Love crime story : गर्लफ्रेंड को मार कर खुद भी खा लिया पॉइजन

Love crime story : प्यार में जान देने की बात करना या कसम खाना मामूली बातें हैं. जब बात वाकई जान देने की आती है तो डर लगने लगता है. यही वजह थी कि जब गौरी पीछे हटी तो हेत सिंह ने वादा निभाने के लिए उसे मार दिया, लेकिन खुद…

आगरा के थाना खेरागढ़ क्षेत्र में एक गांव है खां का गढ़. गांव का एक युवक नेहनू गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित पुराने प्राइमरी स्कूल की खंडहर इमारत के पास से गुजर रहा था. नया स्कूल बन जाने के बाद पुराने स्कूल की इमारत लगभग खंडहर हो गई थी. नेहनू की नजर स्कूल के एक कमरे की ओर गई तो वहां का दृश्य देख कर नेहनू को सर्दी में भी पसीना आ गया. स्कूल के एक कमरे में 16-17 साल की युवती की लाश पड़ी थी. उस के चारों ओर खून फैला हुआ था, जिसे देखते ही नेहनू के मुंह से चीख निकल गई. वह गांव की ओर भागा. रास्ते में कुछ लोग अलाव ताप रहे थे. उस ने इस बात की जानकारी उन्हें दे दी. खां का गढ़ के लोगों को किसी मृत लड़की की खबर मिली तो लोग स्कूल की ओर दौड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

यह 30 नवंबर, 2019 की सुबह की बात है. ग्रामीणों ने पास जा कर देखा तो युवती उन्हीं के गांव के हरिओम की 17 वर्षीय बेटी गौरी थी. गौरी के घर वालों को भी घटना से अवगत करा दिया गया. खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. गौरी के घर वाले भी गांव के लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सूचना मिलने के लगभग एक घंटे बाद खेरागढ़ के थानाप्रभारी शेर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. युवती की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी, जिस से वहां देखने वालों की भीड़ एकत्र हो गई. लाश देख कर लोग आक्रोशित थे और हंगामा कर रहे थे. पुलिस ने जब मृतका की लाश कब्जे में लेनी चाही तो लोगों ने विरोध किया. वे आरोपी को पकड़ने की मांग कर रहे थे. भीड़ बढ़ती देख किसी अनहोनी की आशंका के डर से थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया.

सूचना मिलने पर एसएसपी बबलू कुमार, एसपी (ग्रामीण) रवि कुमार, सीओ (खेरागढ़) प्रदीप कुमार के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. एसएसपी के आदेश पर फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड और आसपास के थानों की फोर्स भी वहां पहुंच गई. उच्चाधिकारियों ने युवती के शव का निरीक्षण किया. स्कूल के कमरे में मृतका गौरी का लहूलुहान शव पड़ा था. उस का गला किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था. गले पर कट के 2 निशान थे, एक हलका था और दूसरा गहरा. सिर में भी पीछे की ओर चोट थी.  फोरैंसिक टीम को तलाशी के दौरान मृतका के कपड़ों से एक सामान्य सा मोबाइल भी मिला, जो स्विच्ड औफ था. इस से जाहिर हो रहा था कि हत्यारे ने हत्या के बाद मोबाइल स्विच औफ कर मृतका के कपड़ों में रख दिया होगा. पानी से भरा लोटा भी शव के पास रखा था.

पुलिस को नहीं मिला कोई सुराग पुलिस ने मृतका के परिवार वालों से बात की. उन्होंने बताया कि गौरी आज तड़के 5 बजे अपने घर से शौच के लिए निकली थी. लेकिन जब वह 2 घटे तक वापस नहीं आई तो घर वाले उस की तलाश में जुट गए. इसी बीच उन्हें उस की हत्या की खबर मिली. अधिकारियों ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी या रंजिश तो नहीं है तो गौरी के पिता हरिओम ने बताया कि गांव में उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. इस बीच फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. पुलिस का खोजी कुत्ता भी घटनास्थल से लगभग 400 मीटर तक खेतों में गया. इस पर पुलिस ने खेतों में तलाशी की, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिल सका, जिस से कातिल का सुराग मिलता.

कई घंटे तक जांच करने के बाद जब पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव को उठाना चाहा तो ग्रामीणों ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि हत्या की गुत्थी सुलझने के बाद ही शव उठने दिया जाएगा. एसएसपी बबलू कुमार ने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर हत्यारों का पता लगाया जाएगा. उन्होंने आश्वासन दिया कि पुलिस शीघ्र ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लेगी. उन के इस आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हो गए. पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एसएसपी ने जानकारी दी कि गौरी के शव का पोस्टमार्टम पैनल से कराया जाएगा. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जांच की दिशा तय होगी. मृतका के पिता हरिओम सिंह की तहरीर पर थाना खेरागढ के थानाप्रभारी शेर सिंह ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसएसपी ने इस केस की जांच में कई टीमें लगा दीं. पुलिस ने सब से पहले मृतका गौरी के पास मिले फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. गौरी के मोबाइल में जिस का भी नंबर मिला, उसे ही पुलिस ने पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. इन में 3 युवकों पर शक हुआ. उन तीनों से 2 दिन तक पूछताछ चली. इस के बाद 25 और संदिग्धों से पूछताछ की गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिल सका. काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर बारबार बात की गई थी. पुलिस को उसी नंबर पर सब से ज्यादा शक था, लेकिन वह नंबर बंद था. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला वह नंबर 21 वर्षीय हेत सिंह तोमर उर्फ छोटू उर्फ कमल, निवासी गांव छिछावली, थाना मुरैना, मध्य प्रदेश का है. पुलिस ने जब इस पते पर दबिश दी तो हेत सिंह घर पर नहीं मिला. पुलिस ने उस के परिजनों से कह दिया कि वह आए तो उसे खेरागढ़ थाने भेज दें.

2 दिसंबर की शाम को पुलिस ने 2 युवक थाने बुलाए. पुलिस उन दोनों से पूछताछ कर रही थी. इसी बीच रात लगभग 8 बजे हेत सिंह थाने में पहुंचा. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के हाथ में पानी की एक बोतल थी. वह बारबार बोतल से पानी पी रहा था. थाने में दरोगा और सिपाहियों को देखते ही हेत सिंह ने कहा, ‘‘अब मैं बचूंगा नहीं. दरोगाजी, मैं ने अपने प्यार को मार डाला. मैं ही गौरी का हत्यारा हूं. मेरे मांबाप को परेशान मत करो, जो सजा देनी है मुझे दो. मैं ने जहर खा लिया है. मैं भी उस के पास जाना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही थाने में हड़कंप मच गया. हेत सिंह के हाथ से बोतल छीन ली गई. एक सिपाही उस का वीडियो बनाने लगा. इस के बाद पूछताछ के लिए लाए गए सभी लोग थाने से छोड़ दिए गए. हेत सिंह को तुरंत गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. उस की हालत खराब होने पर उसे आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज ले जाया गया. सूचना मिलने पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी अस्पताल पहुंच गए. अधिकारियों द्वारा हेत सिंह से गौरी की हत्या के संबंध में विस्तार से पूछताछ की गई. लेकिन उपचार के दौरान ही उस की मौत हो गई. इस बीच उस ने गौरी की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

थाना खेरागढ़ के अंतर्गत स्थित खां का गढ़ गांव में हेत सिंह की बहन की ससुराल है. उस का बहन के यहां आनाजाना लगा रहता था. एक बार पड़ोस में रहने वाली गौरी जब उस की बहन के यहां आई तो हेत सिंह की नजर उस पर पड़ी. गौरी सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उस से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया. गौरी की प्रेम कहानी हेत सिंह टकटकी लगाए उसे निहारता रहा. गौरी को भी इस बात का अहसास हो गया कि हेत सिंह उसे देख रहा है. हेत सिंह कसी हुई कदकाठी का जवान था. जवानी की दहलीज पर पहुंची गौरी का दिल भी उस पर रीझ गया. उसे देख गौरी का दिल तेजी से धड़कने लगा था. वहीं पर दोनों में परिचय हुआ.

गौरी खां का गढ़ के रहने वाले हरिओम सिंह की बेटी थी. गौरी के अलावा हरिओम सिंह का एक बेटा था. हरिओम की पत्नी को कैंसर था, जिस का कुछ दिन पहले ही औपरेशन हुआ था. मां की बीमारी की वजह से घर के काम गौरी ही करती थी, जिस से वह इंटरमीडिएट से आगे की पढ़ाई नहीं कर सकी थी. इंटरमीडिएट भी उस ने प्राइवेट किया था. गौरी और हेत सिंह की यह मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. फिर दोनों चोरीचोरी गांव के बाहर मिलने लगे. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे, जिस से फोन पर भी उन की बातें होने लगीं. इस के बाद उन का प्यार और गहराता गया. उन के प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी.

पुलिस को हेत सिंह ने बताया कि वह गौरी को बेइंतहा प्यार करता था. वह भी उसे बहुत चाहती थी. उस के लिए गौरी ही सब कुछ थी. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसम खाई थी. लेकिन उन की शादी नहीं हो पा रही थी. इसलिए उन्होंने तय किया कि जब वे एक साथ रह नहीं सकते तो साथसाथ जान तो दे ही सकते हैं. अत: उन्होंने एक साथ जान देने का निर्णय ले लिया. योजना के अनुसार हेत सिंह अपने घर से 28 नवंबर, 2019 को ही गांव खां का गढ़ आ गया था. उस ने शनिवार को फोन कर गौरी को पुराने स्कूल में बुला लिया. गौरी वहां आ तो गई लेकिन वह अपने वायदे से मुकर गई.

पिछले कुछ दिनों से उस का व्यवहार भी बदल गया था. इस से हेत सिंह को शक हो गया कि गौरी की जिंदगी में शायद कोई और आ गया है. उसे डर था कि उस की मोहब्बत उस से छिन न जाए. इसलिए गौरी उस के साथ मरने को मना कर रही है. हेत सिंह नहीं चाहता था कि उस की गौरी किसी और की हो जाए. लिहाजा उस ने गौरी को उसी समय सजा देने की ठान ली. खुद डर गया मौत से उस ने गौरी को धक्का दे कर गिरा दिया. उस के गिरते ही हेत सिंह ने अपने साथ लाए चाकू से उस का गला काटना चाहा, लेकिन गौरी के विरोध के चलते उस के गले पर हलका कट लगा. किसी तरह उस ने गौरी को काबू कर चाकू से उस का गला रेत दिया. हेत सिंह ने गौरी के मोबाइल को स्विच्ड औफ कर के उस के कपड़ों में रख दिया.

इस के बाद उस ने हत्या में इस्तेमाल चाकू स्कूल के पास स्थित तालाब में फेंक दिया और वहां से फरार हो गया. गौरी की हत्या करने के बाद हेत सिंह अपने घर गया. जब उस ने घर वालों को एक युवती की हत्या की बात बताई तो पूरा परिवार सन्न रह गया. पुलिस से बचने के लिए हेत सिंह वहां से मथुरा स्थित अपनी रिश्तेदारी में चला गया. दूसरे दिन उसे पता चला कि पुलिस उस के घर दबिश देने आई थी. उस ने मथुरा से जहर खरीदा और खेरागढ़ आ कर एक जगह पर जहर का सेवन किया. इस के बाद वह थाना खेरागढ़ पहुंच गया. पोस्टमार्टम गृह पर आए हेत सिंह के भाई राहुल ने पुलिस को बताया कि हेत सिंह टैक्सी चलाता था. वह दिन भर घर नहीं आता था. परिवार वालों से उस का संपर्क कम ही हो पाता था.

घटना को अंजाम देने के बाद जब पुलिस घर आई, तब उस की करतूत का पता चला. घर वालों ने उस से कहा, ‘‘तुम मर जाओ या फिर थाने जा कर गुनाह कबूल करो. हम से कोई संबंध नहीं है.’’

घर वालों ने एक तरह से हेत सिंह से पल्ला झाड़ लिया था. परिचितों ने उस पर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने का दबाव बनाया था. गौरी के प्यार में पागल हुआ हेत सिंह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था. गुस्से में उस ने गौरी की हत्या तो कर दी थी, लेकिन अब वह पछता रहा था. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. ऐसी स्थिति में उस ने आत्महत्या करने का निर्णय लिया. परिजनों ने हेत सिंह के शव को मुरैना ले जा कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra Crime : पहले पति को मारा, फिर लाश पर चढ़ा दी कार

Agra Crime : ‘नार नहीं नौरंगी है, ढक ले तो सारे कुल को ढक ले वरना नंगी की नंगी है’ इस कहावत का आशय स्त्री के चाल, चरित्र और चेहरे को दर्शाने से है, जो सही है. भावना की जिंदगी में सब कुछ था, अफसर पति, कोठी, कार और 2 बच्चे, लेकिन उस ने…

मानव मन को समझना आसान नहीं है. इंसान कब किस को प्यार करने लगे और कब प्यार नफरत में बदल जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. ऐसा ही कुछ भावना के साथ भी हुआ. एक अच्छे और संभ्रांत परिवार की बेटी और बहू भावना कुछ ऐसा कर बैठेगी, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. कहते हैं, विनाश काल में इंसान की सकारात्मक सोच बंद हो जाती है. फिर समय की इस आंधी में सब कुछ तहसनहस हो जाता है. बिना सोचेसमझे भावना ने जो कदम उठाया, उस से कई जिंदगियां तबाह हो गईं और खुशियां मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गईं. ताजनगरी आगरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जहां देशविदेश से पर्यटक आते हैं और शाहजहां मुमताज की यादगार मोहब्बत को नमन करते हैं. वहीं मोहब्बत की इस नगरी में खून से लथपथ आशिकी की अनगिनत कहानियां दफन हैं.

आगरा के अशोक विहार में नाथूराम अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहे थे. उन के 3 बेटे थे सुशील, वीरेंद्र और नरेंद्र. नाथूराम सेना में सीनियर औडिटर थे. उन का बड़ा बेटा सुशील भी सेना में ही था. छोटा नरेंद्र पढ़ रहा था और मंझले बेटे वीरेंद्र की नौकरी पंजाब में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में लग गई थी. कुल मिला कर नाथूराम का अच्छा खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था. लेकिन समय के चक्र के साथ जीवन में बदलाव आते रहते हैं. 14 साल पहले नाथूराम के मंझले बेटे वीरेंद्र की शादी गढ़ी भदौरिया निवासी ओमप्रकाश की बेटी भावना के साथ हुई थी. भावना की 2 बहनें शादीशुदा थीं और खुशहाल जीवन बिता रही थीं. इन का एक भाई था.

वीरेंद्र गंभीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था. उस की जिंदगी की गाड़ी ठीक चल रही थी. भावना ने कालांतर में आयुष और शुभि को जन्म दिया. सब कुछ ठीक था, भावना अपने पति और बच्चों के साथ खुश थी. वीरेंद्र भी अपनी सरकारी नौकरी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अचानक कालचक्र अपनी धुरी पर उल्टा घूमने लगा. वीरेंद्र ने आगरा की पंचशील कालोनी में अपनी कोठी बनवाई. वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों को खुशहाल जीवन देना चाहता था. करीब 3 साल पहले वीरेंद्र का तबादला आगरा हो गया वह अपने परिवार के साथ पंचशील कालोनी स्थित अपनी कोठी नंबर 12 में रहने लगा. वीरेंद्र बीएसएनएल में जूनियर इंजीनियर के पद पर था. उस की तैनाती आगरा के बिजली घर स्थित बीएसएनएल औफिस में थी. अपने पद के अलावा उस के पास एसडीओ का चार्ज भी था.

वीरेंद्र के पिता फौज की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. अपने औफिस जाने से पहले वीरेंद्र पिता के लिए खाना देने उन के अशोक विहार स्थित घर पर जाता था. कालांतर में सुशील भी लांस नायक पद से रिटायर हो गए. जबकि नरेंद्र बीटेक के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. यानी सभी अपनेअपने काम में व्यस्त थे. जिंदगी के रंगों को अचानक छुआ भावना की साड़ी ने

एक दिन वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों के साथ किसी शादी समारोह में गया. वहां भावना अचानक उस समय एक युवक से टकरा गई, जब दोनों प्लेट में खाना ले कर निकल रहे थे. युवक ने सौरी कहा. जवाब में भावना ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, भीड़भाड़ में ऐसा हो जाता है.’’

‘‘लेकिन आप की साड़ी में दाग लग गया है,’’ युवक ने विनम्रता से कहा.

‘‘दाग साड़ी पर ही तो लगा है, धुल जाएगा. बस जीवन पर नहीं लगना चाहिए.’’ भावना बोली.

युवक ने भावना को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी फिलौसफी है आप की मैडम, आप के लिए कुछ लाऊं?’’

भावना को युवक की विनम्रता पसंद आई. वह बोली, ‘‘हां, कुछ मीठा ले आइए.’’

युवक आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं?’’

‘‘मैं पंचशील कालोनी में रहती हूं,’’ भावना ने इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं, बच्चों ने कुछ खाया है या नहीं?’’ कह कर भावना वहां से चली गई.

वह युवक दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था. नाम था कपिल.

29 साल का कपिल एक रिटायर्ड अफसर का बेटा था. उस के पिता सूरजभान एफसीआई से रिटायर थे.  वह दिल्ली के अशोक विहार में रहते थे. उन का बड़ा बेटा देवेंद्र भी दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था, अत: कपिल ने देवेंद्र के पास रह कर ही पढ़ाई की थी. कपिल शनिवार और रविवार की छुट्टियों में घर पर ही रहता था. नौकरी मिलने के बाद उस ने दिल्ली में किराए पर अलग कमरा ले लिया था. कपिल का दोस्त मनीष कपिल के साथ उस के कमरे में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. वह बीटेक पास कर चुका था और आगरा की पंचशील कालोनी स्थित अपने घर आनाजाना रहता था.

उस दिन शादी समारोह में कपिल और भावना की वह छोटी सी मुलाकात कुछ ऐसा गुल खिलाएगी, जिस में सब कुछ तबाह हो जाएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. दिल्ली आने के बाद कपिल ने मनीष को बताया कि आगरा में शादी समारोह में उसे पंचशील कालोनी की एक महिला मिली थी, जिस से उस की बातचीत भी हुई थी. तुम तो पंचशील कालोनी में ही रहते हो, जरा पता लगाना कि कौन है. मनीष ने ठहाका लगाया, ‘‘तूने मुझे क्या जासूस समझ रखा है? पंचशील में क्या वही एक औरत ही रहती है? अरे भाई, न नाम, न पता, इतनी बड़ी कालोनी में कैसे ढूंढेंगे उसे. वैसे उस औरत में ऐसा क्या है जो उसे तलाश कर उसे तुझ से मिलाना चाहिए.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बस जरा यूं ही. उस से एक बार फिर बात करने की इच्छा हो रही है.’’

‘‘ठीक है इस बार आगरा चलेंगे तो कालोनी के चक्कर लगाएंगे, शायद वह कहीं मिल जाए.’’ कह कर मनीष ने बात खत्म की.

भावना का पति वीरेंद्र व्यस्त अधिकारी था. उसे सुबह 10 बजे औफिस पहुंचना होता था और शाम 6 बजे घर लौटता था. सुबहशाम वह पिता को अशोक विहार स्थित घर जा कर खाना भी पहुंचाता था. कुल मिला कर भावना को लगता कि उस का पति आम पतियों की तरह उस की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता. फिर अचानक उस के जेहन में शादी समारोह में मिला वह युवक घूमने लगता था. एक दिन अचानक फेसबुक पर भावना को एक फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. फोटो देख कर वह चौंकी. अरे यह तो वही युवक है. उस के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. उस ने खुद को आईने में निहारा और सोचा उस के चेहरे पर अभी भी कुछ ऐसा है, जो किसी युवक को आकर्षित कर सकता है.

साड़ी का रंग सोच में उतरने लगा भावना जानती थी कि वह 39 साल की है और 2 बच्चों की मां भी. जबकि युवक काफी कमउम्र का था. समय काटने के लिए दोस्त बना लेने में कोई हर्ज नहीं है. सोच कर उस ने कपिल नाम के उस युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. कपिल बहुत खुश था, उसे मनचाही मुराद मिल गई थी. फेसबुक पर बात का सिलसिला शुरू हो गया, जो निकट भविष्य में कुछ और ही रंग लाने वाला था. चैटिंग के दौरान एक दिन कपिल ने भावना की एक फोटो पर लिख कर भेजा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं.’’

अपनी तारीफ सुन कर भावना का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने थैंक्स के साथ लिखा कि आज तक मेरी किसी ने तारीफ नहीं की. उस दिन भावना देर तक सोचती रही कि उस ने वीरेंद्र के साथ शादी कर के गलती कर दी थी. पैसा ही सब कुछ नहीं होता. वह उसे कोमल भावनाओं से भरी पत्नी नहीं बल्कि मशीन की तरह इस्तेमाल करता है. वीरेंद्र के प्रति वितृष्णा के भाव मन में आ चुके थे. उस रात काम खत्म कर के जब वह पलंग पर आई तो वीरेंद्र एक फाइल देख रहा था. भावना ने कहा, ‘‘कभी अपनी बीवी के दिल की फाइल भी पढ़ लिया करो.’’

वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘बताओ, क्या है तुम्हारे दिल में?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि पत्नी क्या चाहती है?’’ वह बोली.

‘‘सब कुछ तो है तुम्हारे पास. खर्चे के लिए मैं पैसा भी बराबर देता हूं, जो जरूरत हो ले लो.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘मुझे जो चाहिए, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता. क्या तुम अपनी पत्नी की तारीफ में दो मीठे बोल भी नहीं कह सकते. बताओ क्या मैं सुंदर नहीं हूं?’’

‘‘ओह तो यह बात है.’’ वीरेंद्र बोला, ‘‘कभी आईने में खुद को गौर से देखा है. 2 बच्चों की मां हो, उन का भी कुछ खयाल किया करो. तुम जैसी हो वैसी ही रहोगी, तारीफ करने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. अच्छा, अब बहुत रात हो गई है. चलो सो जाओ.’’

पति की बातें भावना को चुभ गईं. उस ने सोचा कि इस से अच्छा तो वह कपिल है जो उस की तारीफ करता है. धीरेधीरे कपिल उस के दिलोदिमाग पर छाने लगा. दोनों में चैटिंग तो होती ही थी दोनों ने फोन नंबर और अपना पता एकदूसरे को बता दिया. इस के बाद कभीकभी कपिल छुट्टी ले कर आगरा आने लगा. मौका देख कर वह भावना से भी मिलने लगा. कपिल को यह बात अच्छी तरह पता चल चुकी थी कि पति और बच्चों के होते हुए भी भावना बिलकुल तनहा है. वह वीरेंद्र के साथ खुश नहीं है. कभीकभी भावना कहती, ‘‘कपिल, यह जिंदगी एक जेल की तरह है और मैं खुद को आजीवन कारावास की सजा पाए हुए कैदी की तरह महसूस करती हूं.’’

‘‘तो फिर निकल जाओ न इस कैद से.’’ नादान कपिल ने सलाह दी.

‘‘मैं एमएससी पास हूं. कुछ कर के अपनी जिंदगी संवार सकती थी, पर पिता ने मुझे बोझ की तरह उतार फेंका. पढ़ाई के बाद कुछ भी मन का नहीं करने दिया और इस जंजाल में फंस गई. बच्चे पैदा कर के उन की आया बन जाओ और दिनरात घर के लोगों के लिए खाना पकाओ. बस, यही जिंदगी है मेरी.’’

भावना की खीझ और कुंठा उस के व्यक्तित्व को घेर रही थी और उस का नादान प्रेमी उन शोलों को हवा दे रहा था. दोनों इस बात से अनजान थे कि यदि ये शोले भड़क गए तो सब जल कर राख हो जाएगा. भावना और कपिल के बीच नाजायज संबंध बन चुके थे. भावना खुद को कपिल की बांहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी. वह यह भूल गई थी कि वह उम्र में कपिल से बड़ी है और विवाह जैसे बंधन को अपवित्र कर एक बड़ा गुनाह कर रही है. लेकिन कपिल के प्रति उस की दीवानगी ने उस की सोच पर परदा डाल दिया था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था और दीवानगी भरी मोहब्बत के बंधन और मजबूत हो रहे थे. भावना पति और बच्चों की परवाह किए बिना कुछ पाने की चाह में खतरनाक राह पर चली जा रही थी.

काश! वीरेंद्र ने स्थिति को संभाला होता वीरेंद्र अभी तक इस खेल से अनजान था. बच्चों को भी कोई जानकारी नहीं थी, पर कोई भी गुनाह ज्यादा दिन तक नहीं छिप पाता. यह गुनाह भी नहीं छिप पाया. एक दिन वीरेंद्र औफिस से कुछ जल्दी ही वापस आ गया. उस ने देखा कि कोई युवक अभीअभी उस के घर से बाहर निकला था. इस से पहले कि वह अपनी गाड़ी लौक कर के उसे पहचान पाता, वह चला गया. वीरेंद्र ने डोरबैल बजाई तो भावना ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अरे तुम फिर वापस आ गए.’’

लेकिन सामने वीरेंद्र खड़ा था. पति को देखते ही भावना का चेहरा पीला पड़ गया. वीरेंद्र ने उस से पूछा, ‘‘कौन था वह?’’

‘‘कौन..? किस की बात कर रहे हो तुम?’’ वह बोली.

‘‘वही जो अभीअभी घर से निकल कर गया है.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, यहां से तो कोई नहीं निकला. तुम ने जरूर कहीं और  किसी को देखा होगा. चलो आओ, चाय बनाती हूं.’’ भावना ने बात संभालते हुए कहा.

लेकिन वीरेंद्र के दिल में शक का बीज पड़ चुका था. पिछले कुछ समय से उसे पत्नी का व्यवहार परेशान कर रहा था. अंदर आ कर उस ने देखा कि मेज पर बादाम, काजू की प्लेटें रखी थीं. भावना ने वीरेंद्र की नजरों को भांप लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा कि बच्चों के लिए कुछ बनाऊंगी, अभीअभी निकाले हैं. तुम खाओ, मैं चाय लाती हूं.’’ कह कर भावना किचन में चली गई. वीरेंद्र को समस्या और उस के हल को खोजना था. पत्नी किस के साथ दोस्ती पाले हुए है, यह जानना बहुत जरूरी था. इस से पहले कि वीरेंद्र भावना का फोन चैक करता, भावना ने कपिल की दी हुई सिम फोन में से निकाल दी.

भावना और कपिल के संबंधों की जानकारी वीरेंद्र को करीब डेढ़ साल बाद मिली, तब तक नाजायज संबंधों की बेल काफी बढ़ चुकी थी. इतना ही नहीं, बल्कि दोनों का संबंध खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका था. इधर कपिल के पिता सूरजभान ने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी, लेकिन कपिल तय कर चुका था कि भावना ही उस की हमसफर बनेगी. एक दिन उस ने मन की बात भावना को बताई तो वह चौंकी.

‘‘ये क्या कह रहे हो तुम? मैं तुम से उम्र में बड़ी हूं और 2 बच्चों की मां भी. ऐसे में मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे काफी बड़े हैं. उन्हें उन का बाप देखेगा. और रही उम्र की बात तो तुम्हारी उम्र से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम तलाक ले लो वीरेंद्र से.’’ कपिल ने साफ कहा.

‘‘ठीक है, मैं सोचूंगी.’’ भावना ने कहा.

इधर वीरेंद्र काफी डर गया था. क्योंकि भावना का रवैया पिछले कुछ दिनों से अच्छा नहीं था. वीरेंद्र जानता था कि वासना से पीडि़त बुद्धिहीन औरत कुछ भी कर सकती है. सुरक्षा के लिहाज से उस ने दरवाजों पर लोहे के जालीदार दरवाजे भी लगवा दिए पर वह यह भी जानता था कि खतरा कहीं बाहर नहीं बल्कि वह तो उस के घर में ही मौजूद है. वीरेंद्र ने अपने कुछ खास परिचितों को बताया भी था कि वह इन दिनों खुद को खतरे में महसूस कर रहा है, पर खतरा कैसा है यह वह किसी को बता नहीं पाया. आखिर एक दिन वीरेंद्र को यह बात पता चल ही गई कि दिल्ली नगर निगम में काम करने वाले कपिल का उस की पत्नी के पास आनाजाना है. यह जान कर वह सन्न रह गया. समस्या को जान लेने के बाद उस का उपचार कैसे किया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

इधर कपिल इस बात पर जोर दे रहा था कि भावना जल्द से तलाक ले ले. लेकिन भावना जानती थी कि अगर उस ने वीरेंद्र से तलाक ले लिया तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी. उस ने साफ कह दिया कि तलाक तो नहीं ले सकती, कुछ और सोचो. इधर वीरेंद्र ने भी तय किया कि वह पत्नी पर नजर रखेगा. इसलिए वह जबतब अचानक घर आ जाता. पति की इस हरकत से भावना का गुस्सा बढ़ गया. आए दिन दोनों में झगड़ा होता. दोनों बच्चे सहमे हुए रहने लगे. एक दिन वीरेंद्र ने कहा कि भावना इस बार तुम अपना बर्थडे सेलिब्रेट करना, मैं तुम्हें एक अच्छा गिफ्ट दूंगा. वीरेंद्र ने ऐसा ही किया भी. उस ने पत्नी को एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट किया.

इतना ही नहीं वीरेंद्र ने भावना के लिए कार भी खरीदी. उस ने सोचा कि शायद उस के व्यवहार से प्रभावित हो कर भावना सही रास्ते पर आ जाए और दोनों का वैवाहिक जीवन बिगड़ने से बच जाए. पर भावना पर आशिकी का नशा इतना चढ़ चुका था कि उतरने के लिए किसी बड़ी साजिश का इंतजार कर रहा था. संदेह था वीरेंद्र की हत्या हुई  5 जनवरी, 2020 की रात 3 बजे आगरा के एस.एन. अस्पताल में 2 लोग एक व्यक्ति को जख्मी हालत में लाए. उन्होंने बताया कि वे लोग घायल को पहले साकेत कालोनी के प्रशांत अस्पताल ले गए थे. लेकिन उन्होंने भरती करने से इनकार कर दिया. तब वे उसे दिल्ली गेट स्थित पुष्पांजलि अस्पताल ले गए. लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे एस.एन. मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया है.

पूछताछ में पता चला कि वह जख्मी व्यक्ति बीएसएनएल का जेटीओ है. जख्मी का डाक्टरों ने परीक्षण किया तो वह मृत पाया गया. प्रथमदृष्टया यह मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी. थाना शाहगंज के इंसपेक्टर अरविंद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने यह बात उच्चाधिकारियों को भी बता दी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक को इमरजेंसी में लाने वाले मृतक के बड़े भाई सुशील वर्मा और उन का बेटा प्रशांत थे. पोस्टमार्टम के बाद जो रिपोर्ट आई, उस से पता चला कि वीरेंद्र की मौत चेहरे और छाती पर लगे जख्मों और पसलियों के टूटने से हुई थी. पसलियां किसी भारी चीज से तोड़ी गई मालूम होती हैं. संभवत: हत्या को एक्सीडेंट केस बनाने की कोशिश की गई थी. रिपोर्ट में गला दबाना भी बताया गया था.

पूछताछ में सुशील ने पुलिस को बताया कि रात को उस की भाभी भावना का फोन आया कि वीरेंद्र किसी का फोन सुन कर घर से 7 हजार रुपए ले कर पैदल ही चले गए. जब वह नहीं लौटे तो उस ने उन्हें फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं की गई. फिर फोन स्विच्ड औफ हो गया. भावना ने आगे बताया था कि किसी परिचित ने 10 हजार रुपए मांगे थे, लेकिन घर में 7 हजार रुपए ही थे. सुशील ने बताया कि भावना की बात सुनते ही वह अपने बेटे के साथ भाई को खोजने निकल गया. रात लगभग 3 बजे वीरेंद्र जख्मी हालत में घर से करीब 400 मीटर की दूरी पर दीप इंटर कालेज के पास खाली प्लौट के सामने मिले, जिन्हें वह गाड़ी में डाल कर ले आया.

पुलिस ने सुशील की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. सुशील ने पुलिस को बताया कि वीरेंद्र किसी को पैसे देने के लिए रात को एक बजे अकेले ही घर से निकले थे. लेकिन मौकाएवारदात पर पुलिस को कोई पैसा या मोबाइल नहीं मिला था. मृतक की हत्या जिस तरीके से की गई थी, उसे देख कर लूट का मामला तो बिलकुल भी नहीं लग रहा था. यह बात सुशील के गले भी नहीं उतर रही थी, क्योंकि वीरेंद्र शाम के बाद कभी अकेले घर से नहीं निकलते थे. पुलिस ने फूटफूट कर रो रही भावना से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस ने पति को अकेले रात में बाहर निकलने से मना किया था, पर वह नहीं माने और चले गए. भावना के हावभावों से पुलिस को शंका हो रही थी.

मामले की जांच का कार्य एसएसपी बबलू कुमार ने सीओ नम्रता श्रीवास्तव को सौंप दिया. शाहगंज थाने की टीम और सर्विलांस टीम को भी इस केस की जांच में लगाया गया. इसी के साथ हत्याकांड के खुलासे में एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन, प्रमोद और उन की टीम भी लग गई. एसपी (सिटी) खुद इंजीनियर हैं, सर्विलांस टीम में भी कई इंजीनियर थे. पुलिस ने सब से पहले मृतक के एक नजदीकी रिश्तेदार से पूछताछ की. उस ने बताया कि भावना की कपिल नाम के एक युवक के साथ दोस्ती थी और कपिल का गहरा दोस्त था मनीष. 2 साल पहले कपिल की नौकरी दिल्ली नगर निगम में लग गई थी. वह अपने दोस्त मनीष के साथ किराए के कमरे में रहता है और मनीष का पूरा खर्च उठाता है.

अब पुलिस का फोकस नाजायज संबंधों पर ठहर गया. पुलिस ने कपिल और मनीष के बारे में जांच कर पता लगा लिया कि आगरा की पंचशील कालोनी में रहने वाला मनीष राम सिंह का बेटा है, जो एक फैक्ट्री में काम कर के परिवार पालता है. मनीष का एक छोटा भाई भी है. पुलिस मनीष को दिल्ली से ले आई और उस से पूछताछ शुरू कर दी. उधर पुलिस की एक टीम पंचशील कालोनी और घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच कर रही थी. लेकिन कोहरे के कारण किसी सीसीटीवी कैमरे में कोई फोटो नहीं आ पाई थी, पर कालोनी के लोगों ने बताया कि 5 जनवरी, 2020 की रात में वीरेंद्र के घर पास एक कार देखी गई थी.

वीरेंद्र के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के फोन की आखिरी लोकेशन कालोनी में ही मिली. पुलिस को गुमराह करने के लिए हत्यारे ने फरजी नामपते पर एक सिम ली थी. साजिश को अंजाम देने के लिए उसी सिम से वीरेंद्र को काल की गई थी. शक होने पर पुलिस ने भावना को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने मनीष और भावना से सख्ती से पूछताछ की तो उन के टूटने में ज्यादा देर नहीं लगी. इस के बाद कपिल को भी पुलिस दिल्ली से गिरफ्तार कर ले आई. पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पता चला कि नाजायज रिश्ते बरकरार रखने और अपनीअपनी खुशियां पाने के लिए उन्होंने हत्या की साजिश एक महीने पहले रची थी और उसे 4 जनवरी को अंजाम दिया था. अपनी खुशी और सुख पाने के लिए भावना इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने यह तक नहीं सोचा कि उस के इस कदम के बाद बच्चों का क्या होगा.

योजना के मुताबिक, 5 जनवरी, 2020 को कपिल अपने दोस्त दीपक की कार ले कर मनीष के साथ रात में आगरा पहुंचा. उस समय रात के करीब 12 बज चुके थे. भावना ने अपने घर का बाहरी दरवाजा खुला छोड़ दिया. दोनों अंदर आ गए. उस समय वीरेंद्र सो रहा था. कपिल ने तकिए से उस का मुंह और मनीष ने गला दबाया. भावना ने पति के पैर पकड़ लिए ताकि वह विरोध न कर सके.  जब वीरेंद्र ने छटपटाना बंद कर दिया तो तीनों ने मिल कर उसे कार में डाला और दीप इंटर कालेज के पास एक खाली प्लौट के सामने चार फुटा रोड पर डाल दिया. इस के बाद कई बार उस की लाश पर कार चढ़ाई, जिस से उस की पसलियां टूट गईं.

कोशिश की, लेकिन पुलिस को नहीं लगा एक्सीडेंट बेशक कातिलों ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की, पर पुलिस की सूझबूझ से राज खुल ही गया. इश्क की मारी भावना का कोई ड्रामा काम नहीं आया. हत्या के बाद कपिल और मनीष दिल्ली आए थे लेकिन उन दोनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई गई तो मनीष के फोन की लोकेशन घटनास्थल पर और फिर दिल्ली की पाई गई. भावना ने फोन की काल डिटेल्स निकाली गई तो हत्या से पहले उस की कपिल से बात होने की पुष्टि हुई. पुलिस ने 48 घंटे में इस हत्याकांड से परदा उठा दिया और तीनों आरोपियों भावना, कपिल और मनीष को गिरफ्तार कर 8 जनवरी, 2020 को पुलिस जब कोर्ट ले गई तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. तीनों को सुरक्षा घेरे में ले कर अदालत में पेश किया गया. जैसे ही अदालत ने उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए तो तीनों आरोपी रोने लगे.

अपने सुख के लिए पति नाम के कांटे को रास्ते से हटाने के लिए भावना ने गहरी चाल चली थी. भावना ने सोचा था कि विधवा हो जाने पर उसे सहानुभूति और प्रौपर्टी दोनों ही मिलेंगी, पर इस अपराध के लिए उसे मिली जेल. कुछ रिश्तेदारों और अपनों ने भावना से मुंह फेर लिया. अब उस के पास काली अंधी दुनिया के सिवाय कुछ नहीं है. भावना का बेटा 7वीं कक्षा में और बेटी 6ठी कक्षा में पढ़ती है. उन्हें नहीं मालूम कि मां ने उन्हें अनाथ क्यों किया. एक कातिल मां की इस कारगुजारी का बच्चों पर क्या असर होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. पर मां ने फिलहाल तो उन से उन के हिस्से की खुशियां छीन ही लीं.

 

 

Extramarital Affair : पत्‍नी से अवैध संबंध बनाने वाले दोस्‍त को मार कर दफनाया

Extramarital Affair : पंकज और आशीष की गहरी दोस्ती थी, इसी दोस्ती के चलते आशीष और पंकज की पत्नी अनीता के बीच नाजायज संबंध बन गए. यह बात जब पंकज को पता चली तो उस ने…

मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर की एक तहसील है गोटेगांव. इस तहसील क्षेत्र में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल झोतेश्वर होने की वजह से छोटा शहर होने के बावजूद गोटेगांव खासा प्रसिद्ध है. गोटेगांव के इलाके में ही एक गांव है कोरेगांव. 8 दिसंबर, 2019 की सुबह कोरेगांव का रहने वाला खुमान ठाकुर झोतेश्वर पुलिस चौकी की इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री के पास आया. उस ने अंजलि को बताया कि उस के भाई का बड़ा लड़का आशीष 6 दिसंबर को किसी काम से घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. उन्होंने उसे गांव के आसपास के अलावा सभी रिश्तेदारों के यहां तलाश किया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. उस ने आशीष की गुमशुदगी दर्ज कर उसे तलाशने की मांग की.

एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान से पूछा, ‘‘आप को किसी पर कोई शक हो तो बताओ.’’ खुमान के साथ आए उस के दामाद कृपाल ने बताया कि 6 दिसंबर को उस ने आशीष को उस के दोस्तों पंकज और सुरेंद्र के साथ खेतों की तरफ जाते देखा था. उस ने यह भी बताया कि आशीष के परिवार के लोगों ने जब पंकज और सुरेंद्र को बुला कर पूछताछ की तो वे इस बात से साफ मुकर गए कि आशीष उन के साथ था. इसलिए हमें उन पर शक हो रहा है. चौकी इंचार्ज अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान की शिकायत दर्ज कर इस घटना की सूचना तत्काल एसपी गुरुचरण सिंह, एसडीपीओ (गोटेगांव) पी.एस. बालरे और टीआई प्रभात शुक्ला को दे दी.

एसडीपीओ के निर्देश पर चौकी इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने कोरेगांव में पंकज और सुरेंद्र के घर दबिश तो दोनों घर पर ही मिल गए. उन दोनों से पुलिस चौकी में पूछताछ की गई तो पंकज और सुरेंद्र ने बताया कि हम तीनों दोस्त मछली मारने के लिए गांव से बाहर खेतों के पास वाले नाले पर गए थे. मछली मारते समय नाले के पास से जाने वाली मोटरपंप की सर्विस लाइन से आशीष को करंट लग गया, जिस से उस की मौत हो गई. उन्होंने बताया कि आशीष की इस तरह हुई मौत से वे दोनों घबरा गए. डर के मारे उन्होंने आशीष के शव को नाले के समीप ही गड्ढा खोद कर दफना दिया.

पुलिस को पंकज और सुरेंद्र द्वारा गढ़ी गई इस कहानी पर विश्वास नहीं हुआ. उधर आशीष का छोटा भाई आनंद ठाकुर पुलिस से कह रहा था कि उस के भाई की हत्या की गई है. मामला संदेहपूर्ण होने के कारण पुलिस ने गोटेगांव के एसडीएम जी.सी. डहरिया को पूरे घटना क्रम की जानकारी दे कर दफन की गई लाश को निकालने की अनुमति ली. उसी दिन गोटेगांव एसडीपीओ पी.एस. बालरे, फोरैंसिक टीम सहित दोनों आरोपियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. आरोपियों की निशानदेही पर कोरेगांव के नाले के पास खेत में बने एक गड्ढे से लाश निकाली गई.

आशीष के पिता ने लाश के हाथ पर बने टैटू को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा. लाश के गले पर घाव और खून का निशान था. इस से स्पष्ट हो गया कि आशीष की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए जबलपुर मैडिकल कालेज भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि आशीष की मौत बिजली के करंट से नहीं, बल्कि किसी धारदार हथियार से गले पर किए गए प्रहार से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि आशीष की हत्या पंकज और सुरेंद्र ने ही की है.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से जब सख्ती से पूछताछ की तो पंकज जल्दी ही टूट गया. उस ने पुलिस के सामने आशीष की हत्या करने की बात कबूल ली. आशीष ठाकुर की हत्या के संबंध में उस ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह अवैध संबध्ाोंं पर गढ़ी हुई निकली—

आदिवासी अंचल के छोटे से गांव कोरेगांव के साधारण किसान पुन्नूलाल का बड़ा बेटा आशीष और गांव के ही जगदीश ठाकुर के बेटे पंकज की आपस में गहरी दोस्ती थी. हमउम्र होने के कारण दोनों का दिनरात मिलनाजुलना बना रहता था. आशीष पंकज के घर आताजाता रहता था. पंकज ठाकुर की शादी हो गई थी और पंकज की पत्नी अनीता (परिवर्तित नाम) से भाभी होने के नाते आशीष हंसीमजाक किया करता था. एक लड़की के जन्म के बाद भी अनीता का बदन गठीला और आकर्षक था. अनीता आशीष की शादी की बातों को ले कर उस से मजाक किया करती थी. 24 साल का आशीष उस समय कुंवारा था. वह अनीता की चुहल भरे हंसीमजाक का मतलब अच्छी तरह समझता था. देवरभाभी के बीच होने वाली इस मजाक का कभीकभार पंकज भी मजा ले लेता था.

दोस्तों के साथ मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देख कर आशीष के मन में अनीता को ले कर वासना का तूफान उठने लगा था. इसी के चलते वह अनीता से दैहिक प्यार करने लगा. उसे सोतेजागते अनीता की ही सूरत नजर आने लगी थी. पंकज का परिवार खेतीकिसानी का काम करता था. घर के सदस्य दिन में अकसर खेतों में काम करते थे. इसी का फायदा उठा कर आशीष पंकज की गैरमौजूदगी में अनीता से मिलने आने लगा. करीब 2 साल पहले सर्दियों की एक दोपहर में आशीष पंकज के घर पहुंचा तो अनीता की 2 साल की बेटी सोई हुई थी और अनीता नहाने के बाद घर की बैठक पर कपड़े बदल रही थी.

अनीता के खुले हुए अंगों और उस की खूबसूरती को देखते ही आशीष के अंदर का शैतान जाग उठा. वह घर की बैठक के एक कोने में पड़ी चारपाई पर बैठ गया और अनीता से इधरउधर की बातें करने लगा.

बातचीत के दौरान जैसे ही अनीता उस के पास आई, उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

आशीष के बंधन में जकड़ी अनीता ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, छोड़ो, कोई देख लेगा.’’

इस पर आशीष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं तो डरना क्या.’’

अनीता कुछ शरमाई तो आशीष ने उसे अपने सीने से दबाते हुए अपने होंठे उस के होंठों पर रख दिए. देखते ही देखते आशीष के कृत्य की इस चिंगारी से उठी वासना की आग ने अनीता को भी अपने आगोश में ले लिया. आपस की हंसीमजाक से शुरू हुआ प्यार का यह सफर वासना के खेल में बदल गया. अनीता अपना सब कुछ आशीष को सौंप चुकी थी. अब जब भी पंकज के घर के लोग काम के लिए निकल जाते, आशीष अनीता के पास पहुंच जाता और दोनों मिल कर अपनी हसरतें पूरी करते. एक बार पंकज ने आशीष को अनीता के साथ ज्यादा नजदीकी से बात करते देख लिया, तब से उस के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया. उस ने अनीता को आशीष से दूर रहने की हिदायत दे कर आशीष से इस बारे में बात की तो वह दोस्ती की दुहाई देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें गलतफहमी हुई है, मैं तो भाभी को मां की तरह मानता हूं.’’

लेकिन प्यार के उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाले इन पंछियों पर किसी की बंदिश और समझाइश का कोई असर नहीं पड़ा. आशीष और अनीता के प्यार का खेल बेरोकटोक चल रहा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों अपनी जिस्मानी भूख मिटा लेते थे. पंकज भी अब पत्नी अनीता पर नजर रखने लगा था. पंकज अकसर सुबह को खेतों में काम के लिए निकल जाता और शाम को ही वापस आता था. लेकिन एक दिन जब वह दोपहर में ही घर लौट आया तो अपने बिस्तर पर आशीष और अनीता को एकदूसरे के आगोश में देख लिया. अपनी पत्नी को पराए मर्द की बांहों में देख कर उस का खून खौल उठा. आशीष तो जल्दीसे अपने कपड़े ठीक कर के वहां से चुपचाप निकल गया, मगर क्रोध की आग में जल रहे पंकज ने अपनी पत्नी अनीता की जम कर धुनाई कर दी.

पंकज ने बदनामी के डर से यह बात किसी को नहीं बताई. वह गुमसुम सा रहने लगा और आशीष से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब उस ने गांव के एक अन्य युवक सुरेंद्र ठाकुर से दोस्ती कर ली. इसी दौरान आशीष की शादी भी हो गई और उस ने अनीता से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लेकिन पंकज के दिल में बदले की आग अब भी जल रही थी. उस की आंखों में आशीष और अनीता का आलिंगन वाला दृश्य घूमता रहता था. उस के मन में हर समय यही खयाल आता था कि कब उसे मौका मिले और वह आशीष का गला दबा दे. पंकज सोचता था कि जिस दोस्त के लिए वह जान की बाजी लगाने को तैयार रहता, उसी दोस्त ने उस की थाली में छेद कर दिया.

6 दिसंबर के दिन योजना के मुताबिक सुरेंद्र ठाकुर आशीष को मछली मारने के लिए गांव के बाहर नाले पर ले गया. नाले के पास ही पंकज ठाकुर अपने खेतों पर उन दोनों का इंतजार कर रहा था. उस ने आशीष और सुरेंद्र को नाले में मछती मारते हुए देखा तो वह खेत पर रखे चाकू को जेब में छिपा कर नाले के पास आ गया. आशीष नाले के पानी में कांटा डाले मछली पकड़ने में तल्लीन था. तभी पंकज ने मौका पा कर आशीष के गले पर चाकू से धड़ाधड़ कई वार किए तो आशीष छटपटा कर जमीन पर गिर गया. कुछ देर में उस ने दम तोड़ दिया. यह देख पंकज ने अपने खेतों से फावड़ा ला कर गड्ढा खोदा और सुरेंद्र की मदद से आशीष को दफना दिया. चाकू और फावड़े को इन लोगों ने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिया. फिर कपड़ों पर लगे खून के छींटों को नाले में धोया और दोनों अपनेअपने घर चले गए.

हत्या के बाद दोनों सोच रहे थे कि उन्हें किसी ने नहीं देखा. लेकिन आशीष के जीजा कृपाल ने सुरेंद्र और आशीष को नाले की तरफ जाते देख लिया था. इसी आधार पर घर वालों ने सुरेंद्र और पंकज पर संदेह होने की बात पुलिस को बताई थी. पंकज ने बिना सोचेसमझे बदले की आग में अपने दोस्त पंकज का कत्ल तो कर दिया, लेकिन कानून की पकड़ से नहीं बच सका. पंकज और सुरेंद्र के इकबालिया बयान के आधार पर आशीष ठाकुर की हत्या के आरोप में गोटेगांव थाने में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहम मामला कायम कर उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जवानी के जोश में अपने दोस्त की पत्नी से अवैध संबंध बनाने वाले आशीष को अपनी जान गंवानी पड़ी तो पंकज ठाकुर और सुरेंद्र ठाकुर को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Crime : बीवी को मारने के बदले में किया कार देने का वादा

Family Crime :  नाविया अपने शौहर जमील को बहुत प्यार करती थी. लेकिन जब 3 साल बाद उस की महबूबा समीरा दुबई से लौट आई तो उस का पुराना प्यार जाग उठा. समीरा को बीवी बनाने के लिए उस ने नाविया को रास्ते से हटाने का कुचक्र रचा, लेकिन नाविया नहले पर दहला साबित हुई. आइए, जानें कैसे…

शाम के 6 बज रहे थे. अक्तूबर का महीना था. नाविया ने अपना सूटकेस बंद करते हुए सोचा कि कहीं कोई जरूरी चीज छूट तो नहीं गई. अपने भाई की शादी में वह ट्रेन से मायके के लिए रवाना हो रही थी. उस के शौहर जमील ने उस का टिकट बुक करा दिया था. जमील और नाविया की शादी को एक साल हो गया था. अभी तक उन की कोई औलाद नहीं थी. नाविया जमील का बहुत खयाल रखती थी. इस से पहले जमील और समीरा 3 साल तक अच्छे दोस्त रहे थे. दोस्ती मोहब्बत में बदल गई. दोनों ने शादी का फैसला भी कर लिया था. तभी अचानक तीसरे साल समीरा अपने बाप के साथ दुबई चली गई. कुछ अरसे तक दोनों का ताल्लुक फोन के जरिए बहाल रहा, फिर उस के बाद यह सिलसिला भी खत्म हो गया.

इसी दौरान जमील के वालिदैन ने उस की शादी नाविया से तय कर दी. जमील कुछ नहीं बोल सका. फिर जमील को यह मालूम भी नहीं था कि समीरा दुबई से आएगी भी या नहीं. समीरा का भाई भी बहुत सख्त था. वह चाहता था कि समीरा की शादी उस के दोस्त के साथ हो जाए. उस ने समीरा पर कड़ा पहरा लगा दिया था. उस के बाद जमील की जिंदगी में नाविया आ गई. नाविया अमीर मांबाप की एकलौती बेटी थी. जमील के इनकार न करने की एक वजह यह भी थी कि नाविया के वालिद जमील को अपनी बेटी के लिए एक खूबसूरत बंगला दे रहे थे. जमील को सलामी में एक महंगी कार मिलने वाली थी. इसी लालच में जमील ने नाविया से शादी कर ली और उन का एक साल खुशीखुशी गुजर गया. तभी अचानक समीरा दुबई से वापस आ गई थी. आते ही वह सब से पहले जमील से मिली. जब उसे मालूम हुआ कि जमील ने शादी कर ली है तो वह फूटफूट कर रोई.

समीरा को देख कर जमील के दिल में भी पुरानी मोहब्बत जाग उठी, पर वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी हालत में वह क्या करे. एक दिन जमील अपने औफिस में बैठा काम कर रहा था कि अचानक समीरा वहां आ गई. अचानक उसे आया देख जमील चौंका. बात करने के लिए वह उसे औफिस से बाहर ले आया. समीरा ने कहा, ‘‘जमील, मेरे भाई ने मुझ से मोबाइल छीन लिया था, इसलिए मैं तुम से ताल्लुक न रख सकी. खैर, जो भी हुआ भूल जाओ. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि हम दोनों शादी करेंगे.’’

जमील समीरा को खोना नहीं चाहता था. पुरानी मोहब्बत जोर पकड़ रही थी. उस ने कहा, ‘‘मुझे मंजूर है. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं तुम से शादी करूंगा, यह मेरा वादा है.’’

‘‘हां, ठीक है. हम शादी को गुप्त रखेंगे. फिर बाद में तुम अपनी बीवी को बता देना. मैं भी अपने पैरेंट्स को बता दूंगी. मेरा भाई इस समय दुबई में ही है, इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है.’’ समीरा बोली.

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं. 17 तारीख को 7 बजे मेरी बीवी अपने भाई की शादी में मायके जा रही है. मेरा भी उस के साथ जाने का प्रोग्राम था. लेकिन कोई बहाना बना कर मैं उसे अकेले ही रवाना कर दूंगा. उसी दिन हम निकाह कर लेंगे.’’

‘‘जमील, तुम अपनी बात से मुकर तो नहीं जाओगे? 17 तारीख को निकाह पक्का है.’’ समीरा ने पूछा.

‘‘हां, उसी रात हम निकाह कर लेंगे.’’ जमील ने विश्वास दिलाया.

फिर दोनों ने बैठ कर 17 तारीख को निकाह का प्रोग्राम तय कर लिया. जमील ने पत्नी को ट्रेन का टिकट देते हुए बहाना बनाया, ‘‘नाविया, औफिस में जरूरी मीटिंग है. मैं कल तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा. और अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ अभी चला चलता हूं. लेकिन इस से नुकसान बहुत हो जाएगा.’’

नाविया नहीं चाहती थी कि पति का कोई नुकसान हो, इसलिए वह बोली, ‘‘नहींनहीं, आप मीटिंग अटेंड कर के आइएगा. पर टाइम से आ जाना. मैं आप का इंतजार करूंगी.’’

इस के बाद दोनों घर से स्टेशन के लिए रवाना हो गए. जमील के दिल में लड्डू फूट रहे थे. स्टेशन पहुंच कर नाविया वहां खड़ी ट्रेन में अपनी सीट पर जा कर बैठ गई. ट्रेन चलने में 20 मिनट बाकी थे. जमील उस के सामने बैठा. प्यारमोहब्बत की बातें कर रहा था. अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने देखा, समीरा का फोन था. फोन को कान से लगा कर वह ट्रेन से उतर गया. डिब्बे से जरा हटा कर वह दूसरी तरफ मुंह कर के समीरा से बातें करने लगा.

‘‘तुम्हारी बीवी चली गई?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘ट्रेन में बैठी है. अभी ट्रेन चलने में कुछ टाइम है.’’ जमील ने कहा.

‘‘मेरे भाई दुबई तो चले गए हैं लेकिन भाभी को मेरे पीछे लगा कर गए हैं. भाभी की निगाहें पूरे वक्त मुझ पर ही जमी रहती हैं. तुम बताओ, तुम्हारी बीवी को कोई शकवक तो नहीं हुआ?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘नहीं, बेकार का वहम कर रही हो तुम. वह आराम से ट्रेन में बैठी है.’’

तभी अचानक ट्रेन ने सीटी बजाई. जमील ट्रेन की तरफ घूमा. लेकिन अपनी सीट पर नाविया मौजूद नहीं थी. जमील परेशान हो गया. उसी वक्त नाविया आ कर सीट पर बैठ गई. जमील डिब्बे में सवार हुआ और उस के पास जा कर पूछा, ‘‘तुम कहां चली गई थी?’’

‘‘मैं टायलेट तक गई थी.’’

ट्रेन ने दूसरी सीटी दी तो जमील ट्रेन से उतरते हुए बोला, ‘‘नाविया, अपना खयाल रखना और घर पहुंचते ही फोन कर देना.’’

ट्रेन ने रेंगना शुरू किया. जमील स्टेशन से बाहर की तरफ लपका. कार की ड्राइविंग सीट संभालते ही उस ने समीरा को फोन कर कहा, ‘‘वह चली गई है. अब मैं तुम्हारी तरफ आ रहा हूं.’’

‘‘हां, तुम आ जाओ. घर के पास वाले पार्क में मेरा इंतजार करना. भाभी की नजर बचा कर मैं भी जल्द पहुंच जाऊंगी.’’ समीरा ने कहा. जमील पार्क में पहुंच गया. वहीं से उस ने समीरा को खबर दे दी. इस पर समीरा बोली, ‘‘अभी भाभी मेरे पास ही बैठी हैं. मुझे आने में कुछ देर लगेगी. मैं तुम्हें फोन करने बालकनी में आई हूं. थोड़ा इंतजार करो.’’

10 मिनट बाद फिर समीरा का मैसेज आया, ‘‘भाभी अभी भी बैठी हैं. ऐसा करो, तुम गाड़ी में बैठो मैं भी निकलती हूं.’’

जमील मैसेज पढ़ रहा था तभी अचानक उस की पीठ पर किसी ने हाथ रखा. अंधेरे में जमील पहचान नहीं सका कि कौन है. वह घबरा गया. उस ने सोचा, शायद कोई लुटेरा है. इसलिए जमील ने जोर से एक हाथ उस पर जमा दिया, जिस से वह शख्स दीवार से टकरा कर झाडि़यों में गिर गया. जमील बिना पीछे मुड़े तेजी से भागा और कार अंधेरे से निकाल कर रोशनी में खड़ी कर दी. जमील के हाथ में कीमती मोबाइल फोन था. उस ने शुक्र अदा किया कि वह लुटने से बच गया. वह कार में बैठा था. दूसरी तरफ कोई नहीं आया, इस का मतलब था कि वह जो कोई भी था, उस जगह से उठ कर भाग खड़ा हुआ था. पर उस जगह खड़े रहना जमील की मजबूरी थी क्योंकि वह समीरा का इंतजार कर रहा था. उस की आंखें बेचैनी से चारों तरफ घूम रही थीं.

जमील को बैठेबैठे करीब एक घंटा गुजर गया. इस बीच समीरा के फोन आते रहे कि वह आ रही है. जमील की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अचानक फोन बज उठा. नाविया के भाई जफर का फोन था. वह परेशानी में बोला, ‘‘जमील भाई, ट्रेन आ गई है लेकिन नाविया ट्रेन से नहीं उतरी. मैं ने पूरी ट्रेन छान मारी. अभी तक स्टेशन पर उसे ही तलाश रहा हूं.’’

‘‘मैं ने खुद उसे ट्रेन में चढ़ाया था. कहां चली गई? यह तो परेशानी की बात है.’’ जमील ने कहा.

‘‘पर नाविया तो यहां नहीं पहुंची. हम सब बहुत परेशान हैं.’’ वह बोला.

‘‘आप ने उसे फोन किया?’’ जमील ने पूछा.

‘‘हां, कई बार किया. उस का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘आप उसे देखें. मैं भी रेलवे स्टेशन जा रहा हूं.’’

जमील परेशान भी था और उसे गुस्सा भी आ रहा था कि निकाह लेट हो जाएगा. जमील अभी सोच ही रहा था कि अचानक उस की कार का दरवाजा खुला और समीरा उस के बराबर में बैठ गई. जमील ने उस की तरफ चौंक कर देखा तो वह बोली, ‘‘जल्दी निकलो जमील. बड़ी मुश्किल से भाभी से नजर बचा कर आई हूं.’’

‘‘यहां एक मसला हो गया है समीरा. नाविया अपने भाई के पास अभी तक नहीं पहुंची.’’ जमील ने कहा.

उस की बात सुन कर समीरा ने जमील की तरफ देखा और गुस्से से बोली, ‘‘वह कोई बच्ची नहीं है कि गुम जाएगी. जल्दी निकलो यहां से, मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘इस परेशानी में यहां से निकल कर क्या करूंगा. उस का भाई रेलवे स्टेशन पर खड़ा बारबार मुझे फोन कर रहा है. मैं पहले स्टेशन जा कर उसे देखूंगा. हो सकता है कि किसी वजह से वह नीचे उतरी हो और ट्रेन चल पड़ी हो.’’

‘‘तुम रेलवे स्टेशन गए थे. उसे बैठा कर आए. ट्रेन चल भी पड़ी थी, फिर ऐसे कैसे हो सकता है.’’ समीरा ने कहा, ‘‘दोबारा फोन आए तो कह देना कि मैं उसे तलाश कर रहा हूं. इस दौरान हम निकाह कर लेंगे. बाद की बाद में देखी जाएगी. पहले यहां से फटाफट निकलो. मुझे इस बात का डर है कि मेरी भाभी न चली आए.’’

अभी वे लोग कुछ ही दूर गए थे कि नाविया के भाई का फोन आ गया. अबकी बार फोन पर नाविया का बाप था, ‘‘जमील बेटा, नाविया का कुछ पता चला क्या? हम सब बहुत परेशान हैं. आखिर वह कहां रह गई?’’

जमील जल्दी से बोला, ‘‘जी अब्बू, मैं स्टेशन पर उसे ही तलाश कर रहा हूं.’’

जमील ने समीरा से कहा, ‘‘इस परेशानी में मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है.’’

एकाएक उस ने कार रोक दी. समीरा ने गुस्से से उसे देखा. जमील ने कहा, ‘‘तुम को मैं अभी अपने दोस्त के यहां छोड़ कर एक बार स्टेशन जा कर आता हूं.’’

‘‘ठीक है, जो तुम्हें करना है, करो पर जल्दी लौट आना. निकाह टाइम से होना चाहिए.’’ समीरा ने उकता कर कहा. जमील ने समीरा को अपने दोस्त के घर छोड़ा. वहीं उन का निकाह होना था. फिर वह रेलवे स्टेशन चला गया. उस वक्त वहां कोई ट्रेन नहीं थी. प्लेटफार्म खाली पड़ा था. उस ने दूरदूर तक देखा. नाविया कहीं नहीं दिखी. उसे निकाह की पड़ी थी, यहां मसला ही हल नहीं हो रहा था. वह दरवाजा खोल कर कार में बैठा था कि दूसरा दरवाजा खोल कर कोई उस के बगल में बैठ गया. जमील ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं कोई भी हूं, क्या तुम्हें तुम्हारी बीवी के बारे में कोई जानकारी चाहिए?’’ वह शख्स बोला.

‘‘हां, कहां है वह? जल्दी बताओ.’’

‘‘आराम से भाई, पहले एक कप चाय पिलाओ फिर बताता हूं. पुलिस को खबर करने की मत सोचना. मैं साफ मुकर जाऊंगा.’’ वह बोला.

‘‘तुम ने मेरी बीवी को किडनैप किया है?’’

‘‘नहीं, किडनैप नहीं किया है, बल्कि मैं ने तुम्हारी बीवी की मदद की है वरना आप ने तो उसे मार ही दिया था. मुझे चाय पी लेने दो फिर सब बताता हूं.’’

चाय पी कर वह बोला, ‘‘मेरा नाम शानी है. मेरी बात गौर से सुनो. जिस वक्त तुम अपनी महबूबा से पार्क में बातें कर रहे थे, किसी ने अचानक तुम्हारे कंधे पर जो हाथ रखा था, जानते हो वह कौन था?’’

जमील ने जल्दी से पूछा, ‘‘कौन था?’’

‘‘वह तुम्हारी बीवी नाविया थी.’’ वह आगे बोला, ‘‘जब तुम्हारी बीवी रेल के डिब्बे में बैठी थी और तुम दूसरी तरफ मुंह कर के अपनी महबूबा से निकाह का प्रोग्राम तय कर रहे थे, इसी दौरान नाविया किसी काम से तुम्हारे पास आई थी. उस ने तुम्हारे पीछे खडे़ हो कर तुम्हारी बातें सुन लीं.

‘‘जब तुम ने चेहरा घुमाया वह अपनी सीट पर आ कर बैठी. उस ने टौयलेट जाने का बहाना कर दिया था. जब ट्रेन चलने लगी, तुम बाहर निकले तभी वह भी रेंगती हुई ट्रेन से उतर गई थी और तुम्हारे पीछे चल दी. वह टैक्सी में बैठ कर तुम्हारा पीछा कर रही थी.

‘‘जब तुम पार्क में अपनी महबूबा से बातें कर रहे थे, उस ने ही तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा. तुम ने उसे जोर से हाथ मारा और बाहर दौड़ पड़े. वह दीवार से टकरा कर जख्मी हो गई. मैं और मेरा दोस्त अंधेरे में किसी शिकार के लिए घात लगाए बैठे थे कि हमें नाविया मिल गई. मेरा दोस्त उसे उठा कर अस्पताल ले गया और मैं साए की तरह तुम्हारे पीछे लग गया.’’

जमील ने जल्दी से पूछा, ‘‘तो क्या नाविया तुम्हारे पास है?’’

‘‘हां, वह मेरे पास है. उसे होश आ गया है. उस ने सारी बातें बता दी हैं, जो मेरे दोस्त मोबाइल में रिकौर्ड कर लीं. तुम्हारी बीवी बहुत सीधी है. वह चाहती है कि तुम्हारी बेवफाई की बातें वह अपने घर वालों को बताए और तुम से छुटकारा पा ले. उस की एक ही रट है कि उसे घर पहुंचा दिया जाए. उस के सिर पर गहरी चोट लगी है. वह एक बार फिर बेहोश हो चुकी है.’’

सब कुछ सुन कर जमील के पसीने छूट गए. शानी ने जो भी बताया था वह सच था. क्योंकि सब ऐसे ही घटा था. अगर नाविया सब कुछ अपने घर वालों को बता देगी तो उस का सब कुछ छिन जाएगा. क्योंकि उस का घर, कारोबार और गाड़ी सब कुछ उस के ससुराल का दिया हुआ था. उसी वक्त फिर नाविया के भाई का फोन आ गया. वह बोला, ‘‘नाविया का कुछ पता चला भाई?’’

जमील ने घबरा कर कहा, ‘‘नहीं, अभी कुछ पता नहीं चला.’’

‘‘आप पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दें.’’ भाई ने कहा.

‘‘अभी मैं उसे तलाश रहा हूं. नहीं मिली तो थोड़ी देर में दर्ज करा दूंगा.’’ जमील से मारे घबराहट के कुछ नहीं बोला जा रहा था.

शानी ने कहा, ‘‘तुम्हारी बीवी का फोन मेरे पास है. आगे तुम्हें कोई बात करनी हो तो कर सकते हो.’’

जमील झल्ला कर बोला, ‘‘आखिर तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘मैं सौदा करना चाहता हूं. तुम्हारी बीवी के इलाज पर जो खर्च हुआ, वह रकम और बाकी बाद में बताऊंगा.’’

जमील जल्दी से बोला, ‘‘कितना खर्च हुआ बताओ? मैं दे दूंगा. मेरी बीवी कहां है, यह बता दो.’’

‘‘मिस्टर जमील, सौदा मेरी शर्तों पर होगा. ऐसे कैसे बता दूं.’’ शानी ने कार का दरवाजा खोला और उतरते हुए बोला, ‘‘जरा सोच लो. बीवी अगर जिंदा मिली तो सब कुछ अपने घर वालों को बता देगी. फिर तो न तुम घर के रहोगे न घाट के. यह कारोबार, बंगला सब कुछ छिन जाएगा.

‘‘तुम अपनी महबूबा के साथ बैठ कर तबला बजाना. मैं तो यह कह रहा हूं कि अभी भी वक्त है, सोच लो कि तुम्हें क्या करना है. क्यों न हम यह सौदा करें कि तुम्हारी बीवी को खामोशी से निपटा दें तो सारा झंझट ही खत्म.’’

उसे सोचता हुआ छोड़ कर वह नीचे उतर गया. जमील ने सोचा कि कह तो वह ठीक रहा है. अगर उस की बीवी जिंदा रही तो सब कुछ घर पर बता देगी और वह ससुराल की दी हुई हर चीज से हाथ धो बैठेगा. अगर वह नाविया को मरवा दे तो इस का राज राज रहेगा और सब कुछ उस के पास रहेगा. फिर उस ने समीरा को फोन किया और सारी बात बता दी. समीरा ने उलझ कर कहा, ‘‘अब तुम क्या करना चाहते हो?’’

‘‘सोच रहा हूं कि इस राज को इसी जगह दबा दूं और नाविया की मौत का सौदा कर लूं.’’ जमील ने बेदर्दी से कहा. उस का फैसला सुन कर समीरा खुश हो कर बोली, ‘‘अगर फैसला कर ही लिया है तो फिर देर किस बात की है. फौरन इस का काम तमाम करवाओ.’’

‘‘इस काम के पैसे भी तो लेगा. न जाने कितनी रकम मांग ले.’’ जमील ने कहा.

‘‘जो भी मांगेगा, दे देंगे. वरना हम एक नहीं हो सकेंगे. कुछ भी करने के पहले यह तसल्ली कर लेना कि नाविया इसी के पास है. कहीं वह ड्रामा तो नहीं कर रहा है.’’ समीरा ने मशविरा दिया.

फिर जमील ने शानी को फोन किया. शानी ने छूटते ही पूछा, ‘‘क्या फैसला किया आप ने?’’

‘‘पहले मैं यह तसल्ली करना चाहता हूं कि नाविया तुम्हारे पास है भी या नहीं.’’ जमील बोला.

‘‘मैं ने जितनी बातें तुम्हें बताईं, सच हैं. मेरा यकीन करो नाविया मेरे पास ही है. तभी तो मैं यह सौदा कर रहा हूं.’’ शानी ने कहा.

जमील सोचते हुए बोला, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘जिस जगह तुम्हारी कार खड़ी है, मैं उसी के पास हूं. अभी पहुंचता हूं.’’ शानी ने पहुंचते ही कहा, ‘‘बताओ, क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपने राज को दफन करना चाहता हूं. कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता.’’ जमील ने सोचते हुए कहा.

‘‘तुम्हारा राज तुम्हारी बीवी के साथ ही दफन हो जाएगा. इस की मौत को ऐसी शक्ल दूंगा कि हादसा लगे. उसे रेलवे लाइन पर डाल दूंगा, लगेगा जैसे ट्रेन से गिर कर मर गई हो.’’ शानी ने समझा कर कहा.

‘‘इस काम का क्या लोगे?’’ जमील ने पूछा.

‘‘यह मैं तुम्हें थोड़ी देर बात बताऊंगा.’’ शानी ने कहा.

‘‘पर याद रहे यह काम रात के रात ही हो जाना चाहिए.’’

‘‘यह काम रात को ही होगा. अभी बहुत रात पड़ी है. पैसों के बारे में मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा. अपना फोन खुला रखना.’’ कह कर वह नीचे उतर गया. जमील ने अपनी बीवी को खत्म करने को कह तो दिया पर वह बुरी तरह से कांप रहा था. इस के साथ ही वह समीरा को भी नहीं छोड़ना चाहता था. जमील ने कांपते हाथों से गाड़ी आगे बढ़ाई. एक बार फिर जफर की काल आ गई. वह बेहद परेशान था. जमील ने उसे बताया कि वह नाविया की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने जा रहा है. वैसे उस का इरादा नहीं था, फिर उस ने सोचा कि रिपोर्ट दर्ज कराने से कोई उस पर शक नहीं करेगा.

जमील पुलिस स्टेशन पहुंच गया. वहां उस ने ट्रेन का वाकया बताते हुए पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. वह थाने से बाहर निकला तो शानी का फोन आ गया, ‘‘तुम्हारा काम हो जाएगा. एक घंटे के बाद मेरी बताई हुई जगह पर अपनी बीवी की लाश तलाश कर लेना.’’

‘‘काम ठीक से हो जाएगा न. मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता. तुम ने अपने पैसे नहीं बताए.’’

‘‘इस के बदले में तुम्हें यह गाड़ी मुझे देनी होगी, जिस में तुम बैठे हो.’’

‘‘तुम इस गाड़ी के बजाए कैश पेमेंट ले लो.’’

‘‘कैश तुम्हारे एकाउंट में नहीं होता, सब नाविया के एकाउंट में है. इसलिए तुम से वही चीज मांगी, जो तुम्हारे पास है. यह बात तुम्हारी बीवी ने बताई थी कि कारोबार और पैसे उस के खाते में रहते हैं. तुम्हारे नाम पर बस यही कार है. वही मैं तुम से मांग रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, कार और उस के कागजात मैं तुम्हें दे दूंगा.’’ जमील ने कहा.

‘‘वैसे एक बात पूछूं, सारा कैश तो तुम्हारी बीवी के नाम है, उस के मरने के बाद तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं उस के एकाउंट से पैसे निकलवा लूंगा. कई तरीके हैं. तुम फिक्र न करो. बस तुम अपना काम पक्का करो.’’

‘‘तुम मुझे गाड़ी के कागजात दो और एक घंटे के बाद उस की लाश ले लो.’’ शानी ने कहा.

‘‘एक घंटे के बाद कहां मिलोगे?’’

‘‘तुम मुझे गाड़ी के कागजात आधे घंटे में दोगे. आधे घंटे के बाद मैं खुद तुम्हें फोन करूंगा.’’ यह कह कर उस ने फोन बंद कर दिया.

फौरन ही जमील ने डैशबोर्ड खोल कर कार के कागजात निकाले, अच्छे से चैक कर के दोबारा वहीं रख दिए. उस ने सोचा गाड़ी के कागजात देने के बाद बीवी दूसरी दुनिया में पहुंच जाएगी. किस्सा खत्म. जमील जालिम और खुदगर्ज हो गया था. वह नई शादी के बारे में सोच कर खुश था. जमील ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ी. बैडरूम की अलमारी खोल कर नाविया की चैकबुक तलाशने लगा. उसे एक भी चैकबुक नहीं मिली. उस ने सारे दराज खंगाल डाले, कहीं कुछ नहीं था. पता नहीं कहां रखी थीं. उसी वक्त शानी का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारा काम करने के लिए मैं तुम्हारी बीवी को ले कर जा रहा हूं. तुम ऐसा करो कि डाकखाने के गेट के पास गाड़ी खड़ी कर के बाहर के बौक्स में कागज डाल दो. मैं निकाल लूंगा. फिर तुम उस जगह पहुंच जाना, जहां तुम्हारी बीवी की लाश पड़ी होगी.’’

‘‘ओके.’’

जमील ने कांपती आवाज में कहा और डाकखाने रवाना हो गया. वहां पहुंच कर कार खड़ी की और सोचा जो कुछ वह कर रहा है, वह ठीक है. उस ने खुद को तसल्ली दी. इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. जमील कार से बाहर निकला. काम कर के वह उस दोस्त के घर चला गया, जहां उस ने समीरा को छोड़ा था. वह कुछ दूर ही गया था कि उसे कार स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने देखा कोई उस की कार स्टार्ट कर के ले जा रहा था. जमील चल पड़ा. उस के दोस्त के घर समीरा मौजूद थी. वह उस के सामने बैठ गया, जैसे बहुत बड़ा जुआ खेल कर आया हो.

‘‘क्या हुआ?’’ समीरा ने बेचैनी से पूछा.

‘‘कार के बदले मैं अपनी बीवी का सौदा कर आया. कुछ देर में वो उस का काम तमाम कर देंगे और मुझे फोन पर खबर मिल जाएगी कि रेल की पटरी पर उस की लाश पड़ी है. लाश देख कर आने के बाद हम निकाह कर लेंगे ताकि तुम्हारे भाईभाभी की बोलती बंद हो जाए.’’ जमील ने बताया.

‘‘फिर उस के बाद क्या होगा?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘तुम अभी तो अपने घर चली जाना. मैं किसी और नाम से पुलिस को लाश की खबर दे दूंगा. मैं ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाते वक्त उस की फोटो भी वहां दे दी थी. पुलिस मुझे बुला कर पूछताछ करेगी. मैं अपनी कहानी पर डटा रहूंगा. कुछ दिनों में मामला ठीक हो जाएगा, फिर हम एक साथ रहना शुरू कर देंगे.’’ जमील ने बताया. समीरा गहरी सोच में डूब गई. वह अपनी जगह से उठी, पर्स उठाया और सख्ती से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं.’’

जमील हैरान हुआ, ‘‘तुम कहां जा रही हो?’’

‘‘मैं तुम से निकाह नहीं करूंगी, चाहे कुछ हो जाए.’’ समीरा ने दो टूक कहा. जमील भौचक्का रह गया, ‘‘तुम यह क्या कह रही हो. तुम मुझ से निकाह क्यों नहीं करोगी? तुम्हें एकाएक क्या हो गया?’’

समीरा उस की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘तुम जालिम इंसान हो. कल को क्या पता, तुम मेरा भी ऐसा ही सौदा कर दो.’’ कहती हुई समीरा तेजी से बाहर निकल गई.

जमील घबरा कर उस के पीछे भागा, ‘‘मेरी बात तो सुनो समीरा.’’

‘‘मैं कोई बात नहीं सुनना चाहती. मैं तुम से मोहब्बत करती हूं, यह सच है. पर अब मुझे तुम से डर लग रहा है.’’ समीरा तेजी से बाहर निकल गई. बिना पीछे देखे आगे बढ़ गई. जमील ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि समीरा उसे इस तरह छोड़ कर चली जाएगी. फिर अचानक जमील को खयाल आया कि वह कम से कम अपनी पत्नी नाविया की जान बचा ले. ताकि उस से माफी मांग कर सब कुछ पहले जैसा कर ले, जिस के लिए उस ने नाविया की जान की भी परवाह नहीं की. उसे अहसास हुआ कि उसे पत्नी को जान से मरवाने वाली बात समीरा को नहीं बतानी चाहिए थी. यदि वह ऐसा करता तो शायद समीरा उसे छोड़ कर नहीं जाती.

खैर, अब तीर कमान से निकल चुका था. उस की समझ में बेहतर हल यही आ रहा था कि नाविया की जान बचा कर उस से माफी मांग ली जाए. वह बहुत सीधी है, जरूर माफ कर देगी. उस ने जेब से मोबाइल निकाला और शानी को फोन लगाने लगा. लेकिन इस से पहले ही शानी का फोन आ गया.

‘‘मैं ने आप का काम कर दिया है. रेलवे प्लेटफार्म से कुछ ही आगे पटरी पर आप की बीवी की लाश पड़ी मिल जाएगी. देख लीजिए, मुझे अब काल मत करना. मैं यह फोन बंद कर के इसे फेंकने जा रहा हूं.’’ कह कर शानी ने फोन बंद कर दिया. जमील को जैसे बड़ा झटका लगा. फिर जब उसे जरा होश आया तो वह टैक्सी कर के सीधे रेलवे स्टेशन पहुंच गया. वह एक तरफ चला, प्लेटफार्म पर 2-4 पैसेंजर ही थे. वह पटरी देखते हुए आगे बढ़ने लगा. पटरी पर कुछ भी दिखाई नहीं दिया. वह एक तरफ खड़ा हो कर दूर तक देखने लगा. अचानक उस के पीछे आहट हुई और साथ ही नाविया की आवाज उस के कानों से टकराई.

‘‘जमील, तुम मेरी लाश ढूंढ रहे हो?’’

जमील ने चौंक कर उस की तरफ देखा. वह नाविया ही थी. जमील की आंखों में देख रही थी. उस के माथे पर चोट का निशान था.

‘‘तुम जिंदा हो?’’ जमील के मुंह से निकला.

‘‘मुझे जिंदा देख कर तुम्हें हैरत और परेशानी हो रही है. तुम ने मुझे जान से मार देने का सौदा किया था. यह भी नहीं सोचा कि अपनी उस बीवी को जान से मरवाना चाहते हो जो तुम्हें बेहद प्यार करती है. शानी भाई ने जो कुछ तुम्हें बताया, वह बिलकुल सच था.

‘‘मैं ने तुम्हारी बातें सुन ली थीं. तुम्हारे पलटते ही मैं ट्रेन से उतर गई थी. मैं ने फौरन भाई को फोन किया और उन्होंने इस जगह फोन कर के अपने दोस्त शानी को भिजवा दिया, जहां तुम अपनी महबूबा के इंतजार में खड़े थे और उस से बातें कर रहे थे.

‘‘तुम ने चोरउचक्का समझ कर मेरे मुंह पर जोर का घूंसा मारा, जिस से दीवार से टकरा कर मुझे यह चोट लग गई. इस के बाद शानी भाई ने खुद ही सारा मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने फैसला कर लिया था कि मैं एक जालिम बेवफा आदमी के साथ किसी कीमत पर जिंदगी नहीं गुजार सकती.’’ नाविया ने कहा.

‘‘मैं मानता हूं, मुझ से बड़ी गलती हुई. मैं तुम से माफी मांगता हूं.’’ जमील ने गिड़गिड़ा कर कहा.

‘‘जब महबूबा चली गई तो तुम्हें माफी मांगने का खयाल आया. वरना तुम तो मेरी लाश चाहते थे. अपने जिस दोस्त के घर तुम अपनी महबूबा को छोड़ आए थे, उसी ने मुझे फोन कर के बताया कि तुम निकाह कर रहे हो. यह अलग बात है कि उस का जमीर जरा देर से जागा.’’ नाविया बोली.

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. अब ऐसा नहीं होगा.’’ वह बेबसी से बोला.

‘‘अब भरोसा टूट गया है. अब कोई माफी नहीं. घर और कारोबार सब मेरा था. शानी भाई ने इस जगह अपने आदमी बैठा दिए हैं. बस एक गाड़ी तुम्हारे नाम थी, वह भी मैं ने तुम से अपनी मौत का सौदा कर के वापस ले ली. तुम्हें तलाक के लिए जल्दी ही अदालत से नोटिस मिल जाएगा.’’ नाविया ने बेदर्दी से कहा और जमील को शौक्ड छोड़ कर आगे बढ़ गई.

 

Family Crime : 2 लाख रुपए की सुपारी देकर कराई पत्नी की हत्या

Family Crime :  आसिफ सिद्दीकी का जमाजमाया बिजनैस था और उस की घरगृहस्थी भी अच्छी चली रही थी. लेकिन उस की ऐसी मति मारी गई कि खूबसूरत पत्नी समरीन के होते हुए उस ने अपनी साली फातिमा को अपने जाल में फांस लिया. बाद में आसिफ इस जाल में ऐसा फंसा कि…

दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में लोनी बौर्डर थाना एकदम दिल्ली की सीमा से सटा है. यूपी और दिल्ली की सीमा से सटा होने के कारण लोनी बौर्डर थाने की पुलिस अपराधियों पर नजर रखने के लिए 24 घंटे सतर्क रहती है. आमतौर पर इस थाने के इंचार्ज भी रातरात भर जाग कर क्षेत्र में गश्त करते रहते हैं. 11 और 12 जनवरी, 2020 की रात को लोनी बौर्डर थाने के एसएचओ इंसपेक्टर शैलेंद्र प्रताप सिंह अदालत में एक जरूरी एविडेंस के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. थाने के एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह थानाप्रभारी की जिम्मेदारी उठा रहे थे.

रात के करीब 4 बजे का वक्त था जब राजेंद्र पाल सिंह सरकारी जीप में अपने हमराहियों के साथ पूरे क्षेत्र में गश्त कर के थाने की तरफ लौट रहे थे कि उन्हें पुलिस नियंत्रण कक्ष से वायरलैस पर सूचना मिली कि 3-4 बदमाशों ने बेहटा हाजीपुर में मेवाती चौक पर रहने वाले कारोबारी आसिफ अली सिद्दीकी के घर में घुस कर डाका डाला है और लूटपाट का विरोध करने पर व्यापारी की पत्नी समरीन का गला दबा दिया है. वायरलैस से मिली सूचना इतनी ही थी, लेकिन इतनी गंभीर थी कि राजेंद्र पाल सिंह ने थाने न जा कर घटनास्थल पर पहुंचने को प्राथमिकता दी. वहां से मेवाती चौक की दूरी करीब 4 किलोमीटर थी, वहां तक पहुंचने में उन्हें महज 10 मिनट का वक्त लगा.

मेवाती चौक पर आसिफ अली सिद्दीकी का घर मुख्य सड़क पर ही था. वहां आसपड़ोस के काफी लोगों की भीड़ घर के बाहर जमा थी. घर में रोनेपीटने की आवाजें आ रही थीं. वहां पहुंचने पर पता चला कि आसिफ अली सिद्दीकी कुछ लोगों के साथ अपनी पत्नी समरीन को जीटीबी अस्पताल ले गया है, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया है. वारदात के बारे में ज्यादा जानकारी तो कोई नहीं दे सका, लेकिन यह जरूर पता चल गया कि पुलिस नियंत्रण कक्ष को वारदात की सूचना पड़ोस में रहने वाले रईसुद्दीन ने दी थी. रईसुद्दीन ने एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बताया कि रात करीब पौने 4 बजे आसिफ ने अपनी छत पर चढ़ कर ‘‘बचाओ… बचाओ.. डकैत.. डकैत’’ कह कर चिल्लाना शुरू किया था.

जिस के बाद आसपड़ोस में रहने वाले वहां एकत्र हो गए थे. पड़ोसियों ने आसिफ के घर के मुख्यद्वार के बाहर से लगी कुंडी खोली थी, जिसे बदमाश भागते समय बाहर से लगा गए थे. चूंकि समरीन की हत्या आपराधिक वारदात के दौरान हुई थी, इसलिए उस का पोस्टमार्टम कराने की काररवाई पुलिस को ही करनी थी. इसलिए राजेंद्र पाल सिंह ने अपने सहयोगी एसआई विपिन कुमार को स्टाफ के साथ जीटीबी अस्पताल रवाना कर दिया. विपिन कुमार ने जीटीबी अस्पताल पहुंच कर इमरजेंसी में मौजूद डाक्टरों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि समरीन को जब लाया गया था, उस से पहले ही उस की मृत्यु हो चुकी थी.

विपिन कुमार ने डाक्टरों से बातचीत कर उन के बयान दर्ज किए और शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लिखापढ़ी की औपचारिकताओं को पूरी करने में सुबह के करीब 6 बज चुके थे. आसिफ का रोरो कर बुरा हाल था. विपिन कुमार ने आसिफ को ढांढस बंधाया और उसे अपने साथ ले कर उस के घर मेवाती चौक पहुंच गए. इस दौरान एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह ने घटना की सूचना से लोनी के सीओ राजकुमार पांडे, एसपी (देहात) नीरज जादौन और एसएसपी कलानिधि नैथानी को अवगत करा दिया था. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एक दिन पहले ही गाजियाबाद में एसएसपी का पद संभाला था. उन के आते ही जिले में गंभीर अपराध की ये पहली घटना थी.

सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी कुछ ही देर बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. सीओ राजकुमार पांडे ने डौग स्क्वायड की टीम के साथ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और क्राइम टीम को भी मौके पर बुला लिया था. इन सभी टीमों ने घटनास्थल पर पहुंच कर अपना अपना काम शुरू कर दिया. यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसआई विपिन कुमार आसिफ को ले कर उस के घर पहुंच गए. इस के बाद आसिफ से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. उस ने अपने साथ हुई घटना का ब्यौरा देना शुरू कर दिया.

आसिफ ने सुनाया वाकया आसिफ ने बताया कि शनिवार रात को वह मकान की पहली मंजिल पर अपनी पत्नी समरीन (32) व 2 बच्चों के साथ सो रहा था. रात करीब एक बजे कमरे में आहट हुई. वह उठा तो सामने मुंह पर कपड़ा बांधे 2 बदमाश खड़े थे. जब तक वह कुछ समझ पाता, बदमाशों ने उस पर तमंचा तान दिया और शोर मचाने पर गोली मारने की धमकी दी. इस बीच एक बदमाश ने साथ में सो रहे डेढ़ वर्षीय बेटे तैमूर और पत्नी की गरदन पर छुरा रख दिया. इस के बाद बदमाशों ने उस के और पत्नी के हाथ बांध दिए. बदमाशों ने उन से मारपीट करते हुए पूछा कि 5 लाख रुपए कहां हैं.

‘‘कैसे रुपए, कौन से रुपए…’’ उस ने बदमाशों से पूछा. उस ने बदमाशों को बता दिया कि वह छोटा सा कारोबार करता है, उस के घर में इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी. जब आसिफ ने रुपए न होने की बात कही तो एक बदमाश ने धमकी दी कि तुम्हारी गरदन काट देंगे. यह सुन कर उस की पत्नी समरीन की चीख निकल गई. इस से घबराए एक बदमाश ने रजाई से समरीन का मुंह दबा दिया. इस के बाद एक बदमाश ने अलमारियों की चाबी ले कर अंदर रखे एक लाख 30 हजार रुपए कैश व करीब 70 हजार रुपए के गहने निकाल लिए. आसिफ ने यह भी बताया कि ये गहने उस ने अपनी साली की शादी में देने के लिए बनवाए थे, जिस की मार्च में शादी है.

आसिफ ने बताया कि इस बीच एक बदमाश बाहर गया और जीने पर खड़े अपने साथी से बात करने लगा, जीने पर खड़ा बदमाश अंदर नहीं आना चाह रहा था. घर से बाहर गए बदमाश ने उस से कहा कि 5 लाख रुपए नहीं मिल रहे, इस पर बाहर खड़े बदमाश ने कहा कि 5 लाख रुपए घर में ही हैं. ऊपर वाले कमरे में जा कर देखो. आसिफ ने बताया कि गहने व कैश निकालने के बाद एक बदमाश आसिफ को गनपौइंट पर मकान की तीसरी मंजिल पर ले गया, जबकि दूसरा बदमाश समरीन का मुंह रजाई से दबाए वहीं खड़ा रहा. तीसरी मंजिल पर उन का साला जुनैद (15 साल), बेटी उजमा (12 साल) और बेटा आतिफ (9 साल) सो रहे थे. वहां पहुंच कर बदमाशों ने जुनैद को उठाया और उस के हाथ पैर बांध दिए. उन्होंने जुनैद से 5 लाख रुपए के बारे में पूछा और मारपीट की.

इस बीच पहली मंजिल पर समरीन का मुंह दबाने वाला बदमाश उस के डेढ़ साल के बेटे तैमूर को ऊपर ले कर आया और उस की गरदन पर छुरा रख कर 5 लाख रुपए मांगे. आसिफ का कहना था कि यह देख वह रोते हुए बदमाशों के पैरों मे गिर पड़ा और उसे छोड़ने के लिए कहा. इस पर बदमाशों ने बच्चे को छोड़ दिया और उन सभी को कमरे में बंद कर के धमकी दी कि यदि आधे घंटे से पहले कमरे से बाहर निकले तो सभी को मार डालेंगे. इस के बाद वे फरार हो गए. जाने से पहले वे घर के मुख्यद्वार की कुंडी भी बाहर से लगा गए. बदमाशों के जाने के बाद मचाया शोर आसिफ के साले का कहना था कि डर की वजह से वे लोग 20 मिनट तक चुप रहे. इस के बाद आसिफ ने किसी तरह हाथ की रस्सी खोली और खिड़की के पास जा कर पड़ोसी राशिद को आवाज लगाई.

पड़ोसियों ने पहले मुख्यद्वार की कुंडी खोली फिर मकान के भीतर आ कर कमरे को बाहर से खोला.  वह वहां से पहली मंजिल पर पत्नी को देखने गया तो वह बेहोश मिली. पड़ोसियों की मदद से वह पत्नी को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. आसिफ के मुंह से पूरी वारदात की कहानी सुनने के बाद एसएसपी ने एसपी (देहात) को इस वारदात का जल्द से जल्द  खुलासा करने की हिदायत दी. जिस के बाद सीओ राजकुमार पांडे के निर्देश पर लोनी बौर्डर थाने में 12 जनवरी की सुबह धारा 452/394/302/34/120बी/ भादंवि के तहत मुकदमा पंजीकृत करा लिया गया. इस केस की जांच का काम एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को सौंपा गया.

घटना का खुलासा करने के लिए सीओ राजकुमार पांडे ने राजेंद्र पाल सिंह के अधीन एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया, जिस में एसआई विपिन कुमार, हैड कांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल विपिन कुमार, मनोज और दीपक को शामिल किया गया. उसी दोपहर पुलिस ने समरीन के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया. परिजनों ने उसी शाम गमगीन महौल में समरीन के शव को सुपुर्दे खाक कर दिया. आसिफ अली सिद्दीकी मूलरूप से मेरठ के जानी कलां गांव का रहने वाला है. उस के पिता अफसर अली गांव में खेतीबाड़ी का काम करते हैं. अफसर अली की 6 संतानों में 5 लड़के और एक लड़की है. आसिफ (43) भाइयों में तीसरे नंबर पर है. सभी भाईबहनों की शादी हो चुकी है.

आसिफ अली ने युवावस्था में बैटरी की प्लेट बनाने का काम सीखा था. सन 2006 में उस की शादी जानी कलां के रहने वाले तनसीन की बेटी समरीन से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए, 2 बेटे और एक बेटी. बड़ा बेटा आतिफ (9) साल का है जबकि सब से छोटा तैमूर अभी डेढ़ साल का है. बेटी उजमा तीनों बच्चों में सब से बड़ी है. तनसीन अली बेटी समरीन की शादी से कई साल पहले गांव छोड़ कर लोनी के बेहटा की उत्तरांचल विहार कालोनी में आ बसे थे. उन्होंने छोटा सा प्लौट खरीद कर अपना घर बना लिया था. तनसीन फैक्ट्रियों से माल खरीद कर किराने की दुकानों पर सप्लाई करते थे, जिस से उन के परिवार की गुजरबसर ठीकठाक हो रही थी. बेटी समरीन के निकाह में भी उन्होंने अच्छा पैसा खर्च किया था. शादी के बाद समरीन गांव में पति आसिफ के साथ हंसीखुशी जीवन बिता रही थी.

आसिफ भी खूबसूरत पत्नी को बेइंतहा प्यार करता था. वक्त तेजी से गुजर रहा था. समरीन एक के बाद 2 बच्चों की मां बन गई. पहले उजमा का जन्म हुआ फिर आतिफ पैदा हुआ. 2 बच्चे हो गए तो घर के खर्च भी बढ़ गए, लेकिन कमाई कम थी. इसलिए आसिफ ने गांव छोड़ कर शहर में बसने का फैसला किया.  आसिफ ने लोनी में बढ़ाया अपना धंधा सन 2014 में सासससुर की सलाह पर आसिफ लोनी के बेहटा आ कर किराए के मकान में रहने लगा. यहीं पर उस ने अपना बैटरी की प्लेट बनाने का कारोबार बढ़ाना शुरू किया. एक साल के भीतर ही उस ने अपने पिता और ससुर की मदद से मेवाती चौक के पास 50 गज का एक प्लौट ले कर उस में तीनमंजिला मकान बना लिया.

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था. आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे. आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई. विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था. बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी. सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे. पीडि़तों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा. आसिफ से की पूछताछ अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है. उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था. चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों. आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था. अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.  न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था. वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी. चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

कुछ दिन बाद फातिमा वापस घर चली गई. हालांकि घर इतनी दूर भी नहीं था कि आनाजाना न हो सके. इस घटना के बाद फातिमा अकसर किसी बहाने से बहन के घर आनेजाने लगी. इसी बीच डेढ़ साल बाद समरीन गर्भवती हुई तो फातिमा एक बार फिर बहन की तीमारदारी के लिए महीने भर उस के घर आ कर रही. इस दौरान फिर से दोनों के बीच नाजायज रिश्तों  का अध्याय लिखा जाने लिखा. साली को घरवाली बनाने की थी योजना समरीन ने छोटे बेटे तैमूर को जन्म  दिया. लेकिन तब तक आसिफ और फातिमा के बीच नाजायज रिश्ते की भनक न तो समरीन को लगी थी न ही फातिमा के परिवार वालों को. लेकिन फातिमा के शरीर की गंध पाने के बाद आसिफ को अपनी पत्नी समरीन से लगाव कम होने लगा था.

अचानक आसिफ के मन में फातिमा को अपना बनाने की लालसा तेज होने लगी. उस ने सोचा कि अगर समरीन मर जाए तो वह अपने बच्चों की देखभाल के लिए ससुराल वालों को मौसी को उन की मां बनाने के लिए तैयार कर सकता है. लेकिल सवाल था कि हट्टीकट्टी और जवान समरीन मरेगी कैसे. आसिफ के मन में उसी समय यह खयाल आया कि क्यों न समरीन को किसी ऐसे तरीके से मार दिया जाए कि उस की मौत सब को स्वाभाविक लगे. बस ये खयाल मन में आते ही उस के दिमाग में साजिश के कीडे़ रेंगने लगे. आसिफ का एक दोस्त था रविंद्र जो गोविंद टाउन, बेहटा हाजीपुर में रहता था और वहीं पर जनकल्याण क्लीनिक चलाता था.

वैसे तो रविंद्र झोलाछाप डाक्टर था, लेकिन आसिफ के साथ खानेपीने के कारण उस की दोस्ती हो गई थी. आसिफ अपने बच्चोें को उसी से दवा वगैरह दिलवाता था. उस ने अपने मन की बात एक दिन रविंद्र को बताई. उस ने कहा कि इलाज के बहाने वह समरीन को ऐसा इंजेक्शन लगा दे कि उस की मौत हो जाए.  रविंद्र इस काम के लिए राजी तो हो गया लेकिन उस ने इस काम के लिए पैसे मांगे. आसिफ ने कह दिया कि वह काम कर दे, इस के बदले वह उसे मोटी रकम देगा. लिहाजा डा. रविंद्र ने उसे एक ऐसी दवा दे दी जिस को खाने के बाद समरीन पर रिएक्शन होना था. लेकिन संयोग से उस दवा को खाने के बाद जो थोड़ाबहुत असर हुआ, उसे समरीन ने घरेलू उपचार कर के ठीक कर लिया.

पहली साजिश फेल हो गई तो डा. रविंद्र ने कहा, ‘‘चलो तुम्हें एक और डाक्टर संदीप से मिलाता हूं, जो  लोनी मे श्री साईं क्लीनिक चलाते हैं.’’

रविंद्र ने संदीप से आसिफ की मुलाकात कराई और उस का मकसद बताया. आसिफ का काम करने के लिए संदीप ने पैसे की मांग की तो आसिफ ने दोनों को 30 हजार रुपए दे दिए. डा. संदीप ने एक दिन बुखार के इलाज के बहाने आसिफ के साथ उस के घर जा कर समरीन को एक जहरीला इंजेक्शन भी दिया, लेकिन कई दिन इंतजार के बाद भी समरीन की मौत नहीं हुई तो आसिफ निराश हो गया. इस दौरान संदीप और रविंद्र आसिफ से मिले पैसे से मौजमस्ती करने के लिए मंसूरी चले गए. जब वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि इंजेक्शन से भी समरीन की मृत्यु नहीं हुई है. इसलिए आसिफ उन से पैसे वापस मांगने लगा.

तब संदीप ने कहा कि वह एक आदमी के जरिए इस काम को सफाई से करवा सकता है लेकिन इस काम में थोड़ी ज्यादा रकम लगेगी. आसिफ इस के लिए भी तैयार हो गया. लेकिन इस दौरान आसिफ की साली फातिमा का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया समरीन ने देखा की फातिमा उसे छोड़ कर अपने जीजा के आसपास कुछ ज्यादा मंडराती है, तो उसे शक हुआ. उस ने दोनों के ऊपर निगाहें रखनी शुरू कर दीं. शक यकीन में तब बदल गया, जब एक दिन फातिमा चाय देने के बहाने नीचे वर्कशाप में आसिफ के पास पहुंची और आसिफ ने लपक कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

संयोग से शक की पुष्टि के लिए समरीन पीछे से आ गई और सबकुछ अपनी आंखों से देख लिया. उस दिन खूब हंगामा हुआ. उस दिन समरीन ने छोटी बहन को खूब डांटा और आसिफ से उस की जम कर लड़ाई हुई. समरीन ने अपने मातापिता को तो बहन के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन परिवार वालों पर जोर देना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द  फातिमा के लिए अच्छा सा लड़का देख कर उस का निकाह कर दें. परिवार वालों ने उस के लिए लड़का देख लिया और 7 मार्च, 2020 निकाह की तारीख तय कर दी. इस बीच फातिमा के निकाह को ले कर समरीन और आसिफ में अकसर झगड़ा होने लगा. आसिफ समरीन से कहता था कि 2 बहनें एक साथ एक ही पति की बेगम बन कर भी तो रह सकती हैं. पता नहीं जिस से फातिमा की शादी हो वो लोग कैसे हों, उसे सुख दे सकें या नहीं. बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा इस कदर बढ़ता कि मारपीट तक हो जाती.

दोनों के बीच मारपीट की बात समरीन के मातापिता तक पहुंची, लेकिन समरीन ने उन्हें कभी हकीकत का पता नहीं लगने दिया. जब आसिफ ने देखा कि समरीन उस के और फातिमा के रास्ते का कांटा बन चुकी है तो उस ने आखिरकार उस की हत्या के लिए आखिरी साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. आसिफ ने डा. संदीप से कहा कि अब वह जल्द  से जल्द समरीन की हत्या वाला काम करवा दे. बदमाश सुनील शर्मा से किया संपर्क इस के बाद संदीप आसिफ को अपने साले के साले के साले सुनील शर्मा निवासी भीमपुर, थाना बहजोई, जिला मुरादाबाद के पास ले गया, जो इन दिनों लोनी की पुश्ता कालोनी में रहता था. आसिफ को जब पता चला कि सुनील शर्मा आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और पहले उत्तराखंड जेल में भी रह चुका है तो उसे यकीन हो गया कि यह आदमी उस का काम कर देगा.  जहरीला इंजेक्शन

आसिफ ने सुनील से 2 लाख रुपए मे समरीन की हत्या का सौदा पक्का कर लिया, जिस में से लगभग 90 हजार रुपए आसिफ ने सुनील को 2-3 बार में दे दिए. लेकिन जैसेजैसे फातिमा की शादी नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे आसिफ को समरीन की हत्या की जल्दी होने लगी थी. 9 जनवरी, 2020 को आसिफ ने सुनील से बेहटा हाजीपुर में उत्तरांचल सोसाइटी के पास मुलाकात की और बताया कि 11-12 जनवरी की रात को उसे यह काम पूरा करना है. उस ने सुनील को पूरा प्लान भी समझा दिया. इस काम में सुनील ने अपने 2 अपराधी दोस्तों को भी शामिल कर लिया था. प्लान के मुताबिक 11 जनवरी, 2020 की रात सुनील अपने दोनों साथियों के साथ मेवाती चौक पर आसिफ के घर के बाहर पहुंचा. योजना के मुताबिक आसिफ दरवाजा खोल कर काम कर रहा था. उस ने नीचे वाले कमरे में सुनील व उस के दोनों साथियों को बैठा दिया और खुद सोने के लिए ऊपर चला गया.

आधे घंटे में खाना खाने के बाद उस ने अपने साले और बेटे, जो मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, से मोबाइल ले कर बंद कर दिए और जल्दी से सोने को कहा, ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके. उस ने जीने की तरफ आने वाले गेट की कुंडी नहीं लगाई थी ताकि सुनील व उस के साथी आसानी से दरवाजा खोल कर ऊपर आ सकें. आसिफ हत्या में खुद भी रहा शामिल प्लान के मुताबिक रात 1 से 3 बजे के बीच में सुनील अपने दोनों साथियों के साथ उस कमरे में आया, जहां आासिफ व उस की बीवी सो रहे थे. आसिफ ने उन तीनों के साथ मिल कर पहले अपनी पत्नी समरीन की गला घोंट कर हत्या करवा दी. फिर अपने हाथपैर बंधवा कर ऊपरी मंजिल पर ले जाने के लिए कहा. ताकि ऊपर सो रहे साले व लड़के को लगे कि वास्तव में बदमाशों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है.

हत्या हो जाने के बाद आसिफ ने बदमाशों से कहा कि 23 हजार रुपए और लगभग 70 से 75 हजार रुपए का हार अलमारी में रखा है, जिसे तुम अपने शेष एक लाख रुपए के रूप में ले लो. वारदात के दौरान उस ने अपने हाथ थोड़ा ढीले बंधवाए ताकि उन के जाने के कुछ देर बाद वह हाथ खोल कर शोर मचा सके.  किसी को शक न हो इसलिए उस ने ही बदमाशों को ऊपर के कमरे में सब को बंद कर के कुंडी बाहर से बंद करने और जाते समय मकान के मुख्यद्वार को बाहर से बंद करने का आइडिया दिया था. आसिफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम झोलाछाप डाक्टर रविंद्र और संदीप को भी समरीन की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

आसिफ ने जो प्लान तैयार किया था, उस में उस ने एक गलती कर दी थी. उसेये ध्यान ही नहीं रहा कि जब पूरे घर में घुसने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो बिना जबरदस्ती किए बदमाश घर के अंदर दाखिल कैसे हो गए. इस बात का वह क्या जवाब देगा. बस यहीं से पुलिस को उस पर शक होना शुरू हो गया. गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी आसिफ और उस के दोनों सहयोगियों रविंद्र और संदीप को आवश्यक पूछताछ के बाद जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. बाकी 3 फरार आरोपियों में से सुनील शर्मा को पुलिस ने 17 जनवरी, 2020 को लोनी क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सुनील ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस के दोनों साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं.

मात्र 72 घंटे में ब्लाइंड मर्डर व डकैती केस को सुलझाने के लिए एसएसपी गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने विवेचक और लोनी बौर्डर थाने की पुलिस टीम को 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों से हुई पूछताछ पर आधारित. फातिमा परिवर्तित नाम है.

 

 

Mumbai Crime : बेटी के शव के 3 टुकड़े किए फिर काले बैग में भर कर फेंका

Mumbai Crime : महिला के धड़ का हिस्सा आटोरिक्शा वालों के लिए भी रहस्य था और पुलिस वालों के लिए भी. लेकिन सीसीटीवी फुटेज से पुलिस ने अपनी ही बेटी के हत्यारे अरविंद तिवारी को भी खोज निकाला और हत्या का रहस्य भी ढूंढ लिया…

उस दिन दिसंबर 2019 की 8 तारीख थी. समय था सुबह के साढ़े 5 बजे. मुंबई के कल्याण स्टेशन पर  अच्छीखासी भीड़ थी. स्टेशन के बाहर दरजनों आटोरिक्शा खड़े थे. सलीम भी सवारी के इंतजार में अपना आटोरिक्शा लिए खड़ा था. तभी एक व्यक्ति बड़ा सा काला बैग लिए उस के आटो के पास आया और बैग को आटोरिक्शा में रखते हुए बोला, ‘‘भिवंडी के गोवानाका पर छोड़ दो, थोड़ी जल्दी है.’’

ऐसी कम ही सवारी होती हैं, जो बिना पूछे रिक्शा में बैठ जाएं. क्योंकि इस से पहले यह जानना भी जरूरी होता है कि आटोचालक वहां जाएगा भी या नहीं, जहां सवारी को जाना है. थोड़ा अजीब लगा तो सलीम ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा. तभी उसे अजीब सी बदबू आई जो उस के काले बैग से आ रही थी. उस के बैठने से पहले ड्राइवर ने पूछा, ‘‘इस बैग में क्या है, कहीं लाश तो नहीं?’’

अनूप की बात सुनते ही वह आदमी काले बैग को रिक्शा में छोड़ कर स्टेशन के अंदर की ओर भाग गया. अनूप ने काला बैग रिक्शा से निकाल कर बाहर रखा और यह बात अपने साथी आटो रिक्शा चालकों को बताई. जरा सी देर में सारे आटो चालक एकत्र हो गए. भीड़ बढ़ी तो आतेजाते लोग भी रुकने लगे. सब का एक ही कहना था कि काले बैग में लाश हो सकती है. सभी ने राय दी कि बैग के बारे में पुलिस को बताना चाहिए. कल्याण रेलवे स्टेशन के बाहर ही महात्मा फुले चौक पुलिस थाना है. कई आटो रिक्शा ड्राइवर थाने में गए और यह बात पुलिस को बता दी. उस वक्त मंगेश डोइफोड और सिपाही सोंगाल ड्यूटी पर थे. रिक्शा वाले उन्हें स्टेशन के बाहर उस जगह ले गए जहां काला बैग रखा था.

बदबू से उन्हें भी लगा कि बैग में जरूर किसी की लाश है. दोनों पुलिस वालों ने इस की सूचना थाने के सीनियर इंसपेक्टर प्रकाश लोंढे और इंसपेक्टर (क्राइम) संभाजी जाधव को दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अफसर आटोरिक्शा स्टैंड पर पहुंच गए. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों में से 2 को गवाह बना कर काले बैग को खुलवाया. जैसी कि पहले ही उम्मीद थी, काले बैग में एक गठरी में बंधा महिला का कमर से नीचे का हिस्सा नजर आया. करीब 25-26 साल की मृतका पीले रंग की लेगिंग पहने थी, रंग गोरा था. बिना सिर और धड़ के मृतका को पहचानना संभव नहीं था. हत्यारा कौन था, यह तो दूर की बात थी, यह पता लगाना भी आसान नहीं था कि मृतका के धड़ को वहां तक लाने वाला कौन था.

इंसपेक्टर प्रकाश लोंढे ने इस घटना के बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों डीसीपी विवेक पानसरे और एसीपी अनिल पवार को बताया. सूचना मिलते ही दोनों अधिकारी कल्याण स्टेशन पहुंच गए. वहां आटो स्टैंड के पास काफी भीड़ जमा थी. पुलिस ने आटो रिक्शा वाले से काला बैग ले कर आने वाले व्यक्ति का पूरा हुलिया पूछा.  उस ने बताया कि काला बैग लाने वाला कल्याण स्टेशन के अंदर भाग गया था. आटोरिक्शा चालक ने यह भी बताया कि वह लाल रंग की शर्ट पहने हुए था. महिला की लाश का हिस्सा मिलने की सूचना क्राइम ब्रांच की यूनिट नंबर 1 और 3 को भी दे दी गई थी.

खबर मिलते ही दोनों ब्रांचों के वरिष्ठ पुलिस इंसपेक्टर नितिन ठाकरे और संजू जैन भी अपनीअपनी टीम के साथ कल्याण स्टेशन पहुंच गए. बताते चलें कि मुंबई में किसी भी अपराध की जांच थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच साथसाथ करती हैं. सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग पुलिस और क्राइम ब्रांच ने साथ जांच शुरू करने से पहले महिला के शरीर के हिस्से को पोस्टमार्टम के लिए रुक्मिणीबाई अस्पताल भेज दिया, प्राथमिक कररवाई के बाद सब से पहले कल्याण स्टेशन के बाहर वाले सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी गई. फुटेज में लाल रंग की शर्ट वाला व्यक्ति कंधे पर काला थैला लटकाए स्टेशन के बाहर आता दिखाई दिया. कुछ देर बाद वह भाग कर स्टेशन के अंदर भी जाता दिखाई दिया. पुलिस ने सीसीटीवी की वह फुटेज आटोरिक्शा वाले को दिखाई तो उस ने उसे पहचान लिया.

इस हत्या के संदर्भ में पुलिस ने थाना महात्मा फुले चौक में भादवि की धारा 302, 201 के तहत  केस दर्ज कर लिया. इस केस का जांच अधिकारी क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर संभाजी को नियुक्त किया गया. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि थैले और लाल शर्ट वाला व्यक्ति ट्रेन में चढ़ा किस स्टेशन से था. काफी खोजबीन के बाद पता चला कि वह व्यक्ति कल्याण स्टेशन से 15 किलोमीटर दूर टिटवाला स्टेशन से चढ़ा था. वहां के सीसीटीवी में वह काला थैला लिए स्टेशन के अंदर आता दिखाई दिया. इस का मतलब वह किसी आटो से वहां तक आया होगा. आटोरिक्शा चालक उसे पहचान सकते थे. उन से यह भी पता चल सकता था कि उस ने आटोरिक्शा में काला बैग कहां से रखा था. टिटवाला इलाके में उस व्यक्ति का पता लगाने की जिम्मेदारी सब इंसपेक्टर संजय बाबर को सौंपी गई.

संजय बाबर और उन की पुलिस टीम ने टिटवाला रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े रहने वाले आटोरिक्शा चालकों को फोटो दिखा कर काले बैग वाले के बारे में पूछताछ की. मेहनत तो करनी पड़ी, लेकिन कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया. एक व्यक्ति ने बताया कि वह टिटवाला के मांडा रोड़ पर रहता है. मांडा रोड़ पर पूछताछ की गई तो पता चला वह इंदिरा नगर की किसी चाल में रहता है. पुलिस टीम ने इंदिरा नगर में पूछताछ की तो पता चला उस का नाम अरविंद तिवारी है और वह साईनाथ नगर की चाल में रहता है. पुलिस टीम साईनाथ नगर की चाल पहुंची, वहां अरविंद की चाल तो मिल गई लेकिन वह घर पर नहीं था. अलबत्ता उस की चाल में बदबू जरूर आ रही थी. इस से पुलिस टीम समझ गई कि वहां कुछ बहुत बुरा हुआ था. टीम लीडर संजय बाबर ने यह बात अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बता दी.

पुलिस ने आसपास रहने वालों से अरविंद तिवारी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह मुंबई मलाड की पवन हंस लौजिस्टिक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. यह भी पता चला कि अरविंद तिवारी वहां अपनी बेटी प्रिंसी के साथ रहता है. यह जानकारी क्राइम ब्रांच को दी गई तो पुलिस ने उसे ट्रांसपोर्ट कंपनी से गिरफ्तार कर लिया. बाद में क्राइम ब्रांच ने उसे थाना महात्मा फुले चौक की पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने अरविंद तिवारी से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि उस ने अपनी बेटी प्रिंसी का मर्डर किया था. हत्या का कारण उस ने बताया कि प्रिंसी अंतरजातीय विवाह करना चाहती थी, जो उसे मंजूर नहीं था.

अरविंद तिवारी ने आगे बताया कि उस ने बेटी का धड़ और सिर गठरी में बांध कर कल्याण के दुर्गाडी किले की खाड़ी में फेंक दिए थे. पुलिस ने दमकल विभाग, मछुआरों और उस क्षेत्र में आने जाने वालों की मदद से 2 दिन की मेहनत के बाद शरीर के दोनों हिस्से बरमद कर लिए. इधर आटो चालकों मोहम्मद खालिद और सलीम बाबू ने अरविंद तिवारी को पहचान लिया, काले बैग में शरीर का नीचे का हिस्सा भर कर वही कल्याण स्टेशन पर उतरा था और आटो से कहीं जाना चाहता था. अरविंद तिवारी उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर का रहने वाला था. उस की 4 बेटियां थीं, जो गांव में मां के साथ रहती थीं. सालों पहले अरविंद कामकाज की तलाश में मुंबई चला आया था.

मुंबई से सटे थाणे की तहसील टिटवाला के इंदिरा नगर स्थित साईनाथ नगर में उस ने किराए पर एक चाल ले ली और वहीं रहने लगा. जल्दी ही उसे मलाड की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. इस तरह अरविंद तिवारी थाणे में रह कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा. 6-6 महीने के अंतराल पर वह घर चला जाता था. मां के साथ रह कर उस की तीन बेटियां पढ़ रही थीं. उस की बड़ी बेटी प्रिंसी की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. दकियानूसी सोच ने बनाया हत्यारा प्रिंसी ने अपने पिता अरविंद से कहा कि वह थाणे में उस के पास रह कर नौकरी करना चाहती है. अरविंद को यह बात अच्छी लगी, क्योंकि प्रिंसी के नौकरी करने से घर में 2 कमाने वाले हो जाते. इसी के मद्देनजर वह प्रिंसी को थाणे ले आया. अरविंद काम पर चला जाता तो प्रिंसी अपने लिए नौकरी ढूढ़ती. जल्दी ही उसे कालसेंटर में नौकरी मिल गई.

प्रिंसी को थाणे आए एक साल से ज्यादा हो गया था. बापबेटी चैन से रह रहे थे. तभी अरविंद ने महसूस किया कि प्रिंसी में बदलाव आने लगा है. वह काम से आती भी देर से थी. दुनिया देख चुका अरविंद समझ गया कि जरूर कोई चक्कर है. उस ने जब इस बारे में पता लगाया तो पता चला प्रिंसी का एक युवक से चक्कर चल रहा है. वह युवक भी उसी कालसेंटर में काम करता था. अरविंद को यह जानकारी भी मिली कि प्रिंसी उस युवक के हाथों में हाथ डाल कर बेखौफ घूमती है. अरविंद ने इस बारे में प्रिंसी से प्यार से पूछा, लेकिन वह बहाना बना कर टाल गई. बेटी की बातें सुन कर अरविंद चुप रह गया. उस की समस्या यह थी कि वह जल्दी काम पर जाता था और देर शाम लौटता था.

बाप से बातचीत के बाद भी प्रिंसी की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आया. अरविंद ने उसे कई बार फोन पर देर तक बातें करते भी देखा. अब अरविंद को लगने लगा कि प्रिंसी उस से झूठ बोलती है. वह किसी दिन परिवार की इज्जत को पलीता लगा कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाएगी. दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव कस्बों के तमाम लोग मुंबई और उस से जुड़े थाणे व अन्य जगहों पर रहते हैं. ये लोग मुंबई में पैसा कमा कर घर भेजते हैं. पैसा कमाने के लिए मुंबई में रहने वाले ऐसे लोग न तो मुंबई को अपना बना सके और न ही गांव के रहे. इस के बावजूद ऐसे लोगों में घर परिवार और इज्जत की हनक गांव वाली ही रहती है. ये लोग बच्चों की शादियां और दूसरे समारोह गांवबिरादरी में ही करते हैं. अरविंद तिवारी भी ऐसा ही था.

जब प्रिंसी में कोई बदलाव नहीं आया तो अरविंद तिवारी ने उसे समझाया, ऊंचनीच की बातें बताईं. परिवार की इज्जत का रोना रोया. यह दांव न चलता देख अरविंद तिवारी ने एक नई चाल चली. उस ने प्रिंसी से कहा कि गांव में उस के लिए लड़का देख लिया गया है. सगाई और शादी के लिए उसे गांव जाना होगा. सच्चाई खोद निकाली पुलिस ने इस पर प्रिंसी की हकीकत सामने आ गई. उस ने पिता से दोटूक कह दिया, ‘‘मैं कालसेंटर में काम करने वाले एक लड़के से प्यार करती हूं और उस से शादी करूंगी’’

अरविंद ने बेटी को समझाने की लाख कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. इस की जगह वह विद्रोह पर उतर आई. प्रिंसी के तेवर देख अरविंद उस के बारे में गहराई से सोचने लगा. उसे यह बात खाए जा रही थी कि जब गांव के लोग प्रिंसी के बारे में पूछेंगे तो क्या जवाब देगा. प्रिंसी की जिद को ले कर उस के मन में गुस्सा भरा था. ऐसी ही मनोस्थिति में उस ने प्रिंसी को मौत के घाट उतारने का फैसला कर लिया. अपनी सोच को परिणाम तक पहुंचाने के लिए अरविंद तिवारी कल्याण से तेजधार वाला एक चाकू खरीद लाया, जिसे उस ने घर में छुपा कर रख दिया था. 5 दिसंबर, 2019 की शाम को प्रिंसी ने खाना बनाया, बापबेटी ने साथ बैठ कर खाना खाया.

इस के बाद प्रिंसी सोने के लिए अपने कमरे में चली गई. करीब आधी रात को जब प्रिंसी गहरी नींद में सोई थी, अरविंद चाकू ले कर उस के कमरे में पहुंचा और उस का गला रेत दिया. प्रिंसी मर गई तो अरविंद ने उस के शरीर के 3 हिस्से किए ताकि उन्हें अलगअलग जगहों पर फेंक सके. इन तीनों हिस्सों को उस ने पहले ही खरीद कर लाए पौलीथिन के काले रंग के बड़े से थैलों में अलगअलग भर दिया. इन में से सिर और धड़  वाले थैले वह रिक्शा में रख कर दुर्गाडी पुल पर ले गया. वहां से रिक्शा वापस लौटा कर उस ने दोनों थैले घाटी में फेंक दिए. अब प्रिंसी का धड़ से नीचे का हिस्सा बाकी बचा था. दुर्भाग्य से वह उसे 3 दिन तक नहीं फेंक सका और उस में से दुर्गंध आने लगी.

ऐसे में पासपड़ोस वालों को शक हो सकता था. इसलिए 8 दिसंबर को वह शेष बचा तीसरा थैला ले कर घर से निकला और टिटवाला से कल्याण की ट्रेन पकड़ ली. लेकिन दुर्भाग्य से वह जिस आटो में बैठने जा रहा था, उस के चालक ने बदबू महसूस कर के पूछ लिया, ‘‘थैले में लाश तो नहीं है?’’

अरविंद के मन में चोर था, इसलिए वह भाग निकला. फिर भी पुलिस उस तक पहुंच ही गई. अरविंद से विस्तृत पूछताछ के बाद उस की निशानदेही पर प्रिंसी का धड़ और सिर बरामद हो गया और वह चाकू भी, जिस से उस ने प्रिंसी का कत्ल किया था. सारी पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

 

 

Kannauj Crime : मफलर से पत्नी का घोंट डाला गला

Kannauj Crime :  प्यार की डींगे हांकना भी आसान है और जताना भी आसान, लेकिन प्यार निभाना आसान नहीं होता. आजकल के तमाम लड़के लड़कियां अपने प्यार के लिए मर जाने का दम भरते हैं. लेकिन शादी के बाद उन का प्यार जब हकीकत के कठोर धरातल से टकराता है तो उन्हें एकदूसरे की जान का दुश्मन बनते देर नहीं लगती. नीलम और विजय प्रताप…

12 दिसंबर, 2019 की सुबह तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर आवागमन शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने ईशन नदी पुल के नीचे एक महिला का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में पुल पर काफी भीड़ जमा हो गई. पुल पर लोग रुकते और झांक कर लाश देखने की कोशिश करते और चले जाते. कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुल के नीचे जाते और नजदीक से शव की शिनाख्त करने की कोशिश करते. यह खबर क्षेत्र में फैली तो भुडि़या और आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. भीषण ठंड के बावजूद सुबह 10 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. इसी बीच भुडि़यां गांव के प्रधान जगदीश ने मोबाइल फोन से यह सूचना थाना तिर्वा को दे दी.

सूचना मिलते ही तिर्वा थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने लाश मिलने की सूचना जिले के पुलिस अधिकारियों को दी, और लाश का निरीक्षण करने लगे. महिला का शव पुल के नीचे नदी किनारे झाडि़यों में पड़ा था. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. वह हल्के हरे रंग का सलवारकुरता और क्रीम कलर का स्वेटर पहने थी, हाथों में मेहंदी, पैरों में महावर, चूडि़यां, बिछिया पहने थी और मांग में सिंदूर. लगता जैसे कोई दुलहन हो. मृतका का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था, और झुलसा हुआ था. उस के गले में सफेद रंग का अंगौछा पड़ा था. देख कर लग रहा था, जैसे महिला की हत्या उसी अंगौछे से गला कस कर की गई हो. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा कुचल कर तेजाब से जला दिया गया था.

महिला की हत्या पुल के ऊपर की गई थी और शव को घसीट कर पुल के नीचे झाडि़यों तक लाया गया था. घसीट कर लाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. महिला के साथ बलात्कार के बाद विरोध करने पर हत्या किए जाने की भी आशंका थी. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम प्रभारी राकेश कुमार को बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम प्रभारी ने वहां से सबूत एकत्र किए.

अब तक कई घंटे बीत चुके थे, घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. लेकिन कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने महिला के शव के बारे में भुडि़या गांव के ग्राम प्रधान जगदीश से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘‘सर, यह महिला हमारे क्षेत्र की नहीं, कहीं और की है. अगर हमारे क्षेत्र की होती तो अब तक शिनाख्त हो गई होती.’’

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को भी ग्राम प्रधान की बात सही लगी. उन्होंने थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द महिला की हत्या का खुलासा करें. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने आवश्यक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दी. किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी दर्ज तो नहीं है, यह जानने के लिए उन्होंने वायरलैस से सभी थानों में अज्ञात महिला की लाश मिलने की सूचना प्रसारित करा दी. इस के साथ ही उन्होंने क्षेत्र के सभी समाचार पत्रों में महिला की लाश के फोटो छपवा कर लोगों से उस की पहचान करने की अपील की. इस का परिणाम यह निकला कि 13 दिसंबर को अज्ञात महिला के शव की पहचान करने के लिए कई लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. लेकिन उन में से कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. शाम 4 बजे 3 डाक्टरों के एक पैनल ने अज्ञात महिला के शव का पोस्टमार्टम शुरू किया.

मिला छोटा सा सुराग पोस्टमार्टम के पहले जब महिला के शरीर से कपड़े अलग किए गए तो उस की सलवार के नाड़े के स्थान से कागज की एक परची निकली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट के साथ वह मोबाइल नंबर लिखी परची भी थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को दे दी. दूसरे दिन थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया. रिपोर्ट के मुताबिक महिला की हत्या गला दबा कर की गई थी. चेहरे को भारी वस्तु से कुचला गया था और उसे तेजाब डाल कर जलाया गया था. बलात्कार की पुष्टि के लिए 2 स्लाइड बनाई गई थीं. थानाप्रभारी ने परची पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो फोन बंद था. उन्होंने कई बार वह नंबर मिला कर बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर बार वह नंबर स्विच्ड औफ ही मिला.

टी.पी. वर्मा को लगा कि यह रहस्यमय नंबर महिला के कातिल तक पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि घटना वाली रात वह नंबर पूरी रात सक्रिय रहा था. इतना ही नहीं, रात 1 से 2 बजे के बीच इस नंबर की लोकेशन भुडि़या गांव के पास की मिली. इस नंबर से उस रात एक और नंबर पर कई बार बात की गई थी. उस नंबर की लोकेशन भी भुडि़या गांव की ही मिल रही थी. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने दोनों नंबरों की जानकारी निकलवाई तो पता चला कि वे दोनों नंबर विजय प्रताप और अजय प्रताप पुत्र हरिनारायण, ग्राम पैथाना, थाना ठठिया, जिला कन्नौज के नाम से लिए गए थे. इस से पता चला कि विजय प्रताप और अजय प्रताप दोनों सगे भाई हैं.

15 दिसंबर, 2019 की रात 10 बजे थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पुलिस टीम के साथ थाना ठठिया के गांव पैथाना में हरिनारायण के घर छापा मारा. छापा पड़ते ही घर में भगदड़ मच गई. एक युवक को तो पुलिस ने दबोच लिया, किंतु दूसरा मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. इत्तफाक से गांव की नाली से टकरा कर उस की मोटरसाइकिल पलट गई. तभी पीछा कर रही पुलिस ने उसे दबोच लिया. मोटरसाइकिल सहित दोनों युवकों को थाना तिर्वा लाया गया. थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम विजयप्रताप उर्फ शोभित निवासी ग्राम पैथाना थाना ठठिया जिला कन्नौज बताया. जबकि दूसरा युवक विजय प्रताप का भाई अजय प्रताप था.

अजय-विजय को जब मृतका के फोटो दिखाए गए तो दोनों उसे पहचानने से इनकार कर दिया. दोनों के झूठ पर थानाप्रभारी वर्मा को गुस्सा आ गया. उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो विजय प्रताप ने बताया कि मृत महिला उस की पत्नी नीलम थी. हम दोनों ने ही मिल कर नीलम की हत्या की थी और शव को ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दिया था. अजय और विजय ने हत्या का जुर्म तो कबूल कर लिया. किंतु अभी तक उन से आला ए कत्ल बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने इस संबंध में पूछताछ की तो उन दोनों ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त मफलर तथा खून से सनी ईंटें उन्होंने ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दी थीं.

थानाप्रभारी उन दोनों को ईशन नदी पुल के नीचे ले गए. वहां दोनों ने झाडि़यों में छिपाई गई ईंट तथा मफलर बरामद करा दिया. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. विजय प्रताप के पास मृतका नीलम के मामा श्यामबाबू का मोबाइल नंबर था. उस नंबर पर टी.पी. वर्मा ने श्यामबाबू से बात की और नीलम के संबंध में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए थाना तिर्वा बुलाया. हालांकि उन्होंने श्यामबाबू को यह जानकारी नहीं दी कि उस की भांजी नीलम की हत्या हो गई है. श्यामबाबू नीलम को ले कर पिछले 2 सप्ताह से परेशान था. वजह यह कि उस की न तो नीलम से बात हो पा रही थी और न ही उस के पति विजय से. थाना तिर्वा से फोन मिला तो वह तुरंत रवाना हो गया.

मामा ने बताई असल कहानी कानपुर से तिर्वा कस्बे की दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर है, इसलिए 4 घंटे बाद श्यामबाबू थाना तिर्वा पहुंच गया. थाने पर उस समय थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा मौजूद थे. वर्मा ने उसे एक महिला का फोटो दिखते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस महिला हो पहचानते हो?’’

श्यामबाबू ने फोटो गौर से देखा फिर बोला, ‘‘सर, यह फोटो मेरी भांजी नीलम की है. इस की यह हालत किस ने की?’’

‘‘नीलम को उस के पति विजय प्रताप ने अपने भाई अजय की मदद से मार डाला है. इस समय दोनों भाई हवालात में हैं. 2 दिन पहले नीलम की लाश ईशन नदी पुल के नीचे मिली थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया. नीलम की हत्या की बात सुनते ही श्यामबाबू फफक पड़ा. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने पहले ही नीलम को मना किया था कि विजय ऊंची जाति का है. वह उसे जरूर धोखा देगा. लेकिन प्रेम दीवानी नीलम नहीं मानी और 4 महीने पहले घर से भाग कर उस से शादी कर ली. आखिर उस ने नीलम को मार ही डाला.’’

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने बिलख रहे श्यामबाबू को धीरज बंधाया और उसे वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत विजय प्रताप व अजयप्रताप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने कातिलों के पकड़े जाने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल को दे दी. जानकारी पाते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रैसवार्ता कर के कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. रमेश कुमार अपने परिवार के साथ  लखनऊ के चारबाग में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा एकलौती बेटी थी नीलम. रमेश रोडवेज में सफाईकर्मी था और रोडवेज कालोनी में रहता था. रमेश और उस की पत्नी सीता नीलम को जान से बढ़ कर चाहते थे.

रमेश शराब बहुत पीता था. शराब ने उस के शरीर को खोखला कर दिया था. ज्यादा शराब पीने के कारण वह बीमार पड़ गया और उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद पत्नी सीता टूट गई, जिस से वह भी बीमार रहने लगी. इलाज के बावजूद उसे भी बचाया नहीं जा सका. उस समय नीलम महज 8 साल की थी. नीलम के मामा श्यामबाबू कानपुर शहर के फीलखाना थाना क्षेत्र के रोटी गोदाम मोहल्ले में रहते थे. बहनबहनोई की मौत के बाद श्यामबाबू अपनी भांजी को कानपुर ले आए और उस का पालनपोषण करने लगे. चूंकि नीलम के सिर से मांबाप का साया छिन गया था, इसलिए श्यामबाबू व उस की पत्नी मीना, नीलम का भरपूर खयाल रखते थे, उस की हर जिद पूरी करते थे. नीलम धीरेधीरे मांबाप की यादें बिसराती गई.

वक्त बीतता रहा. वक्त के साथ नीलम की उम्र भी बढ़ती गई. नीलम अब जवान हो गई थी. 19 वर्षीय नीलम गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श, इकहरे बदन और लंबे कद की खूबसूरत लड़की थी. वह साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी, लेकिन उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. नीलम को अपनी सुंदरता का अंदाजा था, लेकिन वह अपनी सुंदरता पर इतराने के बजाए सभी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से सभी उस से बातें करना पसंद करते थे. नीलम के घर के पास एक प्लास्टिक फैक्ट्री थी. इस फैक्ट्री में विजय प्रताप नाम का युवक काम करता था. वह मूलरूप से कन्नौज जिले के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव पैथाना का रहने वाला था. उस के पिता हरिनारायण यादव किसान थे.

3 भाईबहनों में विजय प्रताप उर्फ शोभित सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई अजय प्रताप उर्फ सुमित पढ़ाई के साथसाथ खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. विजय प्रताप कानपुर के रावतपुर में किराए के मकान में रहता था और रोटी गोदाम स्थित फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री आतेजाते एक रोज विजय प्रताप की निगाहें खूबसूरत नीलम पर पड़ीं तो वह उसे अपलक देखता रह गया. पहली ही नजर में नीलम उस के दिलोदिमाग में छा गई. इस के बाद तो जब भी विजय प्रताप फैक्ट्री आता, उस की निगाहें नीलम को ही ढूंढतीं. नीलम दिख जाती तो उस के दिल को सकून मिलता, न दिखती तो मन उदास हो जाता था. नीलम के आकर्षण ने विजय प्रताप के दिन का चैन छीन लिया था, रातों की नींद हराम कर दी थी.

तथाकथित प्यार में छली गई नीलम ऐसा नहीं था कि नीलम विजय की प्यार भरी नजरों से वाकिफ नहीं थी. जब वह उसे अपलक निहारता तो नीलम भी सिहर उठती थी. उसे उस का इस तरह निहारना मन में गुदगुदी पैदा करता था. विजय प्रताप भी आकर्षक युवक था. वह ठाठबाट से रहता था. धीरेधीरे नीलम भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. लेकिन अपनी बात कहने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पा रहा था. जब से विजय प्रताप ने नीलम को देखा था, उस का मन बहुत बेचैन रहने लगा था. उस के दिलोदिमाग पर नीलम ही छाई रहती थी. धीरेधीरे नीलम के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह नीलम से बात कर के यह जानना चाहता था कि नीलम भी उस से प्यार करती है या नहीं. क्योंकि नीलम की ओर से अभी तक उसे कोई प्रतिभाव नहीं मिला था.

एक दिन लंच के दौरान विजय प्रताप फैक्ट्री के बाहर निकला तो उसे नीलम सब्जीमंडी बाजार की ओर जाते दिख गई. वह तेज कदमों से उस के सामने पहुंचा और साहस जुटा कर उस से पूछ लिया, ‘‘मैडम, आप अकसर फैक्ट्री के आसपास नजर आती हैं. पड़ोस में ही रहती हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं पड़ोस में ही अपने मामा श्यामबाबू के साथ रहती हूं.’’ नीलम ने विजय प्रताप की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अब शायद आप मेरा नाम पूछोगे, इसलिए खुद ही बता देती हूं कि नीलम नाम है मेरा.’’

‘‘मेरा नाम विजय प्रताप है. आप के घर के पास जो फैक्ट्री है, उसी में काम करता हूं. रावतपुर में किराए के मकान में रहता हूं. वैसे मैं मूलरूप से कन्नौज के पैथाना का हूं. मेरे पिता किसान हैं. छोटा भाई अजय प्रताप पढ़ रहा है. मुझे खेती के कामों में रुचि नहीं थी, सो कानपुर आ कर नौकरी करने लगा.’’

इस तरह हलकीफुलकी बातों के बीच विजय और नीलम के बीच परिचय हुआ जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में विजय प्रताप नीलम के मोबाइल पर उस से बातें करने लगा. नीलम को भी विजय का स्वभाव अच्छा लगता था, इसलिए वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. इस का परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. प्यार का नशा कुछ ऐसा होता है जो किसी पर एक बार चढ़ जाए तो आसानी से नहीं उतरता. नीलम और विजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब वे दोनों साथ घूमने निकलने लगे. रेस्टोरेंट में बैठ कर साथसाथ चाय पीते और पार्कों में बैठ कर बतियाते. उन का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा.

एक दिन मोतीझील की मखमली घास पर बैठे दोनों बतिया रहे थे, तभी अचानक विजय नीलम का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

नीलम ने उस पर चाहत भरी नजर डाली और बोली, ‘‘विजय, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं और तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है.’’

‘‘कैसा डर?’’ विजय ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि हमारी और तुम्हारी जाति अलग हैं. तुम्हारे घर वाले क्या हम दोनों के रिश्ते को स्वीकार करेंगे?’’

विजय प्रताप नीलम के इस सवाल पर कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘नीलम, आसानी से तो घरपरिवार के लोग हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जब हम उन पर दबाव डालेंगे तो मान जाएंगे. फिर भी न माने तो बगावत पर उतर जाऊंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें मानसम्मान दिला कर ही रहूंगा.’’

लेकिन इस के पहले कि वे दोनों अपने मकसद में सफल हो पाते, नीलम के मामा श्यामबाबू को पता चल गया कि उस की भांजी पड़ोस की फैक्ट्री में काम करने वाले किसी युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. श्यामबाबू नहीं चाहता था कि उस की भांजी किसी के साथ घूमेफिरे, जिस से उस की बदनामी हो. मामा का समझाया नहीं समझी नीलम उस ने नीलम को डांटा और सख्त हिदायत दी कि विजय के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. नीलम ने डर की वजह से मामा से वादा तो कर दिया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी. लेकिन वह विजय को दिल दे बैठी थी. फिर उस के बिना कैसे रह सकती थी. सोचविचार कर उस ने तय किया कि अब वह विजय से मिलने में सावधानी बरतेगी.

नीलम ने विजय प्रताप को फोन पर अपने मामा द्वारा दी गई चेतावनी बता दी. लिहाजा विजय भी सतर्क हो गया. मिलना भले ही बंद हो गया लेकिन दोनों ने फोन पर होने वाली बात जारी रखी. जिस दिन नीलम का मामा घर पर नहीं होता, उस दिन वह विजय से मिल भी लेती थी. इस तरह उन का मिलने का क्रम जारी रहा. नीलम की जातिबिरादरी का एक लड़का था सुबोध. वह नीलम के घर के पास ही रहता था. वह नीलम को मन ही मन प्यार करता था. नीलम भी उस से हंसबोल लेती थी. उस के पास नीलम का मोबाइल नंबर भी था. इसलिए जबतब वह नीलम से फोन पर बतिया लेता था.

सुबोध नीलम से प्यार जरूर करता था, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. नीलम जब विजय प्रताप से प्यार करने लगी तो सुबोध के मन में प्यार की फांस चुभने लगी. वह दोनों की निगरानी करने लगा. एक दिन सुबोध ने नीलम को विजय प्रताप के साथ घूमते देखा तो उस ने यह बात नीलम के मामा श्यामबाबू को बता दी. श्यामबाबू ने नीलम की पिटाई की और उस का घर के बाहर जाना बंद करा दिया. नीलम पर प्रतिबंध लगा तो वह घबरा उठी. उस ने इस बाबत मोबाइल फोन पर विजय से बात की और घर से भाग कर शादी रचाने की इच्छा जाहिर की. विजय प्रताप भी यही चाहता ही था, सो उस ने रजामंदी दे दी. इस के बाद दोनों कानपुर छोड़ने की तैयारी में जुट गए.

विजय प्रताप का एक रिश्तेदार दिल्ली में यमुनापार लक्ष्मीनगर, मदर डेयरी के पास रहता था और रेडीमेड कपड़े की सिलाई का काम करता था. उस रिश्तेदार के माध्यम से विजय प्रताप ने दिल्ली में रहने की व्यवस्था बनाई और नीलम को दिल्ली ले जा कर उस से शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने फोन पर अपनी योजना नीलम को भी बता दी.  4 अगस्त, 2019 को जब श्यामबाबू काम पर चला गया तो नीलम अपना सामान बैग में भर कर घर से निकली और कानपुर सेंट्रल स्टेशन जा पहुंची. स्टेशन पर विजय प्रताप उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस समय दिल्ली जाने वाली कालका मेल तैयार खड़ी थी. दोनों उसी ट्रेन पर सवार हो कर दिल्ली रवाना हो गए.

उधर देर रात को श्यामबाबू घर आया तो घर से नीलम गायब थी. उस ने फोन पर नीलम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उस का फोन बंद था. श्यामबाबू को समझते देर नहीं लगी कि नीलम अपने प्रेमी विजय प्रताप के साथ भाग गई है. इस के बाद उस ने न तो थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उसे खोजने का प्रयास किया. उधर दिल्ली पहुंच कर विजय प्रताप अपने रिश्तेदार के माध्यम से लक्ष्मीनगर में एक साधारण सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. एक हफ्ते बाद उस ने नीलम से प्रेम विवाह कर लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. नीलम ने विजय से विवाह रचाने की जानकारी अपने मामा श्यामबाबू को भी दे दी. साथ ही यह भी बता दिया कि वह दिल्ली में रह रही है.

इधर विजय प्रताप के परिवार वालों को जब पता चला कि विजय ने नीलम नाम की एक दलित लड़की से शादी की है तो उन्होंने विजय को जम कर फटकारा और नीलम को बहू के रूप में स्वीकार करने से साफ मना कर दिया.  यही नहीं, परिवार वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह नीलम से रिश्ता तोड़ ले. पारिवारिक दबाव से विजय प्रताप परेशान हो उठा. उस का छोटा भाई अजय प्रताप भी रिश्ता खत्म करने का दबाव डाल रहा था. हो गई कलह शुरू नीलम अपने पति विजय के साथ 2 महीने तक खूब खुश रही. उसे लगा कि उसे सारा जहां मिल गया है. लेकिन उस के बाद उस की खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. वह तनावग्रस्त रहने लगी. नीलम और विजय के बीच कलह भी शुरू हो गई. कलह का पहला कारण यह था कि नीलम सीलन भरे कमरे में रहते ऊब गई थी.

वह विजय पर दबाव डालने लगी थी कि उसे अपने घर ले चले. वह वहीं रहना चाहती है. लेकिन विजय प्रताप जानता था कि उस के घर वाले नीलम को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वह उसे गांव ले जाने को मना कर देता था. कलह का दूसरा कारण था नीलम का फोन पर किसी से हंसहंस कर बतियाना. जिस से विजय को शक होने लगा कि नीलम का कोई प्रेमी भी है. हालांकि नीलम जिस से बात करती थी, वह उस के मायके के पड़ोस में रहने वाला सुबोध था. उस से वह अपने मामा तथा घर की गतिविधियों की जानकारी लेती रहती थी. कभीकभी वह मामा से भी बात कर लेती थी. एक तरफ परिवार का दबाव तो दूसरी तरफ शक. इन बातों से विजय प्रताप परेशान हो गया. मन ही मन वह नीलम से नफरत करने लगा. एक दिन देर शाम नीलम सुबोध से हंसहंस कर बातें कर रही थी, तभी विजय प्रताप कमरे में आ गया.

उस ने गुस्से में नीलम का मोबाइल तोड़ दिया और उसे 2 थप्पड़ भी जड़ दिए. इस के बाद दोनों में झगड़ा हुआ. नीलम ने साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली में नहीं रहेगी. वह उसे ससुराल ले चले. अगर नहीं ले गया तो वह खुद चली जाएगी. नीलम की इस धमकी से विजय प्रताप संकट में फंस गया. उस ने फोन पर इस बारे में अपने छोटे भाई अजय से बात की. अंतत: दोनों भाइयों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए नीलम की हत्या की योजना बना ली. योजना बनने के बाद विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि वह जल्दी ही उसे गांव ले जाएगा. वह अपनी तैयारी कर ले.

11 दिसंबर, 2019 की सुबह विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि उसे आज ही गांव चलना है. नीलम चूंकि पहली बार ससुराल जा रही थी, इसलिए उस ने साजशृंगार किया, पैरों में महावर लगाई, फिर पति के साथ ससुराल जाने के लिए निकल गई. विजय प्रताप नीलम को साथ ले कर बस से दिल्ली से निकला और रात 11 बजे कन्नौज पहुंच गया. विजय की अपने छोटे भाई अजय से बात हो चुकी थी. अजय प्रताप मोटरसाइकिल ले कर कन्नौज बसस्टैंड पर आ गया. नीलम ने दोनों भाइयों को एकांत में खुसरफुसर करते देखा तो उसे किसी साजिश का शक हुआ. इसी के मद्देनजर उस ने कागज की परची पर पति का मोबाइल नंबर लिखा और सलवार के नाड़े के स्थान पर छिपा लिया.

रात 12 बजे विजय प्रताप, नीलम और अजय प्रताप मोटरसाइकिल से पैथाना गांव की ओर रवाना हुए. जब वे ईशन नदी पुल पर पहुंचे तो अजय प्रताप ने मोटरसाइकिल रोक दी. उसी समय विजय प्रताप ने नीलम के गले में मफलर लपेटा और उस का गला कसने लगा. नीलम छटपटा कर हाथपैर चलाने लगी तो अजय प्रताप ने उसे दबोच लिया और पास पड़ी ईंट से उस का चेहरा कुचल दिया. हत्या करने के बाद दोनों नीलम के गले में अंगौछा डाल बांध कर शव को घसीट कर पुल के नीचे नदी किनारे ले गए और झाडि़यों में फेंक दिया. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा तेजाब डाल कर जला दिया. तेजाब की बोतल अजय प्रताप ले कर आया था. शव को ठिकाने लगाने के बाद दोनों भाई मोटरसाइकिल से अपने गांव पैथाना चले गए.

17 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने अभियुक्त विजय प्रताप तथा अजय प्रताप को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Story : बेइज्‍जती का बदला लेने के लिए गर्लफ्रैंड के भाई को नदी में डुबो कर मार डाला

Murder Story : अजमल आलम ने कल्लू का अपहरण कर के उसे मार डाला था. उस की लाश अजमल ने सतलुज नदी में बहा दी थी निस्संदेह यह बड़ा अपराध था, लेकिन यह भी सच है कि अजमल को ऐसा जघन्य अपराध करने का मौका लल्लू के मातापिता ने ही दिया था, अगर वे समय रहते…

काफी हताश होने के बाद आखिर कन्नू लाल ने तय कर लिया कि अब वह अपने बेटे लल्लू को तलाश करने में समय बरबाद नहीं करेगा और इस के लिए पुलिस की मदद भी लेगा. यह बात उस ने अपनी पत्नी और रिश्तेदारों को भी बताई. फिर उसी शाम वह अपने पड़ोसी भानु को ले कर लुधियाना के थाना डिवीजन नंबर-2 की पुलिस चौकी जनकपुरी जा पहुंचा. कन्नू लाल मूलरूप से गांव मछली, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. कई साल पहले वह काम की तलाश में अपने किसी रिश्तेदार के साथ लुधियाना आया था और काम मिल जाने के बाद यहीं का हो कर रह गया था. काम जम गया तो कन्नू लाल ने गांव से अपनी पत्नी कंचन और बच्चों को भी लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना में वह इंडस्ट्रियल एरिया में लक्ष्मी धर्मकांटा के पास अजीत अरोड़ा के बेहड़े में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. कन्नू लाल के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. बड़ी बेटी कुसुम 20 साल की थी और शादी के लायक थी. कन्नू लाल का सब से छोटा बेटा वरिंदर उर्फ लल्लू 11 साल का था, जो कक्षा-4 में पढ़ता था. 27 जुलाई, 2017 को लल्लू दोपहर को अपने स्कूल से लौटा और खाना खाने के बाद गली में बच्चों के साथ खेलने लगा. यह उस का रोज का नियम था. कन्नू की पत्नी कंचन और बाकी बच्चे घर में सो रहे थे. शाम करीब 4 बजे कंचन ने चाय बना कर लल्लू को बुलाने के लिए आवाज दी.

लेकिन लल्लू गली में नहीं था. लल्लू हमेशा अपने घर के आगे ही खेलता था, दूर नहीं जाता था. कंचन ने गली में खेल रहे बच्चों से पूछा तो सभी ने बताया कि लल्लू थोड़ी देर पहले तक उन के साथ खेल रहा था, पता नहीं बिना बताए कहां चला गया. चाय पीनी छोड़ कर सब लल्लू की तलाश में जुट गए. शाम को जब लल्लू को पिता कन्नू लाल काम से लौट कर घर पहुंचा तो वह भी बेटे की तलाश में जुट गया. पूरी रात तलाशने के बाद भी लल्लू का कहीं पता नहीं चला. सभी यह सोच कर हैरान थे कि आखिर 11 साल का बच्चा अकेला कहां जा सकता है. इस के पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

अगला दिन भी लल्लू की तलाश में गुजरा. शाम को कन्नू लाल ने लल्लू की गुमशुदगी पुलिस चौकी में दर्ज करा दी. ड्यूटी अफसर हवलदार भूपिंदर सिंह ने धारा 146 के तहत कन्नू की गुमशुदगी दर्ज कर के यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही लल्लू का हुलिया और उस का फोटो आसपास के सभी थानों में भेज दिया गया. लल्लू की तलाश में न तो पुलिस ने कोई कसर छोड़ी और न उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने. पर लल्लू का कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. कन्नू लाल गरीब मजदूर था, जो दिनरात मेहनत कर के अपने बच्चों का पालनपोषण करता था, इसलिए फिरौती का तो सवाल ही नहीं था. हां, दुश्मनी की बात सोची जा सकती थी.

दुश्मनी के चक्कर में कोई लल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता था, इसीलिए पुलिस बारबार कन्नू से यह पूछ रही थी कि उस का किसी से लड़ाईझगड़ा तो नहीं है. लल्लू को गुम हुए एक सप्ताह गुजर चुका था पर कहीं से भी उस का कोई सुराग नहीं मिला. घटना के 9 दिन बाद अचानक कन्नू लाल के मोबाइल फोन पर एक शख्स का फोन आया. फोन करने वाले का कहना था कि लल्लू उस के कब्जे में है. अगर बेटा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो 2 लाख रुपया बैंक एकाउंट नंबर 0003333 में डलवा दो. लल्लू मिल जाएगा. कन्नू लाल ने तुरंत इस फोन की सूचना पुलिस को दे दी. अब मामला केवल लल्लू की गुमशुदगी का नहीं रह गया था. उस का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था सो पुलिस हरकत में आ गई.

एडीसीपी गुरप्रीत सिंह के सुपरविजन में एक टीम का गठन किया गया, जिस का इंचार्ज एसीपी वरियाम सिंह को बनाया गया. पुलिस ने पहले दर्ज मामले में धारा 365 और 384 भी जोड़ दीं. अपहरण के 9 दिन बाद 4 अगस्त को लल्लू के पिता कन्नू लाल के मोबाइल पर फोन कर के 2 लाख रुपए फिरौती मांगने के बाद फोनकर्ता ने नंबर स्विच्ड औफ कर दिया था. जांच आगे बढ़ाते हुए कन्नू लाल के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई. साथ ही उस के फोन को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि कन्नू लाल को स्थानीय बसअड्डे से फोन किया गया था. यह सोच कर तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेजी गई कि हो न हो कोई संदिग्ध मिल जाए, क्योंकि बसअड्डा क्षेत्र काफी बड़ा और भीड़भाड़ वाला इलाका था. पास में ही रेलवे स्टेशन भी था. लेकिन वहां पुलिस को कुछ नहीं मिला.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि लल्लू का अपहरणकर्ता जो भी रहा हो, वह कन्नू लाल का कोई नजदीकी या फिर रिश्तेदार ही होगा. क्योंकि अपहरणकर्ता ने जो 2 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, वह कन्नू लाल की हैसियत देख कर ही मांगी थी. भले ही कन्नू लाल गरीब था, पर अपने बच्चे के लिए 2 लाख का इंतजाम तो कर ही सकता था. इस के लिए उसे गांव की जमीन भी बेचनी पड़ती तो वह भी बेच देता. अपहर्त्ता जो भी था, कन्नू के परिवार को गांव तक जानता था. इस सोच के बाद पुलिस ने कन्नू लाल और उस के परिवार के हर छोटेबड़े सदस्य से पूछताछ की. कुछ खबरें पड़ोसियों से भी ली गईं. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. आखिर अंदर की बात पता चल ही गई. इस से पुलिस को लगने लगा कि अब वह जल्द ही अपरहणकर्ता तक पहुंच कर लल्लू को सकुशल बचा लेगी.

कन्नू लाल के परिवार से पता चला कि कुछ दिन पहले उन का अजमल आलम से झगड़ा हुआ था. 30 वर्षीय अजमल आलम उन के पड़ोस में ही रहता था और कपड़े पर कढ़ाई का बहुत अच्छा कारीगर था. उस की कमाई भी अच्छी थी और उस का कन्नू के घर काफी आनाजाना था. वह उस के परिवार के काफी करीब था और सभी बच्चों से घुलामिला हुआ था. खासकर कन्नू की बड़ी बेटी कुसुम से. 7 साल पहले जब अजमल आलम की उम्र करीब 22-23 साल थी और कुसुम की 14 साल तभी दोनों एकदूसरे के करीब आ गए थे.  अजमल मूलरूप से गांव भयंकर दोबारी, जिला किशनगंज, बिहार का रहने वाला था. 7 साल पहले उस ने खुद को अविवाहित बता कर कुसुम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस के 2 साल बाद उस ने कुसुम से शादी करने का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए थे. यह सिलसिला अभी तक चलता रहा था. कह सकते हैं कि उस ने 7 वर्ष तक कुसुम का इस्तेमाल अपनी पत्नी की तरह किया था. अजमल से कुसुम के संबंध कितने गहरे हैं, यह बात कन्नू और उस की पत्नी कंचन को भी पता थी. उन की नजरों में अजमल अविवाहित था और अच्छा कमाता था. वह कुसुम से बहुत प्यार करता था और शादी करना चाहता था. कन्नू लाल और उस की पत्नी कंचन को इस पर कोई ऐतराज नहीं था. फलस्वरूप जैसा चल रहा था, उन्होंने वैसा चलने दिया. उन लोगों ने न कभी बेटी पर कोई अंकुश लगाया और न अजमल को अपने घर आने से रोका.

जून 2018 में अचानक किसी के माध्यम से कंचन और कुसुम को पता चला कि अजमल पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. इतनी बड़ी बात छिपा कर वह कुसुम के साथ लगातार 7 सालों तक दुष्कर्म करता रहा था. हकीकत जान कर मांबेटी के होश उड़ गए. उस समय अजमल अपने कमरे पर ही था. कुसुम और कंचन ने जा कर उस के साथ झगड़ा किया और उस की खूब पिटाई की. यह बात मोहल्ले की पंचायत तक भी पहुंची. पंचायत के कहने पर कंचन ने अजमल को धक्के मार कर मोहल्ले से बाहर निकाल दिया. अजमल ने भी वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. क्योंकि मोहल्ले वालों के सामने हुई जबरदस्त बेइज्जती के बाद वह वहां नहीं रह सकता था, इसलिए वह अपना सामान लिए बिना मोहल्ले से चला गया था.

यह कहानी जान लेने के बाद पुलिस को लगा कि लल्लू के अपहरण के पीछे अजमल का ही हाथ हो सकता है. कुसुम वाले मामले में उस की काफी बेइज्जती हुई थी. यहां तक कि उसे अपना घर भी छोड़ कर भागना पड़ा था. बदला लेने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. कन्नू के परिवार के पास अजमल का फोन नंबर था. पुलिस ने वह नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया और उस की लोकेशन ट्रेस करने की कोशिश करने लगी. कन्नू को किए गए पहले फोन के 2 दिन बाद फोन कर के उस से दोबारा पैसों की मांग की गई. इस बार फोन कैथल, हरियाणा से आया था. पुलिस टीम फोन की लोकेशन ट्रेस करते हुए जब कैथल पहुंची तो कन्नू को दिल्ली से फोन किया गया.

इस बार फोन करने वाले ने रुपयों की मांग के साथ कुसुम से बात करने की भी इच्छा जताई तो साफ हो गया कि लल्लू के अपरहण में अजमल का ही हाथ है. इस के बाद वह कन्नू को बारबार मैसेज करता रहा. अजमल को पकड़ने के लिए पुलिस की टीमों ने कैथल व दिल्ली में एक साथ 15 जगह रेड डाली लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अब तक की जांच में सामने आया कि जो बैंक खाता नंबर उस ने फिरौती के पैसे डलवाने के लिए दिया था, वह लुधियाना के एक युवक का था. खास बात यह कि उस युवक से अजमल की दूरदूर तक कोई जानपहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने उसे शक के दायरे में ही रखा. आखिर लंबे चले इस चोरसिपाही के खेल के बाद पुलिस ने अजमल की फोन लोकेशन का पीछा करते हुए उसे 8 अगस्त को दिल्ली से धर दबोचा.

अगले दिन 9 अगस्त को पुलिस ने अजमल को अदालत में पेश कर के लल्लू की बरामदगी और आगामी पूछताछ के लिए उसे 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के दौरान अजमल ने बताया कि लल्लू की हत्या उस ने उसी दिन यानी 27 जुलाई को ही कर दी थी और उस की लाश को सतलुज नदी में बहा दिया था. उस ने बताया कि मोहल्ले से बेइज्जत होने के बाद वह अपनी बहन के पास कैथल चला गया था. लेकिन कुसुम के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. उस ने कुसुम से प्यार किया था और वह भी उसे प्यार करती थी, लेकिन अब उस ने बेवफाई की थी. उस का मन बारबार कहता था कि कुसुम और उस की मां से बेइज्जती का हिसाब लिया जाए.

इस के लिए वह लुधियाना छोड़ कर जाने के डेढ़ महीने बाद 27 जुलाई को ट्रेन से लुधियाना आया. दोपहर को जब लल्लू स्कूल से वापस घर जा रहा था तो उस ने उसे रोक कर साथ चलने को कहा, लेकिन उस ने मना कर दिया और घर जा कर अपनी बहन को उस के आने की सूचना दी. बाद में जब लल्लू खेलने के लिए घर से बाहर निकला तो उस ने लल्लू को घुमाने का लालच दिया और आटो में बिठा कर सतलुज नदी पर ले गया. नदी पर पहुंच कर अजमल ने लल्लू को नदी में नहाने और तैरना सिखाने के लिए उकसाया. जब लल्लू नहाने के लिए कपड़े उतार कर अजमल के साथ दरिया में घुसा तो अजमल ने नहाते समय लल्लू की गरदन पकड़ कर उसे पानी में डुबो कर मार दिया और उस की लाश पानी में बहा कर बस द्वारा वापस कैथल चला गया. बाद में वह दिल्ली पहुंच गया था. वहीं से वह कन्नू को फोन पर एसएमएस भेजता था.

अजमल की निशानदेही पर पुलिस ने सतलुज में गोताखोरों की टीम को उतारा. पर लल्लू की लाश नहीं मिली. बरसात के दिन होने के कारण नदी में पानी का तेज बहाव था. ऐसे में संभव था कि लाश पानी में तैरती हुई कहीं दूर निकल गई हो. पुलिस लल्लू की लाश को कई दिनों तक नदी में दूरदूर तक तलाशती रही लेकिन लाश नहीं मिली. रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद 13 अगस्त, 2018 को अजमल को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. खेलखेल में लल्लू की गुमशुदगी से शुरू हुआ यह ड्रामा अंत में इतने भयानक अंजाम तक पहुंचेगा, इस बात की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुसुम परिवर्तित नाम है.

 

Extramarital Affair : बहू के अवैध संबंध के चक्कर में मारा गया ससुर

Extramarital Affair : बालेश्वर जो कर रहा था, वह गलत था. लेकिन हकीकत जानने के बाद सोमेश उर्फ सोनू ने जो कदम उठाया, वह भी सही नहीं था. लेकिन सवाल यह है कि वह करता भी तो क्या… 

बा 9 अक्तूबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के थाना बेला के एसओ विष्णु गौतम अपने औफिस में बैठे थे. तभी सुबह करीब 10 बजे एक युवक उन से मिलने आया. वह बेहद घबराया हुआ था. गौतम ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बैठ जाने के बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कुछ परेशान लग रहे हो? जो भी बात है, बताओ.’’

एसओ की बात सुन कर युवक बोला, ‘‘सर, मेरा नाम सोमेश है. मैं धरमंगदपुर गांव में रहता हूं. रात को किसी ने मेरे पिता और मेरी 4 साल की भांजी की हत्या कर दी है. आप जल्दी मेरे साथ चलें.’’

मामला 2-2 हत्याओं का था, इसलिए एसओ विष्णु गौतम तुरंत पुलिस फोर्स के साथ चल दिए. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. धरमंगदपुर गांव थाने से कोई 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगाउस समय घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ जुटी थी. घर में महिलाओं के रोने से कोहराम मचा था. एसओ मकान की दूसरी मंजिल पर स्थित कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश घर के मुखिया बालेश्वर पांडेय की थी और दूसरी मासूम पलक कीदेख कर लग रहा था कि बालेश्वर के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. जिस से उन का सिर फट गया था और  ज्यादा खून बहने से उन की मौत हो गई थी.

जबकि पलक के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. शायद उस का गला घोंटा गया था. कमरे के अंदर खून फैला था और खून से सनी एक फुंकनी पड़ी थी. बालेश्वर की उम्र 60 साल के आसपास थी जबकि पलक 4 साल की थी. एसओ विष्णु गौतम मौके का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी त्रिवेणी सिंह, एएसपी नेपाल सिंह तथा सीओ भास्कर वर्मा भी वहां गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. फोरैंसिक टीम ने वहां से सबूत इकट्ठे किए. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद बालेश्वर पांडेय के बेटे सोमेश से बात की. एसपी के निर्देश पर एसओ ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद एसओ विष्णु गौतम ने मृतक की पत्नी मंजू पांडेय से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘बीती रात 8 बजे हम सब ने मिल कर खाना खाया. इस के बाद पति बालेश्वर तथा नातिन पलक दूसरी मंजिल पर बने कमरे में सोने चले गए. बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू भी छत पर जा कर सो गया. वह, मैं और बेटी पूनम नीचे पर बने कमरे में जा कर सो गए. सुबह होने पर पति नहीं जागे तो मैं पूनम के साथ उन्हें जगाने पहुंची. जैसे ही मैं उन के कमरे में दाखिल हुई, चीख निकल गई. दोनों की वहां लाशें पड़ी थीं.’’

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारे पति और नातिन की हत्या किस ने की है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसओ ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है. उन की तो किसी से दुश्मनी थी और ही किसी से लेनदेन का झगड़ा था.’’ मंजू ने जवाब दिया.

पूनम ने बताया, ‘‘साहब, मैं कई महीने से मायके में अपनी बेटी पलक के साथ रह रही हूं. पलक वैसे तो मेरे पास सोती थी, लेकिन कल रात वह नाना के साथ सोने की जिद करने लगी थी. जिद पकड़ने पर पिताजी उसे अपने साथ ले गए थे.’’

‘‘तुम्हारे पिता बेटी का कातिल कौन हो सकता है? तुम्हें किसी पर संदेह है?’’ एसओ ने पूनम से पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर कोई शक नहीं है. मैं नहीं जानती कि इन दोनों को किस ने और क्यों मारा है?’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

एसओ ने इस के बाद सोमेश से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो उस की मां और बहन ने बताया था. इस के बाद विष्णु गौतम ने पड़ोसियों से बात की तो पता चला कि बालेश्वर पांडेय रिटायर्ड फौजी था. वह शराब का आदी था. उस का अपनी बहू यानी सोमेश की पत्नी से कोई चक्कर चल रहा था. इस बात को ले कर सोमेश का अपने पिता से अकसर झगड़ा होता रहता था. बीती रात भी उस का अपने बाप से झगड़ा हुआ था. एसओ विष्णु गौतम के लिए यह जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. सोमेश उर्फ सोनू शक के घेरे में आया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले जा कर उस से इस दोहरे मर्डर के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह उन के सवालों के जाल में उलझ गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि दोनों हत्याएं उस ने ही की थीं. हालात ऐसे बन गए कि उसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली

औरैया जिले की विधूना तहसील के अंतर्गत एक गांव है धरमंगदपुर. यह गांव बेला विधून मार्ग पर बेला से 4 किलोमीटर दूर बसा हुआ है. पहले यह गांव उजाड़ था लेकिन जब से बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया हुईं, तब से गांव संपन्नता की ओर बढ़ने लगा. इस गांव के ज्यादातर लोग किसान हैं. कुछ लोग गल्ले का व्यापार करते हैं तो कुछ दूध के व्यवसाय से भी जुडे़ हैं. इसी धरमंगदपुर गांव में बालेश्वर पांडेय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मंजू के अलावा 3 बेटे सोमेश उर्फ सोनू, उमेश उर्फ मोनू, नीरज उर्फ छोटू तथा 2 बेटियां नीलम पूनम थीं. बालेश्वर पांडेय मूलरूप से इटावा जिले के सहसों थाना क्षेत्र के गांव बल्लो गाढि़या का रहने वाला था. वह सेना में नौकरी करता था.

फौज से रिटायर होने के बाद उस ने अपने गांव में एक आलीशान मकान बनवाया था. इस के अलावा कुछ खेती की जमीन भी खरीद ली थी. कुल मिला कर वह साधनसंपन्न था. गांव में उस की तूती बोलती थी. बालेश्वर पांडेय अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. बेटों में सोमेश उर्फ सोनू बड़ा था. वह बचपन से ही गांव छोड़ कर चला गया था. कई सालों तक वह एक शहर से दूसरे शहर की खाक छानता रहा. उस के बाद गांव कर रहने लगाउस ने गांव के आवारा नशेबाज लड़कों से दोस्ती कर ली थी. फौजी बालेश्वर इन आवारों लड़कों से नफरत करता था. वह सोनू के साथसाथ उन्हें भी फटकारता रहता था. जिस से सोमेश की अपने पिता से अकसर तकरार होती रहती थी. उस का छोटा बेटा नीरज उर्फ छोटू इटारसी में रह कर पढ़ाई कर रहा था.

उमेश उर्फ मोनू भाइयों में मंझला था. उस का मन तो पढ़ाई में लगता था और ही किसानी में. बालेश्वर ने सोचा कहीं मोनू गलत रास्ते पर चला जाए, इसलिए उन्होंने उस का ब्याह सीमा से करा दिया था. सीमा और मोनू ने बडे़ प्यार से जिंदगी का सफर शुरू किया. धीरेधीरे 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. पर 5 वर्ष बीतने के बावजूद सीमा मां नहीं बन सकी. इस का मलाल सीमा को भी था और उस की सास मंजू को भी. सीमा को ससुराल में किसी प्रकार की कमी नहीं थी. पर उसे अब 2 चिंताएं सताने लगी थीं. एक तो उस की गोद सूनी थी, दूसरी उस का पति निठल्ला था. वह कोई कामकाज नहीं करता था. सीमा अपने खर्च के लिए सासससुर पर ही निर्भर थी. सीमा ने पहले प्यार से फिर सख्त लहजे में पति को समझाया कि वह शहर जा कर कोई नौकरी करे.

पत्नी के सख्त रुख से मोनू परेशान रहने लगा. अब दोनों के बीच दूरियां बनने लगी थीं. धीरेधीरे उमेश की हालत पागलों जैसी हो गई. वह कभी घर आता तो कभी मंदिर के चबूतरे पर ही रात बिता देता था. बालेश्वर और उस की पत्नी मंजू बेटे की इस हालत पर गंभीर थे. वह उस का इलाज भी करा रहे थे और झाडफूंक भी. उन्हें शक था कि उमेश को कोई शैतानी ताकत परेशान कर रही है. इसी के चलते एक रोज उमेश गुम हो गया. बालेश्वर ने उस की हर संभावित जगह पर तलाश की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उमेश उर्फ मोनू को गुम हुए कई साल बीत गए. घर वाले भी उसे भूलने लगे. सीमा को भी पति के जाने का कोई खास दुख था, क्योंकि उस के रहते भी उसे कोई सुख नहीं था. पहले भी वह सासससुर पर निर्भर थी, वही हाल अब भी था. अत: वह पूरी तरह सासससुर की सेवा में जुट गई.

मंजू अकसर बीमार रहती थी. घर की सारी जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर गई थी. सीमा ने अब ससुर के सामने लंबा घूंघट करना भी छोड़ दिया था. अब वह सिर्फ हलका परदा करती थी. बेटे के घर से गायब हो जाने के बाद बालेश्वर की नजर बहू सीमा पर पड़ने लगी थी. बालेश्वर पांडेय फौजी था. वह शराब का भी शौकीन था. एक शाम बालेश्वर मल्हौसी बाजार गया, वहां उस ने शराब के ठेके पर जम कर शराब पी. फिर मस्ती के आलम में झूमता हुआ देर रात घर पहुंचा. मंजू बीमार होने के कारण जल्दी सो गई थी. बालेश्वर ने घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. फिर कच्ची नींद से उठी सीमा अपने कमरे में सोने चली गई. इधर बालेश्वर कमरे के बाहर पड़ी चारपाई पर जा कर बैठ गया.

लालटेन की रोशनी में वहां से सीमा के कमरे के अंदर का नजारा साफ दिख रहा था. बालेश्वर की नीयत में खोट गया. वह धीरे से उठा, पत्नी मंजू के कमरे में झांक कर देखा तो वह चादर ताने गहरी नींद में थी. वहां से मुड़ कर बालेश्वर सीमा के पलंग के पास खड़ा हुआ. कुछ देर तक वह सीमा का चेहरा ताकता रहा. फिर उस का गाल सहलाने लगा. किसी के स्पर्श का अहसास हुआ तो सीमा जाग गई. बालेश्वर ने तुरंत अपना हाथ खींच लिया और फुसफुसा कर बोला, ‘‘बहू, जरा उठ कर मेरे लिए खाना तो परोस दे.’’

सीमा की आंखें नींद से बोझिल थीं, इसलिए वह ससुर की हरकत की गंभीरता समझ नहीं पाई. वह उठी और रसोई में चली गई. बालेश्वर भी पीछेपीछे वहां जा पहुंचा. एकाएक वह सीमा का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था लेकिन क्या करूं, जगाना ही पड़ा. जब तक खाने पर तेरा हाथ नहीं लगता, स्वाद नहीं आता.’’ बालेश्वर बेहयाई से हंसा.

सीमा ससुर की इस हरकत पर दूर जा कर खड़ी हो गई. उस ने चुपचाप ससुर को खाना परोसा और उस से बचती हुई रसोई के बाहर निकलने लगी. तभी बालेश्वर ने फिर से अश्लील हरकत कर दी और बोला, ‘‘एक लोटा पानी भी तो देती जा बहू.’’

ससुर की बदनीयती देख कर सीमा को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुपचाप गुस्सा पी गई और पानी का लोटा रख कर अपने कमरे में कर पलंग पर लेट गई. काफी देर तक पड़ीपड़ी वह सोचती रही कि आज ससुर को अचानक क्या हो गया, जो इस तरह की हरकत कर रहे हैं. बालेश्वर ने उस के साथ उस रात दोबारा छेड़छाड़ नहीं की तो सीमा ने सोचा कि शायद नशे में होने की वजह से वह ऐसी हरकत कर बैठे होंगे. पर ऐसा सोचना उस की भूल थी. अब बालेश्वर जब भी उसे अकेली पाता, कहीं कहीं उस के बदन पर हाथ फेर देता था. एक शाम बालेश्वर फिर शराब पी कर आया. रात गहराने लगी तो उस ने एक नजर बीवी पर डाली. वह खर्राटे भर रही थी. यह देख उस की बांछें खिल उठीं. उस ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और सिर्फ कच्छा बनियान पहने सीमा के पलंग पर जा पहुंचा.

सीमा उस के इरादों से अनजान नींद में बेसुध पड़ी थी. बालेश्वर उस की बगल में लेट गया और उस के कामुक अंगों को सहलाने लगा. सीमा नींद से जागी और उठ कर बैठने को हुई तो बालेश्वर ने उसे दबोच लिया और कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘ताकत दिखाने से कोई फायदा नहीं मेरी रानी. अच्छा यही होगा कि चुपचाप ऐसे ही पड़ी रहो. तुम मुझे खुश कर दोगी तो मैं भी जिंदगी भर तुम्हें खुश रखूंगा. रानी बन कर रहना है तो मेरी बात मान लो.’’

सीमा ससुर की बांहों से छूटने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं पिताजी, मुझे छोड़ दो.’’

सीमा गिड़गिड़ाती रही. इज्जत की दुहाई देती रही, पर बालेश्वर पर तो हवस का शैतान सवार था. उस ने अपनी कोशिश जारी रखी. उस की हरकतों से सीमा की सीमाएं भी पिघलने लगीं. वह भी कई सालों से पुरुष सुख से वंचित थी. अंतत: उस ने विरोध करना बंद कर दिया. इस के बाद ससुरबहू के बीच एक नापाक रिश्ता बन गया. उस रात अनीति का पहला अध्याय लिखा गया, तो यह सिलसिला ही बन गया. बालेश्वर बीवी को नींद की गोलियां खिला देता. जब मंजू गहरी नींद में सो जाती तो वह बहू की सेज सजाने पहुंच जाता. सीमा भी उस का भरपूर सहयोग करती थी.

ऐसे काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. ससुरबहू की गतिविधियों से पड़ोसियों को शक हुआ तो धीरेधीरे उन की यह बात फैलने लगी. मंजू के कानों में बात पड़ी तो उसे यकीन नहीं हुआ. फिर भी उस ने बहू सीमा से इस बाबत सवालजवाब किया तो सीमा बोली, ‘‘अम्मा, तुम सठिया गई हो जो सुनीसुनाई बातों पर यकीन करती हो. पड़ोसी तुम्हारे कान इसलिए भर रहे हैं ताकि घर में कलह हो.’’

बालेश्वर का बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू कई साल बाद घर लौट आया. घर में रह कर वह खेती के काम देखने लगा. जब सोमेश को पता चला कि उस के छोटे भाई की पत्नी सीमा के अपने ससुर से नाजायज संबंध हैं तो उस का माथा ठनका. लेकिन वह सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहता था. वह पिता छोटे भाई की पत्नी सीमा पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम यह हुआ कि एक रात सोमेश ने सीमा को आधी रात के बाद पिता के कमरे से बाहर निकलते देख लिया. अब उस का शक यकीन में बदल गया. सोमेश ने जब इन नाजायज रिश्तों के बारे में सीमा से जवाब तलब किया तो उस ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘जो पूछना है अपने बाप से पूछो. घर उस का है, मुझे तो उस ने घर की दासी समझ रखा है.’’

सोमेश ने बाप से जब मर्यादा में रहने को कहा तो बालेश्वर भड़क गया, ‘‘तू मुझे नसीहत दे रहा है? यह मेरा घर है, जायदाद मेरी है. ज्यादा बोला तो घर से बेदखल कर दूंगा. एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अपनी औकात में रह.’’

सोमेश उस समय खामोश हो गया. लेकिन नफरत की आग उस के सीने में दहकने लगी. सोमेश की छोटी बहन पूनम अपने पति नीरज दीक्षित से लड़झगड़ कर अपनी बेटी पलक के साथ मायके गई थी. पूनम के जाने से ससुरबहू के संबंधों में खलल पड़ने लगा था. नाजायज रिश्तों को ले कर बापबेटे में ठन गई थी. जब घर में कलह बढ़ी तो सीमा तुनक कर अपने मायके चली गई. बालेश्वर सीमा को समझाबुझा कर वापस लाना चाहता था, लेकिन सोमेश इस का विरोध कर रहा था. सीमा को ले कर सोमेश बालेश्वर में अकसर झगड़ा होने लगा था. गुस्से में बालेश्वर बेटे सोमेश को पीट भी देता था.

8 अक्तूबर, 2018 की देर शाम भी बालेश्वर सोनू में सीमा को ले कर तूतू मैंमैं हुई. फिर बात इतनी बढ़ी कि बालेश्वर ने सोमेश की पिटाई कर दी. इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. सोमेश ने सोचा आज यह पापी बहू को हवस का शिकार बना रहा है, कल को बेटी को भी हवस का शिकार बना सकता है. अत: उस का जिंदा रहना उचित नहीं है. ज्योंज्यों रात गहराती जा रही थी, त्योंत्यों सोमेश का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. वह छत पर लेटा था लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. आधी रात के बाद वह उठा. पहले वह रसोई में गया. वहां से लोहे की फुंकनी ले कर बाप के कमरे में जा पहुंचा

बालेश्वर गहरी नींद में सो रहा था. उसी के बगल में बहन पूनम की मासूम बेटी पलक सो रही थी. कमरे में पहुंचते ही सोमेश ने बाप के सिर पर फुंकनी से कई प्रहार किए. बालेश्वर चीखा और सदा के लिए शांत हो गया. नाना की चीख से पलक की नींद खुल गई. उस ने मामा का रौद्र रूप देखा तो चीखने लगी. सोमेश ने सोचा कि पलक ने उसे हत्या करते देख लिया है, वह बता देगी तो वह पकड़ा जाएगा. विवेक खो बैठे सोमेश के हाथ पलक की गरदन पर पहुंच गए और उस ने गला घोंट कर उसे भी मार डाला. डबल मर्डर करने के बाद सोमेश खून सनी फुंकनी कमरे में ही छोड़ कर घर से बाहर गया. घर से कुछ दूरी पर तालाब था. वहां जा कर उस ने खून सने हाथपैर धोए, फिर वापस कर छत पर सो गया. सुबह होने पर मंजू पूनम कमरे में पहुंचीं तो उन्हें डबल मर्डर की जानकारी हुई.

फिर सोमेश भी कुछ देर रोनेधोने का नाटक करता रहा और बाद में उस ने थाना बेला जा कर पुलिस को सूचना दे दी. सोमेश उर्फ सोनू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 10 अक्तूबर, 2018 को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Crime : मौसी बनी बच्चों की कातिल

Family Crime : राधा ने बहन के पति संजय से आशिकी ही नहीं की बल्कि उस से शादी भी कर ली. लेकिन उस की इस विषैली आशिकी ने उसी की जिंदगी में जहर घोल दिया. उस के साथ जो हुआ वह…

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी. राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी. इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था. विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया. विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया. घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया. सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली. सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी. राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था. संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही. दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी. संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो. फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा. उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी. लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी. देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की. आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली. अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं. तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया. तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी. इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए. सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.

परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी. 23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी. संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’

जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी. अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’

सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’

उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी. 19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद  राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’

कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?

ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई. उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी. इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया. राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.

इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’

लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया. इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.

23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है. यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.

केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया. घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा. घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.

संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी. राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी. घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.

राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस  को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी. राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई. पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया. 8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’

सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है. अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए. आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी. जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.

बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है. जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.

राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.