. पलभर बाद मुझे उस की चीख सुनाई दी. मैं दरवाजे से सट कर खड़ी हो गई. अंदर महेश और सचिन जो बातें कर रहे थे, वे मुझे साफ सुनाई दे रही थीं. मुझे उन के मजे लेने की वे सिसकारियां भी सुनाई दे रही थीं, जो विद्या को नोचतेखसोटते हुए उन के मुंह से निकल रही थीं. मैं ने उन के भद्दे कमेंट्स भी सुने, जो वे विद्या के कपड़े उतारते हुए कर रहे थे.

‘‘मैं इस तरह सकते में आ गई कि मुझे सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी. विद्या का विरोध धीरेधीरे कमजोर पड़ता जा रहा था, और फिर उस की आवाज खामोश हो गई. उस के बाद उन्होंने वह सबकुछ किया जो उन्हें करना था.’’

‘‘तुम ने कुछ भी नहीं किया?’’ दीदी ने मरे से स्वर में पूछा, ‘‘तुम ने तब भी कुछ नहीं किया, जब यह सब कुछ हो रहा था?’’

‘‘हां, दीदी यह सच है कि मैं ने कुछ नहीं किया.’’ मैं ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘मुझे लकवा सा मार गया था. मैं ने आंखों से देखा तो नहीं, लेकिन जो कुछ भी हुआ, उसे कानों से सुना.’’

‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ दीदी ने उत्तेजित हो कर पूछा.

‘‘दीदी, मुझे होश तब आया जब महेश और सचिन ने विद्या को उस के फ्लैट में छोड़ने की बात की. वे उसे धमकी दे रहे थे कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो उस की इज्जत मिट्टी में मिला देंगे. भय के मारे मैं दौड़ती हुई सीढि़यां उतरने लगी. नीचे वाले फ्लोर पर आ कर मैं काफी देर कांपती हुई खड़ी रही. मैं दौड़ कर विद्या के फ्लैट के बाहर पहुंची और घंटी बजाई. विद्या ने दरवाजा नहीं खोला, तो मैं ने उस का नाम ले कर पुकारा. मेरी आवाज पहचान कर उस ने दरवाजा खोला.

‘‘जिस लड़की ने दरवाजा खोला, उस का नाम तो विद्या था, लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा था, वह विद्या ही है. उस के ऊपर जो कयामत गुजरी थी, उस से वह मृतक की तरह लग रही थी. मैं फूटफूट कर रोने लगी और उसे गले से लगा कर उस से माफी मांगने लगी कि मैं उस के लिए कुछ नहीं कर सकी.

मैं ने रोते हुए कहा, ‘‘मुझे बहुत दुख है विद्या कि मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकी. मुझे तुम्हारी मदद के लिए शोर मचाना चाहिए था, पुलिस को बुलाना चाहिए था.’’

‘‘भगवान का शुक्र है कि तुम ने ऐसा नहीं किया,’’ विद्या ने मरी सी आवाज में कहा, ‘‘और वादा करो कि आगे भी किसी से कुछ नहीं कहोगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें पुलिस के पास जाना चाहिए, मम्मीपापा से बताना चाहिए.’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों… मान लो तुम्हें किसी तरह की बीमारी हो गई या गर्भवती हो गई तो…?’’

‘‘तुम मेरे साथ डाक्टर के पास चलना. मैं अपना इलाज करा लूंगी या अबार्शन करा लूंगी. इस के अलावा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है. लेकिन तुम किसी और से यह बात कहना मत.’’ मैं ने उस से वादा किया था. दीदी, इसलिए मैं ने किसी से कुछ नहीं बताया.

‘‘न विद्या गर्भवती हुई और न ही उसे किसी प्रकार की बीमारी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘लेकिन अभी भी वह उसी रेपिस्ट के पड़ोस में रहती है?’’

‘‘जी.’’

‘‘इस के बाद उस ने फिर दोबारा उस से संपर्क करने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘जहां तक मुझे पता है, नहीं.’’

‘‘वह घर के अंदर कैसा महसूस कर रही है, तुम ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की? तुम ने उसे किसी काउंसलर के पास जाने को भी नहीं कहा.’’

‘‘नहीं’’

‘‘उसे ही नहीं, तुम्हें भी काउंसलर के पास जाना चाहिए.’’

‘‘मुझे क्यों? मेरे साथ क्या हुआ है?’’

‘‘तुम भी अपने दोस्त के साथ हुए हादसे की वजह से सदमे में हो. तुम्हें अपराधबोध हो रहा है. तुम ने अपने दोस्त की मदद नहीं की. तुम्हें भी काउंसलिंग की जरूरत है.’’

मैं ने दीदी की ओर ताकते हुए कहा, ‘‘हां दीदी, मुझे और विद्या, दोनों को मदद की जरूरत है.’’

‘‘दीदी अपने काम पर लग गईं. उन्होंने सब से पहले मेरे मम्मीपापा और रमेश से वह सब कुछ बताया. मेरे मम्मीपापा हैरान रह गए. उन्हें जैसे होश ही नहीं रहा, जबकि भाई तो गुस्से से पागल हो गया. वह खुद पर आरोप लगाने लगा कि उस की समझ में यह बात क्यों नहीं आई कि मेरे व्यवहार में बदलाव आ गया है.’’

इस के बाद दीदी ने विद्या को बहाने से अपने घर बुलवाया. उस के आने पर दीदी और मेरे मम्मीपापा ने उस से बात की. पहले तो विद्या पागलों की तरह इस तरह की किसी बात से इनकार करती रही. लेकिन जल्दी ही वह टूट गई और मेरी मम्मी की बाहों में रोते हुए उस ने अपने ऊपर होने वाले अत्याचार की पूरी कहानी सुना दी. दीदी ने उस की यह बात मान ली कि उस के मम्मीपापा को इस बारे में कुछ नहीं बताएंगी. लेकिन एएसल के सदस्यों ने महेश और सचिन को पकड़ कर कहा कि उन्होंने एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया है, इसलिए पुलिस से शिकायत कर के उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी. लेकिन वे अपना अपराध लिखित में स्वीकार कर के वादा करें कि अब वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें माफ किया जा सकता है.

दोनों ने वही किया, जैसा एएसएल के सदस्यों ने कहा. इस के बाद स्वाति दीदी ने दोनों की काउंसलिंग कराई. विद्या की भी काउंसलिंग कराई गई. कई सत्र के बाद विद्या रेप के सदमे से उबरी. इस से उस का खोया आत्मविश्वास वापस आ गया. अब मैं भी खुद को काफी बेहतर महसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं कभी इस अपराधबोध से उबर सकूंगी कि मैं ने तब अपनी दोस्त की मदद नहीं की, जब उसे मेरी सब से ज्यादा जरूरत थी. Crime Stories

 

UP Crime: दबंगई का तेजाब

UP Crime: एडवोकेट मनी बिश्नोई अपने फार्महाउस में काम करने वाले हरिसिंह की बेटी राधिका पर बुरी नजर रखता था. एक दिन उस ने जबरदस्ती करनी चाही, जिस का राधिका ने विरोध किया…

मुरादाबाद से 30 किलोमीटर दूर हरिद्वार रोड पर स्थित है कस्बा कांठ. इसी कस्बे के मोहल्ला पट्टीवाला में नए साल 2015 के पहले दिन दबंगई का एक ऐसा खेल खेला गया, जिस की गूंज मीडिया द्वारा पूरे देश में पहुंच गई. गौर करने वाली बात तो यह है कि इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस घटना को रफादफा करने की पुलिस ने पूरी कोशिश की थी. बात पहली जनवरी, 2015 को दोपहर के समय की है. राधिका सैनी अपने घर में कपड़े सिल रही थी. उस समय वह घर में अकेली थी. राधिका बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए वह खाली समय में घर पर ही कपड़े सिल लिया करती थी, जिस से कुछ पैसों की आमदनी हो जाती थी.

उसी समय कांठ का ही रहने वाला मनी बिश्नोई नाम का एक युवक उस के घर आ गया. वह वकील था. अपने घर में अचानक उसे देख कर वह डर गई. इस से पहले कि वह उस से कुछ कहती, मनी ने उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. राधिका ने इस का विरोध किया, लेकिन वह नहीं माना. राधिका ने शोर मचाने की धमकी दी तो मनी ने अपने साथ लाए डिब्बे का तेजाब उस के मुंह पर उड़ेल दिया. तेजाब की जलन से राधिका चीखनेचिल्लाने लगी. उस की नानी प्रेमवती सैनी उस समय घर के बाहर बैठी कुछ औरतों से बातें कर रही थीं. जैसे ही उन्होंने राधिका के चीखने की आवाज सुनी, वह तेजी से घर की तरफ भागीं. घर से उन्होंने मनी बिश्नोई को भागते देखा, उस के हाथ में प्लास्टिक का एक डिब्बा था. उन्होंने कमरे में राधिका को दर्द से छटपटाते देखा.

उस का चेहरा जैसे उधड़ा हुआ था. कमरे से तेजाब की गंध भी आ रही थी. वह समझ गईं कि मनी ही उस के ऊपर तेजाब डाल कर भागा है. प्रेमवती ने उसी समय शोर मचा दिया तो मोहल्ले के तमाम लोग घर में आ गए. प्रेमवती ने सब को बता दिया कि मनी राधिका के ऊपर तेजाब डाल कर भाग गया है. मनी बिश्नोई का घर थोड़ी ही दूर पर था. वह दबंग परिवार से था, इसलिए सब कुछ जानते हुए भी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई उस के यहां जा कर शिकायत करे. खबर मिलते ही राधिका के पिता हरिसिंह सैनी और मां भारती सैनी भी घर पहुंच गईं. वे मनी बिश्नोई के फार्महाउस पर ही काम करते थे. बेटी की हालत देख कर उन का दिल कांप उठा. वे शिकायत करने के लिए दौड़ेदौड़े मनी बिश्नोई के घर गए और उस के पिता अनिल बिश्नोई से इस हादसे की शिकायत की.

अनिल बिश्नोई ने बेटे की करतूत को गंभीरता से लेने के बजाय उलटे जवाब दिया, ‘‘ऐसी कौन सी बड़ी बात हो गई, जो मुंह फाड़े जा रहे हो. बेटे ने गलती कर दी है तो तुम्हारी बेटी का इलाज करवा दूंगा और मनी को भी डांट दूंगा.’’  अनिल ने उन्हें धमकाते हुए कहा, ‘‘यदि कोई पूछे तो बता देना कि टौयलट में रखी तेजाब की बोतल धोखे से गिर गई थी. याद रखो, तुम ने मेरा नमक खाया है यदि नमकहरामी की तो अंजाम बुरा होगा. मैं जो कह रहा हूं, उसी में तुम्हारी भलाई है. इसलिए जो मैं कह रहा हूं, एक कागज पर मुझे लिख कर दे दो और हां, ध्यान रखो कि तुम पुलिस के पास गए तो तुम्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है.’’

हरिसिंह अपनी पत्नी के साथ उस के फार्महाउस पर काम करते थे. इसलिए जैसा उस ने कहा, मजबूरी में उन्होंने उसे लिख कर दे दिया. उधर तेजाब की जलन से राधिका बुरी तरह तड़प रही थी. वह छटपटा रही थी. अनिल बिश्नोई उस का इलाज कराने के लिए एक निजी चिकित्सक के पास ले गया. वह काफी झुलस चुकी थी. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी. डाक्टर ने प्राथमिक उपचार करने के बाद राधिका को सरकारी अस्पताल ले जाने की सलाह दी. लेकिन अनिल उसे मुरादाबाद के सरकारी अस्पताल ले जाने के बजाय उसे उस के घर छोड़ आया. राधिका की हालत गंभीर होने के बावजूद भी उस का इलाज न कराना गांव वालों को भी बुरा लगा. मोहल्ले के कुछ असरदार और पढ़ेलिखे लोगों ने हरिसिंह को थाने जाने की सलाह दी.

यह बात हरिसिंह की भी समझ में आ गई तो वह पत्नी को ले कर थाना कांठ पहुंच गए. थानाप्रभारी को उन्होंने बेटी पर तेजाब डालने वाली बात बताई तो थानाप्रभारी ने मनी बिश्नोई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के राधिका को कांठ के सरकारी अस्पताल में भरती करा दिया. उस की गंभीर हालत देख कर कांठ के अस्पताल से उसे मुरादाबाद के सरकारी अस्पताल भेज दिया गया. उस की हालत गंभीर होने की वजह से पुलिस ने कोर्ट में उस के बयान भी नहीं कराए. हालत में सुधार होने पर 2 जनवरी को कोर्ट में बयान कराना था. अनिल को जब पता चला कि हरिसिंह ने उस के बेटे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने धमकी दी कि यदि उस ने रिपोर्ट वापस नहीं ली तो पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

इतना ही नहीं, 2 जनवरी को अनिल अपने 25-30 समर्थकों के साथ हरिसिंह के घर पहुंच गया और अपनी हेकड़ी दिखाते हुए परिवार को धमकाया तथा उसी समय राधिका के छोटे भाई सचिन का अपहरण कर के ले गया. जाते समय अनिल ने यह धमकी दी थी कि 2 जनवरी, 2015 को राधिका ने कोर्ट में हमारे खिलाफ बयान दिया तो सचिन की हत्या कर दी जाएगी. इस धमकी पर राधिका ही नहीं, उस के घर वाले भी डर गए. भाई की जान बचाने के लिए राधिका ने कोर्ट में वही बयान दिया, जैसा अनिल बिश्नोई चाहता था. उस ने कोर्ट में कहा कि टौयलट में रखा तेजाब उस के ऊपर धोखे से गिर गया था, जिस से वह झुलस गई.

जब मनी के घर वालों को पता चला कि राधिका ने उन के पक्ष में ही बयान दिया है तो वे बहुत खुश हुए. अब उन्हें तसल्ली हो गई कि पुलिस भी उन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी. पक्ष में बयान देने के बावजूद भी उन्होंने सचिन को रिहा नहीं किया. हरिसिंह ने उस से अपने बेटे को रिहा करने की गुहार लगाई, तब कहीं जा कर 2 दिनों बाद उस ने उसे आजाद किया. उधर मीडिया द्वारा यह तेजाब कांड सुर्खियों में आया तो कई सामाजिक संगठन कांड के विरोध में सामने आ गए. सैनी समाज हरिसिंह के साथ जुड़ गया. मुरादाबाद की समाजसेविका व अधिवक्ता सीता सैनी ने हरिसिंह के परिवार वालों से मुलाकात की और उन्हें विश्वास दिलाया कि वह उन्हें हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं और जब तक उस दरिंदे को सजा नहीं मिल जाती, वह भी चुप नहीं रहेंगी. उन्होंने डरीसहमी राधिका की भी हिम्मत बंधाई और शांत न बैठने की सलाह दी.

उधर मुरादाबाद के सरकारी अस्पताल में भरती राधिका की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी. उस का संक्रमण बढ़ रहा था, जिस की वजह से अस्पताल के डाक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए. उन्होंने सुझाव दिया कि यदि राधिका का अच्छा इलाज करवाना है तो उसे दिल्ली के बड़े अस्पताल ले जाएं. पीडि़त लड़की के घर वालों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे उसे दिल्ली ले जाएं. मगर इस काम में राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षक समिति के सदस्य आगे आए. वे 18 जनवरी, 2015 को राधिका को मुरादाबाद से दिल्ली ले गए और दिल्ली के डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने उसे एडमिट करवा दिया. सीता सैनी और अन्य लोगों के समझाने पर राधिका और उस के घर वालों की उम्मीद जागी कि अब शायद उन्हें न्याय मिलेगा.

फिर 9 जनवरी, 2015 को राधिका के मातापिता ने सीता सैनी के साथ मुरादाबाद के एसएसपी लव कुमार से मुलाकात कर के कहा कि राधिका ने 2 जनवरी को कोर्ट में जो बयान दिया था, वह अपने भाई की जान बचाने के लिए डर की वजह से दिया था. उन्होंने कोर्ट में फिर से बयान दर्ज कराने की मांग की. साथ ही गुहार लगाई कि इस केस की जांच कांठ के थानाप्रभारी के बजाय अन्य किसी अधिकारी से कराई जाए. उन की मांग पर एसएसपी ने यह मामला एसपी (ग्रामीण) प्रबल प्रताप सिंह के हवाले कर दिया और भरोसा दिया कि पीडि़त परिवार की सुरक्षा की जाएगी. घर वालों की मांग पर एसएसपी ने मामले की जांच कांठ के थानाप्रभारी से हटा कर कांठ के सीओ राहुल कुमार को सौंप दी.

एसएसपी के आदेश देते ही कांठ पुलिस हरकत में आ गई. सीओ राहुल कुमार ने अभियुक्त मनी बिश्नोई की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम उस के घर भेज दी. लेकिन उस के घर पर कोई नहीं मिला. घर के सभी लोग फरार हो चुके थे. इस के बाद पुलिस को चकमा दे कर अभियुक्त मनी बिश्नोई ने मुरादाबाद के एसीजेएम-5 के न्यायलय में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. चूंकि अनिल बिश्नोई एक दबंग व्यक्ति था. अपने वकील बेटे के जेल जाने पर वह अपनी बेइज्जती महसूस कर रहा था. इसलिए थाने में दर्ज कराई रिपोर्ट वापस कराने के लिए वह हरिसिंह सैनी को धमकियां देने लगा. हरिसिंह ने इस की शिकायत सीओ से की तो उन्होंने केस में पीडि़त परिवार को धमकाने और अपहरण की धाराएं बढ़ा दीं.

पुलिस को अभियुक्त मनी से पूछताछ भी करनी थी. इसलिए जांच अधिकारी ने अदालत में दरख्वास्त की तो अदालत ने उसे 6 घंटे के पुलिस रिमांड पर दे दिया. रिमांड अवधि में उस से पूछताछ के बाद तेजाब का खाली डिब्बा भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. उस ने राधिका के ऊपर तेजाब फेंकने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के बंगला गांव निवासी हरिसिंह सैनी की शादी करीब 22 साल पहले कांठ के पट्टीवाला मोहल्ले की भारती के साथ हुई थी, जिस से उस के 2 बेटियां व एक बेटा पैदा हुआ. राधिका परिवार में बड़ी बेटी थी. हरिसिंह पहले मुरादाबाद की ही एक पीतल फर्म में काम करता था. काम मंदा होने पर वह परेशान हो गया’ तब वह अपनी सास प्रेमवती के कहने पर बीवीबच्चों के साथ अपनी ससुराल कांठ चला गया. कांठ के ही अलगअलग स्कूलकालेज में उस ने अपने बच्चों का दाखिला करा दिया. प्रेमवती ने अपनी बेटी भारती और दामाद हरिसिंह की कांठ में ही अनिल बिश्नोई के फार्महाउस में नौकरी लगवा दी.

खेतों में दोनों पतिपत्नी मेहनतमजदूरी कर के जो कमा रहे थे, उस से उन के परिवार की गाड़ी चल रही थी. बच्चों की पढ़ाई भी ठीक चल रही थी. राधिका बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. 19 साल की राधिका पढ़ाई में होशियार थी. घर पर उस का जो खाली समय बचता था, उस में वह छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा देती और कपड़े सिल लिया करती थी. जबकि उस के मातापिता अनिल बिश्नोई के फार्महाउस पर काम करने निकल जाते थे. वैसे तो उन्हें खाना देने के लिए उस के छोटे भाईबहन चले जाते थे, लेकिन कभीकभी राधिका भी उन्हें खाना देने फार्महाउस चली जाती थी. उसी दौरान अनिल बिश्नोई के बेटे एडवोकेट मनी बिश्नोई की नजर उस पर पड़ी तो वह उस के पीछे पड़ गया.

राधिका उस के मंसूबों को समझ गई थी, लेकिन वह उस का विरोध इसलिए नहीं कर रही थी कि वह एक दबंग आदमी का बेटा था और दूसरे उस के मांबाप भी उस के यहां काम करते थे. राधिका के चुप रहने पर मनी की हिम्मत और बढ़ गई. अब वह उस से अश्लील मजाक करने लगा. किसी न किसी बहाने उस ने उस के घर भी आना शुरू कर दिया. वहां भी वह उसे ही टकटकी लगाए देखता रहता था. एक दिन राधिका ने मनी की शिकायत अपने मातापिता से कर दी. मातापिता मनी से तो कुछ कह नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने उस बिगड़ैल की शिकायत उस के पिता अनिल बिश्नोई से की. बेटे द्वारा अपने नौकर की बेटी का पीछा करने की बात अनिल बिश्नोई को भी बुरी लगी. उन्होंने मनी को बहुत डांटा और कहा कि यह कदम उठाने से पहले वह कम से कम अपना और उस का स्तर तो देख लेता.

परंतु बेटे के ऊपर तो राधिका को पाने का जुनून सवार था, लिहाजा पिता की डांट और समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह उसे हासिल करने की जुगत में लगा रहा. कालेज आतेजाते समय वह उसे परेशान करता. इस की शिकायत हरिसिंह ने फिर से अनिल से की. बेटे की शिकायतें सुनसुन कर अनिल भी परेशान हो गया. तब उस ने मनी की यह सोच कर शादी कर दी कि बीवी के आने पर उस की नकेल कस जाएगी. लेकिन अनिल की यह सोच भी गलत साबित हुई. शादी होने के बावजूद भी वह राधिका को परेशान करता रहा. दिसंबर, 2014 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस ने राधिका को रास्ते में रोक लिया और उस ने धमकी दी कि यदि उस ने उस के साथ शादी नहीं की तो उस के पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

डरीसहमी राधिका ने कोई जवाब नहीं दिया. घर आ कर उस ने यह बात अपने घर वालों को बता दी. जिस की शिकायत हरिसिंह ने फिर से अनिल बिश्नोई से की. तब अनिल बिश्नोई ने भी मनी को डांटा. इस से मनी और ज्यादा बौखला गया. उस ने घटना से 2 दिनों पहले राधिका को कालेज जाते समय रास्ते में रोक कर कहा कि अगर तू मेरी नहीं हुई तो तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा. राधिका उस की हरकतों से परेशान हो चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे उस से निजात कैसे मिले. पहली जनवरी, 2015 को दोपहर के समय वह अपने घर में बैठी कपड़े सिल रही थी. उस के मांबाप अपने काम पर गए हुए थे, तभी मनी बिश्नोई तेजाब का डिब्बा ले कर उस के यहां पहुंचा. उस ने राधिका के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. राधिका के विरोध करने पर जब उसे लगा कि उस का मकसद पूरा नहीं होगा तो उस ने डिब्बे में भरा तेजाब उस के चेहरे पर उड़ेल दिया.

अभियुक्त मनी बिश्नोई से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रिमांड अवधि खत्म होने से पूर्व ही उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी और राधिका का दिल्ली के डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, राधिका परिवर्तित नाम है.

True Crime Hindi: दौलत बनी दुश्मन

True Crime Hindi: ललिता शर्मा मशहूर हरियाणवी गायिका थी. उस के पति मोनू शेख को शराब पीने की लत थी. घर के नौकर सलमान के साथ उस के शराब पीने पर ललिता को ऐतराज था, इस से खिन्न हो कर सलमान ने अपने दोस्त के साथ ऐसी खौफनाक साजिश रची कि…

दिन निकलते ही एरा गार्डन के फ्लैट संख्या एन-103 के बाहर आसपास के दर्जनों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. वजह यह थी कि उस फ्लैट में रहने वाले दंपति की किसी ने धारदार हथियार से गोद कर हत्या कर दी थी. हत्यारों ने घर में लूटपाट भी की थी. जिन की हत्या हुई थी, उन में 35 वर्षीया ललिता शर्मा उर्फ नाजिया शेख व उस का पति मोनू शेख था. ललिता शर्मा हरियाणवी रागिनी की जानीमानी गायिका थी. बाहर खड़े लोगों के चेहरों पर इस वारदात की दहशत साफ दिखाई दे रही थी. उसी समय किसी ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

एरा गार्डन थाना ब्रह्मपुरी क्षेत्र में आता है. यह एक पौश कालोनी है, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रणबीर सिंह यादव सीनियर एसआई अजय कुमार, मनोज शर्मा, एसआई चंदगीराम, कांस्टेबल निशांत चौधरी, सुरेंद्र यादव, नौशाद अली व नजर अब्बास के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. यह फ्लैट पहली मंजिल पर था. पुलिस जब फ्लैट में पहुंची तो वहां का नजारा दिल दहला देने वाला था. बिस्तर पर ललिता खून से लथपथ पड़ी थी जबकि नीचे उस के पति की लाश पड़ी थी. देख कर ही लग रहा था कि हत्यारों ने दोनों पर किसी भारी चीज व धारदार हथियार से वार किए थे. ललिता की गरदन को धारदार हथियार से गोदा गया था. देखने से ही लग रहा था कि मृतका गर्भवती थी और वह हत्यारों से संघर्ष नहीं कर सकी थी, जबकि उस के पति ने संघर्ष किया था.

बेडरूम में लगी अलमारी व उस के अंदर की तिजोरी खुली हुई थी. इस के अलावा घर का सामान इधरउधर बिखरा हुआ था. दोहरे हत्याकांड की खबर मिलने पर मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, एसएसपी एस.एस. बघेल, एसपी (सिटी) ओमप्रकाश सिंह आदि भी मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो रसोई की सिंक में खून के निशान मिले. प्रथमदृष्टया लगा कि हत्याएं लूटपाट के लिए की गई हैं. वहीं पर मीट काटने वाला छुरा, जेनरेटर का हैंडल, शराब की खाली बोतल और 2 गिलास मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि शराब पीने के बाद हत्यारों ने इसी छुरे व जेनरेटर के हैंडल से दोनों की हत्याएं की होंगी.

पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. घटना के वक्त दंपति का 6 वर्षीय बेटा अयान ही जिंदा बचा था. वह डरासहमा लोगों के बीच खड़ा था. पुलिस ने लोगों से पूछताछ की तो एक व्यक्ति ने बताया, ‘‘साहब, अयान को पता है कि हत्याएं किस ने की हैं.’’

उस की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंके, ‘‘क्या?’’

‘‘जी साहब.’’ वह व्यक्ति पूरे विश्वास से बोला.

उस की बात सुनसुन कर एसएसपी को हत्या की गुत्थी सुलझती नजर आई. उन्होंने अयान से प्यार से पूछताछ की तो उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. अयान के अनुसार, हत्याएं घर के नौकर सलमान ने अपने दोस्त आदिल के साथ मिल कर उस के सामने ही की थीं. हत्यारे उसे भी खत्म कर देना चाहते थे, लेकिन उन्हें उस पर दया आ गई थी. साथ ही उन्होंने उसे डराधमका दिया था कि वह किसी को कुछ न बताए. हत्या का पता लोगों को सुबह अयान से ही चला था. पुलिस ने लोगों से पूछताछ के आधार पर सलमान व आदिल के नामपते नोट कर लिए. सलमान थाना लिसाड़ी गेट क्षेत्र के मोहल्ला ऊंचा सद्दीकनगर में रहता था, जबकि आदिल एरा गार्डन में ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां एजेंट था. पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसएसपी एस.एस. बघेल ने थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम को दोनों की तलाश में लगा दिया. ललिता हरियाणा की मशहूर गायिका थी. हरियाणा के अलावा अन्य प्रदेशों में भी उस की धूम थी. हरियाणा में ललिता के घर वालों को भी पुलिस ने हत्या की खबर भिजवा दी. पुलिस टीम ने दोनों आरोपियों के घरों में दबिश दी. वे अपने घरों से लापता मिले. पुलिस जांच में पता चला कि सलमान को 3 साल पहले ही ललिता ने अपने बेटे अयान की देखभाल के लिए नौकरी पर रखा था. इसी बीच आदिल उस का दोस्त बन गया था. ललिता के घर से एक मोटरसाइकिल भी गायब थी. अयान ने पुलिस को बताया कि वे दोनों उस के पापा की मोटरसाइकिल भी ले गए थे. पुलिस ने पूरे जिले में मोटरसाइकिल का नंबर वायरलैस पर फ्लैश करा कर चैकिंग अभियान चलाने के निर्देश दिए.

पुलिस को उम्मीद थी कि दोनों हत्यारे जिले से बाहर नहीं भागे होंगे. इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि नूरनगर फाटक वाली रोड पर 2 संदिग्ध युवक मोटरसाइकिल पर घूम रहे हैं. सूचना पा कर थानाप्रभारी रणबीर सिंह चेकिंग के लिए पहुंच गए. पुलिस के पास मोटरसाइकिल नंबर था ही. थोड़ी देर बाद उसी नंबर की एक मोटरसाइकिल पर 2 लड़के आए. पुलिस ने उन दोनों को रोक कर उन से पूछताछ की तो पता चला कि दोनों सलमान व आदिल हैं और वह मोटरसाइकिल वही है, जो उन्होंने ललिता शर्मा के घर से लूटी थी. जामातलाशी के दौरान उन के पास से सोने के आभूषण व नकदी भी मिली. पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. थाने में जब उन से पूछताछ की तो इस दोहरे हत्याकांड की एक बेहद चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

आखिर एक अचार बेचने वाले की बेटी का गायिका से शुरू हुआ जिंदगी का सफर प्रेम विवाह से होता हुआ मौत की दहलीज तक कैसे पहुंचा? दरअसल, ललिता शर्मा उर्फ नाजिया शेख मूलरूप से हरियाणा के हिसार जिले के हांसी क्षेत्र के रहने वाले रूपचंद की बेटी थी. रूपचंद साधारण व्यक्ति थे. उस के परिवार में ललिता के अलावा 5 और भी बच्चे थे. वह अचार बना कर बेचने का काम कर के किसी तरह परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. ललिता को बचपन से ही गाने का शौक था. वह वक्तबेवक्त कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती थी. एक बार कालेज के प्रोग्राम में उसे स्टेज पर गाने का मौका मिला तो उस ने जम कर तालियां बटोरीं. कार्यक्रम खत्म होने के बाद एक शिक्षक ने उस की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘ललिता, तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है. तुम अभ्यास करो. मुझे उम्मीद है कि एक दिन तुम बहुत ऊंचे मुकाम पर जाओगी.’’

शिक्षक की सलाह को ललिता ने गंभीरता से लिया. वह अपने गायन पर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी. अब कालेज में कोई भी प्रोग्राम होता तो वह झूम कर गाती. ललिता के परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. वह चाहती थी कि यदि इसी गायन से उसे थोड़ीबहुत आमदनी होने लगे तो परिवार की हालत सुधर जाए. लगातार अभ्यास करने पर उस की गायिकी सुधरती गई. उस के पास गायिकी का हुनर था. 22 साल की उम्र में ही उस ने कालेज के स्टेज से निकल कर गायिकी को अपना कैरियर बनाने की ठान ली. उस ने कोशिश भी की, सफलता इतनी आसानी से नहीं मिलती, यह बात उसे बहुत जल्द समझ में आ गई. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने कोशिश करनी नहीं छोड़ी.

कहते हैं, कोशिशें लगातार की जाएं तो कामयाबी जरूर मिलती है. इलाके की एक जागरण मंडली ने उसे अपने साथ रख लिया. जागरण में वह भजन गाने लगी. इस से उसे कुछ पैसे भी मिल जाया करते थे. यानी यहां से उसे अपने हुनर के पैसे मिलने शुरू हो गए. इस से उस के हौसले और बढ़ गए. वह ऊंचाइयों पर जाना चाहती थी. इसी दौरान उस ने हरियाणवी रागिनी जगत में पहचान बनाने के प्रयास किए तो कुछ लोगों से उस के संपर्क हो गए. मौका मिला तो उस ने ‘जीव जंतु और पशे पखेरू नाच्चे दुनिया सारी’ नामक रागिनी गाई. इस से उसे एक नई पहचान मिली. लोगों ने इसे खूब पसंद किया. इस के बाद उसे रागिनी समारोह में बुलाया जाने लगा. वह धीरेधीरे सफलता की सीढि़यां चढ़ रही थी. धीरेधीरे उस की रागिनियों में मांग बढ़ने लगी.

ललिता युवावस्था में ही गायिका बन गई. जिस परिवेश में वह पलीबढ़ी थी, वहां बेटियों की फिक्र करना आम बात है. उस के पिता को उस की शादी की फिक्र होने लगी. वह चाहते थे कि समय रहते उस की शादी हो जाए तो ठीक रहेगा. इस बारे में उन्होंने ललिता से बात की तो ललिता ने फिलहाल शादी के लिए मना कर दिया. वह कोई मुकाम हासिल करने के बाद ही शादी करना चाहती थी. पिता को उस की बात समझ में आ गई. ललिता अपने कार्यक्रमों में अकेली ही जाती थी. बेटी को कोई परेशानी न हो, इस के लिए रूपचंद ने अपने पड़ोस में रहने वाले मोनू शेख से बात की. मोनू कार चलाता था. उन्होंने उसे ललिता के साथ आनेजाने के लिए तैयार कर लिया. ललिता भी इस से खुश थी.

कहते हैं, जब सफलता मिलती है तो फिर रुकती नहीं. ललिता के साथ भी यही हुआ. उस की रागिनी की सीडी बना कर बाजार में बेची जाने लगीं. इस से उसे अच्छे पैसे भी मिलने लगे. कुछ सालों में ही दर्जनों सीडियां बाजार में आ गईं. कई छोटीबड़ी कंपनियों ने उस की आवाज को रेकार्ड कर के बेचा. इस के बाद तो हरियाणा में रागिनी गायिका के रूप में ललिता का नाम सम्मान के साथ लिया जाने लगा. जब आमदनी बढ़ी तो उस के परिवार की दशा भी सुधर गई. परिवार व नातेरिश्तेदार भी ललिता की प्रगति से बेहद खुश थे. ललिता रागिनी जगत में तेजी से उभरता सितारा थी. कहते हैं, जिंदगी में कब कौन सा मोड़ आ जाए, इस बात को कोई नहीं जानता. ललिता के साथ अकसर बाहर सफर में मोनू शेख रहता था. वह ललिता की हमउम्र था.

वक्त के साथ दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया. दोनों साथ रहते थे और खूब बातें किया करते थे. धीरेधीरे आंखों के रास्ते दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. मोनू पहला शख्स था, जिस ने उस के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी थी. एक दिन बातोंबातों में मोनू ने अपने प्यार का उस से इजहार भी कर दिया. प्यार का इजहार हुआ तो दोनों एकदूसरे को देखने को बेकरार रहने लगे. मोनू ललिता का सब से विश्वासपात्र साथी था. समय के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. यह बात अलग थी कि अपने इस प्यार को दोनों ने जमाने से छिपाए रखा. ललिता ने हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान व अन्य स्थानों पर सैकड़ों कार्यक्रम किए, हर जगह मोनू साथ रहा.

ललिता अपनी प्रगति और मोनू के प्यार, दोनों से ही बहुत खुश थी. प्यार में डूबा मोनू भी उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाता. हालांकि दोनों अलगअलग धर्मों के थे, इस के बावजूद भी उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे. जाहिर है, यह बात किसी को भी अच्छी लगने वाली नहीं थी. निस्संदेह ऐसे रिश्ते छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे क्षेत्र में दोनों को ले कर चर्चाएं होने लगीं. रूपचंद को यह बात नागवार गुजरी. उन्होंने मोनू को इसलिए रखा था कि वह सुरक्षित रहे, लेकिन वे दोनों प्रेम डगर पर चल निकले थे. उन्होंने इस बात को ले कर ललिता को फटकारा तो उस ने दो टूक कह दिया कि वह मोनू से प्यार करती है.

इस पर रूपचंद बोले, ‘‘ठीक है, तुम कलाकार बन गई हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि कुछ भी करो. अब तुम मोनू के साथ जाना बंद कर दो.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ ललिता का टका सा जवाब सुन कर रूपचंद सकते में आ गए. रूपचंद ने जमाना देखा था. उन्होंने बेटी को जमाने की ऊंचनीच समझाई. वह जिस समाज में रह रहे थे, वहां ऐसी बातों को गंभीरता से लिया जाता था. इसलिए उन्होंने बेटी को काफी समझाने की कोशिश की.

ललिता और मोनू शादी करने का फैसला कर चुके थे, जबकि घरों में रहते हुए यह मुमकिन नहीं था. ललिता अपने परिवार के लिए मुश्किलें पैदा नहीं करना चाहती थी, इसलिए सन 2007 में दोनों ने घर छोड़ दिया. रूपचंद ने बेटी को बहुत समझाया, लेकिन जब वह अपने निर्णय पर अटल रही तो उन्होंने उस से रिश्ते तोड़ लिए. ललिता और मोनू मेरठ जा कर मोहल्ला तीरगरान में रहने लगे. ललिता ने मोनू से निकाह कर के अपना नाम नाजिया शेख रख लिया. जबकि गायिकी के क्षेत्र में उस का पुराना नाम ही चलता रहा. उसे इसी नाम से पहचान मिली थी, इसलिए वह गायन के क्षेत्र में अपना नाम बदलना नहीं चाहती थी. ललिता के पास खूब पैसा आ रहा था. उस के पास लग्जरी कार थी. उसे सोने के गहने पहनने का भी बहुत शौक था. विवाह के एक साल बाद ललिता ने एक बेटे को जन्म दिया. दोनों ने बेटे का नाम अयान शेख उर्फ अनु शर्मा रखा. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. ललिता गायिकी के क्षेत्र में नाम और दाम दोनों कमा रही थी.

ललिता की इस कमाई ने मोनू को नकारा बना दिया था. कहते हैं, इंसान के पास जब पैसा आता है तो साथसाथ बुरी आदतें भी आ जाती हैं. मोनू के साथ भी यही हुआ. उसे महंगी शराब पीने की लत लग गई. ललिता ने शुरूशुरू में तो कुछ नहीं कहा, बाद में उस ने मोनू को टोकना शुरू कर दिया. लेकिन ऐसी आदतें आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं. ललिता ने सोचा कि शायद मोनू का खाली रहना ही सब से बड़ी परेशानी है. भविष्य की सोचते हुए उस ने उसे प्रौपर्टी के काम में लगा दिया. अयान को ललिता व मोनू, दोनों ही बहुत प्यार करते थे. 2 साल पहले ललिता ने एरा गार्डन में प्रथम तल पर फ्लैट नंबर 103 खरीद लिया था. वक्त के साथ जैसेजैसे पैसा आता रहा, ललिता उसे प्रौपर्टी में लगाती रही. उस ने करोड़ों की प्रौपर्टी बना ली. उस के शरीर पर हर वक्त लाखों रुपए का सोना रहता था.

ललिता की रागिनियों की सीडियां बाजार में हाथोंहाथ बिक रही थीं. ललिता प्रोग्राम करने के लिए अकसर बाहर जाती रहती थी. इसलिए बेटे की देखभाल के लिए उस ने मेरठ के लिसाड़ी गेट थानाक्षेत्र के मोहल्ला ऊंचा सद्दीकनगर निवासी बाबू कुरैशी के बेटे सलमान उर्फ सेम को बतौर नौकर रख लिया था. सलमान अच्छा लड़का था. बहुत जल्द उस ने अपने व्यवहार से पतिपत्नी दोनों का दिल जीत लिया. सलमान घर का नौकर था, मोनू उसे भेज कर अपने लिए शराब मंगा लिया करता था. हालांकि इस बात पर ललिता मोनू व सलमान दोनों को ही डांट देती थी. सलमान की दोस्ती एरा गार्डन में एक प्रौपर्टी डीलर के हमउम्र एजेंट आदिल उर्फ आदि से थी. इसी नाते कभीकभी वह भी ललिता के घर आ जाता था.

मोनू की शराब की लत से ललिता परेशान थी. उस ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन वह उस की बात को एक कान से सुन कर दूसरी से निकाल देता था. ललिता को पता चला कि मोनू सलमान से शराब मंगाता है तो उस ने एक दिन सलमान को भी फटकार दिया. इसी दौरान ललिता गर्भवती हो गई. इतने लंबे अरसे में मोनू व ललिता का अपने परिवारों से संपर्क नहीं हुआ था. ललिता की बहन पिंकी भी गायिकी के क्षेत्र में आ गई थी. इस नाते उस की ललिता से बातें हो जाया करती थीं. अयान मातापिता के अलावा सभी रिश्तेदारों से अनजान था, क्योंकि वह कभी किसी रिश्तेदारी में नहीं गया था. मोनू की शराब की लत के अलावा ललिता को कोई परेशानी नहीं थी. मोनू खुद शराब पीता था, यहां तक तो ठीक था. हालात तब बिगड़े, जब मोनू सलमान को भी अपने पास बिठा कर शराब पिलाने लगा.

शराब के मामले में नौकर को बराबर का दरजा मिल रहा था, इस बात से सलमान खुश था. एक दिन ललिता ने अपनी आंखों से यह देखा तो उसे एकाएक भरोसा नहीं हुआ. उस ने सलमान को खूब डांटाफटकारा. पहले भी ऐसे कई मौके आए थे, जब उस ने ललिता की डांट खाई थी. सलमान मोनू को तो पसंद करता था. लेकिन डांटने की आदत के चलते ललिता को पसंद नहीं करता था. फलस्वरूप वह अंदर ही अंदर उस से खार खाने लगा. 6 अप्रैल, 2015 की शाम मोनू, सलमान व आदिल ने शराब की महफिल सजा ली. ललिता ने यह देखा तो जम कर हंगामा किया. मजबूरन करीब 8 बजे उन्हें महफिल खत्म करनी पड़ी. सलमान व आदिल वहां से चले गए. आदिल सलमान को अपने घर ले गया. वह जिस प्रौपर्टी डीलर के यहां नौकरी करता था, उसी के फ्लैट में रहता भी था. इस से फ्लैट की भी देखभाल हो जाती थी.

ललिता के लिए सलमान के मन में पहले ही बहुत गुस्सा था. उस दिन मस्ती में खलल पड़ने से उस का गुस्सा अंगार बन गया. फलस्वरूप उस ने मन ही मन एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. ललिता लाखों में खेलती थी, घर में भी लाखों रुपए रहते थे. सलमान ने सोचा कि यदि उसे रास्ते से हटा दिया जाए तो अमीर बन जाएगा. उस ने उसी रात आदिल के साथ मिल कर ललिता को रास्ते से हटा कर लूट की योजना बना ली. आदिल भी लालच और दोस्ती में उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. रात करीब साढ़े 9 बजे दोनों दोबारा ललिता के घर पहुंचे तो ललिता उन्हें देख कर भड़क गई.

‘‘मेमसाहब, इस को माफ कर दो. यह अपनी गलती पर बहुत रो रहा था.’’ आदिल ने भोलेपन से कहा.

ललिता उन के खतरनाक इरादों से अनजान थी. वह नहीं जानती थी कि भोलेपन का नाटक कर के उसे झांसे में लिया जा रहा है. सो उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, अब कभी ऐसी गलती नहीं करना.’’

‘‘खुदा की कसम, अब कभी ऐसा नहीं होगा.’’ सलमान ने तुरंत कान पकड़ते हुए कहा.

उसे समझा कर ललिता बैडरूम में चली गई. कुछ देर बाद उसे नींद आ गई. मोनू व अयान पहले ही सो चुके थे. सब सो गए, लेकिन सलमान व आदिल नहीं सो सके. सलमान व आदिल करीब 12 बजे रसोई में पहुंचे और वहां बैठ कर दोनों ने शराब पी. दोनों पर नशा हावी होने लगा तो उन्होंने रसोई से मीट काटने वाला छुरा ले लिया. आदिल इस बीच बाहर से जेनरेटर स्टार्ट करने वाला हैंडल ले आया था. इस के बाद दोनों बैडरूम में दाखिल हो गए. ललिता, मोनू व अयान एक ही बिस्तर पर सो रहे थे.

सलमान ने डे्रसिंग टेबल से अलमारी की चाबी निकाली और उसे खोल कर लूटपाट शुरू कर दी. इस बीच ललिता की आंखें खुल गईं तो दोनों उस की तरफ दौड़े. सलमान ने ललिता के बाल पकड़े और मुंह दबा कर उसे दबोच लिया, जबकि आदिल ने छुरे से उस की गरदन और शरीर के अन्य हिस्सों पर एक के बाद एक कई वार कर दिए. अचानक हुए हमले का ललिता विरोध नहीं कर सकी. उस की घुटीघुटी सी चीख निकली और लहूलुहान हो कर उस ने दम तोड़ दिया. इस बीच मोनू जाग गया. पत्नी का ऐसा हश्र देख कर उस के होश उड़ गए. मोनू खड़ा हुआ और दोनों से भिड़ गया.

सलमान व आदिल के सिर पर खून सवार था, उन्होंने जेनरेटर के हैंडल से मोनू के सिर पर प्रहार किया. वार होते ही मोनू नीचे गिर गया और तड़प कर कुछ ही देर में उस ने भी दम तोड़ दिया. इस बीच अयान की आंखें भी खुल गईं, लेकिन वह दहशत में कुछ नहीं बोला. दोनों ने उसे घूर कर देखा.

‘‘इस का क्या करें?’’ आदिल ने सलमान से पूछा तो वह बोला, ‘‘बच्चा है, डरा हुआ है. यह किसी को कुछ नहीं बताएगा, समझा देते हैं.’’

‘‘किसी को कुछ मत बताना वरना तुझे भी ऐसे ही मार देंगे.’’ सलमान ने डरेसहमे अयान को धमकी दी. इस के बाद दोनों ने गहने व नकदी लूटी और रसोई में जा कर हाथ धोए. तत्पश्चात अयान को साथ ले कर उन्होंने घर में खड़ी मोटरसाइकिल भी निकाल ली. अयान को ले कर आदिल ने फिर कहा, ‘‘इसे साथ ले चलते हैं, मार कर कहीं नहर में फेंक देंगे.’’

‘‘नहीं, इस ने अपनी आंखों से खूनखराबा देखा है. यह किसी को कुछ नहीं बताएगा.’’ सलमान ने आदिल को समझाया. अयान को वहीं छोड़ कर दोनों मोटरसाइकिल ले कर फरार हो गए.

उन के चले जाने पर अयान ने बाहर आ कर शोर मचा दिया. शाम होतेहोते सलमान व आदिल पुलिस की गिरफ्त में आ गए. दूसरी तरफ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि ललिता के गर्भ में पल रहे 7 महीने के शिशु की भी मौत हो चुकी थी. आरोपियों के कब्जे से पुलिस ने ललिता के यहां से लूटे गए आभूषण व नकदी भी बरामद कर ली थी. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. उधर अयान की सुपुर्दगी को ले कर मोनू व ललिता के परिजन आगे आ गए. अयान किसी को नहीं पहचानता था. दोनों परिवारों में उसे ले कर खींचतान होने लगी. मामला पेचीदा होने पर पुलिस ने अयान को बाल सदन भेज दिया. अदालती आदेश पर ही अब उस की सुपुर्दगी होगी.

कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. शराब की लत में मोनू ने नौकर को इस तरह सिर पर न चढ़ाया होता और ललिता ने दौलत की चकाचौंध न दिखाई होती तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती. True Crime Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime: मौत को न्यौता देती मौहब्बत

Love Crime: प्रतिभा और बबलू की जाति तो अलग थी ही, सामाजिक और आर्थिक असमानता भी थी. फिर भी दोनों में प्यार ही नहीं हुआ, वे शादी के लिए घर से भाग भी गए थे. तब उन के विवाह में अड़चन कहां आई?

बबलू और प्रतिभा का कोई जोड़ नहीं था. दोनों की जाति में ही नहीं, सामाजिक और आर्थिक स्तर में भी काफी फर्क था. बस एक ही बात मेल खाती थी, वह थी उम्र. दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े थे. शायद इसी वजह से दोनों में प्यार हो गया था. प्यार भी ऐसा कि दोनों अपने प्यार के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. बबलू उत्तर प्रदेश के जिला एटा के थाना मारहरा के गांव मोहिनी के रहने वाले वीरपाल जाटव का बेटा था. वीरपाल कोई बड़े आदमी नही थे. उन के पास खेती की थोड़ी जमीन थी. उसी की कमाई से 5 बेटों और एक बेटी को पालापोसा. जवान होने पर 2 बेटे राजाराम और प्रमोद दिल्ली चले गए. कमानेधमाने लगे तो वीरपाल ने उन की शादियां कर दीं. शादियों के बाद वे अपनेअपने परिवार को भी दिल्ली ले गए.

उन दोनों से छोटा बबलू गांव में ही रहता था और ड्राइविंग सीख कर किसी की जीप चलाता था. उस से छोटे बंटी और कुलदीप वीरपाल की खेती में मदद करते थे. वीरपाल की पत्नी जावित्री देवी घरपरिवार को ठीक से संभाल रही थी. प्रतिभा भी इसी गांव के रहने वाले विजय प्रताप बघेल की बेटी थी. उन की आर्थिक स्थिति काफी ठीकठाक थी. उन की अपनी कुछ गाडि़यां थीं, जो किराए पर चलती थीं. इस के अलावा वह ब्याज पर भी रुपए देते थे, खेती होती ही थी. विजय प्रताप के परिवार में पत्नी भूदेवी के अलावा 2 बेटियां प्रतिभा, प्रिया और 2 बेटे ललित तथा अंकित थे.

विजय प्रताप के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए वह बच्चों को पढ़ालिखा कर किसी काबिल बनाना चाहते थे. इंटर पास करने के बाद प्रतिभा ने बीएससी करने की इच्छा जाहिर की तो विजय प्रताप ने उस का दाखिला पड़ोस के गांव रामनगर स्थित डिग्री कालेज में करवा दिया. यह 3 साल पहले की बात है. प्रतिभा कालेज तांगे से आतीजाती थी. एक दिन उसे तांगा नहीं मिला तो वह पैदल ही कालेज के लिए चल पड़ी. वह कुछ दूर ही गई थी कि एक जीप उस के पास आ कर रुक गई. उस ने पलट कर देखा तो जीप उस के गांव का बबलू चला रहा था. उस ने कहा, ‘‘आज तांगा नहीं मिला क्या, जो तुम पैदल ही कालेज जा रही हो? खैर कोई बात नहीं, आओ बैठो, मैं तुम्हें छोड़ देता हूं. मैं उधर ही जा रहा हूं.’’

एक ही गांव का होने की वजह से प्रतिभा बबलू को अच्छी तरह जानती थी, लेकिन कभी बातचीत नहीं हुई थी, क्योंकि कभी मौका ही नहीं मिला था. एक तो कालेज के लिए देर हो रही थी, दूसरे बबलू गांव का ही था, इसलिए उस के साथ जीप में बैठने में उसे कोई बुराई नजर नहीं आई. वह चुपचाप बैठ गई. कुछ दूर जाने के बाद बबलू ने कहा, ‘‘आप भाग्यशाली हैं, जो पढ़ रही हैं. मेरे घर में पढ़ाईलिखाई का माहौल ही नहीं था, इसलिए मैं नहीं पढ़ पाया. आप मन लगा कर खूब पढि़एगा.’’

‘‘आप पढ़ नहीं पाए तो क्या हुआ, गाड़ी तो चला लेते हैं. ईमानदारी से कोई भी काम करने में बुराई नहीं है.’’

‘‘गाड़ी तो चला लेता हूं, लेकिन न पढ़ पाने का अफसोस तो रहता ही है. रही काम करने की बात तो जिंदगी गुजारने के लिए आदमी को कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा.’’

‘‘अफसोस करने की जरूरत नहीं है, किसी पढ़ीलिखी लड़की से शादी कर लेना, यह कमी भी पूरी हो जाएगी.’’ बबलू की बात पर हंसते हुए प्रतिभा ने कहा.

प्रतिभा की इस बात पर पहले तो बबलू खूब हंसा, उस के बाद हांफते हुए बोला, ‘‘जब मैं पढ़ालिखा नहीं हूं तो भला कोई पढ़ीलिखी लड़की मुझ से क्यों शादी करेगी?’’

‘‘क्यों नहीं करेगी, देखने में तो अच्छेखासे हो, शक्ल भी बुरी नहीं है. अगर कपड़े अच्छे पहने होते तो टीवी के धारावाहिकों के हीरो जैसे लगते. अब जीप रोक दो, मेरा कालेज आ गया.’’ प्रतिभा ने कहा.

बबलू ने जीप रोकी तो प्रतिभा उतर कर कालेज चली गई. लेकिन उस की बातों ने बबलू पर कुछ ऐसा असर किया कि उस ने मन ही मन तय कर लिया कि इस बार वेतन मिलेगा तो वह अपने लिए अच्छेअच्छे कपड़े जरूर बनवाएगा. उस ने सोचा ही नहीं, वेतन मिला तो उस ने 2 जोड़ी अच्छेअच्छे कपड़े सिलवा भी डाले. उन्हें पहन कर वह प्रतिभा के कालेज जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो गया. प्रतिभा आई तो उस ने रोक लिया, ‘‘अब देखो, कैसा लग रहा हूं?’’

‘‘एकदम हीरो लग रहे हो.’’ कह कर प्रतिभा खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की इस हंसी ने बबलू के दिल की धड़कन बढ़ा दी. बस इसी के बाद प्रतिभा उसे अच्छी लगने लगी. उस का मन यही करने लगा कि वह उसे ही देखता रहे. अब वह उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर और कालेज के इर्दगिर्द मंडराने लगा. वह उस से दिल की बात कहना चाहता था, लेकिन जाति की ऊंचनीच और आर्थिक असमानता उस की जुबान बंद किए थी.

बबलू भले ही दिल की बात नहीं कह पा रहा था, लेकिन समझदार और पढ़ीलिखी प्रतिभा उस की भावनाओं को अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि एक जवान लड़का किसी जवान लड़की के इर्दगिर्द क्यों मंडराता है? लेकिन वह यह भी जानती थी कि उन की जाति का जो भेद है, वह समाज में ऐसा हंगामा खड़ा करेगा कि उन का प्यार मंजिल तक पहुंच नहीं पाएगा. इसलिए वह चाहते हुए भी बबलू के नजदीक नहीं आ रही थी. प्रतिभा को जब भी बबलू मिलता, वह बच कर निकल जाती. उसे लगता कि बबलू उस से कुछ कहना चाहता है. वह यह भी जानती थी कि वह क्या कहना चाहता है, पर वह मजबूर थी. लेकिन जब उस ने देखा कि बबलू मन की बात कह न पाने की वजह से उदास रहने लगा है तो उसे उस पर दया आने लगी.

इस का नतीजा यह निकला कि उस का दिल पसीजने लगा. आखिर एक दिन बबलू उस के सामने पड़ा तो अपने आप ही उस के होंठों पर मुसकान आ गई. प्रतिभा की यह मुसकान बबलू के लिए हैरान करने वाली थी. उसे लगा, प्रतिभा के मन में भी उस के लिए प्यार पैदा हो गया है. उस की हिम्मत बढ़ी और एक दिन मौका मिलते ही उस ने प्रतिभा से दिल की बात कह दी. जब प्रतिभा ने भी कहा कि वह भी उस से प्यार करती है तो बबलू को मानो जमाने की सारी खुशियां मिल गईं. इस के बाद दोनों चोरीछिपे मिलनेजुलने लगे. लेकिन उन के दिल में हमेशा यह डर बना रहता कि कोई देख तो नहीं रहा है. इस के अलावा इस से भी बड़ा डर इस बात का था कि उस के परिवार वाले बबलू को स्वीकार करेंगे या नहीं? क्योंकि वह उस के लिए जिस तरह के रिश्ते की तलाश कर रहे थे, बबलू में वैसा एक भी गुण नहीं था.

एक तो बबलू उस से नीची जाति का था, दूसरे पढ़ालिखा भी नहीं था. कमाई भी कुछ खास नहीं थी. घरपरिवार भी वैसा ही था. ऐसे में किसी भी कीमत पर उस के घर वाले उस की शादी बबलू के साथ करने को राजी नहीं होते. प्रतिभा इसी ऊहापोह में खोई रहती. बेटी को परेशान देख कर कभीकभी भूदेवी पूछ भी लेतीं, ‘‘क्या बात है प्रतिभा, आजकल तू कुछ उखड़ीउखड़ी रहती है? मैं देख रही हूं, तेरा मन भी पढ़ाई में नहीं लग रहा है. इधर तू कालेज से भी देर से आने लगी है?’’

‘‘मम्मी परीक्षाएं नजदीक आ गईं हैं न, इसलिए देर तक पढ़ाई होती है.’’ प्रतिभा ने मां को समझा दिया.

भूदेवी को लगा, बेटी ठीक ही कह रही होगी. लेकिन जब उन्हें किसी परिचित से पता चला कि प्रतिभा कई बार उसे मारहरा में वीरपाल के बेटे बबलू के साथ दिखाई दी है तो भूदेवी सन्न रह गईं. उन की बेटी किसी नीच जाति के लड़के के साथ घूमती है.

उस दिन शाम को प्रतिभा घर आई तो भूदेवी ने पूछा, ‘‘कहां थी, जो इतनी देर हो गई?’’

‘‘कालेज में मम्मी, भूख लगी है खाना दो.’’

भूदेवी ने गाल पर जोरदार तमाचा मार कर कहा, ‘‘क्या कहा कालेज में थी? मुझ से झूठ बोल रही है. मुझे पता है कि तू मारहरा में जाटवों के लड़के के साथ घूम रही थी. तू परिवार की नाक कटाने पर तुली है. अभी तो सिर्फ मुझे पता है, अगर तेरे बाप को पता चल तो वह तुझे काट कर रख देंगें.’’

प्रतिभा समझ गई कि मां को सब पता चल गया है. फिर भी उस ने असलियत छिपाने की एक और कोशिश की, ‘‘मम्मी, बबलू गांव का है. कभी कोई सवारी नहीं मिलती और वह रास्ते में मिल जाता है तो उस की गाड़ी से आ जाती हूं.’’

भूदेवी को लगा कि हो सकता है प्रतिभा ठीक ही कह रही हो. मान लीजिए आते समय बबलू मिल जाता हो और वह उस के साथ आ जाती हो. इस में कुछ गलत भी नहीं है. उस ने बेटी को गहरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘प्रतिभा जमाना बहुत खराब है. लोग कुछ का कुछ मतलब निकाल लेते हैं. इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम बबलू के साथ मत आया करो.’’

प्रतिभा ने सिर हिला कर हामी भर दी. लेकिन वह यह भी समझ गई कि अब से उसे बहुत सतर्क रहना होगा. इस के बाद जब वह मौका मिलने पर बबलू से मिली तो सारी बात उसे बता दी. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘जब तक उचित समय नहीं आ जाता, तब तक हमें अपने प्यार को सब से छिपा कर रखना होगा, वरना हमें मिलने नहीं दिया जाएगा.’’

प्यार तो वैसे भी दीवाना और जुनूनी होता है. प्रतिभा और बबलू का प्यार भी कुछ ऐसा ही हो गया था. लेकिन लोग उन के बीच दीवार बने हुए थे. अब तक विजय प्रताप को भी प्रतिभा और बबलू के संबंधों के बारे में पता चल गया था. यह परेशान करने वाली बात थी, क्योंकि समाज में इज्जत की बात थी. इसलिए उस ने पत्नी से साफसाफ कह दिया कि प्रतिभा का कालेज जाना एकदम बंद. अगर पढ़ना है तो घर पर बैठ कर पढ़े. उस दिन के बाद प्रतिभा नजरों के घेरे में कैद हो गई. कालेज जाना ही नहीं, घर से बाहर जाना तक बंद कर दिया गया. घर न हुआ जैसे कैदखाना हो गया. विजय प्रताप अब अपने मोबाइल का भी खास ध्यान रखने लगे थे, इसलिए प्रतिभा बबलू से बात भी नहीं कर पाती थी.

आखिर एक दिन मौका मिला तो प्रतिभा ने फोन कर के बबलू को बताया कि घर में सभी लोगों को उन के प्यार के बारे में पता चल गया है, इसलिए उसे घर में बंद कर दिया गया है. घर वालों ने उस की जिंदगी को नरक बना दिया है. पापा हमेशा उस पर नाराज होते रहते हैं. कासगंज वाला मकान किराएदारों से खाली करवा रहे हैं, शायद अब उसे वहीं रखा जाएगा. उस के बाद तो मिलनाजुलना और मुश्किल हो जाएगा.

‘‘प्रतिभा तुम चिंता मत करो. मैं तैयारी कर रहा हूं. हम दोनों भाग चलेंगे और अलीगढ़ में कोर्टमैरिज कर लेंगे. शादी होने के बाद कोई हमारा कुछ नहीं कर पाएगा.’’ बबलू ने कहा.

प्रतिभा को पूरा विश्वास था कि बबलू जो कह रहा था, वह कर के दिखाएगा और सचमुच बबलू ने वह कर दिखाया. वह प्रतिभा को भगा ले गया. प्रतिभा के भागने के बाद तो गांव में जैसे जलजला आ गया. विजय प्रताप की जाति के लोग इकट्ठा हुए और वीरपाल को पकड़ कर कहा, ‘‘किसी भी तरह, कहीं से भी ला कर प्रतिभा को हमारे हवाले कर दो, वरना ठीक नहीं होगा.’’

प्रतिभा और बबलू अलीगढ़ में कोर्टमैरिज कर पाते, उस के पहले ही अलीगढ़ पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया. बबलू को पुलिस ने जेल भेज दिया और प्रतिभा को विजय प्रताप के हवाले कर दिया. प्यार के पंछी बबलू को भले ही जेल भेज दिया गया था, लेकिन इस से उस का जुनून कम होने के बजाय और बढ़ गया. गांव में जो बदनामी हुई थी, उस से बचने के लिए विजय प्रताप परिवार को ले कर कासगंज की गंगेश्वर कालोनी स्थित अपने मकान में रहने आ गया था. यहां आने पर मजबूत लोहे की छड़ों का मुख्य गेट लगवाया गया, पूरे मकान को लोहे की मजबूत सरियों से कैदखाने की तरह बनवा दिया गया. लेकिन प्रतिभा के दिल से बबलू नहीं निकल सका तो नहीं निकल सका. जैसेजैसे बंदिशें बढ़ती गईं, वैसेवैसे प्यार भी बढ़ता गया.

छह महीने बाद बबलू जमानत पर छूट कर बाहर आया तो उसे पता चला कि प्रतिभा अब गांव में नहीं, कासगंज में रहती है. अब दोनों के बीच करीब 10 किलोमीटर की दूरी थी, लेकिन प्यार करने वालों के लिए यह दूरी कुछ भी नहीं थी. प्रतिभा को पता चला कि बबलू जेल से बाहर आ गया है तो वह उस से मिलने के लिए छटपटाने लगी. जैसे ही विजय प्रताप का मोबाइल उस के हाथ लगा, उस ने बबलू को फोन कर दिया, ‘‘बबलू, मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती. तुम आ कर किसी भी तरह मुझ से मिलो.’’

कासगंज आने के बाद विजय प्रताप और भूदेवी थोड़ा निश्चिंत हो गए थे कि बबलू यहां कहां मिलने आएगा. वे बेटी के लिए ठीकठाक रिश्ता तलाशने में लगे थे. लेकिन उन की यह निश्चिंतता अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकी. क्योंकि प्रतिभा ने प्रेमी को मिलने के लिए कासगंज बुला लिया था. बबलू ने प्रतिभा को आश्वासन दिया था कि जीतेजी कोई उसे उस से अलग नहीं कर सकता. जल्दी ही वह उसे फिर भगा कर ले जाएगा. इस बार वह ऐसी जगह भगा कर ले जाएगा, जहां कोई उसे ढूंढ़ नहीं पाएगा. इस बार बबलू ने मिलने का एक अलग रास्ता निकाल लिया था. वह प्रतिभा को नींद की गोलियां ला कर दे जाता, जिन्हें प्रतिभा दूध या खाने में मिला कर घर वालों को खिला देती. इस के बाद घर के सभी लोग गहरी नींद सो जाते तो दोनों निश्चिंत हो कर रात में मिलते.

ऐसा ही काफी दिनों तक चलता रहा. इसी के साथ बबलू पैसे इकट्ठा करता रहा कि वह प्रतिभा को भगा कर ले जाए तो उसे कोई परेशानी न हो. मतलब भर के पैसे हो गए तो दोनों ने 14 नवंबर को भागने का निश्चय कर लिया. लेकिन 14 नवबर को जैसे ही प्रतिभा बैग ले कर घर से निकलने लगी, उस का भाई ललित कुमार जाग गया. उसे इस तरह बाहर जाते देख उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो दीदी, तुम्हारी वजह से पूरा परिवार परेशान है? हम लोग गांव छोड़ कर यहां आ गए, इस के बावजूद तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है.’’

‘‘ललित मुझे जाने दो, मैं बबलू के बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’ प्रतिभा ने कहा.

ललित ने मेनगेट की चाबी उस से छीन ली और मम्मीपापा को जगा दिया. प्रतिभा को इस तरह जाते देख विजय प्रताप और भूदेवी हैरान रह गए. उन्होंने तो सोचा था कि अब सब कुछ ठीक हो गया है. लेकिन यहां तो मामला और बिगड़ गया था. विजय प्रताप ने प्रतिभा की खूब पिटाई की. लेकिन उस ने भी साफ कह दिया कि वे लोग चाहे जो कर लें, शादी वह बबलू से ही करेगी. बेटी की इस बगावत ने मांबाप को बेचैन कर दिया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस का क्या करें. इस के बाद उसे हमेशा ताले में बंद कर के रखा जाने लगा. इस तरह प्रतिभा के भागने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए.

इतनी बंदिशों में भी बबलू ने एक मोबाइल फोन प्रतिभा तक पहुंचा दिया था, जिस से उन की बातें हो जाती थीं. लेकिन मिलना नहीं हो पाता था. इस तरह उन का प्यार सिसकसिसक कर दम तोड़ रहा था. दूसरी ओर मांबाप परेशान थे, क्योंकि उन्हें कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. एक ओर विजय प्रताप प्रतिभा के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे, दूसरी ओर वह बबलू के साथ भागने की तैयारी में लगी थी. उसे मौके की तलाश थी. लेकिन घर वालों ने उस की सख्ती से निगरानी शुरू कर दी थी, जिस से उसे मौका नहीं मिल रहा था. ऐसा नहीं था कि सिर्फ प्रतिभा के घर वाले ही परेशान थे, इस प्रेम प्रकरण से बबलू के घर वाले भी काफी परेशान थे. वे नहीं चाहते थे कि बबलू कुछ ऐसा करे, जिस से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़े. वे उसे रोक भी रहे थे, लेकिन बबलू मान ही नहीं रहा था.

तमाम पाबंदी के बावजूद 8 फरवरी की रात दीवार फांद कर बबलू विजय प्रताप के घर की छत पर पहुंच गया. सीढि़यों पर ताला बंद था, इसलिए वह रोशनदान के रास्ते घर के अंदर दाखिल हुआ. विजय प्रताप जाग रहे थे. उन्हें पदचाप की आवाज सुनाई दी तो उन्होंने अपने दोस्त दिलीप को फोन कर के घर आने को कहा. दिलीप पेट्रोल पंप पर सेल्समैन था. विजय प्रताप के बुलाने पर थोड़ी ही देर में वह अपने दोस्त सत्यपाल के साथ उन के घर आ गया. इस के बाद वे प्रतिभा को दरवाजा खोलने को कहा. लेकिन प्रतिभा ने दरवाजा नहीं खोला.  काफी परेशान होने के बाद भी जब प्रतिभा ने दरवाजा नहीं खोला तो विजय प्रताप ने कहा कि वह दरवाजा खोल दे, बबलू को कुछ नहीं कहा जाएगा. तब झांसे में आ कर प्रतिभा ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजा खुलते ही सभी ने बबलू को दबोच लिया और दूसरे कमरे में ले जा कर पिटाई शुरू कर दी.

प्रतिभा ने विरोध किया तो उसे मारपीट कर दूसरे कमरे में बंद कर दिया गया. अब वे सोचने लगे कि बबलू का किया क्या जाए, क्योंकि वे समझ गए थे कि यह किसी भी तरह उन की बेटी का पीछा छोड़ने वाला नहीं है. यही सोचतेसोचते सवेरा हो गया. उसी बीच मौका पा कर बबलू ने अपने मोबाइल से भाई को फोन कर दिया कि वह कासगंज में प्रतिभा के घर में फंस गया है. उस की जान खतरे में है. घर वाले मदद के लिए चल पड़े, लेकिन वे पहुंच पाते, उस के पहले ही विजय प्रताप और उस के साथियों ने गोली मार कर बबलू की हत्या कर दी और परिवार सहित घर छोड़ कर भाग गए.

अब तक सवेरा हो गया था, प्रतिभा किसी तरह कमरे से बाहर निकली और सीधे कोतवाली कासगंज जा पहुंची. जब उस ने कोतवाली में ड्यूटी पर तैनात सिपाहियों को बताया कि उस के घर वालों ने गोली मार उस के प्रेमी की हत्या कर दी है तो कोतवाली में हड़कंप मच गया. तुरंत कोतवाली प्रभारी को सूचना दी गई. घटनास्थल के लिए निकलने से पहले उन्होंने इस घटना की जानकारी सीओ ए. के. सिंह और एएसपी आर.एम. भारद्वाज को दे दी. कुछ ही देर से कोतवाली प्रभारी विजय बहादुर सिंह, सीओ ए.के. सिंह, एएसपी आर.एम. भारद्वाज गंगेश्वर कालोनी स्थित विजय प्रताप के घर पहुंच गए थे. घर में कोई नहीं था. प्रतिभा कोतवाली प्रभारी के साथ थी. उस की निशानदेही पर कमरे में पड़े बैड के नीचे से बबलू की लाश बरामद कर ली गई.

इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस अधिकारी कोतवाली वापस आ गए. बबलू के घर वालों को रास्ते में ही पता चल गया था कि उस की हत्या हो चुकी है, इसलिए वे सभी सीधे कोतवाली आ गए थे. इस के बाद प्रतिभा के बयान और मृतक बबलू के पिता वीरपाल की तहरीर के आधार पर उस की हत्या का मुकदमा विजय प्रताप, दिलीप, सत्यपाल और भूदेवी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. चूंकि बबलू एससी था, इसलिए हत्या के इस मामले में एससी एक्ट भी लगा दिया गया.

कोतवाली पुलिस ने तुरंत मोहिनी गांव में छापा मार कर प्रतिभा की मां भूदेवी, पिता विजय प्रताप और हत्या में शामिल दिलीप को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन सत्यपाल फरार होने में कामयाब हो गया. पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को कासगंज ला कर एसपी विनय कुमार यादव के सामने पेश किया, जहां की गई पूछताछ में तीनों ने बबलू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद कोतवाली पुलिस ने विजय प्रताप, भूदेवी और दिलीप को कासगंज की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. दिलीप की जल्दी ही शादी होने वाली थी, लेकिन अब वह हत्या के आरोप में जेल पहुंच गया है. पुलिस चौथे अभियुक्त सत्यपाल की तलाश कर रही है. कथा लिखे जाने तक वह पकड़ा नहीं गया था. Love Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Contract Killing: सुहाग मिटाने की सुपारी

Contract Killing: सुमन के संबंध धीरज से बने तो उसे अपना पति कांटे की तरह चुभने लगा. इस कांटे को निकालने के लिए उस ने ऐसी कोन सी चाल चली कि प्रेमी उस के झांसे में आ गया. उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना मडराक के गांव नोहटी के रहने वाले सरदार सिंह का बड़ा बेटा रामजीलाल पढ़लिख कर जानवरों का इलाज करने लगा था तो उस से छोटा राजवीर खेती के कामों में उन की मदद करने लगा था. रामजीलाल की जानवरों के इलाज की दुकानदारी ठीकठाक चलने लगी तो उस के विवाह के लिए लोग आने लगे.

कई लड़कियां देखने के बाद घर वालों ने उस के लिए अलीगढ़ की सुमन को पसंद किया. शादी के बाद सुमन ससुराल आई तो जल्दी ही उस ने घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं. जिस से गांव में उस की गिनती अच्छी बहुओं में होने लगी. उस के बाद राजवीर की भी शादी हो गई. उस की पत्नी तेजतर्रार थी, उस की घर में किसी से नहीं पटी तो राजवीर उसे ले कर अलग मकान में रहने लगा. धीरेधीरे परिवार बढ़ने लगा. रामजीलाल और सुमन 5 बच्चों के मातापिता बने, जिन में 3 बेटियां और 2 बेटे थे. सरदार सिंह गांव के खातेपीते किसान थे. उन के पास खेती की काफी जमीन थी. सुखीसंपन्न होने की वजह से सब कुछ बढि़या चल रहा था.

लेकिन समय कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता. रामजीलाल की डाक्टरी बढि़या चल रही थी. कमाई भी अच्छी थी. बच्चे अच्छे से पढ़लिख रहे थे. लेकिन रामजीलाल ने उसी बीच अधिक कमाई के लिए एक ऐसा काम शुरू किया, जो उन के लिए नुकसानदायक ही नहीं सिद्ध हुआ, बल्कि जिंदगी ले डूबा. साल भर पहले रामजीलाल ने ब्याज पर रुपए देने के लिए अपनी कुछ जमीन 9 लाख रुपए में बेच दी. उसी बीच उस की मुलाकात धीरज से हुई. वह पड़ोसी गांव देदामई के रहने वाले सत्यवीर का बेटा था. वह उस के गांव किसी जानवर के इलाज के लिए गया था.

धीरज को पता था कि रामजीलाल ब्याज पर रुपए देता है. इसलिए उस ने कहा, ‘‘तुम रुपए तो ब्याज पर देते ही हो, मेरी बहन की शादी है, अगर कुछ रुपए मुझे भी ब्याज पर दे देते तो मेरी बहन की शादी अच्छे से हो जाती.’’

रामजीलाल ने कुछ सोचविचार कर कहा, ‘‘इस तरह की बातें यहां नहीं हो सकतीं. ऐसा करो, तुम मेरे घर आ जाओ. वहां बैठ कर आराम से बातें करेंगे.’’

धीरज को लगा कि रामजीलाल उसे पैसा देना चाहता है, इसीलिए उस ने उसे घर बुलाया है. अगले दिन वह रामजीलाल के घर पहुंच गया. उस ने रामजीलाल से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, आप ने कुछ सोचा?’’

‘‘किस बारे में?’’ रामजीलाल ने पूछा.

‘‘अरे वही पैसे के बारे में. मैं ने आप से बहन की शादी के लिए कुछ पैसों के लिए कहा था न.’’

‘‘अच्छा पैसा, वह तो मिल जाएगा. बताओ कितना पैसा चाहिए?’’

‘‘डाक्टर साहब, अगर 3 लाख रुपए मिल जाते तो मेरा काम हो जाता.’’ धीरज ने कहा.

रामजीलाल ने ब्याज पर रुपए देने के लिए ही जमीन बेची थी. रुपए उस के पास थे ही, इसलिए उस ने कहा, ‘‘रुपए तो मैं दे दूंगा, लेकिन समय से ब्याज देने के साथ रुपए भी जल्दी लौटाने की कोशिश करना.’’

‘‘डाक्टर साहब पैसा जल्दी लौटा दूंगा तो मेरा ही फायदा होगा न, इसलिए मैं कोशिश करूंगा कि जितनी जल्दी हो सके, आप के कर्ज से मुक्ति मिल जाए.’’ धीरज बोला.

इस के बाद रामजीलाल ने पत्नी को बुला कर 3 लाख रुपए लाने को कहा तो उस ने पूछा, ‘‘इतने रुपयों का क्या करोगे?’’

रामजीलाल ने धीरज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इन्हें पैसों की जरूरत है, इसलिए मैं इन्हें ब्याज पर ये रुपए दे रहा हूं. बहन की शादी करने के बाद धीरेधीरे यह मेरे रुपए लौटा देंगे.’’

रामजीलाल रुपए ब्याज पर देता ही था, इसलिए सुमन ने कोई ऐतराज नहीं किया. वह अंदर गई और रुपए ला कर दे दिए. रामजीलाल ने लिखापढ़ी कर के धीरज को रुपए दे दिए. धीरज का काम हो गया तो वह खुश हो कर चला गया. रामजीलाल को अपनी दुकानदारी से ही समय नहीं मिलता था, इसलिए वह अपने खेतों को पट्टे पर देता था. दूसरी ओर धीरज खेत पट्टे पर ले कर खेती करता था. धीरज से संपर्क बना रहे, इस के लिए रामजीलाल ने अपने खेत उस को पट्टे पर दे दिए. इस तरह उस का रामजीलाल के यहां आनाजाना हो गया.

रामजीलाल सुबह निकल जाता था तो अकसर देर शाम को ही लौटता था. इस बीच घर के काम सुमन और बच्चों को देखने पड़ते थे. लेकिन जब से धीरज उस के घर आनेजाने लगा था, जरूरत पड़ने पर वह उस की मदद कर देता था. बदले में सुमन उसे चायनाश्ता करा देती थी. खाने का समय होता तो खाना भी खिला देती. ऐसे में ही किसी दिन धीरज ने कहा, ‘‘भाभी, आप कितना काम करती हैं. इस के बावजूद डाक्टर साहब आप की परवाह नहीं करते?’’

सुमन ने उसे तिरछी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो वह हमारी परवाह नहीं करते. हमारे लिए ही तो वह सुबह से शाम तक भागते रहते हैं. जब शादी हो जाएगी तो तुम्हें भी अपने परिवार के लिए इसी तरह भागदौड़ करनी पड़ेगी.’’

दरअसल, रामजीलाल के घर आतेजाते धीरज का दिल सुमन पर आ गया था. इसलिए वह उसे फंसाने के लिए चारा डालने लगा था. सुमन की इस बात से वह निराश तो हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारा. एक दिन सुमन को घर का सामान खरीदने के लिए बाजार जाना था. वह तैयारी कर रही थी कि तभी धीरज आ गया. सुमन को तैयार होते देख उस ने पूछा, ‘‘कहीं जा रही हो क्या भाभी?’’

‘‘घर का सामान खरीदना है, बाजार जा रही हूं. डाक्टर साहब के पास तो समय है नहीं, इसलिए मुझे ही जाना पड़ रहा है.’’ सुमन ने कहा.

‘‘आप अकेली क्यों जा रही हैं. मैं चलता हूं न आप के साथ.’’

सुमन को भला क्यों ऐतराज होता. वह धीरज के साथ मोटरसाइकिल से बाजार पहुंच गईं. सामान खरीद कर थैला धीरज ने उठाया तो सुमन हंसते हुए बोली, ‘‘इतने दिन शादी के हो गए, डाक्टर कभी मेरे साथ बाजार नहीं आए.’’

‘‘आप न होती तो शायद डाक्टर को रोटी भी न मिलती.’’ धीरज ने कहा.

धीरज सुमन को ले कर घर पहुंचा तो सुमन ने कहा, ‘‘मैं खाना बनाने चल रही हूं. अब खाना खा कर जाना.’’

धीरज बाहर बरामदे में पड़ी चारपाई पर लेट गया. सुमन ने उसे पहले चाय पिलाई. उस के बाद खाना बना कर खिलाया. धीरज मन ही मन सोचने लगा कि सुमन के दिल में जरूर उस के लिए कोई नरम कोना है, तभी तो वह उस का इतना खयाल रखती है. सवाल यह था कि वह उस के दिल की बात जाने कैसे? उसी दौरान धीरज अलीगढ़ गया. वहां हाथ से बनी चीजों की प्रदर्शनी लगी थी. वह प्रदर्शनी देखने गया तो वहां उसे एक दुकान पर एक जोड़ी झुमके पसंद आ गए.  उस ने उन्हें खरीद लिया. अगले दिन दोपहर को वह रामजीलाल के घर पहुंचा तो सुमन घर में अकेली मिल गई. सुमन ने धीरज को बैठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद उस ने झुमके की पुडि़या सुमन को थमा दी. सुमन ने पुडि़या खोली, झुमके देख कर बोली, ‘‘झुमके तो अच्छे हैं. किस के लिए लाए हो?’’

‘‘आप भी भाभी कमाल करती हैं. आप के हाथ में दिए हैं तो आप के लिए ही होंगे. कौन मेरी लुगाई बैठी है कि उस के लिए लाऊंगा.’’

‘‘मेरे लिए क्यों खरीद लाए भई?’’ सुमन ने कहा.

‘‘अच्छे लगे, इसलिए खरीद लाया. अब जरा पहन कर दिखाइए.’’

सुमन हंसते हुए अंदर गई और झुमके पहन कर बाहर आई तो धीरज बोला, ‘‘अरे भाभी, यह तो आप पर बहुत फब रहे हैं.’’

‘‘क्यों झूठी तारीफ करते हो.’’ शरमाते हुए सुमन ने कहा.

‘‘सच कह रहा हूं भाभी, डाक्टर साहब देखेंगे तो वह भी यही कहेंगे.’’

सुमन ने आह भरते हुए कहा, ‘‘डाक्टर साहब के पास इतना समय कहां है कि वह मुझे देख कर मेरी तारीफ करें. वह तो सिर्फ जानवरों को देखते हैं और उन्हीं की तारीफ करते हैं.’’

धीरज मुसकराया, क्योंकि सुमन की कमजोर नस उस के हाथ में आ गई थी. उस की समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच पतली सी दरार है, जिसे वह कोशिश कर के चौड़ी कर सकता है. इस के बाद धीरज सुमन के करीब जाने की कोशिश करने लगा. सुमन को भी उस का आनाजाना और उस से बातें करना अच्छा लगने लगा था. लेकिन धीरज को अपनी मंजिल नहीं मिल रही थी. उसी बीच रामजीलाल ने धीरज से अपने रुपए लौटाने को कहा. धीरज इस से परेशान हो गया, क्योंकि उस के पास लौटाने के लिए रुपए नहीं थे.

सही बात तो यह थी कि अब उस की नीयत खराब हो चुकी थी. वह रामजीलाल के रुपए नहीं लौटाना चाहता था. इसलिए वह सुमन को जरिया बना कर रामजीलाल के रुपए मारने के बारे में सोचने लगा. ऐसा तभी संभव था, जब सुमन उस के कब्जे में आ जाती. लेकिन दिल की बात वह सुमन से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. एक दिन दोपहर को धीरज सुमन के घर पहुंचा तो सुमन ने कहा, ‘‘क्या इधरउधर मारेमारे फिरते हो, शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘शादी…? भाभी अभी कुछ दिनों पहले ही तो मैं ने अपनी बहन की शादी की है. आप को तो पता ही है कि उस के लिए मैं ने डाक्टर साहब से कर्ज लिया था. अभी वही नहीं दे पाया. पहले उस से तो उऋण हो जाऊं, उस के बाद अपने बारे में सोचूं.’’

डाक्टर साहब के पैसों की चिंता मत करो.’’ सुमन ने तिरछी नजरों से ताकते हुए कहा, ‘‘तुम मुझे बहुत डरपोक लगते हो. जो मन में है, वह भी नहीं कह सकते.’’

‘‘भाभी, मैं ने आप की बात का मतलब नहीं समझा.’’

‘‘रात को आना, डाक्टर साहब आज रात घर में नहीं रहेंगे, तब समझा दूंगी.’’ सुमन ने मुसकराते हुए कहा.

धीरज का दिल एकदम से धड़क उठा. वह भाग कर घर गया और नहाधो कर रात होने का इंतजार करने लगा. लेकिन सूर्य था कि अस्त ही नहीं हो रहा था. किसी तरह शाम हुई तो वह गांव से चल पड़ा. नोहटी पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. रामजीलाल के घर पहुंच कर उस ने धीरे से दरवाजा खटखटाया. सुमन ने दरवाजा खोला तो वह चोरों की तरह अंदर आ गया. घर में सन्नाटा था. शायद बच्चे सो चुके थे. सुमन उस का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई. वासना से वशीभूत सुमन भूल गई कि वह पति से बेवफाई करने जा रही है. धीरज को पता था कि सुमन ने उसे यहां क्यों बुलाया है. वह पलंग पर बैठ गया तो उस से सट कर बैठते हुए सुमन ने कहा, ‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है धीरज.’’

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, अगर उन्हें पता चल गया तो…?’’

‘‘किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. तुम भी तो मुझ से प्यार करते हो न?’’

धीरज ने कुछ कहने के बजाय सुमन को बांहों में समेट लिया तो वह उस से लिपट गई. इस के बाद दोनों ने वह गुनाह कर डाला, जिस का अंजाम आगे चल कर बुरा ही होता है. रात दोनों की अपनी थी, क्योंकि घर का मुखिया घर में नहीं था, इसलिए उन्हें कोई डर नहीं था. लेकिन वे जिस दलदल में उतर गए थे, उस से वे चाह कर भी बाहर नहीं आ सकते थे. सुबह होते ही धीरज चला गया. दोपहर को रामजीलाल आया तो सुमन औंधे मुंह चारपाई पर लेटी थी. उसे समझते देर नहीं लगी कि पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है. उसे क्या पता कि वह रात की थकान उतार रही है.

धीरेधीरे सुमन और धीरज का प्यार परवान चढ़ने लगा. मौकों की कमी नहीं थी. रामजीलाल जानवरों के इलाज के लिए दूसरे गांवों में जाता ही रहता था. उसी बीच सुमन धीरज को घर बुला कर रंगरलियां मना लेती. डाक्टर को भले ही कुछ पता नहीं चल रहा था, लेकिन अगलबगल वाले तो देख ही रहे थे. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि रामजीलाल की गैरमौजूदगी में धीरज के आने का मतलब क्या हो सकता है.

आखिर एक दिन किसी पड़ोसी ने रामजीलाल को रोक कर कह ही दिया, ‘‘भाई, कामकाज में इतना बिजी रहते हो कि घर का भी खयाल नहीं रख सकते?’’

‘‘मैं समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘मेरा मतलब धीरज से है, आजकल वह तुम्हारे घर के कुछ ज्यादा ही चक्कर लगा रहा है.’’

पड़ोसी की बात सुन कर रामजीलाल सन्न रह गया. वह तुरंत घर पहुंचा और सुमन से पूछा, ‘‘धीरज यहां आता है क्या?’’

‘‘नहीं तो, किस ने कहा?’’ सुमन ने लापरवाही से कहा.

‘‘अगर अब आए तो उसे मना कर देना. गांव में उसे ले कर तरहतरह की चर्चाए हो रही हैं. मैं नहीं चाहता कि बिना मतलब हमारी बदनामी हो.’’

सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया. रामजीलाल इस बात को ले कर काफी परेशान था. वह महसूस कर रहा था कि पिछले कुछ समय से सुमन का व्यवहार उस के प्रति उपेक्षापूर्ण रहने लगा है. कहीं वह गुमराह तो नहीं हो गई. लेकिन उस ने आंखों से कुछ नहीं देखा था, इसलिए कोई फैसला कैसे कर सकता था. सुमन ने फोन कर के धीरज को सतर्क कर दिया कि वह कुछ दिनों तक उस से मिलने न आए, क्योंकि डाक्टर को शक हो गया है. अगले कुछ दिन ठीकठाक गुजर गए तो रामजीलाल लापरवाह हो गया. इस के बाद सुमन ने एक दिन धीरज को फोन कर के बुला लिया, क्योंकि उस दिन रामजीलाल को बाहर जाना था.

लेकिन रास्ते में रामजीलाल की तबीयत खराब हो गई, जिस से वह आधे रास्ते से ही लौट आया. गांव में घुसते ही पड़ोसी ने बताया कि धीरज घर के अंदर है. बेचैन रामजीलाल पड़ोसी की छत से घर के अंदर घुसा तो सुमन को धीरज की बांहों में पाया. रामजीलाल ने धीरज को पकड़ना चाहा, लेकिन वह छुड़ा कर भाग गया. इस के बाद उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. मारपीट कर गुस्सा शांत हुआ तो वह सिर थाम कर बैठ गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह इस चरित्रहीन औरत का क्या करे. अगर वह उसे उस के मायके भेज देता है तो बच्चों का क्या होगा, अपना कामकाज छोड़ कर वह उस की रखवाली भी नहीं कर सकता था.

सुमन ने खुद को संभाला और सोचने लगी कि उसे क्या करना चाहिए? अब वह धीरज को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी और रामजीलाल का घर भी नहीं छोड़ना चाहती थी. क्योंकि जो सुखसुविधा यहां थी, वह धीरज कभी नहीं दे सकता था. वह तो वैसे ही कर्जदार था. उस ने पति से माफी मांगते हुए कहा कि उस से गलती हो गई, अब ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी. रामजीलाल के पास पत्नी को माफ करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था, इसलिए उस ने पत्नी को माफ कर के समझाया कि इस सब से बदनामी तो होगी ही, अपना ही घर बरबाद होगा.

दूसरी ओर धीरज की अब सुमन से मिलने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन सुमन ने उस से कहा कि वह उस के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती. उस के बिना उस का जीवन नीरस हो जाएगा. दोनों ने अब घर के बाहर मिलनेजुलने का प्रोग्राम बनाया. बहाना कर के सुमन अलीगढ़ चली जाती, जहां उस से मिलने के लिए धीरज आ जाता. लेकिन वहां भी गांव के कई लोगों की नजरों में वे आ गए, जिस से रामजीलाल को इस की जानकारी हो गई. उस का विश्वास पत्नी पर से उठ गया था, वह उस के साथ अक्सर मारपीट करने लगा. इस के बाद रामजीलाल ने धीरज से अपने रुपए लौटाने को कहा. जबकि धीरज अब उस के रुपए लौटाने के मूड में नहीं था. एक दिन सुमन और धीरज मिले तो सुमन ने कहा, ‘‘धीरज, चलो हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेते हैं.’’

‘‘हम अपनी दुनिया तो बसा लेंगे, पर खाएंगेपहनेंगे क्या? इस के लिए हमें कुछ और सोचना होगा.’’ धीरज ने कहा.

रामजीलाल की गृहस्थी में ग्रहण लग चुका था. गांव वाले चुगली करते रहते थे. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस चरित्रहीन पत्नी का क्या करे. उसे अपने बच्चों का भविष्य बरबाद होता दिखाई दे रहा था. पतिपत्नी के लड़ाईझगड़े का असर बच्चों पर भी पड़ रहा था. जबकि सुमन रामजीलाल से छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच एक रात रामजीलाल ने सुमन को फोन से बातें करते सुना तो मोबाइल छीन कर नंबर चैक किया. वह नंबर धीरज का था. उस ने कहा, ‘‘इतना सब होने पर भी तुम बाज नहीं आ रही हो?’’

सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया तो रामजीलाल को गुस्सा आ गया. उस ने सुमन को पीटते हुए कहा, ‘‘चरित्रहीन औरत, अब तू विश्वास लायक नहीं रही.’’

इस के बाद रामजीलाल ने मोबाइल का सिम निकाल कर तोड़ दिया. इस पर सुमन ने कहा, ‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया.’’

पत्नी की इस हिमाकत से रामजीलाल ने फिर उस की पिटाई कर दी. इस के बाद तो सुमन ने तय कर लिया कि अब वह रामजीलाल को जिंदा नहीं छोड़ेगी. अगले दिन उस ने धीरज को फोन किया, ‘‘अब तुम्हारा क्या इरादा है, साफसाफ बताओ?’’

‘‘मेरी हालत तुम जानती ही हो, तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं? डाक्टर अपने रुपए मांग रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?’’

‘‘देखो धीरज, मैं तुम्हारी वजह से रोजरोज तो पिट नहीं सकती, इसलिए अब फैसला लेने का समय आ गया है. या तो तुम मुझे छोड़ दो या फिर कुछ ऐसा करो कि हम चैन से जी सकें.’’

‘‘तुम्हीं बताओ मुझे क्या करना चाहिए?’’ धीरज ने पूछा.

‘‘तुम कुछ ऐसा करो कि तुम्हें डाक्टर के 3 लाख रुपए भी न लौटाने पड़ें और मुझे उस से छुटकारा भी मिल जाए. उस के बाद हम चैन की जिंदगी गुजार सकते हैं.’’

‘‘लेकिन यह होगा कैसे?’’

‘‘सब आराम से हो जाएगा, तुम अपने साथियों के साथ डाक्टर को ठिकाने लगा दो. यह हमारे बीच दीवार की तरह है, यह अब मुझे बरदाश्त नहीं हो रहा है.’’

‘‘लेकिन कोई मुफ्त में यह काम क्यों करेगा. पैसों की जरूरत होगी, जो मेरे पास है नहीं.’’

‘‘पैसे मैं दे दूंगी. ढाई लाख रुपए मेरे पास है.’’

सौदा बुरा नहीं था. धीरज मन ही मन खुश हो गया. कर्ज से भी छुटकारा मिल जाएगा और प्रेमिका के साथ उस की संपत्ति भी मिल जाएगी. वह मजे करेगा. रामजीलाल को जिंदगी से छुटकारा दिलाने की योजना बन गई. धीरज अब ऐसे लोगों को तलाशने लगा, जो उस का साथ दे सकें. उस ने अपने दोस्त दिलीप तोमर को पैसों का लालच दे कर तैयार कर लिया. दिलीप के अलावा उस ने अपने गांव के सौरभ चमन और चरन सिंह को भी शामिल कर लिया. इस के बाद डाक्टर रामजीलाल की मौत का फरमान जारी कर दिया गया. वह इस बात से पूरी तरह बेखबर था. वह तो मोबाइल का सिम तोड़ कर निश्चिंत था कि सुमन अब धीरज से बात नहीं कर पाएगी. लेकिन वह नहीं जानता था कि घायल शेरनी कितनी खतरनाक होती है.

दूसरी ओर सुमन अपने व्यवहार में बदलाव ला कर पति का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही थी. रामजीलाल को लगा कि सब कुछ ठीक हो गया है. जबकि अब मामला और बिगड़ गया था. सुमन अब जल्दी से जल्दी रामजीलाल को मरवा कर निश्चिंत हो कर धीरज के साथ मौज करना चाहती थी. 8 फरवरी, 2015 को रामजीलाल घर पर ही था. तभी कुछ लोगों ने आ कर कहा कि नहलोई के रामेश्वर पंडित की भैंस बीमार है. उसे देखने के लिए उसे चलना है. शाम का समय था, रामजीलाल ने कहा, ‘‘आज तो मैं नहीं चल सकता, कल सुबह आ जाऊंगा.’’

‘‘नहीं डाक्टर साहब, भैंस बहुत ज्यादा बीमार है. नहलोई कौन सा ज्यादा दूर है. फिर आप को मोटरसाइकिल से ही तो चलना है.’’ उन्होंने कहा तो रामजीलाल तैयार हो गया. उस ने सुमन से बैग लाने को कहा.

सुमन ने बैग थमाते हुए कहा, ‘‘जितनी जल्दी हो सके लौट आना.’’

दोनों लोग रामजीलाल की मोटरसाइकिल पर बैठ गए. मोटर-साइकिल चल पड़ी तो 2 अन्य लोग दूसरी मोटरसाइकिल से उस के पीछे लग गए. देदामई और नहलोई के बीच एक बंबा है. वहां धीरज को देख कर रामजीलाल का माथा ठनका. साथ आए लोगों ने उस की मोटरसाइकिल रोकवा ली और उसे घेर कर खड़े हो गए.

‘‘यह सब क्या है?’’ रामजीलाल ने पूछा.

लड़कों ने हंसते हुए कहा, ‘‘अभी पता चल जाएगा.’’

रामजीलाल समझ गया कि उस के साथ धोखा हुआ है. उस ने भागने की कोशिश की, लेकिन लड़कों में से किसी ने उस की कनपटी पर गोली मार दी. रामजीलाल गिर गया तो उन्होंने ईंटों से उस की खोपड़ी फोड़ दी. जब रामजीलाल की मौत हो गई तो सभी भाग खड़े हुए. रामजीलाल की लाश रात भर वहीं पड़ी रही. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी थी. सुबह कुछ लोगों ने लाश देखी तो पहचान लिया कि यह तो डा. रामजीलाल की लाश है. तुरंत थाना सासनी पुलिस को सूचना दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरविंद प्रताप सिंह पुलिस बल के साथ रवाना हो गए. रामजीलाल के घर वालों को भी सूचना दे दी गई थी. थोड़ी ही देर में पूरा गांव वहां पहुंच गया. लोग हैरान थे कि आखिर रामजीलाल जैसे सीधेसादे आदमी को किस ने मार दिया.

लाश के कपड़ों की तलाशी में पुलिस को कुछ रुपए, गैस की कापी, पर्स आदि मिले, जिस से स्पष्ट हो गया था कि मृतक की हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी. उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. पंचनामा कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर पुलिस थाने आ गई और मृतक के भाई राजीवर की ओर से हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया. राजवीर से पूछताछ में पता चला कि देदामई के धीरज कश्यप को रामजीलाल ने 3 लाख रुपए उधार दिए थे, जिन्हें वह लौटा नहीं रहा था. इस के लिए रामजीलाल और धीरज में कहासुनी भी हुई थी.

थानाप्रभारी अरविंद प्रताप सिंह को हत्या की वजह काफी नहीं लगी. अंतिम संस्कार के बाद वह रामजीलाल के घर पहुंचे तो सुमन का चेहरा पीला पड़ गया. वह रोने का नाटक करने लगी. सुमन के हावभाव ने उन्हें शक में डाल दिया. अरविंद प्रताप सिंह ने मुखबिरों का सहारा लिया. जिन से पता चला कि धीरज घर से गायब है. उसी बीच एक मुखबिर ने बताया कि रामजीलाल की पत्नी और धीरज के बीच नाजायज संबंध थे, जिस का डाक्टर विरोध कर रहा था. अब थानाप्रभारी को डाक्टर की हत्या का मजबूत कारण मिल गया. धीरज के ठिकानों पर छापा मारा गया, लेकिन वह पकड़ में नहीं आया. कोई अपराधी आखिर पुलिस से कब तक बच सकता है. मुखबिर की सूचना पर 14 फरवरी, 2015 को अलीगढ़ से धीरज और उस के साथी दिलीप तोमर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पहले तो धीरज पुलिस को गुमराज करता रहा, लेकिन एसपी दीपिका तिवारी ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि सुमन के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उसी ने डाक्टर की हत्या के लिए उकसाया था और ढाई लाख की सुपारी भी दी थी. इस के बाद उस ने दिलीप तोमर, सौरभ चमन और चरन सिंह के साथ मिल कर रामजीलाल की हत्या कर दी थी. सुमन को पता चला कि पुलिस ने धीरज को गिरफ्तार कर लिया है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए घर पहुंची तो वह रोने का नाटक करने लगी. उसे गिरफ्तार कर के थाने लाया गया तो उस ने भी धीरज के साथ अपने संबंधों को स्वीकार करते हुए बताया कि धीरज और उस के बीच पति कांटे की तरह गड़ रहा था, इसलिए उस ने उस कांटे को निकलवा दिया था.

उसे क्या पता था कि वह मौज करने के बजाय जेल चली जाएगी. पुलिस ने गिरफ्तार सुमन, धीरज और दिलीप तोमर को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया, बाकी अभियुक्तों की तलाश कर रही है. Contract Killing

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Hindi Stories: बस एक बेटा चाहिए

Hindi Stories: मेहनतमजदूरी कर के जीविका चलाने वाली शंकरी की 3 बेटियां थीं, चौथा बच्चा पेट में था. आखिर उस की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि वह बच्चे पर बच्चे पैदा किए जा रही थी. जिस तरह उस बूढ़े बरगद के पेड़ की उम्र का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था, उसी तरह उस के नीचे बायस्कोप लिए खड़ी उस औरत, जिस का नाम शंकरी था, की उम्र का भी अंदाजा लगाना आसान नहीं था. वह चला तो बायस्कोप रही थी, लेकिन उस का ध्यान लोहे के 4 पाइप खड़े कर के साड़ी से बने झूले में सो रही अपनी 2 साल की बेटी पर था.

अगर झूले में लेटी बेटी रोने लगती तो वह बायस्कोप जल्दीजल्दी घुमाने लगती. बायस्कोप देखने वाले बच्चे शोर मचाते तो वह कहती, ‘‘लगता है, बायस्कोप खराब हो गया है, इसीलिए यह तेजी से घूमने लगा है.’’

बायस्कोप का शो खत्म कर के शंकरी बेटी को गोद में ले कर चुप कराने लगती. लेकिन बायस्कोप देखने वाले बच्चे उस से झगड़ने लगते. झगड़ते भी क्यों न, उन्होंने जिस आनंद के लिए पैसे दिए थे, वह उन्हें मिला नहीं था. औरत बच्चे के रोने का हवाला देती, फिर भी वे बच्चे न मानते. उन्हें तो अपने मनोरंजन से मतलब था, उस के बच्चे के रोने से उन्हें क्या लेनादेना था. शंकरी उन्हें समझाती, दोबारा दिखाने का आश्वासन भी देती, क्योंकि उसे भी तो इस बात की चिंता थी कि अगर उस के ये ग्राहक बच्चे नाराज हो गए तो उस की आमदनी बंद हो जाएगी. लेकिन उस की परेशानी यह थी कि वह बेटी को संभाले या ग्राहक. बेटी को भी रोता हुआ नहीं छोड़ा जा सकता था.

शंकरी के चेहरे पर मजबूरी साफ झलक रही थी. बच्चों की जिद पर मजबूरन उसे बच्ची को रोता छोड़ कर बायस्कोप के पास जाना पड़ता, क्योंकि बायस्कोप देखने वाले बच्चे उस का ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर सकते थे. शंकरी की अपनी बच्ची रोती रहती और वह दूसरों के बच्चों का मनोरंजन कराती रहती. बच्ची रोरो कर थक जाती लेकिन वह उसे गोद में न ले पाती. वह उसे तभी गोद में उठा पाती, जब उस के ग्राहकों की भीड़ खत्म हो जाती. ग्राहकों के जाते ही वह दौड़ कर बच्ची को गोद में उठाती, प्यार करती और झट से साड़ी के पल्लू के नीचे छिपा कर दूध पिलाने लगती. तब उस के चेहरे पर जो सुकून होता, वह देखने लायक होता.

शंकरी ने बच्ची को प्यार करने के लिए अपना घूंघट थोड़ा खिसकाया तो थोड़ी दूर पर बेटी को मेला दिखाने आई संविधा की नजर उस के चेहरे पर पड़ी. उस का गोरा रंग धूप की तपिश से मलिन पड़ गया था. अभी भी गरम सूरज की किरणें पेड़ों की पत्तियों के बीच से छनछन कर उस के चेहरे पर पड़ रही थीं. भूरे बालों को उस ने करीने से गूंथ कर मजबूती से बांध रखा था. आंखों में काजल की पतली लकीर, माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी, गोल चेहरा, जिस में 2 बड़ीबड़ी आंखें, जो दूध पीते बच्चे को बड़ी ममता से निहार रही थीं. कभीकभी उस की आंखें बेचैनी से उस ओर भी घूम जातीं, जो उस का बायस्कोप देखने के लिए उस के इंतजार में खड़े थे.

जैसे ही बेटी ने दूध पीना बंद किया, शंकरी के चेहरे पर आनंद झलक उठा. बच्ची अभी भी उस की गोद में लेटी थी और अधखुली आंखों से उसे ताकते हुए अपनी नन्ही हथेलियों से उस के माथे और गालों को सहला रही थी. औरत ने गौर से बच्ची को देखा, उस के चेहरे पर आनंद की जगह दुख की बदली छा गई. उस की आंखों से आंसू की 2 बूंदें टपक पड़ीं, जो बच्चे के चेहरे पर गिरीं. उस ने जल्दी से साड़ी के पल्लू से आंखों को पोंछा. बच्ची अब तक नींद के आगोश में चली गई थी.

शंकरी ने तमाशा देखने वालों को देखा. वे सभी उसे ही ताक रहे थे. उस ने बहुत हलके से बच्ची को झूले में लिटाया. बरगद के नीचे मक्खियों और कीड़ों की भरमार थी, इसलिए बच्ची को उन से बचाने के लिए एक बारीक कपड़ा उस के चेहरे पर डाल दिया, जिस से बच्ची आराम से सोती रहे. जैसे ही वह बच्ची के पास से हटी, बच्ची फिर रोने लगी. उस के रोने से वह बेचैन हो उठी. उस ने बायस्कोप के पास से ही रोती बच्ची को देखा, लेकिन मजबूरी की वजह से वह उसे उठा नहीं सकी. बायस्कोप देखने वाले बच्चों से पैसे ले कर उन्हें बैठा दिया. बच्ची रोती रही, 1-2 बार तो ऐसा लगा जैसे उस की सांस रुक गई है, लेकिन वह रोतीरोती सो गई.

थोड़ी देर बाद एक छोटी लड़की, जो 4 साल के आसपास रही होगी, सो रही बच्ची के पास से गुजरती हुई शंकरी के पास आ कर उस की साड़ी का पल्लू मुंह में डाल कर लौलीपाप की तरह चूसने लगी. वह शायद शंकरी की झूले में लेटी बेटी से बड़ी थी. उस की लार से शंकरी की साड़ी का पल्लू गीला हो गया. शंकरी की यह दूसरी बेटी घुटने तक लाल रंग का फ्रौक पहने थी. उस के पैर धूल से अटे हुए थे, आंखें पीली, मैलेकुचैले बाल, जो बूढ़े टट्टू की पूंछ की तरह बंधे हुए थे. उन में से कुछ खुले बाल उस के मटमैले चेहरे पर बिखरे हुए थे. लड़की ने शंकरी से उस के कान में फुसफुसा कर कुछ कहा. उस ने ऐसा न जाने क्या कहा कि शंकरी ने खीझ कर उसे कोहनी से झटक दिया. लड़की रोते हुए जमीन पर लेट गई, जिस से उस का पूरा शरीर धूल से अट गया.

तमाशा देखने वाले बच्चे इन सभी चीजों से बेपरवाह और बेखबर अपनी आंखें बायस्कोप के छोटे से गोल शीशे पर जमाए बक्से के अंदर का नजारा देख रहे थे, जो शायद उन्हें कुछ इस तरह मजा दे रहा था, जैसे वे सिनेमाहाल में कोई फिल्म देख रहे हों. यह उन के जोश और दीवानगी से पता चल रहा था. झूले में लेटी बच्ची एक बार फिर रोने लगी. शंकरी ने बगल में जमीन पर लोट रही बेटी को 5 रुपए का सिक्का दिखाया तो वह तुरंत  उठ कर खड़ी हो गई और शरीर पर चिपकी धूल को झाड़ते हुए मां के हाथ से सिक्का झपट लिया. उस के चेहरे पर आंसुओं की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. हाथ में सिक्का आते ही वह उत्साह और खुशी से उछलतीकूदती रोती हुई छोटी बहन के पास आई और उसे झूले से उठा कर अपनी छोटी सी कमर के सहारे गोद में ले कर थोड़ी दूरी पर स्थित एक छोटी सी दुकान की ओर चल पड़ी.

शंकरी बायस्कोप जरूर चला रही थी, लेकिन उस का ध्यान कहीं और ही था. उसी समय उस के पास एक अन्य लड़की आई, जिस की उम्र बामुश्किल 6 साल रही होगी. उस की पीली रंग की सलवारसमीज मैल की वजह से काली पड़ चुकी थी. कुछ पल मांबेटी आपस में कानाफूसी करती रहीं, उस के बाद वह लड़की वहीं मां के पास बैठ गई और अपने धूल भरे पैर मजे से हिलाने लगी. लेकिन उस की पीली आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. वह पैर हिलाते हुए वहां घूमने आए ताजा चेहरे वाले बच्चों और उन के मांबाप को ललचाई नजरों से ताक रही थी, क्योंकि वे अपने बच्चों की बड़ी से बड़ी इच्छाएं पूरी कर रहे थे.

तमाशा देखने वाले बच्चे जब चले गए तो वह आ कर मां के पास बैठ गई. मां उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकराई. बायस्कोप देखने वाले बच्चे उस में देखे गए तमाशे के बारे में चर्चा करते हुए हंस रहे थे. उसी बीच हवा का एक ऐसा झोंका आया, जिस से उस औरत का आंचल उड़ गया. उस के उभरे हुए पेट पर संविधा की नजर पड़ी, शायद वह गर्भवती थी. संविधा ने उभार से अंदाजा लगाया, कम से कम 6 महीने का गर्भ रहा होगा. अपने कमजोर शरीर के पेट पर उस छोटे से उभार के साथ शंकरी मुश्किल से बेटी के साथ जमीन पर बैठ गई. उस की इस 6 साल की बेटी ने प्यार से उसे मां कहा तो वह बेटी की आंखों में झांकने लगी.

उसी समय धोतीकमीज पहने और सिर पर मैरून रंग की पगड़ी बांधे एक आदमी मांबेटी के पास आ कर बैठ गया. उस के बैठते ही लड़की उसे बापू कह कर उस से चिपक गई और उस के गालों तथा मूंछों को सहलाने लगी. लेकिन उस आदमी ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह शंकरी से बातें करने में व्यस्त था. संविधा को समझते देर नहीं लगी कि वह आदमी शंकरी का पति है. वह आदमी उसी को देख रहा था, जबकि उस की नजरें अपने चारों ओर घूमते लोगों पर टिकी थीं. लड़की अपनी बांहें बापू के गले में डाल कर झूल गई तो वह उसे झटक कर उठ खड़ा हुआ और मेले की भीड़ में गायब हो गया.

लड़की संविधा के पास आ कर खड़ी हो गई. उस की नजरें उस के हाथ में झूल रही पौलीथिन में रखे चिप्स के पैकेट पर जमी थीं. वह उन चीजों को इस तरह ललचाई नजरों से देख रही थी, जैसे जीवन में कभी इन चीजों को नहीं देखा था. उस की तरसती आंखों में झांकते हुए संविधा ने चिप्स का पैकेट उसे थमाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

अब उस की नजरें संविधा की बेटी के लौलीपाप पर जम गई थीं, जिसे वह चूस रही थी. वह उसे इस तरह देख रही थी, जैसे उस की नजरें उस पर चिपक गई हों. संविधा ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए कहा, ‘‘लौलीपाप खाओगी?’’

उस ने मुसकराते हुए हां में सिर हिलाया. संविधा ने पर्स में देखा कि शायद उस में कोई लौलीपाप हो, लेकिन अब उस में लौलीपाप नहीं था. संविधा को लगा, अगर उस ने लड़की से कहा कि लौलीपाप नहीं है तो उसे दुख होगा. इसलिए उस ने पर्स से 10 रुपए का नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा, ‘‘जाओ, अपने लिए लौलीपाप ले आओ.’’

लड़की मुसकराते हुए 10 रुपए के नोट को अमूल्य उपहार की तरह लहराती हुई मेले की ओर भागी. लड़की के जाते ही संविधा शंकरी को देखने लगी. वह काफी व्यस्त लग रही थी. वह बायस्कोप देखने वालों को शो दिखाते हुए सामने से गुजरने वालों को बायस्कोप देखने के लिए आवाज भी लगा रही थी. 4 साल की उस की जो बेटी अपनी छोटी बहन को ले कर गई थी, अब तक मां के पास वापस आ गई थी. उस ने बरगद के पेड़ के चारो ओर बने चबूतरे पर छोटी बहन को बिठाया और अपना हाथ मां के सामने कर दिया, जिस में वह खाने की कोई चीज ले आई थी. शायद वह उसे मां के साथ बांटना चाहती थी. अब तक बड़ी बेटी भी आ गई थी. उस ने भी अपनी मुट्ठी मां के सामने खोल कर अंगुली से संविधा की ओर इशारा कर के धीमे से कुछ कहा.

शंकरी ने संविधा की ओर देखा. नजरें मिलने पर वह मुसकराने लगी. उस परिवार को देखतेदेखते अचानक संविधा के मन में उस के प्रति आकर्षण सा पैदा हो गया तो उस के मन में उन लोगों के बारे में जानने की उत्सुकता पैदा हो गई. शायद शंकरी के लिए उस के दिल में दया पैदा हो गई थी. उस की स्थिति ही कुछ ऐसी थी, इसीलिए संविधा उस की कहानी जानना चाहती थी. धीरेधीरे संविधा शंकरी की ओर बढ़ी. उसे अपनी ओर आते देख शंकरी खड़ी हो गई. उसे लगा, शायद संविधा बेटी को बायस्कोप दिखाने आ रही है, इसलिए उस ने बायस्कोप का ढक्कन खोलने के लिए हाथ बढ़ाया. संविधा ने कहा, ‘‘मुझे इस मशीन में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं तो आप से मिलने आई हूं.’’

संविधा की इस बात से शंकरी को सुकून सा महसूस हुआ. वह चबूतरे पर खेल रही छोटी बेटी के पास बैठ गई. संविधा ने उस की तीनों बेटियों की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘ये तीनों तुम्हारी ही बेटियां हैं?’’

‘‘जी.’’ शंकरी ने जवाब दिया.

‘‘ये कितनेकितने साल की हैं?’’

शंकरी ने हर एक की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘6 साल, 4 साल और सब से छोटी डेढ़ साल की है.’’

इस के बाद उस के उभरे हुए पेट पर नजरें गड़ाते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘शायद तुम फिर उम्मीद से हो?’’

‘‘जी.’’ उस ने लंबी सी सांस लेते हुए कहा.

‘‘कितने महीने हो गए?’’

‘‘6 महीने.’’

संविधा शंकरी को एकटक ताकते हुए उस की दुख भरी जिंदगी के बारे में सोचने लगी, शायद यह बच्चे पैदा करने को मजबूर है. यह कितनी तकलीफ में है. उस की परेशानियों को देखते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी होगी?’’

‘‘मेरी…’’ उस ने अनुमान लगाने की कोशिश की, लेकिन विफल रही तो नजरें झुका लीं.

संविधा को आघात सा लगा. उस ने उस के दुख और मजबूरी भरे जीवन की अपने शानदार और ऐशोआराम वाले जीवन से तुलना की, तब उसे लगा कि इस दुनिया में शायद दुख ज्यादा और सुख कम है. उस ने पूछा, ‘‘आप हर साल एक बच्चा पैदा कर के थकी नहीं?’’

‘‘इस के अलावा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है.’’ शंकरी ने ठंडी आह भरते हुए जवाब दिया.

‘‘आप बहुत बहादुर हैं. मेरे वश का तो नहीं है.’’

‘‘मेरी मजबूरी है. मेरे पति चाहते हैं कि उन का एक बेटा हो जाए, जिस से उन के परिवार का नाम चलता रहे.’’

‘‘नाम चलता रहे..?’’ संविधा ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा. उस पर उसे तरस भी आया. क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उस के जो बच्चे थे, उन्हें ही वह ठीक से पालपोस सकती. जबकि सिर्फ नाम चलाने के लिए वह बच्चे पर बच्चे पैदा करने को तैयार थी. संविधा को झटका सा लगा था. वह उस से कहना चाहती थी कि आजकल लड़के और लड़कियों में कोई अंतर नहीं रहा. दोनों बराबर हैं. उस की केवल एक ही बेटी है, जिस से वह और उस के पति खुश हैं. लड़कियां लड़कों से ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभाशाली निकल रही हैं. वे मातापिता की बेटों से ज्यादा देखभाल करती हैं. देखो न लड़कियां पहाड़ों पर चढ़ रही हैं, उन के कदम चांद पर पहुंच गए हैं.

लेकिन वह कह नहीं पाई. उस के मन में आया कि वह उस से पूछे कि अगर इस बार भी बेटी पैदा हुई तो..? क्या जब तक बेटा नहीं पैदा होगा, वह बच्चे पैदा करती रहेगी? अगर उसे बेटा पैदा ही नहीं हुआ तो वह क्या करेगी? इस तरह के कई सवाल संविधा के मन में घूम रहे थे. उस की गरीबी और बेटा पाने की चाहत के बारे में सोचते हुए उसे लगा, अगर यह इसी तरह बच्चे पैदा करती रही तो इस की हालत तो एकदम खराब हो जाएगी. अचानक उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘वह लोकगीत गाते हैं.’’ शंकरी ने कहा.

‘‘लोकगीतों का कार्यक्रम करते हैं?’’

‘‘नहीं, मेलों या गांवों में घूमघूम कर गाते हैं.’’

संविधा को याद आया कि जब वह मेले में प्रवेश कर रही थी तो कुछ लोग चादर बिछा कर ढोलक और हारमोनियम ले कर बैठे थे. वे लोगों की फरमाइश पर उन्हें लोकगीत और फिल्मी गाने गा कर सुना रहे थे.

संविधा समझ गई कि ये लोग कहीं बाहर से आए हैं. उस ने पूछा, ‘‘लगता है, तुम लोग कहीं बाहर से आए हो? अपना गांवघर छोड़ कर कहीं बाहर जाने में तुम लोगों को बुरा नहीं लगता?’’

‘‘हमारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है.’’

‘‘क्यों? जहां तुम लोग रहते हो, वहां तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है?’’

‘‘काम और कमाई होती तो हम लोग इस तरह मारेमारे क्यों फिरते?’’

‘‘लेकिन तुम लोग अपने यहां खेती भी तो कर सकते हो?’’ संविधा ने सुझाव दिया.

‘‘कैसे मैडम, हमारी सारी जमीनों पर दबंगों और महाजनों ने कब्जा कर लिया है. क्योंकि हम ने उन से जो कर्ज लिया था और उसे अदा नहीं कर पाए.’’

‘‘तुम लोगों ने अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए संघर्ष क्यों नहीं किया?’’

‘‘मैडम, हम बहुत कमजोर लोग हैं और वे बहुत शक्तिशाली. उन के पास पैसा भी है और ताकत भी. हम उन से दुश्मनी कैसे मोल ले सकते हैं.’’

‘‘लेकिन तुम लोग यह सब सह कैसे लेते हो?’’ ‘‘हम बहुत ही असहाय और बेबस लोग हैं.’’ शंकरी ने लंबी सांस ले कर जमीन पर खेल रही बच्ची का मुंह साड़ी के पल्लू से साफ करते हुए कहा.

संविधा के दिमाग में तमाम सवाल उठ रहे थे, लेकिन उसे लगा कि बुद्धिमानी इसी में है कि वह उस से उन सवालों को न पूछे. चेहरे से शंकरी अभी जवान लग रही थी, लेकिन हालात की वजह से चेहरा पीला और सूखा हुआ था. शायद ऐसा गरीबी और बच्चे पैदा करने की वजह से था. संविधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारी शादी कितने साल में हुई थी?’’

‘‘मेरी…’’ उस ने अनुमान लगाने की कोशिश की, मगर नाकाम रही.

‘‘तुम यहां कब आई?’’

‘‘जब यह मेला शुरू हुआ.’’

‘‘तुम लोगों के दिन कैसे गुजरते हैं?’’

‘‘सुबह जहां रहते हैं, वहां की साफसफाई करते हैं. दोपहर को ही रात का भी खाना बना लेते हैं, क्योंकि हमारे पास उजाले की व्यवस्था नहीं है. उस के बाद अपने काम में लग जाते हैं. लड़कियां टोलियों में नाचनेगाने क काम करती हैं. शादीशुदा महिलाएं मेरी तरह बायस्कोप दिखाती हैं तो कुछ कठपुतली का नाच दिखाती हैं. कुछ मेहंदी लगाने का भी काम करती हैं.’’

संविधा ने इधरउधर देखा. दूरदूर तक कोई इमारत नहीं थी. मैदान पर मेले में आए दुकानदारों के तंबू लगे थे. मन में जिज्ञासा जागी तो उस से पूछा, ‘‘तुम पूरे दिन इसी तरह बिना आराम के काम करती हो. ऐसे में तुम्हारे बच्चों की देखभाल कौन करता है?’’

‘‘मेरी बड़ी बेटी इन दोनों बेटियों को संभाल लेती है.’’

‘‘इन का खानापीना और नहानाधोना?’’

‘‘बड़ी बेटी छोटी को नहला देती है, बीच वाली खुद ही नहा लेती है.’’

संविधा ने अपनी 8 साल की बेटी पर नजर डाली, उस के बाद शंकरी की एकएक कर के तीनों बेटियों को देखा. छोटी बेटी अभी भी मां के पास चबूतरे पर खेल रही थी. संविधा ने सोचते हुए एक लंबी सांस ली. कुछ देर वह शंकरी और उस की बेटियों को देखती रही. उस का दिल उन के लिए सहानुभूति से भर गया. उस ने पर्स से 10-10 रुपए के 2 नोट निकाले और खेल रही लड़कियों को थमा दिए. इस के बाद वह चलने लगी तो देखा, कुछ बच्चे उधर आ रहे थे. उन्हें आते देख कर शंकरी अपने बायस्कोप के पास जा कर खड़ी हो गई, लेकिन उस की नजरें चबूतरे पर खेल रही बेटी पर ही जमी थीं.

शाम को संविधा घर पहुंची तो उस के दिलोदिमाग में शंकरी और उस की बेटियां ही छाई थीं. वह भी एक औरत थी, इसलिए उस ने प्रार्थना की कि काश! उस के गमों का सिलसिला खत्म हो जाए और उस की इच्छा पूरी हो जाए. इस बार उसे बेटा पैदा हो जाए. Hindi Stories

अनुवाद: एम.एस. जरगाम

Crime Story Hindi: भैरवी क्रिया के चक्रव्यू में मोनिका

Crime Story Hindi: प्रतिष्ठित परिवार की मोनिका शादी के 5 साल बाद भी मां नहीं बन सकी तो वह एक तथाकथित तांत्रिक के चक्कर में फंस गई. उस तांत्रिक ने उसे भैरवी क्रिया के चक्रव्यूह में ऐसा फांसा कि मोनिका घर की रही न घाट की. अपने घर पर लोहड़ी मनाने के बाद मोनिका 14 जनवरी, 2015 को अपने पति के पास चली गई थी. उस का पति गुरदीप इंडियन नेवी में नौकरी करता था. वह उस समय मुंबई में रह रहा था. ससुराल में केवल सासससुर रह गए थे. मुंबई आने के बाद भी वह सासससुर से फोन पर बात कर के हालचाल लेती रहती थी. मोनिका का मायका राजपुरा की रौशन कालोनी में था. वहां उस की विधवा मां सुनीता रानी रहती थी.

29 जनवरी, 2015 को मोनिका ने अपने ससुर के मोबाइल पर फोन करना चाहा तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. मोनिका ने कई बार उन का नंबर मिलाया, लेकिन हर बार फोन स्विच्ड औफ ही मिला. इस पर मोनिका ने अपनी मां सुनीता को फोन कर के कहा कि वह किसी मुद्दे पर अपने सासससुर से बात करना चाहती है, मगर उन का मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहा है. उस ने अपनी मां से कहा कि वह उस की ससुराल जा कर पता लगाए कि वहां कोई फिक्र वाली बात तो नहीं है. उस वक्त रात काफी हो चुकी थी. सुनीता भी अपने घर में अकेली थीं, इसलिए अकेली होने की वजह से वह बेटी की ससुराल नहीं गईं.

अगले दिन घर और रसोई का काम निपटाने के बाद दोपहर करीब 11 बजे वह अपने समधी के यहां पहुंचीं तो घर के बाहर वाला लकड़ी का दरवाजा खुला था. वह ड्योढ़ी में पहुंचीं तो वहां एक जोड़ी चप्पलें उलटीसीधी पड़ी थीं, वहीं पर एक टोपी भी पड़ी थी. तभी उन्होंने तेज बदबू का भभका महसूस किया. सुनीता ने अपने समधी और समधिन को कई आवाजें दीं. जब अंदर से कोई जवाब नहीं आया तो वह उन के बैडरूम में चली गईं. वहां असहनीय बदबू फैली थी. तभी उन की नजर बैड पर गई तो वह चीख पड़ीं. वहां मोनिका के ससुर खेमचंद और सास कमलेश की लाशें पड़ी थीं. लाशें देखते ही वह तुरंत घर से बाहर निकल आईं और शोर मचा दिया.

शोर सुन कर पासपड़ोस के लोग वहां आ गए. सुनीता ने उन्हें समधी और समधिन की लाशें कमरे में पड़े होने की जानकारी दी. उसी दौरान अपनी बेटी मोनिका और अन्य रिश्तेदारों को भी उन्होंने इस मामले की खबर दे दी. वहां मौजूद लोगों में से किसी ने केएसएम पुलिस चौकी में फोन कर के इस डबल मर्डर की सूचना दे दी. डबल मर्डर की सूचना मिलते ही चौकी प्रभारी महिमा सिंह, हेडकांस्टेबल नाथीराम और भाग सिंह के साथ राजपुरी के बनवाड़ी इलाके में खेमचंद के घर पहुंच गए. वहां एक ही कमरे में 2 लाशें पड़ी देख कर वह भी चौंके. उन्होंने थाना सिटी के थानाप्रभारी शमिंदर सिंह को दोहरे हत्याकांड की जानकारी दी तो वह भी एसआई सतनाम सिंह, एएसआई राकेश कुमार, हेडकांस्टेबल जसविंदर पाल, कुलवंत सिंह और महिला कांस्टेबल परमजीत कौर को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस मकान में यह घटना हुई थी, वह पुराने स्टाइल का मकान था. थानाप्रभारी जैसे ही  लकड़ी के बड़े दरवाजे से मकान में घुसे, असहनीय बदबू से बेहाल हो गए. नाक पर रूमाल रख कर वह आगे बढ़े तो उन्होंने बैडरूम में बिस्तर पर एक आदमी और एक औरत की लाश पड़ी देखी. पूछने पर पता चला कि मृतक 70 वर्षीय खेमचंद और उन की 65 वर्षीया पत्नी कमलेश हैं. लाशों के मुआयने में लग रहा था कि उन दोनों को गला घोंट कर मारा गया था. निस्संदेह उन की हत्या कई दिनों पहले की गई थी, क्योंकि लाशें गलने लगी थीं. बैडरूम का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. अलमारियों का सामान बिखरा होने के साथसाथ लौकर भी खुला पड़ा था, जो पूरी तरह खाली था. पहली ही नजर में लग रहा था कि यह डबल मर्डर लूटपाट की खातिर हुआ होगा.

कमरे में फर्श पर कोल्डड्रिंक के खाली कैन, सिगरेट के टुकड़ों के अलावा वहां एल्युमिनियम की पन्नी भी पड़ी थी. ऐसी पन्नियों का उपयोग नशेड़ी नशीला पदार्थ लेने के लिए करते हैं. इस से यह बात जाहिर हो रही थी कि अपराधी अव्वल दर्जे के नशेड़ी थे. जिस इत्मीनान से यह सब हुआ था, उस से लग रहा था कि अपराधी संभवत: मृतकों के परिचित रहे होंगे. मामला गंभीर था, इसलिए सूचना मिलने पर पटियाला के एसएसपी गुरमीत चौहान, एसपी (डिटेक्टिव) जसकरण सिंह तेजा, डीएसपी (सिटी) राजेंद्र सिंह सोहल और सीआईए इंसपेक्टर विक्रमजीत सिंह बराड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने भी लाशों और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

मौके पर पहुंची डौग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम एवं एफएसएल टीम ने भी मौके की काररवाई पूरी की. घटनास्थल पर मौजूद सुनीता, जो राजपुरा की रौशन कालोनी में रहती थी, बताया कि मरने वाले उन के समधीसमधिन हैं. उन की बेटी मोनिका उन के बेटे कुलदीप से ब्याही है. दोनों की शादी 5 साल पहले हुई थी. सुनीता ने यह भी बताया कि मोनिका का पति गुरदीप इंडियन नेवी में नौकरी करता है और मुंबई में रहता है. मोनिका बीचबीच में अपने सासससुर की सेवा करने के लिए मुंबई से राजपुरा आती रहती थी. गुरदीप चाहता था कि मांबाप भी मुंबई में उस के साथ रहें, लेकिन वे वहां जाने को तैयार नहीं थे.

पुलिस ने पंचनामा कर के दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा कर सुनीता की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. मौके से कोई ऐसा सुबूत नहीं मिला  था, जिस के सहारे हत्यारों तक पहुंचने में  पुलिस को मदद मिलती. पुलिस के लिए यह एक संगीन मामला था. एसएसपी गुरमीत चौहान ने इसे गंभीरता से लेते हुए एक विशेष टीम का गठन कर के इंसपेक्टर शमिंदर सिंह को आदेश दिया कि वह इस केस को जल्द से जल्द सुलझाए. टीम की अगुवाई डीएसपी राजेंद्र सिंह सोहल कर रहे थे.

घटनास्थल से जो सुबूत मिले थे, उन से घटना में किसी नशेड़ी के शामिल होने की उम्मीद थी, इसलिए पुलिस टीम ने इलाके के तमाम नशेडि़यों को उठा कर उन से पूछताछ शुरू की. मगर वे सब बेकसूर निकले. इस परिवार के अनेक परिचितों को भी संदेह के दायरे में रख कर उन से मनोवैज्ञानिक पूछताछ की गई, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात रहा. गुरदीप को अपने मातापिता की हत्या की खबर मिली तो वह भी पत्नी मोनिका के साथ राजपुरा आ गया. आते ही उस ने जिले के पुलिस अधिकारियों से मुलाकात कर के जल्द से जल्द केस का खुलासा कर हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग की.

पुलिस टीम के ऊपर इस केस को खोलने का काफी दबाव था. काफी कोशिश के बावजूद भी पुलिस को हत्यारों के बारे में कोई पता नहीं लगा तो पुलिस ने अपने मुखबिरों का सहारा लिया. 4 दिनों बाद एक मुखबिर ने पुलिस टीम को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उस ने बताया कि मोनिका सिकंदर नाम के तांत्रिक के पास जाया करती थी. तांत्रिक भी उस के यहां आता था. कई बार तो वह तांत्रिक देर रात को भी उस के घर आता था और भोर में वहां से चला जाता था. इस जानकारी के बाद इंसपेक्टर शमिंदर सिंह को शक हो गया कि हो न हो, मोनिका और तांत्रिक के बीच कोई चक्कर रहा हो. संभव है, मोनिका ने ही अपने संबंधों में बाधक बने सासससुर को रास्ते से हटवा दिया हो.

इंसपेक्टर ने इस बारे में डीएसपी राजेंद्र सिंह सोहल से बात की तो उन्होंने सिकंदर सिंह को हिरासत में ले कर पूछताछ करने को कहा. सिकंदर सिंह पंजाब के जिला फतेहगढ़ साहिब के कस्बा नारायणगढ़ का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के यहां दबिश डालने के लिए निकल गई. लेकिन तांत्रिक अपने घर से गायब मिला. उधर मोनिका भी भूमिगत हो गई थी. इस से ये लोग पूरी तरह शक के दायरे में आ गए. अब पुलिस ने उन्हें सरगर्मी से तलाशना शुरू कर दिया. पुलिस की मेहनत रंग लाई. 5 फरवरी, 2015 को एक गुप्त सूचना के आधार पर राजपुरा के एक मकान में दबिश दे कर वहां छिपे 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में मोनिका भी थी. अन्य 3 लोगों ने अपने नाम सिकंदर, गुरप्रीत और रणजीत बताए.

मौके पर हुई प्रारंभिक पूछताछ में उन तीनों ने खेमचंद व उन की पत्नी कमलेश रानी की हत्या किए जाने की बात भी स्वीकार कर ली. उन्होंने यह भी बताया कि दोनों कत्ल उन्होंने मोनिका के कहने पर ही किए थे  थाने में इन चारों से दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो सैक्स अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली –

सिकंदर सिंह पंजाब के फतेहगढ़ साहिब के कस्बा नारायणगढ़ निवासी दलबीर सिंह का बेटा था. दलबीर सिंह फौजी थे और गांव में उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. वह चाहते थे कि सिकंदर भी भारतीय सेना में भरती हो कर देशसेवा करे. लेकिन सिकंदर को न फौज में जाना पसंद था और न ही खेतों में काम करना. वह आवारा घूमता रहता था. इसी बीच पता नहीं कैसे वह एक तांत्रिक के संपर्क में आया और फिर उस से थोड़ीबहुत तंत्रविद्या सीख कर खुद भी तांत्रिक बन गया. उस ने घर के एक कमरे में अपनी गद्दी जमा ली. पहले उस के पास स्थानीय लोग ही आते थे. धीरेधीरे उस का प्रचार होने लगा तो आसपास के क्षेत्रों से भी लोग अपनी समस्याएं ले कर उस के पास पहुंचने लगे.

मोनिका भी अपनी समस्या ले कर उस के पास आई थी. 5 साल पहले उस की शादी पंजाब के राजपुरा में स्थिति बनवाड़ी इलाके में रहने वाले खेमचंद के बेटे गुरदीप से हुई थी. गुरदीप इंडियन नेवी में नौकरी करता था. मोनिका की शादी हुए 5 साल हो गए थे, लेकिन वह किसी वजह से मां नहीं बन पाई थी. मोनिका और गुरदीप ने अपना इलाज भी कराया और तांत्रिकों, मौलवियों से मिली, लेकिन उस की कोख नहीं भरी. किसी के द्वारा उसे तथाकथित तांत्रिक सिकंदर के बारे में पता चला तो वह अपनी समस्या के समाधान के लिए उस के पास पहुंच गई. खूबसूरत मोनिका को देख कर सिकंदर का मन डोल गया. उस ने पहले तो झाड़फूंक करने के अलावा उस से कुछ उपाय करवाए.

इस से मोनिका को कोई फायदा नहीं हुआ तो सिकंदर ने उसे एक दिन समझाया कि भैरवी क्रिया से वह निश्चित रूप से मां बन जाएगी. मगर यह क्रिया वह उस की अनुमति के बिना नहीं करेगा. इस का असर भी तभी होगा, जब वह उसे पूरा सहयोग करेगी. मोनिका उस की बात समझ तो चुकी थी, फिर भी उस ने उस क्रिया के बारे में उस से पूछा तो सिकंदर ने उसे विस्तारपूर्वक समझा दिया. सिकंदर ने कहा कि इस क्रिया में आधी रात के वक्त विशेष पूजा के दौरान पहले दोनों वस्त्रहीन होंगे, उस के बाद वह इसी अवस्था में उस की सवारी कर के संतान योग की विधि वाला पाठ करेगा.

मोनिका जानती थी कि यह क्रिया कर के वह पति को धोखा दे रही है, लेकिन संतान पाने के लिए वह सब कुछ करने को तैयार थी. लेकिन समस्या यह थी कि घर में सासससुर को छोड़ कर आधी रात में वह सिकंदर के यहां नहीं जा सकती थी. अपनी यह समस्या उस ने सिकंदर को बताई, साथ ही यह भी कहा कि अगर वह भैरवी क्रिया उस के घर पर ही आ कर करे तो ज्यादा ठीक रहेगा. जिस रात वह यह क्रिया करेगा, उस रात वह अपने सासससुर के खाने में नींद की गोलियां मिला देगी. जब वे गहरी नींद में सो जाएंगे तो यह क्रिया बिना किसी रुकावट के पूरी हो जाएगी.

सिकंदर उस की बात मान गया. तब निर्धारित रात को मोनिका ने ऐसा ही किया. सासससुर को नींद की गोली मिला खाना खिलाने के बाद उस ने सिकंदर को फोन कर दिया. जब तक वह मोनिका के घर पहुंचा, सासससुर गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे. अब एक कमरे में मोनिका और सिकंदर निर्वस्त्र बैठे थे. कुछ देर मंत्र उच्चारण के बाद सिकंदर भैरवी क्रिया करने में लीन हो गया. क्रिया खत्म होने के बाद मोनिका निश्चिंत हो गई कि अब वह मां बन जाएगी. वह गर्भवती होगी या नहीं? यह बाद की बात थी. फिलहाल इस क्रिया से सिकंदर के लिए मौजमस्ती का एक नया द्वार खुल गया था. सिकंदर ने उसे बता दिया कि जब तक वह गर्भवती न हो जाए, यह क्रिया चलती रहेगी.

मोनिका अपने सासससुर के खाने में जो नींद की गोलियां मिलाती थी, एक रात पता नहीं कैसे उस दवा की मात्रा कम रह गई, जिस से मोनिका के सासससुर आधी रात में उस वक्त जाग गए, जब उन की बहू तांत्रिक सिकंदर के साथ वासना का खेल खेलने में लीन थी. दोनों ने बहू को इस हालत में देखा तो उन के होश उड़ गए. आहट होने पर तांत्रिक वहां से भाग गया. उस के भागने के बाद उन्होंने मोनिका को बहुत बुराभला कहा. साथ ही इस सब के बारे में अपने बेटे गुरदीप को बताने की धमकी भी दी. मोनिका डर गई. अपनी गलती मानते हुए उस ने सासससुर के पैरों पर गिर कर माफी मांगते हुए वादा किया कि वह भविष्य में ऐसी गलती कभी नहीं करेगी. इस सब में उस ने कसूर भी तांत्रिक का ही निकाल दिया.

बात उछलती तो बदनामी अपनी ही होती, यह सोच कर खेमचंद और कमलेश कड़वा घूंट पी कर फिलहाल चुप हो गए. उन्होंने बहू की हरकत बेटे को नहीं बताई. सासससुर तो चुप बैठ गए, मगर मोनिका चुप बैठने वालों में नहीं थी. उसे लगा कि सासससुर उस के रास्ते में बाधक बने रहेंगे. इसलिए उस ने उन्हें ठिकाने लगाने की ठान ली. इस बारे में उस ने सिकंदर से बात की तो वह यह काम करने को तैयार हो गया. क्योंकि उन के न होने पर उसे बेखौफ हो कर अय्याशी करने का मौका मिलता. पड़ोस के गांव बरौंगा के रहने वाले गुरप्रीत सिंह उर्फ काली व रणजीत सिंह से सिकंदर की दोस्ती थी. दोनों ही आवारा थे. पैसों का लालच दे कर सिकंदर ने दोनों को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

मोनिका नहीं चाहती थी कि किसी को उस पर शक हो. इसलिए योजना बनाने के बाद वह लोहड़ी से अगले दिन अपने पति के पास मुंबई चली गई. 23 जनवरी, 2015 को सिकंदर ने अपने साथियों के साथ मिल कर खेमचंद व उन की पत्नी कमलेश रानी की हत्या कर दी. हत्या को लूट का रूप देने के लिए उन्होंने अलमारी व तिजोरी में रखे 25-30 हजार रुपयों के अलावा सारी ज्वैलरी भी निकाल ली और घर का सामान बिखेर दिया. वहां नशा लेने में प्रयोग की जाने वाली एल्युमिनियम की पन्नी व सिगरेट के टुकड़े भी डाल दिए. जिस से लगे की लूटपाट नशेडि़यों ने की है. पुलिस ने चारों अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर 4 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन से चोरी किए 2 लाख रुपए के आभूषणों के अलावा नकदी भी बरामद कर ली.

रिमांड अवधि पूरी होने पर उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया. कथा संकलन तक विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर शमिंदर सिंह ने इन आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर अदालत में प्रस्तुत कर दिया था. Crime Story Hindi

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Social Crime: देह के दलदल में देश की दत्तक बेटियां

Social Crime: अंजना के होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक दूर से चमक रही थी. शैंपू और कंडीशनर से चमकते लहराते बाल, आंखों के सामने लटकती लटों के बीच चेहरा पाउडर और क्रीम के मेकअप से दमक रहा था. नए कपड़े के पहनावे में उस का यौवन खिल उठा था. एक दिन पहले ही वह मुंबई से अपने गांव आई थी. हाथ में पर्स लटकाए गांव की गलियों में इठलाती घूम रही थी. कलाई में खनकती नई चूडि़यों की आवाज से गांव के हर किसी की नजर बरबस उठ रही थी. उसे देखते ही सामने से आ रही गांव की सिलमिना ने टोका, ‘‘अरे अंजना, तू तो हीरोइन लग रही है. कब आई रे?’’

‘‘कल ही तो शाम को मुंबई से आई हूं, मैं तुम्हारे घर ही जा रही थी.’’ अंजना चहकती हुई बोली.

दोनों बचपन की सहेलियां थीं. प्यार से अंजना ने पूछा, ‘‘कैसी है रे तू?’’

यह सुन कर सिलमिना का चेहरा उतर गया. उदासी से आंखें नम हो गईं. धीरे से बोली, ‘‘अब तुम्हें क्या बताऊं अपनी हालत, देख ही रही हो. यहां न भरपेट खाने को मिलता है और न ही पहनने को अच्छे कपड़े. सब कुछ तो तुम जानती ही हो, बस तरसते हुए जी रही हूं.’’ सिलमिना बोली. अंजना ने उस के हाथों को पकड़ लिया, फिर गले लग गई. उस का ऐसा करना सिलमिना को अच्छा लगा. वह थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू तो एकदम नहीं बदली!’’

‘‘वह सब छोड़, बता तू मेरे साथ मुंबई चलेगी?’’ अंजना ने अपनी सहेली सिलमिना से सीधा सवाल किया.

इस के लिए सिलमिना तैयार नहीं थी. वह उसे एकटक देखने लगी.

‘‘अरे, तू देखती क्या है यह देख मुझे, सब कुछ मुंबई में ही तो मिला है. अरे वहां स्वर्ग है, स्वर्ग.’’ अंजना बोली.

‘‘मैं तो चली चलूं, मगर मां का क्या होगा?’’ सिलमिना ने चिंता जताई.

‘‘मां की फिक्र तुम मत करो, मां के पास हर महीने पैसे भेज देना.’’ अंजना ने सुझाव दिया.

‘‘क्या, सचमुच ऐसा हो सकता है? मुझे वहां इतने पैसे मिल जाएंगे कि मैं मां को भी पैसे भेज सकती हूं.’’ सिलमिना बोली.

‘‘ और नहीं तो क्या?’’ अंजना बोली.

‘‘तो फिर जैसा तुम कहो मैं चलने को तैयार हूं.’’

अंजना से बात कर सिलमिना की आंखों में चमक आ गई थी. उसे अंजना ने एक अद्भुत आत्मविश्वास से भर दिया था. दोनों छत्तीसगढ़ के बीहड़ जंगलों में निवास करने वाली कोरवा समुदाय की थीं.

वहां के लोगों के पास कोई ठोस कामधंधा नहीं था, जिस से उन का पेट भर पाता और वे सामान्य जीवन गुजार पाते. ऐसे में सभी अभावग्रस्त दर्दभरी जिंदगी गुजार रहे थे. जब भी अंजना गांव आती थी, तब बहुत परिवारों के लिए वह आशा की किरण बन जाती. परिवार में बुजुर्ग मांबाप को लगता था कि उन की बेटी को दिल्ली या मुंबई में घरेलू नौकरानी का काम मिल जाएगा. सिलमिना अपनी सहेली अंजना के कहने पर मुंबई जाने के लिए तैयारी में जुट गई. उस के अलावा गांव की कुछ और लड़कियां भी तैयार हो गईं, जो आसपास के इलाके की थीं.

उन्हें अंजना ने विश्वास दिलाया था कि सभी को मुंबई या दिल्ली में काम मिल जाएगा. जो जहां जाना चाहे चल सकती है, उस की जानपहचान दोनों जगहों के काम दिलाने वाले खास लागों से है. उस के भरोसे पर 14 से 18 साल के उम्र की कुल 16 लड़कियां अच्छी जिंदगी की उम्मीद में गांव से महानगर के लिए निकल पड़ीं. उन्हें अंजना ने बताया कि महानगरों में घरेलू काम करने वाली लड़कियों की बहुत कमी है. घर में साफसफाई करने, कपड़ेलत्ते धोने और बरतन मांजने का काम करना होता है. उस के काम के हिसाब से महीने में पगार मिलता है.

खाने और रहने का इंतजाम मालकिन द्वारा ही किया जाता है. उस का पैसा नहीं लगाता है. बीचबीच में उपहार भी मिलता रहता है. किसी अतिथि के आने पर वे अलग से पैसे दे जाते हैं. यह सब अंजना समझा ही रही थी कि एक लड़की मधु पूछ बैठी, ‘‘दीदी और क्या करना होता है?’’

‘‘और क्या करना है, घर में बच्चे हों तो उन्हें खिलाओ, घुमाओ और आराम की जिंदगी गुजारो.’

‘‘इन सब के लिए कितने पैस मिल जाते हैं दीदी?’’ उत्सुकता से मधु ने पूछा.

‘‘पैसे बहुत मिलते हैं पगली. 5 हजार रुपए महीने तो मिलेंगे ही. उस में तुम्हें एक पैसा खर्च नहीं होगा. बाकी जो मैं ने और कुछ बताया, उस के अलावा है.’’ अंजना बोली.

‘‘क्या?’’ अंजना की बात सुन कर मधु की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘लेकिन तू अभी छोटी है इसलिए 3 हजार ही मिलेंगे.’’ यह सुन कर सभी लड़कियां हंसने लगीं.

मधु ने आंखें घुमाते हुए कहा, ‘‘दीदी मुझे भी पूरे पैसे दिलवाना, मैं 2 के बराबर अकेली ही काम कर दूंगी.’’

‘‘मधु, तुम चिंता नहीं करो वहां पहुंच कर तुम्हें लगेगा कि तुम कहां पहुंच गई हो. समझो स्वर्ग है स्वर्ग. और जिंदगी की सभी खुशियां मिलेंगी, मजे करोगी, मजे!’’ कहती हुई अंजना ने उस की गालों को थपथपा दिया.

इस तरह आकर्षक सपने दिखा कर अंजना अपने साथ 16 लड़कियों को मुंबई ले गई. वहां पहुंच कर उस ने लड़कियों को अपने खास लोगों को सौंप दिया, जहां से उन्हें काम के लिए भेजा जाना था. उस के बाद लड़कियों के साथ जो हुआ, वह सब उसे दिखाए गए सपने के काफी उलट था. मधु एक्का सांवली सी सुतवां नाकनक्श की आकर्षक किशोरी थी. उसे एक प्लाई शौप के मालिक ने अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. महीने की पगार 4 हजार रुपए तय हुई थी. इसी तरह से 18 वर्षीया सिलमिना सिदार को आरटीओ एजेंट रमेश चंद्रा ने अपने घर में घरेलू नौकरानी के तौर पर 5 हजार के मासिक वेतन पर रख लिया था.

16 साल की प्रमिला मंझवार एक व्यापारी के घर पहुंच गई थी, जबकि 17 साल की सुनीता धनुहार एक कामकाजी महिला रजनी के यहां लग गई थी. इसी तरह से सभी लड़कियां कहीं न कहीं काम पर लगा दी गई थीं. मगर जैसेजैसे समय बीतता चला गया, लड़कियों के सपने टूटते चले गए. वे अमानवीय दौर से गुजरने लगीं. उन्हें घरपरिवार से बात करने की मनाही थी. उन में कुछ लड़कियां देह के धंधे पर उतरने को विवश हो गईं. उन्हें पूरी तरह से एहसास हो गया था कि वे पिंजरे में कैद हो कर रह गई हैं. उन की अशिक्षा किसी दुर्भाग्य से कम नहीं थी. उन्हें न तो किसी अधिकार के बारे में मालूम था और न ही सामने दीवारों और पोस्टरों पर लिखी पंक्तियों का अर्थ समझ पाती थीं.

एक दिन मधु एक्का को फोन करने का मौका मिल गया. उस ने अपने एक परिचित को फोन कर दिया. फोन पर उस ने एक सांस में सारी तकलीफें बयां कर डाली. परिचित ने यह बात अपने दोस्त को बताई. बात पूरे कोरवा में फैल गई और मामला पुलिस तक जा पहुंचा. पुलिस पर जांच का दबाव भारत सरकार के गृह मंत्रालय से पड़ा. इस का असर हुआ और सभी लड़कियों की बरामदगी हो गई. फिर उन्हें कोरवा उन के परिजनों को सौंप दिया गया. उन्होंने पुलिस और परिजनों को अपनी आपबीती सुनाई. उस के बाद जो देहव्यापार की दर्दनाक दास्तान सामने आई, उस की एक झलक इस प्रकार है.

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, रायगढ़, जशपुर जिले में कोरवा जनजाति को राष्ट्रपति का संरक्षण प्राप्त है. उन्हें विशेष दरजा दे कर दत्तक संतान का दरजा दिया गया है. उन के जनजीवन को सुधारने के लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं चलाई गई हैं, फिर भी उन की आय में गिरावट बनी हुई है. उस समुदाय के बच्चे मुश्किल से 5वीं, 8वीं तक पढ़ पाते हैं. उन की जिंदगी एकदम से ठहरी हुई जंगली वातावरण सी उलझ गई है. यही कारण है कि उन पर महानगरों की प्लेसमेंट ऐजेंसियों की नजर टिकी रहती है. वे अपना निशाना कमसिन लड़कियों को बनाते हैं और उन्हें दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद आदि शहरों में नौकरी के बहाने अपने जाल में फंसा लेते हैं.

कहने को तो उन से घरेलू नौकरानी, मौल, प्राइवेट कंपनियां, औफिस में काम दिलवाने का वादा किया जाता है, लेकिन अधिकतर देह व्यापार में धकेल दी जाती हैं. ऐसी ही एक लड़की ने बताया, ‘‘मैं काफी गरीब परिवार से हूं. मुंबई यही सोच कर गई थी कि हमें नौकरी से पैसा मिलेगा और शांति से जिंदगी गुजरेगी. लेकिन वहां देह बेचना पड़ा. इस बारे में हम किसी को बता भी नहीं सकते थे. इस का विरोध करना तो बहुत ही मुश्किल काम था. कई बार तो एक दिन में आधेआधे घंटे पर अलगअलग मर्द के साथ सोना पड़ा.’’

उस ने बताया कि कैसे उसे उस के जानपहचान वाले राजकुमार ने काम दिलाने के नाम पर दुर्गाबाई नाम की महिला के हाथों बेच दिया था. वह बिहार के रोहतास जिले की रहने वाली थी. उस ने उस की खूबसूरती और उभार वाले वदन को देख कर कीमत सवा लाख रुपए लगाई थी. इस काम में राजकुमार के साथ महेश और सरला नाम की युवती भी शामिल थे. दुर्गाबाई के पास छत्तीसगढ़ की 6 लड़कियां थीं, जिन्हें बाद में 5 जनवरी, 2021 को पुलिस ने बरामद किया था. दुर्गाबाई लड़कियों को ग्राहकों के पास भेजती थी. हर ग्राहक से उसे डेढ़ हजार से ढाई हजार रुपए तक मिलते थे, जबकि वह हर लड़की को उसी में से खर्चे के नाम पर 300 से 500 तक देती थी.

मुक्त करवाई गई एक लड़की ने बताया कि किस तरह से वह राजकुमार के जाल में फंसी. उसे पहले बिलासपुर से बिक्रमगंज लाया था. वहां महेश और सरला मिले थे. दोनों ने पतिपत्नी होने का परिचय दिया. वह उसे दुर्गाबाई के पास ले गए. महेश ने बताया कि वह उन की सास है और मुंबई में रहती हैं. उन के साथ उसे 6 महीने तक रहना होगा. बाद में दोनों जब वहां आ जाएंगे तब वह वापस आना चाहे तो आ सकती है. या फिर उन के साथ रहना चाहे तो रह सकती है. लड़की को उन की बातों में सच्चाई दिखी और वह दुर्गाबाई के साथ 27 दिसंबर, 2020 को मुंबई आ गई.

वहां उस ने देखा कि उसी के जिले की 7 और लड़कियां रह रही हैं. उन में से ही एक लड़की ने उस के कान में चुपके से बताया कि वह गलत जगह आ गई है. उस की किस्मत अच्छी थी कि एक सप्ताह बाद ही दुर्गाबाई के उस मकान पर पुलिस ने छापा मारा और वह दूसरी लड़कियों के साथ मुक्त करवा ली गई. मुक्त करवाई गई जशोपुर जिले की एक पीडि़ता की मां ने बताया कि उस की बच्ची को 15 हजार रुपए महीने पर आर्केस्ट्रा में काम दिलवाने के नाम पर ले गया था. उन्होंने बताया कि उस की बच्ची को नाचने का शौक था, इसलिए सोचा अच्छा काम है. पैसा मिलेगा और धीरेधीरे शोहरत मिलेगी तब बड़ा कलाकार भी बन सकती है.

वहां से उसे अंबिकापुर लाया गया. बाद में नशीली कोल्ड ड्रिंक्स पिला कर उत्तर प्रदेश में सोनभद्र जिला ले जाया गया. वहां बिंदास आर्केस्ट्रा ग्रुप के संचालक मनोज कुमार और अन्नू उर्फ गोलू को सौंप दिया गया. उन्होंने लड़की को छोटे से कमरे में बंद कर दिया. 3 दिन बीतने के बाद जब लड़की ने पूछा कि उस का प्रोग्राम कब होगा तब उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की और फिर सजासंवार कर एक ग्राहक के पास भेज दिया. इस तरह से वह कथित आर्केस्ट्रा ग्रुप की एक नई सैक्सवर्कर बना दी गई. उस की मां ने बताया कि लड़की 12 मई को किसी ग्राहक के पास भेजी जाने वाली थी. बताया गया था कि वहां उसे 6 लड़कियों के साथ एक निजी पार्टी में शामिल होना है. म्यूजिक पर नाचगाना करना होगा.

संयोग से इस पार्टी की जानकारी पुलिस को भी लग गई थी. पुलिस को किसी ने सूचना दी थी कि कोई बर्थडे सेलिब्रशन के बहाने ड्रग कारोबारियों से डील करने वाला है. लेकिन जब पुलिस ने वहां छापेमारी की तब वहां से 7 लड़कियां रंगेहाथों पकड़ी गईं. उन से पूछताछ होने पर आर्केस्ट्रा ग्रुप की आड़ में देहव्यापर का भंडाफोड़ हो गया. आर्केस्ट्रा संचालक भी पकड़े गए. उस के बाद पुलिस को नई जानकारी मिली. इस तरह देहव्यापार के दलाल कोरवा जनजाति की लड़कियों को किसी न किसी तरह से अपने जाल में फांस कर जिस्मफरोशी के धंधे में शामिल कर रहे हैं.

कहानी में कुछ नाम परिवर्तित हैं.  

थानाप्रभारी भी पकड़ा गया रंगरलियां मनाते हुए  देह व्यापार के ठिकानों पर पुलिस समयसमय पर छापे मारती रहती है. आमतौर पर इन ठिकानों से देह व्यापार में लिप्त युवतियां और महिलाओं के अलावा रंगरलियां मनाने आए लोग पकड़े जाते हैं. राजस्थान के शेखावाटी इलाके में चूरू में देह व्यापार के एक ठिकाने पर पुलिस ने छापा मारा तो वहां आबकारी पुलिस थाने का इंचार्ज भी रंगरलियां मनाते पकड़ा गया. वहां थानाप्रभारी को इस हालत में देख कर छापा मारने वाली पुलिस टीम भी चौंक गई.

दरअसल, इसी 24 जुलाई को चूरू की डीएसपी ममता सारस्वत ने बोगस ग्राहक को भेज कर शहर के अग्रसेन नगर में एक मकान पर छापा मारा. उस मकान में किराए पर रहने वाली  महिला सीमा मेघवाल ने बोगस ग्राहक के रूप में आए कांस्टेबल से रुपए ले लिए. बाद में कांस्टेबल का इशारा मिलने पर पुलिस ने उस मकान पर  दबिश दी. मकान में 3 युवतियां मिलीं. एक बंद कमरे में एक युवती और एक व्यक्ति आपत्तिजनक हालत में मिले. पुलिस ने चारों को पकड़ लिया. इन में सीमा के पास से 12 हजार रुपए भी बरामद हुए.

पुलिस थाने ला कर इन से पूछताछ की गई, तो पता चला कि पकड़ा गया व्यक्ति 40 वर्षीय रणवीर सिंह नायक चूरू में आबकारी निरोधक थाने का इंचार्ज था. उस का काम अवैध शराब पकड़ना था. पुलिस ने आबकारी विभाग के थानाप्रभारी रणवीर सिंह के अलावा तीनों युवतियों 35 साल की सीमा नायक, 30 साल की पियारू निशा और 30 साल की हलीमा इमरान को गिरफ्तार कर लिया. इन में पियारू निशा पश्चिम बंगाल और हलीमा इमरान मुंबई के ठाणे की रहने वाली निकली.

पूछताछ में पता चला कि चूरू के बास घंटेल की रहने वाली सीमा मेघवाल को उस के पति नेमीचंद मेघवाल ने छोड़ रखा था. वह कई महीनों से चूरू के अग्रसेन नगर में किराए का मकान ले कर रह रही थी और मुंबई व पश्चिम बंगाल सहित दूसरे राज्यों से नईनई खूबसूरत युवतियां बुला कर ग्राहकों को पेश करती थी. वह अपने ग्राहकों से एक से डेढ़ हजार रुपए तक लेती थी. सीमा वाट्सएप के जरिए अपना धंधा चलाती थी. ग्राहकों को वह वाट्सऐप पर लड़कियों की फोटो भेजती थी. पसंद आने पर रुपए तय करती थी.

गिरफ्तार युवतियों ने पुलिस को बताया कि वे पहले भी चूरू आ चुकी थीं. उन्हें एकडेड़ महीने के लिए अच्छी रकम दे कर बुलाया जाता था. सीमा  ने बताया कि वह समयसमय पर  दूसरे राज्यों से भी लड़कियां बुलाती  थी, ताकि ग्राहकों को नएनए चेहरे  मिल सकें.  पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.