Chhattisgarh Crime : मुंह औन नाक पर टेप लगाकर पूरे परिवार के साथ दोस्‍त को भी मार डाला

Chhattisgarh Crime : 2 शादियां करने वाले रवि शर्मा ने योजना तो जोरदार बनाई थी, लेकिन वह यह भूल गया कि ऐसी योजनाएं सफल हों, जरूरी नहीं है. उस ने अपनी पत्नी मंजू, बेटी निशा और दोस्त को भले ही मार डाला पर…     छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की भिलाई नगरी इस्पात संयंत्र के कारण देश भर में विख्यात है. रवि शर्मा भिलाई के पौश इलाके तालपुरी इंटरनैशनल कालोनी में रहता था. 19 जनवरी, 2020 को वह किसी उधेड़बुन में घर से निकला. उस ने सोच रखा था कि आज उसे कुछ ऐसा करना है कि दूसरी पत्नी मंजू से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए.

इसी बारे में सोचते हुए वह पैदल ही स्थानीय सिविक सेंटर की ओर बढ़ गया. उस के कदम देसी शराब की दुकान के पास रुके. वहीं खड़ा हो कर वह हरेक आनेजाने वाले को ध्यान से देखने लगा. तभी अचानक उस की निगाह एक शख्स पर जा कर ठहर गई. रवि के दिमाग में जो खतरनाक प्लान था, उसे देखते ही पूरा होता दिखाई दिया. उस के पास जा कर चहकते हुए बोला, ‘‘अरे राजू, इधर आओ.’’

राजू ने उस की ओर देखा और मुसकराते हुए बोला, ‘‘भाई रवि, बहुत दिनों बात दिखे.’’

‘‘हां यार, आजकल काम कुछ ज्यादा बढ़ गया है,’’ कहते हुए रवि शर्मा ने उस के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘चलो, आज पार्टी करते हैं.’’

‘‘पार्टी! कैसी पार्टी भाई?’’ राजू ने पूछा.

‘‘बस तुम से मिलने की खुशी में. चलो, मैं बोतल ले आता हूं, घर चल कर खाएंगेपिएंगे.’’ रवि शर्मा ने राजू को उकसाया. राजू शराब की दुकान की ओर देखते हुए बोला, ‘‘वैसे तो मेरी इच्छा नहीं है, मगर तुम कह रहे हो तो चलो ठीक है.’’

‘‘ठीक है, तुम यहीं ठहरो मैं बोतल ले आऊं.’’ कह कर रवि राजू को वहीं ठहरने की बात कह कर सिविक सेंटर के पास स्थित शराब की दुकान की तरफ बढ़ गया. बढ़ते कदमों के साथ उस के चेहरे पर कई हावभाव आजा रहे थे. जल्दीजल्दी उस ने शराब खरीदी और राजू के पास आ गया. राजू उस की कदकाठी और उम्र का था, फिर भी रवि ने पूछा, ‘‘राजू, तुम्हारी उम्र क्या होगी?’’

‘‘32 साल,’’ राजू बोला.

‘‘मैं 35 साल का हूं. देखो, कितनी समानता है हम दोनों की उम्र और कदकाठी में.’’ कह कर रवि ने उस का हाथ हाथों में ले लिया. दोनों तालपुरी इंटरनैशनल कालोनी की तरफ चल दिए. रवि राजू को ले कर अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही उस ने राजू को पत्नी मंजू से मिलाते हुए कहा, ‘‘मंजू, यह मेरा बहुत खास दोस्त राजू है, बहुत दिनों बाद मिला है. आज इस के साथ पार्टी होगी.’’

मंजू ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया. फिर रवि और राजू एक कमरे में बैठ गए. रवि ने पहले से ही साजिश रच ली थी. उसी योजना के तहत वह राजू को अपना शिकार बनाना चाहता था. उसी साजिश को अमलीजामा पहनाने के लिए रवि ने शराब गिलास में डालतेडालते चालाकी से राजू के गिलास में नींद की गोलियां डाल दीं. शराब के नशे के साथ राजू पर नींद की गोलियों का असर हुआ तो वह वहीं लुढ़क गया. उस के लुढ़कने से रवि खुश हुआ. वह मंजू के पास जा कर बोला, ‘‘मंजू, यह आदमी बहुत खतरनाक है. यह तुम्हारी और मेरी जिंदगी बरबाद करने पर तुला हुआ है.’’

‘‘कैसे?’’ मंजू ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘यह मुझे ब्लैकमेल करता है.’’ रवि ने कहा.

‘‘क्या कहता है?’’ मंजू ने पूछा.

‘‘कहता है कि पैसे दो नहीं तो हम दोनों के बारे में संगीता से शिकायत कर हमारा भंडाफोड़ कर देगा. अब मैं इसे पैसे कहां से दूं.’’ शर्मा ने असहाय भाव से कहा. दरअसल, रवि शर्मा की शादी संगीता से हुई थी, जिस से 2 बच्चे भी थे. इस के बाद भी उस ने मंजू को अपने जाल में फांस लिया और उसे अपनी दूसरी पत्नी बना कर उस के साथ रह रहा था. लेकिन मंजू उस के गले की फांस बन चुकी थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए ही उस ने यह एक नई साजिश रची थी. इस के लिए उस ने मंजू से कहा, ‘‘मंजू, मैं राजू का काम खत्म करने वाला हूं. इस में तुम मेरी मदद करो. देखो, मना मत करना. तुम मेरी जिंदगी हो, तुम्हारे बगैर मैं कैसे जिंदा रहूंगा.’’

यह सुन कर मंजू शर्मा ने रवि की ओर प्यार से देखा. ‘‘मंजू, तुम मेरा साथ दो. इसे छत से नीचे फेंक देते हैं, इस का काम तमाम हो जाएगा.’’ वह बोला.

‘‘मगर कोई देख लेगा तो…और अगर यह घायल हो कर बच गया तो?’’ मंजू ने संशय व्यक्त किया. ‘‘तो ऐसा करते हैं, मैं इसे यहीं मौत की नींद सुला देता हूं. बेहोशी की हालत में ही इस के मुंह नाक पर टेप लगा देता हूं. सांस रुकने से यह छटपटा कर मर जाएगा. बाद में इसे कहीं ठिकाने लगा दूंगा.’’ रवि शर्मा की मीठीमीठी बातों में आ कर मंजू ने स्वीकृति दे दी. मंजू को छोड़ कर रवि शर्मा फिर राजू के पास आया, जो बेसुध पड़ा था.

रवि ने घर में पहले से ला कर रखा टेप निकाला और उस के मुंह और नाक पर अच्छे से चिपका दिया. इस के बाद उस के हाथपैर भी बांध दिए. फिर गमछे से उस का गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस के मुंह और नाक से टेप हटा दिया और हाथपांव खोल कर उसे अपने कपड़े पहना दिए. यह सब करतेकरते उस के दिमाग में यह योजना जन्म ले रही थी कि दूसरी पत्नी मंजू को कैसे ठिकाने लगाए. इसी उधेड़बुन में वह मंजू के पास जा कर बोला, ‘‘काम तमाम हो गया है. अब तुम और मैं जिंदगी भर मौजमजे करेंगे.’’

मंजू सहमी सी बिस्तर पर बैठी अपनी डेढ़ महीने की बच्ची को दूध पिला रही थी. पति की बात सुन कर वह उठ बैठी और घबरा कर पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच उसे मार डाला?’’

‘‘हां, और दूसरा रास्ता ही क्या था?’’

‘‘मुझे तो बहुत डर लग रहा है.’’ कह कर डरीसहमी मंजू पति रवि शर्मा की ओर देखने लगी.

‘‘अरे डरो नहीं, तुम्हें यह भूत बन कर नहीं डराएगा.’’ रवि शर्मा ने मंजू को कुछ डराने की नीयत से कहा तो मंजू डर कर कांपने लगी और नन्ही बालिका को सीने से लगा लिया. रवि मन ही मन खुश होते हुए बोला, ‘‘तुम नींद की एक गोली खा लो और आराम से सो जाओ. बाकी मैं देख लूंगा.’’

रवि ने एक गिलास में 6 गोलियां घोल कर मंजू को थमा दिया. मंजू डरी हुई थी. गोलियों का पानी पी कर वह सो गई तो रवि शर्मा अपनी सोचीसमझी योजना के तहत उस का काम तमाम करने की जुगत में लग गया. जब मंजू गहरी नींद में चली गई तो उस ने जैसे राजू को मौत के घाट उतारा था, वैसे ही वह मंजू के मुंहनाक पर टेप चिपकाने लगा. फिर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस उस की भी गला घोट कर हत्या कर दी. डेढ़ माह की नन्ही बालिका निशा जब रोने लगी तो रवि शर्मा ने उसे गोद में उठा लिया. वह सोचने लगा, ‘अब क्या करूं?’

उस के दिमाग में आया कि निशा को भी मार दिया जाए. फिर सोचा नहीं…नहीं यह नन्ही बच्ची उस के प्यार की निशानी है. यह उसे ले जा कर संगीता की गोद में डाल देगा. जहां 2 बच्चे पल रहे हैं, ये भी पल जाएगी. लेकिन संशय यह था कि संगीता उसे स्वीकार करेगी या नहीं.

‘नहीं…नहीं, संगीता और बच्चे इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे.’ यह सोच कर उस की आंखें भर आईं. नन्ही सी बालिका निशा उसे बहुत प्यारी थी. जब वह मुसकराती तो रवि निहाल हो जाता था. वह उसे गोद में ले कर अचानक जोरजोर से रोने लगा. आंसू बह निकले तो मन थोड़ा मजबूत हुआ. उस ने सोचा कि जब इस की मां ही मर गई तो यह जिंदा रह कर क्या करेगी? रवि शर्मा ने यह निर्णय ले कर नन्ही बालिका की भी गला घोट कर हत्या कर दी और उसे मंजू के पास लिटा दिया. 3 हत्याएं कर के उस ने सोच लिया कि वह घटनास्थल पर ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देगा कि पुलिस तो क्या सीबीआई भी जांच करेगी तो उस तक नहीं पहुंच पाएगी.

रवि ने राजू को अपने कपड़े पहना ही दिए थे. उस ने तीनों लाशें एक कमरे में ला कर डाल दीं, फिर राजू के पास गैस चूल्हा रख कर गैस जला दी. धीरेधीरे वह राजू का सिर लकड़ी के गुटके से जलाने लगा. इसी दौरान उस ने घर के दरवाजे पर चाक से लिखा, ‘मैं मंजू से प्यार करता था, उस ने मुझ से शादी नहीं की. बदला…बदला, मैं रवि शर्मा के परिवार को मार रहा हूं. मंजू को मार रहा हूं. संजय आर्मी.’

रवि को लगा कि थोड़ी देर बाद गैस सिलेंडर से राजू जल जाएगा, घर में आग लग जाएगी. सिलेंडर ब्लास्ट हो जाएगा. सब जल कर खत्म  हो जाएंगे. लकड़ी के गुटके में आग लगाने के बाद वह स्कूटी से स्टेशन की ओर निकल गया, फिर वहां से ट्रेन पकड़ कर राउरकेला, ओडिशा चला गया. उसे अपनी पत्नी संगीता और बच्चों के पास जाना था. उस ने रायपुर स्टेशन पर पीसीओ से अपनी सास मालती सूर्यवंशी को तड़के में काल की, ‘‘आ कर देख लो, तुम्हारे दामाद और बेटी की मौत. दोनों जल कर मर रहे हैं.’’

इस के बाद वह संगीता से मिलने के लिए हमसफर एक्सप्रैस में चढ़ गया. रवि ने आग यह सोच कर लगाई थी कि जब घर में आग लग जाएगी तो तीनों लाशें जल जाएंगी. लेकिन लकड़ी के गुटके में आग लगने पर केल राजू का सिर व चेहरा ही जला था. इस के बाद आग आगे नहीं बढ़ पाई थी. 22 जनवरी, 2020 बुधवार की सुबह रिसाली अशोक नगर की रहने वाली मंजू की मां मालती सूर्यवंशी ने जब अज्ञात शख्स की धमकी सुनी तो वह घबराई और अपने पति और बेटे के साथ वह बेटी मंजू के घर पहुंची. वहां का भयावह दृश्य देख कर वह जोरजोर से रोने लगी. घटना की सूचना मालती ने कोतवाली पुलिस को दे दी. घटना की जानकारी मिलते ही भिलाई नगर कोतवाली के प्रभारी सुरेश धु्रव मौके पर पहुंचे. घटनास्थल पर 3 लाशें पड़ी थीं.

मालती सूर्यवंशी ने पुलिस को बताया कि उस की बेटी मंजू वहां अपने पति रवि शर्मा और बेटी निशा के साथ रह रही थी. पुलिस को उस ने यह भी जानकारी दी कि उसे सुबहसुबह मोबाइल पर एक धमकी भरी काल आई थी. प्रथमदृष्टया मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था. पुलिस का ध्यान जांच के दरम्यान दरवाजे पर लिखे मैसेज पर गया, जिस का सार था, इस हत्याकांड को संजय देवांगन आर्मी ने अंजाम दिया है. पुलिस दल ने मौकामुआयना शुरू किया. फोरैंसिक टीम भी आ गई. जांच अधिकारी सुरेश धु्रव ने शहर में हुए तिहरे मर्डर की ब्यौरेवार जानकारी एसएसपी अजय, एडीशनल एसपी लखन पटले, एसपी (सिटी) अजीत कुमार यादव को दी. लखन पटले स्वयं मौके पर पहुंचे और टीआई सुरेश धु्रव को गंभीरता से जांच कर आरोपी को गिरफ्तार करने के सख्त निर्देश दिए.

यह ट्रिपल मर्डर अपने आप में अजीब पेंच लिए हुए था, जिसे ब्लाइंड मर्डर भी कह सकते हैं. जिस में सूत्र से सूत्र मिला कर आरोपी तक पहुंचना था. दूसरी ओर रिसाली अशोक नगर की ललिता भिलाई थाने पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति राजू 21 जनवरी से लापता है. राजू की पत्नी ललिता ने बताया कि उस का पति कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा था और घर पर ही आराम कर रहा था.  21 जनवरी, 2020 की शाम को वह घर से निकला था और फिर वापस नहीं लौटा था. एन. राजू के 2 बच्चे हैं. ललिता ने पुलिस को बताया कि वह कल्पकृति अपार्टमेंट में लोगों के यहां काम कर के परिवार का पालनपोषण करती है. घर वालों की बातों से यह साफ हो गया था कि घटनास्थल पर जिस की लाश मिली, वह रवि नहीं था. पुलिस ने वह लाश राजू की पत्नी ललिता को दिखाई तो उस ने उसे अपने पति के रूप में पहचान लिया.

शव की पहचान के साथ ही पुलिस के हाथ एक बड़ा क्लू हाथ लग चुका था. इधर जब ललिता की बहन रंगममा ने भी राजू की शिनाख्त कर ली तो मंजू की मां मालती सूर्यवंशी व घर वालों ने भी राजू के शव को गौर से देख कर बताया कि वह रवि शर्मा का शव नहीं है. रवि शर्मा और मंजू के विवाह की सारी कहानी मालती ने टीआई को बता दी. उस के अनुसार उस की बेटी मंजू सूर्यवंशी का विवाह पहले भी हुआ था. पहले पति महेश ने उसे छोड़ दिया था. मंजू नेहरू नगर, रायपुर में एक कपड़ा दुकान में नौकरी करती थी. यहीं उस की मुलाकात रवि शर्मा से हुई और फिर प्रेम संबंध होने पर दोनों ने 22 नवंबर, 2017 को विवाह कर लिया था. नवंबर 2019 में 2 वर्ष बाद मंजू को एक बेटी निशा हुई थी.

मां मालती ने बताया कि मंजू का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं था. रवि शर्मा की पहली शादी और बच्चों के बारे में जानकारी मिलने के बाद रवि और संगीता में कलह बढ़ती जा रही थी. रवि शराबी था और घर में रुपएपैसों की किल्लत रहती थी. मंजू अकसर मां से कहती थी कि मां मैं तो कुएं से निकल कर खाई में गिर गई. जांच अधिकारी सुरेश धु्रव ने जांच में तेजी ला कर रवि शर्मा के राउरकेला स्थित घर पत्नी और बच्चों के बारे में पता किया. उन्हें जानकारी मिली कि रवि शर्मा पत्नी संगीता से अकसर बात करता था. जब फोन पर संगीता से बात हुई तो उस ने बताया कि आज हमसफर एक्सप्रैस से रवि शर्मा राउरकेला, ओडिशा पहुंचने वाला है.

टीआई सुरेश धु्रव ने राउरकेला आरपीएफ व जीआरपी से बात कर के रवि शर्मा का फोटो भेज दिया. साथ ही बताया कि वह छत्तीसगढ़ में 3 हत्याएं कर के हमसफर एक्सप्रैस से राउरकेला पहुंच रहा है. राउरकेला में फोटो के आधार पर रवि शर्मा को धर दबोचने के लिए स्टेशन पर पूरी तैयारी हो गई. जब हमसफर एक्सप्रैस स्टेशन पर पहुंची तो रवि शर्मा जीआरपी के हत्थे चढ़ गया. उसे गिरफ्तार कर के भिलाई ला कर पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया. जांचपड़ताल में पहले तो रवि शर्मा ने बहुत होशियारी दिखानी चाही और खुद को बेगुनाह बताता रहा. मगर जब पुलिस ने उस के खिलाफ साक्ष्य दिखाने शुरू किए तो वह टूट गया और पूरा घटनाक्रम पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

पुलिस को दिए इकबालिया बयान में रवि शर्मा ने बताया कि वह मूलत: गया, बिहार का निवासी है. उस की शादी सन 2015 में धनबाद की संगीता कुमारी से हुई थी. उस के 2 बच्चे हैं. वह कारपेंटर है और सन 2015 में काम की तलाश में रायपुर आ गया था. यहीं कपड़े की दुकान में उस की मुलाकात मंजू सूर्यवंशी से तब हुई जब वह वहां कारपेंटरी का काम करने गया था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और शारीरिक संबंध बने तो मंजू ने शादी का दबाव डाला. ऐसा न करने पर उस ने बलात्कार के जुर्म में जेल भिजवाने की धमकी दी थी. विवश हो कर रवि शर्मा ने उस से शादी कर ली मगर वह आए दिन उस से झगड़ा करती. वह ढेर सारा रुपया चाहती थी.

उसी की जिद की वजह से भिलाई नगर की पौश कालोनी में किराए पर मकान ले कर रहना पड़ रहा था, उस का मन करता था कि वह पहली पत्नी संगीता और बच्चों के साथ बाकी का जीवन बिताए. लेकिन राह में रोड़ा मंजू थी. उसे हटाने के लिए अंत में उस ने खतरनाक कदम उठाया. अपने आप को बचाने के लिए अपनी कदकाठी के आदमी की जरूरत थी. ऐसे में उसे राजू सही लगा. फिर उस ने राजू को शराब पिला कर मार डाला और यह सिद्ध करने की कोशिश की कि राजू दरअसल राजू नहीं, बल्कि रवि शर्मा है.

पुलिस को जांच में मशक्कत करनी पड़े, इस के लिए उस ने चाक से दरवाजे पर संजय आर्मी एक काल्पनिक नाम लिखा ताकि पुलिस उसे ही ढूंढती रह जाए. मगर कहते हैं कि अपराधी लाख कोशिश कर ले, मगर कहीं न कहीं सच के सूत्र, सबूत ऐसे होते हैं जो चीखचीख कर आरोपी की चुगली करते हैं और एक दिन उसे सजा दिलाने में कामयाब हो जाते हैं. रवि शर्मा के साथ भी यही हुआ. वह चालाकी तो करता रहा मगर उस की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई और 24 घंटों के भीतर ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने 23 जनवरी, 2020 को रवि शर्मा को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत के आधार पर

 

MP News : पिता ने बेटी को जबरन जहर पिलाया और पत्थर से कूच कर मार डाला

MP News : मांबाप अगर शुरू से ही जिद्दी बच्चों पर निगाह रखें और उन की गैरवाजिब बातों को न मानें तो बच्चों का स्वभाव बदल सकता है. अगर रोशनी के साथ ऐसा किया जाता तो स्थिति यहां तक न पहुंचती. बेटा हो या बेटी, कोई भी पिता ऐसा नहीं चाहता कि…

मां डू का नाम तो जरूर सुना होगा. वही मांडू जहां की रानी रूपमती थीं, बाजबहादुर थे. उन की प्रेमकहानी है. आज भी वहां की मिट्टी में सैकड़ों साल पहले की गंध है. इसी गंध के लिए फरवरी, खासकर वैलेंटाइन डे पर तमाम प्रेमी जोड़े मांडू पहुंचते हैं. संभव है, इसीलिए मांडू की धरा की मिट्टी से रसीली गंध फूटती हो. मांडू मध्य प्रदेश के जिला धार में आता है. लेकिन धार उतना प्रसिद्ध नहीं है, जितना मांडू. बात इसी मांडू की है. 6 फरवरी, 2020 को तिर्वा के रहने वाले अजय सिंह पाटीदार ने फोन पर थाना मांडू के प्रभारी जयराज सोलंकी को फोन पर बताया कि सातघाट पुलिया के पास एक किशोरी की लाश पड़ी है, जिस का सिर कुचला हुआ है.

उस वक्त शाम के 5 बजने को थे. सूचना मिलते ही टीआई जयराज सोलंकी पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां सातघाट पुलिया के पास सूखी नदी के किनारे, पत्थरों के बीच 17-18 साल की एक किशोरी का शव पड़ा था, जिस का सिर कुचल दिया गया था. मृतका ने स्कूल ड्रैस पहन रखी थी. साथ ही वह ठंड से बचने के लिए ट्रैकसूट पहने थी. टीआई सोलंकी ने अनुमान लगाया कि मृतका आसपास के किसी स्कूल में पढ़ती होगी. हत्या एक युवती की हुई थी, इसलिए हत्या के साथ बलात्कार की आशंका भी थी. अंधेरा घिरने में ज्यादा देर नहीं थी.

थानाप्रभारी ने आसपास के क्षेत्रों के लोगों को बुला कर लाश दिखाई. लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इस पर अजय सिंह सोलंकी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए धार के जिला अस्पताल भेज दी. साथ ही इस मामले की सूचना एसपी आदित्य प्रताप सिंह को भी दे दी. एसपी के निर्देश पर वायरलैस से धार जिले के सभी थानों को स्कूल गर्ल का शव मिलने की सूचना दे दी गई. हाल ही में पदस्थ बीएसएफ के एक कांस्टेबल ने थाने आ कर थानाप्रभारी सोलंकी को बताया कि 6 फरवरी, 2020 की रात लगभग 7 साढ़े 7 बजे जब वह बागड़ी फांटा के पास स्थित पैट्रोल पंप पर अपनी मोटरसाइकिल में पैट्रोल डलवा रहा था, तभी वहां एक इनोवा गाड़ी आई, जिस में से युवक उतरा. उस ने पैट्रोल भरने वाले को 1000 रुपए दे कर कार में डीजल डालने को कहा.

इसी बीच कार में एक युवती की ‘बचाओ बचाओ’ की आवाज सुनाई दी. इस पर डीजल भरवाने के लिए उतरा युवक बिना डीजल डलवाए ही चला गया. उस ने पैट्रोल भरने वाले से हजार रुपए भी वापस नहीं लिए. बीएसएफ के कांस्टेबल ने यह भी बताया कि उस ने कार के बारे में पूछा था, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. युवती का शव मांडू नालछा मार्ग पर मिला था. अजय सिंह सोलंकी ने पैट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी, जिस में संदिग्ध कार तो दिखी पर कार के नंबर को नहीं पढ़ा जा सका. नहीं हो पाई पहचान दूसरे दिन जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम से पहले एफएसएल अधिकारी पिंकी मेहरडे ने शव की जांच की. पता चला कि हत्या के समय मृतका का मासिक धर्म चल रहा था, इसलिए बलात्कार की बात पोस्टमार्टम से ही साफ हो सकती थी.

एफएसएल अधिकारी ने यह शंका जरूर जाहिर की कि चूंकि शव के नाखून नीले पड़ गए हैं, इसलिए उस का सिर कुचलने से पहले उसे जहर दिए जाने की आशंका है. जबकि घटनास्थल की जांच में करीब 16 फीट की दूरी तक खून फैला मिला था. इस से अनुमान लगाया गया कि मृतका की हत्या वहीं की गई थी. दूसरे दिन जिला अस्पताल में युवती के शव का पोस्टमार्टम किया गया, जिस से पता चला कि हत्या से पहले उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ था. पोस्टमार्टम तो हो गया, लेकिन हत्यारों तक पहुंचने के लिए उस की पहचान होना जरूरी था. क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच की दिशा तय नहीं की जा सकती थी. चूंकि मृतका स्कूल ड्रैस में थी, इसलिए जिले के अलावा आसपास के जिलों के स्कूलों से भी किसी छात्रा के लापता होने की जानकारी जुटाई जाने लगी.

इसी दौरान खरगोन के गोगांव का रहने वाला एक दंपति शव की पहचान के लिए मांडू आया. उन की बेटी पिछले 4-5 दिनों से लापता थी. इस से पुलिस को शिनाख्त की उम्मीद बंधी, लेकिन शव देख कर उन्होंने साफ कह दिया कि शव उन की बेटी का नहीं है. इस के 4 दिन बाद एसपी धार आदित्य प्रताप सिंह ने इस केस की जांच की जिम्मेदारी एसडीओपी (बदनावर) जयंत राठौर को सौंप दी. साथ ही उन का साथ देने के लिए एक टीम भी बना दी, जिस में एसडीओपी (धामनोद) एन.के. कसौटिया, टीआई (मांडू) जयराज सिंह सोलंकी, टीआई (कानवन) कमल सिंह, एएसआई त्रिलोक बौरासी, प्रधान आरक्षक रविंद्र चौधरी, संजय जगताप, राजेंद्र गिरि, रामेश्वर गावड़, सखाराम, आरक्षक राजपाल सिंह, प्रशांत लोकेश व वीरेंद्र को शामिल किया गया.

5 दिन बीत जाने के बाद भी शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, जो पहली जरूरत थी. इस पर एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया ने उस संदिग्ध कार को खोजने में पूरी ताकत लगा दी, जो घटना से एक रात पहले बागड़ी फांटा के पैट्रोल पंप पर देखी गई थी. सीसीटीवी फुटेज में कार का नंबर साफ नहीं दिख रहा था. पुलिस ने चारों तरफ 2 सौ किलोमीटर के दायरे में स्थित टोलनाकों के सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. लेकिन संदिग्ध इनोवा कार के नंबर की पहचान इस से भी नहीं हो सकी. हां, पुलिस को इतना सुराग जरूर मिल गया कि कार के नंबर के पीछे के 2 अंक 77 हैं और उस के सामने वाले विंडस्क्रीन पर काली पट्टी बनी है.

पुलिस के पास इस के अलावा कोई सुराग  नहीं था. एसडीओपी जयंत राठौर के निर्देश पर उन की पूरी टीम जिले भर में ऐसी कारों की खोज में जुट गई, जिस के रजिस्ट्रेशन नंबर में अंतिम 2 अंक 77 हों और उस की सामने वाली विंडस्क्रीन पर काली पट्टी बनी हो. इस कवायद में 460 इनोवा कारों की पहचान हुई. इन सभी के मालिकों से संपर्क किया गया. अंतत: इंदौर के मांगीलाल की इनोवा संदिग्ध कार के रूप में पहचानी गई, मांगीलाल ने बताया कि कुछ दिन पहले उन की कार उन के बेटे ऋषभ का दोस्त मुकेश, जो गांव पटेलियापुरा का रहने वाला है, मांग कर ले गया था.

मुकेश को कार चलाना नहीं आता था, इसलिए वह अपने एक दोस्त पृथ्वीराज सिंह को भी साथ लाया था. मांगीलाल से मुकेश और पृथ्वीराज के मोबाइल नंबर भी मिल गए. लेकिन दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ थे. पटेलियापुरा मांडू इलाके का ही छोटा सा गांव है. इसलिए एसडीओपी जयंत राठौर समझ गए कि उन की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही है. शक को और पुख्ता करने के लिए उन्होंने साइबर सेल के आरक्षक प्रशांत की मदद से मुकेश और पृथ्वीराज सिंह के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई. घटना वाली रात उन की लोकेशन उसी स्थान की मिली, जहां दूसरे दिन सुबह युवती की लाश मिली थी. सही दिशा में जांच

इस से यह साफ हो गया कि अज्ञात युवती की लाश का कुछ न कुछ संबंध मुकेश और पृथ्वीराज सिंह से रहा होगा, जिस के चलते जयंत राठौर ने गांव में अपने मुखबिर लगा दिए. जल्द ही पता चल गया कि मुकेश के चचेरे भाई ईश्वर पटेल की बेटी रोशनी 7 फरवरी से लापता है. उस ने बेटी के गायब होने की सूचना भी पुलिस को नहीं दी थी. पता चला रोशनी नालछा के उत्कृष्ट विद्यालय में 12वीं में पढ़ती थी. किशोर बेटी घर से गायब हो और पिता हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहे, ऐसा तभी होता है जब पिता को बेटी का कोई कृत्य नश्तर की तरह चुभ रहा हो. बहरहाल, मृतका की शिनाख्त ईश्वर पटेल की बेटी रोशनी के रूप में हो गई.

एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया के निर्देश पर टीआई (मांडू) जयराज सोलंकी, टीआई (कानवन) गहलोत की टीम ने गांव से ईश्वर और उस की पत्नी को पूछताछ के लिए उठा लिया. जबकि ईश्वर का चचेरा भाई संदिग्ध मुकेश और उस का दोस्त पृथ्वीराज सिंह अपने घरों से लापता थे. संदिग्ध के तौर पर ईश्वर पटेल को पुलिस द्वारा उठा लिए जाने से गांव के लोग आक्रोशित हो गए. उन का कहना था कि ईश्वर ऐसा काम नहीं कर सकता. गांव के लोग इस बात से भी नाराज थे कि पुलिस द्वारा पिता को हिरासत में ले लिए जाने की वजह से रोशनी का अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है. एसडीओपी जयंत राठौर को अभी मुकेश और पृथ्वीराज सिंह की तलाश थी, जो घटना के बाद गुजरात भाग गए थे.

दोनों की तलाश में मुखबिर लगे हुए थे, जिन से 14 फरवरी को दोनों के गुजरात से वापस लौटने की खबर मिली. पुलिस ने घेरेबंदी कर दोनों को बामनपुरी चौराहे पर घेर कर पकड़ लिया. थाने में पूछताछ के दौरान सभी आरोपी रोशनी की हत्या के बारे में कुछ भी जानने से इनकार करते रहे, लेकिन ईश्वर के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि जवान बेटी के लापता हो जाने के बाद उस ने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज करवाई. उसे खोजने के बजाय वह घर में क्यों बैठा रहा. अंतत: थोड़ी सी नानुकुर के बाद वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रोशनी अपने प्रेमी करण के साथ भागने की तैयारी कर रही थी. उसे इस बात की जानकारी लग चुकी थी, इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने चचेरे भाई मुकेश से बात की. मुकेश ने अपने दोस्त के साथ मिल कर रोशनी की हत्या कर दी.

आरोपियों द्वारा पूरी कहानी बता देने के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. किशोरी रोशनी की हत्या के पीछे जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी. गांव पटेलियापुरा में रहने वाले ईश्वर पटेल की 19 वर्षीय बेटी रोशनी की खूबसूरती तभी चर्चा का विषय बन गई थी, जब उस ने किशोरावस्था में प्रवेश किया था. चंचल स्वभाव और पढ़नेलिखने में तेज रोशनी स्वभाव से काफी तेज थी. अगर पढ़ाईलिखाई में तेज होने के साथसाथ दिलदिमाग और चेहरामोहरा खूबसूरत हो तो ऐसी लड़की को पसंद करने वालों की कमी नहीं रहती. पिता ईश्वर पटेल बेटी की इन खूबियों से परिचित था, इसलिए उस ने नौंवी क्लास के बाद आगे पढ़ने के लिए उस का दाखिला नालछा के उत्कृष्ट विद्यालय में करा दिया था.

इंसान की हर उम्र की अपनी एक मांग होती है. रोशनी ने जब किशोरावस्था से यौवन में प्रवेश करने के लिए कदम बढ़ाए तो उसे किसी करीबी मित्र की जरूरत महसूस हुई. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब दिल किसी को ढूंढने लगे तो सब से पहले आसपास ही नजर जाती है, खासकर लड़कियों के मामले में. रोशनी के साथ भी यही हुआ. उसे करण मन भा गया. करण रोशनी के पिता के दोस्त का बेटा था. पारिवारिक दोस्ती के कारण रोशनी के हमउम्र करण का उस के घर में आनाजाना था. सच तो यह है कि करण रोशनी का तभी से दीवाना था, जब से उस ने अपना पहला पांव किशोरावस्था में रखा था. लेकिन रोशनी के तीखे तेवरों के कारण उस ने आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं की थी.

करण से हो गया प्यार करण के साथ रोशनी की अच्छी पटती थी. लेकिन उस ने करण की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जब उस के दिल में प्यार की चाहत जागी तो सब से पहले करण पर ही निगाहें पड़ीं. मन में कुछ हुआ तो वह करण का विशेष ध्यान रखने लगी. जब यह बात करण की समझ में आई तो उस ने भी हिम्मत कर के रोशनी की तरफ कदम बढ़ाने की कोशिश की. एक दिन मौका पा कर उस ने रोशनी को फोन लगा कर उस से अपने दिल की बात कह दी. रोशनी मन ही मन करण से प्यार करने लगी थी, इसलिए उस ने करण का प्यार स्वीकारने में जरा भी देर नहीं लगाई. इस के बाद दोनों घर वालों से नजरें बचा कर मिलने लगे.

रोशनी बचपन से ही जिद्दी और तेजतर्रार थी. यही वजह थी कि जब उस के सिर पर करण की दीवानगी का भूत चढ़ा तो उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह करण से ही शादी करेगी. इसी सोच के चलते वह करण पर खुल कर प्यार लुटाने लगी. इतना ही नहीं, छोटे से गांव में वह करण से चोरीछिपे मिलने से भी नहीं डरती थी. जब भी उस का मन होता, गांव के किसी सुनसान खेत में करण को मिलने के लिए बुला लेती. नतीजा यह हुआ कि एक रोज गांव के कुछ लोगों ने दोनों को सुनसान खेत में एकदूसरे का आलिंगन करते देख लिया. फिर क्या था, यह खबर जल्द ही रोशनी के पिता ईश्वर तक पहुंच गई.

ईश्वर को पहले तो इस बात पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन जब उस ने रोशनी और करण पर नजर रखना शुरू किया तो जल्द ही सच्चाई सामनेआ गई. ईश्वर पटेल यह बात जानता था कि रोशनी जिद्दी है, इसलिए उस ने उसे कुछ कहने के बजाय कुछ और ही फैसला कर लिया. उस ने रोशनी की शादी करने की ठान ली. रोशनी को बिना बताए उस ने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. रोशनी के सौंदर्य और गुणों की चर्चा रिश्तेदारों और बिरादरी में थी. उस के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते मिलने लगे. लेकिन रोशनी करण के साथ शादी करने का फैसला कर चुकी थी, इसलिए पिता द्वारा पसंद किए गए हर लड़के को वह नकारने लगी. इस से ईश्वर पटेल परेशान हो गया.

इसी बीच कत्ल से कुछ दिन पहले रोशनी के लिए एक अच्छा रिश्ता आया. इतना अच्छा कि इस से अच्छा वर वह बेटी के लिए नहीं खोज सकता था. इसलिए उस ने रोशनी पर दबाव डाला कि वह इस रिश्ते के लिए राजी हो जाए. लेकिन रोशनी टस से मस नहीं हुई. बेटी का हठ देख कर ईश्वर समझ गया कि रोशनी उस की नाक कटवाने पर तुली है. ईश्वर ने रोशनी पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस से उस का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना मुश्किल हो गया. यह देख कर रोशनी ने विद्रोह करने की ठान ली. उस ने वैलेंटाइन डे पर करण के साथ भाग कर शादी करने की योजना बना ली. चूंकि ईश्वर उस के ऊपर गहरी नजर रख रहा था, इसलिए उसे इस बात की जानकारी मिल गई.

कातिल ईश्वर जब कोई दूसरा रास्ता नहीं मिला तो उस ने अपनी इज्जत बचाने के लिए रोशनी को कत्ल करने की सोच ली. इस के लिए उस ने गांव में ही रहने वाले अपने चचेरे भाई मुकेश से बात की तो वह इस काम के लिए राजी हो गया. मुकेश को कार चलानी नहीं आती थी, इसलिए उस ने अपने एक दोस्त पृथ्वीराज सिंह पटेल को अपनी योजना में शामिल कर लिया. 5 फरवरी, 2020 को मुकेश अपने दोस्त ऋषभ से उस की इनोवा कार मांग कर ले आया और दोनों रोशनी के स्कूल पहुंच गए. दोनों ने मांडू घुमाने के नाम पर रोशनी और उस की एक सहेली पिंकी को कार में बैठा लिया.

मुकेश और पृथ्वी दोनों को ले कर दिन भर मांडू में घूमते रहे. इस बीच उन्होंने रोशनी को धामनोद ले जा कर नर्मदा पुल से फेंकने की योजना बनाई, लेकिन उस की फ्रैंड के साथ होने की वजह से उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा. शाम होने पर उन्होंने रोशनी की फ्रेंड पिंकी को सोड़पुर में उतार दिया. उस के बाद वे रोशनी को अज्ञात जगह की ओर ले कर जाने लगे. यह देख कर रोशनी ने अपने चाचा मुकेश से घर छोड़ने को कहा तो मुकेश बोला, ‘‘क्यों करण के संग मुंह काला करना है क्या?’’

चाचा के मुंह से ऐसी बात सुन कर वह डर गई. वह समझ गई कि मुकेश अब उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. इसलिए उस ने अपने पिता को फोन कर जान की भीख मांगी. लेकिन ईश्वर ने उस की एक नहीं सुनी. इस बीच दोनों कार में डीजल डलवाने के लिए बागड़ी फांटे के पैट्रोल पंप पर रुके, जहां रोशनी के चिल्लाने पर एक पुलिस वाले को अपना पीछा करते देख वे वहां से डर कर भाग निकले. इस के बाद दोनों ने एक सुनसान इलाके में कार रोकी और रोशनी को जबरन जहर पिला दिया. फिर सातघाट पुलिया के पास ले जा कर उस का गला चाकू से रेतने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस का चेहरा भी पत्थर से कुचल दिया.

आरोपियों ने सोचा था कि लाश की पहचान न हो पाने से पुलिस उन तक कभी पहुंच नहीं सकती, लेकिन एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया की टीम ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कानून की ताकत का अहसास करवा दिया.

Love Crime : मामा के प्यार में बेटी ने फावड़े से काटी मां और पापा की गर्दन

Love Crime : पिछले कुछ समय से करीबी रिश्तेदार ही अपनों के दुश्मन साबित हो रहे हैं. ऐसे में अपने स्वार्थों के चलते अगर घर का कोई सदस्य उन का साथ दे तो परिणाम बहुत घातक होते हैं. प्रवींद्र और संगीता सगे मामाभांजी थे, लेकिन जब उन्होंने मर्यादाएं लांघी तो अपने ही परिवार पर इतने भारी पड़े कि…

झा उस दिन जनवरी, 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह अपने कक्ष में मौजूद थे. तभी उन के कक्ष में सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने प्रवेश किया. शैलेंद्र सिंह के अचानक आने पर वह समझ गए कि जरूर कोई खास बात है. उन्होंने पूछा, ‘‘शैलेंद्र सिंह, कोई विशेष बात?’’

‘‘हां सर, खास बात पता चली है, सूचना देने आप के पास आया हूं.’’ शैलेंद्र सिंह ने कहा.

‘‘बताओ, क्या बात है?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘सर, 3 महीने पहले थाना गुरसहायगंज के गौरैयापुर गांव में जो डबल मर्डर हुआ था, उस के आरोपियों की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर में मिल रही है. अगर पुलिस टीम वहां भेजी जाए तो उन की गिरफ्तारी संभव है.’’ शैलेंद्र सिंह ने बताया. शैलेंद्र सिंह की बात सुन कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह चौंक गए. इस की वजह यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड ने उन की नींद उड़ा रखी थी. लोग पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहे थे. कानूनव्यवस्था को ले कर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही थीं. दरअसल, गौरैयापुर गांव में रमेशचंद्र दोहरे और उन की पत्नी ऊषा की हत्या कर दी गई थी. उन की युवा बेटी संगीता घर से लापता थी. घर में लूटपाट होने के भी सबूत मिले थे. इसलिए यही आशंका जताई गई थी कि बदमाशों ने लूटपाट के दौरान दंपति की हत्या कर दी और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया.

लेकिन बाद में जांच से पता चला कि संगीता के अपने ममेरे भाई प्रवींद्र से नाजायज संबंध थे. इस से यह आशंका हुई कि कहीं इन दोनों ने ही तो इस हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया. पुलिस उन की तलाश में जुटी थी और पुलिस ने उन दोनों की सही जानकारी देने वाले को 25-25 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था. उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगे थे, जिन की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर की मिल रही थी. सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह से यह सूचना मिलने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्काल एएसपी के.सी. गोस्वामी को कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने उन्हें दोहरे हत्याकांड के आरोपियों के बारे में जानकारी दी. फिर उन के निर्देशन में एसपी ने एक पुलिस टीम गठित कर दी.

टीम में गुरसहायगंज के थानाप्रभारी नागेंद्र पाठक, इंसपेक्टर विजय बहादुर वर्मा, टी.पी. वर्मा, दरोगा मुकेश राणा, सिपाही रामबालक तथा महिला सिपाही कविता को सम्मिलित किया गया. यह टीम संगीता और प्रवींद्र की तलाश में पश्चिम बंगाल के हुगली शहर के लिए रवाना हो गई. 4 जनवरी को पुलिस टीम पश्चिम बंगाल के हुगली शहर पहुंच गई और स्थानीय थाना भद्रेश्वर पुलिस से संपर्क कर अपने आने का मकसद बताया. दरअसल, प्रवींद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उस समय भद्रेश्वर थाने के आरबीएस रोड की मिल रही थी, जो झोपड़पट्टी वाला क्षेत्र था. झोपड़पट्टी में ज्यादातर मजदूर लोग रह रहे थे. पुलिस टीम ने थाना भद्रेश्वर पुलिस की मदद से छापा मारा और एक झोपड़ी से संगीता और प्रवींद्र को हिरासत में ले लिया. जिस झोपड़ी से उन दोनों को हिरासत में लिया था, वह झोपड़ी नगमा नाम की महिला की थी.

पकड़ में आए प्रवींद्र और संगीता नगमा ने पुलिस को बताया कि करीब ढाई महीने पहले प्रवींद्र और संगीता ने झोपड़ी किराए पर ली थी. प्रवींद्र ने संगीता को अपनी पत्नी बताया था. दोनों मजदूरी कर अपना भरणपोषण करते थे. नगमा को जब पता चला कि दोनों हत्यारोपी हैं तो वह अवाक रह गई. पुलिस टीम ने संगीता और प्रवींद्र को हुगली की जिला अदालत में पेश किया. अदालत से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस दोनों को कन्नौज ले आई. एएसपी गोस्वामी तथा एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने संगीता और प्रवींद्र से एक घंटे तक पूछताछ की. पूछताछ में दोनों ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. हत्या का जुर्म कबूल करने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद ने प्रैसवार्ता कर दोहरे हत्याकांड का खुलासा किया.

प्रवींद्र और संगीता से की गई पूछताछ में मामाभांजी के कलंकित रिश्ते की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई—

उत्तर प्रदेश के कन्नौज का बड़ी आबादी वाला एक व्यापारिक कस्बा गुरसहायगंज है. यहां बड़े पैमाने पर आलू तथा तंबाकू का व्यवसाय होता है. बीड़ी के कारखानों में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. गुरसहायगंज कस्बा पहले फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत आता था लेकिन जब कन्नौज नया जिला बना तो यह कस्बा कन्नौज जिले का हिस्सा बन गया. इसी गुरसहायगंज कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर सौरिख रोड पर बसा है एक गांव गौरैयापुर. कोतवाली गुरसहायगंज के अंतर्गत आने वाले इसी गांव में रमेशचंद्र दोहरे का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा एक बेटी संगीता थी. रमेशचंद्र के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. उसी की उपज से वह परिवार का भरणपोषण करता था.

संगीता सुंदर थी. जब उस ने 17वां बसंत पार किया तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया, बातें भी बड़ी मनभावन करती थी. लेकिन पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. जिस के चलते वह 8वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकी. इस के बाद वह घर के रोजमर्रा के काम में मां का हाथ बंटाने लगी. संगीता जिद्दी स्वभाव की थी. वह जिस चीज की जिद करती, उसे हासिल कर के ही दम लेती थी. संगीता के घर प्रवींद्र का आनाजाना लगा रहता था. वह संगीता की मां ऊषा देवी का सगा छोटा भाई था यानी संगीता का सगा मामा. वह हरदोई जिले के कतन्नापुर गांव का रहने वाला था और अकसर अपनी बहन ऊषा के ही घर पड़ा रहता था. जब भी आता हफ्तेदस दिन रुकता था. ऊषा का पति रमेशचंद्र इसलिए कुछ नहीं बोलता था क्योंकि वह उस का साला था.

संगीता और प्रवींद्र हमउम्र थे. प्रवींद्र उस से 2 साल बड़ा था. हमउम्र होने के कारण दोनों में खूब पटती थी. प्रवींद्र बातूनी था, इसलिए संगीता उस की बातों में रुचि लेती थी. ऊषा समझती थी कि प्रवींद्र को उस से लगाव है, इसलिए वह उस के घर आता है. लेकिन सच यह था कि प्रवींद्र की लालची नजर अपनी भांजी संगीता पर थी. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए आता था. प्रवींद्र ने अपने व्यवहार से बहन और बहनोई के दिल में ऐसी जगह बना ली थी कि वे उसे अपना हमदर्द समझने लगे थे. वे लोग उस से सुखदुख की बातें भी साझा करते थे. दरअसल, रमेशचंद्र उसे इसलिए वफादार समझने लगे थे क्योंकि प्रवींद्र उन के खेती के कामों में भी हाथ बंटाने लगा था. खाद बीज लाने की जिम्मेदारी भी वही उठाता था. इन्हीं सब कारणों से प्रवींद्र रमेश की आंखों का तारा बन गया था.

हमारे समाज में युवा हो रही लड़कियों के लिए तमाम बंदिशें होती हैं. वह किसी बाहरी लड़के से हंसबोल लें तो उन्हें डांट पड़ती है. यह उम्र जिज्ञासाओं की होती है. मन हवा में उड़ान भरने को मचलता है. पारिवारिक और सामाजिक वर्जनाओं की वजह से आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां अपने रिश्ते के करीबी युवक से ज्यादा घुल जाती हैं. वह उन का मामा, जीजा, चचेरा या मौसेरा या ममेरा भाई कोई भी हो सकता है. वे उसे ही अपना दोस्त बना लेती हैं. संगीता के सब से नजदीक मामा प्रवींद्र ही था, अत: उन दोनों में भी ऐसा ही रिश्ता था. प्रवींद्र की नजर थी खूबसूरत भांजी पर शुरुआती दिनों में जब प्रवींद्र ने बहन ऊषा के घर आना शुरू किया था, तब उस के मन में संगीता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी. रिश्ते में वह उस की भांजी थी. किंतु भावनाओं में तूफान आते और रिश्ता बदलते कितनी देर लगती है.

संगीता से मेलमिलाप की वजह से प्रवींद्र की भावनाओं में भी तूफान आ गया और मामाभांजी के पवित्र रिश्ते पर कालिख लगनी शुरू हो गई. हुआ यह कि एक दिन प्रवींद्र ऊषा के घर पहुंचा तो वह परिवार सहित गांव में एक परिचित के घर समारोह में जाने को तैयार थी. संगीता भी खूब बनीसंवरी थी. उस ने गुलाबी सलवारसूट पहना था और खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे. उस समय संगीता बेहद खूबसूरत दिख रही थी. संगीता का वह रूप प्रवींद्र की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. प्रवींद्र के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनाते को ढक लिया. वह भूल गया कि संगीता उस की भांजी है. प्रवींद्र का मन चाह रहा था कि संगीता उस के सामने रहे और वह उसे अपलक देखता रहे, लेकिन ऐसा कहां संभव था. वे लोग तो समारोह में जाने को तैयार थे. प्रवींद्र को घर की तालाकुंजी दे कर वे सब चले गए. प्रवींद्र की नजरें तब तक संगीता का पीछा करती रहीं जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उन के जाने के बाद प्रवींद्र खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस की आंखों में संगीता का अक्स बसा था और जेहन में उसी के खयाल उथलपुथल मचा रहे थे. कई बार प्रवींद्र की अंतरात्मा ने उसे झिंझोड़ा, ‘संगीता तुम्हारी भांजी है, उस के बारे में गंदे विचार तक मन में लाना पाप है. संगीता के बारे में गलत सोचना बंद कर दो.’  प्रवींद्र ने हर बार यह सोच कर अंतरात्मा की आवाज को दबा दिया कि हर लड़की किसी न किसी की भांजी होती है. अगर लोग मामाभांजी का ही रिश्ता निभाते रहे तो चल गई दुनिया. कहते हैं कि बुरे विचार अच्छे विचारों को जल्दी ही दबा देते हैं. प्रवींद्र की अच्छाई पर बुराई हावी हो गई.

इधर ऊषा और रमेश रात को काफी देर से लौटे. सुबह वे जल्दी उठ कर अपनेअपने काम से लग गए. रमेशचंद्र और ऊषा खेत पर चले गए थे, जबकि संगीता घरेलू कामों में व्यस्त थी. प्रवींद्र की आंखें खुलीं तो उस की नजर आंगन में काम कर रही संगीता पर पड़ी. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन टकटकी लगाए संगीता को देखने लगा. प्रवींद्र को इस तरह अपनी ओर ताकते देख संगीता ने टोका, ‘‘क्या बात है मामा, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे. बस टकटकी लगा कर मुझे ही देखे जा रहे हो.’’

‘‘इसलिए देख रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत हो. जी चाहता है कि तुम सामने खड़ी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं. यह कमबख्त नजरें तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं.’’ वह बोला. संगीता मामा के मन का मैल न समझ कर उन्मुक्त हंसी हंसने लगी. हंसी पर विराम लगा तो बोली, ‘‘यह कौन सी नई बात है. गांव में भी सब कहते हैं कि संगीता तुम खूबसूरत हो.’’

फिर वह शरारत से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘कैसे मामा हो जिसे आज पता चला कि मैं खूबसूरत हूं.’’

‘‘आज नहीं, मैं ने कल जाना कि तुम खूबसूरत हो.’’ प्रवींद्र के मन की बात उस की जुबान पर आ गई, ‘‘गुलाबी रंग का सलवारसूट तुम्हारे गोरे बदन पर बेहद फब रहा था. ऊपर से तुम्हारा मेकअप तो मेरे दिल पर बिजली गिरा गया. किसी दुलहन से कम नहीं लग रही थी तुम…’’

संगीता अपने सौंदर्य की तारीफ सुन कर गदगद हो गई, उस ने शरम से नजरें झुका लीं. साथ ही उस के मन में कांटा सा चुभा. वह सोचने लगी कि क्या मामा के दिल में खोट आ गया है, जो ऐसी बातें उस से कर रहे हैं. वह अभी ऐसा सोच ही रही थी कि तभी प्रवींद्र 2 कदम आगे बढ़ कर संगीता की कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘संगीता, तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

संगीता काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि उस के मामा प्रवींद्र के मन में उस के लिए बेपनाह प्यार है. सच तो यह था कि संगीता भी मन ही मन मामा प्रवींद्र को चाहती थी. यही कारण था कि जब प्रवींद्र ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया तो संगीता ने फौरन इकरार करते हुए कह दिया, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहती हूं.’’

मोहब्बत को मिली जुबान खामोश मोहब्बत को जुबान मिली तो संगीता और प्रवींद्र की आशिकी के रंग निखरने लगे. प्रवींद्र का पहले से ही घर में आनाजाना था. रमेशचंद्र दोहरे भी उसे बेटे की तरह मानते थे, इसलिए संगीता से उस के मिलनेजुलने या एकांत में बातचीत करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं थी. प्रवींद्र जब अपने गांव कतरतन्ना में होता तब वे दोनों मोबाइल फोन पर देर तक बातें करते थे. संगीता उसे अपना हालेदिल सुनाया करती. बहन के घर जाने में भाई को बहाने की जरूरत नहीं होती. संगीता के बुलाने पर वह उस के यहां आ जाता. सब उसे देख कर खुश होते कि देखो भाईबहन में कितना प्यार है. लेकिन यह तो केवल संगीता जानती थी कि प्रवींद्र किसलिए आता है. ज्योंज्यों दिन गुजरते गए, संगीता और प्रवींद्र की मोहब्बत के तकाजे भी बढ़ते गए. उन की चाहत तनहाई और खुफिया मुलाकात की मांग करने लगी. यह तकाजा पूरा करने के लिए उन दोनों ने किसी तरह की कोताही नहीं की.

रात को जब सब लोग सो जाते, तब संगीता और प्रवींद्र चुपके से उठ कर छत पर चले जाते और वहां एकदूजे की बांहों में खो जाते. तनहाई और रात के सन्नाटे में 2 जिस्म मिले तो जज्बात भड़कते ही हैं. संगीता और प्रवींद्र भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा सके. पे्रमोन्माद में वे एकदूसरे को समर्पित हो गए. समय बीतता रहा. किसी को अब तक नहीं खबर नहीं थी कि संगीता और प्रवींद्र एकदूसरे से प्यार करते हैं. मन से ही नहीं, दोनों तन से भी एक हो चुके हैं. प्रवींद्र और संगीता के इश्क का खेल 2 सालों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन एक रोज उन का भांडा फूट ही गया. उस दिन शाम को प्रवींद्र आया तो पता चला रमेश जीजा रिश्तेदारी में उन्नाव गए हैं. वह 3 दिन बाद घर लौटेंगे. ऊषा आंगन में अकेली बैठी थी और संगीता रसोई में खाना बना रही थी. ज्यों ही प्रवींद्र ऊषा के पास आ कर बैठा, उस ने वहीं से रसोई की ओर मुंह कर आवाज दी, ‘‘बेटी संगीता, मामा आए हैं, इन के लिए भी खाना बना लेना.’’

प्रवींद्र चारपाई पर पसर गया और हंस कर बोला, ‘‘हां दीदी, मैं खाना भी खाऊंगा और रुकूंगा भी. जीजा बाहर गए हैं न इसलिए घर और तुम दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज है. वैसे भी दीदी तुम मुझे फोन पर बता देती तो मैं दौड़ा चला आता.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ ऊषा भी हंसने लगी, ‘‘मैं खुद तुझ से यहीं रुकने को कहने वाली थी. लेकिन तूने मेरे मुंह की बात छीन ली.’’

संगीता को पता चला कि मामा आए हैं तो उस का शरीर रोमांच से भर गया. वह जान गई कि आज की रात रंगीन होने वाली है. उस ने खाना बना कर तैयार किया फिर मां और मामा को खिलाया. उस के बाद खुद खाना खा कर घर की साफसफाई की. प्रवींद्र छत पर सोने चला गया और संगीता मां के साथ नीचे कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद ऊषा तो सो गई लेकिन संगीता की आंखों में नींद नहीं थी. ऊषा जब गहरी नींद सो गई तो संगीता दबेपांव उठी और प्रवींद्र के पास छत पर जा पहुंची. प्रवींद्र भी उस के आने का ही इंतजार कर रहा था. संगीता के पहुंचते ही उस ने उसे बांहों में भर लिया.

इधर आधी रात को ऊषा की आंखें खुलीं तो उस ने संगीता को चारपाई से नदारद पाया. वह उसे खोजते हुए आंगन में आई तो उसे छत पर खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी. वह जीने की ओर बढ़ी, तभी संगीता जीने से नीचे उतरी. शायद उसे मां के जागने का आभास हो गया था. कमरे में पहुंचते ही ऊषा ने पूछा, ‘‘संगीता, तू आधी रात को छत पर क्यों गई थी?’’

‘‘मामा उल्टियां कर रहे थे. उन्हें पानी देने गई थी.’’ संगीता ने बहाना बना दिया. ऊषा ने संगीता की बात पर विश्वास तो कर लिया किंतु उस के मन में शक का बीज अंकुरित होने लगा. अब वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगीं. संगीता और प्रवींद्र कड़ी निगरानी के कारण सतर्कता बरतने लगे थे, लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात ऊषा ने संगीता और प्रवींद्र को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रात ऊषा ने संगीता की जम कर फटकार लगाई और उस की पिटाई भी कर दी. उस ने छोटे भाई प्रवींद्र को भी भलाबुरा कहा और रिश्ते को कलंकित करने का दोषी ठहराया. इज्जत के नाम पर दबा दी बात अपराधबोध के कारण प्रवींद्र ने सिर झुका लिया. फिर जब ऊषा का गुस्सा ठंडा पड़ गया तो प्रवींद्र ने बहन के पैर पकड़ लिए, ‘‘दीदी, जवानी के जोश में हम और संगीता बहक गए थे. इस बार माफ कर दो. आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.’’

चूंकि बेटी का मामला था. ज्यादा शोर मचाने से उसी की बदनामी होती, इसलिए ऊषा ने हिदायत दे कर प्रवींद्र को माफ कर दिया. प्रवींद्र अपने घर चला गया. इस के बाद करीब 3 महीने तक प्रवींद्र बहन के घर नहीं आया. हां, इतना जरूर था कि संगीता और प्रवींद्र जबतब मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे और अपने दिल की लगी बुझा लेते थे. 3 माह बाद जब प्रवींद्र को संगीता की ज्यादा याद सताने लगी तो वह एक रोज बहन के घर आ पहुंचा. ऊषा ने प्रवींद्र के आने पर ऐतराज तो नहीं जताया, लेकिन संगीता से दूर रहने की हिदायत दी. प्रवींद्र अब ऊषा के सामने ही संगीता से बात करता तथा रात को घर के अंदर के बजाए घर के बाहर सोता. इस तरह प्रवींद्र का आनाजाना फिर से शुरू हो गया.

कहावत है कि आग और फूस एक साथ होंगे तो धुआं तो उठेगा ही और जलेंगे भी. संगीता और प्रवींद्र भी आगफूस की तरह थे. कुछ दिनों तक तो वे दोनों सुलगते रहे. आखिर में जब नहीं रहा गया तो वे पुन: सतर्कता के साथ मिलने लगे. ऊषा और रमेश दोनों ही संगीता व प्रवींद्र पर नजर रखते थे, परंतु वे उन की पकड़ में नहीं आए. संगीता अब तक 20 साल की उम्र पार करचुकी थी और उस के कदम भी बहक गए थे. इसलिए ऊषा और रमेश चाहते थे कि जितना जल्दी हो, उस के हाथ पीले कर दिए जाएं. संगीता का विवाह करने के लिए दोनों ने उपयुक्त घरवर की तलाश भी शुरू कर दी. संगीता को शादी वाली बात पता चली तो वह प्रवींद्र की छाती से मुंह छिपा कर बिलख पड़ी, ‘‘कुछ करो मामा, किसी दूसरे से मेरी शादी हो गई तो मैं जहर खा कर मर जाऊंगी.’’

प्रवींद्र की आंखें भी बरसने लगीं, ‘‘तुम्हारे बगैर मैं भी कहां जिंदा रह सकता हूं. तुम ने जहर खाया तो मैं भी जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगा.’’

‘‘हमारी आशिकी का जनाजा निकलने में देर नहीं है, इसलिए कह रही हूं कि जल्दी ही कुछ करो.’’

‘‘करना तो चाहता हूं पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं.’’ प्रवींद्र उलझन में पड़ा हुआ था, ‘‘हम दोनों की शादी हो नहीं सकती और हमेशा के लिए तुम्हें अपना बनाने का रास्ता सूझ नहीं रहा है.’’

‘‘प्रवींद्र, मुझे एक तरकीब सूझी है,’’ संगीता अचानक उल्लास से भर गई, ‘‘अगर तुम उस पर अमल करने को राजी हो जाओ तो हम हमेशा के लिए एक हो सकते हैं.’’

‘‘कैसी तरकीब?’’ प्रवींद्र ने पूछा.

‘‘चलो हम भाग चलें,’’ संगीता ने राह सुझाई, ‘‘दिल्ली, मुंबई जैसे शहर में हम अपने प्यार की अलग दुनिया बसाएंगे. वहां इतनी भीड़ रहती है कि कोई भी हमें ढूंढ नहीं सकेगा.’’

प्रवींद्र कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘संगीता, तुम्हारी तरकीब तो सही है लेकिन मुझे डर सता रहा है.’’

‘‘कैसा डर?’’ संगीता ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि मैं तुम्हें ले कर भागा तो तुम्हारे घर वाले मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगे. फिर पुलिस हमें पकड़ेगी. उस के बाद तुम अपने मातापिता के सुपुर्द कर दी जाओगी. और मैं जेल जाऊंगा. जब तक मैं जेल से बाहर आऊंगा, तब तक पता चलेगा कि घर वालों ने तुम्हें समझाबुझा कर किसी दूसरे से तुम्हारी शादी कर दी है. ऐसे मामलों में अकसर यही होता है.’’ प्रवींद्र बोला. प्रवींद्र की बात सुन कर संगीता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. अपनी बात का असर पड़ता देख प्रवींद्र आगे बोला, ‘‘दूसरी बात यह है कि घर से भाग कर दूसरे शहर में बसना आसान नहीं. उस के लिए पैसे चाहिए. और पैसे हमारे पास हैं नहीं.’’

संगीता कुछ देर सोच में डूबी रही. उस के बाद बोली, ‘‘प्रवींद्र, मुझे मातापिता का विरोध और तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हम हर हाल में अपना घर बसाना चाहते हैं. इस के लिए तुम कुछ भी करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

‘‘तो सुनो, एक तरकीब है मेरे पास. लेकिन उस के लिए तुम्हें अपना कलेजा मजबूत करना होगा. उस तरकीब से हमारी सारी समस्या हल हो जाएगी और धन भी मिल जाएगा.’’ प्रवींद्र ने कहा.

‘‘ऐसी कौन सी तरकीब है?’’ संगीता ने विस्मय से पूछा.

‘‘मुझे अपने बहनबहनोई और तुम्हें अपने मातापिता को मौत की नींद सुलाना होगा. फिर घर से नकदी और गहने ले कर फरार हो जाएंगे. इस तरकीब से किसी को हम पर शक भी नहीं होगा. लोग समझेंगे कि बदमाशों ने घर में लूट की और विरोध पर दोनों की हत्या कर दी और लड़की का अपहरण कर लिया.’’

बन गई खून बहाने की योजना संगीता, प्रवींद्र के प्यार में अंधी हो चुकी थी, इसलिए वह खूनी मांग सजाने को तैयार हो गई. उस ने प्रेमी मामा प्रवींद्र की तरकीब को मान लिया और अपनों का खून बहाने को राजी हो गई. इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने रमेशचंद्र और ऊषा के कत्ल की योजना बनाई. योजना के तहत प्रवींद्र अपने गांव चला गया ताकि बहन के पड़ोसियों को उस पर शक न हो. गांव में रहने के दौरान वह संगीता के संपर्क में बना रहा. 8 अक्तूबर, 2019 की सुबह प्रवींद्र ने संगीता से मोबाइल पर बात की और रात में घटना को अंजाम दे कर फरार होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि वह रात 10 बजे उस के घर पहुंचेगा, दरवाजा खुला रखे. प्रेमी मामा से बात होने के बाद संगीता घर से भागने की तैयारी में जुट गई.

उस ने मां से चोरीछिपे बैग में अपने कपड़े तथा जरूरी सामान रख लिया. बैग को उस ने कमरे में रखे बड़े संदूक में छिपा दिया. अन्य दिनों के अपेक्षा उस शाम संगीता ने कुछ जल्दी खाना बना कर मांबाप को खिला दिया. खाना खा कर ऊषा और रमेश कमरे में पड़े तख्त पर जा कर लेट गए. कुछ देर बाद दोनों गहरी नींद सो गए. इधर रात 10 बजे प्रवींद्र संगीता के दरवाजे पर पहुंचा. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो संगीता ने दरवाजा खोल कर उसे घर के अंदर कर लिया. वह बेसब्री से उसी का इंतजार कर रही थी. संगीता प्रवींद्र को कमरे में ले गई. एकांत पा कर प्रवींद्र का मन मचल उठा और वह संगीता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.

उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’

इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई. उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया. 2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.

दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी. सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी. दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.

शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.

जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे. प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के  आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए. नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.

8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Agra Crime : प्‍लास्टिक की रस्‍सी से गर्लफ्रेंड का गला घोंटा, बॉक्‍स में पैक किया और फेंक दिया

Agra Crime : जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…

ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज, 3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर. 2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.

2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी. अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा. दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई. राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए.

8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा. सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी. सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया. आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.

आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की. शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था. आनंद की तलाश में घर में घुसा आनंद आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था. सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.

25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था. अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था. आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.

जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था. दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई. दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था.

चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की. आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके. उस ने बड़े आराम से एक प्रेमपत्र  लिखा. जब वह किरन से मिला तो प्रेमपत्र चुपचाप उस के पर्स में रख दिया.

पहलापहला प्यार किरन ने जब घर जा कर पर्स खोला तो उसे पत्र रखा दिखा. उस ने पत्र पढ़ा. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उस के दिल में भी प्यार का जोश हिलोरे मार रहा था. वह तो इसी इंतजार में थी कि आनंद कब उस से प्यार का इजहार करे. आनंद ने प्रेम का इजहार कर दिया था लेकिन किरन यह सब उस के मुंह से सुनना चाहती थी. इसलिए उस ने पत्र का जबाव नहीं दिया. जब पत्र का जबाव नहीं मिला तो आनंद बेचैन हो उठा. अगर किरन पत्र पढ़ कर नाराज होती तो उस से संबंध खत्म कर लेती लेकिन उस ने ऐसा भी नहीं किया. एक दिन आनंद किरन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘किरन, मेरा दिल तुम्हारे पास है…’’

‘‘क्या…?’’ आश्चर्य में किरन के मुंह से यह शब्द निकला तो आनंद तुरंत बात बदलते हुए बोला,‘‘मेरा मतलब है कि मेरा दिल एक फिल्म देखने का है. फिल्म की मैटिनी शो की 2 टिकटें मेरे पास हैं. आज फिल्म देखने चलते हैं…चलोगी?’’

‘‘क्यों नहीं चलूंगी. वैसे भी पहली बार फिल्म दिखाने के लिए ले जा रहे हो.’’ किरन की बात सुन कर आनंद मुसकराया. फिर दोनों फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच गए. फिल्म शुरू हो गई लेकिन आनंद का दिल फिल्म देखने के बजाय किरन से प्यार करने को मचल रहा था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने अपना हाथ किरन के हाथ पर रख दिया और उस के हाथ को धीरेधीरे सहलाने लगा. किरन ने सोचा कि शायद वह अंधेरे का फायदा उठा कर उस से प्यार का इजहार करना चाहता है, इसीलिए वह फिल्म दिखाने लाया है. जब काफी देर तक आनंद कुछ नहीं बोला तो किरन झुंझला उठी. इंटरवल होते ही वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, चलो अब मेरा मन फिल्म देखने का नहीं कर रहा है, कहीं और चलते हैं.’’

आनंद को पहली बार किसी ने प्यार का नाम दिया था, अन्नू. उसे किरन पर बहुत प्यार आ रहा था. इस पर आनंद उस के साथ तुरंत बाहर आ गया. थोड़ी देर बाद दोनों एक बाग में बैठे हुए थे. किरन का धैर्य जबाव दे गया था. वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, मुझे न जाने क्यों लगता है कि कई दिनों से तुम मुझ से कुछ कहना चाहते हो, लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहे हो.’’

किरन ने यह बात आनंद की आंखों में आंखें डाल कर कही थी. इस से आनंद का हौसला बढ़ा तो वह बोला,‘‘किरन, मैं ने कई बार तुम तक अपने दिल की बात पहुंचाई लेकिन तुम ने जबाव देना उचित न समझा.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि मेरा मन उस बात को तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हो.’’ यह सुन कर आनंद चौंका.

उसे उम्मीद की एक किरण दिखी तो उस ने उत्साहित हो कर किरन का हाथ थाम लिया, ‘‘किरन, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. यही बात मैं तुम से कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई जबाव न मिलने की वजह से मैं बेचैन था. अब मेरी मोहब्बत का आइना तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो उस में अपना अक्स देख कर मेरी जिंदगी संवार दो या उस को चकनाचूर कर के मेरी सांसों की डोर तोड़ दो. फैसला कर लो, तुम्हें क्या करना है.’’

आनंद के प्रेम की गहराई देख कर किरन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. वह अपना दूसरा हाथ आनंद के हाथ पर रखती हुई बोली, ‘‘अन्नू, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. मैं यह बात जान चुकी थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन जुबां से प्यार का इजहार करने के बजाय तुम दूसरे तरीके अपना रहे थे. इस से मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘यह कोई जरूरी नहीं कि प्यार का इजहार जुबां से किया जाए, वह किसी भी तरीके से किया जा सकता है. यह अलग बात है कि तुम्हारे दिल में जुबां से इजहार सुनने की चाहत छिपी थी. लेकिन तुम्हारे जबाव न देने से मेरी कई रातें जागते हुए बीतीं.’’ आनंद ने एक पल में अपने दिल की तड़प को बयान कर दिया.

‘‘खैर जो हुआ सो हुआ. अब आगे से कोई गलती नहीं होगी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’ किरन ने इतनी मासूमियत से कहा कि आनंद ने मुस्कराते हुए उसे सीने से लगा लिया. सीने से लगते ही किरन ने भी प्यार में डूब कर अपनी आंखों के परदे गिरा दिए. दोनों एक अजीब सा सुकून महसूस कर रहे थे. वहां कुछ देर और रूक कर दोनों वापस लौट आए. प्यार का जादू इस के बाद तो दोनों के प्यार को मानो पंख ही लग गए. मिलने के लिए आनंद के पास वैसे ही जगह नहीं थी. जिस नेत्रालय में वह रहता था, उस के अलावा  उस का कोई ठिकाना नहीं था. एक दिन उस ने नेत्रालय के उसी कमरे में, जिस में वह रहता था, उस ने किरन के जिस्म से आनंद लेने का मन बना लिया.वह दिन भी आ गया, जब आनंद ने प्यार के पलों में किरन को बहका लिया और उस के जिस्म से अपने जिस्म का मेल करा दिया.

दोनों के मन के साथसाथ तन भी मिल गए. किरन के तन को पा कर आनंद काफी खुश था. इस के बाद तो यह मिलन बारबार दोहराया जाने लगा. 2016 में आनंद ने खुशी नेत्रालय में किरन की भी नौकरी लगवा दी. अब हर समय किरन और आनंद एकदूसरे के साथ होते. उन की मोहब्बत परवान चढ़ती रही. एक वर्ष बीततेबीतते दोनों के संबंध की जानकारी किरन की मां सरोज को हो गई. यह पता लगते ही उन्होंने किरन की नौकरी छुड़वा दी. लेकिन किरन फिर भी आनंद से मिलती रही. किरन तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आनंद उस से प्यार का नाटक कर रहा है. शादी का झांसा दे कर वह उस के जिस्म से खेल रहा है. इस बीच किरन से विवाह के लिए कई रिश्ते आए. लेकिन उस ने मना कर दिया. उस के चक्कर में उस की छोटी बहन कविता का विवाह भी नहीं हो सकता था. किरन की मां सरोज व भाई सागर को मथुरा का एक अच्छा परिवार मिल गया.

उस परिवार का लड़का दिल्ली में रह कर सोफे बनाने का काम करता था. उस लड़के व उस के परिवार को कविता पसंद आ गई. परिवार अच्छा होने की वजह से सरोज ने उस युवक से अपनी बेटी कविता की कोर्ट मैरिज करा दी. यह पिछले साल नवंबर की बात है. इधर किरन अब जब भी आनंद से मिलती तो विवाह करने की जिद करती. अब आनंद के लिए  किरन को समझाना मुश्किल होने लगा. इसे ले कर वह तनाव में रहने लगा. कोराना वायरस का प्रकोप पूरे विश्व में फैला हुआ था. उस से बचाने के लिए भारत सरकार ने देश में लौकडाउन कर रखा था. उत्तर प्रदेश की बात करें तो ताज नगरी आगरा में कोरोना संक्रमितों की संख्या सब से अधिक थी.  21 अप्रैल की रात 9 बजे आगरा के थाना लोहामंडी क्षेत्र के हसनपुरा में रहने वाले वरुण प्रजापति ने गजानन नगर में रहने वाली डाक्टर गरिमा बंसल के घर के पास एक कार्टन बौक्स पड़ा देखा. आश्चर्य की बात यह थी कि वह बौक्स सफेद चादर में बंधा हुआ था.

वरूण ने आसपास के लोगों को बुलाया. लोगों के आने पर तरहतरह की बातें होने लगीं. यह रहस्य जानने को सभी बेकरार थे कि बौक्स में है क्या. पता चला कि वह कार्टन बौक्स दोपहर में वहां नहीं था, शाम को अंधेरा घिरने पर किसी ने उसे वहां डाला होगा. मामला संदिग्ध होने पर वरुण ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसपी सिटी रोत्रे बोहन प्रसाद व शाहगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. जहां बाक्स मिला था, वहां से महज एक किलोमीटर की दूरी पर थाना शाहगंज था. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने वहां पहुंचने के बाद एक पुलिसकर्मी को पीपीई किट पहना कर 2 फुट का वह कार्टन बौक्स खुलवाया. बौक्स खुलने पर उस में एक युवती की लाश मिली. मृतका की उम्र लगभग 25-26 वर्ष रही होगी. उस के गले पर दबाने के निशान थे. मृतका ने नीले रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे. दाएं हाथ पर किरन लिखा था.

बौक्स पर जो चादर बंधी थी, और वह बौक्स किसी अस्पताल के लग रहे थे. बौक्स दवाइयों में इस्तेमाल होने वाला था. चादर भी अस्पतालों में बिछाई जाने वाली थी. इस से लगा कि हत्यारे का कनेक्शन किसी हौस्पिटल से है. एक किलोमीटर तक के अस्पतालों की जानकारी एकत्र की गई तो ऐसा कोई हौस्पिटल नहीं मिला. मृतका की लाश के फोटो भी कोई नहीं पहचान पाया. मृतका की शिनाख्त नहीं हो पाई तो इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने लाश को मार्चरी में रखवा दिया. फिर थाने आ कर उन्होंने वरुण प्रजापति से लिखित तहरीर ली और अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

वह अभागी किरन ही थी अगले दिन एक महिला अपने बेटे के साथ शाहगंज थाने पहुंची और अपना नाम सरोज व बेटे का नाम सागर बताया. उन दोनों के अनुसार वे लाश मिलने की बात सुन कर थाने पहुंचे थे. सरोज की बेटी किरन घटना वाले दिन सुबह 10 बजे घर से निकली थी लेकिन वापस नहीं लौटी थी. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने उन्हें लाश का फोटो दिखाया तो सरोज रो पड़ी, वह लाश उस की बेटी किरन की ही थी. शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर राघव ने उन से किरन के बारे में पूछताछ की. लेकिन सरोज ने कुछ भी ऐसा नहीं बताया जो पुलिस के काम का होता. वह किरन के प्रेमसंबंधों को बदनामी के डर से छिपा गईं.

इंसपेक्टर राघव ने बौक्स मिलने के स्थान की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति बाइक पर पीछे बौक्स रखे आता दिखाई दिया. उस इलाके की पूरी सीसीटीवी फुटेज देखते हुए इंसपेक्टर राघव खुशी नेत्रालय तक पहुंच गए. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद चल था, लेकिन उन्हें यह जानकारी मिल गई कि उस नेत्रालय में कोई रहता है. वह नेत्रालय पहुंचे तो आनंद ने गेट खोला. पुलिस को वहां आया देख कर वह चौंका और भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस से बच कर भाग नहीं पाया.  पुलिस को उस की हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक भी वहीं खड़ी मिल गई. यह वही बाइक थी, जिस पर आनंद बौक्स रख कर फेेंकने ले गया था. उस के पास से किरन की पासबुक और आधार कार्ड भी बरामद हो गए.

थाने ला कर जब आनंद से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और हत्या की वजह बता दी. किरन ने शादी करने की बात को ले कर आनंद का जीना हराम कर दिया था. दिन रात बस एक ही रट कि शादी कर लो. जबकि आनंद पहले से ही शादीशुदा था, वह तो उस के साथ खेल रहा था. ऐसे में शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. 21 अप्रैल की सुबह 10 बजे किरन घर से अपनी मां से कह कर निकली कि वह आनंद से मिलने जा रही है. किरन सीधे वहां से खुशी नेत्रालय पहुंची. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद था. लेकिन आनंद अंदर अपने कमरे में मौजूद था. आनंद और किरन बैठ कर बात करने लगे. बात बात में ही शादी को ले कर दोनों में विवाद होने लगा.

दोपहर साढ़े 12 बजे आनंद ने प्लास्टिक की रस्सी से किरन का गला घोंट दिया, जिस से किरन की मौत हो गई. आनंद ने किरन के पैरों को उस के दुपट्टे से बांध दिया. फिर नेत्रालय में रखे एक 2 फुट के कार्टन बौक्स और सफेद चादर को उठा लाया. कार्टन बौक्स में आंखों के लेंस आते थे. उस बौक्स में उस ने किसी तरह किरन की लाश को ठूंसा और कार्टन बंद कर के उसे उसी प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया, जिस से उस ने किरन का गला घोंटा था. इस के बाद कार्टन बौक्स को सफेद चादर से बांध कर रख दिया और रात होने का इंतजार करने लगा. वह साढ़े 7 घंटे लाश को अपने कमरे में रखे रहा. रात 8 बजे उस ने बौक्स को अपनी हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक पर रखा और गजानन नगर में डा. गरिमा बंसल के घर के पास डाल दिया. फिर वहां से चला आया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और पकड़ा गया. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद अतुल कुमार उर्फ आनंद को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Extramarital Affair : पड़ोसी के प्यार में पागल पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Extramarital Affair : तमाम पतिपत्नियों की तरह कपिल और खुशबू में लड़ाईझगड़ा होता था. लेकिन खुशबू इस झगड़े को नाक का सवाल बना कर मायके चली गई, जहां उस के संबंध चंदन से बन गए. खुशबू को चंदन की यारी ऐसी भाई कि उस ने…

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था. कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया.

लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई. 12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई. थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है.

इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे. इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी. कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए. फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए.

उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली. थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी. इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई. जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए. इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

क्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी. खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे. कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा. कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा. कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी. कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Stories : प्रेमिका ने प्रेमी संग पहले सुहागरात मनाई फिर पेड़ से लटक कर की आत्महत्या

Love Stories : रचना और नीरज बचपन से ही एकदूसरे को प्यार करते थे. उन का प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि प्लैटोनिक था, जिस में रूह को अलग तरह की अनुभूति होती है. जब घर वालों ने रचना की शादी तय कर दी तो दोनों के पास…

इसे नादानी और कम उम्र के प्यार का नतीजा कहना रचना और नीरज के साथ ज्यादती ही कहा जाएगा. दरअसल, यह दुखद हादसा सच्चे और निश्छल प्यार का उदाहरण है. जरूरत इस प्यार को समझने और समझाने की है, जिस से फिर कभी प्यार करने वालों की लाशें किसी पेड़ से लटकती हुई न मिलें. विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल खजुराहो से महज 8 किलोमीटर दूर एक गांव है बमीठा, जहां अधिकांशत: पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं. खजुराहो आने वाले पर्यटकों का बमीठा में देखा जाना आम बात है, इन में से भी अधिकतर विदेशी ही होते हैं. बमीठा से सटा गांव बाहरपुरा भी पर्यटकों की चहलपहल से अछूता नहीं रहता.

लेकिन इस गांव में लोगों पर विदेशियों की आवाजाही का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि वे इस के आदी हो गए हैं. भैरो पटेल बाहरपुर के नामी इज्जतदार और खातेपीते किसान हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी 18 वर्षीय बेटी रचना की शादी नजदीक के गांव हीरापुर में अपनी बराबरी की हैसियत वाले परिवार में तय कर दी थी. शादी 11 फरवरी को होनी तय हुई थी, इसलिए भैरो पटेल शादी की तारीख तय होने के बाद से ही व्यस्त थे. गांव में लड़की की शादी अभी भी किसी चुनौती से कम नहीं होती. शादी के हफ्ते भर पहले से ही रस्मोरिवाजों का जो सिलसिला शुरू होता है, वह शादी के हफ्ते भर बाद तक चलता है. ऐसी ही एक रस्म आती है छई माटी, जिस में महिलाएं खेत की मिट्टी खोद कर लाती हैं.

बुंदेलखंड इलाके में इस दिन महिलाएं गीत गाती हुई खेत पर जाती हैं और पूजापाठ करती हैं. यह रस्म रचना की शादी के 4 दिन पहले यानी 7 फरवरी को हुई थी. हालांकि फरवरी का महीना लग चुका था, लेकिन ठंड कम नहीं हुई थी. भैरो पटेल उत्साहपूर्वक आसपास के गांवों में जा कर बेटी की शादी के कार्ड बांट रहे थे. कड़कड़ाती सर्दी में वे मोटरसाइकिल ले कर अलसुबह निकलते थे तो देर रात तक वापस आते थे. 7 फरवरी को भी वे कार्ड बांट कर बाहरपुर की तरफ वापस लौट रहे थे कि तभी उन की पत्नी का फोन आ गया. मोटरसाइकिल किनारे खड़ी कर उन्होंने पत्नी से बात की तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

पत्नी ने घबराहट में बताया कि जब वह छई माटी की रस्म पूरी कर के घर आई तो रचना घर में नहीं मिली. वह सारे गांव में बेटी को ढूंढ चुकी है. पत्नी की बात सुन कर उन्होंने बेसब्री से पूछा, ‘‘और नीरज…’’

‘‘वह भी घर पर नहीं है,’’ पत्नी का यह जवाब सुन कर उन के हाथपैर सुन्न पड़ने लगे. जिस का डर था, वही बात हो गई थी. 20 वर्षीय नीरज उन्हीं के गांव का लड़का था. उस के पिता सेवापाल से उन के पीढि़यों के संबंध थे. लेकिन बीते कुछ दिनों से ये संबंध दरकने लगे थे, जिस की अपनी वजह भी थी. इस वजह पर गौर करते भैरो पटेल ने फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट की और तेजी से गांव की तरफ चल पड़े. रचना और नीरज का एक साथ गायब होना उन के लिए चिंता और तनाव की बात थी. 4 दिन बाद बारात आने वाली थी. आसपास के गांवों की रिश्तेदारी और समाज में बेटी की शादी का ढिंढोरा पिट चुका था.

यह सवाल रहरह कर उन के दिमाग को मथ रहा था कि कहीं रचना नीरज के साथ तो नहीं भाग गई. अगर ऐसा हुआ तो वे और उन की इज्जत दोनों कहीं के नहीं रहेंगे. ‘फिर क्या होगा’ यह सोचते ही शरीर से छूटते पसीने ने कड़ाके के जाड़े का भी लिहाज नहीं किया. गांव पहुंचे तो यह मनहूस खबर आम हो चुकी थी कि आखिरकार रचना और नीरज भाग ही गए. काफी ढूंढने के बाद भी उन का कोई पता नहीं चल पा रहा था. घर आ कर उन्होंने नजदीकी लोगों से सलाहमशविरा किया और रात 10 बजे के लगभग चंद्रपुर पुलिस चौकी जा कर बेटी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. उन्होंने नीरज पर रचना के अपहरण का शक भी जताया. थाना इंचार्ज डी.डी. शाक्य ने सूचना दर्ज की और काररवाई में जुट गए.

बुंदेलखंड इलाके में नाक सब से बड़ी चीज होती है. एक जवान लड़की, जिस की शादी 4 दिन बाद होनी हो, अगर दुलहन बनने से पहले गांव के ही किसी लड़के के साथ भाग जाए और यह बात सभी को मालूम हो तो लट्ठफरसे और गोलियां चलते भी देर नहीं लगती. इसलिए पुलिस वालों ने फुरती दिखाई और रचना और नीरज की ढुंढाई शुरू कर दी. डी.डी. शाक्य ने तुरंत इस बात की खबर बमीठा थाने के इंचार्ज जसवंत सिंह राजपूत को दी. वह भी बिना वक्त गंवाए चंद्रपुर चौकी पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने अपनी संक्षिप्त मीटिंग में तय किया कि दोनों अभी ज्यादा दूर नहीं भागे होंगे, इसलिए तुरंत छतरपुर बस स्टैंड और खजुराहो रेलवे स्टेशन की तरफ टीमें दौड़ा दी गईं. रचना और नीरज कहीं भी जाते, उन्हें जाना इन्हीं दोनों रास्तों से पड़ता.

पुलिस ने खजुराहो रेलवे स्टेशन और छतरपुर बस स्टैंड सहित आसपास के गांवों में खाक छानी, लेकिन रचना और नीरज को नहीं मिलना था सो वे नहीं मिले. आधी रात हो चली थी, इसलिए अब सुबह देखेंगे सोच कर बात टाल दी गई. इधर बाहरपुर में भी मीटिंगों के दौर चलते रहे, जिन में नीरज और रचना के परिवारजनों को बच्चों के भागने से ज्यादा चिंता अपनी इज्जत की थी, खासतौर से भैरो सिंह को, क्योंकि वे लड़की वाले थे. ऐसे मामलों में छीछालेदर लड़की वाले की ही ज्यादा होती है. बस एक बार रचना मिल जाए तो सब संभाल लूंगा जैसी हजार बातें सोचते भैरो सिंह बारबार कसमसा उठते थे. अंत में उन्होंने भी हालात के आगे हथियार डाल दिए कि अब सुबह देखेंगे कि क्या करना है.

सुबह सूरज उगने से पहले ही नीरज की मां रोज की तरह उठ कर मवेशियों को चारा डालने गांव के बाहर अपने खेतों की तरफ गईं तो आम के पेड़ को देख चौंक गईं. रोशनी पूरी तरह नहीं हुई थी, इसलिए वे एकदम से समझ नहीं पाईं कि पेड़ पर यह क्या लटक रहा है. जिज्ञासावश वह पेड़ के नजदीक पहुंचीं, तो ऊपर का नजारा देख उन की चीख निकल गई. पेड़ पर रचना और नीरज की लाशें झूल रही थीं. वह चिल्लाते हुए गांव की तरफ भागीं. देखते ही देखते बाहरपुर में हाहाकार मच गया. अलसाए लोग खेत की तरफ दौड़ने लगे. कुछ डर और कुछ हैरानी से सकते में आए लोग अपने ही गांव के बच्चों की एक और प्रेम कहानी का यह अंजाम देख रहे थे. भीड़ में से ही किसी ने मोबाइल फोन पर पुलिस चौकी में खबर कर दी.

पुलिस आती, इस के पहले ही लव स्टोरी पूरी तरह लोगों की जुबान पर आ गई. इस छोटे से गांव में सभी एकदूसरे को जानते हैं. गांव में एक ही मिडिल स्कूल है, इस के बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को चंद्रपुर जाना पड़ता है. नीरज की रचना से बचपन से ही दोस्ती थी. आठवीं के बाद उन्हें भी चंद्रपुर जाना पड़ा. सभी बच्चे एक साथ जाते थे और एक साथ वापस आते थे. सब से समझदार और जिम्मेदार होने के चलते आनेजाने का जिम्मा नीरज पर था. बच्चे खेलतेकूदते मस्ताते आतेजाते थे. यहीं से इन दोनों के दिलों में प्यार का बीज अंकुरित होना शुरू हुआ.

दोनों जवानी की दहलीज पर पहला कदम रख रहे थे. बचपना जा रहा था और दोनों में शारीरिक बदलाव भी आ रहे थे. साथ आतेजाते रचना और नीरज में नजदीकियां बढ़ने लगीं और कब दोनों को प्यार हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला. हालत यह हो गई थी कि दोनों एकदूसरे को देखे बगैर नहीं रह पाते थे. यह प्यार प्लैटोनिक था, जिस में शारीरिक आकर्षण कम एक रोमांटिक अनुभूति ज्यादा थी. बाहरपुर से ले कर चंद्रपुर तक दोनों तरहतरह की बातें करते जाते थे तो रास्ता छोटा लगता था. रचना को लगता था कि यूं ही नीरज के साथ चलती रहे और रास्ता कभी खत्म ही न हो. यही हालत नीरज की भी थी. उस का मन होता कि रचना की बातें सुनता रहे, उस के खूबसूरत सांवले चेहरे को निहारता रहे और उसे निहारता देख रचना शर्म से सर झुकाए तो वह बात बदल दे.

दुनियादारी, समाज, धर्म और जाति की बंदिशों और उसूलों से परे यह प्रेमी जोड़ा अपनी एक अलग दुनिया बसा बैठा था. अब दोनों आने वाली जिंदगी के सपने बुनने लगे थे. ख्वाबों में एकदूसरे को देखने लगे थे. अब तक घर और गांव वाले इन्हें बच्चा ही समझ रहे थे. इधर इन ‘बच्चों’ की हालत यह थी कि दिन में कई दफा एकदूसरे को ‘आई लव यू’ बोले बगैर इन का खाना नहीं पचता था. दोनों एकदूसरे की पसंद का खास खयाल रखते थे, यहां तक कि टिफिन में खाना भी एकदूसरे की पसंद का ले जाते थे और साथ बैठ कर खाते थे.

प्यार का यह रूप कोई देखता तो निहाल हो उठता, लेकिन सच्चे और आदर्श वाले प्यार को नजर जल्द लगती है यह बात भी सौ फीसदी सच है. रचना तो नीरज के प्यार में ऐसी खोई कि कौपीकिताबों में भी उसे प्रेमी का चेहरा नजर आता था. नतीजतन 9वीं क्लास में वह फेल हो गई. इस पर घर वालों ने स्कूल से उस का नाम कटा दिया. लेकिन उस के दिलोदिमाग में नीरज का नाम कुछ इस तरह लिखा था कि दुनिया की कोई ताकत उसे मिटा नहीं सकती थी. स्कूल जाना बंद हुआ तो वह बिना नीरज के और बिना उस के नीरज छटपटाने लगा. दिन भर घर में पड़ी रचना मन ही मन नीरज के नाम की माला जपती रहती थी और नीरज दिन भर उस की याद में खोया रहता था.

सुबह जैसे ही स्कूल जाने का वक्त होता था तो रचना हिरणी की तरह कुलांचे मारते सड़क पर आ जाती थी. दोनों कुछ देर बातें करते और फिर शाम का इंतजार करते रहते. जैसे ही आने का वक्त होता था तो रचना गांव के छोर पर पहुंच जाती. दोनों का दिल से अख्तियार हटने लगा था. कुछ ही दिनों बाद जैसे ही नीरज बच्चों के साथ वापस आता तो दोनों खेतों में गुम हो जाते थे और सूरज ढलने तक अकेले में बैठे एकदूसरे की बांहों में समाए दुनियाजहान की बातें करते रहते. बात छिपने वाली नहीं थी. साथ के बच्चों ने जब उन्हें इस हालत में देखा तो बात उन से हो कर बड़ों तक पहुंची. भैरो सिंह को जब यह बात पता चली तो उन्होंने वही गलती की जो आमतौर पर ऐसी हालत में एक पिता करता है.

गलती यह कि रचना पर न केवल बंदिशें लगाईं बल्कि आननफानन में उस की शादी भी तय कर दी. उन का इरादा जल्दी से जल्दी बेटी को विदा कर देना था, ताकि कोई ऐसा हादसा न हो जिस की वजह से उन की मूंछें झुक जाएं. यह रचना और नीरज के लिए परेशानियों भरा दौर था. दोनों के घर वालों ने साफतौर पर चेतावनी दे दी थी कि उन की शादी नहीं हो सकती, लिहाजा दोनों एकदूसरे को भूल जाओ. शादी तय हुई और तैयारियां भी शुरू हो गईं तो दोनों हताश हो उठे. दोनों जवानी में पहला पांव रखते ही साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे, लेकिन घर वालों से डरते और उन का लिहाज करते थे. इसी समय उन्हें समाज की ताकत और अपनी बेबसी का अहसास हुआ. यह भी वे सोचा करते थे कि आखिर उन की शादी पर घर वालों को ऐतराज क्यों है.

प्रेम प्रसंग आम हो चुका था, इसलिए दोनों का मिलनाजुलना कम हो गया था. शादी की रस्में शुरू हुईं तो रचना को लगा कि वह बगैर नीरज के नहीं रह पाएगी. फिर भी वह खामोशी से वह सब करती जा रही थी जो घर वाले चाहते थे. रचना अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी थी, जहां से कोई रास्ता नीरज की तरफ नहीं जाता था. घर वालों के खिलाफ भी वह नहीं जा पा रही थी और नीरज को भी नहीं भूल पा रही थी. उसे लगने लगा था कि वह बेवफा है. ऐसे में जब मंगेतर देवेंद्र का फोन आया तो वह और भी घबरा उठी. क्योंकि इन सब बातों से अंजान देवेंद्र भी प्यार जताते हुए यह कहता रहता था कि हम दोनों अपनी सुहागरात 11 फरवरी को नहीं बल्कि 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर मनाएंगे.

नीरज के अलावा कोई और शरीर को छुए, यह सोच कर ही रचना की रूह कांप उठती थी. लिहाजा उस ने जी कड़ा कर एक सख्त फैसला ले लिया और नीरज को भी बता दिया. जिंदगी से हताश हो चले नीरज को भी लगा कि जब घर वाले साथ जीने का मौका नहीं दे रहे तो न सही, रचना के साथ मरने का हक तो नहीं छीन सकते. 7 फरवरी की दोपहर जब मां दूसरी महिलाओं के साथ छई माटी की रस्म के लिए खेतों पर गई तो रचना घर से भाग निकली. नीरज उस का इंतजार कर ही रहा था. दोनों ने आत्महत्या करने से पहले पेड़ के नीचे सुहागरात मनाई और नीरज ने रचना की मांग में सिंदूर भी भरा, फिर दोनों एकदूसरे को गले लगा कर फंदे पर झूल गए.

दोनों के शव जब पेड़ से उतारे गए तो गांव वाले गमगीन थे. जिन्होंने अभी अपनी जिंदगी जीनी शुरू भी नहीं की थी, वे बेवक्त मारे गए थे. दोनों के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था. पोस्टमार्टम के बाद शव घर वालों को सौंप दिए गए और दोनों का एक ही श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार हुआ. प्रेमियों का इस तरह एक साथ या अलगअलग खुदकुशी कर लेना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस मामले से यह तो साफ हो गया कि सच्चा प्यार मर जाना पसंद करता है, जुदा होना नहीं. ऐसे प्रेमी जब परंपराएं, धर्म, जाति वगैरह की दीवारें तोड़ने में खुद को असमर्थ पाते हैं, तो उन के पास सिवाय आत्महत्या के कोई भी रास्ता नहीं रह जाता, जिन की मंशा घर वालों और समाज को उन की गलती का अहसास कराने की भी होती है.

भैरो सिंह और सेवापाल जैसे पिता अगर वाकई बच्चों को प्यार करते होते तो उन की इच्छा और अरमानों का सम्मान करते, उन्हें पूरा करते लेकिन इन्हें औलाद से ज्यादा अपने उसूल प्यारे थे तो क्यों न इन्हें ही दोषी माना जाए.

UP News : प्रेमिका की गला दबाकर हत्या की और लाश को कूड़े में दबाया

UP News : दो नावों की सवारी हमेशा ही खतरनाक होती है. सब कुछ जानते हुए भी धर्मवीर ऐसा ही कर रहा था. जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो तब तक बहुत देर हो चुकी थी. और वह पहुंच गया जेल. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के पटवाई थानाक्षेत्र में पृथ्वीराज सपरिवार रहते थे.परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा संजय था. पृथ्वीराज के पास जो कुछ खेती की जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का पेट पालते थे.

बड़ी बेटी की वह शादी कर चुके थे. दूसरे नंबर की प्राची ने हाईस्कूल करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. प्राची खूबसूरत थी. उम्र के 16 बसंत पार करते ही प्राची के रूपलावण्य में जो निखार आया था, वह देखते ही बनता था. वह गांव की गलियों से गुजरती तो मनचलों के सीने पर सांप लोट जाया करते थे. प्राची को भी इस बात का अहसास था कि उस में कुछ बात तो है, तभी तो लोग उसे टकटकी लगा कर देखते हैं. वह उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रही थी, जहां लड़कियों के दिल की जवान होती उमंगें मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा सोचे उड़ जाना चाहती हैं. ऐसी ही उमंगें प्राची के दिल में कुलांचे भरने लगी थीं. उम्र के इसी पायदान पर खड़ी प्राची ने कब अपना दिल धर्मवीर के हवाले कर दिया, इस का उसे पता भी नहीं लगा था.

धर्मवीर प्राची के घर के पड़ोस में ही रहता था. हाईस्कूल करने के बाद वह अपना पुश्तैनी खेतीबाड़ी का काम करने लगा. आसपड़ोस में घर होने के कारण अकसर प्राची और धर्मवीर का आमनासामना हो जाता था. जब भी प्राची धर्मवीर के सामने पड़ती तो धर्मवीर एकटक उसे देखता रहता था. पहले तो प्राची को यह बात बहुत खली लेकिन धीरेधीरे उसे भी धर्मवीर में रुचि आने लगी. इसी के चलते दोनों चुपकेचुपके एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. एक रोज शाम का समय था. गांव के बाहर एकांत में दोनों एकदूसरे के सामने पड़े तो धर्मवीर को लगा कि अपने दिल की बात कह देने का यही सब से उपयुक्त मौका है. वह प्राची से बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहिए…’’ प्राची ने सीधे तौर पर पूछ लिया तो धर्मवीर झेंप गया.

फिर धर्मवीर हिम्मत कर के बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. लगता है कि अब तुम्हारे बिना मेरा जीना मुश्किल है. क्या तुम मेरी मोहब्बत कबूल करोगी?’’

यह सुन कर प्राची का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह धीरे से बोली, ‘‘चाहती तो मैं भी तुम्हें हूं, लेकिन डर लगता है.’’

‘‘डर…कैसा डर?’’ धर्मवीर ने प्राची से पूछा.

‘‘कहीं हमारी मोहब्बत रुसवा हो गई तो?’’

‘‘मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूं कि मैं मर जाऊंगा लेकिन तुम्हें रुसवा नहीं होने दूंगा. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा है, तभी तो जनाब से इश्क करने की जुर्रत की है.’’ कह कर अब तक संजीदा प्राची के चेहरे पर शरारती मुसकान आ गई. धर्मवीर ने उसे अपनी बांहों में ले कर घेरा और तंग कर दिया, जिस पर प्राची कसमसा कर रह गई. धर्मवीर ने आगे बढ़ कर प्राची के होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया.

‘‘उई मां, बड़े बेशर्म हो तुम.’’ कहते हुए प्राची ने धर्मवीर को परे हटा कर खुद को उस की कैद से आजाद किया और हंसती हुई वहां से चली गई.

धर्मवीर प्राची का प्यार पा कर झूम उठा. उसे लगा कि सारे जहां की खुशियां उस की झोली में सिमट आई हैं. कुछ यही हाल प्राची का भी था. धर्मवीर की हरकतों ने उस के बदन में अजीब सी मादकता भर दी थी. इस तरह धर्मवीर व प्राची की प्रेम कहानी शुरू हो गई. दोनों को जैसे ही मौका मिलता, उन के बीच प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. उस समय दोनों को दीनदुनिया की खबर ही न रहती. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. जैसेजैसे समय बीतता रहा, उन का इश्क परवान चढ़ता रहा. प्राची व धर्मवीर ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का किसी को पता न चले, लेकिन इश्क की खुशबू भला कौन रोक पाया है.

प्राची के रंगढंग देख कर उस के पिता पृथ्वीराज को शक हुआ तो उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए अपनी पत्नी ऊषा को कह दिया. ऊषा ने उस पर नजर रखी तो उस ने प्राची को धर्मवीर से इश्क करते देख लिया. जब पृथ्वीराज को पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस समय प्राची घर पर ही थी. उस ने प्राची को आवाज दे कर बुलाया, जब वह उस के पास आ गई तो वह बोला, ‘‘क्यों री, यह मैं क्या सुन रहा हूं कि तू धर्मवीर से इश्क लड़ाती घूम रही है.’’

पिता के मुंह से यह बात सुन कर प्राची चौंक गई. वह समझ गई कि किसी ने उस के पिता से उस की व धर्मवीर की चुगली कर दी है. फिर भी पिता से झूठ बोलना प्राची के बस में नहीं था, इसलिए वह पिता से बोली, ‘‘हां पापा, बात यह है कि हम दोनों आपस में मोहब्बत करते हैं और अगर आप की इजाजत हो तो विवाह करना चाहते हैं.’’

प्राची ने यह कहा तो मानो पूरे घर में भूचाल आ गया. पृथ्वीराज प्राची पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने प्राची की खूब पिटाई की और उसे हिदायत दी कि अगर उस ने दोबारा धर्मवीर से मिलनेजुलने की कोशिश की तो उस का परिणाम अच्छा नहीं होगा. प्राची की मां ऊषा ने भी समाजबिरादरी का हवाला दे कर प्राची को समझाया. उधर प्राची व धर्मवीर के इश्क की बात धर्मवीर के घर वालों को पता चली तो उन्होंने भी धर्मवीर को प्राची से नाता तोड़ लेने का फरमान सुना दिया. प्राची व धर्मवीर पर सख्त पाबंदियां लगा दी गईं. वे जल बिन मछली की तरह तड़प उठे. दरअसल, प्राची धर्मवीर के दिलोदिमाग पर नशा बन कर छा चुकी थी. उस के सौंदर्य ने धर्मवीर पर जादू सा कर दिया था.

उधर प्राची का भी यही हाल था, उस के खयालों में धर्मवीर के अलावा और कुछ आता ही नहीं था. हर समय वह धर्मवीर से मिलने को बेकरार रहती थी. कहते हैं कि प्रेम में जितनी लंबी जुदाई होती है, प्यार उतना ही गहरा होता है. घर वालों की बंदिशें धर्मवीर व प्राची के प्यार को कम नहीं कर सकीं. जब उन की प्रेम अगन बढ़ती चली गई तो उन्होंने मिलने का एक अनोखा रास्ता खोज लिया. एक दिन धर्मवीर ने प्राची को संदेश भिजवाया कि वह दिन छिपने के बाद उस से जंगल में आ कर मिले. धर्मवीर का संदेश पा कर प्राची उस जगह दौड़ी चली गई, जहां धर्मवीर ने मिलने के लिए बुलाया था. दोनों ने गले मिल कर अपने गिलेशिकवे दूर किए. इस के बाद दोनों यही क्रम दोहराने लगे.

एक बार फिर से दोनों का मिलन बदस्तूर शुरू हो गया. इधर प्राची ने घर में धर्मवीर का नाम लेना तक बंद कर दिया था, जिस के चलते पृथ्वीराज ने सोच लिया कि बेटी के सिर से इश्क का भूत शायद उतर गया है. धर्मवीर के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे तब धर्मवीर और प्राची को इस का पता चला तो उन के होश उड़ गए. धर्मवीर के घर वाले भी किसी कीमत पर प्राची को अपने घर की बहू स्वीकारने को तैयार नहीं थे. प्राची के पिता पृथ्वीराज ने भी साफसाफ कह दिया कि वह अपनी बेटी को कुएं में धक्का दे देगा लेकिन उस का हाथ धर्मवीर के हाथ में नहीं देगा.

अगले दिन प्राची जब धर्मवीर से मिली तो बोली, ‘‘कुछ करो धर्मवीर, अगर हम यूं ही खामोश बैठे रहे तो एकदूसरे से जुदा कर दिए जाएंगे और मैं तुम से जुदा हो कर जिंदा नहीं रहना चाहती. अगर तुम मुझे नहीं मिले तो मैं जहर खा कर जान दे दूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते प्राची, हम ने पाक मोहब्बत की है. हमारी मोहब्बत जरूर कामयाब होगी.’’ धर्मवीर प्राची के हाथ को अपने हाथ में ले कर बोला तो प्राची के मन को तसल्ली हुई.

9 दिसंबर, 2019 की सुबह लगभग साढ़े 8 बजे प्राची घर का कूड़ा गांव के बाहर घूरे पर डालने गई. काफी समय बीत गया, वह नहीं लौटी तो उस के मातापिता ने उसे पूरे गांव में तलाशा, लेकिन उस का कोई पता नहीं लगा. काफी तलाशने के बाद भी जब प्राची का नहीं मिली तो 10 दिसंबर को पृथ्वीराज ने थाना पटवाई में बेटी के लापता होने की सूचना दी. साथ ही उन्होंने गांव के ही धर्मवीर पर शक जताया. इस सूचना पर थानाप्रभारी इंद्र कुमार ने थाने में प्राची की गुमशुदगी की सूचना लिखा दी. थानाप्रभारी ने धर्मवीर के बारे में पता करवाया तो वह भी घर से गायब मिला. उस की सुरागरसी के लिए उन्होंने अपने मुखबिरों को लगा दिया. 15 दिसंबर को पटवाई चौराहे से थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने धर्मवीर को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब धर्मवीर से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने प्राची की हत्या कर लाश छिपाने का जुर्म स्वीकार कर लिया. इतना ही नहीं पुलिस ने धर्मवीर की निशानदेही पर गांव के बाहर घूरे में दबी सीमा की लाश भी बरामद करा दी. प्राची की लाश क्षतविक्षत हालत में थी. उस का एक हाथ गायब था. अनुमान लगाया कि शायद कुत्तों ने उस की लाश को नोंच खाया होगा. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस धर्मवीर को ले कर थाने आ गई. इस के बाद प्राची के पिता पृथ्वीराज की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पूछताछ में हत्या की जो वजह निकल कर आई, वह कुछ इस तरह थी—

धर्मवीर और प्राची के घरवाले जब उन की शादी के लिए तैयार नहीं हुए तो इस प्रेमी युगल की चिंता बढ़ गई. तब धर्मवीर ने प्राची से वादा किया, ‘‘प्राची मैं घर वालों के कहने पर दूसरी लड़की से विवाह तो कर लूंगा लेकिन मैं सच्चे दिल से तुम्हारा ही रहूंगा. हमारा रिश्ता भले ही दुनिया की नजर में अलग हो जाए, लेकिन हम हमेशा एक रहेंगे. विवाह के बाद भी मैं तुम्हारा ही बना रहूंगा.’’

धर्मवीर के इस वादे पर प्राची को पूरा भरोसा था. इस के अलावा उन के पास अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए कोई रास्ता ही नहीं बचा था. धर्मवीर के लिए जो रिश्ते आ रहे थे, उन में से धर्मवीर के परिजनों को एक रिश्ता भा गया. वह था रामपुर के मिलक थाना क्षेत्र के ऊंचा खाला निवासी नीलम का. नीलम अब अपने परिवार के साथ मुरादाबाद में रह रही थी. बात आगे बढ़ी तो दोनों का रिश्ता पक्का कर दिया गया. 19 अप्रैल, 2019 को धर्मवीर और नीलम का विवाह संपन्न हो गया. नीलम काफी सुंदर, शिक्षित व गुणवती थी. उस ने धर्मवीर के परिवार में आते ही अपनी बातों व कार्यों से सब का दिल जीत लिया.

उस में धर्मवीर भी था. नीलम के आने से धर्मवीर के दिलोदिमाग से प्राची के इश्क का भूत उतरने लगा था. लेकिन उस ने प्राची से संबंध खत्म नहीं किए थे. एक तरह से वह दो नावों की सवारी कर रहा था. ऐसे में उस का डूबना निश्चित था. नीलम को कुछ ही दिनों में पति की हकीकत पता लग गई कि वह कैसे उसे धोखा दे रहा है. कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन शौहर का बंटवारा बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकती. बीवी के रहते पति पराई औरत से इश्क लड़ाए, यह बात नीलम को पसंद नहीं थी. लिहाजा वह घर छोड़ कर मायके चली गई. धर्मवीर ने नीलम को काफी मनाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी.

इधर प्राची को पता चला तो वह धर्मवीर पर खुद से विवाह करने का दबाव बनाने लगी. इस से धर्मवीर परेशान हो गया. वह नीलम को हर हाल में घर वापस लाना चाहता था. इसी बीच 3 दिसंबर, 2019 को नीलम ने मुरादाबाद के महिला थाने में धर्मवीर के खिलाफ उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया. 8 दिसंबर को मुरादाबाद पुलिस धर्मवीर के घर आई, वह घर पर नहीं था. मुरादाबाद पुलिस पूछताछ कर के वापस लौट गई. सब कुछ धर्मवीर की बरदाश्त के बाहर हो गया. उस ने प्राची से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. 9 दिसंबर की सुबह उस ने प्राची को मिलने के लिए गांव के बाहर बुलाया. प्राची घर का कूड़ा घूरे पर फेंकने के बहाने घर से निकली.

घूरे के पास धर्मवीर उसे खड़ा मिल गया. प्राची के आते ही धर्मवीर ने उसे दबोच लिया और हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस की लाश घूरे में दबा दी और वहां से फरार हो गया. लेकिन वह कानून की गिरफ्त से अपने आप को न बचा सका. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इंसपेक्टर इंद्र कुमार ने उसे सीजेएम कोर्ट में पेश किया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

प्राची परिवर्तित नाम है.

Love Crime Stories : प्रेमिका को सिंदूर भरने के बहाने बाग में ले गया और पैट्रोल डालकर जिंदा जलाया

Love Crime Stories : वंशिका गुप्ता और अतुल गुप्ता के परिवार की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. लेकिन लालची स्वभाव के अतुल के पिता पारसनाथ गुप्ता ने अतुल की शादी वंशिका के बजाय किसी और लड़की से तय कर दी. इस के बाद जो हुआ वो…

दिलीप गुप्ता बहुत बेचैन थे. उन की नजरें बारबार कलाई घड़ी की ओर चली जाती थीं, समय देखते तो उन की बेचैनी बढ़ जाती. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वंशिका ने आने में इतनी देर कैसे कर दी. बेटी के बारे में सोचसोच कर उन के माथे की सिलवटें और भी गहरी होती जा रही थीं. उन की 21 वर्षीया बेटी वंशिका महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी (तृतीय वर्ष) की छात्रा थी. 1 फरवरी, 2020 को वह सुबह 10 बजे कालेज जाने के लिए घर से निकली थी. उसे हर हाल में 3 बजे तक वापस घर आ जाना चाहिए था, लेकिन अब शाम के 5 बज चुके थे, वह घर नहीं लौटी थी. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. दिलीप गुप्ता इसलिए बेचैन थे.

दिलीप गुप्ता की परेशानी तब और बढ़ गई, जब शाम 6 बजे उन के मोबाइल पर किसी अनजान फोन नंबर से एक एसएमएस आया. मैसेज में लिखा था, ‘अंकल, वंशिका का अपहरण हो गया है.’ मैसेज पढ़ कर दिलीप गुप्ता घबरा गए. उन की पत्नी रजनी ने तो रोना शुरू कर दिया. वह बारबार कह रही थी कि वंशिका जरूरी काम से कालेज गई थी. वह अपहर्त्ताओं के चक्कर में कैसे फंस गई. दिलीप गुप्ता ने मैसेज भेजने वाले मोबाइल फोन पर काल लगाई, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से पतिपत्नी की धड़कनें बढ़ गईं. वंशिका की वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. ऐसे समय में उस का अपहरण हो जाने से अतुल गुप्ता का परिवार स्तब्ध रह गया.

दिलीप गुप्ता की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी, इसलिए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उन की बेटी का फिरौती के लिए अपहरण हुआ है. इसी अविश्वास की वजह से वह अपने परिजनों के साथ बेटी की खोज में जुट गए. बछरावां कस्बे में वंशिका की कई सहेलियां थीं. वह उन के घर गए. कई से मोबाइल फोन पर जानकारी जुटाई. इस के अलावा उन्होंने बसअड्डे व नातेरिश्तेदारों के यहां वंशिका की खोज की, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. गुप्ता पूरी रात बेटी की खोज में जुटे रहे. 2 फरवरी की सुबह 8 बजे दिलीप गुप्ता बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बछरावां जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन की नजर अखबार में छपी एक खबर पर पड़ी. खबर पढ़ कर उन का दिल कांप उठा, मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

खबर के मुताबिक, रायबरेली के हरचंदपुर थाना क्षेत्र के शोरा गांव स्थित एक ढाबे के पीछे यूकेलिप्टस के बाग में पुलिस को एक युवती की अधजली लाश मिली थी, जिस की पहचान नहीं हो पाई थी. खबर में कुछ पहचान वाली बातें भी छपी थीं. दिलीप गुप्ता को शक हुआ कि कहीं लाश उन की बेटी की तो नहीं. इस जानकारी के बाद वह पत्नी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ थाना हरचंदपुर जा पहुंचे. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह उस समय थाने में ही थे और सहयोगी पुलिसकर्मियों से अज्ञात लाश के बारे में चर्चा कर रहे थे. दिलीप गुप्ता ने उन्हें परिचय दिया और बेटी की गुमशुदगी की जानकारी दे कर बरामद शव को देखने की इच्छा जताई.

शिनाख्त हेतु युवती के शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया था. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह दिलीप गुप्ता व उन के घर वालों को पोस्टमार्टम हाउस ले गए. युवती का अधजला शरीर सामने आया तो घर वाले चीख पड़े. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने उन्हें सांत्वना दे कर लाश की पहचान कराई. परिवार के लोगों ने चेहरे से शिनाख्त करने में असमर्थता जताई. फिर उस के कपड़ों और पहनावे से अंदाजा लगाया. पैरों की नेल पौलिश, कान में सोने की बाली, जूड़ा बांधने का तरीका, नाक में छोटी नथुनी, जींस के कपड़े और जूतों से मातापिता ने लाश पहचान ली. मृतका उन की बेटी वंशिका ही थी.

अनिल कुमार सिंह मृतका के पिता दिलीप गुप्ता और मां रजनी गुप्ता को थाना हरचंदपुर ले आए. सब से पहले उन्होंने लाश की शिनाख्त हो जाने की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी. सूचना पाते ही वह थाने आ गए. उन्होंने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से विस्तृत पूछताछ की. दिलीप गुप्ता ने बताया कि उन्हें एक रिश्तेदार अतुल गुप्ता पर शक है, जो उन की बेटी वंशिका को परेशान करता था. कुछ दिन पहले उस ने वंशिका के कालेज में उस के साथ मारपीट भी की थी, साथ ही धमकी भी दी थी. यह मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही अतुल व उस के घर वालों ने माफी मांग कर मामले को रफादफा कर दिया था.

अतुल उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के शिवरतनगंज थाने के अहोरवा भवानी का रहने वाला था. वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी पारसनाथ का बेटा है. शक है कि रंजिशन अतुल गुप्ता ने अपने अन्य साथियों के साथ मिल कर वंशिका की हत्या की है. दिलीप गुप्ता ने दूसरा शक वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव पर जताया. उन्होंने बताया कि वंशिका उस के साथ खूब हिलीमिली थी. कल भी वह वंशिका के साथ ही कालेज गई थी. उस ने ही कल उस के मोबाइल पर वंशिका के अपहरण का मैसेज भेजा था. फिर उस ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था. अंजलि श्रीवास्तव बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां के साथ रहती थी. उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.

3 फरवरी की सुबह लोगों ने अखबारों में बीएससी की छात्रा वंशिका को पैट्रोल छिड़क कर जिंदा जलाने की खबर अखबारों में पढ़ी तो बछरावां की जनता सड़कों पर उतर आई. सामाजिक संगठन, कालेज की छात्राएं, स्कूल छात्राएं और व्यापारी घटना के विरोध में धरनाप्रदर्शन करने लगे. मासूम बच्चों ने जहां रैली निकाल कर वंशिका के लिए न्याय की गुहार लगाई, जबकि कालेज की छात्राओं ने वंशिका के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. सामाजिक संगठन की महिलाओं ने भी सड़क पर जोरदार प्रदर्शन किया.

बछरावां की जनता और व्यापारियों ने तो राष्ट्रीय राजमार्ग-30 को जाम कर दिया. लोग सड़क पर लेट कर प्रदर्शन करने लगे. लोगों को सरकार और पुलिस पर गुस्सा था. वे नारे लगा रहे थे, ‘बिटिया हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं. पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद मुर्दाबाद.’ वे लोग जल्द से जल्द हत्यारों को गिरफ्तार कर के उन्हें फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे. जाम तथा बड़े प्रदर्शन से पुलिस के हाथपांव फूल गए. इंसपेक्टर पंकज तिवारी भारीभरकम फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने उग्र प्रदर्शन की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी तो वह मौके पर आ गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाने का प्रयास किया.

उन्होंने आश्वासन दिया कि हत्या से जुड़े कुछ लोगों के नाम सामने आए हैं. हत्या का जल्द खुलासा होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मारपीट या रेप की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन की बात पर भरोसा नहीं किया. लगभग 3 घंटे की जद्दोजेहद के बाद क्षेत्रीय भाजपा विधायक रामनरेश रावत को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाया कि सरकार की ओर से मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी. साथ ही यह भी कि वंशिका के कातिल जल्द पकड़े जाएंगे. विधायक के आश्वासन पर प्रदर्शन समाप्त हो गया.

चूंकि वंशिका हत्याकांड ने पुलिसप्रशासन की नींद हराम कर दी थी, इसलिए एसपी स्वप्निल ममगाई ने मामले को गंभीरता और चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने वंशिका हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थाना हरचंदपुर इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह, थाना बछरावां इंसपेक्टर पंकज तिवारी, थाना शिवगढ़ इंसपेक्टर राकेश सिंह, महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी, सीओ (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (महराजगंज) राघवेंद्र चतुर्वेदी और सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास को शामिल किया गया. पुलिस टीम की कमान एएसपी नित्यानंद राय को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास ने पहली फरवरी को घटनास्थल पर सक्रिय 2 नंबरों को संदिग्ध पाया. इन नंबरों की जानकारी जुटाई गई तो इन में एक नंबर अतुल गुप्ता का था और दूसरा ललित गुप्ता का. दोनों अमेठी के कस्बा अहोरवा भवानी, थाना शिवरतनगंज के रहने वाले थे. अतुल गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि घटना वाले दिन अतुल एक नंबर पर कई घंटे संपर्क में रहा. इस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो वह नंबर अंजलि श्रीवास्तव, शांतिनगर, बछरावां (रायबरेली) के नाम था.

पुलिस टीम ने अंजलि श्रीवास्तव और अतुल के संबंध में मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अंजलि श्रीवास्तव उन की बेटी की फ्रैंड है और अतुल गुप्ता उन का रिश्तेदार. अतुल बेटी को परेशान करता था और अंजलि भी विश्वसनीय नहीं है. उन दोनों पर उन्हें शक है. अंजलि और अतुल पुलिस की रडार पर आए तो पुलिस टीम ने दोनों को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाना हरचंदपुर ले आई. पुलिस टीम में शामिल महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी अंजलि श्रीवास्तव  को पूछताछ वाले कमरे में ले गईं और बोली, ‘‘अंजलि, सचसच बताओ, वंशिका को किस ने जला कर मारा. मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हें सब मालूम है.’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम. कालेज में वह मिली जरूरी थी, पर उस का अपहरण किस ने किया या उसे किस ने जला कर मारा, मुझे पता नहीं.’’

‘‘चालाक मत बनो अंजलि, अतुल के मोबाइल से यह बात पता चल गई है कि तुम उस के संपर्क में थी और तुम्हें सब पता है.’’

यह सुन कर अजलि का चेहरा फक पड़ गया. वह सिर झुका कर बोली, ‘‘मैडम, मैं अतुल के संपर्क में जरूर रही, पर जो किया अतुल ने किया. वह वंशिका की मांग में सिंदूर भरने के बहाने उसे कार में बिठा कर ले गया था.’’

अंजलि के टूटने के बाद अब बारी अतुल की थी. पुलिस टीम अतुल को पूछताछ कक्ष में ले गई. उस से पूछा गया, ‘‘अतुल, तुम ने वंशिका की हत्या क्यों की? तुम्हारे साथ और कौन था? वैसे तो अंजलि ने सब कुछ बता दिया है, लेकिन हम तुम्हारे मुंह से जानना चाहते हैं.’’

पहले तो अतुल गुप्ता अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से मुकरता रहा, लेकिन पुलिस टीम ने जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अतुल ने बताया कि वंशिका उस पर शादी करने का दबाव बना रही थी, जबकि उस की शादी 25 फरवरी, 2020 को किसी दूसरी लड़की से होनी तय हो गई थी. वंशिका जब उसे समाज में बदनाम करने तथा जिंदगी तबाह करने की धमकी देने लगी तो उस ने वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में उस ने वंशिका की खास सहेली अंजलि श्रीवास्तव व अपने चचेरे भाई ललित गुप्ता, ममेरे भाई कृष्णचंद गुप्ता उर्फ धीरू को भी शामिल कर लिया. धीरू महाराजगंज थाने के गांव डेपार मऊ का रहने वाला है.

4 फरवरी की रात पुलिस टीम ने अहोरवा भवानी स्थित ललित गुप्ता के घर छापा मारा. पुलिस को देख कर ललित कंबल ओढ़ कर तख्त के नीचे छिप गया लेकिन वह पुलिस की निगाह से नहीं बच सका. ललित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने सुबह 4 बजे महाराजगंज थाने के गांव डेपारमऊ में धीरू के घर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. धीरू के न मिलने पर पुलिस टीम थाना हरचंदपुर लौट आई. थाने में ललित ने अतुल को हवालात में देखा तो उस का चेहरा मुरझा गया. पूछताछ में ललित ने पहले तो गुनाह से इनकार किया, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. धीरू को पुलिस काफी प्रयास के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पाई.

अभियुक्त अतुल गुप्ता और ललित गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस टीम ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस पर झांसा दे कर वंशिका को ले जाया गया था. यह कार दुर्गेश के नाम रजिस्टर्ड थी, जो अतुल का रिश्तेदार था. वह घूमने जाने का बहाना कर कार लाया था. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल रस्सी, पैट्रोल की 5 लीटर की खाली कैन, क्लोरोफार्म की खाली शीशी व सिंदूर की डब्बी भी कार से बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने आरोपियों के पास से 4 मोबाइल फोन भी बरामद किए. पुलिस टीम ने वंशिका गुप्ता हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. यह खबर मिलते ही एसपी स्वप्निल ममगाई व एएसपी नित्यानंद राय थाना हरचंदपुर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ की फिर खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई, साथ ही टीम को 25 हजार रुपया पुरस्कार देने की घोषणा की. इस के बाद एसपी स्वप्निल ममगाई ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया. चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थाना हरचंदपुर प्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता, कृष्णचंद उर्फ धीरू गुप्ता और अंजलि श्रीवास्तव के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. इन में अतुल, ललित तथा अंजलि श्रीवास्तव को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक दिलजले प्रेमी की हैवानियत की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर दूर लखनऊ-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर है कस्बा बछरावां. यह रायबरेली जिले का औद्योगिक कस्बा है. इसी बछरावां कस्बे के सब्जीमंडी में दिलीप कुमार गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी रजनी गुप्ता के अलावा 4 संतानों में से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इन में वंशिका सब से बड़ी थी. दिलीप की पान की दुकान है. दुकान से होने वाली आय से ही परिवार का भरणपोषण करते थे. समाज में उन की अच्छी पैठ थी. दिलीप गुप्ता की बेटी वंशिका अपने अन्य भाईबहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह दिखने में सुंदर थी. उस का दूधिया गोरा रंग, नैननक्श, इकहरा बदन और लंबा कद सभी को आकर्षित करता था. उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से उसे सभी पसंद करते थे.

दिलीप गुप्ता व उन की पत्नी रजनी, वंशिका को बहुत चाहते थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही अच्छी नहीं थी, लेकिन वह वंशिका की हर फरमाइश पूरी करते थे. वंशिका ने भी अपने मांबाप को कभी निराश नहीं किया था. वह पढ़ने में मेधावी थी. इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मांबाप की इजाजत के बाद वंशिका ने बछरावां से 15 किलोमीटर दूर महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी में प्रवेश ले लिया था. आवागमन के साधन होने की वजह से वंशिका को महाविद्यालय पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के साथ कस्बे की अनेक लड़कियां पढ़ने जाती थीं.

वंशिका गुप्ता की वैसे तो कई फ्रैंड थीं, लेकिन उसी की क्लास में पढ़ने वाली अंजलि श्रीवास्तव ज्यादा घनिष्ठ थी. अंजलि बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां व छोटी बहन के साथ किराए के मकान में रहती थी, उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे. वंशिका व अंजलि हमउम्र थीं. दोनों घर से ले कर पढ़ाईलिखाई तक की बातें एकदूसरे से शेयर करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.  वंशिका ने बीएससी की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास कर के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. वह प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करना चाहती थी, सो वह खूब मना लगा कर पढ़ने लगी. उस ने कालेज जाना कम कर दिया था और घर में ही पढ़ाई करने लगी थी. उस ने कस्बे के कोचिंग में पढ़ना भी शुरू कर दिया था.

उन्हीं दिनों एक शादी समारोह में वंशिका की मुलाकात अतुल गुप्ता से हुई. वंशिका अपने मातापिता के साथ अमेठी के थाना शिवरतनगंज क्षेत्र के कस्बा अहोरवां भवानी निवासी रिश्तेदार के घर शदी में आई थी. अतुल गुप्ता भी शादी में आया था. वह अहोरवां भवानी का ही रहने वाला था. वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. अतुल गुप्ता की नजर वंशिका पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस के दिल में उतर गई. वह उस से बात करना चाहता था. जब उसे मौका मिला तो वह वंशिका की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘आप अहोरवां भवानी की तो नहीं हैं, कहीं बाहर से आई हैं क्या?’’

‘‘मैं बछरावां की रहने वाली हूं. नाम है वंशिका. मैं अपने मातापिता के साथ शादी में शामिल होने आई हूं.’’ जब अतुल ने वंशिका का परिचय पूछा तो औपचारिक रूप से उस ने भी पूछ लिया, ‘‘आप ने तो मेरा परिचय जान लिया, लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’

अतुल गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं अहोरवां भवानी का ही रहने वाला हूं. नाम है अतुल गुप्ता. पिता का नाम पारसनाथ गुप्ता. कपड़े के व्यवसायी हैं. मैं भी दुकान पर बैठता हूं.’’

ऐसी ही हलकीफुलकी बातों के बीच अतुल और वंशिका का परिचय हुआ, जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में अतुल वंशिका के मोबाइल पर फोन कर के उस से बातें करने लगा. वंशिका को भी अतुल का स्वभाव अच्छा लगा, वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अतुल गुप्ता ने इन नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाया. वह वंशिका के कालेज पहुंचने लगा. कभीकभी वह उसे अपने साथ घुमाने के लिए बाहर भी ले जाने लगा. दोनों घूमने जाते तो अच्छे दोस्तों की तरह खुल कर दिल की बातें करते.

कुछ ही मुलाकातों में वंशिका को लगने लगा कि अतुल ही उस का भावी जीवनसाथी बनेगा. परिणामस्वरूप दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. अब तक वंशिका बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा पास कर अंतिम वर्ष में पहुंच गई थी. एक दिन वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव ने उसे किसी युवक के साथ हंसतेबतियाते देखा तो बाद में उस ने पूछा, ‘‘वंशिका, वह लड़का कौन था, जिस से तुम हंसहंस कर बातें कर रही थी?’’

वंशिका हौले से मुरा कर बोली, ‘‘अंजलि, तू मेरी सब से अच्छी फ्रैंड है. तुझ से मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस का नाम अतुल गुप्ता है, धनाढ्य कपड़ा व्यापारी का बेटा है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. मुझे लगता है अतुल ही मेरा भावी जीवनसाथी होगा.’’

बाद में वंशिका ने अतुल गुप्ता से अंजलि का भी परिचय करा दिया. अंजलि दोनों के प्यार की राजदार बनी तो वह उन दोनों का सहयोग करने लगी. वंशिका और अतुल का प्यार दिन पर दिन बढ़ने लगा. वंशिका को अतुल से बात किए बिना सकून नहीं मिलता था. अतुल का भी यही हाल था. वंशिका के मातापिता को जब दोनों के बढ़ते प्यार की जानकारी हुई तो उन्हें ताज्जुब हुआ कि वंशिका ने इस बारे में उन्हें बताया क्यों नहीं. पूछने पर वंशिका ने साफ कह दिया कि वह अतुल से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी. दिलीप गुप्ता ने बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, ठीक है कि अतुल अच्छा लड़का है. हमारा दूर का रिश्तेदार भी है. लेकिन हमारी और उन लोगों की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर है. मेरी पान की छोटी सी दुकान है और वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी.

मुझे डर है कि कहीं वह तुम्हें मंझधार में न छोड़ दे.’’ रजनी ने भी वंशिका को समझाया, लेकिन अतुल के प्यार में अंधी हो चुकी वंशिका को मांबाप की बात समझ में नहीं आई. दूसरी ओर पारसनाथ गुप्ता को जब पता चला कि उन का बेटा अतुल बछरावां के साधारण पान विक्रेता दिलीप गुप्ता की बेटी के प्यार में है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘बेटा, रिश्ता बराबरी का अच्छा होता है. तुम्हारी और उस की हैसियत में बड़ा अंतर है. हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है. तुम उसे भूल जाओ, इसी में सब की भलाई है.’’

अतुल ने पिता की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उसे लगा कि वह ठीक कह रहे हैं. अत: उस ने वंशिका से दोस्ती खत्म करने का निश्चय कर लिया और उस से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वंशिका जब भी फोन करती तो वह रिसीव नहीं करता था. बारबार फोन करने पर वह रिसीव करता और वंशिका उलाहना देती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता. पारसनाथ गुप्ता ने अतुल में परिवर्तन पाया तो उन्होंने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया. 25 फरवरी, 2020 की शादी की तारीख भी तय कर दी गई. अतुल ने इस रिश्ते का कोई विरोध नहीं किया बल्कि मौन स्वीकृति दे दी.

नवंबर, 2019 में वंशिका को पता चला कि अतुल के मांबाप ने उस की शादी तय कर दी है और 25 फरवरी की शादी की तारीख भी तय हो गई है. यह पता चलते ही वंशिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे अपना सपना टूटता नजर आया तो उस ने अतुल से मुलाकात की और पूछा, ‘‘अतुल, जो बात मैं ने सुनी है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां वंशिका, तुम ने जो सुना, वह सच है. मातापिता ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो क्या?’’ उस की बात सुन कर वंशिका तीखे स्वर में बोली, ‘‘अगर यह सच है तो फिर मेरे साथ घंटों प्यार भी बातें करना, दिनदिन भर मेरे साथ घूमनाफिरना क्या था?’’

‘‘वह दोस्ती थी. तुम चाहो तो यह दोस्ती मेरी शादी के बाद भी जारी रख सकती है.’’

‘‘अतुल, तुम्हारे लिए यह दोस्ती भर होगी, मैं तो तुम से प्यार करती हूं. मैं शादी करूंगी तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारी बैठी रहूंगी. तुम भी कान खोल कर सुन लो, अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं तुम्हें समाज में बदनाम कर दूंगी. झूठे मामलों में फंसा दूंगी, समझे.’’

अतुल ने वंशिका से उलझना ठीक नहीं समझा. वह घर वापस आ गया. इस के बाद वह वंशिका की धमकी से परेशान रहने लगा. दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं और उन का प्यार नफरत में बदलने लगा. जनवरी, 2020 में पहले हफ्ते में एक रोज वंशिका ने अतुल को फोन कर धमकी दी कि अगर उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया तो वह उसे भी दूल्हा नहीं बनने देगी, शादी में हंगामा कर शादी तुड़वा देगी. उस रोज अतुल पहले से ही तनाव में था. गुस्से में वह वंशिका के कालेज पहुंचा. वहां वादविवाद हुआ तो उस ने वंशिका के गाल पर 2 थप्पड़ जड़ दिए. कालेज में सार्वजनिक अपमान से वंशिका तिलमिला उठी. उस ने घर आ कर यह जानकारी मांबाप को दी. दिलीप गुप्ता इस बारे में बात करने अतुल के घर पहुंचे और उस के पिता पारसनाथ गुप्ता से बेटी को प्रताडि़त करने की शिकायत की.

बेटे की गलती पर पारसनाथ गुप्ता ने दिलीप के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. उन्होंने अतुल को भी माफी मांगने पर विवश कर दिया. इस के बाद मामला रफादफा हो गया. अतुल ने माफी मांग कर मामला रफादफा जरूर कर दिया था, लेकिन उस का तनाव कम नहीं हुआ था. वह जानता था कि वंशिका को समझाना आसान नहीं है. इसलिए वह वंशिका से निजात पाने की सोचने लगा. पिता द्वारा हाथ जोड़ कर माफी मांगना भी उस के क्रोध को बढ़ा रहा था. अतुल की अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई कृष्णचंद उर्फ धीरू से खूब पटती थी. अतुल ने जब यह बात उन्हें बताई तो तीनों ने मिल कर खूब सोचा कि वंशिका से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अंतत: तय हुआ कि वंशिका को ही मिटा दिया जाए.

इस के बाद तीनों ने मिल कर वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव को भी आर्थिक प्रलोभन दे कर शामिल किया गया. अंजलि को वंशिका की सुरागरसी का काम सौंपा गया ताकि वह उस की गतिविधियों की जानकारी देती रहे. पहली फरवरी, 2020 की सुबह 9 बजे अंजलि श्रीवास्तव ने अतुल को मैसेज किया कि वंशिका और वह महावीर सिंह महाविद्यालय जा रही हैं. वहीं से वह वंशिका को ले कर गंगागंज आएगी. वह वहीं आ जाए. अंजलि का मैसेज मिलते ही अतुल सक्रिय हो गया. वह घूमने जाने का बहाना कर अपने रिश्तेदार दुर्गेश की कार ले आया. फिर वह अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई धीरू के साथ अहोरा भवानी से कार से निकल पड़ा.

इन लोगों ने मैडिकल स्टोर से क्लोरोफार्म की शीशी तथा बाजार से रस्सी व सिंदूर की डब्बी खरीदी, साथ ही रतापुर स्थित पैट्रोलपंप से कैन में 5 लीटर पैट्रोल भरवा लिया. उस के बाद तीनों गंगागंज आ गए. वहां तीनों वंशिका और अंजलि का इंतजार करने लगे. दूसरी ओर वंशिका और अंजलि बछरावां से सुबह 10 बजे निकलीं और 11 बजे कालेज पहुंचीं. दोनों एक घंटा कालेज में रुकीं. दोनों 12 बजे कालेज से निकलीं. अंजलि घूमने के बहाने वंशिका को गंगागंज ले आई. इस बीच अंजलि फोन पर अतुल के संपर्क में रही और मैसेज भेजती रही. गंगागंज पहुंचने पर अंजलि ने अतुल को मैसेज किया तो वह उस के बताए होटल पर पहुंच गया. उस समय दोनों समोसा खा रही थीं.

अतुल को देख कर अंजलि बोली, ‘‘वंशिका, वह देखो अतुल कार में बैठा है. चलो उस से मिल लेते हैं.’’

वंशिका ने पहले तो मना किया फिर अंजलि के समझाने पर वह कार के पास जा पहुंची. वंशिका पहुंची तो अतुल बोला, ‘‘वंशिका, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं चाहता हूं कि आज ही तुम्हारी मांग भरूं. देखो, सिंदूर की डब्बी भी साथ लाया हूं. तुम मेरे साथ मंदिर चलो.’’

अतुल की बात पर वंशिका को विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन सिंदूर देख कर उस का प्यार उमड़ पड़ा और वह उस की कार में बैठ गई. वंशिका के बैठते ही कार चल पड़ी. कार को ललित चला रहा था और वंशिका अतुल तथा धीरू पीछे की सीट पर बैठे थे. छलिया प्रेमी के खतरनाक इरादों से अनजान वंशिका जैसे ही अतुल के सीने से लगी, तभी उस की हैवानियत शुरू हो गई. उस ने क्लोरोफार्म की शीशी निकाली और वंशिका को सुंघा दी. कुछ क्षण बाद ही वंशिका बेहोश हो गई. इस के बाद अतुल और धीरू ने मिल कर वंशिका के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. ललित ने गंगागंज से लगभग 3 किलोमीटर दूर शेरागांव के पास गोपाल ढाबे के पीछे सुनसान जगह पर कार रोकी.

सामने यूकेलिप्टस का बाग था. अतुल और धीरू हाथपैर बंधी बेहोश वंशिका को कार से उठा कर बाग में ले गए और पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया. बेहोशी के कारण वंशिका चिल्ला भी न सकी. घटना को अंजाम देने के बाद तीनों फरार हो गए. वंशिका की सहेली अंजलि गंगागंज से ही वापस अपने घर चली गई थी. शाम 4 बजे के लगभग शेरागांव के लोगों ने बाग में अधजली लाश देखी तो थाना हरचंदपुर को सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह पहुंचे तो युवती की अधजली लाश देख कर उन की रूह कांप उठी. सूचना पा कर एसपी स्वप्निल ममगाई, एएसपी नित्यानंद राय तथा सीओ गोपीनाथ सोनी भी घटनास्थल पर गए. शव की शिनाख्त न हो पाने पर शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.

दूसरे रोज पोस्टमार्टम हाउस में बछरावां निवासी पान विक्रेता दिलीप गुप्ता ने शव की पहचान अपनी 21 वर्षीया बेटी वंशिका के रूप में कर दी. उस के बाद तो हड़कंप मच गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो प्यार के प्रतिशोध में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए. 6 फरवरी, 2020 को थाना हरचंदपुर पुलिस ने अभियुक्त अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता तथा दगाबाज सहेली अंजलि श्रीवास्तव को रायबरेली की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : भाभी के प्यार में पागल छोटे भाई ने की बड़े भाई की हत्या

Extramarital Affair : संदीप को शराब पीने की लत थी, इस से उस की पत्नी अमनदीप परेशान रहती थी. इसी परेशानी के आलम में देवर गुरदीप से आंतरिक संबंध बन गए. अवैध संबंधों की परिणति छोटे भाई के हाथों बड़े भाई की हत्या के रूप में हुई. अगर अमनदीप…

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वाले गांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी. अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया. संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था. सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था.

उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं. संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है. कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी. इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं. लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती. ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था. संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती. एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी. गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी. उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया. लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी. दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया. किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई. संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया. इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Mumbai Crime : तौलिए से घोंट डाला प्रेमिका का गला

Mumbai Crime : ऐसे शादीशुदा युवकों की कमी नहीं है जो शहरों में जा कर नौकरी करते हैं और खुद को कुंवारा बताते समझते हैं. मिल जाए तो ऐसे लोग गर्लफ्रेंड से बीवी का काम चलाने लगते हैं. स्वप्न रोहिदास भी ऐसा ही युवक था. उस ने बार बाला रोजीना उर्फ रोशनी को पत्नी की तरह इस्तेमाल किया और जब उस ने अपने हक की बात की तो…

स्वप्न रोहिदास के लिए महानगर मुंबई एक अच्छा शहर था. खुले विचारों आधुनिकता और ग्लैमर के आवरण में लिपटा शहर. मुंबई आ कर उसे आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाने वाली एक कंपनी में काम मिल गया था. वहां काम करतेकरते वह ज्वैलरी बनाने का अच्छा कारीगर बन गया था. इस कंपनी की डिजाइन की गई ज्वैलरी फिल्म और सीरियल बनाने वाली प्रोडक्शन कंपनियों के लिए भी सप्लाई की जाती थी. स्वप्न को अच्छी सैलरी मिल रही थी, जिस से वह खुश रहता था. स्वप्न के मातापिता पश्चिम बंगाल स्थित गांव में रहते थे. स्वप्न हर महीने अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा उन्हें भेज देता था. बाकी बचे पैसे वह अपने ऊपर खर्च करता था. वह पैसे खानेपीने और अपनी मौजमस्ती पर खर्च करता था.

स्वप्न दिन भर काम करने के बाद शाम को जब अपने आवास पर आता तो फ्रैश हो कर अमूमन घूमने के लिए निकल जाता था उस की मंजिल ज्यादातर बीयर बार होती थी. देर रात तक बीयर बार में बैठना जैसे उस की दिनचर्या बन चुकी थी. उस का पसंदीदा बार संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट था. यह बीयर बार उसे इसलिए पसंद था क्योंकि वहां कई महिला वेटर बंगाल की थीं. एक रात स्वप्न रोहिदास बीयर बार में बैठा बीयर पी रहा था, तभी अचानक उस की निगाह एक खूबसूरत और कमसिन बाला पर गई, जो बंगाली थी और बार में बैठे कस्टमर को मुसकरा कर बीयर सर्व कर रही थी. उस के कपड़े आधुनिक और ग्लैमर से भरपूर थे.

वह स्वप्न की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. जब तक वह बीयर बार में रहा, उस की निगाहें उस बाला का ही पीछा करती रहीं. जब वह बार से लौटा तो घर में उसे चैन नहीं मिला. उस रात चाह कर भी वह सो नहीं सका. रात भर उस की आंखों के सामने वही बार बाला घूमती रही. वह यह भी भूल गया था कि उस की शादी हो चुकी है और वह एक बेटी का पिता है. अगले दिन वह थोड़ा जल्दी संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट पहुंच गया और उसी टेबल पर जा कर बैठा, जिसे वह लड़की अटेंड करती थी. स्वप्न के बैठते ही वह लड़की उस के पास आई और अपनी चिरपरिचित मुसकान के साथ उस के सामने मेन्यू कार्ड रख कर और्डर देने का आग्रह किया.

उस की मीठी आवाज सुन कर एक मिनट के लिए स्वप्न को कुछ नहीं सूझा फिर अपने आप को संभाल कर उस ने अपनी मनपसंद व्हिस्की के साथसाथ खाने का भी और्डर दे दिया. खानेपीने के बाद स्वप्न ने उस लड़की को अच्छी टिप दी और घर लौट आया. घर लौट कर वह बिस्तर पर लेटा तो जरूर, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. नशे की हालत में भी उस बाला का मुसकराता हुआ चेहरा सामने आ जाता था. वह उस की नजरों से एक मिनट के लिए भी ओझल नहीं हो पा रही थी. रात तो रात उसे दिन में भी चैन नहीं आया. काम के दौरान बारबार उस की छवि उस के सामने आ जाती थी. स्वप्न रोजाना बार में जा कर उसी टेबल पर जा कर बैठता और मौका मिलने पर उस बारबाला से बात करने की कोशिश करता.

उस बाला से परिचय हुआ तो पता चला उस का नाम रोजीना शेख उर्फ रोशनी है और वह उसी प्रांत और जिले की रहने वाली है, जहां का स्वप्न रोहिदास था. जानकारी के बाद तो उस का दिल बल्लियों उछलने लगा. वह अपने आप को रोक नहीं पाया, उस ने भी रोजीना शेख को अपना परिचय दे दिया. इतना ही नहीं उस ने रोशनी के सामने दोस्ती का प्रस्ताव भी रख दिया. स्वप्न रोहिदास रोजीना शेख की नजर में अच्छा युवक था. हैंडसम होने के साथ वह अच्छा पैसा भी कमाता था, इसलिए उस के साथ दोस्ती करने में उसे कोई संकोच नहीं हुआ. उस ने मुसकराते हुए स्वप्न का दोस्ती का आमंत्रण स्वीकार कर लिया. रोजीना शेख उर्फ रोशनी ने सोचा भी नहीं था कि अचानक उस की जिंदगी में कोई युवक आएगा और उस के दिलोदिमाग पर छा जाएगा.

उस दिन के बाद रोजीना और स्वप्न अकसर रोज मिलनेजुलने लगे. पहले तो उन का मिलने का ठिकाना संदेश बीयर बार ही था. दोनों रेस्टोरेंट चालू होने के पहले ही पहुंच जाते थे और मौका मिलने पर वहीं बातें हो जाती थीं. जब रोजीना की ड्यूटी खत्म हो जाती तो स्वप्न उसे उस के घर छोड़ कर आता था. जिस दिन रोजीना की छुट्टी होती, उस दिन स्वप्न उस के साथ ही रहता था. वह उसे रेस्टोरेंट, मौल ले जा कर उस पर खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. इस के अलावा उसे महंगे उपहार देता. यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा. रोजाना  ने देखा एक सपना रोजीना उसे अपना एक सच्चा दोस्त मानती थी, इसलिए वह दिन प्रतिदिन उस के करीब आती गई. वह स्वप्न के इतना करीब आ गई कि उस के साथ अपनी गृहस्थी बसाने के सपने देखने लगी.

एक दिन अपने दिल की यह बात उस ने स्वप्न को बताई तो उस का अस्तित्व डगमगा गया, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा था. वह रोजीना के साथ टाइम पास और मौजमस्ती के लिए जाता था. इस के अलावा उस का और कोई मकसद नहीं था. इसलिए वह रोजीना की बात को बड़ी सफाई से टाल गया, जिस से रोजीना के सारे सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए. उसे गहरा झटका तब लगा, जब उसे पता चला कि उस का प्रेमी शादीशुदा ही नहीं, बल्कि एक बच्ची का पिता भी है. इस के बाद रोजीना ने स्वप्न से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वह बार में स्वप्न का उतना ही सहयोग करती थी, जितना वह अपने अन्य ग्राहकों का करती थी.

चूंकि स्वप्न ने रोजीना के साथ खूब मौजमस्ती की थी, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह स्वप्न से इस का हरजाना वसूल करेगी. वह स्वप्न रोहिदास को धमकी देने लगी कि वह उस की पत्नी और परिवार वालों को अपने प्रेम और अवैध संबंधों की बात बता देगी. 32 वर्षीय स्वप्न रोहिदास पश्चिम बंगाल के जिला हावड़ा के तालुका शहापुर आमरदाहा गांव के रहने वाले परेश रोहिदास का बेटा था. उन का पूरा परिवार खेती पर निर्भर था. लेकिन महत्त्वाकांक्षी स्वप्न रोहिदास को खेती का काम पसंद नहीं था. वह ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था लेकिन आकांक्षाएं ऊंची थीं. वह शहर में रह कर नौकरी करना चाहता था. उस के गांव के कई दोस्त मुंबई में रहते थे. उन से बात कर के वह मुंबई आ गया था.

दोस्तों ने उस की मदद की और आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाने वाली एक कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. वहां काम करतेकरते वह ज्वैलरी डिजाइन का काम सीख कर कुशल कारीगर बन गया. उसे वहां से अच्छी तनख्वाह मिलने लगी. रहने के लिए उस ने दहिसर रावलपाडा में किराए का कमरा ले लिया था. स्वप्न जब ठीकठाक कमाने लगा तो घर वालों ने अपने इलाके की एक लड़की से उस की शादी कर दी. खूबसूरत पत्नी को पा कर स्वप्न खुश था. शादी के महीना भर बाद वह मुंबई चला गया क्योंकि उसे नौकरी भी करनी थी. लेकिन वह महीने 2 महीने में अपने घर आता रहता था. इसी तरह कई साल बीत गए और वह एक बेटी का पिता भी बन गया.

अकेले रहने का फायदा उठाया स्वप्न ने  स्वप्न मुंबई में अकेला रहता था. दिन में तो वह काम पर चला जाता था, लेकिन उस के लिए रात मुश्किल हो जाती थी. वह परिवार, पत्नी और बच्ची से दूर था. रंगीन तबीयत का होने की वजह से उसे अकसर पत्नी की याद सताती थी. जवान खून था, ऊपर से कमाई भी अच्छी थी उस ने जल्द ही मन बहलाने का रास्ता खोज लिया. काम से छूटने के बाद वह घर आता और फ्रैश हो कर मन बहलाने के लिए बीयर बारों के चक्कर लगाता. जल्द ही वह दिन भी आ गया, जब बीयर बार स्वप्न को मौजमस्ती के लिए अच्छी जगह लगने लगे. वहां जा कर वह 2-4 पैग ले कर खाना खाता और घर आ कर के सो जाता. उसी दौरान उस की दोस्ती रोजीना शेख उर्फ रोशनी से हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई.

मुसलिम समुदाय की खूबसूरत रोजीना शेख उर्फ रोशनी भी पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की रहने वाली थी. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां के अलावा उस की एक छोटी बहन थी. पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारियां उस की मां के कंधो पर आ गई थीं. मां ने मेहनतमजदूरी कर जैसेतैसे दोनों बेटियों को पाला. बालिग होने के बाद रोजीना अपनी एक सहेली रुबिका के साथ मुंबई आ गई थी. जिस सहेली के साथ वह आई थी, वह मुंबई के दहिसर में रह कर बीयर बारों में काम करती थी. पहले तो रोजीना शेख को बीयर बार के कामों में रुचि नहीं थी,लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए वह बीयर बारों में अपना नाम बदल कर नौकरी करने लगी.

इधरउधर कई बारों में काम करने के बाद वह दहिसर के संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट में आ गई, जहां उस की अच्छी कमाई हो जाती थी. अपनी कमाई का आधा हिस्सा वह अपनी मां के पास भेज देती थी. दहिसर की जनकल्याण सोसायटी में उस ने 7 हजार रुपए महीना किराए पर एक कमरा ले लिया था. उस दिन रविवार था, स्वप्न रोहिदास की छुट्टी का दिन. उस ने रोजीना को फोन किया लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की. कई बार फोन करने के बाद जब रोजीना ने फोन उठाया तो स्वप्न ने उसे तय जगह पर मिलने के लिए बुलाया, पर वह नहीं आई. इस पर स्वप्न को गुस्सा आ गया. हार गई रोशनी शाम को स्वप्न ने दहिसर की एक शराब की दुकान से बीयर की एक बोतल खरीदी और रोजीना शेख उर्फ रोशनी के घर पहुंच गया.

उस ने वहीं बैठ कर बीयर पी. फिर उस ने रोजीना से उस के बुलाने पर न आने का कारण पूछा तो रोजीना ने उसे दोटूक जवाब दिया, ‘‘मेरा मूड ठीक नहीं था. गांव से मां का फोन आया था. मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. बताओ, क्या तुम मेरी मांग पूरी कर सकते हो?’’

‘‘तुम ने मुझे क्या बैंक समझ रखा है, जब देखो तुम पैसों की मांग करती रहती हो?’’ स्वप्न के दिमाग पर बीयर का सुरूर चढ़ चुका था. उस की यह बात सुन कर रोजीना ने भी उस की ही भाषा में जवाब दिया, ‘‘तो तुम ने क्या मुझे अपनी बीवी समझ रखा है कि मैं तुम्हारी हर बात मानूं?’’

इन बातों को ले कर बात इतनी बढ़ी कि स्वप्न अपना विवेक खो बैठा और पास रखी तौलिया उठा रोजीना के गले में डाल कर कस दी. थोड़ी देर में दम घुटने से रोजीना की मृत्यु हो गई. रोजीना उर्फ रोशनी की हत्या के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के हाथपैर फूल गए. हाथ में हथकड़ी और कानून के डर से वह बुरी तरह घबरा गया. पुलिस से बचने और कानून को गुमराह करने के लिए उस ने घटना का रुख चोरी की तरफ मोड़ने की कोशिश की. उस ने कमरे की अलमारी खोल कर सारा सामान इधरउधर डाल दिया और उस में रखे कीमती गहने, पौने 2 लाख नगदी के अलावा कमरे में रखे 2 मोबाइल फोन अपने पास रख लिए और वहां से भाग कर अपने कमरे पर जा पहुंचा. फिर वहां से वह पश्चिम बंगाल स्थित अपने गांव चला गया.

29 दिसंबर, 2019 को रोजीना ने अपना रूम नहीं खोला तो उस की नौकरानी को दाल में कुछ काला नजर आया. वह 2 बार रोशनी के घर पर आ कर लौट गई थी. तीसरी बार जब वह आई, तब भी रोजीना का फ्लैट बंद पा कर उस ने यह बात पड़ोसियों और फ्लैट मालिक सुनील सखाराम को बताई. फ्लैट मालिक सुनील सखाराम ने डुप्लीकेट चाबी से जब घर का दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य देख हैरान रह गया. पड़ोसियों के भी होश फाख्ता हो गए. मामला गंभीर था, अत: उन्होंने इस की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ थाने को भी दे दी. वह इलाका दहिसर पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. थाने की ड्यूटी पर तैनात एसआई सिद्धार्थ दुधमल ने तुरंत मामले की जानकारी इंसपेक्टर मराठे, असिस्टेंट इंसपेक्टर जगदाले को दे दी और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने कमरे का सरसरी निगाहों से निरीक्षण किया.

एसआई सिद्धार्थ ने पूछताछ की प्रक्रिया अभी शुरू ही की थी कि मामले की जानकारी पा कर थानाप्रभारी एम.एम. मुजावर, इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े (क्राइम) घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के साथसाथ मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दिलीप सावंत, डीसीपी डा. डी.एस. स्वामी और एसीपी सुहास पाटिल के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौकाएवारदात पर पहुंच गई. अधिकारियों ने घटनास्थल का फौरी तौर पर निरीक्षण कर थानाप्रभारी एम.एम. मुजावर को आवश्यक दिशानिर्देश दिए. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मामले की तफ्तीश की जिम्मेदारी इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े को सौंपी गई.

अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े ने अपनी जांच टीम का गठन किया, जिस में असिस्टेंट इंसपेक्टर डा. चंद्रकांत धार्गे, ओम टोटावर, विराज जगदाले, एसआई सिद्धार्थ दुधमल, कांस्टेबल परब, जगताप, नाइक, तटकरे आदि को शामिल किया गया. टीम ने सरगरमी से मामले की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने रोजीना उर्फ रोशनी के मोबाइल  फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही कमरे में मिली बीयर की बोतल के बैच नंबर के आधार पर उस शराब की दुकान का पता लगा लिया, जहां से वह बोतल खरीदी गई थी. इस के बाद घटनास्थल और शराब की दुकान के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से पता चल गया कि रोशनी की हत्या स्वप्न रोहिदास ने की थी.

फोन कंपनी से उस के पश्चिम बंगाल स्थित घर का पता लग गया था. लिहाजा पुलिस टीम फ्लाइट से उस के गांव पहुंच गई. वह अपने घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस मुंबई लौट आई. दहिसर पुलिस की गिरफ्त में आए स्वप्न रोहिदास ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. जांच अधिकारी इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े ने उस से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.