पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 2

बैठक में सब सामान्य था. वहां सामने 2 कमरों के दरवाजे नजर आ रहे थे. इंसपेक्टर धर्मपाल ने बाईं ओर के दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह बैडरूम था. इंसपेक्टर धर्मपाल ने जैसे ही कमरे में कदम रखा. तेज बदबू का झोंका उन की नाक से टकराया. रुमाल नाक पर होने के बावजूद इंसपेक्टर धर्मपाल का दिमाग झनझना उठा. उन्होंने रुमाल को नाक पर लगभग दबा ही लिया. उन की नजर बैड पर पड़ी तो वह पूरी तरह हिल गए.

बैड पर एक महिला का शव पड़ा हुआ था, जो काफी हद तक सड़ चुकी थी. नजदीक आ कर इंसपेक्टर धर्मपाल ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. महिला के माथे पर गहरा सुराख नजर आ रहा था, जिस के आसपास खून जम कर काला पड़ गया था. लाश सड़ जाने के कारण चेहरा काफी बिगड़ गया था और उस की पहचान कर पाना मुश्किल था.

लाश के पास ही एक रिवौल्वर रखा हुआ था. स्पष्ट था इसी रिवौल्वर से महिला के सिर में गोली मारी गई थी, जिस से इस की मौत हो गई है. उन के इशारे पर एक पुलिसकर्मी ने रिवौल्वर पर रुमाल डाला और उसे अपने कब्जे में ले लिया.

लाश 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. उस में से असहनीय बदबू उठ रही थी. घटनास्थल की बारीकी से जांच कर लेने के बाद इंसपेक्टर धर्मपाल कमरे से बाहर आ गए.

‘‘यह लाश किस की है?’’ उन्होंने बैठक में खड़े दक्ष से सवाल किया.

‘‘यह मेरी मौम की लाश है.’’ दक्ष ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘इन्हें मैं ने गोली मारी है.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल ने हैरानी से दक्ष की तरफ देखा. उन्हें विश्वास नहीं हुआ, 16 साल का यह लडक़ा बड़ी सरलता से अपनी मां को गोली मार देने की बात स्वीकार कर रहा है, क्या यह सच बोल रहा है?

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली मारी है?’’ इंसपेक्टर हैरानी से बोले, ‘‘क्या तुम ठीक कह रहे हो?’’

‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं सर. मैं ने ही अपनी मौम को गोली मारी है.’’ दक्ष बेहिचक बोला.

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली क्यों मारी और यह रिवौल्वर तुम कहां से लाए हो?’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने रुमाल में बंधा रिवौल्वर दिखा कर पूछा.

‘‘रिवाल्वर मेरे डैड का है सर. इस का लाइसेंस है डैड के पास. यह रिवौल्वर उन्होंने सुरक्षा के लिए घर में ही रखा हुआ था. मौम मुझे पबजी गेम खेलने से मना करती थी. बातबात पर मुझे पीटती रहती थी. मैं कब तक सहन करता सर… इसलिए शनिवार और रविवार की रात को मौम को गोली मार दी थी.’’

‘‘यानी 3 जून और 4 जून, 2023 की रात को तुम ने अपनी मां की गोली मार कर हत्या कर दी. हत्या किए हुए कई दिन हो गए, क्या तुम इतने समय तक इसी घर में मां की लाश के साथ रहे?’’

‘‘और कहां जाते सर. मैं और मेरी बहन प्रियांशी हत्या के बाद से घर में ही हैं.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल को दक्ष की बेबाकी और हिम्मत दिखाने पर हैरानी हो रही थी. मां की हत्या कर के यह लडक़ा अपनी बहन के साथ सड़ती जा रही लाश के साथ बड़ी बेफिक्री से अपने घर में ही जमा रहा है, यह हैरानी की ही बात है. यदि पड़ोसी इस असहनीय बदबू की सूचना पुलिस को नहीं देते तो न जाने कब तक दोनों भाई बहन लाश के साथ घर में ही रहते.

इंसपेक्टर धर्मपाल घर से बाहर आ गए. बाहर आसपास के लोग एकत्र हो कर नवीन कुमार सिंह के घर में आई पुलिस के बाहर आने का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे. वे लोग यह जानने को उत्सुक थे कि नवीन कुमार सिंह के घर में ऐसी कौन सी चीज सड़ रही है, जिस की बदबू ने सभी को परेशान करके रख छोड़ा है.

‘‘क्या इस बदबू का राज मालूम हुआ सर?’’ शर्माजी ने आगे बढ़ कर इंसपेक्टर धर्मपाल से पूछा.

‘‘हां, दक्ष ने अपनी मां की गोली मार कर 3 दिन पहले हत्या कर दी है. लाश सड़ गई है, यही यहां फैल रही बदबू का कारण है.’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने बताया.

उन की बात सुन कर सभी हैरान रह गए.

‘‘दक्ष की मां का नाम बताएंगे आप?’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने शर्माजी से पूछा.

‘‘साधना सिंह था दक्ष की मां का नाम.’’ शर्माजी बोले.

‘‘आप इन के पति का फोन नंबर जानते हैं तो मेरी बात करवाइए शर्माजी.’’

‘‘ठीक है सर.’’ कहने के बाद शर्माजी ने नवीन कुमार सिंह का मोबाइल नंबर अपने मोबाइल से निकाल कर मिलाया. घंटी बजते ही दूसरी तरफ से नवीन कुमार सिंह ने काल रिसीव कर ली, ‘‘हैलो शर्माजी… मेरी पत्नी साधना आप को नजर आ गई हो तो.. मेरी बात करवाइए प्लीज.’’ नवीन कुमार सिंह के स्वर में बहुत उतावलापन था.

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं रही नवीनजी. मैं ने पुलिस को इनफौर्म कर दिया है. लीजिए इंसपेक्टर साहब से बात कीजिए.’’ शर्माजी ने मोबाइल इंसपेक्टर धर्मपाल की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘मिस्टर नवीन कुमार सिंह, मैं इंसपेक्टर धर्मपाल बोल रहा हूं. आप के लिए बड़ी बुरी खबर है, आप के बेटे दक्ष ने आप की पत्नी साधना सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

‘‘मेरे बेटे दक्ष ने…ओह!’’ दूसरी तरफ से नवीन कुमार सिंह का घबराया हुआ स्वर उभरा, ‘‘मुझे ऐसा ही लग रहा था सर..यह दक्ष किसी दिन ऐसा कदम उठा सकता है… मेरा तो सब कुछ उजड़ गया.’’

‘‘आप यहां आ जाइए नवीनजी…’’ इंसपेक्टर धर्मपाल गंभीर हो गए, ‘‘मुझे आप के बेटे को पुलिस कस्टडी में लेना पड़ेगा. वह अपना गुनाह कुबूल कर रहा है.’’

‘‘जैसा आप उचित समझें इंसपेक्टर, मैं लखनऊ आ रहा हूं.’’ नवीन सिंह ने आहत स्वर में कहा और संपर्क काट दिया.

इंसपेक्टर धर्मपाल अपने उच्चाधिकारी को इस घटना की जानकारी देने के लिए अपने मोबाइल से नंबर मिलाने लगे थे. साधना सिंह की लाश को फोरैंसिक जांच करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया था.

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 2

शादी के घर में बिछ गईं 6 लाशें

रंजना ने पुलिस को भी बताया कि उस के बाबा गजेंद्र सिंह तोमर काफी समझदार थे. 2013 में हुई वीरभान तोमर और सोबरन सिंह तोमर की हत्या के बाद आंसुओं में डूबे मृतक वीरभान और सोबरन के परिजन बदले की आग में परिवार के साथ किसी तरह की हैवानियत न कर दें, इसलिए बाबा ने अपने परिवार सहित पैतृक गांव को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था और वे अपने बेटेबहुओं और नातीनातिन को साथ ले कर अहमदाबाद के नारोलकोट में रहने लगे थे.

अहमदाबाद में बड़ा बेटा वीरेंद्र सिंह तोमर प्राइवेट नौकरी कर के किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा था, लेकिन असल मुश्किल वक्त तब आया, जब 20 अक्टूबर 2013 को लेपा में हुई सोबरन और वीरभान की हत्या के मामले में 23 जनवरी, 2020 को वीरेंद्र सिंह तोमर को जेल जाना पड़ा, तब वीरेंद्र के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा.

उस वक्त वीरेंद्र सिंह की दूसरे नंबर की बेटी रंजना सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी. वीरेंद्र के जेल जाते ही उस की पत्नी केश कुमारी और रंजना के कंधों पर परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ गई. पैसे की तंगी के चलते वीरेंद्र सिंह की बड़ी बेटी वंदना को भी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ी. वैसे भी वंदना का रिश्ता वीरेंद्र ने जेल जाने से पहले तय कर दिया था. इस वजह से वह अपनी मां, छोटी बहन और मौसी बबली के साथ काम पर भी नहीं जा सकती थी.

ऐसी विषम परिस्थितियों में वीरेंद्र की पत्नी केश कुमारी और छोटी बेटी रंजना धागे की एक फैक्ट्री में काम करने जाने लगे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना के दौरान धागा फैक्ट्री बंद हो गई. 2021 में वीरेंद्र ने महज 8 दिन के पैरोल पर आ कर जैसे तैसे बड़ी बेटी के हाथ पीले करने की रस्म अदा की और वापस जेल लौट गया.

वीरेंद्र जिन दिनों जेल में बंद था, उस दौरान रंजना से छोटी बहन शैलेंद्री को भी स्कूल जाना बंद करना पड़ा था. वक्त अपनी गति से बढ़ता रहा. दरअसल, अहमदाबाद में ही रह रहे नरेंद्र और उस की पत्नी बबली ने अपनी दोनों बेटियों संध्या और शिवानी का रिश्ता तय करने के साथ ही विवाह की तारीख भी तय कर दी थी, लेकिन ऐसा कोई नहीं जानता था कि इस तरह बेटियों की शादी करने से पहले ही बबली इस तरह दुनिया छोड़ कर चली जाएगी.

वैसे भी नरेंद्र एक पैर से अपाहिज होने के कारण कोई काम नहीं कर पाते थे, इसलिए बबली ही अहमदाबाद में अपनी बहन के साथ काम पर जा कर किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करती थी. मां के मारे जाने का गम बबली की दोनों बेटियों के चेहरे पर साफ झलकता है.

जून में होने वाली अपनी शादी को ले कर दोनों बहनों में किसी तरह का उत्साह नहीं रह गया है. वे दोनों यह सोच कर परेशान हैं कि अगले महीने शादी के बाद हम दोनों अपनीअपनी ससुराल चली जाएंगी तो दिव्यांग पिता और छोटे भाई की देखभाल कौन करेगा?

पूरी प्लानिंग से हुआ हमला

5 मई, 2023 की सुबह ताबड़तोड़ फायरिंग हुई, जिस में एक के बाद एक 6 लाशें बिछ गईं. दरअसल, एक पखवाड़े पहले ही दोनों पक्षों में कोथर में रहने वाले नरेंद्र सिंह के घर पर धीर सिंह और वीरेंद्र में सुलह हो गई थी. वीरेंद्र से 7 लाख रुपए और मकान ले कर धीर सिंह तोमर ने सुलह के कागजात में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि 2013 में हुई हत्या में आप लोग शामिल नहीं थे. हमारे दोनों गवाह कोर्ट में आप के पक्ष में बयान देंगे.

10 साल पहले पैतृक गांव छोड़ चुका गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार पुराने झगड़े में विरोधी पक्ष से सुलह हो जाने के बाद धीर सिंह तोमर की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपने दिव्यांग बेटे नरेंद्र की दोनों बेटियों संध्या और शिवानी की शादी अपनी पैतृक हवेली से करने के लिए परिवार सहित लेपा लौटा था. गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार को कतई अंदेशा नहीं था कि विरोधी पक्ष के धीर सिंह तोमर ने सोचीसमझी योजना के तहत ही मोटी रकम और मकान ले कर समझौता किया है.

हैरानी वाली बात यह है कि 2013 में रंजीत सिंह तोमर के हाथों मारे गए मृतकों के बेटों ने अपने पिता की मौत का बदला गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 3 पुरुष और 3 महिलाओं को फिल्मी अंदाज में मौत के घाट उतार कर ले लिया. अजीत और भूपेंद्र की योजना इसी परिवार के रंजीत सिंह तोमर को भी मारने की थी, लेकिन घटना वाले दिन गजेंद्र सिंह के मना करने की वजह से रंजीत लेपा नहीं आया था.

हैवान बने अजीत सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर पुत्र गजेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह पुत्र गजेंद्र सिंह तोमर, विनोद सिंह पुत्र सुरेश सिंह तोमर को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया.

गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार में कुल 29 सदस्य थे. उन के 6 बेटे थे वीरेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह, संजू सिंह, राकेश सिंह, सुनील सिंह और सत्यप्रकाश सिंह. अब इन में से 6 लोगों की हत्या कर दी गई है. परिवार में अब 23 सदस्य शेष बचे हैं.

10 लोगों के खिलाफ लिखाई नामजद रिपोर्ट

इस हत्याकांड का एक और दुखदाई पहलू यह है कि शुक्रवार की मनहूस सुबह गोलियों से भून डाली गई सुनील सिंह की पत्नी मधु तोमर 7 महीने की गर्भवती थी. हत्या का आरोप जिस पर लगा है, वह मुंशी सिंह तोमर का परिवार है. अब मुंशी सिंह तोमर के परिवार के सदस्यों के बारे में भी जान लेते हैं, इस के बाद समझेंगे कि इस नरसंहार में किस की, क्या भूमिका है.

मुंशी सिंह के 5 बेटे थे, रामवीर सिंह तोमर, सोबरन सिंह तोमर, धीर सिंह तोमर, शिवचरन सिंह तोमर और वीरभान सिंह तोमर. सब से बड़े बेटे रामवीर सिंह के 3 बेटे हैं, लेकिन इन का परिवार लेपा गांव से 3 किलोमीटर दूर मकान बना कर रहता है. इन का एक बेटा फौज में है, 2 प्राइवेट नौकरी करते हैं.

शुक्रवार को घटी घटना से इन का कोई लेनादेना नहीं है. दूसरे नंबर का बेटा सोबरन सिंह तोमर है, जिस की हत्या 2013 में गोबर डालने को ले कर हुए विवाद के चलते हो गई थी. सोबरन के 4 बेटे जगराम सिंह, राधेश्याम सिंह तोमर, बलराम सिंह तोमर, भूपेंद्र सिंह तोमर उर्फ भूरा हैं.

मुंशी सिंह के तीसरे बेटे धीर सिंह तोमर के 3 बेटे हैं. चौथे नंबर का बेटा शिवचरन दिव्यांग है. इस की अभी शादी नहीं हुई है, सब से छोटे वीरभान सिंह के 2 बेटे हैं. गजेंद्र सिंह परिवार के हत्याकांड में मुंशी सिंह के भाई सूरजभान का बेटा गौरव सिंह तोमर भी आरोपी बना है.

गजेंद्र सिंह के परिवार के साथ घटी घटना के बाद मृतक गजेंद्र सिंह तोमर के बेटे सुनील सिंह तोमर की तहरीर के आधार पर सिहोनिया थाने में भादंवि की धारा 302, 307, 323, 294, 506, 147, 148, 149 के तहत 10 आरोपयों भूपेंद्र सिंह, अजीत सिंह, सोनू तोमर, श्यामू, मोनू, रामू, गौरव, रज्जो, धीर सिंह और पुष्पा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

लक्ष्मण रेखा लांघने का परिणाम- भाग 2

अब मुझे अपना घर, मांबाप और छोटा भाई याद आने लगा. उन से रिश्ते तोड़ कर इस घर को अपनाने का अब मुझे पश्चाताप होने लगा. मां मुझे कितना प्यार करती थी, वह मेरी हर जरूरत को समझती थी, इस के बावजूद मैं ने उस के प्यार को ठोकर मार दी थी.

पापा ने गुस्से में कहा था, ‘‘तू ने जो किया है, उस से हम तो सारी जिंदगी रोएंगे ही, तू भी खुश नहीं रहेगी. तू एक बदनाम और अय्यास लड़के को अपना जीवनसाथी बना रही है न, वह तुझे कभी चैन से नहीं रहने देगा. मेरी तरह तू भी सारी उम्र रोएगी.’’

इन शब्दों को सुनने के बाद मैं उन के पास कैसे जा सकती थी. एक बार, सिर्फ एक बार मैं मां की गोद में मुंह छिपा कर रोना चाहती थी. अब मुझे पता चला कि मांबाप के आशीर्वाद की क्यों जरूरत होती है. आशीर्वाद अपने आप में एक महान अर्थ लिए होता है, जिस के बिना मैं अधूरी रह गई थी.

वह रात मैं जिंदगी में कभी नहीं भूल सकती. उस तनाव में भी मैं ने सागर से वह रात अपने लिए उधार मांगी थी. 2 अक्तूबर हमारी शादी की सालगिरह थी. कई सालों बाद मैं ने उस रात मन से शृंगार किया. गुलाबी रंग का सूट पहन कर मैं सागर के साथ होटल में डिनर के लिए तैयार हो गई. सागर ने कहा था कि वह होटल जा कर वापस आ जाएगा. लेकिन गया तो लौटा नहीं.

शायद वह सोच कर गया था कि उसे वापस नहीं आना है. उस के इंतजार में मैं बाहर बगीचे में टहलती रही. चांद नाशाद था. तारे भी खामोश थे, मेरी बेबसी पर फिजाएं भी सहमीसहमी सी थीं. टहलतेटहलते मुझे लगा कि 2 आंखें मेरा पीछा कर रही हैं. सामने वाले फ्लैट की खिड़की पर खड़ा एक खूबसूरत सा युवक सिगरेट पीते हुए मेरी ओर ताक रहा था. वह काफी बुझाबुझा और परेशान लग रहा था.

सफेद कमीज और नीले कोट में वह युवक काफी दिलकश लग रहा था. बरबस मैं उस की ओर खिंचती चली गई. मैं ने कई बार उस लड़के की ओर देखा तो नीचे आ कर उस ने अपना परिचय दिया. उस ने बताया कि वह उसी दिन वहां शिफ्ट हुआ था. वह फ्लैट उस ने किराए पर लिया था. उस का नाम असलम था. बेसाख्ता मैं ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘अगर किसी भी चीज की जरूरत हो तो बिना झिझक बताइएगा.’’

इस के बाद वह रोजाना बच्चों के साथ खेलता दिखाई देने लगा. कभी उन के लिए चौकलेट लाता तो कभी गुब्बारे. अकसर उन्हें घुमाने भी ले जाता. मेरे ससुर के पास बैठ कर घंटों राजनीति पर बातें करता. जल्दी ही वह उन का अच्छा दोस्त बन गया. मांजी को अम्मी कहता तो वह निहाल हो जातीं. मांजी उसे तरहतरह की डिशेज बना कर खिलातीं.

धीरेधीरे वह सभी के दिलों में उतर गया. वह जब भी हमारे घर आता, उस की निगाहें कुछ खोजती सी रहतीं, हंसतेहंसते वह मायूस सा हो जाता. उसे क्या पता था कि 2 प्यार की प्यासी आंखें हर वक्त उस पर नजर रखती हैं. इधर कुछ दिनों से उस की बेतकल्लुफी बढ़ती जा रही थी. सागर के रात भर गायब रहने और दिन भर सोते रहने से उसे हमारे घर आने की पूरी आजादी थी.

आज भी वह मनहूस रात याद आती है तो मैं शरम से लाल हो जाती हूं. वह 31 दिसंबर की रात थी. न्यू ईयर की वजह से उस पूरी रात सागर को होटल में रहना था. मेरे सासससुर मनाली घूमने गए थे. मेरे बच्चे खापी कर सो गए थे. अचानक दरवाजे पर धीरेधीरे दस्तक हुई. मुझे लगा, मुझे वहम हो रहा है.

मगर दस्तक लगातार होती रही तो मैं ने जा कर दरवाजा खोला. बाहर असलम खड़ा था. वह पूरी तरह से भीगा हुआ था. उस ने बताया कि उस के घर की चाबी औफिस की ड्राअर में रह गई है और बारिश इतनी तेज है कि चाबी लेने जाना मुमकिन नहीं है.

मुझे उस पर रहम और प्यार दोनों आया. उसे अंदर आने के लिए कह कर मैं बगल हो गई. सागर के कपड़े दे कर मैं ने उसे कौफी बना कर दी. बिजली तड़पने के साथ तेज हवाएं बारिश को बहका रही थीं. हम दोनों कौफी पीते हुए छिपछिप कर एकदूसरे को देखते रहे.

खाना खा कर वह एक किताब ले कर पढ़ने लगा. मैं खिड़की के पास खड़ी हो कर बारिश का लुत्फ ले रही थी. उस दिन उस ने बताया कि वह अनाथ है. किसी रिश्तेदार ने भी उसे सहारा नहीं दिया. किसी तरह उस ने पढ़ाई पूरी की और अब वह एक मालदार आदमी के साथ बिजनैस करता था, जिस में उसे लाखों का फायदा होता था.

उस ने बताया था कि अमेरिका में उस की 4 बड़ीबड़ी कोठियां हैं, जिन में वह राजाओंमहाराजाओं की तरह रहता है. उस के यहां कई नौकर हैं. ऐशोआराम के सभी साधन हैं. बस उसे कमी है तो एक जीवनसाथी की.

धीरेधीरे मैं भी उस के आगे बेपर्दा होने लगी. मैं ने उसे बताया कि मांबाप के लिए अब मैं एक गुजरा वक्त हो चुकी हूं, जो कभी लौट कर नहीं आ सकता. सागर की बेवफाइयां बतातेबताते मेरी हिचकियां बंध गईं. बरसों बाद मुझे एक साथी मिला था, जिस के आगे मैं ने सारे जख्म खोल कर रख दिए. सागर की बेवफाइयां बतातेबताते मैं कितनी निरीह लग रही थी. मेरी बातें सुनतेसुनते अचानक असलम उठा और मेरे सिर पर हाथ रख कर बोला, ‘‘जिन की पहचान न हो, वही हमसफर होते हैं. तूफानों के थपेड़ों से कटकट कर ही तो इतने प्यारे साहिल बनते हैं.’’

उस के इस तरह तसल्ली देने पर रोतेरोते मैं उस के सीने से कब जा लगी, मुझे पता ही नहीं चला. वह मेरे बाल सहलाता रहा और मैं रोती रही. अचानक उस ने कहा, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए. अगर कोई आ गया तो बिना मतलब बदनाम हो जाओगी. हां, तुम्हारी परेशानी का कोई न कोई तो हल होगा ही? परसों तुम मुझे ताज पैलेस में मिलना, वहीं विचार किया जाएगा.’’

मैं कुछ कहती, उस के पहले ही उस ने कहा, ‘‘नहीं, आज ही न्यूइयर्स है, मिल कर मनाएंगे और खूब बातें करेंगे. ठीक है ना?’’

अपनी बातों से असलम मुझे एक निहायत ही शरीफ और सुलझा हुआ आदमी लगा. उस पर भरोसा ना करने की कोई वजह नहीं थी. नाकामियों ने मुझे तोड़ कर रख दिया था. यह तल्ख हकीकत है कि हौसला छोड़ देने से नई मंजिल नहीं मिलती. जबकि अब मुझे नई मंजिल की तलाश थी.

नया साल था और पति से अलग यहां मैं अकेली थी. बड़ी इज्जत के साथ मैं बेइज्जत हो रही थी. अलसाई सी मैं उठी और एक कप चाय बना कर बगीचे में आ कर बैठ गई. सामने नजर गई तो असलम खिड़की पर खड़ा सिगरेट पी रहा था. इशारेइशारे में हमारा सलाम एकदूसरे तक पहुंचा गया.

नए साल पर सागर की डबल ड्यूटी होती थी. विदेशी युवतियों से भरा होटल सेंट्स और फूलों की महक से गमक रहा होता था. सागर मस्ती में डूबा होगा, यह खयाल मन में आते ही मैं जलन के मारे सुलग उठी. सागर से बदला लेने के लिए मन मचल उठा. आखिर कितने दिनों तक मैं अंधेरे में रहूंगी. क्या मेरी छवि को ग्रहण लग गया है. जिस तरह नदी रेगिस्तान में मिल कर रेत हो जाती है, कुछ वैसा ही हाल मेरा भी था.

पूरी न हुई ख्वाहिश

उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले रीतेश का अपना छोटा सा टेंट का कारोबार था. जिस के  लिए उस ने अपने 3 मंजिला मकान के नीचे वाले हिस्से में गोदाम बना रखा था. पहली मंजिल पर पत्नी स्मिता और 6 साल के बेटे यथार्थ के साथ वह खुद रहता था तो दूसरी मंजिल उस ने किराए पर उठा रखी थी, जिस में मझोले अपनी पत्नी शारदा के साथ रहता था. वह भी छोटामोटा काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

रीतेश की पत्नी स्मिता कानपुर के मूलगंज स्थित नौगढ़ खोयामंडी की रहने वाली थी. उस ने कानपुर विश्वविद्यालय से बीए किया था. उस के अलावा उस की 2 बहने और 2 भाई थे. सभी की शादियां हो चुकी थीं. स्मिता सब से छोटी थी, इसलिए वह बहुत लाड़प्यार से पली थी. सयानी होने पर घर वालों ने उस की शादी लखनऊ के रहने वाले टेंट कारोबारी रीतेश से कर दी थी.

रीतेश का पूरा परिवार कारोबारी था, इसलिए पढ़लिख कर उस ने भी अपना अलग कारोबार कर लिया था. लखनऊ में उस का अपना 3 मंजिला मकान था. यही सब देख कर स्मिता के घर वालों को लगा था कि रीतेश से शादी होने पर उस का जीवन हंसीखुशी से गुजर जाएगा. स्मिता पढ़ीलिखी भी थी और सुंदर भी, इसलिए पहली ही नजर में रीतेश और उस के घर वालों ने उसे पसंद कर लिया था.

रीतेश से शादी कर के स्मिता लखनऊ आ गई. शादी के बाद कुछ दिन तो दोनों के बढि़या गुजरे. लेकिन उस के बाद दोनों के संबंध बिगड़ने लगे. जहां पहले बातबात में प्यार बरसता था, अब बातबात में झगड़ा होने लगा. इस की सब से बड़ी वजह थी रीतेश की नशे की लत. वह किसी एक चीज का आदी नहीं था. वह नशे के लिए गांजा और शराब तो पीता ही था, कुछ न मिलने पर भांग भी खा लेता था.

पति की नशे की लत से जहां स्मिता असहज रहने लगी थी, वहीं रीतेश चिड़चिड़ा हो गया था. बिना नशा के वह रह नहीं सकता था, जबकि स्मिता उसे इन सब चीजों से दूर रहने को कहती थी. यही वजह थी कि रीतेश शाम को नशे में झूमता घर लौटता तो स्मिता टोंक देती. उस के बाद दोनों में झगड़ा होने लगता. स्मिता ने पति को सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा.

शादी के 3 सालों बाद रीतेश के यहां एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने यथार्थ रखा. बेटा पैदा होने के बाद उस का ध्यान पत्नी की ओर से बिलकुल हट गया. अब वह सिर्फ बेटे को ही प्यार करता था.

रीतेश और स्मिता के स्वभाव में काफी अंतर था. जहां स्मिता खुशदिल और जीवन में आगे बढ़ने के सपने देखने वाली थी, वहीं रीतेश की सोच सिर्फ नशे तक सीमित थी. उसे जितनी चिंता नशे की होती थी, उतनी काम की भी नहीं होती थी. यही वजह थी कि शाम होते ही दोस्तों के साथ उस की महफिल जम जाती थी.

अब वह स्मिता से ठीक से बात भी नहीं करता था. शायद इसीलिए स्मिता कुछ कहती तो वह अनसुना कर देता था. अगर सुन भी लेता तो उसे पूरा नहीं करता था. पति की यह लापरवाही स्मिता को बहुत बुरी लगती थी. इस पर स्मिता को भी गुस्सा आ जाता था और पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा होने लगता था.

इधर वह दोस्तों के साथ कुछ ज्यादा ही महफिल जमाने लगा था. इन महफिलों का असर उस के कारोबार पर ही नहीं, घरगृहस्थी पर भी पड़ रहा था. क्योंकि नशे के चक्कर में उस का ध्यान दोनों चीजों से हट गया था. स्मिता की बातों पर तो ध्यान देना उस ने पहले ही बंद कर दिया था. अब लड़ाईझगड़े की भी चिंता नहीं रहती थी, इसलिए वह मन का मालिक हो गया था.

इन बातों को ले कर उस की किराएदार शारदा भी हंसती थी. स्मिता देख रही थी कि उस के किराएदार कितने प्यार और समझदारी से रहते थे, जबकि वे हमेशा लड़तेझगड़ते रहते थे.

एक दिन स्मिता ने रीतेश से बासमती चावल लाने को कहा तो शाम को रीतेश नशे में लड़खड़ाता खाली हाथ घर आ गया. उस की इस हरकत से उसे गुस्सा आ गया. उस ने गुस्से में पैर पटकते हुए कहा, ‘‘कितना कहा था कि यथार्थ बिना चावल के खाना नहीं खा रहा है, फिर भी तुम हाथ झुलाते चले आए. 2 दिनों से बेटा चावल नहीं खा रहा है. लेकिन तुम्हें क्या, तुम ने तो अपना नशा कर ही लिया.’’

‘‘भई, काम के चक्कर में चावल के बारे में भूल गया. कल ला दूंगा. अब रात में तो चावल बनाना नहीं है.’’ रीतेश ने कहा.

‘‘काम के चक्कर में नहीं, यह क्यों नहीं कहते कि नशे के चक्कर में भूल गया. काम भूल जाते हो, जबकि नशा करना नहीं भूलते.’’

‘‘आखिर मेरे नशे से तुम्हें इतनी परेशानी क्यों है?’’ रीतेश ने झुंझला कर पूछा.

‘‘क्योंकि तुम नशे के चक्कर में काम भूल जाते हो. यही हाल रहा तो एक दिन तुम यह भी भूल जाओगे कि तुम्हारी बीवी और बच्चे भी हैं. नशे के चक्कर में तुम ने कारोबार तो बरबाद कर ही दिया है, धीरेधीरे घरगृहस्थी भी बरबाद कर दोगे. अपने साथ के लोगों को देखो, सभी ने कितनी तरक्की कर ली है. एक तुम हो, आगे जाने के बजाय पीछे चले गए हो.’’

‘‘मैं जैसा भी हूं, अब वैसा ही रहूंगा. अगर तुम्हें मुझ से परेशानी है तो तुम अपना रास्ता बदल सकती हो.’’ कह कर रीतेश दूसरे कमरे में चला गया.

‘‘आज तो तुम चावल लाए नहीं, अगर कल भी नहीं लाए तो खाना नहीं बनेगा.’’ कह कर स्मिता बिना कुछ खाए सोने वाले कमरे में चली गई. रीतेश से भी उस ने खाने के लिए नहीं कहा. उस ने कपड़े बदले और सोने के लिए लेट गई. यह 22 अप्रैल की बात है.

यथार्थ पहले ही सो चुका था. स्मिता भी सोने के लिए लेट गई थी. रीतेश आगे वाले कमरे में लेटा था. पत्नी की किचकिच से परेशान रीतेश को नींद नहीं आ रही थी. जब काफी प्रयास के बाद भी उसे नींद नहीं आई तो उस ने उठ कर एक बार फिर शराब पी कि शायद नशे की वजह से नींद आ जाए. लेकिन शराब पीने के बाद भी उसे नींद नहीं आई.

करवट बदलतेबदलते रीतेश परेशान हो गया तो उस का पत्नी के करीब जाने का मन होने लगा. वह नशे में तो था ही, इसलिए शायद वह यह भूल गया कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो पत्नी से लड़ाईझगड़ा हुआ है. वह उसे अपने करीब कैसे जाने देगी. वह उठा और लड़खड़ाते हुए स्मिता के कमरे में पहुंच गया.

खाली पेट स्मिता को भी नींद नहीं आ रही थी. इसलिए जैसे ही रीतेश ने उसे जगाने की गरज से उस के ऊपर हाथ रखा, वह गुस्से में चीखी, ‘‘खाने तो दिया नहीं, अब सोने भी नहीं दोगे.’’

पत्नी के इस तरह चीखने से रीतेश समझ गया कि यहां रुकने से कोई फायदा नहीं है. यहां समझौता के बजाय लड़ाईझगड़ा ही होगा. उसे भी क्रोध आ गया, लेकिन वह बिना कुछ कहे ही बाहर आ गया. बाहर खड़े हो कर वह सोचने लगा कि उस की औकात इतनी भी नहीं रही कि वह पत्नी के पास सो सके. पत्नी उसे पति नहीं, उठल्लू का चूल्हा समझने लगी है. यह अपने आप को समझती क्या है. इसे लाइन पर लाना ही होगा.

रीतेश स्मिता को सबक सिखाने के बारे में सोच रहा था कि तभी उस की नजर सामने रखे हथौड़े पर चली गई. हथौड़े पर नजर पड़ते ही उस का इरादा खतरनाक हो उठा. उस ने हथौड़ा उठाया और कमरे में वापस आ गया. स्मिता आंख बंद किए लेटी थी. उसे क्या पता कि यहां क्या होने जा रहा है, इसलिए वह उसी तरह चुपचाप लेटी रही. रीतेश ने उस की इस लापरवाही का फायदा उठाया और उस पर हथौड़े से वार कर के इस तरह उसे खत्म कर दिया कि वह चीख भी नहीं पाई.

कमरे में खून ही खून फैल गया था. बिस्तर भी खून से तर हो गया था. उस के भी कपड़े खराब हो गए थे. उस ने पहले तो अपने ही नहीं, स्मिता के भी कपड़े बदले. बिस्तर बदला. उस के बाद कमरा साफ किया. स्मिता की लाश उस ने चादर से ढक दी. उस ने सोचा कि सुबह जल्दी उठ कर वह लाश को ठिकाने लगा देगा. लेकिन पत्नी की हत्या करने के बाद उसे यह चिंता होने लगी कि अब वह बचे कैसे? यही सोचते-सोचते वह सो गया तो सुबह देर से आंखें खुलीं.

23 अप्रैल की सुबह रीतेश जागा तो रात का पूरा दृश्य उस की आंखों के आगे घूमने लगा. वह उठ कर बैठ गया और सोचने लगा कि अब स्मिता की लाश का क्या करे. तभी किराएदार मझोले की पत्नी शारदा किसी काम से ऊपर आई. रीतेश को बाहर वाले कमरे में परेशान बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है भाईसाहब, आप कुछ परेशान लग रहे हैं? यथार्थ की मम्मी अभी नहीं उठीं क्या?’’

‘‘उन की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह अभी सो रही हैं.’’ कह कर रीतेश ने शारदा को टाल दिया.

शारदा और उस के पति मझोले ने रात में रीतेश और स्मिता के बीच जो झगड़ा हुआ था, सुना था. उन का यह रोज का मसला था, इसलिए वे बीच में नहीं बोलते थे. लेकिन जब उन्होंने रीतेश को परेशान देखा और स्मिता उन्हें दिखाई नहीं दी तो उन्हें संदेह हुआ. लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं.

कुछ देर बाद रीतेश का 6 साल का बेटा यथार्थ उठा तो उस ने भी मां के बारे में पूछा. तब रीतेश ने कहा, ‘‘बेटा, उन की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह सो रही हैं. अभी तुम उन्हें जगाना मत.’’

उस ने यथार्थ को खाने के लिए बिस्कुट और साथ में चाय दी. बेटे को चायबिस्कुट दे कर वह नीचे गोदाम में चला गया. उस का वहां भी मन नहीं लगा. वह स्मिता की लाश को ले कर काफी परेशान था. वह सोच रहा था कि किसी तरह से रात हो जाए तो वह उसे ठिकाने लगा दे. लेकिन रात होने से पहले ही उस की पोल खुल गई.

यथार्थ अकेला ही इधरउधर खेल कर टाइम पास कर रहा था. कुछ देर के बाद शारदा फिर ऊपर आई. उस ने यथार्थ को अकेला खेलते देख कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी कहां है?’’

‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह सो रही हैं. पापा ने कहा है कि उन्हें जगाना मत.’’ यथार्थ ने कहा.

शारदा को संदेह तो पहले ही था कि कुछ गड़बड़ है. यथार्थ की बात सुन कर उस का संदेह गहराया तो वह अंदर आ गई, जहां स्मिता सो रही थी. उस ने स्मिता को तो नहीं देखा, लेकिन इधरउधर देखा तो वहां उसे खून के छींटे दिखाई दिए. वह भाग कर नीचे आई और उस ने सारी बात पति को बता दी.

इस के बाद मझोले ने इस बात की सूचना सआदतगंज कोतवाली को दे दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी समर बहादुर यादव ने 2 सिपाहियों को मामले का पता लगाने के लिए भेज दिया. दोनों सिपाही रीतेश के घर पहुंचे तो उन्हें देख कर उस का चेहरा सफेद पड़ गया. लेकिन उस ने खुद को जल्दी से संभाल कर पूछा, ‘‘आप लोग यहां, कोई खास काम है क्या?’’

‘‘क्या तुम हमें बताओगे कि तुम्हारी पत्नी कहां है?’’ एक सिपाही ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी की तबीयत खराब है, वह सो रही है. आप लोगों को उस से क्या काम पड़ गया, जो आप लोग उस के बारे में पूछ रहे हैं?’’ रीतेश ने कहा.

पुलिस वाले उस की बात का जवाब देने के बजाय किराएदारों के इशारा करने पर स्मिता के कमरे की ओर चल पड़े. इस पर रीतेश सिपाहियों के आगे खड़ा हो गया और उन्हें ऊपर जाने से रोकने लगा.  लेकिन सिपाही उसे धकिया कर ऊपर चले गए. स्मिता चारपाई पर लेटी थी. उसे चादर ओढ़ाई हुई थी. उस के शरीर से किसी तरह की हरकत नहीं हो रही थी. ऐसे में सिपाहियों को भी शक हुआ तो उन्होंने ऊपर पड़ी चादर हटा दी.

स्मिता की खून से सनी लगभग अर्धनग्न लाश सामने आ गई. सिपाहियों ने रीतेश को दबोच लिया. इस के बाद सिपाहियों ने हत्या की सूचना थानाप्रभारी को दे दी. थानाप्रभारी समर बहादुर यादव ने इस बात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. थोड़ी ही देर में रीतेश के घर थानाप्रभारी समर बहादुर यादव के साथ क्षेत्राधिकारी राजकुमार अग्रवाल पहुंच गए.

यथार्थ मां की खून से लथपथ लाश देख कर रोने लगा. वह पुलिस को कुछ बताने लायक नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे बाहर भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने रीतेश से पूछताछ शुरू की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने घटना की सूचना स्मिता के भाई राजू द्विवेदी को दी तो वह कानपुर से लखनऊ आ गया. उस के पहुंचने पर पुलिस ने उस की ओर से स्मिता की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने रीतेश की निशानदेही पर वह हथौड़ा और ड्रम में छिपाए गए खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. यथार्थ को पुलिस ने उस के मामा के हवाले कर दिया. इस के बाद रीतेश को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अब उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है, लेकिन अब उस के इस पश्चाताप से क्या हो सकता है.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खतरनाक साजिश का सूत्रधार

सुरेंद्र सिंह अच्छा ट्रैक्टर मैकेनिक था और अमृतसर के बसअड्डे के पास उस का अपना वर्कशौप था. उस का कामधाम भी ठीक था और कमाई भी बढि़या थी. वर्कशाप से  इतनी आमदनी हो जाती थी कि वह अपने परिवार का गुजरबसर आराम से कर रहा था. लेकिन वह अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं था.

दरअसल, सुरेंद्र सिंह शातिर और खुराफाती दिमाग वाला था. यही वजह थी कि वह ढेर सारी दौलत हासिल कर के बहुत जल्दी अमीर बनने के सपने देखता था. अपनी इस लालसा को पूरी करने के लिए शातिर दिमाग वाला सुरेंद्र सिंह कुछ भी करने को तैयार था. वह जानता था कि वर्कशौप की कमाई से वह कभी भी अमीर नहीं बन सकता. क्योंकि वह जो कमाता था, वह सारा का सारा खर्च हो जाता था. इसीलिए वह अमीर बनने के लिए कोई शार्टकट रास्ता ढूंढ़ने लगा था.

सुरेंद्र सिंह के 3 बेटे थे. बड़े बेटे सुखचैन सिंह की शादी हो चुकी थी. वह उस के साथ ही रहता था. बाकी के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह विदेश में रहते थे. समयसमय पर वे परिवार से मिलने भारत आते रहते थे.  मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह जब भी घर आते, वहां के बहुत से किस्से सुनाते. अमीर बनने का सपना देखने वाला सुरेंद्र सिंह उन्हीं किस्सों को सुन कर अमीर बनने के लिए तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा.

मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह ने एक बार बातचीत में बताया था कि अमेरिका और इंग्लैंड में शातिर और चालाक किस्म के लोग खुद को मरा साबित कर के बीमा कंपनियों से मोटी रकम ऐंठ लेते हैं और पूरी उम्र ऐश करते हैं.

बेटों ने तो मजा लेने के लिए यह किस्सा सुनाया था. लेकिन उन की कही बात सुरेंद्र सिंह के शैतानी दिमाग में गहरे तक बैठ गई थी. वह सोचने लगा कि जब अमेरिका और इंग्लैंड में बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठा जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं? उसे लगा कि बीमा कंपनियां उस के अमीर बनने का जरिया बन सकती हैं.

इस के बाद सुरेंद्र सिंह का शैतानी दिमाग बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठने की योजना बनाने लगा. जल्दी ही योजना का पूरा खाका तैयार कर के वह उस पर काम करने लगा. उस ने जो योजना बनाई थी, उस में परिवार के बाकी सदस्यों का सहयोग जरूरी था.

सुरेंद्र सिंह ने पूरी योजना घर वालों को तो बताई ही, विदेश में रहने वाले दोनों बेटों को भी समझा दी. वह बीमा कंपनियों को धोखा दे कर लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए ऐंठना चाहता था. उस के इरादे पर बीमा कंपनियों को शक न हो, इस के लिए उस ने अपने एक बहुत ही करीबी साहब सिंह को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

साहब सिंह उस की इस योजना में शामिल तो नहीं होना चाहता था, लेकिन मजबूरीवश शामिल हो गया था. क्योंकि उस की 2 बेटियां थीं और उस की माली हालत ठीक नहीं थी. पैसों की सख्त जरूरत होने की वजह से वह सुरेंद्र सिंह की योजना में शामिल हो गया था. सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह को भरोसा दिलाया था कि योजना के सफल होने पर बीमा कंपनियों से जो पैसे मिलेंगे, उस में से एक बड़ा हिस्सा वह उसे भी देगा.

अपने परिवार और साहब सिंह को योजना में शामिल करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अलगअलग बीमा कंपनियों में अपने और साहब सिंह के नाम से लगभग डेढ़ करोड़ रुपए का बीमा करवा डाला. उस ने साहब सिंह का जो बीमा करवाया था, उस की किश्तें भी उसी ने अपने पास से जमा कराई थीं.

सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को तो अपनी योजना के बारे में बता दिया था, लेकिन साहब सिंह ने ऐसा कुछ नहीं किया था. उसे आशंका थी कि उस की पत्नी सुनंदा इस गलत काम में उस का साथ नहीं देगी. इसलिए इस योजना को उस ने अपने तक ही सीमित रखा था.

सुरेंद्र सिंह बीमा पालिसियों की किश्तें सही समय पर चुकाने के साथ अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी भी करता रहा.

जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब योजना को अंजाम देने का समय आ गया है तो उस ने एक नई कार खरीद ली. 21 जनवरी, 2014 को वह उसी कार से साहब सिंह के साथ निकला. वह क्या करने जा रहा है, यह उस ने साहब सिंह को भी नहीं बताया था. लेकिन जब साहब सिंह बारबार पूछने लगा तो उस ने खतरनाक मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘हमें अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 2 शिकार ढूंढने हैं.’’

‘‘शिकार का मतलब?’’ साहब सिंह ने पूछा.

‘‘शिकार का मतलब है, ऐसे 2 आदमी जो हमें बीमा कंपनियों से करोड़ों रुपए दिलाएंगे.’’

बात साहब सिंह की समझ में आ गई. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘इस का मतलब रुपयों के लिए हमें 2 बेगुनाहों की हत्या करनी पड़ेगी?’’

‘‘इस के अलावा हमारे पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. अगर करोड़ों रुपए पाने हैं तो पहले हम दोनों को मरना पडे़गा. लेकिन हम सचमुच में मरने नहीं जा रहे हैं. हम दोनों जिंदा ही रहेंगे, हमारी जगह किसी दूसरे को मरना होगा. हम उन्हीं की तलाश में चल रहे हैं.’’

सुरेंद्र सिंह ने कुछ आगे जा कर अमृतसर की सब्जीमंडी के पास एक जगह अपनी कार रोक दी. सुबह का समय था, इसलिए दिहाड़ी पर काम करने वाले कुछ आप्रवासी मजदूर काम की तलाश में सड़क के किनारे खड़े थे. कार में से उतर कर सुरेंद्र सिंह मजदूरों के पास पहुंचा तो कुछ मजदूरों ने उसे घेर लिया.

कुछ ही देर में 2 मजदूरों को साथ ले कर सुरेंद्र सिंह वापस आ गया. काम मिलने की वजह से दोनों मजदूर काफी खुश नजर आ रहे थे. उन्हें कार में बैठा कर सुरेंद्र सिंह अपने वर्कशौप पर पहुंचा. काम का तो बहाना था. दोनों मजदूरों को शाम तक रोकना था, इसलिए वह उन से छोटेमोटे काम कराता रहा.

शाम को मजदूरों के जाने का समय हुआ तो सुरेंद्र सिंह ने शराब की बोतल खोल दी. साहब सिंह साथ ही था. शराब देख कर मजदूरों के मन में लालच आ गया. सुरेंद्र सिंह ने इस बात को भांप लिया. उस ने उन से भी शराब पीने को कहा. सुरेंद्र सिंह के इरादों से बेखबर दोनों मजदूर पीने बैठ गए.

दोनों मजदूरों ने शराब पीनी शुरू की तो पीते ही चले गए. सुरेंद्र सिंह उन्हें ज्यादा से ज्यादा शराब पिलाना चाहता था. इसलिए बोतल खत्म हुई तो उस ने दूसरी मंगा ली. क्योंकि यही शराब उस के काम को आसान बना सकती थी.

मजदूर शराब पीते गए और सुरेंद्र सिंह उन्हें पिलाता गया. शराब पीतेपीते मजदूर इस हालत में पहुंच गए कि उन का खुद पर नियंत्रण नहीं रह गया. एक तरह से वे बेहोशी वाली हालत में पहुंच गए. जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब मजदूर विरोध करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं तो उस ने साहब सिंह के साथ मिल कर उन की गला दबा कर हत्या कर दी.

उन की हत्या करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को इस बात की सूचना दे कर समझाया कि अब आगे वह क्या करेगा और उस के बाद उन लोगों को क्या करना है.

आधी रात के बाद सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह के साथ मिल कर दोनों मजदूरों की लाशों को कार में डाला और जालंधर जाने वाले राजमार्ग पर चल पड़ा. दोनों लाशों को ज्यादा दूर ले जाना ठीक नहीं था. क्योंकि अगर कहीं पुलिस चैकिंग मिल जाती तो वे पकड़े जा सकते थे.

लगभग 8-10 किलामीटर दूर जा कर सुरेंद्र ने कस्बा मानावालां के पास एक सुनसान जगह पर कार रोक दी. उस समय हलकीहलकी बरसात हो रही थी. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह ने अपने शरीर से कुछ चीजें उतार कर मजदूरों को पहना दीं, जिस से शिनाख्त में पता चले कि वे लाशें सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की थीं. इस के बाद कार की डिकी से मिट्टी के तेल से भरा डिब्बा निकाल कर दोनों ने कार के अंदर और बाहर डाल कर आग लगा दी.

कार के साथसाथ 2 बेगुनाहों की लाशें धूधू कर के जलने लगीं. उस समय हो रही बरसात को देख कर यही लग रहा था कि सुरेंद्र और साहिब सिंह के इस गुनाह पर आसमान रो रहा है.

22 जनवरी की सुबह कुछ लोगों ने मानावालां कस्बे के पास सड़क किनारे एक कार को जली हुई हालत में देखा तो इस की जानकारी पुलिस को दी. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची तो देखा, कार लगभग पूरी तरह से जल चुकी थी. गौर से देखने पर पता चला, कार के साथ 2 आदमी भी जल गए थे.

बड़ा ही खौफनाक मंजर था. कार भले ही पूरी तरह जल गई थी, लेकिन उस की नंबर प्लेट काफी हद तक सुरक्षित थी. कार के नंबर से पुलिस ने जली कार के मालिक का पता लगा लिया. पुलिस को पता चल गया कि कार बसअड्डे के पास ट्रैक्टर का वर्कशौप चलाने वाले सुरेंद्र सिंह की थी.

पुलिस ने तत्काल इस की सूचना सुरेंद्र सिंह के घर वालों को दी. इस के बाद पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार नाटक शुरू हुआ. जली हुई कार और उस के साथ जले लोगों की शिनाख्त के लिए सुरेंद्र सिंह का भाई अवतार सिंह, अपने भांजे रंजीत सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. जली हुई कार और लाशें देख कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाशों की शिनाख्त सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह के रूप में कर दी.

इस के बाद मृतक सुरेंद्र सिंह के भाई अवतार सिंह ने पुलिस को बताया कि सुरेंद्र सिंह पिछले कुछ दिनों से बीमार रहता था. उस ने स्थानीय डाक्टरों से काफी इलाज कराया, लेकिन यहां के डाक्टर उस की बीमारी को समझ नहीं सके. इसलिए चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में दिखाने के लिए वह 22 जनवरी की सुबह 4 बजे के करीब अपने दोस्त साहब सिंह के साथ घर से निकला था.

अवतार सिंह ने पुलिस को यह भी बताया था कि सुरेंद्र सिंह ने जो नई कार खरीदी थी, उस में ईंधन रिस रहा था. कई बार डीलर से इस की शिकायत भी की गई थी. यह बताने का उन का मकसद था कि पुलिस इस हादसे को कार की तकनीकी खराबी की वजह से हुआ हादसा समझे.

कार से बरामद लाशों की हालत इतनी बुरी थी कि किसी भी हालत में पहचाना नहीं जा सकता था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र सिंह के भाई और भांजे की बात मान ली. पुलिस ने तकनीकी खराबी की वजह से कार में आग लगने और उस में सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जल कर मरने की बात को हादसा मानते हुए रिपोर्ट तैयार कर के फाइल बंद कर दी.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के घर वालों ने सब के सामने ऐसा नाटक किया, जैसे दोनों सचमुच मर गए हैं. उन के मरने के बाद की सारी रस्में पूरी की गईं. उन की आत्मा की शांति के लिए अखंड पाठ करवा कर भोग भी डाला गया. यह सब होने के बाद सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की मौत को ले कर किसी भी तरह के शक की गुंजाइश नहीं रह गई.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह अपना हुलिया बदल कर अलगअलग ठिकानों पर छिप कर रहे रहे थे. सुरेंद्र सिंह लगातार घर वालों के संपर्क में था. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी बीमा की रकम घर वालों को मिल जाए तो वह हमेशा के लिए अमृतसर छोड़ कर किसी दूसरे शहर में बस जाए. बीमा की रकम 2 करोड़ के आसपास थी.

2 हत्याएं करने के बाद भी सुरेंद्र सिंह पूरी तरह निश्चिंत था. अब उसे केवल बीमा कंपनियों से मिलने वाले पैसे की चिंता थी. उस का दुस्साहस ही था कि जिस शहर (अमृतसर) के लोगों की नजरों में वह और उस का साथी साहब सिंह मर चुका था, उसी शहर के शराबखानों में बैठ कर दोनों शराब पीते थे. बदले हुलिए की वजह से उन्हें भ्रम था कि कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाएगा.

लेकिन ऐसा नहीं था. कुछ लोगों ने बदले हुए हुलिए के बावजूद सुरेंद्र सिंह को पहचान लिया था. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के कार में जल कर मरने की कहानी उन लोगों को पता थी. जब उन लोगों ने दोनों को जिंदा देखा तो उन्हें हैरानी हुई. धीरेधीरे उन के जिंदा होने की अफवाह फैलने लगी. जबकि दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह छिप कर अपने घर वालों के माध्यम से बीमा कंपनियों से रुपए ऐंठने की कागजी काररवाई करवाने में लगा था.

साहब सिंह के प्रति भी सुरेंद्र सिंह की नीयत ठीक नहीं थी. उस ने उस का जो बीमा करवाया था, उस रकम को वह पूरा का पूरा हड़प जाना चाहता था. साहब सिंह के नाम से 40 लाख की पालिसी थी. कायदे से साहब सिंह के मरने के बाद वह रकम उस की पत्नी सुनंदा को मिलनी चाहिए थी. जबकि सुनंदा को इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी.

यही वजह थी कि साहब सिंह के नाम जो 40 लाख की पालिसी थी, उस रकम को लेने के लिए सुरेंद्र सिंह के घर वालों ने किसी दूसरी औरत को सुनंदा बना कर बीमा कंपनी के अधिकारियों के सामने पेश कर दिया. बाद में उस की यह धोखेबाजी उसी के लिए घातक साबित हुई.

40 लाख की रकम कोई मामूली रकम तो थी नहीं, इसलिए बीमा कंपनी रकम अदा करने से पहले हर तरह का संदेह दूर कर लेना चाहती थी. इस की जांच के लिए बीमा कंपनी की एक टीम मुंबई से अमृतसर आई. जब यह टीम साहब सिंह के घर पहुंची और सुनंदा से बात की तो पता चला कि उसे तो इस बीमा पालिसी के बारे में कुछ पता ही नहीं था.

साहब सिंह की पत्नी सुनंदा ने जब इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की तो जांच करने आए बीमा कंपनी के अधिकारियों को लगा कि किसी साजिश के तहत बीमा कंपनी से ठगी की कोशिश की जा रही थी. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जानकारी पुलिस को देने का फैसला किया.

दूसरी ओर अब तक सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जिंदा होने की खबरें काफी जोर पकड़ चुकी थीं. किसी ने यह जानकारी पंजाब ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अजीत सिंह बैंस, जो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस भी रह चुके थे, को दी तो उन्हें यह सारा मामला रहस्यमय लगा. उन्होंने आर्गेनाइजेशन के मुख्य जांच अधिकारी सरबजीत सिंह को सच्चाई का पता लगाने को कहा.

सरबजीत सिंह कई लोगों से तो मिले ही, साथ ही सुरेंद्र सिंह के घर वालों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी. इस से जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह मरे नहीं, जिंदा हैं. जब उन्होंने यह बात अजीत सिंह बैंस को बताई तो उन्हें यह मामला काफी गंभीर लगा, क्योंकि अगर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह जिंदा थे तो कार में जल कर मरने वाले 2 लोग कौन थे?

अब इस मामले की जानकारी पुलिस को देनी जरूरी था. कार मानावालां कस्बे के पास जली थी. यह इलाका अमृतसर देहात के अंतर्गत आता था. अजीत सिंह बैंस ने इस पूरे मामले की जानकारी अमृतसर (देहात) के एसएसपी गुरप्रीत सिंह गिल को दी तो उन्हें यह मामला सनसनीखेज और बेहद संगीन लगा. उन्होंने तत्काल इस की जांच कराने की जिम्मेदारी एसपी (डिटेक्टिव) राजेश्वर सिंह को सौंप दी.

एसपी राजेश्वर सिंह ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रछपाल सिंह को सौंपी. उन्होंने जांच शुरू की तो साजिश की परतें एकएक कर के खुलने लगीं. जांच शुरू करते ही उन्हें पता चल गया कि इस खौफनाक साजिश में कई लोग शामिल थे, लेकिन पुलिस पहले इस साजिश के सूत्रधार सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह को दबोचना चाहती थी, जो मर कर भी जिंदा घूम रहे थे.

इंसपेक्टर रछपाल सिंह ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मारने शुरू कर दिए. इस से सुरेंद्र सिंह को पुलिस काररवाई की भनक लग गई. पुलिस उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह गायब हो गया. लेकिन साहब सिंह पुलिस के हाथ लग गया. पुलिस ने उसे गग्गोबुआ गांव से उस के भांजे रंजीत सिंह के घर से पकड़ा था.

साहब सिंह को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रोंगटे खड़े कर देने वाली खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने भादंवि की धाराओं 302, 364, 420, 436, 115, 120बी और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर के सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के अलावा अन्य लोगों को नामजद किया. ये लोग थे सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, तीनों बेटे मुख्तयार सिंह, सुखचैन सिंह और सुखवंत सिंह, बहू सरबजीत कौर, भाई अवतार सिंह, भांजा रंजीत सिंह और सुरेंद्र सिंह का साला सुरेंद्र सिंह.

सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, बेटे सुखचैन सिंह और सरबजीत कौर को पुलिस ने 16 मार्च को ही गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह को पनाह देने वाले निशान सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक नामजद लोगों में से 7 लोग गिरफ्तार हो चुके थे. मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र सिंह अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर था. साजिश में शामिल सुरेंद्र सिंह के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह आस्ट्रेलिया में थे. पुलिस ने उन्हें भारत लाने की कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

पुलिस को उम्मीद है कि एक न एक दिन सभी अभियुक्त पकड़े जाएंगे. लेकिन उन के पकड़े जाने पर भी उन दोनों बेगुनाहों के बारे में पता नहीं चल पाएगा कि वे कौन थे और कहां से आए थे, जो बेमौत मारे गए. जबकि उन के घर वाले उन के आने की राह देख रहे होंगे.

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 6

‘‘अपने शक के चलते बलराम तोमर ने बर्नेट अस्पताल के रजिस्टर का मुआयना किया और इंक रिमूवर के दाग ने इन के शक को पुख्ता कर दिया. हां, बलराम के शक के दायरे में सुभाषिनीजी के साथ धुरंधर ही थे. इसी वजह से इन्होंने तय कर लिया था कि मौका मिलते ही मयंक को मौत के घाट उतार देंगे और फिर सुभाषिनी और धुरंधर को भी नहीं छोड़ेंगे.

‘‘धुरंधर मयंक को बहुत प्यार करते थे और मयंक भी अकसर उन के साथ ही रहता था, रात को वह सोता भी उन के साथ ही था. इस से बलराम के शक की जड़ें और गहरी होती गईं, हालांकि यह 20 साल तक अपनी कोशिशों के बावजूद मयंक की जान लेने में नाकाम रहे. आखिर इन्होंने शिकार का प्रोग्राम बनाया और उस में घर की औरतों को भी शामिल किया, ताकि किसी को शक न हो. इस तरह उस रात इन्हें मौका मिल गया.

‘‘शक्तिशाली राइफल की गोली मयंक के माथे को चीरती हुई दूसरी ओर निकल कर कुछ दूर मौजूद एक पेड़ के तने में जा घुसी. मयंक के मुंह से चीख निकली और वह बेजान हो कर नीचे जा गिरा, जहां घात लगाए बैठा तेंदुआ उस पर टूट पड़ा.

‘‘फिर हवाई फायरों और सुरबाला तथा सुभाषिनी की चीखपुकारों से डर कर तेंदुआ भागा तो सही, पर मयंक की लाश को घसीट ले गया. उस ने मयंक की अधखाई लाश सुखनई की कगार पर तिरछे खड़े छतनार पेड़ों में छिपा दी, जहां वह कई साल लटकी रही और कल मैं ने उसे वहां से निकाला.’’

उसी समय वहां एक एंबुलेंस आई और स्ट्रेचर पर लेटे सुकुमार को अंदर लाया गया, वह होश में था. उसे देखते ही धुरंधर और सुखदेवी दौड़ कर उस से जा लिपटे.

‘‘यह भाई नहीं कसाई है.’’ धुरंधर ने घृणा भरी निगाह बलराम के ऊपर डाली, ‘‘इस ने तो हमारे वंश का ही नाश कर दिया था…’’

‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं त्रिलोचनजी, यह मेरे पाप की सजा है. मैं ने न तो ठीक से मेजर साहब की वापसी का इंतजार किया और न इस आदमी को सच बताया…’’ सुभाषिनी ने रोते हुए एक नजर बलराम पर डाली, ‘‘शायद इसीलिए मेरा बेटा…’’

‘‘अब आप का बेटा लौट तो आया है.’’ विप्लव ने रजत की ओर इशारा किया.

‘‘हां त्रिलोचनजी.’’ धुरंधर तोमर त्रिलोचन के पास आ पहुंचे, ‘‘अब तो मुझे भी पुनर्जन्म पर विश्वास हो गया है. आखिर रजत ने ही तो पूर्वजन्म में हुई अपनी हत्या की सच्चाई से आप को अवगत कराया है.’’

‘‘यह पुनर्जन्म का मामला नहीं है तोमर साहब.’’ त्रिलोचन सपाट स्वर में बोले.

‘‘क्या…? आप का मतलब रजत पिछले जन्म में मयंक नहीं है?’’

‘‘जी हां, मेरा मतलब यही है.’’ त्रिलोचन ने कहा.

‘‘आप क्या कह रहे हैं डैड?’’ नीरव और विप्लव ने एकसाथ सवाल किया, ‘‘अगर यह सच है तो फिर रजत ने मयंक के परिजनों को कैसे पहचाना?’’

‘‘यह सब एक नाटक था. सारी जानकारी और घरवालों के फोटोग्राफ्स सुभाषिनी जी ने उपलब्ध कराए थे और उसी आधार पर मैं ने रजत को प्रशिक्षित किया था.’’

‘‘तो क्या आप को इस मामले को सुलझाने के लिए सुभाषिनी जी ने नियुक्त किया था?’’ अनिल ने पूछा.

‘‘जी हां, सुभाषिनीजी को शुरू से ही शक था कि उन के बेटे की हत्या हुई है. इसीलिए मैं ने यह जाल रचा. मैं जानता था कि मयंक का हत्यारा रजत की हत्या करने की कोशिश करेगा और हम उसे रंगे हाथ पकड़ लेंगे. आगे की घटनाएं आप सब को मालूम ही हैं.’’

‘‘कमाल हो गया.’’ धुरंधर की अचरज भरी निगाह रजत के ऊपर जा टिकी, ‘‘यह छुटकू तो बेजोड़ एक्टर है.’’

रजत के चेहरे पर मुसकान फैलते देर न लगी, उस के मातापिता उस से ज्यादा खुश थे, शेष लोगों के भी चेहरों पर आश्चर्य था, उन में से एक अनिल भी थे, जो अब हथकड़ी लिए बलराम तोमर की ओर बढ़ रहे थे.

त्रिलोचन अपना सामान समेट रहे थे कि धुरंधर तोमर ने पूछा, ‘‘मेरा चरित्र शक के घेरे में कैसे आ गया था त्रिलोचनजी?’’

‘‘जिस तरह से विप्लव को इस पत्रिका में आप दोनों का फोटो देख कर शक हुआ, ठीक वैसे ही बलराम के भी मन में शुबहा हुआ और जब उस ने बर्नेट अस्पताल के प्रसूति रजिस्टर का अवलोकन किया तो उस का शक यकीन में बदल गया.’’

‘‘आप बुरा न मानें तो कुछ मैं भी पूछूं?’’ सुखदेवी अपनी जगह से उठ कर त्रिलोचन के पास आ पहुंचीं.

‘‘जरूर पूछिए.’’

‘‘रजत तो पहली बार यहां आया था, वह सड़क से सीधे हमारे घर तक कैसे पहुंचा?’’

‘‘आसान काम था मिसेज तोमर. हम ने रात में सड़क से ले कर आप के घर तक गेहूं के दाने गिरवा दिए थे, रजत उन्हें देखते हुए आप के घर तक पहुंच गया और किसी को संदेह भी नहीं हुआ, क्योंकि गांवों में अनाज की ढुलाई के दौरान ऐसा होता रहता है.’’

‘‘क्या दिमाग पाया है आप ने.’’ सुखदेवी के मुंह से बरबस निकल गया और अपनी तारीफ सुन कर त्रिलोचन खुश हुए बिना न रह सके.

— कल्पना पर आधारित

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार

पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 1

साधना सिंह बहुत बदहवास नजर आ रही थी. 3 बार उस ने अपने बैडरूम में रखी अलमारी का लौकर और ड्राअर का सामान उलटपलट कर के अच्छे से चैक कर डाला था. रात को ही उस ने 10 हजार रुपए अलमारी में रखे थे, वे गायब थे.

‘कहां गए 10 हजार रुपए?’ वह बड़बड़ाई, ‘सारा दिन तो वह घर में ही थी, कोई आयागया भी नहीं. फिर रुपए कहां चले गए? कहीं दक्ष ने वे रुपए चुरा कर पबजी गेम में तो नहीं उड़ा दिए?’

‘यकीनन रुपए दक्ष ने ही चुराए हैं.’ साधना सिंह के मन में दृढ़ विचार कौंधा.

गुस्से में तनी साधना सिंह बेटे दक्ष को ढूंढती हुई उस के स्टडी रूम आई तो वहां दक्ष कुरसी पर बैठा दिखाई दे गया. उस के सामने की टेबल पर एक किताब उलटी पड़ी थी. दक्ष के हाथ में मोबाइल फोन था, उस का पूरा ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर था.

साधना सिंह के तनबदन में आग लग गई. गुस्से में तो वह पहले ही थी. उस ने दक्ष के हाथ से मोबाइल छीन कर टेबल पर पटक दिया और दक्ष को बालों से पकड़ कर चीखी, ‘‘ठहर, मैं खिलवाती हूं तुझे पबजी गेम.’’

साधना सिंह बेरहमी से उसे पीटने लगी. दक्ष रोने लगा, रोते हुए ही बोला, ‘‘मैं गेम नहीं खेल रहा था मौम, मैं औनलाइन पढ़ाई कर रहा था.’’

‘‘झूठ बोलता है नालायक,’’ साधना सिंह उस के गाल पर जोर से थप्पड़ मारते हुए चीखी, ‘‘मेरी अलमारी से 10 हजार रुपए गायब हैं. बता वे रुपए तूने क्या किए हैं?’’

‘‘मैं ने आप के रुपए नहीं लिए हैं मौम, डैड की कसम ले लो…’’

‘‘डैड के बच्चे… तू मोबाइल में गेम्स खेल खेल कर चोर और निकम्मा बन गया है. रुपए चोरी कर के गेम्स में उड़ाने लगा है.’’ साधना सिंह गुस्से से उस के बाल पकड़ कर हिलाने लगी.

‘‘नहीं मौम, मैं चोरी नहीं करता… मैं अब गेम भी नहीं खेलता हूं,’’ दर्द से तड़पते हुए दक्ष बोला, ‘‘आप प्लीज, मेरे बाल छोड़ दो. मुझे मत मारो.’’

‘‘मेरे 10 हजार रुपए चोरी गए हैं, जब तक तू उन रुपयों के बारे में नहीं बताएगा, मैं तुझे पीटना बंद नहीं करूंगी.’’

दक्ष को साधना सिंह पीटती रही. दक्ष रोता गिड़गिड़ाता मार खाता रहा, लेकिन साधना सिंह के हाथ नहीं रुके. दक्ष मार से जब बेहाल हो गया तो वह उसे घसीटती हुई स्टोर रूम में ले आई और उस में बंद करती हुई गुस्से से चीखी, ‘‘तू अब इसी में बंद रहेगा, तुझे खाना भी नहीं मिलेगा. यदि तूने 10 हजार रुपए के बारे में नहीं बताया तो मैं कल तुझ पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दूंगी.’’

मार से दक्ष बेहोश सा हो गया था. होश खोने के बाद भी उस के होंठों से मद्धिम स्वर निकल रहे थे, ‘‘मैं ने रुपए नहीं चुराए हैं मौम. मैं.. निर्दोष हूं.’’

उत्तर प्रदेश के महानगर लखनऊ की यमुनापुरम कालोनी में 7 जून, 2023 की सुबह असहनीय बदबू से लोग परेशान हो उठे. यह बदबू नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही थी. लग रहा था इस घर में कोई चीज सड़ रही है.

नवीन कुमार सिंह सेना में जूनियर कमीशंड अधिकारी के पद पर तैनात थे, उन की पोस्टिंग बंगाल के आसनसोल में थी. घर में उन की पत्नी साधना सिंह 50 वर्ष, बेटी प्रियांशी 10 वर्ष और बेटा दक्ष 16 वर्ष रहते थे. उन के सामने वाले घर में शर्मा दंपति रहते थे. उन्हें कल ही आसनसोल से नवीन कुमार सिंह का फोन आया. उन्होंने शर्माजी से कहा था कि वह उन के घर जा कर देखें. उन की पत्नी साधना उन का फोन नहीं उठा रही है, वह साधना से उन की बात करवा दें.

शर्माजी ने अपनी पत्नी को नवीन कुमार सिंह के घर भेजा था. वह घर के दरवाजे तक पहुंची थी तो उन्हें वहां तेज स्मैल महसूस हुई. दरवाजे पर ही उन्हें नवीन कुमार का बेटा दक्ष मिल गया था. साधना के विषय में पूछने पर उस ने बताया था कि मौम बिजली का बिल जमा करवाने गई हैं. शर्माजी की पत्नी वापस लौट आई थी. यह बात नवीन सिंह को शर्माजी ने बता दी थी.

आज नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही बदबू बढ़ती जा रही थी. इस से शर्माजी का माथा ठनका. वह अपनी पत्नी से बोले,

‘‘मुझे लग रहा है, नवीनजी के घर में कुछ गड़बड़ हुई है. इस असहनीय बदबू से सांस लेना दूभर हो रहा है. मैं पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना दे देता हूं. पुलिस आ कर देख लेगी कि माजरा क्या है.’’

‘‘असहनीय बदबू है जी. आप पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाइए.’’ पत्नी ने भी कह दिया.

शर्माजी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही असहनीय बदबू के विषय में बता दिया.

यमुनापुरम क्षेत्र का थाना कोतवाली पीजीआई पड़ता था. आधा घंटा में ही कंट्रोल रूम से सूचना पा कर कोतवाली पीजीआई थाना पुलिस यमुनापुरम आ गई. एसएचओ धर्मपाल नवीन कुमार सिंह के घर के सामने पहुंचे तो घर से आ रही बदबू के कारण उन्हें रुमाल निकाल कर नाक पर रखना पड़ा. साथ में आए पुलिस वालों ने भी ऐसा ही किया.

इंसपेक्टर धर्मपाल ने घर के दरवाजे की कालबेल बजाई. दरवाजा दक्ष ने खोला. पुलिस को देख कर वह एक क्षण को विचलित हुआ, फिर तुरंत संभल गया.

‘‘आप को किस से मिलना है?’’ उस ने सामान्य तौर पर पूछा.

‘‘तुम्हारे पापा हैं घर में?’’

‘‘नहीं सर. वह आसनसोल में ड्यूटी पर हैं. मेरे पापा सेना में हैं.’’

‘‘ओह.’’ इंसपेक्टर ने होंठ सिकोड़े, ‘‘इस घर से बहुत तेज बदबू आ रही है. मुझे अंदर तलाशी लेनी है.’’

दक्ष एक तरफ हट गया. इंसपेक्टर धर्मपाल ने अंदर बैठक में कदम रखा. वहां सोफे पर 10 साल की प्रियांशी बैठी अपने स्कूल का काम कर रही थी. पुलिस को देख कर वह सहम गई और उठ कर अपने भाई दक्ष के पीछे आ कर खड़ी हो गई.

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 1

चंबल में पहली बार ऐसा हुआ, जब बदले की आग में किसी परिवार की महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. उन्हें भी बिना किसी हिचकिचाहट के गोलियों से भून दिया गया. बदले की आग में खून का प्यासा इंसान कितना हैवान हो सकता है, वह पीडि़त परिवार से ले कर गांव वालों ने अपनी आंखों से देखा.

दहशत का आलम यह था कि सारा गांव इस बर्बरता को मूकदर्शक बना देखता रहा, किसी ने भी लाइसेंसी हथियार होने के बाबजूद इस परिवार के बचाव में गोली नहीं चलाई. वैसे भी चंबल में कहावत है इंसान बूढ़ा हो सकता है, मगर दुश्मनी नहीं.

ग्वालियर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर आसन नदी के पास बसे मुरैना जिले के सिहोनिया थानांतर्गत आने वाला लेपा गांव बहुचर्चित दस्यु पान सिंह तोमर के भिडौसा गांव से सटा हुआ है. इसी गांव के रहने वाले गजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ 10 साल बाद अपने घर लौटे थे, तभी विरोधी पक्ष के भूपेंद्र सिंह और उस के परिवार के लोगों ने इन पर जानलेवा हमला कर दिया, जिस में 6 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए.

janch karti police

जब लेखक लेपा गांव में पहुंचा तो वहां मातमी पसरी हुई थी. लोग सहमे सहमे से और दहशतजदा नजर आ रहे थे. लगता था कि वे अभी भी ठीक बुद्ध पूर्णिमा के दिन गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के साथ घटी सामूहिक नरसंहार की घटना को भुला नहीं पाए हैं.

हालांकि आपसी प्रतिशोध के जुनून में परिजनों के साथ घटी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की चश्मदीद गवाह 16 वर्षीय रंजन तोमर मिली. इस खूनखराबे के दौरान उस के सीने पर गोलियों के छर्रे लगे, लेकिन इस के बावजूद भी वह हत्यारों के खिलाफ पुख्ता सबूत के लिए बेझिझक वीडियो बनाती रही.

अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों के सवालों से आहत हो चुकी रंजना तोमर कहने लगी कि किस तरह मैं सब को बताऊं कि शुक्रवार की सुबह 10 साल बाद अहमदाबाद, मुरैना और ग्वालियर से अपने पैतृक गांव लौटे मेरे घर वालों के साथ क्याक्या घटा था, बारबार मुझे उन्हीं बातों को दोहराना पड़ता है.

काफी दबाव डालने पर तमतमा कर रंजना ने बताया कि हमारा परिवार लेपा का संपन्न परिवार था. परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था. रंजना तोमर ने बताया कि 5 मई की घटना में अपने पति, 2 बेटों सहित 3 बहुओं को हमेशा के लिए खो देने वाली मेरी दादी कुसुम तोमर हम लोगों को बताया करती है कि हमारे परिवार और गांव वालों द्वारा स्कूल के लिए दान में दी गई 16 बिस्वा जमीन पर सरकारी स्कूल बन रहा था, लेकिन स्कूल की जमीन के दाहिने भाग पर गांव के ही मुंशी सिंह के परिवार की महिलाओं ने गोबर का कचरा डालना शुरू कर दिया था.

स्कूल की भूमि पर कब्जा करने के मकसद से गोबर का कचरा डालने का तब मुन्नी सिंह के बेटे रंजीत सिंह ने खुल कर विरोध किया था. दुर्भाग्यवश मुंशी सिंह तोमर और मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं में कचरा डालने को ले कर आपस में कहासुनी से शुरू हुई नोंकझोंक हाथापाई से होते हुए इतनी बढ़ गई कि मुंशी सिंह के बेटों ने गुस्से में आ कर मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं के साथ मारपीट कर दी.

10 साल पहले शुरू हुई थी दुश्मनी

इस घटना ने माहौल में गरमाहट पैदा कर दी. 20 अक्टूबर, 2013 को मुंशी सिंह के परिवार के लोग लाठी, बंदूक ले कर गजेंद्र सिंह तोमर के दरवाजे पर चढ़ आए. इस विवाद में हुए खूनी संघर्ष में सोबरन सिंह और उस के बेटे वीरभान सिंह को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वहीं सोबरन सिंह का बेटा राधे और भिडौसा गांव का गुही नाई घायल हो गए थे.

मुंशी सिंह के 2 बेटों को ललकारते हुए गुस्से में रंजीत सिंह ने उन के हाथ से बंदूक छीन कर गजेंद्र सिंह तोमर की हवेली के घर के सामने ही गोली चला दी थी. हालांकि इस दोहरी हत्या के बाद गोली चलने की आवाज सुन कर भूपेंद्र और अजीत सिंह अपने घर से बाहर निकल कर आए.

जिस वक्त अजीत सिंह के पिता की गोली मार कर हत्या की गई. उस वक्त अजीत सिंह की उम्र महज 12 साल थी. रंजीत ने उसे भी दौड़ा लिया था. अजीत अपनी जान बचाने के लिए भागा. अजीत ने अपनी आंखों से अपने पिता को रंजीत सिंह द्वारा गोली मारते देखा था, हालांकि अजीत सिंह के चाचा शिवचरण ने हिम्मत कर के रंजीत को समझाने का भरसक प्रयास किया तो रंजीत सिंह तोमर गुट के बड़े लला उर्फ हिम्मत ने उन के कंधे पर डंडे से वार कर दिया.

इतना ही नहीं, घटनास्थल से भागने से पहले मुंशी सिंह के परिवार वालों ने अपने बचाव के लिए मुन्नी सिंह तोमर के दाहिने पैर पर गोली मार दी थी. इस घटना के बाद मुन्नी सिंह तोमर का बेटा रंजीत अपने परिवार को ले कर लेपा गांव से भिंड भाग गया था. रंजीत सिंह के भागते ही मुंशी सिंह के बेटों ने रंजीत के घर में जम कर लूटपाट करने के साथ ही उस की 100 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था.

उधर मुंशी के दोनों बेटों सोबरन और वीरभान की हत्या के जुर्म में सुनील सिंह तोमर के बड़े भाई वीरेंद्र तोमर और चाचा मुन्नी सिंह का बेटा रंजीत सिंह तोमर, अविनाश बड़े लाला उर्फ हिम्मत को सलाखों के पीछे जाना पड़ गया था. वहीं शाति रदिमाग मुंशी सिंह ने अपने नाती श्याम सिंह तोमर से (गजेंद्र सिंह) के बड़े बेटे वीरेंद्र तोमर का नाम भी अपने दोनों बेटों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट में लिखवा दिया था. जबकि हकीकत में वीरेंद्र बेकसूर थे.

ग्रामीणों के मुताबिक घटना वाले दिन वीरेंद्र घटनास्थल पर मौजूद नहीं था. 5 मई, 2023 को जिन आधा दरजन लोगों की गोलियों से भून कर हत्या की गई, वो सभी गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के सदस्य थे. दरअसल, 5 मई 2023 को लेपा में हुए खूनखराबे की नींव 20 अक्टूबर, 2013 में ही मुंशी सिंह के बेटों की हत्या के दिन ही पड़ गई थी.

5 मई को हुए खूनखराबे की असल वजह एक दशक पुरानी रंजिश थी. आरोपी पक्ष ने अपने परिवार के 2 सदस्यों की हत्या का बदला 10 साल बाद गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 6 सदस्यों को बड़े ही सुनियोजित ढंग से मौत के घाट उतार कर ले लिया.

लक्ष्मण रेखा लांघने का परिणाम – भाग 1

‘‘कमबख्त, कमीनी किसे फोन कर रही थी? हिंदुस्तान कर रही थी ना? अगर तुझे उन  पिल्लों से इतनी ही मोहब्बत थी तो यहां मरने क्यों चली आई? अगर तेरी हरकतें ऐसी ही रहीं तो तू एक न एक दिन मुझे जेल भिजवा कर रहेगी.’’ कह कर असलम ने मेरे हाथ से रिसीवर ले कर पटक दिया और मुझे ऐसा धक्का दिया कि मैं सिर के बल गिर पड़ी.

इस के बाद मुझे गंदीगंदी गालियां देते हुए बाहर से ताला लगाया और सीढि़यां उतर गया. असलम जितना चालाक था, उतना ही फुर्तीला और ताकतवर भी था. वह गले तक काले धंधों में डूबा था. अमेरिका की पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश कर रही थी. मेरी बदकिस्मती यह थी कि उस के हर जुर्म में मैं बराबर की हिस्सेदार थी. यही एक वजह थी कि चाह कर भी मैं उस के घर से निकल नहीं पा रही थी.

मेरे पास अब आंसू बहाने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था? इस के लिए मैं किसी और को दोष भी नहीं दे सकती थी. मैं ने जो किया था, उसर की सजा मुझे मिल रही थी.

असलम जिसे मैं ने जीजान से चाहा था, जिस के लिए मैं ने अपना घर, पति और तीन प्यारेप्यारे मासूम बच्चों को भुला दिया था, आज वही असलम मुझ से इस तरह बदसलूकी करेगा, मैं ने सपने में भी नही सोचा था. जब से मैं अमेरिका आई हूं, तब से मेरा यही हाल है. ताले में बंद रहना और उस के हर नाजायज धंधे में शामिल होना.  मेरी खूबसूरती का इस से अच्छा इस्तेमाल और क्या हो सकता था. हर वह काम, जो असलम वर्षों में नहीं कर सका था, उसे मैं ने चुटकी बजा कर अपनी खूबसूरत अदाओं से कर दिया था.

मैं जब भी भागने की कोशिश करती, वह बेरहमी से मेरी पिटाई करता. उस की गिरफ्त से निकलना मेरे लिए नामुमकिन था. लेकिन मैं हिम्मत हारने वालों में नहीं हूं, मैं एक बार, सिर्फ एक बार अपने उन मासूम बच्चों को सीने से लगा कर प्यार करना चाहती हूं, जिन्हें 10 साल पहले मैं असलम के प्यार में पागल हो कर हिंदुस्तान छोड़ आई थी.

बच्चों की याद त्रिशूल बन कर मुझे सालती रहती थी. मैं जब भी तनहा होती थी, तीनों बच्चों के चेहरे मेरी आंखों के सामने तैरने लगते थे. जब मैं उन्हें छोड़ कर आई थी, सृष्टि 9 साल की थी, बबलू 4 साल का और दीपू 2 साल का. तीनों बच्चे मेरे सीने से चिपट कर सोते थे. कितनी मशगूल जिंदगी थी वह  मेरी. एकएक बातें किताब के पन्नों की तरह खुलने लगी थीं.

सृष्टि और बबलू सुबह 7 बजे ही स्कूल चले जाते थे. उन के लिए टिफिन बनाना, उन्हें तैयार करना, बच्चों को स्कूल भेज कर घर की साफसफाई करना और दोनों समय के खाने में दिन कैसे बीत जाता, पता ही नहीं चलता था.  और आज मैं विदेश में अकेली बैठी हूं. चारों ओर कुहासा और बर्फ से ढकी चोटियां हैं. मैं ऐसे दलदल में फंसी हूं, जहां से चाहूं तो भी नहीं उबर सकती.

शुरू से ही आशावादी व भरपूर जीवन जीने की मैं आदी थी. एक मस्त हिरनी की तरह कुलांचे भरना मेरी फितरत थी. 3 बच्चों की मां होने के बावजूद मुझ में चंचलता पहले जैसी ही थी. घर का काम निपटा कर मैं पूरे मन से अपना शृंगार करती और 5 बजते ही मैं लौन में चहलकदमी करने लगती. आतेजाते मर्द जब मुझ पर चाहतभरी निगाह डालते तो मैं उसे अपनी तारीफ और उपलब्धि समझ कर फूली न समाती. मेरे गालों पर मोगरे के फूल दहकने लगते.

इसी चंचल स्वभाव की वजह से 16 साल की उम्र में ही मैं सागर से प्यार कर बैठी थी. कैंब्रिज स्कूल में हम दोनों साथ पढ़ते थे. रोजरोज मिलने से हमारी दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. मैं उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी. हर पल मेरी जुबान पर उसी का नाम होता. हम जब भी मिलते, अपने आशियाने के सपने संजोते. वह भी शिद्दत से मेरा दीवाना था.

उस की दीवानगी को देखते हुए एक दिन मैं ने अपनी मां को सब कुछ बता कर कहा कि ‘मैं सागर से ही शादी करूंगी और जल्दी ही करूंगी.’ मां ने बहुत समझाया. पापा ने भी कहा कि पहले पढ़ाई पूरी कर लूं, उस के बाद मैं जो कहूंगी, वह वही करेंगे. मैं ने घर से भाग जाने की धमकी दी. मेरे उद्दंड स्वभाव के आगे किसी की न चली और लाख पहरों के बावजूद मैं ने घर से भाग कर सागर से शादी कर ली. शायद आज यही मेरे जीवन की सब से बड़ी भूल साबित हुई.

मैं ने मांबाप की मरजी के खिलाफ जो कदम उठाए, उस से फिर कभी मैं उन की दहलीज पर लौट नहीं सकी. सागर का जुनून और दिलफरेब मोहब्बत नकली हीरे से कम नहीं थी. बीवी और महबूबा में एक बुनियादी फर्क होता है. इसी बुनियादी फर्क के तहत मेरी हदें निश्चित कर दी गईं.

शादी के बाद सागर पूरी तरह से मेरा हो गया था, इसलिए तनमन से मैं उस की सेवा करने लगी. दिनरात मैं उस के प्यार में डूबी रहने लगी. अपनी किस्मत पर मुझे रश्क आने लगा था कि इतनी बड़ी कोठी का एकलौता वारिस मुझ पर सौ जान से फिदा है. ईश्वर ने मुझे रूप भी ऐसा दिया था कि जो भी देखता, ठगा सा देखता रह जाता. दूध में केसर डाल कर जो रंग आता है, उस रंग की काया पर कमर तक झूलते काले स्याह बाल, लंबा कद. लेकिन जल्दी ही हमारी मोहब्बत का सुरूर बुलबुले की तरह खत्म हो गया.

परदा उठते ही जो हालात सामने आए, वे मेरी जिद और नासमझी के अंजाम थे. अपने मांबाप के जिंदगी भर के तजुर्बे को ठुकरा कर मैं ने जो प्रेमविवाह किया था, उस में सीरत वाला पहलू पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया था. शायद प्रेमविवाह में ऐसा ही होता है. सूरत इस में अहम होती है. सागर की शानदार पर्सनैल्टी की मैं दीवानी सी हो गई थी. मेरे मांबाप, भाई जब कभी उस के खिलाफ कुछ कहते, मैं नाराज हो कर घंटों रोती रहती और भूख हड़ताल कर बैठती. प्यार में अंधी हो कर मैं सच सुनना नहीं चाहती थी.

सागर एक 5 स्टार होटल के डिस्कोथैक का मैनेजर था, जहां रातें शराबशबाब में डूबी रहती थीं. उस की ड्यूटी रात की होती थी. वह सुबह घर आता तो बेहद थका और टूटा हुआ होता. आते ही बिस्तर पर ढेर हो जाता. पूरे दिन सोता. शाम को उठता और फ्रैश हो कर होटल चला जाता.

इस तरह महीनों हमारे बीच कोई बातचीत न होती. अगर कभी मैं कुछ कह देती तो उस के मुंह में ऊलजुलूल जो आता, कहने लगता. उस की इन बातों से हम दोनों के बीच एक ऐसी खाईं बनती चली गई, जिसे पाटना नामुमकिन सा हो गया. मैं समझ गई कि यह बड़े बाप की वह बिगड़ी हुई औलाद है. मैं घुटघुट कर जीने लगी.

उसी घुटन में एक दिन मैं सो रही थी कि अचानक मेरे फोन की घंटी बजी. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘आप मुझे नहीं जानतीं, लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं. मैं आप का शुभचिंतक हूं, इसलिए आप को चेता रहा हूं कि आप अपने पति पर नजर रखिए. आजकल वह रेशमा नाम की खूबसूरत लड़की के साथ अकसर नाचतेगाते, खातेपीते नजर आते हैं.’’

मैं सागर से वैसे ही परेशान थी, इस गद्दारी से मैं बिफर उठी. उस दिन हम दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. सागर ने सारे आरोपों को गलत बताया. लेकिन शक का जहर मेरी नसनस में फैल चुका था. वह अजनबी न जाने मेरा हमदर्द था या खैरख्वाह या दुश्मन, जो मेरा अच्छा सोच रहा था. इस के बाद उस ने मुझे न जाने कितने फोन किए. हर फोन में सिर्फ सागर की बुराई होती. सागर सुबह आता तो शराब की बू से कमरा भर जाता. मेरे नाम से उसे चिढ़ सी हो गई थी.

मेरा हर मशवरा उसे नागवार गुजरता. सागर की रात की ड्यूटी से मेरा और बच्चों का जीवन घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गया था. पति, 3 बच्चे और सासससुर की जिम्मेदारी उठातेउठाते मैं चिड़चिड़ी और बेरहम होती गई. जिस तरह बिना पानी के धरती सूखती जाती है, प्यार के बिना कुछ वैसी ही हालत मेरी हो गई थी. मैं प्यार के 2 बोल सुनने के लिए तरसती रहती थी.